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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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श्रीमान् दानवीर, तीर्थभक्त-शिरोमाण, रा. व., रा. भूषण, रावराजा.
राज्यरत्न, जैन-दिवाकर, दि. जैन समाज के अनभिषिक्त सम्राट् श्रीमन्त सेठ सर हुकमचन्दजी साहब के पौत्र,
श्रीमन्त सेठ मशीरबहादुर जैनरत्न राजकुमारसिंहजी साहब
___M A., LL B., F. R E. S, के सुपुत्र
स्वर्गीय वीरेन्द्रकुमारसिंहजी
पवित्र स्मृति में
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- सिद्ध छाक
हो मंडलंविधान -
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श्रावक के अनेक धार्मिक कृत्यों में से पूजा और दान को आगम मे मुख्य बताया है । इसके लिये | आचार्यप्रवर श्री कुन्दकुन्दस्वामीने रयणसार में कहा है कि:
दागा पूजा मुक्खं सावयधम्मे ण सावया तेण विणा ।
झाणाझयण मुक्खं जइधम्म ण ने विणा तहा सोवि ॥११॥ अर्थात्-श्रावक धर्म में दान और पूजा मुख्य हैं, इनके बिना वह श्रावक नहीं है। यति धर्म में ध्यान और अध्ययन प्रधान है। इनके बिना वह यति नहीं है। श्री सोमदेवसूरी कहते हैं कि:
भारतीय श्रुति-दर्शन केन्द्र
पुरदका 10862 देवपूजामनिर्माय मुनीननुपचर्य च
मूल्य:यो मुजीत गृहस्थः सन् स भुञ्जीत परं तमः ॥ यश. आ. ८
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- (सिद्ध व्यक्त
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दुल्ल विशाल)
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भावार्थ:-- जो गृहस्थ होकर बिना देवपूजा किये और मुनियों को दान दिये बिना ही यदि भोजन करले तो वह घोर गन्धकार का भागी होता है।
भगवान् जिनमेन स्वामीने भी देवपूजा को आर्यपट्क मे गिनाकर वह आर्योंका मुख्य एवं श्रावश्यक कार्य बताया है।
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प्रसन्नता की बात है कि स्व एव परका यह परम मगलकारक कार्य सदा से अब तक बराबर चला आ रहा है । यद्यपि यह सत्य है कि ज्या ज्या समाज का वास होता गया है और उसके वैभव मे अन्तर पड़ना गया है त्या त्या उसके अन्य धार्मिक कार्यों के साथ २ इस विषय में भी पर्याप्त न्यूनता आगई है, फिर भी दि. जैन समाज में यह अभी तक चला आरहा है और प्रायः सर्वत्र ही न्यूनाधिक रूप में पाया जाता है यह अत्यन्त हर्ष का विषय है।
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प्रायः भारत के सभी भागों में बिखरी पड़ी या पाई जाने वालो मूर्तियों आदि ऐतिहासिक एव पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री का सूक्ष्मेक्षिका के द्वारा पर्याप्त पर्यवेक्षण करने पर यह विदित हुए बिना नहीं रह सकता कि दि. जैन धर्म का यह देव पूजन से सम्बन्ध रखने वाला विषय प्राचीनतम होने के सिवाय भारत में नहुत कालतक व्यापक रूप से सम्मान्य रह चुका है जिसकी कि तथ्यता को अच्छी तरह सिद्ध कर सकने वाले प्रमाणो का देव दुर्वेपाक अथवा तद्विषयक रुचिमान् श्रीमानो और धीमानों
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सद्धचक्र
मडलावधान -
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की विरलता के कारण मूगर्भ से बाहर दृश्य जगत् में आना भी असभव नहीं तो असमव सरीखा अवश्य दिखाई दे रहा है। फिर भी जो कुछ दिखाई में आ चुका है या आ रहा है उससे यह स्पष्ट हुए बिना नहीं रहता कि जिन भक्ति और पूजा का मार्ग सदा चला जाय इसके लिये अनेका श्रीमानों और भूपतियाने प्राचीन समय मे अपरिमित व्यय करके उसके आयतनों-मूर्तियो और मन्दिरा का निर्माण किया था।
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वास्तव में जिनेन्द्र भगवान की पूजा, भाक्त, आराधना या उपासना ऐसी ही वस्तु है जो कि परिणामा मे वीतरागता के साथ २ परम शान्ति का प्रदान तो करती ही है साथ ही विशिष्ट पुण्यबन्ध के द्वारा इस भव तथा पर भव में महान् कल्याणों एव अभ्युदयों का भी प्रसव किया करती है।
___ शास्त्रा मे पूजन के पाच भेद बताये गये है:-नित्य, आष्टाहिक, चतुर्मुख, कल्पद्रुम, और इन्द्रध्वज । प्रस्तुत “ सिद्ध चक्र मडल विधान " नित्य पूजा के ही एक प्रकार से सम्बन्ध रखता है।
___ यद्यपि यह विधान प्राय: आष्टाहिक पर्व के दिनों में ही किया जाता है किन्तु इसका विषयसम्बन्ध आष्टाह्निक पूजा के विषय भूत नन्दीश्वर द्वीप सम्बन्धी ५२ चैत्यालयों से सर्वथा भिन्न सिद्ध भगवान् के गुणों से है जो कि नित्य पूजा से सम्बन्धित है। आष्टाह्निक पर्व के दिनो मे कालकृत पवित्रता के सिवाय इसके किये जाने का सभवतः कारण यह भी है कि मैनासुन्दरी ने इन्ही दिनो मे इस विधान को करके महान् फल प्राप्त किया था ।
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=(सिद्ध चक्र
हीं मंडल विधान -
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प्राय भारत वर्ष में इस विधान का सर्वत्र जैन समाज में प्रचार पाया जाता है। भालवा तथा खासकर इन्दौर मे तो प्रतिवर्ष ही प्रायः यह होता रहता है और कभी २ तो बहुत ही उच्च समारोह के. साथ हुआ करता है । इसी वर्ष के आषाढ मास में दि. जैन समाज के अनभिषिक्त सम्राट श्रीमन्त सेठ दा. वी. ती. शि. रा. ब. रा. भू. रा. रा. रा र. जैन दिवाकर श्रीमान् सर सेठ हुकमचन्द्रजी सा. की तरफ से कितने बड़े और सुन्दर समारोह के साथ यह विधान मनाया गया था उसकी महत्ता का अनुभव प्रत्यक्ष दृष्टा ही कर सकते है जिसको कि देखने के लिये बाहर की भी जनता करीब १५ हजार की संख्या में उपस्थित हुई थी और जब कि उपस्थित समाज के सिवाय दि. जैन समाज की सभी भोजनशालाओं तथा स्थानीय जैन अजैन सभी भोजनालयों में आप की तरफ से भोजन कराया गया था। यह तो एक असाधारण समारोह था परन्तु अन्य श्रीमानों के द्वारा भी बहुत कुछ समारोह पूर्वक यहां यह विधान होता ही रहता है । ऐसे अवसरों पर इस विधान की शुद्ध मुद्रित प्रतियो की आवश्यकता का अनेक बार अनुभव किया गया है । अतएव इस को मुद्रित कराकर प्रकाशित किया जा रहा है।
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यद्यपि कुछ वर्ष पहले सूरत से स्व. कविवर सतलालजी कृत एक सिद्ध चक्र मंडल विधान छप कर प्रकाशित हो चुका है. परंतु वह सस्कृत नहीं, हिन्दी है । संस्कृत का यह विधान जहां तक हम समझते है अभीतक कहीं से प्रकाशित नही हुआ है।
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मदकविधान
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यह विधान उपर्युक्त अनेकोपाधि विभूषित रावराजा मर श्रीमन्त मंठ हुकमचन्दजी सा. के पौत्र एव मशीर बहादुर जैनरत्न श्रीमन्त सेठ राजकुमारसिहजी सा MA..LL B के पुत्र म्व वीरेन्द्रकुमारसिहजी की स्मृति में उनके माता-पिता द्वारा प्रकाशित हो रहा है. जोकि इस विषय के खास रुचिमान् है। - क्योंकि श्रीमान् भैया सा ( राजकुमारसिहजी सा.) पूजन के खास प्रेमी है। इतनाही नहीं बल्कि आपका यह नियम है कि किसी खास प्रतिबन्ध के बिना इन्दौर में रहते हुए विना पूजन किये कभी भोजन नहीं करते । आपने अपने गृह चैत्यालय में अपनी रुचि के अनुसार विशालकाय एवं अत्यन्त मनोहर श्री १००८ चन्द्रप्रभु भगवान् की तथा एक सिद्ध भगवान् की प्रतिमा भी विराजमान करवाई है । और आप वहां नित्य ही पूजन किया करते है । आपके ही समान आपकी धर्मपत्नी [ लाडी सा. ] श्रीमती साहित्यविशारदा सौ. प्रेमकुमारीजी सा भी सभी गृहस्थी के कार्यों में कुशल एव बुद्धिमती होने के सिवाय धर्मरोचिष्णु है । आप दोनो ही की रुचि और इच्छा के अनुसार यह विधान प्रकाशित हो रहा है।
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__स्व. चि. वीरेन्द्रकुमारसिंहजी का जन्म श्रावण कृ.४ स. १९९१ ता ३०-७-३४ और म्वर्गवास आषाढ शु.२ सं. १९९८ को हुआ। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आपका इलाज अच्छे से अच्छा और अपरिमित व्यय करके जो कुछ भी हो सकता था किया गया, किन्तु अत्यन्त दु.ख के साथ कहना पड़ता है कि वैद्यों, हकीमों और डॉक्टरों के सभी उपाय चिर प्रयत्न करने पर भी व्यर्थ ही गये और आपने सबके
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= (लिङ्क आकृत ही
विमान) -
सामने देखते २ ता. २६-६-४१ की काल रात्रि में इन्द्रभवन को सदाके लिये सूना कर दिया । दादी रोती रहगई, बाबा हताश होकर हा हा करते ही रह गये, माता कुछ क्षण तक निश्चेष्ट और स्तब्ध रही और उसके बाद मूर्छित होकर गिरगई, पिता दहाड मारकर गिरगये और गुणों को याद कर २ के रोते ही रह गये, भाई बन्धु और दूसर सभी स्नेही किकर्तव्य विमूढ हो गये । मतलब यह कि यह मर्त्यलोक का इन्द्रभवन क्षणभर में शोक का सागर बन गया और हाहाकार से सर्वत्र क्षुब्ध होगया । परन्तु क्या किया जा सकता था। बाल युवा वृद्ध. सरोग नीरोग, राजा रक, सज्जन दुर्जन आदि सभी को समान दृष्टि से देखने वाले अर्थतः विषमदृष्टि किन्तु नाम से समदृष्टि-यमराज की वक्र दृष्टि मे रच मात्र.भी अंतर डाल सकने वाला उपाय, क्या अनन्तबल के धारक, सम्पूर्ण नरों सुरों और असुरों के द्वारा बन्ध, त्रिलोकी पति तीर्थकर भगवान् भी प्राप्त कर सके है ' नही । अतएव इस अवसरपर भी सबको हाथ मलते ही रह जाना पड़ा और वह इन्द्रभवन की कली असमय-अत्यल्प काल मे ही सदा के लिये मुरझागई । जिनको जिस तरह भी मालुम हुआ उन सभीने तार चिठ्ठी या समाचार पत्रों के द्वारा कुटुम्बियोंके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए स्वर्गीय आत्मा की सद्गति के लिये सद्भावना प्रकट की । बहुत से सज्जनाने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर और बहुतसोने परोक्षरूप से तारों या चिट्ठियों के द्वारा शोकाश्रुओ को प्रवाहित किया । परन्तु इससे क्या हो सकता था । घटित दुर्घटना का विघटन तो असभव ही था ।
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= (सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान) =
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म्व. वीरेन्द्रकुमार बालक होने पर भी सभी भाइयों में बुद्धिमान स्नेही सरलपरिणामी मृदुभाषी अत्यन्त सुन्दर उदारहृदय भाग्यशाली और होनहार थे। उनकी स्मृति के लिये ही यह पूजनग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है जो कि स्वय मगलरूप है और इसके अनुसार पूजन में प्रवृत्ति करने वालों के अनन्त पापका विध्वस एव पुण्यराशि का संचय करने वाला है।
___ प्रस्तुत विधान की प्रेस कापी एक ही प्रति पर से की गई है जो कि इन्दौर के दि. जैन उदासीनाश्रम में स्थित अमर ग्रन्थालय से हमको प्राप्त हो सकी थी। इन्दौर के अन्य मन्दिरों में भी इसकी प्रतियां हैं परन्तु वे सब अमर ग्रन्थालय की पुस्तक पर से ही लिखी गई है। जिसपर से हमने प्रेस कापी की है, यद्यपि वह जगह २ शुद्ध भी कीगई है, फिर भी पर्याप्त अशुद्ध है । हमसे जहांतक भी हो सका है उसको शुद्ध करके ही प्रेस कापी करने का प्रयत्न किया है फिर भी इसमें जो कुछ अशुद्धियां रहगई है या हमसे ठीक नहीं हो सकी है हम उनके लिये पाठकों से क्षमा चाहते है और विद्वानों से प्रार्थना करते है कि वे उनको शुद्ध एवं ठीक करलेने की कृपा करें ।
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पाठक महानुभाव विधान को पढकर स्वय समझ सकेंगे कि वह किसी एक विद्वान् की सम्पूर्ण कृति न होकर एक संग्रहीत पाठ है। जिसके कि कर्ता भट्टारक थी शुभचन्द्रजी है।
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- सिम शाही मंडल विधान ==
प्रस्तुत पाठ में एक ही जयमाला दो पूजनों में पाई जाती थी हमने वैसा न करके श्री १०८ आचार्य प्रवर पूज्यपाद स्वामी कृत सिद्धस्तोत्र को उस जयमाला की जगह रख दिया है। और उसका - हिन्दी आशय भी अन्य जयमालाओकी तरह हमने नहीं लिखा है। उसकी जगह हमने उक्त सिद्धस्तोत्र का बा. जुगलकिशोरजी सा. मुख्तार कृत पद्यानुवाद ही रखदिया है जो कि प्रायः सुन्दर है। इसके लिये हम मुख्तार सा. के आभारी है।
आठवी पूजा के जितने मत्र है वे सब महापण्डित आशाधरजी कृत सहस्त्रनाम के आधार पर | ही है. इन नामों का अर्थ समझने में प्रायः विद्वानो को भी कठिनता प्रतीत होती थी, अतएव बम्बई के श्री १०५ ऐलक पन्नालाल दि.. जैन सरस्वती भवन से प्राप्त श्री श्रुतसागर सूारकृत प्राचीन संस्कृत टीका के आधार पर हमने ऐसे शब्दों की निरुक्ति और अर्थ देदिया है। कुछ महानुभावों की इच्छा थी कि आठवी पूजा के मत्रों को भगवजिनसेनाचार्यकृत सहस्रनाम के द्वारा परिवर्तित करदेना चाहिये. उनके सतोष के लिये भ. जिनसेनाचार्य के सहस्रनामगर्भित मत्र भी अन्त मे देदिये गये है। अतएव इस पाठ मे आठवीं पूजा का मत्र भाग दुहरा हो गया है। पूजन करने वाले सज्जनों को इनमें से यथारुचि किसी भी एक पाठ का उपयोग करलेना चाहिये ।
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निधान
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यद्यपि सशोधन करने में हमने पूरी सावधानी रक्खी है फिर भी कहीं ₹ हमने सदेहवश जैसा का तैसा भी पाठ छोड़ दिया है। इसके सिवाय हमारे अज्ञान, प्रमाद, अथवा दृष्टिदोप से भी जो वह अशुद्धिया रहगई हों या गलतियां होगई हों उनके लिये पाठकों से हम पुनः क्षमा मागते है और विद्वानों से नम्रतापूर्वक उनका संशोधन करलेने की प्रार्थना भी करते है।
प्रकृत पाठ के सम्पादन में ऊपर लिखे अनुसार बम्बई के श्री. १०५ ऐ. प. दि. जैन सरस्वती भान के सिवाय इन्दौर के उदासीनाश्रम के अमर ग्रन्थालय तथा श्री सेठ माणिकचन्द मगनीरामजी को गोट के श्री १००८ शान्तिनाथ चैत्यालय दीतवारा के ग्रन्थमडार से भी हमको यथावश्यक ग्रन्थसामग्री प्राप्त हुई है. अतएव हम उन प्रथभंडारों और उनके अधिकारियों के अत्यन्त आभारी है।
पूजन का कुछ भाग बम्बई में भी छपा है वहांपर प्रेस की सुव्यवस्था करानेमें श्रीयुत पं. नाथूरामजी प्रेमी से हमको बहुत सहायता प्राप्त हुई तथा श्रीयुत पं. रामप्रसादजी शास्त्री से हमको पूजन के कुछ अन्तिम भाग के संशोधन आदि के लिये सहयोग प्राप्त हुआ है क्योंकि हमारे - बम्बई से इन्दौर चले आने पर उस भाग का संशोधन आपने ही किया है, अतएव दोनों सज्जनों के भी हम अत्यन्त श्राभारी हैं। - ------ - - - - - -
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- (सिल
ही महल विधाना) =
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मंडल की रचना के सम्बन्ध में इतना कहदेना ही पर्याप्त है कि इन्दौर में अनेक प्रकार से इसकी रचना हुआ करती है, उनमसे यहांपर स्थानीय मारवाड़ी मन्दिर के अधिकारियों के सौजन्य से प्राप्त रचना हर चित्र के आधार पर एक शिखराकार रचना का ब्लाक तयार कराकर चित्र दिया जारहा है. फिर भी जो सज्जन परिमंडल-गोल आकार में चाहें उन्हे वैसा बना लेना चाहिये और यथाविधि पूजन करना चाहिये ।
_ पूजन की सामग्री में एक व्यक्ति के लिये कम से कम लगभग तीस सर अक्षत और करीब २ उतने ही पुष्प तथा दो हजार चालीस श्रीफल लगते है. दूसरी सामग्री भी इसो अनुमान से समझलेनी चाहिये।
HOMEN
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हम यहापर प्रकाशक महोदय की उस तीव्र पुण्यानुवन्विनी सद्भावना की हार्दिक सराहना करते हैं जिसके कि कारण आजकल कागज की असाधारण महंगाई ही नहीं दुर्मिलता के होते हुए भी यह प्रकाशित हो रहा है। हम आशा करते हैं कि धर्मात्मा भव्य पुरुष इससे यथेष्ट लाभ लेकर प्रकाशक महोदय की भावना को सफल करते हुए अनन्त पुण्य का सचय करेंगे।
खूबचन्द जैन.
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- लिल्लू का
ही अंडल विधान -
श्रीशुभचन्द्राचार्यकृतम् . श्रीसिद्धचक्रसहस्रगुणीपूजामंडलविधानम् ।
प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लब्धिसाम्राज्यसंयुतम् ।
श्रीसिद्धचक्रयंत्रस्यार्चा सहस्रगुणां ब्रुवे ॥१॥ प्रथ यजमानलक्षणम्,
विनीतो बुद्धिमान् प्रीतो, न्यायोपात्तधनो महान् ।
शीलादिगुणसम्पन्नो, यष्टा सोऽत्र प्रशस्यते ॥२॥ अर्थ-विनयशील, बुद्धिमान् , प्रीतियुक्त, न्याय से धन उपार्जन करने वाला, शील श्रादि गुणों से सयुक्त, महान् पुरुष ही जिनागम मे विधान करने वाला यजमान प्रशसायोग्य कहा गया है।
अथ याजकलक्षणम्,
देशकालादिभावज्ञो, निर्मलो बुद्धिमान् वरः ।
सद्वाण्यादिगुणोपेतो, याजकोऽत्र प्रशस्यते ॥ ३॥ अर्थ-देश काल आदि के भावको जाननेवाला, निर्मल, बुद्धिमान्, श्रेष्ठ, समीचीन वाणी आदि गुणों से युक्त याजक जिन शास्त्र में प्रशंसा योग्य माना गया है। १मूलप्रति में 'निर्मलो बुद्धिमान् का निर्मल बुद्धिवाला अर्थ किया गया है। २ मूलप्रति में 'सत्य वचन बोलना', एसा अर्थ किया गया है। वह भी ठीक है।
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सिद्ध आवक ही
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अथ प्राचार्य नक्षम,
दर्शनजानचाग्निमंयुनो ममनातिगः ।
प्रानःप्रश्नमंहश्चात्र गुमः म्यान् चांतिनिष्ठितः ॥ ४ ॥ अर्थ-जा मन्यदर्शन मन्यन्नान सम्यक् नात्रि में यात, ममता में रहित, विद्वान् . प्रश्न को महन करने वाला-प्रश्न सुनकर घबढाने वाला नहीं है. क्षमा युक्त- कोध नि है. यह जिन शान्य में गुरुश्राचार्य माना गया है।
प्रय मंडालक्षाम.
निर्मलं पृथुलं घंटानारिकानाग्णान्वितम् । प्रलंत्रपुष्पमालाढ्यं चतुर्दाकुंभमंयुतम् ॥ ५॥ भेरीपटहकमालतालमादनानम्वनः ।
श्रीकुलीनत्रीगीताव्यं मंडपं कारयेद् बुधः ॥६॥ अर्थ-मडल जिस में मांटा जाय वह मदप विद्वान् पुरुष को एसा बनवाना चाहिये जो निर्मलबच्छ हो, संकुचित न हो-पर्याप्त बडा हो, घटा पनाका तोरणाम युक्त हो, बडी २ पुष्प मालाग्रा से पूर्ण
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मूलपान में इसका अर्थ 'प्रश्न गहित उभर र नानने वाला ऐगा किया गया है। इसका निर्मन नंदीचा' म यरू किया गया है। यहा पर चदौमा का वानसई शा नहीं 1नु मंगल पर मेरा होना यावश्या।
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पू०
सिद्ध चक्र
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मंडल विधान
हो, तथा जिसके चारो कोणा मे कुभ रक्खे गये हों, एवं भेरी पटह कॅसाल माझ मजीरा के शब्दो के / साथ २ सुदर कुलीन स्त्रियों के गीतो से जो परिपूर्ण है ।
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अथ सामग्रीलक्षणम् ।
स्वभावोत्कर्षणी पूजा नेत्रमा सहारिणी ।
सामग्री शस्यते सद्भिर्निखिलानंदकारिणी ॥ ७ ॥
अर्थ — पूजा अपने भावो - परिणामोको बढानेवाली उनमे उत्कर्ष लानेवाली है । अतएव सत्पुरुषो के द्वारा उसकी सामग्री वही प्रशसनीय मानी जाती है जो हर्ष मे उत्कर्ष करनेवाली हो, नेत्र और मन को हरण करनेवाली हो, सभी को आनन्द के देने वाली अथवा सम्पूर्ण आनन्द का प्रदान करने वाली हो ।
अथ यंत्रोद्धारः ।
अर्थ — इस विधि हुए यत्र की स्थापना करे ।
ऊर्ध्वाधरयुतं सर्विन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम्, वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्संघितत्त्वान्वितम् । अन्तःपत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकारसंचेष्टितम्,
देवं ध्यायति यः स मुक्तसुभगो वैरीभकंठीरवः ॥ ८ ॥
अनुसार सिद्ध यंत्र का उद्धार करे । उसकी रचना करे अथवा किसी बने
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ही दुल विधान) =
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अथ प्रथमपरिधौ कर्णिकाकारयंत्रैः सहाष्टकोष्टकपूजा।
निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्मं नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिदं कर्मानलदावमेघौघम् ॥२॥ ॐ हीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर सबौपट ॐ हीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ २ ठ ठ. ॐ ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट्
हलां चयो विना यैस्तु सुप्रसिद्वोऽर्धमातृकः ।
तैः स्वरैः महितं पूर्वदिश्यनाहतमर्चये ॥१॥ ॐ हीं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋतृ तृ प.ऐ ओ श्री अ . अनाहतविद्यायै नम: पूर्वदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहाः
आग्नेय्यां कादिसद्वेर्णरुपेतानाहतं यजे।
सुगन्धैः सुभगैरुद्धैर्जलगंधाक्षतादिभिः॥२॥ १-मूल्य प्रति में “सुभगै" की जगह सर्वत्र “सुरभै" तथा "उद्वैः' की जगह "उधै" पाठ है। एक जगह "द्रव्यै;" ऐसा संशोधित पाठ भी है। "सुभगै" की जगह "मुरसे" भीटीक मालुम होता है।
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मिळू आकुछ ही
खल विधान) =
ॐ हीं क ख ग घ ड अनाहतविद्यायै नमः अग्निदिशि अध निर्वपामीति स्वाहा ।
दक्षिणस्यां चवर्गेण युतानाहतमचये ।
सुगन्धैः सुभगैरुदैर्जलगंधाक्षतादिभिः ॥ ३ ॥ ॐ ही च छ ज झ ञ अनाहतविद्यायै नम दक्षिणदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
दक्षिणोत्तरकोणे वा टवर्गाद्यमनाहतम् ।
सुगन्धैः सुभगैरुदैर्जलगंधाक्षतादिभिः ॥४॥ ॐ ह्री ट ठ ड ढ ण अनाहतविद्यायै नमः नैऋतदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
अनाहतं च वारुण्यां तवर्गोपेतमर्चये ।
सुगन्धैः सुभगैरुद्वैर्जलगंधाक्षतादिभिः॥५॥ 'ॐ ही त थ द ध न अनाहतविद्यायै नमः पश्चिमदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
पवर्गोपेतमहामि वायव्यायामनाहतम् ।
सुगन्धैः सुभगैरुद्धैर्जलगंधाक्षतादिभिः ॥६॥ ॐ ही प फ ब भ म अनाहतविद्यायै नमः वायत्र्यदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
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यजे यरलवोपेतं कौवेाँ दिश्यनाहतम् ।
सुगन्धैः सुभगैरुद्वैर्जलगंधाक्षतादिभिः ॥ ७ ॥ ॐ ही य र ल व अनाहतविद्यायै नम. उत्तरदिश्यर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
यजेऽनाहतमैशान्यां युतं शषसहाक्षरैः ।
सुगन्धैः सुभगैरुद्धैर्जलगंधाक्षतादिभिः ॥ ८ ॥ ॐ ही श प स ह अनाहतविद्यायै नमः ऐशानदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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अत्र, “ॐ ही अर्ह असि आ उ सा नमः" इति मत्रस्याष्टोतर शतं जाप्य देयम् ।
अथाष्टकोटकपूजा।
ऊर्ध्वाधारयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् । वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्सन्धितच्चान्वितम् ।। अन्तः पत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकारसंवेष्टितम् ।
देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकएठीरवः ॥ इतिपठित्वा कोष्टकानामुपरि पुप्पाञ्जलि क्षिपेत् ।
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अथ स्थापना।
निरस्तकमसम्बन्धं मूक्ष्मं नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्ध कर्मानलदावमेघौघम् ।। ॐ ही णमो सिद्वाणं सिद्धपरमोष्ठितन् अत्रावतरावतर संवौषट् , ॐ ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमष्ठिन् अत्र तिष्ठ २ ठ. ठः, ॐ ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट् ।
प्रथाटकम् ।
सिद्धौ निवासमनुगं परमात्मगम्यम् । हीनादिभावरहितं भववीतकायम् ।। रेवापगावरसरोयमुनोद्भवानाम् ।
नीरैर्यजे कलशगैर्वरसिद्धचक्रम् ॥१॥ १ ॐ ही सभ्यत्वगुणसहितानाहतपराक्रमाय सकलकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नमः जल नि. स्वाहा । २ ॐ ह्रीं ज्ञानगुणसहितानाहतपराक्रमाय सकलकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नमः जलं नि. स्वाहा ।
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== (शिक व्यापार
मंडल्लोयान) -
३ ॐ ही दर्शनगुणमहितानाहनपगक्रमाय मकलकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नम जलं नि. म्बाहा । ४४ ही वीर्यगुणसहितानाहनपराक्रमाय सकन्नकर्ममुक्तसिद्वाधिपतये नम. जल नि. म्वाहा । ५ॐ ही सूक्ष्मगासहितानाहनपगक्रमाय मकलकर्ममुक्तमिदाधिपतये नमः जल नि. म्बाहा। ६ॐ हीं अवगाहनगुणसहितानाहतपगक्रमाय सकलकर्ममुक्तमिद्धाधिपतये नम जल नि. म्वाहा । ७ॐ ह्री अगुरुलघुगुणसहितानाहनपराक्रमाय सकलकर्ममुक्तमिद्धाधिपतये नम जल नि. म्वाहा । ८. ही अत्र्याबाधगुणमहितानाहनपराक्रमाय मकलकर्ममुक्तमिद्वाधिपतये नम जल नि म्वाहा ।
(आग चन्दनादिक भी इन्ही पाठ मत्रो को बोलकर आठ २ बार चढाना चाहिय । केवल "जल' की जगह “चन्दन, अक्षतान् . पुप्पाणि " आदि शन बदल देना चाहिये ।)
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आनन्दकन्दजनकं घनकममुक्तम् । सम्यक्वशर्मगरिमं जननातिवीतम् ।। मौरभ्यवासितभुवं हरिचन्दनायै ।गन्धेयजे पग्मिलवरसिद्धचक्रम् ॥ २ ॥ चन्दनम् ।
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- सिलु यातही अडल विधान) -
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सर्वावगाहनगुणं म्बममाधिनिष्ठम् । सिद्धस्वरूपनिपुणं कमलं विशालम् ॥ सौगन्ध्यशालिवनशालिवराक्षतानाम् | पुंजैर्यजे शशिनिभेवरमिद्धचक्रम् ॥ ३ ॥ अक्षतान नित्यं स्वदेहपरिमाणमनादिसंज्ञम । द्रव्यानपेचममृतं मरणव्यतीतम् ।। मन्दारकुन्दकमलादिवनस्पतीनाम् । पुष्पैर्यजे शुभतमैर्वरमिद्धचक्रम् ।। ४ ।। पुष्पाणि ऊर्ध्वस्वभावगमनं सुमनोव्यपतं । ब्रह्मादिवीजसहितं गगनावभासम् ।। क्षीरान्नमाज्यवटकै रसपूर्णगोंः । नित्यं यजे चरुवरैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ ५ ॥ नैवद्यम्
आतंकशोकभयरोगमदप्रशान्तं । निर्द्वन्द्वभावधरणं महिमानिवेशम् ।।
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-(सिद्ध चालक
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कर्पूरवर्तिबहुमिः कनकावदातै ।दीपैर्यजे रुचिवरैरसिद्धचक्रम् ॥ ६ ॥ दीपम् पश्यन् समस्तभुवनं युगपनितान्तम् । त्रैकाल्यवस्तुविपये निविडप्रदीपम् ॥ सद्व्यगंधधनसारविमिश्रितानां । धूपैर्यजे परिमलैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ ७ ॥ धूपम् सिद्धामुराधिपतियक्षनरेन्द्रचनै ।ध्येयं शिवं सकलभव्यजनैश्च वन्द्यम् ।। नारंगपूगकदलीफलमातुलिंग'। सोऽहं यजे वरफलैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ ८॥ फलम् गंधाढ्यं सुपयोमधुव्रतगणैः संगं वरं चन्दनम् । पुष्पौघं विमलं सदक्षतचयं रम्यं चरुं दीपकम् ॥
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१-कहीं . "नारिकेले." ऐसा भी पाठ है। ,
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(सिद्ध व्यक ह्रीं मंडल विधान -
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धूपं गन्धयुतं ददामि विविधं श्रेष्ठं फलं लब्धये । सिद्धानां युगपत्क्रमाय विमलं सेनोतरं वाञ्छितम् ॥ ॥ अर्घम ज्ञानोपयोगविमलं विशदात्मरूपम् । सूक्ष्मस्वभावपरमं यदनन्तवीर्यम् ।। कर्मोंघकक्षदहनं सुरवशस्यबीजम् ।
वन्दे सदा निरुपमं वरसिद्धचक्रम् ॥ १०॥ पुष्पांजलि: ॐ ह्रीं श्रहं असि आ उसा, इति मंत्रस्य पूर्ववदष्टोतरं शतं जाप्पं देयम् ।
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अथ जयमाला।
पणविधि परमेसुर णौमि जिणेसुर । नासियदुक्कियकम्ममलु॥ पुण अक्खिभि भत्तिय णियमणसत्तिय । सिद्धचक्कजयमालफ्लु ॥ घता तमालासमासंपडाशीसकेशा । खरा दारुणा लोयणारचवेषा ॥
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- (सिद्ध अशा ही मल्लनिधा) -
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गहाभूयवेदाल णासंति चकम् । वरं भावयंणे मणो मिद्धचकम् ॥१॥ ततो भीसणोच्छंकदाढा कराला । चलालोयणा दीहजीहा विशाला ॥ वमीहुंति सिंहाइ दाढीनचक्कं । वरंभावयंणेमणो मिद्धचकं ॥२॥ सरोसा मघोरा महाकालरूवा । जनूगरि आशीविया दुट्ठभावा ॥ मकोहा ण डंकति होणायचक्कं । बरंभावयणे मणो सिद्धचकं ॥३॥ जरो खेय रोगावली गंडमाला । पमेहाइ रुवावना कुट्ठसूला ॥ विनाशति सासानिला वाहिचकं । वरं भावयंणे मणोमिद्धचक्कं ॥४॥
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= (हिलू याक ही मंडल विधान)
सधूमावलीभीसणासंजलंता । फुलिंगाइ मेलति चंडा दिगंता ॥ न डाहंति देही सिहीजालचक्कं । वरं भावयंणे मणो सिद्धचक्कं ।। ५ ॥ सकल्लोललोलावहोलातरंगा । अपारा य घोपावदी सिंधुगंगा ॥ अगाधा सुतारंति हो णीरचक्कं । वरं भावयंणे मणो सिद्धचक्कं ॥६॥ कसापासकुंतासभल्लायमूला। सकोदंडवाणा करे भिंडमाला || न मारंति तं संगरे चोरचक्कं । वरं भावयंणे मणो सिद्धचक्कं ॥७॥
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सगाढा विवंधा घना घोरबंधा । असेसानियंगा उबंगा विधा।
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= ( सिख अक ही मंडल विधान) =
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विमुंचंति सासुंखलायं सचक्कं । वरं भावयंणे मणो सिद्धचक्कं ॥८॥ सुणीसग्गिझाणेण कम्मट्ठणासं । ललाटे सुवीयं करे मोक्खवासं ।। कुणेदी यकी दिदि भाणं पहायो । सुळंदोवि एसो भुयंगप्पयाओ॥ ॥
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इयवरजयमाला परमरसाला। विधुसेणेन वि कहियथुहि ॥ जो पढइ पढावइ नियमणि भावइ । सो णरु पावइ सिद्धसुहं ॥१०॥
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ॐ ह्रीं सम्मत्त णाण दसण वीरिय सुहम अवग्गहण अगुरुलघु अव्वाह अनाहतपराक्रमाय सकलकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा ॥ पूर्णाम् ॥
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- (शिक्षु शाहक ही मंडला निधान्न -
प्रथम जयमाला का अर्थ
दुष्कृत-पापरूपी कर्ममलो को जिन्होने सर्वथा नष्ट कर दिया है ऐसे परमेश्वर जिनेश्वर भगवान को प्रणाम और नमस्कार करके भक्तिपूर्वक और अपनी मनःशक्ति के द्वारा सिद्धचक्र की जयमाला का वर्णन करता हूं ॥ १ ॥
. मन मे अच्छी तरह से जो सिद्धचक्र का ध्यान करता है उसका; काले बिखरे हुए ओर भयंकर है शिर के केश जिसके, रूक्ष और दारुण है नेत्र जिसके, ऐसी रक्तवर्ण वाली व्यन्तरीका अथवा ग्रह तथा मूत वेताल आदि का भय नष्ट होजाया करता है ॥ १॥
भीषण है उत्सग-क्रोड-बाहुमध्य और दाढ जिसकी तथा उनके कारण जो विकराल है, जिसके नेत्र चलायमान है, जिह्वा अत्यन्त दीर्घ है, ऐसे विशाल सिंह और दाढवाले सभी जीवों का समूह सिद्धचक्र की भावना करने वाले के वश मे होजाया करता है ॥२॥
रोषयुक्त घोर महाकाल रूप दुष्ट भावों वाले क्रुद्ध आशीविष जाति के सर्प भी उसको नहीं काटते जो मनमे सिद्धचक्र की भले प्रकार भावना किया करता है ॥ ३ ॥
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সি বন্ধ
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ज्वर क्षय गडमाला कुष्ट शूल आदि रोग अथवा श्वास और वातादि व्याधियां उनकी नष्ट होजाया करती है जो मन में सिद्धचक्र का अच्छी तरह चिन्तवन किया करते हैं ॥ ४ ॥
इस सिद्धचक्र की भावना करने वाले को धूमसहित भीषण जलती हुई, जिसके प्रचण्ड स्फुलिंग सब तरफ उड़ रहे है, अग्नि की ज्वालाओ का समूह दग्ध नहीं कर सकता ॥ ५ ॥
कल्लोलो से चचल बहुत तरंगवाली अपार शब्द करती हुई अगाध गंगा सिंधु आदि नदिया उस मनुष्य को पार कर देती है जो इस सिद्धचक्र का मन में चिन्तवन किया करता है ॥ ६ ॥
कशा पाश कुत-बछ भाला शूल आदि धारण करने वाले या जिनके हाथ में धनुष-बाण मिंउमाल है, ऐसे व्यक्ति और चोरों का समूह युद्ध मे उस व्यक्ति को नहीं मार सकते जो सिद्धचक्र का मन मे भले प्रकार चिन्तवन करता है ॥ ७ ॥
अत्यन्त गाढ ओर सधन भी बंधन जिन्होने कि समस्त अगउपांगो को जकड़ रक्खा है खुल जाते है और उन व्यक्तियो की शंखलाएं टूट जाती है जो कि इस सिद्धचक्र का मन मे स्मरण करते है ॥ ८ ॥
उस सिद्धचक्र का निःसग ध्यान करने स आठो ही कमोंका विनाश होता है, ललाट में सुवीर्य प्रकट होता और हाथ में मोक्ष लक्षमी का निवास हुआ करता, तथा जिसके दृष्टि पात से सूर्य के समान
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=(सिद्ध चक्र
हीं मंडल विधान -
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तेज प्राप्त हुआ करता है, जिसका कि यहा भुजंगप्रयातछन्द के द्वारा वर्णन किया गया है ॥१॥
इस प्रकार चन्द्रसेन के द्वारा जिस अत्यन्त रसाल-रसवती उत्तम जय माला का वर्णन किया गया. है उसको जो पढेंगे, पदावेंगे, या अपने मन में धारण करेगे वे मनुष्य सिद्धि सुखको प्राप्त करेंगे ॥१०॥
अथ द्वितीय परिधिषोडशदलपूजा
ऊर्ध्वाधारयुतं सविन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् । वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्सन्धितत्वान्वितम् ॥ अन्तः पत्रतटेष्वनाहतयुतं हींकारसंवेष्टितम् ।
देवं ध्यायति यः समुक्तिसुभगो वैरीभकएठीरवः ।। पुष्पाजलिम् अथ स्थापना
निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्म 'नित्यं निरामयं । वन्देऽहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १ ॥
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(सिद्ध चक्र ह्रीं मंडल विधान -
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सकलामरेन्द्रसेव्यं, ज्ञानामृतपानतप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्ध कर्मानलदावमेघौघम् ॥२॥ ॐ ही णमोसिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर सवौषट । - ॐ ही णमोसिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ २ ठः ठः । ॐ ही णमोसिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव २ वपट् ।
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अथाष्टकम
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रम्यैर्जलैमिश्रितचन्दनौधैः, संसारतापाहतये सुशान्त्यै ।
जलांजलिप्राप्तरजोभिशान्त्यै, तत्कर्मदाहार्थमजं यजेऽहम् ॥ १॥ ॐ ही अनाहतपराक्रमाय सकलकर्मविप्रमुक्ताय सिद्धाधिपतये नम. जल निर्वपामीति स्वाहा, इति समुच्चयमत्र ।
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. १ ॐ ह्री अनन्तदर्शनाय नम. जल नि स्वाहा, २ ॐ ह्री अनंतज्ञानाय नम. जल नि स्वाहा । ३ ॐ हीं अनन्तवीर्याय नमः जल नि स्वाहा, ४ ॐ ह्वी अनन्तसुखाय नमः जल नि स्वाहा । ५ ॐ ह्री अनन्तसम्यक्त्काय नम जलं नि. स्वाहा, ६ ॐ ही अनन्तसूक्ष्मायनमः जल नि. स्वाहा ।
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- सिद्ध चक्र
ही मंडल विधान -
७ ॐ हीं अन्यावाधाय नमः जल नि. स्वाहा, ॐ ही अवगाहनाय नमः जल नि. म्वाहा । १ ॐ ही अक्षोभाय नम. जल नि. स्वाहा, १० ॐ ह्रीं अचलाय नम: जल नि स्वाहा । ११ ॐ हीं अच्छेद्याय नम. जल नि. स्वाहा, १२ ॐ ही अभेद्याय नम. जलं नि. स्वाहा । १३ ॐ ही अजराय नम जलं नि स्वाहा, १४ ॐ ह्री अमराय नमः जल नि. स्वाहा । १५ ॐ ही अप्रमेयाय नमः जल नि. स्वाहा, १६ ॐ ह्री अविलीनाय नम जल नि. म्वाहा ।
सकुंकुमैः सज्जतरैः सुगन्धैः, संतप्तहेम्नश्च रसैरिद्धैः। सच्चन्दनैर्नन्दित,गवृन्दैस्तत्कर्मदाहार्थमजं यजेऽहम् ॥ २ ॥ चन्दनम् पुंजेरिवाखण्डवृषस्य दीर्धेः स्वच्छैर्मुनीनां मनप्ता समानैः । रम्यैरखण्डाक्षतनव्य(जैस्तत्कर्मदाहार्थमजं यजेऽहम् ॥ ३॥ अक्षतान् गन्धावलुब्धाखिलपुष्पलिड्भिः, सत्पुष्पवाणाहतये सुपुष्पैः । राजीवजातीशतपत्रकाद्यैस्तत्कर्मदाहार्थमजयजेऽहम् ॥ ४ ॥ पुप्पाणि माज्यैः समृद्धैर्वरशिष्टसिद्धैः, नैवेद्यकैनव्यरसात्तभावैः। वाष्पायमानैर्हृदयावभासैस्तत्कर्मदाहार्थमजयजेऽहम् ॥ ५ ॥ नैवद्यम्
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पृ०
ह्रीँ
दीप्रैः सुदीपैर्दलितान्धकारैः, चन्द्राज्यरत्नोत्तमजैरतीद्धैः । अज्ञानतामस्यनिवारणाय, तत्कर्मदाहार्थमजं यजेऽहम् ॥ ६ ॥ दीपम् एनः समूहातये नितान्तं ज्ञानादिदाहोद्भवधूमकैर्वा । सद्ध्पधूमैर्धृतधर्मसिद्ध्यै तत्कर्मदाहार्थमयजेहम् || ७ || धूपम
सिद्ध वक्त
मंडल विधान,
घाँटासुनारंगसुलांगलीभिर्द्राक्षासुराजादनदाडिमाद्यैः । फलैर्निराशाफलभावलब्ध्यैतत्कर्मदाहार्थमजंयजेऽहम् ॥ ८ ॥ फलम्
दृग्ज्ञानसम्यक्त्वसुवीर्यमूक्ष्मं सद्गाहसत्सप्तममव्यचाधम् । चिकर्मभावं कुसुमांजलीभिस्तत्कर्मदाहार्थमर्जयजेऽहम् ॥ ६ ॥ श्रर्धम्
सिद्धान् सिद्धमहोदयान्गुणगणाधीशानहं तोष्टवी, - म्याकारेण हि किंचिदूनवपुषः पूर्वाच्छरीराद्ध्रुवम् । अष्टानिष्ट महारिकर्मनिगडैर्मुक्तांश्चिदानन्दकां, - स्त्रैलोक्याग्रनिवासिनःश्रितवतो मुक्तचंगनां साश्वतीम् - पुष्पांजलिः
ॐ ह्री असिउसा नमः, इतिमंत्रेणाष्टोतरशत जाप्यम् ।
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( मिळू शक्ल
ही मंडल विधान) =
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अथ जयमाला
अपनीतविकल्पसमूहरणं, भुविभस्मितकर्मघनाग्निगणम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥१॥ धृतचिन्मयरूपमरूपयुतं सुरराजनराधिपशेपनुतम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥२॥ विगतातपसादविषादरति गुरुशान्तिगतं हतपापमतिम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ ३ ॥ मदरवेदमहीधरनाशपविं भयभीमनिशाचरचारुरविम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ ४ ॥ वरमुक्तिबधूरमणं विरणं चिदनंतगुणं जितकामकणम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ ५॥ वरधीक्षणसौख्यसुवीर्यमयं निजबोधविलोकितवस्तुचयम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥६॥
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- पिच जाता ही जोडल विधान) =
गतसंसृतिसागरपारमरं हतदोपकपायकलंकभरम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ ७॥ शुचिकवलदर्शनवोधधरं हतसंभवजातिविनाशजरम् । गुणगजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ ८ ॥ स्वरसामृतमंथररूपमजं भुवनत्रयमस्तकबारगजम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुमिद्धगणेशमहम् ।।॥ समभावविभासितजीवगुणं परमाचलनित्यगुणाभरणम् । गुणराजिविराजितभावमहं प्रणमामि सुसिद्धगणेशमहम् ॥ १० ॥
पत्ता
यन्नामग्रहणादरेपु जगतीपृष्ठे फणीभारयो,भीमा वारिचरा मृगेशशरभाः सौख्याय यान्ति क्षणात् । प्राप्यन्ते स्मरणेन दिव्यविपयाश्चार्घ हि तस्मै ददे । वश्या सिद्धगणाय मिद्धिग्मणी यद्ध्यानतो जायते ॥ पूर्णार्धम्
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(सिद्ध झाला ही बहुल विधा-
चिदपं सिद्धचक्रं यो यायजेद्भक्तिमानसः । पद्मकीर्तिसमो भूत्वा लभते सिद्धिसंगतिम् ॥ आशीर्वादः
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द्वितीय जयमाला का अर्थ दूर कर दिया है विकल्प समूह-अनेक तरह के सकल्प विकल्पों के रण-कोलाहल को जिन्होने, लोक में कर्मरूपी सघन अग्नि के समूह को जिन्होने भस्म-शांत कर दिया है, और जिनके भाव अनेक गुणो से शोभित है ऐसे परमात्मरूप सिद्धों के समूह को मै नमस्कार करता हू ॥१॥
चैतन्यस्वरूप को जो प्राप्त होगये है, देवेन्द्र नरेन्द्र और घरणीन्द्र के द्वारा भी जिनको नमस्कार किया गया है, आतप साद-खेद विषाद और रति से जो रहित हैं, महान् शान्ति को प्राप्त, नष्ट कर दिया है पापरूप मति को जिन्होने, मद और खेद-रूपी पर्वत का नाश करने के लिये जो वज्र के समान है, भयरूपी भयकर निशाचर के लिये जो सुन्दर सूर्य के समान है, जो उत्तम मुक्तिरूपी वधू के रमण, शब्द अथवा गति से रहित, तथा चित्स्वरूप अनतं गुणों के धारक है, जिन्होने काम के अंश को भी जीत लिया है; जो उत्तम ज्ञान दर्शन सुख और वीर्य, इस तरह अनन्त चतुष्टय स्वरूप है, जिन्होने अपने ज्ञान के द्वारा समस्त वस्तुओं को देख लिया है, जो ससाररूपी समुद्र के पार को भले प्रकार प्राप्त होगये है, जिन्होने
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(सिद्ध आ
ही मंडल विद्यान्न -
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सर्वसाधारण संसारी जीवों में पाये जाने वाले दोष-क्षुधा-पिपासा-चिन्ता आश्चर्य आदि तथा कपायरूपी कलंक के भार को नष्ट कर दिया है, पवित्र केवल ज्ञान और दर्शन को जो धारण करने वाले है, जिन्होने संसार के जन्म मरण और जरा रूप लेश का नाश कर दिया है, आत्म रस रूपी अमृत से जो मथर हैं; पुनः जन्म धारण करने वाले नहीं है, भुवनत्रय के मस्तकरूपी द्वार का उद्घाटन करने के लिये गज के समान हैं, समभाव के द्वारा जिन्होने जीव के-अपनी आत्मा के या जीवों के गुणो को प्रकाशित कर दिया है, उत्कृष्ट निश्चल और नित्य गुण ही हैं आभरण जिनके, ऐसे अनेक गुणो से शोभायमान परमात्मा सिद्ध परमेष्ठियों को मेरा नमस्कार हो. . इस जगत में जिनके नाम मात्र का स्मरण करने में आदरभाव रखने वाले व्यक्तियों को सर्प हाथी आदि घात करने वाले तथा भयकर जलचर जीव या सिंह अष्टापद आदि क्षणभर मे उल्टे सुखशांति के निमित्त बनजाते है, जिनका चितवन करने से दिव्य विषयों को प्राप्ति हुआ करती है, एवं जिनका ध्यान करने से सिद्धिरूपी रमणी वशीभूत होजाया करती है, उन सिद्ध परमेष्ठियों को मै अर्ध-पूर्णार्घ अर्पण करता हू॥
. भक्ति से परिपूर्ण है मन जिसका ऐसा जो व्यक्ति चिद्रूप सिद्ध भगवान का अतिशय करके और पुनः २ पूजन करता है वह " पद्मकीर्ति" के समान होकर सिद्धि को प्राप्त किया करता है।
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(सिद्ध छन
हीं मंडल विधान -
अथ तृतीयपरिधिद्वात्रिंशत्कमलदलपूजा ।
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उर्ध्वाधोरयुतं सविन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम्, वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्सन्धितभान्वितम् । अन्तः पत्रतटेवनाहतयुतं हींकारसंवेष्टितम्, देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकंठीरवः ॥ १॥ पुष्पाञ्जलिः निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्मं नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्धं कर्मानलदावमेघौधम् ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् ॐ ही णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ२ ठाठः ॐ ह्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भवरवषद
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- (विल याक ही मंडल विधान) =
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अथाष्टकम्
निजमनोमणिभाजनभारया शमरसैकसुधारसधारया । सकलबोधकलारमणीयकं सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥१॥
ॐ ह्रीं अनाहतपराक्रमाय सकलकर्मविप्रमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । जलम् ॥ इति समुच्चयमंत्रः ।
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अथ प्रत्येक मंत्राः-१ ॐ ह्रीं परमशुद्धचैतन्याय नमः स्वाहा । २ ॐ ह्रीं शुद्धचैतन्याय नमः स्वाहा । ३ ॐ ह्रीं शुद्धज्ञानाय नमः स्वाहा । ४ ॐ ह्रीं शुद्धचिद्रूपाय नमः स्वाहा । ५ ॐ हीं शुद्धस्वरूपाय नमः स्वाहा । ६ ॐ ही शुद्धस्वभावाय नमः स्वाहा । ७ ॐ हीं शुद्धावलोकिने नमः स्वाहा । ८ ॐ हीं शुद्धदृढाय नम. स्वाहा । ॐ ह्रीं शुद्धस्वयमुवे नमः स्वाहा। १० ॐ ह्रीं शुद्धयोगिने नमः स्वाहा । ११ ॐ ही शुद्धजाताय नमः स्वाहा । १२ ॐ ह्रीं शुद्धतपसे नमः स्वाहा । १३ ॐ ह्रीं शुद्धमूर्तये नमः स्वाहा । १४ ॐ हीं शुद्धसुखाय नमः स्वाहा । १५ ॐ हीं शुद्धपावनाय नमः स्वाहा । १६ ॐ ह्रीं शुद्धशरीराय नमः स्वाहा । १७ ॐ हीं शुद्धप्रमेयाय नमः स्वाहा । १८ ॐ ह्रीं शुद्धोपयोगाय नमः स्वाहा । १६ ॐ हीं शुद्धभोगाय नमः स्वाह्य । २० ॐ ह्रीं शुद्धात्मने नमः स्वाहा । २१ ॐ ही शुद्धार्हज्जाताय नमः स्वाहा । २२ ॐ ह्रीं अशुद्धिनिपाताय नम म्वाहा । २३ ॐ ह्रीं शुद्धार्हगर्भवासाय नमः स्वाहा । २४
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- (सिद्ध कहाँ मंडल विधान -
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ॐ ही शुद्धसिद्धवासाय नमः स्वाहा । २५ ॐ ही शुद्धपरमवासाय नमः स्वाहा । २६ ॐ ह्रीं शुद्धसिद्धपरमात्मने नमः स्वाहा । २७ ॐ ह्रीं शुद्धानन्ताय नमः स्वाहा । २८ ॐ ह्रीं शुद्धशान्ताय नमः स्वाहा। २१ ॐ ही शुद्धभदन्ताय नमः स्वाहा । ३० ॐ ह्रीं शुद्धनीरूपाय नमः स्वाहा । ३१ ॐ हीं शुद्धनिर्वाणाय नमः स्वाहा । ३२ ॐ ह्रीं शुद्धसदर्भगर्भाय नम स्वाहा ॥ जलम् ॥
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सहजकर्मकलंकविनाशनैरमलभावसुवासितचन्दनः । अनुपमानगुणावलिनायकं सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥२॥ चन्दनम् सहजभावसुनिर्मलतन्दुलैः सकलदोपविशालविशोधनैः । अनुपरोवसुवोधनिधानकम् सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥ ३ ॥ अक्षतान् समयसारसुपुष्पसुमालया सहजकर्मकरेण विशोधया । परमयोगबलेन वशीकृतम् सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥ ४ ॥ पुष्पम् अकृतबोधसुदिव्यनैवेद्यकैर्विहितजातिजरामरणान्तकैः। निरवधिप्रचुरात्मगुणालयं सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥ ५॥ नैवेद्यम् सहजरत्नरुचिप्रतिदीपकैः रुचिविभूतितमःप्रविनाशनैः । निरवधिं सुविकाशप्रकाशनैः सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥ ६ ॥ दीपम्
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-(खिल चाही मंडल विधान) -
निजगुणाक्षयरूपसुधुपकैः स्वगुणघातिमलप्रविनाशनैः । विशदबोधसुदीर्घसुखात्मकं सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥ ७ ॥ धूपम् परमभावफलावलिसंपदा सहजभावविभावविशोधया । निजगुणास्फुरणात्मनिरंजनं सहजसिद्धमहं परिपूजये ॥८॥ फलम्
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नेत्रोन्मीलविकाशभावनिवहैरत्यन्तबोधाय वै, सद्गन्धाक्षतपुष्पदामचरुकैः सद्दीपधूपैः फलै ।यश्चिन्तामणिशुद्धभावपरमज्ञानात्मकैरर्चयेत्, सिद्धःस्यात्तमगाधबोधममलं संचर्चयामो वयम् ।। ६ ॥ अर्धम् त्रैलोक्येश्वरवन्दनीयचरणाः प्रापुःश्रियं शास्वतीम्, यानाराध्य निरुद्धचण्डमनसः सन्तोपि तीर्थकराः। सत्सम्यत्कविबोधवीर्यविशदाव्याबाधताद्यैर्गुणै,
युक्तांस्तानिह तोष्टवीमि सततं सिद्धान् विशुद्धोदयान् ॥१०॥ पुष्पांजलिः ॐ ही असिआउसा नमः, इतिमत्रेणाष्टोतरशतं जाप्यं देयम् ।।
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(सिद्ध चक्रहीं मंडल विधान) -
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अथ जयमालाविराग सनातन शांत निरंश, निरामय निर्भय निर्मल हंस । सुधाम विवोधनिधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥१॥ विदरितसंसृतिभाव निरंग, शमामृतपूरित देव विसंग । अबंध कपायविहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ २॥ निवारितदुष्कृतकमविपाश, सदामलकेवलकेलिनिवास । भवोदधिपारग शांत विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥३॥ अनंतसुखामृतसागर धीर, कलंकरजोभरभूरिसमीर । विरवण्डितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ४॥ विकारविवर्जित तर्जितशोक, विबोधसुनेत्रविलोकितलोक । . विहार विराव विरंग विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ५ ॥ रजोमलखेदविमुक्त विगात्र, निरंतरनित्यसुखामृतपात्र । सुदर्शनराजित नाथ विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ६॥
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लिख कहाँ मंडल विधान) -
नरामरवन्दितनिर्मलभाव, अनन्तमुनीश्वरपूज्य विहाव । सदोदय विश्वमहेश विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥७॥ विदंभ वितृष्ण विदोप विनिद्र, पगपरशंकरसार वितंद्र। विकोप विरूप विशक विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥८॥ जरामरणोज्झित वीतविहार, विचिंतित निर्मल निरहंकार । अचिन्त्यचरित्र विदर्प विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ६ ॥ विवर्ण विगंध विमान विलोभ, विमाय विकाय विशब्द विशोभ । अनाकुल केवल सार्व विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसम्रह ॥ १०॥ पत्ता-असमसमयसारं चारुचैतन्यचिन्हम, परपरणतिमुक्तं पद्मनन्दीन्द्रवन्धम् । निरिवलगुणनिकेतं सिद्धचक्रं विशुद्धं,
स्मरति नमति यो वा स्तौति सोभ्येति मुक्किम् ॥ ११ ।। ॐ ही परमशुद्धचैतन्यादिगुणयुक्तसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा ॥ इतिपूर्णार्घम् ।
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- सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान) -
तीसरी जयमाला का अर्थ
रागरहित, सदारहनेवाले, शान्त-क्रोधादिरहित, निरश-विभागरहित-अखण्ड, रोगरहित, निर्भय, निर्मल, भेदविज्ञानपूर्ण आत्मस्वरूप, उत्तम तेज स्वरूप, उत्कृष्टज्ञान के निधान-खजाने हे मोहरहित विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ १॥ सासारिक भावो से दूर, अगरहित, शम परिणामरूपी अमृत से पूर्ण, देव, सगरहित, निबंध और कषायरहित निमोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥२॥ पाप कर्म के पाश-जाल का जिन्होने निवारण कर दिया है, जो सदा निर्मल केवल ज्ञान की क्रीडा के निवास स्थान है, ससार समुद्र के पार को प्राप्त हो चुके है, ऐसे शांत निर्मोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ३ ॥ अनन्त सुख रूपी अमृत के समुद्र, धीर, पापरूपी लि के भार को उडादेने के लिये प्रबल समीर-वायु के समान, कामदेव की अन्तिम सीमा को भी खण्डित करने वाले निर्मोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ।। ४ ॥ विकार भाव से रहित, शोक को ताडित करने वाले, विशिष्ट ज्ञानरूपी .. नेत्र के द्वारा देख लिया है लोक को जिन्होने, जिनका कोई हरण नहीं कर सकता, ऐसे शब्दरहित, विरंग- . संसाररूपी नाटक के रंगस्थल अथवा कषायोंके युद्ध स्थल से विगत, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो । ॥ ५ ॥ अज्ञान और अदर्शनरूप मल के खेद से रहित, अशरीर, विच्छेदरहित नित्य सुख के
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-(लिए अष्क ही मंडल विधान -
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पात्र, सम्यग्दर्शन के द्वारा शोभायमान, नाम निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ६॥ मनुष्यों
और देवोंके द्वारा वन्दित है निर्मल भाव जिनके, अनन्त मुनीश्वरों के द्वारा पूज्य, मुख के विकार से रहित, सदा रहनेवाला है उदय जिनका, पूर्ण तेज के स्वामी, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ७॥ दंभरहित, तृष्णा से शून्य, विगत दोष, निद्रा रहित, पर 'और अपर कल्याण के करने वाले, साररूप, निरालस्य, कोप रहित, रूप रहित और शंका रहित निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ८॥ जरा और मरण से रहित, तथा गमनागमन से भी रहित, विशिष्ट चिन्ता-ध्यानादिके विषय, निर्मल, अहंकार रहित, अचिन्त्य है चरित्र जिनका ऐसे, हे दर्परहित' निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ॥ वर्ण रहित, गध रहित, मान-लोभ-माया-शरीर-शब्द और शोभा से रहित, आकुलतासे रहित, केवल-एकाकिन्-शुद्धात्मन् , सबके लिये हितकर, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ १०॥ इस तरह अनुपम समयसाररूप, सुन्दर चैतन्य ही है चिन्ह जिनका, पुद्गलकेनिमित से होने वाली परिणतिसे मुक्त, पद्मनन्दा आचार्य के द्वारा बन्ध, सम्पूर्ण गुणों के निवासस्थान, विशुद्ध सिद्धचक्र का जो स्मरण करता है, उनको नमस्कार करता है, या उसकी स्तुति करता है, वह मुक्ति को प्राप्त हुआ करता है॥॥११॥
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(शि की
विधान) -
अथ चतुर्थपरिधौ चतुःषष्ठि दल पूजा ।
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उर्ध्वाधारयुतं सविन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् । वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलंतत्संधितचान्वितम् ।। अन्तःपत्रतटेष्वनाहतयुतं हींकारसंवेष्टितम् । देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकएठीरवः ।।
पुष्पं दत्वा स्थापनां कुर्यात् ॥ निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्म नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥१॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्धं कर्मानलदावमेघौघम् ॥ २॥ . ही णमोसिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट्
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- (सिद्ध छाया । ही मेडल विधान -
ॐ ह्रीं णमोसिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ २ ठः ठः । ॐ ह्रीं णमोसिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट्
अथाष्टकम्
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जयति जयति यस्य प्राभवं सम्यगात्मो,दयविजितविपक्षं विश्वकल्याणबीजम् । सुरसरिदमलाम्भोधारयाऽऽराधनीयम्, गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीं है असिआ उसा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौ झौ जल म्वाहा, इतिसमुच्चयमंत्रः
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(सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
1 -३५
अथ प्रत्येक मंत्रा
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१ॐ ह्रीं अहं जिनसिद्धेभ्यो नम स्वाहा, २ ॐ हीं अर्ह केवलर्द्धिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, ३ ॐ हीं अवधिबुद्धिऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः स्वाहा, ४ ॐ हीं अहं मनःपर्ययबुद्धिऋद्धिसिद्धेभ्योनमः स्वाहा, ५ॐ ह्रीं अहवीजबुद्धिसिद्वेभ्योनमः स्वाहा, ६ ॐ ही अर्ह कोष्ठबुद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा ७ ॐ ही अर्ह पादानुसारिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, ८ ॐ ही अहं सभिन्नसश्रोतृसिद्धेभ्यो नम स्वाहा, १ ॐ ह्रीं अर्ह दूरास्वादनदर्शनम्पर्शनघ्राणश्रवर्द्धिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १० ॐ हीं अहं दशपूर्वित्वसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, ११ ॐ ह्रीं अहं चतुर्दशपूर्वित्वसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १२ ॐ हीं अर्ह अष्टागमहानिमितबुद्धिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १३ ॐ ही अहं प्रज्ञाश्रमणद्धिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १४ ॐ ही अर्ह प्रत्येकबुद्धसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १५ ॐ ही अहं वादित्वर्द्धिप्राप्तेभ्यो नमः स्वाहा, १६ ॐ ही अर्ह णमोविज्जाहराण स्वाहा, १७ ॐ ह्रीं अर्ह जलजंघातंतुपुष्पपत्रश्रेण्यग्निशिखाचारणसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १८ॐ हीं अर्ह आकाश गामित्वर्द्धिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा, १९ ॐ ह्रीं अर्ह विक्रियर्द्धिसिद्धिप्राप्तेभ्यो नम. स्वाहा, २० ॐ हीं अर्ह णमो उग्गतवाणं स्वाहा, २१ ॐ हीं अर्ह णमो दीत्तितवाण स्वाहा, २२ ॐ हीं अहं णमो तत्ततवाण स्वाहा, २३ ॐ ह्रीं अहं णमो महातवाणं स्वाहा, २४ ॐ हीं अहं णमो घोरतवाण स्वाहा, २५ ॐ हीं अर्ह
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णमो घोरपरकमाण स्वाहा, २६ ॐ ही अहं घोरखभयारीण स्वाहा, २७ ॐ हीं अर्ह णमो मणोवलीणं स्वाहा, २८ ॐ ह्रीं अहं णमो वाचवलीणं स्वाहा, २१ ॐ हीं अहं णमो कायवलीणं स्वाहा, ३० ॐ हीं अर्ह णमो आमोसहिपत्ताण स्वाहा, ३१ ॐ हीं अर्ह णमो खिल्लोसहपत्ताणं स्वाहा, ३२ ॐ ह्रीं अहं णमो जल्लोसहिपत्ताण स्वाहा, ३३ ॐ ह्रीं अहं णमो मैलोसहिसिद्धाणं स्वाहा ३४ ॐ ह्रीं अह णमो विडोसेहिपत्ताणं स्वाहा, ३५ ॐ ह्रीं अहं णमो सघोसहिपत्ताण स्वाहा, ३६ ॐ हीं अहं णमो ओसीविसाण स्वाहा, ३७ ॐ ह्रीं अहं दिठिविसाणं स्वाहा, ३८ ॐ हीं अहं णमो आसीविसरसर्द्धिसिद्धाणं स्वाहा, ३९ ॐ हीं अहं णमो दिठिविपसिद्धाणं स्वाहा, ४० ॐ ह्री अहं णमो क्षीरसवणिं स्वाहा, ४१ ॐ ह्री अहं णमो महुसवीण स्वाहा, ४२ ॐ ही अहं णमो सप्पिसवीणं म्वाहा, ४३ ॐ ह्रीं अहं णमो अमिय सवीणं स्वाहा, ४४ ॐ ह्रीं अह णमो अक्षीणमहानसाणं स्वाहा, ४५ ॐ ही अहं णमो अक्षीणमहालयाणं स्वाहा, ४६ ॐ हीं अहं णमो सत्तड्ढिपत्ताण स्वाहा, ४७ ॐ हीं अहं विपहरणार्द्धप्राप्तेभ्योनमः स्वाहा, ४८ ॐ हीं अहं णमो बड्ढमाणाणं स्वाहा, ४१ ॐ हीं अहं णमो लोए सघसिद्धाण म्वाहा, ५० ॐ ह्रीं
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१ श्रामर्श-हस्तपादादिना सस्पर्श.। २क्षल-निष्ठीवनम् । ३ जान--स्वेदालम्बनं रजः । ४ मल -कर्णदन्तादिसमुद्भवः । विदुगार । ६ अंगप्रत्यंगनरवद-तादिरवयवः तत्सस्पर्शी वाप्वादि सर्व । ७ ग्रास्याविपा -उपविपसंपृक्तो ऽप्याहारो येयामास्यगतो निर्विषी भवति, यदीपास्यनिर्गतवच श्रवणात महाविपरीता अपि निर्विषा भवन्ति । ८ येवामालोग्नमात्रेणातितीवविषदूपिता अपि विगतविषा भवन्ति। * ये रमर्दियामा यतय यं युवते " म्रियस्व "स तत्क्षगाण्य महानिपपरीत. सन भियते ते प्रास्यविषा ।
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- लिङ्क झळक हाँ मोडल विधान)
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अहं पामो भयवदो महदिमहावीर बढमाण बुद्धिरिसीण स्वाहा, ५१ ॐ हीं अहं णमो सिद्धाण स्वाहा, ५२ ॐ हीं अहं णमो ध्येयसिद्धाणं स्वाहा, ५३ ॐ ही अहं णमो वस्तुबुद्धाणं स्वाहा, ५४ ॐ हीं अहं णमो स्वस्तिसिद्धाणं स्वाहा, ५५ ॐ ह्रीं अई णमो अर्हत्सिद्धाण स्वाहा, ५६ ॐ हीं अहं णमो परमात्मसिद्धाण स्वाहा, ५७ ॐ हीं अहं णमो परब्रह्मसिद्धाण स्वाहा, ५८ ॐ हीं अहं णमो परमग्गसिद्धाण स्वाहा, ५६ ॐ हीं अर्ह णमो प्रकाशसिद्धाणं स्वाहा, ६० ॐ हीं अई णमो स्वयंभूसिद्धाण स्वाहा,
६१ ॐ ही अहं णमो अनन्तगुणसिद्धाण स्वाहा, ६२ ॐ हीं अहं णमो परमानन्तगुणसिद्धाण स्वाहा, 1 ६३ ॐ हीं अहं णमो लोकवासिसिद्धाण स्वाहा, ६४ ॐ हीं अहं णमो अनाद्यनुपमसिद्धाण स्वाहा. .
उदयति परमात्मज्योतिरुद्योति यस्मात् । विशदविनययुक्तथा ध्वस्तमोहान्धकारम् । शुचितरघनसारोल्लासिभिश्चन्दनौधै,गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥२॥ चन्दनम् ॥ अहमहमिकयोच्चैः सम्यगाराधनायाम् । सुरनरखचरेन्द्राः यस्य भक्तया यतन्ते । ललितसदकपुंजैः केवलज्ञानहेतो,गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ३ ॥ अक्षतान् ।
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- (सिद्ध आला ही अंडल विधान) =..
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भवभयगुरुपारावारपारं लभन्ते, विहितशिवसमृद्धः सेवया यस्य सन्तः । कमलवकुलकुंदोदारमंदार पुष्पै-, गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ४ ॥ पुष्पाणि ।। जननवनहुताशं छिन्नसन्मोहपाशम्, शमितमदनमानं विश्वविद्यानिदानम् । चरुभिरुरुगुणोघं प्रीणितप्राणिसंघम् । गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ५॥ नैवेद्यम ॥ चिदचिदरिवलजीवाजीवभेदादिवेद्यम्, सकलभुवननेत्रं ज्ञानमाविष्करोति । स्मरणमपि यदीयं दीपदीपप्रभौधैः, गणधरवलयं तत्मिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥६॥ दीपम ॥ भवति न भवभाजां ध्यानतो यस्य पीडा, ग्रहदितिशितिरक्षाप्रेतभूतप्रसूता ।
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(सिद्ध च्वक ही मंडल विधान) -
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अगुरुतुहिनभास्वच्चन्दनोद्भतधूपैः, गणपरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यचंयामि ॥७॥ धूपम् ॥ फलमतुलमनंतं मुक्तिसौख्यं प्रदीप्तम्, फलति विपुलसेवा सम्यगाविःकृतोच्चैः । असदृशमहिमश्रीमंदिरं मातुलिंग,गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥८॥ फलानि ।। अभिनवजलगंधामंदमंदारमाला,ललितममलमर्घ संददाम्यादरेण । गणधरवलयाय श्रीयुजे पद्मनन्दी,
सुरहरिमहितायाः प्राप्तये मुक्तिलक्ष्म्याः ॥ ६ ॥ अर्धम् ॥ ॐ हीं असिआउसानमः एतन्मंत्रेणाष्टोतर शतं जाप्यं देयम् । अथ जयमाला
योगीन्द्रैर्निजमानसे प्रतिदिनं संचिन्तनीयाः स्वयम्, देवा इन्द्रनरेन्द्रपूजितपदा दुष्कर्मविच्छितये ।
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कर्मावद्यविवर्जिता वसुगुणालंकरभृताः सदा, . सिद्धान्तान् जयमालया विमलया भक्त्या स्तवीमि श्रिये ॥१॥ महादृढमोहविधेः परमुक्त, स्वकीयगुणद्रविणद्युतिरक्त । चिदात्मरुचे निजजात विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥२॥ चिदावरणक्षयनिश्चितवास, स्वनंतपदार्थविभेदसमास । चिदात्मचितो निजजीतनिकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥ ३॥ स्वकातमवर्जित दर्शनधार, स्वलेपितदर्शनलोपकभार । सुकेवलदर्शनतोय विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥ ४ ॥ सुदृचिदनंतसुशक्तिकदेह, क्षयंकृतविघ्नकरबजगेह । चिदात्मसुवीयेंगुणेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥५॥ क्षयंगतनाम चिरंघृतसूक्ष्म, समीपविनिर्मिततद्गुणलक्ष्म । चिदात्मकसूक्ष्मगुणेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥६॥ अरूप्यवगाहनभावसुपूर, चतुर्विधपापविकर्दमदूर । ततस्त्वमनंतगुणेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥ ७ ॥
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निरस्तगुरुत्वलघुत्वकभाव, तथा भवकाननदुःसहदाव । द्विधातुलकर्मगतेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥८॥ द्विधाहतदुःखदवेदनपक्ष, स्वकात्मसमर्पितशास्वतसौख्य ।
अंबाधकदेवगुणेन विकाय, पुनातु सदा मम सिद्धनिकाय ॥९॥ ॐ ह्रीं अर्ह असिया उसा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौ झौ नमः पूर्णाम् स्वाहा । पत्ता-विधुतकुविधिपाशं मुक्तिलीलाविलासम्,
परमगुणनिवासं चित्सरोराजहंसम् । विनुतनृपसुचकैः संस्तुतं सिद्धचक्र।मतनु च निजभक्त्या वन्दते शौभचन्द्रः॥१०॥
इत्याशीर्वादः
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चतुर्थ जयमालाका अर्थ
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मै उन सिद्ध भगवान्की, मोक्षलक्ष्मीकी प्राप्ति के लिये भक्तिपूर्वक विमल जयमालाके द्वारा स्तुति करता हूं जिनका अपने मनमें स्वयं योगीन्द्र भी दुष्कर्मीकी व्युच्छित्तिके लिये चिन्तवन करते है, जिनके चरण कमल इन्द्र तथा नरेन्द्रोंके द्वारा भी पूजित है, कर्मरूप अवधसे जो रहित, और सदा अष्ट गुणोके अलंकारभूत है ॥१॥
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-(सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान) -
महान् दृढ मोहकर्मसे सर्वथा,रहित, अपने गुणरूपी सुवर्णकी कांतिसे रंजित, चित्स्वरूप रुचिके धारक, अपने स्वरूपमे ही उत्पन्न, शरीर रहित, सिद्धसमूह.सदा मुझे पवित्र करो.॥ २ ॥, चेतनाके आवरण करनेवाले-ज्ञानावरण दर्शनावरमाके क्षयसे निश्चित है वास जिनका, अनन्त पदार्थीका भेद करके भले प्रकार रहनेवाले, ......................... हे सिद्धसमूह सदा मुझे पवित्र करो ॥ ३॥.................... ॥४॥ सम्यग्दर्शनज्ञानरूप अनंत शक्तिके पिंड, नष्ट कर दिया है विघ्न करनेवाले कर्म समूहको जिन्होने, चित्स्वरूप अनन्त वीर्य गुणके स्वामी अशरीर सिद्धसमूह मुझे सदा पवित्र करो ॥ ५॥ क्षयको प्राप्त हो गया है नाम कर्म जिनका, सूक्ष्मत्व गुणको धारण करनेवाले, अपने निर्मितगुण ही हैं चिन्ह जिनका, चित्स्वरूप सूक्ष्मगुणके स्वामी अशरीर सिद्ध निकाय मुझे सदा पवित्र करो ॥ ६ ॥ अरूपी, अवगाहन गुणसे पूर्ण, चार तरहके आयु कर्मरूप कीचड़से दूर, अनंतगुणोके स्वामी अशरीर सिद्ध निकाय मुझे सदा पवित्र करो ॥७॥ गुरुत्वलघुत्वभावसे रहित, संसार रूपी वनकी दुःसह अग्निका जिन्होंने निरसन कर दिया है, दो प्रकारके अतुल गोत्रकर्मसे रहित स्वामी अशरीर सिद्धनिकाय सदा मुझे पवित्र करो ॥ ८॥ दोनोही तरहके दुःख देनेवाले वेदनीय कर्मके पक्षका जिन्होंने घात कर दिया है, स्वयंका प्राप्त कर लिया है शास्वत सुख जिनने ऐसे बाधारहित गुणोके स्वामी देव अशरीर सिद्धानकाय सदा मुझे पवित्र करो ॥९॥
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१-२-इनका अर्थ ठीक २ हमारी समझमें नहीं आ सका । ३-इस जयमालाके दूसरे आदि पद्यमे क्रमसे मोह शानावरण-दर्शनावरण-अन्तराय-नाम-आयु-गोत्र-और वेदनीय इन आठ कमांके अभावसे प्राप्त गुणोंकी अपेक्षा सिद्धोंकी महिमाका वर्णन किया गया है।
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सिद्ध चक्र
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अथ पंचमपरिधिगताष्टविंशोत्तरशतदलपूजा ।
ऊर्ध्वाधोरयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् ।
वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्संधितत्त्वान्वितम् ॥ अन्तः पत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकारसंवेष्टितम् ।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्टिन् अत्रावतरावतर संवौषट्
अत्र तिष्ठ २ ठः ठः
अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट्
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निरस्त कर्मसम्बन्धं सूक्ष्मं नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १ ॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपान तृप्तनिजभावम् । संस्थापयामि सिद्धं कर्मनलदावमेघौघम् ॥ २ ॥
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ह्रीँ मंडल विधान
देवं ध्यायति यः समुक्तिसुभगो वैरीभकंठीरवः ॥ १ ॥ (पुष्पं दत्वा स्थापनां कुर्यात् )
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अथाष्टकम्. विमलशीतलसज्जलधारया, सविधबंधुरकेशरसारया।
प्रथमबोधकसत्कजिनेश्वरम्, प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥१॥ ॐ ह्रीं स्वस्थानमाश्रितातीतानागतसिद्धाधिपतिभ्यो नमः स्वाहा, जलम् । इति समुच्चयमंत्रः ।
PROSPER
अथ प्रत्येकमंत्राः
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ॐ हीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यो नमः स्वाहा ॥१॥ ॐ हीं अस्तित्वधर्माय नमः स्वाहा । २। ॐ ही वस्तुत्वधर्माय नमः स्वाहा । ३। ॐ ह्रीं प्रमेयत्वधर्माय नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं चेतनत्यधर्माय नमः स्वाहा । ५। ॐ ह्रीं अगुरुलघुत्वधर्माय नमः स्वाहा । ६ । ॐ हीं अमूर्तत्वधर्माय नमः स्वाहा । ७। ॐ हीं प्रदेशवत्वधर्माय नमः स्वाहा । ८ । ॐ हीं सम्यक्त्त्वधर्माय नमः स्वाहा ।९। ॐ हीं ज्ञानधर्माय नमः स्वाहा । १० । ॐ ह्रीं वीर्यधर्माय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं सूक्ष्मधर्माय नमः स्वाहा । १२ । ॐ हीं अवगाहनधर्माय नमः स्वाहा । १३ । ॐ हीं अव्याबाधगुणाय नमः स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं स्वसंवेदनज्ञानाय नमः स्वाहा ।१५। ॐ हीं अनन्तदर्शनादिचतुष्टयात्मकार्हद्भ्यो नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं सम्यक्त्वादिगुणात्मकसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १७ । ॐ ह्रीं पंचाचाराचार्येभ्यो नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्री रत्नत्रयप्रकाशपाठकेभ्यो नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं स्वस्वरूपसाधकसर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा । २०।
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(सिद्ध व्यकहीं जडल विधान -
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ॐ ह्रीं अकृतमनःक्रोवसरम्भमनोगुप्तये नमः स्वाहा । २१॥ ॐ ह्रीं अकारितमन.क्रोधसंरम्भसानन्दवर्माय नमः स्वाहा ।२२। ॐ ही नानुमोदितमन.क्रोधसरम्भानन्दधर्माय नमः स्वाहा।२३ । ॐ ह्रीं अकृतमनः कोधसमारम्भपरमानन्दाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं अकारित मनः क्रोधसमारम्भसंतुष्टधर्माय नमः स्वाहा ।२५। ॐ हीं नानुमोदितमन क्रोबसमारम्भसंतोपधर्माय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं अकृतमनः क्रोधारम्भस्थानाय नम. स्वाहा । २७॥ ॐ ह्रीं अकारितमनः क्रोधारम्भस्थानाय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्रीं नानुमोदितमनः क्रोधारम्भस्थानाय नमः स्वाहा । २९। ॐ ही अकृतमनोमानसंरम्भधर्माय नमः स्वाहा । ३०। ॐ ह्रीं अकारितमनोमानसरम्भानन्यशरणाय नम स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमानसंरम्भसुगतभावाय नमः स्वाहा ।३२॥ ॐ ह्रीं अकृतमनोमानसमारम्भसुखात्मगुणाय नमः स्वाहा । ३३॥ॐ ह्रीं श्रकारितमनोमानसमारम्भानन्यगताय नमः स्वाहा ।३४ । ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमानसमारम्भानन्यशरणाय नमः स्वाहा। ३५। ॐ ही अकृतमनोमानारम्भानन्तज्ञानाय नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्रीं अकारितमनोमानारम्भानन्तगुणाय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ हीं नानुमोदितमनोमानारम्भानन्तगुणय नमः स्वाहा ३८॥ॐ हीं अकृतमनोमायासरम्भब्रह्मस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३९ । ॐ ह्री अकारितमनोमायासरम्भचैतन्यस्वभावाय नमः स्वाहा । ४०। ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमायासंरम्भानन्यस्वभावाय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ही अकृतमनोमायासमारम्भस्त्रानुभूतिरत्नाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ह्रीं अकारितमनोमायासमारम्भसाम्यधर्माय नमः स्वाहा । ४३ । ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमायासमारम्भाय नमः स्वाहा । ४४ । ॐ ह्रीं अकृतमनोमायारम्भपरमशातभावाय नमः स्वाहा । ४५| ॐ ही अकारितमनोमायारम्भनिराकुलस्वभावाय नमः स्वाहा । ४६। ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमायारम्भानन्यत्वाय
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- लिख वाचा
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नमः स्वाहा । ४७ । ॐ ह्रीं अकृतमनोलोभसंरम्भानन्तभावाय नमः स्वाहा । ४८ । ॐ ह्रीं अकारितमनो- ... लोभसरम्भपरमानन्दभावाय नमः स्वाहा । ४९ । ॐ ही नानुमोदितमनोलोभसंरम्भभावायः नमः स्वाहा । ५० । ॐ हीं अकृतमनोलोभसमारम्भविदाकाराय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ हीं अकारितमनोलोभसमारम्भानन्ताकाराय नम. स्वाहा । ५२। ॐ हीं नानुमोदितमनोलोभसमारम्भाकारभावाय नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्रीं अकृतमनोलोभारम्भचिदाकाराय नमः स्वाहा । ५४ । ॐ ही अकारितमनोलोभारम्भचिन्मयस्वरूपाय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोलोभारम्भस्वरूपाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्रीं अकृतवचनक्रोवसंरम्भत्राग्गुप्तये नमः स्वाहा । ५७॥ ॐ ही अकारितवचनक्रोधसंरम्भसिद्धस्वरूपाय नमः स्वाहा । ५८ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनक्रोधसंरम्भस्वात्मोपलब्धिप्राप्ताय नमः स्वाहा । ५९ । ॐ हीं अकृतवचनक्रोधसमारम्भस्वानुभूतिरताय नमः स्वाहा । ६० । ॐ ह्रीं अकांरितवचनक्रोधसमारम्भासाधारण वर्माय नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनक्रोधसमारम्भपरमशान्तिस्वभावाय नमः स्वाहा । ६२। ॐ ही अकृतवचनक्रोधारम्भपरमामृततुष्टाय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ह्रीं अकारितवचनक्रोधारम्भसमरसरसिकाय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनक्रोधारम्भपरमशातये नमः स्वाहा । ६५| ॐ हीं अकृतवचनमानसंरम्भस्वधर्माय नमः स्वाहा । ६६ ॐ ह्री अकारितवचनमानसंरम्भाव्यक्तस्वभावाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनमानसंम्भदुर्लभाय नमः स्वाहा । ६८॥ ॐ ही अकृतवचनमानसमारम्भपरमसंगमनिराकरणाय नमः स्वाहा ।६९। ॐ ह्रीं अकारितवचनमानसमारम्भपरमस्वभावाय नमः स्वाहा । ७०।ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनमानसमारम्भैकत्वगतपरमसुखाय नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ह्रीं अकृतवचनमानारम्भपरमात्मराजपरमधर्माय नमः स्वाहा । ७२ ।
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-(सिद्ध कहीं मंडल विधान) -
ॐ ह्रीं अकारितवचनमानारम्भशास्वतानन्दाय नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ही नानुमोदितवचनमानारम्भामृतपूर्णाय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्रीं अकृतवचनमायासंरम्भानन्तधमैकरूपाय नमः स्वाहा । ७५ । ॐ हीं - अकारितवचनमायासरम्भामृतचन्द्राय नम. स्वाहा । ७६ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनमायासंरम्भानेकान्तमयमूर्तये नमः स्वाहा । ७७ । ॐ ही अकृतवचनमायासमारम्भसत्तालोकगुणाय नमः स्वाहा । ७८ । ॐ ही अकारितचनमायासमारम्भसत्तालोकगुणाय नमः स्वाहा । ७९ । ॐ हीं नानुमोटिनवचनमायासमारम्भानेकान्तमयमूर्तये नमः स्वाहा । ८० । ॐ ह्रीं अकृतवचनमायारम्भातुलज्ञानाय नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ह्री अकारितवचनमायारम्भानुलज्ञानाय नमः स्वाहा । ८२ । ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनमायारम्भनिरवधिसुखाय नम स्वाहा । ८३ । ॐ ह्रीं अकृतवचनलोभसंरम्भव्यापकधर्माय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ हीं अकारितवचनलोभसंरम्भव्यापकगुणाय नमः स्वाहा । ८५। ॐ ही नानुमोदितवचनलोभसंरम्भाचलाय नमः स्वाहा । ८६ । ॐ ह्रीं अकृतवचनलोभसमारम्भनिरालम्बाय नमः स्वाहा । ८७। ॐ ही अकारितवचनलोभसमारम्भनिरालम्बाय नमः स्वाहा । ८८1 ॐ हीं नानुमोदिनवचनलोभममारम्भाखण्डाय नमः स्वाहा। ८९। ॐ हीं अकृतवचनलोभा रम्भसमयसाराय नमः स्वाहा । ९०1ॐ ही अकारितवचनलोभारम्भसमयसाराय नमः स्वाहा । ९१ । ॐ ही नानुमोदितवचनलोभारम्भनिरंजनाय नमः स्वाहा । ५२। ॐ ही अकृतकायक्रोवसंरम्भकायगुप्तये नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं अकारितकायक्रोधसंरम्भाकायाय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ह्री नानुमोदितकायक्रोव-सरम्भशुद्धकायाय नमः स्वाहा । ९५ । ॐ ह्रीं अकृतकायक्रोधसमारम्भसत्त्वगुणाय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं अकारिकायक्रोधसमारम्भानन्यशरणाय नमः स्वाहा । ९७। ॐ ह्रीं नानुमोदितकायक्रोबसमारम्मान
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ही मंडल विधान -
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न्यशरणाय नमः स्वाहा । ९८ । ॐ ह्री अकृतकायक्रोवारम्भशुद्धद्रव्याय नमः स्वाहा । ९९। ॐ ह्री अकारितकायक्रोधारम्भासंसाराय नमः स्वाहा ।१००। ॐ ह्रीं नानुमोदितकायनोधारम्भजैनधर्माय नमः स्वाहा । १०१ । ॐ ह्रीं अकृतकायमानसंरम्भस्वरसगुप्तये नमः स्वाहा । १०२ । ॐ ह्रीं अकारिनकायमानसरम्भ- म्वरूपगुप्तये नमः स्वाहा । १०३ । ॐ हीं नानुमोदितकायमानसंरम्भध्येयभावाय नमः स्वाहा । १०४।' ॐ ह्रीं अकृतकायमानसमारम्भपरमारान्याय नमः स्वाहा । १०५। ॐ ह्रीं अकारितकायमानसमारम्भानन्दगुणाय नमः स्वाहा । १०६ । ॐ ही नानुमोदितकायमानसमारम्भस्वानन्दनन्दिताय नमः स्वाहा । १०७ । ॐ ह्रीं अकृतकायमानारम्भपरमसंतोपाय नमः स्वाहा । १०८ । ॐ ह्रीं अकारितकायमानारम्भम्बभावाय नम म्वाहा । १०९ । ॐ ह्रीं नानुमोदितकायमानारम्भशुद्धपर्यायधर्माय नमः स्वाहा । ११० । ॐ ह्रीं अकृत कायमायासरम्भामृतगर्भाय नमः स्वाहा । १११ । ॐ ही अकारितकायमायासरम्भचैतन्यात्मकाय नमः स्वाहा । ११२ । ॐ ही नानुमोदित कायमायासंरम्भसमरसभावाय नमः स्वाहा । ११३ । ॐ अकृतकायमाया समारम्भाच्छेदनाय नमः स्वाहा । ११४ 1 ॐ हीं अकारितकायमायासमारम्भस्वतन्त्रधर्माय नमः म्बाहा ।११५/ ॐ ह्रीं नानुमोदितकायमायाममारम्भधर्मसमूहाय नम. स्याहा । ११६ । ॐ ह्रीं श्रकृतकायमायारम्भपरमात्मभुवे नमः स्वाहा । ११७ । ॐ ह्री अकारितकायमायारम्भारमकाय नमः म्वाहा । ११८ । ॐ ही नानुमोदितकायमायारम्भात्मनिष्टाय नमः स्वाहा । ११०॥ ॐ ही अकृतकायलोभसंरम्भा तोभाय नमः स्वाहा । १२० । ॐ ही अकारितकायलोभसंरम्भस्वभावाय नम स्वाहा । १२१ । ॐ ह्री नानुमोदितकायलोभसंरम्भभावाय नमः म्याहा । १२२ । ॐ ह्रीं अकृतकायलोभसमारम्भपरमचित्परिणताय नमः स्वाहा । १२३ । ॐही अकारितकाय
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लोभसमारम्भस्वधर्मरताय नमः स्वाहा । १२४ । ॐ हीं नानुमोदितकायलोभसमारम्भाव्यक्तधर्माय नमः स्वाहा
है ।१२५। ॐ हीं अकृतकायलोभारम्भसुखाय नमः स्वाहा । १२६ । ॐ हीं अकारितकायलोभारम्भाकषायाय MEMM नमः स्वाहा । १२७ । ॐ ह्री नानुमोदितकायलोभारम्भशौचगुणाय नमः स्वाहा । १२८ ।
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घुसृणकुंकुमचन्दसनदभवैः, बहुसुगंधितनिर्मलपासुकैः । प्रथमवोधकसत्कजिनेश्वरम् , प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ।। २ ।। चन्दनम् । ,
विमलतन्दुलनिर्मलसंचयैः,
कृतसुमौक्तिककल्पसुनिश्चयैः। प्रथमबोधकसत्कजिनेश्वरम्,
प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥ ३ ॥ अक्षतान् कुसुमचंपकपंकजकुंदकैः, .
सहजजातसुगंधविमोदकैः। - प्रथमवोधकसत्कजिनेश्वरम् ,
प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥ ४॥ पुष्पाणि ।
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= (सिद्ध अकुत । ह्रीं
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सकललोकविमोदनकारकैः,
चरुवरैश्चसुधाकृतिधारकैः। प्रथमवोधकसत्कजिनेश्वरम् ,
प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥ ५॥ नैवेद्यम् , तरलवार सुकांतसुमंडनैः,
___ सदनरनचयैरघरवण्डनैः। प्रथपबोधकसत्कजिनेश्वरम्,
प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥ ६॥ दीपम् ।। अगुरुधूपभवेन सुगन्धिना।
भ्रमरकोटिसमिन्द्रियवन्धुना। प्रथमबोधकसत्कजिनेश्वरम्,
प्रवियजे नुतनाकनरेश्वरम् ॥ ७॥ धूपम् । मुखदपकसुशोभनसत्फलैः,
क्रमुकनिम्बुकमोचमुलांगलैः।
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(सिंद्ध चक्र
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प्रथमवोधकसकजिनेश्वरम्,
प्रवियजे नुतनांकनरेश्वरम् ॥ ८॥ फलम् ।। जिनवरागमसद्गुरुमुख्यकान्,
प्रवियजे गुरुसद्गुणमुख्यकान् । सुशुभचन्द्रतरान् कुसुमाकरान्,
समयसारपरान् सुरवसागरे ॥९॥ अर्घम् ॥ ॐ ही असियाउसानमः, इतिमंत्रेण जपः करणीयः ।।
ये ज्ञानावरणादिकानतितरां निर्मूल्य दोपान् बलात,
संसारोरुसरिविंशोषकमहः संदर्शनादीन् गताः । सिद्धस्तोत्रविबुद्धज्ञानमहसां कुर्वन्तु सिद्धाः श्रियम् ,
चक्रिमहसुरेन्द्रपूजिपदा भक्तात्मनां सर्वदा ॥१॥ पुष्पांजलिः॥
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दिए जाङ्ग
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चिदानन्दमानन्दलीलानिवासम,
अखण्डस्वभावं जिनं सिद्धराशिम् । विषादोज्झितं वीतरागं विचक्रम्,
सदा तोष्टचीति स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥१॥ विशुद्धोदयं प्राप्तसंसारपारम्,
सुसंविनिधानं परं निर्विकारम् । विमायं विभायं विनायं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥२॥ विमुक्ताशयादित्यविज्ञाननेत्रम्,
विमोहं समस्फारपीयूपगात्रम् ।। अमेयप्रभाव विदर्प विचक्रम् ,
सदा तोष्टचीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥३॥
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- (शिस आ
ईॉ अबरु विशाना) =
विविक्तं कलं निष्कलंक कविस्थम् ,
सुसेव्यं विपाकं विशंक द्यपारम् । विकालं विकायं विकाम विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ४ ॥
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त्रिलोकातिशायिप्रभं विश्वरूपम् ,
गृहं तेजसा वीतवर्ण विरूपम् । सदा दृङ्मयं ध्येयरूपं विचक्रम् ,
सदा तोप्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥५॥ अगम्यं मुनीनामपि सुप्रबोधम् ,
कृताहंकृतिक्रोधचिन्तानिरोधम् । अपारं जरामृत्युमुक्तं विचक्रम्,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ६॥ अनंत विरामं विकारावमुक्तम् ,
विमुक्तस्फुरत्कामिनीरंगरक्तम् ।
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= (शिष्य आ
ही जोडल शिक्षान) =
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निरीहापघात विहीनं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ७॥ प्रदुष्टाष्टकर्मेन्धनेभ्यो हुताशम् ,
सुसिद्धाष्टकं चिद्गुणं चिद्विलासम् । उदासीनमीशानमीशं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ८॥ अजं शास्वतं निर्जरं देवदेवम् ,
विलोभं कृतानेकभूपालसेवम् । वषट्कृतं वा विपाशं विचकम् ,
सदा तोटवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥९॥
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प्रयाति क्षयं कर्म यद्ध्यानयोगात्,
___ समत्वं गतानां मुनीनां क्षणेन । प्रसिद्धं विशुद्ध तथानन्दरूपम् ।
सदा तोटवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ।। १०॥
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विगतमदनभेदं दोपसंदोहरोधम् ,
स्मरति विरसपूर्ण शंकरं सारभूतम् । अजरममरवन्धं पद्मनन्द्यादिदेवम् ,
मुनिनिवहनिपेव्यं सिद्धचक्रं सुदेवम् ॥११॥ इत्थं सिद्धमुपास्य शर्मसहितं संसारवाधापहम् ,
नोद्रव्याशुभभावकर्मरहितम् संपन्नपर्यापहम् । यो ध्यायेत्फलमश्नुते शिवमयं सौमं स हित्वाऽशिवम् , संभुक्त्वाखिलमंडलेशविबुधस्वामिस्थिति सर्वतः ॥ १२ ॥
इत्याशीर्वाद
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- (सिध्द अकाही अंडल शिशान -
पंचम जयमालाका अर्थ
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जो ज्ञानावरणादि दोषोंका बलपूर्वक और अच्छी तरहसे निर्मूलन कर ससाररूपी नदीके शोषण करने वाले सम्यग्दर्शनादिकको प्राप्त हो चुके है, चक्रवर्तिप्रमुख अथवा सुरेन्द्रोके द्वारा पूजित है चरण जिनके ऐसे सिद्ध भगवान् सिद्धस्तोत्रके द्वारा प्रकट हो गया है ज्ञानरूप तेज जिनका ऐसे भक्तात्माओंको मोक्षलक्ष्मी प्रदान करे ॥१॥
चिदानन्दस्वरूप, सुखके लीलास्थल, अखण्ड है स्वभाव जिनका, कर्मोके विजेता, सिद्धात्माओके समूहरूप, विपादरहित, वीतराग, चक्र-पारवण्ड अथवा सांसारिक परिवर्तनसे दूर सिद्धसमूहका मैं सदा अच्छी तरह स्तवन करता हूँ। २ । विशुद्ध है उदय जिनका, जो ससारके पारको प्राप्त हो चुके है, सम्यग्ज्ञानके निधान, उत्कृष्ट, निर्विकार, मायारहित, विभा - अलौकिक प्रभाको प्राप्त, उत्कृष्ट नेतृत्वके धारक संसाररहित सिद्धसमूहका मै स्तवन करता हूँ ॥ ३॥
आशय-सकल्पविकल्पसे रहित मर्यके समान ज्ञान ही है नेत्र जिनका, मोहरहित, समतारूपी महान्अमृत ही है शरीर जिनका, अप्रमाण प्रभावके धारक, दर्परहित, अशरीर सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ। ॥ ४॥ एकान्तरूप, मनोज्ञ, कलकरहित, विद्वानो या कवियोंके हृदयमे स्थित, भलेप्रकार सेव्य, विपाक अवस्थाको प्राप्त, शकारहित, अपार, काल-काय-काम और ससारचक्रसे रहित सिद्वसमूहका मै सदा अच्छी तरह स्तवन करता हूँ। ॥ ५॥ तीन लोकमे सर्वोत्कृष्ट है प्रभा जिनकी, ज्ञानकी अपेक्षा जो विश्वरूप
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है, प्रकाशोंके निवासस्थान, वर्णनरहित, विशिष्ट स्वरूपके धारक, सदा दर्शनमय, ध्येयरूप, संसाररहित सिद्ध-. समहका मै सदा स्तवन करता हूँ॥ ६॥ मुनियोंके लिये भी अगम्य, समीचीन उत्कृष्ट बोधरूप, कर दिया ! है अहंकार क्रोव और चिन्ताका निरोध जिन्होने, अपार, जरा मृत्युसे रहित, ससार चक्रसे दूर सिद्ध Patra समूहका मैं सदा स्तवन करता हूँ॥ ७ ॥ अनन्त, विश्रामरूप, विकारोंसे रहित, छोड़ दिया है स्फुरायमान कामिनियोंका रग राग जिनने, इच्छा और अपघातसे रहित, उत्कृष्ट, ससाररहित सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ ॥ ८ ॥ अत्यन्त दुष्ट अष्ट कर्मरूपी इन्धनके लिये अग्निसमान, सिद्ध कर लिया है गुणाष्टकको जिनने, चिद्गुणके बारक, चेतनाका ही है विलास जिनमे, उदासीन- वीतराग, ईशान-परमेश्वर, परमात्मा, संसाररहित सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ॥९॥ जन्मरहित, शास्वत, जरा रहित, देवोके | भी देव, लोभरहित, की है अनेक मूपालोने सेवा जिनकी, विकारोके समूहको जिन्होने आहुतिका विषय बना दिया है, ससारके पाशसे रहित, विचक्र सिद्धचक्रका मै सदा स्तवन करता हूँ ॥१०॥.. ... ॥११॥ समस्त कामदेवके भेदोसे रहित, दोपोके समूहका निरोध करनेवाले, रसरहित अवस्थासे पूर्ण, कल्याणकारी, सारभूत, अजर-कभी जीर्ण न होने वाले, देवोके द्वारा बन्ध, पचपरमेष्ठियोंमे प्रथम देव, मुनिसमूहके द्वारा सेव्य, समीचीन देवरूप सिद्धचक्रका पद्मनन्दी आचार्य स्मरण करते है॥ १२॥ इस तरह कर्मरहित, ससारकी वाधाको दूर करनेवाले, नोकर्म द्रव्यकर्म और अशुभ भावकर्मसे रहित, नवीन अवस्थाको प्राप्त सिद्ध परमेष्ठीका जो न्यान करता है वह समस्त अशुभका परित्याग करके और सम्पूर्ण माडलिक गजाओं तथा देवोके स्वामित्वको भले प्रकार भोग करके अमृतरूप शिवमय-कल्याणमय फलको प्राप्त हुआ करता है ॥१३॥
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अथ षष्ठपरिधिपूजा।
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उधिोरयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् ,
वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्सन्धितत्वान्वितम् । अन्तःपत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकारसंवेष्टितम्, देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकण्ठीरवः ॥१॥
(पुष्पं दत्वा स्थापनां कुर्यात् ) निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्म नित्यं निरामयम् , वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥१॥ सकलामरेन्द्रसव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्ध कर्मानलदावमघौघम् ॥ २॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् """ " , अत्र तिष्ठ २ ठः ठः """ " " अत्र मम सन्निहितो भव २ वपटू
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- (दिन चाक ही कहा किशान) =
अथाष्टकम्शुचिविमलपवित्रैस्तीर्थसंभूततोयैः
सुरभिवरसुमिरैः सेवितैः पट्पदौघैः । कनककृतमुपूजादत्तभंगारनालैः,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥१॥
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ॐ ही चिरतरसंसारकारणाज्ञाननिभृतोद्भूतकेवलज्ञानातिशयसम्पन्नसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा, जलम् , इति समुच्चयमत्रः ।
अथ पृथक् २ मंत्रा:
ॐ ह्रीं अभिनिबोधवारकविनाशकसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । १ॐ ह्रीं द्वादशश्रुतावरणीय कर्मविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः स्वाहा ।२। ॐ ह्रीं असंख्येयलोकभेदविभिन्नावधिज्ञानावरणविमुक्ताय सिद्धाविपतये नमः स्वाहा । ३। ॐ ह्रीं मनःपर्ययज्ञानावरणरहितसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्री निरिबलद्रव्यगुणपर्यायावबोधककेवलज्ञानावरणियविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । ५। ॐ ह्रीं सकलदर्शनावरणविनाशकसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । ६। ॐ ही सर्वकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । ७। ॐ ही दर्शनावरणीयकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः स्वाहा । ८। ॐ हीं चक्षुर्दर्शनावरणकर्मरजोमुक्ताय नमः स्वाहा ।९। ॐ ह्रीं अचक्षुर्दर्शनावरणावमुक्ताय नमः स्वाहा । १०। ॐ ह्रीं अवधिदर्शनावरणविमुक्ताय
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नमः स्वाहा । ११ ॐ ह्रीं केवलदर्शनावरणविमुक्ताय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ह्रीं निद्राकर्मविमुक्ताय नमः स्वाहा । १३ । ॐ ह्रीं निद्रानिद्राकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं प्रचलकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्रीं प्रचला प्रचलाकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १६ । ॐ हीं स्त्यानगृद्धिकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १८ । ॐ ही असातावेदनीयकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । १९। ॐ ह्रीं सातावेदनीयकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । २०1ॐ हीं प्रबलतरमहामोहकर्मविप्रमुक्ताय नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्रीं मिथ्यात्वकर्ममुक्ताय नमः म्बाहा । २२ । ॐ ह्रीं सम्यड्मिन्यात्वकर्मरहिताय नमः स्वाहा । २३ । ॐ हीं सम्यक्त्वकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । २५ । ॐ ह्रीं अनन्तानुवन्धिकोयविमुक्ताय नमः स्वाहा । २५ । ॐ ह्रीं अनन्तानुबन्धिमानमुक्ताय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ही अनन्तानुवन्धिमायाविमुक्ताय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ह्रीं अनन्तानुवन्धिलोभमुक्ताय नमः म्याहा । २८ । ॐ हीं अप्रत्याख्यानावरणक्रोधरहिताय नमः स्वाहा । २० । ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणमानमुक्ताय नमः स्वाहा । ३० । ॐ हीं अप्रत्यात्यानावरणमायामुक्ताय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणलोभरहिताय नमः स्वाहा ।३२॥ ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावरणकोवमुक्ताय नमः स्वाहा । ३३1 ॐ है। प्रत्याख्यानमानमुक्ताय नमः स्वाहा । ३१ ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानमायामुक्ताय नमः स्वाहा । ३५। ॐ ही प्रत्याख्यानलोभलघकाय नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्री संचलनक्रोवरहिताय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ही सम्पलनमानरहिताय नमः स्वाहा । ३८ । ॐ हीं संचलनमायामुक्ताय नम स्वाहा । ३९ । ॐ ही संज्वलनलोभरहिताय नमः स्वाहा । ४०। ॐ ही हाम्यहिंसकाय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ह्री रतिरहिताय नम. स्वाहा । १२ । ॐ ह्री अरतिद्वेपकाय नमः
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सिद्ध शक ही मंडल विधाम) -
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स्वाहा । ४३ । ॐ ह्रीं शोकशंकानिवारकाय नमः स्वाहा । ४४ । ॐ ही भयकर्मभंजकाय नमः स्वाहा ।।५।
ॐ ह्री जुगुप्सारोगचिकित्सकाय नम. स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं सीवेदकर्मरहिताय नमः स्वाहा । ४७ । ॐ हीं - पुवेदमारकाय नमः स्वाहा । ४८ । ॐ ह्रीं नपुंसकवेदविनाशकाय नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं आयुप्यकर्म-" मुक्ताय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ही नरकायुष्कर्मरहिताय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ही तिर्यगायुण्यकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ही मनुष्यायुष्कर्मकृतान्तकाय नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ही देवायुष्कर्मरहिताय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ही नामकर्मरहिताय नमः स्वाहा । ५५। ॐ ही नारकगतिनिवारकाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ही तिर्यग्गतिछेदकाय नमः स्वाहा । ५७। ॐ ही मनुष्यगतिनामकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा ।५८) ॐ ह्री देवगतिनामकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ह्रीं एकेन्द्रियजातिजयप्राप्ताय नमः स्वाहा । ६०। ॐ ह्रीं द्वौन्द्रियजातिनाममंथकाय नम. स्वाहा । ६१ । ॐ ह्री त्रीन्द्रियजातिनामकर्मनाशकाय नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रियजातिविध्वसकाय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ह्रीं पचेन्द्रियजातिरहिताय नमः स्वाहा। ६४। ॐ ही औदारिककर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । ६५। ॐ ह्रीं वैक्रियिककर्मविध्वंसकाय नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ह्रीं आहारकशरीररहिताय नम. स्वाहा । ६७ । ॐ ह्रीं तैजसकर्मविध्वंसकाय नमः स्वाहा । ६८। ॐ ह्रीं कार्मणपिंडछेदकाय नमः स्वाहा । ६९। ॐ ही औदारिकबंधनरहिताय नमः स्वाहा । ७० । ॐ ही वैक्रियिकवधनरहिताय नमः स्वाहा । ७१। ॐ ह्रीं आहारकबंधनरहिताय नमः स्वाहा ।७२। ॐ हीं तैजसबंधनरहिताय नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ही कार्मणबंधनमुक्ताय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ हीं औदारिकसंघातरहिताय नमः स्वाहा । ७५ । ॐ ही क्रियिकसंघातरहिताय नमः स्वाहा । ७६। ॐ ह्रीं
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आहारकसंघातरहिताय नमः स्वाहा । ७७। ॐ ही तैजससघातरहिताय नमः स्वाहा ।७८॥ ॐ हीं कार्मणसघातरहिताय नमः स्वाहा । ७९। ॐ ह्रीं समचतुरस्रसंस्थानरहिताय नमः स्वाहा । ८० । ॐ ह्रीं न्यग्रोधपरिमंडलसस्थान विनाशकाय नमः म्वाहा । ८१। ॐ ह्रीं वल्मीकसंस्थानकृतान्तकाय नमः स्वाहा । ८२ । ॐ हीं. कुजकसंस्थानरहिताय नमः म्वाहा । ८३ | ॐ ही वामनसंस्थाननामकर्ममुक्ताय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ हीं हुडकसंस्थानांतकाय नमः स्वाहा । ८५। ॐ ह्रीं औदारिकशरीरांगोपागमुक्ताय नम. स्वाहा । ८६। ॐ हीं बौक्रियिकागोपागघातकाय नम. स्वाहा । ८७ । ॐ हीं अाहारफागोपागविनाशकाय नमः स्वाहा । ८८ । ॐ ह्रीं वज्रवृपभनाराचसहननशातकाय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ही बननाराचसंहननरहिताय नमः स्वाहा । ९० । ॐ ह्रीं नाराचसहननस्फोटकाय नमः स्वाहा । ९१ । ॐ हीं अर्द्धनाराचसंहननशातकाय नम. स्वाहा । । ९२ । ॐ ह्रीं कीलकसहननमुक्ताय नम. स्वाहा । ९३ । ॐ हीं असंप्राप्तस्फाटिकसंहननभेदकाय नमः स्वाहा । ९४ | ॐ ह्रीं श्वेतनामकर्मकृतातकाय नमः स्वाहा ।९५। ॐ ह्रीं पीतनामकर्मकृतातकाय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं हरितकर्महिताय नमः म्वाहा । ९७| ॐ हौ रक्तनामकर्मरहिताय नमः स्वाहा । ९८ । ॐ हीं कृष्णकर्मविभेदकाय नमः स्वाहा । ९९| ॐ ह्रीं सुगंधनामकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १००। ॐ ह्रीं दुर्गन्धनामदूरीकारकाय नमः स्वाहा । १०१। ॐ ही तिक्तरसरहितोय नमः स्वाहा । १०२। ॐ हीं कटुरसरहिताय नमः स्वाहा । १०३ । ॐ ही कपायरसकर्मखण्डकाय नमः स्वाहा । १०४ । ॐ हीं अम्ल रसरहिताय नमः स्वाहां। १०५। ॐ हीं मधुररसविनाशकाय नमः स्वाहा । १०६ । ॐ ह्रीं मृदुत्वमुक्ताय नमः स्वाहा । १०७ । ॐ हीं कर्कशस्पर्शहिंसकाय नमः स्वाहा । १०८। ॐ ह्रौं गुरुस्पर्शशातकाय नमः
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स्वाहा । १०९। ॐ ह्रीं लघुस्पर्शत्यक्ताय नमः स्वाहा । ११०। ॐ ह्रीं शीतस्पर्शछेदकाय नमः स्वाहा । १११। ॐ ह्रीं उपणस्पर्शभ्रसकाय नमः स्वाहा ।११२। ॐ ह्रीं स्निग्ध स्पर्शध्वंसकाय नमः स्वाहा । ११३ । ॐ ह्रीं रूक्षस्पर्शरोवकाय नमः स्वाहा । ११४ । ॐ ह्रीं सर्वस्पर्शरहिताय' नमः स्वाहा । ११५ । ॐ ह्रीं नरकगत्यानुपूर्विविनाशकाय नमः स्वाहा । ११६ । ॐ ह्रीं तिर्यग्गत्यानुपूर्विप्रतारकाय नमः स्वाहा । ११७ । ॐ ही मनुष्यगत्यानुपूर्विविध्वंसकाय नमः स्वाहा। ११८ । ॐ ह्रीं देवगत्यानुपूर्विछेदकाय नमः स्वाहा । ११९ । ॐ ह्रीं अगुरुलघुत्वलंघकाय नम स्वाहा । १२० । ॐ ह्रीं उपघातघातकाय नमः स्वाहा । १२१ । ॐ ह्री परघातनामकर्मविकर्मकाय नमः स्वाहा । १२२ । ॐ ह्रीं आतपघातकाय नमः स्वाहा । १२३ । ॐ ह्रीं उद्योतकर्मदाहकाय नमः स्वाहा । १२४ । ॐ ह्रीं श्वासनिःवासविमुक्ताय नमः स्वाहा । १२५ । ॐ ह्रीं प्रशस्तविहायोगतिप्रमुक्ताय नम. स्वाहा । १२६ । ॐ हीं अप्रशस्तविहायोगतिनिर्णाशकाय नम. स्वाहा । १२७ । ॐ ह्रीं त्रसकर्मविनाशकाय नमः स्वाहा । १२८ । ॐ ह्रीं स्थावरकर्मविशारकाय नमः स्वाहा । १२९ । ॐ ह्रीं वाढरनामप्रवासकाय नमः स्वाहा । १३० । ॐ हीं सूक्ष्मकर्मशोषकाय नमः स्वाहा । १३१ । ॐ ह्रीं पर्याप्तिकर्मरहिताय नमः स्वाहा । १३२ । ॐ ह्रीं अपर्याप्तिकर्मनिषेधकाय नमः स्वाहा । १३३ । ॐ ह्रीं प्रत्येकशरीरहिंसकाय नमः स्वाहा । १३४ । ॐ हीं साधारणशरीरनिर्णाशकाय नमः स्वाहा । १३५। ॐ ही स्थिरनामकर्मछेदकाय नमः स्वाहा । १३६ । ॐ हीं अस्थिरनामकर्मनिम्रन्थकाय नमः स्वाहा । १३७ । ॐ ह्रीं शुभकर्मपाशकाय नमः स्वाहा । १३८ । ॐ ह्रीं अशुभकर्मनिरसकाय नमः स्वाहा ।१३९। ॐ ह्रीं शुभगकर्मनिवारकाय नमः स्वाहा । १४०। ॐ हीं अशुभग
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कर्मनिरतकाय नमः स्वाहा । १४१ । ॐ ह्रीं सुस्वरपरिवर्जकाय नमः स्वाहा । १४२ । ॐ ही दुःस्वरनिवारकाय नमः स्वाहा । १४३ | ॐ ह्रीं प्रदेयप्रकृतिविनाशकाय नमः स्वाहा । १४४ । ॐ ह्रीं श्रनादेयकर्मसारकाय नमः स्वाहा । १४५ । ॐ ह्रीं निर्माणनामकर्मकृतातकाय नमः स्वाहा । १४६ । ॐ ह्रीं यशःकीर्तिच्छेदकाय नमः स्वाहा । १४७ । ॐ ह्रीं यशः कीर्तिछेदकाय नमः स्वाहा । १४८ । ॐ ह्रीं पंचकल्याणचतुस्त्रिंशदतिशयाष्टप्रातिहार्यसमवसरणादिविभूतियुक्ताहित्यलक्ष्मीहेतु तीर्थकरनामकर्मोज्झास काय स्वाहाः । १४९ । ॐ ह्रीं उच्चगोत्रकर्मपिंजकाय नमः स्वाहा । १५० । ॐ ह्रीं नीचगोत्रकर्मविनाशकाय नमः . स्वाहा । १५१ । ॐ ह्रीं दानान्तरायदाहकाय नमः स्वाहा । १५२ ॐ ह्रीं लाभान्तरायकर्मोन्मन्यकाय नमः स्वाहा । १५३ | ॐ ह्रीं भोगान्तरायरहिताय नमः स्वाहा । १५४ । ॐ ह्रीं उपभोगान्तरायविनाशकाय नमः स्वाहा | १५५ । ॐ ही वीर्यान्तरायवारकाय नमः स्वाहा । १५६ । ॐ ह्रीं कर्माष्टकमुक्ताय नमः स्वाहा । १५७ । ॐ ह्रीं कर्मशताष्टचत्वारिंशनिवारकाय नमः स्वाहा । १५८ । ॐ ह्रीं सख्यातकर्मनिवारकाय नमः स्वाहा । १५९ । ॐ ह्रीं सख्यात कर्मविदारकाय नमः स्वाहा । १६० । ॐ ह्री अनन्तानन्तकर्मनिवारकाय नमः स्वाहा । १६१ । ॐ ह्रीं सख्यात लोककर्म विश्वसकाय नमः स्वाहा । १६२ । ॐ ह्रीं यानन्दस्वभावाय नमः स्वाहा | १६३ | ॐ ह्री आनन्दवर्माय नमः स्वाहा । १६४ | ॐ ह्रीं आनन्दस्वरूपाय नमः स्वाहा । १६५ । ॐ ह्रीं परमानन्दधर्माय नमः स्वाहा । १६६ । ॐ ह्रीं अनन्तगुणाय नमः स्वाहा । १६७ । ॐ ह्रीं अनन्तगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । १६८ । ॐ ह्री अनन्तवर्माय नमः स्वाहा । १६२ | ॐ ह्रीं शमस्वभावाय नमः स्वाहा । १७० | ॐ ह्री शमसन्तुष्टाय नमः स्वाहा । १७१ । ॐ ह्रीं शमसतोपाय नमः स्वाहा । १७२ ।
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ॐ ह्रीं साम्यस्थानाय नमः स्वाहा । १७३ | ॐ ह्रीं साम्यगुणाय नम. स्वाहा । १७४ । ॐ ह्रीं साम्यकृतकृत्याय नम. स्वाहा । १७५ । ॐ हीं अनन्यशरणाय नमः स्वाहा । १७६ । ३० ही अनन्यगुणाय नमः स्वाहा । १७७ । ॐ ह्रीं अनन्यप्रमाणाय नमः स्वाहा । १७८ । ॐ ही प्रमाणमुक्ताय नमः स्वाहा । १७९ । ॐ ह्री ब्रह्मस्वरूपाय नमः स्वाहा । १८० । ॐ ह्रीं ब्रह्मगुणाय नमः स्वाहा । १८१ । ॐ हीं ब्रह्मचैतन्याय नमः स्वाहा । १८२ । ॐ ही शुद्धपरिणामकाय नमः स्वाहा । १८३ । ॐ ह्रीं शुद्धस्वभाबाय नमः स्वाहा । १८४ । ॐ ह्रीं अनन्तदृशे नमः स्वाहा । १८५ । ॐ ह्रीं अशुद्धिरहिताय नमः स्वाहा । १८६ । ॐ ह्रीं शुद्धयशुद्धिरहिताय नमः स्वाहा । १८७। ॐ ह्रीं अनन्तक्त्वरूपाय नमः स्वाहा । १८८। ॐ ह्री अनन्तद्गानन्दाय नमः स्वाहा । १८९ | ॐ ह्री अनन्तगुत्पादाय नमः स्वाहा । १९० । ॐ ह्रीं अनन्तधुवाय नम: स्वाहा । १९१ । ॐ हीं अनन्तव्ययभावाय नम. स्याहा । १९२ । ॐ ह्री अनन्तविलयाय नम. स्वाहा । १९३ । ॐ हीं अनन्ताकाराय नमः स्वाहा। १९४ । ॐ ह्रीं अनन्तभावाय नमः स्वाहा । १९५। ॐ हीं चिन्मयस्वरूपाय नमः स्वाहा । १९६ । ॐ ह्रीं चिद्रूपधर्माय नमः स्वाहा । १९७ । ॐ ही चिद्रूपस्वरूपाय नम. स्वाहा । १९८ । ॐ ही स्वात्मोपलब्बिरसाय नमः स्वाहा । १९९ । ॐ ह्री स्वानुभूतिरताय नमः स्वाहा । २००। ॐ ही परमामृताय नमः स्वाहा । २०१। ॐ हीं परमामृततुष्टाय नमः 'स्वाहा । २०२। ॐ ह्रीं परमप्रीतये नमः स्वाहा । २०३ । ॐ ह्रीं परमवल्लभभावाय नमः स्वाहा ।२०४।
ॐ ह्रीं व्यक्तस्वभावाय नमः स्वाहा । २०५। ॐ ह्रीं एकत्वभावाय नम स्वाहा । २०६ । ॐ ह्रीं एकत्वस्वरू__पाय नमः स्वाहा । २०७। ॐ ही द्वित्वविनाशकाय नमः स्वाहा । २०८ । ॐ ह्रीं शास्वतप्रकाशाय नमः
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ह्रीं मंडल विधान) =
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स्वाहा । २०९ । ॐ ही शास्वतद्योताय नमः स्वाहा ।२१०।ॐ ही शास्वताप्टचन्द्राय नमः स्वाहा।२११॥ ही शास्वतामृतमूर्तये नमः स्वाहा । २१२ । ॐ ही परमसूक्ष्माय नमः स्वाहा । २१३ । ॐ ह्रीं सूक्ष्मावकाशाय नमः स्वाहा । २१४ । ॐ ह्रीं मूक्ष्मगुणाय नमः स्वाहा । २१५। ॐ हीं परमसूक्ष्मावकाशाय नमः स्वाहा । २१६ । ॐ ह्री निरवधिसुखाय नमः स्वाहा । २१७॥ ॐ ह्रीं निरवधिगुणाय नमः स्वाहा । २१८ । ॐ ह्री निरवधिस्वरूपाय नमः स्वाहा । २५९ । ॐ ही अतुलज्ञानाय नमः स्वाहा । २२० । ॐ ह्रीं अतुलसुखाय नम: स्वाहा । २२१ । ॐ ही अतुलभावाय नमः स्वाहा । २२२ । ॐ ही अतुलगुणाय नमः स्वाहा । २२३ । ॐ ह्री अतुलप्रकाशाय नमः स्वाहा । २२४ । ॐ ह्री अचलाय नमः स्वाहा । २२५। ॐ ह्री अचलगुणाय नमः स्वाहा । २२६ । ॐ ही अचलस्वभावाय नमः स्वाहा । २२७ । ॐ ह्रीं स्वरूपाय नमः स्वाहा । २२८ । ॐ ही निरालंबाय नमः स्वाहा । २२९ । ॐ ह्री आलम्बरहिताय नमः स्वाहा । २३०। ॐ ह्री निर्लेपाय नमः स्वाहा । २३१ । ॐ ही निष्फलंकाय नमः स्वाहा । २३२ । ॐ ही नित्यालो काय नमः स्वाहा । २३३ । ॐ ह्रीं आत्मरतये नमः स्वाहा । २३४ । ह्रीं म्वरूपगुप्ताय नमः स्वाहा । २३५ । ॐ ह्रीं शुदद्रव्याय नमः स्वाहा ।२३६। ॐ ह्री असंसाराय नमः स्वाहा ।२३७। ॐ ह्री सानन्दानन्दिताय नमः स्वाहा । २३८ । ॐ ह्रीं स्वानन्दभावाय नमः स्वाहा । २३९ । ॐ ह्रीं स्वानन्दस्वरूपाय नमः स्वाहा । २४०। ही स्वानन्दगुणाय नमः म्वाहा । २४१ । ॐ ह्री स्वानन्दसतोपाय नमः स्वाहा । २४२ । ॐ ह्रीं शुद्भावपर्यायाय नमः स्वाहा । २४३ । ॐ ह्री स्वातन्त्र्यधर्माय नम स्वाहा । २४४। ॐ ही आत्मस्वभावाय नमः स्वाहा । २४५। ॐ ह्रीं परमचित्परिणताय नमः स्वाहा । २४६।
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- सिद्ध चक्रर्ती मंडल विधान)
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ॐ ह्रीं चिपगुणाय नमः स्वाहा । २४७ | ॐ ह्रीं परमग्नातकाय नमः स्वाहा । २५८ | ॐहीं मानकवर्माय नम. स्वाहा । २४९ । ॐ ह्रीं सर्वावलोकनाय नम. स्वाहा । २५० । ॐही लोकाग्रस्थिताय नमः - स्वाहा । २५१ । ॐ ही लोकव्यापकाय नम. स्वाहा । २५२ । ॐ ह्री अनादिनिवनाय नम. स्वाहा । २५३ । ॐ हीं अनादिस्वरूपाय नमः स्वाहा । २५४ । ॐ हीं अनाद्यनुपमसिद्धाय नम. स्वाहा । २५५। ॐ ही अनादिगुणपग्पूिर्णाय नमः स्वाहा । २५६ ।
परिमलबहीवेश्चन्दनैः कुंकुमीयैः,
विविधसुरभिद्रव्यश्चारु कर्पूरपुष्टैः। अलिकुलमिलितस्तैर्घाणयुक्तैरमीभिः,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥ २॥ चन्दनम् शशिकरनिकराभै सितैरक्षतौथैः,
कलितविमलशोभैः शुभ्रडिंडीरपिंडैः। हसितहरिसितैस्तैः पुंजितैरक्षतोयैः,
तमहमपि यजे शं निर्मल सिद्धचक्रम् ॥ ३ ॥ अक्षतान् कमलबकुलमालामालतीमल्लिकाभिः,
परिमलबहलाभिओमरीसंभ्रमाभिः।
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কক্সহস্ত ডিজি)
सुरतरुवरपुप्पैस्तैरनकैरमीभिः,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥ ४॥ पुष्पाणि ॥ मृदुललितसुसिद्धैः सालिसंभूतपूतैः
हिमकरधवलैस्तैस्तन्दलव्यंजनाव्यैः। घृतमधुरमुपकैश्चारुपकानशोभैः,
- तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ।। ५ ।। नैवेद्यम् । कनकमणिमुरत्नैनिर्मितैदीप्तदोष,
रुडुगणधृतकांतित्रासितांहस्तमौवैः। विकसितवरवोधैः प्रातिहारार्तिकेन,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥ ६॥ दीपम् । अगुरुतगरशुष्कः शुद्धकर्पूरपूरैः,
मिलितसुरभिद्रव्यैश्चन्दनायैरनेकैः। दहनदहितधूपैर्निरानन्दभूतः,
'तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥ ७॥ धूपम् ।
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- (सिद्ध शक ह्रीं मंडल विधान -
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ऋमुकफलकपित्थैः श्रीफलाग्रैश्च मोचैः।
पनसबदरचोचैर्दाडिमैः पुंजपुरैः। सरससुरभिगंधैर्भूतयेत्मानितैस्तैः,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥८॥ फलम् । वरजलफलपुष्पैश्चन्दनैरक्षतौघैः,
विरचितकृतभक्त्या शुक्लपुष्पांजलीश्च । मनवचनतन्त्थाकर्मनिर्मूलनेच्छुः,
तमहमपि यजे शं निर्मलं सिद्धचक्रम् ॥ ९॥ अर्घम् ॥ ॐ ह्रीं असिया उसा नमः, इतिमंत्रेणाष्टोत्तरं शतं जाप्य देयम् ।
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(सिद्ध न्याया। हाँ संडल विधान
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अथ जयमाला
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माधान
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• हेतुद्वैतवलादुदीर्णसुदृशः सर्वसहाः सर्वश,
स्त्यक्त्वा संगमजससुश्रुतपराः संयम्य साक्षं मनः। व्यात्वा स्वं शमिनः स्वयं स्वममलं निर्मल्य कर्मारिवलम,
ये शर्मप्रगुणैश्चकाशति शुभैस्ते भान्तु सिद्धा मयि ॥१॥ पुष्पांजलिः। सिद्धानुद्भुतकर्मप्रकृतिसमुदयान् साधितात्मस्वभावान्,
वन्द सिद्धिप्रसिद्धयै तदनुपमगुणपग्रहाकृप्टितष्टः। सिद्धिः स्वात्मोपलब्धिः प्रगुणगुणगणो (णा)च्छादिदोपापहारात,
___ योग्योपादानयुक्त्या दृपद इह यथा हेमभावोपलब्धिः ॥१॥ नाभावः सिद्धिरिष्टा न निजगुणहतिस्तत्तपोभिर्न युक्तः,
अस्त्यात्मानादिवद्धः स्वकृनजफलभुक तत्क्षयान्मोक्षभागी। ज्ञाता दृष्टा खदेहप्रमितिल्पसमाहारविस्तारधर्मा.
धौव्योत्पत्तिव्ययात्मा स्वगुणयुत इतोनान्यथा साध्यसिद्धिः॥२॥
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सिद्धू चह्रीँ मंडल विधान
सत्त्वन्तर्वाद्यहेतुमभवविमलसद्दर्शनज्ञानचर्या, -
सम्पद्धेतिघातक्षतदुरिततया व्यंजिताचिन्त्य सारैः । कैवल्यज्ञानदृष्टिप्रवरसुरख महावीर्यसम्यक्त्वलन्धि,
ज्योतिर्वातायनादिस्थिरपरमगुणैरनैर्भासमानः ॥ ३॥ जानन् पश्यन् समस्तं सममनुपरतं सम्मतृप्यन् वितन्वन्,
धुन्वन् ध्वांतं नितान्तं निचितमनुसमं प्रीणयन्नीशभात्रम् । कुर्वन् सर्वप्रजानामपरमाभिभवन् ज्योतिरात्मानमात्मा,
आत्मन्येवात्मनासौ क्षणमुपजनयन् सत् (न्) स्वयम्भूः प्रवृत्तः ॥ ४ ॥ छिन्दन् शेषानशेपान्निगलवलकलींस्तैरनन्तस्वभावैः, सूक्ष्मत्वाग्राऽवगहागुरुलघुकगुणैः क्षायिकैः शोभमानः । अन्यैश्चान्यव्यपांडपवणविषय संप्राप्तिलब्धिप्रभावै, -
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रुध्वं व्रज्यास्त्रभावात्समयमुपगती धानि संतिष्ठते ॥ ५ ॥ अन्याका राप्तिहेतुर्न च भवति परां येन तेनाल्पहीनः । प्रागात्मोपात्तदेहप्रतिकृतिरुचिराकार एव धमूर्तः । क्षुत्तृष्णाश्वासकासज्वरमरणजराऽनिष्टयोगप्रमोह,
व्यापत्याद्युग्रदुःखप्रभवभवहतः कोऽस्य सौख्यस्य माता ॥ ६ ॥
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लिखु का ही
विधान
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PREPAIRAM
आत्मोपादानसिद्धं स्वयमतिशयबीतवाचं विशालम्,
वृद्धिहासव्यपेतं विपयविरहितं निम्मतिद्वन्द्वभावम् । अन्यद्रव्यानपेक्षं निरुपमममितं शास्वतं सर्वकालम् ,
उत्कृष्टानन्तसारं परमसुखमतस्तस्य सिद्धस्य जातम् ।। ७ ।। नार्थः क्षुत्तविनाशाद्विविधरसयुतैरन्नपानैरशुच्या,
नास्पृष्टगंधमाल्यैर्नहिमृदुशयनैग्लानिनिद्रायभावात् । आतंकार्तेरभावे तदुपशमनसद्भपजानर्थतावत् ,
दीपानार्थक्यवद्वा व्यपगततिमिरे दृश्यमाने समस्ते ॥ ८॥ . ताहकसम्पत्समेता विविधनयतपःसंयमज्ञानदृष्टि,
चर्यासिद्धाःसमन्तात्मविततयशसो विश्वदेवाधिदेवा । भूता भव्या भवन्तः सकलजगति ये स्तूयामाना विशिष्टैः।
तान्सर्वान्नौम्यनन्तानिजिगमिपुररं तत्स्वरूपं त्रिसन्ध्यम् ॥९॥ ॐ ह्रीं नि तचिरतरसंसारकारणाज्ञानोदतफेवलज्ञानातिशयसम्पन्नासद्धाधिपतये
नमः स्वाहा, पूर्णार्धम् ।
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= (सिन्दू चाचा हीं मंडल विधान -
छट्ठी जयमालाका हिन्दी पद्यानुवाद
( रचयिता-बा. जुगलकिशोरजी मुखतार)
ENTEकाम
( १) जिन वीरोन कर्म पृकृतियों, का सब मूलाच्छेद किया, पूर्ण तपश्चर्याक बलपर, स्वात्मभावको साध लिया। उन सिद्धोको सिद्धि अर्थ मैं, वन्दं अतिसन्तुष्ट हुआ, उनके अनुपम गुणाकर्षसे, भक्तिभावको प्राप्त हुआ।
(२) स्वात्मभावकी लब्धि सिद्धि है, होती वह उन दोपोकं, उच्छेदन से आच्छादक जो, ज्ञानादिक गुणवृन्दी के । योग्य साधनोंकी सुयुक्तिसे, अग्निमयोगादिक द्वारा, हेम शिलासे जगम जैसे, हेम किया जाना न्यारा ॥
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(सिद्ध चालक
हीं मंडल विधान -
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माधार
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नहिं अभावमय सिद्धि इष्ट है, नहिं निजगुणविनाशवाली, सत् का कभी नाश नहिं होता, रहता गुणी न गुण खाली । जिनकी ऐसी सिद्धि न उनका, तप विधान कुछ बनता है, आत्मनाश निजगुणविनाशका, कौन यत्न बुध करता है।
(४) अस्तु: अनादिवद्ध आत्मा है, स्वकृत-कर्म-फलका भोगी, कर्मवन्ध-फलभोग-नाशसे, होता मुक्ति-रमा-योगी। ज्ञाता, द्रष्टा, निजतनु-परिमित, संकोचेतर-धर्मा है, स्वगुण-युक्त रहता है, हरदम धौव्योत्पत्ति-व्ययात्मा है ।
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इस सिद्धान्त-मान्यताके विन साध्य-सिद्धि नहिं घटती हैस्वात्मरूप की लब्धि न होती, नहिं व्रत-चर्या बनती है। बन्ध-मोक्ष-फलकी कथनी सब कथनमात्र रह जाती है, अन्त न आता भव-भ्रमण का, सत्य-शान्ति नहिं मिलती है।
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सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
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(६) जब वह आत्मा मोहादिक के उपशमादिको पाकर के, बाहरमें गुरु-उपदेशादिक श्रेष्ठ निमित्त मिलाकरके। विमल-सुदर्शन-ज्ञान-चरणमय अपनी ज्योति जगाता है, उस मुशक्ति के प्रबल-घात से घाति-चतुष्क नशाता है।
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(७) तव वह भासमान होता स्थिर-अद्भुत-परम-सुगुण-गणसेप्रकटित हुआ अचिन्त्य सार है जिनका दुरित-विनाशनसे।केवलज्ञान-सुदर्शनसे, अति-वीर्य-प्रवर सुख-समकित से, शेषलब्धिस, भामण्डल से, चामरादि की सम्पत् से ॥
(८) सबको सदा जानता-लखता युगपत्, व्याप्त-सुतृप्त हुआ, घन-अज्ञान-मोह-तम धुनता-सवका सब, निःरवेद हुआ। करता तृप्त सुवचनामृतसे-सभाजनों को औ करताईश्वरता सब प्रजाजनोंकी, अन्य-ज्योति फीकी करता ॥
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= (सिद्ध झाक ही माल विधान
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आत्माको, आत्म-स्वरूपसे, आत्मामें प्रतिक्षण ध्याताहुआ सातिशय वह आत्मा यों, सत्य-स्वयम्भू-पद पाता। वीतराग-अईत्-परमेष्ठी-आप्त-सार्व-जिन कहलाता, परंज्योति-सर्वज्ञ-कृती-प्रभु-जीवन्मुक्त नाम पाता।
(१०) शेप निगड-सम अन्य प्रकृतियाँ फिर छेदता हुआ सारी, आयु-वेदनी-नाम-गोत्र हैं मूल प्रकृतियाँ जो भारी। उन अनन्तग्-बोध-वीर्य-मुख-सहित शेष क्षायिक गुणसअव्यावाध-अगुरुलघुसे औ मूक्ष्मपना-अवगाहनसे-॥
(११) शोभमान होता, तैसे ही अन्य गुणोंके समुदयसेप्रभवित हुए उत्तरोत्तर जो-कर्मप्रकृतिक संक्षयसे । क्षणमें ऊर्ध्वगमन-स्वभावसे, शुद्ध-कर्ममलहीन हुआ, जा वसता है अग्रधाममें, निरुपद्रव-स्वाधीन हुआ।
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सिद्ध का
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(१२) मूलीच्छेद हुआ कोका, बन्ध-उदय-सत्ता न रही, अन्याकार-ग्रहण का कारण रहा न तव, इससे कुछ हीन्यून, चरम-तनु-पतिमाके सम रुचिराकृति ही रह जाता और अमूर्तिक वह सिद्धात्मा, निर्विकार-पद को पाता।
(१३) क्षुधा-तृपा-श्वासादिकामज्वर, जरा मरण के दुःखों का, इष्ट वियोग-प्रमोह आपदा,-दिकके भारी कष्टोंका, जन्महेतु जो, उस भवके क्षय, से उत्पन्न सिद्ध सुखका, कर सकता परिमाण कौन है ? लेश नहीं जिसमें दुःखका ।
(१४) सिद्ध हुआ निज उपादानसे, खुद अतिशयको प्राप्त हुआ, वाधारहित, विशाल, इन्द्रियों-के विषयोंसे रिक्त हुआ। बढ़ता और न घटता जो है, प्रतिपक्षीसे रहित सदा, उपमारहित अन्य द्रव्योंकी, नहीं अपेक्षा जिसे कदा॥
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सिद्ध चक्र
मंडल विधान
(१५)
सुख उत्कृष्ट अमित शाश्वत वह, सर्वकाल में व्याप्त हुआ । निरवधि सार परममुख इससे, उस सुसिद्धको प्राप्त हुआ। जो परमेश्वरपरमात्मा औ, देहविमुक्त कहा जाता,
स्वात्मस्थित कृतकृत्य हुआ, निज, पूर्ण स्वार्थको अपनाता ॥
(१६)
कर्म नाशसे उस सिद्धके, क्षुधा तृषाका लेश नहीं, नाना रसयुत अन्नपानका, अतः प्रयोजन शेष नहीं । नहीं प्रयोजन गन्धमाल्यका, अशुचि योग जब नहीं कहीं, नहीं काम मृदु शय्याका जब, निद्रादिकका नाम नहीं ||
( १७ )
रोग विना तत्शमनी उत्तम, औषधि जैसे व्यर्थ कही, तम विन दृश्यमान होते सव, दीपशिखा ज्यों व्यर्थ कही । त्यों सांसारिक विषय सौख्यका, सिद्ध हुए कुछ काम नहीं, वाधित, विषम, पराश्रित, भंगुर, बंध हेतु जो अदुःख नहीं ॥
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--(सिद्ध धाक
हाँ मंडल विधान -
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(१८) यों अनन्त ज्ञानादि गुणोंकी, सम्पत्से जो युक्त सदा, विविध सुनय तप संयमसे हो, सिद्ध, न भजते विकृति कदा। सम्यग्दर्शनज्ञानचरणसे, तथा सिद्धपदको पाते, पूर्ण यशस्वी हुए, विश्व-देवाधिदेव जो कहलाते ।।
(१९) आवागमन विमुक्त हुए, जिनको करना कुछ शेप नहीं। आत्मलीन, सब दोष हीन, जिनके विमावका लेश नहीं। राग द्वेप भयमुक्त निरंजन, अजर अमरपदके स्वामी, मंगलभूत पूर्ण विकसित, सत चिदानन्द जो निष्कामी ॥
(२०) ऐसे हुए अनन्त सिद्ध औ, वर्तमान हैं संप्रति जो। आगे होंगे सकल जगतमें, विबुध जनोंसे संस्तुत जो। उन सबको नतमस्तक हो मैं, वन्दं तीनों काल सदा, तत्स्वरूपकी शीघ्र प्राप्तिका, इच्छुक होकर, सहित मुदा ॥
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माया
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(सिद्ध धाक ही मंडल विधान) -
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(२१), कारण, उनका जो स्वरूप है, वही रूप सब अपना है। उसही तरह सु विकसित होता, इसमें लेश न कहना है । उनके चिन्तन वन्दन से निज, रूप सामने आता है, भूली निज निधिका दर्शन यों, माप्ति प्रेम उपजाता है।
(२२) इससे सिद्ध भक्ति है सच्ची, जननी सब कल्याणों की, श्रेयो मार्ग सुलभ करती, वन हेतु कुशल परिणामों की, कही “सिद्धि सोपान" इसीसे, प्रौढ़ सुधीजन अपनाते, पूज्यपादकी सिद्धभक्ति लख, युग मुमुक्षु अति होते ॥
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अथ सप्तमपंक्तिस्थितद्वादशोतरपंचशत्तकमलोपरिपूजा ।
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ऊर्ध्वाधारयुतं सविन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावंटितम् ।
वर्गापूरिनदिग्गताम्बुजदलं तत्सेधितत्त्वान्वितम् ॥ अन्तःपत्रतंटेष्वनाहतयुतं हींकारसंवेष्टितम् । देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकठीरवः॥
-पुष्प दत्वा स्थापना कुर्यात् निरस्तकर्मसम्बन्धं मूक्ष्म नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १॥ सकलामरेन्द्रसव्यं, ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्धं कर्मानलदावमेघौघम् ।। २॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् "" " " अत्र तिष्ठ २ठः ठः "" " " अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट्
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तिष्ठ २०
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(शिक्षु आ
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जयत्ति जगति यस्य माभवं सम्यगात्मो,
दयविजितविपक्षं विश्वकल्याणवीजम् । सुरसरिदमलांभोधारयाराधनीयम् ,
गणधरवलयं तं सिद्धयेऽभ्यर्चयामि।। १॥ जलम् । ॐ हाँ ह्रीं हूँ हौं हः आसियाउसा नमः स्वाहा. इति समुच्चयमंत्रः। अथ पृथक् २ मंत्राणि
ॐ ही अहंदुभ्यो नमः स्वाहा । १। ॐ ह्रीं अर्हज्जाताय नमः स्वाहा । २। ॐ हीं अहंदूपाय नमः स्वाहा । ३ । ॐ ह्रीं अर्हद्गुणाय नम. स्वाहा । ४। ॐ ह्रीं अर्हद्दर्शनाय नम स्वाहा । ५। ॐ ह्री अर्हज्ञानाय नम स्वाहा ।६। ॐ ही अर्हत्सुखाय नम. स्वाहा । ७ । ॐ ह्रीं अर्हद्वीर्याय नमः स्वाहा ।८। ॐ ह्री अर्हद्दर्शनगुणाय नम, स्वाहा । ९। ॐ हीं अर्हज्ञानगुणाय नमः स्वाहा । १०। ॐ ह्रीं अर्हत्सुखगुणाय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं अर्हद्वीर्यगुणाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ही अर्हत्सभ्यक्तगुणाय नम. स्वाहा । १३ । ॐ ह्रीं अर्हत्स्वगुणाय नम. स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं अर्हवशागाय नमः स्वाहा । १५।
ही अर्हदामिनिबोधाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं अर्हच्छतबोधगुणाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ हीं अर्हदवबिगुणाय नमः स्वाहा।१८। ॐ हीं अर्हन्मनःपर्ययगुणाय नम. स्वाहा । १९/ॐ ही अर्हत्केवलगुणाय नमः
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- सिद्ध या
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स्वाहा ।२०।ॐ ह्री अर्हत्केवलस्वरूपाय नमः स्वाहा ।२१। ॐ हीं अर्हत्केबलदर्शनाय नमः स्वाहा।२२।ॐ ह्रीं अर्हत्केवलज्ञानाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ हीं अर्हत्केवलवीर्याय नम. स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं महन्मंगलाय नमः स्वाहा । २५। ॐ ही अर्हन्मगलदर्शनाय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ही अर्हन्मगलज्ञानाय नमः स्वाहा २७ ॐ हीं अर्हन्मगलवीर्याय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्री अर्हन्मगलद्वादशागाय नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्रीं अर्हन्मगलाभिनिबोधकाय नमः स्वाहा । ३०। ॐ ह्रीं अर्हन्मंगलश्रुताय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं अर्हन्मंगलावधिज्ञानाय नमः स्वाहा । ३२ । ॐ ही अर्हन्मगलमन.पर्ययज्ञानाय नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ह्रीं अर्हन्मगलकेवलज्ञानाय नम. स्वाहा । ३४ । ॐ ह्रीं अर्हन्मंगलकेवलस्वरूपाय नम स्वाहा । ३५। ॐ ही अर्हन्मगलकेवलदर्शनाय नम. स्वाहा । ३६ । ॐ ह्रीं अर्हन्मगलकेवलगुणाय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ह्रीं अर्हन्मगलकेवलधर्माय नमः स्वाहा । ३८ । ॐ ह्रीं अर्हन्मंगलकेवलधर्मस्वरूपाय नम. स्वाहा । ३९ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमाय नमः स्वाहा । ४० । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमचिद्रूपाय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमगुणाय नमः स्वाहा । ४२ । ॐ ह्रीं अईल्लोकोत्तमकेवलदर्शनाय नम. स्वाहा । ४३ । ॐ ह्रीं अहकेवललोकोत्तमज्ञानाय नमः स्वाहा । ४४ । ॐ ह्री अर्हत्कंबललोकोत्तमवीर्याय नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमद्वादशागाय नम. स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं अर्हल्लोकात्तमाभिनिवोदकाय नमः स्वाहा । ४७ । ॐ हीं अहल्लोकोत्तमावधिबोधाय नमः स्वाहा । ४८ । ॐ हीं अल्लोकोत्तममनःपर्ययज्ञानाय नमः स्वाहा । ४९। ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानाय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ही अहल्लोकोत्तमकेवलस्वरूपाय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमकेवलपर्यायाय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमकेवलद्रव्याय
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= (शिनु छाक ही मंडल कोशान) =
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नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमकेवलभावाय नमः न्याहा ।५४ । ॐ ही अईल्लोकोत्तमनौव्यभावाय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ हीं अहेल्लोकोत्तमोत्पादभावाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तम स्थिरभावाय नम: म्वाहा । ५७ । ॐ ह्रीं अहन्छरणाय नमः स्वाहा । ५८ । ॐ हीं बर्हद्रूपशरणाय नम म्वाहा । ५९ । ॐ ह्रीं अर्हद्गुणशरणाय नमः म्वाहा । ६० । ॐ ही अर्हज्ञानशरणाय नमः म्वाहा । ६१। ॐ ह्रीं अर्शनशरणाय नमः म्बाहा । ६२ । ॐ ह्रीं अहीर्यशरणाय नमः म्वाहा । ६३ । ही अर्हदभिनिबोधशरणाय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ही अहवादशागाय नम म्याहा । ३५॥ ॐ ही अहंदवधि शरणाय नमः स्वाहा । ६६ । ॐ हीं अईन्मन.पर्ययशरणाय नमः म्वाहा । ६७ ही महत्केवलशरणाय नम: म्वाहा । ६८1ॐ ह्रीं अहत्केवलारणरूपाय नम स्वाहा ।।९। ॐ हीं अईकेवलधर्मशरणाय नम स्वाहा ।७। ॐ ह्रीं अर्हत्केवलमगलशरणाय नम स्वाहा ।७१। ॐ ही अहन्मगलगुणशरणाय नम म्याहा |७२। ॐ ह्रीं अहन्मगलज्ञानगुणशरणाय नम म्वाहा । ७३ । ॐ हीं आईन्मंगलदृष्टिशरगाय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ही अर्हन्मंगलबोधारणाय नम. म्बाहा । ७५। ॐ ही अर्हन्मगलमन पर्ययशरणाय नम म्वाहा । ७६ । ॐ हूँ। अर्हन्मंगलकेवलशरणाय नम. म्वाहा । ७७ । ॐ ही अहन्मगलकेवलगुणगरणाय नम न्वाहा । ७८॥ ॐ ह्रीं अईल्लोकोत्तमशरणाय नम. स्वाहा । ७२ । ॐ है। अल्लोकोत्तमगुणगरणाय नमः स्वाहा । ८० । अहीं अह लोकोत्तमज्ञानशरणाय नम. स्वाहा । ८१ । ॐ ही पहल्लोकोत्तमदर्शनशरणाय नमः स्वाहा।८२॥ ॐ ही अहल्लोकोत्तमवीर्यशरणाय नम ग्वाहा । ८३ | ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमयीगंगुणशरणाय नमः स्वाहा ।८४॥ ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तनद्वादशागशरणाय नम स्वाहा । ८५। ॐ ही अहलोकोत्तमाभिनिवोचशरणाय नमः
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(सिद्ध
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हीं मंडल विधान)
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स्वाहा । ८६ । ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमावधिशरणाय नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तममनःपर्ययशरणाय नमः स्वाहा । ८८ । ॐ ह्रीं अहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानशरणाय नम स्वाहा । ८० । ॐ ह्रीं अर्हद्विभूतिप्रधानाय नमः स्वाहा ।२०। ॐ ही अर्हद्विभूतिवर्मस्वरूपाय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं अर्हढनन्तचतुष्टयाय नम. स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं छर्हदनन्तचतुष्टयस्वरूपगुणाय नमः स्वाहा ।०३। ॐ ह्रीं अर्हत्रिज्ञानस्वयंभुवे नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं अर्हदशातिशयस्त्रयभुवे नम. स्वाहा । ९५ । ॐ हीं अर्हद्दशातिशयघातिक्षयाय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ही अर्हच्चतुर्दशदेवकृतातिशयाय नमः म्वाहा । ९७ । ॐ ह्रीं अर्हद्ज्ञानानंतव्यानाय नम. स्वाहा । ९८ । ॐ ह्रीं अर्हत्तपोऽनतगुणाय नमः स्वाहा । ९९ । ॐ ह्रीं अर्हद्ध्यानानंतध्येयाय नम स्वाहा । १००। ॐ ह्री अर्हदनन्तज्ञानगुणात्मने नम स्वाहा । १०१ । ॐ ह्रीं अर्हत्परमात्मने नमः स्वाहा । १०२ । ॐ ह्रीं अर्हदनन्तगुणात्मने नमः स्वाहा । १०३ । ॐ ह्रीं अर्हत्स्वरूपगुप्तये नम. स्वाहा । १०४।
ॐ ह्री सिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १०५। ॐ ह्रीं सिद्धस्वरूपेभ्यो नम स्वाहा । १०६ । ॐ ह्री सिद्धगुणेभ्यो नमः स्वाहा । १०७ । ॐ ह्रीं सिद्धज्ञानेभ्यो नमः स्वाहा । १०८। ॐ ह्री सिद्धदर्शनेभ्यो नमः साहा । १०९ । ॐ ह्री सिद्धसम्यक्त्वेभ्यो नमः स्वाहा । ११० ।
ॐ ह्री सिद्धवीर्येभ्यो नम स्वाहा । १११ । ॐ ह्री सिद्धपादुकेभ्यो नमः स्वाहा । ११२ । ____ॐ ह्रीं सख्यातसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । ११३ । ॐ ह्रीं असख्यातसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । ११४ ।
ॐ ही अनंतसिद्धेभ्यो नम स्वाहा ११५ ॐ हीं असंख्यातलोकसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । ११६ । - ॐ ह्रीं अनन्तानतसिद्धेभ्यो नम स्वाहा । ११७॥ ॐ ही अनन्तलोकसिद्वेभ्यो नमः स्वाहा । ११८।
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ॐ ही अनन्तानन्तलोकसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । ११९ । ॐ ह्री निर्यग्लोकसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२० । ॐ ह्रीं सर्वमुखसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२१ । ॐ ही स्थलसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२२ । ॐ ह्री गगन-. सिद्धंभ्यो नमः स्वाहा । १२३ । ॐ ही समुद्घातसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२४ । ॐ ह्रीं असमुद्धातसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२५ । ॐ ही साधारणसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२६ । ॐ ह्रीं असाधारणसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२७ । ॐ ह्रीं निराभरणसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२८ । ॐ ह्री तीर्थकरसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १२९ । ॐ ह्रीं तीर्थेतरसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३० । ॐ ह्रीं उत्कृष्टावगाहसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा ।१३१॥ ॐ ह्रीं मध्यमावगाहसिद्धेभ्यो नम स्वाहा ।१३२॥ ॐ ह्रीं जघन्यावगाहसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा ।१३३॥ ॐ ह्रीं उपसर्गसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३४ । ॐ ही पड्विधकालसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३५ । ॐ ही निरुपसर्गसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३६ । ॐ ही द्वीपसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३७ । ॐ ह्रीं उदधिसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३८ । ॐ ह्री स्वस्थित्यासनसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १३९ । ॐ ह्री पर्यकासनसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४०। ॐ ह्री पुवेदसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४१ । ॐ ह्र। क्षपकश्रेण्यारूढसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४२ । ॐ ह्रीं एकसमयसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४३ । ॐ ह्री द्विसमयसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४४ । ॐ ह्रीं त्रिनमयसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १५५ । ॐ ह्रीं त्रिकालसिद्धेम्यो नमः स्वाहा । १४६ । ॐ ह्रीं त्रिलोकसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा । १४७ । ॐ ह्री सिद्धमगलेभ्यो नमः स्वाहा । १४८ । ॐ ह्रीं सिद्धमंगलरूपेभ्यो नमः स्वाहा । १४० । ॐ ह्रीं सिद्धमगलज्ञानेभ्यो नमः स्वाहा । १५० । ॐ ह्री सिद्धमंगलदर्शनेभ्यो नम. स्वाहा । १५१ । ॐ ह्री सिद्धमंगलबीर्येभ्यो
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-(सिद्ध कहाँ / मंडल विधान) -
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नमः स्वाहा । १५२ । ॐ ह्रीं सिद्धमंगलसम्यक्त्वेभ्यो नम: स्वाहा । १५३ । ॐ ही सिद्धमगलमूक्ष्मत्वेभ्यो । नम. स्वाहा । १५४ । ॐ हीं सिद्धमगलाबगाहनेभ्यो नमः स्वाहा । १५५ । ॐ ह्रीं सिद्धमंगलागुरुलघुभ्यो - नमः स्वाहा । १५६ । ॐ ह्रीं सिद्धमंगलाव्यावाधेभ्यो नमः स्याहा । १५७ । ॐ ही सिद्धाष्टगुणेभ्यो नमः । स्वाहा । १५८ । ॐ ह्रीं सिद्धाष्टस्वरूपेभ्यो नमः स्वाहा । १५९ । ॐ ह्रीं सिद्धाष्टप्रकाशकेभ्यो नम. स्वाहा। १६० । ॐ ह्रीं मगलसिद्धधर्मेभ्यो नम. स्वाहा । १३१ । ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमेभ्यो नमः स्वाहा । १६२। । ॐ हीं सिद्बलोकोतमचिद्रूपाय नमः स्वाहा । १६३। ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमगुणाय नमः, स्वाहा । / १६४ । ॐ ही सिद्धलोकोत्तमज्ञानाय नमः स्वाहा । १६५। ॐ ही सिद्धलोकोत्तमदर्शनाय नमः स्वाहा । । १६६ । ॐ ह्रीं सिद्लोकोत्तमवीर्याय नम. स्वाहा । १६७ । ॐ ह्रीं सिद्धारणाय नम: स्वाहा । १६८। ॐ ह्रीं सिद्धस्वरूपशरणाय नमः स्वाहा । १६९। ॐ हीं सिद्धदर्शनशरणाय नम स्वाहा । १७० । ॐ ह्रीं सिद्धज्ञानशरणाय नमः स्वाहा । १७१। ॐ ह्रीं सिद्धसम्यक्त्वशरणाय नम. स्वाहा । १७२ । ॐ ह्रीं सिद्ववीर्यशरणाय नमः स्वाहा । १७३। ॐ ह्रीं सिद्धानन्तशरणाय नम. स्वाहा । १७४ । ॐहीं सिद्धानन्तानन्तगुणशरणाय नम. स्वाहा । १७५। ॐ ह्रीं सिद्धत्रिकालशरणाय नमः स्वाहा । १७६ | ॐ ह्रीं सिद्धत्रिलोकशरणाय नमः स्वाहा । १७७ । ॐ ह्रीं सिद्धसंख्यातलोकारणाय नम. स्वाहा । १७८ । ॐ ह्री सिद्धध्रौव्यगुणशरणाय नमः स्वाहा । १७२। ॐ हीं सिद्धोत्पादगुणशरणाय नमः स्वाहा । १८० । ॐ ह्रीं सिद्धसाम्यगुणशरणाय नम स्वाहा । १८१ । ॐ हीं सिद्धस्वच्छगुणशरणाय नम स्वाहा । १८२ । ॐ ह्री सिद्धसमाविगुणशरणाय नम स्वाहा । १८३ । ॐ ह्री सिद्धव्यक्तगुणशरणाय नम. स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं
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- सिख ही मेडल विधान)
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सिद्धान्यक्तगुणशरणाय नमः स्वाहा । १८५। ॐ ह्रीं सिद्धव्यक्ताव्यक्तगुणशरणाय नमः स्वाहा । १८६ । ॐ ही सिद्धगुणगणशरणाय नमः स्वाहा । १८७ । ॐ ह्रीं सिद्धपरमात्मरूपाय नमः स्वाहा । १८८ । ॐ ह्रीं सिद्धाखण्डरूपाय नमः स्वाहा । १८९ । ॐ ह्री सिद्धचिदानन्दरूपाय नम: स्वाहा । १९० । ॐ ही सिद्धसहजानन्दाय नमः स्वाहा । १९१ । ॐ ह्रीं सिद्धाच्छेद्यस्वरूपाय नमः स्वाहा । १९२ । ॐ ही सिद्धाभेद्यगुणाय नमः स्वाहा । १९३ । ॐ हीं सिद्धानौपम्यधर्माय नमः स्वाहा । १९४ । ॐही सिद्धामृततत्त्वाय नमः स्वाहा । १९५। ॐ ह्रीं सिद्धश्रुतप्राप्ताय नम. स्वाहा । १९६ । ॐ ह्रीं सिद्धकेवलप्राप्ताय नमः स्वाहा । ५९७ । ॐ ह्रीं सिद्धसाकारनिराकाराय नमः स्वाहा । १९८ । ॐ ह्री सिद्धनिरालबाय नम. स्वाहा १९९। ॐ हीं सिद्धनिष्कलंकाय नमः स्वाहा ।२००ॐ ह्री सिद्धात्मसपन्नाय नमः स्वाहा ।२०१॥ ॐ ह्रीं सिद्वतेजसे नमः स्वाहा । २०२। ॐ ह्रीं सिद्धागर्भवासाय नमः स्वाहा । २०३ । ॐ ह्रीं सिद्धलक्ष्मीसंतर्पकाय नमः स्वाहा ।२०४॥ ॐ ह्रीं सिद्धान्तरंगाय नमः स्वाहा ।२०५/ ॐ ही मिद्धस्वारसिकाय नमः स्वाहा ।२०६। ॐ ह्रीं सिद्धशिखरमडनाय नम. स्वाहा । २०७ । ॐ ह्रीं त्रिकालासिद्धानन्तानन्ताय नमः स्वाहा । २०८।
ॐ ह्रीं -सूरिभ्यो नम. स्वाहा । २०९ । ॐ ह्रीं मूरिगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१० । ॐ ह्रीं सूरिस्वरूपगुणेभ्यो नम स्वाहा । २११ । ॐ ही सूरिसम्यक्त्वगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१२ । ॐ ह्रीं सूरिज्ञानगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१३ । ॐ ह्रीं सूरिदर्शनगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१४ । ॐ हीं सूरिवार्यगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१५ । ॐ ह्रीं सरिपट्त्रिंशद्गुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१६। ॐ ह्री सूरिपचाचाररतेभ्यो नमः स्वाहा । २१७ | ॐ ह्रीं मूरिद्रव्यगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१८ ।
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- (सिद्ध
बाबी लडल सिमान) =
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ॐ हीं सूरिपर्यायगुणेभ्यो नमः स्वाहा । २१२ । ॐ ही सूरिमगलेभ्यो नमः स्वाहा । २२० । ॐ ह्रीं मूरिज्ञान, मगलेभ्यो नम. स्वाहा । २२१ । ॐ ही सूरिदर्शनमगलेभ्यो नमः स्वाहा । २२२ । ॐ ह्रीं मूरिमंगलवीर्येभ्यो नम. स्वाहा । २२३ । ॐ ह्री सूरिमगलबर्माय नमः स्वाहा । २२४ । ॐ ह्रीं सूरिलोकोत्तमेभ्यो नमः स्वाहा । २२५। ॐ ह्रीं सूरिलोकोत्तमज्ञानाय नम स्वाहा । २२६ । ॐ ह्रीं मूरिलोकोत्तमदर्शनाय नमः स्वाहा । २२७ । ॐ हीं सूरिलोकोत्तमवीर्याय नमः स्वाहा । २२८ । ॐ हीं सूरिकेवलधर्माय नमः स्वाहा । २२९॥ ॐ ह्रीं सूरितपेभ्यो नम: म्वाहा । २३०। ॐ ह्रीं सूरिपरमतपेभ्यो नमः स्वाहा । २३१ । ॐ ह्रीं मूरितपघोरगुणेभ्यो नम स्वाहा । २३२ । ॐ हीं सूरिधोरगुणपराक्रमेभ्यो नमः स्वाहा । २३३ । ॐ ह्रीं सूरिसमृद्धिभ्यो नमः स्वाहा । २३४ । ॐ हीं सूरियोगिभ्यो नमः स्वाहा । २३५ । ॐ ह्रीं मूरिध्यानेभ्यो नमः स्वाहा । २३६ । ॐ ह्रीं सूरिधातृभ्यो नम. स्वाहा । २३७ । ॐ ह्रीं मूरिपात्रेभ्यो नम' स्वाहा ।२३८॥ ॐ ही सूरिशरणाय नमः स्वाहा । २३९ । ॐ हीं सूरिगुणशरणाय नमः स्वाहा । २४०। ॐ हीं सूरिधर्मस्वरूपशरणाय नमः स्वाहा । २४१ । ॐ ह्रीं सूरिसुखस्वरूपशरणाय नम. स्वाहा । २४२ । ॐ ह्रीं मूरिज्ञानशरणाय नम. स्वाहा । २४३ । ॐ हीं सूरिदर्शनारणाय नमः स्वाहा । २४४ । ॐ ही मूरिवीर्यशरणाय नम स्वाहा । २४५। ॐ ह्रीं सूरिमगलशरणाय नम. स्वाहा । २४६ । ॐ ह्रीं मूरितपशरणाय नमः स्वाहा । २४७ | ॐ ह्रीं सूरिचारित्रशरणाय नमः स्वाहा । २४८। ॐ ह्रीं मूरिध्यानशरणाय नमः स्वाहा । २४९ । ॐ ही सूरिद्धिशरणाय नम. स्वाहा । २५० । ॐ ह्रीं सूरित्रिलोकशरणाय नमः स्वाहा ।२५१॥ ॐ ह्री सूरित्रिकालशरणाय नमः स्वाहा । २५२ । ॐ हीं मूरित्रिजगन्मगलशरणाय नमः स्वाहा । २५३ ।
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काही मंडल विधान) =
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ॐ हीं सूरित्रिलोकमंगलशरणाय नमः स्वाहा । २५४ । ॐ ही सूरित्रिलोकमंडनशरणाय नमः स्वाहा । २५५ । ॐ ही सूरिऋद्धिमंगलशरणाय नमः स्वाहा । २५६ । ॐ ही सूरिमत्रस्वरूपाय नमः स्वाहा । २५७ । ॐ ह्रीं सूरिधर्ममंत्रस्वरूपाय नमः स्वाहा । २५८ । ॐ ह्रीं सूरिचैतन्यगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । २५९ । ॐ ह्रीं सूरिचिदानन्दाय नमः स्वाहा । २६० । ॐ ही सूरिसहजानन्दाय नमः स्वाहा । २६१ । ॐ ह्रीं सूरिज्ञानानन्दाय नमः स्वाहा । २६२ । ॐ हीं मूरिगानन्दाय नमः स्वाहा । २६३ । ॐ ह्रीं सूरितपमानन्दाय नमः स्वाहा । २६४ । ॐ ही सूरिस्वरूपानन्दाय नमः स्वाहा । २६५। ॐ ही मूरितपगुणानन्दाय नमः स्वाहा । २६६ । ॐ ह्रीं सूरितपगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । २६७ । ॐ ही सूरिहंसानन्दाय नम. स्वाहा । २६८ । ॐ ही सूरिहंसगुणानन्दाय नमः स्वाहा। २६९ । ॐ हीं सूरिमंत्रगुणानन्दाय नमः स्वाहा । २७० । ॐ हीं सूरिसयानानन्दाय नमः स्वाहा । २७१ । ॐ हीं सूरिअमृतचन्द्राय नम. स्वाहा । २७२ । ॐ ही सूरिअमृतचन्द्रस्वरूपाय नमः स्वाहा । २७३ | ॐ ही सूरिअमृतगुणाय नमः स्वाहा । २७४ | ॐ ह्रीं सूरिअमृतघनदाय नमः स्वाहा । २७५। ॐ ह्रीं सूरिअमृतघनस्वरूपाय नमः स्वाहा । २७६ । ॐ ह्रीं सूरिद्रव्याय नमः स्वाहा । २७७ । ॐ ही सूरिगुणद्रव्याय नमः स्वाहा ।२७८ ॐ ही सूरिद्रव्यस्वरूपाय नम. स्वाहा।२७९। ॐ ह्रीं सूरिगुणपर्यायाय नमः स्वाहा । २८०। ॐ ह्रीं सूरिपर्यायस्वरूपाय नमः स्वाहा । २८१ । ॐ ही सूरिगुणपर्यायद्रव्याय नमः स्वाहा । २८२। ॐ ही सूरिगुणोत्पाढाय नमः स्वाहा । २८३। ॐ ह्रीं मूरिचौव्यगुणोत्पादाय नमः स्वाहा । २८४ । ॐ ह्रीं सूरिव्ययगुणोत्पादाय नमः स्वाहा । २८५। ॐ ह्रीं मूरिजीवतत्त्वाय नमः स्वाहा ।२८६। ॐ हा रिजीवतत्त्वगुणाय नमः स्वाहा। २८७।
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-(सिद्ध छाक ह्रीं मंडल विधान) -
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। ॐ ही
स्वाहा ।
स्वाहाॐ ह्रीं प्रतापाय नमः ॐ ही सूरित्रमा ३०६ । ॐ ह
ही सूरिमोक्षस्वरूपाय 41 ॐ ही सूरिमामः स्वाहा । ३००
निर्जराप्रताप
ॐ ह्रीं सूरिनिजस्वभावाय नमः स्वाहा ।२८८। ॐ हीं सूरिआश्रवविलयाय नमः स्वाहा ।२८९॥ ॐ ह्रीं सूरिखधविनाशाय नमः स्वाहा । २९० । ॐ ह्रीं सूरिसवरतत्वाय नमः स्वाहा । २९१ । ॐ ह्रीं सूरिसंवरतत्त्व- - स्वरूपाय नमः स्वाहा । २९२ । ॐ हीं सूरिसंवरगुणाय नमः स्वाहा । २९३ । ॐ ह्रीं सूरिसंवरधर्माय नमः स्वाहा । २९४ । ॐ ह्रीं सूरिनिर्जरातत्वाय नमः स्वाहा । २९५। ॐ ह्रीं सूरिनिर्जरागुणाय नमः स्वाहा । २९६ । ॐ ह्रीं सूरिनिर्जरागुणरूपाय नमः स्वाहा । २९७ । ॐ ह्रीं सूरिपरमनिर्जराधर्माय नमः स्वाहा । २९८ । ॐ हीं सूरिनिर्जरानुबंधाय नमः स्वाहा । २५९। ॐ ही सूरिनिर्जरास्वरूपाय नमः स्वाहा । ३००। ॐ ह्रीं सूरिनिर्जराप्रतापाय नमः स्वाहा । ३०१ । ॐ हीं सूरिमोक्षाय नमः स्वाहा । ३०२ । ॐ ह्रीं सूरिमोक्षस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३०३ । ॐ ही सूरिबंधमोक्षाय नमः स्वाहा । ३०४ । ॐ हीं सूरिमोक्षगुणाय नमः स्वाहा । ३०५। ॐ ही सूरिमोक्षानुबंधाय नमः स्वाहा । ३०६ । ॐ हीं सूरिमोक्षप्रकाशकाय नमः स्वाहा । ३०७ । ॐ ह्रीं सूरिमोक्षविमंडनाय नमः स्वाहा । ३०८ । ॐ ह्रीं सूरिपरमात्मस्वरूपरताय नमः स्वाहा । ३०९। ॐ ह्रीं सूरिमोक्षप्राप्ताय नमः स्वाहा । ३१०।
ॐ हीं पाठकेभ्यो नमः स्वाहा । ३११ । ॐ हीं पाठकगुणेभ्यो नमः स्वाहा । ३१२ । ॐ ही पाठकगुणस्वरूपेभ्यो नम स्वाहा । ३१३ । ॐ ह्रीं पाठकपर्यायाय नमः स्वाहा । ३१४ । ॐ ह्रीं पाठकगुणपर्यायाय नमः स्वाहा । ३१५। ॐ हीं पाठकगुणपर्यायस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३१६ । ॐ हीं पाठकद्रव्याय नमः स्वाहा । ३१७॥ॐ हीं पाठकगुणद्रव्याय नमः स्वाहा । ३१८ । ॐ हीं पाठकद्रव्यस्वरूपाय नम. स्वाहा । ३१९ । ॐ ह्रीं पाठकद्रव्यपर्यायाय नमः स्वाहा । ३२० ॐ हीं पाठकपर्यायस्वरूपाय नमः स्वाहा
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३२१।ॐ ही पाठकमगलाय नमः स्वाहा । ३२२। ॐ ह्रीं पाठकमंगलगुणाय नमः स्वाहा ।३२३॥ॐ ह्री पाठकमगलगुणस्वरूपाय नम. स्वाहा ।३२४॥ॐ ह्रीं पाठकद्रव्यमंगलाय नमः स्वाहा ।३२५/ॐ ह्रीं पाठकमंगलद्रव्यगुणाय नमः स्वाहा । ३२६ । ॐ हा पाठकमंगलद्रव्यगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३२७।ॐ ह्रीं पाठकमंगलपर्यायाय नमः स्वाहा।३२८। ॐ ह्री पाठकद्रव्यमंगलपर्यायाय नमः स्वाहा।३२९॥ ॐ ह्रीं पाठकद्रव्यगुणपर्यायाय नमः स्वाहा । ३३० । ॐ ह्री पाठकवरूपमंगलरूपाय नमः स्वाहा । ३३१ । ॐ ह्री पाठकलोकोत्तमाय नमः स्वाहा । ३३२ । ॐ ह्रीं पाठकगुणलोकोत्तमाय नमः स्वाहा । ३३३ । ॐ हीं पाठकद्रव्यलोकोत्तमाय नमः स्वाहा । ३३४ । ॐ ह्रीं पाठकज्ञानाय नमः स्वाहा । ३३५। ॐ ह्री पाठकज्ञानलोकोत्तमाय नम' स्वाहा । ३३६ । ॐ ह्री पाठकदर्शनाय नमः म्वाहा । ३३७ । ॐ ह्री पाठकदर्शनलोकोत्तमाय नम. स्वाहा । ३३८ । ॐ ह्री पाठकदर्शनस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३३९ । ॐ ह्री पाठकसम्यक्त्वस्वरूपाय नमः म्वाहा। ३४० । ॐ ह्रीं पाठकसम्यक्त्वगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३४१ । ॐ ह्री पाठकवीर्याय नमः स्वाहा । ३४२ । ॐ ही पाठकवीर्थगुणाय नमः स्वाहा । ३४३ । ॐ ह्रीं पाठकवीर्यपर्यायाय नमः स्वाहा । ३४४ । ॐ हीं पाठकवीर्यद्रव्याय नमः म्वाहा । ३४५। ॐ ही पाठकवीर्यगुणपर्यायाय नमः स्वाहा । ३४६ । ॐ ह्रीं पाठकदर्शनपर्यायाय नमः म्वाहा । ३४७ । ॐ ह्रीं पाठकदर्शनस्वरूपपर्यायाय नमः स्वाहा । ३४८ । ॐ है। पाठकज्ञानद्रव्याय नमः स्वाहा । ३४९ । ॐ ह्री पाठकशरणाय नमः स्वाहा 1 ३५०। ॐ ह्रीं पाठकगुणगरणाय नमः स्वाहा । ३५१ । ॐ हीं पाठकज्ञानगुणशरणाय नमः स्वाहा । ३५२ । ॐ हीं पाठकदर्शनशरणाय नम. स्वाहा । ३५३ । ॐ ह्रीं पाठकदर्शनस्वरूपारणाय नमः स्वाहा
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। ३५४ । ॐ हीं पाठकसम्यक्त्वशरणाय नमः स्वाहा । ३५५ । ॐ ह्रीं पाठकसम्यक्त्वस्वरूपशरणाय नमः म्वाहा । ३५६ । ॐ ह्रीं पाठकवीर्यशरणाय नमः स्वाहा । ३५७ । ॐ हीं पाठकवीर्यस्वरूपशरणाय नमः । स्वाहा । ३५८ । ॐ हीं पाठकवीर्यपरमात्मशरणाय नम. स्वाहा । ३५९ । ॐ ह्रीं पाठकद्वादशागाय नमः स्वाहा । ३६० । ॐ हीं पाठकदशपूर्वाय नमः स्वाहा । ३६१ । ॐ ह्री पाठकचतुर्दशपूर्वाय नम स्वाहा | ३६२ । ॐ हीं पाठकाचारागाय नमः स्वाहा । ३६३ । ॐ ह्रीं पाठकज्ञानाचारागाय नम. स्वाहा ।३६४।
ॐ ह्रीं पाठकतपाचाराय नमः स्वाहा । ३६५। ॐ ह्रीं पाठकरत्नत्रयाय नमः स्वाहा । ३६६ । ह्रीं पाठकरत्नत्रयस्वरूपाय नम. स्वाहा । ३६७ | ॐ ह्रीं पाठकध्रुवससाराय नम• स्वाहा। ३६८। ॐ हीं पाठकएकत्त्वरूपाय नम. स्वाहा । ३६९ | ॐ ह्रीं पाठकएकत्त्वगुणाय नमः स्वाहा । ३७० । ॐ ह्रीं पाठकएकत्त्वपरात्मने नमः स्वाहा । ३७१। ॐ ह्रीं पाठकधर्माय नमः स्वाहा । ३७२ । ॐ ह्रीं पाठकएकत्त्वचैतन्याय नमः स्वाहा ।३७३। ॐ ह्रीं पाठकएकत्त्वचैतन्यस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३७४। ॐ ह्रीं पाठकएकत्वद्रव्याय नमः स्वाहा 1३७५/ ॐ ही पाठकचिदानन्दाय नमः स्वाहा ।३७६। ॐ हीं पाठकसिद्धिसाधकाय नमः स्वाहा ।३७७/ॐ ही पाठकसमृद्धिसपूर्णाय नम. स्वाहा ३७८ । ॐ हीं पाठकनिग्रंथाय नमः स्वाहा । ३७९ | ॐ ह्री पाठकअर्थनिवानाय नमः स्वाहा । ३८० | ॐ हीं पाठकससारनिधनाय नमः स्वाहा । ३८१ । ॐ ह्री पाठककल्याणाय नम: स्वाहा । ३८२ | ॐ ही पाठककल्याणगुणाय नमः स्वाहा । ३८३ | ॐ ह्रीं पाठककल्याणस्वरूपाय नमः स्वाहा । ३८४ | ॐ ह। पाठककल्याणद्रव्याय नमः स्वाहा । ३८५। ॐ ह्रीं पाठकतत्त्वगुणाय नम. स्वाहा । ३८६ । ॐ ह्रीं पाठकतत्त्वचिद्रूपाय नम स्वाहा । ३८७। ॐ ह्री पाठकड़ि
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= (सिह धष्टक । ह्रीं मंडल्ल विधान -
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पूर्णाय नमः स्वाहा । ३८८ । ॐ हीं पाठकगुणचैतन्याय नमः स्वाहा । ३८९ । ॐ हीं पाठकज्योति:प्रकाशाय नमः स्वाहा । ३९० । ॐ हीं पाठकज्ञानचैतन्याय नमः स्वाहा । ३९१। ॐ हीं पाठकदर्शन
चैतन्याय नमः स्वाहा । ३९२ । ॐ ह्रीं पाठकवीर्यचैतन्याय नमः स्वाहा । ३९३ । ॐ ही पाटकजीवविदे नमः स्वाहा । ३९४ । ॐ ह्री पाठकसकलशरणाय नमः स्वाहा । ३९५। ॐ हीं पाठकत्रिलोकशरणाय नमः स्वाहा । ३९६ । ॐ ह्रीं पाठकत्रिकालशरणाय नमः स्वाहा । ३९७। ॐ ही पाठकमंगलशरणाय नमः स्वाहा । ३९८ । ॐ ही पाठकलोकशरणाय नमः स्वाहा । ३९९। ॐ हीं पाठकाश्रवविनाशाय नमः स्वाहा १००। ॐ हीं पाठकाश्रवोच्छेदकाय नमः स्वाहा। ४०१ | ॐ ह्रींपाठकबवकृतातकाय नमः स्वाहा । ४०२। ॐ ह्रीं पाठकबंधमुक्ताय नमः स्वाहा । ४०३ । ॐ ह्रीं पाठकसंवराय नमः स्वाहा । ४०४ । ॐ ही पाठकसंवररूपाय नमः स्वाहा । ४०५ | ॐ ह्रीं पाठकसबरकारणाय नमः स्वाहा । ४०६। ॐ ही पाठककन्दर्पच्छेदकाय नमः स्वाहा। ४०७ | ॐ ह्रीं पाठककर्मविस्फोटकाय नमः स्वाहा । ४०८। ॐही पाठकनिर्जरास्वरूपाय नमः स्वाहा । ४०९। ॐ ह्री पाठकमोक्षाय नमः स्वाहा । ४१०। ॐ ह्रीं पाठकमोक्षस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४११ । ॐ ही पाठकात्मने नमः स्वाहा । ४१२ ।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नम. स्वाहा । ४१३ । ॐ हीं साधुगुणेभ्यो नमः स्वाहा। ४१४ । ॐ ह्री साधुगुणस्वरूपेभ्यो नमः स्वाह।। ४१५ । ॐ ह्री साधुद्रव्याय नमः स्वाहा । ४१६ । ॐ हीं साधुद्रव्यगुणाय नमः स्वाहा । ४१७ । ॐ ह्रीं साधुमोक्षाय नमः स्वाहा । ४१८। ॐ ही साधदर्शनाय नमः स्वाहा । ४१९ । ॐ ह्रीं साधुज्ञानाय नमः स्वाहा । ४२० । ॐ ह्री साधुवीर्याय नमः स्वाहा
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- सिद्ध य
हीं मंडल विधान -
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। ४२१ । ॐ ही साबुज्ञानद्रव्याय नमः स्वाहा । १२२ । ॐ ह्रीं साधुद्रव्यस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४२३ । ॐ ही साधुद्रव्यपर्यायाय नमः स्वाहा । ४२४ । ॐ हीं साधुदर्शनपर्यायाय नमः स्वाहा । ४२५। ॐ ह्रो साधुमगलाय नमः स्वाहा । ४२६ । ॐ हीं साधुमगलस्वरूपाय नमः स्वाहा । १२७ । ॐ ह्रीं साधुमंगलशरणाय नमः स्वाहा । ४२८ । ॐ ह्रीं साधुदर्शनमगलाय नमः स्वाहा । ४२९ । ॐ हीं सावुज्ञानमंगलाय नम. स्वाहा । ४३० । ॐ ह्रीं साधुवीर्यमंगलाय नमः स्वाहा । ४३१ । ॐ ह्रीं साधुवीर्यद्रव्याय नमः स्वाहा । ४३२ । ॐ हीं साधुवीर्यद्रव्यस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४३३ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमाय नमः स्वाहा । १३४ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणाय नमः स्वाहा । ४३५। ॐ हीं साधुलोकोत्तमगुणस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४३६ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमद्रव्याय नमः स्वाहा । ४३७ । ॐ ह्रीं सावुलोकोत्तमज्ञानाय नमः स्वाहा । ४३८ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमज्ञानस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४३९ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमदर्शनाय नमः स्वाहा । ४४०। ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमवर्माय नमः स्वाहा । ४४१। ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमधर्मस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४४२ । ॐ ही साधुलोकोत्तमवीर्याय नमः स्वाहा । ४४३। ॐ ह्रीं सावुलोकोत्तमवीर्यस्वरूपाय नमः स्वाहा । ४५४ । ॐ ही साधुलोकोत्तमातिशयसम्पन्नाय नमः स्वाहा । ४४५। ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमब्रह्मज्ञानाय नमः स्वाहा । ४४६ । ॐ ही साधुलोकोत्तमब्रह्मज्ञान स्वरूपाय नमः स्वाहा । ४४७ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमजिनाय नम. स्वाहा । १४८ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तम जिनगुणसम्पन्नाय नम. स्वाहा । ४४९ । ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमपुरुषाय नमः स्वाहा । ४५०। ॐ ह्रीं माधुशरणाय नमः स्वाहा । ४५१ । ॐ हीं साधुअर्हत्स्वरूपाय नमः स्वाहा । ४५२ । ॐ ह्रीं साधुगुण
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हू चक्र
मंडल विधान
शरणाय नमः स्वाहा | शरणाय नमः स्वाहा | शरणाय नमः स्वाहा | ४५७ | ॐ ह्रीं साधुआत्मशरणाय नमः स्वाहा । ४५८ । ॐ ह्रीं साधुपरमात्मशरणाय नमः स्वाहा | ४५९ । ॐ ह्रीं साधुजिनात्मगरणाय नमः स्वाहा । ४६० । ॐ ह्रीं साधुवीर्यकारणाय नमः स्वाहा । ४६१ । ॐ ह्रीं साधुवीर्यात्मशरणाय नमः स्वाहा । ४६२ । ॐ ह्रीं सानुलक्ष्म्यलंकृताय नमः स्वाहा | ४६३ | ॐ ह्रीं साबुलक्ष्मीपरिणताय नमः स्वाहा । ४६४ | ॐ ही साबुलक्ष्मीरूपाय नमः स्वाहा । ४६५ | ॐ ह्रीं साधुध्रुवाय नमः स्वाहा । ४६६ । ॐ ह्रीं सानुगुणनुवाय नमः स्वाहा । ४६७ । ॐ ह्रीं साधुद्रव्यधुत्राय नमः स्वाहा । ४६८ । ॐ ह्रीं साद्रव्यगुणेोत्पादाय नमः स्वाहा | ४६९ । ॐ ह्रीं साधुद्रव्योत्पादाय नमः स्वाहा । ४७० । ॐ ह्री साबुजीवाय नमः स्वाहा । ४७१ । ॐ ह्रीं साधुजीवगुणाय नमः स्वाहा । ४७२ । ॐ ह्रीं साधुचैतन्याय नमः स्वाहा चैतन्यस्त्ररूपाय नमः स्वाहा । ४७४ । ॐ ह्रीं साधुचैतन्यगुणाय नमः स्वाहा । प्रकाशाय नमः स्वाहा | ४७६ । ॐ ह्रीं साधुज्योतीरूपाय नमः स्वाहा । ४७७ । ॐ ह्रीं साधुज्योति प्रदीपाय नमः स्वाहा | ४७८ । ॐ ह्रीं साधुज्ञानदीपाय नमः स्वाहा । ४७९ । ॐ ही साधुदर्शनप्रदीपाय नमः स्वाहा । ४८० | ॐ ह्रीं साधुसर्वशरणाय नमः स्वाहा । ४८१ । ॐ ह्रीं साधु लोकशरणाय नमः स्वाहा । ४८२ । ॐ ह्रीं साधुत्रिलोकशरणाय नमः स्वाहा । ४८३ | ॐ ह्रीं साबुससारच्छेदकाय नमः स्वाहा | ४८४ | ॐ ह्रीं साधुत्रिकालशरणाय नमः स्वाहा । ४८५ । ॐ ह्रीं साधुएकत्वगुणाय नमः स्वाहा । ४८६ । ॐ ही
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४७३ | ॐ हीं साधु
४७५ ॐ ही साधुपरमात्म
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४५३ । ॐ ह्रीं साधुःशनशरणाय नमः स्वाहा । ४५५ । ॐ ह्रीं साधुज्ञानशरणाय नमः स्वाहा ।
४५४ । ॐ ह्रीं सावुदर्शनस्वरूप४५६ । ॐ ह्रीं माधुज्ञानस्वरूप
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- सिद्ध
मंडल विधान)
साधुएकत्वद्रव्याय नमः स्वाहा । ४८७ । ॐ ह्रीं साधुएकत्वस्वभावाय नमः स्वाहा । ४८८। ॐ ह्रीं साधु- . स्याद्वादाय नमः स्वाहा ।।४८९ । ॐ ही साधुशब्दब्रह्मणे नमः स्वाहा । ४९०। ॐ हीं साधुपरब्रह्मणे नमः स्वाहा । ४९१ । ॐ ही साधुपरमागमाय नमः स्वाहा । ४९२ । ॐ ह्रीं साधुजिनागमाय नमः स्वाहा । ४९३ । ॐ ह्रीं साधुअनेकार्थाय नमः स्वाहा । ४९४ । ॐ ह्रीं साधुपरमशुचित्वगुणाय नमः स्वाहा । ।४९५/ ॐ ह्रीं साधुपरमपवित्राय नमः स्वाहा । ४९६ । ॐ ह्रीं साधु बंधविविक्ताय नम: स्वाहा । ४९७ । ॐ हीं साधुबंधप्रतिबंधकाय नमः स्वाहा । ४९८ । ॐ ह्रीं साधुसवरकाय नम. स्वाहा । ४९९। ॐ ह्रीं साधुनिर्जरद्रव्याय नमः स्वाहा । ५००। ॐ ह्रीं साधुनिर्जरगुणाय नमः स्वाहा । ५०१ । ॐ ह्रीं साधुबोधगुणधर्माय नम. स्वाहा । ५०२ । ॐ ह्रीं साधुसुगतभावाय नमः स्वाहा । ५०३ । ॐ ह्रीं साधुपरमगतभावाय नम. स्वाहा । ५०४ । ॐ ह्रीं साधुविभावरहिताय नमः स्वाहा । ५०५। ॐ ह्रीं साधुस्वभावसहिताय नमः स्वाहा । ५०६ । ॐ ह्रीं साधुसिद्धस्वरूपाय नमः स्वाहा । ५०७ । ॐ ह्रीं साधुसूरिप्रकाशाय नम स्वाहा ।५०८। ॐ ह्रीं साधूपाध्यायपरमोष्ठने नमः स्वाहा । ५०९ ह्रीं साधुमात्मरतये नमः स्वाहा ।५१०॥ ॐ ह्रीं अर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसावुभ्यो नमः स्वाहा । ५११। ॐ ह्रीं अर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुरत्नत्रयात्मकानन्तगुणभ्यो नमः स्वाहा । ५१२ ।
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सिद्धलक
उदयति परमात्मज्योतिरुद्योति यस्माद्विशदविनययुक्त्या ध्वस्तमोहान्धकारम् ।
शुचितरघनसारोल्लासिभिश्चन्दनौघै, -
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ २ ॥ चन्दनम् ।
अहमहमिकयोधैः सम्यगाराधनायाम्,
सुरनरखचरेन्द्राः यस्य भक्त्या यतन्ते ।
ललितसदकपुंजैः केवलज्ञानहेतो, -
मंडल विधान
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ३ ॥ अक्षतान् ।
भवभयगुरुपारावारपारं लभन्ते,
विहितशिवसमृद्धेः सेवया यस्य संतः ।
कमलबकुलकुंदोदारमंदारपूरैः,
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि || ४ || पुष्पाणि |
जननवन हुताशं छिन्नसन्मोहपाशम्,
शमितमदनमानं विश्वविद्यानिदानम् ।
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(सिद्ध छ
ही मंडल विधान) =
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चरुभिरुरुगुणोघं प्रीणितप्राणिसंघम्, .
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ५ ॥ नैवेद्यम् । चिदचिदखिलजीवाजीवभेदादिवेद्यम्,
सकलभुवननेत्रम् ज्ञानमाविष्करोति । स्मरणमपि यदीयं दीप्रदीपप्रभौघैः,
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ।। ६॥ धृपम् । भवति न भवभाजां ध्यानतो यस्य पीडा,
ग्रहदितिसुतरक्षा प्रेतभूतप्रसूता । अगुरुतुहिनभास्वच्चन्दनोद्भूतधूपैः,
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ७॥ दीपम । फलमतुलमनन्तं मुक्तिसौख्यप्रतीपम,
फलति विपुलसंवा सम्यगाविष्कृतोच्चैः। असदृशमहिमश्रीमन्दिरं मातुलिंगैः,
गणधरवलयं तत्सिद्धयेऽभ्यर्चयामि ॥ ८॥ फलम् ।
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शिद्ध आह्रीँ मंडल विधान
अभिनवजलगंधा मंदमन्दारमाला, - ललितममलम संददाम्यादरेण ।
गणधर वलयाय श्रीयुजे पद्मनन्दी,
सुरहरिमहिताय प्राप्तये मुक्तिलक्ष्याः || ९ || अर्धम् ।
ॐ ह्रीं साउसा नमः, एतन्मत्रेणाष्टोतरं शतम् जाप्यं देयम्
अथ जयमाला |
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देवाधीशैर्महीशैः फणपतिभिरिह प्रत्यहं पूज्यपादा, - नईत्सिद्धानदेहखिविधमुनिवरान् सूर्युपाध्यायसाधून् । दोपांतैस्तैर्गरिष्ठान् निजसुगुणवरैर्भूषणैर्भूषितांश्च,
नचा वाधवृतादिभिरपि सहितान् संस्तुवे तद्गुणाप्त्यै ॥ १ ॥
सदनंतचतुष्टयगुणविलास, हतघातिचतुष्टयकर्मपाश । सकलातिशयादिगुणसमृद्ध, त्वं हेऽर्हन् जिन जय जय समृद्ध ॥ २ ॥
१००
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(वित अन् । हीं मंडल विधान =
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जय कृतकर्माष्टकवैरिदर, जय विश्वालोकनपरमसूर । जय सर्वोत्तम वसुगुणसमृद्ध, त्वं सिद्धदेव जय जय समृद्ध ॥३॥ जय पंचाचारमुचरणधीर जय शिष्यानुग्रहकरणवीर । स्थितिकल्पदशाऽऽदिशगुणसमृद्ध, त्वं सूरे जिन जयरसमृद्ध ॥४॥ एकादशांगकृतकंठहार, जय लब्धचतुर्दशपूर्वपार । सर्व श्रुतजलनिधिगुणसमृद्ध, त्वं पाठक जयरसुतपबृद्ध ॥ ५॥ आरंभपरिग्रहनिखिलमुक्त, सद्दर्शनबोधचरित्ररक्त । जय मूलोत्तरगुणनिधिसमृद्ध, साधो जयरसततं प्रबुद्ध ॥६॥ सम्यग्दर्शनसंविच्चरित्र-, तपसाश्चित रत्नत्रयपवित्र । व्यवहारपरमगुणभेदपूर्ण, त्वं जय मुनिवर कृतकर्मचूर्ण ॥ ७॥ पंचतान् परमेष्ठिनः सुतपसा रत्नत्रयेणान्वितान् ,
संसाराम्बुधितारकान् भविजना ध्यायन्ति ये नित्यशः। ते देवेन्द्रपदं नरेन्द्रपदवी संप्राप्य, भदैर्गुणैःसाध, जन्मजरादिदुःखरहितं पश्चाल्लभंते शिवम् ॥८॥
" पूर्णार्धम् ।
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S
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= (सिद्ध था। हीं
डल विधान -
सप्तम जयमालाका अर्थ
MIRMIRE
Dection
देवेन्द्रो, नरेद्रो और भवनवासियोके अधिपतियों-असुरेद्रोंके द्वारा जिनके चरण प्रतिदिन पूजे जाते है, ऐसे अर्हन् परमेष्ठी तथा अशरीर सिद्धपरमात्मा और आचार्य उपाध्याय साधु इस तरह तीन प्रकारके मुनिवरोको जो कि दोपोंके विनाशसे महान् , अपने २ समीचीन गुणरूपी भूषणोसे भूपित, और दर्शनज्ञान चारित्र आदिसे युक्त हैं, नमस्कार करके मै उनके गुणोकी प्राप्तिके लिये उनका स्तवन करता हूं ॥१॥
अनन्त चतुष्टयरूप गुण जिनमे विलास कर रहे है, चार घातिया कोका जाल जिन्होने तोड़ दिया है, समस्त अतिशय आदि सद्गुणोसे समृद्ध है ऐसे हे अर्हन् जिन भगवन् आप सदा जयवन्त रहें ॥२॥
आठ कर्मरूपी शत्रुओको जिन्होने दूर कर दिया है, विश्व मात्रको देखनेमे जो उत्कृष्ट सूर्यके समान है, जो सबसे उत्तम आठ गुणोसे पूर्ण है ऐसे हे सिद्धदेव आप जयवन्त रहे ॥३॥
पंचाचारका पालन करनेमे घोर, शिष्योका अनुग्रह करनेमें वीर, और स्थितिकल्प नामक दश गुणोका उपदेश करनेवाले गुणोसे समृद्ध हे आचार्य परमेष्ठिन् आप सदा जयवन्त रहे ॥४॥
ग्यारह अगोको जिन्होने अपने कण्ठका हार बना लिया है, और जिन्होने चतुर्दश पूर्वोका पार प्राप्त कर लिया है, तथा समस्त श्रुतसमुद्ररूपीगुणसे समृद्ध है ऐसे हे उपाध्याय परमेष्ठिन् आप सदा जयवन्त रहें ॥ ५॥
7
MONO
AWAN
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--(सिद्ध जनक
ही मंडल विधान) -
आरम्भ और परिग्रहसे सर्वथा रहित, सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमे अनुरक्त, मूलगुण और उत्तरगुण रूप निधिसे समृद्ध निरंतर प्रवुद्ध रहनेवाले हे साधु परमेष्ठिन् आप सदा जयवन्त रहें ॥ ६॥
सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र और तपरूप आराधनाओसे युक्त और रत्नत्रयसे पवित्र, व्यवहाररूप परम गुणोके भेदोसे पूर्ण कर्माको चूर्ण करनेवाले हे मुनिवर आप सदा जयवन्त रहे ॥ ७ ॥
समीचीन तप और रत्नत्रयसे युक्त, संसारसमुद्रसे तारनेवाले इन पंचपरमेष्ठियोंका जो प्राणी नित्य ध्यान करते है वे देवेन्द्र और नरेन्द्रपदको प्राप्त कर भद्र-समीचीन गुणोके साथ जन्मजरादिके दुःखोसे रहित शिवपदको अंतमे प्राप्त किया करते है ॥८॥
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= (सिल कि । हीं मंडल विधान) =
-
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१०४
अथ चतुर्विंशत्यधिकसहस्रकमलोपर्यष्टमी पूजा ।
SENTERe
ETALIVE INVR
ENABALI
।
अर्ध्वाधारयुतं साबिन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम् ,
वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्संधितत्त्वान्वितम् । अंतःपत्रतटेष्वनाहतयुतं हींकारसंवेष्टिम् , देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकंठीरवः ॥१॥
(पुष्पं दत्वा स्थापनां कुर्यात् ) निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्म नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥१॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिद्धं कर्मानलदावमेघौघम् ॥२॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् " " " " " अत्र तिष्ठ २ ठः ठः """ " " अत्र मम सन्निहितो भव २ वपट
1/472
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- ( विडू श
हाँ मोडल विधान -..
अथाष्टकम् ।
सकलजनकलंक क्षालयद्भिः सुनीर,
त्रिदिवसरितिजातैजैनवाक्योपमानैः। शिवसदननिविष्टं नाद्यनंतं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनवारं पूजये सिद्धचक्रम् ॥१॥ ॐ ह्रीं सिद्धाविपतिभ्यो नमः स्वाहा, जलम् ।
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।
अथ प्रत्येकमंत्राणि ।
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ॐ ह्रीं जिनाय नमः स्वाहा । १ । ॐ ह्रीं जिनेन्द्राय नमः स्वाहा ।२। ॐ ह्रीं जिनाधिपाय नमः स्वाहा । ३ । ॐ ह्रीं जिनराजे नमः स्वाहा।४। ॐ ह्रीं जिनप्रष्ठाय नम. स्वाहा । ५। ॐ ह्रीं जिनोत्तमाय नमः स्वाहा । ६ । ॐ ह्रीं जिनाधीशाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं जिनस्वामिने नमः स्वाहा ।८। ॐ ह्रीं जिनेश्वराय नमः स्वाहा ।९। ॐ ह्रीं जिननाथाय नमः स्वाहा । १०। ॐ ह्रीं जिनपतये नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं जिनराजाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ही जिनाधिराजे नमः स्वाहा ॥ १३ ॥ ॐ ही जिनप्रभवे नमः स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं जिनविभवे नमः स्वाहा ।१५। ॐ ह्रीं जिनभर्त्रे नमः स्वाहा ।१६।
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(मिरा आ
ही मंडल विधान) =
११०६
ॐ ह्रीं जिनाधिभुवे नमः स्वाहा । १७ । ॐ हीं जिननेत्रे नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं जिनेशानाय नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं जिनेनाय नमः स्वाहा ।२०। ॐ ह्रीं जिननायकाय नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्रीं जिनेश नमः स्वाहा । २२ । ॐ ही जिनपरिवेढाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ह्रीं जिनदेवाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं जिनेशित्रे नमः स्वाहा । २५ । ॐ ह्री जिनाधिराजाय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं जिनपार्य नमः स्वाहा । २७ । ॐ ह्रीं जिनेशिने नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्रीं जिनशासित्रे नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्रीं जिनाधिनाथाय नमः स्वाहा । ३० । ॐ हीं जिनाधिपतये नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं जिनपालकाय नमः स्वाहा । ३२ । ॐ ह्रीं जिनचन्द्राय नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ह्रीं जिनादित्याय नमः स्वाहा । ३४ । ॐ ह्रीं जिनार्काय नमः स्वाहा । ३५। ॐ ह्रीं जिनकुंजराय नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्रीं जिनेन्दवे नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ह्री जिनधौरेयाय नमः स्वाहा । ३८ । ॐ ह्री जिनधुर्याय नमः स्वाहा । ३९ । ॐ ही जिनोत्तराय नमः स्वाहा । ४० । ॐ ही जिनवर्याय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ही जिनवराय नमः स्वाहा । ४२ । ॐ ही जिनसिंहाय नमः स्वाहा । ४३ । ॐ ह्रीं जिनोद्वहाय नमः स्वाहा । ४४ ॐ ह्री जिनर्पभाय नमः स्वाहा । ४५ । ॐ ही जिनबृपाय नमः स्वाहा । ४६ । ऊँ ही जिनरत्नाय नमः स्वाहा 1 ४७ॐ ह्रीं जिनोरसे नमः स्वाहा । ४८। ॐ ह्री जिनेशाय नमः स्वाहा । ४९। ॐ ह्री जिनशाईलाय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ह्रीं जिनाग्याय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ही जिनपुंगवाय नमः स्वाहा
ALANATION
SANG
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१-इनः स्वामी, २–ईप्टे इति ईट् तस्मै । ३-परिवृढ.-प्रभुः। ४-जिनान् पातीति जिनपः । ५जिना' उद्बहाः-पुत्रा यस्य सः अथवा जिनान् उद्वहति-ऊर्ध्व नयतीति जिनोद्वहः तस्मै । ६-उर.-प्रधानः ।
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-सिद्ध हीं मंडल विधान -
। ५२।ॐ ही जिनहसाय नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्री जिनोत्तंसाय नमः स्वाहा । ५४ ॐ ही जिननागाय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ हीं जिनापण्यै नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्रीं जिनप्रवेकाय नमः स्वाहा । ५७ । ॐ ह्रीं जिनग्रामण्यै नमः स्वाहा । ५८ । ॐ ह्री जिनसत्तमाय नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ह्रीं जिनप्रवर्हाय नमः स्वाहा । ६० । ॐ ह्रीं परमजिर्नाय नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ह्रीं जिनपुगेगमाय नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ही जिनश्रेष्ठाय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ह्रीं जिनज्येष्ठाय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ह्रीं जिनमुख्याय नमः स्वाहा । ५५। ॐ ही जिनानिमाय नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ह्रीं श्रीजिनाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ही उतमजिनाय नम स्वाहा । ६८ । ॐ ही जिनवृन्दारकाय नमः स्वाहा । ६९ । ॐ हीं अरिजिते नम. स्वाहा । ७० । ॐ ह्रीं निर्विघ्नाय नमः स्वाहा । ७१। ॐ ह्रीं विरजसे नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ह्रीं शुद्धाय नम. स्वाहा । ७३ । ॐ ह्रीं निस्तरस्काय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्रीं निरजनाय नमः स्वाहा । ७५ । ॐ ह्रीं घातिकर्मान्तकाय नमः स्वाहा । ७६ । ॐ ह्रीं कर्ममर्माविधे नमः स्वाहा । ७७॥ ॐ ह्रीं कर्मन्ने नमः स्वाहा । ७८ । ॐ ह्रीं अनधाय नम स्वाहा । ७९ ॐ ह्रीं वीतरागाय नमः स्वाहा । ८० । ॐ ह्रीं अक्षुधे नमः स्वाहा । ८१ । ॐ हीं अद्वेषाय नमः स्वाहा । ८२ | ॐ हीं निर्मोहाय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ही निर्मदाय नमः स्वाहा । ८४ ॐ ही अगदाय नमः स्वाहा । ८५। ॐ ही वितष्णाय नमः स्वाहा । ८६।
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१-हसो भास्करः। २-उत्तसो-मुकुटः। ३-प्रवेक.-प्रधानः । ४-परया-उत्कृष्टया, मया-लक्ष्म्या, उपलक्षितः परमः सचासौ जिनश्च तस्मै । ५-कर्मणा मर्म-जीवस्थानम् आ समन्तात् विग्यति इति स, तस्मै ।
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- सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
९१ । ॐ ही निश्रमाया
स्वाहा । ९३ । ॐ ही नि
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ॐ ह्रीं निर्ममायै नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ही असंगाय नमः स्वाहा । ८८ । ॐ हीं निर्भयाय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ही बीतविस्मयौय नमः स्वाहा । ९० । ॐ ह्रीं अस्वप्नाय नमः स्वाहा । ९१। ॐ-हीं निश्रमायें नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं अजन्मने नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं निःस्वेदार्य नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ही निर्जराय नमः स्वाहा । ९५। ॐ ह्रीं अमराय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं अरत्यतीताय नमः स्वाहा। ९७|ॐही निश्चिताय नमः स्वाहा । ९८॥ ॐ ह्रीं निर्विषादाय नमः स्वाहा । ९९। ॐ ह्रीं त्रिपष्ठि. जिते नमः स्वाहा । १००।
ॐ ह्रीं सर्वज्ञाय नमः स्वाहा । १०१ । ॐ ह्रीं सर्वविदे नमः स्वाहा । १०२ । ॐ ह्रीं सर्वदर्शिने नमः स्वाहा । १०३ । ॐ ह्रीं सर्वावलोकनाय नमः स्वाहा । १०४ । ॐ हीं अनन्तविक्रमाय नमः स्वाहा । १०५ । ॐ ह्रीं अनन्तवीर्याय नमः स्वाहा । १०६ । ॐ ह्रीं अनन्तसुखात्मकाय नमः स्वाहा ।
ही निर्जराय नमः स्वाहा । ९५ |
ANTEASE
१-निर्गत मम यस्य स, अथवा निः-निश्चितं मा-प्रमाणं यस्य स एवंभूतः सन् यः पदार्यान् मातिमिनोतीति निर्ममः । २-निर्मत भयं यस्य, वा भव्याना यस्मात् स, यद्वा निश्चिता भा दीप्तिर्यस्य तन्निर्भ-केवलाख्य ज्योतिः तत् याति-प्राप्नोति इति निर्भयः। ३-वीतो विनष्टोऽद्भुतरसो मदो वा यस्य, अथवा वीतो वेर्गरुडस्य स्मयो-गर्वोयस्मात्, . गरुडादग्यधिकतर विपहरणसामर्थ्यवत्वाद्भगवतः। ४-अविद्यमानः स्वतः निद्रा प्रमादो वा यस्य, अथवा असून् प्राणिनोऽपो जीवन नयतीति अस्वनः । ५-निर्गतः श्रमात्-खेदात्, निश्चित: श्रमस्तपो यस्येति वा। ६-स्वेदरहितः, निःस्वाना-दरिद्राणामिम् काम ददातीति वा । ७५ पश्चात्तापरहितः, निर्विष पापरहितं सुखमानन्दामृतमत्तीति वा निर्विषादः। ८-त्रिषष्ठिकर्मणा जेता । ९-अनन्तपराक्रमः,, अनते अलोके विक्रमो शानद्वारा गमनं यस्य, अनन्ताः शेषनागा धरणीन्द्रादयो विशेषेण क्रमयोर्नम्रीभूता यस्येति वा १०-अनंतसुखमात्मा यस्य, अनन्तसुरवमात्मानं कायति-कथयति ।
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________________
TANAHAN
। ११८ । ॐबाहा । ११६
२० । ॐ
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। १०७ । ॐ ह्रीं अनन्तसौख्याय नमः स्वाहा । १.८ । ॐ ह्रीं विश्वज्ञाय नम. स्वाहा । १०९। ॐ हीं. विश्वदृश्वने नमः स्वाहा । ११० । ॐ हीं अरिबलार्थदृशे नमः स्वाहा । १११ । ॐ हीं न्यक्षदृशे नमः स्वाहा - ।११२ । ॐ ह्रीं विश्वतश्चक्षुपे नमः स्वाहा । ११३ । ॐ ह्रीं विश्वचक्षुषे नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं अशेषविदे नमः स्वाहा । १९५। ॐ ह्रीं आनन्दाय नमः स्वाहा । ११६ । ॐ ह्रीं परमानन्दाय नमः स्वाहा ।११७ ॐ हीं सदानन्दाय नम स्वाहा । ११८ । ॐ ह्रीं सदोदयाय नमः स्वाहा । ११९ । ॐ ही नित्यानन्दाय नमः स्वाहा । १२० । ॐ ह्रीं महानन्दाय नम. स्वाहा । १२१ । ॐ ह्रीं परानन्दाय नमः म्वाहा । १२२ । ॐ ही परोदयाय नमः स्वाहा । १२३ । ॐ ह्रीं परमोजसे नमः स्वाहा। १२४ । ॐ ह्रीं परंतेजसे नमः स्वाहा । १२५। ॐ ह्रीं परधाम्ने नमः स्वाहा । १२६ । ॐ ही परंमहसे नमः स्वाहा । १२७ । ॐ ह्रीं प्रत्यग्ज्योतिषे नमः स्वाहा । १२८ । ॐ हीं परज्योतिपे नम. स्वाहा । १२५ । ॐ ही परब्रह्मणे नम. स्वाहा । १३० । ॐ ही परंरहसे नम. स्वाहा । १३१ । ॐ ह्रीं प्रत्यगात्मने नम स्वाहा । १३२ । ॐ ह्रीं प्रबुद्धात्मने नमः स्वाहा । १३३ । ॐ ह्रीं महात्मने नमः स्वाहा ।१३४। ॐ ही आत्ममहोदयाय नमः स्वाहा । १३५। ॐ ह्रीं परमात्मने नम. स्वाहा । १३६ । ॐ ह्रीं प्रशान्तात्मने नमः स्वाहा।१३७/ ॐ ह्रीं परात्मने नम स्वाहा । १३८ । ॐ ह्रीं आत्मनिकेतनाय नमः स्वाहा । १३९ । ॐ हीं परमेष्ठिने नम स्वाहा । १४०। ॐ ह्रीं महिष्ठात्मने नमः स्वाहा । १४१ । ॐ ह्रीं श्रेष्ठात्मने नमः स्वाहा । १४२।
. - -- - १-अतीन्द्रियदृष्टा । २-सदा उदयो यस्य, सदाउत्-उत्कृष्टम् अयः शुभावहो विधिर्यस्येति वा । ३-महान् आनन्दः सौख्यं यस्य, महेन-पूजया आनन्दः यस्मादिति वा।
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Maa
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सिद्ध क
मंडल विधान
ॐ ह्रीं स्वात्मनिष्टिताय नमः स्वाहा । १४३ । ॐ ह्रीं ब्रह्मनिष्ठाय नमः स्वाहा । १४४ । ॐ ह्रीं महानि
ह्री दृढात्मदृशे नमः स्वाहा
।
ॐ ह्रीं सार्वाय नमः स्वाहा
प्राय नमः स्वाहा | १४५ । ॐ ह्री निरूढात्मने नमः स्वाहा । १४६ । ॐ । १४७ । ॐ ह्रीं एकविद्याय नमः । १४८ । ॐ ह्रीं महाविद्याय नमः स्वाहा पदेश्वराय नमः स्वाहा । १५० । ॐ ह्रीं पचत्रह्ममयाय नमः स्वाहा । १५१ । | १५२ । ॐ ह्रीं सर्वविधेश्वराय नमः स्वाहा । १५३ | ॐ ह्रीं सुभुत्रे नमः स्वाहा । १५४ । ॐ ह्रीं अनन्तधिये नमः स्वाहा । १५५ । ॐ ह्रीं अनन्तात्मने नमः स्वाहा । १५६ । ॐ ह्री अनन्तशक्तये नमः स्वाहा । १५७ । ॐ ही अनन्तदृशे नमः स्वाहा । १५८ । ॐ ह्रीं अनन्तानन्तधीशक्तये नमः स्वाहा | १५९ । ॐ ह्रीं अनन्तविदे नमः स्वाहा । १६० । ॐ ह्रीं अनन्तमुदे नमः स्वाहा । १६१ । ॐ ह्रीं सदाप्रकाशाय नमः स्वाहा । १६२ । ॐ ही सर्वार्थसाक्षात्कारिणे नमः स्वाहा । १६३ । ॐ ह्रीं समग्रधिये नमस्वाहा | १६४ | ॐ ह्रीं कर्मसाक्षिणे नमः स्वाहा । १६५ । ॐ ह्रीं जगच्चक्षुपे नमः स्वाहा । १६६ । ॐॐ ह्रीं लक्ष्यात्मने नमः स्वाहा । १६७ । ॐ ह्रीं प्रचलस्थितये नमः स्वाहा । १६८ । ॐ ह्रीं निराबाधाय नमः स्वाहा | १६९ । ॐ ह्रीं अप्रतर्क्यात्मने नमः स्वाहा । १७० । ॐ ह्रीं धर्मचक्रिणे नमः स्वाहा | १७१ । ॐ ह्रीं विदावराय नमः स्वाहा । १७२ । ॐ ह्रीं भूतात्मने नमः स्वाहा । १७३ । ॐ ह्रीं सहजज्योतिषे नमः स्वाहा । १७४ । ॐ ह्रीं विश्वज्योतिषे नमः स्वाहा । १७५ । ॐ ह्रीं अतीन्द्रियाय नमः स्वाहा | १७६ । ॐ केवलिने नमः स्वाहा । १७७ । ॐ ह्रीं केवलालोकाय नमः स्वाहा ।
१ - शोभना - समवसरणरूपा, मोक्षरूपा, ईपत्माग्मारनाम्नी भूः स्थान यस्य ।
१४९ । ॐ ह्रीं महाब्रह्म
1
११०
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Jil
-सिद्ध अ
हाँ मंडल विधान ) -
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SARAN
१८१
१९।
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१७८ । ॐ ही लोकालोकविलोकनाय नम. स्वाहा । १७९ । ॐ ह्रीं विविक्ताय नमः स्वाहा । १८० । ॐ ह्रीं केवलाय नमः स्वाहा । १८१ । ॐ ह्रीं अव्यक्ताय नमः स्वाहा । १८२। ॐ ह्रीं शरण्याय नमः स्वाहा । १८३ । ॐ ह्रीं अचिन्त्यवैभवाय नमः स्वाहा । १८४ । ॐ ह्रीं विश्वभृते नमः स्वाहा। १८५। ॐ ह्रीं विश्वरूपात्मने नम स्वाहा । १८६ । ॐ ह्रीं विश्वात्मने नमः स्वाहा । १८७ । ॐ ही विश्वतोमुखाय नमः स्वाहा । १८८ । ॐ ही विश्वव्यापिने नमः स्वाहा । १८९ । ॐ ह्रीं स्वयंज्योतिपे नमः स्वाहा। १९० । ॐ हीं अचिन्त्यान्मने नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं अमितप्रभाय नमः स्वाहा । १९२ । ॐ ह्रीं महौदार्याय नम. स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं महाबोधये नमः स्वाहा । १९४ ॐ ह्री महालाभाय नमः स्वाहा । १९५ । ॐ ह्रीं महोदयाय नम. स्वाहा । १९६ । ॐ हीं महोपभोगाय नम स्वाहा । १९७ । ॐ ह्रीं सुगतये नमः स्वाहा । १९८।ॐ हीं महाभोगाय नमः स्वाहा। १९९ । ॐ ह्रीं महावलाय नमः स्वाहा ।२००।
ॐ ह्रीं यज्ञार्हाय नम. स्वाहा । २०१। ॐ ह्रीं भगवते नम स्वाहा । २०२ । ॐ ह्रीं अर्हते नमः स्वाहा । २०३ । ॐ ह्रीं महार्हाय नमः स्वाहा । २०४। ॐ हीं मघवार्चिताय नमः स्वाहा । २०५। ॐ ह्रीं भूतार्थयज्ञपुरुपाय नमः स्वाहा । २०६ । ॐ ह्रीं भूतार्थक्रतुपूरुषाय नमः स्वाहा । २०७ । ॐ
१-असहायः-सर्वथा स्वतन्त्रः, के-आत्मनि बल यस्येतिवा । २-विश्वतः-चतुर्दिक्षु मुख यस्य, अथवा विश्वतोमुख जलमुच्यते तद्धर्म साधर्म्यात् भगवानपि विश्वतोमुखः अमितपातकप्रक्षालनात् विषयसुखदाहनिवारकत्वात् प्रसात्तिरूपत्वाच्च, विश्व तस्यति स्वर्मोक्षयोर्नयति मुखं यस्य, विश्वतः सर्वागेपु मुख यस्येतिवा, सहस्रगीपः सहस्रपादित्यभिधानात् ।
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स्वाहा । २४०।ॐ हीं सर्वशक्रनमस्कृताय नमः स्वाहा । २४१ । ॐ ह्रीं हाकुलामरखगाय नमः स्वाहा । २५२ । ॐ ह्रीं चारणार्षिमतोत्सवाय नमः स्वाहा । २४३ । ॐ हीं व्यवाय नमः स्वाहा । २४४ । ॐ - ह्रीं विष्णुपदारक्षाय नमः स्वाहा । २४५। ह्रीं नानपीठायिताद्रिराजे नमः स्वाहा । २४६ । ॐ ह्रीं तीर्थेशंमन्यदुग्धाब्धये नमः स्वाहा । २४७॥ ॐ ह्रीं स्नानाम्बुस्नातवासवाय नमः स्वाहा । २४८ । ॐ हीं गंधाम्बुपूतत्रैलोक्याय नमः स्वाहा ।२४९॥ ॐ ह्रीं वज्रसूचीशुचिश्रवसे नमः स्वाहा ।२५० ॐ ह्रीं कृतार्थितशचीहस्ताय नम स्वाहा । २५१। ॐ हीं शक्रो टेष्टनीमकाय नमः स्वाहा । २५२ । ॐ ह्रीं शक्रारब्धानन्दनृत्याय नमः स्वाहा । २५३ । ॐ ह्रीं शचीविस्मापिताम्बिकाय नमः स्वाहा । २५४ । ॐ हीं इन्द्रनृत्यन्तपितृकाय नम. स्वाहा । २५५ । ॐ ह्रीं रैदॆपूर्णमनोरथाय नमः, स्वाहा, । २५६ । ॐ हीं आज्ञार्थीन्द्रकृतासाय
१-श्रुतसागरटीकाया " व्योम" शब्द उपलभ्यते, तैः स, विशेपेण अवति-रक्षति प्राणिगणानिति व्योम इति निरुक्तश्च । किन्तु विपूर्वकादव धातोर्व्यवशब्द एव भवितुमईति न ब्योम इति । अतएवेह व्यवशब्द एव व्यवहत.। "व्योम' इति मूलपाठे तु एव निरुक्ति. संभवति-"व्यो" इति वीजार्थकोऽव्ययः, त-ससारमोक्षयोर्मूल मन्यते जानातीति व्योम इति । २ अस्य, “ विष्णुपदा रक्षा" इत्यग्निमशब्दस्य च श्रुतसागरैराविष्ट लिंगत्व सूचितम् । वेवेष्टि-व्यानोति लोकमिति विष्णु'-प्राणिवर्ग. तेपा पदानि-गुणस्थानाति मार्गणास्थानानि वा तेपामासमन्ताद् रक्षा, करुणारूपत्वाद्भगवतः। ३-शक्रणोद्घष्टमुच्चरितम् इष्ट-सर्वमानित नाम यस्य । ४-दन्द्रस्य नृतिर्नर्तनम् अन्ते अग्रे पितुर्यस्य । यस्य भगवतः पितुरने इन्द्र. नृत्यति तस्मै इत्यर्थः । भगवतोऽभिषेकात्याक पश्चाचेति वारद्वयं पितुरग्रे इन्द्रः नृत्य करोतीति सूचनार्थ नामद्वयेनेह स्मरणम् । ५-रैदेन-कुबेरनामकेन यक्षेन्द्रेण पूर्णाः-पूर्तिनीता मनोरथाः (भोगोपभोगसम्बनिधनः) यस्य । ६-आजाया अर्थी-अभिलाषक: सचासौ इन्द्रश्च तेन कृता-विहिता आ-ममन्तात् सेवा-पर्युपासन यस्य स -
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- शेतु
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नमः स्वाहा । २५७ ॥ हादेवाशिमाय नमः । २५८ । अनौटीमा-गन्ध जगने नम पाहा | २५० । हीनयनाटिना नम पाया। २६०ी कुनिर्मिनाशानाय नमः म्वाहा । २६१ । ही धीयुने नमः म्याला । २६२। दो योगीश्वगार्निता नम. गदा ।२६३ | ॐही प्रमेयाय नमः घाटा । २६४ । ॐ ही नमदिनम. मा । २६५ | दो गाय नम म्वाहा । २६६ मायाय नमः मगर । २६७। 30दी यापन नम. न्याहा । २३८ ।
ही मनचे नमः म्याठा । २०ी यत्रागार नम याद । २७० 10 प्रकार नम. बाला । २७१ । ॐही यज्ञाय नमः पाहा । २७२ । नीजीने नम बाग।२७३ | कामगार नम न्याहा । २७१ | म्ननाम्गर नन मगढ। २७५। 04 भागामाता।२७३।
ही मगमहपनये नमः यहा । २७७ | भी मामा म माता । २७८ । नया :काय नमः माहा । २७० । दीदायागाय मम.माहा। २८० मस्ताय नमः म्बाला 1२८१ | अंदी नाहीय नमः म्याहा। २८२ मचिनार नन· । २८३1 दी देवानिदेवाय नम. म्यादा २८1काग नम | २८५। ॐदाय नम. माता । २८६ । ॐ की नगग्य नमः स्वाहा । २८७ । भीमराय नमः ET | २८८ ।
" लापन ----प्रिया-गोनिगिनिन टीवी .-"नामानिमायो जन्म सन्तु ना आना- या मानिन (HEARTI मनाrintinetमागोमन दान भारतः प्रकीर्निर ॥४.
मागोमो::: । -- -नि, मोनि, पानीति भार । अब नागोग्ने का ।
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- (सिद्ध कहाँ
मंडल विधान):-...
निनादन
ॐ हीं पद्मयानाय नमः स्वाहा । २८९| ॐ ह्रीं जयध्वजिने नमः स्वाहा । २९०। ॐ ह्रीं भामण्डलिने । नम. स्वाहा । २९१ । ॐ ह्रीं चतुःपष्टिचामराय नमः स्वाहा । २९२ । ॐ ह्रीं देवदुन्दुभये नमः स्वाहा । २९३ । ॐ ह्री वागस्पृष्टासनाय नम. स्वाहा । २९४ । ॐ ह्रीं छत्रत्रयराजे नमः स्वाहा । २९५ । ॐ ह्रीं पुष्पवृष्टिभाजे नमः स्वाहा । २९६ । ॐ ही दिव्याशोकाय नमः स्वाहा । २९७ । ॐ ह्रीं मानमर्दिने नमः स्वाहा । २९८ । ॐ ही संगीतार्हाय नमः स्वाहा । २९९ । ॐ ही अष्टमगलाय नमः स्वाहा । ३००। . ॐ ह्रीं तीर्थकृते नम. स्वाहा। ३.१। ॐ ह्रीं तीर्थसृजे नमः स्वाहा । ३०२ । ॐ ह्रीं तीर्थकराय नमः स्वाहा । ३०३ । ॐ ह्रीं तीर्थंकराय नमः स्वाहा । ३०४ । ॐ ह्रीं सुदृशे नमः स्वाहा । ३०५। ॐ ही तीर्थकर्त्रे नमः स्वाहा ३०६ । ॐ ह्रीं तीर्थभ नम स्वाहा । ३०७ । ॐ ह्रीं तीर्थेशाय नमः स्वाहा । ३०८ । ॐ ही तीर्थनायकाय नमः स्वाहा । ३०९ । ॐ ही बर्मतीर्थकराय नमः स्वाहा । ३१० । ॐ ह्रीं तीर्थप्रणेत्रे नमः स्वाहा । ३११ । ॐ ह्रीं तीर्थकारकाय नमः स्वाहा । ३१२। ॐ ह्रीं तीर्थप्रवर्तकाय नम: स्वाहा । ३१३ । ॐ ह्रीं तीर्थवेधसे नमः स्वाहा । ३१४ । ॐ ही तीर्थविधायकाय नमः स्वाहा । ३१५। ॐ ही सत्यतीर्थकराय नमः स्वाहा । ३१६ । ॐ ह्रीं तीर्थसत्याय नम स्वाहा । ३१७ । ॐ ह्रीं तैर्थिकतारकाय नमः स्वाहा । ३१८ । ॐ ह्रीं सत्यवाक्याधिपाय नम स्वाहा । ३१९ । ॐ ह्रीं
१-वाग्भिरस्पृष्टमासनमुर. प्रभृत्युच्चारणस्थान यस्य (अष्टौ स्थानानि) वर्णानामुर' कण्ठ शिरस्तथा जिढामलंचदन्ताश्च नासिकोष्ठौच तालुच"।२-ये तीर्थे-शाम्ने नियुक्ताः, ये च तीर्थ-गुरौ नियुक्ताः सेवापरा., यद्वा तीर्थ-जिनपूजने नियुक्ताः अथवा तीर्थ-पुण्यक्षेत्रे नियुक्ता-यात्राकारकाः, तथैव तीर्थ-पात्रं तस्य दानादिकर्मणि ये नियुक्ता ने सर्वे तैर्थिका उच्यन्ते । तेषा तारकस्तस्मै।
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= (निवडू शक ही बालश्चियान्न) =
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नाममा
सत्यशासनाय नमः स्वाहा । ३२० । ॐ ह्रीं अप्रतिशासंकाय नमः स्वाहा । ३२१ । ॐ ह्रीं स्यावादिने" - नमः स्वाहा । ३२२ । ॐ ह्रीं दिव्यगिरे नमः स्वाहा । ३२३ । ॐ ह्रीं दिव्यध्वनये नमः स्वाहा । ३२४।
ॐ ह्रीं अव्याहतार्थवाचे नमः स्वाहा । ३२५ । ॐ ह्रीं पुण्यवाचे नमः स्वाहा । ३२६ । ॐ ही अर्ध्यवाचे नमः स्वाहा । ३२७ । ॐ हीं अर्द्धमागधीयोक्तये नमः स्वाहा । ३२८। ॐ हीं इद्धवाचे नमः स्वाहा । ३२९ । ॐ ह्रीं अनेकान्तदिशे नमः स्वाहा । ३३० । ॐ ह्रीं एकान्तध्वान्तमिदे नमः स्वाहा । ३३१ । ॐ ह्रीं दुर्नयान्तकृते नमः स्वाहा । ३३२ औ ही. सार्थवाचे नमः स्वाहा । ३३३ । ॐ हीं अप्रयत्नोक्तये । नमः स्वाहा । ३३४ । ॐ ह्रीं प्रतितीर्थमदनवाचे नमः स्वाहा । ३३५। ॐ ही स्यात्कारध्वजवाचे नमः, / स्वाहा । ३३६ । ॐ ह्रीं ईहापेतवाचे नमः स्वाहा । ३३७ । ॐ ह्रीं अचलौष्ठवाचे नमः स्वाहा । ३३८,।
ॐ ही अपौरुपेयवाक्छास्त्रे नमः स्वाहा । ३३९ । ॐ ह्रीं रुद्धवाचे नमः स्वाहा । ३४०। ॐ हीं सप्तभंगिवाचे नमः स्वाहा । ३४१ । ॐ ही अवर्णगिरे नमः स्वाहा । ३४२ । ॐ हीं सर्वभापामयगिरे नमः स्वाहा । ३४३ । ॐ ह्री व्यक्तवर्णगिरे नमः स्वाहा । ३४४ । ॐ हीं अमोघवाचे नमः स्वाहा । ३४५ । ॐ ह्रीं, अक्रमवाचे नमः स्वाहा । ३४६।ॐ ह्रीं अवाच्यानन्तवाचे नमः स्वाहा । ३४७ । ॐ ह्रीं अवाचे नमः, स्वाहा । ३४८ । ॐ ह्रीं अद्वैतगिरे नमः स्वाहा । ३४९.1 ॐ ह्रीं सूनृतगिरे नमः स्वाहा । ३५०
ॐ ह्रीं सत्यानुभयगिरे नमः स्वाहा । ३५१ । ॐ ह्रीं सुगिरे नमः । स्वाहा । ३५२ । ॐ ही योजनव्यापि-, गिरे नमः स्वाहा । ३५३ । ॐ ह्रीं क्षीरगौरगिरे नमः खाहा । ३५४ । ॐ ह्रीं तीर्थकृत्वगिरे नमः, स्वाहा, . । ३५५। ॐ ह्रीं भव्यैकश्रव्यगवे नमः स्वाहा । ३५६ । ॐ ह्रीं सद्गत्रे नमः स्वाहा । ३५७ । ॐ हीं
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चित्रगवे नमः स्वाहा | ३५८ । ॐ ह्रीं परमार्थगवे नमः स्वाहा । ३५९ । ॐ ह्रीं प्रशातगवे नमः स्वाहा । ३६० । ॐ ह्री प्राश्निकगवे नमः स्वाहा । ३६१ । ॐ ह्रीं सुगवे नमः स्वाहा । ३६२ । ॐ ह्रीं नियतकालवे नमः स्वाहा । ३६३ । ॐ ह्रीं सुश्रुतये नमः स्वाहा । ३६४ । ॐ ह्रीं सुश्रुताय नमः स्वाहा | ३६५ | ॐ ह्रीं याज्यश्रुतये नमः स्वाहा | ३६६ | ॐ ह्रीं सुश्रुते नम स्वाहा । ३६७ । ॐ ह्रीं महाश्रुतये नमः स्वाहा | ३६८ | ॐ ह्रीं धर्मश्रुतये नमः स्वाहा । ३६९ । ॐ ह्रीं श्रुतिपतये नमः स्वाहा । ३७० । ॐ ह्रीं श्रुत्युद्धर्त्रे नमः स्वाहा । ३७१ । ॐ ह्रीं ध्रुवश्रुतये नमः स्वाहा । ३७२ । ॐ ह्रीं निर्वाणमार्गेदिशे नमः स्वाहा । ३७३ | ॐ ह्रीं मार्गदेशकाय नमः स्वाहा । ३७४ । ॐ ह्री सर्वमार्गदिशे नमः स्वाहा । । ३७५ । ॐ ह्रीं सारस्वतपथाय नमः स्वाहा | ३७६ । ॐ ह्रीं तीर्थपरमोत्तमतीर्थकृते नमः स्वाहा | ३७७| ॐ ह्री द्वेष्ट्रे नमः स्वाहा । ३७८ । ॐ ह्रीं वाग्मीश्वराय नमः स्वाहा । ३७९ । ॐ ह्रीं धर्मशासकाय नमः स्वाहा । ३८० । ॐ ह्रीं धर्मदेशकाय नमः स्वाहा । ३८१ । ॐ ह्रीं वागीश्वराय नमः स्वाहा । ३८२ । ॐ त्रयीनाथाय नमः स्वाहा । ३८३ | ॐ ह्रीं त्रिभंगीशाय नमः स्वाहा । ३८४ । ॐ ह्रीं गिरापतये नमः स्वाहा । ३८५ । ॐ ह्रीं सिद्धाज्ञाय नमः स्वाहा । ३८६ । ॐ ह्रीं सिद्धवाचे नमः स्वाहा । ३८७ । ॐ ह्रीं आज्ञासिद्धाय नमः स्वाहा । ३८८ । ॐ ह्रीं सिद्धैकशासनाय नम स्वाहा । ३८९ । ॐ ह्रीं जगत्प्रसिद्धसिद्धान्ताय नमः स्वाहा । ३९० । ॐ ह्रीं सिद्धमंत्राय नमः स्वाहा । ३९१ । ॐ ह्रीं सुसिद्धवाचे नमः स्वाहा । ३९२ । ॐ ह्रीं शुचिश्रवसे नम स्वाहा । ३९३ | ॐ ह्रीं निरुक्तये नमः स्वाहा । ३९४ । ॐ ह्रीं तत्रकृते नमः स्वाहा । ३९५ । ॐ ह्रीं न्यायशास्त्रकृते नमः स्वाहा | ३९६ । ॐ ह्रीं महिष्ठवाचे नमः
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= (कन आज ही किया जाय) --
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माहा । ३९७ ही महानाटाय नमः स्वाहा । ३०८1ॐही कवीन्द्राय नमः स्वाहा । ३९० की इंदुभिस्वनाय नम. स्वाहा । ४०० ।
30ही नाख्या(दया)य नमः स्वाहा । ४०१॥ ॐ हीं पतये नमः म्वाहा । ४०२ । ॐ ही परिगृढाय नम. भ्वाहा । ४०३ । ॐ ही स्वामिने नमः स्वाहा । ४०४ । ॐ हीं भर्ते नम म्वाहा । ४०५। ॐही विभने नमः स्वाहा । ४०६ । ॐ हीं प्रभवे नमः स्वाहा । ४०७ । ॐ ही ईश्वराय नमः माहा। ५०८ 130 ही प्रणीश्वराय नमः स्वाहा । ४०९। ॐहीं प्रधीशाय नमः स्वाहा । ११०। ॐकी अधीशानाय नमः म्वाहा । ४११ । ॐ हीं अधीशिने नमः स्वाहा । ५१२ । ॐ ही ईशित्रे नम. म्यादा । ५१३ । ॐ ही ईशाय नमः स्वाहा । ४१४ । ॐ हीं अधिपतये नमः स्वाहा । ११५। ॐ हीं ईशानाय नम म्यादा । ११६ । ॐ हीं इनाय नमः स्वाहा । ४१७ । ॐ ही इन्द्राय नमः स्वाहा । ४५८13दी अधिपाय नमः म्याहा । ४१९ । ॐ हीं अधिभुवे नमः म्वाहा । ४२० । ॐ हीं मोराय नमः माह।। ४२१ । ॐ ही महेशानाय नमः स्वाहा । ४२२ । ॐ हीं महेशाय नम: म्याहा 1 ५२३ । ॐ ही परमेशिने नम स्वाहा । ४२४ । ॐ ह्रीं अधिदेवाय नमः स्वाहा । ४२५ । ॐ ह्रीं महादेवाय नम. स्याहा । १२६ । ॐही देवाय नम स्वाहा । ४२७ | ॐ हीं त्रिभुवनेश्वराय नमः म्वाहा । ४२८ । ही विश्वेशाय नमः स्वाहा । ४२९ । ॐ हीं विश्वभूतेशाय नमः स्वाहा । ४३०। ॐनी विनेटो नग. बाहा। ४३१ | ॐ ही विश्वेश्वराय नम. स्वाहा । ४३२ । ॐ ही अधिराजे नम पाहा। ४३३ | ॐही लोकेश्वगय नमः म्याहा ।४३४ । ॐ हीं लोकपतये नम: म्याहा
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(सिद्ध व्यकहीं मंडल विधान) - ...
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। ४३५। ॐही लोकनाथाय नम, स्वाहा । ४३६ । ॐ हीं जगत्पतये नमः स्वाहा । ४३७ । ॐ ह्रीं त्रैलोक्यनाथाय नमः स्वाहा । ४३८ । ॐ ह्रीं लोकेशाय नमः स्वाहा । ४३९। ॐहीं जगन्नाथाय नमः - स्वाहा । ४४० । ॐ हीं जगत्प्रभवे नमः स्वाहा । ४४१ । ॐ हीं पित्रे नमः स्वाहा । ४४२ । ॐ ह्रीं । पराय नमः स्वाहा । ४१३ । ॐ ह्रीं परतराय नमः स्वाहा । ४४४ । ॐ ह्रीं जेत्रे नमः स्वाहा । १४५। ॐ ह्रीं जिष्णवे नम स्वाहा । ४४६ । ॐ हीं अनीश्वराय नमः स्वाहा । ४४७। ॐ हीं कत्रे नमः स्वाहा। ४४८ । ॐ ह्रीं प्रभूष्णवे नमः स्वाहा । ४४९ । ॐ ह्रीं भ्राजिष्णवे नमः स्वाहा । ४५० । ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम. स्वाहा । ४५१ । ॐ ही स्वयंप्रभवे नमः स्वाहा । ४५२ । ॐ ह्रीं लोकजिते नमः स्वाहा । ४५३ । ॐ ह्री विश्वजिते नमः स्वाहा । ४५४ । ॐ ह्रीं विश्वविजेत्रे नमः स्वाहा। ४५५ । ॐ ह्रीं विश्वजित्वराय नमः स्वाहा । ४५६ । ॐ ह्रीं जगजेत्रे नमः स्वाहा । ४५७ । ॐ ह्रीं जगजैत्राय नमः स्वाहा। ४५८ । ॐ ही जगजिप्णवे नमः स्वाहा । ४५९ । ॐ ह्रीं जगज्जयिने नमः स्वाहा । ४६०। ॐ ह्रीं अग्रण्यै नमः स्वाहा । ४६१ । ॐ हीं ग्रामण्यै नम. स्वाहा । ४६२ । ॐ ह्रीं नेत्रे नमः स्वाहा । ४६३ । ॐ हीं भूर्भुवःस्वरधीश्वराय नमः स्वाहा । ४६४ । ॐ हीं धर्मनायकाय नमः स्वाहा । ४६५। ॐ ह्रीं ऋद्धीशाय नमः स्वाहा । ४६६ । ॐ ह्रीं भूतनाथाय नमः स्वाहा । ४६७ । ॐ हीं भूतभृते नमः स्वाहा । ४६८ । ॐ हीं गतये नमः स्वाहा । ४६९ । ॐ ह्रीं पात्रे नमः स्वाहा । ४७० । ॐ ह्री बृषाय नमः
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६
१-ग्राम-सिद्धसमूह नमतीति ग्रामणीः । २-गमन, जानमात्र, सर्वेषामर्तिहरणसमर्थों वा गतिः । आविष्टलिंग गतिः-शरणम् । ३.-पानि-रक्षतिदु खातिपाता तस्मै ।
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बाक चाडल विधान-
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साम्यारोहणतत्पराय नम स्वाहा । ५०३ । ॐ ह्री सामायिकिने नमः स्वाहा । ५०४ । ॐ हीं सामायिकाय नमः स्वाहा । ५०५। ॐ ह्रीं निःप्रमादाय नमः स्वाहा । ५०६ । ॐ ही अप्रतिक्रमाय नमः स्वाहा । ५०७ । ॐ ह्री यमाय नमः स्वाहा । ५०८ । ॐ ह्रीं प्रधाननियमाय नम. स्वाहा । ५०९ । ॐ ह्रीं म्बभ्यस्तपरमासनाय नमः स्वाहा । ५१० । ॐ ही प्राणायामचरणाय नमः स्वाहा । ५११। ॐ हीं सिद्धप्रत्याहाराय नम. स्वाहा । ५१२ । ॐ ह्रीं जितेन्द्रियाय नम. स्वाहा । ५१३ । ॐ ह्रीं वारणावीश्वराय नमः स्वाहा । ५१४ । ॐ ही धर्मव्याननिष्टाय नमः स्वाहा । ५१५। ॐ ह्रीं समाधिराजे नम. स्वाहा । ५१६ । ॐ ह्रीं स्फुरत्समरसीभावाय नमः स्वाहा । ५१७ । ॐ हीं एकिने नमः स्वाहा । ५१८। ॐ ह्रीं करणनायकाय नमः स्वाहा । ५१९ । ॐ ही निर्ग्रन्थनाथाय नमः स्वाहा । ५२० । ही योगीन्द्राय नम. म्वाहा । ५२१ । ॐ ह्रीं ऋषये नमः स्वाहा । ५२२ । ॐ हीं साधये नमः स्वाहा । ५२३ । ॐ ह्रीं यतये नमः स्वाहा । ५२४ । ॐ ह्रीं मुनये नमः स्वाहा । ५२५ । ॐ ह्रीं महर्पये नमः स्वाहा । ५२६ । ॐ ह्रीं साधुधौरेयाय नमः स्वाहा । ५२७ । ॐ ह्रीं यतिनाथाय नमः स्वाहा । ५२८ । ॐ ह्रीं मुनीश्वराय नम: स्वाहा । ५२९ । ॐ ह्रीं महामुनये नमः स्वाहा । ५३० । ॐ ह्रीं महामौनिने नमः स्वाहा । ५३१ । ॐ ह्रीं महाध्यानिने नमः स्वाहा । ५३२ । ॐ ह्रीं महावतिने नमः स्वाहा । ५३३ । ॐ हीं महाक्षमाय नमः स्वाहा । ५३४ । ॐ ह्रीं महाशीलाय नमः स्वाहा । ५३५। ॐ ह्रीं महाशान्ताय नमः स्वाहा । ५३६ । ॐ ह्रीं महादमाय नमः स्वाहा । ५३७ । ॐ ह्रीं निर्लेपाय नमः स्वाहा । ५३८॥ॐ ह्री
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१-हस्तलिखित कापीमें 'चणाय' ऐसा पाठ है।
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निर्धमस्वान्ताय नमः स्वाहा । ५३९ । ॐ ह्रीं धर्माध्यक्षाय नमः स्वाहा ।५४० । ॐ ह्रीं टयाबजाय नमः स्वाहा । ५४१ । ॐ ह्रीं ब्रह्मयोनये नम स्वाहा । ५४२ । ॐ ह्रीं स्वयंवुद्धाय नम स्वाहा । ५४३ । ॐ ही ब्रह्मज्ञाय नमः स्वाहा । ५४४ । ॐ ह्रीं ब्रह्मतत्त्वविदे नमः स्वाहा । ५४५। ॐ ह्रीं पूतात्मने नमः स्वाहा। ५४६ । ॐ ह्रीं स्नातकाय नमः स्वाहा । ५४७ । ॐ ह्रीं दान्ताय नमः स्वाहा । ५४८ । ॐ ह्रीं भढन्ताय नमः स्वाहा । ५४९ । ॐ ह्रीं बीतमत्सराय नमः स्वाहा । ५५० । ॐ ह्रीं धर्मवृक्षायुधाय नमः स्वाहा । ५५१ । ॐ ह्रीं अक्षोभ्याय नमः स्वाहा । ५५२ । ॐ ह्रीं प्रपूनात्मने नमः स्वाहा । ५५३ । ॐ ह्री अमृतोदभवाय नमः स्वाहा । ५५४ । ॐ ह्रीं मंत्रमूर्तये नमः स्वाहा । ५५५। ॐ ह्रीं स्वसौभ्यात्मने नमः स्वाहा । ५५६ । ॐ ह्रीं स्वतंत्राय नमः स्वाहा । ५५७ । ॐ ह्रीं ब्रह्मसंभवाय नम म्वाहा । ५५८ । ॐ ह्रीं सुप्रसन्नाय नमः स्वाहा । ५५९। ॐ ह्रीं गुणाभोधये नमः स्वाहा । ५६० । ॐ ही पुण्यापुण्यविरोधकाय नमः स्वाहा। ५६१ । ही सुसवृत्ताय नमः स्वाहा । ५६२ । ॐ हीं सुगुप्तात्मने नमः स्वाहा। ५६३ । ॐ ह्रीं सिद्धात्मने नमः म्वाहा । ५६४ । ॐ ही निरुपप्लवाय नमः म्वाहा। ५६५। ॐ ही महोदर्काय नम स्वाहा । ५६६ ॐ ह्रीं महोपायाय नमः स्वाहा । ५६७ । ॐ ह्री जगदेकपितामहाय नमः स्वाहा । ५६८ । ॐ ह्रीं महाकारुणिकाय नमः स्वाहा । ५६९ । ॐ ह्रीं गुण्याय नमः स्वाहा । ५७० । ॐ ह्रीं महालेशाकुशाय नमः म्वाहा । ५७१ । ॐ ह्रीं शुचये नमः स्वाहा । ५७२ । ॐ ह्रीं अरिंजयाय नमः स्वाहा । ५७३ । ॐ ह्रीं सदायोगाय नमः म्वाहा । ५७४ । ॐ ही सहाभोगाय नमः स्वाहा । ५७५। ॐ ह्रीं सदाधुतये नम. स्वाहा । ५७६ । ॐ ही परमोदासिने
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सिद्ध चक्र
मंडल विधान
नमः स्वाहा । ५७७ | ॐ ह्रीं श्रनायुषे नमः स्वाहा । ५७८ । ॐ ह्रीं सत्याशिषे नमः स्वाहा । ५७९ । ॐ ह्रीं शातनायकाय नमः स्वाहा । ५८० । ॐ ह्रीं अपूर्ववैद्याय नमः स्वाहा । ५८१ । ॐ ह्रीं योगज्ञाय नमः स्वाहा | ५८२ । ॐ ह्रीं धर्ममूर्तये नमः स्वाहा । ५८३ । ॐ ह्रीं अधर्मदहे नमः स्वाहा । ५८४ | ॐ ह्रीं ब्रह्मेशे नमः स्वाहा । ५८५ । ॐ ह्रीं महाब्रह्मपतये नमः स्वाहा । ५८६ । ॐ ह्रीं कृतकृत्याय नमः स्वाहा | ५८७ । ॐ ह्रीं कृतकृतवे नमः स्वाहा । ५८८ । ॐ ह्रीं गुणाकराय नमः स्वाहा । ५८२ । ॐ ह्रीं गुणोच्छेदिने नमः स्वाहा । ५९० । ॐ ह्रीं निर्निमेषाय नमः स्वाहा । ५९१ । ॐ ह्रीं निराश्रयाय नम स्वाहा । ५९२ । ॐ ह्रीं सूरये नमः स्वाहा । ५९३ । ॐ ह्रीं सुनयतत्त्वज्ञाय नमः स्वाहा । ५९४ । ॐ ह्रीं महामैत्रीमयाय नमः स्वाहा । ५९५ । ॐ ह्रीं शमिने नमः स्वाहा । ५९६ । ॐ ह्रीं प्रक्षीणबन्धाय नमः स्वाहा । ५९७ । ॐ ह्रीं निर्द्वन्दाय नमः स्वाहा । ५९८ । ॐ ह्रीं परमर्पये नमः स्वाहा । ५९९ । ॐ ह्रीं अनन्तगाय नमः स्वाहा । ६०० ।
ॐ ह्रीं निर्वाणीय नमः स्वाहा । ६०१ । ॐ ह्रीं सागरीय नमः स्वाहा । ६०२ । ॐ ह्रीं महासाधवे नमः स्वाहा । ६०३ | ॐ ह्रीं विमलामाय नमः स्वाहा । ६०४ । ॐ ह्रीं शुद्धाभाय नमः स्वाहा | ६०५ । ॐ ह्रीं श्रीधराय नमः स्वाहा । ६०६ । ॐ ह्रीं दत्ताय नमः स्वाहा । ६०७ । ॐ ह्रीं अमला
१ – सुखीभूतः, कामवाणरहितः, आयुधरहित, निश्चितो वन एव निवासोपस्य स जिनकल्पित्यात् । २ -सालक्ष्मी गरः विषसदृगी यस्य, सगरो घरणेन्द्रस्तेनोत्सगे घृत, सया लक्ष्म्योपलक्षितोऽगः - मेरुस्तंराति गृह्णाति, सागा दरिद्वास्तान् राति । ३ – विमला - कर्ममलरहिता आभा यस्य, वि-विशिष्टा मा लक्ष्मीर्यत्र स एवंभूतो लाभोयस्य, उपरागरहिता आसमंतात्मा - दीप्तिर्यस्य स ।
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माय नमः स्वाहा । ६०८ | ॐ ह्री उद्धराय नमः स्वाहा । ६०९। ॐ ह्री अग्नये नमः म्वाहा । ६१०।
ॐ ह्रीं संयमाय नमः स्वाहा। ६११ । ॐ ही शिवाय नमः स्वाहा । ६१२। ॐ हीं पुप्पाजलये नमः स्वाहा । ६१३ । ॐ ही शिवगणाय नमः स्वाहा । ६१४ । ॐ ही उत्साहाय नमः म्वाहा । ६१५। ॐ ही , ज्ञानसंज्ञकाय नमः स्वाहा। ६१६ । ॐ ही परमेश्वराय नम स्वाहा । ६१७ । ॐ ह्री विमलेशाय नमः स्वाहा । ६१८ । ॐ ह्रीं यशोधराय नमः स्वाहा । ६१९ । ॐ ही कृष्णार्य नमः स्वाहा । ६२० । ॐ ह्रीं ज्ञानमतये नमः स्वाहा । ६२१ । ॐ ह्री शुद्धमतये नमः स्वाहा । ६२२ । ॐ श्रीभद्राय नमः स्वाहा । ६२३ । ॐ ह्रीं शान्ताय नमः स्वाहा । ६२४ । ॐ ह्रीं वृषभाय नम म्वाहा । ६२५ । ॐ ह्रीं अजिताय नमः स्वाहा । ६२६ । ही सभवाय नमः स्वाहा । ६२७ । ॐ ही अभिनन्दनाय नम: स्वाहा । ६२८। ॐ ह्रीं सुमतये नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ह्रीं पद्मप्रभाय नम: म्वाहा । ६३० । ॐ ह्री सुपार्वाय नमः स्वाहा । ६३१ । ॐ ह्रीं चन्द्रप्रभाय नम म्याहा। ६३२ । ॐ ह्री पुष्पदन्ताय नमः म्वाहा । ३३ । ॐ ही शीतलाय नमः स्वाहा । ६३४ । ॐ ह्रीं श्रेयसे नमः म्बाहा । ६३५। ॐ हीं बासुपूर्याय नमः स्वाहा । ६३६ । ॐ ह्रीं विमलाय नमः म्याहा । ६३७ । ॐ हीं अनन्तजिते नमः स्वाहा
१-अषियमान. मलस्य-पापस्याभा-अयोपियस्य, अमा दीनास्तेषा लाभो यम्मात्, अमान्-निग्रंथान् ननीनलाति-स्त्रीकुर्वन्ति तैर्गणघरैयोयानि-गोभते । २-अगति-अव्वंत्रजतीति अग्निः। ३-पुष्पलत्-कमलयत् अजलि:इन्द्रादीना करसपुटोय प्रति म, पुष्याणाभजलय. यन्मिन्-द्वादशयोजनप्रमाणपुरपवृष्टिः । ४-कपति-यानिकमाणि नलादुन्मूलयति । ५-म-समीचीनो भयो-जन्म यस्य, गाभव इत्यपि पाटस्तत्र म-मुराभवति यम्मात् इति । ६-योमत्र ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्याय नमः इति मंत्रण मुटु पूयः ।
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। ६३८ । ॐ ह्रीं वर्माय नमः स्वाहा । ६३९ । ॐ ह्रीं शातये नमः स्वाहा । ६४०। ॐ हीं कुंथवे नमः । स्वाहा । ६४१ । ॐ ह्रीं अराय नमः स्वाहा । ६४२ । ॐ ह्री मल्लये नम. स्वाहा । ६४३ । ॐ ह्रीं - सुव्रताय नमः स्वाहा । ६४४ । ॐ ह्रीं नमये नमः स्वाहा । ६४५। ॐ ही नेमये नमः स्वाहा । ६४६ । ॐ हीं पार्थाय नमः स्वाहा । ६४७ । ॐ ही बर्धमानाय नमः स्वाहा । ६४८ । ॐ हीं महावीराय नमः स्वाहा । ६४९ । ॐ ह्रीं वीराय नमः स्वाहा । ६५० । ॐ ही सन्मतये नमः स्वाहा । ६५१ । ॐ हीं महेतिमहावीराय नमः स्वाहा । ६५२ । ॐ ह्रीं महापद्माय नमः स्वाहा । ६५३ । ॐ ही सूरंदेवाय नमः स्वाहा । ६५४ । ॐ ह्रीं सुप्रभाय नमः स्वाहा । ६५५ । ॐ ह्रीं स्वयंप्रभाय नमः स्वाहा । ६५६।। ॐ ह्रीं सर्वायुधाय नम स्वाहा। ६५७ । ॐ ह्रीं जयदेवाय नमः स्वाहा । ६५८ | ॐ ही उदयदेवाय नमः स्वाहा । ६५९ । ॐ हीं प्रभादेवाय नमः स्वाहा । ६६० । ॐ ह्रीं उदकाय नमः स्वाहा । ६६१ । ॐ ह्रीं प्रश्नकीर्तये नमः स्वाहा । ६६२ । ॐ ह्रीं जयाय नमः स्वाहा । ६६३ । ॐ ही पूर्णबुद्धये नमः स्वाहा । ६६४ । ॐ हीं नि.कषायाय नमः स्वाहा । ६६५। ॐ ह्रीं विमलप्रभाय नमः स्वाहा । ६६६ । ॐ ह्रीं वहँलाय नमः स्वाहा । ६६७ । ॐ ह्रीं निर्मलाय नमः स्वाहा । ६६८ । ॐ ह्रीं
१-कुंथति-तपः करोतीति कुथु । २ अरति-लोकालोक जानाति इयति-त्रैलोक्यशिखरमाररहतीति, अर्यतेमोक्षार्थिभिः प्राप्यते इतिवाअर । धर्मरथप्रवृत्तिहेतुत्वादरश्चक्रागभूतोवा । ३-मलते-भव्यजीवान् धारयति, मोक्ष स्थापयतीतिवा मलिः। देवेद्रादिमिर्मल्ल्यते-धार्यते इतिवा । ४ नम्यते देवेन्द्राभिरिति नमिः। ५-मस्य-मलस्य पापस्य वा हतिर्विध्वसनतत्र महावीर.-महासुभटः । ६-सूराणा देवः आराध्यः । शूरदेव इत्यपि पाठः । ७-बह-स्कन्धदेशलाति-ददाति इतिवहल:-सवमभारोद्धरणे शक्तः । बहति-मोक्ष प्रापयति इतिवा ।
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चित्रगुप्ताय नमः स्वाहा । ६६९ । ॐ ह्रीं समाधिगुप्ताय नमः स्वाहा । ६७० । ॐ ह्रीं स्वयभुवे नमः स्वाहा ।६७१ । ॐ ह्रीं कन्दर्पाय नमः स्वाहा । ६७२ । ॐ ह्रीं जयनाथाय नमः स्वाहा । ६७३ । ॐ ह्रीं श्रीविमलाय नमः स्वाहा । ६७४ । ॐ ह्रीं दिव्यवादीय नम स्वाहा । ६७५ । ॐ ह्रीं अनन्तवीराय नम स्वाहा ।६७६। ॐ ह्रीं पुरुदेवाय नमः स्वाहा । ६७७ । ॐ ह्रीं सुविधये नमः स्वाहा । ६७८ । ॐ ह्रीं प्रज्ञापारमिताय नमः स्वाहा । ६७९ । ॐ ह्रीं अव्ययाय नमः स्वाहा । ६८० । ॐ ह्रीं पुराणपुरुषाय नमः स्वाहा । ६८१ । ॐ ह्रीं धर्मसारथये नमः स्वाहा । ६८२ । ॐ ही शिवकीर्तनाय नम स्वाहा । ६८३ । ॐ ह्रीं विश्वकर्मणे नमः स्वाहा । ६८४ । ॐ ह्रीं अक्षराय नमः स्वाहा । ६८५ । ॐ ह्रीं अच्छमने नमः स्वाहा । ६८६ । ॐ ह्रीं विश्वभुवे नम स्वाहा । ६८७ । ॐ ह्रीं विश्वनायकाय नम. स्वाहा । ६८८ । ॐ हीं दिगम्बराय नमः स्वाहा । ६८९ । ॐ ह्रीं निरातकाय नमः स्वाहा । ६९० | ॐ ह्रीं निरारेकाय नम स्वाहा । ६९१ । ॐ ह्रीं भवान्तकाय नमः स्वाहा । ६९२ । ॐ ह्रीं दृढव्रताय नमः स्वाहा। ६९३ ।
१-चित्रवत्-आकाशवत् गुप्तः-अलक्ष्यः । चित्राः-विचित्राः-मुनीनामथाश्चर्यकारिण्योगुप्तयो यस्य सा । चित्रं-तिलकदान प्रतिष्ठावसरे गुप्त-गुरूपदेशप्राप्यं यस्य स, चित्रा आश्चर्यकरा गुप्तयः सवसरणेत्रिनः प्राकारा यत्य स इति वा । २-दिव्यः-अमानुपः वादो-वनिर्यस्य, दिव्या-देवानामपि वा-वेदना द्यति-खण्डयति, दिव्यं वा मंत्रंददातिइति वा दिव्यवादः। ३-युरुर्महान् देवानामग्याराथ्यो देवः, पुरवः-प्रचुरा देवा यस्य-असख्यातदेवसेवितः, पुरोःस्वर्गस्यदेवः इति वा ।४-धर्मस्याहिंसालक्षणस्य सारथिः-प्रवर्तकः, धर्माणा मध्ये सार:-उत्कृष्टस्तत्र तिष्ठति स्थाधातोः मकारलोपः कि प्रत्ययश्च । ५-विश्वं कृच्छ्र कष्टमेव कर्म यत्य मते, विश्वेसु-देवविशेषेसु कर्म-सेवा यस्य, विश्वस्मिनकर्म-लोकजीवनकरी क्रिया यस्येति वा । ६-विश्वस्मिन्भवति-विश्वभूः। " सत्ताया मगले बृद्धी निवासे व्यामिसंपदो। अभिप्राये च गनौच प्रादुर्भावे गती च भ"
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-सिद्ध अक
मंडल विधान) -
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ॐ ही नयोतुंगाय नमः स्वाहा । ६९४ । ॐ ह्रीं निःकलंकाय नमः स्वाहा । ६०५। ॐ ह्रीं अकलाबराय नमः स्वाहा । ६९६ । ॐ ह्रीं सर्वक्लेशापहाय नमः स्वाहा । ६९७ । ॐ ह्रीं अक्षय्याय नमः स्वाहाः । ६९८ । ॐ ह्रीं क्षान्ताय नमः स्वाहा । ७९९ । ॐ ह्रीं श्रीवृक्षलक्षणाय नमः स्वाहा । ७००।
ॐ ह्रीं ब्रह्मणे नमः स्वाहा । ७०१ । ॐ ह्रीं चतुर्मुखाय नमः स्वाहा । ७०२। ॐ ह्री धात्रे नमः स्वाहा । ७०३ । ॐ ह्रीं विधात्रे नम स्वाहा । ७०४ । ॐ ह्रीं कमलासनाय नमः स्वाहा । ७०५ ॐ ही अब्ज वे नमः स्वाहा । ७०६ । ॐ ह्रीं आत्मभुवे नमः स्वाहा । ७०७ । ॐ ह्रीं स्रष्ट्रे नम. स्वाहा । ७०८ । ॐ ह्रीं सुरज्येष्ठाय नमः स्वाहा । ७०९। ॐ ह्रीं प्रजापतये नमः स्वाहा । ७१० । ॐ ह्रीं हिरण्यागर्भाय नमः स्वाहा । ७११ । ॐ ह्रीं वेदज्ञाय नमः स्वाहा । ७१२। ॐ ह्रीं वेदागाय नमः स्वाहा । ७१३ । ॐ ह्रीं वेदपारगाय नमः स्वाहा । ७१४ । ॐ हीं अजाय नमः स्वाहा । ७१५ । ॐ ह्रीं मनवे नमः स्वाहा । ७१६ । ॐ ह्रीं शतानन्दाय नमः स्वाहा । ७१७॥ॐ ह्रीं हंसयौनाय नमः स्वाहा । ७१८। ॐ ह्रीं त्रयीमयाय नमः स्वाहा । ७१९ । ॐ ह्रीं विष्णवे नमः स्वाहा । ७२० । ॐ ही त्रिविक्रमाय नमः
१-न कला धारयति-केनापि य कलयितु न शक्यः। अक-दुःख लाति-ददाति अकल:-ससार त न परति अकल:-ससारो-अधरो नीचो यस्य, न कल-शरीरम् आ समतात् धरति, न कला-चन्द्रकला शिरसि धरति । २-अब्जै:कमलैरुपलक्षिता भू-जन्म भूमिर्यस्य, मातुरुदरे योनिमायस्पृष्ट्वा अष्टदलकमलकर्णिकाया नवमासान् स्थित्वा वृद्धिंगत इति अब्जभू , अब्जस्य,-चन्द्रस्य भूः-सेवास्थान, अब्जस्य-धन्वन्तरे भूः स्थानमायुर्वेदगुरुत्वात् । ३-इसे-परमात्मनि यान-गमन यस्य, हस:-श्रेष्ठैः सह यान-विहारो यस्य, इस:-श्रेष्ठ यानं यस्य, हंस: सूर्यस्तद्वत् यान विहारोयस्य, हंसवत्-मद गमन यस्य।
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म्वाहा । ७२१ । ॐ ह्रीं सौरये नमः स्वाहा । ७२२। ॐ ह्रीं श्रीपतये नम. म्वाहा । ७२३ । ॐ ही पुरुपोत्तमाय नमः स्वाहा । ७२४ । ॐ ह्रीं वैकुंठाय नमः स्वाहा । ७२५। ॐ ह्री पुंडरीकाक्षाय नम स्वाहा - । ७२६ । ॐ ह्रीं हृषीकेर्शाय नम: स्वाहा । ७२७ । ॐ ह्रीं हरये नम: स्वाहा । ७२८ । ॐ ह्रीं स्वभुवे नमः स्वाहा । ७२९ । ॐ ह्रीं विश्वंभराय नमः स्वाहा । ७३० । ॐ ह्रीं असुरध्वसिने नमः स्वाहा ।७३१॥ ॐ ह्री माधवाय नमः स्वाहा । ७३२ । ॐ ही बलिबंधनाय नमः स्वाहा । ७३३ । ॐ हीं अबोतजाय नमः स्वाहा । ७३४ । ॐ ह्री मबुद्वेपिणे नमः स्वाहा । ७३५। ॐ ह्रीं केशवाय नम: स्वाहा । ७३६ । ॐ ह्रीं विटरश्रवसे नमः स्वाहा । ७३७ । ॐ ह्रीं श्रीवत्सलाछनाय नमः स्वाहा । ७३८ । ॐही श्रीमते नमः स्वाहा । ७३९ । ॐ ह्रीं अच्युताय नमः स्वाहा । ७४०। ॐ ह्रीं नरकातकाय नम: स्वाहा । ७४१। ॐ ह्रीं विस्वक्सेनाय नमः स्वाहा । ७४२। ॐ ह्रीं चक्रपाणये नम स्वाहा । ७५३ । ॐ ह्रीं
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१-सूरस्य-सुभटस्य-क्षत्रियस्यापत्य सौरिः।२-विकुंठा-तीर्थकरमाता तस्याअपत्य,३-पुडरिकवत् अक्षिणी यस्य, पुडरीकः-प्रधानभूत अक्ष आत्मा यस्य । ५-जितेन्द्रियः। ४-अमुरोमोहस्त लमते, अमून्-प्राणान् रानिगृह्वाति असुरोयमस्तं बसते।६-यस्य मते जीवस्य बले:-कर्मणः बधन भवतीति प्रतिपादितम् । नलिन-बलवत्तरत्यत्रैलोक्यक्षोभकारिण तीर्थकरास्योचगोत्रकर्मणश्च बंधन यस्य, बलिर्नुपदेयकरस्तस्य बंधन-निधारण यस्यावसरे । ७अक्षज जानमधोमस्य । ८-प्रशस्ताकेशा यस्य केशाद्वोन्यतरस्यामिति व प्रत्ययः, के-परमब्रह्मणि इगते महामुनयस्तेषा यो बासो यत्र । ९-विटर इव शृवसी-कर्णी यस्य, विस्तरे-सफलश्रुतजाने अवसी यस्य । १०-विश्वक-ममंतात् सेनाद्वादशवियो गणो यस्य, विश्वममंतात् मा-लोकत्रयवर्णानी ल मीस्तस्या इनः । ११-चक्र-लक्षगविशेष उपलक्षणत्वाद्रवीन्द्रुकुलियादिनि लक्षणानि च पाणी यस्थ, चक्रराणि-चक्ररा राजानस्तेषामणि.सीमा, चक्रपान अणति-धर्मापदेश कगेनि।
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-लिख भी
मोडल विधान
पद्मनाभाय नमः स्वाहा । ७४४ । ॐ ह्री जनार्दनाय नमः स्वाहा । ७४५ । ॐहीं श्रीकंठाय नमः स्वाहा । ७४६ । ॐ ह्रीं शकराय नमः स्वाहा । ७४७ । ॐ ह्रीं शंभवे नमः स्वाहा । ७४८ । ॐ ह्रीं कैपालिने नमः स्वाहा । ७४९ । ॐ हीं वृषकेतनाय नमः स्वाहा । ७५० । ॐ हीं मृत्युंजयाय नमः स्वाहा । ७५१ । ॐ ह्रीं विरूपाक्षाय नमः स्वाहा । ७५२ । ॐ ह्री वामदेवाय नमः स्वाहा । ७५३ । ॐ ह्रीं त्रिलोचनाय नमः स्वाहा । ७५४ । ॐ ह्री उमापतये नमः स्वाहा । ७५५। ॐ ह्रीं पशुपतये नमः स्वाहा । ७५६ । ॐ हीं स्मरारये नमः स्वाहा । ७५७ । ॐ ह्रीं त्रिपुरातकाय नमः स्वाहा । ७५८ ।
बाद
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१ जनान्-जनपदलोकान् अर्दति-सबोधनार्थ गच्छति, जना-भव्या अर्दना मोक्षयाचका यस्य, जनान् अर्दयति-मोक्ष गमयति । २-कम्-आत्मानं पालयति, क-ब्रह्मस्वरूपमात्मान पाति-रक्षन्ति ससारपतनादितिकपास्तानासमतात् लाति-भूषयतीति कपाली । ३-विरूप-सक्षमस्वभावम्-अक्षि-केवलज्ञानलक्षणलोचनं यस्य “ सक्थ्यटणीस्वागे" इत्यत् प्रत्ययः, विशिष्टरूपे-कणीतविश्राते अक्षिणी यस्य, विरूपः केवलजानगम्यः अक्ष,-आत्मा यस्य । विर्गरुड़स्तस्य रूप, ससारविपनिषेधक एवंभूतोऽक्ष, आत्मा यस्य । ४-बामो-मनोहरो देवः, वामस्य-प्रतिकूलस्य-शत्रोरपिदेव आराध्यः, इत्यादि । ५-त्रयाणालोकत्रयवर्तिभव्याना नेत्रस्थानीयः, त्रिपुलोकेषुलोचने-जानदर्शनरूपे नेत्रे यस्य, जन्मारम्य मतिश्रुतावधिज्ञानानित्रीणिलोचनानि यस्य, त्रिघु-मनोवचनकायेषु त्रिकरणशुद्ध वा लोचन-केशोत्याटो यस्य, इत्यादि । ६-उमा-कान्तिः कीर्तिश्च अथवा उ:-क्षीरसागरो मेरुर्वा तयोर्मा-लक्ष्मीः तस्या पतिः। ७–पश्यन्तिकर्मबन्धनैरिति पशवः ससारिणो जीवा वा पशवस्तेषापतिः । ८-तिसणा-जन्मजरामरणरूपाणा पुरामन्तको-विनाशकः, परमौदारिकतैजसकामणगरीराणामन्तकः, त्रिपुरं-त्रैलोक्यं तस्याते क आत्मा यस्य ।
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सिद्ध चक
एल विधान
ॐ
नमः स्वाहा । ७५९ । ॐ ह्री रुद्राय नमः स्वाहा । ७६० । ॐ ह्रीं भवाय नमः स्वाहा । ७६१ । ॐ ह्रीं भर्गीय नमः स्वाहा । ७६२ । ॐ ह्रीं सदाशिवय नमः स्वाहा । ७६३ | ॐॐ ही जगत्कर्त्रे नमः स्वाहा । ७६४ । ॐ ह्रीं अंधकारातये नमः स्वाहा । ७६५ । ॐ ह्रीं अनादिनिधनाय नमः स्वाहा | ७६६ । ॐ ह्रीं हराय नमः स्वाहा । ७३७ । ॐॐ ह्रीं महासेनाय नमः स्वाहा । ७६८ । ॐ ह्रीं तारकैजिते नमः स्वाहा । ७३९ । ॐ ह्रीं गणनाथाय नमः स्वाहा । ७७० । ॐ ह्रीं विनायकीय नमः स्वाहा । ७७१ । ॐ ह्रीं विरोचनाय नमः स्वाहा । ७७२ । ॐ ह्रीं वियनाय नमः स्वाहा । ७७३ । ॐ ह्रीं द्वादशान्मने नमः स्वाहा । ७७४ । ॐ ह्रीं विभावसेत्रे नमः स्वाहा । ७७५ । ॐ ही द्विजाराध्याय
१ – अर्द्ध न अरयो घातिकर्माणि यस्य सचासी ईश्वरः । २ कर्मणा रौद्रमूर्तित्वाद्रौद्रः आत्मदर्शने सति रोदिति - आनंदाश्रणिमुचति स । ३ भृज्यंते कामक्रोधादयो येन, विभर्ति वारयति पोपयतीति वा भर्गः " स्वसृत्यागः " इति औणादिकः गप्रत्ययः । ४ – सदा सर्वकालं शिव परमकल्याण यस्य, सदा दिवा रात्रो चाइनंतिते सदाशिनः तेपा वः समुद्र. - संसारः पतनमितिवचन यस्य । ५ –जगता कर्ता-मर्यादाकारकः, जगतः कंसुखमियतिजानाति । ६ - अंध:सम्यग्दर्शनरहितः कः स्वरूपं यस्य तत् मोहकर्म तस्यारातिः शत्रु । ७ - अनतभवोरार्जिता निपापानि जीवाना हरति, ६हमनन्तसुखं हारविशेवं राति ददाति धारयति वा, हस्य - हिमायाः रः-निरोधक. । ८--महनी - द्वाद्वशलक्षमा सेना यस्य, महस्य - पूजाया आसमंतात् सा-लक्ष्मीस्तस्या इनःस्वामी, महा आस आसनं तत्र इनः । ९-तारकान् - गणधरादीन् जितवान्, तारमत्युच्चैः शब्द कायति ध्वनति स मेवोऽथवा सगर्जनः सागरः तान् निजेन ध्वनिना जितवान् । इत्यादि १० - विशिष्टाना गणधरादीना नायकः । विगतोनायको यत्य । ११ – विशिष्ट रोचनमम्यक्त्वं यस्य, विशिष्टारोचनामुक्ति यस्य, विगत रोचन ससारप्रीतिर्यस्य । १२ - कर्मेन्धनदहनत्वादमि., मोहाधकारविनाशितत्वसूर्यः, नैत्रामृतवर्षि"त्वाद्विभावसुश्चन्द्रः केवलज्ञानधन इत्यादि ।
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-- (सिद्ध छलक
ही मंडल विधान -
नमः स्वाहा । ७७६ । ॐ हीं बृहद्भानये नमः स्वाहा । ७७७। ॐ ह्रीं चित्रमानवे नमः स्वाहा । ७७८॥ ॐ ह्रीं तनपाते नमः स्वाहा । ७७९ । ॐ ही द्विजराजाय नम स्वाहा । ७८० । ॐ ह्री सुधाशोचये नमः स्वाहा । ७८१ । ॐ ही औपधीशाय नमः ७८२ । ॐ ह्रीं कलानिधये नमः । स्वाहा । ७८३ । ॐ ही नक्षत्रनाथाय नमः स्वाहा । ७८४ । ॐ ह्रीं शुभ्राशवे नमः स्वाहा । । ७८५। ॐ ह्रीं सोमाय नमः स्वाहा । ७८६ । ॐ ह्रीं कुमुदबाधर्वाय नमः स्वाहा । ७८७ । ॐ ह्रीं लेखर्षभाय नमः स्वाहा । ७८८ । ॐ हीं अनिलाय नमः स्वाहा | ७८९ । ॐ ह्रीं पुण्यजनाय नमः स्वाहा । ७९० । ॐ ह्रीं पुण्यजनेश्वराय नमः स्वाहा । ७९१ । ॐ ह्रीं धर्मराजाय नमः स्वाहा । ७९२ । ॐ ह्रीं भोगिरीजाय नमः स्वाहा । ७९३ । ॐ ह्रीं चेतसे नमः स्वाहा । ७९४ । ॐ ह्रीं भूमिनन्दनाय
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१-बृहत्-महत्तरोभानुः दिन पुण्यं यस्य, इत्यादि । २-आश्चर्यकारिणो मानव:-ज्ञानकिरणा यस्य । ३-त-काय न पातयति-छद्मस्थावस्थायामनुपवासात् केवलजाने जाते तु आहारमगृहीत्वापि न पातयति । ४-शारीरादिरोगनिवारण समर्थः । दुर्मरणहेतून् श्यति-इति वा । ५-सूतेऽमृतं-मोक्षमिति, सूयते मेरुमस्तकेऽभिषिच्यते इति वा सोमः, सा-लक्ष्मी सरस्वती च ताभ्यामुमा कीर्तिर्यस्य, उमया-कान्त्या सहवर्तमानः सोम इतिवा । ६-भव्यकैरवाणामुपकारकः, कुपु-तिसूषु पृथिवीषु मुदा हौयेषा ते कुमुदाइन्द्रादयस्तेषामुपकारकः, कुत्सितकर्मणि मुत् हर्षोयेषातेषामबाधवः । ७–लेखेसु-देवेषु ऋषभ. श्रेष्ठः ८-न विद्यते इला-भूमिर्यस्य त्यक्तराज्यः तनुवातवलये निराधार स्थायी। ९-पुण्या जनाः सेवका यस्य, पुण्यजनमयतीतिवा। १०-भोगिनामिन्द्राणाचक्रिणा वा राजा। ११-प्रकृष्टं सर्वेषादारियादिनाशनपरचेतो यस्य, प्रणष्टचेता-विकल्परहितो वा । १२-भूमी-लोकत्रयवर्तिजनान् नदयति ।
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नमः स्वाहा । ७९५ ॐ ह्रीं सिंहिकातनयाय नमः स्वाहा । ७९६ । ॐ ही छायानन्दनाय नमः स्वाहा । ७९७ । ॐ ह्री बृहतीपतये, नम स्वाहा । ७९८ । ॐ ह्री पूर्वदेवोपैटेप्टे नमः स्वाहा । ७९.। ॐ ह्रीं द्विजराजसमुद्भवाय नमः स्वाहा । ८००।
ॐ ही बुद्धाय नमः स्वाहा । ८०१ ॐ ह्रीं दशवलाय नमः स्वाहा । ८०२ । ॐ ही शाक्याय नमः स्वाहा । ८०३ । ॐ ही पडभिज्ञाय नमः स्वाहा । ८०४ । ॐ ह्री तोगताय नमः स्वाहा ।८०५/ ॐ ह्रीं समन्तभद्राय नमः स्वाहा । ८०६ । ॐ ह्री सुगताय नमः स्वाहा । ८०७ । ॐ ह्रीं श्रीधनाय नमः स्वाहा । ८०८ । ॐ ह्रीं भूतकोटिदिशे नमः स्वाहा । ८०९ । ॐ ह्री सिद्वार्थाय नमः स्वाहा । ८१० ।
१-सिंहिका-तीर्थकर-जननीस्तस्याम्तनय । सिंहिकातनयो गहुरिति बा-पापकर्मसु क्रूरचित्तत्वात्। २–छायाशोभा नन्दयति-वर्धयति, अशोकतरुछायायालोकनन्दयति । ३-वृहता-नरेन्द्रसुरेन्द्रमुनीन्द्राणा पनि । ४-पूर्वदेवानाम्असुराणामुपदेष्टा-सक्लेशनिषेधकः, पूर्वश्चतुर्दशभिः-श्रुतार्थविशेषैरुपदेष्टा, पूर्व प्रथमदेवानामिन्द्रियाणा मुपदेष्टा-तद्विपयनिवर्तकः, गणधराणामुपदेष्टा इतिवा। ५-द्विजाना राजा च समुत्-सहपो भयोजन्म यस्य, द्विजेपुराजन्ते तानि मम्यग्दर्शनगानचारित्राणि तेभ्य. समुद्भवो यस्य-रत्नत्रययोनि:-अयोनिमभवः इत्यर्थः । ६-दशाना धर्माणामुत्तमक्षमादीना बलं यस्य, दः-दया बोधश्चतेन शवला-समर्थः । ७-शक्नोतीति गकः-तीर्थकरपिता तस्यापत्यम् , शम्-अनन्तसुग्वम् आकः केवलनानंतयोनियुक्तः । ८–पट-द्रव्यसजान् अभितो जानाति। -तथा-सत्यभूनं गतं-जान यस्य । १०-भूताना प्राणिना कोटी: दिशति, भूतानामतीतभवान्तराणा कोटी: दिशति, भूतान-जीवान् कोटयन्तिकुटिलान् कुर्वन्ति-मिथ्यात्वं कारयन्ति ते जैमिनिकपिलादयस्तान् दिशति, भूतकोटीना विश्रामस्थान, भूताना-जीवाना कोटिंपरमप्रकप गुणातिशयं दिशति ।
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ॐ हीं मारजिते नमः स्वाहा । ८११ । ॐ हीं शास्त्रे नम. स्वाहा । ८१२ । ॐ ही क्षणिकैकसुलक्षणाय नम. स्वाहा ।८१३॥ ॐ ह्रीं बोधिसत्त्वाय नमः स्वाहा ।८१४। ॐ ह्रीं निर्विकल्पदर्शनाय नमः स्वाहा।८१५। ॐ ह्रीं अद्वैयवादिने नमः स्वाहा । ८१६ । ॐ ह्रीं महाकृपालवे नमः स्वाहा । ८१७ । ॐ ह्रीं नैराम्यवादिने नमः स्वाहा । ८१८ । ॐ ह्रीं संतानशासकाय नमः स्वाहा । ८१९ । ॐ ह्रीं सामन्यलक्षणचणाय नमः स्वाहा । ८२० । ॐ ही पंचस्कन्धमयात्मदृशे नमः स्वाहा । ८२१ । ॐ ही भूतार्थभावनासिद्धाय नमः स्वाहा । ८२२ । ॐ ह्रीं चतुर्भूमिकशासनाय नमः स्वाहा । ८२३ | ॐ ही चतुरार्य सत्यवक्त्रे नमः स्वाहा । ८२४ । ॐ ह्रीं निराश्रयचिते नमः स्वाहा । ८२५। ॐ ही अन्ययाय नमः स्वाहा । ८२६ । ॐ ह्रीं योर्गाय नमः स्वाहा । ८२७।ॐ ह्री वैशेपिकाय नमः स्वाहा । ८२८1ॐ ह्रीं तुच्छाभावभिदे नमः स्वाहा । ८२९ । ॐ ही पट्पदार्थदृशे नमः स्वाहा । ८३० । ॐ ह्रीं नैयायिकाय नमः
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१-सर्वे पदार्था एकस्मिन् क्षणे उत्पादव्ययधौवालक्षणेनयुक्ताः क्षणिकाच इति मतं यस्य, क्षणिक एकमद्वितीय शोभन लक्षणं यस्येतिवा २-निर्विकल्प दर्शनं यस्य, निर्विकल्पानि दर्शनानि-अपरमतानि यस्य । ३-मोक्षप्राप्तये रागद्वेषयोर्द्वयन वदति, "बद्यमोक्षावितिद्वेषौ कर्मात्मानौ शुभाशुभौ, इति द्वैताश्रिताबुद्धिरसिद्धिरभिधीयते" । ४-नीरस्य-जलस्य भावो नैर-तत्र उपलक्षणात्स्थावरेषु शक्तिरूपतया केवल ज्ञानादिलक्षण आत्मास्ति-इति बदतीति । ५-अनादि सतानवान् जीव इति शास्ति । ६-निश्चयनयेन सामान्यलक्षणेचण:-विचक्षणः । ७-अनु-पृष्ठतोलग्न. अयः पुण्य यस्य । ८-व्यानयोगात् मनोवाकाययोगाद्वा योगः, याः सूर्यचन्द्रादयः उ:-शकर एते य गच्छन्तिइतिवा । ९-विशेपेण-केवलज्ञानेन (ऐन्द्रियज्ञानस्यसामान्यात्मकत्वात् ) ससृष्टो भगवान् वैशेपिकः। १०-न्याये-स्याद्वादे नियुक्तः।
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स्वाहा । ८३१ । ॐ ही पोडशार्थवादिने नमः स्वाहा । ८३२ । ॐ ह्रीं पंचार्थवर्णकाय नमः स्वाहा । ८३३ । ॐ ह्रीं ज्ञानान्तराध्यक्षबोधाय नमः स्वाहा ।८३४॥ ॐ ह्री समवायवशार्थभिदे नमः स्वाहा ।८३५। ॐ ही भुक्तैकसाव्यकर्मान्ताय नमः स्वाहा । ८३६ । ॐ ह्री निर्विशेगुणामृताय नमः स्वाहा । ८३७ । ॐ ह्री साख्याये नमः स्वाहा । ८३८ । ॐ ह्रीं समीक्ष्याय नम. म्वाहा । ८३९ । ॐ ह्री कपिलाय नमः स्वाहा । ८४० । ॐ ही पंचविंशतितत्वविवे नमः स्वाहा । ८४१ । ॐ ह्रीं व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानिते नमः स्वाहा । ८४२ । ॐ ह्री ज्ञानचैतन्यभेददृशे नमः स्वाहा । ८४३ । ॐ ह्री अस्वसविदितज्ञानवादिने नमः
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१-दर्शनविशुद्धयादीन् शोडपार्थान् यो वदति । २-कुदादिकः शुभ्रः नीलमण्यादिः कृष्ण' बन्धूकपुष्यादी रक्तः प्रियंगुपरिणतादिनीलः सतप्तकनकच पचमोऽर्य इति पंचायः समानो वाँ यस्य, पचानामर्थानामस्तिकायाना वर्णक' प्रतिपादकः, पचाना नैयायिकादिमिथ्यादर्शनानामपिवर्णक. । ३-भुक्तन-अनुभवनेन एकेन-अद्वितीयेन साव्यः कर्मणामन्तः स्वभावो यस्य । यद्दा अनादी ससारे कर्मफलं मुजानो जीव. कदाचित्सामग्रीविशेष प्राग्य कर्मणामन्त करोतीति मत यस्य । ४-तीर्थकराणामन्येपाचकेवलिना निर्विशेषा गुणाएव अमृतं यस्य जरामरणादि निवारकत्वात् । ५-सख्यायानियुक्त' सारख्यः " स साख्यो यः प्रसंख्यावान् " इति निक्तिः सख्याते प्रथमोमध्यमोऽन्त्यो भगवानेव । ६-सम्यक्-ईक्षितु योग्यः, समिनामीथ्य इति वा । ७-कपिरिव कपि:-मनोमर्कटस्तलाति-कपायपुगच्छन्त निश्चलीकरोति यः, क-परमंब्रहास्वरूपमपिलाति गृह्णाति इति वा अपेरलोप: ८-अहिसादिमहानतेपुप्रत्येकस्यपचरइति मिलितः पंचविशतिभावना', त्रयोदशक्रिया (पडावश्यकानि पंच नमस्कारा निसही असहीचेति ) द्वादश तपासि इतिवा, तासा पचविंशतिक्रियाणा वा य. तत्व वेति । ९-व्यक्ता. ससारिणः अव्यक्ताः केवलजानगम्याः जा जीवातेपा विशिष्ट जान यस्य । १०-चेतना त्रिविवा-जानकर्मकर्मफलभेदात्, तत्र जानस्य चैतन्यस्यच यः मेद पश्यति, उभयत्र सामान्य विशेषादिकृतं मेदं यः पश्यतीत्यादि वा। ११-न स्वो विदितो येन (निर्विकल्पसमाधिदशापन्नेनजानेन) एवंभूत जान यः बदति ।
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(मिर श
हीअडल विमान) -
स्वाहा । ८४४। ॐ ह्रीं सत्कार्यबादसात् नमः स्वाहा । ८४५ । ॐ ही त्रिप्रमाणाय नमः स्वाहा । ८४६ । ॐ ही अध्यक्षप्रमाणाय नमः स्वाहा । ८४७ । ॐ ही स्याहाहंकारिकाक्षदिशै नमः स्वाहा । ८४८। ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नमः स्वाहा । ८४९ । ॐ ह्रीं आत्मने नमः स्वाहा । ८५० । ॐ ही पुरुपाय नमः स्वाहा । ८५१ । ॐ ही न य नमः स्वाहा । ८५२ । ॐ ही "ने नमः स्वाहा । ८५३ ॐ ह्रीं चेतनाय नमः स्वाहा । ८५४ । ॐ ही पुसे नमः स्वाहा । ८५५ । ॐ ह्री अकरें नमः स्वाहा । ८५६ । ॐ ह्री निर्गुणाय नमः स्वाहा । ८५७ । ही अमूर्ताय नम: स्वाहा । ८५८ । ॐ हीं भोके नम. स्वाहा । ८५९ । ॐ ह्रीं सर्वगताय नम. स्वाहा । ८६०। ॐ ही अक्रियाय नमः स्वाहा । ८६१ । ॐ ह्री द्रष्ट्रे नमः स्वाहा । ८६२ । ॐ ह्री तटस्थाय नमः स्वाहा । ८६३ । ॐ ह्रीं कूटस्थाय नमः स्वाहा । ८६४ । ॐ ह्री ज्ञात्रे नमः स्वाहा । ८६५। ॐ ह्रीं निवनाय नमः स्वाहा । ८६६ । ॐ ह्री अभवाय नमः स्वाहा । ८६७ | ॐ ह्री बहिर्विकाराय नमः स्वाहा । ८६८ । ॐ ह्रीं निर्मोक्षाय नमः स्वाहा । ८६९। ॐ ह्री प्रधानाय नमः स्वाहा । ८७०। ॐ ही बहुधानकाय नम. स्वाहा
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-सत् समीचीन कार्य-सवरादि लक्षण तस्य वादः शास्त्र यत्य । असत्कार्यवाद' सन् सत्कार्थवादोभवतीति सत्कार्यवादसात् भगवान् । सात् प्रत्ययान्तत्वेनाव्यपत्वम् । २-स्याद्वाहकारिकमक्षमात्मान य दिशति । (स्याच्छन्दपूर्वकमहमहमित्याकारणान्तर्मुखजानेन वेद्य अक्ष या दिशति । ) ३-पुरुणि-महति-इन्द्रादिपूजिते पदे शेते । ४-नृणातिनयकरोति, न राति-न किमपि गृह्णाति प्रतिहार्येष्वपि निरतत्वात् , न रा-रमणीया यस्येतिवा। ५-नयति-समर्थतया भव्य जीव मोक्षमिति ना।६-निश्चितोमोक्षोयस्य-स्तद्भव एव मोक्ष्यमाणः । ७-बहु-प्रचुरनिर्जरोपलक्षित धानक शुक्लध्यानम् तद्योगात् भगवानपि तथोच्यते, बहुधा-बहुप्रकारा आनकाः पटहा यत्र समवसरणे, तद्योगाद्भगवानपि तथा, इत्यादि ।
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। ८७१। ॐ ही प्रकृतये नमः स्वाहा 1८७२। ॐ ही ख्यातये नमः स्वाहा ।८७३। ॐ हीं प्रारूढप्रकृतये नमः स्वाहा । ८७४ । ॐ ही प्रकृतिप्रियाय नमः स्वाहा । ८७५। ॐ ही प्रधानभोज्याय नम स्वाहा । ८७६ । ॐ हीं अप्रकृतये नमः स्वाहा । ८७७ । 3. ही विम्याय नमः स्वाहा । ८७८! ॐ हीं - विकृतये नम स्वाहा । ८७९ । ॐ हीं कृतिने नमः स्वाहा । ८८०। ॐ ही मीमासंकाय नम स्वाहा । ८८१ । ॐ ह्रीं अस्तसर्वज्ञाय नम: स्वाहा । ८८२ । ही श्रुतिपूनाय नमः स्वाहा । ८८३ | 30 हृीं सदोत्सवाय नम: स्वाहा । ८८४ । ॐ ह्रीं परोक्षजानवादिने नमः स्वाहा । ८८५। ॐ ही दृष्टंपावकार नमः स्वाहा । ८८६ | ॐ हीं सिकर्मकाय नमः स्वाहा । ८८७ | ॐ दी चा काय नम म्वाहा
१-प्रकृष्टा-त्रैलोकालोकहितकारिणी कृति. नीर्थप्रवर्तन यस्यगादि। -न्यान-प्रकृष्ट कथन-यथावत्त-चस्वरूपनिरूपण ख्याति , आविटलिंगमिद नाम । ३--आ-ममतात् मदा-भिभवन प्रसिदरा प्रकृति-तीय रुग्नामार्म यम्य । ४-प्रकृल्या-स्वभावेन प्रिय., प्रकृतीना-सर्वलोकाना प्रिय ,-निजगदादभ. । ५-प्र? घानमे सनितन भोज्यमास्या यस्य । ६-दुष्टाना त्रिषष्ठिप्रकृतीनाक्षयात् अयातिप्रहनीना न मत्वःसमर्थलात् सपा प्रभुलादा भगरानप्रकृति। ७-विशेषेण रम्यः । ८-विशिष्टा कृतियेत्य, विनष्टा कृति. कर्म यल्गेति या जमान्य इत्यर्थः । ९-समयपरसमयतत्वानि मीभासते इति मीमामा- (पद्व्याणि पंचास्तिकाया. ममतत्वानि नयादा इतित्वममयतत्वानि, नैयायिकमते प्रमाणप्रमेयादिपोडशतत्वानि-योगमते नत्वायर्यायसन्यनामानितत्वानि-काणादे-द्रव्यगुणादिषट् तत्वानि-मिनीये नोदनालक्षणो धर्मस्तत्व, सारख्ये प्रत्यादिपंचविंगनिनवानि-नास्तिके चत्वारि भतानि)।१०-संनते गा-सर्वगाः सर्वविद्वान्सः । अस्ता.-प्रत्युक्ताः सर्वशा:-मविद्रान्स:-कपिल कणनगदयो येन । ११-इन्द्रियाणा पर पगेन कालगान वदतीति । १२-इष्टाः-अभीष्टाः पावका:-पवित्रताकारका. गण वरादयो देवा यत्य, अथरा भगानेट. मन् पायक. । १३-सिद्ध-समातिं गतं कर्म-क्रिया-चारित्र यस्य । १४-नाम-मलापहर:-मर्यभव्य चितानद कारको या आक.केवलजान यस्य (अकनमाक. -यादिगणे गत्यर्थकादक् धातो.)।
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। ८८८ 1ॐ हीं भौतिकज्ञानाय नम. स्वाहा । ८८९ । ॐ ही भूताभिव्यक्तचेतनाय नमः स्वाहा । ८९० । ॐ ही प्रत्यक्षकप्रमाणाय नम. स्वाहा ।८९१। ॐ ह्रीं अस्तपरलोकाय नमः स्वाहा ।८९२॥ ॐ ह्री गुरुश्रुतये नमः स्वाहा । ८९३ । ॐ ह्रीं पुरंदरविद्धकर्णाय नमः स्वाहा ।८९४। ॐ ह्रीं वेदान्तिने नम. स्वाहा ।८९५/ ॐ ही सविदद्वायने नम. स्वाहा ।८९६। ॐ ह्रीं शब्दावतिने नमः स्वाहा।८९७) ॐ ह्रीं स्फोर्टेवादिने नमः स्वाहा । ८९८ । ॐ हीं पाषंडनाय नमः स्वाहा । ८९९ । ॐ ह्रीं नयौघयुजे नमः स्वाहा । ९००।
. ॐ ही अन्तकृते नमः स्वाहा । ९०१। ॐ ह्रीं पारकृते नमः स्वाहा । ९०२ । ॐ ह्रीं तीरप्राप्ताय नमः स्वाहा । ९०३ । ॐ ही पारेतमास्थिताय नमः स्वाहा । ९०४ । ॐ ह्रीं त्रिदंडिने नमः स्वाहा । ९०५। ॐ ह्रीं दडितारातये नमः स्वाहा । ९०६ । ॐ ह्रीं ज्ञानकर्मसमुच्चयिने नमः स्वाहा । ९०७ । ॐ ह्रीं संहृतध्वनये नमः स्वाहा । ९०८ । ॐ ह्रीं उत्सन्नयोगाय नमः स्वाहा । ९०९। ॐ ही सुप्तार्णवोपमाय नमः स्वाहा । ९१० । ॐ ह्रीं योगस्तेहापहाय नमः स्वाहा । ९११ । ॐ ह्रीं योगकिट्टिनिर्लेपनोद्यताय नमः स्वाहा । ९१२ । ॐ ही स्थितस्थूलवपुर्योगाय नमः स्वाहा । ९१३ । ॐ हीं गीर्मनोयोगकार्यकाय
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१-भौतिक समवसरणादिविभूतियुक्त जान यस्य । २-भूतेषु अभिव्यक्ता प्रकटीकृताचेतना येन । ३-सर्वमपि पुद्गलद्रव्य शब्द एवेति यो वदति । शक्तिरूपतयागब्दहेनुत्वात्तस्य । ४-स्फुटति-प्रकटीभवति केवलजान यस्मादिति शुद्धबुद्धकस्वभावतयात्मानमेव यो मोक्षहेतुतया वदति । ५-त्रीणि शल्याति ( योगत्रय वा) दण्डयति । ६-ज्ञानस्य यथाख्यातचारित्रस्य च समुच्चयो विद्यते यस्य । ७-सुप्तः-कल्लोलरहितः सचासौ अर्णवः-समुद्रस्तस्योपमा यस्य मनोवाक्कायव्यापाररहित्वात् ।
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नमः म्यादा । ०१४ । ॐ ह्रीं मृमिवाचित्तयोगस्थाय नमः स्वाहा । ०१५। ॐ हीं सूक्ष्मीकृतयपुःक्रियाय . नमः स्वाहा । २१६ । ॐ ही मूक्ष्मकायक्रियास्थायिने नमः स्वाहा । ९१७ । ॐ ह्रीं मूक्ष्मयाचित्तयोगन्ने
नमः म्याहा । २१८ । ॐ ही ऐकदाडिने नमः स्वाहा । ९१० । ॐ हीं परमहंसाय नमः स्वाहा । ९२० । ॐही परमसंवगय नमः स्वाहा । १२१ । ॐ ह्री नैष्कर्म्यसिद्धाय नमः म्बाहा । ९२२। ॐ हीं परमनिर्जराय नमः स्वाहा । १२३ । ॐ ही प्रज्वलत्प्रभाय नमः स्वाहा । १२४ । ॐही मोधकर्मणे नमः म्वाहा । ९२५ । ॐ ही त्रुटत्कर्मपाशाय नमः म्वाहा । १२६ । ॐ ही शैलेझ्यलंकृताय नमः स्वाहा ।९२७ ॐ ही एकाकाररमास्वादाय नमः म्वाहा । ९२८ । ॐ ही विश्वाकाररसाकुलाय नमः स्वाहा । २२९ ।
ही जीवते नमः म्बाहा। ९३०। ॐही अमृताय नमः म्वाहा। ९३१ । ॐही अजानते नमः पाहा । १.३२ । ॐ ही असुप्ताय नमः म्याहा । ९३३ । ॐ हीं शून्यतामयाय नम. म्वाहा । ९३४ । ॐही प्रेयसे नम स्याहा । १३५ । ॐ ह्रीं अयोगिने नमः म्याहा । १३६ । ॐ हीं चतुरशीतिलतगुणाय नमः स्वाहा । ९३७ । ॐ ह्रीं अगुणाय नमः म्वाहा । १३८ । ॐ ही नि.पीतानन्तपर्याय नमः म्वाहा । ९३९ । ॐ ह्रीं अविद्यासस्कोरनाशकाय नम. म्वाहा । ९४०।
-ए-अमहाय दण्डः-मूल्मकाययोगो यस्य । २-मोघानि-फलदानासमर्थानि कर्माणि-अमद्वेद्यादीनि अन्य । ३:-जीनानाधार प्राणवायुरहितत्वात्। -न जागर्ति-योगनिद्रास्थितत्वात् । ५-आत्मम्मम्पेमावधानत्वात् यो नमोनिद्रा प्रात.।६-अतिगयेन प्रियः । ७-न विद्यन्ते गुणा:-विभावपरिणतिरूपारागादयो यस्य । ८–नि पीताः केवलशाने प्रवेशिता अनन्तपर्याया येन। ९-अनिता अजानं तस्य सन्कारः अनुभवन तस्य नाशकः । (अविद्यानागकाः नम्भाग अपि टीकारामाचल्यारिंशदिवाया)।
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= (टिवद्ध छाक
ही मंडल विधान -
ॐ ह्रीं बृद्धाय नमः स्वाहा । ९४१ । ० ही निर्वचनीयाय नमः स्वाहा । ९४२। ॐ हीं अणवे नमः . स्वाहा । ९४३ । ॐ ह्रीं अणीयसे नमः स्वाहा । ९४४ । ॐ ह्रीं अनणुप्रियाय नमः स्वाहा । ९४५। ॐ ह्रीं प्रेष्ठाय नमः स्वाहा । ९४६ । ॐ ह्रीं स्थैर्यसे नमः स्वाहा । ९४७ । ॐ ह्रीं स्थिराय नमः स्वाहा । ९४८ । ॐ ह्रीं निष्ठाय नमः स्वाहा । ९४९। ॐ ह्रीं श्रेष्ठाय नमः स्वाहा । ९५०। ॐ ह्रीं ज्येष्टाय नमः म्वाहा । ९५° 1ॐ ह्रीं सुनिष्ठिताय नमः स्वाहा । ९५२ ॐ ह्रीं भूतार्थशूराय नमः स्वाहा । ९५३ । ॐ ह्रीं भूतार्थर्राय नमः स्वाहा । ९५४ : ॐ ह्रीं परमनिर्गुणाय नमः स्वाहा । ९५५ । ॐ ह्री व्यवहारसुषुप्ताय नमः स्वाहा । ९५६ । ॐ ह्रीं अतिजागरूकाय नमः स्वाहा । ९५७ । ॐ ह्रीं अतिसुस्थिताय नमः म्वाहा । ९५८ । ॐ ह्रीं उदितोदितमाहात्म्याय नमः स्वाहा । ९५९ । ॐ ह्रीं निरुपाधये नमः स्वाहा । । ९६० । ॐ ह्रीं अकृत्रिमाय नमः स्वाहा । ९६१ । ॐ ही अमेयमहिम्ने नम स्वाहा । ९६२ । ॐ ह्री अत्यन्तशुद्धाय नमः स्वाहा । ९६३ । ॐ ही सिद्धिस्वयवराय नमः स्वाहा । ९६४ । ॐ ह्रीं सिद्धानुजाय
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१-केवलजानापेक्षया लोकालोक व्याग्य व्याप्नोति स्म, समुद्धातापेक्षया लोकप्रमाण यो बर्द्धते स्म। २.-निर्वक्तुं-निरुक्तिमानेतु शक्यः, निर्गतंवचनीयमपकीर्तिर्यस्येति वा । ३-अणति-शब्द करोति इति अणुः, अणुसहशस्वाद् वा अणु.-अविभागित्व परमसूक्ष्मत्वाद्योगिनामप्यगम्यत्व सादृश्यम् । ४-अनणवो महान्तः इन्द्रादयस्तेपा प्रियोऽ भीष्टः । अथवा न अणु:-पुद्गलकर्माणुः प्रियो यस्य परमनिर्जरकत्वात् । ५-अतिगयेन प्रियः-प्रेष्ठः ६-अतिशयेन स्थिरः स्थेयान् । ७-नि-नितरामतिशयेन वा तिष्ठति । ८-भूता-अतीता ये अर्था.-पचेन्द्रियविषयास्तेभ्योदूरः। ९-निर्गताः गुणा रागद्वेषादयोऽशुद्धपरिणामा यस्मात् , परमश्चासौ निर्गुणश्चेति परा उत्कृष्टा मा लक्ष्मी यस्य-निश्चिता निर्धारिता वा गुणाः केवलजानादयो यस्य-परमश्रासौ निर्गुणश्चेति ।
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- ( हिन्दु मान ही गाडला सिमाना -
नमः स्वाहा । ०६५। ॐ ह्री सिद्धपुरीपाथाय नमः स्वाहा । ९६६ । ॐ ह्री सिद्धगणातिथये नमः स्वाहा । ९६७ । ॐ ही सिद्धसंगोन्मुखाय नमः स्वाहा । ९६८। ॐ ह्रीं सिद्धालिंग्याय नमः स्वाहा ।९६९ । ॐ ही सिद्धोपगृहकाय नमः स्वाहा । ९७० । ॐ ह्री पुष्टाय नमः स्वाहा । ९७१ । ॐ ह्री अष्टादशसहस्रालाइवाय नमः स्वाहा । ९७२ । ॐ ह्रीं पुण्यसंबलाय नमः स्वाहा । ९७३। ॐ ह्रीं व्रतानयुग्याय नमः स्वाहा । ९७४ । ॐ ह्रीं परमशुललेश्याय नमः स्वाहा । ९७५/ॐ ह्रीं अपारकृते नम. स्वाहा । ९७६ । ॐ ह्रीं क्षेपिष्ठाय नम. स्वाहा । ९७७ । ॐ ह्रीं अन्त्यक्षणसखाय नमः स्वाहा । ९७८ । ॐ ह्रीं पंचलबक्षरस्थितये नमः स्वाहा । ९७९ । ॐ ह्रीं द्विसप्ततिप्रकृत्यासिने नमः म्वाहा । ९८० । ॐ ह्रीं त्रयोदशकलिप्रणुते नमः स्वाहा । ९८१ । ॐ ही अवेदाय नमः स्वाहा । ९८२ । ॐ ह्रीं अयाजकाय नमः स्वाहा । ९८३ । ॐ ह्रीं अयाय नमः स्वाहा १९८४ । ॐ हीं अयाज्याय नमः स्वाहा । ९८५। ॐ ही अनग्निपरिग्रहाय नम. स्वाहा ।९८६ ।
१-अनुवते-क्षणेन स्वामिनमभीष्टस्थान नयन्तीति अन्याः अष्टादशसहनशीलान्येव अश्ता यस्य । २-गुण्य सदयादि एव सवलप यदन यस्य । ३-वृत्तं चारित्रमग्र मुख्य युग्यं वाहन यस्य । ४-अपचरणमपचारो मारण यः कर्मशत्रूणा मारणाध्यानमत्रविषप्रयोगेण मारणमकरोत् । ५-अतिशयेन विप्रः-शीघ्रतर. क्षणमात्रेण त्रैलोक्य . शिवरगामित्वात् । ६-अन्त्यक्षण.--मसारत्यपश्चिमः ममयस्तस्य सखा-सहगामुकः अन्त्यक्षणः सखा-मित्र यस्य ।
-न याजक:-यो निजा पूजा न कारयति । ८-यष्टु अस्यो यज्यः न यज्यः अयज्य:-अलक्ष्यरूपत्वात्स्वामिनः । १-इज्यते इति याज्य. न याज्यः अयाज्यः । शक्याथे विना सामान्ये ध्यण् । हेतुस्तु अलध्यरूपत्वमेव । १०-कर्मसमिधा भस्मीनरणे न अग्ने परिग्रहो यस्य, अग्निदच परिग्रहइच (स्त्रीच) इति अग्निपरिग्रहीन अग्नि परिग्रहौ यस्य । अन्यपीगामने भार्गयाइन परिग्रहो भवति । भगवानुन तथा केवल व्यानामिनिर्दग्धकर्मेन्धनत्वात्तस्य ।
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ॐ ही अनग्निहोत्रिो नमः स्वाहा । ९८७॥ ॐ ह्रीं परमनिःस्पृहाय नमः स्वाहा ।९८८ । ॐ हीं अत्यन्तनिईयाय नमः स्वाहा ।९८९ । ॐ ह्रीं अशिष्याय नमः स्वाहा ९९० । ॐ ह्री प्रशासकाय नमः स्वाहा - । ९९१ । ॐ ह्रीं अदीक्ष्याय नमः स्वाहा । ९९२ । ॐ ही अदीक्षकाय नमः स्वाहा । ९९३ । ॐ ह्रीं ।
अदीक्षिताय नमः स्वाहा । ९०४ | ॐ ही अक्षमाय नमः स्वाहा । ९९५| ॐ ही अगम्याय नमः स्वाहा १९९६ । ॐ हीं अगमकाय नमः स्वाहा । ९९७ । ॐ ह्रीं अरम्याय नमः स्वाहा । ९९.८ । ॐ ह्रीं अरमकाय नमः स्वाहा । ९९९ । ॐ हीं ज्ञाननिर्भगय नमः स्वाहा । १०००।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धाय नमः स्वाहा । १००१। ॐ ह्रीं आभीरणज्ञानोपयोगाय नमः स्वाहा । १००२। ॐ ह्रीं व्यावृत्तिरूपाय नमः स्वाहा । १००३ । ॐ ह्रीं साधुसमाधये नमः स्वाहा । १००४ । ॐ ही सन्मार्गप्रभावकाय नमः स्वाहा । १००५। ॐ ही उत्तमतमारूपाय नमः स्वाहा । १००६ । ॐ ही मार्दवाय नम: स्वाहा । १००७। ॐ ही आर्जवाय नमः स्वाहा । १००८ । ॐ ह्री शुचिस्वरूपाय नमः स्वाहा । १००९ । ॐ हीं सत्याय नमः स्वाहा । १०१० । ॐ ह्रीं संयमाय नम स्वाहा । १०११ । ॐ ही तपाय नमः स्वाहा । १०१२ । ॐ ह्रीं त्यागाय नमः स्वाहा । १०१३। ॐ ह्री आकिञ्चन्याय
१-परमकारुणिकत्वाद्भागवतः कथ निर्दयत्वमितिचेत् परिहियते-अतिगतो-विनष्टोऽन्तो विनायो यस्येत्यत्यन्न:-निश्चिता दया (सगुणनिर्गुण प्राणिवर्गरक्षणलक्षणा करुणा) यस्येति निर्दय'-अत्यन्तइचासौ निर्दयश्चेत्य त्यन्तनिर्दयः । अथवा अति-अतिशयेन अन्ते-अन्तके यमे निर्दयः। यद्वा अतिशयेन अन्त विनाश प्राप्ता निर्दया यस्मात् । अथवा-अतिशयेन अन्ते मोक्षगमने निश्चिता दया यस्य । २-दर्शनविशुब्यादिसमन्तभद्रान्तानि पोडशनामानि पूजापाठे उपरिष्टात् संग्रहीतानि।
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(शिव नही डालेमान) =
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११४२
, नमः म्यादा । १०१५ 1 ही नामचर्याय नमः स्वाहा । २०१५| ॐ हीं समन्तभद्राय नमः पाहा .... 1१०१६ | महायोगीशराय नमः स्वाहा । १०१७। ॐ ही द्रव्यसिजाय नम. स्वाहा १०१८। ..
सनी देहाय नमः स्वाहा । १०१९ । ॐ ही अपुनर्भवाय नमः स्वाहा । १०२० । ही ज्ञानेकमिने नमः । १०२१ । ही जीवधनाय नमः माहा । १०२२ । ॐ ही सिद्वाय नमः स्वाहा ।१०२३ | दी तोकाग्रगामुकाय नम. स्वाहा । १०२४ ।
परिमलविमलाढयैरिन्दुकाश्मीरमित्र
निखिलमिलितद्रव्यैश्चन्दनैत्रीणपेयैः । शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ २॥ चन्दनम् ।। मुरभितहरितानिस्तुपैःशालिजातः,
रजतसदृशवणरक्षतरक्षताः । शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ ३॥ अक्षतान् ।। सरसिजकुसुमोद्यः शिञ्जयपट्पदोधैः
वरवकुलमुपुप्पैः वाल्लभूजातजातैः।
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(पिस्नु अल
ही मेडल विधान) -
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४३
शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ ४ ॥ पुष्पाणि ॥ रजतगिरिनिकामैः शारदाब्जापमानैः,
चरुभिरमृतमित्रैर्वाष्पपूरैरुदारैः। शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ ५ ॥ नैवेद्यम् ॥ रविभिरिवसुदीप्तैः स्वर्णकान्तः प्रदीपैः,
रविकुकुभविलोपि त्रासितं यैस्तमौषम् । शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्चये चिद्धचक्रम् ॥६॥दीपम् ॥ सुरभिरचितगंधै मिनीव्याप्तधृपः
मिलितमुरभिद्रव्यैर्नासिकामीणयद्भिः। शिवसदननिविष्टं नाद्यनन्तं प्रमुक्तम् , ___ दशशतजिनचारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ ७॥ धूपम् ।।
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गचिरकनकवणेश्वोचमाः फलायें,
रभिनवफलपराजिनं मोदयद्भिः। शिवसदननिविष्टं नागनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशगतजिनचारं चये सिद्धचक्रम् ।। ८॥ फलम् ।। वरजलालपुष्पश्चन्दनरक्षनाये,
निरचितकृतभक्त्यायुक्तपुप्पांजलीभिः । शिवसदननिविष्ट नायनन्तं प्रमुक्तम् ,
दशशतजिनचारं चर्नये सिद्धचक्रम् ॥ ९॥ अर्घम् ।। 30ग्रासिया उसा नमः " अतिमोगायोनरशतप्रमागा जाप्यदेगग, इत्थं मिद्धमुपास्य शर्मसहितं संसारवाद्यपहं,
नौद्रव्याशुभभावकर्मकलितं सन्नव्यपर्यापहम् । योध्यायत्फलगश्नुते शिवमयंसौम स हित्वाऽशिवम् ,
संभुगत्वाखिलमंडलेशविबुधस्वामिस्थितिं सर्वतः ।। १० ।। पूर्णाघम् ।।
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चामडल निशान -
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अथ जयमाला।
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त्रिभुवनपतिपूज्यं पुण्यपापाद्विमुक्तं,
विगतकलुपमा छिन्नसंसारभावम् । जगतिपतिसुसेव्यं संयजे भक्तिपूर्वम् ,
वरशिवसुगुणं तं लोकमूर्धावभासम् ॥१॥ अपारजवंजवजीवनकर्मप्रभेदविदारणकेशरिधर्म । त्रिलोकशिरोयुतपुण्यविबुद्ध महासुखमनमहो जयरिद्ध ॥२॥ अखण्डितचिन्मयशांतिकरण्ड घनकपरोन्नतशक्तिसुपिंड । समुद्भवभीतिविमुक्त समृद्ध, महासुखमनमहोजयरिद्ध ॥ ३॥ सुरासुरमानुपनागपरीज, सुदरितदुर्भरभावसमीज । मुकेवलवोध मुदृष्टिसमृद्ध, महासुखमग्न मही जयरिद्ध ॥४॥ दिवारविचन्द्रविमृष्टविकाश, महोभरभूषित सहजनिरास । विपत्कुलकंदकुठार विक्रुद्ध, महासुखमग्न महो जयरिद्ध ॥५॥ जिनाधिपमाननिरूपितभाव सुसूक्ष्मगुणेश विरूप विराव । विवाध विकस्वरदूरविरुद्ध, महासुखमन महो जयरिद्ध ॥६॥
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८
ਭਵਨ
तपांतर पितनिर्मलयोग, समाप्तविवाध विशोक विरोग । प्रदुःखदवानलमेघ विरुद्ध महासुखमन महो जयरिद्ध ॥ ७ ॥ चिरंतनकालकलाकृतवास, भवोदधिसातनशुद्धसमास । मनीषीकविमुक्त विशुद्ध, महामुखमन महो जयरिद्ध ॥ ८ ॥ अनादिनिरंतपदस्थितरूप, रसादिविमुक्त विविक्त विधूप । जरादिदशादलनार्थविशुद्ध, महामुखमन महो जयरिद्ध || ९ || महेश शंकर निर्जर शक, मुनीन्द्र सुचन्द्र सुभास्करचक्र | पराच्युतभाव सुशीतलबुद्ध, महामुखमग्नमहोजयरिद्ध ॥ १० ॥ समरससमनं पूर्णभाव विभावम्,
जनितशिवसुसारं यःस्मरेत् सिद्धचक्रम् ।
सिद्ध शक
अखिलनरसुपूज्यं शौभचन्द्रादिसंव्यम्,
भजति शिवशान्ति संविभुज्याखिलार्थम् ॥ ११ ॥ इतिश्रीशुभचन्द्रकृतसहस्त्रनामगुणित पूजा संपूर्णा ॥ ॥ भद्रं भूयात् ॥
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सिद्ध चक
मंडल विधान
आठवीं जयमालाका अर्थ |
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मै उनकी भक्तिपूर्वक पूजा-स्तुति करता हॅू जो कि त्रिभुवनके पतियों— सुरेन्द्रों व असुरेन्द्रो के द्वारापूज्य हैं, पुण्य और पाप दोनो ही से रहित है, कलुषता जिनकी नष्ट हो चुकी है, संसार पर्यायको जिन्होने छेद डाला है, जगतीपतियों नरेन्द्रोके द्वारा जो सेव्य है, उत्तम कल्याणरूप सभीचीनगुणों से युक्त और लोकके शिरोभागापर प्रकाशमान है ॥ १ ॥
अपार ससारके जीवनरूप कर्मो के समस्त भेदोंका विदारण करनेमे सिंहसमान, तीन लोकके शिवरपर विराजमान, पवित्र, विबुद्ध, महान् सुखमे निमग्न तेजःस्वरूप सिद्धपरमेष्ठिन् आप जयवन्त रहे ॥ २ ॥ कभी भी खण्डित न होनेवाली चित्स्वरूप शातिके करण्ड - पिटारे, घनरूप अद्वितीय सर्वोत्कृष्ट शक्तिके पिंड, उत्पत्तिके भयसे रहित, महासुखमे मग्न तेज स्वरूप समृद्ध सिद्धदेव आप जयवत रहे ॥ ३ ॥ सुरसुर और बरर्णाद्वोके द्वारा पूज्य, दुर्भरभावोंसे दूर, भलेप्रकार पूज्य, सम्यक् केवलज्ञान दर्शनसे समृद्ध, महानसुमें निमग्न तेज स्वरूप सिद्धभगवन् आपजयवत रहे || ४ || दिनमे दिखाई पड़नेवाले सूर्य और चन्द्रमाके समान या उससे भी अधिक विशुद्ध है विकाश जिनका, तेजोभारसे भूषित, स्वभावसे ही स्थिर, क्रोधरहित होकर भी विपत्तिरूपी वृक्षोके कन्द-तनेका उच्छेदन करने के लिए कुठारके समान महान् सुखमें निमग्न तेजः स्वरूप सिद्ध परमेष्ठिन् आप जयवत रहे ॥ ५ ॥ जिनाधिप अर्हन्तके ज्ञानके द्वारा जिनके भावका निरूपण किया गया है, अतिशय सूक्ष्मत्वगुणके स्वामी, नीरूप, शब्दरहित, बाधारहित, विकस्वर- दुष्प्राप्ति या थकावट
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गाण
के विरुद्ध, महान्सुखमें निमग्न तेजोरूप सिद्ध भगवान् आप जयवंत रहें ॥६॥ विभिन्नतपश्चरणोके द्वारा भूपित हो चुका है योग जिनका, समाप्त हो गई हैं बाधाएँ जिनकी, बीतगोक, रोगरहित, महान्दुःखस्वरूप दावानलके लिये मेघके समान, महासुखमें निमग्न तेजोरूप सिद्धदेव आप जयवंत रहें ॥ ७॥ शास्वतिक कालकलामें निवास करनेवाले संसाररूप समुद्रको मुखादेनेवाले शुद्ध, प्रकाशयुक्त, मन और इन्द्रियोसे रहित, विशुद्ध महानसुखमें निमग्न तेजोरूप सिद्ध भगवन् आप जयवंत रहें ॥ ८ ॥ अनादि और अनन्त पदमें स्थित है रूप-आकृति जिनकी, रसादिसरहित, समस्त अन्यपदार्थोसे पृथग्भूत, सब पढार्थीको विशेषरूपसे प्रकाशित करनेवाले अथवा सम्पूर्ण विभावभावों या दोपोंको कम्पितकर देनेवाले जरा जीर्णता-वृद्धत्व आदि अवस्थाओंका दलन करनेवाले, विशुद्ध महासुखमें निमग्न तेजोरूप सिद्धदेव आप जयवन्त रहे ॥॥ हे महेश-महान् ऐश्वर्ययुक्त, हे मुशकर-समीचीन कल्याणके कर्ता, हे निर्जर-कभी जीर्ण न होनेवाले, हे शक्र-अनन्तशक्ति युक्त, हे मुनीन्द्र-मुनियोके नाथ, हे मुचन्द्र-भले प्रकार सबको चन्द्रमाके समान पान्हादित करनेवाले, हे सुभास्करचक्र-कोटिसूर्यसमान तेजके बारक, हे पराच्युतभाव-उत्कृष्ट और कभी भी च्युत न होनेवाले है भाव जिनके, हे अत्यन्तशीतल ज्ञानस्वरूप, महान् सुखमे निमग्न तेजोरूप सिद्धपरमेष्टिन् आप जयवत रहे ॥ १०॥ इस तरह आत्मरससे पूर्णभावरूप, पुनरुत्पत्तिसे रहित, प्राप्त कर लिया है कल्याणरूप समीचीन सार जिन्होंने सम्पूर्ण मनुष्योंके द्वारा पूज्य तथा शुभचन्द्रादिकेद्वारा सेव्य ऐसे सिद्ध परमेष्ठियोके समूहका जो भव्य स्मरण करता है वह समस्त अभ्युदयोको भोगकर अन्तमे मुक्तिरूप समीचीन शान्तिको भी प्राप्त किया करता है ॥११॥
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HALASSANA
श्रीभगवज्जिनसेनाचार्यकृतसहस्रनामगर्भितमन्त्राणि. -
- ॐ ह्रीं श्रीमते नमः स्वाहा । १। ॐ हीं स्वयभुवे नमः स्वाहा । २। ॐ ही बृषभाय नमः स्वाहा । ३ । ॐ ही सभवाय नम स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं शभवे नमः स्वाहा । ५। ॐ हीं आत्मभुवे नमः स्वाहा । ६ । ॐ ही स्वयप्रभाय नमः स्वाहा । ७ । ॐ ही प्रभवे नम स्वाहा । ८। ॐ ह्रीं भोक्रे नमः स्वाहा । ९। ॐ ही विश्वभुवे नम: स्वाहा । १० । ॐ ही अपुनर्भवाय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ही विश्वात्मने नमः स्वाहा । १२ । ॐ ह्रीं विश्वलोकेशाय नमः स्वाहा । १३ । ॐ ही विश्वतश्चक्षुषे नमः स्वाहा । १४ । ॐ ही अक्षराय नम. स्वाहा । १५। ॐ हीं विश्वविढे नमः स्वाहा । १६ । ॐ ही विश्वविद्येशाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ही विश्वयोनये नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं अनश्वराय नमः स्वाहा । १९ । ॐ ही विश्वदृश्वने नमः स्वाहा । २०॥ ॐ ही विभवे नम स्वाहा । २१ । ॐ ही धात्रे नमः स्वाहा । २२ । ॐ ही विश्वेशाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ही विश्वलोचनाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ हीं विश्वव्यापिने नमः स्वाहा । २५ । ॐ ही विधये नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं वेधसे नमः स्वाहा । २७ । ॐ हीं शास्वताय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ही विश्वतोमुखाय नमः स्वाहा । २९ । ॐ ही विश्वकर्मणे नमः स्वाहा । ३० । ॐ ह्रीं जगज्ज्येष्ठाय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं विश्वमूर्तये नमः स्वाहा । ३२ ।
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ॐ ही जिनश्वराय नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ह्रीं विश्वदृशे नमै स्वाहा । ३४ । ॐ ही विश्वभूतेशाय नमः स्वाहा । ३५ । ॐ ह्री विश्वज्योतिषे नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्री अनीश्वराय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ही जिनाय नमः स्वाहा । ३८ । ॐ ही जिप्णवे नमः स्वाहा । ३९ । ॐ ही अमेयात्मने नम स्वाहा ।१०। ॐ ह्रीं विश्वरीशाय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ह्री जगत्पतये नम. स्वाहा । ४२ । ॐ ह्री अनन्तजिते नमः स्वाहा । ४३ । ॐ हीं अचिन्त्यात्मने नमः स्वाहा । ४४ । ॐ ह्रीं भव्यबन्धवे नमः स्वाहा । ४५ । ॐ ही अबन्धनाय नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ही युगादिपुरुपाय नमः स्वाहा । ४७ । ॐ ही ब्रह्मणे नमः स्वाहा । ४८ । ॐ ह्रीं पब्रह्ममयाय नमः स्वाहा । ४९ । ॐ ह्री शिवाय नमः स्वाहा । ५० ॐ ही पराय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ह्री परतराय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ह्रीं मूक्ष्माय नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्रीं परमेष्ठिने नमः स्वाहा । ५४ । ॐ ही सनातनाय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ ह्री स्वयज्योतिषे नमः स्वाहा । ५६। ॐ ह्रीं अजाय नमः स्वाहा । ५७ । ॐ ह्री अजन्मने नमः स्वाहा । ५८ । ॐ ही ब्रह्मयोनये नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ह्रीं अयोनिजाय नमः स्वाहा । ६० । ॐ ह्रीं मोहारिविजयिने नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ही जत्रे नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ह्रीं धर्मचक्रिणे नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ही दयाध्वजाय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ही प्रशान्तारये नमः स्वाहा । ६५ । ॐ ह्री अनन्तात्मने नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ह्री योगिने नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ही योगीश्वरार्चिताय नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ही ब्रह्मविदे नम. स्वाहा । ६९ । ॐ ह्री ब्रह्मतत्वज्ञाय नम. स्वाहा । ७० । ॐ ही ब्रह्मोद्याविदे नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ह्रीं यतीश्वराय नमः स्वाहा । ७२ हा शुद्धाय नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ह्रीं
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धुद्वाय नमः स्वाहा । ७४ | ॐ ही प्रबुद्रान्मने नम. स्वाहा । ७५। ॐ ह्री सिद्वार्थाय नमः स्वाहा । ७६ । ॐ हा सिद्भशासनाय नमः स्वाहा । ७७ । ॐ ही सिद्धाय नम. स्वाहा । ७८ । ॐ ही सिद्धान्तविटे नम स्वाहा । ७९ । ॐ ह्री ध्येयाय नमः स्वाहा । ८० । ॐ ह्री सिद्धसाध्याय नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ही जगद्धिताय नम. स्वाहा । ८२ । ॐ ही सहिष्णवे नम स्वाहा । ८३ । ॐ ही अच्युताय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ ह्रीं अनन्ताय नम स्वाहा । ८५ । ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम: स्वाहा । ८६ । ॐ ही भवोद्भवाय नम. स्वाहा । ८७ । ॐ ही प्रभूप्णवे नम. स्वाहा । ८८ । ॐ ह्री अजराय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ही अजय्याय नम स्वाहा । ॐ ही भ्राजिष्णवे नम स्वाहा । ९१ । ॐ ह्रीं धीश्वराय नम स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं अव्ययाय नम. स्वाहा । ९३ । ॐ ह्री विभावसवे नम स्वाहा । ९४ । ॐ ह्री असभूष्णवे नम स्वाहा । ९५ । ॐ ही स्वयभूप्णवे नम स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं पुरातनाय नमः स्वाहा । ९७ । ॐ ही परमात्मने नमः स्वाहा । १८ । ॐ ही परज्योतिपे नम स्वाहा । ९९ । ॐ हीं त्रिजगत्परमेश्वराय नम स्वाहा । १००।
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ॐ ही दिव्यभापापतये नमः स्वाहा । १०१ । ॐ ह्रीं दिव्याय नमः स्वाहा । १०२॥ ॐ ह्री पूतवाचे नम स्वाहा । १०३ । ॐ ही पूतशासनाय नमः स्वाहा । १०४ । ॐ हीं पूतात्मने नमः स्वाहा । १०५ । ॐ ह्री परमज्योतिषे नमः स्वाहा । १०६ । ॐ ह्री वर्माध्यक्षाय नमः स्वाहा । १०७ । ॐ ही दमीश्वराय नमः स्वाहा । १०८ । ॐ ह्रीं श्रीपतये नमः स्वाहा । १०९ । ॐ ह्री भगवते नमः स्वाहा
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= (शिजू शक ही होडल शिक्षाव -
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। ११० । ॐ ही अहंने नमः स्वाहा । १११ । ॐ ह्रीं अरजसे नमः स्वाहा । ११२। ॐ ह्रीं विरमसे नमः स्वाहा । ११३ । ॐ ह्रीं शुचये नमः स्वाहा । ११४ । ॐ ही तीर्थकृते नमः स्वाहा । ११५ । ॐ ह्रीं फेवलिने नमः स्वाहा । ११६ । ॐ ह्रीं ईशानाय नमः स्वाहा । ११७ । ॐ ह्रीं पूजाहाँय नमः . स्वाहा । ११८ । ॐ ह्रीं स्नातकाय नमः स्वाहा । ११९ । ॐ ह्रीं अमलाय नमः स्वाहा । १२० । ॐ ह्रीं अनन्तदीप्तये नम. स्वाहा । १२१ । ॐ ह्री ज्ञानात्मने नम स्वाहा । १२२ । ॐ ही स्वयबुद्धाय नम. स्वाहा । १२३ । ॐ ह्री प्रजापतये नमः स्वाहा । १२४ । ॐ ह्रीं मुक्ताय नमः स्वाहा । १२५ । ॐ ह्रीं शक्ताय नमः स्वाहा । १२६ । ॐ ह्रीं निगबाधाय नमः स्वाहा । १२७ । ॐ ह्री निष्कलाय नमः स्वाहा । १२८ । ॐ ह्री भुवनेश्वरार्चिताय नमः स्वाहा । १२९ । ॐ ह्री निरजनाय नम. स्वाहा । १३० । ॐ ह्री जगज्ज्योतिपे नम. स्वाहा । १३१ । ॐ ही निरुक्तोक्तये नमः स्वाहा । १३२ । ॐ ह्री अनामयाय नमः स्वाहा । १३३ । ॐ ह्रीं अचलस्थितये नमः स्वाहा । १३४ । ॐ हूं। अक्षोभ्याय नम. स्वाहा । १३५ । ॐ ही कूटस्थाय नमः स्वाहा । १३६ । ॐ ही स्थाणये नमः स्वाहा । १३७ । ॐ ह्री अक्षयाय नमः स्वाहा । १३८ । ॐ ह्री अग्रण्यै नमः स्वाहा । १३९ । ॐ ही ग्रामण्यै नमः स्वाहा । १४० । ॐ ह्री नेत्रे नम. स्वाहा । १४१ । ॐ ह्री प्रणेत्रे नम. स्वाहा । १४२ । ॐ ही न्यायशास्त्रकृते नमः स्वाहा । १४३' । ॐ ह्रीं शास्त्रे नम. स्वाहा । १४४ । ॐ ह्रीं धर्मपतये नम स्वाहा । १४५। ॐ ह्री धाय नम. स्वाहा । १४६ । ॐ ही धर्मात्मने नमः स्वाहा । १४७ । ॐ ह्रीं वर्मतीर्थकृत नमः स्वाहा । १४८ । ॐ ह्रवृषध्वजाय नमः स्वाहा । १४० । ॐ ह्री बृशाधीशाय नमः स्वाहा । १५०।
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सिद्ध चक्र
ह्रीँ मंडल विधान
ॐ ह्रीं नृपकेतवे नम स्वाहा । १५१ । ॐ ह्री वृपायुधाय नम स्वाहा । १५२ । ॐ ही वृपाय नमः स्वाहा । १५३ | ॐ ही वृपपतये नमः स्वाहा । १५४ । ॐ ह्री भर्त्रे नमः स्वाहा । १५५ । ॐ ह्री वृपभाकाय नमः स्वाहा | १५६ | ॐ ही बृपोद्भवाय नमः स्वाहा । १५७ । ॐ है। हिरण्यनाभये नम. स्वाहा । १५८ । ॐ है। भूतात्मने नमः स्वाहा । १५९ । ॐ ह्रीं भूतभृते नमः स्वाहा । १६० । ॐ ह्रीं भूतभावनाय नमः स्वाहा । १६१ । ॐ ह्रीं प्रभवाय नमः स्वाहा । १६२ । ॐ ह्रीं विभवाय नमः स्वाहा |
| १६३ | ॐ ह्रीं भाते नमः स्वाहा । १६४ । ॐ है। भवाय नमः स्वाहा । १६५ । ॐ ह्री भावाय नमः स्वाहा | १६६ । ॐ ह्रीं भवान्तकाय नमः स्वाहा । १६७ । ॐ ही हिरण्नगर्भाय नमः स्वाहा | १६८ | ॐ ह्रीं श्रीगर्भाय नमः स्वाहा । १६९ । ॐ ह्रीं प्रभूतविभवाय नमः स्वाहा । १७० । ॐ है। अभवाय नमः स्वाहा । १७१ । ॐ ही स्वयंप्रभवे नमः स्वाहा । १७२ । ॐ ह्रीं प्रभूतात्मने नमः स्वाहा । १७३ । ॐ ह्री भूतनाथाय नमः स्वाहा । १७४ । ॐ ह्रीं जगत्प्रभवे नमः स्वाहा । १७५ । ॐ ह्रीं 'सर्वादये नमः स्वाहा । १७६ । ॐ ह्रीं सर्वदृशे नमः स्वाहा । १७७ । ॐ ही सार्वाय नमः स्वाहा । १७८ । ॐ ह्रीं सर्वज्ञाय नमः स्वाहा । १७९ । ॐ ह्रीं सर्वदर्शनाय नमः स्वाहा । १८० । ॐ ह्रीं सर्वात्मने नमः स्वाहा | १८१ । ॐ ही सर्वलोकेशाय नमः स्वाहा । १८२ । ॐ ही सर्वविदे नमः स्वाहा । १८३ । ॐ ह्रीं सर्वलोकजिते नमः स्वाहा । १८४ । ॐ ह्रीं सुगतये नमः स्वाहा । १८५ । ॐ ह्री सुश्रुताय नमः स्वाहा | १८६ । ॐ ह्रीं सुश्रुते नमः स्वाहा । १८७ । ॐ ह्रीं सुवाचे नमः स्वाहा । १८८ । ॐ ह्रीं मूरये नमः स्वाहा । १८९ । ॐ ह्रीं बहुश्रुताय नमः स्वाहा । १९० । ॐ ह्रीं विश्रुताय नम स्वाहा
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। १९१ । ॐ ह्री विश्वन.पादाय नम स्वाहा । १०२ । ॐ ही विश्वशोर्याय नम स्वाहा । १०३ । ॐ ह्रीं शुचिश्रवसे नम. स्वाहा । १९४ । ॐ ह्रीं सहस्त्रशीर्षाय नमः स्वाहा । १९५ । ॐ ही क्षेत्रज्ञाय नम. स्वाहा । १९६ । ॐ ह्री सहनाक्षाय नमः स्वाहा । १०.७ । ॐ ह्री सहस्त्रपाढे नम. स्वाहा । १९८ । ॐ ह्रीं मूतभव्यभवद्भर्त्रे नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्री विश्वविद्यामहेश्वराय नमः स्वाहा । २००।
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ॐ ह्री स्थविष्ठाय नमः स्वाहा । १ । ॐ ह्रीं स्थविगय नमः स्वाहा । २ । ॐ ह्री ज्येष्ठाय नमः स्वाहा । ३ । ॐ ह्री पृष्टाय नम. स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं प्रेष्ठाय नम. स्वाहा । ५। ॐ ह्री वरिष्ठधिये नम स्वाहा । ६ । ॐ ह्री स्थेष्टाय नमः स्वाहा । ७ । ॐ ह्री गरिष्ट्राय नमः स्वाहा । ८ । ॐ ह्री वहिष्टाय नम. स्वाहा । ९ । ॐ ही श्रेष्ठाय नम स्वाहा । १० । ॐ ह्रीं अणिष्ठाय नम. स्वाहा । ११ । ॐ ह्री गरिष्ठगिरे नम. स्वाहा । १२ । ॐ ह्री विश्वमुपे नमः स्वाहा । १३ । ॐ ह्री विश्वसृजे नम स्वाहा । १४ । ॐ ह्री विश्वेशे नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्री विश्वभुजे नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं विश्वनायकाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ह्री विश्वासिने नम. स्वाहा । १८ । ॐ ह्री विश्वरूपात्मने नमः स्वाहा । १९ । ॐ ही विश्वजिते नम. स्वाहा । २० । ॐ ह्रीं विजितान्तकाय नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्री विभावाय नमः स्वाहा । २२ । ॐ ही विभयाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ही वीराय नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्री विशोकाय नमः स्वाहा । २५ । ॐ ही विजराय नम स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं जरते नम स्वाहा । २७ । ॐ ह्रीं विरागाय नम: स्वाहा । २८ । ॐ ही विरताय नम. स्वाहा । २० । ॐ ह्रीं असङ्गाय नम. स्वाहा
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ही बडल विधान) =
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SONGS
। ३० । ॐ ही विविक्ताय नम स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं वीतमन्सराय नम. स्वाहा । ३२ । ॐ ह्रीं विनेयजनताबन्धवे नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ह्रीं विलीनाशेषकल्मपाय नम स्वाहा । ३४ । ॐ ह्रीं वियोगाय नम. स्वाहा । ३५ | ॐ ह्रीं योगविदे नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्रीं विदुपे नम स्वाहा । ३७ । ॐ ही विधात्रे नमः स्वाहा । ३८ । ॐ ह्रीं सुविधये नमः स्वाहा । ३९ ॐ ह्रीं सुधिये नमः स्वाहा । ४०।
ॐ ह्रीं क्षानिभाजे नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ही पृथिवीमूर्तये नम. स्वाहा । ४२ । ॐ ह्रीं शातिभाजे नम स्वाहा । ४३ ॐ ही सलिलात्मकाय नम स्वाहा । ४४ । ॐ ह्रीं वायुमूनये नम स्वाहा । ४५। ॐ ही असङ्गात्मने नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं वहिमूर्तये नमः स्वाहा । ४७ । ॐ ही अधर्मदहे नम. स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं सुयज्वने नमः स्वाहा । १९ । ॐ ह्रीं यजमानात्मने नम स्वाहा । ५० । ॐ हीं सुत्वने नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ह्रीं सुत्रामपूजिताय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ह्रीं ऋत्विजे नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्रीं यज्ञपतये नम. स्वाहा । ५४ । ॐ ही यज्याय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ ही यज्ञागाय नमः स्वाहा। । ५६ । ॐ ह्रीं अमृताय नम. स्वाहा । ५७ । ॐ ह्रीं हविपे नम स्वाहा । ५८ | ॐ ह्रीं व्योममूर्तये नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ही अमूर्तात्मने नम. स्वाहा । ६० । ॐ ही निर्लेपाय नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ही निर्मलाय नम. स्वाहा । ६२ । ॐ ही अचलाय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ही सोममूनये नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ह्रीं सुसौम्यात्मने नम स्वाहा । ६५ । ॐ ह्रीं मूर्यभूतये नम स्वाहा । ६६ । ॐ ही महाप्रभाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ही मत्रविदे नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ही मत्रकृते नमः स्वाहा । ६९ । ॐ ह्री मत्रिणे नम स्वाह । ७० । ॐ ही मत्रमूर्तये नम स्वाहा । ७१ । ॐ हीं अनन्तगाय नम. स्वाहा
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बिन कहाँ मानिन्न) =
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। ७२। ॐ ह्रीं स्वतत्राय नम स्वाहा । ७३ । ॐ ह्री तन्त्रकृत नम. स्वाहा । ७४ | ॐ ह्रीं स्वान्ताय नम म्वाहा । ७५ | ॐ ह्री कृतान्तान्ताय नम. स्वाहा । ७६ । ॐ ह्री कृतान्तकृते नम. स्वाहा । ७७ । ॐ ह्री कृतिने नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं कृतार्थाय नम. स्वाहा । ७९ । ॐ ही सत्कृत्याय नम स्वाहा | 20 | ॐ ह्रीं कृतकृत्याय नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ही कृतकतवे नम स्वाहा । ८२ । ॐ ह्री नित्याय नम स्वाहा । ८३ । ॐ ह्रीं मृत्युंजयाय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ ह्री अमृत्यवे नमः स्वाहा । ८५ । ॐ ह्री अमृतात्मने नम स्वाहा । ८६ ॥ ॐ ही अमृतोद्भवाय नम स्वाहा । ८७ । ॐ हूँ। ब्रह्मनिष्ठाय नम स्वाहा । ८८ । ॐ ही परब्रह्मणे नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ह्री ब्रह्मात्मने नमः स्वाहा । ९० । ॐ हूँ। ब्रह्मसभवाय नम स्वाहा । ९१ । ॐ ह्रीं महाब्रह्मपतये नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्री ब्रह्मेश नम: स्वाहा ।०३ । ॐ ह्रीं महाब्रह्मपदेश्वराय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ही सुप्रसन्नाय नमः स्वाहा । ९५ । ॐ ह्री प्रसन्नात्मने नमः स्वाहा । १६ । ॐ ही ज्ञानवर्मदमप्रभवे नम स्वाहा । ९७ । ॐ ही प्रशमात्मने नम. स्वहा । १८ । ॐ ह्रीं प्रशान्तात्मने नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्री पुराणपुरूपोत्तमाय नमः स्वाहा । ३००।
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।
।१ॐ ह्री महाशोकध्वजाय नम स्वाहा । २ । ॐ ह्री अशोकाय नमः स्वाहा । ३ । ॐ ही काय नमः स्वाहा ।४। ॐ ही स्रष्ट्रे नमः स्वाहा ।५।ॐ ह्री पाविष्टराय नम. स्वाहा ।६। ॐ ही पशाय नमः स्वाहा । ७ । ॐ ह्री पद्मसभूतये नमः स्वाहा । ८ । ॐ ही पद्मनाभये नमः स्वाहा । ९। ॐ ही अनुत्तराय नम स्वाहा । १० । ॐ ह्री पद्मयोनये नमः स्वाहा । ११ । ॐ ही जगद्योनये नम.
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ही मंडल विधान) =
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स्वाहा । १२ । ॐ ही इत्याय नम: म्वाहा । १३ । ॐ ह्री स्तुत्याय नम. म्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं स्तुनीश्वराय नम. स्वाहा । १५ । ॐ ही स्तवनााय नम स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं ह्रपाकेशाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ह्र। जितजेयाय नमः स्वाहा । १८ । ॐ ही कृतक्रियाय नमः स्वाहा ।१०। ॐ ह्री गणाधिपाय नमः स्वाहा । २० । ॐ ह्री गणज्येष्ठाय नम स्वाहा । २१ । ॐ ह्र। गण्याय नम स्वाहा । २२ ।
ॐ ही पुण्याय नम स्वाहा । २३ । ॐ ह्री गणापण्यै नम. स्वाहा ।२४ । ॐ ही गुणाकराय नमः स्वाहा । २५। ॐ ही गुणाम्भोधये नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्र। गुणज्ञाय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ही गुणनायकाय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्री गुणाढरिणे नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्रीं गुणोच्छेदिने नमः स्वाहा । ३० । ॐ ह्री निर्गुणाय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ही पुण्यागिरे नमः स्वाहा । ३२ । ॐ ही गुणाय नम स्वाहा । ३३ । ॐ ह्री शरण्याय नमः स्वाहा । ३४ । ॐ ही पुण्यवाचे नमः स्वाहा । ३५ । ॐ ह्री पूनाय नम. स्वाहा । ३६ | ॐ ह्रीं वरेण्याय नम स्वाहा । ३७ । ॐ ही पुण्यनायकाय नम स्वाहा । ३८ | ॐ ही अगण्याय नमः स्वाहा । ३९ । ॐ ह्रीं पुण्यधिये नमः स्वाहा । ४० । ॐ ह्रीं गुण्याय नम. स्वाहा । ४१ । ॐ ह्री पुण्यकृते नम. स्वाहा । ४२ । ॐ ह्री पुण्यशासनाय नम स्वाहा । ४३ ।
ॐ ही धर्मारामाय नम स्वाहा । १४ । ॐ ह्री गुणग्रामाय नम स्वाहा । ४५। ॐ ही पुण्यापुण्यनिरोबकाय नम स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं पापापेनाय नम. स्वाहा । ४७ । ॐ ह्री विपापात्मने नम स्वाहा । ४८ । ॐ ह्रीं विपाप्मने नम स्वाहा । ४९। ॐ हीं बीतकल्मपाय नमः स्वाहा । ५० । ॐ हीं निर्द्वन्द्वाय नम स्वाहा । ५१ । ॐ ही निर्मदाय नम स्वाहा । ५२ । ॐ ह्री शाताय नम. स्वाहा
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। ५३ | ॐ ही निर्माहाय नमः स्वाहा । ५४ | ॐ ही निरुपद्रवाय नमः स्वाहा। ५५। ॐहीं निर्निर्मपाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्री निराहागय नमः स्वाहा । ५७ । ॐ ह्री निःक्रियाय नमः ग्वाहा ।५८ । ॐ ही निरुपलबाय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ह्री निष्फल काय नमः स्वाहा । ६० । ॐ ही निम्तैनगे - नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ह्री निर्धनागमे नमः स्वाहा । ६२ । ॐ हूं। निरास्त्रवाय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ह्रीं विशालाय नमः ग्वाहा । ६४ । ॐ ह्री विपुलब्योतिये नमः रवाहा । ६५ । ॐ ही अतुलाय नम. रवाहा । ६६ । ॐ ह्रीं अचिंत्यवैभवाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ही सुसंवृत्ताय नमः स्वाहा । ६८।
ही सुगुप्तात्मने नमः स्वाहा । ६० । ॐ ही मुभृत नमः स्वाहा । ७० । ॐ ही मुनयतत्वविद नग ग्वाहा । ७१ । ॐ ही कविद्याय नमः स्वाहा । ७२ | ॐ ह्री महाविगाय नमः स्वाहा । ७३ | ॐही मुनये नमः स्वाहा । ७४ | 3 ही परिवृद्धाय नमः स्वाहा । ७५ | ॐ ही गन्ग नमः रवाहा । ७६ । ॐहीं बीशाय नमः स्वाहा । ७७ | ॐ है। विधानिया नमः रवाहा । ७८ । ॐ ही गाक्षिण नमः स्वाहा । ७०। ॐही विनेत्रे नमः स्वाहा । ८०ॐ ह्रीं निहतान्तकाय नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ही पित्रे नगर रवाहा । ८२ | ॐ ह्रीं पितामताय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ह्री पात्रे नमः ग्वाहा । ८४ । ॐही पवित्राय नमः स्वाहा । ८५। ॐ ही पावनाय नगः स्वाहा । ८६ | ॐह। गतये नमः रवाहा । ८७ | ॐही त्रात्रे नमः स्वाहा । ८८। ॐही भिगम्बराय नगः स्वाहा । ८०. ॐदी बर्याग नगः रवाना । ००। ॐही बग्दाय नगा रवाहा । ०१ । ॐ ही परमाय नमः स्वाहा । ०२ | ॐही पुरी नगः रवाहा ।०३। ॐही कवये नमः स्वाहा ।०४। ॐ ही पुगणपुरुषाय नमः स्वाहा ।०५। ॐही वीयम र
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हलविधान
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नमः स्वाहा । ०६ । ॐ ह्री बृषभाय नम. स्वाहा । ९७ । ॐ ह्री पुरवे नमः स्वाहा । ९८ । ॐ ह्री : Mille प्रतिष्ठाप्रमवाय नमः स्वाहा । ००। ॐ ह्री हेनवे नम. स्वाहा । १००। ॐ ह्री भुवनैकपितामहाय नमः स्वाहा । ४००।
ॐ ह्रीं श्रीवृत्तलक्षणाय नम. स्वाहा ।। ॐ ह्रीं श्लक्ष्णाय नम स्वाहा । २। ॐ ही लक्षण्याय नम. स्वाहा । ३। ॐ ह्री शुभलक्षणाय नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं निरक्षाय नम स्वाहा ।५। ॐ ह्री पुडरीकाक्षाय नम स्वाहा । ६ । ॐ ह्रीं पुष्कलाय नम स्वाहा । ७ । ॐ ह्री पुष्करेक्षणाय नम म्याहा । ८ । ॐ ही सिद्धिदाय नम स्वाहा । ९ । ॐ ह्री सिद्धसङ्कल्पाय नमः स्वाहा । १० ।
ॐ ह्री मिद्वात्मने नम स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं मिद्धशासनाय नम स्वाहा । १२ । ॐ ह्रीं बुबोव्याय नम स्वाहा । १३ । ॐ ह्री महाबोबये नम. स्वाहा । १४ । ॐ ह्री वर्धमानाय नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्री महद्धिकाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्री वेदाङ्गाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ही बेदविदे नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं वेयाय नमः स्वाहा । १९ । ॐ ही जातरूपाय नमः स्वाहा । २० । ॐ ही विदावराय नम, म्याहा । २१ । ॐही वेढवेद्याय नमः स्वाहा । २२ । ॐ ह्रीं स्वसवेद्याय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ह्री विवेदाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं बढ़तायगय नमः स्वाहा । २५| ॐही अनादिनिधनाय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्री अव्यक्ताय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ही अव्यक्तवाचे नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्री व्यक्तशासनाय नम स्वाहा । २९ । ॐ ह्री युगादिकृते नमः स्वाहा । ३० । ॐ ही युगाचाराय नम म्बाहा । ३१ । ॐ ही युगादत्रे नमः स्वाहा । ३२ । ॐ ह्री जगदादि जाय नमः स्वाहा । ३३ ।
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= (शिक्षु अाधक
हीं मंडल विधान) -
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ॐ ह्री अतीन्द्राय नमः स्वाहा । ३४ । ॐ ह्रीं अतीन्द्रियाय नम. स्वाहा । ३५ । ॐ ह्रीं बीन्द्राय नम स्वाहा । ३६ । ॐ ह्री महेन्द्राय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ही अतीन्द्रियार्थदृशे नम स्वाहा । ३८ । ॐ ह्री - अनिन्द्रियाय नम स्वाहा । ३९ । ॐ ही अहमिन्द्राव्य नम. स्वाहा । ४० । ॐ ह्री महेन्द्रमहिताय - नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ह्रीं महते नम. स्वाहा । ४२ । ॐ ही उद्भवाय नम. स्वाहा । ४३ । ॐ ह्री कारणाय नम. स्वाहा । ४४ । ॐ ही कर्वे नमः स्वाहा । ४५। ॐ ह्री पारगाय नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ह्री भवतारकाय नम स्वाहा । १७ । ॐ ह्री अगाह्याय नम. स्वाहा । ४८ । ॐ ही गहनाय नमः स्वाहा । ४९ । ॐ ह्री गुह्याय नम स्वाहा । ५० । ॐ ह्री पगाय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ह्री परमेश्वराय नम. स्वाहा । ५२ । ॐ ह। अनन्तये नम. स्वाहा । ५३ । ॐ ह्री अमेयये नम स्वाहा । ५४ । ॐ ह्री अचिन्त्यर्द्धये नम. स्वाहा । ५५ । ॐ ह्री समाधिये नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्री प्राग्रयाय नम स्वाहा । ५७ | ॐ ही प्राग्रहगय नम. स्वाहा । ५८ । ॐ ह्री अभ्यप्रयाय नम स्वाहा । ५९ ।
ॐ ह्री प्रत्यग्राय नम स्वाहा । ६० । ॐ ही अग्र्याय नम. स्वाहा । ६१ । ॐ ही अग्रिमाय नम स्वाहा । ६२ । ॐ ह। अग्रजाय नम. स्वाहा । ६३ । ॐ ही महातपसे नम. स्वाहा । ६४ । ॐ है। महातेजसे नम. स्वाहा । ६५ । ॐ ह्रीं महोढर्काय नम स्वाहा । ६६ । ॐ ही महोदयाय नम. स्वाहा । ६७। ॐ ह्री महायशसे नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ह्री महाधाम्ने नमः स्वाहा । ६९ । ॐ ही महासत्त्वाय नम स्वाहा । ७० । ॐ ह्री महावृतये नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ह्री महावैर्याय नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ह्री महावीर्याय नम. स्वाहा । ७३ । ॐ ही महासम्पर्ट नम स्वाहा । ७४ । ॐ ह्रीं महाबलाय नम स्वाहा
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मंडल विधान)
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। ७५ । ॐ ही महाशक्तये नमः स्वाहा । ७६ । ॐ ह्रीं महाज्योतिषे नमः म्बाहा । ७७ । ॐ ही , महाभूतये नमः स्वाहा । ७८ | ॐ ह्री महाद्युतये नम. स्वाहा । ७९ । ॐ ही महामतये नम स्वाहा । ८० । ॐ ही महानीतये नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ह्री महाक्षान्तये नमः स्वाहा । ८२ । ॐ ह्री महाढयाय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ह्री महाप्राज्ञाय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ ह्रीं महाभागाय नमः स्वाहा 1८५ | ॐ ही महानन्दाय नम स्वाहा । ८६ । ॐ ह्री महाकवये नम स्वाहा । ८७ | ॐ ह्रीं महामहसे नम स्वाहा । ८८ | ॐ ह्री महाकीतये नमः स्वाहा । ८९। ॐ ह्रीं महाकान्तये नम स्वाहा 1.९० । ॐ ही महावपुपे नम स्वाहा । ९१ । ॐ ह्री महादानाय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ही महाज्ञानाय नम स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रा महायोगाय नम स्वाहा । ९४ । ॐ ही महागुणाय नमः स्वाहा । ९५ ।
ॐ ह्री महामहपतये नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्री प्राप्तमहाकल्याणपच काय नम स्वाहा । १७ । ॐ ह्रीं , महाप्रभवे नम स्वाहा । २८ । ॐ ह्री महाप्रातिहार्यावीशाय नमः स्वाहा । ९९ । ॐ ह्री महेश्वराय नमः स्वाहा । १०० | ५०० ।
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- ॐ ह्रीं महामुनये नमः स्वाहा । १ । ॐ ह्रीं महामौनिने नमः स्वाहा । २ । ॐ ही महाध्यानिन नम स्वाहा । ३ । ॐ हा महादमाय नमः स्वाहा । ४ । ॐ ही महाक्षमाय नमः स्वाहा । ५। ॐ ह्रीं महाशीलाय नम स्वाहा । ६ । ॐ हूं। महायज्ञाय नम स्वाहा । ७ | ॐ ह्रीं महामखाय नम स्वाहा । ८। ॐ ही महाव्रतपतये नमः स्वाहा । ९ । ॐ ही मह्याय नम. स्वाहा । १० । ॐ ह्रीं महाकान्निधराय
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नमः स्वाहा । ११ । ॐ ही अधिपाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ही महामैत्रीमयाय नमः स्वाहा । १३ । ॐ ह्री अमेयाय नम. स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं महोपायाय नमः स्वाहा । १५। ॐ हीं महोमयाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ हीं महाकारुणिकाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ही मत्रे नम. स्वाहा । १८ । ॐ ही महामत्राय नमः रवाहा । १९ । ॐ ह्री महायतये नमः स्वाहा । २० । ॐ ह्री महानादाय नमः स्वाहा । २१ । ॐ हूं। महावापाय नमः स्वाहा । २२ । ॐ ह्री महेज्याय नमः स्वाहा । २३ । ॐ हीं महसांपतये नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्री महावरवराय नम. स्वाहा । २५ । ॐ ह्री धुर्याय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं महौदार्याय नम, स्वाहा । २७ । ॐ ह्री महिष्टवाचे नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्रीं महान्मने नम. स्वाहा । २० । ॐ ह्री महसाबाम्ने नमः स्वाहा । ३० । ॐ ह्रीं महपये नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्री महितोढयाय नम. स्वाहा । ३२ । ॐ ह्री महालेशाकुशाय नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ही शूराय नमः स्वाहा । ३४ ।
ॐ ह्री महाभूतपतये नम. स्वाहा | ३५ | ॐ ह्रीं गुरवे नम. स्वाहा । ३६ । ॐ ही महापराक्रमाय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ही अनन्ताय नम. स्वाहा । ३८ । ॐ ह्री महाक्रोवरिपवे नमः . स्वाहा । ३९ । ॐ ही वशिने नमः स्वाहा । १० । ॐ ह्री महाभवाब्बिसतारिणे नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ह्री महामोहादिमूदनाय नमः स्वाहा । ४२ । ॐ ही महागुणाकराय नमः स्वाहा । ४३ । ॐ ही शान्ताय नम स्वाहा । ४४ । ॐ ह्री महायोगीश्वराय नम. स्वाहा । १५। ॐ ही शमिने नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ही महाव्यानपतये नमः स्वाहा । ४७। ॐ ह्री ख्यातमहाधर्माय नमः स्वाहा । ४८। ॐ ह्रीं महात्रताय नम. स्वाहा । ४२ । ह्री महाकारिने नमः स्वाहा । ५० । ॐ ह्री ग्रान्मज्ञाय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ह्री
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-(सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
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महादेवाय नम. म्वाहा । ५२ । ॐ ह्रीं महेशित्र नम स्वाहा । ५३ । ॐ ही सर्वक्लेशापहाय नमः स्वाहा । ५४ । ॐ ह्रीं सायवे नम म्बाहा । ५५ । ॐ ह्रीं सर्वदोपहराय नम स्वाहा । ५६ । ॐ ही हराय नम. स्वाहा । ५७ । ॐ ह्री असम्ध्येयाय नम. स्वाहा । ५८। ॐ ह्रीं अप्रमेयात्मने नम स्वाहा । ५९ । ॐ ह्री शमात्मने नमः स्वाहा । ६०। ॐ ह्री प्रशमाकराय नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ही सवयोगीश्वराय नम. स्वाहा । ६२ । ॐ ह्र। अचिन्त्याय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ह। श्रुतान्मने नम, स्वाहा । ६४ । ॐ ह्री विष्टरश्रवम नम स्वाहा । ६५ । ॐ है। दान्तात्मने नम. स्वाहा । ६६ । ॐ ही दमतीर्थेशाय नम. स्वाहा । ६७ । ॐ ह्री योगात्मने नमः स्वाहा । ६८। ॐ ह्री ज्ञानसर्वगाय नमः स्वाहा । ६९ । ॐ ही प्रवानाय नम. स्वाहा । ७० । ॐ ही आत्मने नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ही प्रकृतये नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ही परमाय नम. स्वाहा । ७३ । ॐ ह। पग्मोदयाय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्री प्रक्षीणबन्गय नम स्वाहा । ७५। ॐ ह्रीं कारये नम. स्वाहा । ७६ । ॐ ह्री क्षेमकृने नमः स्वाहा । ७७ | ॐ ह्री क्षेमशासनाय नमः स्वाहा । ७८ | ॐ ही प्रणवाय नमः स्वाहा । ७९ । ॐ ह्रीं प्रणयाय नमः स्वाहा । ८० | ॐ ही प्राणाय नम. स्वाहा । ८१ । ॐ ह्री प्राणदाय नमः स्वाहा । ८२ । ॐ ह्री प्रणतेश्वराय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ह्री प्रमाणाय नम. स्वाहा । ८४ । ॐ ह्री प्रणधये नमः स्वाहा । ८५।
ॐ ह्रीं दक्षाय नमः स्वाहा । ८६ । ॐ ह्री दक्षिणाय नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ही अचयवे नम. स्वाहा । ८८ । ॐ ह्री अव्वगय नम. स्वाहा । ८९ । ॐ ह्री आनन्दाय नमः स्वाहा । ९० । ॐ ही नन्दनाय नम. स्वाहा । ९१ । ॐ हीं नन्दाय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं वन्याय नम. स्वाहा । ९३ ।
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- (सिक्न थालत । हीं मंडल निशान) -
ॐ है। अनिन्द्याय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ह्रीं अभिनन्दनाय नमः स्वाहा । ९५। ॐ ही कामध्ने नम. स्वाहा । ९६ । ॐ ही कामदाय नमः स्वाहा । ९७। ॐ ह्री काम्याय नम. स्वाहा । १८ । ॐ ह्री कामधेनवे नम स्वाहा । ९९ । ॐ है। अरिंजयाय नमः स्वाहा । १०० ६००।
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___ॐ ही असंस्कृतसुसस्काराय नमः स्वाहा । १ । ॐ ही अप्राकृताय नम. स्वाहा । २। ॐ ह्री वैकृतान्तकृते नमः स्वाहा । ३ । ॐ ही अनन्तकृते नम. स्वाहा । ४ । ॐ ह्री कान्तगवे नम. स्वाहा । ५ । ॐ ही कान्ताय नमः स्वाहा । ६ । ॐ ह्रीं चिन्तामणये नम. स्वाहा । ७। ॐ ही अभीटटाय नमः स्वाहा । ८ । ॐ ही अजिताय नमः साहा।९। ॐ है। जितकामारये नम. स्वाहा । १०। ॐ ही अमिताय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ही अभितशासनाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ह्री जितक्रोधाय नमः स्वाहा । १३ । ॐ ही जितामित्राय नमः स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं जितक्लेशाय नमः स्वाहा । १५। ॐ ही जितान्तकाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ ही जिनेन्द्राय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ह्री परमानन्दाय नमः स्वाहा । १८ । ॐ ही मुनीन्द्राय नम. स्वाहा । १०। ॐ ही दुन्दुभिस्वनाय नमः स्वाहा । २० । ॐ ह्री महेन्द्रवन्याय नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्रीं योगीन्द्राय नमः स्वाहा । २२ । ॐ ही यतीन्द्राय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ही नाभिनन्दनाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ हीं नाभेयाय नमः स्वाहा । २५। ॐ ही नाभिजाय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्री अजानाय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ह्री सुव्रताय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्री मन नमः स्वाहा । २० । ॐ ह्री उत्तमाय नम स्वाहा । ३० । ॐ ह्री अभेद्याय नम. स्वाहा । ३१ । ॐ ही
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अनत्ययाय नमः स्वाहा । ३२। ॐही अनाश्वते नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ही अधिकाय नमः स्वाहा 1 ३४ । ॐ ह्री अविगुरवे नमः स्वाहा । ३५। ॐ ही सुगिरे नमः स्वाहा | ३६ | ॐ ह्रीं सुमेबसे नमः - स्वाहा । ३७ । ॐ ही विक्रामिणे नमः स्वाहा । ३८ । ॐ ह्रीं स्वामिने नम स्वाहा । ३९ । ॐ ह्रीं दराधाय नमः स्वाहा । ४० ॐही निरुत्सुकाय नम स्वाहा । ११ । ॐ ही विशिष्टाय नमः स्वाहा । ४२। ॐ ही शिष्टभुजे नम. स्वाहा । ४३ | ॐ ही शिष्टाय नमः स्वाहा । ४४ | ॐ ही प्रत्ययाय नम. स्वाहा । ४५ । ॐ ह्री कामनाय नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ही अनघाय नम स्वाहा । ४७ । ॐ ही 100 क्षेमिणे नम स्वाहा । ४८ । ॐ ही क्षेमकराय नम स्वाहा । ४९ । ॐ ही अक्षय्याय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ह्री क्षेमवर्मपतये नम स्वाहा । ५१ । ॐ ही क्षमिणे नम. स्वाहा । ५२ । ॐ ह्री अग्राह्याय नम... स्वाहा । ५३ | ॐ ही ज्ञाननिग्राह्याय नम. स्वाहा । ५४ । ॐ ही व्यानगम्याय नमः स्वाहा । ५५ । ॐ ही निरुत्तराय नमः स्वाहा । ५६ | ॐ ही सुकृतिने नम स्वाहा । ५७। ॐ ह्रीं धानवे नमः स्वाहा । ५८ । ॐ ह्र। इयाय नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ह्री सुनयाय नमः स्वाहा । ६०। ॐ ही चतुराननाय नमः स्वाहा । ६१। ॐही श्रीनिवासाय नमः स्वाहा । ६२ । ॐ हीं चतुर्वक्ताय नम. स्वाहा। ६३ । ॐ ह्री चतुरास्याय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ही चतुर्मुग्वाय नमः स्वाहा । ६५। ॐ ह्री सत्यात्मने नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ही सत्यविज्ञानाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ह्री सत्यवाचे नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ही
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१ सहस्त्रनाम पूजनम “ अनघाय " की जगह " नयाय" पाठ पाया जाता है।
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= (सिद्ध ह्रीं मंडला विधान) - ....
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मत्यशासनाय नमः स्वाहा । ६९। ॐ ह्रीं सत्याशिष नमः स्वाहा । ७०। ॐ ह्रीं सत्यसंधानाय नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ह्रीं सत्याय नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ह्रीं सत्यपरायणाय नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ह्रीं स्थेयसे नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्रीं स्थवीयसे नमः स्वाहा । ७५ । ॐ ह्रीं नेदीयस नमः स्वाहा । ७६ । । ॐ ह्रीं दवीयसे नमः स्वाहा । ७७ । ॐ ह्रीं दूरदर्शनाय नमः स्वाहा । ७८ । ॐ ह्रीं अणोरणीयसे नमः म्वाहा । ७९ | ॐ ह्रीं अनणवे नमः स्वाहा । ८०। ॐ ह्री गरीयसामाद्यगुरवे नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ह्रीं सदायोगाय नमः स्वाहा । ८२ । ॐ ह्री सदाभोगाय नमः स्वाहा । ८३। ॐ ह्रीं सदातृप्ताय नमः स्वाहा । ८४ । ॐ ह्री सदाशिवाय नमः स्वाहा । ८५। ॐ ह्रीं सदागतये नमः स्वाहा । ८६ ।। ॐ ह्रीं सदासौख्याय नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ह्रीं सदाविद्याय नमः स्वाहा । ८८ । ॐ ही सदोदयाय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ह्रीं सुघोपाय नमः स्वाहा । ९० । ॐ ह्री सुमुखाय नमः स्वाहा । ९१ । ॐ ह्री सौम्याय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं सुखदाय नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं सुहिताय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ह्रीं सुहृद नमः स्वाहा । ९५ । ॐ ह्रीं सुगुप्ताय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं गुप्तिभृते नमः स्वाहा । ९७ । ॐ ह्री गोपत्रे नमः स्वाहा । ९८ । ॐ ह्रीं लोकाध्यक्षाय नमः स्वाहा । ९९ । ॐ ह्रीं दमेश्वराय नमः स्वाहा । १००-७००
ॐ ह्रीं वृहबृहस्पतये नमः स्वाहा। १ । ॐ ह्रीं वाग्मिने नमः स्वाहा । २। ॐ ही वाचस्पतये १ स पूजा में बृहते और बृहस्पतये अलहदा २ नाम हैं और आगे चलकर निर्मलामोघशासनाय एकही नाम रख्खा हैं परन्तु अदि पुराणा का हिंदी टीका बृहदबृहस्पतये एक और निर्मलाय तथा अमोघशासनाय भिन्न २ नाम हैं।
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- (सिद्ध वाली
मंडल विधान) -
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नम स्वाहा । ३ही उदारविये नमः स्वाहा ।४। ॐ ह्रीं मनीपिणे नमः स्वाहा । ५। ॐ ह्रीं विषणाय नमः स्वाहा । ६। ॐ ही धीमते नमः स्वाहा । ७। ॐ ही शेमुपीशाय नमः स्वाहा । ८। ॐ ही गिरॉपतये नमः स्वाहा।९। ॐ ह्रीं नैकरूपाय नम. स्वाहा । १०। ॐ हीं नयोत्तुगाय नम. स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं नैकात्मने नमः स्वाहा । १२ । ॐ ही नैकधर्मकृते नम. स्वाहा । १३ । ॐ ह्रीं अविज्ञेयाय नमः स्वाहा । १४ । ॐ हीं अप्रतक्यात्मने नमः स्वाहा । १५। ॐ ह्रीं कृतज्ञाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं कृतलक्षणाय नम. स्वाहा । १७ । ॐ ही ज्ञानगर्भाय नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं दयागर्भाय नम. स्वाहा । १९ । ॐ हीं रत्नगर्भाय नमः स्वाहा । २०। ॐ ह्रीं प्रभास्वराय नमः स्वाहा । २१ । ॐ हीं पद्मगर्भाय नमः स्वाहा । २२। ॐ ही जगद्गर्भाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ही हमगर्भाय नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं सुदर्शनाय नमः स्वाहा । २५ । ॐ ह्रीं लक्ष्मीवते नमः स्वाहा । २६ । ॐ ह्रीं त्रिदशाध्यक्षाय नम स्वाहा । २७ । ॐ ह्री.दृढीयसे नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्रीं इनाय नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्रीं ईशित्रे नमः स्वाहा ३०। ॐ ह्रीं मनोहराय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ हीं मनोज्ञागाय नमः स्वाहा । ३२ । ॐ हीं वीराय नमः स्वाहा । ३३ | ॐ ह्रीं गभीरशासनाय नमः स्वाहा । ३४ । ॐ ह्रीं वर्मयूपाय नमः स्वाहा । ३५। ॐ ह्रीं दयायागाय नमः स्वाहा । ३६ । ॐ ह्रीं धर्मनेमये नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ह्रीं मुनीश्वराय नमः स्वाहा । ३८ | ॐ ही धर्मचक्रायुधाय नमः स्वाहा । ३९ ।
ॐ ही देवाय नमः स्वाहा । १० । ॐ ह्री कर्मघ्ने नमः स्वाहा । ४१। ॐ ह्रीं वर्मघोषणाय नमः स्वाहा । ४२। ॐ ह्रीं अमोघवाचे नमः स्वाहा । ४३ । ॐ ही अमोघाज्ञाय नमः स्वाहा । ४४ । ॐ ह्रीं
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निर्मलाय नम स्वाहा । ४५। ॐ ह्री अमोघशासनाय नमः स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं मुरूपाय नमः स्वाहा । ४७ । ॐ ह्री मुभगाय नमः स्वाहा । ४८ । ॐ ह्री न्यागिने नमः स्वाहा । ४९। ॐ ही समयज्ञाय . नमः स्वाहा । ५० । ॐ ह्री समाहिताय नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ही मुस्थिताय नम. स्वाहा । ५२ । ॐ ह्री स्वास्थ्यभाजे नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ही स्वस्थाय नमः स्वाहा । ५४ । ॐ ह्री नीरजस्काय नमः स्वाहा । ५५। ॐ ह्री निरुवाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्री अलेपाय नम स्वाहा । ५७ । ॐ ह्री निष्कलङ्कात्मने नमः स्वाहा । ५८ | ॐ ही वीतरागाय नमः स्वाहा । ५९ । ॐ ह्री गतस्पृहाय नमः स्वाहा । ६० । ॐ ह्री वश्येन्द्रियाय नम स्वाहा । ६१ । ॐ ह्री विमुक्तात्मने नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ह्री निःसपनाय नम, स्वाहा । ६३ । ॐ ही जितेन्द्रियाय नमः स्वाहा । ६४ । ॐ ही प्रशान्ताय नमः स्वाहा । ६५ । ॐ हीं अनन्तधामपये नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ही मंगलाय नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ह्री मलघ्न नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ह्र। अनधाय नमः स्वाहा । ६९ । ॐ ह्री अनीदृशं नमः स्वाहा । ७० । ॐ ही उपमाभूताय नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ही दिष्टय नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ह्री देवाय नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ह्री अगोचगय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्री अमूर्ताय नमः स्वाहा । ७५ । ॐ ह्री मतिमते नम. स्वाहा । ७६ । ॐ ही एकम्मै नमः स्वाहा । ७७ । ॐ ही नकम्मै नमः स्वाहा । ७८ । ॐ ही नानकतत्त्वहशे
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१म पूजा में इसके दो नाम पृथक है। यादि पुराण में एकही नाम रक्खा है. आगे चलकर या पु. में " मगन" नाम भी दिया है जो कि स पूजा में नहीं है।
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नमः स्वाहा । ७९| ॐ ही अव्यात्मगम्याय नमः स्वाहा । ८०। ॐ ही अगम्यात्मने नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ही योगविदं नम स्वाहा । ८२। ॐ हीं योगिवन्दिताय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ह्रीं सर्वत्रगाय नमः . स्वाहा । ८४ | ॐही सदामाविने नम. स्वाहा । ८५। ॐ ही त्रिकालविपयार्थदृशे नमः स्वाहा । ८६।ॐ ह्रीं शकराय नम स्वाहा । ८७। ॐ ह्रीं शवदाय नमः स्वाहा । ८८। ॐ ही दान्ताय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ह्रीं दमिने नम. स्वाहा । ९० । ॐ ह्रीं क्षान्तिपरायणाय नमः स्वाहा । ९१ । ॐ हीं अधिपाय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं परमानन्दाय नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं परात्मज्ञाय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ह्रीं पग-पराय नम. स्वाहा । ९५। ॐ ही त्रिजगद्वल्लभाय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ही अभ्या नम. स्वाहा । ९७ । ॐ ह्रीं त्रिजगत्मगलोदयाय नमः स्वाहा । ९८ । ॐ ही त्रिजगत्पतिपूज्याघ्रये नम. स्वाहा ।९९ । ही त्रिलोकाग्रशिखामणये नम. स्वाहा । १००%3D८००
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ॐ ही त्रिकालदर्शिने नम. स्वाहा । १। ॐ ह्रीं लोकेशाय नमः स्वाहा । २। ॐ ही लोकयात्र नमः स्वाहा । ३। ॐ हीं दृढवताय नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं सर्वलोकातिगाय नमः स्वाहा । ५ । ॐ ह्रीं पूज्याय नम स्वाहा । ६। ॐ ह्रीं सर्वलाफैकसारथये नमः स्वाहा । ७। ॐ ह्रीं पुराणाय नम. स्वाहा । - । ॐ ह्री पुरुपाय नमः स्वाहा । ९ । ॐ ही पूर्वस्मै नमः स्वाहा । १० । ॐ ही कृतपूर्वाङ्गविस्तराय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ही आदिदेवाय नमः स्वाहा । १२ । ॐ ही पुराणाद्याय नमः स्वाहा ।१३ । ॐ है। पुरुदेवाय नमः स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं अधिदेवतायै नमः स्वाहा । १५ । ॐ ही युगमुरव्याय
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नमः स्वाहा । १६ । ॐ ही युगज्येष्ठाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ ही युगादिस्थितिदेशकाय नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्री कल्याणवर्णाय नमः स्वाहा । १९। ॐ ही कल्याणाय नमः स्वाहा । २० । ॐ ही कल्याय नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्री कल्याणलक्षणाय नमः स्वाहा । २२। ॐ ही कल्याणप्रकृतये नमः । स्वाहा । २३ । ॐ ह्री दीप्तकल्याणात्मने नमः स्वाहा । २४ । ॐ ही विकल्मपाय नमः स्वाहा । २५ । ॐ ही विकलङ्काय नमः स्वाहा । २६ । ॐ ही कलातीताय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ही कलिलनाय नमः स्वाहा । २८ । ॐ ही कलाबराय नम स्वाहा । २९। ॐ ह्रीं देवदेवाय नमः स्वाहा । ३० । ॐ ह्री जगन्नाथाय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ही जगद्वन्धवे नमः स्वाहा । ३२ । ॐ ह्री जगद्विभवे नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ही जगद्धितैपिणे नमः स्वाहा । ३४ । ॐ ही लोकनाय नम. स्वाहा । ३५ । ॐ ही सर्वगाय नम स्वाहा । ३६ । ॐ ही जगदग्रजाय नम. स्वाहा । ३७। ॐ है। चराचरगुरवे नम: स्वाहा । ३८ । ॐ ह्री गोप्याय नमः स्वाहा । ३९। ॐ ही गूढात्मने नमः स्वाहा । ४०। ॐ ही गढगोचगय नमः स्वाहा । ४१ । ॐ ही सद्योजाताय नमः स्वाहा । ४२ । ॐ ह्री प्रकाशात्मने नमः स्वाहा । ४३ । ॐ ही बलज्ज्वलनसप्रभाय नम. स्वाहा । ४१ । ॐ ह्री आदित्यवर्णाय नमः स्वाहा । ४५ ।
ॐ ह्री मर्माभाय नम स्वाहा । ४६ । ॐ ही सुप्रभाय नमः स्वाहा । ४७ । ॐ ह्री कनकप्रभाय नमः स्वाहा । ४८ । ॐ ही सुवर्णवर्णाय नमः स्वाहा । ४९ । ॐ ह्रीं रुक्माभाय नमः स्वाहा । ५० । ॐ ही मर्यकोटिसमप्रभाय नम स्वाहा । ५१ । ॐ ही तपनीयनिभाय नमः स्वाहा । ५२ । ॐ ह्री तुगाय नम स्वाहा । ५३। ॐ ह्री बालार्काभाय नमः स्वाहा । ५४ | ॐही अनलप्रभाय नमः स्वाहा | ५५ ।
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ॐ है। सन्ध्याभ्रबभ्रवे नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्री हेमाभाय नमः स्वाहा । ५७ । ॐ ह्री तप्तचामीकरच्छवये नम. स्वाहा । ५८ । ॐ ही निष्टप्तकनकच्छायाय नमः स्वाहा । ५९। ॐ ही कनत्काञ्चनसनिभाय नम स्वाहा । ६० । ॐ ह्र। हिरण्यवर्णाय नम. स्वाहा । ६१ । ॐ ही स्वर्णाभाय नम. स्वाहा । ६२ । ॐ ह्री शातकुम्भनिभप्रभाय नम. स्वाहा । ६३ । ॐ ही द्युम्नाभाय नम. स्वाहा । ६४ । ॐ ह। जातरूपाभाय नमः स्वाहा । ६५। ॐ ह्री दीप्तजाम्बूनदद्यतये नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ह्री सुबौतफल वातश्रिये नम. स्वाहा । ६७ । ॐ ह्री प्रदीप्ताय नम. स्वाहा । ६८ । ॐ ह्री हाटकद्युतये नम. स्वाहा । ६०.। ॐ ह्रीं शिष्टेष्टाय नमः स्वाहा । ७० । ॐ ही पुष्टिदाय नम. स्वाहा । ७१। ॐ ह्री पुष्टाय नम. स्वाहा । ७२ । ॐ ही स्पष्टाय नमः स्वाहा । ७३ | ॐ ही स्पटाक्षराय नमः स्वाहा । ७४ | ॐ ह्री क्षमाय नमः स्वाहा । ७५। ॐ ह्रीं शत्रुघ्नाय नमः स्वाहा । ७६ । ॐ ह्रीं अप्रतिघाय नमः स्वाहा । ७७ । ॐ है। अमोधाय नम. स्वाहा । ७८ । ॐ ह्री प्रशास्त्रे नमः स्वाहा । ७६ । ॐ ही शासित्रे नमः स्वाहा । ८० | ॐ ह्रीं स्वभुवे नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ही शान्तिनिष्टाय नमः स्वाहा । ८२. ॐ ह्रीं मुनिज्येष्ठाय नमः स्वाहा । ८३ | ॐ ह्री शिवतातये नम. स्वाहा । ८४ । ॐ ह्रीं शिवप्रदाय नम. स्वाहा । ८५। ॐ ह्रीं शान्तिदाय नम. स्वाहा । ८६ । ॐ ह्रीं शान्निकृते नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ह्रीं शान्तये नम स्वाहा । ८८। ॐ ही कान्तिमते नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ही कामितप्रदाप नमः स्वाहा । । ॐ ही श्रेयोनिधये नमः स्वाहा
१ मुद्रितादिपुराणेनु " नप्तचामीकरप्रभ ", " तप्तजाम्बूनदद्युति " इतिपाठ।
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। ९१ । ॐ ह्री अधिष्ठानाय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ही अप्रतिष्ठाय नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं प्रतिष्ठिताय नमः स्वाहा । ९४ | ॐ ही सुस्थिताय नमः स्वाहा । ९५। ॐ ह्रीं स्थावराय नमः स्वाहा । १६ । ॐ ह्रीं स्थाणवे नमः स्वाहा । २७ । ॐ ही प्रथीयमे नमः स्वाहा । ९८। ॐ ह्रीं प्रथिताय नमः स्वाहा । ९९ । ॐ है। पृथवे नमः स्वाहा । १००।९००
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___ॐ हूं। दिग्वाससे नमः स्वाहा । १ । ॐ ह्रीं वातरशनाय नम. स्वाहा । २ । ॐ ह्रीं निर्ग्रन्थेशाय नमः म्वाहा । ३ । ॐ ह्रीं निरम्बराय नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्री निष्किञ्चनाय नमः स्वाहा । ५। ॐ ही निराशसाय नमः स्वाहा । ६ । ॐ ह्री ज्ञानचक्षुषे नमः स्वाहा । ७ । ॐ ह्री अमोमुहाय नमः स्वाहा । ८ । ॐ ह्रीं तजोराशये नमः स्वाहा ।९। ॐ ही अनन्तौजसे नम स्वाहा । १० । ॐ ह्री ज्ञानाब्धये नम स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं शीलसागराय नमः स्वाहा । १२ । ॐ है। तेजोमयाय नम. स्वाहा । १३ । ॐ ह्रीं अमितज्योनिपे नम. स्वाहा । १४ । ॐ ह्रीं ज्योतिर्मूर्तये नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्रीं तमोपहाय नमः स्वाहा । १६ । ॐ हीं जगन्चूडामणये नमः स्वाहा । १७ । ॐ ही दीप्ताय नम स्वाहा । १८ । ॐ ही शवते नमः स्वाहा । १९ । ॐ ही विघ्नविनायकाय नमः स्वाहा । २०। ॐ ह्रीं कलिनाय नम. स्वाहा । २१ । ॐ ही कर्मशत्रुघ्नाय नमः स्वाहा । २२ । ॐ ह्रीं लोकालोकप्रकाशकाय नमः स्वाहा । २३ । ॐ हीं अनिन्द्रालवे नमः स्वाहा । २४ । ॐ ह्रीं अतन्द्रालवे नमः स्वाहा । २५ । ॐ ह्रीं जागरूकाय नम. स्वाहा । २६ । ॐ ही प्रामामयाय नमः स्वाहा । २७ । ॐ ह्री लक्ष्नीपतये नमः स्वाहा । २८ । ॐ ह्रीं
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जगज्योतिषे नमः स्वाहा । २९ । ॐ ह्रीं वर्मराजाय नम. स्वाहा । ३०। ॐ हीं प्रजाहिताय नमः स्वाहा । ३१ । ॐ ह्रीं मुमुक्षवे नम स्वाहा । ३२ । ॐ ह्रीं बन्धमोक्षज्ञाय नमः स्वाहा । ३३ । ॐ ह्रीं जिताक्षाय नम. स्वाहा । ३४ । ॐ हूँ। जितमन्मथाय नमः स्वाहा । ३५। ॐ ह्रीं प्रशान्तरसशैलूपाय नम. स्वाहा । ३६ । ॐ ही भव्यपेटकनायकाय नमः स्वाहा । ३७ । ॐ ही मूलकत्रे नम. स्वाहा । ३८ । ॐ ही अखिलज्योतिषे नम स्वाहा । ३९ । ॐ ह्रीं मलघ्नाय नमः स्वाहा । ४० ॐ ह्रीं मूलकारणाय नमः स्वाहा । ४१। ॐ ह्रीं आप्ताय नमः स्वाहा । ४२। ॐ ह्रीं वागीश्वराय नमः स्वाहा । ४३ | ॐ ह्रीं श्रेयसे नम. स्वाहा । ४४ । ॐ ह्रीं श्रायसाक्तये नमः स्वाहा । ४५। ॐ ह्रीं निरुक्तवाचे नम स्वाहा । ४६ । ॐ ह्रीं प्रवत्त्वे नमः स्वाहा । १७ । ॐ हीं वचसामीशाय नमः स्वाहा । ४८। ॐ ह्रीं मारजिते नमः स्वाहा । ४९ । ॐ ह्रीं विश्वभावविदे नमः स्वाहा । ५०। ॐ ह्रीं सुतनवे नमः स्वाहा । ५१ । ॐ ही तनुनिर्मुक्ताय नम स्वाहा । ५२ । ॐ ह्रीं सुगताय नमः स्वाहा । ५३ । ॐ ह्रीं हतदुर्नयाय नमः स्वाहा । ५४ । ॐ ह्रीं श्रीशाय नम स्वाहा । ५५ । ॐ ह्रीं श्रीश्रितपादाब्जाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्रीं बीतभिये नमः स्वाहा । ५७ । ॐ ह्रीं अभयकराय नमः स्वाहा । ५८ । ॐ ह्रीं उत्सन्नदोपाय नमः स्वाहा । ५६ । ॐ ह्री निर्विघ्नाय नम. स्वाहा । ६० । ॐ ह्रीं निश्चलाय नमः स्वाहा । ६१ । ॐ ही लोकवत्सलाय नमः स्वाहा । ६२ । ॐ ह्रीं लोकोत्तराय नमः स्वाहा । ६३ । ॐ ही लोकपतये नम. स्वाहा । ६४ । ॐ ही लोकचक्षुषे नमः स्वाहा । ६५ । ॐ ह्रीं अपारधिये नमः स्वाहा । ६६ । ॐ ही धीरविये नमः स्वाहा । ६७ । ॐ ह्रीं बुद्धसन्मार्गाय नमः स्वाहा । ६८ । ॐ ह्रीं शुद्धाय नमः
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सिद्ध चक्र
मंडल विधान) :
स्वाहा । ६९ । ॐ ह्रीं मनुतपूतवाचे नमः स्वाहा । ७० । ॐ ह्रीं प्रज्ञापारमिताय नमः स्वाहा । ७१ । ॐ ह्रीं प्राज्ञाय नमः स्वाहा । ७२ । ॐ ह्रीं यतये नमः स्वाहा । ७३ । ॐ ह्रीं नियमितेन्द्रियाय नमः स्वाहा । ७४ । ॐ ह्री मदन्ताय नमः स्वाहा । ७५ । ॐ ह्रीं भद्रकृते नमः स्वाहा । ७६ । ॐ ह्रीं भद्राय नमः स्वाहा । ७७ । ॐ ही कल्पवृक्षाय नमः स्वाहा । ७८ । ॐ ह्रीं वरप्रदाय नमः स्वाहा । ७९ । ॐ ह्रीं समुन्मूलित कमरये नमः स्वाहा । ८० । ॐ ह्रीं कर्मकाष्ठाशुशुक्षणये नमः स्वाहा । ८१ । ॐ ह्रीं कर्मण्याय नमः स्वाहा । ८२ । ॐ ह्रीं कर्मठाय नमः स्वाहा । ८३ । ॐ ह्रीं प्राशवे नमः स्वाहा । ८४ । ॐ ह्री हेयादेयविचक्षणाय नमः स्वाहा । ८५ । ॐ ह्रीं अनन्तशक्तये नमः स्वाहा । ८६ । ॐ ही अच्छेद्याय नमः स्वाहा । ८७ । ॐ ह्रीं त्रिपुरारये नमः स्वाहा । ८८ । ॐ ह्रीं त्रिलोचनाय नमः स्वाहा । ८९ । ॐ ही त्रिनेत्राय नमः स्वाहा । ९० । ॐ ह्रीं त्र्यम्बकाय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्रीं त्र्यक्षाय नमः स्वाहा । ९२ । ॐ ह्रीं केवलज्ञानवीक्षणाय नमः स्वाहा । ९३ । ॐ ह्रीं समन्तभद्राय नमः स्वाहा । ९४ । ॐ ह्री शान्तारये नमः स्वाहा । ९५ । ॐ ह्रीं धर्माचार्याय नमः स्वाहा । ९६ । ॐ ह्रीं दयानिवये नमः स्वाहा । ९७ । ॐ ह्रीं सूक्ष्मदर्शिने नमः स्वाहा । १८ । ॐ ह्रीं जितानङ्गाय नमः स्वाहा । ९९ । ॐ ह्री कृपालवे नमः स्वाहा । १०० । १०००
ॐ ह्रीं धर्मदेशकाय नमः स्वाहा । १ । ॐ ह्रीं शुभयवे नमः स्वाहा । २ । ॐ ह्रीं सुखसाद्भूताय नगः स्वाहा | ३ | ॐ ह्रीं पुण्यराशये नमः स्वाहा । ४ । ॐ ह्रीं अनामयाय नमः स्वाहा । ५ । ॐ ह्रीं
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- सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
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धर्मपालाय नम स्वाहा ।६। ॐ ह्रीं जगत्पालाय नमः स्वाहा । ७| ॐ ह्रीं धर्मसाम्राज्यनायकाय नमः स्वाहा । ८ । ॐ ह्रीं उदिनोदिनमाहात्म्याय नमः स्वाहा । ९ । ॐ ही व्यवहारसुपुप्ताय नमः स्वाहा । १०।ॐ ह्रीं चतुरशीतिलक्षगुणाय नमः स्वाहा । ११ । ॐ ह्री सिद्धिपुरीपान्थाय नमः स्वाहा । १२। ॐ ह्रीं -3 सहृतध्वनये नमः स्वाहा । १३ । ॐ ह्री योगकिट्टिनिर्लेपनोद्यताय नमः स्वाहा । १४ । ॐ ही त्रुटत्कर्मपाशाय नमः स्वाहा । १५ । ॐ ह्रीं परमनिर्जराय नम: स्वाहा । १६ । ॐ ही निष्पीतानन्तपर्यायाय नमः स्वाहा । १७ । ॐ हीं अष्टादशसहस्रशीलेशाय नमः स्वाहा । १८। ॐ ह्रीं पचलवक्षरस्थितये नमः स्वाहा । १९। ॐ ही द्रव्यसिद्धाय नमः स्वाहा । २०। ॐ ह्रीं द्वासप्ततिप्रकृत्याशिपे नमः स्वाहा । २१ । ॐ ह्रीं त्रयोदशप्रकृतिप्रणुते नमः स्वाहा । २२। ॐ ह्रीं ज्ञाननिर्भराय नमः स्वाहा । २३ । ॐ ह्रीं ज्ञानकचिज्जीवधनाय नमः स्वाहा । २४१०२४
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इत्यष्टमदले चतुर्विंशत्युत्तरसहस्रनामपूजा संपूर्णा ।
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