Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020653/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। । चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक :१ जैन आराधन श्री महावी केन्द्र को कोबा. ॥ अमतं तु विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355 - - - For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयुक्त प्रान्त प्राचीन जैन स्मारक ७ ...6-hole ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयुक्त-प्रान्त प्राचीन जैन स्मारक संग्रह-कर्ता जैन-धर्म-भूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी आ. सम्पादक 'जैन मित्र' -100 प्रकाशक हीरालाल जैन, एम. ए., जैन होस्टल, प्रयाग। १६२३ प्रथम संस्करण ) १००० For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Printed by Krishna Ram Mehta, at the Leader Fress, 14-A, South Road, and published by Hira Lal Jain, Jain Hostel, Allahabad. For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥प्रकाशक का वक्तव्य ॥ कोई आठ मास हुए जब ब्रम्हचारी जी की 'बंगाल बिहार और उड़ीसा के जैन स्मारक' नामक पुस्तक प्राचीन श्रावकोद्धारिणी सभा कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुई थी। इसका जनता ने अच्छा श्रादर किया और ऐतहासिक प्रश्नों की तरफ अपनी रुचि दिखाई । अब ब्रम्हचारी जी की उसी सिलसिले की दूसरी पुस्तक : संयुक्तप्रान्त के जैन स्मारक' प्रस्तुत है। जैनियों के एक सिलसिलेवार इतिहास लिखे जाने से प्रथम इस प्रकार की हर एक प्रान्त की पुस्तकें लिखा जाना बहुत आवश्यक है। आशा है ब्रम्हचारी जी का चलाया हुश्रा यह क्रम चलता ही जायगा। प्राचीन जैन स्मारकों से इतिहास निर्माण में कितनी सहायता मिली है व और कितनी आशा की जाती है यह सब पुस्तक की भूमिका में विस्तृतरूप से बतलाया गया है। ब्रम्हचारी जी के अनुरोध से इस पुस्तक के प्रकाशन का कार्य मुझे करना पड़ा है। इसकी छपाई आदि का प्रबन्ध करने में मुझे बाबू लक्ष्मीचन्द्रजी जैन एम. ए. से बहुत सहायता मिली है-इसकी छपाई सफ़ाई में यदि कुछ सौन्दर्य हो तो उस सबका श्रेय मेरे इन परममित्र को ही है। उन्हें मैं हृदय से धन्यवाद देता हूं। जैनहोस्टल । कार्तिक शुक्रा ५ हीरालाल जैन सं० १९८० For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपोद्घात । किसी समय जैन धर्म इस भारतवर्ष में चारों ओर फैला हुआ था, यह बात जैनियों के उन प्राचीन स्मारकों से विदित होती है जो देश भर में इधर उधर अंकित हो रहे हैं। सरकारी पुरातत्व विभाग के अफसरों की समय २ पर की खोजों से जिन थोड़े बहुत जैन स्मारकों का पता चला है, उन सब का ब्यौरा भिन्न २ प्रान्तों के 'गजेटियर अर्थात् विवरणों में प्रकाशित हुआ है । यह ठीक अनुमान किया जाता है कि जैन स्मारकों को भारी संख्या अभी खोज और प्रसिद्धि की राह देख रही है । हमने सन् १६२२ की वर्षा ऋतु के चार मास कलकत्ते में बिताये थे। उस समय हमने वहां के सबसे बड़े प्रसिद्ध और सर्वसाधारणपयोगी पुस्तकालय-इम्पीरियल लाइब्रेरी में बैठकर बंगाल विहार उड़ीसा तथा संयुक्तप्रान्त के गजेटियर पढ़े और उनमें जहां २ जैन स्मारकों का कुछ स्पष्ट व शंकित विवरण मिला उसको चुनकर लिख लिया था। बंगाल, विहार और उड़ीसा के विवरण की पुस्तक तो प्राचीन श्रावकोद्धारिणी सभा कलकत्ता द्वारा मुद्रित होकर प्रसिद्ध हो चुकी है अब संयुक्तप्रान्त के जैन स्मारकों का विवरण लिखा जाता है। युक्त-प्रान्त में बहुत से प्राचीन स्थान ऐसे हैं जिनमें जैन स्मारकों के होने की For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ ) सम्भावना है । उनमें जैन स्मारक कोई हैं ऐसा प्रगट नहीं हुआ है तौभी यदि उनमें खोज की जावे तो जैन स्मारकों के मिलने की आशा है । ऐसा विचार कर उन स्थानों का भी इस विवरण में उल्लेख कर दिया गया है। जैन समाज के परोपकारी विद्वानों को चाहिये कि इस युक्तप्रान्त के जिलों के वर्णन को पढ़कर वहां स्वयं जाने का कष्ट उठावें और खोज करें। तथा जहां कोई 'प्राचीन स्मरणीय जीर्ण जैन मन्दिर होवे उनका जीर्णोद्धार करावे व जहां कहीं श्रखण्डित जैन प्रतिमानों की अविनय होती हो उनको संग्रह करके विनय योग्य स्थिति में स्थापित करावें । पानीपत १४-८-२३ इस पुस्तक में कनिंघम की सर्वे रिपोर्ट से तथा डा. फुहरर द्वारा लिखित 'मानुमेन्टल एन्टीक्विटीज़ एन्ड इन्ह क्रिपशन्स एन. डब्ल्यू. पी. सन् १८६११, से भी बहुत सी बातें लेकर संग्रह की गई हैं । हमको लखनऊ की पब्लिक लायब्रेरी व अजायबघर लायब्रेरी से भी बहुत मदद मिली । बाबू प्रागदयाल जी क्यूरेटर ने हमको कई बातें बताने में बहुत परिश्रम किया इसके लिये उन्हें धन्यबाद है I ब. शीतलप्रसाद आ. सम्पादक 'जैनमित्र' For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका जो लोग इतिहास के महत्व से अनभिज्ञ हैं वे प्रश्न कर सकते हैं कि बहुत समय के पुराने खंडहरों, टूटी फूटी मूर्तिओं व अस्पष्ट, अपरिचित लिपियों और भाषाओं में लिखे हुए शिला लेखों के पतों और विवरणों से पुस्तकों के सफे भरने से क्या लाभ ? ऐसे भोले भाइयों के हितार्थ इतिहास की महत्ता बताने के लिये मैं केवल इतना ही कहना पर्याप्त समझता हूं कि यह उज्वल इतिहास की ही महिमा हैं जो बौद्ध धर्म जिसका कई शताब्दियां हुई हिन्दुस्थान से सर्वथा नाम ही उठ गया है, आज भी विद्वत् समाज में बहुत मान और गौरव की दृष्टि से देखा जाता है, और जैन धर्म, जो कि बौद्ध धर्म से कहीं अधिक प्राचीन है, जिसकी सत्ता आज भी भारतवर्ष में अच्छी प्रबलता से विद्यमान है, जिसकी फिलासफी बौद्ध व अन्य कितनी ही फिलासफियों की अपेक्षा बहुत उच्च और वैज्ञानिक है, व जिसका साहित्य भारत के अन्य किसी भी साहित्य की प्रतिस्पर्धा में मान से खड़ा हो सकता है, ऐसा जैन धर्म अभी तक बहुत कम विद्वानों को रुचि और सहानुभूति प्राप्त कर सका है। बौद्ध धर्म के इति. हास पर इतना प्रकाश पड़ चुका कि उस पर विद्वानों को सहज ही दृष्टि पड़ जाती है । पर जैन धर्म का इतिहास For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभी तक भारी अंधकार में पड़ा है जिससे उसे संसार में आज वह मान प्राप्त नहीं है जिसका कि वह न्याय से भागी है। आज से कोई डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जब पश्चिमी विद्वानों ने भारत का प्राचीन इतिहास तैयार करना प्रारम्भ किया तव उन्हें इस देश की एक मुख्यजन-समाज जैन जाति के विषय में भी अपनी सम्मति प्रगट करने की आवश्यकता पड़ी। इस सम्मति को स्थापित करने के लिये साधन ढूढने में उनकी दृष्टि “अहिंसा परमो धर्मः" जैसे जैनियों के स्थूल सिद्धान्तों पर पड़ी जो कई अंशों में बौद्ध सिद्धान्तों से मिलते जुलते हैं । अतः वे झट इस राय पर पहुंच गये कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा-मात्र है। इस मत को सामने रखकर पीछे २ कई विद्वानों ने जैन धर्म के विषय में खोजें की तो उन्हें इसी मत की पुष्टि के प्रमाण मिले। महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध के जीवनकाल, जीवन-घटनाओं व उपदेशों व उनके माता पिता और कुटुम्बी जनों के नाम आदि में उन्हें ऐसी समानतायें दृष्टि पड़ी कि उन्हें वे एक ही मनुष्य के जीवन-चरित्र के दो रूपान्तर जान पड़े, और क्योंकि उन्हें जैनियों के पक्ष के कोई भी ऐसे प्रमाण व स्मारक प्राप्त नहीं हुए जिनसे जैन धर्म की स्वतन्त्र उत्पत्ति प्रमाणित होती अतः उनका यह मत पक्का ठहर गया कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से निकला है । उस समय के प्रसिद्ध भारत-इतिहास लेखक एल्फिन्स्टन साहब ने अपने इतिहास में जैन धर्म के विषय में For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह लिखा "The Jains appear to hare originated in the sixth or seventh century of our era, to have become conspicuous in the eighth or ninth century, got the highest prosperity in the eleventh and declined after the twelfth?". __ अर्थात् जैन धर्म ईसा की छटवीं सातवीं शताब्दि में प्रारम्भ हुआ, ८ वीं ६ वीं शताब्दि में इसकी अच्छी प्रसिद्धि हुई, ११ हवीं शताब्दि में इसने बहुत उन्नति की और १२ हवीं शताब्दि के पश्चात् इसका ह्रास प्रारम्भ हो गया। जैनियों ने इस मत को अप्रमाणित सिद्ध करने का कोई समुचित प्रयत्न और उद्योग नहीं किया। इसलिये पूरी एक शताब्दि तक पाश्चात्य व कितने ही देशी विद्वानों का यही भ्रम रहा । यद्यपि इस बीच में 'कोलक' 'जोन्स"विल्सन' 'टामस', 'लेसन', 'बेवर', आदि अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने जैन ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन किया और जैन दर्शन की खूब प्रशंसा भी की, पर उसकी उत्पत्ति के विषय में उनके विचार अपरिवर्तित ही रहे। उन्होंने जैन पुराणों में दिये हुए तीर्थंकरों के चरित्र तो पढ़े पर उन पर उन्हें विश्वास न हुआ क्योंकि उन ग्रन्थों के काव्य कल्पना-समुद्र में गोते लगाकर ऐतिहासिक तथ्य रूपी रत्न प्राप्त कर लेना एकदम सहज काम नहीं था। १ Elphinstone History of India P. 121. For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे समय में भाग्यवश भारतीय इतिहास की शोध का एक नया साधन हाथ आया। देश में जगह २ जो शिलाओं व स्तम्भों व मन्दिरों आदि की दीवारों पर लेख मिलते थे उन पर इतिहास खोजकों की दृष्टि गई । बहुत समय के निरन्तर परिश्रम से विद्वान् लोग इन लेखों की लिपि समझने में सफल हुए जिससे उनकी ऐतिहासिक छान बीन सुलभ हो गई । गत शताब्दि के मध्य भाग में 'सर जेम्स प्रिंसप जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों के उद्योग से अशोक सम्राट् की शिलाओं व स्तम्भों पर की प्रशस्तियां पढ़ी गईं जिससे भारत के प्राचीन इतिहास निर्माण का एक नया युग प्रारम्भ हो गया। इन लेखों ने भारतवर्ष के अाज से लगभग ढाई हज़ार वर्ष पूर्व के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक इतिहास पर अद्भुत प्रकाश डाला और कई ऐतिहासिक भ्रम दूर किये । इससे पुरातत्त्व-जिज्ञासुओं का उत्साह बढ़ा और प्रयत्न करने से धीरे २ देश के भिन्न २ भागों में शतीचीरों, शिला व स्तम्भों, गुफाओं मन्दिरों आदि की भित्तिओं, मूर्तिओं, घटों व ताम्रपत्रों आदि पर खुदे हुए सहस्रो लेखों का पता चला जिनसे समय २ के अनेक ऐतिहासिक वृत्तान्त विदित हुए । साथ ही साथ प्राचीन स्तूप, किले, मन्दिर, महल आदि के खंडहरों, खंडित व पूर्ण मूर्तिओं गुफाओं आदि का भी पता चला जिनसे देश की तत्तत्कालिक कला, कौशल कारीगरी व धन वैभव का सच्चा परिचय मिला । इस खोज में लोगों का For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) उत्साह व खोजकों की चमत्कारिक सफलता को देखकर 'लार्ड कर्जन' ने 'पार्किलाजिकल सर्वे' अर्थात् पुरातत्त्व अनुसन्धान नामक एक सरकारी महकमा खोल दिया । तब से खोज का काम और भी सावधानी और बुद्धिमत्ता से चलने लगा। इससे देश की ऐतिहासिक अन्धकारता बहुत कुछ दूर हो चली है। ___इस खोज से जैन धर्म के इतिहास पर जो विशेष प्रकाश पड़ा है उसका यहां पाठकों को संक्षिप्त परिचय करा देना हम उचित समझते हैं। ___ (१) अशोक सम्राट ( ईस्वी पूर्व २७५ वर्ष ) के दिल्ली के स्तम्भ पर की आठवीं प्रशस्ति में निर्ग्रन्यों ('निगन्थ') का उल्लेख आया है । सम्राट ने अन्य पन्थों के अनुसार निर्ग्रन्थ पन्थ के लिये भी धर्म-महामात्य अर्थात् धर्माध्यक्ष नियुक्त किये थे । जैन, बौद्ध व ब्राह्मण ग्रन्थों से यह सिद्ध हो चुका है कि प्राचीन काल में जैन साधु सर्वथा परिग्रह रहित दिगम्बर रहने के कारण निर्ग्रन्थ कहलाते थे। यह नाम अब भी जैनियां में प्रचलित है। महाराज अशोक ने इनके लिये धर्माध्यक्ष नियुक्त किये । इससे अनुमान किया जा सक्ता है कि निर्ग्रन्थ मत उनके समय में भी बहुत प्रचलित और प्रबल था। कोई नया निकला पंथ नहीं था। डा० जैकोबी ने प्राचीन-तम जैन और बौद्ध ग्रन्थों की छान बीन कर सिद्ध किया है कि निम्रन्थ मत बहुत पुराना है। महात्मा बुद्ध के For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकालीन श्री महावीर स्वामी जब तप को निकले तब यह पन्थ प्रचलित था । सम्राट अशोक ने अपनी प्रशस्तियों में जो अहिंसा, अचौर्य, सत्य, शील श्रादि गुणों पर जोर दिया है उससे प्रतीत होता है कि वे स्वयं जैन-धर्मावलंबी रहे हों तो आश्चर्य नहीं। प्रो० कनं लिखते हैं :- "His (Asoka's) ordinances concerning the sparing of animal life agree much more closely with the ideas of heretical Jains than those of the Buddhists”. __अर्थात् 'अहिंसा के विषय में अशोक के जो नियम है वे बौद्धों की अपेक्षा जैनियों के सिद्धान्तों से अधिक मिलते हैं। जैन ग्रन्थों में इनके जेन होने के प्रमाण मिलते हैं।२ । कल्हण कवि की राज तरङ्गिणी, जो संस्कृत साहित्य में ग्यारहवीं शताब्दि का एक अद्वितीय ऐतिहासिक ग्रन्थ है, में अशोक द्वारा काश्मीर में जैन धर्म के प्रचार किये जाने का वर्णन है और यही बात अबुल फज़ल की 'पाइने अकबरी' से भी विदित होती है। जैसा कि आगे चलकर बतलाया जायगा, इनके पितामह महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य जैन थे ही । अतः इसमें १ डा० जैकोबी सेक्रेड बुक्स श्राफ दी ईस्ट ' जिल्द २२ और ४५। २ इन्डियन एन्टीकरी जिल्द ५ पृ० २०५ । ३ राजा वली कथा ( कनाड़ी)। ४ यः शान्तरजिनो राजा प्रपत्रो जिनशासनम् । शुष्कलेऽत्र वितस्तात्रौ तस्तार स्तूपमण्डले ॥ रा० त० अध्याय १ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोई आश्चर्य नहीं कि अशोक भी जैन रहे हों। कुछ विद्वानों का मत है कि अशोक पहले जैन धर्म के उपासक थे पश्चात् बौद्ध हो गये । इसका एक प्रमाण यह दिया जाता है कि अशोक के उन लेखों में जिनमें उनके स्पष्टतः बौद्ध होने के कोई संकेत नहीं पाये जाते बल्कि जैन सिद्धान्तों के ही भावों का आधिक्य है, राजा का उपनाम 'देवानांपिय पिय इसि' पाया जाता है । 'देवानां पिय विशेषतः जैन ग्रन्थों में ही राजा की पदवी पाई जाती है। श्वेताम्बरी 'उवाई (ोपपातिक) सूत्र ग्रन्थ में यह पदवी जैन राजा श्रेणिक (विम्बिसार ) व उसके पुत्र कुणिक (अजात शत्रु ) के नामों के साथ लगाई गई है । पर अशोक के २२ वें वर्ष की, 'भावरा' की प्रशस्ति में, जिसमें उसके बौद्ध होने के स्पष्ट प्रमाण हैं, उसकी पदवी 'केवल पियदसि' पाई जातो है 'देवानं पिय' नहीं। इसी बीच में वे जैन से बौद्ध हुए होंगे। पर अाजकल बहुमत यही है कि अशोक बौद्ध थे। जैनियों की वंशावलियों व अन्य अन्धों में उल्लेख है कि अशोक का पात्र 'सम्प्रति' था, उसके गुरु सुहस्ति प्राचार्य थे और वह जैन धर्म का बड़ा प्रति पालक था। उसने 'पियदसि' के नाम से बहुत सी प्रशस्तियां शिलाओं पर अंकित कराई थीं । इस कथा के आधार पर प्रो. पिशेल व मि० मुकुर्जी जैसे विद्वानों का मत है कि जो शिला १ अरली फेथ श्राफ अशोक · Early faith of Thoma: Asoka' by For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रशस्तियां अब अशोक के नाम से प्रसिद्ध है सम्भवतः वे 'सम्प्रति' ने लिखवाई होगी। पर सर विन्सेन्ट स्मिथ की राय इससे विरुद्ध है। वे उन सब लेखों को अशोक के ही प्रमाणित करते हैं। उनकी राय में 'सम्प्रति' पुराणों में के राजा, 'दशरथ' अशोक के पौत्र जिनके कुछ लेख गुफाओं पर पाये गये हैं, का दूसरा नाम रहा होगा। जो हो इस विषय में अभी और भी खोज व छानवीन की जाने की आवश्यकता है। (२) पुरी जिले में उदयगिरि पर्वत पर हाथी गुम्फा नामक गुफा में एक बड़ा बहुमूल्य लेख कलिंग के राजा खार बेल का है । इस लेख का पता सन् १८२० ई० में स्टार लिंग साहब ने लगाया था । इसका जैनियों से सम्बन्ध डा० भगवानलाल इन्द्रजी ने सिद्ध किया था, पर इसका पूरा २ और सच्चा मर्म हाल ही में मि० काशीप्रसाद जायसवाल ने समझा है, और उसका विस्तृत विवरण 'विहार और उड़ीसा की रिसर्च सोसाइटी के जर्नल' जिल्द ३ पृ. ४२५ से ४६७ व ४७३ से ५०७ में प्रकाशित किया है। लेख की पूरी नकल हिन्दी अनुवाद सहित ब्रह्मचारीजी की ' बंगाल विहार व उड़ीसा के प्राचीन जैन स्मारक' नामक पुस्तक में भी छप चुकी है । लेख प्रारम्भ यों होता है :-- 'नमो अरहंतान' नमो सवसिधान' इससे स्पष्ट है कि इसका लिखाने वाला निस्सन्देह जैन-धर्मावलम्बी था। लेख में सं० १६५ उधृत है। प्रश्न उठता है कि यह कौनसा For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( है ) संवत् हो सक्ता है। मि० जायसवाल ने बड़ी युक्ति से इसे मौर्य संवत् सिद्ध किया है जो महाराज चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण काल ( ई० पू० ३२१ सन् ) से चला होगा । कोई पूछे कि एक स्वतंत्र राजा दूसरे राजा के चलाये हुये संवत् का उपयोग क्यों करने लगा । इसके उत्तर में श्रीयुक्त जायसवालजी कहते हैं कि इसका कारण राजनैतिक नहीं धार्मिक रहा होगा । चन्द्रगुप्त मौर्य का जैन ग्रन्थों व चन्द्रगिरि के शिला लेखों से जैन होना सिद्ध होता है । अतः एक जैन राजा के चलाये हुए संवत् का दूसरा जैन - र -राजा आदर करे तो इसमें क्या श्राश्चर्य ? यह समाधान बहुत युक्तिसंगत प्रतीत होता है । इस लेख से सिद्ध होता है कि ई० पूर्व दूसरी शताब्दि में उड़ीसा प्रान्त में जैन धर्म का अच्छा प्रचार था । जायसवाल महोदय लिखते हैं: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Jainism had already entered Orissa as early as the time of King Nanda who, as I have shown, was Nanda Vardhan of the Sesunaga dynasty. Before the time of Kharavela there were temples of the Arhats on the 'Udaya giri Hills,' as they are men - tioned in the inscriptions as institutions which had been in existence before Kharavela's time. It seems that Jainism had been the national religion of Orissa for some centuries. (J. B. O. R. S. Vol III. p. 448.) For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् 'जैन-धर्म का प्रवेश उड़ीसा में शिशुनाग वंशी राजा नन्द वर्धन के समय में होगया था। खारवेल के समय से पूर्व भी उदयगिरि पर्वत पर अहंतो के मन्दिर थे क्योंकि उनका उल्लेख खारवेल के लेख में आया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ( खारवेल के समय में ) जैन धर्म कई शताब्दियों तक उड़ीसा का राष्ट्रीय धर्म रह चुका था। इस लेख को उपयोगिता के विषय में श्रीयुक्त जायसवाल जी कहते हैं : “This inscription occupies a unique position amongst the materials of Indian History for the centuries preceding the Christian era. In point of age it is the second inscription after Asoka, the first being the Nanaghat inscription !of Vedisri. But from the point of view of the chronology of the premauryan times and the history of Jainism it is the most important inscription yet discovered in the country. It confirms the Puranic record and carries the dynastic chronology to C. 450 B. C. Further, it proves that Jainism entered Orissa and probably became the State religion, within 100 gears of the death of its founder Mahavira. It affords the earliest historical instance of the Unity For Private And Personal Use Only Page #20 --------------------------------------------------------------------------  Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खुदाई हुई जिससे एक प्राचीन जैन स्तूप व उसके पास पास सन् १८६०-६१ तक कोई ११० जैन शिला लेखों और इनके अतिरिक्त कई तीर्थंकरों को मूर्तियाँ व शिल्पकारी के अन्य नमूनों का पता चला । शिला लेख बहुतायत से कुशानवंशी राजाओं के समय के हैं जिनपर ५ से ६८ तक को वर्षों के अंक पाये जाते हैं । ये वर्षे किसो इंडोसिथियन संवत् की अनुमान की जाती हैं। सर विन्सेन्टस्मिथ इन लेखों का समय ईसा के पूर्व पहली शताब्दि से लगाकर ईसा की दूसरी शताब्दि तक मानते हैं । सब से नया लेख वि. सं० ११३४. ( ई० सं० १०७७ ) का है। अतः ये लेख मथुरा में जैन धर्म के लगभग ग्यारह शताब्दियों के ऐतिहासिक तारतम्य का पता देते हैं । इन लेखों में प्राचीनतम लेख से भी यहां का स्तूप कई शताब्दी पुराना है । एक खगासन प्रतिमा की पोठिका पर लेख है कि 'यह 'अर' (अरहनाथ ) तीर्थंकर की प्रतिमा सं० ७८ में इस देवों द्वारा निर्मापित स्तूप की सीमा के भीतर स्थापित की गई। इस पर फुहरर साहब लिखते हैं: The stupa was so ancient that at the time when the inscription was incised, its origin had been forgotten. On the evidence of the characters, the date of the inscription may be referred with certainty to the Indo Scythian era and is equivalent to A D. 1. Jain Stupa and other antiquities of Mathura For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) 156. The stupa must therefore have been built several centuries before the beginning of the Christian era, for the name of its builders would assuredly have been known if it had been erected during the period when the Jains of Mathura carefully kept record of their donations.” (Museum Report 1890-91.) । अर्थात् “यह स्तूप इतना प्राचीन है कि इस लेख के लिखे जाने के समय स्तूप के श्रादि का वृत्तान्त लोगों को विस्म. रण हो गया था। लिपि के प्रमाण से इस लेख की वर्षे इंडोसिथियन (शक ) संवत् की प्रतीत होती हैं जिससे लेख सन् १५६ के लगभग का सिद्ध होता है । इसलिये यह स्तूप ईसा से कई शताब्दियां पहले निर्मित हुआ होगा, क्योंकि यदि वह उन समयों में बना होता जबकि मथुरा के जैनी अपने दान आदि के लेख रखने लगे थे तो उसके निर्मापकों का नाम अवश्य ज्ञात हुआ होता। यद्यपि 'स्तूप' निर्माण कराने की प्रथा बौद्धों के समान ही जैनियों में बहुत प्राचीन काल से प्रचलित है और इसके प्रमाण जैन ग्रन्थों में पाये जाते हैं, तथापि इस स्तूप का पता लगने से पूर्व पुरातत्वज्ञों की धारणा थी कि स्तूप केवल बौद्धों ने ही बनवाये । एलफिन्स्टन साहब लिखते हैं: For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'They (Jains) have no veneration for relics and no monastic establishments.' अर्थात् 'जैन अपने प्राचार्यों के भास्भावशेषों की कोई भक्ति नहीं करते और न इनके कोई साधु-आश्रम हो हैं।। डा. फ्लीट ने कहा है: "The prejudice that all stupas and stone railings, must necessarily be Buddhist has probably prevented the recognition of Jain structures as such, and up to the present only two undoubted Jain stupas hare been recorded'.' अर्थात् 'समस्त स्तूप और पाषाण के कटघरे अवश्य बौद्ध ही होना चाहिये' इस पक्षपात ने जैनियों द्वारा निर्मापित स्तूपों आदि को जैन के नाम से प्रसिद्ध होने से रोका और इसलिये अब तक निःशंकित रूप में केवल दो ही जैन स्तूपों का उल्लेख किया जा सकता हैं। पर मथुरा के स्तूप ने निस्सन्देह उनके भ्रम को दूर कर दिया है । स्मिथ साहब लिखते हैं: 'In some cases, monuments which are really Jain, have been erroneously described as Buddhist.' अर्थात् 'कहीं कहीं यथार्थ में जैन-स्मारक गलती से बौद्ध वर्णन किये गये हैं।" १ Imp. Gaz. Vol-11, p. 111. For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५ ) मथुरा के लेख व अन्य स्मारक जैनियों के इतिहास के लिये बहुत ही उपयोगी हैं । इस विषय पर सर विन्सेन्ट स्मिथ के शब्द उल्लेखनीय हैं। वे कहते हैं: “ The discoveries have, to a very large extent, supplied corroboration to the written Jain tradition and they offer tangible and incontrovertible proof of the antiquity of the Jain religion, and of its early existence very much in its present form. The series of twenty-four Pontiffs (Tirthankaras) each with his distinctive emblem was evidently firmly believed in, at the beginning of the Christian era." Further "The inscriptions are replete with information as to the organization of the Jain church in sections known as Gana, Kula and Sakha, and supply excellent illustrations of the Jain books. Both inscriptions and sculptures give interesting details proving the existence of Jain nuns and the influential position in the Jain church occupied by women* " अर्थात् 'इन खोजों से जैनियों के ग्रन्थों के वृत्तान्तों का बहुत अधिकता से समर्थन हुआ है और वे जैन धर्म की प्राचीनता व उसके बहुत प्राचीन समय में भी आज ही की • ‘Jain Stugra and other antiquities of Mattura'. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) 1 भांति प्रचलित होने के प्रत्यक्ष्य और अकाट्य प्रमाण हैं सन् ईस्वी के प्रारम्भ में भी चौबीस तीर्थंकर उनके चिह्नों सहित अच्छी तरह से माने जाते थे। बहुत से लेख जैन- सम्प्रदाय के गण, कुल व शाखाओं में विभक्त होने के सभाचारों से भरे हैं और वे जैन ग्रन्थों के अच्छे समर्थक हैं । लेखों और चित्रों से जैन श्राविकाओं की सत्ता व स्त्रियों का जैन सम्प्रदाय में प्रभावशाली स्थान का अच्छा रुचिकर व्यौरा मिलता है । इनमें के कई लेख व चित्र इत्यादि डा. व्हूलर ने 'एपि ग्राफिआ इन्डिका' नामक पत्र की पहली जिल्द में छपवाये हैं । उनके विषय में स्मिथ साहब का मत है: "The plates throw light among other things on the history of the Indian or Brahmi alphabet, on the grammar and idiom of the Prakrit dialects, on the development of Indian art, on the political and social history of Northern India, and on the history, organization and worship of the followers of the Indian religion.*" अर्थात् 'ये म ेट्स अन्य कई बातों के सिवाय भारतीय ब्राह्मी लिपि के इतिहास, प्राकृत भाषाओं की व्याकरण व * Jain stupa and other antiquities (of Mathura Page 4. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) महावरे, भारतीय कला के विकाश, उत्तर भारत के राजनैतिक व सामाजिक इतिहास और जैन धर्म के अनुयायियों के इतिहास, संगठन व पूजन अर्चन की विधि पर प्रकाश डालते हैं । इस प्रकार मथुरा से मिले हुए जैन स्मारक न केवल जैन इतिहास के लिये किन्तु भारत देश, विशेषतः उत्तर भारत के इतिहास के लिये बहुत उपयोगी हैं" । ( ४ ) सन् १६१२ में श्रीमान् पं० गौरीशंकर जी ओझा ने अजमेर के पास बड़ली ग्राम से एक बहुत प्राचीन जैन लेख का पता लगाया है । लेख है 'वीराय भगवते चतुरासिति वसे का ये जाला मालिनिये रंनिविठ माझिमिके' । लेख से ही प्रमाणित है कि वह वीर निर्वाण सं० ८४ ( ई० ४४३ वर्ष) में अंकित किया गया था । 'माझिमिक' वही प्रसिद्ध पुरानी नगरी ' मध्यमिका' है जिसका उल्लेख पातञ्जलि ने भी अपने 'महाभाष्य' में किया है । यह भारतवर्ष में लेखन कला के प्रचार का अभी तक सब से प्राचीन उदाहरण माना जाता है । यह लेख ईस्वी पूर्व पांचवीं शताब्दि में राजपूताने में जैन धर्म का अच्छा प्रचार होना सिद्ध करता है । (५) जैन ग्रन्थों में महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य के जैन धर्मावलम्बी होने व भद्रबाहु स्वामी से जिन दीक्षा लेकर 'अरुणद् यवनः मध्यमिकाम्' । For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनके साथ दक्षिण को प्रस्थान करने का विवरण है। पर इतिहास लेखक बहुत समय तक इस कथन की सत्यता में विश्वास करने को तैयार नहीं हुए। पर जब मैसूर राज्य में 'श्रवण वेल गुल ' के चन्द्रगिरि पर्वत पर के लेखों का पता चला और उनकी शोध की गई तब इतिहासज्ञों को मानना पड़ा कि निस्सन्देह जैन समाचार इस विषय में बिलकुल सत्य हैं । वहां का सब से प्राचीन लेख, जो भद्रबाहु शिला लेख के नाम से प्रसिद्ध है, ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में लिखा गया प्रमाणित किया जाता है । इस लेख में यह समाचार है कि परमर्षि गौतम गणधर की शिष्य परम्परा में भद्रबाहु स्वामी हुए । उन त्रिकाल-दर्शी महात्मा ने अ निमित्त-ज्ञान से जाना कि उत्तरापथ ( उत्तर भारत ) में एक भीषण दुष्काल द्वादश वर्ष के लिये पड़ने वाला है । अतः उन्होंने अपने 'संघ' को लेकर दक्षिणा पथ को गमन किया। बोच में अपनी प्रायु का अल्प भाग शेष रहा जान उन्होंने संघ को तो आगे बढ़ने के लिये प्रस्थान कराया और आप स्वयं केवल एक शिष्य प्रभाचन्द्र के साथ 'कट वन' नामक पहाड़ी पर ठहर गये और वहीं सन्यास विधि से { Inscriptions at Sravana Regula by Lewe Rice Ins. No. 1. व जैन सिद्धान्त भास्कर किरण १, पृ. १५ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) देहोत्सर्ग किया। यहां के अन्य बहुत से लेखों से सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का ही दीक्षा-नाम प्रभाचन्द्र आचार्य था । लेख से कुछ दूरी पर एक गुफा है जो 'भद्रबाहु की गुफा' कह लाती है । कहा जाता है कि वहीं भद्रबाहु का समाधि मरण हुआ था । उनके चरण चिह्न भी गुफा में अंकित हैं। "लेख'जिस शिला पर है उसके ठीक सामने 'चन्द्रगुप्त वस्ती' नामक एक खण्डित मंदिरों का समूह है, जो बहुत प्राचीनता लिये हुये हैं। कहना न होगा कि इस पर्वत का नाम चन्द्रगिरि व 'मन्दिरों का नाम चंद्रगुप्त वस्ती चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम पर से ही पड़ा। मि० टामस लिखते हैं: " That Chandragupta was a member of the Jain community, is taken by their writers as a matter of course, and treated as a known fact, which needed neither argument nor demonstration, The documentary evidence to this effect is of comparatively early date and apparently absolved from suspicion......The testimony of Megasthenes would likewise seem to imply that Chandragupta submitted to the devotional teachings of the Sramanas as opposed to the doctrines of the Brahmanas" १ Inscriptions at Sravana Belgula' by Lews Rice, २ 'Mysore Inscriptions' by Lews Rice. ३ 'Jainism or Early Faith of Asoka'. p. 23. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २० ) अर्थात् ' चन्द्रगुप्त जैन समाज के व्यक्ति थे' यह जैन ग्रन्थकारों ने एक ऐसी स्वयं-सिद्ध और सर्व प्रसिद्ध बात के रूप से लिखा है जिसके लिये उन्हें कोई अनुमान प्रमाण देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई । इस विषय में लेखों के प्रमाण बहुत प्राचीन और साधारणतः सन्देह रहित हैं । मैगस्थनीज़ के कथनों से भी झलकता है कि चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मणों के सिद्धान्तों के विपक्ष में श्रमणों ( जैनमुनियों ) के धर्मोपदेशों को अङ्गीकार किया था' । चन्द्रगुप्त के जैन होने के इतने अकाट्य प्रमाण मिलने पर प्रसिद्ध इतिहासकार 'सर विन्सेन्ट स्मिथ को अपनी 'भारत के प्राचीन इतिहास' की बहुमूल्य पुस्तक के तीसरे संस्करण मैं यह लिखना ही पड़ा किः 'I am now disposed to believe that the tradition probably is true in its main outline and that Chandragupta really abdicated and became a Jain ascetic.’* अर्थात् 'मुझे अब विश्वास हो चला है कि जैनियों के कथन बहुत करके मुख्य २ बातों में यथार्थ हैं और चन्द्रगुप्त सचमुच राज्य त्याग कर जैन मुनि हुए थे । जायसवाल महोदय समस्त उपलभ्य साधनों पर से अपना मत स्थिर कर लिखते हैं: * V. Smith E.H.I. Po 146. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१ ) The Jain books (5th cent. A. C.), and later Jain inscriptions claim Chandragupta as a Jain imperial ascetic. My studies have compelled me to respect the historical data of the Jain writings, and I see no reason why we should not accept the Jain claim that Chandragupta at the end of his reign accepted Jainism and abdicated and died as a Jain ascetic. I am not the first to accept the view. Mr. Rice who has studied the Jain inscriptions of Sravana Belgula thoroughly gave verdict in favour of it and Mr. V. Smith has also leaned towards it ultimately.''* अर्थात् 'ईसा की पांचवीं शताब्दि तक के प्राचीन जैन ग्रन्थ व पीछे के जैन शिलालेख चन्द्रगुप्त को जैन राज मुनि प्रमाणित करते हैं । मेरे अध्ययनों ने मुझे जैन ग्रन्थों के ऐतिहासिक वृत्तान्तों का आदर करने के लिये वाध्य किया है। कोई कारण नहीं है कि हम जैनियों के इस कथन को कि चन्द्रगुप्त अपने राज्य के अन्तिम भाग में जैनी हो गया था व पीछे राज्य छोड़ कर जिन दीक्षा ले. मुनि वृत्ति से मरण को प्राप्त हुश्रा, न माने । मैं पहला ही व्यक्ति यह मानने वाला नहीं हूं। मि० राइस ने, जिन्होंने श्रवण बेलगोला * J. B. O. R. S. Vol. III. For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) के शिला लेखों का अध्ययन किया है, पूर्णरूप से अपनी राय इसी पक्ष में दी है और मि० ही० स्मिथ भी अन्त में इस मत. की ओर मुके हैं। ___ इस प्रकार श्रवण बेलगुल के लेख जैन इतिहास के लिये बड़े महत्व और गौरव के प्रमाणित हुए हैं। उनके बिना महाराज चन्द्रगुप्त का जैनी होना सिद्ध करना असम्भव होता। __ यह केवल उन मुख्य २ प्राचीनतम लेखों का परिचय है जिनने जैन इतिहास पर विशेष प्रकाश डाल कर उसके अध्ययन में एक नये युगका प्रारम्भ कर दिया है व इतिहासज्ञों की सम्मति-धाराये बदल दी हैं। इनके अतिरिक्त विविध स्थानों में भिन्न २ समय के सैकड़ों नहीं सहस्रों जैन लेख व अन्य जैन स्मारक ऐसे मिले हैं जिनसे प्राचीन काल में जैन धर्म के प्रभाव व प्रचार का पता चलता है। वे सिद्ध कर रहे हैं कि जैन धर्म का भूतकाल जगमगाता हुआ रहा है । वह बहुत समय तक राज-धर्म रह चुका है। इसकी ज्योति क्षत्रियों ने प्रभावान् बनाई थी और क्षत्रियों द्वारा ही इसकी पुष्टि और प्रसिद्धि हुई थी। मगध के शिशुनाग वंशी व मौर्य वंशी नरेशों, व उड़ीसा के महाराजा खार बेल के अतिरिक्त दक्षिण के कदम्ब, चालुक्य, राष्ट्र कूट, रह, पल्लव, सन्तार आदि अनेक प्राचीन राजवंशों द्वारा इस धर्म की उन्नति और ख्याति हुई ऐसा लेखों से सिद्ध हो चुका है । पर यह सब ऐतिहासिक सामग्री For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंग्रेज़ी में 'एपीग्राफिश्रा इन्डिका 'ऐपोग्राफिया कर्नाटिका' इन्डियन एन्टीक्केरी' आँर्किलाजिकल सर्वे रिपोर्ट आदि भारी २ पत्रिकाओं में बिखरी पड़ी है जो हिन्दी के पाठकों की पहुंच के परे होने के कारण व अनेक अंग्रेजी जानने वालों को समयाभाव व साधनाभाव के कारण बहुतायत से साधारण व्यक्तियों के परिचय में नहीं आई है। आवश्यकता है कि वह सब एकत्रित कर सुलभ और सर्वोपयोगी बनाई जावे । , , प्रस्तुत पुस्तक में ब्रह्मचारी जी ने परिश्रम से सरकारी गजैदियों में से संयुक्त प्रांत के जैन स्मारकों के वृत्तान्त निकालकर एकत्रित किये हैं। पाठकों को इसमें जैन स्मारकों का व जहां से वे स्मारक प्राप्त हुए हैं उन स्थानों का परिचय मिलेगा इससे लोगों का उत्साह स्मारकों की खोज में बढ़ने की आशा की जाती है। जो यात्रा करने वाले पुरातत्त्व प्रेमी व धर्म सेवक हैं। उनको यह पुस्तक नायक का काम देगी । संयुक्तप्रान्त की जैनियों के लिये ऐतिहासिक प्राचीनता और धार्मिक महत्ता बहुत भारी है । यह भूमि इतिहासातीत काल में कितने ही तोर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप ज्ञान व निर्वाण कल्याणकों से पवित्र हुई है । 'अयोध्या' पांच तीर्थकरों को जन्म नगरी है । इस काल के धर्म-नायक जैन-धर्म प्रचारक श्री आदिनाथ भगवान् का जन्म इसी नगरी में हुआ था। 'बनारस' में श्री सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) तीर्थंकर जन्मे थे । और यहां से निकट हो 'चन्द्रपुरी चन्द्र प्रभु की व सिंहपुरो (सारनाथ ) श्रेयांसनाथ की जन्म भूमि है । 'हस्तिनापुर' की पवित्रता से कौन जैनी अपरि. चित होगा। यहां शान्तिनाथ कुन्थुनाथ व अरहनाथ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप और शान चार २ कल्याणक हुए हैं । यहीं के राजा श्रेयांस' ने आदिनाथ भगवान को सब से प्रथम आहार देकर आहार दान की विधि का प्रचार किया था। 'अहिच्छत्राश्री पार्श्वनाथ भगवान् की वह तपोभूमि है जहां उन्होंने पापी 'कमठ' के घोर उपसर्गों को सहा था। 'प्रयाग' के विषय में कहा जाता है कि यहां आदिनाथ भगवान ने तप किया था ।व यहां से समीप ही जीनियों की प्रसिद्ध नगरी कौशाम्बी है जहां पद्मप्रभ तीर्थंकर का जन्म हुअा था व जिनके तप और ज्ञान कल्याणक निकटवर्ती 'प्रभाक्षेत्र' नामके पर्वत पर हुए थे। ‘पद्म प्रभ' के नाम से ही यह स्थान अब पपौसा व फफौसा कहलाता है । इसी प्रकार किष्किन्धापुर (खुखुन्दो), रत्नपुरी कम्पिला श्रादि अतिशय क्षेत्र इस प्रांत में विद्यमान हैं। अंतिम केवली जम्बू स्वामी की निर्वाण भूमि भी इसी प्रान्त के भीतर मथुरा के पास चौरासी नामक स्थान पर है जहां अब भी उनके नाम का विशाल मन्दिर बना हुआ है। इनमें १-दिगम्बर जैन डायरेक्टरी For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से कई नगरों में अब भी कुछ न कुछ जैन स्मारक पाये जाते हैं । पर अब तक जितने प्राप्त हुए हैं वे प्रान्त की प्राचीनता व जैन धर्म से घनिष्टता को देखते हुए कुछ भी नहीं है। हमें पूर्ण प्राशा है कि यदि विधिपूर्वक खोज की जाय तो असं. ख्यात जैन स्मारक मिल सकते हैं जिनसे जैन इतिहास का मुख उज्ज्वल हो सकता है व जैन पुराणों की प्रमाणिकता सिद्ध हो सकती है। कौशाम्बी के ही विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ का मत देखिये । वे अपने एक लेख में लिखते हैं: “I feel certain that the remains at Kogam in the Allahabad district will prove to be Jain for the most part and not Buddhist as Cunningham supposed. The village undoubtedly represents the Kausambi of the Jains and the site where Jian temples exist is still, a place of pilgrimage for the votaries of Mohavira. I have shown good reason for believing that the Buddhist Kausambdi was a different place (J. R A. S. July 1898). I commend the study of the antiquities at Kosam to the special attention of the Jain commuinty" ___ अर्थात् 'मुझे पूर्ण विश्वास है कि अलाहाबाद जिले के कोसम नामक ग्राम के खण्डहर इत्यादि बहुतायत से जैन स्मारक सिद्ध होंगे न कि बौद्ध जैसा कि कनिंघम ने For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुमान किया था। यह ग्राम निश्चय से जैन कोशाम्बी है। जिस स्थान पर जैन मन्दिर बने हैं वह अब भो महाबीर के उपासकों (जैनियों) का तीर्थ-स्थान है। मैंने बौद्धों की कौशाम्बी अन्यत्र रही है इसका ठीक २ कारण बतला दिया है । मैं कौशाम्बी के प्राचीन स्मारकों का जैन समाज द्वारा विशेष रूप से अध्ययन किये जाने की सम्मति देता हूं।" जैनियों द्वारा खोज के सम्बन्ध में स्मिथ साहब के विचार ध्यान देने और कार्य में परिणत करने के योग्य हैं। उनकी राय में:-- " The field for exploration is vast. At the present day the adherents of the Jain religion are mostly to be fcund in Rajputana and Western India. But it was not always so. In olden days the creed of Mahavira was far more widely diffuseil than it is now. In the 7th century A. D. for instance, that creed had numerous followers in Vaisali ( Basenti Nortlı of latna ) and in Eastern Bengal, localities where its adherents are now extremely few. I have myself seen abundant evidences of the fomer prevalence of Jainism in Bundelkhand during the mediaeval period especially in the 11th and the 12th centuries. Jain images in that For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir country are numerous in places where x Jain is now never seen. Further south, in the Deccan, and the Tamil countries, Jainism was for centuries a great and ruling power in regions where it is now almost unknown.” अर्थात् ' खोज का क्षेत्र बहुत विस्तीर्ण है। आजकल जैन धर्म के पालने वाले बहुतायत से राजपुताना और पश्चिमभारत में ही पाये जाते हैं। पर सदैव ऐसा नहीं था। प्राचीन समय में यह महावीर का धर्म आजकल की अपेक्षा कहीं बहुत अधिक फैला हुआ था। उदाहरणार्थ, ईसा की ७ वीं शताब्दि में इस धर्म के अनुयायी वैशाली और पूर्व बंगाल में बहुत संख्या में थे। पर वहां आज बहुत ही कम जैनी हैं । मैंने स्वयं बुन्देलखंड में वहां ११ वीं और १२ वीं शताब्दी के लगभग जैन धर्म के प्रचार के बहुत से चिह्न पाये । उस देश के कई ऐसे स्थानों पर बहुत सी जैन मूर्तियां पाई जाती हैं जहां अब एक भी जैनी कभी दिखाई नहीं पड़ता। दक्षिण में आगे को बढ़िये तो जिन तामिल और द्राविड़ देशों में शताब्दियों तक जैन धर्म का शासन रहा है वहां वह अब अज्ञात ही सा हो गया है"। और भी उनका कहना है: 'I feel certain that Jain stupas must be still in existence and that they will be found if looked for. For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir They are more likely to be found in Rajputana than elsewhere'. ___ 'मुझे निश्चय है कि जैन स्तूप अब भी विद्यमान हैं और यदि अन्वेषण किया जाय तो मिल सकते हैं। उनके पाये जाने की सम्भावना और स्थानों की अपेक्षा राजपताने में अधिक है। केवल पार्किलाजिकल सर्वे रिपोर्ट के सफे उलटने से ही पता चल जाता है कि जगह २, गांव २ में प्राचीन सभ्यता की झलके हैं । अगर लोगों में प्राचीन स्मारकों के खोज करने की रुचि भाजावे तो थोड़े ही समय में न जाने कितनी ऐतिहासिक सामग्री एकत्रित हो जावे और कितनी विवाद-ग्रस्त बातों का निर्णय हो जाय । कभी २ प्राचीन लेख की एक ही लकीर व प्राचीन मूर्ति के एक ही टुकड़े से बड़े २ महत्वपूर्ण प्रश्न हल हो जाते हैं। अव पाठकों को विदित हो गया होगा कि इन पुराने खंडहरों, टूटी फूटी भूर्तियों व अस्पष्ट अपरिचित लिपयों में लिखे हुए शिला लेखों आदि में कैसा रहस्य, कैसा ज्ञान का भंडार, कैसी गौरव और कीर्ति की कुंजियां छुपी हुई रहती हैं । अतः प्रत्येक समाज हितैषी,धर्म प्रेमी, इतिहास प्रेमी व देश प्रेमी का कर्तव्य है कि ऐसे स्मारकों का थोड़ा बहुत परिचय अवश्य रक्खें और अवसर पड़ने पर मूर्तियों पर के लेखों व उनकी प्राचीनता के चिह्न, व अन्य स्थानों पर के लेखों, पुरानी कारीगरी के नमूनों व मन्दिरों श्रादि के भग्रावशेषों पर For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ) विशेष ध्यान दें, उनके विषय में पूछ ताछ करें व उनकी सूचना समाचार-पत्रों को दें। समाज में ऐसी रुचि और उत्साह जागृत करने में, मेरा निश्चय है, यह ब्रह्मचारी जो की पुस्तक कार्यकारी होगी व ऐसी पुस्तकों की संख्या बढ़ाने में दूसरों को भी प्रोत्साहित करेगी। मेरो राय में अब समय आ गया है कि एक 'जैन रिसर्च सोसाइटी' अर्थात जैन-पुरातत्व शोधक समाज का संगठन किया जाना चाहिये, जिसके सदस्य धार्मिक, साहित्यसंबंधी, सामाजिक, व ऐतिहासिक प्राचीन बातों का विशेष रूप से शोध करें व इस संबन्ध की दूसरों द्वारा की हुई शोधों का सर्व साधारण में प्रचार करें। कुछ समय हुआ दि० जैन महासभा ने जैन इतिहास विभाग स्थापित किया था । उसमें सबसे अधिक उत्साह से कार्य बाबू बनारसीदास एम. ए. ने किया। उन्होंने जैन इतिहास सीरीज नं०१ की पुस्तक बड़े परिश्रम से तैयार की जिससे जैन धर्म की प्राचीनता के विषय पर बहुत प्रकाश पड़ा और कितने ही भ्रम दूर हुए । पर अब इस विभाग का कार्य बिलकुल मंद पड़ गया है । महासभा का कर्तव्य है कि वह इस सोसाइटी की फिर व्यवस्था करे । जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, अब तक की जैन स्मारकों की खोजों के विवरण अंग्रेजी-पत्रों में विखरे पड़े हैं। सोसाइटी का काम होगा कि वह उन्हें सिलसिले वार संग्रह रूप देशी भाषाओं में प्रकाशित करे व इसके लिये एक स्वतन्त्र मासिक, द्विमासिक For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या त्रैमासिक पत्र निकाले । अब तक गवेषणात्रों में जैनियों ने बहुत कम भाग लिया है पर अब ऐसी उदासीनता से कार्य नहीं चलेगा। जो खोज विदेशी विद्वानों द्वारा उनके हमारी विशेष २ बातों से अपरिचित और अनभिज्ञ होने के कारण सैकड़ों वर्षों में होती हैं वे ही हम यदि उनके समान उत्साह, प्रयत्न और युक्ति से काम ले तो महीनों व दिनों में कर सकते हैं। इस कार्य से ऐतिहासिक ज्ञान को वृद्धि, समाज की उन्नति और धर्म की प्रभावना होगी । इसलिये सब भाइयों को इसमें योग देना चाहिये। जिन्हें पूर्व पुण्य के उदय से लक्ष्मी प्राप्त है उनकी इस ओर रुचि जाना नितान्त आवश्यक है। इस विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ के कुछ शब्द उद्धृत करने योग्य हैं । वे लिखते हैं: “My desire is that members of the Jain commu nity and more specially the wealthy members with money to spare, should interest themselves in archaeological research and spend money on its prosecution with special reference to the history of their own religion and people. अर्थात् “मेरो अभिलाषा है कि जैन समाज के सदस्य, और विशेषतः धनी सदस्य, जिनके पास व्यय करने को द्रव्य है, पुरातत्त्वानुसन्धान में रुचि लेने लगे और विशेष रूप से अपने ही धर्म और समाज के इतिहास के संबंध में खोज कराने के लिये कुछ द्रव्य व्यय करें।" For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१ ) अन्त में जो अन्वेषक व लेखक प्राचीन स्मारकों के परिचय व विवरण लिखें उनके लिये उपयोगी सर विंसेन्ट स्मिथ के कुछ वाक्य उद्धत कर मैं इस भारी भूमिका को समाप्त करूंगा: "Much may be done by careful registration and description of the Jain monuments above ground which of course should be studied in connection with the Jain scriptures and the notices recorded by the Chinese pilgrims and other writers. In order to obtain satisfactory results the persons who undertake such registration and survey, should make intelligent use of existing maps, should clearly describe the topographical surroundings, should record accurate measurements and should make free use of photography. Such a survey even without the help of excavation, should throw much light upon the history of Jainism and specially on the story of the decline of the religion in wide regions where it once had crowds of adherents." अर्थात् 'पृथिवी तल पर बिखरे हुए जैन स्मारकों के सावधानता पूर्वक परिचय और विवरण लिखकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है । फिर जैन ग्रन्थों और चीनी यात्रियों For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) व अन्य लेखकों के वर्णनों के प्रकाश में इनका सूक्ष्म अध्ययन किया जाना चाहिये । जो लोग ऐसे परिचय लिखें व अन्वेपण करें उन्हें इस कार्य में अच्छी सफलता प्राप्त करने के लिये प्रचलित नक्शों का बुद्धि पूर्वक उपयोग करना चाहिये, हर एक स्थान के श्रास पास के समस्त चिन्हों का विशद वर्णन करना चाहिये, ठीक ठीक नाप लिखना चाहिये और फोटोग्राफी का खूब उपयोग करना चाहिये । ऐसे विवरण ( survey ) बिना खुदाई की सहायता के ही जैन धर्म के इतिहास पर और विशेष कर इस धर्म के उन क्षेत्रों में हास के इतिहास पर जहां कि किसी समय समूह के समूह लोग इस धर्म के अनुयायी थे, बहुत प्रकाश डालेंगे ।" ब्रह्मचारी जी जैन धार्मिक तत्वों का सर्वसाधारण में प्रचार करने के लिये जो सराहनीय उद्यम कर चुके हैं व कर रहे हैं वह सब जैनियों व जैन धर्म के प्रति सहानुभूति रखने वाले व्यक्तियों को विदित ही है। हमें बड़ी प्रसन्नता है कि अब वे जैन ऐतिहासिक तत्त्वों का हिन्दी में प्रचार करने में अग्रसर हुए हैं। हमे पूर्ण श्राशा है कि सब इतिहास प्रमी इस प्रकार के प्रयत्नों में उत्साह दिलावेंगे । इतिशम् For Private And Personal Use Only हीरालाल जैन Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयुक्त प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक १ - ज़िला गोरखपुर (गज़ेटियर छुपा सन् १६०६ ) इस जिले की चौहद्दी इस प्रकार है: - उत्तर में नेपाल का राज्य और हिमालय पर्वत का कुछ भाग, दक्षिण में बनारस जिला, पूर्व में सूबा विहार और पश्चिम में जिला फैजाबाद । जिले का क्षेत्रफल ४५९४ वर्गमील है । इस जिले के इतिहास में दिया हुआ है कि सन् ईस्वी से पहले १८४ संवत् में यहां सुंग वंशी राजा राज्य करते थे । पीछे गुप्तों ने राज्य किया था । ऐसा विदित होता है कि पहले लिच्छवि जाति ने विहार और गोरखपुर में राज्य किया था । उनके पास से यह जिला ईसा की चौथी शताब्दी For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । में गुप्त वंशी राजा चन्द्रगुप्त के हाथ में पाया । कुहाऊं का जो प्रसिद्ध शिलालेख है उससे प्रगट है कि सन् ४५० ईस्वी में इस प्रदेश में राजा स्कन्दगुप्त राज्य करते थे। ग्यारहवीं शताब्दी में यहां कलचुरी राजाओं की पाठवीं पीढ़ी चल रही थी। जिले के प्राचीन स्मारक । ( १ ) बरही-परगना हवेली, जिले से १३ मोल, गोरखपुर से रुद्रपुर की सड़क पर । बरही से पूर्व अनुमान दो मीलकी दूरी पर राजधानी, टेगिरी और उपधौली ग्रामों में मौर्य वंशी राजाओं के एक बड़े नगर के भग्नावशेष हैं । राप्ती नदी के ऊपर दीहघाट से गुर्रा नदी के तट तक बहुत से ईटों के टीले हैं और गुर्रा नदी के पूर्व एक बहुत बड़ा टीला है जिसको उपधौलिया डीह कहते हैं । यह टीला लगभग १ मील लम्बा और १६०० फुट चौड़ा है। इसमें ईटों के दो बड़े २ स्तूप हैं। इस उपधौलिया से ईशान दिशा में राजधानी है जहाँ एक और टीला है और इसके आगे केन्द्र के निकट एक बहुत बड़ा ईटों का घेरा है जो १६०० फुट और १३०० फुट है। (ये सब स्थान खुदाई के योग्य हैं। यहां जैन स्मारको के पाये जाने की संभावना है) For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोरखपुर। (२) भागलपुर-परगना सलेमपुर मझौली, गोरखपुर से आग्नेय दिशा में ५२ मील तथा तुरतीपुर रेलवे पुल से लगभग १ मील । यहां दसवीं शताब्दी का एक स्तम्भ है जो १८ फुट ऊंचा है । इसको सूर्यवंशी राजाओं ने बनवाया था। (३) देवरिया-बम्हनी ग्राम के पास कासिया सड़क पर ईशान दिशा में बहुत बड़े २ खंडित-स्थान हैं, जिनमें दो प्राचीन मन्दिरों की नींव के भाग हैं। (४) कुहाऊ-(Kahaum)-परगना सलेमपुर मझौली, तहसील देवरिया । गोरखपुर से दक्षिण-पूर्व ४६ मील व खुखुन्दो से दक्षिण मील । __ यह एक बहुत प्राचीन नगर रहा है। सलेमपुर स्टेशन से ५ मील पर है। यहां एक पाषाण-स्तम्म २४॥ फुट ऊंचा है। इसके ऊपर लोहे की कील है जिससे विदित होता है कि इसके ऊपर सिंह या दुसरा कोई चिह्न बना हुआ था । यह स्तम्भ नीचे चौखूटा, ऊपर को अठकोना और फिर सोलह-कोना होकर अंत में गोल है। तथा गुंबज नीचे घंटे के समान आकार का तथा ऊपर चौकोर है। हर एक ओर एक छोटा सा भाला है जिसमें जैन मूर्तियां अंकित हैं । नीचे के चौकोर भाग में पश्चिम तरफ श्रीपार्श्वनाथ तीथंकर की एक नग्न मूत्ति है। स्तम्भ के ऊपर एक शिलालेख है (इसको पूरी For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। नकल आगे दी है । जिसमें वर्णन है कि गुप्त संवत् १४१ में किसी 'मद्रः नाम के व्यक्ति ने पांच जैन मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई थी। इस स्तम्भ से उत्तर की ओर दो मंदिरों की ईंट की दिवालों के चिह्न हैं । इन दोनों में से किसी एक में वे पांच मूर्तियां रही होगी जिनका वर्णन इस लेख में है। ___ यह भी विदित होता है कि और दूसरे बहुत से मन्दिर भी इस स्तम्भ के चारों ओर बने रहे होंगे, क्योंकि इस टीले का आकार बहुत बड़ा है। स्तम्भ के लेख में इस स्थान का नाम ककुभ लिखा है और वर्तमान नाम ककुभ ग्राम या ककुभ बन का अपभ्रंश है। स्तम्भ पर के लेख की नकल ( उद्धृत ' एशियाटिक सोसाइटी जर्नल' सन् १८३८ जिल्द | पृष्ठ ३७, से) यस्योपस्थानभूमि नृपति-शत-शिरःपात-वातावधूता। गुप्तानां वंशजस्य प्रविसृतयशसस्तस्य सर्वोत्तमद्धेः । १ गुप्त संवत् सन् ३१६ ईस्वी में महाराज चन्द्रगुप्त के राज्य सिंहा. सनारोहण करने पर प्रचलित हुआ था ऐप्ता सिद्ध हुआ है। अतः लेख का समय ३१६+१४१४५० सन् ईस्वी में पड़ता है। २ लेख में जिन पांच मूर्तियों का उल्लेख है उसका तात्पर्य डा. भगवानलाल इन्द्र जो और डा. जीट की गय में इसी स्तम्भ पर खुदी हुई पांच तीर्थंकरों की मतियों से है। इनमें से एक (जिसका कि ऊपर वर्णन श्रा गया है )नीचे की चौकोर पीठिका के पश्चिम भाग के एक पाले में है और शेष चार ऊपर की गोल गुंबज के नीचे के चौकोर हिस्से के चारों भागों पर हैं । डा. इन्द्रनी इन्हें आदिनाथ, शान्तिमाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महावीर की अनुमान करते हैं ( देखो का .. इन्ही. खेख नं. १५) For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोरखपुर । राज्ये शक्रोपमस्य तितिप-शत-पतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्तः वर्षे त्रिंशदशैकोत्तरक-शत-तमे ज्येष्ठ मासे प्रपन्ने ख्यातेऽस्मिन् ग्राम-रत्ने ककुभ इति जनै स्साधु-संसर्ग-पूते पुत्रो यस्सोमिलस्य प्रचुर-गुण निधेमहिसोमो महार्थ:३ तत्सूनू रुद्र-सोमः पृथुलमतियशा व्याघ्ररत्य न्य संज्ञो’ मद्रस्तस्यात्मजो-भूद्विज-गुरु यतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः । पुण्य-स्कन्धं स चक्रे जगदिदमखिलं संसरद्वीक्ष्य भीतो श्रेयोथं भूतभूत्यै पथि नियमवतामहतामादिकर्तृण । पञ्चेदानस्थापयित्वा धरणिधरमयान्सभिखातस्ततोऽयम् । शैलस्तम्भः सुचारुर्गिरिवर-शिखरामोपमः कोर्ति कर्ता। इसका भावार्थ यह है: जिस राजा के रहने को पृथ्वी सैकड़ों राजाओं के मस्तकों के गिरने से लगी हुई हवा से पवित्र है (जिसका भाव यह होता है कि यहां सैकड़ों राजाओं ने राज्य किया है, अथवा यह भी हो सकता है कि सैकड़ों शत्रु राजाओं का जहां पतन हुआ है ) उस, गुप्तवंश में उत्पन्न, यशस्वो, सर्वोत्तम ऋद्धि का. इ. इन्डी. में डा.. ल्फीट. के पाठः१ शान्ते । . मासि । ३ महात्मा। ४ व्याघ्र इत्यन्य संज्ञो। ५ डा० फ्लीट ने पहली पंक्ति का यह अर्थ किया है:- जिस राजा की सभा भूमि सैकड़ों राजाओं के नत-स्तकों से उत्पन्न हुई वायु से हिल जाती है' इत्यादि । दि-जैन डायरेक्टरी में इसका भावार्थ यों किया गया है "जिनके दरबार का आंगन प्रणत सैकड़ों राजाओं के नत मस्तकों से वीजित होता है" । यह अर्थ ठीक प्रतीत होता है। For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । धारी इन्द्र समान, तथा सैकड़ों राजाओं के स्वामी, शान्तस्वरूप महाराज स्कन्दगुप्त के राज्य में तथा गुप्तों के १४१ संवत् में ज्येष्ठ मास पूर्ण में इस प्रसिद्ध, तथा साधुओं के संसर्ग से पवित्र, ककुभ नाम के ग्राम रत्न में अत्यन्त गुण सागर सामिल का पुत्र महाधनी भट्टिसोम तिसका पुत्र विस्तीर्ण यशवान् रुद्रसाम जिसका कि दूसरा नाम व्याघ्र रति था इनके पुत्र मद्र थे जो हर तरह ब्राह्मण, गुरु तथा यतियों में प्रीतिमान् थे। उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को चञ्चल समझ कर, संसार के भय से अपने कल्याण के लिये और अन्य प्राणियों के हित के लिये मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त कराने वाले आदिनाथ से लेकर पांच अरहंतों की पाषाण-प्रतिमायें स्थापित करा कर पुण्य-समुदाय को प्राप्त किया। तथा सुन्दर मेरु पर्वत के शिखर समान व यश को प्रगट करने वाले इस पाषाण स्तम्भ को भूमि में गड़वाया। । (नोट ) आदि कर्तन पंचेन्द्रान् का अर्थ हमारी समझ में यही पाया कि आदि से लेकर पांच तीर्थकरों की मूर्तियों को स्थापित कराया। १ डा० फ्लीट के पाठानुसार इसका नाम केवल · व्याघ्र' था। २ डा० लीट ने श्रादिकत' को अर्थ केवल तीर्थंकर' किया है व मर्तियों को श्रादिनाथ शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महोवीर की अनुमान की हैं। विदित नहीं कि मूर्तियों पर इन तीर्थंकरों के चिह्न हैं व नहीं। For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोरखपुर। वास्तव में यह एक बड़े मन्दिर का मान स्तम्भ है जैसा कि प्राचीन मन्दिरों में पाया जाता है। ऐसे मन्दिर मूडविद्री की तरफ हैं। ___इस लेख से यह अच्छी तरह प्रगट है कि ईस्वी सन् को चौथी व पांचवीं शताब्दी में मूर्ति पूजा अच्छी तरह से प्रचलित थी तथा दिगम्बर जैन धर्म के अनुयायी अनेक धनी गृहस्थ विशाल जिन भवनों की स्थापना कराते थे। हमारे किसी जैनी भाई को उचित है कि वे इस स्थान की यात्रा करें और निकटवर्ती जिन मंदिर का जीर्णोद्धार करावें तथा इस मानस्तम्भ की रक्षा का उपाय करें। (५) कासिया-परगना सिधुश्रा जाबना, तहसील पदरौन । देवरिया से २१ मील व गोरखपुर से ३४ मील । यहां चौद्धों के बहुत से प्राचीन स्मारक हैं। अनुसन्धान करने से सम्भव है कुछ जैन स्मारक भी मिल जावें। (६) खुखुन्दो-नूनखार स्टेशन से २ मील व गोरखपुर से दक्षिण पूर्व ३० मील । इसका प्राचीन नाम कांकड़ी नग्र व किष्किन्धापुर है । यह श्री पुष्पदन्त स्वामी, नवमें तीर्थकर की जन्मभूमि होने से जैनियों का अतिशय क्षेत्र है। यहां ३० टीले हैं जिन पर किसी समय जैनियों व हिन्दुओं के मन्दिर होने के चिह्न पाये जाते हैं । इधर उधर बहुत सी जैन मूर्तियां विराजित है । एक छोटा सा वर्तमान में बनवाया हुआ जैन मन्दिर भी है जिसमें श्री आदिनाथ की एक विशाल और For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। प्राचीन मूर्ति स्थापित है तथा श्री शान्तिनाथ पार्श्वनाथ और महावीरजी की भी मूर्तियां हैं। यहां महावीर स्वामी को युगवीर कहते हैं । एक पाषाण पर वृक्ष की छाया में माता पिता की गोद में खेलते हुए महावीर स्वामी का चित्र है ऐसा डा. फुहरर को रिपोर्ट से प्रगट हुअा है । यहां का सबसे बड़ा टीला १२० वर्गफुट और १८ फुट ऊंचा है। (७) पदरौन-कासिया से १२ मील और गोरखपुर से ४६ मील । यह एक बहुत प्राचीन स्थान है। सबसे बड़ा टीला २२० फुट चौड़ा, १२० फुट लम्बा व. १४ फुट ऊंचा है । इस टीले से उत्तर की तरफ एक प्राचीन खण्डित जैन मन्दिर है जिसमें बहुतसी पाषाण की खण्डित मूर्तियां विद्यमान हैं। यह मन्दिर अब हाथी भवानी का मन्दिर कहलाता है। परन्तु यथार्थ में मूर्ति भवानी देवी की नहीं है किन्तु एक जैन मूर्ति है। ___इस पुराने मन्दिर के पास एक नया मन्दिर हाल में बन. वाया गया है। कनिंघम साहब की मति अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम ' पावा ' है। (1) रुद्रपुर-परगना सिलहट तहसील हाट । १ देखो' कनिघम प्रारकिलाजिकल सर्वे रिपोर्ट, जिल्द पहली, तथा बुचानन 'पुर्वीय भारत ' जिल्द दूसरी। For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोरखपुर। - ___ यह एक प्राचीन स्थान है जिसका चीनी यात्रियों ने हंसक्षेत्र के नाम से उल्लेख किया है। यहां छटी शताब्दी में राजपूत वसिष्टसिंह अयोध्या से आये, उन्होंने नवीन काशी बसाई । विशेष प्राचीन स्थान सहनकोट या नाथनगर का किला है यह पौन मोल में है । नगर के उत्तर, इस किले के पूर्व तरफ दूधनाथ के नाम से एक प्राचीन मंदिर है। इसमें अंतिम जैन तीर्थकर श्री महावीर स्वामी की भी एक छोटी मूर्ति है। यहां टीले भी बहुत से हैं । (8) सोहनाग-सलेमपुर से दक्षिण पश्चिम ३ मील । यहां १८ एकड़ प्राचीन स्थान है। एक टीला १०० फुट चौड़ा व ५० फुट ऊंचा है। इसके ऊपर एक हिन्दू मंदिर है । कुछ बौद्धों की मूर्तियां हैं । यहां जांच होनी चाहिये । संभव है कि जैन मूर्तियां भी हों। नोट-भारतीय पुरातत्वविभाग को सन् १६०६-७ की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि श्रीयुत दयाराम जी सानो एम. ए. ने सन् १६०६ में इस प्रांत में यात्रा की थी, तब आपने देवरिया से दक्षिण-पश्चिम रुद्रपुर में गमन किया था। आप लिखते हैं कि यह कई शताब्दियों तक सतासी राज की राजधानी रहा है । दूधनाथ मंदिर के भीतर गौरीशंकर मंदिर में जैनियों के अंतिम जैन तीर्थकर श्री महावीर स्वामी की एक छोटी मूर्ति है। यहां के प्राचीन खंडहरों को छोटा और बड़ा सहन कोट कहते हैं। For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । कनिंघम सरवे रिपोर्ट नं० १ में विशेष यह है कि खुखुंदो में एक टोला १०० फुट वर्ग व १५ फुट ऊँचा है जहां खंडित जैन मूर्तियां हैं व एक आसन श्री शांतिनाथ जी का है। वर्तमान जैन मन्दिर के बाहर श्रीपार्श्वनाथ की नग्न मूर्ति है व एक पाषाण तीर्थंकर के जन्म व तप कल्याणक का है (नोट-ऐसे ही पाषाण बिहार के मान भूम जिले में मिलते हैं । यहां जो ३० टीले हैं वे सब ध्वंश मन्दिर हैं। १ देखो 'बंगाल बिहार उड़ीसा जैन स्मारक'। For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २-बस्ती ज़िला (गैजेटियर छपा सन् १६०७) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-इसके पूर्व गोरखपुर, पश्चिम गोंडा, दक्षिण घाघरा नदी, उत्तर नेपाल की हद्द । इसमें २७६५ वर्ग मील स्थान है। इसके इतिहास में यह वर्णन दिया हुआ है कि यहां कुशान, सुंग, अहिच्छत्र और अन्य प्राचीन राजाओं के सिक्के मिले हैं। प्राचीन ईटों के मकानों के भग्न-शेष अमोढ़ा, बखीरडीह, बराहछत्र, भिदा, भरी, कल्हेट, ग्वेरनीपुर, नगर, रामपुर, तथा वरई में मिलते हैं। नेपाली हद्द के निकट पीपरहवा कोट में एक स्तूप का पता लगा है जो सन् ई० से ४५० वर्ष पूर्व का है। यह बौद्धों २ इस स्तूप का पता सन् १८१८ ईस्वी में मि. पेपे साहब ने लगाया था। स्तूप के अन्दर से एक पत्थर का वहुत सुन्दर घट प्राप्त हुआ है जिसके अपर सखिल निधने बुधस मगवतो ' ऐसा लेख भी है। इससे स्पष्ट है कि उसमें बुद्धदेव की भस्म रक्षित की गई थी और यह स्तुप वुडदेव की मृत्यु के कुछ ही पश्चात निर्माण किया गया होगा। साथ ही इसमें से बहुत से सोने, चांदी, हीरा मोती जवाहर श्रादि के बहु मल्य श्राभूषण भी प्राप्त हुए जो उस प्राचीन काल के ऐश्वर्य और कारीगरी के परिचायक हैं। घट पर के लेख से सिद्ध है कि ईसा के पूर्व पांचवीं शताब्दि में लेखन करना भारत-वर्ष में सुप्रचलित थी। For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । के सम्बन्ध का है । गौतम बुद्ध का जन्मस्थान कपिलवस्तु इसी के निकट हो सकता है। यह प्रगट होता है कि यह स्तूप लुम्बिनी ग्राम में स्थापित किया गया था जहां बुद्ध पैदा हुए थे। कपिल वस्तु इससे दूर नहीं हो सकता। बर्डपुर स्टेट के पीपर हवा में प्राचीन बौद्धों के शेषांश है। १-भरी-परगना रसूलपुर, तहसील डोमरिया गंज । बस्ती नदी से पूर्व तीन मोल तथा वस्ती से ३० मील । यहां बहुत से प्राचीन मंदिरों के भाग हैं। एक टीला ४.० गज से ३५० गज है । यहां खुदाई की ज़रूरत है। २-नगर-तहसील वस्ती, बस्ती से ५ मील । यहां भी १ टीला है जो खुदने योग्य है । __ नोट-इस बस्ती जिले के भीतर खुदाई तथा जांच होने की ज़रूरत है। संभव है जैन चिन्ह मिल जावें। १ देखो जर्नल रायन एसि० सोसा० सन् १९०६ सफा १४६ २ लुम्बिनी ग्राम का अाधुनिक नाम • रुमिन्देयी है। यहां महाराज अशोक मौर्य का स्थापित कराया हुआ एक बहुत सुन्दर स्तम्भ है जिस पर के लेख से विदित हुआ है कि वह बुद्ध के जन्म-स्थान लुम्बिनि बन के स्मरणार्थं वहां खड़ा किया गया है। लेख में स्पष्ट उल्लेख है कि 'हिंद बुधे जाते ' अर्थात् बुद्ध यहां उत्पन्न हुए थे। For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३- गाज़ीपुर जिला ( गज़ेटियर छुपा सन् १६०६ ) इस जिले की चौहद्दी इस प्रकार है : - उत्तर-पश्चिम आज़मगढ़ की देव गांव और महमदावाद तहसील, उत्तर व उत्तर पूर्व रसरा और बलिया तहसील, दक्षिण पूर्व जिला शाहावाद । इसमें १३६२. वर्ग मील स्थान है । यहां सैदपुर से रिहर तक और श्रागे जौनपुर की सड़क तक बहुत से प्राचीन टीले हैं। जो खास सड़क गाज़ीपुर से बनारस को जाती है उसके कोने में बुधुपुर या ज़हूरगंज के झोपड़े हैं यहां से सैदपुर नगर को जाते हुए एक बड़ा टीला नदी के निकट पड़ता है। तथा इस सड़क के ठीक उत्तर में एक दूसरा टीला है । मिः करलाइल ने यहां प्राचीन काल के बहुत से शेषांश देखे हैं । इन टीलों के ऊपर प्राचीन मंदिर तथा मकान हैं। यहां एक पत्थर पाया गया था जिसके ऊपर लिखा था " क्रेरुलेन्द्रपुर - इसके सम्बन्ध में पूछने से इधर के निवासियों ने कहा कि इस ग्राम का यही प्राचीन नाम था । बौद्ध काल के पुराने सिक्के भी यहां निकले हैं। 99 ज़हूरगंज की पश्चिम सड़क के दक्षिण तरफ एक दूसरा बड़ा टीला है । यह रामतावक्क ग्राम में है । और इसके थोड़ा For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगे पश्चिम में जाकर श्ररिहर में सर्व पृथ्वी पत्थर के टुकड़ों से व्याप्त है । मासवान डीह का बहुत बड़ा टीला है जोकि ज़हूरगंज के उत्तर करीब १ मील में है । जब चीनी यात्री हुइनसांग यहां आया तब इस देश का नाम युधपतिपुर, युधरामपुर, तथा गुर्जुपतिपुर प्रसिद्ध था । गाज़ीपुर के प्राचीन स्थान । (१) औंरिहर - गाजीपुर से २६ मील। यहां बहुत पुराने खंडहर हैं । (२) वारा - तहसील जुमनिया । गहमर से ३ मील । यह एक प्राचीन स्थान है । प्राचीन नाम वीरपुर है। पश्चिम की तरफ करीब १ मील तक एक बड़ा टीला और बहुत से भन मकान दिखलाई पड़ते हैं । (३) भितरी - तहसील सैदपुर । गाज़ीपुर से २ मील । यह बहुत प्राचीन स्थान है। बहुत से टीले हैं। किले के भीतर एक पाषाण के ऊपर एक लाल पत्थर का प्रसिद्ध स्तंभ है । यह २८ || फुट ऊंचा है । इस स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें राजा स्कन्दगुप्त का वर्णन है, जो कुमारगुप्त के पीछे राजा हुए। इस स्तंभ के नीचे की तरफ़ खुदाई करने से कुछ बड़ी ईंटें मिली हैं देखो जर्नल एसियाटिक सोसाइटी बंगाल छठा भाग एक, और जर्नल बायल एसि० स० बम्बई जिल्द १० वीं सफा ५६ और १६ वीं सफा ३४६ For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाज़ीपुर। १५ जिन पर कुमारगुप्त का नाम लिखा हुआ है। सन् १८८५ में एक चांदी का पात्र इन्हीं खंडहरों के आस पास मिला था जिसमें इसी नाम के दूसरे राजा का लेख था तथा यहां समय समय पर बहुत से सिक्के भी खोदे गए हैं। (४) वीरपुर-वारा के सामने-गाजीपुर से २२ मील। तहसील मुहमदाबाद । यह बहुत ही प्राचीन स्थान है। यह चेत राजा टीकमदेव की राज्यधानी रहा है। पुराने सिक्के व पत्थर कोट में मिले हैं। (५) धनपुर-तहसील जमनिया । यह गाजीपुर से. १६ मील है। ग्राम के दक्षिण-पश्चिम एक पुराना कोट है। उत्तर-पूर्व आधी मील की दूरी पर एक बड़ा टीला और खंडहर हैं । ये दोनों स्थान तथा हिंगोटार में जो खंडहर हैं वे सब सूरियों के कहे जाते हैं। उन्हीं में एक राजा धन देव था जिसने यह स्थान बसाया था। यह वही धनदेवं है जिसके सिक्के मासवान में मिले हैं । यह सैदपुर के निकट है जिसका प्राचीन नाम धनवार था। (६) दिलदारनगर-जमनिया तहसील से ७ मील तथा गाजीपुर के दक्षिण १२ मील । स्टेशन और ग्राम के मध्य में एक बड़ा टीला है जिसको प्रखंड कहते हैं। ऐसा प्रसिद्ध है कि यह राजानल का स्थान है । तथा इसके पश्चिम एक बड़ा सरोवर है जिसका रानी सागर कहते हैं। यह राजा नल की रानी दमयन्ती के नाम से प्रसिद्ध है। For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - (७) नगसर-ई. आइ पार रेलवे की तारीघाट शाखा का एक स्टेशन । इसके पास मौजा नवाज राय है तथा उत्तर पूर्व एक ग्राम उद्धरनपुर है जहाँ बहुत बड़े टीले व खंडहर हैं। ये टोंगा ग्राम तक चले गए हैं । इनकी परीक्षा नहीं हुई है। (= सैदपुर-गाजीपुर से २४ मील । यहां बहुत प्राचीन नोट ---यद्यपि यहां जैनियों का कोई विशेष चिह्न नहीं दिया हुआ है तथापि यदि कोई जैन चिह्नों से विज्ञ पुरुष इन प्राचीन स्थानों की जांच करें तो बहुत से चिन्ह जैन सम्बन्धी मिलना संभव है। mado For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४-सुलतानपुर जिला __ (गजेटियर छपा १९०३) इसकी चौहही इस प्रकार है:-उत्तर में फैजाबाद, दक्षिण में परतापगढ़, उत्तर पश्चिम बाराबंकी, पश्चिम में रायबरेली, पूर्व में जौनपुर और श्राजमगढ़ जिले । इसमें १७१३ वर्ग मील स्थान है। सुलतानपुर के पश्चिम १० मील बहुत से ग्राम हैं जैसे भौती, नरहई, धमौर, सम्भर, व सनिचरा, जहां बहुत सी खंडित ब्राह्मण देवताओं की मूर्तियां मिलती हैं । तथा मुसाफिर खाना में बहुत से इंटों के मन्दिरों का समुदाय है जिनकी बनावट से वे अपने को १० वीं शताब्दी का प्रगट करते हैं। (१) धोपाप-परगना चंदा, तहसील कादीपुर । गोमती नदी के दक्षिण, सुलतानपुर से दक्षिण-पूर्व १८ मील । यहां प्राचीन नगर व दो किलों के खंडहर हैं। प्राचीन सिक्के कुशान, बौद्ध, सूरी तथा पठान बादशाहो के मिलते हैं। एक किले का नाम गढ़ था। नोट-यहां भी जांच करने से कुछ जैन-स्मारक मिल सकते हैं। For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । (२) पटना — ग्राम, परगना श्रलदेमन । गोमती नदी के किनारे बहुत बड़ा खेड़ा है जिसमें से दो मूर्तियां श्री आदिनाथ जैनियों के प्रथम तीर्थंकर की सन् १८५० में खोद कर निकाली गई थीं । इनमें बहुत कारीगरी है । ये मूर्तिये अब फैजाबाद के स्थानीय अजायबघर में हैं । I १ ( रिपोर्ट डा० फुहरर ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 95 For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५-परतापगढ़ ज़िला (गजेटियर छपा १६०४) इसकी चौहही इस प्रकार है:-उत्तर में जिला सुलतानपुर, पश्चिम में जिला रायबरेली, पूर्व में गोमती नदी, दक्षिण में ज़िला जौनपुर। इसमें १४४० वर्गमील स्थान है। (१) बिहार-तहसील कुन्दा । कुन्दा से ७ मील तथा बेला से २६ मील । यहां बहुत से ग्राम हैं, जैसे रामदास पट्टी, देवबार पट्टी, टाकी पट्टी जहां बहुत से खंडहर व टीले हैं । रामदास पट्टी के पूर्व जो टीला है उसको तुसारन कहते हैं यह सात एकड़ लम्बा व १५ फुट ऊंचा है। दूसरा १ टीला १० फुट ऊंचा तथा तीसरा २० फुट ऊंचा है। (२) परसरामपुर तहसील पट्टी-दांदूपुर स्टेशन से २ मील । यहां निकट में एक ऊंचा खेड़ा है, जिस पर बहुत सी खंडित पत्थर की मूर्तियां व टूटी हुई इंटें हैं जो प्राचीन मन्दिरों के खंड हैं (३) रंकी परगना अटेही तहसील परतापगढ़ अटेही से ४ मील दक्षिण पश्चिम बहुत बड़े खंडहर हैं। खाई सहित एक इंटों का किला है। यह निःसन्देह बहुत ही प्राचीन स्थान है । इन्डो-वैकटीरिया के बहुत से सिक्के इन For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । खंडहरों के बीच में मिले हैं। यहां कहावत है कि यह रंकी राजा भरथरी का स्थान था जो विक्रमादित्य के बड़े भाई थे । इस स्थान की खुदाई होनी चाहिये । नोट-यहां भी खोज करने से कुछ जैन चिह्न मिल सकते हैं। For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६-बलिया ज़िला ( गजेटियर छपा १९०७) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है दक्षिण में नदी घाघरा व जिला गाज़ीपुर, पश्चिम में सरजू नदी, उत्तर में जिला श्राज़मगढ़, पूर्व में शाहाबाद । इसमें १२४० वर्गमील स्थान है।। __बलिया बहुत प्राचीन काल से बसा हुआ था । तुरतीपुर के पास रखैराडीह में बहुत से खंडहर हैं जहां कुशान समय के सिक्के मिले हैं। (१) लखनेश्वर परगना-एक बहुत प्राचीन स्थान है। सरजू नदी के बाईं तरफ एक पुराने नगर के शेषांश हैं। (२) नरायनपुर-परगना गढ़--करन्ताडीह के पश्चिम २ मील । बलिया से गाजीपुर जाती हुई खास सड़क पर । यह बहुत प्राचीन स्थान है । पुराने सिके मिले हैं। (३) रसरा-बलिया से उत्तर पश्चिम २१ मील । पुराने खंडहर हैं । नाथ बाबा का मंदिर व दूसरे मन्दिर हैं। (४) सिकन्दरपुर-घाघरा नदी से दाहिनी तरफ ३ मोल, और बांसडीह १४ मील। यह प्राचीन नगर है। निःसंदेह यहां बहुत प्राचीनता है। पूर्व में ४ मील खरीद तक बहुत बड़े बड़े खंडहर हैं। For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७-बनारस ज़िला ( गजेटियर छपा सन् १६०६) इसका चौहद्दी इस प्रकार है:- उत्तर और उत्तर-पश्चिम जौनपर ज़िला, पूर्व और उत्तर-पूर्व गाजीपुर, दक्षिण में मिरज़ापुर, दक्षिण-पूर्व शाहाबाद। इसमें १००८ वर्ग मील स्थान है। (१) अजगर-परगना कटेहर, तहसील बनारस । बनारस से १४ मील चांदवक की सड़क पर । इसका प्राधा गांव उस श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर का है जो पाटनीतला मुहल्ला में भोसलाघाट के पास है। (२) रामगढ़-परगना बराह, तहसील चन्दौली। बनारस से १८ मील । यह एक बहुत प्राचीन स्थान है । इसके दक्षिण पूर्व वैरीट ग्राम है जहां प्राचीन किला है। बहुत से टीले हैं जिनकी जांच होनी चाहिये । यहां ऐसी इंटे मिली हैं जिन पर गुप्त समय के अक्षर हैं। नोट-यहां जांच होने से कुछ प्राचीन जैन चिन्ह मिल सकते हैं। गजेटियर में इतना ही कथन ध्यान के योग्य था। बनारस खास में भदैनी घाट पर श्री सुपाश्वनाथ सातवें तीर्थकर का जन्मस्थान है, जहां दो दि० जैन व एक For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनारस । ૨૨ श्वे. जैन मंदिर है। तथा भेलपुरा में श्री पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थकर का जन्म स्थान है। वहां पर दो दि० जैन मंदिर हैं एक दिग० श्वे० मिश्र मंदिर है। पीछे के दि० जैन मंदिर में कई प्राचीन पाषाण की दि० जैन मूर्तिये हैं । कई पर संवत् भी नहीं है। इन से प्रगट होता है कि यहां पहले एक बड़ा दि० जैन मंदिर रहा होगा। बनारस से ५ मील के करीब सिंहपुरी है जहां श्री श्रेयांशनाथ ग्याहरवे तीर्थंकर का जन्म हुआ था। यहां भी दि० जैन मंदिर बना है। वहां खुदाई करने से जो बौद्ध प्रतिमाएं निकली हैं उनमें एक दो जैन मूर्तियां भी हैं जिनसे यहां प्राचीन मंदिरजी का होना सिद्ध है। बनारस से १०-१५ मील गंगाजी के तट पर चंद्रपुरी में श्रीचंद्र प्रभु पाठवें तीर्थकर का जन्मस्थान है यहां भी दि० जैन मंदिर है । डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ__ (३ मधुवन-परगना नाथूपुर तहसील सगरी । आजमगढ़ से उत्तर पूर्व ३२ मील । एक खेत में एक ताम्रपत्र मिला है जो गुप्त समय की लिपि में है। इसमें लिखा है कि स्थानेश्वर ( थानेश्वर ) के राजा हर्षवर्धन ने अपने पिता प्रभाकर वर्धन, माता यशोमति देवी, ब भाई रामवर्धन के सम्मान में मागसर बदी ६ सं. २४ हर्ष, व सन् ६३१ में एक ग्राम दो ब्राह्मणों को दिया। For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । वाणभट्ट लिखते है कि नरवर्धन तथा बज्रिणी देवी से राज्य बर्धन प्रथम हुए । उनकी स्त्री अप्सरा देवी पुत्र आदित्य वर्धन उनकी स्त्री महासेनगुप्ता देवी, पुत्र प्रभाकरवर्धन उनकी स्त्री यशोमति पुत्र एक राज्यवर्धन नं० २ व दूसरा हर्ष हुए । यह ताम्रपत्र लखनऊ अजायब घर में है। For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८-अलाहाबाद जिला (गजेटियर छपा १६११) । इस की चौहदी इस प्रकार है:- उत्तर में गंगा, पूर्व और दक्षिण-पूर्व जिला मिरज़ापुर, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम रीवां राज्य,पश्चिम में जिला बांदा और फतहपुर । इसमें २८५१ वर्ग मील स्थान है। ... (१) देवरिया-अलाहाबाद से दक्षिण पश्चिम ११ मील । देवरिया और भीता दोनों में बहुत से पुरातन खंडित स्थान है। यह एक प्राचीन नगर था । कनिग्घम साहब ने इस स्थान को वीतभाया पहन के नाम से पहचाना है । जैनियों के वीर चरित्र में इस स्थान का वर्णन है कि यहां जादो वंश के राजा उदयन रहते थे जो जैन धर्म पालते थे। उन्होंने श्री महावीर रवामी की एक प्रसिद्ध मृति का निर्माण कराया था जिस मूर्ति को लेने के लिये उज्जैन के राजा और उदयन से एक बड़ा युद्ध हुआ था। यहां बहुत से टीले खुदाने योग्य हैं नोट-'दि वीर चरित्र' में वर्णन नहीं मिला। (२) भंसी-अलाहाबाद किले के बिलकुल सामने है। यहां परिहार के राजाओं की पुरानी राजधानी थी इसको प्रतिछान कहते थे। यहां त्रिलोचन पाल का एक ताम्रपत्र मिला है। For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। नोट--यहां जैन चिन्ह ढूंढना चाहिये। (३) कोसाम-यह मझानपुर से दक्षिण १२ मील है। यह जगह प्राचीन स्मारकों से पूर्ण है । दि० जैनियों के मंदिर हैं। दि० जैन लोग पूजा के लिये जाते रहते है । यहां पोसा नाम की पहाड़ी है जो कोसाम से पश्चिम ३ मील है। यहां एक स्तंभ और एक जैन मंदिर है। यहां श्रास पास खेतों में बहुत सी जैन मूर्तियां व कारीगरी की चीजें मिलती हैं जिससे सिद्ध है कि इस स्थान से जैनियों का प्राचीन सम्बन्ध था। ___ अरकिलाजिकल सरवे रिपोर्ट सन् १९१३-१४ से नीचे लिखा हाल मिला है -सफा २६२ कोसाम के कुछ स्मारक-यह कौशाम्बी का प्राचीन नगर है । अलाहाबाद से दक्षिण पश्चिम ३१ मील है। यह जैनियों की प्रसिद्ध पवित्र जगह है। वर्षात में यहां बहुत संख्या में हर जगह प्राचीन. सिके आदि मिलते हैं। सन् १६०८ में बसु महाशय ने बहुत से प्राचीन स्मारक संग्रह किये थे जिनमें मुख्य एक बहुत प्राचीन से प्राचीन शिला लेख है और प्राय पट्ट का एक सुन्दर नमूना है तथा एक जैन मूर्ति का मस्तक है । ( देखा पभोप्सा की गुफा के श्रापाढ़ सेन और वहसतिमित्र के लेख जिनका सम्पादन डाक्टर फुहरर ने किया है। एपिनोफिया इंडिका जिल्द दो सफा २४०-२४१)। For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलाहाबाद | चाय पट्ट का जो पाषाण है उसमें लेख है । इस पाषाण के मध्य में आठ पत्र का पूर्ण प्रफुल्लित कमल है जिसके चारों तरफ चार रत्नत्रय के चिन्ह उसी प्रकार के हैं जैसे कि कुशान समय के मथुरा के पाषाणों में हैं । २७ आय पट्ट का लेख १ - सिद्धम् राज्ञो शिवमित्रस्य संवच्छर १०, २... खम... ह. ए. कि. य । २-- थविरस बलदासस निवर्तन सा. ए, शिवनदिस अं बासिस... ३ - - शिव पालितन आयपटो थपयति अरहत पूजाए ॥ इसका भाव यह है कि सिद्ध हो कि राजा शिव मित्र के बारहवें सम्बत में शिवनंदि की स्त्री शिष्या (आर्यिका ) बड़ी स्थविरा बलदासा के कहने से शिवपालित नेतों की पूजा के लिये यह आय पट्ट स्थापित किया । इस लेख के अक्षर प्राचीन कुशान समय के हैं- व भाषा 'स्कृत प्राकृत मिश्र है । कनिंघम सर जिल्द १ में विशेष यह है कि यहां राजा उदयन सन् ई० पूर्व ५5० से ५४० तक राज्य करता था । यह उदयन वत्स देश कोशाम्बी के राजा सतनिक का पुत्र था - इसको बत्सराज भी कहते थे । यहां बड़े किले 'की दीवार घेरे में २३१०० फुट I For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । एपिकिया इंडिका जिल्द दूसरी में जो कोसाम की गुफा का लेख दिया है वह यह है : W गुफा के बाहर का लेख Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ - राज्ञो गोपाली पुत्रस २ वह सति मित्रस ३ मातुलेन गोपालीया ४ वैहिदरी पुत्रेन (आसा) ५ आसाढ़ सेनेन लेन ६ कारितं ( उदाकस ) दस ७ भे सवच्छरे काश्पीया नं श्रहं । = ( ता ) नं । भावार्थ- काश्यपी अरहतों के संवत्सर १० में आषाढ़ सेन ने गुफा बनवाई। यह गोपाली और वैहिदरी का पुत्र था व गोपाली के पुत्र वहसतिमित्र राजा का मामा था । यह काश्यपी गोत्र श्री महाबीर स्वामी का था । इसी वंश के राज्य में यह बनी- 'के भीतर का लेख यह है गुफा १- अहिछताया राज्ञो शोनकायन पुत्रस्य वंगपालस्य २ -- पुत्रस्य राज्ञी तेवणी पुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण ३ - वैहिदरी पुत्रेण आषाढ़ सेनेन कारितं - भावार्थ - अहिछत्र के राजा शोनकायन के पुत्र वंगपाल उसकी रानी त्रिवेणी उनके पुत्र भागवत उसके स्त्री वैहिदरी उसके पुत्र आषाढ़ सेनने बनवाई। इन दोनों लेखों से स्पष्ट यह झलकता है कि ये दोनों लेख ईस्वी से एक व दो शताब्दी पहले के हैं । For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलाहाबाद। शोनकायन वंगपाल विवाहा गया-त्रिवेणी को भागवत विवाहा गया-गोपाली वैहिदरी को गोपाली आपाढ़ सेन वहसतिमित्र नोट-दिगम्बर श्रेणिक चरित्र से मालूम हुआ कि श्री महावीर भगवान के समय कौशाम्बी में राजा जशपाल या चंद्र प्रद्योत राज्य करते थे-राजा उदयन उन्हीं का नाम होगा या यह चंद्र प्रद्योत का पुत्र होगा। यह राजा जैनी था। For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ह - फतहपुर ( गज़ेटियर छुपा १६०६ ) ही इस प्रकार है: - इस जिले की उत्तर पश्चिम में कानपुर, दक्षिण-पूर्व में अलाहाबाद: उत्तर मैं रायबरेली, उन्नाव: दक्षिण में बांदा। इसमें १६४० वर्ग मील स्थान है । यहां के इतिहास में लिखा हैं कि असोथर और बहुत से स्थानों पर जैन प्राचीन स्मारक हैं। असनी में एक लेख सहित स्तंभ है जिसमें कन्नौज के राजा महीपाल का नाम है जिसका सम्बत ६७४ व सन् ई० ६६७ है । असनी गंगाजी पर-फतहपुर से ११ मील । यह एक बहुत ही प्राचीन स्थान है । नोट- शायद यहां जैन चिह्न मिलें जांच करनी चाहिये । (१) असोथर - तहसील गाज़ीपुर, फतहपुर से १८ व गाजीपुर से मील | किले के दक्षिण कुछ फरलांग जाकर कुछ आगे एक छोटे टीले पर पांच बड़ी पाषाण की नग्न मूर्तियां हैं जिनको यहां के लोग पांच पांडव कहते हैं परंतु ये निःसन्देह दि० जैन मूर्तियां हैं। असोथर और गाज़ीपुर के बीच आधी दूर सरकी में इसी प्राचीन समय के एक प्राचीन मन्दिर के खंड सन् १८७६ में पाए गए थे । For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फतहपुर । - (२) औंग-परगना बिंदकी,तहसील खजुहा। बिंदकी रोड स्टेशन से २॥ मील पश्चिम, तथा फतहपुर से २४ मील । असकपुर में और अभयपुर ग्राम के आस पास कुछ बौद्ध और जैन प्राचीन चिह्न दिखलाई पड़ते हैं। (३) औरई-परगना हसवा, तहसील फतहपुर । बहरामपुर स्टेशन से २ मील दक्षिण टिकसरिया ग्राम में एक बहुत बड़ा टीला है। यह एक प्राचीन स्थान है। बहुत से प्राचीन पाषाण हैं । नोट-यहां जैन चिह्न सम्भवतः मिले, जांच होनी चाहिये। (४) पायाह-परगना अायाह, त० गाजीपुर । गाजीपुर से १० मील । एक पुराना किला है। इस किले के दक्षिण एक पुराना टीला है तथा गांव में बहुत प्राचीन पाषाण की मूर्तियां व स्तम्भ हैं जैसी कि असोथर, सताई व अन्य स्थानों पर पाई जाती हैं । नोट-यहां भी जांच होनी चाहिये। (५) भिटौरा-तहसील फतहपुर । फतहपुर से = मील । यह ग्राम बहुत ही प्राचीन है। यहां नदी तट पर एक बड़ी भारी मूर्ति है । नोट-जांच होनी चाहिये। (६)दीघ-परगना कुटिया गुनीर, तहसील खजुहा, बिंदकी से ६ मील व फतहपुर से १३ मील । मुख्य स्थान के दक्षिण पूर्व एक पुराना टीला है तथा इसके उत्तर एक सरोवर है जिसके कोने में एक चबूतरा है जिस पर बहुत सी जैन और बौद्ध मूर्तियों के खंड हैं। For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - (७) नौबस्ता-परगना हथगांव-तहसील खागा बहुत से टीले हैं जिनपर ईंटें फैली पड़ी है इन टीलों पर बहुत से पाषाण प्राचीन काल के जमा हैं । कुछ फतहपुर के टाउनहाल के बाग में लाए गए हैं। नोट--इनमें भी देखने की जरूरत है कि कहां २ जैन चिह्न हैं। (E) रेन-परगना मुत्तौर तहसील गाजीपुर । गाजीपुर से १४ तथा फतहपर से १८ मील । यह जमना नदी के तट पर है । पूर्व को डेढ़ मील जाकर बिंदको से बांदा जाने वाली सड़क पर कीर्तिखेड़ा नाम का एक बड़ा उपयोगी खेड़ा है। यह बड़ी प्राचीन जगह है । रेन से कीर्तिखेड़ा तक पुराने नगर के खंडहर फैले हुए हैं। बांदा की तरफ प्राचीन वस्ती के बहुत से चिह्न है तथा नगर में मुख्य द्वार अब तक मौजूद हैं । बहुत सी इंटें व टीले हैं तथा पत्थर के खंड हैं। इनको इकट्ठा किया गया तो कुछ पाषाणों में जैनमूर्तियां पाई गई और शिल्पकला को प्रदर्शन करनेवाले बहुत से खंड भी मिले । दशवीं शताब्दी का बना एक मन्दिर कोर्ति खेड़ा में है वहां कुछ खुदे हुए पत्थर है । कुछ सड़क के सामने थवई के मन्दिर में रक्खे हैं। ऐसे १२ नमूने फतहपुर के टाउनहाल में भी लाए गए हैं। यहां यह बात प्रसिद्ध है कि यह रेन का स्थान जैनियों के हाथ में था। उनके शत्रु एक राजा का किला वेनुसी पर था जो पूर्व में ५ मोल है। राजवायस For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फतहपुर । ने जैनियों को हटाकर १७वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अपना अधिकार कर लिया । ३३ (६) सतोन- परगना हसवा, तहसील फतहपुर फतहपुर से १५ मीऩ । बहरामपुर स्टेशन से नरायना की सड़क पर है । यह ग्राम एक बड़े टीले पर है जिससे इसकी प्राचीनता समझी जाती है। ग्राम के दक्षिण बैलगाड़ी से पुर की दरफ २ मील श्राकर बड़ी नदी के बांए तट पर बहुआधला सड़क के निकट एक छोटे मन्दिर के खंड हैं जिसको जखवलेव कहते हैंइसके द्वार पर जो लेख है उसमें जयादित्य के पुत्र दुर्गादित्य का प्रभाव वर्णित है। यहां के पाषाणों की शिल्पकला असोथर के समान है । ऐसे ही खंड औरई और में पुर भी पाये जाते हैं । पुर एक बहुत ही पुरानी जगह है। खास टीला बड़ी नदी के पास है जिस पर टूटी हुई ईंटें हैं। उसके ऊपर हाल का बना एक मन्दिर है । बगल में पत्थर है जिस पर नृत्यकारिणी व जैन या बौद्ध सम्बन्धी पशु बने हैं। मन्दिर के सामने व कुछ दूर पूर्व ऐसे ही पत्थर जमा हैं । इस टीले और पुरी ग्राम के मध्य में एक पुराना ऊजड़ क़िला है जो असोथर वंश का है इसको खीचर गढ़ी कहते हैं नोट - असोथर में जैन मूर्तियां मिलती हैं इससे यह किला जैन राजाओं का हो सकता है । For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०-बांदा (गज़टियर छपा १६०६) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-उत्तर में जमना नदी, पूर्व में अलाहाबाद जिला, दक्षिण में रीवां राज्य, पश्चिम में केन नदी व हमीरपुर ज़िला। इसमें ३०६० वर्गमील स्थान है। इतिहास-यहां एक प्रसिद्ध पहाड़ी कालिंजर नाम की है जो बुंदेलखंड में मुख्य स्थान रखती है। अशोक को मृत्यु तक बांदा मौर्य राज्य में शामिल था । उसके पीछे संग वंश के स्थापक पुष्य मित्र ने उसे अपने आधीन किया। फिर कलचुरी वंशी राजा ने वहां चेदी राज्य स्थापित किया । उसने इस कालिंजर को हस्तगत किया। राजा समुद्रगप्त ने इसे सन् ३२६ और ३३६ के बीच में जीत लिया। चंद्रगुप्त द्वि० के लेख गढ़वा (अलाहाबाद) में बहुत मिले हैं । कौशाम्बी या जमना का तट गुप्तवंश के स्मारकों से भरा है। दो छोटे शिला लेख मिले हैं इनमें जो पूर्व का है वह कालिंजर में मिला था। यह गुप्त काल के अक्षरों में है । यह जिला सन् ५२५ ई० में गुप्ता के हाथ में था। फिर सन् ६४८४६ में हर्षवर्धन के राज्य में शामिल हो गया । चीनी यात्री For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांदा। ३५ कहता है कि यह स्थान चिचितो कहलाता था तथा इस जिले की राजधानी खजराहा थी जो महोवा से दक्षिण पूर्व ३४ मील है। नौमी सदी में यहां चंदेलों का बल हुआ। इनका प्रथम राजा नानकदेव था जो खजराहा में करीब ८२५ ई. के राज्य करता था। इससे पाठवां राजा धंगराज था जैसा कि ५४ ई० के शिला लेख से प्रगट है। इनमें एक प्रसिद्ध राजा परमाल या परमर्द्धिदेव हो गया है। इनके यहां प्रसिद्ध आह्ला ऊदल नौकर थे जिन्होंने पृथ्वीराज के साथ युद्ध किया जब कि उसने सन् ११८२ में हमला किया था। राजा परमाल हार गया । यह बात उस लेख से प्रगट है जो ललितपुर के मदनपुर में मिला है। चंदेलों के पीछे बघेलों ने राज्य किया। वे गुजरात से व्याघ्रदेव के आधिपत्य में आए थे। (१) बड़ा कटरा-तहसील मऊ । मऊ से पूर्व = मील । इसके दक्षिण अाध मील जाकर देवड नाम की घाटी है जिसमें चारों तरफ चंदेलों के समय की खुदाई है और बहुत से लेख हैं । इस पहाड़ी के सामने दो बड़ी गुफाएं हैं। - नोट-इनकी जांच होनी चाहिये-शायद जैन चिह्न मिले। . (२) कालिंजर-यह एक पहाड़ी किला है। बांदा से ३५ मील, नगोद को जानेवाली पुरानी सड़क पर । अतारा रेलवे स्टेशनसे २४ मील है। इसको तरहटी और कटरा कहते हैं। यह पहाड़ी १२३० फुट ऊंची है । इस पहाड़ी के ऊपर जाते हुए For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । सात द्वार हैं। इस पर एक सिद्ध की गुफा है जिस पर दो पाषाण लेख सहित पाए गए हैंजिनमें एक राजा और उसके पुत्र जतितधि का वर्णन है । एक चट्टान से जो भैरों की झिरिया कहलाती है, २० फुट ऊपर एक बड़ी नग्न मूर्ति भैरों की है जिसके पास जाने के लिये ढालू चट्टाने लांघनी पड़ती हैं । इस मूर्ति को भिंदके या भिरके भैरों कहते हैं। इस मूर्ति के नीचे सन् १४३२ लिखा है परंतु दाहनी तरफ एक छोटी सी पूजक की मूर्ति है जिस पर संवत ११६४ या सन् ११३७ है। यह मूर्ति = या 8 फुट ऊंची है नोट-यह अवश्य जैन मूर्ति होनी चाहिये । प्रायः अजैन लोग जैन मूर्ति को भैरों आदि के नाम से पूजने लगते हैं। यहां जांच होनी चाहिये। (३) सिमन्नी-तहसील बबेरू । बांदा से १८ मील । यह दीक्षित राजाओं की जगह थी। (४) तरहुवान-तहसील करवी। यह बहुत प्राचीन जगह है। यहां दालमपुर नामका नगर था। कोई कहते हैं यहां तिच्छोकपुर था। कनिंघम साहब की सर्वे रिपोर्ट जिल्द इकीसवीं से नीचे लिखा हाल और मिला है: अजयगढ़ का किला-कालंजर से दक्षिण पश्चिम १ ( देखो जर्नल एसिया-सो-बंगाल जिल्द सत्तरहवीं सफा ३२१ )। For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांदा। ३७ दक्षिण पश्चिम ६० सड़क से २० मील ( अलाहाबाद से मील व रीवां से उत्तर पश्चिम ६० मील ) - यह विन्ध्य पर्वतों के ऊंचे शिखर पर हैं- कियान या केन नदी से जो ८ मील दूर है, दिखाई पड़ता है । यह किला ७०० या ८०० फुट ऊंचा है। अजयपाल ने इसे स्थापित किया था । तरहौनी द्वार की चट्टान में एक लम्बा लेख है जो ७ फुट से २० फुट ४ इंच है। इस में चंदेल राजा के बहुत से नाम हैं जो कीर्तिवर्मा से शुरू होकर मोडावर्मा तक समाप्त होते हैं। यहां बहुत सी जैन मूर्तियां पद्मासन अंकित हैं । यह लेख १५ लाइन का है । जिसका भाव यह है "चंद्रवंश में राजा कीर्तिवर्मा उसके पुत्र सुलक्षणवर्मा - जिसने मालवा जीता इसके पुत्र जयवर्मा - उसके पुत्र पृथ्वीवर्मा, उसके पुत्र मदनवर्मा उसके पुत्र त्रैलोक्य वर्मा उसके दो पुत्र यशोवर्मा और वीरवर्मा । वीर वर्मा राजा ने राजा गोविंद की कन्या व्याही | लेख वि० स० १३१२ वैशाष बदी १३ का है । इससे इन राजाओं का जैन धर्मी होना मालुम पड़ता है क्योंकि लेख के पास जैन मूर्तियां अंकित हैं । डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ: (५) मोरफा पहाड़ी का किला - तहसील बदौसा से म मील। बांदा से दक्षिण पूर्व ३८ मील । किले के भीतर तीन भग्न जैन मन्दिर हैं उनमें एक लम्बा लेख ३ लाइन का है जिसमें संवत् १४०४ में सिद्धितुङ्ग का राज्य व किले का नाम For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - माधर्प दिया है। दो छोटे लेखों में मूल संघ का वर्णन है व क्रमशः सं० १४०७ और १४०८ अंकित है। (६) रामनगर-तहसील माऊ से १० मील । बांदा से ६१ मील रामनगर से पश्चिम ५॥ मील सड़क के उत्तर एक बड़ी गुफा है जिसको वाल्मीकि की गुफा कहते हैं-ऊंची पहाड़ी पर है। इस गुफा के भीतर कई लेख सहित जैन और ब्राह्मणों की मूर्तियां १५ वीं शताब्दी की हैं। जर्नल एसि० सो० बंगाल जिल्द १७ से नीचे का हाल विदित हुआ: कालिंजर को रविचित्र भी कहते हैं । यह ७०० या ८०० फुट ऊंची है। (७) अजयगढ़ का किला-कालिंजर से १६ मील । दूसरे द्वार की बाईं तरफ एक तीर्थ है जिसको गङ्गा जमना कहते हैं । मार्ग के सामने की तरफ एक चौखंटे मकान की दीवाले हैं जिनपर पहले छत व शिखर रहा होगा। इसके भीतर एक तरफ ३ बड़ी नग्न मूर्तिये पार्श्वनाथजी की हैं और दो ऐसी ही छोटी हैं । मध्य की मूर्ति १२ फुट ऊंची व दो बगल की छः छः फुट ऊंची है । बाहर भी नग्न पद्मासन मूर्तियां श्री पार्श्वनाथ जी की हैं। For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११-हमीरपुर (गजेटियर छपा १६०६) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम और उत्तर पश्चिम जिला झांसी और जालौन, उत्तर में जमना, पूर्व में केन नदी, और दक्षिण-पूर्व चरखारी और छतरपुर राज्य । इसमें २२६३ वर्गमील स्थान है। (१) महावा-झांसी माणिकपुर लाइन के महोवा रेलवे स्टेशन से पश्चिम-उत्तर २ मील । इसका प्राचीन नाम काकपुर, पाटनपुर तथा महोत्सव है। इसका संस्थापक चंदेल राजा चन्द्रवर्मा था जो सन् ८०० ई० में हुआ है। सन् ६०० ई० के अनुमान चंदेलों की राजधानी खजराहा से महोवा में स्थापित हुई थी। चंदेल वंश में कीर्तिवर्मा और मदनवर्मा दो मुख्य राजा थे। यहां जो झीलें हैं उनमें इनका नाम प्रसिद्ध है। यहां बहुत से हिन्दू और मुसल्मानों के स्मारक नगर में हैं तथा इधर उधर बहुत सी जैन मूर्तियां छितरी हुई हैं। जिससे प्रगट है कि यहां पहले बहुत से जैन मन्दिर थे। नोट-यहां कुछ वर्ष पहले बहुतसी जैन मूर्तियां खोदने पर निकली थी जो संवत् १२०० के अनुमान की है । उनमें से एक ललितपुर क्षेत्रपाल मंदिर में व शेष बांदा में विराजमान हैं। For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - - (२) मदनसागर के दक्षिण-पूर्व तट पर एक पहाड़ी है जिस पर २४ चौबीस तीर्थकरों की २४ मूर्तियां चट्टान में खुदी हैं इनमें बहुतसों पर लेख हैं । संवत् १२०६ या सन् ई० ११४८ है । ____(३) सुमेरपुर-हमीरपुर से १० मील । यह नगर भी पुराना है । चारों तरफ टीलों पर ईंटें फैली हुई हैं । यहां तीन पुराने खेड़े हैं-लखनपुर, मिरज़ापुर और सतारा जहां सिक्के प्रायः पाए जाते हैं। कनिधम की सर्वे रिपोर्ट जिल्द २१वीं से नीचे का हाल लिखा गया है: महोबा का प्राचीन नाम जंजाहति था। यहां खडित जैन मृर्तियों के आसनों पर छोटे २ बहुत से लेख है। उनमें से कुछ का भाव यह है नं० (१) संवत् ११६६ राजा जयवर्मा (२) सं० १२०३ (३) श्रीमान् मदनवर्मादेव राज्ये सं० १२११ आषाढ़ सु०३ शनी देव श्री-नेमिनाथ रूपकार लक्षण (४) सुमतिनाथ सं० १२१३ माघ सु० ३ गुरौ (५) सं० १२२० जेठ सुदी - रवौ साधुदेव गण तस्य पुत्र रत्नपाल प्रणमति नित्यं । (६) संधम्य समातत्पुत्राः साधु श्री रत्नपाल तस्य भार्या साधा (पुत्र कीर्तिपाल) तथा अजयपाल तथा वस्तुपाल तथा त्रिभुवनपाल जितनाथाय प्रणमति नित्यं (७) सं० १२२४ आषाढ़ सुदी २ रवौ, काल आराधियोति श्रीमत् परभार्द्धिदेव पाद-नाम प्रवर्द्धमान कल्याण विजय राज्ये । इसमें चंदेलराजाओं के नाम दिये हैं सो इस तरह पर हैं : For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमीरपुर। - (१) वि० सं०८५७ नानक देव (२) सं० ८८२ वापति (३) सन् ८५० विजय (४) सन् ८७५ राहिल (५) सन् ६०० हर्ष देव (६) सं० ६८२ यशोवर्मा देव (७) सं० १०१० धंगदेव (८) सं० १०५६ गंददेव (8) सं० १०८२ विद्याधर देव (१०) सं० १०६७ विजयपाल देव (११) सं० ११.७ देववर्मा देव (१२) सं० ११२० कीर्तिवर्मा देव १३) सं० ११५५ हल्लक्षण वर्मा देव (१४) सं० ११६७ जयवर्मा देव (१५) सं० ११७७ हल्लक्षण वर्मा देव (१६) सं० ११७६ पृथ्वीवर्मा देव (१७) सं० ११८६ मदन वर्मा देव (१८) सं० १२२२ परमार्द्धिदेव या परमार जिसको पृथ्वी राज ने जीता (१६) सं० १२५६ त्रैलोक्य वर्मा देव (२०) सं० १२६७ वीरवर्मा १ (२१) सं० १३०६ भोजवर्मा (२२) सं० १३५७ वीरवर्मा २ (२३) सं० १३८७ शशांक भूप (२४) सं० १४०३ भीलमर्दन (२५) सं० १४४७ परमार्दी (२६) सन् १४२० यहां से ३० वां राजा सन् १५७७ कीरतसिंह। (४) खजराहा-प्राचीन नाम खजूरपुर-जंजाहुति की राजधानी । यह नाम गंददेव के सं० १०५६ के लेख में मिला है। सबसे स्पष्ट लेख घंटाई मन्दिर के स्तंभ पर नेमिचंद्र के नाम से है उसमें राजा धंगदेव का समय सं० १०११ या सन् १५० दिया है। यहां जो घंटाई का बड़ा जैन मंदिर है उससे पुराना दूसरा कोई मन्दिर नहीं है।(None of the standing temples are of older date than the great Jain temple of Ghantai.) इसी के लेख में नेमिचंद्र स्वस्ति For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । श्रीसाधु पालना आदि है। इस मन्दिर के चारों तरफ बहुत सी जैन मूर्तियां हैं। यहां के अतर १० वीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं । यहां एक बड़ी मूर्ति शांतिनाथ जी की १४ फुट ऊंची है उस पर लेख है “संवत १०५ श्रीमान् प्राचार्य पुत्र श्री ठाकुर श्रीदेवधर सुत सुतश्री शिविश्री चंद्रेय देवाः श्री शांतिनाथस्यप्रतिमा कारितेति" | श्री संभव नाथ मूर्ति पर, जो काले पाषाण की है, यह लिखा है:-"संवत् १२१५माघसुदी ५ श्रीमान् मदनवर्मा देव प्रवर्द्धमाने विजय राज्ये गृहपतिवंशे श्रेष्ठिदेदु तत्पुत्र वाहिल्लः पाहिल्लः...प्रतिमा कारितेति तत्पुत्राः महागण, महाचंद्र, सनिचंद्र, जिनचंद्र, उदयचंद्र, प्रभृति संभवनाथम् प्रणमतिनित्यं । मंगल महा श्री-रायंकार रामदेव" । जिननाथ के मंदिर के बांएं द्वार पर सं० १०११ राजा धंग के राज्य में मन्दिर बना था तब महाराज गुरु वासवचंद्र के समय में पाहिल वंश के एक व्यक्ति ने पाहिलबाटिकादि मन्दिरजी को भेट की। जैन मूर्तियों पर सवंत् है १२०५, १२१२ वीरनाथ पर, १२१५ मदन वर्माराज्ये, १२२० अजितनाथ पर, १२३४ जैन श्रासन पर है। कनिंघम साहब की सर्वे रिपोर्ट जिल्द दूसरी में खजराहा के सम्बन्ध में जो कुछ विशेष कथन है वह इस प्रकार है:___यह महोवा से दक्षिण ३४ मोल है। दक्षिण पूर्वीय समूह में जैन स्मारक हैं । बहुत सी खंडित जैन मूर्तियां मिली हैं उनमें से कुछ का वर्णन यह है : For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमीरपुर। ४३ नं० २१-सं० १९४२ आदिनाथ श्रेणी बरवतशाह सेठानी प्रभावती। नं० २२-पार्श्वनाथ जी का मंदिर है। नं० २३ और २४-आदिनाथ और पार्श्वनाथ के मन्दिर हैं। नं० २५-बड़ा ही सुन्दर जैन मन्दिर (finest Jain temple) ६० फुट से ३० फुट। उसके द्वार पर जो लेख है वह ऊपर लिखा है। इस मन्दिर की भीत पर ये लेख हैं (१) राजपुत्र श्री जयसिंह (२) राजपुत्र श्री जयसिंह भ्राता पुत्र श्री पिथान (३) प्राचार्य श्री देवचंद्र शिष्य कुमुदचंद्र, भ्रातापुत्र देवशर्मा (e) एक यंत्र ३४ का है। - नोट-इस यंत्र में सब तरफ २ १३ | ८ | ११ __ से ३४ का जोड़ पाता है। २०ins आता है। | १६ | ३ | १० | ५ नं० २६-प्राचीन जैन मंदिर। ६ । ६ | १५ | ४ । इसमें श्री आदिनाथ की षड़गासन १४ फुट है । सं० १०८५ श्री ठक्कुर पुत्र अचक्षका तथा देवधर पुत्र श्री शिवि श्रीचंद्रदेव। नं० २७–प्राचीन जैन मंदिर श्री आदिनाथ व अन्य बहुतसी जैन मूर्तियां । श्री संभवनाथ का लेख ऊपर दिया है। _ नं० २८-महोबा या महोत्सवपुर में २० फुट ऊंचा टीला है, यहाँ बहुत जैन मूर्तियां खंडित मिली हैं। (५) चंदेरी-चंदेरी नगर से उत्तर पश्चिम मील । इसको For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । महोबा के चंदेल राजाओं ने स्थापित किया था जिन्होंने सन् ७०० से ११८४ तक राज्य किया। यहां एक जैन मंदिर है जहां २१ जैन मूर्तियां हैं १६ षड़गासन २ पद्मासन हैं । डा० फुहरर की रिपोर्ट से नीचे का हाल मालूम हुआ है। (६) दिनई-ग्राम; तहसील कुलपहाड़ से ७ मील । हमीरपुर से ६३ मील । सड़क के किनारे पहाड़ी के नीचे एक जैन मंदिर है जिसमें एक बड़ी मूर्ति शांतिनाथ जी की खंडित सं० ११८४ की है। (७) कुल पहाड़ तहसील, हमीरपुर से ६० मील । इस के दक्षिण पूर्व ६ मील जाकर सहेठ महेठ नामका ग्राम है । इसमें कई बड़े सरोवर हैं । और एक नीची छतदार जैन मंदिर है, जिसमें सं० १२०० और १२१३ की मूर्तियां हैं। कुल पहाड़ से दक्षिण-पश्चिम १३ मील पड़ावबारी नामका ग्राम है इसमें एक पुराना कुआं है जिस पर मिती आषाढ़ वदी ५ सं० ७५५ अंकित है।। (८) मकारबाई-तहसील महोबा से उत्तर पूर्व १० मील । हमीरपुर से दक्षिण ४८ मील । बहुत से ध्वंस स्थान हैं। एक बड़ा दालान स्तम्भदार है जो शायद जैन मंदिर है । इसको परमाल की बैठक कहते हैं । यहां बहुत सी मूर्तियों के खंड मिलते हैं । मकार बाई से ६मोल पहरा ग्राम के पास सकरा ग्राम है जहां एक जैन मंदिर बिलकुल यूर्ण अवस्था में है। For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमीरपुर | (६) मन्धा - हमीरपुर से दक्षिण २० मील। ग्राम के बाहर बांदा जानेवाली सड़क पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे संवत १२२६ की श्री पार्श्वनाथ की एक खंडित मूर्ति रक्खी है। For Private And Personal Use Only ४५. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२-जालौन (गजेटियर छपा १६०६) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम में पहुज नदी, उत्तर में जमना नदी, इटावा और कानपुर के मध्य में दक्षिणपश्चिम झांसी जिला ; पूर्व में हमीरपुर । इसमें १५४६ वर्ग मील स्थान है। ___ इसमें इतिहास के अध्याय में चंदेलों के राजाओं को शक्ति का वर्णन है। चंदेल राजाओं ने खजराहा तथा महोबा में अपनी राज्यधानी रक्खी थी। कन्नोज के राजा को राष्ट्रकूट राजा इन्दु तीसरे ने जो मध्य भारत में राज्य करता था, सन् ई० ६१६ के अनुमान धक्का पहुँचाया था। तथा चंदेलों के राजा यशोवर्मा ने भो सन् ई० १४. और ६५० के मध्य में कन्नौज के राजा को निर्बल किया था। इस यशोवर्मा ने कालिंजर के किले पर अधिकार किया था । सन् १५४ ई० का लेख यह बताता है कि यशोवर्मा ने गोन्दो, खेसों, कोशलो, कश्मीरों, मिथिलों, मालवों, छेदियों तथा गुर्जरों से सफलता के साथ युद्ध किये थे। ऐसाही महत्व उसके पुत्र धांगा का लिखा है जो बटिन्डह के राजा जयपाल का मित्र था जिसको सुवुकतगीनने सन् EEE ई० के अनुमान हरा दिया था। For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३-झांसी ( गजेटियर छपा १६०६ ) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तर व उत्तर-पश्चिमहमीरपुर व दतिया, ग्वालियर व संथर राज्य, पश्चिम में खनिया धाना राज्य, दक्षिण में जिला सागर, पूर्व में ओरछा राज्य । इसमें ३६३४ वर्ग मील स्थान है। ___ इसके इतिहास में लेख है कि देवगढ़ व अन्य स्थानों पर जो गुप्त काल के लेख मिलते हैं उनसे प्रगट होता है कि यह प्रदेश चौथी पांचवीं शताब्दी में गुप्तवंश के राजाओं के अधिकार में था। इसके सफा में उल्लेख है कि प्राचीन कहावतों से यह सिद्ध होता है कि यहां पाराशाह और उनके दो भाई देवपत और खेवपत का बहुत प्रभाव था जो जैनी थे और बहुत बड़े धनाढ्य थे। इन्होंने देवगढ़ व दूसरे स्थानों पर बहुत से जिन मंदिर बनवाए थे । उत्तर भारत के प्रसिद्ध धर्मस्थानों को जो जैन लोग जाते हैं, वे ललितपुर के चार स्थानों पर भी यात्रा करते हैं अर्थात् तलवेहाट में पवा की, बलवेहाट मे देवगढ़ की, वंसी में सिरा कला को तथा ललितपुर नगर में क्षेत्रपाल मन्दिर की। जैन लोग निम्न स्थानों For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक पर भी दर्शन के लिये जाते हैं:-उर्छा राज्य में पयोरा, ग्वालियर में चंदेरी, थोवों, तथा मकसी, दतिया में सोना गिर और बिजावर में सेन्या । (१) बलवेहाट-परगना,तहसील ललितपुर । इस परगने में कुछ प्रसिद्ध पुरातत्व के स्मारक चांदपुर, दुधई तथा देवगढ़ में हैं । यह प्रदेश बहुत प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओंका स्थल रहा है । यहां से १०० गज़ पर महोली में दो पाषाण के स्तंभ २० तथा १२ फुट ऊंचे हैं जिनको मदवार कहते हैं। ये इतिहास के समय के पूर्व के हैं ( अर्थात् २५०० वर्ष से पहले के)। इसी तरह बहुत से खंडहर किरौदा, लिधोरा, पाली, वंदरगुढ़ा, कोरिया तथा महोली में हैं। नोट-इन सब की खोज होने की ज़रूरत है। (२) बानपुर परगना, तहसील महरोनी। यहां पर देखने योग्य कई पुरातत्व के स्मारक हैं । खजरा में एक मंदिर गोदों का बनवाया हुआ है। बानपुर और गुगरवारा में चंदेल राजाओं के बनवाए हुए मंदिर हैं । बानपुर में खंडित बन्देलां का महल तथा वार और केलगवां में बुन्देलों के किले दर्शनीय हैं । दसरारा में एक मंदिर इतना प्राचीन है जिसका पता नहीं । बरताला और विलाता में खंडित किले हैं । नोट-इनकी जांच होनी चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी। ४६ (३) चांदपुर-परगना बलबेहाट, तहसील ललितपुर दुधई और देवगढ़ से प्राधी दूर मध्य में। यहां प्राचीन मन्दिर है। यहां यह कहावत प्रसिद्ध है कि इन जैन मन्दिरों को एक धनाढ्य जैन व्यापारी बनाम पारासाह ने बनवाया था । इस पुराने नगर के मध्य में से जी० आई० पी० रेलवे लाइन जातो है । इस लाइन के पूर्व तरफ नगर का बहु भाग है। उस ओर कई जैन मंदिरों के खंडित अंश हैं जो अब छिन्न भिन्न हो गए हैं। (४) देवगढ़र-परगना बलबेहाट तहसील ललितपुर । जाखलोन से ७ मील व ललितपुर से १६ मील । यह बहुत प्रसिद्ध जगह है । यहां जो वर्तमान में ग्राम है उसमें ११३ मनुष्य रहते हैं खासकर जैन और सहे. १ देवगढ़-के पास की पहाड़ी पर के टूटे फटे किले में, जिसके अन्दर अब बीहड़ जंगल हो गया है, हजारों खण्डित जिन-प्रतिमायें इधर उधर विबरी पड़ी हैं। इस समय भी वहां पचास जिन मन्दिर पत्थर के बने हुए हैं जिनकी कारीगरी देखने योग्य है। इनकी दीवारों पर हजारों जिन मूर्तियां खुदी हैं । एक मन्दिर के मोहासे पर एक ३० फुट ऊंची खड्गासनस्थ प्रतिमा है जिसे लाग श्रोशान्तिनाथ तीर्थंकर को बताते हैं। मन्दिरों में इधर उधर शिलालेख भी हैं पर वे एक तो बहुत खराब हो जाने से साधारणतः पढ़े नहीं जाते और दूसरे उन्हें पढ़ने का अभी तक विशेष समुचित प्रयम भी किसी विद्वान् ने नहीं किया है। यह स्थान निस्सन्देह एक बड़ा अतिशय क्षेत्र रहा है। अनुमान होता है कि किसी विधर्मी राजा के धर्म द्वेष के कारण ही इसकी यह दुर्दशा हुई है। इस क्षेत्र की पूरी खोज और उसका उदार करना भागे धर्म का कार्य है। For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारकं । - रिये हैं । यह गांव बेतवा नदी के तट पर कुछ उंचाई पर है। इसके ऊपर ३०० फुट जाकर ऊंचे स्थान पर करनाली का पुराना किला है। इस किले की दक्षिणी दीवाल के नीचे वेतवा नदी बहुत ही सुन्दरता के साथ बहती है। देवगढ़ की पहाड़ी के चारों ओर कोट है जो पश्चिम की तरफ ढाल के ऊपर से दौड़ता हुआ, उत्तर की तरफ ढाल से कुछ दूर होता हुआ पूर्व की तरफ के किनारे को पार करता हुआ पश्चिम की तरफ ढालू स्थान से चढ़ाई पर गया है। आगे जाकर एक द्वार से माग है। इसके उत्तर पूर्व सोलह जैन मन्दिरों का समुदाय है। इनमें से कुछ सुरक्षित हैं और उनमें बड़ी सुन्दर कारीगरी है। दक्षिण की तरफ दो सीढ़ियां हैं जिनको राजघाटी और नहरघाटी कहते हैं जो चट्टान में से ही खोदी गई है जिन पर कुछ खुदाई की शिल्पकला है । यहां एक गुफा भी है जिसको सिद्ध गुफा कहते हैं यह पहाड़ में खुदी हुई है इसका मार्ग पहाड़ी के ऊपर से एक सीढ़ी द्वारा नीचे को है। यह सिद्ध गुफा यहां वहां से खुली हुई है। इसके तीन द्वार हैं दो स्तम्भों से छत रक्षित है । इस चट्टान के बाहर एक छोटा सा लेख गुप्त समय (तीसरी से पांचवीं छठी शताब्दी) का है। एक दूसरा लेख है जिसमें यह कथन है कि राजा वीर ने संवत् १३४५ (सन् ई० १२८८ ) में कुरार को जीता था। एक दूसरा लेख सम्वत १८०८ का है जो पढ़ा नहीं जाता। इसी For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी। ५१ - देवगढ़ में हो जाखलोन के बुन्देलों के राजा धर्मनगढसिंह राज्य को त्याग, आकर रहे थे जिनका परलोकवास सन् ई० १२६४ में हुआ था। उस समय देवगढ़ एक माननीय स्थान था और इसी कुटुम्ब के अधिकार में था । इसी कुटुम्ब ने दतिया के निकट का किला बनवाया था। पूर्व की ओर जो जैन मंदिर हैं वे भिन्न २ समय के बनवाए हुए मालूम होते हैं। इनमें जो मुख्य मन्दिर है उसमें एक बड़ा दालान है जो ४२ फुट ३ इंच वर्ग है इसमें छः छः खंभों की छः पंक्तियां हैं। इसके मध्य में एक ऊंची वेदी है जो चार मध्य के स्तम्भों पर खड़ी हुई है जिसके पीछे भीत बाहर की ओर है । इस पर नग्न जैन मूर्तियां बहुत सी हैं इनमें १ मूर्ति ऋषभदेव की है। इस दालान के सामने १६॥ फुट की दूरी पर मंडप है जिसके चार बड़े २ स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ पर जनरल कनिंघम ने एक बहुत ही मूल्यवान और जानने योग्य लेख राजा भोजदेव का पाया था जो संवत् ११६ या शाका सं० ७८४ का है। इससे प्रसिद्ध है कि धारा के राजा भोज सन् ८६२ में थे ऐसा डा० फुहरर ने अनुमान किया है। राजघाटी के पास एक स्पष्ट खुदा हुआ लेख = लाइन का है जिससे मालूम होता है कि इसको कीर्तिवर्मा के मन्त्री वत्सराज ने बनवाया था। यह किला भी कीर्तिवर्मा के कारण कीर्तिगिरि दुर्ग कहलाता था। इसका संवत् ११५४ व सन् १०६७ है। दूसरे जैन मन्दिर बहुत जानने योग्य नहीं हैं। इनमें For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir પૂર सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । से एक पर लेख है जिससे प्रगट है कि इसको नन्हेसिंघई ने संवत् १४६३ व सन् १४३६ में बनवाया था। दो जैन मूर्तियों पर सं० १४८१ के लेख हैं जिनसे प्रगट होता है कि उनकी मंडपपुर के शाह श्रालम के राज्य में एक जैन भक्त ने प्रतिष्ठा कराई थी। इस व्यक्ति को मालत्रा के मांडू के बादशाह सुल्तान हुसेन का धारी कहते हैं। बड़े जैन मन्दिर के पास २२ छोटे २ मन्दिर सन् =६२ से १९६४ तक के बने हुए । देवगढ़ में खास सम्बन्ध जैनियों का रहा है जो अब भी वहां पूजा करते हैं (Deogarh is intimately associated with the Jains, who still worship here ) – यहां यह कहावत प्रसिद्ध है कि देवपत ब खेवपत दो प्रसिद्ध जैनी हो गए हैं जिनके पास एक धार्मिक पाषाण था । इसके द्वारा इन्होंने बहुत सा धन एकत्रित किया । उसी धन से उन्होंने किला बनवाया तथा मन्दिरों से इसे विभूषित किया । चारकिलाजिकल सरवे रिपोर्ट भारत सन् १९१७-१८ जिल्द पहली सफा ३८ से प्रगट हुआ है कि देवगढ़ में १५४ लेख हैं । सब से बड़ा सात लाइन में ब्राह्मी अक्षरों में गुप्त समय का है जिसमें ८ देवियों के चित्र हैं। शेष संस्कृत व हिन्दी में हैं। कुछ में खास जैन देवों के नाम हैं। कुछ में जैन तीर्थंकरों की २४ यक्षिणियों में से २० यक्षिणियों के नाम हैं । (५) दुधई - एक भग्न ग्राम - ललितपुर से दक्षिण २० मील, For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी । ५३ परगना बलबेहट । जाखलौन और धौर्रा होकर धौरा स्टेशन से पश्चिम में ४ ॥ मील हैं। इसके उत्तरीय भाग को हर्षपुर कहते है । यहां तीन मन्दिर ब्रह्मादि के हैं जिनमें दुधई के छह शिलालेख हैं, जिनसे मालूम होता है कि इनको यशोवर्मा चंदेल के पोते दवलब्धि ने करीब १००० सन् ई० में बनवाया था और यह निश्चय होता है कि दुधई चंदेला राज्य में माननीय जगह थी । दक्षिण पश्चिम श्राध मील आकर जैन मंदिरों का समुदाय है जिसको बनिया का वरात कहते हैं। इनके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इनको भी देवपत ग्वेवपत ने बनवाया था। परंतु अब ये बहुत ही भग्न हैं । उत्तर की तरफ एक पहाड़ी पर जो घने जंगल से छाई हुई है बड़ी दुधई का स्थान मिलता है। इसके और छोटी दुधई के मध्य में एक भग्न जैन मंदिर है -- यह स्थान अखाड़ा कहलाता है । इस अखाड़े की बनावट गोल है जिसमें कोठरियां बनी हुई हैं। मालूम होता है पहले यहां ४० कोठरियां थीं परन्तु अब केवल १७ ही रह गई हैं। इस टीले के खंडहरों के पश्चिम जहां बड़ी दुधई की जगह है वहां एक चट्टान के ऊपर एक बड़ी मूर्ति १५ फुट ऊंची खुदी है जिसका नरसिंहजी की मूर्ति कहते हैं ( नोट - इसे अवश्य देखना चाहिये शायद यह सिंह चिह्नसहित श्री महावीर स्वामी की For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org પૃષ્ઠ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । जैन मूर्ति हो) । एक सरोवर के उत्तर नीचे की तरफ बहुत से छोटे २ भग्न मंदिर हैं । (६) ललितपुर तहसील - इसमें चंदेलों के स्मारक सिरोंखुर्द, किसलवंस, किरौंदा, धंगल और लिधोरा में तथा दलों के स्मारक वुहचेरा, मुकतोरा, दतिया (बलवेहाट में) और हंसगवां में मिलते हैं। पुरातत्व के स्थान कोटरा; राजपुर में तलवेहाट के भीतर, गुरसारा जखौरा, मैंनवर, पंचमपुर : रायपुर में वंसी के भीतर, ऐरौनी, बरोदियारायन, खजूरिया, लगोन; सुरर में परगना ललितपुर के भीतर, और बंदरगुढ़ा, ककोरिया और महोली में बलवेहाट के भीतर हैं। (७) मदनपुर - ललितपुर दक्षिण पूर्व से ३६ मील। यहां चंदेलों का एक सरोवर ६७ एकड़ लम्बा है । इस ग्राम के एक और एक जैन मंदिर है जिसमें एक लेख संवत् १२०६ व ई० ११४६ का है । इस लेख में मदनपुर का नाम आता है। यहां एक बारादरी है जो खुली हुई, ६ सम चौरस खंभों से रक्षित है । इसके खंभों पर बहुत ही मूल्यवान उपयोगी लेख हैं । इनमें दो छोटे लेख बड़े चौहान राजा पृथ्वीराज के सम्बन्ध के हैं कि उसने परमार दी को व उसके देश जेज सकती को संवत् १२३६ या सन् १९८२ में फतह किया । इस मदनपुर को चंदेल राजाओं में बड़े प्रसिद्ध राजा मदनवर्मा ने स्थापित किया था । इस वर्तमान ग्राम से कुछ पश्चिम की ओर For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org झांसी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५.५. एक बहुत प्राचीन नगर पाटन नाम का है जहां कुछ जैन मंदिर अब भी खड़े हुए हैं इस पाटन का राजा, जो इतिहासातीत काल में (अर्थात् दोढ़ाई हजार वर्ष पहले ) हो गया है। मंगल सैन था । इसका महल, उसकी नींव को भीत तथा द्वार अब तक ग्राम में मौजूद हैं। इसके पूर्व १ मील एक कतुआ नाम की पहाड़ी है जिसकी गुफा में साधु लोग रहते हैं । (८) मदौरा - पना ब तहसील महरौनी - ललितपुर से दक्षिण पूर्व ३४ मील - टीकमगढ़ सड़क द्वारा ललितपुर से सम्बंध है । यहां जैनियों के १२ मंदिर हैं । ( 2 ) मान तहसील-झांसी। नौगांव सड़क पर । झांसी से ३६ मील-इस नगर में एक सुन्दर जैन मंदिर है । (१०) सिरोन कलां - ललितपुर से उत्तर पश्चिम १२ मील । यहां बहुत से स्थानों पर खुदे हुए पत्थर व मूर्तियां खासकर जैनियों की एकत्र हैं । इनमें एक मूर्ति पर संवत् १२५२ है । बुंदेलों का एक मंदिर है जिसको शांतिनाथ कहते हैं इसके भीतर भीत, स्तम्भ व मूर्ति प्राचीन बनावट की हैं। खड़ गासन जैन तीर्थंकर की एक विशाल मूर्ति है जिसके श्रास पास दो छोटी मूर्तियां हैं। कई वर्तमान के मंदिरों के मध्य के मंदिर में एक प्राचीन मंदिर की नींव है जहां एक बड़ा पत्थर ६ फुट चौरस मैदान में पड़ा है इस पर एक लेख है जिसमें For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org યુદ્ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । राजाभोज, महीपाल व अन्य कनौज के राजाओं Τ के नाम हैं जिनकी तारीखें संवत ६६० से प्रारंभ होकर सं० २०२५ तक हैं। वर्तमान भीत के बाहर कई मंदिरों के स्थान हैं। । (११) महरौनी तहसील - यहां दक्षिण की तरफ प्राचीन स्थान हैं । चंदेलों के स्मारक बुधनी नरहट, दौलतपुर, गुढ़ा ( खेरिया के पास ), सौराई, मरखेरा, मदनपुर, बानपुर, गुगरद्वार पर हैं तथा बुंदेलों के किले महरौनी, मदगवां, बार, और के लगवां पर हैं । अन्य प्राचीन स्थान हद्दा, झरौता, नरहट, नूनखेड़ा, परल, उल्धन कलां, बुरही, दसरार वरतला और बिलाता पर हैं। (१२) गरंथ तहसील-झांसी जिले के उत्तर पूर्व कोने में। यहां बहुत प्राचीन स्मारक हैं । थरों पर एक अच्छा चंदेल मंदिर है । (१३) वरवासागर - झांसी से १२ मील । यह पुरातत्व की वस्तुओं से मूल्यवान है । उत्तर पूर्व के कोने में एक छोटी सी पहाड़ी है जिस पर भग्न चंदेल मंदिर है । कुछ पूर्व जाकर चंदलों के समय का एक प्राचीन मंदिर है जिसको घघुना मठ कहते हैं । इससे पश्चिम करीब ३ मील जाकर नौमी सदी का एक मंदिर एक टीले पर है जिसको जराह का मठ कहते हैं । वरवासागर में गुप्त समय का एक लेख है । 'कनिंघम सरवे' जिल्द २१ में कथन है: For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी। ५७ (१४) सौरई-शाहगढ़ से पश्चिम २७ मील । मदनपुर से है मील । यहां जैनियों का श्री आदिनाथ का बहुत बड़ा मंदिर है (१५) मदनपुर-यहां २ जैन मंदिर इस भांति है: (१) मुख्य ३० फुट से १४ फुट । वेदी =॥ से = फुट । इसमें एक नग्न खड़गासन जैन मूर्ति है । आसन पर लेख है। उसके बाहर एक खंडित श्रासन है जिस पर मत्स्य चिन्ह व सं०१२१२ है (२) दुसरे में ५.जैन मूर्तियाँ हैं जिनमें आदिनाथ, चन्द्रप्रभु व संभवनाथ की हैं। इस मंदिर में = लाइन का बड़ा शिला लेख है, जिसमें सं० १२०६ वैसाख सुदी १० भौमे स्वस्ति श्री मदनवर्मा आदि लेख है। डा०फुहरर की रिपोर्ट से नीचे का हाल मालूम हुआ है। (१६) भन्देर-झांसी तहसील से २४ मील । यहां चंदेलों के समय के जैन स्मारकों के खुदे हुए पाषाण नगर में देखे जाते हैं। बादशाह औरंगजेब के समय में जो यहां मसजिद बनी थी उसमें बहुत से जैन खंभे गुम्मज़दार लगे हुए हैं। नगर के पास एक गुफा सहित पहाड़ी है। यहां मंदिरों के ध्वंश भागों से प्रमाणित होता है कि किसी समय यहां बहुत बड़ी जैनियों की पस्ती होगी। (१७) गहराहो-तहसील माऊझिांसीसे २५ मील । यहां एक पुराना चंदेलों का मंदिर है जिसमें एक लेख है। उससे प्रगट है कि वह चंदेल राजा कीर्तिवर्मा के राज्य में बना था। For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - मंदिर के आंगन में एक खंडित मूर्ति श्रीनेमिनाथ जी की है जिस पर सं० १२२८ है। (१८) माऊ-झांसी से २५ मील । एक जैन मंदिर है। बहुत से गुम्बज़ सुन्दर हैं। (१६) रानीपुर-बहुत सुन्दर जैन मंदिर हैं (२०) बोऊपुर खास-तहसील महरौनी, ललितपुर से २१ मील । ग्राम के दक्षिण ४ जैन मंदिर संवत १२०६ के हैं। बहुतसी लेखों सहित मूर्तियां हैं । (२१) चांदपुर-प्राचीन नगर, ललितपुर से १८ व जहाज़पुर से श्राध मील । १२वीं शताब्दी की प्रारंभ के बहुत से खंडित जैन मंदिर हैं। ललितपर-शहर में एक स्थान में चौखुंटे खंभों के जैन स्मारक हैं इनमें गुम्बजें हैं।। सौरई-तहसील महरोनो, ललितपुर से दक्षिण पूर्व ३७ मील । यहां श्री आदिनाथजी का बहुत बड़ा मंदिर है। श्री आदिनाथजी की मूर्ति २१ फुट और १३ फुट नग्न दिगम्बर है। नोट-झांसी प्रांत जैन स्मारकों से भरा हुआ है । किसी जैनो को अच्छी तरह यात्रा करके सब नोट करना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४-मिरज़ापुर ( गजेटियर छपा १६११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है :-उत्तर में जौनपुर, और बनारस, पूर्व में शाहाबाद और पालामाऊ, दक्षिण में सरगुजा राज्य, दक्षिण-पश्चिम रीवाँ राज्य, उत्तर पश्चिम अलाहाबाद । इसमें ५२३ वर्ग मील स्थान है। (१) अगारी-मिरजापुर से ६२ मील। यहां प्राचीन मन्दिर हैं। (२) विन्दाचल-यहां प्राचीन स्मारक हैं। यह स्थान पंपापुर में शामिल है जो एक प्राचीन भार नगर था। वह कई मील तक है। नोट-यहां पहाड़ी पर एक कुंड के ऊपर कई खंडित जैन मूर्तियां है। (३) केरामंगरौर-चुनार से २८ मील । यहां भी कुछ प्राचीन स्मारक हैं नोट-इन स्थानों की जाँच होनी चाहिये। डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि विंदाचल से करीब ३ मील शिवपुर ग्राम है जहां रामेश्वरनाथ के मंदिर में बहुत सी खंडित मूर्तियां हैं । उनमें एक श्री त्रिपालादेवीं For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । और महावीर भगवान की मूर्ति है । एक स्त्री के शरीराकार पूरी मूर्ति एक सिंहासन पर पुत्र को गोद में लिये बैठी है-५ फुट २ इंच ऊँची व ३ फुट = इंच चौड़ी है व ६ फुट ८ इंच मोटी है । दाहिनो भुजा खंडित है। बाईं भुजा में पुत्र है। सिंहासन के नीचे सिंह उसके हर एक ओर सात मुसाहब हैं-दो उड़ते हुए पांच खड़े हुए-पीछे बड़ा वृक्ष है। यहां के लोग इसको संकटादेवी कहते हैं। For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ - गोंडा ( गज़ेटियर छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है :- दक्षिण में फैज़ाबाद और बहरायच, उत्तर में नेपाल राज्य, पूर्व में गोंडा और वस्ती ज़िला, पश्चिम में बहरायच । इस में २८०६ वर्ग मील स्थान है । इतिहास - प्राचीन श्रावस्ती नगरी (जैनियों के तीसरे तीर्थकर संभवनाथजी की जन्म नगरी है ) में यह गोंडा शामिल था। बौद्धों के काल में यह एक मुख्य नगर था । छठी शताब्दी के चीन यात्री हुईन सांग ने इस नगर को ऊजड़ पाया था । श्रावस्ती का वर्णन हर्ष वर्द्धन (सन् ६३१ ई० ) महेन्द्रपाल (सन् ७६१ ) तथा भावगुप्त द्वि० ( १० वीं सदी) के ताम्रपत्रों में श्राया है। पीछे की यह कक्षाप्रसिद्ध है कि यहाँ एक राजा सुहिल दल हो गया है जिसने सैयद सालार के साथ युद्ध किया था । सुहिल दल या सुहिल देव राजपूत वंश का जैनीं या ऐसा बहुत सी जगह कथन श्राया है। उस राजपूत वंश को भारया थारू या डोम कहते थे । स्थानीय कहावतों से इस राजा का सम्बन्ध सहेठ महेट ( श्रावस्ती ) अशकपूर For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । और अन्य स्थानों से पाया जाता है । सैय्यद सालार वहरायच में हरा दिया व मार डाला गया था। बहुत संभव है कि यह सुहिल देव एक ऐतिहासिक मनुष्य हो। यह बात जानी हुई है कि जैन धर्म सहठ महेठ में प्रचलित था और एक जैन मंदिर जो नगरध्वंश के बहुत काल पीछे बना था अब भी वहां बना है और आजकल जैन लोग यात्रा के लिये जाते हैं। (नोट-अब वह मंदिर भी गिर गया है टीला मात्र रह गया है । (प्राचीन कहावतें बताती हैं कि सहेठ महेठ के जैनवंश में से गोरखपुर के राप्ती नदी पर डोमनगढ़ के डोमों का उदय हुआ तथा इसी वंश में एक प्रसिद्ध राजा उग्रसेन हो गए हैं जिन्होंने डोमरिया डीह को बनाया था जो एक दफे एक नगर था, परंतु अब एक टीला उस सड़क पर हैं जो गोंड़े से फैज़ाबाद को जाती है। (१) अशकपुर-पो० महादेव, तहसील तरबगंडा, वजीरगंडा से उत्तर ३ मोल गोंडा फैजाबाद को सड़क पर । यहाँ अशकनाथ महादेव के नाम से एक मंदिर है जिसको राजा सुहिल देव ने बनवाया था अब वहाँ मसजिद बनाई गई है। वास्तव में यह जैन मंदिर होगा। नोट-जांच होनी चाहिये । (२) सहेठ महेठ-प्रारकिलाजिकल सरवे भारत रिपोर्ट सन् १६०७-८ में लिखा है कि सहेठ महेठ में खदाई की गई। For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोंडा। यह स्थान अकौना से पूर्व ५ मील व बलरामपुर से पश्चिम १२ मील है। सन् १८८६ में छः जैन तीर्थकरों की मूर्तियां दो शिला लेख सहित लखनऊ अजायवघर को भेजी गई । सन् १८७५-७६ में डाक्टर हे साहब ने खुदाई करके महेठ के पश्चिम तरफ़ श्री संभवनाथ के जैन मंदिर से कुछ मूर्तियां एकत्र की । इन्हीं में एक मूर्ति सुमतिनाथ जी की थो । सन् १८८५ में यहां एक बहुत ही मूल्यवान वस्तु अर्थात् एक शिलालेख संवत ११७६ का मिला जिसमें लिखा है कि कन्नौज के राजा मदनपाल के मंत्री विद्याधर ने एक मठ बनवाया। यह पाषाण लखनऊ अजायबघर में रक्खा है। यह महेठ ही श्रावस्ती नगरी थी यह बात पूर्णतः स्वीकार की गई है। तमरिंद द्वार से कुछ ही दूर सन् १८७६ व १८८५ में खुदाई हुई थी फिर १६०८ में भी खुदाई हुई तब नीचे लिखी वस्तुएं प्राप्त हुई जो सर्व जैनियों की हैं :(१) पद्मासन श्रीऋषभदेव को अखंडित मूर्ति २ फुट ६॥ इंच ऊंची। इसमें दूसरे २३ तीर्थकर पद्मासन विराजित हैं। (२) पद्मासन तीर्थकर २ फुट ६. इंच । बांई भुजा खंडित । इसमें भी अन्य २३ पद्मासन हैं। (३) पभासन तीर्थकर १ फुट ३ इंच । For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जन स्मारक । " " (४) पद्मासन तीर्थंकर २३ अन्य सहित १ फुट २॥ इंच । , १ फुट ३१ इंच। ., १ फुट ५ इंच। (७) खड़गासन तीर्थकर , १ फुट ११॥ इंच। फुट ६॥ इंच। (६) , . १ फुट २॥ इंच। . (१०) पद्मासन तीर्थंकर के दो खंड । (११) एक खंडित पट जिस पर एक तीर्थंकर वृक्ष के ऊपर बैठे हैं व एक कोई वृक्ष पर चढ़ता दिखाया गया है १ फुट ७ इंच। (१२) एक खजूर के वृक्ष के नीचे स्त्री पुरुष बैठे हैं । १०। इंच। (१३) खंडित-पांच पद्मासन तीर्थकर खुदे हैं। मध्य में नागफन सहित हैं, तथा अन्य टूटे पत्थर भी हैं। नोट-यह सहेठ महेठ जैनियों का पूजनीय स्थान है । जैनियों को चाहिये कि अपना मन्दिर फिर बनायें. व जो अखंडित मूर्तियां यहां से गई हैं उनको प्राप्त कर विराजमान ___ कनिंघम साहब की रिपोर्ट प्रारकिलाजिकल सरवे इंडिया जिल्द ११वीं में श्रावस्ती के सम्बन्ध में यह विशेष वर्णन है कि श्रावस्ती का नया नाम चंद्रिकापुरी था। इसके नीचे लिखे राजा प्रसिद्ध हो गए हैं: For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोंडा। ६५ मयूरध्वज, हंसध्वज, मकरध्वज, सुधन्वध्वज, सुहिलदलध्वज । सुहिलदल महमूद गजनी का समकालीन था और सलार मसऊद का शत्रु था। मि० बेनेट की राय है कि इस राजा का कुटुम्ब जैनी था। ( देखो अवध गजटियर जिल्द तीसरी सफा २८३) डा० फुहरर की रिपोर्ट (सफा ३०८) से विदित हुआ कि ११ वीं शताब्दी में श्रावस्ती में जैन धर्म बहुत उन्नति पर था क्योंकि तीर्थंकरों की कई मूर्तियां जिन पर संवत १११२, ११२४, ११२५, ११३३, ११२२ है यहां खोद कर निकाली गई थी जो अब लखनऊ अजायबघर में रक्खी हैं । सुहृद्ध्वज महमूद गज़नी के समय में हुअा । यह सय्यद सालार का शत्रु तथा श्रावस्ती के जैन राजाओं में अंतिम राजा था। हाथिली पर्गना महादेव तहसील नरावगंज, गोंडा से पूर्व दक्षिण १२ मील पर है । यहीं पर सुहृद्ध्वज ने सैय्यद सालार को मारा था । इसको सुहिलदेव भी कहते हैं । यह अशोकपुर का राजा था। ___ अवध गजेटियर जिल्द तीसरी सफा २८३-८४ से मालूम हुआ कि जब सुहृद्ध्वज की विजय हुई तब से ४० वर्ष करीब के पीछे जैन वंश का विध्वंश हुा । इसकी यह कहावत प्रसिद्ध है कि राजा कहीं गया हुआ था सो लौट कर उस समय आया जब सूर्य अस्त हो रहा था। रात्रि को भोजन For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । निषिध्य जानकर रानी ने अपने राजा को भोजन प्राप्त हो इस हेतु से राजा के छोटे भाई की स्त्री को छत पर भेज दिया । यह बहुत ही सुन्दर थी। कहते हैं इसके देखने के लिये सूर्य ठहर गया और जबतक यह ऊपर रही सूर्य प्रस्त न हुा । जब राजा का भोजन हो चुका तब वह नीचे उतरी। सूर्य छिप गया और घड़ी में नौ बजे । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। कारण मालूम किया। तब उसके चित्त में छोटे भाई की वधू को देखने का भाव पैदा हो गया । कहते हैं इसका यह भाव ठीक न था । कुछ काल पीछे भयानक तूफान आया और सर्व नगर नष्ट हो गया । इसीलिये वर्तमान नाम सहेठ महेठ पड़ गया। नोट-मालूम होता है यह सुन्दर स्त्री धर्मात्मा मंत्रज्ञाता तथा पतिव्रता थी। उसके मंत्र प्रभाव से ही दिन बना रहा. व उसके शील के प्रताप से ही राजा को दंड मिला। ऊपर जिस संवत ११७६ के शिला लेख का वर्णन है इसे हमने स्वयं लखनऊ अजायबघर में देखा उसका सार यह है कि उसमें पहले ही ऊँ नमो वीतरागाय लिखा है । यह इस बात का चिह्न है कि उस समय जैनराज्य था क्योंकि यह खास शब्द जैनियों में ही प्रचलित है। मानधाता ने जावरिया नगर बसाया-उसको ककीता के सुपुर्द किया उससे वास्तव्य वंश हुआ। इस वंश में शिवभक्त विल्वशिव हुआ। उसका For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोंडा। ६७ - - - पुत्र जनक था जो गांधीपुर या कन्नौज के राजा गोपाल का मंत्री था। इसने जिजा वंश की कन्या व्याही । जिससे ६ पुत्र हुए। पाँचवा विद्याधर था। वह मदनराजकुमार का मंत्री था। यह शिवभक्त से वौद्धभक्त हो गया और बौद्ध मठ बनवाया। For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६-बहरायच (गज़० छपा १६०३) इसकी चौहद्दी यह है-उत्तर और उत्तर पूर्व-नेपाल, पूर्व में गोंडा, पश्चिम में खेरी व सीतापुर ज़िला; दक्षिण में वारावंकी। इसमें २६२७ वर्ग मील स्थान है। (१) चरदा-तहसील नानपारा-बाबागज से मल्हीपुर और हटौना जानेवाली सड़क पर एक ग्राम बावागंज से २ मील । इस जिले के अन्य प्राचीन स्मारकों की भांति यहां भी बहुत से स्मारक राजा सुहिलदेव के बनवाये कहे जाते हैं। पुराने किले के खंडहर है। (२) टांडवा-परगना हकौना तहसील बहरायच । हकौना से ४ मील । यह पुरानी जगह है। ग्राम के उत्तर पश्चिम एक टीला ८०० फुट लम्बा व ३०० फट चौड़ा है । इस टीले के दक्षिण पश्चिम कोने में कनिंघम ने एक बड़ा स्तूप पाया था जिसकी बड़ी बड़ी भीतें अब भी खड़ी हैं। और भी कई टीले हैं। 40 For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ - फैजाबाद ( गजै० छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी यह हैं-- उत्तर में घाघरा नदी, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम सुलतानपुर, पश्चिम में बाराबंकी, पूर्व में आज़मगढ़ और गोरखपुर ज़िला । इस में १७३६ वर्ग मील स्थान है । इतिहास में लिखा है कि अयोध्या में जो सिक्के मिले हैं। उनसे प्रगट होता है कि सन् ई० से पहली तथा दूसरी शताब्दी पूर्व यहां एक वंश राज्य करता था जिसके राजाओं के नाम मूलदेव, वायुदेव, विशाखदेव, धनदेव. शिवदत्त, सममित्र, सूर्य्यमित्र, संघमित्र, विजय मित्र, कुमुदसेन | नोट - इन नामों से इनका जैन होना मालूम होता है। नोट -- यहां अयोध्या में जैनियों के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ, दूसरे अजितनाथ, चौथे अभिनंदननाथ, पांचवें सुमतिनाथ, बारहवे अनंतनाथ, तथा फैजाबाद के पास रत्नपुर में पन्द्रहवे धर्मनाथ जी के जन्म हुए हैं । उनके मंदिर बने हैं। यात्री दर्शन को आते हैं। For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । अवध गजेटियर जिल्द पहली से मालूम हुआ कि अयोध्या में पहले समुद्रपाल वंश राज्य करता था। उनके पोछे श्रीवास्तम् वंश ने राज्य किया, जिसमें एक मुख्य राजा तिलोकचंद हुआ है । यह वंश यातो जैनी या बौद्ध होगा। पुराना देहरा इसी का बनाया हुआ है इसके वंश के विरुद्ध शायद सय्यद सालार ने अवध में चढ़ाई की थी। नोट-यह वंश जैन होना चाहिये-तथा इसका सम्बन्ध राजा सुहृदध्वज या सुहिल दल से होगा। For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८-रायबरेली (गज़ौटियर छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी यह है:-उत्तर में लखनऊ और वाराबंकी जिला, पूर्व में सुलतानपुर जिला, दक्षिण-पूर्व परतापगढ़ ज़िला, दक्षिण में गंगा नदी, पश्चिम में उन्नाव ज़िला । इसमें १७४४ वर्गमोल स्थान है वहां गुप्त वंश के राजाओं की २५ मुहरें टांडा ग्राम महाराज गंज तहसील में मिली हैं। जगत पुर को चीनयात्री हुइनसांग ने सातवीं शताब्दी में देखा था (मानु मेन्टल एन्टिक्विटीज़ स० ३२३) । यह रायबरेली से १८ मील डालमऊ तहसील में एक ग्राम है-वहां पुरानी इंट,१४ से १५ इंच लम्बी वह इंच चौड़ी । इंच मोटी मिलती हैं । यहां २ स्तूप है जो नीचे से २५॥ फुट वर्ग है । यह ध्वंस है । यह चौद्धों का प्राचीन स्थान है । यहां सिक्के भी निकले हैं । For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ - सीतापुर ( गज़ टियर छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी यह है- पश्चिम और दक्षिण-पश्चिमगोमती नदी, पूर्व में बहरायच ज़िला, उत्तर में खेरी, दक्षिण में लखनऊ और बाराबंकी जिला । इसमें २२५० वर्ग मील स्थान है । (१) मनवान - तहसील सिधौली - यहां बहुत प्राचीन स्मारक हैं । खेड़ा है। अयोध्या के राजा मानधाता के बनवाये हुए पुराने किले के खंडहर हैं । बहुत से पाषाण खंड लखनऊ के अजायबघर में हैं। नगर के उत्तर पूर्व १ || मील बहुत अधिक खंडहर हैं । कई टीले बहुत से मकानों के चिन्हों को बताते हैं । For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० - खेरी ( गज़ेटियर छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी यह हैं:- पूर्व में बहरायच ज़िला । दक्षिण में सीतापुर और हरदोई जिला । पश्चिम में शाहजहांपुर और पीलीभीत। उत्तर में नेपाल । इसमें २६६३ वर्ग मील स्थान है । यहां बहुत से प्राचीन स्थान हैं जिनकी खुदाई होनी वाकी है। खैरीगढ़ के पास कुंडलपुर एक वह स्थान है जहां पर से श्री कृष्ण रुक्मणी को ले गये थे । थोड़ी सी पुरातत्त्व विभाग द्वारा खुदाई होने से यह प्रगट होता है कि कुछ काल तक यह बौद्धों के हाथ में था । सब से प्राचीन वस्तु एक पत्थर का घोड़ा है जो खेरागढ़ किले से २ मील जंगल में खड़ा हुआ था । वह अब लखनऊ के अजायब घर में रक्खा है । इस घोड़े का चिन्ह उस चिह्न से मिलता है जो समुद्रगुप्त के सिक्कों पर है, जो चौथी शताब्दी में हो गया है । (१) गोला - पर्गना हैदराबाद- तहसील मुहमदी । वह जगह बहुत ही प्राचीन है । यह बौद्धों की पूजा का केन्द्र था । मूर्ति मिली है। (२) पैला - पर्गना व तहसील लखीमपुर से पश्चिम १२ मील, निमगांव से दक्षिण २ मील । यह स्थान पुराने समय में For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। वसा हुआ था। ऊल नदी के तटों पर पुरातन नगर के खंडहर हैं । रामपुर और गोकुल से रंजोली नगर तक ईटों से फैले हुए खेड़े पड़े हुए हैं । गुप्त समय के सिक्के व खुदे हुए पाषाण और कन्नौज के राजाओं के सिक्के मिले हैं। For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१-हरदोई __ ( गजेटियर छपा १६०४ ) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है पूर्व में गोमती नदो, दक्षिण में लखनऊ और उन्नाव जिला, उत्तर में खेरा और शाहजहांपुर जिला, पश्चिम में फर्रुखाबाद जिला व कानपुर । इसमें २३२६ वर्ग मील स्थान है। (१) मझगांव-तहसील संडीला-ग्राम में एक बड़े ईंट के किले के खंडहर हैं जिसमें १८ वीं शताब्दी का एक संस्कृत शिला लेख है। डा० फुहरर की रिपोर्ट से नीचे का हाल मालूम हुअाः(२) मलतावान-तहसील विलग्राम । हरदोई से दक्षिण २१ मील । यहां कुछ कारीगरी के ईटों के ध्वंश मकान हैं । मखदूमशाह की दर्गाह में = हिन्दुओं के खंभे लगे हैं । यहां अकबर और शाहजहां के समय की मसजिद हैं । इनमें सामने कंकड़ के बड़े कटे हुए टोले जमीन से ३ फुट ऊंचे हैं । इसमें संदेह नहीं कि ये कंकड़ के टीले ब्राह्मण, जैन और बौद्ध मन्दिरों से लिये गए हैं। पुराने पीपल के वृक्षों के नीचे खंडित मूर्तियां बहुधा देखी जाती हैं । आशादेवी का एक नया हिन्दू मन्दिर For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स० सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। है। इसमें प्राचीन मन्दिर के चिह्न हैं । सात फण का नाग एक देवी के ऊपर जैन या बौद्ध चिह्न को प्रगट करता है। यहां जो पुराने सिके मिलते हैं उनसे प्रगट है कि यह स्थान इंडो. सीदियन समय में बहुत पहले बसा हुआ था। For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२-शाहजहांपुर ( गजेटियर छपा १६१०) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: पूर्व में खेरी ज़िला, दक्षिण में हरदोई और फर्रुखाबाद, पश्चिम में बदाऊ और बरेली, उत्तर में पीलीभीत जिला । इसमें १७२६ वर्ग मील स्थान है । परगना खुतौर में माटी, निगोही, गोला रायपुर, और कुछ दूसरे स्थानों को छोड़ कर जो अभी तक खोजे नहीं गए हैं, दूसरे कोई प्राचीन स्थान नहीं हैं। यह उस राज्य का एक भाग था जिस राज्य की राजधानी अहिछत्र थी और यह इसलिये बहुत करके सच है कि अहिछत्र के राजाओं के बहुत से सिक्के माटी में मिले हैं । यह माटी किसी समय एक बड़ा और प्रसिद्ध नगर था। यहां राजा बेन बहुत प्रसिद्ध हैं किन्तु उनके समय का पता नहीं है। (१) गोलारायपुर-तहसील पवायां-प्राचीन प्रसिद्ध नगर गोला के खंडहर हैं । यह कटिहारियों का प्रसिद्ध स्थान था। यह पवायां से हव शाहजहांपुर से १० मील है । गोला के दक्षिण एक बड़ा टीला है जिसमें प्राचीन सिक्के मिले हैं । For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । (२) माटी-पर्गना खुटाई, तहसील पवायां । कुरैय्या रेलवे स्टेशन से २ मोल । शाहजहांपुर से ४२ मील । यहां बौद्ध और इन्दोसिदियां समय के पुराने सिक्के मिलते हैं जिससे यह बहुत प्राचीन स्थान प्रगट होता है । जो यहां प्राचीन स्थान हैं वे या तो राजा वेन के समय के हैं या वचिहिलों के हैं। अहिच्छत्र के मित्र राजाओं के सिक्के मिलते हैं । यहां २ मील लम्बे व १ मील चौड़े स्थान में खंड. हर है। यहां बड़ी ईंटें मिली हैं जो १८ इंच लम्बी १२ इंच चौड़ी व ६ इंच मोटी है। निगोही-तहसील तिलहर-पीलीभीत से १५ मील यहां बहुत टीले तथा पराने कुएं हैं। For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३-बदाऊं जिला (गजेटियर छपा १९०७) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है : उत्तर में मुरादाबाद और बरेली जिले, पूर्व मेंशाहजहांपुर, पश्चिम और दक्षिण में गंगा नदी बुलन्दशहर और अलीगढ़ को भिन्न करती हुई । इसमें २०१३ वर्ग मील स्थान है। (१) गन्नौर-कबराला रेलवे स्टेशन से ३ मील, बदाऊं से. ४६ मील । प्राचीन काल में इसका बहमनपुर कहते थे। (२) इसलाम नगर-मुरादाबाद किनारे से ३ मील, ३४. मील बदाऊं से । यह बहुत प्राचीन जगह है । इसको आइने अकबरी में हिन्दुधना लिखा है। (३) सहसवाँ-तहसील-महवा नदी का बायां तट । बदाऊं और उझानी से जो सड़क गन्नौर और अनूपशहर को जाती है, उसकी दूसरी तरफ यह स्थान है। यह निःसन्देह बहुत प्राचीन है। इसको सहस्रबाहु द्वितीय जम राजा सकिसी ने स्थापित किया था। नोट-इन सबकी जाँच होनी चाहिये । For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४-बरेली (गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-उत्तर में नैनीताल, पूर्व में पीलीभीत, दक्षिण-पूर्व में शाहजहांपुर, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में बदाऊं । पश्चिम में रामपुर राज । यहां १५७६ वर्ग मील स्थान है। (१) अहिच्छत्र-यह स्वतंत्र वंश की राजधानी रह चुकी है। यहां अशोक ने एक स्तूप बनाया था। यहां बहुत से सिक्के मिले हैं जिन पर अग्निमित्र, सूर्यमित्र, भानुमित्र, विष्णुमित्र, भद्रघोष ध्रुवमित्र, जयमित्र, इन्द्रमित्र, फल्गुनि मित्र वहसत या वृहस्पति मित्र के नाम दिये हुए है। उन्होंने यहां सन् ई० से २०० वर्ष पूर्व से १०० सन् ई० तक राज किया । वे लोग सुंगवंश के होंगे। ऐसे ही सिके अलाहाबाद के कोसाम्बी में तथा बस्ती और पूर्वीय अवध में मिले हैं। पिछले काल में बौद्ध राजा अच्युत ने भी यहां राज्य किया है। इसका नाम समुद्रगुप्त के अलाहाबाद के लेख में दो दफे आया था जिसने सन ई० ३३० में राज्य किया था। यह अहिछत्र हर्ष वर्धन के राज्य में भी शामिल हुआ था । अहिछत्र पर राज्य करने वालों में दूसरा प्रसिद्ध राजा मयूरध्वज For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बरेली। या मोरध्वज हो गया है जिसके सम्बन्ध में यह कहावत है कि वह जैनी था और यह प्रायः निश्चित है कि एक दफे जैन धर्म इस देश में उन्नति कर रहा था। यह अहिछत्र सन् ई० १००४ तक बसा हुआ था। एक खुदा हुआ पाषाण इस सम्बन्ध में मिला है। यहां बहुत से टोले हैं। रामनगर के पालमपुर कोट के मंदिर में जैन मूर्तियां तथा ब्राह्मण व बौद्ध मूर्तिये मिलती हैं तथा कुछ मूर्तिये वृक्षों के नीचे रक्खी हैं। (२) पिसनहारी की छतरी-किले के पश्चिम १ मील जाकर यह छतरी है। जिसकी जांच सन् १८३३ में की गई थी। (३) कटारीक्षेत्र नाम के टोले से कनिंघम साहब ने एक बहुत बड़ी नग्न जैन मूर्ति (the largest naked figure which he subsequently considered to be Jain) पाई थी। ___ यह कटारी खेड़ा-किले के उत्तर १२०० फुट है। डाक्टर फुहरर ने सन १९६१-६२ में किले के पश्चिम एक टोले को खोदाया उसके भीतर एक सभा मंदिर मिला व एक मोहरों का भरा वर्तन मिला था। इनमें मोहरें बहुत से भिन्न २ राजाओं की हैं। तथा यह सभा मन्दिर सन् ई० से एक शताब्दी पूर्व का मालूम होता है। फुहरर साहब ने कटारी खेड़ा की पूरी खुदाई कराई तब उन्होंने मालूम किया For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८२ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक | कि यह श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर था जिसकी तारीख कुशानों के समय की है। उसने कई मग्न जैन मूर्तियां भी प्राप्त कीं जिनमें से कुछ में सन् ६६ से १५२ तक तारीख थी। (He found a number of fragmentary naked Jain statues, some inscribed with dates ranging from '96 to 152 A. D. ) तथा इसके उत्तर एक छोटे मन्दिर के खंडहरों को भी प्राप्त किया था तथा इसके पूर्व एक ईटों का स्तूप भी पाया। यहां बहुत से टीले ऐसे हैं जिनकी अभी खुदाई होनी है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनिंघम साहब अरकिलाजिकल सरवे जिल्द पहली दूसरी में सफा २५५ में लिखते हैं कि रामनगर ( अहिछत्र ) बहुत प्राचीन नगर है । यहाँ जो स्तंभ है उस पर श्राचार्य इन्द्रनदीं शिष्य महादरी पाश्र्श्वमतिराय कोट्टारी आदि लिखा है । डा० फुहरर की रिपोर्ट से विदित हुआ कि उस पर शब्द हैं “महाचार्य इन्द्रनन्दि शिष्य पार्श्वपतिस्स कोट्टारी" । कटारी खेड़ा में जो बहुत सी नग्न मूर्तियां निकली हैं वे सब दिगम्बर नाय को हैं । ( There were several nude, figures which the general afterwards assigned to Jain artists of Digambar sect.) एक छोटा पाषाण मिला था जिस पर नवग्रह बने हुए थे तथा एक बड़े खंभे का टुकड़ा मिला था जिसके चारों तरफ सिंह बने थे । नोट - श्रहिछत्र की खोज जैनियों को अच्छी तरह करनी चाहिये । 1:00:1 For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५-पीलीभीत (गजेटियर छपा १६०६) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: पूर्व में खेरीजिला, उत्तर-पूर्व में नेपाल; उत्तर में नेनीताल, दक्षिण में शाहजहांपुर है। इसमें १३५० वर्गमील स्थान है। (१) देवरिया-तहसील विलासपुर । विलासपुर से १० मोल । यह बहुत प्राचीन खंडहर हैं बहुत टीले हैं (नोट-जांच होनी चाहिये। _(२) जहानावाद-यहां के खंडहर यहां प्राचीन समय की बस्ती को बताते हैं। (३) मरौरी-तहसील विलासपुर। विलासपुर से १० मील । यह स्थान प्राचीन है। यहां यह कहावत है कि इसका बसाने वाला राजा मयूर ध्वज था। इस राजा का नाम विजनौर में मोरधज के प्राचीन किले में सुरक्षित है । यह पांडवों के समय में हुआ है। इस कहावत की सिद्धि खनौत नदी के तट पर स्थित बहुत से प्राचीन खंडहरों से होती है । ये सब बहुत ही प्राचीन सभ्यता के हैं। बहुत करके ये जैन मालूम होते हैं । परंतु अभी तक इनकी खोज नहीं की गई है। For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । (४) पूरनपर-पीलीभीत से २४ मील। इसके निकट बहुत से प्राचीन खंडहर हैं जैसे धनाराघाट, शाहगढ़ । सुआपारा का कोट ४०० फुट वर्ग का टीला है। बहुत सी ईंटें पाई जाती हैं। ये सब किले के भीतर के मंदिर की हैं । जांच होनी चाहिये। (५) शाहगढ़-तहसील पूरनपुर । पूरनपुर से ७ मील व पीलीभीत से १५ मील । उत्तर पश्चिम एक स्तम्भ है । यहां एक बहुत प्राचीन किला था जिसका होना गैरमामूली (असा. धारण ) ईंटों से प्रगट है। ये इंटें २० इंच लम्बी १२ इं० चौड़ी व ४ इं० मोटी हैं । यहां सिक्के मिले हैं जो नेपाल के वारमूर वंश के हैं जिसने सन् ई० से १०० वर्ष पहले से ६५० सन ई० तक राज्य किया था। इसके दक्षिण ४ मील दूसरा ध्वंश नगर है। यह कोट से घिरा है । यह ६०० फुट लम्बा व १२०० फुट चौड़ा है । बड़ी २ ईटें हैं । यहां के आदमी इन दोनों स्थानों को राजावेन की बताते हैं जिस राजा का सम्बन्ध बिलास. पुर में देवरिया की इमारतों से है। For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६-नैनीताल (गज़ टियर छपा १६०४) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:- उत्तर में अलमोड़ा, गढवाल, पूर्व में अलमोड़ा, नैपाल; पश्चिम में गढ़वाल और विजनौर जिले, दक्षिण में पीलीभीत बरेली, मुरादाबाद। इसमें २६५८ वर्गमील स्थान है। (१) कैलाश पट्टी-यह पहाड़ी ५८८६ फुट ऊँची है । यह मालवा ताल के नीचे पट्टी छब्बीस डुई नाला में है । यह पहाड़ी तिव्वत में कैलाश से मिलती है। यह सब पहाड़ी पवित्र मानी जाती है इसकी सूरत से यह महादेव का लिंग कहलाती है। यहां सिपाहियों को व दूसरे शिकारियों को शिकार करना मना है। इसकी चोटी पर एक प्राचीन मंदिर है। अक्टूबर के अंत में यहां बड़ा मेला लगता है। इसकी जांच होनी चाहिये (२) काशीपुर-यह नैनीताल से ४५ मील है-बहुत प्राचीन काल से काशीपुर बसा हुआ था। यहां उज्जैन नाम की पुरातन जगह है । यह निःसंदेह बहुत ही पुरानी है । द्रोण सागर के पश्चिम तट पर छोटे २ मंदिर हैं । बहुत से टीले यहां पर हैं उनमें एक भीमगजा ३० फुट ऊँचा है तथा रामगिरि मोसाई का टीला है जो ६८ फुट व्यास रखता है। For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७-मुरादाबाद (गज़टियर छपा १६११) इसको चौहद्दी इस प्रकार है:-उत्तर में बिजनौर, नैनी. ताल जिला; पूर्व में रामपुर राज्य, दक्षिण में बदायूं; पश्चिम में गंगानदी । इसमें २२६३ वर्ग मील स्थान है। ___ यहां कुछ बहुत प्राचीन काल के स्थान हैं-उनकी अभी जांच होनी है। (१) सम्बल-सब से मुख्य जगह यह है जो मुरादाबाद से २३ मील है इसमें सब से प्राचीन जगह एक कोट है, जो एक बड़ा किला है। बहुत प्राचीन काल में यहां हिंदुओं की अच्छी बस्तो थी (J.R.A.S. XII p. 25 ) । नगर में बहुत पुराने टीले हैं तथा पास में भी । संबल के पुराने नाम संवृत, महगिरि, पिंगल हैं । पुराना टीला सुराथल के नाम से प्रसिद्ध है । चंद्रवंश के राजा साल्यबाहन के पुत्र का यही नाम था। यह निश्चित है कि यह प्रदेश उत्तरीय पंचाल के राज्य में शामिल था, और इसकी राज्यधानी हमारे ध्यान में बरेली जिले के अहिछत्र स्थान पर थी यह तीसरी शताब्दी पूर्व राजा अशोक के अधिकार में आया। फिर अहि. छत्र के मित्र नाम के राजाओं ने कुशानों के हमले तक राज्य For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुरादाबाद। ८७ किया फिर गुप्तो ने अधिकार किया पश्चात् कन्नौज के बड़े हर्षवर्धन ने लिया जिसको हुइनसांग ने शिलादित्य नाम दिया है । फिर परिहारों का और पश्चात् राठौरों का राज्य हुा । मुसल्मानों के पहले यह तोमरों के दिहली राज्य में शामिल था फिर चौहनों के हाथ पाया जिनका अंतिम राजा पृथ्वीराज था। For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ - विजनौर (गज़ेटियर छुपा १६०८ ) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:- पश्चिम में गंगानदी व देहरादून, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर व मेरठ जिले । उत्तर व उत्तर पूर्व गढ़वाल, पूर्व में नैनीताल और मुरादाबाद ; दक्षिण में मुरादाबाद जिला | यहां १७८६ वर्ग मील स्थान है । (१) वरहापुर - पर्गना तहसील नगीना । नगीना से मील । पूर्व की तरफ करीब ३ मील जाकर जंगल के मध्य में एक पुराना किला व एक ध्वंश नगर पारशनाथ नाम का है । किले की हद मालूम होती है। पास में एक बड़े मैदान में ऐसे ही खंडहर मिलते हैं । यह बात ठहराई गई है कि ये सब जैनधर्म के प्राचीन स्मारक है । ये खंडहर मोरधज के खंडहरों से बधिकुली के तथा नैनीताल में काशीपुर के खंडहरों से मिलते हैं । (२) मन्दावर - विजनौर तहसील से ६ मील पुराना नगर है । सब से प्राचीन जगह करीब श्राधमील वर्ग का एक उठा हुआ टीला दक्षिण पूर्व को है । इस पर अब नए मकान बने हैं परन्तु बड़ी २ ईंटों से प्रमाणित है कि यह बहुत पूर्व काल में बसा हुआ था। टीले के मध्य में ध्वंश किला ३००फुट वर्ग है For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विज नौर। इतिहास कहता है कि पुराना नगर गिर गया था तब मेरठ जिले के मुरारी के अग्रवाल बनियों ने १२ वीं शताब्दी में फिर से बसाया । उन अग्रवालों के नाम द्वारकादास और कटारमल था उनकी संतान अभी तक यहां के मुख्य निवासी हैं । इसी स्थान को चीनी यात्री हुइनसांग ने मोतीपला लिखा है । यह यात्री यहां ७ वीं शदी में आया था। यहां वौद्धगुरु सिंहभद्र का स्तूप है जो पहली शताब्दी का अनुमान किया जाता है। यही स्थान सिंहभद्र के शिष्य विमलमित्र का समाधि स्थान है । दूसरा बड़ा टोला है जिस पर ग्राम मंडी बसा है जो किले के उत्तर पूर्व १ मील के करीब है। मध्य में सन्दर ताल है जिसके चारों ओर बहुत से टीले हैं । लालपुर के ग्राम में गुणप्रभ का मठ है । ( नोट-यहां जैन चिन्हों की अच्छी तरह जांच होनी चाहिये। (३) मोरधज-पर्गना-तहसील नजीवाबाद । पुराना ध्वंश किला नाजीबाबाद से कोट द्वारा की सड़क के पूर्व नजीबाबाद से ६ मील है। चंदन बाला-ग्राम में है। वह बड़ा नगर था। बहुत ही पुरानी जगह है । खंडहरों में पुराने नमूने की बड़ो ईंटे हैं। इस स्थानकी इंटे नजीबाबाद के पास पथारगढ़ बनाने में लगी हैं। किले के भीतर शिगरी नाम का बड़ा टीला है-यह एक वौद्ध For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्नारक । स्तूप समझा जाता है । यह मोरधज नाम मोरध्वज का अप भ्रंश है। पांडवों के समय में यह मोरध्वज स्वयं अवध में व इसका पुत्र पिलाध्वज विजनौर में रहते थे। दूसरी कहावत यह है कि यह वही जैन शत्रु सय्यद सालार का है जो वह रायच में मारा गया था । For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६-देहरादून (गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-- दक्षिण में सहारनपुर, विजनौर जिला ; पूर्व में टिहरी गढ़वाल राज्य, पश्चिम में सिरमूर, उत्तर में हिमालय । इसमें ११६३ वर्ग मील स्थान है।। (१, कलसो-पर्गना जैनसर बावर, तहसील चकराता। सहारनपुर चकराता की फ़ौजी सड़क पर ओ जमना नदी का पुल है उससे ३ मील है। यहां अशोक का स्तंभ है। (२) लखन मंडल-तहसील चकराता। यह स्थान पुरातत्व के लिये बहुत ही ध्यान देने योग्य है। पुरानी मूर्तियों से जगह छाई हुई है । एक शिलालेख में राजा सिंहपर का नाम आता है। इस लेख का समय ६०४ सन् ई० से स० ८०० ई० तक का है। यहां जांच होनी चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०-इटावा (गजेटियर छ० १६११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-उत्तर में फर्रुखाबाद मैनपुरी जिले, पश्चिम में आगरा, पूर्व में कानपुर, दक्षिण में जालौन, ग्वालियर राज्य। यहां १६६१ वर्गमील स्थान है। इस गजेटियर में इस जिले की किसी भी प्राचीन बात का वर्णन नहीं है। हम नीचे लिखे स्थान पर ता० ४ अप्रैल १९२३ को गए थे जिसका कुछ वर्णन यह है। (१) असाई खेड़ा-इटावा से ६ मील एक प्राचीन नगर ध्वंस पड़ा है-३ मील तक खंडहर मिलते हैं । यहां किला है। ग्राम के लोग कहते हैं कि यहां राजा जयचंद की नगरी थी। इस ग्राम के १ मील इधर बिरहोपुरा में वृक्ष के नीचे जैन प्रतिमाएं मिलती हैं। खास ग्राम में कई जगह मूर्तिये हैं। एक टीले पर ३ मूर्तियां खडगासन हैं जो तीन २ हाथ ऊंची हैं। अभी तक इटावे के जैनी लड़कों का मुंडन कराने को यहां आते हैं। एक ग्वाल के घर एक महावीर स्वामी की मूर्ति भीत पर जड़ी है जिस पर संवत १६०८ लिखा है। एक खेत For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इटाबा। ६३ - में दो मूर्तियां पद्मासन खंडित हैं उन पर संवत् १२२३ है । ददराग्राम पास में है। वहां एक मोल पर १ पद्मासन प्रतिमा का मठ है जिस पर संवत १२३४ जेठ सुदी १२ है। आगे जाकर कुएं के ऊपर पानी भरने के स्थान पर १ खड़गासन मूर्ति ३॥ हाथ ऊंची है। हाथ खंडित है । लेख स० ११११ वैसाख सुदी ५ मूल संघ प्रादि है। ये सब मूर्तियां दिगम्बरी हैं । मालूम होता है कि ११ वी व १२ वीं शताब्दी में दिगम्बर जैनियों का यहां बहुत प्रभाव था। ____ डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि उसमें इस असाई खेड़ा का वर्णन दिया है कि यह जैनियों की एक खास जगह है। यहां संवत १०१८ से १२३० तक की जैन मूर्तियां मिली हैं जो लखनऊ अजायबघर में रक्खी हैं । महमूद मज़नवी ने सन् २०१८ में इस असाई किले पर हमला किया था। यह उसका भारत पर १२ वां हमला था इस पुराने किले को राजा चंदपाल ने बनाया था (२) ऐरवा--तहसील विधूना, इटावा से उत्तर-दक्षिण २७ मील । विधूना को जाती हुई सड़क पर ग्राम के दक्षिण पूर्व एक प्राचीन जैन "दिर के खंड है। यहां जैनियों का प्रसिद्ध नगर पालभी या श्रालभिया था ( डा० फुहरर)। हतकांत (भिंड ) में एक प्राचीन जैन मन्दिर है जिसकी मूर्तियां इटावा के लाला मुन्नालाल द्वारकादास के बनाये मन्दिर में विराजित है। यहां कहते हैं कि ५१ प्रतिष्ठाएं हो चुकी हैं । यहां १ भोयरा है जिसमें बहुत सी प्रतिमाएं व भंडार हैं-अभी तक उसके मुंह का पता नहीं लगा है। For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१-मैनपुरी (गज़ टियर छ० १९१०) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: उत्तर में एटा, पूर्व में फर्रुखाबाद, दक्षिण में इटावा आगरा, पश्चिम में घागरा और एटा ज़िला। यहां १६४७ वर्ग मील स्थान है। (१) अकबरपर औंचा-पर्गना घिरोर । मैनपुरी से १६ मील । यहां के प्राचीन खंडहरों को देखकर यह अनुमान होता है कि यहां प्राचीन नगर था। चारों तरफ पुरानी ईंटों के बने कुएं मिलते हैं। पत्थर के मन्दिरों के ध्वंश हैं जिनको हिन्दुओं के मन्दिरों में लगा लिया गया है। एक पत्थर पर एक लेख है जो संस्कृत में संवत ३३४ का है। एक प्राचीन मन्दिर अभी तक बना है जो पत्थर के टुकड़ों से ढक रहा है । इस ग्राम के मालिक पहले फर्रुखाबाद के विशनगढ़ के जयचंद थे अब कानपुर के गोपीप्रसाद खत्री हैं । इनका भतीजा गोपीनारायण है। इस प्राचीन मन्दिर को बाहर निकालना चाहिये। (नोट-जैनियों को इसकी पूरी खोज करनी चाहिये)। (२) करीमगंज-मैनपुरी से ६ मील । एक बड़ी प्रसिद्ध जगह है। प्राचीन नगर के कुछ अवशेष हैं। सड़क पर एक द्वार के चिह्न हैं व सड़क के बाहर दूसरे द्वार के चिह्न हैं । एक खंडित मूर्ति सड़क के किनारे पड़ी है। नोट-इसकी भी जांच होनी चाहिये। -- - - For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२-फर्रुखाबाद (गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम में एटा मैनपुरो जिला, दक्षिण और दक्षिण पूर्व में इटावा, कानपुर, पूर्व मे हरदोई, उत्तर में शाहजहांपुर, बदाऊं । यहां १६८४ वगमील स्थान है। (१) कम्पिला-(यह श्री विमलनाथ तेरहवें तीर्थंकरकी जन्मभूमि हैं। मंदिर है-हर वर्ष यात्रा होती है। ग्राम में इधर उधर प्राचीन जैन-मूर्तियां मिलती हैं) यह राजा द्रुपद का स्थान है । मथुरा के राजाओं और सत्रपों (यूनानी हिन्दी राजा) के नाम के सिक्के सन ई० से २०० से १०० वर्ष पूर्व तक के सोन किसा में बहुधा मिलते हैं (जर्नल रायल एसि० सो० १६०८-१६०६)। वीरसेन के अधिकार में इस जिले का बहु भाग था क्योंकि उसके नाम के सिक्के बहुधा पाए जाते हैं ( जन० रा० ए० सो० १६०० सफा ११५) ___ वीरसेन के सिक्के कानपुर जिले में जाजमऊ तक पाए गए हैं । तिखा से दक्षिण पूर्व , मील जोखत स्थान में वीरसेन के नाम का एक शिला लेख सन् १८८६ में मिला है जिस पर संवत १३ या ११८ अंकित है (R, Burn ibd p. 552)। For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। (२) कन्नौज-यहां गुप्तों ने राज्य किया है। समुद्र गुप्त ने सन् ई० ३२६ से ३३६ तक राज्य किया । जब चीनी यात्री फाहियान आया था व यहां सन ३६६ से ४१४ तक ठहरा था तब चंद्रगुप्त द्वितीय राज्य करते थे। गुप्तों के पीछे मौखरियों ने राज्य किया । सातवीं शताब्दी के प्रारंभ के अनुमान मौखरी राजा गृहवर्मन् ने थानेश्वर के प्रभाकर को लेकर मालवा के राजा शिलादित्य से युद्ध किया, परंतु हार गया। कन्नौज को गौड़ के राजा शशांक के अधिकार में छोड़कर शिलादित्य थानेश्वर तक गया परंतु सन ६०६ में प्रभाकरके पुत्र राज्य ने उसे नष्ट किया, परंतु जब राज्य को शशांक ने मार डाला तब उसके छोटे भाई हर्ष ने अपना अधिकार जमाया। यही हर्षवर्द्धन-भारत का बड़ा राजा हो गया है। कन्नौज उसकी राजधानी थी। जब हुइनसांग चीनी यात्री यहां आया तब यह कन्नौज एक बड़ा समृद्धिशाली नगर था। राजा हर्ष पक्का बौद्ध था। नोट-इसके पहले के राजा जैन होने चाहिये-खोज होने की जरूरत है )। हर्ष ६४८ में मर गया। यशोवर्मा राजा ने* सन ७८१ में हर्ष के राज्य को विजय कर लिया। यशोवर्मा के पीछे वज्र युद्ध ने फिर इन्द - (जैन प्रभावक चरित्र में यशोवर्मा का वर्णन है ऐसा विन्सेन्ट स्मिथ ने रायलएसियाटिक सोसाइटी जनेख सन् १६०८ सफा ७८६ में लिखा है ( नोट यह शायद श्वेत मालूम होता है ) यहां इन्द्र युद्ध ७८३ ई० में राज्य करता था, यह बात जैन हरिवंश पुराण से मालम होती है)। For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फर्रुखाबाद। ६७ युद्ध ने राज्य किया। इस इन्द्रयद्ध को बंगाल के राजा धर्मः पाल ने सन ८०० ई० में राज्यच्युत कर दिया । कुछ काल पीछे गुजरात के राजा नागभट्ट द्वितीय ने हमला किया और ले लिया। इसी नागभट्ट से कन्नौज के परिहार राजाओं की उत्पत्ति हुई है, जिनका वंश गुर्जर था यह प्रमाणित हो गया है। नागभट्ट का पोता राजा मिहिर या भोज प्रथम सन् ८४० से ८६० में हो गया है। इस समय कन्नौज बड़े राज्य का मध्य स्थल माना जाता था। शिला लेखों से प्रमाणित है कि इसके राज्य में सौराष्ट्र, अवध, ग्वालिपर, और कर्नाल शामिल थे। उसका पुत्र महेन्द्रपाल हुआ , तथा पोता भोज द्वितीय हुा । फिर राजा महीपाल ने सन ५० में राज्य किया । अंतिम राजा-देवपाल सन् ६५४ में हुआ जो कालंजर के चंदेल राजाओं के आधीन हो गया, प्राचीन सिक्के सिंह भवानी और कुतलूपुर में मिले हैं। राजगिर मकरंद नगर, मखदूम जहनिया का टीला, रंगमहल और बालापीर के स्थानों में भी बहुत से पदार्थ मिले हैं। जर्नल रायल एसियाटिक सोसायटी सन १६०६ से कन्नौज के सम्बन्ध में यह मालूम हुआ कि गुर्जर राजाओं का वर्णन शाका ५५६ या सन ई० ६३४.६३५ के उस शिला लेख में है जो बम्बई प्रांत के कालदगी जिले में ऐहोली के मेघुती मंदिर में For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। है। इसमें चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय के महान कार्यों का वर्णन किया है । इसमें लिखा है कि इसने अपने प्रभाव से लाटों मालवों और गुर्जरों को अपने वश कर लिया था ( देखो इंडियन एंटिक्करी जिल्द = सफा २४४)-वर्तमान शान से मालूम हुआ कि ये गुर्जर राजपूताना वासी थे। नोट-हमने ऐहीलो नाम के प्राचीन नगर की यात्रा ता० ३ जून सन १९२३ को की थी। यहां पहाड़ी पर एक बड़ा जैन मंदिर है इसी को मेघुती मंदिर कहते हैं । यहां एक बड़ा शिला लेख भीतपर कनड़ी अक्षरों में है । यह मंदिर जैन राजा का बनवाया मालूम होता है। (२) पिलखना-कायमगंज से सराय अधत जाते हुए सड़क पर एक ग्राम है । कहावत बताते हैं कि इसका सम्बन्ध सनकिसा के प्राचीन खंडहरों से है जो यहां से बहुत दूर नहीं है । यहां एक बड़ा पशुओं का मेला अब भी होता है जिस. के लिये यह स्थान प्रसिद्ध है। यह ग्राम एक ऊंचे टीले पर है। यहां बहुत से पत्थर खोदे गए हैं तथा जैन मंदिर के प्राचीन अंश यहां मिले हैं। (३) सनकिसा-वसंतपुर-यह प्राचीन नगर था । यहां बौद्धों की मीनारें हैं (देखो कनिंघम रिपोर्ट A. S., I. P271279 & XI. P22-31) __ खंडहरों के टीले पर एक विसारीदेवी का मंदिर है। एक टीलेको नीवी का कोट कहते हैं-३००० फुट लम्बा व For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फर्रुखाबाद | ६६ २००० फुट चौड़ा स्थान है जहां खंडहरों के ढेर हैं । पौन मील का एक टीला है जिसको अघत कहते हैं । यह प्राचीन नगर का एक भाग है। एक सरोवर है जिसे कन्हैयाताल कहते हैं। राजा अशोक का स्तंभ संकिसा में ४४ फुट ३ इंच ऊंचा हैं । कनिंघम साहब की रिपोर्ट ग्यारहवीं में लिखा है कि सांकिसा में जो अत सराय का टीला है उस पर जैन और ब्राह्मणों के पाषाण हैं- इनमें ४ मूर्तियें पीतल धातुकी जैन तीर्थकरों की हैं । नोट- यहां जांच करने से जैन पुरातत्व मिलेगा । For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३--एटा (गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: उत्तर में गंगा नदी बदाऊँ जिला; पश्चिम में अलीगढ़, मथुरा, आगरा; दक्षिण में आगरा और मैनपुरी, पूर्व में फर्रुखा बाद । इसमें १७२२ वर्ग मील स्थान है। इतिहास में लिखा है कि अतरंजी खेड़ा और अन्य स्थानों के बड़े २ टोलों को व विलसर के खंडित स्थानों को देख कर यह प्रगट है कि बहुत प्राचीन काल में इस जिले में बड़े और ऐश्वर्यपूर्ण नगर थे । कनिंघम ने विलसर को खुदवाया था और वहां एक मंदिर के खंड मिले थे। उस मंदिर में राजा कुमार गुप्त प्रथम का लेख था। जो गुप्त सं०६६ या ४१५ ई० में हो गया है। (१) अतरंजी खेड़ा-एटा से उत्तर १० मील सोरों से १५ व संकिसा से ४३ मील । कहते हैं कि प्रसिद्ध चक्रवर्ती राजावेन के बड़ों ने यहां एक दृढ़ किला बनवाया था । हुइनसांग ने इस जगह को पिलोचन लिखा है। इस नगर में राजा अशोक का एक स्तूप था। __ (२) विलसर-पर्गना श्राज़मनगर तहसील अलीगंज। यहां पश्चिम के कोने में एक टीला है । उसकी सबसे ऊंची For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एटा। १०१ जगह पर एक चौकोर चबूतरा है जिसके ऊपर बहुत से पत्थर के खंड एकत्रित हैं।। (३) पटियाली-तहसील अलीगंज। यहां बहुत से खंडहर हैं । यह एक प्राचीन नगर था। (४) सोरोन-तहसील कासगंज । इसका मूल नाम उकल क्षेबरी था। यह प्राचीन नगर था। For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४ - आगरा (गज़ै० छुपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: पश्चिम में भरतपुर राज्य, दक्षिण में धौलपुर, ग्वालियर, उत्तर में मथुरा, एटा: पूर्व में मैनपुरी, इटावा । इसमें १८५३ मी स्थान है 1 इतिहास में कथन है कि यहां बटेश्वर और सूर्यपुर वास्तव में बहुत प्राचीन हैं । अपोलादातस (ग्रीक राजा ) का एक सिक्का और कुछ पारथियों का धन यहां मिला है, ऐसा कहा जाता है । परन्तु जो थोड़े पत्थर खोदे गए हैं वे सब जैन स्मारक हैं उनमें से केवल एक बौद्ध मालूम होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) बाह - यहां भदावर के राजा रहते थे । भदौरियों के पुराने किले हैं। (२) बमरौली कटरा- यहां भी प्राचीनता है। बटेश्वर - आगरा से ४१ मील उत्तर पूर्व की तरफ जो पुराना खेड़ा तथा उत्तर की तरफ जो खडा है इन टीलों पर बहुत सी प्राचीन वस्तुएं जैसे ईंटे, मकान, सिक्के व पाषाण मिले हैं। यह सब T प्राचीन स्मारक प्रगट रूप से जैन हैं । ( The relics are A -FL For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगरा। १०३ apparently Jain) यह स्थान सन् १८७१ में खुदाया गया था । (A. S. N. I. IV 221.) (३) चांदवड़-फीगेज़ाबाद से दक्षिण पश्चिम ३ मील । यह बड़ी ऐतिहासिक जगह है । मीलों तक पुराने मन्दिरों के खंडहर हैं। (नोट-जांच होनी चाहिये) (४) कगरल-तहसील खैरागढ़-आगरा से दक्षिण पश्चिम १६ मील । यह स्थान बहुत बड़ी प्राचीनता का है। वर्तमान ग्राम एक पुराने किले के अंशों से बने हुए टीले पर बसा है। यहां प्राचीन पाषाण व सिक्के बहुधा मिलते रहते हैं परन्तु अभी तक खुदाई का कोई उद्योग नहीं किया गया। ( यहां भी जांच होनी चाहिये )। (५) कोटला-मैनपुरी के किनारे के पास। यह जादो वंश का कोटला राज्य है। (६) सरेन्ध-तहसील खैरागढ़ । आगरा से दक्षिण पश्चिम २४ मील । सड़क के पास पुराने किले के भाग हैं। ____ डाक्टर फुहरर की रिपोर्ट से विदित हुआ कि आगरा किले के नदी तरफ के द्वार के बाहर किले और नदी के बीच में चौखंटे वर्ग काले पाषाण के कई स्तंभ मिले हैं जिन पर जैनियों के २० वे तीर्थंकर श्री मुनि सुव्रतनाथ की मूर्ति है और कुटिल अक्षरों में लेख सं० १०६३ व सन् १००६ का है। इसमें For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । कोई सन्देह नहीं कि ये खंभे उस द्वार के हैं जो नदी की तरफ किसी प्राचीन जैन मंदिर का था जो शायद किले के बनते वक्त गिराकर नष्ट कर दिया गया होगा। (७) फतहपुर सिकरी-आंख मिचौली के पास एक छोटा सा चबूतरा है जिस पर चार खंभों का मंडप जैन कारीगरी का है। इसमें बादशाह अकबर द्वारा नियत कोई हिन्दू उपदेशक बैठता था। नोट-शायद यहां जैनाचार्य बैठकर उपदेश करते रहे हों ? For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५-मथुरा ( गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है। उत्तर-पश्चिम-गुड़गाँव, उत्तर पूर्व अलीगढ़, दक्षिण में श्रागरा, पश्चिम में भरतपुर राज्य । इसमें १४४५ वर्ग मील स्थान है। इसके इतिहास में वर्णित है कि यह मौर्य राज्य का प्रसिद्ध नगर था। सन् ई० से ५०० वर्ष पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक मथुरा में बौद्धमत का ज़ोर रहा। मथुरा मठ के साधु उपगुप्त ने अशोक मौर्यको बौद्धमती बनाया (नोट. यह सिद्ध है कि राजा अशोक पहले जैनी था। इसका पिता विंदुसार व दादा राजा चंद्रगुप्त भी जैनी था)। सन ई० से १८४ वर्ष पूर्व में मौर्यो का राज्य समाप्त हुआ और पुष्यमित्र ने संगवंश स्थापित किया । उसके राज्य में ग्रीकराजा मिनन्दर मथुरा को ले लिया । इसने बौद्धमत स्वीकार कर लिया । बौद्ध साहित्य में इसको राजा मिलिन्द के नाम से लिखा है ! इस मिनन्दर के समयसे लेकर कुशान वंश के समय तक मथुरा इन्डो-ग्रीक अर्थात् हिन्दी यूनानी राजाओं के अधिकार For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । में रहा जिन राजाओं को सत्रप कहते थे । यही सत्रप शायद शाक लोग हैं। इनमें बहुत ही प्रसिद्ध सत्रप सोदास हुआ है जो सन ई० से ११० वर्ष पूर्व हुआ है। मथुरा में सत्रप - सोदास के नाम का एक शिला लेख है । यह सत्रप राजीवल का पुत्र था जिसके पहले सत्र होगन तथा हगमाश हो गए थे । सन ई० ४५ में कुशान राजा कडप्लूसी प्रथम राजा हुआ । फिर कडल सी द्वितीय करीव ८५ ई० में राजा हुआ । उसके पीछे सन ई० १२० में कनिष्क राजा हुआ । कनिष्क ने अपनी राज्यधानी पुरुषपुर (वर्तमान पेशावर) को बनाया । आखरी दिनों में यह बौद्धमती हो गया। सन ई० १५० में हविस्क ने राज्य किया फिर वासुदेव राजा हुआ कुशानों के राज्य में मथुरा एक समृद्धिशाली नगर था जैन और बोद्ध की मूर्तियों पर जो प्रतिष्ठा कारकों के लेख मिलते हैं वे सब बणिक जाति के हैं । इससे यह प्रगट है कि यह नगर व्यापार का बड़ा केन्द्र था । भारतीय कथाओं की प्रसिद्ध पुस्तक पंचतंत्र के पहले भाग में एक वणिक की कथा है जो अपने बैलों १ ( नोट - जान्हर्टल जर्मन विद्वान ने प्रमाणित किया है कि इसके रचयिता जैन थे। इस पंचतंत्र का उल्था पहलवी भाषा में खुशरो अनुशीरवा की श्राज्ञा से सन ५३१ के करीब किया गया था। संभव है यह पुस्तक पहली शताब्दी के करीब लिखी गई हो । For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मथुरा। को लेकर दक्षिण के महिलारोप्य नगर से चलता है और मथुरा को जाने वाले व्यापारी मंडल (जो घोड़ो और ऊटों पर सामान लाद कर चलते थे) के साथ हो जाता है। अभी तक जो शिला लेख राजा कनिष्क, हुविष्क, व वासुदेव के नाम के निकले हैं वे सब ७१ हैं-इनमें से ५६ मथुरा से निकले हैं। इनमें से ४३ शिला लेख जैनियों के हैं जो कंकालीटीला से निकले हैं-सब ब्राह्मी लिपि में हैं। __ सन् ई० ३२०-३२६ में चंद्रगुप्त ने, फिर समुद्रगुप्त ने, फिर ४१५ ई० में चंद्रगुप्त द्वि० ने राज्य किया। जब फाहियान चीनयात्री आया था, बौद्ध धर्म उन्नति पर था । गुप्तों के पीछे हूणों ने राज्य किया। ६२० ई० के करीब राजाहर्ष वर्द्धन मथुरा का स्वामी हो गया। तथा सन् ई० ७२५ से १०३० ई० तक मथुरा भिनमाल और कन्नौज के गुर्ज-प्रतिहार राजाओं के अधिकार में रहा। ___ मथुरा ही के प्रमाणों से यह सिद्ध है कि जैन और बौद्ध धर्म के साथ २ मथुरा में नागदेव की पूजा भी प्रचलित थी। (१) चौमुहा-देहली जाती हुई बड़ी सड़क पर मथुरा से १० मील । चौमुखाजैन स्तम्भ का आसन यहां मिला हैइसी से इसको चौमुहा कहते हैं । कंकाली टीले के जैनस्मारक पुराने किले की जगह, सीतलघाटी तथा रानी का मंडी में मिले हैं। For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । - (२) परखन-मथुरा से दक्षिण १७ मील-कानपुर अचनेरा रेलवे का एक स्टेशन है। यहां १८८२ में एक मनुष्य की बड़ी मूर्ति मिली थी जो सात फुट ऊँची व २ फुट चौड़ी है व भूरे पाषाण से बनी है व जिस पर अशोक के समय का लेख है। अब तक मथुरा में जितने स्मारक मिले हैं उन सब से यह प्राचीन है तथा यह मूर्ति मथुरा के अजायबघर में रक्षित है ( कनिंघम पार० जि०२० सफा ३६-४१) । नोट-इसको देखना चाहिये । (३) सहपन-तहसील सादाबाद । जैसवाल जैनों का हाल का मंदिर श्री नेमिनाथ जी का है । यह मंदिर एक पुराने किले पर है, जो बहुत उठा हुआ है तथा जिसने १३ बीघा जमीन घेरी है । इस किले से काले कंकड़ की बहुत बड़ी २ शिलायें मिली हैं-कुछ जैन पाषाण वहां फैले पड़े हैं। इनमें से एक पाषाण बहुत ध्यान देने योग्य था। उसको मि० प्रैसे ने मथुरा अजायबघर में रक्खा है। नगर के बाहर एक चबूतरा है जिसको भद्र काली माता का पवित्र स्थान कहते हैं। इस के ऊपर बहुत सी जैन मूर्तियां रक्खी हुई हैं। अरकिलाजिकल सरवे रिपोर्ट सन् १९०६-७ में सफा १४१ पर लेख है कि अर्जनपरा के टीले में मौर्य समय के बड़े स्तूप के अंश मिले हैं। पुराने किले के सीतलघाटी तथा रानी की मंडी पर जैन स्मारक मिले हैं। For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मथुरा। १०६ सन् १९११–१२ की रिपोर्ट सफा १३३ में वर्णनहै कि प्राचीन वस्तुओं में से जो यहां निकली हैं, एक खंडित चौमुखी जैन मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है । इसका नाम है प्रतिमा सर्वतो भद्रिका । इस पर ब्राह्मी अक्षरों में कुशान समय का खंडित लेख है जिसके अक्षर ऐसे पढ़े जाते हैं:"खाको वाच (कस्य) सूर्यतो संदोसस्य निर्वर्तना ...रकस्य भट्टि रामोस्या"। मथुरा के कंकाली टीले के सम्बन्ध में डा० फुहरर ने लिखा है कि यहां सन् १८०६ में खुदाई करने पर दिगम्बर जैनियों की १२ बड़ी मूर्तियां कनिष्क, हविष्क और वासु. देव के समय की निकलीं, तथा दो मूर्तियां श्री पद्यप्रभु की संवत् १०३६ व ११३४ की श्वेताम्बर जैनों की निकली हैं । मथुरा के अजायबघर में जितनी जैन मूर्तियां हैं उनमें अधिकांश दि० जैनों की हैं और वे बहुत प्राचीन हैं । लखनऊ के अजायबघर में भी बहुत सी दि० जैन प्राचीन मूर्तियां हैं, जो पहली शताब्दी की हैं। For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६-बुलन्दशहर डा० फुहरर की रिपोर्ट से।विदित हुआ कि यहां इन्दौर नाम का एक प्राचीन स्थान अनूपशहर से १० मील है। यह पुरातन इंद्रपुर है। प्राचीन मंदिर का स्थान है। तांबे के पत्र निकले हैं जिनमें लेख गुप्त संवत १४६ या सन् ४६४ के है जब राज स्कंदगुप्त का था। तथा बहुत से पुराने सिक्के मिले हैं जो अशोक के समय से भी प्राचीन हैं। पुराना किला है । इन्दौर के पश्चिम कुन्दनपुर और अहीरपुर के बड़े टीले हैं। For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७-उन्नाव डा० फुहरर की रिपोर्ट से विदित हुआ कि यहां तहसील सफीपुर में वांगड़मऊ है जो उन्नाव से उत्तर पश्चिम ३१ मील है । वांगड मऊ से दक्षिण पश्चिम २ मील पचनाई नाले के तट पर एक टीला है जो १५ एकड़ का है इसको नवल कहते हैं । कहते हैं यहां श्री महाबीर स्वामी का समवशरण आया था। जैन पस्तकों में इसका नाम अालभिया नगर है। इति। For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबरपुर अगारी ऐरौनी to w km अजगर १०२ १३,१४ ४,५, ६२ ८१ अजयगढ़ अतरंजी अमोढ़ा अलाहाबाद असनी असाई खेड़ा असे थर अशकपुर अहिच्छत्र अहीरपुर अागरा प्रायाह श्रालभिया पालभी इटावा इसलामनगर उहरनपुर ভম্বৰ उपधौली अनुक्रमणिका ६४ ऐरवा ___५६ औरई औंग श्रौंधखेड़ा औंरिहर ककुभ कोरिया कगरल कटारी क्षेत्र १,६२ कन्नौज कपिलवस्तु ११० कम्पिला करीमगंज कलगवां कलसो कल्हेट ६२ काकपुर कालिंजर | कासिया १११ काशीपुर २ किरौदा १०० किसखवंस ६५ १०२ W ३१ * 33y For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कीर्तिखेड़ा कुंतलपुर कुडलपुर ( २ ) ३२ गाजीपुर ६७ गुगरद्वार गुगरवारा गुढ़ा गुरसोग गेहराहो गोडा गोरखपुर ४८ गोला ८५ गोलारायपुर ५४ चरदा १०३ चंद्रपुरी २६,२६,३४,८० चांदपुर | चांदवड़ ३ २३ ४८,४६,५८ कुलपहाड़ कुहाऊं केरामंगरौर केलेन्द्रपुर केलगवां कैलाशपट्टी कोटरा कोटला कोसाम कौशाम्बी क्षेत्रपाल खजरा खजराहा खजूरपुर खजूरिया खीचरगढ़ी खुखुन्दो खेरनीपुर खेरी खैराडीह गौर गढ़वा गरंथ चिचितो चौमुहा ३५,४१,४२ जगतपुर जखौरा जहानाबाद जंजाहुति जाजमऊ जालौन जौखत झांसी झूसी ५६ / टांडा For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११,१२ ३१ १११ टांडवा टिकसरिया टोगरी टौंगा डोमनगढ़ तरहुवान तिच्छोकपुर तिरवा धरों थोवों दतिया ४८ ६८ नगर नगसर नरायनपुर नवल नराजूराय नाथनगर निगाही नैनीताल नौबस्ता पटना पटियाली पदरौन पयोरा परखन परतापगढ़ परसरामपुर पवा ४८,५२ पवौसा पंचमपुर ४७,४८,४६ पाटन ३,२५,८३ पाटनपुर पारशनाथ पाली पावा १५ पिलखना ५४ | पीपरहवा १७ / पीलीभीत १०८ १६ १६ ३५ ददरापाम दसरारा दालमपुर दिनई दिलदारनगर दीप दुधई देवकुंड देवगढ़ देवरिया देहरादून दौलतपुर धनपुर धनवार धंगल धोपाप ५४ ५ Mm ६ १. For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूरनपुर ८४ | बार पैला ७३ / बारा ५७ ११,१२ ११ प्रतिष्ठान फतहपुर फर्रुखाबाद फैजाबाद बटेश्वर बड़ा कटरा बदाऊं बनारस बमरौली बरताला बरवीर डीह बरही बराहछत्र बरेली बरोदियारायन बर्डपुर बलवेहाट बलिया बस्ती बहमनपुर बहरायच बंदरगुढ़ा बाजपुर बानपुर बांदा बिजनौर बिहार बुधनी बुलन्दशहर | भन्देर भरी भागलपुर भिटौरा भितरी भिदा मकसी मकारवाई मझगांव मथुरा मदगवां मदनपुर मदनसागर ७६ मदौरा मधुवन मनवान ५८ मन्दावर ४८,५६ | मन्धा ४८ ४४ १०५ ५६ ३५,५४, ५५ ५५ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मरखेश मरौरी मलतावान महरौनी महोत्सव महोली महोवा माऊ माटी माध मान मासवान मिरजापुर मुकतोरा मुरादाबाद मुंडी मैनपुरी मैंनवा मोतीपुलो मोरधज मारफा रसरा रंकी राजधानी राजपुर रानीपुर रामगढ़ www.kobatirth.org ( ५ ) ५६ रामतावक ८३ रामनगर ७५ रामपुर ५६ रायपुर ३६ | रायबरेली ४८, ५४ | रूद्रपुर ३६, ४० | रेन ५८ लखनमंडल ७७, ७८ | लखनेश्वर ३८ लगोन ५५ ललितपुर १५ लालपुर ५६ लिधोरा लुम्बिनीग्राम वरई ५४ ८६ = ६४ ५४ मह ८३,८६ ३७ २५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरवासागर वरहापुर विन्दाचल विलसर विलाता वीतभाया पट्टन वीरपुर ६ वुहचेरा २ वैरौट ५४ ५८ २२ सकरा सतोन सनकिसा For Private And Personal Use Only १३ ३८,८२ ११ ५४ ७१ ५ ३२ ६१ २२ ५४ ५४,५८ ८६ ४८, ५४ १२ ११ ५६ ८८ ५६ १०० ४८ २५ १४, १५ ५४ २२ ४४ ३३ ६६ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ सम्बल सरकी सरन्ध सहनकोट ३० ६५ ४८ सहपन ६१,६२ ५६,५७,५८ ४ ७७ ८६ सेन्या सैदपुर सोनकिसा सोनागिर १०८ सोरोन ७६ सोहनाग सौरई शाहगढ़ शाहजहांपुर श्रावस्ती हतकांत हमीरपुर हरदोई हर्षपुर हंसक्षेत्र हंसगवां हाथिली हिंगोटार १०२ | हिन्दुधनां सहसवा सहेठमहेठ सिकन्दरपुर सिकरी (फतहपुर) सिमन्त्री सिरा सिरोन सिरों सिंहपुरी सिंहभवानी सीतापुर सुमेरपुर सुरर सुल्तानपुर सूर्यपुर 18 m MK Kk K chr For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्मृति 'स्व० कुमार देवेन्द्र प्रसाद जैन' श्रारा, की स्मृति किस हिन्दी प्रेमी के हृदय में न होगी। उन्हीं के वियोग में उनके परम मित्र पं० गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरीश बी. ए. द्वारा यह भाव पूर्ण कविता प्रवाहित हुई है । भाषा और भाव दोनों बहुत ही हृदयग्राही हैं। राज संस्करण ||) जो लोग बिना मूल्य वितरण के लिये, इसकी ५० व अधिक प्रतियां खरीदना चाहें उन्हें यह आधी कीमत में मिल सक्ती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कीमत www. पता पं० गिरिजादत्त शुक्ल ' गिरीश ' बी. ए. साधारण । बैनीमाधव ग्रन्थमाला, जैनहोस्टल, अलाहाबाद | For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only