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सरल हस्तरेखा शास्त्र
शोध एवं लेखन कार्य पं. रामेश्वरदास मिश्र
मुख्य सम्पादक अरुण कुमार बंसल
संस्करण : जून 2001
© प्रकाशकाधीन
अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ (पंजी.) एच-1 / ए, हौज़ खास, नयी दिल्ली-110016 फोन : 6569200-01, 6569800-01. ईमेल - mail@futurepointindia.com
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सर्वाधिकार
अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ
प्रथम संस्करण 2001
मूल्य 100/रुपये
प्रकाशक
अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ (पंजी.) एच-1/ए, हौज खास, नयी दिल्ली-110016 फोन : 6569200-01, 6569800-01. ईमेल- mail@futurepointindia.com
मुद्रक- स्टेण्डर्ड कार्टन्स (प्रा. लि.) 690 नयी बस्ती देवली, नयी दिल्ली-62 फोन-6082934, 6086388, 6079836 ईमेल- scplv@nda.vsnl.net.in
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प्रस्तावना
किसी भी व्यक्ति के हाथ को देखकर केवल यही नहीं कहा जा सकता कि उसके जीवन में क्या अभाव है, वरन् दोषों को दूर करने के उपाय भी जाने जा सकते हैं । वास्तव में व्यक्ति का हाथ उसके आचारण की उस बन्द आलमारी की चाबी है, जिसके भीतर प्रकृति न केवल उसके दैनिक जीवन को प्रेरणा देने वाली शक्तियों को, अपितु उसके आन्तरिक क्षमता, गुण और उसके विभिन्न कार्य कर पाने की शक्तियों को छिपा रखा है। इन शक्तियों और गुणों को जान-पहचान कर उनका उपयोग जीवन को सफल बनाने में किया जा सकता है।
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आभार
प्रस्तुत पुस्तक उन विद्वानों के मतानुसार सम्पादित की गई है, जिन्होंने हस्तरेखा विषय से संबंधित अनेक प्रकार से अनुसंधान आदि करके ग्रंथ निर्मित किये हैं। आज भी उन ग्रंथों का उपयोग करके मानव समाज अनेक प्रकार से लाभान्वित हो रहा है। जिन विद्वानों के मतानुसार यह पुस्तक आपको समर्पित है। उनका नाम इस प्रकार है:लु.कॉटन, क्रॉम्टन, डा.रेमण्ड, एम.लारेन्स, डा.रॉव, सेन, मीरबशीर, मर्टिनी,फ्रथ, हचिंग्सन, केंजिल, ई.डेनियल, पीन्डी, रितावानए., जी.दास, जेक्सन, नॉयनर, बेनहम, जरमेन, हरगोविन्द द्विवेदी, केथराइन, मिश्र, गफ्फार, कीरो, डरविन, हरीदत्त शर्मा, सी.यम.श्रीवास्तव, सेफेरियल, मैरनर, सरचार्ल्स वेल, सेंटहिल, आदि।
पं. रामेश्वरदास मिश्र
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आधार ग्रंथ
- प्रो. दयानंद - डा. सुरेशचन्द्र मिश्र । - डा. नारायण दत्त श्रीमाली, - प्रो. दयानन्द
1.पामिस्ट्री के अनुभूत प्रयोग 2.हस्त संजीवन 3.बृहद् हस्त-रेखा शास्त्र 4.पामिस्ट्री के गूढ़ रहस्य 5.कीरोहस्तरेखा विज्ञान b.शारीरिक शास्त्र रहस्तरेखाशास्त्र के वैज्ञानिक सिद्धांत 8.ब्राईटेन योर फ्यूचर थू पाम रीडिंग
- कीरो
- वी. ए. के. अय्यर - वी. जे. वेनहम - एम. काटकर
अरुण कुमार बंसल
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1. Evolution of Palmistry and History
अध्याय-1. हस्त रेखा की उत्पत्ति और इतिहास
जिन मनीषियों ने हस्तविज्ञान की खोज की, उसे समझा और व्यवहारिक रूप दिया, उनकी विद्वता के ठोस प्रमाण आज भी मौजूद हैं। भारत के ऐतिहासिक युग के स्मारक हमें बताते हैं कि रोम और यूनान की स्थापना से वर्षों पूर्व इस देश के मनीषियों ने ज्ञान का इतना अमूल्य भण्डार एकत्र कर लिया था कि उसकी सराहना समूचे विश्व में हुआ करती थी, और इन्हीं विद्वानों में हस्त रेखा विज्ञान के जन्म दाता भी थे, उन्ही के बनाये हुए सिद्धान्त अन्य देशों में पहुंचे। हस्तरेखा से सम्बन्धित अब तक जितने भी प्राचीन ग्रंथ पाये गये हैं उनमें वेद एवं सामुद्रिक शास्त्र सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ है। यही वेद और शास्त्र यूनानी सभ्यता और ज्ञान का मूल श्रोत था। अत्यन्त प्राचीन युग में इस विज्ञान का प्रचलन चीन, तिब्बत, ईरान, और मिश्र जैसे देशों में आरम्भ हुआ लेकिन इन देशों में इसमें जो सहयोग स्पष्टता और एकरूपता हमें दिखायी देती है वह वास्तव में भारतीय सभ्यता की देन है। संसार भर में भारतीय सभ्यता को सर्वाधिक उच्च और विवेक पूर्ण माना जाता रहा है। जिसे हम हस्त रेखा विज्ञान या कीरोमेंसी कहते हैं वह भारत के अलावा यूनान में भी पला और पनपा यूनानी शब्द कीर का अर्थ है, जो हाथ से विकसित हुआ हो।
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उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पीड़न की अग्नि में भी सुरक्षित रहकर फीनिक्स ने इस ज्ञान की सुरक्षा के निरन्तर प्रयास किये और जिस विज्ञान को अन्धविश्वास घोषित किया जा चुका था, वह एक बार फिर सत्य बनकर सामने आया। इस प्रकार के अनेक प्रमाण हैं जो इसकी सत्यता को साबित करते हैं कि यह एक सत्य और प्रमाणिक विज्ञान है। ईशा से 423 वर्ष पूर्व यूनानी दार्शनिक एनेक्सागोरस कीरोमेंन्सी का उपयोग ही नहीं बल्कि शिक्षा भी देता था। इन्ही की तरह अरस्तू विलसाइड, कार्डमिस, पिल्लनी थे, जो हिस्पेनस को इस विज्ञान पर एक पुस्तक लिखकर भेंट की थी, उसमें लिखा था- यह ग्रन्थ एक ऐसा अध्ययन है जो जिज्ञासु और सुविकसित मस्तिष्क वाले व्यक्ति के पढ़ने योग्य है। इन विद्वानों ने जब मानव का अध्ययन किया तो मानव के चेहरे उसकी नाक, कान, आँख आदि की स्वाभाविक स्थिति भली भांति पहचान लिया। इसी प्रकार मानव की हथेली में बनी मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा की जानकारी प्राप्त करके उनकी स्वाभाविक स्थिति को मान्यता प्रदान की। इस विज्ञान की खोज और अध्ययन में उन विद्वानों ने जो साधना की, जो समय लगाया उसी के कारण वे हथेली की रेखाओं और चिह्नों को ये नाम दे सकें। जिस रेखा को मानसिकता का सम्बन्धी समझा उसे मस्तिष्क रेखा का नाम दिया। स्नेह से सम्बधित रेखा को हृदय रेखा तथा जीवन की अवधि से सम्बन्धित रेखा को जीवन रेखा का नाम दिया इसी प्रकार चिह्न और पर्वत के भी उन्हीं के अनुरुप नाम दिये।
रेखा विज्ञान की सत्यता
किसी विषय के बारे में तभी विश्वास होता है, जब उसे अंतरात्मा द्वारा देख या समझ लिया जाय । एक अणु को भी अपने अस्तित्व में अध्ययन के अयोग्य ठहराना उचित नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति यह धारणा बना ले कि हस्त विज्ञान विचारणीय विषय नहीं है तो यह उसका कोरा भ्रम होगा। क्योंकि अनेक बड़ी-बड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण सच्चाइयां और वास्तविकताएं जिन्हें कभी नगण्य समझा जाता था वे अब असीमित शक्ति का साधन बन गयी हैं।
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हस्तविज्ञान के अध्ययन में और उसे विकसित करने में अनेक दार्शनिक और वर्तमान काल के वैज्ञानिकों ने भी इस ओर ध्यान दिया है। जब हम मनुष्यों की क्रियाशीलता और उसके पूरे शरीर पर प्रभाव के बारे में विचार करते हैं तो यह जानकर आश्चर्य नहीं होता, कि जिन्हे वैज्ञानिकों ने पहले प्रमाणित किया था कि मानव मस्तिष्क और उसके हाथों के बीच जितने भी स्नायु हैं, उतने शारीरिक व्यवस्था में और कहीं भी नहीं हैं। मनुष्य जब हाथों से कुछ करता है तो मस्तिष्क भी सोंचना आरम्भ कर देता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वभाव, संस्कार, प्रकृति और मानसिक स्थिति के व्यक्तियों के हाथों में भिन्न-भिन्न अन्तर होता है। संसार में अनेक आश्चर्यजनक सच्चाइयां हैं, शताब्दियों के कालचक्र ने इस विज्ञान पर धूल जमा दी थी लेकिन मानव के विवेक ने उसे पुनः खोज निकाला और अब इस विज्ञान की सच्चाई पर विश्वास होने लगा है। यह प्रमाणित हो गया है कि हाथ की रेखाएँ एक ऐसा अमिट सत्य है जो व्यक्ति के जीवन और उसकी प्रकृति को स्पष्ट रुप से प्रकट कर देती है। आज भौतिक युग में जो लोग इस विज्ञान की सच्चाई के प्रभाव को जानना चाहते हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि हमें यह विज्ञान शताब्दियों पूर्व प्राप्त हुआ था और वह विज्ञान आज भी अभीष्ट सिद्ध है।
हस्त रेखा और भविष्य
मानव जाति में कदाचित ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो अपने अतीत का भलीभांति अध्ययन करने के बाद यह अनुभव न करता हो कि उसके विकसित जीवन के कितने वर्ष या कितना भाग उसके अपने और माता-पिता के अनभिज्ञता के कारण बेकार ही बीत चुके हैं। अपने बारे में पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हम स्वयं को नियन्त्रित करने में सक्षम और समर्थ हो सकेंगे। साथ ही अपनी उन्नति करके मानव जाति की उन्नति कर सकेंगे। हस्त विज्ञान का स्वयं को पहचानने से सीधा सम्बन्ध है। इस विज्ञान की उत्पत्ति पर विचार करने के लिए हमें विश्व इतिहास के
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प्रारम्भिक काल में लौटना होगा। आदि काल के मनीषियों का स्मरण करना होगा जिन्होंने विश्व के महान साम्राज्यों सभ्यताओं, जातियों और राजवंशों को नष्ट हो जाने के बाद भी अपने इस भण्डार को सुरक्षित रखा। विश्व इतिहास के प्रारम्भिक काल का अध्ययन करने पर हमें ज्ञात होगा कि हस्त विज्ञान से सम्बन्धित सामाग्री इन्हीं मनिषियों की धरोहर थी। सभ्यता के उस आदिकाल को मानव इतिहास में आर्य सभ्यता के नाम से पुकारा जाता है। हस्त रेखा विज्ञान के मूल विन्दुओं को जांचते-परखते समय हमें प्रतीत होने लगता है कि हाथों की रेखाओं का यह विज्ञान विश्व के पुरातन विज्ञान में से एक है। इतिहास साक्षी है कि भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की जोशी नामक जाति न जाने किस काल से हस्त रेखा विज्ञान को व्यवहार में लाती रही
स्थूल या सूक्ष्म गतिविधि को संचालित करने वाले स्नायु जिनसे ठीक वैसी ही सलवटें या रेखाएँ बनती हैं। उनका निर्माण प्रमुखरूप से गतिशील देशों से होता है। लेकिन सम्भवतः उनमें कुछ अन्य ऐसे तन्तु भी होते हैं जो अर्जित या अतनिहित प्रवृत्तियों के मिश्रित प्रभावों का कम्पनों द्वारा सम्प्रेषण करते हुए और उनका जीवन रेखा के प्रभावित होने वाले भाग से मुख्य रेखा या उसकी शाखा के जोड़ पर क्राश चिह्न बनाते हुए दोनों का सम्बन्ध स्थापित करते हैं। कुछ कोशिकाओं की ऐसी वृत्ति है जिनके कारण उनमें आगामी घटनाओं का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। शायद कम्पन्न उत्पन्न हो जाता है। कोशिकाओं में उत्पन्न कम्पन्न अपने साथ जुड़े तर्क प्रक्रियाओं में लगे कोणों में कोई गतिविधि तो उत्पन्न नहीं करवा सकता लेकिन उनमें चेतनात्मक कम्पन्न अवश्य जगा देता है और इन कम्पनों का सम्प्रेषण हाथ पर बने विभिन्न आकार-प्रकार के चिह्नों के साथ में अंकित हो जाता है। एक तर्कयुक्त जीवन के रुप में मनुष्य का हाथ विशेष रुप से विकाश की उच्च स्थिति का द्योतक है। उसकी गति से क्रोध प्रेम आदि प्रवृत्तियों का ज्ञान होता है। यह गति स्थूल अथवा सूक्ष्म होती है, इसलिए उससे हाथं पर बड़ी या छोटी सलवटें या रेखाएं बनती है।
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चिकित्सा विज्ञान से कान का रक्त अर्बुद काफी समय पहले जाना जा चुका है, यह कान के ऊपरी भाग में विभिन्न आकार में बनता है, यह फिर उपरी भाग के फूल जाने से उसी की शक्ल में बन जाता है। जिसमें रक्त अर्बुद होता है, यह अर्बुद अक्सर पागलों के कान में ही बनता है सामान्य रुप से उन लोगों के कान में जिनका पागलपन पैतृक होता है। इस बात का विशेष अध्ययन पेरिस में किया गया। विज्ञान अकादमी के तमाम परीक्षणों के जो परिणाम निकले उनसे सिद्ध हो गया कि केवल कान की परख करके वर्षों पहले भविष्यवाणी की जा सकती है। इसलिए यह तर्क सिद्ध हो चुका है कि जब केवल कान की जांच-परख करके सही-सही भविष्यवाणी की जा सकती है, तो क्या हाथों का निरीक्षण करके अन्य भविष्यवाणी करना असम्भव है? हाथ के विषय में स्नायु मण्डल और उनके गति संचालन को देखते हुए यह माना जा चुका है कि हाथ ही पूरे मानव शरीर का सर्वाधिक विचित्र अंग है, और हाथ का मस्तिष्क के साथ सबसे ज्यादा गहरा सम्बन्ध है। किन्हीं दो हाथों पर अंकित रेखाएं और चिह्न कभी भी एक जैसे नहीं पाये जाते। इसके अलावा जुड़वा बच्चों की हस्तरेखा में भी परस्पर अन्तर पाया जाता है। यह भी पाया गया है कि हाथ की रेखाएँ किसी परिवार की किसी विशिष्ट प्रवृत्ति को स्पष्ट कर देती है और आने वाली पीढ़ियों में यह प्रवृत्ति निरन्तर बनी रहती है, लेकिन यह भी देखा गया है कि कुछ बच्चों के हाथ पर अंकित रेखाओं की स्थिति में अपने माता-पिता से कोई समानता नहीं होती। अगर गहराई से अध्ययन किया जाय, तो इस सिद्धान्त के अनुसार वे बच्चे अपने माता-पिता से पूरी तरह भिन्न होते हैं। एक प्रचलित धारणा है कि हाथ की रेखाओं पर व्यक्ति के कार्यों का गहरा प्रभाव पड़ता है। वे उनके अनुसार ही चलती रहती हैं। लेकिन सच्चाई इसके विल्कुल विपरीत है, शिशु के जन्म के समय ही उसके हाथ की चमड़ी मोटी और कुछ सख्त हो जाती है, अगर व्यक्ति के हथेली की चमड़ी को पुल्टिस या किसी अन्य साधनों से मुलायम बना दिया जाये तो उसपर अंकित चिह्न किसी भी समय देखे जा सकते हैं। इनमें अधिकांश चिह्न उसकी हथेली पर जीवन के अंतिम क्षण तक बने रहते हैं।
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इस संदर्भ में हाथ में विद्यमान कोषाणुओं पर ध्यान देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैरनर ने अपनी पुस्तक हाथ की रचना और विधान में लिखा है कि हाथ के इन कोषाणुओं का अर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह अद्भुत आणविक पदार्थ अंगुलियों की पोरों में और हाथ की रेखाओं में पाये जाते हैं, तथा कलाई तक पहुंचते पहुँचते-2 लुप्त हो जाते हैं। यह शरीर के जीवित रहने की अवधि में कुछ विशेष कम्पन्न भी उत्पन्न करते हैं तथा जैसे जीवन समाप्त होता है यह रुक जाते हैं। अब हम हाथों की चमड़ी, स्नायु और स्पर्श करने की अनुभूति पर ध्यान देते हैं। सर चार्ल्सवेल ने चमड़ी के सम्बन्ध में लिखा है- चमड़ी त्वरित स्पर्श अनुभूति का महत्त्वपूर्ण अंश है। यही वह माध्यम है जिसके द्वारा बाहरी प्रभाव हमारे स्नायुओं तक पहुंचते हैं। उंगलियों के सिरे इस अनुभूति की व्यवस्थाओं का श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। नाखून उंगलियों को सहारा देते हैं
और लचीले गद्दे के प्रभाव को बनाये रखने के लिए ही उसके सिरे बने हैं। उनका आकार चौड़ा और ढालनुमा है। यह बाहरी उपकरणों का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसकी लचक और भराव इसे प्रशंसनीय ढंग से स्पर्श के अनुकूल ढालते हैं। यह एक अद्भुद् सत्य है कि हम जीभ से नाड़ी नहीं देख सकते, लेकिन उंगलियों से देख सकते हैं। गहराई से निरीक्षण करने पर हमें मालूम होता है, उंगलियों के सिरों में उन्हें स्पर्श के अनुकूल ढालने के लिए उनका विशेष प्रावधान है। जहां भी अनुभूति की आवश्यकता अधिक स्पष्ट होती है, वहीं हमें त्वचा की छोटी-छोटी घुमावदार मेड़ें-सी महसूस होती हैं। इन मेड़ों की इस अनुकूलता में आन्तरिक सतह पर दबी हुई प्रणालिकाएं होती हैं जो पौपिला कहलाने वाली त्वचा की कोमल और मांसल प्रक्रियाओं को टिकाव और स्थापन प्रदान करती हैं। जिनमें स्नायुओं के अन्तिम सिरों का आवास होता है। इस प्रकार स्नायु पर्याप्त सुरक्षित होते हैं और साथ ही साथ इतने स्पष्ट भी दिखाई देते हैं कि लचीली त्वचा द्वारा उन्हें सम्पेषित प्रभावों को ग्रहण कर सकें और इस प्रकार स्पर्श अनुभूति को जन्म दे सकें।
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हस्तरेखा विशेषज्ञ की आवश्यक सामाग्री
हस्तरेखा देखने के लिए कुछ आवश्यक सामाग्री का संकलन होना चाहिए हस्तेरखा देखने के लिए कभी-कभी अनेक रेखाओं का मिश्रण होता है ऐसी स्थिति में हाथ का चित्र लेकर उसे काफी समय तक अध्ययन करना होता है। कभी-कभी पुस्तकों का भी सहारा लेना पड़ता है, इस कारण इन सामाग्रियों को रखना आवश्यक है।
1. आयताकार आवर्धक कांच, व स्प्रिट । 2. सफेद कागज आवश्यकतानुसार। 3. पेंसिल 4. डनलप, रबर के दो टुकड़े आयताकार
(12X22 सेमी. व आधा इंच मोटा)। 5. तारपीन तेल या हाथ का लोशन । 6. अच्छी रोशनी वाली छोटी टार्च । 7. आवर्ध शक्ति (magnifying glass) कांच-बड़ा गोल, 8. 12 इंच की पटरी (स्केल) रुई व -कपड़ा
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Procedure for taking hand prints
हाथ की छाप लेने की विधि
हस्त रेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वे हस्त रेखा का अध्ययन व्यक्तिगत रुप से करें। कारण कि अंगूठे का लक्षण, छोटे निशान, नख, त्वचा की बनावट खुरदरापन व चिकनाहट, अंगुलियों की बनावट, रेखाएँ आदि लगातार बैठकर देखना कठिन हो जाता है। अतः हाथ का छाप लेकर उसका अध्ययन बाद में किया जाय, तो ज्यादा सही निर्णय पाया जा सकेगा तथा खरी भविष्यवाणी हो सकेगी। 1. पहली विधि हाथ की छाप लेने के लिए यह है कि पीतल या स्टील के गिलास में थोड़ा कपूर जलाएँ तथा जलते समय एक सफेद कागज को हाथ से पकड़कर उस पर धुएँ को लगने दें। जब यह पूरा कागज काला पड़ जाय, तो कागज को रबर पैड पर रखें और उसपर हाथ को रखकर दबा दें। हाथ एवं अंगुलियों के किनारे पेंसिल से रेखा खीचें जिससे अंगुलियाँ एवं हाथ की आकृति आ सके। कागज के दूसरी ओर मेथीलेटेड स्प्रिट एक किनारे से डाल कर फैला दें और सुखा लें। अब आपके अध्ययन रेकार्ड के लिए यह कागज तैयार है कागज पर अगर कहीं कच्चा धुंआ होगा, जहां स्प्रिट नहीं गिरी होगी। उस स्थान को रुई से साफ कर दें। 2. दूसरी विधि में हाथ को सुखा कर, उस पर वेसलीन की बारीक तह लगा दी जाय। मुलायम ब्रश से रगड़कर उसे समान बना लिया जाय रबरपैड पर अलग रखे कागज पर हाथ को दबाया जाय । इस प्रकार जो अदृश्य हाथ की छाप आई। उसपर कॉपर आक्साइड फैला दी जाय। अब हाथ की रेखा स्पष्ट दिखायी देगी, इसके बाद चारकोल ड्राइंग्स से उसे पक्का बना लिया जाय। 3. एक अन्य विधि यह है कि 12 x 22 सेमी. का इंकपैड लें साधारण इंक डालें तथा उस पैड पर इंक फैला कर हाथ पर समान रुप से लगाकर, एक अन्य सादे पैड पर बीच में रुई देकर उसपर कागज रखें और हाथ की छाप लगायें तथा जन्म तारीख, नख, आदि का विवरण लिखें। यदि व्यक्ति
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बायें हाथ से लिखने व काम करने वाला है तो उस कागज पर लेफ्ट हैण्डेड लिखें । वैज्ञानिक दृष्टि से यह ज्यादा उचित होगा कि दोनों हाथों की छाप ली जाय ताकि उसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। हाथ के अंगूठे की छाप उसी कागज पर अलग से ली जाय। हाथ की अंगुलियों के बारे में तथा हथेली के बाल यव अंगुलियों के मध्य जगह आदि के बारे में पूर्ण विवरण लिख लें। अगर किसी विशेष कारण से आकस्मिक कहीं हाथ की छाप लेनी पड़े तो ऐसे में सामग्री उपलब्ध न हो तो लिपिषटक को हाथ पर लगाकार उसका इम्प्रेशन लिया जा सकता है। हाथ की छाप लेने के लिए विशेष प्रकार का कागज (वटरपेपर) बाजार में उपलब्ध होता है।
हस्तरेखा देखने के गुण व अधिकार
हस्तरेखा के भविष्यवक्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विश्लेषण के अनुसार जो रेखा बोल रही है उसी के अनुसार उस व्यक्ति को बतलावें। जो आपके पास आया है हल्का सा दुःखी है, वह आपका मार्गदर्शन चाहता है उसे वकील और डाक्टर की तरह उसे तसल्ली से बिठाकर प्रश्न पूछा जाय । कुछ कहने से पहले यह ध्यान रहे कि उसे कोई बात मनगढन्त न कही जाय । घातक और गिरावट वाले बिन्दु बतलाकर उसे बोझिल न किया जाय मृत्यु, तलाक, दुर्घटना, आदि की भविष्यवाणी कभी नहीं करनी चाहिए। प्रारम्भ में यह भविष्यवाणी करना जटिल है तथा बाद में उचित नहीं है। हाथ में अनेक जटिलताएँ हैं उन्हें आसानी से अध्ययन करना हो तो अभ्यास की आवश्यकता होती है। जो विशेषज्ञ होते हैं वे पहले काफी दिनों तक साथियों, मित्रों, परिजनों से मिलकर संलग्न घटनाओं का अध्ययन करके उन रेखाओं के बारे में दक्षता हासिल करते हैं तथा हमेशा अपने ज्ञान की
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परीक्षा करते रहते हैं। चाहे पेशेवर हस्त रेखा विशेषज्ञ हों चाहे मनोविनोद के लिए, उच्च आदर्शों को लेकर चलना मूलभूत सिद्धान्त और निष्ठा के साथ कार्य करना सफलता की कुंजी है। ऐसे ज्ञान को किसी का नुकसान करने के लिए यदि कोई अपनाता है तो वह ज्ञान उसे ही नष्ट करता है और नुकसान पहुंचाता है।
हस्त रेखा विशेषज्ञ का दायित्व
वकील, डाक्टर और हस्तरेखा विशेषज्ञ तीनों का एक काम है कि उनके पास जो व्यक्ति जाता है, वह अपने किसी समस्या को लेकर पहुंचता है। डाक्टर अनेक प्रकार से रोगी का परीक्षण करता है, वह जानता है कि भयंकर रोग है। फिर भी वह उसे नहीं बतलाता और रोगी को आश्वासन देता है कि वह ठीक हो जायेगा। रोगी भयंकर बीमारी के बाबजूद अपनी बलवती आशा से सफलता प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है तथा अनेक रोगी ठीक भी हो जाते हैं। उनमें स्वयमेव अपनी शक्ति पर विश्वास बढ़ जाता है, अपनी शक्ति, साहस, उत्साह के बल पर कार्य में जुट जाता है। ऐसी स्थिति में आपके चुम्बकीय शब्द अपूर्व शक्ति लेकर उस वातावरण में कम्पन्न पैदा कर देते हैं। हस्त रेखा विशेषज्ञ को अपने विषय से सम्बन्धित शास्त्र का पूरा ज्ञान होना जरुरी है। जो कुछ उसने सुन रखा है, जो उसके ध्यान में आया है, उसे बताने की जरुरत नहीं है। शास्त्रोक्त ज्ञान के आधार पर जो उसने खोजा था, जो सिद्धान्त उसने बनाये थे, उसके आधार पर रेखा, चिह्न, देश, काल, अवस्थानुसार परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए भविष्यवाणी करनी चाहिए। बालक विद्या का प्रश्न करेगा, लड़की विवाह से सम्बन्धी पश्न पूछ सकती है। वृद्ध बैंक वैलेंस पूछ सकता हैं। इसलिए भविष्यवाणी करने में जल्दी न करें। हस्तरेखा देखते समय पुरुषों को उनकी उन्नति के वर्ष, नया कारबार, बिमारियों से सर्तकता रखने का समय, विवाह, लाभ, हानि, सन्तान, एवं
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चारित्रिक गुण आदि विशेषतः बताने चाहिए। स्त्रियों को पति का सुख, पुत्र के भाग्योदय का वर्ष, उनके द्वारा होने वाले धर्म-कर्म, कथा, दान, पुण्य, सुख, दुख, पति प्रेम की विचारणीय बातों का वर्णन विशेष रुप से करना चाहिए। एक पामिस्ट सही मायने में लोगों को चेतावनी भी देता है, सुझाव भी देता है और घटनाओं से आगाह कराता है, ताकि भविष्य में होनेवाली घटनाओं से लाभ उठाया जा सकें और समय का सही उपयोग कर सकें, क्योंकि मानव को भविष्य इसलिए रोचक लगता है कि शेष जिंदगी भविष्य की गोद में बितानी है। जब हस्त रेखा देखकर भविष्य बताने की बारी आती है, तो अनेक बातों का ख्याल रखना होता हैं। जैसे- भोजन के तीन घंटे बाद जब हाथ ज्यादा ठंडा हो, न ज्यादा गरम तथा ज्यादा छोटे बालकों का हाथ न देखा जाये। इसके अतिरिक्त आयु, देश, वातावरण को ध्यान में रखते हुए हाथ देखा जाय । केवल एक रेखा देखकर किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहिए। समस्त रेखाओं, चिह्नों और पर्वतों का अध्ययन करें उनके आधार पर ही कुछ कहना उचित होगा। व्यायाम करने के बाद, मदिरा, मिठाई, लेने के बाद हाथ न देखा जाय, क्योंकि इस समय इंद्रियां उत्तेजनायुक्त होती हैं। इस कारण नाड़ियों एवं करतल का स्वाभाविक तत्व समाप्त हो जाता है। इसके अलावा रेखाओं का रंग भी बदल जाता है। हाथ देखने का समय सूर्योदय से 2 घंटे बाद का समय अधिक उचित होता है। अधिक गर्मी एवं अधिक शर्दी के समय भी हाथ देखना अनुचित होता है कारण कि हाथों का रंग प्रभावित होगा। अतः इन बातों का ख्याल रखना ही सफलता की सीढ़ी है।
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How to look at the Palm lines
हस्त रेखा देखने की विधि
हस्त रेखा विशेषज्ञ व्यक्ति के ठीक सामने बैठे, ताकि प्रकाश ठीक सीधे उसके हाथों पर पड़े। पास में किसी तीसरे व्यक्ति को खड़े होने देना या बैठने देना उचित नहीं है। क्योंकि व्यक्ति का और हस्त रेखा शास्त्री का ध्यान बँट सकता है। भारत में सूर्योदय के समय को विशेष महत्त्व दिया जाता है।
इसका कारण यह है कि हाथो-पैरों में सुबह के समय रक्त का संचालन अधिक प्रबल रहता है, जिसके फलस्वरूप रेखाएं अधिक आभायुक्त और स्पष्ट होती हैं। कार्य आगे बढ़ाते हुए पहले बहुत सावधानी से यह देखना चाहिए कि हाथ किस प्रकार के हैं, इसके बाद सावधानी से बायां हाथ देखना चाहिए, तब दायीं ओर आना चाहिए। यह देखने के लिए कि उसमें क्या-क्या परिवर्तन और परिवर्धन हुए हैं, और दायें हाथ को अपने निरिक्षण का आधार बना लेना चाहिए। जिस हाथ का आप निरीक्षण कर रहें हैं, उसे दृढ़ता से अपने हाथों में पकड़ें, रेखा या चिह्न को तब तक दबाते रहें जब तक उनमें रक्त का प्रवाह न आ जाए। इस तरह आप इनके विकास की प्रवृत्तियों को देख सकेंगे। कुछ कहने से पहले हाथ के हर भाग(पीछे का भाग, सामने का हिस्सा, नाखून, त्वचा, रंग आदि) का ठीक से निरीक्षण करें अंगूठे का परीक्षण पहला पड़ाव होना चाहिए।
इसके आगे अंगुलियों पर ध्यान दें- हथेली से उनका अनुपात क्या है, वे छोटी हैं या लम्बी, पतली हैं या मोटी। कुल मिलाकर उनकी श्रेणी निर्धारित करें, यदि वे मिश्रित होंगी तो अकेली उंगली को अलग-अलग श्रेणी में रखते जायें तत्पश्चात् नाखूनों पर ध्यान दें। इससे स्वभाव या मिजाज का पता चलता है। अन्त से पूरे हाथ को सावधानी से परखकर अपना ध्यान
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पर्वतों पर ले जायें तथा अब कौन सी रेखा देखी जाय इसका निर्धारित नियम यह है कि जीवन रेखा, एवं स्वास्थ्य रेखा को एक साथ देखना आरम्भ किया जाय । ताकि उसके पश्चात् मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा आदि का अध्ययन किया जा सके।
हस्त रेखा अध्ययन के समय हस्त रेखा विशेषज्ञ का यह कर्तव्य होता है, कि वे जो कुछ भी बतायें ईमानदारी, सच्चाई तथा पूरी सावधानी से। सीधा सत्य बताने के पहले यह ध्यान रखने का विषय है कि परामर्श कर्ता को किसी भी प्रकार का न ठेस पहुंचे और न ही दुःख का आभास हो। यह ध्यान रहे कि जैसे आप किसी अत्यन्त संवेदनशील और बेहतर मशीन से पेश आते हैं । उसी तरह सामने बैठी मानवता की अत्यन्त उलझी इकाई से पेश आना उचित है। साथ ही सहानुभूति से परिपूर्ण होना भी आवश्यक है। जिस व्यक्ति का हाथ देखा जाये उस समय उससे यथा सम्भव बाहरी रुचि भी लें तथा उसके जीवन में प्रवेश कर जायें। अतः आपकी कुल भावना एवं आकांक्षा कल्याण करने की होनी चाहिए। यदि यह भावना आपके कार्य का मूलाधार बन जाये तो यह कार्य आपको न थकायेगा, न दुःख पहुंचायेगा बल्कि शक्ति देगा। इन बातों के अलावा ज्ञान की खोज में कभी धैर्यहीन न हों। कोई भी भाषा आप अल्पकाल में नहीं सीख सकते। उसी तरह आपको हस्त रेखा का ज्ञान एक दिन में हासिल होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यदि यह विषम कठिन भी लगे तो हतास न हों बल्कि ध्यान से इस पर गौर करें और शोध कार्य समझ कर निरन्तर लगे रहें। यदि आप इसे ठीक-ठीक पढ़ गये तो यह बात अवश्य समझ में आ जायेगी कि इसमें जीवन के रहस्यों की कुंजी हैं। इसमें पैतृक नियम है, पूर्वजों के पाप-पुण्य, अतीत का कार्य, कार्य का कारण जो चीजें हो चुकी है उनका संतुलन, जो हो रहा है, उसकी छाया-सब विद्यमान है।
आप विनयपूर्ण रहें ताकि ज्ञान ऊँचा उठाये, जिज्ञासु रहें ताकि प्राप्ति की ओर बढ़े।
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हस्तरेखा विशेषज्ञ का हाथ
हाथ देखने वाले विशेषज्ञ के स्वयं के हाथ में चन्द्र रेखा (लाइफ ऑफ इन्ट्यूशन) हो तो वह अपनी अर्न्तदृष्टि से जो कहेगा वह सही होगा। हाथ की रेखाओं में समय घटना व दिन का पता लगा पाना बड़ा कठिन होता है। जब हाथ के अनेक भाग मिश्रित होते हैं तो ऐसी स्थिति में पर्वत, रेखा, नाखून, मणिबन्ध, तथा हाथ का रंग एवं देश काल परिस्थिति को आधार मानकर भविष्य बताया जाता है। महिलाओं के हस्त परीक्षण में बायां हाथ देखने के बाद काल व घटना निर्धारण हेतु दाहिने हाथ को भी आधार माना जायेगा ।
चन्द्र रेखा
हस्तरेखा अध्ययन की कठिनता
हाथ की रेखा देखने में अक्सर यह कठिनाई आती है कि अचेतन मन के जो संस्कार हाथ पर आ गये हैं और उभर गये हैं उनका अध्ययन करना, विश्लेषण करना बड़ा कठिन होता है। क्योंकि उसकी चित्त वृत्तियों की सोंचने और करने में सामन्जस्य नहीं होता। हमारा मन उन घटनाओं के प्रति बड़ा सचेत रहता है, जो हमारे सामने घट चुकी होती हैं जो वर्तमान की घटनाएँ हथेली पर होती है, वे एक सेकेण्ड में भूतकाल में बदल जाती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उस चेतना का क्षेत्र जब भूत है और वर्तमान भी है तो उसका अगला भाग भविष्य जरुर होगा। इसलिए सरल हृदय व्यक्ति के हाथ की रेखाओं का स्पष्टीकरण भलीभांति किया जा सकता है।
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हस्तरेखा विज्ञान के साथ-साथ शारीरिक विज्ञान, सामुद्रिक, ज्योतिष, यंत्र, रत्न आदि का ज्ञान होना भी आवश्यक होता है। इस बात को अच्छी तरह से ध्यान में रखना चाहिए कि पुस्तक के अलावा प्रैक्टिकल जब तक नहीं किया जायेगा, तब तक सही अनुभव नहीं हो पायेगा। विवाह रेखा का अध्ययन करते समय कई जगहों से निर्णय करना चाहिए। हाथ में कभी-कभी इतनी बारीक रेखाएँ दिखायी देती हैं कि हम उन्हें चिंता रेखा कहें, कैरियर लाइन कहें या सिस्टर लाइन कहें, यह बात पूर्णरूप से समझ में नहीं आती। ऐसी स्थिति में सामुद्रिक शास्त्र का सहयोग लेना उचित होगा। हाथ देखने वाले विशेषज्ञ के स्वयं के हाथ में चन्द्र रेखा (लाइफ ऑफ इन्ट्यूशन) हो तो वह अपनी अर्न्तदृष्टि से जो कहेगा वह सही होगा। हाथ की रेखाओं में समय घटना व दिन का पता लगा पाना बड़ा कठिन होता है। जब हाथ के अनेक भाग मिश्रित होते हैं तो ऐसी स्थिति में पर्वत, रेखा, नाखून, मणिबन्ध, तथा हाथ का रंग एवं देश काल परिस्थिति को आधार मानकर भविष्य बताया जाता है। महिलाओं के हस्त परीक्षण में बायां हाथ देखने के बाद काल व घटना निर्धारण हेतु दाहिने हाथ को भी आधार माना जायेगा। अगर किसी के हाथ में पांच से ज्यादा या कम संख्या में अंगुलियाँ है तो अंग वृद्धि विषय को आधार मानकर ही उसका निर्णय होगा तथा यह भी निर्भर करता है कि व्यक्ति के किस अवस्था में अंग वृद्धि या अंग हीनता हुई है। यदि किसी का दाहिना हाथ न होगा तो बायें हाथ का पूर्ण अध्ययन करने के पश्चात् सामुद्रिक शास्त्र के आधार पर शरीर के अन्य लक्षण देखने के पश्चात् ही भविष्यवाणी की जायेगी। प्रायः अंगुलियों में एक ही गांठे होती हैं, परन्तु कभी-कभी किसी हाथ में एक से अधिक संख्या में गांठे होती हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति का कार्यकलाप एवं भूतकाल के समय को ध्यान में रखकर निर्णय लेने से सटीकता होती है। दाहिने हाथ से कार्य करने वाले का दाहिना एवं बायें हाथ से कार्य करने वाले का बांया हाथ देखना ठीक उतरता है।
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अभ्यास
1. हथेली की मुख्य रेखाओं के नाम बतायें ? 2. हस्तरेखा विशेषज्ञ का दायित्व क्या होता है ? 3. हाथ देखने का उचित समय कौन सा है ? 4. हस्तरेखा देखने की विधि बतायें ? 5. हस्तरेखा देखने में कौन-कौन सी परेशानियां सामने आती है ?
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2. Hand's Structure & Properties
अध्याय - 2 - हाथ की बनावट प्रकार और
गुण
हाथ का मस्तिष्क के हर भाग से सीधा सम्पर्क होता है। इसलिए वह न केवल सक्रिय विशेषताओं के सम्बन्ध में बताता है, बल्कि उन विशेषताओं का भी निर्देशन करता है जिनका विकास अभी होना है या जो अत्यधिक प्रभावशाली है। जहां तक सामुद्रिक शास्त्र का प्रश्न है, चेहरा इतनी अधिक सरलता से नियन्त्रित हो जाता है कि उसे देखकर पूरी तरह सही निष्कर्ष नहीं हो पाता ।
अनेक व्यक्तियों की हस्त रेखायें भिन्न-2 होती है क्योंकि सभी का चरित्र और विशेषता एक-दुसरे से भिन्न होता है। हस्त रेखा विज्ञान का अध्ययन करने से पहले हाथ का आकार-प्रकार का भेद जानना अत्यन्त आवश्यक है। मोटे तौर पर अपरचित व्यक्ति के चरित्र की कुछ बातों की जानकारी सीमित समय में हो सकती है परन्तु विस्तृत जानकारी के लिए ज्यादा समय खर्च करना पड़ता है इसके निम्नलिखित भेद हैं।
1. प्रारम्भिक हाथ
2. वर्गाकार हाथ
3. दार्शनिक हाथ
4. कर्मठ हाथ
5. कलात्मक हाथ
6. आदर्श हाथ
7. मिश्रित हाथ आदि ।
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प्रारम्भिक हाथ
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प्रारम्भिक हाथ
प्रारम्भिक हाथ के स्वामी प्रायः या तो सीमित बुद्धि के स्वामी होते हैं या फिर कम बुद्धि होती है, ऐसे लोगों का निम्न या साधारण व्यक्तित्व होता हैं। इस प्रकार के हाथ वाले कुछ लोग अपराधी, और बुद्धिहीन होते हैं। इनकी मानसिक क्षमता न के बराबर होती है। क्योंकि जो थोड़ी बहुत बुद्धि इनमें होती भी है, उसका ये उपयोग नहीं करपाते तथा परिश्रम करने में भी ये लोग पीछे होते हैं। ऐसे लोगों का हाथ देखने पर सरलता से ज्ञात जाता है कि तर्क और विचार नाम की वस्तु इनके पास नहीं होती। सिर्फ पीना, खाना, और वासना इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य होता हैं। इस प्रकार की हथेली पहले वर्ण की अधिक पायी जाती हैं। अंगुलियाँ छोटी और कड़ी होती हैं। इनमें आवेग अधिक पाया जाता है तथा उसका नियन्त्रण करना इनके लिए बहुत कठिन होता है। ये लोग इस तर्क को मानते हैं कि-यावज्जिवेत् सुखं जिवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत् । यही इनका आदर्श वाक्य होता है। रंग, रुप, और संगीत पर ये ज्यादा गौर फरमाते हैं स्वास्थ्य और अध्ययन को बेकार समझते हैं। किसान, मजदूर, कारीगर, श्रमिक फेरी वाला, नाविक, कसायी, आदि श्रेणी के लोगों का हाथ इसी प्रकार का होता है। ऐसे हाथों के अंगुलियों का नाखून छोटे होते हैं। अगर ऐसा हाथ अध्ययन किया जाय, तो प्रायः अंगुलियों की लम्बाई लगभग हथेलियों के बराबर होती है। अगर हथेली की अपेक्षा अंगुलियों की लम्बाई अधिक होगी, तो वौद्धिक क्षमता अधिक होगी। कभी-2 कुछ हाथ अविकसित होते हैं, जिनमें रेखाओं का अभाव होता है। अगर ऐसी स्थिति में गहन अध्ययन किया जाय तो हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाला हाथ कहा जा सकता है। इनमें इच्छाओं और कार्यों पर कोई नियन्त्रण नहीं होता। रुप रंग सौंदर्य आदि के प्रति भी ज्यादा रुचि नहीं होती तथा कुछ लोगों में धूर्तता भी पायी जाती है।
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वर्गाकार हाथ
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वर्गाकार हाथ
वर्गाकार हाथ की बनावट एक चतुष्कोण की तरह होता है, अंगुलियों का आकार भी वर्गाकार माना गया है। जीवन के विभिनन क्षेत्रों में इस प्रकार के हाथ पाये गये हैं। इस प्रकार के हाथ के नाखून भी वर्गाकार लेकिन कुछ छोटे होते हैं। इस प्रकार के हाथ के स्वामी अध्यवसायी एवं कर्मठ होते हैं। इस श्रेणी के व्यक्ति किसी का आदेश पालन करने में असफल होते हैं। ऐसे हाथ वाले दूरदर्शी होते हैं, धैर्यवान होते हैं। पुराने रीति रिवाजों में फेरबदल करना इनका स्वभाव नहीं होता, जीर्ण-शीर्ण कपड़े भी पहन लेते हैं और अच्छे दिखते हैं। स्वतः के दैनिक आचरण से समय के पाबन्द और व्यवहार के खरे होते हैं। सत्ता का सम्मान और अनुशासन के प्रति ऐसे लोग ज्यादा लगाव रखते हैं। काल्पनिक लोगों से पटती नहीं और तर्क तथा कलह में इनकी हार कभी नहीं होती। इनको नियम और सिद्धान्त प्रिय होता है तथा जीवन में हर वस्तु के लिए स्थान होता है। हर काम को रुचिपूर्ण करना इनका स्वाभाविक गुण होता है। ये विचारों की अपेक्षा सिद्धान्तप्रिय होते हैं। अल्पभाषी होने के साथ-2 इच्छा शक्ति की दृढ़ता
और चारित्रिक शक्ति के कारण प्रत्येक क्षेत्र में सफल होते हैं वर्गाकार हाथों में अनेक भेद होते हैं जैसे छोटी अंगुलियों का वर्गाकार हाथ, लम्बी अंगुलियों का गठीली, अंगुलियों वाला, शंकु के आकार की अंगुलियों वाला, मिश्रित अंगुलियों वाला, चपटा हाथ, आदि।
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दार्शनिक हाथ
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दार्शनिक हाथ
दार्शनिक हाथ के स्वामी महत्वाकांक्षी होते हैं तथा मानव जाति और मानवता में दिलचस्पी रखते हैं अंग्रेजी भाषा में ऐसे हाथ को फिलास्पिकल हाथ की संज्ञा दी गयी है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के फिलॉस (Philos) शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है प्रेम का अनुशरण और (Sophia) सोफिया शब्द का अर्थ है प्रबुद्धता दार्शनिक हाँथों की अंगुलियों में गांठें बाहर की ओर उठी होती हैं तथा नाखून कुछ लम्बे होते हैं। ऐसे लोगों को धनोपार्जन में काफी परेशानियाँ होती हैं। ऐसे लोगों में बुद्धि और ज्ञान का महत्व धन, सोने और चांदी से अधिक होता है तथा मानसिक विकाश के कार्यों में ज्यादा रुचि दिखाते हैं। अपने कार्य-कलाप, व्यापार, फैक्ट्री आदि में आवश्यता, पड़ने पर ठोस प्रमाण के लिए खूब छान-बीन करते हैं। यदि अंगुलियाँ नुकीली होंगी, तो हर कार्य चतुरायी से करने वाले होते हैं। सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं तथा सच्चायी को वरीयता देते हैं। ऐसे लोग यदि चित्रकार होते हैं तो उनकी कला में रहस्यवाद झलकता है। कवि होते हैं तो प्रेम और विरह की पीड़ा का वर्णन न होकर दार्शनिक बातों का उल्लेख पाया जाता है। ये ज्ञान को ही शक्ति और अधिकार देने वाला मानते हैं और अन्य लोगों से भिन्न रहना चाहते हैं। जीवनवीणा के हर तार और उसकी धुन से ये परिचित होते हैं उद्देश्य पूर्ति हेतु हर सम्भव प्रयास करते हैं तथा ऐसे हाथ भारत में ज्यादा देखने को मिलते हैं। यदि दार्शनिक हाथ अधिक उन्नत एवं विकसित होता है तो ऐसे लोग धर्मात्मा बन जाते हैं और रहस्यवाद की सीमा पर अतिक्रमण कर जाते हैं। कुछ दार्शनिक हाथ कोमल और कुछ नुकीली अंगुली वाले होते हैं। इस प्रकार के हाथ वाले बातचीत में निपुण, हर विषय को समझने की क्षमता, तत्काल निर्णय की भावना, मित्रता, प्रेम, अनुराग में परिवर्तन की चेष्टा, भावुक सहसा क्रोधी, उदारता, सहानुभूति तथा कभी-2 स्वार्थी होते हैं। जब इस प्रकार का कठोर हाथ हो तो कलाप्रिय, दृढ़संकल्प, राजनीतिज्ञ, रंगमंच के ज्ञाता, होते हैं। गायिका का हाथ अगर इस प्रकार का हो तो
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गाने से पूर्व की तैयारी नहीं करती । स्पष्ट है कि इस प्रकार के हाथ वाले पूर्ण रूप से सोच-विचार कर कार्य नहीं कर पाते। इस प्रकार के लोगों का सबसे बड़ा गुण और शक्ति तत्कालिकता होती है तथा उनकी सफलता का आधार भी यही होता है अगर ऐसा ही हाथ अधिक नुकीला होता है तो सबसे अधिक भाग्यहीन हाथ माना जाता है, जबकि देखने में इसकी आकृति सब प्रकार के हाथों से सुन्दर होती है। तथा परिश्रम करने में ऐसे लोग सर्वथा पीछे होते हैं तथा सपनों के संसार में विचरण करने वाले आदर्शवादी होते हैं एवं प्रत्येक वस्तुओं में सौंदर्य खोजते हैं और पाने पर सम्मान करते हैं। समय की पाबन्दी व्यवस्था अथवा अनुशासन का कोई महत्व नहीं देते तथा बड़ी आसानी से दूसरे के प्रभाव में आ जाते हैं।
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इच्छा न होने पर भी परिस्थियों के अनुसार परिवर्तित होना पड़ता है। प्राकृतिक रंगों के प्रति आर्कषण होता है । यथार्थ और सत्य की खोज करने में असमर्थ होते हैं। संगीत तथा रस्मों से प्रभावित होते हैं। ऐसे सुन्दर और सुकुमार हाथों के स्वामी कभी-कभी स्वभाव से इतने भावुक होते हैं कि परिस्थितियों को देखकर सोचने लगते हैं कि उनका जीवन व्यर्थ है। इसका परिणाम यह होता है कि मनःस्थिति में विकृति आ जाती है और जीवन के प्रति उदासीन हो जाते हैं। ऐसे लोगों को निरर्थक न समझ कर उन्हे प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उन्हे स्वयं को उपयोगी बनाने हेतु सहायता करनी चाहिए ।
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कर्मठ हाथ
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कर्मठ हाथ
कर्मठ हाथ में ऊपरी हिस्सा (अंगुलियों का क्षेत्र) कुछ नुकीला होता है। मणिबन्ध और शुक्र (चन्द्र पर्वत के आस-पास का भाग) मांशलयुक्त एवं चौड़ा होता है। ऐसे हाथों के स्वामी ज्यादा समय तक लगातार कार्य करने में असमर्थ होते हैं। कलात्मक कामों में ऐसे लोग ज्यादा सफल पाये गये हैं इन्हें स्वतन्त्र कार्य करने में ज्यादा रुचि होती है तथा किसी भी नये कार्य को परिश्रम पूर्वक पूरा करते हैं। ऐसे हाथ के स्वामी ज्यादातर ब्रिटेन और अमेरिका में पाये जाते हैं। ऐसे हाथ में अंगूठे और तर्जनी के मध्य ज्यादा खाली स्थान होने पर दया, प्रेम तथा मानवीय गुण ज्यादा होता है। इनमें यह विशेषता भी पायी जाती है कि कभी-2 अपना कार्य बड़ी चालाकी से दूसरों द्वारा सम्पन्न करवा लेते हैं। सुख-दुख का इन्हें ज्ञान होता है तथा देशभ्रमण करने के शौकीन भी होते हैं। इनमें कार्य के समय उत्साह नजर आता है। पराविज्ञान में इनकी न ही आस्था होती है न प्रेम तथा धर्म, योग में पीछे होते हैं। अगर अंगुलियां नरम होंगी तो थोड़ा चिड़चिड़ापन होगा। अगर यही अंगुलियाँ चपटी होगी तो नौकरी और सेवा कार्य की ओर ज्यादा झुकाव होगा। ऐसे हाथों के लोग भारत में हिमालय की पहाड़ियों तथा उत्तरी क्षेत्रों में ज्यादा पाये जाते हैं।
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चमसाकार हाथ
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चमसाकार हाथ
जैसे नाम से ही जाहिर है कि चमसाकार अर्थात चम्मच जैसा हाथ, यानी जिस हाथ की आकृति चम्मच जैसी हो, अंगुलियों की बनावट भी आगे से चम्मच की तरह गोलाई लिये हो। इन हाथों का एक विशेष लक्षण यह है कि इनकी अंगुलियों में छिद्र होते हैं। इन हाथों में लगभग सभी रेखाएं पायी जाती हैं। इनकी रेखाओं में कोई न कोई दोष अवश्य पाया जाता है। इनमें अंगुलियां और हथेली न बड़ी, न छोटी, अर्थात मध्यम होती हैं। कोई एक अंगुली तिरछी या टेढ़ी होती है | चमसाकार हाथ वाली महिलाएं रूढ़िवादी नहीं होती हैं। ये हमेशा कुछ अलग कर दिखाने की फिराक में रहती हैं। इसलिए इन्हें जीवन में सफलता देर से मिलती है। इन्हें पारिवारिक सहायता या रिश्तेदारी से मदद कम मिलती है। अगर मंगल ग्रह उन्नत हो, तो ऐसे लोग वीर होते हैं। ऐसे लोगों का गुरु ग्रह उन्नत हो, तो इन्हें सत्संग या ज्ञान आदि में रुचि होती है। ऐसे लोग बहुत लापरवाह भी होते हैं। इनके जीवन में बहुत परिवर्तन होते हैं। हाथ अगर भारी न हो तो इन्हें अपने जीवन में अत्यधिक संघर्ष के बाद सफलता मिलती है। अगर बुध की अंगुली तिरछी हो, तो ये बातूनी स्वभाव के होते हैं। चमसाकार हाथ वाले अनोखे स्वभाव के होते हैं तथा इनके जीवन में तकरीबन सभी प्रसंग घटते हैं, जैसे प्रेम, दोस्ती आदि। इनकी संतान तेज स्वभाव की होती है एवं इन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आ जाता है। हाथ का रंग काला और वह पतला होने पर ऐसे लोगों को कानून और जेल संबंधी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी महिलाओं की दूसरों से कम ही बनती है। ऐसी महिलाओं को खुद झगड़ा मोल लेने का शौक नहीं होता है पर ये झगड़े में जल्दी पड़ जाती हैं। इनका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। इन्हें अपने मां-बाप, या पति के मां-बाप, दोनों में से एक का ही सुख मिलता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चमसाकार हाथ वाले तरक्की अवश्य करते हैं। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों, खोजकारों एवं अन्वेषण करने वालों का हाथ भी कई बार चमसाकार ही पाया गया है।
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कलात्मक हाथ
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कलात्मक हाथ
कलात्मक हाथों की बनावट नर्म होती है ऐसे व्यक्ति उदार, प्रेमी और दयालु होते हैं। सुन्दर वस्तुओं, कलाकारिता, आकृति और रंग से निर्मित सामग्री को प्यार करते हैं। शान, शौकत, नृत्य, संगीत कैबरेडांस वगेरा में ज्यादा दिलचस्पी होती है। तुच्छ और हल्की चीजें इन्हें पसंद नहीं होती तथा ज्यादा बहस व तर्क वितर्क पसन्द नहीं करते। मानसिक दुर्बलता के कारण कई कार्य करने में असमर्थ होते हैं। व्यवसाय वाणिज्य में ज्यादा चालाक नहीं होते। इन्हें ज्ञान, भावना सुहृदयता होने के बाबजूद प्रवृत्ति से ही ज्यादा काम की ओर झुकाव होता है। अंगुलियों में गांठ होने से व्यक्ति तार्किक और आलोचनात्मक प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग मेहनत करके अध्ययन में भी सफल होते हैं। परन्तु इसे अपना मूल आधार समझ कर ये लोग कभी-2 बड़ी भूल कर बैठते हैं। ये व्यक्ति कला क्षेत्र में सफल होते दिखे हैं और यही इनके जीवन का अभिन्न अंग है। व्यवहारिक दृष्टि से ये प्रायः सफल नहीं हो पाते, कारण की इनके स्वभाव में लापरवाही होती है।
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आदर्श हाथ
Aadharini.
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आदर्श हाथ
आदर्श हाथ के स्वामी का मस्तिष्क प्रखर एवं तीक्ष्ण बुद्धि होती है यह प्रारम्भिक हाथ के लक्षणों के विपरीत होता है। यह देखने में अति सुन्दर होता है। इस हाथ की महिलाओं को दन्त कथायें सुनना ज्यादा पसन्द होता है। उनकी बुद्धि तथा कामोद्वेग ये सब आन्तरिक आत्मा से सम्बन्ध रखने वाले हैं। फिजिकल सेक्स इनसे कोशों दूर होता है। हाथ का आकार तो छोटा ही होता है परन्तु अंगुलियों का अनुपातिक सम्बन्ध होता है। ऐसे हाथ मुलायम एवं सुडौल होते हैं। रंग लाल एवं गुलाबी पाया जाता है तथा अंगुलियाँ सुन्दर एवं नख गेहुँए रंग का होता है और अंगूठा छोटा होता है। ऐसे हाथ के स्वामी स्वप्न की दुनिया में विचरण करते हुए अच्छे विचार एवं वसूलयुक्त आदर्श के पुजारी कहे जा सकते हैं। साधारणतः ये आर्थिक सम्पन्न होते हैं तो जीवन काफी सुखी होता है। सोने के बाद उठते ही चेहरे पर हंसी होना इनकी पहचान और विशेषता है। आर्थिक दृष्टि से ये असफल होते है। यदि ये किसी तरह से धन और आवश्यकताओं के प्रति आश्वस्त हो जायें, तो वास्तव में एक आदर्श बन सकते हैं।
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छोटा हाथ
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छोटा हाथ
जो हाथ अन्य हाथों की अपेक्षा छोटा हो, वह हाथ छोटा कहलाता है। छोटा हाथ होने पर मस्तिष्क रेखा स्पष्ट और हाथ भारी हो, तो ऐसे लोग बहुत ही कुशाग्र बुद्धि वाले तथा शीघ्र ही उन्नति करने वाले होते हैं। छोटे हाथ वाले अगर भारी हाथ रखते हों, तो बहुत ही चालाकी से काम लेने और बहुत ही सोच-समझ कर खर्च करने वाले होते हैं। ऐसे लोग बेकार अपना समय और पैसा बर्बाद करने वाले नहीं होते हैं। इनकी संतान भी कुछ इसी प्रकार की होती है। ऐसी महिलाएं भी बहुत सोच-समझ कर खर्च करती हैं, कि वसूली पूरी हो जाए। अगर हाथ भारी हो, तो ऐसे पुरुष भी अपने परिवार पर खर्च करते हैं तथा वे फालतू खर्च नहीं करते। राजनीति में ऐसे लोग बहुत ही सफल होते हैं और अपने नीचे काम करने वाले कर्मचारियों से बखूबी काम लेना जानते हैं। इन्हें सफल प्रशासक भी कहा जाता है। कुल मिलाकर ऐसे हाथों वाले लोग, जिनकी अन्य रेखाएं स्पष्ट, हाथ का रंग गुलाबी, हाथ भारी हो, बहुत सफल होते हैं।
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मिश्रित हाथ
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मिश्रित हाथ
जिस हाथ में कई प्रकार की अंगुलियाँ पाई जाती हैं उसे मिश्रित हाथ कहते हैं। ये हाथ और अंगुलियां किसी एक प्रकार के नहीं होते। अतः इसमें शुभ और अशुभ दोनों गुण विद्यमान होते हैं ऐसे व्यक्ति एक ओर दयालु होते हैं और दूसरी ओर क्रोधी होना इनका स्वभाव होता है। बार-2 परिवर्तन इनकी विशेषता होती है। समाज में ऐसे लोगों का कोई सम्मान नहीं होता तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कठिनता होती है। ऐसे हाथों को किसी एक श्रेणी में नहीं सामिल किया जा सकता । मिश्रित हाथ के स्वामी चतुर तो होते हैं परन्तु बुद्धि का प्रयोग करते समय संयमित नहीं होते हैं। ऐसे लोग कई तरह के कार्य एक साथ ही करते हैं तथा उसे अंजाम देने के समय कदम लड़खड़ा जाता है और नुकसान कर बैठते हैं। ऐसे हाथ की अनामिका अगर बड़ी होती है, तो जुआ, सट्टा, लाटरी आदि कार्य करते हैं। ऐसे लोग कई क्षेत्रों में प्रतिमा स्थापित करते हैं स्वतः के विचारों में विभिन्नता होती है तथा दूसरे के विचारों को सहजता से स्वीकार करते हैं। हर प्रकार के कार्य में खुश रहते हैं और जन समूह में ज्यादा तर्क-वितर्क करने से बचते हैं लेकिन अलग-अलग लोगों से बातें करके सबको उल्लू बना सकते हैं । इनके अंगूठे का आकार छोटा होता है, इनका चित्त स्थिर नहीं होता। प्रत्येक कार्य को अंजाम देने से पूर्व मध्य काल में स्थगित कर देना इनका स्वभाव होता है। परिणाम स्वरूप असफलता ही हाथ आती है और जीवन में निराशापन ज्यादा होता है तथा जीवन में सफलता के लिए अधिकाधिक संघर्ष होता है ।
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Identification of Hands People of Different Countries
विभिन्न देशों के हाथ की पहचान
अनेक देशों के निवासियों और जातियों की शारीरिक बनावट गठन और रंग-रूप में अंतर होता है यही प्रकृति का कार्य, नियम, और गुण है। प्रकृति का जो नियम ओस की बूंद को गोल बनाता है, वही नियम संसार की रचना भी करता है।
प्रकृति के कुछ नियम भिन्न प्रकार की सृष्टी करते हैं। इसी कारण वे भिन्न प्रकार के मानव शरीर और हाथ भी बनाते हैं। जिनके गुण अलग-अलग होते हैं। इसी प्रकृति के आधार पर हस्त रेखा अध्ययन से पूर्व यह अनुमान लगाया जाता है कि यह हाथ किस राष्ट्र का है तथा वहाँ की प्रकृति का वातावरण इसको कितना प्रभावित कर रहा है। ऐसा अनुभव करने के पश्चात् हस्त रेखा का अध्ययन करना आसान हो जाता है तथा भविष्यवाणी सही होती है।
नुकीला हाथ
अन्य हाथों के स्वामी के अपेक्षा इस हाथ में धनोपार्जन की क्षमता कम होती है, तथा ये कला-संगीतप्रिय होते हैं। इनमें व्यहारिक कुशलता की कमी होती है इनमें यह विशेषता पायी जाती है कि ये भाव प्रधान होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की रुचि काव्य, रोमांस एवं कल्पना के प्रति अधिक होती है।
इनके प्रत्येक विचार और कार्यशीलता में आवेश की मात्रा अधिक पायी जाती है। ऐसे हाथ के स्वामी यूनान, आयरलैण्ड, इटली, फ्रांस, स्पेन, पोलैण्ड, तथा योरोप के दक्षिण भाग में पाये जाते हैं । परन्तु विवाह आदि के कारण ये जातियाँ आज संसार के अनेक भागों में पाये जाने लगे हैं।
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वर्गाकार हाथ
वर्गाकार हाथ के स्वामी अधिकतर पक्के मकान, रेल व मस्जिद, मंदिर, पुल, धर्मशाला आदि के निर्माता होते हैं। ऐसे व्यक्ति लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित होते हैं। ये न ही लकीर के फकीर और न ही भावना शून्य होते हैं। इन व्यक्तियों में व्यवस्था के प्रति तर्क, संगीत, प्रेम, अनुशासन तथा रीति-रिवाजों की मान्यता पायी जाती है। ये ज्यादातर डेनमार्क, हालैण्ड, स्वीडन, स्कॉटलैण्ड, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि राष्ट्रों में पाये जाते हैं। चमसाकार हाथ
इस प्रकार के हाथ के स्वामी नयी-नयी खोज करने वाले तथा कला एवं मशीनों के अविष्कारक होते हैं तथा इनमें रूढ़िवादिता नहीं होती। ये व्यक्ति मौलिकता एवं उद्विग्नता के प्रतीक होते हैं। अमेरिका के समृद्धिपूर्ण इतिहास की रचना में इन हाथों का बहुत बड़ा योगदान है। अमेरिका में अनेक जाति और देशों के निवासी पाये जाते हैं परन्तु जातियों का मिश्रण इसी देश में सर्वाधिक हुआ है। इस कारण यहां चमचाकार हाथों के स्वामी अधिक पाये जाते हैं।
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दार्शनिक हाथ
इस प्रकार के हाथ के स्वामी अनेक कठोर ब्रत, नियम, निषेधों को सहन करते हैं, भले ही इन्हें दुनिया पागल या कुछ और कहे, ये अपने धार्मिक सिद्धान्तों की रक्षा और मान्यता के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए तैयार रहते हैं। वास्तव में ऐसे व्यक्ति रहस्यवाद के अनुमोदक और धर्म के प्रति निष्ठावान होते हैं तथा ईश्वर के रहस्यों को जानने में इनका ध्यान हमेशा लगा रहता है। धार्मिक नेता और आध्यात्मिक प्रवृति के लोगों का हाथ प्रायः ऐसा ही पाया जाता है। इनमें कानून के प्रति श्रद्धा नहीं होती। ऐसे लोग अपने विचारों के जल्दबाजी के कारण सफल अविष्कारक होते हैं ये जोखम कार्यों को करने से पीछे नहीं हटते, इनकी परिवर्तन शीलता इनका दोष माना जाता है ये प्रायः मनमानी होते हैं और अपने सनकीपन में अंधे हो जाते हैं परन्तु विज्ञान में इन्हें काफी हद तक सफलता मिलती है। ऐसे हाथों के स्वामी अधिकांशतः पूर्वी देशों में पाये जाते हैं। योरोपीय देशों के लोग इस प्रकार के हाथ वाले लोगों के ऋणी हैं, जिन्होंने बौद्ध मत तथा दर्शन आदि के सिद्धान्तों और विचारों को उन तक पहुँचाया। ऐसे हाथ प्रायः पूर्वी योरोप में पाये जाते हैं।
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निम्न श्रेणी का हाथ
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इस प्रकार के हाथ के स्वामी में विषमभावना की पाशविकता पायी जाती है तथा ये व्यक्ति भावशून्य या मूर्ख कहे जा सकते हैं। इनके शरीर के भीतरी मन में महत्वाकांक्षा नहीं होती है। स्नायु केन्द्र अविकसित होता है एवं मनोवृत्ति पशुओं जैसी होती है। इन्हें शारीरिक पीड़ा कम होती है तथा दूसरे के दर्द का अनुभव नहीं होता है। वास्तव में ये मानव के रुप में दो पैर के पशु कहे जा सकते हैं। कभी-2 सभ्य राष्ट्रों में भी ये हाथ पाये जाते हैं। इन्हें अविकसित हाथ भी कहा जाता है। इस प्रकार का हाथ सभ्य जातियों या वर्गों में कम पाया जाता है। ऐसे हाथ प्रायः अधिक ठण्डे स्थानों में जैसे रूश का उत्तरीभाग, लेपलैण्ड, आइसलैण्ड आदि भागों में "आदिम जातियों में पाये जाते हैं। जिनमें सामाजिक गुणों की कमी पायी जाती है। आदर्श हाथ
आदर्श हाथ के स्वामी कठिन कार्यों में असफल रहते हैं तथा ये कुछ संवेदनशील होते हैं इनके विचार भी भौतिक पदार्थों के अनुकूल नहीं होते। इनकी कल्पना में वह बुद्धिमता दिखायी देती है जो सभी प्रकार की चीजों का औचित्य और उपयोगिता निर्धारित करती है। ऐसे हाथ किसी विशेष जाति या देश तक सीमित नहीं है। ये हाथ लगभग सभी देशों में पाये जाते हैं। ऐसे लोग अल्प व्यवहारकुशल होते हैं।
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अभ्यास
1. मु.ख्यतः कितने प्रकार के हाथ पाये जाते हैं ?
2. दार्शनिक हाथ का गुण स्पष्ट करें ?
3. मिश्रित हाथ के स्वामी स्वभाव से कैसे होते हैं ?
4. पूर्वी देशों में अधिकांशतः किस प्रकार के हाथ पाये जाते हैं ?
5. चमसाकार और कलात्मक हाथों के गुण और स्वभाव में क्या अंतर पाया जाता है ?
6. छोटे हाथ के स्वामी की क्या विशेषता होती है ?
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3. Signs Situated on Phlanges of Fingers and Their Significance
अध्याय - 3
अंगुलियों के पोर पर पाये जानेवाले रेखाचिह्न और उनका प्रभाव
क- वज्राकृति - गुस्से की आदत, निराशा की प्रवृत्ति शारीरिक अवयव अस्त-व्यस्त, यदा-कदा प्रेरणा दायक प्रवृत्ति अपने सिद्धान्त पर जीने वाले भावुक और कलात्मक आदि लक्षण वज्राकृति के व्यक्ति में होते हैं।
ख- कुण्डली आकार - नाड़ी केन्द्र
में तकलीफ, हृदय सम्बन्धी परेशानी
का सामना, पाचन क्रिया खराब, बौद्धिक स्तर अच्छा व्यक्ति और समाज में व्यवहारिक एवं स्नेही प्रतिक्रिया भावुक होती हैं।
ग- मिश्रित- बदला लेने की भावना, आलोचनात्मक
प्रतिशोध कार्यकुशल एवं व्यवहारिक प्रवृत्ति संग्रहात्मक, मानसिक उलझने, मोटापा, वायुविकार, बेचैनी आदि ।
घ- वर्तुलाकार - अंगुलियों के पोर पर वर्तुलाकार होने पर व्यक्ति स्वतंत्र मनोवृत्ति का होता है। अपनी
शंकल्प शक्ति द्वारा इच्छानुसार
लचीलेपन एवं गुप्त आत्म रक्षा में दक्ष होता है, ऐसे लोगों की पाचनक्रिया में खराबी होती है तथा हृदय से सम्बन्धी कुछ विमारियों का सामना करना पड़ता है।
च-यव आकृति - आत्म रक्षा में हुसियारी गोपनीयता का गुण
मनोवेग दमन करने की भावना, अविश्वासी, दूसरों पर संशय, पाचनक्रिया कमजोर पेट में फोड़ाफुंसी भ्रमण की आदत कभी - 2 दोषपूर्ण उदासी आदि यव आकृति के व्यक्ति में पाये जाते हैं।
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अंगुलियों एवं नखों का वर्णन
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Description of Fingers & Nails
अंगुलियों एवं नखों का वर्णन
रसाद रक्तं ततो मांस मांसान्मेदा जायते । मेदसेऽस्थि ततो मज्जा ततः शुक्र सम्भवः ।।
मानव की ऊर्जा हमेशा खर्च होती रहती है, ऐसी स्थिति में उसे आहार की आवश्यकता होती है। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के भोजन से रस बनता है रस से मांश, मांश से मेदा, मेदा से मज्जा, मज्जा से शुक्र बनता है। शुक्र भोजन करने के 28 दिन के पश्चात् बनता है। प्रत्येक धातु का एक मैल भी निकलता है, परन्तु शुक्र धातु का कोई मैल नहीं निकलता। वह बिल्कुल शुद्ध होता है। नख हड्डी का मैल होता है। तर्जनी मध्यमा और अनामिका का गर्भावस्था में नख 124 दिन बाद पूरा आ जाता है। कनिष्ठा 121 दिन लेती है और अंगूठे का नख 140 दिन बाद पूरा निकलकर बाहर आता है। नखों से विशेषतः शरीर की व्याधि और कुछ अन्य रोगों की जानकारी प्राप्त होती है। नखों पर होने वाला चिह्न किसी आने वाले अग्रिम खतरे को सूचित करता है। साफ, और चौड़ा नख अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होता है। सात प्रकार के नखों वाली अंगुलियां 1. लम्बा नाखून- लम्बे नाखून शारीरिक शक्ति के प्रतीक नहीं होते, इनकी अपेक्षा छोटे और चौड़े नाखून वालों की शारीरिक शक्ति अधिक होती है। ऐसे लोग ज्यादा बहसबाजी नहीं करते और न आलोचना करते हैं। कविता, कला, संगीत, चित्रकारिता आदि के प्रेमी होते हैं तथा सिरदर्द, गले में खराबी आदि की बीमारी होने की स्थिति उत्पन्न होती है। 2. छोटा नाखून- छोटे नख वाले व्यक्ति तार्किक होते हैं तथा अन्य लोगों से भिन्न मतवाले होकर कठोर आलोचक होते हैं। इनमें सोचने की शक्ति अधिक होती है। परन्तु निर्णय में उतावले होते हैं। दिल के कुछ कठोर होते है तथा उनमें सहन शक्ति कम होती है, कभी-कभी तथ्य को न समझ पाने
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की स्थिति में उसे मजाक बनाकर बच निकलते हैं, ऐसे लोगों में दिल के दौरे की बीमारी होने की सम्भावनायें पायी जाती हैं तथा चिड़चिड़ापन होता है। 3. चौकोर और छोटा नख- यह सामान्य कमजोरी का सूचक होता है ऐसे लोगों में हृदय से सम्बन्धी अनेक रोग पाये जाते हैं। नख पर किसी प्रकार का गड्ढा आदि होने पर डेगू बुखार एवं आन्तरिक पीड़ा का संकेत पाया जाता है तथा बदला लेने की भावना इनमें खूब होती है। 4. त्रिभुजकार नख- ऐसे नख वालों को गला, लकवा, और श्वास प्रवास से सम्बन्धी बीमारी होती है तथा ऐसे नाखून में चन्द्राकृति न होने पर व्यक्ति सनकी स्वभाव का होता है। 5. चौड़ा नख- चौड़ा नख अच्छे स्वास्थ्य का संकेत है, ऐसे व्यक्ति खाने-पीने के शौकीन तथा स्वास्थ्य के धनी होते हैं। 6. उभरा हुआ नख- ऐसे नख के स्वामी का फेफड़ा कमजोर होता है, तथा कण्ठमाला बीमारी का सामना करना पड़ता है। 7. गरारियाँ सहित नख- ऐसे नख वाले व्यक्ति को कमला की बीमारी होती है, तथा कभी-कभी श्वास एवं दमा की शिकायत होती है। नाखूनों की देखभाल कैसे भी कर लें, परन्तु उनके प्रभाव को नहीं बदला जा सकता। भले ही कार्य करते-2 नाखून टूट जाय । मुख्यतः ये चार प्रकार के ही पाये जाते हैं। लम्बे छोटे, चौड़े, सकीर्ण, आदि।
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Signs on Fingers & Their Effects
अंगुलियों पर निशान और उनके प्रभाव
अंगूठे पर अगर सफेद धब्बा होगा, तो बातचीत में अधिक लगाव अगर यही काला होगा, तो प्रेम में अंधापन और अपराधी प्रवृति की होती है।
तर्जनी पर अगर सफेद धब्बा होगा, तो अच्छी आमदनी तथा काले धब्बे से धनहानि होती है।
मध्यमा पर सफेद धब्बे होने से यात्रायें होती है तथा काले धब्बे होने से भय और क्षति । अनामिका पर सफेद धब्बा होने से प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तथा काला से बदनामी और नुकसान होता है।
कनिष्ठा पर काला धब्बा होने से व्यापारिक सफलता और काले धब्बे से अविश्वास और असफलता काले नखों वाला व्यक्ति अच्छा कृषक (किसान) होता है।
चौड़ा नखवाला-साधु और निष्कपटी होता है। नीले रंग के नख वाला व्यक्ति स्वास्थ्य से परेशान रहता है, तथा दूसरों के लिए सरदर्द बनता है। बेतुके, अटपटे और भद्दे नखों वाला व्यक्ति समाज के लिए अयोग्य माना जाता है तथा लोगों को हानि पहुंचाता है और दुष्कर्मों में लीन रहना उसका स्वभाव होता है।
नखों के नीचे अंगुलियों के पारों में एक ऐसा तरल पदार्थ होता है, जो अत्यन्त संवेदनशील होता है, उदाहरण के तौर पर अंधा व्यक्ति इसी हिस्से के स्पर्श से अपनी पहचान का आधार साबित करता है तथा डाक्टर जब किसी रोगी का नब्ज पकड़ता है तो इस हिस्से में स्पन्दन
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होता है यह क्रिया अंगुलियों के पोर में स्थित तरल पदार्थ द्वारा होती है अंग्रेजी में इसे (कोर्नीफिकेशन) कहते है। जिसे हिन्दी भाषा में श्रृगोत्पादन या शल्कीभवन कहते हैं।
हस्तरेखा परीक्षण के समय स्वास्थ्य रेखा में जो रोग या व्याधि नजर आती है, उसे नखों से ही प्रमाणित की जाती है।
स्वस्थ अंगुली की त्वचा
बीमारी अवस्था में
पागलपन अथवा मृत्यु
की हालत में
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अंगुलियों में दूरी
का महत्व
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Significance of Gaps Between Fingers
अंगुलियों में दूरी का महत्व
तर्जनी अनामिका दोनों ही अगर मध्यमा की ओर झुकी हों, तो व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त रखने में असमर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं, सतर्कता भी इनमें होती है, परन्तु किसी पर विश्वास नहीं करते।
अंगुलियां सीधी हों और गाँठ रहित हों, तर्जनी और मध्यमा तथा अनामिका और कनिष्ठा की दूरी का समान अन्तर होने पर व्यक्ति प्रत्येक के साथ व्यवहार कुशल होते हुए भी ज्यादा सतर्क नहीं रहता और न ही किसी पर शंका करता है। समाज में हर प्रकार के मनुष्यों के साथ सूझ-बूझ से कार्य करने की क्षमता रखता है।
तर्जनी और मध्यमा की दूरी अनुपात से ज्यादा होने पर व्यक्ति की विचारधारा स्वतन्त्र होती है और जीवनयापन के लिए उनका मार्ग भिन्न होता है। इन्हें नेता भी कहा जा सकता है। यही दूरी कम होने पर विचारों में संकीर्णता आ जाती है, और स्वतन्त्रता भी कम हो जाती है।
यदि अनामिका और मध्यमा के बीच का अन्तर अधिक हो तो परिस्थितियों की आजादी होती है। ये किसी ऋतु के दास नहीं होते, इन्हें पैसों की परवाह नहीं होती, समाज में ये समाज सुधारक नाम से जाने जाते हैं।
अनामिका और मध्यमा की लम्बाई बराबर होने पर नये उद्योग धन्धे करके अनेक तरह का खतरा मोल ले सकते हैं। कभी-कभी इन्हें फायदा भी होता है, जुआ खेलना और अपनी जीत पर खुश होना इनका पहला काम होता है। छोटी अंगुलियों वालों के स्वभाव में शीघ्रता या जल्दबाजी होती है। ये दिखावे की परवाह न करके समस्याओं का तत्काल निर्णय कर डालते हैं। बातचीत में इन्हे मुंहफट भी कहा जा सकता है। छोटी-छोटी बातों पर ये ध्यान नहीं देते हैं।
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अंगुलियाँ बेडौल हों एवं छोटी हों तो ऐसे व्यक्ति प्रायः स्वार्थी एवं क्रूर कहे जाते हैं। अंगुलियाँ अगर तनी हुई हों, उनमें लोच न हो अन्दर की ओर मुड़ी हो या संकुचित हों, तो व्यक्ति कम बोलने वाला तथा कम मेल-जोल रखने वाला, कायर और अधिक सावधानी बरतने वाले होते हैं। अगर अंगुलियाँ धनुष के समान पीछे मुड़ने वाली हों तो व्यक्ति का स्वभाव आर्कषक और सौम्य होगा। उसमें मित्रता का गुण पाया जाता है। इन्हें सामान्य ज्ञान की जिज्ञासा होती है तथा समाज में हृदयस्पर्शी होते है। अंगुलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी एवं बेडौल सी होंगी, तो व्यक्ति धोकेबाज गलत रास्ते का अनुयायी विकृत मस्तिष्क का स्वामी एवं निन्दक होता है। अच्छे हाथ पर इस प्रकार की अंगुलियाँ कम ही पायी जाती है। अंगुलियों के पोर पर अंदर की ओर मांश की गद्दी हो तो वह व्यक्ति अत्यन्त सवंदेनशील ओर व्यवहारकुशल होगा तथा हर क्षेत्र में सहयोग मिलता है। अंगुलियाँ अगर मूल स्थान पर मोटी हों तो व्यक्ति खाने-पीने का शौकीन और आरामतलबी होता है तथा वेहद शौकीन होता है। मूल स्थान पर पतली अंगुलियों का स्वामी स्वतः के स्वार्थ में लापरवाह होता है, खान-पान, रहन-सहन में सावधानी रखता है तथा मनपसंद वस्तुओं का प्रयोग करता
अनामिका और तर्जनी की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति में अपनी कला के द्वारा धन और यश कमाने की महत्वाकांक्षा होती है। वह चाहता है कि विश्व भर में विख्यात हो जाये। हथेली की लम्बाई से अधिक लम्बी अंगुलियां होगी, तो उसे लम्बी अंगुलियों की संज्ञा दी जाती है।
अनामिका और कनिष्ठा की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति बोलचाल और भाषण कला में कुशल होता है। अनामिका और मध्यमा की समान लम्बाई हो तो ऐसे व्यक्ति जुआड़ी होते हैं साथ ही जीवन के साथ खिलवाड़ कर
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जाते हैं, ऐसे व्यक्तियों की अलग ही दुनिया होगी, तथा ये व्यक्ति जुए में लाभ कमाते हैं एवं पैसों के सौदे में हमेशा जीत होती है।
तर्जनी बहुत ज्यादा लम्बी हो तो ऐसे व्यक्ति किसी के कहने सुनने में नहीं होते ऐसे व्यक्ति शूरबरी भी कहे जा सकते हैं या शासक कहे जा सकते हैं। अनामिका का लम्बा होना काम तत्व को प्रदर्शित करता है।
कनिष्ठा का काम भी अनामिका की भांति ही है वह उत्तेजनाओं को दमन न करके उसका परिशमन कर लेती है और वे अपनी शक्ति व्यापार, काम-काज और बौद्धिक कार्यों में खर्च करते हैं। कनिष्ठा यदि मुड़ी हुई हो तो व्यक्ति धूर्त और चालाक होता है यह अंगुली व्यक्ति के गुणों का मूल्यांकन करने वाली होती है।
चारो अंगुलियों का इकट्ठी करने पर उसमें बारीक छेद नजर आता है, इसमें तर्जनी की ओर से तीन छिद्र होते हैं। पहला छिद्र विचार स्वतंत्र को स्पष्ट करता है, दूसरा लापरवाही को, तीसरा महत्वाकांक्षा को ।
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अंगुलियों पर स्थित चिह्नों की तालिका आरेखा /
4 त्रिभुज
पोर x (गुणा का चिह्न)
तर्जनी धार्मिक
प्रथम
पोर
कट्टरता स्वप्न प्रेतात्मा
से सम्पर्क
तर्जनी साहित्य में द्वितीय रुचि सम्मान पोर एवं सफलता की प्राप्ती
तर्जनी बुरी संगत, तृतीय गंदा व्यवहार पोर दुष्चरित्र
मध्यमा अस्थिर दिमाग पहला वहमी आत्महत्या पोर की प्रवृत्ति
मध्यमा विष खाकर दूसरा मृत्यु, एक पोर
भयानक
उत्पात
मध्यमा चोरी की आदत तीसरा स्त्रियों में बन्ध्या पोर
अनामिका शुद्धात्मा, प्रथम कुछ पागलपन पोर विचार वैषम्य अनामिका अकारण दूसरा व्यक्ति से जलन, पोर अहं की मात्रा अति अनामिका व्यापार की बाधा तीसरा सूर्यरेखा होने से पोर
टल जाय
धार्मिक कट्टरता तंत्रविद्या, योग और केन्द्रों में रुषि पुर्नजन्म में रुचि
धर्मान्धता
धोखा, परिजनों से वैमनस्य एवं झगड़ा लड़ाई
कार्य में बाधाएँ एवं परेशानी
पाचन क्रिया
खराब एवं पेट में गड़बड़ी
आत्महत्या का संकेत- चित्त में विक्षिप्तता
पहले और दूसरे जोड़ को काटती हुई हो तो अज्ञानता व मूर्खता भी
मन उदास और खिन्न मित्रों से
विछोह
कठिनाई अयोग्यता निराधार झगड़ा करें योग्यता का अभाव दुश्मनी
गरीबी दुर्भाग्य बारबार आवे
अच्छे पद की
प्राप्ती राजनीति में
रुचि प्रशासकीय योग्यता बुद्धि विकास
प्लान
और प्रोजेक्ट
गलत
पहले और दूसरे पोर दोनों पर होने
से फांसी पर लटके
तांत्रिक ज्ञान की
तरफ झुकाव पर विज्ञान में रुचि सम्मोहन की तरफ ध्यान
दुर्भाग्य, बिना सिर पैर की बातें करे
सौन्दर्य उपासक वनस्पति का अध्ययन कारीगरी
कला का उत्तम ज्ञान, अच्छी अभिव्यक्ति नये काम से प्रसिद्धी
फैले दूसरा लड़का
अच्छा निकले
## जाली
वानप्रस्थ
सजा की आशंका एकान्तवाशी
जन्म से ही प्रवृत्ति खराब कार्यों में
असफलता
भ्रष्ट आचारण, धोकेबाज, बेईमान, घूसखोर, चोर,
अशुभ काम
की इच्छा, दुराचरण
कान में खराबी, अपघात, घुटना दर्द करे
पैसे की तंगी से परेशानी
गंदी आदत गुस्सा भयंकर पराकाष्ठा
ईर्ष्या, डाह परिजनों से जलन
गरीबी तकलीफ अनेक प्रकार की तकलीफें, अपयश
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| |
खा
खा
0
वृत्त
★ स्टार
अन्य
धार्मिक कार्यों में रुचि धर्म संबंधी उच्च विचार
विचारों को खूब गहराई से सोचना एवं बौद्धिक शक्ति के स्वामी
सामाजिक सहायता उच्च अभिलाषा श्रेष्ठ आकांक्षा और उसकी पूर्ति
खाड़ी रेखा यदि प्रगति, शुक्र तक जाय तो प्रियाकांक्षा दर्दनाक मृत्यु ऐसी की सफलता स्थिति में मस्तक रेखा भी देखें, मस्तिष्क में मध्य आयु पर उत्पात और ब्लड नया काम करें प्रेशर पहले और दूसरे जोड़ को काटती सम्मोहन हुई हो तो अज्ञानता पर अध्ययन व मूर्खता भी
गम्भीर घटना से | चन्द्राकृति होनेपर जीवन का परिवर्तन, । निर्णायक शक्ति का सौभाग्यशाली अभाव कार्य सम्पन्नता देरी से काम फोर्क करे गंदी आदतें से असफलता अदम्य साहस तथा वर्ग से
दृढ़ता और स्थिरता पवित्र
वर्ग होने पर आचरण की शुद्धि दूसरे का सम्मान में अभाव
नहीं करता अनुशासनहीनता, | कठोरता पागलपन, सिर काला धब्बा होने से
भयंकर मलेरिया,
शीत ज्वर, जूड़ी राजनैतिक
वर्ग होने पर अपराध
दुर्घटना में पैर को चोट
दर्द
मनोविज्ञान
दर्शन शास्त्र जीव, किसी दूसरे के द्वारा | वनस्पति पर कत्ल की संभावना विस्तृत जानकारी सफलता पीछे प्रतिभा का अच्छा चलती रहे |विकास हो
बहुत सी खड़ी रेखायें होने पर भूगर्भ वेत्ता वर्ग होने से निर्दयी
सैनिक सफलता तिरछी होने पर युद्ध में मृत्यु कलात्मक ज्ञान दस्तकारी भी जाने महान् कीर्ति सर्वत्र यश का बोल बाला परिजनों व विपरीत योनी से खतरा रहे बेकार की ईर्ष्या
सफलता यात्रा व्यापार लोटरी
सुबुद्धि योग्यता पनपती रहे
वर्ग से नियंत्रित बुद्धि का होना
सम्मान धवल यश लक्ष्मी का आगमन 42 की आयु पर
वाचाल , हठी आत्मप्रशंसा की आदत
एक खड़ी रेखा से ही प्रसन्नता तथा सम्मान से ईर्ष्या रहे
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अभ्यास
1. अंगुलियों के पोर पर पाये जाने वाले चिन्हों का नाम लिखें?
2. नाखून कितने प्रकार के होते हैं ?
3. अंगुलियों में दूरी का क्या महत्व है ?
4. अंगुलियों पर 12 राशियों का स्थान बतायें ?
5. अनामिका और मध्यमा की समान लम्बाई होने पर जीवन में क्या प्रभाव
पड़ता है ?
6. अगर अंगुलियां धनुष के समान पीछे मुड़ने वाली हों तो जातक का
स्वभाव कैसा होगा?
7. तर्जनी और मध्यमा की समान लम्बाई होने से व्यक्ति के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है ?
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4. Study of Thumb
अध्याय-4
अंगूठे का अध्ययन
शरीर के प्रमुख अंगों में अंगूठा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में हाथ की परीक्षा में अनेक ठंग काम में लाये जाते हैं, लेकिन कोई भी तरीका हो उसमें अंगूठे की परीक्षा को प्रमुख स्थान दिया जाता है। मुख्यतः अंगूठा ही ईश्वर की इच्छा को व्यक्त करता है, तथा अंगूठे का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से है। कभी-कभी कुछ चिकित्सक पक्षाघात के लिए अंगूठे का परीक्षण करके बता देते हैं कि अमुक समय तक पक्षाघात होगा। अंगूठे की त्वचा में जो लहरदार सूक्ष्म धारियां होती हैं, उनके द्वारा अपराधी को पकड़ा जाता है। जन्म लेने वाला शिशु जन्म से लेकर कुछ दिनों तक अपने अंगूठे को अगर मुंह में दबाये रखता है तो उसकी शरीर प्रभावित होती है और वह निर्बल होता है। अगर बुद्धिहीन लोगों का अध्ययन किया जाए, तो अंगूठा या तो अविकसित होगा या तो उसमें निर्बलता होगी। अंगूठा ही मनुष्य की चैतन्यता का केंन्द्र होता है यह प्रायः हथेली में समकोण पर स्थित होता है। अंगूठे को तीन भागों में विभाजित किया गया है। जो प्रेम (अनुराग) तर्क शाक्ति और इच्छा शक्ति का सूचक है। अंगूठे का पहला भाग इच्छा शक्ति, दूसरा भाग तर्कशक्ति, तीसरा भाग (शुक्र क्षेत्र) को प्रेम का सूचक कहा गया है। अंगूठे का अध्ययन करते समय यह देखना आवश्यक होगा कि पहले जोड़ पर लचीला है, कड़ा है या तना हुआ है। यदि तीसरा भाग लम्बा और अंगूठा छोटा हो दूसरा भाग अधिक लम्बा हो तो व्यक्ति शान्तिप्रिय होता है। लेकिन इसमें निर्णयशक्ति कम होती है। अंगूठे प्रायः सात प्रकार के पाये जाते हैं।
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Different Shapes of Thumbs
अंगूठे का आकार-प्रकार
(क) गदा के आकार का अंगूठा। (ख) लचीला अंगूठा (पिछे मुड़ने वाला) (ग) कठोर अंगूठा। (घ) दूसरा भाग बीच से पतला। (ड) वर्गाकार अंगूठा। (च) नुकीला अंगूठा। (छ) छोटा अंगूठा।
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सीधा अंगूठा
ऐसे व्यक्ति अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं, अर्थात भावुकतावश उल्टा-सीधा बोल देने वाले और "क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टः", यानी क्षण में क्रोध आना क्षण भर बाद प्रसन्न मुद्रा में बात करना इनकी प्रमुख विशेषता होती है। ये "प्राण जाय पर वचन न जाइ सिद्धांत को मानने वाले, रूढ़िवादी परंपराओं से जुड़े, बुजुर्गों से डरने वाले होते हैं।
अतः प्रेम विवाह में यदि लड़की इन्हें साहस दिलाये, तो ये हनुमान की तरह, अपनी शक्ति से पूर्ण समर्थ हो कर, घर से अलग हो कर भी, हर स्थिति का सामना कर लेते हैं। इसलिए ये लोग मनचाही लड़की प्राप्त कर लेते हैं। स्वयं डरपोक, भीरु, कायर, एवं स्वार्थी प्रकृति के होते हैं । इन्हें मितव्ययी या कंजूस भी कहा जा सकता है। किन्तु मौका आने पर, भावुकतावश अपना सर्वस्व दान कर देते हैं। केवल इनके सामने वाले को प्रभावित करने की कला आनी चाहिए, तो फिर ये उसपर तन-मन-धन से न्योछावर हो जाते हैं लेकिन लोकप्रियता इन्हें कम मिल पाती है। इनके हर कार्य के पूर्ण होने में काफी विलंब होता है। शरीर में गर्मी अधिक होने से ये जातक बहुत कर्मठ होते हैं।
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दुर्भाग्य से इन्हें दांपत्य जीवन का सुख और न ही कर्म के अनुसार पूर्ण फल ही मिल पाता है। ऐसे लोग अपने कार्य को गुप्त रखना पसंद करते हैं। अपयश इन्हें जल्दी मिलता है। कंजूसी और स्वार्थीपन, प्रचार से बचने की भावना, असामाजिकता, व्यवहार कुशलता की कमी अत्यधिक औपचारिकता निमाने की प्रवृत्ति, मौन गंभीर व्यक्तित्व, दयालुता का अभाव इन्हें लोकप्रियता देने में बाधक होते हैं।
नियमितता, ईमानदारी, सत्यवादिता इनकी प्रमुख विशेषताएं होती हैं। इस कारण इन्हें अधिक कष्ट उठाने पड़ते हैं सीधे अंगूठे वाले बहुत जल्दी ही किसी से प्रभावित हो जाते हैं। कट्टरपंथी, अतिभाग्यवादिता, रूढ़िवादिता
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के कारण ज्योतिष, तंत्र,मंत्र, देवी,देवताओं के प्रति इनकी आस्था अधिक होती है। भूत-प्रेत में भी ये विश्वास करते हैं। इनकी इस कमजोरी का लाभ उठा कर अन्य इनके संचित धन से फायदा उठाते हैं। इनको सही समय पर पैसों का लाभ नहीं मिलता, या बहुत कम मिलता है। अतः इन्हें झुकने वाले अंगूठे के जातकों से ही लेन-देन करनी चाहिए, अन्यथा इन्हें हानि होती है, स्त्री पक्ष से भी इन्हें हानि होती है। पीछे की ओर झुका अंगूठा : व्यापार में साझेदारी या भागीदारी उन्हीं लोगों से आजीवन निभ पाती है, जिनके अंगूठे एक समान न हों। एक समान अंगूठा वाले, प्रभुसत्ता जमाने की प्रकृति के कारण, एक दूसरे पर अधिकार जमाने के कारण बिगाड़ कर लेते हैं। स्वयं का पत्नी के प्रति अधिक आकर्षण नहीं होता। 20 वर्ष से 29 वर्ष की आयु में श्रेष्ठतर समय, 40 से 49 के बीच श्रेष्ठतम समय, फिर यदि दीर्घायु होती है, तो 80 से 89 में भी अच्छा यश देने वाले कार्य होते हैं। किंतु लंबी बीमारी, जैसे तपेदिक, कैंसर आदि भयंकर रोग इन्हें बुढ़ापे में धर दबोचते हैं। संतान सुख भी इन्हें कम मिल पाता है। इन्हें आयुर्वेदिक, प्राकृतिक योग, चिकित्सा, होम्योपैथिक, प्राणायाम आदि के द्वारा की गयी चिकित्सा शीघ्र लाभ करती हैं। प्रवाल या मोती भी इन्हें शीघ्र लाभ पहुंचाती हैं। ये पानी के विशेष शौकीन होते हैं। ये दिन में एक से अधिक बार नहाते हैं। इन्हें अधिक पसीना आता है (गर्मी के दिनों में) और लू लग जाती है (गर्मी की तासीर होने से) डाक्टरी दवा आदि का इन पर उल्टा असर हो जाता है, जिससे इनको गर्मी करने वाली वस्तुओं से बच कर रहना चाहिए। इन्हें अनायास कहीं से पैसा नहीं मिलता है। इन्हें अपने नाम से कभी भी लॉटरी नहीं लेनी चाहिए। भगवान इन्हें केवल मेहनत का ही देता है। इन लोगों की इच्छाशक्ति बलवती होती है, किंतु बिना गुणों के दूसरे व्यक्तियों से ये परिचित नहीं हो पाते । इनमें मिलनसारिता का अभाव रहता है। ये व्यक्ति स्वयं गहरे रंग के वस्त्र पहनना पसंद करते हैं, जबकि पत्नी हल्के रंग के वस्त्रों की शौकीन होती है।
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लम्बा अंगूठा
लम्बा अंगूठा होने से व्यक्ति में सुदृढ़ इच्छा शक्ति और विकसित चरित्र पाया जाता है। साधारणतया अंगूठे की लम्बाई तर्जनी के आधार से कुछ ऊँचा होता है, इससे ज्यादा या कम स्थिति में छोटा-बड़ा अंगूठा माना जाता है। लम्बे अंगूठे वाले लोग व्यापार में लाभ कमाते हैं तथा आवश्यक जीवन दर्शन को मानने वाले होते हैं। अगर यह पीछे की ओर झुका हुआ होता है तो व्यक्ति प्रतिभावान और सफल होता है तथा हर परिस्थित में अपने आप को अनुकूल बना लेता है। यदि यही अंगूठा ऊपर की ओर नुकीला और पतला होता है तो व्याक्ति में स्नायुविक असन्तुलन पाया जाता
छोटा अंगूठा छोटा अंगूठा बीच में पतला और पोर मोटा तथा निचला भाग भी मोटा होगा तो अपराधी वर्ग का व्यक्ति कहा जायेगा ये अंगूठे प्रायः गदे की तरह गोल, मांसल और सकरे नाखून वाले अंगूठे होते हैं जो कि कातिलों और अपराधियों में अधिक पाये जाते हैं, इनकी इच्छा शक्ति अविकसित स्वभाव अस्थिर तथा खूखार होता है। इन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता तथा इन्हें हमेशा खून की पिपासा प्रताड़ित करती है। वर्गाकार मोटा अंगूठा
ऐसे लोग नशे के आदी होते हैं घर में अधिक खर्च करने वाले एवं अन्याय होने पर चिल्ला-चिल्लाकर न्याय मांगते हैं। वर्गाकार अंगूठे के स्वामी सफल व्यक्ति माने जाते हैं, अपने व्यवहार, के द्वारा सफलता प्राप्त करते हैं। अगर यही अंगूठा पुष्ट होगा तो स्वास्थ्य अच्छा होता है तथा स्फूर्ति खूब होती है।
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विचित्र आकृति का अंगूठा विचित्र आकृति का अंगूठा अपराधी वर्ग के लोगों का होता है ये हथियारों के भयानक उपयोग से भी नहीं घबराते और बिना सोचे समझे भयावह कार्य कर बैठते हैं। इनका स्वभाव अस्थिर और खूखार होता है।
अभ्यास
1. सामान्यतः हाथों के अंगूठे की लम्बाई बतायें ?
2. अंगूठा कितने प्रकार का होता है ?
3. जन्म से ही अंगूठा न होने पर व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
4. सीधा अंगूठा क्या दर्शाता है ?
5. पीछे की ओर झुकने वाला अंगूठा अच्छा प्रभाव देता है या बुरा ?
6. सर्वोत्तम अंगूठे की क्या पहचान है ?
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5. Mount Analysis
अध्याय-5
पर्वत विचार
प्रायः हथेली पर अंगुलियों के मूल में, कलाई के ऊपर, अंगूठे के नीचे, कुछ उभरी हुई मांसपेशियां दिखायी देती हैं, हस्तरेखा विज्ञान में इन्हें पर्वत कहा जाता है। संरचना के अनुसार ये फुसफुसे मांस पिण्ड होते हैं जिनमें रक्त और नाड़ियों की कोशिकाओं का सूक्ष्म, सघन समूह विखरा होता है। प्रत्येक पर्वत मस्तिष्क के अलग-2 भागों से नाड़ियों द्वारा सम्बन्धित रहता है, इस प्रकार वह अलग-2 मानसिक शक्तियों को प्रकट करता है। सूर्य पर्वत- अनामिका के नीचे चन्द्र पर्वत- कनिष्ठा के नीचे कलाई के ऊपर हथेली के भाग में मंगल पर्वत-इसके दो स्थान है, प्रथम, शुक्र और गुरु के बीच, और दूसरा चन्द्र और बुध के बीच बुध पर्वत- कनिष्ठा के नीचे गुरु पर्वत- तर्जनी के नीचे शुक्र पर्वत- अंगूठे के नीचे शनि पर्वत- मध्यमा के नीचे हथेली के बीच का भाग जो कि चारों ओर पर्वतों से घिरा होता है, इन पर्वतों के नाम विभिन्न ग्रहों के नाम पर सुविधा के दृष्टिकोण से रखे गये हैं, ये पर्वत सात हैं। हथेली में इनके विकसित अथवा अविकसित या किसी एक पूर्ण विकास के आधार पर भी कुछ विद्वान इन्हें सात वर्गों में विभाविजत करते हैं। बुध पर्वत- कनिष्ठा के निम्न भाग में यह क्षेत्र स्थित होता है जिससे रोमांस, बौद्धिक क्षमता, प्रेम, परिवर्तन, यात्रा, आदि से सम्बन्धी विचार किये जाते हैं। हाथ अगर अनुकूल हो तो ये गुण शुभ फल देते हैं, अगर प्रतिकूल हो तो अशुभ फल को जानना चाहिए।
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चन्द्र पर्वत- मंगल पर्वत के नीचे और शुक्र पर्वत के विपरीत दिशा में चंद्र पर्वत होता है। यह कल्पना, आदर्श, कला साहित्य के प्रति लगाव आदि को प्रदर्शित करता है। मंगल पर्वत- यह युद्ध में सौर्य की भावना, सक्रियता, साहस, भावना आदि प्रदान करता है। यदि यह क्षेत्र ज्यादा उन्नत युक्त होगा तो व्यक्ति में लड़ाई, झगड़े की भावना उत्पन्न करता है यह शुक्र पर्वत के बगल में होता है। दूसरा चन्द्र और बुध के मध्य पाया जाता है जो कि निश्चित साहस, आत्मनियन्त्रण, निराशा और गलती के विराधे की क्षमता का सूचक है। सूर्य पर्वत- यह क्षेत्र अनामिका के आधार में स्थित होता है, यदि यह क्षेत्र विकसित होगा तो व्यक्ति को कला के प्रति सफलता प्रदान करता है। साहित्य, कविता, संगीत तथा आदर्श एवं उच्च विचारों के प्रति रुचि एवं सफलता प्राप्त होती है। गुरु पर्वत- तर्जनी के मूल में जो उभार दिखायी देता है वह गुरुपर्वत है। गुरु पर्वत उन्नत होने पर व्यक्ति में महत्वाकांक्षा और गर्व की भावना अधिक होती है। उत्साह एवं शान्ती की कामना का यह सूचक है, यदि व्यक्ति के हाथ में अविकसित होगा तो धार्मिक भावना में कमी बड़ों के प्रति अश्रद्धा तथा अधिक विकसित होने पर व्यक्ति में अहंकार उत्पन्न होता है। शुक्र पर्वत- यह क्षेत्र अंगूठे के मूल स्थान के नीचे स्थित होता है। यह असामान्य ठंग से विकसित होने पर व्यक्ति की इच्छा, कला, भावनात्मक सम्बन्ध, सौन्दर्य पुजारी के रुप में जाना जाता है। यह पर्वत हाथ में सबसे महत्त्वपूर्ण रक्त कोश बनाता है जो हथेली का बड़ा विकास है। यदि शुक्र पर्वत सुविकसित होगा तो स्वास्थ्य उत्तम रहता है यही क्षेत्र छोटा अथवा सामान्य से कम होने पर या अविकसित होने पर स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तथा काम शक्ति की भी कमी होती है। यदि यह क्षेत्र अधिक विकसित या उभरा होगा तो वह स्त्री/पुरुष-विपरीत लिंग के प्रति कामोन्माद प्रकट करता है तथा सौंदर्य के प्रति रुचि होती है ऐसे जातक के चरित्र को भी संदेह की नजर से देखा जाता है।
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शनि पर्वत- यह पर्वत मध्यमा के मूल में होता है, यह अधिक विकसित होने से कार्य के प्रति रुचि एवं क्षमता उत्पन्न करता है, दोषयुक्त शनि पर्वत इसके विपरीत परिणाम देता है यह शान्ति कार्य के प्रति लगाव, एकान्तवास तथा धन आदि के बारे में जानकारी देता है।
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पर्वत विचार
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अभ्यास
1. हाथों में पाये जाने वाले पर्वतों के नाम बतायें ?
2. गुरु पर्वत पर नक्षत्र होने से क्या परिणाम होगा?
बुध पर्वत पर त्रिभुज होना शुभ है या अशुभ ?
4. गुरु पर्वत पर जाल होने से क्या परिणाम होगा?
5. किस पर्वत पर किस निशान से जातक को राजयोग जैसा फल देता है?
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6. Different Signs
अध्याय-6
विभिन्न प्रकार के चिह्न
हाथ में केवल अशुभ लक्षण देखकर किसी निर्णय पर पहुँच जाना अनुचित है। मानव हाथ में गौण एवं मुख्य रेखाओं के साथ-साथ अनेक प्रकार के चिह्न भी पाये जाते हैं जिनमें मुख्यतः विन्दु, क्रास, वर्ग, जाल, तारे (स्टार) त्रिभुज, वृत्त, द्वीप, मत्स्य, पेड़, धनुष, कमल, सर्प आदि हैं।
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चतुर्भुज
त्रिभुज
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जंजीरनुमा रेखा
स्टार (नक्षत्र)
द्वीप
शाखापुंज जंजीरनुमा मणिबंध
शाखा रेखाएं
त्रिशूल
वृत्त
जाल
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विन्दु-विन्दु प्रायः अस्थायी रोग परिचायक है, एक चमकीला और लाल विन्दु यदि :• मस्तिष्क रेखा पर होगा तो किसी आघात या गिरने के कारण घायल अथवा चोट का निशान होगा। भूरा अथवा नीला विन्दु स्नायु रोग का चिह्न है। • स्वास्थ्य रेखा पर चमकीला लाल विन्दु प्रायः बुखार होने की सूचना देता
है।
• जीवन रेखा पर होने से बीमारी का द्योतक है, जो ज्वर प्रकृति का होगा। काला विन्दु धन-दौलत की प्राप्ति का संकेत देता है सफेद विन्दु उन्नति का सूचक है। • मंगल रेखा पर काला विन्दु होने पर व्यक्ति कायर होता है। • बुध क्षेत्र पर होने से व्यक्ति धोखेबाज अथवा ठग होता है। • गुरु क्षेत्र पर होने से विवाह में अड़चनें और अपयश होता है। • शुक्र क्षेत्र में काला विन्दु होने से व्यक्ति कामपिपासु होता है, पर गुप्तांगों में बीमारी होने से अपनी काम पिपासा को शान्त नहीं कर पाता। ऐसे लोग पत्नी या प्रेमिका द्वारा तिरस्कार किये जाते हैं। • शनि क्षेत्र में होने से प्यार के मामले में बदनामी तथा पति पत्नी में रंजिस । • रवि क्षेत्र में काला विन्दु होने से प्रतिष्ठा प्रभावित होती है। • राहु क्षेत्र में होने से युवावस्था में धन की कमी, केतु क्षेत्र में बचपन से बीमार होता है। • चन्द्र क्षेत्र में होने से विवाह में देरी एवं प्रेम में निराशा, • भाग्य रेखा पर होने से भाग्योदय में बाधा। • जीवन रेखा पर होने से लम्बी बीमारी, • विवाह रेखा पर होने से सिर में भारी चोट और हृदय दुर्बल होता है।
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नक्षत्र (स्टार) बुध क्षेत्र पर नक्षत्र निशान होने पर व्यक्ति कुशाग्र (तीक्ष्ण) बुद्धि का होता है एवं समाजसेवी, परोपकारी, तथा व्यवसायी बनता है। मंगल क्षेत्र - मंगल क्षेत्र पर हो तो व्यक्ति शूरवीर, धैर्यवान एवं साहसी होता है तथा युद्ध में वीरता के कार्य से देशव्यापी सम्मान मिलता है। गुरु क्षेत्र -गुरु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति को जीवन में शक्ति, अधिकार, पद, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। उसकी समस्त कार्य क्षमतायें उन्नति की ओर अग्रसर होने लगती हैं, शीघ्र ही वह सम्मानीय पद प्राप्त कर लेता है एवं जीवन में अचानक धन की प्राप्ति भी होती है। शुक्र पर्वत - शुक्र पर्वत पर नक्षत्र का चिह्न होने से व्यक्ति काम भावनाओं के प्रति अग्रसर रहता है तथा प्रेम के क्षेत्र में सफल होता है एवं सुंदर स्त्री प्राप्त करता है। शनि क्षेत्र - शनि क्षेत्र में होने से व्यक्ति सही दिशा में चिन्तन करने वाला भाग्यवान होता है तथा प्रसिद्धि प्राप्ति होती है, परन्तु बुढ़ापे में आराम और सम्मान नहीं मिलता है। रवि क्षेत्र - रवि क्षेत्र पर नक्षत्र का चिह्न होने से व्यक्ति जीवन में पूर्ण ऐश्वर्य का भोग करता है एवं किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती तथा मानसिक शान्ती बनी रहती है। चन्द्र क्षेत्र - चन्द्र क्षेत्र पर नक्षत्र का चिह्न होने से व्यक्ति उच्च स्तर का कलाकार होता है तथा काव्य के माध्यम से धन और यश प्राप्त करता है। राहु क्षेत्र - राहु क्षेत्र में होने से भाग्य हमेशा साथ देती है तथा अच्छी कीर्ति प्राप्त होती है। केतु क्षेत्र - केतु क्षेत्र पर नक्षत्र का चिह्न होने से व्यक्ति का बाल्यकाल सुखी होता है तथा धन की कमी नहीं होती है। आयु रेखा – पर यह निशान होना अशुभ माना गया है। विवाह रेखा पर स्टार होने से विवाह सम्बन्धी अनेक अड़चनें आती है तथा वैवाहिक जीवन
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सुखी नहीं होता। हृदय रेखा – पर स्टार होने से हृदय सम्बन्धी बीमारी होती है। अंगूठे पर नक्षत्र होने से इच्छा शक्ति प्रबल होती है।
क्रास • शनि क्षेत्र पर क्रास का चिह्न होने से व्यक्ति के शरीर में कई बार घाव लगते हैं तथा रहस्यमय दुर्घटना भी हो सकती है। • रवि क्षेत्र पर क्रास का चिह्न होने से व्यक्ति व्यवसाय में हानि और पराजय का मुंह देखता है। समाज में उपहास एवं निन्दा का सामाना करता है। • चन्द्र क्षेत्र पर यह निशान होने से व्यक्ति कई बार पानी में डूबता है और बच जाता है। जलोदर तथा दिमागी रोग होने की आशंका बनी रहती है। • मंगल क्षेत्र पर होने से व्यक्ति को कारावास होता है तथा ऐसे व्यक्ति अत्यन्त क्रोधी होते हैं लड़ाई झगड़े में मरना मारना इनके लिए आम बात होती है। • बुध क्षेत्र में यह निशान होने से व्यक्ति घूर्त, ठग, धोकेबाज, झूठा एवं समाज में निन्दनीय जीवन बिताता है। • गुरुक्षेत्र में यह निशान होने से ब्यक्ति का आदर्श विवाह, सोच समझ से कार्य करने वाला, ससुराल से धन प्राप्ति तथा पढ़ी लिखी एवं पतिव्रता पत्नी प्राप्त होती है। • शुक्र क्षेत्र पर यह निशान होने से प्रेम में असफलता मिलती है तथा बदनाम होकर निन्दनीय जीवन बिताता है। ऐसे लोगों का लक्ष्य पूर्ण नहीं होता तथा जीवन निराशापूर्ण होता है। • राहु क्षेत्र पर क्रास का निशान होने से युवा अवस्था में दुःख प्राप्त होता है तथा हमेशा भाग्यहीन होता है। • केतु क्षेत्र पर क्रास का निशान होने से शिक्षा प्रभावित होती है। • जीवन रेखा पर क्रास चिह्न होने से आयु प्रभावित होती है।
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• मस्तिष्क रेखा पर क्रास चिह्न होने पर आयु के उस भाग में दिमाग से सम्बन्धी बीमारी का सामाना होता है। • भाग्य रेखा पर क्रास का चिह्न होने से आयु के उस भाग में भाग्य परिवर्तन होने का अवसर आता है। हृदय रेखा पर होने से रक्तचाप सम्बन्धी बीमारी होती है। • विवाह रेखा पर होने से विवाह नहीं होता, यदि होता भी है तो दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है। नोट- बृहस्पति क्षेत्र के अलावा हाथ में कहीं पर भी क्रास का चिह्न हो, तो उसके प्रभाव को न्यून कर विपरीत फल देने लगता है।
त्रिभुज
तीनों ओर से परस्पर मिली हुई रेखाएँ त्रिभुज कहलाती हैं, गहरी रेखाओं से निर्मित त्रिभुज शुभ फलदायी होता है। वैसे तो त्रिभुज बहुत कम हाथों में पाये जाते हैं। यह जितना ज्यादा बड़ा होगा, उतना श्रेष्ठ एवं फलदायी माना जाता हैं। जिस व्यक्ति के हाथ के मध्य में त्रिभुज होगा। वह सद्गुणी, सच्चरित्र वाला, भाग्यवान, क्रियाशील, ईश्वर में आस्था रखने वाला और उन्नतिशील होता है। ऐसा व्यक्ति शान्त एवं मधुरभाषी, तथा धीर-गम्भीर होता है। त्रिभुज जितना बड़ा होगा, व्यक्ति उतना ही विशाल हृदय तथा कठिनाईपूर्वक सफलता प्राप्त करने वाला व्यक्ति होता है तथा आत्मविश्वास कम होता है। यदि बड़े त्रिभुज में एक ओर छोटा त्रिभुज बन जाये तो वह अवश्य ही उच्च पद को प्राप्त करता है। मंगल क्षेत्र पर निर्दोश त्रिभुज होने से व्यक्ति धैर्यवान, रणकुशल तथा वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरष्कारों से सम्मानित होता है, युद्ध में वह अपूर्व वीरता दिखलाता है। मुसीबत में भी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति सेना का कोई बड़ा आफीसर हो सकता है। किन्तु दूषित त्रिभुज होगा तो व्यक्ति निर्दयी और कायर होगा। बुध क्षेत्र पर त्रिभुज होने से सफल वैज्ञानिक या अच्छा व्यापारी होता है। उसका व्यापार देश-विदेश में फैला होता है तथा ये दूसरे की कमजोरी
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समझने में माहिर होते हैं। गुरु क्षेत्र में त्रिभुज होने से व्यक्ति चतुर, कार्य में दक्ष, कुशाग्र बुद्धि वाला एवं सदैव उन्नति की आकांक्षा वाला होता है। ऐसे व्यक्ति धूर्त एवं सफल कूटनीति वाले भी होते हैं। लोगों को अपने प्रभाव में रखने की कला इनमें खूब होती है त्रिभुज में दोष होने पर व्यक्ति घमण्डी, बातूनी तथा स्वयं की तारीफ करने वाला होता है। शुक्र क्षेत्र में निर्दोश त्रिभुज होने से व्यक्ति का आंशिक मिजाज, सरल तथा सौम्य स्वभाव का स्वामी होता है। ऐसे व्यक्ति ललित कला, संगीत, नृत्य आदि में रुचि रखने वाले होते हैं। दूषित त्रिभुज होने से व्यक्ति को कामान्ध बनाता है। अगर स्त्री के हाथ में ऐसा त्रिभुज होगा, तो वह परपुरुष गामिनी होती है। शनि क्षेत्र पर निर्दोष त्रिभुज होने से व्यक्ति तंत्र-मंत्र साधना में दक्ष एवं गुप्त विद्या तथा वशीकरण का ज्ञाता होता है। दोषपूर्ण त्रिभुज होने पर व्यक्ति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का ठग एवं धूर्त बनाता है। हृदय रेखा पर यह चिह्न होने से लेखन कार्य में ख्याति प्राप्त होती है। भाग्य रेखा पर होने से भाग्योन्नति में बाधाएं आती हैं। चन्द्र रेखा पर होने से विदेश यात्रायें होती हैं। विवाह रेखा पर होने से विवाह में बाधा होती है। आयु रेखा पर होने से दीर्घायु मिलती है।
वर्ग
चार भुजाओं से घिरे हुए क्षेत्र को वर्ग कहते हैं। कुछ लोगों के मत से इसे समकोण भी कहा जाता है। जब एक सुविकसित वर्ग से होकर भाग्य रेखा निकल रही हो तो व्यक्ति के भौतिक जीवन में यह संकट का द्योतक है। जिसका सम्बन्ध आर्थिक दुर्घटना या हानि से है। परन्तु वर्ग को पार करके आगे बढ़ती हुई भाग्य रेखा खतरा नहीं उत्पन्न करती। जब वर्ग रेखा से बाहर हो तथा स्पर्श मात्र हो एवं शनि पर्वत के नीचे हो तो यह दुर्घटना से रक्षा का सूचक है। जब मस्तिष्क रेखा सुनिर्मित वर्ग से निकलती है तो यह स्वयं मस्तिष्क की शक्ति और सुरक्षा का चिह्न माना जाता है। जब वर्ग मस्तिष्क रेखा के ऊपर
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उठ रहा हो और शनि के नीचे हो तो सिर में किसी प्रकार के खतरे का सूचक है। हृदय रेखा किसी वर्ग में प्रवेश करने से प्रेम के कारण भारी संकट का सामना करना पड़ता है। जब जीवन रेखा वर्ग में से गुजरती हो तो यह इस बात का सूचक है कि उस आयु पर व्यक्ति की दुर्घटना होगी, परन्तु मृत्यु से रक्षा होगी। शुक्र पर्वत पर होने से काम संवेगों के कारण संकट से रक्षा होती है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति काम वासना के कारण अनेक तरह के खतरे में पड़ता है, लेकिन हमेशा बच निकलता है। वर्ग जीवन रेखा के बाहर हो तथा मंगल क्षेत्र से आकर जीवन रेखा को छू रहा हो, तो इस स्थान पर वर्ग के होने से कारावास या भिन्न प्रकार का रहन सहन होता है। जब वर्ग किसी भी पर्वत पर होता है तो उस पर्वत के गुणों के कारण होने वाले किसी भी अतिरेक से रक्षा का सूचक होता है। गुरु पर होने से व्यक्ति की आकांक्षा से उसे रक्षा प्रदान करता है। शनि पर होने से खतरों से रक्षा करता है। सूर्य पर होने से प्रसिद्धि की इच्छा को बढ़ाता है। चन्द्र पर होने से अधिक कल्पना एवं अन्य रेखा के दुष्प्रभाव से बचाव होता है। मंगल पर होने से शत्रुओं से होने वाले खतरों से बचाता है। बुध पर होने से उद्विग्नता एवं चंचल वृत्ति से बचाता है।
द्वीप
हाथ में द्वीप का होना अधिक शुभ नहीं माना जाता है। द्वीप का सम्बन्ध जिस रेखा एवं क्षेत्र से होता है, उनमें अधिकतर बुराइयों से सम्बन्धित होता
उदाहरण के तौर पर जीवन रेखा पर होने से विरासत में मिली दुर्बलता या रोग का सूचक होता है। जब यह द्वीप सूर्य रेखा पर हो तो यह यश और प्रतिष्ठा की हानि का सूचक
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होता है या किसी प्रकार की बदनामी अथवा अपयश का सामना होता है। भाग्य रेखा पर होने से सांसारिक कार्यों में हानि का सूचक है। मस्तिष्क रेखा के केन्द्र में स्पष्ट चिह्न के रुप में होने से मानसिकता से सम्बन्धी पैतृक दुर्बलता का लक्षण है। हृदय रेखा पर होने से विरासत में मिली हृदय से सम्बन्धी बीमारी का सामना करना होता है। स्वास्थ्य रेखा पर होने से गम्भीर रोग का सूचक है। यदि कोई रेखा द्वीप में मिल रही हो या फिर द्वीप बनाती हो तो यह हाथ के जिस भाग में होगा उसके सम्बन्ध में एक बुरा लक्षण है। यदि शुक्र पर्वत पर एक सहायक रेखा द्वीप में मिल रही हो तो यह जीवन को प्रभावित करने वाले स्त्री, पुरुष के लिए काम वासना के कारण परेशानी उत्पन्न कर सकता है। शुक्र पर्वत की ओर से द्वीप बनाती हुई कोई रेखा यदि विवाह रेखा तक जाती है, तो उस विन्दु पर विवाह से सम्बन्धी या अन्य प्रकार से बदनामी होगी। इसी प्रकार अन्य कोई रेखा हृदय रेखा की ओर जाती हो तो प्रेम सम्बन्धों में बदनामी और संकट उत्पन्न करेगी। गुरु पर्वत पर होने से आत्मविश्वास और आकांक्षा को आघात पहुंचाता है। शनि पर्वत पर होने से व्यक्ति को दुर्भाग्य का शिकार बनाता है। चन्द्र पर्वत पर होने से कल्पना की क्षमता को प्रभावित करता है। मंगल पर्वत पर होने से भावना की कमी और कायरता उत्पन्न करता है। बुध पर होने से परिवर्तनशील बनाता है। (व्यवसाय या विज्ञान क्षेत्र में) शुक्र पर होने से काम संवेग एवं कल्पना के क्षेत्र में परिचालित होने का संकेत देता है।
वृत्त
छोटे-छोटे गोल घेरों को वृत्त कहते हैं, इन्हें सूर्य, कन्दुक एवं घेरा भी कहा
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जाता है।
चन्द्र क्षेत्र पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति को जल से नुकसान होता है तथा जल तत्व से सम्बन्धित बीमारी का सामना करना पड़ता है। मंगल क्षेत्र पर वृत्त होने से व्यक्ति को कायर तथा रणभीरु बना देता है। बुध क्षेत्र पर होने से व्यापार में सफलता एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। गुरु क्षेत्र पर होने से उच्चपद की प्राप्ति तथा लोगों पर प्रभाव एवं विवाह में दहेज की प्राप्ति होती है। शनि क्षेत्र पर वृत का चिह्न होने से अचानक धनलाभ तथा भाग्योन्नति होती
है।
शुक्र क्षेत्र पर वृत्त का निशान होने से व्यक्ति को कामातुर एवं इन्द्रिय लोलुप तथा भोगी बना देता है। ऐसे लोगों में नपुंसकता भी पायी जाती हैं। राहु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति को निष्क्रिय एवं पुरुषार्थ हीन बना देता है। हृदय रेखा पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति को हृदय हीन एवं पत्थरदिल बना देता है। जीवन रेखा पर होने से आंखों में बिमारी या कमजोरी होती है। भाग्य रेखा पर होने से व्यक्ति में कमजोरी एवं भ्रम उत्पन्न करता है। मस्तिष्क रेखा पर होने से व्यक्ति को स्नायु रोग उत्पन्न करता है। विवाह रेखा पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति कुंवारा रहता है, या फिर विवाहोपरान्त शीघ्र ही विधुर होकर जीवन व्यतीत करता है।
जाल
आड़ी रेखा पर खड़ी रेखाओं के होने से जाल सा बन जाता है, यह मानव हाथों पर अधिकाशं पाया जाता है। हस्त रेखा विज्ञान में जाल का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है। अतः इसका अध्ययन भी अति आवश्यक है।
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रवि क्षेत्र-सूर्य क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति समाज में निन्दा तथा उपहास का पात्र बन जाता है। चन्द्र क्षेत्र-चन्द्र क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति निरन्तर चंचल स्वभाव युक्त, अधीर एवं असन्तुष्ट रहता है। मंगल क्षेत्र-मंगल क्षेत्र पर जाल होने से मानसिक अशान्ति एवं उद्विग्नता रहती है। बुध क्षेत्र-बुध क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति को स्वतः के कार्यो में हानि का सामना एवं पश्चाताप होता है। गुरु क्षेत्र-गुरु क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति घमण्डी, स्वार्थी और निर्लज्ज हो जाता है। शुक्र क्षेत्र-शुक्र क्षेत्र पर जाल होने से भोगी, लम्पट, अधीर तथा कामातुर होता है। शनि क्षेत्र-शनि क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति आलसी, कंजूस अर्कमण्य एवं अस्थिर चित्त वाला होता है। राहु-राहु केतु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति द्वारा जीवन हत्या जैसे अपराध होते हैं एवं दुर्भाग्य का सामना होता है। केतु क्षेत्र-केतु क्षेत्र पर जाल होने से चेचक या चर्म रोग जैसे रोगों का सामना होता है।
मत्स्य (मछली) यह मणिबन्ध के उपर भाग्य रेखा या आयु रेखा किसी एक में भी हो सकती है या दोनों में इसे शुभ चिह्न माना जाता है। बृहस्पति भी ऐसे व्यक्ति को हाथ में जिनके मत्स्य रेखा होती है, वह अच्छा होता है। वह मीन का बृहस्पति ज्योतिष के अनुसार अपने राशि का स्वामी होगा। मत्स्य रेखा वाला व्यक्ति धार्मिक, उदार, दानी और समाज में प्रतिष्ठित होगा। मत्स्य रेखा का उपरी भाग जितना अधिक नुकीला होगा उतना ही अधिक समय तक सुख प्राप्त होगा। स्त्रियों के हाथ में इस रेखा के होने से अच्छे पति
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प्राप्त करने वाली, उनका सम्मान करने वाली, दीर्घजीवन, सौभाग्यशालिनी और पुत्र-पौत्र वाली भी होंगे। मत्स्य पुच्छ चिह्न वाला व्यक्ति धनवान और विद्वान होता है।
चक्र
चक्र का अर्थ वृत्त से है, जो अंगुलियों की त्वचा एवं रेखाओं पर पाया जाता है। यह वर्तुलाकार एक होने से चालाक दो होने से सुन्दर तीन से ऐशो आरामी चार से गरीब पांच वाला विद्वान, छः वाला विद्वान में चतुर, सातवाला योगी, आठवाला गरीब नौं चक्र वाला राजा या धनी और दसवाला एक सरकारी अधिकारी होता है। साथ ही ईश्वर प्रेमी और थोड़ी आयु वाला होता है। तर्जनी में चक्र होने पर व्यक्ति को मित्रों से लाभ होगा। मध्यमा में होने से इष्ट पूजा से धन लाभ होगा। अनामिका में हो तो समाज की सहायता से पैसा आएगा और कनिष्ठा में चक्र हो जाने पर तैयार माल द्वारा धनार्जन होगा। उपर्युक्त अंगुलियों में यदि शंख हो तो तत्संबन्धी नुकसान होगा।
शंख
यह चिह्न किसी महान् व्यक्ति के हाथ में ही होता है। तमाम चिह्नों में यह दुर्लभ होता है। तर्जनी में शंख होने पर मित्रों से धनहानि होती है । मध्यमा में हो तो उसे पुजारी नहीं बनना चाहिये । अनामिका में शंख होने पर धन का अचानक नाश व कनिष्ठा में भी यही फल होवे ।
त्रिभुज
भारतीय पद्धति मे त्रिभुज बृहस्पति पर्वत पर ही अच्छा होता हैं। उंचे दर्जे के राजनीतिज्ञों के धार्मिक पुरुषों के व योगी महापुरूषों के हाथों में यह पाया जाता है। ऐसा व्यक्ति मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाला होता है। जिस व्यक्ति के हाथ में यह त्रिभुज होता है। वह अपने निकटवर्ती लोगों को अच्छी तरह से और चतुराई से किसी न किसी तरीके से काम में लगा सकते है।
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देवस्थान
संतयोगी व राजघराने के व्यक्तियों के हाथों में यह होता हैं। इसका दूसरा नाम शिवालय भी है। समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के हाथों में यह चिह्न पाया जाता है। टैगोर, बेलन, ब्रामन, रमन के हाथों में यह चिह्न था।
ध्वज
जिस व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न होगा, वह जिस काम में हाथ डालेगा, उसमें उसकी विजय होगी। इस चिह्न वाले व्यक्ति के पास सवारी के साधन अधिक होंगे। सफल और गुणी मनुष्यों के हाथों में यह चिह्न अधिक पाया जाता है।
स्वस्तिक
हर प्रकार से धन धान्य, भू–भाग से परिपूर्ण लाभ उस व्यक्ति के पास होगा। जिसके हाथ में स्वस्तिक का चिह्न होगा, वह शक्ति सम्पन्न भी होगा यह चिह्न शुभ माना जाता है।
चन्द्रमा
जिस व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न होगा, वह व्यक्ति जिस किसी के यहाँ नौकरी भी करेगा, तो अपने मालिक अथवा ऑफीसर की ओर से सम्मानित होगा। यह चिह्न भद्र, सम्मानित और यशस्वी व्यक्ति के हाथों में पाया जाता
धनुष
यह चिह्न अपूर्व साहस और शक्ति देने वाला होता है। राजा, राजकुमारों व समृद्धि, धनी व्यक्ति के हाथों में यह चिह्न पाया जाता है।
कमल
महापुरुषों के हाथ में इस प्रकार के संकेत होते है, जो अवतार लेते है। उनके हाथों में ऐसा कहा जाता है कि चार चीजें होती हैं- हल, कमल,
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घड़ा और शंख। इनमें से एक भी हो, तो उसके महत्व का द्योतक माना जाता है।
सर्प
किसी व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न हो, तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है। हाथ में यह चिह्न होने पर मनुष्य को शत्रुओं से या विरोधियों से नुकसान होने का अंदेशा रहता है।
अभ्यास
1. जातक के जीवन में बिन्दु से क्या-क्या प्रभाव होता है ? 2. किन क्षेत्रों में नक्षत्र (स्टार) होना अशुभ माना गया है ? 3. बुध क्षेत्र पर निर्दोष त्रिभुज का शुभाशुभ फल लिखें । 4. यदि जीवन रेखा वर्ग में होकर गुजरती हो तो उसका क्या फल होगा? 5. किन क्षेत्रों में द्वीप होना अधिक शुभ माना जाता है ? 6. विवाह रेखा पर वृत्त होने से क्या प्रभाव पड़ता है ? 7. अंगुलियों पर पायेजाने वाले चक्र का शुभाशुभ फल लिखें ।
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7. How to Study the Palm Lines
अध्याय -7 रेखाओं की अध्ययन विधि
हाथ तथा अंगुलियों पर अनेक छोटी-2 रेखायें होती हैं जिनका निर्माण गर्भ में तेरहवें सप्ताह से होना शुरु हो जाता है। यह लगभग बीसवें सप्ताह तक पूर्ण रुप से बन जाती है और इसी समय वर्तमान, भविष्य का विषय हाथ की रेखाओं में स्पष्ट हो जाता है। इसी समय त्वचा में भी रेखाएँ बनना शुरु हो जाती हैं, गर्भ में हाथ की अंगुलियाँ पहले बनती हैं, बाद में हथेली बनती है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पैर में कभी-2 पद्म रेखा पायी जाती है जो हाथ में भाग्य रेखा की भांति होती है। हाथ एवं त्वचा की अनेक बारीक रेखाओं के बारे में एन. जेक्विन ने अपनी पुस्तक में अच्छा प्रकाश डाला है। वास्तव में मनुष्य का व्यक्तिगत भाग्य गुप्त संस्कारों की प्रतिछाया है, जो ओचतन रुप से छिपा पड़ा है। स्वस्थ्य व्यक्ति की बारीक रेखाएँ मलेरिया या तीब्र रोग में अथवा विष आदि के प्रभाव से प्रभावित होती हैं तथा उनका आकार-प्रकार बदल जाता है। हस्त रेखा अध्ययन में सर्वप्रथम हथेली के आकार प्रकार वर्ग, जाति, आदि का अध्ययन किया जाय तत्पश्चात् पर्वतों का निश्चित् क्रम में अध्ययन होना चाहिए, सामुद्रिक शास्त्र व हस्तरेखा विज्ञान निश्चित ही विज्ञान है जिसका क्रमबद्ध अध्ययन आवश्यक है। जिसका क्रम इस प्रकार है। 1. हृदय रेखा 6. चन्द्र रेखा 2. मस्तिष्क रेखा 7. संतति एवं विवाह रेखा
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रेखाओं पर पर्वतों का प्रभाव
शनिपर्वत पर्वता
मंगल
मंगल पर्वत
गंगाला पर्व
बन्द्रमावि
शुक्र पर्वत
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3. जीवन रेखा 8. भाग्य रेखा 4. मणिवन्ध रेखा 9. चिह्न 5. मंगल रेखा
10. आकार-प्रकार इस रीति से किया गया अध्ययन अधिक स्पष्ट ओर सत्य परिणामों की सृष्टि करेगा। निर्दोष रेखा उन्हें कहते हैं जो गहरी, सीधी, बिना कटाव तथा स्पष्ट होती है वे अपनी पूर्ण शक्ति से व्यक्ति को प्रभावित करती हैं, इसके विपरीत रेखायें दोषी मानी जाती हैं जिनका गुण व प्रभाव कम या फिर समाप्त हो जाता है। रेखाओं के मार्ग में वर्ग, अथवा आयत की उपस्थिति शुभ मानी गयी है तथा द्वीप को अशुभ माना जाता है। प्रस्तुत पेज पर कई प्रकार के चिह्न दिये जा रहे है इनका पूर्ण रुप से अनुभव होना हस्त रेखा विषय के लिए आवश्यक है। हस्त रेखाओं के अध्ययन में काफी ज्यादा परिश्रम की आवश्यकता होती है एक बार फिर हम आपको बता दें कि रेखाओं का अध्ययन करते समय दोनों हाथों को देखना चाहिए। अगर दोनों हाथों में अशुभ चिह्न हों तो बुरा फल कहना चाहिए। यदि एक हाथ में अशुभ चिह्न या रेखा होगी और दूसरे हाथ में नहीं होगी तो ऐसी स्थिति में उसकी अशुभता आधी क्षीण हो जाती
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The Line of Life
जीवन या आयु रेखा
हस्त रेखा पद्धति में अंगूठे के तीसरे पोर को घेरने वाली रेखा आयु रेखा कहलाती है। अगर यह रेखा दोनों हाथों में स्पष्ट रूप से गोलायी युक्त हो तो आयु का निश्चित प्रमाण भली प्रकार आंका जा सकता है। यहां एक प्रश्न बड़ा रोचक सामने आता है कि जीव के साथ कर्म भी बुरी तरह चिपका होता है । ऐसी स्थिति में भाग्य को कैसे जाना जाय तो यह जानना भी आवश्यक हो जाता है कि कर्म भी दो प्रकार के होते हैं, निवार्य और अनिवार्य यानी जिसका निवारण हो सके और दूसरा जो जरुरी है।
जैसे- कभी-2 किसी हाथ में संतान रेखा नहीं होने से यह स्पष्ट है कि उसके भाग्य में संतान नहीं है परन्तु उससे सम्बन्धी निवार्य कर्म करने से यानी किसी प्रकार का अनुष्ठान, उपाय आदि करने से उसे पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है।
भारतीय शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में इसके अनेक प्रमाण पाये गये हैं। जैसे महाराजा दशरथ का तीन विवाह हुआ। परन्तु संतान न होने से वे उसका निवार्य कर्म किये जिसका नाम पुत्रेष्टि यज्ञ था। भारतीय दर्शन कर्म को प्रधान मानता है, कर्म करना और आगे प्रगति करना मनुष्य का लक्ष्य है, इसमें हस्तरेखा अत्यन्त सहायक है।
भारतीय पौर्वात्य पद्धति में इस आयु रेखा को पितृ रेखा भी कहते हैं। यह 11 प्रकार की मानी गयी है:- गज रेखा, सगूढ़ देहा, विगूढ़ देहा, परगूढ़ देहा, निगूढ़ देहा, अतिलक्ष्मी सुख भोग दात्री, कुबुद्धिकारी, सर्वसौख्य विनाशिनी तथा गौरी,, रमा। मनुष्य अपने आयु काल में ही भौतिक सुखों दुखों का भोग करता है। आयु ही मनुष्य का जीवन है। अतः आयु रेखा ही हस्त रेखाओं में प्रधान रेखा है।
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बीसवीं सताब्दी में संसार में सबसे अधिक आयु वाला यूक्रेन प्रान्त है (काला सागर के उपर) भारत में मध्य प्रदेश और असम के व्यक्ति की आयु रेखा काफी लम्बी होती है इसी कारण वे दीर्घ जीवी होते हैं।
आयु रेखा जितनी स्पष्ट एवं गोलायी में होगी, वह व्यक्ति असाधारण रूप से महत्वाकांक्षी कार्य कुशल और यश को प्राप्त करने वाला होता है। वह व्यक्ति किस कार्य में सफलता प्राप्त करेगा यह निर्णय पर्वत की प्रधानता से किया जाता है।
जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र को सीमित करेगी, तो व्यक्ति में सहानुभूति, वासना, यौन इच्छाओं की कमी पायी जाती है। जीवन रेखा की लम्बाई कम होने से व्यक्ति अल्पायु होता है अर्थात जीवन रेखा द्वारा जितनी अधिक सीमा बनेगी, उस व्यक्ति में उतना ही शुक्रीय गुण अधिक होगा। यदि जीवन रेखा कटी फटी या टूटी हुई हो तो मानसिक तौर पर अस्वस्थ बनाती है तथा सदा रुग्ण एवं चिड़चिड़ा स्वभाव युक्त रहता है। समान्यतः वही रेखायें प्रकट होती हैं, जिनका मानव शरीर पर प्रभाव होता है। व्यक्ति के जीवन में योग क्रिया या विशेष परिस्थिति द्वारा परिवर्तन होने पर रेखायें अपना नया मार्ग चुन लेती है। ऐसी स्थिति में यह भी प्रश्न उठ सकता है कि उस हालत में भविष्यवाणी किस प्रकार की जाय? इसके उत्तर में यह परिवर्तन दाहिने हाथ में ही होता है। घटनाओं का संकेत बायें हाथ एवं पर्वतों से मिल सकता है।
सम्पूर्ण जीवन का लेखा जोखा इस आयु रेखा से ही होता है, समय या काल उस रेखा या नक्से का अंग नहीं है। जीवन का घटना चक्र इतना विस्तृत है कि उसमें हमारी हजारों यात्रायें उसी अकेली रेखा के थोड़े से भाग में समायी हुई है।
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1. आयु रेखा और मष्तिष्क रेखा दोनों एक स्थान पर प्रारम्भ में मिलती हैं, तो व्यक्ति अपनी शक्ति और उत्साह से कार्य में प्रगति करेगा, वह सतर्क तो रहेगा, पर थोड़ी सी संवेदनशीलता भी होगी।
2.यदि आयु रेखा और मष्तिष्क रेखा में शुरु
के स्थान परस्पर दूरी होगी, तो व्यक्ति में जरुरत से ज्यादा आत्म विश्वास एवं किसी भी विषय पर बोलने की क्षमता होती है। (दूरी का अर्थ है कि एक इंच का पांचवा या छठां भाग) ऐसी हालात में व्यक्ति दूसरों की कम सुनता है और स्वतंत्र विचार धारा का होता है और प्रायः नौकरी करने में असफल रहता हैं।
3. जीवन रेखा बृहस्पति क्षेत्र से शुरु होने पर व्यक्ति बचपन से ही महत्वाकांक्षी होता है। जीवन रेखा, हृदयरेखा, शीर्ष रेखा का एक साथ जुड़ा होना अत्यन्त दुर्भाग्य का सूचक है, वह इस बात की सूचना देता है कि बुद्धिहीनता या आवेश के कारण महा विपत्ति में डालेगा।
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4.जीवन रेखा जब मध्य में विभाजित होकर उसकी शाखा चन्द्र क्षेत्र के मूल स्थान को जाती है तो एक अच्छी बनावट के दृढ़ हाथ का व्यक्ति अस्थिर होता है। उसे यात्रायें ज्यादा पसंद आती है। अगर मुलायम हाथ हो शीर्ष रेखा झुकी हो, तो व्यक्ति उत्तेजनापूर्ण अवसरों के लिए लालायित रहता है, और इस प्रकार की उत्तेजना किसी दुष्कर्म या शराब पीने से शान्त होती हैं
5. जो रेखाएं जीवन रेखा से निकल कर ऊपर की ओर जाती है, वे अधिकारों में वृद्धि, आर्थिक लाभ और सफलता की सूचक होती
हैं।
6. अगर ऊपर की ओर जाती हुई रेखा जीवन रेखा से निकल कर सूर्य क्षेत्र की ओर जाये तो व्यक्ति में कुछ विशेष गुण पाये जाते
हैं।
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7. उपर्युक्त रेखा अगर बुध क्षेत्र की ओर जाये तो व्यापार और विज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
8. अगर जीवन रेखा अंत में दो शाखाओं में बंट जाय और दोनों शाखाओं के बीच की दूरी अधिक हो तो व्यक्ति की मृत्यु अपने जन्म स्थान से अन्य क्षेत्र में होती है।
9. यदि जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप का चिह्न हो तथा वह बीमारी हालात के पश्चात भी बना रहे, तो उस व्यक्ति का जन्म रहस्यपूर्ण होता है।
10. जीवन रेखा पर वर्ग अत्यन्त शुभ और सुरक्षा का लक्षण माना जाता है। जीवन रेखा के अनुकूल दिशा में सीधी रेखाएं शुभ और आड़ी-तिरछी व काटती हुई रेखाएं अशुभ मानी जाती है।
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11. यदि कोई रेखा मंगल पर्वत से ऊपर उठती हुई नीचे आकर जीवन रेखा को काटती है या स्पर्श करती है तो ऐसी रेखा वाली स्त्री का पहले किसी व्यक्ति के साथ अनुचित सम्बन्ध रहा था, जो उसके लिए संकट का कारण रहा था।
12. यदि जीवन रेखा के भीतर की ओर छोटी रेखा समान्तर में साथ चलती है, तो स्त्री के जीवन में आने वाला पुरुष नम्र प्रकृति का होगा।
13. आयु रेखा अगर अंगूठे की जड़ से शुरु होगी तो उस व्यक्ति को संतान की प्राप्ति नहीं होगी।
14. आयु रेखा की शुरुआत में जंजीरनुमा होने से व्यक्ति कार्य के शुरुआत में बुद्धि को स्थिर नहीं रख पाता, हर कार्य में उतावलापन होता है, इस कारण कभी-कभी असफलता का मुंह देखना पड़ता है। मनःस्थिति भी संकुचित हो जाती है।
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15. यदि आयु रेखा को प्रारम्भ में कोई अन्य रेखा काट रही है तो दमा सम्बन्धी हृदय या फेफड़े आदि का रोग होता है। प्रायः सर्दी जुकाम एवं स्नोफिल से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
16. शनि पर्वत से कोई मोटी रेखा आकर आयु रेखा को काट दे तो पशु द्वारा व्यक्ति को चोट आ सकती है। ऐसे लोगों को पशु संबंधित कार्य करते समय संवेदनशील रहना चाहिए, ताकि भविष्य की घटनाओं से सुरक्षा मिल सके।
यह रेखा शास्त्र के अनुसार शायद कुछ महान पुरुषों में पायी गयी है। जैसे आज अनेक व्यक्तियों को सिंह, हाथी, मगरमच्छ आदि के द्वारा मृत्यु होती है। ऐसे लोगों में अधिकांशतः सर्कस के कार्यकर्ता पाये जाते हैं।
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The Life Line and Diseases
जीवन रेखा और रोग
• जीवन रेखा से नीचे की ओर गिरती शाखायें, तारक, (स्टार) चिह्न होने से रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धी बीमारी होती है। • जीवन रेखा से शनि पर्वत पर उपस्थित जाली क्रास चिह्न तक जाने से पित्त सम्बन्धी बीमारी होती है। • जीवन रेखा को काटकर स्वास्थ्य रेखा से मिलती हुई लहरदार रेखा पित्त ज्वर उत्पन्न करती है। • रेखा पर वृत्त अथवा धब्बा होने से नेत्र की बीमारी होती है। • जीवन रेखा को काट कर रेखा जाल युक्त प्रथम मंगल पर जाती रेखा रक्त विकार एवं खांसी उत्पन्न करती है। • जीवन रेखा के साथ-साथ जाती हुई मष्तिष्क रेखा, मष्तिष्क ज्वर उत्पन्न करती है। • जीवन रेखा पर सफेद विन्दु होने से मोतियाविन्द या आंख की अन्य बीमारी होती है। • जीवन रेखा को यदि स्वास्थ्य रेखा काटती है तो पाचन सम्बन्धी बीमारी होती है। •जीवन रेखा को काटकर सूर्य क्षेत्र तक जाती रेखा सूर्य पर्वत पर रेखा समूह अथवा गुणक चिह्न होने से हृदय सम्बन्धी बीमारी होती है। • जीवन रेखा पर द्वीप तथा आड़ी रेखाओं से भरा हाथ मानसिक अशान्ती का द्योतक है। • जीवन रेखा पर उपस्थित द्वीप को काटती एक रेखा आंख की शल्य चिकित्सा का संकेत देती है।
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अभ्यास
1. किन मुख्य रेखाओं के अध्ययन से भविष्य बताया जा सकता है ?
2. रेखायें कितने प्रकार की होती है ?
3. किसी एक दोषपूर्ण रेखा पर प्रकाश डालें ?
4. यदि शनि पर्वत से एक मोटी रेखा आकर जीवन रेखा को काटे तो
जातक के जीवन में क्या और कब घटित होगा?
5. सीधी और गोल जीवन रेखा के प्रभाव में क्या अंतर है ?
6. जीवन रेखा के तीन अन्य नाम बतायें ?
7. जीवन रेखा हाथ में न होने पर जातक को क्या प्रभाव होगा?
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8. The Effects of Line of Heart
अध्याय - 8
हृदय रेखा का प्रभाव
हथेली पर मौजूद हर रेखा अपने आपमें एक प्रकार के जीवन शक्ति प्रवाह की परिचायक होती है, तथा यही रेखायें व्यक्ति के जीवन की सूक्ष्मतर स्थितियों का संकेत करती हैं। इन्ही रेखाओं के दोषी होने पर व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है स्पष्ट और अटूट रेखाएँ व्यक्ति के जीवन के सफलता को प्रमाणित करती हैं। हस्त रेखाएँ पूरे जीवन की व्याख्या कर देती हैं। हथेली की प्रत्येक रेखा व्यक्ति के किसी न किसी घटना को स्पष्ट करती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि घटनाओं की निश्चित् तिथियाँ नहीं बतायी जा सकती पर स्थान, नाम आदि बताना सम्भव है।
गहन अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर घटित घटनाओं को ठीक पास में लाया जा सकता है। अधिक अभ्यास हो जाने के बाद आप घटना के लिए जो तिथि निर्णय करेंगे तो आम तौर पर उस तिथि पर वह घटना घटेगी, यह परिश्रम अध्ययन और फलादेश की प्रमाणिक युक्ति है। यह भी ध्यान रखना होता है कि मस्तिष्क के गुणों, दोषों के अनुसार रेखायें परिवर्तित होती रहती हैं।
हृदय रेखा 16 प्रकार की मानी गई है:- जगती, राजपददात्री, कुमारी, गान्धारी, सेनानित्वप्रदा दरिद्रकारी धृती वासवी चम्पकमाला वैश्वदेवी त्रिपदी महाराजकरी रमणी चपलवदना कुग्रहणी आदि ।
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कभी-कभी हथेली पर बहुत अधिक और कभी - 2 बिल्कुल कम रेखाएँ देखने में आती हैं। जीवन रेखा एक ऐसी रेखा है जो प्रत्येक मनुष्य के हथेली में होती है, अन्य रेखाओं की अनुपस्थिति में दूसरी छोटी रेखाओं द्वारा पूर्ण की जाती है।
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प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती हैं अतः
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इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है ।
प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं। ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती है अतः इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है।
मुख्यतः रेखायें चार प्रकार की होती हैं।
1. गहरी रेखा - यह रेखा पतली होने के साथ - 2 गहरी (मोटी) भी होती है।
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2. बलुआ रेखा यह रेखा शुरू में मोटी होती है तथा ज्यों-जयों आगे बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों पतली होती जाती है।
3. पतली रेखा - वह रेखा शुरु से आखिर तक एक आकार (पतली) में होती है।
4. मोटी रेखा यह रेखा चौड़ायी लिये होती है और पूर्णतः स्पष्ट होती है ।
मनुष्य के हाथ में गहरी, स्पष्ट और सरल रक्त वर्ण की, हृदय रेखा व्यक्ति को मानवीय गुणों से सम्पन्न करती है। दाहिने हाथ की ह्रदय रेखा जितनी ज्यादा साफ और गहराई लिये होगी व्यक्ति उतना ही अधिक सरस, न्यायप्रिय तथा परोपकारी माना जाता है। किन्तु हृदय रेखा यदि कटी, टूटी या अस्पष्ट होगी, तो व्यक्ति देखने में, चाहे जितना सज्जन क्यों न हो वह दिल से पापी और कलुषित होगा। ऐसा व्यक्ति असभ्य, बद्दलन चरित्रहीन विवेकशून्य आदि अवगुणों वाला होगा।
ऐसे व्यक्तियों का आसानी से यकीन करना अपने आप को धोका देने के बराबर है। इसका हृदय से सीधा सम्बन्ध माना गया है। जो कि जीवन का प्राथमिक अंग है, जहां से संचालन का नियन्त्रण होता है।
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निर्दोष और सबल हृदय रेखा स्वस्थ्य हृदय की परिचायक है। करीब एक सौ हाथों में एकाध हथेली ही ऐसी होती है जिसमें हृदय रेखा का अभाव होता है। हथेली में इस रेखा की अनुपस्थिति व्यक्ति के अमानवीय प्रवृत्तियों को स्पष्ट करती है। यह रेखा व्यक्ति को दुर्गुण एवं गुण दोनों प्रदान करती है। प्राचीन हस्तरेखा ग्रन्थों के अनुसार हृदय रेखा तीन स्थानों से शुरु होती है। 1. शनि और गुरु पर्वत के मध्य से 2. गुरु पर्वत के केन्द्र से 3. शनि पर्वत के केन्द्र से। 1.अ. शनि गुरु के मध्य से- ऐसे व्यक्ति व्यवहार कुशल और स्नेही होते हैं। इनका प्रेम जीवन की प्राथमिकता पूर्ति के बाद शुरु होता है। 1.ब. गुरु पर्वत के केन्द्र से- यह हृदय रेखा मनुष्य के प्रणव सम्बन्धों और स्नेह को आदर्शवादी आधार प्रदान करती है। ऐसे व्यक्ति विषम परिस्थिति एवं आपत्ति काल में भी सम्बन्धों का निर्वाह करने में सफल होते
1.स. शनि पर्वत से- यह हृदय रेखा स्वार्थ भावना उत्पन्न करती है तथा ऐसे लोग वासना के प्रति यकीन रखते हैं। ऐसी भावना रखते हैं कि जिसमें अपना स्वार्थ झलकता हो और प्रेम वासना अधिक पायी जाती है, इसलिए प्रेम सम्बन्धों में स्वार्थी होते हैं।
2.अ. मस्तिष्क रेखा के निकट से आरम्भ होने वाली हृदय रेखा असाधारण रूप से दीर्घ हो तो ईर्ष्या की भावना उत्पन्न करती है तथा प्रेम सम्बन्धों में ये असफल होते हैं।
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2.ब. अधिक दीर्घ हृदयरेखा भावनात्मक प्रवृत्ति को उत्पन्न करने वाली होती है, तथा छोटी हृदय रेखा अच्छी मानी गयी है।
2.स. हृदय रेखा जिस पर्वत को छूती हुई या स्पर्श करती हुई आगे की ओर जाती है या वहीं झुक जाती है, तो ऐसी हालत में पर्वत विशेष का गुण हृदय में अधिक पाया जाता है।
3.अ. यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा में पूरी तरह शामिल हो जाय, तो उस आयु में हृदय की स्वतंत्र ईकाई नष्ट हो जाती है और हृदय मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
3.ब. जब कई सूक्ष्म रेखायें नीचे से चलकर हृदय रेखा पर धावा बोल दें तो व्यक्ति प्रेम का जाल इधर उधर फेंकता फिरता है। निरन्तर किसी को प्रेम न करके वे व्यभिचारी बन जाते हैं।
3.स. यदि हृदय रेखा चौड़ी और श्रृंखला युक्त हो तथा शनि क्षेत्र से शुरु हो तो वह स्त्री या पुरुष विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित नहीं होता तथा
एक दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखता है। 4.अ. हृदय रेखा लाल और चमकीले रंग की होने पर व्यक्ति को हिंसात्मक वासना (बलात्कार) पूर्ति के लिए उत्सुक करती है। 4.ब. यदि बृहस्पति क्षेत्र से दोमुंही हृदय रेखा आती है तो व्यक्ति प्रेम के क्षेत्र में उत्साही, इमानदार और सच्चे दिल का स्वामी होता है।
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4. स. हृदय रेखा शाखाहीन और पतली होने से व्यक्ति रुखे स्वभाव का
होता है तथा उसके प्रेम में गरिमा नहीं होती ।
5. अ. यदि हृदय रेखा है पर बाद में फीकी
पड़ जाय तो प्रेम में भीषण निराशा का सामना होता है। जिस कारण वह हृदय हीन और प्रेम विमुख हो जाता है ।
5. ब. हृदय रेखा पर क्रास या नक्षत्र का निशान होने से हृदय गति प्रभावित होती है ।
5. स. हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर शनि पर्वत के नीचे तक जाते-जाते समाप्त हो जाये, तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के
मामले में धोकेबाज होता है।
5. 4. बुध पर्वत के नीचे से निकलकर गुरु पर्वत के नीचे तक आती हुई प्रतीत हो तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामले में धैर्यवान होता है तथा पत्नी को महत्त्व देता है और ईश्वर से डरने वाला तथा विशुद्ध प्रेम का पुजारी होता है ।
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सूर्य रेखा
यह रेखा हथेली की आवश्यक रेखाओं में से एक है, इसे सूर्य रेखा, रवि रेखा, यशरेखा आदि नामों से जानी जाती है। यह रेखा व्यक्ति के जीवन के मान, प्रतिष्ठा, यश, पद, ऐश्वर्य आदि को दर्शाती है।
व्यक्ति के हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो किन्तु उसके हाथ में श्रेष्ठ सूर्य रेखा न हो तो वह सब व्यर्थ है । हस्त रेखा विशेषज्ञ को इस रेखा का विशेषतः अध्ययन करना चाहिए, यह रेखा आमतौर पर सूर्य पर्वत के नीचे होती है। इस रेखा के बारे में ध्यान देने का विषय है कि यह रेखा चाहे कहीं से भी शरू हो पर जिस रेखा की समाप्ति सूर्य पर्वत पर होती है वही सूर्य रेखा कही जाती है। यह रेखा धन, सम्मान, कलात्मक प्रतिभा तथा वैभव व्यक्त करने वाली रेखा है। इसी रेखा द्वारा शनि रेखा पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, दूसरे शब्दों में शनि रेखा को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली रेखा सूर्य रेखा है।
The Line of Sun
इस रेखा का न होना किसी तरह भी अशुभ या असफलता का संकेत नहीं
है परन्तु इसकी अनुपस्थिति में संघर्ष और परिश्रम अधिक करना होता है।
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लम्बी सूर्य रेखा व्यक्ति को सम्मान, प्रतिभा और अधिकार दिलाती है ।
• इस रेखा पर नक्षत्र होने से सुख, सौभाग्य, सफलता प्राप्त होती है ।
रेखा पर वर्ग होने से मान सम्मान की क्षति से रक्षा होती है।
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• इस रेखा पर द्वीप हो तो मान मर्यादा को क्षति, पद को नष्ट करती है।
• अन्य रेखाओं की भांति यह भी पर्वतों से आकर्षित, प्रभावित होती है।
विचलित सूर्य रेखायें मंगल के निम्न पर्वत पर भी उदय होती है ।
• जीवन के जिस आयु में सूर्य रेखा मोटी हो, यशार्जन का समय होगा ।
• बुध चतुराई, शनि अध्यवसाय, सूर्य यश और प्रतिभा प्रदान करता है।
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शनि रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा होने से व्यक्ति को अनेक संघर्षों से सफलता और लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
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1.अ. यदि सूर्य रेखा, हृदय रेखा से आरम्भ हो तो उसे प्रतिभा और विशिष्टता 50 वर्ष के उम्र पश्चात प्राप्त होती है। 1.ब. सूर्य रेखा जीवन रेखा से आरम्भ होने पर व्यक्ति सौन्दर्योपासक होता है। 1.स. सूर्य रेखा, चन्द्र रेखा से आरम्भ होने पर सफलता मिलती है। परन्तु दूसरों के सहारे से क्योंकि व्यक्ति दूसरे पर निर्भर होता
है।
2.अ. यह रेखा चन्द्र क्षेत्र पर झुकी हो, तो प्रायः काव्य, उपन्यास, शायर,
कवि, राजनीतिज्ञ, गायक आदि बनाती है। 2.ब. यदि यही रेखा शीर्ष रेखा से आरम्भ होती है, तो व्यक्ति को बौद्धिक क्षमता के द्वारा 35 वर्ष की उम्र के बाद सफलता प्रदान करती है। 2.स. यदि अनामिका, मध्यमा के बाराबर हो, सूर्य रेखा लम्बी हो, व्यक्ति धन और विद्या युक्त होता है तथा जुआ और खतरों भरा कार्य पसंद
करता है। 3.अ. यदि सूर्य रेखा हथेली से आरम्भ हो तो व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करने के बाद सफलता मिलती है। 3.ब. यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा से आरम्भ हो तो जिस आयु में सूर्य रेखा भाग्य रेखा से उठती है उस आयु में उन्नति प्राप्त होती हैं। यह रेखा कला क्षेत्र में सहयोग करती है तथा कुछ विद्वानों के मत से यह राज योग होता है।
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3.स. यदि सूर्य क्षेत्र पर अनेक रेखायें हो तो व्यक्ति अधिक कल्पनाशील और कलाप्रिय होता है पर पूर्ण सफलता कम प्राप्त कर पाता है। 1.शुक्र क्षेत्र- शुक्र क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा की यह प्रथम अवस्था होती है यह जीवन भाग्य, मस्तिष्क एवं हृदय रेखा को काटती हुई सीधी अपने स्थान रविक्षेत्र पर पहुंचती है। शुक्र क्षेत्र प्रेम का प्रतीक है, स्त्री का द्योतक है। इस कारण उसकी उन्नति किसी महिला के द्वारा होती है, वही उसको भूमि, सम्पदा, धन आदि से सम्पन्न करती है। यह स्त्री स्वयं की पत्नी या प्रेमिका हो सकती है जो कि पवित्र प्रेम करती है। 2.जीवन रेखा क्षेत्र- इससे निकलने वाली रेखा व्यक्ति को कलात्मक बनाती है, उसकी यह कला विभिन्न रूप धारण करती है और विभिन्न श्रोतों
से उसका परिचय देती है। वह एक सिद्ध हस्त दस्तकार, दर्जी, शिक्षक, शिल्पी, गायक और संगीतज्ञ, तान्त्रिक तथा अभिनेता हो सकता है, इनकी कलाओं में आकर्षण होता
यह कला इन्हे यश प्रदान करती है, किन्तु इन्हें परिश्रम द्वारा ही धन प्राप्त होता है, इन्हें सामान्य धनाभाव भी होता है। ये सौन्दर्य के अंधे और परम उपासक होते हैं। इन्हे परिवार
द्वारा सफलता नहीं मिलती, ये स्वतः के बलबूते पर उन्नति करते हैं तथा स्वावलम्बी होते हैं। इनके माता-पिता कम, शिक्षा के स्वामी होते हैं, निर्धन निष्क्रिय और संसार विरक्त भी पाये जाते हैं। सात्विक हाथ में यह रेखा अच्छी और निकृष्ट हाथों में सामान्य मानी जाती है।
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3.मष्तिष्क रेखा क्षेत्र - इस क्षेत्र से शुरू होने वाली सूर्य रेखा का स्वामी अद्भुत कार्यकर्ता होता हैं। ऐसे व्यक्ति विशेष मस्तिष्क के स्वामी होते हैं। ये प्रायः महानपुरुष, प्रतिभाशाली, दिव्यज्ञानी, साहित्यिक, वैज्ञानिक आदि होते हैं। ऐसे लोगों का कार्य बड़ी सूझ बूझ से सम्पन्न होता है तथा उस कार्य की विशेषता को मानव समुदाय हमेशा स्मरण रखता है। कभी-कभी ऐसे लोगों को मध्य आयु में सफलता प्राप्त होती पायी गयी है। अगर ये व्यापारी होते हैं तो खूब धन, कलाकार होते हैं तो खूब यश प्राप्त करते हैं। 4. मंगल क्षेत्र- मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा वीरता एवं चेतना को प्रदान करती है, जिनमें यह रेखा विद्यमान होती है वे हमेशा उत्साही, साहसी, आशावान, निडर और वाचाल होते हैं।
इनमें निरन्तर आत्मविश्वास की लहर दौड़ती रहती है तथा आपत्तियों का मुकाबला करने से नहीं डरते, इनमें हठ भी पाया जाता है परन्तु जिस कार्य को हठ भावना से करते हैं उसमें सफल भी पाये जाते हैं। कभी-2 विद्रोह की भावना भी जाग्रत होती है तथा रुढ़िवादी रीतिरिवाजों के खिलाफ रहना इनकी विशेषता है। इनका हृदय एक ओर कठोर और दूसरी ओर कोमल होता हैं ये न्याय के प्रति हमेशा उतावले रहते हैं तथा
न्याय के लिए स्वतः की बलि देना अपना कर्तव्य समझते हैं। युद्ध स्थल में ये सफल सैनिक प्रमाणित होते हैं। ये लोग विषम परिस्थिति में भी अपने मनोबल और बैभव से सफल पाये जाते हैं।
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5. हृदय रेखा क्षेत्र - हृदय क्षेत्र से शुरु होने वाली सूर्य रेखा के स्वामी कलाकारी, नाटक, कहानी, उपन्यास, काव्य, आदि कार्यों से लाभ कमाते हैं। यह रेखा उन्हें प्रौढ़ अवस्था में सफलता देती है। ऐसे व्यक्ति आरम्भ काल में सुखी एवं सम्पन्न नहीं होते । इस समय समाज में उन्हें निन्दा आदि का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पिछला समय उनका अंधकारमय कहा जा सकता है। इस काल में उन्हें विफलता और अनेक अपयश
का सामना करना पड़ता है तथा मन प्रसन्न नहीं रहता उनके चेहरे पर प्रफुल्लता नहीं होती, उदासी उन्हें खूब प्रताड़ित करती है, जिससे वे ब्याकुलता अनुभव करते हैं।
किन्तु इनका जीवन बाद में सुखमय होता है, समाज में सम्मान एवं यश मिलता है तथा उनकी रचना, या कार्य इस समय सराहनीय हो जती है। कुछ लोग ऐसे भी पाये गये हैं, जिन्हे संघर्ष करते-करते मृत्यु हो गयी, बाद में उनके कार्यों का फल उनके पुत्रादि को प्राप्त होता है। उन्हें जीते जी न कीर्ति मिलती है और न ही विपुल धन राशि यदि ह्रदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा दोषी हो तो अपयश तथा दुःख प्राप्त होता है वे दर-बदर ठोकरें खाते हैं।
उनकी कला ही बला बन जाती और गति
को अवरुद्ध कर देती है, कुछ कलाकार ऐसी स्थिति में पागल भी होते पाये गये हैं उनकी मृत्यु भी भयानक और अशोभनीय होती है, जीवन का संघर्ष ही उनकी मृत्यु का कारण बन जाती है।
6. मणिबन्ध क्षेत्र - मणिबन्ध से शुरू होने वाली सूर्य रेखा बड़ी उत्तम और उन्नत मानी जाती है, यह रेखा सर्व साधारण के हाथों में
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नहीं पायी जाती, यह रेखा भाग्यशाली होने का संकेत है। ऐसी रेखा, आदर, प्रतिष्ठा, प्रतिभा, सत्कार, उच्चाधिकार आदि प्रदान कराती है। ऐसे लोगों के कार्यक्षमता का तारतम्य कभी नहीं टूटता। ऐसे लोगों की योजनायें सफल होती हैं तथा ये दानशील, न्यायप्रिय, परोपकारी एवं कलाविज्ञ होते हैं। सफलता का अवसर स्वतः चलकर इनके पास आता है। ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र एवं वकील, डाक्टर, इन्जीनियर, व्यापारी, अभिनेता, आदि होते हैं, ऐसे लोग सरकारी नौकरी वाले भी होते हैं जो कि उच्च पद प्राप्त करते हैं। 7.राहु क्षेत्र- राहु क्षेत्र से शुरू होने वाली सूर्य रेखा के व्यक्ति स्वतंत्र, व्यवसायी तथा लोभी होते हैं, ऐसे मनुष्य उच्च स्तर के कवि, लेखक, सम्पादक हो सकते हैं। कभी -कभी एक से अनेक कार्य एक साथ करते हैं। सूर्य रेखा यदि राहु क्षेत्र पर आकर टूट जाय या श्रृंखलाबद्ध हो जाये अथवा द्वीप हों तो व्यक्ति निकम्मा, निठल्ला अवगुण वाला एवं असफल होता है। ऐसी स्थिति में यदि सूर्य की अंगुली का प्रथम पोर लम्बा, चौड़ा और सुडौल होगा तो व्यक्ति में कलाकारी, अविष्कार, वैज्ञानिक, चित्रकारी आदि का गुण पाया जाता है। यदि पहले की अपेक्षा दूसरा पोर अधिक बड़ा होगा, तो व्यक्ति प्रसिद्ध व्यापारी होता है। यदि सूर्य अंगुली पर वर्ग और समकोण चतुर्थांश हो तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में अधिकाधिक सफल होता है और अपने कार्यों से महान कहलाता है। 8.केतु क्षेत्र- केतु क्षेत्र से शुरू होने वाली सूर्य रेखा व्यक्ति को अधिकाधिक सुख प्रदान करती है । ऐसे व्यक्तियों को कमा-कमाया धन प्राप्त होता है। दौलतमंद लोगों द्वारा
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उन्हें गोद भी लिया जा सकता है, ये पूर्वजों के जायदाद सम्पदा के मालिक बनते हैं। ऐसे लोगों को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता तथा समाज में प्रतिष्ठा मिलती है और ये साहूकार होते हैं। यह सब होते हुए भी ये मन के अशुद्ध और मैले होते हैं, पापी होते हैं अधिक झूठ एवं वासना के पुतले होते हैं। अपने कंधे पर गुनाह और वासना का बोझ लादे रहते हैं। धन की अधिकता से ये अनेक व्यसन, औरत खोरी, शराब खोरी आदि कई बुरी आदतों के शिकार होते हैं और दौलत के आगे ये किसी की भी परवाह नहीं करते।
अभ्यास
1. अच्छी हृदय रेखा की पहचान बतायें ?
2. हृदय रेखा से किन-2 बातों का निर्णय हो सकता है ?
3. अधिक दीर्घ हृदय रेखा का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
4. हृदय रेखा किन-2 स्थानों से निकलती है ?
5. सूर्य रेखा किन-2 बातों को प्रकट करती है ?
6. सर्वोत्तम सूर्य रेखा के बारे में प्रकाश डालें ?
7. अभिनय, कहानी, नाटक आदि से जुड़े लोगों की सूर्य रेखा के बारे में
लिखें?
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9. The Line of Fate
अध्याय - 9 भाग्य रेखा
वर्तमान समय के जन मानस में भाग्य शब्द अपरिचित नहीं हैं। आज अगर कोई कार्य समय पर नहीं हो पाता या उसमें किसी भी प्रकार की अड़चन आती है तो भाग्य को ही दोष दिया जाता है ।
गीता के अठारहवें अध्याय में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण का सारा परिश्रम भाग्य के नीचे दब गया और उसमें लिखा है कि 'दैवचैवात्र पंचमम्” । वास्तव में देखा जाय तो भाग्य एक बाजार है जहां थोड़ी देर ठहरने के बाद भाव गिर जाते हैं।
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बालक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर जिस परिवार में जन्म लेता है उसका परिवेश परिजन बड़ी तन्मयता से पालन करता है। इस जीवन में जो कुछ मनुष्य कर्म करता है। वह धीरे धीरे संचय होता जाता है और उसकी एक तलपट तैयार होती जाती है, हम उसे कलान्तर में भाग्य का रुप दे देते हैं। आज का जो हमारा पुरुषार्थ है वही कल का भाग्य है, वास्तव में कर्मफल भोग के परिपाक को ही भाग्य कहते हैं।
मातृ दोषेण दुःशीलो, पितृ दोषेण मूर्खता। कार्पण्य वंश दोषेण, स्वदोषेण दरिद्रता । । (श्रीमद्भागवत महापुराण)
मनुष्य यदि चरित्रहीन हो तो उसकी माता में दोष समझना चाहिए. यदि वह मूर्ख है तो उसके पिता का दोष समझना चाहिए, यदि वह गरीब है तो किसी का दोष नहीं स्वयं का दोष समझना चाहिए। इन्ही दस अंगुलियों द्वारा किये गये काम से दैनिक सप्ताहिक मासिक या वार्षिक रुप से भाग्य का संचय होता है। शनि रेखा या भाग्य रेखा मनुष्य का जीवन चक्र बतलाती है। उसका कारबार व्यक्तित्व, आर्थिक उन्नति परिवर्तन, व्याप्त प्रवृतियां इन सब का चित्रण भाग्य रेखा या शनि रेखा करती है।
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भाग्य रेखा का उद्गम स्थान मणिबन्ध है, वहां से निकलने वाली रेखा मध्यमा अंगुली की ओर जाती है। इस रेखा के मार्ग में आने वाले अनेक चिह्न एवं रेखाओं का भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते हैं। 1.अ. भाग्य रेखा आयु रेखा में से निकलकर शनि पर्वत को जाये तो व्यक्ति का शुरुआती जीवन कुछ कठिनाई युक्त व्यतीत होता है। मेहनत से कार्य करके ये लोग प्रायः 21 वर्ष की आयु के पश्चात उन्नति करते हैं। 1.ब. भाग्य रेखा के शुरुआत में अगर यव का निशान होवे तो उसका जन्म रहस्मय बताया गया है, इन लोगों को बाल्यकाल में काफी कुछ खोना पड़ सकता है। 1.स. मणिबन्ध से प्रारम होनेवाली भाग्य रेखा शुभ मानी जाती है। आरम्भ में यदि मत्स्य रेखा हो तो अत्यन्त शुभ माना जाता है। यही रेखा चौकोर हाथ में होने से व्यक्ति काफी अधिक धन कमाता है तथा काम से जी नहीं चुराता है। यही रेखा दार्शनिक हाथ में होने से कम काम करने से अधिक पैसा प्राप्त होता है। 2.अ. मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा शुरु होने पर काफी परेशानी को झेलने के बाद व्यक्ति का कार्य प्रगति पथ की ओर अग्रसर होता पाया गया है। 2.ब. यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाती है तो व्यक्ति की बृद्धावस्था सुखमय व्यतीत होती है। 2.स. भाग्य रेखा के समाप्ति स्थान पर क्रास का चिह्न घातक संकेत है।
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3.अ. चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली भाग्य रेखा से दूसरों की सहायता या प्रोत्साहन से सफलता प्राप्त होती है राजनीतिज्ञ एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के हाथों में ऐसी रेखा अधिकांश पायी जाती है।
3.ब. सीधी जाती हुई भाग्य रेखा में चन्द्र क्षेत्र से आकर अन्य रेखा मिलने पर व्यक्ति इच्छानुसार सफल होगा परन्तु किसी की सहायता से।
3.स. यही रेखा स्त्रियों के हाथ में होने से उसका विवाह या तो धनवान से होगा या फिर किसी द्वारा धन की सहायता प्राप्त होगी।
4.अ. यदि भाग्य रेखा वृहस्पति क्षेत्र में पहुंच जाये तो व्यक्ति को अधिकार और विशिष्टता प्राप्त होती है ऐसे लोग उच्च पदों को प्राप्त करते हैं। इसके
अलावा अगर अन्य शुभ लक्षण हों तथा रेखा के अन्त में त्रिशूल का आकार होवे तो यह राज योग होता है।
4.ब. यदि भाग्य रेखा की कोई शाखा वृहस्पति क्षेत्र में पहुंच जाये तो अति उत्तम योग होता है तथा ऐसे व्यक्ति अत्यंत महत्वाकांक्षी होते
4.स. शनि क्षेत्र में पहुंचने वाली भाग्य रेखा अच्छा फल देती है।
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5.अ. जंजीरनुमा भाग्य रेखा व्यक्ति को दुःख में डाल देती हैं
5. ब. दो भाग्य रेखा हो तथा उसमें कोई दोष
न हो तो व्यक्ति उन्नति करता है, सम्मान प्राप्त करता है, यह रेखा समानान्तर होगी तो भी शुभ फल प्रदान करेगी।
5. स. यदि भाग्य रेखा हाथ को पार करके
मध्यमा में पहुंच जाये तो लक्षण शुभ नहीं होता, वह व्यक्ति हमेशा सीमा और नियम कायदे का उल्लंघन करता है ।
6. अ. यदि भाग्य रेखा शीर्ष रेखा पर ही रूकती हो तथा पुनः वहां से वृहस्पति क्षेत्र में पहुंचती हो तो व्यक्ति को प्रेम भावना के कारण बाधा उत्पन्न होती है । परन्तु गुरु के प्रभाव से पुनः प्रेम सम्बन्ध से सहायता द्वारा अभिलाषा पूर्ण होती है ।
6. ब. शीर्ष रेखा द्वारा भाग्य रेखा रुक जाय तो व्यक्ति को स्वयं की गलती से असफलता मिलती है।
6. स. मंगल पर्वत से भाग्य रेखा शुरु होने पर भ्रम, शंका आदि का डर रहता है। यही
रेखा शनि क्षेत्र पर जाने से बाधाओं में सफलता तथा धैर्य, श्रम, और लगन से उन्नति होती है ।
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7.अ. शुक्र पर्वत की ओर से आकर कई बारीक रेखायें जब भाग्य रेखा को काटती हैं, तो पारिवारिक कष्ट और उलझनों का सामना करना पड़ता है। 7.ब. भाग्य रेखा मध्य में खण्डित होने से या टूट जाने से कुछ समय के लिए जीवन निष्क्रिय हो जाता है। 7.स. भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम का ऐसा भी क्षण आता है कि जिनका अन्त विवाह बाद भी नहीं होता।
8.अ. त्रिकोण से (दोनों हाथों में) शुरु होने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति को बौद्धिक योजनाओं में सफलता प्रदान करती है। 8.ब. भाग्य रेखा के शुरुआत में टेढ़ी-मेढ़ी रेखा एवं श्रृंखला व्यक्ति के बचपन में कष्ट का संकेत देती है। 8.स. भाग्य रेखा मध्य में हल्की पड़ जाने से उसके मध्य जीवनकाल में सुखमय समय का प्रतीक है।
9.अ. दोनों हाथों में बुध पर्वत पर जानेवाली भाग्य रेखा व्यापार में सफलता देती है। 9.ब. शुक्र पर्वत से एक गहरी रेखा भाग्य रेखा की ओर जाये तो व्यक्ति हिंसात्मक काम भावना वाला होता है। 9.स. यदि इसी रेखा के साथ अन्य रेखा भी जाती हो तो भारी बाधाओं पर आनन्दपूर्ण विजय होती है।
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10.अ. भाग्य रेखा पर नीचे की ओर जाने वाली शाखायें व्यक्ति को आर्थिक कष्ट देती
10.ब. भाग्य रेखा तीन जगह से बीच में टूटने से वात रोग द्वारा कष्ट होता है। 10.स. अगर भाग्य रेखा को कोई अन्य शाखा काटती हुई बुध की जाली को पार कर जाये तो व्यक्ति की बेईमानी उसे ले डूबती है तथा उसे पश्चाताप करना होता है। 11.अ. चन्द्र क्षेत्र से सूर्य या बुध क्षेत्र को सीधी जाने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति
को व्यापार से महान सफलता दिलाती है। ऐसे लोगों को साहित्य और कला में भी सफलता मिलती है। 11.ब. मष्तिष्क रेखा से शुरु होने वाली भाग्य रेखा का व्यक्ति शराब या नशीले पदार्थों की दुकान आदि चलाता है। 11.स. जिन हाथों में भाग्य रेखा नहीं पायी जाती वे जीवन में सफल तो होते हैं पर उनमें विशेष निखार या तेज नहीं पाया जाता है। ऐसे लोगों को सामान्य सुखी कहा जा सकता
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Luck, Prestige, Progress and Downfall
भाग्य, यश उन्नति अवनति
सूर्य रेखा, जीवन रेखा की जड़ से उदित होकर बृहस्पति पर्वत पर तारक चिह्न में समाप्त -उच्च भाग्य की सूचक । • मणिबन्ध का पहला वलय जंजीरदार, परन्तु सम तथा निर्बाध सूर्य रेखा त्रिकोण के निचले भाग से उदित, साथ में अच्छी भाग्य रेखा-श्रमपूर्ण जीवन के पश्चात सफल भाग्योदय। • तर्जनी उंगली के दूसरे पूर्व पर एक या दो क्रास चतुर्भुज के अन्दर से बुध पर्वत को एक पुष्ट रेखा। गहरी सूर्य रेखा, साथ में दोनों हाथों में पुष्ट बृहस्पति पर्वत-बड़े लोगों की मित्रता से लाभ। • बृहस्पति तथा शनि पर्वतों के बीच में से उठती हुई हृदय रेखा शनि पर्वत सुविकसित तथा किरणविहीन चन्द्र पर्वत पर कोई चिह्न अथवा संयोग रेखा नहीं -नकारात्मक सुख की सूचक। • कनिष्ठा उंगली की जड़ से एक रेखा बुध पर्वत को झुकती हुई- बड़े लोगों की मित्रता से सम्मान । • भाग्य रेखा चन्द्र पर्वत से उदित तथा बृहस्पति क्षेत्र से आरम्भ हृदय रेखा में लोप-अप्रत्याशित सत्ता की सूचक। • अंगूठा हाथ में बहुत नीचे-सामान्य प्रतिभा। • सूर्य पर्वत पर एक क्रास, भाग्य रेखा शाखाओं के साथ मणिबन्ध से आरम्भ-विफलताओं की सूचक । • जीवन रेखा से मणिबन्ध को जाती हुई छोटी-छोटी रेखायें-जीवन में निराशा की द्योतक। • शनि पर्वत के नीचे मस्तिष्क तथा जीवन रेखा का मिलन दूसरी उंगली के पहले पर्व पर तारक चिह्न-घातक घटनायें।
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• दोनों हाथों में जीवन रेखा का अन्त का क्रास-श्रृंखला में, साथ में निकृष्ट भाग्य रेखा सूर्य पर्वत बहुत सी छोटी-छोटी शाखाओं में काटता हुआ पर्वत के समीप सूर्य रेखा छोटी-छोटी रेखा श्रृंखला में समाप्त - असफलता ।
• शुक्र वलय, पुष्ट परन्तु सूर्य पर्वत के नीचे गहरी खड़ी रेखा से कटा हुआ तीसरी उंगली की जड़ से उठती हुई बहुत सी रेखायें पहले पर्व तक जोड़ों को काटती हुई - स्त्रियों के कारण असफलतायें ।
• बुध पर्वत पर तारक चिह्न, साथ में निम्न बृहस्पति पर्वत अपमान एवं
असफलता ।
•
सूर्य पर्वत पर एक पुष्ट तथा तारक चिह्न में समाप्त रेखा, साथ में दोनों
हाथों में स्पष्ट सूर्य रेखा - प्रतिभा से ख्याति लाभ ।
.
• त्रिकोण के निचले भाग (अन्दर ) पर एक क्रास जीवन के उत्तरी भाग में भाग्यशाली घटनाएं।
अच्छी भाग्य रेखा, साथ में सूर्य पर्वत पर तारक चिह्न सूर्य पर्वत पर साधारण खड़ी रेखायें यदि दोनों हाथों में स्पष्ट और अनकटी हों - संयोग से ख्याति लाभ |
• हृदय तथा मस्तिष्क रेखायें बृहस्पति पर्वत के नीचे शाखापुंजदार, बुध पर्वत पर एक गहरी रेखा । शुक्र पर्वत से लेकर बुध पर्वत की एक रेखा । एक गहरी खड़ी रेखा बृहस्पति पर्वत पर अच्छे भाग्य की परिचायक ।
• सूर्य रेखा एक ही लम्बाई की तीन सम शाखाओं में समाप्त एक बुध पर्वत की ओर तथा एक शशि पर्वत की ओर - ख्याति और सम्मान ।
• पुष्ट मंगल रेखा की उपस्थिति और स्वास्थ्य रेखा के साथ-साथ गौण रेखा के रूप में उत्तम बुध रेखा - बहुत अधिक सुख ।
तीसरी उंगली के तीसरे पर्व पर एक सरल रेखा शनि पर्वत पर एक स्पष्ट रेखा जिसमें से ऊपर की किरणें उठ रही हों। मणिबन्ध के प्रथम वलय के
रूप में एक बिना टूटी रेखा - सामान्य प्रकार के सुख ।
• मणिबन्ध पर बहुत सी शाखायें मणिबन्ध से ही सूर्य पर्वत को एक सरल
•
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रेखा चतुर्भुज में एक तारक चिह्न तीसरी उंगली की जड़ से पहले पर्व की एक रेखा-सम्मान तथा उच्च स्थान। • जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा के मध्य को उठती हुई शाखायें, ये सम्मान तथा धन भारी संघर्ष के पश्चात प्राप्त। • मस्तिष्क रेखा से एक रेखा बृहस्पति पर्वत पर तारक चिह्न में समाप्त - असाधारण सफलता। • भाग्य रेखा दोनों हाथों में त्रिकोण के अन्दर से उठती हुई साथ में स्पष्ट लम्बी मस्तिष्क रेखा-शुभ सहायक अवसर। • जीवन रेखा का अन्त शाखापुंज में, कलाई के पास नीचे एक महत्वपूर्ण परिवर्तन वाली घटनायें। • भाग्य रेखा चन्द्र पर्वत से उदित और स्पष्ट तथा सीधी शनि पर्वत को-दूसरे के सनकीपन से धन का लाभ। • स्पष्ट सूर्य रेखा बृहस्पति पर्वत पर एक तारक चिह्न अनामिका उंगली की जड़ से उदित पहले पर्व के जोड़ पर समाप्त रेखा-प्रसिद्धि की सूचक। • भाग्य रेखा बृहस्पति पर्वत से आरम्भ अथवा भाग्य रेखा बृहस्पति पर्वत पर समाप्त-सम्पूर्ण आकांक्षापूर्ति ।
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The Features of Palm Lines
हस्त रेखा का स्वरूप
सबसे पहले हमें यह बात अच्छी तरह जान लेनी चाहिए कि विभिन्न प्रकार के हाथों पर पाई जाने वाली विभिन्न रेखाओं को मिलाकर देखे जाने वाले अर्थ आज की नहीं बल्कि उस पुरातन काल की बातें हैं जब यह विज्ञान उन लोगों के हाथों में था जिन्होंने इसके विकास के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। अब जिस प्रकार चेहरे पर नाक या होठों के सहज स्थान की पहचान की गई, उसी प्रकार हाथ का अध्ययन करते हुए एक ऐसा समय आया जब मस्तिष्करेखा और जीवनरेखा की स्थिति के अनुसार पहचान की जाने लगी। इस प्रकार का निर्धारण मूल रूप से किस प्रकार खोज निकाला गया। उसका विवेचन हमारे कार्यक्षेत्र में नहीं हैं, लेकिन इन निर्धारणों के सत्य को प्रमाणित किया जा सकता है और सरसरी तौर पर कोई भी व्यक्ति हाथ का स्वयं निरीक्षण करके इसे स्वीकार कर लेगा। इस क्षेत्र में यह प्रमाणित होता है कि मस्तिष्क रेखा पर बने कुछ चिह्न एक या किसी दूसरी मानसिक विशेषता को बताते हैं, या जीवन-रेखा पर बने विशेष चिह्नों का सम्बन्ध जीवन की लघुता या दीर्घता से है, तो यह स्वीकार करना तर्कहीन नहीं हो सकता कि इसी प्रकार के निरीक्षण से रोग, आरोग्य, पागलपन और मृत्यु आदि की भविष्यवाणी भी की जा सकती है। अगर और जोर देकर कहा जाए, तो यह भी सही-सही बताया जा सकता है कि जीवन के किस पड़ाव पर पहुँचकर उसका विवाह होगा। मेरा इस सम्बन्ध में तर्क यह है कि निश्चय ही मनुष्य के पास स्वतन्त्र इच्छाशक्ति है, लेकिन कुछ सीमाओं तक है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार जीवन के अन्य क्षेत्रों की सीमाएं होती हैं- जिस प्रकार मनुष्य की शक्ति की, उसके कद या ऊंचाई की, उसकी आयु की या इसी प्रकार अन्य बातों की। स्वतन्त्र इच्छा शक्ति किसी सिलिन्डर के दोलन की तरह है, जो दोलन निर्माण या जीवन के आरम्भिक शाश्वत यन्त्र को चलायमान रखता है।
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क्या हमारे जीवन को बनाने और नियन्त्रित करने वाले किसी अदृश्य, नियम, या किसी रहस्यमय कारण अथवा शक्ति में विश्वास करना कठिन है? यदि एक बार भी हमें ऐसा प्रतीत हो तो भी हमें उन अनेक बातों पर विचार करना चाहिए जिनका आधार उनसे कम ठोस है। लेकिन हम उन पर विश्वास करते आये हैं। यदि हम स्थिर विचार करें तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा, कि अनेक धर्म, विचार, धारणाएँ और सिद्धान्त हैं जिनके प्रति न केवल जनसमूह के मन में आस्था है बल्कि बुद्धिजीवियों के ठोस विश्वास के भी केन्द्र रहे हैं। इस प्रकार मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता भी है और दास भी है। वह केवल अपने अस्तित्व या अपनी विद्वता से ऐसे विधान सक्रियता में लाता है जिनकी प्रतिक्रिया उस पर होती है और उसके माध्यम से दूसरों पर होती है। जो वर्तमान है वह अतीत का परिणाम है और जो भविष्य में होने वाला है उसका कारण भी वर्तमान है। विगत जीवन के कर्म ही वर्तमान को प्रभावित करते हैं, और वर्तमान के कर्म भविष्य पर अपना प्रभाव डालते हैं। मानव जीवन का यही क्रम है, जो सृष्टि के आरम्भ से चला आ रहा है और जब तक सृष्टि है यह क्रम इसी प्रकार चलता रहेगा। हम जिस मत का अनुपालन और अनुमोदन कर रहे हैं, वह समाज के सभी वर्गों के लिए उपयुक्त होगा। अपनी निःस्वार्थ भावनाओं द्वारा लोगो को ऊंचा उठायेगा और उनके दृष्टिकोण को उदार तथा विस्तृत बनायेगा। हठधर्मिता के स्थान पर उन्हें सत्य की सच्चाई दिखाई देगी। दूसरी ओर प्रारम्भ या भाग्यवाद पर सच्ची आस्था रखने वाला व्यक्ति अपने हाथों को रोककर प्रतीक्षा नहीं करेगा। वह उनसे काम लेगा। सन्तोष और तत्परता से अपने काम में जुट जाएगा यही विश्वास लेकर कर्मपथ पर अग्रसर होगा।
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उपर्युक्त बातों से आपको ज्ञात हो गया होगा की हस्तरेखा विज्ञान तथा निगूढ़ विज्ञान किस प्रकार स्वयं को जीवित रख पाने में समर्थ रहा है हमने देखा है कि कठोर नियमों वाला भौतिक विज्ञान ऐसे तथ्य प्रस्तुत करता है जो हस्तरेखा विज्ञान के पक्ष में जाते हैं। यह विषय जनसाधारण की भलाई का ही साधन है। क्योंकि इसके सिद्धान्त मानव जाति को अपनी जिम्मेदारियों को समझने में समर्थ बनाते हैं, इनके द्वारा हमें भविष्य के सम्बन्ध में चेतावनी मिलती है। इस विज्ञान में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यह स्वयं को पहचानने में सहायक सिद्ध होता है। इसकी सच्चाई और यथार्थता के कारण हमें इसे प्रोत्साहन देना चाहिए और अधिक समृद्ध करना चाहिए । इसे सीखना और दूसरों को सिखाना चाहिए उसे और उपयोगी बनाने के लिए उसका समर्थन करना चाहिए।
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The Practical Knowledge of Palmistry
हस्त रेखाओं का व्यवहारिक ज्ञान
हस्तरेखा का अध्ययन व्यवहारिक ढंग से करने के लिए ढेर सारी बातें याद रखने की आवश्यकता है या फिर ज्यादा समय खर्च होगा और पुस्तकों का सहारा लेना होगा। अबतक आपने जो कुछ हस्त रेखाओं और लक्षणों के बारे में पढ़ा उसके परीक्षण हेतु अब आप स्वतः हाथ की रेखाओं की भविष्यवाणी करने का अभ्यास करें। आर्थिक स्थिति तथा धन लाभ
1.अ. भाग्य रेखा पतली होकर रेखा का अवरोध मस्तिष्क रेखा पर हो तथा हृदय रेखा गुरु या शनि पर रुके, मस्तिष्क रेखा मंगल तक पहुंचे हाथ मध्यम और आयु रेखा कुछ गोल हाथ का रंग गुलाबी हो, ऐसे में सामान्य आर्थिक स्थिति रहती है। 1.ब. मध्यमा का अग्र भाग तर्जनी की ओर झुका हो सूर्य पर्वत पर एक गहरी रेखा हो।
2.अ. सूर्य रेखा और पर्वत पर कई रेखाओं के साथ एक नक्षत्र, सूर्य पर्वत पर सूर्य का
चिह्न।
2.ब. भाग्य रेखा, जीवन रेखा समान चले हाथ मध्यम भाग्य रेखा एक से अधिक उसका अंत हृदय या मस्तिष्क रेखा पर हो।
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3.अ. अच्छे आकार की मध्यमा गुरु पर्वत सामान्य अनामिका के नाखून पर सफेद धब्बा बुध पर्वत पर एक रेखा मस्तिष्क रेखा की एक शाखा सूर्य पर्वत की ओर जाय। 3.ब. भाग्य रेखा पतली होकर हृदय रेखा पर रुके भाग्य रेखा एक से अधिक हो, जीवन रेखा थोड़ी सीधी, भाग्य रेखा में द्वीप मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर जाये, सूर्य रेखा लम्बी अंगुलियां
सीधी हो।
4.अ. हाथ भारी एवं सुंदर हों, शनि ग्रह उत्तम अन्य सामान्य हो, ऐसी स्थिति भी अनुकूल मानी जाती है। 4.ब. मस्तिष्क रेखा की अनेक शाखायें स्वास्थ्य रेखा सूर्य पर्वत की ओर जाये मणिबंध निर्दोश हों, शनि उच्च हों।
अभ्यास
1. मणिबन्ध से प्रारम्भ होनेवाली भाग्यरेखा के बारे में बतायें । 2. चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली भाग्य रेखा जातक को क्या फल देती है? 3. एक से अधिक निर्दोष भाग्य रेखा का क्या प्रभाव होता है ? 4. भाग्य रेखा का उद्गम स्थान बतायें । 5. दोषी भाग्य रेखा का उपाय बतायें । 6. गुरु क्षेत्र पर जानेवाली भाग्य रेखा का प्रभाव बतायें ।
।
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10. The Line of Head
अध्याय - 10
शीर्षरेखा (मस्तिष्क रेखा)
शीर्ष रेखा या मस्तिष्क रेखा का मानव की मनोभावना, विचारधारा, विचार सारणी, बौद्धिक शक्ति आदि से सम्बन्ध होता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि अलग-अलग स्थानों से इसका आरम्भ होता है। यदि मस्तिष्क रेखा थोड़ा भी विकृति या दोषयुक्त होगी, तो मस्तिष्क को प्रभावित करेगी और पूरे जीवन का नाश भी कर सकती है। यह आठ प्रकार की मानी गई है:वराटिका, मृगीगति, कुमुखी , विराट विभूति, पांसुला, कृष्णकचा, सुभद्र देहा, नागी मृगीगति आदि। कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि जीवन रेखा एवं मस्तिष्क रेखा का आपस में गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि बिना मस्तिष्क का मानव जीवन व्यर्थ है। निःसन्देह मस्तिष्क रेखा हथेली की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रेखा है। मस्तिष्क रेखा का उदय गुरु और जीवन रेखा के बीच कहीं से भी होना संभव है। 1.अ. जब जीवन रेखा से निकलकर विचित्र बिन्दु पर अलग होकर स्वतंत्र चलती है, तो वह बिन्दु मनुष्य की मानसिकता का प्रभावी होने का बिन्दु
1.ब. जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा द्वारा बनने वाला कोण जितना बड़ा होगा, मनुष्य उतना ही स्वतंत्र और संवेदनशील होगा। उसका मस्तिष्क जरा-जरा सी बातों से प्रभावित होगा। 1.स. जीवन रेखा से स्वतंत्र आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा उसकी विचार धारा अधिक स्वतन्त्र करती है। ऐसे व्यक्ति कुसाग्र बुद्धि, स्पष्ट चिंतन और व्यवहारिक तथा आदर्शों वाले होते हैं।
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2. अ. निम्न मंगल से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा अस्थायी और परिवर्तनशीलता की प्रवृत्ति उत्पन्न करती है ऐसे लोग क्रोधी और झगड़ालू भी होते हैं। गुरु पर्वत से शुरु होने वाली मस्तिष्क रेखा के लोग महत्वाकांक्षी, तर्कपूर्ण प्रतिभाशाली नायक एवं शक्तिवान मस्तिष्क के होते हैं।
2.ब. सीधी और स्पष्ट मार्ग वाली मस्तिष्क रेखा के स्वामी सतर्क, व्यहारिक और सुलझे हुए व्यक्ति होते हैं। ये प्रायः दूसरे के प्रभाव में कभी नहीं आते, इनके मित्रों की संख्या कम होती है तथा ये कभी-कभी अपने आप में संकुचित होते हैं एवं इनकी विचार प्रणाली अति मौलिक होती है।
2.स. शनि की ओर झुकने वाली मस्तिष्क रेखा धर्म और संगीत कला के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।
होवे
3. अ. अगर शीर्ष रेखा आदि में सीधी और अन्त में कुछ ढलान युक्त तो व्यक्ति व्यवहार और कल्पना क्षेत्र में संतुलित होता है । वह न तो कल्पना में बहकता है न ही व्यवहारिकता के लिए अड़ता है।
3. ब. अगर सम्पूर्ण शीर्ष रेखा ढलान लिये हुए हो तो साहित्य, चित्रकारी, कलपुर्जे के अविष्कारक की कल्पना शक्ति पायी जाती है तथा कल्पना शक्ति की सहायता से साहित्य के क्षेत्र में सफलता भी प्राप्त करता है।
3. स. यदि शीर्ष रेखा सीधी हो तथा द्वितीय मंगल पर ऊपर की ओर मुड़े तो व्यापार में आशा से अधिक सफलता मिलती है।
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4.अ.शीर्ष रेखा में छोटे-छोटे द्वीप और छोटी रेखाएं होने पर सिर से सम्बन्धी पीड़ा अथवा बीमारी होती है। 4.ब.शीर्ष रेखा छोटी हो और कठिनाई से बीच तक पहुंचे तो व्यक्ति में कल्पना शक्ति की कमी होती है। 4.स.शीर्ष रेखा श्रृंखलादार हो या टुकड़े-टुकड़े हो तो व्यक्ति का मन अस्थिर होता है और निर्णय क्षमता की न्यूनता होती है।
5.अ.शीर्ष रेखा समान्य स्थान से ऊंची हो हृदय रेखा से दूरी की कमी हो तो मन पर हृदय का पूर्ण अधिकार होता है। 5.ब.शीर्ष रेखा यदि चन्द्र क्षेत्र की ओर जाये तो गुप्तविद्या , तंत्र, मंत्र, यंत्र, जादू, एवं ऐसे विद्याओं में रुचि होती है। 5.स.यदि कोई रेखा शीर्ष रेखा से निकल कर हृदय रेखा से जा मिले तो किसी के प्रति अधिक आकर्षण होने के कारण बुद्धि विवेक
नष्ट हो जाता है। 6.अ.शीर्ष रेखा दोहरी होने से मस्तिष्क की शक्ति द्विगुणी हो जाती है, ऐसे लोग दृढ़ इच्छाशक्ति के स्वामी होते हैं। 6.ब.दोनों हाथों में शीर्ष रेखा टूटी हो तो हिंसात्मक आघात या घटना से सिर में चोट का संकेत होता है। 6.स.शीर्ष रेखा जीवन रेखा के बीच की दूरी अधिक होने से व्यक्ति उत्साही होता है तथा आत्मविश्वास और उतावलेपन की सीमा लांघ जाता है।
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7.अ.शीर्ष रेखा जीवन रेखा के बीच की दूरी कम होना शुभ माना गया है। ऐसे लोग वकील, अभिनेता, धार्मिक उपदेशक आदि होते हैं। परन्तु जल्दबाजी का स्वभाव होने से कार्य में अड़चने आ सकती है।
7.ब.शीर्षरेखा पर वर्ग होने से दुर्घटना में रक्षा होती है।
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The Capabilities and Talent
कार्यक्षमता एवं प्रतिभा
• मणिबंध का पहला वलय जंजीरदार कठोर परिश्रम और सावधानी का जीवन परन्तु अन्ततः सफलता प्राप्त होती हैं • मस्तिष्क रेखा से उदय तथा शनि पर्वत की ओर वृत्ताकार रूप में जाती हुई भाग्य रेखा-परिश्रम भरा जीवन। • गहरी हथेली तथा मुडी उंगलियों के साथ सूर्य रेखा प्रतिभा का दुरुपयोग। • फीकी या हल्के से रंग की सूर्य रेखा कलात्मक प्रतिभा परन्तु कार्यान्वित करने की अपर्याप्त शक्ति। • सूर्य रेखा दोनों हाथों में स्पष्ट, साथ में सूर्य पर्वत पर एक तारे का चिह्न प्रतिभा द्वारा ख्याति। • अच्छी सूर्य रेखा परन्तु साथ में दो लहरदार अनियमित रेखायें सूर्य पर्वत पर –पथ भ्रष्ट। • दूसरी उंगली पर त्रिकोण-तन्त्र विज्ञान द्वारा प्रतिभा। • अन्तः प्रेरणा-रेखा का उदय द्वीप के साथ-अन्तदृष्टि की प्रतिभा। • बहुत विकसित सूर्य-पर्वत, प्रखर प्रतिभा। • दोनों हाथों में अच्छी सूर्य रेखा, साथ में सूर्य पर्वत पर एक गहरी स्पष्ट रेखा-लाभप्रद प्रतिभा। • सूर्य पर्वत पर दो लहरदार विषम रेखायें, साथ में अच्छी सूर्य रेखा पथभ्रष्ट प्रतिभा। • मस्तिष्क रेखा के अन्त में बुध पर्वत पर चढ़ती हुई रेखा -नकल उतारने की प्रतिभा।
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• नर्म जोड़ तथा छोटा अंगूठा, साथ में चन्द्र पर्वत पर जाली-काव्य प्रतिभा । • अनामिका उंगली चपटाकार अग्रभाग सहित और दृढ़ सूर्य पर्वत भाग्य रेखा से एक शाखा बुध पर्वत की ओर- नाटकीय प्रतिभा। • बहुत दृढ़ और सीधी मस्तिष्क रेखा साथ में निकृष्ट हृदय रेखा ओर पतली उंगली उसकी दूसरी उंगलियों की अपेक्षा लम्बी, अर्थव्यवस्था की प्रतिभा। • तीसरी उंगली लम्बे पर्व के साथ-कला में परिश्रम प्रतिभा तथा सामान्य बुद्धि का मिश्रण। • चौथी उंगली कनिष्ठा, लम्बे दूसरे पर्व के साथ-परिश्रम तथा व्यापारिक क्षमता। • सूर्य पर्वत पर दो रेखायें-सच्ची प्रतिभा, परन्तु साधारण सफलता। • सूर्य पर्वत सूर्य रेखा के साथ ही एक नक्षत्र परिश्रम से भारी ख्याति । • सूर्य पर्वत, शुक्र का चिह्न, बुरे हाथ में, प्रतिभा का दुरुपयोग।
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Strong & Weak Lines
दोषपूर्ण व निर्दोष रेखाएँ
दोषपूर्ण रेखाओं का अध्ययन करते समय यह परम आवश्यक है कि दोनों हाथों को ध्यान पूर्वक देखा जाय अथवा रेखाओं को बारीकी से समझा जाय इस तरह किसी निर्णय पर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
यदि एक हाथ में खराब चिह्न और दूसरे में ऐसा न हो तो उसका परिणाम उतना बुरा नहीं होता जितना कि दोनों हाथों में होने पर।
उदाहरण - किसी व्यक्ति के दाहिने हाथ में जीवन रेखा खराब है या कड़ी हुई है अथवा उसमें कोई दोष है, ऐसी स्थिति में तीन तरीकों से मृत्यु टल सकती है।
1. बायें हाथ में जीवन रेखा निर्दोष व पूर्ण हो ।
2. जीवन रेखा पुनः उदित होकर पूरी हो जाये ।
3. कोई सहायक रेखा जीवन रेखा का स्थान ले लेवें ।
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Success /Failure in Profession
व्यवसायिक सफलता/असफलता
1.अ. मस्तिष्क रेखा आखिर में बुध पर्वत पर चढ़ती हुई नकल उतारने की प्रतिभा।
1.ब. पहली उंगली के ऊपरी जोड़ पर क्रास, कलाई से एक रेखा सूर्य पर्वत को, बुध पर्वत पर एक तारक चिह्न साथ में उठती हुई रेखायें मस्तिष्क तथा हृदय रेखाओं को छूती हुई तथा सूर्य पर्वत के नीचे मस्तिष्क तथा हृदय रेखाओं को छूती हुई रेखा साहित्यिक सफलता।
1.स.नर्म जोड़ तथा अंगूठा, छोटा, चन्द्र पर्वत पर जाली, काव्य प्रतिभा।
2.अ. हाथ में बाहरी सिरे के पास बुध क्षेत्र पर छोटी खड़ी रेखायें - रसायन शास्त्र में सफलता।
2.ब. तीसरी उंगली का अग्रभाग दोनों हाथ में वर्गाकार, चौथी उंगली का दूसरा पर्व सुविकसित, व्यापार में सफलता।
2.स.मणिबन्ध से बृहस्पति पर्वत को जाती रेखा –कानून व्यवसाय में सफलता मिलेगी।
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3.अ. बुध-पर्वत पर दो या तीन खड़ी रेखायें - डाक्टरी व्यवसाय में सफलता। 3.ब. चौथी उंगली पर दो स्पष्ट खड़ी रेखायें -नर्स व्यवसाय में सफलता। 3.स. सूर्य तथा बुध पर्वत बहुत विकसित अंगूठा दोनों हाथों में बहुत नीचे धंसा हुआ, साथ में बुध पर्वत हाथ के बाहरी सिरे तक फैला हुआ आविष्कार की प्रतिभा।
4.अ. चौथी उंगली दूसरी उंगली के समान लम्बी, मस्तिष्क रेखा पर बुध पर्वत के निकट त्रिकोण अथवा सफेद धब्बे । चौथी उंगली की जड़ से प्रथम पर्व तक रेखा वैज्ञानिक कार्यों में सफलता।
4.ब. अन्तः प्रेरणारेखा का उदय द्वीप के साथ, मस्तिष्करेखा का अन्त चन्द्रपर्वत पर लम्बे सूक्ष्म शाखापुंज में चक्र की उपस्थिति
यानि हृदयरेखा की एक शाखा बृहस्पति पर्वत को घेरेहुए, अर्न्तदृष्टि की प्रतिभा।
4.स. बिकृत सूर्यपर्वत कला में असफलता। 5.अ. मस्तिष्क रेखा से एक सीधी स्पष्ट रेखा तीसरी उंगली की जड़ को पूरे आकार की हो। भाग्य रेखा सीधी सूर्य क्षेत्र की रेखा कटी हुई न हो और न ही इस पर दण्ड रेखायें हों। सूर्य रेखा दोनों हाथों में जीवन रेखा में उदित कला में सफलता।
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5.ब. सूर्य पर्वत पर कई रेखायें, सूर्य रेखा की दो या तीन शाखायें ऊपर की ओर तथा कटी हुई। सूर्य रेखा की एक शाखा सूर्य-पर्वत तक पहुंचती हुई और अंग्रेजी के अक्षर 'बी' की शक्ल में दो शाखाओं में विभाजित एकाग्र चित्त के अभाव के कारण कला में असफलता।
5.स. सूर्य पर्वत बहुत विकसित प्रखर प्रतिभा।
अभ्यास
1. सीधी और स्पष्ट शीर्षरेखा के बारे में बतायें ?
2. शनि पर्वत की ओर झुकने वाली शीर्षरेखा का प्रभाव बतायें ?
3. शीर्षरेखा छोटे-छोटे द्वीप और रेखा युक्त होने से जातक के जीवन में
क्या प्रभाव करती है?
4. शीर्ष रेखा का अंत चन्द्र क्षेत्र पर होने से क्या प्रभाव होता है ?
5. शीर्ष रेखा द्वारा किन-किन बातों का निर्णय किया जाता है ?
6. शीर्ष रेखा न होने से क्या होता है ?
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11. The Line of Marriage
अध्याय - 11 विवाह रेखा
विवाह रेखा के नाम से जानी जाने वाली रेखाएं बुध क्षेत्र पर होती हैं। वैसे तो ये रखाएं विवाह से सम्बन्धी रीति और धर्म मर्यादा को मान्यता नहीं देती हैं। यह तो प्रेम से या किसी विपरीत लिंगी संबंधों को जो कि प्रभावित करे उसे ही स्पष्ट करती है। विवाह व्यक्ति के जीवन की एक प्रभावशाली और विशिष्ट घटना है, इस रेखा द्वारा यह ज्ञात होता है कि विवाह कब होगा या किसी महिला से घनिष्ट सम्बन्ध कब होगा और कैसा होगा। विवाह से संबंधित विचार करने हेतु इस रेखा के अलावा अनेक चिह्नों एवं संकेतों का भी विचार करना होता है। विवाह रेखा जो लम्बी हो वही विवाह का सूचक है। 1.अ. जब कोई रेखा सारे हाथ को काटकर विवाह रेखा का स्पर्श करे तो विवाह टूट जाता है। 1.ब. एक ही विवाह रेखा होना अधिक शुभ माना जाता है। 1.स. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में एक अतिरिक्त शाखा होने पर पति पत्नी में भिन्नता
या मतभेद रहता है। 2.अ. यदि विवाह रेखा कनिष्ठा की ओर झुकी होगी तो व्यक्ति विवाह के पक्ष में नहीं होता या फिर अविवाहित रहता है। 2.ब. जहां विवाह रेखा एक से अधिक होती है वहां ऊपरी रेखा प्रभावी मानी जाती है। 2.स. चन्द्र पर्वत से जाती हुई भाग्य रेखा विवाह के बाद भाग्योदय करती है।
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3.अ. अंगूठा दुबला हो हृदय रेखा में कुछ अलग सा कटापन हो तथा शुक्र मुद्रिका में कटापन हो तो ऐसी स्थिति में हिस्टीरिया जैसी बीमारी होती है तथा काम वासना विवाह के बाद भी पूरी नहीं होती। 3.ब. विवाह रेखा के ठीक नीचे हृदय रेखा पर दोनों ओर तिरछी रेखा होने से व्यक्ति वासना और प्रेम का अर्थ नहीं समझता तथा इनमें कामातुरता अधिक पायी जाती है। 3.स. यदि विवाह रेखा इतनी लम्बी हो कि सूर्य रेखा को काटे तो व्यक्ति को विवाह से मान मर्यादा, व सम्मान को धक्का लगेगा। 4.अ. यदि कोई शाखा आकर भाग्य रेखा में मिले तो समझना चाहिए कि उसका विवाह हो चुका है। 4.ब. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में छोटी सी
समांतर रेखा होने से पति पत्नी का संबंध कुछ दिनों के लिए विच्छेद हो जाता है, पुनः पूर्ववत स्थिति हो जाती है। 4.स. विवाह रेखा के अंत में क्रास होना अत्यन्त अशुभ है, ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन में कोई अशुभ घटना होती है। 4.द. विवाह रेखा के बीच में द्वीप होने से
या यव होने से विवाह में तकलीफें आती है। 5.अ. विवाह रेखा इतनी लम्बी हो कि आयु रेखा को काटकर आगे चली जाय या मंगल पर्वत पर जाये तो इस हालत में तलाक हो सकता है।
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5.ब. विवाह रेखा मस्तिष्क रेखा को काटती हुई रूक जाय तो कोर्ट केश होकर विवाह सम्बन्ध खत्म होता है। 5.स. कोई रेखा शुक्र पर्वत से निकल कर भाग्य रेखा के साथ साथ आगे निकल जाय तो निकट सम्बन्धी की लड़की से विवाह होता है। 5.द. यदि कोई रेखा पतली हो और विवाह रेखा को छूती हुई उसके समानान्तर चलती हो तो विवाह के बाद जीवन साथी से बहुत प्रेम होता है।
यह चित्र देखकर विवाह के बारे में अगले पृष्ठ पर देखें
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1.अल्पभाषी एवं स्वभाव लज्जा युक्त। 2. द्वितीय विवाह के विरोधी, उदार, प्रेमी पर अधिकार, भावना संतान सुख । 3. वासना से हानि, यव होने पर मान हानि एवं कारावास । 4. दुर्घटना आदि का भय। 5. दुःखी हृदय, स्वयं को नष्ट करने की चेष्टा, यही चिह्न कुछ आगे मंगल क्षेत्र पर होने से युद्ध क्षेत्र में वीरगति । 6. विवाह टलने की आशंका, विवाह में बाधाएं । 7. विधवापन, भीषण दुर्घटना, पति लापता। 8. अविवाहित, विवाह न होना। 9. विधवापन के रेखा की पुष्टि। 10. रोका गया विवाह। 11. विवाह में विघ्न बाधायें । 12. विवाह सम्बन्ध में निराशा, विवाह सम्बन्धी कष्ट । 13. सुन्दर स्त्री को देखकर शीघ्र लालायित होना। 14. अचानक भीषण घटना, मृत्यु सम्भावित। 15. प्राण रक्षा। 16. शुक्र पर्वत उच्च होने से यह निशान हो तो कामुक वृति, चारित्रिक दुर्बलता, अनैतिकता एवं अनेक बुराइयां। 17. विवाह से असन्तोष। 18. विवाह रेखा शनि पर क्रास ग चिह्न शुक्र मुद्रिका युक्त किसी स्वार्थ के कारण घटना। 19. निकट सम्बन्धी से विवाह (दोषपूर्ण रवैया के कारण) 20. जीवन भर पुराना प्रेम दिमाग में मौजूद । 21. संतान रेखायें (पौर्वात्य पद्धतिनुसार) विवाह कब होगा
हृदय रेखा के निकट विवाह रेखा होने से जातक का विवाह 15 से 19 वर्ष में होगा। यदि यह रेखा बुध क्षेत्र के मध्य में हो तो 20 से 27 वर्ष में तथा उससे अधिक ऊपर की ओर होने से 28 से 38 के उम्र में विवाह का योग होता है। परन्तु इसका पूर्ण निर्णय भाग्य रेखा और जीवन रेखा को देखकर ही किया जा सकता है।
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The Married Life
वैवाहिक जीवन का स्वरूप
1.अ.हृदय रेखा फीकी तथा चौड़ी, साथ में शुक्र पर्वत से निकलने वाली तथा मंगल अथवा बुध पर्वत को जाने वाली रेखा-भौतिक प्रेम विषय वासना।
1.ब.शुक्र पर्वत से निकलने वाली रेखा द्वारा हृदयरेखा, जीवनरेखा, मस्तिष्करेखा तथा विवाहरेखा को काटती हुई-विवाह सम्बन्धी कष्ट।
1.स.बृहस्पति पर्वत के नीचे आरम्भ होकर समरूप में हो तथा साथ में शुक्र पर्वत पर एक क्रास--एकमात्र प्रेम।
2.अ.बृहस्पति पर्वत के नीचे शाखापुंज, एक शाखा शुक्रपर्वत को जाये-सुखद प्रेम।
2.ब.मस्तिष्क रेखा से शाखापुंज सहित निकलने वाली हृदय रेखा जो नीचे शुक्र पर्वत की ओर पहुंचे-विवाह विच्छेद।
2.स. हृदय रेखा शाखापुंज सहित उदय, जिसकी शाखा पहली और दूसरी उंगली की
ओर चढती हो, साथ में रेखाहीन बृहस्पति पर्वत तथा बिना किसी चिन्ह अथवा रेखा का साधारण चन्द्र पर्वत-अभावात्मक प्रेम ।
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3. अ. मस्तिष्क रेखा से बहुत दूर तक दोनों
रेखायें शाखा हीन - प्रेम हीन जीवन ।
3. ब. हृदय रेखा पर सफेद धब्बे-प्रेम के मामले में असफलता ।
3. स. मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा के साथ जाती हुई - घातक प्रेम ।
4. अ. सीधे बृहस्पति क्षेत्र से आ रही हो और ह्रदय रेखा से मिल जाने वाली मस्तिष्क रेखा एक ही के प्रति प्रेम |
4. ब. शुक्र पर्वत से निकल रही रेखा मस्तिष्क, जीवन, हृदय तथा विवाह रेखायें काटती हुई - विवाह सम्बन्धी कष्ट ।
4. स. भाग्य रेखा, हृदय रेखा को काटते समय जंजीरदार प्रेम कष्ट ।
5. अ. शुक्र पर्वत तथा हृदय रेखा के मध्य में शाखापुंज - तलाक ।
5. ब. सूर्य रेखा, विवाह रेखा द्वारा कटी हुई - अनुपयुक्त विवाह के कारण सामाजिक स्थिति की अनिष्ठा ।
5.स. विवाह रेखा टूटी हुई - सम्बन्ध विच्छेद
अथवा तलाक ।
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6.अ.विवाह रेखा शाखापुंज पर समाप्त और हृदय रेखा की ओर झुकती हुई-तलाक की द्योतक है। 6.ब.विवाह रेखा, बृहस्पति पर्वत पर शाखापुंजदार-सगाई टूटना। 6.स.सूर्यरेखा को छूती हुई नीचे की ओर एक शाखा- अनमेल विवाह।
7.अ.स्वास्थ्य रेखा पर तारक चिन्ह दूसरी
उंगली के तीसरे पर्व पर तारक (तारा)चिन्ह । निकृष्ट हृदय रेखा बिना शाखापुंज -सन्तानहीनता।
7.ब.शुक्र तथा चन्द्र पर्वत पर स्टार होने से - रोमांसपूर्ण प्रेम और प्रेमी के साथ पलायन, यदि हाथ की रेखायें निकृष्ट हों- प्रेम के मामलों में अस्वाभाविक मनोवृत्तियां, अस्थिरता।
7.स.बृहस्पति-पर्वत पर क्रास- सुखी विवाह।
8.अ.बृहस्पति-पर्वत पर एक नक्षत्र-आकांक्षा तथा प्रेम की पूरी सन्तुष्टि ।
8.ब.बृहस्पति-पर्वत एक नक्षत्र -श्रेष्ठ विवाह।
8.स.शनि-पर्वत पर एक क्रास -सन्तानोत्पत्ति की असमर्थता।
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9.अ.शनि-पर्वत पर क्रास के साथ-2 शुक्र-पर्वत पर भी क्रास का चिन्ह-सुखांत प्रेम। 9.ब.शुक्र-पर्वत के अंगूठे के दूसरे पर्व के बहुत समीप नक्षत्र-विवाह अथवा 'अवैध प्रेम सम्बन्ध' जो व्यक्ति की सारा जीवन दुःखमय बनाये रखेगा।
9.स.जीवन रेखा अंगूठे के पास स्थिर विशेषकर यदि स्वास्थ्य तथा मस्तिष्क रेखायें नक्षत्र द्वारा जुड़ी हुई हों-सन्तानोत्पत्ति की अक्षमता।
10.अ.जीवन रेखा से मंगल पर्वत (बृहस्पति के नीचे) को जा रही किरण-युवावस्था के प्रतिकूल प्रेम जो कष्ट देवे। 10.ब.शुक्र पर्वत अथवा जीवन रेखा से किसी प्रमुख रेखा को द्वीप के साथ उपर्युक्त रेखा चाहे मध्यम हो-यह कष्ट तलाक देनेवाले व्यक्ति को गत जीवन में हुआ होगा। 10.स.मणिबन्ध- पहला वलय कलाई में ऊँचा
और बीच में काफी उभरा हुआ- जनन क्रियाओं में कष्ट विशेषकर सन्तानोत्पत्ति में। 11.अ.हृदय रेखा अपनी सामान्य स्थिति से नीचे स्थित भावहीनता । 11.ब.हृदय रेखा जितनी लम्बी तथा बृहस्पति पर्वत में जितनी दूर तक यह हो-उतना ही स्थिर और आदर्श प्रेम।
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11.स.हृदय रेखा, बृहस्पति पर्वत के बजाए शनि-पर्वत के नीचे से उदित-कामुकता भरा प्रेम।
12.अ.हृदय रेखा कमजोर तथा निकृष्ट और हाथ के सिरे पर समाप्त होने वाली-सन्तान का न होना।
12.ब.हृदय रेखा में उदति तथा शनि क्षेत्र तक पहुंचने तथा यकायक हट जाने वाली गौण रेखा-अनुपयुक्त प्रेम। 12.स.भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें-प्रेम जिसका अन्त विवाह से भी न हो। 13.अ.जीवन रेखा के साथ चल रही और मंगल पर्वत को जा रही रेखा प्रेम सम्बन्ध में स्त्री अधिक स्थिर स्वभाव ।
13.ब.शुक्र पर्वत के बहुत अन्दर, मंगल को उठ रही रेखा-किसी व्यक्ति से उस स्त्री का सम्बन्ध होगा और वह उससे दूर होता चला जायेगा।
13.स.हृदय रेखा को जा रही सीधी रेखा जीवन रेखा को जिस स्थान पर काट रही हो वहाँ शाखापुंज का होना-सुखहीन विवाह, तलाक तक हो सकता है।
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14.अ.सीधी हृदय रेखा को जा रही रेखा पर द्वीप-सुखहीन विवाह सम्बन्ध के परिणाम गम्भीर यहां तक कि लज्जाजनक रहे हैं या रहेंगे। 14.ब.जीवन रेखा को काटती हुई और विवाह रेखा को पहुंचती हुई किरण जिस व्यक्ति के हाथ में हो उसे तलाक।
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Success/Failure in Love
प्रेम में सफलता/असफलता
1.अ. शुक्र पर्वत से निम्न मंगल पर्वत की ओर दो समानान्तर रेखायें- एक साथ दो प्रेम।
1.ब. इसी एक रेखा से सम्बद्ध तारक चिह्न का अर्थ होगा- दुर्भाग्यपूर्ण प्रेमान्त
1.स. हृदय रेखा, बृहस्पति पर्वत के नीचे समरूप से शाखापुंजदार, साथ में शुक्र पर्वत पर क्रास। बृहस्पति पर्वत से उदित होने वाली हृदय रेखा में समाप्त भाग्य रेखा एक के प्रति प्रेम।
2.अ. शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के पास तीन तारक चिह्न । मस्तिष्क रेखा हाथ के कुछ भाग को काटकर वापस शुक्र पर्वत की ओर प्रेम हो, प्रेम मिले किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण ।
2.ब. हृदय रेखा को काटते समय भाग्य रेखा जंजीरदार अथवा उसके नीचे समाप्त। हृदय रेखा दांतेदार अथवा बहुत कटी हुई त्रिकोण में विकृत तारक चिह्न -प्रेम में परेशानियां ।
2.स. शुक्र पर्वत से उदित रेखायें जीवन मस्तिष्क तथा हृदय रेखाओं को काटती हुई -जीवन का नाश करने वाला प्रेम।
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3.अ. अंगूठे के दूसरे पर्व के नीचे शुक्र पर्वत के आधार पर तारक चिह्न - स्त्री से दुःख । 3.ब. भाग्य रेखा से हृदय रेखा पर चढ़ी छोटी रेखायें प्रेम जिसका परिणाम विवाह न
3.स. हृदय रेखा पर द्वीप शुक्र पर्वत पर दोनों हाथों में रेखायें तथा अति विकसित निकृष्ट हृदय रेखा साथ में जंजीरदार मस्तिष्क रेखा। त्रिकोण का तीसरा कोण अधिक कोण के साथ अंगूठे का पहला पर्व दुर्बल, त्रिकोण के भीतर अर्द्धचन्द्र गंभीर रूप से झूठा प्रेम ।
4.अ. हृदय रेखा पर नीचे की ओर झुकी शाखायें प्रेमी जनों से अत्यधिक निराशा। अति विकसित शुक्र पर्वत साथ में हृदय रेखा जंजीरदार अथवा निकृष्ट छिछला या चंचल प्रेम। 4.ब. स्पष्ट, सीधी, बिना कटी रेखा शुक्र पर्वत की शाखा पुंज में उदित हृदय रेखा की एक शाखा बृहस्पति पर्वत को जाती हुई। 4.स. हृदय रेखा पर सफेद धब्बे -प्रेम विजय।
5.अ. दोनों हाथों में भाग्य रेखा पर द्वीप, साथ में हृदय रेखा पर भी द्वीप, प्रेम की कोई सीमा नहीं। शुक्र पर्वत के लगभग हृदय रेखा पर फैला द्वीप वैवाहिक व्यक्ति के प्रति प्रेम। 5.ब. स्वास्थ्यरेखा, बुधरेखा की गौणरेखा के रूप में प्रेम में आवेग। 5.स. विवाह रेखा की रचना द्वीपों में निकट सम्बन्धों के प्रति प्रेम।
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6.अ. बृहस्पति पर्वत में ऊपर से उदित लम्बी तथा तंग रेखा आदर्श प्रेम की सूचक। 6.ब. शुक्र पर्वत पर त्रिकोण, साथ में अंगूठे का दूसरा पर्व दृढ़ विवेकशील प्रेम। 6.स. दुहरी हृदय रेखा, लम्बा अंगूठा, साथ में दृढ़ हाथ -प्रेम में अति निष्ठा।
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The Prediction for Married Life
वैवाहिक फलादेश
1.अ. सूर्य रेखा, विवाह रेखा से कटती हुई अनमेल विवाह यानि सम्मान हानि की द्योतक। 1.ब. शुक्र पर्वत पर लाल चिह्न से उदित एक रेखा हृदय रेखा की ओर जहां यह शाखापुंज में समाप्त होती है, विवाह रेखा पर एक द्वीप, साथ में भाग्य रेखा पर एक क्रास खड़ी रेखा को जाती हुई, परन्तु वह उसे काटे नहीं विवाह सम्बन्धी मुकदमे। 1.स. हथेली तथा उंगलियां सम आकार की, साथ में बृहस्पति पर्वत सुविकसित परिवार
प्रेम।
2.अ. मणिबन्ध से निकलने वाली सीधी, स्पष्ट बिना कटी हुई भाग्य रेखा,
बशर्ते कि रेखा के ऊपर बृहस्पति पर्वत अथवा शनि पर्वत पर समाप्त होती हो। बृहस्पति पर्वत पर क्रास –पारिवारिक सुख।
2.ब. बृहस्पति पर्वत पर क्रास तथा तारक चिह्न –विवाह से धन की प्राप्ति।
2.स. मणिबन्ध से शुक्र पर्वत की एक रेखा और वहां से बुध पर्वत को जाती हुई -किसी व्यापारी से विवाह।
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3.अ. विवाह रेखा से एक शाखा सूर्य पर्वत की ओर -किसी कलाकार से विवाह । 3.ब. भाग्य रेखा चन्द्र पर्वत से उदित, हृदय रेखा पर समाप्त साथ में बृहस्पति पर्वत पर क्रास-सुखी विवाह। 3.स. मणिबन्ध से एक रेखा शुक्र पर्वत की ओर, और वहां से शनि पर्वत की ओर जाती हुई -किसी बूढ़े व्यक्ति से विवाह । 4.अ. उदय शाखापुंज सहित एक शाखा बुध
पर्वत की ओर, साथ में शनि रेखा पर एक द्वीप यह भी तलाक की निशानी है। 4.ब. विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर नीचे को जाती हुई हृदय रेखा से एक रेखा भाग्य रेखा की ओर, भाग्य रेखा टूटी हुई। विवाह रेखा पर एक काला धब्बा विधुर अथवा बिधवा होना। 4.स. स्वास्थ्य रेखा पर तारक चिह्न, दूसरी उंगली के तीसरे पर्व पर तारक चिह्न निकृष्ट
हृदय रेखा, बिना शाखा पुंज - सन्तानहीनता। 5.अ. विवाह रेखा कई लम्बी रेखाओं से कटती हुई चन्द्र पर्वत पर एक पड़ी रेखा, साथ में शुक्र पर्वत पर एक तारक चिह्न विवाह सम्बन्धी परेशानियां। 5.ब. शुक्र पर्वत से एक रेखा हृदय रेखा को जाती हुई, वहां शाखापुंज के साथ अन्त । भाग्य रेखा पर एक द्वीप तथा विवाह रेखा का अन्त शाखापुंज में तथा हृदय रेखा की ओर झुकती हुई- तलाक होकर रहेगा।
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The Line of Progeny
संतान रेखा
संतान रेखायें वे होती है जो विवाह रेखा के अन्त में उसके उपरी भाग में ऊपर की ओर जाती है। विवाह रेखा पर खड़ी और सीधी रेखा स्वस्थ पुत्र और टेढ़ी मेढ़ी कमजोर रेखा पुत्री का संकेत देती है। योगी, साधु सन्यासी, मठाधीश और शती लोगों के हाथ में विवाह और संतान रेखा के स्थान पर शिष्यों और पूज्य को क्रमशः माना जाता है। संतान के सम्बन्ध में विचार करते समय हाथ के अन्य भागों की परीक्षा भी आवश्यक है। कभी-2 यह रेखा इतनी सूक्ष्म होती है कि इसके परीक्षण के लिए मैग्नीफाइंग कांच की मदद लेनी पड़ती है। इस सम्बन्ध में कुछ और बातें ध्यान रखने योग्य हैं। जैसे• रेखा के पतले भाग में द्वीप हो तो संतान आरम्भ में निर्बल होगी बाद में यही रेखा स्पष्ट होगी तो स्वस्थ्य हो जायेगें। • यदि रेखा के अन्त में द्वीप चिह्न हो तो बच्चा जीवित नहीं रहता। • यदि संतान रेखा उतनी ही स्पष्ट हो जितनी कि उसके पत्नी की है तो जातक बच्चों को बहुत प्यार करता है और उसका स्वभाव बहुत ही स्नेही होता है। • यदि हृदय रेखा बुध क्षेत्र पर दो या तीन रेखाओं में विभाजित होकर शाखा स्पष्ट होवे तो वह व्यक्ति संतान युक्त होता है।
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अभ्यास
1. कई विवाह रेखा होने से किस विवाह रेखा द्वारा विवाह का निर्णय
किया जाता है ?
2. पति-पत्नी के सम्बन्ध विच्छेद की रेखायें बतायें ?
3. अधिक काम भावना वाले जातकों की रेखाओं को बतायें ?
4. सुखी वैवाहिक जीवन के बारे में रेखाओं का विवेचन करें ?
5. अच्छी संतान रेखा का विवरण लिखें?
6. संतान रेखा के अंत में द्वीप होने से क्या फल होता है ?
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12. Wrist Bands
अध्याय 12 मणिबन्ध
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हाथ के मूल भाग में कलाई के ऊपरी भाग में मणिबन्ध होता है, यह कई रेखाओं की सहायता से घुमावदार रेखा होती है ।
मणिबन्ध में तीन बल होने से लम्बी आयु का पता चलता है तथा तीन से अधिक रेखायें होने से शुभ नहीं माना जाता है।
1. अ. मणिबन्ध में अनेक खण्ड होने से व्यक्ति कंजूस होता है तथा समाज
में सामान्य श्रेणी की स्थिति होती है।
1. ब. मणिबन्ध एक रेखा की हो तो अल्पायु समझना चाहिए।
1. स. मणिबन्ध की प्रथम रेखा वलयकार और
छोटे -2 द्वीप हों तो व्यक्ति अपने पराक्रम से सफल 5
होता है।
2.अ. तीन रेखाओं का मणिबन्ध हो तथा उसमें त्रिभुज हो तो बृद्धावस्था
में परायी सम्पत्ति या धन मिलता है ।
2. ब. पहला मणिबन्ध हथेली में ऊपर की ओर धनुषाकृति हो जाय तो संतान प्रतिबन्धक योग बनता है।
2. स. जंजीरनुमा होने से व्यक्ति मेहनती होता है ।
3. अ. मणिबन्ध से कोई रेखा चन्द्र पर्वत की ओर जाये तो व्यक्ति नौसेना या हवाई सेना में जाने का इच्छुक होता है।
3. ब. मणिबन्ध रक्त वर्ण की हो तथा जंजीरनुमा होने से व्यक्ति वाचाल होता है तथा आर्थिक हानि होती है।
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3.स. मणिबन्ध अधूरी हो तथा कुछ रेखायें टूटकर शुक्र पर्वत पर जाये तो आजीविका में कुछ कठिनाई होती है। 4.अ. दो मणिबन्ध चौड़े और मोटे हों तो व्यक्ति को परिवार की चिंता रहती है तथा स्थान बदलने से पैसा कमा सकता है। ऐसे व्यक्ति अच्छी आय करते हैं पर स्वयं के पास कुछ नहीं होता। 4.ब. तीन मणिबन्ध कहीं से भी टूटे हुए न हों। तो व्यक्ति किसी तकनीकी ज्ञान में दक्ष होता है। इनमें कुछ जल्दबाजी एवं दूसरे की भलाई की भावना होती है। 4.स. मणिबन्ध से आयु रेखा को काटने वाली रेखा जन्म स्थान से दूर मृत्यु कराती है।
5.अ. मणिबन्ध की कोई रेखा बुध पर्वत तक जाने से अनायास धन प्राप्ति होती है। 5.ब. मणिबन्ध से निकल कर कोई रेखा सूर्य स्थान तक जाने से व्यक्ति को दूसरे की मदद से लक्ष्मी प्राप्त होती है तथा सुखी रहता है।
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The Travel Lines
यात्रा रेखा
चन्द्र पर्वत पर आड़ी एवं खड़ी रेखा दोनों से यात्रा का विचार किया जाता है तथा जीवन रेखा से निकलकर चन्द्र पर्वत पर पहुंचती रेखाएं या हथेली के पार्श्व से चन्द्र पर आती हुई रेखाएं यात्रा रेखा कहलाती है। मणिबन्ध से उठकर चन्द्र पर पहुंचने वाली रेखायें भी यात्राओं के बारे में ज्ञान दर्शाती हैं। यात्रा रेखाओं की शक्ति पर्वत की प्रधानता के अनुसार निश्चित की जाती है। 1.अ. अगर जीवन रेखा द्विमार्गी होकर एक शाखा चन्द्र पर पहुंचे तो मनुष्य जीवन पथ पर सदा अस्थिर होता है तथा कई यात्रायें जीवन में करता है। 1.ब. जीवन रेखा स्वतः घूमकर चन्द्र पर जा पहुंचे तब मनुष्य लम्बी यात्रायें करता है। उसका अन्त भी मातृभूमि से अन्यत्र ही होता
2.अ. यात्रा रेखाओं पर क्रास, द्वीप, शाखा, विंदु आदि होने से यात्राओं में विघ्न बाधाएं एवं दुर्घटनादि होती है। 2.ब. चन्द्र पर्वत से आरम्भ होकर मस्तक रेखा तक जानेवाली रेखा से यात्रा के कारण सिर में चोट पहुंचती है।
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3.अ. चन्द्र पर्वत से चलकर भाग्य रेखा को काटती हुई ऊपर की ओर जीवन रेखा में जाकर मिले तो जातक विश्व भर का भ्रमण करता हैं। 3.ब. हथेली के नीचे से आती हुई यात्रा रेखा जीवन रेखा की ओर जाते समय मध्य में क्रास चिह्न पर समाप्त हो जाय तो व्यक्ति को पानी की यात्रा से दुर्घटना आदि होने की आशंका होती है।
4.अ. कोई भी रेखा शनि पर्वत से आकर जहां पर आयु रेखा को काटती है उस समय यात्रा से दुर्घटना की आशंका होती है। 4.ब. अगर यात्रा रेखा जाकर हृदय रेखा से मिल जाय तो यात्रा में प्रेम अथवा विवाह हो जाता है। 5.अ. अगर यात्रा रेखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाय तो यात्रा में कोई व्यापारिक समझौता होगा।
5.ब. चन्द्र पर्वत से चलकर सही मार्ग से हटकर नीचे की ओर आयु रेखा में जाकर मिले तो यात्रा में दुर्घटना होती है। 5.स. मणिबन्ध से मंगल पर्वत की ओर जाने वाली रेखा समुद्र यात्रा का संकेत देती है, यदि क्षितिज पर कट जाय तो छोटी यात्रायें नाव आदि से होती है।
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The Line of Mars
मंगल रेखा
हस्त रेखा शास्त्र में मंगल ग्रह सूक्ष्म एवं आतंकपूर्ण है, इसका महत्व भाग्य रेखा एवं सूर्य रेखा से कम नहीं हैं। जीवन रेखा टूटने या भंग होने पर व्यक्ति को मंगल रेखा ही खतरों से बचाती है। मंगल का स्थान हृदय और मस्तिष्क रेखा की सीमा रेखाओं से वेष्टित है। यहां कोमल मांसल गद्दी के समान उभरा हुआ होता है। यदि यह क्षेत्र पूर्णतः विकसित होता है तो व्यक्ति मेधावी, बौद्धिक, शक्ति सम्पन्न, निर्भीक एवं ज्योतिष आदि विषयों में रुचि वाला, तर्क, कानून, न्याय का पुजारी होता है। यदि मंगल के साथ अन्य समान्तर रेखाएं हों तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है। यही रेखा शुक्र क्षेत्र की ओर झुकी होने पर व्यक्ति के अन्दर तामसिक प्रवृत्त उत्पन्न करती है। यह क्षेत्र अवनत, दोषी अविकसित होने पर व्यक्ति को विधर्मी, पापकर्मी, राजदण्डभोगी और मर्यादाहीन बनाता है। यही रेखा हृदय में स्फूर्ति शरीर में शक्ति और ओज का संचार करती है। तथा आन्तरिक क्षमता और जीवन प्रदान करती है। मंगल के साथ भी समान्तर रेखायें बलिष्ठ और लम्बी हों तो व्यक्ति को कामी और शराबी बना देती है और वह अपनी आदम शक्ति का दुरुपयोग करने लग जाता है। इस स्थिति में मंगल मंगलकारी नहीं रह जाता। अपनी क्रूरता और उग्रता के कारण मंगल-गुरु और शुक्र के सद्गुणों से भी प्रभावित नहीं होता।
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The Accidents
दुर्घटनायें
• शनि तथा मंगल पर्वत पर तारक चिह्न चन्द्र पर्वत के मध्य में एक रेखा हाथ के सिरे की ओर आती हुई-पशुओं से दुर्घटना। • निकृष्ट हाथ में शुक्र पर्वत के निचले भाग पर रेखा के पास वर्ग-कारावास की सूचक। • लहरदार, नीचे को झुकती हुई मस्तिष्क रेखा साथ में त्रिकोण के पास क्रास-घातक दुर्घटना। • मस्तिष्क रेखा और त्रिकोण पर क्रास-अति गम्भीर दुर्घटना। • मस्तिष्क रेखा शनि पर्वत के नीचे टूटी हुई, साथ में रेखा पर लाल धब्बे-सिर पर चोट। • शुक्र पर्वत से एक रेखा शनि पर्वत को यदि उस रेखा की शाखायें हो तो यह घातक सिद्ध होगी। मस्तिष्क रेखा सूर्य पर्वत के नीचे टूटी हुईचौपाओं (चार पैर वाले जानवर) से दुर्घटना।
अभ्यास
1. धनुषाकृति का मणिबन्ध जातक को क्या प्रभाव करता है ? 2. मणिबन्ध जातक के जीवन की किन बातों को दर्शाता है ? 3. अच्छे मणिबन्ध का लक्षण बतायें ? 4. विश्व भ्रमण करने वाले जातक की यात्रा रेखा की क्या पहचान है? 5. मणिबन्ध से मंगल पर्वत की ओर जाने वाली यात्रा रेखा क्या प्रभाव
करती है? 6. मंगल रेखा शरीर के किन-किन अवयवों को प्रभावित करती है? 7. दुर्घटना का संकेत देनेवाले किन्हीं तीन चिन्हों के नाम बतायें ?
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13. The Line of Health
अध्याय - 13
स्वास्थ्य रेखा
चन्द्र पर्वत अथवा हथेली के आधार से बुध पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा स्वास्थ्य अथवा बुध रेखा कहलाती है। यह रेखा बहुत कम हाथों में पायी जाती है। इस रेखा का संबंध व्यक्ति के आमाशय, यकृति, स्वास्थ्य और शक्ति से है। स्वास्थ्य संबंधी बुध रेखा के प्रभावों को हाथों में पर्वतीय प्रधानता के आधार पर प्रभावी समझना चाहिए। बुध रेखा का उदय हथेली के आधार पर कहीं भी हो सकता है। यह रेखा जीवन और भाग्य रेखा से जितनी दूर रहे उतना ही शुभ है। 1. यह रेखा गहरी और निर्दोश होने पर अच्छी पाचन शक्ति का चिह्न है, ऐसे लोगों का मस्तिष्क निर्दोश मानसिकता सबल, स्मृति तेज होती है।
2. श्रृंखलित बुध रेखा निश्चित रुप से विकृत आमाशय तथा यकृत का चिह्न है, ऐसे लोग मानसिक अस्वस्थ्य पाये जाते हैं। कभी-2
ये असफल भी
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पाये जाते हैं। 3.कुछ रेखा को काटने वाली आड़ी रेखायें आयु के अनुसार स्वास्थ्य खराब करती हैं तथा रेखा के मार्ग में द्वीप होने से उस आयु में ज्यादा स्वास्थ्य खराब होता है। • निर्दोष बुध रेखा की गुरु पर पहुंचती हुई शाखा सफलता की द्योतक है, एवं वे व्यापारिक क्षेत्र में कामयाबी हासिल करते हैं। • लहरीली रेखा के लोग मलेरिया, पीलिया, यकृति, ज्वर से पीड़ित होते हैं। • दोषयुक्त जीवन रेखा निर्दोष बुध रेखा से शक्ति प्राप्त करके खतरों से बचाव करती हैं। • चौड़ी और निर्दोश बुध रेखा शक्ति की प्रतीक मानी जाती है।
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The Signs of Disease in Hand
हाथों में बीमारियों के लक्षण
• लम्बे पतले, मुड़े हुए नाखून, मस्तिष्क रेखा छोटे-छोटे द्वीपों में क्षय रोग (टी.वी.) की प्रवृत्ति। • छोटे नाखून, साथ में टूटी मस्तिष्क रेखा त्रिकोण में क्रास, जिसके सिरे धब्बेदार हों- मिरगी का रोग। • हृदय रेखा, शनि पर्वत के नीचे टूटी हुई, दो खंड एक दूसरे के ऊपर-गम्भीर हृदय रोग। • निकृष्ट हाथ में चन्द्र पर्वत पर तारक चिह्न –अति गम्भीर हिस्टीरिया का
रोग।
• हृदय रेखा की एक शाखा चन्द्र पर्वत तक जाती हुई तारक चिह्न में अन्त -वंशागत पागलपन। • ऊर्ध्व मंगल पर्वत पर चन्द्र चिह्न हिंसात्मक पागलपन का रोग। • मोटी तथा नम दीखने वाली त्वचा, साथ में चन्द्र पर्वत पर तारक चिह्न–गुर्दे का रोग। • नीली अथवा पीली रंग की हृदय रेखा, लहरदार मस्तिष्क रेखा अथवा बदरंग, साथ में इस पर नीला धब्बा लहरदार स्वास्थ्य रेखा-यकृत रोग। छोटे-छोटे खण्डों में टूटी मस्तिष्क रेखा या छोटे वर्गों के आकारों में -स्मृतिनाश का रोग। • जीवन रेखा पर काले धब्बे से उदित शाखा-स्नायविक रोग। • नाखून मध्य लम्बाई के, परन्तु पतले और छोटे मस्तिष्क रेखा पर द्वीप त्रिकोण का तीसरा कोण विकृत, साथ में छोटी-छोटी रेखायें जीवन रेखा को काटती हुई-स्नायुशूल का रोग। • जीवन रेखा से उदित एक रेखा शनि पर्वत पर त्रिकोण में समाप्त प्लूरिसी का रोग।
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• लम्बी तथा लहरदार हृदय रेखा, साथ में स्वास्थ्य रेखा लहरदार और उंगलियों के दूसरे पर्व की अपेक्षा लम्बे -दांत का रोग। • चमकीली मुलायम त्वचा, जीवन रेखा के अन्त पर शाखापुंज सूक्ष्म रेखायें, हृदय रेखा के उदय पर नीचे को काट कर जाती हुई रेखा-वायु (गैस) का
रोग।
• मस्तिष्क रेखा टूटी, जुड़ी अथवा जंजीरदार तथा मस्तिष्क रेखा को काटती हुई और उसके नीचे को निकलती छोटी रेखायें। स्वास्थ्य रेखा, मस्तिष्क रेखा के पास लाल रंग की -निरन्तर सिर दर्द का रोग। • चन्द्र पर्वत ऊपर की ओर, अत्यधिक भरा हुआ, चन्द्र पर्वत के आर-पार एक गहरी रेखा, साथ में उसे काटती हुई एक रेखा। जीवन रेखा के अन्तिम सिरे पर शाखापुंज जिसकी एक शाखा चन्द्र पर्वत की ओर जाती हुई-गठिया का रोग। • मस्तिष्क रेखा, हृदय की ओर उठती हुई, साथ में स्वास्थ्य रेखा, जीवन रेखा से उदित -दौरों की प्रवृत्ति, मूर्छा रोग। • मस्तिष्क रेखा पर बृहस्पति पर्वत के नीचे धब्बे-बहरेपन का रोग। • दोनों हाथों में मंगल रेखा के अन्त पर चन्द्र पर्वत की दिशा में शाखापुंज जीवन रेखा से उदित रेखा चन्द्र पर्वत पर तारक चिह्न में समाप्त -मद्यपान से रोग। • जीवन रेखा पर वृत्त अथवा धब्बा हृदय रेखा पर वृत्त तथा स्वास्थ्य रेखा पर क्रास स्वास्थ्य रेखा के समीप त्रिकोण में स्टार (तारक) चिह्न । सूर्य रेखा तथा हृदय रेखा के मिलन बिन्दु पर काला धब्बा-अन्धेपन का रोग। • हृदय रेखा से चन्द्र पर्वत को जाती हुई दो लम्बी रेखायें -पक्षाघात । • चन्द्र पर्वत ऊपर की ओर अत्यधिक विकसित-नजले का रोग। • चन्द्र पर्वत पर एक तारक चिह्न परन्तु यात्रा रेखा पर नहीं-जलोदर रोग। • जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा से अलग होते समय कटी और टूटी हुई, मस्तिष्क रेखा उसी दण्ड रेखा द्वारा कटती हुई, साथ में शनि पर्वत के नीचे चतुर्भुज में क्रास- डिपथीरिया का रोग।
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• निकृष्ट मस्तिष्क रेखा, साथ में अंगूठा बहुत छोटा- बुद्धि जड़ता। • मस्तिष्क रेखा पर गहरे धब्बे, साथ में जीवन तथा स्वास्थ्य रेखायें तंग तथा गहरे रंग की। स्वास्थ्य रेखा मध्य में पतली तथा सरल-ज्वर की प्रवृत्ति। • हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा की ओर बढती हुई, साथ में अपूर्ण अस्पष्ट स्वास्थ्य रेखा-ज्वर। • जीवन रेखा पर एक बहुत छोटा सा वर्ग, साथ में अन्दर क्रास-बुखार । • जीवन रेखा पर छोटा सा वर्ग, साथ में अन्दर क्रास प्रायः टाइफाइड बुखार। • लहरदार स्वास्थ्य रेखा और निकृष्ट यदि साथ में जीवन रेखा पर द्वीप हो, यदि हाथ भी नम हों तो दमें का रोग।
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The Effects of Lines
रेखाओं का प्रभाव
शरीर की त्वचा बड़ी संवेदनशील है इसमें ताप, दबाव, दर्द, आदि को शीघ्र जान लेने की क्षमता होती है परन्तु कुछ रेखाएँ अटल होती हैं। उदाहरण के तौर पर एक कुष्ठ रोगी की अंगुलियों में तंत्रिका खोने के कारण परिधि प्रभावित होती है तथा उसकी संवेदनशक्ति खत्म हो जाती है परन्तु अंगुलियों के पोर पर स्थित रेखाएँ ज्यों की त्यों बनी रहती हैं। एक शोध के अनुसार ये रेखाएँ लगभग एक खरब सात लाख आदमियों में से सिर्फ दो व्यक्तियों की समान फिंगर प्रिंट हो सकती है। अपराध विज्ञान में अंगुली की एक छाप को दीर्धीकरण करके उसे कई टुकड़ों में विभाजित करके उसके आठ कोण किसी व्यक्ति की छाप से मिल जाने पर वह अंगुली उसी व्यक्ति की मानी जाती है। त्वचा रेखाओं से लेकर हस्त रेखाओं के अनोखेपन ने जहां आज अपराधियों को पकड़ने में सहायता दी है। वहीं इन त्वचा रेखाओं से पैदा होने वाले कुछ रोगों के परिणाम इन त्वचा रेखाओं पर आ झलकते हैं। इनके अध्ययन से आगे होने वाले रोगों की रोकथाम हो सकती है। अंगुलियों के पोर पर सामान्यतया कई तरह के चिह्न पाये जाते हैं, जो साहित्य के अनुसार लगभग 50 प्रकार के हैं। पृथ्वी पर लगभग 6 अरब मनुष्यों की आबादी है जिनमें से एक-दूसरे की चेहरे व रेखाएँ समान नहीं होते। चाहे वे जुड़वा भाई ही हों उनका चरित्र, हाथ की रेखाएँ, अन्य, व्यक्तित्व सबका सब अलग-अलग होता है।
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Physical Health
शारीरिक स्वास्थ्य
• जीवन रेखा टूटी हुई और सीढ़ीदार -निरन्तर अस्वस्थ्यता। • जीवन रेखा के ठीक बीच शाखापुंज–क्षयग्रस्त शक्तियां। • जीवन रेखा का अन्त क्रास श्रृंखला में, साथ में चौड़ी स्वास्थ्य रेखा अन्त में टूटी हुई-वृद्धावस्था में अस्वस्थ्यता। • जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप -वंशागत रोग की सूचक । • जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के नीचे जंजीरदार-प्रारम्भिक जीवन में दुर्बलता। • लम्बे और पतले नाखून फीकी और चौड़ी जीवन रेखा एवं जंजीरनुमा तथा दूर-2 तक जुड़ी हुई उस पर नीचे की ओर झुकती हुई शाखायें -कमजोरी। • बहुत फीकी और चौड़ी हृदय रेखा निकृष्ट स्वास्थ्य तथा मस्तिष्क रेखा, या जीवन रेखा के अन्त पर क्रास । प्रत्येक उंगली के पहले पर्व पर शिराओं जैसी बहुत सी छोटी-2 रेखाएं-दुर्बल शरीर रचना की द्योतक। • मणिबन्ध की तीनों वलय स्पष्ट तथा जंजीरहीन, जीवन रेखा लम्बी तथा तंग एवं शुक्र पर्वत को घेरती हुई, हृदय तथा मस्तिष्क रेखायें लम्बी तथा सीधी, दोनों हाथों में मंगल रेखा । सरल बुध रेखा तथा स्वास्थ्य रेखा गौण रेखा से पूर्ण -स्वस्थ्यता की सूचक। • स्वास्थ्य रेखा की अनुपस्थिति अच्छी त्रिकोण में स्पष्ट तीसरा कोण-सामान्यतः अच्छा स्वास्थ्य ।
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अभ्यास
1. स्वास्थ्य रेखा किन नामों से जानी जाती है ?
2. स्वास्थ्य रेखा का उद्गम स्थान बतायें ?
3. टेढ़ी मेढ़ी जाती हुई स्वास्थ्य रेखा कौन-कौन सी बिमारी उत्पन्न करती है ?
4. स्वास्थ्य रेखा न होने पर किस रेखा द्वारा स्वास्थ्य की जानकारी हासिल की जाती है ?
5. एक पागल व्यक्ति के हाथों की रेखा आदि का लक्षण बतायें ।
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14. The Practical Approach to Prediction by Hand
अध्याय-14
हाथ का व्यावहारिक फलादेश
लेखक एवं कलाकार का हाथ
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प्रस्तुत हाथ में जीवन रेखा गुरु क्षेत्र से शुरु होकर अंत में कई शाखाओं में बंट गयी है, ऐसे व्यक्ति बचपन से महत्वाकांक्षी होते हैं, परन्तु इनकी मृत्यु जन्म स्थान से अन्यत्र होती है। शनि पर्वत से एक मोटी रेखा आकर आयु रेखा को काट रही है। इस कारण इन्हें 15 से 18 वर्ष की आयु में पशु द्वारा खतरे का सामना करना पड़ेगा। हृदय रेखा अत्यन्त मोटी और दीर्घ है जो कि भावनात्मक प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाली है तथा मोटी होने के कारण इसको अच्छी हृदय रेखा की श्रेणी में कहा जा सकता है। सूर्य रेखा स्पष्ट है तथा मोटी है इसकी लम्बाई भी सामान्य है, यह हृदय रेखा से शुरु होने के कारण नाटक, कहानी, उपन्यास, काव्य आदि कार्यों से लाभ कमाते हैं। यह रेखा इन्हें प्रौढ़ावस्था में सफलता देती हैं ऐसे व्यक्ति के बचपन में कुछ सामाजिक परेशानियों का सामना होगा तथा उदासी और व्याकुलता सतायेगी। किन्तु बाद में यही समाज यश और सम्मान देगा। कभी-2 ऐसे लोगों को कला ही बला महसूस होती है। परन्तु इनको यश अवश्य मिलता है। शीर्ष रेखा जीवन रेखा से निकल कर विचित्र विन्दु पर अलग हो रही है। इस कारण इन्हें उस अवस्था में मस्तिष्क संबंधी परेशानियों का सामना होगा। शीर्ष रेखा में छोटे-छोटे द्वीप और रेखायें भी है, इस कारण इन्हें सिर से संबंधी पीड़ा का संकेत मिलता है। शीर्षरेखा चन्द्ररेखा की ओर जा रही है, जो गुप्त विद्या में रुचि उत्पन्न करेगी तथा कुछ ज्ञान भी प्राप्त होगा। भाग्य रेखा चन्द्र क्षेत्र से निकलकर शनि क्षेत्र में जा रही है। ये काफी समय तक समाज कार्यकर्ता तथा राजनीति क्षेत्र से लाभ कमायेंगे तथा इन्हें समाज सहायता प्रदान करेगा, भाग्य रेखा की एक शाखा गुरु क्षेत्र में जा रही है जो कि अति उत्तम योग है। यह व्यक्ति की महत्वाकांक्षा को सफल करती है यह रेखा प्रेम के क्षेत्र में भी सहयोग करने वाली रेखा है । भाग्य
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रेखा के शुरु में टेढ़ी मेढ़ी रेखायें हैं। जिनसे स्पष्ट हो रहा है कि बचपन में इन्हें किसी प्रकार के कष्ट का सामना हुआ था। उसी समय पर इन्हें आर्थिक कष्ट भी हुआ था। चन्द्र पर्वत से चलकर भाग्य रेखा को काटती हुई रेखा जीवन रेखा में जाकर मिल रही है जो कि विश्व भर का भ्रमण करने में सहयोगी होगी। यह यात्रा रेखा स्पष्ट करती है कि ये जीवन में खूब यात्रा करेंगे। कई शाखायें भाग्य रेखा में मिल रही है। इस कारण स्पष्ट हो रहा है कि इनका विवाह हो चुका है। विवाह रेखा के समान्तर रेखा होने से इन्हें जीवन साथी से बहुत प्रेम है। मणिबन्ध जंजीर जैसा है अतः इन्हें मेहनत करना और पैसा कमाना अधिक पसंद है, इन्हें तकनीकी ज्ञान और दूसरे की भलाई के लिए बार-बार सराहा जाता है, कभी-2 ये जल्दबाजी भी करते हैं। हाथ भारी तथा सुन्दर है शनि ग्रह और गुरु ग्रह उत्तम होने से इनकी आर्थिक स्थिति ठीक है। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क रेखा की कुछ शाखा सूर्य पर्वत की ओर जा रही है जो कि आर्थिक सम्पन्नता का संकेत दे रही है। सूर्य रेखा में शाखा है तथा नर्म जोड़ अंगूठा छोटा है। एक रेखा चन्द्र पर्वत पर जाती है। अतः इन्हें वृद्धावस्था में काव्य सफलता मिलेगी।
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प्रस्तुत हाथ में एक शाखा जीवन एखी स उपरी हिस्से में सूर्य क्षेत्र में जा रही है। जो विशेषतः गुणों को स्पष्ट कर रही है। जीवन रेखा से एक शाखा चन्द्र क्षेत्र को जा रही है जिस कारण चन्द्र का आकार स्पष्ट हो रहा है। यह रेखा मनुष्य में अधिक यात्राओं की इच्छा उत्पन्न करती है। हाथ मुलायम होने के कारण तथा शीर्ष रेखा झुकी होने के कारण इनमें उत्तेजना अधिक है तथा ऐसे अवसरों के लिए ये हमेशा ललायित रहते हैं जिसमें उत्तेजनात्मक कार्य हो। इन्हें दुष्कर्म एवं शराब आदि की शैक है। शुक्र क्षेत्र बड़ा होने के कारण इनमें कामवासना अधिक है। आयु रेखा को एक शाखा प्रारम्भ में काट रही है। तथा उसके स्थान पर द्वीप का चिन्ह है। इस कारण इन्हें हृदय रोग है। यह प्रायः सर्दी, जुकाम आदि से परेशान रहते हैं। सूर्य रेखा पर रेखा समूह तथा गुणक चिन्ह भी है। एक रेखा जीवन रेखा को काटकर सूर्य क्षेत्र में जा रही है जिस कारण यह स्पष्ट है कि हृदय रोग है। शीर्ष रेखा मोटी और स्पष्ट है तथा यह रेखा शनि और गुरु के मध्य से आ रही है। इस कारण ये व्यवहारकुशल एवं स्नेही हैं। इनमें कुछ
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महत्वाकांक्षा है और कुछ घमंड। हृदय रेखा अधिक दीर्घ है, इस कारण भावनात्मक प्रवृति इनमें ज्यादा है। कई रेखाएं नीचे से चलकर हृदय रेखा पर जा रही है। इस कारण ये अपना प्रेमजाल इधर उधर फेंकते फिरते हैं। निरंतर किसी को प्रेम न करके ये व्यभिचार को अधिक पसंद करते हैं। हृदय रेखा बाद में पतली हो गई है इस कारण इन्हें कभी-2 प्रेम में भीषण निराशा भी होती है। शुक्र क्षेत्र से निकलने वाली यह सूर्य रेखा अनेक रेखाओं को काटती हुई अपने स्थान पर पहुंच रही है। इस कारण इनकी उन्नति किसी महिला के सहयोग से ही होगी। वह स्त्री इनकी प्रेमिका या पत्नी कोई भी हो सकती है। इस हाथ में शीर्ष रेखा समान्य स्थान से उंची है और चन्द्र क्षेत्र की ओर जा रही है इस कारण इन्हें गुप्त विद्या पसंद है। गुप्त विद्या में ये वासना पूर्ति से संबंधित अनेक बातों का ज्ञान रखते हैं। कई शाखाएं शीर्षरेखा और हृदय रेखा में मिल रही है और उनमें वर्ग, त्रिभुज का निर्माण हो रहा है। इस कारण बुद्धि विवेक कम है। अन्य लोगों से इनपर आकर्षण और प्रभाव पड़ता है। इनका उत्साह एवं आत्मविश्वास कई बार नष्ट होता पाया गया है। भाग्य रेखा शीर्षरेखा में रूक रही है वहां से पुनः बृहस्पति क्षेत्र में पहुंच रही है अतः प्रेम भावना के कारण बाधा उत्पन्न होगी। परन्तु गुरु के प्रभाव से प्रेम संबंध से सहायता द्वारा अभिलाषा पूर्ण होगी। जीवन रेखा की एक शाखा चन्द्र क्षेत्र में जाने से इनके जीवन पथ पर अनेक यात्रा एवं कठिनाईयां है। शनि क्षेत्र पर क्रास का निशान होने से स्वार्थ के कारण इन्हें अनेक घटनाओं का सामना होगा अतः भावुकता अधिक पायी जाएगी। मणिबंध रक्तवर्ण की जंजीनुमा में इस कारण इन्हें वाचाल एवं पैसे का शत्रु कहा जा सकता है। इनकी मणिबंध अधूरी भी है इस कारण इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। तर्जनी के प्रथम पोर पर गुणन का चिन्ह होने से धार्मिक कट्टरता इनमें अधिक है। मध्यमा के प्रथम पोर पर जाली का निशान होने से इनमें दूराचरन की भावना भी पायी जाती है। अनामिका के तीसरे पोर में स्टार ने से इन्हें वाचाल, हठी भी कहा जा सकता है। मध्यमा के तीसरे पोर पर बहुत सी खड़ी रेखाएं हैं, जिस कारण ये निर्दयी भी हैं।
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प्रस्तुत हाथ में जीवन रेखा के अंलाविष्कारपतिरिबहाशाखा है और इसकी दूरी अधिक है। जिस कारण इनकी मृत्यु विदेश में हो सकती है। आयु रेखा की शुरुआत जंजीरनूमा होने से इनमें उतावलापन अधिक है जिस कारण ये कभी कभी असफल भी होते हैं। उस समय इनकी मनःस्थिति संकुचित हो जाती है। जीवन रेखा पर कुछ धब्बे हैं जिस कारण नेत्र में बीमारी होने की पूर्ण आशंका है। हृदय रेखा छोटी है तथा शनि क्षेत्र से उत्पन्न हुई है, इसलीए ये प्रेम संबंध में स्वार्थी हैं। इनमें अध्यवसाय अधिक है तथा हृदय रेखा चौड़ी है इस कारण ये विपरीत लिंग के प्रति कभी-2 घृणा की दृष्टि से देखते हैं। हृदय रेखा शाखाहीन है इस कारण ये प्रेम की गरिमा नहीं समझते। सूर्य क्षेत्र पर कई रेखाएं हैं, जिस कारण इनमें कल्पना अधिक पायी जाती है और सफलता में संदिग्धता अधिक होती है। मंगल क्षेत्र में जाती हुई सूर्य
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रेखा से स्पष्ट है कि इनमें वीरता और चेतना भी है। ये हमेशा साहसी, उत्साही, आशावान, निडर और वाचाल होते हैं। इन्हें समाज में यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त होता है। ये लोग आपत्ति से नहीं डरते। जिस कार्य को हठ भावना से करते हैं, उसमें इन्हें सफलता भी प्राप्त होती है। ये रूढ़िवादी रीति रिवाजों के खिलाफ रहना पसंद करते हैं। इनमें हमेशा आत्मविश्वास की लहर दौड़ती रहती है। इनका हृदय एक ओर कठोर और दूसरी ओर कोमल होता है। ये न्याय के प्रति हमेशा उतावले होते हैं तथा न्याय के लिए स्वतः की बलि देना अपना कर्तव्य समझते हैं। विषम परिस्थिति में ये अपने मनोबल और वैभव से सफल पाये जाते हैं। कुछ प्रभाव राहु का भी पाया जाता है। ये स्वतंत्र व्यापारी उच्च स्तर के लेखक, सम्पादक, कलाकार, अभिनेता आदि के रूप में जाने जाते हैं। सूर्य की अंगुली का प्रथम पोर अधिक लंबा होने से ये अविष्कारक, वैज्ञानिक, कलाकार भी बन सकते हैं। अनामिका के दूसरी पोर पर खड़ी रेखा होने से महान कीर्ति एवं सर्वत्र यश प्राप्त हो सकता है। ऐसे लोग अधिक परिश्रम करना नहीं जानते। सूर्य रेखा के प्रभाव से धन की अधिकता से व्यसन आदि के शिकार होते हैं। शीर्षरेखा और हृदय रेखा की दूरी अधिक होने से स्वतः के हृदय पर इनका अधिकार नहीं हो पाता। जल्दबाजी के कार्य से इन्हें हानि का सामना करना पड़ता है। चन्द्र क्षेत्र से उत्पन्न होकर बृहस्पति क्षेत्र में पहुंच रहे हैं। जिसकी सहायता से इच्छानुसार सफलता प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति को अधिकार, विशिष्टता एवं ऊँचा पद प्राप्त होता है। अंत में भाग्य रेखा की शाखाओं द्वारा त्रिशूल का आकार स्पष्ट है। अतः यह राज योग कहा जा सकता है। भाग्य रेखा के शुरुआत में टेढ़ी मेढ़ी रेखाएं होने से बचपन में इन्हें कुछ कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। गुरु पर्वत पर वृत्त का चिन्ह होने से उच्च पद की प्राप्ति तथा राजयोग की पुष्टि होगी। बुध क्षेत्र पर जाल होने से स्वतः के कार्यों में कहीं हानि का सामना होगा। जिस कारण पश्चाताप होगा। सूर्य पर्वत पर कई रेखाओं के साथ होने से आर्थिक स्थिति अच्छी होगी। शुक्र पर्वत की ओर से कई बारीक रेखाएं आकर भाग्य
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रेखा को काट रही है, जिसके प्रभाव से पारिवारिक कष्ट एवं उलझनों का सामना होगा। एक रेखा चंद्र पर्वत से चलकर भाग्य रेखा को काटती हुई ऊपर की ओर जीवन रेखा में जाकर मिल रही है। यह यात्रा रेखा है जिसके प्रभाव से जातक विश्व का भ्रमण करता है। एक रेखा शुक्र पर्वत से निकलकर भाग्य रेखा को काटती हुई आगे निकल रही है अतः निकट संबंधी की लड़की से विवाह का योग बनता है। मणिबंध का प्रथम रेखा वलयकार होने से पराक्रम में सफलता मिलेगी। पहला मणिबंध धनुषाकृति में है जिस कारण संतान प्रतिबंधक योग बन रहा
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एक हत्यारे का हाथ
यह एक हत्यारे का हाथ है। प्रस्तुत हाथ की अंगुलियां न छोटी है न बड़ी। अर्थात मध्यम अंगुली है, इस हाथ की सारी अंगुलियां तिरछी हैं ऐसे लोग हमेशा अलग दिखने के फिराक में होते हैं। प्रायः ऐसे लोगों के हाथ का रंग काला या सांवला होता है इन्हें गुस्सा अधिक और जल्द आती है। इनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। इन्हें मां बाप का सुख कम मिलता है इनकी संताने तेज स्वभाव की होती हैं। ऐसे लोगों को कानून और जेल का सामना करना पड़ता है। इनमें शुभ और अशुभ दोनों गुण विद्यमान होते हैं। ऐसे हाथों को किसी एक श्रेणी में न शामिल करके मिश्रित हाथ कहा जाता है। इनके अंगूठे का आकार छोटे होते हैं। ये
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अलग-अलग लोगों से बातें करके सबको उल्लू बनाने में सफल होते हैं। इस हाथ के जातक का बांया हाथ सामान्य है तथा बांये हाथ पर बीचोबीच मस्तिष्क रेखा स्पष्ट अंकित है। जबकि दाहिने हाथ पर यही रेखा स्थान बदल चुकी है और अनामिका के आधार पर हृदय रेखा के निकट आ रही है। आगे चलकर उसे काटती हुई दूर निकल गई है। स्पष्ट है कि यह व्यक्ति अपना जीवन सामान्य रूप से आरम्भ किया। प्रारंभिक जीवन में मस्तिष्क रेखा के प्रभाव से धार्मिक व्यक्ति भी रह चुका है। बाद में विज्ञान एवं औषधि में रुचि हुई। चन्द्र क्षेत्र पर विभिन्न रेखाओं के प्रभाव से धीरे-धीरे इस व्यक्ति की प्रवृत्ति इच्छा के दबाव में बदलती चली गई। सूर्य रेखा के कई खण्ड होने से तथा भाग्य रेखा के विपरीत दिशा से इसमें किसी भी कीमत पर धन अर्जित करने की इच्छा प्रकट हुई। इस व्यक्ति ने कई अपराध किये। परन्तु बुध क्षेत्र पर रेखाओं के प्रभाव से मध्य अवस्था में इसे कानून ने गिरफ्तार कर लिया। सूर्य रेखा पर द्वीप होने से इस व्यक्ति की मान मर्यादा भंग हो गई, परंतु यह पुलिस की गिरफ्त से बच निकला लेकिन अन्यत्र किसी जेल में इसे रहना पड़ा। मस्तिष्क रेखा के निकट से सूर्य रेखा शुरू होने के कारण यह व्यक्तिविशेष का स्वामी था तथा माना हुआ वैज्ञानिक(डाक्टर) था। इसी रेखा के प्रभाव से यह बड़ी सूझ बूझ से कार्य सम्पन्न करता था यह इसकी विशेषता थी। इसने यश और धन भी खूब कमाया। जीवन रेखा बृहस्पति क्षेत्र से शुरू होने के कारण इस व्यक्ति में बचपन से ही महत्वाकांक्षा थी। परन्तु यही रेखा मध्य में विभाजित होकर चन्द्र क्षेत्र में प्रवेश कर गई। यहीं से इसके जीवन में बदलाव आया और धर्म कर्म को छोड़कर दुष्कर्म और शराब के पिछे पड़ गया। मंगल पर्वत से ऊपर उठती हुई रेखा इसके अभिमान को बढ़ाती गई। यह व्यक्ति एक डाक्टर, मेयर के रूप में जाना जाता था। इसने अनेक अमीर लोगों के बड़े बीमें करवाये थे। बीमा करवाने के पश्चात उन्हें विष देकर हत्या करके बीमें की रकम हथियाने की कला के कारण इसपर कई मुकदमें चलाए गये और अनेक वकीलों के प्रयत्नों के बावजूद इसे बिजली की कुर्सी पर बिठाकर प्राण दंड दिया गया।
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आत्महत्या करने वाली महिला का हाथ
प्रस्तुत हाथ में मस्तिष्क रेखा से स्पष्ट हो रहा है कि जब मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत के आधार से आगे नीचे की ओर बढ़ रही हो तो उसे आत्म हत्या की तीव्र इच्छा होगी। मस्तिष्क रेखा नीचे को चन्द्र पर्वत के सामने जब वक्र हो रही हो तो उसका स्वभाव निराशा भरा होता है। ऐसी स्थिति में भाग्य के छोटे से झटके से अधिकाधिक निराशा उत्पन्न होती है। फलस्वरूप कल्पनाशील स्वभाव बढ़ जाता है और घातक कृत्य करने पर विवश कर देता है। ध्यान देने योग्य दिलचस्प बात यह है कि इस युवा स्त्री के हाथ में मध्यमा के आधार पर शनि मुद्रिका है। जिसमें से एक रेखा निकलकर लगभग 28
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वर्ष की आयु में जीवन रेखा को काट रही है। इसी समय सूर्य रेखा पर एक द्वीप भी शुरू हो रहा है। इस युवा स्त्री के मस्तिष्क में आत्महत्या की भावना 20 वर्ष की उम्र में सताने लगी। जबकि इसका घर परिवार सामान्य था। लेकिन इसने कई बार अपना जीवन समाप्त करने की कोशिश की। 27वें वर्ष के अंत में यह आत्महत्या करने में सफल हो गयी ।
वैसे तो यह महिला अपने छोटे से जीवन काल में कलपुर्जे, चित्रकारी, साहित्य आदि के क्षेत्र में ज्ञान अर्जित किया । परन्तु भाग्य को बदलना इसके हाथ में न था ।
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असफल व्यक्ति का हाथ
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1. प्रस्तुत हाथ अपने आप में एक लम्बा हाथ है। हाथ पर दो मस्तिष्क रेखा एक अनूठा उदाहरण है। इस हाथ की चौथी अंगुली एक ऐसी अंगुली है जो अविकसित कही जा सकती है। यह व्यक्ति भाषण कला में अत्यंत संकोची था। भाग्य और सूर्य रेखा बहुत अच्छी है, परन्तु भाग्य रेखा को काटती हुई शनि की ओर जाती हुई रेखा किसी भी हाथ पर अच्छा लक्षण नहीं है। क्योंकि इसका परिणाम अच्छा नहीं होता ।
प्रस्तुत हाथ का जातक एक संगठित सेना का स्वामी था जिसमें अदभुत शक्ति थी। वह अपनी प्रतिभा का उपयोग मस्तिष्क रेखा द्वारा सहयोग प्राप्त करके खूब किया। इस व्यक्ति के कई विरोधी थे परन्तु मस्तिष्क रेखा अच्छी होने से हमेशा सफलता प्राप्त किया । यह व्यक्ति मस्तिष्क रेखा के प्रभाव से अन्य के राय को नकारके खुद की मनमानी करता था। पर कार्य की एकाग्रता का गुण होने से महत्वपूर्ण सफलता हासिल कर लेता था ।
सूर्य रेखा आगे चलकर भाग्य रेखा से जुड़ जाने के कारण उसका प्रभाव अधिक बढ़ गया। चंद्र रेखा स्पष्ट एवं मोटी होने के कारण आत्म ज्ञान खूब था। जीवन रेखा कुछ विचित्र है जो कि प्रायः बहुत कम हाथों में पाई जाती है। ऐसी जीवन रेखा के व्यक्ति मौत के मुंह से भी एक बार निकल आते हैं। सभी अंगुलियों पर छोटे-छोटे अधिक बिन्दु उत्पन्न होने से उसी समय उस व्यक्ति को असफलता का मुंह देखना पड़ा। यह निशान उत्पन्न होने पर व्यक्ति की मानसिक स्थिति प्रभावित कर देता है और निर्णय शक्ति क्षीण कर देता है।
मध्यमा और तर्जनी की लम्बाई समान होने से इसकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और जीवन में दिन प्रतिदिन सफलता प्राप्त करने में संयोग मिलता गया। इस हाथ में मंगल ग्रह भी उन्नत है जो कि वीरता का द्योतक है। हाथ भारी न होने के कारण अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा। बुध की अंगुली टेढ़ी होने के कारण कुछ लोग इन्हें वाचाल भी कहा करते थे।
तुच्छ और हल्की चीजें इन्हें पसंद नहीं होती तथा ज्यादा बहस व तर्क वितर्क पसन्द नहीं करते। मानसिक दुर्बलता के कारण कई कार्य करने में असमर्थ होते हैं। व्यवसाय वाणिज्य में ज्यादा चालाक नहीं होते। ज्ञान,
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भावना सुहृदयता होने के बाबजूद प्रवृत्ति से ही ज्यादा काम की ओर झुकाव होता हैं। अंगुलियों में गांठ होने से व्यक्ति तार्किक और आलोचनात्मक प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग मेहनत करके अध्ययन में भी सफल होते हैं। परन्तु इसे अपना मूल आधार समझ कर ये लोग कभी-2 बड़ी भूल कर बैठते हैं। ये व्यक्ति कला क्षेत्र में सफल होते दिखे हैं और यही इनके जीवन का अभिन्न अंग है। व्यवहारिक दृष्टि से ये प्रायः सफल नहीं हो पाते, कारण कि इनके स्वभाव में लापरवाही होती है।
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राजयोग वाला हाथ
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राजयोग वाला हाथ
मनुष्य के जीवन में जो भी योग बनता है सब भाग्य से ही बनता है। अगर किसी की भाग्य अच्छी होती है तो उसके हाथ की रेखाएं जन्म से ही अच्छी होती है तथा हाथ का आकार भी शुभ लक्षणों से युक्त होता है। राजयोग का अर्थ है कि नेता, राजनेता अभिनेता, मंत्री, राजा आदि जैसा रहन-सहन एवं शान शौकत हो, उसे राजयोग कहा जा सकता है। जिन स्थितियों में रेखाओं द्वारा राज योग बनता है, उन स्थितियों को प्रस्तुत चित्र में अधिक से अधिक दर्शाया गया है। प्रस्तुत हाथ की अंगुलिया सीधी है जीवन रेखा से एक शाखा शनि पर्वत की ओर प्रस्थान कर रही है जिसे अन्य भाग्य रेखा भी कहा जाता है। सभी अंगुलियां समान स्थान से निकली हुई है, कम से कम तीन अंगुलियों का आधार समान होना तथा अन्य लक्षण मिलना राजयोग कहलाता है। इनके हाथ का अंगूठा लंबा होता है मस्तिष्क रेखा में किसी भी प्रकार का दोष नहीं पाया जाता। ये हमेशा बौद्धिक कार्य करते हैं तथा बड़े पदवी को संभालते हैं। ऐसे व्यक्तियों का हाथ बहुत कोमल एवं मुलायम होता है तथा इनमें सहनशीलता खूब होती है। इनके हाथ के सभी ग्रह उन्नत होते हैं तथा हाथ का रंग लाल होता है, जो सभी दोषों को नष्ट कर देता है। इन्हें यात्रा करने का अपना अलग ही तरीका होता है। शनि की अंगुली लंबी है जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि धन और सफलता दोनों इनका साथ दे रहा है। ऐसे व्यक्तियों के हाथ पर गुरु ग्रह के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की खराब रेखाएं नहीं होती तथा गुरु ग्रह उन्नत होता है। अच्छी जीवन रेखा के साथ भाग्य रेखा भी अच्छी ही होती है। भाग्य रेखा और जीवन रेखा परस्पर दूर होना एवं मस्तिष्क रेखा शीर्ष रेखा में अन्तर होने से ये व्यक्ति दान करने में आगे होते हैं तथा पैतृक प्रतिष्ठा एवं सम्पति के स्वामी होते हैं। यदि ऐसे हाथ में सूर्य रेखा कटी हो, गुरु
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पर अशुभ चिन्ह हो या शुक्र क्षेत्र में उभार हो, तो ऐसे लोगों का भाग्योदय देर से होता है। मस्तिष्क रेखा निर्दोश हो, मणिबंध स्पष्ट हो तथा भाग्य रेखा मणिबंध से शुरु होकर शनि पर्वत पर जाय, ऐसे लोग जन्म से ही भाग्यशाली तथा समाज के कल्याणकारी प्राणियों में से होते हैं। ऐसे लोगों में महत्वाकांक्षा खूब होती है जिसके फलस्वरूप प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि पाने में झंझट नहीं होता। इन लोगों के पास साही ठाठ-बाठ के अलावा समस्त भौतिक सामग्री पाई जाती है।
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Remedies for Weakness in Lines
दोषी रेखाओं के उपाय
कभी-कभी कुछ हाथों में पर्वत व रेखाएं दोषी होती हैं या किसी कारणवश उसका विपरीत फल मिलने की आशंका होती है। उन दोषों से मुक्त होने के उपाय भी जानना आवश्यक है, अन्यथा हस्त परीक्षा का कोई लाभ नहीं होगा। इसी क्रम में अंगुलियों की मुद्रा द्वारा अनेक दोषी रेखाओं से लाभ हासिल किया जा सकता है। तपस्वी लोग तपस्या के अवस्था में अपने अंगुलियों को विशेष स्थिति में रखते हैं जिसे हम मुद्रा कहते हैं। मुद्राओं का उद्देश्य मस्तिष्क के कुछ केन्दों की अतिरिक्त शक्ति को दुसरे केन्द्रों तक पहुंचा कर लाभ देना होता है। हृदय रेखा का दोष निवारण
यदि हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और हृदय रोग की बिमारी होती है। ऐसी अवस्था में जातक अनेक प्रकार के औषधि उपाय भी करता है परन्तु उसे लाभ नहीं होता ऐसी स्थिति में हृदय रेखा के दोष को समाप्त करने के लिए कनिष्ठा अंगुली को छोड़कर अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो यह मुद्रा बनती है। इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रातःकाल करने से अधिक लाभ मिलता है। मस्तिष्क रेखा का दोष निवारण
यदि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक बिमारी उत्पन्न करती है। ऐसी स्थिति में परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायें, इसे चिन्मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा करने से गुरु पर्वत का दोष भी नष्ट हो जाता है। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रातःकाल एवं सायंकाल में 15 मिनट करना चाहिए।
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जीवन रेखा का दोष निवारण
यदि जीवन रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक के जीवन में अनेक दुर्घटना एवं शारिरीक बिमारी उत्पन्न करती है। ऐसी स्थिति में कनिष्ठा और अनामिका को अंगूठे से मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा को करने से शुक्र पर्वत, मंगल पर्वत, जीवनरेखा, बुधरेखा आदि का दोष नष्ट होता है तथा जातक को अच्छा फल मिलता हैं । शनि दोष निवारण
यदि शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोड़कर उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। शेष सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुद्रा शनि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक बिमारियों से रक्षा करती है। बुध दोष निवारण
यदि बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसके निवारण हेतु बायें हाथ की तर्जनी का शिरा दायें हाथ के तर्जनी और मध्यमा से जोड़ें। यह मुद्रा करने से बुध दोष नष्ट होता है। पेट अथवा शरीर के किसी भाग में गैस इकठी होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है। प्रस्तुत मुद्राएं बारी-बारी से दोनों हाथों द्वारा करना चाहिए। यदि रेखाओं में दोष न हो तो भी इन मुद्राओं को दो-चार मिनट अभ्यास करने से इसका लाभ शरीर में अनेक बिमारियों का शमन करके शक्ति प्रदान करता है।
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अंगूठा रहित हजारों वर्ष पुराना हाथ
प्रस्तुत हाथ अपने आप में एक दुर्लभ हाथ है। ईसा से सैकड़ों वर्ष पूर्व का यह हाथ गुण और अवगुण दोनों से युक्त है। इस हाथ में यह विशेषता है कि इसकी अंगुलियां अत्यंत लम्बी है तथा यह हाथ अंगूठारहित है। हथैली का शुक्र क्षेत्र अत्यंत उभरा हुआ है। इस हाथ को देखकर यह प्रतीत होता है कि मनुष्य का उस समय मस्तिष्क पूर्ण विकसित हो चुका
था।
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नसों वाला हाथ
बारहवीं शताब्दी का यह हाथ अत्यंत अदभुत हाथ है, इस हाथ का पृष्ठ भाग अत्यंत उभरा हुआ है फिर भी इसकी नसें बाहर की ओर उठी हुई हैं। प्रायः अंगुलियां पूर्ण विकसित हैं तथा अंगुलियों में दो गांठें स्पष्ट हैं। इस हाथ को देखने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उस काल में मानव अत्यंत मेहनतशील था और उसके शरीर का रक्तसंचार सामान्य था।
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राजयोग का हाथ
इस हाथ की यह विशेषता है कि तर्जनी, मध्यमा और अनामिका की लंबाई लगभग समान है और सारी अंगुलियां विकसित है। यह हाथ लगभग सोलहवीं शताब्दी का हाथ है। उस समय व्यक्ति की शीर्ष रेखा एवं जीवन रेखा अधिक विकसित पाई जाती थी। अंगुलियों में प्रायः अधिक रेखाएं न होकर मांसलयुक्त होती थी। आज की अपेक्षा उस युग में हाथ की रेखाओं की संख्या कम थी। इस हाथ का व्यक्ति पश्चिमी देशों में अधिक पाया जाता था। जिनकी बौद्धिक क्षमता अच्छी होती थी, ये लोग अनेक प्रकार के अनुसंधान किये और उनमें सफल रहे।
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अति प्राचीन हाथ
TAN
MI
यह हाथ प्राचीन काल के समय का हाथ है, उस समय मानव सभ्यता अत्यंत सीमित थी। इस समय कई कार्यों में ये लोग सफल हो चुके थे। इनके जीवन काल में ताम्र आदि का आविष्कार हुआ। हाथ देखने से स्पष्ट होता है कि इस काल का मानव अधिक कार्यों का सम्पादन नहीं करता था। शायद उस काल में मानव का लक्ष्य भोजन शयन आदि में ही व्यतीत होता था।
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अधिक अंगुलियों वाला हाथ
Sande
यह हाथ पांच अंगुलियां एवं अंगूठे वाला हाथ है, यह हाथ हजारों वर्ष पुराना हाथ है। इस काल में मानव के हाथों में अंगुलियां चार, पांच और छ: संख्या में होती थी। इस समय प्रायः लोगों के हाथों में न्युनाधिक अंगुलियां पाई जाती थी, जिसका प्रभाव मानव शरीर पर होता था। अगर किसी के हाथ में पांच से ज्यादा या कम संख्या में अंगुलियाँ है तो अंग वृद्धि विषय को आधार मानकर ही उसका निर्णय होगा तथा यह भी निर्भर करता है कि व्यक्ति के किस अवस्था में अंग वृद्धि या अंग हीनता हुई है। यदि किसी का दाहिना हाथ न होगा तो बायें हाथ का पूर्ण अध्ययन करने के पश्चात् सामुद्रिक शास्त्र के आधार पर शरीर के अन्य लक्षण देखने के पश्चात् ही भविष्यवाणी की जायेगी। प्रायः अंगुलियों में एक ही गांठे होती हैं, परन्तु कभी-कभी किसी हाथ में एक से अधिक संख्या में गांठे होती हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति का कार्यकलाप एवं भूतकाल के समय को ध्यान में रखकर निर्णय लेने से सटीकता होती है। दाहिने हाथ से कार्य करने वाले का दाहिना एवं बायें हाथ से कार्य करने वाले का बांया हाथ देखना ठीक उतरता है।
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कम अंगुलियों वाला हाथ
इस हाथ में जन्म से ही चार अंगुलियां है जिसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। इस हाथ में शनि के अंगुली का अभाव है। जिस कारण यह व्यक्ति अध्यवसाय में पीछे होगा। अंगूठा अपने औसत से कुछ ऊपर की की ओर जा रहा है। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि बौद्धिक क्षमता अच्छी होगी। इस हाथ के पूर्ण अध्ययन के पश्चात आप स्वतः अध्ययन करेंगे कि हजारों वर्ष पुराने मानव का जीवन बड़ी बिडम्बना युक्त था।
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प्राचीन कीरोमेंसी
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LINTA NATVRALIS
VITALIS
SINDSTAR TRIANGVLSV
PARS INFLRIOR
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HEPATU
DIX
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CRI KRS PIROVUSTO
9. DETTE
DICRIMINALIS
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हाथ का सामान्य आकार जानने का चार्ट
पुरुष की
लम्बाई
147 से.मी.
152 से.मी.
157 से.मी.
162 से.मी.
167 से.मी.
172 से.मी.
177 से.मी.
182 से.मी.
187 से.मी.
192 से.मी.
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हाथ की
लम्बाई
17.5 से.मी.
18.0 से.मी.
18.5 से.मी.
19.0 से.मी.
19.5 से.मी.
20.0 से.मी.
20.5 से.मी.
21.0 से.मी.
21.5 से.मी.
22.0 से.मी.
महिला की
लम्बाई
147 से.मी.
152 से.मी.
157 से.मी.
162 से.मी.
167 से.मी.
172 से.मी.
177 से.मी.
182 से.मी.
187 से.मी.
192 से.मी.
हाथ की
लम्बाई
16.5 से.मी.
17.0 से.मी.
17.5 से.मी.
18 से.मी.
18.5 से.मी.
19.0 से.मी.
19.5 से.मी.
20.0 से.मी.
20.5 से.मी.
21.0 से.मी.
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अभ्यास
1. राजयोग वाले हाथों के लक्षण बताएं ?
2. किन्ही तीन दोषपूर्ण रेखाओं के निवारण का उपाय बताएं ?
3. आत्म हत्या दर्शाने वाले हाथो के लक्षणों का विवेचन करें ?
4. कम व अधिक अंगुलियों वाले जातकों के स्वभाव में परस्पर क्या अंतर
पाये जाते हैं ?
5. प्राचीन किरोमेन्सी के आधार पर अपना अनुभव स्पष्ट करें?
6. विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा वैज्ञानिकों में से किन्हीं दस वैज्ञानिकों के बारे
में लिखें?
7. हस्तरेखा विषय में सामुद्रिक शास्त्र का कितना योगदान है ?
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उपसंहार
वास्तव में हस्तरेखा व सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार देखा जाय तो प्रत्येक मानव के हाथ की रेखायें भिन्न-भिन्न होती हैं तथा सभी के जीवन में कार्यों के दो पहलू हैं :-सकारात्मक और नकारात्मक, आप किसी भी कार्य को इन्हीं दो रूपों में देख सकते हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि आप निर्माण और ध्वंस के मध्य खड़े हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप अपने जीवन की घड़ियों का सृजन करते हे या ध्वंस करते हैं। आपके पास समय, शक्ति, श्रम, स्वास्थ्य और जीवन आदि है, अगर आप हृदय में जोश और स्नायुओं में साहस भरकर उन्नति की ओर अग्रसर रहेंगे तो प्रसिद्धि और सम्मान, आपके स्वागत के लिए उपस्थित रहेंगे।
यदि आपने इस पुस्तक का गहन अध्ययन भलीभांति किया है तो आप हस्त पठन करने योग्य हो गये हैं। आरम्भ में शिक्षार्थी को किसी नये विषय की कठिनता आभास होती है, यदि आपको ऐसा अनुभव हो तो चिन्तित होने के बजाय यत्न करें। धीरे-धीरे आपकी कठिनता दूर होती नजर आयेगी। यह ध्रुव सत्य है कि मनुष्य का ज्ञान हमेशा अधूरा रहता है, पूर्ण ज्ञान परमात्मा के अतिरिक्त किसी को नहीं है। इसलिए कभी भी कोई भविष्यवाणी शर्त लगाकर न करें, सदा यही कहें कि ऐसा होने की सम्भावना है।
मां सरस्वती आप के परिश्रम को सफल करे।
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________________ इस पुस्तक के शोधपूर्ण लेखन कार्य के लिए हम उन विद्वानों के आभारी हैं जिन्होंने हमें इस विषय से सम्बन्धित ज्ञान और मार्गदर्शन दिये। व्यावहारिक अध्ययन हेतु इस पुस्तक को प्रस्तुत किया गया है। यह सर्वथा सरल अनूठी एवं प्रशंसनीय भाषा शैली में लिखी गई है जिसका कि अनभिज्ञ व्यक्ति भी इसका अध्ययन करके लाभ उठा सकते हैं। जिज्ञासुओं और विद्वानों के लिए भी यह पुस्तक अद्वितीय सिद्ध होगी। प्रस्तुत पुस्तक में अगर किसी भी प्रकार की त्रुटि रह गयी हो या छपायी में कोई त्रुटि हो गयी हो तो पाठकों से अनुरोध है कि वे कृपया अपना सुझाव भेजें और हमें कृतार्थ करें। अखिल भारतीय ज्योतिष संघ (पंजी.) एच-1/ए, हौज खास, नयी दिल्ली-110016 फोन : 6569200-01,6569800-01, 195