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श्री ऋषिभाषितसूत्राणि
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम:
“ऋषिभाषितसूत्राणि” मूलं
[मूलसूत्रम् एव]
[आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ]
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह)
पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि)
28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
jain_e_library's Net Publications
मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं ।
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन--1, .........मूलं H / गाथा - ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
श्रीमद्भिः प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि श्रीऋषिभाषितसूत्राणि.
___ प्रकाशिकासुरतवास्तव्यबोष्ठिवर्यचुनिभाइमछुभाईत्याख्यसद्गृहस्थ धर्मपत्नी श्राविका फंकुवाइ वितीर्ण
द्रव्य साहाय्येन रनपुरीया श्री ऋषभदेव केशरीमलजी नाम्नी संस्था
मुद्रयिता-मुख पृष्ठ तथा पृष्ठ ३७-४३ जैनबन्धु प्रेस, इन्दौर में छपा. प्रतयः १०.०वीर संवत् २४५३ विक्रम संवत् १९८३ क्राइस्ट १९२७ पण्यम् MA.
मूल संशोधकेन संपादित: 'ऋषिभाषित सूत्रस्य टाईटल पृष्ठः
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क्रमाक:
पृष्ठांक
२५
२६
३०
०१ नारद ०२ वज्जियपुत्त ०३ दविल ०४ अंगरिसि
| पुप्फ़साल | वल्कलचिरि | कुम्मापुत्त | केतलिपुत्त महाकासव | तेतलिपुत्त | मंखलिपुत्त
जणवक्किय | भयालि
बाहुक १५ मधुरायणिज्ज
प्रत्येकबुद्ध-भाषित ऋषिभाषित-सूत्राणि विषयानुक्रम: अध्ययनम् पृष्ठांक: क्रमांक:
अध्ययनम् ०६ __ १६ सोरियायण ०७ १७ | विदु
१८ वरिसव
आयरियायण | उक्कल
| गाहावइज्ज २२ दगभालिज्ज
२३ रामपुत्तिय १७ २४ हरिगिरि
२५ अंबड २६ मायंगिज्ज
वारत्तय | अद्दइज्ज
| वद्धमाण ३० वायु
१४
३५
३७
१२
४३
~34
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क्रमाक:
पृष्ठांक
५४
५५
प्रत्येकबुद्ध-भाषित ऋषिभाषित-सूत्राणि विषयानुक्रम: अध्ययनम् पृष्ठांक: क्रमांक:
अध्ययनम् । ४४ ३९ संजइज्ज ४५ ४० | दिवायाणिज्ज
४१ इंदनागिज्ज ४२ सोमिज्ज ४३ जम
| वरुण ४५ वेसमण
ऋषिभाषितसूत्रस्य प्रामाण्यं
३१ पासिज्ज ३२ | पिंग ३३ अरुणिज्ज ३४ इसिगिरि
अद्दालइज्ज ३६ | तारायणिज्ज
सिरिगिरिज्ज ३८ साईपुत्तिज्ज
५६
३५
४४
५१
५३
६५
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['ऋषिभाषित-सूत्राणि' मूलं ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत सबसे पहले "श्रीमद्भिः प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि" के नामसे सन १९२७ (विक्रम संवत १९८३) में श्री ऋषभदेव केशरीमलजी नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब |
ये 'ऋषिभाषित' सूत्र का मूल प्राकृत नाम 'इसिभासिय' है | वर्तमान कालमे इस सूत्र का समावेश ४५ आगमोमें नहीं दिखता, मगर पक्खीसूत्रमें इस की गिनती 'आगमसूत्र' के रुपमे हुई है | अंगबाह्य सूत्रोमे कालिकसूत्रमे पांचवा कालिकसूत्र 'इसिभासिय' लिखा है | नन्दीसूत्र में ये सूत्र सातवे 'कालिक सूत्र के रूपमे गिनाया है । इस सूत्र का हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद भी किसी ने प्रकाशित करवाया है | इस सूत्र (आगम) पर किसीने वृत्ति (अवचूर्णि) भी लिखी है | 'इसिभासिय' सूत्र का संशोधन व संपादन पूज्य पुन्यविजयजीने भी किताब रुपमे किया है।
हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर सूत्र आदि के नंबर लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा सूत्र आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके |
* हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस दिए है और जहां गाथा है वहाँ |-|| ऐसी दो लाइन खींची या 'गाथा' शब्द लिखा है। हर पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट दी है।
* अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है।
___.... मुनि दीपरत्नसागर.
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[१], .........मूलं H / गाथा [१-११] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
सूत्रांक
[१] 'नारद' अध्ययन
गाथा ||१-११||
नारयम
ऋषिभाषि
दीप अनुक्रम [१-११]
अथ प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ।। नमासिक सत्यवमेव वदती सोयब्वमेव वदति । जेण समयं जीवे सव्वदुक्खाण मुच्चति ॥१॥ तम्हा सोयष्याता पर णधि सोयति। यणं २ बज्जि | देवनारदेण अरहता दक्षिणा बुइयं ॥२॥ पाणातिपात तिविहं तिविहेण गोब कुज्जा ण कारचे पढम सोयव्यलक्षणं ॥३॥ मसाबाद।यपुत्तझवर्ण तिविहं तिथिहणं व बया ण भासए। बितियं सोयवलक्खा ॥४॥ अदत्त(त्ता)दार्थ तिविहं तिविहेण गोव कुज्जा ण कारये । ततियं मोय-13 व्यलक्खणं ॥५॥ अभपरिग्गहतिविहं तिविहेणं घोच कुज्जा ण कारवे। चउत्थं सोयब्वलक्षणं ॥६॥ सव्य च सबहिं घेय, सदाचकालं च सव्यहा। निम्ममत्तं विमुत्तिं च, विरतिं चेव सेवते ॥७॥ सव्वतो विरते दंते, सव्यतो परिनिच्युड़े। साथ्यतो विष्पमुक्कप्पा 0 सव्यत्येस समं चरे ॥८॥ सव्व सोयव्वमादाय, अउ[3]यं उवहाणव। सम्बदुक्खप्पहीणे उ, सिद्धे भवति गीरो ।। दत्तं चेयोप| सेवती, म योपसेवती। सव्व' वोवधाणब', दत्तं चेवोवहाण ॥१०॥ यम बोबधाणय', एव से बुद्ध घिरते दिपावे दंते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्यं हब्बमागच्छइत्ति वेमि ॥१२॥ [१२]। पढमं नारदज्झयणं सम्मत्तं ॥१॥
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
........ अध्ययन-[२], .........मूलं H I गाथा [१-९] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२] 'वज्जियपुत्त' अध्ययनं
सुत्राक
'जल्स भीता पलायन्ति, जीवा कम्माणुगामिणो। तमेवादाय गच्छति, किच्चा दिन्न व वाहिणी ॥१॥ यज्जियपुत्रीण अरहता इसिंणा बुइत दुक्खा परिवित्तसंति पाणा, मरणा जम्मभया य सव्यसत्ता। तस्लोवसम गयेसमाणा, अप्पे आरंभभीए ण सत्तं ॥२॥ गच्छति कस्मेहि से णुबडे, पुणरवि आयोति से सयंकडेणं । जम्मणमरणाइ अट्टो पुणरवि आयाइ से सक्षम्मसिन्ने ॥३॥ बीया अंकुरणिप्फत्ती,
-
गाथा
॥२॥
दविलज्म
||१-९||
यणं
अमि ने
अंकूरातो पुणो बोयं । बौर संजुज्जनाध्यमि, अंकुरस्सेव संपदा ॥४॥ बीयभूताणि कम्माणि, संसारंमि अणदिए। मोहमोहितचित्तस्स, ३ त तो कन्माण संतती ॥ ५॥ मूलस्सित्ते कलुप्पत्ती, मूलाघाते हत फलं । फलत्थी सिंचती मूलं; फलघाती ण सिंचती ॥ ६॥ मोहमूलमगिन्याणं, संसारे सब्बदेहिणं । मोहमुलाणि दुक्खाणि, मोहमूलं च जम्मण ॥७॥ दुक्खामूलं च संसारे, अपणाणेण समज्जितं । मिगाब्बि सरुप्पत्ती, हणि कम्माणि मूललो ॥ ८॥ पब से युद्धे विरते विपावे दंते दविष अलंताती। णो पुणरवि इच्चस्थं हव्वमागच्छतित्ति बेमि ॥ ३ ॥ इइ विइयं बज्जियपुत्तज्झयण ॥२॥
दीप
अनुक्रम [१२-२०]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[1]
गाथा
॥१-१२ ॥
दीप
अनुक्रम
[२१-३३]
१३॥
ऋषिभाषि
तेषु
1988
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन - [३], . मूलं [१] / गाथा [१-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि" - मूलं
[३] 'दविल' अध्ययनं
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after खलु भो वलेधोवरतण लेबोबलिता खलु भो जीवा अनेकजमजोणीभयावत्तं अणादीयं अणवदग्गं दीहम चातुरंत संसारसागर श्रीतोता सिमलमलमचाबाहमपुणभवमपुणरावत्तं सासतं ठाणमभुवगता बिति से भवति सव्वकामरिने ससंग सिहतिक्ते सव्यवरयपरिनिब्बु सव्वकोहोवर ते सव्यमाणोवरते सव्वमायोवर ते सव्वलाभोवरत्ते सव्वासादाणोबर सुसंs सबसयोवर ते सुसव्वसव्योवस ते सुसव्यपडिवु णो कत्थई सज्जति (रज्जति) य, तम्हा सव्वलेोवर भविस्लामित्तिकट्टु असिएण दविदेव] लेणं रहता इसिणा वुइतं । सुदुमे व वायरे या, पाणे जो तु विहिंसद रागोलाभिभूतप्पा, लिप्यते पावकस्गुणा ॥ १ ॥ परिम्यहं गिण्हते जो उ, अप्यं वा जति वा यहु ं । गेहोमच्छाय दोसेणं, लिप्य पावकम्मुणा ॥ २ ॥ कोहं जो उ उदीरे, अप्पणो वा परस्स वा । तंनिमित्ताणुबंधेणं, लिप्यते पावकम्णा ॥ ३ ॥ एवं जावमिच्छादंसणसहले, पाणातियाते देवो अलियवयणं अदत्तं च मेहुणगमणं लेवो बहुविहो लेवो, माणो य बहुविधविधीओ माया य बहुविधा लेयो, लोभो वा बहुविधविधीओ ॥ ५ ॥ म्मपवणे उत्तमवर गाहो विरित्ता
लेवो परिहं च ॥ ४ ॥ फोहो तम्हा ते तं विकिचित्ता, पावक
परिव्व ॥ ६ ॥ खोरे दूसिं जथा पप्प, बिणासमुवगच्छति । एवं रागो व दोसो य, वभचेरविणासणा ॥ ७ ॥ जधा रखोरं पातु मुच्छणा जायते दधिं । एवं गेहिप्यदो सेण, पावकम्मं पड़ती ॥ ८ ॥ रण्णे दवग्गिणा दड्डा, रोहंते aणपादया। कोहगिगा तु दडा, दुक्खाण ण नियन्तई ॥ १ ॥ सक्का वन्ही णिवारेतु वारिणा जलितो वहिं । सञ्चोद हिजलेणावि, मोहन्गी दुण्णिवार | १० | जस्त एते परिण्णाता, जातीमरणव'पणा संछिण्णजातिमरणा, सिद्धिं गच्छति णोरया ॥ ११ ॥ एव
से बुद्धे विरते प० ॥ ३ ॥ सईयेदविण ॥३॥
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॥२॥
४ अंगरिसिअमायण'
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४], ........मूलं H / गाथा [१-२७] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४] 'अंगरिसि' अध्ययनं
सूत्रांक
9-800-8204552
गाथा
||१-२७||
आयाणरक्खी पुरिसे, परं किंचि ण जाणती। असाहुकम्मकारी खलु अयं पुरिसे ॥१॥ पुणरवि पावेहि कम्मेहि चोदिज्जतो णिच्चम समपी(संसारमी)ति अंगरिमिणा भारहारण अरहता इसिणा युइतं ॥२॥णो संवसि सक, सीहं [णासंवसता सक्क सोलं] जाणिनु माणवा। परम खलु पडिच्छन्ना, मायाए दुहमाणसा ॥३॥णियहोसे णिगृहंते, चिरंपी णोबदसए। किह में कोपि णज्जाणे; जाणेण त्य हियं सयं ॥५॥ण जाणामि अप्पाणं, आवो वा जति वा रहे। अज्जयारि अणज्जं वा तं गाणं अवलं धुव॥५॥ सुवाणि भित्तिए चित्तं, क-17 डेवा सुणिवेसित'। मणुस्सहिदक पुणिणं, गहणं दुब्बियाणकं ॥ ६ ॥ अन्नहा समणे होइ, अण्णं कुणंति कम्मुणा। अण्णमण्णाणि | भासते, मणुस्लगहणे हु से॥७॥ तणखाणुकंडकलताधणाणि बलोषणाणि । सढणियडिसंकुलाई मगुस्सहिदयाई गद्दणाणि ॥ ८॥ मुंजित्तुच्चाबर भोप, संकये कडमाणसे। आदाणरक्खी पुरिले, परं किंचि ण जाणति ॥३॥अदुवा परिसामज्भ, अदुवा बिरसे कड। ततो गिरि(क्खि)णप्पाण', पायकम्मा णिरु भति ॥ १०॥ दुप्पचिण्ण सपेहाए, अणायारं च अप्पणो । अणुवहितो सदा धम्मे, सो पच्छा परितप्पती ॥ २१ ॥ सुप्पाण्णं सहाय, आषार बाचि अपणो। सुपद्वितो सदा धम्मे, सो पच्छा उ ण तप्पति ॥ १२ ॥ पुवरत्तावरत्तमि, संकप्पेण बहु कई। सुकडं दुक्कई वावि, कत्तारमणुगच्छइ ॥ १३ ॥ सुकई दुक्कई वावि, अप्पणो यावि जाणति । पाय पं अण्णो वि
J५ पुप्फसाल
ज्झयण' जाणाति, सुक्काई व दुक्कडं ।। १४ णरं कल्लाणकारिंपि, पावकारिन्ति बाहिरा। पावकारिपि ते वूवा, सील तोत्ति बाहिरा ॥ १५ ॥ ऋषिभाषि
चोरंपि ता पलंसंति, मुणीवि गरिहिज्जती। ण से एत्तावताऽचोरे, ण से इत्तावताऽमुणी ॥ १६ ॥ गणरस क्यणा चोरे, पास्स वरणा
मुणी। अयं अप्पा विषाणाति, जे वा उटीमणाणिणो ॥ १७ ॥ जइ मे परो पसंसाति, असाधु साधु माणिया। न मे सा नायए भासा, - अप्पाण' असमाहितं ॥ १८॥ जति मे परो. विगरहाति, साधुसंति णिरंगणं । ण मे सक्कोसए भासा, अप्पाणं सुसमाहित ॥ १६ ॥
SROSS
दीप अनुक्रम [३४-६०]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४], .........मूलं H / गाथा [१-२७] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४] 'अंगरिसि' अध्ययनं वर्तते]
सूत्रांक
गाथा ||१-२७||
TELउलूका पसंसंति, अंपा शिंदंति वायसा। जिंदा वा सा पसंसा वा, वायुजालेब्ध गच्छती ॥ २० ॥ जंच दाला पलंसंति, जया
जिंदन्ति कोबिदा। णिदा वा सा पसंसा वा, पप्पाति कुरुए जगे ॥ २१ ॥ जो जत्थ बिज्जती भाबो, जो वा जत्थ ण विज्जती। सो | सभावेण सब्बोबि, लोकमि तु पवत्तती ॥ २२ ॥ विसं वा अमतं वावि, सभावेण उवहितं । चंदसूरा मणी जोता, तमो अगी दिव' खिती ॥ २३॥ वदंतु जणे जं से इच्छियं, किंणु का(क)लेमि उदिपणमप्पणो। भावित मम णस्थि पलिसे, इति संखाए ण मंज लामह ॥ २४ ॥ अक्खोबंजणमाताया, सीलव' सुसमाहिते। अप्पणा वमपाध, चोदितो बहते रहे ॥ २५ ॥ सीलक्खरहमारुढो, पाणदं सणसारथी । अप्पणा पोव अप्पाण', जदिता सुभमेहती ॥ २६॥ एवं से युद्धे मुत्ते॥४॥चउत्थं अंगरिसिणाम झयण ॥४॥
दीप
अनुक्रम [३४-६०]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
....... अध्ययन-[५], .........मूलं [१] / गाथा [१-५] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
। [५] 'प्प्फ़
साल' अध्ययनं
पत
सत्राक
माणा पच्चोत्तरित्ताण', विणए अप्पाणुवदंसए, पुष्कसालपुत्तेण अरहता इसिणा वुइयं, पुढघि आगम्म सिरसा, थले किच्चाण अंजलिं । पाणभोजणमे चिच्चा, सव' च सयणासण ॥१॥णमंसमाणस्स सदा, सं(ब) ती आगम बढ़ती। कोधमाणपहीणस्स, आता जाणइ पजवे ॥२॥ ण पाणे अतिपातेज्जा, अलियादिपण' च वजए । ण मेहुणच सर्वज्जा, भवं जा अपरिगहे ॥ ३॥ कोधमाण-12
[१]
गाथा ||१-५||
परिणस्स, आता जाणति पञ्जये। कुणिमं च णा सेवेज्जा, समाधिमभिदसए ॥ ४॥
॥ पव' से बुद्ध विरए पायो० ॥५॥ पंचम युप्फसालणामझयण ॥ ५॥
बागलचीरिअझयणं
दीप
अनुक्रम [६१-६६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[६], ........मूलं 1 / गाथा [१-१३] ... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [६] 'वल्कलचीरि' अध्ययनं
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सूत्रांक
गाथा ||१-१३||
तामेव उबरते मतंगसई कायभेदाति । आयति नमुदाहरे देवदाणवाणुमतं ॥३॥ तेनेम खलु भो लोकं सणरामरं बीकतमेव मण्णामि ।। | तमहं बेमित्ति रयं वागलचीरिणा अरहता इसिणा बुइतं ॥२॥ण नारीगणप[सेते][संवतु सत्ते, अप्पणो व अबंधचे। पुरिसा जत्नोति बच्चह, तत्तोऽवि जुधिरे जिणे ॥शा णिरंकुसे व मातंगे, छिपपारस्सी रहिए] विवा। णाणापगहपन्म?, विविध पवते णा णाश अकपणधागब, सागरे वायुणेरिता । यांचला धावते णावा, सभावाओ अकोविता ॥५॥ सुक्क युष्फ व आगासे, णिराबारे [स] तु जे गरे । बढसुम्पणियदं नु,
बालब' विहि ॥ ६॥ सुत्तपत्तगति च तुंग[गंतु कामे वि से जहा। एवं लद्धावि सम्मागं , सभावाओ अकोयिसै ॥ ७॥ जंतु पर णबपहि, अंबरे वा विहंगमे । दढसुत्तणिवत्ति,मि लोको (वाहप तुसिणे जगे ) ॥८॥ गणापग्गहसंबंध, न घितिम पणिहितिदिए । सुत्तरोत्तगति चेय, तथा साधू णिरंगणे ॥६॥ सच्छंदगतिपयारा, जीवा संसारसागर। कम्मसंताणसंयना, सिंति विविहं भव ॥ १० ॥ इत्थीगिद्धे वसप,अप्पणो य अवधये । जत्तो विवज्जती पुरिसे, तत्तो विज्झविणे जाणे ॥ १३ ॥ मण्णती मुक्कमप्याणं, पडिचो पलायते । वियते भगवं वधकलचीरिउगवतेत्ति ॥ १२ ॥ एव सिद्ध बुद्धे ॥६॥ छ ववकलचीरिणामभवणं ॥६॥
ARREnapsuspense
दीप अनुक्रम [६७-७९]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
....... अध्ययन-[७], .........मूलं H/ गाथा [१-७] . मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[७] 'कम्मापुत्त' अध्ययन
सत्राक
भारत
सम्ब' दुक्खायर तुक्ख', दुवख सुऊसुअत्तणं । दुक्खीव दुक्करचरियं, चरित्ता सव्वदुक्ख खवेति तवसा ॥१॥ तमहा अदीणमणसो तुक्खी सम्बदुक्स' तितिक्खेना, सेति कुम्मापुत्तेण अरहता इसिणा वुइयं ॥ २ ॥ जणवादोण तारजा, अस्थित्त' तबसंज मे। समाधि च विराहेति, जे रहुचारियं चरे ॥३॥ आलस्सेणावि जे केड, उस्सुअत्तं ण गच्छति । तेणावि से सुही होइ, किं तु सद्धी परबकमे ॥४॥ आ(ल)स्स तु ॥५॥ परिणाए, जाति(ती)मरणबधयां । उत्तिमट्ठवरग्गाहो, बीरियातो परिचए ॥५॥ काम अकामकामी, अत्तत्ताए परिव्यए । सावज्ज मिरवज्जेण', 1100-६ कुम्मा परिणाए परिव्यए जासित्ति ॥ ६॥ एव से सिद बुझे ॥ ७॥ सत्तम कुम्मापुत्तणामज्भपणे ॥ ७॥
पुत्त फेलि.
गाथा
||१-७||
...
कासव
दीप
अनुक्रम [८०-८६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
....... अध्ययन-[८], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
।[८] 'केतलिपुत्त' अध्ययनं
प्रत
सत्राक
शाषभाका तेषु
उभयण
[१]
आर गुणेण पार एकगुणोणं ते के तलिपुत्तेण इसिणा वुश्तं ॥ इय उत्तमगंधयेथए रहममिया लुप्पंति गाती सयं या छिंद पावए ॥ (सय बोछिय कम्मसंचयं, कोसारकोडे व उहाइ बंधणं । तम्हा एक वियाणिय गंथजालं दुक्ख'दुहावह छिंदिय ठाइ संज मो । सेतु मुणी दुक्खा विमुच्चाइ धुव' सिव' गई उयेइ प्रत्यंतर) ॥ एव सिद्ध बुद्दे ॥८॥ (के)तलिणाम यर्ण अहम ॥ ८॥
गाथा
||१||
दीप
अनुक्रम [८७-८८]
~14~
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्य यन-[९], .........मूलं [१] / गाथा [१-३४] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[९] 'महाकासव' अध्ययन
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-३४||
ఆ అను నేను అక్క ను అందు కు కు కు కు కు కుకు
दीप अनुक्रम [८९१२३]
जावतावःजम्मं नाय ताय काम, कम्मणा खलु भो पया सिया, समिय उवनिविज्जाइ अवविजा य, महइ महाकासवेण अरहया इसिणा 15 इयं, कम्मुणा खालु भो भण्यहीणेणं पुणरवि धागच्छा हत्थच्छेययाणि पायछेयणाणि एवं कपण नक्क० उ०जिभ०सीसबरणाणि मुंडणाणि उदिपणेण
जीबो कोदृणाणि पिट्टणाणि तजणाणि तालणाणि बहणाई बंधणाई परिकिलेसणाई अंदुबंधणाई नियलबंधणाणि जावजीवपंधणाणि नियलजुयजलसंकोडणमोषणाई हिण्युप्पाडणाई बसणुप्पाणाई उल्लंबणाई ओलंबणाई सणाई बोलणाई पीलणाई' सीहपुच्छणाई कष्टग्गिदाहणाई भत्तपा
निरोहणाई दोगच्चाई होभत्ताई होमणसाई भाउमरणाई भइणिमरणाई पुत्तमरणाई धूयमरणाइ भज्जमरणाई अण्णाणि च सयणमित्तधुवागमरणाई। तेसिं च ण दोगच्चाई दोभत्ताई दोमणम्साई अप्पियसबासाई पियविप्पओगाई हीलणाइ लिसणाई गरहणाई पव्यहणाई परिभवणाई आगट्टणाई अण्णयराइच दुक्खदोमणस्साई पचणुभवमाणा अणाइय अणवदग्गं दीहमदं चाउरंतसंसारसागर अणुपरियति । कम्मुणा पहीगेण खलु भो जीवा नो भागछिहिती हत्थच्छेपणाणि ताई चेव भाणियब्बाई जाबसंसारकतार बीईवश्त्ता सिवमयलमध्यमवखषमब्बाबाहमपुणरावत्त सास| यं ठाणमाभुवगवा चिहति-कम्ममूलमनिथ्वाणं, संसारे सव्वदेहिणं । कम्ममूलाई दुक्साई, कम्ममूलं च जामणं ॥१॥ संसारसंतईमूलं, पुष्णं ।
पाबं पुरैकडं । युपणपायनिरोहाय, सम्म संपरिवाए ॥२॥ पुण्णपावस्ल आयाणे, परिभोगे यावि देहिणं । संत भोगपाउागं, पुण्णं पावं सयं । महाका। कई ॥३॥ संवरो निज्जरा चेब, युगणं पावविणासणं । संवरं निज्जरं चेव, सव्यहा सम्ममायरे ॥४॥ मिच्छत्त' अनियत्ती य, पमाओ सवज्झयण
यावि गहा। कलाया नोय जोगा य, कम्मादाणस्ल कारणं ॥ ५॥ जहा अंडे जहा बीए, तहा कम्म सरीरिणं । संताणे येव भोगे य, जाणावग्नत्तमच्छर ॥६॥ निबत्तो विरियं वेक, संकप्पे य अणेगहा। नाणावण्णवियकस्स, दारमेयं हि कम्मुणो ॥७॥ एस एव | विवपणासो, सबुडो संयुद्धो पुणो। कालो संघरो नेओ, देससम्वविकपिओ ॥८॥ सोपायाणा निरादाणा, विपाकेपरस'जुया। उपकमेण तवसा, निज्जरा जायर सिया ॥८॥ संततं वधए कम्म, निज्जरेइ य संततं । संसारगोयरो जोवो, विसेसो उ तबो मओ ॥१०॥
॥७॥
- तेषु
- అనుకుని కూరుకు
~15
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[९], ........मूलं [१] / गाथा [१-३४]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-३४||
ENS-8
| [९] 'महाकासव' अध्ययनं (वर्तते) अंकुरा खंधबंधीया, जहा भवा वोरुहो। कम्मं तहा तु जीवाणं, सारा सारतरं ठितं ॥ १६॥ उवक्कमो य उक्केरो, सछोभो खवणं तथा ।
बद्धपुदुनिधत्ताणं, वेषणा सुणिकायिते ॥ १२ ॥ उकडतं जया तोय, सारिजंत जथा जलं। सखविज्जा ण [णि दाणे वा, पायं कन्म उदीभरती ॥ १३ ॥ अणा ठितो सराराणं, बहु पायं च दुक्कर। पुव्यं बज्जिते पाव', तेण हुकूख' तयो मयं ॥ १४ ॥ सि[खि]ज्जते पावकम्मंमि,
जुत्तजोगिस्त धीमतो। इसकम्माक्वणन्भूता, जायते रिद्धियो बहू ॥ १५ ॥ बिज्जोसहिणिवाणेनु, बत्थु सिक्मागतीसु य। तवसंयम पयुत्ते य, विमह होति पच्चयो ॥१॥ दुक्ख' खवेति जुत्तप्पा, पावमी सेवि बंधणे। जया मोसेवि गाहमि, विसयुष्फाण छट्टणं ॥१६॥ सम्मत्त च इयं नोय, संममालज्ज दुल्लह । ण प्पमापज्ज मेधावी, मम्मगाह जहारिओ ॥ १८॥णेहवत्तिक्खए दीवो, जहा चयति संतति । आयाणपंधरोहमि, तहया भवसंत ॥१॥ दोसादाणे णिरुद्धमि, लमं सत्थाणुसारिणा । पुवाउत्से य विज्झाए, खयं वाही पियकछतो ॥२०॥ मज दोला बिस बहो, गहावेसो अणं अरी। धणं धम्म च जीवाण', विष्णेयं धुयमेष तं ॥ २१ ॥ कम्मायाणेऽM वस्द'मि, सम्म मणाणुसारिण।। पुब्बाउत्तं य णिज्जि ण्णे, खयं दुक्ख णियच्छती ॥ २२ ॥ पुरिसो रहमास्दो, गाए, सत्तसंजतो। विपक्ख' णिहणणेइ, सम्पट्टिो तहा अण ॥ २३ ॥ वहिनमायलंयोगा, जहा हमें विसुझती। सम्मत्त माणसंजुत्ते, नहा पाबं विसु जमती॥ २४ ।। जहा आतवसंतत्तं, वत्थं सुभाइ वारिणा। सम्मत्तलंजुतो अप्पा, तहा माण सुस्ती ।। २५ ॥ कंचणस्स जहा धाऊजोगेण मुच्चए मलं। आणाईएवि संताणे, तवाओ कम्मसंकरं ॥ २६ ॥ वत्थादिए सु सुझसु. संताणे गहणे तहा। दिहृतं देखधम्मित्तं, सम्ममेयं विभावए । २० ॥ आवज्जती समुग्घातो, जोगाण' च निरुभण। अणियट्टी एव सेलेसी, सिद्धी कम्मदखाओ तहा ॥ २॥ णावा ( व ) वारिममि, खोणलेबो अणाउलो। रोगी बा रोगणिम्मुक्को, सिद्धो भवति शीरओ ।। २६ ॥ पुष्यजोगा असंगत्ता, काउ वाया मणो इवा। एगतो आगती चेव, कम्माभावा ण विज्जती ॥ ३०॥ परं णावग्गहाभावा, सुही आवरणक्खया।
॥८॥
दीप अनुक्रम [८९
ततलिपुतज्झयणं
तेषु
~16~
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .......... अध्ययन-[९], ........मूलं [१] / गाथा [१-३४]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[९] 'महाकासव' अध्ययनं (वर्तते)
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-३४||
अथिलक्षणसम्मावा, निच्चो सो परमो धुव ।। ३१ ।। दव्यतो खित्तओ बेब, कालतो भावतो तहा। गिच्चाणिच्छतु विष्णेयं, संसारे सव्वदेहिण ॥ ३२ ॥ गंभीर सम्बोभह', सब्वभावविभावण। धण्णा जिणाहिन मागं, सम्म वेदेति भावओ ।। ३३ । एव से सिद्धे बुद्ध०॥ नवमं महाकासवज्झयण ॥ ६॥
---X---X---X---X---X--X---
दीप
अनुक्रम
~17~
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[१०], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[१०] 'तेतलिपुत्त' अध्ययनं ।
प्रत
सूत्रांक [१]
Jeansector
गाथा
||१||
ऋषिभाषि
तेषु
दीप अनुक्रम [१२४१२५]]
कोह' (क) ठायेद पाण्णस्थ सगाइ' कमाइ (६) माइ। सद्धयं खलु भो समणा बद'ती, सद्धेय वलु माहणा० आहमेगोऽसधेयं यदिसामि तेतलिपुत्तेण अरहता इसिणा बुड्यं, सपरिजणोति णाम ममं अपरिज पोत्ति क में तं सद्दहिस्सती ? | सपुतंपि णाम मम अपुत्तेत्ति को में तं सद्दहिस्सती?। एव' समित्तंपि णाम ममं०, सवित्त पि णाम ममं सपरिग्गडं पाम ममं दाणमाणसवकारोक्यारसंगहिते तेतलिपुत्तस्स सयणपरिजणे विराग गते को मे तं सहहिस्सती ?। जातिकलरूचविणतोचयारसालिणी पाहिला नसिकार- ॥८॥ धूता मिच्छं विप्पडिचन्ना को में तं सहहिस्सति ? , कालक्कमणीतिसस्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को में त' सद्दहिस्सति ?, तेत ।।। १०-११ तेत लिपुतण आमच्चोण गिह पविसित्ता तालपुडके विसे पतितेत्ति सेविय से पडिहतेति को में त' साहहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण आमच्चेणं महति- लपुत्तमखमहालयं रुक्खं दुरहित्ता पासे छिपणे (तहावि ण मप) को मे त सहहिस्सति ?, तेतलिपुत्तण महतिमहालय पासाणं गीवाए पंधित्ता अत्थाहाए पुषखरिणीए अप्पा पक्विचे तत्थऽविय णं थाहे लद्धे को मे तं सद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण महतिमहालियं कदुरासी पलीवेना अप्पा पक्वित्तं सेऽवि य से अगणिकाए विज्झाए को मे त सहहिस्सति ?, तप णं सा पुट्टिला मूसिायारधूता पंचवषणाई सखि विणिताई वत्थाई पवर परिहिता अंतलिक्स्वपडिवण्णा एवं क्यासी-आउसो ! तेतलिपुत्ता ! एहि तो आयागाहि पुरओ विच्छिपणे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिडओ कंपेमाणेज्य मेइणितलं साकतेय पाय णिप्फोडेमाणेच अंबरतलं, सब्बतमोरासिव्य पिडिते, पचक्णमिव सर्य करते भीमरख करते महाचारणे समुहिए या सचक्युणिवापसु पयंडधणुजंतविप्पमुक्का पुंक्खमेत्तावसेला धरणिप्पवेसिणो सरा णिपतंति, हुक्यहाजालासहस्ससंकुलं समंततो पलित' धगधगंति सवारण्मा, अचिरेण य बालसूरगुंजनपुंजणिकरपकासं कियाइ इंगालभूत' गिह, आउसो ! तेतलिपुत्ता ! क वयामो ?, तते णं से तेतलिपुते अमच्चे पोहिल मूसियारधूत एवं क्यासि-पोहिले ! पहिता आयाणाहि, भीयस्स खलु भो पबम्जा, अभिउत्तस्स सवहणकिच्छ मातिस्ल रहस्सकिच्वं उक्कंठियस्स देसगमणकिच्छ पिवालियस्स पाणकिच्वं छुहियस्स भोयणकिच्चं पर अभिउंजिउँ कामस्स सस्थकिका खतस्स दंतस्स गत्तस्स जिति' दियस्स पत्तो ते एकमविण भवद ॥ एवं से सिद खडे०॥ १०॥ तेतलिपत्रणामम्झयण'
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[१]
गाथा
|| 8-4||
दीप
अनुक्रम
[१२६
131]
॥ १० ॥
विभाषि तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
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अध्ययन-[११], ........मूलं [१] / गाथा [ १ - ५] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
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[११] ‘मंखलिपुत्त’ अध्ययनं
"P
सहिअ ोव आणञ्च मुणी संसार अणच्चाए से तातिते, मंखलिपुचेण अरहता इसिणा वुइयं से एजति वेदति खुब्भति घट्टति देति चलति उदीरेति तं तं भाव परिणमति ण तता से से णो एजति णो वेधो ख० जो घ० णो फ० णो च० णो उचो त त भाव परिणमति से तातो तारजा नाती लुप्या च परं च वारंताओ संसारकंताराओ तातीति ता-असंमूढो उ जो णेता, मग्गदोसुपरकम गाउं जातिगामिनं ॥ १ ॥ सिद्धकम्मो तु जो बेज्जो, संत्थकम्मे य कोविओो मोयणिज्जातो सो वीरो, रोगा मोति रोगिणं ॥ २ ॥ जोर जो विहाणं तु वाणं गुणलाघवे । सो ( उ ) संजोगणिकरणं, लवं कुण कारिये ॥ २ ॥ बिज्जोपवण्णाः जो धीमं समजतो सो विज्यं साहइत्ताणं. कज्जं कुणइ तबखणं ॥ ३ ॥ शिवलिं मोक्वमग्गस्स सम्मं जी तु विज्ञाति । रामशेसे शिराक से सिद्धि गरिस्वति ॥ ४ ॥ एवं से सिद्धं बुद्ध ० ॥ ११ ॥ मंचलित णामयणं ॥ १२ ॥
i
~ 19~
॥६॥
१२ जण्णवकीय १३ म
यालिअजायण'
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[१२], .........मूलं [१] / गाथा [१-४] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
। [१२] 'जण्णवक्कीय' अध्ययन
प्रत
सत्राक
__भा अणकला जाल नाच लोपसमा साब ताव वित्तेलगा, जाव ताव बिलेसणा ताय ताण लोएसणा, से लोएसणं च बिनमा म परिणणार नोपहेणं गच्छेज्जः, गो महापरणं गच्छेज्जा, जण यक्केण अरहता इलिणा बुइत । त'जहा—जहा कवोता य कलिंजला य. गाभो हारती इह पाताल । एवं मुगो गोयरियप्पविटे, यो आलबे गोऽविय सांजलेज्जा ।। १॥ पंचवणीमकसुद्ध जो भिवत्र एलगत एलेन । नाल मुलद्ध लाभा, हणणाप विष्पमुक्कदोसास ॥ पंथाणं रूवसंबद्ध', फलाबत्ति' च चिन्तए । कोहातीणं । चित्राक' मा, भमणो य परम्म्म य ।। ३॥ एवं मे सिहं बुद्ध विरण ॥ २६॥ जपणालीपनामझियण' ।। १२ ।।
गाथा ||१-४||
दीप
अनुक्रम [१३२१३६]]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[1]
गाथा
।। ९-4||
दीप
अनुक्रम
[१३७
१४३]
११ ॥
ऋषि
तेष
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[१३], ........मूलं [१] / गाथा [ १-६] 'पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[१३] 'भयालि' अध्ययनं
सिद्धि | किम (थ) पत्थि लावणं नाम तेज्जेण ताप मेतेज्जेण भयालिया अरहता इसिणा बुझतं णो हं खलु हो अप्यणो विमायणअभिभवानि से परे अभिभूयमाणे मम अहिताए भविस्सति । भाताणाए सम्बेसिं, गिहिब्रूहण तारए - ॥ तम्स करणं णत्थि णासतो करणं भवे बहुचादि मं सुछु णासतो भवकापणेनेच निमित्तमे परो मे तु पुरेकडं ॥ ३ ॥ मूलसेके कचुप्पत्ती, मूल
सारा
करो ॥ २२
---------
मुनि दीपरत्नसागरेण
---------
बाते इन फलं । फलत्थी सिंचती मुलं फलवाती ण सिंचती ॥
४ ॥ लुप्पती जस्स जे अस्थि, णासंतं किंचि लुप्पती। संतातो
लुप्ती किसान किन लुप्त ॥ ५ ॥ अस्थि मे तेण देति नत्थि मे तेण देव मे । जइ से होडा ण मे देज्जा, णत्थि से तेण देि
1
मे ॥ ६ ॥ ॥ एवं से लिखे ॥ २३ ॥ भयालिनामायण ॥ २३ ॥
~ 21~
ॐ
॥ १० ॥
१४ वाहुक उमायण'
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
... अध्ययन-[१४], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
_[१४] 'बाहुक' अध्ययनं
सत्राक
lal
गाथा
जुत्त' अजुत्तजोग अपमाण मिनि बाहुकेश अरहता इसिणा वुइतं - अप्पणिया खलु भो अप्पाणं समुफसिया, mal भवंति बच बिंधे पारणली अप्पणिपा खलु भो या अप्पाणं समुक्कसिय समकसिय भवति धनुनिधे सेट्ठी, एवं रोज आणुयोये जाणाहर PA खलु भो लमणा माहगा जामे अदुवा रपयो अदुवा गामे जोऽवि रणे अभिणिम्सए इमं लोग्न परलोयं पंणिम्सए, दुहओऽबि लोके । अयतिहिने, अक्रामर पाहुए प्रतेति , अकामए चरप तवं अकामए कालगए. परक पत्तं, अकामए पव्वइए अकामते चरते
नवं अकामएकालगए लिद्धिपत्त अकामए, सकामए पव्वदप सकामए चरते तवं सकामए कालगते णरगे (ग)ते, सकामए चरते नवं सकामर कालगते सिद्धि से सकाभए । एवं से सिद्ध बुद्ध ॥ बाहुकणामभयम्॥ १४ ॥
दीप अनुक्रम [१४४१४५]
~22~
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[3]
गाथा
||१-२९||
दीप
अनुक्रम
[१४६
१७५]
।। १२ ।।
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[१५], ........मूलं [१] / गाथा [ १ - २९] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[१५] 'मधुरायणिज्ज' अध्ययनं
3
1922 1
'सिद्धि | साया दुबण अभिभूते दुक्खी दुःख उदीरेति, अलातादुक्त्रेण अभिभूए दुक्खी दुक्ख उदीरेति साता दुक्खेण अभि भूए जाव णो अलातादुत्रखेण अभिभूते दुक्खी दुक्ख' उदीरेति । सातादुक्खेण अभिभूतस्त दुक्खिणो दुक्ख उदीरेति, असातादुक्खेण अभिस्स दुक्ख दुख उदीरेति, लातादुक्त्रेण अभिभूतस्सर दुक्खिणो दुक्ख उदीरेति । पुच्छा य वागरणं च संतदुक्खी दुक्ख उदीरेति ? असंतदुखी दुबख उदीरेति ? संत दुक्खी दुक्ख' उदीरेद्र ? सातादुक्खेण अभिभूतस्स उदीरेति णो असंत दुक्खी दुक्ख | उदीरे, मथुरायणेण: अरहता इसिणा बुद्दल - दुक्खेण खलु भो अप्पहीणेगं जीए आगच्छति हत्थच्छेयणाई पादच्छेयणाई एवं णवमज्मतणगमएणं णेयव्वं जाव सासत' निव्वाणमन्भुवगता चिति, णवरं दुक्खाभिलाचो- पाचमूलमणिव्वाण, संसारे सव्वदेहिणं पावमूलाणि ३/१५ मधुरायदुक्खाणि पांवमूलं च जम्मणं ॥ १ ॥ संसारे दुक्खमूलं तु पावं कर्म पुरेकडं पावकम्मणिरोधाय समं भिक्खु परिव्व ॥ २ ॥ सभावे सति दस्स, धुवं वल्लीय रोहणं बीए संबुज्नमार्णमि, अंकुरस्य संपदा ॥ ३ ॥ सभावे सति पावस्स, धुवं दुक्ख' पसूयते । वासतो मट्टियापि डे, णिवत्ती तु घडादि ॥ ४ ॥ सभावे सति कंदस्स, जहा वल्लीय रोहण बीयातो 'फुरो सेव दुक्ां वल्लीय अंकुरा ॥ ५ ॥ पायघात हत दुक्ख पुण्फघाए जहा फलं । विद्वाण मुद्रण, कतो तालस्स संभव ॥ ६॥ मूलसेके फलुप्पत्ती, मूलघाते हतं फलं फलत्थी सिंचए मूलं, फळघाती न सिचति ॥ ७ ॥ दुखितो दुक्खघाताय दुखावेत्ता सरीरिणो । पडियारेण दुक्खस्स, दुक्तमण्ण' णिबंधइ ॥ ८ ॥ दुक्खमूलं पुरा किच्चा, दुक्खमासज्ज सोयती गहितंमि अणे पुव्विं, अददता ण मुच्चइ ॥ ६ ॥ आहारत्थी जहा बालो, वही सप्पं च गेव्हती । तदा मूढो सुहत्थी तु, पावमण्णं पकुव्वती ॥ १० ॥ पार्क परस्स कुव्वतो, हसती मोह
णमायण'
!
मोहितो मच्छो गलं गतो वा विणिघातं ण परसती ॥ ११ ॥ पच्चुप्पण्णरसे गिडो, मोहमलपालितो वारिम परोवघाततल्लिन्छो, दुप्पमोहमधुगे । सीहो जरो दुपाणे या.
दित्तं पावति उक्कंध, गुणदोस विदेति
व वारणा ॥ १२ ॥
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ཎྜཊྛཡྻོཡཱ་ ཡྻཱཋལླཱསྶ་ཎྜཱ
भाषित
||१-२९||
॥ १३ ॥ ऋषिभाषितेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
****.....
अध्ययन - [१५], .. मूलं [१] / गाथा [१-२९] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं
.........
[१५] 'मधुरायणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
॥ १३ ॥ वसं सो पात्रं पुरो किच्चा, दुक्ख वेदेति दुम्मती । आसत्तकंठपावो वा सुक्कधारो दुहट्टिओ ॥ १४ ॥ पार्थ जे उ पकुव्वंति, जीवा साताणुगामिणो । बढ़ती पावकं तेसि, अणग्गाहिस्स वा अणं ॥ १५ ॥ अणुवद्धमपस्सता, यच्चुप्पण्णवेका । ते पच्छा दुक्खमच्छति गच्छन्ना सा जहा ॥ १६ ॥ आता कडाण कम्माण', आता भुंजति जं फलं तम्हा आतस्स अहाए, पावमादाय वज्जए ॥ १७ ॥ सति जम्मै पसूयंति, वाहिसोगजरादयो । नासंते डहते चण्डी, तरुच्छेत्ता पण छिंदति ।। १८ ।। दुकूखं जरा य मच्चू य, सोगो माणाचमाणणा | जम्मघाते हवी होती, पुष्कघाते जहा फलं ।। १६ ।। पत्थरेणाहतो कीवो, खिप्पं इसइ पत्थरं । मिगारिक सरं पप्प, सरु - | प्यत्तिं विमग्गति ॥ २० ॥ तहा वालो दुही वत्युं वाहिरं णिदती मिस । दुक्खुप्पत्तिविणासं तु, मिगारिव्व ण पप्पति (धत्तिति ) ॥ २१ ॥ hai aurt कसा य, अण्णं जं वावि दुहितं । आमगं च उब्वहंता, दुक्खं पार्वति पीवरं ।। २२ ।। वण्ही अणस्ल, कम्मस्स, आमकल्स वणस्स य । णिस्सेसं घायिणं सेयो, छिण्णोऽवि रहती दुम ॥ २३ ॥ भासच्छण्णो जहा वही, गूढकोहो जहा रिपू। पाचकम्म तहा लीणं, दुक्खसंताणसंकडं ॥ २४ ॥ पत्तिंधणास बहिस्ल, उद्दामरूस विसरल य । मिच्छते यावि कम्मस्स, दित्ता बुड़ी दुहावहा ॥ २५ ॥ धूमहीणो य जो वण्ही, छिण्णादाणं च जं अणं । प्रताहतं विसं जंति, ध्रुवं तं खयमिच्छती ॥ २६ ॥ छिण्णादाणं धुवं कम्पं भिज्जते तं तहाहतं । आदित्तरस्सिततं व छिण्णादाणं उहा जलं ॥ २७ ॥ तव्हा उ सव्वदुक्खाणं, कुज्जा मूलविणासगं । वालगाहित्व सत्पस्स, विसदोस विणासणं ॥ २८ ॥ ॥ एवं से सिद्धे बुद्धे० ॥ १५ ॥ मधुरायणिज्जणामयण' ।। १५ ।।
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॥ १२ ॥
मधुरायणि
ज्जज्भा०
१५ सोरियायण
ज०
१६
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[?]
गाथा
॥१-४॥
दीप
अनुक्रम
[१७६
१८०]
॥ १४ ॥
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[१६], .....मूलं [१] / गाथा [१४] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[१६] 'सोरियायण' अध्ययनं
सिद्धि० । जस्स खलु भो बिसयायारा ण य परिस्वन्ति इंदिया या दवेहिं से बलु उत्तमे पुरिसेति सोरियायणेण अरहता इलिणा बुइतं तं कहमिति १, अणुष्णेषु सद्दे सु सोयबिसयपलेसु णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्ज्जिा णो त्रिणिधायमाबज्जेज्जा, मण्गुणे ससु सोतविसयपत्त सज्जमाणे रज्जमाणे गियमाणे सुमणो असेवमाणे विप्reeतो पावकम्पस्स आदाणाव भवति, | तम्हा मणुष्णामणुष्णेसु सहसु सोयविसयपत्तं सु णो सज्जेज्जा णो रज्जेजा णो गि० णो सुमणे अण्णेऽवि एवं रूबेसु गंधेसु रसेलु फालेखु, एवं विवरीपसु णो दूसेज्जा ॥ दुद्दता इंदिया पंच, संसाराए सरीरिणं । ते चैव नियमिया संता, णेज्जाणाए भवंति हि ॥ १ ॥ दुद्द ते इंदिए पंच, रागदोपगमे । कुम्मो विव सगाई, सए देहरि साहरे || २ || वही सरीरमाहार, जहाजोएण जुजती। इंदियाणि य जोए य, तहा
जोगे वियाणसु ॥ ३ ॥ ॥ एवं से सिद्धे बुई ० ॥ १६ ॥ सोरियायणणामयणं ॥ १६ ॥
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॥ १३ ॥ विदुमज्भाय.
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[१७], .........मूलं H/ गाथा [१-८] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [१७] "विदु' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक
H गाथा ||१८||
सिद्धि। इमा विज्जा महाविज्जा, सव्वविज्जाण उत्तमा। जं विज्जं साहइत्ताणं, खन्यदुक्खाण मुच्चती ॥१॥ जेणणं १७ ऋषिभाषि
Mबंध च मोक्खं च, जीवाणं गतिरागतिं । आयाभावं च जाणाति, सा विज्जा दुक्खमोयणी ॥२॥ विदुणा अरहता इसिणा बुइत- वरिसवज्झ
सम्म रोगपरिणाण, ततो तस्स (वि) निच्छितं । रोगोसहपरिष्णाण', जोगो रोगतिगिच्छितं ॥१॥ सम्म कम्मपरिण्णाण', ततो तस्स । यणं विमोक्षण'। काममोक्षपरिणाण', करण च विमोक्खण ॥२॥ मम्म ससल्लजीवं च, पुरिसं बा मोहघातिण। सल्लुध्धरणजोगं
च, जो जाणइ स सल्लहा ॥ ३ ॥ बंधण' मोयण' चेष, तहा फलपरंपरं । जीवाण जो विजाणाति, कम्माण तु स कामहा ॥ ४ ॥ सावज्जजोगं Hणिहिलं विदित्ता, तं चेव सम्मं परिजाणिऊण । तीतस्स जिंदाए समुत्थितप्पा, सावज्जबुत्तिं तु ण सद्दहेज्जा ॥५॥ सज्झायज्काणोवगतो
जितप्पा, संसारवासं बहुधा विदित्ता । सावज्जवुत्तीकरणेऽकितप्पा,णिरवज्जवित्ती उ समाहरेज्जा ॥६॥ परकीयसव्यसायज जोग' इह अउ दुच्चरियं णायरे अपरिसेस, णिरवज्जे ठितस्स णो कप्पति पुणरवि सावज सेवित्तए ॥ एवं से सिद्ध ॥१७॥ विदुणामझियणं ॥१७॥
दीप अनुक्रम [१८११८८
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[१८], .........मूलं [१] / गाथा [१-२] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[१८] 'वरिसव' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक
।
गाथा
, सिद्धि ॥ अयते खलु भो जीवे वज्ज समादियति, से कहमेत?, पाणातिवाएणं जाव परिग्गाहेण अरति जाब मिच्छादसणसल्लण बज्जं समाइत्ता हत्यच्छेयणाई पायच्छेपणाई जाव अणुपरियति णवमुई सगमेणं, जे खलु भो जीवे णो बज्जं समादियति से कहमेत?, परिसवकण्हेण अरहता इसिणा बुइतं-पाणाइवातवेरमणे जाव मिच्छादसणसलवेरमणेणं, सोइदियताणिग्गहेणं णो वज समजिणित्ता हत्थच्छेयणाई' पायच्छेयणाई जाच दोमणस्साई, वीतिवतित्ता सिवमचल जाव चिट्ठति। सकुणी संकु (चंचु) प्पघातं च धेरत रज्जगं तहा । वारिपत्तधरो उचेव, विभागंमि विहाबए ॥ १॥ एवं से :सिद्धे० ॥१८॥ वरिसवणामभायणं ॥१८॥
||१-२||
॥ १४ ॥ परिसवज्झ
॥ १५॥
दीप
अनुक्रम
[१८९१९१]
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ऋषि
भाषित
प्रत
सूत्रांक
[?]
गाथा
॥१-६||
दीप
अनुक्रम
[१९२
१९८]
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[१९], .....मूलं [१] / गाथा [१६] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[१९] 'आयरियायण' अध्ययनं
सिद्धि । सव्वमिणं पुराऽऽरियमासि आयरियायणेणं अरहता इसिणा बुद्दतं वज्जेजऽणारियं भावं, कम्मं वेव अणारियं आणारि याणि य मित्ताणि आरियन्तमुद्व ॥ १ ॥ जे जणाऽणारिए णिच्वं कम्मं कुव्र्वतऽणारिया । आणारिहि य मित्तेहि सीदति भवसागरे ॥ २ ॥ संधिज्जा आरियं मग्गं कम्मं जं वावि आरियं । आरियाणि य मित्ताणि आरिथत्तमुट्ठिए ॥ ३ ॥ जे जणा आरया fred, कम्मं कुरुवंति आरियं आरिएहि य मित्तेहि मुच्वंति भवसागरा ॥ ४ ॥ आरियं णाणं साहू, आरियं साहु दंसण' । 'आरियं चरणं साहू, तम्हा सेवय आरियं ॥ ५ ॥ ॥ एवं से सिद्धे बुद्ध विरए विराचे अलंतातिणो ॥ १६ ॥ आयरियाणमयणं ११ ॥
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यण १८ आरियज्भ
यण १६
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२०], .........मूलं [२] / गाथा [१-६] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
प्रत
[२०] 'उक्कल' अध्ययनं
सूत्रांक
[२] गाथा ||१-६||
सिद्धि । पंच उकला पन्नत्ता, तंजहा-बहुक्कले १ रज्जुक्कले २ तेणुक्कले ३ देसुक्कले ४ सव्वुक्कले ५ । सेकित बहुक्क-13 ले?, दंडुकले नाम जेण' दंडदिटुंतणं आदिलमज्जवसाणाणं (आदिल्लमकवसाण) पण्णवणा, एसमुदयमेत्ताभिधाणाइ', णत्यि सरीरातो परं जीवोत्ति भगवति वोच्छेवं वदति सेतं दंडुक्क १ । से कि त रज्जुक्कले १, रज्जुकले णाम जेबा रज्जुदिहतेणं समुदयमेत्तप-1 पणवणा, १०, पंचमहाभूतबंधमत्ताभिधाणाई संसारसंसतीवोच्छेद वदति, सेत' रज्जुकले २ । से कि त तेणुक्कले १, तेणुक्कले णाम
जेण अण्णसत्यदिद्रुतगाहेहि सपक्ष्भावणाणिरए मम ते तमिति परकरुणच्छेद वदति से तं तेणुक्कले ३ । से किं तं देसुक्कले?, देसुक्कले Pणाम जेणं अत्थितं स इति सिद जोबस्त अत्तादिएहि गाहेहिं देसुच्छेदं वदति, से तं देसुक्कले ४ । से कि त सबुक्कले १२ सबुक्कले ।
णाम जेण सव्यतो सव्यसंभवाभावा णो तच्च सब्बतो सम्बहा सबकाल व णत्यित्ति सम्बच्छेदं वदति, से तं सबुकले ॥ ५ ॥ उड़पायतला
हे केसग्गमत्थका एस आताए पजवे कसिणे तपपरिपंते जीवे, एस जीवे जीवति , एतं तं जीवितं भवति , से जहा णामते दङ्ग सु वीपसु ण ॥ १५ ॥ ॥ १६॥ पुष्पो अंकुरुप्पत्ती भवति एवामेव दडे सरीरे ण पुणो सरीरुप्पत्ती भवति, तम्हा इणमेव जीवितं, णत्थि परलोए, णस्थि सुक्कडबुडाणं कम्मा- उक्वलज्मफलवित्तिचिसेसे, णो पच्चायति जीवा. णो फुसंति पुण्णपावा, अफले कल्लाणपावए, तम्हा एतं सम्मति वेमि उट्ट पाततलालहे केसम्ग
यण २० ऋषिभाषि। मत्थका एस आया एय तयपरितंते एस जीवे, एसामडे गाए तं तं, से जहाणामते दङ्वसु बीएसु० एवामेव दडे सरीरे०, तम्हा पुण्ण
गाहाचइज्मपावऽग्गहणा सुहतुक्खसंभवाभावा सरीरदाहे पायकम्माभावा सरीरि डहेत्ता णो पुणो सरीरुप्पत्ती भवति । एवं से सिद्ध ॥२०॥ उकलज्मयण ॥२०॥
दीप अनुक्रम
[१९९२०६]]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२१], ........मूलं [१] / गाथा [१-११] ....... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२१] 'गाहावइज्ज' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-११||
सिद्धि । णाहं पुरा किंचि जाणामि, सबलोकसि गाहावतिपुत्तण तरुणेण अरहता इसिणा बुइत अण्णाणम् । खलु भो। पुष्य न जाणामि न पासामि नोऽभिसमावेमि नोऽभिसंबुज्झामि, नाणमूलाकं खलु भो इयाणिं जाणामि पासामि ा मामेमि अहि-| संबुज्झामि, अण्णाणमूलयं खलु मम कामेहिं किच्चं करणिज्ज, णाणमूलय स्खलु मम कामेहिं अकिन अकरणिज्ज, गाणालयं जीवा चाउरत' संसारजाय परियट्टयंति, णाणमूलय जीवा चाउरंत जाव वोयीवयंति, तम्हा अण्णाणं परिवज्ज णाणमूलकं वटुक्खाणं अंत करिम्सामि, सम्वदुक्खाणं अंत' किच्चा सिवमचल जाव लासत' चिडिस्सामि। अण्णायां परमं सुक्खं, अण्णाणा जायते भयं । अपणाणमूलो संसारो, विविहो सब्बदेहिणं ॥१॥ मिगा बझति पासेहि, विहंगा मत्तबारणा। अच्छा गलेहिं सासंति, अण्णाण' सुमहाभयं ॥२॥ जम्मं जरा य मन्ना य, सोको माणोऽवमाणणा। अण्णायमूलं जीवाण', संसारस्स य संतती ॥ ३॥ अपणाणेण अहं पुष्य, दीह संसारसागरं । जम्मजोणिभयावतं, सरिता दुक्खजातसं (लपं)॥४॥ दीये पातो पयंगस्स, कोसियारस्स बंधणं । किंपाकमक्यण' चव , अण्णाणस्स णिदसण' ॥५॥ वितिय जरो दुपाणत्थं , दिवो अपणाणमोहितो। संभग्गगातलट्ठी उ,
दीप अनुक्रम [२०७२१८]
॥ ७ ॥aमिगारी णिधणं गओ ॥६॥ मिगारी य भयंगोय, अण्णाणेण विमोहितो। गाहा ( दाढा) सणिवातेणं, विणासंदोऽवि ते गतादगमालिज्जअधिभाषि- ॥७॥ से सुप्पियं तणयं भद्दा, अण्णाणेण विमोहिता। माता तस्सेब सोगेण, कुद्धा त'चेच खादति ॥ ८॥ विण्यासो ओसही तु,
संजोगाणं व जोयण। साहण वावि विज्जाणं, अण्णाणेण ण सिझति ॥ ॥ विणणसो ओसहीणं तु, संजोगाणव जोयणं । साहणं वावि | विज्जाणं, णाणजोगेण सिझति ॥ १०॥॥ एवं सिद० ॥ २१ ॥ गाहावइज्ज नामज्झयणं सम्मत्त ॥ २१ ॥
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तेषु
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२२], ........मूलं [१] / गाथा [१-१४] ..... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२२] 'दगभालिज्ज' अध्ययन
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-१४||
PRECAPNA
दीप
सिद्ध। परिसाडी कम्मे, अपरिसाडिणो बुद्धा, तम्हा खलु परिसाडिणो वुद्धा णोबलिप्पति रएणं पुक्खरपत्त व वारिणा, II दगभाले गद्दमे)ग अरहता इसिणा बुझ्त-पुरिसादीया धम्मा पुरिसप्पवरा पुरिसजेडा पुरिसकप्पिया पुरिसपज्जोविता पुरिससमण्णागता ।। पुरिसमेव अभिउंजियाणं चिट्ठति, से जहाणाम ते अरसिया सरीरंसि जाता सरीरेण वड़िया सरीरसमण्णागता सरीरं चैव अभिउंजियाण चिट्ठाते, एवामेव धम्मावि पुरिसादीया जाव चिहुति। एवं गडे वम्मीके थूमे रुक्खे वणसंडे पुक्खरिणी, णवर पुढवीय जाता भाणियब्वा, उद्गपुक्खले उदगणेतब्वाणि । से जहा णामते अगणिकाए सिया अरणीय जाते जाव अरणी चेव अहिभूय चिट्ठति, एवामेब, धम्मावि पुरिसादीया त चेव । धित्तेसिं गामणगराण', जेसिं महिला पणायिका । ते यावि घिक्किया पुरिसा, जे इत्थीण वसंगता ॥१॥ गाहाकुला सुदिव्याध, भावका मधुरोदका । फुल्ला व पउमिणी रम्मा, वालक्कंता व मालगी ॥२॥हेमा गुहा ससीहा वा, माला या वझकप्पिता।। सविसा गधजुत्ती वा, अतो दुट्ठा व वाहिणी ॥ ३ ॥ गरत्ता मदिरा वावि, जोगकण्णा व सालिणी । णारी लोमि विष्णेया, जा होज्जा समणोदया ॥४॥ उच्छायणं फुलाणं तु, बव्वहीणाण लाघवो। पतिहा सव्वदुक्खाण, गिट्ठाण अज्जियाण य ॥ ५॥ गेह वेराण गंभीर, विग्धो सद्धम्मचारिणं। दुहासो अखलो व लोके सूता सुमंगणा (किमंगणा ?) ॥६॥ इत्थी उ बलवं जन्थ, गामेसु णगरेसु वा।। ॥ १७ ॥ अणस्तयस्स हेसं तं, अपव्येसु व मुडणं ॥ ७॥ धित्ते सिं गामणगराणं सिलोगो। डाहो भय हुतासातो, विसातो मरणं भयं। छेदो | भयं च सत्थातो, वालातो दसणं भयं ।। ८॥ संकणीयं च जं वन्धु', अप्पडीकारमेवय । तं वत्थु सुड्डू जाणेउजा, जुज्जते जेऽणुजोइता |
यण' २३ जत्थत्थी जे समारंभा, जे वा जे साणुबंधिणो। ते वन्थु सुह जाणेज्जा, णेय सध्यविणिच्छये ॥१०॥जेंसिं जहिं सहप्पत्ती-जे वा जेसाऽऽणुगामिणो। विणासो अविणासो वा, जाणेज्जा कालवेयवो ॥ ११ ॥ सोसच्छेदे धुवो मच्चू, मूलच्छेदै हतो दुमो। मूलं फलं च सव्वं च, जाणेजा सव्यवस्थुसु ॥ १२॥ सीसं जहा सरीरस्स, जहा मूलं दुमरुस य । सवाल साहुधम्मस्त, तहा भायं विधीयते ॥3॥ एवं से सि ॥२२॥ ढग (भालो) गहभीयनाममायणं ॥ २२ ॥
अनुक्रम
[२१९
॥१८॥
२३३]
ऋषिभाषि
तेषु
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[8]
गाथा
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दीप
अनुक्रम
[२३४२३५]
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन- [२३], .....मूलं [१] / गाथा [१] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं
[२३] ‘रामपुत्तिय' अध्ययनं
सिद्धि | दुवे मरणा अस्लिं लोण एवमाहिज्जंति, तंजा-सुहमतं चैव दुहमतं चैव, राम पुत्तं ण अरहता इसिणा इतै- पत्थ वित्त विष्णत्ति बेमि. इमee खलु ममाइस्स असमाहयलेसस्ल गडपलिघाइयस्स गंडबंधणपलियम्स गंडबंधणपडिघात करेस्सामि, अलं पुरेमएण, तम्हा गडबंधणपडिघात करता णाण सणचरित्ताइ पडिसेबिस्सामि, णाणेण जाणिय दसणेणं पासित्ता संजमेण संजमिय तवेण अड्डधिहकम्मरयमलं विझुणित विसोहिय अणादीयं अणवतां दीहमद चाउरंतसंसारकंतारं वीतिवत्तित्ता सिवमय मख्यमक्खयमव्वाबाहमपुणरावतयं सिद्विगतिणामधिज्जं ठाणं संपत्ते अगातगद्ध सासत कालं चिह्निस्सामिति ॥ एवं से सिध्दे• ॥ २३ ॥ रामपुत्तियमायण' ।। २३ ॥
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ऋषि भाषित
प्रत सूत्रांक [१]
११॥
गाथा
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२४], .........मूलं [१] / गाथा [१-४१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [२४] 'हरिगिरि' अध्ययनं समिणं पुरा भव्यं इदाणिं पुण अभवं हरिगिरिणा अरहता इसिणा वुइत-चयंति खलु भो य पोरया रतियत्ता तिरिक्खा तिरिखत्ता मणुस्ता मणुस्सत्ता देवा देवत्ता, अणुपरियति जोवा चाउरतं संसारकतार कम्माणुगामिणो तथावि मे जीवे इघलोके सुहुप्पायके ॥१८॥ IRI परलोकदुहुप्पादए अणिए अधुवे अणितिए अणिच्चे असासते सजति रजति गिज्झति मुज्झति अज्झोववज्जति विणिघातमायजति. मंच हरिगिरिभ ऋषिभाषि
गं पुणो सडणपक्षणविकिरणविद्धंसणधर्म अणेगजोगक्खेमसमायुत्तं जीवस्सऽतारेलुके. संसारणिवेडिं करोति , संसारणिव्येदि करता भय | सिवमचल० चिहिस्सामित्ति, तम्हाऽधुवं असासतमिणं संसारे सव्वजोवा संसतीकरणमितिणच्चा पाणदसणचरित्ताणि सेविस्सामि, जाणदसणचरित्ताणि सेवित्ता अणादीर्घ जाव कतार वितिवतित्ता सिवमचल जाव ठाणं अभुवगते चिद्विस्वामि । कतार वारिमउभे घा, दित्ते या अग्गिसंभमे। तमंसि वाडधाणे वा, सया धम्मो 'जिणाहितो॥१॥ धारणी सुसहा वेब , गुरभेसज्जमेव या I सद्धम्मो सव्यजीवाणं , णिच्य लोए हितंकरो ॥२॥ सिग्धवाविसमायुत्ते , रधचक्के जहा अरा। फडतं वलिलछ या ब, सुहतुक्ये | सरीरिणो ॥३॥ संसार सव्वजीवाचा , गेहा संपरिचत्तते । उतुवकातरूण वा, वसणुस्सवकारणं ॥४॥ पहिं रयिं ससंकं च 161 | सागर सरियं तहा। इंदज्कय अणीयं च , सज्जमेहं च चिंतए ॥५॥ जोवणं यूवसंपत्ति', सोभाग धणसंपदं । जीवितं वावि जावागं, जलयुचुयसंनिभं ॥ ६॥ देविदा समहिड्डिया, दाणविंदाय विस्सुता । णग्दिा में य विकता; संखयं विवसा गता ॥७॥ सम्बत्थ णिरणुक्कोसा णिव्विसेसप्पहारिणो। सुत्तमत्तपमत्ताशं , एका जतिऽणिच्चता ॥ ८॥ देविंदा दाणविन्दाय, पारिंदा जे य विस्सुता। पुराण कम्मोदयम्भूयं, पीति पावंति पीवरं ॥६॥ आऊ धणं बलं रूर्व , सोभन्गं सरलत्तण। णीरामयं च। कंतच , दिस्सते विविहं जगे ॥ १०॥ सदेवोरगगंकवं , सतिरिक्वं समाणुसं। णिब्भया णिव्विसेसा, जगे बत्तं यऽणिच्चता ॥११॥ दाणमाणोषधारहि , सामभेयक्कियाहि या। ण सक्का संणिवारेउ, तेलोकोणाविऽणिच्चता ॥ १२॥ उच्च वा जति वा णीय, देहिणं वा णमस्सित । जागरत' पमत्त वा, सम्वत्थाणाभिलुप्पति ॥१३॥ एवमेत' करिस्सामि , ततो एवं भविस्सति ।
||१-४१||
दीप अनुक्रम [२३६२७७]
क
SE IT
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[२४], .........मूलं / गाथा -1......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [२४] 'हरिगिरि अध्ययनं (वर्तते)
" ऋषिभाषि-
सत्राक
[१]
तेषु
गाथा
||१-४१||
संकप्पो देहिणं जो य , ण त कालो पडिच्छती ॥१४॥ जो जता सहता जे वा , सव्वत्थेवाणुगामिणो। छाया देहिणा गूढा , सव्वा हरिगिरिम
झयण २४ मण्णेतिऽणिच्चता ॥ १५ ॥ कम्मभावेऽणुबत्त'ती, दीसंती य तथा तथा । देहिणं पकती चेव , लीणा वत्तयऽनिच्चता ॥ १६ ॥ जंकडे देहिणं जेणं , णाणावण्ण सुहासुहं । णाणावत्थं नरोऽवेत', सव्यमण्णेति त तहा ॥ १७॥ कंती जाच वयो बत्था , जुजते जेण कम्मुणा। णिव्वत्ती तारिसी तीसे , कायाए व पडिसुका ॥१८॥ ताहं कडोदयुब्भूया , नाणागोयविकप्पिया। भंगोदयऽणुवत्त ते , संसार | सब्वदेहिणं ॥१६॥ कम्ममूला जहा बल्ली , बल्लीमूला जहा फलं । मोहमूलं तहा कर्म , काममूला अणिच्चया ॥२०॥ वुमंते युज्माए चेव, वइज्जुत्त' सुभासुभ। कंदसंदाणसंवद्धं, वल्लीणं व फला फलं ॥ २१ ॥ छिण्णादाणं सयं कम्म, भुज्जए त न वज्जए | छिन्नमूलं व वल्लीण', पुथ्वुप्पण्ण फला फलं ॥ २२ ॥ छिन्नमूला जहा बल्ली, सुक्कमूलो जहा दुमो। नहुमोह तहा काम, सिण्ण' वा हयणायक ॥ २३ ॥ अप्पारोही जहा बीय', धूमहीणो जहाऽनलो। छिनमूलं तहा कम्म, नासण्णो व देसओ ॥२४॥ जुज्झए, कम्नुणा जेणं, बेसंधारेइ तारिस । वित्तकतिसमत्था वा, रंगमउसे जहा नडो ॥ २५ ॥ संसारसंतई चिचा , देहिणं विबिहोदया। सव्यो (वा) दुया (मा) लया देव, सव्वपुष्फफलोदया ॥ २६ ॥ पाचं परस्स कुब्बतो , हसए मोहमोहिओ। मच्छो गलं गसंतो वा, विणिघायं न पस्सई ॥२७॥ परोषघायतल्लिच्छो, दप्पमोहबलुडुरो । सीहो जरो दुपाणे वा, गुणदोस न बिंदई ॥२८॥ पच्चुप्पषणरसे गिद्धो, मोहमल्लपणोल्लियो । दित्तं पावर उपाठ, बारिमझ व वारणे ॥२६॥ सबसो पार्य पुरा किच्चा , दुक्ख वेएर दुम्मई । आसत्तकंठपासो वा, मुक्कराओ दुट्टिभो ॥३०॥ चंचलें सुहमादाय, सत्ता मोहंमि माणवा। आइच्चरस्सितत्तं वा , मच्छा जिज्जतपाणियं ॥ ३१ ॥ अधुवं संसिया रज्ज, अवसा पाति संखयं । छिज्ज व तस्मारूढा , फलत्थीव जहा नरा ॥ ३२ ॥ मोहोदये सय जंतू, मोहं तं बेब
दीप अनुक्रम [२३६२७७]
~34~
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[२४], .........मूलं 1 / गाथा - ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२४] 'हरिगिरि अध्ययनं (वर्तते)
प्रत
सत्राक
मडझय
२५
[१]
गाथा
|| बेसई । छिपणकण्णो जहा कोई , हसिज्जा छिन्ननासियं ॥३३॥ मोहोदई सय जंतू, मंदमोहं तु खि'सई। हेमभूमणधारिया, जहा | ऋषिभाषि
लक्खाविभूसणं ॥३४॥ मोही मोहीण मझमि , कोलए मोहमोहिओ। गहीणं व गही मज्झ , जहत्थं गहमोहिओ ॥ ३५ ॥ बंधता निजरता य, कम नाणंति देहिणो । वारिग्गाहघडोउथ्य , घडिज्जतनिबंधणा ॥ ३६॥ बज्झए मुच्चए चेव , जीवो वितण कामुणा । बदो दा रज्जुपासेहिं , ईरियन्तो पओगसो ॥३७॥ कामरस संतई चित्तं , सम्म नच्चा जिईदिए । कम्मसंताणमोक्खाय , समाहिमभिसंधए ॥ ३८॥ दव्यओ खेतओ चेव , कालो भावओ तहा। निच्चानिच्चं तु विण्णाय , संसारे सव्वदेहिणं ॥३६॥ निच्चलं कयमारोग्ग', थाणं तेलोकसाय'। सव्वष्णुमगाणुगया , जीवा पावंति उत्तम ॥४०॥ ॥ एवं सि बुद्ध विरए विपाये॥२४ ।। हरिगिरिणामझयणं ॥२४॥
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||१-४१||
दीप
अनुक्रम [२३६२७७]
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ཎྜལྕསྒྲོལཱ རྞྞམྦཱ ཟླ་ཟླཝཱ
भाषित
॥ २२ ॥
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन - [२५], .. मूलं [२] / गाथा [१-२]
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मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि” -मूलं
[२५] 'अंबड' अध्ययनं
तघां मडे परिव्यायण जोगंधरायणं एवं वयासी (स) मणे मे चिरई भो देवाणुपिओ ! गब्भवासा हि कहं न तुमं बंभचारी ?, तएषां जोगंधरायणे अवडं परिव्वाय एवं वयासी- भारिया एहि या एहि त ग्याणाहि जे खलु हारिता पावेहि कम्मेहिं अधिप्यमुक्का ते 1. खलु गन्भवासा हि रज्जति, ते सयमेव पाणे अतिवातति । अण्णेहिचि पाणे आठवावेति । अण्णेवि पाणे अतिवातायेते या सातिज्जति समणुजाणंति, ते खयमेव मुसं भासंति० सातिज्जति स० अविरताअप्यहितपच्चक्खात मणुजा अदत्तं अन्नं० साति०जाव सयमेव अच्वंभपरिग्गहं गिव्हंति मीलयं भणियव्वं जाव समणुजानंति, एवामेव ते अस्संजता अविरता अप्पडितपच्चवखातपाय कम्मा सकिरिया असंवुत्ता एकंत 'डां एकतबाला बहु पायें कम्म कलिकलुस समज्जिणित्ता इतो चुता दुग्गतिगामिणो भवंति, एहि हारिता आताणाहि । जे खलु आरिया पावेहिं कस्मेहिं विप्यमुक्का ते खलु गन्भवासा हि णो सज्जंति, ते णो सयमेव पाणे अतिवातिन्ति एवं तथेव विवरीत जाब अकिरिया संबुडा एकंतपण्डिताववगतरागदोसा तिगुत्तिदुत्ता तिदंडोवरता णीसल्ला आरक्खी ववगयचउक्कलाया खडविकहविवज्जिता चमन्वयतिगुत्ता, पंचिंदियसुबुडा छज्जीवणिकाय सुड्डु णिरता सत्तभयविप्यमुक्का अट्ठमयडाणजढा णवयंभचेरगुत्ता दससमा हिद्वाण'पयुक्त बहु पावकम्मं कलिकलुस' खचइत्ता इतो चुया सोग्गतिगामिणो भवंति से णं भगवं ! सुतमगाणुसारी खीणकसाया दते दिया सरीरसाधारणट्ठा जोगसंघणता गचकोडीपरिसुद्ध दसदोसविप्पमुक्कं उग्गमुष्यायणासुद्ध इतराइतरेहिं कुलेहि परकडपरिणितिं विगति गाल विगतधूमं पिंडं सेज्जं उवधिं च गवेसमाणा संगतविणयोवयारसालिणीओ कलमधुररिभितभासिणीओ संगतगतहसितभणितसु दरथणजहण परिचाओ इत्थियाओ पासिता घो मणसाचि पाउब्भावं गच्छति, से कथमेत विगतरागता १, सरागस्सवि त छ अक्सि मोहस्स तत्थ तत्थ इतराइतरेसु कुलेसु परकड जाव रूबाइ पासित्ता णो मणसावि पादुभावो भवति, तकमिति । मूलघाते तो रुक्खो, पुप्फघाते ह फलं । छिण्णाए मुद्ध सूईए, कतो तालस्स रोहणं ॥ १ ॥ से कथमेतं १, हत्थिम रसणं, तेल्लापाउधम्मं किंपागफल णिरिसणं,
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112 11
अंडज्म य णं २७
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
...... अध्ययन-[२५], ........मूलं [२] / गाथा [१-२] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं
। [२५] 'अंबड' अध्य यन (वर्तते)
प्रत सूत्रांक [२] गाथा ||१-२||
से जथा णाम ते साकडिए अक्वं मक्खेज्जा एस मे णो भज्जिस्सदि भारं च मे बहिस्सति, एवामेवोधमाए समणे णिग्गथे छहिं ठाणेहि आहार
आहारेमाणे वा णो अतिक्कमेति, वेदणा यावच्चे तं चेव, से जथाणामते जतुकारए इंगालेसु अगणिकायं णिसिरेज्जा एस मे अगणिकाए णो विझाहिति जतुं च ताविस्सामि, एवामेवोवमाए समणे णि गंथे छहि ठाणेहिं आहार आहारमाणे णो अतिक्कमेति वेदणा वेयाबच्चे तं चेव, से
ज णामते उसुकारए तुसेहि अगणिकायं णिसिरेज्जा एस मे अगणिकाए णो विज्झातिस्सति उसु च तावेस्लामि, एवामेवोवमाए समणे I णिगंथे० सेसं तं चेव ॥॥ एवं से सिद्धे, बुद्ध विरए विपावे ॥२॥ अंबडम्झयणं ।। २५ ॥
दीप अनुक्रम
[२७८
२८१]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
B
गाथा
||९-९||
दीप
अनुक्रम
[ २८२
२९०]
।। २३ ।।
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[२६], ......... मूलं [-] / गाथा [१ - ९ ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि” -मूलं
[२६] 'मायंगिज्झ' अध्ययनं
1
कतरे धम्मे पण्णत्ते सव्धा (महा) उसो सुणेध मे। किष्णा वंभणवण्णाभा, युद्धं सिक्यंति माहणा ॥ १ ॥ रायाणो वणिया जागे, माहणा सत्यजीविणो । अंधेण जुगेण वि पल्लत्थे उत्तराधरे ॥ २ ॥ आरूढा रायरहं, अडिणीए युद्धमारभे । सधामाई पिपिद्धति, विवेता म्हपाहुणे ॥ ३ ॥ ण माहणे धगुरह, सत्यपाणी ण माहणे ण माहणे मुलं वूया, चोज्जं कुज्जा ण माहणे ॥ ४ ॥ मेहुणं तु ण गच्छेज्जा, पणेव गेहे परिग्गहं । धम्मंरोहि णिजुत्तेहिं, झाणञ्चयणपरायणो ॥ ५ ॥ सध्विंदिपहिं गुत्त हिं, सच्चप्पेही स माहणे । सीलिंग - हिं णिउत्तेहिं, सील [जाल] प्पेही स माहणे || ६ || छज्जीवकाय हित, सव्वसन्तदयाचरे। स माहणेत्ति बत्तव्वे, आता जस्स विमुज्झती ॥ ७ ॥ दिव्यं सो किसिं किसेज्जा णो वपिणेज्जा, मातंगणं अरहता इसिणा बुइतं आता छेचं तवो पीतं, संजमो जुगलं । भाणं फालो निसित्तोय, संघरो य बीयं ददं ॥ १ ॥ अकूडतं व कूडेसु विणए नियमणे ठिते । तितिक्खा य हलीसा तु दया गुत्ती ये पग्गहा ॥ २ ॥ संमतं गोच्छणवो, समिती उ समिला तहा। घितिजोत्तसुसंबद्धा, सव्वण्णुवयणे रया ॥ ३ ॥ पंचे 'दिया तु खता दता अणि गोणारं करतो किसिं ॥ ४ ॥ तत्तो बो से अहिंसा जिणं परं वचसातो य णं तस्स, जुत्ता गोणा य संगहो ॥ ५ ॥ धितो खलं वनुयिक (हिक्का), सद्धामेडी य णिच्चलाः । भावणाउ बती तस्स, इरियादारं सुसंबद्धं ॥ ६ ॥ कसाया मलणं तस्स, कित्तिवातो य तक्खमो । णिज्जरातुलिचामीसा, इति दुक्खाण णिक्खति ॥ ७ ॥ एतं किसिं कवित्ताणं, सव्वसत्तदयामाहणे खलिए वेस्से, सुदैवापि विसुकती ॥ ८ ॥ ॥ एवं से सिद्धे० ॥ २६ ॥ माय गिज्जज्मयण ॥ २६ ॥
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11 29 11
माय' गिण्ड यण २६
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[२७], .........मूलं H/ गाथा [१-८] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२७] 'वारत्तय' अध्ययन सिं । साध सुचरितं अव्याहता समणसंपया वारत्तएणं अरहता इसिणा बुइत-न चिर जणे संबसे मुणी, संवारेण सिणेढ वद्धतो भिक्खुस्स अणिच्चाचारिणो , अत्त? कम्मा दुहायती ॥१॥ पयहित्तू सिणेहबंधणं , माणभयणपरायणे मुणी। णिद्धत्तेण समावि चेतव्याणाय मतिं तु संदधे ॥ २॥ जे, भिक्खु सखेयमागते , वयणं कण्णमुहं परस्स चूया । सेऽणु पियभासए हु मुझे , आतङ्क णियमा
वारत्तयज्म तु हायती ॥३॥ जे लक्षणसुमिणपहेलियाउ, अक्खाइयाई य कुतूहलाओ । भद (तहाय) दाणाई गरे पउंजए , सामण्णभावस्स महंतरं खु
से वण २७ ४॥ जे चोलकउवणयणेसु बावि , आवाहवि (वी) वाहवधूवरेसु या जुज्जेई जुझसु य पत्थिवाणं, सामण्णभावस्स महंतर खु से कामबज्म
जे जीवाण हेतुं पूयणट्ठा, किंची इहलोकसुहं पउंजे। अदि(ही)ऽवि सेए सुपयाहिणे से, सामपणाभावस्स महंतर खुसे ॥ ॥ यण"२८ वगयकुरु जे संछिपणसोते , पेज्जेग दोसेण य विप्परमुको । पियमप्पियसहे अकिंचणे य , आत? ग जहेज धम्मजीवी ॥ ॥ ॥ एवं से सिद्धे० ॥२७॥ वारत्तयणामझयणं ।। २७॥
गाथा ||१-८||
॥ ५७ " ऋषिभाषि-
तेषु
दीप
अनुक्रम [२९१
२९८]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
H
गाथा
| ॥१-२५॥
दीप
अनुक्रम
[२९९
३२३]
॥ २५ ॥
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
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अध्ययन - [ २८ ], .. मूलं [-] / गाथा [१-२५]
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मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि” -मूलं
[२८] 'अद्दईज्ज' अध्ययनं
1
गेही एकन्तमणुपस्सतो। कामे कामेमाथा
कामे कुणद सव्वसो कामा रोगा मणुस्साणं, कामा दुग्गतिवडणा ॥ १ ॥ गासेवा मुणी अकामा जंति दोग्गति ॥ २ ॥ जे लुम्भति कामेसु तिविहं हवति तुच्छ से अजमोद
*
J
1
aण्णा कामेसु बहवे जीवा किलिसंति ॥ ३ ॥ सल्लं कामा विसं कोमा, कामा आसीविसोवमा बहुसाधारणा कामा, कामा संसारचणा ॥ ४ ॥ पत्थति भावओ कामे, जे जीवा मोहमोहिया। दुग्गमे भयसंसारे ते धुवं दुक्खभागिणो ॥ ५ ॥ कामसलमणुदित्ता जयबो काममुच्छिया । जरामरण कंतारे, परियचंति वक्कमं ॥ ६ ॥ सदैवमाणुसा कामा, मए पत्ता सहस्वसो । न याहं कामभोग सु, तित्तपुव्वो कयाइवि ॥ ॥ तत्तिं कामेसु णासज्ज, पत्तपुत्र्षं अणंतसो दुक्ख बहुबिहाहाकार, कक्कसं परमासुभं ॥ ८ ॥ कामाण मग्गणं दुक्ख', तित्ती कामेसु दुल्लभा । बिज्जुज्जोतो परं दुक्ख तदस्त्रयपरं सुहं ॥ १ ॥ कामभोगाभिभूतप्पा, विच्छिण्णावि णराहिया फीति खिति' इमं भोच्चा, दोग्गति बिवसा गता ॥ १०॥ काममोहितचित्तेणं, विहाराहारकंखिणा । दुग्गमे भयसंसारे, परीत केसभा गिणा ॥ ११ ॥ अप्यत्तावराहोऽयं जीवाण' भवसागरो सेओ जरगंवाणं वा अवसानंमि दुत्तरो ॥ १२ ॥ अप्पक्कतावराहेहिं जीवा
सिद्धि | छिण्णसोते भिसं सव्ये
*
---------
1
3
पार्श्वति वेदणं । अप्पक्कतेहिं सल्लेहिं, सल्लकारीब वेदणं ॥ १३ ॥ जीवो अप्पोवघाताय पडते मोहमोहितो बंधमोग्गरमाकोदा (बोदा-लोदा) णच्तो बहु वारिओ ॥ १४ ॥ असम्भावं पचत्ते 'ति दीषणं भासति वीकवं कामग्गहाभिभूतप्पा, जीवितं पहयंति तं (य) । १५ ।। हिंसादाणं पवत्तं ति कामतो केति माणवा वित्त णाणं सविण्णाणं केयी घोति हि संखयं ॥ १६ ॥ सदेवोरगगंधव्यं, सतिरिक्ख' समाणुस । कामपंजरसंबद्धं, किस्सते विविध जगं ॥ १७ ॥ कामग्ग्राहविणिमुक्का, घण्णा धीरा जितिंदिया । वितरति मेणिं रम्मं, सुद्धा सुद्धवादिणो ॥ १८ ॥ जे गिद्धे कामभोगेसु पावाई कुरुते नरे से संसरति संसारं चाउरतं महत्भयं ॥ १६ ॥ जहा निस्सा
9
,
1
वि िणावं जातिअंधो दुरुहिता । इच्छते पारमागंतु, अंतरे च्चिय सीदति ॥ २० ॥ अइएण अरहता इखिणा बुइतं काले काले य मेहावी,
,
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।। २४ ।।
वद्धमाणिज्ज मज्० २८
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[२८], ........मूलं / गाथा [१-२५] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[२८] 'अद्दईज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
प्रत सूत्रांक
पंडिए य खणे खणे। कालातो कंचणस्सेव , उदारे मलमप्पणो ॥१॥ अंजणस्स खयं दिस्स , वम्मीयस्स य संचयं । मधुस्स य समाहार उज्जमो संजमे वरं ॥२॥ उच्चादीयं विकप्पं तु भावणाए विभावए । ण हेमं दंतक तु, चक्कवट्टीवि खादए ॥३॥ खणथोवमुटुत्तम
तरं, सुविहित ! पाउणमप्पकालियं। तस्सवि विपुले फलागमे , किं पुण जे सिद्धि परक्कमे? ॥४॥ ॥ एवं से सिदे ॥२८॥ & अद्दइज्जज्झयण ॥२८॥
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गाथा
||१-२५||
दीप
अनुक्रम [२९९
३२३]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[२९], ........मूलं H / गाथा [१-२०] ....... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
प्रत
[२९] 'वद्धमाण' अध्ययनं
सूत्रांक
गाथा
||१-२०||
सिद्धिः। सर्वति सव्वतो सोता, किं ण सोतोणिवारण है । पुढे मुणी आइक्खे, कहं सोति पिहिजति ॥१॥ वहमाणेण अरहता इसिणा | बुइतं-पंच जागरओ सुत्ता, पंच सुत्तस्सं जागरा । पंचहिं रयमादियति , पंचहिं च रयं ठए ॥२॥ सद' सोतमुवादाय , माणुण्णं वावि पावगं । मणुण्णमि ण रज्जेज्जा , ण पतुस्सेज्जा हि पावए ॥३॥ मणुण्णमि अरज्जते , अदुई श्यरम्मि य । असुते अविरोधोणं , एवं
सोए पिहिजति ॥ ४॥ व चक्खुमुवादाय, मणुण्या एवं दो सिलोगा ६ । एवं गंध घाणं०८ रस जिम्भमुबादाय-१० एवं फासमु || २६ ।। वादाय० , १२॥ दुइ'ता इंदिया पंच , संसाराय सरीरिणं । ते चेव णियमिया सम्म, रोल्याणाय भवंति हि ॥१३॥ दुइ तेहिदिएहऽप्पा, ऋषिभाषि
व तुपाई हीरए बला । तुद्द तेहिं तुरंग हिं, सारहीवा महापहे ॥१४॥ इंदिपहिं सुदंतेहि, ण संचरति गोयरं। विधयेहिं तुरंगेहि, सारहिन्या
व सांजए ॥१५॥ पुवं मणं जिणितागं, वारे विसयगोयरं । विवेयं गयमारूढो, सूरो वा गहितायुधो ॥१६॥ जित्ता मणं कसाए या. तेषु
जो सम्म कुरुते तवं । संदिप्यते स सुधप्पा, अग्गीवा हविसाहुते ॥ १७॥ सम्मत्तणिरतं धीरं, दंतकोहं जितिंदियं । देवाधितं णमंसंति, मोक्खे चेव परायणं ॥ १८॥ सव्यत्य विरये दप्ते, सव्यचारीहिं वारिए। सम्बदुक्खप्पहीणे य, सिद्ध भवति णीरये ॥ १६॥ एवं से सिद्ध बुद्धे० ॥ २६ ॥ इइ बद्धमाणनामज्य ण' एगूणतीसइमं ॥ २६ ॥
॥ २५ ॥ वाउणाभन्म यण" २६
म०३०.
दीप अनुक्रम [३२४
RA
३४३]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[३०], .........मूलं / गाथा [१-९] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
___ [३०] 'वायु' अध्ययनं ।
प्रत सूत्रांक
गाथा ||१-९||
सिद्धि । अधासयमिणं सव्वं वायुणा सम्बसंजुत्तेणं अरहता इसिणा वुइतं-ध जं कीरते कम्म, तं परत्तोचभुज्जतिः। मूलसेकेसुल रुक्खेसु,फलं साहासु दिस्सति ॥१॥ जारिस चुप्पते बीयं, तारिस बज्झए फलं। णाणासंठाणसंबद्ध', णाणासण्णाभिसपिणतं ॥२॥ जारिस किज्जते कम्म, तारिसं भुज्जते फलं। णाणापयोगणिवत्तं, दुक्खं वा जा वा सुह ॥३॥ कल्लाणा लभति कल्ला, पावं पावा तु
पावति । हिंस लभति हतारं, जात्ता य पराजयं ॥४॥ सूवर्ण सूदत्ताणं, जिंद'तावि अ जिंदणं । अक्कोसइत्ता अक्कोस, णस्थि कम्म णि. *रत्यकं ॥५॥ मण्णे ति भहका भद्दकाइ मधुर मधुणति। कडुयं ( कडुय ) भणियाइ', फरुसं फरुसाई माणति ॥ ६॥ कल्लाणंति भण
तस्स, कल्लाणए पडिस्सुया । पाचर्कति भणंतस्स,पावभा ते पडिसुया ॥७॥ पडिस्सुआसरिस कम्म, णच्चा, भिक्खू सुभासुभं । न कम्म न सैवेज्जा, जेण भवति णारए ॥ ८॥ एवं से सिद्ध .॥३०॥ इद वाउणामं तीसइममपण' ॥ २६ ॥
दीप अनुक्रम
[३४४३५२]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[३१], .........मूलं [१] / गाथा [१] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [३१] 'पासिज्ज' अध्ययन
प्रत सूत्रांक
गाथा
||१||
केऽयं लोए कइविधे लोए कस्स वा लोए को वा लोयभावे केण वा उण लोए बुच्चई का गती? कस्स वा गती के वा गतिभावे ॥२६ ॥' ॥ २०॥ केण वा अढ गती पवच्चति, पासेण अरहता इसिणा बुत-जीवा चेव अजीषा च, चउब्धिहे लोए विधाधिते-दव्यतो लोए खेत्तो लोए पासिज्जन्म कालको लोए भावभो लोए, भत्तभावे लोए, सामित्तं पहुच्च जीवाण लोए, निव्वत्ति पडुव्य जीवाण' घेच अजीवाण' चेव, अणादीप अणिहणे EL.
यणे ३० ऋषिभाषि
(बीओपादो & पारिणामिए लोकभावे, लोकतीति लोको । जीवाण य पुग्गलाण य गतीति आहिता, जीवाण'पुग्गलाणचेव गती दव्वतो गती खेत्तमो गती काल
ओ गती भावओ गती, अणातीए अणिधणे लोकभावे, गंमतीति गती, उद्धगामी जीवा अहग्गामी पोग्गला, कम्मप्पभवा जीवा परिणामप्पभवा पोगला, कम्म पप्प कलविवाका जीवाण', परिणाम पप्प फलचिवाको पोग्गलाण', णविमा पया कयाई अव्वाबाहसुहमेसिया, कस' कसावइत्ता जीवा दुविहं वेदण' वेदेति, पाणातीवातबेरमणेण जाव मिच्छादसणविरमणेण', किंतु जीवा सातण वेयण' वेदेति जस्सहाप, जिहेति. विहेति समत्तिच्छिहास्सति अट्ठा समुच्छिहास्सति णिद्वितकरणिज्जे संतिसंसारभग्गा अमडाइ णियंठे णिरुक्षपबंचे थोच्छिण्णसंसार वोच्छिष्ण संसारखेदणिज्जे पधीणसंसारे पहीणसंसारखेयणिज्जे णो पुणरवि इच्चत्यं हव्वमागच्छति । एवं से सिद्ध ॥३१॥ पासिज्जनामज्भयण ॥३१॥
दीप
अनुक्रम [३५३३५४]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[१] गाथा ||१-4||
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[३२], .........मूलं H] / गाथा ] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[३२] 'पिंग' अध्ययनं सिद्धि । गतिवागरणगंथाओ पभिति जाव समाणितं इमं भज्भवणं, ताव इमो बीओ पाढो दिस्सति, त'जहाजीषा व गमणपरिI णता पोग्गाला चेष गमणपरिणता, दुविधा गती पयोगगती य वीससागती य, जीवाणं व पोग्गलाणं चेव, उदश्यापारिणामिए गतिभाये,
गम्ममाणा इयि गती ।उङ्गगामी जीवा अधगामी पोग्गला, पावकम्मकडाणं जीवाणं परिणामे, पावकम्मकडेणं पुग्गलागं, ण कयाति पया अतुक्वं पकासीति, अत्तकडा जीवा, किच्चा किच्चा वेदिन्तित-पाणातिवाए जाव परिग्गहेणं, एस खलु असंबुद्धे असंबुडे ( अ )कम्मते, (अ)चाउजामे (अ) णियंठे अविहं कम्मगठि' पगरे'ति, से य चउहि ठाणेहिं विवागमागच्छति, त जहा–णेरइएहिं तिरिक्खजोणिएहिं मणुस्सेहि
देवेहि, असकटा जीवा णो परकडा, किच्चाकिच्या वेदिति, पाणातिपातवेरमणेां जाव परिगहवरमणेणं, एस खलु संखुडे कमते चाउलामो ॥ २७ ॥ • ॥ २८ ॥ णियंठे अहविहं कम्मगंथि णो पकरें ति, से य चउहि ठाणेहि जो विपाकमागच्छति, त'जहाणेरइएहिं तिरिक्खजोणिएहि मणुस्सेरि देवेहि, लोए । A ण कताइ णासी,ण कताह ण भवति, ण कताइ ण भविस्सति, भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे णितिए सासए अक्खए, अब्धए अबटिए निच्चे, म०३३ से जहा णाम ते पंच अस्थिकाया ण कयाति णासी जाव णिच्चा एवामेव लोकेऽवि ण कयाति णासी जाव णिच्चे। ॥ एवं से सिद्धे॥
सिद्धि ॥ दिव्वं भो किसिं किसेजा णो अप्पिणेजा, विंगेण माहणपरिष्वायएणं अरहता इसिणा बुइत'-कतो छेत्तं कतो बीय? कतो ते जुगांगलं? गोणावि ते ण पस्सामि, अज्जो का णाम ते किसी ॥ २ ॥ आता छेत्तं तबो बोयं, संजमो जुयणंगलं । अहिंसा समिती जोज्जा, | एसा धम्मतरा किसी ॥ २॥ एसा किसी सोभ(सुद्ध)तरा, अलु दस्स विवाहिता । एसो बहुसई होइ, परलोकसुहावहा ॥ ३ ॥ एवं किसि कसित्तागं, सव्यसत्तदयावहं । माहणे खत्तिए वेस्से, सुई वाऽवि व सिझती ॥ ४॥ एवं से सिधे बुद्ब० ॥ ३२ ॥ पिंगभयण ॥ ३२॥
ऋषिभाषि
दीप अनुक्रम [३५५
३६०]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[३३], ........मूलं गाथा [१-१८] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [३३] 'अरुणिज्ज' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक
गाथा
||१-१८||
दीप अनुक्रम [३६१
TAL., सिद्धि। दोहि ठाणेहिं बालं जाणेजा, दोहि ठाणेहिं पंडितं जाणेना, सम्मापओएधां मिच्छायपोतेणं कम्मुणा भासणेण .
भासिवाए भासाप, दुवाडेण य कम्मुणा । बालमेतं बियाणेजा, कज्जाकज्जविणिच्छा ॥१॥ सुभासियाए भासाए, सुकडेण य कम्मुणा । पंक्तिं तं वियाणेज्जा, धमाधम्मविणिच्छये ॥२॥ दुभासियाए (भासाए), दुक्कडेण य कम्मुणा। जोगक्षेम कहत तु. उसुवाया व सिंचति ॥ ३ ॥ सुभासियाण भासाये, सुकडेण य कम्मुणा। पज्जपणे कालवासी वा, जसं तु अभिगच्छति ॥४॥
व बालेहिं संसग्गिं, णेव बालेहि संथवं। धमाधम्मं च बालेहि, णेव कुज्जा कदायिवि ॥ ५॥ इहेवाकित्ति पावेहि, पेच्चा गच्छेद दोगति । तम्हा बालेहि संसग्गि, णेच कुज्जा कदायिवि ॥६॥ साहहिं संगम कुज्जा, साधूहि चेव संथवं । धम्माधम्म च साहूहि साय कुग्विज पंडिए ॥७॥ इहेब कित्ति पाउगति, पेच्चा गच्छा सोगतिं । तम्हा साधूहि संसग्गिं, सदा कुब्यिज्ज डिए ॥ ८ ॥षणं पमाणं वत्तं च, देजा अच्चाति योधमा । सम्पचक्कदाणं तु, अक्सायं अमतं वत॥ ६॥ पुन्नं तित्थमुवा गम्म, पेच्चा भोज्जाहिजं फाले । सम्मवारिदाणेणं, खिप्पं सुज्झति माणसं ॥१०॥ सम्भाधवक्कषिवसं, सावजारंभकारक दुमिसं तं विजाणेज्जा, उभयो लोयविणासणं ॥ ११॥ सम्मत्तणीरगंभीर; सावज्जा भवज्जकं । तं मित्त मुटु सेवेज्जा, उभतोलोक सुहावह ॥ १२॥ संसम्गितो पसयंति, दोसा वा जइ या गुणा। बाततो मारतस्सेव, ते ते गंधा सुहावहा ॥१३॥ संपुण्णवाहिणीओवि, आवन्ना लवणोदधि । पप्पा खिप्पं तु सव्याधि, पावंति लवणतणं ॥ १४ ॥ समस्सिता गिरि मेरु, णाणावण्णापि पक्खियो। सव्ये हेमप्पभा होति, तस्स सेलस्स सो गुणो ॥ १५ ॥ कल्लाणमित्तसंसम्गि, संजयो मिहिलाहियो। फीतं महितलं भोच्चा, तमूलाकं दिवं गतो ॥१६॥ · अरुणेण महासालपुत्तेण अरहता इसिणा बुइतं--सम्मत्तं च अहिंसं च, सम्म णच्चा जितिदिए । कल्लाणमित्तसंसन्धि, सदा कुविज्ज पंडिते ॥ १७॥ एवं सिद्धे० ॥३३॥ अरुणिज्जनाममज्झयणं तेत्तीसइम ३३ ॥
३७८
SED
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ऋषि भाषित
प्रत
सत्राक
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[३४], .........मूलं [१] / गाथा [१-७] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[३४] 'इसिगिरि' अध्ययनं सिदि। पंचहि ठाणेहि पंडित बालेणं परीसहोरसम्गे उदीरिजमाणे सम्म सहेज्जा तितिवरजा अधियासेजा-याले Pालु पंडितं परोक्वं फसं वदति णो पच्चक्वं, मुक्खसभावा हि वाला ण किचि बालेहितो ण विज्ञति, तं पंडिते सम्म सहेजा खमे
ज्जा०, बाले खलु पंडितं पञ्चपणमेव फल्स वदेज्जा तं पंडिए बहु मन्निज्जा, दिडे मे एस बाळे पच्चपखं फरसं वदति, णो दंडे बालद्विणा वा (लेहुणा चा ) मुट्ठिणा वा बाले कबालेण वा अभिहात तज्जेति तालेहि [परितालेति ] परितावेति उद्दवेति । E मुक्खसभाषा हु वाला ण किंचि बालेहितो ण विज्जति, तं पंडिते सम्म सहेजा खमेज्जा, बाले य पंडित दोण वा एवं चेव णवर . अण्णतरण सत्यजातेणं अपणयरं सरीरजायं अच्छिंदर वा विनिम्दर वा, मुक्खसभाबा हि बाला त पंडए सम्म सहइ. बोले य पंडियं अण्णतरेणं सत्यजाएणं अच्छिंदवि वा विच्छिंदति वा सं पंडिए. बहु मन्नेज्जा-दिड मे एस वाले अण्णतरण साथजायेण महाळयज्ज
अपणतरं सरीरजायं अच्छिं० विच्छि. णो जीवितातो ववरोवेति, मुक्खसण किंचि बाळाओ श चिजति , तं पं० सम्म सहे० ख० तितिभ० ३५ ऋषिभाषि अहि०, इसिगिरिणा मा० पंडित जीवियाओ ववरोवेज्जा तं पंडिते बहु मण्णेज्जा, दिढे मे एस थाले जीविता णो धम्मातो भंसेति, मुक्खसाण तेषु
किंथि वा०तं पंडिते सम्म सहे० स० तिति०, अहि० इसिगिरिणा माहणपरिब्वायएणं अरहता बुझ्सं...जैण केणा उचापण, पंडिओ मोइज्ज अप्पकी बालेणुदीरिता दोसा, तपि तस्स हिता भवे ॥१॥ अपडिपण(य)भावाओ, उत्तरं तु ण विज्जती। सह कुण्या घेसे णो, अपद्धिपणेइ (य) | माहा काजते उ दीणस्स, णण्णता देखणं । कालस्स कंखणं वाषि, णऽपणन' या विहायती ॥ ३॥ व्याण आतर लोक, णाणाबाहीहि पीलितं । णिम्ममे जिरहंकार, भवे भिक्खू जितिदिए ।॥ ४॥ पंचमहन्वयजुत्ते, अकसाए जितिदिए। सेटु दंते सुह। सुपति, णिश्वसागे पजीवति ॥ ५॥ जे ण लुभति कामेहि, छिप जसोते अणासवे। सव्यदुक्सपाहीणो द्व, सिख भवति णीरण ॥ ६॥ पवं से सिद्धे० ॥ ३४ ॥ इसिगिरिणामक्रयणं यउतीलइमं ३४॥ .
NEE
गाथा ||१-७||
दीप
अनुक्रम [३७९
REEEER
३८६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[३५], ........मूलं [१] / गाथा [१-१९] ... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[३५] 'अद्दालईज्ज' अध्ययनं
पता
सत्राक
कहान
गाथा ||१-१९||
महालाज
ऋषिभाषि
सिद्धि । चउहि ठाणेहिं खलु भो जीवा कुप्पता मज्जता गूहता लुब्भता बज्ज समादिययंती, बज्ज समादिइत्ता चाउरतसंसारकतारे पुणोरअत्ताणं पडिविर्वसंति, त कोहेमं माणेघा मायाए लोमेणं, तेसिं च णं अहं पडिघातहेउ अकुप्पंत अमजते अगृहते अनुभंते तिगुत्ते तिदडविरते णिस्सल्ले अगारवे चउविकहविवज्जिए पंचसमिते पंचेदियसुसंडे सरीरसाधारणवा जोगसंधणट्ठा णयकोडीपरिसुद्ध दसदोसविप्पमुक्कं उगमुप्पायणासुद्धं तत्थ तत्थ इतरस्तरकुन्देहि परकडपरणिहितं विगतिगालं विगतधूम सत्यातीतं सत्थपरिणतं पिंड सेज्ज उवहिं च एसे भामित्ति. अहालए अहहता इसिणा बुइत'- अण्णाणधिप्पमूढप्पा, पच्युप्पण्णाभिधारए। कोयं किच्चा महापाणं, अप्पा विधा। अपकं ॥१॥ मण्ण पाणेण घिद्धे तु, भचमेक्कं विणिज्जति। कोधवाणे पविट्ठ तु, णिज्जती भवसंतति ॥२॥ अण्णाणविष्यमूहप्प प० माणं किच्चा महावाण० अ॥३॥ मन्ने थाणेण. माणवाणे पवि०॥४॥ एवं मायाएवि० ॥५६॥ लोभेऽवि ॥ ८॥ दो नामम०३५ सिलोका । तम्हा तेसिं विणासाय, सम्ममागम्म संमति । अप्पं परं च जाणित्ता, चरे विसयगोयरं ॥३॥ जेसु जायते कोधाती, कम्मबंधा महाभया । ते वत्थू सव्वभावेणं, सव्वहा परिवज्जए॥६॥ सत्यं सल्लं विसं जंतं, मज्जं वालं तुभासणं । बज्जे तो तंणिमेत्तं गं, दोसेण ण विलप्पति ॥ ७॥ आत परं च जाणेज्जा, सव्वभावेण सव्यथा । आय€ च परहूं च, पिपं जाणे तहेवय ॥ ८॥ सप गेहे पलितमि, किं धावसि परातक। सयं गेह णिरित्ताण, ततो गच्छे परातकं ॥६॥ मातह जागरो होहि, मा परद्वाहिधारए । आतट्ठो हावए तस्स, जो परद्वाभिधारए ॥१०॥ जइ परो पडिसेवेज्ज, पावियं पडिसेवणं। तुम मोणं करें तस्स, के अटे परिहायति ? ॥११॥ आतहो । णिज्जरायतो, परहो कम्मबंधणं । अत्ता समाहिकरणं, अप्पणो य परस्स य ॥ १२ ॥ अपणातयंमि अट्टालकमि, किं जग्गिएण. वीरस्स। णिवर्गमि जग्गियव्व', इमो हु बहुचोरतो गामो ॥ १२ ॥ जग्गाही मा सुवाही माहु ते धम्मचरणे पमत्तस्स । काहिंति बहु चोरा; संजमजोगेहि डाकम्म ॥ १३ ॥ (जोगे हिट्ठा० प्र०) पंचेवियाई सपणा दंड सल्लाई गारवा तिषिण। बावीस व परीसहा चोरा
दीप
अनुक्रम [३८७४०६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
...... अध्ययन-[३५], ........मूलं [१] / गाथा [१-१९] ...... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
। [३५] 'अद्दालईज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-१९||
चत्तार य कसाया ॥ १४॥ जागरह परा निच्च मा मे धम्मचरणे पमत्ताणं। काहिति यह चोरा दोगतिगमणे हिटाकर्म ॥१५॥ अपणायकमि भट्ठालकस्मि जग्गंत सोयणिज्जोऽसि । णाहिसि वणितो संतो, ओसहमुल्ल अधिदतो ॥ १६॥ जागरह णरा जिच्च जागरमाणस्स जागरति सुतं । जे सुवति न से सुहिते, जागरमाणे सुही होति ॥ १७॥ आगरत' मुणि वीर, दोसा काजे ति दूर ओ। जलंत जाततेयं वा, चक्खुसा दाहभीरुणो ॥ १८॥ एवं से सिद्ध०॥ ३५॥ अदालइजज्झयण ॥ ३५ ॥
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दीप
अनुक्रम [३८७४०६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[३६], ........मूलं गाथा [१-१८] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
सूत्रांक
गाथा ||१-१८||
| [३६] 'तारायणिज्ज' अध्ययनं सिद्धिः। ततो उप्पतता उप्पतता उप्पयंतपि तेण वोच्छामि । किं संत' 'वोच्छामि : ण संतवोच्छामि कुक सया ॥३॥तारायणिज्ज ॥३२॥
वित्तेण तारायणेण अरहता इसिणा बुइत-पत्तस्स मम य अन्नेसिं, मुक्को को ( वो ) दुहावहो ? । तम्हा खलु उप्पत'त', सहसा कोवं णिगिऋषिभाषि- हितन्य ॥१॥ कोवो अगी तमो मच्चू, विसं वाधी अरीरयो । जरा हाणी भयं सोगो, मोहं सल्लं पराजयो ॥२॥ वहिणो ण
पलं छित्तं, कोहग्गिस्त पर बलं। अप्पा गती तु वहिस्स, कोवग्गिस्सऽमिता गती ॥३॥ सका वण्ही णिवारेतु , वारिणा जलितो बहि। सब्बोदहिजलेणावि, कोवागी दुण्णिवारओ ॥४॥ एकं भवं दहे वही, दहस्सवि सुह भवे। इमं पर च कोबागी, णिस्सकं दहते भवं ॥ ५॥ अग्गिणा तु इह दवा, संतिमिच्छति माणवा। कोहग्गिणा तु दहाणं, दुक्ख' संति पुणोविहि ॥ ६ ॥ सका तमो । निवारत', मणिणा जोतिणावि वा। कोचं तमो तु दुज्जेयो, संसार सम्वदेहिणं ॥ ७॥ सत्तं बुद्धी मती मेधा, गंभोरं सरलत्तर्ण । | कोहन्गहऽभिभूयस्स, सव्वं भवति णिप्पमं ॥ ८॥ गंभीरमेरुसारेऽवि, पुळा होऊण संजमे। कोयुगमरयो धूते, त (अ) सारत्तमति-IN च्छति ॥ ॥ महाविसे बहीदित्त, चरे दत्त'कुरोदये। चिटु चिट्ठ स संते, णिव्वसत्तमुपागते ॥१०॥ एवं तपोबलत्थेवि, णिच्च कोहपरायणे । अचिरेणवि कालेणं, तबोरित्तत्तमिच्छति ॥ ११॥ गंभीरोऽवि तवोरासी, जीवाणं दुक्वसंचितो। अक्खेवेषां दवग्गीवा, कोबग्गी बहते पणा ॥ १२॥ कोहण अप्पं बहती परं च, अत्थं च धम्म च तहेव कामं । तिव्यं च वेरपि करें ति कोधा, अधर
गति वावि अर्विति कोहा ॥ १३॥ कोचाविद्धा ण यानति, मातरं पितरं गुरु । अधिक्विवंति साधू य, रायाणो देवयाणि य ॥१४॥ | कोचमूल णियच्छति, धणहानि बंधणाणि य। पियविप्पभोगे य बहू, जम्माई मरणाणि य ।। १५॥ जेणाभिभूतो जहती तु धम्म, विमा
सती जेण कतं च पुण्णं । स तिव्वजोती परमप्पमादो, कोधो महाराज ! णिज्झियचो ॥१६॥ दृह' करतीह णिज्यमाणो भासं ॥३२॥ | करें तोह विमुच्चमाणो। ह' च भासंच समिक्ख पणे, कोषं णिरु भेज सदा जितप्प ॥१०॥ एवं से सिद्ध ॥ ३६॥ इति ताराय#णिजमज्यणं ॥ ३६॥
म.३७
SOONAMEACHE
दीप
अनुक्रम [४०७४२४]
॥
3
॥
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Page #51
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[3]
गाथा
II-II
दीप
अनुक्रम
[४२५]
ऋषिभाषि
तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
......... अध्ययन-[३७] मूलं [ १ ] / गाथा [-] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं
[३७] 'सिरिगिरिज्ज' अध्ययनं
सव्वमिणं पुरा उद्गमासीति सिरिगिरिणा माहणपरिव्वायगेणं अरहता इसिणा बुइयं एत्थ डे संतते, पत्थ लोए संयुते, एत्थ' सासासे, इयं णे वरणविहाणा, उभयो कालं उभयो सं खीरं णवणीयं मधुसमिधासमाहारं खोरं संख पंडिता अग्निहोत्तकुंड पडिजागरमाणे विहरिस्सामीति, तम्हा एवं सव्वंतिवेमि, णवि माया, पण कदाति णासि न कदाति न भवति नकदाति न भविस्सति य पहुप्पण्णमिणं सोच्चा सूरसहगतो गच्छे, जत्थे व सूरिये अत्थमेज्जा खसंसि वा णिण्णंसि या तत्येषां पादुपभाया रयणीये जाव तेजला जलते एवं नु मे कणति पातीष्ठां वा पडिणं वा दाहिणं वा उदौणं वा पुरतो जुगमेतं पेहमाणे अहारीयमेव रीतित्तर एवं से सिद्धं बुद्धे विरय विपावे दंते दविए अलंताती, णो पुपरवि इच्वत्थं हव्वमागच्छतिचित्रेमि सिरिगिरिज्जनामज्यमं ॥ ३७ ॥
॥ ३७ ॥
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सातपुतना म० ३८
Page #52
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
H
गाथा
॥१-३०॥
दीप
अनुक्रम
[४२६
४५५]
॥ ३४ ॥
ऋऋषिभाषि तेषु
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
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अध्ययन - [३८], ..मूलं [-] / गाथा [१-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[३८] 'साईपुत्तिज्ज' अध्ययनं
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सिद्धि ॥ जं सुहे सुहं लडं, अन्नंतसुखमेव तं । जं सुखेण दुहं लडं, मा मे तेण समागमो ॥ १ ॥ सातिपुत्तॆण बुद्देण अराहता बुइत'मण्णं भोयगं भोच्चा, मणुण्यां सयणासणं मणुण्णंसि अगारसि भाति भिक्स समाहिए ॥ २ ॥ अमणुण्णं भोयणं भोच्चा, अमणुपणं सपणासणं । अमणुण्चांसि गेहंसि, दुक्खं भिक्खू ज्मियायती ॥ ३ ॥ एवं अणेगवण्णागं तं परिव्वज्ज पंडिते । णण्णत्थ लुभाई पण्णे एयं बुद्धाणसासणं ॥ ४॥ णाणावणे सद्सु सोषपत्तेसु बुद्विधमं । गेहिं वायपदोसं वा, सम्मं वज्जेज्ज पंडिए ॥ ५ ॥ एवं सु सुरसे फासे अपणाभिलावेणं, पंच जागरओ सुत्ता, अम्मदुक्खस्स कारणा तस्सेव तु विणासाय (पण्णे वहिज्ज संतयं ॥ ६ ॥ वाहिक्सया व दुवा, सुहं वा णाणदेसियं । मोहक्सयाय एमैचा, दुहं वा जद वा सुहं ॥ ७ ॥ पण दुक्खण सुहं वाषि, ऊहा हेतु तिमिच्छति । तिमिच्छिए सस्स, दुक्ख वां जति वा सुहं ॥ ८ ॥ मोहक्सएउजुत्तस्स, दुस्ख वा जइ वा सुहं मोहर, जहा हेऊ, न- दुक्ख नवि 'वा' सुहं ॥ २ ॥ तुच्छे जणंमि संवेगो, निव्वेगो उत्तमे जथे। अत्थित्तादीण भावाणं, विसेसो उवसेसणं ॥ १० ॥ सामण्णे गीतणीमाणा, बिसेसे मममवेविणी । सव्वण्णुभालिया वाणी, णाणावत्थोदयंतरे ॥ ११ ॥ सव्वतत्तदयो बेसो णारंभो पण परिग । सतं तवं दयं चे भासति जिणसत्तमा ॥ १२ ॥ दते दिवस वीरस्स, किं रणेणऽस्रमेण वा ? जत्थ जत्थेव मोहंते, व रणं सो य अस्समो ॥ १३ ॥ किमदंतस्स रोण' १, दंतस्स व किमस्समेः । णातिकंतस्स भेसज्जं, ण वा सत्थस्स भेज्जती ॥ १४ ॥ सुभाषभावितप्पाणो, सुण्णं रणं धनंपिया। सव्वमेत हि कायाय, सल्लचित्तेच सल्लिणो ॥ १५ ॥ दुहस्या दुरंतस्स, णाणावत्या वसुंधरा कम्मादाणाय सदपि कामाचित्ते व कामिणो ॥ १६ ॥ संमत्तं च दयं चैव णिण्णिदाणो य जो दमो। ततो जोगो यसयोषि, सव्वकम्मर करो ॥ १७ ॥ सात्थकं वावि आरंभ, जाणेज्जा य णिरत्थकं । पहित्थिस्स जो एतो. व घातिति वारणो ॥ १८ ॥ जस्स कज्जस्स जो जोगो, साहेतु जेण पच्चलो । कज्जा वज्जेति त' सव्वं, कामीबा मुंडणं ॥ १६ ॥ जाणेज्जा सरणं धीरो, ण कोडिंदेति दुग्गतो। पण सीह
1
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~ 52~
सम
॥ ३३ ॥
सातिपुत्तज्य य० ३८
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[३८], ........मूलं H / गाथा [१-३०] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[३८] 'साईपुत्तिज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
प्रत
सूत्रांक
गाथा
||१-३०||
दप्पिय छेयं, णे मोजा हि अंबुओ॥२०॥ सपत्थाणसंबद्ध , सत्ययुधं वारए सदा । णाणी अरतिपायोग, णाल' धारहि बुधर्म ॥२१॥ वंभचारी जति कुडो, बज्जेज्ज मोहदीवणं । ण मूढस्स तु वाहस्स, मिगो अप्पेति कं ॥ २२॥ पत्थानां चेच रूव' च, णिच्छयमि विभावए । किमत्थं गायते वाहो, तुहिक्को वावि पक्विता ॥ २३ ॥ कज्जणिव्वत्तिपाओग्ग, आदेयं कज्जकारणं । मोक्खनिव्यत्तिपाओगा, विष्णेयं त' विसेसओ ॥ २४॥ परिवार चेच वैसे ये, भाक्ति तु विभाषए । परिवारेऽवि गंभीरे,, ण राया शीलचूलो ॥२५॥ अत्थादाई जण ॥ ३४ ॥ णे, णाणाचित्ताणुभासके । अत्थादाईणको संगो, दासंतस्सत्वसंतती ॥ २६॥ दंभकप्पं कत्तिसम, णिच्छयमि विभावए । ण खिलामुसु
मुसंजइज्जन्म कारित, उवचारंमि परिच्छतो ॥ २७॥ सम्भावे दुप्पले जाणे, णाणावण्णाणुभासकं । पुफादाणेसु गंदा वा, पदकारघरं गता ॥ २८ ॥ य ३६ दव्य खेत्ते य काले य, सव्वभाव य सव्वथा। सव्वेसिं लिंगजीवाणं, भावाणं तु विहाबए ॥२६॥ ॥ एवं ले सिद्ध०॥३८ दीवायणिज्ज साइपुत्तिज्जं नामभयगं ॥ ३८ ॥
झयण'४०
॥३५॥
दीप अनुक्रम
| अपिभाषि- तेषुइ
[४२६४५५]]
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ऋषि भाषित
प्रत
सूत्रांक
[3]
गाथा
|| 8-4||
दीप
अनुक्रम
[४५६
४६१]
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
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.......... अध्ययन-[३९], मूलं [१] / गाथा [ १-५ ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
[३९] 'संजइज्ज' अध्ययनं
सिधि० जे दु (६) मं पावकं कम्म णेव कुज्जा पण कारवे देवावि त' णमसंति, धितिमं दित्सतेयसं ॥ १ ॥ जे गरे कुव्यती पावं, अंधकारं महं करे। अणवज्जं पंडिते किच्चा, आदिच्वेव पभासती ॥ २ ॥ सिया पावं सई कुज्जा, तं ण कुज्जा पुणो पुणो । णाणि कम्मं च णं कुज्जा, साधुकम्मं वियाणिया ॥ ३ ॥ सिया कुज्जा तं तु पुणो पुणो से निकायं च ण कुज्जा, साहु भोजो विज्ञायति, रहस्से खलु भो पावं कम्मं समज्जिणित्ता दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओो कम्मओ अजवायन स अपoिdeमाणे जत्थ आलोपज्जा, संजपणं भरहता इसिणा बुइत - णचि अत्थि रसेहि भद्दपहिं संवासेण य भद्दरण य जत्य मिए काणणोसिते, उaणामेति वहाए संजय ॥ १ ॥ एवं से सि० ॥ ३६ ॥ संजइज्जं नामज्भयणं ॥ ३६ ॥
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
....... अध्ययन-[४०], ........मूलं [१] / गाथा [१-६] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
| [४०] 'दीवायणिज्ज' अध्ययनं
प्रत
सूत्रांक
&
सिद्धिः ॥ इच्छमणिन्छ पुरा करेजा दीवायणेण अरहता इसिणा बुइत-एच्छा बहुविधा लोए, जए क्यो किलिस्सति । सम्हा इच्छमणिच्छाप, जिणिता सुहमेधती ॥१॥ इच्छामिभूया न जाणंति, मातरं पितरं गुरु'। अधिविस्वचंति साधू य, रायाणो देवयाणि वाया इच्छालं नियच्छति, धणहाणिं बंधणाणि य। पियविष्पओगे य बहु', जम्माई मरणाणि य॥३॥ इच्छंते णिच्छते इच्छा. अणि
तापि इच्छति। वहा र मणिच्छाप, जिणित्ता सुहमेहती ॥४॥ दव्वयो खेत्तमो कालो भाषमो मायाम जहाचल Sअपाविरिय मणिरतो आलोएजासित्ति ॥५॥ एवं से सिद्ध ॥ ४० ॥ इह दीवायणिज्जमज्मपर्ण ॥ ४० ॥
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[१] गाथा ||१-६||
इंदनागिनम
दीप अनुक्रम [४६२४६८]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[४१], ........मूलं H / गाथा [१-१६] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४१] 'इंदनागिज्ज' अध्ययन
प्रत
सूत्रांक
क
र
गाथा
||१-१६||
दीप
IN... सिद्धि॥जेसि आजीवतो अप्या, पराणं बलदसणं । तवं ते आमिस किच्चा, जणा संणिचत जणं ॥१॥ चिकीत
तसि सुकर्ड तु तच णिस्साए जीवियं । कम्मचट्ठा भजाता.वा, जाणिज्जा ममका सढा ॥२॥ गलुच्छित्ता आसातव, पच्छा पायति वेवणं । अणागतमपस्सता, पच्छा सोयती दुम्मती ॥३॥ मच्छा व झीणपाणीया, कंकाणं घासमागता । पच्चुप्पण्णरसे गिद्धा,
मोहमल्लपणोलिया ॥४॥ दिन्नं पार्वति उह', वारिमज्भे व वारिणा। आहारमत्तसंवद्धा, कज्जाकज्जणिमिल्लिता ॥५॥ जणिक्षिणो घताम्मे वा, अवसा पावें ति सखय' । मधु पावेति तुर्बुद्धी, पवात से (ण) पस्सति ॥ ६॥ आमिसत्थी कसो चेव, मगत अप्प
णा गलं । आमिसत्थीचरित्तं तु, जीवे हिंसति दुम्मती ॥ ॥ अणग्य यं मणि मोत्तं सुत्तमत्ताभिनंदती। सवण्णुसासणं मोत्तुं, मोहादीए हिं हिंसती ॥ ८॥ सो-अमचेण विसं गेज्म, जाणं तत्थेव जुजती। आजीवत्थं तवो मोत्तुं, तप्यते विविहं बहु ॥ ६॥ तवणिस्साए जीवं. तो, तवाजीवं तु जीवती । णाणमेवोवजीवतो, चरित्तं करणं तहा ॥१०॥ लिंग च जीवणवाए, अविसुदंति जीती। विज्जामंतोपदेसेहि, दूतीसंपेसणेहि वा ॥११॥ भावीतवोवदेसेहि, अविसुध्दति जीवति । मूलकोउयकम्मेहि, भासापणइएहि या ॥१२॥ अक्खाइओवदेसेहि, अविसुध्द तु जीवति। इंदनागेण अरहता इसिणा वुइत - मासे मासे य जो वालो, कुसग्गेण आहारए। णा से सुक्खाय धम्मस्स, माघती सतिम कल ॥ १३॥ मा ममं जाणऊ कोयी, माह जाणामि किंचिबि । अण्णातेणऽत्थ अण्णात', चरेजा समुदाणिय ॥ १३ ॥ पंचवणोमगसुद्धजो भिक्ख एसणाए एसेज्जा । तस्स सुलहा लाभा हणणादीविप्पमुक्कदोसस्त ॥ १४॥ जथा कवोता |
य कबिंजला य, गावो चरती इह पातडाओ। पवं मुणी गोयरिय' चरेज्जा, णोची लवे णोषिष संजलेज्जा ॥१५॥ ॥वं से मी सिद्धे० ॥४१॥ इइ इंदनागिज्जम्झयणं ॥ ४१ ॥
अनुक्रम [४६९४८४]
॥ ३६ ।।
MI-.५३
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
........ अध्ययन-[४२], ........मूलं [१] / गाथा [१] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४२] 'सोमिज्ज' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक
1107
II सिद्ध० । अप्पेण बहुमेसेज्जा, जेट्ठमनिझमकण्णसं । णिरवाजे ठितस्स तु णो कप्पति पुणरवि सावज सेवित्तए, सोमेण अरहता ||४४-४५ इसिणा घुइतं । एवं से सिद्धे०॥ ४२ ॥ इह सामिज नामज्झयणं ॥ ४२ ॥
सोमाइणि
गाथा
||१||
दीप अनुक्रम [४८५
४८६]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४३], .........मूलं HI गाथा [१-२] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४३] 'जम' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक
.
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॥३७॥ M सिद्धि । लाभमि जे ण सुमणो,अलाभे णेव दुम्मणो । से हु सेढे मणुस्साणं, देवाण व सयक्कऊ ॥१॥ जमेण अरहता इसिणा
181 बुइत । एवं से सिद्धे० ॥४३॥ इइ जमनामज्मयणं ।। ४३ ॥ .
अज्झय
माणाणि.
गाथा
॥१-२||
दीप अनुक्रम
[४८७
४८८
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ऋषि
भाषित
प्रत
सूत्रांक
[-]
गाथा
॥१-२॥
दीप
अनुक्रम
[४८९
४९०]
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[४४] .........मूलं [-] / गाथा [१-२] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं
[४४] 'वरुण' अध्ययनं
दाहिं अंगेहि उप्पीटतेहिं आता जस्स ण ओप्पीलति । रागंगे य व दोसे य से हु सम्मं नियच्छती ॥ १ ॥ वरुणेणं अरहता इसि णा बुझतं ॥ एवं से सिद्धे ॥ ४४ ॥
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४५], .........मूलं ] / गाथा [१-५५] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
[४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं
सूत्रांक
गाथा ||१-५५||
सिद्धिः । अप्पं च आउं इह माणवाण, सुचिरं च कालं णरएसु वासो। सव्ये य कामा णिरयाण मूलं, को णाम कामेसु बुहोश रमेज्जा १ ॥ १ ॥ पावं ण कुजा ण हणेज्ज पाणे, अतीरमाणो व रमे कदायी । उकचावहिं सयणासणेहि, वायुज्य जालं समतिकमज्जा | ॥२॥ वेसमजेणं अरहता इसिणा बुइत-जे पुमं कुरुते पार्व, ण तस्सऽप्पा धुर्व पिओ | अप्पणा हि कडं कम्म, अप्पणा चेव भुज्जती
॥ ३ ॥ पावं परस्स कुव्बतो, हसते मोहमोहितो । मच्छो गलं गसंतो वा, विणिराय ण पस्सति ॥ ४ ॥ पाचुप्पण्णरसे गिद्धो, मोहमलप्पINोल्लितो । दित्तं पावति उकंठ, वारिमज्झे व वारणो ॥५॥ परोवघाततल्लिकछो, दप्पमोहबलुदरो। साहो ज(न)रो दुपाणे वा, गुणदोसंण विदती | 18॥६॥सवसो पार्य पुरा फिच्चा, दुक्खं वेदेति दुम्मनी । आसत्तकंठपासोवा, मुक्कधारो दुट्टिओपापा जे उ पकुवंति, जीवा सोताणुगामिणो।
||३७॥ दिवइंढते पावकं तेसिं, अणग्गाहिस्स वा अणं ॥८॥ अणुबंद्धमपस्वता, पच्चुप्पण्णगवेसका । ते पच्छा दुक्खमच्छंति, गलुपिछत्ता जधा इसिभासि- झसा ॥ ९ ॥ आता कडाण कम्माण, आता मुंजति जं फलं । तम्हा आयस्स अट्टाए, मोघमादाय वज्जए ॥ ११ ॥ जे हुंता जं ४२--४३ एसु विवज्जेति, जे विसंवाण (जेहिं सद्धिं च) मुंजति । जण्ण गेहति वाचालं, Yणमात्य ततो भयं ॥१२|| धावत सरिस तारं, सच्छं दादि (च) १४-१५
सिंगिणं । दोसभीरू विवज्जती, पावमेवं विवज्जए ॥ १३ ॥ पावकम्मोदयं पप्प, दुक्खतो दुक्खभायण । दोसा दोसोदई चेव, पावे कुज्जा सामााण ॥३८॥ पसूयति ॥ १४ ॥ उव्विवारा जलाहंता, तेतणीए मतोद्विता । जीवितं वावि जीवाणं, जीवति फलमंदिरं ॥ १५ ॥ देजा हि जो मरतस्स,
णाणि. सागरंतं वसुंधरं । जीवियं वावि जो देज्जा, जीवितं तु स इच्छती ।। १६ ।। पुत्तं दारं धणं रज्ज, विज्जा सिप्प कला गुणा। जीविते सतिमी जीवाणं, जीविताय रती अयं ॥ १७ ॥ आहारादि तु जीवाण, लोए जीवाण दिज्जती । पाणसंधारणहाय, दुक्खाणिग्गहणा जहा ॥ १८॥ सस्थेण वण्हिणा वावि, खते दड्डे ब वेदणा | सए देहे जहा होति, एवं सव्वोसि देहिणं ॥१९॥ पाणी य पाणिघातं च, पाणिण च पिया दया ।।
सबमेतं विजाणित्ता, पाणिघातं विवजए ॥२०॥ अहिंसा सव्वसत्ताणं, सदाऽणिव्वेयकारिका । अहिंसा सव्वसत्तसु, परं बंभमणिदियं * 181॥२१॥ देविंदा दाणविंदा य, णरिंदा जेवि विस्सुता । सव्वसत्तदयोवंत, मुणिसं पणमंति ते ॥२२॥ तम्हा पाणदयाए, बेलपत्तधरो जथा।
दीप
अनुक्रम [४९१५४५]
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
अध्ययन-[४५], .........मूलं H/ गाथा [१-५५] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
सूत्रांक
॥३८॥
गाथा
||१-५५||
त यत्थाणं
दिएगग्गे (ग्गय ) मणीभूतो, दयत्यी विरहे (हरे) मुणी ।। २३ ।। आणं जिणिंदणित, सव्वसत्ताणुग.मिणिं । समचित्ताऽभिणदि ता, मुच्चंतीश
सव्वबंधणा ॥ २४ ॥ वीतमोहस्स दंतस्स, धी (इ) मंतस्स भासितं । जे णरा णाभिणदति, ते धुर्व दुक्खभायिणो ॥ २५ ॥ जेऽभिणदति भावेण, जिणाण तेसि सव्वथा । कहाणाइ सुहाई च, रिद्धिओ य ण दुल्लहा ॥ २६ ॥ मणं जथा रम्म
म णं, णाणाभावगुणोदय । फुलं व परमिणीसंड, सुतित्थं गाहवज्जितं ॥ २७ ॥ रम्म मतं जिणिदाणं, णाणाभावगुणादयं । करसेय
Pणप्पिय होम्जा ?, इच्छिय व रसायण ।।२६।। ताहातो य सरं रम्म, वाहतो वारुणाघरं । छुहितो व जहाऽऽहारं, रणे मूढो व बंदियं ॥२९॥ इसिभासि वहि सीताहतो वावि, णिवार्य वाऽणिलाहतो । तातारं वा भउब्विग्गो, अणतो व धणागमं ॥ ३० ॥ गंभीरं सव्वतोभदं, हेतुभंगणथुज्जलं | RI
अज्झयएसु ।
णाणं सरणं पयतो मण्णे, जिणिदबयणं तहा ॥३१॥ सारद वा जलं सुद्ध, पुण्णं वा ससिमंडलं । जम्बमाणि अघट्ट वा, थिरं वा मेतिणीतलं ॥ ३२ ॥
साभावियगणोवेतं. भावते जिणसासणं । ससितारापहिषखणं, सारदं वा णभंगणं ॥ ३३ ॥ सवण्णुसासणं पप्प, विण्णाण पविर्यभते ||Dineणी ॥ ३९॥
| हिमवंतं गिरि पप्पा, तरूणं चारुचामगं ॥ ३४ ।। सत्तं बुद्धी मती मेधा, गंभीरत्तं च बडती । ओसधं वा सुई कंत, जुज्जए बलबीरिय। ॥ ३५ ॥ पयंढस्त णरिदस्स, कतारे देसियस्स य । आरोग्गकारणो चेव, आणाकोहो दुहावहो । ३६ ॥ सासणं जे गरिंदा उ, कतारे जे य देसगा । रोगो घातो व बेज्जातो, सव्वमेतं हिए हियं ॥ ३७ ॥ आणाकोबो जिणिंदस्स, सजण्णस्स जुतीमतो । संसारे दुक्खसंगाहे, |दुत्तारो सयदेहिणं ।। २८ ।। तेलोकसार गुरु, धीमतो भासितं इमं | संमं कारण फासेत्ता, पुणो न विरमे ततो ॥ ३९ ।। पद्धचिंधो । जथा जोधो, वम्मारूढो थिरायुधो । सीहणायं विमुंचित्ता, [व] पलायंतो ण सोभती ॥४०|| अगंधणे कुले जातो, जधा णागो महाविसो । मुंचित्ता सविसं भूतो, पियंतो जाति लाघवं ॥ ४१ ॥ जधा रुप्पिकुलुम्भूतो, रमणिज्जपि भोयणं । वंतं पुणो स भुंजतो, विद्धिकारस्स
भायणं ।। ४२ ।। एव य जिणिदआणाए, सल्लुद्धरणमेव य | णिग्गमो य पलिचाओ, सुहिओ सुहमेव तं ॥ ४३ ॥ इंदासणी ण तं कुज्जा, पू दित्तो वही अणं सरी । आसादिज्जतसंबद्धो, जे कुज्जा रिद्धिगारयो । ४४ ॥ विसगाई सरछुई, विसं वामणुजोजितं । सामिर्स वाM
" पप्प, विण्णाण पवि
दीप
अनुक्रम [४९१५४५]
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ऋषि
भाषित
प्रत
सूत्रांक
[-]
गाथा
||१-५५॥
दीप
अनुक्रम
[४९१
५४५]
इसि भासि - एस
॥ ४० ॥
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
.......... अध्ययन-[४५ ], मूलं [-] / गाथा [१-५५ ] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं
[४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते)
| नदीसोयं, साताकम्मं दुहंकरं ॥ ४५ ॥ कोसीकतेव्वसी तिक्खो, भावणे व पावओ । लिंगवेसपलिच्छण्णो, अजियप्पा तहा पु ॥ ४६ ॥ कामा मुसामुही तिक्खा, साला कम्माणुसारिणी । तण्डं सातं च सिग्धं च तण्हा छिंदति देहिणं ॥ ४७ ॥ सदेवोरगगंध, सतिरिक्खं समाणुस । चत्तं तेहिं जगं कि हाए सणिबंधणं ॥ ४८ ॥ अक्खोवंगो वणे लेवो, तावणं जंजरस य णामणं उसुणो
जं च, जति तो कजकारणं ॥ ४९ ॥ आहारादी पडीकारो, सव्वण्णुवयणा हितो । अप्पा हु विब्ववण्डिस्स, संजमट्ठाए संजमो ॥ ५० ॥ हेमं वा आयसं वावि, बंधणं दुक्खकारणा महग्घस्सावि उंडस्स, गिवाए दुक्खसंपदा ॥ ५१ ॥ आसज्जमाणे दिव्वंमि, धीमंता कज्जकारणं । कत्तारे अभिचारिता, विणियं देहधारणं ॥ ५२ ॥ सागरे णावणिज्जोको, आतुरो वा तुरंगमे । भोयणं भिजएहिं वा, जाणेज्जा देहरक्खणं ॥ ५३ ॥ जातं जातं तु बीरियं, सम्मं युज्जेज्ज संयने । पुष्कादीहि पुष्फाणं, रक्खतो आदिकारणं ॥ ५४ ॥ एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दंते दविए अलं ताती णो पुणराव इच्चत्थं हवमागच्छतित्तियेमि ॥ ५५ ॥ वेसमणिज्जं नाम अज्झयणं ॥ ५६ ॥
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[इसिभासियाई संमतानि] ऋषिभाषित-सूत्राणि समाप्तानि
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| ।। ३९ ।।
४ अज्झम
णाणं तयत्थाणं ४ च संग्रहणी
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ऋषि भाषित
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
........ अध्ययन--1, .........मूलं H / गाथा ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
ऋषिभाषित संग्रहणि
सत्राक
गाथा |||
पत्तेयबुद्धमिसिणो वीस तिथे अरिहणेमिस्स । पासस्स य पण्णरस वीरस्स बिलीणमोहस्स ॥ १ ॥णारद १ वज्जितपुत्ते २ असिते ३ अंगरिसि ४ पुष्फसाले ५ य । वकाल ६ कुंमा ७ केयलि ८ कासव ९ तह तेतलिसुते १० य ॥२॥ मंखलि ११ जण १२ भयाली
१३ बाहुयमहु १४ सोरियाण १५ बिदू १६ पिंपू १७ । परिसे कण्हे १८ आरिय १९ उकलवादा य २० तरुणे २१ य ॥३॥ गहभ द.२२ रामे २३ य तहा हरिगिरि २४ अंबड २५ मयंग २६ वारत्ता २७। तसो य अदए २८ वदमाणे २९ वाऊ ३० य तीसतिमे ॥४॥पासे
३१ पिंगे ३२ अरुणे ३३ इसिगिरि ३४ यहालए ३५ व वित्त ३६ य । सिरिगिरि ३७ सातियपुत्ते ३८ संजय ३९ दीवायणे व ४०॥4॥ | तत्तो य इंदणागे ४१ सोम ४२ वमे ४३ चेव हे इवरुणे ४४ य । वेसमणे ४५ य महप्पा चत्ता पंचेव अक्खाए ।।६।। इसिभासियाण संगणी संमत्ता ।। सोयव्वं १ जस्स २ भवि लेवे ३ आदाण रक्खि ४ माणे ५ य । तम ६ सव्वं ७ आराए ८ जाव य ९ सद्धेय १० णव्वेय ११
॥१॥ लोगेसणा १२ किमत्थं १३ जुत्तं १४ साता १५ तथैव विसये १६ य । विज्जा १७ वजे १८ आरिय १९ उकल २० णाईति इसिभासि |जाणामि २१ ॥ २ ॥ पडिसाडी २२ ठवण दुवे मरणे २३ सय २४ तहेव से य २५ । धम्मे २६ य साहु २७ सोते २८ सर्वति२९
अहसब्वतो ३० समे लोए ३१ ॥ ३ ॥ किसि ३२ बाळे य ३३ पंडित सहणा ३४ तह कुप्पणा ३५ व बोद्धव्वा । उप्पत ३६ नदय
३७ य सुब्वा ३८ पावे ३९ तह इच्छणिच्छा ४० य ॥ ४ ॥ आजीवओ ४१ व अप्पा जेण य एसितम्ब बहुयं तु ४२ | लाभे ४३ दो ॥४१॥1| ठाणेहि य ४४ अप्पं पापाण हिंसायु ४५ ॥ ५॥ इसिभासितअत्याहिकारसंगहणी सम्मात्ता ।।
॥४०॥
दाप
॥ |
प्रामाण्यं
अनुक्रम
।
॥ इति ऋषिभाषितान्यध्ययनानि ससंग्रहणीकानि समाप्तानि ।।
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ऋषि भाषित
IM
सत्राका
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
........ अध्ययन--1, .........मूलं H / गाथा ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
ऋषिभाषित-शास्त्रस्य प्रामाण्यं इसिभासि-1 स्थानाने १० स्थाने-दस दसाओ पं० तं०-१-२-३-४-५-पण्हावागरणदसाओ. .......पण्हावागरणदसाणं दस प्रामाण्यं
दि अज्झयणा पं० त०- उवमा-संखा-इसिभासियाईxxएतहृत्तौ-प्रभव्याकरणदशा इहोक्तरूपा न दृश्यन्ते दृश्यमानास्तु पंचाश्रवपंचसंव
रात्मिका इति । इहोक्तानां तु उपमादीनामध्ययनानामक्षरार्थः प्रतीयमान एव । तथा समवायाङ्गे॥४२॥ चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया प० देवलोयचुयाणं इसीणं चोयालसिं इसिभासियज्झयणा प०। एतवृत्तौ चतुश्व
हि त्वारिंशत्स्थानकेऽपि किञ्चिलिख्यते, चतुश्चत्वारिंशत् 'इलिभासिय' ति ऋषिभाषिताध्ययनानि कालिकभुताविशेषभूतानि 'दियलोयचुयामासिव' ति
देवलोकच्युतैः ऋषिभूतैराभाषितानि देवलोकच्युताभाषितानि ॥ (कस्यापि प्रत्येकबुद्धस्य अन्यस्याः कस्याश्चिद् गतेरायातत्वमपेक्ष्य पञ्चचत्वादारिंशतोऽप्यध्ययनानां विवक्षा एकोनतयाऽत्र ) यशोदेवसूरिकृत-पाक्षिकसूत्रटीका [ वीरगणिशिष्यचन्द्रसूरिशिष्या यशोदेवाः][ वि सं.१९८०]
। 'इसिभासियाइ 'न्ति, इह ऋषयः-प्रत्येकबुद्धसाधवस्ते चात्र नेमिनाथतीर्थवर्तिनो नारदादयो विंशतिः पार्श्वनाथतीर्थवर्तिनः पञ्चदश हा वर्धमानस्वामितीर्थवर्तिनो दश ग्राह्याः, तैर्भाषितानि पञ्चचत्वारिंशत्संख्यान्यध्ययनानि श्रवणाद्याधिकारवन्ति ऋषिभाषितानि||अत्र वृद्धसंप्रदाय:-IP
मोरियपुरे नयरे सुरंबरो नाम जक्खो, धणनओ मेट्ठी, सुभद्दा भज्जा, तेहिं अन्नया सुरबरो विन्नत्तो-जहा जइ अम्हाणं पुत्तो होहि तो || | तुज्म महिसमयं देमोत्ति, एवं ताणं समजाओ पुत्तो । एत्यंतरे भगवं वद्धमाणसामी ताणि संबुझिहिन्तित्ति सोरियपुरमागओ । सेट्टी सभज्जो निग्गओ, संबुद्धो, अणुष्वयाणि । सो जक्खो सुविणए महिसे मग्गइ, तेणवि सेहिणा पिट्ठमया दिण्णत्ति ।
सामिणो य दोन्नि सीसा-धम्मघोसो य धम्मजसो व एगस्स असोगवरपायवस्स हेहा परियट्टिन्ति । ते पुब्वण्हे ठिया, अवरण्हेवि छाया | न परियत्तइ । तओ इको भणइ-तुझेसा लद्धी । विइओ भण-तुज्झत्ति । तओ एको काइयभूमिं गओ जाव छाया ॥४२॥
गाथा
II-11
CDSCALCASSESSAGARLS
अनुक्रम
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ऋषि भाषित
प्रत सूत्रांक
[H]
गाथा
II-II
दीप अनुक्रम [-]
इसिभासि
एस
॥ ४३ ॥
प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
........... अध्ययन - [ - ], मूलं [-] / गाथा [-] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं
ऋषिभाषित-शास्त्रस्य प्रामाण्यं
तहेब अच्छ, तओ बीओऽवि गओ, तत्थेव महेब अच्छा, तेहिं णार्थं जहा एकस्सवि न लद्धी, तओ सामी पुच्छिओ, भगवया भणियं जहा इहेव सोरियपुरे समुद्रविजओ राया आसि, जन्नदत्तो तावसो सोमजसा तावसी, ताण पुत्तो नारओ, ताणि वित्तणि, एकदिवसँभि जेमिन्ति, एकदिवस उववासं करोति । अन्नया ताणि तं नारयं पुव्वण्हे असोगपायवरस हेट्ठा ठवेऊण उच्छन्ति । इख य बेवड्डाओ वेसमणकाइया तिरियजंभगा देवा तेणन्तेणं वीवयन्ता पेच्छन्ति तं दारयं, ओहिणा आभोइन्ति | सो ताओ चैव देवनिकायाओ चुओ । तओ ते तस्साणुकंपाए तं छायं थंभन्तिति । एवं सो उम्मुकबालभावो अन्नया तेहिं जंभगदेवेहिं पन्नतिमाइयाओ बिज्जाओ पाढिओ । तओ कञ्चणकुण्डियाए मणिवाडयाहिं आगासे हिण्डइ । अन्नया बारवई गओ । वासुदेवेण पुच्छिओ-किं सोयंति। सो न तरति पडिकहिउं । तओ अन्नकहाए वक्स्खेवं काऊण उडिओ, गओ पुविदेहं । तथ सीमंधरं तित्थयरं जुगबाहू वासुदेवो पुच्छर-किं सोयं ?, तित्थगरेण भणियं सकथं सोयंति । जुगबाहुणा एकवयणेवि सव्वं उबल नारओवि तं निसुणित्ता उप्पइऊणं अवरविदेहं गओ । तत्थवि जुगन्धरं तित्थयरं महाबाहू वासुदेवो तं चैव पुच्छर, भगवयावि तं चैव बागरिय महाबाहुस्सवि सब्वं उबगयं । नारओवि तं सुणित्ता बारवई गओ वासुदेवं भणइ किं ते तदा पुच्छियं ?, बासुदेवो भणइ किं सोयंति । नारओ भणइ समर्थ सोयंति । वासुदेवो भाइ- किं सच्चति ?, तओ नारओ सुभिओ न किंचि उत्तरं देइ । तओ कण्वासुदेवेण भणियं जत्थेव तं । पुच्यिं तत्थ एयंपि पुच्छिययं हुन्तत्ति खिंसिओ । ताहे नारओ भणइ सच्चं भट्टारओ न पुच्छिओत्ति, चिन्तेउमारो, जाई सरिया, संबुद्धो, पढममज्झयणं 'सोयव्वमेव' इच्चाइयं वदति । एवं साणिवि दव्वाणित्ति " इत्यादीनि बहून्येषां प्रामाण्यवाक्यानि नन्द्यावश्यकवृत्यादिषु । इति प्रत्येकयुद्धभाषितानि । पञ्चचत्वारिंशदध्ययनानि ॥ समाप्तानि ।।
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प्रामाण्यं
॥ ४३ ॥
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प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषित-सूत्राणि
समाप्तानि
मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: "ऋषिभाषित-सूत्राणि” मूलं परिसमाप्तम्
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________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि श्री ऋषिभाषितसूत्राणि (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "ऋषिभाषित-सूत्राणि” मूलं नाम्ना परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' | ~67~