Book Title: Udayan Vasavdatta
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board
Catalog link: https://jainqq.org/explore/006280/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ऐजुकेशन बोर्ड प्रस्तुति Look LEARN उदयन वासवदत्ता Rs.20.00 YOTOVie Vol Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "युवा हृदय सम्राट पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनिजी म.सा. की प्रेरणा.... अर्हम युवा ग्रुप ARHAM पस्ती द्वारा परोपकार के कार्य... ARHAM YUVA YUVA GROUP एक नया प्रयोग... GROUP करुणा के सागर पूज्य गुरुदेव... जिनके हृदय में दूसरों के हित, श्रेय और कल्याण की भावना रही है... उनके चिंतन से एक अभिनव विचार का सृजन हुआ और उन्होने मानवसेवा, जीवदया के कार्य के साथ अध्यात्म साधना करने के लिए “अर्हम युवा ग्रुप” की स्थापना की..! पूज्य गुरुदेव के प्यार से प्रेरणा पाकर यह महा अभियान समस्त मुंबई के युवक-युवतीओं का एक मिशन बन गया ! इस महा में प्रतिदिन स्वेच्छा से नये नये युवक युवतियाँ जडते जा रहे हैं। यह उत्साही यवावर्ग हर माह हजारों किलो की पस्ती एकत्र करके उसका विक्रय करता है और उस राशी से परोपकार के कार्य करता है। ____ पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन और निर्देशन के अनुसार ये युवक-युवतीयाँ हर माह के प्रथम रविवार को पार्टी, पिक्चर या प्रमाद करने के स्थान पर परमात्मा पार्श्वनाथ की जपसाधना करके मनकी शांति और समाधि प्राप्त करते हैं। दूसरे रविवार को सेवा का कार्य करने के लिए घर-घर जाकर अखबारों की पस्ती इकट्ठी करते हैं और कड़वे-मीठे अनुभव द्वारा अपने अहम्कोचूर कर, Ego कोGo कर,सहनशील और विनम्रबनते है। ____ तीसरे रविवार को पस्ती से पाये गये रूपयो से गरीब, आदिवासी, बीमार, अपंग, अंधे, वृद्ध आदि की जरूरत पूरी करते है। वे उन्हें केवल वस्तुयें या अनाज, दवा आदि ही नहीं देते अपितु उन्हें प्यार, सांत्वना आश्वासन और आदर भी देते हैं । उनकी दर्दभरी बातें सुनते हैं, अनाथ बच्चों के साथ खेलते हैं और वृद्धजनों को व्हीलचेर पर बैठाकर उनकी इच्छानुसार प्रभु दर्शन आदि कराने भी ले जाते हैं। वेकत्लखाने जाते हए पशुओं को बचाते हैं। बीमार, घायल पशु-पक्षीयों का इलाज भी कराते हैं। _बदले में उन्हें क्या मिलता है? उन्हें एक प्रकार का आत्मसंतोष प्राप्त होता है । वे जो अनुभव करते हैं उसके लिए कोइ शब्द ही नही है । उनका दिल अनुकंपा से भर उठता है। __इन युवाओं ने आजतक दुनिया के सिक्के का सिर्फ एक ही पहलू-सुख ही देखा था। अब सिक्के का दूसरा पहलू | दुनिया का दुःख, वास्तविकता देखने के बाद उन्हें अपना सुख अनंत गुना बड़ा लगने लगा है। बस ! पूज्य गुरुदेव ने आज की युवा पीढ़ी को शब्दों द्वारा समझाने के बदले प्रयोग द्वारा उनका जीवन परिवर्तन कर दिया प्रयोग और प्रत्यक्ष देखने और अनुभूति करने के बाद समझाने की जरूरत ही नहीं रही। ___चौथे रविवार को अपने पूज्य गुरुदेव के दर्शन करके, उनके सानिध्यमें उनके शुक्ल परमाणुओं द्वारा अपनी ओरा, अपने भाव और अपने विचारों को शुद्ध करके शांतिपूर्ण, निर्विघ्न अपने सारे कार्य सफल करतें हैं और नया मार्गदर्शन... नया बोध... नये विचार पाकर अपना जीवन धन्य बनाते हैं। आप भी जीवन में 'गुरु' द्वारा प्रेरणा पाकर परोपकार के इस महा अभियान में अपना सहयोग देवें और अपना अमूल्य मानव जीवन सफल बनायें। अर्हम ग्रुप के सदस्य बनने के लिए सम्पर्क करें - Ritesh -9869257089,Chetan-9821106360, Jai -9820155598 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारा संदेश... ज्ञान... ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है। बच्चों के लिए ज्ञान प्राप्ति का सरल माध्यम है आकर्षक और रंगीन चित्र... बच्चे जो देखते हैं वही उनके मानस मे अंकित हो जाता है और लम्बे अर्से तक याद भी रहता है। दूसरी बात... आज के Fast युग में बच्चों के पास पढ़ाई के अलावा इतनी साईड एक्टीवीटी है कि उन्हें लम्बी कहानियाँ और बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने का समय ही नहीं है। हमारे जैनधर्म मे... भगवान महावीर के आगमशास्त्रो में ज्ञान का विशाल भंडार भरा हुआ है। ज्ञाताधर्मकथासूत्र जैसेआगम में कथानक के रूप में भी कहानियों काखजाना है। बाल मनोविज्ञान की जानकारी से हमे ज्ञात हुआ कि बच्चों की रूचि comics में ज्यादा है । उन्हें पंचतंत्र, रीचीरीच, आर्ची, Tinkle आदि Comics ज्यादा पसंद है और उसे वे दोचार - पाँच बार भी पढ़ते है और Comics एक ऐसाAddiction है जिसे बड़े भी एक बार अवश्य पढ़ते है । यही विषय पर चिंतन-मनन करते हुए हमारे मानस में भी एक विचार आया... क्यों न हम भी जैनधर्म के ज्ञान को... हमारे भगवान महावीर के जीवन को, हमारे तीर्थंकर को... बच्चों तक पहुँचाने के लिए Comics Book कामाध्यम पसंद करे...? शायद यही माध्यम से बच्चों और बच्चों के साथ बड़े भी जैनधर्म के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी पाकर अपने आप में कुछ परिवर्तन लायेंगे । परमात्मा के विशाल ज्ञान सागर में से यदि हम कुछ बूंदे भी लोगों तक पहुँचाने में सफल हुए तो हमारा यह प्रयास यथार्थ है। जैनधर्म की क्षमा, वीरता, साहस, मैत्री, वैराग्य, बुद्धि, चातुर्य आदि विषयों की शिक्षाप्रद कहानियाँ भावनात्मक रंगीन चित्रों के माध्यम द्वारा प्रकाशित करने का सदभाग्य ही हमारी प्रसन्नता है। यह Comics हमारे Jain Education Board - Look n Learn के अंतर्गत प्रकाशित हो रही है। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वैर से वैर शान्त नहीं होता। शत्रु खत्म हो जाते हैं, शत्रुता पीढी-दर-पीढी चलती रहती है। वैर और शत्रुता को समाप्त करने के लिए प्रेम, सद्भाव और विनम्रता की शक्ति चाहिए। उदयन और वासवदत्ता का चरित्र इसी शाश्वत सत्य को प्रकट करता है। कौशाम्बी नरेश शतानीक और उज्जयिनीपति चंडप्रद्योत परस्पर साढू के रिश्ते से जुड़े थे परन्तु फिर भी चंडप्रद्योत की राज्यलिप्सा और विषयतृष्णा के कारण दोनों में परस्पर शत्रुता हो गई और चंडप्रद्योत ने कौशाम्बी का विध्वंस करने की ठान ली। किंतु रानी मृगावती की दूरदर्शिता, समयज्ञता और शान्ति तथा प्रेम की शक्ति ने चंडप्रद्योत का हृदय बदल दिया। उदयन के समय में पुन: चंडप्रद्योत कौशाम्बी को नष्ट करने तैयार हो गया, किंतु उदयन और वासवदत्ता ने दोनों राज्यों की इस शत्रुता को प्रेम की धारा से सदा-सदा के लिए शांत कर दिया। उदयन का चरित्र त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में है तथा हिन्दू तथा बौद्ध कवियों ने भी इस पर काव्य, नाटक आदि की रचना की है। महाकवि भास का 'स्वप्न वासवदत्ता' नाटक भी प्रसिद्ध है। प्रस्तुत चित्रकथा में जैन ग्रंथों के अनुसार उदयन और वासवदत्ता चरित्र का चित्रण किया गया है। ( प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान ) LOOK LEARN Jain Education Board मूल्य : २०/- रु. Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E Mumbai-400077. Tel:32043232. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता भारत के प्राचीन वम्जि गणतंत्र की राजधानी थी वैशाली। वदत्ता वैशाली नरेश चेटक के सात पुत्रियाँ थीं। तीसरी पुत्री मृगावती का विवाह कौशाम्बी पति शसानीक के साथ हुआ। रानी मृगावती उस युग की परम सुन्दरी मानी जाती थी। पाँचवी पुत्री शिवादेवी अवन्ती के राजा चण्डप्रद्योत की रानी थी। एक दिन चण्डप्रद्योत की सभा में एक चित्रकार आया। उसने एक कलाकृति चण्डप्रद्योत को भेंट दी। वाह ! क्या अद्भुत चित्र है। चित्रकार तुम्हारी कल्पना का जबाव नहीं। महाराज, यह कल्पना नहीं सच है क्या ऐसी अपूर्व सुन्दटी) धरती पर है? कौन है यह सुन्दरी? कहाँ की शोभा है? अवश्य महाराज। कौशाम्बीपति शतानीक की रानी मृगावती का | है यह चित्र। ओह ! मृगावती ! उसके अद्भुत लावण्य की चर्चा सुनी तो हमने भी है, पर विश्वास नहीं हुआ। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता चित्र को बहुत देर देखने के बाद चण्डप्रद्योत ने महामंत्री चकित होकर राजा की ओर देखने लगा। अपने महामंत्री से कहा-/ मात्यवर | पथ्वी का परन्त महाराज, राजाIYचण्डमहासेन जिस यह सर्वश्रेष्ठ नारीरत्न शतनीक तो आपके वस्तु को चाहता है, तो हमारे महलों में सादू हैं न? उसमें रिश्ते नाते बाधा होना चाहिए। नहीं बन सकते। चण्डप्रद्योत की बात सुनकर सभी एक-दूसरे लगभग चार दिन के प्रवास के बाद दूत कौशाम्बी की राजसभा में का मुँह ताकने लगे। राजा ने सामने आसन पहुंचा और राजा शतानीक को चण्डप्रद्योत का सन्देश सुनाया। सन्देश पर बैठे दूत को पुकारा सुनते ही शतानीक क्रोध से भर उठे। बोलेवज्रजंघ ! तुम कौशाम्बी जाकर noor इस धृष्टता के लिए हम तुम्हारा सिर O महाराज शतानीक से हमारा सन्देश उड़ा सकते हैं, परन्तु दूत अवध्य होता | कहो कि हम महारानी मुगावती को है, इसलिए क्षमा करते हैं। फिर भी चाहते हैं। इसलिए वह हमें भेंट कर इसका फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। दे। बदले में जो चाहिए माँग ले। महाराज की जैसी आज्ञा फिर पहरेदारों ने दूत की अच्छी तरह पिटाई। वज्रजंघ कौशाम्बी की ओर चल.पड़ा। की और धक्के देकर राजसभा से निकाल दिया। । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता फटे कपड़े, घायल हालत में दूत अवन्ती की राजसभा में वापस पहुंचा और चण्डप्रद्योत को पूरी घटना सुना दी। उन कायरों की इतनी हिम्मत। मेरे दूत की पिटाई कर दी। चण्डप्रद्योत की सेना ने कौशाम्बी को चारों ओर से घेर लिया। भयंकर युद्ध हुआ। चण्डप्रद्योत ने सेनापति को आदेश दिया गलसेनापति कौशाम्बी पर आक्रमण की तैयारी करो। MAINTENALIANT महा राजा शतानीक सहित हजारों योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गये। कौशाम्बी के मंत्रियों, सेनापतियों ने मिलकर निश्चय किया- मंत्रीवर ! देश की रक्षा राज्य के गौरव की रक्षा के लिए हम आखिरी दम के लिए आपका निर्णय तक लड़ते रहेंगे। वीरोचित है, परन्तु प्राण देकर भी यदि हम अपनी रक्षा नहीं कर सके तो? इस प्रश्न पर सभी मौन रहे और महारानी की तरफ देखने लगे। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता महारानी ने कहा- वीरता के साथ समयज्ञता भी राजनीति का अंग है। हमें दोनों को मिलाकर चलना होगा। आप जैसा आदेश देंगी, हम करने को तैयार हैं। रानी मुगावती ने महामंत्री और सेनापति से एकान्त में मंत्रणा की। फिर अपना एक विश्वासी दूत राजा चण्डप्रद्योत के पास भेजा। दूत ने चण्डप्रद्योत के पास पहुँचकर प्रणाम किया और बोला महाराज की जय हो मैं महारानी मृगावती का खास सन्देश लेकर चण्डप्रद्योत ने इधर-उधर देखा। सभी लोग उठकर चले गये। एकान्त देखकर दूत ने कहा 'महाराज ! महारानी मृगावती ने कहलवाया है कि कौशाम्बी की प्रजा अनाथ हो गई है। राजकुमार उदयन अभी पाँच वर्ष का है। अब आप ही हमारे शरणदाता हैं। यह सुनकर चण्डप्रद्योत का चेहरा खिल उठा। मुझे विश्वास था महारानी बहुत समझदार है, ऐसा ही सोचेंगी। मैं भी युद्ध नहीं चाहता हूँ। महारानी ने कहा है, वे अभी महाराज के निधन से बहुत दुःखी हैं। इन घावों को भरने के लिए कुछ समय चाहिए। फिर तो हम आपके ही हैं। जायेंगे कहाँ? Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चण्डप्रद्योत मन ही मन बोला वाह ! मोर ने पुकारा बादल बरस गया ! उदयन और वासवदत्ता उसने तुरन्त सेनापति को बुलाकर आदेश दिया युद्ध रोक दो। कोई भी सैनिक कौशाम्बी की एक ईंट को भी नहीं छुएगा। | फिर चण्डप्रद्योत ने दूत से कहामहारानी से कहो, मैं हर प्रकार से उनकी रक्षा करूँगा। मुझे न राज्य चाहिए, न ही सम्पत्ति। मैं केवल / उनको ही चाहता हूँ। महाराज ! महारानी महारानी जी के लिए हम सबकुछ मी भी यही सोचती करने को तैयार हैं। कहें तो कल ही हैं। बस, कुछ समय हमारी सेना वापस लौट जायेगी। में सबकुछ सामान्य हो जायेगा। दूत ने रानी मृगावती को चण्डप्रद्योत का उत्तर सुनाया। रानी मन ही मन मुस्करायी। अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे? अगले दिन रानी का दूत पुनः चण्डप्रद्योत के पास आया अवन्तीनाथ के चरणों में महारानी मृगावती का प्रणाम स्वीकार हो। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत उटकर एकान्त में आ गया। संकेत से दूत को पास बुलाकर पूछामहारानी का क्या सन्देश है? महाराज ! युद्ध में कौशाम्बी के दुर्ग, शस्त्र, सेना आदि सभी कुछ क्षतिग्रस्त हो गया है। आपके यों लौट जाने पर इसे अनाथ समझकर कोई भी शत्रु राजा आक्रमण कर सकता है। तो महारानी जी क्या चाहती हैं? आप कौशाम्बी की सुरक्षा व्यवस्था को ऐसी सुदृढ़ बना दीजिए कि शत्रु का कोई दाँव नहीं चले। हमारी छत्रछाया में रहे राज्य पर आँख उठाने की हिम्मत, किसमें हैं ? हजारों मजदूर कौशाम्बी के दुर्ग के पुनः निर्माण में जुट BOE चण्डप्रद्योत ने सेनापति को बुलाकर आदेश दियाकौशाम्बी के दुर्ग, प्राचीर आदि का पुनः निर्माण कर अभेद्य और सुसज्जित बना दो। गये। महारानी जी यह समझती हैं, परन्तु आप तो बहुत दूर हैं, शत्रु चारों तरफ बैठा है। स्वामीहीन घर में चोरों को घुसते क्या देर लगेगी ? सांप घर में बैठा हो तो हिमालय की जड़ी क्या काम आयेगी ? tow 3 3 0 U 0 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता थोड़े समय बाद दुर्ग का कार्य पूर्ण हो गया। महारानी स्वयं निरीक्षण करने निकलीं। देखिए, महारानी जी ! इस किले की दीवारें उज्जयिनी के सुदृढ़ ईंट-पत्थरों से बनाई गयी हैं। यह भूकम्प से भी नहीं हिल सकतीं। प्राचीरों पर विशाल तोपें सुसज्जित कर दी गई हैं। ये देखिए, नगरद्वार तो सचमुच वज्र कपाट बनाये गये हैं। सचमुच ! आप लोगों ने इसे अभेद बना दिया। दूसरे दिन प्रातः चण्डप्रद्योत का दूत रानी मृगावती उसी रात महासेनानायक को बुलाकर रानी ने आदेश के पास आया दिया नगर के चारों दरवाजे बन्द करवा दो। महारानी की जय ! महाराज महाराज से निवेदन प्राचीरों पर चारों तरफ सशस्त्र सैनिकों जानना चाहते हैं, आप उनके करो, शीघ्र ही सूचित को सावधान रहने का आदेश दो। साथ उज्जयिनी के लिए कब कर दूंगी। प्रस्थान करेंगी? और अगले दिन रानी मृगावती ने चण्डप्रद्योत के पास संदेश पत्र भेजा। 'राजन् ! सिंहनी कितनी भी असहाय हो जाये कभी गीदड़ के साथ नहीं रह सकती। क्या आप नहीं जानते, क्षत्रियाणी अपने प्राण देखकर भी शील की रक्षा करती है। मृगावती सती शिवादेवी की बहन है, प्राण देकर भी धर्म की रक्षा करेगी। Lusana n ellarmentlich un the helle lunit lunare an u then went Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता सन्देश सुनते ही चण्डप्रद्योत के नथूने फूल अवन्ती की सेना ने पुनः कौशाम्बी को चारों तरफ से घेर लिया। उठे। मदोन्मत हाथियों ने दुर्ग के दरवाजों को तोड़ने का भरपूर धोखा ! महाछल ! धूर्त मृगावती ने मुझे प्रयास किया। किन्तु कोई द्वार नहीं टूट सका। आखिरी ही मूर्ख बना दिया। कौशाम्बी पर पुनः चण्डप्रद्योत की सेना ने ही उस अभेद दुर्ग का निर्माण किया था। आक्रमण करो। ईंट से ईंट बजा दो। चण्डप्रद्योत निराश होकर हाथ मलता रहा। OHLIM चारों तरफ से घेर लो। ओह ! महाछल! VAM 3000 थक हारकर चण्डप्रद्योत की सेना ने दुर्ग के बाहर ही पड़ाव डाल दिया। एक दिन प्रातः आकाश में देव दुंदुभि बज उठी। अगले दिन प्रातः हजारों नारियों के समूह के साथ एक जैसी सफेद देवताओं ने उद्घोष किया साड़ियाँ पहने, हाथों में सफेद पताका लिये रानी मृगावती नगरद्वार PT कल कौशाम्बी के Nसे बाहर निकलकर भगवान के समवसरण की तरफ चल दी। उद्यान में त्रिलोकीनाथ । चण्डप्रद्योत हाथ मलता रह गया। श्रमण भगवान महावीर करुणावतार भगवान पधार रहे हैं। TARA महावीर की जय ! सकता। लगता है अब निर्णय की ____घड़ी आ गई। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशना की- उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत भी भगवान महावीर की देशना सुनने समवसरण में आया। प्रसंग अनुसार भगवान महावीर ने भव्यो ! विषय, तृष्णा के वश हुआ | मनुष्य संसार में जन्म-जन्म तक दुःख पाता है। विषयमूढ़ मानव, अंधे की तरह विवेकहीन हो जाता है। नीच से नीच कर्म करने में उसे लाज नहीं आती। मनु D DICTapa देशना के अन्त में रानी मृगावती ने उठकर प्रार्थना की- मृगावती चण्डप्रद्योत के पास आई। हाथ जोड़कर भन्ते ! मैं महाराज ME WITRA बोली- आपकी आज्ञा हो तो मैं प्रभु चण्डप्रद्योत की आज्ञा लेकराणप्परग्य चरणों में दीक्षा लेना चाहती हूँ। दीक्षा लेना चाहती हूँ। ANA देवानुप्रिये । "जैसा सुख हो वैसा करो। भगवान की उपस्थिति के प्रभाव से चण्डप्रद्योत का विकार विरोध शान्त हो गया। वह मौन रहा। रानी ने पुनः कहा मेरा पुत्र उदयन अभी बालक है। इसकी और राज्य की रक्षा का भार मैं आपको सौंप रही हूँ। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता रानी मृगावती की विनम्रता भरी बातें सुनकर चण्डप्रद्योत शर्म से पानी-पानी हो गया। वह खड़ा हुआ और भगवान को वन्दन कर निवेदन किया प्रभु ! मेरा अपराध तो अक्षम्य है। रानी मृगावती की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता से (अनर्थ होते-होते बच गया। मैं आपकी साक्षी से इसे दीक्षा की आज्ञा देता हूँ। राजा चण्डप्रद्योत की आज्ञा प्राप्त होने पर एकान्त में जाकर आर्या परिवेश (साध्वी का वेष) धारण किया। वे सब महासती आर्या चन्दनबाला की शिष्याएँ बनीं। अगले दिन चण्डप्रद्योत ने कुमार उदयन का राजतिलक कर दिया। २० आज से कौशाम्बी पूर्ण सुरक्षित है। महामंत्री यौगंधरायण राजा उदयन की आज्ञा से राज्य का। संचालन करेंगे। MMUNDA फिर सेना के साथ चण्डप्रद्योत वापस उज्जयिनी लौट आया। # मृगावती के साथ ही राजा चण्डप्रद्योत की अंगारवती आदि अनेक रानियों ने भी दीक्षा ग्रहण की। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनी-बारह वर्ष पश्चात् आज वासवदत्ता सत्रहवें वर्ष में प्रवेश कर रही थी। उसके जन्मदिन मनाने की जोर शोर से तैयारियां चल रही थीं। प्रातःकाल ही वह सजधजकर अपनी सखि कंचनमाला के साथ पिताश्री के चरण-वन्दना करने आई। उदयन और वासवदत्ता : बेटी ! मैं कितना भाग्यशाली हूँ, तुझे देखकर एक साथ पुत्र और पुत्री दोनों का सुख अनुभव करता हूँ। काय में पिताजी ! मेरा भी तो सौभाग्य जो आपने मुझे पिता और माता दोनों का अपार प्यार दिया है। पुत्री ! आज जन्मदिन पर तुझे कुछ देना चाहता हूँ, जो तेरी इच्छा हो सो माँग ले। पिताजी ! मैं संसार की तो आज ही हम कर्णाटक सर्वश्रेष्ठ गंधर्व विद्या के सर्वश्रेष्ठ वीणावादक सीखना चाहती हूँ। आचार्य संदीपन को वीणा-वादन मुझे सबसे निमंत्रण भेजते हैं। प्रिय लगता है। पिताश्री ! आचार्य संदीपन की शिष्या वसंतसेना ही तो मेरी कला शिक्षिका है। अच्छा, सुना तो हमने वाह ! फिर तो हमारी राजकुमारी साक्षात् । वीणावादिनी सरस्वती बन जायेगी। पिताश्री ! आचार्या कहती हैं, - वत्सराज उदयन आज भरतखण्ड में सर्वश्रेष्ठ वीणावादक हैं। वे साक्षात् गंधर्वराज तुम्बल का अवतार हैं। CODIA # रानी अंगारवती की पुत्री थी वासवदत्ता। जब वह तीन वर्ष की थी। तभी माता साध्वी बन गई थी। राजा चण्डप्रद्योत ने ही उसे माँ का प्यार दुलार देकर पाला। वह रूप में अप्सरा जैसी लगती थी। तो बुद्धि और चतुरता में सरस्वती। काव्य नृत्य गायन अनेक विद्याओं में प्रवीण थी वह। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता / पिताश्री ! जन्मदिन का मुझे यही उपहार दे दीजिए "मैं उनसे गंधर्व विद्या सीखना चाहती हूँ। अवश्य पुत्री ! मैं तेरी सब इच्छाएँ| पूरी करता रहा हूँ तो यह भी इच्छा पूर्ण करूंगा। पण प्रसन्न होकर वासवदत्ता ने पिताश्री के चरण स्पर्श किये और फिर छाती से लिपट गई। चण्डप्रद्योत राजसभा में आये। और महामंत्री से कहा मंत्रीवर ! राजकुमारी वासवदत्ता उदयन से गंधर्व । विद्या सीखना चाहती हैं। हमने वचन दिया है। महाराज ! यह कोई कठिन काम नहीं है। उदयन भी आपको अपना संरक्षक और पिता तुल्य मानते हैं। उन्हें आदेश देकर बुला सकते हैं। LOTION चण्डप्रद्योत ने पत्र लिखकर दत को अवन्ती भेज दिया। 0000 दूत ने अवन्ती की राजसभा में पहुंचकर पत्र उदयन को भेंट किया। उदयन ने पत्र महामंत्री यौगंधरायण को देते हुए कहा तात ! आप उचित समझें तो पत्र का संदेश सुना दीजिए। IDIO nam HEN Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यौगंधरायण ने पत्र पढ़ा और कहा महाराज ! हम एकान्त में इस पर विचार करेंगे। उदयन और वासवदत्ता एकान्त कक्ष में यौगंधरायण ने बताया 'महाराज ! अवन्ती की राजसभा आपका सर्वश्रेष्ठ वीणावादन सुनना चाहती है। इसलिए आपको सम्मानपूर्वक अवन्ती पधारने के लिए निमंत्रित किया है। यह सुनकर मंत्रियों ने कहा- अवन्ती नरेश तो हमारे स्वजन हैं, वहाँ जाने में क्या आपत्ति है? चण्डमहासेन हमारे स्वजन तो हैं, परन्तु महाकुटिल भी हैं। चोट खाया सांप विश्वसनीय नहीं होता। इसमें | कोई चाल भी हो सकती है। और हमारे राजा दूसरे राज्यों में जाकर वीणावादन करें, यह भी गौरव की बात नहीं है। इन सबकी बातें सुनकर उदयन ने कहा महामात्य! आप जैसा भी उचित समझें उत्तर दे दीजिए। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता अगले दिन महामंत्री ने पत्र लिखकर दूत को दे पत्र पढ़कर चण्डप्रद्योत का चेहरा क्रोध से तमतमा दिया। दूत ने वापस उज्जयिनी पहुँचकर चण्डप्रद्योत उठा मेरी बिल्ली, मुझसे ही को पत्र दिया। आदरणीय, अवन्तीनरेश को सादर प्रणाम, म्याऊँ। ठीक है, चण्ड आपका आदरपूर्ण आमंत्रण हमारे लिए प्रसन्नता महासेन भी अपना लक्ष्य का विषय है। किन्तु अभी महाराज महत्त्वपूर्ण साधना जानता है। राजकार्यों में व्यस्त होने से आपका आदेश स्वीकारने में असमर्थ हैं। क्षमा करें। उसने तुरन्त अपने रहस्य मंत्री को बुलाकर आदेश दिया उदयन को छल से, बल से, किसी भी प्रकार अवन्ती लाना है। महाराज ! आपकी आज्ञा हो तो हम असंभव को भी संभव कर सकते हैं। यह तो मामूली कार्य है CoOY Mond रहस्य मंत्री ने तुरन्त योजना बनाकर चण्डप्रद्योत के समक्ष प्रस्तुत की- वाह ! बहुत सुन्दर उपाय बस महाराज, चतुर शिल्पकारों है। तुरन्त इसे अविलम्ब को कल से ही इस काम में क्रियान्वित करो। लगा देता हूँ। चार मास में हमारी योजना पूर्ण हो जायेगी। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता दूसरे दिन रहस्यमंत्री ने शिल्पकारों को शिल्पकारों ने दिन-रात लगकर एक अद्भुत यंत्र-कुंजर तैयार किया। कार्य पूर्ण होने बुलाकर अपनी योजना समझाई के बाद रहस्य मंत्री चण्डप्रद्योत को कार्यशाला में लेकर आया। तभी एक झूमता हमें काष्ठ का एक हुआ श्वेत हस्ती राजा के सामने आकर खड़ा हुआ। चण्डप्रद्योत चौंक गया। श्वेत यंत्र कुंजर हाथी हैं ! यह क्या? श्वेत बनाना है। हस्ती हमारे राज्य में? मंत्री हँसामहाराज ! यह हाथी असली नहीं, काष्ठ का है। पूरा यंत्रों से चलित है। इसके भीतर बैठे यांत्रिक के इशारों से यह मनचाही दिशा में मुड़ जाता है, उछलता है, झूमता है, चिंघाड़ता है और देखिए? जैसे ही मंत्री ने ताली बजाई। हाथी के पेट में से सैनिक निकलने लगे। UPiyRAN LAR Nuwan चण्डप्रद्योत आश्चर्यचकित रह गया। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! क्या अद्भुत यंत्र कुंजर बनाया है। उदयन और वासवदत्ता महाराज! इस यंत्र कुंजर पर बैठकर वत्सराज उदयन स्वयं आपके चरणों में आकर उपस्थित होंगे। मंत्री ने अपनी पूरी योजना बताई। कौशाम्बी-एक माह पश्चात् एक दिन महाराज उदयन की सभा में कुछ आदिवासी लोग आयेमहाराज! महाराज ! वह हमारे खेतों में सीमा पर कई दिनों से । खड़ी फसलों को नष्ट कर रहा है। एक सफेद हाथी जंगलों मे । उपद्रव मचा रहा है। क्या आप लोग उसे पकड़ नहीं सकते? 'महाराज ! हाथी बड़ा विशालकाय । ठीक है, तुम निश्चिन्त और भयानक है। वह हमारी पकड़ में रहो, हम उस हाथी नहीं आ रहा है। आप ही इस उपद्रव को पकड़कर अवन्ती से हमारी रक्षा कीजिए। | की गजशाला में ले आयेंगे। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता उदयन ने अपने सहायक वसन्तक को कहावसन्तक! हमारी घोषवती वीणा लो और चलो, हाथी को वश में करना है। फिर आप चिन्ता क्यों करते हो?. किन्तु महारा बिफरा मदोन्मत्त हाथी कभी बड़ा भयानक भी बन जाता है। इसलिए साथ में सेना भी रखनी चाहिए। रुकिये महाराज ! हम मानते हैं आपकी वीणा में वह शक्ति है, जो उन्मत्त हाथियों को राग सुनाकर शान्त कर देती है। उदयन हँसा वसन्तक! देखो, वह उपद्रवी हाथी ।, आप लोग निश्चिन्त रहें। जिन हाथियों को सेना काबू में नहीं ले सकती, मेरी यह वीणा उन पर काबू पा लेगी। फिर हाथियों से क्रीड़ा करना तो हमारा शौक है। हम अभी गये, अभी आये। उदयन अपने सफेद घोड़े पर बैठ गये। उनके पीछे एक घोड़े पर वसन्तक बैठ गया। उसके एक हाथ में वीणा थी, एक हाथ में घोड़े की लगाम । पीछे दो शस्त्रधारी घुड़सवार सैनिक चल पड़े। कौशाम्बी की सीमा पर पहुँचकर उदयन को बाँस और केले के घने जंगलों में एक सफेद हाथी उछलता - चिंघाड़ता दिखाई दिया। 金命金 17 महाराज ! ऐसा लगता है देवराज इन्द्र का ऐरावत स्वयं धरती पर आ गया है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता उदयन ने वसन्तक से वीणा लेकर स्वर छेडे। HTRA चिंघाड POOOS SHREGNANAMASSAYE ANEM हाथी ने उदयन को आते देखा तो जोर से चिंघाड़ा और विपरीत दिशा की ओर दौड़ा। उदयन हाथी के पीछे बढ़ता गया। हाथी घने जंगलों में घुसता गया। उदयन ने फिर छुपकर वीणा बजाई तो हाथी थम गया वसन्तक ! लगता है हाथी पर वीणा के स्वरों याक का प्रभाव हो गया। चलो नजदीक चलकर देखें। जसे ही उदयन हाथी के नजदीक पहुँचा। हाथी का पेट खुल गया और धड़धड़ाते हुए सशस्त्र सैनिक निकलने लगे। हैं, यह क्या? हाथी । तो काष्ठ का है। इतना बड़ा धोखा, महाछल ! 10 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता सैनिकों ने तलवारें खींची- मुझे यों बन्दी बनाकर | वत्सराज ! आप भागने कहाँ ले जाना चाहते हो? की चेष्टा मत कीजिए। आप बन्दी नहीं, अवन्तीराज के मेहमान हैं। MONALESEy A LLANTOL (अवन्ती राज ?? सैनिक उदयन को हाथी में बैठाकर अवन्ती ले आये और चण्डप्रद्योत के सामने प्रस्तुत किया उदयन ने कहा वत्स ! क्षमा करना, मौसाजी, मैंने तो मैंने तुम्हें बुलाया था। आपको पिता तुल्य तुम नहीं आये। इसलिए समझा है। मेरे साथ । ऐसा करना पड़ा। ऐसा छल क्यों किया? वत्स ! जब आज्ञा से काम नहीं बनते । लेकिन क्यों? उदयन ! मेरी पुत्री है वासवदत्ता। बड़ी हठीली देखा तभी मैंने यह छल किया है। किसलिए? | और नाजुक मिजाज की है। दुर्भाग्य से वह काणी# है। उसने गंधर्व विद्या सीखने का हठ पकड़ लिया है और इस विद्या का ज्ञाता तुमसे श्रेष्ठ अन्य कोई भरतखण्ड में नहीं है। (आपकी पुत्री काणी है? # कुछ ग्रंथों में उसे अँधी बताया है। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाँ, इसलिए तो मैं उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखना चाहता हूँ। तुम उसे गंधर्वविद्या सिखाओ। बस, यही मेरा आग्रह है / उदयन और वासवदत्ता हैं! वत्सराज और कोढ़ी ? ठीक है मौसाजी, जैसी आपकी आज्ञा । बेटी ! भाग्य भी कभी-कभी कैस मजाक करता है। भारत का सर्वश्रेष्ठ गंधर्वविद्या प्रवीण, शरीर में कोढ़ी है। कुष्ठ रोग से उसका गला गल रहा है। उदयन से स्वीकृति पाकर चण्डप्रद्योत वासवदत्ता के पास आया। पुत्री ! तेरे गायन शिक्षण की सब व्यवस्था हो गई है। वसन्तराज उदयन यहाँ आ गये हैं। परन्तु परन्तु क्या पिताश्री ? 20 हाँ, पुत्री ! यही तो भाग्य की विडम्बना है। भी स्त्री के सामने जाने में उसे बड़ी शर्म आती है। इसलिए मैंने तुम दोनों के बीच एक काला पर्दा उलवा दिया है। ताकि उसे संकोच नहीं होगा और तुम भी कोढ़ी से बचकर रह सकोगी। И दूसरे दिन वासवदत्ता वीणा वादन सीखने लगी। पर्दे के पीछे बैठा उदयन उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के राग सिखाता रहा। प्रतिदिन एक पहर तक यह शिक्षण चलता था। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता एक दिन उदयन वासवदत्ता को दिव्यराग का शिक्षण दे रहा था। राजकुमारी ! वीणा का पंचम तार) ढीला है। स्वर ठीक लय में नहीं आ रहे। प (वासवदत्ता ने तार कस दिया, किन्तु फिर भी वह बार-बार राग गाने में चूक रही थी। झुंझलाकर उदयन ने कहा ए काणी, क्या वीणा के काणी का सम्बोधन सुनकर वासवदत्ता गुस्से से भर उठी- - तार ठीक से दिखाई। मेरी झील-सी आँखों का नहीं दे रहे हैं। अभ्यास सौन्दर्य तुझ कोढ़ी को सुहाया में जरा मन लगाओ। नहीं? जो काणी कहकर तिरस्कार कर रहा है? (कोढ़ी? कौन है? COM उदयन को लगा कि इसमें भी चण्डमहासेन का कोई प्रपंच है उसने झट से पर्दा खींच दिया। सामने वासवदत्ता को बैठी देख उदयन उसके दिव्य सौन्दर्य को निहारने लगा। हैं ! यह साक्षात् (इस अद्वितीय का कामदेव का अवतार सुन्दरी को कोढ़ी कहाँ है? काणी क्यों बताया ? OVOV 21 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता दोनों काफी देर तक एक-दूसरे को एकटक निहारते रहे। सुन्दरी, हमारे बीच भ्रांति का यह पर्दा तुम्हारे आर्य, उनको जो पिताजी ने ही डाला है न? भय था वही तो हो गया न COQUIO धीरे-धीरे दोनों में एक-दूसरे का आकर्षण बढ़ता गया और एक दिन उदयन ने कह दिया आर्य, पिताश्री हमें ठीक है, तुम एक । कभी मिलने नहीं देंगे, तीव्रगामिनी हथिनी की इसलिए आपको ही कुछ व्यवस्था कसो, बाकी करना होगा। सब मैं करता हूँ। पाहतानाताना(सुन्दरी, मन मिल चुका है तो तन की दूरी कितने दिन रहेगी"? कुछ दिन बाद वसन्तक भेष बदलकर उदयन से मिलने आया। वसन्तक तुम यहाँ? राजन् ! महामंत्री यौगंधरायण वसन्तक ! राजकुमारी भी आये हैं। वे आपको ले वासवदत्ता भी मेरे साथ | जाने की योजना बना रहे हैं। कौशाम्बी चलेगी। महामंत्री से कहो, तैयारी करें। LIURAUTAHALPURNA PurQUAAR APAN 22 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसन्तक ने महामंत्री को बताया मन्त्रीवर ! राजकुमा उदयन से प्यार करने लगी है। वह भी कु चलेगी। उदयन और वासवदत्ता वाह ! नहले पर दहला । चण्ड ने हमारे राजा का अपहरण किया, किन्तु हम दिन दहाड़े डंके की चोट पर उसकी राजकुमारी को ले जायेंगे। PSO अगले ही दिन से यौगंधरायण एक पागल का स्वांग बनाकर उज्जयिनी के बाजारों में घूमने लगा। खुले बिखरे बाल, फटे कपड़े, चिल्लाता है, कभी रोता है और जोर-जोर से पुकारता हैभाई ! इसको तो भूत लग गया है। मैं कौशाम्बी का अमात्य यौगंधरायण हूँ। चण्डप्रद्योत ने हमारे राजा का अपहरण किया है। मैं उसकी राजकुमारी को उठाकर ले जा रहा हूँ। अरे, यह तो कोई पागल है। 体 बकवास कर रहा है। हटो चलो, अपना काम करो। एक दिन चण्डप्रद्योत हाथी पर बैठा नगर बाजार में से गुजर रहा था । यौगंधरायण उसके सामने आकर खड़ा हो गया और जोर-जोर से हँसता चीखता बोला सुनो सुनो, मैं महामंत्री यौगंधरायण हूँ। इस चण्डप्रद्योत ने हमारे राजा का अपहरण किया है। मैं उसे छुड़ाकर राजकुमारी वासवदत्ता के साथ लेकर। जाऊँगा। ही ही हीं कोई पागल है। भूताविष्ट जैसा लगता है। दो चाबुक मारकर छोड़ दो। पागल ही ही करता थूकता, हँसता हुआ आगे निकल गया। 23 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता तभी एक दिन अनलगिरि हाथी मदोन्मत हो गया। सांकलों के बंधन तोड़ दिये। खम्बे उखाड़ दिये और बिफरा हुआ राजमार्ग पर उत्पात मचाने लगा। सैनिकों ने राजा को आकर सूचना दी। राजा ने अभयकुमार राजा ने उदयन से कहा / महाराज ! अब तो से पूछा-ANV अभय#, क्या करें? हाथी को वत्स ! अब तो प्रजा की राजकुमारी भी इस महाराज! वश में करने का उपाय बताओ। रक्षा करना तुम्हार हा हाथ कला में प्रवीण हो गई। उदयन का शान्त में है। मुझ पर उपकार हैं। हम दोनों मिलकर राग सुनकर हाथी का करो। हाथी को शान्त करो। वीणा बजायेंगे। मद उतर जायेगा। SAN उदयन और वासवदत्ता एक हाथी पर बैठकर वीणा बजाने लगे। उनकी वाणी के स्वर सुनते ही अनिलगिरि हाथी वहीं का । वहीं खड़ा रह गया वाह ! अद्भुत चमत्कार है। वीणा के स्वरों में। Maa KMADJoy महावतों ने तुरन्त उसे पकड़कर गजशाला में लाकर बाँध दिया। # चण्डप्रद्योत ने बदला लेने के लिए छल करके अभयकुमार को भी बन्दी बनाकर उसे सम्मानपूर्वक उमयिनी में रोक रखा था। 24 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत ने उदयन से कहा- वत्स ! इतने दिन सुना उदयन वासवदत्ता के पास आया| ही था, आज तुम्हारी दिव्य वीणा का और पूरी बात बताकर बोलाचमत्कार देखकर मैं तो गद्गद् हो । सन्दरी ! अवसर चूको गया। अब अपनी वीणा के अमृत | मत महाराज संगीत स्वरों से उज्जयिनी की प्रजा को भी | उत्सव की तैयारी में लगे हैं। आनन्द विभोर कर दो। | और हम कौशाम्बी प्रस्थान की तैयारी करें। महाराज की जैसी आज्ञा आर्य ! बिलकुल उचित समय है। UUU (OGG वासवदत्ता ने अपनी सखी कंचनमाला से कहा KOAAAAA माला ! तैयारी करो, कल सूर्योदय से FOPorore पहले ही हमें प्रस्थान कर देना है। संध्या के समय महल के पीछे उदयन वसन्तक से मिला और कहा वसन्तक! वेगवती हथिनी को namme तैयार रखो। कल ब्रह्म मुहुर्त में हम प्रस्थान कर देंगे। स दूसरे दिन उषाकाल में वसन्तक वेगवती हथिनी लेकर महलों के पीछे पहुंच गया। उदयन भी अपनी वीणा लेकर आ गया। वासवदत्ता भी कंचनमाला के साथ Koli LDLA 25 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता हथिनी के पास पहुँचकर उदयन ने पूछा वसन्तक! राजन् ! इनमें हथिनियों हथिनी के पीछे का मूत्र भरा है। यही ये चार घड़े क्यों A अनिलगिरि हाथी बाँध रखे हैं? को रोकने की एक मात्र दवा है। हथिनी पर बैठकर जैसे ही वे जाने लगे। दूर खड़ा यौगंधरायण जोर-जोर से पुकारने लगा- पागल ! आज देखो उज्जयिनी के लोगो, भी वही नाटक उदयन वासवदत्ता के साथ करने लगा। जा रहा है। किसी की हिम्मत हो तो रोक लो?/ 400 परन्तु जब हथिनी सीमा के जंगलों के पास पहुंची तो कुछ पहरेदारों ने हथिनी पर बैठी तत्काल राजा को खबर दीवासवदत्ता और उदयन को देखा। अरे, यह तो महाराज ! राजकुमारी, Y क्या? इतना AWUA उदयन के साथ हथिनी । बड़ा छल! अपनी राजकुमारी पर बैठकर अवन्ती की | मेरी बेटी मेरे और उदयन हैं। नान HAVAN तरफ जा रही है। साथ ही धोखा कर गई? 26 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत के आदेश पर सैनिक अनिलगिरि हाथी पर बैठकर उदयन का पीछा करने लगे। उदयन ने पीछे देखा अरे ! अनिलगिरि हाथी/महाराज ! एक दौड़ता हुआ आ रहा है। घड़ा मार्ग पर गिरा दीजिए। उदयन ने उठाकर एक घड़ा रास्ते पर फोड़ दिया। मकर इस घड़े में हथिनी का मूत्र | फूटे घड़े के पास आते-आते अनिलगिरि रुक गया भरा हुआ था। उसकी गंध से ही | और उसे सूंघने लगा। सूंघकर कुछ उन्मत्त-सा भी यह अनिलगिरि कामोन्मत्त-सा हो । हो गया। जाता है और इधर-उधर हथिनी । महावत मी, को खोजने लगता है। हाथी क्यों रुक गया? कल्ला बार-बार अंकुश मारकर महावत ने हाथी को दौड़ाया। एक पहर बाद फिर उदयन ने देखा, अनिलगिरि आ पहुंचा है। उसने दूसरा घड़ा गिरा दिया। 27 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता अनिलगिरि आकर फिर घड़े के पास रुक गया और बड़ी मुश्किल से महावत ने फिर उसे आगे सूंड उठाकर चिंघाड़ने लगा। दौड़ाया। २५ योजन भूमि पास करते-करते फिर उदयन के नजदीक आया तो उसने तीसरा घड़ा भूमि पर गिरा दिया। चिंघाड़ और अन्त में चौथा घड़ा भी गिरा दिया। संध्या होते-होते वेगवती हथिनी कौशाम्बी की सीमा में प्रवेश कर गई। चण्डप्रद्योत के सैनिक पीछे रहे गये। ओह ! वे तो कौशाम्बी की सीमा में प्रवेश कर गये। लौटकर महाराज को खबर देनी चाहिए। तेज दौड़ती-दौड़ती हथिनी इतनी थक गई कि कौशाम्बी में घुसते ही भूमि पर बैठ गई और वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ी। "ओह ! बेचारी अपनी कुर्बानी देकर हमें सुरक्षित सरकार यहाँ ले आई। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता फिर दूसरे हाथी पर बैठकर उदयन आदि सकुशल नगर में प्रवेश कर गये। लौटकर सैनिकों ने सारी घटना सुनाई तो चण्डप्रद्योत ने दाँत पीसते हुए कहा यह उस धूर्त यौगंधरायण की चाल है। उसी ने हम सबको मूर्ख बनाया है। सेना तैयार करके कौशम्बी पर आक्रमण करो।। COCAL THISM मंत्रियों ने उसे समझाया-महाराज ! अब युद्ध करने से राजपुरोहित ने भी कहा क्या लाभ है? राजकुमारी ने माटरी ने | राजन् ! पुत्री की खुशी ही अपना वर स्वयं चुन ही लिया तो पिता की खुशी होती है। है और वह भी उदयन जैसा फिर आपको तो बिना परिश्रम वीर सुन्दर कलाकार किये ही इतना गुणी और वीर दामाद मिल गया। A ത്തരവ 29 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता सब के समझाने से चण्डप्रद्योत शान्त हो गया। उसने राजपुरोहित को आदेश दिया (ठीक है ! आप सबका विचार उचित ही है। यदि मैं अपने हाथ से कन्यादान करता तो ज्यादा खुशी होती। अब कन्या और जंवाईराजा के लिए उपहार लेकर आप कौशाम्बी जाने की तैयारी कीजिए। दो दिन बाद महामंत्री यौगंधरायण कौशाम्बी में उदयन-वासवदत्ता के विवाह उत्सव की तैयारियाँ होने लगी। तभी उपहार | भी कौशाम्बी आ गया। आदि लेकर उज्जयिनी के कुलपुरोहित भी आ पहुंचे। आइये महामंत्री मी OOD मैं आपका इन्तजार कर रहा था। महाराज की महाराज उदयन जय हो! की जय हो! CEYOXOXO aroo Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता उज्जयिनीपति ने अपनी पुत्री के लिए यह उपहार भेजे हैं। कृपया स्वीकारें। CCC KURV OXOO00 वासवदत्ता ने राजपुरोहित के चरण-स्पर्श किये। उज्जयिनीपति महाराज चण्डप्रद्योत की ओर से आप दोनों के सुखसौभाग्यमय जीवन की कामना करता हूँ। ETOYOOOOOOOOOOOOU) पुरणे उसी समय उद्यानपाल ने सूचना दी (श्रमण भगवान महावीर विहार करते-करते कौशाम्बी के उद्यान में पधार रहे हैं। गणप 31 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयन और वासवदत्ता दूसरे दिन राजा उदयन, वासवदत्ता, विशाल सेना के साथ भगवान महावीर के दर्शन करने गये और अमृतवाणी सुनी। प्रवचन के पश्चात् उदयन ने प्रभु से प्रार्थना की प्रभु ! मैं अपनी माता महासती मृगावती के दर्शन करना चाहता हूँ। वत्स! आयो चन्दनबाला के सानिध्य में तुम्हारी मातां साध्वी मृगावती अन्यत्र उद्यान में स्थित हैं। वह केवली ही चुकी हैं। वहीं पर तुम उनके दर्शन कर सकोगे। 00% उदयन-वासवदत्ता दोनों ही साध्वी मृगावती के दर्शन करने गये। वहीं पर वासवदत्ता की माता साध्वी ! अंगारवती आदि भी विराजमान थीं। दोनों ने उनके दर्शन किये और धर्म शिक्षा प्राप्त की। उनकी धर्म शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन बिताते हुए दोनों ने ही जिनधर्म की आराधना कर जीवन सफल बनाया। समाप्त 32 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान पार्श्वनाथ के प्रगट प्रभावक, असीम आस्थारूप, श्वी उवसग्गहरं स्तोत्र की पावन अनुभूति करानेवाला, पोजीटीव एनर्जी के पावरहाउस समान, दिव्य और नव्य पावनता का प्रतीक - पारसधाम PARAS महानगरी मुंबई के हृदय समान घाटकोपर में पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. प्रेरित ज्ञान, ध्यान और साधना का एक अनोखा आधुनिक तकनीकी द्वारा तैयार किया गया धाम.. पारसधाम..! RA SDH पारसधाम... एक ऐसा धाम, जहाँ परमात्मा पार्श्वनाथ के दिव्य परमाणु और पूज्य गुरुदेव की अखंड साधना शक्ति के अध्यात्मिक Vibrations प्रतिपल प्रेरणा के साथ परम आनंद और परम शांति की अनुभूति कराता है। यहाँ मानवता की सपाटी से अध्यात्म के मोती तक की गहराई मिलती है। यहाँ है महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं स्तोत्र की प्रभावक सिद्धीपीठिका जो मनवांछित फल देती है..! यहाँ है ऐसी कक्षाएं जहाँ Look n Learn के बच्चे अध्यात्म __ज्ञान प्राप्त करते है। यहाँ है अध्यात्म ध्यान साधना की शक्ति का प्रतीकरूप पीरामीड साधना केन्द्र। यहाँ है शांतिपूर्ण विशाल प्रवचन कक्ष जहाँ संतो के एक एक शब्द अंतर को स्पर्श करते हैं। * यहाँ है स्पीरीच्युअल शोप जहाँ उपलब्ध है अध्यात्म ज्ञान, साधना और प्रवचन आदि की पुस्तकें और C.D.,V.C.D. यहाँ है एक अति आकर्षक आर्ट गैलेरी जहाँ आगम केरंगीन चित्रों की प्रदर्शनी आपके दर्शन को शुद्ध कर देगी। ___ महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथ परमात्मा की स्तुति के अखंड आराधक पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. की साधना के तरंगो से समृद्ध पारसधाम अध्यात्म की आत्मिक अनुभूति करानेवाला आधुनिक धाम है जो जैन समाज की उन्नति और प्रगति के लिए एक अनोखी मिसाल है। यहाँ के नीति और नियम भी अपने आपमें विशेष महत्त्व रखते हैं। यहाँ आनेवाली व्यक्ति को गुरुदर्शन और गुरुवाणी के लिए प्रथम 10 मिनिट ध्यान कक्ष में ध्यान साधना करके अपने मन और विचारों को शांत करना जरूरी है। तभी गुरुवाणी अंतरमे उतरेगी...! मौन, शांति और अनुशासन यहाँकेमुख्य नियम हैं । यहाँ आनेवाले भक्तों का अनुशासन ही उनकी अलग पहचान है। पारस के धाम में पारस बनने के लिए आईए पारसधाम..! RASDHA PARASDHAM Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai - 400 077. Tel: 32043232. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Loor retweet जातबकुमार कनिया सभरावामार असा पूज्य गुरुदेव श्री नममुनि म.सा. की प्रेरणा से प्रकाशित JAIN EDUCATION BOARD आगम आधारित हिन्दी Comics LOOK LEARN LEARN प्रत्येक Comics अपनी एक मौलिक विशेषता के साथ प्रकाशित की जाती है। बच्चों के प्यारे गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा.ने देखा कि आज के बच्चों को Comics पढ़ने में ज्यादा रूचि है | Comics हाथ में आते ही खाना पीना भी भूल जाते हैं और एक ही बार में, पूरी पुस्तक पढ़ लेते हैं। यह देखकर बाल मनोविज्ञान के अभ्यासी पू. गुरुदेव ने सोचा अगर भगवान महावीर के आगम शास्त्र में जो दृष्टांत, सत्य घटना हैं उसे अगर Comics के रूप में प्रकाशित करें तो बच्चों को सहजता से जैनधर्म के आदर्श और वीर पात्रों के बारे में भी जानकारी मिल जायेगी / ऐसी उत्तम भावना से उन्होंने अब तक 30 Comics प्रकाशित करवाई हैं और इनकी सफलता देखकर और अनेक ऐसी Comics की पुस्तकें प्रकाशित करने के अजातशत्रु कोणिक भाव हैं। आगम के श्रेष्ठ पात्रों को बच्चों तक पहुँचाने का श्रेष्ठत्तम माध्यम है यह सचित्र साहित्य। 50 रूपये वाली ये सचित्र Comics दाताओ के अनुदान से और ज्ञान प्रसार के भाव से आप मात्र 20 रूपये में प्राप्त कर सकते हैं। - शासन प्रभावक पूज्य गुरुदेव श्री नममुनि म.सा. की प्रेरणा से लुक अन लर्न जैन एज्युकेशन बोर्ड प्रस्तुत करता है निम्नलिखित सचित्र साहित्य..! बुद्धिनिधान अभयकुमार |* रूप का गर्व * भगवान मल्लीनाथ * किस्मत का धनी धन्ना अजात शत्रु कोणिक वचन का तीर * नन्द मणिकार * भगवान ऋषभदेव भरत चक्रवर्ती * तृष्णा का जाल * उदयन वासवदत्ता * भगवान महावीर की पाँच रन * पिंजरे का पंछी * कर भला हो भला बोध कथाएँ क्षमादान * महासती अंजनासुन्दरी |* सद्धाल पुत्र राजा प्रदेशी और युवा योगी जम्बू कुमार - महासती मदन रेखा राजकुमारी चन्दनबाला | केशीकुमार श्रमण करनी का फल धरती पर स्वर्ग * करकण्डू जाग गया आर्य स्थूलभद्र - राजकुमार श्रेणिक सुर सुन्दरी * महाबल मलया सुन्दरी ऋषिदत्ता GARERA पत्रिका मंगवाने के लिए सदस्यता शुल्क अर्हम युवा ग्रुप के नाम से चेक / ड्राफ्ट द्वारा निम्न पते पर भेजे। LOOK N LEARN : PARASDHAM, TEL.: 022-32043232 Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai - 400 077.