Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HARIBHADRA'S SANATUKUMARA-CARIYA .. (A SECTION OF HIS NEMINĀHA-CARIYA) L. D. SERIES 42 EDITED BY GENERAL EDITOR PROF, H. C. BHAYANI PROF. M. C. MODI DALSUKH MALVANIA L. D, INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Swami Tribhuvandas Sastri, . Shree Ramanand Printing Press, Kankaria Road, Ahmedabad 22, and Published by . . Dalsukh Malvania Director L. D. Institute of Indology, Ahmedabad 9, FIRST EDITION January, 1974 PRICE RUPEES 81 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहरिभद्रसूरिविरचित अपभ्रंश महाकाव्य 'नेमिनाहचरिय' अन्तर्गत सणतुकुमारचरिय [भूमिका, गुजराती अनुवाद तथा हरिभद्रविरचित प्राकृत 'मल्लिनाहचरिय' अन्तर्गत “सनत्कुमार-चक्रवर्ति-कथानक' सहित] संपादक प्राध्या० हरिवल्लभ चु.भायाणी प्राध्या. मधुसूदन चि. मोदी भारती दलपत प्रकाशक: लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर teres अहमदाबाद Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE the L. D. Institute of Indology has great pleasure in publishing the présent volume containing Haribhadra's Sanatukumāracariya (a section of his Neminahacariya, an Apabhramśa epic published in the L, D. Series - Nos. 25, 33) along with its Gurajati translation , :: I am thankful to Prof. H. C. Bhayani and Prof. M. C. Modi for preparing the Gujarati translation of the text. This will satisfy the need of the Gujarati readers interested in the study of Apabhramsa language and literature. The special feature of the present work is the studied introduction which traces the development of the story of Sanatkumāra, explains the metres, notes the peculiarities of the language and forms the estimate of the work. Again, the learned professors have edited here in the Parisista a hetherto unpublished Sanatkumāra-cakravartikathānaka (gātbas 1-322) contained in the unpublished Prakrit poem entitled Mallinātha-carita composed by the same Haribhadra. I hope that this publication will be very useful to the students of Apabhramśa language. . L. D. Institute of Indology, Ahmedabad-380009 26th January, 1974. Dalsukh Malvania Director. Page #6 --------------------------------------------------------------------------  Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम पृष्ठाङ्क भूमिका सणतुकुमारचरिय (मूलपाठ) गुजराती अनुवाद परिशिष्ट (हरिभद्रसूरि-विरचित-प्राकृतभाषा-निबद्ध-मल्लिनाथचरितान्तर्गतं सनत्कुमारचक्रवर्ति-कथानकम्) . १-८८ ८९-१३२ १३३-१६.०. Page #8 --------------------------------------------------------------------------  Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... ..... .... : भूमिका ... प्रास्ताविक - अहीं जेने मुख्य कृति तरीके आपवामां आवी छे ते 'सनत्कुमारचरिउ'एटले के सनत्कुमारचरित कोई स्वतंत्र रचना नथी, पण हरिभद्रसूरिना अपभ्रंश महाकाव्य . 'नेमिनाहचरिय' (=नेमिनाथचरित)नो ज एक भाग छे. चित्रगति विद्याधर तरीकेना नेमिनाथना त्रीजा भवमा एक आडकथा लेखे आ सनत्कुमारचरित आपवामां आव्युं छे. शरदऋतुमा पोताना परिवार अने मित्रो साथे बेठेला चित्रगतिने सुमति नामनो बंदी पोते एक चारणमुनिनी पासेथी सांभळेलु सनत्कुमार चक्रवर्तीन कथानक मनोविनोदने माटे कही संगळावे छे. चित्रगतिभवना वृत्तान्तना ६८३ छंदोमांथो ३४३ छंदोमां-एटले के अरधा जेटला भागमा सनत्कुमार चरित गूंथेलु छे. ते ४४४मा छंदथी शरू थाय छे, अने ७८६मा छंदमां पूरे थाय छे. हरिभद्रसूरिना 'नेमिनाहचरिय'नी बे हस्तप्रतो मळे छे. एक जेसलमीरनी ताडपत्रनी प्रत (आशरे १३मी सदी पहेलांनी) अने बीजी ला. द, भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमांना विजयदेवसूरि संग्रहनी कागळनी प्रत (आशरे सोळमी के सत्तरमी सदीनी). जेसलमीरनी प्रत · प्राचीन, घणी ज शुद्ध अने विश्वसनीय छे. प्रस्तुत 'सनत्कुमारचरित'नो पाठ पण तेने आधारे ज तैयार करवामां आव्यो छे. कचित्. ज्यां कागळनी प्रतमां लेखनफेर छे त्यां पाठफेर , नोध्यो छे. पण कागळनी प्रत अने ताडपत्रनी प्रतमा एकनी एक ज पाठपरंपरा छे. फरक कोई कोई अक्षरो पूरतो. मर्यादित छे............ .... हरिभद्रसूरिए 'नेमिनाहचरिय' वि० सं० १२१६मां (ई० स० ११६०मां) अणहिल्लवाडपाटणमा कुमारपालना राज्यमां रच्यु. आ चरित्र रचवामाटे राजाना मन्त्री पृथ्वीपाले * हरिभद्रसूरिने प्रार्थना करेली. हरिभद्रसूरिए नेमिनाथना चरित उपरांत वाकीना पण त्रेवीशे य तीर्थकरोना चरित रचेलां छे. तेमांथो तेमनां अजितनाथ, चन्द्रप्रभ अने मल्लिनाथ तीर्थकरनां प्राकृत भाषामां रचेला चरित प्राप्त थयां छे. पण हजी सुधी ते कृतिओ हस्तप्रतरूपे ज छे. संपादित के प्रकाशित नथी थई. हरिभद्रसूरि वडगच्छ के बृहद्गच्छना जिनचंद्रसूरिना प्रशिष्य अने. श्रीचंद्रसूरिना शिष्य हता. तेमणे रचेलां चोवीश तीर्थंकरोनां चरितोनुं श्लोकप्रमाण ... * भा. पृथ्वीपाल मन्त्री विशेनी तथा हरिभद्र विशेनी विगतो माटे 'नेमिनाहचरिय'नी . भूमिका जोवी: Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे लाख श्लोक जेटलं अटकळी शकाय छे. आ उपरथी प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य रचवानी तेमनी असाधारण शतिनो ख्याल आवशे. पूर्वेनुं संपादन - हरिभद्रनुं आ अपभ्रंश सनत्कुमारचरित्र आ पहेला एक वार प्रकाशित थई चूक्युं छे, अने ते प्रकाशननुं ऐतिहासिक महत्त्व छे. ई. स. १९१४ पहेलां अपभ्रंश भाषाना साहित्यनी कोई सळंग रचनाथी अर्वाचीन विद्वानो अजाण हता. एवी कोई रचना हजी तेमने उपलब्ध थई न हती. भारतीय विद्याना प्रकांड जर्मन पंडित हेर्मान याकोबीने तेमना १९१३-१९१४ना भारतप्रवास दरमियान अमदावादमांथी धनपालनी 'भविस्सत्त-कह'नी अने राजकोटमांथी हरिभद्रना 'नेमिनाहचरिय'नी एम बे अपभ्रंश काव्योनी हस्तप्रत जोवा मळी. ए अपभ्रंश साहित्यनी मूल्यवान कृतिमओ जोतां ए प्रकारचें एक अलग साहित्य जळवायु होवानी तेमने प्रतीति थई अने प्राप्त कृतिओना संपादन-प्रकाशननी पाछळ तेओ लागी गया. तेमना पुरुषार्थने परिणामे आपणने अपभ्रंश भाषा, साहित्य इत्यादि विशेना विस्तृत शोधपूर्ण निबंध साथे, तथा जर्मनमां भाषांतर अने सार्थ शब्दकोश साथे संपादन करेली 'भविस्सत्तकह'(१९१८)नी आवृत्ति मळी. ते पछी ते ज पद्धतिए तेमणे 'नेमिनाहचरिय'मांथी. 'सणंकुमारचरिय'नो अंश संपादित करीने अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना, अनुवाद अने शब्दकोश सहित जर्मनीमां १९२०मां तैयार कर्यो भने पुस्तकरूपे ते १९२१मा प्रकाशित थयो, आथी अपभ्रंश भाषा अने साहित्यना अध्ययन भने संपादन-प्रकाशनना श्रीगणेश मंडाया. याकोबीए आ विषयने लगती' अनेक समस्याओ स्पष्ट करी पीः तेमाथी केटलोकनो तेमणे उकेल आप्यो. तो केटलीकना उकेल माटेनी दिशा चींधी ने अध्ययननी दृष्टि अने पद्धति अंगे तेमणे राजमार्ग तैयार करी आप्यो. . तेमनुं 'सणंकुमारचरिय' तेमने प्राप्त (अने प्रस्तुत संपादन माटे पण उपयोगमा लीधेली) कागळनी एकमात्र प्रतने आधारे तैयार करेलं छे. * ए * Sanatkumāracaritam : ein Abschnitt aus Haribhadras Neminahacaritam (सनत्कुमारचरितम् : हरिभद्रना नेमिनाथचरितम्नो एक खण्ड)-: अपभ्रंशमां रचेली एक जैन कथा : सम्पादक, हेर्मान याकोबी (प्रस्तुत कयुः ५मी जून १९२०, बायरनी विज्ञान अकादेमोनो तत्त्वज्ञान-साहित्य-अध्ययन वर्ग, ३१मो प्रन्य, बीजो शोधनिबन्ध, प्रकाशित, म्युनिक १९२१. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतनी लेखनपद्धति घणी विचित्र छे. अनेक अक्षरोना आकारो एकबीजा साथे सहेजे गूंचवाई जाय तेवा छे. , य् अने म्, म अने स्, च् अने वू, घ भने थ्, ट् अने ठ, इ अने द, त् भने न् च्छ अने स्थ, ह भने छाड्, ड्ड् वगैरेस हेजे एकबीजाने बदले वांची शकाय तेवा छे. वळी १९१५नी आसपास अप शना व्याकरण- अने छंदरचनानुं ज्ञान पण अविकसित हतुं. आवी विकट परिस्थितिमां याकोबीमे 'सनत्कुमारचरित' पर करेलं सफळ कार्य एक ज्वलन्त सिद्धि गणाय तेम छे. याकोवीमे तेमना ए संपादनमा ४४३थी ७८५ सुधीना छंदोनो पाठ छन्ददृष्टिले चकासीने रोमन लिपिमा आप्यो छे. तेने अंते मूळ प्रतना अशुद्ध पाठ आप्या छे. ते पछी जर्मन भाषामा अनुवाद (अर्थघटनने लगती चर्चानोंधो साथे) आप्यो छे. ते पछी संस्कृतमा अर्थ, देश्य सामग्री माटेना आधार अने व्याकरणीय स्वरूपना निर्देश साथे शब्दकोश आप्यो छे. परिशिष्टमां 'नेमिनाहचरिय'ना आद १० छंदो अने अंत्य २८ छंदो जर्मन अनुवाद साथे तथा आ बन्ने खंडोना विशिष्ट शब्दोना कोश साथे आप्या छे. छेवटे शुद्धिवृद्धिनुं पत्रक मूक्युं छे. भूमिकामां (१) हरिभद्रसूरि अने तेना आश्रयदाता पृथ्वीपाल विशेनी माहिती, (२) सनत्कुमारचरित्रने लगती संक्षिप्त परंपरा, (३). हरिभद्रनी रचनानो विस्तृत सार, (४) अपभ्रंश भाषाना सामान्य स्वरूप विशे, 'भविसत्तकह'नो. प्रस्तावनामां करेली चर्चामांना केटलाक प्रश्नोनी पुनःचर्चा, (५) हस्तप्रतनो परिचय अने पाठ प्रस्तुत करवानी पद्धति, (६) आटली प्रस्तावनानी सूचि, (७) 'सनत्कुमारचरित'ने आधारे तैयार करेलु विस्तृत अपभ्रंश व्याकरण, (८) 'सनत्कुमारचरित'नी छंदोरचना (पंचपदीनां एकी तथा वेकी चरणोना तथा दोहानां चरणोना स्वरूपविश्लेषण अने केटलाक गणोना स्वरूपने लगती अंकशास्त्रीय तारवणी साथे)एटली सामग्री आपी छे. मुनि जिनविजयजीए, अपभ्रंश भाषा अने साहित्यना अध्ययनना आध अने अग्रणी प्रणेता तरीके याकोबीनी योग्य रीते ज उष्माभरी स्तुति करी छे [जुओ, 'पउमसिरिचरिउ'(१९४८)मांनुं तेमनुं 'किंचित् प्रास्ताविक', पृ० ६६थी ६१२] . .... सनत्कुमारनुं चरित्र ... साधारण रीते सनत्कुमारचरित ए नेमिनाथना परंपरागत चरितना एक भाग तरीके नथी होतुं. हरिभद्रे ज तेने नेमिनाथना वृत्तांतमा एक आडकथा लेखे मूक्युं . छे. ते ज प्रमाणे तेणे पोताना 'नेमिनाहचरिय'मां महावीरचरितने पण एक आड Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हने० हरिभद्रकृत नेमिनाहचरिय ११६० त्रिश० हेमचंद्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ११६५ (लगभग) उदो० रत्नप्रभकृत उपदेशमालादोघटीवृत्ति ११८२ जैन परंपरामां सनत्कुमारना चरित्रनो क्रमे क्रमे विकास थयो छे. तेना विकसित रूपमा ते त्रण घटकोनुं बनेलं होवानुं जोई शकाय छे : (१) पूर्वभवनो वृत्तान्त, (२) चक्रवर्ती-पदनी प्राप्ति सुधीनो वृत्तांत, (३) चक्रवर्ती-पदनो त्याग अने श्रमणजीवननो वृत्तांत. आमाथी आरंभमां सनत्कुमारचं चरित्र मात्र त्रीजा घटक प्रतुं मर्यादित हतुं, पछीथी बीजा घटकनो अने छेवटे पहेला घटकनो उद्भव थयो एम मानवाने कारण छे. 'वसुदेवहिंडी'मां तथा 'उत्तरपुराण', 'वृहत्कथाकोश' वगेरमा मळती दिगंबर परंपरामा मात्र त्रीजा घटकवाळो ज वृत्तांत छे. अने 'बृहत्कथाकोश,' 'धर्मोपदेशमालाविवरण, 'उत्तराध्ययन-वृत्ति' मने 'आख्यानकमणिकोशवृत्ति' मां पूर्वकर्मने कारणे उद्भवेला रोगपरिपहने उपचारकर्म विना समतापूर्वक सहेवाना उदाहरण लेखे सनत्कुमारचरित्र अपायुं छे. ते उपरथी पण उपर्युक्त त्रीजो घटक ए ज मूळ कथांश होवानी अटकळने समर्थन मळे छे. . चरित्रनो त्रीजो घटक विकसित रूपना चरित्रमा त्रीजा घटकनी मुख्य मुख्य विगतो माटली छः सौधर्मेन्द्रे करेली सनत्कुमारना रूपातिशयनी प्रशंसा, वे देवोए सनत्कुमारनी बे वार लीधेली मुलाकात, सनत्कुमारनो वैराग्य अने श्रामण्य, रोगोनो उद्भव, इंद्र करेली सहनशीलतानी प्रशंसा, परीक्षा करवा वे देवोनुं वैधवेशे आगमन, सनत्कुमारे करेलं लव्धिन प्रदर्शन अने बोध, सनत्कुमारनुं स्वर्गगमन. - उपु०मां अपायेलं चरित्र सौथी ढूंकुं छे. तेमा मात्र उपर्युक्त त्रीजा घटकने लगती सौधर्मेन्द्रे करेली सनत्कुमारना रूपातिशयनी प्रशंसा, कौतुकथी बे देवोए सनत्कुमारने प्रत्यक्ष जोईने करेली खातरी, ते देवोए मनुष्यनां रूप यौवन वगेरेनी नश्वरतानो करेलो निर्देश, सनत्कुमारनो वैराग्य अने श्रामण्यं अने कठिन तपने अंते निर्वाणप्राप्ति-एटली ज वीगतो छे. पुष्पदंतना 'महापुराण'मां पण उपु० वाळी कथानु ज अनुसरण छे. . . वहिं०मां पण मात्र त्रीजा घटकवाळो वृत्तांत अपायो छे. पण तेमां केटलीक नवी विंगतो उमेरायेली जोई शकाय छे. तपास करवा भावनार देवो सामानिक देवो छे. तेओ ब्राह्मणर्नु रूप धरीने, सनत्कुमार तेलनो अभ्यंग करीने Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यायामशाळामां गयो हतो त्यारे तेने साक्षात् जुए छे. पोते स्नान बाद वस्त्रालंकारथी विभूषित थाय त्यारनी असाधारण कांति जोवा सनत्कुमार तेमने बोलावे छे. ते वेळा सनत्कुमारने जोईने आ थोडा समयमां पण तेनी शांखी पडेली कांतिथी देवो विषाद पामे छे, अने सनत्कुमारना पछवाथी मानवदेहनी सतत क्षीण थती कांति अवधिज्ञानथो तेमनी नजरमां आवी होवानुं जणावे छे. एटले वैराग्यभाव उत्पन्न थतां सनत्कुमार श्रमण बने छे. तेना शरीरमां अनेक रोगो उत्पन्न थाय छे, जे सनत्कुमार समताथी सहे छे. इंद्र वैद्यने रूपे आवी रोगनो उपचार करवानी तत्परता बतावे छे. खेलौषधिनी लब्धिने कारणे सनत्कुमार थूकथी शरीरनो एक भाग मसळोने तेने मूलना जेवो करी देखाडे छे, अने कहे छे के मटाडेला रोग फरीथी पण थाय छे कारण के ते कर्माधीन छे. माटे पोते एवो तपसंयमनो मार्ग लीधो छे, जेथी रोगो कदी पण फरी न थाय. रोग सही, समाघि मरणथी काळ करीने सनत्कुमार सनत्कुमारकल्पमां इंद्र बने छे. दिगंबर परंपरामां सनत्कुमारने सीधा निर्वाण पामता वर्णव्या छे, ज्यारे श्वेतांबर परंपरामां तेमनो सनत्कुमारकल्पमां जन्म थयानुं कर्तुं छे. वहिं मां जे निमित्ते सनत्कुमारनुं चरित्र कह्यु छे ते सनत्कुमारनी अणमानीती राणी सुषेणानो (जे पछीना भवमां सुभूम चक्रवर्तीनी राणी पद्मश्री बनवानी हती तेनो) उल्लेख बीजे क्यांय नथी. पणे आगळ जोईशुं तेम धवि०मां (संभवतः 'उपदेशमालाविवरण' उपरथी) ओपेला कथासारमा प्रथम वार सनत्कुमारनुं त्रणे घटकवालु विस्तृत चरित्र रजू थयु छे. आमांना त्रीजा घटकनी विगतो वहिं०मां जे आपेली छे ते ज' छे. मात्र इंद्रे सनत्कुमारनां रूपातिशयनी करेली वात गळे न ऊतरतां-तेमां अश्रद्धाथीदेवो सनत्कुमारने प्रत्यक्ष जोवा आवे छे, बीजी वार सनत्कुमारने जोतां तेनी कांति क्षीण थयेली अने शरीर अनेक रोगोथी घेरायेलं तेमने देखाय छे, अने औषधिलब्धिथी सनत्कुमार सडती आंगळोने 'तरुण दिवाकरना जेवी'. बनावी दे छे-एटलो विगतफेर छे. .. .. .. . . .. . चम०मां पण त्रीजा घटकवाळो वृत्तांत उपर प्रमाणे ज छे. मात्र रोगोनी आपेली रीतसरनी यादी अने खेलौषधिलब्धिथी डाबा हाथनी तर्जनी 'सुवर्णवर्णा करी बताववानी बात पूरतो फरक छे. . Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा तरीके आपेलं छे. वळी आ पहेलां हरिभद्रे पोताना 'मल्लिनाहचरिय'मां पण सनत्कुमारचरितने आडकथारूपे गूंथेलं ज हतुं. पोतानी ए प्राकृत गाथाबद्ध रचनाने तेणे फरीथी 'नेमिनाहचरिय'मां अपभ्रंश भाषामां अने वस्तु छंदमां । रजू करी. जैन पुराणपरंपरा अनुसार सनत्कुमार त्रेसठ महापुरुषो के शलाकापुरुषोमांना एक हता चोवीस तीर्थंकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव वलदेव अने नवं प्रतिवासुदेव-एम त्रेसठ महापुरुषोनां चरित्र जैन परंपरामां मळे छे. बार चक्रवर्तीमांथी सनत्कुमार ए चोथो चक्रवर्ती हतो. तेनी पूर्वे भरत, सगर अने मघवा चक्रवर्ती थया. सनत्कुमारचरित्रने लगती रचनाओ सनत्कुमारनुं चरित्र जैन साहित्यिक परंपरामां (१) त्रेसठ महापुरुषोना चरित्रने लगती रचनाओना एक भाग तरीके, (२) अन्य कोई रचनाना एक भाग तरीके (एटले के दृष्टान्तकथा लेखे) तथा (३) स्वतंत्रपणे-एम विविध रूपे मळे छे. दिगंबर परंपरामां त्रेसठ महापुरुषोना चरित्रने लगती रचनाओ महापुराणना. नामे ओळखाय छे. ए रीते संस्कृतमा ई. स. ८९७ :पहेलां रचायेल गुणभद्रना 'उत्तरपुराण'मां (६१मुं पर्व, श्लोक .. १०४-१३०) अने अपभ्रंशमां .९६५थी ९७१ सुधीमां रचायेला पुष्पदंतना 'महापुराण'मां (५६मो संधि, १७थी . १९ सुधीनां कडवक) सनत्कुमारचरित्र अपायु: छे. श्वेतांबर परंपरामां प्राकृत- मा ८६९मां रचायेल शीलांकना 'चउपन्नमहापुरिसचरिय'मां (२९{ चरेत्र, पृ. १३८ थी १४५) अने संस्कृतमा १०६५ लगभग रचायेल हेमचंद्रना 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'मां (पर्व ४, सर्ग ७, श्लोक १थी ४०४) ते मळे छे. कथाकोशोमा तथा आगमिक के औपदेशिक ग्रंथो परनो वृत्तिओमां पण सनत्कुमारनुं चरित्र मळे छे. जेम के दिगंबर परंपरामां शिवार्यनी 'भगवती माराधना'नी १५४२मी गाथामां आपेला निर्देश अनुसार 'आराधना-कथाकोशोमा सनत्कुमारनो प्रसंग छे. संस्कृतमा हरिषेणना 'बृहत्कथाकोश' (८३२)-.. मां १२९मी कथा, प्रभाचंदना कथाकोश(११मी शताब्दी)मां रोजी अने "छासठमी कथामां, कन्नडमां 'वड्डाराधने (आशरे ११मी - शताब्दी)मां चोथी कथामां, अने अपभ्रंशमां श्रीचंद्रना'कहकोस'(आशरे : १०७०)मा ४७मी :- कथा Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - संघिना बीजा कडवकथी पांचमा कडवक सुधीमां; श्वेतांबर परंपरामां प्राकृतमां संघदासनी 'वसुदेवहिंडी' - (आशरे पांचमी शताब्दी)मां १४मा मयणवेगालंभमां (पृ. २३३-२३५), जयसिंहना लुप्त 'उपदेशमालाविवरण'मां तथा तेना 'धर्मोपदेशमालाविवरण' (८५९)नी ९४मी कथामां, आम्रदेवना 'आख्यानकमणिकोशवृत्ति'(११३४)मा १२७मा आख्यानकमां, · देवेंद्रनी 'उत्तराध्ययन'ना १८मा अध्ययननी ३७मी गाथा परनी टीकामां, हरिभद्रना 'मल्लिनाहचरिय' (११६० पहेलां)मां तथा अपभ्रंशमा तेना 'नेमिनाहचरिय' (११६०)ना एक भाग लेखे ते प्राप्त थाय छे. छेल्ली बे रचनाओनो पाठ आ पुस्तकमां आपवामां आव्यो छे. ... ... स्वतंत्र रचना लेखे श्रीचंद्रनुं प्राकृत महाकाव्य 'सणंकुमारचरिय' (११५८), जिनपालकृत संस्कृत महाकाव्य 'सनत्कुमारचक्रिचरित्र' (१२०६) तथा बीजां वेत्रण सनत्कुमारचरित्रो मळे छे. आ बधां हजी अप्रकाशित छे. सनत्कुमारचरित्रनो विकासक्रम. : : . .. नीचे सनत्कुमारचरित्रने लगती जे जे कृतिओनी तुलना करी छे. तेमना नामना संक्षेपो अने रचनासमय आ प्रमाणे छ : प... ... संक्षेप. :. : : कृतिः - :: :: :: : - रचनासमय वहि० . संघदासकृत वसुदेवहिंडी आशरे पांचमी शताब्दी उवि० जयसिंहकृत उपदेशमालाविवरण (लुप्त) नवमी शताब्दी धवि० ..जयसिंहकृत धर्मोपदेशमालाविवरण ८५९ चम० .. शीलांककृत चउपन्नमहापुरिसचरिय: ८६९ । ... गुणभद्रकृत उत्तरपुराण . . . ८९७ पहेलां बको० . हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश .. .. ९३२ पुष्पदंतकृत महापुराण · ९६५-९७२ कको० श्रीचंद्रकृत कहकोस उ० देवेंद्रकृत उत्तराध्ययन-वृत्ति २०७३ 'आकोवृ० . आम्रदेवकृत आख्यानकमणिकोशवृत्ति ...... ११३४ हरिभद्रकृत मल्लिनाहचरिय ११६० पहेलां सच० ...... श्रीचंद्रकृत सणंकुमारचरियः .. ... ११५८ उपु० मप० हम० Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. आ पछी वृको० मां त्रीजा घटकना वृत्तांतमा केटलीक नवी विगतो देखाय छे. वृको०मां दिगंबर परंपरा - अनुसार मात्र त्रीजें घटक मळे छे. बृको०ए श्वेतांबर परंपराना चहिं०, धवि० अने चम०मां त्रीजा घटकनुं जे रूपांतर : मळे छे तेनो लाभ तो लीधो ज छे, पण इंद्रे करेली रूपप्रशंसा वाळो प्रसंग तेमां जुदी रीते छे. सौधर्मेन्द्र सौदामनी. नाटक : जोतो हतो त्यारे कार्यप्रसंगे ईशानकल्पमाथी आवेला संगम नामना देवनी बीजा सौने झांखा पाडती देहकांतिनो इंद्रे एवो ख़ुलासो आप्यो. के ते देवे पूर्व भवे आयंबिल वर्धमान तप करेलुं तेनुं आ फळ छे. 'एवं कांतिमान बीजुं कोई छे: खलं ?' एवा देवोना प्रश्नना उत्तरमां इंद्रे पृथ्वीमां हस्तिनागपुरनो चक्रवर्ती राजा सनत्कुमार संगमदेव करतां पण अधिक तेजस्वी होवार्नु जणाव्यु. आ पछीनी बे देवोनो मुलाकातमां पोताने अलंकृत स्वरूपमां निहाळवा सनत्कुमारे रूपगर्वथी प्रेराईने देवोने फरी निमंत्र्या, अने त्यारे मानवीना रूपयौवननी क्षयधर्मितानी वात:सांभळीने सनत्कुमारे जोयु तो तेने पोताने पण शरीर कांतिहीन कळायु-एटली विगत वधारे छे. वळी ते पछी श्रमण, तरीके विहार करता सनत्कुमारमुनिने भिक्षामां मळेला बकरीना दूधनी छाशमां मिश्रित चीणा भातना भोजनथी अनेक रोगो उद्भव्यानुं अने आमौषधि, खेलौषधि वगेरे सिद्धि प्राप्त थया छतां तेणे रोगोनो प्रतिकार न कर्यानुं जे कयुं छे, तथा फरीथी सौधर्मेन्द्रे सनत्कुमारनी सहनशक्तिनो प्रशंसा करी तेथी पेला ज वे देवो वैद्यवेशे सनत्कुमारनी फरी परीक्षा करवा आव्यानी जे वात छे, ते नवां उमेरायेलां तत्त्वो छे. खेलौषधिथी अंगने साउं: करी बताववानी विगत वृको०मां छोडी. दीधेली छे. : कको० को०नो उपजीवी होईने तेमां आवो ज वृत्तांत छे. मात्र खेलोपधिथी देहने दिव्य करी देखांडवानी वात वधारे छे. । सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटकमा प्रथम वार बृको०मा देखातां उपर्युक्त नवीन अंशो पछीथी श्वेतांबर परंपराना उवृ०, हम०, हने० अने त्रिश०मां पण स्वीकृत थया छे. देवंद्रे उवृ०मां चम०मांनुं सनत्कुमारचरित्र लगभग अक्षरशः उद्धृत कर्यु छे, पण वच्चे केटलोक अंश :बीजेथी लीघो छे. चरित्रना त्रीजा घटकने लगती उपर जणावेली जे नवी वीगतो पहेली वार आपणे वृको०मां जोईए छीए ते बधी उवृ०मां. पण मळे छे. उपचार करवा आवेला देवो पाछा फरता सनत्कुमारमुनिने-जे वचनो उ०मां कहे छे, तेमनुं वृको०ना : करतां कको०नी साथे वधु . शाब्दिक साम्य छे, Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृको० : समस्तभुवनख्यातो महावैद्यो रुजापहः अमुं त्वमेकयोगीन्द्र निराकार्तुमलं प्रभो॥ कको भववाहिमहणे तुह सत्ति परा ॥ . . तुहुँ परमवेज्जु जगसंतियरु ।। · उवृ० : तुम्हे चेव संसारवाहि फेडणपरमवेज्ज त्ति पसंसिय ।। आको० सनत्कुमारना विस्तृत चरित्रथी परिचित छे. पण ते एक तरफथी तेनो संक्षेप करे छे, तो बीजी तरफथी वर्णनो, शास्त्रीय संदर्भो (जेम के सामुद्रिक प्रमाणेनां पुरुषलक्षण अने स्त्रीलक्षण, वैद्यक प्रमाणेनां रोगलक्षण), स्तुति वगेरे इतर सामग्रीथी तेने पल्लवित करे छे. चरित्रना त्रीजा घटकांनी रोगोनो यादी वधु विस्तृत वनी छे. धवि०मां जेम शक्र शबरवैद्यनुं रूप लईने आवे छे, तेम अहीं पण वे देवो शबरवैद्य बनीने आवे छे. चम०मां छे ते प्रसाणे अहीं पण सनत्कुमार थूकथी मसळीने डाबा हाथनी तर्जनी 'साडा सोळ वानी'ना सोना जेवा वाननी बनावे छे. बको०अने उवृ०नी जेम अहीं पण परीक्षा करवा आवनार वे देवोनां नाम विजय अने वैजयन्त छे. आम आपणने आको॰ना आधारभूत साधनोनो संकेत मळी रहे छे. . हम०मां आपेलु सनत्कुमारचरित्र चमना गद्यचरित्रनु ज पद्यरूपान्तर छे. तेमां चमनी गाथाओ सीधेसीधी उठावी लीधेली छे, ज्यारे गद्यना शब्दोने यथाशक्य गाथामां ढाळी दीधा छे. वृत्तांतना त्रीजा घटकने पण आ वात पूरेपूरी लागु पडे छे. पण देवोना रोग मटाडवाना कहेणना उत्तरमा सनत्कुमार मुनिए ज्यां एवो प्रश्न पूछ्यो छे के 'तमे रोगो आ भव पूरता ज मटाडो छो के सर्व काळ माटे ?' तेने स्थाने हम०मां एवो प्रश्न छे के 'तमे तनुरोगने शमावो छो के कर्मरोगने ?' अने आ प्रश्नमां उवृ०मांना 'तमे शरीर व्याधिने मटाडो छो के कर्मव्याधिने' एवा प्रश्ननो ज पडघो छे. ते ज प्रमाणे सनत्कुमारने थयेला रोगोनी चम०मां (अने आकोवृ०मां) जे लांबी यादी छे, तेने स्थाने हम०मां सात व्याधिओ गणावती एक गाथा उद्धृत करेली छे. आ गाथा सहेज शब्दफेरे आकोवृ०मां पण उद्धृत थयेली छे, अने ते ज भावार्थनी एक गाथा उवृ०मां आपेली छे. - हनेमांनुं सनत्कुमारचरित्र हमना प्राकृत चरित्रनुं अपभ्रंश भाषामां अने रड्डा के वस्तु छंदमां करेले काव्य-रूपान्तर छे. पूर्ववर्ती चरित्रनी सामग्री लईने Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिभद्रे सनत्कुमारना चरित्रने लगती रीतसरनी, प्रसंग अने भावनो मावजत करती अने अलंकृत लीनी काव्यमय रचना आपवानुं लक्ष राख्युं छे. हरिभद्रना अपभ्रंश रूपांतरने, व गाळामां वे ज वर्ष पहेला रचायेला श्रीचंद्रना सच०नो लाभ मळ्यो लागे छे, केम के देवोनो प्रतिभाव सांभाळीने पोतानुं रूप निहाळता सनत्कुमारनी लागणी जे शब्दोमां सच०मां व्यक्त थई छ ('मसिमीसियजलओहलियं) ते ज शब्दोनो पडघो हरिभ पाडयो छे ('मसिरसिण ओहलियं'). सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटक पूरतो त्रिश०नो मुख्य आधार · उवृ० (अने ते द्वारा चम०) होवानुं जणाय छे. पण बीजी वार परीक्षा करवा आवेला देवोने सनत्कुमारनो जे प्रश्न छ तेमां, आगली परंपरामां ज्यां आ भवना व्याधि अने पर भवना व्याधिनो, बको मां सामान्य व्याधि भने संसारव्याधिनो, अने उवृ०मां शरीरव्याधि अने कर्मव्याधिनो विरोध छे, त्यां आकोवृ०मां द्रव्यक्रिया अने भावक्रियानी सविस्तर चर्चा छे, अने त्रिश०मां आने अनुसरीने द्रव्यव्याधि अने भावव्याधिनो भेद करेलो छे. छेल्ले उदो०ना सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटकनो आधार त्रिश० तथा आकोवृ० ए जे वधारानुं रूपान्तर वापरेलं ते होवानुं जणाय छे. केम के सनत्कुमारनुं रूप जोईने परीक्षा करवा मावेला देवो पर पडेलो प्रभाव त्रिश०मां (धूनयामासतुर्मीलिम्) अने उदो०मां (सिरधूणणं कुणंता) एक सरखी रीते व्यक्त थयो छे. अने ते अन्यत्र आपेली विगतोथी जुदो पडे छे. बीजु, सनत्कुमारने थयेला सात रोगो वाळी जे गाथा आकोवृ०मां टांकेली छे, तेनी ते उदो०मां पण आपेली छे. अने द्रव्यव्याधि अने भावव्याधिनी चर्चा पण काईक अंशे आकोवृ०नी याद आपे छे. चरित्रनो वीजो घटक बीजा घटकमां सनत्कुमारनो जन्म अने युवाना, अश्वापहार, मित्र महेन्द्रसिंहनी शोध, बकुलमतीनुं वृत्तान्तकथन, यक्षनी सहायथी मानससरोवर पहोंचवू, असिताक्ष साथेनुं युद्ध, विद्याधर भानुवेगनी आठ कुमारीओ साथे विवाह, सुनन्दासाथे मेळाप अने वज्रवेगनो वध, संध्यावलि साथे विवाह, चन्द्रवेग अने भानुवेगनी सहाय, संध्यावलिए आपेली प्रज्ञप्तिविद्या, अशनिवेगनी साथे युद्ध, वैताढयना राज्यनो प्राप्ति, अर्चिमालि मुनिए करेलं भविष्यकथन अने तेमणे कहेला सनत्कुमारना पूर्वमववृत्तान्तनुं कंचुकी द्वारा कथन (सनत्कुमारचरित्रनो ए बीजो घटक छे.), चन्द्रवेगनी सौ कन्याओ साथे विवाह, हस्तिनापुरमां पुनरागमन अने चक्रवर्तित्वनी प्राप्ति : एटली मुख्य घटनाओ छे, .. . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ बधी घटनाओ विस्तारपूर्वक जयसिंहना उवि०मां अपायेली, जेनी रूपरेखा तेणे धवि०मां आपी छे. वह०मां तथा दिगंबर परंपरामां (उपु०, वृ० को०, मपु० अने कको०मां सनत्कुमारनें केवल मुनिचरित्र आपेलं होईने आ बोजो घटक खूटे छे.) उपलब्धमा प्रथम वार आपणने अम० मां आ बीजा घटक वाळो वृत्तांत विगते मळे छे. उत्तरकालीन सनत्कुमार चरित्रो आ बीजा घटक परत्वे घणुखरुं चम० नां ज उपजीवी छे. उवृ० ए तो चमनुं सनत्कुमारचरित्र आखु ने आखू उठावी लोधु होईने आ बीजो घटक पण तेमांथो ज अक्षरशः लीधेलो छे. मात्र असिताक्ष यक्ष साथेनुं युद्ध, इंद्रे करावेलो सनत्कुमारनो अभिषेक वगेरे जेवी केटलीक वीगतो बीजेथी लीधेली छे. आकोवृ० मां आ बीजो घटक बहु ज संक्षेपमां-३४ जेटली गाथामां अपायो छे, अने तेमां पण अश्वापहार पछीनी घटनाओनो सहेजसाज ज स्पर्श करेलो छे. छतां पण केटलीक गाथाओ सोधी ज चम०माथी लीधेली छे. हम०ए पण चम० ना गद्यने गाथामां ढाळ्यु छे, ब्यारे हने०मां ए ज सामग्रोनो काव्यत्व वाळो रचना करवामां उपयोग थयो छे. हनेमां सुनंदा सानो हस्तिनापुरना उद्यानमांनो प्रणयप्रसंग अने सनत्कुमारेनुं विद्याधरचक्रवर्ती बनवू एटलो हरिभद्रनो उमेरो छे. वळी सनत्कुमारना पूर्वभवनी वात चन्द्रवेगनो कंचुकी नहीं, पण चन्द्रवेग पोते ज करतो होवानुं निरूपण छे. त्रिश० कथानक माटे पूर्ववर्ती परंपराने ज अनुसरे छे. महेन्द्रसिंहना भ्रमणवृत्तांतमा जेम चम०ए षड्ऋतुवर्णन आपेलुं छे, तेम त्रिश. पण ते आपे छे. मात्र तेमां पूर्वभवनो वृत्तांत वच्चेथी खसेडीने सोनी आगळ गोठवी दीघेलो छे. उदो०मां वीजा घटक वाळो वृत्तांत, टुंकावीने आपेलो छ, तथा पूर्व भवना वृत्तांतनो थोडोक स्थानफेर करेलो छे. संध्यावलिने माटे नैमित्तिो करेलं भाविकथन उवृ०ने अनुसरीने त्रिश० अने उदो०मां अपायुं छे. ... उवृ० भाइवहमस्स भज्जा होही । त्रिश० भर्ता ते भ्रातृवधको भावी । - उदो० भाइयवावायगो परो होही । एक घणो सूचक विगत ए छे के सनत्कुमारना पितानुं नाम उपु०मां अनंतवीर्य छे, वहि० मां, उवृ० मां, हम ० अने हने० मां तथा त्रिश०मां अश्वसेन (आससेण) छे, ज्यारे को०, चम०, आकोवृ० अने उदो०मा विश्वसेन (वीससेण) छे. वळी बीजी वीगतमां पण विविध रचनाओमां थोडोक फरक मळे छे : सनत्कुमारे Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेनी पासे दीक्षा लीधी ते गुरुनु नाम उपु०मां शिवगुप्त छे, चम०मां विजयसेन छे, उवृ०मां राधाचार्य छे,* ज्यारे वृको०, कको०, आके वृ०, त्रिश० अने उदो०मां विनयंधर छे. हम०मां ऋषभाचार्य (हने ०मां ऋषभदत्त) छे. आम सनत्कुमार चरित्रना बीजा घटकनो मुख्य आधार लुप्त उवि० अने तदनुसारी चम० जणाय छे. आ घटक श्वेतांबर परंपरानां चरित्रोमां ज मळे छे. . चरित्रनो पहेलो घटक सनत्कुमारचरित्रनां पहेला घटकमां सनत्कुमारना पूर्व भवना वृत्तांतमां विक्रमयश राजाए नागदत्त सार्थवाहनी स्त्री विष्णुश्रीन करेलु अपहरण, राजानी राणीओए कामण करीने करेलो विष्णुश्रीनो घात, तेना विकृत शबने जोईने वैराग्य, तपश्चर्या करी मृत्यु पामी सनत्कुमारकल्पमा उत्पन्न थर्बु, नागदत्तनुं पत्नीना अपहरणथी उन्मत्त बनी मृत्यु पाम, विक्रमयशनुं जिनधर्म श्रावक तरीके अवतरवू, नागदत्तनुं अग्निशर्मा तापस तरीके अवतरवू, अग्निशर्माए जिनधर्मनी पीठ पर मूकी धग धागता पात्रमा करेलु भोजन, जिनधर्मनो कायोत्सर्ग करीने देहत्याग, सौधर्मेन्द्र तरीके जन्म अने अग्निशर्मानो तेना वाहन ऐरावत तरीके जन्म, पछी ऐरावतनो अस्तिताक्ष यक्ष तरीके जन्म : आटली घटनाओ छे. कथाना विकासक्रमनी दृष्टिए जोईए तो वहिं०मां सनत्कुमारना पूर्व भवोनो सहेज पण निर्देश नथी. दिगंबर परंपरामां पण मुनि तरीकेनो ज सनत्कुमारनो वृत्तांत होईने उपु०, बृको०, मपु० तेम ज कको०मां पूर्व भवना वृत्तांतनो अभाव छे. श्वेतांबर परंपरामां पहेल प्रथम आपणने धवि०नी रूपरेखामां चन्द्रवेग विद्याधरना कंचुकीए (अर्चिमाली)मुनिए कहेला वृत्तांतने आधारे सनत्कुमारनो पूर्व भव वर्णव्यो होवानो निर्देश छे. ते उपरथी आपणे अटकळ करी शकीए के जयसिंहना उवि०मां ते वृत्तांत सविस्तर अपायो हशे. . ते पछी चम०मां ते तद्दन संक्षेपमां वे पंक्तिमा ज अपायो छे. ते पछी उवृ०मां आपणने सनत्कुमारना पूर्व भवनो सविस्तर वृत्तांत मळे छे. उवृ० ए चम०मांथी आखो ने आखो उतारो आपवा उपरांत चम०मां न होय तेवा केटलाक कथांशो माटे बोजा कोई मूलस्त्रोतनो उपयोग कर्यो छे. आ पूर्व भवना वृत्तांतनी बाबतमां पण एम ज छे. ते उवि० माथी लेवायो हशे के बीजेथी ते चोकस कही शकाय तेम नथी. ते पछी आकोवृए सनत्कुमारचरित्रने हूंकमां ज पताव्यु होवाथी, चम०ने ते अनुसरती होवा छतां, पूर्व भवनी वातने तेणे जती ___* उ०मा 'राहायरिय' छे ते कदाच भ्रष्ट पाठ होय अने शुद्ध पाठ हम०मां छे ते उसहायरियं' होय. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करी छे. तो हम० (तथा हने०), त्रिश० अने थोडा घटनासंक्षेप अने पल्लवन साथे उदो०मां ते उवृ०ने (के तेना पूर्वस्रोतने) अनुसरीने पूर्व भवनो संपूर्ण वृत्तांत आपेलो छे. मात्र त्रिश०ए क्रमनी दृष्टिए सनत्कुमारना चरित्रनो पुनर्व्यवस्था करी होईने पूर्व भवनो वृत्तांत वच्चेथी खसेडी लईने सर्वप्रथम आरंभमां ज मूकी दीधो छे. आ बधी हकीकतो ध्यानमा लेतां विकासक्रमनी दृष्टिए पूर्व भवनो वृत्तांत सनत्कुमारचरित्रमा सौथी छेल्लो उमेरायो होय एम लागे छे. उवृ० अने हम०मां तथा हने मां पूर्व भवनो वृत्तांत कहेनार चन्द्रवेगनो कंचुको नहीं पण चन्द्रवेग पोतें ज छे, तो उदो०मां ते कहेनार भानुवेग छे. वळी हम०मां सौधर्मेन्द्र तरीके उत्पन्न थयेल विक्रमयशना जीव अने तेना ऐरावत तरीके जन्मेल नागदत्तना जीव वच्चेनो प्रसंग हरिभद्रे करेलो उमेरो छे. आ रीते. एक तरफथी प्राकृत, संस्कृत अने अपभ्रंशमां रचायेला अने बीजो तरफथो श्वेतांबर के दिगंबर परंपराना केटलांक सनत्कुमारचरित्रोनी अहीं करेलो तुलना अने तारवणी उपरथी जोई शकाशे के सनत्कुमारनी कथानो विकास त्रण तबके थयो छे. रूपवैभवने क्षयधर्मी अने अनित्य समजी श्रमण बननार राजाना, अने प्रतिकार विना रोगोनो पीडा समतापूर्वक सहेनार महात्माना दृष्टांत तरीके सनत्कुमारना चरित्रनो जे अंश छे ते सौथी पुराणो जणाय छे. 'वसुदेवहिंडी'मां अने दिगंबर परंपरानां चरित्रोमां तेटलो ज भाग मळे छे. वहिं०मां ते भागनुं जे स्वरूप बंधायुं छे, ते ज, उपु०ना अने तेना पर अवलबंता मपु०ना अपवादे सर्वत्र स्वीकार पाम्युं छे. मात्र ते पछी वृको॰ए तेमां केटलोक विगतो - उमेरी छे, जे पछीनी. श्वेतांबर-दिगंबर परंपरामां प्रचलित बनी छे. श्वेतांबर परंपरामा पूर्व भवनो वृत्तांत अने चक्रवर्तीपद प्राप्त करवा सुधीनो वृत्तांत उवि०मां प्रथम वार देखाय छे, अने पछीनी ते परंपरानी रचनाओमां ते सर्वत्र स्वीकार पामे छे. आमां पूर्व भवनी कथा विनानुं एकेय चरित्र मळतुं नथी, छतां केटलीक रचनाओमां मळतुं तेनुं ढूंकु स्वरूप तथा त्रिश०मां थयेलो तेनो स्थानफेर लक्षमां लेतां ते अंश बीजा बे अंशोनी तुलनाए सौथी छेल्लो उमेरायानी अटकळ करी शकाय. आ उपरथी जोई शकाशे के सनत्कुमारचरित्र पूरतो एक तरफथी श्वेतांबर अने दिगंबर. परंपरानी वच्चे. लाक्षणिकपणे तफावत छे, तो बीजी तरफ बने परंपरानो एकबीजी पर प्रभाव पंण पडतो रह्यो छे, अने परस्पर कथासामग्रोनी आपले थती रही छे. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सणतुकुमारचरिय'नी छंदोरचना 'सणतुकुमारचरिय'मां सळग एक ज छंद वपरायो छे. (हरिभद्रनुं 'नेमिनाहचरिय' पोते पण मुख्यत्वे आ एक छंदमां गूंथेलुं छे.) ए छंदनुं नाम छे 'रड्डा' के 'वस्तु'. ए लाक्षणिकपणे एक अपभ्रंश छंद छे, अने पछीथी जूनी गुजरातीनी . रास वगेरे प्रकारनी कृतिओमां ते आशरे पंदरमी-सोळमी शताब्दी सुधी वपरातो रह्यो छे. जैन लेखकोए कचित् संस्कृतमां पण तेनो प्रयोग को छे. (जेम के धनपालनी 'तिलकमंजरी' कथामां). _ 'रड्डा' छंद जेने द्विभंगी कहे छे ते वर्गनो छंद छे. द्विभंगी वर्गना छंदोमां जुदां जुदां लक्षण धरावता बे छंदोनी एक एक कडीने जोडीने एक एकम बनावेलुं होय छे. वाक्य एक छंदमां निबद्ध पहेली कडीमां शरू थईने बीजा छंदमां निबद्ध बीजी कडोमां पूरुं थाय छे. आम रड्डा एक संकुल छंद छे, सादो नथी. रड्डानो पहेलो घटक मात्रा छंदनी एक कडीनो अने तेनो बीजो घटक दोहा छंदनी एक कडीनो बनेलो होय छे. (अहीं 'मात्रा' ए अमुक छैदनुं विशेषनाम छे ए ध्यानमा राख. तेने 'एक मात्रा', 'बे मात्रा', 'चार मात्रा' एवा प्रयोगोमां छंदस्वरूप माटे वपराती मापदर्शक 'मात्रा' संज्ञाथी जुदी समजवी). अपभ्रंशना पिंगळग्रंथो अनुसार मात्राछंदमां पांच चरण अने दोहाछंदमां चार चरण होय छे. आ दृष्टिए रड्डा नवपदी छंद छे. मात्रा छंद __मात्राछंदमां पांच चरण होय छे, अने ते चरणो अणसरखा मापनां होवाथी मात्राछंद विषम पंचपदी प्रकारनो छंद छे. तेना पांच चरणमां अनुक्रमे १५, ११ (के १२), १५, ११ (के १२), १५ ए प्रमाणे मात्रासंख्या होय छे. वेकी चरणोमां साधारण रीते ११ मात्रा होय छे, तो क्वचित १२ पण होय अने ते पण कोई एक वेकी चरणमां के बंनेमां. मात्राछंदना आ बार मात्रा वाळा प्रकारनुं नाम छे-मत्तबालिका. आ चरणोनुं गणबंधारण नीचे प्रमाणे छे : चरण पहेलु : ३+४+ ३ + ५ (छेल्ली पांच मात्रानुं स्वरूप - uuuu u) वीजें, चोथु : ४ + ४ + ३ ( अथवा ५+४+३) . त्रीजुं, पांचमुं ५ + ५ + ५ (छेल्ली पांच मात्रानुं स्वरूप - uuu uu ) त्रीजं अने पांचमुं चरण प्रासबद्ध होय छे. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदाहरण :पहेलं चरण :- तयणु सुंदर करिवि सिंगारु uuu,-uu uuu --- ३ + + ३ + ५ = १५ वीजु चरण :- आणंद-समुल्लसिय --uu-uuu १ +४+ ३ = ११ त्रीजुं चरणः रोम-राइ-रेहंत-विग्गहु -u-u--,u- uu ५ +५+५ = १५ चो) चरण: कुरु-वंस-मंडण-रयणु սմ – ս,-սս ,մսն ५ + ४ + ३ ___१२ पांचमुं चरण : सहल-विहिय-निय-दार-संगहु uuu uu , u uu -u-uu ५ + ५ +५ = १५ प्रास: विग्गहु - संगहु .. दोहा छंद - दोहा छंद चार चरणनो आंतरसम छंद छे. आंतरसम एटले जेनां चरण एकांतरे सरखां होय-एटले के पहेला अने त्रीजा चरणतुं माप एक सरखं अने वीजा अने चोथा चरणतुं माप एक सर. दोहामां चार चरण होवाथी ते आंतरसमा चतुष्पदी प्रकारनो छंद छे. तेना चार चरणमां अनुक्रमे १३, ११, १३, ११ ए प्रमाणे मात्रासंख्या होय छे. आ चरणोनुं गणबंधारण नीचे प्रमाणे छे : पहेलु अने त्रोजु चरण : ६ + ४ + ३ (छेल्लो त्रण मात्रानुं स्वरूप uuu) बीजु अने चोथुचरणं : ६ + ४ + १ (छेल्ली त्रण मात्रानुं स्वरूप-u) बेकी चरणो प्रासबद्ध होय छे. उदाहरण: पहेलं चरण : सिविण-वियाणय नर नियय uuu u—յսն սս, սնս ६ + ४ + ३=१३ बीजुं चरण : पुरिसिहि सद्दावेइ uuuu -, -- u . . ६ + ४ + १ = ११ . . . . . Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीजु चरण : अह लहु सविहागयहँ तहँ սն սն սն,–, մմ ६+४+३ = १३ चोथु चरण : आसणु वियरावेइ -- uu uu,--, ६ + ४ + १ = ११ प्रास सदावेइ-वियरावेइ विशिष्टता उपर्युक्त स्वरूप रसाछंद माटे सर्वमान्य छे. मान्य छंदोमंथे गां तेनुं निरूपण छे, अने अनेक प्रयोगोमां ते समर्थित थाय छे. हरिभद्रनो रखाछंदनो प्रयोग धणे भागे नियमानुसार छे, पण थोडेक अंशे तेमां अपवाद छे. थोडांक स्थळे मात्राछंदनुं बीजुं अने त्रीजु चरण वे नहीं पण एक ज चरण होय, भने ते ज प्रमाणे चो, अने पांचमुं मळीने पण एक ज चरण श्रतुं होय तेवो व्यवहार जोवा मळे छे. ते ज रीते दोहाछंदमां पण हरिभद्र पहेलं अने बोजु मळीने एक, अने त्रीजु अने चो) मळीने एक-एम बे ज चरण होय (चार नहीं) परीते कोईक वार रचना करे छे. आम एवे स्थळे तेने मते मात्राछंद त्रिपदी होय, दोहाछंद द्विपदी होय अने समग्र रखाछंद पंचपदी (एटले के पांच चरणनो) होय एवो व्यवहार जोवा मळे छे. उदाहरण तरीके बीजु अने श्रीजु चरण : . . कत्थूरिय-अगरु-सिरिखंड-पंक-फल-कुसुम-दामिहि (४८८) . थिर-चित्तिण-सीह-अवलोइएण वि हु ति न निरिक्खिय (७६७). त्रीजुं अने चोथु चरण । ता कण्णय गणइ अणुसरिवि लज्ज अज्जवु निसग्गिउ (६१७) छट्टुं अने सातमुं चरण . तं निब्भर-दुह-पसर-परिपूरिय-गल-सरणीउ (४४६) . असणिवेग-अगिहाणु खयराहियु गरुय-मरक्ष (६४५) जक्खहं सोलस-सहस परिसंखहँ आणकराह (७५४) आठमुं अने नवमुं चरण : भणइ स-सज्झासु कुमरु ससिमुहि वयणिहिं सरसेहिं (५२१) निरुवम-लक्खणु पयड-अभिहाणु जलहिकल्लोल (५२७). विहुरिय-अंगोवंगु परिचिंतइ विविह-वियप्पु (६६९) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विगय-ताण अणाह परिमिल्लिर-गुरु-नीसास (७६६) समासना बे घटको विच्छिन्न थया. होय तेवां चरणांत : अने चरणादि स्थानो तो संख्याबंध छे * .. ... .. .. .. . 'सणतुकुमारचरिय'नी अपभ्रंश भाषा 'सणतुकुमारचरिय'नो अपभ्रंश उत्तरकालीन होवाथी नवमीदसमी शतादीना स्वयंभू , पुष्पदंत वगेरेना अपभ्रंशथी केटलीक बाबतमां जुदो पड़े. छे. मोटे भागे तो हेमचन्द्रे नो धेली अपभ्रंशनी लाक्षणिकताओ तेमां देखाय छे. पण ते उपरांत पण, केटलांक नवां तत्त्वो आपणे तारवी शकीए छीए. गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन लोकभाषाना प्रभावने आ 'नवां' तत्त्वो माटे जवाबदार गणी. शकाय, अहीं हरिभद्रना अपभ्रंशना स्वरूपनो परिचय आपवानी दृष्टिए ज. केटलांक ध्यानपात्र रूपो भने प्रयोगो नो ध्यां छे. ..". :: .. अपभ्रंशमा जे विशिष्टपणे अपभ्रंश रूपो होय तेमनी साथोसाथ विशिष्टपणे प्राकृत (महाराष्ट्री) रूपो पण ठीक ठीक वपरोतां. ए दृष्टिए अपभ्रंश एक मिश्र भाषा गणाय, प्राकृत रूपोने वापरवानां कारणोमां छंद, प्रास, अनुप्रास वगेरे गणावी शकाय. अपभ्रंश व्याकरणमा प्राकृत रूपोने जुदां तारवीने दर्शाववां जोईए. .... हरिभद्रना. अपभ्रंशमां केटलांक रूपो मान्य अपभ्रंश रूपोथी आगळ वधेलां छे-एटले के तुलनाए तेमने अर्वाचीन गणी शकाय तेम छे. ते तत्कालीन लोकभाषाना प्रभावना द्योतक छे. तेमने पण अलग पाडवां जोईए. जेम के पहेलांना अपभ्रंशमां मळतां अंते ओकारवाळां रूपो अहीं उकारवाळां छे, अंते अनुनासिकवाळां रूपो कचित अनुनासिक विनानां देखाय छे, अंत्य उकारने स्थाने कयांक अकार मळे छे, संयुक्त व्यंजन कोईक वार एकवडो थयेलो छे, तो एकबे दाखलामा हकार लुप्त थयेलो छे. .. नामिक रूपाख्यान .... 'अपभ्रंश'मां बधां नामिक अंगो (आमां संज्ञा, विशेषण अने सर्वनाम होय तेवां अंगोनो समावेश. थाय छे) ह्रस्व-स्वरांत होय छे. . आकारांत, ईकारांत के ऊकारांत अंगो प्राकृतमाथी लीधेला छे..... * रहाछंदना स्वरूप माटे जुओ, 'स्वयम्भूच्छंद' (वेलणकर सम्पादित) ५, ८-११; 'छंदोन. शासन' (वेलणकर-सम्पादित) ५, १५-२३; 'संदेशरासक' (मुनि जिनविजय सम्पादित) भूमिका पृ.६६-६८. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्ता-कर्म-विभक्ति एकवचन .. • • अकारांत पुं. अने नपुं. अंगोमां अंत्य अकारनुं स्थान उकार ले छः 'लोगु', 'निवु', 'सुंदरु', 'पवित्तु', 'सूरु', 'सामिउ', दाणु', 'वयणु', 'रयणु'. : अकारांत नपुं. अंग जो 'म'('य') प्रत्ययथी विस्तारित होय तो 'अ'ने स्थाने 'उ' आवे छे : .. 'सिविणउं', 'पारणउं', 'जायउं', 'परिसुन्नउं', 'हियडुलउं'. .. . {_ अकारांत स्त्री. अंगो अने इतर-स्वरांत अंगो कशो प्रत्यय लेता नथी. 'वसुह', 'पिय', 'पह', 'कह', 'पंतिय'; 'निवई', 'सिहंडि', 'पई', 'निहि', 'सिरि', "तरुणि', 'कित्ति', 'रइ', चुंटती', 'इंदु', 'वरतणु', 'तारा'. । प्राकृत रूपोमां (खास. करीने 'वि'नी पूर्वे) अकारांत पुं. नुं रूप ओकारांत होय छेः 'पिओ', 'अंगो', मकरांत पुं, अने न. अंग प्रत्यय विना क्वचित ज वपरायुं छेः 'निवार' (४७७), 'एस' (४८६), 'सविह' (४५९) (क्रियाविशेषण तरीके). कर्ता-कर्म-विभक्ति बहुवचन ... :::: . पुं. अंगो कोई प्रत्यय लेता नथी.. 'विउस', 'नर', 'मणहर'. प्राकृत रूपो आकारांत छे : 'होरा', 'किरणा'. नपुं. अंगो 'ई' प्रत्यय ले छे, अथवा तो कशो प्रत्ययं लेता नथी: 'कुट्टई', 'सयई', 'पयई', 'सिविणइ', 'पवरई', 'चलण', 'कुसुम', 'सिविण', 'चरिय', 'हियय', 'भणिय', 'निलीण'. प्राकृत रूपोमां आई' प्रत्यय छेः 'कुसुमाई', 'सव्वाई'. * अकारथी विस्तारित अंगोमा ए अकारनी साथे जोडाईने 'आई' प्रत्यय बने छे: 'दिवाई', 'कहियाई', 'हियडुल्लाइ', 'कायब्वाइ'. :: स्त्रीलिंग अंगो उ.प्रत्यय ले छे.. .:. 'वत्तउ', 'वहुयउ', 'कन्नयउ', 'सयसंखउ', 'काउ', 'ईमाउ', 'रक्खाउ', 'जणणिउ', 'तरुणिउ', 'नियंबिणिउ', 'मंजरीउ', 'सरणीउ'. .......... . करण-विभक्ति एकवचन ....... - अकारांत पुं.न. अंगो 'इण' प्रत्यय ले छे. प्राकृत एण' पण क्वचित वप- . राय छ : Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ 'कामिण', 'सुहिण', 'नामिण', 'पसाइण', 'तिण', 'जिण', 'किण', 'सामन्लेण', 'जणेण'. अधिकरण-विभक्ति एकवचननुं रूप पण करण-विभक्ति अर्थे वपराय छ : 'दंसणि'. 'कवलणि'. अकारांत स्त्री. अंगो 'हिं' ('हि') प्रत्यय, पण क्वचित 'ण' प्रत्यय ले छे.. 'धरणिहिं', 'रयणिहिं', 'देविहि', 'सहिहिं', 'मुद्धहि', 'सहियहि', 'भत्तिण : (४९०), 'दिविण' (५२३). ... 'लीलई' ए रूपमा 'इ' प्रत्यय छे.. .. प्राकृत रूपोमा 'ए' प्रत्यय छे : 'रिद्धीए', 'वाहाए', 'कलियाए'.. - करण-विभक्ति बहुवचन अकारांत पुं. न. अंगो 'इहिं' (प्राकृत रूपोमां 'एहिं') अने बीजों अंगो 'हिं' प्रत्यय ले छे. 'सिविणिहिं', 'पुरिसिहिं', 'तत्थिहिं', 'नरिहिं', 'दामिहि', 'दिणिहिं! 'तणुहिं', 'थोवेहिं, 'अरिहिं', 'गिरहिं', 'कहहिं'. अधिकरण-विभक्ति . . ....... अकारांत पुं. न. एकवचन माटे 'इ' प्रत्यय छ : 'धम्मि', 'खित्ति', 'गिम्हि', 'उदइ', 'दीवि', 'मंडणि', 'पसिद्धि'. . ..... प्राकृत रूपोमा ‘म्मि' प्रत्यय छे : 'सयणम्मि', 'विरहम्मि', 'अन्नम्मि'. अन्य अंगो माटे 'हि' प्रत्यय छे. 'महिहिं', 'रयणिहिं', 'निसिहि'. बहुवचन माटे करण-विभक्ति भने अधिकरण-विभक्तिनु रूप समान छे : 'जपमाणिहिं'; 'पहसंतिहिं', 'सिहरिहिं'.. प्राकृत रूपोमां. स्त्री. अंगो माटे. 'सु' प्रत्यय छ : 'कहासु', 'सहासु'. केटलाक प्रयोगोमां 'हिं' ने बदले 'हं' प्रत्यय अधिकरण तेम ज करणना अर्थमां जोवा मळे छ : __..'पल्ललहं सरहिं' (४९६), 'तरुहु छायहं चिटुंतु (५६०), 'पविसेइ अंगह' (६४०), 'आणुधावइ काणणहं' (५३७), 'असिधारहं वीसमिर० (५६१), 'परियइंतु वसुहहं समग्गहं' (६९०), 'सहहं वइसई' (७४१), 'लोयणहं उक्कोउ' (७६९), 'कंधरहं जलोयरु' (७६९), 'सहहं कंपंतु' (७७८), 'तडिलयहं निम्मि'. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संप्रदान-अपादान-संबंध-विभक्ति एकवचनमां अकारांत अंगो माटे 'ह', इकारांत माटे 'हि' भने उकारांत माटे 'हु' प्रत्यय छ : 'ससहरह', 'पाउसह', 'सयणिज्जह', 'काणणह', 'दइयह', 'उयहिहि', 'देविहि', 'महिंहि', 'कित्तिहि', 'पंतिहि', 'सिरोमणिहि', 'पिउहु', 'रिउर्जा' 'तणुहु', 'वहुहु'. क्वचित सानुनासिक रूप मळे छे : 'सारीरियह', 'संतावह' (५७६), 'कतिहिं' (७७८), 'खंतिहिं' (७७८). एक वार अकारांत स्त्री. अंग माटे 'हि' प्रत्यय वपरायो छे : 'अंवरहि' (४४५). प्राकृत रूपोमां अकारांत पु. अंगो माटे 'स्यु' प्रत्यय छे : 'कुमरस्सु', 'जयस्लु', 'तस्सु' ('तसु'). _ 'पासाङ', 'करवालाउ' 'संनिहीउ' एवां अपादानविभक्तिनां रूप पण प्राकृतनो वारसो छे. बहुवचनमा एकवचनना ज उपर्युक्त प्रत्ययो पण सानुनासिक वैपराय छेएटले के अनुक्रमे 'हं', 'हिं' अने 'हुँ' : _ 'पंडवह', 'वीरह', 'भारियह', 'देवयहं', 'धन्नहं', 'लयह', 'साहिहिं', 'करिहिं', 'सिरिहिं', 'तरुहुँ', 'गुरुहुँ', 'वहुहुँ'. कोई वार बहुवचनमा निरनुनासिक रूप मळे छ : 'सुकयह', 'तिजयह', 'बंदिहि'.. प्राकृत रूपोमां 'आण' के 'ण' प्रत्यय छ : 'सिविणाण', 'सुहाण', 'हरिमुसलीण', 'मंजरीण'. सर्वनामोमां 'एसि' प्रत्यय छ : 'तेसि', 'इयरेसि'. संवोधन-विभक्ति एकवचनमां कोई प्रत्यय नथी : नाह, सामिय, मयण, पहु, देवि, पसयच्छि. बहुवचनमा प्रकारांत पुं: माटे हु' प्रत्यय अने स्त्री. अंगो माटे 'उ' प्रत्यय छ : 'सुरगणहु', 'सहिउ'. ___ पुरुषवाचक सार्वनामिक रूपो नीचे प्रमाणे केटलांक रूपो मळे छ : Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्ताविभक्ति एकवचन . . . . . . - 'हउँ' (१.पुं.); 'तुहुँ' (२.पुं.); 'सो', 'सु' (पु.), 'सा', 'सं. (स्त्री.) 'त' (नपुं.) (३. पु.), 'एह' (पु.), 'एउ' (पुं., न.), 'इहु' (नं.), 'एह' (स्त्री: पुं.), 'उहु' (पुं.) (३. पु. दूरवर्ती). 'पेसिउ म्हि' (७२५)मा 'म्हि' पहेलो पुरुष एकवचननो अर्थ धरावे. छे. . . कर्ताविभक्ति बहुवचन . 'अम्हि' (१. पु.). 'तुब्भे', 'तुब्भि', 'तुम्हि', 'तुमि' (६३९, ६४३) (२. पु.), 'एई' (३. पु.), 'ताउ' (स्त्री.) (३. पु.). . . . . . . . . . ! . कर्मविभक्ति एकवचन 'पई' (२. पु.).... करणविभक्ति एकवचन 'पई' 'तइ' (२.पु.); 'तिण' (पु.), 'तीए' (स्त्री.), 'एईए' (स्त्री.) (३.पुं.). संबंधविभक्ति एकवचन 'मह', 'महु', प्राकृत 'मज्झ' (१.पु.), 'तुह', 'तुहु' (२पु.), 'तस्सु', 'तसु'. (पु.) (३.पु). संबंधविभक्ति बहुवचन 'अम्ह', 'अम्हहं' (१पु.), 'तुम्ह', 'तुम्हहं' (२पु.), 'तह 'ताह' (३पु.). विभक्तिसंबंध दवितां स्वतंत्र तत्त्वों . करणविभक्तिना अर्थमां 'संह', "स', 'स' वपराय छे. . संप्रदानना अर्थमां 'कए' के 'कइ' तथा 'कज्जिण' (ने माटे) : . . 'पडिच्छ-कए', 'निविग्ध-कए', 'उवसम-कइ', 'जसु कज्जिण'. .... अपादानना अर्थे 'पासाउ' (=पासेथी) : 'जणय-पासाउ'. . . अधिकरणविभक्तिना अर्थमा ‘मज्झि' (मां) अने 'उवरि' (उपर),:. . ...... 'वसुंधरह मज्झि', 'महुवरि', 'मज्झुवरि'. . संबंधविभक्तिना अर्थमा 'संतिउ' (पुं.न.), 'संतिय' (स्त्री.) . .. 'पासे' एवा अर्थमा 'सविहि' अने 'सामे'ना अर्थमा 'समुहुँ' मळे छे. . . . . आख्यातिक रूपाख्यान. .. वर्तमानकाळ १पु. एकव. 'उ' प्रत्ययवाळा रूप उपरांत नवु 'हुँ' प्रत्ययवाळु रूप पण वपरायु छ: Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'कर', 'चिट्ठउं', 'पेक्ख', 'मन्न':...... " : 'ज़ायहुँ', 'उज्जमहुं', 'टलहुं', 'दंसहुँ', 'मन्नहुँ', 'वसहुं', 'वलिकिज्जहुं.' ... प्राकृत रूप : हवेमि'.... ..... १पु. बहुव. : 'करहुं', 'वलिकिज्जहुं'. ....... २पु. एकव. : 'हवसि', 'कुणसि', 'पूरसि', 'विसूरसि'. :: .... २.पु. बहुव. : 'दीसह', 'जाणह', 'चल्लह', 'याणहं'. :: ३.पु. एकव. : 'कहइ', 'सरइ', 'माइ', 'ठाइ', 'देइ', 'पयंपई', 'पिएइ', 'पेच्छेइ', 'करेइ', 'सद्दावेइ' . . . ३.पु. बहुव. : 'कहहिं', 'रोयहि', 'आवहि', 'विलसहि'. एक वार 'पभणई' (४६२) (सरखावो ‘सिद्धहेम' ८-४-४१८ (४)मां 'होसई') प्राकृत रूपो : 'जपंति', 'साहति', 'जायंति', 'लिंति'. भविष्यकाळ १. पु. एकंव. : 'करिनु', 'दलिखु', 'वहाविसु', 'पेक्खेसु', 'देसु'. १. पु. बहुव. : 'जम्वेसहं'. ......२.१पु. एकव. : 'चिट्ठिहिसि', 'होसि', 'देसि', 'पाडिज्जिहिहि'.. ३. पु. एकव. : 'जाइसिइ', 'जाइसई', 'होइसई', 'होसई', 'मुच्चिसई', 'पाडेसई', 'मरिहइ', 'हणिहई', 'हविहई' 'होहिइ', 'जाहि' (त्ति).. आज्ञार्थ : ... . २. पु. एकव.. ... ... ... ... ... .. . ... .. 'साहसु', 'पसियसु', 'कहसु', 'पयच्छसु', 'वसु', 'आगच्छसु', 'रक्वहि', 'तवहि', 'फुरहि', 'लेहि', 'एहि', 'होहि'; 'पंसिय'; 'अच्छु', 'पडिवज्जु', 'जोइ', 'सर', 'पेक्खि', 'लवि', 'कहि'. २. पु. बहुव. : 'पेच्छह', 'भायह', 'नियह', 'चलह', 'पसियह', साहह', 'मुणेह', 'निमुणेह'; 'पेक्खहु', 'पयडहु'. ३. पु. एकव. : 'हवउ', 'पडउ', 'निसुणउ', 'गम्मउ', 'किज'. विध्यर्थ : .. ____२. पु. एकव. : 'मरिसिज्ज', 'करेज , 'विचरेज्ज', 'जाणिज्जसु'. :.... Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधित अंगो : : प्रेरकनौ ''गमावू', 'दवाव', 'साव' 'निम्मावू'. प्रत्यय 'आ'छे कचित 'अ': अणुण्णवः कर्मणि अङ्ग माटे ‘इज्ज्' के 'इय्' प्रत्यय छे. च्विरूपो : 'बलिकिज्ज्' 'अवयंसिकिज्ज्' 'पयडीहुँ', 'उध्धीकय'. कृदंतो : वर्तमान कृदंतः ‘फुरंत', 'पदंत', 'गायंत', 'चिर्तित'. (विस्तारित' 'मुणंतउ', 'सेविज्जतउ', 'गच्छंतिय'; प्राकृत रूप : 'पयडिज्ज़माण' भूत कृदंत : 'फुरिय', 'पडिय', 'जाणिय', 'रइय'; (विस्तारित) ‘चडियउ', ‘निवडियउ', 'माइयउ'. क विध्यर्थ कृदंत : ' भणियग्व', 'कायन्वड', 'जियव्वउ', 'अवगणियव्वउ', 'उवेहियव्व', 'सहेवा' (बहुव.). संबधक भूतकृदंत : B.C 'करिवि', 'धरिवि', 'नमिवि', 'विहसिवि', 'चइवि', 'नमेवि', 'निसुणेवि', -‘कारेवि', 'नियवि', 'ठवेविणु', 'करे विणु', 'उद्वेविणु', 'घरिप्पिणु', वेप्पिणु', 'विह सिउ', 'होउ', 'नेउ', 'गहेउ', 'बंधेउ'. N प्राकृत रूपो : 'गंतु', 'मोत्तु', 'उट्टिउण', 'आरोविउण', 'विणिच्छिउण', ''हरिउण', 'आऊण': शब्दसिद्धि केटलाक आख्यातिंक अने नामिक प्रत्ययोथी सधायेलां अंगो नीचे आयां छे: आख्यात साधित पामिर, संदिर, पढिर, उट्ठिर, मुणिर, परिगलिर, वज्जिर, उवदंसिर. . ('इर' प्रत्यय वर्तमान कृदंतनो अर्थ धरावे छे तथा ताच्छील्यवाचक छे). 2 · तोसयर, दाहयर, चमक्कयर, विणासयर, उज्जोययर (कर्तृवाचक). सुहावणउ, दहावण (कर्तृवाचक 'णय' प्रत्यय). अयाणुय (कर्तृवाचकं 'उय' : प्रत्यय). Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसाधित तुंगिम, थिरिम, गंभीरिम (विशेषण परथी भाववाचक नाम), वंदियण, पुलिंदयण, तरुणीयण, सहियण ('यण' बहुवचनना प्रत्ययर्नु काम करे छे). अंगविस्तारक (लघुता, कोमळता वगेरे पण व्यक्त करता) प्रत्यय : स्वार्थिक 'य' (स्त्री. 'इय')नो घणो वपराश छे.. 'गोरडी' 'वत्तडी'मां 'डिय' प्रत्यय छे.. 'नयणुल' मां 'उल' प्रत्यय छे. 'हियडुल्लउं', 'हियडुलउं' एमां 'ड' तथा 'उल्लय' ('उलय') प्रत्यय छे.. पढ़मेल्लुय'मां 'एल्ल' तथा 'उय' प्रत्यय छे... केटलाक प्रयोगो अधिकरणविभक्ति वाळो ('सतिसप्तमी'), करणविभक्ति वाळो के संबंधविभक्ति वाळो मुक्त वाक्यखंड : छंद ४६९मां तथा ७४२ थी ७४५मां मुख्य क्रियानो प्रवर्तनकाळ दर्शाववा आवती सहयोगी क्रिया अधिकरण तेम ज करणविभक्ति : लेती' होवानां उदाहरण छे : 'गायतिहिं गायणिहिं' वगैरे. ..... एवों ज अर्थ दर्शाववा संबंधविभक्तिना प्रयोगर्नु उदाहरण 'तहं ललं तह (४७७) छे. आ ज रचना पछीथी गुजराती वगेरेमा रूढ थाय छे. (जेम के . 'तेमना देखता', 'दोडतां दोडता' वगैरे). ..." नीचेनी रचनाओमां संबंधविभक्तिनो प्रयोग नोंधपात्र छ : 'पाउसह सरइ' (४४७), 'विसारयह कहई' (४६२), 'तिहुयणहं साहति' (४७८), 'पलयह नीउ', 'तुह दंसहुँ'. ....... गति अर्थना क्रियापदो अधिकरणविभक्ति ले छे : 'उज्जाणि गउ', 'नियघरि गच्छंति'. संयुक्त क्रियापदना नीचेना वे प्रयोगो नोंघवा जोईए : 'छडिवि जंति' (७८१); 'नीहरिउ लग्गउ' (५७९). . 'जोइ-न जोइ' ५०३) जेवा आज्ञार्थ रूपमा वपरायेलो अनुरोधवाचक 'न' पछीथी हिन्दीमां रूढ बन्यो छे, 'मह होंतु' (४९१) ए प्रयोगमा 'होतु' भूतकाळनो अर्थ धरावतो होईने . ते अर्वाचीन गुजराती 'हतो' नुं एक पूर्वरूप रजू करे छे. . Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नौधेलां विशिष्ट रूपो उपरथी जोई शकाशे के हरिभद्रनो अपभ्रंश हेमचंद्रे - वर्णवेल अपभ्रंशने* घणे अंशे मळतो होवा छता केटलीक बाबतमा ते वधु अर्वाचीन छे : (१) अकारांत नामर्नु कर्ता एकवचन- प्रत्यव विनानुं रूप, (२) अकारांत नपुंसकलिंगनी कर्ताविभक्ति बहुवचनमा प्रत्यय विनाना रूपनी अधिकता, (३) करणविभक्तिना अर्थमां अकारांत नामोना 'इ' प्रत्यय वाळां रूपोनो प्रयोग, (४) संबंधविभक्ति माटे एकवचनमां अंगना अंत्य स्वर अनुसार 'ह', 'हि', 'हु' प्रत्यय, (५) प्रत्ययोमा 'ह'-'हं', 'हि'-'हिं' जेवां सानुस्वार अने, निरनुस्वार प्रत्ययोनी सेळभेळ, - (६) वर्तमान ३. पु. बहुवचनमा 'हि' ने बदले 'ई', अने सार्वनामिक 'तुम्हि'ने बदले 'तुमि', (७) वर्तमान १. पु. एकवचनमां 'हु' प्रत्ययवाळां रूप; (८) 'जोइ-न', 'हियड्डलङ' जेवां रूपो-आ सौ अपभ्रंश उपर पडेला लोकबोलीना प्रभावनां सूचक छे... ' अनेक शब्दो, प्रयोगो वगेरे पण समकालोन लोकभाषाथी प्रभावित छे. 'सनतुकुमारचरिय'र्नु मूल्यांकन . हरिभद्रे पोताना आधारे तरीके लीधेला सनत्कुमारना जीवनकथानकनी वस्तुयोजना रसिक छे. ते साहसो, जोखमो, पराक्रमो अने सुंदरीओ वाळी अद्भुत घटनाओथी सभर एवी एक भ्रमणकथा छे अने अनेक अणधार्या. वळांको अने आश्चर्योथी ते कुतूहल प्रदीप्त राखे छे. नरवाहनदत्त के वसुदेव वगैरेनी अद्भुतरसिक परिभ्रमणकथामोनी जे प्राचीन दीर्घ परिपाटी हती तेणे अनेक उत्तरकालीन कथाओ माटेनो ढांचो, भावना अने वातावरण पूरां पाड्यां छे. तेवी कथाओना जन रूपांतरमां-धर्मकथाओमां जन्मान्सरनो वृत्तांत अने वैराग्यबोधक अंत एटलो अंश वधारे होय छे. .. पोताना 'सनतुकुमारचरिय' ना ३४२ छंदोने हरिभद्रे कथावस्तुने अनु- . लक्षीने आ प्रमाणे वहेंच्या छे : सनत्कुमारनो जन्म अने तारुण्यप्राप्ति (३४३.५२४), अश्व वडे अपहरण अने शोध (५२५-५६७), सनत्कुमार- परिभ्रमण अने पराक्रमो-विद्याधरो साथे युद्ध, कन्याओनी प्राप्ति, विद्याधरस्वामित्व (५६८६६३, ७०७-७१९), सनत्कुमारना. पूर्वभवो (६६४-७०६), चक्रवर्तीपदनी ... प्राप्ति. (७२०-७५३), वैराग्य अने श्रामण्य (७५४-७८५). . .. . . विविध वर्णनोमां वसंतवर्णन (४७७-४.८३), अश्ववर्णन (५२७-५३०). - षड्ऋतुवर्णन (५३९-५५१), युद्धवर्णन. (५७९-५९५, ६३०-६३४, ६५० . :: *. हेमचन्द्रीय अपभ्रंश माटे जुओ, ह.-चू. भायाणी 'अपभ्रंश व्याकरण', भूमिका... Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काधारस माटेनी कुशल प्रासादिक अने वर्णनमा हरिभद्रन २६ -६५७), अभिषेकवर्णन (७२३-७३.२), चक्रवर्तीना स्नानभोजन्नोंदिनुं वर्णन .. (७४२-७५०) तथा विरहवर्णन (४९९-५०४, ५१०-५१६, ५२१-५२३ . वगेरे) एटलांनो उल्लेख करी शकाय. साकेतनी राजकुवरी सुनंदा साथेना सनत्कुमारना जे बे. मिलनप्रसंगो योज्या छे अने प्रथम मिलन वाळो प्रसंग जे रीते बहेलाव्यो , तेमां हरिभद्रनी कथारस माटेनी कुशळ अने मौलिक दृष्टि देखाई आवे छे. वर्णनौ घणांखरां परंपरागत होवा छतां प्रासादिक अने - समुचित छे अने जंबूद्वीप अंने भरत- . . क्षेत्रनां वर्णनमा तथा केटलेक स्थळे विरहवर्णनमा हरिभद्रनो मौलिक स्पर्श जोई . शकाय छे. जंबूद्वीपना वर्णनमा पृथ्वीने माटे योजेला रूपकगा उदात्ततत्त्वनो.. विरल स्पर्श अनुभवायं छे. . __हरिभद्रनी शैली शिष्ट अने प्रासादिक छे. अलंकारो के वर्णनोना अतिरेक के अप्रस्तुतताथी ते बच्या छे. रचनानो प्रवाह कशे स्खलित थतो नथी.. . रड्डा जेवा अटपटा छंदने ए सहजसिद्ध होय तेम योजे छे. तेमां क्लिष्टतानी फरियाद करी शकाय तेवां स्थनो भाग्ये ज मळशे. छंदने कारणे छूट लेवाई होय तेवां स्थानो पण घणां ओछां छे. वार्तालापो अने अंगत उक्तिओनो पण . . यथोचित आश्रय लईने हरिभद्र शैलीनुं वैविध्य अने निरूपणनी तादृशता साधी . . शके छे. कथावस्तु, वर्णनो अने केटलांक शैलीतत्त्वो परत्वे. हरिभद्र तेमना पूर्ववर्ती सनत्कुमारचरित्रोना स्पष्टपणे ऋणी होवा छतां कथावस्तुने रड्डाछंदमां ढाळीने तथा घटनाक्रम अने वर्णनोमां केटलुक परिवर्तन करीने तेओ पोतानी गणनापात्रं रचनाशक्ति अने कवित्वनी आपणने प्रतीति करावे छे. .. . . . . . . उपसंहार : ... .. . .. - छेवटे गुजराती अनुवाद विशे बे शब्द : आसाथे आपेला गुजराती अनुवादनो हेतु मूळ कृतिनी अपभ्रंश भाषाने समजवा माटेगें केवळ एक साधन पूलं पाडवानो नथी. मूळ कृति काव्यगुणोथी सभर छे, अने तेनो पण कशोक अणसार अनुवादमां मळवो जोईए. उपरांत अनुवाद ओछांमां ओछो पोताना पग पर ऊभो रही शके तेवो तो होवो ज जोईए. जो ते मूळ कृतिना आधार विना, स्वतंत्रपणे वांची. शकाय तेवो स्वाभाविक अने सुवाच्य न. होय तो तेनुं मूल्य स्वल्प गणाय. अहीं आपेला अनुवाद पाछळ आवा प्रकारनो दृष्टिकोण राखेलो · छ, भने तेथी ते समग्रपणे मूळानुसारी होवा छतां यांत्रिकपणे शब्दशः नथी ज, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २७ पद्यमा होवाथी अने छंदनी जरूरियातोने कारणे मूळपाठमां अनावश्यक शब्दो पण मुकायेला होय, अने पर्यायो, पादपूरको, अध्याहारो, पुनरावर्तनो वगेरेनो पण छंद जाळववा माटे आशसे लेवो पडयो होय. आ बधानो शब्दशः अनुवाद करीए तो ए मूळ रचनाने ऊलटो हानिकर्ता नीवडे. मूळनी भावना, स्वरूप अने तात्पर्यने बाधक न थाय तेवी रीते गुजराती अनुवाद करवानुं लक्ष्य राख्यु छे. केटलेक स्थले अर्थघटननी मुश्केली जणाय छे. पण तेमनी चर्चा 'नेमिनाहचरिय'नी भूमिकामां करवानु राख्युं छे. लालभाई दलपतभाई - भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरना संचालक प्रा. . दलसुखभाई मालवणियानी प्रेरणा, सद्भाव अने अनेकविध सहाय माटे अमे तेमना अत्यंत ऋणी छीए. आशा छे अपभ्रंश भाषा अने साहित्यना अध्ययनमा अमारो प्रस्तुत प्रयास उपयोगी थशे. अमदावाद • २६ जान्युआरी, १९७४. हरिवल्लभ भायाणी मधुसूदन मोदी Page #36 --------------------------------------------------------------------------  Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरि-हरिभद्द-सूरि-विरइय नेमिनाहचरियंतग्गउ सण तु कु मा र च रि उ .. [४४४] मलय-गिरि-वण-कैस-पासाए उत्तुंग-सुर-गिरि-सिहर- उत्तिमंग-संपत्त-कित्तिहि । ससि-दिणयर-लोयणिहि तार-सेणि-सिय-दंत-पंतिहि ।। हिमगिरि-विझ-गिरिंद-थिर- थोर-त्थण-जुयलाए । कालिंदी-सरि-सलिल-भर- रोमावलि-कलियाए । [४४५] ... सुर-तरंगिणि-पुलिण-जहणाए रयणायर-अंवरहि पुहइ-वहुहु संजणिय-मंडणि । निय-मंदर-गिरि-फुरिय- सेस-दीव-माहप्प-खंडणि ॥ नग-नगरागर-गाम-सरि- विसय-सहस्स-समिद्धि । जंव दीवि महंति तहिं भरह-क्खित्ति पसिद्धि ॥ ... Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [४४६] जत्थ रयणिहि रयणि-रमणुदइ ससिकंत-रयणुल्लसिय- सलिल-पूर-संपुण्ण-लोयण । परिवियलिय-चित्त-भर सुणिय-अत्य-जय-पिय-विरोयण ॥ नं निव्भर-दुह-पसर-परिपूरिय-गल-सरणीउ। रोहिं यरवि-विरहम्मि घर-चित्त-भित्ति-तरुणीउ । [४४७] जत्थ गिरिवर-तुंग-करिरायगड-स्थल-परिगलिर- दान-वारि-परिसित्त-धरणिहिं । . अवसारिय-खर-किरणि निवइ-निवह-सिय-छत्त-रयणिहि ॥ हियइच्छिय-वियरण-चउर- निव-कय-तोस-विसेसु । न सरइ गिम्हि वि पाउसह कहमबि लोगु असेसु ॥ [४४८] स-गुणु उवचिय-कोहलंकारु . सुनिवेसाणंदयरु असम-वंस-रयणायहरूभवु । । सु-पवित्तु सु-वाणियउ सुयण-हियय-गउ गय-उबद्दषुः ॥ . . . मुत्ता-रयणु व विष्फुरिय- अमरावइ-सुंदेरु । इह अहेसि गयपुरु नयरु अरिहिं अखंडिय-मेरु ॥ [४४९] तत्थ सूरु वि समिय-संतावु बहु-दाणु वि मय-रहिउ गय-पिओ वि स-कलत्त-मणहरु । दोसायर-खंडणु विनिच्चु कुमुय-वण-तोस-सुंदरु ॥ धम्ममई विपरत्थ-रुइ अ-जल-निही वि समुदु । . . वहु-माणो वि अ-माणु पिय- सिव-संगो वि अ-रुदु ॥ १४६. ५. सुणिणियत्थ. ७. क. सरणीओ. ९. क. तरुणीओ... १४८. ६. परिफुरिय. . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगंतुकुमारचरिउ [४५०] तुंगु पणमिरु विउसु सुकुलीणु सु-समत्थउ खति-यरु सीलबंतु सोहग्ग-मंदिरु । अहिगम्मउ दुद्धरिसु घण-समिद्ध दाणवु-संदिरु ॥ जय-जण-नयण-सुहावणउ गरुय-तेय-प-भारु ।' आससेण-अभिहाणु निवु आसि वसुंधर-सारु ॥ [४५१] तस्सु निरुवम-रूप-लायण्णगुण-रयण-रोहण-वसुह कुंद-कलिय-सम-दंत-पंतिय । कुवलय-दल-नयण-जुय वयण-विजिय-तामरस-कंतिय ॥ कलहंसिय-सारस-तरुणि- परहृय-महरालाच । सारय-रयणीयर-सरिस- पसरिय-कित्ति-कलाव ॥ [४५२] . - हरह गोरिव सिरि व मुर-रिउहु तारा इव ससहरह उव्वसि व तियसाहिरायह । दोवइ इव पंडवहं तह रइ व्य सिरि-दइय-जायह। सीया इव दसरह-सुयह गुरु-गुण-स्यण-समिद्ध । आसि हियय-पिय पिय-पवर सहदेवि त्ति पसिद्ध ॥ [४५३] तेसि धम्मि अविहिय-वाहाए भुजंतहं विसय-सुहु असम-राय-अणुरत्त-चित्तहं । उवगच्छइ कालु कु- विपुत्र-भविय-सुकयह पवित्तहं ॥ अन्नम्मि उ अवसरि निसिहि सुह-सयणम्मि पसुत्त । सिविणंतरि सहएवि जय- जंतु-सुहय गुण-जुत्त ॥ ४५०. ६. क. सुहावण'. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. नैमिनाहचरिउ [४५४ [४५४] . कुंभि-केसरि-वसह-अहिसेय. ससि-दिणयर-झय-कलस- दाम-पउमसर-जलहि-सुरघर। रयणुच्चय-जलण मुहि पविसमाण पेच्छेइ मणहर ॥ तयणंतरु संभंत-मुह - उद्वेविणु सहस त्ति । साहइ सिविणई विणय-कय- कर-संपुड निवहं ति ॥ . [४५५] __ तयणु पुण्णिम-सरय-रयणियरउदयम्मि रयणायरु व जलय-माल-दंसणि सिहंडि व । कमलायरु दिणयरि व रायहंस-कुलु कमल-संडि व ॥ सहयारु व्य वसंत-महि पत्तइ दुगुणिय-सोहु । कह-वि न माइ न ठाइ निवु सिविणिहिं कय-सिरि-बोहु ॥ [४५६] तो पयंपइ पुहइ-हरिणंकु आणंद-गग्गर-गिरहिं पुरउ नियय-सहदेवि-दइयह ।। जह - होहिइ देवि तुह तणय-रयणु सुह-जणणु ति-जयह ॥ तियसासुर-नर-नमिय-पय- पउमु जिणाहिवइ व्व। .. नव-निहि-चउदह-वर-रयण- सामिउ चक्कवइ व्य ॥ . [४५७] : . अह सुहा-रस-कुंड-वुड्ड व्वउबलद्ध-चिंतामणि व पत्त-चक्कवइ-रज्ज-रिद्धि व ।. . गिह-उग्गय-सुरतरु व अइर-जाय-वर-मंत-सिद्धि व ॥ इरिस-वियासिय-मुह-कमल सिर-विरइय-कर-कोस । हवउ एहु इय पुणु वि पुणु देवि वि भणइ स-तोस ॥ १५६. २. गग्गेर. ४५७. १. क. संवुड व्व. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६१] संगंतुकुमारचरिउ [४५८]. . इय परोप्पर दो वि साणंदु सद्धम्म-धम्मिय-कहहिं रयंणि-सेसु सयल वि गमावहिं । अहं जायइ अरुणुदइ वंदि-विंद निव-भवणि आवहिं । मंगल-तूर-रवंतरिण - उद्धीकय-करताल । जंपति य गहिर-झुणिण एरिसु हरिस-विसाल ॥ . [४५९] उदय-गिरिवर-सविह पत्तो वि नयणाणमगोयरु वि अकय-तिव्य-स-पयाव-पसरु वि । गब्भागय-सुपुरिसु व अणवइण्ण-गुण-रयण-नियरु वि ॥ जगि पडिवक्खिय-पह हरइ पयडइ कमलाणंदु । तोसइ सव्यकई जणइ सुयण-हरिस नीसंदु ॥ ... [४६०] ___तयणु देविहि सिविण-अणुरूवु नणु वंदिण भणिय इय . गरुय-हरिसु चिंतितु नरवइ । स-निउत्तय-नरिहिं बहु- तुहि-दाणु वदिहि दवावइ । अह सयणिज्जह उद्विउण निम्मावइ सव्वाई। हरिस-वियासिय-मुहु निवइ गोसिय-कायचाई ॥ [४६१] .. तयणु सुंदरु करिवि सिंगारु आणंद-समुल्लसिय- रोम-राइ-रेहंत-विग्गहु । कुरु-वंस-मंडण-रयणु सहल-विहिय-निय-दार-स संगहु ॥ सिविण-वियाणय नर नियय-पुरिसिहि सद्दावेइ । अह लहु सविहागयहं तहं आसणु वियरावे ॥ ४५९.८. तो सव्वक जणइ. ४६०.२ क. अणस्वु, क. मुह. ४६१. ७. क. पुरिसिहि; क. तह. . Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4FASM नामनाहचार नैमिनाहचरित [४६२] अह करेविणु विविह-पडिवत्ति निवु सिविण-विसारयहं कहइ देवि-दिहाई सिविणई। इयरे वि विणिच्छिउण नियय-सिविण-सस्थत्थु पभणई ॥ वाहत्तरि कहियाई इह सिविणई सामन्नेण । तत्थ य तीस महा-सिमिण पवरई भणिय जणेण ।। [४६३] तह वि चउद्दह सिविण सु-पसस्थ जिणनायग-चक्कबइ- जम्म-हेउ जायंति धन्न । नर-नायग-भारियहं भावि-सुगइ-सुक्खहं सउण्णहं ॥ तेसि वि मज्झह सत्त चउ सिविणइं हरि-मुसलीण । जम्मु कहहिं निव-भारियहं मुह-कमलम्मि निलीण ॥ ... [४६४] सेस नरवइ-सचिव-सामंतसत्थाह-सेटि-प्पमुह . पुरिस-रयण-जणणिउ विउज्झहिं ।। एक्केक्कु सिविणउं णियवि पुव्व-उत्त-सिविणाण मज्झहिं ॥ ता सामिय भुवणभिहिउ नंदणु को-वि विसिट्छ । होसइ सिविण-समूहु एहु जं तुह देविहिं दिछु ॥ [४६६] । ___ अह नराहिवु सम्मु एयं ति तं सिविण-विसारयह सयल क्यणु अभुवगमेविणु । पडिवत्ति अणेग-विह अह निउत्त-पुरिसिहिं करेविण ॥ निय-निय-ठाणि अणुण्णवइ सिविण-विउस नीसेस । विउमुवइट्ट पियह कहइ सिविणहं कह स-विसेस ॥ . १६४. ८-९. क. Some letters are blurred. ४६५, ५. क. पुरिसिहि. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६९] . सणतुकुमारचरित अह नराहिव-वयणु निसुणेवि संतोसामय-वरिस- सित्त-गत्त-लइय व्य असरिम् । उवदंसिर-पुलय-भरु भणइ साणुणउ देवि स-हरिसु ॥ हवउ हचउ मह देव-गुरु- चलण-पसाइण एहु । जह जायहुं इह-पर-भवि वि हउं वि सयल-सुह-गेहु ॥ [४६७] - तयणु नंदण-वयण-रयर्णिदउवदंसण-सुह-तिसिय देवि देइ देवयहं विविहहं । उवयाइय-सय-सहस कुणइ पूय जिण-पाय-पउमहं ॥ आराहइ गुरुयण-चलण ओसह-सयई पिएइ । निय-गमह निविग्ध-कए बहु-रक्खाउ करेइ ॥ [४६८] . तयणु स-हरिसु धरणि-हरिणंकसंपूरिय-दोहलय . गमइ कमिण. पडिपुन्न-वासर । अह सयल-गुणभहिइं दियहिं पत्त-गय-दोस-अवसर ॥ पसवइ देवि समग्ग-गुण- लक्षण-रयण-निहाणु । भुवणाणंदणु सुय-रयणु पयडिय-विहि-विण्णाणु ॥ [४६९] अह पढ़तिहिं भट्ट-चट्टेहिं गायंतिहिं गायणिहिं . दिज्जमाणि दाणम्मि वंदिहिं । कितिहिं मंगलिहिं. वज्जिरेहिं बहु-तूर-विदिहिं ॥ सधराधर-धरणियल-जण- परम-सुहाण निहाणु । दिण्णु नरिंदिण नंदणह सणतुकुमारभिहाणु ॥ - ४६८, ४. क. ख. गभहिंइ. ८. क. भवणा'. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [४७० [४७०] तयणु पमुइउ निवइ हिययम्मि आणंदिय देवि मणि गरुय-हरिस हुय महिहिं सज्जण । परितोसिय वंदि-यण तुट्ठ विद्युह निरु डरिय दुज्जण ।। . अहव समग्गु चि धरणियलु भात्रिय-गुरु-उदएण । असरिसु हरिसु समुव्यहइ कुमर-नाम-सवणेण ॥ [४७१] सिहरि-कंदरि हरि किसोरु व्य अप्पडिहय-पय-पसरु पत्त-कित्ति अणुकमिण कुमरु वि। .. आणंदिय-सुहि-सयणु हणिय-पिसुण-मणु अह-वरिसु वि ॥ परिओसइ वीरहं हियय विहसई सुहड-कहासु । निसुणइ पुरिमुत्तिम-चरिय निवसइ विउस-सहासु ॥ [४७२] अह नरिंदिण गरुय-रिद्धीए साणंदु सु कुमर-वरु सुप्पसत्थ-वासर-मुहुत्तिण उवझायह सविहि परिमुक्कु तयणु सुपसन्न-चित्तिण ॥ पाविउ थोवेहिं वि दिणिहिं असरिस-गुण-निलएण।। पारि समग्ग-कलोयहिहि कुमरु कलायरिएण ॥ . [४७३] ___ तयणु पुणिम-रयणि-रमणु व्य निय-जुहा-भर-भरिय- भुवण-विवरु निम्मल-कलालउ । गंभीरिम-रयणनिहि थिरिम-धरणि तुंगिम-विसालउ ॥ से विज्जतउ सज्जणिहिं सलहिज्जंतु बुहेहिं । हुयउ जयस्सु समग्गह वि पयडउ नियय-गुणेहिं ॥ ४५०. १. पमुइयउ. १७१. ७. सुहह. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७७] सणतुकुमारचरिउ . [४७४] तस्म पुण सह-काल-संजाउ सह-पंसुक्कीलियउ सह-गहीय-गुण-रयण-मंडणु। सह-संचिय-कित्ति-भरु समग-विहिय-पडिवक्ख-खंडणु ॥ सम-सुह-दुहु सम-रूव-सिरि सम-जोव्वणु सम-सील । सम-सुहि-सज्जण-विहिय-मुहु सम-परिसीलिय-लीलु । [४७५] मूल-नरवइ-पय-समुद्धरण कालिंदिय-देविहि तणिय-सुयण-आणंद-सुंदरु । सिसु-भावि वि वुड्ढ-समु पुत्र-पुरिस-आयरिण-मणहरु ।। वाल-वयंसु अहेसि पर- कामिणि-रमण-निरीह । अवितह-रूविण नामिण वि पयड महिंदस्सीहु ॥ [४७६] तयणु विलसिर-वहल-लायण्ण संपुण्ण-जोवण-भरिण फुरिय गरुय-पडिवक्ख-खंडण । संतोसिय-सुहि-सयण दढ-पइण्ण दुज्जण-विहंडण ॥ पोढ नियविणि-माण-गुरु- तरुवर-दलण-कुढार । विलसहिं महिहिं महा-महिण दु-वि ति नरिंद-कुमार ।। [४७७] तहं ललंतहं काल-जोगेणं संपत्तु वसंत-महु जहिं स-तोसु सहयार-साहिहिं । निरु-विहुरिय-विरहिएहिं मंजरीउ अवयंसिकिज्जहि ॥ मलयानिल-संगमि भमर- पसरिय-गुरु-झंकार। देसंतर-गमणुम्मणहं . पहियहं कुणहिं निवार ॥ ४७५. १. सूर. ४: क. सिंसु. ५. आयरण. ७. क. कामिणिहिं निरीहु marginally corrected as कामिणिरमणहिं निरीहु. १७७. ३. क. सुहयार, ७. क. पसरि. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । .[४७८ [४७८] मयण-नरवइ-रज्ज-अभिसेउ साहंति व तिहुयणहं महुर-रविहिं तरु-सिहर-संठिय । कलयंठिय चुय-तरुहुं मंजरीण कवलणि पहटिय ॥ सिसिरु हयासु सु उहु गयउ कवलिउ महु-दियहे हिं। ... इय कुमुइणि-तरुणिउ हसहिं वियसिय-कुमुय-मुहेहिं ॥ . . . [४७९] वउल-तरुवर-नियर घुम्मंति बहु-पीय-सीयासव व अंव तंव-पह पुणु विरायहि । मज्झम्मि अ-माइयउ वहि फुरंतु नं राउ दावहिं ॥ मिउ-पवणाहय-उल्लसिय- किसलय-करहिणएण । लासु पयासहि तरु-लइय भमरारव-गीएण ॥ [४८० जणहिं भुवणह हियय-संतोसु सु-सिणिद्ध पत्तल सरस सुयग-संग-संपत्त-कित्तिय । गोसीस-सिरिखंड-तरु- लइय वार-विलय व विचित्तिय ॥ इय एरिसइ वसंत-महि पसरिय-वणराइम्मि । हरिसु जणंतइ महियलह आससेण-निवइम्मि ।। [४८१] रइय-असरिस-अंग-सिंगार निय-सार-परियण-सहिय विहिय सयल-सुहि-सयण-सुह । दु-वि स-हरिस कुमर-घर चलिय नयर-उज्जाण-संमुह ।। खण-मित्तेण य मण-पवण- रइहि तुरय-स्यणेहिं । पत्त स-नयरुज्जाण-वणि पहिरिहिं बंदि-यणेहिं ।। ४७८. ३. क. रविहि. ६. क. भोहु. ७. क. दियदेहि. ४७९. ३. क. पहु ७. क. हिएण, ४८.. ५. क. ख. वि. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगंतुकुमारचरिउ . [४८२] तयणु चंपय-चारु-सहयारनालियरि-असोय-सिरिखंड-पमुह-विड विहिं विचित्तहं । पेक्खंत वसंत-सिरि वित्थरंत-फल-कुसुम-पत्तहं ॥ एत्थंतरि वियसिय-धयणु पहु-आएस-समीहु । सणतुकुमारिण स-हरसिण भणिउ महिंदस्सीहु ॥ [४८३] मलय-मारुय-पसर-घरिसणिण नीलुप्पल-पत्तु जिह फुरइ मज्झ जं नयणु दाहिणु । तं मन्नउं मण-पियह जणह कसु वि देसणह साहिणु ॥ ता अणुमन्निउ निय-मुहिण मयणाययण-दुवारि । सणतुकुमारु पहुत्तु कय- वहु-मंगल-आयारि ॥ ___ एत्थ-अंतरि विहिय-सिंगार बहु-सहि-यण-परियरिय फुरिय-कंति-सव्वंग-सुंदर । चुंटती मालइहि कुसुम ललिय-खोहिय-पुरंदर ॥ दसण-मित्तुत्तावियहं . तरुणहं हरिय-विवेग । आससेण-नरवइ-सुइण दिट्ट नियंविणि एग ॥ [४८५] अह तुम चिय जाइ जाया सि संजुत्त-कुसुम-स्सिरिहिं मज्झि लयहं एयहं पहाणहं । संजायउ जीए एहु . पाणि-फरिसु फलु तरुणि-रयणहं ॥ . . इय चिंतंतह अवहियह अणिमिस-नयण-जुयस्सु । इयरीए वि रायभहिय खिविय दिहि कुमरस्सु ॥ . ४८१. ७. तुरय-रयणेहिं missing. ९. क. पढिरिहि. ४८४. ६. क. नाम added marginally and not clearly legible, ख. missing. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tuel . नेमिनाहचरिउ । [४८६ . [४८६] तयणु पभणिउ पुरउ स-सहीण नणु एस नवल्लु कु-वि अह भणेइ क-वि ईसि विहसिउ । धुवु न हवइ बल्लु एहु महिहि तिलउ मई तुह पयासिउ । इयर पयंपई- हलि सहिउ मह वयणु वि निमुणेह । एस असोगु जु पिय-सहिहिं सच्चविओ त्ति मुणेह ॥ [४८७] अवर पुणु परिमुणिय-सहि-हियय भणियव्य-वियक्खणिय भणइ – तुभि किंचि वि न-याणहं । जं अम्हहं पिय-सहिहिं . भत्ति-भरिण पयडिज्जमाणहं ॥ पूया-विहिहि पडिच्छ-कए पुलयंचिय-सव्वंगु । सक्खं चिय पयडीहुयउ चिट्ठइ एहु अणंगु ॥ [४८८] इय खणद्धिण सघण-घणसारकत्थूरिय-अगुरु-सिरिखंड-पंक-फल-कुसुम-दामिहि। .. निय-हत्थिहिं पूय-विहि विसम-सरह परिमलहिरामिहि ॥ . पिय-सहि किज्जउ भत्ति-भरु जेण मयणु भयवंतु । . हियइच्छिय-वर-वियरणिण तुरिउ हवइ फलवंतु ॥ [४८९] सयल अ-वितहु एहु इय मुणिर वियसंत-वयणंचुरुह मयण-पूय-सामग्गि घेप्पिणु । सा वालिय गंतु तहिं कमल-माल निय-करि धरिप्पिणु ॥ गल-कंदलि आरोविउण विम्हिय-मण-पसरस्सु । हरि-चंदणिण विलिंपिउण वच्छ-स्थल कुमरस्सु ॥ ४८६ ३. क. विहंसिठ. ४८८. ३. दामिहिं. ४८९. ५. निय करिप्पिणु. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९३ ] संणतुकुमारचरिउ [४९०] . नमिवि भत्तिण चलण-तामरसकर-संपुडु सिरि धरिवि भणइ - मयण पणइ-यण-वच्छल । जह पयडिउ अप्पु पई करिवि मझुवरि करुण निम्मल ॥ तह पसियसु हियइच्छियह वरह पयाणिण अज्जु । जमिह महंतिहिं संगहिउ हवइ असज्झु वि कज्जु ॥ [४९१] एत्थ-अंतरि पुचि कि न आसि अह होतु न सच्चविउ सच्चविउ वि कि न चित्ति चडियउ। . मण-चडिओ वि वलियरह कसु वि वसिण कि मणह निवडियउ ॥ तियसासुर-नर-नहयरहं हरिस-विहाणि पगब्भु । अन्नु न विहिण वि एरिसउ विहिउ चारु संदभु ॥ अवि य [४९२] जेण सिरि-वइ रइउ गोविंदु पंचाउहु रइहि पिउ उव्यसीए सामिउ सुरेसरु । सीयह पइ रामएवु पाण-नाहु तारयह ससहरु । सो थी-रयणह एरिसह करणुज्जय-हिययस्सु । नीसेसु वि अन्भास-कए मन्ने विहिहि अवस्सु ।। [४९३] . इय विचिंतिरु हरिस-वियसंतरोमंच-अंचिउ कुमरु भणिउ ईसि विह सिवि महिंदिण । नणु सामिय विसम-सर विजिय-तिजय गिय-कित्ति-वंदिण ।। हियइच्छिय-वर-अभिमुहउ किं न हवसि एईए। सिंधुर-गमणिहि ससि-मुहिहि परहुय-सम-वयणीए । ४९०. २. क. धरवि. ८. क. महंतिहि. ४९२. २ क. पिचाउहु. ९. विहियवस्सु. . ४९३. ३. क. महिदिणि, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । - [४९४] अह कुमारह वाढ-संजमियमण-वाया-कायह वि तरुणि-रयण-कय-पाणि-फरिसिण । निय-मित्तह वयणिण वि चहल-पुलय-संजणिय-हरिसिण ॥ फुरिय-अहरु वियसिय-बयणु पयडिय-नयण-वियासु । दसण-किरण-धवलिय-भुवणु लडहु पयट्टउ हासु ।। [४९५] . तयणु कुमरि वि नणु किमेयं ति चितंत गुरु-सज्झसिण कंपमाण-कर-अहर-चरणिय । जा चिट्ठइ कंचि खणु दुगुण-सोह-विलसंत-वयणिय ॥ ता उद्धीकय-करयलिण वंदिण अवसर-पत्तु । पढिउ कुमारह पुरउ --- पहु निमुणउ अविचल-चित्तु ॥ . [४९६]* कोल संपइ सरहिं पल्ललह संता निरसहिं करिहिं जूह नियय-कर-सीयरोहिहिं । .. रोमंथ-मंथर-मुहिहिं आलबालि ठिउ हरिण-जूहिहिं । तावुवसम-कइ पिय-बयण- चंदणु सरसु सुयंग। .. दु-वि सेवहिं तह पहिय तरु- छाय लिति तवियंग ॥ . . [४९७] __ अह मुणेविणु मत्थयाख्दु दिणइंदु सही-यणिण सहिय कुमरि निय-देह-मेत्तिण। कहकहमवि निय-घरह. समुहु चलिय सुन्नेण चित्तिण ॥ कुमरु वि कर-उत्तिष्ण-चिर-: पाविय-रज्ज-सिरि व्य । ठिउ निच्चल-मण-तणु-त्रयणु खणु तत्थ वि सिहरि व्व ॥ As the end portion of the palm leaf is lost, 496-8-9 to 498. 4. is missing in क. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०१] सणतुकुमारचरिउ [४९८] अह महिंदस्सीह-चयणेण तणु-मेत्तिण काणणह कुमरु कह-वि निय-भवणि पत्तउ । नीसेसु वि भुवणयल- वत्थु-सत्थु तिण-समु मुणंतउ ।। कहमवि विहिय-सरीर-ठिइ वारिय-इयर-पवेसु । चिहइ निरु सुमरंतु तसु तरुणिहि ललिउ असेसु ॥ अवि य [४९९] स जि चंचल-कमल-दल-नयणि सा सिंधुर-सम-गमणि स ज्जि महुर-कलहंस-भासिणि । सा पुण्ण-ससहर-वयणि स ज्जि असम-विभम-पयासिणि ।। सुमरिवि सुमरिवि विसमसर- आउरु खणु एगेगु ॥ तसु मणु मुज्झइ विम्हियइ तूसइ विगय-विवेगु ॥ [५००]* तयणु निसुणिय-कुमर-वुत्तंतु चत्तेयर-कज्ज-विहि पत्तु तत्थ तम्मित्तु तक्खणि । जंपेइ य-पहु पसिय कहसु हेउ स-सरीर-कारणि । अह दीहुण्हुस्सास-बस- सोसिय-अहर-दलिल्लु । कुमरु भणइ - नणु पयड तुह मह वइयरु पुचिल्लु ॥ . . [५०१] इय मयच्छिहि तीए कह-सवणउक्कंठिउ मज्झ मणु महइ सविह-विहि सवण-जुयलह । मित्तत्तणु लोयणहं दठुकामु सिरि तीए रूवह ॥ अग्गग्गइ धावइ तुरिउ तस्संगम-जणियासु । वारिज्जंतु वि न विरमइ इहु हियडुलउं हयासु ॥ ५००. १. क. व. ५०१. ९. इहु लहुलउं. * As the end portion of the palm leaf is lost, lines 500, 1-2, 503. 3-5; 504. 7 are partly or wholly missnig in क. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५०२ नेमिनाहचरिउ । [५०२] अह सु मित्तिण भणिउ - नणु नाह तहि चेवुज्जाण-वणि चलह कह-वि विहि वसिण जइ पुणु । सा पत्तिय हवइ निय- ख्व-विजिय-जय-तरुणि वर-तणु॥ ता पच्चूसि समुहिउण मित्त-मेत्त-परिवारु । . तरुणी-यण-दसण-तिसिउ गउ उज्जाणि कुमारु । [५०३] तयणु - मयणह भवणु एह तं जि सा चेव एह रयण-धर सु जि असोउ एहु महु सहोयरु । मलयाणिल एहु सु जि आसि सविहि ससि-मुहिहि सुंदरु ।। संपइ पुणु तसु वालियह दुसहइ हुयइ विओइ । पलयाणिल वि विसेसवइ बंधव जोइ-न जोइ ।। . [५०४] इय विसप्पिर-दीह-नीसासु परिविलसिर-विरह-दुहु कुमरु करुणु विलवंतु मित्तिण ।। निय-अंग-परिप्फुरण- कहिय-कज्ज-सिद्धिण पसंतिण ॥ भणिउ -- विसूरसि नाह किह तुहुँ पागय-पुरिसु व्य । जसु कज्जिण हउँ उज्जमहुँ सयल-रयणि-दिवसु व्य ॥ [५०५] ता पयच्छसु मज्झ आएसु पायालह महि-यलह नह-यलह व लीलई गहेविणु । निय-नायग-गाढ-गुण- गहिय-हियय अग्गइ करेविण ॥ सा लहु निय-पहु मण-रयण- तक्करि उवदंसेमि । अन्नह मज्झि वसुंधरह निय-नामु चि न वहेमि ॥ ५०३. ३ क. यसोउ. ५०५. ८. क. वसुंधरहं, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०९] . सणतुकुमारचरिउ .. . १७ ___ इय ठवेविण कुमरु कंदप्पभवणाजिरि कह-कह-वि कुमर-दिण्ण-आएमु तस्मुहि । अन्नेसणि तरुणियह चलिउ जाव ता नियइ ससि-मुहि ।। सहि तीए च्चिय गोरियह विहिय-पुरिस-नेवच्छ । गच्छंतिय लइयंतरहंसमुहु वियासिय-अच्छ ॥ ५०७] ___ अह महिंदस्सीह-कुमरेण वोल्लाविय सा- सुयणु कहसु मज्झ को एहु वइयरु । जं दीसइ पई विहिउ पुरिस-वेस्नु वयणह अगोयरु ॥ तयणु हसेविणु गोरडी भणइ सविहि आगंतु । - निसुणसु सु-पुरिस अवहियउ होउण मह वुत्तंतु ॥ तहा हि [५०८] दियहि पच्छिमि इह वि उज्जाणि संपत्तिय मज्झ सहि आसि मयण-पूयणह कज्जिण । ता अहरिय-विसमसर- तियस-इंद-गोविंदु रुविण ।। दिट्ठउ को-वि हु मह सहिहि मयण-भवण-दुवारि । भुवण-सिरोमणि नर-रयणु विहिय-अवहि-सिंगारि ॥ [५०९] तयणु अवगय-हियय-भावाण स-सहीण वयणिण मयण- विभमेण तस्सु पूय विरइय । तह स-करिहिं चंदणिण अंगुवंग सयलि वि विलेविय ॥ मुद्धहि मज्झ वयंसियहि अह तत्तणु-फरिसेण । अइ-कोमलिण सु-दुल्लहिण नडिउ अंगु अइरेण ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । .. [५१० [५१० सुयणु संपइ हुयउ अइ-कालु ता गम्मउ - इय सहिहि भणिय मुद्ध सा देह-मेत्तिण । कह-कहमवि काणणह नियय-भवणि गय सुन्न-चित्तिण । ता संपाविय-अवसरिण विसम-सरिण सा वाल । आलिंगिय तह कह बि जह हुय तसु दस विगराल ॥ [५११] अह तुरंतिहि सविह-गय-सहिहिं विरहाणल-पज्जलिर पढम-निसिहि उदियम्मि ससहरि । वायंतई मलय-गिरि- पचणि कयइ तामरस-सस्थरि ।। मणिमय-कुटिम-तल-उवरि नेउ निवेसिय मुद्ध । अह दढयरु विरहिण तबिय नं पलयाणलि छुद्ध । [५१२] किं नु विरइउ एउ रवि-करिहिं । कि व उद्विउ वाडवह किं व जणिउ कप्पंत-जलणिण । कि व निम्मिउ तडि-लयहं किं व विहिउ बज्जग्गि-पडणिण । सहयार-दम-मंजरिहि संगिण खलियावेगु । मलयाणिल तणु-दाहयरु हुउ महु हरिय-विवेगु ॥ [५१३] हुयउ मुस्मुर-मउ व तामरसदल-संचिउ सत्थरु वि चंद-किरण पुण सर विसेसहि। . गोसीस-चंदण-रस वि अंगि लग्ग हुयवह व सोसहि ॥ . . . इय विलयंतिय पुणु पुणु वि वियलिय-सयल-विवेय । उहिर विहसिर चकमिर भणिय गोसि मई एय॥ ५१०. ५. क. निय. ५१२. १ क. किन्नु. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१७ ] [५१४] कि णु पिय-सहि चवि धीरतु सणतुकुमारचरिउ एम् वि तुहुं चिह्निहिसि जह दसहूं करि धरिव अह किं-चिवि तक्कह-सवण - पच्चागयचेयन्न । साइह मई सउं कन्न ॥ संपत्तिय उज्जाण वणि अवलोsविसयल वणु सविसेस-समुल्लसियगंतु मज्झ कयलिय-हरह भइ य कहमवि मह पुरउ किं न कुणसि केत्तिउवि उज्जमु । विसम-वाणु तुह सो ज्जि निरुवमु || [५१५] . तानिरिक्खि मयण - आययणु आगच्छसु मह पुरउ तह चैव य कयइ मई इय जइ कमवि सुविसु ता अप्परं सु-कयत्थु हउ सु ज्जि मयणु अनियंत वालिय । विरह - जलिर - हुयवह- करालिय || निवडिय नीसाहार । खलिरक्खर - परभार ॥ [५१६] सहि करेविणु वेसु मयणस्सु जेण ललहुं तेण वि विणोइण । मिलिउ तुहुं वि इह विहि- निओइण || इ एत्थ पत्थावि । मन्नहुँ अकत्था वि ॥ [५१७] एत्थ - अंतरि मंयण - आययणि परिभमंतु तत्थ वि पहुत्तउ । अ-लहंतउरई कुमरु अह विम्हिय-मण-पसरु सुणिवि ताहं दोन्हं पिवत्तउ || मह नेवण व तुहुं इह व अच्छु पसयच्छ । तुह छमिण जिण गंतु तर्हि पेच्छउं हउं जि मयच्छि ॥ ५१४. ७. क. सेयन्न ५१६. २. क. सयल. ५१७. १. क. भायणिण. १९ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० नेमिनाहचरिउ [५१८] इय भणेविणु ताल-रव- पुच्छु पहसंतिहि तिहि दुहि वि चारु चारु इय जंपमाणिहिं | पत्तु सविहि तसु हरिण नयणिहि || ठी अहोमुह जाव | भणिय कुमारिण ताव ॥ विवसंत-वयणंंबुरुहु इह उत्तम्मिवि गोरडी आलिंगिव सिरि चुंविण [५१९] सुयणु पच्छिम दियहि कुसुमोह मह हरियंदण - रसिण त महुरक्खर - रविण तिण हउं पीय- सुहा रसु व हुयउ हरिस-पुलयकुरिउ महिउ अंगु तह सुद्ध-बुद्धिण | पुरउ पढिय थुइ भाव- सुद्धिण || पत्त परस- उदउ व्व । कप्पदुम- पोउव्व ॥ [५२०] पुणु कि णु ससि वयणि कुणसि न मह संमाणु माणिणि । निसिय नयण कलहंस-गामिणि || संधि निवेसिवि मुद्ध | अज्जु तुहुं पसिऊण संभासिण वि जं चिहसि वसुमहिं ता दाहिण-य-लय सुहय जंपर - हुं हुं मई मुणिउ तुह नेहु सुहासिय बुद्ध ॥ [५२१] तुह विओएण सुहय हउं थक्क जीवित-संपत्त-दुद्द-भर विरहाणल-तविय-तणु तु गोयरि अण्णयर अह भीडिव वच्छ-त्थणि वंधिवि भुय-पासेहि | भणइ स-सज्झनु कुमम् ससि-मुद्दि वयणिद्दि सरसेहिं ॥ ५१८. ४. क वरुहु. रमहिं रमणि सय सहस सुंदर ॥ [ ५१८ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ५२५ ] सणतुकुमारचरिउ [५२२] सुयणु बहुहिं वि वाम-नयणाहिं निय-सविहिहिं संठियहिं आसि विरसु मह अमय-पाणु वि । अइ-उण्हु चंदण-रसु वि तणुहु दाह-करु मलय-पवणु वि ॥ मुम्नुर-अग्गि-विसेसयर रयणीयर-किरणा वि । करवालाउ वि तिक्खयर मुत्ताहल-हारा वि ॥ . [५२३] एण्हि पुणु तुहु ति-जय-तिलयाए तणु-संगम-अमय-रस- पसर-सित्तु पुव्युत्तु सयलु वि । हउं मन्नउँ परम-सुह- हेउ सेस-तरुणियण-वियल्लु वि । ता पसयच्छि सिणिद्ध-निय- दिद्विण संभावेसु । मा तिल-तुस-तिभागिण वि महुवरि कोवु करेसु ।। [५२४]] तयणु मह सहि सुहय-नेवत्थ एस त्ति परिचितिरिय अकय-संक निय-अंकि ठाविवि । जहण-त्थल-धण-वयण- पाणि-फरिस-सुहु परमु पाविवि ॥ सव्वंगालिंगणु करिवि सायरु लोयणि वामि । कुमरिण चुंविय वाल निरु मयणुज्जीवण-धामि ॥ . [५२५] एत्थ-अंतरि जणय-पासाउ .. तुरंतउ पवर-नरु नाइदूर-देसम्मि पत्तउ । · जंपेइ य गुरु-हरिस- रोम-राइ-रेहंत-गत्तउ । सूर-नराहिब-नंदणह सविहि गहिर-सदेण । हउं पेसिउ चिहउं पुरउ कुमरह धरणिंदेण ॥ ५२३. १. तुह. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । ५२६] चोल-सिंहल-निवइ-नय-चलणु चेदीस-चिंता-रयणु जिय-कलिंग-बंगंग-नायगु । सिरि-लाड-नराहिवइ- विहिय-सेवु नय-इ-दायगु ॥ भोय-नराहिव-अंगरुहु कुमरह सेव-पवन्नु । अत्थि पहुत्तउ धवलहरि सेस-निवइ-मुह-वन्नु ॥* [५२७] इय सुणेविणु कुमरु नीहरइ कह कह वि कयलीहरह जाव ताव सु जि भोय-नंदणु । संपत्तउ संनिहिहिं अह नमेवि तमु सुवण-मंडणु ॥ निज्जिय-रवि-रह-तुरय-रउ सुवणक्कमणि सुलोलु । निरुवम-लक्खणु पयड-अभिहाणु जलहिकल्लोलु ।। [५२८] ___ जो य अंगुल असिइ उस्सेहि परिणाहिण नवनवइ आयईए सउ अह-उत्तरु । 'चउर-गुल पुणु सवण जन्नु-खुरिय उवलद्ध-वित्थरु ॥ . बत्तीसूसिय-सिर-पवरु वीसइ-बाहुय-दंडु । सोलस-अंगुल-जंघ-जुउ गूढय-पट्ठि-वरंडु ।। [५२९] मडह-तलिणय-सवणु चउरंसु वित्थिण्ण-निडालयलु कुडिल-कढिण-निम्मंस-बयणउ । थिर-पत्तल-नयणु निरु फुरुफुरंत-विलसंत-घोणउ ॥ सुघडिय-सम-मणिवंधु तणु- उयरु सु-दीहर-जंधु । मुललिय-चमकिय-पुलिय-वर- वग्गिय-गइ-निविग्घु ॥ ____ * At the end of st. 526 क. ख. read ग्रंथाग्रं १५००. ५२८. ६. क. वत्तीभूसियसिरयवरु. ५२९. १. क. समणु. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .५३३ ] २३ सणतुकुमारचरिउ [५३० ___वइर-मरगय-पुलय-वेरुलियससि-सूरकंतक-मणि- इंदनील-पमुहेहिं रयणिहिं । परिविलसिर-आहरण- विहिय-सोह-सव्यंगु धरणिहि ।। पसरिय-कित्ति तुरय-रयणु चियरिउ कुंवर-वरस्सु । अह नणु भुवणु वि अक्कमइ एहु निय-गुणिहिं अवस्सु ॥ [५३१] __ इय विचिंतिवि जलहिकल्लोलअभिहाणिण पायडइ तुरय-रयणि तहिं आरुहेविणु । सविहागय-निव-सुयहं . वहुहुं पुरउ स-हरिसु भणेविण ॥ नणु धाविरहं तुरंगमहं को जिप्पइ कवणेण । . सह वहु-कुमर-तुरंगमिहिं मुयइ तुरउ वेगेण ॥ [५३२] ता खणद्धिण जलहिकल्लोलु परिधाविरु विजिय-मण- पवण-वेगु वहुयर वसुंधर । अक्कमिउण गयउ अह सेस कुमर पसरंत-दुह-भर ॥ . उहु आगच्छइ जाइ उहु उहु गउ दुर-पएसि । उहु सु न दीसइ - इय सुइरु विलवहिं कुमरह रेसि ॥ . . [५३३] .. अह समुन्भुय-नियय-अंगरुहपढमेल्लुय-विरह-दुहु सुणिय-पुव्व-उवइट-वइयरु । चउरंगिण निय-वलिण चलिउ सयल-पडिवक्ख-दुह-यरु ॥ आससेण-वसुहाहिवइ विहलिय-माण-मर१ । गयउ वसुंधर अइ-वहुय मउलिय-मुह-कंदु१॥ ५३१. क. वहुहु पुरओ. ५३२. १. क. कल्लोल. ६. ७. ८. क. मोहु at all the four places, ३. १. क समब्भुव. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५३४ नेमिनाहचरिउ । [५३४] तयणु मोडिय-छत्त-दंडेण मुसुमरिय-तस्वरिण दलिय-सयल-गिरि-नियर-सिहरिण । उप्पाडिय-मंदिरिण खणिय-खोणि-तल-रेणु-पसरिण ॥ अंधीकय-जय-लोयणिण पलयाणिल-सरिसेण । निवइ स-सेन्तु विसंतुलिउ वलयंतिण पवणेण ।। . एत्थ-अंतरि नमिवि सिरि-सूरनरनाह-अंगुब्भविण भणिउ भावि-असमाण-रिद्धिण । वद्धाविसु हउं जि धुवु सामिसाल पई कज्ज-सिद्धिण ॥ पसिय नियत्तसु जमिह रवि- किरण च्चिय जिय-लोइ । तम-भरु पसरंतु वि हरहिं जइ न त नहयल जोइ ॥ [५३६] इय विचित्तर्हि वयण-रयणेहिं कहकहमवि विण्णविवि आससेणु नरनाहु वालिवि। सिरि-सूर-निवंगरुहु चलिउ कुमर-दिसि-मुह निहालिवि ॥ कमिण असेसि वि सेस-जणि निय-निय-ठाणि पहुत्ति । भमइ स-बाहु-विइज्जु महि सूर-नरिंद-सुओ ति ॥ [५३७] विसइ सरवर-कूव-विवरेसु गिरि-सिहरिहि आरुहइ नयरि पविसेइ पुणु पुणु । अणुधावइ काणणहं मणि धरंतु निय-मुहिहि गुण-गणु ॥ कुणइ सरीर-हिइ वि फल- पत्त-कंद-कुसुमेहिं । न रमइ पह-निवइहिं कइहिं गउरविहिं वि परमेहि ॥ ५३५. १. क. वदाविज्ममु. ५३६. १. क. रयगाई. ५३७. ४. क. भवधावइ; क.काण णहमण. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४१] सणतुकुमारचरिउ - [५३८] कमिण पुणु अणुदिणु वि परिगमिरु संपत्तु महाड विहिं . कह वि क्रूर-सावय-रउदिहिं । अह निमुणिवि गडयडिउ विहिउ विविह-सिंधुरिहिं भद्दिहि ॥ नणु किं सणतुकुमार-नर- रयण-गहिर-झुणि एउ । इय चिंतिरु तमु समुहउ धाइ मुट्ठि वंघेउ ॥ [५३९] चमरि-केसरि-वग्ध-सदुलवण-वारण-सरह-हरि- हरिण-नउल-कलहंस-संकुलि । गुरु-तरुयर-गिरि-गहण- विउल-तडिणि-सरवर-समाउलि॥ हिंडंतह तसु तहिं महिहिं पत्तु वसंतु दुरंतु । · जहिं विरहिउ पिय-माणुसह गुण सुमरइ झूरंतु ॥ [५४०] कसु व वर-तरु-कुसुम-मयरंदआमोय-वहलिय-सयल- वसुह-वलय-गिरि-विवर-अंवरु । सहयार-तरु-मंजरिहिं रेणु-पसर-पिंजरण-मणहरु ॥ किंपाग-दुम-कुसुम-रय- भरिय-दियंतरु. एउ । वियलइ हियडुल्लउं जणहं मलयाणिलु महु-केउ ॥ [५४१]. तवहिं पहि-यणु भमर-झंकार . . . . . परहुय-रव निड्डहहिं जणहिं खेउ केसुय असोय वि। वियइल्ल मालइ वउल कन्नियार दुह देंति गरुय वि ।। नं चिट्ठइ रुट्टिण विहिण पहियहं मंडिउ पासु । इय कसु मुहि ण अइक्कमइ एहु वसंतु हयासु ॥ ५३९. ५. क, सरवरि. ६. क. हिंडंसहं. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૬ नेमिनाहचरिउ [५४२] Tor - गिरिवर- गहण - पजलंतदावाणल-संगमिण जणिय- भुवण-संतावु निदंदुरु । परिसोसिय-महि-वलय- वावि कूब सरि-सरु मुदुद्धरु ॥ कय-तरु-पत्तस्साडु । वायंत झंझा-पवणु कसु कसु न हवइ डाहयरु गिम्ह-यालि जिम्ब भाइ ॥ [५४३] विगय- पत्तहिं दलिय - कमलाहिं परिवियलिय- पाणियहि रवि-कुनिविण खर- करिहिं तह खर- पवशुद्धय-रइण कुन संताविउ महि-वलइ दूर- तसिय-सिरि-नलिणि-तरुणि हि । निहय-कंति-सयवत्त वयणिहिं ॥ उद्धधुलिय- दिसेण । गिम्हिण काउरिसेण ॥ [५४४ ] सजल-जलह-धार-सर- सेणि घण- गज्जि - हुंकार खु महु-लुद्ध-धाविर भमर निय - पिय-सहिय-सिइंडि-कुल- परितड्ड विय-कलावु । पाउस - पामरु विरहियह कसु न कुणइ संता ॥ विज्जु - पुंज - कन्निय-भयंकरु | कुल - कथंव- केसर - विसप्पिरु || [५४५ ] सुरइ धणुहु गयण-यलि नियत्रि कलहंस माणसि गमिर सिंनंत चायग महुरु केयर - सिहरि - सिलिंग-दुमकसु पाउसि नहि विरहियह सरिय दो वि कूलई निवाडिर । जल-प्रवाह महियल विहाजिर ॥ कुडय - विवि-कुसुमाई | फ़हई हियडुल्लाई || ५४२. २. क. दावानल. ७ पत्तास्साड. ५४३. १. क. कमलाई ७. उद्धुंधलिय. ५४५, २. क. माणस. ५. पवाहु. [ ५४२ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - सणतुकुमारचरित २७ विरल-जलहर-वरिसु पसरंतरयणीयर-किरण-भरु . पिक्क-सालि-परिमल-मणोहरु । उज्जीविय-सरिय-सर- पउम-कमल-कल्हार-सुंदरु ।। कुसुमिय-सत्तच्छय-विहिय- बंधुजीव-सिरि-सारु । . दुह वि पयासिय-उदय-पिय- रायहंस-पवियारु ॥ - [५४७] हरिय-कवलण-मुझ्य-गोवग्गसिंगग्ग-दारिय-धरणि जणिय-तरणि-किरणोलि-वित्थरु । परिसोसिय-सयल-महि- वलय-पंकु कय-पहिय-संचरु ॥ निय-निय-सामि-विओइयहं कय-असुहहं सत्ताई । किह अइगच्छइ सरय-रिउ महियलि जीवंताई ॥ . [५४८] मलिय-मालइ-वउल-बियइल्ल__ मंदार-तस्वर-विहवु विहिय-वयरि-तरु-कुसुम-फल-सिरि । पवियंभिर-तुहिण-कण- पसर-गरिम-परितु लिय-हिमगिरि ॥ - तणुईकय-वासर-समउ दुगुणिय-रयणि-विभागु । पयडिय-पहिय-दरिदि-यण- विग्गह-विसम-विवागु ॥ - [५४९] - परम-कुंकुम-निविड-धवलहरवहु-सगडिय-बर-तरुणि- सुरहि-तेल्ल-मुहि-विहिय-आयरु । पिय-पिययम-संग-सुहु गहिय-निविड-कंवलय-अंवरु ।। धण-रहियहं पहु-उज्झियहं मणुयह दुह पयतु । · कालिहिं खद्धउ जाइसइ कइयह इहु हेमंतु ॥ ५४६. ४. उज्जाविय. ६. च्छत्तच्छय. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नेमिनाहचरिउ । [५५० दुहय-ससहरु दइय-दिणइंदु फल-भार-भज्जिर-वइरि हरिय-वल्ल-वितागि-फल-भरु । कप्पासिय-तूयरिहिं कुसुम-पसर-संहार-दुह-यरु ।। लोध्र-पियंगु-पसूण-भर- रय-रंजविय-दसासु । कुंद-कलिय-मालइ-कुसुम- हरिसु वियासिय-कासु ॥ [५५१] सयय-निवडिर-तुहिण-कंपंतवज्जत-दंतावलिहिं विहिय-वाहु-संबंध-हिययहं । सुहि-सज्जण-विरहियहं धण-समिद्धि-कंखियहं पहियहं ॥ सिसिरु हयासु दहावणउ किह कुसलावहु होइ । ठायहं ठाणंतरि मुंहिउ जहिं संच ॥ . . (५५२] इय विचिंतिरु फुरिय-संतावु सिरि-सूर-निवंगरुहु वमुह-वीढि आ-वरिसु हिंडिउ । न य स-चयण-परिविहिय- निय-पइण्ण-लोविण विहंडिउ ॥ अह पुवज्जिय-मुकय कय- दाहिण-नयण-प्फंदु । कुमरु महिंदस्सीहु लहु . पसरिय-गरुयाणंदु ॥ [५५३] कमिण पुणरवि पत्ति जय-जंतुतोस-यरि वसंत-महि- गहिय-विह वि सहयार-तरुवरि । विप्फुरिइहिं परहुइहिं मलय-अणिलि उवलद्ध-अवसरि ।। अलि-उल-झंकारारविहिं वोहिज्जति अणंगि । दुगुणिय-पह-उच्छाह-गुणु हुयउ सूर-सुउ अंगि॥ .. . ५५३. ६. क. उवलद्धि. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५७ ] सणतुकुमारचरिउ । [५५४]. ' तयणु अग्गिम-मग्गि गच्छंतु आइण्णइ महुर झुणि रायहंस-सारसहं संतिय । पेच्छेइ य कुसुम-फल- पत्त-रिद्धि वण-लय विचित्तिय ।। अंभोरुह-रय-पिंजरिय- मलयाणिल-संगेण । पीणिउ नासा-संषुडिण तह अंगोवंगेण ॥ [५५५] __ हंत निय-निय-विसय-उवलंभवावारिण इह वि महतुट्ट एइ चत्तारि इंदिय । रसणा उण थक्क एह एवमेव तण्हा-छुह दिय॥ 'इय चिंतंतउ सलिल-फल- अहिकंखिरु तूरतु । तीर-पइट्टिय-विविह-वणि माणस-सरि संपत्तु ॥ [५५६] तयणु स-हरिस वण-गइंदु व्य आलोडिवि सयलु सरु. रुइ-पमाणु पाणिउ पिएविणु। जा मुंजइ कुसुम-फल । तीर-सिहरि-सिहरहं गहे विणु ॥ अहरिय-नहयर-पुर-असुर- किन्निर-गेय-निनाउ । - ता जिय-सारस-हंस-सिहि निसुणइ महुरालाउ ॥ [५५७] अह - कहेरिसु गीय-उग्गारु निम्मणुय-महाड़यहिं . इय मणम्मि चिंतंतु सायरु ।। ... जा गच्छइ कय-हरिसु अग्गिमम्मि मग्गम्मि तुरियरु ॥ ता तियसासुर-खयर-नर- तरुणहं मणहरणीण । नयण-निमेसिण सुर-बहुहुं वेहम्महं तरुणीण ॥ ५५४, ५, क विचित्तय. ५५५. २. क. तुट्ट. ४. क. इहु. ५५७. ५. क. तरुयरु. .. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : ३० नेमिनाहचरिउ | [५५८] मज्झि संठिङ गस्य संतोसु पढिय - कित्ति सव्वंग सुंदरु | जणिय- दुगुण- तणु-कंति- वित्यरु ॥ विज्जाहर-चंदियणगोसीस चंदण-रसिण कुंडल- लिहिय- कवोल थलु वर-मउडालंकारु | हार - विराइय-वच्छ-यलु कय-निरुवम-सिंगारु ॥ [५५९] मयण-भवणह दार- देसम्मि कणय रयण-आसणुव विउ । पेच्छणीय दंसणि पहिडउ || कयली - हर अंतरि कय-गीउग्गार-वरअइ-पयासिय-पुव्व-भव- संचिय-मुह पभारु । पणय- लोय-आणंद-यरु पेच्छइ सणतुकुमारु ॥ [५६० ] तमु कहेरिस रिद्धि अइरेण जाय त्ति चिंतिरु सणिउ सणिउ गहित्रि पच्छिम वसुंधर चिरंतु छायहं तरुहु पिसुण-मरट्ट घर निरु करव-सुज्जोय गरु सुणइ पढिर सग्गण फुडक्खर ॥ नमिर गुरुय सिरि-हेउ । आससेण-कुल-केउ || [५६१] समर-निज्जिय-सयल-खयरिंदु 'विज्जाहर चक्कes असिधारहं वीसमिरनहर का मिणि थण - सिहर- संगम जणियाणंदु | जयउ जयउ भुवणन्भहिउ सणतुकुमारु नरिंदु || ५५८. ६. क. लिहिड, ख. हिय. ५६०. ४. क. छायह. ५६१. ४. वासमिरु. ५. क. रयणि नियय-तेय - अहरिय-दिवायरु | सत्तू-सेणि गुण - रयण- सायरु | [ ५५८ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सणतुकुमारचरिउ [५६२] .. अह विणिंच्छिवि - नूण सो चेव इहु अम्ह कुल-कप्प-तरु आससेण-नरनाह-नंदणु । आगंतु वि तसु पयई नमई सूर-निव-भवण-मंडणु ॥ अह लहु उद्विवि सम्मुहिण आलिंगिउ सव्वंगु । सणतुकुमारिण सूर-सुड हरिस-विराइय-अंगु ॥ . [५६३] तयणु महरिह-आसणुचविट्ठ अन्नोन्न-वियसिय-बयण जणिय-पणय-आणंद-कंदल । विम्हारिय-पुन्च-दुह नियय-सयल-मुहि-सयण-वच्छल । पढमय-मेलावग-उचिय- कय-पडिवत्ति-विहाण । चिट्ठहिं एगत्थ वि ति दु-वि खणु- सुगहिय-अभिहाण ॥ [५६४] एत्थ-अंतरि विहिय-सक्कारु स-वयंसु नहयर-धुयहिं . निय-पियाहिं कारेवि भोयणु । चिर-दसण-उल्लसिय- वाह-सलिल-संपुण्ण-लोयणु ॥ सणतुकुमारु भणइ-कहसु कह तुहूं अखलिय-सत्तु । वाहु-विइज्जु महाड विहिं इह वयंस संपत्तु । ५६५] . कह वि चिर्हि मह विओयम्मि दढ-नेह जणणी-जणय तह ति मंति-सामंत-सज्जण । मह निसुणिवि अवहरणु कह व पिउहु वटुंति दुज्जण ॥ अह कर-संपुड सिरि धरिवि सूर-नराहिव-पुत्तु । साहिवि नीसेसु वि खणिण निय-वइयरु पुव्वुत्तु ॥ ५६२. ८. क. सणतुमारिण, Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ मिनाहचरिउ | [५६६ ] भणइ – पसियह मज्झ तुम्भे वि तुरय- रयण-अवहार पमुहिण | कहिउ नियय-वृत्तंतु स-मुहिण ॥ तत्त-विसेस समिद्ध - ता कुमरु अ-सत्तु तस्रु स-दइय विज्जा-चल-मुणियअणुजाण पत्थुय-विस विमलमइ त्ति पसिद्ध ॥ . निय वइयर - पयडणिण [५६७ ] गुरु-परिस्सम-सिण निदाए घुम्मंति मह लोयणई इय जंपिविउट्टिउण मझगंतुकली हरह निसिय कुमरु स वइयरह जह - निसुणसु कुमर तुहुं किल तइयहं तुम्हह पुरउ वीसमिता इह विकु वि खणु । मो तत्थ सयलो वि परियणु ॥ [५६८ ] तयणु निम्मल-दसण - किरणोलिपरिधवलिय-सयल - दिसि चंद-वयण विमलमइ जंपड़ । पुव्व - विहिय-सयणम्मि । सर्वाणि निविद्धि मणम्मि ॥ नियय - मित्त-वत्तंतु संपई ॥ तिण तुरंग रयणेण । अज्ज उत्तु इहु अवहरिवि परिखेवियर खणेण ॥ परितुहिर - गिरि-सिहरि विलवंत पुलिंद-यणि फुट्टिर - चंस-सहस्सि हयजलिर-दवानलि जम-भवण ५६९. ८. दावातलि, [५६९] तसिय-मय-कुलि भीय-सहूलि भमिर-तुरइ नासंत कुंजरि । गलिय-विव- निवडत - तरुवरि । कायर - जण चेयणि । सरिसइ गरुय- अरणि || [ ५६६ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७३ ] सणतुकुमारचरिउ [५७०] ता किमित्त वि तुरउ जाहि त्ति चिंतेवि विमुक्कु सिरि- आससेण-कुल-गयण-चंदिण । अह दीहर-सास-भर भरिउ तर्हि जि सो ठिउ खणद्धिण ॥ नणु घिसि घिसि मई एहु तुरउ विवरिय-सिक्खु न नाउ । इय चिंतंतु कुमार-बरु पयडिय-गरुय-विसाउ ।। [५७१] जा स-हत्थिण सिढिल-पत्ताहु हय-रयणु करेइ लहु ता भमेवि महि-यलि तुरंगमु । बहु-सास-स्सम-हयउ पडि वि हुयउ जम-भवण-संगमु ॥ अह बहुयर-दुह-तविय-तणु आससेण-निव-जाउ । तण्हा-छुहहि किलंतु कह कहमवि फुरिय-विसाउ ॥ [५७२] पत्तु पत्तल-साह-सहसस्सु सत्तच्छय-पायवह तल-पएसि जा ता खणद्धिण । अनिरिक्खिय-पुव्य-रवि- ताव-दुक्खु देव्यह निओइण। तइयहं मुच्छ-विलंघलिउ निवडिउ निस्साहारु । अह तक्खणिण वि पेक्खिउण तारिसु सणतुकुमारु || . [५७३] भुवण-समहिय-रूव-विहवेण पसरंत-जोव्वण-भरिण विहिय-चारु-सिंगार-अंगिण । । उचिय-प्रणु-चूडामणिण अमय-महुर-मिउ-वयण-चंगिण ॥ अज्जउत्त-पुण्णोवचय- आयइढिइण नरेण । केण वि माणस-सरवरह जल आणिवि स-करेण ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न [५७४ नेमिनाहचरिउ । [५७४] ___ कुमरु सायरु सित्तु सव्वंगु । ता पाविय-चेयणिण पीय-जलिण जंपिउ कुमारिण। जह-भद्द कुओ सि तुहुं को व कह व कय-परुवयारिण ।। तई एहु ससहर-कर-धवलु अमय-महुरु आणीउ । जीवाविउ हउं सप्पुरिस पाएविणु पाणीउ ॥ . . ५७५] अह पयंपइ इयरु -निमुणेसु मह वइयरु नर-रयण रम्म पहिय-अवहरिय-आहिवि। कमलक्ख-नामिण पयडु जक्खु वसहुँ हउँ एत्थ पायवि ॥ ता पेक्खिवि भुवणुत्तिमह तुह एह विसम अवत्थ । . आणिवि मई माणस-सलिलु तुभि विहिय वीसत्य ।।... .. तयणु पुणरवि भणिउ कुमरेणपलयाणल-डाह-समु महं सरीरि संताबु पसरिउ । तह जह इहु उपसमइ ताम जाम सव्वंगु वियरिउ ॥ सलिलंजलि सारीरियहं संतावहं एयस्सु । माणस-सरवर-सलिलु लहु अवगाहेवि अवस्सु ॥ [५७७] तयणु जक्खिण अकय-विक्खेवु परिकीलिर-खयर-वहु- चक्कवाय-कलहंस-कुंजरि । कर-संपुडि कुमर-वरु . करिवि नीउ माणस-सरोवरि ॥ अहं संपीणिय-नयण-मणु सणतुकुमारु सरम्मि। पविसइ तियसासुर-तिरिय- तणु-संताव-हरम्मि ॥ ५७५. ३. क. The letter between मा and वि. is unclear due to correction. ख. आहि missing. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८१] सणतुकुमारचरिउ [५७८] समय-मज्जिर-खयर-तरुणि-यणथण-अंगरागारुणिउ . कमल-रेणु-परिविहिय-सोहलु। वण-कुंजर-गंड-यल- दाण-वारि-परिमलिण मंसलु ।। तीर-ट्ठिय-पत्तल-वहल- साह-सिहरि-सच्छाउ । अवगाहइ माणस-सलिलु अविहिय-अमय-विभाउ । [५७९] तयणु ववगय-अंग-संतावु जा लग्गउ नीहरिउ सरह गाढ-कय-चरण-संदणु । निय-पुण्ण-संचिय-कबउ आससेण-नरनाह-नंदणु ।। ता मोडिय-तीर-दुमिण तोडिय-गिरि-सिहरेण । धंधोलिय-वण-चारणिण उक्खय-रय-पसरेण ।। [५८०] निहय-विहइण दलिय-मय-कुलिण वेलविय-पुलिदइण जणिय-दरिण अइ-उग्ग-पवणिण । संछाइय दिसि भरिय कुमर-नयण पुण रेणु-पसरिण ॥ तह वि कुमारु सु तियस-गिरि- चूला-अविचल-चित्तु । परिचिट्ठइ अक्खुहिय-मणु किं एहु इय चिंतंतु ॥ [५८१] तयणु पसरिय-घोर-फुक्कार रोसारुण-नयण-जुय दीह-काय अलि-गवल-सामल । जम-दूयहं संनिहय जमल-जीह विस-वेग-पिच्छल । कुविय असेसस्स वि जयह कवलण-विहिहिं अ-चुक्क । केण वि वहलिय-गयण-यल विसहर-निवह विमुक्क ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ नेमिनाहचरिउ । । ५९० ५९०] इय भणेविणु गुरु-निहाएण संभंत-सुर-कामिणिहिं निहय-वच्छ-तुटुंत-हारहं । मुत्तावलि-संवलिय- गलिर-नयण-दल-नीर-धारहं ॥ नीसासिहि सह परिमुयइ मुग्गरु भीरु करालु । उवरि कुमार-सिरोमणिहिं निरु अप्पह खय-कालु ॥ धरणी-यलि निवाडिळ किंचि फुरिजय सदु ।। [५९१] तयणु मुग्गर-घाय-विहुरंगु धरणी-यलि निवडियउ कुमरु खयर-सुर-तरुणि-दुह-यरु । ता रक्खस-तणउं बलु किंचि फुरिय-संतोस-सुंदरु । धावइ वग्गइ उप्पयइ घोसइ जय-जय-सदु । अह आगय-चेयन्न-भरु , कुमरु विभाविय-महु ॥ [५९२] गुरु-मडप्फरु फुरिय-भुय-मूल उम्मूलिवि बड-विड वि गरुय-कोव-कंपंत-खंधरु ।। भू-भंगिण भीम-मुहु चलण-भरिण चालिय-वसुंधरु ॥ अरिरि पिसाय-अहम्म तुह वड-विडविण दलियंगु । कुणउ हरिसु वायस-कुलहं गलिय-जीय-सव्वंगु ॥ [५९३] इय पयंपिरु समर-संरंभ अवलोयण-वाउलिय- खयर-तरुणि-दसण-कयायरु । मूलग्गई वड-तरुहु · दलिवि करिण गुण-रयण-सायरु ॥ आससेण-निव-अंगरुहु कर-कय-वड-दंडेण । एग-पहारिण रिउ हणइ तह जह उदंडेण ॥ ५९२. ९. जीठ. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९७१ सणतुकुमारचरिउ [५९४] गहिउ तक्खणि खुहिय-खोणिंदखयराहिव-दुस्सहिण जीवियंत-पीडा-विसेसिण । अह वेविर-देहु भय- भीउ चत्तु लहु पुरिस-यारिण ॥ मेल्लिवि. गुरु-पुक्कार-रवु वेयण-विहुरिय-पाणु । वज्जिय-लज्जु विमुक्क-मउ रक्खस-अहमु पलाणु ॥ [५९५] अह कुमारह उपरि सुर-असुरखयराहिव-कामिणिहिं हरिस-पुलय-विलसंत-अंगिहि । वर-परिमलु मुक्क सिय- कुसुम-वुटि गयण-यल-संगिहि ॥ जय-जय-रवु उग्घोसियउ दुंदुहि पहय स-तोसु । सणतुकुमारु विनिदलिय- जक्ख-पयासिय-रोसु ॥ सरय-ससहर-सरिस-जस-पसरपरिधवलिय-भुवण-यल्लु मणि धरंतु पुव्वुत्त कामिणि । जा गच्छइ कित्तिउ वि मग्गु ताव सुरवहु-स-धम्मिणि । पाविय तियसासुर-तरुणि- मज्झि महिम-अइरेग । नियइ स-संमुह आगमिर पवर नियंविणि एग ॥ [५९७] तयणु विम्हिय-मणिणि कुमरेण गच्छंतिण तस्समुह दिह सत्त तस्सरिस वालिय। । नंदण-वण-मज्झ-गय पवर-रूव-गुण-विणय-कुसलिय ॥ पुव्व-दिह-तरुणिहि पुरउ तयणु भणिउ-नणु मुद्धि । . काउ इमाउ णियंविणिउ इय मह साहसु सुद्धि ॥ ५९४. ७. क. वेहुरिय. ५९५. ७. क. पह संतोसु. ५९.६. ४. क. कित्तिओ. ५९७. ५. गुरुविणयः ९. क. साहस. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैमिनाहचरिउ [५८२] बद्ध तेहिं वि नाग-पासेहिं सव्वंगु कुमार-वरु . तयणु जलहि-अक्खुहिय-हियइण । उद्धणिय स-भुय-लइण अहिअ-संधि तोडिय कुमारिण ॥ अह गल-कंदल-लुलिय नर- रुंड-माल-बम्बालु। वयण-निवेसिय-पुरिस-सवु करयल-कलिय-कचालु ॥ [५८३] घोर-विसहर-वद्ध-जड-मउड्ड दढ-दड्ढ-घरिसण-फुरिय- रव-रउद्दु तडि सरिस-लोयणु । अणुगच्छिर-कडकडिर- दसण-सेणि-वेयाल-भीसणु ॥ अरि अरि सरि सरि इटु कु वि इय साडोवु भणंतु । दिटु कयंत-कराल-तणु . रक्खसु इगु आवंतु ॥ [५८४] ता वि तुट्टिर-तुंग-सिंगग्गु उभंत-सत्ताउलिउ . विहिय-गहिर-बुक्कार-वानरु । दढ-सिलयल-दलिय-पडिवक्खु खुहिय-विरसंत-कुंजरु ॥ गुरु-गिरि-वरु कस्र्याल धरिवि खिविउ कुमर-उवरिम्मि । मुर-नहयर-कामिणि-नयण- जल-परिसित्त-सिरम्मि ॥ ५८५] तयणु विसरिस-दंत-पंतीहिं निम्मंस-सोणिय-तणुहिं चिविड-नहिहिं निरु सारि-कुच्छिहिं दुमुहिहिं तिमुहिहिं चउमुहिहिं पण-मुहे हिं सिय-गहिर-अच्छिहि ॥ वेयालिहिं पमुइय-मणिहिं जय-जय-रघु उग्घुटु । अह उद्धृणिय-तणु खणिण पास-त्रिविय-गिरि-बढ्छ । ५८३. ३. क. पडिसरिस. सं. घडिसरिस, Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ચૂંટ सणतुकुमारचरि [५८६ ] अहह पेच्छह सयल-जय-हरण रक्खसेण जो मुक्कु गिरिवरु | रोसारुण-लोयणिण सो लीलई कंदुगु व खिविवि दूरि विष्फुरिय-मच्छरु | धावड़ को विजय भहिउ सुहइ किंपि जंतु । इय तियसासुर - नहयरहं वयणई कुमरु सुणंतु ॥ [५८७ ] पीण मह - भु-जंत निष्पिट्टु सरसिच्छु लट्ठि व गलियअरि रक्खस पाव तुहुं मई जीवंति स-य-भरनिल्लज्जिण किण घोसिय [५८८ ] इय रु तुरिउ पसरत दुप्पेच्छ-मच्छर- वसिण आवडइ रक्खसह तह जह परिवियलिर - नयणु रक्खस अहमु मही-चलइ सयल धाउ-रस-पसर- दाणिण | कुण तो दिय-गणहं अइरिण || विजय- सेस तेयस्सि । जय-जय-रवु इयरेसि ॥ लहु पुणरवि उडिउण जिण निहणिय- महिहरहं तसिय-सुरासुर - नहयरिहिं मुग्गरु वच्छ-त्थलि पडउ ५८८, १. क. पसरंतु. अरुण - नयणु धाविवि खणदिण । देहु निविड भु-दंड-जंतिण ॥ गरुय - मुक्क पुक्कारु । पडियउ नीसाहारु || [५८९ ] अह कर्हिचि विलद्ध - चेयन्नु फुरियको सो रक्खसाहमु । सिरई पलउ पार्वति निरुवम् ॥ पेक्खिज्जंतु पांव तुह क्खय- हेउ ॥ - सु एउ । ३७ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५९८ नेमिनाहचरिउ । [५९८] ईसि विहसिर किंचि नमिरंग चलणंगुलि-लिहिय-महि पाणि-पउम संवरिय-अंबर। चलियाहर-पल्लविय फुरिय-नयण-आणंद-जल-भर ॥ खलिरक्खर-गग्गर-गिरिहिं किंचि वियासिय-अत्थ । मुद्ध पयंपइ सिर-उवरि परिसज्जिय-नेवस्थ ॥ [५९९] सुहय संपइ पसिय मह उवरि एत्तो च्चिय चुय-वणह नाइदूर-देसोवसंठिउ । सुर-किन्नर-नर-महिय- मलय-निलय-देउल-गरिहिउ ॥ पिय-संगम-अहिलास इय नामिण पत्त-पसिद्धि । चिहइ विज्जाहर-नयरु पसरिय-गरुय-समिद्धि . [६००] तहिं कियंतु वि कालु आगंतु वीसमिउण निय-तणुहु अवहरेह गरुयरु परिस्समुः । ता सयमवि होइसइ तुम्ह एय-वृत्तंत-अवगमु ॥ . अह तासि चिय कामिणिहिं . कंचुगि-दंसिय-मग्गु । निव-धवलहरि कुमरु गयउ अइ-विम्हिय-सव्वंगु ॥ तयणु तप्पुर-सामि-नरवरिण सिरि-भाणुवेगाभिहिण उठ्ठिऊण अभिमुह-कयायरु । सीहासणि निय-करिण ठविउ कुमरु गुण-रयण-सायरु ॥ अह सिरि कय-करयंजलिण गुरु पडिवत्ति करेवि । ' भणिउ-कुणसु संतोसु मह धूय अट्ठ परिणेवि ॥ . ५९८. ६. क. गिरिहि, ख. गिरहिं. ६००. ६. क. कामिणिहि. .. ६०१. ८. कः कुण. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०५ सणतुकुमारचरिउ . [६०२] जमिह अम्हहं नियय दुहियाहं विसयम्मि चिंताउरहं विहिय-विणय-पणमिर-सुरिंदिण । परिसाहिउ आसि सिरि- अच्चिमालि-नामिण मुणिदिण ॥ . जो अवहरिहइ दप्प-भरु जक्खह असियक्खस्सु । सो तुह धूयहं अहं वि हविहइ दइउ अवस्सु ॥ ता कुमारिण गरुय-विहवेण तत्थेव य तक्खणि वि अट्ट ताउ तरुयिण-सारिय । पसरंत-अणुराय-रस- सोहमाण परिणिय कुमारिय ॥ अह कय-नव-परिणीय-विहि विरइय-कंकण-बंधु । पविसइ रइ-मंदिरि कुमरु हुय-नव-बहु-संबंधु ।। गुरु-परिस्सम-वसिण पुणु तस्सु अइरेण. वि रइ-भवणि धरणि-नाह-लीलई पसुत्तह । समुवागय निद्द बहु तयणु सयण-मुहियण-विउत्तह ॥ गोसि विहंगम-कुल-रविण पयडिय-पडिवोहस्सु । तं पुरु सु परियणु ताउ नव पिययम अ-नियंतस्सु ॥ [६०५] सिविणु किं एहु किं व मइ-मोहु किं व जायउं सच्चवउं इंदयालु किं व किण-वि दरिसिउ । जं पुव्व-सपुर-सयण- दइय-विरह-दुहिओ वि हरिसिउ ॥ आसि किंचि हउं अट्ठर्हि वि दइयहिं सह संबंधि । परि मह सिरि कुसुमिय-तरुहु डालि व भग्ग अ-संधि । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । [६०६] इय कुमारह विगय-नीसेसघर-परियण-पिययमह . सुद्ध-धरणि-तल-संनिसन्नह । अवियक्किय झुणि सवणि पडिय एह गयण-यल-मग्गह ॥ हा सहि हा पिय हा जणणि हा भाविय-भत्तार । आससेण-नरवइ-तणय रक्खहि सणतुकुमार ॥ [६०७] .. तह -- सुलोयणि किमिह तारण कि जणणिहि किं सहिहिं किंव नियय-देवय-विसेसिण। । कि व तिण महि-गोयरिण आससेण-निव-सुय-कुपुरिसिण ॥ तियसासुर-नर-मय-महणु . . मई सुमरसु पसयच्छि । कामाउर-मण जेण तुह तत्ति करावइ लच्छि ॥. [६०८] तयणु पाविण केण परिकुवियजमदयालोइएण . दसण-गणण-उच्छहिय-चित्तिण । परिखित्तउ नियय-करु चयणि सीह-पोयह कु-मंतिण ।। अवहरमाणिण किं पि एहु मह अणुरत्तु कलत्तु। . . कुमरु पलोयइ नह-यलह संमुहु इय चिंतंतु ॥ [६०९] किंतु न नियइ कि पि गयण-यलि ता - एहु वि पुन्बु जिम्ब इंदियालु किंचि वि मुणंतउ । ढंदुल्लइ जाव वणि स ज्जि तरुणि हियइण वहंतउ ॥ ता सुर-भवणह निवडिउ व महरिह-सिरि-अवतारु । इगु धवलहरु महाडइर्हि नियइ तिलोयह सारु ॥ ६०६. ७. and रक्सहि in ८ lost in क. ८. जो ण, ६०८. ३. क. गगण.' Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१३] [६१०] * अह सु विहिउ पंचास विइ मुणिरु ता निसुण मिउ- महर - सणतुकुमारचरिउ जह - जय पणय-मणिच्छियरि कमल - गन्भ-गोरंगि । रिउ नासण - सव्वंगि ॥ न मिरामर - नर-नायगहं [६११] हूं खुदुरियहं हरणि ओं ह्रीं हि जत्थ सउ तत्थ सणिउ सणिउ धवलहरि पविसह । रविण लविर तिय इग महासर || संपाइय-इ-फलि फट्कारिण हणिय-रिउजे तुह भत्तिहिं पय नमहिं खग्ग-गुलिय- अंजणु साहणि सेणि पणय - आनंद- कारिणि जोगेसरि तुहुं तेसि | fare अगोरु सिविहं वि फलु असरिसु वियरेसि ॥ चिंतामणि देवि मह [६१२] इय पसीयसि किं न पण इ-यण तसु दइयह मुह-कमलनियय-अवत्थ सम-गुणहं किं जुज्जर अंतर- करणु हिययंतर उल्लसिय हुं हुं एस विक वितरुणि मग्गइ गोरिहि पय- पुरउ अइ-दुल्लभउको विउ गरुय-विषय-पणमंत- अंगह | दंसणेण दुल्लंभ-संगह ॥ निच्चु वि विणय-पराहं । निय-जणणी-जणयाहं ॥ [६१३] अह विसेसिण कुमरु सुमरंतु पुत्र- दिट्ठ हरिणच्छि सु-चरिय । फुरिय-गरुय अणुराय - विहरिय || पत्त दसम - दस- काल | एहि मई व सावाल ॥ ४३ * The text of stanzas 610 611, 612, 613, 614, 615, and 616 in क is mostly blurred and illegible. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ नेमिनाहचरितः। १४ अगाम्म इयः विचिंतिरु जाव अग्गम्मि चउ पंच वि पय खिवइ कुमरु ताव सुह-सील-मुद्धह । जय-पायड-गुण-गणह पुरउ सु-गुरु-भत्तीए सुद्धह ॥ गोरिहिं देविहिं भणिउ इहु पयडेविणु अप्पाणु । एहु ससि-मुहि पिउ आइयड सो तुह गुणहं निहाणु ॥ [६१५] सावमाण व तयणु तणुयंगि जंपेइ गोरिहि पुरउ अजु वि देवि कैत्तिउ पयारसि । कर-संठिउ साहिउण मज्झ दइउ जं नेय पयडसि ॥ जइ पुणु कुरु-कुल-गयण-ससि पेक्खळ सणतुकुमारु। ता जाणहि भगवइ करउं. कु-वि कु-वि तसु उवयारु ॥ इय सुणंतु वि हरिस-वियसंतसव्वंग-पुलयंकुरिय- वयण-कमलु कुरु-वंस-मंडणु । एहु ससि-मुहि निय-दइउ पेक्खि पेक्खि पडिवक्ख-खंडणु॥ कुणमु सु मणिण जि कप्पियउ चिट्टइ तमु उवयारु । जं एहु इउं जि मु आइयउ पयडिय-मयण-वियारु ॥ [६१७] अहव साहमु पसिय तुहूं कवण कुरु-वंसह जस-कलसु को व मुयणु. पई दइउ मग्गिउ । ता कन्नय भणइ अणुसरिवि लज्ज अज्जवु निसग्गिउ ॥ जह साकेय-पुराहिवह समरसीह-निवइस्सु । अवितह-स्वह चंद-जस- अभिहाणह दइयस्सु ॥ ६१५. ९. क. नुहं. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ६२१] संणतुकुमारचरित [६१८] धुय सुनंदा नाम हउँ अन्नदियहम्मि उ मह जणय- पयहं पुरउ संपत्त-मेत्तिण । एगयरिण दूयगिण नमिर-सिरिण विष्णत्तु जत्तिण ॥ जह - गयउर-नयर-प्पहुहु आससेण-निवइस्सु । निज्जिय-भुवण-नियंविणिहि सहदेविहि दइयस्सु ॥ अस्थि नंदणु भवण-अब्भहियचक्काहिव-सिरि-तरुणि- रमणु अतणु-गुण-रयण-सायरु । सोहग्गिय-सिरि-तिलड रिउ-मर-घट्टण-कयायरु ॥ पुण्णिम-ससि व समग्गहं वि विमल-कलाहं निहाणु। रूविण जसिण जयब्भहिउ - सणतुकुमारभिहाणु ॥ [६२०] इय सुणंदह जइ न संबंधु नर-रयणिण तेण सह हवइ विहिण ता नूण हारिउ । मह जणएण तयणु नणु जुत्तु एहु इय संपधारिउ ॥ आससेण-नरवइ-पुरउ स-वलिण गच्छंतेण ।... निय हउँ सिरि-गयउर-नयरि हरिसु पयासंतेण ॥ . ". [६२१] अन्न-अवसरि सहिहिं परियरिय कंदप्प-पूयण-विहिण गइय आसि हउं नयर-काणणि । ता मयणह पयडह जि विहिय पूय मई हसिरि सहियणि ॥ तयणंतरु निय-घरि गइय केण-वि विहिहि वसेण । अइव-दुरंतिण उप्परिण हउं गहीय दोसेण ॥ ६१९. ३. अनणु. ६२१. १. वसरि. २. क. पूइण. ६२२. ३. क. कहकचि. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । [६२९ [६२२] तयणु अविहिय-तणु-परित्ताण वहु-मंत-तंत-ण्णुइहिं कह कहिंचि अइगमिय जामिणि। . ' गोसम्मि उ तहिं जि गय मयण-भवणि हिययाहिरामिणि ॥ न उण सु तारिसु सच्चविउ पयडीहुयउ अणंगु । तो सविसेसिय-दुहिहिं हउं विहुरीहुय सव्वंगु ॥ [६२३] किंतु पयडीहूय-कंदप्पनेवत्थिणं सहिहि तहिं तह कहिंचि तइयह विणोइय । जह अइरिण पुत्र-दिण- संभवाहं दोसहं वि मोइय ॥ तयणंतर पुणु अवहरिउ आससेण-निव-पुत्तु । दुट्ठ-तुरंगिण ता सणिण भुवणु वि हुयउं दुहत्तु ॥ [६२४] . हउं विसेसिण मुणिय-वुत्तंत पसरंत-दुइ-विहुर-तणु . पत्त मुच्छ सहि-यणिण कहमवि । निय निय-घरि अह परु जु किंपि तं तु न मुणेमि सयमवि ॥ कि पुण केण-वि नहयरिण विलविर हरिवि विमुक्क । इह इय चिट्ठां मंकडि व नियह पलंवह चुक्क । [६२५] सो उ संपइ कह वि अन्नत्थ खयराहमु गयउ इय गोरि-देवि-पय-पउम-पणमिर । इह चिट्ठउं हउं जणय जणणि-दिण्णु निय-दइउ मग्गिर । अह विहसेवि स-ताल-रखु भणइ कुमरु - पसयच्छि । इहु सु मयणु इउं किं न नियसि समरसीह-निव-वच्छि॥ ६२३, ३. क. विणाइय ६२४, १. क. पर. ८. मकडि. ६२५. १. क. ह missing. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२९ ] [६२६ ] अह या विहु विसम-पगईए ससि-मुहीए लज्जाउलत्तिण । उचिय - विहिहि रायाउरत्तिण ॥ कंदह तह सुवि विम्हारिय- तस्समय मह मणहरणिय स ज्जि एह इय परिचितंतेण । साकुमरिण कामिणि भणिय विम्हिय-मण-पसरेण ॥ सणतुकुमारचरि [६२७] चsवि संभमु मुवि अवमाणु विहिऊण पसाउ अणु जो तइयहं पयडियउ पसरिय-अणुरायाणलिण किन वियरसि पसयच्छ तुहुं मह नेहह सव्वस्सु ॥ [६२८] किं न सुमरसि सुयणु जं नयर उज्जाणि कीलण - गयह निक्खेविय कमल - वरमह नेवत्थिण सहिहिं सहुं तह तह परिरंभणु विहिउ सरिवि राउ सो पुत्र- दंसिउ । उद्दिसेवित नियचयंसिउ || उवताविय अंगस्तु | तसु लज्ज-अहोमुहिहि उक्खेविणु भणिउ नणु चिंतामणि व अहन्न घरि तापसियसु अवलोयणिण ६२६. ५. क. विहि. ६२९.९. क. ह. [६२९] इय भतिण कुमर- रयणेण - मज्झ कंठि तई मयण - बुद्धिण | माल पूय कय भाव- सुद्धिण || आरंभिय-कीलाए । मह जि सु-वीसंभाए ॥ arm-कमल दाहिणिण हत्थिण । सुयणु लद्ध तुहुं मई कयत्थिण || दुलह इमम्मि वणम्मि | धरिवि सु णेहु मणम्मि || ४७. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६३० नेमिनाहचरिउ [६३०] अह वियासिय-वयण जा किंचि सा मुद्ध समुल्लवइ ताव दिढ हय-विहि-विसेसिण । रोसारुण-लोयणिण गयण-ठिइण तिण खयर-पुरिसिण ॥ अहह जियंतह फणिवइहि चूडामणि कु छिवेइ । कु व केसर पंचागणह जग्गंतह वि गहेइ ।। ... [६३१] इय भणंतिण विरसु रसिरस्सु परिकंपिर-तणु-लयह संनिहीउ तमु तरुणि-रयणह । अवहरिउ कुमारु लहु अह मुएमि सुर-सिहरि-सिहरह ।। तह जह पर-पिय-मण-जणिय- पावह फलु पेक्खेवि । निहणु उवेइ हयासु इहु सय-सक्करउ हवेवि ॥ [६३२] इय विचिंतिरु तुरिउ अलि-गवलदल-नीलिण नह-यलिण लग्गु गंतु सो पाव-नहयरु । जा ताव निरिक्खिउण कुमर-चरिण सरि सिहरि पुरवरु ।। गुरु लहु लहुयरु लहुयतमु उद्ध उद्घ गमिरेण । कह मई दिवउ जाइसइ एहु इय चिंतंतेण ।। [६३३] हणिउ मुट्ठिण कुलिस-कठिणेण निस्संकु कवाल-तलि तयणु गलिर-रुहिर-च्छडाविल । अक्कंदिय-पडिरविण भरिय-गयण-गिरि-धरणि-मंडलु ।। मुद्द-कंदरह विणिस्सरिय- दीहर-रसणा-सप्पु । कर सोहग्गु न हुयउ लहु सो नहयरु गय-दप्पु ॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____६३७ ] सणतुकुमारचरिउ [६३४] - अह विइज्जह कुमर-घायस्सु वीहंतु व तक्खणिण खयर-अहम-जिउ नछु. वेगेण । ता नहयर-सवह तमु वयणु अ-नियमाणिण व तरणिण ॥ अत्थ-सिहरि-सिहरह परइ गंतु विहिउ आवासु । हय-रिउ कुमरु वि तसु पियह सुमरंतउ संभासु ॥ निसिय-ससहर-किरण-सर-भरिण कर-कलिय-कराल-तणु कुमुय-कंति-कोदंड-लहिण । नहयर-वह-वइयरिण त विय-मणिण इव मयण-धट्टिण ॥ रयणि-समागमि तह कह वि परिसल्लिउ सव्वंगु । असुहिण सुहिण व घत्थियउं जह न मुणइ निय-अंगु ॥ [६३६] नणु हयासु सु सत्तु निदलिउ लीलाए वि एहु पुणु किह णु भुवण-दुज्जउ जियव्बउ । . हुं हुं अत्थि उवाउ मई जिणणि रिउहु एयह वि लद्धउ ॥ जइ जीवंतु स-नयणुलिहिं हरिण-नयणि पेक्खेसु । वा एयह मयणह रिउहु तुरिउ जलजलि देसु ।। [६३७] इय विचिंतिरु कुमरु अडईए ढंढोल्लिवि को-वि खणु . गयउ कह वि धवलहरि तम्मि वि । ता ससि-मुहि संभमिण उत्तरीउ संवरिवि विहसिवि ।। उहिवि संमुह हरिस-भर- खलिरक्खर-वयणेहिं । पुच्छइ पच्छिम कह मुइर वाह-सलिलु नयणेहि ॥ ६३७. ९. क. ख. वाहु. I Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० नेमिनाहचरिउ | [६३८ ] अह समासिण निविड- नेहाए तहि सारय-ससि-मुद्दिहि ता पसरिय- हरिस-भर अह पाविय चक्कि - स्सिरि व ती सुनंदह कामिणिहि [६३९] अरिरि ससहर तवहि तुहुं अज्जु मलयाणिल तुहुं फुरहि हलि कोइलि लव हुं वि अरि अरि धट्ट कुसुम-सर एह पाडेसह सयलहं वि पुव्न-उत्त कह सयल साहिय । सा मयच्छि कुमरिण विवाहिय || फुरिय- हरिस-वावारु । सविहि वट्ट कुमारु ॥ कवि अक्खउं वत्तडी जा ताव समुल्लसियतसु खयरह कुमरिण हयह संझावलि - नामिय लहुय लेहि पसरु सहयार तंपि हु । तुमि विभ्रमर झंकार पयडहु || पुरिसु होहि तुहुं अज्जु । तुम्हहं मत्थइ वज्जु ॥ [६४०] तह सुलोयणि एहि जह तुज्झ इय भणंतु पविसेइ अंगह । रोस - पसर गयणयल - मग्गह || आयणिय- वृत्तंत । भइणि तत्थ संपत्त ॥ [६४१] किंतु कुमरह वयण- हरिणक [ ६३८ अवलोयण-अमय-रस मयणाणल - तत्रिय-तणु ता गंधव्व-विवाह - विहि कुमरिण संझावलि विनिय सित्त झीण - तणु - कोह - यवह । हूय स ज्जि सवंग दुस्सह || अणुसरेवि परिणीय | वसुकय-सिण उवणीय ॥ ६३८. ६. ता पाविय. ६३९. २. क. ख. मलयाणल. ६४० १. तुज्झ. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४५ ] [६४२ ] अह कुमारहं सुकय-सयलम्भ सणतुकुमारचरि हिय-इच्छिय- अत्य-कर झालि कामणिि तेण वि साहिय अइरिण वि विज्ज स पयडंतिण नियय सासाउल खुहिय-मण पणमंत य आयरिण [६४३] एत्थ अंतरि पहिण गयणस्सु पढिय सिद्ध गुरु-कमुवणामिय । दिण्ण विज्ञ पण्णत्ति-नामिय ॥ उवएसिय-विहि-पुच्बु | मणि उच्छाहु अउव्वु || desee गिरिवर नाहिं खयराहिविहिं पेसिय अम्हि नियंगरुह चंदसेण-हरिचंद इय खयर - कुमर दो तत्थ आगय । कुमर-वरह तसु पाय-पंकय ॥ तंयणु कुमारिण भणिउ - किं एहु इय चिंतंतेण । नणु के कत्तु व कह व तुमि इह आगय वेगेण ॥ [६४४] अह पयंपहिं खयर – नर- रयण वियि - सिरिहि गंधव्व-नयरिहि । चंड वेग - सिरिभाणुवे गिहिं ॥ एहु रह-रयणु गहेउ । नाम तुम्हं हेउ || [६४५] सुणिय-निहणिय-तणय- वृत्तंतु खयर-वणि संछन्न- नह- यलु | पत्त- कित्ति जिय-पिसुण-मंडल || रोसारुण - नयण दल नाणाविह- समर-धर असणिवेग - अभिहाणु खयराहिबु गरुय मरहट्टु | आगच्छंतु सुणेवि कय- नहयर-मण-संघट्टु | ६४२. ३. क. सिद्धु गुरुकमुणामिय. ६४४. ५. क. भाणुविगिहिं. ५१ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४६ नेमिनाहचरिउ । [६४६] ता पसीउण तुम्हि नर-रयण रह-रयणि इहारुहह तुरिउ एत्थ-अंतरि पहुत्तय । खयरिंद ति बहु-वलिण चंडवेग-सिरिमाणुवेगय ।। जाव य ति वि कुमरेण सह सुह-दुह-कह अक्खित । अइवाहई तहिं कालु कु-वि रण-रस-पुलइज्जत ॥ [६४७] ताच निसुणिवि तणय-वुत्तंतु साडोवु समुल्लसिय- रोसु जमु व तिहुयण-भयंकरु । सदाविवि मंडलिय- सचिव-नियरु निय-रज्ज सुंदरु ।। असणिवेगु पभणेइ - लहु चल्लहं संवहिऊण । अज्जु जिम्वेसहुं सुय-वहय- कुमरह वलु मलिऊण ॥ . . . [६४८] ता पयंपिउ पवर-मंतीहिं नणु नाह न सत्तु लहु इय मुणेवि अवगणियव्बउ । कु व एगु महावलह मह इमो त्ति न उवेहियव्बउ ॥ वड्डंतिण हुयवह-कणिण उज्झइ सयल वि लोउ । किज्जइ सीहिण एगिण वि करि-घड-हणणि विणोउ ॥ .. [६४९] धरणि-गोयरु एहु अहयं तु विज्जाहर-चक्क-पहु इय मुणेवि रिउ मावहीलह ।। कि न रामिण रावणु सु हरिण कंसु सु न नीउ पलयह ।। इय वलवंतिहिं थिर-मणिहि दिट्ठ-सत्तु-सत्तेहि । 'सु वियारेवि विहेउ खमु रण-संरंभु निवेहिं ॥ ६४८. २. क. तणु. ६४९. ६. क. थिरगमणिहि. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५३] .. सणतुकुमारचरिउ .. [६५० इय विचित्तहिं वयण-रयणाहिं जंपंत वि मंति-वर अवगणेचि सो खयर-सामिउ । चउरंगिण वल-भरिण चलिउ कुविय-विहि-रज्जु-दामिउ ॥ समग-समाहय-विप्फुरिय- समर-तूर-निग्योसु । पुव्व-पयट्ट-अणेग-रण- सत्तु-विजय-संतोसु ।। [६५१] फुरिय-गरुयर-विविह-अवसउण.डिसिद्ध वि सुय-मरण- असुह-तिमिर-आवरिय-लोयणु । लहु पत्तु महाडइहिं तीए उवरितोरविय-संदणु ।। अह जा खयराहिव-सहिउ कुमरु उखु जोएइ । भुवण-भयंकरु ता गयणि कोलाहल निसुणेइ ॥ . . [६५२] तयणु किं एहु फुटु वंभंड वेयालु व कु-वि कुविउ जलनिहि व्व खुहियउ अयंडि वि । जं सुम्मइ पलय-घण- गहिरु सदु ठिउ भुवणु भंडिवि ॥ इय-चिंतिर-खयराहिविहिं सहिउ सु सणतुकुमारु । जा चिट्ठइ ता खणिण तहिं पत्तु सु नहयर-सारु ॥ [६५३] अह खणद्धिण विहिय-संनाह विज्जाहर-पहु ति दु विचंड वेग-सिरिभाणुवेगय । .. खयरिंदिण तेण सह ढुक्क नियय-सेन्नेण संगय ।। किंतु खणेण वि दो वि तिण असणिवेग-खयरेण । हय-विप्पहय विहिय घण व झंझाणिल-पसरेण ॥ ६५२. ५. गहिसदु. ९. क. नहयफ. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ मिनाहचरिउ [६५४ ] तयणु नासिर- सेन्न भज्जंत ते दो विनिरिविखरण मा भायह नियहखणु पण्णत्तहि विज्जह वसिण खग्ग खणखण-रव-खुहिय [६५५] निसिय-करयल-कलिय-करवाल लय- निद्दय- निद्दलिय धणु-जंत विमुक्क-सरछुरियधाय पसरिय-रुहिर मुग्गर-पहर - विणिद्दलिय - कुमर चरिण अखलंत - पसरिण । दलिस दप्पु इमहत्ति भणिरिण || कय-चउरंग-वलेण ॥ पडिवक्खिय खयरेण | सत्तु- कुंभि - कुंभयड-लक्खिण || निहय-भडिण रण-मग्ग-दक्खिण ॥ छड अरुणिय-गयणेण । उत्तिमंग- सुहडेण || [६५६] सत्ति-भल्लय- सेल्ल-वावल्ल नाराय-मुसुंढि -गय निहणंतिण करि-तुरयउवसाउि खण-मेत्तिण वि असणिवेग-खयरिंदु | तयणु सु परिविष्फुरिय- कुरु- वंस - गयण-रयणिंदु || सुर- नहयर-तरुणियणस-परिक्कम- सुर-असुरभुवण-मंतर - वित्थरिय - पत्तु तर्हि चिय धवलहरि वज्ज-चक्क-कत्तरिय-कुंतिहिं | सुहउ-सत्थ बहु-विह- विभत्तिहिं || [६५७] खयर - वियरिय रहवरारूड मुक्क पंचविह-कुसुम बुद्धिउ । खयर-सुहड-मण-जणिय- तुट्टिउ || निरुवम-कित्ति-कलावु । पसरिय-महुरालावु ॥ [६५४ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. ६६१] सणतुकुमारचरिउ [६५८] तयणु तक्खणि विणय-पणयाहं । । गुरु-हरिसिण पुलइयह धम्म-कम्म-निम्मल-विवेगई । दुण्ई पि खयर-प्पहुई चंडवेग-सिरिभाणुवेगहं ॥ वयणिण निय-दइयउ दुवि वि घेप्पिणु सणतुकुमारु । सिरि-गंधच-पुरम्भि गउ कय-रिउ-कुल-संहारु ॥ [६५९] अह अणुक्कम-गहिय-नीसेसविज्जाहर-रज्ज-सिरि फुरिय-गरुय-खयराहिवत्तणु । उत्साहिय विज्ज-सय- सहसु पणय-इच्छिय-पयच्छणु ॥ चंडवेग-खयराहिविण भणिउ इयर-दियहम्मि । पहु भुवणस्तु वि इच्छियई पूरसि तुहुं हिययम्मि ।। [६६०] ता पसीउण मह वि एयाउ सय-संखउ कन्नयउ समगमेव परिणेउ सामिउ । तह गेण्हउ रज्जु इहु हउँ हवेमि जह मोक्ख-गामिउ ॥ जम्हा एत्तिउ काल इह ठिउ तुह मग्गु नियंतु । रज्ज-धुरंधरु को-वि निय- नंदणु अ-निरिक्खंतु ।। [६६१] जमिह पत्तउ आसि अइसइयनिय-नाणिण मुणिय-जगु अच्चिमालि-अभिहाणु मुणि-वरु तिण अक्खिउ-चक्कवइ आससेण-कुल-गयण-ससहरु । तुह कन्नई सय-संखहं वि होहिइ पिउ जय-सारु । भाणुवेग-धृयहं वि सु जि.. पिययमु सणतुकुमारु॥ ६६१. क. संखह. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ [६६२] - तसु पसाइण तुहुं विनिच्चितु सकु व रज्जहं विस ता जंपिउ मई - कहसु ता आइहउं मुणि-वरण पाडिज्जिहिहि महाडइहिं आयइढ- उत्तिम चरियमाणस - सरि मुच्चिसह असियक्खह जक्खह निययसो जाणिज्जसु निय-दुहिय मिनाहचरिउ [६६३] चिर- समज्जिय-सुकय-माहप्प होउ होसि सद्धम्म-साहणु । साहु-बसह तसु मुणण-कारणु ॥ जो तुरइण हरिऊण | तत्तु वि आऊण || --- [६६४] भणिउ मई - अह किह णु मुणि- नाह विजिय-जगिण उचियत्त-दक्खिण । करयलेण कमलक्ख-जक्खिण || रिउहु जु हणिहइ दप्पु । हियय-पिउ अवियप्पु ॥ नर- रयणह तसु वि असियक्त्व - जक्खु सो हुयउ चरिउ । नणु ता सूरिण भणिउ जायइ सयलस्सु वि जयह एत्थ वि खयराहिव तुहुँ अपु चैव सुह-अ-पेरिउ ॥ विजय- लोइ । उ इमो च्चिय जोइ ॥ ताहि ६६२. १. क. तुंह. ६६४. ३. क. वरिउ [६६५] पणय-पिउ दाण- रुइ सारय-रयणीयर - सरिसआसि नराहिg जय-पयड्डु दीवि एत्थ विकणयपुर-नयरि नियतेय - निज्जिय-तरणि फुरिय कित्ति पडिवक्ख- खंडणु । धीर-चरिउ दुन्नय-विडणु ॥ चहु-गुण-रण-निहाणु । विक्कमजस-अभिहाणु ॥ [ ६६२ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६९] संणतुकुमारचरिउ तसु विसप्पिर-कुल-पसूयाहं सरइंदु-उज्जल-जसहं कुंद-कलिय-सम-दंत-पतिहिं । वियसंत-मुह-पंकयहं उत्तसंत-सिसु-हरिण-नेत्तिहि ।। अंतेउरियहं रइ-समहं चिट्ठई पंच सयाई । ताहिं य सह भुजंतु निवु चिटइ विसय-सुहाई ।। [६६७] तहिं वि धण-कण-रयण-कलहोयसमुवहसिय-वेसमण- विहवु नयर-नर-पवर-वुद्धिउ । ससि-निम्मल-नियय-गुण- वसुबलद्ध-जस-कित्ति-रिद्धिउ ॥ निरुवम-रूवु थिर-प्पगइ इगु सस्थाहह पुत्तु । आसि पसिद्धउधरणियलि नामिण नागदत्तु ॥ [६६८] तमु वसुंधर-पवर-सिंगार असवण्ण-लायण्ण-निहि महिय-देव-गुरु-पाय-पंकय । नव-जोव्वण तरुण-मण- रयण-हरण-विहि-विगय-संकय ॥ मिउ-भासिर थिर-चंकमिर गुरु-गुण-रयण-समिद्ध । हियय-प्पिय पिय आसि जगि विण्हुसिरि त्ति पसिद्ध । [६६९] - इयर-वासरि रायवाडियह गच्छंतउ धरणिवइ . . विहिय-चारु-सिंगारु मग्गिण । अवलोयइ विण्हुसिरि विजिय-तियस-सुंदरि निस ग्गिण । अह तदंसणि तक्खणिण पसरिय-गुरु-कंदप्पु । . विहुरिय-अंगोवंगु परिचिंतइ विविह-वियप्पु ।। ६६६. ७. विठुर्हि Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६७० नेमिनाहचरिउ । [६७०] जइ न भुज्जइ विसय-सुहु अज्जु सह ससहर-वयणियए । जिय-रइए तरुणीए एइए । ता मण्णउं अप्पु मय- निविसेसु संगहिउ अरइए ।। दुरि वसंतइ वल्लहइन हवइ मणि संतोसु । चक्कु दुहिज्जइ रवि-विरहि तहिं कु-वि अन्नु कि दोसु ॥ [६७१] - अह निउत्तिहिं नरिहिं सा वाल . नेयाविणु निय-भवणि निविण विविह पडिबत्ति कारिवि । अंतेउरि परिखिविय जय-पहाण एह इय वियारिवि ।। पत्तावसरि पचत्तिउण विण्डस्सिरि उवभुत्त । तह जह मयण-हुयासणह समियह कह संवुत्त ॥ ६७२] . . _अह निसामिय-निवइ-चुतंतु अ-लहंतु मग्गंतउ वि नागदत्तु निय-पियहि विरहिण । सुहि-सयणिहिं पूरिउ वि स-घरु मुणिरु उव्वसिउ भूइण || सोइज्जंतउ सज्जणिहिं खलिहिं खलीकिज्जंतु । निरु परिचिहइ कह कह न नयरि असेसि भमंतु ॥ [६७३] गलिय-परियणु चइय-सुहि-सयणु संपीणिय-पिसुण-मणु . दलिय-माणु परितविय-सज्जणु । संपिडिय-डिंभ-यणु चत्त-पाण-भोयण-विलेवणु॥ विण्हुस्सिरि तुहुँ कहिं गइय चइड ममं ति भणंतु । . दिउ विण्डस्सिरि-जुइण निवइण कह-वि भमंतु ॥ ६७०. ३. क. एइय. ६७२. ८-९. क. कह कह नयरि. ६७३. १. क. परिहणु. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७७ ] सणतुकुमारचरिउ [६७४] न उण कहमवि निविड-नेहेण परिमुक्किय विण्हुस्सिरि अह कयावि हय-विहि-निओइण । निव-दइयहि सेसियहि अमरिसेण ओसह-पओइण ॥ सज्जण-गरहिय-विहिण परिउज्झिय-भोगुवभोय । सा पत्तिय पंचत्तु लहु विहलिय-इह-पर-लोय ।। [६७५] अह नराहियु तीए विरहेण परिसुन्नउं तिहुयणु वि मन्नमाणु तक्खणि वि मुच्छिउ । तयवत्थ-विण्हुस्सिरिहि उवरि पडिउ परिमउलियच्छिउ ॥ . अह हाहाविरु मंति-यणु विलविरु नयर-पहाणु । कुणइ चिगिच्छ नराहिवह पसरिय-सोय-निहाणु ।। [६७६] निवु वि किंचि वि पत्त-चेयन्नु उक्लद्ध-बहुयर-असुहु . फुरिय-गरुय-वियलत्त-वइयरु । खणु उहइ खणु सुयइ खणु हसेइ खणु रुयइ दुहयरु ॥ दइयए पुणु अ-कुणंतियए न कुणइ भोयणु किंपि । न वि य विमुंचइ पिययमहि तसु संनिहि ईसिं पि ॥ [६७७] . . . न वि य छिविउ वि देइ इयरस्सु ता सचिविहिं मंतिउण कह वि दिहि चिवि नरिंदह । उप्पाडिवि विण्डसिरि खिविय नेउ मज्झम्मि विविणह ॥ ता अ-नियंतउ निय-दइय भोयणु जलु वि न लेइ । अंसु-जलाविल-नयणु निवु विक्कमजसु विलवेइ ॥ .६७१ ४. क. दइयहि. ८. क. एत्तिय, .. . Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ . [६७८ [६७८] अह नराहिवु स-पिय अ-नियंतु मा मरिहइ इय समगु सचिव-जणिण सयलेण मंतिवि । कायव्वउं जह कह वि सत्थु हियउ पहुहु त्ति चिंतिवि ॥ भणिउ नमेविणु नरवरह पुरउ - देव पसिऊण । भोयणु कुणसु पसन्न-मणु निय-पिययभ दट्टण ।। [६७९] तयणु --- कहि कहि कत्थ कस्थत्थि सा ससि-मुहि विण्हुसिरि इय भणंतु उठेवि नरवरु । वयणेण सचिवहं चडिवि तुरइ गहिय-निय-सार-परियरु ॥ पत्तु तइज्जह लंघणही अति चउत्थ-दिणम्मि । जस्थ खिवाविय विण्हुसिरि चिटइ तत्थ वणम्मि ॥ [६८०] ता निरंतर पूइ-पव्मारकिमि-संकुल-सयल-तणु काय-सहस-आवड-लोयण । वहु-गिद्ध-सिगाल-सय- सुणय-सहस-परिविहिय-भोयण ॥ विगलिय-दसण कराल-मुह पूइ-गंध-वीभच्छ । दिट्ट नरिंदिण विण्डसिरि विहय-सहस-पडिहत्थ ॥ [६८१] अह नराहियु फुरिय-वेरगु धिसि जीए निमित्तु मइंसील-रयणु लीलई कलंकिउ । । परिचत्तु कुल-क्कमु वि सुयण-वग्गु सयलु वि धवक्किउ । . अभुवगय पागय-किरिय वित्थारिय अवकित्ति । भुवणि वि अप्पु विगोइयउ तसु एरिस मुत्ति त्ति ॥ ६७८. २. क, मरिहइ य. ८. क. मण.... ६८०. ९. पडिहच्छ. ६८१. ८. क. भुवणु. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८५ ] सणतुकुमारचरिउ [६८२] इय विचिंतिरु रज्जु पंजरु व सुहि-सयण वि वंधण व विसय-सुहु वि विस-विड वि-फल इव । तारुण्णु वि जल-लवु व जीवियं पि करि-कलह-सवणु व ॥ तरुणिउ दुग्गइ-सरणित व हियउ वि सुर-धणुहु ब्व । विग्गहु सयलावइ-गिहु व पिय-संगु वि असुहु च ॥ [६८३] धरिवि हियइण मुणिय-परमत्यु नीसेसु वि परिहरवि भणिय-वत्थु-वित्थरु खणद्धिण । स-कुटुंवह सयलह वि करिवि सुत्थु सह रज्ज-रिद्धिण ॥ गंतु तहा-विह-मुणि-वरहं पुरउ फुरिय-रोमंचु । गेण्हइ चरणु नराहिवइ अवगय-पाव-पवंचु ॥ [६८४] तयणु निंदइ पाव-कम्माई पडिवज्जइ गुरु-भणिउ पायछित्तु तव-चरणु सेवइ । अणुसीलइ मुणि-किरिय मुणइ सयल-सत्थत्थु केंवइ ॥ तह जह जायउ अइरिण वि दुविह-समहिगय-सिक्खु । अणुचरियंतिम-सयल-विहि सहलीकय-निय- दिक्खु ॥ [६८५] खविवि गुरुयरु पाव-प-भारु उवसंचिवि सुकय-भरु परिहरेवि तणु इहु उरालिउ । तइयम्मि सुर-घरि गयउ नागदत्तु पुणु दुह-करालिउ ॥ समुवज्जिय-गुरु-पाव-भर पसरिय-दुह-पन्भारि । मरिवि चउ-ग्गइ-भव-गहणि निवडिड़ भव-कंतारि ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ नेमिनाहचरिउ [६८६ ] अह ठिs-क्खड़ सुकय-कय-रक्खु चविवि पवर वासर मुहुत्तिण । सो तस्सु सुरालयह सिरि- विक्कमजस-तियसु नयरि रयण- पुरि सुष्पवित्तिण ॥ सिविण-सइण उवसूइयउ कसु वि महिभह पुत्तु । जाउ कय- सुहि सयण-सुहु बहु-लक्खण-संजु || [६८७] तयणु जणइण सिविण-अणुख्कु जिणधम्मु इय नंदणह कम- जोगिण वालगु वि गुरुहु पसाइण पत्तु लहु तह संपाविय - जस- पसरु दिष्णु नामु गरुयरिण रिद्धिण । सहिउ सरय-ससि-मुद्ध-बुद्धिण ॥ सयल-कलोयहि- पारि । जिण सासणह वियारि ॥ [६८८ ] काल- जोगिण संपन्न तप्पियरि तमंदिर पहु विहिउ तय तेण उवलद्ध जच्चिय ॥ गुरु-गुण-धम्म-समज्जिणिय महियल - पयड - पयास । निस्वम-कित्ति पुरंधि निय- पह-पंडुरिय-दसास ॥ [ ६८६ कित्ति-सेसत्ति मिलिवि सयल-सज्जणिण सोच्चिय । [६८९] एत्थ अंतरि भमिवि संसारि ६८६. ५. क. सपवत्तिण; ७. क. कसु ६८८. ३. सो ज्जि य. सिरि-सीहउरम्मि पुरि नागदत्त जीवु वि स कम्मिण | उववन्तु तहा - विहह कसु विदियह गिहि पुत्त भाविण ॥ कोहण - पगड़ स-मच्छरउ अ-विहिय-स- कुलायारु । अगिसम्म- नामिण पयडु अणिय वेय-वियारु ॥ हि. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९३] सणतुकुमारचरि [६९० ] अह तहाविह गुरुहु पय- मूलि परिवायग-वउ गहिवि निय धम्मिण पत्त- जसु विहिहि निओइण अह नरवाहण - नरवरिण परियडंतु वसुहहं समग्ग | मज्झि वाल- तवसिहिं उदग्गहं || रयण उर- निव-भवणम्मि पहुत्तु । निसुणिवि तव वृत्तंतु ॥ [६९१] भणिउ - महरिसि मह मंदिर पारणउ जिणधम्मु तर्हि गयउ भणिउ - नराहिव पारणउं महियल - यह अहो -मुहह कुणसु तुहुं अज्जु तयणु तेण वालय- तवस्सिण | फुरिय-रोसिण हयासिण || [६९२] ठविवि पट्टिहिं कंस-पत्तीए उडुण्डु पायस असणु जिणधम्मु वि तम्भणिय पट्टि निविण्हुण्हयरभावइ भव- उच्चग्ग-मणु ६९१. २. क. भज्ज. ५. ददु. ६९३. ५. निसटूउ. द तुह घरि करिसु अवस्सु । वर्णियह जइ एयस्सु ॥ उण्हुहु पायस - असणु गोसम्म वि आयरिण अह नरनाहिण विहि-सिण भणिवि अणिच्छंतु वि कह-वि [६९३] तयणु अमहिय - नामु सु हयासु देसि जमिह मई अज्जु एरिसु । हिउ नियम चिट्ठे असरिसु ॥ निव्वंधिण जिणधम्मु । काराविउ तं कम्मु ॥ सणिउ सणिउ भुंजइ पहट्ठउ । विहिण सुद्ध - महियलि निसिउ || कंस-पति-दाहत्तु । विमल- विवेय-पवित्तु ॥ ६३ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ नेमिनाeafte [६९४] अह अरि जिय करिसि म म रोस विहिवसेण कु व कुव न पावइ । मण अगोयर विविचिह्न आवइ || समुवज्जियई चएवि । भद्दु अभद्दु व देवि || serer कवि उवरि भव-वित्रिणि दुहावणड़ निय सुह असुहई पुञ्च भवको गिरहइ जसु अवजसु च [६९५] जलिर - मंदिर-सरि निरुवदवु मोक्ख-पुरु तणु चंचल धम्मु थिरु अप्पु वि अनियंतिर पिसुणु ता जिय वट्टसु इयरुवरि संसारु दुहय विसय सुह है सिव-पहु । सुहर सुगुरु खलयणु दुहावहु ॥ सु-नियंतिउ सुजि मित्तु । राय-दोस चत्तु || [६९६] जलहि- सुरगिरि- गहिर-थिर-मणह इय तस्म्रु विचितिरह अइ-मंथरु जिउण सेहि पहि कह कह वि. ता उक्खिडियस रुहिर-वस सो हयासु बालय-तत्रस्सिउ । उन्ह - उण्हु परमन्तु हरिसिउ || जा उप्पाडइ पत्ति । मंस - न्हारु जुयति ॥ [६९७] RTE fafe aft पाव-तवसिइण for you धम्म- नह निक्कारणि निवरण वि नहि पर- लोइ चिनिय कयहं छुट्टिन गुरु-गुरुएहिं त्रि पुरिस-रयणु एरिसु विडं विउ । किह अ-कज्जु एहु एहु कराविउ || सुह असुहहं संसारि । विसम-विवागि अ-सारि ॥ ६९४. ४. क. विणिवि. ५. विविहिह. ६९६. ५. क. उण्हउण्ह. ६. पट्टिहि. [ ६९४ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०१.] संणतुंकुमारचरिउ [६९८] इयं निसामिरु देव-गुरु-वयणपरमामय-सित्त-तणु राय-दोस-परिहरिय-माणसु। आगंतुण निय-भवणि बहु-दुहत्तु निय-कज्ज-अणलसु ॥ मेलिवि संघु चउबिहु वि. तह सुहि-सज्जण-लोउ । विहिउण पुय-सक्कार तसु सो निय-कुल-उज्जोउ ॥ [६९९] करिवि निय-घर-सुत्थु सुहि-सयणधण-धन्नु परिच्चइवि . धरिवि हियइ जिणनाह-सासणु।। पडिवज्जिवि वर-वरणु गंतु गिरिहिं गेण्हे वि अणसणु ॥ पुच-दिसिहं उस्सग्गि ठिउ गमइ पणरस दिणाणि । इय सेसासु वि तिसु दिसिसु पिहु पिहु पन्नरसाणि ॥ . . . [७०० इय दु-मासिउ उग्गु तव-कम्मु अइ-दुक्करतरु करिवि डंक-कंक-वग-उलुग-कागिर्हि । : सिंचाण-सिगाल-विग- . वण-विराल-भल्लंकि-सुणगिहि ॥ . खज्जिर-पहि-पएसु सुर- सिहरि-सिहर-थिर-चित्त । . मरिवि सु हुयउ सुराहिवइ सोहम्मम्मि पवित्तु ॥ .... [७०१] सु वि तहाविह-नियय-दुच्चरियपरिखेड्य-मुहि-सयणु वाल-किरिय-परिसीलणुज्जउ । वुह-वग्गिण अवगणिउ । मरिवि नियय-दुक्कय-विइज्जउ ।। 'अग्गिसम्मु सोहम्म-सुर- मंदिरि तियसिंदस्सु । ' एरावणु वाहणु हुयउ वसिण स-कय-कम्मस्सु ।। ६९९. ४, विरवरणु. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ नेमिनाgafte [७०२] पत्त-अवसरु विहिय - सिंगारु अभिओगिय- सुर-गणिण सण करिव वि चिक्कारारव - भरिय-दिसि वज्र्ज कुस करू तियस-पहु तर्हि आदर तात्र ॥ नीड पुरउ तियसा हिरायह । अणुसरंतु गरुयर-विसाय || तसिउ पयट्टउ जाव । [७०३] तणु गुणी तियसिंदु विदुगुण-तणु सुर-सामि विचउ-गुणिउ किं बहु तह तह सुरु आरूढउ तियसाहिवइ करि-राउ चउ-सरीरु अह हत्थि-नाहुवि । तयणु अट्ठ-गुण हुय ते दु-वि ॥ खेइवि गरुय बिसाइ | तयहं तहिं करि-राइ ॥ [ ७०४] इय निरंतर तेसि दोन्हं पि तियसेसर - गयरायहं सुइरज्जिय-निय - निययyour faकरिव चावि धम्मिय जण उक्कंप-यरि फुरिय गरु- सुह-ह-विसेसहं । कम्म वसिण गच्छंत - दिवसहं ॥ पडियउ भवि चउरंगि । परिय- दुह सगि || [ ७०५] तियस- सामि वि चविवि ठिइ-खण सिरि-हत्थिणाग पुरिहिं आससेण मेइणि- मयंकह | सहदेव पिययमह कुच्छि कमलि अणहुव- कलंकह ॥ चउदह- सिविणुवसूइयउ हुउ गुण रयण-निहाणु । नंदणु भुवणाणंद-यरु सणतुकुमारभिहाणु ॥ ७०२.९. क. भर ७०४. ३. क. दुहं. ७०५. ६. अणहुय. [ ७०२ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०९ ] [७०६] भमिवि चउ गइ भव- अरण्णम्मि बहु-भय-परिष्फुरिय विवंत पर सि तारिस - निय-कम्मह वसिण हुउ वेयढ महागिरिहिं सणतुकुमारचरि जम्म-मरण - सहसिहिं कयत्थिउ । दास-पेस अधणत्त-दुत्थिउ || अभिहाणिण असियक्खु । एरावण - जिउ जवखु ॥ [७०७] इय समासिण कहिवि वृत्तंतु तु संतिउ मुणि बसहु तुह अंतर-वास कइ मह वयणिण माणस सरह सविह- देसि गंतूण | ठिउ पिय-संगम-नामु पुरु सुर-पुर-समु रइऊण ॥ अच्चिमालि अन्नत्थ विहरिउ । भाणुवेगु पुणु गहिवि कुमरिउ || [७०८] तयणु तइयहं तह तुमं तेण परिणाविउ वित्थरिण ता भुंजइ विसय- सुहु चंडवेग खयरिंदु पुणु सणतुकुमारह देइ लहु ७०६. ४. परिवसिठ, परिणाविउ अट्ठ नियपत्थाविण सेव हउं तई मिल्लेविणु एक्कलउ गउता पहु मरिसिज्ज तुहुं दुहिय किं तु तुह पाय जुयलह । करिसु धरिवि इ मज्झि हियग्रह || भाणुवेगु निय-ठाणि । इहि अवराह-पयाणि ॥ [ ७०९ ] चंडवेगिण भणिवि इय कुमरु कन्नयाहं तहं सउ अणूणउं । गरुय - खयर - रज्जिण सम्वाणरं स- कुटुंब विनिय-रिद्धि । सारय-ससि - सम- बुद्धि ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : ૬ नेमिनreafte [७१०] अह तहाविह गुरुहुं पय-मूलि एहु गंतु चारित सेवइ । कुमर-वरिण पुणु अज्जु केस्वर || संलत्तउ एगति । विज्जाहर· चक्कवइ इय गच्छ कालु कु-वि अम्हहं पुरउ समग्गहं वि जह कीलण कर एह लहु मानस - सर - सामंति || [७११] ता सुनंदा - पमुह दइया हिं सारेण य परियरिण विहिय-सेवु इह अज्जउत्तर । जावागउ ताव नर एत्थंतरि कयलीहरe उठेविणु नीहरइ कुरु रयण एत्थ तं पहु पहुत्तउ || वियसिय-मुंह- अरविंदु | वंस गयण- स्यणिंदु || [७१२] तयणु दो विहु विहिय-तक्काल पाउग्ग-विहाण लहु पुवज्जिय-तियस- गिरिभुत्रण अंतर- वित्थरिय सिरि-वेयइट - महागिरिहिं गया ति सरल-सहाव ॥ जणिय-सयण - आणंद-चित्थर | तुंग-पुण्ण-पव्भार- सुंदर || निम्मल-कित्ति-कलाव | [७१३] ता विसेसिण खबर - सेणीसु दो पि सव्वायरिण पणमंत नहयरहं परिणेविण नाणा - विहउ अह अणि वियसिय-मुहिउ निrय आण अरिण पयारिवि । उचिउ रज्ज-अहिउ कारिवि ॥ विज्जाहर - कुमरीउ | प्पिणु अंतेरी || [७१० Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१७ ] [७१४] सूर-नरवइ-तणय- वयणेण निसुणेविणु जह जणय जणणि-सयण चिद्वंति दुक्खिण । विविह-खयर-खोर्णिद-लक्खिण || जयह मज्झि पयतु । हत्थिणाग-पुरि पत्तु || आऊरिय-गयण-यल निय - माइप्पु समग्गह वि सणतुकुमारु कुमार-चरु सणतुकुमारचरि [७१५] तयणु स-हरि जणणि-जणयाहूं अहिणंदर पय-कमल संभूसइ पणइ यण सविह- निवेसिय-सूर - सुयजणी - जणयाइय-जण हूं कुणइ गरुय - पडिवत्ति सयहं । जण तो जय-जंतु वयण || वयणिण निय-वृत्तंतु । कहइ साइ- पज्जंतु ॥ [७१६] अह निहित व अमय-कुंड म्मि अच्च भुय-ख्व- सिरि पंडिच्चु जयन्भहिउ संपाविय सुरतरुव उवलद्ध-चिंतामणि व आससे वहा हिव चितs पसरिय- हरिस भरु विलसिर-गरुय-विवेउ || गिह-पय-वर कामधेणु च । चक्कवट्टि - रज्जाहिसित्तु च ॥ निय - सुहि-सय-समेउ । [७१७] अहह धीरिहिं सुकुल - उपपत्ति जीवियन् उवसग्ग- वज्जिउ । विउल-भोग- धणु स-भुय - अज्जिउ ॥ कित्ति परक्कम सार | विलसिर-गुरु- वित्थार || रज्जु जयस्स चमक्क- यरु लभइ धम्म-वणि भुवणि ७१६. १. कुमंभि; ३. क. ख. सुरुतरु. ६९ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७१८ नेमिनाहचरिउ . [७१८] इय-विचिंतिरु गरुय-चडयरिण कारेवि बद्धावणउं निय-पुरम्मि सयलम्मि निवइण । . निय-रज्जि निवेसिउण कुमर-रयणु पसरत-रिद्धिण | अणुजाणाविवि सुहि-सयण गुरुयण-भत्ति करेवि । चारय-बंध विमोइउण जिणवर सक्कारेवि ॥ . . [७१९] कसु वि तारिस-गुरुहु पय-मूलि वहु-नरवइ-सुय-सहिउ स-दइओ वि विस्संभराहि । निसुणेविणु धम्म-कह हियइ धरिवि जिण-वयणु कय-सिवु ॥ संसारिय-सुह-विरय-मणु पडिवज्जिवि चारित्तु । . आससेणु सो राय-रिसि सु-गइहिं गयउ पवित्तु ॥ ... [७२०] काल-जोगिण पुण सउण्णेहि भरहेसर-चक्कवइ- विहिण मुहिण छक्खंड-वसुमइ उपसाहिय अणुकमिण परिस-सहस-कालम्मि अइगइ ॥ बहुविह-समर-वसुंधरहं पसरिय-कित्ति-लएण। ... सणतुकुमारिण स-भुय-बल- पाविय-अब्भुदएण ॥ [७२१] अह सुनंदा-नाम-थी-रयणपमुहाण जयभहिय- पिययमाण चउसटि-सहसहं अच्चम्भुय-भुय-वलहं नरवईण वत्तीस-सहसहं ।। सिंधुर-तुरय-रहाहं पिङ पिहु चउरासी लक्ख । नव निहि चउदह रयण मण-इच्छिय-वियरण-दक्ख ॥ ७२१. ६. क. सहसह. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५] [७२२] सुइर- सचिय- सुकय- जोगेण भरहा हिवड़ - निय-नयरि संणतुकुमारचरिउ इयरो वि संपत्तउ एत्यंतरि सोहम्मिरण दिल तहा विह- सिरि-सुहउ सणतुकुमारु नरिंदु ॥ मह वयणिण भद्द लहु चक्किस्तु चरत्ययह [७२३] तयणु सायरु भणिउ वेसमणु उचिउ विहउ अइरिण समज्जिवि । कित्ति दय दह-दिहि विसज्जिवि ॥ सुर-राइण साणंदु | आयसिण निय-पहुहु सीहासण छत्त वर सणतुकुमारह एहु मह तह तुहुं तसु चक्काहिवड़- रज्जहिसेउ करेज्ज || कुंडल- चामर-पाउयहं पायवीट- स्यणिण सहिय पुरउ गंतु सहदेवि तण यह । सोल-सहस-वर- जक्ख- पणयह ॥ कोसल्लिउ वियरेज्ज | [७२४] ता कयत्थउ अप्पु मन्नंतु तुरि तुरि सहरिसु नमिषिणु । मउड हार- रयणाई वेष्पिणु ॥ जुयलई तह वर माल । विलसिर- सिरिहि वम्वाल || [ ७२५] गंतु गयउर-नयरि कुरु-स विणय-नमिरु वेसमणु जंपइ । पेसिउ म्हि तुह पुरउ संपइ || जस-कलसह पय-पुरउ सोहम्मिय- सुर-वरिण तह कोसल्लिउ दिog एहु पेसिउ तुम्ह जोग्गु । कारावि पुणु चक्कवड़ - रज्जहिसेउ उदग्गु || ७२४. ७. वणमाल. . ७१ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ नेमिनाeafte [७२६] जेण पच्छिम-जम्मि किल जत्थ सुर-मंदिर आसि तुहुं गरुय-रिद्धि-वित्यरु पुरंदरु । सोहम्म तर्हि पिउनु हुयउ एहि सुर-नियर-सुंदरु | इय तुह गुरु- बंधव मइहिं कारावड़ पडिवत्ति | तह मह मुहिण महायरिण तुम्ह पयासर भत्ति || [७२७] इय सुविणु चक्कि परिओस त्रियसंत-वयणं बुरुहु कोसलीउ सयलु वि पडिच्छर । वेसमणह पुणु पत्ररु सन्सविहम्मि आसणु पयच्छइ ॥ एत्यंतरि सुरु वेसमणु अभिओगिय-तियसेहिं । जोयण-महिहिं समुद्धरिय रय- कयवर तणएहिं ॥ [७२८] वइर- मरगय-पुलय-वेरुलिय ससि सूरकंत-प्पमुह निय - किरणिहिं अवहरिय वरि निरुम- निय-महिम अहिसेयहं मंडवु विहिउ पंच- चन्न-रणिहिं विणिम्मिड | तिमिरु रयण- पेढरं कराविउ 1निज्जिय-तियस विमाणु । तिहुयण- सिरिहि निहाणु ॥ [७२९] तस्सु अंतरि पुण्य - दिसि समुहु सीहास संवि पायवीदु तहि पुरउ ठाविधि । सुमुहुत्तिण नर-रयणु पणय- पुण्व आणि निवेसिव अह खीरोय-महोयहिहि मणि-कंचण-कलसेहिं । आणेविधि निम्मलु सलिलु अभिओगिय-तियसेहिं ॥ • ७२७. २. क. 'वुरुहुं. ५. क. ख. सविहिंमि. [ ७२६ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ ७३३ ] सणतुकुमारचरिउ [७३०] तयणु मागह-गग-वरदामपमुहुत्तिम-तित्थ-जल कुसुम-गंध-ओसहि गहेविणु। जय जय चिरु नर-रयण महियलि त्ति पुणु पुणु भणेविणु ॥ विज्जाहर-नर-सुर-गणिहि मंगलि पयडिज्जंति । मग्गण-सयण-किमिच्छियह इच्छिइ वियरिज्जति ।। [७३१] पडह-मद्दल-तिलिम-हक्काहिं कंसालय-ताल-वर स-वेणि काहलिय-वुक्कहि । वज्जतिर्हि पडु-रविण करडि-भंभ-भेरिय-हुइक्कहि ॥ नहारंभि पयट्टियहिं तर्हि आगंतु खणेण । रंभ-तिलोत्तिम-उव्वसिहि सुर-सामिहि वयणेण ।। [७३२] अइ-महंतिण विहव-जोएण चक्काहिव-रज्ज-अहिसेय-महिम वेसमणु विरइवि । उवसाहइ सुरवइहि पुरउ पुव्य-वुत्तंतु सयलु वि ।। सणतुकुमारु वि नर-रयणु पाविय-चक्कवइत्तु । उवभुंजइ छक्खंड महि असम-सुहामय-सित्तु ॥ [७३३] अवर-वासरि स-परिवारस्सु सोयामिणि-नाडयह रंग-मज्झि सहरिसुवविहह । कय-भूसण-सयल-तणु तियसु एगु ईसाण-कप्पह ॥ नियय-पहा-पसरुवहसिय- सेस-तियस-तणु-कंति । कज्ज-वसिण संपत्तु सुर- सामिहि सविहम्मि त्ति ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ - . [७३४ [७३४] अह सुरिदिण विहिय-सक्कारु परिसाहिय-कज्ज-विहि नियय-ठाणि सो तियसु पत्तउ । स-वियक्कु सोहम्मिइहि सुरिहि तयणु तियसिंदु वुत्तउ ॥ . जह पहु एइण सुरवरिण पसरिय-तेय-भराई । निय-तणु कंतिण पह हरिय सम्वेसि पि सुराई ।। [७३५] . . तयणु पणिउ तियस-नाहेण . नणु एइण पुन्व-भवि विउल-भार-सुद्धिण पवित्तिण। ... संचिण्णु आयंविलयः बद्धमाणु तवु एग-चित्तिण ॥ .. .. इय तव-तेइण तेण इहु असरिस-ति-कलावु ।। हुयउ तियसु ईसाण- सुर-पहु-सम-सिरि-सम्भावु ॥ पुण वि पण मिवि भणिउ तियसेहि पहु पसिय कहेसु नणु भुवण मज्झि किं कसु.वि अन्नह । एयारिस-तेय-सिरि अस्थि एत्थं चिर-चिन्न-पुन्नह ॥ ईसि हसेविण सुर-वइण तयणु मणिउ - नणु हंत । एयह पुण्णई काईकवतेय-स्सिरि विलसंत ॥....... [७३०] का व अवरह ति-जय-रंगम्मि विलसंतह खयर-सुर- असुर-पहुहु सयलह वि मिलियह । पुबज्जिय-तव-सिरि व देह पह व जा मणुय-मित्तह ॥ . . . . आससेण-कुल-कमल-सर- मंडण-कलहंसस्सु । सणतुकुमार-नराहिवह ससहर-विमल-जसस्सु॥ ७३६. ६. क. चित्त, ८. क. कांई. .. . . .. . ७३७. ७. संइसा. ९.क, ससह. क. ससह. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४१] [७३८ ] एत्थ - अंतरि तियस पहु-संहह मज्झमि विसुर कुमर नणु माणव - मेत्तयह तियसराय-वयण-स्वणकुहिं संक पत्थु - विसर संणतुकुमारचरि सिरि गयउर-नयरि लहु संभालिय दो वित तणु पवेसावि लहु व तक्खणु सणतुकुमारिण वि दोणि किंचि संजाय मच्छर । इहु घडे कह इय विर्चितिर || समणतरु पसरंत । तयणंतरू तुरंत || ॥ [७३९] तियस सत्तिण वय-रूवेण पत्त तयणु दोवार - पालिण । चक्क हि ते अइर-कालिण || जवणिय- अंतरिएण | कारिय-मज्जणएण || [७४०] साहह केण कज्जेण भहिं हरिस - वियसंत-लोयण दिट्ठ-चलण - अंगुड वंभण ॥ अवलोयण- कज्जेण । . जंपिउ चक्करेण || भणिउ इह आगय तुब्भि अह लहु जवणिय-अंतरिण जह - - पहु तुह रूव-स्सिरिहि दुरह आगय अम्हि अह [७४१] एहु जइ ता तुम्हि अवरण्डि दो विभअत्थाण मंडवि । सव्व-अंग - सिंगारु पुणरवि ॥ सुणिवितियस ते ताव ! आगच्छह मह पुर जिह पेच्छह मई विहियइय चक्काहिव भासियउं महिं कर्हि चिचिक्कवह सहहं वईसड़ जाव | ७३८. १. क. पहह. ७४१. ४. क. मइ; ५. क. पुणुरविः ८. क. गमइहिं. ७५ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ नेमिनाee fre [७४२] अह पढंतिण बंदि - विंदेण गायंतिर्हि गायणिहि किज्जतिर्हि मंगलिहि मम्गण-सयहं मणिच्छियइ चक्क - पहुहु नियट्टिय नच्चिरेर्हि नड - नह - जल्लिहिं | अकंय-सुकय-जण-हियय - सल्लिहिं || वियरिज्जंतर दाणि | इय मज्जणय - विहाणि ॥ [७४३] संख- सद्दिण मुणिय- मज्झण्ह कारि भेरि-रविण वसंत तूर - रवि नच्चणि - नड सयलेहिं य अहिगारिहहिं खेय - विणोय-रएहिं ॥ वार - तरुणि कहियम्मि अवसर । सेवम्मि गच्छति निय-घरि ॥ निय निय-ठाण - गएहिं । [७४४] लहु मिलतिहिं धामाणेहि पडिसवणिय-माण विहिं परिसोहिज्जं तियहि अग्गासणियग-वंभणिहिं सज्जीकिज्जतेहिं । किविणाणाह-चणीमगंहं भत्तिर्हि दिज्जतेहिं || वज्जिरेहिं अवसरिय-संखिहिं । अतिहि सत्तसालहिं असंखिहिं || [७४५] वार - तरुणिहिं सारविज्जति निव-भोयण - वेइयए भुंजय-जणि आगयइ तुरिउ चकोर - पंजरिर्हि वायस - पिंडिहिं तरु- सिहर - फलगि खिंविज्जंतेहि ॥ वेज्ज- मंत-वाइएहिं पहुत्तिहिं । वसदेव - आइहिं हुंतिहिं || संचारिज्जतेहिं | ७४२. २. क. गातिहि ; ४. क. किज्जतिहि. ९. इमय. ७४४ २. क. माणविहि. ९. क. भत्तिहि ख. भात्तहिं. ১২ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४९] सणतुकुमारचरिउ [७४६] सालि-सिहरिणि-सूव-पक्कन्न महु-सप्पि-तीमण-दहिय- दुद्ध-पउर-पाणय सु-वजण । लहु महुर-कसाय-कडु- तित्त-लवण-हिय भुवण-रंजण ॥ निवइ-निउत्तय-माणविहिं रसवइ सुह-सय-लब्भ । निफाइय अइरिण-जणिय- वुड्ढि-धाउ-संदभ ।। [७४७] तयणु सक्कर-दक्ख-खज्जूरअक्खोड-दाडिम-कलम- सालिदालि-बंजण-सुसक्किय । घय-उण्ह लवण-स्सिरिय सुहि-सेव-मोयग-मुरुक्किय ।। वर सुकुमारिय सक्कुलिय मंडिय भुडुहुडिया य । वेज्ज-विहिण भुंजय-जुइण चक्कवइण भुत्ता य ॥ [७४८] अह लवंगय-एल-घणसारजवीरिय-जाइफल- तय-तमाल-दल-जाइवत्तिय । कक्कोलय-पूगिफल- नागवल्लि-कप्पूर-वत्तिय ॥ जहरिहु वियरिय सेवयहं नमिरुत्तिम-अंगाहं । तयणंतर तिण गहिय-रस इय -सयलहं भोगाई ॥ [७४९] तयणु मिगमय-परिमलुग्गारहरियंदण-घुसिण-सिरिखंड-अगुरु-कप्पूर-पंकिण । सयवत्ति-चंपय-करुणि- जाइ-कुसुम-दल-परिमलंकिण ॥ सुकय-विवाग-सहस्स-भवु करिवि विलेवणु अंगि । ओलग्गाविवि आहरण सुर-विइण्ण सव्वंगि ॥ ७४७. १. क. सक्क. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ नेमिनाहचरिउ [७५० ] अह सहाविय कंति पच्भारतारयालि स सहर - दिवायरु संधिबंध-व्यंग सुंदरु || कय-असरिस सिंगार - विहि परिहिय-देव- दुगुल्लु | निय परियण-सोहिल्ल || बंदि-विंद उरघुट्ट-जसु अवहत्थिय-सुर-असुर निम्माणय-कम्म-कय [७५१] सन्च-अवसर विउल-अस्थाण निय निउत्त- पुरिसेहि स-हरिए । तेर्हि एंति असरिसु ॥ वर-मंडवि उवविसिवि सदावर चक्कड़ हरिसु वहता निय-मणिण किं पुण चक्कत्रइम्मि | सच्चवियम्मि विसेसवर विरइय-सिंगारम्भि | [७५२] अहह घिसि घिसि वि-रसु संसारु एत्तिएव अंतरि इमेरिस । जणिय-वण-सुहिताव- पगरिस || लहु विहलिय-गुह छाय | जमिस्तु वि नरवरह संजाय विसम दस इय परिचिंतिर तियस दु-वि भणिय नरिंदिण - तुम्हि किह दीसह हय-मुह-राय || [७५३] अह पर्वपहि तियस चक्किद किं न नियहि नियय-तणु तु मज्जण कालि गुन नए कि एड गर्णनि free after सिरसि ७२.८ क दिवस वि. दि. जमिह आणि जो कंति-विवरु | एहि तय सहसन्ति नवम ॥ चिनिय नियन्तं जाय । बोटलियं पिवता || [ ७५० Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५७ ] सणतुकुमारचरिउ [७५४] तयणु तक्खणु मणु समुक्खिविचि छक्खंड-खोणीयलहं नवहं निहिहिं चउदहहं रयणहं ।...." बत्तीस-सहसहं गरुय - मउड-बद्ध-नरवइहिं अणहहं ॥ .. जक्खहं सोलस-सहस-परिसंखहं आण-कराहं । '. . .:: चउसहि य सहसहं सुकुल - विलयहं भत्ति-पराहं ॥ . .. ..' [७५५] अ-थिरु जोव्वणु धणु अ-साहीणु सुहि-सयणु स-अत्थ-रुइ सलिल-विंदु-चंचलु सरीरु वि। इय दुहयरि भव-गहणि रमइ किह णु इह पुरिख धीरु वि ॥ इय चिंतिरु उविग्ग-मणु गहिउ-कामु चारित्तु । सणतुकुमारु समुल्लवइ भव-कंतार-विरत्तु । . .:. [७५६] अहह अहमिह भद्द तुम्हेहि नित्थारिउ भवु जत्तिहिं वितह-रूव-अहिमाण-पत्थउ । वुड्डंतु महन्नवहं मज्झि देवि निय दो-वि हत्थ उ ॥ .. तयणु तियस वज्जरहिं मणु चक्क-प्पहुहु मुणेवि। ........ धन्नु महायस तुहुँ जि पर जो एत्तियमेत्ते वि ॥ . . . [७५७] विलिय-कारणि चइवि चक्कित्तु चारित्त-गहणूसुयउ हुयउ जमिह तुह अज्ज दुज्जय । संकंत य. संति तणु- मज्झि रोग ओसह-अ-सज्झय । नणु कह जाणह तुभि इय चक्कवइण पुदृम्मि। . पयडिय-रूविहि सुरिहि सुरपहु-वइयरि सिम्मि ॥ ....: ७५४. ३. क, चउदयह.. ७५५. ५. क. वोरु. .. . Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० नेमिनाहचरिउ [७५८ ] ree afe fue कम्म- परिणाभु कु-वि दारुणु भुवह वि चलु परियणु मणु अथिरु तणु पुणु एहु अणत्थ- फलु अ वुह जणिय-पडिकम्म - विहि [७५९] जमिह यह पदम उप्पत्ति ऊ व विवेड-जणपगईए वि निग्गुणउं कप्पूरागरु-मिगमयहं एहु सरीरु विणास यरु अइव तुच्छ संपय समग्ग वि । सरय- अब्भ-सम दइय-संग वि ॥ सलाइहि निहाणु | वितह - रूव- अभिमाणु ॥ [७६०] सुक्क सोणिय- रुहिर-वस-मंस - गरहणिज्जु उव्वेय कारणु । नवहिं असुर - विवरिहिं दुहावणु ॥ चहु-भोगुवभोगाई | दुह यरु निस्संगाई || मज्जासुइ-पूइ-रस- मुत्त- अंत- पित्त-प्पलाविउ । नव-छिद्दु मलाविल विहिण असुइ-दलिएहि घडाविउ || इय जह जह परिचिंतिय तणुहु सुइत्तणु किंपि । तह तह दीस असुइमउ सयल वि विहिं पि ॥ [७६१] जाव अज्ज वि. सयण साहीण जा लच्छि न परिहरइ जा पिययम पिय-करिय जाव भियग वर्हति वस-गय । जाव आण खंडहिं न अंगय || जाव न जायt विहर-यरु तणु परिणाम असारु । aTa-fa fasजर धम्म-विहि पर भव-कय-माहारु ॥ [ ७१८ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६५ ] संणतुकुमारचरि [७६२] इय विर्चितिरु मेरु- थिर-चित्तु आससेण नरनाह - नंदणु । कुरु चंसह जस-कलंसु उज्झेविणु धण-रयणंचहु- वित्थरिण पहाविउण उस दत्त-सूरिहि पुरउ सण-सुहड-करि तुरय-संदणु ॥ जिण वर-तित्थु पवित्त | पडिवज्जइ चारि ॥ [७६३] अदह नरवर चरिउ अनुसरिउ तई भरह - नराहिवह आराहिउ जिणवरहं इय उवबूहिर पय नमिर सणतुकुमार-मुणिस्सु । तियस गंतु वइयरु सयल: साहई तियसिंदस्यु | [७६४ ] किंतु सज्जण तें जिं ति जि दइय वसुह सयल लीलई चइंतिणं । गुरुहुं वयणु इय उज्जमंतिणः ॥ ति जि नरवर ते ज्जि सुहि ति ज़ि संदण तिज्जि भड ते ज्जि चउद्दह रयणं ति जिं पुनि छडहिं निय-पहुहु विलवंत भिच्च यण परिवासु किंत्तिय वि पुव्विपि हु भरहाविह जायउं केवल - नाण - धणु ७६२. २. क. कुरव सह. ७६४. ६ क. ति जि चढ° ११ [७६५] अहह सामिय पण्य-कारुणिय ति ज्जि तणयं ति जि निय-सहोयर | ति जिं तुरंग ति जि गंध-सिंधु ॥ जक्खहं सोल सहस्स । सणतुकुमार-मुणिस्स || ८१ सलु हु कि किह वि उज्झसि । दियह बलिवि एमेव सुज्झसि ॥ उसह- जिणिंद- सुयस्तु । निय-पय-पालतस्सु || f Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नेमिनाहचरिउ . . [:५६६ कह व भुय-वल-दलिय-रिउ-कुलह । तुह नाह विरहिण भुवणु विविह-खुद्द-विदविउ हविहइ । कु व अ-सरणु विलविरह एहि तस्स्नु उवयारु करिहइ ॥ . : .. इय विलवंत परिभमिय सयल ति जा छम्मास । विगय-त्ताण अणाह परिमिल्लिर-गुरु-नीसास ॥ [७६७]] राय-रिसिण वि तियस-गिरि-सिहरथिर-चित्तिण सीह-अवलोइएण वि हु ति न निरिक्खिय। । तयणंतरु निय-नियय- ठाणि पत्त अच्चत-दुक्खिय ।। राय-रिसी वि हु पुध-कय- भोग-हलिय-कम्मति । . . . एगागी उज्जय-हियउ, चरणि जणिय-जम्मंति ॥ . . . . . - [७६८] . . . . . विहिय-छहह तवह पज्जंति . . गुरु-वयणिण अन्नयरि ठाणि गंतु विहरंतु मह-रिसि। पुन्यज्जिय-असुह-निय- कम्म-सेस-उदयम्मि असरिसि ।।. गोयर-चरियहं परिभमिरु कत्थ वि भवणि लहेइ । छेलिय-तक्किण उल्लियउ वीणाउरु भुंजेइ ॥ .. [७६९] ., तयणु वेयण सीसि तणु-दाहु उक्कोउ पुणु लोयणहं कुच्छि-सूलु पाउम्मि अरिसय । वच्छ-त्थलि तोडु करि कंपु पाय-मूलेसु रप्फय ॥ पुट्टि जलोयरु कंधरहं गंड-माल खय-काल । पाउन्भुय सव्यंगि पुणु कुट्ट-व्याहि कराल ॥... ७६७. ७. क. कंमंति. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७३] [७७०] इय दुरंतिर्हि जीय-पज्जंत समयावह - दुहयरिहिं हु हु अनि विवाहिहिं । सयलस्सु विभुवण-यल- जणहु जणिय-गुरु-हियय-दाहिहिं || सुरगिरि-चूल व अविचलिर- माणसु सणतुकुमारु । चिss अहिया संतु निरु सुमरंतर नवकारु || [७७१] अह निरिक्खिय सु- मुणि-चरिएण अ - विहिय-माण सिण जह - पेक्खहु सुर - गणहु जो छट्टट्ठ-दुवालसमसोसइ धम्म- सरीरु भव सणतुकुमारचरि aadar - करिह सिक्कारु त्रिमुयइ न य भुवस्सु विसारीरिहिं उप्पन्नाहिं वि ओसंहिहिं [७७२] न उण वाहिहिं विदुर-जय-जंतु - भणिउ सह सोहम्म- इंदिण | चरिउ चक्क पहु-मुणिहि भाविणं ॥ मुहतविण विविण । भावुव्विग्ग-मणेण ॥ · बहु-विहाहिं पीडिज्जमाणु वि । उवयरेइ तणु भण्णमाणु वि ॥ वाहि-विसेस - हराहिं । आमोसहि पमुहाहिं || [७७३] इय भणतह तियसनाहस्सु मणि विहिय सयल सह गुण सुणेइ त निव-सुर्णिदह । आससेण-कुल-गयण- चंदह ॥ भुवणुत्तर- सुचरियह किं पुण तिजि पुव्वुत्त सुर दो-वि अ-सदहमाण | आगय राय - रिसिहि पुरउ वेज्ज-रूबु घरमाण ८३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ नेमिनाearts [७७४] खमुहु खासह जरह अरुईए गंडमाल चाहीए सोसह । कर-कंपह रपयहं अरईए भगंदरह विउ विगच्छखणणि वि एहु सु-विणिच्छिवि मुणि वसद अम्ह वयणु पडिवज्जु ॥ पतरि परिभरि किं वाहिर रोग अह तास-वियक्किय भणहि सुर फेडिवि अहि करहुं खणिण सूल - रुजह अन्नह वि दोसह || करहुं देहु निरवज्जु । [७७५] इय परि तियस पुणुरुत्तु भणिय साहु सहिण ति - साहह । अंतरावि तुभे विसोहह || नणु मुणि वाहिर रोग । सयलि वि सज्जा लोग !! - [७७६] तयणु दाहिण -करिण परिमुसिवि निय वामह करह नवउदंसिवि त सुर मह अंतर - रोगहं तणी किं तु सहेवा पच्छह वि अज्जु ति सहउं निरुत्तु ॥ तरणि-किरण - दिपंत अंगुलि | पुरउ भणिउ मह - रिसिण - नणु सलि || एहि पुणु के तिय- मेत्तु । [७७७] अह. - महा- मुणि नूण जइ तुहुँ जि - अंतर- रोगहरु इय भगत चलणेसु निवडिवि । दु-वि साहहिं तिस र पहु-पसंस अप्पाणु पयडिवि ॥ सणतुकुमार- महारिसिहि सव्वाउ वगि । सुर घरि गंतु सुर पहुहु तवृत्तंतु कवि ॥ ७७५. ६. तो. [ ७७ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८१ ] [७७८ ] वपु रि धीरिम कट रि सरलत अरि उवस हुं हुं वयणवलिज्जिहुँ संजमह इय पुणु पुणरवि सुर-सहहं सणतुकुमार- महारिसिहिं सणतुकुमारचरि [७७९] राय - रिसि वि हु निय गहीरत मण-निरोहु निउँछणउं खंतिहिं । तवह तह य तसु ह-कंतिहि || दु-वि ति तियस जपंत । चिट्ठहिं गुण गायंत ॥ सयल - रोग निरु सम्म- करणिण । भणिय - विहिण भावइ य हियइण || अवदत्थिय-दुहि अहियासह जिणवरिण तु खलिज्जइ जलनिहि वि लहरि - भिन्न- कुलसेल | न उ पुव्वज्जिय- असुह- निय-कम्म-विवाह मेलु ॥ [ ७८० ] जिय अयाय विहिउ सयमेव त पच्छिम जम्मि हु तिण ढुक्कर्हि एउ तुड़ नासंतिर्हि विन छुट्टिय ता वलिज्जिहुँ हउं रिउहुं तसु पाव-महद्दुमह नहि लब्भंत स-कय- फलि सह-धाविर निय छाय नहि पावु कम्म-प-भारु गरुयउ । दुसह दुक्ख दंदोलि बहुयउ || निय-दुक्कय-कम्माई | समइ समुहु पत्ताहं ॥ [७८१] इय पमाइण राग-दोसेहिं मिच्छत्तिण अविरsहिं fafer जमिह य-मोह-यत्थिण | फलई लेसु जिय तुहुं स-हरियण ॥ पुरिस परम्मुह हुंति । के वि हु छ डिवि जंति ॥ ७७८. ५. क. कंतिहि. ७८०. २. क. ख. जंमि. ३. पाव. ४ टुक्कइ. ७८१.५. क. सुहुँ; ख. हु. तु ८५ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६. ने मिनाहचरिउ.. [७८२] इय विचितिरु चरणु अणुचरिवि कम्म- जणिय-गुरु-वाहि वेयण । कहिय किरिय चिर-पाव - भेयण || पुरिस चरिय सरंतु । निच्चु विहिय धरंतु || अहियासिवि पुच्च-निय परिसीलिवि सयल - जिण उसह-भरह - पमुहुत्तिमहं जिणवर- वयण - महोस हईं [७८३] सुहिण कुमरहं निव-रज्जि वि अगमिवि चक्कित्ति समणत्तणि वि परिवालेवि अहक्कमिण आय-अंति खविवि असुह गिरि-रायह सिहरन्तलि निय पावई विहडिउण सणतुकुमार-सुराल भात्रि मंडलिय वरिस सहस पन्नास पिहु पिहू | लक्खु लक्खु इय सच्चओ वि हु ॥ तिष्णिं वरिस लक्खाई । कम्म रोग दुक्खाई ॥ [७८४] t समय-नीरण गंत सम्मेय मासिएण तव कम्म- जोगिण । विहिय-सुद्धि निम्मल- विवेगिण || गयउ सु सणतुकुमारु । मह-रिसि गुरु-गुण-रत्त मणु पाविय - जी विय- सारु ॥ [७८५] तत्थ महरिह - विसय सुक्खाई [ ७८२ ! सुरनाह-सामाणियहं सुरहं उचि चिर कालु सेविवि । कम जोगिण, पुणु तउ वि निय-ठिईए पजंतु पाविवि ॥ होउ विदेहि निवंगरुह सेविय चरणायारु । सुगहि-नामु सुसज्झिहर खविय - पाव - पन्भारु ॥ . ७८३. १. क. सु and कु mixed in कुमर हे. ७८४. ७. क. सु missing. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ 1 संगंतुकुमारचरित [७८६] इय निरंतरु मणिण जिणचंदमुणिनाह-सीसुत्तिमह सुयण-सुहय-गुण-रयण-भूरिहि । सुमरंतिण अणुदिणु वि नाम-मंतु सिरिचंद-सूरिहि ॥ सिरि-हरिभद्द-मुणीसरिण विरइउ लेसिण एहु । सणतुकुमार-नराहिवह चरिउ सुकय-कुल-गेहु ॥ इति श्रीश्रीचंद्रसूरि-क्रम-कमल-भसलश्रीहरिभद्रसूरि-विरचित-श्रीमदरिष्टनेमि-चरिते श्रीसनत्कुमारचक्राधिराज-चरितं समाप्तमिति* ॥ * कै. मंगलं महा श्रीः ॥ Page #124 --------------------------------------------------------------------------  Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित गुजराती भाषांतर मलयाचलनां वनो जेनो केशपाश छे; उत्तुंग मेरुशिखर रूपी उत्तमांग ( = मस्तक ) थी जे पंकायेली छे; चंद्र ने सूर्य जेनां लोचन छे; तारकश्रेणि जेनी श्वेत दंतपंक्ति छे; गिरिराज हिमालय अने विंध्य जेनुं कठिन अने स्थूळ स्तनयुगल छे; कालिंदी नदीनो जलसमूह जेनी रोमावलि छे; स्वर्गंगाना पुलिन जेनां जघन छे; सागर जेनुं अंबर छे एवीपृथ्वीवधूने मंडित करतो, पोताना मंदराचळ वडे बाकीना बधा द्वीपोंना माहात्म्यना झळहळाटने खंडित करतो, हजारो पहाडो नगरो खाणो गामो नदीओ अने देशोथी समृद्ध एवो महान जंबूद्वीप छे. ए जंबूद्वीपमा प्रसिद्ध भरतंक्षेत्रमां - ज्यां, रात्रे चंद्रोदय थतां घरनी भींत परनां चित्रोमांनी तरुणीओ, जगद्-वल्लभ सूर्यनी अस्त थतो जाणीने भारथी द्रवित थता चित्त वाळी, चंद्रकांत मणिमांथी, स्फुरता जळप्रवाहथी भराई आवेली आंखो वाळी, जाणे के भरपूर दुःख प्रसरवाथी कंठमार्ग भराई आव्यो होय तेम, सूर्यना विरहे रड़ी रही छे; ज्यां, गिरिराज समा ऊंचा गजराजोना गंडस्थलमांथी गळता मदजळथीभोंय छंटातो होवाने लीधे, अने राजसमूहनां श्वेत छत्ररत्नो वडे (सूर्यना) तीक्ष्ण किरणोनुं निवारण थतुं होवाने लीधे सौ लोको (जेमने मनमानी वस्तु आपवामां दक्ष एवा राजवीभोए संतुष्ट कर्या छे), ग्रीष्मऋतुमां पण वर्षाऋतुने संभारता नथी— एवा ए भरतक्षेत्रमां, जेम मुक्तारत्न स-गुण ( = दोरा सहित ), कोटना (= गळाना) अलंकारमां रहेलुं, सुनिवेश (सुंदर स्थाने स्थापित ) होवाथी आनंददायक, रत्नाकर(=समुद्र)रूपी असामान्य वंशमां जन्मेलुं, अति पवित्र, पाणीदार, सज्जनना हृदय उपर विराजेलं अने हाथीने पीडाकारक होय छे, तेम तेना जेवुं हस्तिनापुर नगर हतुं, जे गुणवाळु, गढरूपी अलंकारथी युक्त, सुंदर घरोने लीधे आनंददायक, असामान्य अने उत्तम वंशानुं उद्भवस्थान, अतिपवित्र, सारा वेपारीओथी युक्त, सज्जनोनुं मन हरनाएं, उपद्रवरहित भने अमरावतीना जेवा १२ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचारत सौंदर्यथी झळहळतुं हतुं; शत्रुओए (कदी पण ) तेनी मर्यादानो भंग कर्यो न हतो, (888-886). धर्मबुद्धि वाळो होवा छतां त्यां अश्वसेन नामे राजा हतो. ते 'सूर' (= १. सूर्य, शूर) होवा छतां संताप शमावनार हतो; बहु 'दान' वाळो होवा छतां 'मद' रहित हतो; 'गयपिय' ( = १ . प्रिया रहित, २. हाथी जेने प्रिय छे तेवो) होवा छतां, पोतानी पत्नीनुं मन हरनारो हतो; 'दोषाकर' (= १. चंद्र, २. दोषसमूह) नुं खंडन करनारो होवा छतां कुमुदवनने सुंदर संतोष आपनारो हतो, ‘परार्थ-रुचि' (=१. पारकाना द्रव्यनी रुचि वालो, २. परमार्थ करवानी रुचिवाळो ) हतो, 'जलनिही' (= १. जलनिधि, २. जडतांनुं धाम ) न होवा छतां 'समुद्र' (=१. समुद्र, २. मुद्रायुक्त) हतो; बहु मानी होवा छतां अमानी ( = निरभिमान) हतो; 'सिव'नो ( = १. पार्वतीनो, २. मांगल्यनो) संग तेने प्रिय होवा छतां ते 'रुद्र' (= १. शंकर, २. उग्र ) न हतो. (४४९). ते उन्नत तेम ज नम्र हतो; ‘विउस' (=१ दूषित, २. विद्वान ) तेमज अतिशय कुलीन हतो; अति समर्थ तेम ज . क्षमाशील हतो; शीलवान तेम ज सुंदरतानुं धाम हतो; जगतना लोकोनी आंखोने सुखदायक, तेजना मोटा भंडार समो अने पृथ्वीमां साररूप हतो. (४५०). ५० · सहदेवी एवा नामे जाणीती तेनी पटराणी हती: अनुपम रूप, लावण्य अने गुणो रूपी रत्नोना विषयमां ते रोहणाचळनी भोंय समी हती; कुंदकळी समी तेनी दंतपंक्ति हती; कुवलयनी पांखडी समुं तेनुं नयनयुगल हतुं; तेणे वदनथी कमळनी कांतिने पराजित करी हती; तेनी वाणी कलहंसी अने सारसी समी मधुर हती; शरदऋतुना चंद्र समो तेनो कीर्तिकलाप (बधे) प्रसर्यो हतो. जेवी शंकरने गौरी, मुरारि (विष्णु) ने लक्ष्मी, चंद्रने तारा, देवराज इंद्रने उर्वशी, पांडवोने द्रौपदी, तथा कृष्णना पुत्र प्रद्युम्न ( = कामदेव ) ने रति अने दशरथपुत्र रामने सीता, तेवी: गुणरत्नोथी समृद्ध ते तेनी मनमानीती हती. (४५१ - ४५२). पूर्वभवना पुण्ये करीने पवित्र होईने, एक बीजा प्रत्ये असाधारण प्रेमथी अनुरक्त चित्त वाळां एवां तेमनो, धर्मने बाधा न पहोंचे ते रीते विषयसुख भोगवतां, केटलोक काळ वीत्यो.. .: कोई एक अवसरे, सहदेवी रात्रे सुखशय्यामां सूती हती त्यारे तेणे स्वप्नमां, प्राणीओने सुखरूप, गुणवंत अने मनहर एवी नीचेनी वस्तुओ पोताना मुखमां प्रवेश करती जोई : हाथी, सिंह, वृषभ, अभिषेक, चंद्र, सूर्य, ध्वज, कळश, माळा, Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित कमळसरोवर, समुद्र, विमान, रत्नसमूह अने अग्नि, एटले गभरायेला मुखे एकदम उठीने, विनयपूर्वक हाथ जोडीने, तेणे राजाने स्वप्नो कह्यां. (४५३-४५४). एटले शरदपूनमना चंद्रनो उदय थतां जेम समुद्र, मेघमाळा दृष्टिए पडतां जेम मोर, सूर्य ऊगतां जेम कमळसरोवर, कमझूड जोतां जेम राजहंसो, अने वसंतउत्सवमा जेम आंबो, तेम जेनी शोभा द्विगुणित थई छे तेवो राजा, स्वप्नोथी सूचित सद्भाग्यनुं ज्ञान थतां, केमेय अने कयांये जाणे के समातो न हतो. (४५५). पछी पृथ्वी परना चंद्र रूप ते राजा, आनंदथी गद्गद वाणी वडे पोतानी प्रिया सहदेवीनी समक्ष बोल्यो, "देवी, देव, दानव अने मानव जेना चरणकमळने नमे छे तेवा जिनेश्वर जेवू, नव निधि अने चौद उत्तम रत्नना स्वामी एवा चक्रवर्ती जेवू, त्रण जगतने सुखकारक पुत्ररत्न तने प्राप्त थशे.' (४५६). एटले जाणे के अमृतरसना कुंडमां डूबी होय, जाणे के चिंतामणि मळ्यो होय, जाणे के चक्रवर्तीनी राज्यरिद्धि पामी होय, जाणे के घरमां ज कल्पवृक्ष ऊग्यु होय, जाणे के तात्कालिक कोई उत्तम मंत्र सिद्ध थयो होय ते रीते हर्षथी विकसित मुखकमळ वाळी देवी मस्तक पर अंजलि रचीने संतोषथी वारंवार बोलवा लागी, "एम ज हो. (४५७). ए प्रमाणे एक बीजाने आनंदपूर्वक धर्मनी अने धार्मिकोनी कथाओ. कहीने ते बनेए रात्रिनो बधो शेष भाग विताव्यो. पछी अरुणोदय थतां बंदीजनो राजभवन पर आव्या. मंगळ वाजिंत्रना नाद साथे करताळ ऊंची करीने गंभीर अने हर्षयुक्त ध्वनिथी तेओ आ प्रमाणे बोलवा लाग्या, 'उदयाचळनी पासे आवी लाग्यो होवा छतां, दृष्टिगोचर न होवा छतां, पोतानो तीव्र प्रताप हजी प्रसार्यों न होवा छतां, गुणरत्नोनो समूह हजी वेयों न होवा छतां, कमळोने आनंद आपतो सूर्य, गर्भस्थ सत्पुरुषनी जेम, जगतमा प्रतिपक्षीओनुं तेज हरी ले छे, सौने संतुष्ट करे छे अने सज्जनोने हर्षथी प्लावित करे छे. (४५८-४५९). एटले देवीना स्वप्नने अनुरूप ज, जाणे के बंदीजनो भण्या एम अत्यंत हर्षपूर्वक चिंतवता राजाए, : नियुक्त करेला अधिकारीओ द्वारा, बंदीओने घणुं तुष्टिदान अपाव्यु. ते पछी शय्या-: मांथी ऊठीने हर्षथी विकसित मुखे राजाए सर्व प्रातःकर्म पताव्यु. (४६०). . . . पछी सुंदर शणगार सजीने, जेणे पोतानो दारसंग्रह सफळ कर्यो छे, अने आनंदथी. स्फुरता रोमांच वडे जेनो देह शोभे छे तेवा, कुरुवंशना उत्तम आभूषणरूप तें . Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित राजाए पोताना कर्मचारीओ पासे स्वप्नवेत्ताओने बोलाव्या, अने तेओ तरत ज आवी पहोंचतां, तेमने माटे आसन मंडाव्या. (४६१). पछी विविध प्रकारे तेमनी आगतास्वागता करीने राजाए ते स्वप्नविशारदोने देवीए जोयेलां स्वप्नो कह्यां. तेमणे पण पोताना स्वप्नशास्त्र प्रमाणे अर्थनिर्णय करीने का, 'आ शास्त्रमा स्वप्नो सामान्यतः बोंतेर कयां छे; तेमां पण त्रीश महास्वप्नोने लोकोए उत्तम गण्यां छे. तेमाये चौद स्वप्न अत्यंत प्रशस्त छे, अने तीर्थकर तथा चक्रवर्तीना जन्मना संकेतरूप ए स्वप्नो पुण्यशाळी, धन्य अने भावि सद्गतिना सुख वाळी राजराणीओने आवे छे. तेमांथी पण राणीओना मुखकमळमां प्रविष्ट सात अने चार स्वप्न वासुदेव अने कळदेवनो जन्म सूचवे छे. पूर्वोक्त स्वप्नोमाथी बाकीनां एकएक स्वप्न जोईने राजा, प्रधान, सामंत, सार्थवाह, शेठ वगेरे पुरुपरनोने जन्म आपनारीओ जागी ऊठे छे. तो, हे स्वामी, तारी राणीए जे स्वप्नसमूह जोयो तेथी तमने आखा जगतथी चडियातो एवो कोईक विशिष्ट पुत्र थशे.' (४६२-४६४). एटले 'ए वरावर' एम राजाए स्वप्नविशारदोना बधां वचन अभिनंदित करीने, पोताना कर्मचारीओ द्वारा पछी वधा स्वप्नपाठकोने पोतपोताने स्थाने पाछा जवानी रजा मापीने पोतानी प्रियाने विशेषरूपे स्वप्नपाठकोए कहेली स्वप्नोनी वात कही. (४६५). पछी राजानां वचन सांभळीने, देहलता संतोपामृतनी वर्षाथी सिंचाई होय तेम, देवी अतिशय रोमांच प्रगट करती हर्प भने अनुनय साथे कहेवा लागी, 'देवनां अने गुरुनां चरणोनी कृपाथी मने एम ज थाओ, एम ज थाओ, जेथी हुं आ भवमा तेम ज. परभवमां बधां सुखोनो आवास बनूं.' (४६६). ते पळी पुत्रनु उत्तम रत्न समुं मुख जोवाना सुखनी तृष्णा वाळी देवीए अनेक देवोनी लाखो मानताओ मानी, जिनेवरनां चरणकमळने पूज्यां, गुरुजनोनां चरण आराध्यां, सेंकडो मोसड पीधां, पोताना गर्भना विघ्ननिवारण माटे अनेक रक्षाओ करी. पछी पृथ्वी परना चंद्र रूप राजाए आनंदपूर्वक जेनुं दोहद पूर्यु छ तेवी तेणे क्रमे क्रमे पूरा दिवसो विताव्या. पछी ते देवीए, अत्यंत शुभ दिवसे, वधा दोपथी मुक्त एवा समये, बधा गुण अने लक्षणरूपी रत्नोना निधान, जेणे विधिओर्नु विज्ञान प्रगट कयु छ तेवा, जगतने मानंदकारक पुत्ररत्नने जन्म आप्यो. (४६७-४६८). एटले ब्राह्मणो अने वटुको वेद पाट करवा लाग्या, गायको गावा लाग्या, बंदीमोने दान देवावा लाग्यां मांग.... लिक विधि थवा लाग्यो, अनेक वाजितना समूह वागवा लाग्या. राजाए पुत्रनुं 'सनाकुमार' प, धराधर महिननी (समग्र) धरतीना लोकोने माटे उत्तम Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित ९३. सुखोना निधिरूप, नाम पाड्युं. (४६९). आथी राजाना हृदयमां प्रमोद थयो, देवीनुं मन आनंदित थयुं, पृथ्वी परना सज्जनोने घणो हर्ष थयो, बंदी लोकोने परितोष थयो, विद्वानो तुष्ट थया, दुर्जनो अत्यंत डरी गया. अथवा तो (कहोने के) कुमारना नामनुं श्रवण करीने समग्र धरती, भावी महान उदयथी अत्यंत हर्ष घरवा लागी. (४७० ). पर्वतनी कंदरामां सिंहकिशोरनी जेम जेनी गतिने कोई अवरोध नथी तेवो कुमार क्रमे क्रमे कीर्ति प्राप्त करतो, मित्रो अने स्वजनोने आनंदित करतो, दुर्जनोनां मनभंग करतो, आठ वर्षनो थयो . ते वीरोना हृदयने संतोष आपतो हतो, सुभटोनी वातो सांभळीने उल्लसित थतो हतो, उत्तम पुरुषोनां चरित्र सुणतो हतो अने विद्वानोनी सभामां ठरतो हतो. (४७१). दिवस अने मुहूर्त जोईनें एटले अति प्रसन्न चित्ते थोडाक ज दिवसोमां समस्त पूनमना चंद्रनी जेम पोतानी ते पछी राजाए मोटा उत्सव साथे मांगलिक आनंदपूर्वक ते उत्तम कुमारने उपाध्यायनी पासे मूक्यो. अनेक गुणोना आश्रयरूप एवा कलाचार्ये कुमारने कलासागरनी पार पहोंचाड्यो. (४७२). परिणामे, ज्योत्स्नाना व्यापथी जगतना अंतराळने भरी देनार, निर्मळ कलाओनो निलय, गंभीरतामां सागर, स्थिरतामां धरती, ऊंचाईमां हिमालय एवो कुमार सज्जनोथी सेवातो, बुद्धिमानोथी वखाणातो, आखा जगतमां पोताना गुणोए करीने प्रसिद्ध थयो. (४७३). वळी तेनी साथे एक ज समये जन्मेलो, साथै ज धूळमां रमेलो, साथे ज जेणे गुणानां रत्नाभूषण प्राप्त कर्या छे तेवो, साधे ज कीर्तिमान बनेलो, साथै ज शत्रुओने परास्त करनारो, समसुखियो अने समदुखियो, समान रूपश्री धरावतो, सथोसाथ ज जुवान थयेलो, समानशील, तेनी जेम ज मित्रो अने सज्जनोने सुखदाता, साथै ज रमतगमतमां भळतो, शूर राजाना चरण सेवतो, कालिंदी देवीनो पुत्र, सज्जनोने सुंदर आनंद आपतो, बाल्यवयमां पण वृद्धसमो, पूर्वजो प्रत्येना. आदरथी शोभतो, परस्त्रीनी कामनाथी रहित, एवो तेनो बालसखा, नाम प्रमाणे ज प्रकट स्वरूप धरावतो, महेन्द्रसिंह नामे हतो. (४७४-७५). ए प्रमाणे अतिशय लावण्यथी विलसता, भरजोबनथी थनगनता, प्रचंड शत्रुनुं खंडन करता, मित्रो ने स्वजनोने संतुष्ट करता, दुर्जनोनो ध्वंस करता, दृढ प्रतिज्ञा वाळा, Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ &&& सनत्कुमारचरित प्रौढ सुंदरीओना मानरूपी महान वृक्ष कापवामां कुठार समा, ते बने राजकुमारो अत्यन्त गौरवथी पृथ्वीमां विहरवा लाग्या. (४७६). ९४ आ रीते तेओ आनंदप्रमोद करता हता तेवामां कोई एक समये वसंतोत्सव आवी पहोंच्यो. ते समये विरहीजनोने अतिशय पीडता सहकार वृक्षो मोजथी मंजरीओनो शणगार सजवा लाग्यां. मलयानिलनी साथसाथ प्रसरता भ्रमरोना घेरा गुंजारव परदेश जवाने आतुर एवा प्रवासीओने निवारवा लाग्या . ( ४७७ ). वृक्षटोचे बैठेली, आम्रमंजरीना भक्षणथी हर्षित बनेली कोयल मदनराजानो राज्याभिषेक थयानी घोषणा त्रिभुवनमां मधुर वे करवा लागी. "पेलो अभागियो शिशिर ओ गयो - वसंतना दिवसो तेनो कोळियो करी गया !" एम, विकसित थयेला कुमुदरूपी मुख वडे कुमुदिनीरूपी तरुणोओ हसी ऊठी. (४७८) शीत आसव खूब पीधो होय तेम बकुलवृक्षोनुं झुंड धूणतुं हतुं; रतूमडी कान्ति धरता आंबाओ पण सोहामणा लागता हता- तेओ जाणे के अंदर न समातो 'राग' बहार उभरातो दर्शावता हता. तो तरुलता पवनना हळवा झोलाथी फरकता किसलयरूपी करोना अभिनय द्वारा, भ्रमरना गुंजारवरूपी गीत साथे लास्यनृत्य प्रकट करती हती. (४७९). जेम कोई विचित्र, अतिशय स्निग्ध, रसिक अने भोगीओना संसर्गथी प्रख्यात बनेली एवी कृशांगी गणिका सौना हृदयने संतुष्ट करे, ते प्रमाणे गौशीर्षचंदनतरुनी लता के जे अतिशय स्निग्ध, पातळी, लीली अने सर्पना संसर्गनी ख्याति वाळी हती ते सौना हृदयने संतुष्ट करती हती. आम आवो वसंतोत्सव ज्यारे वनराजीमां प्रसर्यो अने ते सकळ पृथ्वीमां तेमज अश्वसेन राजामां अनंद प्रगटाववा लाग्यो ( ४८० ) ; त्यारे अंगे असामान्य शणगार सजीने ते बंने उत्तम कुमारो पोताना खास परिजन साथै, मित्रो अने स्वज्जनोने प्रसन्न करता, हर्षपूर्वक नगरना उद्यान तरफ ऊपडया. थोडी क्षणमां जमन अने पवन जेवी गति वाळा अश्वरत्नो वडे, बंदीलोकोना स्तुतिपाठ साथे, तेओ पोताना नगरना उपवनमां आवी पहोंच्या. (४८१). ते पछी तेओ फळ, फूल अने पत्रथी लचतां चंपा, सुंदर आंबा, नाळियेरी, अशोक, चंदन वगेरे भातभातनां वृक्षोनी वसंतश्री नीरखवा लाग्या. ते वेळाए महाराजाने वशवर्ती एवा सनत्कुमारे प्रफुल्लित वदने महेन्द्रसिंहने आ प्रमाणे सहर्ष क. (४८२), 'मलयानिलनी लहरी अथडातां जेम नीलकमळनी पांखडी फरके, तेम मारी जमणी Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित आंख फरके छे. तेथी हुं मानुं हुं के कोई मनगमता माणसनुं दर्शन हाथवंतमां छे'. ए पछी पोताना मित्र वडे आ वातनुं समर्थन पामेलो सनत्कुमार ज्यां अनेक प्रकारना मांगलिक विधि : थता हता तेवा मदनमंदिरने द्वारे पहोंच्यो. (४८३). ९५ ते वेळाए शणगार संजीने अने अनेक सखीओोथी वींटळाईने, कान्तिथी स्फुरता सुंदर सर्वांग बाळी, लालित्यथी इन्द्रने पण क्षुब्ध करती, जोवा मात्रथी ज तरुणीने उत्तप्त करीने तेमनो विवेक हरती एवी एक नितंबिनीने अश्वसेन राजाना कुमारे मालतीनां पुष्पो चंटती जोई. ( ४८४ ). 'हे मालती, कुसुमोथी समृद्ध आ उत्तम लताओनी बच्चे तुं ज खरेखर जन्मी छे, जेने आ तरुणीरत्नना हाथना स्पर्शनुं फळ प्राप्त थयुं छे' - ए प्रमाणे चिंतावता, अने अनिमिष नयने एकध्यान जोता : कुमारनी प्रत्ये पेलीए पण अनुरागपूर्ण दृष्टिपात कर्यो (४८५), अने ते पछी ते पोतानी सखीओ समक्ष बोली, "आ कोई 'नवल्ल' लागे. छे." एटले एक सखीए सहेज हसीने कछु, 'हुं तने समज पाहुं : ए 'वल्ल' नथी ज. ए तो छे आ पृथ्वीना तिलकरूप'. एटले बीजीए कहुं, 'सखीओ, तमे मारुं कहेवुं पण सांभळा: जेने आपणी प्रिय सखीए जोयो छे ते आ 'अशोक' छे एम ज समजो .' (४८६) तो वळी बीजी एक के जे बोलवामां विचक्षण हती तेणें पोतानी सखीनुं हृदय समजी जईने कयुं, 'तमे कशुं जाणती नथी. आ तो अमारी प्रिय सखीए अत्यंत भक्तिपूर्वक जे प्रकट पूजाविधि करी छे तेनो स्वीकार करवा माटे साक्षात् अनंग ज सर्वांगे पुलकित थतो प्रगट थयो छे (४८७), माटे जल्दी जलदी प्रिय सखी पोताने हाथे भक्तिपूर्वक पुष्कळ कपूर, कस्तूरी, अगर अने चंदननो लेप, फळ अने सुगंधी फूलमाळा वडे कामदेवनी पूजाविधि करे जेथी करीने भगवान मदन तेने शीघ्र फळे - मनमान्युं वरदान आपे . ' ( ४८८). 1 • आ बधुं साचुं छे एम समजीने जेनुं वदनकमळ प्रफुल्लित थयुं छे तेवी ते बाला मदननी पूजासामग्री लईने, कुमारनी पासे जईने, पोताना हाथमां कमळमाळ लईने, विस्मित थता मन वाळा एवा तेना कोमळ कंठमां ते आरोपीने, हरिचंदन वडे तेना वक्षःस्थळ : पर लेप करीने, भक्तिपूर्वक तेना चरणकमळमां नमीने, तथा पोताना मस्तक पर अंजलि धरीने बोली, 'हे प्रणयीजनवत्सल मदन, जे रीते मारा उपर निर्मळ करुणा करीने तुं स्वयं प्रगट थयो, ते ज रीते नुं अत्यारे प्रसन्न था अने मने मनमान्युं वरदान आप केम के महान लोको जे कार्य माथे ले छे ते असाध्य होय तो पण सिद्ध थाय छे.' (४८९ - ४९०) ते वेळा, 'शुं पूर्वे आ (स्त्रीरत्न) न 1 " Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ सनत्कुमारचरित . हतुं ? जो हतुं तो शु में न जोयुं ? जो जोयुं तो शुं चित्ते न चडयुं ? जो चित्ते चंडयु तो बीजा कशा बलवत्तर कारणे ते मनमाथी नीकळी गयुं ? केम के देव, दानव, मानव अने विद्याधरने पण हर्ष करवाने समर्थ आना जेवो बीजो कोई सुंदर .. संदर्भ विधाताए रच्यो नथी. (४९१). वळी जेणे विष्णुने श्रीपति निर्माण कयों, कामदेवने रतिपति, इन्द्रने उर्वशीपति, रामदेवने सीतापति, चंद्रने तारापति, तेणे ते बधु, हुं मार्नु छ के अवश्य आq स्त्रीरत्न निर्माण करवानी आतुरता हृदयमां धरीने, ते माटे अभ्यास करवा निमित्ते ज प्रवृत्ति करी छे' (8)(४९२)-आ प्रमाणे विचार करता अने हर्षथी रोमांचित थता कुमार प्रत्ये महेन्द्र सहेज हसीने कह्यु, 'त्रिभुवनना विजेता तरीके बंदीओ जेनुं कीर्तिगान करे छे तेवा हे स्वामी कामदेव, आ गजगामिनी, चंद्रमुखी, कोकिलस्वरी सुंदरीने तुं मनमान्यु वरदान केम आपतो नथी ? (४९३). ... .. : एटले मन, वचन अने काया उपर प्रबळ संयम राख्या छतां उत्तम तरुणीना करस्पर्शथी थयेला हर्षने कारणे जे अतिशय रोमांचित थयो छे तेवा कुमारने पोताना मित्रना वचनथी मधुर हास्य प्रगटयुं, अघरोष्ठ फरक्यो, वदन प्रफुल्लित थयु, नयन विकस्यां अने दांतनी आभाथी जाणे के भुवन श्वेत बन्यु. (४९४): एटले, 'अरे, आ शुं ?' ए प्रमाणे विचारती अने अत्यंत गभराटथी जेना हाथ, पग भने होठ कंपवा लाग्या छे तेवी ते कुमारी द्विगुणित बनेली मुखशोभा साथे थोडीक क्षण ज्यां ऊभी रही, त्यां तो ऊंचा हाथ करीने एक बंदीए कुमार समक्ष अवसरयोग्य स्तुतिपाठ कर्यो, 'हे प्रभु, एकचित्ते सांभळो. अत्यारे मूंड खाबोचियामांना चीया वडे, हाथीनुं झूड पोतानी सूंढथी उछाळेला फोरांओ वडे, तो हरणोनुं टोळं धीमे धीमे वागोळता मुखे क्याराओमां बेसीने तापने हठावी रह्यां छे. तापनी शांतिने अर्थे बंने भुजंग प्रियाना वदन- ( वदनने प्रिय) सरस चंदन सेवे छे. तथा तप्त अंगवाळा प्रवासीओ तरुछायानो आशरो ले छे.' (४९६). एटले सूर्य माथे आव्यो जाणीने पोतानी सखीओ साथे कुमारी, देहमात्रथी भने शून्य चित्ते, जेमतेम करीने पोताना घर तरफ चाली. कुमार पण धणे लांबे समये प्राप्त थयेली राज्यलक्ष्मी जाणे के हाथमांथी सरी गई होय तेम, मन, वचन अने कायाथी पहाड जेवो जड बनी जई क्षणेक त्यां ऊभो रह्यो. (४९७). .. . · पछी महेन्द्रसिंहना कहेवाथी कुमार ते उद्यानमांथी केमे करीने मात्र देह वडे पोताना आवासमां पहोंच्यो. आखा जगतना वस्तुसमूहने तणखला सम (निःसार) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित लेखतो ते जेमतेम शरीर टकावी रह्यो. बीजा कोईने अंदर प्रवेशवानो निषेध करीने ते पेली तरुणीनी समग्र लीलानुं ज स्मरण करतो रह्यो. (४९८). वळी कमळनां चंचळ दळ समान नेत्रो वाळी, गजगामिनी, कलहंसना जेवी मधुरभाषिणी, पूर्णचंद्रमुखी, अनन्य विभ्रमवती एवी ते सुंदरीने कामातुर थईने क्षणे क्षणे संभारतुं तेनुं मन, विवेकरहित थईने, घडीक मोह, घडीक विस्मय तो घडीक आनन्द अनुभववा लाग्यु. (४९९). पछी कुमारनो आ वृत्तांत सांभळीने बीजुं कामकाज छोडी दई तेनो मित्र तरत ज त्यां आवी पहोंच्यो अने कहेवा लाग्यो, 'हे स्वामी, तमारा शरीरनी आवी अवस्थानुं शुं कारण छे ते कृपा करीने कहो.' एटले लांबा, ऊना निःश्वासथी जेनो कोमळ अधर सुकाई गयो छे तेवा कुमारे कडं, "मारो पूर्ववृत्तांत तारी पासे खुल्लो छे.. (५००). ते मृगाक्षीनी वात सांभळवाने उत्कंठित थयेलं मारुं मन तेना श्रवणयुगलनी निकटता इच्छे छे, तेना लोचननी मित्रता इच्छे छे, तेनी रूपश्रोने निहाळवा इच्छे छे. आ हताश हैइं तेना संगमनी आशामां उतावळे आगळ ने आगळ दोडचु जाय छे अने केमेय वायुं रहेतुं नथी, (५०१). एटले मित्रे तेने कडं, 'हे स्वामी, चालो आपणे ते ज उद्यानमां जइए. पोताना रूप वडे जगतनी तरुणीओने जीतनारी ते सुन्दरांगी भाग्ययोगे त्यां आवी पण होय'. एटले वहेली सवारे ऊठीने केवळ पोताना मित्रना ज साथमां कुमार, सुंदरीनुं दर्शन झंखतो, उद्यानमा गयो. (५०२). पछी त्यां पहोंचतां ते बोल्यो, “हे भाई, तुं जो तो खरो. आ ए ज मदनमंदिर छे, आ ए ज रत्नभूमि छे, आ ए ज मारा सहोदर समुं अशोकवृक्ष छे. आ मलयानिल पण ए ज छे, जे ते चंद्रमुखी पासे हती त्यारे सुंदर लागतो हतो. पण ते बालानो दुःसह वियोग थतां जे हवे प्रलयानिलथी पण चडी जाय छे. (५०३). ए प्रमाणे दीर्घ निःश्वास नाखता, विरहदुःखथी घेरायेला, करुण विलाप करता कुमारने पोतानां अंगो फरकवाथी कार्य सिद्ध थवानुं जेने सूचन मन्यु छे तेवा मित्रे कां, “हे स्वामी, तुं प्राकृत जननी जेम खिन्न शा माटे थाय छे ? ए कार्य माटे हुं आखी रात ने दिवस मथीश. (५०४). तो मने आदेश आप. जेनुं हृदय मारा स्वामीना दृढ गुणोथी आकर्षायुं छे तेवी ते स्वामीना चित्तरत्ननी चोरटीने हुं पाताळमांथी, पृथ्वीतल उपरथी के आकाशमांथी रमत मात्रमा पकडीने दृष्टिगोचर करी दईश; नहीं तो, आ पृथ्वी पर हु माझं नाम पण नहीं धारण कर." (५०५). ए प्रमाणे जेमतेम करीने कुमारने मदनमंदिरना आंग Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित णामां राखी, तेनो आदेश प्राप्त करीने ते पेली तरुणीनी शोधमां जेवो नीकळ्यो, तेवी ज तेणे ते ज गोरीनो चंद्रमुखी सखीने सामे जोई-तेणे पुरुपनो वेश पहेर्यो हतो, अने विकसित नेत्रे, लतओने पडछे ते जई रही हती. (५०६). एटले महेन्द्रसिंह कुमारे तेने बोलावी, 'हे सुतनु, मने कहे, आ शु वात छे ? तें जेनी वात पण न थई शके तेवो आ पुरुषवेश पहेरेलो देखाय छे.' एटले ते गोरी पासे आवी, हसीने कहेवा लागी, 'हे सज्जन, तुं एकचित्त थईने मारो वृत्तांत सांभळ. (५०७). आगले दिवसे आ ज उद्यानमां मारी सखी अद्भुत शणगार सजीने मदनपूजा माटे आवी हती. ते वेळा तेणे मदनमंदिरना द्वार पर, भुवनना शिरोमणिरूप कोईक एवा नररत्नने जोयुं जेणे पोताना रूपथी कामदेव, देवेन्द्र अने विष्णुने पण जीती लीधा हता. (५०८). ते पछी, तेना हृदयनो भाव जाणी गयेली सखीओना कहेवाथी तेणे तेने भूलथी मदन समजी लईने तेनी पूजा करी. मारी मुग्ध सखीए पोताने हाथे तेनां बधां अंगोपांग उपर चंदननु विलेपन कयु. एटले तेना अतिकोमळ अने विरल हस्तस्पर्शथी तेनुं अंग तरत ज आकुळ थयु. (५०९). " हे सुतनु, हवे घणो समय थई गयो, तो आपणे जइए", ए प्रमाणे सखीओए कह्यु एटले ते मुग्धा जेमतेम करीने शून्य चित्ते मात्र पोताना देह वडे ज ते उद्यानमाथी पोताना आवासमां पहोंची. ते पछी, जेने लाग मळ्यो छे तेवा कामदेवे ते बाळाने एवं आलिंगन दी) जेने परिणामे तेनी दशा अत्यंत विकराळ बनी गई. (५१०). एटले तरत ज तेनी पासे पहोंची जईने सखीओए पहेली रात्रे चंद्र ऊगतां अने मलयानिल वातां जेनो विरहाग्नि सळगी ऊठयो छे तेवी ते मुग्धाने लई जईने मणिमय फरसबंध उपर करेली कमळनी पथारीमा सुवाडी. एटले तो एनो विरहताप एटलो गाढ थयो के जाणे तेने प्रलयना अग्निमां फेंकी होय ! (५११). "मा पथारो शुं सूर्य किरणोनी बनावेली छे, अथवा तो ते वडवानलमांथी उत्पन्न थई छे, के पछी कल्पांत समयना अग्निमांथी प्रगटी छे, अथवा तो वीजळीमांथी तेनुं निर्माण थयु छे, के पछी वाग्निमांथी ते उद्भवी छे ? अमराईनी मंजरीओने अथडाईने वही आवतो मलयपवन पण देह दझाडतो मारो विवेक हरी ले छे. (५१२). कमळपांखडी छायेली शैय्या अडायाना अग्निनी बनेली लागे छे. चंद्रकिरणो पण बाणने टपी जाय . अगे लगाडेलो गोशीर्षचंदननो रस जाणे के अग्निने पण शोषी ले तेवो छे”.. ए प्रमाणे जेनो वधो विवेक गळी गयो छे तेवी, वारंवार विलाप करतो, घडीक हसती, घडीक भमती तेने में सवार थतां आ प्रमाणे कयु (५१३), "वहाली, Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९ सनत्कुमारचरित सखी, तुं केम धैर्य तजीने आम वर्ती रही छे 'कशो पण उद्यम केम करती नथी, जेथी करीने हुं ते ज अनुपम कामदेवने मारा हाथे पकडी लावीने तने बतावुं ?" एटले, एनी वात सांभळतां जेनुं चेतन कांईक पालुं वळ्युं छे एवी ते बाळा मारी साथै अहीं उद्यानमा आवी पहोंची. (५१४). ते पछी मदनमंदिरमां तपास करी,, आखुं उद्यान जोई वळीने ते बाळाए ज्यारे पेला कामदेवने कयांये न जोयो, त्यारे सविशेष प्रजळता विरहाग्निथी त्रासेली ते असहाय बनी, कदळीमंडपमां जईने पडी अने जेम - तेम करीने मारी समक्ष तूटक वचनो बोलवा लागी, (५१५ ) " हे सखी, तुं ए कामदेवनो वेश धारण करीने मारी समक्ष आव, जेथी ए विनोद वडे हुं कांईक आश्वासन मेळवु . " में ए प्रमाणे जेवु कर्यु तेवो जतुं भाग्ययोगे मने अहीं मळ्यो. एटले जो आवी परिस्थितिमां केमेय करीने ए सुभग अहीं आवी लागे तो हुं अधन्य होवा छतां मारी जातने अतिशय धन्य मानीश' (५१६ ). एज वेळा. मदनमंदिरमां कशुं सुख न मलतां कुमार भमतो भमतो त्यां ज आवी पहोंच्यो. विस्मयथी विकसित मने तेणे पेलां बनेनी वातो सांभळीने कहुँ, 'हे विशाळनेत्रा, तुं मारो पोशाक पहेरीने अहीं ज रहे, तारा छद्मस्वरूपे हुं त्यां जईने ते मृगाक्षीने मळु.' (५१७). एटले पेला बनेए ताळी पाडीने हसतां हसतां कहुं, "सरस, सरस." विकसता वदनकमळ साथे कुमार ते हरिणाक्षीनी पासे पहोंच्यो. उत्ताप पामेली ते गोरी नीचे मुखे ऊभी हती. तेने आलिंगन दईने, चूमीने कुमारे कछु (५१८), “ हे सुतनु, आगले दिवसे तें शुद्धबुद्धिथी कुसुमसमूह तथा हरिचंदनना लेप वडे मारुं अंग पूज्युं अने शुद्धभावे मधुर अक्षरना ध्वनि साथे मारी समक्ष स्तुतिपाठ कर्यो, तेथी में जाणे के सुधारसनुं पान कर्यु, जाणे के मारो परम उदय थयो, अने कल्पवृक्षना छोडनी जेम मने हर्षथी रोमांचना अंकुर फूट्या. (५१९). तो पंछी आजे हे चंद्रमुखी, हे मानिनी, तुं कृपा करीने वाणीथी पण केम मारो सत्कार करती नथी, अने धरती पर दृष्टि खोडीने हे कलहंसनी गतिवाली, तुं केम खडी रही छे ?" एटले पोतानी जमणी भुजलता ते सुभगना स्कंध पर मूकीने ते मुग्धा बोली हँ, हँ, मधुरभाषी, में तारो शुद्ध स्नेह जाण्यो ! (५२० ). हे सुभग, तारा वियोगे मारुं शरीर विरहाग्निमां तप्युं, अने जीवननो अंत आणे एवं भारे दुःख हुं पामी; पण हे सुंदर, तारा संपर्कमां तो बीजी लाखो रमणीओ रमती हशे." एटले कुमारे गराईने ते चंद्रमुखीने भुजपाशमां बांधी लई, वक्षःस्थळ साथे भीडीने रसिक वचनो कह्यां (५२१), "हे सुंदरी, मारी पासे अनेक सुंदर नेत्रो वाळी स्त्रीओ होवा छतां मारे माटे अमृतनुं Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सनत्कुमारचरित पान पण नोरस, चंदननो रस पण अतिशय उष्ण, मलयपवन पण शरीरनो दाहक, चंद्रनां किरणो अडायानी आगथी पण बदतर अने मोतीना हार तरवारथी पण वधु तीक्ष्ण बनी गयां हतां (५२२). पण हवे त्रिभुवनना तिलक समा तारा देहसंगरूपी अमृतरसना प्रवाहथी सींचायेला मने, बीजी वधी सुंदरीओना साथ विना पण एनी ए वधी चीजो परम सुखप्रद लागे छे. तो हे विशालाक्षी, तुं तारी स्नेहपूर्ण दृष्टिथी मारो सत्कार कर, अने मारा उपर तलना फोतराना त्रीजा भाग जेटलो पण रोप न करीश." (५२३). एटले 'मारा प्रेमीनो वेश पहेरेली आ मारी सखी ज छे' ए प्रमाणे निःशकपणे धारती, कामने उद्दीपित करनारी ते बाळाने पोताना अंकमां स्थापीने, हाथ वडे जधन, स्तन ने मुखर्नु पूरेपूरु स्पर्शसुख पामीने, सर्वागे आलिंगीने कुमारे तेने स्नेहपूर्वक वाम लोचन उपर निर्भर चुंबन कयु. (५२४). ते वेळा तेना पिता तरफथी मोकलायेलो कोई विशिष्ट पुरुष उतावळे तेनी नजीकमां आवी पहोंच्यो, अने अत्यंत हर्पथी रोमांचित शरीर वाळो ते गभीर स्वरे सूरराजाना कुमार (महेंद्रसिंहने) कहेवा लाग्यो, “महाराजाए कुमारनी पासे मने मोकल्यो एटले हुं आपनी समक्ष उपस्थित थयो र्छ. (५२५). जेना चरणमां चोल अने सिंहलना राजाओ नमे छे, जे चेदिराजने चिंतानुं कारण छे, जेणे कलिंग, वंग अने अंगना राजाओने जीत्या छ, लाटनो राजा जेनी सेवा करे छे, जे साची राजनीतिनो सलाहकार छे एवो कुमारभृत्य भोजराजनो पुत्र वीजा राजवीओ सहित राजमहेलमा आवी पहोंच्यो छे.” (५२६). ए प्रमाणे सांभळीने कुमार जेमतेम करीने कदळीमंडपमांथी ज्यां बहार नीकळतो हतो, त्यां ते भोजराजानो पुत्र पोते ज तेनी पासे आवी पहोंच्यो, अने तेणे नमीने कुमारने एक जगविख्यात अश्वरत्न भेट धयु. ते अश्व जलधिकल्लोल नामे जाणीतो हतो, उत्तम लक्षणो वाळो, अतिचंचळ, अने आखा भुवनमां गति करवामां सूर्यना रथना घोडाओने पण वेगमां जीती जाय तेवो हतो. (५२७). ऊंचाईमां ते एंशी आंगळ, विस्तारमा नव्वाणु अने लंबाईमां एक सो आठ हतो. कान, जानु अने ग्वरीनो विस्तार चार आंगळ हतो, तेनु उन्नत मस्तक बत्रीश हतु, भुजदंड वीश अन जंघा-सोळ आंगळ ह्ती. एन पीठनु माळा गूढ हतुं. (५२८). कान पातळा अने लांबा हता, कपाळ चोरस अने विस्तीर्ण हतुं. मुख कुटिल, कटग अने मांस वगरने हतुं. आंखो स्थिर अने सांकडी, नसकोगं चंचळ अने फाफडतां हता. तेना पहोंचा एकसरखा अनं सुघटित हता, पेट पातलु हतुं, Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १०१ जांघ लांबी हती, सुललित चमत्कृत पुलित अने वल्गित गतिओ ए निर्विघ्ने करी । शकतो हतो (५२९), तेना सर्वांगे वन, मरकत, पुलक, वैडूर्य, चंद्रकान्त, सूर्यकान्त, इंद्रकान्त वगेरे रत्नोथी चमकतां आभरणोनी शोभा हती. 'खरेखर पोताना गुणोथी आ आखा जगतने पण ओळगी जई शके तेम छे ए चोक्कस बात छे.” (५३०) ए प्रमाणे विचारीने, ते जलधिकल्लोल नामना उत्तम अश्व पर चढीने, त्यां आवी पहोचेला अनेक राजकुमारोनी समक्ष कुमारे हर्षमां आवीने कडं, "चालो जोईए, घोडदोडमां कोण कोने जीते छ,” अने बीजा अनेक कुमारोना घोडा साथे कुमारे पोतानो घोडो पण वेगपूर्वक छुटो मूक्यो. (५३१). ____एटले मन अने पवनथी पण वेगीलो जलधिकल्लोल दोडतां दोडतां अर्धी क्षणमा ज धरतीनो सारो एवो भाग ओळंगी गयो. वीजा बधा राजकुमारो "ओ आवे, ओ जाय, ओ दूर क्यांये पहोंच्यो, अरे ओ देखातो पण नथी" ए प्रमाणे वधती जती चिंताना भार साथे क्यांय सुधी कुमार माटे विलापवचन बोलता रह्या. (५३२). एटले, जेने पुत्रनुं पहेलवहेलु विरहदुःख उत्पन्न थयुं छे एवो सर्व शत्रुओने कष्टकर अश्वसेन राजा पूर्वोक्त वृत्तांत सांभळीने पोतानी चतुरंग सेना साथे मानअभिमान बाजुए मूकी, करमायेला मुखकमळे, पृथ्वीना मोटा प्रदेश उपर फरी वळ्यो. (५३३). एवे . समये छत्रना दंड भांगी नाखता, वृक्षोने उखेडता, पर्वतोना सर्व शिखरो तोडता, घरो पाडता, धूळ उछाळीने धरती खोदता, जगतना लोकोनी आंखोने आंधळी करता, प्रलयपवन जेवा प्रबळ झंझावाते राजानी सेनाने छिन्न-भिन्न करी नाखी. (५३४). एवी स्थितिमां शूर राजाना पुत्रे (महेन्द्रसिंहे) महाराजाने कह्यु, 'हे महाराज, जेमा असामान्य समृद्धि प्राप्त थवानी छे तेवी भावी कार्यसिद्धिनी हुं तने निश्चयपूर्वक वधामणी आपुं छं. माटे कृपा करीने तुं पाछो वळ. केम के आ संसारमा अंधकारनो जथ्थो गमे तटलो फेलाय तो पण सूर्यकिरणो ज तेनो नाश करे छे. तने विश्वास न होय तो आकाशनी सामे जो'. (५३५). ए प्रमाणे चमत्कारयुक्त उत्तम वचनो वडे वीनवी, अश्वसेन राजाने जेमतेम करी पाछो वाळीने, शूर राजानो कुमार जे दिशामां सनत्कुमार गयो हतो ते दिशा नोंधीने ऊपडयो. बीजा बधा लोको क्रमे क्रमे पोतपोताने स्थाने पहोंची गया, त्यारे एक शूर राजानो कुमार मात्र पोताना बाहुबळनो साथ लईने पृथ्वी पर भमवा लाग्यो. (५३६). ते सरोवर, कूवा अने गुफाओमां पेसतो, पर्वतनां शिखरो उपर चडतो, वारंवार नगरोमां प्रवेशतो अने पोताना मित्रना गुणो मनमां धरीने जंगलोमां दोडादोड Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित करतो. फळ, फूल, कंद अने पांदडांथी ते शरीरने टकावी राखतो. मार्गमांना राजाओ तेनो गमे तेटलो सारो सत्कार करता तो पण तेनुं मन तेमां राचतुं नहीं. (५३७). क्रमे क्रमे, दिन प्रतिदिन चारे तरफ फरतां ते अकस्मात् क्रूर रानी पशुओथी भयंकर एवी घोर अटवीमां आवी पहोंच्यो. भद्र जातिना अनेक हाथीओनी गर्जना सांभळीने 'गुं नरोत्तम सनत्कुमारनो आ गंभीर ध्वनि तो नहीं होय ?' ए प्रमाणे विचारीने ते मूटीओ वाळीने तेमनी सामे दोडतो. (५३८). ए रीते चमरी गाय, केसरी सिंह, वाघ, दीपडा, जंगली हाथी, सरभ, वानर, हरण, नोविया अने कलहंसनी वसति वाळी तथा मोटा मोटा झाडो, पहाडो, जंगलो विशाळ नदीओ अने सरोवरोथी भरपूर एत्री पृथ्वी पर ते रखडतो हतो, त्यां एक वार जेमां विरही पोताना प्रियजनना गुणो स्मरीने झूरे छे एवी, (५३९). कष्टकारक वसंतऋतु आवी पहोंची. वृक्षोना उत्तम पुप्पोना रस अने परिमलथी जेणे आखा पृथ्वीमंडळने, गिरिगुफाओने अने आकाशने भरपूर कर्या छे, आम्रमंजरीनो रज प्रसरवाथी ऊपजेला रातापीळा रंगने कारणे जे मनोहर लागे छे, किम्पाक वृक्षना परागथी जेणे दिशाभो भरी दीधी छे तेवो, वसंतना ध्वज समो, मलयपवन लोकोना हृदयने विकळ करी दे छे. (५४०). भ्रमरोना गुंजारव प्रवासीओने तप्त करे छे, कोयलनो टहुकार दाह करे छे, केसूडा अने अशोक खेद उपजावे छे, विचकिल, मालती, वकुल अने करेण अतिशय दुःख दे छे. रोपे भगयेला विधाताए प्रवासीओ माटे जाणे के फांसाओ न गोठव्या होय ए रीते वसंत वर्ते छे. आ हताश वसंत कोनो मुखेथी वीतशे ? (५४१) पर्वतोना प्रचंड जंगलोमां सळगता दावानळने साथ आपीने जेणे जगतने संताप्यु छे, जेणे पृथ्वीमंडळनां वाव, कूवा, नदीने सरोवरने सूकवी नाख्यां छे, जेणे वृक्षनां पर्णो खेरवी नात्यां छे तेवो निष्टुर, दुर्धर झंझावात गीष्मऋतुमां वाय छे, त्यांर एवो कोण छ जेने ते दाह न करतो होय ? (५४२) जेनां पत्र खरी गयां छे, श्री नष्ट थई छे, जळ साव ओसरी गर्दा छे एवी अतिशय त्रस्त, सौन्दर्यवती नलिनीतरुणीना कमळवदननी कान्ति दुष्ट रविराजाप कटोर कर बडे नष्ट करी. वळी वंटोठियाए. उछालेली रजथी जेणे दिशाओ धुंधळी करो नाग्ची छे तेवा कापुरुष ग्रीष्मे आ पृथ्वीमंडळमां कोने नथी संताप्या ? (५४३).. मजन मेघनी जळधारानी बाणावळी बाळो मेघगर्जनानो हुँकार करतो, मीना पुंजनी पणछ वढे भयंकर, पुप्पर समां लुब्ध थईने दोडता भ्रमरोनां टोळांनी वाळी फैलावतो, मयूरमयूरीनां दो बड़े कलाप विस्तारतो एवो पामर Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ सनत्कुमारचरित (व्याध ?) वर्षाकाल क्या विरहीने संतापतो नथी ? (५४४). आकाशमां इन्द्रधनुष्यने, मानस सरोवर जता कलहंसोने, बंने कांठाओने तोडी पाडती नदीओने, मधुर कलरव करता चातकोने, धरतीनुं तळियु नष्ट करता जळप्रवाहने, तथा केतकी, शिखरी, शिलिन्ध्र अने कुटज वृक्षोनां पुष्पोने-ए बधु जोईने, बर्षाकाळमां क्या विरहीजननां हैडां नथी फाटी जतां ? (५४५). जेमां वादळो क्वचित् वरसे छे, चंद्रकिरणो सभर विस्तरे छे, खोलेला पद्म, कमळ अने कल्हार वडे नदी अने सरोवरो शोभे छे, सप्तच्छद अने बंधुजीवने फूलोथी जे समृद्ध करे छे, जेणे जळप्रिय राजहंसनो संचार द्विगुणित कर्यों छे (१) (५४६), जेमां लीढं घास चरीने प्रसन्न थयेलुं गोवृंद शीगडांनी अणीथी भोंयने खणी रयुं छे, जेमां सूर्यनी किरणावलि विस्तरे छे, आखा पृथ्वीमंडळनो पंक जेमां शोषायो छे, जेमां प्रवासीओ संचार करी रह्या छे तेवी आ शरदऋतु जगतमां स्वामीथी वियुक्त बनीने जीवता लोको माटे दुःखकर होईने कई रीते वीते ? (५४७). - . - जेणे मालती, बकुल, विचकिल अने मंदार वृक्षोनो वैभव नष्ट कर्यो छे, जेणे वोरडीने फूल अने फळथी समृद्ध करी दीधी छे, झाकळकणोना प्रसरता प्रभावथी जेणे हिमालयना गौरवनी स्पर्धा करी छे, जेमां दिवस ढूंका बन्या छे ने रात्रिनो . गाळो बेवडो थयो छे, जेणे प्रवासीओ अने दरिद्रोने घणुं देहकष्ट आप्यु छे (५४८), जेमां सुखी लोको उत्तम केसर, बंध महालय, सगडी, सुंदरी अने सुगंधी तेलनो आदर करे छे, जेमां प्रिया अने प्रियतम परस्परनुं संगसुख माणे छे. जेमां कामळीनां वस्त्रो लपेटवामां आवे छे, जे प्रियाविरहित अने स्वामीत्यक्त लोकोने दुःखकर छे एवो आ काळभरख्यो हेमंत क्यारे वीतशे ? (५४९). . जेमां चंद्र दुःखद छे, सूर्य वहालो लागे छे, फळना भारथी बोरडी भांगी पडे छे, वाल अने रीगणी फळरहित बनी गयां छे, कपास अने तुवेरनां फूलोनो संहारक होवाथी जे दुःखकर छे, लोध्र अने प्रियंगुना पुष्पसमूहमांथी ऊडता पराग वडे जेणे दशे दिशाओने रंगी दीधी छे, जेणे कुंदनी कळीने अने मालतीना फूलने प्रफुल्ल कर्या छे, काशफूलने विकसापां छे (५५०), जेमां मित्रो अने स्वजनोथी विरहित लोको अने धनसंपत्ति झंखता प्रवासीओनी दंतावलि अविरत पडता झाकळथी कडकडे छे अने तेमना हाथ अने हृदयनो संबंध थाय छे--एवो Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ सनत्कुमारचरित दुःखदायक अभागियो शिशिर कई रीते कुशळदायक थाय-जेमां कोईपण सुखी माणस एक स्थळेथी बीजे स्थळे संचार करतो नथी ? (५५१). आ प्रमाणे विचार करतां अने संताप अनुभवतां, श्री शूर राजानो पुत्र पृथ्वीपोठ पर एक वरस भम्यो; परन्तु पोताने मोंए करेली प्रतिज्ञाना लोपथी ते विखंडित न थयो. पछी, ज्यारे क्रमशः फरी पाछो जगतना प्राणीओने तुष्ट करनार वसंतोत्सव आवी पहोंच्यो, व्यारे आम्रवृक्षोए वैभव धारण कर्यो, कोयलो फरकवा लागी. . मलयपवनने अवकाश मळ्यो, अने ज्यारे भ्रमरकुळना झंकारध्वनिथी कामदेव . जाग्रत थवा लाग्यो, त्यारे पूर्वोपार्जित सत्कृत्योने लीधे पोतानी जमणी आंख फरकी ऊठवाश्री जे आनंदित थयो छे एवा शूरसुत कुमार महेन्द्रसिंहनो, रस्ते (आगळ वधवाना) उत्साहनो गुण, शरीरमां द्विगुणित थयो. (५५२-५५३).. . त्यार पछी आगळना मार्गे जतो ते राजहंस अने सारसोनो मधुर ध्वनि सांभळवा लाग्यो; फळफूल अने पत्रनी समृद्धिथी आकर्षक बनेली रनलताओने ते जोवा लाग्यो. कमळना परागथी रंजित मलयानिलना संपर्कथी तेणे नासिकापुटमा तथा अंगोपांगमा प्रसन्नता अनुभवी. (५५४). 'अरे, पोतपोताना विपयनी प्राप्तिना व्यापारथी मारी आ चार इंद्रियो जो के अत्यारे तुष्ट थई छे, तो पण आ जीभ भूखतरसथी पीडाती एम ने एम ज रही छे !'-आ प्रमाणे विचारतो, जळ तथा फळने झंखतो, कांठा पर विविध वनो वाळा मानससरोवर पासे ते शीघ्र आवी लाग्यो. (५५५). एटले वन्य गजराजनी माफक आये सरोवर सहर्प खूदी नाखी, यथारुचि पाणी पीने, ज्यारे कठिनां वृक्षोनी टोचेथी फळफूल लईने ते आरोगतो हतो, त्यारे विद्याधरो, देवो, असुरो अने किन्नरोना संगीतध्वनिथी ऊंचो अने सारस, हंस अने मोरथी चडियातो मधुर आलाप तेणे सांभळ्यो. (५५६). एटले 'आ निर्जन महावनमां आवो गीतोद्गार क्यांथी ?' एम आदरपूर्वक मनमां विचारतो ते सहर्ष अने सत्वर रस्ते आगळ चाल्यो, त्यारे देव, असुर, विद्याधर अने मनुष्यना तरुणोनां मन हरे तेवी अने अप्सराओथी मात्र नयनपलकारे जुदी पडती एवी तरुणीओनी वच्चे रहेला; घणा ज संतुष्ट; विद्याधर तथा बंदीजनो वडे कीर्तिपाठ कराता; सर्वांगसुंदर; गोरोचन चंदनना लेपथी देहकांति वाळा; कपोलने स्पर्शतां कुंडळ, सुंदर मुकुट वगेरे अनुपम शणगार सजेला; मदनमंदिरना द्वारप्रदेश पासेना कदळीगृहनी अंदर कनक अने रत्नना आसने विराजेला; गीतगान साथेनुं सुंदर प्रेक्षणक जोता: आ रीते अल्पकाळे प्रकट थयेलां पूर्व भवना संचितथी अनेक सुखो भोगवता; अने नमन करता लोकोने राजी करता, सनत्कुमारने तेणे जोयो. (५५७-५५९). . Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित 'आवी रिद्धि एने एकाएक कयांथो मळी ?' एम विचार करतो धीमेधीमे पाछळनी जग्या पसंद करीने, झाडनो छायामां ऊभा रहो, बंदिजनोने स्पष्ट स्वरे पाठ करता ते सांभळवा लाग्योः 'दुष्टोनां अभिमान दळीने चूर्ण करनार; नमन करनारने प्रचुर लक्ष्मीना दाता; कौरववंशने उज्ज्वळ करनार; अश्वसेनना कुलध्वज; युद्धमा सर्व विद्याधरोने जीतनार; विद्याधरोना चक्रवर्ती; पोताना तेजथी सूर्यने झांखो पाडनार; असिधारा वडे शत्रुश्रेणिओर्नु शमन करनार; गुणरत्नोना सागर; विद्याधरसुंदरीओना स्तनाग्रना संगमथो आनंदित--एवा जगतना तृपवर्य सनत्कुमारनो जय हो. (५६०-५६१). एटले 'खरेखर आ तो अमारा कुळंनो कल्पतरु, अश्वसेन राजानो पुत्र पोते ज छे'-एम निर्णय करीने ते शूर राजाना घरना आभूषणरूप महेन्द्रसिंह आवीने तेना पगमां पड्यो. एटले एकदम ऊभा थईने सनत्कुमारे शूर राजाना पुत्रने सहर्ष सामे मोंए सर्वांगे आलिंगन आंप्यु. (५६२). त्यार पछी बहुमूल्य आसन परं बेठेला, परस्पर विकसित मुख वाळा, प्रेम अने आनंदथी स्फुरायमाण, पोताना सर्व मित्रो अने स्वजनोना वत्सल, प्रथम मिलनने योग्य सत्कारविधि पामेला, नाम लेवा योग्य एवा ते बंने पूर्व दुःखने मुलीने एकत्र बेठा. (५६३). पछी पोतानी प्रिया विद्याधरपुत्रीओ वडे पोताना मित्रनो सत्कार करावी, तेने भोजन करावी, लांबा काळे थेयेला मिलनथी जेनां लोचन अश्रुपूर्ण बन्यां छे तेवो सनत्कुमार बोल्यो, "हे मित्र, कहे, मात्र भुजाओनी ज सहाय वाळो तुं धैर्य टकावी राखीने आ घोर जंगलमां कई रीते आवी पहोंच्यो ? (५६४). मारा वियोगे, गाढ स्नेहवाळां मारां माता-पितानी, तेम ज मंत्री, सामंत अने सज्जन लोकोनी शी दशा छ ? मारुं अपहरण थयेलं सांभळीने दुर्जनो मारा पिता प्रत्ये कई रीते वर्ते छे ?'-एटले मस्तकपर अंजलि रचीने अने पोतानो बधो ज पूर्वोक्त वृत्तांत क्षणेकमां जणांवीने शूरराजाना पुत्रे (५६५) का, 'तमे पण उत्तम अश्व तमने हरी गयों त्यार पछीनो तमारो वृत्तांत जणाववानी मारा पर कृपा करो.' एटले पोतानो वृत्तांत स्वमुखे कहेवाने अंशक्त कुंमारे विद्याबळे तत्त्वविशेष जाणी शकती पोतानी विमलमति नामनी प्रियाने आं विषयमा अनुज्ञा आपी. (५६६). 'घणा परिश्रमने लईने निद्राथी मारी आंखो घेराय छे, तो हुं अहीं थोडी क्षण विश्रांति लङ' एम कही, ऊठी जई, बधा परिजनने त्यां ज मूकी, कदळीगृहनी अंदर जईने, आगळथी करी राखेल शय्यामां ते वेठो, (अने महेन्द्रसिंह) कुमारनो वृत्तांत सांभळवा एकचित्त बन्यो. (५६७). Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित एटले निर्मळ दांतनी किराणावलिथी सर्व दिशोएने श्वेत बनावती चंद्रवदना विमलमति कहेवा लागी, “कुमार, तुं तारा मित्रनो वृत्तांत हवे सांभळ. ते वेळा तमारी सामे ज ए उत्तम अश्व आर्यपुत्रने हरी गयो अने क्षणवारमां ज तेने अहीं नाख्यो (५६८) – आ यमसदन समा घोर अरण्यमां, ज्यां पशुओ त्रासे छे, वाघ पण डरे छे, गिरिशिखरो तूटी पडे छे, घोडाओ भटके छे, हाथीओ नासभाग करे छे, भीललोको पण विलाप करे छे, उज्जड बनेलां वृक्षो तूटी पडे छे, हजारो वांस फूटे छे, ज्यां कायर लोको निश्चेतन बनी जाय छे अने दावानळ सळग्या करे छे. (५६९). एटले, 'घोडो केटलेक जशे ?' एम विचारीने ए श्री अश्वसेनना कुलगगनना चंद्रे घोडाने छूटो मूकेलो, तेथी हवे लांबा श्वासो मुकतो ते अडधी क्षण त्यां ऊभो रह्यो 'रे ! धिक्कार छे मने के आ घोडो ऊलटी तालीम पामेलो होवानुं हुं कळी न शक्यो' एम अतिशय खिन्न बनीने विचारतो ते उत्तम कुमार, जेवो पोताने हाथे ते उत्तम अश्वनुं चोकहुं ढीलुं करे छे, त्यां तो तरत ज धरती पर अतिशय भ्रमण करवाथी श्वास अने थाकथी भांगी पडेलो ते नीचे पड्यो अने यमसदन पहोंची गयो. एटले घणाघणा दुःखे तप्त शरीरे ए अश्वसेननो राजपुत्र, भूखतरसथी क्लान्त अने विषादभर्यो, जेवो एक हजारो पर्णघटायुक्त शाखा वाळा सप्तच्छद वृक्षनी नीचे आवी पहोंच्यो तेवो ज ते, सूर्यनो ताप आ पहेला कदी न अनुभव्यो होईने, दैवयोगे अर्घ क्षणमा ज मूर्छाविकळ बनीने असहायपणे पड्यो, ते ज क्षणे सनत्कुमारने आवी दशामां जोईने, जगतमां सौने टपी जाय तेवा रूपवैभव वाळा, ऊगती जुवानी वाळा, शरीरे सुंदर शणगार सजेला, सर्वोकृष्ट औचित्यबुद्धि धरावता, अमृतमधुर अने मृदु वाणीथी शोभता, जाणे के आर्यपुत्रना पुण्यपुंजथी खेंचाईने आवेला एवा कोई एक पुरुषे मानससरोवरमांथी पोताने हाथे जळ आणीने आदरपूर्वक कुमारना सर्वांगे सींच्युं, एटले भानमां आवेला कुमारे जळ पीने कघुं, “भद्र, तुं कोण छे ? कचांथी आव्यो ? शा माटे ते परोपकार करीने चंद्रकिरण जेवुं निर्मळ अने अमृतमधुर आ पाणी लावी, पाईने मने जिवाड्यो ?" (५७० - ५७४ ). एटले पेलाए कयुं, "हे नररत्न, मारी ओळखाण सांभळ: हुं कमलाक्ष नामे जाणीतो यक्ष, पथिकोना तापहर एवा आ रम्य वृक्ष उपर वसुं कुं. जगतमां उत्तम एवा तारी आवी विषम अवस्था जोईने में मानससरोवरनुं जळ लावीने तने स्वस्थ कर्यो. " (५७५). एटले कुमार फरी बोल्यो, “मारा शरीरमां प्रलयाग्निना दाह समी बळतरा प्रसरी छे. ए शारीरिक संताप तो अने त्यारे जं शमे ज्यारे हुं सर्वांगे जलांजलि १०६ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित अपाय ते रीते शीघ्र मानससरोवरना जळमां मारी जातने झबोळी ज दउं'. (५७६). ते पछी विना दिलंवे ते यक्ष, अनेक विद्याधर, चक्रवाक, कलहंस अने हाथीओ जेमां क्रीडा करता हता तेवा ते मानससरोवर पासे कुमारने पोताना करसंपुट वडे लई भाव्यो. एटले जेनां नयन अने मन प्रसन्न थयां छे तेवो सनत्कुमार देव, असुर अने तिर्यंचना शरीरसंतापने हरनारा ते सरोवरमा प्रवेश्यो . ( ५७७). मदमत्त विद्याधर -- तरुणीभोना स्तन परना अंगरागथी लालाश धरता, कमळरजथी शोभता, वनगजोना गंडस्थळ परना दानजळनी सुगंधथी पुष्ट, कांठेना घटादार शाखा वाळां वृक्षोनी छाया वाळा मानससरना, अमृतथी अभिन्न एवा जळमां तेणे डूबकी दीधी. (५७८). ते पछी शरीरसंताप टळतां दृढ चारित्र्य रूपी रथ वाळो अनें पोताना पुष्यसंचयरूपी कवच वाळो ते अश्वसेनराजानो पुत्र ज्यारे सरोवर -- मांथी बहार नीकळवा लाग्यो, ते वेळा, कांठेनां वृक्षोने तोडी पाडता, गिरिशिखरोने भांगतां, वनगजोने घुमावता, रजोमंडळने उछाळता, पक्षीओनो नाश करता, पशुओनो कच्चरघाण काढता, भीलोने व्याकुळ करता, डरामणा, उग्र वंटोळियाए दिशाओ ढांकी दीधी अने ऊडती धूळे कुमारनी आंखो भरी दीघी. तो पण मेरुशिखर जेवा अविचळ चित्त वाळो ते कुमार अक्षुब्ध भावे 'आ शुं ?' एम विचारतो ऊभो रह्यो. (५७९-५८०). ते पछी कोईए घोर फूंफाडा मारता, रोषथी राती आंखो वाळा, लांबा, भमरा अने महिषशृंग जेवा काळा, जमदूत समा, बेवडी जीभ वाळा, विषना आवेगे चीकणा, क्रोधे आखा जगतनो पण कोळियो करवानुं न चूके तेवा, गगनतळने भरी देता एवा विषधरोना झुंडने उपरथी नाख्युं. (५८१). ए नागपाशे कुमार श्रेष्ठ ने सर्वांगे बांध्यो. एटले सागर समा अक्षुब्ध चित्त वाळा ते कुमारे पोतानी भुजलता धुणावीने सपना सांधा तोडी नाख्या. ए पछी जेना गळाना दांडा उपर मानव खोपरीओनुं झुंड लटकी रधुं छे, मोमां पुरुषनुं शब पकड्युं छे, हाथमां तलवार छे (५८२), घोर सर्पों वडे जटाजूट बांध्यो छे, जोरथी दाढो घसीने जे भयंकर कचकचाट करी रह्यो छे, वीजळी जेवा जेनां लोचन छे, दांतो ककडावता भीषण वेताळ जेनी पाछळ पाछळ आवी रह्या छे तेवो, अने 'अरे, अरे, तारा कोई इष्टदेवनुं स्मरण करी ले' एम धमकीभर्यु बोलतो, कृतांत जेवा भयंकर शरीर वाळो एक राक्षस आवतो दीठो. (५८३). एणे, जेना ऊंचा शिखरोनी टोच तूटी रही छे, जेमां रहेला प्राणीओ भ्रांत अने व्याकुळ वन्यां छे, जेमां वानरो घोर चिचियारी पाडे छे, भारे १०७. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ सनत्कुमारचरित खडको वडे शत्रुने जे कचरी नाखे छे, जेमां हाथीओ गभराटथी चीत्कार करी रह्या छे, एवा एक भारे पहाउने हाथमां ऊंचकीने, देवांगनाओ अने विद्याधरीओनां आंसुथी सिंचित मस्तक वाळा कुमारनी उपर फेंक्यो. (५८४). तें पछी विकराळ दंतपंक्ति वाळा, मांस अने लोही वगरनां शरीर वाळा, चीवा नाक वाळा, सपाट (?) पेट वाळा, फीकी अने ऊंडी आंख वाळा, कोई वे मोढाळा, कोई त्रण मोढाळा, कोई चार मोढाळा तो कोई पांच मोढाळा एवा वेताळोए आनंदमां आवो नईने जयजयकारनी घोषणा करी. एटले तरत ज शरीर धुणावी ए गिरिपीठने बाजुए नाखी दईने (५८५), 'आहाहा ! जुओ, आखा जगतने हरी लें तेवां रोषथी रातां लोचनो वाळा राक्षसे फेंकेलो पहाड रमतमात्रमां दडानी जेम दूर फगावी दईने मत्सर भरेलो आ कोई सर्वश्रेष्ठ, सुभट कशुंक बोलतो धसे छे' ए प्रमाणे देव, असुर अने विद्याधरोनां वेण सांभळतो कुमार (५८६), 'अरे पापी राक्षस, विशाळ अने पुष्ट भुजाओ रूपी यंत्रमां पिलाई, रसदार शेरडीना दांडानी जेम, तुं हमणां ज तारा गळीने बहार नीकळेला बधा धातुरसोनुं दान करीने पंखीओने तृप्त कर; स्वतेजे अन्य सौ तेजस्वीओने जीतनार एवा मारा जीवतां क्यो निर्लज्ज वीजा कोईनो : जयघोष करी शके ?' (५८७). ए प्रमाणे बोलता तेणे, एकाएक प्रसरेला मत्सरने लईने सामुं जोई न शकाय तेवी लाल आंखो करी, एकदम धसी जईने, ते राक्षसना शरीरने निविड भुजदंडना यंत्र वड़े एवं पील्युं के ते अधम राक्षसनी आंखो वहार नीकळी पडी, अने असहायपणे मोटो पोकार पाडीने ते धरती पर ढळी पड्यो.. (५८८). ए पछी केमे करीने भान आवतां ए अधम राक्षसे तरत ज पाछा ऊभा थईने, 'अरे पापी, जेना आघातथी पहाडनां शिखर पण नष्ट थई जाय तेवुं आ अनन्य मुद्गर, त्रस्त देव असुर अने विद्याघरोना देखतां ज तारी छाती पर पडो अने तारो नाश करो' (५८९) एम कहीने, छाती कूटती भयभ्रांत देवांगनाओना तूटेला हारना मोतीओथी मिश्रित बनेली अने आंखथी ओगळती अश्रुधारानी तथा तेमना निसासानी साथसाथ, तेणे सर्वथा पोताना ज विनाशकाळ जेवुं, कायरो माटे भयंकर मुद्गर, भारे. आवेगपूर्वक, ते कुमार शिरोमणिनी उपर फेंक्युं. (५९०). एटले मुद्गरना घाथी जेनां अंगो विकळ बनी गयां छे तेवो ते कुमार देवो अने विद्याधरोनी तरुणीओने दुःख थाय ते रीते धरती पर ढळी पड्यो. आथी. थोडाक संतोषथी फुलातुं राक्षसनुं सैन्य धसी जई, कुदी -ऊछळीने जयघोष करवा लाग्यं. ते पछी भानमां आवी, स्वस्थता प्राप्त करी, प्रचंड अभिमाने थरथरती भुजा वडे एक वटवृक्षने उखेडीने भारे क्रोधथी भ्रूजती कंधरा वाळा, खोचायेली कुटिने Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित कारणे भयंकर मुख वाळा, चरणना भारे धरती कंपावता, 'अरेरे, अधम पिशाच ! आ वडना झाडथी छंदायेलु तारुं शरीर सर्वांगे निर्जीव बनीने कागडाओने तृप्त करो.' (५९१-५९२) ए प्रमाणे बोलतो अने युद्धनो आवेग जोईने व्याकुळ बनेली विद्याधरतरुणीओनो जे आदर पाम्यो छे तेवो ते गुणरत्नोनो सागर अश्वसेन राजानो पुत्र पोताना हाथे वटवृक्षने मूळथी उखेडीने अने तेने ज हाथमा दंड तरीके झालीने तेना वडे शत्रु उपर एक एवो प्रहार कर्यो जेथी ते राजेन्द्र अने विद्याधरेन्द्रने माटे पण असह्य अने प्राणान्तकर एवी भयंकर पीडानो तरत ज भोग बन्यो. एटंले धूजता शरीरे भयभीत थईने तरत ज शूरातन त्यजीने जवरो पोकार करतो, वेदनाथी विकळ वनेली प्राणशक्ति वाळो ते अधम राक्षस अभिमान मूकी, लाजशरम छांडीने नाठो. (५९३-५९४). एटले आकाशमा रहेली असुर अने विद्याधरोनी सुंदरीओए हर्पथी पुलकित थईने श्वेत अने सुगंधी पुष्पोनी वृष्टि करी, जयघोष कर्यो, आनंदा दुंदुभि वगाड्यां. यक्षे (१) प्रदर्शित करेला क्रोधने जेणे कचडी नाख्यो छे तेवो सनत्कुमार (५९५), शरदना चंद्र जेवा यशना विस्तार वडे जगतने ऊजळू करीने पूर्वोक्त सुंदरीने मनमां धरतो केटलेक रस्ते आगळ चाल्यो त्यां तेणे देवांगना जेवी अने देव अने असुरनी तरुणीओमां सर्वश्रेष्ठ महिमा वाळी एवी एक उत्तम सुंदरीने पोतानी सामे आवती जोई. (५९६). एटले विस्मित मने आगळ वधता कुमारे पोतानी सामे पेलीना जेवी बीजी सात बाळाओ नंदनवननी वच्चे रहेलो अने उत्तम रूप, गुण अने विनय वाळी दीठी. ते पछी प्रथम जोयेली तरुणीने तेणे कह्यु, 'हे मुग्धा, मने वात कर, आ सुंदरीओ कोण छे ?' (५९७). सहेज हसी, सहेज अंग नमावी, पगनी आंगळीथी भोंय खोतरती, कमळ जेवा हाथ बड़े वस्त्र समारती, जेना कोमळ होठ स्फुरे छे, जेनी आंखमां आनंदाश्रु चमके छे, माथा पर जेणे वस्त्र सज्यु छे तेवी ते मुग्धा त्रूटक अक्षरे, गद्गद् स्वरें कांईक वात प्रकट करवा लागी (५९८), "हे सुभग, अत्यारे मारा उपर कृपा कर. आ ज आंबावाडीथी तद्दन नजीकना प्रदेशमां आवेलं अने देवो, किन्नरो अने मनुष्यथी पुजाता मदनमंदिरथी गौरववंतु बनेलं, प्रियसंगमअभिलाष एवा नामे प्रसिद्ध, घणुं ज समृद्ध विद्याधरनगर छे. (५९९). त्यां आवीने केटलोक काळ विसामो लईने तुं तारा शरीरनो मारे थाक उतार; एटले. आपोआप ज तमने आ वृत्तांतनी जाण थई जशे.' पछी ते न सुंदरीओना कंचुकीए देखाडेला रस्ते. ते कुमार सींगे, विस्मय पामतो, राजमहेलमा गयो. (६००). . . . ., Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सनत्कुमारचरित पछी ते नगरना श्री भानुवेग नामना राजाए ऊभा थई संमुख आवीने गुणरत्नना सागर समा ते कुमारनो आदर कों, पोताना हाथे तेने सिंहासन उपर बेसार्यो अने एम मोटो सत्कार करी, मस्तक पर अंजलि रचीने कछु, 'मारी आठ पुत्रीओ साथे विवाह करीने तुं मने संतुष्ट कर. (६०१). कारण के ज्यारे अमे अमारी पुत्रीओना विषयमां चिंतातुर हतां त्यारे अगने श्री अर्चिमाली नामना मुनिराजे ( जेमने विनयपूर्वक सुरेन्द्र प्रमाण करतो ) कह्यु हतु-जे माणस असिताक्ष यक्षना भारे दर्पने हरशे ते अवश्य तारो आठे य पुत्रीओनो पति थशे.' (६०२). एटले प्रकटेल प्रेमभावने लईने शोभती अने तरुणीओमां उत्तम एवी ते आठ कुमारीओने कुमार, त्याने त्यां ने ते ज क्षणे मोटी धामधूमथी परण्यो. पछी कंकणबंधन वगेरे विवाहोचित विधो विधि करीने, नववधूओनी साथे कुमारे रति- . मंदिरमा प्रवेश कर्यो. (६०३).. पछी अतिशय थाकेलो ते राजरीतिथी रतिमन्दिरमा सूतो अने तरत ज तेने घोर निद्रा आवी गई. पछी स्वजनमित्र विनाना ते सवारे पंखीओना कलरवथी जागी ऊठ्यो त्यारे तेने ए नगर, परिचरो के नववधूओ कशुं ज न देखाता थy (६०४)- 'शुं ए स्वप्न हतुं ? के मारो वुद्धिभ्रम हतो ? अथवा तो........थयु ? के पछी कोईए इंद्रजाळ देखाड्यु ? पहेलांना मारा नगर, स्वजन अने प्रियतमाना वियोगथी दुःखी थयेलो होवा छतां हुं आठ पत्नीओ साथे संबंध थतां काईक आनंद पाम्यो हतो, पण मारा मस्तक पर तो जाणे के पुष्पित वृक्षनी शाखा ज एकाएक तूटी पड.' (६०५). आम घर, परिजन अने प्रियतमाओथी वियुक्त अने साव भोंय पर ज वेठेला कुमारने काने अंतरीक्षमांथी. ओचितो अवाज पडयो'हा सखी! हा प्रियतम ! हा माता ! हा अश्वसेन राजाना पुत्र मारा भावी पति सनत्कुमार ! मारी रक्षा कर !' (६०६). एटले, "हे सुलोचना, पिताथी, माताथी, सखीओथी, तारा इष्टदेवथी अथवा तो अश्वसेन राजाना पुत्र ए निर्माल्य मानवथी शुं वळवार्नु छ ? हे विशालाक्षी, तुं कामातुर चित्ते देव असुर अने मनुष्यनो मद मथनार एवा मारुं स्मरण कर, जेथी लक्ष्मी (!) तने तृप्ति करावे. (६०७). एटले 'मारामां अनुरक्त ए सुंदरीनुं हरण करी रहेला अने एम कोपेला :: यमनी दृष्टिए पडेला क्या पापीए, कुबुद्धिथी दांत गणवाना उत्साहमां सिंह शिशना मौ'मां पोतानो हाथ नाख्यो छे ?' एम विचारता कुमारे अंतरीक्ष तरफ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १११ नजर नाखी. (६०८), परंतु त्या कशुं देखायुं नहीं एटले, 'आ पण पहेलांनी जेम कशुं इन्द्रजाळ जेवुं छे' एम जाणीने, ए ज तरुणीने हृदयमां राखीने ते वनमां भमतो हतो त्यां ते अघोर अटवीमां, जाणे के स्वर्गमांथी पड्यो होय तेवो, महामूली शोभाना अवतार अने त्रिभुवनना सार समो एक प्रासाद तेणे जोयो. (६०९) एटले विस्मित थईने, 'सोनी भेळा पचास' एम जाणीने धीरे धीरे तेणे से प्रासादमां प्रवेश कर्यो. एटले तेणे एक महासतीने आ प्रमाणे मृदु, मधुर स्वरे बोलती सांभळी,‘हे कमळगर्भ सम: गौर अंग वाळी, प्रणाम करनारनी मननी इच्छा पूरी करनारी, वंदन करता नरेन्द्र अने देवेन्द्रना शत्रुओनो सर्वांगे नांश करनारी, तारो जय हो ! हुँ । खु ! हे दुरितहरणी ! ओम् ! ह्रीं ! हि ! इष्ट फळ देनारी, जादुई स्वड्ग, गुटिका अने अंजन साधी आपनारी, फट्कारथी शत्रुसमूहने हणनारी, प्रणाम करनारने आनंद आपनारी, हे योगेश्वरी ! जेओ विधिपूर्वक भक्तिथी तारां चरणोमां नमे छे, तेमने तुं तेमना स्वप्नमां पण न होय तेनुं असाधारण फळ आपे छे. (६१० - ६११). हुं तने घणा विनयथी अंग नमावुं लुं, तो अभ्यर्थना करनाराओने चिंतामणि सभी हे देवी, जेनो संग दुर्लभ थई गयो छे तेवा मारा ते प्रियतमना मुखकमळनुं मने दर्शन कराववानी तुं केम कृपा करती नथी ? पोतानां गुणवान अने सदा विनयी बच्चांओथी अंतर राखतुं मातापिताने घटे ?' (६१२). एटले पूर्वे जोयेली अने अत्यारे हृदयमां स्फुरती सुचरिता हरिणाक्षीने विशेषे स्मरतो कुमार, 'हं, हं, प्रगटेला गाढ अनुरागथी दुःखी अने दसमी दशाए पहोंचेली आ कोईक तरुणी गौरीना चरण पासे अति दुर्लभ एवा पोताना कोईक प्रियतमने मागी रही छे-जेम अत्यारे पेली बाळा मने मागी रही हशे तेम. ' (६१३) ए प्रमाणे विचारतो जेवो ते चारपांच डगलां आगळ भरे छे, तेवी ज शुद्ध शीलवाळी अने जगप्रसिद्ध गुणो वाळी ते मुग्धानी गाढ भक्तिने परिणामे तेनी समक्ष जाते ज प्रगट थईने गौरी देवीए ज आ प्रमाणे कर्छु, 'हे चंद्रमुखी, तारो गुणनिधान प्रियतम आ आव्यो.' (६१४). एटले अपमानित बनी होय ते ते कृशांगीए देवीने कयुं, 'हे देवी मारो प्रियतम हाथमां ज छे एम कहीने तुं तेने प्रकट तो करती नथी, तो एम तुं मने केटलं छेतरीश ? जो हुं कुरुवंशना गगनचंद्र सनत्कुमारने नजरे जोउं, तो हे भगवती, तुं जाणजे के हुं तेनी शी शी सेवा. नहीं करूं ?' (६१५). Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ सनत्कुमारचरित आम सांभळतां ते कुरुकुळमंडननुं सर्वाग हर्षथी विकसित थयुं, वदनकमळ पुलकित बन्यु (अने ते बोल्योः ), 'हे चंद्रमुखो, जो ! जो ! आ हुं तारो शत्रुमर्दन प्रियतम आवी पहोंच्यो. मदनविकारने प्रकट करतो आ हुं ते ज आव्यो ने ते ज . छु, तो तारा मनमा तें जे नक्की करी राखी होय ते सेवा तुं कर. (६१६): अथवा तो कृपा करीने हे सुंदरी, तुं मने कहे के जेने तें प्रियतम तरीके माग्यो ते कुरुकुळनो यशकळश कोण छे ?' एटले स्वभाविक लज्जा अने आर्जव धरती ते कन्या बोली, 'साकेतपुरना अधिपति समरसिंह नृपतिनी, अने तेनी खरेखर रूपवती प्रियतमा चंद्रयशानी (६१७) हुं सुनंदा नामे पुत्री छु. एकवारं कोई एक दूते आवतां वेंत मारा पितानां चरणमां मंस्तक नमावीने सविनय विनंती करी : हस्तिनापुरना स्वामी अश्वसेन नृपतिनो अने जगतनी सुंदरीओनी विजेता तेनी प्रियतमा सहदेवीनो सनत्कुमार नामे पुत्र छे. ते जगतमा श्रेष्ठ, चक्रवर्तीनी लक्ष्मीनो स्वामी, महानं गुणरत्नोनो सागर, सौभाग्यवानोना मस्तकना तिलक समो, शत्रुओंना दर्पने दळवाने आतुर, पूर्णिमाना चंद्रनी जेम बधी निर्मळ कळानुं धाम, अने रूप अने यश वडे जगतमां सर्वाधिक छे. (६१८-६१९). एटले जों सुनंदानो संबंध ते नररत्न साथे न थाय, तो नक्की विधाता हार्यों जं (एम मानवं). एटले मारा पिताए ए खरेखर योग्य छे एम निर्धार करीने पोतानी सेना साथे प्रयाण कयु, अने मने साथे लईने श्री हस्तिनापुर नगरीमा सहर्ष प्रवेश कर्यो. (६२०). .. एक प्रसंगे सखीओथी वीटळाईने हुं नगरना उद्यानमा मदनपूजा माटे गयेली, त्यारे में सखीओना उपहास वच्चे प्रकटरूपे रहेला मदननी पूजा करी. ते पछी हुं ज्यारे मारे घेर गई त्यारे भाग्ययोगे हुं अतिशय दुःसाध्य व्याधिनो भोग बनी. (६२१). पछी अनेक मंत्रविदो अने तंत्रविदोथी पण मारा शरीरनी रक्षा न थई शकी, एटले में जेमतेम करीने ते रात वितावी अने सवारे ते ज हृदयंगम. मदनमंदिरभां हुं पहोंची, पण में त्यां प्रकट थयेला पेला अनंगने जोयो नहीं. तेथी हुँ सर्वा गे सविशेष दुःखे दुःखी थई. (६२२). परंतु त्यां, ते प्रकट थयेला. कंदर्पनों वेश धरीने मारी सखीए त्यारे जेमतेम करीने मारी एवो मनोविनोद कर्यो, जेथी करीने हुँ तरत ज पाछला दिवसना व्याधिथी मुक्त वनी. पण ते पछी एक दुष्ट अश्व अश्वसेन राजाना पुत्रने हरी गयो, एटले आखं जगत दुःखी दुःखी थई गयु. (६२३). Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित ए वृत्तांत सांभळीने मारा देहे सविशेष दुःख व्यापी जतां हुं मूर्छा पामी.. सखीओ जेमतेम करीने मने घेर लई गई. ते पछी जे कांई बन्यु ते हुं पोते ज नथी जाणती, (मात्र एटलं ज जाणुं छं के) मने विलाप करतीने कोई खेचरे हरीने अहीं लावी मूकी छे एटले हुं फाळ(?) चूकेली वानरीनी जेम अहीं रहुं छु. (६२४). पेलो अधम खेचर अत्यारे क्य.क बीजे गयो छे एटले मातापिताए दीधेला मारा प्रियतमनी मागणी करती हुं गौरीदेवीना चरणकमळने प्रणाम करी रही छं.' एटले ताळी दईने हसता हसतां कुमारे कां, 'हे विशालाक्षो, समरसिंह राजानी पुत्री, पेलो मदन ते आ हुं ज छं ते तुं केम जोती नथी ?' (६२५). एटले, मन्मथ सदाय विषम प्रकृतिनो होवाथी, ए चंद्रमुखी लज्जाथी व्याकुळ अने प्रेमथी अभिभूत थई जवाथी समयोचित सत्कारविधि करवान ते वीसरी गई. 'पेली माझं मन हरवा वाळी ते आ ज छे' एम विचारीने विस्मित मन वाळा कुमारे ते सुंदरीने कह्यु (६२६), 'संभ्रम तजीने, अपमानने बाजु पर राखोने, कृपा करीने अने पूर्वे जे प्रेम तें पोतानी सखीओने उद्देशीने त्यारे प्रगट कयों हतो ते प्रेमनु स्मरण करीने, हे विशालाक्षी, तुं व्यापेला प्रेमानलथी तप्त वनेलां अंग वाळा मने तारं स्नेहसर्वस्व केम आपती नथी ? (६२७). 'सुंदरी, नगरना उद्यानमां क्रीडा करवाने गयेला एवा मारा कंठमां ते मदन समजीने कमळनी माळा पहेरावेली, अने शुद्धभावे पूजा करेली. तथा सखीए मारो वेश लोधेलो छे (एम समजीने) तें मारी साथे आलिंगन वगेरे क्रीडा आरंभेली ते तुं केम याद करती नथी ?' (६२८). ए प्रमाणे ते कुमाररत्ने कहेलां वचनोथी तेनुं मुख लज्जाथी नीचुं नमी गयु. पोताना जमणा हाथे तेना वदनकमळने ऊंचं करीने कुमारे कह्यु, 'सुंदरी, जेम अधन्यना घरमां चिंतामणि आवे, तेम आ वनमां दुर्लभ एवी तुं मने मळी तेथी हुं कृतार्थ थयो छं. तो पहेलां जेवो स्नेह मनमां धरीने तुं प्रसन्न थईने मारी सामे जो'. (६२९). - एटले विकसित वदने ते मुग्धा ज्यां हजी कांईक बोलवा जाय छे, स्यां तो दुर्भाग्ये अन्तरिक्षमा रहेला पेला खेचरे तेमने जोयां, अने रोषथी रातां लोचने ते वोल्यो, 'अहाहा, जीवता फणधरना चूडामणिनो कोण स्पर्श करी रह्यो छे ? कोण जागता सिंहनी केशवाळी ग्रहण करे छे ?' अने कठोर चित्कार करता ते खेचरे कांपती देहलता वाळी ते उत्तम तरुणी पासेथी तरत ज कुमारचं अपहरण कर्य. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ सनत्कुमारचरित 'आने हुँ मेरुपर्वतना शिखर उपर पडतो मूकुं जेथी पारकी स्त्री पर मन दोडाववाना पापर्नु फळ चाखतो ते शतखंड थईने मृत्यु पामे.' (६३१) एम विचारतो ते पापी खेचर जेवो भ्रमर अने गोशृङ्गना खंड जेवा नील नभतलमां थईने जई रह्यो हतो, तेवा ज, ऊंचेने ऊंचे चडता जवाथी मोटामाथी नानां, वधु नानां अने तेथी पण नानां बनतां जतां नदी, पर्वत अने नगरने जोईने 'मारी नजरमांथी छटकीने आ क्या जवानो छे ?'. एम विचारता कुमारे (६३२) ते खेचरने निर्भयतापूर्वक कपाळ उपर वज्रकठोर मुक्को मार्यो. एटले गळता रुधिरथी मलिन बनेलो, आक्रंदना पडघाथी आकाश, पर्वत अने पृथ्वीमंडळने भरी देतो, जेना मोना पोलाणमांथी जीभनो लांबो सर्प वहार नीकळी पड्यो छे. अने जेनो दर्प गळी गयो छे तेवो खेचर कोने सुभग लागतो (?) न हतो ? (६३३). जाणे के कुमारना वीजा प्रहारथी भयभीत थईने ते अधम खेचरनो जीव तरत ज झडपथी नीकळी गयो. एटले ते खेचरना शवनुं मुख जोवा न इच्छता सूर्ये जईने अस्ताचळना शिखरे आवास कर्यो, अने शत्रुनो नाश करीने पछी पोतानी प्रियाना संभाषणने संभारता ते :कुमारने पण रात पडतां, खेचरना वधना प्रसंगथी जाणे के क्रोधे भरायो होय तेम धृष्ट कामदेवे हाथमां पकडेल कुमुद रूपी भयंकर धनुष्ययष्टि वडे छोडेल चंद्रकिरण रूपी धारदार शरसमूहथी सर्वांगे एवो तो वींधी नाख्यो के तेने पोतानुं अंग असुखथी ग्रस्त छे के सुखथी तेनुं भान न रघु. (६३४-६३५). ___'पेला हताश शत्रुने तो रमतमात्रमा कचरी नाख्यो, पण आ भुवनदुर्जयने केम जीतवो ?-हां, हां, आ शत्रुने जीतवानो उपाय पण मने सूझी गयो. जो हुं जीवतो ने सगी आंखे ते हरिणाक्षीने जोडं, तो आ मदनरिपुने तरत ज तिलांजलि दई दऊं'. (६३६). ए प्रमाणे विचारतो कुमार ते वनमा केटलोक समय शोधाशोध करीने जेमतेम करीने पेला ज महेलमां आवी पहोंच्यो. एटले ते चंद्रमुखीए संभ्रममा उत्तरीय संकोरीने, हसीने, सामे ऊठीने, हाश्रु सारतां गद्गद वचने बनेली वात पूछी. (६३७). .... एटले तेणे शरच्चंद्र जेवा मुख वाळी अने गाढ स्नेह धरती ते सुंदरीने पूर्वोक्त बधी वात ट्रंकमां कही. ते पछी जाणे के चक्रवर्तीनी लक्ष्मी पाम्यो होय तेम हर्षप्लावित चेष्टा वाळो कुमार ते सुनंदासुंदरीनी पासे बेठो. (६३८). 'अरे रे चंद्र, तुं तारे हवे भले प्रकाशे. मलयानिल, तुं पण खुशीथी वाय. आम्रवृक्ष, तुं पण भले विस्तरे. अली कोयल, तुं पण टहुक अने भ्रमर, तमे पण गुंजारव प्रगटावो. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित ११५ अरे, निर्लज्ज कामदेव, तुं पण हवे माटी थजे. आ बाला तमारा सौना मस्तक पर वज्रपात करशे (६३९). अने आव, सुलोचना, तने कांईक वात कहुँ' एम कहीने ज्यां ते तेने गाढ आलिंगन आपे छे त्यां तो कुमारे खेचरने संहार्यानो वृत्तांत सांभळीने ते खेचरनी संध्यावलि नामनी नानी बहेन त्यां आवी पहोंची. (६४०). परंतु कृमारना मुखचंद्रने जोईने अमृतरसना सिंचनथी क्रोधाग्नि क्षीण बनी जतां तेनुं शरीर मदनाग्निए तपी गयुं, अने ते अग्नि सर्वांगदुःसह बनी गयो, एटले कुमार संध्यावलिने गांधर्वविधि अनुसार परण्यो अने एम तेने पोताना पुण्यबळे मेळवी. (६४१) पछी संध्यावलि सुंदरीए सेंकडो सुकृतथी ज प्राप्त थाय तेवी, मन गमती वस्तु साधी आपनारी अने पाठ करतां न सिद्ध थाय तेवी प्रज्ञप्ति नामनी विद्या कुमारने आपी. कुमारे पण अपूर्व उत्साह प्रगट करीने, शिखवाडेला विधि प्रमाणे ते विद्या तरत ज साधी (६४२). ए समये क्षुब्ध चित्त वाळा अने श्वासे भर्या वे खेचरकुमार आकाशमार्गे त्यां आवी पहोंच्या, अने आदरपूर्वक कुमारना चरणकमळमां प्रणम्या. एटले 'आ वळी शुं ?' एम विचारमां पडी गयेला कुमारे पूछयुं, 'तमे कोण छो भला ? क्यांथी आवो छो ? आम उतावळा उतावळा केम आव्या ?' (६४३). एटले खेचरो बोल्या, 'हे नररत्न, वैताढ्यपर्वतना शणगार रूप गांधर्वनगरीना स्वामी चंडवेग अने भानुवेग नामना खेचरराजाना चंद्रसेन अने हरिचंद्र नामना अमे पुत्र छीए. एमणे आ रथरत्न आपीने अमने तमारी पासे मोकल्या छे, केम के तेमणे सांभळ्युं के अति गर्विष्ठ, अनेक समरांगणोमां कीर्तिमान, अने विरोधीओनो विजेता एवो अशनिवेग नामनो खेचरराज पोताना पुत्रने मार्यानो वृत्तांत सांभळीने रोषथी रातां लोचनवाळो, खेचरसेनाथी आकाशप्रदेशने छाई देतो अने विद्याधरोना मनमां धाक पेदा करतो तमारा ऊपर चडी आवे छे. (६४५). तो कृपा करीने, हे नररत्न, तमे. आ रथरत्न उपर आरूढ थाओ'. एटलामा विद्याधरराजा चंडवेग अने भानुवेग पण मोटी सेना साथे त्यां आवी पहोंच्या. हनी तेओ कुमारनी साथै सुखदुःखनी वातो करता अने रणरसथी रोमांचित थता केटलोक समय वितावता हता (६४६), त्यां तो पोताना पुत्रनो वृत्तांत सांभळीने जेनो रोष ऊहळ्यो छे, अने जमनो जेम जे त्रणे भुवन माटे भयंकर छे तेवो अशनिवेग आडंबरपूर्वक पोताना राज्यना Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ सनत्कुमारचरित श्रेष्ठ मांडलिको अने सचिवोने बोलावीने कहेवा लाग्यो, 'जलदी चालो, पुत्रना घातक कुमारना बळy मर्दन करीने अने तेनो संहार करीने ज आपणे आने जमीसु'. (६४७). एटले मंत्रीवयों बोल्या, 'स्वामी, शत्रु नाना छे. एम मानीने तेनी अवगणना करवा जेवू नथी. तेम एकनो अ॒ हिसाव ---एम तेनी उपेक्षा करवा जेवू पण नथी. केम के वृद्धि पामतो एक अग्निकण पण समग्र लोकने बाळी दे, भने एक ज सिंह गजघटाने रमतमा हणी नावे, (६४८). ए. धरतीनो मानवी छे अने हुं तो विद्याधरचक्रवर्ती छु, एम समीने तमे शत्रुनो तुच्छ कार न करता. शुं रामे रावणनो मने कृष्णे कंसनो नाश नहोतो कर्यो ? एटले बळवान राजाओए पण शत्रुनी शक्तिनो क्यास काढीने स्थिर चित्ते बराबर विचारीने पछी संग्राम माटे उचित आरंभ करबो जोईए.' (६४२). ___ए प्रमाणे विविध उत्तम वचनो बोलता ए मंत्रोवनि अवगणीने आगळना अनेक संग्रामोमां शत्रुओ पर मेळवेला विजयनो संतोप धरता ए खेचरराजे, जाणे के कोपेठो विधि तेने दोरडे बांधीन खेचतो होय तेम, चतुरंग सेना साये अने चौतरफ वागी ऊटना रणदुंदुभिना घोष साधे प्रयाण कयु. (६५०). थई रहेलां जातजाननां मोटा मोटां अपगुकन तेने वारतां होवा छतां पुत्रमरणना अशुभ अंधकार जेनी आंखोने आवरी छे तेवो ते खेचरराज विमाननो वेग वधारीने जलदोथी ते महान अटवीमा आवी लाग्यो. ए वखते खेचरराजो सहित ज्यां कुमारे ऊंचे जोयु त्यां तो आकाशमां त्रिभुवनने भयंकर एवो कोलाहल तेणे सांभळयो. (६५१). 'आ | बह्मांड फाटयु के कोई वेताळ कोप्यो ? अथवा एकाएक समुद्र खळमळी ऊठयो-- जेथी करीने प्रलयना मेघ समो गंभीर शब्द, जाणे के जगत आखामां रमखाण मन्यु होय तेवो, संभलाय छ ? ए प्रमाणे खेचरराजो महित सनत्कुमार विचार करी रही हतो त्यां तो ते विद्याधर चक्रवर्ती तरत ज आवी पहोंच्यो. (६५२). पटले क्षणार्धमा ज कवच पहेरीने ते बने विद्याधरराजा चंडवेग अने भानुवेग पोतानां संन्यो साधे पन्ला ग्यचरेंद्रनी पासे पहोंच्या. परंतु एक क्षणमा ज अशानियेगे, शानिल वादळाने विग्वेरी नाग्य नेम, ते बनेने छिन्नभिन्न करी नाल्या. (३३). गनी नासनी सेना साथे चनेने भागता जोईन झडपी आगळ वधीने. in नही, घडीक जुनओ, हुं तेना दपर्नु मर्दन करीश.' एग कहीने प्रज्ञप्ति विशाना बळ. चतुरंग मनान निर्माण कंगन बडगोना खणखणाटशी शत्रु विद्यावाने गजरायता (६५), साथमा पकडली तीण भने पातळी तलवार व शत्रओना लाखो Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित ११७ हाथीओना कुंभस्थळाने निर्दयपणे चीरता, धनुष्यगांथी बाण छोडीने घाथी ऊछळती रुधिरने छोळे आकाशने लाल करो देता, मुद्गरना प्रहारथी सुभटोनां माथां बूंदा (६५५), शक्ति, भालां, शल्य, वावल्ल, नाराच, मुसुंढि, गदा, वज्र, चक्र, कर्तरी अने कुंत वडे हाथी, घोडा, अने सुभटना समूहने अनेक प्रकारे हणता ते संग्रामदक्ष कुमारे. क्षणमात्रमां अशनिवेग विद्याधरने वश कर्यो. ते पछी ते कुरुवंशना गगनमां पूर्णपणे प्रकाशतो चंद्र, जेणे पोतानां पराक्रमथी सुर, असुर अने खेचरनां सुभटोना चित्तने तुष्ट कर्या छे अने जेनो अनन्य कीर्तिकलाप आखा भुवनमां विस्तर्यो छे तेवो, देवो अने विद्याधरोनी तरुणीओ वडे कराती पंचविध पुष्पोनी: दृष्टि अने चोतरफ थता मधुर आलापनी वच्चे, विद्याधरे आपेला उत्तम रथ पर आरूढ थईने पहेलांना ज महेलमां आवी पहींच्यो. (६५६ - ६५७). ते पछी जेमनो धर्मनी अने कर्मनी बाबतोमां निर्मळ विवेक छे तेवा, अतिशय हर्षथी रोमांचित थयेला खेचरराज चंडवेग अने भानुवेगे ते ज क्षणे विनयथी नमीने कहेला वचनने मान आपीने शत्रुकुळनो संहारक सनत्कुमार पोतानी बने पत्नीओने साथे लईने गांधर्वपुर गयो. (६५८). अनुक्रमे तेणे एकेएक विद्याघर - राजाने जोत्या अने एम ते विद्याधरचक्रवर्ती बन्यो. लाखो विद्याओ तेणे साधी, मागनाराने यथेष्ट आप्यु. एक दिवस विद्याधरराजा चंडवेगे तेने कर्छु, 'स्वामी, तुं आखा जगतनी मननी इच्छा पूरी करे छे (६५९), तो कृपा करीने तुं मारी आ सो कन्याओंने परण, अने आ मारुं राज्य पण स्वीकार, जेथी करीने हुं मोक्षने मार्गे प्रयाण करूं. कारण के राज्यनी धुराने धारण करो शके तेत्रा पुत्रना दर्शन न थतां, हुं आटला वखतथी तारी ज प्रतीक्षा करी रह्यो हतो. (६६०). पोताना अतिशयज्ञानथी आखा जगतने जागनार अर्चिमाली नामना अहीँ आवी पट्टों चेला मुनिवरे मने कछु हतुं, 'अश्वसेन राजाना कुलगगननो चंद्र अने जगतमां सर्वोत्तम नर सनत्कुमार चक्रवर्ती तारी सो कन्याओनो अने भानुवेगनी कन्याओनो पण प्रियतम पति थो (६६१). तेनी कृपाथी तुं पण तारा कुटुंब अने राज्यना ं विपयमां निश्चित थईने सद्धर्मनो साधक बनीश'. एटले में कयुं, 'हे साधुवर्य, तेने कई रीते ओळखवो ते मने कहो'. एटले मुनिवरे आदेश दींधो, 'घोडो जेनुं अपहरण करीने महान अटवीमां नाखशे, त्यांथी जेणे पूर्वकृतं पुण्यना माहात्म्य थी प्राप्त करेला उत्तम चरित्र वडे जगतने जीत्युं छे अने उचित कार्यमा जे दक्ष छे तेवो कमक्ष यक्ष जेने पोताना हाथ ऊंचकीने) मानससरोवरमा मूकशे, अने जे पोताना शत्रु असिताक्ष यक्षना दर्पनुं मर्दन करशे, ते तारी पुत्री ओनो हृदय प्रिय थशे एमतुं . Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ सनत्कुमारचरित . निश्च जाणजे'. (६६२-६६३). एटले में का, 'हे मुनिराज, एवा ते नररत्ननो असिताक्ष यक्ष शा माटे वेरी बन्यो ?' एटले सूरिए कडं, 'खरेखरो तो प्राणीमात्रनो शुभ अने अशुभ कमेथी प्रेरायेलो आत्मा ज ा जीवलोकमां तेनो मित्र के शत्रु बने छे. तो हे खेचरराज, आ बाबतमां पण तेवो ज हेतु छे ते तमे जुमओ. (६६४) : कनकपुरनगर नामना द्वीपमां पोताना तेजे सूर्यने पण जीतनार, कांतिथी प्रकाशतो, शत्रुमर्दन, याचकप्रिय, दानप्रिय, धीरचरित, दुर्नयखंडन, शरच्चंद्रनी जेम अनेक गुणरत्नोनो निधान, अने जगप्रसिद्ध विक्रमयश नामनो राजा हतो. (६६५), तेने उत्तमकुळमां जन्मेली, शरच्चंद्र जेवा यशवाळी, कुंदकळी समी दंतपंक्ति वाळी, विकसता मुखकमळ वाळी, त्रस्त मृगशिशु समां नेत्र वाळी, रतिदक्ष पांच सो राणीमओ हतो. तेमनी साथे राजा विषयसुख भोगवी रह्यो हतो. (६६६). त्या सर्वत्र लोकोमा ख्याति धरावतो नागदत्त नामे एक सार्थवाहपुत्र हतो. तेणे पोताना धन, धान्य, सुवर्ण ने रत्न वडे कुवेरना वैभवने पण हसी काढयो हतो. नगरलोकोमा ते सर्वाधिक बुद्धिशाळी हतो. पोताना चंद्रनिर्मळ गुणोने लाईने तेणे खूब यश अने कीर्ति प्राप्त कर्या हता. ते असाधारण रूपवान अने स्थिर प्रकृतिनो हतो. (६६७). तेने विष्णुश्री नामे जगतमां जाणीती हृदयवल्लभा पत्नी हती. ते पृथ्वीना उत्तम शणगार जेवी ने असाधारण लावण्यना निधि जेवी हती. देवता अने गुरुना चरणकमळने ते पूजती. तरुणोना मनरत्न निःशंकपणे हरनारी ते नवयौवना, मृदुभापिणी, गंभीर चाल वाळी अने महान गुणरत्नोथी समृद्ध हती.(६६८).. एक दिवस सुंदर शणगार सजीने सवारीमा पसार थता राजाए रस्तामां सहजपणे देवांगना पर विजय मेळवी लेती एवी विष्णुश्रीने जोई. तेने जोतां ज तेने खब काम व्यापी गयो. तेनां अंगोपांग विकळ थई गयां. संकल्पविकल्प करतो ते विचारवा लाग्यो (६६९), 'जो हुं आजे आ रतिने जीतनारी चंद्रवदना तरुणीनी साथे विषयमुख नहीं भोग, तो असुखथी व्याप्त एवो हुँ मरण ज पामीश एम मने लागे छे. दूर रहेली प्रियतमाथी मनने कशो संतोप न थाय; सूर्यास्त थतां चक्रवाक दुःखी थाय छे तेमां बीजो कोई दोप कारणमूत छे खरो (६७०). एटले माणसो रोकीने ते बालाने पोताना महेलमां लवरावीने मने तेनी विविध आगतास्वागता करावीने राजाए 'जगतमां आ तरुणी सर्वश्रेष्ठ छे' एम विचारी तेने अंतःपुरमा नारखी. अनुकूळ अवसरे प्रवृत्त थईने राजाए विष्णुश्रीनो एवी रोते उपभोग को जेथी करीने तेनो मद्नाग्नि शांत थईने नामशेष बनी गयो. (६७१). Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित हवे नागदत्त 'आ राजानुं कृत्य छे' एम सांभळीने राजानी पासे मागणी करवा छतां पोतानी पत्नी पाछी न मेळवी शक्यो. तेना विरहमां तेने मित्रो ने स्वजनोथी भरेल पोतानुं घर भूते उजाड्युं होय तेवू लागतुं. सज्जनो तेनो शोक करता, तो दुर्जनो तेनी निंदा करता. आखी नगरीमा रझळतो ते केवी केवी जातनी चेष्टा नहोतो करतो ? (६७२). नोकरचाकर नासी गया. मित्रो ने स्वजनो तेने तनी गया. तेनुं मान नष्ट थई गयुं. दुर्जननां मन प्रसन्न थयां. सज्जनो दुःखी थया. छोकरांओ तेनी पाछळ टोळे वळवा लाग्यां. खावं, पीवं ने शरीरशणगार तेणे तजी दोघां. 'विष्णुश्री तुं मने छोडीने क्यां गई ?' एम बोलता तेने क्यांक भमतो राजाए अने विष्णुश्रीए जोयो. (६७३). पण गाढ स्नेह होवाथी राजाए विष्णुश्रीने मुक्त न करी. हवे दुष्ट विधिना निर्माणथी राजानी बीजी बधी राणीओए अमर्शने लईने सज्जनोथी निंदित एवो औषधप्रयोग कर्यो, जेथी भोगोपभोगथी वंचित बनीने विष्णुश्री तरत ज मरण पामी अने एम तेना इहलोक अने परलोक बंने विफळ थयां. (६७४). ___एटले तेना विरहे त्रणेय भुवनने तद्दन शून्य मानतो राजा ते ज क्षणे मूर्छा पाम्यो, तेनी आंखो मिचाई गई अने मृत अवस्थामा रहेली विष्णुश्रीनी उपर ते पड्यो. मंत्रीओ हाहारव करवा लाग्या. नगरना महाजन विलाप करवा लाग्या, अने अत्यंत शोकग्रस्त बनीने राजानी चिकित्सा कराववा लाग्या. (६७५). कांईक चेतना प्राप्त थतां राजा अतिशय दुःखने लीधे अत्यंत चित्तविकळ बनी गयो. ते घडीकमां ऊभो थतो, घडीकमां सूई जतो, घडीकमां हसतो तो घडीकमां दःखद रुदन करतो. पोतानी प्रियतमा भोजन लेती न होवाथी ते पण जरीके भोजन लेतो न हतो. तेनी पासेथी ते सहेज पण खसतो न हतो (६७६), तेम बीजा कोईने तेने अडकवा पण देतो न हतो. एटले प्रधानोए मंत्रणा करीने, गमे तेम करी राजानी नजर चूकवीने विष्णुश्रीने ऊंचकावी लईने जंगलमां नाखी दीधी. एटले पोतानी प्रियाने न जोता विक्रमयश राजाए भोजन अने जळ त्यजी दोघां अने आंसुथी डहोळायेली आंखे ते विलाप करवा लाग्यो. (६७७). एटले पोतानी प्रियाने नहीं जोवाथी राजा रखे मरण पामे एवा भयथी सौ प्रधानोए मंत्रणा करी अने स्वामीनुं हृदय गमे तेम करीने स्वस्थ करवू जोईए एम विचारीने तेमणे तेनी समक्ष कह्यु, 'देव तमारी प्रियतमानां दर्शन करीने, कृपा करीने प्रसन्न चित्ते भोजन करो.' (६७८). एटले, 'क्यां छे ? क्यां छे ए चंद्र Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सनत्कुमारचरित मुखी विष्णुश्री ?' एम बोली राजा ऊन्यो, अने प्रधानोना कहेवाथी घोडे चडी, पोताना उत्तम परिचरोथो वीटळाईने त्रण लांघण पछी चोथे. दिवसे ज्यां वनमां नखावी दीधेली विष्णुश्री पडो हती त्यां पहोंच्यो. (६७९). त्यां जेना शरीरमां भरपूर परुमां कीडा खदबदता हता, सेंकडो कागडाओए जेनी आंखो ठोली नाखी हती, जेने अनेक गोधो, सेंकडो शियाळो अने हजारो कूतराए करडी, खाधी हती, जेना दांत गळी पड्या हता, मोढुं बीहामणुं बनी गयुं हतुं,. दुर्गंधथी जे जुगुप्सित लागती हती, हजारो पंखीओ जेना पर तूटी पड्यां हता, तेवी विष्णुश्रीने राजाए भाळी. (६८०). आथी वैराग्य स्फुरतां, धिक्कार छे, जेने कारणे में रमतमात्रमा शीलरत्न कलंकित कयु, कुळक्रम त्यज्यो, बधा य सज्जनोने आघात आप्यो, प्राकृत आचरण कयु, अपयश फेलाव्यो, अने जगतमां मारी ज़ातनी वगोवणी करावी, तेनी आवी मूरत थई गई ?' (६८१) ए प्रमाणे राजा विचारंवो लाग्यो. अने राज्यने पांजरा समुं, मित्रो ने स्वजनोने बंधन समा, विषयसुखने विषवृक्षना फळ समुं, तारुण्यने जळबिंदु समुं, जीवतरने हाथीना बच्चाना कान समुं, तरुणीओने दुर्गतिनी सरणि समी, चित्तने इन्द्रधनुष समुं, शरीरने बधी आपत्तिना घर समुं, तो प्रियजनना संगने अशुभ समो मनमा निर्धारीने, परमार्थने प्रोछीने, अर्धी क्षणमा ज उपर्युक्त वधी चीजवस्तु अने राज्यरिद्धि तजी दईने, पोताना समग्र कुटुंबने सुस्थ करीने, योग्य . मुनिमहाराजनी पासे जईने, जे पापना प्रपंचने पामी गयो छे तेवा ते राजाएं पुलकित बनीने तपश्चर्या लीधी. (६८२-६८३). . .. . ... ए पछी पापकर्मोनी ते निंदा करतो, गुरुना उपदेशने अनुसरतो, प्रायश्चित्त . अने तपश्चर्या सेवतो, मुनिने योग्य क्रियामोनुं अनुशीलन करतो, प्रयास करीने बधां शास्त्रोनो अर्थ ग्रहण करतो. ते एटले सुधी के टूक समयमां ज तेणे वे प्रकारनी शिक्षानुं ज्ञान मेळव्यु, अने बधो अंतिम समयनो विधि आचरीने पोतानी दिक्षाने सफल करतो ते पोताना भारे पापसमूहनो क्षय करीने, पुण्यभार संचित करीने, आ औदारिक शरीर तजी दईने, जीजा देवविमानमा पहोच्यो. दुःखे त्रासेलो नागदत्त पण भारे पापसमूह वांधीने मरण पाम्यो अने चार प्रकारनी. गति वाळा अने दुःखभारे भरेला घोर संसाररूपी वेरानमां पडयो. (६८४-६८५). पछी पुण्यथी रक्षित ते श्री विक्रमयश देव पोतानी अवस्थानी अवधि पूरी थतां शुभ दिवसे अने मुहूर्ते स्वर्गमाथी च्युत थयो भने सकडो पवित्र स्वप्नोना । संकेतोथी सूचवातो ते रत्नपुरना कोईक मोटा शेठना घणा. ज लवणवंता पुत्र Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १११ तरीके जन्म्यो, जेथी करीने शेठना मित्रो अने स्वजनो आनंदित थया. (६.८६). ते पछी पिताए मोटी धामधूमथी पुत्रनुं स्वप्न अनुसार जिनधर्म एवं. नाम पाडयु. अनुक्रमे ते बाळक होवा छतां ये शरदना चंद्र जेवी निर्मळ बुद्धिने कारणे अने गुरुनी कृपाथी ढूंक समयमां ज समग्र कलासागरनो पार पामी गयो, तथा जिनशासनना जाणकार तरीके पण तेनी नामना थवा लागी. (६८७). काळयोगे तेना. पिता कीतिशेष बनतां वधा सज्जनोए भेगा मळीने तेने ज़ तेना पिताना घरनो स्वामी . बनाव्यो. एटले पोताना अनेक गुणो अने धर्मिष्ठताने लीधे ते जातवान अने अनुपम कीर्तिरूपी गृहिणीने पायो-जे धरती पर प्रकटपणे प्रसिद्ध हती अने जेना तेजथी दशे-दिशा ऊजळी बनी हती. (६८८). आ अरसामां संसारमा भ्रमण करीने नागदत्तनो जीव पण. पोताना कर्मानुसार श्री सिंहपुरना कोईक ब्राह्मणने त्यां पुत्र तरोके जन्म्यो. अग्निशर्मा नामे जाणीतो ते क्रोधी प्रकृतिनो अने मत्सरी हतो. ते कुलाचार पाळतो न हतो अने वेदविद्याथी वंचित हतो. (६८९). एवा ज कोईक गुरुना चरणमा परिव्राजक व्रत लईने आखो धरतीमां रखडतो अने उद्दड बालतपस्वीमोमां धर्मपालन वडे कीर्ति रळीने ते विधिना आदेशथी रत्नपुरना राजाना महेलमां आवी पहोंच्यो. एटले तेना तपनो वृत्तांत सांभळीने नरवाहन राजाए (६९०) कछु, 'हे महर्षि तुं आजे मारे त्यां पारणुं करजे.' ते वेळा ते बालतपस्वीए त्यां रहेला जिनधर्मने जोयो अने रोषे धूजता ते नीचे का, 'हे राजा, हुं तारे त्यां अवश्य पारj करीश-शरत एटली के तारे मने भोंय पर नीचे मोढे बेठेला आ वणिकनी पीठ पर कांसानी तांसळी राखीने तेमां ऊनी ऊनी खीर भोजनमां आपवी, केम के में आजे सवारे ज आदरपूर्वक आवो असाधारण नियम लीधेलो छे.' एटले विधिवश राजाए जिनधर्मनी अनिच्छा छतां तेने बहु दबाणथी कहीने केमेय करीने तेनी पासे ए कर्म कराव्यु. (६९१-६९२). एटले जेनुं नाम लेवा योग्य नथी तेवो ते नीच सहर्ष ते ऊनी ऊनी खीरनुं भोजन बहु ज धीमे धीमे करवा लाग्यो. पेलाए बतावेली रोते साव भोंय पर वेठेला जिनधमेनुं चित्त पण पीठ पर मूकेली धगधगती कांसानी तासळीना दाहथी संसारथी उद्विग्न थई गयुं अने निर्मळ अने पवित्र विवेकपूर्वक ते भावना भावा लाग्यो (६९३), 'अरेरे जीव, तुं बीजा कोईनी उपर सहेज पण रोष म धरजे. आ दुःखदायक भवगहनमां एवो कोण छे के जे मनने अगोचर एवी जातजातनी आपदो न पामे ! पोते पूर्व भवमा रळेलां शुभ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર सनत्कुमारचरित अने अशुभ कर्मों सिवाय बीजा कोने कोईनुं सारु के खराब करवानो जश के अपजश आपी शकाय ? ( ६९४). संसार सळगता घर जेवो छे, पण मोक्षपुरे उपद्रवरहित छे. विषयो दुःखद छे, पण मोक्षमार्ग सुखद छे. शरीर चंचळ छे, पण धर्मं अचळ छे. सद्गुरु सुखकारक छे, पण दुर्जन दुःखकारक छे. नियंत्रित 'न होय तेवो आत्मा शत्रु छे, पण ते ज ज्यारे नियंत्रित कराय त्यारे मित्र छे. तो हे जीव, बीजा उपर रागद्वेष छोडीने तुं रहे.' (६९५), आम मेरु जेवा दृढ अने सागर जेवा गंभीर चित्ते ते विचारतो हतो त्यारे पेला नीच बालतपस्वीए बहु ज धीमे धीमे ते ऊनुं ऊनुं मिष्टान्न आरोगीने सहर्षे जेवी ते तांसळी शेठनी पीठ उपरथी जेम तेम करीने उपाडी तेवी ज ते लोही, वसा, मांस अने स्नायु सहित ऊखडी आवी. (६९६). . 'अरेरे, आ पापिया तपस्वीने धिक्कार छे, धिक्कार. छे. एणे आवा धर्मनिधि पुरुषरत्ननी केवी विडंबना करी ? राजाए पण आनी पासे निष्कारण आवुं अकार्य केम कराव्यं ? विषम कर्मविपाक वाळा आ असार संसारमा करेलां शुभअशुभ कर्मोथी मोटामां मोटा माणसो पण परलोकमां छूटी शकता नथी.' (६९७) ए प्रमाणे बोलातां देव अने गुरुनां वचन रूपी परम अमृतथी जेनुं शरीर सिंचित थयुं छे तेवो, रागद्वेषथी मुक्त मन वाळो, अतिशय दुःखार्त जिनधर्म पोताने घरे आव्यो अने कर्तव्यमा आळस कर्या विना मित्रो अने स्वजनो सहित चतुर्विध संघने भेळो करीने ते कुळ उजाळनाराए तेमनां पूजासत्कार कर्या. ( ६९८ ). पोताना घरनी सारसंभाळनो प्रबंध करीने, मित्रो, स्वजनो, धन अने धान्य त्यजी दईने, .हृदयमां जिनेश्वरनुं शासन धरीने, उत्तम तपश्चर्या अंगीकार करीने, पर्वतप्रदेशमां जईने अनशन ग्रहण करीने कायोत्सर्ग अवस्थामां पूर्व दिशामां तेणे पंदर दिवस गाळ्या. ते ज प्रमाणे बाकीनो त्रणे दिशाओमां पण तेणे पंदर पंदर दिवस गाळ्या. (६९९). ए प्रमाणे बे मासनी अतिशय दुष्कर उग्र तपश्चर्या करीने, ढेंक, कंक बगला, घुवड, कागड़ा, सींचाणा, शियाळवां, वरु, रानी बिलाडा, रींछ अने कूतरा वडे पीठनो भाग खवातो होवा छतां मेरुशिखर जेवुं स्थिर चित्त राखीने ते पवित्र पुरुष मरण पाम्यो अने, सौधर्म कल्पमां ते सुरेंद्र थयो. (७००). पेलो अग्निशर्मा पण ए जातना पोताना दुश्चरित्रथी मित्रो अने स्वजनोने खिन्न करीने, बालतपस्या आचरवामां तत्पर अने ज्ञानीओथी तिरस्कृत थयेलो पोतानां दुष्कृत्योने साथै लईने मरण पाम्यो भने स्वकर्मना परिणामे ते सौधर्मकल्पमां सुरेंद्रनुं वाहन ऐरावत थयो. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित (७०१). योग्य अवसरे तेने शणगार सजावीने आभियोगिक देवो सुरेंद्रनी पासे लई आव्याः तेने जोईने हाथीने भारे विषाद थयो भने चित्कारथी दिशाओ भरी दईने ते भडकवा लाग्यो. त्यां तो हाथमां वज्र अने अंकुश धरीने इन्द्र तेना पर आरूढ थयोः (७०२). एटले हाथीए पोताना शरीरनु कद बमणुं कयु: इन्दे पण -पोतानुं. बमणुं कयु. हाथीए चोगणु कयु एटले इन्द्रे पण चोगणुं कयुं. ते पछी बने आठ गणा थया. वधु शुं कहेवू ? भारे विषादी ते हाथीने जलदी थकवीने इन्द्र ते वेळा तेना पर आरूढ थयो. (७०३). ए प्रमाणे पहेलां करेला पोतपोतानां कर्म अनुसार जेमने निरन्तर भारे सुख अने दुःखनो अनुभव थई रह्यो छे तेवा ते इन्द्र अने ऐरावत बनेना दिवसो वीतवा लाग्या. . ऐरावत त्यांथो च्यत्रीने सर्वांगे दु:खकर अने धार्मिकोने कंपावता एवा चतुगति संसारमा पडयो. (७०४). इन्द्र पण पोतानी अवधि पूरी थतां च्यवीने श्री हस्तिनागपुरमां अश्वसेनराजानी निष्कलंक राणी सहदेवीनी कमळ जेवी कूखमां चौद स्वप्नोथो सूचित, गुणरत्नोनुं निधान भने त्रिभुवनने आनंदकर एवा सनत्कुमार नामे पुत्र तरीके अवतो. (७०५). चतुर्गति भवगहनमा भमीने, जातजातना हजारो जन्ममरणथी हेरान थईने दास, चाकर, दरिद्री अने दुःखी तरीके परवश बनी विलाप करतो ऐरावतनो जीव पोते करेला कर्मने अनुसरीने वैताढ्यपर्वतमां असि ताक्ष नामे यक्ष तरीके अवतो. (७०६).. . ... ... : आ प्रमाणे तारुं वृत्तांत ढूंकमां कहीने मुनिपुंगव अचिमाली बीजे विहार करी गया. भानुवेग पण मारा कहेवाथी पोतानी कुंवरीओने लईने मानससरोवरनी निकटमां जईने तारा वचगाळाना वास माटे प्रियसंगम नामना अमरावती : जेवा नगरन निर्माण करीने. रह्यो. (७०७). ते पछी तेणे तने ते प्रमाणे पोतानी आठ पुत्रीओ त्यारे परणावी. पण तारा चरणयुगलने मारा हृदयमां धरीने हुं तारी सेवा करीश. तने एकलो छोडीने भानुवेग स्वस्थाने गयो छे, तो हे प्रभु, तुं ए अपराधंनी क्षमा करजे. (७०८). ... . ए. प्रमाणे कहीने चंडवेगे धामधूमथी ए सो अनुपम कन्यामओ कुमारने परणावी. पछी विशाळ विद्याधरराज्य: सहित ते विषयसुख भोगववा लाग्यो. शरदना : चंद्र जेवी : निर्मळ बुद्धि वाळा विद्याधरराज चंडवेगे पण सनत्कुमारने पोतानुं कुटुंब भने संपत्ति सोपी दोधा (७०९), अने योग्य गुरुना चरणमां जईने ए: विद्याधरचक्रवर्ती Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित चारित्र्य सेववा लाग्यो, आ प्रमाणे केटलोक समय बीत्यो. पण आजे कोण जाणे केम कुमारे अमारी सौनी समक्ष एकांतमां कडं, 'चालो जलदी, मानससरोवरमां जलक्रीडा करवी !' (७१०). एंटले सुनंदा वगेरे राणीओ वंडे तथा उत्तम परिचारको वेडे सेवातो आर्यपुत्र जेवो अहीं आव्यों तेवो ज हे नररत्न, तु पण आवी पहोंच्यो', ए वेळा कुरुकुळनो गगनचंद्र पण ऊठीने विकसेला मुखकमळ साथे कंदलीगृहमांथी बहार आव्यो ७११). ते पछी स्वजनोने आनंदित करता, मेरुपर्वत जेवडा पूर्वे रळेला पुण्यसमूहने लोधे सुंदर, समग्र भुवनमा विस्तरेल निर्मळ ने बहोळी कीर्ति वाळा अने सरळ स्वभाव वाळा ते बंने जण समयोचित क्रिया पतावीने श्री वैताढयपर्वत उपर गया, (७१२). पछी बने विद्याधरश्रेणीओ पर. तरत ज पोतानी आण सर्वथा प्रवर्तावीने, तावे थता विद्याधरोनो उचित राज्याभिषेक करावतो, अनेक विधाधर कुमारीओने परणतो तथा जाते ज केटलीक विकसितमुखीओने राणीओ तरीके अंतःपुरमां स्थान आपतो (७१३) कुमारश्रेष्ठ सनत्कुमार, सूरराजाना पुत्रने मुखे, 'तमारां मातापिता तमोरा विना दुःखी थई रह्यां छे', एम सांभळीने, अनेक लाख विद्याधरराजाओ वडे अन्तरीक्षने भरी देतो अने समग्र जगतमां पोतानी महत्ता प्रगट करतो: हस्तिनागपुर पहोंच्यो. (७१४). . ते पछी तेणे मातापितानां चरणकमळनुं अभिवादन कयु, स्वजनोनुं भव्य स्वागत कयु, याचकोने विभूषित कर्या, जगतना लोकोना मुख पर संतोष प्रगटाव्यो अने बाजुमा रहेला सूरराजाना पुत्रने मुखे मातापिता अने अन्य जनोने पोतानो वृत्तांत आदिथी अन्त सुधो कही संभळाव्यो. (७१५). . एटले जाणे के अमृतकुंडमां झबोळायो होय, कल्पवृक्षनी प्राप्ति थई होय, घरमा ज कामधेनु अवतरी होय, चिंतामणि पाम्यो होय के चक्रवर्तीपदे राज्याभिषेक थयो होय तेम मित्रो अने स्वजनो सहित अश्वसेनराजा हर्षावेशथो भने सुक्ष्म विवेकपूर्वक विचारवा लाग्यो (७१६), 'अहोहो ! सारा कुळमां जन्म, . मति अद्भुत रूपश्री, विघ्न विनानुं जोवतर, जगतमां सर्वाधिक पांडित्य, पोताना भुजावळे रळेलु विपुल भोग माटे पूतुं धन, लोकने चमत्कृतं करतुं राज्य अने पराक्रमथी प्राप्त करेली दूर विस्तरती. कीर्ति-जगतमा ओ बधु धर्मना फळ तरीके धीर पुरुषो मेळवे छे. (७१७)'-आ प्रमाणे विचारता राजीए Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ - सनत्कुमारचरित आँखा नगरमां मोटी धामधूमथी वधामणी करावीने, विस्तरती समृद्धि . वाळा तेणे कुमाररत्नने राजगादी पर वेसार्यो. पछी मित्रो अने स्वजनोनी रजा मेळवीने, गुरुजनोनी भक्ति करीने, बंदीजनोने छोडी मूकीने, जिनेश्वरनी पूजा करीने (७१८), धर्मकथा सांभळीने, हृदयमा मंगळकारक जिनवचन धरीने, सांसारिक सुखथी विरक्त मने, योग्य गुरुनां चरणमां पोतानी राणीओ अने अनेक राजपुत्रो सहित राजा अश्वसेने चारित्र्य स्वीकार्यु भने एम ते पवित्र राजर्षि सद्गतिने पाम्यो. (७१९). - समयंप्रभावे, पोताना भुजावळे अभ्युदय प्राप्त करनार अने अनेक संमरांगणोमा कोतिलताने फेलावनार सनत्कुमारे पोताना पुण्यंबळे हजार वरस वीतता सुधीमा क्रमे क्रमे भरंतचक्रवर्तीनी जेम सुखेंथी छखंड पृथ्वीने साधी. (०२०). वळी सुनंदा वगेरे स्त्रीरत्नोंमां मुख्यं अने जगतगां सर्वोत्तम एंवी चोसठ हजार राणीओ, अति अंदभुत मुंजावळ वाळा बत्रीश हजार सामंतो, चोराशो लाख हाथी, घोडा अने रथे-प्रत्येकं, नव निधिं अनें मनमान्यु आपनारां चौद रत्न (७२१), तथा बीजों पण भैरतगंजा जेवो वैभवं पूर्वसंचित पुण्यना योगे हूंक समयमा ज मेळवीने अने कीर्तिरूपी प्रियतमाने दशे दिशामां मोकलीने ते पोतीने नगर आवी पहोंच्यो. . ए वेळा सौधर्मेन्द्रे एवी शोभा अने वैभवथी शोभता सनत्कुमारराजाने सहर्ष जोयो. (७२२). एटले आदरसहित तेणे वैश्रवणने कह्यु, 'भद्र, मारो आदेश छे के तुं सहदेवीना पुत्र, चोथा चक्रवर्ती सनत्कुमारनी पासे जलदी जईने सोळ हजार यक्षोना प्रणाम साथे मारी आ भेट तेने धर अने तेनो चक्रवर्ती तरीके राज्याभिषेक तुं कर.' (७२३). . . एटले पोताने कृतार्थ मानतो वैश्रवर्ण सहर्ष प्रणाम करीने जलदी जलदी पोताना स्वामीना आदेशथी उत्तम सिंहासन, छत्र, मुकुट, हार, कुंडळ, चामर, पादुकानी, जोड, उत्तम माळा अने उत्तम पादपीठ-के जे बघां शोभाना धाम जेवां हंतां-तेमने साथे लईने, हस्तिनागपुर जईने, कुरु कुळना यशकलशनां चरणमा सविनय नमोने कहेवा लाग्यों, ‘सौधर्मेन्द्रे मने अत्यारे तमारी पासे मोकल्यो छे, अने तमारो चक्रवर्ती तरीके महान राज्याभिषेक कराववाने आ तमारे योग्य दिव्य मेंट मोकली छे. (७२४-७२.५): आगला जन्ममां तुं जे सौधर्म कल्पमा. अति Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ सनत्कुमारचरित विशाल समृद्धि वाळो इन्द्र हतो ते ज कल्पमां ए हमणां सुरेन्द्र थयो छे, अने एटले मोटो भाई गणीने ते तारो सत्कार करावे छे, अने मारे मुखे अत्यंत आदरपूर्वक तारा प्रत्ये भक्ति प्रकट करे छे'. (७२६). • ए प्रमाणे सांभळीने चक्रवर्तीए संतोपथी विकसता वदनकमळ साथे ते सघळी भेट स्वीकारी, अने वैश्रवणने पोतानी पासे ऊंचु आसन आप्युं. ए पछी वैश्रवणे एक योजन भूमिमांथी धूळ, कचरो अने घास आभियोगिक देवोनी पासे साफ कराव्यां (७२७), अने, वज्र, मरकत, पुलक, वैढूर्य, चंद्रकांत, सूर्यकांत वगेरे पचरंगी रत्नो वडे बनावेली अने किरणोथो अंधकारने अजवाळती उत्तम पीठिका रची. तेना पर पोताना. अनुपम महिमाथी देवविमानने पण जोती ले तेवो, ऋण भुवननी सुंदरताना धाम रूप अभिषेकमंडप बनाव्यो. (७२८). तेनी अंदर पूर्व दिशानी अभिमुख सिंहासन स्थापी तेनी आगळ पादपीठ मूकी, शुभ मुहूर्ते ते उत्तम नरने आसन पर वेसारीने अने क्षीरोद समुद्रमांथी आभियोगिक देवोनी पासे मणि अने कांचनना कलश वडे निर्मळ जळ अणावीने ( ७२९), तेने पछी मगध, गंगा, वरदाम आदि उत्तम तीर्थोना जळ तथा पुष्प, गंध अने औषधिओ लईने, 'आ नररत्ननो पृथ्वीमां चिरकाळ जय हो, जय हो' एम वारंवार बोलीने, ज्यारे विद्याधर, मनुष्य अने देवोनां वृन्द मंगळ उच्चारतां हतां, मागणो अने स्वजनोने इच्छानुसार आपवामां आवतुं हतुं (७३०), ज्यारे ढोल, मृदंग, तबलां, ढक्का, फांसाजोड, ताल, वांसळी, वीणा, काहला अने बुक्का तथा करडि, भंभा, मेरी अने हुडुक्का ऊंचा स्वरे वागतां हतां, ज्यारे इन्द्रना आदेशथी रंभा, तिलो'तमा अने उर्वशी तरत ज आवीने नाटारंभ करी रही हतो ( ७३१), त्यारे अतिशय भारे धामधूमथी चक्रवर्तीनो राज्याभिषेकमहिमा संपन्न करीने वैश्रवणे इन्द्रने सघळो पूर्व वृत्तांत निवेदित कर्यो. नररत्न सनत्कुमार पण चक्रवर्तीपद पामीने जाणे के अनन्य सुधामृते सिंचित थयो होय तेम छखंड धरती भोगववा लाग्यो. (७३२). एक दिवसे ज्यारे देवराज इन्द्र रंगमंडपमां सौदामिनीनाटक जोवा पोताना परिवार साथै सहर्ष वेठो हतो त्यारे ईशानकल्पमांथी कोई एक देव कार्यप्रसंगे तेनी पासे आव्योः तेणे आखा शरीर पर आभूषण पहेर्या हतां अने पोतानी देह- कांतिना विस्तारथी ते वांजा बधा देवोनी कांतिने हसी काढतो हतो. (७३३). ए. वेळा इन्द्रे तेनो सत्कार कर्यो अने कामकाज पूरुं करीने ए देव स्वस्थाने गयो. 1 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १२७ ए पछी सौधर्मकल्पना देवोए शंकित बनीने इन्द्रने कयुं, 'हे स्वामी, पेला देवे तो पोतानी देहकांतिथी बधा ज तेजस्वी देवोना तेजने हरी लीधुं !' (७३४). एटले देवराजे कयुं, 'एणे तेना पूर्वभवमां अतिशय भावशुद्ध, पवित्र अने एकाग्र चित्ते आयंबिल वर्धमान तप आचर्युं हतुं, अने ते तपना तेजे करीने ते असामान्य कांति - (७३५). कलाप वाळो अने ईशानेंद्रना जेवी शोभा धरावतो देव थयो छे', देवोए प्रणाम करीने फरीथी पूछयुं, 'हे स्वामी, कृपा करीने कहे, पूर्व पुण्ये प्राप्त करेली आवी तेजसमृद्धि बीजुं कोई आ त्रण भुवनमां धरावे छे खरुं ?' एटले सहेज हसीने देवराजे कयुं, 'अरे ! एनुं पुण्य ते केटल ? एनी तेजसमृद्धिनो विलास पण केलो ? अरे, त्रण जगतना रंगमंच पर विलसता बीजा बधाये एकत्र थयेला विद्याधर, देव अने असुरना राजवीओनी पूर्वोपार्जित तपसमृद्धि अने देहकांतिनो पण शो हिसाब, जे तपसमृद्धि अने देहकांति, केवळ मनुष्य होवा छतां पण, चंद्रनिर्मळ यशवाळो अने अश्वसेनना कुळरूपी कमळसरोवरने शोभावता कलहंस समो सनत्कुमारनरपति धरावे छे (तेनी आगळ) ?' (७३६-७३७) वेळा देवराजनी सभामा रहेला वे देवकुमारने कांईक मत्सरनो भाव थयो: 'भला, जे मात्र मनुष्य छे तेनी बाबतमां आवी वात कई रीते बने ? : ए प्रमाणे विचारता तेमने आ विषयमा शंका थई. ते पछी तरत तेओ ऊपड्या (७३८), अने दैवी शक्तिथी बटुकनुं रूप धरी जलदी हस्तिनागपुर नगर आवी पहोंच्याः द्वारपाळे सनत्कुमार चक्रवर्तीने तरत ज तेमनी जाण करी. त्यार बाद म तरत ज प्रवेश कराव्यो. स्नान करीने ऊठेला सनत्कुमारे ते वेळा परदा पाछळथी तेमने (७३९) कर्छु, 'कहो, तमे कया कामे अहीं आव्या छो ?' परदा पाछळथी सनत्कुमारनो चरणनों अंगूठो जोई गयेला ते ब्राह्मणोए हर्षविकसित लोचने उत्तर आप्यो, 'हे स्वामी, तारी रूपसमृद्धि जोवा माढ़े अमे घणे दूरथी आव्या छीए.' एटले चक्रवर्तीए कर्तुं ( ७४०), 'भद्र, जो एम होय तो तमे चॅने बपोरे · आस्थानमंडपमां मारी पासे आवजो - त्यां सर्वांगे शणगार सजेला मने फरीथी जोजो.' ए प्रमाणे चक्रवर्तीनुं कथन सांभळीने, ते राजसभामां बेसवा जाय · त्यां सुधीमां पेला देवो कशेक गया. (७४१). . पछी पुण्यहीन लोकोना हैयाशूळ समां बंदीगणोना स्तुतिपाठ, गायनोना गायन, नट, नर्तक अने गोडियानां नृत्य, मंगळविधि अने सेंकडो मागणाने अपातां • यथेष्ट दान साथे चक्रवर्तीनो स्नानविधि पूरो थयो ( ७४२ ); शंखनादे मध्याह्ननी " Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ___सनत्कुमारचरितः जाणं थई; मेंरोना झंकारे वारांगनाओंए समयं जंणाव्यो, तूर्यरव शमतां सेवको पोताने घरे गया; नृत्य करता नटो अंने नाट्यकारी स्वस्थाने पहोंच्या वधा अधिकारीओ श्रमविनोदमां मग्न बन्या (७४३); दोडीने जैलदी एंकठा थयेलों प्राहरिकोए समयसूचक शंख वगाड्या; असंख्य अतिथिगृहो अने सत्रशाळाओनी साफसूफी कराई; अग्रासन पर बेसनारा ब्राह्मणोने तैयार करवामां आव्या; कृपण, अनाथ अने मागणोने भोजन आपवामां आव्युं (७४४); वारांगनाओने सज्ज करवामां आवी; गजानी भोजन-पीठिका पासे वैद्यो अने मन्त्रवादीओ पहोंची गया; जमनाराओ आवी पहोंच्या; वैश्वदेवने आहुति : अपाई; चकोरोना पांजरा महींथी तहीं लई जवाया; वृक्षनी टोचे रहेलां फलको पर वायसपिंड नखाया. (५.४५). तरत ज शालि, शिखरिणी, सूप, पक्वान्न, मध, घी, तिम्मण, दही, दूध, तथा अनेक पानक अने उत्तम व्यंजननी बनेलो, मधुर, कषाय, कटु, तिक्त, लवण (कोरे स्वाद वाळी), जगतनुं रंजन करनारी, शीघ्र धातुवृद्धि करनारो, सेंकडो पुण्यो करनारने ज प्राप्त थाय एवी रसोई दरबारी रसोईयाओए पीरसी. (७४६). ते पछी साकर, द्राक्ष, खजूर, अखोड, दाडम, कलमशालि, दाळ, व्यंजन, घेवर, . लापशी, झूठ, सेव, लाडु, मुरको, सुंवाळो, सांकळी, मांडा अने भडभडिया. वैद्यक अनुसार चक्रवर्तीए अन्य जमनाराओनो साथे आरोग्यां (७४७). ते पछी लवंग, एलची, कपूर, जंबीर, जायफळ, तज, तमालपत्र, जावंतरी, ककोल, सोपारी, नागरवेला पान अने कपूरनी बोडी आरोगी अने मस्तकथी नुमता सेवकोने पण यथायोग्य आपी. आम तेणे वधा भोगोनो रस माण्यो (७४८). ते पछी कस्तूरी, सघमघतुं हरिचंदन, केसर, सूखड़, अगर अने कपूरना मिश्रण वाळु, शतपत्रो, चंपो, करणं अने जाईनां फूलनी पांखडोओना सुगंध वाळु, सहस्रपाक वडे तैयार करेलु विलेपन अंगे लगाड्यु, देवे दोधेलां आभरणो सर्वागे सज्यां (७४९). ते पछी पोतानी स्वाभाविक कांतिनी अतिशयताथी देव अने असुर रूपी नक्षत्रो अने चंद्रने झांखा पाडता सूर्य समा-पूर्व कर्मथी प्राप्त इंढ संधिबंध युक्त सुंदर सर्वाग वाळो, अनन्य आभूषण सजेलो, देवताई दुकूळ पहेरेलो, बंदीगणोथी यशनो उद्घोष करातो, पोताना परिजनोथी शोभतो (७५०) चक्रवर्ती • सर्वावसरमां विशाळ अने उत्तम आस्थानमंडपमां बेसीने सेवको पासे सहर्ष पेला वटुकोने वोलावे छे. तेओ पण चित्तमा अनन्य हर्ष धरता त्यां आवी पहोंचे छे. परंतुं विशेष रूपे शणगार सजेला चक्रवर्तीने जोईने (७५१) 'अरेरे, धिक्कार छ, " Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १२९ धिक्कार छ आ विरस संसारने ! आवा राजवीनी आटला ज समयमां स्वजन अने मित्रोने उत्ताप करती आवी विषम दशा थई गई !' ए प्रमाणे विचारता अने झांखी पडेली मुखकांति वाळा बंने देवोने राजाए कह्यु, 'तमारं मुख विवर्ण थई गयेलं केम लागे छे ?' (७५२). एटले देवोए कह्यु, 'हे चक्रवर्ती, शुं तने नथी देखातुं के स्नान वेळा तारी जे भरपूर कान्ति हती ते अत्यारे नथी ?' एटले 'अरे, आ लोको शुं कहे छे ?' ए प्रमाणे एकाएक विचारमां पडी जईने राजाए पोताना शरीर • सामे जोयुं तो ते जाणे के मेशना रगडाथी खरडायेलं होय तेवू तेने देखायु. (७५३). ... ए पछी ते ज क्षणे ठखंड पृथ्वी, नव निधि, चौद रत्न, बत्रीश हजार मोडबंधा दोषमुक्त सामंतो, सोळ हजार आज्ञापालक यक्षो अने चोसठ हजार भक्तिनिष्ठ कुलीन सुंदरीओ ऊपरथी मन हठावी लईने (७५४), 'यौवन अस्थिर छे, धन स्वाधीन नथी, स्वजनो अने मित्रो स्वार्थमां रुचिवाळा छे, शरीर पण जळबिंदु समुं चंचळ छे-आ रीतना दुःखकारक भवगहनमां धीरपुरुष केम रममाण रही शके ?' एम उद्विग्न मने विचारतो सनत्कुमार संसार रूपी कांतारथी विरक्त थई चारित्र्य लेवानी इच्छावाळो आ प्रमाणे बोल्यो (७५५), 'अहो, अहो, हे भद्र ! रूपना मिथ्याभिमाने ग्रस्त एवा मने तमे लोकोए प्रयत्नपूर्वक भवमाथी उगार्यो-महासागरनी मध्यमां डूबता मने तमारा बंने हाथनो आधार दईने उगार्यो'. एटले चक्रवर्तीन मन जाणीने देवोए कह्यु, 'हे महायशस्वी तने खरेखर धन्य छे के मात्र आटलो ज़ दोष भाळीने तुं चक्रवर्तीपद छोडीने चारित्र्य लेवा उत्सुक बन्यो, कारण के हवे तारा शरीरमां औषधथी असाध्य एवा दुःसाध्य रोगोए प्रवेश कर्यो छे.' एटले चक्रवर्तीए पूछयु, 'आ वात तमे कई रीते जाणो ?' एटले देवोए पोतानुं स्वरूप प्रगट करीने इन्द्र. साथे बनेलो वृत्तांत कह्यो. (७५६-७५७). . 'अरेरे, धिक्कार छे, धिक्कार छे. कर्मनुं परिणाम आखा जगत माटे के, दारुण छे ! नधी संपत्ति तद्दन तुच्छ छे. परिजनो चंचळ छे. मन अस्थिर छे. प्रियानो संग शरदना वादळ जेवो छे. वळी आ शरीर अनर्थकारक अने बधी अशुद्धिओनो भंडार छे. शरीरने शणगारवानी क्रिया अवुधोनी प्रवृत्ति छे. रूपर्नु अभिमान मिथ्या छे. (७५८). आनी प्रथम उत्पत्तिनुं कारण (?) होवा छतां जेनी विवेकीलोकोए निन्दा करी छे, जे उद्वेगनुं कारण छे, स्वभावथी ज जे निर्गुण छे अने अशुद्धिनां नव द्वारोने लीधे दुःखकारक छे, जे कपूर, अगरु, कस्तरी वगेरे बहु भोग-उपभोगनो विनाश करनारुं छे तेवू आ शरीर निःसंग लोको माटे दुःखद छे. (७५९). शुक्र, शोणित, रुधिर, वसा, मांस, मज्जा, परु, मूत्र, आंतरडां; Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० सनत्कुमारचरित पित्त वगेरे अशुचिओथी नरपूर, नव छिद्र वाळु, मलीन, अशुचि द्रव्ये घडेल --आ रीते जेम जेम शरीरनी अशुद्धि विशे सहेज पण विचार कराय छे, तेम तेम समजु लोकोने ते समग्रपणे अशुद्धिमय जणाय छे. (७६०). तो हजी स्वजनो स्वाधीन छे, लक्ष्मी तजी गई नथी, भृत्यो वशवर्ती छे, प्रियतमा प्रियकारिणी छे, अंगो भांग्यां नथी, शरीरनुं दुःखद, असार परिणाम हजी आव्युं नथी, त्यां सुधीमां परभवना आधाररूप कशोक धर्मविधि करी लो'. (७६१), ए प्रमाणे मेरु जेवा स्थिर चित्ते चितवता कुरुवंशना यशकलश समा अश्वसेनराजाना पुत्रे धन, रत्न, स्वजन, सुभट, हाथी, घोडा अने रथने त्यजी दईने, पवित्र जिनतोर्थनी घणा विस्तारपूर्वक प्रभावना करीने ऋपभदत्त सूरिनी पासे चारित्र्य स्वीकार्यु. (७६२). 'अहो, अहो, राजा, सकळ पृथ्वीनो त्याग करीने तें भरतेश्वरना चरित्रनुं अनुसरण कर्यु, अने आ प्रकारनो उद्यम करीने तोर्थंकरों अने गुरुओनुं वचन आराध्ये' - ए प्रमाणे अनुमोदन करता अने सनत्कुमारमुनिनां चरमां नमता देवोए जईने सघळो वृत्तांत देवेन्द्र ने कह्यो. (७६३). परंतु पेलां स्वजनो, राणीओ, सामंतो, मित्रो, पुत्रो, भाईओ, रथो, सैनिको, घोडाओ, गंधहस्तीओ, चौद रत्नो अने सोळ हजार यक्षो पोताना स्वामी सनत्कुमारमुनिनो पीछो छोडतां न हतां० (७६४). ' अरेरे, शरणे आवेला प्रत्ये करुणावाळा हे स्वामी, विलाप करता आ वधा सेवकजनोने तुं केम तजी दे छे ? तुं पाछो वळ अने केटलाक दिवस एमनुं पालन-पोषण कर. एम करतां करतां जतुं शुद्धि पामीश. पूर्वे पण ऋषभ तीर्थंकरना पुत्र भरत राजाने पोतानी प्रजानुं पालन करतां करतां ज केवलज्ञाननी प्राप्ति थई हती. (७६५). हे नाथ, पोताना भुजबळे शत्रुकुळनो विनाश करनारा तारा विना आ जगतनी विविध क्षुद्रोना आक्रमणथी शी दशा थशे ? अशरण बनोने विलाप करता तेना पर हवे कोण उपकार करशे ?' - ए प्रमाणे विलाप करता, अनाथ, रक्षणहीन अने दोर्घ निःश्वास मूकता तेओ सौ छ मास सुधी सनत्कुमारनी पाछळ भम्या. ( ७६६ ). परंतु मेरुशिखर जेवा स्थिर चित्तवाळा राजर्षिए तेमना प्रत्ये सिंहनी रीते पण अवलोकन न कर्यु. एटले तेओ अत्यंत दुःखी थईन पोतपोताने स्थाने गया, एकाकी राजर्षिए पण भोगववानां पूर्वकृत कर्मोने अन्ते जन्मनो अन्त लावनारी तपश्चर्यामां चित्तने उद्यत करीने (७६७), छट्टु तपने अन्ते गुरुना कहेवाथी अन्यत्र जईने महर्षिनी जेम विहरतां, पोतानां वाकीनां पूर्वकृत असाधारण अशुभ कर्मोंनो उदय थतां, गोचरीए भमतां कोई एक घरे प्राप्त थयेल चकरोना दूधनी छाशथी भींजवेल चीणाना भातनुं भोजन कर्यु. ( ७६८). एटले तेना शीशमां वेदना, शरीरमां दाह, आंखमां सोजो, जठरमां शूळ, गुदामां हरस, छातीमां तोड, हाथमां कंप, पगमां Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनत्कुमारचरित १३१ हाथीपगुं, पेंटमां जळोदर, गळा पर गंडमाळ अने सर्वा गे क्षयकाळ जेवो कराळ कुष्ठरोग उद्भव्यो. (७६९). आ प्रमाणे जीवनो अन्तकाळ लावे तेवा दुःख कारक अने आखा जगतना लोकोने घणो ज हृदयदाह जन्मावे तेवा बीजा पण अनेक उग्र रोगो थतां, मेरुशिखरनी जेवा अविचलित चित्तवाळो सनत्कुमार केवळ नवकारर्नु स्मरण करतो तेमने सही रह्यो. (७७०). ए मुनिवरनुं चरित्र जोईने चित्तमां अतिशय विस्मित बनेला सौधर्मेन्द्रे देवसभामां का, 'देवो, छटू, अदम, दशम, द्वादशम वगेरे विविध तप वडे शरीरने धर्मथी शोषता, संसारभावथी उद्विग्न मनवाळा चक्रवर्तीमुनिनु चरित्र तमे भावपूर्वक जुओ. (७७१). जगतना प्राणीओने विनष्ट करे तेवा अनेकविध व्याधिथी पोडातो होवा छतां ते दुःखथी सित्कार पण मूकतो नथो, के कह्या छतां, आमौषधि वगेरे जेवी (तपप्रभावे) उत्पन्न थयेली अने आखा जगतना शारीरिक व्याधिओने हरनारी औषधिओथी पोताना शरीरनो उपचार पण करतो नथी'. (७७२). ए प्रमाणे इंद्रना बोलवाथी आखी सभा चित्तमां विस्मय पामती जगतमा सर्वोत्तम चरित्रवाळा अश्वसेनना कुळगगनना चंद्र समा ते राजषिना गुण सांभळो रही. परंतु पेला वे पूर्वोक्त देवोने आ वातमां श्रद्धा न वेसतां तेओ वैद्योनुं रूप धरीने ते राजर्षिनी पासे आव्या. (७७३). 'अमे खस, खांसी, ज्वर, अरुचि, हाथनो कंप, हाथीपगुं, गंडमाळ, शोष, अरति, भगंदर, शूळ अने बीजा रोगोनी अरधी क्षणमा ज चिकित्सा करीने शरीरने नीरोग करी दईए छीए. तो आ वात बरावर समजीने हे मुनिश्रेष्ठ, तमे अमारं वेण स्वीकारो'. (७७४)-ए प्रमाणे वारंवार बोलता अने अडखेपडखे परिभ्रमण करता ते देवोने मुनिवरे कडं, 'कहो, तमे मात्र बाह्य रोगो मटाडो छे के आंतरिफ रोगो पण ?' सावधान बनीने देवो बोल्या, 'मुनिवर, अमे बाह्य रोगोने मटाडीने घडीकमां ज बधा लोकोने साजा करी दईए छीए'. (७७५). . एटले जमणा हाथे पोताना डाबा हाथनी आंगळीनो स्पर्श करी, तरतना उगेला सूर्यना किरण जेवी दीपती ते बतावीने ते देवोने महर्षिए का, 'मारा आंतरिक रोगोनी पासे आनो तो शो हिसाब ? परंतु जो ते रोगो पछी पण सहेवाना ज होय तो हुँ तेमने हमणां ज सहुं ते ठीक छे.' (७७६). 'हे महामुनि, तुं ज अहीं आंतरिक रोगोनो हरनार छे'-ए प्रमाणे कहेता ते बने देवोए तेना चरणमां पडीने पोतानुं स्वरूप प्रगट कयु, देवेन्द्रे कहेली प्रशंसा संभळावी अने सनत्कुमार महर्षिना आशिर्वाद लईने स्वर्गमां जई देवेन्द्रने ए वृत्तांत कह्यो. (७७७). 'बाप रे ! शुं धैर्य ! शुं अद्भुत सरळता ! अहो एमनो उपशम ! शुं वचन अने मननी गुप्ति ! तेमनी क्षांति पर न्योछावर ! तेमना संयम, तप Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ सनत्कुमारचरित अने देहकांतिनी तो बलिहारी !' ए प्रमाणे वारंवार बोलता ते बंने देवो देवसभामां महर्पि सनत्कुमारना गुणगान करता रह्या. (७७८). . राजर्षि ए पण क्षीरोदधिथी पण अधिक गांभीर्य साथे अने अत्यन्त समतापूर्वक तीर्थकरे कहेला विधि प्रमाणे बधा य रोग सह्या अने हृदयमां आ प्रमाणे भावना भावो, 'तरंगोथो कुलाचलने तोडी नाखता समुद्रना वेगने स्खलित करी शकाय, पण पोताना पूर्वार्जित अशुभ कर्मना विपाकनी प्राप्ति न अटकावो शकाय. (७७९). हे जोव, अज्ञानी, ते पोते ज आगला जन्ममां आ पापकर्मनो मोटो भारो बांध्यो छे. तेथी न आ अतिशय दुःसह दुःखसमूह तारी पासे ढकयो छे. नासो जईने पण पोतानां दुष्कृत कर्मोथी छुटातुं नथी. तो हुँ समयसर सामे आवो पहोंचेला शत्रुओ पर वारो जाउं छं. (७८०). एम प्रमादथी, रागद्वेषथी, मिथ्यात्वथो, अविरतिथी अने अभागिया मोहे ग्रस्त थईने ते जे जे अहीं कयु, ते पापरूपी महावृझनां फळ, हे जोव, तुं तारे हाथे जले. लोको पोताना कायनां फळ मळतां तेथी विमुख थता नथी. पोतानी साथे दोडती छायाने कोई छोडी जई शकतुं नथी.' (७८१)-ए प्रमाणे चिंतवतो, चरण चरीने, पोताना पूर्वकर्मथी उत्पन्न रोगोनी भारे वेदना वेठीने, लांवा समयनां पापोने फेडनारी सर्वे जिनोए कहेलो क्रियाओगें परिशीलन करीने, उपभ, भरत वगेरे उत्तम पुरुपोनां चरित्र स्मरतो, तीर्थकरनां वचन रूपी महीपधिोने हमेशां हृदयमां धरतो (७८२), कुमारभावे अने मांडलिक राजा तरीके पचास पचास हजार वर्प सुखे वीतावीने, तथा चक्रवर्ती तरोके अने श्रमण तरीके लाख लाख वरस वीतावीने अने एम क्रमशः बधां मळीने त्रण लाख वर्षे गाळीने, आयुष्यने अंते अशुभ कर्मो, रोगो अने दुःखोनो क्षय करीने (७८३). ते समयनी नीति प्रमाणे सम्मेतगिरिना शिखर तळे जईने, मासिक तपकर्मना योगे पोतानां पापी मुक्त थईने, निर्मळ विवेकथी शुद्ध वनीने, सनत्कुमार महर्पि गुरुना गुणमां अनुरक्त मने पोताना जोवतरनो सार पामीने सनत्कुमार स्वर्गमां गया. (७८४).. त्यां देवेन्द्र समान सामानिक देवने योग्य उच्च विषयसुखो चिरकाळ भोगवोने अनुक्रमे त्यांथी पण पोतानी स्थितिनी अवधिने अंते विदेहमा राजकुमार तरीके अवतरीने, पछी तपश्चर्या करी पोताना पापसमूहनो क्षय करीने जेतुं नाम अत्यंत लेवा योग्य छे तेवो ते सिद्धि पामशे. (७८५). मुनिराज नितचंदना शिप्योत्तम अने सज्जनोने सुखकर एवा अनेक गुणरत्नोवाळा श्रीनंद्रसूरिना नाममन्त्रने मनश्री निरंतर अने दिनप्रतिदिन स्मरता श्रीहरिभव मुरिए आ प्रमाणे पुण्यना धाम जेवं सनत्कुमारराजानुं चरित संक्षेपमां रच्युं छे. (७८६). आम श्री श्रीचंद्रमरिना चरणकमलमां भ्रमररूप श्रीहरिभद्रमुरिथी विरचित श्रीमदरिष्टनेमिचरितमां श्रीसनत्कुमार चक्रवर्तीनु चरित समाप्त थयु. Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ परिशिष्टम् ] हरिभद्रसूरि - विरचित - प्राकृतभाषानिवद्धमल्लिनाथचरितान्तर्गत' सनत्कुमार चक्रवर्ति- कथानकम् - दीवे भारहवा सस्स जंबुद्दो नाणाविह मणि मंदिर- भित्ति पर उत्तंग- साल - सिहरा रोहंत-खलंत-रवि-रह तुरंग पाया लोयर - गंभीर-फरिह-सोहंत- पेरंतं झ-खंड | 11 हामिय-तमोहं 1 11 सिरि गयउर - अभिहाणं जय-पयडं पुरमहेसि तत्थ पुणो जिय-सेस सत्तु - विसरो राया सिरि-आससेणो त्ति तस्स य सयलंतेउर-पवरा निस्सीम - सीम-कुल-सवणं । सिवदेवि त्ति पसिद्धा अहेसि दइया जयब्भहिया || ते तु रूव विवो वह सिय-तयलोय लोय-तणु सोहो चउदसहि महा-सिविणेहि सूइओ नंदणो जाओ || वियरियमभिहाणं से दिणे पसत्ये सणकुमारोति । अह सो कम- संपाविय तारुण्णो अहिगय-कलो य 11 सह-पंसु - की लिएणं वाल - [व] यंसेण गुण - रयण-निहिणा । सुराभिहाण-नरवइ-कालिंदी - देवी - तणण || । 1 11 सम- सुह-दुक्खेण महिंदसीह-नामेण समगमुज्जाणे । कीलण - कए पहुत्तो सणकुमारो स-परिवारो 11 तत्थ य विविहेयर कलाहिं परिकीलिऊण खणमेगं । कुमरो : जलनिहिकल्लोल-नामयं तुरयमारूढो 11 इयरे वि निव कुमारा समाण - वय - रूव विह [व] संपन्ना | तस्समयं विवि तुरंग - रयणेसु आरूढा ॥ ४ ५ ७ ह १० Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ तत्तो महिंदसीह-प्पमुहाण पुरो नरिंद-कुमराण । नणु भो कस्स तुरंग को जिणइ त्ति प्पयंपेई ।। मुइय-चमक्किय-सुल लिय-पुलिय-गई-विजिय-रवि-रह-तुरंगं । निय-तुरयं सह नीसेस-से स-निव-कुमर-तुरएहिं (?) ॥ १२ तयणु खणद्धेण सणंकुमार विवरीय-सिक्खिय-तुरंगो । लग्गो गंतुं पंचम-धाराए जिय-इयर-तुरओ ॥ १३ अह गाढयरं रज्जू तुरयस्साइड्डिया कुमारेण । विवरीय-सिक्खियत्तेण तो तुरओ सुसिग्घयरं ॥ १४ लग्गो गंतुं खण मेत्तेण उ सविह-द्वियस्स लोगस्स । धावह एसो गच्छइ एस गओ त्ति य भणंतस्स ।। जण-नयण-अविसयत्तं पत्तो तुरओ इओ य नरनाहो । कुमराणुमग्ग-लग्गो पहाविओ मुणिय-वुत्तंतो ॥ १६ कित्तिय-मेत्तं च पहं तुरय-खुरुक्खय-मुहं पलोएंतो । जाव गओ ता भवियव्वयाणुहावेण उच्छलिओ ।। १७ भुवण-क्खय-काल-समुभवु व्व चंडो समीरणो तत्तो । अंधीकय-दिसियक्को रय-उक्केरो परिप्फुरिओ ॥ अह नट्ठ-तुरंगम-पय-चिंधो रय-भरिय-लोयणो निवई । लग्गो समग्ग-लोगेणं सह विलवेउमच्चंतं । एत्यंतरम्मि निवई विन्नत्तो सिरि-महिंदसीहेण । जह देव को-वि दीसइ समुट्टिओ एण्हिमुप्पाओ । अन्नह कहं कुमारो कहं ब एरिस-तुरंगमारुहणं । कह वा इमोवरोहो कहं व स समीरण-प्पसरो ॥ २१ अहव किमन्नेण पयंपिएण काउं महोवरि पसायं । सामिय तुमे नियत्तह असेस निय-परियण-जुया वि ॥ २२ भ्रप्ट पाठो : ११. ४ प्पियंपेइ. ११.४. यणइ. १२. ३. तुरिय. १४. ३-४ तेणं तो तुरंगो. २०. ४. एहिंमु १६ २० Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ २३ । २४ २५ २६ २७ अहयं तु नहयलाओ वि पायालाउ वि सलिल-निहिणो वि । धुवमुज्जमिउं सवप्पणा वि स-वयंसमाणिस्सं ।। जओ - विण्फुरइ ताव दिव्वो (?) विहडण-करण-तल्लिच्छो । जा न तुलिज्जइ साहस-धणेहिं निहसेक्क-सारेहिं ॥ काऊणं पुण जीयं तुलाए जे निखिवंति अप्पाणं । ते साहिति स-कज्ज संकइ दिव्वो वि जं तेसि ।। इय जे निच्छिय-मइणो अवहत्थिय-सुह-जसोह-सोडीरा । विण्णाय-गुण-विसेसा ताण सिरी देइ संनिझं ॥ इच्चाइ वहु-वियप्पं भणियं कहमवि महिंदसीहेण । निय-नाहो स-वलो वि हु पेसविओ आससेणो त्ति ।। सयमवि कमेण परिगलिय-सयल-सेन्नो महिंदसीहो सो । एगागी गच्छंतो पत्तो रणम्मि एगम्मि ॥ अह तत्थ तत्थ धावइ जत्तो जत्तो कहि-चि निसुणेइ । सदं अलक्खि पि हु तुरंग-करि-कलह-चमरीणं ॥ अवि य - कस्स न दलेइ हिययं मयरंदामोय-रंजिय-दियंतो । सहयार-मंजरी-रय-सणाह-गंधुद्धरो पवणो ॥ नव-वियसिय-कुडय-वणालि-सरस-कणियार-कुसुमसर-विसमा। अहिणव-महुमासूसव-दिण-सुहडा कं न निहणंति ॥ ओव्वेल्लेइ समीरो खर-सूर-करायाण नलिणीण । पंकोवरि दर-लुलियाइं थेव-सलिलाई पत्ताई ॥ खर-पवणुद्धय-रय-निवह-रंजियासामुहाण कलुसाण । को छुट्टइ जीयंतो उद्ध्धुलयाण दियहाण ॥ २८ २६ ३० . ३२ ३३ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ 1 11 11 महु-विदु-लुद्ध-धाविर-भम रउल कयंव- केसर-सणाहा पवणंदोलण-हल्लज्झलंत घण- मुक्क-रव- मुहला कस्स न दलंति हिययं दियहा धोरम्मि पाउसारंभे । विज्जुलय-कत्तिया - घण-धारा सरपंति- दुव्विसहा कस्स न कुणंति पिय-जण उक्कंठा - कोमलाई हिययाई । पविरल-जल-जलहर-कय- वरिसा दियहा सरय- समए || उव्वे (यर) यं जण [इ] मणे विरहीणं पिक्क-सालि-गंधड्ढो । पवणो सत्तच्छय-गंध-गभिणो पाविय-प्पसरो 11 को सहइ ताण पसरं जणिउक्कंठा [ण] सिसिर - दियहाण । कुमुय-विणासो विहिओ जेण अणज्जेण भुवम || काउण मालईए मलणं पसरंत-सुह्य-गंधाए 1 कुंदेसु कया रिद्धि अमुणिय-गुण-सिसिर - दियहेहिं || पवियंभिय-हिम-कण - सिसिर-पवण-पसारण-जणिय-कंपाण | वीइ को न भण महियलम्मि हेमंत दियहाण || इय एरिसम्मि घोरे रिऊण समए महिंदसीहो सो । अडईए बुंदुल्लइ सणकुमारं विमग्गंतो ॥ आयणिय विग रूयं सोहस्सोरालि गुंजियमुदग्गं । धावर एसो मह सामिणो निनाउ ति चिततो ॥ जिय- सजल-जलहरारंभ-मत्त-मायंग-गज्जियं सोउं 1 अणवसु देवर (?) इय जंपिरो सहसा 11 करि-थोर करायड्डिय- मोडिय - साहोह - सल्लइ वणम्मि 1 पविसइ महिंदसीही सणकुमारं निरिक्खंतो || इय आ वरिसं पडियरिऊण रणम्मि तरु- कडिल्लम्मि | एगागी दूरुज्झिय-भय- निद्दा- खेय तणु - वियणो 11 ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ३६. २. दिययाई. ३२. ४. उद्धधुयल ३७ २. पि पिक्कसालि गंधड्ढे. ३६. ४. सिरसि ४१. २. सीहस्सो. ४. विमग्गंति. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ ४६ ४७ ४८ ४६ ५० निविसयं चंकमणं कुव्वतो दिसिमुहाणि जोएंतो । जावेगत्थ पएसे चिट्ठइ ता विहि-निओगेण । कलहंस-चक्क-सारस-कारंडवगाण सुणइ हलवोलं । अणुहवइ सलिल-सीयर-सिसिरं तु समीरण-फंसं ॥ अग्धाइ कमल-कुवलय-मसल-गंधं पवड्डियाणंदं । अह अवियक्किय-पाउन्भूय-महाणंद-नयण-जलो ॥ दाहिण-नयण -फुरणोवइट्ठ-अहिलसिय-कज्ज-निम्फत्ति । चलिओ सारस-कलहंस-सद्द-सूइय-सराभिमुहं ॥ जा ताव सुणइ अच्चंत-गीय-झंकारमसम-सुइ-सुहयं । लग्गो स-हरिस - वियसिय- सिय - वयणो गंतुं तओहुत्तं ।। अह पत्थइय-निरिक्खण अक्खित्तं विहिय-चारु-सिंगारं । उवहसिय-सुरासुर-रमणि-रूव-तरुणीण मज्झ-गयं ॥ दंद्रु सणंकुमारं विम्हिय-पप्फुल्ल-लोयणो संतो । नणु एरिसा समिद्धी कह मह पहुणो त्ति चितंतो ।। जा चिट्ठाइ कंचि खणं एगस्स मह-दुमस्स छायाए । ता मग्गण-वग्गेणं निसुणइ एयं पढिज्जंतं ॥ जय आससेण-कुल-नयल-मयंक कुरु-भवण-लग्गण-खंभ । जय निज्जिय-विज्जाहर-पाविय-वेयड्ढयड्ड-पहु-भाव ॥ जय खयरिंद-विलासिणि-थणवठ्ठल्लंग-संग-दुल्ललिय । जय तिहुयण-पयड सणंकुमार गिरि-गरुय-वित्थार || अवि यएक्के असिम्मि झीणा अन्ने उण सिहरि-वण-कयावासा । इयरे तुह पउर - दयस्स नाह सरणं गया रिउणो ॥ ५१ . ५२ ५३ ५४ ५६ (१) ४९. २. निप्पत्ती. ५२. ३. परिसा. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ५६ (२) ५७ ५८ ५६ ६० विद्दविय-वेरि-वग्गस्स तुज्झ नरनाह सग्ग-वसिरीए । धवलत्तय-वयणिज्जू सिरीए एण्हिं परिप्फुरियं ॥ जे के-वि निवाण गुणा भुवणे रिद्धीउ जाउ काओ वि । कित्तीउ जाउ जाओ कलाउ ताओ तमल्लीणा ।। दिढे तुमम्मि परितुलिय-रूव-कंदप्प-लद्ध-माहप्पे । चत्तं रईए निय-दइय-देह-रूवाइ-माहप्पं ॥ इय महि-बहु-चूडामणि नरिद-विज्जाहरिंद-नय-चलण । होसु पसन्नो कुरु-कुल-नह-चंद सणंकुमार तुमं ॥ आयन्निऊण एवं महिंदसीहो विणिच्छिऊण मणे । नूणमिमो मह नाही सणंकुमारो [कुमारो] त्ति ॥ इय विहिय-निच्छओ गुरु-हरिस-समुल्लसिय-वहल-रोमंचो। पत्तो महिंदसीहो विसयम्मि सणंकुमारस्स ॥ अह दूराओ वि अवलोइऊणमभुट्ठिऊण कुमारेण । पायवडणुट्टिओ अवगूढो स महिंदसीहो त्ति ॥ ता विम्हय-प्पमोयाऊरिय-हियया दुवे-वि ते कुमरा । उवविट्ठा खयर-प्पहु-विरइय-सीहासणे रम्मे ॥ तत्तो सणंकुमारो पुच्छेइ जहा वयंस साहेसु । कह तं वाहु-सहाओ एत्थ पहुत्तो सि सप्पुरिस । मज्झ विओए जणणी-जणयाणि कहं व तत्थ चिटुंति । अह कहियं निय-वइयरमखिलं पि महिंदसीहेण ॥ भणियं जह पहु निय-वुत्ततं कहिउमरिहसि तुमं पि । तुरयावहरण-पुव्वं सयलं पि हु नियय-भिच्चस्स ॥ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ५६. १. स्वग्ग. ३. धवणतयं. ४. परिस्फुरियं. ५७. ३. जाओ. ४. ताउ; ५८. ३. चत्त; ४. रूवाइं. ५६. दोसुपसत्तो. ६०. १. आयन्निऊणं. ६१. १. निच्छिय. ६२. १. अविलो". Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ ६७ ६८ ७० सोऊणमिणं वयणं सम-सुह-दुक्खस्स निय-वयंसस्स । कुमरो सणंकुमारो सवियक्को संकडावडिओ ॥ नणु नत्थि अकहियव्वं मित्ते सम्भाव-नेह-भरियम्मि । भिन्ने वि देह-मित्तेण जस्स चित्तेण न वि भेओ ॥ तह वि न जुज्जइ निय-चरिय-साहणं सुद्ध-बंस-जायाणं । निस्सारा होति गुणा साहिज्जंता सयं जम्हा ॥ ता एयमेत्थ पत्ताबसरं ति विचितिरो सविह - पत्तं । वउलमई विज्जाहर-धुयं निय-दइयमासज्ज ॥ जंपइ जहा पिए नियय-नाण-वलावगय-सयल-तत्ता सि । इय सयलं पि हु मह वइयरं वयंसस्स साहेसु ॥ मह उण निदाए लोयणाणि धम्मति दो-वि हरिणच्छि । इय भणिरो वि निसन्नो रइहर-रइयम्मि सयणिज्जे ॥ वउलमई उण लग्गा कहिउं निय-दइय-चरियम खिलं पि । तया किल कुमरो अवहरिऊण तुरंग-रयणेण ।। एगाए घोर-दव-दारुणाए विलसंत-सवर-मिहुणाए । विरसं-रसंत-कुंजर-जूहाए तसंत-हरिणाए । फुटुंत-गरुय-वंसाए डज्झमाणासमाण-विडवम्मि । खित्तो महाडईए कायर-जीयंत-हेउम्मि ॥ अह एस किमो त्ति वि-हू जाइहि त्ति विचिंतिरेण कुमरेण । मुक्का कराउ रज्जू तुरओ वि-हु तक्खण च्चेव ।। निल्लालियग्गजीहो गरुय-पिवासा-सुसंत-मुह-कुहरो । सासाऊरिय-हियओ · थक्को उद्ध-ट्टिओ चेव ॥ ७२ ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७०. २. सविहि. ३. वलउमइ. अंते : २७०० [ग्रंथाग्र]. ७२.२. धुम्मती. ७३.१. लग्ग; ३. तइय. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० 1 तयणु विवरीय-सिक्खो अहह तुरंगो मए न नाउ त्ति । परिचितं तो कुमरो उत्तरिओ झत्ति तुरयाओ ॥ तुरओ विहु सिढिली कय- पत्ताढो महियले परिव्भमिउं । पडिओ झडत्ति मुक्को य जीवियव्वेण ता कुमरो ॥ तण्हा - छुहा - किलंतो उल्लसिय-विसाय-विहरिय- सरीरो । अवलोड़ऊण सत्तच्छय-नामं तरुवरं एगं ॥ वेगेण गंतु तच्छायाए ववगय-विवेय-वावारो मुच्छा-निमीलियच्छो पडिओ सुद्धम्मि घर- वलए तयणंतरं च असमाण- रूव विहवेण केण-वि नरेण वुमर सुकाणुहावा वज्जिय-हियएण सहस त्ति 11 आऊणं कत्तो-वि तुहिण-कण - सिसिरमुज्जलं सलिलं । आसासिओ कुमारो अह सिंचेऊण सव्वंगं 11 तत्तो पत्त- पुणन्नवचेयन्नो दिसि दिसि क्खिविय- नयणो । आपिवइ तव्त्रिणं सलिलं ससि-किरण-धवलं ति ।। पुच्छइ य भद्दको तं कत्तो व जलं तए इहाणीयं । तणु भणइ इयरो हं जक्खो कमलक्ख - अभिहाणो ॥ निवसामि एत्थ दुहुं तुमं च गंतूण माणस-सरम्मि । आऊणं सलिलं पत्तो तुह अह दीहमुस्ससेउं भणियं कुमरेण एस माणस-जलावगाहं मोत्तूण न फिट्टिही 1 11 संनिहाणम्मि 11 संतावो । मज्झ || सोऊणमिणं करसं पुडमिकाऊण तेण जक्खेण । माणस-सरम्मि नेउं मुक्को कुमरो खणद्धेण 11 तो सो हरिव्व जलहिं आलोडिय माणसं सरमसेसं । जावुत्तरेइ ता तं सवण- समावडियमुवलद्ध 11 ७८. २. नि नाओ. ८४.१ चेइन्नो ८६.१ निय सामि. ८७.२ बालोडि; सार. ४. सयाव. ७८ ७६ Το ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ ८६ ८७.१ अव. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ पुब्ब-भव-वेरिणा कुद्धेणं वेयड्ड-बासि-जक्खे णं । असियक्ख-नामगेणं उम्मूलिय-तरुयर-ग्गामो ।। ६० : गुरु-सक्कर-मंसल-धूलि-पडल-वहलिय-नहंगणाभोगो। अंधीकय-सयल-जणो मुक्को विउब्बिय समीरो ॥ ६१ तत्तो वि मुक्क-अट्ट-हास-सद्दा विरूव-रूव-धरा । परिमुक्का वेयाली करयल-कय-कत्तिया भोमा ।। ६२ . अह जाव अनिल-वेयालेहिं तह तह. उवद्दविज्जतो । कुमरो निमेस-मित्सं पि न खुहइ ताव जक्खेण ।। ६३ पुक्कारव-भरिय-दियंतराण अलि-गवल-नील-कायाण । नागाणं पासे हिं बद्धो जीयंत-हेऊहिं ।। ६४ अह तोडिएसु हेलाए च्चिय कुमरेण नाग-पासेसु । लग्गोऽसियक्ख-जक्खो मुट्ठि-पहारेहिं जुज्झेउं ॥ ६५ ता वज्ज-दारुणाए मुट्ठीए तहा हओ स कुमरेण । निल्लालियग्गजीहो जह पडिओ धरणि-वलयम्मि ।। ६६ अह कह-वि लद्ध-चेयन्नेणं जक्खेण तेण सामरिसं । मुक्को सुदूरमुक्खि[वि]उण गिरी कुमर-उवरिम्मि।। ६७ ता कुमरो गिरि-भारक्कंतो गुरु-पीड-विहुरिय-सरीरो। पडिओ न मिओ उण निरुवक्कम-आउस्सरूवत्ता ॥ ६८ अह हओ एसो सत्तू भए त्ति भणिरेण । ... जक्खेणं उग्धुट्ठो जय-जय-सद्दो स-पक्खम्मि ॥ ६६ ... सोउं च इममउव्वं वयणं. सहसत्ति चेयणं लद्ध।. . रे रे कडपूयण जक्ख-अहम कस्सेस जय-सद्दो ॥ १००. .. ... ६३.४. कित्तिया. ९६.३. निल्लासियं. ६७.३. सिद्दरं.. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ उग्धोसिज्जइ पडिवक्ख-दलण-दक्खे मए वि सन्निहिए। .. . इय जंपिरेण निय-भुय-जंत-वलुम्मूलिएण लहुं || - .. १०१.... वड - पायवेण निहओ कुमरेण तहा कहिंचि सो जक्खो । जह ववगयाहिमाणो वियलिय-चेयन्न-त्रावारो ॥ १०२ नियसत्तणाणुहावाणुवलद्धं ति मद (?) सो कहंचिदवि । मुक्क-गरुय-पुक्कारो कुमरस्स अदंसणी हूओ ॥ १०३ अह रण-निरिक्खणागय-तियसासुर-खयर-राय-तरुणोहिं । कुमर-सिरम्मि मुक्का गंधोदय-कुसुम-बुट्टि ति ॥ १०४ इय निज्जिऊण जक्खं पच्छिम-दिसमुवगयम्मि तरणिम्मि। नीहरिऊण सराओ जा गच्छइ कित्तियं पि पहं ॥ १०५ तो सहस च्चिय कुमरो सरूव-उवहसिय-तियस-तरूणीओ। नंदण-वणस्स-मज्झ-ट्ठियाउ कय-चार-वेसाओ ॥ १०६ अवलोएइ दिसा-कुमरीओ इव अट्ठ पवर-तरुणोओ । ताहिं वि सच्चविओ अणिमिस-सुसणिद्ध-दिट्ठीहिं ॥ १.७ अह नणु कओ इमाओ नंदण-वण-वसुह-विहिय-मोहाओ। इय चिंतंतो कन्नगमेगं गंतूण पुच्छेइ ॥ १०८ नणु सुयणु काउ तुम्भे कह व अरण्णं इमं विहूसेउं । थक्काउ त्ति पसाहह अह वियसिय-वयण-तामरसा ॥ १०९ सविलासमीसि विहसिय पयंपए हरिण-लोयणा तरुणी। जह अज्जउत्त पिय-संगमाभिलासाए नयरीए ॥ ११० एत्तो उ नाइदूरे चिट्ठइ सिरि-भाणुवेग-खयरिंदो । ता तत्थ समागंतु खणमेगं वीसमह तुन्भे ॥ १११ ।। १०४. ३. सिरिमि. १०५.२. तरुणम्मि.. १०७.३. कुमारीओं. १०६.४. वयणा. ११०.१. मीस. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३ ॥ ११३ ॥ पच्छ[इ] उण वुब्भिस्सह अइरेण समग्गमवि सयं चेव । इय वयणा [ओ] तासि कंचुगि- दंसिय-पुरी- मग्गो || पत्तो नरिंद-भुवणे अह अब्भुट्ठेउ भाणुवेगेण । रण्णा कय-सक्कारं उववेसेउं सहत्थे हि दिणम्मि पवर- सीहासणम्मि भणियं जहा महाभाग । महज्झया ( ? ) एय़ाओ अट्ठ कुमरीउ परिणेसु ॥ ११४ जम्हा अम्हं सिरि अच्चिमा लि-नामेण साहु - वरोहण | केवलिणा आइ आसि जहा जो पुरिस- सीहो असियक्ख-जक्ख-दप्पं भंजेही सों इमासि अहं । अह कन्नयाण होही निस्संकं सामियत्तेण ॥ इच्चाइ-वहु-वियप्पं भणिऊणं भाणुवेग-नरवइणा । महया महेण निय-धूयाओ परिणाविउ कुमारो । ११७ अह कय-कंकण बंधो अहिणव-परिणीय विहिय- वर- वेसो । रइ-मंदिरम्मि चिट्ठइ ताहिं समं जाव वीसत्य ॥ ११८ ता सो गाढ-परिस्सम खित्त-तणुत्तेण आगया निद्दा | तदवगमम्मि य पेच्छइ अप्पाणमरण्ण - मज्झमि ॥ ११६ सुद्ध-महीए निवडियं ति तयणु कुमरो अकायर-पगई । एयं किमिदयालं किं मइ-मोहो त्ति चिंतंतो ॥ लग्गो अग्गिममग्गं अक्क्रमिउं कंचि जाव ता सहसा । हिमगिरि-सिहरुंगे विचित्त-मणि-निम्मिय-कुंभे ॥ सुविचित्त मत्तवारण पाविय सोहम्मि विउल-सालम्मि | देवं सुय-पट्टसूय - मुहुत्तिम-वत्थ-उल्लोओ ॥ मरु-मंडलम्मि कप्पद्दुमं व भीमस्मि तम्मि रण्णमि । धवलहर मे गमवलोएइ स भावणिज्जं ति ॥ १२० १२१ १२२ १२३ ११४.२. भाणियं. ३ एयाएउ ४ परणोसु. ११७.४: कुमरो. ११६. २. • खेत्त. १२०. २. अकायरय १२१. १. अग्गिसं. ११२ ११५ ११६ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ अह तत्थ विम्हिय-मणो कउरव-कुल-गयण-मंडल-ससंक. । मह अन्न-भवे वि सणंकुमार तं चिय पई होज्जा ॥ १२४ इच्चाइ-बहु-वियप्पं विलवंतं सोउ कन्नयं एगं । धवलहरम्मि पविट्ठो निय-नामासंकिओ कुमरो ॥ १२५ दिटुं च तत्थ उत्तसिय-हरिण-नयणं ससंक-सम-वयणं । वामच्छिमेगमुल्लवइ तीए पुरओ समागंतुं ॥ १२६ सुंदरि सणंकुमारो सो तुह कि होइ जेण तमियाणि । । करुण-रवं विलवंती चिट्ठसि तं चेव सुमरंतो ॥ १२७ अह दोहमुस्ससेउं इयरी वज्जरइ मज्झ सो भत्ता । इच्छामेत्तेणं नउ वीवाहो अम्ह संजाओ ॥ १२८ जम्हा साकेयपुर-प्पहुणा सिरि-समरसीह-नरवइणा । सिरिचंदजसा-अभिहाणाए तप्पिय- मायाए वि ॥ १२६ दएणाणीय-सणंकुमार-रूवंकियं चित्तपडं । अवलोयंती अणुरायाउर-हियया खणद्धेण ॥ १३० . मुच्छा-निमीलियच्छी पडिया हं सुद्ध-धरणि-वलयम्मि । दिण्णा सणंकुमारस्स उदय-दाणेण साणंदं ॥ १३१ नीया य अप्पणा सह सयंवरा गयपुरम्मि नयरम्मि । पिउणा सणंकुमारस्स महियल-सिरोमणिणो ॥ १३२ कह-कह-वि तरुज्जाणे तेण समं दंसणं पि मह जायं ।। दिट्ठा य स-प्पसायं कुमार-रयणेण तेण अहं ॥ १३३ ।। किं पुण अकय-विवाहा खयर-कुमाराहमेण एगेण । अवहरिउं निय-कुट्टिम-तलाओ मुक्का इहाणेउं ॥ १३४ अह किं उवलक्खसि तं दिटुं सणंकुमारमेणच्छि । इय भणिरो च्चिय कुमरो तीए उड्डीकरेइ मुहं ॥ १३५ १२६. ४. पुरिओ. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ एत्थंतरम्मि • तत्थाग एण आगंतु नहयलेणं सणकुमारो ता हाहारद-मुहरिय- दियंतरा सोय-विहुरिय-सरीरा । मुच्छा - निमीलियच्छी पडिया सा धरणि-वलयम्मि || १३७ तेणेव 1 हढा हरिओ ॥ १३६ कुमरो वि अवहरतं महीए हढा पाडेउ खयराहमण खयर- कुमाराहमं तयं सहसा । मुट्ठि - प्पहारेण ॥ मुट्ठि- पहारेण ॥ १३८ हणिउं आगंतुमक्खय- सरीरो तीए ॥ १४२ पुरओ ससंक- वयणाए कहिऊण स- वृत्तंतं तं वीवाइ साओ ( ? ) सुनंद-नामा होही कुमरस्स एतोय कुमर- निहणिय खयर- कुमारस्स संज्ञावलि त्ति नामा पत्ता पुरओ गंधव्व- विवाहेण य परिणीया सा एत्थंतरम्मि पत्ता नहयल- मग्गेण दो पुरओ सणकुमारस्स विन्नवेंति जहा देव असण वेगाभिहाण खयराहिवो वहु-वलोहो । विन्नाय तणय-वह-वृत्तं तो वि फुरिय-गुरु-कोवो ॥ तुम्हाणमुवरि आगच्छंतो चिट्ठइ इमं तु नाऊण । खयर-हूहिं सिरि-चंड वेग - सिरि- भाणुवेगेहिं ॥ हरिचंद- चंदसेणाभिहाणया नियय-अंगरुहा तुह पय- सेवाएं पेसविया इमिणा रहेण एत्थंतरम्मि सिरि-चंड वेग - सिरि-भाणु वेग-खर्यारिंदा | पत्ता साहज्ज-क्रए सणकुमारस्स कुमरस्स ॥ पण्णत्ती- विज्जा उणं दिण्णा संझावलीए एत्तो य । पत्तो खर्यारिंदो ( ? ) वल- परिकलिओ असणिवेगो ॥ १४७ १४३ १४४ 1 समं ॥ १४५ १४०.१. सनंद. १४१.४. तत्थेवि. १४३.२. वृत्ततो. 1 तत्थेव ॥ १३६ १४० इत्थि - रयणं ति । लहु भइणी ॥ सणकुमारस्स । वि तत्थेव ॥ १४९ खयर - कुमरा । य पणमिऊणं १४६ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ उरि सणंकुमारस्स तणय-मारण-कयावराहस्स । विफ्फुरिय-महामरिसो विरूव-वयणाणि जंपतो ॥ १४८ .. अह असणिवेग-खयरिंदेण समं दो-वि ते खयर-कुमरा ।। लग्गा जुज्झियमुज्झिय-करुणं निय-निय-वलोया ॥ १४६. .. ता अचिरेण वि भग्गेसु तेसु विज्जाहरिंद-कुमरेसु । सिरि-असणिवेग-खयर-प्पहुणो सह विलसिरामरिसो ॥ १५० खयरिंद-तणय-वियरिय-रहे कुमारो समारुहेऊण । तह तह विचित्त-समर-अकीलाहिं नहम्मि कीलेउं ।। १५१ तं असणिवेग-विज्जाहर-नाहं निज्जिणिऊण लीलाए । पाविय-विजओ पत्तो तम्मि च्चिय रण्ण-धवलहरे ॥ १५२ अह थुव्वतो सिरि-चंडवेग-पमुहेण खयर-सिन्नेण ।। पमुइय-मणाहिं संझावली-सुनंदा-पियाहिं समं ॥ १५३ वज्जिर-विचित्ततूरारव-मुहलिय-धरणि-गयण-गिरि-विवरो। पत्तो सप्परिसम्मि व गिरि-प्पहाणम्मि वेयड्के ॥ १५४ ता चंडवेग-सिरिभाणुवेग-पमुहेहिं खयर-राएहिं । . ठविओ सणकुमारो विज्जाहर-चक्कवट्टि त्ति ॥ १५५ अह अन्नया य साहिय-वहु-विज्जो पणय-सयल-खयरिंदो। .. पत्तावसरं सो विन्नत्तो सिरि-चंडवेगेण ॥ १५६ जह देव मज्झ सिरि-अच्चिमालिणा मुणिवरेण परिकहियं ।। जह तुह धूयाण सयं अट्ठ पुणो भाणुवेगस्स ॥ १५७ ... इह संपत्तो संतो मास-दिगंते चउत्थ-चक्कवई । .. वीवाहेही नूणं सणंकुमारो वसुह-तिलओ ॥ .१५८ अह भयवं विणेओ कह सो चक्कि त्ति पुच्छियम्मि मए । भणियं गुरुणा जह सो [हएण विवरीय-सिक्खेण ॥ १५६ हरिओ संतो माणस-सरम्मि आगंतु दप्पमवणेही । तह तह पुन्व-भवज्जिय-रिउणो असियक्ख-जक्खस्स ॥ १६० *१५४ मी गाथानी पछी (एटले के मूळ प्रतनी ८५थी १३५ सुधीनी गाथाओ) कोईक बीजा ग्रन्थ के संदर्भनो अंश प्रक्षिप्त थयेलो छे. ते कुसुमश्री अने वीरसेननी कथाने लगतो छे. १५८.१. सत्तो. १६०.१. माणुस. . Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नणु कह भयवं पुव्विल्ल - जम्म सत्तू स तस्स चक्किस्स । इय सिट्ठम्मि मए पुणरवि अक्खायं मुणि-पहुणा ॥ १६१ जह कंचणपुर-नयरे निवई विक्कमजसो त्ति विक्खाओ । तस्स उण पंच अंतेउरी-सयाई अहेसि त्ति ॥ १६२ १४७ तो पुरे तत्थेव आसि निय- विहव - विजिय- वेसमणो । नियय-कुलक्कम सारो सत्थाहो नागदत्तो त्ति ॥ १६३ तस्स य स-रूव-लायण्ण-विजिय- सुर-सुंदरी अहेसि पिया | विण्डुसिरित्ति पसिद्धा अहन्नया विहिवसेणं सा ॥ १६४ विक्कमजसेण रण्णा दिट्ठा सह मयण- विहुर - हियएण । अवहरिऊण खित्ता अंतेउरे तत्तो ॥ १६५ विरह - भूय- वेलविय विग्गहो हा हरिण नयणि हा चंद-वयणि नागदत्त - सत्थाहो । हा कुंभि - कुभ- णि ।। १६६ कत्थ गया कत्थ गया पडिवयणं किं न देसि पसिऊण । जीवंतो विमओ इव नणु तुह विरहम्मि चिट्ठामि ॥ १६७ निय-नाह-पराहूयाहिं वि ईसा विहुस्सिरी वराई निहया इय विलवंतो वहु-डिंभ - परिगओ चत्त-इयर-वावारो । गहिलीहूओ रत्थासु परियडंतो गमइ कालं ॥ १६८ विक्कम जस-निवईणं अवहत्थिय- -सयल - रज्ज-वावारो । अगणिय जणाववाओ अवमन्निय इयर - तरुणियणो ॥ १६६ तीए विण्डुसिरीए सद्धं अच्चंत रइ- सुहासत्तो । कालं गमेइ अह अन्नया य सेसे स-दइयाहिं ॥ विसाय - दुहियाहिं । कम्मण - पाओगेणं ॥ १७० १७१ १६१.३ सट्ठमि, ३. मणिप्पहुणो. १६२. ४. सताई. १६६.२. नागरदत्त. १७० पछी हस्तप्रतनां २८०० ग्रंथात थयानो निर्देश छे. १७१३. वरीई. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ . अह विण्हुस्सिरि-मरणुल्लसंत-गुरु-सोग-विहुरिय-विवेओ । अंसु-जलाविल-नयणो विक्कमजसो नरवई · दढं ॥ १७२ रोएइ हसइ गायइ: वग्गइ नच्चेइ सुयइ उट्टेइ । .. अन्नाओ वि किरिया गहिलीहूओ कुणइ वहुहा ॥ १७३ न य विण्हुसिरीए कलेवरं छिवे उं पि देइ अन्नस्स । ता मंतीहिं मंतेऊण नरिंदं च वंचेउं ।। १७४ नेउं विण्हुसिरीए कलेवरं उज्झिअं अरण्णम्मि । निवई वि तिन्नि दियहाणि चत्त-नीसेस-आहारो ॥ १७५ थक्को वहु-प्पयारं विलवंतो ता समग्ग-सचिवेहिं । मरिही इमो न जी[व]इ तं अवलोहि (?) त्ति मंतेउं । १७६ नीओ अरण्ण-देसे तत्तो परिगलिर-पूय-पन्भारं । वायस-कुल-आयड्डिय-नयणजयं सगसगित-किमि ।। १७७ वहु-विह-विहंग-खंडिय-तुंडं अइ-पूयगंध - वीभच्छं । विण्हुस्सिरिमवलोएऊणं संजाय-वेरग्गो ॥ १७८ धिसिधिसि जोए निमित्तं पावेण कुलक्कमो परिच्चत्तो । निय-सोलं च कलंकियमाइण्णा पागय-किरिया ॥ १७६.. अप्पा विगोविओ सव्वत्थ महीए मए हयासेण । तीए इमो विवागो विवेइ - जण कय-भवुब्बेओ ॥ १८० इच्चाइ बहु-वियप्पं अप्पाणं निदिऊणमणुसमयं । जज्जर-तणं व रज्जं उज्झेउं सो महासत्तो ॥ १८१ गहिऊणं पव्वज्जं सुव्वय-मुणि-नाह-चलण-मूलम्मि । काऊण विविह-कट्टाणुढाणं तणुमिणं चइउं ॥ . १८२ तियसत्तेणुप्पन्नो सणंकुमारम्मि अमर-भवणम्मि । नियय-द्विइ-खएणं पुणो स तत्तो वि हु चवेऊण ॥ १८३ १७२. १. मरण. १७५. २. उज्झिउं. १७७. ४. किम. १७६. २. कुलयकम्मो. १८३. ४. ठयेऊण. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ रयणउरम्मि महइभस्स सिद्विणो पिययमाए कुच्छिंसि । सुस्सिविण-सूइओ सो जाओ अंगुब्भवत्तेण ॥ १८४ नामं च वियरियं से पसत्थ-दियहम्मि जणय-जणणोहिं । महया महसवेणं जिणधम्मो त्ति पसिद्धं ति ।। १८५ तयणु अणुक्कम-उवलद्ध-जोव्वणो पत्त-कित्ति - वित्थारो। सुगुरु-पय-मूल-अहिगय-जीवाजीवाइ-तत्तत्थो ॥ १८६ सव्वत्था वि पसिद्धो जाओ एत्तो य नागदत्तो सो । मरिओ तहा विओ (?) नियडि-भुयंगी-गसिओ लोहग्गल-पिहिय-सुगइ-पहो (?) ॥ १८७ जाओ धिज्जाई अग्गिसम्म-नामो विहि-प्पओगेण । घेत्तूण परिव्वायग-वेसं तारिस-गुरूण पुरो ॥ १८८ वाल जण-प्पयडेणं तवो-विहाणेण बाढमप्पाणं । परिसोसेंतो परियडमाणो विस्सिंभराभोयं ॥ १८६ सिरि-रयणउर-पुरस्सुज्जाणं समागओ इओ य तहिं । परिवायगाणुरत्तो अहेसि हरिवाहणो राया ॥ १६० तेण य तमग्गिसम्म समागयं सोउ तव-सुसिय-देहं । निय-माणुसेहिं सद्दावेऊणं नियय [भव]णम्मि ॥ १६१ भणियं भयवं पारेयव्वं मह मंदिरे तए अज्ज । इत्थंतरम्मि विहिणो वसेण जिणधम्म-सिट्ठी सो ॥ १६२ पविसंतो निव-भवणे [ते]ण परिव्यायगेण सच्चविओ । अह पुव्व-जम्म-वेराणुहाव-विप्फुरिय-कोवेण ॥ १६३ १८४. ३ सूसिओ. १८६. ३. परियणमाणो. १६०. २. इउ. १९१. ४. नियणंमि. . 3 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० परिवायगेण भणियं रण्णो पुरओ जहा निय-गिहम्मि । नइ भुंजावसि ता भुंजावेसु परं पसिऊणं ॥ १६४ : वणिणो इमस्स पट्ठोए कंस-पत्तोए पायसं उण्हं । जं अज्ज मए नियमो इमे रिसो चिट्ठइ निहोओ ॥ १६५ रण्णा वि परिवायग-अणुराएणं पवज्जिलं तं पि । निब्बंधेणं भणिओ पत्थुय-अत्थम्मि सो सिट्टी ॥ १६६ सिट्ठी वि पुव्व-दुक्कय-कम्ममुवद्वियमिमं ति चिंतंतो। पट्ठी-हिउण्ह-पायस-पत्तीए वियणमुदग्गं ॥ १६७ नरवइ-उवरोहेणं दढमहियासेइ महियल-निसन्नो । इयरो य सणिय-सणियं उण्हुण्डं पायसं भोत्तुं ॥ १६८ . उद्देइ महापावो तत्तो जिणधम्म-सेटि-पिट्ठीए । स-रुहिर-मंस-हारु पत्ती सा उक्खया कह वि ॥ १६६ अह अह महासत्तो कहं नु सेट्ठी कयत्थिओ इमिणा । पाव-परिवायगेण इय जण-वयणामि निसुणेतो ।। २०० अविहिय-हरिस-विसाओ कह-कह-वि नियम्मि मंदिरे गंतुं । मेलेउ सयण-वग्गं सम्माणेउं सयल-संघं ॥ २०१ जिण-सासणस्स काउं पहावणं वहु-वियप्पमुवउत्तो । खामिय-समग्ग-सत्तो अपुव्व-गय-परम-चारित्तो ।। ...२०२ ।। निग्गंतूण पुराओ गंतुं एगत्थ-सिहरि-सिहरम्मि । पडिवज्जिउणमणसणं उदग्ग-भव-वास-भय-भीओ । २०३ पुव्वाभिमुहं काउस्सग्गेण य उमद्धमासंजा (?) । सेसासु वि पत्तेयं एवं चिय काउमुस्सग्गं ॥ २०४ विग-काग-वग-सिगालोलूगाइ-अणेग-दुट्ठ-सत्तेहिं । । पट्टीए खज्जतो वेयणमहियासिउं सम्मं ॥ २०५ १६७.४. वेयण. १९८.२. मइयासेइ. २०३.३. पडिवज्जिऊण. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ अणसण-विहिणा दो-मासिएण चइऊण पूइ-तणुमेयं । पंच-नमोक्कार-परायणो मरिऊण सोहम्मे ॥ २०६ तियसवई संजाओ पाव-परिव्वायगो उ सो मरिउं । तारिस-निय-दुव्विलसिय-समु वज्जिय-पाव-कम्म-वसा ॥ २०७ तस्सेव सुर-प्पहुणो वाहणमेरावणो करी जाओ । आरूढो उ तह तहा विडंविउं तं गयं इंदो ॥ २०८ निय-आभि [ओ]गिय-महापाव-विवागं च सुइरमणुहविउं। तत्तो ठिइ-क्खएणं एरावण-वारणो चविओ ॥ २०६ सुइरं च परियडेउं नर-तिरिय-गइसु स-कय-कम्म-वसा ।। वेयड्ड-पव्वयम्मि जाओ असियक्ख-जक्खो त्ति ॥ २१० सोहम्मिंदो वि हु तद्वाणाउ ठिइ-क्खएण चविऊण । सिरि-गयपुराभिहाणे नयर सिरि-आससेणस्स ॥ २११ रण्णो जाओ तणओ सणंकुमारो त्ति विस्सुओ तं सि । इय तुज्झ पुव्व-भव-वइयरम्मि कहियभ्मि मुणिवइणा॥ २१२ तुह अंतराल-वास-कए पेसविउं भाणु वेगमंगरुहं । पियसंगम-नाम-वेउव्विय नयरिं निवेसेउं ॥ २१३ परिणाविओ सि पुव्वुत्ताओ कुमरीउ (अमरीओ) अट्ठ तं तइया । तह कज्ज-सत्तीए(?) तुह पयसेवं करिस्सामि ॥ २१४ इय चितिरेण तं एगागी मुक्को सि भाणुवेगेण।। उज्जाणे तम्मि तया इय तं सयलं पि हु खमेज्ज ।। २१५ तह मह धूयाण सहस्स कुणसु पसिऊण पाणिगहणं तं ।। एवं होउ त्ति पयंपिऊण (?) सणंकुमारेण ॥ २१६ वीवाहिया य खयर-प्पहु-धूयाओ महा-विभूईए । तयणु दहुत्तर-तरुणी-सएण सह पंचविह-विसए ॥ २१७ २०६.२. तण'. २०९ २. मुइरमगुहिपिउं, २१०. १. सुयरं. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवभुं जिरस्स कित्तिय-मित्ताणि वि अइगयाणि दियहाणि । अज्ज उण अज्जउत्तेण इमं अम्हं समाणत्तं ।। २१८ जत्थासियक्ख-जक्खेणं सह मह आसि जुज्झमावडियं । गम्मं तम्मिं माणस-सरम्मि कीला-कए इण्हिं ।। २१६ इय भणिरो च्चिय नहयल-पहेण सारेण परियणेण समं । . चिट्ठइ एत्थ पहुत्तो विविह-क्कीला-विणोएहिं ॥ २२० । जा ताव समं तुमए दंसणमिह जायमज्जउत्तस्स । एत्तो य रइहराओ सणंकुमारो . समुढेइ ॥ २२१ अह दो-वि विहिय-तस्समय-उचिय-पडिवत्तिणो कयाणंदा। असमाण-चडयरेणं वेयड्ड-गिरिम्मि संपत्ता ।। . २२२ .. अह उवसाहिय-खयर-स्सेणि - जुओ . भुवण-वित्थरिय-कित्ति। जाओ सणंकुमारो विज्जाहर - चक्कवट्टि त्ति । २२३ ता विण्णत्तो पत्तावसरं चक्की. महिंदसीहेण । जह पहु जणणी-जणयाणि तुम्हमच्चंत-दुहियाणि ॥ २२४ चिटुंति तओ निय-मुह-दसण-परमामोएण सिंचेसु । . सोउमिणं विज्जाहर-रज्जाणं सुत्थयं काउं ॥ २२५ विज्जाहर-वल-पूरिय-नहंगणो जणिय-जयाणंदो । . चक्कवई आगंतुं स-पुरम्मि महिंदसीह-जुओ ।। २२६ जणणी-जणयाणं पय-पउमाणि नमेइ परम-भत्तीए । कहइ य महिंदसीह-मुहेण निय-वइयरमसेसं ।। २२७ अह नूणं धम्माओ मह तणयस्स च हवेइ कल्लाणं । इय चितंतों सिरि-आससेण-निवई सुहासंसी ॥ २२८ . . महया महूसवेणं कुमरं ठावेउ नियय-रज्जे (?) । निक्खंतो स-पिओ वि तहाविह-सूरीण पय-मूले ॥ २२६ . २१६. ३. माणुस'. ३. जीओ. Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ - - - ------ - २३२ तत्तो सणंकुमारेण निय-पयावोवहसिय-दिणमणिणा। सिरि-भरहेसर-विहिणा छक्खंडा वि हु मही एसा ।। २३० वास-सहस्सिय-कालेण साहिया पयडिया य निय-कित्ति । तत्तो चउसहि-सहस्स-पिययमा-संग-दुल्ललिओ ।। २३१ वत्तीस-सहस्स-महानरिंद-मणि-मउड-लिहिय-पयवीढो । हय-गय-रह-चुलसीइ-लक्ख-भरक्कंत-महि-वट्ठो ॥ नव-निहि-चउदह-रयणोवलंभ-तइलोय-लोय-कय-तोसो । गयपुर-नयरे पत्तो दिट्ठो य सुराहिवेण तओ।। २३३ पुब्बं सोहम्मवई अहेसि एसो वि मज्झ सरिसो त्ति । परिचिंतिऊण अच्चंत-वंधु-बुद्धीए वेसमणो ॥ २३४ आणत्तो जह गंतुं गयपुर-नयरे . सणंकुमारस्स । . कुणसु पबंधेण लहुं पि महा. रज्जाहिसेयं ति ।। २३५ तह वण-मालं हारं छत्तं मउडं च पायवीढं च । सीहासणं च कुंडल-जुयलं चमरं च पाउय-जुयाणि ॥ २३६ पाहुडमिमं च घेज्जसु चक्किस्स तुम सणंकुमारस्स । इय विविहमिदं सिक्खं घेत्तूणं उत्तिमंगेण ।। २३७ सुरवइ-पेसिय-रंभा-तिलोत्तिमाहिं सहेव वेसमणो । काऊण करेसु नाह-पाहुडं गयपुरे पत्तो ॥ २३८ अह सिरि - सणंकुमारस्स चक्रिणो पाहुडं वियरिऊणं । जक्खो वेसमणो विण्णवेइ जह पहु सुरिंदेण ।। २३६ इह पेसिओ म्हि भणियव्वं पुण जह तुममहेसि सोहम्मे । तियसाहिवई पणमिर-समग्ग-सुर-रमणि-निउरुंवो ॥ २४० तुमए य चुए सुर-मंदिराउ [जाओ] इमो सुराहिवई । इय तेण बंधु-बुद्धीए तुह इमं पाहुडं पहियं ॥ २४१ *२३२मी गाथा पछी (एटले के हस्तप्रतमा ६३ थी ७७ भी गाथा सुधीमां) कोई वीजा ग्रंथनो अंश प्रक्षिप्त थयेलो छे. २३९. २. चक्किस्सणो. २४०- ३. सिररमणि. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ तह तुज्झ विजिय-दुज्जय- सत्तुस्स पवित्त- पुण्ण रासिस्स । कारविओ मज्झ सयासाउ महारज्जहिसेओ ॥ इय तुब्भे अणुमन्नह एयं ति तओ सणकुमारेण । पडिवन्नम्मि जोयण- पमाण- मणि-पेढियं वेसमणेण विउब्विय तेयस्सुवरिं नु फुरिय-तेय-भरो । अहिसेय-मंडवो पंच-वण्ण-रयणोलि-निम्मविओ ॥ रम्मं ॥ २४३ निरिक्खंती । इसाण - कप्पांओ ॥ तप्प हाणुहावेण । T २४२ तत्थ मणि- पीढगोवरि सुरिंद-सीहासणं कथं रम्मं । तम्मि य निवेसिऊणं सणकुमारं महारायं ॥ कलहोय-रयण-कंचण-कलस- सहस्सेहिं झत्ति आणेउं । खीरोआओ हरहास-कास-धवलाणि सलिलाणि ॥ जय-विजय-नंद-सद्द-पुरस्सर वर-गीय मुहलिय- दिसेहिं । वेसमण - प्प मुहेहिं सुरेहिं अहिसिचिओ चक्की ॥ रंभा - तिलोत्तमाओ वि सव्वालंकार-भूसिय-तणूओ । भाव-पहाणमुवणच्चियाउ चक्किस्स पुरओ ति ॥ २४८ कुमारस् तस्स रज्जाहिसेयमहं । काउं वेसमणो सुरभवणम्मि गओ स-परिवारो ॥ २४६ चक्कवई विहु उवभुंजंतो भोगोपभोग - सुहमणहं । कालं गमेइ कित्तिय मित्तं पि अह अन्नया सक्को ॥ सोहम्मिय-परिसए सोयामिणि-नाडयं चिट्ठइ जा तावस्स समीवे संगम-नामो देवो समागओ रवि - उदए ताराण व इयर-सुराणं अह निय-कज्ज-समत्तिए तम्मि तियसे पुट्ठो सुरेहिं सक्को जह पहु कहमेय- तेण ॥ एवं २५० गयम्मि स-ठाणे | २४४.४. निम्मिविउ, २४६. ४. धतलाणि २४८. ४. पुरोत्ति. गओ तेओ ॥ २४४ २४५ २४६ २४७ -२५१ २५२ २५३ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ २५४ । 1 गोसे दिणिद- उदएणं व गहाणं सुराण सव्वेसि । नट्टो झड त्ति तेओ ता वज्जरियं सुरिंदेण ॥ जह पच्छिमम्मि जम्मे इमिणा तियसेण समय- नीईए आइण्णो आसि तवो आयंविल-वद्धमाणो त्ति 11 २५५ तव्त्रसओ सेस सुरख्भहिओ तेओ इमस्स जाउ ति अह तियसेहिं पुणरवि पुढं चिट्ठइ किमन्नो वि ॥ को-वि हु जयम्मि एरिस तणु-पहा- हरिय इयर - तरुण - जणो । अह ईसि हसिऊणं भणियं अमरा हिराएण || निम्माण-कम्म- - निम्मिय असमाण-समग्ग-संधि-बंधस्स । साहाविय - पोहा मिय-तियसासुर - सत्वस्स ॥ २५६ पुरओ सणकुमारस्त चक्कवइणो सुरस । एयस्सा किं रूवं किं तेओ किं वा लायण्ण माहप्पं ॥ अहवा विचिट्ट एउ एसो तियसासुर - माणवाण मज्झाओ । अन्नस्स विकस्स नत्थि एरिसा रूव रिद्धि त्ति ॥ तत्तो यस हंता दूवे स्वावलोयणत्थं सुरा तियसनाह वयणमिणं । सकुमारस्स- चक्किस्स ॥ कय- देसिय दिय-रूवा पडिहार-निवेश्या पुरो पत्ता । अह गंध-तिल्ल - अभंगियंगमवि तं 1 निरिक्खेउं ॥ विम्हि - हिया अन्नोन्न- मुहाणि लग्गा निरिक्खिउं दो- वि चितंति य अहह इमस्स किंपि रूवं अउव्वं ति ॥ तो अमुणिय-तत्तेणं सणकुमारेण ते सुरा भणिया । जह भो विप्पा मग्गह मणिच्छियं जह पयच्छामि ।। तयणु पयंपंतियरे अहिलसिमो किंपि नो महाराय । किंतु तुह रूव-अवलोयणत्थमम्हे इह पहुत्ता ॥ २५७ २५८ २५६ २६० २६१ २६२ २६३ २६४ २६५. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ २६६ नियह 11 तियसा । संपत्ता ॥ २६८ २७० २७१ दिट्ठे च तं तिलोयव्भहियं ति मणम्मि अम्ह गुरु-हरिसो । संजाओ अह चक्कि - पहुणा ईसी स-हरिसेण ॥ भणियं जइ एयं ता एज्जह तुम्भेत्ररण्ह समयम्मि । जह अत्थाण- निविट्ठे कय-सिंगारं ममं इय चक्कि वयणमायण्णिऊण हरिस- पुलइया अन्नत्थ गमेउ खणं पत्तावसरं तु तो अत्थाणुवविट्टं सव्वंग - विसेस - विहिय-सोहं पि 1 ववगय-तणु-लायण्णं अवलोएऊण तं तियसा ॥ २६६. धिद्धी कम्म- विवागो को वि अउव्वों त्ति चिंतिरा हियए । विच्छाय-त्रयण-कमला सहसि अहोमुहीहूया ॥ ता किंचि विसन्नेणं सणकुमारेण पभणियं जह भो । अन्नारिस व्व तुम्भे जाया किं झत्ति दट्टु ममं ॥ अह कहिय - नियय - सरूवा भांति इयरे जहा महाराय । जा आसि तेल्ल - अभंगियस्स देहम्मि तुह कंती ॥ तइया सा एहि सहस्संसेण वि कय- विहसणस्सावि । विहिय - सिणाण-विलेवण - विहिणो हु नत्थि ता सहसा ॥ लायण्ण-रूव-जोव्वण सरीर संघयण- कंति-सोहाओ | धिद्धी अइ-तुच्छाओ जीवाणं लोग || ता कुस - जल-लव-चवले लायण्णे जोव्वणे य रूवे य । पडिवंध-कारणं किं-पि नत्थि सुविवेय-विहवाण ॥ २७५ इय सोऊण जहट्ठिय-वयणं तियंसाण जाय-संवेगो । वियलिय मोह-मोहो सर्णकुमारो पयंपेइ ॥ इच्छामो यणुसट्टि तियसा पर कज्ज-सज्ज-वावारा । रूवाहिमाण-गह- निग्गहओ तुम्भेहिं पडिसि || पयईए निग्गुणो च्चिय देहा देहीण नत्थि संदेह । अविवेणो इमस्स वि मंडण - परिकम्मणक्खणिया ॥ २७८ २७२ २७३ २७६. गाथा २६७ पछी २६०० ग्रंथान थयानो प्रतोमां निर्देश थे. २६७ २७४ २७७ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ उप्पत्ति कारणं पुण इमस्स देहस्स जं जय-पसिद्धं 1 तं चिंतियं पि विउसाण भायणं होइ लज्जाए ॥ २७६ असुईए सन्निहाणे सव्वासुइ-संग-मित्त-निव्वडिए । चिंतिज्जंत पि दढं सुइत्तणं होज्ज कह देहे ॥ रोग-जरा-मरण-भंगुर सरूवे । परिसीलणेक्क- रुइरे अवगय-तत्तेहिं कहं तणुम्मि कीरउ थिरावधो ॥ २८१ २८० 1 इय ता जह जह चिंतिज्जइ देहस्स थिरत्तणं सुइत्तं च तह तह विहडइ सयलं पवणोवहयं व सरयव्भं ।। २८२ वहु-वियप्प - सुविसुद्ध - भावणा भावियंतकरणेण । भुवण भहियं पि हु चक्कवट्टि लच्छिं परिचइउ || पय डेऊणं जिण-सासण- पहावणमणेग - भेएहिं । अहिसिंचिऊण महा-महेण निय-नंदणं रज्ज़े 1 पडलग्ग-तणं पिव उज्झिऊण सयलं परिग्गहारंभ ।। निक्खतो चक्कवई उसहायरियस्स पय- मूले ॥ तओ य अणुचरियं धीर तए चरियं निययस्स पुव्व- पुरिसस्स । भरह महा-नरवईणो तिहुयण - विक्खाय- कित्तिस्स ॥ इय वहु-वियप्पमुववू हेऊणं सकुमार रायरिसिं ॥ तग्गुण- गहण-परा ते तियसा सुर-मंदिर पत्ता 11 भयवं पि हुभव-भीओ गुरु-भणिय - विहीए विहरिउमन्नत्थ । इत्थी - रयण- पमुहाणि पुण चऊद्दस वि रयणाणि ॥ नव-निहिणो वतीस - सहस्सा उण मउडवद्ध-नरवइणो । सव्वे वि आभिओगिय-तियसा सयणा य सव्वे वि || किं वहुणा चुलसीए लक्खा गय-तुरय-संदण - भडाण । इयरो वि समग्गो वि हु खंधावारो गुरु- दुहुत्तो ॥ २८३ २८४ २८५ २८६ २८७ २८८. २८६ २६० Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा उज्झसु मा उज्झसु पहु पहु पसिऊणमिणमसरणं । २६२ I इय विलवंतो छम्मास-माण-कालं परिव्भमिरो ॥ २६०. पट्ठि अ-परिमुयंतो सणकुमारस्स भयवओ थक्को । राय - रिसिणा वि निय माहप्प - विणिज्जिय- तिहुयणेण ॥ सीहावलोइयं पिहु पुत्रोइय वत्थु - सत्थ-विसयम्मि न निहित्तं ता भोग-हलिय- कम्मंसस्स पज्जते ।। सव्वो विहु पुब्वोइय-पयत्थ- सत्यो छम्मास-कालंते । निय निय-ठाणम्मि गओ भयवंतस्स उ स कम्म-वसा ॥ छट्ट-तवो-कम्मंते गोयर- चरियाए परियडंतस्स । एगल्ल-विहारं २९४ पडवन्नस्स महाणुहावस्स ॥ छेलिय- तक्क - विमिस्सं सत्त इमे अइ- दुसहा १५८ 1 चीणय-कूरं पभुंजमाणस्स, गायंका समभूया ॥ तंजा कंड्य भत्त-सद्धा तिव्वा वियणा य अच्छि कुछ कासं जरं च सासं सणकुमारोहियासतो ॥ # २९३. .. २६५ २६७ कालं गमेइ एत्तो य तियसवइणा सहाए वज्जरियं । जह भो तियसा चरियं पेच्छह सणकुमारस्स ॥ २६८. भुवण-व्वाहि-हराहिं आमोसहि-पमुह-पवर-लद्धीहि । - उप्पन्नाहि वि नीसेस वाहि- विहुरिय- सरीरो वि॥ न कुणइ सक्कार-रवं ( ? ) पंडिउवयारं पि न पयट्टेइ । निय-दुक्कयाई अहियासितो चिट्ठइ भवुव्विग्गो ॥ न य तीरइ तियसासुर-पहूहिं न वि चालिउँ सज्झाणाउ । सोऊणमिणमसद्दहमाणं तं चिय.. तियस-जुयलं ॥ सणकुमारमा सज्ज । आगंतु विज्ज-विहिणा जंपेड़ भयवं रोगोवसमं करेमि जइ तमणुजाणेसि ॥ २६. १. भुवणु २६६ २६६ : - ३०० ३०१ .३०२. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ १५९ ‘राय-रिसी वि हु चिट्ठइ तुहिक्को अह पुणो पुणो तियसा । जावेयं . चिय · पक्खंतरेसु भमरा पयंपंति ॥ ३०.३ ता थोवक्खर-वयणेहिं भयवया जंपियं जहा वेज्जा । .. किं तुन्भे तणु-रोगे समेह अह कम्म-रोगे .वि ॥ ३०४ तणु-रोगे सयले वि उवसमावेमो न उ क्कम-वाहिणो । ता निय-निट्टणेण परिसेउ एगा (?) ।। करंगुलो जच्च-कणय-वन्ना पयंसिया मुणिणा । भणियं च अहं सयमेव इयर-वाहिं उवसमेमि ॥ ३०६ . . .. तुम्हाणं पुण जइ कम्म-रोग-उवसामणम्मि सामत्थं । ... ... .. विज्जइ ता उवसामह . . अंतर-रोग-वित्थारं ॥ तर राग-वित्थार ३०७ ता पणमेऊणं सणंकुमार-रायरिसि-पय-कमल-जुयलं । पयडिउं अप्पाणं कहिउं आगमण-वुत्तंतं ॥ ३०८ अविसयमावन्ना ते तियसा भयवं पि भव-उविग्गो । ..... वेयणमहियासेतो . सम्मं । चितेउमाढत्तों .. ॥ ३.०६. ... : वारिज्जइ एंतों सायरो वि कल्लोल-भिन्न-कुलसेलों। न य पुत्व-जम्म-निचिओं सुहासुहो कम्म-परिणामो ॥ ३१० रे जीवं सयं तुमए समज्जिया विविह-दुक्ख-दंदोली । ........ कुव्वंतेण अयाणुय पाव-ढाणाई सयलाई । ३११ पर-लोंय-नि प्पिवासा तह तह बढुंति पाणिणो मूढा । नर-नरय-तिरिय-भावे जह अहि यहियं? | दुहमुर्वेति ॥ ३१२ रे जीव कह वि नासो न होइ पुवज्जियाण कम्माण । ता सहसु अणुव्विग्गो जं तुह दुक्खं समावडइ॥ ३१३ सव्वस्स वि एस गई जं कयमन्नाण-राय-दोसे हिं . तं परिणमइ अवस्सं पुन्वज्जिय-कम्म-वसगस्स ॥ ३१४ ३०५. १. तयणुरोगे. ३०६. ४. मृणिणो. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० पुणरवि तए य : इमं खवियव्वं जं पुरा समायरियं । किं पुण सम्म खवणं बहु-निज्जरमप्पदुक्खं च ॥ ३१५ इय निच्छिऊण गरुए वि वाहिणो सहइ निज्जरावेही । सम्म कम्म-विवागं परिभातो स राय-रिसी ॥ ३१६ तत्तो भयवं कुमरत्तम्मिं मंडलिय-नरवइत्ते य। पन्नासं पन्नासं वरिस-सहस्साइं अइगमिउं ॥ ३११ वच्छर-लक्खं वच्छर-लक्खं चक्कित्त-समण-भावेसु । . अणुपालेऊणं गंतूण य सम्मेय-गिरि-सिहरे ॥ ३१८ मासिय-तवस्स-अंते कालं काऊण समय-नीइए । कप्पे सणंकुमारे जाओं देवो महिड्डीओं ॥ ३१६ तत्तो चुओ समाणो महा-विदेहम्मि गंतु सिझेही। .. सुगहिय - नामधेओं सणंकुमारो सुरों त्ति ॥ ३२० इत्थं चक्रि-सनत्कुमार-विलसदृष्टान्तमन्तः स्वयं युष्माभिः परिभाव्य भो भव-भयाभ्यासाद् भृशं भीरुभिः । ६२१ कार्या दुष्कर-सर्व-सङ्ग-विरति/रैर्ययोत्तिर्यते । . नावेवार्णव-मार्गगामिभिरसौ संसार-वारांनिधिः ॥ . ३२२ ॥ इति सनत्कुमार-चक्रवर्ति-कथानकं समाप्तम् ॥ . . ... Page #197 -------------------------------------------------------------------------- _