Book Title: Unadigana Sutra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Education Society Press
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034211/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “અહો! શ્રુતજ્ઞાનમ્” ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર ૧૫૪ ઉણાદી સૂત્રો ઓફ હેમચંદ્રાચાર્ય : દ્રવ્ય સહાયક : શાસન સમ્રાટ પૂ. આ. શ્રી નેમિસૂરીશ્વરજી મ.સા. સમુદાયના પૂ. આ. શ્રી શીલચંદ્રસૂરીશ્વરજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી શ્રી ગોધરા જૈન સંઘ-ગોધરાના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી : સંયોજક : શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૫ (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૯ ઈ. ૨૦૧૩ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार પૃષ્ઠ ___84 ___810 010 011 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६५ (ई. 2009) सेट नं.-१ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ ता-टी515ार-संपES | 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी | पू. विक्रमसूरिजी म.सा. 238 | 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी | पू. जिनदासगणि चूर्णीकार 286 003 श्री अर्हद्गीता-भगवद्गीता प. मेघविजयजी गणि म.सा. 004 | श्री अर्हच्चूडामणि सारसटीकः पू. भद्रबाहुस्वामी म.सा. | 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं पू. पद्मसागरजी गणि म.सा. | 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम् | पू. मानतुंगविजयजी म.सा. | 007 | अपराजितपृच्छा श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्प स्मृति वास्तु विद्यायाम् श्री नंदलाल चुनिलाल सोमपुरा 850 | 009 | शिल्परत्नम् भाग-१ श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री 322 शिल्परत्नम् भाग-२ श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री 280 प्रासादतिलक श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 162 | 012 | काश्यशिल्पम् श्री विनायक गणेश आपटे 302 प्रासादमजरी श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 156 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र श्री नारायण भारती गोंसाई 352 | शिल्पदीपक श्री गंगाधरजी प्रणीत 120 | वास्तुसार श्री प्रभाशंकर ओघडभाई दीपार्णव उत्तरार्ध श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 110 જિનપ્રાસાદ માર્તણ્ડ શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા 498 | जैन ग्रंथावली श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फ्रन्स 502 | હીરકલશ જૈન જ્યોતિષ શ્રી હિમતરામ મહાશંકર જાની 021 न्यायप्रवेशः भाग-१ श्री आनंदशंकर बी. ध्रुव 022 | दीपार्णव पूर्वार्ध श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-१ पू. मुनिचंद्रसूरिजी म.सा. 452 024 | अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-२ श्री एच. आर. कापडीआ 500 025 | प्राकृत व्याकरण भाषांतर सह श्री बेचरदास जीवराज दोशी 454 026 | तत्त्पोपप्लवसिंहः | श्री जयराशी भट्ट, बी. भट्टाचार्य 188 | 027 | शक्तिवादादर्शः | श्री सुदर्शनाचार्य शास्त्री 214 | क्षीरार्णव श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 414 029 | वेधवास्तु प्रभाकर श्री प्रभाशंकर ओघडभाई ___192 013 454 226 640 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 824 288 30 | શિન્જરત્નાકર प्रासाद मंडन श्री सिद्धहेम बृहदवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-१ | श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-२ श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-३ श्री नर्मदाशंकर शास्त्री | पं. भगवानदास जैन पू. लावण्यसूरिजी म.सा. પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા. 520 034 (). પૂ. ભાવસૂરિ મ.સા. श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-3 (२) 324 302 196 039. 190 040 | તિલક 202 480 228 60 044 218 036. | श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-५ 037 વાસ્તુનિઘંટુ 038 | તિલકમન્નરી ભાગ-૧ તિલકમગ્નરી ભાગ-૨ તિલકમઝરી ભાગ-૩ સખસન્ધાન મહાકાવ્યમ્ સપ્તભફીમિમાંસા ન્યાયાવતાર વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વલોક સામાન્ય નિર્યુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક 046 સપ્તભીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા નયોપદેશ ભાગ-૧ તરષિણીકરણી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી ન્યાયસમુચ્ચય ચાદ્યાર્થપ્રકાશઃ દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ 053 બૃહદ્ ધારણા યંત્ર 05 | જ્યોતિર્મહોદય પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા. પૂ. ભાવસૂરિન મ.સા. પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) પૂ. લાવણ્યસૂરિજી. શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. દર્શનવિજયજી પૂ. દર્શનવિજયજી સ. પૂ. અક્ષયવિજયજી 045 190 138 296 (04) 210 274 286 216 532 113 112 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર ભાષા | 218. | 164 સંયોજક – બાબુલાલ સરેમલ શાહ શાહ વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન हीशन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, महावाह-04. (मो.) ८४२७५८५८०४ (यो) २२१३ २५४३ (5-मेल) ahoshrut.bs@gmail.com महो श्रुतज्ञानमjथ द्धिार - संवत २०७5 (5. २०१०)- सेट नं-२ પ્રાયઃ જીર્ણ અપ્રાપ્ય પુસ્તકોને સ્કેન કરાવીને ડી.વી.ડી. બનાવી તેની યાદી. या पुस्तsी www.ahoshrut.org वेबसाईट ५२थी ugl stGirls sी शाशे. ક્રમ પુસ્તકનું નામ ता-टी815२-संपES પૃષ્ઠ 055 | श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहदन्यास अध्याय-६ | पू. लावण्यसूरिजी म.सा. 296 056 | विविध तीर्थ कल्प प. जिनविजयजी म.सा. 160 057 लारतीय टन भए। संस्कृति सनोमन पू. पूण्यविजयजी म.सा. 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः श्री धर्मदत्तसूरि 202 059 | व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका श्री धर्मदत्तसूरि જૈન સંગીત રાગમાળા श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी | 306 061 | चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश) | श्री रसिकलाल एच. कापडीआ 062 | व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय |सं श्री सुदर्शनाचार्य 668 063 | चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी सं पू. मेघविजयजी गणि 516 064| विवेक विलास सं/. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य 268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध | पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 | सन्मतितत्त्वसोपानम् | सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 420 06764शमाता वही गुशनुवाह गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा. 638 068 | मोहराजापराजयम् सं पू. चतुरविजयजी म.सा. 192 069 | क्रियाकोश सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया 428 070 | कालिकाचार्यकथासंग्रह सं/. | श्री अंबालाल प्रेमचंद 406 071 | सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका | सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य 308 072 | जन्मसमुद्रजातक सं/हिं श्री भगवानदास जैन 128 मेघमहोदय वर्षप्रबोध सं/हिं श्री भगवानदास जैन 532 on જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો १४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी 376 060 322 073 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '075 374 238 194 192 254 260 | જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧ 16 | જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 77) સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 13 ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 79 | શિલ્પ ચિન્તામણિ ભાગ-૧ 080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 081 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083. આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ કલ્યાણ કારક 085 | વિનોરન શોર કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 088 | હસ્તસગ્નીવનમ 238 260 ગુજ. | | श्री साराभाई नवाब ગુજ. | શ્રી સYTમારું નવાવ ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવીન ગુજ. | શ્રી સારામારું નવીન ગુજ. | શ્રી મનસુબાન મુવામન ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારમ ગુજ. | . વન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પર્વનાથ શત્રી सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा ગુજ. | શ્રી લેવલાસ ગીવરાન કોશી ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરીન લોશી સ. પૂ. મેનિયની સં. પૂ.વિનયની, પૂ. पुण्यविजयजी आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 114 '084. 910 436 336 087 2૩૦ 322 (089/ 114 એન્દ્રચતુર્વિશતિકા સમ્મતિ તર્ક મહાર્ણવાવતારિકા 560 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार- संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। पुस्तक नाम संपादक / प्रकाशक मोतीलाल लाघाजी पुना क्रम कर्त्ता / टीकाकार 91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी 92 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 93 मोतीलाल लाघाजी पुना स्याद्वाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी 94 मोतीलाल लाघाजी पुना स्याद्वाद रत्नाकर भाग-४ वादिदेवसूरिजी 95 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 96 | पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी साराभाई नवाब टी. गणपति शास्त्री टी. गणपति शास्त्री वेंकटेश प्रेस 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग - १ 98 | समराङ्गण सूत्रधार भाग - २ 99 भुवनदीपक 100 गाथासहस्त्री 101 भारतीय प्राचीन लिपीमाला 102 शब्दरत्नाकर 103 सुबोधवाणी प्रकाश 104 लघु प्रबंध संग्रह 105 जैन स्तोत्र संचय - १-२-३ 106 सन्मति तर्क प्रकरण भाग १,२,३ 107 सन्मति तर्क प्रकरण भाग-४, ५ 108 न्यायसार न्यायतात्पर्यदीपिका 109 जैन लेख संग्रह भाग - १ 110 जैन लेख संग्रह भाग-२ 111 जैन लेख संग्रह भाग-३ 112 | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग - १ 113 जैन प्रतिमा लेख संग्रह 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह 115 | प्राचिन लेख संग्रह - १ 116 बीकानेर जैन लेख संग्रह 117 प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग - १ 118 प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग - २ 119 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो - १ 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो २ 121 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ 122 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल - १ 123 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-४ 124 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-५ 125 | कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत इन्स्क्रीप्शन्स 126 | विजयदेव माहात्म्यम् भोजदेव भोजदेव पद्मप्रभसूरिजी समयसुंदरजी गौरीशंकर ओझा साधुसुन्दरजी न्यायविजयजी जयंत पी. ठाकर माणिक्यसागरसूरिजी सिद्धसेन दिवाकर सिद्धसेन दिवाकर सतिषचंद्र विद्याभूषण पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर कांतिविजयजी दौलतसिंह लोढा विशालविजयजी विजयधर्मसूरिजी अगरचंद नाहटा जिनविजयजी जिनविजयजी गिरजाशंकर शास्त्री गिरजाशंकर शास्त्री गिरजाशंकर शास्त्री पी. पीटरसन पी. पीटरसन पी. पीटरसन पी. पीटरसन जिनविजयजी भाषा सं. सं. सं. सं. सं. सं./अं सं. सं. सं. सं. हिन्दी सं. सं./गु सं. सं, सं. सं. सं. सं./हि पुरणचंद्र नाहर सं./हि पुरणचंद्र नाहर सं./हि पुरणचंद्र नाहर सं./ हि जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार सं./हि अरविन्द धामणिया सं./गु सं./गु सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु अं. सुखलालजी मुन्शीराम मनोहरराम हरगोविन्ददास बेचरदास हेमचंद्राचार्य जैन सभा ओरीएन्ट इन्स्टीट्युट वरोडा आगमोद्धारक सभा अं. अं. अं. सं. सुखलाल संघवी सुखलाल संघवी एसियाटीक सोसायटी यशोविजयजी ग्रंथमाळा यशोविजयजी ग्रंथमाळा नाहटा धर्स जैन आत्मानंद सभा जैन आत्मानंद सभा फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा रॉयल एशियाटीक जर्नल रॉयल एशियाटीक जर्नल रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपा. जैन सत्य संशोधक पृष्ठ 272 240 254 282 118 466 342 362 134 70 316 224 612 307 250 514 454 354 337 354 372 142 336 364 218 656 122 764 404 404 540 274 414 400 320 148 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार 754 194 3101 276 69 100 136 266 244 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६८ (ई. 2012) सेट नं.-४ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम | पुस्तक नाम कर्ता / संपादक भाषा | प्रकाशक 127 | महाप्रभाविक नवस्मरण साराभाई नवाब गुज. साराभाई नवाब 128 | जैन चित्र कल्पलता साराभाई नवाब गुज. साराभाई नवाब 129 | जैन धर्मनो प्राचीन इतिहास भाग-२ हीरालाल हंसराज गुज. हीरालाल हंसराज 130 | ओपरेशन इन सर्च ओफ सं. मेन्यु. भाग-६ पी. पीटरसन अंग्रेजी | एशियाटीक सोसायटी 131 | जैन गणित विचार कुंवरजी आणंदजी गुज. जैन धर्म प्रसारक सभा 132 | दैवज्ञ कामधेनु (प्राचिन ज्योतिष ग्रंथ) शील खंड सं. | ब्रज. बी. दास बनारस 133 || | करण प्रकाशः ब्रह्मदेव सं./अं. | सुधाकर द्विवेदि 134 | न्यायविशारद महो. यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृति संग्रह | यशोदेवसूरिजी गुज. | यशोभारती प्रकाशन 135 | भौगोलिक कोश-१ डाह्याभाई पीतांबरदास गुज. | गुजरात बर्नाक्युलर सोसायटी 136 | भौगोलिक कोश-२ डाह्याभाई पीतांबरदास गुज. | गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी 137 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-१ अंक-१,२ जिनविजयजी हिन्दी | जैन साहित्य संशोधक पुना 138 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-१ अंक-३, ४ जिनविजयजी हिन्दी । जैन साहित्य संशोधक पुना 139 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-२ अंक-१, २ जिनविजयजी हिन्दी | जैन साहित्य संशोधक पुना 140 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-२ अंक-३, ४ जिनविजयजी हिन्दी | जैन साहित्य संशोधक पुना 141 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-३ अंक-१,२ ।। जिनविजयजी हिन्दी | जैन साहित्य संशोधक पुना 142 | जैन साहित्य संशोधक वर्ष-३ अंक-३, ४ जिनविजयजी हिन्दी | जैन साहित्य संशोधक पुना 143 | नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-१ सोमविजयजी गुज. शाह बाबुलाल सवचंद 144 | नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-२ सोमविजयजी | शाह बाबुलाल सवचंद 145 | नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-३ सोमविजयजी गुज. शाह बाबुलाल सवचंद 146 | भाषवति शतानंद मारछता सं./हि | एच.बी. गुप्ता एन्ड सन्स बनारस 147 | जैन सिद्धांत कौमुदी (अर्धमागधी व्याकरण) रत्नचंद्र स्वामी प्रा./सं. | भैरोदान सेठीया 148 | मंत्रराज गुणकल्प महोदधि जयदयाल शर्मा हिन्दी | जयदयाल शर्मा 149 | फक्कीका रत्नमंजूषा-१, २ कनकलाल ठाकूर सं. हरिकृष्ण निबंध 150 | अनुभूत सिद्ध विशायंत्र (छ कल्प संग्रह) मेघविजयजी सं./गुज | महावीर ग्रंथमाळा 151 | सारावलि कल्याण वर्धन सं. पांडुरंग जीवाजी 152 | ज्योतिष सिद्धांत संग्रह विश्वेश्वरप्रसाद द्विवेदी सं. बीजभूषणदास बनारस 153| ज्ञान प्रदीपिका तथा सामुद्रिक शास्त्रम् रामव्यास पान्डेय सं. | जैन सिद्धांत भवन नूतन संकलन | आ. चंद्रसागरसूरिजी ज्ञानभंडार - उज्जैन हस्तप्रत सूचीपत्र हिन्दी | श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार २ | श्री गुजराती श्वे.मू. जैन संघ-हस्तप्रत भंडार - कलकत्ता | हस्तप्रत सूचीपत्र हिन्दी | श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार 274 168 282 182 गुज. 384 376 387 174 320 286 272 142 260 232 160 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार | पृष्ठ 304 122 208 70 310 462 512 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६९ (ई. 2013) सेट नं.-५ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। | क्रम | पुस्तक नाम कर्ता/संपादक विषय | भाषा संपादक/प्रकाशक 154 | उणादि सूत्रो ओफ हेमचंद्राचार्य | पू. हेमचंद्राचार्य | व्याकरण | संस्कृत जोहन क्रिष्टे 155 | उणादि गण विवृत्ति | पू. हेमचंद्राचार्य व्याकरण संस्कृत पू. मनोहरविजयजी 156 | प्राकृत प्रकाश-सटीक भामाह व्याकरण प्राकृत जय कृष्णदास गुप्ता 157 | द्रव्य परिक्षा और धातु उत्पत्ति | ठक्कर फेरू धातु संस्कृत /हिन्दी | भंवरलाल नाहटा 158 | आरम्भसिध्धि - सटीक पू. उदयप्रभदेवसूरिजी ज्योतीष संस्कृत | पू. जितेन्द्रविजयजी 159 | खंडहरो का वैभव | पू. कान्तीसागरजी शील्प | हिन्दी | भारतीय ज्ञानपीठ 160 | बालभारत पू. अमरचंद्रसूरिजी | काव्य संस्कृत पं. शीवदत्त 161 | गिरनार माहात्म्य दौलतचंद परषोत्तमदास तीर्थ संस्कृत /गुजराती | जैन पत्र 162 | गिरनार गल्प पू. ललितविजयजी | तीर्थ संस्कृत/गुजराती | हंसकविजय फ्री लायब्रेरी 163 | प्रश्नोत्तर सार्ध शतक पू. क्षमाकल्याणविजयजी | प्रकरण हिन्दी | साध्वीजी विचक्षणाश्रीजी 164 | भारतिय संपादन शास्त्र | मूलराज जैन साहित्य हिन्दी जैन विद्याभवन, लाहोर 165 | विभक्त्यर्थ निर्णय गिरिधर झा संस्कृत चौखम्बा प्रकाशन 166 | व्योम बती-१ शिवाचार्य न्याय संस्कृत संपूर्णानंद संस्कृत युनिवर्सिटी 167 | व्योम वती-२ शिवाचार्य न्याय संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय | 168 | जैन न्यायखंड खाद्यम् | उपा. यशोविजयजी न्याय संस्कृत /हिन्दी | बद्रीनाथ शुक्ल 169 | हरितकाव्यादि निघंटू | भाव मिथ आयुर्वेद संस्कृत /हिन्दी | शीव शर्मा 170 | योग चिंतामणि-सटीक पू. हर्षकीर्तिसूरिजी | संस्कृत/हिन्दी | लक्ष्मी वेंकटेश प्रेस 171 | वसंतराज शकुनम् पू. भानुचन्द्र गणि टीका | ज्योतिष खेमराज कृष्णदास 172 | महाविद्या विडंबना पू. भुवनसुन्दरसूरि टीका | ज्योतिष | संस्कृत सेन्ट्रल लायब्रेरी 173 | ज्योतिर्निबन्ध । शिवराज | ज्योतिष | संस्कृत आनंद आश्रम 174 | मेघमाला विचार पू. विजयप्रभसूरिजी ज्योतिष संस्कृत/गुजराती | मेघजी हीरजी 175 | मुहूर्त चिंतामणि-सटीक रामकृत प्रमिताक्षय टीका | ज्योतिष | संस्कृत अनूप मिश्र 176 | मानसोल्लास सटीक-१ भुलाकमल्ल सोमेश्वर ज्योतिष ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट 177 | मानसोल्लास सटीक-२ भुलाकमल्ल सोमेश्वर | ज्योतिष संस्कृत ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट 178 | ज्योतिष सार प्राकृत भगवानदास जैन ज्योतिष प्राकृत/हिन्दी | भगवानदास जैन 179 | मुहूर्त संग्रह अंबालाल शर्मा ज्योतिष | गुजराती | शास्त्री जगन्नाथ परशुराम द्विवेदी 180 | हिन्दु एस्ट्रोलोजी पिताम्बरदास त्रीभोवनदास | ज्योतिष गुजराती पिताम्बरदास टी. महेता 264 144 256 75 488 | 226 365 न्याय संस्कृत 190 480 352 596 250 391 114 238 166 संस्कृत 368 88 356 168 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-380005. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७१ (ई. 2015) सेट नं.-६ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तकेwww.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम विषय | भाषा पृष्ठ पुस्तक नाम काव्यप्रकाश भाग-१ | संपादक / प्रकाशक पूज्य जिनविजयजी 181 | संस्कृत 364 182 काव्यप्रकाश भाग-२ 222 183 काव्यप्रकाश उल्लास-२ अने ३ 330 184 | नृत्यरत्न कोश भाग-१ 156 185 | नृत्यरत्र कोश भाग-२ ___ कर्ता / टिकाकार पूज्य मम्मटाचार्य कृत पूज्य मम्मटाचार्य कृत उपा. यशोविजयजी श्री कुम्भकर्ण नृपति श्री कुम्भकर्ण नृपति श्री अशोकमलजी | श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव 248 504 संस्कृत पूज्य जिनविजयजी संस्कृत यशोभारति जैन प्रकाशन समिति संस्कृत श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत /हिन्दी | श्री वाचस्पति गैरोभा संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत श्री मंगेश रामकृष्ण तेलंग गुजराती मुक्ति-कमल-जैन मोहन ग्रंथमाला 448 188 444 616 190 632 | नारद 84 | 244 श्री चंद्रशेखर शास्त्री 220 186 | नृत्याध्याय 187 | संगीरत्नाकर भाग-१ सटीक | संगीरत्नाकर भाग-२ सटीक 189 | संगीरत्नाकर भाग-३ सटीक संगीरनाकर भाग-४ सटीक 191 संगीत मकरन्द संगीत नृत्य अने नाट्य संबंधी 192 जैन ग्रंथो 193 | न्यायबिंदु सटीक 194 | शीघ्रबोध भाग-१ थी ५ 195 | शीघ्रबोध भाग-६ थी १० 196| शीघ्रबोध भाग-११ थी १५ 197 | शीघ्रबोध भाग-१६ थी २० 198 | शीघ्रबोध भाग-२१ थी २५ 199 | अध्यात्मसार सटीक 200 | छन्दोनुशासन 201 | मग्गानुसारिया संस्कृत हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा 422 हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा 304 श्री हीरालाल कापडीया पूज्य धर्मोतराचार्य पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य गंभीरविजयजी एच. डी. बेलनकर 446 |414 हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा संस्कृत/गुजराती | नरोत्तमदास भानजी 409 476 सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ 444 संस्कृत संस्कृत/गुजराती श्री डी. एस शाह | ज्ञातपुत्र भगवान महावीर ट्रस्ट 146 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-380005. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७२ (ई. 201६) सेट नं.-७ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची। पृष्ठ 285 280 315 307 361 301 263 395 क्रम पुस्तक नाम 202 | आचारांग सूत्र भाग-१ नियुक्ति+टीका 203 | आचारांग सूत्र भाग-२ नियुक्ति+टीका 204 | आचारांग सूत्र भाग-३ नियुक्ति+टीका 205 | आचारांग सूत्र भाग-४ नियुक्ति+टीका 206 | आचारांग सूत्र भाग-५ नियुक्ति+टीका 207 | सुयगडांग सूत्र भाग-१ सटीक 208 | सुयगडांग सूत्र भाग-२ सटीक 209 | सुयगडांग सूत्र भाग-३ सटीक 210 | सुयगडांग सूत्र भाग-४ सटीक 211 | सुयगडांग सूत्र भाग-५ सटीक 212 | रायपसेणिय सूत्र 213 | प्राचीन तीर्थमाळा भाग-१ 214 | धातु पारायणम् 215 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-१ 216 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-२ 217 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-३ 218 | तार्किक रक्षा सार संग्रह बादार्थ संग्रह भाग-१ (स्फोट तत्त्व निरूपण, स्फोट चन्द्रिका, 219 प्रतिपादिक संज्ञावाद, वाक्यवाद, वाक्यदीपिका) वादार्थ संग्रह भाग-२ (षट्कारक विवेचन, कारक वादार्थ, 220 | समासवादार्थ, वकारवादार्थ) | बादार्थ संग्रह भाग-३ (वादसुधाकर, लघुविभक्त्यर्थ निर्णय, 221 __ शाब्दबोधप्रकाशिका) 222 | वादार्थ संग्रह भाग-४ (आख्यात शक्तिवाद छः टीका) कर्ता / टिकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक | श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री मलयगिरि | गुजराती श्री बेचरदास दोशी आ.श्री धर्मसूरि | सं./गुजराती | श्री यशोविजयजी ग्रंथमाळा श्री हेमचंद्राचार्य | संस्कृत आ. श्री मुनिचंद्रसूरि श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती | श्री बेचरदास दोशी श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती | श्री बेचरदास दोशी श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती श्री बेचरदास दोशी आ. श्री वरदराज संस्कृत राजकीय संस्कृत पुस्तकालय विविध कर्ता संस्कृत महादेव शर्मा 386 351 260 272 530 648 510 560 427 88 विविध कर्ता । संस्कृत | महादेव शर्मा 78 महादेव शर्मा 112 विविध कर्ता संस्कृत रघुनाथ शिरोमणि | संस्कृत महादेव शर्मा 228 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ श्रीहेमचन्द्रसूरिविरचितमुणादिगणसूत्रं 1992 rafat I THE UNÅDIGANASÚTRA OF HEMACHANDRA. WITH THE AUTHOR'S OWN COMMENTARY. Edited by JOHANN KIRSTE. With an Appendix, containing a Verbal Index to the Anekarthasangrała, by Th. Zachariae. Wietna: ALFRED HÖLDER. Bombay: EDUCATION SOCIETY'S PRESS, BYCULLA. 1895. Ahol Shrutagyanam Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho! Shrutagyanam Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ALBRECHT WEBER UND DEM ANDENKEN AN W. D. WHITNEY Eewidmet Von der Commission der Kaiserlichen Akademie der Wissenschaften für die Herausgabe der Quellenschriften der Alt-Indischen Lexicographie. Aho! Shrutagyanam Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ahol Shrutagyanam Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Inscribed to ALBRECHT WEBER AND TO THE MEMORY OF W. D. WHITNEY By the Committee of the Imperial Academy, superintending the Publication of the sources of Indian Lexicography. Ahol Shrutagyanam Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho! Shrutagyanam Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE, The present edition of Hemachandra's Unādiganasūtra is based on the owing materials: I, MSS. of the Unüdiganasūtra. B., MS. Orient. fol. 1176 of the Royal Library of Berlin, see Prof. Weber, Catalogue, Vol. II, Part I., Nro. 1695. I would add to the Escription, given there, that 599 Sūtras have been given in the middle of e pages, and the remainder has been embodied with the Commentary, as ell as that this fact is mentioned in the Aryā verse, found at the end of he MS.: अन्तर्गतानि सूत्राण्येतानि पृथकृतानि पठनार्थम् । a aatrastania agaTÈALT II ? Il The date appears to be the Southern Vikrama year 1604, Srāvana badi 14, a Thursday, Nakshatra Tishya, and it corresponds on this supposition according to Dr. Schram's calculation to August 2, 1548, which was a Thursday. Pushya or Tishya was the Nakshatra during two-thirds of the Tithi mentioned. C., MS. Orient. fol. 740 of the Royal Library of Berlin, Weber, op. cit. Nro. 1682, containing Hemacliandra's Sabdānašāsana, Adhyāyas VVII, with the Laghuvritti and Chūrni (see below under III, 6). The text alone of the Uņādisūtras is appended to the second Pada of the fifth Adhyāya, filling fols. 148, b.-153, b. Fol. 1 49 is written by another hand, whereby the end of Sūtra 33, Sūtras 34–46, and the beginning of Sūtra 17 have been lost. Another lacuna extends from the end of Sūtra 57 to the beginning of Sūtra 61. Moreover, the Sūtras 70-76 and 181–183, which ought to occur on the same leaf are missing. The part of the MS. which gives the Uņādis is datod Samvat 1470. T., a MS. belonging to a Jaina library and obtained for me on loan from Mr. Bhagvāndās Kevaldās through the Committee of the Imp. Academy, which supervises the publication. It contains on 51 fols. numbered 1-51 and 650--700, both the text and the commentary, which are written continuously. It ends :___ इत्याचार्यहेमचन्द्रकृतं स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणं समाप्तमिति || छ || ग्रन्थानं शत २८०० अष्टाविंशतिशतानि || छ || संवत् १४७६ वर्षे मार्गशीर्ष FOTO TUTTO E lllll Ahol Shrutagyanam Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Srîpattana is Anbilväd or Pattan, the old capital of Gujarāt, and the date corresponds according to Dr. Schram's calculation to November 30, 1419, which was a Thursday. V., MS. I, 306 (I, 87703) fols. 15, presented by Ilofrath Bühler to the library of the Vienna University, and lent to me with the permission of the donor for this edition. The text, which is written in tho middle of the pages, ends:___ इति प्रभुश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचितमुणादिगणसूत्रं संपूर्णम् ।। संवत् १६३४ वर्षे आसु ०] शु० ५ वार सोमे लिखि || वा० श्रीहेमशीलगणिशिष्यमुनिविश्रामेण || शुभं भवतु कल्याणमस्तु । 'The commentary ends :-- इति उणादिगणसूत्रावचूरिः ।। संपूर्णा विजयशीलगणिनालेखि ॥ शुभं भवतु || छ || श्रीरस्तु || छ || श्रीमा ...... In accordance with the meaning of the title Arachūri, the glosses contai only an abstract of the fuller explanation in the two other MSS. B and moreover, they frequently differ from the latter by giving other synonym for the words etymologized. All these latter deviations have been entered in the Notes, while, of course, no mention has been made of the omissions Bat, in order to give an idea, how the author of the Avachūri has treated the commentary, I print here in parallel columns the text of the two version on the Sutras 191 and 699 :-- Edition. Vienna Ms. एभ्य आणक् प्रत्ययो भवति ॥ कृपौड् सामर्थे । कृपाण: खड्गः।।। विष सेचने । विषाणं शॉ करिदन्तश्च ।। वृषू सेचने । वृषाण: ।। षण्णाः देवाः युषि सेवने सौत्र विष० विषाणं शृंगं करिदंतश्च निषाद प्रागल्भ्ये । धृषाणो देवः ।। मृषू सहने च । मृषाण: ।। युषि दुहाण : मुखरः वृषाणादय: स्वप्रकृ सेवने सौत्रः । युषाणः ॥ दुहौंच जिघांसायाम् । दुहाणो मुखरः ॥ त्यर्थवाचिन: सर्वोपे कर्तरि कारिक ग्रहीश् उपादाने । गृहाणः ॥ वृषाणादयः स्वप्रकृत्यर्थवाचिनः सर्वेपि । विज्ञेयाः ॥ [१९१ ।। कर्तरि कारके विज्ञेयाः ॥ १९१ ।। एभ्य उरिः प्रत्ययो भवति ॥ मसैच परिणामे । मसरिर्मरीचिः॥ मुसुरि: मरीचि: असुरि: संग्राम असच क्षेपणे । असरिः संग्रामः ॥ घसं अदने । घसरिरग्निः ॥ ज- पार: आग्निः जारः समार अशनि: अरणि: क्रोधश्च । अंगा सूच् मोक्षणे । जसुरिः समाप्तिरनिररणिः क्रोधश्च ॥अगु गतौ । अ करशाखा ल अंगुलिः सहुरिः। गरिः करशाखा । लत्वे । अङ्गुलिः ॥ षहि मर्षणे । सहुरिः पृथिव्य- अयोधनः अनडान् रण: अंधका क्रोधनोनडान्संग्रामोन्धकारः सूर्यश्च ।। ६९९ ॥ सूर्यश्च ।। [६९९ ॥] In spite of the peculiarities shown by the MS. V its author seems have had before him a text closely allied to that given by the MSS. C: Aho I Shrutagyanam Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T, whereas the MS. B represents an independent version of the work, as will be shown in a special paper to be published in the Transactions of the Imperial Academy of Vienna.. B is the most correct of all the four MSS., although the letters of the commentary are very small and not so well written as those of the MS. T, besides that it is tolerably free from clerical blunders; these, that occur very frequently in the other MSS., as well as varieties of the verbal roots in the commentary have been passed over in the Notes. To ascertain the forms of the latter I had at my disposal the following MSS.: II, MSS. of the Dhatupaṭha. 1. MS. Orient. fol. 1129 of the Royal Library of Berlin, see Weber, op. cit. Nro. 1644, containing on fols. 8, a-13, b the text of the Dhatupaṭha. 2. MS. Orient. fol. 770 of the Royal Library of Berlin, see Weber, op. cit. Nro. 1681, containing the Dhatupatha with Hemachandra's own commentary, the Dhatupārāyaṇa. It may be useful to point out that Hemachandra's classification of the roots and his Anubandhas somewhat differ from those used by the Papinean School. Hemachandra divides the roots into nine classes, the second and third of Panini's system being lumped together. Roots of the first class receive no Anubandha or indicatory letter. To the eight others the following letters are appended:- to the second, e. g. to the third, e. g. क्रुपच्; टू to the fourth, eg. साधं त् to the fifth, eg पिशन्; प to the sixth, e. g. कृतैपू; य् to the seventh, eg. तनूयी; शू to the eighth, e. g. शृश्; प् to the ninth, e. g. . Among the other Anubandhas added to roots for various purposes the following differ from those used by Panini, see Westergaard, Rad. p. 342: Panini. Anudatta Udättet इ इर 3 ई उ ऊ 3 H Hemachandra. Anusvära 2 after consonants a उ F ऐ इorड़ ई or ग् 1 Only for the text of the Sutras they have been given. 2 This may be followed by other Anubandhas. After a series of roots belonging to the tenth class it has another meaning, see Westergaard, Rad. p. 377, § 35. Aho! Shrutagyanam Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 III, MSS. of Hemachandra's Śabdānusāsana, all belonging to the Royal Library of Berlin. 1. MS. Orient. fol. 1125, Weber, op. cit. Nro. 1640. 2. MS. Orient. fol. 1126, Weber, op. cit. Nro. 1641. VI, 1. Adhyayas I-V. Adhyāyas I 3. MS. Orient. fol. 1129, Weber, op. cit. Nro. 1644. Adhyayas IIV, and Dhatupatha, see above under II, 1. 4. MS. Orient. fol. 1147, Weber, op. cit. Nro. 1645. Adhyayas III, 2 with Laghuvṛitti and Churni (called twice Avachurni and twice Avachūri). 5. MS. Orient. fol. 1140, Weber, op. cit. Nro. 1657. Adhyāyas VI-VII with Laghuvṛitti. 6. MS. Orient. fol. 740, Weber, op. cit. Nro. 1682. Adhyāyas VVII with Laghuvṛitti; Churni, called Avachurni, on Adhyayas V, 3-VII, 4; see above under I, c. The quotations from Hemachandra's grammar which occur in the commentary of the Unadiganasutra, have been identified in the Notes. For the Samjñas I refer the reader to Professor Kielhorn's paper in tho Vienna Oriental Journal, vol. II, p. 21, sq.; I only add that Panini's is replaced by ड् in the terms आडू । डी। णिड् । माड् । यड्. The Index contains all words explained. To those the formation of which is not taught in the text of the Sutras has been added a C., and those not found in the Petersburg Dictionary have been marked by an asterisk. As regards the order of the letters, I have again applied the principle followed in my edition of the Hiranyakeśigrihyasutra, viz., the Anusvära and the Visarga have been treated as independent letters following after h. Consequently अंश comes after अहि, दुःख after दुहितु, and words beginning with स range after. I shall account for my doing so in a special paper. The subjoined table of contents will, I hope, prove useful, inasmuch as it conveys a general idea of the manner in which Hemachandra dealt with his subject. In conclusion I have to express my thanks to the Committee of the Imp. Academy of Sciences, which entrusted me with the preparation of 1 See my remarks in the Vienna Oriental Journal, vol. VI, p. 101, eq. Aho! Shrutagyanam Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ this edition of the Uņādiganasūtra, to the Directors of the Royal Library at Berlin and of the Vienna University Library for lending me their MSS. to Professor Th. Zachariae who kindly indicated to me the source of the verse quoted under Sūtra 475, to Dr. R. Schram, who was good enough to calculate the dates of the MSS., and last not least, to Hofrath G. Bühler, who with his usual care and kindness watched over the execution of my work. Graz, 1st July 1894. J. KIRSTE. Aho ! Shrutagyanam Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho 1 Shrutagyanam Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TABLE OF CONTENTS.' उ. 1. अ2-20. क 21-16. अक 27-33. आक 34-37. इक 38-4: ईक 46-50. उक 51-57.ऊक 58-61. अङ्क62-63. इडू 64. अविडू 65. एलक 66. आतृक67. आणक68-70. आनक]-12. ईनक 73. ईधुक । एधुक 74.तिक 75.. 76. तक 77-78. ईतक 79-80. आहक 81. आतक 82-83. ख 84-90. ऊख । इख 91. ग 92-96. आग 97. अङ्ग 98-101. इङ्ग 102-105. उङ्ग 106-108. घ 109-110. अघ 111. च 112-113. अच 114-115. आच 116. इच 117.ईच 1]8. उच 119. ऊच 120-121. ओच । अश्च 122. इश्च123. छ 124-126.ज 127-1240. अज 130-134. इज 185. अञ्ज 136. झ 137.ट 138-141. अट 142-144. आट 145-148. इट 149. इण्ट 150. ईट 151. अरीट 152. उट । उड' 153. उट 14--155. उट। ऊट 156. ऊट 157. एट 158-159. ओट 160-161. 2162-166. अठ 167. ड168-170, अड 171-172. अण्ड 173-176. उड 177. उण्ड 178. ढ 179-181. ण 182-186. अण 187-190. आण 191-193. इण 194-195. उण 196198. एष्ण 199. त 200-206. अत 207-208. आत 209. इत 210-212. ईत 213. उत 214. ऊत 215-216. The suffixes are given without indicatory letters. See Sütras 716, sqq. BSee Sutra 177. * See Sūtra 153. ओत 217-218. अन्त 219-222. उन्त 223-224. थ 225-231. अथ 232-235. ऊथ 236. द237-240, इद । ईद 241. उद 242-244. अन्द 245. इन्द 246-248. उन्द 249. उकुन्द 250. ध 251, अध252-258. वध 254-255. उध 256. अन्ध257. न 258-268. अन 269-275. आन 276-278. असान 279-221. इन 28.2-285. ईन 286-287.उन 288291. त 292-293. स्न 294. शसान 295.4296-303. अप 304307. आप 808. इप 309. ईप 310. उप 311. ऊप 312. षप 313. फ 314-316. ब017-320. अम्ब 821323. इम्ब 324-325. उम्ब 326. भ 327-328. अभ 329-331. इभ 332. उभ 333-335.अम्भ 336. उम्भ 337, म. 338-346. अम 346-348. इम 349-350. उम 351-352. ऊम 353. एलिम 354. डिम 355-356. य357364. अय 365-370. अय । उय 371. आय 372. आय्य 373-374.इय 375376. आलीय 377-378. अन्य 379380. आन्य 381. एण्य 382.स्य 383. इप्य 384. उष्य 385. अथ्य 386. र 387-396. अर 397-404. आर 405-411. इर412-417. ईर 418422. उर 423-426. ऊर 427-430. एर 431-432. ओर 433-434. कर 435-436. तर 437-438. सर 439440. वर 441-444. एवर । अङ्गर 445. 1 446-455. अत्र 456-458. इत्र 459-460. उत्र 461, ल 462 Aho! Shrutagyanam Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 464. अल 463-474. आल 475- 480. इल 481-484. उल 435-487. । ऊल 488-491. एल 492. ओल 493-495. कल 496. कल। खल 497. खल 498. बल or वल 499-500. तल । पाल | वाल । वल 501. मल 502-503. सल 504.4505-514. अव515-519. आव520. इव521522. श्व 523. उव 524. व 525. इत्व 526.श 527-530. अश531532. आश533-534. इश535-537. उश 5:38. पिश | तश 539. 15405.43. अष 544. आष545. इष 546552. ईष 553-556. उप 557-559. ऊष 560-561. मष 562. माष 568. स 564-568. अस 569-573. आस 574-575. ईस 576-577. उस 578. टिस । इस 579. तस 580-581. नस 582. पास 533. मास 584. आधुस 585.ह 586-588. अह 589-590. आह591-592. ऊह 598. त्यह 594 ओकह 595. अक्ष 596-597. 704-706. सि 707. असि 703. नास 709. हि 710. ई 711-715. उ' 716-748. कु 749-751. आकु 752-7:54. अङ्क 755. दाकु 756. स्वाकु 757. गु 758-760. अङ्ग 761. अटु 762. आटु 763. इष्टु 164. डु 765-766. आण्डु । कण्डुक' 767. णु 768--769. अणु 770. इष्णु 771. एणु 772. तु 773-778. अतु 779780. यतु 781. आतु 730. दु 78:3. धू 734-785. न 786-790. 791-792. अनु 793. आनु 794. रदानु 795. अकु 796. इलु 797. इपु 798.बु 799. अमु 800.यु 801802. अयु । अन्यु 803. अन्यु 804. त्यु 805. रु 806-811. अरु 812. आरु 813-816. उरु 817-318. ऊरु 819. लु 820-821. आलु 822-823. अलु 824. शु 825.सु 826. अक्षु 827828. ऊ829-344. 5 815. दू 846. बू 847. अन्धू 448-849. आग 850. एरू 851. आ598-605. इ 606-622. कि 628. आक 624. अखि 625. इखि 626. ईचि627-629. अटि 630. दि 631-633. णि 634-- 637. अणि 638-643. इणि 644. त्रीणि 645. ति616-652. आति 653-- 659. अस्ति 660-6561. आति 662664. अन्ति 665. उन्ति 066. इति 667-668. थि 669. अथि 670-672. इथि 673-674. अधि675. राधि676. नि 677-679. अनि 680-681. अनि 682. इनि 683. उनि 684.मनि685. दभि 686. मि 687-690. अधि691. रि 692-695. त्रि 696. अत्रि 697. अरि 698. उरि 699-700. लि 701. अलि 702. ओकुलि । मलि 703. वि ऋ 852-856. तृ 857-865. ऐ 866. ओ 867. औ 868. क् 369-370. च् 871. वच् 872. अज् 873-874. इज् 875-876. See Sūtra 1. 3 This suffix ought to have been inserted in Sutras 21--26, or 51-57. | Aho 1 Shrutagyanam Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म् 933. अम् 934-937.दम 933, इम् 939. ईम् 940 941. तुम् 942. किए [२] 943-944. अर् 945947. उर् 948. इव् 949. क्किप [[ ] 950. किए [ ] 951. अट् 877. अड़ 878. अविड 879. विग् । [छ ड्] 880. अत् 881-885. अवत् 886. इत् 887-888. उत् 889-890, ऋत् 891-892. ऋथ् 893. अद् 894-395. तद् 896. सद् 897-898. मद् 899. अन् 900-902. तन् 903. वन 904-910. मन् 911-916. इमन् 917. ईमन् 918. इन् 919-926. मिन् 927. भुक्षिन् 928. त्रिन् 929. अत्रिन् 930. किए [ ] 931. अस् 952-976. जस् । थस् 977. तस् 978. नस् 979-980. पस् 981. पस् । फस् 982. सस् 983. तशस् 984. अनस् 985. रमस् 986. उनस्। ऊनस् 987. आस् 988. इस् 989996. उस् 997-1001. उम्स् 1002. अ'। आ'। ऐस् 1003. ऐस् 1004. ओस् 1005. किए [ ह्] 1006. Is out of place here. विप [भ] 932. Aho! Shrutagyanam Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho 1 Shrutagyanam Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX.—-INDEX TO THE ANEKĀRTHASAMGRAHA, VOL. I. अ 7, 1 अंशु 2, 530 अंशुक 3,3 अंहति 3, 233 अहि 2, 383 अक 2,1 अकूपार 4, 237 अक्ष 2,543-44 अक्षत 3,228 अक्षमाला 4,286 अक्षर 3, 509.10 अक्षीव 3, 687 अग 2, 28 अगस्ति 3,233 अगाध 3,333 अगुरु 8, 518 अगौकस् 3, 739 अग्निमुख 4, 42 अग्निशिख,खा 4, 42-43 अग्रिहोत्र 4, 238 अग्र 2, 381-82 अग्रजन्मन् 4, 158 अग्रतस् 7.58 अघ 2, 51 अङ्क 2, 1 अङ्कति 3, 232 अङ्कपालो 4, 287 अङ्कर 3, 511 अङ्ग 2, 29 375 (indecl. ) 7, 19 अङ्ग-ज 3,131-32 अङ्गद,०दा 3,318 अङ्गन, ना 3, 346 अङ्गार 3, 512 अङ्गारक, भरिका 4, 1 अङ्गारिणी 4,73 अङ्गारित 4,96 अङ्गलि 3, 618 अचल,०ला 3,617 अच्छ 2,60 अच्युत 3,229 अज 2,64 अजित 3,220 अतिर 3, 512 अञ्जन, ना,नी 8,846-47. अञ्जलि 3, 617 अट्ट 2,78 अणि 2, 130 अणु 2, 131 अणुक 3, 1 अण्ड 2, 108 अण्डज, ०जा 3, 181 अण्डीर 3,518 अतस् 7, 49 अति 7, 20 अतिथि 3, 307 अतिबल, ला 4,286 अतिमुक्त 4,97 अनिसर्जन 5, 23 Aho! Shrutagyanam Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APHENDIX. अनूक 3,2 अनूचान 4, 157 अनूप 3, 430 अनृत 3, 228 अत्यय 3,468 अत्याहित 4,94 अत्यूह, हा 3, 755-56 अथ, अथो 7, 27 अदस2,561 अदिति 3,233 अद्वि 2, 382 अधम 3,453 अधर 3,510 अधिक्षिप्त 4,98 अधिवास 4,325 अधिष्ठान 4, 157 अधृष्य, ०व्या 3, 470-71 अध्यक्ष 3, 723 अध्यारुढ 4,73 अध्यूढ, ०ढा 3, 177 अध्वन 2, 253 अनघ 3, 124 अनङ्ग 3, 107 अनन्त, न्ता 3, 230-31 अनय 3, 470 अनल 3,615-16 अनिमिष 4,316 अनिरुद्ध 4, 149 अनीक 3,2 अनीकस्थ 4, 182 अनु 7, 30 अनुकर्ष 4, 316 अनुतर्ष 4, 317 अनुत्तर 4, 235 अनुपम, ०मा 4, 215 अनुबन्ध, न्धी 4, 147-48 अनुभाव 4, 302 अनुमति 4, 99 अनुवासन 5, 24 अनुशय +, 220 अन्त 2, 155 अन्ततस् 7,59 अन्तर् 7, 42 अन्तर 3,507-8 अन्तरा 7, 57 अन्तरेण 7, 60 अन्तर्गत 4,96 अन्तशय्या 4, 221 अन्तावसायिन् 5, 24 अन्तिक, का 3, 4 अन्तेवासिन् 4, 158 अन्त्य 2, 336 अन्दू 2, 220 अन्ध 2, 234 अन्धिका 3,6 अन्न 2,253 अन्य 2, 336 अन्वासन 4, 158 अन्वाहार्य 4, 220 अप 7, 32 अपचिति 4,98 अपदेश 4, 310 अपभ्रंश 4, 310 अपराजित, ता5, 18 अपलाप 4, 207 अपवर्ग 4, 46 अपवर्जन 5, 23 अपष्ट 7, 54 अपसव्य 4, 221 अपह्नव 4, 302 अपाङ्गः 3, 106 Aho 1 Shrutagyanam Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTITASANGRAHA. अपाचीन 4, 15 अपान, 346 अपावत 4,93 . अपि 7,33 अपोगण्ड 4, 71 अब्ज 2, 64 अब्द 2,219 अब्धि 2, 235 अभय,व्या 3, 468 अभाव 3,686 अभि 7, 36 अभिख्या 3, 471 अभिग्रह 4,336 अभिजन 4, 155 अभिजात 4,95 अभितस् 7,58 अभिनिष्ठान 5, 24 अभिनीत 4,95 अभिमर 4, 233 अभिमर्द 4, 186 अभिमान 4, 155 अभियुक्त 4,96 अभिरूप 3, 488 अभिशस्ति 4, 99 अभिषङ्ग 4, 46 अभिषव 4,303 अभिस्यन्द 4, 137 अमिहार 4, 236 अभीक 3,2 अभीक्षण 3, 182 अभीक्ष्णम् 7,55 अभीषु 3, 723 अभ्यागम 4, 214 अभ्युपगम , 36 अभ्र 2,382 भमति 3,232 अमर, रा 3, 506-7 अमा 7,36 अमृत,ता 3, 226-27 अमोघ, या 3, 123 अम्बर 3, 510-11 अम्बरीष 4,315 अम्बष्ठ, ०ष्टा 3, 162-63 अम्बिका 8,5 अम्म, मी 2, 46: अमान 3,344 अमिका 3,6 अयन 3, 344 अयि 7, 41 अये 7, 41 अयोग 8, 106 अर 2, 334 अरात्रि 3,349 अरर 3,511 अगल 3, 616 अरिष्ट 3, 142-43 अरुण, ०णा 3, 181-82 अरुष्कर 4,234 अर्क 2, 1 अर्गल 3, 615 अर्घ 2, 51 अर्घ्य 2, 337 अर्चा 2,64 अर्चिस् 2,561 अर्जुन, नी 3,344-45 अति 2, 156 अर्थ 2, 208 अर्थिन् 2, 253 अर्थ 2, 336 अर्दित 3,228 अर्ध 2, 235 अर्धचन्द्र, न्द्रा 4, 239 Aho! Shrutagyanam Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 अर्धपापत 6, 4 arurg 3, 317-18 अर्बुद 3, 317 अर्य 2, 335 भर्यमन् 3, 348 अर्वन् 2, 253 अर्हत् 2, 155 अलक, ०का 8, 3-4 अलंकार 4, 237 अलम् 7, 36 अलमक 4, 2 अलम्बुष, षा 4, 817 अलर्क 3, 5 अलस, ०सा 3, 739 अलि 2,463 अलिपक 4, 2 अलीक 3, 2 अव 7, 47 अवगीत 4, 94 अवग्रह 4, 885 अवग्रहण 5, 13 अवट 3, 142 अवटु 3, 143 अवतंस cfr. 3, 741 अवतार 4, 238 अवतारण 5, 13 अवदात 4, 98 अवदान 4, 156 अवधि 3, 333 अवध्य 8, 469 अवध्वंस 4, 325 अवध्वस्त 4, 97 अवन 8, 348 अवर, or 3, 5089 अवरोध 4, 148 भवरोह 4, 336-37 APPENDIX. अवलय 4, 156 अवलेप 4, 207 अवलोकित 5, 17-18 अववाद 4, 137 अवश्यम् 7, 56 अवश्याय 4, 221 अवष्टब्ध 4, 149 अवष्टम्भ 4, 213 अवसर 4, 234 अवसित 4, 98 अवस्कर 4, 235 अवहार 4, 236 arfar 2, 505 अवीचि 8, 127 अवेल, ब्ला 3, 616-17 अव्यक्त 3, 230 अशनि 3, 348 अशिर 3, 512 अशोक, ०का 3, 1 अश्मन्तक 4. 2 अश्वतर 4, 235 अश्वत्थ, स्था3, 306-7 अश्वारोह, हा 4, 837 अश्वीय 3, 470 अष्टापद 4, 136 असिपत्र 4,238 असुर, ०रा 3,513 अस्त 2, 156 अस्तु 7, 20 artar 2, 383 अत्र 2, 888 अस्वन्त 8, 232 अह 7, 52 अहल्या 8, 471 अहह 7, 60 अहा 7, 52 Aho ! Shrutagyanam Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAMGRAHA. अहार्य 3, 472 अहि 2,583 अहोबत 7, 60 आ. आ7,1 आ (आङ्) 7, 2 आकर 3, 515 आकर्ष 3, 725 आकलन 4, 160 आकल्प 3,431 आकल्पक 4,3 आकार 3, 515 आकृति 3, 239 आक्रन्द 3, 319 आक्षेप 3, 43] आक्षेपक 4,3 आखनिक 4,4 आखु 4, 4 आख्यात 3,234 भागम 3, 453 आगस 2, 562 आग्रह 3,756 आघात 3,234 आङ7,2 आचित 3,237-38 आच्छादन 4, 160 आच्छुरितक 5, 1 आजि 2, 65 आडम्बर 4, 240 आढक, की 3,9 आणि 2, 130 आतङ्क 3,8 आतञ्चन 4, 161 भातिथ्य 3, 473 भात्मन् 2, 254 आत्मभू 3, 443 आत्मयोनि 4, 163 आत्मवीर 4, 240 आत्माधीन 4, 162 आत्रेय, ०पी 3, 473 आथर्वण 4, 74 आदर्श 3, 709 आदान 8, 350 आदित्य 3, 472 आदीनव 4, 303 आदृत 3, 234 आधार 8,515 आधि 2,235 आध्मात 3,236 आनक 3,7 आनद्ध 3, 334 आनर्त 8, 235 आपत्ति 3, 240 आपन्न 3, 350 आपात 3,284 आप्त 2, 156 आप्ति 2, 156 आप्तत 3, 235 आबन्ध 3, 834 आभील 3,618 आभोग 8, 107 आम 7,2 आम 2, 308 आमिष 3, 724 आमोद 3, 319 आम्नाय 8, 478 आयति 3,239 आयत्ति 3, 240 आयस्त 3,238 आयोग 3, 108 आयोधन 4, 159 Aho! Shrutagyanam Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. आस्था 2,209 आस्पद 3,319 आस्फोत, ता 3, 237 आस्य, स्या 2, 337 आस्रव cfr.3,687 आहत 3, 236 आहव 8,687 आहार 3,514 आहो 7,52 आह्निक , 8-4 आर, रा 2, 384 आरक्ष 3,724 आरम्भ 3, 442 आरात् 7, 21 आराधन 4, 159 आरोह 3,756 आरोहण 4, 74 आर्तव 3, 688 आर्य, या 2, 337-8 आल 2, 463 आलो 2, 463 आलु 2, 464 आलोक 3,7 आवर्त 3, 235 आवाप 3, 430 आविद्ध 3,334 आवेशन 4, 161 आशय 3,472 आशा 2,530 आशाबन्ध 4, 150 आशितंभव 5, 47 आशिर cfi. 3, 512 आशिस् 2,562 आशु 2,530 आशुग 3, 108 आश्रम 3, 453-54 आश्रयाश 4,311 आश्रव 3, 637 आश्वास 3,740 आषाढ 8, 178 आस् 7,2 आसत्ति 3, 240 आसन,०नी 3,349-50 आसार 3,514 आमुतीवल 5, 44 आस्कन्दन 4, 162. इक्षुगन्धा 4, 151 इक्ष्वाकु 3,9 इङ्ग2, 30 इङ्गित 3, 241 इज्या 2, 338 इडा 2, 108 इतर 3,516 इतस् 7, 4) इति 7,21 इतिकथा 4, 133 इत्वर, ०री 3, 516 इदानीम् 7,56 इन 2, 255 इन्दीवर, ०रा 4, 241 इन्दुलेखा 4, 43 इन्द्र, न्द्रा 2, 385 इन्द्राणी 3, 188 इन्द्रिय 3,474 इभ्य, भ्या 2, 338 इरा 2,385 इरिण 3,182 इला 2, 108.465 इल्वल, ला 3, 618-19 Aho 1 Shrutagyanam Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इष्ट 2, 78 इष्टगन्ध 4, 150 दृष्टि 2, 79 इष्वास 8,740 ई 7, 3 ईति 2, 157 INDEX TO THE ANEKARTHASANGKAHA. उत्थित 3,242 उत्पतन 4, 164 उत्पल 8, 619 ईश, ०शा 2,531 ईश्वर, ०रा 3,517 ईहा 2 588 ईहामृग 4,47 उ. उ 7, 3 उग्र, ग्रा 2, 386 उग्रगन्धा 4, 151 उचित 3, 242 उच्चटा 3, 144 उच्चिङ्गट 4,57 उच्छ्रित 3, 243 उच्छ्रास 3, 741 उज्जृम्भित 4, 102 उज्ज्वल 8, 620 उडुप 3,432 उड्डीश 3, 710 उत 7, 22 उत्कट 3, 143 उत्कलिका 4, 4 उत्क्षेपण 4,75 उत्तंस 3, 741 उत्तप्त 3, 241 उत्तम मा 3, 454 , उत्तर 3, 517-18 उत्तान 8,352 उत्ताल 3, 620 उत्थान 3, 351-52 उत्पलपत्र 5, 38 उत्फुल 3, 621 उत्सर्ग 3, 108 उत्सव 8, 689 उत्सादन 4, 165 उत्सेध 3, 334-35 उद्7, 4. उदन्त 3, 245 उदय 3, 474 उदयन 4, 165 उदर 3, 517 उदरथि 4, 183 उदर्क 3, 10 उदचस् 3, 472 उदात्त 3, 244 उदान 3, 353 उदार 8, 518 उदास्थित 4, 100 उदित 3, 242 उदुम्बर 4, 242-43 उदूढ 3, 178 उाहित 4, 108 उद्ध 2, 51 उद्धात 3, 245-46 उद्दण्डपाल 5, 45 उद्दन्तुर 4, 243 उद्धरण 4, 75 उद्धव 3, 688 उद्घान 3,353 उद्धार 3, 518 उद्धृत 3, 243 उद्यान 3,352 उद्वर्तन 4, 163 Aho! Shrutagyanam 7 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 APPENDIX. उद्वान्त 3,241 उद्वाहन, नी 4, 166 उद्वेग 3, 109 उन्न 2, 255 उन्नति 8,246-17 उन्मत्त 3, 245 उन्माथ 3,308 उप 7,34 उपकार 4, 241 उपकार्या 4, 222 उपक्रम 4,216 उपगम 4, 215-16 उपग्रह 4, 337 उपचार 4, 242 उपचित 4,102 उपताप 4, 208 उपदंश 4,311 उपधान 4, 164 उपधि 3,335 उपधूपित 5, 19 उपनाह 4, 338 उपनिषद् 4, 168 उपप्लव 4,304 उपरक्त , 101 उपराग 4,47 उपल, ०ला3,619 उपलब्धि 4, 152 उपसत्ति 4, 103 उपसंपन्न 5, 25 उपसर्ग 4, 48 उपस्थ 3,307 उपस्पर्श 4,312 उपस्पर्शन 5, 25 उपहर 4, 243 उपांशु 3, 710 उपाकृत 4, 100 उपाधि 3, 335 उपासन 4, 163 उपाहित 4, 100 उपोट 3, 178 उम् 7,5 उमा 2,309 उररी 7,42 उरम् 2, 563 उरुरी 7, 42 उर्वरा 3,519 उलप 3, 432 उल्लूखल 4, 287 उल्लाघ3, 124 उल्लिखित 4, 101 उषण, ०णा 3, 183 उषस् 2, 562 उषा 2,544 ICT ( indecl.) 7, 48 उषित 3, 243 उष्ट्री 2, 387 उष्ण 2, 181 उष्णक 3, 10 उष्णीष 3, 725 उम्र, त्रा 2, 386-87 अति 2, 157 ऊम् 7,5 उरी 7, 42 ऊर्ज 2, 65 ऊर्णा 2, 131 ऊर्णायु 3, 474 ऊर्ध्व 2,506 ऊर्मि 2, 309 ऊर्मिका 8, 10-11 उपण cfr. 3, 183 उष्मन् 2,255 Aho I Shrutagyanam Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAMG RARA. ओजस् 2,563 ओडू 2, 387.88 ओम् 7,6 औदुम्बर 4. 244 औशीर 3. + 7,3 मक्ष 2.5.14....45 ऋक्षर 3,518 सण 2, 1 ऋत, 17 ऋति 2, 18 ऋतु 2,158 मद,936 अपभ, मी 3, 4.18-45 ऋषभध्वत 5, 11 ऋषि 2.15 ऋष्यप्रोक्ता 1. 104 कस2,561 ककुद, द, 220 ककुम, +16 कक्ष, क्षा2646-47 कक्षावेक्षक 5,1 कक्ष्या 2.3.11 एक2,2 एककुण्डल5,45 एकपद, ०दी 4, 138 एकाग्र 3,520 एडमक 4,5 एत 2, 118 एधतु , 247 एनस् 2,502 एव 7,48 एवम् 7,37 कङ्कण 3, 16 कर कच, ०चा 2,51-35 कच्छ, ०च्छा ), 61 कच्छप, पी 8, 138 कच्छुर, रा 3, 526 कञ्चक 3, 13-14 कचकिन् 8,356 कैन 2, 6. कञ्जार 3,524 कट 2,79 कटक,14-15 कटखादक 52 कटप्रू, 528 कटभङ्ग 4, 48 कर्टभरा 4, 247 कटाह 3,718 कटित्र 3,525 कटिल्लक 4.5 ऐणेय 8, 475 ऐन्द्रि 2, 387 ऐरावत, ती 4, 104-5 ओ. ओ 7, 6 ओकस् 2, 533 6-4 ओघ 2, 52 Aho! Shrutagyanam Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 APPENDIX. कटु 2, 81 कटुक 3, 18 कटुकन्द 4, 139 कठ 2, 1.1 कठिन, ना, नी 3,354 कडार 3, 523 कण, ०णा 2, 132 कणिका 3, 17-18 कणीचि 3, 128 कणेरु 3,528 कण्टक 3. 15-16 कण्ठ 2,101 कण्व 2.500 कत्तृण 8, 187 कथम् 7, 38 कथाप्रसङ्ग 5, 10 कदम्ब 3,139 कदर 3,522 कदली 3,627 कद्रु, ०दू 2, 388 कनक 3, 11-12 कनिष्ट, ०ष्ठा 3, 163 कनीनिका 4,6 कनीयंस 3, 742 कन्तु 2, 150 कन्था 2,210 कन्द 2, 221 कन्दर 3,521 कन्दराल 4, 288 कन्दल, ली 3, 624-25 कंधर, रा 3,527 कन्या 2,340 कपर्द 3, 320 कपाल 3, 624 कपिल, ला 3, 622-28 कपिलधारा 5,39 . कपिश, शा 3, 712 कपीतन 4. 166 कबन्ध 3.336 कम् 7,7 कमठ, 164 कमण्डलु 4, 288 कमन 3,353-54 कमल,०ला 3,621-22 कम्बल 3,626 कम्बि 2, 298 कम्बु, 298 कम्बोज 3. 132 कर.388 करक 3,12-13 करज3,132 करट 3, 144 करण 3, 184-86 करम:, 445 करर 3,520-21 करवीर,०री 4, 245-46 करहाट 4,58 कराल 3,625-26 करीर 3, 524 करुण,०णा 3, 183-84 करेणु 3, 187 कर्क 2,3 कर्कट, टी 3, 145-46 कर्कटक 4,6 कर्कर 3, 522 कर्कश 3,711 कर्ण 2, 132 कर्णपूर 4, 2-17 कर्णान्दु, 321 कर्णिका 3, 16-17 कर्णिकार 4. 245 कर्तन 3,355 Aho 1 Shrutagyanam Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAN GRAHA. 1 कर्पर 3, 523 कर्बुर 3, 521 कर्मकर, ०री 4,244 कर्मन् 2, 256 कर्ष 2,545 कर्पु 2,547 कल.०ला 2.465-66 कलकण्ठ 4, 66 कलकल 1, 237-38 कलङ्क 3, 16 कलत्र 3, 525 कलधौत 4, 106 कलध्वनि 4, 167 कलम, 454 कलम्ब 3, 439 कलह 3,757 कलहंस 1,326 कलानुनादिन् 5, 26 कलाप 3, 432 कलापिन् 3, 366 कलि 2,466 कलिकार 1,246 कलिङ्ग, ङ्गा 3, 109-10 कलित 3, 247 कलुष 3,726 कल्क 2,2 कल्प 2, 288 कल्पन, ना 3,355-56 कल्माष 3,726 कल्य, ल्या 2, 339 कल्याण 8, 186 कल्लोल 3, 627 कवच 3, 127 कवर, ०री 3, 526-27 कवि, ०वी 2,507.. कशिपु 3, 433 कशेरु 3, 527 कश्मीरज, जा 4, 52-53 कश्य 2, 339 कषाय 3,475-76 कष्ट 2, 80 कसिपु 3, 438 कांस्य 2, 343 काक, का 2, 4-5 काकणी 3, 189 काकरूक 4,6 काकोल 8, 628 काच 2,55 काचिघ 3, 125 काञ्चन, नी 3,357-58 काञ्ची 2,55 काण्ड 2,109 कात्यायन, नी 4, 167 कादम्ब 3, 440 कादम्बर,री 4,249 कानन 3,358 कानीन 3,358 कान्त, न्ता 2, 160 कान्तार 8,529 कान्ति 2,160 काम 2,311 कामकूट 4, 59 कामगुण 4, 76 कामचारिन 4, 163 कामम् 7,38cfr.2,311 कामल 3,627 कामिन् 2, 2566 कामुक 3, 18 काम्बोज, जी 3, 183 काय 2, 342 कायस्थ,०स्था 3,308-9 कार, ०रा 2,389-90 Aho! Shrutagyanam Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 AT PENDIX कारक 3, 18 कारण,०णा 3,188 कारण्ड 3, 163 कारंधमिन् 4, 169. कारवी 3,689 कारि2,391 कारिका 3.18-19 कारु 2,391 कारुज 3, 134 कार्यण 3, 188 कार्मुक 3, 19-20 कार्य 2, 341 कार्यट 3, 146 कार्यपुट 4,58 कार्षापण 4,76 काल,ला,ली, 467-68 कालकण्ठ 4, 67 कालज्जर 4,248 कालपृष्ठ 4, 68 कालस्कन्ध 4, 152 कालानुसार्य, 37 कालिका 3, 20--22 कालिङ्ग,गी 3, 110-11 कालेय , 470 . कावृक 3, 19 कावेरी 3,530 काव्य, व्या 2, 3.42-43 काश 2,531 काश्मीर 3,530 काश्यप, ०पी 3, 434 काष्ठ, ०ष्ठा 2, 102 कासू 2,564-65 काहल, ०ली 3, 628-29 किंशारु 3,531 किंच7, 19 किहाल3,629 किण्व 2,503 कितव 3,640 किम् ।, 10. 7,7 किमु 7, 39 किमुत 7,5+ किंपाक 3,92 किंपुरुष' 4, 18 किरात, ती 3, 243 किर 3,531 किल 7, 40 किल्बिष3,726-27 किशोर 3,581 किष्कु 2,6 4,169 कीकट, 146 कीकस 3,742 कीचक 8, 2.3 कीटक, 22 कीनाश,712 कीर ,392 कीर्ण 2, 131 कीर्ति 2,161 कील,०ला2, 4:58-60 कीलाल 3, 630 कीश 2,531 कु 7,7 कुकूल 3,633 कुकुट 3, 147 कुकुर 3,582 कुचन्दन 4,170 कुचेल, ला 3, 634 35 कुज 2, 66 कुञ्ज 2, 66 कुजर, ०रा 3,535 कुट, टी 2,82 कुटज 3, 135 Aho 1 Shrutagyanam Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASANGRAHA. कुटन्नट 4,59 कुटप 3, 435 कुटार 3, 535 कुटिल, व्ला 3, 632 कुठारु 3,536 कुणप 3, 436 कुणि 2, 184 कुण्ठ 2, 108 कुण्ड, डी 2, 110 कुण्डकट 4,59 कुण्डल, ब्ली 3, 682 कुण्डलिन् 3,359 कुतप 3, 434 कुतूहल 4, 289 कुथ 2,210 कुद्दाल 8, 631 कुन्तल 8, 633 कुन्द 2, 221 कुबेर 8,532 कुब्ज 2, 66 कुमार, ०भी 3, 533-35 कुमुद, दा 3, 321-22 कुमुद्वती 4, 107 कुम्भ, भी 2, 301-2 कुम्भकार, वरी 4, 250 कुम्भयोनि 4, 170 कुम्भिल 3, 631 कुम्भीनस, सी 4, 326 कुरण्ट, टी 8, 147 कुरबक 4,7 कुरु 2,394 कुरुविन्द 4, 139 कुर्पर 3, 533 कुल 2, 469 कुलक 3, 23-24 कुलाय 3, 477 कुलाल 3, 634 कुलिक 3, 24 कुलिश 3, 713 कुल्माष 3, 727 कुल्य, ०ल्या 2, 344-45 कुवल 3,630 कुवेर 3,582 कुश, ०शा, ०शी 2, 532 कुशल 3, 630 कुशिक 8, 25 कुशीलव 4, 304 कुष्ठ 2, 108 कुसीद 3, 822 कुसुम 3,455 कुसुम्भ 3, 446 कुहन, ना 3, 359 कुहर 3, 532 कुहरित 4, 106 कुहू 2,583 कूचिका 3, 26 कूट 9, 82 कूप 2, 288 कूबर 3, 536 कूर्च 2,55 कूल 2, 470 कूष्माण्ड, ०ण्डी 3, 169 कृकवाकु 4, 8 कृच्छू 2, 395 कृत 2, 161 कृतान्त 3,248 कृतिन् 2, 257 कृत्त 2, 162 कृत्य, त्या 2, 345 कृत्रिम 3,455 कृपाण, णी 3, 189-90 कृपीट 3, 148 Aho! Shrutagyanam 13 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. कृपीटपाल 5, 46 कृमि 2,312 कृमिकण्टक 5, 3 कृषक 8, 26 कृष्टि 2,83 कृष्ण, obणा 2, 134-35 कृष्णवर्मन् 4, 170 कृष्णवृन्ता 4, 107 कृष्णसार 4, 250 केटिरु 3, 59 केतन 8, 360 केत 2, 162 केदार 3,538 केनार 3,538 केवल, ली 3,635 केश 2,533 केशव 3,690 केसर 3,536-37 केसरिन् 3,360 कैतव 3, 691 कैरव, वी 3, 691--92 कोक 2,7 कोकनद 4, 140 कोण 3, 190 कोटी 2,84 कोट्टार 3,539 कोण 2, 135 कोथ 2,211 कोदण्ड 3, 169 कोमल 3,636 कोरक 3, 27 कोल, ला 2, 470-71 कोश 2, 533-34 कोशातक, की 4, 8 कोष 2, 533-34 कोष्ठ 2, 103 कोहल 3,636 कौकुटिक 4,9 कौतुक 3, 27 कौपीन 3, 361 कौमुद, ०दी 8, 322 कौलीन 3,361 कौलेयक +, 9 कौशिक, की 3, 28-29 क्रकच 3, 128 क्रन्दन 3,355 क्रन्दित 3, 217 क्रम 2, 310 क्रमुक 8, 15 कव्या 2, 220 क्रिमि 2, 312 क्रिया 2, 343-44 क्रीडा 2,109 क्रूर 2, 395 क्रोड 2, 112 क्रोष्टी 2, 396 क्रौञ्च 2, 56 क्लीव 2, 508 क्लेश 2,538 काथ 2,210 क्षण 2, 133 क्षणद, दा 3, 320 क्षत्र 2, 159 क्षम, ०मा 2, 310-11 क्षय 2, 340 क्षर 2, 388 क्षव 2,507 क्षवथु 3, 308 क्षार 2, 390 क्षारक 3,20 क्षिति 2, 160 क्षीर 2, 892 क्षीराब्धिज,०जा 4,53 Aho 1 Shrutagyanam Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAMGRAHA. खर्म 2, 313 खर्च 2,508 NE, OFT 2, 393-94 क्षुमा 2, 311 क्षर 2, 392 क्षुल्लक 3, 25 क्षेत्र 2, 395 क्षेत्रज्ञ 3, 141 क्षेत्रिय 3, 477-78 क्षेप 2,289 क्षेपणी 3, 190 क्षेम, ०मा 2, 312 क्षोद 2, 221 क्षौद्र 2, 396 क्षौम 2, 313 वेड, डा 2, 110-11 ख ख 1, 5 खग 2, 30 खना 2, 67 खञ्जरीट 4,60 खट 2, 84 खटिक 3,30 खड्ग 2, 31 खनिन् 2, 257 खण्ड 2, 112 खण्डपर्शु 4,312 खण्डाभ्र 3, 541 खतमाल 4, 289 खदिर, ० 3,542 खनक 3,29 खपुर 3, 540 खर 2, 897 खरु 2,397 खर्जू 2, 67 खर्जूर 3,541 खर्पर 3, 540 खल 2, 471 खलु 7, 46 खल, ली 2, 472 खाटि 2, 84 खिखीरा 3,542-43 खिखिर 3, 512 खर 2, 398 खुलक 8,30 खेट 2,8 खोलक 3, 31 ग गञ्ज, ञ्जा 2, 67 गड 2, 113 गडु 2, 113 गण 2, 186 गणक 3, 33 गणाधिपति 5, 19 गणिका 3,33 गणेरु 3,528 गण्ड 2, 112 गण्डक, की 3, 32-33 Trust 4, 289 गण्डूष 8, 728 गति 2, 163 ПTE, OFT 2, 222 Aho! Shrutagyanam 4, 171 गन्ध 2, 236 गन्धन 8, 362 गन्धफली 4, 290 गन्धमादन, नी 5, 26-27 गन्धर्व 3,692 गन्धवती 4, 108 गन्धवह, ०हा 1, 338-30 15 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 APPENDIX. गन्धोली 3, 637 गभस्ति 3, 250 गम 2,313 गर 2,398 गरुत्मत् 3, 250 गरल 3, 637 गर्गर, ०री 8,513 गर्जन 3,363 गर्मित 3, 249 गर्त 2, 162 गर्दभ, ०भी 3, 447 गर्भ 2, 303 गल 2, 473 गवाक्ष, ०क्षी 3, 727-28 गवादनी 4, 171 गव्य, व्या 2, 346 गहन 3,362 गहर 3, 543 गाङ्ग, गाङ्गन्य 3, 478 गाढमुष्टि 4, 61 गाण्डिव, ०ण्डीव 3, 693 गात्र 2,398 गाथा 2, 212 गाध 2,236 गान्धार 8,544 गान्धिक 3,34 गायत्री 3, 544 गारुड 3, 170 गालव 3, 693 गिरि 2, 399 गिरिज, जा 3,135 गिरिसार 4, 251 गिरीश 3,713 गीत ", 164 गीति 2, 164 गुच्छ 2,62 गुजा 2,68 गुड, ०डा 2, 114 गुण 2, 136-37 गुणनिका 4, 10 गुण्डक 3,34 गुत्स 2,565 गुन्द्र, न्द्रा 2, 399-400 गुप्त 2, 161 गुप्ति 2, 161 गुम्फ 2, 297 गुरु 2, 400 गुल्म, ०ल्मी 2, 314-15 गुह, हा 2,585 गुह्य 2, 346-47 गूढ 2, 127 गृञ्जन 3,363 गृष्टि 2, 85 गृध्र 2, 401 गह 2, 585 गृहपति 4, 108 गृह्य, व्या 2, 3-47-48 गेय 2, 348 गेष्ण 2, 138 गरिक 3,35 गो 1,6 गोकण्टक 4, 11 गोकर्ण, ०ी 3, 192-93 गोकिल 3, 637 गोकुणिक 4, 11 गोजागरिक 5,3 गोण्ड 2, 114 गोत्र, त्रा 2, 401-2 गोदन्त 8, 251 गोधा 2, 237 गोधम 3, 456 गोप, ०पी 2, 289-90 Aho 1 Shrutagyanam Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTBASAMGHAHA. ग्राहक 3,34 ग्रीवा 2, 508 गोपति 3,251 गोपाल 3,638 गोपुर8,541-45 गोप्य 2, 348 गोमिन 2,257 गोमुख 3, 102 गोमेदक 4, 10 गोरक्ष 3,729 गोरक्षजम्बु 5. 34 गोरङ्क 3,86 गोल, ला 2, 473-74 गोलक, 35 गोलोमी 3, 456 गोविन्द 8, 323 गोष्ट, ०ष्टी 2, 104 गोष्पद, 323 गोस 2, 565 गोस्तन,०नी 3,364 गौतम, मी 3, 457 गौर, री 2, 402-3 गौरिल 3,638 ग्रन्थ 2,211 ग्रन्थि ,212 ग्रन्थिक3,31-32 ग्रन्थित 3,249 प्रन्थिल 3,636 ग्रस्त 2,163 ग्रह 2,584 ग्रहण 3, 191 ग्रहराज 4,54 ग्राम 2, 314. ग्राममगुरिका 6, I ग्रामणी 8, 191 ग्रामिणी 3, 192 ग्रावन् 2,257 ग्राह:2,585 घट, ०टा 2,86 घट्टना3, 364 घन 2, 258 घनरस 1, 327 घनसार 4, 251 घनाघन 1, 172 घघर 3, 545 घघरिका 4, 12 धर्म 2, 315 घस्त्र 2,404 घृणा 2, 138 घृणि 2, 138 मृत 2, 165 घष्टि 2,87 घोण्टा 2, 87 घोर 2, 404 घोष, ०षा 2,548 घोषयित्नु 4, 173 घाण 2, 138 च 7,8 चक्र 2,405-6 चक्रधर 4, 252 चक्रवाट 4,61 चक्रवाड,वाल 4,71 चक्राङ्ग, गी 3, 111 चक्राट 3, 148 चक्रिन् 2, 259 चक्षुष्य,०ष्या 3, 479 चकर 3, 546 चञ्चल,०ला 3, 639 Aho! Shrutagyanam Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 APPENDIX, चटु 2,87 चण्ड,०ण्डा, ०ण्डी 2, 115-16 चण्डालिका 4, 12 चतुर 3,546 चतुष्पथ 4, 184 चतुष्पद 4, 140 चत्वर 3,546 चन्दन, नी 3, 365 चन्दिर 3, 545 चन्द्र 2,406 चन्द्रकान्त 4, 108-2 चन्द्रहास 4,327 चन्द्रिल 3, 638 चन्द्रोदय, व्या 4, 222 चपल, ला 3, 639-41 चमर, ०री 3, 547 चय 2, 348 चर2,404 चरण 3, 193-94 चराचर 4, 253 च: 2, 407 चर्चा 2,56 चर्पट 3, 148-49 चर्मकार, ०री 4, 252 चर्मण्वती 4, 109 चर्मन् 2, 259 चर्मिन् 2, 259 चलन, नी 3, 864-65 चलुक 3,37 चव्या 2,349 चषक 3,36 चातुरक ,547 चावाल 3,641 चामरपुष्प , 34 चाम्पेय 3, 480 चार 2,407 चारक 3,37 चास 2,566 चिकुर 3,548 चिता 2, 165 चिति 2,165 चित्य, त्या 2, 349 चिपिट 3, 149 चित्र, त्रा 2, 407-8 चित्रक 3, 38 चित्रगुप्त 4, 109 चित्रभानु 4, 173 चित्ररथ 4, 134 चित्राटोर 4,253 चिरजीविन 4, 173 चिरण्टी 3, 149 चिलमालिका 5,4 चिल्ल 2, 474 चिह्न 2, 260 चीन 2, 260 चीर, ०री 2, 409 चीर्णपर्ण 4,7 चुक्र, ०क्री 2, 409-10 चुम्बक 3,38 चुलुक 3, 37 चुलुकी 3,39 चुल 2, 474 चुल्ली 2, 475 चूडा 2, 116 चूडामणि 4, 77 चूडाल, ०ला 3, 641 चूतक 3, 39 चूर्ण 2, 139 चूलिका 3, 39 चेतन, ना 3, 366 चेल 2, 475 चैत्य 2, 350 Aho 1 Shrutagyanam Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTH ASAMGRAHA. 19 चैत्र 2,410 चोक्ष 2, 543 चोड 2, 116 चोद्य 2, 350 चोलकिन 3, 366 चौर 2, 410 छगल, ली 3, 642 छन, ०चा 2, 411 छचभग 4, 49 छद 2,2:12 छदन 3,367 छद्मन 2, 260 छन्द 2,223 छन्दस् 2,566 छन्त्र 2,261 छर्दन 8, 367 छल2, 475 छल्ली 2, 475 छवि 2,509 छाया 2,351 छित्त्वर 3, 549 छिदिर 3,548 छिद्र 2, 411 छिन्न, ना2, 261 छेक 2,7 छेदन 3, 367 जङ्गल 3,644 जटा 2, 88 जटायु 3, 480 जटिल, ला 3, 643 जठर 3,549 जड, ०डा 2, 117 जतुक, ०का 3, 40-41 जन 2,261 जनक 3, 40 जनपद 4, 141 जनी 2, 262 जन्य, ०न्या 2, 352-53 जम्बाल 3,644 जम्बीर 3, 550 जम्बुक 3, 40 जम्बू 2, 299 जम्बूल 3, 643 जम्भ 2,303 जम्भल 3,644 जय, व्या 2,352 जयन 3,368 जयन्त, ०न्ती 3, 252 जरठ 3, 164 बरण 3, 194 जर्जर 3, 550 जर्जरीक 4, 13 जर्ण 2, 139 जल 2, 476 जलकरङ्क 5, 4 जलकूपी 4, 208 जलगुल्म 4, 217 जलज 3, 136 जलद 3, 324 जलबिल्व 4, 304 जलरुण्ड 4, 72 जलसूचि 4, 51 ज. जकुट 3, 150 जगत् 2, 165 जगती 3, 253 जगल 3,642 सघन 3, 368 जघन्य 3, 480 नधन्यज 4,54 Aho! Shrutagyanam Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 APPENDIX. जुहुराण 4, 78 जू 1,8 जम्मा 2, 304 लुम्धित 8, 255 जैवातक 4, 13 जोषम् 7, 39 त 1,8 नाति 2, 167 ज्या 1. 10 ज्यायंस 2, 566 ज्येष्ठ, ०टा 2, 104-5 ज्योतिस् 2, 566-67 ज्योत्स्ना 2, 262 ज्योत्स्त्री 2, 263 ज्वलित 8,252 जलाञ्चल 4,290 जलाटन, नी 4, 174 जलाशय 4, 223 जलेन्द्र 3,551 जव, ०वा 2, 509 जवन, ०नी 3, 368-69 जागल, लो 3, 645 जाङ्गल, ली 3, 645-46 जात 2, 166 जाति 2, 166-67 जामात 3, 253 जामि 2, 316 जायानुजीविन् 5, 27 जार, ०री 2, 412 जाल, ली 2, 476-77जाल्म 2, 316 जिगीषा 3, 729 जिन 2, 262 जिष्णु 2, 140 जिह्म 2, 317 जिह्मग 3, 112 लिहा 2, 509 जिहाप 3, 436 जीमूत 3, 254 जीर 2, 412 जीव, वा 2. 510 जीवक, विका 3, 41-42 जीवंजीव 4. 305 जीवद 3, 324 जीवन, ना, नी 3, 369-70 जीवन्ती 3, 264 जीवपुष्प 4, 208 जीवा 2, 510 जीवातु 3, 255 जीविका 3. 12 जीविनेश +, 313 झर्झर 3, 551 झलरी, °ल्लरी 8, 551-52 झला 2, 477 झष, ०षा 2,549 झाट 2,88 झिल्लिका 3, 42 झिल्ली 2, 477 झिल्लीका 3. 42 ग्रूणि 2, 140 टगर 3,552 टङ्क 2, 8 टंकार 3,552 टङ्ग 2, 31 टहरी 3, 553 टार 2, 412 डिम्ब 2.300 डिम्भ 2, 304 Aho 1 Shrutagyanam Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTHASAIGRAHA. तक्षक 3. 43 तण्डक 3, 43-44 तण्डुरीण 4, 78 तण्डुल 3, 647 तण्डुलीय 4,223 सत2,167 ततम् 7,50 तत्त्व 2,511 तथा 7, 28 तथा पथा 7, 29 तहिनम् 7, 56 तनु 2, 263 तनूरुह 4,339 तन्त्र 2, 413 तन्त्री 2, 414 तन्द्री2,416 तपन 3, 370 नपस् 2,567 सपस्य, स्या 3, 481 तपस्विन् 3,372 तपस्विनी 4, 175 तपोधन, ना 4, 174 तमस् 2, 568 तमाल, 647 तमालपत्र, 39 तमिस. स्त्रा 3, 553 तमोन 3,371 तमोनुद् 8, 324 तमोपह 4, 339 तरणि 3, 195 तरल,०ला 3,646 तरस् 2, 568 तरस्विन् 3, 372 तरि 2,415 तरीष 3, 729 तरुण 3,195 तर्क 2,9 ततरीक 4,12 तर्ष ], 15 तल 2,478 तलिन 3. 370 तलिम 3, 457 तलुन 3, 371 तल,०ल्ली 2, 479 तल्प 2,290 ताड, ०डी 2, 117-18 ताण्डव 3,694 तात 2, 168 ताप, ०पी 2, 291 तामरस 4, 328 तामस, सी 3,743 ताम्बूल,०ली 3, 647-48 ताम्र 2, 417 तार, ०रा 2,416-17 तारक 3, 44-45 तामं 2, 354-55 ताल 2, 479-80 तालपत्र, ०त्री 4, 254 तालीसपत्र 5,40 तावत् 7, 23 ताविष3,730 तिक्त, क्ता 2, 168 तिक्तपर्वन 4, 175 तिक्तशाक 4, 15 तित्तिड, ०डी 3, 170 तित्तिरि 8,554 तिन्तिडी 3, 171 तिमिर 3, 554 तिरस् 7,50 तिर्यच 7, 19 तिलक 3, 45-46 Aho! Shrutagyanam Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. निष्य, व्या 2, 355 तीक्ष्ण 2, 141 तीक्ष्णगन्धा 4, 152 तीर 2, 418 तीर्थ 2,213 तीव्र, वा 2, 418 नु 7,9 तुङ्गभद्र, द्रा 4, 254-55 तुङ्गीश 3,718 तुण्डिकेरी 4, 255 तुत्थ, स्था 2,214 तुमुल 3, 648 तुम्बरी 3, 555 तुरग, गी 3, 112 तुरुष्क 3, 46 तुला 2, 480-81 तुलाकोटि 4, 62 तुलाधार 4, 255 तुष 2,549 तुषार 3,554 तणी 2, 142 सूबर 3,555 तूल 2,481 तुलिका 3, 47 तृणता 3, 257 तृणशूल्य 4, 224 तृष्, तृष्णा 1, 15 तेजस् 2,568-69 तेमन, नी 3, 372 तैतिल 8, 648-49 तैलपर्णी 4, 78 तोक 2, 10 तोक्म 2, 317 तोत्र 2, 419 तोदन 3,373 तोयधार 4,256 त्याग 2, 31 त्रपा 2,291 त्रप 2,291 त्रयी 2,354 त्राण 2,141 त्रास 2, 568 त्रिक, ०का 2,9 त्रिकूट 3, 151 त्रिगत,र्ता 3, 256 त्रिदिव, ०वा 3, 694 त्रिपुट, व्टा 3, 151 त्रिवर्णक 4,14 त्रिशङ्क 3, 46 त्रिशिख 3, 103 त्रिस्रोतस 3,743 त्रुटि 2,89 त्रेता 2, 169 त्रोटि 2, 89 व्यङ्गट 8, 150 त्वच 1,7 त्वरित 3, 256 त्वष्ट्र 2, 89 त्विष 1, 16 दश 2,535 दशन 3, 374 दशित 3, 257 दक्ष, ०क्षा 2, 550 दक्षिण, ०णा 3, 196-97 दण्ड 2, 118-19 दण्डधार 4, 257 दण्डयात्रा 4, 257 दण्डयाम 4, 217 दण्डार 3, 558 दण्डिन् 2,263 Aho 1 Shrutagyanam Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO TUE ANEKĀRTHASAMGRABA. 23 दन्त, न्ती 2, 169 दन्तशठ 4, 68 दन्तुर 8, 556 दन्दशूक 4, 15 दम ,318 दमथ 3,309 दमन 3,373 दम्भ 2,305 दर, ०री 2, 419 दर्दर 3, 557 दर्दुर, रा3,556-57 दर्प 2, 29:2 दी 2,513 दर्श 2,534 दर्शक 3, 47 दर्शन 3,374 दल 2,481-82 दलाढक 4, 16 दलामल 4, 201 दव 2,512 दशनोच्छिष्ट 5, 12 दशपुर 4, 256 दशमीस्थ 4, 135 दशा 2,536 दस्म 2,318 दस्यु 2,366 दस्त्र 2, 419 दहन 3, 372 दहर 8,556 दाक्षायणी 4,79 दाडिम 3, 458 दाढा 2,127 दात्यूह 3,758 दान 2,264 दाय 2,357 दायाद 3,325 दारक १, 48 दारद 8, 325 दा: 2,513 दाव 2, 512 दास, ०सी 2,569 दासेर 3,559 दिगम्बर 4, 257 दिग्ध 2, 237 दिति 2, 169 दिव् 1, 14 दिव 2,513 दिवाकीर्ति 4, 110 दिवाभीत 4,110 दिवौकस् 3, 743 दिव्य, व्या 2, 357-58 दिव्यचक्षुस् 4, 328 दिष्ट 2, 90 दिष्टि 2, 90 दीपक 3,48-49 दीप्त 2, 170 दीप्यक 3, 49 दी_ध्वग 4, 49 दीर्घायुस् 3.744 दुकूल 8,649 दुग्ध 2, 238 दुग्धतालीय 5, 37 दुन्दुभि 3, 448 दुरोदर 4, 258 दुर्ग, 2, 32 दुर्गति 8, 258-59 दुर्जात 3, 258 दुर्धर 3,559 दुर्नामन् 3, 375 दुर्मुख 3, 103 दुर्लभ 3, 447 दुर्वर्ण 3, 197 Aho! Shrutagyanam Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 APPENDIX. द्रोहाट 3, 152 द्वंद्व 2. 512 द्वापर 3.558 द्वार 2,420 द्विक 2, 10 द्विज,०जा 2, 68-69 द्विजन्मन् 3, 375 द्विजराज 4.54 द्विजाति 3, 258 द्विजित 3,694 द्वितीय, व्या 3, 481 द्वैमातुर 4. 259 दुर्विध 3, 336 दु:स्थ 2, 214 दृष्य 2, 358 दूर 2, 128 दश 1, 15 दृषद् 2,723 दृष्टान्त 3,259 दृष्टि 2, 90 देव, ०वी 2, 514 देवताड 4, 72 देवन 3,375-76 देवमणि 4,79 देववृक्ष 4,318 देवसेना 4, 176 देण 2, 143 देहयात्रा 4, 259 दैत्य, त्या 2,358 दोग्ध 2, 288 दोषज्ञ 3, 141 दोषा 7, 48 दोहदलक्षण 6,3 दौर्वीण 3, 198 दु 1, 11 गुति 2, 170 हाम्न ,264 दो 1, 11 द्रव 2, 511 द्रवन्ती 3, 257-58 द्रविण 2,264 द्रव्य 2,356 द्रावक 3, 48 दुघण 3, 197 दुण, ०णी 2, 142-43 द्रुत 2, 170 दू 1, 12 द्रोण, ०णी 2, 148 धन 2, 265 धनंजय 4,224 धनद 3, 325 धनिक, का 3, 49-50 धनु 2,266 धनुस् 2.70 धन्य, न्या 2,359 धन्वन् 2, 265 धन्विन् 2, 265 धमन, नी 3, 376-77 धर, रा 2, 420 धरण, ०णी 3, 198 99 धराधर 4, 259 धर्म 2, 819-20 धर्मराज 4,55 धर्षण, ०णी 3, 199 धव 2,515 धवल, ली 3, 649-50 धातु 2, 171 धातृ 2, 170 धात्री 2, 422 धाना 2,267 Aho 1 Shrutagyanam Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO TIE ANEKÄNTILASAMGRAITA. १ धान्य 2, 359 धामन् 2, 266 धामार्गव 4,305 धार, ०रा 2, 421 धाराङ्कुर 4, 260 धाराङ्ग 3, 112 धाराट 3, 152 धाराधर 4, 260 धार्तराष्ट्र 4, 261 धावन 3,377 धिक 7,9 धिषण, ०णा 3, 200 धिष्ण्य 2, 359-60 धदिा 2, 223 धीर 2, 422 धुत 2, 172 धुन्धुमार 4, 261 धुर् 1, 12 धुरंधर 4, 262 धूत 2, 172 धूमकेतन 5, 27 धूमकेतु 4, 111 धूर्त 2,172 धूलोकदम्ब 5, 35 धूसर 3, 559 धृतराष्ट्र, ०ष्ट्री 4, 262-63 धति 2, 173 धेन, नी 2,267 धेनुका 3,50 धैनुक 3,50 ध्रुव, व्वा 2,515-16 ध्वज 2, 69 ध्वनिलाला 4, 201 चाङ्क्ष, ०क्षी), 550.51 न. नकुल, ली 3,050 नक 2,423 नक्षत्रनेमि 5.36 नख 2,22 नग, 28 नगोकस 3,739 नग्न 2,267 न 7, 12 नत 2, 173 जद 2,221 नदीकान्त, न्ता 4, 111-12 ननु 7, 31 ननुच 7, 4 नन्दक,l नन्दन 3,377 नन्दा, 224 नन्दि 2,224 नन्दिघोष 1, 32 नन्दिन 2, 26 नन्दावर्त 4, 111 नमश्चमस 5,47 नमश्चर 4, 263 नभस् 2, 570 नमस 8, 744 नमुचि 8, 120 नय 2, 360 नर 2,423 नरक3,51 नरक 3. 113 नरेन्द्र 3, 560 नर्तक, की 8,512 नर्मठ 8, 16-1 नर्मदा 3,826 नल, ०ली 2,182 नलद,दा 3,326 नलिन, नी3,878 नव2,517 Aho! Shrutagyanam Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 ATTENDIS, नवफलिका, नवाह 3, 759 नहुष 3, 730 नाक2,100 नाकु 2, 10 नाकुली 3, 651 नाग 2, 3231 नागदन्त,न्ती411213 नागपाश 4,313 नागपुष्प 4.20 नागर 3,560 नागवारिक 5.5 नागाञ्चना 4.17 नाडी 2, 119 नाडीतरंग 5. 10 नादेयी 3, 482 नाना 7.32 नाभि 2,305 नाभील 3,650 नाम 7,39 नायक 8,53 नारकीट 4, 62 नारङ्ग 3, 113 नाराच, ०ची 3, 12 नारायण, ०णी 4, 80 नाल,०ली 2, 488 नालिका 8,53 नालीक 3,52 नाश 2. 536 नासा 2,571 नि 7, 10 निकर 3,561 निकष, ०पा 3,731 FTTT ( indecl.) 7, 57 निकाय 3,482 निकार3,562 निकुम्भ 3, 44 निकृत 3,250 निकृति 3, 262 निगम 3, 450 निगरण 4, 2 निग्रह 3,760 निचुल 3,651 निज 2,70 नितम्ब 3,440 निदाघ 2,315 निदान 3,379 निदेश 3,715 निधन 3, 378 निधुवन 4, 177 निन्दा 2, 225 निपाक 3,54 निभ 2,306 निमित्त 3, 260 निमिष, मेष 3,731 नियति 3, 263 नियम 3, 4:59 नियामक 4, 17 निर 7, 13 निरसन 4, 178 निरस्त 3, 260 निराकृति 4, 114 निरामय 4, 2:25 निरूपण 4, 82 निरूह 3,760 निति 3, 263 निरोध 3,338 निर्गुण्डी 3, 171 निर्ग्रन्थ 8, 309 निर्जर, ०रा 3,560 61 निर्दट 3, 153 निर्देश 3, 711 Aho 1 Shrutagyanam Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XPEX TO EN ANEKĀRTASAMGRALA. निर्भर 3, 561 निर्भर्सन 4, 179 निर्मल 8, 652 निर्माण 8, 201 निर्मुक्त 3, 261 निर्मोक 3, 5) निर्याण 3, 200 निर्यातन 4, 17 नियूह 8, 759 निर्वर 3,562 निर्वाण 3, 201 निर्वाद 3, 327 निर्वासन 4, 177 निवृति 3, 262 निर्वेश 8,714 निवात 3, 261 निवेश 3,715 निशमन 4.178 निशा 2,537 निशाचर, ०री 4, 263-64 निशान्त 3, 262 निशामन 1. 178 निशीथ 8, 310 निश्चारक 4, 17 निःश्रेणि 3, 202 निःश्रेयस 4,329 निषङ्ग, 13 निषदर, री 4, 264 निषध 3, 837 निषाद 3, 326 निक, JI निष्कल 3,652 निष्कुट 3. 153 निष्क्रम 3, 458 निष्ठा 2, 10 निष्पाव:.695 निस् 7, 13 निसर्ग 8, 114 निस्तरण 4, 81 निस्तल 3,652 निस्तुषित +, 113 निस्त्रिंश 3.714 निःसरण 4, 80 निह्नव 3,695 नीकाश 8, 716 नीच 2, 57 नीचैम् 7.51 नीड 2, 120 नीति 2, 174 नीरज 3, 136 नील, ली 2, 483--84, नीलकण्ठ 4, 67 नीलंजसा 4. 32} नीलाम्बर 4, 2017 नीवर 3, 568 नीवी 2,517 नीब 2, 424 नु 7, 11 नूनम् 7.40 नेत्र 2,424 नेपाली 3,638 नेम 2. 320 नेमि 2, 320 नैगम 3, 460 न्यक्ष 2,551 ज्यग्रोध, ०धी 3, 336-37 न्यकु 2, 10 न्यञ्च 1.7 न्युरख 2, 22 न्युज 2, 70 न्यन2.205 Aho! Shrutagyanam Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . APPENDIX. . पक्ति2, 174, पक्क 2,51) पक्ष 2,551-52 पक्षचर 4, 269 पक्षति 3, 268 पक्षिणी 3, 205 पक्ष्मन् 2,270 पङ्क 2, 12 पङ्कार 3, 566 पङि2, 174 पण 2, 144-45 पञ्चगुप्त 4, 11 पञ्चत्व 3, 699 पञ्चनख 4, 48 पञ्चम, मी 3, 461 पञ्चाल, ली 3, 655 पटल 3,604 पटह 3,763 पटु 2, 92 पह, ही 2,91 पण्ड, ०ण्डा 2,120 पण्डित 3, 26 पतंग 3, 115-16 पताका 3, पत्ति 2, 17A पत्तोर्ण 8, 204 पच 2, 425 पत्ताग3, 116 पत्रिन 2, 270 पत्तोर्ण, cli. पत्तोर्ण पथ्य, ०थ्या 2,360 पद 2,225 पदार 3, 567 पद्धति 3,269 पद्म 2, 321 पद्मलाञ्छन, ना, 28 29 पद्मिनी 3,382 पद्य, द्या 2, 361 पनस 3,745 पन्नग 3, 114 पयम् 2,571 पयस्य, स्या 3, 487 पयस्विनी 4, 184 पयोधर 4, 270 पर 2,425 परन्ज 3, 186 परपुष्ट, ०टा 4, 64 परम, मम् 3, 461-62 परंपर, ०रा 1,268 परवाणि 4,85 परा 7, 43 पराक्रम 4,218 पराग , 115 पराभव 4,806 परायण 4, 84 परि 7, 44 परिकर 4, 267 परिगत 4, 118 परिग्रह 4,341 परिघ 8, 125 परिघात 4, 120 परिघोष 4, 820 परिधाय 4, 226 परिधि 3,339 परिपूव 4, 306 परिबर्ह 4,342 परिभाषण 5, 14 परिमल 4,292 परिवर्त 4, 120 परिवाद 4, 142 परिवाप4, 209 Aho 1 Shrutagyanam Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 29 INDEX TO TIE ANEKĀRTHASAMGRATIA, परिवार 4, 268 परिवाह 4, 341 परिवेष 4,819 परिव्याध 4, 153 परिसर 4, 269 परीष्टि 3, 154 परुष 3,732 परेत 2, 178 पर्कटी 3, 155 पर्जन्य 3, 486 पर्ण 2, 145 पर्पट 3, 154 पर्यङ्क 3,55 पर्यस्त 3, 268 पर्याप्त 3, 266 पर्याय 8, 486 पर्वत 3, 268 पर्वन् 2, 269 पर्वरीण 4, 83 पल 2, 484 पलंकष, षा 4, 320 पलल 3,655-56 पलाश 3,717 पलित 3, 265 पलिघ3, 126 पल्लव 3, 693 पल्लवित +, 119 पल्लि 2, 481 पवन 3,381-82 पवित्र, त्रा 3, 567-63 पशु 2, 537 पशुपति 4, 121 पश्चात् 7, 24 पांसुचामर 5, 41 पांसुल, ०ला 3, 658 पाक 2, 12 पाकल 3,656-57 पाचल,656 पाञ्चजन्य 4,226 पाटक 3, 57 पाटल, ला 3, 657-58 पाटीर 8,570 पाठीन 3, 88.3 पाण्डु ), 120 पाण्डुकम्बल 5, 46 पाण्डर 3, 570-71 पातलो 3, 659 पाताल 3, 657 पातुक 3, 56 पात्र 2, 427 पात्रटीर 4,270 पाद 2, 226 पादचत्वर5,40 पादप, ०पा 3, 437. पानीय 3,488 पामर 8,569 पायस , 746 पार, ०री 2, 426 पारशव 4,306-7 पारापत, ती 4, 122 23 पारायण 4, 85 पारावार 4, 271 पारिजात 4, 122 पारिभद्र 4,272 पारुष्य 3, 488-89 पार्थिव, वी 3, 699 पार्पर 3, 569 पार्वती 3, 271-72 पार्श्व 2,519 पाणि 2, 146 पालङ्क 3, 58 पालि 2, 484-85 Aho! Shrutagyanam Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 APPENDIX. पावन, नी3, 382 83 पाश 2, 537-38 पाशुपत 4, 121 पिङ्ग, ङ्गा, ङ्गो 2, 34-35 पिङ्गल, ०ला 3, 660-61 पिङ्गाश, ०शी 3, 717-18 पिचण्ड 3, 172 पिचुल 3, 662 पिच्चट 3, 155 पिच्छ, ०च्छा 2, 62 पिच्छिल, ला 3, 663 पिन, जा 2, 71 पिञ्जर 3, 572 पिचल 3, 668 पिठर 3, 571. पिण्ड, ०ण्डी 2, 121-22 पिण्डपुष्प 4, 210 पिण्डार 3,571 पिण्डित 3, 272 पिण्डिल 3,664 पिण्डीतक 4, 19 पिण्याक 3,60 पितामह 4, 312 पित्तल, ला 3, 661-62 पित्सत् 2, 175 पिनाक 3,58 पिपतिषत् 2, 175 पिप्पल, ली 3, 659-60 पिप्पलक 4, 19 पिल्ल 2, 474 पिशित, ता 3, 272 पिशुन, ना 3, 384 पिष्टक 3, 60 पीठमर्द 4, 143 पीडा 2, 122 पीडित 3, 272-73 . पीत, ना 2, 175-76 पीनकावेर 5, 42 पीतचन्दन 5, 29 पीतन 3,385 पीताम्बर 4,272 पीति 2, 176 पीथ 2, 215 पीयूष 3, 733 पीलु 2, 486 पीलुपी 4, 85 पीवर 3, 572 पुङ, 28 पुंगव 3, 700 पुटग्रीव 4, 307 पुटभेद 4, 143 पुण्डरीक 4, 20-21 पुण्डू 2, 428 पुण्य 2, 362 पुण्यजन 4, 184 पुत्रक, त्रिका 3, 63-64 पुद्गल 3, 664 पुनर् 7, 46 पुनर्वसु 4, 330 पुंनाग 3, 118 पुर् 1, 12 पुर 2, 428 पुरतस् 7,59 पुरस् 7, 51 पुरस्कृत 4, 124 पुरस्तात् 7, 55 पुरा 7, 45 पुराण 3, 205-6 पुरु 2, 429 पुरुष 3,733 पुरोडाश 4, 314 पुल 2, 486 Aho 1 Shrutagyanam Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAMGRAHA. 31 पुलक 3,61 पुलाक 3, 62 पुष्कर 3,578 पुष्करिणी 4, 86 पुष्कल 3, 664 पुष्टि 2, 93 पुष्प 2, 292 पुष्पक 3,62-68 पुष्पदन्त 4, 123-24 पुष्पलक 4, 21 पुष्य 2, 355 पुस्त 2, 176 पूग 2, 35 पूज्य 2, 362 पूतना 3, 385 पूनिकाष्ट 4, 69 पूत्यण्ड 3, 173 पूर 2, 430 पूरण, ०णी 2, 306 पूर्ण 2, 147 पूर्णक 3, 64 पूर्णपात्र 4, 272 पूर्णानक 4, 22 पूर्णिका 3, 65 पूर्त 2, 177 पूर्व 2, 520 पूर्वेगुस् 7, 59 पृतना 3, 386 पृथग्जन 4, 185 पृथिवीपति 5, 20 पृथु 2, 215 पृथुक 3, 65 पृदाकु 3, 65 पृषत, ०त 2, 177 पृष्ठ 2, 106 पृष्ठशृङ्गिन् 4, 185 पेचक 3,66 पेटक 3, 66 पेशल 3, 665 पेशी 2, 538-39 पोटगल 4, 292 पोत 2, 178 पोत्र 2, 430 पौर 2, 431 पौरुष 3, 733-34 पौरुषेय 4, 227 पौर्णमास, ०सी 4, 330 पौलस्त्य 3, 489 पौष 2, 554 प्र 7, 14 प्रकर, ०री 3, 564-65 प्रकरण 4,83 प्रकाण्ड 3, 172 प्रकार 3,566 प्रकाश 3, 716 प्रकीर्णक 4, 18 प्रकृति 3, 269-70 प्रकोष्ट 3, 165 प्रक्रम 3, 460 प्रक्रिया 3, 488 प्रखर 3,563-64 प्रगाढ 3, 179 प्रग्रह 8, 760 प्रग्राह 3,762 प्रघण 3, 202 प्रचण्ड 3, 171 प्रचलाक 4, 18 प्रचलाकिन् 4, 184 प्रचेतस् 3, 745 प्रजनन 4,179 प्रजा 2,71 Aho! Shrutagyanam Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 APPENDIX. प्रजापति 4, 117 प्रज्ञ, ज्ञा 2, 76 प्रज्ञान 3,381 प्रणय 3, 483 प्रणाय्य 3, 484 प्रणिधान 4, 180 प्रणिधि 3,338 प्रणिहित 4, 115 प्रणीत 3, 266 प्रतति 3, 270 प्रतल 3,654 प्रति 7, 23 प्रतिकार 4, 265 प्रतिकृति 4, 117 प्रतिकृष्ट 4,63 प्रतिक्षिप्त 4, 115 प्रतिग्रह 4, 340 प्रतिघ 3, 126 प्रतिपत्ति 4, 118 प्रतिपद् 8, 328 प्रतिपन्न 4, 181 प्रतिपादन 5, 28 प्रतिभय 4, 225 प्रतिमा 3,462 प्रतिमान 4, 183 प्रतियत्न 4, 182 प्रतिशिष्ट 4, 63 प्रतिश्रय 4, 225 प्रतिष्कश 4, 314 प्रतिष्ठा 3, 165 प्रतिसर 4,266 प्रतिहत 4, 114 प्रतिहार cfr. 4,265 प्रतीक 3,55 प्रतीक्ष्य 3,485 प्रतीत 3, 264 प्रतीहार 4, 265 प्रत्यय 3, 483-84 प्रत्युद्गमनीय 6,5 प्रत्यूष 3, 732 प्रथम 3, 460 प्रदर 3, 565-66 प्रदेश 3, 716 प्रदोष 8, 782 प्रधन 3,379 प्रधान 3,380 प्रधूपिता 4, 116 प्रपञ्च 3, 129 प्रपात 3, 268 प्रभव 3, 696 प्रभाव 3, 698 प्रभूत 3, 264 प्रमथ, था 3, 310 प्रमद, ०दा 3, 327 प्रमाण 3, 203 प्रमीत 3, 267 प्रमुख 3, 104 प्रयाग 3, 116 प्रयोग 3, 117 प्रयोजन 4, 180 प्ररूढ 3, 179 प्रलम्ब 3, 440 प्रलय 3, 485 प्रवंगम 4,218 प्रवचन 4,180 प्रवण 3, 203 प्रवर 3,563 प्रवह 3, 762 प्रवारण 4, 83 प्रवाल 3,653 Aho 1 Shrutagyanam Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTHASAMGRAHA. ___33 .. प्रवाह 5,761 प्रविदारण 5, 13 प्रवृत्ति 8,271 प्रवेणि 3, 205 प्रव्रजिता 4, 116 प्रसन्न, ना 3, 381 प्रसर 3,566 प्रसव 3,697 प्रसव्य 3, 485 प्रसाद 3,327 प्रसाधन, नी 4, 183 प्रसिद्ध 3,338 प्रसू 2, 571 प्रसूत 3, 264 प्रसूति 3, 269 प्रसून 3,380 प्रसृत, ता 3. 267 प्रसेव 3, 697 प्रस्तर 3, 565 प्रस्थ 2,215 प्रस्फोटन 4, 181 प्रहत 8, 265 प्रहसन 4, 182 प्रहाद 3,328 प्राच 7, 13 प्राण 2, 145 प्राणक 3, 56 प्रादुस् 7, 51 प्राध्य 2, 520 प्राध्वम् 7, 40 प्रान्तर 3,568 प्राप्तरूप 3,488 प्राप्ति 2, 175 प्राय 2,861 प्रार्थित 3, 271 प्रालम्ब 3, 441 प्रासाद 3,328 प्रिय 2,362 प्रियंवद 4, 142 प्रियक 3,59 प्रियङ्ग 3, 117-18 प्रीति 2, 176 प्रेक्षा 2, 553 प्रेला 2, 23 प्रेत 2, 178 प्रेमन् 2, 271 प्रैष 2, 553 प्रोक्षण 3, 207 प्रोक्षित 3,273 प्रोत 2, 178 प्रोथ 2, 216 प्रौह 2,586 प्रक्ष 2, 553 पूर्व 2, 517-19 प्रवग 3, 114 प्लत 2, 177 फटा 2, 93 फर्फरीक 4, 22 फल, ली 2, 487-88 फलोदय 4, 227 फल्गु 2, 35 फाणि 2, 147 फाल 2, 488 फाल्गुन, नी 3,386-87 फेनिल 3, 665-66 फेरव 3, 700 बक 2, 12 बकेरुका 4, 24 बठर 3, 574 Aho! Shrutagyanam Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 APPENDIX बत 7,24 बदर, ०रा, ०री 3,576-77 बद्धशिख 4, 44 बन्ध 2, 238 बन्धक, की 3,67-68 बन्धु 2, 239 बन्धुर, ०रा 3,574-75 बन्धूक 3,67 बन्धूर 3, 574 बधु 2, 481 बर्कर 3, 576 बकराट 4, 64 बर्बटी 3, 156 बबर, बरा 3, 575-76 बर्बरीक 4, 23 बह 2, 586 बर्हिस 2, 572 बल, ला 2, 488-89 बलदेव, वा 4, 308 बलभद्र, द्रा 4, 273 बलाहक 4,23 बलि 2,489-90 बल्य 2,363 बहु 2,586 बहुक 3,66 बहुफल, ला 4, 292-98 बहुरूप 4, 210 बहुल, ०ला 3, 666-67 बाढ 2, 128 बाण 2, 147 बाधा 2,239 . बान्धव 3, 700 बाबटीर 4, 274 बाल, ला, ली 2. 490-91 वालिका 3, 68 सालिश 3, 718 बालेय 3, 496 बाष्प 2, 293 बाहा cfr. वाहा बाहुन 3, 137 बिडाल 3, 667 बिन्दु 2, 230 बिन्दुतन्त्र 4, 274 बिम्ब 2, 300 बिल 2,491-92 बिलासिन् cfr. 3, 411 बिलेशय 4, 228 बीज 2, 71 बीभत्स 3, 746 बुक्कस, सी 3,747 बुद्ध 2,239 बुध 2, 239 बुध 2, 272 बहतिका 4, 35 बृहती cfr. वृहती बृहनल 4, 299 बोधि 2, 240 ब्रह्मण्य 3,494 ब्रह्मन् 2,271 ब्रह्मबन्धु 4, 151 ब्राह्मण 3,215-16 ब्राह्मी 2,321 भ. म, भा 1,9 भक्त 2, 179 भक्ति 2, 179 भग 2,36 भङ्ग, ङ्गा 2, 37 भङ्गि 2, 37 भङ्गर 3, 377 ... मट 2, 93 Aho I Shrutagyanam Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTLASAMGRAHA. 5 भट्टारक 4, 25 भहिनी 3,388 भण्डन 3,387 भद्र, द्रा 2,431-33 भद्रकाली 4, 293 भन्द 2, 227 भय 2, 363 भयानक 4, 25 भर 2,433 भरण, ०णी 3, 207 भरत 3,273-74 भरद्वाज 4, 55 भरु 2, 434 मत 2, 179 भर्मन 2,272 भल्ल, ल्ली 2, 492 भव 2,521 भवन 3,387 भव्य, ०व्या 2, 363-64 भसद् 2, 227 भस्मक 3, 68 भस्मतूल 4, 298 भा 1,9 भाग 2, 33 भागधेय 4, 2:28 भाग्य 2,364 भाण्ड 2, 123 भारकूट 3, 156 भानु 2, 272 भार 2, 434 भारत, ती 3, 274-75 भारद्वाज,०जी 4, 56 भार्गव, ०वी 8, 701 भार्याटिक 4, 26 भार्योस 3, 578 माल 2,492 भालाङ्क 3, 69-70 भाव 2, 521-23 भावना 3,388 भावाट 3, 156 भावित 3, 275 भास् 1, 16 भास 2,572 भासन्त 3,275 भास्कर 3,578 भास्वत् 2, 180 भिक्षा 2, 554 भित्ति 2, 180 भिन्न 2,273 भीम 2, 323 भीरु 2,434 भीषण 3, 208 भीष्म 2,323 भुज ', 72 भुजंग 3, 118 भुजिष्य, ज्या 3, 490 भुवन 3, 388 भू 1,9 भूक 2, 13 भुकेश 3, 718 भूजम्बू 3, 441 भूत 2, 180 भूतवृक्ष 4, 321 भूतात्मन् 3, 389 भूति 2, 181 भूतीक 3, 70 भूभृत् 2, 181 भूमि 1,9 भूमिका 3, 71 भूमिज, जा 3, 187 भूरि 2, 435 भूस्पृश 2,539 Aho! Shrutagyanam Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 भृगु 2, 89 भृङ्ग 2, 38 भृङ्गराज 4, 56 भृङ्गार, बी 3, 579 भृति 2, 182 भृशम् 7, 41 भृष्टि 2,93 भेक 2, 13 भेद 2, 227 155, 0031 3, 178 भेल 2,493 भैरव 3, 702 भोग 2, 39 भोगवती 4, 125 भोगिन 2, 278 भौम 2,324 भ्रम 2, 822 भ्रमणी 3, 207 भ्रमरक 4, 24 भ्रातृव्य 3, 489 भ्रान्ति 2, 180 भ्रामक 3, 69 भ्रामर 8, 578 भ्रूण 2, 148 म. म, मा 1, 10 मकर 8,580 मकुर 3, 589-90 मकुष्ठ 3, 166 मङ्क्षु 7, 49 मङ्गल, ०ला 3, 669-70 मङ्गल्य, व्ल्या 3, 491-98 मञ्जरी 3,587 मञ्जुल 3,669 मणि 2, 143 APPENDIX. मणिच्छिद्रा 4, 276 मणिमाला 4, 296 मण्ड, oण्डा 2, 124 मण्डन 3,390 मण्डल 3, 668 मण्डूक, ०की 3, 73 मण्डूकपर्ण, मत 2, 182 मति 2, 183 मत्कुण 3, 208 मत्तवारण 5, 14 मत्सर, ०रा 3,579-80 माथन 8, 276 मद, दी 2, 228 मदकल 4, 294 मदन 3, 389 मधु 2, 240 मधुक 3, 72 मधुर, ०रा 3,581-82 मधुरसा 4, 332 मधुसूदन 5, 30 मध्य 2, 365 5, 15-16 मध्यम, मा 3, 463-64 मनाक् 7, 18 * मन्त्र 2, 435 मन्थ 2, 216 मन्थर 3, 558-84 मन्द 2,229 मन्दर 3, 580 मन्दार, 8,564 मन्दिर 3,583 मन्मथ 3, 311 मन्यु 2, 365 मय 2, 365 मयु 2, 365 मयूख 3, 104 Aho ! Shrutagyanam Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयूर 3, 586 मयूरक 4, 27 मरीचि 3, 130 मरु 2, 435 INDEX TO THE ANEKARTHASAṀGRAHA. मरुत् 2, 183 मरुवक 4, 26 मर्कट, टी 3, 157 #2, 72 मर्मर, री 3,585-86 मर्यादा 3,329 मल 2, 493-94 मलय, व्या 3, 490-91 मलिन, ०नी 3, 389-90 मलिन मुख 5,8 मलिम्लुच 4, 52 मलीमस 4, 331 मल्ल 2, 493 मल्लनाग 4, 50 मल्लिक, का 3, 73-74 मशक 3, 72 मसुर, रा मसूर, व्रा 3, 584-85 मसृण, ०णा 3,209 मह, ही 2, 587 महत् 2, 183 महस् 2, 572 महाकाल 4, 294 महाघोष, ०षा 4, 322 महाधन 4, 186 महानाद 4, 144 महानील 4, 295 महापद्म 4, 218 महाबल, ०ला 4, 295-96 महामात्र 4, 276 महामुनि 4, 186 महामूल्य 4, 229 महारजन 5, 30 महारस 4, 331 महार्घ 8, 126 महालय 4, 228 महावीर 4, 275 महाशङ्ख 4, 44 महासेन 4, 186 महिला 3, 670 महिषी 3, 734 महो 2, 587 महेन्द्र 8,587 महोदय 4,229 महौषध 4, 153 मा1, 10 माकन्द, न्दी 3, 329 मागध, ०धी 3, 339-40 माचल 3, 671 माठर 3, 587 माढि 2, 128 माणवक 4, 27 मातङ्ग 8, 119 मातुल 3, 670 मातुलपुत्रक 6, 1 मातुलानी 4, 187 मातृ 2, 183 मातृका 3, 74 मात्र, त्रा 2, 436-37 माधव, वी 3, 702-3 मान 2, 274 मानस 3, 747 माय, या 2, 366 मार, 02, 436 मारण्ड 3, 174 मारिष, षा 3, 735 मारीच 3, 130 मार्ग 2, 40 Aho! Shrutagyanam 37 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 मार्गण 3. 210 मार्जन, ना 3,390-91 मार्जार 3,588 मार्जालीय 4, 230 मार्तण्ड 3, 174 माल, ०ला 2, 494 मालती 3, 276 मालिका 3, 74-75 मालिनी 3,391 मालु 2, 495 मालुधान, ०नी 4, 187 माल्य 2, 366 माघ 2, 555 मास् 1, 16 मिति 2, 184 मित्र 2, 437 मिथस् 7, 51 मिथुन 3,392 मिद्धू 2, 241 मिष 2, 555 मिसि 2, 572 मिहिर 3, 588 मीन 2, 274 मीनाम्रीण 4, 86 मुकुन्द 3, 330 मुकुर 3, 589-90 मुक्ता 2,184 मुक्ताफल 4, 297 मुक्ति 2, 184 मुख 2, 24 मुग्ध 2, 242 मुचुकुन्द 4, 144 मुण्ड 2, 124 मुण्डन 8, 392 मुदिर 8,589 मुद्गर 3, 588 APPENDIX. मुनिभेषज 5, 12 मुर्मुर 3, 590 मुषित 3, 277 मुष्क 2, 13 मुसल, ली 3, 671-72 मुहिर 3, 589 मूक 2, 14 मूढ 2, 128 मूर्छित 3, 277 मूर्ति 2, 185 मूर्धाभिषिक्त 5, 20 मूल 2, 495 मूल्य 2, 367 , off 2, 41 मृगयु 3, 493 मृगाक्षी 3, 735 मृत 2, 185 मृत्युफल, ली 4, 297 मृत्युवञ्चन 5,30 gear 2, 573 मृत्स्रा 2, 274 मृदङ्ग 3, 119 मृदु 2,230 टेक 4,28 मेखला 3,672 मेघ 2, 52 मेघनाद 4, 145 पुष्प 4, 211 मेचक 3, 75 u, our 2, 242 मेनाद 3, 830 मेला 2, 495 मेष 2, 555 मेहन 3,392 मैथुन 3,393 मोक्ष 2, 556 Aho ! Shrutagyanam Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRIHASAMGRAHA. 39 .. मोघ, घा 2, 53 मोच, ०चा 2, 57 मोचक 3, 76 . .मोचाट 3, 158 मोण 2, 149 मोदक 8,76 मोरट, कटा 3, 157-58 मोह 2, 587 मौलि 2, 496 मिष्ट 2, 94 मेच्छ 2, 63 युक्ति 2, 186 युग 2, 42 युत2, 186 युतक 3,77 यूथ, ०थी 2, 216-17 योग 2, 42-44 योग्य, ग्या 2, 367-68. योजन 3, 3:94 योजनगन्धा 5, 22 योनि 2, 275 यौवनलक्षण 6, 4 यक्ष 2,556 यज्ञ 2,77 यतस् 7, 49 यति 2, 186 यथा 7,29 यद्वत् 7, 25 यन्तृ 2, 185 यन्त्रण 3, 210 यम 2,324 यमक 3, 76 यमन 3,393 ययु 2,367 यवफल 4, 298 यष्टि 2, 94 याजक 3, 77 यातयाम 4,219 यात्रा 2, 433 यादसांपति 5, 21 यान 2, 275 यापन 3,393 याम2, 325 याम्या 2,367 यावत् 7. 28 ₹ 1, 11 रक्त 2, 186 रक्तप, ०पा 3, 437 रक्तपाद 4, 141 रक्तरेणु 4, 87 रक्ताक्ष 3, 736 रक्ताङ्ग, ०ङ्गा 3, 119-20 रक्षा 2, 556 रङ्क 2, 14 रङ्ग 2, 44 रङ्गन्मात 4, 125 रजक 3,78 रजत 3,277-78 रजनी 3, 395-96 रजस् 2,575 रञ्जन, नी 3, 395 रण 2. 149 रण्डा 2, 125 रतनारीच 5, 11 रतद्धिक 4, 28 रति 2, 187 रत्न 2, 275 रथ 2.217 Aho! Shrutagyanam Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. रथकार 4, 277 रथाङ्ग 3, 120 रथ्य, ०थ्या 2, 369 रद 2, 230 रन्ध्र 2, 411 रभस 3,747 रम, ०मा 2, 325 रमण 3,210-11 रम्भ, ०म्भा 2, 306 रम्य, म्या 2, 368-69 रश्मि 2, 326 रस, °सा 2, 578-74 रसन 3,394 रसायन 4, 188 रसाल, ला 3, 678 रसिका 3, 78 रसित 3,278 रहस् 2, 575 रहस्य, ०श्या 3.493 राका 2,14 राक्षसी 3, 748 राग 2, 44 रागचूर्ण 4, 87 रागसूत्र 4, 277 रागिन 2,276 राघव 3, 703 राजजम्बू 4, 213 राजन् 2,275 राजराज 4, 57 राजवृक्ष 4, 322 राजहंस 4, 332 राजादन 4, 189 राजिका 3, 80 राजी 2,78 राजीव 3,703-4 राढा 2, 129 रात्रक 3, 79 राध, ०धा 2,242 राधन 3,396 राधरङ्क 4, 29 राम. मा 2. 326-27 रामिल 3, 674 राशि 2, 539 राष्ट्र 2, 438 . रास 2, 575 रासेरस 4,333 रात्रा 2, 276 रिष्ट 2, 25 रोति 2, 187 रुक्म 2, 327 रुच 1,7 रुचक 3,80 रुचि 2, 57 रुजा 2, 73 रुदथ 8, 311 रुधिर 3, 591 रुमा 2,327 रुरु 2, 438 रूक्ष 2, 557 रूप 2, 293 रूपक 3,81 रूप्य 2,370 रेक 2, 15 रेखा 2, 24 रेचनी 3, 396 रेण 2, 150 रेणुका 3, 81 रेत्र 2, 438 रेप 2, 294 रेफ 2, 297 रेरिहाण 4, 88 रेवती 3, 279 Aho 1 Shrutagyanam Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTU ASANGRAHA. वा 2,523 ₹ 1, 11 रैवत 3,279 रोक 2, 15 रोचन, ना 3, 397 रोदन 3, 397 रोदस् , सी 3, 748 रोन 2, 439 रोप 2, 294 रोमहर्षण 5, 16 रोषाण 3, 211 रोहिणी 3, 212 रोहित 3, 280 रोहिताश्च 4, 308 रोहिन् 2, 277 रौद्र, ०द्री 2, 439 रौरव 8, 704 रौहिणेय 4, 230 रोहिष 3, 736 लता 2, 188 लभ्य 2, 371 लम्पाक 3,82 लम्बकर्ण 4, 88 लम्बोदर 4, 278 लय 2, 370 ललना 3, 399 ललाम, मन 3,398 ललित 3,280 लव 2,523-24 लवण, ०णा 3, 212-13 लाङ्गल, ली 3, 674-75 लाङ्कलिन् 3, 400 लाङ्गल 3, 674 लाज 2, 73 लाञ्छन 3, 399 लाट 2,95 लालस 3, 748 लालाटिक 4, 29 लासक 3,82 लिङ्ग 2, 45 लिप्त 2, 189 लीला 2, 496 लुब्ध 2, 243 लूता 2, 189 लूतामर्कटक 6, 2 लूनक 3,82 लेख, ०खा 2, 25 लेखन 3, 400 लेखीलक 4, 30 लेप 2, 294 लोक 2, 16 लोचक 3,82-83 लोमश, शा 3,719-20 लोल, ला 2, 497 लोह 2, 588 लक्ष 2,557 लक्षण 3,213 लक्ष्मण, ०णा 3, 213-14 लक्ष्मन् 2, 277 लक्ष्मी 2, 328 लक्ष्मीपति 4, 125 लक्ष्मीपुत्र 4, 278 लग्न 2,277 लपिष्ट 3, 166 लघु 2,53 लध्वी 2, 524 लङ्का 2, 16 लङ्ग 2, 45 लङ्कन 3,398 लज 2, 73 लद्वा 2, 524 Aho! Shrutagyanam Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. लोहल 3, 675 लोहित 3, 281-82 लोहित्य 3, 494 व. व 1,14 बंश 2,541 वक्तव्य 3, 495 वक्त्र 2,441 धक्र 2, 441 वनक्र 4,279 वङ्ग- 2, 46 वच, ०चा 2,58 वत्र, त्रा 2, 442 वञ्चक 3,84 वञ्चथ 3, 311 वञ्जल 3, 675 वट 2,95 वडवा 3, 705 वणित् 2, 74 वण्ठ 2, 106 वण्ठाल 3, 676 वतंस 3,741 वतण्डा 3, 175 वत्स 2,576 वदान्य 3, 495 वध 2, 243 वधू 2, 244 वन 2, 278 वनज, जा 3, 139 वनश्वन 3, 404 वनस्पति 4, 126 वनित, ता 3, 282-83 वपन 8, 403 वपा 2, 295 वपुस् 2, 578 वप्र2,441 वमथु 3,318 वमन 3, 402 वमि 2,328 वयस् 2, 576 वयःस्थ, स्था 3,312-13 वर, ०री 2, 439-40 वरचन्दन 5,31 वरवर्णिनी 5,31 वरटा 8, 159-60 वरण 3.214-15 वरण्ड 3, 174 वरण्डक 4,32 वरत्रा 3, 592 वरद,०दा 3,330-31 वराक 3,84 वराग 3, 120 वराटक 4,31 वरारोह, हा 4,343 वराह 3,763 वरिष्ठ 3, 166-67 वरीयंस् 3, 749 वरुण 3, 21+ वरूथ 3, 312 वर्चस् 2, 576-77 वर्जन 3, 402 वर्ण 2, 150-51 वर्णक 3,85 वर्णविलोडक 6, वर्णाट 3, 159 वर्णिन् 2, 279 वर्तक 3,84 वर्तनी 3, 403 वर्तरूक 4, 31 वर्ति 2, 190 वर्मन् 2, 279 वर्धन, नी 3, 403 Aho 1 Shrutagyanam Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAMGRAHA. वाणिनी 3,405 वातकेलि 4, 299 वातखुडा 4, 72 वातरायण 5, 17 वातरूप 4, 323 वातुल 3, 676 वान 2 280 वानप्रस्थ 4, 135 वापित 3, 284 वाम, ०मा, मी 2, 328-29 वामन 3, 404 वामिल 3, 677 वायस, सी 3, 749-50 वायुफल 4, 298 वर्धमान 4, 189 af 3, 282 वर्ध 2, 442 वर्ष 2, 557-58 वर्षाभू 3, 449 acЯa 2; 278 वलज, ०जा 3, 138 वलय 3, 496 afa 2, 489-90 वल्क 2, 16 वल्गु 2, 47 वल्मीक 3, 85 वल्लभ 3, 449 वलर 3, 591 वल्लव 3, 704 बली 2, 497 वल्लूर 3, 592 वश, शा 2, 540 वसति 8, 253 वसन 3. 402 वसन्तदूत, ती 5, 21 वसु 2, 577 वसुक 8, 85 वस्न 2 278 aratकसारा 5, 42: वह 2, 588 ar 7, 14 वागर 3,593 वाग्मिन् 2, 281 वाच् 1, 7 वाच्य 3, 495 वाज 2, 75 वाजिन 2,281 वाट, °टी 2, 96 वाडव 8, 705-6 arfor 2, 151 वार 2, 443-44 वारण 3, 215 वारबाण 4, 88 वाराही 3, 763 वारेि 2, 444 वारुणी 3, 216 वारुण्ड 3, 175 वारूढ 8, 179 a, वार 3,594 वार्द्धक 3, 88 वार्षिक 3,87 वालिका 3, 68 araft 2,491 2, 191 वालुक, व्का 3, 88-89 वालेय 8, 496 वाल्हिक, ल्हक: 3, 87-88 वास, °सा 2 578 वासन्त,. वासर 3,594 वासित, ता 3, 286-87. वासुरा 3,595 at 3, 285-86. Aho! Shrutagyanam 43 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 APPENDIX. वास्तु 2, 192 वाह, हा 2,588-89 वाहस 3,750 वाहिनी 3, 405 .. वि 7,15 विकट 3, 160 विकार 3,596 विकाश 3,721 विकृत 3, 289 विकृति 3,292 विक्रम 3, 465 विक्लिन्न 3, 407 विगत 3,288 विगूढ 3, 180 विग्रह 3,764 विनकारिन् 4, 193 विचकिल 4, 299 विच्छित्ति 3, 293 विच्छिन्न 3, 408 विजय, व्या 3, 496-97 विजात, ता 3, 292 विज्ञान 3, 407 विट 2,96 विटप 3, 438 विडङ्ग 3, 121 वितण्डा 3,176 वितर्क 3,89 वितान 3, 406 वितुनक 4,33 वित्त 2,193 वित्ति 2,193 विदथ 3,314 विदा 2, 230 विदार, ०री 3, 597 विदारण 4, 89 विदित 3, 287 विदुर 3, 596 विदूषक 4,33 विदेह. 3,764 विद्ध 2, 245 विद्रव 3, 706 विट्ठम 3,466 विद्वंस 2, 579 विधा 2, 245 विधान 3, 294 विधान 3, 409 विधि 2, 245 विधु 2, 246 विधुत 3, 289 विधुर, ०रा 3,598 विनत, ०ता 3, 290-91 विनय, व्या 3, 498 विनायक 4,32... विनिपात 4, 127 विनीत 3, 989-90 दिनेत 3, 294 विन्दु 2, 230 विन्ध्य, ध्या 2, 371 विन्न 2, 281 विपणि 3, 217 विपत्ति 3, 293 विपन्न ?, 410 ... विपाक 3, 89 विपाश, ०शा 3, 721 विपुल, ०ला 8, 677 विप्रतिसार 5, 43 विप्रलाप 4,211 विबुध 3, 340 विभव 3,707 विभाकर 4, 280 विभाव 3,706 विभावसु 4, 334 . Aho 1 Shrutagyanam Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTHASAMGRAHA. 45 विभु 2, 306 विभ्रम 3, 466 विमल 3, 677 विमान 3, 409 विरूढ 3, 180 विरोचन 4, 190 विलन 3, 407 विलास 3,751 विलासिन् 3, 411 विलीन , 407 विलेपनी 4, 194 विलोम, ०मी 3, 464-65 विवध 3, 341 विवर 2, 411 विवर्त 3, 292 विवश 3, 720 विवस्वत् 3, 267 विविक्त 8, 288 विवेक 3, 90 विश 1, 15 विशद 3, 331 विशल्या 3, 499 विशाख, ०खा 3, 105 विशारद 4, 145 विशालाक्ष 4, 323 विशिख, ०खा 3, 104 विशेषक 4, 34 . विश्रब्ध cfr. 3, 341 विश्रम्भ efr. 3, 451 विश्राणन 4, 192 विश्रुत 3, 287 विश्लेष 8, 737 विश्व, ०श्वा 2, 525 विश्वकट्ठ 4, 280 विश्वकर्मन् 4, 193 विश्वप्सन् 3,410 विश्वंभर, रा 4, 279-80 विश्वस्त, ०स्ता 3, 291 विश्वावसु 4, 333 विष, षा 2, 558 विषघ्र, ध्रा 3, 408 विषय 3, 497-98 . विषयिन् ।, 411 विषाण, ०णी 3, 216-17 विष्कम्भ 3, 450 विष्टर 3,595 विष्टि 2, 98 . विष्णुपद, ०दी 4, 145-46. विष्वक्सेन, ना 4, 191-92 विष्वक्सेनप्रिया 6,5 विसर 3,598 विसर्ग 3, 121 विस्तार3, 595 विस्मय 3, 498 विस्मापन 4, 191 विस्रब्ध 3, 341 विसम्म 3, 451 विहनन 4, 192 विहस्त 3, 291 विहायस् 3, 751 विहार 8,596 विहेठन 4, 190-91 वीक्ष्य 2, 372 वीड़ा 2, 25 वीची 2, 58 वीणा 2, 152 वीत 2, 193 वीति 2, 194 वीतिहोत्र 4, 282 वीथी 2, 218 वीर, ०रा 2, 446-47 वीरतर 4,281-82 Aho! Shrutagyanam Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX. वीरभद्र 4, 281 वीरवृक्ष 4, 324 वीरुध् 2, 246 वीर्य 2, 371 वीवध 3,341 वृकधूप 4, 212 वृक्षादन, नी 4, 194-95 वृजिन 3, 413 वृति 2, 196 वृत्त 2, 194 वृत्तान्त 3, 294 वृत्ति 2, 195 वत्र 2, 448 वृथा 7, 29 वृद्ध 2, 247 वृद्धि 2, 247 वृन्न 2, 195 वृन्दारक 4, 34 वृश्चिक 8, 91 वृष, व्या, ०षी 2, 558-60 वृषन् 2, 281 वृषपर्वन 4, 195 वृषभ 3, 451 वृषल 3, 678 वृाकपायी 5, 38 वृषाकपि 4, 212 वृषाङ्क 3, 90 वृष्णि 2, 152 वृहतिका 4, 35 वृहती 3, 296 वृहन्नल 4, 299 वेकट 3, 160 वेग 2, 47 वेणी 2, 152 वेणु 2, 153 वेदना 3, 414 वेदि 2, 231 वेधस् 2,579 वेर 2,448 वेरट 3, 160-61 वेला 2, 493 वेल्लित 3, 295 वेश 2, 541 वेश्य, या 2, 372-73 वेष्टन 3, 413 वेष्टित 3, 296 वै7, 15 वैकुण्ठ 3, 167 वैजयन्त, ती 4, 127-28 वैजिक 3,91 वैतरणी 4, 89 वैतालिक 4,35 वैदेहक 4, 36 वैदेही 3, 765 वैनाशिक 4,80 वैरोचन 4, 196 वैशाख 3, 105 वोढ 2, 129 व्यक्त 2, 191 व्यग्र 2,443 व्यङ्ग-2, 47 व्यञ्जन, 401-2 व्यतिकर 4,279 व्यतीपात 4, 126 व्यलोक 3,86 व्यवहार 4, 278 व्यवहारिका 5, 6 व्यवाय 3, 494 व्यसन 3, 400-401 व्याघात 3, 284 व्याघ्र, ०घी 2, 445 व्याघ्रनख 4,45 Aho 1 Shrutagyanam Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEK ARTHASA MG RABA. 46 . ध्याज 2,76 च्याड 2,125 व्याध 2,244 व्याप्ति 2, 192 व्यायत 3,285 व्यायाम 3, 464 व्याल 2, 498 व्यास 2,578 व्युत्थान 3, 412 व्युष्ट 2, 97 व्युष्टि 2, 97 व्यूढ 2, 129 व्यूह 2,589 ब्रज 2, 74 व्रतति 3, 284 ब्रह्मण्य 3, 494 ब्राह्मण 3,215-16 बीहिराजिक 5, 6 शतघ्नी 3, 416 शतपत्र 4, 282-88 शतपर्विका , 7 शतहदा 4, 105 शतानीक 4,87 शद्रि 2, 450 शपथ 3,314 शफ 2,297 शबर 3,599 शब्द 2,281 शम् 7, 15 शमथ 3,314 शमन 3, 414 शमी 2, 330 शम्पाक,92 शम्ब 2, 301 शम्बर, ०री 3,549-600 शम्बल 3,678 शम्बूक 3,93 शंभु 2, 307 शयथ 3,315 शयन 3, 414 शयालु 3, 679 शय्या 2,374 शर 2, 448-49 शरण 3, 218 शरद् 2, 232 शरवाणि 4,90 शरु 2, 450 शर्करा 3, 600--601 शर्वरी 3, 601 शलाका 3,93-94 शल्क 2, 16 शल्य 2, 373 शल्लकी 3, 94 शश 2,541-42 शंसा 2, 579 शक 2, 17 शकल 3, 678 शकुन 3, 415 . शकुनि 3, 416 शकुन्त 3, 296 शकुलादनी 5, 32 शक्ति 2, 196 शक्र 2, 449 शक्करी 3, 601-2 शङ्का 2, 17 शङ्क 2, 17 शङ्क 2, 26 शङ्कक 3, 92 शची 2, 59 शठ 2, 107 शण्ड 2, 129 Aho 1 Shrutagyanam Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX.. शशिलेखा 4, 45 शश्वत् 7, 25 शष्य 2, 295 शस्त 2, 197 शस्त्र, स्त्री 2, 449-50 . शाक 2, 18 शाक्कर 3, 603 शाखा 2, 26 शाखिन् 2, 282 शाण 2, 163 शाण्डिल्य 3, 500 शात 2, 198 शातकुम्भ 4, 214 शात्रव 3,707 शाद 2,232 शान्त 2, 197 शान्ति 2, 197 शाप 2, 296 शाबर, ०री 3, 602-3 शार 2,450 शारद, ०दी 3,331-32 शारि 2, 451 शारीर 3, 602 शार्कक 3, 94 शाङ्ग 2, 48 शार्दुल 3, 679 शार्वर 3, 602 शाल 2, 499 शालङ्कायन 5, 33 शाला 2, 499-500 शालार 3, 603 शालावृक 4, 37 शालि 2, 500 शालु 2,500 शालेय 3,500 शाल्मलि 3,680 .. .. . शासन ४, 417 शास्तृ 2, 197 शास्त्र 2, 451 शिखण्ड 3, 176 शिखण्डिन् 3, 418 शिखर 3, 604 शिखरिणी 4, 90 शिखरिन् 3, 417 शिखा 2, 27 शिखिन् 2, 282 शिग्रु2, 452 शित 2, 198 शिति 2, 193 शिपिविष्ट 4, 65 शिफा 2, 298 शिरस् 2, 579 शिल, ला, ली 2,501 शिलाटक 4,37 शिलिन्ध्र, ध्री 3,695-6 शिलीमुख 4, 46 शिव, वा 2, 525-27 शिवि 2, 527 शिशिर 3, 605 शिशुक 3,95 शिष्प 2, 296 शीकर 3, 606-7 शीघ्र 2, 452 शीत 2, 199 शीतक 3,95 शीतचम्पक 5,7 शीतमयूख 5,9 शीतल 3, 680 शीम 2, 283 शीर्षण्य 3, 501 शील 2,501 शुक 2, 18 Aho 1 Shrutagyanam Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKĀRTHASAMGRAHA. शुक्त 2, 199 शुक्ति 2, 200 शुक्र 2, 452 शुक्ल 2,502 शुङ्गी 2, 48 शुचि 2, 59 शुण्ड, ०ण्डा 2, 125-26 शुद्ध 2,248 शुद्धान्त 3, 297 शुभ 2, 307 शुभ्र 2, 453 शुल्क 2, 19 शुल्व 2, 527 शुश्रूषा 3,737 शुषि 2, 560 शुषिर 3, 607 शुष्म 2, 332 शक,०का 2, 20 शूकक 3,95 शून्य,न्या 2, 374 शूर 2, 453 शूल, ०ला 2, 502 शृगाल, ली 3, 681 शृगालजम्बू 5, 35 शृखल 3, 682 शृङ्ग, ङ्गी 2, 48-49 शृङ्गाटक 4, 38 शृङ्गार 3,607-8 शङ्गारिन् 3, 418 शेष, ०षा 2,560-61 शैल 2,503 शैलाट 3, 161 शैलूष 3, 738 शैलेय 3,01-2 शोण 2, 154 शोभन 3,419 शोष 2, 561 शौक 2, 21 शौण्ड, ०ण्डी 2, 126 शौर्य 2, 374 शौष्कल 3, 682 श्याम,०मा 2, 330-31 श्यामल 3,679 श्येन 2, 283 श्रद्धा 2, 248 श्रमण 3. 217 श्रवण 3, 218 श्राद्ध 2,248 श्राम 2, 332 श्री 1, 12 श्रीकण्ठ 3, 167 श्रीपति 3,296 श्रीपर्ण, ०ी 8, 219 श्रीमत् 2, 198 श्रीवास 3, 751 श्रुत 2, 201 श्रुति 2, 201 श्रुतिकट 4, 66 श्रेणि 2, 153 श्रेयस् 2,580 श्रेयसी 3, 752 श्रेष्ठ 2, 107 श्लाघा 2,54 श्लेष्मघना 4, 197 श्लेष्मना 3, 419 श्लोक 2, 20 श्वशुर्य 3,500 श्वःश्रेयस 4,334 श्वसन 3,415 श्वेत, ता 2, 202 श्वेतधामन् 4, 196 श्वेतवाहन 5, 33 Aho! Shrutagyanam Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 APPENDIX. प. षड 2, 127 षड्यन्य,न्या 3,315 पण्ड 2, 127 पण्डाली 3, 683 पण्ड 2, 129 पष्ट, ०टी 2, 107 - संयमन, नी 4, 199 संरुढ 3, 181 संरोध 3,342 संवदन 4, 201 संवर्त 3, 293 संवाहन 4, 201 संवित्ति 3,302 संविद् 2, 232 संवेश 3, 722 संव्यान 3, 422 संसरण 4, 91 संसिद्धि 3, 343 संसृष्ट 3, 162 संस्कार 3, 610 संस्कृत 3, 298 संस्तर 3, 608 संस्त्याय 3, 503 संस्था 2, 218 संस्थान 3, 423 सेहत 3, 298 सहर्ष 3, 788 संहिता 3,295 सकटाक्ष 4,324 सकृत् 7,25 सकृत्यज 4, 57 सखि 2, 28 संकार, ०री 3, 610-11 . संकाश 3,722 संकीर्ण 3, 219 संकुल 3,683 - संख्य, ख्या 2,376 संख्यावत् 3, 297 संगति 3, 301 संबर 3, 609 संग्रह 3, 765 संघाटिका 4, 38 संघात 3, 299 सचिव 3, 708 सज्ज 2,76 सज्जन, ना 3, 423-24 सञ्ज 2, 76 संज्ञा 2,77 सटा 2,98 सत् 1, 9 सती 2,202 सत्तम 3,466 सत्र 2,454 सत्व 2,528 सत्य 2,375. सदन 3, 420 सदागति 4, 130 सदादान 4, 199 सदाफल 4,300 सदृश 3, 722 सदेश 3, 721 सनातन 4, 198 सनाभि 3, 452 संतति 3,300 संतान 3, 422 संतानिका 4,39 संधा 2, 249 संधान 3, 424 संधि 2, 250 .. Aho 1 Shrutagyanam Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ENDEX PO THE ANEKATHASAMGRAHA. संधिनी 3, 424 संधिला 3,684 संध्या 2, 376 संनति 3,301 संनद्ध 3,342 संनय 3, 504 संनिधि 3,343 साला 3, 684 सप्ताचिस् 3,753 सभा 2, 308 सम् 7, 16 सम 2,332 सममिहार 5, 44 समय 3,502-3 समया 7,57 समर्थ 3,316 समर्याद 4, 146 समाघात 4, 128 समादान 4,200 समाधि 3, 342 समान 3, 422 समापन 4, 197. समापन्न 4, 200 समायोग 4, 60 समास 3,752 समाहार 4, 284 समाहित 4, 129 समाह्वय 4, 232 समिति 3, 802 समीक्षा 3,738 समीरण 4,91 समुच्छ्रय 4, 231 समुत्थान 4, 201 समुदय 4, 231 समुदाय 4, 231 समुद्धत 4, 129 समुद्रान्ता 4,129 समुद्रारु 4, 284 समुन्नद्ध 4, 154 समूढ 3, 180 संपद् 2, 233 संपराय 4, 231 संपर्क 3, 98 संप्रयोग 4, 51 संप्रयोगिन् 4, 202 संप्रहार 4, 283 संबाध 3,342 संभव 3, 707 संभार 3, 609 संभोग 3, 122 संभ्रम 3, 467 संमति 3, 302 संमूर्छन 4, 198 सर 2, 453 सरक 3, 97 सरणि 3, 219 सरण्ड 3, 177 सरल 3, 683 सरस्वन् 3, 297 सरस्वती 4, 130-31 सरोजिनी 4, 202 सर्ग 2, 50 सर्वसह, ०हा 4, 343 सर्वग 3, 122 सर्वज्ञ 3, 141 सर्वतोभद्र, द्रा 5, 43-44 सर्वतोमुख 5,9 सर्वरस 4, 335 सवन 3, 419 सव्य 2, 375 सस्यक3,97 सह, ०हा 2, 589-90 Aho! Shrutagyanam Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 APPENDIX, सह (indecl.) 7.58 .. सहचर 4,283 सहज 3, 139 सहदेव, वा, वी 4, 309-10 सहस 2, 580 सहस्त्रपाद 5, 22 सहस्रवेधिन् 5, 38 सह्य 2, 375 साक्षात् 7, 26 साति 2, 203 सादिन 2, 285 साधन 3, 425-26 साधिष्ट 3, 168 साधीयंस 3,753 साधु 2, 250 साध्य 2,377 सान्त्व 2, 529 सामज 3, 140 सामयोनि 4, 204 सामर्थ्य 3, 504. सामि 7, 41 सामिधेनी 4, 204 सामुद्र 3, 611 सांप्रतम् 7,57 साय 2, 378 सायक 3, 98 सार 2, 455 सारङ्ग 3, 122 सारण 3, 220 सारस 3,754 सारसन 4,203 सार्थ 2,218 सार्वभौम 4, 219 साल 2, 503 सालमार 4, 285 सावित्र,त्री 3, 611-12 साहस 3,753 सिंह, ही 2, 590-91 सिंहाण 3, 220 सिकता 3,303 सिक्थ 2,219 सित, ०ता 2, 203 सिद्ध 2, 251 सिद्धार्थ 3, 316 सिद्धि 2, 251 सिध्मल, ला 3, 685 सिन्दूर, ०री 3, 612-13 सिन्दूरतिलक, ०का 6, 3 सिन्धु 2, 252 सिप्र, प्रा 2, 457 सिर, रा 2, 457 सीता 2, 204 सीमा 2, 333 सीर 2, 457 सुकन 3, 427 सुकुमार 4, 255 सुकृत 3, 304 सुख, ०खा 2, 28 मुखाश 3, 722 सुत 2, 205 सुतल 3, 685 सुदर्शन, ना, नी1, 205-6 सुदामन् 3, 427 सुधन्वन् 3, 427 सुधा 2, 252 सुनन्दा 3, 332-33 सुनार 3,613 सुनीति 3, 305 मुन्दरी 3, 618 सुपर्ण, ० 3, 222.... सुपर्वन् 3, 428 सुप्ति 2, 205 Aho 1 Shrutagyanam Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKARTHASAN GRABA. 63 सुप्रतीक 4, 39 सुमनस् 3,754 सुमुख 3, 105 सुमेधस 3, 755 सयामुन 4, 204 सुर, रा 2, 458 सुरतताली 5, 47 सुरभि 3, 452-53 सुरस 3,755 मुरूप 3, 438 सुवर्ण ,221 सुवह, व्हा 3,766 सुवेल 3, 686 सुव्रत, ता 3, 304 सुषम, व्मा 3, 467-68 सुषवी 3,703 सुपिर efr. 8, 607 सुषीम 3, 467 सुषेण 3, 221 सूक्ष्म 2,333 सूचक 3, 99 सूचना 3, 428 सूची 2, 60 सूत , 205 सूतक 3, 99 सूत्र 2, 458 सूत्रकण्ठ 4, 70 सूत्रधार 4, 285 सूद 2, 234 सून, ना 2, 286 सूनु 2, 286 सूनृत 3,305 सूप 2, 234 सूर्यभक्त 4, 131 सक 2, 21 सृगाल cfr. 3, 681 सृगालजम्बू cfr. 5, 35 सृति 2, 206 सृदाकु 3, 100 सृष्ट 2, 99 सृष्टि 2,99 सेचक 3, 100 सेतु 2, 206 सेनानी 3, 429 सेवक 8, 100 सेवन 3, 429 सेव्य 2, 378 सैकतिक 4, 40 सैन्धव 3,709 सैन्य 2, 378 सैरन्ध्री 8, 614 सोढ़ 2, 130 सोम 2, 333-34 सोमवल्क 4, 41 सौगन्धिक 4, 41 सौदामिनी 4, 206 सौम्य 2, 379 सौरभ्य 3, 504 सौवीर 3, 615 स्कन्ध 2,249 स्खलित 3, 298 स्तनन 8, 420 स्तनयिनु 4, 203 स्तम्ब 2, 301 स्तम्भ 2,307 स्तिमित 3, 303 स्तोक 2, 21 स्त्यान 2, 285 स्थपति 3, 800 स्थाणु 2, 154 स्थान 2, 284 स्थाने 7, 82 ... Aho! Shrutagyanam Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 APPENDIX. स्वामिन् 2, 286 स्विद् 7, 15 स्वेद 2, 234 खैर 2, 459 स्थापन 3, 425 स्थापित 3, 303 स्थाल, ली 2, 504 स्थासक 3,98 स्थित 2,204 स्थिति 2, 204 स्थिर, ०रा 2, 456 स्थूगा 2, 154 स्थूल 2, 504 स्थूलोचय 4, 282 स्थेय 2, 378 स्नान 2, 284 नेह 2,591 स्पर्श 2, 542 स्पर्शन 3, 421 स्पश 2,542 स्फार 2,456 स्फुट 2, 98 स्फुटि 2, 99 स्म 7, 16 स्मृति 2, 206 म्यन्दन 3, 421 स्यमीक,०का 3,96 स्त्रवन्ती 3,257-58. सुव, वा 2, 529 खू 1, 13 सोतस् 2, 581 स्व 1, 14 स्वप्न 2, 284 स्वभू 2, 308 स्वर 2, 454 सरु 2, 454 स्वस्ति 7, 26 स्वस्तिक 8, 96 स्वादु 2, 233 स्वाप 2, 296 ह 7, 16 हंस 2,581-82 हठ 2, 108 हताश 3,723. हनु 2, 287 हन्त 7, 26 हम् 7, 18 हर 2, 459 हरण 3, 223 हरि9,459-61 हरिकण्ठ 4, 70 हरिण 3,223 हरिणी 3,223--24 हरित् 2, 207 हरिताली 4,301 हरेणु 3, 225 हर्षण 3, 224 हर्षयित्नु 4, 207 हलाहल 4,301 हलिन् 2, 287 हव 2,529 हविस् 2, 582 हसन्ती 3, 305 हस्त 2, 207 हस्तिकर्ण 4, 92 हस्तिमल्ल 4, 300 हा 7, 17 हायन 3, 429 हार 2, 461 हारक 3, 101 Aho 1 Shrutagyanam Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDEX TO THE ANEKART HASAMGRABA. हृच्छय 3, 506 हृदय 3, 506 हृद्य, द्या 2, 380-81 हृषित 2, 100 हुष्ट 2, 100 हारीत 3, 306 हार्य 2, 380 हाल, ०ला 2, 504-5 हि 7, 17 हिंसा 2,582 हिंस्त्र, स्रा 2, 461 हिङ्गनिर्यास 5, 48 हिण्डन 3, 430 हित 2, 208 हिम 2, 335 हिमज, जा 3, 140 हिरण 3, 225 हिरण्मय 4,233 हिरण्य 3, 225. 505-6 हिरण्यरेतस् 5, 48 हिरु (हिरुक्)7, 20 ही 7, 17 हीन 2, 268 हीर, रा 2, 462 हीही 7, 53 हुक्क3, 101 हुम् 7, 18 हेति 2, 208 हेमपुष्प 4, 212 हेमपुष्पक, पिका 5, 8 हेमल 3, 686 हेरम्ब 3, 442 हेरुक 3, 102 हेला 2, 505 हेलि 2,505 हैमवती 4, 132 हो 7,6 होमि 2, 335 होरा 2, 462 हस्व 2, 508 हादिनी 3, 429. - Aho! Shrutagyanam Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho 1 Shrutagyanam Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० ॥ ऊँ नमः सर्वज्ञाय ॥ अह ॥ श्रीसिद्धहेमचन्द्रव्याकरणनिवशिनामुणादीनाम् । आचार्यहेमचन्द्रः करोति विवृति प्रणम्याहम् ॥ १॥ कृवापाजिस्त्रदिसाध्यशोदनासनिजानिरहीण्भ्य उण् ।। १ ।। करोतीत्यादिभ्यो धातुभ्यः सत्यर्थे वर्तमानेभ्यः संप्रदानापादानाभ्यामन्यत्र कारके भावे च संज्ञायां बहुलमुणप्रत्ययो भवति ॥ डुइंग् करणे । कुंग्ट् हिंसायां वा । निरनुबन्धग्रहणे सामान्यग्रहणात् । करोति करति कृणोति वा । कारुः कारी नापिलादिरिन्द्रश्च ।। वाक् गतिगन्धनयोः । पें ओवै शोषणे वा । वाति वायति वा द्रव्याणि | वायुनभस्वान् ॥ पां पाने । पिबन्त्यनेन तैलादिद्रव्यम् । पायुरपानमुपस्थश्च । पातिपायत्योस्त्वर्थासंगतेर्न ग्रहणम् ॥ जिं अभिभवे । जयत्यनेन रोगान् श्लेष्माणं वा । जायुरौषधं पित्तं वा ॥ ध्वदि आस्वादने । स्वद्यत इदमनेन वा । स्वादु रुच्यं स्वदनं वा स्वादु || साधंट संसिद्धौ । उत्तमक्षमादिभिस्तपोविशेषैर्भावितात्मा साधोतीति साधुः । सम्यद्गर्शनादिभिः परमपदं साधयति वा । साधुः संयतः । उभयलोकफलं साधयति वा | साधुर्धर्मशीलः || अशौटि व्याप्तौ । अभुते तेजसा सर्व केदारं वेत्याशुः सूर्यो व्रीहिश्च । अशनं वाशु । क्षिप्रमभुन इति वाशुः शीघ्रगामी शीघ्रकारी च ।। दृ भये । दृश् विदारणे वा । दरति दृणाति दीयते वा । दारु काष्ठं भव्यं च ॥ णें वेष्टने | स्नायति । स्नायुरस्थिनहनम् ।। पन भक्तौ । षणूयी दाने वा । सनति सनोति वा मृगादीनिति सानुः पर्वतैकदेशः । जनैचि प्रादुर्भावे । जायतेनेनाकुञ्चनादि । जानु ऊरजंघासंधिमण्डलम् । जानीत्याकारनिर्देशात् । न जनवध इति प्रतिषिद्धापि वृद्धिर्भवति ।। रह त्यागे | रहति गृहीत्वा सूर्याचन्द्रमसौ स्वशरीरं वा । राहुः सैहिकेयः ॥ इणक् गतौ । एति । आयुः पुरुषः शकटमोषधं जीवनं पुरूरवः पुत्रो वा । ज(युर्गर्भवेष्टनं जलमलं था । जटायुः पक्षी । धनायुर्देशः । रसायुधमरः । संपदानाचान्यत्रो गादय इति यथायोगं प्रत्ययो वेदितव्यः ।। १ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२-० अः॥ २॥ सर्वस्माद्धातोर्यथाप्रयोगमकारः प्रत्ययो भवति ॥ भवः। तरः । वरः । प्लवः । शयः । शरः । परः । करः । स्तवः । चरः । वदः ॥ २॥ __ म्लेछीडेहस्वश्च वा ॥३॥ आभ्यामः प्रत्ययो भवति दीर्घस्य च हस्वो वा भवति ॥ म्लेछ अव्यक्तायां वाचि | मिच्छ: मूकः । मेच्छ: कुमनुष्यजातिः ॥ ईडिक् स्तुती । ईड इडश्व देवताविशेषो मेदिनी च ॥ ३ ॥ नञः क्रमिगमिशमिखन्याकमिभ्यो डित् ॥ ४॥ नपरेभ्य एभ्यो डिदः प्रत्ययो भवति ।। क्रमू पादविक्षेपे । न कामति । नक्रो जलचरो पाहः ।। गगं गतौ ! नगो वृक्षः पर्वतश्च ।। शमूच् उपशमे | नशो यक्षः ।। खनूग् अवदारणे | नखः करजः । नास्य खमस्तीति वा नख इत्यपि । कमूड कान्ती । नाकः स्वर्गः | नात्राकमस्तीति नाक इत्यपि । नखादित्वादन्स्वर इत्यन भवति । डिस्करणमन्त्यस्वरादिलोपार्थम् ।। ४ ।। तुदादिविषिगुहिभ्यः कित् ।। ५॥ तुदादिभ्यो विषिगुहिभ्यां च किदः प्रत्ययो भवति ॥ तुदः । नुदः । क्षिपः। सुरः । बुधः । सिवः । तुदादीनां यथासंभवं कारकविधिः ॥ विषूकी व्याप्तौ । वेवेष्टि | विषं प्राणहरं द्रव्यम् । गुहौग् संवरणे | गृहति । गुहः स्कन्दः । गुहा पर्वतैकदेशः ॥ ५ ॥ विन्दे लुक् च ।। ६॥ विन्देः किदः प्रत्ययो भवति तत्संनियोगे नस्य लुक् च [भवति ] | विदु अवयवे । विदो गोत्रकृवृक्षजातिश्च ॥ ६ ॥ कृगो द्वे च ॥७॥ करोतेः किदः प्रत्ययो भवत्यस्य च धातोर्दै रूपे भवतः ॥ डुकंग करणे । चक्रं रथाङ्गमायुधं च । ७॥ . कनिगदिमनेः सरूपे ॥ ८॥ किदिति निवृत्तम् । एभ्योकारः प्रत्ययो भवत्येषां च सरूपे समानरूपे वे उक्ती भवतः ॥ कनै दीप्तिकान्तिगतिषु । कनति दीप्यते | कङ्कनः कान्तः ॥ गद व्यक्तायां वाचि | गदत्यव्यक्तं वदति गद्यतेव्यक्तं कथ्यते वा | गद्गदोव्यक्तवाक् । Aho 1 Shrutagyanam Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९-१२] उणादिविवृतिः । गङ्गदमव्यक्तं वत्रनम् || मनित्र् ज्ञाने | मन्मनोविस्पष्टवाक् | सरूपग्रहणं व्यञ्जनस्थानादेर्लुगित्यादिकार्यनिवृत्त्यर्थम् ॥ ८ ॥ ऋतष्टित् ॥ ९ ॥ ऋकारान्ताद्धातोरकारः प्रत्ययो भवति स च बहुलं टित् धातोश्व सरूपे द्वे रूपे भवतः !| दृश् विदारणे । दीर्यते भिद्यतेनेन श्रोत्रमिति दर्दरो वाद्यविशेषः पर्वतश्च | दर्दरी सस्यलुण्टिः || कृत् विक्षेपे । कर्करः क्षुद्रामा | कर्करी गलन्तिका || वृग्श् वरणे | वर्त्ररो म्लेच्छजातिः । वर्वरी केशविशेषः || भृश् भरणे | भर्भरः छद्मवान् | भर्भरी श्रीः || जब्च् जरसि | जर्जरोदृढः | जर्जरी स्त्री ॥ झुञ्च् जरसि । झर्झरो वाद्यविशेषः । झर्झरी झारिका ॥ गृत् निगरणे | गरी राजर्षैिः। गर्गरी महाकुम्भः || मृश् हिंसायाम् | मर्मरः शुष्कपत्रप्रकरः | तद्धर्मान्योपि क्षोदासहिष्णुर्मर्मरो दानव । मर्मरायां दूर्वायामित्यादौ टित्वेपि भवति बहुलाधिकारात् || तत एव च ऋकारान्तादपि । वृं सेचने | घर्घरः सघोषोव्यक्तवाक् । घर्धरी किङ्कणिका ॥ ९॥ किच्च ॥ १० ॥ ऋकारान्ताद्धातोर्यथादर्शनं किदकारः प्रत्ययो भवति धातोश्च सरूपे द्वे रूपे भवतः || मृश् हिंसायाम् | मूर्यतेनेनेति मुर्मुरो ज्वलदङ्गारचूर्णम् ॥ पृश् पालन पूरणयोः । पूर्यते जलघातेन | पुर्पुरः फेनः || तू प्लवनतरणयोः । तीर्यतेनेनास्मिन्त्रा| तिर्तिरः संक्रमः || भृश्भर्जने च । भूर्यते संचीयते । भुर्भुरः संत्रयः || शृश् हिंसायाम् । शीर्यते समन्तात् । शिर्शिरः पुञ्जः ॥ १० ॥ पृपलिभ्यां टित् पिप् च पूर्वस्य ॥ ११ ॥ आभ्यां टिदः प्रत्ययो भवत्यनयोश्च सरूपे द्वे रूपे भवतः पूर्वस्य च स्थाने पिप् इत्यादेशो भवतेि || पृश् पालनपूरणयोः । पृणाति छायया । पिप्परी वृक्षजातिः ॥ पल गतौ | पलत्यातुरम् | पिप्पल्यौषधजाति : टित्करणं ड्यर्थम् || ११ ॥ क्रमिमयिभ्यां चन्मनौ च ॥ १२ ॥ आभ्यामः प्रत्ययो भवति सरूपे च द्वे रूपे भवतः पूर्वस्य च स्थाने यथासंख्वं चन् मन् इत्यादेशौ भवतः ॥ क्रमू पादविक्षेपे । क्रामति सुखमनेना Aho! Shrutagyanam Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [१३-१७ स्मिन्वा । चङमः संक्रमः ॥ मथे विलोडने । मथति चित्तं रागिणाम् । मन्मथ : काम: ॥ १२ ॥ गमेजम् च वा ॥ १३ ॥ गमेर : प्रत्ययो भवति सरूपे च द्वे रूपे भवत : पूर्वस्य च जम् इत्यादेशो [वा ] भवति ।। गमं गतौ । गच्छति पादविहरणं करोति । जङ्गमश्वरः ।। गच्छत्यमाध्यस्थ्यमिति गङ्गमश्चपलः ॥ १३ ॥ . अदुपान्त्यऋग्यामश्चान्ते ॥ १४ ।। अकारोपान्त्याइकारान्ताच्च धातोर : प्रत्ययो भवति तरूपे च द्वे रूपे भवत : पूर्वस्य चान्ते कारो भवति || पल फल शल गती । शलशलः॥ सल गतौ । सलसलः ॥ हल विलेखने । हलहलः ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कलकल : | मलि धारणे | मलमलः ॥ घटिष् चेष्टायाम् । घटघटः ।। वद व्यक्तायां वाचि । वदवदः ।। पदिंच गतौ । पदपदः ॥ दन्तः ॥ डुकंग् करणे । करकरः ।। मृत् प्राणत्यागे | मरमरः । इंड्त् आदरे । दरदरः ॥ सुं गतौ । सरसरः ॥ वृग्ट वरणे | वरवरः ।। अनुकरणशब्दा एते ॥ १४ ॥ मषिमसेर्वा ॥ १५ ॥ आभ्यामः प्रत्ययो भवति सरूपे च द्वे रूपे भवतः पूर्वस्य चान्तेकारो वा भवति || मष हिंसायाम् । मषमषः । मष्मषः ।। मसैच् परिणामे । मसमसः । मस्मसः ॥ १५ ॥ हसृफलिकषेरा च ॥ १६ ॥ एभ्यो अः प्रत्ययो भवति सरूपे च द्वे रूपे भवतः पूर्वस्य चान्त आकारो भवति ।। हूंग् हरणे । हरति नयति शस्त्राण्यस्खलन् लक्ष्यम् । हराहरो योग्याचार्यः ।। तूं गतौ । धावति वायुना नीयमानः समन्तात् । सरासरः सारङ्गः ॥ फल निष्पत्ती । फलति निष्पादयति नानाविधानि पुष्पफलानि । फलाफलमरण्यम्। कष हिंसायाम् । कषति विदारयति । कषाकष : कृमिजाति ः ॥ १६ ॥ इदुदुपान्त्याभ्यां किदिदुतौ च ॥ १७ ॥ इकारोपान्त्यादुकारोपान्त्याच किदः प्रत्ययो भवति सरूपे च द्वे रूपे भवतः पूर्वस्य च यथासंख्यमिकार-उकारावन्ते भवतः ।। किलत् श्वैत्यक्रीउनयोः' । किलिकिलः ॥ हिलत् हावकरणे ! हिलिहिलः ॥ सिलत् उञ्छे । Aho I Shrutagyanam Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८-२०] उणादिविवृतिः। सिलिसिलः । छुरत् छेदने । छुरुछुरः । मुरत् संवेष्टने | मुरुमुर : ॥ घुरत् भीमार्थ शब्दयोः । धुरुधुरः ।। पुरत् अग्रगमने | पुरुपुरः ।। सुरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः। सुरुसुरः ॥ कुरत् शब्दे । कुरुकुरः ॥ चुरण स्तेये । चुरुचुरः ॥ हुल हिंसासंवरणयोश्च । हुलुहूल : ॥ गुजत् शब्दे । गुजुगुजः || गुडत् रक्षायाम् । गुडुगुड : ।। कुटत् कौटिल्ये | कुटुकुट : || पुटत् संश्लेषणे | पुटुपुटः॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः । कुणुकुण : ॥ मुणत् प्रतिज्ञाने । मुणुमुणः ॥ अनुकरणशब्दा एते ॥ १७॥ जजलतितलकाकोलीसरीसृपादयः ॥ १८ ॥ एते अप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। जल घात्ये | अस्य द्वित्वे पूर्वस्य च जभावः । जजलः | यस्य जाजलिः पुत्रः ॥ तिलत् स्नेहने । अस्य द्विले पूर्वस्य च तिभावे धातोरिकारस्य अकारे | तितलः ।। कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । अस्य द्वित्वे पूर्वस्य च काभावे | काकोली । क्षीरकाकोलीति च वल्लीजाति : || स गतौ । अस्य द्विवे गुगाभावे पूर्वस्य च सरीभावे | सरीसृप उरगजातिः ॥ आदिग्रहणाद्यथादर्शनमन्येपि ।। १८ ॥ बहुलं गुणवृद्धी चादेः ॥ १९ ॥ धातो: किद: प्रत्ययो भवति सरूपे च हे रूपे भवत: पूर्वस्य च इकार-उकारावन्ते भवतो यथादर्शनं च गुणवृद्धी भवत : ।। केलिकिल : कैलि . किलश्च हसनशीलः ॥ हिलत् हावकरणे । हेलिहिलो हैलिहिलश्च विलसनशील :॥ शेलिशिल : शैलिशिलश्च ।। शुभि दीप्तौ । शोभते पुनः पुनरिति शोभुशुभ : । शौभुशुभ: ।। णुदंत् प्रेरणे । नुदति पुनः पुनरिति नोदुनुदः । नौदुनुदः ॥ गुडत् रक्षायाम् । गुलति भ्राम्यति पुन : पुनरिति गोलुगुलः । गौलुगुलः ॥ बुलण् निमज्जने | बोलयति पुनः पुनरिति बोलुबुलः । बौलुबुल :॥ तत्तद्धात्वर्थास्तच्छील अनुवादविशेषा वैते ॥ १९ ॥ __ गेलृप् ॥ २० ॥ धातोरप्रत्ययसंनियोगे बहुलं गेलृप् भवति ॥ वचं धारयतीति वचधर इन्द्रः ॥ एवं चक्रधरो विष्णु : । भूधरोद्रिः ॥ जलधरो मेघः || बाहुलकात्मत्ययान्तरेपि ।। देवयतीति दिव द्यौः स्वर्गो व्योम च || पुण्यं कारयन्तीति पुण्यकृतो वाः॥ एवं पर्ण शोषयतीति पर्णशुट् ॥ वान्ति पर्णशुषो वातास्तत : पर्णमुचोपरे । Aho! Shrutagyanam Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२१-२२ ततः पर्णरुहः पश्चात्ततो देवः प्रवर्षति ॥ तथा महतः कारयां चक्रुराकन्दानिति प्राप्ने महतश्चक्रुराक्रन्दानिति भवति ।। महीपालवचः श्रुत्वा जुधुषुः पुष्यमाणवाः । घोषयां चक्रुरित्यर्थः ॥ २० ॥ भीशलिवलिकल्यतिमचिमृजिकुतुस्तुदाधारावाकापानिहान शुभ्यः कः ॥ २१ ॥ एभ्यः कः प्रत्ययो भवति ॥ जिभीक भये । बिभेति दुन्दुभात्परस्माच । भेको मण्डूकः कातरश्च । विभेति वायो । भेको मेधः ।। इण्क् गतौ । एत्यद्वितीय इत्येकोसहाय : संख्या प्रधानमसमानोन्यश्च || पल फल शल गती । शलन्त्यात्मरक्षणाय तमिति शल्क : शरणम् । शलति त्यक्तं बहिरिति शल्कं गृहीतरसं शकलम् । शल्क ः काष्ठत्वग्मलिनं च काष्टं मुद्गर : करणं च ।। वलि संवरणे | वल्को दशनो वासस्त्वक् च ।। कलि शब्दसंख्यानयोः | कल्क : कषायो दम्भः पिष्टपिण्डश्च ॥ अत सातत्यगमने । अत्क आत्मा वायुाधितश्चन्द्र उत्पातश्च ॥ मर्चः सौत्रो धातु :। मर्को देवदारुर्वायुर्दानवो मनः पन्नगो विनकारी च | चजः कगमिति कत्वम् ॥ अर्च पूजायाम् । अर्कः सूर्यः पुष्पजाति झाट जातिश्च ॥ मृजौक् शुद्धौ । मार्को वायुः ॥ कुंक् शब्दे । कोकचक्रवाकः ॥ तुंक् वृत्तिहिंसापूरणेषु । तोकमपत्यम् ॥ टुंग्क् स्तुतौ | स्तोकमल्पम् ।। डुदांगक् दाने । दाको यजमानो यज्ञश्च ।। डुधांग्क् धारणे च । धाक ओदनोनड्डानम्भः स्तम्भश्च ।। रांक् दाने | राको दातार्थः सूर्यश्च | राका पौर्णमासी कुमाररजस्वला च ।। .ड् पालने । त्राको धर्मः शरणस्थानीयश्च ।। के शब्दे । काको वायस :। पां पाने । पांक रक्षणे वा | पाको बालोसुर : पर्वतश्च ।। ओहांक् त्यागे । निहाको निःस्नेहो निर्मोकश्च । निहाका गोधा ।। शुं गतौ । न शवतीत्यशोकः ॥ २१ ॥ विचिपुषिमुषिशुष्यविसृवृशुसुभूधमूनीवीभ्यः कित् ।। २२ ।। एभ्यः किल्कः प्रत्ययो भवति ।। विपी पृथग्भावे | विकः करिपोतः ॥ पुषंच् पुष्टौ । पुष्को निशाकरः॥ मुषश् स्तये । मुष्कचौरो मांसलो वा । मुष्की वृषणौ ।। शुषंच् शोषणे | शुष्कमपगतरसम् ।। अव रक्षणादिषु । ऊकः कुन्दुमः।। सुं गतौ । सृको वायुर्बाणः सृगालो बको निरयश्च । सृकायुधविशेषः ॥ वृगट् वरणे| वृड् संभक्तौ वा | वृको मृगजातिरादित्यो धूर्ती जाठरवानिः ।। शुं गतौ । शुकः कीर ऋषिश्च ॥ पुंग्ट अभिषवे । सुको निरामयः ।। भू सत्तायाम् । भूकः Aho 1 Shrutagyanam Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३-२६] । उणादिविवृतिः । कालश्छिद्रं च ॥ धूत् विधूनने । धूगट कम्पने वा । धूग्श् कम्पने पा । धूको वायुाधिश्च । धूका पताका ।। मूड बन्धने | मूकोवाक् ।। णींग प्रापणे | नीकः खगो ज्ञाता च । नीकोदकहारिका ज्ञातिश्च ।। वीं प्रजननादिषु | वीको वायु - शोर्यो मनो वसन्तश्च । वीका पक्षिजातिर्नेत्रमलं च ॥ २२॥ कृगी वा ॥ २३ ॥ __ कृगः कः प्रत्ययो भवति स च किवा भवति । डुबंग करणे । कर्कोग्निः सारङ्गो दर्भः श्वेताश्वश्च ॥ कृकः शिरोग्रीवम् ।। २३ ॥ घुयुहिपितुशोर्दीर्घश्च ।। २४ ॥ एभ्यः किल्कः प्रत्ययो भवत्येषां च दीर्घो भवति ॥ धुंड शब्दे | घूकः कौशिकः ॥ युक् मिश्रणे | यूका क्षुद्रजन्तुः स्वेदजः ॥ हिंट गतिवद्धयोः। हीकः पक्षी ।। पित् गती | पीक उपस्थो जलाश्रयश्च ॥ तुंक वृत्त्यादिषु | तूक उपस्थः पर्वतश्च ॥ शुं गतौ । शूकः किंशारुरभिषवः शोकश्च । शूका हल्लेखः ।। २४ ॥ हियो रश्च लो वा ।। २५ ॥ हियः कित्कः प्रत्ययो भवति रेफस्य च लकारो वा भवति ।। [हीं लज्जायाम् । ] होकः । ह्रीको लज्जापरो नकुलश्च । होकोलिङ्ग्यपि ॥ २५ ॥ निष्कतुरुष्कोदर्कालर्कशुल्कश्वफल्ककिचल्कोल्कावृकछेक केकायस्कादयः ॥ २६ ।। एते कप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ नेः सीदतेर्डिच | निष्कः सुवर्णादिः ॥ तरेचि त्वरायाम् | अस्य हस्व उषश्चान्तः । तुरुष्को वृक्षो म्लेच्छश्च || उदः परात् अर्तेः । उदर्कः क्रियाफलम् ॥ अली भूषणादौ । अस्मादर् चान्तः । अलर्क उन्मत्तो मदालसात्मजश्च ॥ पल फल शल गती । इत्यस्योपान्त्योत्वं च । शुल्कं रक्षानिर्वेशः॥ शुनः परात् फालेर्हस्वश्व । श्वफल्कोन्धकविशेषः ।। किमः परात् जो रस्य लश्च | किन्झल्कः पुष्परेणुः ।। ज्वलेरुलादेशश्च । उलेः सौत्रस्य वा । उल्कौत्पातिक ज्योतिरमिज्वाला च ।। वृजैकि वर्जने | अगुणत्वं च । वृक्को मुष्कः ॥ छचतिकायत्योरेत्वं च । छेको मनीषी । केका मयूरवाक् ।। यमर्मस्य सः । यस्कः ।। आदिग्रहणात् ढकास्पृक्कादयोपि ।। २६ ।। Aho! Shrutagyanam Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे दृकृनृसृभधृवृमृस्तुकुक्षुलकिचरिचटिकटिकण्टिचणिचषिफलिवमितम्यविदेविबन्धिकनिजनिमशिक्षारिकुरिवृतिव ल्लिमल्लिसत्यलिभ्योकः ॥ २७॥ एभ्योकः प्रत्ययो भवति ॥ दृश् विदारणे । दरको भीरुः ॥ कृत् विक्षेपे । करको जलभाजनं कमण्डलुश्च । करका वर्षपाषाणः ।। नृश् नये । नरको निरयः।। सं गतौ । सरको मद्यविशेषः कंसभाजनविशेषश्च । सरका मधुपानवारः।। टुडु ग्क् पोषणे च | भरको गोण्यादिः ॥ धृड् अवध्वंसने । धरकः सुवर्णेन्माननियुक्तः ॥ वृगटु वरणे । वरको वधूजानिसहायो वाजसनेयभेदश्च ।। मृत् प्राणस्यागे | मरको जनोपद्रवः ।। टुंगक् स्तुती । स्तबकः पुष्पगुच्छः ॥ कुंक् शब्दे । कवकमभक्ष्यद्रव्यविशेषः ।। टुक्षुक् शब्दे | क्षवको राजसर्षपः ॥ लघु गतौ । लडको रङ्गोपजीवी ।। चर भक्षणे | चरको मुनिः ॥ चटण भेदे । चटकः पक्षी ।। कटे वर्षावरणयोः । कटको वलयः ।। कटु गतौ । कण्टकस्तरुरोम || चण शब्दे । चणको मुनिर्धान्यविशेषश्च ॥ चषी भक्षणे । चषकः पानभाजनम् ।। फल निष्पत्तौ । फलकः खेटकम् ।। टुवमू उद्गिरणे | वमकः कर्मकरः। तमूच् काङ्क्षायाम् । तमको व्याधिः क्रोधश्च ।। अव रक्षणादौ । अवका शैवलम् ।। देवड् देवने | देवकाप्सराः । देविका नदी || बन्धंश् बन्धने । बन्धकचारकपालः ॥ कनै दीयादिषु । कनकं सुवर्णम् ॥ जनैचि प्रादुर्भावे । जनकः सीतापिता || मश रोषे च । मशकः क्षुद्रजन्तुः । क्षर संचलने | ण्यन्तः ! क्षारकं बालमुकुलम् ।। कुरत् शब्दे । कोरकं प्रौढमुकुलम् ।। वृतूड् वर्तने | वर्तका वर्तिका वा शकुनिः || वल्लि संवरणे | वल्लकी वीणा || मल्लि धारणे | मल्लकः शरावः । मल्लिका पुष्पजातिर्दीपाधारश्च ।। सल्लः सौत्रः । सल्लकी वृक्षः । सत्कृत्य लक्यते स्वाद्यते गजैः सल्लकीति वा ।। अली भूषणादिषु । अलकः केशविन्यासः । अलका पुरी ॥ २७ ॥ __को रुरुण्टिरण्टिभ्यः ।। २८ ॥ कुशब्दात्परेभ्य एभ्योकः प्रत्ययो भवति ।। रुक् शब्दे । कुरवको वृक्षः॥ रुटु स्तेये | कुरुण्टको वर्णगुच्छः ।। रष्टिः सौत्रः । कुरण्टकः स एव ।। २८ ।। ध्रुधून्दिरुचितिलिपुलिकुलिक्षिपिक्षुपिक्षुभिलिखिभ्यः कित् ॥ २९॥ .. एभ्यः किदकः प्रत्ययो भवति || धुं स्थैर्य च । ध्रुवकः स्थिरः । ध्रुवकावपनविशेषः ।। धूत विधूनने । धुवकं धूननम् । धुवकः प्रधानम् । स्त्री धुवका. Aho I Shrutagyanam Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०-३३]] उणादिविवृतिः । वपनविशेषः ।। उन्दैप क्लेदने । उदकं जलम् ।। रुचि अभिप्रीत्यां च | रुचक आभरणविशेषः ॥ तिलत् स्नेहने । तिलको विशेषको वृक्षश्च ॥ पुलण् समुच्छाये । पुल महत्त्वे वा । पुलको रोमाञ्चः ।। कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलकं संयुक्तम् ।। क्षिपीत् प्रेरणे | क्षिपको वायुः । क्षिपकायुधम् ।। क्षुपः सौत्रो हस्वीभावे । क्षुपको गुल्मः ॥ क्षुभच् संचलने । क्षुभकः पाञ्चालकः ॥ लिखत् अक्षरविन्यासे । लिखकश्चित्रकरः ॥ २९ ॥ छिदिभिदिपिटेर्वा ॥ ३० ॥ एभ्योकः प्रत्ययो भवति स च किहा भवति ॥ छिद्रूपी वैधीकरणे । छिदकः खड्गः क्षुरश्च । छेदकः परशुः ॥ भिदंपी विदारणे । भिदकं जलं पिशुनव । भेदकं वबम् ।। पिट शब्दे च | पिटकः क्षुद्रस्फोटकः । पेटकं संघातः ॥ ३० ॥ कृषेर्गुणवृद्धी च वा ॥ ३१॥ कृषेरकः प्रत्ययो भवति गुणवृद्धी चास्य वा भवतः ॥ कृषीत् विलेखने । कर्षकः । कृषकः परशुः ।। कार्षकः । कृषकः कुटुम्बी ।। ३१ ॥ नञः पुंसेः ॥ ३२॥ नञः परात् पुंसण अभिमर्दने | इत्यस्मात्किदकः प्रत्ययो भवति ।। नपुंसकं तृतीया प्रकृतिः ॥ नखादित्वान्नबत् न भवति ॥ ३२॥ कीचकपेचकमेचकमेनकाकधमकवधकलघकजह कैरकैडकाइमकल. मकक्षुल्लकवटवकाढकादयः ॥ ३३ ।। एते कीचकादयः शब्दा अकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कचि बन्धने । अस्योपान्त्येत्वं च । कीचको वंशविशेषः ॥ डुपचीए पाके | मचि कल्कने । मनिच ज्ञाने । एषामुपान्त्यत्वं च | पेचकः करिजघनभागः ।। मेचको वर्णः ।। मेनकाप्सराः ॥ अर्तेर्भश्वान्तः। अर्भको बालः || मां शब्दाग्निसंयोगयोः । अस्य धमादेशश्च । धमकः कीटः कर्मारश्च । अन्यत्रापि धमादेशो दृश्यते । क्त धान्तः ॥ हन्तेर्वधश्च | वधको हन्ता व्याधिश्च । वधकं पद्मबीजम् । अन्यत्रापि दृश्यते । वृत्रं हन्ति । अचि | वृत्रवधः शक्रः । वधिता निर्मोचकः । वध्यः । वधनम् ॥ लघुड् गतौ । नलुक् च | लघकोसमीक्ष्यकारी ॥ जहाते रूपे Aho ! Shrutagyanam Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [३४-३६ अन्तलुक् च । जहकः कालः क्षुद्रश्च ।। ईरिक् गतिकम्पनयोः । ईडिक् स्तुती । अनयोर्गुणश्च । एरकोदकतृणजातिः ।। पडकाविजातिः ॥ अशौटि व्याप्ती । अस्य मोन्तः । अश्मका जनपदः ।। रमि क्रीडायाम् । अस्य लमादेशश्च । लमक ऋषिविशेषः ॥ क्षुदंपी संपेषे । अस्य क्षुल्लादेशश्च । क्षुल्लको दभ्रः । क्षुधं लातीति वा क्षुल्लः । क्षुल्ल एव क्षुल्लक इति वा ॥ वट वेष्टने । अस्यावोन्तश्च | वटवकस्तृणपुञ्जः।। आड्पूर्वात् ढौकोर्डिच | आढकं मानम्|| आदिग्रहणात् बृहत्तन्त्रात् । कला आपिबन्तीति कलापकाः शास्त्राणि || कथण वाक्यप्रबन्धे । कथयतीति कथकस्तोटकाख्यायिकादीनां वर्णयिता । एवमुपकचम्पकफलहकादयोपि ।। ३३ ॥ शालिबलिपतिवृतिनभिपटितटितडिगडिभन्दिवन्दिमन्दिनभिकुदुपूम निखजिभ्य आकः ॥ ३४ ॥ पभ्य आकः प्रत्ययो भवति ॥ पल फल शल गतौ । शलाकैषणी पूरणरेखा यूतोपकरणं सूची च ॥ बल प्राणनधान्यावरोधयोः । बलाका जलचरी शकुनिः ॥ पतु गतौ । पताका वैजयन्ती ॥ वृतूड् वर्तने । वर्ताका शकुनिजातिः ।। णभच् हिंसायाम् | नभाकश्चक्रवाकजातिस्तमः काकश्च ।। पट गतौ । पटाका वैजयन्ती पक्षिजातिश्च || तट उच्छाये | तटाकं सरः ॥ तडण आघाते । तडाकं तदेव ॥ गड सेचने | गडाकः शाकजातिः ॥ भदुड् सुखकल्याणयोः । मन्दाकं शासनम् || वदुड् स्तुत्यभिवादनयोः। वन्दाकश्चीवरभिक्षुः ॥ मदुड् स्तुत्यादिषु । मन्दाकौषधिः ।। णमं प्रवत्वे । नमाका मेच्छजातिः ।। कुंड शब्दे । कवाकः पक्षी || दुदुंट उपतापे । दवाको मृच्छः ॥ पूड् पवने | पवाका वात्या || मनिंच ज्ञाने | मनाका हस्तिनी॥ खज मन्थे । खजाक आकरो मन्था दर्विराकाशं बन्धकी शरीरं पक्षी च ॥ ३४ ॥ . शुभिगृहिविदिपुलिगुभ्यः कित् ॥ ३५ ॥ ... एभ्यः किदाकः प्रत्ययो भवति॥शुभि दीप्तौ । शुभाका पक्षिजातिः ॥ गृहणि ग्रहणे | गृहाकः॥ विदक् ज्ञाने । विदाका भूतयामः || पुल महत्त्वे । पुलाकोर्धस्विन्नो धान्यविशेषः ।। गुंड् शब्दे । गुंत् पुरीपोत्सर्गे वा । गुवाकं पूगफलम् ॥ ३५॥ पिषेः पिन्पिण्यौ च ।। ३६॥ पिषूप् संचूर्णने । इत्यस्मात्किदाकः प्रत्ययो भवत्यस्य च पिन् पिण्य इत्यादेशौ भवतः ॥ पिनाकमैशं धनुः शूलं वा। पिनाको दण्डः । पिण्याकस्तिलादिखलः॥३६॥ Aho I Shrutagyanam Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७-४१] उणादिविवृतिः । . मवाकश्यामाकवार्ताकवृन्ताकज्योन्ताकगूवाकभद्राकादयः ।। ३७॥ एत आकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। मव्य बन्धने | यलोपः। मवाको रेणुः ।। यड् गतौ । मोन्तः । श्यामाको जघन्यो ब्रीहिः ।। वृतेर्वृद्धिश्च । वार्ताकी शाकविशेषः । तत्फलं वार्ताकम् || स्वरानोन्तश्च | वृन्ताक्युचबृहती | तत्फलं वृन्ताकम् ।। ज्युड् गतौ | न्तश्च प्रत्ययादिः । ज्यवतेस्मिन्स्विद्यमान इति ज्योन्ताकं स्वेदसद्मविशेषः ।। गुंत् पुरीषोत्सर्गे । गुंड शब्दे वा | ऊवादेशश्च | गूवाकं पूगफलम् ।। भदुड् सुखकल्याणयोः । अस्य भद्रादेशच | भद्राकोकुटिलः ॥ आदिग्रहणात् स्योनाकचार्वाकपराकादयो भवन्ति ।। ३७॥ क्रीकल्यलिदलिस्फटिदृषिभ्य इकः ॥ ३८॥ एभ्य इकः प्रत्ययो भवति ।। डुक्रींग्श् द्रश्यविनिमये । क्रयिकः क्रेता ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कलिका कोरकम् । उत्कलिकोमिः ॥ अली भूषणादौ । अलिकं ललाटम् ।। दल विशरणे | दलिकं दारु ।। स्फट स्फुट्ट विसरणे | स्फटिको मणिः ।। दुषंच वैकृत्ये | दूषिका नेत्रमलः ।। ३८॥ आडः पणिपनिपदिपतिभ्यः ।। ३९ ।। आड्परेभ्य एभ्य इकः प्रत्ययो भवति || पणि व्यवहारस्तुत्योः । आपणिकः पत्तनवासी व्यवहारज्ञो वा ॥ पनि स्तुती । आपनिकः स्तावक इन्द्रनील इन्द्रकीलो वा ।। पदिंच गती | आपदिक इन्द्रनील इन्द्र कीलो वा ॥ पतु गतौ । आपतिकः पथि वर्तमानो मयूरः श्येनः कालो वा ॥ आपणिकादयश्चत्वारो वणिजोपि नसिवसिकसिभ्यो णित् ॥ ४० ॥ एभ्यो णिदिकः प्रत्ययो भवति || गसि कौटिल्ये । नासिका घ्राणम् ।। वसं निवासे | वासिका माल्यदामविशेषश्छेदनद्रव्यं च ।। कस गतौ । कासिका वनस्पतिः ॥ ४०॥ पापुलिकृषिशिवश्विभ्यः कित् ।। ४१॥ एभ्य इकः प्रत्ययो भवति स च कित् [भवति ॥] पां पाने । पिकः कोकिलः ।। पुल महत्त्वे । पुलिको मणिः ॥ कृषीत् विलेखने । कृषिकः पामरस्तुणजातिश्च ।। कुशं वानरोदनयोः । कुशिकः क्रोष्टुक उलूकश्च ॥ ओवधीत् छेदने । वृश्चिकः सविषकीटो राशिश्व नक्षत्रपादनवकरूपः ॥ ४१ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४२-१७ प्राडः पणिपनिकषिभ्यः ॥ ४२ ॥ प्राडित्यस्मादुपसर्गसमुदायात्परेभ्य एभ्य किदिकः प्रत्ययो भवति ॥ पणि व्यवहारस्तुत्योः। प्रापणिको बणिक् || पनि स्तुती । प्रापनिकः पथिकः || कष हिंसायाम् । प्राकषिको वायुः खलो नर्तको मालाकारश्च ।। प्रपूर्वात् पणेराड्पूर्वाच्च कषेरिच्छन्त्यन्ये । प्रपणिको गन्धविक्रयी || आकषिको न कर्तव्यः ॥ ४२ ॥ मुषेर्दीर्घश्च ॥ ४३ ॥ मुषेरिकः प्रत्ययो भवति दीर्घश्च स्वरस्य [भवति ||] मूषिक आखु:।। ४३ ।। स्यमेः सीम् च ॥ ४४ ॥ स्यमेरिकः प्रत्ययो भवत्यस्य च सीमित्यादेशो भवति || स्यम् शब्दे | सीमिको वक्ष उदककृमिश्च । सीमिकोपजितिका ।। सीमिकं वल्मीकम् ।। केचिन्सिमिति हस्वोपान्त्यमादेशं प्रत्ययस्य च दीर्घत्वमिच्छन्ति । सिमीकः सूक्ष्मकृमिः ॥ ४४ ॥ __कुशिकहदिकमक्षिकेतिकपिपीलिकादयः ॥ ४५ ॥ एते किदिकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुर्षेः श च । कुशिको मुनिः ।। हगो दोन्तश्च । हदिको यादवः ।। मषेः सोन्तश्च । मक्षिका क्षुद्रजातिः ॥ एते. स्तोन्तश्च । इतिको मुनिः॥ पीलेई च। पिपीलिका मध्यक्षामा कीट जातिः ।। आदिग्रहणात् ग[ब्दक[भुरिकभुलिकादयो भवन्ति ॥ ४५ ॥ स्यमिकषिदूष्यनिमनिमलिवल्यलिपालिकाणिभ्य ईकः ।। ४६ ।। एभ्य ईकः प्रत्ययो भवति ।। स्यमू शब्दे | स्यमीको वृक्षो वल्मीको नृपगोनं च | स्यमीकं जलम् । स्यमीका कृमिजातिः ।। कष हिंसायाम् । कषीका कुहालिका || दुषंच वैकृत्ये । ण्यन्तः । दूषीका नेत्रमलो वीरणजातिवतिर्लता च ।। अनक् प्राणने । अनीकं सेनासमूहः संग्रामश्च || मनिंच ज्ञाने । मनीकः सूक्ष्मः ।। मलि धारणे । मलीकमजन मरिश्च || वलि संवरणे | वलीको बलवान्पटलान्तश्च । वलीकं वेश्मदारु ।। अली भूषणादौ | अलीकमसत्यम् । अलीका । पण्यस्त्री । व्यलीकमपराधः । व्यलीका लज्जा || पलण रक्षणे | पालीकं तेजः || कण शब्दे | कणीकः पटवासः । कणीका भिनतण्डुलावयत्रो वनस्पतिबीजं च ॥ ४६॥ जपशवमृभ्यो द्वे रश्चादौ ।। ४७ ।। . एभ्य ईकः प्रत्ययो भवति द्वे च रूपे भवत एषां चादौ रो भवति ॥ जृष्च जरसि । जर्जरीका शतपची ।। पृश् पालनपूरणयोः । पर्परीका जलाशयः सूर्यश्च । Aho 1 Shrutagyanam Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८-५०] उणादिविवृतिः। पपरीकोनिः कुररो भक्ष्यः कुर्कुरश्च ।। दृश् विदारणे । दर्दरीको दाडिम इन्द्रो वादित्रविशेषो वादित्रभाण्डं च ॥ शृश् हिंसायाम् । शहरीकः कृमिर्विकलेन्द्रियो दुष्टाश्वो लावकश्च | शहरीका मङ्गल्याभरणम् ॥ वृग्ट बरणे | वर्वरीकः संवरणमुरणः पतत्री केशसंघातश्च । वर्वरीका सरस्वती || मंत् प्राणत्यागे | मर्मरीकोग्निः सूरः श्येनश्च ।। ४७ ।। मच्य॒जिहषीषिदृशिमृडिशिलिनिलीभ्यः कित् ।। ४८ ॥ एभ्यः किदीकः प्रत्ययो भवति ।। ऋचत् स्तुतौ । ऋचीक ऋषिः । ऋजि गतिस्थानार्जनोर्जनेषु । ऋजीकं वज्रं बलं स्थानं च || हषू अलीके । हषच तुष्टौ वा । हृषीकमिन्द्रियम् ।। इषत् इच्छायाम् । ईष उञ्छे । ईषि गतिहिंसादर्शनेषु वा । इषीका | ईषीका च तृणशलाका ॥ दृशं प्रेक्षणे | दृशीकं मनोज्ञम् । दृशीका रजस्वला ।। मृडत् सुखने | मृडीकं सुखकृत्सुखं च || शिलत् उञ्छे । शिलीकः सस्यविशेषः ।। लींड्च् श्लेषणे | निपूर्वः । निलीकं वृत्तम् । बाहुलकादीलुक् ।। ४८ ।। ___मृदेर्वोन्तश्च वा ।। ४९ ।। मृदेः किदोकः प्रत्ययो भवति वकारश्चान्तो वा भवति ।। मृदश् क्षोदे । मृडीका मृदीका च द्राक्षा || ४९ ॥ सृणीकास्तीकप्रतीकपूतीकसमीकवाहीकवाल्हीकवल्मीककल्मलीकतिन्तिडीककङ्कणीककिङ्किणीकपुण्डरीकच चरीकफर्फरीकझझरीकघर्षरीकादयः ॥५०॥ एते किदीकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || सोन्तश्व | सृणीको वायुरनिरशनिरुन्मत्तश्च | सृणीका लाला || अस्तेस्तोन्तश्च । अस्तीको जरत्कारुसुतः ॥ प्रांक पूरणे । प्रातेस्तोन्तो हस्त्रश्च । प्राति शरीरमिति प्रतीको वायुरवयवः सुखं च | सुप्रतीको दिग्गजः॥ पुवस्तोन्तश्च | पूतीकं तृणजातिः ।। सम्पूर्वस्य एतेर्लुक् च | संयन्त्यस्मिन्निति समीकं संपामः ॥ वहिवल्योर्दीर्घश्च | वाहीकः । वाल्हीकः । एतौ देशौ ॥ वलेर्मोन्तश्च । वल्मीको नाकुः ॥ कलेमलश्वान्तः। कल्मलीकं ज्वाला ।। तिमस्ति चान्तः । तिन्तिडीकः पक्षी वृक्षामुश्च । तन्तिडीक इति पूर्वस्येत्वं नेच्छन्त्येके ।। चङ्क्षण्यतेः कङ्कण च | कङ्कणीको घण्टाजालम् ॥ किमः परात् कणेः किण च । किङ्किणीका घण्टिका ॥ पुणेर्डर् चान्तः पुण्डतेर्वा अर् । पुण्डरीकं पद्म छन्त्र व्याघ्रथ || चञ्चेरर चान्तः । चञ्चरीको भ्रमरः ।। पिपतेर्गुणो Aho! Shrutagyanam Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [५१-५७ द्वित्वं पकारयोः फत्वं रवान्तः पूर्वस्य । फर्फरीकं पल्लवं पादुका मर्दलिका च ॥ झीर्यतेईित्वं तृतीयाभावः पर्वस्य रथान्तः । झझरीकं देहः । झझरीका वादित्रभाण्डम् ।। एवं परतेः । धर्धरीका घण्टिका || आदिग्रहणादन्येपि ।। ६० ।। मिवमिकटिभल्लिकुहेरुकः ॥ ५१ ॥ एभ्य उकः प्रत्ययो भवति || डुमिंग्ट् प्रक्षेपणे । मयुक आतपः । बाहुलकात् मिग्मीग इति नात्वम् । दुवमू उद्भिरणे । वमुको जलदः ॥ कटे वर्षावरणयोः । कटुको रसविशेषः ।। मल्लि परिभाषणहिंसादानेषु । भल्लुक ऋतः ।। कुणि विस्मापने | कुहुकमाचर्यम् ॥ ५१ ॥ संविभ्यां कसेः ।। ५२ ॥ आभ्यां परस्मात् कसेरुकः प्रत्ययो भवति ॥ कस गतौ । संकसुकः सुकुमारः परापवादशीलः श्राद्धानिश्च | संकसुकं व्यक्ताव्यक्तं संकीर्णं च ॥ विकसुको गुणवादी परिश्रान्तश्च ॥ ५२ ।। क्रमेः कृम् च वा ॥ ५३॥ क्रमेरुकः प्रत्ययो भवत्यस्य च कृमित्यादेशो वा भवति ॥ क्रमू पादविक्षेपे | कृमुको बन्धनः । आदेशविधानबलाच न गुणः । क्रमुकः पूगतरुः ।। ५३ ।। कमितिमेयॊन्तश्च ॥ ५४॥ आभ्यामुकः प्रत्ययो भवति दधान्तो भवति ॥ कमूड कान्तौ । कन्दुकः क्रीडनकम् ।। तिमच आर्द्रभावे । तिन्दुको वृक्षः ।। ५४ ॥ ____ मण्डेर्मड्ड च ॥ ५५ ॥ मण्डेरुकः प्रत्ययो भवति मश्चादेशो भवति || मडु भूषायाम् | महुको पाद्यविशेषः ॥ ५५ ॥ कण्यणित् ॥ ५६ ॥ आभ्यां णिदुकः प्रत्ययो भवति ।। कण अण शब्दे | काणुकः काको हिंस्रथ । काणुकमाणुकं चालिमलम् ।। ५६ ॥ कञ्चुकांशुकनंशुकपाकुकहित्रुकचिबुकजम्बुकचुलुकचूचुकोल्मुकभा वुकपृथुकमधुकादयः ॥ ७॥ एते किदुकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कचि बन्धमे । अशौटि व्याप्तौ | नशौच अदर्शने । एषां स्वरानोन्तश्च । कञ्चुकः कूर्मासः। अंशुकं वस्त्रम् । नंशुको Aho I Shrutagyanam Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिविवृतिः। बिणरेणुः प्रवास शीलश्चन्द्रः प्रावरणं च ।। पचेः पाक् च | पाकुको लघुपाची सूपः रूपकारोध्वर्युश्च ।। हिनोतिचिनीतिजमतीनां बोन्तथ | हिबुकं लमाचतुर्थस्थानं रसातलं च ॥ चिबुकं मुखाधोभागः ॥ जम्बुकः सृगालः ॥ चुलुम्पः सौत्रः । अन्त्यस्वरादिलोपश्च । चुलुम्पतीति चुलुकः करकोशः ॥ चतेश्च । चुचुकः स्तनायभागः । ज्वलेरुल्म् च । उल्मकमलातम् ॥ मातेर्वोन्तश्च । भावुको भगिनीपतिः।। प्रथिष् प्रख्याने । पृथुकः शिशुर्वीह्याद्यभ्यूषश्च ॥ मचि कल्कने । धश्चान्तादेशः । मधुकं यष्टीमधुः ।। आदिग्रहणात् वालुकीवालुकादयो भवन्ति ॥ ५७॥ मृमन्यञ्जिजलिबलितलिमलिमल्लिभालिमण्डिबन्धिभ्य ऊकः ॥ ५८॥ एभ्य ऊकः प्रत्ययो भवति ॥ मृत् प्राणत्यागे | मरूको मयूरो मृगो निर्दशनेभस्तृणं च ।। मनिच ज्ञाने | मनूकः कृमिजातिः ।। अनौप् व्यक्तिम्रक्षणगतिषु । अजूको हिंस्रः।। जल धात्ये | जलूका जलजन्तुः ।। बल प्राणनधान्यावरोधनयोः । बलूक उत्पलमूलं मत्स्यश्च ।। तलण प्रतिष्ठायाम् । तलूकस्त्वकृमिः॥ मलि धारणे। मलूकः सरोजशकुनिः । मल्लि धारणे | मल्लूकः कृमिजातिः ।। भलिण् आभण्डने । भालूक ऋक्षः ।। मदु भूषायाम् । मण्डूको दर्दुरः ।। बन्धंश् बन्धने । बन्धूको बन्धुजीवः ॥ ५८ ॥ शल्यर्णित् ॥ ५९॥.. ___आभ्यां जिदूकः प्रत्ययो भवति ॥ पल फल शल गतौ । शालूकं जलकन्दो बलवाच ॥ अण शब्दे । आणूकमसिमलम् ।। ५९॥ कणिभल्लेर्दीर्वश्च वा ॥ ६ ॥ आभ्यामूकः प्रत्ययो [भवति ] दीर्घश्वामयोर्वा भवति ॥ कण शब्दे । कणूको धान्यस्तोकः। काणूकः पक्षी । काणूकमक्षिमलं तमो वा || भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु । भल्लूको भाग्मूकश्च ऋक्षः ॥ ६१॥ शम्बूकशाम्बूकवृधूकमधूकोलूकोरुवूकवरूकादयः ॥ ६१।। एत ऊकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ शमेर्बोन्तो दीर्घश्व वा । शम्बूकः शङ्खः । शाम्बूकः स एव ॥ वृश् भरणे | अस्य वृधभावश्च । वृधूको मातृवाहकः । वृधूकं जलम् ॥ मदेर्धश्च । मदयतीति मधूको वृक्षः । अलेरुचोपान्त्यस्य । उलूकः काकारिः ।। उरुपूर्वात् वातेः किञ्च । उरु वाति । सरुवूक एरण्डः ।। वृधेर्लोपश्च । वर्धत इति वरूकस्तृणजातिः ।। आदिमहणात् अनूकवावदूकादयो भवन्ति ।। ६१॥ Aho ! Shrutagyanam Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे किरोङ्को से लश्च वा ।। ६२॥ किरतेरङ्कः प्रत्ययो भवति रेफस्य च लकारादेशो वा भवति ।। करङ्कः समुन्नः । कलङ्को लाञ्छनम् ।। ६२ ।। रालापाकाभ्यः कित् ॥ ६३॥ एभ्यः किदङः प्रत्ययो भवति ।। रांक दाने | रङ्कोबलीयान् ॥ लांक् आदाने | लङ्का पुरी || पांक रक्षणे | पङ्कः कर्दमः ।। मैं शब्दे । कङ्कः पक्षी ।। ६३।। कुलिचिरिभ्यामिङ्कक् ॥६४॥ __ आभ्यामिकक् प्रत्ययो भवति ।। कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलिङ्कवटका ॥ चिर हिंसायां सौत्रः। चिरिडूं जलयन्त्रम् ।। ६४ ॥ कलेरविङ्कः ॥६५॥ कलेरविङ्कः प्रत्ययो भवति ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलविडो गृहचटकः ॥६५॥ क्रमेरेलकः॥६६॥ क्रमू पादविक्षेपे | इत्यस्मादेलकः प्रत्ययो भवति । क्रमेलकः करभः ।। ६६॥ जीवरातृको जैव च ।। ६७॥ जीव प्राणधारणे । इत्यस्मादातृकः प्रत्ययो भवति जैवित्यादेशश्च भवति । जैवातृक आयुष्माञ्चन्द्र आम्रो वैद्यो मेघश्च । जैवातृका जीवद्वत्सा स्त्री ।। ६७ ।। हृभूलाभ्य आणकः ।।६८॥ एभ्य आणकः प्रत्ययो भवति || हंग् हरणे । हराणकचौरः ॥ भू सत्तायाम् । भवाणको गृहपतिः || लांक आदाने । लाणको हस्ती ।। ६८ ।। प्रियः कित् ।। ६९ ॥ पींग्श् तृप्तिकान्त्योः । इत्यस्मादाणकः प्रत्ययो भवति स च कित् भवति || प्रियाणकः पुत्रः ।। ६९॥ धालूशिङ्किभ्यः ॥७०॥ योगविभाग उत्तरार्थः । एभ्य आणकः प्रत्ययो भवति ॥ डुधांगक धारणे च । धाणको दीनारहादशभागो हविषां ग्रहश्छिद्रपिधानं च ।। लूग्श् छेदने । लवाणकः कालस्तृणजातित्रं च || शिघु आघ्राणे | शिक्षाणको नासिकामलः।।७०॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५-७७] । उणादिविवृतिः। शीभीराजेश्चानकः ॥ ७१ ॥ शीभीराजिभ्यो धालशिङ्किभ्यश्च आनकः प्रत्ययो भवति || शीडा स्वमे । शयानकोजगरः शैलश्च ।। बिभीन भये । बिभेत्यस्मादिति भयानको भीमो व्यानो वराहो राहुश्च ॥ राजग् दीप्ती । राजानकः क्षत्रियः ॥ डुधांग्क् धारणे च । धानका हेमादिपरिमाणम् ॥ लूग्श् छेदने । लवानको देशविशेषो दात्रं च ।। शिवन्त्यनेनेति शिवानकः श्लेष्मायुः पुरीषं च ॥ ७१ ॥ अर्डित् ॥ ७२ ॥ अर्डिदानकः प्रत्ययो भवति || अण शब्दे । आनकः पटहः ॥ ७२ ॥ कनेरीनकः ॥ ७३ ॥ कनै दीप्तिकान्तिगतिषु । इत्यस्मादीनकः प्रत्ययो भवति ॥ कनीनकः कनीनका वाक्षितारका ।। ७३ ।। गुड ईधुकएधुकौ ॥ ७४ ॥ गुंड् शब्दे । इत्यस्मादीधुक एधुक इत्येतो प्रत्ययौ भवतः ।। गवीधुकं नगर धान्यजातिश्च ।। गवेधुका तृणजातिः ॥ ७४ ॥ वृतेस्तिकः ॥ ७ ॥ वृतूड् वर्तने । इत्यस्मात्तिकः प्रत्ययो भवति ।। वर्तिका चित्रकरोपकरणं शकुनिर्द्रव्यगुटिका च ॥ ७॥ कृतिपुतिलतिभिदिभ्यः कित् ।। ७६ ॥ एभ्यः कित्तिकः प्रत्ययो भवति || कृतैत् छेदने । कृन्तिका नक्षत्रम् । पुतिलती सौत्री । पुत्तिका मधुमक्षिका || लत्तिका वाद्यविशेषो गार्गोधा च । गोपूर्वात् । गोलत्तिका गृहगोलिका । अवपूर्वात् । अवलसिका गोधा । आलत्तिका गानमारम्भः ॥ भिद्रूपी विदारणे । भित्तिका कुचं माषादिचूर्ण शरावती च नह ।। ७६ ।। इष्यशिमसिभ्यस्तकक् ॥ ७७ ॥ एभ्यस्तकक् प्रत्ययो भवति । इषत् इच्छायाम् | इष्टका मुद्विकारः ॥ अशोटि व्याप्तौ । अष्टका श्राद्धतिथयस्तिस्रोष्टम्यः पितृदेवत्यं च ॥ मसैच् परिणामे । मस्तकं शिरः ॥ ७७॥ Aho! Shrutagyanam Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे भियो द्वे च ॥ ७८॥ अिभीक् भये । इत्यस्मात्तकक् प्रत्ययो भवति दे च रूपे भवतः ।। बिभीतकोक्षः ॥ ७८ ।। हरुहिपिण्डिभ्य ईतकः ॥ ७९ ॥ एभ्य ईतकः प्रत्ययो भवति || हंग् हरणे । हरीतकी पथ्या || रुहं जन्मनि । रोहीतको वृक्षविशेषः ॥ पिडुड् संघाते । पिण्डीतकः करहाटः ॥ ७९ ॥ कुषेः कित् ।। ८० ॥ कुषश् निष्कर्षे । इत्यस्मात्किदीकः प्रत्ययो भवति ।। कुषीतक ऋषिः॥८॥ बलिबिलिशलिदमिभ्य आहकः ॥ ८१ ॥ एभ्य आहकः प्रत्ययो भवति ॥ बल प्राणनधान्यावरोधयोः ॥ बलाहको मेघो वातश्च ।। बिलत् भेदने | बिलाहको वचः । बाहुलकान्न गुणः ।। शल गतौ । शलाहको वायुः ।। दमूच् उपशमे | दमाहकः शिष्यः ।। ८१ ।। चण्डिभल्लिभ्यामातकः ॥ ८२ ॥ आभ्यामातकः प्रत्ययो भवति || चडुड् कोपे । चण्डातकं नर्तक्यादिवासः ।। भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु । भल्लातको वृक्षः ।। ८२ ॥ श्लेष्मातकाम्रातकामिलातकपिष्टातकादयः ॥ ८३ ॥ एत आतकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || श्लिषेर्मश्च परादिः । श्लेष्मातकः कफेलः॥ अमेर्वृद्धी रवान्तः । आम्रातको वृक्षः ॥ नञः परस्य म्लायतेमिल् च । अमिलातकं वर्णपुष्पम् ॥ पिषेस्तोन्तश्च । पिष्टातकं वर्णचूर्णम् ॥ आदिग्रहणात् कोशातक्यादयो भवन्ति ।। ८३ ॥ शमिमनिभ्यां खः ।।८४॥ ___ आभ्यां खः प्रत्ययो भवति ॥ शमूच् उपशमे । शङ्खः कम्बुर्निधिश्च ॥ मनिच् ज्ञाने | मङ्को मागधः कृपणचित्रपटश्च । मङ्खा मङ्गलम् ॥ ८४ ॥ इयतेरिच वा ॥८५॥ . शोच तक्षणे । इत्यस्मात्यः प्रत्ययो भवति इश्चास्यान्तादेशो वा भवति ।। शिखा चूडा ज्वाला च । विशिखापणः । विशिखो बाणः । शाखा विटपः । विशाखा नक्षत्रम् | विशाखः स्कन्दः ॥ ८५॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ९२] उणादिविवृतिः । पूहोः पुन्मूरौ च ॥ ८६ ॥ पूड् पवने | मुहौच् वैचित्त्ये । इत्येताभ्यां खः प्रत्ययो [भव ] त्यनयोश्च यथासंख्यं पुन्मूरित्यादेशौ भवतः । पुङ्खो बाणबुन्नभागो मङ्गलाचारश्च ॥| मूर्खोज्ञः ॥ ८६॥ अशेर्डित् ॥ ८७ ॥ शौटि व्याप्तौ । इत्यस्माड्डित्खः प्रत्ययो भवति || अद्भुत इति खमाकाशमिन्द्रियं च । नास्य खमस्तीति नखः । शोभनानि खान्यस्मिन् सुखम् | दुष्टानि खान्यस्मिन् दुःखम् || ८७ ॥ उषेः किल्लुक् च ॥ ८८ ॥ १९ उषू दाहे । इत्यस्मात्कित्खः [ प्रत्ययो ] भवति लुक् चान्त्यस्य भवति || उपन्त्यस्यामित्युखा स्थाल्यूर्ध्वक्रिया वा ॥ ८८ ॥ महेरुच्चास्य वा ॥ ८९ ॥ मह पूजायाम् । इत्यस्मात्खः प्रत्ययोन्तलुगकारस्य च उकारादेशो वा भवति || मुखमाननम् | मखो यज्ञोध्वर्युरीश्वरश्व ।। ८९ ।। न्युङ्खादयः ॥ ९० ॥ न्युङ्खादयः शब्दाः खप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ नयतेः ख उन् चान्तः । न्युङ्खाः पकाराः || आदिग्रहणादन्येपि || ९ || मयेधिभ्यामूखेखौ ।। ९१. ॥ मयि गतौ । एधि वृद्धौ । इत्याभ्यां यथासंख्यमूख इख इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः || मयूखो रश्मिः || एधिखो वराहः || ९१ ॥ गम्यमरम्यजि गद्यदिच्छागाडखडिगृभृवृस्वृभ्यो गः ॥ ९२ ॥ एभ्यो गः प्रत्ययो भवति || गनुं गतौ | गङ्गा देवनदी || अम गतौ | अङ्ग शरीरावयवः | अङ्गः समुद्रो वह्नी राजा च । अङ्गा जनपदः || रमिं क्रीडायाम् । रङ्गो नाट्यस्थानम् || अज क्षेपणे च । वेगस्त्वरा रेतश्व | गद व्यक्तायां वांचि । गद्गो वाग्विकलः || अदंक् भक्षणे | अङ्गः समुद्रोभिः पुरोडाशश्च || छोंच् छेदने । छागो बस्तः || गड सेचने | गङ्गो मृगजातिः || खडण् भेदे | खड्गो मृगविशेषोसिश्व || गृत् निगरणे | गर्ग ऋषिः || टुडुभ्रंग्क् पोषणे च । भर्गो रुद्रः सूर्यश्च ॥ वृग्ट् वरणे | वर्गः संघातः || औस्वृ शब्दोपतापयोः | स्वर्गो नाकः ॥ ९२॥ Aho! Shrutagyanam Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 हेमचन्द्रव्याकरणे प्रमुदिभ्यां कित् ॥ ९३ ॥ आभ्यां किद्भः प्रत्ययो भवति ॥ पूग्श् पवने । पूगः संघातः क्रमुकश्च ॥ मुदि हर्षे | मुद्रो धान्यविशेषः ।। ९३ ।। [९३-१०० भृवृभ्यां नोन्तश्च || ९४ ॥ आभ्यां किद्गः प्रत्ययो [भवति ] नकारश्चान्तो भवति || टुडुभृंग्क् पोषणे च | भृङ्गः पक्षी भ्रमरो वर्णविशेषो लवङ्गश्व || वृग्ट् वरणे । वृङ्ग उपपतिः || ९४ ॥ द्रमो णिद्वा ।। ९५ ॥ द्रम गतौ । इत्यस्माद्गः प्रत्ययो भवति स च णिवा भवति || द्राङ्गं शीघ्रम् । ब्राङ्गः पांशुः । द्रङ्गो नगरम् | द्रङ्गा शुल्कशाला ॥ ९५ ॥ शृङ्गशादियः ।। ९६ । शृङ्गादयः शब्दा गप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || शूरा हिंसायाम् । इत्यस्य नोन्तो हस्वश्च | शृङ्गं विषाणं शिखरं च । तस्यैव नोन्तो वृद्धिश्च । शार्ङ्गः पक्षी । आदियहणात् हंग् हरणे | हार्गः परितोषः || मृत् प्राणत्यागे । मार्गः पन्थाः ।। ९६ । तडेरागः ॥ ९७ ॥ तडण् आघाते । इत्यस्मादागः प्रत्ययो भवति || तडागं सरः || ९७ । पतितमितृपृकृशुल्वादेरङ्गः ।। ९८ ।। एभ्योङ्गः प्रत्ययो भवति || पलृ गतौ । पतङ्गः पक्षी शलभः सूर्यः शालविशेषश्च ॥ तमूच् काङ्गायाम् । तमङ्गो हर्म्यनिर्यूहः || तू प्लवनतरणयोः | तरङ्ग ऊर्मिः || पृश् पालनपूरणयोः । परङ्गः खगो वेगश्च || कृत् विक्षेपे । करङ्गः कर्मशीलः || शृश् हिंसायाम् | शरङ्गः पक्षिविशेषः || लूग्श् छेदने । लवङ्गः सुगन्धिवृक्षः || आदिग्रहणादन्येभ्योपि ॥ ९८ ॥ सृवृनृभ्यो णित् || ९९ ।। एभ्यो णिदङ्गः प्रत्ययो भवति ॥ सृ गतौ | सारङ्गो हरिणश्चातको शबलवर्णश्व || वृग्ट् वरणे | वारङ्गः काण्डखड्योः शल्यं शकुनिश्व || नृय् नये | नारङ्गो वृक्षजातिः ।। ९९ ।। मनेर्मत्मातौ च ॥ १०० ॥ मनिच् ज्ञाने | इत्यस्मादङ्गः प्रत्ययो [ भवति ] मत्माती चास्यादेशौ भवतः ॥ मतङ्ग ऋषिस्ती च || मातङ्गो हस्त्यन्त्यजातिश्व ॥ १०० ॥ Aho! Shrutagyanam Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१-१०७] - उणादिविवृतिः। विडिविलिकुरिमृदिपिशिभ्यः कित् ।। १०१॥ एभ्यः किदङ्गः प्रत्ययो भवति ।। विड आक्रोशे । विडङ्गो वृक्षजातिगुहावयवश्व ।। विलत् वरणे | बिलत् भेदने वा । विलग औषधम् ।।कुरत् शब्दे । कुरङ्गो हरिणः। कुरङ्गी भोजकन्या || मृदश् क्षोदे | मृदङ्गो मुरजः॥ पिशत् अवयवे । पिशङ्गो वर्णः ॥ १०१॥ स्फुलिकलिपल्याङ्य इङ्गक् ॥ १०२॥ स्फुल्यादिभ्य आदन्तेभ्यश्च इङ्गक् प्रत्ययो भवति ॥ स्फुलत् संचये च । स्फुलिङ्गः स्फुलिंङ्गा चामिकणः ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कलिङ्गो राजा । कलिङ्गा जनपदः । पल गतौ । पलिङ्ग ऋषिः शिला च ॥ पातेः। पिङ्गः ॥ भातेः । भिङ्गः । हावपि वर्णविशेषौ ।। ददातेः । दिङ्गोध्यक्षः ।। दधातेः । धिङ्गः श्रेष्ठी ।। लातेः। लिङ्ग स्त्रीत्वादि हेतुश्च | आलिङ्गो वाद्यविशेषः ॥ श्यतेः शिङ्गो वनस्पतिः किशोरश्च ॥ १०२॥ ___ भलेरिदुतौ चातः ॥ १०३ ॥ भलिण् आभण्डने । इत्यस्मादिङ्गक् प्रत्ययो भवत्यकारस्य च इकार-उकारौ भवतः ।। भिलिङ्गः कर्मारोपकरणम् । भुलिङ्ग ऋषिः पक्षी [च] । भुलिङ्गाः साल्यावयवाः ॥१३॥ अणित् ॥ १०४ ॥ - अदं भक्षणे | इत्यस्मादिङ्गक् प्रत्ययो भवति स च णित् [भवति । आदिङ्गो वाद्यजातिः ॥ १०४ ॥ उचिलिङ्गादयः ॥ १०५ ॥ उचिलिङ्गादयः शब्दा इङ्गप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ उत्पूर्वात् चलेरस्येवं च। उचिलिङ्गो दाडिमी ।। आदिग्रहणादन्येपि ।। १०५ ।। माडस्तुलेरुङ्गाक् च ॥ १०६ ।। माड्पूर्वात् तुलण उन्माने । इत्यस्मादुङ्गक इङ्गक् च प्रत्यया भवतः ॥ मातुलुङ्गो बीजपूरः । मातुलिङ्गः स एव ।। १०६॥ । कमितमिशमिभ्यो डित् ॥ १०७॥ एभ्यो डिदुङ्गः प्रत्ययो भवति ॥ कमूड् कान्तौ । कुङ्गा जनपदः। तमूच् Aho! Shrutagyanam Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ हेमचन्द्रव्याकरणे [१०८-११४ काङ्क्षायाम् । तुङ्गो महावर्त्मा || शमूच् उपशमे । शुङ्गो मुनिः । शुङ्गाः कन्दल्यः | शुङ्गा विनता ॥ १०७ ॥ सर्तेः सुर् च ।। १०८ ॥ सृ गतौ । इत्यस्मादुङ्गः प्रत्ययो [ भवति ] सुर् चास्यादेशो भवति ।। सु[ रु]ङ्गा गूढमार्गः || १०८॥ स्थाजिनिभ्यो घः ॥ १०९ ॥ एभ्यो घः प्रत्ययो भवति ॥ ष्ठां गतिनिवृत्तौ । स्थाधो गाधः || * प्रापणे च । अर्धो मूल्यं मानप्रमाणं पादोदकादि च || जनैचि प्रादुर्भावे | जङ्घा शरीरावयवः || १०९ ॥ मघाघङ्घाघदीर्घादयः ॥ ११० ॥ एते घप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || मन्घलोपश्च । मघा नक्षत्रम् || हन्तेर्हस्य घश्व | घड्वो घस्मरः | बङ्घा काङ्क्षा || अमेर्लुक् च | अघं पापम् || दृणातेर्दीर् च । दीर्घ आयत उच्चश्व || आदिशब्दादन्येपि ॥ ११० ॥ सर्वैरवः ।। १११ ।। सृ गतौ । इत्यस्मादधः प्रत्ययो भवति ॥ सरघा मधुमक्षिका ॥ १११ ॥ कुपूसामिणभ्यश्चद् दीर्घश्च ॥ ११२ ॥ कुपूभ्यां सम्पूर्वाच्च इणश्वर् प्रत्ययो [ भवति ] दीर्घश्व भवति । टो ड्यर्थः || कुंड् शब्दे | कूचो हस्ती । कूची प्रमदा चित्रभाण्डमुदश्विद्विकार || पूग्श् पवने | पूत्र: पूची मुनिः || इण्क् गतौ । समीच ऋत्विक् । समीचं मिथुनयोगः | समीची पृथिवी | उदीची च । दीर्घवचनाङ्गुणो न भवति ॥ ११२ ॥ कूर्चचूर्चादयः ।। ११३ ॥ कूर्च इत्यादयः शब्दाश्चट्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || कवते: किरतेः करोतेर्वा | ऊरादेशश्रान्तस्य | कूर्चे दमश्वासनं तन्तुवायोपकरणं यतिपवित्रकं च । कूर्चमिव कूर्चकः कूर्चिकेति च भवति || चरतेश्वरयतेर्वा चूरादेशश्च । चूचें बलवान् ॥ आदिशब्दादन्येपि ॥ ११३ ॥ कल्यविमदिमणिकुकणिकुटिकृभ्योचः ।। ११४ ॥ एभ्योचः प्रत्ययो भवति || कलि शब्दसंख्यानयोः | कलचो गणकः ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५-१२२] __उणादिविवृतिः। अव रक्षणादौ | अवच उच्चस्तरः ।। मदैच् हर्षे । मदचो मत्तः ॥ मण शब्दे । मणचः शकुनिः ।। कुंड् शब्दे । कवचं वर्म ।। कण शब्दे | कणचः कणयः ।। कुटत् कौटिल्ये | कुटचो वृक्षजातिः ।। कृत् विक्षेपे । करचो धान्यावपनम्।। ११४।। क्रकचादयः ।। ११५ ॥ क्रकच इत्यादयः शब्दा अचप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ क्रमेः कश्च । क्रकचः करपत्रः ॥ आदिशब्दादन्येपि ॥ ११५ ॥ पिशेराचक् ॥ ११६ ॥ पिशत् अवयवे । इत्यस्मादाचक् प्रत्ययो भवति ॥ पिशाचो व्यन्तरजातिः ॥ ११६ ॥ मृत्रपि-यामिचः ।। ११७॥ आभ्यामिचः प्रत्ययो भवति ।। मृत् प्राणत्यागे । मरिचमूषणम् ॥ पौषि लज्जायाम् । त्रपिचा कुथा ॥ ११७ ।। म्रियतेरीचण् ।। ११८ ॥ ___ मृत् प्राणत्यागे । इत्यस्मादीचण् प्रत्ययो भवति ॥ मारीचो रावणमातुलः ॥ ११८ ॥ लषेरुचः कश्च ॥ ११९ ॥ लषी कान्तौ । इत्यस्मादुचः प्रत्ययो [भव] त्यन्त्यस्य च को भवति ॥ लकुचो वृक्षजातिः ॥ ११९ ॥ गुडेरू.चट् ॥ १२० ॥ गुडत् रक्षायाम् । इत्यस्मादूचट् प्रत्ययो भवति ॥ गुडूची छिन्नरुहा ।। कुडादित्वा[हि ] स्वम् ॥ १२० ॥ सिवेडित् ॥ १२१ ॥ षिवूच् उतौ । इत्यस्माधिदूचट् प्रत्ययो भवति || सूचः पिशुनः स्ति- . भिश्च । सूची संधानकरणी ।। १२१ ।। चिमे चडञ्चौ ।। १२२ ॥ चिमिभ्यां प्रत्येकं डोच डच इति प्रत्ययो भवतः । वचनभेदान यथासंख्यम् ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ हेमचन्द्रव्याकरणे [१२३-१२८ चिंग्ट् चयने । चोचो वृक्षविशेषः । चच्चा तृणमयः पुरुषः ॥ डुमिंग्ट प्रक्षेपणे । मोचा कदली | मञ्चः पर्यङ्कः ॥ १२२ ॥ कुटिकुलिकल्युदिभ्य इञ्चक् ॥ १२३ ॥ एभ्य इच्चा प्रत्ययो भवति ॥ कुटेः । कुटिच्चः क्षुद्रकर्कटः ।। कुलेः । कुलिञ्चो राशिः || कलेः । कलिच्च उपशाखावयवः || उद आपाते सौत्रः । उदिच्चः कोणो येन तूर्य वाद्यते पर पुष्टश्च ।। १२३ ॥ तुदिमदिपद्यदिगुगमिकचिभ्य छक् ॥ १२४ ॥ . एभ्यश्चक् प्रत्ययो भवति ।। तुर्दीत् व्यथने । तुच्छ: स्तोकः ॥ मदैच् हर्षे । मच्छो मत्स्यः प्रमत्त पुरुषश्च । मच्छा स्त्री || पदिंच् गतौ । पच्छः शिला || अदंक भक्षणे । अच्छो निर्मलः ॥ गुंड शब्दे ।। गुच्छ: स्तबकः ॥ गमुं गतौ । गच्छः क्षुद्रवृक्षः ।। कचि बन्धने । कच्छः कूर्मपादः कुक्षि द्यवकुटारश्च । कच्छा जनपदः ॥ बाहुलकारकत्वाभावः ।। १२४ ।। पीपूडो हस्वश्च ॥ १२५ ॥ आभ्यां छक् प्रत्ययो [ भवति ] हूस्वश्च भवति || पांड्च् पाने | पिच्छं शकुनिपचम् । पिच्छो गुणविशेषः । यद्वान् पिच्छिल उच्यते ॥ पूड पवने । पुच्छं वालधिः ॥ १२५ ।। __गुलुञ्छपिलिपिञ्छैधिच्छादयः ।। १२६॥ एते छप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । गुडेल उम् चान्तः । गुलुञ्छः स्तवकः ॥ पीलेरिपि नोन्तो हस्वश्च । पिलिपिञ्छो रक्षोविशेषः ।। एधेरिट् च । एघिच्छो नगः॥ भादिग्रहणात् पिञ्छादयोपि भवन्ति ॥ १२६ ॥ वियो जक् ॥ १२७ ।। वीं प्रजननकान्त्यसनखादनेषु च । इत्यस्माज्जक् प्रत्ययो भवति ॥ बीजमुत्पत्तिहेतुः ।। १.२७ ॥ पुवः पुन् च ।। १२८ ॥ पूड् पवने । इत्यस्माज्जक् प्रत्ययो [भव] त्यस्य च पुनित्यादेशो भवति || पुनो राशिः ॥ १२८ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९-३७] उणादिगणविवृतिः । कुवः कुब्कुनौ च ।। १२९ ।। कुंड् शब्दे । इत्यस्माज्जक् प्रत्ययो भवत्यस्य च कुन् कुन् इत्यादेशौ भवतः || कुब्जो वक्रानताङ्गो गुच्छश्व || कुञ्जो हनुः पर्वतैकदेशव । निकुञ्जो गहनम् ।। १२९ ॥ कुटेरजः ॥ १३० ॥ कुटत् कौटिल्ये । इत्यस्मादजः प्रत्ययो भवति ॥ कुटजो वृक्षविशेषः || [[]][दिवा [ दृ]त्त्वम् | कुटजी ॥ १३० ॥ भिषेभिषभिष्णौ च वा ।। १३१ ।। भिषेरजः प्रत्ययो [भवति ] भिष भिष्ण इत्यादेशौ चास्य वा भवतः ॥ भिषिः सौत्रः । भिषजः | आदेशबलान्न गुणः | भिष्णजो वैद्यः । भेषज मौषधम् || १३१ ।। २५ मुर्वेर्मुर् च ॥ १३२ ॥ मु बन्धने । इत्यस्मादजः प्रत्ययो [ भव ]त्यस्य च मुर् इत्यादेशो भवति || मुरजो मृदङ्गः ॥ १३२ ॥ बलेवन्तश्च वा ॥ १३३ ॥ बल प्राणनधान्यावरोधयोः । इत्यस्मादजः प्रत्ययो [भवति ] वकारश्चान्तो वा भवति || बल्वजो मुञ्जविशेषः । बलजा सबुसो धान्यपुञ्जः ।। १३३ ।। उटजादयः ।। १३४ ॥ उटजादयः शब्दा अजप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || वटेर्वस्य उत्वं च । उटजं मुनिकुटीरः || आदिशब्दात् भूर्ज भरुजादयो भवन्ति ॥ १३४॥ कुलेरिजक् ।। १३५ । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । इत्यस्मादिजक् प्रत्ययो भवति ॥ कुलिजं मानम् ।। १३५ ।। कृगोञ्जः॥ १३६ ॥ करोतेरञ्जः प्रत्ययो भवति || करञ्जो वृक्षजातिः || १३६ ॥ झमेर्झः।। १३७॥ अदने | इत्यस्माज्झः प्रत्ययो भवति || झञ्झा सशीकरो मेघ वातः ॥ १३७ ॥ 4 Aho! Shrutagyanam Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [१३८-४२ लुषेष्टः ।। १३८ ॥ लुष स्तेये । इत्यस्माट्टः प्रत्ययो भवति || लोप्टो मृत्पिण्डः ।। १३८॥ नमितनिजनिवनिसनो लुक् च ।। १३९॥ एभ्यष्टः प्रत्ययो भवति लुक् चान्तस्य भवति || णमं प्रहत्वे | नटो भरतपुत्रः ।। तनूयी विस्तारे । तटं कूलम् ।। जनैचि प्रादुर्भावे । जटा प्रथितकेशसंघातः।। वन पन भक्तौ । वटो न्यग्रोधः ।। सटाग्रथितः केशसंघातः ॥ १३९ ॥ जनिपणिकिजुभ्यो दीर्घश्च ।। १४०॥ एभ्यष्टः प्रत्ययो भवति दीर्घश्चैषां गुणापवादो भवति || जनैचि प्रादुर्भावे । पणि व्यवहारस्तुत्योः । जाण्टः । पाण्टः । [वृक्षविशेषावेतौ ।। किजू सौत्रौ । कीटः क्षुद्रजन्तुः ।। जूटो मौलिः ।। १४०॥ घटाघाटाघण्टादयः ।। १४१।। - एते टप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। हन्तेर्घघाघनश्च । घटा वृन्दम् ॥ घाटा स्वाजम् ॥ घण्टा वाद्यविशेषः ।। आदिग्रहणात् छटादयो भवन्ति ।। १४१।। दिव्यविश्रुकुशिकिकङ्किकृपिचपिचमिकम्यधिकर्किमार्ककाक्ख तृकृसृभृवृभ्याटः॥ १४२।। एभ्योटः प्रत्ययो भवति ॥ दिवूच् क्रीडादौ । देवटो देवकुलविशेषः शिल्पी च ॥ अव रक्षणादौ | अवटः प्रपातः कूपश्च ।। श्रृंट अवणे । अवटश्छन्नम् ।। कुंक् शब्दे | कवट उच्छिष्टम् ।। कर्ब गतौ । कर्बट क्षुद्रपत्तनम् || शक्लंट शक्तौ । शकटमनः ।। ककुड् गतौ । कङ्कटः संनाहः । कङ्कटं सीमा || कृपौड् सामर्थे । कर्पटं वासः ॥ चप सान्त्वने | चपटो रसः ॥ चमू अदने । चमटो घस्मरः ॥ कमूड् कान्तौ । कमटो वामनः ॥ एधि वृद्धौ | एघटो वल्मीकः ॥ कर्किमर्की सौत्रौ । कर्कटः कपिलः कुलीरथ । कर्कटी पुसी || मर्कटः कपिः क्षुद्र जन्तुश्च ॥ कक्ख हसने । कक्खटः कर्कशः ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तरटः पीनः ।। डुक्कंग करणे | करटः काकः करिकपोलश्च ।। तूं गतौ । सरटः कृकलासः ।। टुडुभंगक् पोषणे च । भरटः प्लवविशेषो मृत्यः कुलालश्च ।। वृग्ट वरणे | वरटः क्षुद्रधान्य प्रहारश्च ।। १४२॥ Aho I Shrutagyanam Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३-५० उणादिगणविवृतिः। कुलिविलिभ्यां कित् ॥ १४३ ॥ आभ्यां किदटः प्रत्ययो भवति ॥ कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलटा बन्धकी ॥ विलत् वरणे | विलटा नदी ॥ १४३ ॥ . कपटकीकटादयः ॥ १४४ ॥ कपटादयः शब्दा अटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || कम्पेनलोपश्च । कपटं माया।। करत ईञ्च । कीकटः कृपणः।। आदिग्रहणात् लघटपर्पटादयो भवन्ति ।। १४४ ॥ अनिशृपृवृललिभ्य आटः॥ १४५ ॥ एभ्य आटः प्रत्ययो भवति ।। अनक् प्राणने । अनाटः शिशुः ॥ शृश् हिंसायाम् | शराटः शकुन्तः ॥ पृश् पालनपूरणयोः । पराट आयुक्तकः।। वृड्श् संभक्तौ । वराटः सेवकः ।। ललिण् ईप्सायाम् । ललाटमलिकम् || १४५ ॥ सृसृपेः कित् || १४६ ॥ आभ्यां किदाटः प्रत्ययो भवति ।। सुं गतौ । साटः पुरःसरः ॥ सूपं गतौ । सृपाटोल्पः कुमुदादिपत्रं च । सृपाटयुपानकुप्यमल्पपुस्तकश्च ।। १४६ ॥ किरो लश्च वा ॥ १४७ ॥ किरतेः किदाटः प्रत्ययो भवति लश्चान्तो वा भवति || किलाटो भक्ष्यविशेषः । किराटो वणिग् म्लेच्छश्च ॥ १४७ ॥ कपाटविराटशुकाटप्पुनाटादयः ॥ १४८ ॥ एत आटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ कम्पेनेलोपश्च । कपाटोररिः । जपादीनां पो व इति वत्वे । कवाटः ॥ वृड इत्वं च । विराटो राजा || अयतेः शृङ्ग च | शृङ्गाट जलजविशेषो विपणिमार्गश्च ।। प्रपूर्वात् पुणेर्नश्च । प्रपुनाट एडगजः ॥ आदिशब्दात् खल्वाटादयो भवन्ति ॥ १४८ ॥ चिरेरिटो भ् च ।। १४९ ।। चिरेः सौत्रादिटः प्रत्ययो भवति भकारवान्तादेशो भवति ॥ चिमिटी वालुङ्की ।। १४९ ॥ टिण्टश्चर् च वा ॥ १५० ।। चिरेष्टिदिण्टः प्रत्ययो भवति चर होते चास्यादेशो वा भवति ॥ चरिण्टी चिरिण्टी च प्रथमवयाः स्त्री ।। १५० ।। Aho! Shrutagyanam Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [१५१-७ तृकृकृपिकम्पिकृषिभ्यः कीटः ॥ १५१ ॥ एभ्यः किदिटः प्रत्ययो भवति ॥ तृ प्लवनतरणयोः तिरीटं कूलवृक्षो मुकुट वेष्टनं च ॥ कृत् विक्षेपे । किरीटं मुकुटं हिरण्यं च || कृपौड् सामर्थे । कृपीटं हिरण्यं जलं च ॥ कपुड् चलने । कम्पीटं कम्पः कम्पं च ॥ कृषीत् विलेखने । कृषीट जलम् ॥ १५१ ॥ खनेररीटः ॥ १५२ । खजु गतिवैकल्ये । इत्यस्मादरीटः प्रत्ययो भवति || खञ्जरीटः खञ्जनः ॥ १५२॥ गृजदृवृभृभ्य उट उडश्च ॥ १५३ ।। एभ्य उट उडश्च प्रत्ययो भवनः । भिन्नविभक्तिनिर्देश उटस्योत्तरत्रानुवृत्त्यर्थः । अप्रकृतस्याप्युडस्येह विधानं लाघवार्थम् ॥ गृश शब्दे | गरुटो गरुडश्च गरुत्मान् ।। जष्च् जरसि | जरुटो जरुडश्व वनस्पतिः॥ दृश्विदारणे । दरुटो दरुडश्च बिडालः ।। वृग्य वरणे। वरुटो वरुडश्च मे[५]ः ।। भृश् भर्जने च । भरुटो भरुडश्च मेष एव ॥१५३॥ मकर्मकमुकौ च ॥ १५४॥ - मकुड् मण्डने । इत्यस्मादुटः प्रत्ययो भवति मक मुक इत्यादेशौ चास्य भवतः ।। मकुटो मुकुटश्च किरीटः ॥ १५४ ॥ नर्कुटकुक्कुटोत्कुरुटमुरुटपुरुटादयः ।। १५५।। एत उटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। नृतेः कश्च । नर्कुटो बन्दी ॥ कुके कोन्तश्च । कुक्कुटः कृकवाकः ॥ उत्पूर्वात्कृगः कुर् च । उत्कुरुटः कचवारपुञ्जः। मुरिपुर्योर्गुणाभावश्च । मुरुटो यद्वेण्वादिमूलमृजु कर्तुं न शक्यते ॥ पुरुटो जलजन्तुः । आदिशब्दात् स्थपुटादयो भवन्ति ॥ १५५ ॥ दुरो द्रः कूटश्च दुर् च ॥१५६॥ . दुपूर्वात् दृातेः किदूट उटश्च प्रत्ययो [भवतो] दुर् चास्यादेशो भवति ॥ दुर्दुल्टो दुर्मुखः । दुर्दुरुटो देशकालवादी ।। १५६॥ बन्धः ।। १२७॥ बन्धश् बन्धने । इत्यस्मारिकतूटः प्रत्ययो भवति ॥ वधूटी प्रथमवयाः खी॥१५७॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८-६५] उणादिगणविवृतिः। चपेरेटः॥१८॥ ..... चप सान्त्वने | इत्यस्मादेटः प्रत्ययो भवति ॥ चपेटश्चपेटा वा हस्ततलाहतिः॥ १५८॥ ग्रो णित् ।। १८९॥ गृत् निगरणे | इत्यस्माण्णिदेटः प्रत्ययो भवति ।। गारेट ऋषिः ॥ १५९ ॥ __कृशक्शाखेरोटः ॥१६॥ एभ्य ओटः प्रत्ययो भवति || डुकंग करणे करोटो भृत्यः शिरः कपालं च । करोटं भाजनविशेषः । शकूट शक्तौ | शकोटो बाहुः।। शाख लाख व्याप्तौ । शाखोटो वृक्षविशेषः ॥१६॥ कपोटवकोटाक्षोटकर्कोटादयः॥ १६१॥ एत ओटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। कबृड् वर्णे । पश्च । कपोटो वर्णः कित. वश्च ॥ वचेः कश्च । वकोटो बकः ।। अभातेः सश्च परादिः । अक्षोटः फलवृक्षः ।। कृगः कोन्तश्च | कर्कोटो नागः ।। आदिशब्दादन्येपि ॥ १६१॥ वनिकणिकाश्युषिभ्यष्ठः ।। १६२।। एभ्यष्ठः प्रत्ययो भवति ।। वन भक्तौ । वण्ठोनिविष्टः ॥ कण शब्दे । कण्ठः कंधरा । काशृड् दीप्तौ । काष्ठं दारु | काष्ठा दिगवस्था च ।। उषू दाहे । ओष्ठो दन्तच्छदः ॥ १६२॥ पीविशिकुणिषिभ्यः कित्॥ १६३ ॥ एभ्यः किट्ठः प्रत्ययो भवति ।। पीड्च् पाने । पीठमासनम् ॥ विशंत् प्रवेशने | विष्टा पुरीषम् ॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः । कुण्ठोतीक्ष्णः ॥ पृषू सेचने । पृष्ठोङ्कुशः शरीरैकदेशश्च ॥ १६३॥ कुषेर्वा ।। १६४ ॥ कुषश् निष्कर्षे । इत्यस्माः प्रत्ययो भवति स च वा कित् [ भवति ] || कुष्ठं व्याधिर्गन्धद्रव्यं च । कोष्टः कुसूल उदरं च ॥ १६४ ॥ शमेलृक् च वा ।। १६५ ।। शमूव् उपशमे । इत्यस्माहः प्रत्ययो भवति लुक् चान्तस्य वा भवति ।। शो धूर्तः । शण्ठः स एव । नपुंसकं च ॥ १६५ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० हेमचन्द्रव्याकरणे पठैधिठादयः ॥ १६६ ॥ पष्टादयः शब्दाष्ठप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ पुषेः किडः पषादेशश्व | पठः प्रस्थः पर्वतव || एधतेरिट् च । एधिठं वनम् । एधिठो गिरिसरिग्रहः ॥ आदिशब्दादन्येपि ॥ १६६ ॥ १६६-९ मृजृगृकम्यमिरमिरपिभ्योठः ॥ १६७ ॥ एभ्योठः प्रत्ययो भवति || मृत् प्राणत्यागे । मरठो दध्यतिद्रवीभूतं कृमिजातिः कण्ठः प्राणश्च ।। नृष्च् जरसि । जरठ: कठोर: || शृश् हिंसायाम् । शरत आयुधं पापं क्रीडनशीलच || कमूड् कान्तौ । कमठो भिक्षाभाजनं कूर्मास्थि कच्छपो मयूरो वामनश्व || भ्रम गतौ । अमउः प्रकर्षगतिः || रमिं क्रीडायाम् । रमठो देशः कृमिजातिः क्रीडनशीलो म्लेच्छो देवश्व विलातानाम् || रप व्यक्त वचने । रपठो विद्वान्मण्डूकश्च ।।१६७ || पञ्चमाडुः || १६८ ॥ 1 पञ्चमान्ताद्धातोर्डः प्रत्ययो भवति || पन भक्तौ । षण्डो वनं वृषभश्च । बाहुलकारसत्वाभावः ॥ भण शब्दे । भण्डः प्रहसनकरो बन्दी च ॥ चण शब्दे | चण्डः क्रूरः || पणि व्यवहारस्तुत्योः । पण्डः शण्ठः || गणण् संख्याने | गण्ड: पौरुषयुक्तः पुरुषः || मण शब्दे । मण्डो रश्मिरप्रमन्त्रविकारच || वन भक्तौ । वण्डोल्पशेफो निश्वर्मामशिश्रश्व || शमू दमूच् उपशमे । शण्ड उत्सृष्टः पशुर्कविश्व || दण्डो वनस्पतिप्रतानो राजशासनं नालं प्रहरणं च ॥ रमिं क्रीडायाम् । रण्डः पुरुषः । रण्डा स्त्री । रण्डमन्तःकरणम् | त्रयमपि स्वसंबन्धिशून्यमेवमुच्यते || तमेस्तनेर्वा । तण्ड ऋषिः । वितण्डा तृतीयकथा || गमेः । गण्डः कपोलः || भामि क्रोधे | भाण्डमुपस्करः ॥ १६८ ॥ horणिखनिभ्यो णिद्वा ॥ १६९ ॥ एभ्यो ङः प्रत्ययो भवति स च णिवा [ भवति ] || कण अण शब्दे | काण्डः शरः फलसंघातः पर्व च । कण्डं भूषणं पर्व च ॥ भाण्डो मुष्कः । अण्डः स एव योनिविशेषश्च || खनूग् भवदारणे । खाण्डः कालाभयो गुडः । खण्ड इसुविकारोन्यः । खण्डं शकलम् ॥ १६९ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृतिः । कुगुहुनीकुणितुणिपुणिमुणिशुन्यादिभ्यः कित् ।। १७० ॥ - एभ्यः किडः प्रत्ययो भवति ॥ कुंड् शब्दे | कुडो घटो हलं च ॥ गुंड् शन्दे । गुडो गोल इक्षुविकारश्च । गुडा संनाहः ॥ हुंक् दानादनयोः । हुडो मूर्यो मेषश्च ।। णींग् प्रापणे । नीडं कुलायः ॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः । कुण्डं भाजनं जलाधारविशेषश्च | कुण्डो भर्तरि जीवति जारेण जातोपद्विन्द्रियश्च ॥ तुगत् कौटिल्ये । तुण्डं मुखम् || पुणत् शुभे । पुण्डो भिन्नवर्णः ।। मुणत् प्रतिज्ञाने । मुण्डः परिवापितकेशः । शुनत् गतौ । शुण्डा सुरा हस्तिहस्तश्च ।। आदिग्रहणादन्येभ्योपि भवति ॥ १७० ॥ ऋसृतृव्यालिह्यविचमिवमियमिचुरिकुहेरडः ।। १७१ ॥ एभ्योडः प्रत्ययो भवति ।। ऋक् गतौ । भरडस्तरुः ॥ से गतौ । स. रडो भुजपरिसर्पस्तरुश्च ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तरडो वृक्षजातिः ॥ व्यग् संवरणे | व्याडो दुःशीलो हिंसः पशुर्भुजगश्च ॥ लिहींक आस्वादने । लेहडः श्वा चौर्यगासी च || अव रक्षणादौ | अवडः क्षेत्रविशेषः॥ चमू अदने । चमडः पशुजातिः ।। टुवमू उद्भिरणे | वमडो लूताजातिः ।। यमू उपरमे । यमडो वनस्पतियुगलं च || चुरण स्तेये । चोरडधोरः ।। कुहणि विस्मापने | कुहड उन्मत्तकः ।। १७१ ॥ विहडकहोडकुरडकरडक्रोडादयः॥ १७२॥ . एतेडप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ विपूर्वात् हन्तेरनो लुक् च । विहडः शकुनिर्मूढचित्तश्च ।। कर्हः प्रत्ययोकारस्य च ओकारः ॥ कहोड ऋषिः । कुरेर्गुणाभावश्च | कुरडो मार्जारः ॥ किरते: केर् च । केरडखैराज्ये राजा ॥ कृगः किस्मत्ययोकारस्य च ओकारः ॥ क्रोडः किरिरङ्गश्च ।। आदिग्रहणात् लहोडादयो भवन्ति ॥ १७२ ॥ जृकृतशसृभृवृभ्योण्डः ॥ १७३॥ एभ्योण्डः प्रत्ययो भवति ।। जृष्च् जरसि । जरण्डोतीतवयस्कः ॥ कृत् विक्षेपे । करण्डः समुद्गः कृमिजातिश्च ।। तृ प्लवनतरणयोः । तरण्डः प्लवो वायुश्च । शृश् हिंसायाम् । शरण्डो हिंस्र आयुधं च ॥ सं गतौ । सरण्डः कृमिजातिरिषीका वायुर्भूतसंघातस्तृणसमवायच ॥ टुडुग्क् पोषणे च । भरण्डो भण्डमातिः पक्षी च || वृन्ट् वरणे | वरण्डः कुडचं तृणकाष्टादिभारच ॥१७३॥ Aho! Shrutagyanam Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [१७४-८२ - पूगो गादिः ॥१७४॥ पूग्श् पवने । इत्यस्माद्कारादिरण्डः प्रत्ययो भवति ।। पोगण्डो विकलाङ्गो युवा च ॥१७४॥ वनेस्त् च ॥१७॥ वन भक्तौ । इत्यस्मादण्डः प्रत्ययो भवति तकारवान्तादेशो भवति ॥ वतण्ड ऋषिः ॥१७॥ पिचण्डैरण्डखरण्डादयः ॥१७६॥ एतेण्डप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ पिचेरगुणत्वं च | पिचण्डो लघुलगुडः ॥ ईरेर्गुणश्च । एरण्डः पञ्चाङ्गुलः ॥ खादृ भक्षणे । अन्त्यस्वरादेररादेशश्च । खरण्डः सर्वकम् ।। मादिग्रहणात् कूष्माण्डशयण्डशयाण्डादयोपि भवन्ति ।।१७६।। लगेरुडः ॥ १७७ ॥ लगे सङ्गे । इत्यस्मादुडः प्रत्ययो भवति ॥ लगुडो यष्टिः ।। गृजढवभभ्यस्तु उडो विहित एव ॥ १७७ ।। कुसेरुण्डक् ॥ १७८ ॥ कुसच् श्लेषे । इत्यस्मा दुण्डक् प्रत्ययो भवति ॥ कुसुण्डो वपुष्मान् ।।१७८।। शमिषणिभ्यां ढः ॥ १७९ ॥ आभ्यां ढः प्रत्ययो भवति || शमूच् उपशमे । शण्डः नपुंसकम् ॥ षन भक्तौ । षण्डः स एव । बाहुलकात्सस्वाभावः ॥ १७९ ॥ कुणेः कित् ॥ १८० ॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः । इत्यस्मात्किड्डः प्रत्ययो भवति ॥ कुण्ढो धूर्तः बाहलकान दीर्घः ॥ १८ ॥ नञः सहेः षा च ॥ १८१ ॥ नपूर्वात् पहि मर्षणे । इत्यस्माड्ढः प्रत्ययो भवति षा चास्यादेशो भवति ।। अषाढा नक्षत्रम् ॥ १८१ ।। इणुर्विशावणिप्रकृवतृदृसृपिपणिभ्यो णः ॥ १८२ ॥ एभ्यो णः प्रत्ययो भवति || इण्क् गतौ । एणः कुरङ्गः ॥ उर्वै हिंसायाम् । ऊर्णा मेषादिलोम भ्रुवोरन्तरावर्तश्च ॥ शोंच तक्षणे । शाणः परिमाणं Aho 1 Shrutagyanam Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ १८३-१८७] उणादिगणविवृतिः। शस्त्रनेजनं च ॥ वेणग् गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु । वेण्णा कृष्णवेण्णा घ नाम नदी ॥ पृश् पालनपूरणयोः । पर्ण पत्रं शिरथ || कृत् विक्षेपे । कर्णः अवणं कौन्तेयश्च ॥ वग्श् वरणे | वर्णः शुक्लादिाह्मणादिरकारादिर्यशःस्तुतिः प्रकारश्च ।। तृ प्लवनतरणयोः । त! वत्सः ।। जृष्च् जरसि । जर्णचन्द्रमा वृक्षः कर्कः क्षयधर्मा शकुनिश्च ।। इंड्त् आदरे । दर्णः पर्णम् || सप्तुं गतौ । सर्णः सरीसृपजातिः ।। पणि व्यवहारस्तुत्योः । पण्णं व्यवहारः ॥ १८२ ॥ घृवीहाशुष्युषितृषिकृतिभ्यः कित् ।। १८३ ।। एभ्यः किण्णः प्रत्ययो भवति || 5 सेचने । घृणा कृपा || वींक प्रजननादिषु । वीणा वल्ल की || ढेंग स्पधीशब्दयोः । हूणो म्लेच्छ जातिः ।। शुषंच् शोषणे । शुष्णो निदाघः ।। उषू दाहे । उष्णः स्पर्शविशेषः ॥ जितषच् पिपासायाम् । तृष्णा पिपासा | कृषीत् विलेखने | कृष्णो वर्णो विष्णुर्मूगश्च ॥ कंक गतौ । ऋणं वृद्धिधनं जलदुर्गभूमिथ ॥ १८३ ॥ द्रोर्वा ।। १८४ ॥ ढुं गतौ । इत्यस्माण्णः प्रत्ययो भिवति स च किहा भवति ।। द्रुणा ज्या। द्रोणश्चतुराढकं पाण्डवाचार्यश्च । द्रोणी | गौरादित्वाडीः । नौः ।। १८४ ॥ स्थाचतोरूच ।। १८५ ॥ एभ्यो णः प्रत्ययो भवत्यूकारश्चान्तादेशो भवति ।। ष्ठां गतिनिवृत्तौ । स्थूणा तन्तुधारिणी गृहधारिणी शरीरधारिणी लोहप्रतिमा व्याधिविशेषश्च ।। टुक्षुक् शब्दे । क्षणमपराधः ॥ तुंक् वृत्त्यादिषु । तूण इषुधिः ॥ १८५ ।। भ्रूणतृणगुणकार्णतीक्ष्णश्लक्ष्णाभीक्ष्णादयः ।। १८६ ॥ एते णप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। भृगो भ्रू च | भ्रूणो निहीनोभकः वैणगर्भश्च । तरतेईस्वश्च | तृणं शष्पादिः || गायतेर्गमेगुणातेवा गुभावश्च । गुण उपकार आश्रितोप्रधानं ज्या च ।। कृगो वृद्धिः कोन्तथ | कावर्णः शिल्पी ।। तिजेदीर्घः सच परादिः। तीक्ष्णं निशितम् || श्लिषेः सोन्तोश्चेतः| श्लक्ष्णमकर्कशं सूक्ष्म च।। अभिपूर्वात् इषेः किच्च सोन्तः। अभीक्ष्णमजस्रम् ।। आदिग्रहणादन्येपि ।। १८६ ।। तृकृपृभृवृश्रुरुरुहिलक्षिविचक्षिचुक्किबुक्कितङ्ग्यङ्गिमङ्किकाङ्क चरिसमीरेरणः ॥ १८७ ॥ एभ्योणः प्रत्ययो भवति ॥ तृ प्लवननरणयोः । तरणम् ॥ कृत् विक्षेपे । Aho! Shrutagyanam Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे (१८८-१९१ करणम् ॥ शृश् हिंसायाम् । शरणं गृहम् ॥ पृश् पालनपुरणयोः । परणम् || टुडुभंग्क् पोषणे च । भरणम् ॥ वृगट वरणे | वरणो वृक्षः सेतुबन्धश्च । वरणं कन्याप्रतिपादनम् ॥ श्रृंट श्रवणे । श्रवणः कर्णो भिक्षुश्च ।। रुक् शब्दे । रुंड् रेषणे च वा । रवणः करभोमिर्दुमो वायु ङ्गः शकुनिः सूर्यो घण्टा च ॥ रुहं जन्मनि । रोहणो गिरिः।। लक्षीण् दर्शनानयोः| लक्षणं व्याकरणं शुभाशुभसूचकं मषीतिलकाद्यनं च ॥ चक्षिक व्यक्तायां वाचि । विचक्षणो विद्वान् । चुक्कण् व्यथने । चुक्कणो व्यायामशीलः || बुक्क भाषणे । बुक्कणः श्वा वावदकश्च ।। तगु गतौ । तङ्गणा जनपदः ॥ अगु गतौ । अङ्गणमजिरम् ।। मकुड् मण्डने । मण ऋषिः ॥ ककुड् गती । कणं प्रतिसरः ॥ चर भक्षणे च | चरणः पादः ।। ईरिक् गतिकम्पनयोः । सम्पूर्वः । समीरणो वातः ।। १८७ ॥ कगृपृकृपिवृषिभ्यः कित् ।। १८८ ॥ एभ्यः किदणः प्रत्ययो भवति || कृत् विक्षेपे | किरणो रश्मिः ।। गृत् निगरणे । गिरणो मेघ आचार्यो ग्रामश्च ।। पृश् पालनपूरणयोः । पुरणः समग्रयिता समुद्रः पर्वतविशेषश्च ।। कृपौड् सामर्थ्ये । कृपणः कीनाशः ।। वृष सेचने ॥ वृषणो मुष्कः ।। १८८ ॥ धृषिवहेरिश्चोपान्त्यस्य ।। १८९ ॥ आभ्यां किदणः प्रत्ययो भवति इच्चोपान्त्यस्य भवति || बिधृषाट् प्रागल्ल्ये । धिषणो बृहस्पतिः । धिषणा बुद्धिः । वहीं प्रापणे । विहण ऋषिः पाठश्च ॥ १८९ ॥ चिक्कणकुक्कणकणकुङ्कणकवणील्वणोरणलवणवङ्क्षणादयः ॥ १९ ॥ एते किदणप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। चिनोतेश्चिक च | चिकणः पिच्छिलः ॥ कुकिकृगोः कोन्तश्च | कुकणः शकुनिः ॥ कृकण ऋषिः ॥ कुकेः स्वरान्नोन्तश्च । कुडूणा जनपदः ।। त्रपेर्वश्च ॥ ववणो देशः ।। वलेवस्य उत् | वोन्तश्च । उल्वणः स्फारः ।। अर्तेरुर् च । उरणो मेषः ॥ लीयतेः क्लिद्यतेः स्वद्यते लवादेशश्च । लवणं गुणो द्रव्यं च ।। वच्चेः सः परादिनलोपाभावश्च । वणमूरुमूलसंधिः ॥ आदिशब्दात् ज्योतिरिङ्गणतुरणभुरणादयो भवन्ति ।। १९० ॥ । कृपिविषिवृषिधृषिमृषियुषिदुहिग्रहेराणक् ॥ १९१ ॥ एभ्य आणक् प्रत्ययो भवति | कृपौड् सामर्थ्ये । कृपाणः खगः ॥ विषू सेचने । विषाणं शृङ्ग करिदन्तश्च ॥ वृष सेचने । वृषाणः ॥ अिधृषा प्रागल्ल्थे । Aho I Shrutagyanam Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९-१९९] उणादिगणविवृतिः। . धृषाणो देवः ॥ मृषू सहने च । मृषाणः ।। युषि सेवने सौत्रः । युषाणः ॥ द्रुहोच् जिघांसायाम् | Qहाणो मुखरः ॥ ग्रहीश् उपादाने । गृहाणः ॥ वृषाणादयः स्वप्रकृत्यर्थवाचिनः सर्वेपि कर्तरि कारके विज्ञेयाः।। १९१॥ पषो णित् ॥ १९२ ॥ पषी बाधनस्पर्शनयोः। इत्यस्मादाणक् प्रत्ययो भवति स च णित् भवति]|| पाषाणः प्रस्तरः ॥ १९२ ॥ कल्याणपर्याणादयः ॥ १९३ ॥ कल्याणादयः शब्दा आणक्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ कलेयोन्तश्च । कल्याणं श्वोवसीयसम् ।। परिपूर्वात् इणो लुक् च । पर्याणमश्वादीनां पृष्ठच्छदः ॥ आदिशब्दात् द्रेकाणबोकाणकेकाणादयोपि भवन्ति ॥ १९३ ॥ द्रुहवृहिदक्षिभ्य इणः ॥ १९४ ।। एभ्य इणः प्रत्ययो भवति । गतौ । द्रविणं द्रव्यम् ।। हंग् हरणे । हरिणो मृगः ।। वृह वृद्धौ । बर्हिणो मयूरः ॥ दक्षि शैध्ये च । दक्षिणः कुशलोनुकूलश्च । दक्षिणा दिग् ब्रह्मदेयं च ॥ १९४ ॥ __ ऋदुहेः कित् ॥ १९५ ॥ आभ्यां किदिणः प्रत्ययो भवति ।। ऋश् गतौ । इरिणमषरं कुचो वनदुर्गं च || दुहीच जिघांसायाम् । द्रुहिणो ब्रह्मा क्षुद्रजन्तुश्च ॥ १९५ ॥ ऋकृवृधदारिभ्य उणः ।। १९६ ॥ एभ्य उणः प्रत्ययो भवति || क गतौ । अरुणः सूर्यसारथिरुषा वर्णश्च॥ कृत् विक्षेपे । करुणा दया | करुणः करुणाविषयः | करुणं दैन्यम् ।। वृश् भरणे | वरुणः प्रचेताः ॥ धृग् धारणे । धरुणो धर्तायुक्तो लोकश्च ।। दृश् विदारणे । णौ । दारुण उपः ॥ १९६ ।। क्षः कित् ।। १९७ ॥ ई क्षये । इत्यस्मास्किदुणः प्रत्ययो भवति ।। क्षुणो व्याधिः क्षामः क्रोध उन्मत्तश्च ।। १९७॥ भिक्षुणी ॥ १९८ ॥ भिक्षेरुणः प्रत्ययो भवति डीश्च निपात्यते || भिक्षुणी प्रतिनी ।। १९८ ॥ गादाभ्यामेष्णक् ।। १९९ ॥ आभ्यामेष्णक् प्रत्ययो भवति । में शब्दे । गेष्णो मेष उद्गाता रङ्गोपजीवी Aho! Shrutagyanam Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावपू. हेमचन्द्रव्याकरणे [२००-२०२ च । गेष्णं साम मुखं च । रात्रिगेष्णो रङ्गोपजीवी । सुगेष्णा किंनरी || डुदांग्क् दनि । देष्णो बाहुर्दानशीलश्च । चारुदेष्णः सात्यभामेयः । सुदेष्णा विराटपत्नी ॥ १९९ ॥ दम्यमितमिमावापूधूगृहसिवस्यसिवितसिमसीणभ्यस्तः ॥ २० ॥ एभ्यस्तः प्रत्ययो भवति || दमच् उपशमे । दन्तो दशनो हस्तिदंष्ट्रा च ॥ अम गतौ । अन्तोवसानं धर्मः समीपं च ।। तमूच् काङ्क्षायाम् | तन्तः खिन्नः ।। मांक माने । मातमन्तःप्रविष्टम् ॥ वाक् गतिगन्धनयोः । वातो वायुः ।। पूग्श् पवने । पोतो नौरनिर्बालश्च ॥ धूग्श् कम्पने । धोतो धूमः श [3] वातश्च || गृत् निगरणे | गर्तः श्वभ्रम् || जृष्च् जरसि | जतः प्रजननं राजा च ॥ हसे हसने । हस्तः करो नक्षत्रं च || वसूच् स्तम्भे | वस्तश्छागः ॥ असूच क्षेपणे । अस्तो गिरिः ।। तसूच उपक्षये । वितस्ता नदी || मसैच् परिणामे । मस्तो मूर्धा || इण्क् गतौ | एतो हरिणो वर्णो वायुः पथिकश्च ।। २०० ॥ शीरीभूमूघृपाधाग्चित्ययञ्जिपुसिमुसिवुसिविसिरमिधुर्विपू. विभ्यः कित् ॥ २०१ ॥ एभ्यः कित्तः प्रत्ययो भवति ।। शीडक् स्वप्ने । शीतं स्पर्शविशेषः ॥ सैश् गतिरेषणयोः । रीतं सुवर्णम् ।। भू सत्तायाम् । भूतो ग्रहः । भूतं पृथिव्यादि || दृड्च् परितापे । दूतो वचोहरः ।। मूड् बन्धने । मूतो दध्यर्थं क्षीरे तक्रसेको वस्त्रावेष्टनबन्धनमाचमन्यालानपाशो बन्धनमात्र धान्यादिपुटश्च ।। चूं सेचने । घृतं सर्पिः ॥ पा पाने । पीतं वर्णविशेषः ।। डुधांग्क् धारणे च । धाग इति हिः। हितमुपकारि || चितै संज्ञाने | चित्तं मनः ॥ ऋक् गतौ । ऋतं सत्यम् ॥ अ. नौप व्यक्तिम्रक्षणगतिषु । अक्तो म्रक्षितो व्यक्तीकृतः परिमितः प्रेतश्च ॥ पुसच् विभागे । पुस्तो लेख्यपत्रसंचयो लेप्यादिकर्म च ॥ मुसच् खण्डने । मुस्ता गन्धद्रव्यम् ।। त्रुसच् उत्सर्गे । बुस्तः प्रहसनम् ॥ विसच् प्रेरणे । विस्तं सुवर्णमानम् ॥ रमिं क्रीडायाम् । सुरतं मैथुनम् ।। धुर्वै हिंसायाम् । धूर्तः शउः। पूर्व पूरणे | पूर्तः पुण्यम् || २०१॥ __ लूम्रो वा ॥ २०२॥ आभ्यां तः प्रत्ययो भवति स च किछा भवति || लूग्श् छेदने । लता क्षुद्रजन्तुः । लोतो बाष्पं लवनं वस्तः कीटजातिश्च ॥ मृत् प्राणत्यागे । मृतो गतप्राणः । मत ऋषिः प्राणी पुरुषश्च ।। २०२॥ Aho I Shrutagyanam Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३-२०७४ उणादिगणविवृतिः । मुसितनितुसेर्दीर्घश्च वा ॥ २०३ ।। एभ्यः कित्तः प्रत्ययो भवति] दीर्घश्च वा भवति | बुंग्ट् अभिषवे । सूतः सारथिः । सुतः पुत्रः।। किंग्ट् बन्धने | सीता जनकात्मजा सस्य हलमार्गच । सितो वर्णः।। तनूयी विस्तारे | तातः पिता पुढेष्टनाम च । ततं विस्तीर्ण वाद्यविशेषश्च । तुस शब्दे । तूस्तानि वस्त्रदशाः । तुस्ता जटा प्रदीपनं च ॥ २०३ ॥ पुतपित्तनिमित्तोतशुक्ततिक्तलिप्तसूरतमुहूर्तादयः।। २०४॥ एते कित्तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ पूडो हस्वश्च । पुतः स्फिक् ॥ पीडस्तोन्तश्च । पित्तं मायुः ॥ निपूर्वात् मिनोमित् च । निमित्तं हेतुर्दिव्यज्ञानं च ।। उभेलृक् च । उताशङ्काद्यर्थमव्ययम् || शकेः शुचेर्वा शुक्भावश्च । शुक्तं कल्कजातिः ।। ताडयतेस्तकतेस्तिजेर्वा तिक् च | तिक्तो रसविशेषः ॥ लीयतेः पोन्तो इस्वश्च । लिप्तं श्लेषोंशदेशश्च || सुपूर्वात् रमेः सोर्दीर्घश्व । सुरतो दमितो हस्त्यन्यो वा दान्तः ॥ हुईर्मुश्च धात्वादिः। मुहूर्तः कालविशेषः।। आदिग्रहणात् अयुतनियुनादयो भवन्ति ॥ २०४ ॥ कृगो यडः ॥ २०५ ॥ करोतेर्यडन्तारिकत्तः प्रत्ययो भवति || चेक्रीयितः पूर्वाचार्याणां यड्प्रत्ययसंज्ञा ॥ २०५॥ इवर्णादि पि ॥२०६ ॥ करोतेर्यडो लुपि । इवर्णादिस्तः प्रत्ययो भवति ।। चर्करितं चर्करीतं यज्लुबन्तस्याख्ये ॥ २०६॥ दृपृभृमृशीयजिखलिवलिपविपच्यमिनमितमिदृशिहर्यि कङ्किभ्योतः ॥ २०७॥ एभ्योतः प्रत्ययो भवति || इंड्त् आदरे | दरत आदरः ॥ पुंक् पालनपूरणयोः । परतः कालः ।। दुडुभंग्क् पोषणे च । भरतः प्रथमचक्रवर्ती हिमवसमुद्रमध्यक्षेत्रं च । मृत् प्राणत्यागे । मरतो मत्युरग्निः प्राणी च ॥ शीक् स्वमे | शयतो निद्रालुश्चन्द्रः स्वमोजगरश्च ।। यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु । यजतो यज्वाग्निश्च ॥ खल संचये च | खलतः शीर्णकेशशिराः ॥ वलि संवरणे । बलतः कुसूलः ।। पर्व पूरणे । पर्वतो गिरिः ॥ डुपचीए पाके | पचतोग्निरादित्यः पाल इन्द्रश्च ॥ अम गतौ अमतो मृत्यु व आतङ्कश्च ।। णमं प्रदत्वे । नमतो Aho ! Shrutagyanam Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ हेमचन्द्रव्याकरणे [२०-२१३ नटो देव ऊर्णास्तरणं हस्वश्च ।। तमूच् काङ्क्षायाम्। तमतो निर्वेद्याकाड़ी धूमश्च । दृशं प्रेक्षणे । दर्शतो द्रष्टाग्निश्च ।। हर्य क्लान्तौ । हर्यतो वायुरश्वः कान्तो रहिमयज्ञश्च ।। ककुड् गतौ । कडतः केशमार्जनम् ॥ २०७॥ . पृषिरञ्जिसिकिकालावृभ्यः कित् ।।२०८॥ एभ्यः किदतः प्रत्ययो भवति ॥ पृषू सेचने पृषतो मृगः।। रञ्जी रागे । रजतं रूप्यम् ॥ सिकिः सौत्रः। सिकता वालुका || के शब्दे | कतो गोत्रकृत् ॥ लांक् आदाने | लता वल्ली । वृग्ट् वरणे | व्रत शास्त्रतो नियमः ।। २०८ ॥ कृवृकल्यलिचिलिविलीलिलानायिभ्य आतक् ॥ २०९॥ एभ्य आतक् प्रत्ययो भवति || कृत् विक्षेपे । किरातः शबरः ।। वग्ट वरणे । व्रातः समूह उत्सेधजीविसंघश्च ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कलातो ब्रह्मा ॥ अली भूषणादौ । अलातमुल्मुकम् ।। चिलत् वसने | चिलाता म्लेच्छाः॥ विलत् वरणे । विलातः शवाच्छादनवस्त्रम् ।। इलत् गत्यादौ । इलातो नगः ॥ लांक आदाने । लातो मृत्तिकादानभाजनम् ।। नाथूड् उपतापैश्वर्याशीःषु च । नाथात आहारः प्रजापतिश्च ॥ २०९ ।। हश्यारुहिशोणिपलिभ्य इतः ।। २१० ॥ एभ्य इतः प्रत्ययो भवति ॥ हंग् हरणे । हरितो वर्णः ।। 3 गतौ । श्येतो वर्णो मृगो मत्स्यः श्येनश्च ।। रुहं जन्मनि । रोहितो वर्णो मत्स्यो मृगजातिश्च । लत्वे । लोहितो वर्णः । लोहितमसृक् ॥ शोण वर्णगत्योः। शोणितं रुधिरम् ॥ पल गती | पलितः श्वेतकेशः ॥ २१०॥ ना आपः ।। २११ ॥ नञ् पूर्वात् आपूट व्याप्तौ । इत्यस्मादितः प्रत्ययो भवति ॥ नापितः का. रुविशेषः।। २११ ॥ __ क्रुशिपिशिपृषिकुषिकुस्युचिभ्यः कित् ।।२१२।। एभ्यः किदितः प्रत्ययो भवति ॥ क्रुशं आह्वानरोदनयोः । कुशितं पापम् || पिशत् अवयवे । पिशितं मांसम् ॥ पृषू सेचने । पृषितं वारिबिन्दुः॥ कुषश् निष्कर्षे । कुषितं पापम् ।। कुसच् श्लेषे । कुसित ऋषिः । कुसितमृणं लिष्टं च ॥ उचच् समवाये । उचिवं स्वभावो योग्यं चिरानुयातं श्रेष्ठं च ॥ २१२॥ . हग ईतण् ।। २१३॥ रंग हरणे । इत्यस्मादीतण् प्रत्ययो भवति || हारीतः पत्यृषिश्च ॥२१॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४-२२१] . उणादिगणविवृतिः। अदो भुवो डुतः ॥ २१४ ॥ अद्पुर्वात् भुवो डुतः प्रत्ययो भवति || अद् विस्मितं भवति तेन तस्मिन्वा मनः । अद्भुतमाश्चर्यम् ॥ २१४ ।। कुलिमयिभ्यामूतक् ।।२१५ ।। आभ्यामूतक् प्रत्ययो भवति ॥ कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलूना जनपदः ॥ मयि गतौ | मयूता वसतिः ।। २१५ ॥ जीवेर्म च ॥२१६॥ जीव प्राणधारणे | इत्यस्मादतक् प्रत्ययो भवति मश्वान्तादेशो भवति ॥ जीमूतो मेघो गिरिश्च ।। २१६ ॥ करोतः प् च ॥ २१७ ॥ कबृड् वर्णे । इत्यस्मादोतः प्रत्ययो [ भवति ] पश्चान्तादेशो भवति ॥ कपोत: पक्षी वर्णश्च ।। २१७॥ आस्फाडित् ।। २१८ ॥ आड्पूर्वात् स्कायैड् वृद्धौ । इत्यस्माडिदोतः प्रत्ययो भवति ॥ आस्फोता नामौषधिः ॥ २१८ ॥ जविशिभ्यामन्तः ॥२१९॥ आभ्यामन्तः प्रत्ययो भवति ॥ जृष्च् जरसि | जरन्तो भूतग्रामो वृद्धो माहेषश्च ॥ विशंत् प्रवेशने ।वेशन्तः पल्वलं वल्लभोप्राप्तापर्वर्ग आकाशं च ॥२१९।। रुहिनन्दिजीविप्राणिभ्यष्टिदाशिषि ॥ २२० ॥ एभ्य आशिषि टिदन्तः प्रत्ययो भवति ॥ रुहं जन्मनि । रोहतात् । रोहन्तो वृक्षः । रोहन्त्योषधिः ।। टुनदु समृद्धौ । नन्दतात् । नन्दन्तः सखानन्दश्व । नन्दन्ती सखी ॥ जीव प्राणधारणे । जीवतात् । जीवन्त आयुष्मान् । जीवन्ती शाकः ॥ अनक् प्राणने | प्राण्यात् । प्रागन्तो वायू रसायनं च । प्राणन्ती स्त्री ।। २२० ॥ तृजिभूवदिवहिवसिभास्यदिसाधिमदिगडिगण्डिमण्डिनन्दि- .. रेविभ्यः ॥२२१ ॥ एभ्यष्टिदन्तः प्रत्ययो भवति । आशिषीत्येके ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तरन्त आदित्यो भेकथ । तरन्ती स्त्री ॥ जिं अभिभवे | जयन्तोरथरेणुर्वज इन्द्रपुत्रो Aho! Shrutagyanam Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० हेमचन्द्रव्याकरणे [२२२-२२६ जम्बूद्वीपपश्चिमहारं पश्चिमानुत्तरविमानं च । जयन्त्युदयनपितृष्वसा ॥ भू सत्तायाम् । भवन्तः कालः । भवन्ती ।। वद व्यक्तायां वाचि । वदन्तः । वदन्ती ।। वहीं प्रापणे | वहन्तो रथोनड्डात्रथरेणुर्वायुश्च | वहन्ती ।। वसं निवासे । वसन्त ऋतुः ।। भासि दीप्तौ । भासन्तः सूर्यः । भासन्ती | ण्यन्तोपि । भासयन्तः सूर्यः ।। अदंक् भक्षणे । अदन्तः । भदन्ती || साधंट् संसिद्धौ | साधन्तो भिक्षुः । ण्यन्तोपि । साधयन्तो भिक्षुः । साधयन्ती || मदैच् हर्षे । णौ | मदयन्तः । मदयन्ती पुष्पगुल्मजातिः ।। गड सेचने । गडन्तो जलदः । ण्यन्तोपि । गडयन्तः । गडयन्ती ।। गडु वदनैकदेशे । ण्यन्तः । गण्डयन्तो मेषः । मडु भूषायाम् । ण्यन्तः । मण्डयन्तः प्रसाधकोलंकार आदर्शश्च ॥ टुनदु समृद्धौ | ण्यन्तः । नन्दयन्तः सुखकृद्राजा हिरण्यं सुखं च | नन्दयन्ती ॥ रेवृड् पवि गतौ । रेवन्तः सूर्यपुत्रः ।। अनुक्तार्था धात्वर्थकाः ॥ २२१ ॥ ___ सीमन्तहेमन्तभदन्तदुष्वन्तादयः ॥ २२२ ॥ एतेन्तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। सिनोतेः सीम् च । सीमन्तः केशमार्गो ग्रामक्षेत्रान्तश्च ।। हन्तेहिनोतेर्वा हेम् च । हेमन्त ऋतुः ॥ भन्दते लुक् च । भदन्तो निर्यन्थेषु शाक्येषु च पूज्यः ॥ दुषेोन्तश्च । दुष्वन्तो राजा । आदिग्रहणादन्ये. पि ॥ २२२ ।। शकेरुन्तः ।। २२३ ।। शक्ट शक्तौ । इत्यस्मादुन्तः प्रत्ययो भवति || शकुन्तः पक्षी ।।२२३ ।। कर्डित् ॥ २२४ ॥ कष हिंसायाम् । इत्यस्मादुिन्तः प्रत्ययो भवति ||कुन्त आयुधम् ॥२२४॥ कमिघुगार्तिभ्यस्थः ।। २२५॥ एभ्यस्थः प्रत्ययो भवति ॥ कमूड् कान्तौ । कन्था प्रावरणं नगरं च ॥ अंड गतौ | प्रोथः प्रियो युवा सूकरमुखो घोणा च ॥में शब्दे । गाथा श्लोक आर्या वा ।। क् गतौ । अर्थो जीवाजीवादिपदार्थः प्रयोजनमभिधेयं धनं याजा निर्धत्तिश्च ।। २२५ ॥ __ अवाद्गोच्च वा ।। २२६ ॥ अवपूर्वात् गायतेस्थः प्रत्ययो भवत्यच्चान्तादेशो वा भवति ॥ अवगथः । भवगाथोक्षसंघातः प्रातःसवनं रथयानं साम पन्थाच ॥ २२६ ।। Aho 1 Shrutagyanam Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७-२३१] उणादिगणविवृतिः। ४१ नीनूरमितृतुदिवचिरिचिसिचिश्विहनिपागोपावोगाभ्यः __ कित् ।। २२७॥ एभ्यः कित्थः प्रत्ययो भवति ॥ णींग प्रापणे । नीथं जलम् | सुनीथो नाम राजा नीतिमान्धर्मशीलो ब्राह्मणश्च ।। णूत् स्तवने | नूथं तीर्थम् । रमि क्रीडायाम् | रथः स्यन्दनः ।। तृ प्लवनतरणयोः । तीर्थ जलाशयावगाहनमार्गः पुण्यक्षेत्रमाचार्यश्च ॥ तुदीत् व्यथने । तुत्थं चक्षुष्यो धातुविशेषः । वचंक भाषणे | उक्थं शास्त्रं सामवेदश्च । उक्थानि सामानि || रिचंपी विरेचने | रिक्थं धनम् ॥ षिचीत् क्षरणे । सिक्यं मदन पुलाकश्च ॥ ट्रोश्वि गतिवृद्धयोः । शूथो यज्ञप्रदेशः ॥ हनक हिंसागत्योः । हथः पन्थाः कालश्च ॥ पां पाने | पीथं बालघृतपानमम्भो नवनीतं च । पीथो मकरो रविश्च ।। गोपूर्वात् । गोपीथस्तीर्थविशेषो गोनिपानं जलद्रोणी कालविशेषश्च ।। मैं शब्दे । अवगीथं यज्ञकर्मणि प्रातःशंसनम् । उद्गीथः शुनामूर्ध्वमुखानां विरावः सामगानं प्रथमोचारणं च ॥ २२७ ॥ . न्युट्यां शीडः ।। २२८ ।। नि-उद्पूर्वात् शीक् स्वप्ने । इत्यस्मारिकत्थः प्रत्ययो भवति || निशीथोर्धरात्रो रात्रिः प्रदोषश्च ।। उच्छीथः स्वमः टिट्टिभश्च ।। २२८ ॥ अवभृनि:समिण्भ्यः ॥ २२९ ॥ अवपूर्वात् बिभर्तेः । निस्पूर्वात् अर्तेः । सम्पूर्वात् एतेश्व कित्थः प्रत्ययो भवति।। अवभृथो यज्ञावसानं यज्ञस्नानं च ।। निर्ऋथो निकायः । निर्कथं स्थानम् । समिथः संगमो गोधूमपिटं च । समिथं समूहः ॥ २२९ ।। सणित् ।। २३० ॥ सं गतौ । इत्यस्माणित्थः प्रत्ययो भवति ।। सार्थः समूहः ॥२३० ॥ पथयूथगूथकुथतिथनिथसूरथादयः ।। २३१॥ एते थप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पलतेर्लो लुक् च ! पथः पन्थाः ॥ यौतेगुवतेश्च दीर्घश्व | यूथः समूह: गूथममेध्यं विष्ठा च । किरतेः करोतेर्वा कुश्र । कुथः कुथा वास्तरणम् ।। तनोतस्तिष्ठतेर्वा तिश्च । तिथः कालः । तिम्यतेः । तिथः प्रावटकालः ।। नयतेईस्वश्च । निथः पूर्वक्षत्रियः कालश्च ।। सुपूर्वात् रमेः सोर्दीर्घश्व किञ्च | सूरथो दान्तः ।। आदिग्रहणात् निपूर्वात् रौतेर्दीर्घत्वं च । निरूथो दिक् । निरूथं पुण्यक्रमनियतम् ।। एवं संगीथप्रगाथादयोपि भवन्ति ॥ २३१ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२३२-२३७ भृशीशपिशमिगमिरमिवन्दिवञ्चिजीविप्राणिभ्योथः ॥ २३२ ।। __ एभ्योथः प्रत्ययो भवति ।। टुडुभंग्क पोषणे च । भरथः कैकेयीसुतोग्निलोकपालश्च ।। शीक् स्वप्ने | शयथोजगरः प्रदोषो मत्स्यो वराहश्च ।। शपी आक्रोशे । शपथः प्रत्ययकरणमाक्रोशश्व || शमूच उपशमे | शमथः समाधिराश्रमपदं च ।। गमुं गतौ । गगथः पन्थाः पथिकश्च ॥ रमि क्रीडायाम् । रमथः प्रहर्षः ॥ वदुड् स्तुत्याभिवादनयोः । वन्दथः स्तोता स्तुत्यश्च ।। वञ्चू गतौ । वञ्चथोध्या कोकिलः काकदम्भश्च || जीव प्राणधारणे । जीवथार्थवाचलमन्नं वायुमयूरः कूर्मो धार्मिकश्च ।। अनक् प्राणने | प्राणथो बलवानीश्वरः प्रजापतिश्च ॥२३२।। उपसर्गादसः ॥ २३३ ।। उपसर्गात्परस्मात् वसं निवासे । इत्यस्मादथः प्रत्ययो भवति || आवसथो गृहम् ॥ उपवसथ उपवासः ॥ संवसथः संवासः ॥ सुवसथः सुवासः || निवसथो निवासः ।। २३३ ।। विदिभिदिरुदिहिभ्यः कित् ।। २३४ ।। एभ्यः किदथः प्रत्ययो भवति ।। विदक् ज्ञाने । विदथो ज्ञानी यज्ञोध्वर्युः संग्रामश्च ।। भिदंपी विदारणे । भिदथः शरः ॥ रुदन अश्रुविमोचने । रुदयो बालोसत्त्वः श्वा च ।। द्रुहौच जिघांसायाम् । द्रुहथः शत्रुः ।। २३४ ॥ रोर्वा ।। २३५ ॥ रुक् शब्दे । इत्यस्मादथः प्रत्ययो [भवति ] स च किवा भवति ॥ रुवथः शकुनिः शिशुश्च || रवथ आक्रन्दः शब्दकारश्च ।। २३५ ॥ वृभ्यामूथः ।। २३६ ॥ आभ्यामूथः प्रत्ययो भवति ।। जष्च् जरसि । जरूथः शरीरमग्रमांसममिः संवत्सरो मार्गः कल्मषं च ॥ वृग्श् वरणे | वरूथो वर्म सेनाङ्गं बलसंघातश्च ।। २३६ ॥ शाशपिमनिकनिभ्यो दः ।। २३७ ॥ एभ्यो दः प्रत्ययो भवति || शोच् तक्षणे | शादः कर्दमस्तरुणतणं मृदुबन्धः सुवर्ण च ।। शपी आक्रोशे । शब्दः श्रोत्रप्रायोर्थः ॥ मनिंच ज्ञाने । मन्दोलसो बुद्धिहीनश्च ।। कनै दीप्यादिषु । कन्दो मूलम् ॥ २३७ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८-२४६] उणादिगणविवृतिः। आपोप् च ॥ २३८॥ आफूट व्याप्तः । इत्यस्माइः प्रत्ययो भवत्यस्य च अप् इत्यादेशो भवति ।। अब्दं वर्षम् ॥ २३८ ॥ गोः कित् ॥ २३९॥ गंत् पुरीपोत्सर्गे । इत्यस्मारिकहः प्रत्ययो भवति ।। गुदमपानम् ।।२३९।। वृतुकुसुभ्यो नोन्तश्च ।। २४० ॥ एभ्यः किदः प्रत्ययो भवति नकारश्चान्तो भवति ॥ वृग्ट वरणे । वृन्द समूहः ।। तुंक् वृत्त्यादिषु । तुन्दं जठरम् ॥ कुंड् शब्दे । कुन्दः पुष्पजातिः।। पुंगट अभिषवे | सुन्दो दानवः ।। २४० ।। कुसेरिदेदौ ।।२४१ ।। कुसच् श्लेषे । इत्यस्मादिद ईद इत्येतो किती प्रत्ययो भवतः ॥ कुसिदमृणम् ।। कुसीदं वृद्धिजीविका ॥ २४१॥ इङ्ग्यर्षिभ्यामुदः ॥ २४२ ॥ आभ्यामुदः प्रत्ययो भवति ।। इगु गतौ । इङ्गुदो वृक्ष जातिः ॥ अर्ब गतो । अर्बुदः पर्वतोक्षिव्याधिः संख्याविशेषश्च । निर्वात् । न्यर्बुदं संख्याविशेषः ॥ २४२ ॥ कर्णिद्वा ।। २४३ ।। ककि लौल्ये । इत्यस्मादुनः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिद्रा भवति ॥ काकुदं तालु || ककुदं स्कन्धः ॥ २४३ ।। कुमुदबुद्बुदादयः॥ २४४ ॥ एत उदप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। कमेः कुम् च | कुमुदं कैरवम् || बुन्देः किछोन्तश्च । बुद्धदो जलस्फोटः । बुद्बुदं नेत्रजो व्याधिः ।। आदिग्रहणात् दुहीक क्षर. गे । प्रत्ययादेरत्वे । दोहदोभिलापविशेषः ।। एवमन्येपि ।। २४४ ।। ककिमकिभ्यामन्दः ॥ २४५ ॥ आभ्यामन्दः प्रत्ययो भवति ॥ ककि लौल्ये ।। मकिः सौत्रः। ककन्दो मकन्दश्च राजानौ । यकाभ्यां निर्वृत्ता काकन्दी माकन्दी च नगरी ॥ २४५ ॥ __ कल्यलिपुलिकुरिकुणिमणिभ्य इन्दक् ।। २४६ ।। एभ्य इन्दक् प्रत्ययो भवति ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलिन्दः पर्वतो Aho ! Shrutagyanam Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२४७-२५४ यतो यमुना प्रभवति ।। अली भूषणादौ । अलिन्दः प्रघाणो भाजनस्थानं च ॥ पुल महत्त्वे । पुलिन्दः शबरः ।। कुरत् शब्दे । कुरिन्दः सस्यमलहरणोपकरणं तेजनोपकरणं च ।। कुणत् शब्दोपकरणयोः । कुणिन्दो मेच्छः शब्द' उपकरणं च || मण शब्दे । मणिन्दोश्वबल्लवः ।। २४६ ॥ कुपेर्व च वा ।। २४७ ॥ कुपच् क्रोधे । इत्यस्मादिन्दक् प्रत्ययो भवति वथान्तादेशो वा भवति ॥ कुपिन्दः । कुविन्दस्तन्तुवायः॥ २४७ ॥ पृपलिभ्यां णित् ।।२४८॥ आभ्यां णिदिन्दक् प्रत्ययो भवति || पृश् पालनपुरणयोः ॥ पल गतौ । पारिन्दः । पालिन्दः । द्वावपि वृक्षगाथको ॥ पारिन्दो मुख्यः पूज्यश्च ॥ पालिन्दो नृपतिः । रक्षकथेत्येके || २४८ ।। यमेरुन्दः ।। २४९॥ यम उपरमे । इत्यस्मादुन्दः प्रत्ययो भवति ।। यमुन्दः क्षत्रियविशेषः ॥ २४९ ॥ मुचेडुकुन्दकुकुन्दौ ।। २५० ॥ मुचुती मोक्षणे । इत्यस्माड्डिदुकुन्दः किदुकुन्दश्च प्रत्ययो भवतः ॥ मुकुन्दो विष्णुः । मुचुकुन्दो राजा वृक्षविशेषश्च ।। २५० ।। स्कन्द्यमिभ्यां धः ।। २५१॥ आभ्यां धः प्रत्ययो भवति || स्कन्दं गतिशोषणयोः । स्कन्धो बाहुमूर्धा ककुदं विभागश्च । बाहुलकाहस्य लुक || अम गतौ । अन्धश्चक्षुर्विकलः।।२५१|| नेः स्यतरधक ॥ २५२॥ निपूर्वात् षोंच् अन्तकर्मणि । इत्यस्मादधक् प्रत्ययो भवति ॥ निषधः पर्वतः । निषधा जनपदः ॥ २५२।।। मङ्गे लुक् च ।। २५३ ॥ मगु गतौ । इत्यस्मादधक् प्रत्ययो भवति ] नकारस्य च लुग्भवति ॥ मगधा जनपदः ॥ २५३ ॥ आरगेर्वधः ।। २५४|| आड्पूर्वात् रगे शङ्कायाम् । इत्यस्मादधः प्रत्ययो भवति ।। आरग्वधो वृक्षजातिः ॥ २५४ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५-२६१] उणादिगणविवृतिः । परात् श्री डित् ।। २५५ ॥ परपूर्वात् शृश् हिंसायाम् । इत्यस्माड्डिद्वधः प्रत्ययो भवति ।। परश्वध आयुधजातिः ।। २५५ ।। इषेरुधक् ॥ २५६ ॥ इषत् इच्छायाम् । इत्यस्मादुधक् प्रत्ययो भवति ।। इषुधो यञ्जा [?]||२५६॥ कोरन्धः ॥ २५७॥ कुंड् शब्दे । इत्यस्मादन्धः प्रत्ययो भवति || कवन्धश्छिन्नमूर्धा देहः ॥ २५७ ॥ प्याधापन्यनिस्वदिस्वपिवस्यज्यतिसिविभ्यो नः ।। २५८ ॥ एभ्यो नः प्रत्ययो भवति || प्य वृद्धौ || प्यानः समुद्रश्चन्द्रश्च|| दुधागक् धारणे च । धाना भृष्टो यवोडरश्च ॥ पनि स्तुतौ । पन्नं नीचैःकरणं सन्नं जिह्वा च ॥ अनक प्राणने | अन्नं भक्तमाचारव ॥ ष्वदि आस्वादने । स्वनं रुचितम् ।। भिष्वपंक् शये । स्वमो मनोविकारो निद्रा च ।। वसं निवासे । वस्नं वासो मूल्यं मेढ़मागमश्च ।। अज क्षेपणे च | वेनः प्रजापतिर्ध्यानी राजावायुर्यज्ञः प्राज्ञो मूर्खश्च ।। अत सातत्यगमने । अन्न आत्मा वायुमेघः प्रजापतिश्च ।। षिवूच् उतौ । स्योनं सुखं तन्तुवायसूत्रसंतानः समुद्रः सूर्यो रश्मिरास्तरणं च ।। २५८|| षसेर्णित् ॥ २५९ ॥ षसक स्वमे । इत्यस्माणिनः प्रत्ययो भवति || साना गोकण्ठावलम्बि चर्म निद्रा च ॥ २५९ ॥ रसेर्वा ।। २६० ॥ रस शब्दे । इत्यस्मानः प्रत्ययो भवति ] स च णिवा भवति || रास्ना धेनुरोषधिजातिश्च ॥ रस्नं द्रव्यजातिः । रत्ना जिता । रत्नस्तुरङ्गो दण्डश्च ॥२६॥ . जीशादीबुध्यविमीभ्यः कित् ॥ २६१ ॥ ___ एभ्यः किन्नः प्रत्ययो भवति ॥ जिं अभिभवे । जिनोर्हन्बुद्धश्च ॥ इण्क् गतौ । इनः स्वामी संनिपात ईश्वरो राजा सूर्यश्च ।। शीड्क् स्वमे । शीन: पीलुः ।। दीडच् क्षये । दीनः कृपणः खिन्नथ ॥ बुधिंच ज्ञाने । बुधो मूलं पृष्ठान्तो रुद्रश्च ।। अव रक्षणादौ । ऊनमपरिपूर्णम् ॥ मींड्च् हिंसायाम् । मीनो मत्स्यो राशिश्च ।। २६१॥ Aho ! Shrutagyanam Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ हेमचन्द्रव्याकरणे [२६२-२६९ सेर्वा ॥ २६२॥ पिंग्ट् बन्धने । इत्यस्मानः प्रत्ययो [ भवनि ] स च किवा भवति ।। सिनः कायो वस्त्रं बन्धश्र || सेना चमः ॥ २६२ ।। सोरू च ।। २६३ ।। वुग्ट् अभिषवे | इत्यस्मान्नः प्रत्ययो भव] त्यूकारश्चान्तादेशो भवति ।। सूना घातस्थानं दुहिता पुत्रः प्रकृतिराघाटस्थानं च ।। २६३ ।। रमेस्त् च ॥ २६४ ॥ रमि क्रीडायाम् । इत्यस्मानः प्रत्ययो भवति ] तथान्तादेशो भवति ।। रलं वज्रादिः॥ २६४ ।। क्रुशेर्वृद्धिश्च ।। २६५ ॥ क्रुशं आहानरोदनयोः । इत्यस्मान्नः प्रत्ययो [भव] त्यस्य च वृद्धिर्भवति ।। क्रौनः श्वापदः ॥ २६५ ॥ __ द्युमुनिभ्यो माडो डित् ।। २६६ ॥ युसुनिपूर्वात् मांड्क् मानशब्दयोः । इत्यस्माडिन्नः प्रत्ययो भवति ||] द्युम्नं द्रषिणम् ।। सुमं सुखम् || निम्नं नतम् ।। २६६ ।। शीडः सन्वत् ॥ २६७ ।। शीड्क् स्वमे । इत्यस्माड्डिनः प्रत्ययो [ भवति ] स च सन्वद्भवति ॥ शिनं शेपः ॥ २६७॥ दिननग्नफेनचिह्नबध्नधेनस्तेनच्योकादयः ॥ २६८ ।। एते नप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। दीव्यतेः किल्लुक् च | दिनमहः ।। नञ्पूर्वात् वसेर्गोन्तो धातोर्लुक् च । न वस्ते । नग्नोवसनः ।। फणेः फलेः स्फायर्वा फेभावश्च । फेनो बुद्धदसंघातः ॥ चहरिचोपान्त्यस्य | चिह्नमभिज्ञानम् ॥ बन्धेबधू च । वनो रविः प्रजापतिर्ब्रह्मा स्वर्गः पृष्टान्तश्च ।। धयतेरेत्वं च । धेना सरस्वती माता च । धेनः समुद्रः । ईत्वं चेत्येके | धीना ॥ स्त्यायेस्ते च । स्तेनचौरः ।। च्यवतेर्वृद्धिः कोन्तश्च । च्योक्न मक्षस्थानमनुजः क्षीणपुण्यश्च । च्यौनी कांस्यादिपात्री || आदिशब्दादन्येपि ।। २६८ ॥ बसिरसिरुचिजिमस्जिदेविस्यन्दिचन्दिमन्दिमण्डिमदिदहि वह्यादेरनः ॥ २६९ ॥ एभ्यो न: प्रत्ययो भवति ।। युक् मिश्रणे | यवना जनपदः । यवनं मिश्र Aho 1 Shrutagyanam Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७०-२७३] - उणादिगणविवृतिः । णम् || असूच क्षेपणे | असनो बीजकः ॥ रसण आस्वादनस्नेहनयोः । रसना जिह्वा ॥ रुचि अभिप्रीत्यां च । रोचना गोपित्तम् । रोचनचन्द्रः । विपूर्वात् । विरोचनोग्निः सूर्य इन्दुर्दानवश्च ।। जि अभिभवे । जयनपूर्णापटः ।। टुमस्जोत् शुद्धौ । मज्जनं स्नानं तोयं च ॥ देवृड् देवने । देवनोक्षः कितवश्च || स्यन्दौड् स्रवणे | स्यन्दनो रथः ॥ चदु दीप्त्याहादयोः । चन्दनं गन्धद्रव्यम् ॥ मदुड् स्तुत्यादौ । मन्दनं स्तोत्रम् ।। मडु भूषायाम् । मण्डनमलंकारः ।। मदैच् हर्षे । मदनो वृक्षः कामो मधूच्छिष्टं च ॥ दहं भस्मीकरणे । दहनोनिः ।। बहीं प्रापणे | वहनं नौः ।। आदिग्रहणात् पचेः । पचनोनिः ।। पुनातेः । पवनो वायुः ॥ बिभर्तेः । भरणं साधनम् || नयतेः । नयनं नेत्रम् ।। धुतेः। द्योतनः सूर्यः ।। रचेः । रचना वैचित्र्यम् ।। गृजेः । गृजनमभक्ष्यद्रव्यविशेषः । प्रस्कन्दनः ।। प्रपतनः ।। इत्यादयोपि भवन्ति ।। २६९ ॥ __ अशो रश्चादौ ।। २७०॥ अशौटि व्याप्ती । इत्यस्मादनः प्रत्ययो भवति रेफश्चादो भवति ।। रशना मेखला ।। रशिमेके प्रकृतिमुपदिशन्ति सा च राशि रशना रश्मि इत्यत्र प्रयुज्यत इत्याहुः ॥ २७० ॥ उन्देर्नलुक् च ।। २७१ ॥ उन्दैप क्लेदने । इत्यस्मादनः प्रत्ययो [ भवति ] नलोपश्च भवति ॥ ओदनो भक्तम् ।। २७१ ॥ हनेर्घतजघौ च ।। २७२ ।। हनक हिंसागत्योः । इत्यस्मादनः प्रत्ययो भवति घतजघावित्यादेशौ चास्य भवतः । घतनो रङ्गोपजीवी पापकर्मा निर्लज्जश्च ॥ जघनं श्रोणिः ॥ २७२ ।। ___ तुदादिवृजिरञ्जिनिधाभ्यः कित् ॥ २७३ ।। एभ्यः किदनः प्रत्ययो भवति || तुदीत् व्यथने । तुदनः ॥ क्षिपीत् प्रेरणे । क्षिपणः ।। सुरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः । सुरणः ॥ बुधिच् ज्ञाने । बुधनः ।। षिवूच् उतौ । सिवनः । एषां यथासंभवं कारकमुच्यते । लबुड् अवस्रंसने | लम्बनः शकुनिः।। वृजकि वर्जने । वृजनमन्तरिक्ष निवारणं मण्डनं च || रजी रागे । रजनं हरिद्रा । महारजनं कुसुम्भम् । रजनो रङ्गविशेषः ।। डुधांग्क् धारणे च | निधनमवसानम् ॥ २७३ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२७४-२७८ सूधूभूभ्रस्जि-यो वा ।। २७४ ॥ एभ्योनः प्रत्ययो भवति स च किडा [भवति]|| पूत् पेरणे । सुवनोङ्कर आदित्यः प्रादुर्भावश्च । सुवनं चन्द्रप्रभा । सवनं यज्ञः पूर्वाह्नापराह्न मध्याह्नकालश्च । त्रिषवणम् || धत् विधूनने । धुवनो धूमो वायुरग्निश्च | धुवनमेधः । धवनम् ॥ भू सत्तायाम् । भुवनं जगत् । भवनं गृहम् ।। भ्रस्जीत् पाके | भृज्जनमन्तरिक्षमम्बरीषः पाकश्च । भ्रज्जनः पावकः ।। २७४ ।। विदनगगनगहनादयः ॥ २७५ ॥ एते किंदनप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। विदु अवयवे । नलोपश्च । विदनो गोत्रकृत् ।। गमे च | गगनमाकाशम् ।। गाहौड् विलोडने । हस्वश्च । गहनं दुर्गमम् ॥ आदिग्रहणात् काञ्चनकाननादयो भवन्ति || २७५ ॥ संस्तुस्पृशिमन्थेरानः ॥ २७६ ।। सम्पूर्वात् स्तोः स्पृशेश्व सम्पूर्वाभ्यां वा स्तुस्पृशिभ्यां मन्थेश्च आनः प्रत्ययो भवति ॥ टुंग्क् स्तुती । संस्तवानः सोमो होता महर्षिर्वाग्मी च ।। स्पृशंत् संस्पर्शे] स्पर्शानो मनः । संस्पर्शानोमनोनिश्च ।। मन्थश् विलोडने ! मन्थानः खजकः।।२७६॥ युयुजियुधिबुधिमृशिदृशीशिभ्यः कित् ।। २७७ ॥ एभ्यः किदानः प्रत्ययो भवति ॥ युक् मिश्रणे । युवानस्तरुणः ॥ युजंपी योगे । युजानः सारथिः || युधिंच् संप्रहारे | युधानो रिपुः ॥ बुधिंच ज्ञाने | बुधान आचार्यः पण्डितो वा ॥ मृशंत् आमर्शने । मृशानो विमर्शकः ॥ दृशं प्रेक्षणे । दृशानो लोकपालः ।। युजादिप्रसिद्धकर्बर्थी एते ॥ ईशिक् ऐश्वर्ये । ईशान ईश्वरः ॥ २७७॥ मुमुचानयुयुधानशिश्विदानजुहुराणजिहियाणाः ।। २७८ ॥ एते किदानप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। मुद्वित्वं च । मुमुचानो मेघः ॥ एवं युधिच संप्रहारे । युयुधानः साहसिको राजा च कश्चित् || श्विताड् वर्णे । अस्य दश्च । शिश्विदानो दुराचारो द्विजः !। हुर्छा कौटिल्ये । अस्यान्तलुक् च । जुहुराणः कठिनहदयः कुटिलोग्निरध्वर्युरनडांश्च ॥ ही लज्जायाम् । जिहियाणो नीतिमान् ॥ सर्व एवैते मुच्यादिप्रसिद्धक्रियाकर्तृवचना इत्येके । अन्ये तु मुमुक्षादिसन्नन्तप्रकृतीनामेतन्निपातनं तेन सन्नन्तक्रियाकर्तृवचना इत्याहुः ॥२७८|| Aho 1 Shrutagyanam Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१-२८५] उणादिगणविवृतिः । . ऋचिरञ्जिमन्दिसह्यहिभ्योसानः ।। २७९ ॥ एभ्योसानः प्रत्ययो भवति ॥ ऋजु भर्जने । ऋञ्जसानो महेन्द्रो मेघः श्मशानं च || रञ्जी रागे | रञ्जसानो धर्मो मेघश्च ।। मदुड् स्तुत्यादिषु । मन्दसानो हंसश्चन्द्रः सूर्यो जीवः स्वमोनिश्च ।। षहि मर्षणे | सहसानो दृढो मयूरो यजमानः क्षमावांश्च ॥ अर्ह पूजायाम् | अर्हसानश्चन्द्रस्तुरंगमश्च ।। २७९ ॥ रुहियजेः कित् ॥ २८०॥ __ आभ्यां किदसान: प्रत्ययो भवति || रुहं जन्मनि । रुहसानो विटपः ॥ यर्जी देवपूजासंगतिकरणदानेषु । इजसानो धर्मः ।। २८० ।। वृधेर्वा ।। २८१ ।। वृधेरसानः प्रत्ययो [ भवति ] स च किद्वा भवति ।। वृधूड् वृद्धौ । वृधसानो गर्भः | वर्धसानो गिरिर्मृत्युर्गर्भः पुरुषश्च ।। २८१ ।। इयाकठिखलिनल्यविकुण्डिभ्य इनः ॥ २८२ ।। एभ्य इनः प्रत्ययो भवति || इयड् गतो । श्येनः पक्ष्यभिचारयज्ञश्च ॥ कठ कृच्छ जीवने । कठिनममृदु ।। खल संचये च । खलिनमश्वमुखसंयमनम् ।। णल गन्धे | नलिनं पद्मम् ।। अव रक्षणादौ | अविनं जलं मृगो नाशोनी राजाध्वर्युविधानं गुप्तिश्च ।। कुडुड् दाहे । कुण्डिन ऋषिः । कुण्डिनं नगरम् ॥ २८२ ।। वृजितुहिपुलिपुटिभ्यः कित् ॥ २८३ ॥ एभ्यः किदिनः प्रत्ययो भवति ।। वृजैकि वर्नने । वृजिनं कुटिलं पापं च ॥ तुह अर्दने । तुहिनं हिममन्धकारश्च ॥ पुल महत्त्वे ।। पुटत् संश्लेषणे । पुलिनं पुटिनं. च नदीतीरवालुकासंघातः || २८३ ।। विपिनाजिनादयः ।। २८४ ॥ विपिनादयः शब्दाः किदिनप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ डुवपी वीजसंताने | टुवेपृड् चलने । इत्यस्य वा | इचोपान्त्यस्य । विपिनं गहनमब्ज जलदुर्ग च ।। अज क्षेपणे च । अस्य वीभावाभावश्व | अजिनं चर्म || आदिग्रहणादन्येपि ।।२८४।। महेणिद्वा ।। २८५॥ मह पूजायाम् । इत्यस्मादिनः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिहा भवति ।। मा. हिनं राज्यं बलं च ॥ महिनं राज्यं शयनं च । महिनो माहात्म्यवान् ।।२८५॥ Aho! Shrutagyanam Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [२८६-२९३ खलिहिंसिभ्यामीनः ॥ २८६ ।। आभ्यामीनः प्रत्ययो भवति || खल संचये च | खलीनं कवियम् ॥ हिसुप् हिंसायाम् । हिंसीनः श्वापदः ।। २८६ ।। पठेणित् ॥ २८७॥ पठ व्यक्तायां वाचि । इत्यस्माणिदीनः प्रत्ययो भवति ।। पाठीनो मत्स्य: ॥ २८७ ॥ यम्यजिशक्यर्जिशीयाजितृभ्य उनः ॥ २८८ ।। एभ्य उनः प्रत्ययो भवति ।। यमूं उपरमे । यमुना नदी ॥ अज क्षेपणे च । घयुनं विज्ञानमङ्गं च । वयुनो विद्वाञ्चन्द्रो यज्ञश्च || शकुंट शक्तौ । शकुनः पक्षी || अर्ज अर्जने | अर्जुनः ककुभो वृक्षः पार्थः श्वेतवर्णः श्वेताश्वः कार्तवीर्यश्च । अर्जुनी गौः । अर्जुनं तृणं श्वेतमुवर्ण च || शीड्क् स्वमे । शयुनोजगरः। यजी देवपूजादौ । यजुना क्रतुद्रव्यम् || तृ प्लवनतरणयोः | तरुणः समर्थो युवा वायुश्च । ऋफिडादित्वाल्लत्वे । तलुनः ।। २८८ ॥ लषेः श् च ॥ २८९ ।। लषी कान्तौ । इत्यस्मादुनः प्रत्ययो [ भवति ] तालव्यशकारश्चान्तादेशो भवति ।। लशुनं कन्दजातिः ।। २८९ ॥ पिशिमिथिक्षुधिभ्यः कित् ।। २९० ॥ एभ्यः किदुनः प्रत्ययो भवति ।। पिशत् अवयवे | पिशुनः खलः । पिशुनं मैत्रीभेदकं वचनम् । मिथग मेधाहिंसयोः । मिथुनं स्वीपुंसवन्दं राशिश्च ।। क्षुधं बुभुक्षायाम् । क्षुधुन: कीटकः ॥ २९० ।।। फले!न्तश्च ॥ २९१ ॥ फल निष्पत्ती । इत्यस्मादुनः प्रत्ययो [ भवति ] गवान्तो भवति ॥ फल्गुनोर्जुनः । फल्गुनी नक्षत्रम् || २९१ ॥ वीपतिपटिभ्यस्तनः ॥ २९२॥ एभ्यस्तनः प्रत्ययो भवति ॥ वीं प्रजननादौ । वेतनं भूतिः ॥ पतू गतौ । पत्तनम् ॥ पट गते । पट्टनम् ॥ द्वावपि नगरविशेषौ ॥ पट्टनं शकटैर्गम्यं घोटकै भिरेव च । नौभिरेव तु यद्गम्यं पत्तनं तत्पचक्षते || २९२ ।। पृपूभ्यां कित् ।। २९३ ॥ आभ्यां कित्तनः प्रत्ययो भवति ॥ पुंड्त् व्यायामे | पृतना सेना ॥ पूगश पवने । पूतना राक्षसी ॥ २९३ ।। Aho I Shrutagyanam Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४-२९९] उणादिगणविवृतिः । कृत्याभ्यां स्नक् ॥ २९४ ।। आभ्यां स्नक् प्रत्ययो भवति || कृतैत् छेदने | कृत्स्नं सर्वम् ॥ अशौटि व्याप्तौ । अक्ष्णं नयनं व्याधी रज्जुस्तेजनमखण्डं च ॥ २९४ ॥ अतः शसानः ॥२९५ ॥ क् गतौ । इत्यस्मात्तालव्यादिः शसानः प्रत्ययो भवति ॥ अर्शसान: पन्था इषुरनिश्च ।। २९५ ॥ भापाचणिचमिविषिसृपृतृशीतल्यलिशमिरमिवपिभ्यः पः ॥ २९६ ॥ __ एभ्यः प: प्रत्ययो भवति || भांक दीप्तौ । भाप आदित्यो ज्येष्ठश्च भ्राता ।। पांक रक्षणे । पापं कल्मषम् । पापो घोरः ॥ चण हिंसादानयोश्च । चण्पा नगरी । चण्पो वृक्षः ।। चमू अदने । चम्पा नगरी || विषूकी व्याप्ती । वेष्पः परमात्मा स्वर्ग आकाशश्च । निपूर्वात् । निवेष्पोपां गर्भः कुपो वृक्षजातिरन्तरीक्षं च ॥ सुं गतौ । सोहिः॥ पृश् पालनपूरणयोः । पर्पः प्लवः शङ्कः समुद्रः शस्त्रं च ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तर्प उडुपो नौश्व | शीक् स्वप्ने । शेपः पुच्छम् ।। तलण् प्रतिष्ठायाम् । तल्पं शयनीयमङ्गं दारा युद्धं च ।। अली भूषणादौ । अल्पं स्तोकम् || शमूच उपशमे । शम्पा विद्युत्काञ्ची च । विपूर्वात् । विशम्पो दानवः ।। रमि क्रीडायाम् । रम्पा चर्मकारोपकरणम् ।। डुवपी बीजसंताने ॥ वप्पः पिता || २९६ ॥ युसुकुरुतुच्युस्त्वादेरूच ।। २९७ ॥ एभ्यः पः प्रत्ययो भवत्यूकारवान्तादेशो भवति ।। युक् मिश्रणे | यूपो यज्ञपशुबन्धनकाष्ठम् ॥ पुंग्ट् अभिषवे । सूपो मुद्गादिभिन्नकृतः ॥ कुंक् शब्दे | कूपः पहिः ।। रुक् शब्दे । रूपं श्वेतादि लावण्यं स्वभावश्च || तुक् वृत्त्यादौ | तूप आयतनविशेषः ।। च्युड् गतौ । च्यप आदित्यो वायुः संग्रामश्च ।। टुंग्क् स्तुतौ । स्तूपो बोधिसत्त्वभवनमुपायतनं च ॥ आदिशब्दादन्येपि ।। २९७ ।। कृशसभ्य ऊर् चान्तस्य ॥ २९८ ॥ एभ्यः पः प्रत्ययो [भवत्यन्तस्य च ऊर् भवति ।। कृत् विक्षेपे । कूर्प भ्रूमध्यम् ।। शृश् हिंसायाम् । शूर्पो धान्यादिनिष्पवनभाण्डं संख्या च ।। सं गतौ । सूर्पो भुजंगमो मत्स्यजातिश्च ।। २९८ ॥ शदिवाधिखनिहनेः ष् च ।। २९९ ॥ एभ्यः पः प्रत्ययो [भवति ] पश्चान्तादेशो भवति ॥ श शातने । शष्पं Aho ! Shrutagyanam Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [३००-३०५ बालतृणम् । शष हिंसायाम् । इत्यस्य वा रूपम् ॥ बाधृड् रोटने । बाष्पोश्रु धूमाभासं च मुखपानीयादौ ॥ खनूग् अवदारणे | खप्पो बलात्कारो दुर्मेधाः कूपश्च । खष्पं खलीनं जनपदविशेषोङ्गारश्च ।। हनक हिंसागत्योः । हप्पः प्रावरणजातिः ॥ २९९ ॥ पम्पाशिल्पादयः ॥ ३०० ॥ पम्पादयः शब्दाः पप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। पांक रक्षणे । मोन्तो हस्वश्च । पम्पा पुष्करिणी ॥ शीलयतेः शलतेः शेतेर्वा शिलादेशश्च । शिल्पं विज्ञानम् ॥ आदिशब्दादन्येपि ।। ३०० ॥ क्षुचुपिपूभ्यः कित् ॥३०॥ एभ्यः कित्पः प्रत्ययो भवति ॥ टुक्षुत् शब्दे । क्षुपो गुच्छः ॥ चुप मन्दायाम् । चुप्पं मन्दगमनम् || पूगश् पवने । पूपः पिष्टमयः ॥३०१॥ . नियो वा ॥ ३०२॥ णींग प्रापणे । इत्यस्मात्पः प्रत्ययो भवति ] स च किद्वा भवति ॥ नीपो वृक्षविशेषः । नेपो नयः पुरोहितो वृक्षो मृतकथ । नेपमुदकं यानं च ॥ ३०२ ॥ उभ्यवेर्लुक् च ।। ३०३ ।। आभ्यां कित्पः प्रत्ययो भवति लुक् चान्तस्य भवति | उभत् पूरणे | अव रक्षणादौ । उप | अप चाव्यये ॥ ३०३ ॥ . दलिवलितलिखजिध्वजिकचिभ्योपः ॥ ३०४ ॥ एभ्योपः प्रत्ययो भवति || दल विशरणे | दलपः प्रहरणं रणमुखं विदलं दलविशेषश्च । दलपं व्रणमुखत्राणम् || वलि संवरणे | वलपः कर्णिका || तलण् प्रतिष्ठायाम् । तलपो हस्तप्रहारः ॥ खज मन्थे । खजपो मन्थः । खजपं दधिधतमुदकं च ॥ ध्वज गतौ । ध्वजपो ध्वजः ॥ कचि बन्धने । कचपः शाकपर्ण बन्धश्च ॥ ३०४ ॥ भुजिकुतिकुटिविटिकुणिकुष्युषिभ्यः कित् ॥ ३०५ ॥ एभ्यः किदपः प्रत्ययो भवति ।। भुजंप पालनाभ्यवहारयोः । भुजपो राजा यजमानपालनादमिश्च ॥ कुतिः सौत्रः । कुतपश्छागलोमां कम्बल आस्तरणं श्राकालश्च । कुटत् कौटिल्ये । कुटपः प्रस्थ चतुर्भागो नीडं च शकुनीनाम् ।। Aho I Shrutagyanam Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ -३१३] उणादिगणविवृतिः । विट शब्दे । विटपः शाखा ॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः। कुणपो मृतकं कुषितं शब्दार्थसारूप्यं च ॥ कुषश् निष्कर्षे । कुषपो विन्ध्यः संदंशश्च || उषू दाहे | उषपो दाहः सूर्यो वह्निश्च ।। ३०५ ॥ शंसेः श इन्चातः ॥ ३०६ ।। शंसू स्तुतौ च । इत्यस्मादपः प्रत्ययो [ भवति ] तालव्यशकारान्तादेशोकारस्य च इकारो भवति ॥ शिंशपा वृक्षविशेषः ॥ ३०६ ॥ विष्टपोलपवातपादयः ॥ ३०७ ॥ विष्टपादयः शब्दाः किदपप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। विषेस्तोन्तश्च । विष्टप जगत्सुकृतिनां स्थानं च || बलेरुल च । उलपं पर्वततणं पङ्कजं जलं च । उलप ऋषिः । वातेस्तोन्तश्च | वातप ऋषिः ।। आदिग्रहणात् खरपादयोपि भवन्ति कलेरापः || ३०८ ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । इत्यस्मादापः प्रत्ययो भवति ॥ कलापः काञ्ची समूहः शिखण्डश्च ।। ३०८ ॥ विशेरीपक् ॥ ३०९ ॥ विशंत् प्रवेशने । इत्यस्मादिपक् प्रत्ययो भवति ॥ विशिपो राशिः । विशिपं तृणं वेदमासनं पद्मं च ।। ३०९ ॥ दलेरीपो दिल् च ॥ ३१०॥ दल विशरणे । इत्यस्मादीपः प्रत्ययो भवति दिल चास्यादेशो भवति ॥ दिलीपो राजा ॥ ३१ ॥ उडेरुपक् ॥ ३११ ॥ उड् संघाते । इति सौत्रादुपक् प्रत्ययो भवति ।। उडुपः प्लवः । जपादिस्वाइत्वे । उडुवः ।। ३११ ॥ __ अश ऊपः पश्च ॥ ३१२ ॥ अशौटि व्याप्तौ । इत्यस्मादूपः प्रत्ययो [ भवति ] पश्चान्तादेशो भवति || अपूपः पक्कानविशेषः ।। ३१२॥ सर्तेः षपः ॥ ३१३ ।। गतौ । इत्यस्मात् षपः प्रत्ययो भवति || सर्षपो रक्षोनं द्रव्यं शाकं च॥ ३१३ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ हेमचन्द्रव्याकरणे रीशीभ्यां फः ॥ ३१४ ॥ आभ्यां फः प्रत्ययो भवति ।। रांड्च् स्रवणे । रेफः कुत्सितः ।। शीड्क् स्वमे | शेफो मेण्डः ।। ३१४ ॥ कलिगलेरस्योच ॥ ३१५ ॥ आभ्यां फः प्रत्ययो [ भवत्यस्य च उकारो भवति ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । गल अदने । कुल्फो गुल्फश्च जङ्घाहिसंधिः । गुल्फः पादोपरिग्रन्थिः ।। ३१५ ॥ शफकफशिफाशोफादयः ॥ ३१६ ॥ शफादयः शब्दाः फप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। श्यतेः कायतेश्च हस्वश्च । शफः खुरः प्रियंवदथ ।। कफः श्लेष्मा || श्यतेरित्वमोत्वं च | शिफा वृक्षजटा। शोफः श्रयथुः खुरश्च ॥ आदिशब्दात् रिफानफासुनफादयो भवन्ति ।। ३१६ ।। वलिनितनिभ्यां बः ॥३१७॥ बलि संवरणे । निपूर्वाच्च तनूयी विस्तारे | इत्याभ्यां बः प्रत्ययो भवति ।। वल्वो वृक्षः ॥ नितम्बः श्रोणिः पर्वतैकदेशो नटश्च ।। ३१७॥ शम्यमेणिद्वा ।। ३१८ ॥ ___ आभ्यां बः प्रत्ययो [भवति ] स च णिवा भवति ॥ शमूच् उपशमे । शम्बो वचः कर्षणविशेषो वेणुदण्डस्तोत्रमरित्रं च ॥ शम्बशाम्बी जाम्बवतेयौ ।। अम गतौ | अम्बा माता | आम्बोपह्नवः ।। ३१८ ॥ शल्यलेरुच्चातः।।३१९।। आभ्यां बः प्रत्ययो भवत्यकारस्य च उकारो भवति ॥ पल फल शल गतौ। शुल्वं ताम्रम् || अली भूषणादौ | उल्वं रजतं गर्भवेष्टनम् || शुल्वं बभ्रस्तरक्षुश्च ।। ३१९ ॥ तुम्बस्तम्बादयः ।। ३२० ॥ तुम्बादयः शब्दा बप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। ताम्यतेरत उत्वं च | तुम्बमलाबु चक्राङ्गं च ॥ स्तम्भेर्लुक् च | स्तम्बस्तृणं विटप: संघातोङ्करसमुदायः स्तबकः पुष्पापीडश्च ।। आदिशब्दात् कुशाम्वादयो भवन्ति ॥ ३२०॥ कृकडिकटिवटेरम्बः ।। ३२१ ॥ एभ्योम्बः प्रत्ययो भवति ।। डुकंग करणे | करम्बो दध्योदनो दधिसक्तवः पष्पं च । कडत् मदे । कडम्वो जातिविशेषो जनपदविशेषश्च ॥ कटे वर्षा Aho 1 Shrutagyanam Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ ३२७] उणादिगणविवृति: । ५५ वरणयोः | कटम्बः पक्कान्नविशेषो वादित्रं च || कडम्बकटम्बी वृक्षौ च ॥ वट वेष्टने | वटम्बः शैलस्तृणपुञ्जश्र || ३२१ ।। कर्णai || ३२२ ॥ कद वैक्लव्ये । इति सौत्रादम्बः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिद्दा भवति || कादम्बो हंसः || कदम्बो वृक्षजातिः || ३२२ ।। शिलविलादेः कित् ॥ ३२३ ॥ शिलादिभ्यः किदम्बः प्रत्ययो भवति ।। शिलत् उच्छे | शिलम्ब ऋषिस्तन्तुवायश्च || विलत् वरणे । विलम्बो वेषविशेषो रङ्गावसरश्च || आदिग्रहणादन्येपि || ३२३ ॥ हिण्डिविले: किम्बो नलुक् च ॥ ३२४ ॥ आभ्यां किदिम्बः प्रत्ययो [भवति ] नस्य च लुग्भवति || हिडुड् गतौ च | विलत् वरणे | हिडिम्बो विलिम्बश्च राक्षसौ || ३२४ ॥ डीनीवन्धिगृधिचलिभ्यो डिम्बः || ३२५ || एभ्यो डिदिम्बः प्रत्ययो भवति || डीड् विहायसां गतौ । डिम्बो राजोपद्रवः || णोंग् प्रापणे । निम्बो वृक्षविशेषः || बन्धंश् बन्धने । बिम्बं प्रतिच्छन्दको देहश्च | बिम्बी वल्लिजाति: || शृधुड् शब्दकुत्सायाम् | शिम्बो मृगजातिः । शिम्बी निष्पाववल्ली च || चल कम्पने | चिम्बा यवागूजातिः || ३२५ ।। कुट्युन्दि चुरितुरिपुरिमुरिकुरिभ्यः कुम्बः || ३२६ || एभ्यः किदुम्बः प्रत्ययो भवति || कुटत् कौटिल्ये | कुटुम्बं दारादयः || उदैप् क्लेदने | उदुम्बः समुद्रः || चुरण् स्तेये | तुर त्वरणे सौत्रः । चुरुम्वस्तुरुम्बश्च गहनम् || पुरत् भग्रगमने | पुरुम्ब आहार : || मुरत् संवेष्टने | मुरुम्बो मृद्यमानपाषाणचूर्णम् || कुरत् शब्दे । कुरुम्बाङ्कुरः । निपूर्वात् । निकुरुम्बो राशिः ।। ३२६ ॥ गृदृरमिहनिजन्यर्तिदलिभ्यो भः || ३२७ || एभ्यो भः प्रत्ययो भवति ॥ गृत् निगरणे | गर्भो जठरस्थप्राणी ॥ दृश् विदारणे | दर्भः कुशः || रमिं क्रीडायाम् । रम्भाप्सराः कदली च ॥ हनंक् हिंसागत्योः । हम्भा गोधेनुनाद: || जनैचि प्रादुर्भावे | जम्भो दानवो दन्तश्च | जम्भा मुखविदारणम् || ऋक् गतौ । भर्भः शिशुः || दलण् विदारणे | दल्भ ऋषिर्वल्कलं विदारणं च ३२७ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G हेमचन्द्रव्याकरणे [३२८-३३५ इणः कित् ॥ ३२८ ॥ इणक् गतौ | इत्यस्मात्किद्भः प्रत्ययो भवति ॥ इभो हस्ती || ३२८ ॥ कृशगृशलिकलिकडिदिरासिरमिवडिवल्लेरभः || ३२९ ।। एभ्योभः प्रत्ययो भवति ॥ कृत् विक्षेपे | करभस्त्रिवर्ष उष्ट्रः ।। शृश् हिंसायाम् । शरभः श्वापदविशेषः ॥ गृत् निगरणे । गरभ उदरस्थो जन्तुः ।। पल फल शल गतौ । शलभः पतंगः ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलभो हस्ती यौवनाभिमुखः ।। कडत् मदे । कडभो हस्तिपोतकः ।। गर्द शब्दे । गर्दभः खरः ।। रासड् शब्दे | रासभः स एव ।। रमिं क्रीडायाम् । रमभः प्रहर्षः ।। वडः सौवः । वडभी वेश्माग्रभूमिका । ऋफिडादित्वाल्लत्वे | वलभी ।। वल्लि संवरणे । वल्लभः स्वामी दयितश्च ।। ३२९ ॥ सडित् ।। ३३० ॥ पन भक्तौ । इत्यस्मादिभः प्रत्ययो भवति ॥ सभा परिषच्छाला च ।। ३३० ॥ ऋषिवृषिलुसिभ्यः कित् ।। ३३१ ॥ एभ्यः किदभः प्रत्ययो भवति ॥ ऋषैत् गतौ । वष सेचने | ऋषभो वृषभश्व पुङ्गवो भगवांश्वादितीर्थकरः । ऋषभो वायुः ।। लुसिः सौत्रः । लुसभी हिंस्रो मत्तहस्ती वनं च ।। ३३१ ॥ सिटिकिभ्यामिभः सैरटिट्टौ च ॥ ३३२ ॥ आभ्यामिभः प्रत्ययो [ भवति ] दन्त्यादिः सैर: टिट्टश्चादेशौ यथासंख्य भवतः ॥ किंग्ट् बन्धने । सैरिभो महिषः ।। टिकि गतौ । टिभिः पक्षी ||३३२॥ करुभः ॥ ३३३ ॥ ककि लौल्ये । इत्यस्मादुभः प्रत्ययो भवति ।। ककुभोर्जुनः ।। ३३३ ॥ कुके कोन्तश्च ।। ३३४ ॥ कुकि आदाने | इत्यस्मादुभः प्रत्ययो [ भवति ] ककारश्चान्तो भवति ।। कुक्कुभः पक्षिविशेषः ॥ ३३४ ॥ दमो दुण्ड् च ॥ ३३५॥ दमूच् उपशमे । इत्यस्मादुभः प्रत्ययो [ भव ] त्यस्य च दन्त्यादिष्टवर्गतृतीयान्तो दुण्ड् इत्यादेशो भवति ॥ दुण्डुमो निर्विषाहिः ॥ ३३५ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६-३४०] उणादिगणविवृतिः। . कृकलेरम्भः ॥ ३३६ ॥ आभ्यामम्भः प्रत्ययो भवति ।। डुक्कंग करणे । करम्भौ दधिसक्तवः ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलम्भ ऋषिः ॥ ३३६ ।। काकुसिभ्यां कुम्भः ।। ३३७ ।। आभ्यां किदुम्भः प्रत्ययो भवति ।। मैं शब्दे | कुम्भो घटो राशिच ।। कुसच् श्लेषणे | कुसुम्भो महारजनम् ॥ ३३७ ॥ अर्तीरिस्तुसुदुसृघृधृशृक्षियक्षिभावाव्याधापाया वलिपदिनीभ्यो मः ॥ ३३८ ॥ एभ्यो मः प्रत्ययो भवति ।। ऋक् गतौ । अर्मोक्षिरोगो ग्रामः स्थलं च ।। ईरिक् गतिकम्पनयोः । ईर्म व्रणः ।। टुंग्क् स्तुतौ । स्तोमः समूहो यज्ञः स्तोत्रं च ॥ पुंग्ट् अभिषवे । सोमचन्द्रो वल्ली च ।। हुंक् दानादनयोः । होम आहुतिः ॥ सं गतौ । सर्मो नदः कालश्च । सर्म स्नानं सुखं च ।। सेचने | धर्मो ग्रीष्मः॥ धुंड्त् स्थाने | धर्म उत्तमक्षमादिायच || शृश् हिंसायाम् । शर्म सुखम् ।। क्षित् निवासगत्योः । क्षेमं कल्याणम् || यक्षिण पूजायाम् । यक्ष्मो व्याधिः ॥ भांक् दीप्तौ । भामः क्रोधः । भामा ली॥ वाक् गतिगन्धनयोः । वामः प्रतिकूलः सव्यश्च ।। व्यंग संवरणे | व्यामो वक्षो भुजायतिः ॥ डुधांग्क् धारणे च । धामं निलयस्तेजश्च ।। पां पाने | पामा कच्छुः ।। यांक प्रापणे | यामः प्रहरः।। वलि संवरणे । वल्मो ग्रन्थिः ॥ पद्च् िगतौ । पद्मं कमलम् ।। णींग प्रापणे । नेमोर्धः समीपश्च ।। ३३८ ॥ ग्रसिहाग्भ्यां ग्राजिहौ च ॥३३९ ।। ___ भाभ्यां मः प्रत्ययो भिव त्यनयोश्च प्राजिहावित्यादेशौ यथासंख्यं भवतः॥ ग्रामः समूहादिः || जिह्मः कुटिलः ।। ३३.९ ।। विलिभिलिसिधीन्धिधुसूश्याध्यारुसिविशुषिमुषीषिमुहियु धिदसिभ्यः कित् ॥ ३४०॥ एभ्यः किन्मः प्रत्ययो भवति ॥ विलत् वरणे | विल्म प्रकाशम् ।। भिलि: सौत्रः । भिल्म भास्वरम् || विधू गत्याम् | सिध्मं त्वयोगः ॥ भिइन्धपि दीप्तौ । इध्ममिन्धनम् ॥ धूग्श् कम्पने । धूमोनिकेतुः ॥ धूडौच् प्राणिप्रसवे । सूमः कालः श्वयथू रविश्व । सूममन्तरीक्षम् ॥ इयें गतौ । इयामो वर्णः । श्याम Aho! Shrutagyanam Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ हेमचन्द्रव्याकरणे [३४१-३४६ नभः । श्यामा रात्रिरोषधिश्व || ध्यै चिन्तायाम् । ध्यामोव्यक्तवर्णः || रुक् शब्दे । रुमा लवणभूमिः || षित्रूच् उतौ | स्यूमो रश्मिर्दीर्घः सूत्रतन्तुथ | स्यूमं जलम् || शुषंच् शोषणे । शुष्मं बलं जलं संयोगश्च ॥ मुषश् स्तेये । मुष्मो मूषिकः ॥ ईष उच्छे | ईष्मो वसन्तो वाणो वातश्व ॥ षहच् शक्ती | सुझा जनपदः । सुझो राजा ॥ युधिंच् संप्रहारे । युध्मः शरत्कालः शूरः शत्रुः संग्रामश्व || दसूच् उपक्षये । दस्मो हीनो वह्निर्यज्ञश्व || ३४० ॥ क्षुहिभ्यां वा || ३४१ ॥ [ भवति ] स च किवा भवति ॥ टुक्षुक् शब्दे | हिंदू गतिवृद्धयोः । हिमं तुषारः । हेमं सुवर्णम् आभ्यां मः प्रत्ययो क्षुमातसी | क्षोमं वत्रम् || ॥ ३४१ ॥ अर्हस्वश्च वा || ३४२ ॥ अव रक्षणादौ | इत्यस्मात्किन्मः प्रत्ययो | भव ] त्यूटो ह्रस्वश्च वा भवति || उमा गौर्यतसी कीर्तिश्व || ऊममूनमाकाशं नगरं च ।। ३४२ ।। सेरी च वा || ३४३ ॥ बिंग्ट् बन्धने । इत्यस्मात्किन्मः प्रत्ययो [ भवति ] ईकारान्तादेशो वा भवति || सीमो ग्रामगोचर भूमिः क्षेत्रमर्यादा हयश्च । सिमः स एव सर्वार्थश्व ॥ ३४३ ॥ भियः षोन्तश्च वा ॥ ३४४ ॥ ञिभक् भये | इत्यस्मात्किन्मः प्रत्ययो [ भवति ] षश्चान्तादेशो वा भवति || बिभेत्यस्मादिति भीष्मो भयानकः । भीमः स एव || ३४४ ।। तिजियुजे च || ३४५ ।। आभ्यां किन्मः प्रत्ययो [ भवति ] गवान्तादेशो भवति ॥ तिजि क्षमानिशानयोः । तिग्मं तीक्ष्णं दीप्तं तेजश्व || युर्नृपी योगे | युग्मं युगलम् ||३४५|| रुक्म ग्रीष्म कूर्मसूर्मजाल्म गुल्म प्रोनपरिस्तोम सूक्ष्मादयः || ३४६ || ते किन्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। रोचतेः क् च | रुक्मं सुवर्ण रूप्यं च ॥ मसेग्रष् च | ग्रीष्म ऋतुः || कुरुतेर्दीर्घश्व | कूर्मः कच्छपः || षूत् प्रेरणे | इत्यस्य रोन्तश्व | सूर्मी लोहप्रतिमा चुलिश्व || नल घात्ये । दीर्घश्व | जाल्मो निकृष्टः || गुपच् व्याकुलत्वे | लव । गुल्मो व्याधिस्तरुसमूहो वनस्पतिः सेनाङ्गं च । 1 Aho ! Shrutagyanam Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७-३५१] उणादिगणविवृतिः गुल्ममायस्थानम् || जिघ्रतेरोत्वं च | प्रोमो यज्ञाङ्गलक्षणः सोमः ॥ परिपूर्वात् स्तोतेः षत्वाभावो गुणश्च | परिस्तोमो यज्ञविशेषः ॥ सूचण पैशून्ये । कत्वं षोन्तश्च । सूक्ष्मो निपुणः । सूक्ष्ममणु ।। आदिग्रहणात् मादयो भवन्ति ॥ ३४६ ॥ सपप्रथिचरिकडिकरमः ॥ ३४७ ॥ एभ्योमः प्रत्ययो भवति ॥ सं गतौ । सरमा देवशुनी ॥ पृश् पालनपूरणयोः । परम उत्कृष्टः ॥ प्रथिष् प्रख्याने । प्रथम आद्यः ॥ चर भक्षणे । चरम: पश्चिमः ॥ कडत् मदे । कडमः शालिः | ऋफिडादित्वाल्लत्वे । कलमः स एव ।। कर्द कुत्सिते शब्दे । कर्दमः पङ्कः ।। ३४७ ॥ अवध् च वा ॥ ३४८ ॥ भव रक्षणादौ । इत्यस्मादमः प्रत्ययो भवति ] धवान्तादेशो वा भवति । अधमोवमश्च हीनः ॥ ३४८॥ कुट्टिवेष्टिपूरिपिषिसिचिगयर्पिवृमहिभ्य इमः ॥ ३४९ ॥ एभ्य इमः प्रत्ययो भवति ॥ कुट्टण् कुत्सने च | कुट्टिमं संस्कृतभूमितलम् ॥ वेष्टि वेष्टने । वेष्टिमं पुष्पबन्धविशेषो भक्ष्यविशेषश्च ।। पूरैचि आप्यायने । पूरिमं मालाबन्धविशेषो भक्ष्यविशेषश्च ।। पिषूप् संचूर्णने । पेषिमं भक्ष्यविशेषः ॥ विचीत् क्षरणे । सेचिमं मालाविशेषः ॥ गणण् संख्याने । गणिमं गणितम् ॥ कंक् गतौ । णौ पैौ । अर्पिमं बालवत्साया दुग्धम् || वृग्ट वरणे । परिमं तुलोन्मेयम् ।। मह पूजायाम् । महिमं पूजनीयम् ॥ ३४९ ॥ वयिमखचिमादयः ॥ ३५० ॥ वयिमादयः शब्दा इमप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ वेंग् तन्तुसंताने । वयादेशथ । वयिमं माल्यं कन्दुकस्तन्तुवायदण्डश्च ।। खनूग् अवदारणे | चश्च । खचिमं मणिलोहविद्धं घृतविहीनं च ॥ आदिशब्दादन्येपि ॥ ३५० ॥ उद्दटिकुल्यलिथिकुरिकुटिकुडिकुसिभ्यः कुमः ॥ ३५१॥ उत्पूर्वात् वटेः कुल्यादिभ्यश्च किदुमः प्रत्ययो भवति ॥ वट वेष्टने।उहटुमः परिक्षेपः ॥ कुल बन्धुसंस्त्यानयोः ॥ कुलुम उत्सवः ॥ अली भूषणादौ । अलुमः प्रसाधनं नापितोनिश्च ।। कुथच् पूतिभावे । कुथुम ऋषिः । कुथुमं मृगाजिनम् ।। कुरत् शब्दे । कुरुमः कारुर्भाजनं च ॥ कुटत् कौटिल्ये । कुटुमः प्रेष्यः । कुडत् बाल्ये च । कुडुमा भूमिः ।। कुसच् श्लेषे । कुसुमं पुष्पम् ॥ ३५१ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे कुन्दुमलिन्दुमकुङ्कुमविब्रुमपमादयः || ३५२ || एते कुमप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || कुकि भदाने | स्वरान्नो दध | कुन्दुमोत्रियों गन्धद्रव्यं च ॥ लींड्च् श्लेषणे । लिन्दभावश्व | लिन्दुमो गन्धब्रत्र्यम् || कुकेः स्वरान्नोन्तश्च | कुङ्कुमं घुसृणम् || विनंती लाभे । रोन्तश्व | विद्रुमः प्रवालः || पदेष्टान्तश्च | पट्टुमं नगरम् || आदेरन्येपि || ३५२ ।। [३५२-३५७ कुथिगुरूमः || ३५३ ॥ आभ्यामूमः प्रत्ययो भवति || कुथच् पूतिभावे । कोथूमश्वरणदृषिः || गुधच् परिवेष्टने | गोधूमो धान्यविशेषः || ३५३ ॥ विहाविशापचिभिद्यादेः केलिमः || ३५४ | विपूर्वाभ्याम् ओहां त्यागे | शच् तक्षणे | इत्येताभ्यां पच्यादिभ्यश्च किदेलिमः प्रत्ययो भवति || विहीयते त्यज्यतेशुचि शरीरमस्मिन्निति विहेलिमः स्वर्गः || विश्यति तनूभवति मासि मासि कलाभिर्हीयमान इति विशेलिमश्चन्द्रः स्वर्गश्व || डुपचींष् पाके । पचत्य सावन्नमिति पचेलिमोमिरादित्योश्वश्व || भिपी विदारणें । भिदेलिमस्तस्करः || आदिशब्दात् दृशं प्रेक्षणे | दृशेलिमम् ॥ अदं सांं भक्षणे । भदेलिमम् ॥ हनंक् हिंसागत्योः । मेलिमम् ॥ डुयावृग् याञ्जायाम् | याचेलिमम् || पांंरक्षणे | पेलिमम् || डुकुंग् करणे | क्रेलिमम् || इत्यादयोपि भवन्ति || ३५४ || दो डिमः || ३५५ ॥ दाम् दाने | इत्यस्माड्डिमः प्रत्ययो भवति || दाडिमो दाडिमी वा वृक्षजातिः || ३५५ ॥ डिमेः कित् || ३५६ ।। डिभिः सौत्रः । तस्मात्किड्डिमः प्रत्ययो भवति || डिण्डिमो वाद्यविशेषः ॥ ३५६ ॥ स्थाछामासासूमन्यनिकनिषसिपलिका लिशलिशकीयिसहिबन्धिभ्यो यः || ३५७ ॥ एभ्यो यः प्रत्ययो भवति || ठां गतिनिवृत्तौ । स्थाय: स्थानम् । स्थाया भूमिः || दों छच् छेदने । छाया तमः प्रतिरूपं कान्तिश्व || मां माने । माया छद्म दिव्यानुभावदर्शनं च ॥ च् अन्तकर्मणि । सायं दिनावसानम् । षूत् प्रेरणे | Aho ! Shrutagyanam Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८-३६३] उणादिगण विवृतिः । ६१ सव्यो वामो दक्षिणश्च ॥ मनिंच् ज्ञाने | मन्या धमनिः ॥ अनक् प्राणने | अन्यः परः || कनै दीप्यादिषु । कन्या कुमारी || षसक् स्वमे । सस्यं क्षेत्रस्थं गोधूमादि || पल गतौ । पल्यं कटकुसूलः || कलि शब्दसंख्यानयोः । कल्यो नीरोगः || पल फल शल गतौ । शल्यमन्तर्गतं लोहादि || शक्लृट् शक्तौ । शक्यमसारम् || ईर्ष्या ईर्ष्यार्थः । ईर्ष्यति ईर्ष्याणं वा | ईर्ष्या मात्सर्यम् || पहि मर्षणे | सह्यः पश्चादर्णवपार्श्वशैलः ॥ बन्धंश् बन्धने | बन्ध्याप्रसूतिः || ३५७ || नञो हलिपतेः || ३५८ ॥ नञ्पूर्वाभ्यामाभ्यां यः प्रत्ययो भवति ॥ हल विलेखने । अहल्या गौतमपत्नी || पल गतौ | अपत्यं पुत्रसंतानः || ३५८ ॥ सञ्जे च ॥ ३५९ ॥ ष स । इत्यस्माद्यः प्रत्ययो भवति धश्वान्तादेशो भवति ॥ संध्या दिननिशान्तरम् || ३५९ ॥ मृशीपसिवस्यभिभ्यस्तादिः ।। ३६० ।। एभ्यस्तकारादिर्यः प्रत्ययो भवति || मृत् प्राणत्यागे । मर्त्यो मनुष्यः ॥ शीक् स्वमे । शैत्यः शकुनिः संवत्सरोजगर || पतिर्निवासे सौत्रः । दन्त्या - न्तः | पस्त्यं गृहम् ॥| वसं निवासे । वस्त्यो गुरुः || अनक् प्राणने । अन्त्यो निरवसितश्चण्डालादिश्व || ३६० ॥ ऋशिजनिपुणिकृतिभ्यः कित् ॥ ३६१ ॥ एभ्यः किद्यः प्रत्ययो भवति || ऋश गतौ स्तुतौ वा | स्वरादिस्तालव्यान्तः । ऋश्यो मृगजातिः || जनैचि प्रादुर्भावे | जन्यं संग्रामः | जाया पत्नी । ये न वेत्यात्वम् || पुणत् शुभे । पुण्यं सत्कर्म || कृतैत् छेदने | कृन्तति | कृत्या दुर्गा ॥ ३६१ ॥ कुलेई चवा || ३६२ ॥ कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । इत्यस्मात्किद्यः प्रत्ययो [भवति ] डकारश्वान्तो वा भवति || कुड्यं भित्तिः ॥ कुल्या सारणी ॥ ३६२ ॥ अगपुलाभ्यां स्तम्भेोर्डत् ॥ ३६३ || अग पुल इत्येताभ्यां परस्मात् स्तम्भेः सौत्राडिद्यः प्रत्ययो भवति ॥ अगस्त्यः पुलस्त्यश्वर्षिः || ३६३ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ हेमचन्द्रव्याकरणे [३६४-३६८ शिक्यास्याढ्यमध्यविन्ध्यधिष्ण्याघ्न्यहर्म्यसत्य नित्यादयः || ३६४ || एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || शोंच् तक्षणे । इकश्वान्तः । शिक्यं लम्बमानः पिठर्याद्याधारः परित्राभिक्षाभाजनस्थानमसारं च ॥ असूच् क्षेपणे । दीर्घत्वं च | आस्यं मुखम् || आङ्पूर्वात् ढौकतेर्डिच | भढयो धनवान् ॥ मव बन्धने । ध् च । मध्यं गर्भः || विधत् विधाने | स्त्ररान्नोन्तश्र | विन्ध्यः पर्वतः || ञिधृबाट् प्रागल्भ्ये | नोतो धिष् च । धिष्ण्यं भवनमासनं च । धिष्ण्योल्का ॥ नञ्पूर्वात् हन्तेरुपान्त्यलोपश्च । अन्यो धर्मो गोपतिश्व | अन्या गौः || हरतेर्मोन्तश्च । हर्म्यं सौधम् || भस्तेः सत् च | सत्यममृषा || निपूर्वात् यमेस्तोन्तो धातुलुक् च । नित्यं ध्रुवम् || आदिग्रहणात् लह्यद्रुह्यादयो भवन्ति ॥ ३६४ ॥ कुगुवलिमलिकणितन्याम्यक्षेरयः || ३६५ ॥ एभ्योयः प्रत्ययो भवति || कुंक् शब्दे | कवय ऋषिः पुरोडाशश्च || गुंड् शब्दे | गवयो गवाकृतिपशुविशेषः || वलि संवरणे | वलयः कटकः ॥ मलि धारणे | मलयः पर्वतः ॥ कण शब्दे | कणय आयुधविशेषः || तनूयी विस्तारे | तनयः पुत्रः || अमण् रोगे । णिचि च । आमयो व्याधिः|| अक्षौ व्याप्तौ च । अक्षयो विष्णुः ॥ ३६५ ॥ चायेः केक् च || ३६६ ।। चायृग् पूजानिशामनयोः । इत्यस्मादयः प्रत्ययो [ भव ]त्यस्य च के क् इत्यादेशो भवति || केकयः क्षत्रियः ॥ ३६६ ॥ लादिभ्यः कित् || ३६७ ॥ लादिभ्यः किदयः प्रत्ययो भवति || लांक आदाने | लयः || पां पाने | पयः || ष्णांक् शैौचे | स्नयः || देंड् पालने | दय: ॥ ट्वें पाने | धयः ॥ मेंड् प्रतिदाने | मयः || कैं शब्दे | कथः । खै खदने । खयः ॥ श्रांक् पाके । श्रयः ॥ झैं जैं सैं क्षये | क्षयः । जयः । सयः ॥ ब्रैंड् पालने । त्रयः || ओवें शोषणे । वयः ॥ इत्यादि || ३६७ ॥ कसेरलादिरिच्चास्य ॥ ३६८ ॥ कस गतौ । इत्यस्मादलादिरयः प्रत्ययो [ भव ] त्यकारस्य च इकारो भवति ॥ किसलयं प्रवालम् ॥ ३६८ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिमण विवृतिः । वृडः शषौ चान्तौ ॥ ३६९ ॥ वृड्श् संभक्तौ । इत्यस्मात्किदयः प्रत्ययो [ भवति ] कारवकारौ चान्तौ भवतः ॥ वृशयं देशनामाकाशमासनं शयनं च || वृषय आशयः || ३६९ ॥ गयहृदयादयः ॥ ३७० ॥ गयादयः शब्दाः किदयप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || गमेर्डिच | गयः प्राणः | गया तीर्थम् || हरतेर्दोन्तश्च | हृदयं मनः स्तनमध्यं च || आदिशब्दात् गणेरेयः । गणेयं गणनीयम् ॥ इत्यादि ३७०॥ ३६९ - ३७६ ] ६३ मुचेर्घौ || ३७१ ॥ ती मोक्षणे । इत्यस्मात् घितावय उय इत्येतौ प्रत्ययौ कितौ भवतः ॥ मुकयो मुकुयश्वाश्वतरादवायां जातः || बित्करणं कत्वार्थम् ॥ ३७१ ॥ कुलिलुलिकलिकषिभ्यः कायः || ३७२ || एभ्यः किदायः प्रत्ययो भवति || कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलायो नी - डम् || लुलिः सौत्रः | लुलायो महिषः || कलि शब्दसंख्यानयोः । कलायस्त्रिटः ॥ कष हिंसायाम् । कषायः कल्कादिः || ३७२ || श्रुदक्षिगृहिस्पृहिमहेराय्यः || ३७३ || एभ्य आय्यः प्रत्ययो भवति || श्रुंट् भवणे । श्रवाय्यो यज्ञपशुर्ग्रहणसम. र्थश्व श्रोता || दक्षि हिंसागत्योः । दक्षाय्योभिर्गृध्रो वैनतेयो दक्षतमश्च ॥ गृहणि ग्रहणे | गृहयाय्यो वैनतेयो गृहकर्मकुशलः [च] ॥ स्पृहण् ईप्सायाम् । स्पृहयाय्य: स्पृहयालुर्घृतं च । स्पृहयाय्यानि तृणान्यहानि च || महण् पूजायाम् | महयाय्योश्वमेधः || ३७३ ॥ दधिषाय्यदीषाय्यो || ३७४ ॥ एतावाय्यप्रत्ययान्तौ निपात्येते ॥ दधिपूर्वात् स्यतेः षत्वं च । दधिषाय्यं पृषदाज्यं मृषावादी च || दीव्यतेर्दीधीप् च । दीधीषाय्यं तदेव || ३७४ ॥ कौतेरियः || ३७५ || कुंक् शब्दे । इत्यस्मादियः प्रत्ययो भवति || कवियं खलीनम् ||३७५ ॥ कृगः कित् || ३७६ ।। डुकुंग् करणे | इत्यस्मात्किदियः प्रत्ययो भवति || क्रियो मेषः || ३७६ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ हेमचन्द्रव्याकरणे [३७७-३८४ मृजेर्णालीयः ॥ ३७७ ।। मृजौक शुद्धौ | इत्यस्माणिदालीयः प्रत्ययो भवति || मार्जालीयं पापशोधनम् । मार्जालीयोमिः ॥ मृजोस्य वृद्धिरिति वृद्धिः । णकार उत्तरार्थः ॥ ३७७ ॥ वेतेस्तादिः ॥ ३७८ ॥ वींक प्रजननादौ । इत्यस्मात्तकारादिणिदालीयः प्रत्ययो भवति ॥ वैतालीयं छन्दोजातिः ॥ ३७८ ॥ धाग्राजिगृरमियाज्यर्तेरन्यः ॥ ३७९ ।। एभ्योन्यः प्रत्ययो भवति ॥ डुधांग्क् धारणे च | धान्यं सस्य जातिः ॥ राजग दीप्तौ । राजन्यो ज्योतिरनिः क्षत्रियच ॥ शृश् हिंसायाम् । शरण्यस्त्राता || रमि क्रीडायाम् । रमण्यं शोभनम् ॥ यजी देवपूजादौ । णौ । याजन्यः क्षत्रियो यज्ञश्च ।। क् गतौ । अरण्यं वनम् ॥ ३७९ ॥ हिरण्यपर्जन्यादयः ॥ ३८० ॥ . हिरण्यादयः शब्दा अन्यप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ हरतेरियातः । हिरण्यं सुवर्णादिद्रव्यम् ॥ परिपूर्वस्य पृष् सेचने । इत्यस्योपसर्गान्तलोपो था- . तोश्च जः समस्तादेशः । गर्जतेर्वा गकारस्य पकारः । पर्जन्य इन्द्रो मेघः शङ्कः पुण्यं कुशलं च कर्म । आदिशब्दादन्येपि ॥ ३८० ॥ वदिसहिभ्यामान्यः ॥ ३८१ ॥ आभ्यामान्यः प्रत्ययो भवति ॥ वद व्यक्तायां वाचि । वदान्यो दाना गुणवाश्चारुभाषी च ॥ षहि मर्पणे | सहान्यः शैलः ॥ ३८१ ॥ वृड एण्यः ॥ ३८२ ॥ वृड्श संभक्तौ । इत्यस्मादेण्यः प्रत्ययो भवति ॥ वरेण्यः परं ब्रह्म धाम श्रेष्ठः प्रजापतिरन्नं च ॥ ३८२ ॥ मदेः स्यः ॥ ३८३ ॥ मदैच् हर्षे । इत्यस्मात्स्यः प्रत्ययो भवति ॥ मत्स्यो मीनो धूर्तथ॥३८३॥ रुचिभुजिभ्यां किष्यः ॥ ३८४ ॥ आभ्यां किदिष्यः प्रत्ययो भवति ॥ रुचि अभिप्रीत्यां च । रुचिष्यो वल्लभः सुवर्ण च ॥ भुजंप पालनाभ्यवहारयोः । भुजिष्य आचार्यो भोक्तानं मृहोदनो दासश्च । भुजिष्यं धनम् ॥ ३८४ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८५-३८८] उणादिगणविवृतिः। वार्थभ्यामुष्यः ॥ ३८५ ॥ आभ्यामुष्यः प्रत्ययो भवति ॥ वचं भाषणे । वचुष्यो वक्ता ॥ अर्थणि उपयाचने | अर्युष्योर्थी ॥ ३८५ ।। वचोथ्य उत् च ॥ ३८६॥ वचं भाषणे । इत्यस्मादथ्यः प्रत्ययो भव ]त्यस्य च उत् इत्यादेशो भवति ॥ उतथ्य ऋषिः ॥ ३८६ ।। भीवधिरुधिवज्यगिरमिवमिवपिजपिशकिस्फायिवन्दीन्दिपदिमदिमन्दिच न्दिदसिघसिनसिहस्यसिवाशिदहिसहिभ्यो रः ॥ ३८७ ॥ एभ्यो रः प्रत्ययो भवति ॥ विभीक् भये । भेरो भेदः करभः शरो मण्डूको दुन्दुभिः कातरश्च । ऋफिडादित्वाल्लत्वे । भेलश्चिकित्साग्रन्थकारः शरो मण्डकः प्रहीणोप्राज्ञश्च ॥ वृधूड् वृद्धौ । वर्धश्चर्मविकारश्चन्द्रो मेघश्च ॥ रुधूपी आवरणे । रोधो वृक्षविशेषः।। वज गतौ । वचं कुलिशं रत्नविशेषश्च ॥ अग कुटिलायां गतौ । अयः प्राग्भागः श्रेष्ठश्च ॥रमिं क्रीडायाम् । रम्रः कामुकः ।। टुवमू उद्गिरणे | वम्रो धर्मविशेषो धूमश्च । वम्युपदेहिका ॥ डुवी बीजसंताने | वप्रः केदारः प्राकारो वास्तुभूमिश्च ।। जप मानसे च | जपो ब्राह्मणो मण्डूकश्च । शकुंट शक्तौ । शक इन्द्रः।। स्फायैड् वृद्धौ । स्फारमुल्वणं प्रभूतं च ॥ वदुड् स्तुत्यभिवादनयोः । वन्द्रो बन्दी केतुः कामश्च । चन्द्रं समूहः॥ इदु परमैश्वर्ये । इन्द्रः शक्रः ।। पदिच् गतौ । पद्रं ग्रामादिमिवेशः शून्यं च ॥ मदैच् हर्षे । मद्रा जनपदः क्षत्रियश्च । मद्रं सुखम् ॥मदुड् स्तुत्यादिषु । मन्द्रो मधुरस्वरः । मन्द्रं गम्भीरम् || चदु दीप्त्या हादयोः । चन्द्रः शशी सुवर्ण च ॥ दसूच् उपक्षये | दस्रः शिशिरं चन्द्रमा अश्विनोज्येष्ठश्च । दस्रावश्विनौ ॥ घसं अदने | घस्रो दिवसः ॥ णसि कौटिल्ये । नसो नासिकापुट ऋषिश्च ।। हसे हसने । हलो दिनं घातको हर्षुलश्च । हसं बलाधानं संनिपातश्च | सहस्रं दश शतानि ॥ असूच क्षेपणे । अनमश्रु || वाशिच् शब्दे । वाश्रः पुरुषः शब्दः संघातः शरभो रासभः पक्षी च । वात्रा धेनुः ॥ दहं भस्मीकरणे । दहोनिः शिशुः सूर्यच ॥ पहि मर्पणे । सहः शैलः ॥ ३८७ ॥ ऋज्यजितञ्चिवञ्चिरिपिसृपितृपिदृपिचुपिक्षिपिक्षुपिक्षुदिमुदिरुदिछिदिभिदिखिद्युन्दिदम्भिशुभ्युम्भिदंशिचिसिवहिविसिवसिशुचिसिधि गृधिवीन्धिश्चितिवृतिनीशीसुसूभ्यः कित् ॥३८८।। एभ्यः किन्द्रः प्रत्ययो भवति || शनि गतिस्थानार्जनोजनेषु । ऋचो नाय Aho! Shrutagyanam Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [३८९ क इन्द्रोर्थश्च ॥ अज क्षेपणे च । अचो वीरो विक्रान्तः ॥ तञ्जू वञ्चु गतौ । तक्र. मुदश्वित् । वक्रः कुटिलोङ्गारको विष्णुश्च । उभयत्र न्यकादित्वात्कत्वम् ।। रिपिः सौत्रः । रिप्रं कुत्सितम् || सृपं गतौ | सृप्रश्चन्द्रः । सृनं मधु । सृपा नाम नदी ।। तृपौच प्रीतौ । तृपं मेघान्तधर्म आज्यं काष्ठं पापं दुःखं च ॥ दृपौच् हर्षमोहनयोः। वृतं बलं दुःखं च | दृप्रा बुद्धिः ।। चुप मन्दायां गतौ । चुपो वायुः ॥ क्षिपीत् प्रेरणे | क्षिप्रं शीघ्रम् ।। क्षुपिः सादने सौत्रः । क्षुपं तुहिनं कण्टकिगुल्मश्च । क्षु. दंपी संपेषे । क्षुद्रमणु जलगर्तश्च । क्षुद्रा मधुकर्यः । क्षुद्रो हिंसः ।। मुदि हर्षे । मुद्रा चिह्नकरणम् ।। रुदृक् अश्रुविमोचने | रुद्रः शम्भुः ॥ छिदंपी द्वैधीकरणे । छिद्रं विवरम् ॥ भिदंपी विदारणे | भिद्रमदृढम् । भिद्रः शरः ।। खिदत् परिघाते । खिद्रं विनः । खिद्रो विषाणो विषादश्चन्द्रो दीनश्च ।। उन्दैप केदने । उद्र ऋषिर्मत्स्यश्च | सम्पूर्वात् समुन्दन्ति | आर्दीभवन्ति वेलाकाले नद्योस्मादिति समुद्रः सागरः । भीमादित्वादपादाने ।। दम्भूट दम्भे । दभ्रोल्पचन्द्रः कुशः कुशलः सूर्यश्च ।। शुभि दप्तिौ । शुभ्रोवदातः ।। उम्भत् पूरणे । उभ्रो मेघः पेलवश्व ।। दंशं दशने । दो दन्तः सर्पश्च ।। चिंगट् चयने । चिरमशीघ्रम् ॥ पिंगट बन्धने । सिरा रुधिरस्रोतोवाहिनी नाडी ।। वहीं प्रापणे । उहोनड्डान् ॥विसच प्रेरणे | विनमामगन्धिकम् ।। वसं निवासे | उस्रो रश्मिः | वाहुलकात् षत्वं न भवति । उस्रा गौः ।। शुच शोके । शुक्रो ग्रहो मासः शुक्लश्च । शुक्र रेतः । लत्वे । शुक्लो वर्णः । कत्वं न्यवादित्वात् ।। षिधू गत्याम् । सिध्रः साधुर्वृक्षो मांसप्रभेदश्च ।। गृधच अभिकाङ्क्षायाम् । गृध्रः श्येनो लुब्धकः कङ्कश्च ।। भिइन्धेपि दीप्तौ । विपूर्वात् ।। वीधोग्निर्वायुर्नभो निर्मलः पूर्णचन्द्रमण्डलं च ।। श्विताद् वणे । श्वित्रं श्वेतकुष्ठम् । वृतूड् वर्तने । वृत्रो दानवो बलवात्रिपुश्च । वृत्रं पापम् ।। णींग् प्रापणे । नीरं जलम् ॥ शीड्क् स्वमे । शीरोजगरः ॥ पुंग्ट् अभिषवे । मुरो देवः । मुरा मद्यम् ।। षूडौच् प्राणिप्रसवे । सूर आदित्यो रश्मिश्च ॥ ३८८॥ इण्धाग्भ्यां वा ॥ ३८९॥ आभ्यां रः प्रत्ययो भवति स च किडा भवति ॥ इण्क् गतौ । हरा मदनीयपानविशेषो मेदिनी च ॥ एरैडका ।। डुधांग्क् धारणे च । धीरः सत्त्वपान्धृतिमांश्च ॥ धारा जलयष्टिः खडावयवोश्वगतिविशेषश्च ॥ ३८९ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९०-३९५] उणादिगणविवृतिः। चुम्बिकुम्बितुम्बेर्नलुक् च ।। ३९० ॥ एभ्यः किद्रः प्रत्ययो भवति नकारस्य चैषां लुग्भवति ॥ चुबु वक्त्रसंयोगे। चुनं वक्त्रम् । चुबो रश्मिः ॥ कुबु आच्छादने । कुब्र संकटं भग्नपृष्टः फल्गुहस्वी चर्म गृहाच्छादनं च ॥ तुबु अर्दने । तुजं कुटिलम् ॥ ३९ ॥ भन्देर्वा ॥ ३९१ ॥ ___ भटुड् मुखकल्याणयोः । इत्यस्माद्रः प्रत्ययो [भवति नकारस्य च लुग्वा भवति ॥ भद्रं भन्द्रं च कल्याणं सुखं च ॥ ३९१ ॥ _चिजिशुसिमितम्यम्यर्देर्दीर्घश्च ॥ ३९२ ॥ __ एभ्यो रः प्रत्ययो भवति] दीर्घश्चैषां भवति ॥ चिंग्ट् चयने । चीर जीर्ण. वस्त्रं वल्कलं च || जिं अभिभवे । जीरोजाज्यग्निर्वायुरश्वश्च । जीरमन्नम् । लत्वे । जीलचर्मपुटः ॥ शुं गतौ । शूरो विक्रान्तः ॥ किंग्ट् बन्धने । सीरं हलम् । सीरा हलविलेखिता लेखा । डुमिंग्ट प्रक्षेपणे । मीरः समुद्रः । मीरं जलम् । मीरा मांस्पचनी देवसीमा च ॥ तमूच काङ्क्षायाम् ॥ ताम्रो वर्णः शुल्वं च ।। अम गतौ | आम्रो वृक्षः ॥ अर्द गतियाचनयोः । आई सरसम् ।। ३९२ ॥ चकिरमिविकसेरुच्चास्य ।। ३९३ ।। चकिरमिभ्यां विपूर्वाञ्च कसे रः प्रत्ययो भव ]त्यकारस्य चैषामुकारो भवति ॥ चकि तृप्तिप्रतीघातयोः । चुक्रोम्लो रसो बीजपूरकमिञ्जिकासुरो निमन्त्रणं च ॥ रमि क्रीडायाम् । रुनः सुन्दर आदित्यसारथिब्राह्मणो विनाशश्च । कस गतौ । विकुस्रश्चन्द्रः समुद्रश्च । विकुखं पुष्पितम् । बाहुलकादिक सेर्विकल्पः । विकनः ॥ ३९३ ॥ शदेरूश्च ।। ३९४ ॥ शहूँ शातने । इत्यस्माद्रः प्रत्ययो भवत्यकारस्य च ऊकारो भवति । शूद्रश्चतुर्थो वर्णः ॥ ३९४ ॥ . कृतेः क्रूकृच्छौ च ॥ ३९५ ॥ कृतैत् छेदने । इत्यस्माद्रः प्रत्ययो भव त्यस्य च क्रू कृच्छ्र इत्यादेशी भवतः ।। क्रूरममृदु । क्रूरः पापकर्मा | कृच्छं दुःखम् ।। ३९५ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे (३९६-३९७ खुरक्षुरदूरगौरविपकुप्रश्वमानधूम्रान्ध्ररन्ध्रशिलिन्धौड्पुण्ड्रतीवनीवशी. घोग्रतुग्रभुग्रनिद्रातन्द्रासान्द्रगुन्द्रारिजादयः ।। ३९६ ।। एते रप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ खुरत् छेदने । क्षुरत् विलेखने । अनयों रलोपो गुणाभावश्च । खुरः शफः ॥ क्षुरो नापितभाण्डम् ।। ननु च खुरक्षुरशब्दौ नाम्युपान्त्यीकृगृज्ञः क इति केन सिध्यतः । सत्यम् । तत्र कर्तेवार्थ इह तु संप्रदानाचान्यत्रोणादय इत्यर्थभेदः । असर्वविषयत्वं कानयोर्जाप्यते । यथा । अदेः परोक्षायां वा घस्लादेशवचनेन घसेः । एवमन्यत्रापि स्वयमभ्यूह्यम् ।।दुपूर्वात् इणो लुक् च । दूरं विप्रकृष्टम् ।। गवतेवृद्धिश्च | गौरोवदातः विपूर्वात् पाते क् च । विप्रो ब्राह्मणः । विविध प्रातीति वा विप्रः ॥ गुपच् व्याकुलत्वे । आदेः कत्वं च । कुप्रं गहनं गृहाच्छादनं च ।। वोश्वि गतिवृद्धयोः । अकारो भोन्तश्च । श्रभ्रं बिलमाकाशं च ।। आपुंट व्याप्तौ । अभादेशश्च । अझं मेघः॥ धूग्श् कम्पने । मोन्तश्च । धू. म्रो वर्णविशेषः । अहुड् गतौ । धच । अन्ध्रः क्षत्रजातिः ॥ रधेः स्वरानोन्तश्च । रन्धं छिद्रम् ॥ त्रिइन्धैपि दीप्तौ । अस्य च तालव्यादिशिलश्वादिः । शिलिन्ध्रमुद्भिविशेषः ।। ओणेर्डश्च | ओडूः क्षत्रजातिः ॥ पुणेः स्वरानोन्तो डश्च । पुण्डेर्वा रूपम् । पुण्ड्रः क्षत्रजातिस्तिलकच ॥ तिजेर्वो दीर्घश्व तीवते | नीवस्तीक्ष्ण उत्कृष्टश्च ।। नियो वान्तश्च नीवते; । नीव्र गृहच्छदिरुपान्तः ॥ श्येड ईत्वं यलोपो पश्चान्तः । शीघ्रस्त्वरितः ॥ उवेरुषेर्वा गः किछ । उग्रो रुद्रो रौद्रश्च ।। तुदीत् व्यथने | गः किन्न । तुग्रं शृङ्गम् ।। भुजंप पालनाभ्यवहारयोः । गः किञ्च । भुयो रहिमसमूहः ।। णिदु कुत्सायाम् । किन्नलोपश्च । निद्रा स्वापः ॥ तमूच काङ्क्षायाम् । दोन्तश्च । तन्द्रालस्यम् ।। षढ़ विशरणगत्यवसादनेषु । अस्य स्वरानोन्तो वृद्धिश्च । सान्द्रं धनम् ॥ गुदेः स्वरानोन्तश्च । गुन्द्रा जलतणविशेषः ॥राजे रञ्जेर्वा किच इचोपान्त्यस्य | रिचो नायकः ॥ आदिग्रहणादन्यपि ॥ ३९६ ॥ ऋछिचटिवटिकुटिकठिवठिमठयडिशीकृशीभृकांदेवदिकन्दिमन्दिसुन्दिमन्थिमञ्जिपञ्जिपिञ्जिकमिसमिचमिवमिभ्रम्यमिदेवि वासिकास्यर्तिजीविबर्विकुशुदोररः ॥ ३९७॥ एभ्योरः प्रत्ययो भवति ।। कछत् इन्द्रियप्रलयमूर्तिभावयोः । ऋच्छरस्त्वरावान् । मच्छरा वेश्या कुलटा त्वराङ्गुलिश्च ॥ चटण भेदे | चटरस्तस्करः ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८-३९९] उणादिगणविवृतिः । . चट वेष्टने । वटरो मधुकण्डरा । कुटत् कौटिल्ये । कोटरं छिद्रम् । बाहुलकाद्गुणः ॥ कठ कृच्छजीवने । कठरो दरिद्रः। वट स्थौल्ये । वठरो मूल् बृहवेहश्च ॥ मठ मदनिवासयोश्च । मठर ऋषिरज्ञानी गोत्रमलसश्च ।। अड उद्यमे । अडरो वृक्षः ॥ शीकृड् सेचने । शीकरो जललवसेकः ॥ शीभृड् कत्थने । शीभरो हस्तिहस्तमुक्तो जललवसेकः।। कदिः सौत्रः । कदरो वृक्षविशेषः ॥ बद स्थैर्ये । बदरी फलवृक्षः ॥ कदुड् वैक्लव्ये । कन्दरो गिरिगतः ॥ मनुड् स्तुत्यादौ | मन्दरः शैलः ॥ सुन्दिः सौत्रः शोभायाम् । सुन्दरो मनोज्ञः ॥ मन्थश् विलोडने । मन्थरो मन्दः खर्वश्च ॥ मञ्जिपञ्जी सौत्रौ । मञ्जर्याम्रादिशिखा | गौरादित्वाड्डीः ।। पञ्जरः शुकायवरोधसन । पिजुण् हिंसाबलदाननिकेतनेषु | पिचरः पिशङ्गः ।। कमूड् कान्तौ । कमरो मूर्खः कार्मुकं कोमलचौरः कान्तश्च ॥ षम वैक्लव्ये । समरः संग्रामः ॥ चमू अदने | चमर आरण्यपशुः ।। टुवमू उद्गिरणे । वमरो दुर्मेधाः ॥ भ्रमूच् अनवस्थाने । भ्रमरः षट्पदः ॥ अम गतौ । अमरः सुरः।। देघृड् देवने । देवरः पत्यनुजः ॥ वसं निवासे । णौ । वासरी दिवसः कामोनिः प्रावृट् च । अन्ये वाशिच् शब्दे । इत्यस्मादपि तालव्यान्तादिच्छन्ति | वाशरोनि#घो दिवसथ || कासृड् शब्दकुत्सायाम् । कासरो महिषः।। क् गतौ । भररः कपाटो बुधो भ्रमणो गृहं हरणं शलाका च || जीव प्राणधारणे । जीवरो दीर्घायुः॥ बर्व गतौ । बर्बरो मेच्छ जातिः। बर्बरी कुञ्चिताः केशाः ॥ कुंक् शब्दे । कबरो वर्णः । कबरी वेणिः ॥ शुं गतौ । शबरो मेच्छजातिः । शव गतौ | इत्यस्यान्ये ॥ टुट उपतापे । दवरी गुणः ।। ३९७ ॥ अवेर्ध च वा ॥ ३९८ ॥ अव रक्षणादौ । इत्यस्मादरः प्रत्ययो [ भवति ] धकारश्चान्तादेशो वा भवति ॥ अधरो हीन उपरिभावस्य प्रतियोगी दन्तच्छदश्च ॥ अवरः परप्रतियोगी ॥ ३९८ ॥ मृधुन्दिपिठिकुरिकुहिभ्यः कित् ।। ३९९ ॥ एभ्यः किदरः प्रत्ययो भवति || मृदश् क्षोदे । मृदरो व्याधिरतिकायः क्षोदश्च ।। उन्दैप् क्लेदने । उदरं जठरं व्याधिश्च ।। पिठ हिंसासंक्लेशयोः । पिठरं भाण्डम् ॥ कुरत् शब्दे । कुररो जलपक्षिजातिः ॥ कुहणि विस्मापने । कुहरं गम्भीरगतः ॥ ३९९ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे शाखेरिदेतौ चातः || ४०० ॥ शाखृ व्याप्तौ | इत्यस्मादरः प्रत्ययो [ भव ] त्याकारस्य च इकार-एकारौ भवतः || शिखरमयम् || शेखर आपीडः || ४०० ॥ ७ [४००–४०३ शपेः फ् च ॥। ४०१ ॥ शपीं आक्रोशे । इत्यस्मादरः प्रत्ययो [भवति ] फकारश्वान्तादेशो भवति || शफरः क्षुद्रमत्स्यः ॥ ४०१ ॥ दमेfर्णद्वा दश्च डः ॥ ४०२ ॥ दमूच् उपशमे । इत्यस्मादरः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिद्दा दकारस्य च डकारो भवति || डामरो भयानकः || उमरः स एव || ४०२ ।। जठरक्रकरमकरशंकरकर्परकूर्परतोमरपामरप्रामरप्राझरसगरनगरतगरोर्दरादरशृदरदृदरकृदरकुकुन्दरगोर्वराम्वरमुखरखरडहरकुञ्ज राजगरादयः || ४०३ || पते किदरप्रत्ययान्ता तिपात्यन्ते || जनेष्ठ च । जठरं कोष्ठः ॥ क्रमेः क च । क्रकरो गौरतित्तिरः || मङ्केर्नलोपश्च । मकरो ग्राहः ॥ शम्पूर्वात् किरतेर्डिच्च | शंकरो रुद्रः || कुपेरुपान्त्यस्य ऊर् च वा । कर्परं कपालम् | कूर्परं कुफणी || ताम्यतेरत ओच्च | तोमर आयुधम् || पातेर्मोन्तश्च । पामरो ग्रामीण: || प्रपूर्वात् अमते: | प्रामरो प्राम्यमन्दजातिः || प्रपूर्वात् अत्तेर्मोन्तश्च | प्राद्मरो नरपशुः || सहिनश्योर्ग च | सगरो द्वितीयचक्रवर्ती || नगरं पुरम् || तङ्गेर्नलोपश्च । तगरो वृक्षविशेषः || ऊर्जः परात् दृणातेर्डित् जलुक् च । ऊर्जा बलेन दृणाति विभेति | ऊर्दरो दुर्बल: || अनु बन्धने | नलुक् च । भदरं वक्षो वृक्षः संग्रामश्च समूहो मातृवाहश्च || शृश् हिंसायाम् | दृश् विदारणे | अनयोर्हस्वत्वं दश्चान्तः || शृदरः सर्पः || दृदरं विषं भयं च || डुकृंग् करणे | दोन्तश्च । कृवरो वृक्षः सर्वकर्मप्रवृत्तो दस्युजनः कुसुलश्च || कुपूर्वात् स्कुदुड् आप्रवणे । सलोपश्च । कुकुन्दरं श्रोणीकूपकः || गोपूर्वात् वृगो डित् । रवादिः । गोर्षरः करीषः || अमेर्वोन्तश्व | अम्बरं वमाकाशं च || मुहे: ख च । मुखरो बाचालः || खनेर्डश्च । खरो रासभः || दहेरादेर्डश्च | डहरं हत्कमलम् || कूज अव्यक्त शब्दे । ह्रस्वत्वं स्वरानोन्तश्च । Aho! Shrutagyanam Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४-४०० उणादिगणविवृतिः। कुन्चरो हस्ती ।। अजेरगवान्तो वीभावाभावश्च | अजगरः शयुः ।। आदिग्रहणात् कोठराडारशाङ्गरपाण्डरवानरादयो भवन्ति ।। ४०३ ॥ मुदिगूरिभ्यां टिद्गजौ चान्तौ ॥ ४०४ ।। आभ्यां टिदरः प्रत्ययो [ भवति ] गकारजकारौ च यथासंख्यमन्तौ भचतः ॥ मुदि हर्षे । मुद्रः प्रहरणविशेषः । मुद्री बी ।। गुरैचि गतौ । गूर्जरः सौराष्ट्रादिः । गूर्जरी स्त्री ।। ४०४ ॥ अग्यङ्गिमदिमन्दिकडिकसिकासिमजिकञ्जिकलिमलिक चिभ्य आरः ।। ४०५॥ एभ्य आरः प्रत्ययो भवति ।। अग कुटिलायां गतौ । अगारं वेश्म ।। अगु गती । अङ्गारो निर्वातज्वालो निर्वाणवोल्मुकावयवो भूमिसुत्तश्च ॥ मदैच् हर्षे । मदारः पानशौण्डो वराहो हस्त्यलसच ॥ मदुइ स्तुत्यादौ । मन्दारो वृक्षविशेषः॥ कडन् मदे । कडारः पिङ्गलो विषमदशनश्च ॥ कस गतौ । कसारो हिंस्रः।। कामृड् शब्दकुत्सायाम् । कासारः पल्वलम् ॥ मृजौक शुद्धौ । मार्जारो विडालः || कञ्जिः सौत्रः । कारः कुसूलजातियूपो व्यञ्जनं च ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलारो विषमरूपः।। मलि धारणे । मलारोलसः । मलमिवारातो दोस्येति [?] वा मलारः ॥ कचि बन्धने । कचारोपनेयतृणबुसपांशुविकारः ॥ ४०५ ॥ त्रः कादिः ॥ ४०६॥ तृ प्लवनतरणयोः । इत्यस्मात्ककारादिरारः प्रत्ययो भवति || तर्कारी वृक्षः ॥ ४०६ ॥ कृगो मादिश्च ॥ ४०७॥ करोतेर्मकारादिः ककारादिवारः प्रत्ययो भवति ॥ कर्मारो लोहकारः ।। कर्कारो वृक्षः ॥ ४०७ ॥ तुषिकुठिभ्यां कित् ।। ४०८ ॥ आभ्यां किदारः प्रत्ययो भवति ॥ तुषंच तुष्टौ | तुषारो हिमम् ॥ कुठिः सौत्रः । कुठारः परशुः ॥ ४०८॥ Aho! Shrutagyanam Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे (४०९-४१४ कमेरत उच्च ॥ १०९॥ कमूड् कान्तौ । इत्यस्मादारः प्रत्ययो [ भव ] त्यकारस्य च उकारो भवति ॥ कुमारो महासेनोभ्रष्टो बालश्च ।। ४०९ ।। कनेः कोविदकर्बुदकाञ्चनाश्च ॥ ४१० ॥ कनै दीयादौ । इत्यस्मादारः प्रत्ययो भव ]त्यस्य च कोविद कर्बुद काञ्चन इत्यादेशा भवन्ति ॥ कोविदारः । कर्बुदारः । काञ्चनारश्च वृक्षविशेषाः ॥ ४१० ॥ __द्वारशृङ्गारभृङ्गारकहारकान्तारकेदारखारडादयः ॥ ४११॥ एत आरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। उभत् पूरणे | द्वादेशच । द्वारं द्वाः ॥ प्रयतेस्तालव्यादिः शृङ्गश्च । शृङ्गारो रसविशेषो विदग्धता च || भृगो भृङ्ग च । भृङ्गारो हस्तिमुखाकारगलन्तिका ॥ कलेहश्च स्वरात्परः । कहारमुत्पलविशेषः ॥ कमेस्तोन्तो दीर्घश्च । कान्तारमरण्यम् ।। कदेः सौत्रस्यात एच । केदारो वप्रः ।। खडिच्च । खारी चतुद्रोणम् । खारडिति टकारो ड्यर्थः ।। आदिग्रहणात् शिशुमारादयोपि भवन्ति ।। ४११॥ मदिमन्दिचन्दिपदिखदिसहिवहिकुसृभ्य इरः || ४१२ ॥ एभ्य इरः प्रत्ययो भवति || मदैच् हर्षे । मदिरा सुरा ॥ मदुड् स्तुत्यादौ । मन्दिरं वेश्म नगरं च || चदु दीप्याहादयोः । चन्दिरश्चन्द्रमा हस्ती च । चन्दिरं चन्द्रिकावज्जलं च ॥ पदिंच गतौ | पदिरो मार्गः ।। खद हिंसायां च । खदिरो वृक्षविशेषः ।। षहि मर्षणे । सहिरः पर्वतः ॥ वहीं प्रापणे । वहिरो बलीवर्दः ।। कुंक् शब्दे । कविरोक्षिकोणः ॥ तूं गतौ । सरिरं जलम् । लत्वे । सलिलम् ॥ ४१२॥ शवशरिचातः ॥४१३॥ आभ्यामिरः प्रत्ययो भव]त्यकारस्य च इकारो भवति ॥ शव गतौ । तालव्यादिः । शिविरं सैन्यसंनिवेशः ॥ शश लुतिगतौ । शिशिरं शीतलमृतुश्च श्रन्थेः शिथ् च ॥ ४१४ ॥ अथुड शैथिल्ये । इत्यस्मादिरः प्रत्ययो भव त्यस्य च शिथ् इत्यादेशो भवति ॥ शिथिर अथम् | लत्वे । शिथिलम् ॥ ४१४ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृति: । अशेणित् || ४१५ ॥ अनोतेरातेर्वा गिरिः प्रत्ययो भवति ॥ भशिरो विष्णुरादित्यश्व | प्राशिरो बह्वाशी || ४१५ ॥ ४१५-४१८] शुषीषिवन्धिरुधिरुचिमुचिमुहिमिहिति मिमुदिखिदिछिदिभिदिस्याभ्यः कित् ॥ ४१६ ॥ ७३ एभ्यः किदिरः प्रत्ययो भवति || शुषंच् शोषणे । शुषिरं छिद्रम् ॥ इषत् इच्छायाम् । इषिरं तृणम् । इषिरोग्निराहारः क्षित्रः सेव्यश्व || बन्धंश् बन्धने । 1 बधिरः श्रुतिविकलः || रुक्षूंपी आवरणे | रुधिरं द्वितीयो धातुः । रुचि अभिप्रीत्यां च | रुचिरं दयितं दीप्तिमच्च || मुलुंती मोक्षगे । मुत्रिरो धर्मः सूर्यो मेघश्र || मुहौच् वैचिये | मुहिरः कन्दर्पः स्वर्यश्व | मुहिरं तमः || मिहं सेचने | मिहिरो मेघः सूर्यश्व | मिहिरं तोयम् || तिमच् आर्द्रभावे । तिमिरं तमस्तोयं रोग कश्चित् || मुदि हर्षे | मुदिरो मेघः सूर्यच || खिदंत् परिघाते | खिदिरस्वासस्तस्करश्च || छिदूंपी द्वैधीकरणे । छिदिर उन्दुरोभिश्व | छिदिरं शस्त्रम् ॥ भिर्नृपी विदारणे । भिदिरोशनिर्भेदश्व || ष्ठां गतिनिवृत्तौ | स्थिरोत्रलः || ४१६ || स्थविरपिटिरस्फिराजिरादयः || ४१७ || एते किदिरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते | तिष्ठतेर्वोन्तो ह्रस्वश्व | स्थविरो वृद्धः || पत्रतेरत इत्वं ठश्च | पिडिंरं साधनभाण्डम् || स्फायतेर्डिच । स्फिरः स्फारो वृद्धिश्व || भजेर्वीभावाभावश्च | अजिरमङ्गणं नगरं देवो वेश्म च || आदिग्रहणादन्येपि || ४१७ || कृगृपृपूरमञ्जिकुटिकटिपटिकण्डिशौण्डिहिंसिभ्य ईरः || ४१८ || एभ्य ईरः प्रत्ययो भवति | कृत् विक्षेपे । करीरो वनस्पतिविशेषो वंशायङ्करश्थ || शृश् हिंसायाम् | शरीरं वपुः || पृश् पालनपूरणयोः । परीरं बलं लाङ्गलमुखं च पूग्श् पवने । पवीरं रङ्गस्थानं फलं पवित्रं बीजावपनं च || मञ्जिः सौत्रः । मञ्जीरं नूपुरः || कुटत् कौटिल्ये | कुटीरमालयः कर्कटकश्चन्द्राभयराशिश्व | कोटीरं मुकुटः | बाहुलकाद्गुणः || कटे वर्षावरणयोः । कटीरं जनपदो जघनं जलं च || पट गतौ । पटीरः कन्दर्पः । पटीरं कार्मुकं स्फिक् च || कडु मदे | कण्डीरं हरितकम् || शौद्ध गर्ने । शौण्डीरो गर्वितः सवान्तीक्ष्णश्य || हिंसुप् हिंसायाम् । हिंसीरः श्वापदो हिंस्रव || ४१८ ॥ 10 Aho! Shrutagyanam Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ हेमचन्द्रव्याकरणे [४१९-४२३ घसिवशिपुटिकुरिकुलिकाभ्यः कित् ।। ४१९ ।। एभ्यः किदीरः प्रत्ययो भवति ॥ घसं अदने । क्षीरं दुग्धं मेघश्च ।। वशक् कान्ती | उशीरं वीरणीमूलम् ।। पुटत् संश्लेषणे | पुटीरः कूर्मः ।। कुरत् शब्दे | कुरीरं मैथुनं वेश्म च । कुरीरो मालाविशेषः कम्बलश्च ॥ कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलीरः कर्कटः ॥ मैं शब्दे | कीरः शुकः काश्मीरकश्च ॥ ४१९ ॥ कशेर्मोन्तश्च ॥ ४२० ।। कश शब्दे । इत्यस्मात्तालव्यान्तादीरः प्रत्ययो भवति ]मश्चान्तो भवति । कश्मीरा जनपदः ।। ४२० ॥ वनिवपिभ्यां णित् ॥ ४२१ ॥ आभ्यां णिदीरः प्रत्ययो भवति ॥ वन भक्तौ । वानीरो वेतसः ॥ डुवपी बीजसंताने । वापीरो मेघोमोघनिष्पत्ति च क्षेत्रम् ॥ ४२१ ॥ जम्बीराभीरगभीरगम्भीरकुम्भीरभडीरभण्डीरडिण्डीर किर्मीरादयः ।।४२२॥ एत ईरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। जनेऊन्तश्च । जम्बीरो वृक्षविशेषः ॥ आमोतेर्भश्व | आभीरः शूद्रजातिः ॥ गर्भः स्वरानस्तु वा । गभीरोगाधोचपलश्च । गम्भीरः स एव । स्कुम्भः सौवात्सलोपश्च । कुम्भीरो जलचरः ॥ भडुङ् परिभाषणे । अस्य नलुक् च वा । मडीरो भण्डीरश्च योद्धृवचने ॥ डीडो डित् । द्विस्वं पूर्वस्य नोन्तश्च । डिण्डीरः फेनः ॥ किरो मोन्तश्च । किर्मीरः कर्बुरः॥ आदिमहणात् तूणीरनासीरमन्दीरकरवीरादयो भवन्ति ।। ४ २२।। वाइयसिवासिमसिमथ्युन्दिमन्दिचतिचक्यङ्किकविच किबन्धिभ्य उरः ॥ ४२३ ॥ एभ्य उरः प्रत्ययो भवति ॥ वाशिच् शब्दे । वाशुरःशकुनिर्गर्दभश्च । वाशुरा रात्रिः॥ असूच क्षेपणे । असुरो दानवः । वासण उपसेवायाम् । वासुरा रात्रिः॥ मसैच् परिणामे । मसुरा पण्यस्त्री । मसुरं चर्मासनं धान्यविशेषश्च ॥ मथे विलोडने । मथुरा नगरी ॥ उन्दैप् क्लेदने | उन्दुरो मूषिकः ॥ मदु स्तुत्यादौ । मन्दुरा वाजिशाला || चतेग याचने । चतुरो विदग्धः ।। चङ्किः सौत्रः । चङ्कति चेष्टते। चङ्कुरो रथोनवस्थितश्च ।। अकुड् लक्षणे । अङ्करः प्ररोहस्तरुपतानभेदश्च । घञ्युपसर्गस्य बहुलमिति बहुलवचनारीर्घवे । अङ्करः॥ कर्व गतौ । कर्बुरः शबलः ।। Aho I Shrutagyanam Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४-४२७] उणादिगणविवृतिः। . चकि तृप्तिपतीघातयोः । चकुरो दशनः ॥ बन्धंश् बन्धने | बन्धुरो मनोज्ञो नम्रश्च ॥ ४२३ ॥ मङ्के लुक् वोच्चास्य ।। ४२४ ।। मकुड् मण्डने । इत्यस्मादुरः प्रत्ययो भवति नकारस्य लुक अकारस्य च उकारो वा भवति ॥ मुकुर आदर्शो मुकुलं च । मकुर आदर्शः कल्को बालपुष्पं च ॥ ४२४ ॥ विधेः कित् ॥ ४२५ ॥ विधत् विधाने । इत्यस्मात्किदुरः प्रत्ययो भवति || विधुरं वैशसम्।।४२५।। श्वशुरकुकुन्दुरदर्दुरनिचुरप्रचुरचिकुरकुकुरकुकुरकुंकुरशर्कुर नूपुरनिष्टुरविथुरमद्रुरवागुरादयः ॥ ४२६ ॥ एते किदुरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । आशुपूर्वात् शुपूर्वादा अनोतेरभातेर्वा , आकारलोपश्च । श्वशुरो जम्पत्योः पिता || कुपूर्वात् स्कुदुड् आप्रवणे | इत्यस्मासलुक् च । कुकुन्दुरौ नितम्बकूपौ ।। दृणातेयॊन्तश्च | दर्दुरो मण्डूको मेघश्व ।। निपूर्वात्मपूर्वात् चिनोतेश्वरतेर्वा डिच्च । निचुरस्तरुविशेषः । लत्वे । निचुलः ॥ प्रचुर प्रायः ॥ चकेरिचास्य । चिकुरं युवतीनामीषन्निमीलितमक्षि | चिकुराः के शाः ।। कुकेः कोन्तो वा । कुकुरो यादवः ।। कुक्कुरः श्वा || किरः कुर् कोन्तश्च । कुर्कुरः श्वा ॥ शृश् हिंसायाम् । गुणः कोन्तश्च । शर्कुरस्तरुणः ।। गुत् स्तवने । पोन्तश्च । नूपुरस्तुलाकोटिः ॥ निपूर्वात् तिष्ठतेः । निष्ठुरः कर्कशः। निठुरं काहलम् ।। व्यथेर्विथ् च । व्यथन्तेस्माज्जना इत्यपादानेपि | विथुरो राक्षसः।। मदिवात्योर्गोन्तश्च । मद्गुरो मत्स्यविशेषः ॥ वागुरा मृगानायः || आदिग्रहणात् मन्यतेर्धश्च । मधुरो रसविशेष इत्यादि || ४२६ ॥ मीमसिपशिखटिखडिर्जिकर्जिसर्जिकृपिवल्लिमाण्डिभ्य ऊरः ।। ४२७ ॥ एभ्य ऊरः प्रत्ययो भवति ॥ मींड्च् हिंसायाम् । मयूरः शिखी । मयां रौति मयूर इति पृषोदरादिषु संज्ञाशब्दानामनेकधा व्युत्पत्ति लक्षयति || मसैच् परिणामे । मसूरोवरधान्यजातिश्वर्मासनं च || पशिः सौत्रः । पश्यते गम्यत इति पशूरो पामः ॥ खट काड़े । खटूरो मणिविशेषः । खडण् भेदे । खडूरः खुरलीस्थानम् || खर्ज मार्जने च । खजूरो वृक्षविशेषः ॥ कर्ज व्यथने | कर्जूरः स एव मलिनश्च ।। सर्ज अर्जने | सर्जूरोहः ।। कृपौड् सामर्थे । कर्पूरो गन्धद्रव्यम् || वल्लि संवरणे | वल्लूरो शुष्कमांसम् || मडु भूषायाम् । मण्डूरो धातुविशेषः ।। ४२७ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४२८-४३२ महिकणिचण्यणिपल्यलितलिमलिशलिभ्यो णित् ।। ४२८ ।। ___ एभ्यो णिदुरः प्रत्ययो भवति ॥ मह पूजायाम् । माहूरः शैलः ।। कण गतौ । काणूरो नागः ॥ चण हिंसादानयोश्च । चाणूरो मप्लो विष्णुहतः ॥ अण शम्दे । आणूरो ग्रामः || पल गतौ | पालूरं नाम नगरमन्ध्रराज्ये ॥ अली भूषजादौ | आलूरो विटः || तलण् प्रतिष्ठायाम् | तालुरो जलावनः || मलि धारणे | मालूरो दानवो बिल्वश्व || शल गतौ | शालूरो दर्दुरः ॥ ४२८ ॥ स्थाविडेः कित् ।। ४२९ ।। आभ्यां किदूरः प्रत्ययो भवति ॥ ष्ठां गतिनिवृत्तौ । स्थूरो वटर उच्चश्व | स्थूरा जलापदेशः ॥ विड आक्रोशे । विडूरो वालवाये मामः ॥ ४२९ ॥ सिन्दूरकरपत्तूरधुत्तूरादयः ॥ ४३० ।।। एत ऊरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ स्यन्देः सिन्द च । सिन्दुरं चीनपिष्टः ॥ करीतेश्वोन्तश्च । कयूंर औषधविशेषः ॥ पतेस्तोन्तश्च | पत्तूरं गन्धद्रव्यम् ॥ धुवो द्विरुक्तस्तोन्तो हस्वश्च । धुत्तर उन्मत्तकः । दधातेर्धत्तूरमित्यन्ये ॥ आदिग्रहणात् कस्तूरहारहरादयो भवन्ति ॥ ४३० ॥ ___कुगुपतिकथिकुथिकठिकठिकुटिगडिगुडिमुदिमूलिदं शिभ्यः केरः ।। ४३१ ॥ एभ्यः किदेरः प्रत्ययो भवति ॥ कुंड शब्दे । कुबेरो धनदः ॥ गुंन् पुरीपोत्सर्गे । गुबेर युद्धम् ॥ पतु गतौ । पतेरः पक्षी पवनश्च ।। कथण वाक्यप्रबन्धे । कथेरः कथकः कुहकः शकुन्तश्च ॥ कुथच् पूतिभावे । कुथेरः शिडाकीसंभारः ।। कर कृच्छजीवने | कठेरो दरिद्रः ॥ कुठिः सौत्रः । कुठेरो निःसृतसारोर्जकश्व ।। कुटत् कौटिल्ये | कुटरः शठः ॥ गड सेचने | गडेरो मेघः प्रस्रवणशीलश्व ॥ गुडत् रक्षायाम् । गुडेरो राजा पण्यं च बालभक्ष्यम् ॥ मुदि हर्षे । मुदेरो मूर्खः । मूल प्रतिष्ठायाम् । मूलेरो वनस्पतिः । मूलेरं पण्यम् ॥ दंशं दशने । दशेरः सर्पः सारमेयो जनपदश्च ॥ ४३१॥ शतेरादयः ॥ ४३२ ॥ शतेर इत्यादयः शब्दाः केरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ शर्दू शातने । तश्च । शतेरो वायुस्तुपारच ॥ आदिग्रहणात् गुधेरशृङ्गवेरनालिकेरादयो भवन्ति ।। ४३२॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृति: । ठिकसहिभ्य ओरः || ४३३ || एभ्य ओरः प्रत्ययो भवति || कठ कृच्छ्रजीवने | कठोरोमृदुश्चिरन्तनश्च || चक तृप्तौ | चकोर: पक्षिविशेषः पर्वतविशेषश्च ।। षहि मर्षणे । सहोरो विष्णुः पर्वतश्च || ४३३ ॥ ४३३-४३९] ७७ कोरचोरमोरकिशोरघोरहोरादोरादयः || ४३४ ॥ कोर इत्यादयः शब्दा भोरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || कायतेश्वर ते म्रियतेश्व डिव | कोरो बालपुष्पम् || चोरस्तस्करः || मोरो मयूरः || कृशेरि चोपान्त्यस्य । किशोरस्तरुणो बालाश्वश्च ॥ हन्तेर्डित् घश्च । घोरं कष्टम् | हंगू हरणे | होरा निमितवादिनां चक्ररेखा || डुदांग्क् दाने । दच् छेदने वा । दोरः कटिसूत्रं तन्तुगुश्व || आदिग्रहणादन्येपि || ४३४ || किaagभ्यः करः ४३५ ॥ एभ्यः करः प्रत्ययो भवति || किः सौत्रः | केकरो वक्रदृष्टिः || शृश् हिंसायाम् | शर्करा मत्स्यण्डिकादिः कर्कशः क्षुद्रपाषाणावयवश्व || वृग्द् वरणे | वर्कर छागशिशुः || ४३५ ॥ सुपुषिभ्यां कित् || ४३६ ॥ आभ्यां कित्करः प्रत्ययो भवति || षूत् प्रेरणे | सूकरो वराहः || पुष पुष्ट | पुष्करं पद्मं तूर्यमुखं हस्तिहस्ता प्रमाकाशं मुरजस्तीर्थनाम त्र || ४३६ ॥ अनिकाभ्यां तरः || ४३७ ॥ आभ्यां तरः प्रत्ययो भवति || अनक् प्राणने | अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोदिछद्रमध्यविरहविशेषेषु च || कैं शब्दे | कातरो भीरुः || ४३७ || इणूपूभ्यां कित् || ४३८ ॥ आभ्यां कित्तरः प्रत्ययो भवति ॥ इण्क् गतौ । इतरो निर्दिष्टप्रतियोगी || पूश् पवने । पूतरो जलजन्तुः || ४३८ ॥ मीज्यजिमामद्यशौव सिकिभ्यः सरः || ४३९ ।। एभ्यः सरः प्रत्ययो भवति || मींड्न् हिंसायाम् | मेसरो वर्णविशेषः || जिं अभिभवे | जेसरः शूरः || अज क्षेपणे च | वेसरोश्वतरः | वेसृ गतौ | इत्यस्य वा जठरेत्यादिनिपातनादरे रूपम् || मां माने । मासर आयामः ॥ मदॆच् हर्षे | मत्सरः क्रोधविशेषः || अशौटि व्याप्तौ । अक्षरं वर्णो मोक्षपदमाका Aho! Shrutagyanam Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [ ४४०-४४३ ` शं च | अक्षेर्वारेरूपम् || वसं निवासे | वत्सरः संवत्सरः परिवत्सरोनुवत्सरोसंवत्सरो विवत्सर उद्वत्सरो वर्षाभिधानानि । इडामानेन वसन्त्यत्र कालावया इति | इवत्सरः । इडया मानेन वसन्त्यत्र वा । इडावत्सरो वर्षविशेषाभिधाने || परिवत्सरादीन्यपि वर्षविशेषाभिधानानीत्येके || कि इत्यदादौ स्मरन्ति । केसरः सिंहसट: पुष्पावयवो वकुलच । बाहुलकान्न षस्वम् || ४३९ ॥ कृधूतन्यृषिभ्यः कित् || ४४० || ૭૬ एभ्यः कित्सरः प्रत्ययो भवति || डुकुंग् करणे | कृसरः कृसरा वा विलेपिकाविशेषो वर्णविशेषश्च ॥ धूत् विधूनने । धूमरो भिन्नवर्णो वायुर्धान्यविशेषश्व || तनूयी विस्तारे | तसरः कौशेयसूत्रम् || ऋषैत् गतौ । ऋक्षरः कण्टक ऋत्विक् च । ऋक्षरा तोयधारा || ४४० ॥ कृगृगृदृवृग्चतिखटिकटिनिषादभ्यो व्रट् || ४४१ ॥ एभ्यष्टिद्वरः प्रत्ययो भवति || कृत् विक्षेपे । कर्बरो व्यात्रो विष्किरोऽञ्जलिश्व | कर्बरी भूमिः शिवा च ॥ गृत् निगरणे | गर्वरोहंकारो महिषश्च । गर्वरी महिषी संध्या च ॥ शृश् हिंसायाम् | शर्वरः सायाह्नो रुद्रो हिंस्रव । शर्वरं तमोन्नं च | शर्वरी रात्रिः || दृश् विदारणे | दर्वरं वज्रम् । दर्वरी सेवा || वृग्ट् वरणे | वर्त्ररः कामश्चन्दनं केशविशेषो लुब्धकथ | वर्वरी नदी मार्या च ॥ चतेग् याचने । चत्वरं चतुष्पथ मरण्यं च । चत्वरी रथ्या देवता वेदिश्व ॥ खट काङ्के । खट्टरं रससंकीर्णशाकपाकः || कटे वर्षावरणयोः । कट्टुरो व्यालाश्वः || कटुरी दधिविकारः || षट्टं विशरणादौ । निपूर्वात् । निषहर: कर्दमो वह्निः कर्मकरः कन्दर्प इन्द्रश्च । निषइरमासनम् । निषवरी मपा रात्रिः प्रमदेन्द्राणी च ॥४४१ || अनोतेरीच्चादेः || ४४२ ॥ अशौटि व्याप्तौ । इत्यस्माद्दरट् प्रत्ययो [ भवति ] ईकारश्वादेर्भवति || ईश्वरो विभुः । ईश्वरी स्त्री ।। ४४२ ।। नीमकुतुवेर्दीर्घश्व || ४४३ ॥ एभ्यो वरट् प्रत्ययो [ भवति ] दीर्घश्चैषां भवति || णींग् प्रापणे | नीवरः पुरुषकारः || मींग्श् हिंसायाम् | मीवरो हिंस्रः समुद्रश्व || कुंड् शब्दे । कूवसे रथावयवः ।। तुंक् वृत्यादौ । सूत्ररो मन्दश्मश्रुरजननीकश्व || चिंग्ट् चयने । चीवरं मुनिजनवासो निःसारकन्या च ॥ ४४३ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४-४४८] उणादिगणविवृतिः । तीवरधीवरपीवरछित्वरछत्वरगह्वरोपहरसंयद्वरोदुम्बरादयः ।। ४४४ ॥ एते वरट्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते | तिम्यतेस्ती च तीवतेर्वा । तीवरं जलं व्यञ्जनं च ।। ध्यायते( च । धीवरः कैवर्तः ॥ प्यायः प्यैडो वा पीच पीवतेर्वा किदरः । पीवरो मांसलः ॥ छिनत्तेस्तः किञ्च । छित्वरः शठो जर्जरः पिटकश्च ।। छादेणिलुकि इस्वश्च । छत्वरो निर्भर्त्स को निकुम्नश्च | छत्वरं कुग्रहीनं गृहं शयनप्रच्छदश्छदिश्च ।। गुहेरच्चोतः । गहरं गहनं महाबिलं भयानकं प्रत्यन्तदेशश्च ।। उपपूर्वात् हो वादेर्लुक् च | उपहरं संधिः समीपं रहःस्थानं च। सम्पूर्वात् यमेर्दश्च । संयवरो रणः संयमी नृपश्च ।। उन्देः किदुम् चान्तः । उदुम्बरो वृक्षविशेषः ॥ आदिग्रहणात् उम्बरशम्बरादयो भवन्ति ।। ४४४ ॥ कडेरेवराङ्गरौ ।। ४४५ ॥ __ कडत् मदे । इत्यस्मादेवर अगर इति प्रत्ययो भवतः ॥ कडेवरं मृतशरीरम् । लत्वे | कलेवरम् ।। कडङ्गरो वनस्पतिः ॥ ४४५ ॥ बट् ॥ ४४६ ।। सर्वधातुभ्यस्त्रट प्रत्ययो भवति ।। छादयतीति छत्रं छत्री वा धर्मवारणम् ।। पातीति पात्रमूर्जितगुणाधारः साध्वादिः । पात्री भाजनम् ॥ स्नायतेः । स्नात्र स्नानम् || राजत इति राष्ट्र देशः ॥ शिष्यतेनेनेति शाखं ग्रन्थः || असूच क्षेपणे ॥ अस्त्रं धनुः ॥ ४४६ ॥ जिभृसृभ्रस्जिगमिनमिनश्यशिहनिविषेर्वृद्धिश्च ॥ ४४७ ॥ एभ्यस्वद् प्रत्ययो [ भवति ] वृद्धिश्चैषां भवति ॥ जिं अभिभवे । जैत्रो जयनशीलः । जैत्रं द्यूतम् ॥ टुडुमँगक पोषणे च । मात्र पोषो यश्च भृतिं गृहीत्वा वहति || सं गतौ । साप्रमालयः ।। भ्रस्जीत् पाके । भ्राष्ट्रमम्बरीषम् ।। गमं गतौ । गान्त्रं मनः शरीरं लोकश्च ।। णमं प्रहत्वे | नान्त्रं शिरः शाखा वैचित्र्यं च ॥ नशौच अदर्शने । नशो धुटीति त्रोन्तः । नाष्ट्रा यातुधानाः ॥ अश्रोतेरभातेर्वा । आष्ट्रमाकाशो रश्मिथ ॥ हनंक हिंसागत्योः हान्नं रक्षो युद्धं धधश्च ।। विषूकी व्याप्तौ । वेष्टो विष्णुर्वायुश्च । वैष्; यकृत्रिदिवं वेश्म च ॥ ४४७ ॥ दिवेधी च ॥ ४४८ ॥ दीव्यतेस्खट् प्रत्ययो [भवति ] यो चास्यादेशो भवति ॥ चौत्रं त्रिदिवं ज्योतिर्विमानं प्रमाणं प्रतोदश्च ॥ ४४८ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४४९-४५३ समूखन्युषिभ्यः कित् ।। ४४९॥ एभ्यः किचट् प्रत्ययो भवति || पून प्रेरणे । सूत्रं तन्तुः शास्त्रं च ॥ मूड् बन्धने । मूत्रं प्रस्रावः ॥ खनूग अवदारणे | खात्रं कुलस्त डाकं मामाधानम. चौरकृतं च छिद्रम् ॥ उषू दाहे । उष्ट्रः क्रमेलकः ॥ ४४९ ॥ स्त्री ॥ ४५० ॥ स्यतेः सूतेः स्त्यायतेः स्तृणातेर्वा बट् डिच । स्त्री योषित् ॥ ४५० ॥ हुयामाश्रुवसिभसिगुवीपचिवचिधृयम्यमिमनितनिसदिछादि क्षिक्षदिलुपिपतिधूभ्यस्त्रः ॥ ४५१ ॥ एभ्यस्त्रः प्रत्ययो भवति ।। ढुक् दानादनयोः । होत्रं हवनम् । होत्रा #. चः ॥ यांक प्रापणे । यात्रा प्रस्थानं यापनमुत्सवश्व ।। मांक माने । मात्रा प्रमाणं कालविशेषः स्तोको गणना च ॥ श्रृंट श्रवणे | श्रोत्रं कर्णः ॥ वसिक् आच्छादने | वस्त्रं वासः ।। भसिं जुहोत्यादौ स्मरन्ति । भस्ना चर्ममयमावपनमुदरं च ॥ गुंड शब्दे | गोत्रः पर्वतः | गोत्रा पृथ्वी | गोत्रमन्वयः || वीक् प्रजननादौ । वे. वं वीरुद्विशेषः ।। डुपीए पाके | पक्त्रं पिठरं गार्हपत्यं च ।। वचं भाषणे । वक्त्रमास्यं छन्दोजातिश्च ।। धुंड्न् स्थाने | धो धर्मों वृक्षो रविश्व । धर्व नभो गृहसूत्रं च | ध; द्यौः ।। यमं उपरमे | यन्त्रं शरीरसंधानमरघट्टादि च | अम गतौ । मन्त्रं पुरीतत् ।। मनिन् ज्ञाने । मन्त्र छन्दः ।। तनूयी विस्तारे । तन्त्रं प्रसारितास्तन्तवः शास्त्रं समूहः कुटुम्ब च || पदं विशरणगत्यवसादनेषु । सचं यज्ञसदो दानं छद्म योगविशेषश्च ।। छदण् संवरणे | छादयतीति छात्रः शिक्षकः॥ क्षित् निवासगत्योः । क्षेत्रं कर्षणभूमिर्भार्या शरीरमाकाशं च ॥ क्षदः संवरणे सौत्रः । क्षत्रं राजबीजम् ॥ लुप्ती छेदने । लोपत्रमपहृतं द्रव्यम् ॥ पतु गतौ । पचं पर्ण यानं च ॥ धूग्श् कम्पने । धोत्रं रज्जुः ॥ ४५१ ॥ श्चितेर्वश्च मी वा ।। ४५२|| श्विताड् वर्णे | इत्यस्माचः प्रत्ययो भवति ] वकारस्य च मकारो वा भवति ॥ इमेचं श्वेनं च रोगौ ॥ ४५२ ॥ गमेरा च ॥ ४५३ ॥ गम गतौ । इत्यस्माचः प्रत्ययो भव ]त्याकारश्चान्तादेशो भवति ।। गात्रं शरीरम् । गात्रा खट्वावयत्रः ।। ४५३ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४-४५९] उणादिगणविवृतिः। . चिमिदिशंसिभ्यः कित् ॥ ४५४॥ एभ्यः किचः प्रत्ययो भवति ।। चिंग्ट् चयने । चित्रमाश्चर्यमालेख्यं वर्णश्व || निमिदाच् स्नेहने । मित्रं सुहत् । अमिन्नः शत्रुः । मिनः सूर्यः ।। शंसू स्तुती च | शस्त्रं स्तोत्रमायुधं च ॥ ४५४ ॥ पुत्रादयः॥ ४५५॥ पुत्र इत्यादयः शब्दाखप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पुनाति पवते वा पितृपूतिमिति पुत्रः सुतः । यदाहुः। पूतीति नरकस्याख्या दुःखं च नरकं विदुः । पुनामो नरकाचायत इति । व्युत्पत्तिस्तु संज्ञाशम्दानामनेकधा व्याख्यानं लक्षयति || आदिग्रहणादन्येपि ॥ ४५५ ॥ वृग्नक्षिपचिवच्यमिनमिवमिवपिवधियजिपतिकडिभ्योत्रः ॥ ४५६ ॥ ___ एभ्योत्रः प्रत्ययो भवति ॥ वृग्ट वरणे | वरत्रा चर्मरज्जुः ॥ णक्ष गतौ । नक्षत्रमश्विन्यादि । डुपचीं पाके | पचत्रं रन्धनस्थाली । वचंक् भाषणे । वचत्रं वचनम् ॥ अम गतौ | अमत्रं भाजनम् ॥ णमं प्रवत्वे । नमत्रं कर्मारोपकरणम् ॥ टुवमू उहिरणे । वमत्रं प्रक्षेपः।। दुवपी बीजसंताने । वपत्र क्षेत्रम् ॥ वधि बन्धने | वधत्रमायुधं वस्त्रं विषं शूरश्च ॥ यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु । यजत्रो यज्वा | यजत्रमग्निहोत्रम् ।। पतु गतौ । पतत्रं वह वाहनं व्योम च ॥ कडत् मदे । कडनं दाराः। लत्वे । कलत्रं दारा जघनं च ॥ ४५६ ॥ सोविदः कित् ॥ ४५७॥ ___ सुपूर्वात् विदः किदत्रः प्रत्ययो भवति || मुटु वेत्ति विन्दति विद्यते च । सुविद कुटुम्बं धनं मङ्गलं च ॥ ४५७॥ कृतेः कृन्त च ॥ ४५८ ॥ कृतैत् छेदने । इत्यस्मादत्रः प्रत्ययो भवत्यस्य च कृन्त इत्यादेशो भवति॥ कृन्तत्रो मशकः । कृन्तत्रं छेदनं लागलायं च || ४५८॥ बन्धिवहिकट्यश्यादिभ्य इत्रः ॥ ४५९॥ एभ्य इत्रः प्रत्ययो भवति ॥ बन्धंश् बन्धने | बन्धित्रं मन्थः ।। वहीं प्रापणे | वहिनं वाहनं वहनं च || कटे वर्षावरणयोः । कटित्रं लेख्यचर्म || अशौटि व्याप्तौ । अशश् भोजने वा । अशित्रं रश्मिरग्निर्हविरनपानं च || आदिग्रहणात् लुनातेः । लवित्रं कर्मद्रव्यम् ॥ पुनातेः । पवित्रं मङ्गल्यम् ॥ भटतेः । भटित्रं 11 Aho! Shrutagyanam Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४६०-४६५ शूले पक्कमांसम् ॥ कडतेः । कडि कटित्रमेव || अमतेः । अमित्रो रिपुः ॥ इत्यादिः ॥ ४५९॥ भूगृवदिचरिभ्यो णित् ॥ ४६० ॥ एभ्यो णिदित्रः प्रत्ययो भवति ॥ भू सत्तायाम् | भावित्रं त्रैलोक्यं निधानं भद्रं च ॥गत् निगरणे । गारित्रं नमोन्नपानमाचार्यच ।। वद व्यक्तायां वाचि । मादित्रमातोद्यम् || चर भक्षणे च । चारित्रं वृत्तं स्थित्यभेदश्च ।। ४६०॥ तनितृलापात्रादिभ्य उत्रः ॥ ४६१॥ एभ्य उत्रः प्रत्ययो भवति ॥ तनूयी विस्तारे | तनुत्रं कवचम् ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तरुत्रं प्लवो घासहारी च ॥ लांक आदाने । लोत्रमपहतद्रव्यम् ।। पां पाने | पोत्रं हलसूकरयोर्मुखम् ॥ त्रैड पालने । त्रोत्रममयक्रिया ॥ भादिनहणात् वृणोतेः । वरुत्रमभिप्रेतम् ।। इत्यादयः ॥ ४६१॥ शामाश्याशक्यम्ब्यमिभ्यो लः ॥ ४६२॥ एभ्यो लः प्रत्ययो भवति ॥ शोंच तक्षणे । शाला सभा ॥ मांक माने । माला सक् ॥ इयड् गतौ । श्यालः पत्नीभ्राता ।। शकुंट शक्तौ । शक्लो मनोजर्शनो मधुरवाक् शक्तश्च || अबुड् शब्दे | अम गतौ । अम्बोम्लच रसः ।। ४६२॥ शुकशीमूभ्यः कित् ॥ ४६३॥ एभ्यः किल्लः प्रत्ययो भवति ।। शुक गतौ । शुक्लः सितो वर्णः॥ शीड्क् स्वप्ने । शीलं स्वभावो व्रतं धर्मः समाधिश्च ॥ मूड् बन्धने | मूलं वृक्षपादावयव भादिहेतुश्च ॥ ४६३ ॥ भिल्लाच्छभल्लसौविदल्लादयः॥ ४६४॥ भिल्लादयः शब्दाः किल्लप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । भिदेलश्च । भिल्लोन्त्यजातिः ॥ अच्छपूर्वात् भलेः । अंच्छभल्ल ऋक्षः ॥ सुपूर्वात् विदेर लोन्तः सोश्च वृद्धिः। सौविदल्लः कञ्चुकी || आदिग्रहणात् अल्लपल्लीरलादयोपि भवन्ति ।। ४६४ ॥ मृदिकन्दिकुण्डिमण्डिमणिपटिपाटिशकिकेवृदेवृकमियमिशलिकलि पलिगुध्वच्चिचञ्चिचपिवहिदिहि कुहितृसृपिशि ___ तुसिकुस्यनिद्रमेरलः ॥ ४६५ ॥ एभ्योलः प्रत्ययो भवति ॥ मृदश् क्षोदे । मर्दलो मुरजः ॥ कदु रोदनामानयोः । कन्दलं प्ररोहः॥ कुडुड् दाहे । कुण्डलं कर्णाभरणम् ।। मडु भूषायाम् ।। Aho I Shrutagyanam Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६-४६९] उणादिगणविवृतिः। . मण्डलं देशः परिवारश्च ॥ मगु गतौ । मङ्गलं शुभम् ॥ पट गतौ । पटलं छदिः समूह आवपनं नेत्ररोगश्च । ण्यन्तात् । पाटलो वर्णः ॥ शकूट शक्तौ । शकलं भि. तमसारं च ॥ केवृड् सेवने । केवलं परिपूर्ण ज्ञानमसहायं च ॥ देवड् देवने । देवल ऋषिदेवत्रातः क्रीडनध || कमूड् कान्तौ । कमलं पद्मम् । णिडि । कामलो नेत्ररोगः ॥ यमू उपरमे । यमलं युग्मम् ।। शल गतौ । शललं सेधाङ्गरुहशङ्कः । कलि शब्दसंख्यानयोः । कललं गर्भप्रथमावस्था ॥ पल गतौ । पललं भृष्टतिलात. सीचूर्णम् ॥ गुंड् शब्दे । गवलो महिषः॥ धूग्श् कम्पने | धवलः श्वेतः ॥ अञ्चू गतौ च | अच्चलो वस्त्रान्तः ॥ चल गतौ । चञ्चलोस्थिरः ॥ चप सान्त्वने । चपलः स एव ।। वहीं प्रापणे । वहीं सान्द्रम् ।। दिहीक्लेपे । देहली द्वाराधःपट्टः ॥ कुहणि विस्मापने । कोहलो भरतसूनुः । बाहुलकाद्गुणः || तु प्लवनतरणयोः । तरलोधीरो हारमध्यमणिश्च ।। सं गतौ । सरलोकुटिलो वृक्षविशेषश्च ॥ पिशत् अवयवे । पेशलो मनोज्ञः ।। तुस शब्दे | तोसला जनपदः ॥ कुसच् श्लेषे । कोसला जनपदः ॥ भनक प्राणने | अनलोमिः ।। द्रम गतौ । द्रमलं जलम् ॥ ४६५ ॥ नहिलङ्गेर्दीर्घश्च ॥ ४६६ ॥ आभ्यामलः प्रत्ययो भव त्यनयोश्च दीर्घो भवति ॥ णहीच बन्धने | नाहलो मेच्छः ।। लगु गतौ । लाङ्गलं हलम् ।। ४६६ ॥ ऋजने!न्तश्च ॥ ४६७ ॥ आभ्यामलः प्रत्ययो [ भवति ] गकारवान्तो भवति ।। क् गतौ । अर्गला परिधः । जनैचि प्रादुर्भावे । जङ्गलं निर्जलो देशः ॥ ४६७ ॥ तृपिवपिकुपिकुशिकुटिवृषिमुसिभ्यः कित् ॥ ४६८ ॥ एभ्यः किदलः प्रत्ययो भवति || तृपाच प्रीतौ । तृपला लता । तृपलं शुष्कपर्ण शुष्कतृणं च ॥ डुवपों बीजसंताने । उपलः पाषाणः ॥ कुपच क्रोधे । कुपलः प्रवालः ।। कुशच् श्लेषणे | कुशलो मेधावी । कुशलमारोग्यम् ॥ कुटत् कौटिल्ये | कुटल ऋषिः ॥ वृष सेचने | वृषलो दासजातिः ॥ मुसच् खण्डने । मुसलमवहननम् ॥ ४६८ ॥ .. . कोर्वा || ४६९ ॥ कुंड् शन्दे | इत्यस्मादलः प्रत्ययो [भवति ] स च किवा भवति ।। कुवलं बदरम् । कुवली क्षुद्रबदरी । कवलो ग्रासः ।। ४६९ ॥ . Aho! Shrutagyanam Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकर शमेव च वा ॥ ४७० ॥ शमूष् उपशमे | इत्यस्मादलः प्रत्ययो [ भवति ] मकारस्य च बकारो वा भषति || शवलः कल्माषः || शमलं पुरीषं दुरितं च || ४७० || छोर्डग् गादिर्वा ॥ ४७१ ॥ छच् छेदने । इत्यस्मात्किदल: प्रत्ययो [ भवति ] स च डगादिर्गादिर्वा भवति || बगलरछागः ॥ छागल ऋषिः || छलं वचनविघातोर्थविकल्पो पप दया || ४७९ ।। ८४ [४७०-४७५ मृजिखन्याहनिभ्यो डित् ॥ ४७२ ॥ एभ्यो डिद्दलः प्रत्ययो भवति || मृजौक् शुद्धौ । मलं बाह्यं रजोन्तर्दोषश्च ।। खनूग् अवदारणे | खलो दुर्जनो निष्पीडितरसं पिण्याकादि । खलं सस्यफलमहृणभूमिः || हनंक् हिंसागत्योः | आङ्पूर्वः । भाहलो विषाणं नखरश्च ||४७२।। स्थो वा || ४७३ ॥ तिष्ठतेरलः प्रत्ययो [ भवति ] स च डिद्वा भवति || स्थलं प्रदेशविशेषः || स्थालं भाजनम् || ४७३ ॥ मुरलोरलविरलकेरलकपिञ्जलकज्जलेज्जलकोमलभृमलसिंहलकाहलगूकलपाकलयुगलभगलविदलकुन्तलोत्पलादयः ॥ ४७४ ॥ एतेलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || मुयुयोर्वलोपः किच | मुरला जनपदः || बरल उत्कटः || विपूर्वात् रमेोर्डच । विरलोसंहतः || किरः केर च । केरला जनपदः || कम्पेरिजोन्तो नलोपश्च । कपिञ्जलो गौरतित्तिरः || कषीषोजन्तो जश्च । कज्जलं मषी || इज्जलो वृक्षविशेषः || कमेरत भोच्च | कोमलं मृदु || भ्रमेर्भृम् च | भूमलो वायुः कृमिजातिश्व | भ्रमलं चक्रम् ॥ हिंसेराद्यन्तविपर्ययश्च । सिंहला जनषदः ॥ कणेर्हो दीर्घश्व | काहलोव्यक्तवाक् | काहला वाद्यविशेषः ॥ शकेरूच्चास्य । शूकलोश्वाधमः || पचेः पाक् च | पाकलो हस्तिज्वरः || युजेः किन च । युगलं युग्मम् || भातेर्गोन्तो ह्रस्वश्व | भगलो मुनिः || विन्देर्नलोपश्च । विदलं वेणुदलम् || कनेरत उत्तोन्तव । कुन्तला जनपदः केशाश्च || उत्पूर्वात् पिबतेर्ह्रस्वश्च | उत्पलं पद्मम् || आदिग्रहणात् सुवर्चला मुगलपुङ्गलादयो भवन्ति || ४७४॥ ऋकृमृवृतनितमिचषिचपिकपिकीलिपलिबलिपञ्चिमङ्गिगण्डिमण्डि चण्डितण्डपिण्डिनन्दिनदिशकिभ्य आलः || ४७५ ॥ एभ्य आल; प्रत्ययो भवति || कंक् गतौ । अरालं वक्रम् || डुकुंग् करणे I Aho! Shrutagyanam Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६-४७९] उणादिगणविवृतिः। . करालमुच्चम् ।। मृत् प्राणत्यागे । मरालो हंसो महांश्च ।। वृग्ट वरणे । वरालो वदान्यः ।। तनूयी विस्तारे । तनालं जलाशयः || तमूच् काायाम् । तमालो वृक्षो व्यालश्च ।। चषी भक्षणे । चषालं यूपशिरास द्रव्यम् ।। चप सान्त्वने । चपालं यज्ञद्रव्यम् || कपिः सौत्रः । कपालं घटाद्यवयवः शिरोस्थि च ॥ कील बन्धे । कीलालं मद्यं जलमसक् च ।। पल गती | पलालमकणो व्रीह्यादिः ॥ बल प्राणनधान्यावरोधयोः । बलालो वायुः ।। पचुड् व्यक्तीकरणे | पञ्चाल ऋषी राजा च । पञ्चाला जनपदः ।। मगु गतौ । मङ्गालो देशः॥ गडु वदनैकदेशे । गण्डालो मत्तहस्ती ।। मडु भूषायाम् । मण्डाल ऋषिः ॥ चडुड् कोपे । चण्डालः श्वपचः । अकृतज्ञमकार्यज्ञं दीर्घरोषमनार्जवम् । चतुरो विद्धि चण्डालाजन्मना चेति पञ्चमम् ।। १॥ तडुड् ताडने | तण्डालः क्षुपः ॥ पिडुड् संघाते । पिण्डालः कन्दजातिः।। टुनदु समृद्धौ । नन्दालो राजा ।। णद अव्यक्ते शब्दे । नदालो नादवान् ।। शकुंट शक्तौ । शकाला जनपदो मूर्खधनी च ॥ ४७५ ॥ कुलिपिलिविशिविडिमणिकुणिपीपीभ्यः कित् ।। ४७६ ॥ एभ्यः किदालः प्रत्ययो भवति || कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलालः कुम्भकारः ॥ पिलण् क्षेपे । पिलालं श्लिष्टम् ।। विशंत् प्रवेशने | विशालं विस्तीर्णम् ।। विड आक्रोशे । विडालो मार्जारः । लत्वे | विलालः स एव ।। मृणत् हिंसायाम् । मृणालं बिसम् । कुणत शब्दोपकरणयोः । कुणालः कृतमालः कटविशेषश्च | कुणाल नगरं कठिनं च ॥ पींड्च् पाने । पियालो वृक्षः । पियालं शाकं वीरुच्च ॥ पीड्च् प्रीती । प्रियालः पियालः ॥ ४७६ ॥ - भजेः कगौ च ।। ४७७ ॥ भजी सेवायाम् । इत्यस्मात्किदालः प्रत्ययो भवति कगो चान्तादेश भवतः ॥ भकालम् । भगालमुभयं कपालम् ॥ ४७७॥ सर्तेर्गोन्तश्च ।। ४७८ ॥ सुं गतौ । इत्यस्मात्किदालः प्रत्ययो भवनि गकारोन्तथ[ भवति ॥ ] सृगालः क्रोष्टा ।। ४७८॥ पतिकृलूभ्यो णित् ।। ४७९॥ एभ्यो णिदालः प्रत्ययो भवति ॥ पतु गतौ । पातालं रसातलम् ॥ डुकंग करणे । कारालं लेपदव्यम् ॥ लूगश् छेदने । लावाल सान्तः ॥४७९ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४८०-४८४ चात्वालकङ्कालहिन्तालवेतालजम्बालशब्दालममाप्तालादयः।। ४८०॥ - एत आलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। चतेर्वोन्तो दीर्घश्च । चात्वालो यज्ञगर्तः।। कचेः स्वरानोन्तः कश्च । कङ्कालः कलेवरम् || हिंसेस्तश्च । हिन्तालो वृक्षविशेषः॥ वियस्तोन्तो गुणश्व | वेतालो रजनीचरविशेषः ॥ जनेर्बोन्तश्च । जम्बालः कर्दमः शैवलं च ॥ शमे []षेर्वा शब्दभावश्च | शब्दालः शब्दनशीलः || मवेर्वलोपो माप्तथान्तः । ममाप्तालो मतिः स्नेहः पुत्रादिषु स्नेहबन्धनं च || आदिशब्दात् चक्रवालकरवालालवालादयो भवन्ति ॥ ४८० ॥ कल्यनिमहिद्रमिजटिभटि कुटिचण्डिशण्डितुण्डिपिण्डिभू कुकिभ्य इलः ।। ४८१ ॥ एभ्य इलः प्रत्ययो भवति ।। कलि शब्दसंख्यानयोः । कलिलं गहनं पापमात्माधिष्ठितं च शुक्रातवम् ॥ अनक् प्राणने । अनिलो वायुः ॥ मह पूजा. याम् । महिला स्त्री || द्रम गतौ । द्रमिलास्त्रैराज्यवासिनः || जट झट संघाते । जटिलो जटावान् ॥ भट भृतौ । भटिलः श्वा सेवकश्च ।। कुटत् कौटिल्ये । कुटिलं वक्रम् || चडुड् कोपे | चण्डिलः श्वा क्रोधनो नापितश्च || शडुड् रुजायाम् | शण्डिल ऋषिः ।। तुडुड् तोडने | तुण्डिलो वाग्जाली ।। पिडुड् संघाते । पिण्डिलो मेघो हिंस्रो हिमो गणकश्च ॥ भू सत्तायाम् । भविलो मुनिः समर्थो गृहं बहुनेता च ॥ कुकि आदाने । कोकिलः परभृतः ।। ४८१ ॥ भण्डेर्नलुक् च वा ॥ ४८२॥ भडुड् परिभाषणे । इत्यस्मादिलः प्रत्ययो भवति नकारस्य च लुग्वा भवति || भडिल ऋषिः पिशाचः शत्रुश्च ॥ भण्डिलः श्वा दूत ऋषिश्च ॥४८२।। __गुपिमिथिध्रुभ्यः कित् ॥ ४८३ ।। एभ्यः किदिलः प्रत्ययो भवति ।। गुपौ रक्षणे । गुपितं गहनम् ॥ मिथन् मेधासियोः । मिथिला नगरी ॥ ध्रु स्थैर्ये च । ध्रुविल ऋषिः ।। ४८३ ॥ स्थण्डिलकपिलविचकिलादयः ॥ ४८४ ॥ स्थण्डिलादयः शब्दा इलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || स्थलेः स्थण्ड् च । स्थण्डिलं व्रतिशयनवेदिका ॥ कवेः पच | कपिलो वर्ण ऋषिश्च ॥ विचेरको नश्च । विचकिलो मल्लिकाविशेषः ।। आदिग्रहणात् गोभिलनिकुम्भिलादयोपि भवन्ति ॥ ४८४॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृतिः । हृषिवृतिचटिपटिश किशङ्कितण्डिमल्कण्टिभ्य उलः || ४८५ ॥ एभ्य उल: प्रत्ययो भवति ॥ हृषच् तुष्टौ । हषू अलीके वा । हर्षुलो हर्षवान्कामी मृगश्च | वृतूड् वर्तने । वर्तुलो वृत्तः || चटण् भेदे | चटुलञ्चञ्चलः || पट गतौ । पटुलो वाग्मी || शकुं शक्तौ । शकुलो मत्स्यः || शकुड् शङ्कायाम् । शङ्कुला क्रीडनशङ्कुर्बन्धनभाण्डमायुधं च || तडुड् ताडने | तण्डुलो निस्तुषो श्रीह्यादिः || मगु गतौ | मङ्गुलं न्यायापेतम् || कटुड् शोके | उत्पूर्वः | उत्कण्ठुल उत्कण्ठावान् ॥ ४८५ ॥ ४८५-४८८] १. स्थावङ्किवंहिविन्दिभ्यः किन्नलुक् च ॥। ४८६ ॥ एभ्यः किदुलः प्रत्ययो [ भवति ] नकारस्य च लुग्भवति ॥ ष्ठां गतिनिवृत्तौ | स्थूलं पटकुटीविशेषः || वकुड् कौटिल्ये | वकुलः केसर ऋषिश्व || बहुड् वृद्धौ | बहुलं प्रचुरम् । बहुल: प्रासकः कृष्णपक्षश्च | बहुलाः कृत्तिकाः | बहुला गौः || विदु अवयवे | विदुलो वेतसः || ४८६ ॥ कुमुलतुमुलनिचुलवञ्जुलमञ्जुल पृथुलविशंस्थुलाङ्गुलमुकुलशष्कुलादयः ।। ४८७ ॥ एत उलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ कमितम्योरत उच्च । कुमुलं कुसुमं हिरण्यं च । कुमुलः शिशुः कान्तश्च ॥ तुमुलं व्यामिश्रयुद्धं संकुलं च ॥ निजेः किचश्व | निचुली वञ्जुलः || वजेः स्वरान्नोन्तश्च | वञ्चुलो निचुलः ॥ मञ्जिः सौत्रः । मञ्जुलं मनोज्ञम् || प्रथेः पृथ् च | पृथुलो विस्तीर्णः || विपूर्वात् शंसेस्थोन्तश्च | विशंस्थुलो व्यमः || अञ्जेर्गव | अङ्गुलमष्टयवप्रमाणम् || मुचेः किकश्च | मुकुल विकसितपुष्पम् ॥ शके: स्वरात् षोन्तश्च । शष्कुली भक्ष्यविशेषः कर्णावयवश्व || आदिग्रहणात् लकुलवल्गुलादयो भवन्ति || ४८७ || पिचिमञ्जिकण्डिगण्डबलिवधिवञ्चिभ्य उलः ॥ ४८८ ॥ एभ्य ऊलः प्रत्ययो भवति ॥ पिजुण् हिंसाबलदान निकेतनेषु । पिलो हस्तिबंधनपाशो राशिः कुलपतिश्व || मञ्चिः सौत्रः । मञ्जुला मृदुभाषिणी || कडुड् मदे | कण्डूलोशिष्टो जनः || गडु वदनैकदेशे । गण्डूल: कृमिजातिः || बल प्राणनधान्यावरोधयोः | बलूल ऋषिर्मेघो मासश्व || वधि बन्धने । वधूलो हस्ती घातको रसायनं तन्त्रकारभ || वञ्चिण् प्रलम्भने । बच्चूलो हस्ती मत्स्यमारपक्षी च ॥ ४८८ ।। Aho! Shrutagyanam Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [४८९-४९५ तमेोन्तो दीर्घस्तु वा ।। ४८९ ॥ तमूच् काडायाम् | इत्यस्मादूलः प्रत्ययो भवति बोन्तश्च भवति दीर्घस्तु वा भवति ॥ ताम्बूलम् । तम्बूलमुभयं पूगपत्रचूर्णसंयोगः ॥ ४८९ ॥ कुलपुलकुसिभ्यः कित् ।। ४९० ॥ एभ्य ऊलः प्रत्ययो भवति स च किद्भवति ।। कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलूलः कृमिजातिः ॥ पुल महत्त्वे । पुलूलो वृक्षविशेषः ।। कुसच् श्लेषे | कुसूलः कोष्ठः ॥ ४९० ॥ दुकूलकुकूलबब्बूललालशार्दूलादयः ॥ ४९१ ।। दुकूलादयः शब्दा ऊलप्रत्ययान्ता मिपात्यन्ते ।। दुक्कोः कोन्तश्च । दुकलं क्षौमं वासः ॥ कुकूलं कारीषाग्निः ।। वधेर्बोन्तो बध । बब्बूलो वृक्षविशेषः ।। लङ्गेदर्दीर्घच | लालं बालधिः । शृणातेयॊन्तो वृद्धिश्च । शार्दूलो व्याघ्रः॥ आदिग्रहणात् मालकञ्चूलादयो भवन्ति ॥ ४९१॥ ___ महेरेलः॥ ४९२ ।। मह पूजायाम् । इत्यस्मादेलः प्रत्ययो भवति ।। महेला स्त्री ।। ४९२ ।। कटिपटिकण्डिगण्डिशकिकपिचहिभ्य ओलः ॥ ४९३ ।। एभ्य ओलः प्रत्ययो भवति || कटे वर्षावरणयोः । कटोलः कटविशेषो वादित्रविशेषश्च । कटोलौषधिः ।। पट गतौ । पटोला वल्लीविशेषः ॥ कडु मदे । कण्डोलो विदलभाजनविशेषः ॥ गडु वदनैकदेशे | गण्डोलः कृमिविशेषः । शकुंट शक्तौ । शकोलः शक्तः ।। कपिः सौत्रः । कपोलो गण्डः ॥ वह कल्कने | चहोल उपद्रवः ॥ ४९३ ॥ ग्रह्याद्यः कित् ॥ ४९४ ॥ ग्रहेराकारान्तेभ्यश्च धातुभ्यः किदोलः प्रत्ययो भवति ।। ग्रहीश् उपादाने । गृहोलो बालिशः ॥ कायतेः । कोलो बदरी वराहश्च ।। गायतेः । गोलो वृत्ताकृतिः । गोला गोदावरी बालरमणकाष्ठं च ॥ पातेः । पोला तालाख्यं कपाटबन्धनं परिखा च ॥ लातेः । लोलश्वपलः ॥ ददातेर्दयतेद्यनेर्वा । दोला प्रेक्षणम् ।।४९४।। पिञ्छोलकल्लोलककोलमकोलादयः ॥ ४९५ ॥ पिञ्छोलादयः शब्दा ओलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ पीडेः पिञ्छ् च । पिछोलो वादिनविशेषः॥ कलेर्लोन्सश्च । कल्लोल ऊर्मिः ॥ कचिमच्योः कादिः । ककोली लताविशेषः ॥ मक्कोलः सुधाविशेषः ।। मादिग्रहणादन्येपि ॥ ४९५ ॥ Ahol Shrutagyanam Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६-२०२] उणादिगणविवृतिः। वलिपुषेः कलक् ॥ ४९६ ॥ आभ्यां कित्कलः प्रत्ययो भवति ॥ वलि संवरणे | वल्कलं तरुत्वक् ।। पुष पुष्टौ । पुष्कलं समयं युद्धं शोभनं हिरण्यं धान्यं च ॥ ४९६ ॥ मिगः खलश्चैञ्च ।। ४९७ ।। डुमिंग्ट प्रक्षेपणे । इत्यस्मात्खलः चकारात्कलश्च प्रत्ययौ भवत एकारधान्तादेशो भवति ॥ मेखला गिरिनितम्बो रशना च । मेकलो नर्मदाप्रभवोद्रिः।। मिग एत्ववचनमात्वबाधनार्थम् ॥ ४९७ ॥ श्रो नोन्तो हस्वश्च ॥ ४९८॥ शुश हिंसायाम् | इत्यस्मात्खलः प्रत्ययो [ भवति ] नकारोन्तो इस्वश्व भवति || शङला लोहरज्जुः । शङ्कलः शृङलं वा ॥ ४९८॥ शमिकमिपलिभ्यो बलः ॥ ४९९ ।। एभ्यो बलः प्रत्ययो भवति ॥ शमूच् उपशमे | शम्बलं पाथेयम् || कमूड कान्तौ । कम्बल ऊर्णापटः।। पल गतौ । पल्वलमकृत्रिमोदकस्थानविशेषः॥४९९॥ तुल्वलेल्वलादयः॥ ५००॥ तुल्वलादयः शब्दा वलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । तुलील्योणिलुग्गुणाभावश्च । तुल्वल ऋषिः । यस्य तौल्वलिः पुत्रः ॥ इल्वलोसुरो योगस्त्येन जग्धो मत्स्यो यूपश्च । इल्वलास्तिस्रो मृगशिर शिरस्ताराः || भादिग्रहणात् शाल्वलादयो भवन्ति ॥ ५०० ॥ शीडस्तलक्पालवालण्वलण्वलाः ॥ ५०१ ॥ . शीड्क् स्वमे । इत्यस्मात्तलक् पाल वालण वलण वल इत्येते प्रत्यया भवन्ति ॥ शीतलमनुष्णम् || शेपालम् । जपादित्वात्पस्य वत्वे । शेवालम् । शैवालम् | शैवलम् । शेवलं पञ्चकमपि जलमलवाचि ॥ ५०१ ॥ रुचिकुटिकुषिकशिशालिद्रुभ्यो मलक् ॥ ५०२ ।। एभ्यः किन्मलः प्रत्ययो भवति ॥ रुचि अभिप्रीत्याम् । रुक्मलं सुवर्णम् । न्यकादित्वात्कत्वम् ॥ कुटत् कौटिल्ये । कुड्मलं मुकुलम् ॥ कुषश् निष्कर्षे । कुष्मलं तदेव बिलं च ।। कश शब्दे । कश्मलं मलिनम् ॥ शाड्ड् श्लाघायाम् । लत्वे । शाल्मलो वृक्षविशेषः ।। द्रु गतौ । द्रुमलं वनं जलं च ।। ५०२ ॥ 12 Aho ! Shrutagyanam Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [५०३-५०७ कुशिकमिभ्यां कुल्कुमौ च ।। ५०३ ।। .... आभ्यां मलक प्रत्ययो भवत्यनयोश्च यथासंख्यं कुल कुम् इत्यादेशौ भवतः ॥ कुशच् श्लेषणे | कुल्मलं छेदनम् ।। कमूड् कान्तौ । कुम्मलं पद्मम् ।।५०३॥ पतेः सलः ॥ ५०४ ॥ पतु गत । इत्यस्मात्सलः प्रत्ययो भवति || पत्सलः प्रहारो गोमानाहारश्च ॥ ५०४ ।। लटिखटिखलिनलिकण्यझौसशकगृदृपृशपिश्याशालापदि हसीणभ्यो वः ॥ ५०५ ॥ एभ्यो वः प्रत्ययो भवति ।। लट वाल्ये । लटा क्षुद्र चटका कुसुम्भं च ।। खट काडे । खटा शयनयन्त्रम् ।। खल संचये च | खल्वं निमं खलीनं च ।। खल्वा दृतिः ।। णल गन्धे | नल्वो भूमानविशेषः ।। कण शब्दे | कण्व ऋषिः । कण्वं पापम् || अशोटि व्याप्ती । अश्वस्तुरंगः ॥ सं गतौ । सर्वः शम्भुः सर्वादि च कृत्स्नार्थे ।। शृश् हिंसायाम् । शर्वः शम्भुः।। कृत् विक्षेपे | कर्व आखुः समुद्रो निष्पत्तिक्षेत्रं च ।। गृत् निगरणे | गर्वोहंकारः || दृश् विदारणे | दर्वा जनपदः । दर्वो हिंस्रः ॥ पृश् पालनपूरणयोः । पर्वो रुद्रः काण्डं च ।। शपी आक्रोशे । शप्व आक्रोशः ॥ इथेंड् गतौ । श्यावो वर्णः ।। शोच तक्षणे | शावस्तिर्यग्बालः ।। लांक आदाने | लावः पक्षिजातिः || पदिंच गतौ । पदो रथो वायुर्भूर्लोकश्च ।। इस शब्दे । इस्वो लघुः ॥ इण्क् गतौ । एवः केवलः । एवेत्यवधारणे निपातश्च ॥ ५०५ ॥ शीडापो हस्वश्च वा ।। ५०६ ॥ आभ्यां वः प्रत्ययो [भवति ] हस्वश्च वा भवति || शीडक् स्वमे | शिवं क्षेमं सुखं मोक्षपदं च । शिवा हरीतकी | शेवं धनम् । शेवोजगरः सुखकृच्च । शेवा प्रबलनिद्राविशेषो मेण्दश्च ।। आफूट व्याप्तौ । अप्वा देवायुधम् । आप्वा वायुः ।। ५०६ ॥ उर्ध च || ५०७॥ ... दि मानक्रीडनयोश्च । इत्यस्मादः प्रत्ययो भवति धकारवान्तादेशो भवति ॥ ऊर्व उद्धमा । ऊर्ध्वमुपरि पुरस्ताच्च ।। ५०७. ।। Aho 1 Shrutagyanam Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५००-५१४] उणादिगणविवृतिः। . गन्धेरर चान्तः ॥ ५०८ ॥ __ गन्धिः अर्दने । इत्यस्माइः प्रत्ययो [ भवत्यर् वान्तो भवति ॥ गन्धर्वो गाथको देवविशेषश्च ।। ५०८ ॥ ललिष् च वा ॥ ५०९॥ लषी कान्तौ । इत्यस्मादः प्रत्ययो [भव त्यस्य च लिष् इत्यादेशो या भवति ॥ लिवो लम्पटः कान्तो दयितश्च ॥ लष्वोपत्यमषिस्थानं च ।। ५०९ ॥ सलेणिद्वा ।। ५१० ॥ सल गती । इत्यस्माइः प्रत्ययो भवति ] स च णिवा भवति || साल्वाः सल्वाश्च जनपदः क्षत्रिय[[] च ॥ ५१० ॥ निघृषीष्यषिपुषिकिणिविशिबिल्यविपृभ्यः कित् ॥ ५११॥ एभ्यः किछः प्रत्ययो भवति ।। घृषू संहर्षे | निपूर्वः । निघृष्बोनुकूल: सुवर्णनिकषोपलो वायुः क्षुरश्च ।। इषन् इच्छायाम् । इप्वोभिलषित आचार्यश्च । दृष्वापत्यसंततिः ।। ऋत् गतौ । अवो रिपुर्हिस्रश्च । रिर्व्यञ्जनादेः केचिदिच्छन्ति । रिष्वः ।। झुं गतौ । सुवो हवनभाण्डम् || मुष दाहे । पुष्वा निवृत्तिनललवश्च ॥ किणः सौत्रः । किण्वं सुराबीजम् || विशंत् प्रवेशने । विश्वं जगत्स दि च || बिलत् भेदने । बिल्वो मालूरः ॥ अव रक्षणादौ । अवेत्यव्ययम् ।। पृथ् पालनपूरणयोः । पूर्वो दिक्कालनिमित्तः ।। ५११ ॥ नो भुवो डित् ॥ ५१२ ॥ नपूर्वात् भवडिवः प्रत्ययो भवति || अभ्वमद्भुतम् ।। ५१२ ।। लिहेजिह् च ॥ ५१३॥ लिहींक आस्वादने । इत्यस्माइः प्रत्ययो भवत्यस्य च जिह् इत्यादेशो भवति || जिह्वा रसना ॥ ५१३ ।। प्रहाहायहास्वच्छेवाग्रीवामीवाब्बादयः ।। ५१४ ॥ प्रह्वादयः शब्दा वप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ प्रपूर्वस्य ह्रयतेर्वादेर्लोपो यततेर्वा हादेशश्च । प्रहः प्रणतः ।। आह्वयतेराह च । आह्वा कण्ठः ॥ यमेर्यसेर्वा ह् च । यहा बुद्धिः ॥ अस्यतेरलोपश्च । स्व आत्मात्मीयं ज्ञातिर्धनं च ।। छचतेश्छिदेर्वा छेभावश्च । छेवोच्छित्तिः ॥ ग्रन्थतेगिरतेर्वा ग्रीभावश्च । ग्रीवा ॥ अमेरी. धान्तो दीर्घश्च वा | अमीवा बुभुक्षा । आमीवा व्याधिः ।। मिनातेर्दीर्घश्च । मीबा Aho ! Shrutagyanam Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ हेमचन्द्रव्याकरणे [५१५-५२१ मन उदकं च । तदेतत्त्रयमपि तन्त्रेणावृत्त्या वा निर्दिष्टम् ॥ अवतेर्वलोपाभावध | अब्बा माता || आदिशब्दात् प्वादयो भवन्ति ।। ५१४ ।। वडिवटिपेलचणिपणिपल्लिवल्लेरवः || ५१५ ।। - एभ्योवः प्रत्ययो भवति || वड आग्रहणे सौत्रः । वडवाश्वा || वट वेष्टने | वटवा सैव || पेऌ गतौ | पेलवं निःसारम् || चण हिंसादानयोश्च । चणवोवरधान्यजातिः || पाणे व्यवहार स्तुत्योः | पणवो वाद्यजातिः || पल गतौ । पल्लवं किसलयम् || वल्लि संवरणे | त्रल्लवो गोपः || ५१५ ।। मणिव सेर्णित || ५१६ ॥ आभ्यां दिवः प्रत्ययो भवति || मण शब्दे | माणवः शिष्यः ॥ वसं निवासे । वासवः शक्रः ॥ ५१६ ॥ मलेव || ५१७ || मलि धारणे | इत्यस्मादवः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिङ्का भवति | मालवा जनपदः || मलवो दानवः || ५१७ ॥ कितिकुडिकुरमुरिस्थाभ्यः कित् || १८ || एभ्यः किदवः प्रत्ययो भवति । कित निवासे । कितवो द्यूतकारः ॥ कुडत् बाल्ये च । कुडवो मानम् । लत्वे | कुलवः स एव नालीद्वयं च ॥ कुरत् शब्दे | कुरवः पुष्पवृक्षजातिः ॥ मुरत् संवेष्टने । मुरवो मानविशेषो वाद्यजातिश्च || ष्टां गतिनिवृत्तौ । स्थवोजावृषः ।। ५१८ ॥ कैरव भैरवकारण्डवादीनवादयः || ५१९ || कैरवादयः शब्दा अवप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कृग्भृगोः कैरभैरौ च । कैरवं कुमुदम् || भैरवो भर्गो भयानकच || मिनोतेर्मुत् च | मुतवो मानविशेषः ॥ कृगोण्डोन्तो वृद्धिश्व | कारण्डवो जलपक्षी || आड्पूर्वात् दीडो नोन्तश्च । आदीनवो दोषः || आदिग्रहणात् कोद्रवकोटवादयोपि भवन्ति ।। ५१९ ॥ गुणाः || ५२० | शृश् हिंसायाम् । इत्यस्मादावः प्रत्ययो भवति || शरावो मल्लकः||५२०|| प्रथेरिवद् पृथ् च ॥ ५२१ ॥ प्रथिष् प्रख्याने । इत्यस्मादिवद् प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च पृथ् इत्यादेशो भवति || पृथिवी भूः ।। ५२१ ।। Aho! Shrutagyanam Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२-५२८] उणादिगणविवृतिः । पलिसचेरिवः ॥ ५२२ ॥ पलण् रक्षणे । पचि सेचने । इत्याभ्यामिवः प्रत्ययो भवति ॥ पलिवो गोप्ता || सचिवः सहायः ॥ ५२२ ॥ स्पृशेः श्वः पार् च ।। ५२३ ।। __स्पृशत् संस्पर्शे । इत्यस्मात् श्वः प्रत्ययो [भव त्यस्य च पार् इत्यादेशो भवति || पार्श्व स्वाङ्गं समीपं च | पार्थो भगवांस्तीर्थकरः ॥ ५२३ ।। कुडितुड्यडेरुवः ॥ २४ ॥ एभ्य उवः प्रत्ययो भवति ॥ कुडत् बाल्ये च । कुडुवं प्रसृतं हस्तमानं च ॥ तुडत् तोडने | तुडुवमपनेय द्रव्यम् || अड उद्यमे | अडुवः प्लवः||५२४॥ नीतिध्यप्यापादामाभ्यस्त्वः ॥ ५२५ ॥ एभ्यस्त्वः प्रत्ययो भवति ।। णींग प्रापणे । नेत्वं द्यावापृथिव्यौ चन्द्रश्च ।। हुंक् दानादनयोः । होत्वं यजमानः समुद्रश्च ॥ इण्क् गतौ । एत्वं गमनपरम् ॥ ध्ये चिन्तायाम् | ध्यात्वं ब्राह्मणः || प्यड् वृद्धौ । प्यात्वं ब्राह्मणः समुद्रो नेत्रं च ॥ पा पाने । पात्वं पात्रम् || डुदांग्क् दाने | दात्व आयुक्तो यज्वा यज्ञश्च ।। मांक माने । मात्वं प्रमेयद्रव्यम् ॥ ५२५ ॥ __ कृजन्योधिपाभ्य इत्वः ॥ ५२६ ।। एभ्य इत्वः प्रत्ययो भवति || डुक्कंग करणे | करित्वः करणशीलः ।। जनैचि प्रादुर्भावे । जनित्वो लोको मातापितरौ द्यावापृथिव्यौ च । जनित्वं कुलम् ॥ एधि वृद्धौ । एधित्वोनिः समुद्रः शैलश्च ।। पां पाने । पेत्वं तनभूमिप्रदेशामृतं नेत्रं सुखं मानं च ॥ ५२६ ।। पादावम्यमिभ्यः शः || ६२७ ॥ एभ्यः शः प्रत्ययो भवति ॥ पांक रक्षणे । पाशो बन्धनम् ॥ डुदांग्क् दाने । दाशः कैवर्तः ॥ टुवमू उद्गिरणे । वंशो वेणुः ॥ अम गती । अंशो भागः ॥ ५२७ ॥ कृवृभृवनिभ्यः कित् ॥ ५२८ ॥ एभ्यः कित् शः प्रत्ययो भवति ॥ डुइंग् करणे । कृशस्तनुः ॥ वृग्द वरणे । वृशं शृङ्गवेरं मूलकं लशुनं च ।। टुडु,ग्क् पोषणे च | भृशमत्यर्थम् ॥ वन भक्तौ । वश आयत्तः ॥ ५२८ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [६२९-६३७ कोर्वा ।। ६२९ ।। कुंड् शब्दे । इत्यस्मात् शः प्रत्ययो [ भवति ] स च किवा भवति ॥ कुशो दर्भः || कोशः सारं कुड्मलं च ॥ ५२९ ।। क्लिशः के च ॥ ५३० ॥ क्लिशौश् विबाधने । इत्यस्मात् शः प्रत्ययो [भव त्यस्य च के इत्यादेशो भवति ॥ केशा मूर्धजाः ॥ ५३० ॥ उरेरशक् ॥ ५३१ ॥ उर गतौ । इत्यस्मात्सौत्रादशक् प्रत्ययो भवति ।। उरश ऋषिः ॥५३१॥ कलेष्टित् ।। ५३२॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । इत्यस्माट्टिदशक् प्रत्ययो भवति ॥ कलशः कुम्भः । कलशी दधिमन्थनभाजनम् ॥ ५३२॥ पलेराशः ॥ ५३३ ॥ पल गतौ । इत्यस्मादाशः प्रत्ययो भवति ।। पलाशो ब्रह्मवृक्षः ॥५३३ ।। कनेरीश्चातः ॥ ५३४ ॥ कनै दीयादौ । इत्यस्मादाशः प्रत्ययो भवति ईकारवाकारस्य भवति || कीनाशः कर्षको वर्णसंकरः कदर्यश्च । तथा । लुब्धः कीनाशः स्यात्कीनाशोप्युच्यते कृतघ्नश्च । योभात्यामं मांसं स च कीनाशो यमश्चैव ॥ १ ॥ ५३४ ॥ कुलिकनिकणिपलिवडिभ्यः किशः ॥ ५३५ ॥ एभ्यः किदिशः प्रत्ययो भवति || कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । कुलिशं वचम् । कनै दीप्त्यादौ । कण शब्दे । कनिशं कणिशं च सस्यमञ्जरी ॥ पल गतौं । पलिशं यत्र स्थिस्वा मृगा व्यापाद्यन्ते ॥ वड आग्रहणे सौत्रः । वडिशं मत्स्यग्रहणम् ।। ५३५॥ बलेणिदा ॥ ५३६ ॥ बल प्राणनधान्यावरोधयोः । इत्यस्माकिशः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिवा भवति || बालिशो मूर्खः ॥ बलिशं वडिशम् ।। ५३६ ॥ तिनिशेतिशादयः ॥ ५३७ ॥ तिनिशादयः शब्दाः किशप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ तनेरिन्चातः । तिनिशो वृक्षः ॥ हणस्तोन्तश्च । इतिशो गोत्रकृदृषि || आदिग्रहणादन्येपि ॥ ५३७॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८-५४५] उणादिगणविवृतिः । मस्ज्यङ्किभ्यामुशः ॥ ५३८ ॥ आभ्यामुशः प्रत्ययो भवति ।। टुमस्जोत् शुद्धौ । न्यङ्कद्दमेघादय इति गः । मद्गुशो नकुलः ॥ अकुड् लक्षणे | अङ्कशः सृणिः ॥ ५३८ ।। . ' अर्तीणभ्यां पिशतशो ॥ ५३९ ॥ आभ्यां यथासंख्यं पिश तश इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः ।। क् गतौ । अर्पिशमा मांसं बालवत्साया दुग्धं च ।। इण्क् गतौ । एतशोश्व ऋषिर्वायुरनिरर्कश्च ।। ५३९ ॥ वृकृतृमीमाभ्यः षः ।। ५४०॥ एभ्यः षः प्रत्ययो भवति ।। वृगट वरणे । वर्षों भर्ता । वर्ष संवत्सरः। वर्षा ऋतुः ।। कृत् विक्षेपे । कर्ष उन्मानविशेषः ।। तृ प्लवनतरणयोः । तर्षः प्लवो हर्षश्च ।। मींच् हिंसायाम् । मेष उरभ्रः॥ मांक माने । माषो धान्यविशेषो हेमपरिमाणं च ॥ ५४० ॥ __ योरूच वा ॥ ५४१ ॥ युक् मिश्रणे । इत्यस्मात् षः प्रत्ययो भव त्यूकारश्चान्तादेशो वा भवति ।। यूषः पेयविशेषः । यूषा छाया । योषा स्त्री || ५४१ ॥ स्नुपूसूम्बर्कलूभ्यः कित् ॥ ५४२ ॥ स्न्वादिभ्योर्क पूर्वाञ्च लुनाते: कित् षः प्रत्ययो भवति || स्नुक् प्रस्नवने । स्नुषा पुत्रवधूः ॥ पुगश् पवने | पूषःपवनभाण्डं शूर्पादिः ।। षून् प्रेरणे | सृषो बलम् ।। मूड् बन्धने | मूषा लोहरक्षणभाजनम् ।। लूग्य् छेदने । अर्कपूर्वः । अर्कलूषः ऋषिः॥ ५४२ ॥ श्लिषेः शे च ॥ ६४३ ॥ श्लिषंच् आलिङ्गने | इत्यस्मात् षः प्रत्ययो [भव]त्यस्य च शे इत्यादेशो भवति ।। शेषा नागराजः ।। ५४३ ॥ कोरषः ॥ ५४४ ॥ कुंड शब्दे । इत्यस्मादषः प्रत्ययो भवति ॥ कवषः क्रोधी शब्दकारश्च ।। ५४४ ॥ युजलेराषः ॥ ५४५ ॥ आभ्यामाषः प्रत्ययो भवति ॥ युक् मिश्रणे । यवाषो दुरालभा ॥ जल घात्ये । जलाषं जलम् ।। ५४५ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे अरिषः || ५४६ ॥ ऋक् गतौ । इत्यस्माण्ण्यन्तादिषः प्रत्ययो भवति ॥ अर्पिषमाईमांसम् ।। ५४६ ।। ९६ [५४६-५५३ मह्यविभ्यां टि || ५४७ ॥ आभ्यां विदिषः प्रत्ययो भवति || मह पूजायाम् | महिषः सैरिभो राजा च | महिषी राजपत्नी सैरिभी च || अव रक्षणादौ | अविषः समुद्रो राजा पर्वतश्च । भविष द्यौर्भूमिर्गङ्गा च || ५४७ || रुहेर्वृद्धिश्च || ५४८ ।। रुहं जन्मनि । इत्यस्माट्टिदिषः प्रत्ययो [भवति ] वृद्धिश्वास्य भवति || रौहिषं तृणविशेषोन्तरिक्षं च | रौहिषो मृगः । रौहिषी वाल्या मृगी दूर्वा च ॥ ५४८ ॥ अभिमृभ्यां णित् || ५४९ ॥ आभ्यामिषः प्रत्ययो भवति स च णित् [ भवति ||| अम गतौ | आमिषं भक्ष्यम् || मृश् हिंसायाम् | मारिषो हिंस्रः || ५४९ ॥ तवेवी || ५५० ॥ तव गतौ || इत्यस्मात्सौत्राट्टिदिषः प्रत्ययो [ भवति ] स च णिवा भवति ॥ ताविषस्तविषश्च स्वर्गः ॥ ताविषं तविषं च बलं तेजश्च ॥ ताविषी तविषी च वात्या देवकन्या च ॥ ५५० ॥ कलेः किल्व च ॥ ५५९ ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । इत्यस्माट्टिदिषः प्रत्ययो [ भव] त्यस्य च किल्व इत्यादेशो भवति ॥ किल्विषं पापम् । किल्विषी वेश्या रात्रिः पिशाची च ॥ ५५१ ॥ नमो व्यथेः ॥ ५५२ ॥ नञपूर्वात् व्यथिष् भयचलनयोः । इत्यस्माद्विदिषः प्रत्ययो भवति ।। अव्यविषः क्षेत्रज्ञः सूर्योमिश्च । अव्यथिषी पृथिवी | ५५२ ॥ कृतृभ्यामीषः || ५५३ ॥ आभ्यामीषः प्रत्ययो भवति | कृत् विक्षेपे । करीषः शुष्कगोमयरजः || सृ प्रवनतरणयोः । तरीषः समर्थः स्तम्भः प्रवश्व ॥ ५५३ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४-५६० उणादिगणविवृतिः। ___ ऋजियपृभ्यः किम् ॥ ५५४ ।। एभ्यः किदोषः प्रत्ययो भवति || ऋजि गत्यादौ । जीपं धनम् | ऋजीषोवस्करः ॥ शृश् हिंसायाम् । शिरीषो वृक्षः ।। पृश् पालनपूरणयोः । पुरीष शकृत् ।। ५५४ ॥ अमेर्वरादिः ।। ५५५ ॥ ___ अम गतौ । इत्यस्माद्वरादिरीषः प्रत्ययो भवति || अम्बरीषं भ्राष्ट्रं ध्योम च । अम्बरीष आदिनृपः ।। ५५५ ।। उषेोन्तश्च ।। ५५६ ।।। उषू दाहे । इत्यस्मादीषः प्रत्ययो भवति णकारश्चान्तो भवति ।। उष्णीशो मुकुटं शिरोवेष्टनं च ।। ५५६ ॥ ___ ऋपूनहिहनिकलिचलिचपिवपिकृपिहयिभ्य उपः ।। ५५७॥ एभ्य उषः प्रत्ययो भवति || ऋश् गतौ । अरुषो व्रणो हय आदित्यो वर्णो रोषश्च ।। प्रश् पालनपूरणयोः । परुष: कर्कशः ।। णहींच् बन्धने | नहुषः पूर्वो राजा ।। हनक हिंसागत्योः । हनुषः क्रोधो राक्षसश्च ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कलुषमप्रसन्नं पापं च || चल कम्पने । चलुशे वायुः ।। चप सान्त्वने | चपुषः शकुनिः ॥ डुवपी बीजसंताने | वपुशे वर्णः ॥ कृपौड् सामर्थ्ये । कल्पुषः क्रियानुगुणः ॥ हय क्लान्तौ च । हयुधौषधिः ॥ ५५७ ॥ विदिपृभ्यां कित् ।। ५५८ ।। आभ्यां किदुषः प्रत्ययो भवति ।। विदक् ज्ञाने | विदुषो विद्वान् ॥ पश् पालनपूरणयोः । पुरुषः पुमानात्मा च ।। ५५८ ॥ अपुषधनुषादयः ।। ५५९॥ अपुषादयः शब्दा उपप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || आमोतेईस्वश्च । अपुषोग्निः सरोगश्च ।। दधातेर्धन् च । धनुषः शैलः ।। आदियह गान् लसुषादयोपि ।। ५५९।। खलिफलिवृपकृजलम्बिमञ्जिपीयिहन्यङ्गिङ्गि गण्ड्यर्तिभ्य ऊषः ।। ५६० ॥ एभ्य ऊषः प्रत्ययो भवति ।। खल संचये च | खलुषो म्लेच्छ जातिः ।। फल निष्पत्तौ । फलूषो वीरुत् ।। वृग्ट वरणे | वरूषो भाजनम् ॥ पृश् पालनपूरणयोः। परूषो वृक्षविशेषः ॥ कृत् विक्षेपे | करूपा जनपदः ॥ जृष्च् जरसि | जरूष आदित्यः ।। लबुड् अवलंसने च । लम्बुषो नीरकदम्बो निचुलश्च । मचिः पीयिश्च 13 Aho ! Shrutagyanam Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे ९८ [५६१-५६५ सौत्रौ || मञ्जूषा काष्ठकोष्ठः || पीयूषं प्रत्ययप्रसवक्षीरविकारीभूतं घृतं च ॥ हक् हिंसागत्योः । हनूषो राक्षतः || अगु गतौ । अङ्गुषः शकुनि जातिर्हस्ती बाणो गश्च || मगु गतौ | मञ्जूषों जलचरशकुनिः || गडु वदनैकदेशे | गण्डूषो द्रत्रकबलः ॥ ऋक् गतौ । अरुषो रविः || ५६० ॥ कोरदूषाटरूषकारूष शैलूषविषादयः || ५६१ ॥ एत ऊषप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || कुरेरदोन्तश्व | कोरदूषः कोद्रवः || आटेररोन्तश्व | आटरूषो वासा | अटनं रूपतीत्यटरूष इति तु पृषोदरादिः ॥ कृ वृद्धिश्व | कारूषा जनपदः || शलेरै चातः । शैलूषो नटः || पिजुण् हिंसादी ! पिञ्जूषः कर्णशष्कुल्याभोगः || आदिशब्दात् प्रत्यूषाभ्यूषादयो भवन्ति ॥ ५६१ ॥ कलेर्मषः || ५६२ ॥ कलिं शब्दसंख्यानयोः । इत्यस्मान्मषः प्रत्ययो भवति || कल्मषं पापम् || ५६२ ।। कुलेश्च माषक् ॥ ५६३ ॥ 1 कुल बन्धुसंस्त्यानयोः । इत्यस्मात्कलेश्व किन्माषः प्रत्ययो भवति || कुल्माबोर्धस्विन्नं माषादि || कल्माषः शबलः ।। ५६३ ।। मावाद्यमिकमिहनि मानिकष्यशिपचिमुचियजिवृतृभ्यः सः || ५६४ || एभ्यः सः प्रत्ययो भवति || मां माने । मासविंशद्रात्रः || वांक् गतिगन्धनयोः । वासा | आटरूषः वद व्यक्तायां वाचि । वत्सस्तर्णक ऋषिः प्रियस्य च पुत्रस्याख्यानम् || अम गतौ | अंसो भुजशिखरम् || कमूड् कान्तौ । कंसो लोहजातिर्विष्णोररातिर्हिरण्यमानं च || हनेक् हिंसागत्योः । हंसः श्वेतच्छदः ॥ मानि पूजायाम् । मांसं तृतीयो धातुः । कष हिंसायाम् | कक्षस्तृणगहनारण्यं शरीरावयवश्व || अशौटि व्याप्तौ । अक्षाः प्रासकाः । अक्षाणीन्द्रियाणि रथचक्राणि च || डुपचष् पाके | पक्षेोर्धमाम्रो वर्ग : शकुन्यवयवः सहायः साध्यं च || मुलुंतीमो क्षणे | मोक्षो मुक्तिः || यजीं देवपूजादौ । यक्षो गुह्यकः || वृग्श् वरणे | वर्सो देशः समुद्रश्व || तू लवनतरणयोः । तस वीतंसः सूर्य || वर्सतर्सयोर्बाहुलकान षत्वम् ॥ ५६४ ॥ व्यवाभ्यां तनेरीच वेः ॥ ५६५ ।। विभव इत्येताभ्यां परात्तनोतेः सः प्रत्ययों [ भवति ] वेरीकारश्चान्तादेशो भवति ॥ वीतंसः शकुन्यवरोधः || अवतंसः कर्णपूरः ॥ ५६५ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६१-५५ उणादिगणविवृतिः। प्लषेः पप च ।। ६६६ ।। प्लुषू दाहे । इत्यस्मात्सः प्रत्ययो भव त्यस्य च प्लष् इत्यादे झो भवति ।। पूर्वी नक्षत्र वृक्षश्च ।। ५६६ ।। ऋजिरिषिकुषिकृतिवश्युन्दिभ्यः कित् ।। ५६७ ॥ - एभ्यः कित्सः प्रत्ययो भवति ।। कजि गत्यादौ ! असं नक्षत्रम् | कक्षोच्छमल्लः । रिष हिंसायाम् ! रिक्षा यूकाण्डम् । लत्वे । लिक्षा सैव || कुषश् निष्कर्षे । कुलो गर्भः । कुक्षं गतः ॥ कृतेत् छेदने | कृत्सो गोत्रकृदोदनं वक्त्रं दुःखजातं च ।। ओवश्चौत् छेदने । वृक्षः पादपः ॥ उन्दैप् क्लेदने । उत्सः समुद्र आकाश जल जलाशयश्च । उत्सं स्रोतः ।। शृश् हिंसायाम् । शीर्ष शिरः ॥ ५६७ ॥ गुधिगधेस्त च ।। ५६८।। ___आभ्यो कित्सः प्रत्ययो भवति तकारश्चान्तादेशो भवति ।। गुधच् परिवेष्टने । गुत्सो रोषस्तृणजाविश्व ।। गृधूच् अभिकाडायाम् | गृत्सो विप्रः श्वा गृधोभिलाषश्व !! तकारविधानमादिचतुर्थत्वबाधनार्थम् ।। ६६८ ॥ तयाणपन्यल्यविरधिनभिनम्यमिचमितमिचट्यतिपतेरसः ॥ ५६९ ।। एभ्योसः प्रत्ययो भवति || तपं संतापे । तपस आदित्यः पशुधर्मो धर्मश्च ।। अण शन्दे । अणसः शकुनिः || पनि स्तुतौ । पनसः फलवृक्षः ॥ अली भूषणादौ । अलसो निरुत्साहः ।। अव रक्षणादौ । अवसो भानू राजा च । अवसं चाप पाथेयं च ।। रधीच हिंसासंराद्धयोः । रध इटि तु परोक्षायामेवेति नागमे । रन्धसो. श्कजातिः ।। भच् हिंसायाम् । लभस ऋतुराकाशः समुद्रश्च || णम प्रहत्वे । नमसो वेत्रः प्रणामश्च ।। अम गतौ । अमसः काल आहारः संसारो रोगश्च ॥ चमू अदने ! चमसः सोमपात्रं मन्त्रपूतं पिष्टं च । चमसी मुद्गादिभित्तकृता ।। तमूच् काङ्गायाम् । तमसोन्धकारः । तमसा नाम नदी ॥ चटण् भेदे । चटसधर्मपुटः ।। गत सातस्यगमने । अतसो वायुरात्मा वनस्पति जातिश्च । अतस्योषधिः ।। पतु गतौ । पतसः पतंगः ।। ५६९ ।। - सवयिभ्यां णित् ।। ६७० ।। आभ्यां णिदसः प्रत्ययो भवति || गतौ । सारस: पक्षिविशेषः || वयि गतौ । वायसः काकः ।। ५७० ।। वहियुभ्यां वा ।। ५७१॥ आभ्यामसः प्रत्ययो [भवति ] स च शिक्षा भवति ।। वहीं प्रापणे ! वाहसो Aho! Shrutagyanam Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [५७२–५७८ नजाञ्शकटमजगरी बहनजीवन || बहसोनाञ्शकटं च || युक् मिश्रणे | यावसं भक्तं तृणं मित्रं च || यवसमश्वादिधासोनं च || ५७१ ।। १०० दिवादिरभिलभ्युरिभ्यः कित् || ५७२ || 2 दिवादिभ्यो रमिलभ्युरिभ्य दिसः प्रत्ययो भवति || दीव्यतेः । दिवसौ वासरः || व्रीड्यतेर्लले । व्रीलसो लज्जावान् ॥ नृत्यतेः । नृतसो नर्तकः || क्षिप्यतेः | क्षिसो योद्धा || सीव्यतेः | सिंवसः श्लोको वस्त्रं च || श्रीव्यतेः । विस गतिमान् ॥ इष्यतेः । इषस इष्वाचार्यः || रभि रामस्ये । रभसः संरम्भ उद्धर्षो - गम्भीरश्च || डुलभिंषु प्राप्तौ । लभसो या चकः प्राप्तिश्व || उरिः सौत्रः । उरस ऋषिः ॥ ५७२ ।। फनसतामरसादयः || ५७३ || फनसादयः शब्दा असप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || फण गतौ । नश्च | फनसः पनसः || तमेररोन्तो वृद्धिश्व | तामरसं पद्मम् || आदिशब्दात् कीकसबुकसादयो भवन्ति || ५७३ ।। युबलिभ्यामासः ॥ ५७४ ॥ आभ्यामासः प्रत्ययो भवति || युक् मिश्रणे | यवासो दुरालभा || बल प्राणनधान्यावरोधयोः । बलासः श्लेष्मा || ५७४ || किलेः कित् || ६७५ ॥ किलत् श्वैत्यक्रीडनयोः । इत्यस्मात्किदासः प्रत्ययो भवति ॥ किलासं सिध्मम् । किलासी पाककर्परम् || ६७५ । तलिकसिभ्यामीसण् ॥ ५७६ ॥ आभ्यामीसण् प्रत्ययो भवति || तलण् प्रतिष्ठायाम् | तालीसं गन्धद्रव्यम् ॥ कस गतौ । कासीसं धातुजमौषधम् || ५७६ || सेर्डित् || ६७७ ।। बिंग्ट् बन्धने । इत्यस्माडिदीसण् प्रत्ययो भवति ॥ सीसं लोहजातिः ||५७७॥ पेरुसः || ५७८ ॥ त्रपौषि लज्जायाम् । इत्यस्मादुसः प्रत्ययो भवति ॥ त्रपु कर्कटिका | I विधानसामर्थ्यबलात् षत्वाभावः || ५७८ | Aho! Shrutagyanam Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७९-५८९] उणादिगणविवृतिः । पाटवीभ्यां सिडिसौ ॥ ५७९ ॥ आभ्यां यथासंख्यं दिसो डिदिसश्च प्रत्ययौ भवतः || पट गतौ । पड्डिस आयुधविशेषः ॥ वक् प्रजननादौ । विसं मृणालम् ॥ ५७९ ॥ तसः || ५८० || पटिवीभ्यां तसः प्रत्ययो भवति || पट्टसस्त्रिशूलम् || वेतसो वानीरः ||५८०|| इणः ॥ ५८१ ॥ एतेस्तसः प्रत्ययो भवति || एतसोध्वर्युः || ५८१ ॥ पीडो नसक् || ६८२ ॥ पींड्च् पाने । इत्यस्मात्किन्नसः प्रत्ययो भवति || पीनसः श्लेष्मा || ५८२ ॥ कुकुरभ्यां पासः || ५८३ ॥ आभ्यां पासः प्रत्ययो भवति || डुकुंग् करणे | कर्पासः पिचुप्रकृतिर्वीरुच्च || कुरत् शब्दे । कूर्पासः कञ्चुकः || ५८३ ।। कलिकुलिभ्यां मास || ५८४ || आभ्यां किन्मासः प्रत्ययो भवति ॥ कलि शब्दसंख्यानयोः । कल्मासं शबलम् || कुल बन्धुसंस्त्यानयोः | कुल्मासमर्धस्विनं माषादि || ५८४ ॥ अलेरम्बुसः || ५८५ ॥ अली भूषणादौ । इत्यस्मादम्बुसः प्रत्ययो भवति || अलम्बुसो यातुधानः | अलम्बुसा नामौषधिः ॥ ५८५ ॥ १०१ लूगो हः || ५८६ ॥ लुनातेर्हेः प्रत्ययो भवति || लोहं सुवर्णादि || ५८६ ॥ कितो गे च ।। ५८७ ॥ कित निवासे | इत्यस्मात् हः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च गे इत्यादेशो भवति || गेहं गृहम् || ५८७ | हिंसेः सिम् च ॥ ५८८ ॥ हिसुप् हिंसायाम् । इत्यस्मात् हः प्रत्ययो [ भव ]त्यस्य च सिमित्यादेशो भवति ॥ सिंहो मृगराजः ॥ ५८८ ॥ कटिपटिमटिलटिललिपलिकल्यनिरगिल गेरहः || ५८९ ।। एभ्योहः प्रत्ययो भवति || कृत् विक्षेपे । करहो धान्यावपनम् ॥ पृश् पालनपूर Aho! Shrutagyanam Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ हेमचन्द्रव्याकरणे [५९०-५९७ णयोः | परहः शंकरः || कटे वर्षावरणयोः | कटहः पर्जन्यः कर्णवश्च कालायसभाजनम् || पट गतौ | पटही वाद्यविशेषः || मट सादे सौत्रः । मटहो ह्रस्वः || लट बाल्ये । लटति बिलसति | लटहो विलासवान् || ललिण् ईप्सायाम् | ललहो लीलावान् || पल गतौ | पलह आवापः || कलि शब्दसंख्यानयोः । कलहो युद्धम् || अनक् प्राणने | अनहो नीरोगः || रंगे शङ्कायाम् । रगहो नटः || लगे सङ्गे । लगहो मन्दः || ५८९ ॥ पुलेः कित् || ५९० ॥ पुल महत्त्व | इत्यस्मात्किदहः प्रत्ययो भवति || पुलहः प्रजापतिः ||५९० ॥ वृकटिशमिभ्य आहः || ५९१ ॥ एभ्य आहः प्रत्ययो भवति || वृग्ट् वरणे | वराहः सूकरः || कटे वर्षा - वरणयोः | कटाहः कर्णवत्कालायसभाजनम् ॥ शमूच् उपशमे । शमाह - श्रमः || ५९१ ॥ विलेः कित् || ५९२ ॥ विलत् वरणे | इत्यस्मात्किदाहः प्रत्ययो भवति || विलाहो रहः || ५९२ || निर इण ऊहश् || ५९३ ॥ निर्र्पूर्वात् इण्क् गतौं | इत्यस्मात् शिदूहः प्रत्ययो भवति || निर्यूहः सीधादिकाष्ठ निर्गमः || ५९३ ॥ दस्त्यूहः || ५९४ ॥ ददात्यूहः प्रत्ययो भवति || दात्यूहः पक्षिविशेषः ।। ५९४ ।। अनेकः || ५९५ ॥ अनक् प्राणने | इत्यस्मादो कहः प्रत्ययो भवति || अनोकहो वृक्षः || ५९५|| वरक्षः || ५९६ ॥ वल संवरणे इत्यस्मादक्षः प्रत्ययो भवति || वलक्ष: शुक्लः ।। ५९६ ।। लाक्षाद्राक्षामिक्षादयः ॥ ५९७ ॥ लाक्षादयः शब्दा अक्षप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || लसेरा च । लाक्षा जतु ॥ रसैर्द्रा च | द्राक्षा मृद्दीका || भङ्पूर्वीत् मृदेरन्त्यस्वरादेर्लुक् प्रत्ययादेरित्वं च | आमिक्षा हविर्विशेषः || आदिग्रहणात् चुप मन्दायां गतौ । इत्यस्य । चोक्षो ग्रामरागः शुद्धं च ॥ एवं पीयूक्षादयोपि ।। ५९७ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८-६०५] उणादिगणविवृतिः। समिग्निकषिभ्यामाः ।। ५९८ ॥ सम्पूर्वात् इण्क् गतौ | इत्यस्मात् निपूर्वात् कष हिंसायाम् । इत्यस्माच आः प्रत्ययो भवति || समया पर्वतम् ॥ निकषा पर्वतम् ।। समीपासूयावाचिनावेतौ ।। ५९८ ॥ दिविपुरिवृषिमृषिभ्यः कित् ।। ५९९ ॥ एभ्यः किदाः प्रत्ययो भवति ॥ दिवूच क्रीडाजयेच्छापणिद्युतिस्तुतिगति. षु । दिवाहः ॥ पुरत् अग्रगमने | पुरा भूतकालवाची ।। वृषू सेचने । वृषा प्रबलमित्यर्थः ॥ मृषीच तितिक्षायाम् । मृषाभूतमित्यर्थः ।। ५९९ ॥ वेः साहाभ्याम् || ६०० ॥ विपूर्वाभ्यां पांच अन्तकर्मणि | ओहांक त्यागे । इत्येताभ्यामाः प्रत्ययो भवति ।। विसा चन्द्रमा बुद्धिश्च । तालव्यान्तोयमित्येके || विहा विहगः स्वर्गश्च ।। ६०० ।। वृमिथिदिशिभ्यस्थयट्याश्चान्ताः ॥६०१ ॥ एभ्यः किदाः प्रत्ययो भवति यथासंख्यं थकारयकारटयकाराश्चान्ता भवन्ति ।। वृग्ट वरणे । वृथानर्थकम् ।। मिथग् मेधाहिंसयोः । मिथ्या मृषा निष्कलं च ॥ दिशीत् अतिसर्जने । दिष्टया प्रीतिवचनम् ॥ ६०१ ।। मुचिस्वदेर्ध च ।। ६०२।। आभ्यां किदाः प्रत्ययो [ भवति ] धकारश्चान्तस्य भवति || मुचंती मोक्षणे । मुधानिमित्तम् ।। ष्वदि आस्वादने । स्वधा पितृ बलिः ॥ ६०२ ॥ सोबॅग आह च ।। ६०३ ॥ सुपूर्वात् ब्रूतेराः प्रत्ययो [ भव ]त्याह इति चास्यादेशो भवति ॥ स्वाहा देवतातर्पणम् ।। ६०३ || सनिक्षमिदुषेः ।। ६०४ ॥ एभ्यो धातुभ्य आः प्रत्ययो भवति ॥ षणूयी दाने । सना नित्यम् ।। क्षमौषि सहने । क्षमा भूः क्षान्तिश्च ।। दुषंच् वैकृत्ये । दोषा रात्रिः॥ ६०४ ।। डित् ॥ ६०५ ॥ धातोर्बहुलमाः प्रत्ययो भवति स च डिद्भवति ।। मनिंच ज्ञाने | मा निषेधे । षोंच् अन्तकर्मणि | सावसानम् ।। अनक् प्राणने । आ स्मरणादौ ।। प्रीडच प्रीती । प्रा स्मयने । हनंक हिंसागत्योः । हा विषादे ॥ वन भक्तौ । वा विकले। Aho! Shrutagyanam Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૦¥ हेमचन्द्रव्याकरणे [६०६-६०७ रांक् दाने | रा दीप्तिः || भांक् दीप्तौ । भा । सहपूर्वः । सभा परिषत् ॥ ना नीति सहस्य सः ।। ६०५ ।। स्वरेभ्य इः || ६०६ ॥ स्वरान्तेभ्यो धातुभ्य इः प्रत्ययो भवति || जिं अभिभवे | यजी राजा || हिंदू गतिवृद्धयोः | हायः कामः || रुक् शब्दे | रविः सूर्यः || कुंक् शब्दे | कविः काव्यकर्ता || टुंग्क् स्तुतौ । स्तविरुद्वाता || लूग्श् छेदने | लत्रिर्दात्रम् || पूग्य् पवने | पविर्वायुर्वचं पवित्रं च || भू सत्तायाम् । भविः सत्ता चन्द्रो विधिश्व || ऋक् गतौ । अरिः शत्रुः || हंग् हरणे | हरिरिन्द्रो विष्णुश्चन्दनं मर्कटादिश्व | हरयः शक्राश्वाः || टुडुभृग्क् पोषणे च | भरिर्वसुधा || सृ गतौ । सरिर्मेघः || पृश् पालनपूरणयोः । परिर्भूमिः || तॄ प्लवनतरणयोः । तरिर्नैः || दृश् विदारणे | दरिर्महाभिदा || मृश् हिंसायाम् | व्यन्तः | मारिरशिवम् || वृग्श् वरणे । वरिर्विष्णुः । ण्यन्तात् | वारिर्हस्तिबन्धनम् | वारि जलम् || ६०६ ॥ पदिप ठिपचिस्थलिहलिकलिबलिबलिबल्लिपल्लिकटिवटिवटिवधि गाभ्यर्चिवन्दिनन्द्यविवशिवाशिका शिछिर्दितन्त्रिमन्त्रिखण्डिमाण्ड - चण्डियत्यञ्जिमस्यसिवनिध्वनिसनिगमितमिग्रन्थिश्रन्थि जनिमण्यादिभ्यः || ६०७ ॥ एभ्य इः प्रत्ययो भवति || पदिं गतौ । पदी राशिर्मोक्षमार्गश्व | पठ व्यक्तायां वाचि । पतिर्विद्वान् ॥ डुपचष् पाके | पचिरभिः || ल स्थाने | स्थलिर्दानशाला || हल विलेखने | हलिर्हलः || कलि शब्दसंख्यानयोः । कलिः कलहो युगं च || बल प्राणनधान्यावरोधयोः | बलिर्देवतोपहारो दानवच || वाले बल्लि संवरणे । वलिस्त्वक्तरंगः । वल्लिर्हिरण्यशलाका लता च ॥ पल गतौ । पल्लिर्मुनीनामाश्रमो व्याधसंस्त्याय च || कटे वर्षावरणयोः । कटिः स्वाङ्गम् ।। चटण् भेदे | चटिर्वर्णः || वट वेष्टने | वटिगुलिका तन्तुः शूना च नाभिर्वर्णश्च ॥ वधि बन्धने । वधिः क्रियाशब्दः || गाधृड् प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु । गाधिर्विश्वामित्रपिता || अर्च पूजायाम् | अर्चिरमिशिखा || वहुड् स्तुत्यभिवादनयोः | वन्दिग्रहणिः || टुनदु समृद्धौ । नन्दिरीश्वरः प्रतीहारो भेरिश्व || अव रक्षणादौ | अविरूर्णायुः || वशक् कान्तौ । वशिर्वशिता || वाशिच् शब्दे | वाशिः कान्ती रश्मिमायुरभिः शब्दः प्रजननप्राप्ता चतुष्पाज्जलदश्व || काशृड् दीप्तौ | काशयो जनपदः || उर्दण् वमने | छर्दिर्वमनम् || तन्त्रिण् कुटुम्बधारणे । तन्त्रिर्वीणा सूत्रम् ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८-६०९] उणादिगणविवृत्तिः। मन्त्रिण गुप्तभाषणे । मन्त्रिः सचिवः ॥ खडुप भेदे । खण्डिः प्रहारम् ।। मडु भूषायाम् । मण्डिर्मुद्भाजनपिधानम् || चडुड् कोपे । चण्डिर्भामिनी ॥ यतैड् प्रयत्ने । यतिभिक्षुः ॥ अौप् व्यक्तिम्रक्षणगतिषु । अञ्जिः सज्जः पेषणी पेजो गतिश्च । समञिः शिनः ।। मसैच् परिणामे । मसिः शस्त्री ॥ असूच क्षेपणे । असिः खगः॥ वनूयी याचने । वनिः साधुर्याच्या शकुनिरनिश्च || ध्वन शब्दे । ध्वनिर्नादः ॥ षन भक्तौ । सनिः संभक्ता पन्था दानं म्लेच्छो नदीतटं च || गमुं गतौ । गमिराचार्यः ॥ तमूच काडायाम् । तमिरलसः ।। ग्रन्थश् संदर्भ । श्रन्थश् मोचनप्रतिहर्षणयोः । ग्रन्थिः श्रन्थिश्च पर्वसंध्यादि ॥ जनैचि प्रादुर्भावे । जनिर्वधूः कुलाङ्गना भगिनी प्रादुर्भावश्च ॥ मण शब्दे । मणी रत्नम् ॥ आदिग्रहणात् वहीं प्रापणे | वहिरश्वः ॥ खादृ भक्षणे | खादिः श्वा ।। दधि धारणे । दधि क्षीरविकारः ॥ खल संचये च | खलिः पिण्याकः ।। शचि व्यक्तायां वाचि । शचीन्द्राणी । इतोत्यर्थादिति गौरादित्वाहा डीः ।। इत्यादयोपि भवन्ति ।।६०७॥ किलिपिलिपिशिचिटित्रुटिशुण्ठितुण्डिकुण्डिभण्डिहुण्डिहिण्डिपिण्डि चुल्लिबुधिमिथिरुहिदिविकीर्त्यादिभ्यः ॥६०८|| एभ्य इ. प्रत्ययो भवति ॥ किलत् श्वैत्यक्रीडनयोः। केलिः क्रीडा ॥ पिलण् क्षेपे । पेलिः क्षुद्रपेला || पिशत् अवयवे । पेशिौसखण्डम् || चिट प्रेष्ये । चेटिर्दारिका प्रेष्या च ॥ त्रुटत् छेदने । ण्यन्तः | त्रोटिश्चञ्चुः ॥ शुटु शोषणे । शुठिविश्वभेषजम् ॥ तुडुड तोडने | तुण्डिरास्यं प्रवृद्धा च नाभिः ।। कुडुड् दाहे । कुण्डिर्जलभाजनम् ॥ भडुड् परिभाषणे । भण्डिः शकटम् ॥ हुडुड् संघाते । हुण्डिः पिण्डित ओदनः ॥ हिडुड् गतौ च । हिण्डी रात्रौ रक्षाचारः ॥ पिडुड् संघाते । पिण्डिनिष्पीडितस्नेहपिण्डः ॥ चुल्ल हावकरणे । चुल्ली रन्धनस्थानम् ॥ बुधिंच ज्ञाने । बोधिः सम्यग्ज्ञानम् ।। मिथग् मेधाहिंसयोः । मेथिः खलमध्यस्थूणा || रुहं जन्मनि । रोहिः सस्थं जन्म च ॥ दिवूच क्रीडादौ । देविभूमिः।। कृतण संशब्दने । णिजन्तः । कीर्तिर्यशः॥ आदिग्रहणादन्येपि ।।६०८॥ नाम्युपान्त्यकृगृपपूड्भ्यः कित् ।। ६०९ ॥ नाम्युपान्त्येभ्यः क्रादिभ्यश्च किदिः प्रत्ययो भवति ॥ लिखत् अक्षरविन्यासे | लिखिः शिल्पम् ॥ शुच शोके । शुचिः पूतो विद्वान्धर्म आषाढश्व ॥ रुचि अभिप्रीत्यां च । रुचिर्दीप्तिरभिलाषश्च ॥ भुजंप पालनाभ्यवहारयोः । भुजिरमी 14 Aho! Shrutagyanam Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ हेमचन्द्रव्याकरणे [६१०-६१३ । राजा कुटिलं च ॥ कुणत् शब्दोपकरणयोः । कुणिविकलो हस्तो हस्तविकलश्च ।। सृजत् विसर्गे । मृजिः पन्थाः ॥ द्युति दीप्तौ । युतिर्दाप्तिः ॥ ऋत घृणागतिस्पधेषु । ऋतिर्यतिः ॥ छिद्रंपी द्वैधीकरणे | छिदिरछेत्ता परशुश्च ।। मुदि हर्षे । मुदिर्बालः ॥ भिदंपी विदारणे । भिदिर्वजं सूचको भेत्ता च ॥ ऊछदपी दीप्निदेवनयोः । फुदी रथकारः ॥ लिपीत् उपदेहे । लिपिरक्षरजातिः ।। तुर त्वरणे सौत्रः । तुरिस्तन्तुवायोपकरणम् || दुलण् उत्क्षेपे | दुलिः कच्छपः ।। त्विषीं दीप्तौ । विषिर्दीप्तिस्त्विषिमात्राजवर्चस्वी च ॥ कृषीत् विलेखने । कृषिः कर्षणं कर्षणमूमिश्च ॥ ऋषैत् मतौ । ऋषिमुनिर्वेदश्च । कुषश् निष्कर्षे । कुषिः शुषिरम् ।। शुषच् शोषणे | शुषिश्छिद्रं शोषणं च ॥ हृषू अलीके । हषिरलीकवादी दीप्तिस्तु. टिश्च ।। ष्णुहीच उद्गिरणे | स्नुहिर्वक्षः ॥ कृत् विक्षेपे । किरिः शूकरो मूषिको गन्धर्वो गर्तश्च ।। गृत् निगरणे । गिरिर्नगः कन्दुकश्च ।। शृश् हिंसायाम् । शिरिर्हिस्रः शोकः खड़ः पाषाणच || पृश् पालनपूरणयोः । पुरिनगरं राजा पूरयिता च ॥ पूड् पक्ने | पुविर्वातः ॥ ६०९ ॥ विदिवृतेर्वा ।। ६१० ॥ आभ्यामिः प्रत्ययो भवति स च किहा भवति ।। विदक् ज्ञाने । विदिः शिल्पी । वेदिरिज्यादिस्थानम् ।। वृतूड् वर्तने । वृतिः कण्टकशाखावरणम् । निर्वृतिः सुखम् । वर्तिव्यं दीपा च ॥ ६१० ॥ तृभ्रम्यद्यापिदम्भिभ्यस्तित्तिरभृमाधापदेभाश्च ॥ ६११ ॥ एभ्यः किदिः प्रत्ययो [भव ]त्येषां च यथासंख्यं तित्तिर भृम अध अप देभ इत्यादेशा भवन्ति ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तित्तिरिः शकुनिजातिः प्रवक्ता च वेदशाखायाः ।। भ्रमू चलने । भूमिर्वायुर्हस्ती जलं च | बाहुलकाङ्ग्रमादेशाभावे । भ्रमिर्धमः ॥ अदं प्सांक भक्षणे । अध्युपरिभावे । अध्यागच्छति ।। आफूट व्याप्तौ । अपि समुच्चयादौ | पक्षोपि न्यग्रोधोपि || दम्भूट दम्भे | देभिः शरासनम् ॥६११॥ मनरुदेती चास्य वा ।। ६१२॥ मनिच् ज्ञाने । इत्यस्मादिः प्रत्ययो [भव ] त्यकारस्य च उकार-एकारी वा भवतः ॥ मुनिर्ज्ञानवान् ॥ मेनिः संकल्पः ॥ मनिर्धूमवर्तिः ॥ ६१२ ॥ . क्रमितमिस्तम्भरिच नमेस्तु वा ॥ ६१३ ॥ एभ्यः किदिः प्रत्ययो [भव त्यकारस्य च इकारो भवति नमः पुनरकारस्य Aho 1 Shrutagyanam Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४-६१८] उणादिगणविकृतिः। विकल्पेन इकारः ।। मू पादविक्षेपे | क्रिमिः क्षुद्र जन्तुः ॥ तमूच् काडायाम् । तिमिर्महामत्स्यः ।। स्तम्भिः सौत्रः । स्तिभिः केतकादिसूची हृदयं समुद्रश्च ॥ णमं प्रवत्वे | निमी राजा । नििवद्याधराणामाद्यस्तीर्थकरश्च ।। ६१३ ।। ___ अम्भिकुण्ठिकम्प्यहिभ्यो नलुक च ।। ६१४ ।। ___ एभ्य इ. प्रत्ययो [ भवति ] नकारस्य च लुग्भवति ॥ अभुड् शब्दे । अभ्याभिमुख्येव्ययम् | अभ्यग्नि शलभाः पतन्ति ॥ कुटु आलस्ये च । कुठिर्वक्षः पापं वृषलो देहो गेहं कुठारश्च ।। कपुड् चलने । कपिरनिर्धानरश्च ।। अहुड् गतौ । अहिः सर्पो वृत्रो वश्च ।। ६१४ ।। उभेईत्रौ च ॥ ६१९ ॥ ___ उभत् पूरणे । इत्यस्मादिः प्रत्ययो भवत्यस्य च त्रावित्यादेशौ भवतः ॥ हो द्वितीयो द्विमुनि व्याकरणस्य ॥ त्रयस्तृतीयस्त्रिमुनि व्याकरणस्य ॥ ६१५ ॥ नीवीपहभ्यो डित् ॥ ६१६ ।। एभ्यो डिदिः प्रत्ययो भवति ॥णींग प्रापणे | निवसति ॥ वीं प्रजननादौ । विस्तन्तुवायः पक्ष्युपसर्गश्च ।। यथा विभवति ॥ हंग हरणे । प्रपूर्वः। पहिः कूप उदपानं च ॥ ६१६ ॥ वो रिचेः स्वरानोन्तश्च ॥ ६१७ ॥ वावुपसर्गे सति रिघुपी विरेचने । इत्यस्मादिः प्रत्ययो भवति स्वरात्परो नोन्तश्च भवति ।। विरिञ्चिर्ब्रह्मा ॥ ६१७ ।।. कमिवमिजमिघसिशलिफलितलितडिवजिवजिवजिराजिपणिवणिवदिसदिहदिहनिसहिवहितपिवपिभटिकञ्चिसंपतिभ्यो _ णित् ॥६१८ ॥ एभ्यो णिदिः प्रत्ययो भवति || कमूड् कान्तौ । कामिर्वसुकः कामी च ।। टुवमू उद्गिरणे । वामिः स्त्री ॥ जमू अदने । जामिर्भगिनी तणं जनपदश्चैकः ।। घसं अदने । घासिः संग्रामो गर्नाग्निर्बहुभुक् च || शल गतौ । शालिहिराजः॥ फल निष्पत्तौ । फालिदलम् ।। तलण् प्रतिष्ठायाम् । तालिवृक्षजातिः ।। तडण आघाते । ताडिः स एव ।। वज व्रज ध्वज मतो । वाजिरश्वः पुडावसानं च ।। वाजिः पद्धतिः पिटकजातिश्च ॥ ध्वाजिः पताकाश्वश्च ।। राजग् दीप्तौ । राजिः पब्जिर्लेखा च ॥ पणि व्यवहारस्तुत्योः । पाणिः करः ॥ वण शब्दे | वाणिर्वाक् । Aho! Shrutagyanam Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० हेमचन्द्रव्याकरणे [६१९-६२१ ड्याम् । वाणी ॥ वद व्यक्तायां वाचि । वादिर्वाग्मी वीणा च ।। ष, विशरणगत्यवसादनेषु । सादिरश्वारोहः सारथिश्च ॥ हाद पुरीपोत्सर्गे । हादिर्तृता ।। हनं हिंसागत्योः । घातिः प्रहरणम् | केचित्तु हानिरर्थनाश उच्छित्तिश्चेत्युदाह. रन्ति । तत्र बाहुलकात् णिति घादिति घान्न भवति । बाहुलकादेव णित्त्वविकल्पे । हनिरायुधम् । षहि मर्षणे | साहिः शैलः ॥ वहीं प्रापणे । वाहिरनड्वान् ।। तपं संतापे । तापिर्दानवः ॥ डुवपी बीजसंताने । वापिः पुष्करिणी ॥ भट भृतौ । भाटिः सुरतमूल्यम् ॥ कचुड् दीप्तौ | काञ्चिर्मेखला पुरी च | णित्करणादनुपान्त्यस्यापि वृद्धिः ॥ पतु गतौ । सम्पूर्वात् । संपातिः पक्षिराजः ॥ ६१८ ॥ कृशृकुटिग्रहिखन्यणिकष्यलिपलिचरिवसिगण्डिभ्यो वा ॥ ६१९ ॥ एभ्य इ. प्रत्ययो [ भवति ] स च णिवा भवति ॥ डुकंग करणे | कारिः शिल्पी | करिहस्ती विष्णुश्च || शृश् हिंसायाम् । शारि तोपकरणं हस्तिपर्याणं शारिका च । शरिर्हिसा शूलश्च ॥ कुटत् कौटिल्ये । कोटिरश्रिरप्रभागोष्टमं चाङ्कस्थानम् । कुटिगृहं शरीराङ्गं च ।। ग्रहीश् उपादाने | पाहिः पतिः । पहिर्वेणुः ।। खनग अवदारणे । खानिः खनिश्च निधिराकरस्तडागं च || अण शब्दे । आणिरणिश्च द्वारकीलिका || कष हिंसायाम् । काषिः कर्षकः । कषिनिकषोपलः काष्ठ - मश्वकर्णः खनित्रं च ॥ अली भूषणादौ । आलिः पतिः सखी च | अलिर्भमरः॥ पल गतौ । पालिर्जलसेतुः कर्णपर्यन्तश्च | पलिः संस्त्यायः ॥ चर भक्षणे च । चारिः पशूनां भक्ष्यम् । चरिः प्राकारशिखरं विषयो वायुः पशुः केशोर्णा च ।। वसं निवासे | वासिस्तक्षोपकरणम् । वसिः शय्यामिर्गृहं रात्रिश्च | गडु वदनैकदेशे । गण्डिण्डिका । णित्त्वपक्षेनुपान्त्यस्यापि वृद्धौ । गाण्डिर्धनुष्पर्व ॥ ६१९॥ पादाच्चात्यजिभ्याम् ।। ६२०॥ । पादशब्दपूर्वाभ्यां केवलाभ्यां चात्यजिभ्यां णिदिः प्रत्ययो भवति ।। अत सातत्यगमनेः | अज क्षेपणे च । पादाभ्यामततीति । अजतीति वा । पदातिः । पदाजिः । पदः पादस्याज्यातिगोपहत इति पदभावः । उभावपि पत्तिवाचिनौ ।। आतिः पक्षी | सुपूर्वात् । स्वातिर्वायव्यनक्षत्रम् ॥ आजिः संग्रामः स्पर्धावधिश्च || ॥ ६२० ॥ नहेर्भ च ॥ ६२१ ॥ . .." णहींच् बन्धने | इत्यस्माणिदिः प्रत्ययो भवति भकारश्चान्तादेशो भवति ॥ नाभिरन्त्यकुलकरश्वकमध्यं शरीरावयवश्च ॥ ६२१ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ ६२२-६३१] उणादिगणविवृतिः। अशी रश्चादिः ॥ ६२२॥ अशौटि व्याप्ती । इत्यस्माणिदिः प्रत्ययो [ भवति ] रेफश्च धातोरादिर्भषति || राशिः समूहो नक्षत्रपादनवकरूपश्च मेषादिः ॥ ६२२ ॥ कायः किरिच वा ।। ६२३ ॥ मैं शब्दे | इत्यस्मात्किः प्रत्ययो भवति इकारश्चान्तादेशो वा भवनि || किकिः पक्षी विद्वांश्च ।। काकिः स्वरदोषः ।। ६२३ ॥ वधैरकिः ।। ६२४ ।। वर्धण् छेदनपूरणयोः। इत्यस्मादकिः प्रत्ययो भवति ।। वर्धकिस्तक्षा।।६२४॥ सनेर्डखिः ॥ ६२५ ।। षयी दाने | इत्यस्माडिदखिः प्रत्ययो भवति ॥ सखा मित्रम् | सखायौ । सखायः ॥ ६२५ ॥ कोडिखिः ॥ ६२६ ॥ कुंक् शब्दे । इत्यस्माडिदिखिः प्रत्ययो भवति || किखिोमसिका||६२६॥ ___ मृश्चिकण्यणिदध्यविभ्य ईचिः ॥ ६२७ ॥ एभ्य ईचिः प्रत्ययो भवति ।। मृत् प्राणत्यागे । मरीचिर्मुनिमयूखश्च ।। दोश्व गतिवृद्धयोः । श्वयीत्रिश्चन्द्रः श्वयथुश्च ॥ कण अण शब्दे । कणीचिः प्राणी लता चक्षुः शकटं शश्च ॥ अणीचिर्वेणुः शाकटिकश्च ॥ दधि धारणे । दधीची राजर्षिः ॥ अव रक्षणादौ । अवीचिर्नरकविशेषः ॥ ६२७ ॥ वेगो डित् ॥ ६२८॥ वेंग् तन्तुसंताने | इत्यस्माजिदीचिः प्रत्ययो भवति || वीचिरूमिः ॥६२८|| वणेणित् ।। ६२९॥ वण शब्दे । इत्यस्माण्णिदीचिः प्रत्ययो भवति || पाणीचिश्या व्याधिश्व ॥ ६२९ ॥ ___ कृषिशकिभ्यामटिः ॥ ६३० ॥ आभ्यामटिः प्रत्ययो भवति ॥ कृपौड् सामर्थे । कर्पटिः निःस्वः ।।शकंट शक्तौ । शकटिः शकटम् ।। ६३० ॥ . श्रेडिः ॥ ६३१ ॥ श्रिग् सेवायाम् । इत्यस्माडिः प्रत्ययो भवति ।। श्रेडिर्गणितव्यवहारः ।।६३१॥ Aho! Shrutagyanam Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० हेमचन्द्रव्याकरणे [६३२-६३७ चमेरुश्चातः ॥ ६३२ ॥ चमू अदने । इत्यस्माद्धिः प्रत्ययो भवत्यकारस्य उकारी भवति ।। चुण्ढिः क्षुद्रवापी ॥ ६३२ ।। मुषेरुण चान्तः ॥ ६३३ ॥ मुषश् स्तेये । इत्यस्माडिः प्रत्ययो [ भव ]त्युण् चान्तो भवति ।। मुषुण्डिः प्रहरणम् । उणो न गुणो विधानसामर्थ्यात् ।। ६३३ ॥ । कावावीक्रीश्रिश्रुक्षुज्वरितूरिथरिपूरिभ्यो णिः ॥ ६३४ ॥ एभ्यो णिः प्रत्ययो भवति ।। मैं शब्दे | कार्णिलक्ष्याननुसर्पणम् ॥ वेंग् तन्तुसंताने । वाणिप॑तिः । वींक् प्रजननादौ । वेणिः कवरी ॥ डुक्क्रींग्श् द्रव्यविनिमये । क्रेणिः क्रयविशेषः ॥ श्रिग् सेवायाम् । श्रेणिः पङिबलविशेषश्च । श्रेणयोष्टादश गणविशेषाः । निपूर्वात् । निश्रेणिः संक्रमः ॥ श्रृंट् अवणे | श्रोणिजघनम् ॥ टुक्षुक शब्दे । क्षोणिः पृथिवी । ज्वर रोगे। जूणिर्वरो वायुरादित्योमिः शरीरं ब्रह्मा पुराणश्च ।। तूरैचि त्वरायाम् | पूर्णिस्त्वरा मनः शीघ्रश्च ।। रैचि दाहे | चूर्णिवृत्तिः ॥ पूरैचि आप्यायने । पूर्णिः पूरः ॥ ६३४ ॥ ऋत्घृसृकुवृषिभ्यः कित् ॥ ६३५ ॥ ऋकारान्तेभ्यो इत्यादिभ्यश्च किण्णिः प्रत्ययो भवति || शृश् हिंसायाम् | शीर्णी रोगोवयवश्च ।। स्तृग्श् आच्छादने । स्तीणिः संस्तरः ।। धू सेचने । घृणी रश्मिाला निदाघश्च ॥ तूं गतौ । सूणिरादित्यो वज्रमनिलोङ्कशोग्निश्च ।। कुंक शब्दे । कुणिर्विकलो हस्तो हस्तविकलश्च ॥ वृषू सेचने । वृष्णिवस्नो मेषो यदुविशेषश्च । पर्षतेरपीच्छन्त्येके । पृष्णी रश्मिः ।। ६३५ ॥ पृषिहृषिभ्यां वृद्धिश्च ।। ६३६ ।। आभ्यां णिः प्रत्ययो [ भव ]त्यनयोश्च वृद्धिर्भवति ॥ पृषू सेचने । पाणिः पादपश्चाद्भागः पृष्ठप्रदेशच ।। हषच् तुष्टौ । हार्हिरणम् || ६३६ ॥ हूर्णिधूर्णिभूर्णिादयः ॥ ६३७ ॥ एते णिप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ हंग् हरणे । धृग् धारणे । भू सत्तायाम् । धुं सेचने । ऊत्वं रथान्तो निपात्यते ।। हूर्णि कुल्या ॥ धूर्णिधृतिः ।। भूर्णिधेतनं भूमिः कालच ॥ पूणिर्भमः ॥ आदिग्रहणादन्येपि ॥ ६३७ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८-६४४] उणादिगणविवृतिः। ऋहसमृधृभृकृतृाहेरणिः ॥ ६३८ ॥ एभ्योणिः प्रत्ययो भवति ॥ क् गतौ | अरणिरमिमथनकाष्ठम् ॥ हंग् हरणे | हरणिः कुल्या मृत्युश्च ।। सं गतौ । सरणिरीषद्गतिः पन्था आदित्यः सिरासंघातश्च ॥ मुंत् प्राणत्यागे । मरणी रात्रिः || धुंग धारणे । धरणिः क्षितिः ॥ टुडुभंगक् पोषणे च । भरणिनक्षत्रम् || डुकंग करणे । करणिः सादृश्यम् ॥ तृ प्लवनतरणयोः। तरणिः संक्रम आदित्यो यवागूः पतितगोरूपोत्थापनी च यष्टिः। वै दुःखार्थे । दुःखेन तीर्यत इति वैतरणी नदी ।। ग्रहीश उपादाने । ग्रहणिजेठराग्निस्तदाधारो व्याधिर्मेद्रं मृत्युश्च ।। ६३८ ॥ कङ्केरिचास्य वा ॥ ६३९॥ ककुड् गतौ । इत्यस्मादणिः प्रत्ययो [भवति ] धातोरकारस्य च इकारी वा भवति ॥ कङ्कणिः कङ्कणम् ॥ किङ्कणिर्घण्टा ॥ ६३९ ।। कणित् ॥ ६४०॥ ककि लौल्ये । इत्यस्माणिदणिः प्रत्ययो भवति ॥ काकणिर्मानविशेषः ॥ ६४०॥ कृषेश्च चादेः ॥ ६४१॥ कृषीत् विलेखने । इत्यस्मादणिः प्रत्ययो भव त्यादेश्च चकारो भवति ।। चर्षणिश्वमूरनिर्बुद्धिर्व्यवसायो वेश्या वृषश्च ॥ ६४१॥ क्षिपेः कित् ॥ ६४२॥ क्षिपीत् प्रेरणे | इत्यस्मात्किदणिः प्रत्ययो भवति ॥ क्षिपणिरायुधं वडिशबन्धकश्चर्मकृता पाषाणसर्जनी च ।। ६४२ ॥ आडः कृहशुषेः सनः ॥ ६४३॥ आडः परेभ्यो डुकंग करणे । हंग् हरणे । शुषंच् शोषणे । इत्येतेभ्यः सनन्तेभ्योणिः प्रत्ययो भवति ।। आचिकीर्षणिर्व्यवसायः ।। आजिहीर्षाणिः श्रीः ॥ आशुशुक्षणिरनिर्वायुश्च ।। ६४३ ॥ वारिसादरिणिक् ॥ ६४४ ।। एभ्यः किदिणिः प्रत्ययो भवति ॥ वृगट् वरणे । ण्यन्तः । वारिणिः पशुः पशुवृत्तिश्च ।। सं गतौ | निणिरनिर्वचं च ॥ आदिग्रहणादन्येपि ॥ ६४४ ।। Aho! Shrutagyanam Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे अदेस्त्रीणिः || ६४५ ॥ अक् भक्षणे । इत्यस्मात्रीणिः प्रत्ययो भवति ॥ अत्रीणिः कृमिजातिः ॥ ६४५ ।। ११२ [६४५-६५१ नुज्ञायजिषपिपदिवसिवितसिभ्यस्तिः || ६४६ ॥ एभ्यस्तिः प्रत्ययो भवति || लुड् गतौ | प्लोतिश्वीरम् || ज्ञांश् अवबोधने । ज्ञायते त्रैलोक्यस्य त्रातेति ज्ञातिरेिक्ष्वाकुर्वृषभः स्वजनश्च || यजीं देवपूजादौ । यष्टिर्दण्डो लता च ॥ पप समवाये । सप्तिरश्वः || पदिंच् गतौ । पत्तिः पदातिः || वसं निवासे | वस्तिः सूत्राधारश्वर्मपुटः स्नेहनोपकरणं च || तसूच् उपक्षये । विपूर्वः । वितस्तिर हस्तः || ६४६ ।। प्रथेर्लुक् च वा ॥ ६४७ ॥ प्रथिष् प्रख्याने | इत्यस्मात्तिः प्रत्ययो [भव ] त्यन्तस्य च लुग्वा भवति ॥ वृक्षं प्रति विद्योतते । प्रतिष्ठितः ॥ पक्षे | प्रत्तिः प्रथनं भागश्च || ६४७ || कोर्यषादिः || ६४८ ॥ कुंक् शब्दे । इत्यस्माद्यषादिस्तिः प्रत्ययो भवति || कोयष्टिः पक्षिविशेषः 11 8 8 6 11 ग्रो गुष् च || ६४९ ॥ गृत् निगरणे । इत्यस्मात्तिः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च गृष् इत्यादेशो भवति || गृष्टिः सकृत्प्रसूता गौः || ६४९ ।। सोरस्तेः शित् || ६५० ॥ सुपूर्वात् असक् भुवि । इत्यस्मात् शित्तिः प्रत्ययो भवति || स्वस्ति कल्याणम् ॥ शित्त्वाभावालुगभावः ।। ६५० ।। दृमुषिकृषिरिषिविषिशोशुच्यशिपूर्याीणप्रभृभ्यः कित् ॥ ६५१ ॥ एभ्यः कित्तिः प्रत्ययो भवति || ढुंड़्त् आदरे । दृतिरछागादित्वग्मयो जला - धारः || मुषश् स्तेये | मुष्टिरङ्गुलिसंनिवेशविशेषः || कृषींत् विलेखने | कृष्टिः पण्डितः || रिष हिंसायाम् | रिष्टिः प्रहरणम् || विषूकी व्याप्तौ । विष्टिरचेतनकर्मकरः ॥ शच् तक्षणे | शितिः कृष्णः कृशश्र ॥ शुत्र शोके । शुक्तिः मुक्तादिः ॥ भशौटि व्याप्तौ | भष्टिश्छन्दोविशेषः || पूयैड् दुर्गन्धविशरणयोः | पूतिर्दुर्गन्धो दुष्टं तृणजातिश्च || इण्क् गतौ । इति हेत्वादौं || टुडुभृंग्क् पोषणे च | प्रपूर्वः । प्रभृतिरादिः ।। ६५१ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२-६६०] उणादिगणविवृतिः । कुतश्व || ६५२ ॥ आभ्यां कित्तिः प्रत्ययो भवति नकारश्चान्तो भवति || कुंड् शब्दे | कुन्ती राजा | कुन्तयो जनपदः || चिंग्ट् चयने | चिन्ती राजा || ६५२ ॥ खल्यमिरमिवहिवस्यर्तेरतिः ।। ६५३ ।। ११३ एभ्योतिः प्रत्ययो भवति || खल संचये च । खलतिः खल्वाटः || अम गतौ | अमतिश्वातकश्छागः प्रावृण्मार्गो व्याधिर्गतिश्व || रमिं क्रीडायाम् | रमतिः क्रीडा कामः स्वर्गः सभा च ॥ वहीं प्रापणे । वहतिगैौर्वायुरमात्यो पत्यं कुटुम्बं च || वसं निवासे | वसतिर्निवासो ग्रामसंनिवेशश्च ।। ऋक् गतौ | अरतिर्वायुः सरणमसुखं क्रोधो वर्म च ।। ६५३ ॥ हन्तेरह च || ६५४ ॥ हर्नक् हिंसागत्योः । इत्यस्मादति: प्रत्ययो [ भव ] त्यस्य च अंह इत्यादेशो भवति || अंहतिर्व्याधिः पन्थाः कालो रथश्च ।। ६५४ || वृगो व्रत च ।। ६५५ ॥ वृग्ट् वरणे । इत्यस्मादतिः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च व्रत इत्यादेशो भवति || व्रततिर्वल्ली ॥ ६५५ ॥ अच्चेः क व वा ॥ ६५६ ॥ अञ्च गतौ च । इत्यस्मादति: प्रत्ययो [ भवति ] ककार शान्तादेशो वा भवति || अङ्कतिर्वायुः प्रजापतिरभिश्व || अञ्चतिरभिः ।। ६५६ ।। वातेर्णिद्वा || ६५७ ॥ वांक् गतिगन्धनयोः | इत्यस्मादति: प्रत्ययो [ भवति ] स च णिवा भवति ॥ वायतितः ॥ वातिर्गन्धमिश्रपवनः || ६५७ ॥ योः कित् ।। ६५८ ॥ युक् मिश्रणे | इत्यस्मात्किदतिः प्रत्ययो भवतेि ।। युवतिस्तरुणी || ६५८ || पाते ।। ६५९ ।। पांक् रक्षणे । इत्यस्मादति: प्रत्ययो [भवति ] स च किवा भवति || पतिभर्ता || पातिर्भर्ता रक्षिता प्रभुश्च ।। ६५९ ॥ अगिविलिपुलिक्षिपेरस्तिक् || ६६० || एभ्यः किदस्तिः प्रत्ययो भवति || अग कुटिलायां गतौ । अगस्तिः || 15 Aho! Shrutagyanam Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ हेमचन्द्रव्याकरणे विलत् वरणे । विलस्तिः॥ पुल महत्त्वे | पुलस्तिः ।। क्षिपीत् प्रेरणे | क्षिपस्तिः॥ पते लौकिका ऋषयः । अगस्तिर्वृक्षजातिश्च ॥ ६६० ॥ - गृधेर्गभ च ।। ६६१॥ गृधून् अभिकाायाम् । इत्यस्मादस्तिक् प्रत्ययो भवति गभ चास्यादेशो भवति ॥ गभस्ती रश्मिः ॥ ६६१ ॥ वस्यतिभ्यामातिः ॥ ६६२ ।। आभ्यामातिः प्रत्ययो भवति ॥ वसं निवासे । वसातयो जनपदः ।। कंक् गतौ । अरातिः शत्रुः ॥ ६६२॥ अभेर्यामाभ्याम् ।। ६६३ ॥ अभिपूर्वाभ्यामाभ्यामातिः प्रत्ययो भवति ॥ यांक प्रापणे | मांक माने । अभियातिरभिमातिश्च शत्रुः ॥ ६६३ ।। ___ यजो य च ॥ ६६४ ॥ यजी देवपूजादौ । इत्यस्मादातिः प्रत्ययो भवति] यकारश्चान्तादेशो भवति ।। ययाती राजा ॥ ६६४ ॥ वद्यविछदिभूभ्योन्तिः ॥ ६६५॥ एभ्योन्तिः प्रत्ययो भवति ॥ वद व्यक्तायां वाचि । वदन्तिः कथा ॥ अव रक्षणादिषु । अवन्ती राजा | अवन्तयो जनपदः ।। छदण् अपवारणे | युजादिविकल्पितणिजन्तस्वादण्यन्तः । छदन्तिर्गृहाच्छादनद्रव्यम् ॥ भू सत्तायाम् । भवन्तिः कालो लोकस्थितिश्च ।। ६६५ ।। शकेरुन्तिः ॥ ६६६ ॥ शक्ट शक्तौ । इत्यस्मादुन्तिः प्रत्ययो भवति ॥ शकुन्तिः पक्षी ॥ ६६६ ॥ नमो दागो डितिः॥ ६६७॥ नपूर्वात् डुदांग्क् दाने । इत्यस्माडिदितिः प्रत्ययो भवति ॥ अदितिदेवमाता ॥ ६६७ ॥ देडः ॥ ६६८ ॥ दें पालने । इत्यस्माडिदितिः प्रत्ययो भवति || दितिरमुरमाता॥६६८॥ वीसध्यसिभ्यस्थिक् ॥ ६६९॥ एभ्यस्थिक् प्रत्ययो भवति ।। वींक प्रजननादिषु । वीथिर्मार्गः ॥षनं सङ्गे । पश्चिमकः शकटाङ्गं च ॥ असूच क्षेपणे । अस्थि पञ्चमो धातुः ॥६६९॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७०-६९] उणादिगणविवृतिः। सारेरथिः ॥ ६७०॥ , सं गतौ । इत्यस्माण्ण्यन्तादथिः प्रत्ययो भवति ॥ सारथिर्यन्ता ॥६७०॥ निषञ्जर्षित् ॥ ६७१ ॥ निपूर्वात् पञ्च सङ्गे । इत्यस्माबिदथिः प्रत्ययो भवति || निषङ्गथी रुद्रो धनुर्धरश्च ॥ पित्करणं गत्वार्थम् ॥ ६७१ ।। उदर्णिा ॥ ६७२ ॥ ____ उत्पूर्वात् क् गतौ । इत्यस्मादथिः प्रत्ययो [भवति स च णिहा भवति ॥ उदारथिर्विष्णुः ॥ उदरथिर्विप्रः काष्ठं समुद्रोनड्वांश्च ।। ६७२ ॥ अतेरिथिः ॥ ६७३॥ . अत सातत्यगमने । इत्यस्मादिथिः प्रत्ययो भवति || अतिथिः पात्रतमो भिक्षावृत्तिः ॥ ६७३ ॥ तडित् ।। ६७४ ।। तनूयी विस्तारे | इत्यस्माडिदिथिः प्रत्ययो भवति ।। तिथिः प्रतिपदादिः।।६७४॥ उषेरधिः ।। ६७५ ॥ उषू दाहे । इत्यस्मादधिः प्रत्ययो भवति ।। ओषधिरुद्भिविशेषः ॥६७६॥ विदो रधिक् ॥ ६७६ ॥ विदक् ज्ञाने । इत्यस्मास्किद्रधिः प्रत्ययो भवति ॥ विद्रधिाधिविशेषः ।। ६७६ ॥ वीयुसुवह्यगिभ्यो निः॥ ६७७ ॥ एभ्यो निः प्रत्ययो भवति ।। वाक् प्रजननादौ । वेनिर्व्याधि दी च ॥ युक् मिश्रणे । योनिः प्रजननमङ्गमुत्पत्तिस्थानं च || बुंग्ट अभिषवे | सोनिः सवनम् ॥ वहीं प्रापणे | वह्निः पावको बलीवर्दश्च ॥ अग कुटिलायां गतौ । अनिःपावकः ॥ ६७७॥ धूशाशीडो हस्वश्च ॥ ६७८ ॥ एभ्यो निः प्रत्ययो [भवति ] हस्वश्चैषां भवति ।। धूग्श् कम्पने । धूनिनदी। शोच तक्षणे । शनिः सौरिः। शीड्क् स्वमे । शिनिर्यादवो वर्णश्च ॥६७८॥ लूधूपछिभ्यः कित् ॥ ६७९ ।।। एभ्यः किन्निः प्रत्ययो भवति ॥ लूग्य् छेदने । लूनिर्लवनः ॥ धूग्श् कम्पने । धूनिर्वायुः ।। प्रछंत् शीप्सायाम् । पृभिर्वर्णोल्पतनुः किरणः स्वर्गश्च ॥६७९॥ Aho! Shrutagyanam Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [६८०-६-८ सदिवृत्यमिधम्यश्यटिकट्यवेरनिः ।। ६८० ॥ , एभ्योनिः प्रत्ययो भवति ॥ षढं विशरणादौ । सदनिर्जलम् ॥ वृतूड् वर्तने | वर्तनिः पन्था देशनाम च || अम गतौ । अमनिरग्निः॥ धमः सौत्रः । धमनिर्मन्या रसवहा च सिरा ॥ अशौटि व्याप्ती | अशनिरिन्द्रायुधम् ।। अट गतौ | अटनिचापकोटिः ॥ कटे वर्षावरणयोः । कटनिः शैलमेखला || अव रक्षणादौ । अवनिर्भूः ॥ ६८० ॥ रख्नेः कित् ॥ ६८१ ॥ रञ्जी रागे । इत्यस्मात्किदनिः प्रत्ययो भवति ॥ रजनी रात्रिः ॥६८१॥ अतॆरत्निः ।। ६८२॥ ऋक् गतौ । इत्यस्मादनिः प्रत्ययो भवति ।। अरनिर्बाहुमध्यं शम उत्कनिष्टश्च हस्तः ॥ ६८२ ॥ एधेरिनिः ॥ ६८३ ॥ एधि वृद्धी । इत्यस्मादिनिः प्रत्ययो भवति ॥ एधिनिर्मेदिनी ॥ ६८३ ॥ शकेरुनिः॥ ६८४ ॥ शकुंट शक्ती । इत्यस्मादुनिः प्रत्ययो भवति || शकुनिः पक्षी ॥ ६८४ ॥ अदेर्मनिः ॥ ६८५॥ अदं प्सांक् भक्षणे । इत्यस्मान्मनिः प्रत्ययो भवति ॥ अद्मनिः पशूनां भक्षणद्रोण्यग्निर्जयो हस्त्यश्वस्तालु च ॥ ६८५ ॥ दमर्दुभिर्दुम् च ।। ६८६ ॥ दमन् उपशमे । इत्यस्माहुभिः प्रत्ययो [भव ]त्यस्य च दुम् इत्यादेशो भवति ॥ दुन्दुभिर्देवतूर्यम् ॥ ६८६ ।। नीसावृयुशवलिदलिभ्यो मिः ॥ ६८७ ॥ एभ्यो मिः प्रत्ययो भवति ॥ णींग प्रापणे । नेमिश्चक्रधारा ॥ षोंच अन्तकर्मणि | साम्यर्धवाच्यव्ययम् ।। वृग्ट् वरणे । वर्मिर्वल्मीककृमिः ॥ युक् मिश्रणे | योमिः शकुनिः ।। शश् हिंसायाम् । शर्मिगः ॥ वलि संवरणे | वल्मिरिन्द्रः समुद्रश्च ।। दल विशरणे । दल्मिरायुधमिन्द्रः समुद्रः शक्रो विषं च।।६८७॥ अशो रश्चादिः ॥ ६८८ ॥ ..: अशोटि व्याप्तौ । इत्यस्मान्मिः प्रत्ययो [ भवति ] रेफश्च धातोरादिर्भवति ॥ रहिमः प्रमही मयूखश्च ।। ६८८ ।। Aho 1 Shrutagyanam Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ ६१-६९५] - उणादिगणविवृतिः। सर्तेरूच्चातः ॥ ६८९ ॥ आभ्यां मिः प्रत्ययो [भवति ] गुणे च कृतेकारस्य ऊकारादेशो भवति ॥ सुं गतौ । सूमिःस्थूणा || कंक् गतौ । ऊर्मिस्तरंगः ।। ६८९ ।। . कृभूभ्यां कित् ॥ ६९० ॥ आभ्यां किन्मिः प्रत्ययो भवति || डुकंग करणे | कृमिः क्षुद्रजन्तुजातिः ॥ भू सत्तायाम् । भूमिसुधा ।। ६९० ॥ कणेर्डयिः ॥ ६९१ ॥ कण शब्दे । इल्यस्मादियिः प्रत्ययो भवति ।। कयिः पक्षिविशेषः॥६९१॥ तविक्यङिमङ्क्यंहिशद्यदिसद्यशौवपिवशिभ्यो रिः ॥ ६९२ ॥ एभ्यो रिः प्रत्ययो भवति ॥ तक कृच्छ्रजीवने | तर्युिवा ॥ वकुड् कौटिल्ये । वद्भिः शल्यं परशुका रथोहः कुटिलश्च || अकुड् लक्षणे । अतिश्चिह्न वंशकठिनिकश्च ।। मकुड् मण्डने । मङ्किर्मण्डनं शठः प्रवकश्च ॥ अहुड् गतौ । अंहिः पादः | अड्वेरप्येके । अधुड् गत्याक्षेपे । अहिः ॥ शदशातने । शद्रिर्भस्म हस्ती वजं गिरिक्रषिः शोभनश्च ॥ अदं प्सांक भक्षणे । अद्रिः पर्वतः ।। षद विशरणादौ । सद्रिहस्ती गिरिर्मेषश्च ।। अशौटि व्याप्तौ | अभिः कोटिः ॥ डुवपीं बीजसंताने | वपिः केदारः॥ वशक् कान्तौ । वश्रिः समूहः ॥ ६९२ ॥ __ भूसूकुशिविशिशुभिभ्यः कित् ॥ ६९३ ॥ एभ्यः किद्रिः प्रत्ययो भवति ॥ भू सत्तायाम् । भूरि प्रभूतं काञ्चनं च ॥ त् प्रेरणे | सूरिराचार्यः पण्डितश्च ।। कुशच् श्लेषणे । कुधिषिः ॥ विशंत् प्रवेशने | विश्रिर्मृत्यु+षिश्च ॥ शुभि दीप्तौ । शुभ्रियतिर्विप्रो दर्शनीयं शुभं सत्यं च ॥ ६९३ ॥ जृषो रश्च वः ॥ ६९४ ।। ___ जष्न् जरसि । इत्यस्मात्किद्रिः प्रत्ययो भवति] ईरि सति रेफस्य वकार. श्च भवति || जीविः शरीरम् ॥ ६९४ ॥ कुन्द्रिकुद्यादयः ॥ ६९५ ।। कुब्व्यादयः शब्दशः किद्रिप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुपेः कौतेश्च दश्चान्तः । कुन्द्रिषिः ।। कुद्रिः पर्वत ऋपिः समुद्रश्च ॥ आदिग्रहणात् क्षौवेयॊन्तः । क्षुद्रिः समुद्रः ।। अर्तेर्गोन्तः । ऋग्रिलोकनाथः ॥ शकेः । शक्रिर्बलवान् ॥ इत्यादयोपि भवन्ति ॥ ६९५ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ हेमचन्द्रव्याकरणे. [६९६-७०३ . राशदिशकिकयदिभ्यस्त्रिः ॥ ६९६ ॥ एभ्यस्त्रिः प्रत्ययो भवति ।। रांक् दाने | रात्रिनिशा ।। शहू शालने । शचिः कुञ्जरः क्रौञ्चश्च || शकूट शक्तौ । शक्त्रिः क्रौच्च ऋषिश्च || कद वैक्लव्ये सौत्रः । कनिषिः ।। अदं प्सांक भक्षणे | अनिषिः ॥ ६९६ ॥ पतेरत्रिः ॥ ६९७ ॥ पतु गतौ । इत्यस्मादत्रिः प्रत्ययो भवति ।। पतत्रिः पक्षी ॥ ६९७ ॥ नदिवल्लयार्तकृतेररिः ॥ ६९८ ॥ एभ्योरिः प्रत्ययो भवति || णद अव्यक्ते शब्दे । नदरिः पटहः ।। वल्लि संवरणे । वल्लरिलता वीणा सस्यमञ्जरी च ।। क् गतौ । अररिः कपाटः ॥ कृतैत् छेदने | कर्तरिः केशादिकर्तनयन्त्रम् ।। ६९८ ॥ __मस्यसिघसिजस्यङ्गिसहिभ्य उरिः॥ ६९९ ॥ एभ्य उरिः प्रत्ययो भवति ॥ मसैच् परिणामे | मसुरिमरीचिः ।। असूच् क्षेपणे । असुरिः संग्रामः ॥ घसं भदने | घसरिरमिः ।। जसूच मोक्षणे । जसुरिः समाप्तिरशनिररणिः क्रोधश्च ॥ अगु गतौ । अङ्गुरिः करशाखा । लत्वे अङ्गलिः।। पहि मर्षणे । सहुरिः पृथिव्यक्रोधनोनडान्संग्रामोन्धकारः सूर्यश्च ॥ ६९९ ॥ मुहेः कित् ॥ ७००॥ मुहीच वैचित्ये । इत्यस्मात्किदुरिः प्रत्ययो भवति ॥ मुहुरिः सूर्योनद्धांध ॥ ७० ॥ धूमूभ्यां लिक्लिणौ ।। ७०१ ॥ आभ्यां यथासंख्यं लिक् लिण् इति प्रत्ययौ भवतः।। धूग्य कम्पने । धूलिः पांशुः ॥ मूड् बन्धने | मौलिर्जूटः ।। ७०१॥ पाट्यन्निभ्यामलिः ॥ ७०२ ॥ आभ्यामलिः प्रत्ययो भवति ।। पट गतौ । ण्यन्तः । पाटलिक्षविशेषः। अनौप व्यक्क्यादौ । अञ्जलिः पाणिपुटः प्रणामहस्तयुग्मं च ॥ ७०२॥ माशालिभ्यामाकुलिमली ॥ ७०३ ॥ आभ्यां यथासंख्यमोकुलि मलि इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः ॥ मांक माने | मौकुलिः काकः । शल गतौ । ण्यन्तः । शाल्मलिवृक्षविशेषः ।। ७०३ ॥ ... Aho 1 Shrutagyanam Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४-७७७ - उणादिगणविवृतिः। दृपृवृभ्यो विः ॥ ७०४ ॥ .. एभ्यो विः प्रत्ययो भवति ॥ दृश् विदारणे | दर्विस्तः ॥ पृश् पालनपूरगयोः । पविः कङ्को हिंस्रश्च ॥ वृग्श् वरणे | वर्विः शकटं धात्री काकः श्येनश्च ॥ ७०४ ॥ जगृस्तृजागृकृनीघृषिभ्यो डित् ।। ७०५ ॥ एभ्यो डिहिः प्रत्ययो भवति ॥ जुष्च् जरसि । जीविः पशुः कण्टकः शकटो मद्गुः कायो गुल्मं शङ्का वृद्धो वृद्धभावश्च ॥ यश् हिंसायाम् । शीविहिनः कृमिय॑ङ्कश्च ॥ स्तृग्श् आच्छादने | स्तीविर्गर्विष्ठोध्वर्युभगस्तनू रुधिरं भयं तृणजातिनभोजश्च ।। जागृक् निद्राक्षये | जागृवी राजामिः प्रबुद्धश्च । डिवान गुणः॥ डुकंग करणे | कृवी रुद्रस्तन्तुबायस्तन्तुवायद्रव्यं राजा च | यदुपज्ञं कृवय इति पुरा पञ्चालानाचक्षते ।। णींग् प्रापणे । नीविः परिधानयन्थिर्मूलधनं च ।। संहर्षे । घृष्विर्वराहो वायुरनिश्च ॥ ७०५ ।। छविछिविस्फविस्फिविस्थविस्थिविदविदीविकिकिविदिदिविदीदिवि किकीदिविकिकिदीविशिव्यटव्यादयः ॥ ७०६ ।। एते डिविप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते|| छयतेहस्वश्च । छविस्त्वक्तच्छायावरणं च ।। छिदेल क् च । छिविः फल्गुद्रव्यम् || फायतेः स्फस्फिभावौ च | स्फविर्वक्षजातिः। स्फिविर्वक्ष उदश्विच ।। तिष्ठतेः स्थस्थिभावौ च । स्थविः प्रसेवकस्तन्तुवायः सीमामिरजङ्गमः स्वर्गः कुष्ठी कुष्ठिमांसं फलं च । स्थिविः सीमा ।। दमे क् च । दविधर्मशीलो दाता स्थानं फालश्च ।। दीव्यतेीर्षश्च । दीविः कितवो द्युतिमान्कालो व्याघ्रजातिश्च || कितेहित्वं पूर्वस्य चत्वाभावो लुक् च । किकिविः पक्षिविशेषः । दिवेहित्वं पूर्वदीर्घत्वं च वा | दिदिविः स्वर्गः । दीदिविरन्नं स्वर्गश्च ॥ कितेः किकीदिभावश्च । किकीदिविर्वर्णः पक्षी च ॥ किकिपूर्वाहीव्यतेीर्घश्च । किकीति कुर्वन्दीव्यति । किकिदीविश्वाषः ।। शीडो इस्वश्व | शिवी राजा।। अटेरचान्तः । अटविररण्यम् || आदिग्रहणादन्येपि ॥ ७०६॥ पुषिपुषिशुषिकुष्यशिभ्यः सिक् ॥ ७०७ ॥ एभ्य : कित्सिः प्रत्ययो भवति ॥ पुषू नुपू दाहे | पुलिरनिरुदपानश्च ॥ शुक्षिरमिर्जठर कुसूलश्च ॥ शुपंच शोषणे । शुक्षिर्वायुनिदाघो यवासकस्तेजश्च ।। कुषश् निष्कर्षे । कुक्षिर्जवरम् ।। भशौटि व्याप्तौ । भक्षि नेत्रम् ॥ ७०७ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे गोपादेरनेरसिः ॥ ७०८ ॥ गोप इत्यादिभ्यः परात् भनक् प्राणने । हत्यस्मादसिः प्रत्ययो भवति ॥ गोपानसिः सौधाग्रभागच्छदिः || चित्रानसिर्जलचर: || एकानसिरुज्जयनी || वाराणसिः कासिनगरी ॥ ७०८ ॥ वृधृपृवृसाभ्यो नसिः ॥ ७०९ ।। १२० . [७०८-७१५ एभ्यो नसिः प्रत्ययो भवति || वृग्ट् वरणे | वर्णसिस्तरुः || भृंग् धारणे ] धर्णसिः शैलो लोकपालो जलं माता च ॥ पृश् पालनपूरणयोः । पर्णसिजलधर उलूखलं शाकादिश्व || वृय् भरणे । वर्णसिभूमिः ॥ षच् अन्तकर्मणि | सानसिः स्नेहो नखो हिरण्यमृणं सखा सनातनच ॥ ७०९ ॥ त्रियो हिक् ॥ ७१० ।। श्रींश्वरणे | इत्यस्मात्किद् हिः प्रत्ययो भवति || व्रीहिर्धान्यविशेषः || ७१०॥ तृस्तृतन्द्रितन्त्रयविभ्य ईः ।। ७११ ।। एभ्य ईः प्रत्ययो भवति || तु प्लवनतरणयोः | तरीनौर मिर्वायुः पुनश्च || स्तृग्श् आच्छादने | स्तरीस्तृणं धूमो मेघो नदी शय्या च || तन्द्रिः सादमो - हनयोः सौत्रः | तन्द्री मोहनिद्रा || तन्त्रिण् कुटुम्बधारणे । तन्त्रीः शुष्कतायुर्वादित्र्यालस्यं च || अव रक्षणादौ । अवी: प्रकाश आदित्यो भूमिः पशू राजा स्त्रीच ॥ ७११ ॥ नडेर्णित् || ७१२ || नडे: सौत्रादीः प्रत्ययो [भवति ] स च णिद्भवति || नाड्यायतशुषिरं द्रव्यममुहूर्त ७१२ ।। वातात् प्रमः कित् ॥ ७१३ || वातपूर्वपदास्प्रेणोपसृष्टात् मां माने | इत्यस्मात्किदीः प्रत्ययो भवति || वातप्रमीत्याश्वो वातमृगः पक्षी शमी च वृक्षः || ७१३ ॥ यापाभ्यां द्वे च ॥ ७१४ ॥ आभ्यां किदीः प्रत्ययो [भत्र ] त्यनयोश्च द्वे रूपे भत्रतः ॥ यांक् प्रापणे । यथर्मोक्षमार्गे दिव्य वृष्टिरादित्योश्वश्व || पां पाने | पपीः रश्मिः सूर्यो हस्ती च ॥ ।। ७१४ ॥ लक्षेर्मोन्तश्च ।। ७१५ ॥ लक्षीण् दर्शनाङ्कनयोः । इत्यस्मादीः प्रत्ययो [ भवति ] मकारधान्तो भवति || लक्ष्मीः श्रीः ॥ ७१५ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६-५ उणादिगणविवृतिः। भमतृत्सरितनिधन्यनिमनिमस्जिशीवटिकटिपटिगडिचयसिवसित्रपिस्वस्निहिक्किदिकन्दीन्दिविन्द्यन्धिबन्ध्यणि लोष्टिकुन्थिभ्य उः ॥ ७१६ ॥ एभ्य उः प्रत्ययो भवति ॥ टुडु ग्क् पोषणे च । भुंग भरणे वा । भरुः समुद्रो वर्णिा च ॥ मंत् प्राणत्यागे | मरुनिर्जलो देशो गिरिश्च ।। त पुवनतरणयोः। तरुवृक्षः ॥ त्सर छद्मगतौ | त्सरुरादर्शखडादिग्रहणप्रदेशो वञ्चकः क्षुरिका च ॥तनूयी विस्तारे। तनुर्देहः सूक्ष्मश्च ।। धन धान्ये सौत्रः । धनुरखं दानमानं च ॥ अनक् प्राणने । अनुः प्राणः | अनु पश्चादाद्यर्थव्ययम्|मनिंच ज्ञानेमनूयी बोधने वा । मनुः प्रजापतिः।। टुमस्नोत् शुद्धौ | मद्गुर्जलवायसः ।। शीड्क् स्वप्ने । शयुरजगरः स्वम आदित्यश्च।। घट वेष्टने । वटुर्माणवकः ॥ कटे वर्षावरणयोः। कटू रसविशेषः।। पढ' गतौ | पटुर्दक्षः।। गड से चने । गडुर्घाटामस्तकयोर्मध्ये मांसपिण्डः स्फोटश्च ॥ चञ्चू गतौ । चञ्चः पक्षिमुखम् ।। असूच क्षेपणे । असवः प्राणाः।। वसं निवासे | वसु द्रव्यं तेजो देवता च । वसुः कश्चिद्राजा ॥ त्रपौषि लज्जायाम् । वपु लोहविशेषः ।। शृश् हिंसाया। शरुः क्रोध आयुध हिंस्रश्च ।। औस्व शब्दोपतापयोः । स्वरुः प्रतापो वजो वास्फालनं च || ष्णिहौच् पीतौ । स्नेहुश्चन्द्रमाः संनिपातजो व्याधिविशेषः पित्तं वनस्पतिश्च ॥ क्लिदोच् आर्द्रभावे । क्लेदुः क्षेत्रं चन्द्रो भगः शरीरभङ्गश्च । क्लेदयतीति क्लेदुश्चन्द्रमा इत्यन्ये || कदुरोदनाहानयोः । कन्दुः पाकस्थान सूत्रोतं च क्रीडनम् । इदु परमैश्वर्ये । इन्दुश्चन्द्रः ॥ विदु अवयवे | विन्दुर्विघुट् || अन्धण् दृष्टयुपसंहारे । अन्धुः कूपो प्रणश्च ।। बन्धंय् बन्धने । बन्धुः स्वजनः । बन्धु द्रव्यम् ।। अण शब्दे । अणुः पुद्गलः सूक्ष्मो राल कादिश्च धान्यविशेषः ।। लोष्टि संघाते । लोष्टुर्मुत्पिण्डः ।। कुन्थश् संक्लेशे । कुन्थुः सूक्ष्मजन्तुः ॥ ७१६ ॥ स्यन्दिसृजिभ्यां सिन्धरज्जौ च ॥ ७१७ ॥ आभ्यामुः प्रत्ययो भव त्यनयोश्च यथासंख्यं सिन्ध रज्ज इत्यादेशी भवतः ॥ स्यन्दौड् स्रवणे । सिन्धुर्नदो नदी समुद्रश्च ।। सृजन् विसर्गे । सृजिच विसर्गे वा । रज्जुर्दवरकः ॥ ७१७ । । पंसेर्दीर्घश्च ।। ७१८॥ पसुण नाशने । इत्यस्मादुः प्रत्ययो [ भवति ] दीर्घश्व भवति ॥ पांमुः पार्थिवं रजः ।। ७१८ ॥ 10 Aho! Shrutagyanam Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ हेमचन्द्रव्याकरणे अशेरान्नोन्तश्च ।। ७१९ ॥ अशौटि व्याप्तौ । इत्यस्मादुः प्रत्ययो [ भव ]त्यकाराश्च परो नान्तो भवति || अंशू रश्मिः सूर्यश्व | प्रांशुर्दीर्घश्च ।। ७१९ ॥ नमेर्नाक् च ।। ७२० ॥ 2 [ ७१९-७२६ णमं प्रहृत्वे | इत्यस्मादुः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च नाक् इत्यादेशो भवति || नाकुर्व्यलीकं वनस्पतिर्ऋषिर्वल्मीकश्च || ७२० || मनिजनिभ्यां धतौ च ॥ ७२१ ॥ भाभ्यामुः प्रत्ययो [भव ]त्यनयोश्च यथासंख्यं धकारतकारौ भवतः || मर्निच् ज्ञाने । मधु क्षौद्रं सीधु च । मधुरसुरो मासश्च चैत्रः || जनैचि प्रादुर्भावे | जतु लाक्षा || ७२१ ॥ अर्जेर्कज् च ॥ ७२२ ॥ अर्ज अर्जने | इत्यस्मादुः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च ऋज् इत्यादेशो भवति । ऋज्वकुटिलम् || ७२२ ॥ कृतेस्तर्क च ।। ७२३ || कृतैत् छेदने । कृतैर् वेष्टने | इत्यस्माद्वा उः प्रत्ययो [भव ] त्यस्य च तर्क इत्यादेशो भवति || तर्कशुन्दः सूत्रवेष्टनशलाका च ॥ ७२३ || नेरञ्चैः ।। ७२४ ॥ निपूर्वादञ्चतेरुः प्रत्ययो भवति || न्यङ्कर्मृग ऋषिश्च ।। ७२४ ।। किमः श्री णित् || ७२५ ॥ किम्पूर्वात् शृश् हिंसायाम् । इत्यस्माण्णिदुः प्रत्ययो भवति || किशारुः शूको धान्यशिखा हिंस्र इषुच || ७२५ || मिवहिचरिचटिभ्यो वा || ७२६ ॥ एभ्य उ: प्रत्ययो [भवति ] स च णिवा भवति डुमिंग्ट् प्रक्षेपणे | मायुः पित्तं मानं शब्दश्व | गोमायुः सृगालः || मयुः किंनर उष्ट्र: प्रक्षेप आकूतं च | बाहुलकादात्वाभावः || वहीं प्रापणे । बाहुर्भुजः || बहु प्रभूतम् || चर भक्षणे च । चारु शोभनम् || चरन्त्यस्माद्देवपितृभूतानि | भीमादित्वादपादानेपि | चरुर्देवतेोद्देशेन पाकः स्थाली च || चटण् भेदे | चाटुः प्रियाचरणं पटुजनः प्रियवादी स्फुटवादी दमं शिष्यश्च || चटुः प्रियाचरणम् ।। ७२६ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२७-७३१] उणादिगणविवृतिः । ___ तृगृमृध्रादिभ्यो रो लश्च ।। ७२७ ॥ एभ्यो णिदुः प्रत्ययो [भवति ] रेफस्य च लकारो भवति ।। क् गतौ । * प्रापणे च वा । आलुः श्लेष्मा श्लेष्मातकः कन्दविशेषश्च ॥ तृ प्लवनतरणयोः । तालुः काकुदम् ॥ शृश् हिंसायाम् । शालुः कषायो हिंस्रश्च ॥ भृत् प्राणत्यागे । मालुः पचलता यस्या मालुधानीति प्रसिद्धिः ।। टुडुभृग्क् पोषणे च | भालुरिन्द्रः।। भादिग्रहणादन्येपि ॥ ७२७ ॥ कृकस्थूराद्वचः क च ॥ ७२८ ॥ आभ्यां पराइचो णिदुः प्रत्ययो [भवति ] ककारश्चान्तादेशो भवति ।। वचं भाषणे | बूंगक व्यक्तायां वाचि | कृकमव्यक्तं वक्ति ब्रूते वा | कृकयाकुः कुकुटः कृकलासः खञ्जरीटश्च ।। एवं स्थूरवाकुरुच्चध्वनिः ।। ७२८ ।। पृकाहृषिधृषीषिकुहिभिदिविदिमृदिव्यधिगृध्यादिभ्यः कित् ॥ ७२९॥ एभ्यः किदुः प्रत्ययो भवति ॥ पश् पालनपूरणयोः । पुरुर्महांल्लोकः समुद्री यजमानो राजा च कश्चित् ॥ मैं शब्दे । कुः पृथ्वी ।। हषच् तुष्टौ । हषू अलीके वा । हषुस्तुष्टोलीकः सूर्याग्निशशिनश्च ।। अिधृषाट प्रागल्भ्ये । धृषुः प्रगल्भः संताप उत्साहः पर्वतश्व ।। इषत् इच्छायाम् । इषुः शरः ।। कुहणि विस्मापने । कुहुर्नष्टचन्द्रामावास्या || भिदंपी विदारणे | भिदुर्वचः कन्दर्पश्च ॥ विदक् ज्ञाने । विदुर्हस्तिमस्तकैकदेशः ।। मृदण् क्षोदे । मृदुरकठिनः ।। व्यधंच ताडने । विधुश्चन्द्रो वायुरग्निश्च ॥ गृधूच् अभिकाङ्कायाम् । गृधुः कामः ॥ आदिग्रहणात् पूरैचि आप्यायने । पूरण आप्यायने वा । पूरितमनेन यशसा सर्वमिति पूरू राजर्षिः ॥ एवमन्येपि ।। ७२९ ॥ .. रभिप्रथिभ्यामृच्च रस्य ॥ ७३० ॥ आभ्यां किदुः प्रत्ययो [भवति ] रेफस्य च भकारो भवति ॥ रभिं रामस्थे । अभवो देवाः ।। प्रथिष् प्रख्याने | पृथू राजा विस्तीर्णश्च ॥ ७३० ॥ स्पशिभ्रस्जेः स्लुक् च ।। ७३१ ॥ आभ्यां किदुः प्रत्ययो [ भवति ] सकारस्य च लुग्भवति || स्पशिः सौत्रस्तालव्यान्तः । पशुस्तियङ् मन्त्रवध्यश्च जनः ॥ भ्रस्जीत् पाके । भृगुः प्रपातो ब्रह्मणश्च सुतः । कित्वात् ग्रह-प्रश्व-भ्रस्ज-प्रछ इति वृत् । न्यगमेघादय इति गत्वम् ॥ ७३१ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ हेमचन्द्रव्याकरणे [७३२-७३९ दुःस्वपवनिभ्यः स्थः ॥ ७३२ ॥ दुः सु अप वनि इत्येतेभ्यः परात् ष्ठां गतिनिवृत्तौ । इत्यस्मास्किदुः प्रत्ययो भवति ।। दुष्वशोभनम् || सुटु सातिशयम् || अपष्ठु वामम् ॥ वनिधुर्वपासंनिहितोवयवोश्वः संभक्तोपानं च ॥ ७३२ ॥ हनियाकृभूपृतृत्री द्वे च ।। ७३३ ॥ ___ एभ्यः किदुः प्रत्ययो [भव त्येषां च हे रूपे भवतः॥ हनं हिंसागत्योः। जनुरिन्द्रो वेगवांश्च ॥ यांक प्रापणे । ययुरश्वो यायावरः स्वर्गमार्गश्च ।। डुकंग करणे | चक्रुः कर्मठो वैकुण्ठश्च ।। टुडु,ग्क् पोषणे च । भुंग भरणे वा । बभ्रु:पिनकुलो राजा वर्णश्च ॥ पृश् पालनपूरणयोः । पुपुरुः समुद्रश्चन्द्रो लोकश्च ।। तृ प्लवनतरणयोः । तितिरुः पतंगः ।। त्रैड् पालने । तत्रु का ॥ ७३३ ॥ ग्र ऋत उर् च ॥ ७३४ ॥ भाभ्यां किदुः प्रत्ययो [भव ]त्यकारस्य च उर् भवति || कृत् विक्षेपे । कुरू राजर्षिः । कुरवो जनपदः । गृश् शब्दे । गुरुराचार्यो लघुप्रतिपक्षः पूज्यश्च मनः ॥ ७३४ ॥ पचेरिचातः ॥ ७३५॥ डुपचींष् पाके । इत्यस्मादुः प्रत्ययो भवत्यकारस्य च इकारो भवति ।। पिचुनिरस्थीकृतकर्पासः ॥ ७३५ ॥ अर्तेरूर च ।। ७३६ ॥ ___ क् गतौ । इत्थयस्मादुः प्रत्ययो [भव ]त्यस्य च ऊर् इत्यादेशो भषति॥ ऊरुः शरीराङ्गम् ॥ ७३६ ॥ महत्युर् च ।। ७३७।। अर्तेर्महत्यभिधेय उः प्रत्ययो भवत्यस्य च उर् इत्यादेशो भवति ।। उरु विस्तीर्णम् ।। ७३७॥ उड् च भे ॥ ७३८॥ अतेमक्षत्रभिधेय उः प्रत्ययो भवति ] धातोश्च उडादेशो भवति ॥ उडु नक्षत्रम् ।। ७३८ ॥ श्लिषः क च ॥ ७३९ ॥ . . लिपंच आलिङ्गने । इत्यस्मास्किदुः प्रत्थयो [ भवति ] ककारश्चान्तादेशो भवति || चिकुर्मंगास्थि [सव्यवसायो राज्यं ज्योतिष सेवकश्च ॥ ७३९ ।। . Aho 1 Shrutagyanam Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४०-७४६] . उणादिगणविकृतिः । १२५ रविलविलिङ्गे लुक् च ॥ ७४० ॥ एभ्य उः प्रत्ययो [ भवति ] नकारस्य च लुग्भवति ।। रघु लघु गतौ । रघू राजा ॥ लघु तुच्छ शीघ्रं च ॥ लिगुण चित्रीकरणे । लिगुक्रषिः सेवको मूल् भिविशेषश्च ।। ७४० ॥ पीमूगमित्रदेवकुमारलोकधर्मविश्वसुस्नाइमावेभ्यो यः ।। ७४१ ॥ पी मृग मित्र देव कुमार लोक धर्म विश्व सुन अश्मन् अव इत्येतेभ्यः परात यांक प्रापणे । इत्यस्मात्किदुः प्रत्ययो भवति ।। पीयुरुलूक आदित्यः सुवर्ण कालश्च ।। मृगयुाधो मृगच ॥ मित्रयुक्रषिमित्रवत्सलश्च ॥ देवयुर्धार्मिकः ।। कुमारयू राजपुत्रः ॥ लोकयुर्वाक्यकुशलो जनः ॥ धर्मयुर्धार्मिकः॥विश्वयुर्वायुः॥ सुनयुर्यजमानः ।। अश्मयुर्मूर्खः ॥ अवयुः काव्यम् ।। ७४१ ॥ पराड्भ्यां खनिभ्यां डित् ॥ ७४२॥ पर- आपूर्वाभ्यां यथासंख्यं शृखनिभ्यां डिदुः प्रत्ययो भवति ।। शश् हिंसायाम् । पराशृणाति । परशुः कुठारः ॥ खनूग् अवदारणे । आखुर्मूषिक: ॥ ७४२ ॥ शुभेः स च वा ॥ ७४३ ॥ शुभि दीप्तौ । इत्यस्माडिदुः प्रत्ययो [ भव ] त्यस्य च दन्त्यः सो वा भवति ॥ सुः शुश्च पूजायाम् । सुपुरुषः । शुनासीरः ॥ ७४३ ॥ द्युद्रुभ्याम् ॥ ७४४ ॥ आभ्यां डिदुः प्रत्ययो भवति || झुक् अभिगमे । युः स्वर्गक्रीडा स्वर्गश्च ॥ टुं गतौ । दुर्वृक्षशाखा वृक्षश्च ॥ ७४४ ॥ ___ हरिपीतमितशतविकुकद्भयो दुवः ॥ ७४५ ॥ हरि पीत मित शत वि कु कद् इत्येतेभ्यः परात् द्रु गतौ । इत्यस्माजिदुः प्रत्ययो भवति ॥ हरिद्रुर्वक्ष ऋषिः पर्वतश्च ॥ पीतद्रुर्देवदारुः ॥ मितद्रुः समुद्रस्तुरंगो मितंगमश्च ॥ शतद्रुर्नाम नदो नदी च || विद्रुर्दारुपकारो वृक्षश्च ॥ कुछविकलपादः ॥ कदुर्भागमाता वह्निजातिगुंहगोधा वर्णश्च ॥ ७४५ ॥ केवयुभुरण्य्वध्वर्वादयः ॥ ७४६ ।। केवय्वादयः शब्दा डिदुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। केवल पूर्वाद्यातेर्ललोपश्च । केवलो यातीनि केवयुक्रषिः ॥ भूपूर्वा याने१रण्यादौ भुवं यातीति मुरण्युरमिः ॥ Aho! Shrutagyanam Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ हेमचन्द्रव्याकरणे [७४७-७५३ अध्वरं यातीति पूर्वपदान्तलोपे | अध्वर्यु:त्विक् ॥ आदिग्रहणात् चरन्याति । चरण्युर्वायुः ॥ अभिपूर्वस्याभातेः । अभीशू रश्मिः ॥ ७४६ ॥ शः सन्वच्च ॥ ७४७ ॥ शोंच तक्षणे | इत्यस्माडिदुःप्रत्ययो [ भवति ] स च सन्धत् सनीवास्मिन्द्रित्वं पूर्वस्य च इत्वं भवति || शिशु लः ।। ७४७ ॥ तनेर्डउः ॥ ७४८ ॥ तनूयी विस्तारे । इत्यस्माड्डिदुः प्रत्ययो [ भवति ] स च सन्वद्भवति ॥ तितउः परिवपनम् ॥ ७४८ ॥ कैशीशमिरमिभ्यः कुः ॥ ७४९ ॥ एभ्यः कुः प्रत्ययो भवति ॥ के शब्दे | काकुः स्वरविशेषः ॥ शीडक स्वमे । शेकुरुद्भिविशेषः । शमूच् उपशमे । शङ्कः कीलको बाणः शूलमायुधं चिह्न छलकश्च ॥ रमि क्रीडायाम् । रकम॒गः ॥ ७४९ ॥ ह्रियः किद्रो लश्च वा ॥ ७५० ॥ हीक लज्जायाम् । इत्यस्मास्किल्कुः प्रत्ययो [भवति रेफस्य च लकारो वा भवति ॥ हीकु कुश्च पु जतुनी लज्जावांश्च ॥ हीकुर्वनमार्जारः ॥ ७५०॥ किरः ष च ॥ ७५१ ॥ कृत् विक्षेपे । इत्यस्मारिकत्कुः प्रत्ययो [ भवति ] षकारधान्तादेशो भवनि । किष्कुश्छायामानद्रव्यम् ॥ ७९१॥ चटिकठिपर्दिभ्य आकुः ॥ ७५२ ॥ एभ्य आकुः प्रत्ययो भवति || चटण भेदे | चटाकुषिः शकुनिश्च ।। कठ कृच्छ्रजीवने | कठाकुः कुटुम्बपोषकः ।। पार्द कुत्सिते शब्दे | पर्दाकुर्भको वृधिकोजगरश्च ।। ७५२॥ सिविकुटिकुठिकुकुषिकृषिभ्यः कित् ।। ७५३ ॥ एभ्यः किदाकुः प्रत्ययो भवति । षिवूच् उतौ । सिवाकुर्कषिः ॥ कुटत् कौटिल्ये | कुटाकुर्विटपः ॥ कुठिः सौत्रः । कुकुः श्वभ्रः ॥ कुंड् शब्दे । कुवाकुः पक्षी ।। कुषश् निष्कर्षे । कुषाकुर्मूषिकोमिः परोपतापी च ॥ कृषीत् विलेखने । कृषाकुः कृषीवलः ।। ७५३ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४-७६१]] उणादिगणविवृतिः । १२७ उपसर्गाचेर्डित् ।। ७५४॥ उपसर्गपूर्वात् चिंग्ट् चयने । इत्यस्माद्दिाकुः प्रत्ययो भवति ॥ उपचाकुः संचाकुचर्षिः ॥ निचाकुनिपुण ऋषिश्च ।। ७५४ ॥ शलेरङः ॥ ७५५ ॥ शल गतौ । इत्यस्मादकः प्रत्ययो भवति || शलङ्कषिः ॥ ७५५ ।। सृपृभ्यां दाकुक् ॥ ७५६ ।। आभ्यां किसाकुः प्रत्ययो भवति ॥ सुं गतौ | सृदाकुर्दावानिर्वायुरादित्यो व्याघ्रः शकुनिरस्तो [भ]ो गोत्रकृच | पृक् पालनपूरणयोः । पृदाकुः सर्पो गोत्र- ' कृच ॥ ७५६ ।। इषः स्वाकुक् ।। ७५७ ॥ दृषत् इच्छायाम् | इत्यस्मारिकत्स्वाकुः प्रत्ययो भवति ॥ इक्ष्वाकुरादिक्षत्रियः ॥ ७५७॥ फलिवल्यमेणुः ॥ ७९८ ॥ एभ्यो गुः प्रत्ययो भवति || फल निष्पत्तौ । फल्ग्वसारम् ॥ वलि संकरणे । वल्गु मधुरं शोभनं च | पल्गुः पक्षी । अम गती । अङ्गुः शरीरावयवः ॥ ७५८ ॥ दमेर्लुक् च ॥ ७५९॥ दमूच उपशमे | इत्यस्माद्गुः प्रत्ययो [ भव ] स्यन्त्यस्य च लुग्भवति || दगुर्कषिः ॥ ७५९ ॥ हेहिन् च ॥ ७६० ॥ हिंट गतिवृद्धचोः । इत्यस्माहुः प्रत्ययो [ भव त्यस्य च हिन् इत्यादेशो भवति !| हिङ्गु रामठः ॥ ७६० ॥ पीकैपैनीलेरडक् ॥ ७६१ ॥ एभ्यः किदङ्गुः प्रत्ययो भवति ॥ प्रींग्श् तृप्तिकान्त्योः । प्रियजुः फलिनी रालकश्च ।। मैं शब्दे । कारणुः ॥ मैं शोषणे । पङ्गुः खञ्जः ॥ णील वर्णे । नीलज्नुः कृमिजातिः सगालश्च ॥ ७६१ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ हेमचन्द्रव्याकरणे [७६२-७७१ अव्यतिगृभ्योदुः ॥ ७६२ ॥ एभ्योदुः प्रत्ययो भवति ॥ अव रक्षणादौ । अवटुः कृकाटिका || क् गतौ । अरटुर्वृक्षः ।। गत् निगरणे । गरदुर्देशविशेषः पक्ष्यजगरश्च ।। ७६२ ॥ शलेराटुः ।। ७६३ ।। शल गतौ । इत्यस्मादाटुः प्रत्ययो भवति ।। शलाटुः कोमलं फलम् ||७६३॥ अध्यवरिष्टुः ।। ७६४ ॥ आभ्यामिछुः प्रत्ययो भवति ॥ अञ्जौप् व्यक्क्यादौ । अनिष्ठुर्भानुरनिश्च ॥ भव रक्षणादौ । भविष्ठुरश्वो होता च ॥ ७६४ ।। तनिमनिकणिभ्यो डुः ॥ ७६५ ॥ एभ्यो दुः प्रत्ययो भवति ॥ तनूयी विस्तारे । तण्डुः प्रथमः ।। मनिच् ज्ञाने | मण्डुक्रषिः ॥ कण शब्दे । कण्डुर्वेदनाविशेषः ॥ ७६५ ॥ पनेर्दीर्घश्च ॥ ७६६ ॥ पनि स्तुतौ । इत्यस्माहुः प्रत्ययो [ भवति ] दीर्घच भवति || पाण्डुर्वर्णः क्षत्रियश्च ॥ ७६६ ॥ पलिमृभ्यामाण्डुकण्डुकौ ॥ ७६७ ।। ____ भाभ्यां यथासंख्यमाण्डु कण्डुक इति प्रत्ययौ भवतः ॥ पल गती । पलाण्डुलशुनभेदः ॥ मृत् माणत्यागे । मृकण्डुक ऋषिः ॥ ७६७ ॥ अजिस्थावृरीभ्यो णुः ॥ ७६८॥ एभ्यो णुः प्रत्ययो भवति ॥ अज क्षेपणे च | वेणुर्वशः ॥ टो गतिनिवृत्ती स्थाणुः शिव ऊर्ध्व च दारु ॥ वृग्ट् वरणे । वर्णर्नदो जनपदश्च ॥ रीश् गतिरेषणयोः । रेणुधूलिः ॥ ७६८ ॥ विषेः कित् ।। ७६९ ॥ विषूकी व्याप्तौ । इत्यस्मात्किण्णुः प्रत्ययो भवति ।। विष्णुहरिः ॥७६९।। - क्षिपेरणुक् ।। ७७०॥ क्षिपीत् प्रेरणे । हत्यस्मारिकदणुः प्रत्ययो भवति ॥ क्षिपणुः समीरणो विद्युञ्च ।। ७७० ।। अञ्जरिष्णुः ।। ७७१ ॥ अझोप व्यक्त्यादौ । इत्यस्मास्किदिष्णुः प्रत्ययो भवति ॥ अनिष्णु - तम् ॥ ७७१ ॥ Aho 1 Shrutagyanam Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२-७७५] ___ उणादिगणविवृतिः । कृहभूजीविगम्यादिभ्य एणुः ॥ ७७२ ॥ एभ्य एणुः प्रत्ययो भवति ।। कंग्ट हिंसायाम् । डुइंग् करणे वा । करेणुर्हस्ती ।। हंग् हरणे | हरेणुर्गन्धद्रव्यम् || भू सत्तायाम् | भवेणुर्भव्यः ॥. जीव प्राणधारणे | जीवेणुरौषधम् ।। गमूं गतौ | गमेणुर्गन्ता || भादिग्रहणात् शमूच् उपशमे | शमेणुरुपशमनम् || यी देवपूजादौ । यजेणुर्यज्ञादि ।। डुपची पाके । पचेणुः पाकस्थानम् ॥ पदेणुः । वहेणुरित्यादि ॥ ७७२ ।। कृसिकम्यमिगमितनिमनिजन्यसिमसिसच्यविभाधागाग्लाम्लाहन् हायाहि क्रुशिपूभ्यस्तुन् ।। ७७३ ।। एभ्यस्तुन् प्रत्ययो भवति ॥ डुक्कंग करणे | कर्तुः कर्मकरः ।। किंग्ट बन्धने । सेतुर्नदीसंक्रमः ।। कमूड् कान्तौ । कन्तुः कन्दर्पः कामी मनः कुसूलश्च ।। अम गतौ | अन्त रक्षिता लक्षणं च || गमुं गतौ । गन्तुः पथिकः | आगन्तुरवास्तव्यो जनः ॥ तनूयी विस्तारे | तन्तुः सूत्रम् ।। मनिंच् ज्ञाने | मन्तुर्वैमनस्य प्रियंवदो मानश्च ।। जनैचि प्रादुर्भावे | जन्तुः प्राणी ।। असक् भुवि । अस्तुरस्तिभावः । बाहुलकाद्भूभावाभावः ।। मसैच् परिणामे | मस्तुर्दधिमूलवारि ।। षधि सेचने । सक्तुर्यवविकारः ।। अव रक्षणादौ । ओतुर्बिडालः ।। भांक दीप्तौ । भातुर्दीप्तिमाञ्शरीरावयवोमिर्विद्वांश्च ।। डुधांग्क् धारणे च । धातुर्लोहादि रसादिः शब्दप्रकृतिथ || मैं शब्दे | गातुर्गायन उद्गाता च || ग्लै हर्षक्षये | ग्लातुः सरुजः ।। म्हें गात्रविनामे | म्लातुर्दीनः ।। हनक हिंसागत्योः । हन्तुरायुधं हिमच ।। ओहांक त्यागे । हातुर्मृत्युर्मार्गश्च ।। यांक प्रापणे | यातुः पाप्मा जनो राक्षसच ।। हिंट गनिवृद्धयोः । हेतुः कारणम् ।। क्रुशं आह्वानरोदनयोः । क्रोष्टा सृगालः | पूग्श् पवने । पोतुः पविता ॥ नित्करणं क्रुशस्तुनस्तृच् पुंसीत्यत्र विशेषणार्थम् ||७७३।। वसेणिद्वा ॥ ७७४ ।। वसं निवासे । इत्यस्मात्तुन् प्रत्ययो [भवति ] स च णिवा भवति || वास्तु गृहं गृहभूमिश्च ॥ वस्तु सन्निवेशभूमिश्च ।। ७७४ ।। पः पीप्यौ च वा ।। ७७५ ।। पां पाने । इत्यस्मात्तुन् प्रत्ययो [भव त्यस्य च पी पि इत्यादेशौ वा भवतः। पीतुरादित्यश्चन्द्रो हस्ती कालश्चक्षुर्वालघृतपानभाजनं च ।। पितुः प्रजापतिराहारश्च|| पातू रक्षिता ब्रह्मा च ।। ७७५ ।। 17 Aho! Shrutagyanam Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० हेमचन्द्रव्याकरणे [७५६-७८४ आपोप् च ।। ७७६ ॥ आट व्याप्तौ | इत्यस्मात्तुन् प्रत्ययो भवत्यस्य च अप् इत्यादेशो भवति || अमुर्देवताविशेषः कालो याजको यज्ञयोनिश्च ।। ७७६ ।। अङ्ग्यतः कित् ।। ७७७ ।। आभ्यां कित्तुन् प्रत्ययो भवति ।। अनौप व्यक्त्यादिषु । अक्तुरिन्द्रो विष्णू रात्रिश्च ।। क् गनौ । ऋतुहेमन्तादिः स्त्रीरजस्तत्कालश्च ।। ७७७ ॥ चायः के च ।। ७७८ ।। चायग् पूजानिशामनयोः ! इत्यस्मात्तुन् प्रत्ययो भवत्यस्य च के इत्यादेशो भवति ।। केतुर्ध्वजो ग्रहश्च ॥ ७७८ ॥ वहिमहिगुह्यधिभ्योतुः ।। ७७९ ।। एभ्योतुः प्रत्ययो भवति || वहीं प्रापणे । वहतुर्विवाहोनडानमिः कालथ ।। मह पूजायाम् । महतुरग्निः ।। गुहौग संवरणे । गृहतुर्भूमिः ॥ एधि बृद्धौ । एधतुर्लक्ष्मीः पुरुषोग्निश्च ।। ७७९ ॥ ___ कृलाभ्यां कित् ।। ७८० ।। आभ्यां किदत्तुः प्रत्ययो भवति ॥ डुकुंग करणे ] ऋतुर्यज्ञः ।। लांक् आदाने | लतुः पाशः ॥ ७८० ॥ तनेर्यतुः ॥ ७८१ ।। तनूयी विस्तारे । इत्यस्माद्यतुः प्रत्ययो भवति ॥ तन्यतुर्विस्तारो वायु: पर्वतः सूर्यश्च ॥ ७८१॥ __ जीवरातुः ।। ७८२ ॥ जीव प्राणधारणे । इत्यस्मादातुः प्रत्ययो भवति || जीवातुर्जीवितमौषधमनमुदकं द्रव्यं च ।। ७८२ ॥ यमेटुक् ।। ७८३ ।। यमूं उपरमे | इत्यस्मारिकदुः प्रत्ययो भवति ।। यदुः क्षत्रियः ॥७८३॥ शीडो धुक् ।। ७८४ ।। शीड्क् स्वप्ने । इत्यस्मारिकत् धुः प्रत्ययो भवति ॥ शीधु मद्यविशेषः ॥ ७८४ ।। Aho I Shrutagyanam Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७-५-७९३] उगादिगगविवृतिः । धूगो धुन् च ॥ ७८५ ॥ धूग्श् कम्पने | इत्यस्मात् धुक् प्रत्ययो [भव]त्यस्य च धुन् इत्यादेशो भवति || धुन्धुर्दानवः | ७८५ ॥ दाभाभ्यां नुः || ७८६ ।। आभ्यां नुः प्रत्ययो भवति || डुदांक दाने । दानुर्गन्ता यजमानो वायुरादित्यो दक्षिणार्थं च धनम् ॥ भांक् दीप्तौ । भानुः सूर्यो रश्मिश्व | चित्रभानुरभिः । स्वर्भानू राहुः | विश्वभानुरादित्यः || ७८६ || धैः शित् ।। ७८७ ॥ ट्वें पाने | इत्यस्मान्नुः प्रत्ययो [भवति ] स च शिद्भवति || धेनुरभिनवत्रसवा गवादिः || शित्वादात्संध्यक्षरस्येत्याकारो न भवति ।। ७८७ ।। सुवः कित् ।। ७८८ ॥ षडौक् प्राणिगर्भविमोचने । इत्यस्मात्किन्नुः प्रत्ययो भवति |] सूनुः पुत्रः ।। ७८८ ।। हो जह च ॥ ७८९ ॥ ओहांक् त्यागे | इत्यस्मान्नुः प्रत्ययो [ भव ] व्यस्य भवति || जापिता ।। ७८९ ॥ १३१ चज इत्यादेशो वचेः कगौ च || ७९० ॥ चचं भाषणे । इत्यस्मान्नुः प्रत्ययो [ भवति ] ककारगकारी चान्तादेशौ भवत: || वक्क्रुर्वयुश्च वाग्मी || ७९० ।। कुहनेस्तुक्नुकौ || ७९१ ।। आभ्यां कित्तौ तु नु इति प्रत्ययौ भवतः || डुकुंग् करणे । कृतुः कर्मकरः । कृणुः कोशकारः कारुव || हन हिंसागत्योः । हतुर्हिमः || हनुर्वक्त्रैकदेशः बाहुलकान्नलोपः ॥ ७९१ ।। गमेः सन्वच्च ।। ७९२ ।। गमं गतौ । इत्यस्मात्सुक्नुको सन्वश्च भवतः ॥ जिगन्तुर्ब्राह्मणो दिवसो मार्गः प्राणोमिश्व || जिगन्नुः प्राणो बाणो मनो मीनो वायुश्व || ७९२ || दाभूक्षयुन्दिनदिवदिपत्यादेरनुड् || ७९३ | Aho! Shrutagyanam यो sag: प्रत्ययो भवति || डुर्दाांग्क् दाने | दनुर्दानवमाता || भू खचायाम् । भुत्रनुर्मेघश्चन्द्रो भवितव्यता हंसश्व || क्षणूग् हिंमायम् | क्षगनुर्याया Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ हेमचन्द्रव्याकरणे [७९४-८०० वरः ॥ उन्दैप् क्लेदने | उन्दनुः शुकः ।। णद अव्यक्ते शब्दे । नदनुर्मेघः सिंहथ ॥ वद व्यक्तायां वाचि । वदनुर्वक्ता || पतू गतौ । पतनुः श्येनः ।। आदिग्रहणादन्येपि || कित्त्वमकृत्वा डित्करणं वदेर्वृदभावार्थम् ।। ७९३ ॥ कृशेरानुक् ॥ ७९४ ॥ कृशच् तनुत्वे । इत्यस्मास्किदानुः प्रत्ययो भवति ।। कृशानुवह्निः॥७९४॥ जीवे रदानुक ॥ ७९५ ॥ जीव प्राणधारणे | इत्यस्मात्किद्रदानुः प्रत्ययो भवति || जीरदानुः || किकरणं गुणप्रविषेधार्थम् | वलोपे हि नाम्यन्तत्वाद्गुणः स्यात् ।। ७९५ ॥ वचेरनुः ॥ ७९६ ॥ वचं भाषणे । इत्यस्मादनुः प्रत्ययो भवति ॥ वचक्रुर्वाग्म्याचार्यो ब्राह्मण ऋषिश्च ॥ ७९६ ।। हृषिपुषिघुषिगदिमदिनन्दिगडिमण्डिजनिस्तनि ___ भ्यो रित्नुः ॥ ७९७ ।। एभ्यो ण्यन्तेभ्य इत्नुः प्रत्ययो भवति ।। हपच् तुष्टौ । हषू अलीके वा । हर्षयित्नुरानन्दः स्वजनो रोपजीवी प्रियंवदश्च || पुषंच पुष्टौ । पोषयिन्नुर्भा मेघः कोकिलश्च ।। धुषण विशब्दने । घोषयित्नुः कोकिलः शश्दश्च ।। गदण् गर्ने । गदयित्नुः पर्जन्यो वावदको भ्रमरः कामश्च || मदेच् हर्षे | मदयित्नुमदिरा सुवर्णमलंकारथ ।। टुनदु समृद्धौ | नन्दयिनुः पुत्र आनन्दः प्रमुदितश्च || गड सेचने | गडयित्नुर्बलाहकः ॥ मदु भूषायाम् । मण्डयित्नुमण्डयिता कामुकश्च ।। जनैचि प्रादुर्भावे । जनयित्नुः पिता || स्तनण् गर्ने | स्तनयित्नु मेघो मेघर्जितं च ||७९७|| कस्यतिभ्यामिपुक् ॥ ७९८ ।। ____ आभ्यां किदिपुः प्रत्ययो भवति || कस गतौ । कसिपुरशनम् ॥ ऋक् गतौ । रिपुः शत्रुः ।। ७९८ ॥ कम्यमिभ्यां बुः ॥ ७९९ ॥ आभ्यां बुः प्रत्ययो भवति || कमूड् कान्तौ । कम्वुः शङः ।। अम गतौ । अम्बु पानीयम् ।। ७९९ ॥ ___अधेरमुः ।। ८०० ॥ अभ्र गती । इत्यस्मादमुः प्रत्ययो भवति ।। अभ्रमुर्देवहस्तिनी ।। ८००। Aho I Shrutagyanam Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृतिः । यजिगुन्धिदहिदसिजनिमनिभ्यो युः || ८०१ ।। एभ्यो युः प्रत्ययो भवति ॥ यजीं देवपूजादौ । यज्युरभिरध्वर्युर्यज्वा शिष्यश्व || शुन्ध शुद्धैौ । शुन्ध्युरभिरादित्यः पवित्रं च || दहं भस्मीकरणे | दह्युरभिः || दसूच् उपक्षये । दस्युश्चौरः || जनैचि प्रादुर्भावे | जन्युरपत्यं पिता वायुः प्रादुर्भावः प्रजापतिः प्राणी च || मनिच् ज्ञाने | मन्युः कृपा क्रोधः शोकः क्रतुश्च ।। ८०१ । ८०१-८०७] १३३ भुजेः कित् || ८०२ ॥ भुजंप् पालनाभ्यवहारयोः । इत्यस्मात्किद्युः प्रत्ययो भवति || भुज्युरग्निरादित्यो गरुडो भोग ऋषिव || ८०२ ॥ सर्वैरय्वन्यू || ८०३ ।। सृ गतौ । इत्यस्मादयु अन्य इति प्रत्ययौ भवतः || सरयुर्नदी वायुश्र || दीर्घान्तमिममिच्छन्त्येके | सरयूः । श्लिष्टनिर्देशात्तदपि संगृहीतमेव || सरण्युर्मेधोश्विनोर्माता समेघो वायुच || ८०३ || भूक्षिपिचरेरन्युक् || ८०४ ॥ एभ्यः किदन्युः प्रत्ययो भवति ॥ भू सत्तायाम् | भुवन्युरीश्वरोनिश्र || क्षिपत् प्रेरणे । क्षिपण्युर्वायुर्वसन्तो विद्युद [ र्थः ] कालश्च || चर भक्षणं । चरण्र्वायुः || ८०४ ॥ मुत्यु || ८०५ ॥ मृत् प्राणत्यागे | इत्यस्मात्किच्युः प्रत्ययो भवति || मारयतीति मृत्युः कालो मरणं च ॥। ८०५ ॥ चिनोपीम्यशिभ्यो रुः ।। ८०६ ।। एभ्यो रुः प्रत्ययो भवति ॥ चिग्द् चयने | चेरुर्मुनि: || णींग् प्रापणे | नेरुर्जनपदः ।। पींड्च् पाने । पेरुः सूर्यो गिरिः कलविङ्कश्व || मींड्च् हिंसाया - म् | मेरुर्देवाद्रिः || अशौटि व्याप्तौ । अश्रु नेत्रजलम् ।। ८०६ ।। रुपूभ्यां कित् ।। ८०७ ॥ आभ्यां किडुः प्रत्ययो भवति || रुक् शब्दे | रुरुर्मृगजातिः ॥ पूम्रश् पवने | पूरू राजा ।। ८०७ ।। Aho! Shrutagyanam Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे खनो लुक् च ।। ८०८ ॥ खनूग् अवदारणे | इत्यस्माद्रुः प्रत्ययो | भवति ] नस्य च लुग्भवति || खरु - दर्पः क्रूरो मूर्खो दृप्तो गीतविशेषव || ८०८ ॥ जनिहनिशद्यस्त च ॥ ८०९ ।। एभ्यो रुः प्रत्ययो भवत्यन्त्यस्य च तकारादेशो भवति || जनैौचे प्रादुर्भावे | जत्रुः शरीरावयवो मेघो घर्मवसानं च || हनंकू हिंसागत्योः | हत्रुर्हिसः || श शातने । शत्रू रिपुः | बाहुलकात्तादेशस्य विकल्पे | शत्रुः पुरुषः || ऋक् गतौ । अत्रुः क्षुद्रजन्तुः || ८०९ ॥ १३४ [Co८-८१५ इमनः शीडो डित् ॥ ८१० ॥ इमन्पूर्वीत् शोड्क् स्वने । इत्यस्माडिदुः प्रत्ययो भवति ॥ श्मश्रुर्मुखलोमानि ।। ८१० ॥ शिग्रुगेरुन मेर्वादयः || ८११ ॥ शिम्वादयः शब्दा रुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || शिंग्ट् निशाने | किद्वोन्तश्च | शिशुः शोभाञ्जनको हरितकविशेषश्व || गिरतेरेश्च || गेरुर्धातुः || नमेर्नञ्पूर्वस्य मयतेर्वा | एच्चान्तः | नमेरुर्देववृक्षः || आदिग्रहणादन्येपि || ८११ ।। कटिकुड्यर्तेररुः || ८१२ ॥ एम्योरुः प्रत्ययो भवति || कटे वर्षावरणयोः कटरुः शकटम् || कुटत् कौटिल्ये | कुटरुः पक्षिविशेषो मर्कटो वृक्षो वर्धकिश्व || कुटादित्वान्न गुणः || कं गतौ । अररुरखर आयुधं मण्डलं च ।। ८१२ ।। कर्केrरुः || ८१३ ॥ कर्केः सौत्रादारुः प्रत्ययो भवति || कर्कारुः क्षुद्रत्रिर्मिटी || ८१३ ॥ उरादेरूदेत च || ८१४ ।। उर्वे हिंसायाम् । इत्यस्मादारुः प्रत्ययो भवत्यादेश्व ऊकार एकार आदेशो भवतः || ऊर्वारुः कटुचिर्मिटी || एवरुचारुचिर्मिटी || ८१४ ॥ कृपिक्षुधिपिकुणिभ्यः कित् || ८१५ || एभ्यः किदारुः प्रत्ययो भवति ॥ कृपौड् सामर्थ्य | कृपारुर्दयाशीलः || क्षुधं बुभुक्षायाम् | क्षुधारुः क्षुधमसहमान: । लब्वे | कृपालुः | क्षुधालुः || पींच् पाने । पियारुर्वृक्षः || कुणत् शब्देोपकरणयोः । कुणारुर्वनस्पतिः || ८१५ । Aho ! Shrutagyanam Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१६-८२९] - उणादिगण विवृतिः। श्यः शीत च ।। ८१६ ॥ ___ इयड् गतौ । इत्यस्मादारुः प्रत्ययो भव त्यस्य च शीत इत्यादेशो भवति ।। शीतारुः शीतासहः । लत्वे | शीतालुः ॥ ८१६ ॥ तुम्बेरुरुः ॥ ८१७ ॥ तुबु अर्दने | इत्यस्मादुरुः प्रत्ययो भवति ॥ तुम्बुरुर्गन्धर्वो गन्धद्रव्यं च ॥ ८१७ ।। कन्देः कुन्द च ॥ ८१८ ।। कदु रोदनाहानयोः । इत्यस्मादुरुः प्रत्ययो भवत्यस्य च कुन्द इत्यादेशो भवति ॥ कुन्दुरुः सल्लकीनिर्यासः ।। ८१८॥ चमेरूरुः॥ ८१९ ॥ चमू अदने । इत्यस्मादूरुः प्रत्ययो भवति ॥ चमूरुश्वित्रकः ॥ ८१९ ।। शीडो लुः ॥ ८२० ॥ शीड्क् स्वमे । इत्यस्माल्लुः प्रत्ययो भवति ॥ शेलुः श्लेष्मातकः ॥८२०॥ पीडः कित् ॥ ८२१ ॥ पीड्च् पाने । इत्यस्मास्किल्लुः प्रत्ययो भवति ।। पीलुर्हस्ती वृक्षव!|८२१॥ लस्जीयिशलेरालुः ॥ ८२२ ॥ एभ्य आलुः प्रत्ययो भवति || ओलस्नैति वीडे | लज्जालुर्लज्जनशीलः ।। ईर्ण्य ईर्ष्यार्थः । ईर्ष्यालुरीऱ्यांशीलः ॥ शल गतौ । शलालुवृक्षावयवः ।।८२२॥ आपोप् च ॥ ८२३ ।। आफुट् व्याप्तौ । इत्यस्मादालुः प्रत्ययो भव]त्यस्य च अप् इत्यादेशो भवति ॥ अपालुर्वायुः ॥ ८२३ ।। गृहलुगुग्गुलुकमण्डलवः ॥ ८२४ ॥ एत आलुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। गूहतेईस्वश्च प्रत्ययादेः । गृहलुक्रषिः।। गुंड् शब्दे । अस्यादेर्गुग्गुलॊपश्च प्रत्ययादेः । गुग्गुलुर्वृक्षविशेषोश्वश्च ॥ कम्पूर्वादनिते?न्तो हस्वश्च प्रत्ययादेः । कमण्डलुरमत्रम् ।। ८२४ ॥ प्रः शुः ।। ८२५॥ पृश् पालनपूरणयोः । इत्यस्मात् शुः प्रत्ययो भवति ।। पशुर्वसिंज्ञं वक्रास्थि ।। ८२५ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [८२६-८३३ ___ मस्जीष्यशिभ्यः सुक् ॥ ८२६ ।। एभ्यः कित्सुः प्रत्ययो भवति || टुमस्जोत् शुद्धौ | मस्जेः स इति नोन्तः । मर्मुनिः ॥ इषश् आभीक्ष्ण्ये । इक्षुर्गुडादिप्रकृतिः ॥ भाटि व्याप्ती । अक्षः समुद्रो वप्रश्च ।। ८२६ ।। तृपलिमलेरक्षुः ।। ८२७ ॥ एभ्योक्षुः प्रत्ययो भवति ।। तृ प्लवनतरणयोः । तरक्षुः श्वापदविशेषः।। पल गतौ । मलि धारणे | पलक्षुमलक्षुश्च वृक्षः ।। ८२७ ।। उलेः कित् ॥ ८२८ ॥ उल दाहे । इत्यस्मात्सौत्रात्किदक्षुः प्रत्ययो भवति ॥ उलक्षुस्तृणजाति: ॥ ८२८ ॥ कृषिचमितनिधन्यन्दिसर्जिखर्जिभर्जिलस्जीठियभ्य ऊः॥ ८२९॥ एभ्य ऊः प्रत्ययो भवति ।। कृषीत् विलेखने | कर्पू: कुल्याङ्गारः परिखा गर्तश्च ॥ चमू अदने । चमूः सेना ।। तनूयी विस्तारे । तनूः शरीरम् ।। धन शब्दे । धन धान्ये सौत्रो वा । धनूर्धान्यराशिा वरारोहा च स्त्री । अदु बन्धने | अन्दूः पादकटकः ।। सर्ज अर्जने । सर्जर [घः] क्षारो वनस्पतिर्वणिक् च ।। खर्ज मार्जने च । खजूः कण्डूविद्युच्च ।। भृजैड् भर्जने । भ्रस्जीत् पाके वा | भर्यवविकारः ।। ओलस्नैति बीडे । लज्जूर्लज्जालुः !! ईय॑ ईर्ष्यार्थः । ईयूरीालुः ॥८२९॥ फलेः फेल च ॥ ८३० ।। फल निष्पत्तौ । इत्यस्मादः प्रत्ययो भवति धातोश्च फेल् इत्यादेशो भवति ॥ फेलू)मविशेषः ॥ ८३० ॥ करेण्डैछौ च षः ॥ ८३१ ॥ कष हिंसायाम् । इत्यस्मादुः प्रत्ययो भवति षकारस्य च ण्डश्रश्वादेशी भवतः ।। कण्डूः कच्छूश्च पामा ॥ ८३१ ॥ वहेर्ध च ॥ ८३२ ॥ वहीं प्रापणे । इत्यस्मादः प्रत्ययो [भवति ] धकारश्चान्तादेशो भवति ॥ वधूः पतिमुपसंपन्ना कन्या जाया च ॥ ८३२॥ मृजेर्गुणश्च ॥ ८३३ ॥ मृजौक् शुद्धौ । इत्यस्मादूः प्रत्ययो [ भवति ] गुणश्वास्य भवति || मर्जू: Aho I Shrutagyanam Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _८३४–८४०] उणादिगणविवृतिः । १३७ शुद्धी रजको नद्यास्तीरं शिला च ॥ गुणे सिद्धे गुणवचनमकारस्य वृद्धिबाध नार्थम् ॥ ८३३ ॥ अजेर्जोन्तश्च || ८३४ ॥ अज क्षेपणे च । इत्यस्मादूः प्रत्ययो भवति ] कारश्रान्तो भवति ॥ अज्जूर्जननी || ८३४ | सिद्यर्त्यादिभ्यो णित् ।। ८३५ ।। एभ्यो णिदूः प्रत्ययो भवति ॥ कस गतौ । कासू: शक्तिर्नामायुधं वाग्विकलो बुद्धिर्व्याधिर्विकला च वाक् || पर्दिच् गतैः । पादू: पादुका || ऋक् गतौ । आर्वृक्षविशेषः कच्छूर्गतिः पिङ्गल || आदिग्रहणात् कचतेः | काचूः । शलतेः । शालूरित्यादयोपि || ८३५ ॥ अर्डीन्तश्व || ८३६ ॥ अणेर्धातोर्णिदूः प्रत्ययो भवति डश्वान्तो भवति ।। अण शब्दे | भाण्डुर्जलभृङ्गारः ।। ८३६ ॥ अडोल च वा ॥ ८३७ ॥ अड उद्यमे । इत्यस्माणिः प्रत्ययो भवति लकारश्चान्तादेशो वा भवति || आलूर्भुङ्गारः करकश्च || आडूर्दर्वी टिट्टिभो वनस्पतिर्जलाधारभूमिः पादभेदनं च ॥ ८३७ ।। नञो लम्बेर्नलुक् च ॥ ८३८ ॥ नञ्पूर्वात् लबुड् अवस्रंसने च । इत्यस्माण्णिदुः प्रत्ययो भवति नकारस्य च लुग्भवति || अलाबस्तुम्बी || ८३८ ॥ कफादीरेले च || ८३९ ॥ A कफपूर्वात् ईरिक् गतिकम्पनयोः । इत्यस्मादूः प्रत्ययो भवति लश्चान्तादेशो भवति || कफेलूः श्लेष्मातको यवलाजा मधुपर्क छादिषेयं च तृणम् ।। ८३९ ।। ऋतो रत च ।। ८४० ॥ ऋत घृणागतिस्पर्धेषु | इत्यस्मादुः प्रत्ययो [ भवति ] रत इति चास्यादेशो भवति || रतूर्नदीविशेषः सत्यवाग्दूतः कृमिविशेषश्व || ८४० || 18 Aho! Shrutagyanam Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ हेमचन्द्रव्याकरणे [-४१-८४८ दृभिचपेः स्वरान्नोन्तश्च ॥ ८४१ ॥ आभ्यामू: प्रत्ययो भवति स्वराज्य परो नोन्तो भवति ॥ वृमैत् ग्रन्थे । दृन्भूः सर्पजातिवनस्पतिर्वत्रो ग्रन्थकारो दर्भणं च | बाहुलकानकारस्य मां धुट्वर्गेन्त्योपदान्त इति न भवति || चप सान्त्वने । चम्पः कथाविशेषः ॥ ८४१ ॥ धृषदिधिषदिधीषौ च ॥ ८४२ ।। अिधृषाट् प्रागल्भ्ये । इत्यस्मादः प्रत्ययो [ भवति ] दिधिष् दिधीष् इत्येतावादेशावस्य भवतः ।। दिधिषायस्याः पूर्वपरिणीता पुंश्चली च ॥ दिधीपूरूढाया: कनिष्ठाया अनूढा ज्येष्ठा पुनर्भूराहुतिश्च ॥ ८४२ ॥ भ्रमिगमितनिभ्यो डित् ।। ८४३ ।। एभ्यो डिदः प्रत्ययो भवति ॥ भ्रमूच् अनवस्थाने । भ्ररक्ष्णोरुपरि रोमराजिः ॥ गमं गतौ । अग्रे गच्छति । अग्रेगूः पुरःसरः ॥ तनूयी विस्तारे । कुत्सितं तन्यते | कुतूश्चर्ममयमावपनम् ॥ ८४३ ॥ नतिशृधिरुषिकुहिभ्यः कित् ॥ ८४४ ॥ एभ्यः किदः प्रत्ययो भवति ॥ नतैच् नर्तने । नतूर्नर्तकः कृमिजातिः प्लवः प्रतिकृतिश्च ॥ शुधूड् शब्दकुत्सायाम् । शृधः शर्धनः कृमिजातिरपानं बलिश्च दानवः।। रुषच् रोषे । रुषर्भर्त्सकः ॥ कुहणि विस्मापने । कुहूरमावास्या ||८४४॥ तृखडिभ्यां डूः ॥ ८४५ ॥ आभ्यां डूः प्रत्ययो भवति ॥ तृ प्लवनतरणयोः । नौणी प्लवः परिवेषणभाण्डं च ॥ खडण भेदे । खर्बालानामुपकरणं स्त्रीणां पादाङ्गुष्ठाभरणं च ।। ८४५ ॥ तृभ्यां दूः ॥ ८४६ ॥ आभ्यां दूः प्रत्ययो भवति || तु प्लवनतरणयोः। तर्दूर्दी ॥ दृश् विदारणे]। दर्दूः कुष्ठभेदः ॥ ८४६ ॥ कमिजनिभ्यां बूः ॥ ८४७॥ आभ्यां बूः प्रत्ययो भवति ॥ कमूड् कान्तौ । कम्बूभूषणमादर्शन्सरुः कुरुविन्दश्च ॥ जनैचि प्रादुर्भावे । जम्बूक्षजातिः ॥ ८४७ ॥ शकेरन्धूः ॥ ८४८ ॥ शकुंट शक्तौ । इत्यस्मादन्धः प्रत्ययो भवति ।। शकन्धूवनस्पतिर्देवताविशेषश्च ॥ ८४८ ।। Aho ! Shrutagyanam Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४९-८५७] उणादिगणविवृतिः । कुगः कादिः || ८४९ ॥ डुकृंग् करणे । इत्यस्मात्ककारादिरन्धूः प्रत्ययो भवति || कर्कन्धूर्बदरी त्रणं यवलाजा मधुपर्क विष्टम्भव ॥ ८४९ ॥ योगः || ८५० || युक् मिश्रणे | इत्यस्मादागूः प्रत्ययो भवति || यवागूर्द्रवौदनः || ८५० ॥ काच्छीडो डेरूः ॥ ८५१ ॥ पूर्वात् शक्त्रिमे । इत्यस्माडिदेरूः प्रत्ययो भवति || कशेरूः कन्दविशेषो वीरुच || ८५१ ॥ दिव ऋः ।। ८५२ ॥ दिवच् क्रीडादौ । इत्यस्मादृः प्रत्ययो भवति || देवा देवर: पितृव्यख्यमिश्व ॥ ८५२ । १३९ सोरसेः || ८५३ || सुपूर्वात् असूत्र क्षेपणे । इत्यस्मादृः प्रत्ययो भवति ॥ स्वसा भगिनी || ८५३॥ नियो डित् || ८५४ ॥ णींम् प्रापणे | इत्यस्माडिदुः प्रत्ययो भवति || ना पुरुषः || ८५४ ॥ सव्यात्स्थः || ८५५ ॥ सव्यपूर्वात् ष्ठां गतिनिवृत्तौ । इत्यस्माड्डिदृः प्रत्ययो भवति || सव्यष्ठा सारथिः || ८५५ ।। यतिननन्दिभ्यां दीर्घश्व || ८५६ ॥ यतेः नञ्पूर्वात् नन्देश्व ऋः प्रत्ययो [भव ] त्यनयोश्च दीर्घो भवति ॥ यतैड् प्रयत्ने | याता पतिभ्रातृभगिनी देवरभायी ज्येष्ठभार्या च ॥ टुनदु समृद्धौ । ननान्दा भर्तृभगिनी || नखादित्वान्नञन्न भवति || ८५६ ।। शासिशंसिनीरुक्षु भृधूमन्यादिभ्यस्तृः || ८५७ ॥ एभ्यस्तृः प्रत्ययो भवति || शास्त्रक् अनुशिष्टौ । शास्ता गुरू राजा च | प्रशास्ता राजर्विक् च ॥ शंसू स्तुतौ च ! शंस्ता स्तोता || णीं प्रापणे । नेता साराथेः || रुक् शब्दे | रोता मेघः || टुक्षुक् शब्दे | क्षोता मुसलम् || हंग् हरणे | हर्ता चौरः ।। टुडुभ्रंग्क् पोषणे च । भर्ता पतिः || धृड् अवध्वंसने || धत धर्मः || मनिच् ज्ञाने | मन्ता विद्वान्प्रजापतिश्च || आदिग्रहणात् उपद्रष्टरित्रक् । विशस्ता घातक इत्यादयोपि ।। ८५७ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे ८५८-८६५ पातेरिच्च ।। ८५८ ॥ पांक् रक्षणे । इत्यस्मात्तृः प्रत्ययो भवति धातोव इकारान्तादेशो भवति || पिता जनकः ॥ ८५८ ।। मानिमाजेर्लुक् च ॥ ८५९ ॥ आभ्यां तृः प्रत्ययो भवति लुक् चान्तस्य भवति ॥ मानि पूजायाम् । माता जननी ॥ भ्राजि दीप्तौ । भ्राता सोदर्यः ॥ ८५९ ।। जाया मिगः ।। ८६०॥ जाशब्दपूर्वात् डुमिंगट प्रक्षेपणे । इत्यस्मा तृः प्रत्ययो भवति ॥ जायां प्रजायां मिन्वन्ति तमिति जामाता दुहितृपतिः ।। ८६० ॥ आपोप् च ।। ८६१ ।। आट् व्याप्तौ । इत्यस्मात्तृः प्रत्ययो भवत्यप् चास्यादेशो भवति ॥ अप्ता यज्ञोनिश्च ।। ८६१ ॥ नमेः प् च ॥ ८६२ ।। ___णमं प्रत्वे । इत्यस्मात्तः प्रत्ययो भवति पकारवान्तादेशो भवति ॥ नप्ता दुहितुः पुत्रस्य वा पुत्रः ।। ८६२ ।। हुपूदोन्नीप्रस्तुप्रतिहप्रतिप्रस्थाभ्य ऋत्विजि ।। ८६३ ।। ___ एभ्य ऋत्विज्यभिधेये तः प्रत्ययो भवति ॥ हुंक् दानादनयोः । होता ।। पूगश् पवने । पोता ।। - शब्दे । णींग प्रापणे । उत्पूर्वः । उद्गाता । उन्नेता ॥ टुंग्क् स्तुतौ । प्रपूर्वः । प्रस्तोता ॥ हंग् हरणे । प्रतिपूर्वः । प्रतिहः ॥ष्ठां गति. निवृत्तौ । प्रति प्र]पूर्वः । प्रतिप्रस्थाता ॥ एत ऋत्विजः ॥ ८६३ ॥ नियः षादिः ॥ ८६४॥ णींग् प्रापणे । इत्यस्मात् षकारादिस्तृः प्रत्ययो भवत्य॒त्विज्यभिधेये ।। नेष्टविक् ॥ ८६४ ॥ त्वष्टृक्षत्तुदुहित्रादयः ॥ ८६५ ॥ ___ एते तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। विषेरितोच | त्वष्टा देववर्धकिः प्रजापतिरादित्यश्च ।। क्षद खदने । इति सौत्रः । क्षत्ता नियुक्तोविनीतो दौवारिको मुसलः पारशवो रुद्रः सारथिश्च ।। दुहेरिन् किच्च | दुहिता तनया ॥ आदिग्रहणादन्येपि ॥ ८६५ ॥ Ahol Shrutagyanam Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६-८७४] उणादिगणविवृतिः। १४१ रातेः ।। ८६६ ॥ रांक दाने । इत्यस्मारिदैः प्रत्ययो भवति ॥ राः द्रव्यम् । रायौ । रायः ॥ ८६६ ॥ ___ युगमिभ्यां डोः ॥ ८६७ ॥ __आभ्यां डिदोः प्रत्ययो भवति ॥ युक् अभिगमे । द्यौः स्वर्गोन्तरिक्षं च ॥ गमुं गतौ । गौः पृथिव्यादि ॥ ८६७ ॥ ग्लानुदिभ्यां डौः ॥ ८६८ ॥ आभ्यां डिदौः प्रत्ययो भवति || ग्लैं हर्षक्षये | ग्लौश्चन्द्रो व्याधितः शरीरग्लानिश्च ॥ णुदंत् प्रेरणे । नौर्जलतरणम् ॥ ८६८ ॥ तोः किक् ॥ ८६९॥ तुक वृत्त्यादौ । इत्यस्माकिक् प्रत्ययो भवति । ककारः कित्कार्यार्थ इकार उच्चारणार्थः ।। तुक् अपत्यम् ॥ ८६९ ॥ द्रागादयः॥ ८७० ॥ द्राक् इत्यादयः शब्दाः किक्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ॥ द्रवतेरा च द्राक् शीत्रम् ॥ एवं सरतेः । साक् स एवार्थः ॥ इयर्तेरादेशश्च । अर्वागचिरन्तनम् ।। आदिग्रहणादन्येपि ॥ ८७० ॥ स्रोश्चिक् ।। ८७१॥ ___ गतौ । इत्यस्माचिक् प्रत्ययो भवति ॥ सुग् जुहूप्रभूत्यग्निहोत्रभाण्डम् | सुचौ । स्रुचः ॥ इकार उच्चारणार्थः ककारः कित्कार्यार्थः ।। ८७१ ।। तनइच् ॥ ८७२ ॥ तनूयी विस्तारे । इत्यस्माडिवच् प्रत्ययो भवति || त्वक् शरीरादिवेष्टनम् ॥ ८७२ ।। पारेरज् ॥ ८७३ ॥ ___ पारण कर्मसमाप्तौ | इत्यस्मादज् प्रत्ययो भवति ॥ पारक् प्राकारः शाकविशेषः सुवर्ण रत्नं च | पारजी । पारजः ।। ८७३ ॥ ऋधिप्रथिभिषिभ्यः कित् ॥ ८७४ ॥ एभ्यः किदज् प्रत्ययो भवति ॥ ऋधूच् वृद्धौ । ऋधक् समीपवाच्यव्ययम् || प्रथिष् प्रख्याने । निर्देशादेव वृत् । पृथग्नानार्थेव्ययम् ।। भिषः सौत्रः । भिषग्वैद्यः । भिषजौ । भिषजः ॥ ८७४ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ हेमचन्द्रव्याकरणे [८७५-८-२ भृपणिभ्यामिज भुरवणौ च ।। ८७५ ॥ भूपणिभ्यामिज् प्रत्ययो भवति यथासंख्यं च भुर वण इत्यादेशौ भवतः ॥ भुंग भरणे | भुरिग्बाहुः शब्दो भूमिर्वायुरेकाक्षराधिकपादं चक्छन्दः ॥ पणि व्यवहारस्तुत्योः । वणिग्वैदेहिकः ॥ ८७५ ॥ वशेः कित् ॥ ८७६ ।। वशक् कान्तौ । इत्यस्मात्किदिज् प्रत्ययो भवति ।। उशिकान्त उशीरमग्निगौतमचर्षिः ॥ ८७६ ॥ लड्डेर नलुक च ॥ ८७७ ॥ लघुड् गतौ | इत्यस्मादट् प्रत्ययो [भवति ] नलोपश्चास्य भवति ॥ लघड्डायुर्लघु च शकटम् ।। ८७७ ।। सर्तेरड् ॥ ८७८ ॥ सुं गतौ । इत्यस्मादड् प्रत्ययो भवति || सरड् वृक्षविशेषो मेघ उष्ट्रजातिव ॥ ८७८ ॥ ईडेरविड् हस्वश्च ।। ८७९ ॥ ईडिक् स्तुतौ । इत्यस्मादविड् प्रत्ययो [ भवति ] हस्ववास्य भवति ॥ इडविडिश्रवाः ॥ ८७९ ।। विपि म्लेछश्च वा ।। ८८०॥ म्लेछेरीडेश्च क्विपि प्रत्यये वा हूस्वो भवत्यत एव वचनाक्किप् च ॥ म्लेछ अव्यक्तायां वाचि । म्लिट् । म्लेट् । उभयं म्लेच्छजातिः ॥ इड् स्वामी मेदिनी च ।। ईड् स रब ।। ८८० ॥ _तृपेः कत् ।। ८८१ ॥ तपौच प्रीती । इत्यस्मात्किदत् प्रत्ययो भवति ।। तपचन्द्रः समुद्रस्तृणभूमिथ ॥ ८८१ ॥ संश्चवेहत्साक्षादादयः ।। ८८२ ॥ एते कत्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। सम्पूर्थात् चिनोर्डित्समो मकारस्यानुस्वारपूर्वः शकारश्च । संश्चदध्वर्यः कुहकश्च । अनुस्वारं नेच्छन्त्यके । सश्चत्कुहकः॥ विपूर्वात् हन्तेर्डिश्च गुणः । विहन्ति गर्भमिति वेहद्गर्भधातिन्यप्रजा ख्यनाथ ॥ सम्पूर्वात् ईक्षतेः साक्षाभावश्च | साक्षात्समक्षमित्यर्थः ॥ आदिग्रहणात् रेहत् । वियत् । पुरीतदादयोपि ।। ८८२ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८३-८८९] . उणादिगणविवृतिः। १४३ पटच्छपदादयोनुकरणाः ॥ ८८३ ॥ पटदित्यादयः कत्प्रत्ययान्ता निपात्यन्तेनुकरण शब्दाश्चैते || पट गतौ । पटत् ।। छुपंत [संस्पर्शे । उकारस्याकारः | छपत् ।। पतु गतौ । पतत् ॥ शृश् हिंसायाम् । शरत् ॥ शल गतौ । शलत् || खट काढ़े । खटत् ।। दहेः प च । दपत् ।। डिपेः । डिपत् ।। खनते रश्च । खरत् ।। खादेः । खादत् ।। सर्व एते कस्यचिविशेषस्य श्रुतिप्रत्यासत्त्यानुकरणशब्दाः । अनुकरणमपि हि साध्वेव कर्तव्यं न यत्किचिद्यथानक्षरमिति शिष्टाः स्मरन्ति ।। ८८३ ।। हिवृहिमहिपृषिभ्यः कतः ॥ ८८४ ॥ एभ्यः किदतः प्रत्ययो भवति ।। द्रुहोच् जिघांसायाम् । द्रुहन्ग्रीष्मः ।। वृह वृद्धौ । बृहन्प्रवृद्धः । बृहती छन्दः || मह पूजायाम् । महान्पूजितो विस्तीर्णश्च ॥ महान्तौ । महान्तः । महती || पृषू सेचने | पृषत्तन्त्र जलबिन्?चित्रवर्णजातिर्दध्युपसिक्तमाज्यं च । पृषती मृगी | स्थूलपृषतीमालभेत ।। ऋकारो ड्यर्थः ।।८८४।। गर्डिहू च ॥ ८८५ ॥ गम गतौ | इत्यस्मात्कतप्रत्ययो डिद्भवति द्वे चास्य रूपे भवतः || जगस्थावरजङ्गमो लोकः । जगती पृथिवी ।। ८८५ ॥ भातेर्डवतुः ।। ८८६ ॥ भांक दीप्तौ । इत्यस्माड्डिदवतुः प्रत्ययो भवति ॥ भवान् । भवन्तौ । भवन्तः ।। उकारो दीर्घत्वादिकार्यार्थः ॥ ८८६ ।। हसरुहियुषितडिभ्य इत् ॥ ८८७॥ एभ्य इत् प्रत्ययो भवति ।। हंग् हरणे | हरिद्धरितो वर्णः ककुब् वायु{गजातिरश्वः सूर्यश्च ।। सं गतौ । सरिनदी । रुहं जन्मनि । रोहिदीरुत्पकारो मत्स्यः सूर्योमिर्मगो वर्णश्च ॥ युषः सौत्रः। योषति गच्छति पुरुषमिति योषित्स्त्री।। तडण् आघाते । तडिविद्युत् ॥ ८८७ ॥ ___ उदकात् श्वेडित् ।। ८८८ ॥ उदकपूर्वात् होश्वि गतिवृद्धयोः । इत्यस्माडिदित् प्रत्ययो भवति ॥ उदकेन श्वयति । उदश्वित्तक्रम् ॥ नाम्न्युत्तरपदस्य चेत्युदकस्य उदभावः ॥ ८८८ ॥ म्र उत् ।। ८८९ ॥ मृत् प्राणत्यागे । इत्यस्मादुत् प्रत्ययो भवति ॥ मरुद्वायुर्देवो गिरिशिखरं च ॥ ८८९ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ हेमचन्द्रव्याकरणे [८९०-८९९ ग्रो मादिर्वा ॥ ८९०॥ गृत् निगरणे । इत्यस्मादुत् प्रत्ययो भवति स च मकारादिर्वा भवति ॥ गर्मुगरुड आदित्यो मधुमक्षिका तक्षा तृणं सुवर्ण च ॥ गरुद्वोजगरो मरकतमणिर्वेगस्तेजसां वर्तिश्च ।। ८९०॥ शक ऋत् ॥ ८९१ ॥ शक्ट शक्तौ । इत्यस्मादृत् प्रत्ययो भवति || शकृत्पुरीषम् ॥ ८९१ ॥ यजेः क च ॥ ८९२ ॥ यजी देवपूजादौ । इत्यस्मादृत् प्रत्ययो [ भवति ] कश्चान्तदिशो भवति ।। यकृदन्त्रम् ।। ८९२॥ पातः कृथ् ।। ८९३ ॥ पांक रक्षणे । इत्यस्मात्किथ् प्रत्ययो भवति ।। पृथो नाम क्षत्रियाः॥८९३।। शभसेरद् ।। ८९४ ।।। एभ्योद् प्रत्ययो भवति ॥ शृश् हिंसायाम् । शरदृतुः ॥ दृ भये । दरजनपदसमानशब्दः क्षत्रिय[व]|| दरदो जनपदः ।। भस भर्त्सनदीप्योः सौत्रः । भसज्जयनमास्यमामाशयस्थानं च ॥ भषेरपीच्छन्त्येके । भषत् ।। ८९४ ।। तनित्यजियजिभ्यो डद् ॥ ८९५ ॥ एभ्यो डिदद् प्रत्ययो भवति ।। तनूयी विस्तारे । तत् । सः ।। त्यजं हानी । त्यत् । स्यः । एतौ निर्देशवाचिनौ ॥ यजी देवपूजादौ । यत् । यः । अयमुद्देशवाची ॥ ८९५ ॥ इणस्तद् ॥ ८९६ ।। इण्क् गतौ । इत्यस्मात्तद् प्रत्ययो भवति ॥ एतत् । एषः । समीपवाची शब्दः ॥ ८९६॥ प्रः सद् ॥ ८९७ ॥ पृश् पालनपूरणयोः । इत्यस्मात्सद् प्रत्ययो भवति || पर्षसभा ।। ८९७॥ द्रो स्वश्च ॥ ८९८ ।। दृश विदारणे | इत्यस्मात्सद् प्रत्ययो भवति हस्वश्चास्य भवति ॥ दृषत्पाषाणः ।। ८९८ ॥ ___ युष्यसिभ्यां क्मद ।। ८९९ ॥ आभ्यां किन्मद् प्रत्ययो भवति ।। युषः सौत्रः सेवायाम् । युष्मत् । यूयम् ॥ असूच क्षेपणे । अस्मत् । वयम् ॥ ८९९ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादिगणविवृतिः । उक्षितक्ष्यक्षीशिराजिधन्विपञ्चिपूषिक्लिदिस्निहिनुमस्जेरन् ॥ ९००॥ एभ्योन्प्रत्ययो भवति || उक्ष सेचने | उक्षा वृषः ॥ तक्षौ तनूकरणे | तक्षा वर्धकिः || अक्षौ व्याप्तौ च । अक्षा दृष्टिनिपातः || ईशिक ऐश्वर्ये | ईशा परमात्मा || राजृग् दीप्तौ | राजेश्वरः || धन्विः सौत्रो गतौ । धत्रु गतौ वा । धन्वा मरुर्धनुश्च || पत्रुड् व्यक्तीकरणे | पञ्च संख्या || पूष वृद्धौ । पूषादित्यः || क्लिदौच् आर्द्रभावे । क्लेदा मुखप्रसेकचन्द्र इन्द्रश्च ॥ हिच् प्रीतौ । स्नेहा स्वाङ्गं सुहृद्दशा च गौः || णुक् स्तुतौ । नव संख्या ।। टुमस्जत् शुद्धौ । मज्जा षष्ठो धातुः ।। ९०० ।। ९०० - ९०३ ] लुपूयुवृषिशिदेविप्रतिदिविभ्यः कित् ॥ ९०१ ॥ एभ्यः किदन्प्रत्ययो भवति || लूग्श् छेदने । लुवा दात्रं स्थावरश्व || पूग्श् पवने । पुत्रा वायुः || युक् मिश्रणे | युवा तरुणः || वृषू सेचने । वृषेन्द्रो वृषभश्व || दंशं दशने | दश संख्या || थुंक् अभिगमे । युवाभिगमनीयो राजा सूर्यव || दिवूच् क्रीडादौ । दिवा दिनम् । प्रतिपूर्वात् । प्रतिदिवाहोपराह्नश्च ।। ९०१ ॥ श्वन्मातरिश्वन्मूर्धन्प्लीहन्नर्यमन्विश्वप्सन्परिज्वन्महन्नहन्मघवन्नथर्वन्निति || ९०२ ॥ १४५ एतेन्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || श्वयतेर्लुक् च । श्वा कुकुरः || मातर्यन्तरिक्षे श्वयति । मातरिश्वा वायुः | अत्र तत्पुरुषे कृतीति सप्तम्या अलुप् । इकारलोपश्च पूर्ववत् ॥ मूर्धश्व मूर्च्छन्त्यस्मिन्नाहताः प्राणिन इति मूर्धा शिरः || प्लिहो दीर्घश्व | प्लीहा जठरान्तरवयवः || अरिपूर्वात् अमेर्ण्यन्तात् । अरीनामयतीत्यर्यमा सूर्यः ॥ विश्वपूर्वात् स: किश्च । विश्वप्सा कालोभिर्वायुरिन्द्र || परिपूर्वात् ज्वलतेर्डिच्च । परिज्वा सूर्यश्चन्द्रोग्निर्वायुश्व || महीयतेरीयलोपश्च | महा महत्त्वम् || अंहेर्नलोपश्चांहते | अहो दिवसः || मर्नलोपो चान्तेः । मङ्कत इति मघवेन्द्रः || नञ्पूर्वात् खर्वैः खस्भश्च । न खर्वति । अथवर्षैिर्वेदश्व || इतिकरणादन्येपि भवन्ति ।। ९०२ ।। षण्यशौभ्यां तन् || ९०३ ॥ आभ्यां तन्प्रत्ययो भवति || षप समवाये । अशौटि व्याप्तौ । सप्त | अष्ट । उभे संख्ये ।। ९०३ ॥ 19 Aho! Shrutagyanam Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ইমান্ধ [९०४-९०९ स्नामदिपद्यतिपृशकिभ्यो वन् ।। ९०४ ॥ एभ्यो वन्प्रत्ययो भवति || ष्णांक शोचे | स्लावा सिरा नदी च ।। मर्दैन् हर्षे । मद्वा दृप्तः पानं कान्तिः क्रीडा मुनिः शिरश्च । मद्वरी मदिरा । बाहुलकाड्डीः | वनो रश्च || पदिंच गतौ । पद्वा पत्तिर्वत्सो रथः पादो गतिश्र || कंक गती। अश्विोशनिरासनं मुनिश्च ।। पृश् पालनपूरणयोः । पर्व संधिः पूरणं पुण्यतिथिश्च ।। शकुंट शनी । शक्का वर्धकिः समर्थः । शक्करी नदी विधुच्छन्दोजातिर्युवतिः सुरभिश्व | शाकरो वृषः ।। ९०४ ।। ग्रहेरा च ।। ९०५ ।। ग्रही उपादाने | इत्यस्माइन्प्रत्ययो भवत्यकारश्चान्तादेशो भवति || प्रावा पाषाणः पर्वतश्च ।। ९०५ ।। ऋशीशिरुहिजिक्षिहसृदृभ्यः क्वनिप् ॥ ९०६ ॥ एभ्यः कनिष्प्रत्ययो भवति || क् गतौ । स्वर्षिः ।। शीड्क् स्वप्ने । शीवाजगरः ।। क्रुशं आह्वानरोदनयोः । क्रुश्वा सृगालः ।। रुहं जन्मनि । रुह्वा वृक्षः || जिं अभिभवे । जित्वा धर्म इन्द्रो योद्धा च। जित्वरी नदी वणिजश्व । वाणारसी जित्वरीमाहुः || क्षि क्षये क्षित्वा वायुर्विष्णुर्मत्युश्च । क्षिवरी रात्रिः|| हंग् हरणे । हृत्वा रुद्रो मत्स्यो वायुश्च ।। तूं गतौ । सृत्वा कालोग्निर्वायुः सर्पः प्रजापतिर्नीचजातिश्च | सृत्वरी वेश्यामाता ।। धृड्त् स्थाने । धृत्वा विष्णुः शैलः समुद्रश्च । धृत्वरी भूमिः।। टुंड्त् आदरे । दृत्वा दृप्तः।। पकारस्तागमार्थः।।९०६॥ सृजेः सज्सृकौ च ॥ ९०७ ॥ सृजत् विसर्गे । इत्यस्मात्वनिष्प्रत्ययो भवति सज् सक् इत्येतो चास्यादेशौ भवतः ।। सज्वा मालाकारो रज्जुश्च ।। सक्कण्यास्योपान्तौ ॥ ९०७ ।। ध्याप्योर्धीपी च ॥ ९०८ ॥ ध्ये चिन्तायाम् । प्य वृद्धौ । इत्याभ्यां कनिष्पत्ययो भवति यथासंख्यं च धी पी इत्येतावादेशौ भवतः ।। ध्यायतीति धीवा मनीषी निषादो व्याधिर्मत्स्यश्व ॥ प्यायतेः । पीवा पीनः ।। ९०८ ॥ अर्ध च ।। ९०९॥ अत सातत्यगमने । इत्यस्मात्वनिप्प्रत्ययो [ भवति ] धकारवान्तादेशो भवति || अध्वा मार्गः ।। ९०९ ।। Aho 1 Shrutagyanam Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१०-९१३] उणादिगणविवतिः । १४७ प्रात्सदिरीरिणस्तोन्तश्च ।। ९१०॥ अपूर्वेभ्यः सद्यादिभ्यः कनिष्प्रत्ययो भवति तोन्तश्च भवति || षट्वं विशरणगत्यवसादनेषु । प्रसत्वा मूढो वायुश्च । प्रसत्वरी माता प्रतिपत्तिश्च ।। रीश् गतिरेषणयोः । परीत्वा वायुः । परीत्वरी स्त्रीविशेषः ।। ईरिक् गतिकम्पनयोः । प्रेवा सागरो वायुश्च । प्रेलरी नगरी ।। इण्क् गतौ । प्रेत्वरी नगरीत्याहुः ॥ ९१० ।। मन् ॥ ९११ ।। सर्वशतुभ्यो बहुलं मन्प्रत्ययो भवति || डुक्कंग करणे । कर्म व्यापारः ॥ च ग्ट वरणे । वर्म कवचम् ।। वृतड् वर्तते । वर्त्म पन्थाः ।। चर भक्षणे च । चौजिनम् ।। भस भर्ती नदीप्योः सौत्रः । भसितं तदिति भस्म भूतिः ।। जनैचि भादुर्भावे । जन्मोत्पत्तिः ॥ शृश् हिंसायाम् । शर्म सुखम् | वसवोस्य दुरितं शीर्यासुरिति वसु शर्मा एवं हरिशर्म ।। मंत् प्राणत्यागे | मर्म जीवपदेशपचयस्थानं यत्र जायमाना वेदना महती जायते ।। नृश् नये । नर्म परिहासकथा । लिपंच आलिङ्गने । श्लेष्मा कफः ।। ऊष रुजायाम् । ऊष्मा तापः ॥ टुडुभंगक पोषणे च । मर्म सुवर्णम् ।। यांक प्रापणे । यामा रथः ॥ वांक् गतिगन्धनयोः । वामा करचरण ह स्वः ।। पांक् रक्षणे | पामा कच्छूः।। वधू सेचने | वर्म शरीरम् ।। पदं विशरणगत्यवसादनेषु । सझ गृहम् ।। विशंत् प्रवेशने । वेश्म गृहम् ।। हिंट गतिवृद्ध्योः । हेम सुवर्णम् ।। छदण् अपवारणे । छद्म माया || दीड्च् क्षये | दें पालने वा । दाम रज्जुर्माता च ।। डुधांग्क् धारणे च । धाम स्थानं तेजश्च ।। ष्ठां गतिनिवृत्तौ । स्थाम बलम् ।। धुंग्ट् अभिषवे । सोम यज्ञ: फ्योरसश्चन्द्रश्च ।। अगौटि व्याप्तौ । अश्मा पाषाणः ।। लक्षीण दर्शनाङ्कनयोः । लक्ष्म चिह्नम् ।। अयि गतौ । अयम संग्रामः || तक हसने | तक्मा रतिरातपो दीपश्च ।। हुंक् दानादनयोः । होम यमनिहोत्रशाला च ।। धंग धारणे । धर्म पुण्यम् । विपूर्वात् । विधर्मा अहितो वायुय॑भिवारश्च ।। ध्ये चिन्तायाम् । ध्याम ध्यानम् ।।९११|| कुष्युषिसृपिभ्यः कित् ॥ ९१२ ।।। एभ्यः किन्मन्प्रत्ययो भवति ॥ कुषश् निष्कर्षे । कुष्म शल्यम् ॥ उषू दाहे । उष्मा दाहः ॥ सूपं गतौ । सृप्मा सर्पः शिशुर्यतिथ ।। ९१२ ।। वृहे!च्च ।। ९१३ ॥ वहु शब्दे च । इत्यस्मान्मन्प्रत्ययो भवति नकारस्य च अकारो भवति || ब्रह्म परं तेजोध्ययनं मोक्षो बृहत्त्वादात्मा । ब्रह्मा भगवान् ।।९१३॥ Aho ! Shrutagyanam Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ $& हेमचन्द्रव्याकरणे व्येग एदोतौ च वा ॥ ९९४ ॥ ठर्येग् संवरणे | इत्यस्मान्मन्प्रत्ययो [ भव ] त्येदोतौ चान्तादेशौ वा भवतः || व्येम वस्त्रम् | व्येमा संसारः कुविन्दभाण्डं च || व्योम नभः | पक्षे | व्याम न्यग्रोधाख्यं प्रमाणम् ॥ ९९४ ॥ [ ९१४-९१९ स्यतेरी च वा ॥ ९९५ ॥ षच् अन्तकर्मणि | इत्यस्मान्मन्प्रत्ययो [भवति ] ईकारश्चान्तादेशो वा भवति || सीमा आघाटः । पक्षे । साम प्रियवचनं वामदेव्यादि च ।। ९९५ ।। सात्मन्नात्मन्वे मन्रोम क्लोमंल्ललामनामन्पाप्मन्पक्ष्मन्यक्ष्मन्निति ॥ ९९६ ॥ एते मन्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || स्यतेस्तोन्तश्च | सात्म अत्यन्ताभ्यस्तं प्रकृतिभूतमन्तकर्म च || अतेर्दीर्घश्व | आत्मा जीवः || वेग आत्वाभावञ्च | वेम तन्तुवा योपकरणम् || रुहेर्लुक् च | रोम तनूरुहम् | लत्वे | लोम तदेव || क्लमेरोच्च | क्लोम शरीरान्तरवयवः || लातेर्द्वित्वं च । ललाम भूषणादि || नमेरा च । नाम संज्ञा कीर्तिश्व || पातयतेः प् च । पाप्मा पापं रक्षश्च ॥ पञ्चेः कः षोन्तो नलोपश्च । पक्ष्म अक्ष्यादिलोम || यस्यतेर्यक्षिगो वा । यक्ष्मा रोगः || इतिकरणात् तोक्मशुष्मा - दयो भवन्ति ।। ९९६ ॥ जनियामिमन् || ९१७ ॥ आभ्यामिमन्प्रत्ययो भवति || हंग् हरणे | हरिमा पापविशेषो मृत्युर्वायुश्च || जनैचि प्रादुर्भावे | जनिमा धर्मविशेषः संसारश्च ।। ९१७ ।। सृहभृधृस्तृसूभ्य ईमन् ॥ ९१८ || एभ्य ईमन्प्रत्ययो भवति ॥ सृ गतौ | सरीमा कालः || हंग् हरणे | हरीमा मातरिश्वा || डुडुभृंगक् पोषणे च । भरीमा क्षमी राजा कुटुम्बं च || धृग् धारणे | धरीमा धर्मः || स्तृग्श् आच्छादने | स्तरीमा प्राचारः || षूत् प्रेरणे | सवीमा गर्भः प्रसूति ।। ९९८ ॥ गमेरिन् || ९१९ ॥ गनुं गतौ । इत्यस्मादिन्प्रत्ययो भवति || गमिष्यतीति गमी जिगमिषुः ॥ ९९९ ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२०-९२] उणादिगणविवृतिः । आडश्च णित् || ९२० ॥ . आपूर्वात्केवलाच्च गमेर्णिदिन्प्रत्ययो भवति || आगमिष्यतीत्यागामी प्रोषि - तादिः || गमिष्यतीति गामी प्रस्थितादिः || ९२० ।। १४९ सुवः ॥ ९२९ ॥ षडौच् प्राणिप्रसवे | इत्यास्माणिदिन्प्रत्ययो भवति || आसाव्या सविष्यमाणो जनिष्यमाण इत्यर्थः ॥ ९२९ ॥ भुवो वा ।। ९२२ ।। भू सत्तायाम् | इत्यस्मादिन्प्रत्ययो [भवति ] स च णिवा भवति || भवि - ष्यतीति भावी कर्मविपाकादिः || भवी भविष्यन् ।। ९२२ ।। प्रप्रतेर्याबुधिभ्याम् || ९२३ || पूर्वात्प्रतिपूर्वाच्च यांक प्रापगे | बुधिं मनिच् ज्ञाने | इत्यस्माच्च गिदिन्मत्ययो भवति || प्रयास्यतीति प्रयायी । प्रतियास्यतीति प्रतियायी || प्रभोत्स्यत इति प्रबोधी || प्रतिबोध बालादिः || ९२३ ॥ प्रात्स्थः || ९२४ ॥ पूर्वात् ठां गतिनिवृत्तौ । इत्यस्माण्णिदिन्प्रत्ययो भवति || प्रस्थास्यत इति प्रस्थायी गन्तुमनाः ।। ९२४ ।। परमात्कित् || ९२५ ॥ परमपूर्वात्तिष्ठतेः किदिन्प्रत्ययो भवति || परमे पदे तिष्ठतीति परमेष्ठ्य - दादिः || भीरुष्ठानादित्वात् षत्वं सप्तम्या अलुप् च ।। ९२५ ।। पथिमन्थिभ्याम् || ९२६ || आभ्यां दिन्प्रत्ययो भवति ॥ पये गतौ । पन्था मार्गः | पन्थानौ । पन्थानः | पथिप्रियः || मन्थश् विलोडने । मन्थाः क्षुब्धो वायुर्वज्रश्च । मन्थानौ | मन्थानः । मथिप्रियः ।। ९२६ ।। होर्भिन् ॥ ९२७ ॥ हुंक् दानादनयोः । इत्यस्मान्मिन्प्रत्ययो भवति || होम्यृत्विग्वृतं च ॥ ९२७ ॥ अर्तेर्भुक्षिनक् || ९२८ ॥ I कंक् गतौ । इत्यस्माद्भुक्षिनक् प्रत्ययो भवति ॥ ऋभुक्षा इन्द्रः । ऋभुक्षाणौ । ऋभुक्षाणः ॥ ९२८ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० हेमचन्द्रव्याकरणे [९२९-९३७ अदोस्त्रन् ।। ९२९ ॥ . अदक् भक्षणे । इत्यस्मात्रिन्प्रत्ययो भवति || अच्यषिः ॥ ९२९ ।। पतेरत्रिन् ।। ९३०॥ पत गतौ । इत्यस्मादत्रिन्प्रत्ययो भवति ॥ पतत्री पक्षी ॥ ९३० ॥ आपः क्विप् हूस्वश्च ।। ९३१ ॥ आफूट व्याप्ती । इत्यस्मारिकप्प्रत्ययो भवति हस्वश्चास्य भवति || आपोम्भः || स्वभावाद्बहुत्वम् ।। ९३१ ॥ ककुत्रिष्टुबनुष्टुभः ॥ ९३२ ॥ एते क्विप्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।। कपूर्वात्स्कुनातेः सलोपश्च | ककुप् कं वायुर्ब्रह्म च । स्कुभ्नन्तीति ककुभो दिशः। ककुबुष्णिक्छन्दः ।। व्यनुपूर्वात्स्तुभ्नाते: सः षश्च | त्रिष्टुबनुष्टुप् च छन्दः ॥ बहुवचनानिजिविजिविषां किम् शित् । नेनिक प्रजापतिः ॥ वेविक् शुचिः ।। वेविट चन्द्रमाः ॥ ९३२॥ अवेर्मः ॥ ९३३ ।। अव रक्षणादौ । इत्यस्मान्मः प्रत्ययो भवति || अवतीति | ओं ब्रह्म प्रणवश्च ।। ९३३ ॥ सोरेतेरम् ॥ ९३४ ॥ सुपूर्वात् इणक् गतौ | इत्यस्मादम् पत्ययो भवति || स्वयमात्मना ||९३४॥ नशिनूभ्यां नक्त नूनौ च ।। ९३५ ॥ नशौच अदर्शने । णूत् स्तवने | आभ्यामम् प्रत्ययो भवति नक्त नून इत्यादेशौ चानयोर्भवतः ॥ नक्तं रात्रौ ।। नूनं वितर्के ॥ ९३५ ।। स्यतेर्णित् ॥ ९३६ ।। षोंच अन्तकर्मणि । इत्यस्माण्णिदम् प्रत्ययो भवति || सायं दिवसावसानम् ॥ ९३६ ।। गभिजमिक्षमिकमिशमिसमिभ्यो डित् ।। ९३७ ॥ एभ्यो डिदम् प्रत्ययो भवति || गमं गतौ | गम् ।। जमू अदने । जम् ।। क्षमौषि सहने । क्षम् ।। एतानि भार्यानामानि || कमूड् कान्तौ । के पानीयम् ।। शमूच उपशमे । शं सुखम् ॥ षम वैक्लव्ये । स संभवति ।। ९३७ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३८-९४५] उणादिगणविवृतिः। इणो दमक् ॥ ९३८ ।। इण्क् गतौ । इत्यस्मात्किहम् प्रत्ययो भवति ।। इदं प्रत्यक्षनिर्देशे ॥९३८|| कोडिम् || ९३९ ॥ कुंक् शब्दे । इत्यम्माडिदिम् प्रत्ययो भवति || किम् | अनेनाविज्ञातं वस्तु पर्यनुयुज्यते ॥ ९३९ ॥ तूषेरीम् णोन्तश्च ॥ ९४०॥ तूष तुष्टौ । इत्यस्मादीम् प्रत्ययो [भवति ] णकारवास्यान्तो भवति ।। तूष्णीं वामियमे ॥ ९४० ॥ ईड्कमिशमिसमिभ्यो डित् ॥ ९४१॥ एभ्यो डिदीम् प्रत्ययो भवति ।। ईडिक् स्तुतौ । ईम् ॥ कगूड् कान्नौ । कीम् ॥ शमूच् उपशमे | शीम् ॥ षम वैक्लव्ये । सीम् । अभिनयव्याहरणान्येतानि ।। ईम् । सीम् । अव्यक्त ।। की संशयप्रभादिषु ।। शीममर्षपादपूरगयोः ॥ ९४१॥ क्रमिगमिक्षमेस्तुमाश्चातः ॥ ९४२ ।। एभ्यस्तुम् प्रत्ययो भवत्यकारस्य च आकारो भवति ॥ क्रमू पादविक्षेपे । क्रान्तुं गमनम् ॥ गएं गतौ । गान्तुं पान्थः ।। क्षमौषि सहने | क्षान्तुं भूमिः ।। तुमर्थश्व सर्वत्र ॥ ९४२ ।। - गृपदुर्विधुर्विभ्यः क्विप् ॥ ९४३॥ एभ्यः क्विप्प्रत्ययो भवति ।। गृश् शब्दे । गीर्वाक् ।। पृश् पालनपुरणयोः । पूनगरी ॥ दुर्वै धुर्वे हिंसायाम् । दूर्देहान्तरवयवः ॥ धूः शकटाङ्गमादिध ॥ ९४३ ॥ वाारौ ।। ९४४ ॥ एतौ किप्प्रत्ययान्तौ निपात्येते ॥ वृणोतेर्वृद्धिश्च | वाः पानीयम् ।। कर्मणि दश्च धात्वादिः । वृण्वन्ति तामिति द्वारम् | दूं वरणे | इत्यस्य च णिगन्तस्य रूपम् ॥ ९४४ ॥ प्रादतेरर || ९४५ ॥ प्रपूर्वात् अत सातत्यगमने | इत्यस्मादर् प्रत्ययो भवति ॥ प्रातः प्रभातम् Aho ! Shrutagyanam Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ हेमचन्द्रव्याकरणे सोरर्तेर्लुक् च ॥ ९४६ ॥ सुपूर्वात् ऋक् गतौ । इत्यस्मादर् प्रत्ययो [ भवति ] धातोश्च लुग्भवति ॥ स्वः स्वर्गः || ९४६ ।। [९४६-९५२ पूसन्यामिभ्यः पुनसनुतान्ताश्च ||९४७ || पूग्य् पवने | बन भक्तौ | अम गतौ । इत्येतेभ्योर् प्रत्ययो भवति यथासंख्यं च पुन सनुत भन्त इत्यादेशा एषां भवन्ति || पुनर्भूयः || सनुतः कालवाची || अन्तर्मध्ये ॥ ९४७ ॥ चतेरुर् || ९४८ ।। चतेग् याचने | इत्यस्मादुर् प्रत्ययो भवति || चत्वारः संख्या | चत्वारि | चतस्रः ॥ ९४८ ॥ दिवेडिव् || ९४९ ॥ दिवूच् क्रीडादौ । इत्यंस्माडिदिव् प्रत्ययो भवति || द्यौः स्वगेन्तिरिक्षं च | दिवौ । दिवः ॥ ९४९ ॥ विशिविपाशिभ्यां किप् ।। ९५० ।। आभ्यां क्विष्प्रत्ययो भवति ॥ विशंत् प्रवेशने । विशः प्रजाः । विद्वैश्यः पुरीषमपत्यं च || पशण बन्धने । विपूर्वः । विपाशयति स्म विशिष्टमिति विपाड् नदी || ९५० ॥ सहेः षष् च ॥ ९५१ ॥ हि मर्षणे | इत्यस्मात्किप्पत्ययो [ भवति ] षष् चास्यादेशो भवति ॥ षट् संख्या || ९५१ ।। अस् ॥ ९५२ ॥ सर्वधातुभ्यो बहुलमस् प्रत्ययो भवति ॥ तर्प संतापे । तपः संतापो माघमासो निर्जराफलं च || अनशनादि सष्ठु तपतीति सुतपाः || एवं महातपाः || णमं प्रहृत्वे | नमः पूजावाची || तमूच् काङ्क्षायाम् । तमोन्धकारस्तृतीयगुणोज्ञानं च ॥ इण्क् गतौ | अयः काललोहम् ॥ वीं प्रजननादौ । वयः पक्षी प्राणिनां कालकृता शरीरावस्था च यौवनादिः || वर्षि दीप्तौ । वर्चो लावण्यमन्नमलं तेजश्च । सुष्ठु वर्चते इति सुवर्चाः || रक्ष पालने | रक्षो निशाचरः ॥ ञिमिदाच् स्नेहने | मेदचतुर्थो धातुः । रह त्यागे | रहः प्रच्छन्नम् || पहि मर्षणे | सहा मार्गशीर्षमासः ॥ Aho! Shrutagyanam Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५३-९५८] उणादिगणविवृतिः। णभच् हिंसायाम् | नभ आकाशं श्रावणमासश्च ॥ चितै संज्ञाने । चेतचित्तम् । प्रचेता वरुणः ।। मनिंच ज्ञाने । मन नो [?] इन्द्रियम् || ब्रूगक् व्यक्तायां वाचि । वचो वचनम् ।। रुदृक् अश्रुविमोचने । रोदो नभः । रोदसी द्यावापृथिव्यौ || रुळूपी आवरणे । रोधस्तीरम् ।। अनक् प्राणने । अनः शकटं भोजनमन्नं च ।। सं गतौ । सरो जलाशयविशेषः ।। तृप्लवनतरणयोः । तरो वेगो बलं च ।। रहु गतौ । रंहो जवः ।। तिजि क्षमानिशानयोः । तेजो दीप्तिः ।। मयि गतौ । मयः सुखम् ।। मह पूजायाम् | महस्तेजः ।। अणि पूजायाम् । अर्चः पूजा ॥ षद विशरणगत्यवसादनेषु । सदः सभा भवनं च ।। अनौप व्यक्त्यादौ । अञ्जः स्नेहः ।। ९५२ ॥ पाहाभ्यां पयद्यौ च ॥९५३ ।। पा पाने । ओहांक त्यागे । इत्येताभ्यामस् प्रत्ययो भवति यथासंख्यं घ पय ह्य इस्यादेशावनयोर्भवतः || पयः क्षीरं जलं च ।। ह्योनन्तरातीते दिने ।। ९५३ ।। छदिवहिभ्यां छन्दोधौ च ॥९५४|| ___ छदण संवरणे | वहीं प्रापणे । इत्याभ्यामम् प्रत्ययो भवति यथासंख्यं चानयोश्छन्द ऊध इत्यादेशौ भवतः ।। छन्दो वेद इच्छा वाग्बन्धविशेषश्च ॥ ऊधो धेनोः क्षीराधारः ॥ ९५४ ॥ श्वेः शव च वा ।। ९५५ ।। ट्वोश्वि गतिवृद्धयोः। इन्यस्मादस् प्रत्ययो भव] त्यस्य च शव इत्यादेशो वा भवति ।। शवो रोगाभिधानं मृतदेहश्च । शवसी। शवांसि ॥ श्वयः शोफो बलं च । श्वयसी । श्वयांसि ।। ९५५ ।। विश्वाद्विदिभुजिभ्याम् || ९५६ ॥ विश्वपूर्वाभ्यामाभ्यामस् प्रत्ययो भवति || विदक् ज्ञाने | विश्ववेदा अग्निः ।। भुजंप पालनाभ्यवहारयोः । विश्वभोजा अग्निर्लोकपालथ ॥९५६ ।। चायेनों हस्वश्च वा ।। ९५७ ।। चायग् पूजानिशामनयोः । इत्यस्मादस् प्रत्ययो भवति नकारोन्तादेशो हस्य. वास्य वा भवति || वणवाणश्चान्नम् | बाहुलकाण्णत्वम् । णत्वं नेच्छन्त्येके ||९५७|| अशेर्यश्चादिः ।। ९५८ ।। अशश् भोजने । अशौटि व्याप्तौ । इत्यस्मावास् प्रत्ययो भवति यकार 20 Aho ! Shrutagyanam Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ हेमचन्द्रव्याकरणे [९५९-९६५ व धात्वादिर्भवति || यशो माहात्म्यं सत्त्वं श्री ज्ञानं प्रतापः कीर्तिश्व || एवं शोभनमश्नात्यश्रुते वा । सुयशाः || नागमेवाश्नाति | नागयशाः || बृहदेनोश्नाति | बृहद्यशः || श्रुत एनोति । श्रुतयशाः । एवमन्येपि द्रष्टव्याः || ९५८ ॥ उषेर्ज्ं च || ९५९ ॥ उषु दाहे | इत्यस्मादस् प्रत्ययो [ भवति ] जकारश्चान्तादेशो भवति || ओजो बलं प्रभावो दीप्तिः शुक्रं च ।। ९५९ ॥ स्कन्देर्भ च || ९६० ॥ स्कन्दुं गतिशोषणयोः । इत्यस्मादस् प्रत्ययो [भवति] धकारश्वान्तादेशो अवति || स्कन्धः स्वाङ्गम् ।। ९६० ।। अवेर्वा || ९६१ । अत्र रक्षणादौ । इत्यस्मादस् प्रत्ययो [भवति ] धकारश्चान्तादेशो वा भवति || अधोवरम् || अवो रक्षा ।। ९६१ । अमेह चान्तौ || ९६२ ॥ अम गतौ । इत्यस्मादस् प्रत्ययो [ भवति ] भकारहकारौ चान्तौ भवतः || अम्भः पानीयम् || अंहः पापमपराधो दिनश्च ।। ५६२ ।। अदेरन्ध् च वा ९६३ ॥ भर्दक् भक्षणे | इत्यस्मादस् प्रत्ययो [भव ] त्यन्धादेशश्वास्य वा भवति || अद्यते तदिति । अन्धोन्नम् || अद्यते दृशा मनसा च तदिति । अदः । अनेन प्रत्यक्षं विषमपदिश्यते ।। १३३ ।। आपोपाप्राप्राब्जाश्च ।। ९६४ || आ‡द् व्याप्तौ । इत्यस्मादस् प्रत्ययो [भव ] त्य [प] अन्न अप्सर अब्ज इत्यादेशाश्वास्य भवन्ति || अपः सत्कर्म || अप्नस्तदेव || अप्सरसो देवगणकाः || अब्जो जलजमजयै च रूपम् ॥ ९६४ ॥ उच्यञ्चः क च ॥ ९६५ ॥ उचच् समवाये | भन्नू गतौ च । इत्याभ्यामस् प्रत्ययो [भव ]त्यनयो-. श्व कोन्तादेशो भवति || ओक आलयो जलौकसश्च ॥ भङ्गः स्वाङ्गं रणश्च ।। ९६५ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६६-९७२ . उणादिगणविवृतिः । . अज्यजियुजिभृजेर्ग च ॥ ९६६ ॥ एभ्योस् प्रत्ययो भवति] गकारश्चान्तादेशो भवति।। अनौप व्यक्त्यादिषु । अङ्गः क्षत्रियनाम गिरिपक्षी व्यक्तिश्च ॥ अज क्षेपणे च । अगः क्षेमम् ॥ युजंपी योगे । योगी मनो युगं च ।। भृजेड भर्जने | भो रुद्रो हविस्तेजश्च ॥ ९६६।। अर्तेरुरासे च ।। ९६७ ॥ ऋक् गतौ । इत्यस्मादस् प्रत्ययो भव त्यस्य च उर इति अर्श इति च। तालव्यशकारान्त आदेशो भवति ।। उरो वक्षः ।। अशासि गुहादिकीलाः ।।९६७। येन्धिभ्यां यादेधौ च ।। ९६८ ।। ___ यांक प्रापणे । अिइन्धपि दीप्तौ । इत्याभ्यामस् प्रत्ययो भवति यथासंख्यं च याद् एध इत्यादे शौ भवतः ।। यादो जलदुष्टसत्त्वम् ।। एध इन्धनम् ।।९६८।। चक्षः शिवा ॥ ९६९।। . चक्षिक् व्यक्तायां वाचि | इत्यस्मादस प्रत्ययो भवति स च शिवा [भवति ||] चक्षः । ख्याः । उभे अपि रक्षोनामनी ।। आचक्षा वाग्मी ।। आख्याः प्ररूपाश्च बृहस्पतिः ॥ संचक्षा ऋत्विक् ।। नृचक्षा राक्षसः ।। ९६९ ।। वस्त्यनिभ्यां णित् ।। ९७० ।। आभ्यां णिदस् प्रत्ययो भवति ।। वसिक् आच्छादने | वासो वस्त्रम् ।। अग कुटिलायां गतौ । आगोपराधः ।। ९७०।। मिथिरज्युषितपृशभूवष्टिभ्यः कित् ।। ०७१ ।। 'एभ्यः किदस प्रत्ययो भवति ।। मिथग् मेधाहिंसयोः । मिथः परस्परं रहसि चेत्यर्थः ॥ रजी रागे । रजो गुणोशुभं पांशुश्च ॥ उषू दाहे । उषाः संध्यारुणो रात्रिश्च ।। तृ प्लवनतरणयोः । तिरस्करोति | तिरः कृत्वा काण्डं गतः । तिर इत्यन्तर्धावनृजुल्वे च ।। पृश् पालनपूरणयोः । पुरः पूजायाम् । तथा च पठन्ति नमः पूनायाम् । पुरश्चेति ।। शृश् हिंसायाम् । शृणाति तद्वियुक्तमिति शिर उत्तमाङ्गम् ।। भू सत्तायाम् । भुवो लोकोन्तरिक्षं सूर्यश्च ।। वशक् कान्ती । उशा रात्रिः ।। ९७१ ॥ विधेर्वा ।। ९७२ ॥ विधत् विधाने । इत्यास्मादस् प्रत्ययो भवति स च किडा [ भवति ॥] वेधा विद्वान्सवित्प्रजापतिश्च ॥ विधाः स एव ।। ९७२ ॥ Aho! Shrutagyanam Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ हेमचन्द्रव्याकरणे नुवो धयादिः || ९७३ ॥ णूत् स्तवने इत्यस्माद्धकारादिस्थकारादिव किदस् प्रत्ययो भवति || नूधा नूथाश्व सूतमागधी || धादौ गुणमिच्छन्त्येके । नोधा ऋषिऋत्विक् ॥ ९७३ ॥ वयःपयःपुरोरेतोभ्यो धागः || ९९४ || एभ्यः परात् डुधांग्क् धारणे च । इत्यस्मात्किदस् प्रत्ययो भवति ॥ त्रयोधा युवा चन्द्रः प्राणी च ॥ पयोधाः पर्जन्यः || पुरोधाः पुरोहित उपाध्यायश्व || रेतोधा जनकः || ९७४ ॥ नत्र ईहेरे धौ च ॥ ९७५ ॥ पूर्वात् हि चेष्टायाम् । इत्यस्मादस् प्रत्ययों [ भव ] त्यस्य च एह एध इत्यादेशौ भवतः || अनेहा: काल इन्द्रश्वन्द्रश्च || अनेधा अनिर्वायुश्व || ९७५ ॥ विहायस् सुमनस्पुरुदंशस्पुरूरवोङ्गिरसः || ९७६ ॥ एतेस्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते || विपूर्वाज्जहातेर्जिहीतेर्वा योन्तश्च । विजहातीति विहाय भाकाशम् । विजिहीत इति विहायाः पक्षी || सुपूर्वान्माने स्वश्च मुटु मानयन्ति मन्यन्ते वा । मुमनसः पुष्पाणि ॥ पुरुं दशतीति पुरुदंशा इन्द्रः || पुरुपूर्वाद्रीतेर्दीर्घश्व पुरु रौति । पुरूरवा राजा यमुर्वशी चकमे || भङ्गेरिरोन्तश्र । अङ्गतीति । अङ्गिरा ऋषिः || ९७६ || [९७३-९८० पातेर्जस्थसौ ॥ ९७७ ॥ यांक् रक्षणे । इत्यस्माज्जस् थस् इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः || पाजो बलम् || पाथ उदकमन्त्रं च ॥ ९७७ ॥ सुरीभ्यां तम् ॥ ९७८ ॥ आभ्यां तस् प्रत्ययो भवति || खुं गतौ । स्रोतो निर्झरणम् | सुष्ठु स्रवतीति सुस्रोनाः || रींश् गतिरेषणयोः | रेतः शुक्रम् ॥ ९७८ ॥ अतणिभ्यां नस् ॥ ९७९ ॥ आभ्यां नस् प्रत्ययो भवति || ऋक् गतौ । अर्णो जलम् ॥ इण्क् गतौ । ९७९ ।। एन: पापमपराधश्व रिवेः क् च ॥ ९८० ॥ रिपी विरेचने | इत्यस्मान्नस् प्रत्ययो [भव त्यस्य च मकारान्नादेशों मवति || रेक्णो धनं पापं च ॥ ९८० ॥ Aho ! Shrutagyanam Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८१-९८९] उणादिगणविवृति: । वृभ्यां पस् || ९८१ ॥ आभ्यां पस् प्रत्ययो भवति || रींश् गतिरेषणयोः | रेषः पापम् || वृगूद्दू वरणे | वर्षो रूपम् || ९८१ ॥ - १५७ शीडः फश्च ।। ९८२ ॥ शीक् स्त्रमे । इत्यस्मात्कस् चकारात्पस् च प्रत्ययो भवति शेफः शेपश्च मेण्द्रम् || ९८२ ॥ पचिवचिभ्यां सस् ॥ ९८३ ॥ डुपचष् पाके | पक्षश्वक्रमिन्धनं च ॥ आभ्यां सस् प्रत्ययो भवति ॥ वक् भाषणे | वक्ष उरः शरीरं च ॥ ९८३ ॥ इणस्तशस् || ९८४ ॥ इण्क् गतौ । इत्यस्मात्तशस् प्रत्ययो भवति || एतशः सोमो ध्वर्युर्वी युरमिरर्क इन्द्रश्च || ९८४ ।। वष्टेः कनस् || ९८५ ॥ वशक् कान्तौ | इत्यस्मात्किदनस् प्रत्ययो भवति || उशनाः शुक्रः । । ९८५ ।। चन्दो रमस् || ९८६ ॥ चदुदयादयोः । इत्यस्माद्रमस् प्रत्ययो भवति || चन्द्रमाः शशी ।। ९८६ ।। दमेरुनसूनसौ || ९८७ ॥ दमूच् उपशमे | इत्यस्मादुनस् ऊनस् इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः ॥ दमुना अभिः || दमूनाः सूर्यो देव उपशान्तश्च ।। ९८७ ॥ इण आस् ॥ ९८८ ॥ इण्क् गत । इत्यस्मादास् प्रत्ययो भवति ॥ अया: काल आदित्यच ।। ९८८ ।। रुच्यचिशुचिहुसृषिछादिऴुदिभ्य इस् ||९८९|| एभ्य इस् प्रत्ययो भवति || रुचि अभिप्रीत्यां च । रोचिः किरणः | वनुपूर्वात् | वसुरोचेर्वासवः किरण ऋतुच || अर्च पूजायाम् । अर्चिला || शुत्र शोके । शोची रश्मिः शोकः पिङ्गलभावो विविक्तं च || हुंक् दानादनयोः || हविः पुरोडाशादिः ॥ सृ गतौ । सर्पिघृतम् ॥ छदण् संवरणे । छादयतीति Aho! Shrutagyanam Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ हेमचन्द्रव्याकरणे [९९०.९९७ च्छदिः । छदेरिस् मन् बट् काविति इस्त्रः । बाहुलकाहीर्घत्वे | छादिः । उभयं गृहाच्छादनम् ।। ऊदृपी दीप्तिदेवनयोः । छर्दिर्वमनम् || ९८९ ॥ - बंहिहेर्नलुक् च ।। ९९० ।। आभ्यामिस् प्रत्ययो भवति नकारस्य व लुग्भवति ।। बहुड् वृद्धौ । बहिरनभ्यन्तरे || वुहु शब्दे च | बर्हिः शिखी दर्भश्च ॥ ९९० ॥ [तेरादेश्च जः ।। ९९१॥ द्युति दीप्तौ । इत्यस्मादिस् प्रत्ययो [ भवात ] धात्वादेश्च वर्णस्य जकारो भवति । ज्योतिस्तेजः सूर्योग्निस्तारका च ॥ ९९१॥ . सहेर्ध च ॥ ९९२ ।। षहि मर्षणे । इत्यस्मादिस् प्रत्ययो भवति धकारवान्तादेशो भवति ।। सधिः सत्त्वं भूमिः संयोगः सहिष्णुरनिरनडोश्र ।। ९९२ ।। पस्योन्तश्च ।। ९९३ ॥ पां पाने । इत्यस्मादिस् प्रत्ययो भवति थकारश्चान्तो भवति || पाथिः पार्न नद्यादित्यो ज्योतिः स्वर्गलोकश्च ।। ९९३ ।। नियो डित् ।। ९९४ ॥ णींग् पापणे | इत्यस्माडिदिस् प्रत्ययो भवति ॥ निश्चिनोति । निरुपसायं पृथग्भावे ॥ ९९४ ॥ ___ अवर्णित् ॥ ९९५ ॥ अव रक्षणादौ । इत्यस्माणिदिस् प्रत्ययो भवति ।। आविः प्राकाश्ये । आविरभूत् । आविष्करोति ॥ ९९५ ॥ तुभूस्तुभ्यः कित् ।। ९९६ ।। . एभ्यः किदिस् प्रत्ययो भवति || तुंक् वृत्त्यादौ | तुविः समुद्रः सरिद्विवस्वान्प्रभुसंयोगश्च ॥ भू सत्तायाम् । भुविः क्रतुः समुद्रः सरिद्विवस्वांश्च ॥ टुंग्क स्तुती । स्तुविः स्तोता यज्ञथ ॥ ९९६ ॥ रुर्तिजनितनिधनिमनिग्रन्थिपृतपित्रपिवपियजिप्रादिवेपिभ्य उस् || ९९७ ॥ एभ्य उस् प्रत्ययो भवति ।। रुदृक् अश्रुविमोचने । रोदुरश्रुनिपातः ।। अंक गतौ । अरुण आदित्यः पाणः समुद्रश्च ।। जनैचि प्रादुर्भावे । जनुरपत्यं Aho I Shrutagyanam Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९८-१००३] . उणादिगणविवृतिः । . पिता माता जन्म प्राणी च || तनूयी विस्तारे | तनुः शरीरम् ।। धन धान्ये सौत्रः। धनुश्चापम् || मनिंच ज्ञाने | मनुः प्रजापतिः || ग्रन्थश् संदर्भे । ग्रन्थुप्रैन्थः ।। पृश् पालनपूरणयोः । परुः पर्व समुद्रो धर्मश्च ॥ तपं संतापे । तपुस्त्रपुः शत्रुर्भास्करोग्निः कृच्छ्रादि च ।। त्रपौषि लज्जायाम् । त्रपुस्त्रपु ॥ डुवपी बीजसंताने । वपुः शरीरं लावण्यं तेजश्च ।। यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु । यजुरच्छन्दः श्रु. तिर्यज्ञोत्सवश्व ।। अदक् भक्षणे । प्रपूर्वः । प्रादुः प्राकाश्य उत्पत्तौ च । प्रादुर्बभूव | प्रादुरासीत् ।। टुवेपृड् चलने । वेपुर्वेपथुः ।। ९९७ ॥ इणो णित् ॥ ९९८ ॥ इण्क् गतौ । इत्यस्माणिदुस् प्रत्ययो भवति ।आयुर्जीवितम् | जटापूर्वादपि । जटायुररुणात्मजः ।। तं नीलजीमूतनिकाशवर्णम्, स पाण्डुरोरस्कमुदारधैर्यम् । ददर्श लङ्काधिपतिः पृथिव्याम्, जटायुषं शान्तमिवाग्निदाहम् ॥१।। ९९८ ॥ दुषेर्डित् ॥ ९९९ ॥ दुषंच वैकृत्ये । इत्यस्माडिदुस् प्रत्ययो भवति ।। दुनिन्दायाम् । दुष्पुरुषः मुहिमिथ्यादेः कित् ॥ १००० ॥ आभ्यां किदुस् प्रत्ययो भवति ॥ मुहौच् वैचित्त्ये । मुहुः कालावृत्तिः ॥ मिथग् मेधाहिंसयोः ॥ मिथुः संगमः ॥ आदिग्रहणादन्येभ्योपि भवति ।।१०००। __ चक्षेः शिदा ॥ १००१॥ चक्षिक व्यक्तायां वाचि । इत्यस्मात्किदुस् प्रत्ययो भवति स च शिवा भवति || चक्षुः । परिचक्षुः । अवचक्षुः । अवसंचक्षुः । अवख्युः ।। बाहुलकाद्विर्वचने । संचचक्षुः । विचख्युः ।। १००१ ॥ __ पातेथुम्सुः ॥ १००२ ॥ पांक रक्षणे । इत्यस्माड्दुिम्नुः प्रत्ययो भवति ।। पुमान्पुरुषः । पुमांसौ । पुमांसः ॥ उकार उदित्कार्यार्थः ॥१००२॥ न्युट्यामञ्चेः ककाकैसष्टावच्च ॥ १००३ ।। ___ न्युद्यां परात् अन्जू गतौ च । इत्यस्मात्किद आ ऐस् इत्येते प्रत्यया भवन्ति ते च टावत् । टायामिव तेषु कार्य भवतीत्यर्थः । तेन अच्च प्राग्दीर्घश्चेति Aho ! Shrutagyanam Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्रव्याकरणे [१००४-१००७] भवति ॥ नीचम् । उच्चम् । नीचा | उच्चा । नीवैः । उच्चैः । प्रसिद्धार्था एते । लाघवार्य सन्ताधिकारेप्यकार-आकारप्रत्ययविधानम् ॥ १००३ ॥ शमो नियो डैस् मलुक् च ।। २००४ ।। शम्पूर्वात् णींग् प्रापणे । इत्यस्माडिदैस् प्रत्ययो भवति शमो मकारस्य च लुग्भवति ॥ शनैर्मन्दम् ।। १००४ ।। यमिदमिभ्यां डोस् ॥१००५॥ आभ्यां डिदोस् प्रत्ययो भवति ।। यमूं उपरमे | योविषयसुखम् ॥ दमून् उपशमे | दोर्बाहुः ।। १००५ ।। अनसो वहेः क्विप् सश्च डः ।। १००६ ।। अनस्शब्दपूर्वात् वहीं प्रापणे । इत्यस्मारिकप्प्रत्ययो भवति] सकारस्य च डो भवति ॥ अनो वहति । अनड्वान्वृषभः ॥ १००६ ॥ Aho I Shrutagyanam Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOTES. 1. Verse om. v | -निवेशिता- BI 16. हस- V पूर्वस्य चाकारो अंतो भ- TI संज्ञायां विषये BV । अगनं भगश्च V । सा- सरासरः मृगः B सारङ्गः om. TI नोति साधु: TI-लोकपदं T -फलं सधयतीति 17. सरूपे- -भवतः and यथा om. TI वा B -फलं वा साधयति । । श्राद्धः धर्मशील: -कारौ चांते BT I हिलत् हावकरणे om. T| VIदीयते वा तदिति B अस्थिसंनहनं T | शिलत् ० शिलिशिल: Vवेष्टने B ऐश्वर्ये BI जानातीत्या- T | न जन-=S. IV, 3. P.VI, -संवरणयोः B1-शब्दा एव VI 4,92. । जलमलं च TIसंपदा-%DS.V, 1. 18. पूर्वस्य जभावः TI पूर्वस्य तिभावे Ti P. III, 4, 73-75.1 19. The ront before केलिकिल: is 2. यथायोग Vवर: om. B | शरः शयः missing in my MSS.I हिलत् हाव करणे om. TI BI हैलिहिल: BVI शैलिशिल: TI शौभशुभः om. 3. म्लेछाडेहु- TV म्ले छीडोई- B I मिलच्छः T| अनुनादवि शेषा T VI म्लः TV| कुन जातिः ।। - शेषौ भूर्वा VI 20. विद्यौः । व्योम स्वर्गश्च T | वान्तीत्यादि 4. नक्रमि- TI-शमि- om. B | नमः from Ujjvaladatta, Unidis. II, 22. । परेभ्य B| क्षयः for यक्षः VI खमस्तीति नख प्राले--क्रन्दानिति om. BI-जंदानित्यों भवति T! इत्यपि om. B I V adds न आकाम्यते V। महीपाल इत्यादि from Mahābhāshyar मुक्तिसौख्याधिाभः before कमड । नाकमस्तीति Vol. III. p. 288 (Kielhorn)। V1 नखादि-=S, III, 2. P. VI, 3,75 । 21. -मृजि- om. B| -धारास्ना-C1 -हा 5. Badds सरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः । तुदादिर्न नशुभ्य: V | -द्वितीय एक: BV । प्रधानं सधातुगु [ग] णः। किं तर्हि । मित्र इति तेन बुधा- T| पल om. B | गतौ दालि चलने वा VI दीनां लिङ्गपरिग] मस्तु ज्ञेयः after बुधः । चजः -=S. II, 1. P. VII, 3, 52, sqq. I गह नीति BI कुटजातिश्च B झांटजातिश्च T मजातिश्च V1 उतः 6. Tadds अस्य च धातोद्वै रूपे भवत: कुंक ।। वृद्धिहिंसा- B। स्तोकं दारु: ।। पांक before तत्सं-। द्वजातिश्च VI रक्षणे वा om. T। असुरोद्रिश्च VIशवति अ7. कृगौ B | तस्य च BI 8. किदिति निवृत्तम् om. B | कन्कन: B 22. विष्कः T। पुष्कः चंद्र: Vचौरमांसलाकंकनः T कन्कनः V। कांतिः V। अव्यकं वदति दौ V ! कुंदुकः । । शस्त्रवि• for आयुधविशेषः om. B | गद्यते वाऽव्यक्तं BIV adds समा- V । मृगवि० सूर्यः धू- VI -जातिः। धधर्त: TI नरूपे द्वे उक्ती भवतः before सरूपग्रहणम् | व्य- सुकः कल्प: Vधगट कंपने I TI प्रजनने BI ञ्जन-=S. IV, 1. P. VII, 4, 601 वीकः व्याधिनाशः V। -जातिश्च नेत्रमलं ।। T। 9. ददरी TI बृश् B ना T वृश VI 24. पित् । शार्दी-C-शोदी- TV । जलाबर्बर: B । बर्बरी B कर्करी V । नृश भजने TI शयश्च VI किसारुः B किंसारः TI जष अषच जरसि T | श्री for स्त्री T । अषच् . 25. रेफस्य ल-ए। जरसिं om. TIमरा इति बहुलाधिकारात् टित्त्वे 26. वृकाच्छे- B| अर चांतः V । उन्मनश्च ।। न डी: V । तत एव देतादपि ।। मदा- T उन्मत्तश्चादी Vशलेरुपां- V1 उलि: 10. मूर्यतेनेन मुर्मुर: T | जलाघातेन V सौत्रः V। आदे ढकासाकादयोपि निपात नमेवैषां पपुरः TI फलः for फेन: BI VI-मुकादयोपि BI 11. पिप च CT 2 जाति: VI 27. कमंडलश्च B | वर्षापाषाण: B1 कंस्यभा12. चम्मनौ B चम् मनौ V | चंक्रमः B T कंशभा- V । अविध्वंसने B | वाजसनेयविश्व TVI Vापानपात्र छ । फल गतौ B | अयकः B | 13. जम Cजम वा T | जंगमः BT VI चौरकपाल: T| क्षारक: V । कोरक: V। पारश्च मंगमः B TV for दीपाधारश VI S. =-Heinachandra's Sabdläuusasana. P. = Paņini. BI 21 Aho ! Shrutagyanam Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 28. कुरुबकः B कुरुवक: T कुरबकः VII TV । भक्ष्यार्थः VI विकलेन्द्रियः om. VI दुः for वृक्षः V । रण्टिः प्राण हरणे VI बालकन V | उरण: B । -संजातश्च Bार। 29. प्रधानं । धुवका स्त्री आव-BI वा om. 48. -दृशिलिनि- Vवजबलस्था-B | TIक्षिपंतु शस्त्रं for आयुधं । । हरवीभावे दीक: मनोज्ञः B । शलीक शस्य BI om. TI 50. शृणीका- CI-कणीक काद्विणीक-C 32. नखादि- =S. III, 2. P. VI, 3, -किकणीकहिकिणीक- V | प्रां पूरणे om. TI 75.1 संपतति BI-मलोत VIउवालः TIतिमस्ति 33. -मेनक-om. VI-मेषक पुनकमेनका- Vातितडीक इति B तितिडीक T | चंकण्यते: भै- B1-धनक- C-क्षुलक-C1-बटकवका- B चंकण्यते T चक्कयतेः ।। ककणच VIकिम् TV p. m. | एते om. T। अकः प्रत्ययो भवति । प- T | कणतेः B। किंकणिका B| पुर्णर्डर ।। ता निपा- T 1 वर्णवि. V। अस्य च धमः V | चंचेरर V। मादलिका च V। तृतीयत्वाभावः ।। की धांतः Bवधनं च B1 रूपे om. B। एरिका । -क: B । देह TI B| अश्मको B। रमेलम् VIBom. the 51. भिग्मीग-=S. IV, 2. P. VI, 1, second क्षुल्ल, V has स instead | अस्य वोऽतश्च 50. । वमुकः । । कुहकः ।। TI कालामापिबतीति V नोट कोख्यायका- T। 52. समविभ्यां पर- TI परापवादी V । -दयोपीति VI After this Sutra a lacuna 53. कृम वा C कृम इत्या-T| बंधवः ।। begins in C, extending till Sūtra 47.1 पूगद्रुः ।। 34. -वलि- TV | -कुदमू- B| फल om. 54. क्रीडनं Tहमः for वृक्षः ।। BI पूरणा''। युतो- B। वलाका V । तम. 55. मड B । मह चा- BI काकश्च T VIतडाग TI मन्दाक ओ-B | 56. हिंस्रकन VI दवाकः म्लेछ जातिः V,- जाति is cencelled 57. -नंशक-om.C1-हिबुकचिबुक-till in BI नभः for आकाश ।। -T7- of Sūtra 61 is missing in C.1 - 35. गृहाका V, no synony me given in वाससील: T | चन्द्रः om. Tोत TV I my MSS.1-स्विविधाविशेषः । पूग on. चलुम्पः उच्छेदे V । अन्त्य--पच stands in VI the margin T, om. BI-भूच च VI-रुल्म 36. पिनपिण्यौ TIपिन पिण्य T | च VI B adds वृत् च before पृथुकः। प्रथुकः 37. मद्य मव बंधने T। मोऽतश्च V। ज्युबते TIशिशवीयाधिसूपश्च B। ब्री ह्यादिभ्योषश्च VI T ज्यव्यते ।। स्वदसद्म- TI वालुंकी- BTI 38. कृकल्य-TI-स्फुटि-V स्फुटिक BI 58. -जलिबलि-Tनिदर्शनेभः B मृगनिर्देशनेBadds टूषयतीति before टूषिका । नेत्रमलं VI भः V| वलूकः T | त्वकिमिः BI सरोजपक्षी 39. आडः प-B | विवहारज्ञो B व्यवहारको V। दर्दरः B दुर्दुरः ।। TI 59. शालूक: TI 41. -वृश्चिभ्यः B TI एभ्यः किदितः प्र-T1 60. अक्षिमल: TI स च कित् om. I-T पादनकरूपः । 61. On the lacuna in C sce Sūtra 42. एभ्य इक: B | पाथः for पथिकः VI 57.1 -कोरुभूक-C-कोरुबुक-T | शमेवों तो T Badds वणिग् before गन्धविक्रयी। V| शंबकः शांबूकः द्रावपि शंखौ Vधुकं मा44. सिम इति इस्वो-T | तवाहनं | वृक्षः om. T। उरु वाति Tom. 45. कुशेः V। श च BV शच् T 1 आदेः B | उरूबूक: T। वरूकं VI वावटूकानूका-TI मन्दिकमुरिक: VIगब्दिक चुरिक चलिका- T गंदि- 63. रंकः रोर: V रंक: | लांक TI पू: for कभरिक- BI पुरी VI. 46. आप for स्यमीका VI वीरणतणजातिः 64. -मिचड़क CIविटक: BIचिरंक BVI Vतला च V । वली for बलवान् V | पुण्यस्त्री 65. -रबिंक: T, text and comm. I कलVIभिन्न V। च om. VI बिक: TI 47. म द्वे र-C, before that stands 67. जीविरान को जेव वा C जैव च TI भवति, which is the first word on f. 149, मेघः | a. The preceding folio ends with -azi- 70. -दशांशः V । विधानं च हेमादिषु BI काढ of Satru 331 जलाश्रयः B । कुरुरः | शिधाणक: B माशिका मल: T नासामलः ।। Aho ! Shrutagyanam Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 163 । 103. चांतः Bचाता: VIपक्षी || BT VIसाल्या-B TV I 105. -चलेरादेरित्वं BI 106. -रुणक: C | B gires first मातुलिङ्गः। मातु लुंगः मातुलिंगश्च बीजपूरः ।। 107. डिदंगक प्र- B| कमद् कान्तौ om. T| कन्दल्यः नवांकुरा: V IT gives शुङ्गा विनता before शुङ्गाः क-1 108. -टुङ्गक प्रं- BI मुरंगा BT सुरंग: 71. धानक: B । श्लेष्मायुः। आयुः पु- T। 73. कनीनिकः कनीनिका TIकनीनिका BI 74. एधुकईधको BI-धुको वा TI गुवेधुका VI 76. कृषिति- VIS for नक्षत्र V। शरावती नदी च B1 -र्ण नदीविशेषश्च V 77. इध्यसि-T-देवत्यं ।। TV | मस्तकः T for PTT: VI 78. द्वे रूप ।। TI 79. विशेष: VI करहाटक: BI 81. बलिविलि- Bबिलिविलि-C वलिबिलिT बलिवलि- VIबिलत् TV Iविलाहक: T VI 82. -दिव्यासः ।। 83. कफेनलु: 13 ककफेलुः ।। 84. समिम-V चित्रपत्र V-पटः संख्या मंगलं च BI 85. श्यतिरिच्च C शतेरिच T | बालः for बाण: VI 86. पुमहोः पुन्मरौ॥ Bच om. B | वूमूहोः पूत्यूरौ च C । पुन्मुरित्या-- B | बाणः वुनः VI 87. खमस्ति नखः TV | खानींद्रियाणि सुखं T! 88. चांतस्य Bउर्व VI 89. प्रत्ययः कित् अंत- B किदंत- T, but किद् has been cancelled | 92. -गृथ-B-Tभ-V |-स्व- BV | देवी B स्वर्न,दी VI अग्निः for वह्निः B| अदं प्सांक BI वस्तः BT | गर्गश्च VI 93. संघः for संघात: TI 94. Tadds पक्षी before उपपतिः। 95. द्रांग VT T adds in the margin द्रम्यतेऽस्यां व्यवहारिभिः शुल्कपालनार्थ before द्रना। 96. T adds च alove the line after तस्यैव | आदिशब्दात् 1 आदे ।। 98. पिति- V1-कृ- VI-ल्ला- om. CI T adds शबल: before शलभः । मुगधिनु: VI अन्येषि BI 99. वर्णवि० for शबलवर्णश्च । काणखंजयोः B । दु जातिः ।। 100. च om. CI 101. विडिवलि- । बिल त वरणे B । विलत् भे- T| करुजः ।।. 102. स्फलि- B| -कणा: ।। कलिङ्गा om. V | जनपदश्च V लिंग: B | पुंस्त्रीत्वादिः Ts. m. I 109. -ज्यो ध्मा C | मानः V-प्रमाणं च B| उरु for शरीरावयवः ।। 110. -नघ- B--T -घ- V । for नक्षत्रं V1 तिहस्य B| घस्मरः आपि V | अमेलक B। 111. सरघाः मधुमक्षिका: TI 12. इणश्च चट B | Badds सम्पू. before समाच । भूः for पृथिवी VI 113. घरतेर्वा चूरा- BI 114. पक्षी for शकुनिः V | कवचः BI दुजातिः Vधान्यव-VI 119. अंतस्य च B | दुजातिः ।। 120. कुटादि- BTI-दित्वाड्डित्वं BTV. See Sūtra 112. 121. -स्मादचट् B| सचिश्च TI 122. चोंचः दुवि. V| ना for पुरुषः VI 123. क्षुद्रः क-VIकुलेom. B | 124. -पज्य C|-कसिभ्य- B1-छम् CI प्रमत्तः नाच V | अदं प्सांक भ- B। क्षुद्रुः ।। वकुठार B | कच्छ : for कच्छा BI 125. पीपड VIपिच्छल V| पुच्छः । । 126. -च्छैधिच्छा- B-छेधिच्छा- पिलिपिच्छ: B | आदेः पिंछा- V-दयो भ- TI 128. पुवः om. CI पुन इत्या-ए 129. कुव कुब् T | कुबू om. C | कुक्कुनौ V| कुव कुन इ- TI 130. कुटादित्वात्विं BT om. v. See Sūtras 112; 120 12h om. BTVI 131. भिष् भिष्णु इ- T | 132. मुरु इ-TI मुरंज: BI 133. बलोात B वले-C | बाल B VI वल्वजः V | बलनः BI 136. गोऽजकः V I दुजातिःVI 137. ससीकनिस TI 138. -केशसंघः VIV adds धन भनौ befcxe सटा । अयथितकेशसंघः V. B has the Visarga abuve the line. Aho! Shrutagyanam Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 ट: 140. यक्षवि-B पक्षिविशेषाविती । दुवि°V | अन्न अन्नवि- V. अयं om. T | उत्सृष्टपा: VI - 142.-कश्चि-T-कवि-BCVI -कखि-T मनः for अन्तःकरणं VI V । कर्ब गतौ om. T| कर्वदं BT | शकटः । 169. -खलिभ्यो V पलसंघातः TI पर्वश्च V | गत्यर्थी सौत्रौ V। कुशीरश्च T क्षुद्रजंतुश्च V | आंड: अंडश्च मुष्कः योनिविशेषेप्यंडः VI for कुलीरश्च V | कृकलाशः । कृपलास: VI -विकारः खंड B -विकारोन्यखंडं V| 143. -बिलि- B-वलि- TV | कुलट: B 170. -मणि- om. CT-वापितः । कुटला VI बिलटा BI 171. तरु: om. T। दुवि for वृक्षजातिः 144. कपट की कटादयः श-B| कंपतेर्न-TI VI अव---गलं च om. B | उन्मत्तः BI कपट: VI 172. -कुरुड- V। पक्षी for शकुनिः VI 145. आयुक्तः B| ललाटः भालं VI . प्रत्ययाऽकारस्य B | कुरुडः V | कर च T। 146. पुरोगः V | अल्पं V | उपानं VI -त्ययाकारचौकार: BI 147. लश्नांतस्य BI 178. मृभ्र-C | समुद्र: B | ईषीका VI 148. -अपुन्नाटादयः TV । जपा-=S. 174. विकलांगवायुवा V । II, 3.1 गडगजः BI 175. वडिस्त च C वनेस्त TV | 149. भ च TV भवति Cचर इति सौ-- 178. -ण्डेरण्डखराण्डादय: C-खरंगादयः VI BIचिर्भटी BVI 177. -दृमृगृभ्य B| 150. डिटश्चर BI-श्चिर TV -श्चर CI 178. कुशरु- c T| कुशच TV | कुचिरर्डि- BTI शंडः TI 151. तिरंटी V। प्रकटं B | कंप्यः ।। 179. -खणिभ्यां । 153. वृन्दृभ्य C | एभ्य उट उडश्च om. TI 180. -कानदीर्घ: T| धन: stands at -मनिभिनि-B3; see Sutra 177. I विडाल: V| the end of the commentary in TI मेघः B | मेघः B | V gives the note भिन्न ___ 181. नञःपू- B| आषाढ T अषहा VI at the end of the commentary. भं for नक्षत्र VI ___155. मर्कटकर्कटोकुरु-C कचवरपुंज: B ___ 182. उर्ण विरोम शो Vवणा कृष्णवेणा V| स्वपुटा- TI 156. दुःकडश्च C| आदेश- T| अकालदे Vब्रह्मणादिः ।। स्तुतिप्र-- B | जणः चंद्र : दुः शवादी V पक्षी च V। दर्ण VI 157. वर्ने: C | वधूटी all MSS. ___183. बेहोश- VI-तृषि-om. T प्रजनने 158. इत्य- -भवति om. BI B प्रजनादिषु T | तृषा for पिपासा VIविष्णमू159. इत्यस्मादेटः प्र- BI BI 160. कृशक शा- T | नृत्यं B | भाजन 184. -ट्टी Tगौरा-=S. II, 4. P. IV, शेष: V। दुवि० Vi 1, 411 __161. कपोटबको- BV | -ौटकको- 185. तंत्रधा-BI लोट- B| -दोषौ च TI टकादयः T | बोटः T। फलः । टुक्षुरुकंक BI 162. -कारि- C-टः CT -ष्ट V। 186. -तेगुणातेर्वा गमेर्वा B| Before कृगी एभ्यष्ट : TIवंतः। अनविष्टः T| कटं TV I V has only भणा इषुधिः I do not venture काष्टा TV| ओष्ट: T| to correct |श्लक्ष्ण: V| सोन्तः om. B, in T 163. विष्ट TV I पृष्टः TV । अङ्कशः it stauds in the margin.I om. TI __187. -वृनुरु-C1-वुक्षि-C-तुक्कि-VI 164. कुष्टं । कोष्ट: TI दुः for वृक्षः V। करभो ऽग्निर्वायुह [2]: भंग 165. ध om. CT पक्षी V | व्याकरणांगनादौ ।। -चकं रेखातिल168. पष्टै- CTविधिष्ठादयः V । पटा का- T | अंगण: B | कंकणः BI TRष्ट: T VI 388. आश्चर्य ग्रा-VI समुद्री ऽद्रिवि० श्चVI ___167. म-V । -पि यो ऽट: V | कंठा- 189. दृषिव-T | रिचोपां- T, but च T | शस्त्रं for आयु V | शीडः T | Perhaps ----seems to have been corrected to 1 चिला-; see S, 2091 oía: and eft for appara: and as: V 168. प्रहसन कारः । । शत्र: om. T ___190. चिक्क च T VI कंकणः B| उर शंडः पौरुपयुक्तप- BIनI for पुरुषः VI' च स्वदतेर्वा TI Aho 1 Shrutagyanam Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... 165 219. जवि- BI नभश्च for आकाश च ।। 220. रुहिनहि- CI वृक्षः om. T| ओषधी BIV adds एवं before नन्दतात् । नंदती BI जीवतात् om. BVI 221. सूर्यः for आदित्यः ।। इंद्रपुत्रादौ च V | उदनपितृ- B, V has स्त्रीसंज्ञा instead | वदन्तः om. TI पुषV | मेघः for जलदः VI राजा हिरण्यं सुखं च om. B | अनुक्का धा-VI -कर्तव्याः BI 222.-दुष्कता-VI सेः सीमच VIहेम TI 225. -त्तिभ्यः स्थः V| नगरादौ for प्राव-- च V । प्रड् BT VI युता V | -मुखं T-पादार्थः BI 226. -द्रौञ्च वा C | अवगाथश्च B| अक्षसंघः VI रथः [?] V | सीमsV । सामपं-B साम । 191. -निषि- om. C | -गुहेराणक् ।। धषणाः देवाः VI 192. पिषो VI 193. स्वोवसी-TIआदेः द्रेकाणकोवाण-VI 194. वहिंग: V | शिखी for मयूर: ।। -देयं धनं || TI 195. कुंजर: B क्षुद्रश TI 196. -वै- om. C | सूर्यः V | 197. क्षेः T| 199. गोदा-V | मखः corrected to मेषः T मुखः गेष्णः following after रात्रि, and रनोपजीवी have been cancelledl; accordingly the has been corrected to 1: in TI 200. शउः or शवः, see the special paper, I मूद्धा [ो?] B मूर्द्धः V । पथिश्च VI 201. शराभू- C|-मदृग्याधा-VI-धर्विपूवेभ्यः V | भू सत्तायाम् om. TI दध्यर्घ : शीरेतः सेक: V । वनवे- B | धान्यापुटश्च V | धाग%= S. IV, 4. P. VII, 4, 42.। पत्रसंघातः TI प्रहनं ।। 202. नाच for पुरुषVI 203. जानकी for जनकात्मजा Vवर्णः बंधश VIविज्यवि. V | तुस्ताः। जटा: TI 204. पुत्तपित्त-CV-मित च T-न्ममित् च । । उतः T | शुकभा- T| वल जातिः T | तिकश्च T| अंसदेशश्च T अंत- B अश-VI 205. चेक्रोतः T चेक्रीयेत: V | यदः संज्ञा VI 207. आदिवक्रव- T अग्नेि:--अमतो मृत्यु: om. BI स्वप्नं V । खल्वाटः for शीर्णके शशिराः V | कसूत: V । सूर्यः for आदित्यः V। पाल corrected to पालक:TI T adds शब्दे after प्रहवेadds in the margin गोत्रकृत् after कड़ातः। 208. हरिणः for मृगः TI सिकिः गत्यर्थः VIसिकताः। वालुका: T| कांतः VI शास्त्रविहितो नि- T शास्त्रितो VI 209. -ल्यलिबिलिवि-BI कृत् विक्षेपे om. TI-धजीवसंघअ VIबिलत् । बिलातः । म्लेछः BI शबा- BT | मदादान- VI 210. पलितं TI 211. कारिवि- BI 212. कुशच् T | कुशितः T | कुशितं T | 215. कुलूताः देशः ।। 217. कवेरोत: T VICTI 218. अस्फोता B 227. -तृमुदेिवाच- T -तवतुवचि- | सुनार्थो V । भीतिमान् V। रथःऽनः V| गुरुश्च for आचार्यश्च ।। गोड्पुर्वात् B | मैं शब्दे om. TIप्रातःसवनं V| -मई: V । सोमगानं BI 228. रात्रिप्र- V| उशीथः V। 229. निपू- B-देणेश्च B |-नं तत्र स्नानं ध V यज्ञ- om. TI 230. संघ: for समूह: VI 231. यूथं संघः V गूथः अमेध्यं च विVIतिश्च om. B| प्राट् कालश्च V| आदे: निरूथः VIनिरूथा TI एवं गीथ-VI 232. शमिशपि-B केकयी-B केकेयी VI प्रदौषमत्स्यः V | मत्स्यश्च T। समाथिः corrected to समाधि: B समाथिः V| पंथश्च for पधिकश्च V। प्राहर्षः V। अध्वा पिकः काकऽद- V काल: दं- B| अन्नं om. BI कूर्म | BI 234. असच्च: V। दुहे: शत्रु : VI 235. पक्षी for शकुनिः VI 236. संवत्सरमा- B। कम for वर्म BI 237. कंदर्पः T कर्दपः V for कर्दमः । तरुणं तृणं मदुः बधं VI मृदु :B | कणंग्रा- VI - 238. इति om. B I इत्ययमादेश्च T | भवति om. TI 240. वृतकंसुं- V | संघः for समूह: VI उदरं for जठरं । 241. -देतौ VI 242. -विभ्या-B C TV | द्वजातिः ।। अर्व B T om. V | स एव for संख्याविशेषः BI Badds एवमन्येपि । 243. ककुद: TI 244. बुंदेः T। नेत्रव्याधिः ।। . Aho! Shrutagyanam Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246. - कुलिकुणि - C 1 - मणि-om. B। भोजन-T | गोपकर B गौपकर VI लवः B - वलवः 'I' अश्वपल्लवः V | 247. कुपर्वन् V । कुपिन्दः om. B | कुर्वि दव VI 248. -गाथाकौ B गाथाको V | पूज्यश्च om B रक्षश्रेति अन्ये । 250. मुचेर्दैकुंटुकुकुद C मचे डुकुंदकुंकुंदौV, in the commentary repeated without mistakes. | स्तः for भवतः V | दुविश्व VI 251. स्कंदामे - B C स्कंधः अंसः ककुदं V1 कुकुदं । चक्षुहीनः V । 252. - दंधक् प्र- 'I' | निषेधः V | निषेधा देश: V । 253. देश: for जनपद: V 1 254. दुजातिः V 1 255 पराच्छो BCT आयुधविशेषः T | 256. यज्ञा B यज्चा VI 257. कबंध: BT | छिन्नशिरो V 258. व्याध्या - T | स्पर्धातसि - C | भ्रष्ट T सनं स्थितं । रोचितं V | अनं B | स्योनः B स्यानं V । सूर्यर - B} 259. गांगलच VI 260. रसिव C। यो निद्रा भ-T 261. शीद - the text to the end of S. 266 om. VIT adds in the margin क्षय: after दीनः । दृष्टांत B | 262. वस्त्रबं - BI 166 263. घातनस्थानं B घातः स्थानं V 1 पुत्री B आघाटः T sm. I 264. रमेस्तCT | वज्रादि T | 265. कुसे - B 266. युसु - C | मडो C | द्रव्यं T | स्तुत्यं for सुखं- B 267. शिस्नं V | शेफः T | 288. --योक्तादय: C यौक्कादयः V | गौतम B | बुद्रुदः V । बहेरेत्वोपांत्यः स्प V । ध T V। धीनः T sm | क्षीणः V । 269. देश : for जनपद: V | जीवक: for बीजक: V | तू विरोचतेः विरोचनः T | दु: for वृक्षः V। आदित्यः for सूर्यः T | अभक्षः विशेषः V | 272. पापकर्म V 273. पक्षी for शकुनिः V | अंतरीक्ष V | रंजन V । रजनो om. B। अंतः for अवसानं VI 274. - संजिभ्यो B | सूर्यः for आदित्यः VI -कालाच 'T' । विषवणं BT adds in the margin भ्रष्ट्रं after अम्बरीषः । 275. -गहना - B - गनदहना V । गषT | दुर्गम: B दुर्गमनं T | आदिशब्दात् T आदेः का - दयोपि ॥ VI 276. -राम: C | The second मनःom. TI 277. -युजि- om. B1-धि- C | युवानः स्तरणः V । विमर्शक: or. BT । युगादि - T | 278. एवं च V| राजविशेष V. 1 279. ऋज - BTV - अंजि- C | मेषश्व T | चन्द्रः om, V | जयमानः B तुरंगश्च T हयश्च VI 281. भवति स च om. T | गर्भसान: for वर्धमानः B। नाच for पुरुष V 282. शोकाठ - C | इड् गतौ om. T | अभिचारः B | अश्वास्यसं- V । नल B 283. पापं कुटिलं च T | तु अर्दने om. B तुह V | अंधकारः हिमं च B। तमच for अन्धकारः VI 284. अरण्यं for गहनं T | अब्ज B । अस्य om. B। बीभा-=S. IV, 4. P. II, 4, 56. । 285. महिन: om. T। महा- B1 286. - इन्सि - CI 287. fa om. BI 288. Regarding the substitution of वी see S. IV, 4. P. II, 4, 56 । श्वेतः सुB | ऋफिडा -=S. II, 3. 289 शव CT V 1 -शकारांतादेशोपि भ - B। कंदविशेषः BI 290. - मेदकव - BV | कीट: BI 291. फलो गति C मं for नक्षत्रं V 292. -→यः स्तनः C। पतृ गतौ । पट गतौ T पत्तनं । पहनं । नगरविशेष: TV -देव च यद्गम्यं VI 295. शासान: C | 296. - भिषितृ-B | -तल्यऽपिश - V1 पः om. T | आदित्यः om. B, Vhas सूर्य : instead | चंपा B | चंपः B चंपा BT | परात्मा T | स्वर्ग: explained in the margin by सूर्यः T | जातिः V | अंतरिक्ष B। शास्त्र B तर्पः उर्पः । शिय्या for शयनीयं | दारुः । चर्मकरो - VI 297. - रुच्यु- B1 - च्युस्तुभ्यस्त्वादेरू च 'T' | - मित्तकृतः TV | आतपनावे- V । सूर्य for आदित्यः V1 -भुवनमु - T 1 288. कू: B सूV | अहि: for भुजं - गमः V 1 299. -बांधे- C -धि- VICT वाष्पः V । अश्रुः V | कूपञ्च om. B । देशवि० Aho! Shrutagyanam Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ for जनपदविशेषः । हिंसागत्योः om. BI प्रावरणं V 300 पपादयः । । शीलते: B। शीतेर्वा B शितैर्वा VI 302. वृक्षः B दुविशेषः TV add कदंब | द्रुः for वृक्षः V | नीरं for उदकं VI 303. उभ्य-- पूरणे om. T उप: T 304. - प्रजिध्व - C | शस्त्रं for प्रहरणं VI व्रणमुखे V | शाकः प- 'I' शाकपकV | 305. शकुनीनाम् om. V । कुपितं V 506. संसे: श-सेः सह- शंयोः श इT | -कारस्यैकारो B | वृक्षजातिः B। 307. वातादयः । विषस्तों- B ति नांचस्थानं ॥ B | अद्रिः तृणं पद्मं जलं ऋषिविश्व VI 308. काञ्ची om. BI 311. उडु B उड V | पादि - =S. II, 3. । उडुवः प्रवः V। 314 श्रवणे B TV | मेढ़: B VI 315. -नयोः । कुल्फः | गल अदने । गुल्फA B | पदोपरि - VI 316. स्यतेरित्वं T | जटा V - जटाः T | श्यतेरित्वं शि--टा | इयतेरोत्वं शो- V । श्वयधयुः V । आदेः शिफा - VIइफ- B 317. बलि- 11 वः C | बलि T | वः प्रT : for वृक्ष: V 1 318 - वतेयौ B1 319. पल फल om. B शुल्वं B TV 1 उत्वं BTV रूप्यं for रजतं V | शुल्वं BT VI 320. तंब अ- V। अलावु B | चक्रा च T चक्रांत गं च VI रवः C | जनपद B देशवि - VI 321. तृणं V 322. कVि | दुजःतिः V | 323. बिल दे: B - वायुश्च V | आदिशब्दाT आदितो VI 167 324. किम्बे ल च C | किदंबः Br | हिडंब विलंबन B विचT | डिम्बः 325 डीनिबंधि - C | C | डिदंब - T। प्रापणे om. B दु: for वृक्षविशेष: V । बिम्ब: B प्रत्यछंदकः B | प्रतिछंदः T | Vadds ङयां before बिम्बी । बिबि V वीजातिः T | 326. कुटुंब: B कुटंबं V । उदुंब B उदंब V। -चूर्ण: B। 327. VI V | जनिरमि - T' । यो भ्यः | मृत् निगरणे om. T | हिंसागत्योः om. B1 329. -बलोरभः । श्वापदजीववि- V 1 जठरस्थों B उदरस्थजंतुः V | पल फल om. B पर्मतः T | पोतः V । खरः for स एव V । वड आग्रह सौत्रः V1 - भूमिभागः B ऋकिडा - = S. II, 3. 330. पर्षदा झाला च V 331. रूपवृषिरुशिभ्यः । नाभेयम for भगवांश्चादितीर्थंकरः V | T adds in the margin हिंसार्थ: after लुखिः । मत्तेभः VI वनं च om. BI 332. पिडि B शिटि- C - सेर- CT | - हिमौ च B | दत्यादिः BT | सेर: विट्टभश्चा - TI 334. कके CI को - T 335. दुमो C दमेदुं 'T' दुड् B दुण्ड C टुंड V । कुंडु इ- '1' 1 337. 544 TI 338. मुदुहु - VI B C 1 - भावो - V | पुंखंच V । उत्तमः क्रमा - B शर्मः T | क्षेमः V भामी B यां प्रापणे om. B 339. -हाभ्यां B - हकभ्यां C The roots are wanting in my MSS. 340. विलिमिलिलिभिसि - V । -सीधीविधूC 1 -सुध्यास्यारु- T1 -रुशि- C । सिषेिशुषिT | -दशिभ्यः C | विल्मः T | अंतरिक्षं B | आस्तु: [ खु: ] for मूषिकः V 1 341. क्षुमः ।। 342. असती for अतसी VI- काशन - T | नभः पुरं च for आका - VI 343 - भांतो वा भ- T | -चरभू: VI सर्वार्थन om. B | 344. प्रकारांत वा T । इति om. B1 345. चCTV | गकारांता- "' । यमलं for युगलम् V 346. -गुल्म- om. V । रोचयतेः क चT | कव च V । यसै ग्रीष् B 1 - प्रीर्ष V । धूतः इत्यस्य V । इत्यस्मात् तच भवति ॥ । -त्वे चुलन VI - समुहः B | सनानं च B सोमः corrected to स्तोम | 347 1 जपादित्वा - B। ऋफिडा - =S. II, 3. । कलिमः सैव B 1 348 - CTV| (देशी) वा om. T अधमः उभौ होनो B | 349 - परिपुषि C तभूतलं - T -ता भूः V | विष्टिमं B भक्ष- BT pm. भक्ष- B Tp. m. I भक्ष- B भक्षविशेषश्च T। पोते for पौB पूज्यं V Aho! Shrutagyanam Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 350. कंदुकः T कंउदुक: V। चांतश्च BI | प्र- BIT adds in the margin दक्षते वायुवघतहीनं । शात् before दक्षाय्यः । वैतनेयः VIग्रह याय्य: 351. उद्रटिकुथिकुरिल्यलिकरि-B | अलूमः B गृहायाय्यः V | वैतनेयः V ! -कुशलयः ।। BI कावः for कारु: V। भोजनं BI अहानि तृणानि च BI T adds in the mar. 352. Tadds before y above gin श्वः । पूज्यश्च after अश्वमेधः, which has the line|लिंदुभा- TI-मश्च T I कुंकुमः BI been corrected to-मेधा । पटुम T| पू: for नगरं च । आदिग्रहणादन्ये- 374. निपात्यते B पृषदाज्यं हत्यविशेष:V | पि TI दीयते-- BI-Nषीष च VI 353. अनेन for कु-भावे B1 -कृत् दु- 375. को-CI -रेयः VI टि: TI 377. मृजोस्य- = 8. 1V, 3 P. VII, 354. विपूर्वान B | अमौ om. B । सूर्यः 2, 114.1 for आदित्यः V | चौर: for तस्करः V। प्सांक 378. -दिणी लीयः BI om. T याचेलमम् om. BI 379. -यज्यते- B| धान्यः B | अग्निश्च 355. दोर्डिमः T दाडिम: V । दुजातिः VI क्षत्रियः Vणौ om. B | वरनं for वनम् BI 356. डिमेः सीत्रात् कित् TI 380. हर--तः om. B | स्वयं for 357. -कीषिसिहि-T | दो om. TI दिव्या. सुव---व्यम् VIR: BHIV for पकारः। नुभावदर्शनं च om. TI दिनांतः V | सव्यं B 381. दता गुणी चा-VI सध्य क्षेत्रस्थगो-B | पल्यः T | कंटकु 382. वरेण्यः om. B | परब्रह्म B परबVा पल फल om. B | अंतर्गतं लोहादिःVI मा- ह्या VI स्यय B। बंध्या बध्या VI 384. स्वर्ण च V | मृदुः V । ओदनं B | वनं 359. -ई च C-4 च T VI-यो धकार. for धनम् VI श्वांतो भ-TI 385. वचक भाषणे om. BI 380. -पशि-TI ना for मनुष्यः ।। 386. उत C TV | उत इ- TI इत्यादे. पक्षी for शकुनिः VIपसि नि-B TI शो भवति om. BI T adds in the margin 361. ये न वा-S.IV, 2. P. VI 1,431 वक्ति तत्वं before उतथ्यः । पुण्यः सत्कर्मः TI T adds in the margin 387. -वमि-om. C1 -जपि-om. BI विपक्षं after कृन्तति । -मदिमन्दि- om. BI-बासि- CV | जिमीक 362. -ई CT VI भये om. BI भेकः for मण्डूकः । । ऋफिडा363. स्तंडित् BI = S. II, 31 वृद्धौ om. B | आवरणे om. 384. -विन्ध्य- om. BIइ. कांतः TI | BI द्रवि • for वृक्षवि- V। उहिरणे om. BI -मानपिच- Bबभिक्षाभोजन-V । धनी for चर्मविशेष: TI प्राकारः केदार: V | प्रकार वावाधनवान् Vध च T| अद्रिः for पर्वतः VI स्तुभूमिः | Tद्विजः भेकम for ब्राह्मणः मण्डूकणोऽनो विषश्च T सत च T। तथ्यं for अमृषा श्श VI शक्तौ om. B | बंद्रः T | वादी for बंदी V | आदेः लयः द्रुथ्यह्यादयः || VI BI बंद्रं T पदः B | देशः for जनपद: VI 365. -चलिमणित-C गुंड शब्दे om. प्रय for क्षत्रियश्च VI बालाधानं BI सतानि TI-कृतिः -TI कतकः । । शस्त्रवि० for Vवाशि BV वासिच्T | वारू: T I ना for आयुधवि-VI पुरुषः V | शब्दसंघः V खरः for रासभः V 366. केक घC TV | केक चादेश: B om. B। शशः BI केक इ- TIकैकयः ।। 388. ज्य-C1-ञ्चि- om. BI -तृपि367. इत्यादि क्रियाः शब्दा: B. om. VI -युदिभंदिशुभ्यंभि-C -बुदिदभिदंशि368. -यः अस्प इ. || BI किसलयः BI V|-सि- om. V । -गृध धिस्विति- C 369. शेषौ ल । देस- T। नमः for आ- -गृधिश्विति- B। अज: om. T विक्रान्तः om. काशं V| आननं for आसनं B| सयनं VI Vान्यक्का -- =S. IV, 1. P. VII, 3, 71. एतौ om. TIधित्वं क- VI 53. 1 गतौ om. BI सादने फोटने च सौत्रः VI 372. त्रिपत्रः T IT adds in the mar. कंटक्कगुल्मश्च V | जलदुर्गश्च V | उंद्र: । । gin कषति सर्वरोगं before कषायः । भीमादि- =S. V,1. P. III, 4, 74. । शुक: 373. श्रुदाक्षि- VI -राज्य: TI अय्यः । for अवदातः VI मदं for अशीघ्रम् V। श्रोतो Aho 1 Shrutagyanam Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 169 B | वृषभ: for अनडान V । आगाधिक VI! भ्रमणगृहं Vवर्वरी । । कचिक के शाः B कंचिका बहु न षः V । शुक्रः वर्ण V | कत्वं om. BI केशा: V कवरः B1 शबर गती BI न्युक्ता- T| को न्यंक्त: V| न्यंता-=S.IV, 398. अवेर्धच् B - C - TV | 1. P. VII, 3, 53.। मांसभे- V । गृधःमांसं धश्चांतो BI -भवस्य TI परः ।। V। तनुः for नमः VI-चंद्रः मं- V1 कुष्टः ।। 399. -पितिबली for बलबान V । रिपुश्च om. B| सूर्यः 400. च || B चांतः VI अकारस्य B for आदित्यः ।। अग्रविभाग TI 389. मनीदनीयपानवि० भूश्च V I 401. फच फच CT VI ... 390. -तुंबेर्लक च B T| कुव् आ- TI 402. मदे णिवा B | डकारो वा BI डामरः कुत्रं T | फल्गु: B | तु TI डमरश्च भयानक: VI 331. च वा लुग भ- T | सुखं शुभं for ... 403. -प्राइमर-BVI-दर- om. CI कल्याणं सुखं VI -गोबर-B TV| ककरं B | -तित्तिरि:TI 392. जीर्ण TIजी VI सीरा तल्लेखा ।। समपूर्वा- V| भगालं for कपालं TT तोमरं शस्त्रं शुल्ब TI VIद्वितीयच- B द्वितीयश्चक्री V | तनोर्ग नलो393. चकि-VI-रूयास्य VIआम्लो ।। BI द्रुः वि. for वृक्षपि- V। उर्दरः VIP: for -परमंजिका B सूर्यसारथिः द्विजः नाशश्च | वृक्षः V1-ईस्वत्वात् वेदांतः B मृदरः ।। विकुत्रं VI द्रु: for वृक्षः VI-कृपः । गोबर: BT ! 394. -रुञ्च CH वस्ती VI खच् V1 -६च्च TI वीभावा-- 8'. 395. च om. B ॥ पापकर्मोकृत् ।। IV, 4. P. II, 4, 56. | आदेः कोटर- VI 396. -तुग्र- om. B 1 -तु अवननि- '। -शाङ्गर-om. BI-पांडर-VI -गुंजारिजादयः T-गुद्रा जादय: V । नाम्युपा-= 404: शस्त्रवि० for प्रहरणवि-VI S.V,1. P. III, 1, 135.1 Perhaps कतै-इह च 405. -कडि- om. B VIनिवात--सूतश्च V संप्रदा-=S. V. 1. P. III, 4, 73-75.1 B निर्धमाग्निः कणः भूसतश्च V1 वाराहः हरुस्ती इत्यर्थः V-विषत्वं B | अदेः=S.IY,4. P. II, V। वि. for वृक्षवि- V ।बिडाल: B TI 4, 40.1 घसे एवमत्रापि B | दुरुपू-B दुरपू-VI किषरूपः । । -रातो दादोस्येति B, om. V. 975: for safrT:VI-a B 17T: B. Perhaps दोरस्येति to be read.। . V has द्विजः instead | कश्च for कत्वं 406. वृक्षविशेषः B दुः VI च VI अः भोतिश्च । नभच for आकाशं 407. मादिभ्यश्च C | लोहकर: V | Pः for च V । रधः B रघ्रः VI -शिलादिः V | वर्षासु वृक्षः VI छत्रकं for उदिद्विशेषः V । उ%ईश्च उद्रुः VI 409. अस्य च उकारः || BI -त्रोउंतश्च BTI पुण्डेवी रूपम् stands after 410. -कवुद- CT दृवि० for वृक्षविशेषाः VI तिलकच in T, and is missing in V | तीक्ष्गं 411. -कतार C भृजो B भंगो V Tp.m.| VI-रूपांतः B | रश्मिः V | राजे रजिजेर्वा B - मुखगलंतिका 'T' --मुखाकाराग- Vखनि डिच राजे रंजतेर्वा VIकित् इचो-ए। Bअखने- VIटो ड्यर्थ: for खारडिति ---र्थ:VI 412. -खाद- om. B1 -बहि- om. BI 397. -बठि- BI -दि- BC TV I -सभ्यः V| गृहं पुरं च for वेश्म नगरं च VI -मन्दि- om. BI -पञ्जि- om. BCI -पिञ्जि चंदिरं चंद्रः VIT adds ग्राम: before मार्गः । -om. VI:-षिB-वर्वि-C -बर्वि- T! शरावान् द्र.. for वृक्षविशेषः Vअदिः for पर्वतः ।। Bा चौर : for तस्करःV । बठर: B | द्रुः for वृक्षः बलिवर्दः BI V | जललवः । । द्रवि० for वृक्षवि- VI 413. -शशोर-VIशिबिरं TVT फलदुः V । शोभायाम् om. B. T has in the 414. श्लंथे: C अस्य च om. BI शिथ margin हिंसार्थः शोभार्थश्च । मंजेपंजी V। सौत्रौ शोभाविस्तारार्थों V | -शाखा B1-डी BT VI 415. अभुतेः श्रातेर्वा B | मूर्यश्च for आदिगौरादि-= S. II, 4. P. IV, 1, 41. । त्यंभ V | आशिः B आशिरः for प्राशिरः TI कामुक चौरः कोमल: V। -पशु VIभुंग: for 416. -रुधि-- om. B| श्रुतिहीनः ।। षट्पदः ।। णौ om. B 1 दिन अग्निः कामः ।। कामः for कन्दर्पः VIमर्यः मेघव Vमत: अन्ये च वासिच् TI काशरः । । अरर VI ' for तमम् V | उंदर: B VI 22 Aho! Shrutagyanam Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 417. पचेः इत्वं VI-भाण्डं पिठेवा रूपं TII 433. उर: C VI अमृदु B | अदिविश्व for स्फायतेर्वा डिच Ts.m. | वीभावा- = S'. IV, पर्वतवि-V | अद्रिश्च for पर्वतश्च VI 4.P. II, 4, 56.1 434. -घोरादोरादयः V1-होदोरादय: CI 418. -कडिगंडिशौडि- V । शौडिडिशिभ्य स्तेन for तस्करः VIशिखी for मयूरः ।। CI विशाद्या हरश्च BI नूपुरं B| मुकुटं B। जन- -पत्यस्य BI काटं VI 98 BI #19: for *-4: VI V adds ga 436. सुपु-T तुर्यमुखं BI आकाशः T. before स्फिक् । कडीरं हरितोकं B शोड B V has नभः instead ) शौड़ T शोड V । संघवान् ।। 438. इंधुभ्यां BI 419. -वसि- BCT। उसीरं T कश्मी... 439. -यशो- B | जठरे- see Sutra रकश्च B कास्मीरकश्च VI 493.Regarding the substitution of वी for 420. कसे- B| मश्चांतादेशश्च BI देशः । अज् see s'. IV, 4.P. II, 4, 56.1 नभश्च for for जनपद: VI आकाशं च V| अरे वा रूपं BI The words 421. विनि- B। -भिधानानि fill -वर्ष- are missing in 422. जंभीरा-BI -भण्डीर- om. BI T | वसंत्यत्रेवा B1-शेषाविधाने B। -त्सरादीनि -डिण्डीरकमीरा-C1 जनेवा तश्च B TV I दुवि. अपि तथेत्येके V वर्ष विशेषे अभि-BI इत्यदौ ।। for वृक्षवि- V | स्वरांतानस्तु B I जलधरः ।। सिंहशटः T| बाहु . न षः ।। -वचनौ V किरेः B किरः किरतेयॊतश्च TI 441. तुंगृवृचतेखटकटेनि- B | कवरः आदेः तू--करीरादयः || VI BIविष्कर: ।। मद: for अहंकारः V । श423. श्यासिवासिकलिमसि-c । कार्वक बरः VI शर्बर अन्नं तमश्च । । शबरी । विधि-C-कवि- T V. बि om. B | पक्षी दर्बर । । दर्बरी V | केशविशेषः om. T! खरश्च for शकुनिर्गर्दभश्च V | पू: for नगरी ।। पंकः for कैदमः V ! वह्निः ou. V | कामः आखुः for मूषिक: V। विज्ञः for विदग्धः ।। for कन्दर्पः VIT adds स्त्री before प्रपा | प्राहारः दुः प्रता- 1 | घड्युप-=S. III, च om. B, T has it above the line.| 2. P.VI, 3, 122.। 442. अभोरि- B अभोरी- CT p. m.1 424. नकारस्य च TI 443. -कुरु-C । -कार: B| कूबरः TI 425. वधेः राविधिः V। वैशश TI तूबरः V | मंदः || 426. श्वसर- T-विधुर- B V विष्टुर-c T| अभोरालोगश्च V । दंपत्योः B। स्कुदुडू 444. तीवरषीवर- B]-छत्वर- om. B धातोः सलक् च V-कूपको Vाभेक: for मण्डकः VI-संयुद्धरो-C1 -तुंबरदुस्वरादयः B | तिमतेः V। दुति for तरुवि- । -मीलिता िVI BIतीवते अरे T. See Sutra. 439. जकिरः कुर TI-विथ च VIराक्षर: BI स्तं व्यं-V| पवतेरे (the last akshara 427. भीमाश- BCI पसि- TVषोद seems to have been cancelled ) TI =s'. III, 2. P. VI, 3, 109. । षडूर: TI -स्त किञ्च VI पिकश्च BI-णिलुक V| छ. खाली- Bखरूली- TI वि० for वृक्षवि-VI त्वरः भ-B | शाकः for निकुञ्जश्च T | शय. वि. for स एव VI सर्जरं ।। प्र- B | महबंलि VIकिदुंचांत: B किदुञ्चांतः 428. विष्णु हतः om. V | पुरं for नगर T in the margin. | दुवि० for वृक्षवि-VI VI मंदराष्ट्र B विल्वश्च T VI 445. मृतवपु: V । कडंगरं V। 429. स्थाविडः B | बठर: BTI वालवा 446. -छाचं Vछचा B। राजतेः रा Vाराष्ट्र: B | धनु V | यग्रामः BI बालवाये TI 430. -कचर-C TI-तूर- B|-धत्त 447. -नश्यास- CTV| युतं B | यच्च रा-C TV I सिंद च TV I -पिष्टं BI | B | गा V| वपुः for शरीरं V | नात्र VI पातेः स्तोतश्च VI नशो टु-= S. IV, 4. P. VII, 1,601 431. -गडि- om. BI-दशिभ्यः B1-द- नांष्ट्र: B | नांष्ट्र Vयोतुधाना Bोधातनाः VI सि-C-दति- TIवात for पवन VIनिः अष्ट्र B | नभः for आकाशः V | वेधश्च TI: स्व: for दरिद्रः VIपुण्यं | श्वा देशश्च for | तृदिवं T| यकृत त्रिदिवं शर्म च BI सारमेयो जनपदश्च VI 448. दिविजं for त्रिदिवं B| प्रमाण 432. शतेरादयः श- Tतच om. TI I विपानं BI Aho 1 Shrutagyanam Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 449. दलिः corrected to कूदाल: T | ग्रामाधानं चौ- V | करभः for क्रमेलकः VI 450. This Sūtra with the commentary is missing in B। तृणातेव । 451 - वचिधि - C | तनितसदि- C 1 हुत्रं हवनं ऋचः B | हा V 1 होत्रः । श्रत्रः B | अद्रिः for पर्वत : V | भू: for पृथ्वी VI वंश: for अन्वयः V । विरुद्वि- B वीरुद्धिः V 1 डु: for वृक्ष: V | - हादिव T | Badds मन्यते वेदाध्यायिभिरिति before मन्त्रः । कुटंबं T | यज्ञः V | ब्रह्म for छद्म B | कृषिभूः V | नभr for आकाशं च V । क्षत् B क्षद T | 452. वस्य मो वा V । इमे BV | श्वे BVI VI 453. आश्रांव्यस्य V | वपु: for शरीरं | खांश: for खावयवः VI 454. मित्रं B | अमित्रः B TV | मिश्रः सूयै: om. B 1 मित्र : TV | स्तोत्राऽले V 1 455. नरकस्य ख्या V । दु: खुं न नर B 1 पुंत्रा - T. See Ujjvaladatta's Unādis. IV, 164 | व्याप्तिस्तु B -ब्दानामनेकधान्वाख्यानं BVI 456. -वाम- om. B | वरत्रः V 1 -न्यादिः TV has मं instead | प्रह्वन्वे शब्दे T | अ for आयुधं । विषमं B बही B बहि V | दारा om. BI 457. This Sūtra with the comm. is missing in B | सोविंदे: T | वित्ति | 458. कृत् इत्या - B कृंतादेशः T | 459. - शादिभ्य C | मन्थः om. B। वाहनं om. B | हविः अग्निः B | अन्नपार्क V 1 -त्यादि V । 460. अनं । पानं च आ- T 461. तरुत्रः V । हासकारी V । हृतं VI - शुकरयो- B | -मुख: VI 462. श्या - C - क्यन्वि अभि-C -क्यम्यमि- T -वयं व्यऽ मि- V । मनोज्ञः V | शब्दे | अम्लः | अम गतौ । अम्ल | रसः B | 463. शुक् BCT | व्रतं om. T | दुग दा- VI 464. छभिलसौ- CT | सौविला - B | आदेः अः पाराका - VI अारला - BI 465. कमि-om. VI- यमिशमिक लिफलिV | -वंविधवि B | सृपिति - CT | कंदलः T | संघ: for समूह : V । पाटलं V पूर्णज्ञा B | सहायश्च T | निगि B | यमल: V1 शेधांगT | चंचल: चपलञ्च अस्थिरः । स एव सरल: 171 om B | बहलं T | अवक्रः for अकुटिल : V | डुवि० च for वृक्षवि - V । हृज्यः [य: ] for मनोज्ञः V | तेसल: BT | देशः for जनपद: V | कोशला B | देश: for जनपद: V 1 466. नहिलि - C | दीर्घश्व || B | 467. This Sutra is missing in B, but the comm. is given | श्वांतादेशो भ- B | 468. -कुपि - om. B | तृपली V । तृफल V | शुष्कं तृणं B | दासीजातः B । अबहननं B अहननं V अवहनं Tp.m. 470. शर्मेवा व च वा B शमेर्वे CT V | शबल: B TV I छोड़ेंगादि- B | The 471. छो om. T Aksharas in the commentary are cancelled in B, and गोदिश्व (वा) stands in the margin, स च डग्गादिग्र्गादिर्वा I वाक् विघातो । - घातोऽर्थविशेषश्च । अर्थविक - T | 472. बारजः T वाद्यं V | अंतरदोषश्च T | सस्य महण - T | - ग्रहणभूः VI 473. किद्वा भ- T | 474. -कज्यलेज्यल-C | देश: for जनपद: V | केर V 1 देशः for जनपद: V । तित्तिरिः 'T' । कज्यलं T | इज्जलः ऋषिः दुवि° V। भूम च T | देशः for जनपद: V । शकेरुच्चास्य BV अश्वमेधः । पाक च T | हस्तिज्वलः T हस्तिरज्वरः V । किae V | - मुलादयोपि | B | ला मुर्दि० मुल पुरंति पूद्रलादयः ॥ V । 475. वलि BCTV नदि-om. B | शलाशयः V | दुवि० व्या -V | घटाद्यंशः प । वलाल : V| राजा ऋषि च V। देशः for जनपद: VI ऋषिः राजा च T । अकृतज्ञ -= Boehtlingk, Ind. Spr. 35. Paddhati 703. Subhashitāvali 2991. According to Peterson the verse is taken from the Anusāsanaparvan.] क्षपः V। शकालः देशः मूखैः धनी चV | 476. बिडत् B। बिडाल: B | विलालच मार्जारः V । बिशंT | पू: for नगरं Vपाने पीयते पानीयं B : for वृक्ष: V | पियल: V 1 478. गश्चतिः T | 479. रसातालं T | लेप्यद्रव्यं B | लावाल V 480. कंकालं T | हिंसेस्त च V । द्रुवि० for वृक्षवि - V । रात्रिचर - VI - शेषश्च T | जनेवो तो B पंक: for कर्दमः । शेवालं च VI शः शव V । [ ऋ ]बेव om. BI 481. आत्मातिषितं च शुक्रावर्त्ते । शुका जैवं T हिमं B कणकञ्च । गृहं च ब-T | पिक: for परभृतः V Aho! Shrutagyanam Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 :482. भंजेन लकच मंदे न- । । शोच 505. -खटि- om.VI -यशो- VT-गृfor पिशाच: V। om. BV | -द- B | -३यामिशाला--CI 483. पुरी for नगरीVI -हस्वीणभ्यो V। कसम्भं च om. B | शय्या for 484. स्थंड च को कर च । कः शयन यन्त्रम् V गतौ नत्वे B | स्मयः for प् च एकवेः क च V मरिचविशेष: BI अहंकार: V 1 देश: for जनपद: V| तिर्यग्वाल: 485. हृषिवृषि-1 -मंठिभ्य '' | बंधनं BTVI V। शस्त्रं for आयुधं निस्तुषत्री-B वीद्यादि 508. शेवा प्रबला निमश्च । प्रवलानिगाVIन्योयोपेतं V। उट्पर्क: TI Tमेंद्रश्च T | देवास्त्रं VI 488. -हि-3-वहि-CTV-1-वंदिभ्यः 507. उद्धं च B उद्देई च C उर्ध घTI BCVI स्थल: V| कृष्णपक्षः प्रासकश्च V|| उपरि om. BV IT repeats उर्ध्व after बहुला कृष्टिका B | बहुली पौः VI उपरिव om. B TI 487. तुमुलनिमुलनिचुल-C-चल- BI 508. -राति: C-राचांत: VI -मञ्जुल-om. V | कुमल: V1 व्याश्रमयुटूं VI 503 -लष Cv -लघु च corrected चंलुल: for वञ्जल: B मंजलः मनोज्ञ: V| पृथु to सिप लिव इत्यादेशो भ-- । च Tथ च । । अवयवप्र- V} भक्षाव- 'T' 510. No commentary of this Sūtra भक्षावि०V कण्णांशथVI-वलगुला-BI in क्षत्रिय BTE 488. -वलि- TV I-बधि-- B -बधि 511. -धाषि- T|-धि- B| -विल्यवि'T | गडुड् and गडुल: for कडुडू and कण्ड्ल : TV | कपाश्मा for सुत्र --पलो V | क्षुद्रश्च BI B | बधि BV | बधूल: BVI रसायनतं- TI इष्टः for अभिलषितः ।। श्रुवः वहनभांडं V | 483. वोऽतश्च | | तांबुलः तंबुलः VI नितिः V | सौत्रः आभिलिषित: विल्वं V | V पुगपर्णसंयोगः ।। adds स्वोः थाऽ०वलोपे before अवेत्य-1 490. दुवि० for वृक्षवि-V देशकाल-शकाल VI 491. -बबूल-TV -वचल-Cोम B 513. -जिह च CTV I जिह इ- TI मोक्षं V | कारीषोऽग्निः T। बधेर्वोतो वश्च B वधेवाडतो वश्च T वधेवा तश्च V | वब्बुल: B 14.-मी वाम्बादयः B-मीवाद्वादयः C-मी वालादयः T | हयतेर्वश्च हयते- B1- राह च बछुल: । बबूल: V I दुवि° for वृक्षवि-VI TV ह च TV| आत्मः आत्मीयं B नात्मात्मी493. वाज्यत्रवि । वलिवि- B विदला यजातिषु: V | जलं for उदकं V | अवा B अंबा उमत्रवि । 494. ग्राह्यानयां V | कायते इति कोल: BI V| आदेः प्वादयः || V. Perhaps आप्या 10 गायते इति गोल: BI परिषा VI be read; comp. Ujjv. Un. I, 154.1. 495. पिंछ च TV पीछ् ।। वाद्यवंशः for 515. -बटि-1 |-पणि-- om.VI बडवा वादित्रवि-VI वडवा चऽधा V| पल्लवः किशलयं BI 496. बलि- TI 517. मलिणिद्वा । | देशः for जनपद: V| 497. खलः प्रत्यय: च--लश्च एका-TE 518 -कुरिपुरिमुरि-CI-मुस्थाभ्यः V| कृत् रसना B | एत्वं आत्वबा- VIमिग- = S. Cमान: V स्थावः TI TV, 2. P. VI, 1, 50.। 519. जभूगो: B | कैरभैरौ च om. T कैरः 499. वल: CT -स्थानकवि-B भैरौ च VIभयानक श्चेति V | मत च T मुतच VI 500. बलप्रत्य- B| गस्त्यो न दुग्धः ।। 520. शृणोते-BI इल्वलाः भं ।। V आदेः तात्वलादयः || V। 521. पृथ च CV पृथच T | पृथ इ-TI 501. -बलण्वला: B| बल इत्येते BI 522. इत्यस्मादिवः BI जपा- = S. II, 3. । जलवाचि BI 523. पृशे C पार CTV पार इ-TI 502. हेमल्यं for सुवर्णम् VIन्यवा- = ऽर्हन् for भग--करः V | 5. IV, 1. P. VII,3,53.1 मुकुलं बसं च for 525. मीहि-C |-हीण B| -प्यैपा-C1 तदेव बिलं च ।। शन्दे तालव्यांतः V | वि. for | गमनपरं om. T गमनपुर V| द्विजः for ब्राह्मणः वृक्षवि-VI Vब्रह्मणः B. V has द्विजः instead पात्र 503. कुलकु BT कलिकु-C| कुल कुम om. TIGER VI इत्यादेशौ च || 526. अधिः for समुद्रः V । त्वं correct.. Aho 1 Shrutagyanam Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ed to पाT पत्वं V| तत्वम्-V | नेत्र पानं सुखं || T | 527.: वंस: V 1 528. शंगवेरं BV - VI 529. सारः B | कमलं BTV | 532. -मंथ V 1 533. ब्रह्म: 1 534. -री चातः C-रीच्चातः T | कर्णसं B वर्णशं-T वर्ण: शं-V | अभाति चाममांसT योभाति च मांसं V | - भेव B. See Hem, Anekārthas. III, 712. 535. कुणिकनि V | किशः म - T | वड् B | सौत्रः om. B 1 बडिश T | 536. वले-CTV | वलिशः V । बलिश V | बडिश T | 537. ततश्च BI कित्ाम-B | दु: for वृक्ष: V1 इण्क् 538. मस्जरंकि -B | व्यङ्कु- =S. IV, 1. P. VII, 3, 53.1.मुद्रशः BT | 539 वालवश्या V | पतशः स्वः V 1 540. वृक्तमाभ्यः खः C | - मीमाभ्य: B | संवत्सरं B. Vhas अब्दं instead | छागः for उत्भः V | 541 योरू च वा CT योरुच वा B | 542. सूर्यादिः B सूर्यादि T | लोहरणमांडें V | अर्कपूर्व om. T 543 से च C 1 546. आपरिषः V 547 ऽद्रिश्व for पर्वत V 1 भूः for भूमि: V 1 548. दुर्वा च B 549. त्रात् इषः प्र-BT pm 1 जश्च V | दैवकन्या BI 550. अभक्ष्यं B | 173 551. This Sūtra with the commen.tary is missing in B | किल्विषा V | 552. भूः for पृथिवी V 553. जृॣ-V |−रज्जुः V | 554. रुजि -C | रुजीषं V | धनं । उपहतं च B | जीषः V | द्रु: for वृक्षः V । सकृत् BT सुकृत् V । 555. T adds आदित्यः before आदिनृपः । 556. वेष्टनं कं VI 557. हृट - T | सूर्य : for आदित्यः V | वर्णशेषञ्च BT पक्षी for शकुनि: V । 558. ना for पुमान् । 559. रोषश्च for सरोगश्च B | धनु व BT | धनुषं V । 560. -फलिखलिवृ- C | - मंगिमंग्य - B| भजनं V | विo for वृक्षवि -V | देश: for जनपद: V । सूर्य: for आदित्यः V । कदम्बं B | मंजि शब्दे पीथि पाने सोधी । सुधा for अमृतं V | पक्षजा for शकुनिजातिः | T adds in the margin विशेष: after जलचर | द्रव्यक- B | आदित्यः for रवि: B | 561. कारूष-om. C | शैलूष-om.B | कुरेदतश्च B | रूपतीति वा अटरूषः - V. T om. अटनं- रादिः । षोद - S. III, 2. P. VI, 3, 109. | देश: for जनपद: V | 562. कल्माषं V 1 56. माषकः B। माषादिः । शबल: वशेषश्च B | 564. कश्यसि CTp.m. | आटरूषक: T' | प्रियस्य पुत्रस्य चाख्यानं 'T' | कृष्णारिः for विष्णोररातिः V | श्वेतपक्षः V | तृणं T | शरीरांशत्र V | अक्षः प्राशक B गर्वः पक्ष्यंदाः सहायसाध्यं पिछं च V | अब्धिश्च for समुद्रश्च V । 565. - रीचातः ॥ T | पक्ष्यविरोधः V 1 566 ब्लुषेः प्लव B प्लुषेः प्लुभ्र C प्लुषेः शब् || T ब्लुषे ब्लच V1 में for नक्षत्रं V 567. रिजिरिषि - C | -दि-T | युरि ॥ B for नक्षत्रं V । कृछः for कृत्सः T | ओदनश्च || B | दुःखसंघश्च V | द्रु: for पादपः V | नमः for आकाशं V । - श्रयच B | श्रोतः BTV | 568. - गृधिस्त । तश्चांता-B | तुर्थबाध-B | सूर्य: for आदित्यः । पक्षी for 569. शकुनिः । फलवि० V । रध इाटे = S. IV, 4. P. VII, 1, 61 62 । नभः for आकाशः V | चैत्रः B -निकता B V | नाम om. BJ 570 सृवृयिभ्यां C | पक्षवि - VI 571 -युवाभ्यां C | वहसः with its synonymes comes first in T | मक्तं अणं VI यवसं पश्वा - B| आश्वादि- T | 572 दिव्यते इति दिवस B | दिनं for arसर:V | व्रीडयते BT | नृत्यते B | क्षिप्यते B | सीव्यते B | श्रीष्यते BTV | इष्यते BV | इष्टधाचार्यः B | उरिः गतौ । 573 574 तुक्कसा- B युवापलि- B युवलि - CT V 1 दुलालभा B | वलासः T | Aho! Shrutagyanam Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 575. किलासः BIपकप्पूर V | V adds बलं before गतिश्च । पक्षी for शकु576. तालि- BI निः V | नदी om. TI Vaddsu before 678. अपुसः । -सामान् ष- BI भगिनी । दधिः B TV Iशिची B| इंद्रा-V| -सा नष: ।। इतोक्य-=S II, 4. P. IV,1,39-411 579. डिसडिसी C प्रत्ययो भवति T | प- 608. कलिपि-T| त्रुटि-om. BI-शुठिहिशः T | शस्त्रवि. for भायुधषि- V| बिशं B तुठि-T | -बुद्धि-T | कलिः केलि क्रीडा BI विशे। पिलि: V | क्षुद्रः पेला B क्षुद्रा पलाः V | मांसपंडः 589. पीडोन-ए। BI विश्वा || V | अनः for शकटम् V | ओदनं 583. विरुच BI B | रक्षाचर: B1-स्नेह: B | भूः for भूमिः ।। 584. किश्मासक प्र-TI कुल्मासः V | मा. 609. -पांतकृ-T|-पू-य: B | -पांतेभ्यः पादिः TI Tरुचिःप्रीतिः दीति अभि- Bरुचिः दीतिः [ऋवि?] 585. अलंबुस BI वांछा च VI राजा घT | वक्रं च V| पर्शश्च TI 589. -मटिपटिलटि-B |-पलिपल्यऽल्य- सूचकं BI छिदिः B | पुलि: B उलिः TI Vधन्या- BI-साऽमत्रं V पटहं V । सदेः तभृक्ष for कर्षणभूमिश्च V। देवश्च for वेदश्च BI BI नटहः B | सदुः for मन्दः VI Kणुहिः TIPः for वृत्तः V| आखः for मूषिक: 591. विकटि-0|-समिभ्य B| वर्णवत्का- V। नाग: BI: for नगरं ।। BI-साऽमत्रं V|आयाम: VI ___810. दिविवृत्तेर्वा VI BI वृत्तिः ।। 593. उहस् CIनिरपू- T I-निगमः TI नितिः TV | मुखं च TV | वर्तिः TV I 594. पक्षवि.VI 611. -देभन CIतित्तिर: T पक्षजा for 595. अनेरोहकः B -रोहः VI दुः for शकुनिजाति: V | अपिः VI समुच्चयो B | वृक्षः ।। 612. च इकारउकारएकारी B | मनिः सं597. लशेरा BV | आदेः चुपेः चोक्षः T| मेनिःधू-TI V। युद्धं VIपीयूक्ष्या-B | 613. -स्तम्भिरि-C | नमस्तु 0 कतका598. समया निकषा च पर्वत V | -सयार्थी तकादिशूची B केतक्यादिसूची हत् अब्धिश्च V | एतौ ।. नेमिः विद्या B1-धरणा -T धरेशोऽहंश्च VI 599. प्रबलार्थः V | मृषा अनृतं B मृषा 614. नलुक च C मलुक् च T| अभिः BI अभूतार्थ VI अभ्यग्नि-=P. II,1, 14 | द्रुः for वृक्षःV । वृक्षः ___600. चंद्रः बुद्धिश्च V | पक्षी for विहगः पापं om. B। गहनं कु-BI वृतः ।। 615. दूत्र इत्या-T| त्रिमुनि-=P. II, 601. वृमृथि- C| वृथा for मृषा VI 1, 19.1 802. मुचे-C Vकित्माः प्र- T|ध. 616. निःवसतिः BVI वां- BI 617. वो CIरिच: ।। 603 चादेशो BI 618. -फलितडितडिवजि-01-तलितजिवाज 605. निषेधः V | आः स्म- BT वि. -BI-तडिवडिवजि-VI -सहिदिहदि-B p. m. षादो V | T has भा दीति: above the line| -दिसहिदि-T-सदिहदाहि-Vp. m.1-स्यहिसहपूर्वात् B| नात्रि= S. III, 2. P. VI, TI-वतिभटि-B-वटिभटि-TI -कांचिसंतपिभ्यो 3,78.1 T| फलं for दलं V द्रुजातिः V | पुष्फावसा606. चंद्रः for इन्द्रः BI नं च B | वाणी च for वीणा व B1-नाशश्च TI 607. -बलिवलि-C| -वधि-BC TVI विणति-=DS. IV, 3. P.VII, 2, 115.3, 32; -साध्य- V | -वासिकालिछ- B | रात्रिः for 54.तत एव for बाहलकादेव V। शस्त्रं for आराशिः V | युद्धंग V| B | देवतापहारः VIहि. युधम् V | सम्पूर्वः T | संतापिः पक्षराजः VI रण्याशिलाका Vतंतु B | क्रियाशब्दः om. B 619. -खान्य-V। युतो-B1-याणं च BI T|अग्निः शाखा B ग्रहणः भः V | ईश्वप्र--B ई. कोणः for आश्रिः V| संख्यावि० श्च for अष्ट-स्थाधरप्र-TI भिरिश्च V |Tadds पिता before नम् VIनिधिश्च V| काषक: for कर्षक: T| बशिता। प्रकांति: T| कासू BT कास V | का. कमि BI,गः for भ्रमरः Vापालि: सेतुः कपणे सयः B। प्रहारं मृड्भा- B मृदुभा- T मृत् V | पशभक्ष्य Vाकारः शि-B प्राकारानं VI भा-VI सज्जः गुणः VI एषणी T । पैंज: BII पश Vवृद्धिः B| पर्व: Bp. m.Tp. m.VI VI Ahol Shrutagyanam Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 620. पादाचा -T ! चात्यजिभ्यां om. T पद :- =S. III, 2. P. VI, 3, 52. । द्वावपि पयर्थी V । for वाय-त्रम् B | वर्द्धिश्च V | 621. -कुलगर B | शरीरांशः ||V I 622. - स्मादिः प्र-B | र B संघः ऋ. क्षपाद - VI 623. इवांता-B | वा om. 'T' | जभ for विद्वांश्व V | स्वरक्षेप: for स्वरदोष: BI 626. लोमशिका V | 627. मयूषश्च B. V has भाव instead | अवधि BV | वे शेष: B | 628. वेगोर्डित CV वैगो B 630. - शटिभ्या-B | निस्वः T | 632. भवति अस्योकारस्यात् [ ? ] T | 633. मुखे-T मुषैरुचांतः V | विधानबलात् T विधानात् । 634. कावाक्रीचि - B कावाकीक्री-V 1 -क्षुरितूरि-C | - ज्वरित्वरितूरि-B | - त्रिपू - VI; वेलक्षा-B | कबरी B V । वल-T | गुणावे - V निः पूर्वः निःश्रेणिः V। पृथ्वी 1. V has भूः instead | सूर्यः for आदित्यः V | देह: for शरीर VI मनः om. B 175 635. ऋघृतृ- C ऋ - T. Vom this Sūtra | सूर्य: for आदित्यः V | वायुः for अनिल: V | Perhaps बस्त - instead of वस्न to be read, though न is very distinct in V. I 636. श्चाद्भावः पृष्टदेशश्च V 1 637 धूणहूणघू_C | हंग् निपात्यते om. T | उच्च रचांतो for उत्वं त्यते V | से नं for चेतनं VI 638. आदित्यं | भूः for क्षितिः V for नक्षत्रम् V | सूर्यः for आदित्यः V | त्थापनथियष्टि: V | दुःखार्थः । खार्थः । वितीर्यत VI 639. किंके - B 1 640. This Sūtra with the commentary is missing in B। कके VI 641. चादिः VI 642. शस्त्रं for आयुधं V । बडिश -T व डिश VI 643. आपूत B - णिः स्यात् B | आशुक्षाण: B आशशुषणि: V 1 646. इक्ष्वाकु - TV. Thus also Hem. Anek. II, 167। स्नेहोपक - V 1 647 द्योतते B वृक्षं = P. I, 4, 90. 1 प्रथमं भा-T प्रथमं नं भा-V | 648. This Sūtra with the commentary is missing in T | पक्षवि VI 650 भित् BCT p.m | श्वितिः - BTp.m | श्वित्वात् BT pm. See S. Iv, 4; P. II, 4, 52; III, 4, 113; 117. I 651. -शोपुच्यमि-C | -येण्- V 1 प्रभृतिभ्यः B V | छागः शिवादिः त्वग्मयो जलधारः V | अंगुली - VI दुर्गतत्वविश- B दुर्गतः दुष्टः B प्रपूर्वात् B | 652. देश: for जनपद: V । 653. - वहियस्य- B अमात्यः om. BI कुटंब Tp.m V | शरणं B वर्त्म T | 654 वश्वास्य B 1 656. कच् वा B भवति वा T | 657. वातिः वातः B | 660. - क्षिपेरेस्तिक् B -क्षेपेर-V | दुजातिच V | च om. B | 661. - B| गभ् चास्या - BI 662. देश: for जनपद: V- | रिपु: for शत्रुः T | 664. यजेये च B 665. वदति V । दिशः for जनपद: V 1 युजादिर्विकल्पितणिदंत- T. See S. III, 4. Westergaard, Rad. p. 376, §34. । छंदंति V | गृहछा - T | काकस्थि - B | 666. - रुकिः । शकुनिः । 667. नडो दा - C | अदिति दाता देवमाताश्च T | 668. पालने । एतस्मादितिः B | 669 p.m. V. 671. 672. वीसंघ - T | अरु V 1 अस्थिः T घित्वं ग- VI उदारथिश्व VI 678. पात्रः तमो V | 674 तडेनेडित V 676. - स्नादधिः कित् B | व्याधिः V | 677. वेसनं for सवनम् B | अभिः for पावकः । वलीव - V | वन्हिः for पावक: VI 678. शौरिः T | 679. - प्रच्छिभ्यः B | अल्पतंतुः B | 680. -धम्यशादि - T | धर्मानि V | शिरा T | अशनिः वजं इंद्रासयुधं । अटाने: पापंचाग । 683. भूः for मेदिनी । 684. After this Sūtra Crepeats Sūtras 667-684, a mistake, due to the resemblance of Sūtras 666 and 684. 687. बलि- T। नेमि V । साभिः B. 1 पक्षी for बाकुने: V | शंक: Bशंक: Tp.m. 1 सामुद्रविषं च T | Aho! Shrutagyanam Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 689, खने-B सर्ने-CT ससे-V | -स्यो कारो भ- TI 690. क्षजंतुः || TI 692. -सयसो- T सयशो- V। -सिभ्यो B | परशु : Ts.m. 1 -शुका । स्थः । हनः । कुTp.m. -शुका रश्नः अहः बकश्च V| वंशक-- ठिनकश्च B वांशिकठिनिक T | मैकि अमंडनं V | मंडन: T | शच्छ: [?] प्लवकश्च B | अड्डिः पादः B | शदिः वज्जः भस्म हस्ती गिरिः T शाद्रिः भस्मा । 693. -कुसिशिविशि- B | स्वर्णं च for काञ्चनं च V | शुभिः दीतिः विप्रः प्रदर्शनीयं सत्यं च V. 694. वपुः for शरीरम् VI 695. -द्यादयः CT VIकिद्रिः प्र- BTI आदेः क्षोतो दोंतोतच V | अधिः for समुद्रः VI बली for बलवान V | 693. -शदिक्ष द्यऽदिभ्य-V | कोचश्च BT 697. -चिः B T-चिप- Tपतचिः BT VI 898. वल्लरि लता सस्य- V। 699. क्रोधनच T पृथ्वी T. V has y: instead | अक्रोधनश्च T रणः for संग्रामः VI 700. वृषभश्च for अनडांश्च VI 702. विशेष: V| पाणिपुटः पुट: Bp m. पाणिः पुट: Bs. m. VIप्रणामः BISee Ilem. Anek. III,617. । 703. मासालिभ्यांमौ- VI-मो- C । दुविशेष: VI 704. तृपवभ्यो टि: C । कः । हिंकः BI 705. दृशस्त- B कृशसृजागृक- CIT adds वायु: before पशुः । मगुकायः B मुहुः कायः T मंजः कायः V। भगः तंतुः B.। तंतुवायुः तदद्रव्यं ।। पंचालातावक वक्षते BI See Sat. Br.XIII, 5, 4, 7.। परिधानं ग्रंथिः मू. लः बंधनं च V. 706. -स्थविस्थिदवि-BI-स्थिविदिवि-VI -दीवि- om. B1-किकीदिविकिकिदिवि-B1-किकिदीवि-om. cV | दुःजातिः स्फिविः दुजातिः स्किविः वृक्षः V । प्रवेशकः तंतुवायुः । । कुष्ठी om. BI फलश्च V। पूर्वस्य दीर्घत्वं V किकिदिविः चाषः BI 707. -सिभ्य: BIसिः कित्त- T। उदपानच om. B । कुशूलश्न T। अक्षिः B VI 708. उज्जयिनी TIवाणारसी BVT p.m. कासी- Bp.m. 709. जलदः V | अलू खलं B उलूबल: TI भूः for भूमिः V निव्य [त्यश्च for सनातनश्च VI 710. स्मात् हि: प्र-BI 711. सादनमो- T | तंत्री for तन्द्री VI तंची B। (कु) पुष्क- पुशष्वः Vवादित्रं | सूर्यः भू: for आदित्यः भूमिः V । पशुराजा B पर्श: TI 712. नाडी: V | आयतनश- VI 714. दिव्य दृष्टिः ।। सूर्यः for आदित्यः ।। 716. -मनिमंजिशीवटिपदिगंडिचंच्यमित्रपिशूसनिक्किदिकंदीदिवि यंधिव्यंधणि- Bi-विद्यधर्वध्यणिC|भंग भरणे वा om. B। दु: for वृक्षः ।। आदर्श: B। शस्त्रं for अस्त्रं V। दानं T | अनुः TI पायर्थे V | मंजुः for महः । । सर्यश्च for आदित्यन V । बटु: T| घोंटा--11--मध्ये वा मां-BI देवदत्ता च B1 त्रपु: BV | शरु V] शस्त्रं for आयुधं VI प्रपात: V निहुः BV T p.m. I चंद्र: for चन्दमा: V| पत्तं वनस्पती VI भागः BI -संग V | चंद्र: for चन्द्रमाः V | सूत्रोकतं V। क्रीडनक B| सुक्ष्म BV | धान्यवि अVI 717. सधिभ्यां CI 718. पंशे- B V | पशुण नाशे B | पांश: BV 719. अंशः रविश्च शंशुः दी- V । सूर्यपांशः दी- B|--Zश्चकारात् पर्वपर्यायौ ।। 720. -नाक च CVI 721. -यं धतौभ-B | साधु B V शीधु TI आसुर VI 722. -ज च BVI जुः TV I 723. -वेष्ट शलाका B 724. नरंदेः Bनेरऽ चि: V |-दंदतेरु: BI 725. किमः पू- B | शुकधान्यविशेषः हिंB शकं धान्यविशिखा VI 726. मिवहिवारच-B/माता for मानं BI गाल: TV | मयु TI बह: भुजः प्रभूतं च VI बह om. B| सोभनं V | भीमादि-=S.V,1. P. III, 4, 74.| -जनपद: BI 727. लश्च वा V । श्लेष्मा om. B | तालु । हिल: कषायश्च T कषायश्च हिंसश्च VI. 728. कृकः स्थ- TIक चः CV क च T| कश्चांता -B ककारश्नांतो T | Probably कुकुटः to be read. 1729. -धादिभ्यः TV | पुरु महान् पुरुषः लोक: VIF for पृथ्वी VIV has उत्साहः for सर्या-श्व, and gives the latter without च as synonyme of संताप: which is repeated ___with its proper synonymes. | -वाश्या TI Aho 1 Shrutagyanam Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 177 वजं कामश्च मकैकावेशः V | आदिशब्दात् B 780. हेचि Tहहिं च रामच:T राम&VI आदेः VI 761. पृश पा प्रियंगुः फलनी V। पंगु 781. रजेर्लक् || BI सकारश्च लुग् BI नील BI किमि- T। गालश्च BTI सौत्रः गतौ ता-V| -ध्यांतश्च T I विश्व मुतः 762. दुः for वृक्ष: VI V | ग्रह-=S. IV, 1. P. VI, 1, 16. 763. शलाटु TI ग्य क- = 8. IV, 1. P. VII, 3,53.1 764. अद्यवेरिष्ठःTE-रष्टुः BC-रिष्णु: V। 732. दुस् स अप वनि इ- TI दुष्ट B दु:- -मिष्ट प्र- B | अंजिष्टु: B TV | अविष्टुः स्थःV | पानं च BI BT VI 733. वेगी च V पपुरुः अब्धिः चंद्र: V। 765. तमिमनि-TI-मणि-CVI-कणिपीनांग: for पतंग: BI om.C-कनि- TI 734. कृग B1 -स्य उर्भवति B1 देशः for __767. -मांडकंडकी B I-रूयमांड कंडक जनपद:VI-प्रतिपतिपक्ष: BI इB इति om. T | पशुन- B मृकंड: B मृकंडः 735. अस्य इन BIपिचरस्थी-VI कृत:TIV T p.m.. 736. -रूच TI 768. वेणुः, see S. IV, 4. P. II, 4, 738. उड च CTVIS for नक्षत्रम् | 56.1 उर्दू दारु B । देशश्च V I 739. क क C TV सभ्य--कश्च om. B 770. क्षिपणः वातः VI सयवायः T सध्यवसायः व्यवसाय: ज्यो- VI 771. कित् om. T! 740. रिरधिलंलिंगे-VI 772. यज्ञादिः V पदेणु BI 741. सभा ३मन् व इ-B सुला अव इ-TI 773. -म्यऽगमितमि-V-तनिमन्मिजिन्यसूर्यः स्वण V | लोकच वाक्य- TI वायुः स्वायु: B1-विताधाग्ला- T-धापालाम्ला-B1-हन्यहामुस्नायुः T| अभयुः Tकव्यं VI याशि- V | -यादिक्रुशि-C । कुशूलभ BI 742. पराभ्यां B सूख-TI मंतव: वै- VIअस्तु T,!-दभुभाव: T. see s. 743. श च T | सु शुश्च T VI IV, 4. P. II, 4, 5. । मस्तु T -मूलः 744. तृ: वृक्षः तत् शाखा च ।। B | भातः दीप्तिमान आग्निः शरीरांशः वि- V | 745. हरिःतु: द्रऋषि: अद्रिश्च Vसागरः लोहादिः V । -कृतश्च B1 शस्त्रं for आयुधं VI for समुद्रः V । विद्रु T | दारु: B I दृश्न for गाल: TV| क्रश- = SI, 4. P. VII, वृक्ष VIविकलः पादः V1 कद्रुः B कर्ना-T 1951-शेषा) TI कडू -VI वहि: B वहि जाताः । 774. वास्तु: V|सन् निवे- B} समिनि वेशश्च TI 746. - भरण्ज्यादयः B -भुरण्यर्यादयःc 175. किन्यौ च || B | सूर्य: for आदित्यः भरण्यध्वर्यादयः T-भुरण्यध्वर्वादयः । । केवलं VI कोल: B | वाल- TV! -घृतभाजनं घTI यानीति B| भुवं याति भ- TV । अभिपूर्वान्ड -पानभावनं च VI भाते BI-तेर-VI 776. यजाक: BI 749. समू शंकः कालकबाण: शुलं शस्त्र। 777. अबः TI 750. हि: Vवा om. Bलद्यावांश्च T 778. चायेः TI लजावांश्च VI डीक: व-VI 779 अनडाश्च TI महतुः । अग्निः । दिजः 752. -कटि- 1 | पक्षी च for शकुनिश्च T। लक्ष्मी BVI V। कटाकु: B | भेक: T om. VI 780. कृतः BI लातु: T p. m.VI 753. कित् om. VI शुभ्रः B स्वर्भ TI 781. अद्रिः for पर्वतः V । मुषिक: B आखुः V IT adds पारापतश्च before 782. जलं for उदक VI परोपतापी च । कुषी बल: VI 784. धुक् om.V । शीधु: । 754. निचाकुश्च TI 785. धूगो om. V | धुन च CT I धुन 756. वृभ्यां C| कदाकुक VIकिदाक: इ-TI प्र-T। गुदाक: T। देवाग्निः B । पक्षी अस्त्यः 786. यमाभ्यां दाभभ्यां T| मूर्यः श्च दक्षVI सर्ना B VI णार्थ धनं च V|स्वर्भाणु: B विश्वाभानुः सूर्यः V| 758. फल्गु: BI 787. सित्वादा-TI The graminatical 759. अंतस्य BI note is missing in B and V, and stands 23 Aho! Shrutagyanam Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 before धेनु: in T. See S. IV, 2. P. 816. शीदित्या- सीतासह V । लत्वे VI, 1, 45.1 om. Ti 789. जह घCTIजह इ- BT | 817. -ररुः TIतुंबरुः TI 790. कगो चांता- BI 818. कुंदित्या-T. In B it seems to 791. कित् तु न इ-- B| कृतु: Tहत्तुः be कुंट इ- T हन्त: V(हिमः)। 821. द्रुश्च for वृक्षश्च VI 792. सन्वद्भवतः TIविप्रः दिनः for ब्राझ- 822. नर्षिश-- TV । लज्जाशील: VI णो दिवसः। प्राणा: BI वृक्षांश: V। 793. चंद्र: मेघः BI 823. उप च BI 795. जीवोर-CTp. m. नाम्युपात्य- 824. अस्यादिगर्ग T अस्यादिर्गग उV" त्वात् VI द्रवि ह्रस्वश्च V | अश्वश्च om. TI कमपूर्वादनितो. 796. वचेरंक: B वचविनुः V|-द अंकुः प्र. डीतो अणिते BI वचंक: B विप्रः for ब्राह्मणः VI 825. पर्शः वक्रिः संज्ञVI-स्थिः TI 797. -मण्डि- om.V पिकच for कोकि 626. मस्जे:-- S.IV, 4.P.VII,1,601 लश्च VI पिकः for कोकिल: V । स्वर्णे VI 829. नर्षिभ्य CTVI अंगारप-TVNमुदितश्च BIV adds अनुक्ता निगंताः at the रिषा B| चमू T | देहः for शरीरम् V}-शिः end of the commentary. I श्रीः ज्या वररोहा V ज्या बेरारोहा B ज्यावा: 798. असनं TI वरारोहा TT or -धः। कंड़: विष् च BI 799. Q: c । अंबु: TI 830. फल च ) 801. यदिशधिदसि V । यद्य: T। मूर्यः for | 831. कषेण्डीच्छो कडांछो । आदित्यः VIपिता प्रादुर्भावः वायु: B पिता om. 832. धश्चांता- T-पन्नकन्या BI VIऋतुश्च VI 833. वृद्धि-=S. IV, 3. P. VII, 802. सूर्य: for आदित्यः ।। 1141 803. -मनेमिछं- T वातश्च for वायुश्च VI 834. जश्चांतादेशो भ- B) 804. भूकृपिचरेरन्यक् T भूक्षिपच- CI 835. शक्त्याख्यमस्त्रं वि° for वृक्षतिन्यूक् ।। हर: for ईश्वर: VIक्षिपन्यु: VIअ.. |V मतिः for गातः T। कचते TV शल 805. इति om. TI गत B शलते TI 806. -सिभ्यो । चरुःT | नरुः | 837. लश्नांतादेशःTIभवति का BIआरूः शः for जनपदः V। कलबि- T| अश्रुः नत्रांबुः दर्ब TI 838. अलाव: V) 808. प्रत्ययोऽस्य च TI 839. -दीरे ल च V | लांतादेशश्च ॥ TI 809. -स्तु च V | प्रत्ययो तकारश्चांतादेशो छादिच्छेय ।। T| देहांशः for शरीरावयव: V | शद्रु B ना for 841. स्वरांतोऽनश्च TI वक्त्रः for वज: B) पुरुषः V | अर्यु: BI मां-=S. I, 3. P. VIII, 3, 24. 4, 58.1 811. हरिकषिशोषश्च T | मद्यते BVI न स्यात् ।। रेचांतःT | देवदुः ।। 842. -दिधिषः दि-VIदिधीष् इत्यादेशावस्य 812. अनः for शकटम् V Pः for वृक्षः - T। यायस्याः देधीषुः । दीधीः । येष्टा TI V। कुटादि-=S. IV, 3. P. I, 2, 1।। 843. चर्ममयावपनं VI अरुरुः V | आसुर for आयुधं T शखं VI 8 44. गाधि- B-स्वधि-C प्रकृतिश्च BI मंडनं VI 813. कर्कि गतौ सौत्र: V-चिर्भटी B-च सर्द्धनः कृतिजाति: VI बलिदा-T) -श्च सुरः। भिटी VI आमावास्या TI 814. आदेश्च om. BI-- चोकारी कारोभ 845. तृषडिभ्या TI खडू: TV I T| एकारदेशौ भ-- BIT adds उ [अ] वैत्या 846. दर्वी T | कुष्टविशेष: BI तिमिाते before उर्वारुः। 847. व: V आदर्शः B| कुर्विदश्च BF -815. कित् om. VIदयासार: TIपियाल: रुविंदुश्च V I वृक्षविशेष: T 2जातिः VI 1 848. शंकेरधु: B आभ्यां धू: प्र-T| .. VI VI Aho 1 Shrutagyanam Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 179 849. -दिरंधः प्र-B | व्रण: B | यवलाजः । -द्विश्येषस्य | |-शेषास्य B-प्रतिपत्यासस्या BV I विष्कंभश्च BI TIसाध्वव | साध्विव VI 851. डेरुः B1 कशेरुः B | कंदीवि-BI 884. कर्तृ: B TV| वृहन् B TV| 855. सव्येष्टाः T सव्येष्टा VI वृहती B TV I महत् V-विदुः VIचित्रकण856. -ननंदिभ्यो V | यति नज़-BI निया- जातिः V। -सितमाज्यं Vास्थूल-= Ujjv. Un. ता BIपतिः VI -भगिन्यौ BV | ननंदा BI 11, 84.। द्याद्यर्थः ।। नखादि-=DS. IH, 2. P. VI, 3, 75.1 885. कर्तृः प्रत्ययौ डिद्भवति T । जगत् 857. -नीऋक्षु-T-हवृध-C | राजा चर.. जगती भूः ।। T| सरथिः V । मुशलं B मशल V | घातका 886. -र्डवतु V। उत् दीर्घत्वा यर्थः ।। इत्याद्या अपि V | 887. हृ-- हरित् om. Tहरितःom, 858. इकारो तादेशो TI VIगछति नरं यो- V। इति om. BI 861. ऽप च B| -स्यादेशश्च || TI 888. तकम् om. BV नाम्न्यु- = S. 862: पच CTV I II, 2. P. VI, 3, 57.1 863. -दानी- T। उत्पूर्वात् B । एते 890. मादेवा सूर्यः forआदित्यःVतक्षा om. TI om. V । तृणं om. B I स्वर्ण V । बर्हि : T V. 864. ऋत्विद्यभिधेये TI 891. रुत् । 865. विरेतोच्च T विषेरितो इञ्च VI 893. -स्मादृथुः प्रत्ययः किद्भवति TI दैव-TI-वद्धिकिः । । सूर्यश्च V । क्षदः ।। इति 894. दरत् जनपदः समानशब्दः BIदरादो om. V। क्षेता BV | नियुक्ताः V। मुशलः B सौत्र: om. TI BV om. T| गजासुरं for पारशवः TI पार- 895. डत् VI वशः VI 896. This Sūtra is missing in C. 1 867. नभश्च for अन्तरिक्षं च V च्या -स्मात्तदित्ययं प्र- T। एषः अयं V। शब्दः दि: TI om. BI 869. कः कित्का-BVIइ: उच्चा-V | 897. सत् ।। -सदित्येवं प्र-TI 870. कित्कपत्य-BI एव TI 899. किट C । मद् इत्ययं प्र-- TV 871. -स्मानुक् प्र । इ: उच्चा--V। 900. -मुहि- BI-नु- om.VI -रित् CI 872. तनेईच् om. Bईच -दुचाए। वृषभः B| धंवि V। गतौ om. T। धवु गतौ 873. -रज Cऽजः V प्राकरः B1 शाक om. BIÀ5: BTI at for BTCFT: VI विशेषः प्राकार: T | स्वर्ण VI चंदश्च TIइन्द्रश्च om. TI 874. ऋषिपषिभि -T किदक प्र-Tपृथक् 901. दसियुसिवि- B | इंद्रः इंवृषभश्च निर्देशादेव द्वयत् नानार्थे TI भिष TI B| अपराहृयश्च VI See P. VIII, 4, F. 875. मिज C-मिजः VIभुरवजी TI च 902. कुक्कुर: T। व्योनि for अन्तरिक्षे ।। om. BT | भुर्वणित्या-T-भुरिक:B | भूः वायुः तत्पुरु-=8. III, 2. P. VI, 3, 14.1 एकाक्षराधिकारपादं च छंद: VI-धिक् पादं च अलुक्समासः B। प्राग्वत् Vा प्लिहौच Bप्लेहि ।। रुक्छंद: Tपणिक् T | वैदिक: B वैदेहकः ।। अपरिपू° दमे ण्यतार्थात् अरीनामव्यति अर्यमा 876. वसे: Vp. m. I कि: B V। इति om. TI वायुः अग्निः T। चंद्रः अग्निः 877. लंघरज न-TI-स्मादजप्र-TI - वायु: इंद्रश्च V। ईलोपश्च TI मंध्यते BI 878. दुवि° for वृक्षवि- । । 903. ष्यप्य-Cषप 5 शोभ्यां VI . 879. हस्वश्च om.VIविस्रवा B विसावा VI 904. शिवा B शिरा T। मुनिशि-B | पतिः 880. भूभ for मेदिनी च | B पद्वा रथः पत्तिः वत्सः रथः पादग-TI पर्व: TI 881. कित् CV | अब्धिः तृणः भूश्च ।। Vवर्धकि: om. VI-जाति युवति Vशाकरो 882. मस्यानुस्वारपूर्वः शश्च V |समक्षः आदेः मृषःT वृक्षः ।। रे-V | पुरीतत् । प्रमुखा भवंति BI 905. पर्वतिधिश्च B पर्वश्च ।। 883. पटछब्दादयो ऽनु- T | -त्ययांता 906. -जिहिह-B शुगाल: B TI वणिज्य अनुकरण शब्दा निपात्यते || B | संप V| उका-- VI वाराणसी TV| विष्णुश्च TI मृत्युश्च om. र: om. T उतोऽत Vछपत् T | पतत् स्वट् T। प्रजापतिः सर्पः B। मृत्वरी TI भू: for V बनते रच खनत् T खने रञ्च । सर्वते TI | भूमिः ।। Aho! Shrutagyanam Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 180 907. सृजसको सजसको T | सृज् सूक् इत्यादेशौ भ-Bाज सृ इ-पत्रिकणी Bसृज्वरी V| 908. ध्यापो- CV । प्यायतेः पी च । पीवा TI 909. अर्ध च अंतेई च T om. VI धश्चांता-TI 910. भ्रात्स-TI-रीरीण-V | प्रसत्वा B TV| प्रसत्वरी B TV परीत्वरी च T | सगरः 911. भसति तदिति B1 वसवो ऽदुरितं TI एवं om. T! जायमानवे- B1 वेदना om. VI परेहास- Vउष B | उष्मा B | आतपः TH देहः for शरीरम् V | सन गृहं च V|स्वर्ण VI रज्यु: T रक्षुः VIभुवनं for स्थानं V । साम Tसोमः V| यज्ञ T| चंद्रमाश्च T | अय्मः T अयमा V | तवमा तरिः आताप: T | हयद्रव्यं T1-होत्रं ।। 912. एभ्यो मन प्र-T.उष्मा TVसर्पशि- BI 913. ब्रह्म B TV I बृहत्वादा- B वृहत्वा । दात्मा T वृहत्वा आत्मा V। ब्रह्मा BT VI 914. एदौतौ TV ।व्योमः T | व्यामा TE 915. -रिच वा BI भवति वा B सामा B1 -चचन B1-दिव्यादि । 916. -रोमन- om. BI-पामन्- for पाप्मन् B VI अंतः कर्म V-र्घश्च वr V अत्मा B | वेग-= $ IV, 2. P. VI, 1, 45.। मेरुच्च TV क्रोम T-णादिः Vायते प T-यतेः तप च V कर्षों तौ V अक्षादिरोV। यक्षणो B V । यष्मा T इतेः तो- V। 918. प्रसूतश्च BI 919. T adds, from the commentary of the following Sutra, आगमि--- प्रस्थितादिः before गमीष्यतीति, and प्रस्थितादिः after गमी। 921. असविष्य- BI 923. -बुधि-CV | प्रयायां । प्रतियायी T। प्रतियास्यति भ- T। बालादि । 924. प्रस्थास्यते प्र- BTI 925. भीरु-=S II,3. P. VIII,3,81 । 926. पथिपियः वजश्च Vबजश्च for वजश्च 935. नसि- Tनकनन् इ- BI 936. दिवावसानं VI 937. -कमि- om. VI-समिशमिभ्यो BI कज्जल [कं जलं ] for कं पानीयम VI 938. प्रत्यक्षे निर्देशे B प्रत्यक्षनिर्दिशः ।। 939. किर्डिम् V1 स्मात् डिम् प्र- TI 940. -रीम BCVI लोंतश्च BI 942. कृमि- TI-गमि-om. VI-क्षमिVBp. m. I भः for भाम: VI 943. देहांतराव--- Bआदिश om. BI 944. निपात्यते । वृणाते-Vपय[:] for पानीयम् V1 कर्मणि कारकै [ के ] दश्च B। इत्य च B| च om. VI 947. पुन सनु-BI पुनः सततान्तश्च पुनसनता उतश्च V । पुनः सनुतः अंतः इ-- B पुनः सन्त उंन इ-TI 948. चतेरुरा च BI 949. -डिदिव प्र-Tनभश्च for अन्तरिक्षं घVI 950. वैश्यः विट पु- V । वशिष्टमिति TI 951. षषषष चादेशो BI . 952. सर्वस्माद्धातोः ब- B। -नादिः । पक्ष्मी Bप्राणिभ्यां -कृता चावस्था B कृतावस्था च । । श्रावणश्च मासः B श्रावणमास: V। मनः। नो इ-B मनः नो ई-T मननो: ई-V. Perhaps अंतरिन्द्रियं to be read.। द्याव-VI भाजनं B | यमि गतौ यम: BI 953. पयः ह्यौ C । इत्याभ्याम-- TI -देशौ चानयो- B। तरातीतदिने BI-तरोतीते. V । 954. -ख्यं छ- -शौ चानयोर्भवतः Bछद् ओध इत्या- TIक्षीराधानः ।। 955. शव इ-TI रोगाविधानं V। शबसी । शबांसि BI 956. विश्ववेदः B। विश्वभोज: BI 957. चायो नो B चायेनौं C नकारांतादेशो Bचाणः चणच Bणत्वं om. BTEनेछंत्यन्ये TI 958. महात्म्यं B. ज्ञानं om V वृहदे- B TV वृहद्य- B TV I | श्रुतः सन् एनो VI 959. उर्ज च CT VI जां- BI 961 धश्चां-- BI अंध: BV | अधरं VI रक्षाः TA 962. भही चांती BE 963. अदेरंध CTVIच वा om. BI -प्रत्यक्षमप्रत्यक्षं विप्रकृष्टं बुद्धिस्थमप- TI-कृष्टमपा- BI 964. रांजाश्च BI अप BTI Sसर अ BI 928. भक्षाणौ । भुक्षाण: om. TI . 931. इस्वश्च भवति अस्य BI 932. स्कुन्नातीति B स्कुनाते सः षश्च BI सित् TI चंद्र: for चन्द्रमाः ।। 933. अविर्मः । . Aho 1 Shrutagyanam Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 181 965. अकषभांग BI 966. अंग्रेजि - T - जिवृजेर्गे च B क्षात्रयो नाम गिरि: B क्षत्रियनामः गिरिः Vi 967. उर् इति अर्श इति च तालव्यांत: शकारांत B । कीला B -कला VI 968. याद एध इ- T | योदः T | 969 चक्षे: B सिद्धा CT | सिद्धा T | उमेपि रक्षोनाम्नी T | वृहस्पतिः B TV 970. वस्यगि- BI वस्त्यगिभ्यां दिसप्र - T 971. -- T' । वषिभ्यः V । तिरःकरोति B | तिरस्कृत्वा B कांडं तरः गतः T कांड रागः V । तिर = S. III, 1. P. I, 4, 71 । मनः पूजा पुरश्रेति B नम पूजायां ↑ See S II, 3. III, 1. P. I, 4, 67; 74 VIII. 3, 40 1 उत्तमांगं च VI 973. नूधा: ऋत्विक् न्थाश्च B 1 धादो B धदौ V । ऋत्विकू om. B 974 वयः पुरः पयोरे - T। प्योरेतेभ्यो V -भ्यो गः BI 975 इहेरेधो B ईहे धौ C | चंद्र: इंद्र Vi 976. -पुर दंशस्यु- B नमः for आकाशम् V विहाय : V | मानयति मन्यते वा B पुरं प्राज्यं दशतीति पुरदेशा: B पुरं दशतीति पुरंदंशा V 977. जलं for उदकम् V 978. निर्झर : V 980. क च CT कितिच V । रिवण: B पापं धनं च 'T' । 981. वर्षा : B 982 मे TV 983. इन्धनं च om. B 984. अध्वर्युः अग्निः अर्कि: इंद्रश्व V । । 988. सूर्यभ for आदित्यश्च 989. सुचि- T! -सृपिच्छादिभ्य B -मृछादिभ्य V। रश्मिः for किरण: V 1 वः किरणाः B रश्मिः ऋतुश्च V । रश्मिः om. V । छदे - =S. IV, 2. P. VI, 4, 97. । गृहछादनं T 990. हे B वंहि CT V । बृहु B | मयूरः for शिखी B। शिखी अग्निः दर्भश्व V । 992. भू: for भूमिः V । 993. पः स्थातच B | सूर्यः for आदित्यः V 995. आविः करोति T | 996. विवश्वान् B विविश्वांश्व Vp.m. प्रभुसंयोगश्च om. VI 997. -तृपित्रपिवपियजिवाक्षिप्रा V । यजिवेपिभ्य B | सूर्य: for आदित्यः V | देहः for शरीरम् V । पर्व्वः 'T' । तपं धूप संतापे तपुः पुत्रः B। त्रव्वः [ ? ] 'T' कृत्स्नादि च B त्रपु त्रपु TV अच्छंदा श्रुतिः B अछेदाः श्रुतिः T अछंदः श्रयज्ञोछवश्व V। राशीत् T 1998 - जीमूतः V । धेर्य B 1000 आदिग्रहणादन्येपि B आदेरन्येपि V 1001 T adds अचक्षुः before अवख्युः । विचक्षु: Tp. m. विवचक्षुः V । 1002. —डूनसः 'T' । 1003. -कै: राष्ट्रावच्च C-केसटा - T। क च om. V । टायामेवैतेषु B । अच्च - = S. II, 1, P. VI, 3, 138. 4, 138 1 प्रसिद्धा एते । धिकारे प्याकारा - B-धिकारव्यकाराTI 1004 डिस्मलक् च T डित् एस् T। मंदनं VI 1006 वहतीति B | Aho! Shrutagyanam Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्त 201 अक्तु 777 अक्ष 564 अक्षन् 900 अक्षय 365 अक्षर 439 अक्षि 707 अक्षु 826 अक्षोट 161 अक्ष्ण 294 * अगस् 966 अगस्ति 660 अगस्य 363 अगार 405 अग्रि 677 STT 387 अग्रे 843 STET 110 अन्य 364 अध्न्या 364 अङ्कति 656 अङ्कस् 965 अङ्कुर 423 अङ्कुश 538 अङ्कर 428, (. *अडि 692 अङ्ग 92 अङ्गण 187 अङ्गस् 966 अङ्गार 405 अङ्गिरस् 976 INDEX. * अङ्ग 758 अङ्गुर 699 अङ्गुल 487 699C. *अङ्गष 560 अङ्घ्रि 692, C. अच्छ 124 अच्छभल 464 अजगर 403 अजिन 284 अजिर 417 *3735 834 STT 388 अम्बल 465 अञ्जलि 702 अञ्जस् 952 अञ्जि 607 *अञ्जिष्ट 764 अञ्जिष्णु 771 58 * अञ्जुक अटनि 680 अटरूष 561 अटवि 706 * अडङ्गर 403, C. "अडर 397 अडुव 524 #अणस 569 अणि 619 * अणीचि 627 अणु 716 अण्ड 169 Aho ! Shrutagyanam Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 183 अतस 569 अतसी 569 अतिथि 673 अत्क 21 अत्रि 696 अचिन 929 *अनीणि 645 अन 258 *अत्रु 800 अथर्वन् 902 अदन्त 221 *अदन्ती221 *अदर 403 अदस् 933 अदिति 667 *अदलिम 354,C. अद् 92 अद्भुत 214 अद्मनि 685 अद्रि 692 अधम 348 अधर 398 अधम् 961 अधि 611 अध्वन् 909 अध्वर्यु 746 अनडुह् 1006 अनफा 316,C. अनल 465 अनस् 952 *अनह 589 *अनाट 145 अनिल 481 अनीक 46 अनु 716 अनुवत्सर 439,c. अनुपम 932 अनुसंवत्सर 439,C. अनूक 61, C. *अनेधम् 975 अनेहस् 675 अनोकह 595 अन्त 200 अन्तर 947 अन्तर 437 *अन्तु 773 अन्य 860 अन्त्र 451 अन्दू 829 अन्ध 251 अन्धस् 963 अन्धु 716 अन्ध्र 396 अन्न 258 अन्य 357 अप 931 अप 803 अपत्य 358 अपष्ट 732 अपस् 964 *अपाल 823 अपि 611 *अपुष 559 अपूप 312 अप्तस् 964 अनु 776 *अप्त 86] अप्वा 506 अप्सरस् 964 अब्जस् 964 अब्द 238 *अब्बा 514 Aho! Shrutagyanam Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभि 614 अभिमाति (63 अभियाति 663 अभीक्ष्ण 186 अभीशु 746, C. अभ्यूष 561, C. अभ्र 396 अभ्रमु 800 अभ्व 512 * अमठ 167 अमत 207 अमति 653 अमत्र 456 अमनि 680 अमर 397 अमस 569 अमित्र 454, C. अमित्र 459, C. अमिलातक 83 अमीवा 514 अम्बर 403 अम्बरीष 555 अम्बा 318 अम्बु 799 अम्ब्ल 462 अम्भस् 902 अम्ल 462 अयस् 952 अयास् 988 अयुत 204, C. *अय्मन् 911 762 *अरड 171 अरणि 638 अरण्य 379 भरति 653 184 अनि 682 अरर 397 अररि 698 अररु 812 अराति 662 अराल 475 aft 606 अरुण 196 अरुष 557 अरुम् 997 अरूष 560 अर्क 21 अर्कलूष 542 अर्गला 467 अर्घ 109 *ard 952 arf 607 अर्चिस् 989 अर्जुन 288 अर्जुनी 288 अर्णस् 979 अर्थ 225 *you 385 * अर्पिम 349 * अर्पिश 539 * अर्पिष 546 अर्बुद 242 अर्भ 827 अर्भक 33 अर्म 338 अर्यमन् 902 अर्वन् 904 अर्वाक् 870, C. अर्शस् 967 अर्शसान 295 * अर्हसान 279 Aho ! Shrutagyanam Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलक 27 अलका 27 अलम्बुस 385 *अलम्बुसा 585 अलक 26 अलवाल 150. C. ( See आलवाल ) अलस 569 अलात 209 *अाबू 838 अलि 619 आलक 35 अलन्ड 246 अलाक 10 * अलाका 40 * अलुम 331 अन्य 296 अल 161, C. अव 511 अवका 97 *ख्यु 1001, C. अवगथ 226 * अवगाथ 226 * अवर्गीय 227 अवच ||| * अवचक्षुस् 1001, C. अवट 142 अवटु 769 *अवड 151 अवतंस 565 अवनि 680 अवन्ति 665 अवभूथ 229 अवम 348 * अवयु 711 अवर 808 24 185 अवलत्तिका 76, C. अवस् 961 अवस 569 *अवसंचक्षुस् 1001, C. अवि 607 आवेन 282 अविष 47 अविषी 517 * अवg 76.4 अवी 711 अवीचि 27 अव्यविष 552 अव्यथिषी 552 अशनि 680 अशन 459 अशोक 21 अश्मक 33 अश्मन् 911 अश्मयु 743 अश्रि 692 अश्रु 806 अश्व 505 अषाढा 181 अष्टका 77 अष्टन् 903 अष्टि 651 असन 200 असि 607 अमु 716 असुर 123 *असुर 699 3777 200 अतीक 50 # अस्तु 773 अत्र 146 अस्थि 669 Aho! Shrutagyanam Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186 ihi अस्मद् 899 अत्र 387 अहन् 902 अहल्या 358 अहि 614 अंश 527 अंशु 719 अंशुक 57 अंस 564 अंहति 654 अंहस् 962 अंहि 692 आ 605 आकषिक 12, C. आखु 742 आख्यस् 969, C. आगन्तु 773, C. आगस् 970 आगामिन् 920 *आचक्षम् 969, ( *आचिकीर्षणि 643 आति 620 *आजिहीर्षणि 643 आटरूष 61 आडू 837 आढक 33 आढच 364 आणि 619 *आणुक 56 *आणूक 59 *आणूर 428 आण्ड 169 *आण्ड ९36 आति 20 आत्मन् 16 'आदिङ्ग 104 आदीनव 519 आनक 72 आपणिक 39 आपतिक 39 *आपदिक 39 आपनिक 39 आप्वा 506 आभीर 120 आमय 365 आमिक्षा 507 आमिष 10 *आमीवा 14 आम्ब 319 आम्र 302 आम्रतक 83 आयु 1 आयुस् 998 आरग्वध 24 आरू 835 आई 392 "आलत्तिका76, C. आलवाल 4:0, C. (Hee ___ अलवाल ) आलि 619 आलि. 102, C. आलु (27 आल 837 *आलूर 42 आवसथ 233 आविस् 995 आशिर 415 आशु 1 आशुशुक्षणि 613 आष्ट्र +17 *आसाविन 21 आस्फोता218 Aho 1 Shrutagyanam Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 187 भास्य 364 भाहल 472 आह्वा514 इक्षु 826 इक्ष्वाकु 757 इङ्गद 242 *जसान 280 इज्जल 474 इड 880 इडविड्879 *उडावत्सर 439, C. *इद्वत्सर 439, C. इतर 433 इति 651 इतिक 45 इतिश 537 इदम् 938 इध्म 340 इन 261 इन्दु 716 इन्द्र 387 *इफ(1) 316, C. (See रिफ) हम 328 इरा 889 इरिण 195 *इलात 209 इल्वल 500 इल्वला 500 *षस 572 इषिर 416 हषीका 48 इषु 729 *इषुध 256 इष्टका 77 *इव 11 *इया 11 ईड 880 *ड 3 ईम् 941 ईर्म 338 ईर्ष्या 357 ईर्ष्यालु 822 *ई! 829 *ईशन 900 ईशान 277 ईश्वर 442 ईश्वरी 442 ईपीका 48 ईष्म 840 उक्थ 227 उक्षन् 900 उखा 88 उग्र 396 उचित 212 उच्च 1003 उच्चा 1003 *उचिलिङ्ग 105 उच्चैस 1003 *उच्छीथ 228 उटज 134 उडु 738 उडुप 311 *उडुव 311, C. उत 204 उतथ्य 386 *उत्कण्टुल 485 उत्कलिका 38, C. *उत्कुरुट 155 उत्पल 474 उत्स567 उदक 29 Aho! Shrutagyanam Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186 उदर 399 उदरथि 672 उदर्क 26 उदश्वित् 888 उदारथि 672 * उदिन्च 123 उदींची 11', C. * उदम्ब 326 उदुम्नर 444 उद्धात 863 उद्गीथ 227 उद्र 388 *उटुम 3.51 उद्वत्सर 439, C, * उन्दनु 793 उन्दुर 423 उन्नेतु 863 उप303 उपक38,C. उपचाकु5 उपद्रष्ट्र 957, C. उपल468 उपवसथ23 उ.पहर 441 *उभ्र 888 उमा 312 उम्बर 444,.C. उरण 190 उरल 471 उरश:31 उरस 967 उरस572 उरु 737 उरुवूक 61 * उलक्षु 28 उलप 307 उलूक 61 उल्का 26 उन्मुक57 उल्व 319 उल्लण 190 उशनम 95 *उशस 971 उशिज 876 उशीर 1.19 उपय305 उपस 971 उष्ट्र 44) उष्ण 183 उष्णीष 556 उप्मन 912 उम्र 388 उस्रा 358 *उह 883 *ऊक 29 ऊधस् 954 ऊन 261 ऊम 342 ऊस 736 ऊर्णा 182 ऊर्दर 403 कर्ष 507 ऊर्मि 689 *उर्वारु 814 ऊष्मन् 911 ऋक्ष 567 ऋक्षर 440 *ऋक्षरा 440 *ऋग्रि 695, C. ऋचीक 48 मच्छर 397 ऋच्छरा 397 Aho 1 Shrutagyanam Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋतीक 48 ऋजीष 554 ऋतु 729 ऋत्र 388 ऋञ्जसान 27 ऋण 183 ऋत 201 ऋति 609 ऋतु 777 ऋत्वन् 906 ऋधन् 874 ऋभु 730 ऋभुक्षिन् 998 ऋश्य 361 ऋषभ 881 ऋषि 609 ऋष 511 एक 21 * एकानसि 708 एडका 83 TOT 182 एन 200 एतद् 896 एतश 589 एतशस् 984 एनस 581. * एव 525 * एघट 142 एधतु 779 एधस् 968 * एधिख 91 * एधिच्छ 126 * एधिठ 166 *526 * एधिनि 683 एनस् 979 189 एरका 88 एरण्ड 176 * एस 389 एवरु 814 एव 505 ओकस् 965 ओजस् 959 3713396 ओतु 773 ओदन 271 ओम् 933 औषधि 675 3712 162 ककन्द 245 ककुद 243 ककुभ् 932 ककुभ 333 कक्कोली 495 कक्खट 142 कक्ष 564 कडू 63 कङ्कट 142 कङ्कण 187 * कङ्कणि 639 कङ्कणीक 50 कङ्कत 207 * कङ्कन 8 कङ्काल 480 कङ्ग 761 कचप 304 * "कचार 405 कच्छ 124 कच्छू 831 कज्जल 474 कचक 57 Aho! Shrutagyanam 491, C. Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कञ्जार 405 कटक 27 * कटनि 680 कदम्ब 321 * कटरु 812 * कटह 589 कटाह 591 कटि 607 कटित्र 459 कटीर 418 कटु 716 कटुक 51 कटोल 493 * कटोला 493 कट्टर 441 *कटुरी 441 कठर 397 कठाकु 752 कठिन 282 कठेर 431 कठोर 433 कडङ्गर 445 कडत्र 456 * कड़भ 329 * कडम 347 कडम्ब 321 कडार 405 * कडित्र 459,C. कडेवर 445 *कणच 114 कणय 365 कणिश 535 कणीक 46 कणीका 46 कर्णाचि 627 * कणूक 60 190 कण्टक 27 कण्ठ 162 *कण्ड 169 कण्डीर 418 कण्डु 765 कण्डू 831 कण्डूल 188 कण्डोल 493 Aho ! Shrutagyanam कण्व 505 कत 208 कत्रि 696 कथक 83, C. * कथेर 431 कदम्ब 322 कदर 397 *कडू 745 कनक 27 * कनिश 585 कनीनक 77 कनीनका 73 कन्तु 773 कन्था 225 कन्द 237 कन्दर 397 कन्दल 465 कन्दु716 कन्दुक 54 कन्या 357 कपट 144 कपाट 148 कपाल 475 कपि 614 कपिल 474 कपिल 484 * कपोट 161 कपोत 217 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 191 कपोल 493 कफ 316 कफेलू 839 कबर397 कबरी 337 कम् 937 *कमट 142 कमठ 167 कमण्डलु 824 कमर 397 कमल 405 *कम्पीट 151 कम्बल 499 कम्बु 799 कम्बू 847 कय 367 कर करक 27 *करकर 14 करका 27 करङ्क 62 * करङ्ग 93 करच 114 करज 136 करट 142 करण 187 करणि 638 करण्ड 173 करम 529 करम्ब 321 करम्भ 336 करवाल 480, C. करवीर 422,C. "करह 589 कराल 475 करि 619 *करिव :26 करीर 418 करीष 553 करुण 196 करुणा 196 करुष 660 करेणु 72 करोट 160 कर्क 23 कर्कट 142 कर्कटी 142 कर्कन्ध 819 कर्कर 9 कर्करी । *कार 407 कारु 813 कर्कोट 161 कचूर 430 *कजर 427 कर्ण 182 कर्तरि 698 *कर्नु 778 कर्दम 17 कर्पट 142 *कपटि 630 कपर 403 कर्पास 583 कर्पूर 427 कर्बट 142 कर्बर 441 कर्बरी 441 कर्बुदार 410 कर्बुर 423 कर्मन् 911 कार 407 कर्व 505 Aho! Shrutagyanam Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 192 कर्ष 10 कलोल 15 कर्षक:31 कवक27 का (2) कवच 114 कलकल 14 *कवट 112 कलङ्क 62 कवन्ध::7 *कलच 114 *कवय 355 कलत्र 156,C. कवल 469 कलम 29 कवष44 कलम:317, *कवाक 34 *कलम्भ 386 कवाट 148, C. कलल 465 कवि 606 कलविङ्क 65 कविय 575 कलश:32 *कविर 12 कलशी 58 *कशेरु:51 कलह 8) कश्मल 500 *कलात 209 कश्मीर 120 कलाप:08 *कपाकष 16 कलापक ,C. कषाय 37 कलाय372 कति619 *कलार 40. कीका 16 कलि 607 कसार 4105 कलिका 38 *कसिए 708 कलिङ्ग 102 "कसूर 430,C. *कलिञ्च 123 कहोड 172 कलिन्द 24.6 कहार 111 कलिल 481 कंस:04 कलुष)57 काक 21 कलेवर 145, C. काकणि 610 कल्क 21 काकन्दी 215, C. *कल्पष557 काकि 6:23 कल्मलीक 50 काकु 749 कल्मष 562 काकुद 243 कल्माष568 काकोली 18 "कल्मास 5-4 *काचू 835,C. कल्य 357 काञ्चन 275,C. कल्याण 193 काञ्चनार 410 1 Wanting ia the shorteued edition of the l'et. Dictionary. Aho 1 Shrutagyanam Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काञ्चि 618 * काणि 634 काणुक 56 काणूक 60 * काणूर 428 काण्ड 169 कातर 437 कादम्ब 322 कानन 275, C. कान्तार 411 कामल 465, C. कामि 618 कारण्डव 519 * काराल 479 कार 619 कारु 1 कारूष 561 *का वर्ण 186 कार्षक 31 काशि 607 * काषि 619 काष्ट 162 काष्ठा 162 कासर 397 कासार 405 कासिका 40 कासीस 576 कासू 835 काहल 474 काहला 474 किकि 623 किकिदीवि 706 * किकिवि 706 किकीदिवि 706 किखि 626 * किङ्कणि 639 25 193 * किङ्किणीका 50 किञ्जल्क 26 किण्व 511 कितव 518 किम् 939 किरण 188 किराट 147 किरात 209 किरि 609 किरीट 151 किर्मीर 422 किलाट 147 किलास 575 किलासी 575 किलकिल 17. किल्विष 551 * किल्विषी 551 किशोर 434 किष्कु 751 किसलय 568 किशारु 725 कौकट 144 कीकस 373, C. कीचक 33 कीट 140 कीनाश 534 कीम् 941 कीर 419 कीर्ति 608 कीलाल 475 कु 729 कुकुन्दर 409 कुकुन्दुर 426 कुकुर 426 कुकूल 491 # कुक्कूण 190 Aho! Shrutagyanam Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 194 कुणप 305 कुणारु 815 कुणाल 476 कुणि 609, 635. कुणिन्द 246 *कुणकुण 17 कुण्ठ 163 कुण्ड 170 कुण्डल 465 *कुण्डि 608 कुण्डिन 282 *कुण्ड 108 कुतप 305 कुतू 843 कुक्कुट 155 कुकुम 334 कुकुर 426 कुक्ष 567 कुक्षि 707 *कुङ्कण 190 कुडम 352 *कुड़ 107 कुन्ज 129 कुञ्जर 463 कुटच 114 कुटज 130 *[कुटजी 180, C.] कटप 305 कुटरु 812 कुटल 468 *कुटाकु 753 कुटि 619 *कुटिश्च 128 कुटिल 481 कुटीर 418 *कुटुकुट 17 *कुटुम 351 कुटुम्ब 326 *कुटेर 431 कुहिम 319 कुठाकु 758 कुठार 408 कुठि 614 कुठेर 431 *कुड 170 कुडव 513 *कुडुमा 351 *कुडुव 524 कुड्मल 502 कुथ 231 कुथा 231 कुथुम 351 *कुथेर 431 कुद्रि 695 *कुट्ठ 745 कुन्त 224 कुन्तल 474 कुन्ति 652 कुन्थु 716 कन्द 210 कुन्दुम 352 कुन्दुरु 818 *कुपल 463 कुपिन्द 247 *कुप्र 396 कुबेर 431 कुब्ज 129 *कुन्द्रि 695 कुब 390 कुमार 409 कुमारयु 741 कुड्य 362 Aho 1 Shrutagyanam Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमुद 244 * कुमुल 487 कुम्भ 337 कुम्भीर 422 कुम्मल 503 कुरङ्ग 101 कुरङ्गी 101 *कुरड 172 कुरण्टक 28 कुरर 399 कुरव 518 कुरवक 28 * कुरिन्द 246 कुरीर 419 कुरु 734 # कुरुकुर 17 कुरूण्टक 28 कुरुम 351 कुरुम्ब 326 कुर्कुर 426 कुलक 29 कुलटा 143 कुलव 518, C. कुलाय 372 कुलाल 476 कुलिङ्क 64 कुलिज 135 *कुलिच 123 कुलिश 535 कुलीर 419 *कुलुम 351 कुलूत 215 * कुलूल 490 कुल्फ 315 कुल्मल 503 कुल्माष 568 195 * कुल्मास 584 कुल्या 362 कुवल 469 कुवली 469 #कुवाकु 753 कुविन्द 247 कुश 529 कुशल 468 कुशाम्ब 320, C. कुशिक 45 * कुशुण्ड 173 ( See कुसुण्ड ) कुश्रि 693 * कुषप 305 कुषाकु 753 *कुषि 609 कुषित 212 कुषीतक 80 कुष्ठ 164 *कुष्मन् 912 कुष्मल 502 कुसित 212 सिद 241 कुसीद 241 * कुसुण्ड 178 ( See कुशुण्ड ) कुसुम 351 कुसुम्भ 337 कुसूल 490 * कुहड 171 कुहर 399 कुहु 729 * कुहुक 51 कुहू 844 कूच 112 कूची 112 कूप 297 कूर्च 113 Aho! Shrutagyanam Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कूर्चक 113, C. for 119, C. कूर्प 298 कूर्पर 408 कूर्पास 588 कूर्म 346 कूवर 443 कूष्माण्ड 176, C कृक 23 कृकण 190 कृकवाकु 728 कृच्छ्र 895. कृणु 791 #कृतु 791 कत्तिका 76 कत्या 861 कुत्स 567 कृत्स्र 294 कुंदर 403. कृन्तत्र 438 कृपण 188 कृपाण 191 * कृपारु 815 कृपालु 815, C, कृपीट 151 कृमि 690 कमुक 53 कवि 705 कृश 528 कृशानु 794 कृषक 31 कृषाकु 753 कृषि 609 कृषिक 41 * कृषट 151 कृष्टि 651 196 कृष्ण 183 कृष्णवेण्णा 182, C. कृसर 440 कृसरा 440 केकय 366 केकर 435 केका 26 * केकाण 193, C. केतु 778 केदार 411 * केरड 172 केरल 474 केलि 608 केलिकिल 19 *केवयु 746 केवल 465 केश 530 केसर 439 कैरव 519 कैलिकिल 19 कोक 21 कोकिल 481 * कोक्काण 193, C. ( See बोक्काण ) कोटर 397 * कोटव 519, C. कोटि 619 कोटीर 418 कोठर 403, C. * कोथूम 353 कोद्रव 519, C. कोमल 474 कोटि 648 कोर 434 कोरक 27 कोष 561 कोल 494 Aho! Shrutagyanam Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 197 कोविदार 410 कोश 529 कोशातकी 83, C. कोष्ट 164 कोसल 465 कोहल 465 क्रकच 115 ककर 403 क्रतु 780 क्रमुक 58 क्रमेलक 66 ऋयिक 38 *क्रान्तुम् 942 क्रिमि 613 क्रिय 376 *शिक 41 *कुशित 212 क्रुश्वन् 906 क्रूर 395 क्रेणि 634 *क्रेलिम 354, C. क्रोड 172 कोष्टु 773 *क्रौश्न 263 लेदन 900 केदु 716 लोमन् 916 क्वयि 691 क्षणनु 793 क्षत्तु 865 क्षत्र 451 क्षम् 937 क्षमा 604 क्षय 367 क्षवक 27 *क्षान्तुम् 942 क्षारक 27 क्षित्वन् 906 'क्षित्वरी 906 क्षिप क्षिपक 29 क्षिपका 29 *क्षिण 273 क्षिपणि 642 क्षिपणु 770 क्षिपण्यु 804 *क्षिपस 572 क्षिपस्ति 660 क्षिप्र 388 क्षीर 419 क्षीरकाकोली 18, C. क्षुण 197 क्षुद्र 388 क्षुद्रा 388 *क्षुद्रि 695, C. *क्षुधारु 815 क्षुधालु 815, C. शुधुन 290 क्षुप 301 क्षुपक 29 *क्षुप्र 388 *शुभक 29 क्षुमा 341 क्षुर 396 क्षुल्ल 33, C. क्षुलक 33 *खूण 185 क्षेत्र 451 क्षेम 338 क्षोणि 634 *क्षोतृ 857 क्षोम 341 Aho! Shrutagyanam Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 क्ष्मा 346,C. ख 87 *खचिम 350 खजप 304 खजाक 34 खञ्जरीट 152 *खटत् 883,C. *खटूर 427 खदर 441 खट्टा 505 खडूर 427 खड़ 92 *खड्डू 845 खण्ड 169 *खण्डि 607 खदिर 412 खनि 619 *खय 367 खर 403 *खरण्ड 176 खरत् 883, C. *खरप 307, C. खरु 808 ख' 829 खर्जुर 427 खल 472 *खलत 207 खलति 653 खलि 607,C. खलिन 282 खलीन 286 *खलप 560 खल्व 505 *खल्वा 505 खल्वाट 148, C. खष्प 299 खाण्ड 169 खात्र 449 *खादत् 883, C. . खादि 607, C. खानि 619 खारी 411 खिदिर 416 खिद् 388 खुर 396 *ख्यस् 969 गगन 275 *गङ्गम 13 गङ्गा 92 गच्छ 124 *गडन्त 221 गडयन्त 221, C. *गडयन्ती 221,C. गडयित्नु 797 *गडाक 34 गडु 716 गडेर 431 *गग 92 गणिम 349 गणेय 370, C. गण्ड 168 गण्डयन्त 221, C. *गण्डाल 475 गण्डि 619 *गण्डूल 488 गण्डूष 560 गण्डोल 493 गदयित्नु 797 *गद 92 गद्द 8 गन्तु 773 *गन्दिक 45, C.( See गब्दिक) Aho 1 Shrutagyanam Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 199 गन्धर्व 508 *गब्दिक 45, C. (See गन्दिक) गभस्ति 661 गभीर 422 *गम् 937 गमथ 232 *गमि 607 गमिन 919 *गमेणु 772 गम्भीर 422 गय 370 गया 370 *गर 762 गरम 329 *गरुट 153 गरुड 153 गरुत् 890 गर्ग 92 गर्गर 9 गगरी 9 गर्त 200 गर्दभ 829 गर्भ 327 गर्मुत् 890 गर्व 505 गर्वर 441 गर्वरी +41 . गवय 365 गवल 465 गवीधुक 74 गवेधुका 74 गहन 275 गहर 444 *गाण्डि 619 गातु 773 गात्र453 गात्रा 453 गाथा 225 गाधि 607 *गान्तुम् 942 गान्त्र 447 गामिन् 920 गारित्र 460 *गारेट 159 गिर् 943 गिरण 188 गिरि 609 गुगुलु 824 गुच्छ 124 *गुजुगुज 17 गुड 170 गुडा 170 *गुडगुड 17 गुडूची 120 गुडेर 431 गुण 186 गुत्स 568 गुद 239 गुधेर 432, C. गुन्द्रा 396 गुपिल 483 *गुबेर 4:1 गुरु 734 गुलुञ्छ 126 गुल्फ 315 गुल्म 346 गुवाक 35 गुह 5 गुहा गूथ 231 गुर्जर 404 गर्जरी 404 Aho! Shrutagyanam Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 गुवाक 37 * गृहतु 779 *गृहलु 824 गञ्जन 269, C. गृत्स 568 गृधु 729 गृध्र 388 गृष्टि 649 गृहयाय्य 373 *गृहाक 35 * गृहाण 191 *गहोल 494 *गेरु 811 गेष्ण 199 गेह 587 गो 867 गोत्र 451 गोत्रा 451. गोधूम 353 *गोपानसि 708 गोपीथ 227 गोभिल 434, C. गोमायु 726, C. गोर्वर 403 गोल 494 गोलत्तिका 76, C. गोला 494 *गोलुगुल 19, c. गौर 396 *गौलुगुल 19, C. ग्रन्थि 607 *ग्रन्थुस् 997 ग्रहणि 638 ग्रहि 619 ग्राम 339 ग्रावन 905 ग्राहि 619 ग्रीवा 514 ग्रीष्म 346 *ग्लानु 773 ग्लो 868 *घव 110 *घका 110 *घटघट 14 घटा 141 घण्टा 141 *घतन 272 घर्घर 9 घर्घरी 9 *घर्घरीका 50 धर्म 338 *घसुरि 699 घस्त्र 337 घाटा 141 घाति 618 घासि 618 *घुरुधुर 17 धूक 24 पूर्णि 637 घृणा 183 घाण 635 घृत 201 घृधि 795 घोर 434 घोषयित्नु 797 *लिम 354, C. *घ्रोम 346 *चकुर 423 *चकोर 433 चक्र 7 चक्रधर 20 चक्रवाल 480,C. Aho 1 Shrutagyanam Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 201 चक्रु 733 चक्रुः (perf.) 20 C.. चक्षस् 969 चक्षुस् 1001 चकुर 423 चक्रम 12 चञ्चरीक 50 चञ्चल 465 चम्चा 122 चञ्चु 716 चटक 27 *चटर 397 *चटस 569 *चटाकु 752 *चटि 607 चटु 726 चदुल 485 चणक 27 *चणव 515 *चणस् 957 चण्ड 163 चण्डातक 82 चण्डाल 475 चण्डि 607 चण्डिल 481 *चण्प 296 *चण्पा 296 चतुर 948 चतुर 423 चत्वर 411 *चत्वरी 441 चनस् 957, C.] चन्दन 269 चन्दिर 412 चन्द्र 387 चन्द्रमस् 986 25 चपट 142 चपल 465 *चपाल 475 *चपुष 557 चपेट 158 चपेटा 158 *चमट 142 *चमड 171 चमर 397 चमस 569 चमसी 569 चमू 829 चमूरु 819 चम्पक 33, C. चम्पा 296 चम्पू 841 चर2 चरक 27 चरण 187 चरण्यु 804, 746, C. चरम 347 चरि 619 *चरिण्टी 150 चरु 726 *चर्करित 206 चर्करीत 206 चर्मन 911 चर्षणि 641 *चलष 557 चषक 27 चपाल 475 *चहोल 493 चाटु 726 *चाणम 957 चाणूर 428 चावाल 480 Aho! Shrutagyanam Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 *चानस् 957, C. *चारि 619 चारित्र 460 चारु 726 चारुदेष्ण 199, C. चार्वाक 37,C. चिकुर 426 चिक्कण 190 चित्त 201 चित्र 454 चित्रभानु 786,C. *चित्रानसि 708 *चिन्ति 652 चिबुक 57 *चिम्बा 325 चिर 388 *चिरिडू 64 चिरिण्टी 150 *चिभिटी 149 *चिलात 209 चिह्न 268 चीर 302 चीवर 413 *चुक्कण 187 चुक्र 393 *चुण्डि 632 *चुप्प 301 *चुप 388 चुब 390 *चुरिक 45, C. (See मुरिक) *चुरुचुर 17 *चुरुम्ब 326 चुलुक 57 चुलि 608 चुचुक 57 *चर्च 113 चणि 634 चेक्रीयित 205 *चेटि 608 चतस् 952 चेस 806 चोक्ष 597,C. चोच 123 चोर 434 *चोरड 173 *स्यूप 297 *स्यौत 268 *च्योकी 26S, C. छगल 471 छटा 141,C. छत्ल 446 छत्री 446 छत्वर 444 *उदन्ति 665 छदिस् 989 छद्मन् 911 छन्दस् 954 *छपत् 883 छर्दि 607 छर्दिम् 980 छल 471 छवि 706 छाग 92 छागल 471 छाल 451 *छादिस् 989 छाया 357 छित्वर 444 छिदक 30 छिदि 609 छिदिर 416 छिद्र 388 Aho 1 Shrutagyanam Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *छिवि 706 *खुपत 883, C. *रुर 17 *वृदि 609 छेक 26 छेदक 30 * छेवा 514 जगत् 885 जगती 885 जघन 272 जघु 733 जङ्गम 13 जङ्गल 467 जङ्घा 109 * जजल 18 जटा 139 जटायु 1, C. जटायुस् 998, C. जटिल 481 जठर 403 जतु 721 जत्रु 809 जनक 97 * जनयितु 797 जनि 607 जनित्व 526 जनिमन् 917 जनुस् 997 जन्तु 773 जन्मन् 911 जन्य 361 जन्यु 801 *जप्र 387 *जम् 937 जम्बाल 480 203 जम्बीर 422 जम्बुक 37 जम्बू 84.7 जम्भ 827 जम्मा 327 जय 367 जयन 269 जयन्त 221 जयन्ती 221 जयि 606 जरठ 167 जरण्ड 173 जरन्त 219 जरायु 1, C. * जरुट 153 * जरुड 153 जरूथ 236 * जरुष 560 जर्जर 9 जर्जरी 9 * जर्जरीका 47 जर्ण 182 जर्त 200 जलधर 20 अलाष 545 जलूका 58 जसुरि 699 जहक 33 789 वि 705 जाजलि 18, C. * जाण्ट 140 जानु 1 जामातृ 860 जामि 618 Aho! Shrutagyanam Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204 जाय 361 जायु-1 जाल्म 346 *जिगन्तु 792 *जिगन्नु 792 जिवन् 906 जित्वरी 906 जिन 261 जिह्म 339 *जिहियाण 258 जिह्वा 513 जीमूत 216 जीर 392 जीरदानु 795 जीवि 705 जील 392, C. जीवथ 232 जीवन्त 220 जीवन्ती 220 *जीवर 397 जीवातु 782 जीवेणु 772 *जीवि 694 TUT: (perf. ) 20, C. *जुहुराण 278 जूट 140 जूर्णि 634 *जेसर 439 जैत्र 447 जैवातूक 67 *जैवातका 67 ज्ञाति 646 ज्योतिरिङ्गण 190, (. ज्योतिस् 991 न्योन्ताक झञ्झा 137 झर्झर झझेरी 9 झर्झरीक 50 *झर्झरीका 50 टिट्टिभ 332 डमर 402 *डहर 403 डामर 402 डिण्डिम 356 डिण्डीर 422 *डिपत् 883,C. डिम्ब 325 ढक्का 26,C. तक्मन् 911 तक 388 तक्षन् 900 नगर 403 *तक्रि 699 तङ्गण 187 तट 139 तटाक 34 तडाक 34 तडाम 97 तडित् 887 तण्ड 168 *तण्डाल 475 तण्डु 765 तण्डुल 485 तत 203 *तत्रु 738 तद् 895 तनय 365 *तनाल 475 तनु 716 तनुत्र 461 तनुस् 997 Aho 1 Shrutagyanam Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 205 तनू 829 *तन्त 200 *तन्तिडीक 50, C. तन्तु 773 तन्त्र 451 तन्त्रि 607 तन्त्री 711 नन्द्रा 396 तन्द्री 711 तन्यतु 781 तपस् 952 तपस 56 तपुर 997 तमक 27 तमङ्ग 98 तमत 207 तमस् 952 तमस 569 . तमसा 569 तमाल 475 तमि 607 *नम्बूल 480 तर 2 तरक्षु 827 तरङ्ग 98 तरट 142 *तरड 171 तरण 187 तरणि 638 तरण्ड 173 तरन्त 221 तरन्ती 221 तरल 465 तरस् 952 तरि 606 तरी 711 तरीष 553 तरु 716 तरुण 288 तरुत्र 461 *तार 406 त' 728 *तर्दू 845 तर्ण 182 तर्दू 846 *तर्प 296 तर्ष 540 तर्स 564 *तलप 304 तलुन 288, C. *तलूक 58 तल्प 296 तविष 550 तविषी 550 तसर 440 ताडि 618 तात 203 *तापि 618 तामरस 573 ताम्बूल 489 ताम्र 392 तालि 618 *तालीस 576 तालु 727 तालूर 428 ताविष 550 ताविषी 550 तिक्ता 204 तिग्म 345 तितर 748 Aho! Shrutagyanam Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 *तितल 18 *तितिरू 738 तित्तिरि 611 तिथ 231 तिथि 674 तिनिश 537 तिन्तिडीक50 तिन्दुक 54 तिमि 013 तिमिर 416 तिरस् 971 तिरीट 151 *तितिर 10 तिलक 23 तीक्ष्ण 186 तीर्थ 227 तीवर 444 तीत 396 तुक 869 तुम 396 तुङ्ग 107 तुच्छ 124 *तुडुव 524 तुण्ड 170 तुाण्ड 608 तुण्डिल 481 नुत्थ 227 तुद 5 *तुदन 273 तुन्द 240 *तुब 390 तुमुल 487 तुम्ब 320 तुम्बुरु 817 तुरण 190, C. तुरि 609 *तुरुम्ब 326 तुरुष्क 26 तुल्वल 500 *तुविस् 996 तुषार 403 *तुस्ता 203 तुहिन 263 *तूक 24 तूण 185 तृणीर 4:2, C *तुप 297 तर्णि 634 तुवर 443 तूष्णीम् 940 तूस्त 203 तृण 186 तृपत् 881 तृपल 468 तृपला 468 तृप्र 388 तृष्णा 183 तेजस् 952 तोक 21 तोक्मन् 916, C. तोमर 403 तोसल 465 तौल्वलि 500, C. त्यद् 895 *त्रपिचा 117 त्रपु 716 त्रपुर 997 त्रपुस 578 त्रय 367 *त्रवण 190C. Aho 1 Shrutagyanam Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * त्राक 21 त्रि 615 त्रिषवण 274, C. त्रिष्टुम् 982 चोटि 608 त्रोत्र 461 त्वच् 872 त्वष्टृ 865 विषि 609 सरु 716 दक्षाय्य 373 दक्षिण 194 दक्षिणा 194 दगु 759 दण्ड 168 दधि 607, C. दधिषाय 374 दधीचि 627 दनु 793 दन्त 200 * दपत् 883, C. दभ्र 388 * दमाहक 81 दमुनस् 987 दमूनस् 987 *दय 367 * दरकं 27 *दरत 207 दरद् 894 *दरदर 14 दर 606 *दरुट 153 *दरुड 153 *दर्ण 182 दर्दर 9 207 * दर्दरी 9 दर्द 47 दर्द 426 दर्द 846 दर्भ 327 दर्द 505 * दर 441 * दवरी 441 दर्वि 704 दर्शत 207 दलप 304 दलिक 38 दल्भ 327 दल्मि 687 दवर 397 * दवाक 34 * दवि 706 Aho! Shrutagyanam दशन् 901 दशेर 431 * दश्र 388 दस्म 340 दस्यु 801 दस्र 387 दहन 269 *दह्यु 801 दह 387 दाक 21 दाडिम 355 दाडिमी 355 दात्यूह 594 दात्व 525 दानु 786 दामन् 911 दारु | दारुण 196 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208 दाश 527 *दिङ्ग 102 दिति 668 दिदिवि 706 दिधिष 842 दिधीषू 842 दिन 268 दिलीप 310 दिव 949; 20, C. दिवन् 901 दिवस 572 दिवा 599 दिष्टचा 601 दीदिवि 706 *दीधीषाय्य 374 दीन 261 दीर्घ 110 दीवि 706 दुकूल 491 दुण्डुभ 335 दुन्दुभि 686 दुर् 943 *दुर्दुरुट 156 दुर्दुरूट 156 दुलि 609 दुष्टु 732 दुष्यन्त 222 दुम् 999 दुहित 865 दुःख 87, C. दूत 201 दूर 396 *दूषिका 38 दूषीका 46 दति 651 *दृत्वन् 906 *दर 403 दृन्भू 841 दुप्र 388 *दृप्रा .88 दृशान 277 दशीक 48 दशीका 48 *दशेलिम 354, C. दृषद् 898 *देभि 611 देवका 27 देवट 142 देवन 269 देवयु 741 देवर 397 देवल 465 *देवि 608 देविका 27 देवृ852 देष्ण 199 देहली 465 *दोर 434 दोला 494 दोषा 604 दोस् 1005 दोहद 244, C. 7 744 गुति 609 ान 266 झुवन् 901 दो 867 द्योतन 269, C. यौत्र 448 दङ्ग 95 दङ्गा 95 *द्रमल 465 Aho 1 Shrutagyanam Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 209 द्रमिल 481 द्रविण 194 द्राक् 870 द्राक्षा 597 *द्राङ्ग 95 द्रु 744 दुणा 184 *दुमल 502 *द्रुहत् 884 *दुहथ 234 *गुहाण 191 द्रुहिण 195 द्रुह्य 364, C. ट्रेक्काण 193,C. द्रोण 184 द्रोणी 184 द्वार 944 द्वार 411 द्वि 615 धत्तूर 430, C. धनायु 1, C. धनु 716 धनुष 559 धनुस् 997 धनू 829 धन्वन 900 धमक धमनि 680 धय 367 धरक 27 धरणि 638 धरीमन् 918 धरुण 196 धर्णसि 709 धर्त 857 धर्म 451 27 *ध; 451 धर्म 338 धर्मन् 911 धर्मयु 741 *धवन 274 धवल 465 धाक 21 धाणक 70 धातु 773 धानका 71 धाना 258 धान्त 33, C. धान्य 379 धाम 388 धामन् 911 धारा 389 "धि. 102 धिषण 189 धिषणा 189 धिष्ण्य 364 धिष्ण्या 364 *धीना 268, C. धीर 389 धीवन् 908 धीवर 444 "धुत्तूर 430 धुनि 678 धुन्धु 785 धुर् 943 धुवक 29 धुवका 29 धुवन 274 धूक 22 *धृका 22 धनि 679 धूम 30 Aho! Shrutagyanam Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 धूम्र 396 *धूर्णि 637 धूर्त 201 धूलि 701 धूसर 440 धृत्वन् 906 धृत्वरी 906 *धृषाण 191 धृषु 729 धेन 268 धेना 268,C. धेन 787 *धोत 200 *धोत्र 451 ध्यात्व 525 ध्याम 340 ध्यामन् 911 ध्रुवक 29 ध्रुवका 29 *ध्रुविल 483 *ध्वजप 304 ध्वनि 607 स्वाति 618 नक्तम् 935 नक 4 नक्षत्र 456 नख 4; 87,C. नग 4 नगर 403 नग्न 268 नट 139 नदन 793 *नदरि 698 नदाल 475 ननान्द 856 नन्दन्त 220 नन्दन्ती 220 नन्दयन्त 221,C. नन्दयन्ती 221, C. *नन्दयितु 797 *नन्दाल 475 नन्दि 607 नपुंसक 32 • नप्त 862 नमस् 952 नभस 569 नभाक 34 नमत 207 *नमत्र 456 नमस् 952 नमस 569 *नमाक 84 नमि 613 नमेरु 811 नयन 269, C. नरक 27 नर्कट 155 नर्मन् 911 नलिन 282 नल्व 505 नवन् 900 नश 4 *नस्त्र 387 नहुष 557 नंशुक 57 नाक 4 नाकु 720 "नागयशस् 958, C. नाडी 712 *नाथात 209 *नान्त्र 447 नापित 211 Aho 1 Shrutagyanam Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 211 नाभि 621 नामन् 916 नारङ्ग 99 नालिकेर 432, C. नासिका 40 नासीर 422, C. *नाहल 466 *नांष्ट्र 447 नि 616 निकषा 598 निकुन्ज 129, C. निकुम्भिल 484, C. निकुरुम्ब 326, C. निघृष्य 511 *निचाकु 754 *निचुर 426 निचुल 487; 426, C. नितम्ब 317 नित्य 364 *निथ 231 निद्रा 396 निधन 273 निमि 613 निमित्त 204 निम्न 266 निम्ब 325 नियुत 204, C. *निरूथ 281, C. निर्ऋथ 229 निर्युह 593 निर्वति 610, C. *निलीक 48 निवसथ 233 *निवेष्प 296, C. निशीथ 228 *निश्रेणि 634, C. निषङ्गथि 671 निषदर 441 निषद्वरी 441 निषध 252 निष्क 26 निष्ठुर 426 निस् 994 *निहाक 21 निहाका 21 नीक 22 नीका 22 नीच 1003 नीचा 1603 नीचैस् 1003 नीड 170 नीथ 227 नीप 302 नीर 368 नीलगु 761 नीवर 443 नीवि 705 नीत 396 नुद 5, C. *नूथ 227 *नूथस् 973 *नूधस् 973 नूनम् 935 नूपुर 426 नृ 854 नृचक्षस् 969, C. *नृतस 572 नृतू 844 नेतृ 857 *नेत्व 525 *नेनिज् 932, C. Aho! Shrutagyanam Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 नेप 302 नेम 338 नेमि 687 *नेरु 806 नेष्ट्र 864 *नोदुनुद 19 नोधस् 973, C. नौ 868 *नौनुद्द 19 न्यङ्क 724 न्यर्बुद 242, C. न्युव 90 पकत्र 451 पक्ष 564 पक्षस् 983 पक्ष्मन् 916 पङ्क 63 पङ्ग 761 *पटोला 493 पट्टन 292 *पदृस 580 *पट्टिस 579 *पट्ठम 352 पठि 607 पणव 515 • पण्ड 168 *पण्ण 182 पतङ्ग 98 *पतत् 883, C. पतत्र 456 पतत्रि 697 पतत्रिन 930 *पतनु 793 पतस 169 पताका 34 पति 659 पतेर 431 पत्तन 292 पत्ति 646 पत्तूर 430 पत्र 451 पत्सल 504 पथ 231 पथिन् 926 *पदपद 14 पदाजि 620 पदाति 620 पदि 607 *पदिर 412 *पदेणु 772, C. पद्म 338 पद्र 387 पद 505 प्रद्वन् 904 पचत 207 *पचत्र 456 पचन 269,C. पचि 607 *पचेणु 772,C. पचेलिम 354 *पच्छ 124 पञ्चन् 900 पचाल 475 पञ्जर 397 पटत्883 पटल 465 पटह 589 पटाका 34 पटीर 418 पटु 716 *पदुल 485 Aho 1 Shrutagyanam Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 213 पनस 569 पन्न 258 पपी 714 पम्पा 300 *पय 367 पयस् 953 पयोधस् 974 पर 2 *परङ्ग 98 परण 187 *परत 207 परम 347 परमेष्ठिन् 925 परशु 742 परश्वध 255 *परह 589 पराक 37, C. *पराट 145 परि 606 *परिचक्षुस् 1001, C. परिज्वन् 902 परिवत्सर 439, C. परिस्तोम 346 परीर 418 परुष 557 परुस् 997 परुष 560 पर्जन्य 380 पर्ण 182 पर्णमुच 20, C. पर्णरुह 20, C. पर्णशुष 20, C. पर्णसि 709 *पर्दाकु 752 पर्प 296 पर्पट 144, C. पर्परीक 47 *पर्परीका 47 पर्याण 193 *पर्व 505 पर्वत 207 पर्वन् 904 *पर्वि 704 पशु 825 पर्षद् 897 *पलक्षु 827 पलल 465 *पलह 589 पलाण्डु 767 पलाल 475 पलाश 533 *पलि 619 *पलिङ्ग. 102 पलित 210 *पलिव 522 *पलिश 535 पल्य 357 पल्लव 515 पल्लि 607 पल्ली 464, C. पल्वल 499 पवन 269, C. पवाका 34 पवि 606 पवित्र 459,C. पवीर 418 पशु 731 *पशूर 427 *पष्ट 166 पस्त्य 360 पाक 21 पाकल 474 Aho! Shrutagyanam Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 पिङ्ग 102 पिचण्ड 176 पिचु 735 पिच्छ 125 पाकुक 57 पाजस् 977 पाटल 465 पाटलि 702 पाठीन 287 पाणि 618 पाण्ट 140 पाण्डर 403, C. पाण्डु 766 पाताल 479 पाति 659 * पातु 775 पिच्छल 125, C. ( See पिच्छिल ) पिच्छिल 125, C. ( See पिच्छल ) पिच्छ 126, C. * पिच्छोल 495 पिञ्जर 397 पिञ्जल 488 पिष 561 पिटक 30 पिठर 399 * पिटिर 417 || पात्र 446 पात्री 446 *पात्व 525 पाथस् 977 पार्थिम् 993 पादू 835 पाप 296 * पिण्डाल 475 पिण्डि 608 पिण्डिल 481 पिण्डीतक 79 पिण्याक 36 पितु 775 पितृ 858 पित्त 204 पाप्मन् 916 पामन् 911 पामर 403 पामा 338 पायु 1 पार 873 * पारिन्द 248 पिनाक 36 पिपीलिका 45 * पिपरी 11 पिप्पली 11 पार्श्व 523 पाणि 636 पालि 619 पालिन्द 248 पियारु 815 पियाल 476 * पिलाल 476 *पालीक 46 * पाळूर 428 * पिलिपिच्छ 126 पिशङ्ग 101 पिशाच 116 TET 527 पाषाण 192 पिशित 212 पिशुन 290 पिठातक 83 * पीक 24 पांसु 718 पिक 41 Aho! Shrutagyanam Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 215 पीठ 163 पीत 201 पीतद्रु 745 पीतु 775 पीथ 227 पीनस 582 पीयु 741 पीयूक्षा 597,C. पीयूष 560 पीलु 821 पीवन् 908 पीवर 444 पुल 86 एच्छ 125 पुञ्ज 128 *पुटिन 283 *पुटीर 419 *पुटुपुट 17 पुण्ड 170 पुण्डरीक 50 पुण्डू 396 पुण्य 361 पुण्यकृत् 20, C. पुत 204 पुत्तिका 76 पुत्र 455 पुद्गल 474, C. पुनर 947 "पुपुरु 733 पुर 943 पुरण 188 पुरस 971 पुरा 599 पुरि 609 पुरीतत् 852, C. पुरीष 554 पुरु 729 "पुरुट 155 पुरुवंशम् 976 "पुरुपुर 17 "पुरुम्ब 326 पुरुष 558 पुरूरवस् 976 पुरोधस् 974 *पुर्पर 10 पुलक 29 पुलस्ति 660 पुलस्त्य 363 पुलह 590 पुलाक 35 पुलिक 41 पुलिन 283 पलिन्द 246 “पुलूल 490 "पुवन् 901 *पुवि 609 पुष्क 22 पुष्कर 436 पुष्कल 496 पुस्त 201 पुंस 1002 पूग 93 *पूच 112 *पूची 112 पूतना 293 पूतर 438 पूति 651 पूतीक 50 पूप 301 *पूरिम 349 पूरु 807; 729, C. "पूर्णि 634 Aho! Shrutagyanam Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्त 201 पूर्व 511 पक्ष 542 पूषन् 900 पृतना 293 पृथ् 893 पृथज् 874 पृथिवी 521 पृथु 730 पृथुक 57 पृथुल 487 पृदाकु 756 पृश्नि 679 पृषत् 884 पृषत 208 पृषती 884 पृषित 212 पृष्ठ 163 gfor 635, C. पेचक 33 पेटक 30 पेत्व 526 पेरु 806 पेलव 515 पेलि 608 * पेलिम 354, C. पेशल 465 पेशि 608 * पोषम 349 पोगण्ड 174 पोत 200 पोतु 773 पोतृ 863 पोत्र 461 * पोला 494 पोषयित्नु 797 216 * प्यात्व 525 *ध्यान 258 प्रख्यस् 969, C. प्रगाथ 231, C. प्रचुर 426 प्रचेतस् 952, C. प्रति 647 प्रतिदिवन् 901 प्रतिप्रस्थातृ 863 प्रतिबोधिन् 923 प्रतियायिन् 923 प्रतिहर्तृ 863 प्रतीक 50 प्रत्ति 647 प्रत्यूष 561, C. प्रथम 347 * प्रपणिक 42, C. पतन 269, C. प्रपुनाट 148 प्रबोधिन् 923 प्रभृति 651 प्रयायिन् 923 * प्ररीत्वन् 910 * प्ररीत्वरी 910 प्रशास्तृ 857, C. * प्रसवन् 910 * प्रसवरी 910 प्रस्कन्दन 269, C. प्रस्तोतृ 863 प्रस्थायिन् 924 प्रहि 616 प्रह्न 514 * प्रा 605 Aho ! Shrutagyanam प्राकषिक 42 प्राणथ 232 प्राणन्त 220 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राणन्ती 220 प्रातर् 945 प्रादुस् 997 * प्राचर 403 प्रापणिक 42 * प्रापनिक 42 * प्रामर 403 * प्राशिर 415, C. प्रांशु 719, C. प्रियङ्गु 761 *प्रियाणक 69 प्रियाल 476 * प्रक्षि 707 gar 511 प्रेत्वरी 910 प्रेन 910 प्रेवरी 910 प्रोथ 225 लक्ष 566 लव 2 प्लीहन् 902 शुक्षि 707 लोति 646 *व ( 1 ) (?) 514, C. * फनस 573 फफेरीक 50 फलक 27 फलहक 33, C. *फलाफल 16 फलूष 560 फल्गु 758 फल्गुन 291 फल्गुनी 291 * फालि 618 फेन 268 * फेलू 830 28 217 बदरी 397 बधिर 416 बन्धक 27 बन्धित्र 459 Aho! Shrutagyanam बन्धु 716 बन्धुर 423 बन्धुक 58 बन्ध्या 357 बब्बूल 491 बभ्रु 733 बर्बर 397 बर्बरी 397 बर्हिण 194 बर्हस्990 बलजा 138 बलाका 34 *बलाल 475 बलास 574 बलाहक 81 बलि 607 बलिश 536 बलूक 58 बलूल 488 बल्व 317 बल्वज 133 बहिस् 990 बहु 726 बहुल 486 बहुला 486 बालिश 536 वाष्प 299 बाहु 726 बिभीतक 78 बिम्ब 325 बिम्बी 325 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 *बिलाहक 81 बिल्व 511 बीज 127 बुक्कण 187 बुक्कस 578,C. बुद्बुद 244 बुध 5 *बुधन 273 बुधान 277 बुध 261 बुस्त 201 बृहत् 884 बृहती 884 *बृहद्यशस् 958,C. *बोकाण 193, C. (See कोकाण) बोधि 608 *बोलुबुल 19 *बौलुबुल 19 ब्रह्मन् 913 *भकाल 477 भगल 474 भगाल 477 भाटित्र 459, C. *भटिल 481 *भडिल 482 *भडीर 422 भण्ड 168 मण्डि 608 भण्डिल 482 भण्डीर 422 भदन्त 222 भद्र 391 *भद्राक 37 *भन्दाक 34 *भन्द्र 391 भयानक 1 *भरक 27 भरट 142 भरण 157; 269, C. भरणि 638 भरण्ड 173 भरत 207 भरथ 232 भरि 606 भरीमन् 918 भरू 716 भरुज 134, C. *भरुट 153 *भरुड 153 भर्ग 92 भर्गस् 966 *भ' 829 भर्तृ 857 *भर्भर ) *भर्भरी 9 भर्मन् 911 भल्लातक 82 भल्लुक 51 मलूक 60 भव 2 भवत् 886 भवन 274 भवन्त 221 भवन्ति 665 भवन्ती 2 1 *भवाणक 68 *भवि 606 भविन् 922 भविल 481 *भवेणु 772 *भषद् 894, C. भसद् 894 Aho 1 Shrutagyanam Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्रा 451 भस्मन् 911 भाटि 618 भाण्ड 168 भातु 773 भानु 786 * भाप 296 भाग 338 भामा 388 * भार्त्र 447 भालु 727 भालूक 58 भालूक 60 भावित्र 460 भाविन् 922 भावुक 57 भासन्त 221 भासन्ती 221 * भासयन्त 221, C. भिक्षुणी 198 *भिङ्ग 102 भित्तिका 76 भिदक 30 * भिदथ 234 भिदि 609 भिदिर 416 भिदु 729 भिदेलिम 354 भिद्र 388 *भिलिङ्ग 108 भिल्म 340 भिल्ल 464 भिषत् 874 भिषज 131 भिष्णन 131 219 भीम 344 भीष्म 344 * भुग्र 396 * भुजप 305 भुति 609 भुजिष्य 384 भुज्यु 802 भुरण 190, C. भुरण्यु 746 * भुरिक 45, C ( See सुरिक ) भुरिज् 875 10 * भुर्भुर * भुलिक 45, C. *भुलिङ्ग 103 भुवन 274 * भुवनु 793 *भुवन्यु 804 भुवस् 971 भुविस् 996 भूक 22 भूत 201 भूधर 20 भूमि 690 भूरि 693 भूर्ज 134, C. भूर्णि 637 भृगु 731 भृङ्ग 94 भृङ्गार 411 भृज्जन 274 भृमल 474 भूमि 611 भृश 528 भेक 21 भेदक 30 भेर 387 Aho! Shrutagyanam Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 भेल 387, C. भेषज 181 भैरव 519 भ्रज्जन 274 भ्रमर 397 भ्रमि 611,C. भ्रातृ 859 भ्राष्ट्र 447 भू 843 भ्रूण 186 *मकन्द 245 मकर 403 मकुट 154 मकुर 424 मक्कोल 495 मक्षिका 45 मख 69 मगध 253 मघवन् 902 मघा 110 *मङ्कण 187 *मङि 692 मक्षु 826 मख 84 *मङखा 84 मङ्गल 465 *मङ्गाल 475 मङ्गल 485 *मष 560 मच्छ 124 *मच्छा 124 मज्जन 900 मज्जन 269 मञ्च 122 मन्चरी 397 मञ्जीर 418 मञ्जल 487 *मञ्जूला 488 मञ्जूषा 560 *मटह 589 मठर 397 मडुक 55 *मणच 114 मणि 607 मणिन्द 246 मण्ड 168 मण्डन 269 मण्डयन्त 221,C. "मण्डयितु 797 मण्डल 465 *मण्डाल 475 *मण्डि 607 मण्डु 765 मण्डूक 58 मण्डूर 427 मतङ्ग 100 मत्सर 439 मत्स्य 383 मथिन् 926 मथुरा 423 *मदच 114 मदन 269 *मदयन्त 221, C. मदयन्ती 221,C. मदयित्नु 797 मदार 405 मदिरा 412 मद्गु 716 मद्गुर 426 *मद्श 538 मद्र 387 मदन 904 Aho 1 Shrutagyanam Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * मदरी 904, C. मधु 721 मधुक 57 मधुर 426, C. मधूक 61 मध्य 364 मनस् 952 मनाका 34 * मनि 612 मनीक 46 मनु 716 मनुस् 997 * मनूक 58 मन्तु 773 मन्तृ 857 मन्त्र 451 मन्त्रि 607 मन्थर 397 मन्थान 276 मन्द 237 मन्दन 269 मन्दर 397 मन्दसान 279 * मन्दाका 34 मन्दार 405 मन्दिर 412 मन्दीर 422, C. मन्दुरा 423 मन्द्र 387 मन्मथ 12 मन्मन 8 मन्या 357 मन्यु 801 * ममाप्ताल 480 मय 367 मयस् 952 221 मयु 726 * मयुक 51 मयुख 91 * मयूता 215 मयूर 427 मरक 27 * मरठ 167 * मरणि 633 मरत 207 * मरमर 14 मराल 475 मरिच 117 मरीचि 627 मरु 716 मरुत् 889 मरुक 58 मर्क 21 मर्कट 142 833 मर्त 202 मर्त्य 360 मर्दल 465 मर्मन् 911 मर्मर 9 * मर्मरा 9, C. * मर्मरीक 47 मल 472 * लक्ष 827 * मलमल 14 मलय 365 * मलव 517 * मलार 405 * मलीक 46 मलूक 58 मलक 27 मल्लिका 27 Aho! Shrutagyanam Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 222 - मातृ 859 मात्रा 451 *मात्व 525 माया 357 मायु 726 मारि 606 मारिष 549 मारीच 118 मार्क 21 मार्ग 96,C. मार्जार 405 मार्जालीय 377 "मार्जुल 451,C. मालव 517 माला 462 मालु 727 मालुधानी 727, C. मालूर 428 *मलूक 58 *मवाक 37 मशक 27 *मषमष 15 *मष्मष 15 *मसमस 15 मसि 607 मसुर 423 मसुरा 423 *मसुरि 699 मसूर 427 मस्त 200 मस्तक 77 मस्तु 773 *मस्मस 15 महत् 884 "महतु 779 महन् 902 महयाय्य 373 महस् 952 महातपस् 952, C. महारजन 273, C. महिन 285 महिम 349 महिला 481 महिष 547 महिषी 547 महेला 492 मा 605 माकन्दी 245,C. मातरिश्चन् 902 माणव 516 मात 200 मातङ्ग 100 मातुलिङ्ग 106 मातुलुङ्ग 106 माष 540 मास 564 मासर 439 माहिन 285 "माहूर 428 मांस 564 मितटु 745 मित्र 454 मित्रयु 741 मिथम् 971 मिथिला 483 मिथन 290 मिथुस 1000 मिथ्या 601 मिहिर 416 मीन 261 मीर 392 *मीरा 392 Aho 1 Shrutagyanam Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 928 मीवर 4.13 मीवा 514 मुकय 371 मुकुट 154 मुकन्द 250 *मुकुय 371 मुकर 424 मुकल 487 मुख 89 मुखर 403 मुचिर 416 मुचुकुन्द 250 "मुणुमुण 17 मुण्ड 170 मुतव 519 "मुदि 600 मुदिर 416 "मुदेर 431 मुद् 93 मुद्गर 404 *मुद्री 404 मुद्गल 474, C. मुद्रा688 मधा 602 मुनि 612 मुमुचान 278 मुरज 132 मुरल 474 *मुरव 518 *मुरुट 155 *मुरुमुर 17 *मुरुम्ब 326 मुर्मुर 10 *मुषुण्ढि 633 मुष्क 22 मुष्टि 651 *मुष्म 340 मुसल 468 मुस्ता 201 मुहिर 416 *मुहुरि 700 मुहुस् 1000 मुहूर्त 204 मक 22 मूत 201 मूत्र 449 मूर्ख 86 मुर्धन 902 मूल 463 मूलेर 431 मषा 542 मूषिक 43 "मृकण्डुक 767 मृगयु 741 मृडीक 48 मृणाल 476 मृत 202 मृत्यु 805 मृदङ्ग 101 मृदर 399 *मृदीका 49 मुटु 729 मदीका 49 *मृशान 277 मृषा 599 *मषाण 191 मेकल 497 मेखला 497 मेचक 33 मेथि 608 मेदस् 952 मेनका 33 Aho! Shrutagyanam Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 मेनि 619 मेक 806 मेष 40 *मेसर 439 मोक्ष 564 मोचा 122 मोर 434 मौकुलि 703 मौलि 701 *म्लातु 773 म्लिच्छ *म्लिछ 890 म्लेच्छ 3 *म्लेख 880 यकत् 892 यक्ष 564 यक्ष्म 338 यक्ष्मन् 916 यजत 207 यजत्र45) *यजुना 288 यजुस् 997 *यजेणु 772, C. यज्यु 801 यति 607 यद् 895 यदु 783 यन्त्र 451 *यमड 171 यमल 465 यमुना 288 यमुन्द 249 ययाति 664 ययी 714 यवन 269 यवस571 यवागू 850 यवाष 545 यवास 574 यशस् 958 यष्टि 646 यस्क 26 "यहा 5144 *याचेलिम 354, C. *याजन्य 379 यातु 773 यात 856 यात्रा 451 यादस् 968 याम 338 यामन् 911 यावस 571 युगल 474 युग्म 345 "युजान 277 युधान 277 युध्म 340 युयुधान 278 युवति 658 युवन् 901 *युवान 277 "युषाण 191 युष्यद् 899 यूका 24 यूथ 231 यूप 297 यूष 541 *यूषा 541 योगस् 966 योनि 677 ययु 783 Aho 1 Shrutagyanam Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * योमि 687 योषा 541 योषित् 887 योस् 1005 रक्षस् 952 *रगह 589 रघु 740 रङ्क 63 रङ्कु 749 रङ्ग 92 रचना 269, C. रजत 208 रजन 278 रजनि 681 रजस् 971 रज्जु 717 * रञ्जसान 279 रण्ड 168 रण्डा 163 रतू 84.0 रत्न 264 रथ 227 रन्धस 569 रन्ध्र 396 * रपट 167 रभस 572 रमठ 167 रमण्य 379 रमति 653 *रमथ 232 * रमभ 329 *रम्प 296 रम्भा 327 रम्र 387 * 464, 225 रवण 187 रवथ 235 रवि 606 रशना 270 रश्मि 688; 270, C. रसना 269 * रसायु 1, C. रन 260 Tar 260 रहस् 952 रहस्952 TT 605 * राक 21 राका 21 राजन् 900 राजन्य 379 राजानक 71 राजि 618 रात्रि 696 * रात्रिष्ण 199, C. राशि 622; 270, C. राष्ट्र 446 रासभ 329 रास्ना 260 राहु 1 रिक्थ 227 frer 567 *रित्र 396 रिपु 798 रिप्र 388 *रिफ ( 1 ) 316, C. ( See इफ ) रिष्टि 651 रिष्व 511, C. *रीत 201 रुक्म 346 * रुक्मल 502 Aho! Shrutagyanam Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 रुचक 29 रुचि 609 रुचिर 416 रुचिष्य 384 रुदथ 234 रुद्र 388 रुधिर 416 रुमा 340 रुम्र 393 रुरु 807 रुवथ 235 *रुषू 844 *रुहसान 280 रुहन 906 रूप 297 रेवणस् 980 रेणु 768 रेतस् 978 रेतोधस् 974 रेपस् 981 रेफ 314 रेवन्त 221 रेहत् 882, C. रै 866 रोचन 269 रोचना 269 रोचिस् 989 *रोतृ 857 रोदस् 952 *रोदुस् 997 रोधस् 952 रोध 387 रोमन् 916 रोहण 187 रोहन्त 220 रोहन्ती 220 रोहि 608 रोहित् 887 रोहित 210 रोहीतक 79 रौहिष 548 रोहिषी 548 लकुच 119 लकुल 487, C. लक्षण 187 लक्ष्मन् 911 लक्ष्मी 715 *लगह 589 लगुड 177 *लघक 33 लघट 877 *लघट 144, C. लघु 740 लङ्का 63 लङ्घक 27 लज्जालु 822 *लज्जू 829 लटह 589 लट्ठा 505 लता 208 लतु 780 लत्तिका 76 लभस 372 लमक 33 लम्बन 273, C. "लम्बूष 560 लय 367 *ललह 589 ललाट 145 ललामन् 916 लवर 98 लवण 190 Aho 1 Shrutagyanam Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 227 . लोमन् 916, C. लोल 494 लोष्ट 138 लोटु 716 लोह 586 लोहित 210, C. वकुल 486 वकोट 161 वक्त्र 451 *वनु 790 वक्र 388 वक्षस् 983 वन 790 वक्रि 692 वण 190 लवाणक 70 *लवानक 71 लवि 606 लवित्र 459, C. लशुन 289 लव 509 *लसुष 559, C. लहोड 172 लह्य 364, C. लाक्षा 597 लाङ्गल 466 लाल 491 *लाणक 68 "लात 209 लाव 505 *लावाल 479 लिक्षा 567,C. "लिखक 29 *लिखि 609 लिगु 740 लिङ्ग 102 *लिन्दुम 352 लिपि 609 लिप्त 204 लिष्व 509 लुलाय 372 *लुवन् 901 "लुसम 331 लूता 202 लूनि 679 *लेहड 171 *लोकयु 741 लोत 202 लोत्र 461 लोप्त्र 451 वचकु 796 *वचत्र 456 वचस् 952 *वचुष्य 385 वत्र 387 वनधर 20 वञ्चथ 232 *वञ्चल 488 वञ्जल 487 वट 139 *वटम्ब 321 वटर 397 *वटवक 33 *वटवा 515 वटि 607 वटु 716 वठर 397 वडभी 329 वडवा 515 वडिश 535 Aho! Shrutagyanam Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणिज् 875 वण्ठ 162 वण्ड 168 वतण्ड 175 वत्स 564 वत्सर 439 वद 2 * 793 वदन्त 221 वदन्ति 665 वदन्तीं 221 *वदवद 14 वदान्य 381 वधक 33 वधत्र 456 *वधन 33, C. *वधि 607 *afu 33, C. वधू 832 वधूटी 157 * वधूल 488 वध्य 33, C. वनि 607 निष्ठु 732 वन्दथ 232 वन्दाक 34 वन्दि 607 वन्द्र 387 *वपत्र 456 वपुष 557 वपुस् 997 *वप्प 296 वप्र 387 वप्रि 692 वमक 27 * वमड 171 *वमत्र 456 228 *वमर 397 *वमुक 51 वम्र 387 म्रि 387 वय 367 वयस् 952 * वयिम 350 वन 288 वयोधस् 974 वर 2 वरक 27 वरट 142 वरण 187 वरण्ड 178 वरत्रा 456 * वरवर 14 वराट 145 वराळ 475 वराह 591 * वारे 606 * रिम 849 वरुट 153 वरुड 153 वरुण 196 वरुत्र 461, C. वरूक 61 वरूथ 236 * वरूष 560 वरेण्य 382 वर्कर 435 वर्ग 92 वर्चस् 952 वर्ण 182 वर्णसि 709 (Twice). वर्ण 768 वर्तका 27 Aho ! Shrutagyanam Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 029 वर्तनि 680 *वर्ताका 34 वर्ति 610 वर्तिका 27, C. वर्तुल 485 वर्तिका 75 वर्मन् 911 वर्धकि 624 *वर्धसान 281 वर्ध 387 वर्पस् 981 वर्मन् 911 वार्म 687 वर्वर 9; 441 वर्वरी 9; 441 ववरीक 47 "वर्वरीका 47 वर्वि 704 वर्ष 540 वर्षा (Pl.) 540 वर्मन् 911 वर्स 564 वलक्ष 596 *वलत 207 *वलप 304 वलभी 329,C. वलय 365 वलि 607 वलीक 46 वल्क 21 वल्कल 496 वल्गु 758 वल्गुला 487, C. *वल्म 338 वाल्मि 687 वल्मीक 50 वल्लकी 27 वल्लभ 329 वल्लुरि 698 वल्लव 515 वलि 607 वल्लूर 427 वश 528 वशि 607 *वधि 692 वसति 653 वसन्त 221 वसाति 662 वसि 619 वसु 716 वसुरोचिस् 989, C. *वमुशर्मन 911, C. वस्त 200 वस्ति 646 वस्तु 774 वस्त्य360 वस्त्र 451 वस्न 258 वहति 653 वस्तु 779 वहन 269 वहन्त 221 वहन्ती 221 वहल 465 *वहस 571 वहि 607, C. वहित 459 *वहिर 412 *वहेणु 772, C. वह्नि 677 वंश 527 वा 605 Aho! Shrutagyanam Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230 वागरा 426 वानि 618 वाणि 618; 634 वाणी 618,C. *वाणीचि 629 वात 200 *वातप 307 वातप्रमी 713 वाति 657 *वादि 618 वादित्र 460 वानर 403, C. वानीर 421 वापि 618 *वापीर 421 वाम 338 वामन् 911 “वामि 618 *वायति 657 वायस 570 वायु 1 वार् 944 वारङ्ग 99 "वाराणसि 708 वारि 606 *वारिणि 644 वार्ताक 37 *वार्ताकी 37,C. वालुक 57,C. वालुकी 57, C. वाल्हीक 50 वावदूक 61.C. *वाशर 397, C. वाशि 607 *वाशुर 423 *वाशरा 423 बाश्र 387 वाश्रा 387 वासर 397 वासव 516 वासस् 970 वासा 564 वासि 619 वासिका 40 वासुरा 423 वास्तु 774 वाहस 571 *वाहि 618 वाहीक 50 वि 616 विकसुक 52 *विकर 393, C. विकुस्त्र 393 विक 22 विचकिल 484 विचक्षण 187 विचख्युस् 1001, C. विटप 305 विडङ्ग 101 विडाल 476 *विदूर 429 वितण्डा 168 वितस्ता 200 वितस्ति 646 विथुर 426 विद 6 विदथ 234 *विदन 275 विदल 474 *विदाका 35 विदि 610 विदु 792 Aho 1 Shrutagyanam Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदुल 4.86 *विदुष 558 विद्रधि 676 *fag 745 विद्रुम 352 विधर्मन् 911, C. विधस् 972 विधु 729 विधुर 425 विन्दु 716 विन्ध्य 364 विपाश 950 विपिन 284 विप्र 396 वियत् 882, C. त्रिरल 474 विराट 148 विरिञ्चि 617 विरोचन 269, C. * विलङ्ग 101 * विलटा 143 विलम्ब 323 * विलस्ति 660 विलात 209 विलाल 476, C. * विलाह 592 * विलम्ब 324 विल्म 340 * विवत्सर 439, C. विश् 950 विशम्प 296, C. fart 857, C. * विस्थुल 487 * विशा 600, C. विशाख 85, C. विशाखा 85, C. 231 विशाल 476 विशिख 85, C. विशिखा 85, C. विशिप 309 * विशेलिम 354 विभि 693 विश्व 511 विश्वप्सन् 902 विश्वभानु 786, C. विश्वभोजस् 956 विश्व 741 विश्ववेदस् 956 विष 5 विषाण 191 विष्टप 307 विष्टि 651 fagr 163 विष्णु 769 विस 579 *farer 600 विस्त 201 विस्र 388 *विहड 172 * विहण 189 विहा 600 विहायस् 976 *विहेलिम 354 वीक 22 *tar 22 वीचि 628 aftorr 183 वीतंस 565 वीथि 669 after 388 वृक 22 वृक्क 26 Aho! Shrutagyanam Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232 वृक्ष 567 *वृङ्ग 1 वृजन 27: वृजिन 283 वृति 610 वृत्र:388 वृत्रवध 33, C. वृथा 601 वृधसान 281 *वधक 61 वृन्ताक:37 वृन्नाको 37. C. वृन्द 240 वृश:28 *वशय 30) नश्चिक 43 वषण 158 वपन् 901 वृषभ 331 वृषय 3699 वृषल 468 *वषा59) "वृषाण 191 वृष्णि 685 वेग 2 वेणि 634 वेणु 766 वेण्णा 182 वेतन 292 वेतस 580 वेताल 480 वेत्र 451 वेदि 610 वेधस् 972 वेन 258 *वेनि 677 *वेपुस् 997 वेमन् 916 *वेविज 932, C. *वेविष 932, C. वेशन्त 219 वेश्मन् 911 "वेष्टिम 349 वेष्प 296 वेसर 439 वेहत् 882 वैतरणी 638, C. वैतालीय 378 वैष्ट्र 447 व्यलीक 46, C. *व्यलीका 46, C. व्याड 171 व्याम 338 *व्यामन 914 *व्येमन् 914 ध्योमन् 914 व्रत 208 व्रतति 655 व्रन 263 ब्राजि 618 व्रात 209 *जीलस 572, C. ब्रीहि 710 शकट 142 शकटि 630 *शकन्धू 848 शकल 465 *शकाल 475 शकुन 288 शकुनि 684 शकुन्त 223 शकुन्ति 666 Aho 1 Shrutagyanam