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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।।
।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।।
।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक :१
जैन
आराधन
श्री महावी
केन्द्र को
कोबा.
॥
अमतं
तु विद्या
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355
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१ जयकुमारी विजयनाटक (त्रीजी आवृत्ति)... 26 २ ललिता दुःखदर्शक नाटक (छठी आवृत्ति)... ...
३ नळदमयंतीनाटक (चोथी आवृत्ति) 8 ४ बर्थोल्ड (बीजी आवृत्ति) ... ... ५ हरिश्चंन्द्र नाटक
१(बीजी आवृत्ति) ...
र ६ तारामती स्वयंवर माना जाता ७ विक्रमोर्वशी त्रोटक (बीजी आवृत्ति) ८ अरोगता सूचक .. ९ प्रस्ताविक कथासंग्रह ...
... १० मालविकाग्निमित्र नाटक ... ... ...
११ प्रेमराय अने चारुमती नाटक (बीजी आवृत्ति) ... ... 8१२ लघुसिद्धान्त कौमुदी (गजराती विवेचन सहित) ... ...
१३ हितोपदेश (तृतीयापत्ति) ... ... ... ... १४ बाणासुर मदमर्दन (ओखाहरण नाटक बीजी आवृत्ति)... १५ मदालसा अने रुतुध्वज नाटक ... ... १६ हरिश्चन्द्र नाटकनो सार ... . १७ रासमाळा भाग पेहेलो (गूजरात वर्नाक्युलर सोसाइटी पासेथी) १८ रासमाळा भाग बीजो , " " १९ गोपाळदास (हवे पछी) ... ... ... ... ... २० कुळविषे निबंध (बीजी आवृत्ति) ... ... ... ... २१ संतोष सुरतरू (बीजी आवृत्ति) ... ... ... २२ शेकसपियर कथासंग्रह (२० म• छो०) (बीजी आवृत्ति) २३ रत्नावली नाटिका ... ... २४ पादशाही राजनीति ... ...
२-०-० २५ नाटय प्रकाश. २६ रणपिंगल भाग १ लो. ... २७ रणपिंगल भाग २ जो. (छपायछे २८ रसप्रकाश .... ..... ... ... ... ... हवे पछी
२९ डिंगल (गीत रचना) ... ... .... 8.३० वैदिकछंद रचना
उपर जणावेलां अमीरां पुस्तको नीचेने स्थळेथी मळशे. मुंबाइमां-मेसर्स एन. एम. कंपनी. तथा पंडित ज्येष्टाराम मुकून्दजी. अमदावाद-रा. साकरलाल बुलाखीदास रीचीरोड,
राजकोट-रा. लक्ष्मीचंद उत्तमचंद बुकसेलर. FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFa
.... ०-८-०
...
...
... ... १-८-00
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HEMAA
रणपिंगल.
प्रथम भाग. रणछोडभाइ उदयरामे
रचीने
भुज, कच्छ दरबारी मुद्रायन्त्रमा छपावी प्रसिद्ध कस्यो.
संवत् १९५९
सन १९०२
मार्गशीर्ष.
डिसेम्बर.
मूल्य रुपिया २-८-०
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प्रस्तावना. सर्व विद्याओगें मूळ वेद छे. एज प्रगाणे आ छंदःशास्त्रन कथन पण वेदमां छे. ऋषिओ तने वेद- अंग मानेछे, अने तेना विराट स्वरूपमा वे पादं स्थळे तेनी गणना करेछे. जेमके,
(सविणीवृत्त) शब्दशास्त्रं मुखं ज्योतिपं चक्षु श्रावमुक्तं निरुक्तं च कल्पः व या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासि
पादपद्मद्वयं छंद आयेवुधैः. व्याकरण वेदनुं मुख छे, ज्योतिष नेत्र छे, निरुक्त कान छ, का हाथ छे, शिक्षा नाक छे, अने छंदस्, ते चरण कमळ छे, एम प्राचीन विद्वानोए कहेलुछे, अने पाद विनानो मनुष्य जेम लंगडो गणायछे, सेम वेद पण छंदःशास्त्र विना पांगको मनायछे, अने तेटला माटे छदोगब्राह्मणमां अने वदना सर्वानुक्रम सूत्रमा भगवान् कात्यायन ऋषिये लत्यु छे के:
योह वा अविदितायच्छन्दोदैवतावनियोगेन मंत्रेण याजयति वाऽध्यापयति वा स स्थाणु वर्च्छति गर्त वा पधते वा प्रम्रियते पापीयान्
भवति यातयामान्यस्य च्छंदांसि भवन्ति 'ज कोइ मनुष्य मंत्रना ऋषि, छंद, अने देवतादि स्वरूप जाध्या विना वेद मंत्रथी यजन करेछे वा करावेछे, तेमनुं अध्ययन करेछे, वा करावछे, ते पापिष्ठ थायछे. वृक्षना थडनी पठे स्थाणु (स्थिर, अचळ) थायछे; अंधकारवाळा गर्त (कूप वा नरक)मा पडछ, मरछे अने तना छेदो नष्ट थइ जायछे. ___ वळी ते फेटलु बधु उपयोगी छे ते दीववा माटे तेओ लखळे के, (अनुष्टुभा यजति, बृहत्या गापति, गायत्र्यास्तादि
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प्रस्तावना, अर्थात् ) अनुष्टुप् छंदवडे यजन करवु. बृहति छंदवडे गान करवं अन गायत्री छंदवडे स्तुति करवी इत्यादि. __धार्मिक दृष्टिये जोतां छंदोनुं गौरव अने माहात्म्य आटलं बधुं छे तेथी ए शास्त्रनुं थोडंक पण ज्ञान प्रत्येक मनुप्य माटे परमावश्यक छ एम मानवामां बाध नथी. आपणा ऋषिवरोए जेटला ग्रंथ निर्माण कस्या छे ते सघळा प्रायः छंदोबद्ध छे. वेद, स्मृति, पुराण, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, शिल्पशास्त्र, वैद्यक इत्यादि ग्रंथो छंदोबद्ध ज जोवामां आवेछे. ते जो छंदोगौरव एवडे बधुं न होत तो आपणा महार्पओए एने माटे आवडो बधो परिश्रम उठाव्यो होत नहि.
धार्मिक दृष्टिने एक बाजु राखी लौकिक नजरे जोवा जतां पण छंदोगौरवमां कशी न्यूनता नहि नोवामां आवे. छंद जेने आपणे हाल सामान्य कविताना नामथी ओळखिये छिये ते "बाह्य सत्यको जीवतरनी खोखरी प्रतिमा छे.” एक महान् कवि ते द्वारा कोइपण वस्तु, सृष्टिसौंदर्य वा जनस्वभाव- वर्णन करतां जे विचारो प्रकट करेछे ते, ते वेळा जे कारणथी उत्पन्न थया होयछे ते कारण नष्ट थइ गया पछी पण, आश्चर्य उपनावे तेवी रीते त्यांना त्यां, तेवीन एटले तेनी मूळ स्थितिमांज जडायारोपाया रेहेछ. जो कवितानुं अस्तित्व न होत अने तेनी खरी खूबी जन समाजना मनमां न रोपायली होत, तो रामायणादि. महा काव्योनी प्रसादी ने हाल आपणे महत् प्रेमथी प्राशिये छिये ते पामवानो समय आवत नहि; अने वाल्मिकि, कालिदास, भवभूति, भारवि, पतंजली, शंकराचार्य अने बीजा महान् काव्य करनाराओनां नाम आपणा श्रवणपर पण आववा पामत नहि. परंतु स्थिति तेथी उलटी छे. मनुष्य मन प्राचीन काळयी
* Poetry is the very image of life in its external truth.
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प्रस्तावना.
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कविता भगी दोरायलुं छे. अने तेने दैवी अने लौकिक शक्तिना उत्तेजक रूपे आत्माने आनंद आपनार मानेछे. अने तेटला माटे ए संबंधी ज्ञान आपनार शास्त्रने छंदःशास्त्र एटले चित्तने आनंद आपनार वाणी गोठववाना नियमवाळु शास्त्र केहेछे.
छंदःशास्त्रना मूळ योजक कोण अने ए क्यारे अने क्यां योनायु ए हजु स्पष्टपणे जाणवामां आव्युं नथी. आपणा महर्षियो तेने वेदनुं अंग मानछे अने वेद रचना बहुधा छंदोमय छे तेथी ते वेदकाळथी पहेलां हशे एम कल्पी शकायछे. प्राचीन ग्रंथोमां आ शास्त्रनी परंपरा जोवा जइये छिये तो तेना मुख्य आचार्य महादेव छे. तेमनी पासेथी देवताना पति इन्द्रदेव शीखला छे. इन्द्र पासेथी च्यवनमुनि शीख्या अने तेमनी पासेथी बृहस्पतिए, बृहस्पति पासेथी मांडव्यऋषिये छंदोज्ञान मेळव्युं छे. मांडव्य पासेथी सैतव ऋषिये अने सैतव पासेथी यास्क मुनिये अने तेमनी पासेथी पिंगलाचार्ये ए शास्त्रनुं अध्ययन कर्यु छ. अने तेमनी पासेथी अन्याचार्योए ए ज्ञान प्राप्त कयु. ए प्रमाणे श्रीमान् रामानुजाचार्यना गुरु, छंदःसूत्रपरनी पोतानी यादवप्रकाश नामनी टीकामां जणावले.१ ___ आ उपरथी एटलुं तो नक्की थायछे के, पिंगलाचार्य पेहेलाना गमे ते छंदःशास्त्रकारो होय परंतु तेमना ग्रंथो पिंगल मुनिना ग्रंथ जेटला आ देशमा प्रवा नथी. लौकिक छंद अने वैदिक छंदन विवरण प्राचीन आचार्योमा जेवू महर्षि पिंगले कर्यु छे तेषु अन्याचायें करेलु नथी; तेथी तेमने छंदशास्त्रना मूळ प्रवर्तक मान्या छे. पिंगलमुनि कोण हता, क्यारे अने १. छंदोज्ञानमिदं भवाद्भगवतो लेभे सुराणां पतिः
तस्माद्दुश्च्यवनस्ततः सुरगुरुमाण्डव्यनामा ततः । माण्डव्यादपि संतवस्तत ऋषियास्कस्ततः पिंगल: तस्येदं यशसा गुरोर्भुवि धृतं प्राप्यास्मदाद्यैः कमात्॥
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प्रस्तावना..
कां
गया अने तेमने छंदः शास्त्र शा माटे बनावयुं पडये. ए. संमां एक दंतकथा चाल्छे ते वांचनारने रमुन आपशे एम जाणी अत्र आपिये छिये..
शेषनागनुं बीजं नाम पिंगलनाग है. ए पिंगलनाग पोता, पर केवल पृथ्वी रही छे ते जोवानी इच्छा थतां स्वरूपान्तरे ब्राह्मणनो वेश लङ् सृष्टिपर तेनुं सौंदर्य जोता जोता विचरवा खग्या. आ वात गरुडना जाणवामां आवतां तेमने तेमनी साथे, प्रसिद्ध वैर होतां तेने मारी खावानी इच्छाथी तेनी पूठ पकडी. बाम गना रूपमा नाग आगळ अने गरुड पाछळ, एम दोडवा लाग्या. गरुड ब्रेक पासे आयो गयो अने ते तरत ज मारी खाशे एवं. ज्यारे तेने जणायुं त्यारे ते उभो रह्यो, अने मोतमांथो बचवा माटे कई उपाय सूझी आव्यो होय एम डोळ करी गरुडने विनववा. लाग्यो के, हे नागारि! हुं कवि छु, मारुं कौशल्य जुओ. जे हुं. एक वखत लखीश ते फरीने लखीश नहि. लखाइ गयेल अंक फरी आपना जोवामां आवे तो मने सुखथी खाइ जवो. गरुड - आ बात रुची तेथी तेम करवा देणे पिंगलने सूचना करी. एटले ब्राह्मणना शमां रहेला पिंगलनागे एक अक्षरथी आरं भी छतीश अक्षर पर्यंतना प्रस्तारमां जेटला जेटला भेद थता हता ते सरखतो जइ छेवट समुद्रना किनारा पासे ते जड़ पोहोच्यो, दरियो पछि अने ते मार्गे गरुडना पंजामांथी बनी जवाशे एम तेने नक्की जणायाथी छेवटे एक वृत्त करी राणीमा पेशी गयो. जन्मां ऐसततं नाग ने हेल्लं वृत्त बोल्यो ते वृत्त एटा माये भुजंगप्रयात नामे ओळखायछे.
केटला एक एम के हेले के, लौकिक छंदःशास्त्रना मूळप्रवपिंगलाचार्य केहेवायचे. एमनां बीनां नाम पिंगलनाग, पिंगलमुनि छे. वळी केटलाक एस पण केले के, वेदना महा भाष्पना रचनार पतंजलि हता, तेनुं बीजुं नाम पिंगलाचार्य,
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प्रस्तावना.
हतुं वळी केटला एक एम पण केलेछे के, पिंगलनागनो उपासक कोइ समर्थ छंदोज्ञान धरावनार ब्राह्मण हतो, तेणे शंभु नामना पोताना गुरु पांसेवी ए शास्त्र शीखी पोताना उपास्य देवनी प्रशस्ति माटे छंदःशास्त्राने पिंगलं नाम आप्युं छे, ने त्यारथी ते नाम जगत्मां प्रवर्त्तुं छे. वळी केटलाक एम केहेले के पिंगल ए नाम कल्पित छे. ए नामनो कोई मनुष्य नथी थइ भयो, परंतु (पिं= पेंड, ग=गुरु, ल=लघु. ) गुरू अने लघुना पिंड मां व्याख्यान छे एक ए शब्दनो अर्थ थायले. ग तेम हो; तोपण ए पिंगलसूत्र पछी छंदः शास्त्रपर जे जे ग्रंथो रचाया छे ते सचळा सामान्य रीते पिंगलनामे ओळखायचे तेवी एम तो कल्पना धायछे के ए नाम तेवा नामना कोइ छंदः शात्रकार परथी प्रव होय, वा सूत्र ग्रंथकार गूढार्थ दर्शक पिंगल एवं तेने नाम आप्युं होय अने तेथी तेमी प्रवृत्ति थइ होय एम मानी लेवामां कशुं बाधकारक नथी. तक्षक ( ताक) वंशनां उत्पन्न थयेला नागराजने केटाक पिंगल तरीके मानेछे ए योग्य नथी. पिंगल अने नागराज ए भिन्न भिन्न होत्रा जोइये. पण नागकुळ अने ताककुळ एकज - होय तो ए वंशमां उत्पन्न भये कोइ तेनो मूळ पुरुष ए नामे थयो होय ते पिंगलाचार्य होय एम संभवे खरुं. *
गीर्वाणवाणीमा अने भाषामा पिंगलाचार्यआदि घणा आचार्यो अने कविओए छंदःशास्त्र विषे घणा ग्रंथो रच्या है, तो आ ग्रंथनी शी अगत्य हती, एम कोइ प्रश्न करे, तो तेना उत्त - रमां मारे जगावं जोइये के, आपणी मातृभाषा सांप्रत का
* ताक वंशना राजाओ काश्मिर सिंध अने पंजाबपर जूना वखतमां राज चलावी गया छे. तेमां काश्मिरना राजाओ तो नागना पूजकी पण हता तेथी पिंगलने ए वंशमां उत्पन्न थएल मानवामां आव 'तो ए ग्रंथ ए देशमां पेहेलां रचायो हो एम मानी शकाय
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६
प्रस्तावना.
ळमां गूजराती छे; एटले अन्य भाषामां रचायला ग्रंथी ए भाषा बोलनारने एक सरखा उपयोगी नथी. वळी गूर्जर गिरामां ने थोडा पण ग्रंथ रवाया छे, तेथी छंदःशास्त्रनुं आद्योपान्त यथा विवि ज्ञान धतुं नथी; तेम ज ते अपूर्ण होवाना कारणसर बहु उपयोगी थता नथी. अने प्राचीन आचार्योए जे सूत्रद्वारा संक्षेपमा जणान्युं छे, ने जेमां ते पछीना विद्वानोये अनेक विध विवृत्तिकरी वृद्धि करी छे, ते सघळं एक ग्रंथ परथी जाणी शकाय एम न होवाथी छंदः शास्त्राना प्रवर्त्तक पिंगलाचार्यश्री आरंमी आजची थइ गयेला संस्कृत, प्राकृत अने व्रजभाषानाविना उपलब्ध ग्रंथोपरथी छंदःशास्त्रसारना दोहनरूप एक ग्रंथ होय, तो आ शास्त्रना जिज्ञासुने बहु लाभ थाय एवं समजी आ छंदोग्रंथ लखवानी मने उत्साह थयो छे. अने छंदः शास्त्रना ग्रंथाने पिंगल एवं नाम आपवानो प्रथा पूर्वथी प्रच लित छे ते लोपवो मने योग्य न लागवाथी में पण आ ग्रंथने रणपिंगल एवं नाम आपल छे.
वेदकाळथी छंद अने गान पृथक् छे अने तेना नियमो पण भिन्न छे; तेथी आ छंदः शास्त्रमां केवळ छंदोज्ञान थवाना नियम आपेला छे, अने गान अथवा गीत, संगीत, पद्य इत्यादिक जूदा जूदा ताल अने लयथी थयेल छंदोनुं रूपान्तर छे, छतां ते केम योजना ए नियम अगत्यना होतां तेनो पृथक् ग्रंथ रचाय तो सारू एवी इच्छा राखुंछु.
आ ग्रंथना मुख्य पांच भाग पाडवामां आव्या छे. प्रवेशक, वैदिकछंद, मात्रामेळजाति, वर्णमेकछंद अने त्रिविध प्रस्तारादि प्रक्रिया.
प्रवेशक प्रकरणमां छंदः शास्त्रोपयोगी सघळा प्रकारनी संज्ञाओ अने पारिभाषिक शब्दोनी बहु संमत व्याख्याओ अने उदाहरण आप्यां छे.
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प्रस्तावना. वैदिक छंद प्रकरणमां चार वेदमा जे जे छंदो वपरायला छे तेमना बंधारणना नियमो, उदाहरण अने तेपर जोइती टीका वांचनारने बराबर समजाय ए माटे आपवामां आवेल छे. वैदिक छंदोनां जे उदाहरण आप्यां छे तेनो गूजराती अर्थ पण ते साथे आपेल छे. आ भाग जूदो प्रसिद्ध करवामां आवशे ___ मात्रामेळ छंदोना समजाति, दंडक, अर्द्ध समजाति, शिखाजाति, आर्या, प्रचुर्णगीति अने विषम जाति, मात्रासमक, वैतालीय, अने गलितक एवा पेटाभेद पाडेला छे.
वर्णमेळ छंदना पेटा विभागमा क्रमे समवृत्त, दंडक, अर्द्ध समवृत्त, संकीर्ण, विषमवृत्त, संकीर्ण असंकीर्ण अने अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद छे,
विदेशी छंदोमुं ज्ञान आपणने केटलीक वेळा घणा संसर्गमां आव्याथी जाणवायूँ मन थायछे तेथी दक्षिण भणीना केटलाक छंद आपणी गूजराती भाषामा प्रचलित थया छे तेनुं माप अने उदाहरण केटलाक मराठी ग्रंथोना आधारे लइने दाखल करेलुं छे.
छेल्लो भाग प्रस्तारादि प्रकरणनो छे तेमा मात्रा, वर्ण अने तजन्य गणनो प्रस्तार शी रीते करवो तेनी पृथक पृथक् रीतिओ, उदाहरणो अने कोष्टको तेमां आपवामां आव्यां छे; अने आर्या, दुहा तथा अनुष्टुप्नां प्रस्तारादि प्रकरण केटलाक प्राचीन पिंगलशास्त्रकारोए पृथक् पृथक् पाडेलां छे तेथी तेमने तेवांज रूपमां गणप्रस्तारना उदाहरणमा मूकवामां आव्यां छे. ___ मारी आ विषय संकलना प्राचीन छंदःशास्त्रकारोथी केटलेक अंशे भिन्न छे, एम जोतांवांत वांचनारने जाणवामां आवशे; तेथी तेम करवानुं प्रयोजन अत्र जणाववा- ठीक पडशे एवं जाणी आपुंछं.
छंदःप्रस्तारादि प्राचीन ग्रंथोमां प्रथम वैदिकछंद अने तेना पाछळ क्रमे गणछंद, मात्राछंद अने वर्णछंद अने प्रस्तारादि
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प्रस्तावना. क्रिया आपवामां आवेल छे. ते क्रममां गगछंद मात्राछंद (जाति) नो पेटाभेद होतां क्रमवार मात्राछंदोमां तेनी गणना करवी सारी लागवाथी में मात्रिकगण छंदने मात्रामेळ जातिना प्रकरणमां भेळ्वी दीधा छे, अने कया छंद पछी कया छंद अथवा जातिनुं माप अने उदाहरण मूकवां एवो खास नियम न होता पांचमात्राथी आरंभी १२० मात्रा सुधीमा क्रमवार जे जूदा जूदा छंद अने जातिओ बनछे अने जेनां नाम पूर्व छंदःशास्त्रकारोए नक्की करेल छे ते विषयवार ‘आपेल छे. तेथी कोइ 'ण संख्यानी मात्रा अथवा वर्णनो छंद बनावबानो विधि अथवा
उदाहरण ग्रंथमां को स्थळे छे ए तुस्त ज मधे आवशै. . अमुक मात्राना छंदनुं ग्रंथांतरोमां कयुं नाम छ; अथवा ते नामना बीना छंदोमां शो शो तफावत छैए पिंगलना अभ्यासीने जाणवू अगत्यनुं होतां घणाखरा प्रत्येक छंदनी नीचे पूंटनोटमां तेमनां नामो अने तेमना तफाक्तनां विवरण साथे तेना योजक अथवा ग्रंथनां सम साथे आपवामां आवेल छे..
छंदःशास्त्र जैम सरल होय तैम लाभदायक छे. अने जेटलं कठिन होय तेटलुं संशयात्मक थइ पड़े; कारण के, जो छंदोनियम कठिन होय अथवा तेमा गडबड होय तो तेथी ते विद्याना अनुरागियो अने अभ्यासियोने गुंचत्रारो पडेछ माटे क्लिष्टता दूर करी, छंदोरचना सुलभ थाय भने ते साथे ग्रंथरचना पण उदाहरण टीका अने विवरणने लीधे अति विस्तारवाळी थइ न जाय, एनी संभाळ राखी प्रत्येक जाति, वृत्त अने छंदना नियम आपवामां में नीचे प्रमाणे गोठवण राखी छे.
प्रत्येक जाति अथवा छंदना नामनी जोडे ग्रंथान्तरोमां तेनां शां नाम छे, ते केटली मात्रा अथवा वर्णनो छे, ते जणाववामां आवेल छे. ते तळे तालना नियमसर ज्यां ज्यां तेना-टुकड़ा
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प्रस्तावनी. पाडवानी जरूर जगाइछे अने जेने माटे पूर्वाचार्योना नक्की करेल नियमो मळी आव्या छे ते दाखल करेल छे. ते तळे जरुर जोग स्पष्टीकरण होयछे तो ते. अपाया बाद, प्रत्येक छंदनी रचनानो नियम ते छंद अथवा जातिना एक पादने माटे आपेल छे अने ते आपतां नियम अने उदाहरण साथे आवी जाय असे ग्रंथनो वृथा विस्तार न थाय, तेनी संभाळ राखामां आवी छे. प्रत्येक जाति अथवा छंदना नियम माटे उदाहरण रूपे आपवामां आवेल जात्यादिनां प्रत्येक पद छंदने लगती मात्रा अथवा वर्णना प्रस्तारजन्य कटेलामा रूपने लगतां छे, तेनी संख्या प्रत्येक छंदना प्रतिपादनी साथे लखवामां आवेल छे.
मात्रिक सम अने विषम मात्रिक, एम पृथक् पृथक भेद पाडी ए वर्गना छंदोर्नु कोइ पण पूर्वाचार्योए जूदं वर्णन कस्यं नथी, ते अमे पिंगल शास्त्रना अभ्यासिओनी सुगमता माटे खास विस्तृत करी, क्रमवार आ ग्रंथमा दाखल करेल छे. तेम करवामां तदन्तर्गत आर्या अने वैतालीय छंदन ते ते नाम तळेना प्रकरणमां तेना भिन्न भिन्न जेटला भेद पडेछे, ते सहित विस्तार पूर्वक वर्णन करेल छे. ___ वैदिक छंदोने बाजुए मूकतां बाकीना वर्णमेल छंदोमांना घणारखरा लौकिक वर्णमेळ छंदो गणबद्ध छे. छंदोरचनानो नियम आपतां अमुक गण अमुक स्थळे लाववो, एम केहवामां इष्टगण आयुं नाम आपवा जतां, नियम अने उदाहरण एक न वृत्तमां आवी शके नहि; एटला माटे पिंगलादि आचार्योए पूर्वथी प्रणालिका पाडी छे, ते प्रमाणे ते ते गणना आद्याक्षराने न. ते ते गण सूचववा माटे लक्षणमा आपवामां आवेल छे. ____मात्रिकजाति प्रकरणमां जरूर जाग स्थके टगणादि प्राचीन मात्रिक गणोनो उपयोग कस्यो छे अने ज्यां तेवी गणनानी जरुर नथी जणाइ, त्या उदाहरणना उपर अने छंदना
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प्रस्तावना.
नामनी नीचे केटली केटली मात्राना टुकडा लाववा तेनी संख्या मूकवामां आवेल छे. मात्रिक छंदमां अमुक ताल अमुक मात्राए लाववो अने ते लाववामां अमुक मात्रा तेनी साथे न आवी जाय एम केटलेक ठेकाणे खास जरुर जणायाथी लख. वामां आवेल छे. आ विधि सर्वत्र योजायाथी सघळा प्रकारनी तालबद्ध छंदोरचना थाय तेम छे अने टगणादिथी नवा नियमे लक्षणो बांधी शकाय तेम छे; तेथी आ कार्य पूरुं थतां ज मात्रिक गणबद्ध नविन रचना करवानी में धारणा राखी छे.
कवित अने मनहरने घणा लोको एकन मानता आवछे अने तेनी रचना बधा वर्णमेळ छंदने अनुसरीने करवामां आक्छे. आम करवामां तेओ केटले दरजे भूलावामां पडछे, ते आ मथालाना छंदतळे आपेला लांबा लेखथी वांचनारने स्पष्ट जाणवामां आवशे. अने कवितमा पण तालादि नियम जाळववा माटे केटली काळनी राखवानी अगत्यछे, ते पण स्पष्ट जणाइ रेहेशे.
मात्रिक प्रकरणमां कोइ पण गूजराती पिंगलमां न आवेल एवा गलितक अने शिखानातिना भेद अने वृत्त प्रकरणमां अर्द्धसम अने विषम वृत्तना संकीर्ण अने असंकीर्ण एवा छंदना जेटला छंदो थाथछे तेनुं विगतवार वर्णन क्रमवार आपवामां आव्युं छे. ___ मात्रा प्रकरणमा एकथी आरंभी अनेक मात्रा पर्यंतना छंदोना केटला भेद अथवा वृत्ति थइ शकेले, ते तथा अमुक संख्यानी वृत्ति अथवा भेद क्रमवार केटला गुरु अथवा लघु वर्णनी थाय, ए तरत समजाय अने तेवो छंद रचवामां कविने सुगमता मळे; एटला माटे संख्या, प्रस्तार, सूची, नष्ट, उदिष्ट, मेरु, पताका, अने मर्कटी आदि प्रकरणो पाडी ते केम साधवा, अने तेनो उपयोग केम करवो, एनी रीति, उदाहरणो
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mama
प्रस्तावना. अने ए माटे जोइतां कोष्टको विगेरे आ रणपिंगलंना बीजा भागमां आपवामां आव्यां छे:
जे छंदनुं नाम पिंगलमां न मळे, ते छंदने गाथा केहेवी एम पूर्वाचार्योनो आदेश छे ने ते श्रीमद्भागवत्मां तेवा छंदो वापरी केटलेक अंशे प्राचीन कविओए जाळव्यो पण छे; तोपण प्रस्तार विधिये केटलाक नवीन चंद बनेछे तेमने ए प्रमाणे सामान्य गाथा नाम आपवानी अगत्य सर्व कवियोए गणी नथी, अने नवा छंदने नवां नाम आप्यां छे; तेथी में पण मारा मनना वलणने वश थइ केटलाक छंदने रणशूर, खेंगारवृत्त, मनसुख इत्यादि मनगमतां नामो आपेल छे अने बाकीनां नामो पूर्वाचार्योए जे कल्पेला छे ते ज स्वीकार्या छे. __ आ रणपिंगल तैयार करवामां जे जे संस्कृत, हिन्दी अने गूजराती ग्रंथोनो आशय लेवामां आव्यो छे ते ग्रंथो कया कया छे ए छंदःशास्त्रना अभ्यासीने जाणवानी अगत्य होता तेमन नामवार लिष्ट आ नाचे आपीये छिये.
रणपिंगल तैयार करवा माटे जोवामां आवेला ग्रंथोनी यादी. १ यजुर्वेद, महीधरभाष्योपेत. २ यजुर्वेद सर्वानुक्रमणिसूत्र. कात्यायन. ३ ऋग्वेद सायणभाष्योपेत. ४ वेदार्थयत्न मासिक. ५ सामवेद आर्चक. ६ ऋग्वेद सर्वानुक्रमसूत्र. शौनक. ७ अथर्ववेद सायणभाष्य. ८ अथर्ववेद सर्वानुक्रमसूत्र. ९ सुवृत्ततिलक. प्रकाशेन्द्र पुत्र क्षेमेन्द्र. १० शब्दकल्पद्रुम.
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प्रस्तावमा.
२१. वृत्तप्रदीप. अनार्दन १२ वागवल्लभ. दुःखभंजन. १३ वृत्तरत्नाकर. केवॉरभट्ट. १४
टीका हरिभाकर. सं. १७३२.. १६ छंदोमंजरी. गंगादास पंडित. १६ भावप्रदीपिका. २७ छंदःशास्त्र. पिंगलाचार्य. १८ छंदोवृत्ति. महलायुध, सौमचंद्र. सं. १३२९. १९ वृत्तमौक्तिक. चन्द्रशेखर, लक्ष्मीनाथ. सं. १६७६. २० छंदःकामदुधावत्स. सुखानंद. २१ प्राकृतपिंगलसूत्र. । ३२ पिंगलप्रदोपटीकोपेत. टीकाकार रामभट्ट पुत्र लक्ष्मीनाथ. २३ नागपिंगल मागवी.
२४ मंदारमरंदचंपू. ... १ कृष्णकवि..
माधुर्यरंजनीव्याख्योपेत. २५ छंदोवृत्तमुक्तावली. कृष्णकवि. २६ श्रुतबोध. कालिदास. .
७ वाणीभूपण. मैथिल दामोदरमिश्र. २८ वृत्तरत्नावली. गौटुवंशज भट्टाचार्य शतावधान पुत्र. २९ छंदोलता. वसंत. ३० भास्करीयतु भास्कर. ३१ नागराजपिंगल. पिंगलाचार्य. ३२ छंदकोश. रत्नशेखरसूरी. ३३ भागधी पिंगल. टी चित्रसेन. ३४ ,, ,, सुनि सुंदर सूरी. ३५ चूडामणि. नागराज पिंगलाचार्य,
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प्रस्तावना.
३६ छंदोनुशासन. हेमचंद्र. ३७ हरिजशपिंगल(मारवाडी) हमीर कविः ३८ छंदःशतक. चंद्रकीर्तिसूरि शिष्य हरिकीर्तिसूरि. ३९ छंदतरंगिणी. प्रेमरसिक कवि.. ४० छंदोबोध (भाषा.) श्री हृषीकेश शर्मा. ४१. चिन्तामाणि पिंगल. चिन्तामणि. ४२ रूपप्रदीप. जयकृष्ण भवानीदास. ४३ छंदरत्नावली. साधु हरिरामदास निरंजनी. ४४ श्रृंगार पिंगल. कवि सिंहविरचित. ४५ प्रवीणसागरः। आ प्रथमां आवेला ४६ रामचंद्रिमः । सर्व छंद ४७ वृत्तसारावली, ४८ छंदःप्रभाकर. बाबु जगन्नाथ प्रसाद. ४९ भाषा छंदोमंजरी. कवि पद्माकर पौत्र गजाधर. .. ५० लखपतनशसिंधु. कवि हमीरजी. ५१ भगवपिंगल. खाखरना कवि उन्नडजी. सं० १८६ .. ५२ छंदःशृंगार. कविसिंध सेवक (भोजक) सं० १८५ ५३ काव्य सुधाकर. महंत जानकीप्रशाद. ५४ गणप्रस्तारप्रकाश.. बावा रामदास. ५५ छंदोमालिका. मिश्र केशवराम कवि. ५६ काव्य रसायन कवि देवदत्त. ५७ कान्यार्णव कवि संग्रामसिंह. ५८ नामार्णव. राजा रणधीरसिंह. ५९ साहित्यानंद. कवि भीवालकृत.
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प्रस्तावना.
६. लखपतपिंगल. कुंवरकुशलजी. ६१ गोडपिंगल ६२ श्रीधरपिंगल. श्रीधरमुरलीधर. '६३ छंदःसार. नारायणवैष्णव. सं. १८२९.
६४ छंदःसार. सूरतमिश्र. '६५ छंदोर्णव. भीखारीदास कवि. ६६ वृत्तदर्पण.(मराठी). 'परशुरामपंत गोडबोले. ६७ संस्कृत प्रोसडी. ६८ "छंदःप्रदीप. भाषा. पंडित कनीयालाल. ६९ छंदाचीपिका. भाषा पंडित बमोधर. ७० पिंगल. सुखदेवमिश्र. सं. १६३२. '७१ छंदः कौस्तुभसभाष्य.राधादामोदर. '७२ छंदः पीयूष. कवि जगन्नाथ. ७३ छंदोदीपिका. कुमारमाणभट्ट. सं. १७६० ४७.४ छदोमुक्तावली काश्यपगोत्री शंभुराम सीताराम. ७५ वृत्तरत्नाकर टीका. क्षेम; हंस; जगन्नाथ मिश्र श्रीकंठ सामचंद्र. ७६ वृत्तालंकारमंजरी. ७७ पद्यसारोद्धार. ७८ प्रस्तारप्रभाकर. ७९ गीतनियम. ८० छंदःशतक. हर्षकीर्ति. ८१ हरिजशपिंगल. महासिंव. ८२ भाषापिंगल. चिन्तामणि. ८३ कवि कुलकंठाभरण. दुर्लभराम.
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प्रस्तावना.
८४ मात्रा परिच्छेद. ८५ आर्या प्रस्तारोदाहरण. ८६ वर्णभेद. ८७. काळ्यकल्पलता.. अमरचंद्र. ke कविकल्पलता, ८९ रघुनाथरूपकः ९... बुद्धिविलास. ९१ छंदोहृदयप्रकाश.. ९२ छंदोलघुविवेक.. ९३. छंदःशुद्धचिल्लहरी. ९४ कर्णशंभेष. मु. दु० ल. ९५. पिंगलवृत्तान्त हिन्दी. चिन्तामणि.. ९६ प्राकृतछंदःकोष.. ९७ वृत्तमुक्तावली. वैद्यगोपालदासः
आ सिवाय छंदःशास्त्रपरना बोजा जे ग्रंथोनां नाम अपने मळेलां पण प्रति मेळववामां नहि आवेली ते. ग्रंथोनी टीप पण, आपी छे; ते उपरथी छंदोःवि याना उत्सुकीने शोध करवानो: लाभ.शे. अने कोइ छंद नवो हशे तो आ ग्रंथ साथे तुलना करवा जतां तरी आवशे, अने ते जो अमने नणाववामा आवशे. तो आभार साथे स्वीकारी द्वितीय संस्करणमां तेनों. उपयोग करवामां आवशे. ___ आ छंदःशास्त्ररुपी समुद्र, तरी न शकाय तेवो छे: तेंमां' जेम जेम डुबकी मारवामां आवेळे; अन जेम जेम वधारे नीचे पोहोंचायछे तेम तेम अमुल्य रत्न डुबकी मारनार मेळववा पामे
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१६
प्रस्तावना.
छे. प्रस्तार विधिथी अनेक विध छंदो बनेछ; अने तेमने सत्कवियो पोताने गमे तेवां नाम आपेछे, ए सर्वने आदर करवा योग्य छे. केवळ पात्र मनुष्योने नवा छंद रची नवां नाम आपवानो अधिकार छे बीनाओने नथी. अधिकारी जन पण तेज छे के जे छंदनां लक्षण सारी रीते समजे, पोते भणेछे अने ते बीजाने भणावी शकेले. एक छंदने एक कविये एक जातनुं नाम आपी दीधुं होय तेन नाम ते पछीना बीजा कविये तेज छंदने वा वीजा छंदने न आपg, अथवा नामने बदलावी बीजुं नाम न घुसाडवू, एवी पूर्वनी प्रथा छे तेनो त्याग न करवो. एम करवाथीं नवा वांचनारने भ्रम उत्पन्न थायछे, अने तेने पोताने कशा प्रकारनो लाभ थतो नथी. ___ वर्णवृत्त करतां मात्रिक जाति अथवा छंदनों विषय विशेप विवारवा जेवो छे; एटला माटे मात्रिक छंदनी श्रेणीमा जो कोइ चारे पदमां वर्णक्रम अने संख्या समान जोवामां आने, तो सत्कविये तेने मात्रिक छंद न मानतां जेटला वर्णनो ते छंद होय तेटला वर्गना छंदना भेदमां ते आवी जतो होय तो ठीक नहिकर तेने तेना इतर भेद तरीके गणवो जोइये. ___ आ सृष्टिमां जेटली भाषा प्रचलित छे, तेमनुं खरं सौंदर्य तेमनी कवितामा जोवामां आवेछे; ज्यां सुधी छंदोज्ञान यथाविधि थतुं नथी त्यां सुधी मातृभाषा पण सारी रोते जाणी शकाती नथी. मातृभाषाथी अजाण मनुष्य बीजी विद्यानी खूबी शी रीते जाणी शके? मातृभाषानुं सौंदर्य वधारवा अथवा एमां रहेलं सौंदर्य जाणवा माटे प्रत्येक मनुष्ये छंदोज्ञान सुविथिये मेळवत्रु जोइये,
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पुस्तकनुं नाम.
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४ छन्दः श्लोक.
५ छन्दसंख्या.
प्रस्तावनाः
१ छन्दः कल्पलता. मथुरानाथ..
२ छन्दः कैास्तुभ. विद्याभूषण.
३ छन्दःप्रकाश. शेषचिन्तामणिः
जोवानां पुस्तकोनीटीप. कर्त्तानुं नाम.
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वाग्भट.
१७
विशेषहकीकत.
अलाहबादमां प्रकट थएल वायव्यप्रान्तनी खानगी लग यब्रेरीनां हस्तलिखित संस्कृत पुस्तकनी सूची जूओ. १२६
""
एफ किल्होर्नकृत मध्यप्रान्तोनांहस्तलिखित संस्कृत पुस्तकोनी सूची ९४. गुस्तव ओपर्टनी संस्कृत पुस्त( कोनी सूची १८२८.
जी. बुलर साहेबनी मुंबई इलाका
मांपुस्तकोनी सूची ३.६०.
६ छन्दः संग्रह.
स. १८६४नी बाइब्लोथेटीकानी
S
( संस्कृत पुस्तकोनी सूची ९५
७. छन्दः सुधाकर. कृष्णाराम. बनारस कोलेज लायब्रेरीनी सू. ३३ ८ छन्दश्चूडामणि. हेमचन्द्रः जुवो छन्दः संग्रहः २११अ ९ छन्दस्. भास्करराय. जुवो छन्दः प्रकाश. ९४ १०. छन्दोगोविन्द गंगादास जुवो छन्दः संग्रह. ११ छन्दोदर्पण. गोविन्द.. " छन्दः सुधाकर.
१९८ ब
३२
१२ छन्दोदीपिका. कृष्णाराम.
,, छन्दःकल्पलता. ६१६
१३ छन्दोनुक्रमणि. सद्गुरुशिष्य. सद्गुरुशिष्य सूची.
१४. छन्दोनुशासन.
किलहोर्नकृत मुंबई इलाकानां संस्कृत पुस्तकोना रिपोर्ट..
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प्रस्तावना
Moodiowwwdauovisviwwwwwwwwwwwwww
। राजेन्द्रलालमित्रनी संस्कृत पुस्त१५ छंदोमंजरी.
को संबंधी नोटीस ८७७. ए. सी. बर्नेल टान्जोर लायब्रेरी
(सं. पु. सूची -३ च. ११६ छन्दोमातंग स्वेतांबर.
(वृत्तरत्नाकरादर्शमां आ ग्रं१. छन्दोमार्तण्ड.. १८ छन्दोमाला. करंगधर.
(थोनां नाम छे. १९ छन्दोऽयुधि.
ओपर्टनी सूची. ५५१ २० छन्दोरत्न. हलायुध,
३१३१ २१ छन्दोरत्नाकर.
"जुवो छन्दःप्रकाश.२० १ २२ छन्दोरत्नावली. अमरचन्द्र. ., ओपर्ट सूची. ४५९३ २३ छन्दोलक्षण. २४ छन्दोलक्ष्यलक्षण. बर्नेल सूची. ५३. ब २५ छन्दोलघुविवेक. बीकानेर महाराजाना पुस्तकालयमां २६ छन्दोलंकरण.
सूची. २७ छन्दोविचय.
पीटरसन साहेबनी सूची. १८५ २८ छन्दोविचार. बर्नेल सूची. ५३. ब २९ छन्दोविचिति. पतंजलि. ओपट सूची. १८२९. ३० छन्दोविलास.. पेरीसनाएसमस्कनी सू. १२५ अ .३१ छन्दोविवेक.
ओपट सूची. ५६३७ ३२ छन्दोवृत्तरत्न.
सूची. ३३ छन्दोष्टादशक. रुपगोस्वामी. राजेन्द्रलालमि. नो.२ १२५ ३४ पिंगलार्या.
ओपर्टसूची ३४२२ ३५ पिंगलसारः हरिप्रसाद. राजेन्द्रलालमि. नो. २९१२ ३६ वृत्तकल्पद्रुम. जयगोविंद. एफ: किल्होर्न सूची. ९४ -३७ वृत्तकौतुक. विश्वनाथ.
२२६
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प्रस्तावना.
३८ वृत्तकौमुदी. जगद्गुरु. अयोध्याप्रांत सूची. ८ ३९ वृत्तचंद्रिका. रामदयालु.
२.१८-३० ४० वृत्तचंद्रोदय. भास्कर, किल्होने सूची. बनारस को
लेज पुस्तकालय. ३२
दिलीप्रान्तनां पुस्तकोमी सू. ४१ वृत्ततरंगिणी.
· काशीनाथ कुन्ते. .४.२ : वृत्तदर्पण. गंगाधर. अयोध्याप्रांत सं. पु. सू. १९५८ ४३ वृत्तदोपव्याख्यान. राइसकृत सूची. २८ ४४ वृत्तदीपिका कृष्ण. दक्षिण मुंबइ इलाकानी सू. ५० ४५ वृत्तद्युमणि. यश्वन्तः ओपर्ट सूची. १०३१ . ४६ वृत्तप्रत्यय. शंकरदयालु अ. प्रा. सं. पु. सू. ८,१० ४७ वृत्तप्रत्ययकौमुदी. पिंगल. काशी. कु. कृ. दि.ना पु. रि. ४८ वृत्तप्रदीप. जनार्दनविबुध. बर्नेलसूची ५३. ब भान्डारकर री, :४९ वृत्तमाणकोश.. २५० वृत्तमाणिक्यमाला. सुसेन. अयोध्या. सं. पु. सूची. १०,१० -५१ वृत्तमाला.. वल्लभजी. भांडारकरनो रीपोर्ट, ५२ वृत्तमुक्तावली. कृष्णाराम. वायव्यप्रांत सं.पु सूची. ६१८ ५३ , . मल्लारी किल्हान सूची. ९४ ५४ वृत्तरामायण. अयोध्या- सं. पु. सूची. १० -५५ वृत्तलक्षण
ओपर्टसूची. २५५२. ५६ वृत्तवार्तिक. उमापति , ३२१८. ५७ वृत्तविनोद. फतहगिरि. अयोध्याप्रान्त. सं. पु. सूची १० ५८ वृत्तविवेचन. दुर्गासहाय. बनारस.कोलेज पुस्तकालय सू. ३२ ५९ वृत्तशतक. मार्तण्डवल्लभः प्रो. पीटरसन सूत्री. २ १३१ ६० वृत्तसुध्रोदय. मथुरानाथ. वायव्यप्रान्त सं. पु. सूची. ६५४ .६१ वृत्तार्क.
राइससाहेबनी सूची..२८०
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संज्ञाप्रकरण.
वेदनां छ अंग गणवामां आव्यांछे तेमांनुं एक अंग आ छंदःशास्त्री छे, केटलाक तेना मूळ योजक पिंगलाचार्यना नामपरथी तेने पिंगल पण केहछे. तेमां मनने आल्हाद आपे एवी छान्दस् वाणीना विविध प्रयोगो करवाना नियम आपवामां आवेला छे. छंद बे प्रकारना छे, 'वैदिक (अलौकिक) अने ३लौकिक.
वेदमां वपरायला छंद वैदिक, अने लोकमां प्रवर्त्तता लौकिक छंदः केहेवायछे. लौकिकछंदना २ बे भेद छे,
१ मात्रामेळ अने २ वर्णमेळ.. मात्रामेळ अथवा मात्रिक छंदनां बे पेटां पडेछे, १ मात्रिक गणबद्ध अने २ मात्राबद्ध.
१ छंदः चदि आल्हादने, ते उपरथी तेने असुन् उणादि प्रत्यय लागतां च स्थाने छ थइ छंदःशब्द सिद्ध थायछे. अने तेनो अर्थ आनंद उपजावनारआल्हादकारक, एवो थायछे. अथवा छदि-आच्छादने, एटले, जे मापे कराने आच्छादित अथवा मर्यादामा रहेल ते, एवो अर्थ पण थाय.
२ आ प्रकरण नोखु छपावानुं छे. ३ एकदेशे स्थिरा जाति वृत्तं गुरुलघुस्थिरम्,
आदी तावद् गणच्छंदो मात्राच्छंदस्ततःपरम्; तृतीयमक्षरच्छंदः छंदस्त्रेधातु लौकिकम् ॥ तेन प्राकृतं लौकिक छदोजातं जातिरित्युचते.
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२१
___ मात्रिकगणबद्धने पद्य केहेछे. अने मात्राबद्धने वृत्ति अथवा जाति केहछे.
वर्णमेळथी जेनी रचना करवामां आवेछे एवा अक्षरबद्ध छंदनी अनेक वृत्तिओ थायछे, तेथी ते वृत्त केहवायछे. जाति अने वृत्तना मुख्य त्रण भेद पडेछे.
१ सम, २ अर्धसम अने ३ विषम. जेनां चारे चरण समान मापनां होय ते सम केहेवायछे. जेनुं पेहेलं तथा त्रीजु चरण समान मापर्नु होय ते अर्धसम केहवायछे; अने जेनां सर्व चरण विषम मापनां होय ते विषम केहेवायछे. समजाति अने वृत्तना बे भेद छे.
१ सामान्य सम अने २ दंडक. प्रत्येक चरणमा ३२ मात्राथी वधारे मात्रावाळां जे जातिनां चरण होय ते जातिदंडक अथवा मात्रिकदंडक गणायछे.
तेमज २६ अक्षरथी वधारे वर्णनां चरणवाळां वृत्त वर्णदंडक केहेवायछे.
विशेष समजुती माटे जुवो पृ. २२ मार्नु छंदोवृक्ष.
३ अर्थ. एक देशमा (भागमां) स्थिरा एटले नियमित लक्षण होय ते जाति केहेवाय. जेमां गुरू लघु नियमित होय ते वृत्त केहेवाय. प्रथम गणछंद, बीजा मात्राछंद, अने त्रीजा वर्णछंद. ए प्रमाणे लौकिकछंद त्रण प्रकारना छे. प्राकृत अने लौकिकछंदना समूहने जाति केहेछ,
१. पद्यं गणानाम् भवेत् ( वागवल्लभः)
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समजाति
Bh
समजाति
- मात्रामळजाति
दंडक
अर्धसमजाति
जाति
विषमजाति
वैदिकछंद
छद.
समवृत्त
लौकिकछंद
अर्द्धसमवृत्त
वर्णवृत्त
विषमवृत्त
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अ, आ इत्यादि स्वर अने ते सहिंत क, ख, आदि व्यंजन ए वणे अथवा अक्षर केहेवायछे. तेमना बे प्रकारछे. १ दिर्य अथवा गुरु अने २ इस्त्र अथवा लघु. ए संक्षेपे बतावनासे गुरुने माटे ग अने लघुने माटे ल मूकवामां आवछे.
वे अणु द्रुत के वायछे, बे द्रुत लघु लेखाय, . बे लघु ते गुरु जाणवो, ऋण लघु प्लुत भंखाय.
गुरु लघुने गल कवि कहे, गल रेखा आकारकुटिल फणाकारे (s) गुरू, लघु छे (1) दंडाकार.
लन्नु वर्णनी एक मात्रा, अने गुरू वर्णनी बे मात्रा गणायछे. लघुनी मात्री सूचववा माटे । चिन्ह अने गुरुनी बेमात्रा अथवा गुरु वर्ण सूचववा माटे 5 आQ वक्रचिन्ह मूकायछे. __ शुद्ध जोडणीवाळा शब्दोमां ज्यां ह्रस्व इ, उ अथवा रू होय त्यां दीर्घ गणवा जेवु होय अने ज्यां दीर्घ होय त्यां ह्रस्व गशवा जेवू होय तो ते अक्षर उपर - ~ आवां चिन्ह अनुक्रमे मूकवामां आवेळे. जेमके जुवो रणपिंगल पृ. ११.
जाति जयककरी जुगते करो. उपर प्रमाणे छूट लेवी ए सशास्त्रनथी पण गूजराती भाषामा बोलाय तेवु लखवानो परिचय पडी जवाथी एवी छूट लेवामां आवाछ; तथापि बनता सुधी तेम न थ्रवा देवु ए सारू छे. "मात्राने केटलाक कला पण केहछे. -- लघुवर्णनां पारिभाषिक अन्य नाम नीचे प्रमाणे छे:--
कनक, शंखलता, रवि, मेरु, दंड अने तेमना पर्याय; पुष्प, (कुसुम, फूल) रुप, रस, गंध, काहण, रेखा, कल्हार, शर (शल्प, बाण) अने तेमना पर्याय, एक मात्र इत्यादि.
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সনহা,
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wwwmarne
गुरुवर्णनां नाम.
-
-
धवलकमल वाजी
अलि
आहार
कुन्द
अच
सारंग
अल
गगल
रूप्य
चंदन
अजा
चक्क
गरूड
अखुल
समर
कुंजर
मेंढो
-
-
सुर
कपोत
ससार
कील कलीर.
नाराच
-
-
-
-
-
-
-
-
-
: আয়।
कगल
नीर
मंगल , कश
द्विमात्र
| जलहर वकास | निघट | मड़ड कुंभका
जलहर
वैकास
| निघंट
मउड
कुंभका | चामर
।
अंग"
वरह
भासुर
माल. सिधिकिरण हार
-
-
-
वस
वल्लभ
सार
| कुल
कुर्व । ताडंका
आ, ई. ऊ, ऋ, ल, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, आ स्व अने तेमनी साथे संयुक्त थयेला व्यंजनो गुरुवर्ण केहेवायडे ए सिवायता स्वर अने तेमनी साथे जोडायला व्यंजन लघु वर्ण केहेवायछे.
गुरुवर्ण. आ, औ, गौ, गा, या, इत्यादि लघुवर्ण अ, इ, उ, क, ख, गि, नि, इत्यादि.
लघुवर्ण जोडाक्षरनी पेहेलां आवेलो होय अने ते जो बोलता थडकतो होय तो गुरु गणायछे.
जेमके" मध्य". आ शब्दमां जोडाक्षर" ध्य" छे तेनी पेहेला" म"छे तेनो उच्चार करतां थडकछे माटे , म ए लघु छे छतां गुरु गणाशे. पश्चिम, दक्षिण, भक्त, दक्ष, ए शब्दोमां क्रमे प, द, भ, द ए लघु वर्ण छे ते गुरुवर्ण गणायछे.
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गूजराती क्रियापदोमां अल्प यकारयुक्त भूतकाळनां रूप थायछे तेमां यकार लखवानो परिचय छे.. ____ गळयो, मळ्यो, रठ्यो, भळयो, सळयो, हळ्यो, जळयो, आ शब्दोमांना जोडाक्षर,ळ्योनी पेहेलांनो वर्ण उच्चार करतां थडकतो नथी माटे गुरु नहि गणाय. ___ कोइ कोइ स्थळे समपदनी अन्ते रहेलो लघुवर्ण गुरु गणायछे, तेमज कोइ कोइ स्थळे विषम पदली.. अंते रहेलो लघु क्वचित गुरु गणवामां आवेछे. .. गुरुवर्ण होय अने तेनो उच्चार दीर्घ थतो न होय तो ते
गुरु छतां लघु गणतो. जेम के "अरेरे कृष्ण" आ वाक्यमां "रे रे" ए दीर्घ वर्ण छे लेनो उच्चार लघु समान थायछे माटे तेम ने लघुः गणवा. तेमज डग मग आ चार मात्रा छे पण उच्चार करतां तेमांना ग हल बोलायछे माटे तेनी बे मात्रा गणवी.
सघळा मळीनं ३४ व्यंजन छे; तेना फळ परत्वे नीचे जणावेला त्रण भेद पाडवामां आव्या छे. शुभवर्ण, अशुभवर्ण अने दग्धवर्ण अथवा दग्धाक्षर. क, ख, ग, घ, च, छ, ज, ड, द, ध, न, य, श, स, अने क्ष. ए शुभवर्ण केहवायछे. ङ, झ, ञ, ट, ठ, ढ, ण, त, थ, प, फ, ब, भ, म, र, ल, व, ष, अने ह, अशुभवर्ण केहेवायछे झ, ह, र, भ, अने ष, ए दग्धवर्ण केहेवायछे. केटलाक तेने शुभ मानछे अने घ, ध, अने न ने
१ संस्कृतमा बीचेनो नियम पण लागु पडेछे. क्यारेक संयुक्त जोडाक्षर 'ह अने प्र” नी पेहेलांनो लघु वर्ण विकल्प गुरु गणवामां आवे छे. जेमके. जयतिप्रदापित ए शब्दमां प्रनी पेहेलांनी ति विकल्पे गुरु गणायछे. तेमज मानसहदि आमां हनी पेहेलनो स पण विकल्पे गुरु गणायछे.
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अशुभ मानेछ; अने ख, अने न, ने केटलाक दग्धाक्षर मानेछे, पण आ विषे घणा विद्वानोनी संमत्ति नथी.
दग्धवर्ण अथवा अशुभ वर्णने आरंभमां मूकी कोइ पण लौकिक छंदनी रचना कवी नहि एम कवियोनुं मानतुं छे. वैदिक छंदने ए अपवाद लागु पडतो नथी. वळी अनुभ वर्णने छंदना आद्य भागमां न चालते मूकवा; पण दग्ध वर्णनो कोइ पण छंदना आद्य भागमा उपयोग न करवो एम पण केटलाकनुं केहेबुं छे.
दग्धाक्षर दीर्घ होय अथवा तेनो प्रयोग मंगलवाचक शब्दमां अथवा कोइ देववाचक शब्दमां थयो होय तो ते अशुभ नथी गणालो. तेमज तेवा ज शन्दना गणमां ए अक्षर आवेलो होय ने से गण जो कोइ छदमां वयं गणातो होय तो ते. पण ग्राहक बनेछे, अर्थात् ए दोषधी मुक्त थायछे. जेमकेः
"रघुपति प्रना प्रेमवश देसी,
सदयहृदय दुखी थया विशेखी।" उपरना रबुपति शब्दमा र दग्धाक्षर छे परंतु रागना वर्णन मां ए दोषमुक्त थायछे... ___ म्लेच्छ, चाण्डाल अने इतर कनिष्ट मातिनी कवितामा घ,. र, भ असे खनो दग्धाक्षर दोष रहेतो नथी..
ब्राह्मण अथना द्विजना वर्णननी कवितामा न अने ज वर्ण थी शिरु थता शन्दो प्रारंभमां आवे तो दोष गणातो नथी.
वैश्यना वर्णननी कविता होय तो तेना सम्दना आरंभमां ख, र, ध, वर्ण आववा देवा नहि..
स्वयाः धारेलो छंद कोइपण स्त्री संबंधी होय तो तेना आद्या ह, झ. अने घ, धी शिरु यता शब्दनो प्रयोग करवोनहि.
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दग्धाक्षरनो प्रयोग छंदना आद्य भागमा करवाथी नीचे प्रमाणे वर्ण परत्वे फळ थवान केटलाक कविवरो जणाबछे..
कविताना प्रारंभमां ह होय तो हानि करे; झ होय तो झगडो करावे; न होय तो बोर करावे; ख होय तो खलता करावे; भ होय तो भय उपजावे;ध होय तो धननी हानी करावे; अने र होय तो अहित करे. ___नळी केटलाक कविवरो मातृकाक्षरोनां शुभाशुभ फळ नीचे प्रमाणे थवा, केहेछे. ऋ अने ल सिवायना सवळा स्तरो संपत्ति कारक छे; क, ख, ग, घ संपत्करेछे, ङ अपकीर्तिकती छे. च सुख आपछे छ प्रेमनो वधारो करछे. ज मित्रलाभ करावे छे; झ भय उपनावेछे; अ मरण निमजावेळे; ट, ठ दुःख आप छे; ड शोभामां वधारो करछे; ढ शोभा घटाडछे ण श्रम करावेछे, त सुख आपछे; व झबडो करावेळे; द सुख आपछे ध अने न संतोष उपजावेळे; प सुख आपछे फ भय उपजावळे, ब मरण निपजावेछे म केश करातछे म दुःख आपछे य लक्ष्मीनो वधारो करछे ल अने व व्यसनी बनावेछ र दाह पेश करेछे; श शुख आपछेष ह खेद करावछे अने स सुख तथा क्ष समृद्धि आपछे.
छंद शास्त्रनो आ पारिभाषिक शब्द छे तेनो अक्षरार्थ "समूह" थायछे; परंतु प्रकृत प्रकरणमा मात्रा अथवा वर्णनो समूह एवे अर्थ ए वारायछे; तेना भेद । छे; मात्रिक गण, अने वर्ण गण.
१ वृतरत्नाकरना टीकाकार नारायण प्रभृति.
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irrrrrrrrrrrrr
मात्राना समूहथी उत्पन्न थयेला गण मात्रिक गण केहेवायछे अने वर्ग समूहजन्य गणने वर्णगण केहेछे.
मात्रिकगण पांच छे अने वर्णगण आठ छे. ____ मात्रिकगणनां नामः-टगण, ठगण, डगण, ढगण अने णगण छे. केटलाक ए नामने बदले छगण, पगण, चगण, तगण अने दगण एवां नाम पण वापर , कारण के ए नामथी जे गण केहेवायछे तेनो आद्याक्षर ते गणनी मात्रासंख्या सूचव छे
गण बिम्ब
भेद
मत्रा । __ गणनुं नाम
संख्या ट अथवा छि६ । १३
अथवा प । ५ । ८ ड अथवा च ४ । ५ द अंधेवा त । ३ ।
ण अथवा द। २ ।
स
मात्रिकगणनां जूदां जूदां रूप थवाथी तेना भेद पाडवामां आवछे. जे गण जेटली मात्रानो होय. तेना मात्रा प्रस्तार विथिये जेटला भेद था। होय तेलां ते गगनां रूा थायछे. . टगणादि गणनां भेदजन्य रूपनुं दर्शन नीचेना बिम्ब
परथी स्पट समजाशे.
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टगणना १३ भेद अने तेनां रूप..
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१. sss २ ॥ऽऽ. ३. 15/5. ४. 5 15. ५. ।।।।5. ६. 1551. ७. 5 डा. ८. 1115) ९. ssll. १०. ॥5॥ ११. [5] १२. SIII. १२. ॥॥॥॥॥३
ठगणना ८ भेद अने तेनां रूप.....
१. Iss. २. ss. ३ || ४. ssl. 9. 1.S/..
६. 1511. ७ 5 1. ८. ।।।।।.
डगणना ५ भेद अने तेनां रूप.:
१. ss. ॥5. ३. 151. ४. 511. ५.
ढ गणना ३ भेद अने तेनां रूपः
१. S. २. ऽ). ३. ॥.
१. s. २. ॥.
पण गणना २ भेद अने तेनां रूप.
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३०
प्रवेशक..
केटलाक छंदःशास्त्रवेत्ता टगणादि गणनां भेदजन्य रूपनां नीचे जगाच्या प्रमाणे नाम आपछे:--
टगण..
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
0 | r
क्रमाङ्क स्वरूप चिन्ह नाम अने लेना पर्याय 555. | शिव, हर, शंकर इत्यादि.
शशि, इन्दु इत्यादि. ISIS दिनपति, सूर्य, रवि, इत्यादि.
शक्र, इन्द्र, मघवा इत्यादि. शेष इत्यादि.
अहि, कृष्ण, हरि इत्यादि. | | | सरोज, कमल, पद्म इत्यादि.
।।।। | ब्रह्मा, धाता, विरंचि इत्यादि. ९ ।। कलि, किण इत्यादि ० ।।।।। | कमठ, कामटु, बन्धु, चन्द्र इत्यादि. ११ ।।5।। ध्रुव,
5।।।।। धर्म, १.३ ।।।।।।।। शालिवर, शाली, शालिकर, सालूरो इत्यादि.
ur|
।
|
v
-
--
1 बन्धु, चंद्र नाम प्राकृत पिंगलनी एक टीकामां आप्यां छे; तेमन प्राकृत पिंगल सूत्र पृ. ८ मां चन्द्र नाम छे. माटे बीजां रुपनां शशि, इन्दु नाम छ तेना पर्याय चंद्र, बन्धु जे दशमा रुपनां नाम छे ते साथे भेळवी. दवा नहि.
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पांचमात्राना गणने ठगण केहेछे. तेनां सघळां मळीने ८. रूप थायछे ते नीचे मुनवः
ठगण.
-
-
-
क्रमाङ्का स्वरुप
| नाम अने तेना पर्याय १ । ।ss : इन्द्रासन, इन्द्रगण, तारापति, ऐरावत,
अहिक, य, सुरेन्द्र, सुरनरेन्द्र, कुंजर, मेघ, गजवर, ग्रह, गज, वाजी, दंत, गगन, दंती, नरेन्द्र, संत, सुरगज, रद, वीर, धीर,मयंक, किरण, वेयाल, केसरी, भ्रमर, इत्यादि. | अन्यसूर, सूर्य, वीर, बीर, विहग, पक्षी, | बिडाल, सिंह, सुधा, केकी, मृगेन्द्र, अमृ
तवीणा, सर्प, यक्ष, गरूड, पक्षीन्द्र, पन्न
गासन, जोहलक, विराट, सुपर्ण, अहि इ०. ।।। | चाप, धनुष् इ० 55। | हीर, हारु, हीरु, नभ इ.०
।।5। | शेखर, केसरी, सेहर, सेहरु, इ०.. ६ ।।5।।
कुसुम, कनक इ.. . ७. | ।।। | अहिगण, ऐरावत इत्यादि. केटलाक कुसु
मना नामथी पण आने ओळखावेछे. । ८ ।।।।।। | पापगण, पवनु, पवणो, बान इ०.
-
-
A
BRDCRem.
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३.२ .
प्रवेशक.
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LIS
।
डगण. आ गण ४ मात्रानो छे, तेनां सघळां. मळीने ५ रुप थायछे, ते नीचे प्रमाणे छे.
डगण. क्रमाङ्क| स्वरूप । नाम अने तेना पर्याय
ss. कर्ण,कर्णिका, गुरुयुग, मुरतलता,रसिक, रसलग्न,
लंबित, सुमति, सुरतनय, मनहरण, कुंतिनाया, कुन्तयलु, कुंतिपुत्र, लहलहित, आभरण, तरणियंदो, कर अने भुज वाचक सघळां नाम इत्यादि. केटलाक आने प्रहरणना नामथी ओळखावेछे. करतल, करयल..केटलाक कविना मत.प्रमाणे हाथ, पाणि, कमल,हस्त, भुना, हथियार, शृंगार; भुजदंड, बाहु, गजाभरण, वाहक, वज, रत्न, प्रहरण, अशनि, प्रहर, पौन, शारदूल, इ०.. अश्व, पयोधर, पयोहर, पउहर-,पयोधी, मनुजपति, भूपति, गजपति, सेनाअंग, वसुधापति, पवन, रज्जु, गोपाल, जलद, नायक, वसुधाधिप, चक्रवर्ती, चक्रपति, चक्राधीश, कुच, नर, राजा, मुरारि इ०.केटलाक-करपाणि अने कमलनं नाम पणआपछे.केटलाक अश्वपति, सरोज, उरोज, स्तन, नरिन्द्र, नरेन्द्र, सुनायक,उन्नायक, उद्गतः नायक, तुरगपति, वर्ष, फणी,गणपति अने भूप इ. वसुचरण, वसुपद, चलण, वसुचर, तात,पितामह, दहन, बळभद्र, गंड, जंघायुगल, रति, चरनयुग, नपुर गंजक,पाय, पय, पद, पाद,चरणयुगल,
राक्षस, शशि अने रैनपति इ०. ।। द्विजवर, विप्र, ऋषि, परमउपाय, शिखर, जाति,
| उमति, नल, रथ. पदात, गज, तुरग, पंचशर इ०. 1
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ढगण. आ गण त्रण मात्रानो थायछे. तेनां सघळां मळीने ३ रूप बनेछे. ते नीचे प्रमाणेछे.
ढगंण.
-
क्रमाङ्क
स्वरूप
नाम अने तेना पर्याय रसवास, द्वन, तोमर, चिन्ह, चिर, चिरालय,
।
तंबूर, तुंबरु, चूडा, माला, पत्र, दाम, वसु,
वास, तुर, तुरंग, मूर, चूतमाला, ताम्बूलपत्र,
रास, पवनवलय, वासव, केउर, केयूर,
वसन, इ०.
-
-
परहताल, सुरपति, सुर, आनंद, समुद्र, सिंधु, तुरजवान, तूर्य, तूर, करताल, निर्वाण, नंद, छंद, सरि, पौन, ग्वाल, पवन इ०. वलय, तांडव, सात्विकभाव, नारी, तिल्लहु, रस, मुनि, अने नारी, भाव रस तथा तांडवनां बीजां पर्यायिक नामो छे.
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णगण. आ गण बे मात्रानो थायछे तेनां सघळां मळीने २ रूप थायछे ते नीचे प्रमाणे छे.
णगण.
गगन.
-
--
क्रमाङ्क
नाम अने तेना पर्याय
S
मंजीर, नूपुर, नेउर, चामर, चमर, हार, वलय, कंकण, ताटंकादिअलंकार अने तेना पर्याय, कनक, कुंडल, आवली, रसना,
रसनाभरण, मुग्ध, अहि, फणी, मानस,
केयूर, केउर, बंक, वक्र, वक्त्र, वकंड,
।
मुक्ताफल, किरण; लोचन,मणि शूल, करि
-
वर, मत्त, रत्न अने तेना पर्याय, ममिना
पर्याय, अलंकारना पर्याय, दीहा, दीह, किंशुक, कंचका, दीर्घ, भू, शुक, तुंएक इ० | परम, णेवर, अतिप्रिय, परमप्रिय, मुप्रिय,
निनप्रिय, द्विलघु इ०.
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-
मगण, यगण, रगण, सगण, तगण; भगण, अने नगण ए आठ प्रकारना वर्णगण छे. तेमना बीनां नामः नीचे प्रमाणे. छे.
म गणादि गण बिम्ब अक्षर स्वरुप । नाम अने तेंना पर्याय sss
मंदार, मयंक, मकरंद, मदनावतार इ०.
यशोधर, जयमत, जयंत, ३०. रगन र 55 राजित, स्यगण, रमण, रयकर इ०.
सहित, सबल, शिवकर, १०.
तीर्थेश, त्रिभुवनपति, तरुण इ०. जगण न।। जयकर, जगपति १०. भगन भ ।। | भुनपति, भावंत, भावत, भीम इ.. नगणन।।।। नयन, नरेन्द्रपति १०. . यंद शुद्ध बने अने ते करनार तथा मेने माटे ते करपामां आव्यो होय तेने ते सुख. आपनार नीबडे एटलामाटे पूर्षाचार्योए उपर जनषिलो भगादि अष्टगमना स्वामि, फळ, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र, वर्ण, वस्त्र, रंग, भूषन, कुरू, माता, पिता अने लोक जूदां जूदा कस्प्यांके, ते आ साधे आपेला पत्रक परथी स्पष्ट समजाले एटले गणवार पृथक पृथक अत्र आपवामां आव्यां नथी.
तगण| त |5|| तीर्थेश, त्रि
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गण देवादि विव.
भणनाम मगण
यगण | रगण सगण तगण जगण | भगग
प
SSS
155
SIS115
SS1
Isi
si
!!!
,फळ
देवता पृथ्वी | जल | आने वायु व्योम | रवि | चंद्र नांग
| श्री. सपति मृत्यु भ्रमण अर्थनाश | शोक | मंगल , सुन वैशाख कार्तिक | ज्येष्ट पौष आषाढ . | चैत्र | श्रावण मार्गशी पी
मास
पक्ष | शुक्ल | शुक्ल | कृष्ण | कृष्णा कृष्ण
| कृष्ण | शुक्ल | शुक्र
तिथि
|
३
| ११ |
२ |
४ |
१ | १२
५ । १२
वार
! रवि ! मंगल | मंगल | भृगु | बुध .. | गुरु | भृगु
नक्षत्र मघा ज्येष्ठा चित्रात स्वाती उतरा मूळ अनुराधा
वर्ण
क्षत्रिय | विन | वश्व | शुद्भः | शूद्र | वैश्य | क्षत्रिय ब्राह्मण
वस्त्र
लाल | हरित. नील. | श्याम पीत | सुवर्ण
रंग | श्वेत
श्याम | | लाल | धूम्न | श्वेत | श्याम पीत | कनक
भूषण | श्वेत | रु' | लाल | सुवर्ण | लाल | मणि | चूनी | सुवर्ण कुळ | द्विम क्षत्रिय | काळ | वायु | शूद्र | वैश्य | वैश्य क्षत्रिय | माता सरस्वाते सरस्वति जरा जरा धीषणा धीषणा धीषणा सावित्री
पिता : पिंगल | समुद्र | मृत्यु मृत्यु | यम
लोक | सत्य पाताल संचमनी, व्योम | स्वर्ग | मृत्यु | अमरा-स्वर्ग
meme
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रस
देश
गणनाम मगण
दिशा
पूर्वं
वाहन काचो मोर, मगर मेंढो तुरगं बलद
नेत्र
ऋषि
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प्रवेशक..
यगण रगण संगण तगण जगणं भगण नगण
ईशान उत्तर वायव्य पश्चिम नैर्ऋत्य दक्षिण अभि
हरण ससलो हाथी, उंट
३
३
२२
श्रृंगार करुण रौद्र वीर शान्त
१
दास
U
~
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मगध मेरुगिरि उज्जन कलिं उज्जन सोरठ कालि
जर
नदीनी
कश्यप आत्रेय अंगा- गौतम वशिष्ट कोशिक अंगीरा रैंक
३७
१ ३
३
भया" हास्य नवरसमां नेक
अभंग
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मागध
स्थान शीर्ष नेत्र कंठ उर हृदय पेट नाभी गुह्यस्थान
इच्छित
भोग तान्दुल मिठाइ लूनी जळ दाडम मसूर हरडे शस्त्र चक्र त्रिशूल बाण पर्वत बाणपीळु गुडंज फरसी मित्रामित्र मित्र
खङ्ग
शत्रु शत्रु उदासीन उद. सी. भृत्य
मित्र
शुभाशुभ। शुभ शुभ
अशुभ अशुभ अशुभ अशुभ शुभ
विशेष. कोइ छंदोग्रंथमां म य भ न गणना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद ए क्रमे वर्णं कहेला छे; अने शुक्ल, पीत, स्फटिक
भृगु
शुभ
० पृष्ठ ३६ ना कोठामां गणनी माता अने पितामा आसनमा ज्यां • शून्यमूक्युं छे त्यां एम समजवानुं छे के; जे गणनुं ए आसन छे गणनां मात पितानां नाम कोइ प्रथम अमारा जीवामां आव्यां नथी तेम छतां नाम छपाइ गयां छे ते खरां नथी
४
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अने श्याम ए क्रमे रंग होवानुं कहेलुं छे. मगणनुं वाहन केटलाक गयंद गणेछे अने फळ स्थिरता जणावेछे. मागधी पिंगलमां रगणनो स्वामी मेघ होवानुं जणाव्युं छे. भगणनुं कुळ केटलाक इन्द्र होवानु केहेछे अने तेनुं वाहन वाघ होवा- लखेछे. केटलाक तगपर्नु कुळ पवन मानेछे. जगणनुं वाहन केटलाक बिलाडी मानेछे. (दुहो.) मन भय सुख देनार छे, जर सत दुख देनार;
अशुभ, न आणे प्रथममां, मनुज कवन कथनार. - एटले मगण नगण भगण अने यगणनो प्रयोग सुख आपनार छे. जगण, रगण संगण, तगणनो प्रयोग दुःख आपनार थायछे. माटे मनुजनी--मनुष्यनी-कविता करवावाळा तेमनो उपयोग आरंभमां करे नहि-अर्थात् ईश्वरना गुणगान इत्यादिमां तेनो बाध नथी.
मगण अने नगण मित्र गण छे, भगण अने यगण दासगण छे. जगण अने तगण उदासीन गणछे रगण अने सगण शत्रु गणछे. . मित्रगणनी पाछळ मित्रगण आवे तो सिद्धिदायक मनायछे; मित्रनी पाछळ दासगण आवे तो जय करावेळे, मित्रगणनी पाछळ. उदासीन गण आवे तो हानी करावेछे; अने मित्रगणनी पाळ जो शत्रगण आवे तो ते मित्रनो नाश करावेछे.
दासगणमी पाछळ मित्रगण आवे तो सिद्धि.आपे, दासगण. आवे तो हानी करावे, उदासीन गण आवे तो पीडा करावे, अने शत्रुगण. आवे. तो पराजय कसके.. - उदासीन गणनी पाछळ मित्रगण आवे तो रचनारने अथवा जेना आख्यानमां ते मूक्यो होय तेने ते अल्प फल आपेछे.
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दासगण आवे तो दुःख आपेछे, उदासीन गण आवे तो कर्यु कार्य अफल थायछे, अने शत्रुगण आवे तो दुःख देवरावे.
शत्रुगणनी पाछळ मित्रगण आवे तो शून्य फल मळे, दास गण आवे तो प्रियनो नाश थाय, उदासीन मण आवे तो शंका उत्पन्न करावे, अने शत्रुगण आवे तो नाश करावे.
म्लेच्छादि अन्त्यजवर्ण विषेनी कविताना आरंभमा रगण, सगण, तगण अने जगण लेवा; द्विजनी कवितामां नगण अने सगण सिवायना गण वापरवा; वैश्य विषेनी कवितामां भगण अने सगण वर्ण्य छ; अने स्त्री विषेनी कविताना प्रारंभमां यमण अने मगण वयं छे, एम केटलाक केहेछे.
दग्धाक्षरोनी पेठे आ दोष मात्र लौकिक छंदाने लागु-पड़ेछ; वैदिक छंदमां ए बाधकता नथी गणातो. तेमज मंगळवाचकशब्द अथवा देववाचकशब्दमां पण ए मणनो प्रयोग बानकारक नथी. वळी आरंभ गण शुभ फलदाता मूकवामां आव्यो होय तो तेना पछीना गण- मित्र अमित्रपणुं जोवातुं नथी. केटलाक आर्याना गणोनुं प्रथक फळ वर्णवेछे ते पूर्व जणाव्या सदृश छे, एटले अमे ते अत्र जूदं जणाव्युं नथी.
संख्या विषे. छंदमां एकादि संख्या जणाववा माटे इष्ट संख्यातुल्य जेनो अर्थ थतो होय अथवा जेनी संख्या इष्ट संख्या तुल्य ज होय तेवा शब्दो, कविताना मापमां मळता आवे तेवा ते संख्या माटे मूकवा प्रथा छे, तेथी ते सूचवनार शब्दोनो संग्रह आ नीचे आपिये छिये तथी स्पष्ट समजाशे.
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४०
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आकाश नभ गगन
वाण भूत
शर
श्रुति भुक्ति मोक्ष फळ चचार चरण चतुर् पुरुषार्थ
शुन्य
इन्द्रिय
यज्ञ असु (प्राण)
गव्य
অম্ব वियत् पूर्ण मख
पंच
तुर्य
अजु पांच संधि
शशी नयन शिखो चंद्रमा
युग्न दहन शशभृत् नेत्र अग्नि आत्मा | पाद
अनल
हुताशन नाक
संपजीभ | बन्हि पृथिवी
युगल । पावक धरा
| जद त | गुण मही | दस्र । नाडी
कु । आश्वि धराज चक्ष | त्रि एक द्विजन्म दोष गजमुख- अश्विनो विक्रम
दंत | यमल | लोक स्थिचक्र, पक्ष
हरनयन क वद कर भुवन
गंगाधर भुज गंगापथ अथन संध्या नदीतीर राम
ओष्ठ ताप जानु
अचिस् शुल
प्राण
वर्म
पांडव हरवदन तत्व पाप
ध्रुव
उपाय युग आश्रम ब्रह्मासुख विधिवदन समुद्र
वेद वारिनिधि
आब्धि व्यूह कृत सेनांग हरिभुज वाणी गोस्तन
वर्ण याम पशुपद मंचपद
प्राम
पंचामृत नियम कन्या ग्रास कोष अनिल
अंग कल्पवृक्ष महायज्ञ पल्लव
तिश्र
नय
गुण, गायत्री
शक्ति
।
Amawased
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সৰহাৰু,
शून्यना कोठामा जणावेला शब्द अने वीजा तेवाज शून्य अर्थ सूचवता शब्दो शून्य दर्शाववा माटे मूकवामां आवेळे; तेमज एक १ दर्शाववा माटे शशी आदि शब्दो अने तेमना पर्थाय वपरायछे. शशी शब्दना पर्थाय नीचे प्रमाणे छे:
कवित. अब्धि नवनीतक ए. अब्ज अमृतदीधिनि; अमृतसुत ने आप अमृताधार गणो; अमृतसू इन्दु अने ओषधीश, उडुप छे, उडुपति उडुराट एने, ऋक्षेश भणो; कलानिधि कलापति कलापिनी, कलापूर्ण, कलाभृत् कलावान्, कुमुदपति कहो; कुमुदप्रियने कहो, कुमुदबांधव-बंधु, कुमुदिनीपति एने, कुमुदेश तो लहो. कैरवी कौमुदीपति, ग्लौ चंद्र चंद्रमा चांद, छायानिधि, छायाभृत, छायामृगधर छे; जैवातृक तमोन्न ने, तमोनुद तमोपह, तिमिररिपु अरिनुं नाम तमोहर छे; ताराधिपति ने नाथ, तारापीड तिथिप्रणी, तुहिनांशु दशवाजी, दाक्षायिणीपति छे; द्विजपति, द्विजराज, नक्षत्रपति ने नाथ, नक्षत्रप निशाकेतु, निशामणि वती छे. २ निशीथिनी नाथ ए तो, पर्वधि पियूषनिधि,
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४२
प्रवेशक.
कवियो, पीयूष रुचि पीयूष महा भणे; प्रालेयांशु भपाता ने भपति, मृगांक. मास्, मृगधर मृगवि प्लु, मृगलांछन गणे; रजनीपति ने नाथ, रात्रिनाथ रात्रिमणि, रांजराज रोहिणीश, रोहिणीपति कहो; लक्ष्मीसहन ए विधु, शशधर शशभृत, शर्वरीकान्त शशांक, शशलांछन लहो. शशविन्दु, शशी थाय, शिवशेखर शीतगु, शीतांशु शीतमयुख, शीतमरिंची कहो; शीतभानु, शीतरुक् श्रीसहोदर, शुभ्रांशु, - शुचिरोची श्वेतधामा, श्वेतवाहन लहो; श्वेतरोची श्वेतवाजी, सित दीधिति सितांशु, खितरश्मि सुधाकर, सुधाधार गायछे : सुधाभृति सुधानिधि, सुधासूति ने सुधांग, सुधांशु ने सोम हरि, हरिणांक थायछे. हरिण कलंक एने हर चूडामणी वदे, हरशेखरनुं नाम, हिमकर छे हवे; . हिमद्युति हिमरश्मि, हिमश्रथ एक लेखी, क्षमाकर क्षमानाथ, यामिनीपति कवे; शशीनां आ नाम बधां, एक संख्या सूचक छ, तेम पृथीविना नाम एकमां गणायछे; माठे ज्यां प्रयोग जेवो योजवानो होय तेवो; कत्रि इच्छा अनुसार अंकमा योनायछे. ५
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१२
मुनि
नव
हर्य
इभ
दिसि
आगयार
बार
पूर्य
द्वीप
षट्
इन
अहि
• साध्य
नाथ
वसु भक्ति दश
रवि शास्त्र अग आठ
पंक्ति शिव द्वादश
खंड खट वार अष्ट निधि दिशा हर भानु इति सात गज ग्रह आशा | भव
दिग्गज नंद दिगशर्व आदित्य माखीनापग सरावर नाग अंक | दोष । पशुपति । भग
| यागांग संख्या | अवतार स्थाणु रस
सर्प
द्वार रावणशिर करण |खरांशु ন্ত अश्व
स्नान कुरुसेना | चुंबन जख लोक
व्याघ्रस्तन कामदशा दर्शन तुरग सुख नाचा
(देवगण) चक घोटक सिद्धि सुधाकुंड रूपक
तरणि रिपु ऋषि योग
कराग पर्वत
मास अरि ताल | द्वंरद धान्य
राशि तर्क पाताल याम .
ऋक्ष अंग! | धातुः । प्रहर वेदांग | उपविष करि
भवन कृतिकातारा चिरजि सात्विक
संक्रान्ति आततायी | मातृ | भाव
गुहबाहु भ्रमरपद राज्यांग धराधर
भूपमंडळ द्विजकर्म | तांडव दिकपाल |
छप्पयपद | नदी. शिवमूह 'अयनमारा अग्निजि- सिरांत . धात | ह्वा | गंध: गुहानन
मद ब्रह्मकर्ण
अंबुद
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१४
१७
सोळ षोडश नृप
सत्तर अत्यष्टि
|
विश्व जगत् त्रयोदश
तेर रामचंद्र मलमास यक्ष जख
चौद पंदर रत्न । तिथि मनु । घर
विद्या | पंचदश मह (७+७)|
अष्टादश वनस्पति पुराण
धृति भारतपर्व अढार उपद्विप
कळा संस्कार
चोकडी अभिनय
१९
२०
-
| बावीश | उपसर्ग
ओगणिश नख अतिधृति अंगुल नवदश कोडी अंकनंद वसा ग्रहाज विराट्मुख | रावणभुज देववाद्य
एकवीश मूच्छना अनुस्मृति समित्
सिद्ध जिन तीर्थकर चोवीश अवतार
| पासो
तत्व | पचीस पंचविंश
वीस
१००
१०००
भ
लक्ष लाख
नक्षत्र
दंत दांत द्विज वत्रीश
ऋक्ष सत्यावीश
बायु । शत । दशशत ओगणपचास सो। सहस्त्र
नरायुष ! हजार कमलदल गंगामुख इन्द्रयज्ञ | হীহর্ষি
अर्जुनहस्त वेदशाखा इन्द्रनेत्र
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anwar
vimarawww.vww.rane.
चरण अथवा पाद. सामान्य रीते छंदना चोथा भागने पाद अथवा चरण केहेछे. लौकिक छंदना सामान्य रीते चार पाद अथवा चरण करवामां आवेछे. वैदिक छंदोमां ए नियम जेम जळवातो नथी तेम विषम जातिमां पण ते जळवातो नथी. तेवां वृत्तमां तेना चारथी वधारे के ओछा पाद अथवा चरण थइ शकेछे.
जेटली मात्रा अथवा जेटला वर्णनुं एक चरण बनाववानुं केहेवामां आव्युं होय ते तेनुं माप गणायछे.
विश्राम. यति, विरति, विराम, अवरति, उपरति, विच्छेद, श्वसत, श्वाथी, भेद, भिदा, आश्वाथी, छेद आदि विश्रामना पर्याय छे. कविता कथतां विश्राम लेवो पडे ते क्या आगळ लेवो तेनो निर्णय केटलांक .वृत्तमां करेलो छे; बाकी तेनो घणो खरो आधार ते वृत्त बोलवानी ढब अने तेना राग उपर रेहेछे. घणुं करीने पदने छेडे विश्राम आवेछे; अथवा तो मध्यमां आवेछे. पाद पूणार्थ ज अथवा एवो ज कोइ बीजो अक्षर आवे तो तेनो जे साथे संबंध होय तेनी साथे अंगभूत गणतां विश्राममा छूटो पाडी शकाय नहि. - ___ यति आवतां शब्दना अक्षरो छूटा पडी जाय तो ते यतिभंग केहेवायछे.
शब्दनी विभक्ति छूटी पाडवामां पण यतिभंग थायछे.
छंदःशास्त्रमा कडंछे के-मध्यमा यति होय तेमां शब्दनो एक अक्षर आवी जाय तो यतिभंग केहेवाय, पण वधारे अक्षर आवे तो यतिभंग थाय नहि. जेम के:---"कोलाहल"
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एमां "कोला" आगळ यति आवतो होय तो यतिभंग नहि. "संवाहन" शब्दमां "संवा" आगळ यति आवे तो शब्दभंग थायछे, पण ए यतिभंग गणातो नथी. "उच्चारित" एमां उच्चा, रित एम यति पंडी शके. "आल्हादक" एमां आल्हा, दक थायछे.
अनुप्रास अथवा · यमक. छंदना चरणना अन्त्याक्षरोने नियममां मूकी छंदने सुशोभित बनाववानी प्रथा जेवी प्राकृत भाषाछंदो माटे छे तेवी संस्कृत छंद माटे पूर्वाचार्योए आवश्यक गणी नथी. ए प्रथाने भाषाशास्त्रियो अनुप्रासना नामथी ओळखेछे; ने केहेछे के ए विना छंदोरचना नीरस थइ जायछे. __ अर्थालंकारना १०८ भेद केटलाक साहित्यशास्त्रकारो माने छे, तेमांना शब्दालंकारनो एक भेद आ अनुप्रासालंकार छे.
छंदोलालित्यमां वधारो करवा माटे वर्णसाम्य लाववामां आवेछे; तेनुं नाम अनुप्रास. तेना मुख्य भेद ५ छे. १ नृत्यनुप्रास, २ छेकानुप्रास, ३ लाटानुप्रास, ४ अन्त्यानुप्रास, ५ श्रुत्यनुप्रास. केटलाक आ उपरांत यमक नामनो छठो भेद छे एम केहेछे अने केटलाक आ सर्व भेदने सामान्य रीते यमक एवं नाम आपेछे.
एकना एक वर्णनी जेमां अनुवृत्ति थती होय, अर्थात् ज़े छंदमां एकनो एक वर्ण घणी वार आवतो होय त्यां वृत्यनुप्रास थयेलो समजवो.
" मया करो दया निधि, जया गया जती वदे." आमां य अक्षरनो एक करतां वधारे वार प्रयोग थयो छे माटे आ वृत्यनुप्रास' जाणवो. १ आने केटलाक गूर्जर कवियो “झड" एवं नाम आपछे.
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जे छंदमां एक करतां वधारे वर्णनी आवृत्ति थएली होय त्यां छेकानुप्रास थएल जाणवो.
अमारी तमारी कुमारी तुकारी;
बिचारी सुचारी विचारी न मारी. आमा म र अने च अक्षरोनी एक करतां वधारे वार आवृत्ति थएल छे माटे आने छेकानुप्रास जाणवो.
जे छंदमां आखा पदनी आवृत्ति थाय अने तेमनो शब्दार्थ जूदो जूदो एटले भिन्न होय ते लाटानुपास केहेवायछे.
"पतिपास जेने, नहि घाम चांदनी थाय;
पतिपास जेने नहि, घाम चांदनी थाय." छंदना प्रत्येक चरणना अन्त्याक्षरो अमुक प्रकारना लावी अमुक स्थितिमा गोठवा एनुं नाम अन्त्यानुमास केहेवायछे. भाषा शास्त्रियो आने तुकान्तना नामथी ओळखेछे अने तेनी पद परत्वे जूदी जूदी स्थिति थायछे ते परथी तेना छ भेद पाडेछे. १. सर्वान्त्यतुकान्त. २ समान्त्य विषमान्त्यतुकान्त. ३ समान्त्यतुकान्त. ४ विषमान्त्यतुकान्त. ५ समविषमान्त्यतुकान्त. ६ भिन्नतुकान्त.
जे छंदना चारे चरणना तुकान्त एटले अन्त्याक्षरो एक ज, होय ते सर्वान्त्यतुकान्त केहेवायछे. जेमके:-पांच पर ल लखाय, जगण ते पर थाय,
चरण कल दशमांय, रतिकरी रचुं त्यांय. ऑमां दरेक चरणना अन्त्यमा य छे माटे ते सर्वान्त्यतुकान्त. जे छंदना सम चरणांन्त अक्षर समान होय तेमज विषम १ आने केटलाक गूर्जर कवियो “वर्णसगाइ" केहेछे.
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४८
प्रवेशक.
चरणान्त्य अक्षर समान होय ते समान्त्यविषमान्त्यतुकान्त केहेवायछे. जेमके:-~मा पड़ मुज आधार, चोसलां कोण चडावशे; मूवा चडावण हार, जीवता जातर आवशे.
। (रासमाळा) आमां बीजा अने चौथा चरणान्त्य अक्षर शे समान छे अने पहेला तथा त्रीजा चरणान्त्य अक्षर र समान छे माटे ए समान्त्यविषमान्त्य तुकान्त.
जेना सम चरणना तुकान्त मळता होय अने विषम चरणनो तुकान्त न मळता होय ते समान्त्य कहेवायछे. जेमकेः-दश मात्रिका देख, वरणो मुनि भाळ;
जाति ज, रुडा जाण, त्रण आठ छे ताल. आमां बोजा तथा चोथा चरगना तुकान्त ल ल समान छे माटे ए समान्त्य तुकान्त.
जे छंदना विषम चरणना तुकान्त एक सरखा होय अने सम चरणना तुकान्त असमान होय ते विषमान्त्यतुकान्त कहेवायछे. जेमके:--बाळु पाटग देश, जिसे पटोळां नोपजे, सरवो सोरठ देश, लाखणी मळे लोबडी.
(रासमाळा) __ आमा पहेला तथा त्रीजा चरणना तुकान्त श समान छ अने बोजा तथा चोथा चरणना तुकान्त असमान ले माटे ए विषमान्त्य तुकान्त.
जे छंदना पेहेला चरणना तुकान्त बोजा चरणना तुकान्त सदृश अने त्रीजा चरणना तुकान्त चोथा चरणना तुकान्त सदृश होय ते समविषमान्त्य तुकान्त केहवायछे.
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४९
प्रवेशक. marwarimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
(मालिनी) नेमके ----मधुर वचनधी तो, भोळवाया जनो जे,
अन वश थयु मिथ्या उपचारथी को' मतलबों विशवासु, आश हैये भरेला, झटपट ठगी लेवा, ए खरेखात सेला.
(गू० हितोपदेश.) आमां पेहेला तथा बीजा चरणना तुकान्त “जे" अने त्री अने चोथा चरणना "लां' सरखाछे माटे ए समविषमान्त्य.
जेना कोइ पण चरणना तुकान्त एक बीजाने मळता नआवता होय ते भिन्नतुकान्त्य केहेवायछे. जेमके.---- शशि जता, प्रिय रम्य विभावरी,
थइ रखे जती अंध वियोगथी,
दिनरुपे सुभगा बनी रहे, ग्रही .. कर प्रभाकरना मन मानीता.
(सरस्वतीचंद्र.) आमां चारे चरणना तुकान्त री, थी, ही, अने ता ए असमान छे माटे भिन्नतुकान्त्य.
आवा तुकान्तवाळी कविताने अंग्रेजीमां "ब्लाङ्कवर्स' केहेछे. केटलाक आ भिन्नतुकान्त्यना नीचे जणावेला त्रण भेद पाडेछे. १ प्रतिपद भिनान्त्य २ पूर्वार्द्ध तुकान्त्य ३ उत्तरार्द्ध तुकान्त्य....
जेना सघळा चरणोना तुकान्त एक सरखा न होय तेने प्रतिपद भिन्नान्त्य केहेछे. जेमके:-आ एकपास उतरे शशी अस्त मार्गे
आ उगता रवितणा न कुसुंबी पाद!
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प्रवेशक.
संसार आ अहि दशा -युग - अन्तराळे बे तेजना उदय - अस्तथी बांधी राख्यो
(सरस्वतीचंद्र . )
जेना पूर्वार्द्धना चरणोना तुकान्त समान होय तेने पूर्वार्द्धतुकान्त
कहेछे. जेमके :- वि० नाटक.
(अनुष्टुप.) सिंचतो माधवीने ने, नचावे कुंदवेलीने;
स्नेह दाक्षिण्यथी, कामी सरखो मने ए.
जेना उत्तरार्द्धना चरणोना तुकान्त समान होय तेने उत्तरार्द्धतुकान्त केहेहे. जेमके :–
(आभीर) बुद्धिकेरी बात, साक्षात जो लखाय; बुद्धिवाका जेह, करे प्रमाण ज तेह.
( पादशाही राजनीति). आपणा प्राचीन गुर्जर, तेगन हिंदी कविवरोए भिन्नतुकान्त वाळा छंदो रचवा तरक पोतानुं वलण राख्युं होय एम जणातुं नथी; पण हालमा केटलाक गूर्जर कवियो एनो उपयोग करवा लाग्या है.
संस्कृत ग्रंथमां षट्पदी अथवा अष्टपदीमां बब्बे पदना अन्त्याक्षरीवामां आव्या छे.
राराणीमा गाइ शकाय एवा छंदोनी रचनानां आ तुकान्तपर विशेष लक्ष देवानी अगत्य छे. तेमां पदान्त अथवा तुकान्त मळवा न जाइए एटलुंज नहि परंतु स्वर पण एकना एकज मळवा जोइये. तेमां पण पदान्तनी पांच मात्राना स्वर जो मळता आवे ते ते उत्तम केहेवायछे.
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संतोषी राजा नकि थाय नष्ट, संतोषहीनो द्विम थाय नष्ट; सलज वेश्या पण थाय नष्ट, कुलांगना निर्लज थाय नष्ट.
(गू० हितोपदेश.) जेना अन्तमां बे गुरु आवी पड्या होय त्यां तुकान्तनी पांच माशा एक सरखी मळे तो उत्तम, चार मळे तो मध्यम, अने तेथी ओछी मळती आवे तो ते कनिष्ट गणायछे. जेमकेःगीति-दूत मुख नृप छे माटे, दूत यवन पण न योग्य हणवाने; शस्त्र उगामे तोपण, दूत प्रवर्ते न अन्य वदवाने.
(गजराती हितोपदेश.) जेना पदना अन्तमां (25, S!) आषा प्रण मात्राना वर्ण आवता होय तेवा पदना तुकान्तमा जो पांच मात्रा मळे तो उत्तम, ऋण मात्रा मळती आवे तो मध्यम, अने प्रणयी ओछी मळती आरे तो ते काविष्ट केल्यायो. जेमके । ऽ दृष्टान्तः-- • वण दिखराये ल, मालवणी बहु परस्परे करवी; जे कई निर्वका सेना, ज्यूहतणा मध्यमांय ते धरवी.
(सवैयो.) नियमित विषये बंडबीकधी घणुंकरी चाले सौ कोय, परवश आ जग केरोमांहे साधु पुरष विरला को होय; विकल दुर्बला व्याधिपाल निर्धन एवा पतिनी पास, कुळनारी पण दंडधीकधी धारणे होने करे निवास.
(यूजराती हितोपदेश.) जेना पदान्तमां दे लघु आवता होय तेवा पदना तुकान्तमां चार मात्रा मळे तो ते उत्तम, बे मळे तो मध्यम अने बेथी ओछी मळती आवे तो ते कनिष्ट केहेवायछे. जेमके:---
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फूलेछ पूर्वे पूल ते पछी फल, अगाउ मेघोदय ते पछी जल; सदाय आ कारण कार्यनो क्रम, प्रशाद पूर्वे पुंठथी कृपा तम.
(नाटयप्रकाश.) उपर प्रमाणे तुकान्तना अक्षर अने स्वरनी समानता जे छंदमां जाळववामां आवेली होयछे ते कर्णमधुर थवा उपरांत बीजो कशो लाभ गणातो नथी, तेम तेपर दुर्लक्ष देवाथी उपरना गुणलाभ उपरांत बीजो कशी हानि थती नथी; माटे छंदो रचवामां आनो प्रयोग यथेच्छ रीतिए करवो. .
छंदमांना पदमां शब्द एनोएज होय अने तेनो अर्थ जूदो थतो होय तो ते यमकानुप्रास केहेवायछे. जेमकेः
सारंगे' सारंग लइ, धरी बीक सारंग, ३
ऋतु सारंग न आदस्यो, रखवा मुख सारंग. आमां सारंग शब्द सर्व पदमां जूदे जूदे अर्थे छे माटे यमकानुप्रास.
छंदमांना कोइ पण चरणमां कंठ तालव्यादि अक्षर अ, क, ख, ग, घ, ङ अने हमांना बे अथवा अधिक वर्ण एक पछी एक अथवा कंइक अन्तरे आवे ते श्रुत्यनुप्रास केहेवायछे.
गीति. "गुहक गङ्गा, गिरिजा, शंकर हसता हस्यां दई ताली" हाहा घोरे घुघवी, गण खडखड करी घणुं हस्या भाळी.
आमां ग, ह, ङ इत्यादि उक्तवर्णो उपर कह्या प्रमाणे आव्या छे माटे श्रुत्यनुप्रास..
१ साप. २ देडको. ३ मोर. ४ सारंगराग,
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अनुक्रमणिका.
अंक. छंदनुं नाम.
वर्ण. मात्रा. प्रकोर. पृष्ट. ९९९ अकहरि, अकुहरि ............ १४ ...... . सम. ३४४ ९९९ -अकुहरि. ................१४ ...... सम. ३४४ ७२ अकोषकृष्टा................
. अ.स.वृ. ४८८ ८५० अखण्डमण्डन. ............... ...... सम. ३२५ ३०९ अखनि.
सम. २५० ३४२ अखेट .....................
सम. २६१ ६९ अगनातेर वर्णना दंडक.........
...... ६४८ अगरिम. ..................११. ...... सम. २९७ १५२ अगाधिका ..................
वि. वृ. ५१० ७१४ अगौरी, ललित:............... ...... सम. ३०५ २५४ अचटु, सुमत ..............
....... सम. २५१ १४४१ अचल ..............
...... दंडक. ४२६ ११०७ अचलधृति ............
....... सम. ३६१ १ अचलवृति ............
मा:स.जा. २०६ ११४९ अचलनयन..................
सम. ३६७ ४४९ अचलपंक्ति, नालिका.........१० ...... संम. २७२ ६८० -अचलचर्चिका ............ ...... सम. ३०० १३०३ अचलविरति ............ ...... सम. ३९५ १५ अचला .....................
समजा. ७ ९८२ अञ्चलवती. ...............१४ ...... सम. . ३४१ ६३ अञ्चिताग्रा. ...............
अ.स.वृ. ४८६ ८९९ अहासिनी. ..................१३ __ ...... सम. ३३१ २८ अट्ठावीश वर्णना दंडक.........२८
४२७ ३६ अावीश मात्रानी विषमपद जाति.
...... ७८ अटोतेर वर्णना दंडक.......... ...... ४८ अडतालीश वर्णना दंडक ......४८ ......
......
२०५
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अनुक्रमणिका.
.
अंक. छंदनुं नाम. वर्ण. मात्रा. प्रकार. पृष्ट. ९०४.अडमरु............ ........१३ ...... सम. ३३२
४६ अडल, डारिल, चौपाइकुलक... १६ समजा. १७ ५१-अडेिल..........
१६ समजा. २० १२३ अतिकलि:................... ६
सम. २३९ २५ अतिकृति अथवा अभिकृति...२५ ... सम. ४०७ १०९ आतिगीता................... २७ समजा. ४३ १३ अतिजगातछंद.
सम. ३१८ ३४३ अतिजनि ................... ८ ... सम. २६१ .. १९ आतिधृति छंद............... १९ ... सम. ३७५ ७५ अतिप्रतिविनीता..............।
अ.स.वृ. ४८९ ३३३ -अतिप्रीता................. ८
सम. २६० २८४ अतिमोहा................
... सम. २५५ ८६०. -अतिसचिरा...............१३ ... सम. ३२७ ३८ अतिरुचिरा ..............
शि.जा. ९२ .८१४ अतिरंह.....................
सम. ३२० ७४७. अतिवासिता.................१२ ...... सम. ३१२
१५ अतिशर्करी छंद .............१५ ...... सम. ३४४ १११६ अतिशायिनी. चित्रलेखा.......१७ ...... सम . ३६२ ४४ अतिशिखा, पुणित.
शि.जा. ९४ ११७ अतिसुरहिता. ...............
अ.स.कृ. ४९८ १८१ अतुल...................... ...... वि. वृ. ५२० १३६१ (अ) अतुलपुलक. ............२४ ...... सम. ४०६ .
३. अतुला....................... कुल ९४ वि. जा. १३१ ९० अतैल, अर्तिल............... ... अ.स.पू. ४९२ १७२ अत्सरु..................
... वि.वृ. ५१७ २ अत्युक्ता छंद..............
वर्णमेल छंद. २२५ १३२८ अद्वितनया...............
सम. ४०१ १७८ अधिकारी................ ...... सम. २४५ १३४६ अधीरकरीर.............. ...... सम. ४०४
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अनुक्रमाणका.
......
१३३ अधीरा.........
सम. २४० ३९८ --अबीरा.....
__ सम. २६६ ३६ ----अनङ्गक्रीडा............... ६४ शिजा. ९२ ११५ अनङ्गपद................... ...... अ.स.पू. ४९८ १४४८ अनङ्गशेखर, महीधर.........२८ ...... दंडक. ४२८ १२५ अचति......................
सम. २३९ ९३८ अनन्त दामा..................
सम..३३५ १०८ अन्तविपुला उद्गीति..........
उ.गी.भे. ११८ ९१ अन्तविपुला उपगीति........... ७४ अन्तविपुलागीति..
गी. भे. ११२ ५७ अन्त (जघन) विपुलार्या......
आ.भे. १०९ १२५ अन्तविपुलार्यागीति. .........
आ.गी.भे. १२१ ५२६ अन्तर्वनिता..................
सम. २८० ७२३ अन्तर्विकाशवासक.............
सम. ३०७ ५७६ -अनवसिता.
...... सग. २८८ ३९९ अनवीरा ..................
सम. २६७ १८८ अनसूय.....................
वि.. ५२२ ७४ अनालेपन...................
अ.स.पू. ४८८ ८६ अनामववासिता...............
,, ४९१ २०१ अनासादि.....
...... सम. २४७ ५१५ अनिन्दगुर्विन्दु, गुर्विन्दु, पूर्वन्दु.१४ ...... समः ३३३ १०२ अनिभृत .......
सम. २३७ १२६ निरया.................... .......
...... अ.स.दृ. ५१५ २५६ अनिर्भार. ...............
... ८ ...... सम. २५२ ५५ -अनिळा.................. १६ मा. स.जा. २१ ८८१ अनिलोद्धतमुखी.
......
सम. ३२९ १०७१ अनिलोहा, ...............
......
सम. ३५५ ७७७ अनीचक....................
सम. ३१५ २०६ अनु........................ ७ ....... सम. २४५ ३८ अनूकर........
...... अ.स.यू. ४८.
...........
......
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अनुक्रमणिका.
...
...
...
...
...
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.
.
......११
.
.
.
.
.
.
.
५८६ अनुकूला, सांद्रपदा............११ ...... सम. २८९ १४४ अनुगीति................... कुल ५६ गी. भे. १२४ ४७१ अनुचायिता .................१०
सम. २७४ १८ अनुफल .
१२ मा. स.जा. ८ ८ अनुष्टुपछंद......
सम. २५२ .२९ -अनृजु...................
सम. २२९ ३२५ अनृतनम,नृतनम ............
सम. २५९ . ५२५ अपयोधा ............
सम. २८० ८५ अपरप्रीणिता..............
अ.स.पू. ४९१ ९२ ~अपरभा.................. ...... ___ राम. २३६ २५ अपरवक्त्र. ...............
......
अ.स.वृ. ४७७ ४२ (अपर) शिखा, ..
६२ शि.जा. ९४ १४३ अपरा उद्गता ............... ...... वि. वृ. ५०७
५३ (अपरा) खञ्जा (शिखा)...... ६२ शि.जा. ९४ ९६९ अपराजिता..................१४ ...... सम. ३४० ८ अपरान्तिका .................
६४ वै.प्र. २१७ १४८ (अपरा) सपादी. ............२२ ३४ मा. दं. ६३ १४४ अपरोद्गता..................
वि. वृ. ५०८ १४५ अपरोद्गता .................. १४०० अपवाह, अपवाहक........... ...... . १४०० ---अपवाहक ................
सम. ४१३ . ५३ अप्रमायिनी.. ................. . ...... अ.स.कृ. ४८४ ३३३ अप्रीता,प्रीता,अतिप्रीता,अलिप्रीता.८
सम. २६० ६६ अभिख्या ................... ६
सम. २३३ ६९९ - अभिनवतामरस ...........१२
सम. ३०४ ८८६ अभिरामा.
सम. ३३० ८९३ आभीरुका ...............
ना. ३३० १३६ अभीक.....................
सम.. २४० १०६८ अभिधात्री ..................१६
सम, ३५५ १३८४, अभ्रभ्रमण ..
सम. ४१०
.....
......
......
God..
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anonrn.
.
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A
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.
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८
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३२८ २७७ २७७
अनुक्रमाणिका.
rrrrrrrrrr... ८७५ अभ्रभ्रमशीला................१३ ...... सम. ३२९ २४७ अमति .....................
......
२५१ ५६९ अमन्दपाद..................
२८४ ३४० अमना, अमनसु.............. ३४० -अमनसु.................. १३३१ अमरसमरी...................
४०२ ३२६ अमरन्दि, हनुमन्त............
२५९ ५२ --अमरावती.. ..............
अ.स.२. ४८३ १३६९ -अमला................... ...... सम. ४०८
३१९ अमानिका ................... ___ ...... ... २५९ ५२२ अमालीन................ ८६६ अमितनगानिका. ... ४९६ -अमृतगति............. ४९६ --अमृततिलका.............. १३६ अमृतधारा, मञ्जरी.........
वि. कृ. ५०४ १३७ अमृतधारा (द्वितीय)........
५०४ १.३०० अमृतध्वनि.
...... __ सम. ३९४ १६ अमृतध्वनि............... १४४ वि.जा. १४२ ५३६ अंमोघमालिका...............
सम. २८१ १४२३ --अम्बुज.................. ......
४१६ ८५५ अम्बुदावली. ...............
, ३२६ १४८४ अम्भोलि.................... ...... दं. व. ४३८ ६५६ -अम्भोजाली.
...... सम. २९८ २०७ अम्मेथी. ............... ३६४ अयनपताका ............... ९ ......
___" २६३ १२८७ अयमान. ... ११८ अयमित. ..................
२३९ १०३ अयवती
...... अ.स.वृ. ४९५ ७६ अरजस्का ............... ......
सम. २३४ १३८९ -अरविंद............
.
ही ............
,
२४७
0
- 06.
......
......
यवता .............
४११
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अनुक्रमणिका.
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.
.
.
...
•१४६३ -अरविंद..................२९ . ...... १३८९ अरविंदमुखी, अरविंद.........२५ . ......
३०८ अराली...................... ८ ३१४ अरि ..................... . १४२० अरिंदमन, अरिदलन .........२६
...... . ४१५ १४२० -अरिदलन ...............२६. ....... , . . ४१५
५१ अरिल्ल, अडिल्ल, अलिला, अलक... १६ समजा. २० ७८८. अरिला....
... सम. ३१७ ११ अरून्तुद .................... ....... अ.स.वृ. ४७४ १५२६ अर्क .....................५१ ...... द. प. ४६५
९० --अर्कच्छाया .............. . समजा. ३७ ९३२ अर्कशेषा. .................. ...... सम. ३३५ ५४९ अजितफलिका.
,, ३१२ १४७४ अर्णदंडकत्रिभंगी... .............
दं. व. ४३६ १५०६ अर्णव........................
, ४६० १२० अर्ति. .....................
सम. २३९ ९० -अतिल.........
४९९ ३९१ अर्थ. ......................
सम. २६५ ६२७ अर्थशिखा.................... १३४८ अर्दित,नर्दित................. ७०५ अर्दितपाद.................... असमवृत्त.................
अ.स.वृ. ४५१ ३९६ अर्द्धकला .................... ९
सम. ८१ --अर्द्धकाममोहनी. .......... ६
...... ८९० अर्धकुसुमिता ................१३ . ......
... , ३३० ९० ---अर्धतोटक ............... २९५ –अर्द्धनाराच................
........
२५६ ___ ७२ -अर्द्धभुजंगी................
३६९ अधक्षा मा ................. ११८७ -अद्धान्तालाषि..............१८. ...... सम
......
अ.स.वृ
-
२९४
" . ४०४
.
.
.
.
.
.
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२३५
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अनुक्रमणिका
mharmanand
......
......
२४
......
"
२४७
سه
११८७ अर्धान्तरालापि, अद्धान्तरालापि.१८ ...... सम. ३७४ १२१ अर्द्धरुत ...... ........ ...... अ.स.१. ४९९ ७११ अर्पितमदना ..................१२ ...... सम, ३०५ ११० अर्मकपंक्ति .................. ... ...... अ.स.वृ. ४९७ १२८४ अर्भकमाला ................. २२ ...... सम.. ३९१ १३५५ अरसात, मकरंद, अलसा......१४ ५१ - अलक.....
. समजा. २० १३८६ अलका, अलिका..............२५ ...... सम ४११ ९६७ अलकालिका, अलिकालका......
३४० १२२ अल्परुत........
अ.स.वृ. ४९९ १३.५५ -अलसा..................
२०२ अलालापि................ ...... .१३८६ -अलिका .............
, ४३१ ९६७ -अलिकालका .............
. . , . ३४० .. ९५३ अलिपद,नटगति.............. ६१ अलिपद ....
अ.स.पू. ४८५. ३३३ --अलिप्रीता.... ५१ -अलिला ................. १६ समजा. २० ५५ अलिला,अनिला ...........
१६ , २१ ९४२ अलोला,लोला ...............१४ ...... सम. ३३७ ३८१ अवनिजा................... ......
२६५ ... १३ अवनीलता,नवनीलता,अवलीलता.
अ.स.व. ४७५ . २२ अवलंबक...
१३ मा.स.जी. ९ १२४० अवन्ध्योपचार .............. २० ..... सम. ३८२ ७९ अवरोधवनिता. ............
अ.स.चू. ४८९ १३ -अवलीलता. ............ ९५ अवहित्र, अवहित्रा ......... ९५ -अवहित्रा ...............
४६ अवाचीकृतवदना............. . ११३४ अवितथ, दटक,नर्कुदक,नर्दटक,
मर्कटक ..................१७ ......
.
.
.
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अनुक्रमणिका.
vinna
mammmmmmmmmmmmwwwrawrammarriamomorrmarrrrror
......
सम.
•
"
२३४
.
.
.
३७४
७३५ अविरलरतिका...............१२ १५६ -अविराम................. ७ ......
२४२ .. ३९८ –अवीरा.................. ९ ......
२६६ ७९ अवोढा...................... ६ ...... ९०३ अशनि.....................१३ ...... __ ४१ अशिखा, नाकि................ . ६. शि.जा. ९३ ६३४ अशुविलास,..................
.११ ...... सम. २९५ १४६४ -अशोक.................. २९ ...... - दै.व. ४३३
८५२ अशोकपुष्प..................१३ सम.. ३२५ १४४९ अशोकपुष्पमग्जरी ............२८
दं.व. ४२९ १२५३ अशोकलोक, अशोकलोकालोक...२१ · सम. ३८५ १२५३ -अशोकलोकालोक...........२१
३८५ १३९६ अशोकानाकह................
४१२ १०८८ -अश्वगति. ...............
३५८ ११८५ अश्वगति .............. १४५७ अश्वधाटी...................
द.व. ४३१ १९९८ -अश्वधाटी................ __सम. ३९४ १३२९ अश्वलालत, ललित ...........
४०१ १६ अष्टि छंद......... .........१६ असम अथवा विषम वृत्त.......
अ.वि. ५०१ ९१८ -असम्बन्धा ...............१४
सम. ३३३ ९१८ असम्बाधा, असम्बन्धा.........१४ ४५० असितधारा ..................१० २० असुधा......................
.. अ.स.पू. ४७६ ४६६ -असुधा...................१०
सम. २७३ ६७९ -असुधारा ...............१२ ६७९ अस्रधारा, असुधारा............१२ ३० असुराव्या ..................
अ.स. ४७८ २४८ अहति...................... ७ ...... सम. २५१ १२९ अहरि, करहंत, कलहंस, कर.) हन्ता,करहंज,करहंच,करहंची ७
...... , २४८ करइंस, करहंत, वच्छ.
...
...
......
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अनुक्रमणिका.
maranwwwwwwwwwwwnewwwran
२७४
२६३
२३
२६१
ur
...
...
...
...
३८९
v
ur
१९४ अहानिगा.................... ...... वि. ५२५ १२५६ अहि ........................
...... सम. ३८५ ४६९ अहिला..... ३६६ --अहिशिशु
............ .. १३७ अहिंसा ..................
२४१ ६९ अहोनताली ..............
४८५ ४१३ --अहीर
सम. २६८ ३७ --अक्षरपंक्ति............... ४६७ अक्षरावलि,लालिनी ...........
आ. ३४१ आकतनु ....................
२२ आकृतिछंद. ४०२ आकेकर, पद्मावती ........... . ५७३ -आख्यानकी ..............
२८५ ९६ आख्यानकी ........
अ.स.वू ४९४ २९४ -आणन्द
. सम. २५६ ६२ -आत्मक..................
:- ., २३२ १०७ आत्रेय..................
मा.स.जा. ४३ १०७ आदिविपुला,उद्गीति
उ.गी भे. ११८ ९० आदिविपुलाउपगीति ......... ७३ आदिविपुलागीति..
...... . ११२ ५६ आदिविपुलार्या....
आ.जा. १०८ १२४ आदिविपुलायांगीति .........
आ.गी.भे १२, ६७४ आधिदेवी................ ...... सम. २९९
८०८ आनता...................... १००५ आनद्ध............... ९६३ -आनन्दा ...............१४ ...... ८२० आननमूळ..................१३ . ...... 3, ३२१ २९४ -आनन्दरूपक.............. ...... , २५६ ६५ -आनन्दवर्धन............... १९ मा. स.जा. २४
.........
पात...........
......१२
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......
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अनुक्रमणिका.
६ आनन्दवस्तू ...............चारपादनी ९० वि.जा. १६३ ४३७ आनन्दोलिका ................ ...... सम. २७० १५० -आन्दोलिता. ............ ३७ मा.स.जा. ६४ ८६८ आपणिका ..................१३ ....... .सम. ३२८
३ आपातालका, आपाताली....... .६० वै. प्र.. २१४ १३० आपीड.....
....... ....... अ.स.यू. ५.१ १३६२ आमार, सवैया..............२४ ....... ___ सम. ४०७ १३९७ आभासमान..................२६ ...... सम. ४१६
१३ आभीर, आहोर.............. २१ मा.स.जा. ६ १४६५ -आम्र ...................२९ ...... दं. व. ४३४ . १०६५ आरभटो ....................१६ ...... सम. ३५४
५२१ आसधिनी...................१० ...: सम. २७९ १५२६ आराम, पद्मक, विश्ववाह, अर्क...५
दं. व. ४६५ १४७६ आर्द्रस्तबक..................३० ......
९ आर्द्रा .......................११ ...... सम. २८६ ४५ आर्या, गाथा, गाहा........... ५७ आ. प्र. १०० १२२ आर्या गीति..
. ........ आ.गी.भ. १२० १४५४ आलानिक................. १. सम. ४३१ १५ आलेपन. ....................
अ.स.कृ. ४८७ ९२ आलोलघटिका... ............
४९३ १ आवृत्त .................. ६१५ आशापाद...................
सम. २९३ ८३ आसववासिता...
अ.स.वृ . ४९. १३ -आहीर .............
मा.स.जा.
...
.
.
......
१३०७ इच्छा ....................... .३१३ इडा,इला ..................
...... ८ ___७७ इति, कामलता ............. १२५० श......... १३११ -इन्दव . .................२३
सम. ३९७ सम. २५६ सम. २३. सम.. ३८४ सम. ३९५
.
.......
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अनुक्रमणिका.
५९७ - इन्दिरा ..................११ ...... ४९२ –इन्दुमुखी, चन्द्रमुखी......१० ...... ९५० इन्दुवदना, इन्द्रवंदना, वरसुंदरी.१४ ...... ७२७ –इन्दुवंशो ..................१२ ......
४३४ इन्द्र,ऐन्द्री.................१० ...... १५३१ –इन्द्र, ..................६३ ...... २५७ इन्द्रफला,इन्द्रचला,दंडलिया..... ८ .... ५७१ इन्द्रना ..................११ ......
इन्द्रवज्राभेद .................११ ...... ९५० -इन्द्रवदना................ २५७ –इन्द्रवली. ............... ...... ७२७ - इन्द्रवंशा. ...............
...... १३११ –इन्द्रविजय ............... १३१५ इन्द्रविमान............... ११५ इन्धा....................... १३५ इभन्नान्ता................... ७ ...... ३१३ --इला. .................. ८ .. १५२८ ---ईश.....................
४२ इहा ........................ ........ ५६२ इहामृगी.....................११ ......
सम, २९० सम. .२७६ सम. ३३८ सम.. ३०४ सम. दसक सम. २५२
२८४
२८५ सम. ३३८ सम. २५२
सम.
.....
सम.
३०८
३९७
३९८
सम. २३८ सम. २४० .समः २५८
अ.स.पू. ४८१ सम. २८३
.
.
.
.
.
.
OM.
१ उक्कच्छा
६६ वि.जा. १२९ १ उक्ताछंद.. .................. १ ...... सम. २२५ ७३९ उज्वला. महोज्वला .. ........१२ ...... सम. ३११ १४०७ उज्झितकदन ...............२
है ....... सम.
४१४ • २२ उडुराजा..................
समजा. ८५ १३५३ उत्कटपट्टिका .................९४ ...... सम. ४०५
१ उत्कष्टा ..................... ६६ वि. जा. १२९ २६ उत्कृति छंद..................२६ ...... सम. ४१२ १२४२ उत्पल मालिका...............२० ...... सम. ३८१
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अनुक्रमणिका.
......
सम.
.
८४३ -उत्पलिनी.................१३ ...... सम. ३२४ १७. उदेक..............
वि. वृ. ५१९ ४१६ --उदधिः .................. ९ ...... समः २६८ ७६९ उदयनमुखि .................१२ ...... सम. ३.१४ ३५८ सदरश्री, उदरसक, उदरासंक... ९ .... सम. २६२ ५२४ उद्धतिकरी..................११ .....
सम. - २७६ ३५८ -उदरकः ............... ९. ......। समः २६२ ३५८ --उदरासक ................ ९ ...... समः २६२ ४७३ उदात्तहास ..................१३
सम. ३२९ १५३०. उदारपाद, वैकुंठ, भोगी....... ६. दं. व. ४६६
४४६ उदित, कीर्तिः...............६० ...... सम. २७१ ५४१ उदितदिनेश ................११ ५८५ उदितविजोहा ...............
सम. २८९ ५ उदीच्यवृत्ति
२१५ १३८ उद्गता.....................
वि. वृ. ५०५ १४. उद्गता .....................
५०५ १६ उद्गलितक..................
ग. प्र. २२४ १०५ उद्गीति,विगाथा,विगाहा,विगाथ. ... उ.गी.मे. ११७ १४२५ -उद्दपं. ..................३७
दंडक ४१९ १५१२ उद्दाम .....................४५
.. , ४१९ ११२१ -उद्दाम ..................
, ४६४ १५२१ उद्दामा,उद्दाम ............
.. . ४६४ १४५३ --उद्दाल ............
४३० १४३४ उद्दाल,उद्दालक .............
४२५ १४३४ -उद्दालक............
.. सम. ४२५ ३०७ उध्या ..................
. २५८. १५५ उदया.....................
वि. व. ५११ ७६२ उदरचिता...............१२
सम. ३१३ ३२ उधोर. .................. १४ । सम.जा. १३ १५७. ---उद्धतचाली................ . ४० मा. दं. ६८
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. १५७ – उद्धत. ९४० - उद्धर्षिणी.
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'अनुक्रमणिका.
३०६ उद्धरा
१७३ उन्दरि
९८८ उन्नर्म.......
४५१ उन्नाल
९९३ उपकारिका
१८६७ उपगतशिखा.
८८ उपगीति, गाहू, गाहो .
८७२ उपचितरतिका
६०६ उपचित्र, सुचित्र, नरेश....
९४ उपचित्र, उपचित्रा..
४५३ उपधाय्या ...... ८९५ - उपनमिता
१८५ उपनय
८४ उपमान १०२९ उपमालिनी...... २९७ उपलिनी, कृतवती. " ७४२ उपलेखा
....१४
......
७६३ – उपवनमालिका. १२६ – उपवलि. ......
१४९२ उपविशाल ...
.
...
६ उपचित्रा (पेहेली ).
७ उपचित्रा (बीजी )
८ उपचित्रा (त्रीजी ) ९४ – उपचित्रा
५७३ उपजाति, उपेन्द्रमाला, आख्यानकी. ११
१२
११
१२
१०
. १३
१२ उपजाति भेद
६०९ उपदारिका, रंजिता .......
७०८ उपधान.
..१४
१०
१४
. १३
.............
.......
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१५
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३२
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४०
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मा. दं.
सम. वृ.
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अ.स. ४९३
१६ मात्रासमक २१०
१६
२१०
१६
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अ. स.वृ. ४९३
सम.
२८५
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गी. भे.
सम.
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वृ.
समंजी.
संम.
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२५७
२४४
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३४३
२७२
३४३
३२८
११४
३२९
२९२
३०८
२९२
३०५
२७२
३३१
५२१
२९
३४९
२५६
३११
३१३
२३९
४५७
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अनुक्रमणिका.
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"
२८३
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.
...
..११
२८४
१६७ उपवैतालिकः ............... ...... वि. इ. ५१५ ८८७ उपसरसी...................१३ ...... सम. ३३० १०८ उपसरसीक................. ....... अ.स.कृ. ४९६ ४५८ उपसंकुला..... ............
सम, २७३ ५५७ उपस्थित, शिखंडित.........
" २८३ ८२७ उपस्थित................... १४६ उपस्थितप्रचुपित ...........
वि. वृ. ५०८ ४७४ उपस्थिता ..................
सम. २७४ ५७५ उपस्थिता ............
२८८ ५५३ उपहितचंडी. ............ २७ उपाय.....................
अं.स.अ. ४७८ १६० उपिक..................... .. सम. २४३ ५७३ -उपेन्द्रमाला. .............
... , २८५ ५७२ उपेन्द्रवज्रा............... ३३६ उपोदरि. ...............
२५० ३६ उपोद्गता, फलिताग्र............ ....... अं.स. ४८० २३२ उपोहा .
सम. २४९ ५४ उभय (महा) चपला.......... ५७ आ.गी.भे. १०८ १२१ उभय (महा) चपला अन्तविपुला, उगीति.
१२० • १०९ उभयविपुलाउद्गीति..........
९२ उभयविपुला उपगीति.
७५ उभयविपुलागीति. ........... ...... , ११२ .. ५८ उभयविपुलार्या. ............. १२६ उभयविपुला. आर्यागीति.
....... , १२१ १३२ उभयापीड. ...............
....... . वि.व. ५०२ १२९५ उमा. .....................
सम. ३९३ ७९३ उल्काभास .................. ...... १८९ उलपा...................... ७ ...... १११ उलपोटा. .....
....... अ.स. ४९७
6
6
.
.
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......
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अनुक्रमणिका.
२८६
३२०
३० उल्लन, फुलणा............... ३७ अर्द्धसम. ८९ १५ -उल्लाल................... .१५ उल्लाला, उल्लाल, उल्लास....... १५ -उलास................... ३२ उल्लास.............
१९२ वि.जा. २०२ ८१० -उर्वसी................... ...... सम. ३२०
६ -उष्ट्री ................... १०९ वि.जा. १३४
७ उष्णिक..................... ७ ...... सम. २४० १०५५ उहिनी.
३५३ २०४ ऋचा....................... ७ ...... , २४७
५१३ ऋत ......................१० - १३ ऋद्धि.......................११ १०९८ ऋषभगज विलसित, गजविल-7..
सित, गजतुरगविलसित. ' ८१३ ऋक्षपाद ....................१३ ..
३१ एकत्री वर्णना दंडक.........३१ ...... १०८ एकसो आठ वर्णना दंडक...१०८ ......
३७ एकत्रीश मात्रानी विषमपदजाति. ३१ १०२ एकसो बे वर्णना दंडक......१०२ ...... १०५ एकसो पांच वर्णना दंडक....१०५ ......
५१ एकावन वर्णना दंडक.........५१ ...... ४६५ ९०१ --एकावली ...............१३ ...... ३३१ .. ८१ एकाशी वर्णना दंडक.........८१ ...... ...... ४६८ १०१८ एला, रेखा, कवितरल.........१५ ...... सम. ३४७
८२ एला. ..................... २२ समजा. २९ ८० एशी वर्णना दंडक............८० ..... ...... ४६७ ४३४ ---ऐन्द्री ..................१०
सम. २७० ३९ ओगणचालीश वर्णना दंडक ...३९ ..... ४९ ओगणपचास वर्णना दंडक.....४९ ...... ....... ४६४
५ ओवी...................... ...... अन्यदेशीय ५३६
२०५
४६९
सम.
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अनुक्रमणिका.
......
अ.स.... ४९५
...
...
१०४ औपगव .... १०६ औपपवीत ...
२ औपच्छन्दसिक.............. २६ -औपछंदसिक.................
"वात .............
६८ वैता.. २१४ ....... अस... ४७८.
.
.
.
....
१२ , २३३
......
......
२६८
......
११६ ककुभा ....................... .२८ सम ४६ . १२८१ कङ्कणक्वाण, ...............२२. ....... . ३९० - १२५९. कङ्कणक्वाणवाणी ............२२ ....., .३९० २ कञ्छा, कच्छी...
६६ वि.जा. १३१ २ -कच्छी . .......... ......... . ६६ , १३० ८० कच्छपी
, सम. २३४ २७ कज्जल, कदली................. ६८ कजा . ..................... ६ ७ कटाव, कटिबंध..
.. अ.दे. ५३७ ४८४ -कटिका....................
सम. २७५ ४१३ कठिनास्थि, अहीरि............ ८४५ कठिनी....................... १७० कठोद्गता.....................
२४४ १५१ कडखा......... ५४२ कडार ..................
सम. २८१ ... ४३ कणिका ...............
२३१ ५७९ --कतिका...............
.......
सम ३१५ २७ -कदली ...............
, १२ ६०८ कनक कामिनी................ ८९४ कनकिता...................
__, ३३१ ६६४ कनककेतकी, कनककेतन ...... ८६४ -- कनककेतन...............
८५८ -कनकप्रभा ............... ...... १२६७ कनकमालिका.............
...... ५९७ ----कनकमंजरी. .............११. ....... " २९०,
मा.दं. ६५
العسر
,
३२८
३२६
३८७
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'अनुफमाणका. wwwmarrrrrmmmmmmmmmmmmmmwwimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm १२४९ कनकलता ..................२० ...... सम ३८३ .८९७ . कन्द, कन्दा, कुन्द, सारंग. ....१३ . ......... , ३३१ '१५१ कन्दका, स्कंधक,खंधा, खंधान, . खंधो.
६४
६४ आ.गी.प्र. १२६ ५४९ कन्दविनोद. .................११ ...... __ सम २८२ .८९७ -कन्दा .................. ...... , ३३१
८९८ कनीया,कनैया............... ...... .८९८ -कनैया...................
१३ ...... .८९७ ~~-कुन्द .................. ३ ......
१५ कन्या, कीर्णा, तीर्णा, तिना. ... ४ ....... .३९ -कपिला. ............... १४ ४ सम. १५ १०८५ ---कमठकर..................
७४ कमनी. ..................... ४४०४ -कम्बलया. ............
१४ -कमल.................. ३०० -कमल. ...............
.......
.. , २५७ १०८५ कमलकर, कमठकर............ ....... ३०० –कमला. ..................
७ -कमला. .................. ...... .स.पू. ४७३ १३६९ कमला, मुंदिर, मल्ली, सुमिला, ) माधी, अमला,चन्द्रकळा, सुछंद, २५
४०८ सुंदरी, सवैया,सुखदा, सुखदानि. ) ४७३ -कमला.....................१० ...... , २७४ ४०४ -कमला..................... ९ ...... , २६७ '९१ --कमला......................
.."... " २३६ "३४ कमलाकर.................. ...... अ.स. ४७९ १३९ ---कमलावती.
... ३२ सम. ५९ ९०१ -कमलावली. ............... १४ .-कमलि. ..................
__, २२७ १५३ करखा. ..................... ३७ मा.दं. ६६ ३२९ करजि ........................ ....... सम..२६०
"
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अनुक्रमणिका. .
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...
...
४६-करता. .................. ५ ...... सम.. २३.१. १० करधा. ..................... ...... अ.स.व. ४७४ ८५३ करपल्लवोद्गता ................१३ ...... सम. ३२५ १५४ करभित्, रैरंग............... ......
.. .......
२४२. ६ करभी नवपदी, उष्ट्री, कलभी.. कुल १०९ वि.जा. १३४ १०१ करभोद्धता..................... ...... भ.स.व. ४९५ ६९३ करमाला. ..................१२ समः ३८८ करशया.....................
२६५ १५८ -करह. ..................
... " २४३ २२२ -करहंच .................. ११० –करहंचा............. २२२ -करहंची..
, २४८ २२२ --करहंज ..................
२४८ २२२ -करहंत.
२४८. " -करहता............... " -करहंतृ..................
, -करहंस .................. २७६. कराली,कामताका,केतुमाला. ...
२५४ १.१.१२ करासन...................... १९६४ -करीटी.................
४०७. ४० करीरिता ..................
अ.स.वृ. ४८१ २९८ –करिला..................
समः २५६ ६५: करेणू. ५९० -कर्ण.....................११
१३ कर्णपालिका, कामदा, मरालिका..१० ... , २७३ १०४४ कर्णलता ...
....... , ३५१ ११४३. कर्णस्फोट....................१७ ...... , ३६७ १४१९ कर्णाटक.. ....................
४१५ ९९ कर्णिनी.
अ.स.इ. ४९४ १७५. कर्णिशर.....................१४ ...... सम. ३४१
.
.
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..
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३
२४५
...
...
"
४१०
८
१०९
वि.जा.
...
...
...
...
...
...
...
अनुक्रमणिका.
~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmm . २४ -कर्तृ..................... ४ ....... सम. २२८
३.-कन्ता . .................. . ७ ॥ १७ कर्पूरद्विपदी.................. २८ अ.स.जा. ८३ ८७९ कर्मठ. ..................... १३ ...... सम. ३२९
८९ कर्मदा, तिल ............... ३६१ कमिष्ठा, किर्मिष्ठा. ......... १८१ -- कलका................. १३८२ कलकंठ. ................. ४३३ -कलगीत. ...............
.. २७० .. ६ -कलभी .................. १४२२ कलधुनि.
४१६ १०७३ कलधौतपद..................१६ ३५ कलना ..................
१४ समजा. १४ १२३ कलना.....
...... अ.स.वृ. ४९९ १२४ कलनावती ........
४९९ ८७४ कलनायिका............... ....... सम. ३२९ १२६४ कलमताल्लिका. ............ १२७० कलमशिखा.
३८८ १९. कलम्बडम्बर. ............ • ४६ -कलमुखी...............
३८ कलाल,सुतसंगक............ ६७० कलवल्लीविहंग. ६१.८ कलस्वनवंश, पायका. ......... ३६३ कलह...... १०९० कलहकर.....................१६ ६८१ कलहेतिका. ...............
३४१ २२२ -कलहंस.....
_ '२४८ ८२३ कलहंस, सिंहनाद, कुटजा,
प्रानपियारी. १०३० -कलहंस.
३८६
......२१:
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वि... ५२.३
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२
२९३
२६३
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२०
८५८ - कलहंस...
.......
२९४५ कलहंसी.. १६५ कल्पमुखी, लीला..
-२० कला, नगानिका, कुमारिका, नगा,
नगणिका, नगी, नगनिका, जया, निर्गला, नगालिका, लग्गणिय.
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*****
'अनुक्रमणिका.
........
५३२ कलितकमलमाला. - १८१
* १३३ कलिका, मञ्जरी, मंडरी.. ८८ कलिकाललिता
कलिता ....
२९८ कलिला, करिला. ५७ कल्कि.
९२७ कंल्पकान्ता.
११०२ कल्पचारी.
१०१८ - कवितरेला
१३९१ - कॅळाकुशळ..... ९६२ कलाधर.
७९५ कलाधाम..
८५१ कलापतिप्रभा, राग, नंदराग...१३ १२०९ कलीपदीपकः २१९ ४३१ कलापान्तरिता.
*८६० – कलावती
११०२ कल्पधारी, कल्पचारी. ९६० कल्पमीलिता.
१६५ कल्पमुखी, लीला .. `१२११ कल्पलतापताकिनी. १०६३ कल्पाहारि.
११४८७ कचित, मनहरण.
कवित प्रकरण...
.....
. १३
......१४
.....
......
..२५ ..98
७
. १३
* १४८० कळाधर.
९१४१५ काकलीकल कोकिल..........
被
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......... ८
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२५६
२३२
३३४
३६०
३६०
३३९
२४३
३७८
३५४
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व. दं. ४५४
४३९-६०
संम ३४७
व.दं. ४३७
सम. ४१.५
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अनुकमाणका.
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. ९७७ काकिणिका....................१४. . ....... समा.. ३४११ ४८९ काण्डमुखी....................१०. ....... १, २७६
३ कान्ता, कन्ता. .............. १७ कान्ता ................... ........ अ.स.पू. ४७६: १.१.३० कान्ता ..................... १७. ....... सम. ३६४ ११४५ कान्तार..................... ६६१ कान्तोत्पीडा................. १२. ....... , . २९८ १४९ कानर...................... ३५ मा.दं... ६४
७८१ -काम ..................१२. ....... , ३१६ ..... ३ -काम उल्लाल ............. ६०. वि.जा. १७५ - ३ -काम. .................. २ ....... सम. २२५ ... १.६५ कामकलशिका ................ ....... बि. पृ. ५१५, १३७ कामकला. ...
२. समः ५७ १००० ---कामक्रिडा ......... ५०१ कामचारि.
२७७ २७६ –कामताका ..........
२५४, . .४६३ --कामदा ............
५१६ कामनिभा. ............
०१७ -काममोहिनी. ............ १११४ कामरूप...............
३.६२ १०६ कामरूप. ...............
७७ -कामलता. ..... ९५५ कामला.. ९८७ कामशाला................
" ....... ३४३ ३. कामा, स्त्री, काम. ......... ३७६ कामा. ..................
... " .२६४ .. ११ –कामावतार............
. , . .२२७ ६२ कामाक्षी. .................. ...... अ.स.पू. ४८६ ७१७ -कामिनिमोहन.............१२ ...... सम. , ३०६ ६३९ कामुकलेखा. ...............११ ........ ..... २९६
२७३
२७९
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२३४
.
............१४
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अनुक्रमणिका.
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...
२९६.
२२७ कामोद्धता .................. ७ ....... सम. २४९ २३३ कार्पिका. .................. ७
२४९ ९७८ कारविणी. ...............
રૂ૪૧ २६ कारु, वीर, कीर.............. १५२७ -कालदंड. ९०९ कालध्वान्त, कालध्वान.........१४
सम. ३३२ -कालध्वान................ " .... ६४३ कालवर्म. ..................११ ..... ११२४ कालसारोद्धत ...............१७ । १३१८ --कालका..................२३ . ....
२५ कालिक..................... १ १३१८ कालिका, कालका ............२३ २३१ कालम्बी . ..................
८८ काव्य, वास्तुक............... ११३२ कासार ....................१७ १५३३ कासार, वाराह............
दंडक ४६६ ६९५ कासारकान्ता....... ........
सम. ६३६ काहाली...... ............... २२६ काही........................ ३८ किञ्जल्क.................... १४ ५१ किञ्जल्कि...................
२३१ १४१ किणपा.....................
२४१ ३२ किन्नटक ....................
अ.स.वृ. ४७९ १२०३ किरणकीर्ति ..................
सम ३७६ १३६४ -किरत ..
............... १४९४ --किरपाण..................३२
दंडक. ४५७ ३६१ --किर्मिष्टा .................. १४३ किमार...................... ८४२ किरात, कुटिलगति............
... " ३२४ १३६४ -किरीट...................२४ ...... ., ४०७ ३१ -किलकिता................
अ.स.पू. ४७३
.......
२९५
२४९
...
...
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४०७
..
,
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अनुक्रमणिका.
अ.स.वृ. सम.
४७९ २४६
२५९ ४८५ २९५
.
.
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.
२२७
२८५
२७८
३१ किलिकिता, किलकिता......... १९८ किशलय................... . ...... १४२३ –किशोर. ............... ३२२ किष्कु .....................
६० किंशुकावलि. ............... ६५४ किंसुकास्तरण ...............१२ ४०६ कीटमाला ................. ९ ४१८ कीरलेखा १५ -कीर्णा ...............
१ कीर्ति .................. ४४६ -कीर्ति .................. ११५८ -कीलानंद. .............. ५१४ कीलाल.................. ८३६ कुटजगति ............... ८२३ -कुटजा ............... ८४२ --कुटिलगाते ............. ९१२ कुटिल................ १६४ कुगरिका .................. ५८७ कुड्मलदन्ति ...............११ १६३ कुडंगिका, हरी, आनन्दा......१४ २२ ---कुंडलिणी. .............. १३ कुंडलिया तोटक. ............. ११२ १७ -कुण्डलिया. ............... १४४ .२२ कुंडलिनी कुंडलिगी ............
१७ कुण्डलि,कुण्डलियाः ............ १६४ कुथिनी. ..................
...... १४२३ -कुन्दलता............... ..... १३२५ -कुन्दसवैया. ............
४५० कुप्य. .......................१० .१४८ कुपुरुषजनिता ...............११ ......
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३२१
३२४
वि.जा.
१८२
१४०
,
१४३
...
...
..
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१८२
१४३ वि.बृ. ५१४ सम.
४१६ ४००
२७४ सम. २८२
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२४२
२५६
२४४
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२५६
'
५८३ पुरुषजनिता ..............११ ......... सम. १८३० कुबेरकटिका, ................१३ ......
४७ कुम्भारि .................. ५ ... ७६८ कुमारगति ..................१२ १५६ कुमारललिता, ललत,अविराम,
रायपति. २९९ कुमारललिता, कुंमारिका .............. १०१२ कुमारलीला .............. १६८ कुमारिका .................. ९४१ -कुमारिका..............
२० -कुमारिका............. २९९ -कुमारिका............. ९४१ कुमारि,कुमारिका.............
४१८ ---कुमुद. .................. १३७१ कुमुर्दमाला ...................२५
१८६ कुमुदिनिविकास. १४२१ कुम्भक
७०० कुम्भोध्नी................... २५२ कुरदि........................ ...... २६९ कुररिका... ९७९ -कुररीरुता, धृति, प्रमदा....१४ ४९६ -कुलटा...................१०. ३१० कुरु चरी...................८
९९० --कुरंग....................१४ . ७५१ कुरंगावतार..................१२ ३२७ कुलचारी....................
२६६ कुलाधारी, शुद्धगा............. ११०५ कुल्यावर्त्त, कल्यावुत..........१६ ११०५ -कुल्यावृत्त................. .३४७ कुशक ...................... ६.२६ कुशलकलावतिक...............११
४०८ ३०१
....
...१२
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५१५९ ~-कुसुमिलता ...............१८ ४८ कुसुमचर ........
....... अ.स.वृ. ४८२ १४३७ कुसुमस्तबक,कुसुमास्तरण....... ...... व.दं. ४२६ ११५९ कुसुमलतावेल्लिंता ............. ...... सम. ३६९ ७११ कुसुमविचित्रा................
सम. १४३७ -कुसुमास्तरण.............
...........२७ ...... वं.दं. ४२६ १५३७ कुसुमितकाय. ...............८० ११५९ कुसुमितलता,कुसुमितलतावे)
ल्लिता, कुसुमलतावोल्लिता, १८
फूलमाला, कुसामिलता. ) ११५९ -कुसुमितलतावेल्लिता ......१८
३६९ ९३६ कुसुम्भिनी..................
३३५ १४०८ कुहककुहर. ............ ९२ कुही, अपरभा............
२३६ ४११ कुहू........................ ९८० कूर्चललित.
३४१ ११७६ -कूर्पर.................... १११२ कूराशन, क्रूराशन, करासन ।
करासन, ४२८ कूल. ..................... ५२९. कूलिका,कूलचारिणी......... ५२९-कूलचारिणी................ ५०६ कृकपादि.................... ७७९ कृतकतिका, कतिका........... ५१९ कृतकवलि.................... ४९८ कृतमणिता, मणिता........... ९४३ कृतमाल................... ३५२ कृतयु, कृशयु, नरहरी......... ८
२६२ . २९७ –कृतवती.................. ८
२५६ २० कृतिछंद .....................२० १४९४ कृपाण, किरपाण .............२ दंडक.. ४५७
...
...
...
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३७२ ३६१
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३१५
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२६२ २२९
२५४
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४०२
५१
__ अ.स.३. ४७६
सम २५४ दंडक ४६८ सम २७१ दंडक ४६३ सम
.....१५
२९७
३७.
३४४
३५२ -कृषयु .................. ८
२७ -कृष्ण.................... ४ २८२ कृष्णगतिका ................. १२८० --केकनी.................. १३३२ केकिनीशारदा ...............२३ १३. केतकी ( सवैया)............ १८ केतु........................
६ केतुमती..................... २७६ -केतुमाला ............... १५३९ केदार .....................
४४५ केर............... १५१७ केली........
६४७ केलीचर ११६३ केशर....................... १००० --केशवलेख . ...............
१७६ केशवती..................... १३५० कोकपद................ १३४३ -कोक................... १३६३ कोकी ....................... ११३५ कोकिल, कोकिलक............१७
,, कोकिलक. ............... ८८३ कोमलकल्पकालिका............१३
२४ कोराकता. २५३ कोशि....................... ७ २७५ कौंचमार .....
१०७ कौमुदी ................... १५१९ कंकेली ९०१ -कंजअवली...............१३
३६ कंठी, विलास, यशोदा......... ५ ७९९ ---कंद.....................१३
......१३
२४४
.
.
.
.
.
.
.
.
.
......
अ.स.वृ. ४७७
सम.
..
...
...
...
...
...
......
.......
२५४ अ.स.वृ. ४९६
व. द. ४६३ ...... • सम. ...... , . २३० ......
३१८
३३१
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
७९९ कंदुक, कंद............ १११ कंसारी.......
१९२ कंसासारी....
....
३७४ कांसिक
७६५ — क्रमुकवती. १०६१ – कामक्की ........ ९७३ क्रीडायतन, क्रीडावस्थ
११५८ - क्रीडगा...
www.kobatirth.org
*********
९७३ क्रीडावसथ... १००३ क्रीडितकटका.
अनुक्रमणिका.
१६
११५८
११५८ - क्रीडचक्र' - क्रीडा क्रीडाचक्र ११५८ - क्रीडाचंद्र ११५८ क्रीडचन्द्र, वारवाणाकत्त, क्रीडगा, चंद्रिका, क्रीडाचंद्र, क्रीडाचक्र, कीलानंद, चंद्रकीडा, महामोदकारी, महामोद, कीsax.
*****
*********
१११२ —–क्रूराशन. १११२ — क्रूरासन. ११७३ कोडकीड २४३ क्रोडांतिक.
५५१ क्रोशितकुशला १३८५ क्रौंचपदा, कौशपदा. १३८५ - क्रौंशपदा.
ख. १०८८ - खगति.
१७५ खग्गा
६२१ खटका, हरिणी. १७५ - खंगा....
...
*****
९
१२
.१६
......98
....... १८
...............१८
. १३
६
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******
******
.......
*******
.....१८
......
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१०.
39
४
१४
१५
१७
.... १८
१८
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११
२५
७
. १६
32
७
११
૧
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******
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सम
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22
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२७
३१८
२३८
२४६
२६४
३१४.
३५४
३४१
३६९
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२२७
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३६९
३६९
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२५०
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४१०
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अनुक्रमाणका.
......
.
.
.
.
..
....
...
.२८३ -खंज ..................
सम २५५ १४७३ खंज .....
व. दं. ४३५ १३५२ -खंजना. .............
सम. ४०४ १४८९ खंजविशाळ. ...............
व. दं. ४५६ १७५ -खंजा,..................
सम. २४४ ४१ -खंजा...................
__, २३० २८३ -खजा ..................
" , २५५ ३३ खंजा,खंजिका............... ४१ अ.स. ३३ -खंजा ..................
१. , ९० १५०३ खंजोपविशाळ गमावशाळ ............
...३२ ...... व. दं. ४५९ १७५ --खंडका
....... सम. २४४ ..९० --खंडलिया ......... १५१ -खंधा....
६४ आ.गी.प्र. १२६ .१५१
६४ , १२६ १५१ --खंधो.
६४ आ.गी.प्र. १२६ १५० खरकरा.
...... सम. २४२ २२९ खपरि. .................. ७ १४६ खरारि......
३२...
६२ १९३ खर्विणी..
..
२४६ ९७ खांग, गयणंग, गगनागन, ?
गगनांग ४५९ खेटक
...... , २७३ १९३ खेंगार....................
वि. वृ. ५२५ ३५७ खेलाड्य..................... ९ ..... सम. २६२ ५१५ खौरलि.
............
..
....
...
...
...
...
,
२४९
.
.
.
.
.
..
.
.
.
.
१
०
.९८३ गगनगतिका ...............१४ .......
९७ -गगनांग.................. २५ .९७ -गगनागन. ............... १६८ गगनोद्गता...................१४ ......
सम.
,
३४२ ३९
.
३४०
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अनुक्रमणिका.
२५८
.
.
.
.
.
:
:
१३५२ -गङ्गाधर. ................२४ ...... सम. ४०४ १३५२ --गोदक. ................ ...... ३११ गजगति ................. २६ गजल ........ ............
१२ १०९८ -गजतुरगविलसित..........१६ ..
३५९ १.९८ -गजविलसित. ............
३५९ ११७१ गजेन्द्रलता, लता............
३७१ ४४१ गणदेहा. ................... ८६९ -गणसारिका...............१३
३२८ १२५० गंडका,गंडकी,गंडिका,गंजिका,)
इदश, माद्रश, दंडिका, वृत्त,
चित्रवृत्त, रल्यका. १२५० गंजिका.....................२० ...... , १२५० -गंडकी................. १२५० गंडिका..................
३१ गंधान, गंधानक. .........कुल ३५ ___४४ ३१ -गंधानक...............कुल ३५ १ गमक ....................
सम. ६३८ गम्भारी.....................११ ...... , ९७ —ायणंग.................. २५ , २१ गयबन्ध छप्पय............... कुल १४६ । वि.जा.
१८२ १०८२ –गरुडधृत ...............१६ ___ ...... सम ३५६ १०८२ गरुडस्त, गरुडधृत.............१६
... . ३५६ ८६५ गरुदवारिता..................१३ ...... ५९३ गल्लक......................११
२९० ५ गलितक.....................। ४ म.प्र. २१९ ७१५ गलितनाला..................१२ - सम. -३०५ ४९३ गहना.......................१० ५९५ गह्वर......................११
२९० ४५ -गाथा..........
५७ आ.गी.प्र. १०० १४९ गाथिनी...........
६२ , १२५
४४
अ.
स.
......
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अनुक्रमणिका.
- ६ गायत्रीछंदः .................. ६ ....... सम. २३२ - ४५ -गाहा. .................. कुल ५७ आ.गी.प्र. १००. १३४५ -गाहितगेह ...............२४ ...... सम. ४०४ १३४५ -गाहितदेह .................२४ ......
४०४ १४९ --गाहिनी.................. कुल ६२ आ.गी.प्र. १२५ १४९ -गहिणी................... कुल ६२ , १२५ ८८ ---गाहू...................... ...... गी.मे.. ११४. ८८ -गाहो. .................. ...... गी.मे. ११४ १३९ गाहो......
कुल ५३ आ.गी.प्र. १२३ १.२१८. ग्रावास्तरण..................१९ ...... सम. ३७८ ५५९ -प्राही ...................११ ___, २८३ १.१३गिया,गीता,गीयऊ,हरिगीता, गियामालती,वेताल,वैतालिक,र
. ४५ गीतक.......... ११३ -गियामालती
............ ८६ गिरा...: .................. १७०. गिरिकन्या..
वि. वृ. ५१६ ४७३ -गीतक.................. . समः
समः २.७४ ११३ --गीतक..................... १२४३ -गीतक..................२०.
३८२ ११९७ गीतका,भैरौ... ..............१९ ....... ३७५
१०४ -गीता................... २६ १२४३ -गीता...................२०. .......
७१. गीति, उद्गाथा, उग्गाहा...... कुल ६० आ.गी.प्र. १११ १०५ गीतिका.
.... २६ समः १.२४३ गीतिका,मुनिशेखर,शेखर, र. . गीता,शर्वरी,गीतकः
...... , ३८२. ११३ -गीयउ ................... २-८ , ४५ २०३ गुजा .................. १३४६ गुणमालाधरा ...............
५० गुणवती, शशिभूता. .........
.
.....
...
......
.....
३८२
R
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९१ गुप्त.
९१५ – गुर्विन्दु २२५ गूर्णिका.. १९४ गृहिणी.... २१८ गोधि
९९० . गोप, कुरंग. ४४ गोपाल . २३ - गोपाल...
२५८ गोपावेदी.
१५४४ गोविंद... ६९६ - गौरी.
१३९२ - गौरी
७२०
८६९ गुणसारिका, गणसारिका.
४४ – गुणित
****
........
.........
..........
९ गंग...
५५९ गंभीर.
....
.........
+............++ ··
.....
अनुक्रमणिका.
......
घ.
www.kobatirth.org
***********
...
दितमदना, प्रमुदितवदना.
४८ घातक..... २७ - घातोन्द.
१३.५७ - घोटक..
९३
- घटिका.
२६ घत्ता, ध्वाता.
२७ घत्तानन्द, ध , घातोनन्द..
................
...................
११२९ घनमयूर .. ३४ घनपंक्ति.
१४८६ - घनाक्षर
१४८६ " घनाक्षरी, घनाक्षर
६ घनाक्षरीकवित
******, 14:0
.१३
.........
******* $10.0
............
........
*****...
१४
९९
१२
.२६
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... ११
.......
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.......०००००-००
७
.......... १७
५.
........
७
१४
४
१२.
३.१
३१.
२.४
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......
३२
२४
......
...
60. 009
0.10.
......
१५
******
...
......
......
३१
३.१.
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.......
........
......
........
१६
३१.
414-4
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सम.
शि. जा.
सम.
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૨૩૦
२५२
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व. दं. ४६९
सम.
३०१
४१२
ર
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सम.
३२८
९४
३८
३३.३.
२४९.
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२४६
२४८
૨૪૨
१६.
३०६
अ. स.वृ. ४९३
अ. स..
८७
८८
२८३.
३.६४
२२९
व. दं.. ४३८
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35.
अ.दे. ५३६
सम.
१८
अ.स.
सम.
४०५
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
૨
च.
२४ - चउबोला
७८ - चउरंसा... ७८ —चउवंसा
―
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..................
********* *****
९८६ -- चक्रपद.......... ९८६ - चक्रवर्ती
९८६ - चक्रविरति.. १०६६ - चक्रावलोक.
९८६ -चकुरा ८०३ चञ्चरीकावली ११७६ – चञ्चरी १६२ चञ्चरी....
१४२५ चएडवृष्टि...
१५१० चएडवेग. ८२५ चएडी
१२३ – चतुरपद.
१२२९ चतुरानन.
२८५ चतुरीहा,
www.kobatirth.org
अनुक्रमणिका.
११७६ - चक्का. १०९५ चकिता..
१६
१३३४ चकोर, चित्तपदा, सवैया, ललिता. २३ ९८६ चक्र, चक्रपद, चक्रवर्ती, वृत्तचक । चक्रविरति, देवरवरतनु, चकुरा.
१४
** 100
११०३ – चञ्चला. ७२१ – चञ्चलाक्षिका. ११७६ - चञ्चली
५ चटुल
..........
......
...
७८ चएंडरसा १४२५ –चएडवृष्टिप्रपात. १४२५ चएडवृष्टिप्रयात, चएडवृष्टिप्र
पात, चएडवृष्टि, उद्दर्प.
....
......
23
१८
६
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१३
૧૮
१४
......
१६
१२
१८
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२०
८
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०
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४६ म.दं.
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३७२
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३५५
३४२
३१९
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७१
३६०
३०७
३७२
३
२३४
४१९
४१९
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४६१
३२२
४८
३८०
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७८
- चतुरंशा. २४ - चतुर्वचन . २४ - चतुर्वचा.
७८ - चतुर्वर्णा.
३४ - चतुर्वशा..
२४ - चतुष्पथा.
४२ - चतुष्पदी. १६४ - चतुष्पदी (वडी).
१२३ – चतुष्पदी
९० - चतुष्पदी
७८ - चतुरंस.
७१७ - चन्दाणा.
.....
www.kobatirth.org
७१७
-चन्दाना,
४९२ – चन्द्रमुखी
१०२१ - चन्द्ररेखा.
८०७ चन्द्ररेखा, चंद्रलेखा...
८७७ – चन्द्रलेखा...
- १००९ - चन्द्रसेना
******...
अनुक्रमणिका.
.......
*****
७१७ - चन्द्रायणा.
१५२७ --- चन्द्र
१२२७ - चन्द्र.
७६७ —चन्द्रवर्तन ७६७ चन्द्रवर्त्म, चन्द्रवर्त्तन, चन्द्रममः ।
चन्द्रमगा, चन्द्रमम्ग
११६० चन्द्रलेखा, चित्रलेखा.. ............१८ (१००९ चन्द्रलेखा, चन्द्रसेना.
...........
....
.८६२ चन्द्रहासकरा
.७१७ चन्द्रानन
१०६१ चंद्रापीड, ब्रह्म, ब्रह्मरूप, ब्रह्म
रूपक, ब्रह्मारूपा, कामक्की, माधोराधा, वंभाण.
६
६
१२
१५
१३
. १३
""
.१५
....१२
१०
..............
१२
१५
१३
१२
१६
१२
५४
१९
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......
50.
.....
******
......
......
१५
१२०
३०
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****..
...
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......
......
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सम
२३४
अ. स.भ. ८६
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२३४
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२७६
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३१४
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३२८
३०६
३५४
३०६
४६५
सम. ३८०
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भमुक्रमणिका.
४०८
...............
.
..
.
..
.
.
.
१
८
३१४
१४४६ चन्द्र. .....................२८ ...... व. दं. . ४३८ १३५४ -चन्द्रकळा ...............२४ ...... सम. ४०५ १३६९ -चन्द्रकळा ............... १०१३ चन्द्रकान्ता.
५८ -चन्द्रक्रीडा.. ६७ --चन्द्रमग. ......... " चन्द्रमरग ......... , -चन्द्रमगा ............
११ चन्द्रमणि, ................. १२२७ चन्द्रमन, चन्द्रमाला, चंद्र, शशिस, चंदमालु.
३८० , --चन्द्रमाला ...
चन्द्रमाला ............ ८१ --चन्द्रमाला ............... ६ ......
२३५ १२२७ -चन्दमालु ...............१९ ......
३८० १५ चन्द्रायणा .................. कुल १२८ वि. आ. १४२
१४ चन्द्रावली, चन्द्राली........... कुल ११८ , १०४८-चन्द्रावता....
. सम. ३५२ ८४३ चन्द्रिका,उत्पलिनी,क्षमा, विद्युत..१३ ...... • ३२४ ११५८-चन्द्रिका ..... ..............१८ ......
३६९ १४१ चन्द्रिकागीति.........
५९ आ.गी.प्र. १२३ १५२७---चन्द्रेश.....................५४ व. दं. ४६५ ९५९ चन्द्रौरस. ...................१४ ...... सम. ३३९ ६२५ चपला ......................११ ...... ५१ चपला ...................... ५७
५७ आ.गी.प्र. १०७ २०. चपलावक्त्र .................. ...... अ.व भे. ५२९ ७२१ चपलाक्षिका, चंचलाक्षिका ......१२ ...... १०३५ चमरीचर ...................१५ ......
__ ३५० चम्पक ..................... .. १४ , १३ ४४२ चम्पकमाला,चम्पामाली,रुका-)
वती,रुक्मावती, रूपवती, सौ- १० ...... , २५१ भाग्यवती, पंचकमाला......)
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अनुक्रमाणिका.
१२६५ चम्पकमालिका, चम्पकावली.....
१२६५~~~चम्पकावली.
४४२ – चम्पामाली.
६६ चमूरु. ५५ चमूरुभीरु.
ܪ
चयन.
८ चरण
.....
******
४५ चरणाकुल
४५७ चरपद.. ११७६--चर्चरी
चर्पट.
११७७ चल...
.....
१०२४ - चामर..
www.kobatirth.org
......
.......
********* ..............१५
१६९ चामर, समानिका, समाना, वाणी. ७
२
..१०
..... १८
......
२१
२१
१०
......१८
***...
....२५
.२६
....
..१०
३४९ चारुहासिनी.
...... ........
९ चारुहासिनी. ४० चालीशवर्णना दंडक .........४० १००४ चार्वटक.
........
१५
१०१
..........२५
-चावर १३३४ - चित्तपदा. १३७५ चित्तचिन्तामणि. ४७९ चितिभृतं १००८ - चित्र ११०३ चित्र, चञ्चला, चित्रसंग...... १६
.......१०
******... ......
. १५
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५ - चारु. १३८० – चारु. ... १४०२ चारुगति
१४५ चारुगीति..
५१० चारुचारण......
४८२ - चारुमुखी.
....... १०
......
८ चारुसेना, (वछुवा - वस्तुजाति) कुल ११५
९
२३
******
......
******
१६
......
*****.
१६
******
.....
......
......
******
......
......
******
५३
******
******
२६
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*****
......
३८७
૩૮
२७१
अ.स.वृ. ४८७
४८४
२६१
४
१७
२७२
३७२
२०७
"
"
४१३
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५८ आ.ग.प्र. ११४ सम.
२७८
२७५
१३६
२६४
२१७
23
"
""
""
""
"
मा. स. सम.
"
सम.
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23
"
वि.जा.
सम.
वै.प्र.
व. दं.
सम.
""
"
"
"
""
""
३५
""
३७३
૪૮
૨૪૪
२२६
४०९
४६३
३४५
૪૧
४०२
४०९
२७५
३४५
३६०
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अनुक्रमणिका.
Pornnnnvarnaranwwwwwwwmarawanmannar
س
س
س
سر
३४५
सम.
२८६ -चित्रपद. ............... . ....... - ,, चित्रपदा, चित्रपद. .........
११५३ चित्रलेखा ....... १११६ --चित्रलेखा ............
" " ३६२ ११६० -चित्रलेखा .....
८५८ -~-चित्रवती ............... १२५० -चित्रवृत्त ............
३८४ १००८ चित्रा, चित्र ............ ५ चित्रा ....................
१६ मा. स. २०९ ११०३ --चित्रसंग ...............
सम. ३६० १६० चिरकरका................. ...... वि. कृ. ५१३ १८४ चिररुचि .................. ७ ......
२४५ २१ धुलियाला, चूडाला, चूडियाला,
२९ अ.स. चुडिया, चूलका, चोटियाल
८४ ४१८ चुलक, कुमुद ............... ९ ...... सम.
२१ चुडिया..................... २९ अ. स. ८४. २५ चूडाणादोहाउपगीति(गाहू) र कुंडलिनी
कुल १०२ वि.जा. १९३ २४ -चूडाणापंचाउपगीति (गाहू,)कुंडलिनी.
१.०० , १९२ ३२ चूडाणा. .................. २६ चूडागापंचागाहा(आर्या) । कुंडलिनी.
१०३ वि.जा. १९४ २८ चूडाणापंचागीति(उग्गादा) । कुंडलिनी
१०६ , १९६ २७ चूडाणा उपदोहा विगाहा ।
. (उद्गीति)कुंडलिनी २९ चूडाणापंचासिहिनीकुंडलिनी.... ३० चूडाणादोहागाहिनीकुंडलिनी.... ३१ चूडाणा उपदोहा गीति
(उग्गाहा) कुंडलिनी
४८१ अ. स.
८९.
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भनुक्रमणिका.
४९
..::..
३४९
___......
सम.
२३६
.
कक
४६.
..
४६५
९११ चूडापीड...................१४ ...... सम.. ३३३ १७९ --चूडामणि ............... . ...... " १२४ चूडामणि ..................।
२१ -चूडाला. ............... २९ अ.स. १.१०-चूरियार................१५ समः
२. चूडियाला. .............. . २९ अ.स. . ८४ __ ३७ चूलिका. .................. ६० .शि.जा. २१ -चूलका. ............
अ.स. १०३० -चूलियारा ............ १४. -चेतीहिता ...............१४ ...... ९३५ चेलांचल,वेलांचल,वेलांतर.. ...१४ ...... ३३५ २१ चोटियाल ............... २९ ३४ चोत्रीश वर्णना दंडक..........१४ ...... ५४ चोपन वर्णना दंडक .........५४ ....... ,
४२ चोपाइ, चतुष्पदी ............ ___४६ -चोपाइकुलक............. १६ समः ११५ चोपाया.....................
२८ , १४ चोबोला,चौयाला,चतुष्पथा, र
३० अ.स. १ चतुर्वचा,चतुर्वचन,चउबोला. .. ७८ -चोरसा.................. ६
...... सम. २३४ ४ चोराशी वर्णनादंडक..........८४ ...... व.दं. ४६८ ३३ चोवीश मात्रानीविषमपदजाति... २४ वि.जा. २०३ १२३ चौपैया,चतुष्पदी,चतुर्पद ...... १६ सम. ४ १४ -चौयाला. .............. ३० अ.स. ८६ ७५ -चौरस
सम. २३४ १४४६ चंद्र ......................२८ वं.दं. ४२८ __७२ चंद्रायन,चांद्रायन .........
७१७ -चंदायणा ...............१२ ९०१ -चंपकवाटिका.............१३ ......
७२ -चांद्रायन
४
॥
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१८
ऊ
३६ – छत्रीस वर्णनादंडक..........३६.. ९६ छन्नुं वर्णनादंडक
१८ - छप्पय ...
.....90
७ छबी ४८५ छलितक ७०७ छलितकपद ............. १२ ३४ छन्वशि मात्रानी विषमपदजाति.
******
.............१९
१२०५ छाया. ६६ छासठ वर्णनादंडक ५९ छिंद्र....
www.kobatirth.org
ॐ.
अनुक्रमणिका.
............
.........
१७३ छेकवती
४६ छैतालीश वर्णनादंडक ....
११८८ छेल.
.....
*****
***********.........
********
•.६६
५
.....
१४६५ ज कामबाण, आम्र......
१२ जगतीछंद ......
४१२ जगत्समानिका..
....
...
५३ अंघनचपला. ६३ जंघनचपलापथ्यार्या. ६४ अघनचपलादिविपुलार्या. ६५ जघन चपलान्तविपुलार्या. .... ६६ जघनचपलोभयविपुलार्या.... ४० जघनचपलापथ्यागीति.. ८१ जघनचपलाआदिविपुलागीति... ८२ जघनचपलान्तविपुलागति. ८३ जघनचपलाउभयविपुलागीति... ९७ जघनचपला पथ्या उपगीति.. ९० जघनचपलाआदिविपुलाउपगीति. ९९ नघन चपलाअन्तविपुलाउ पगीति.
९६
"
कुल १५२ वि.जा.
समः
......
.४६
१८
१०.१२
. १३
......
.....
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*****.
......
......
.....
******
२६
......
...... सम.
घ.दं.
सम.
वि.कृ.
घ.दं.
......
......
...
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******
...**a
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४३४
२९७
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३२०
५७ आ.गी. प्र. १०७
आ.भे.
११०
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व.दं.
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वि.जा.
32
सम.
व.दं.
सम.
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४६१
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३७७
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२३२
५१७
૪૬૪
३७४
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११६
उगी भे. उ.गी. भे. ११६
"
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अनुकमाणका.
१०. जघनचपलाउभयावपुलाउपगीति ११४ जघनचपलापथ्याउद्गीति. ...
उद् गी.मे. १९ .११५ जघनचपलाआदिविपुलाउद्गीति ११६ जघनचपलाअन्तविपुलाउद्गीति ११७ जघनचपलाउभयविपुलाउद्गीति . १३१ जघनचपलापथ्यार्यागीति...... ..., आ.गी.भे. - १२२ १३२ जघनचपलाआदिविपुलार्यागीति. १३३ जघनचपलान्तविपुलार्यागीति... १३४ जघनचपलाउभयविपुलार्यागीति.
४९ जघन(अन्त)विपुला............ ५७: आ.भे. ११८१ जगदुदय ..................१८ ...... ११८१ जगदउदय,जगदुदय.........१८ .......
६२ -जनमि.................. ५ ...... १४१ जनहरण ..................
१२६० १४९० जनहरण .................. ३१.. .......
५८ जतु नायक. .......................... सम. २३२ ६२ --जमकः ................. ........ ६२ -जमकाणा ............ " ...... , ५२ ---जमवती ............... ...... अ.स.पू. ४८३ ४. जयकरी ................... ... १५ सम. १५ १४४ --जयमंगळ ................... .m... , २४९ २० - जया. .................. ४ ........ ३५ ज्योतिःशिखा ................ ..६४ . शि.जाः ९१ ४७५ जरा. ....................... ...... सम. २७४
२३ जलतरण ................... .. १३ ९५७ जलदरसिवा ............. ६६२ जलधरमाला ............... ११४२ -जलधररसित ............ १.३५ जलनिधिवेला ............... '५४६ जलमाला ..................१२ ......
१६६
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अनुक्रमणिका
१३९. जलहरण,कमलावती,धर ...... . ..... ५९ १४९६ जलहरण,बत्रीकवित. ......३२ ...... प. दं. ४५८ ७६४ जलोदतगति ................१२ ...... सम. . .३१३ ५९१ जवनशालिनी...............११........ . २९० २११ जविपुला ............................: अ.क.मे. .५३३
७७५ ज्वलिता ..................१२. ....... -सम.- .३१५ १३५२ -जानकी. ...............२४.........: : ४०४
७ जाया ................ ११. ............... २८६ १५ जारिणी. ............... ... ... ...... अ.स.व. ४७५ ५४४ जालपाद ..................११ .......... सम.
२८१ २३७ जासरि.....................
१५. ९४९ जाहमुखी.................. १४.......... ,
६२४ जिह्माशया...................११.............,, - २९४ १३९२ जीमूतद्वान, गौरी............१६ .........." १५१४ जीमूत.......................३९ ........... व.दं. ३६६ -- जुकता............................... सम.
२६२ ८१ -जोहा.................................."
६२. -झमक .............................. . १३२ ११९५ झिल्लीलीला .................१९ ........ . . ३७५
९.. -झील ............... ६ .......... . २३६ १५० ---झुल्लन
६४ १५० -झुल्लणा... ................ १३९९ -झुल्लणा ...............२६ ...... सम.- .४१२ १५० झूलणा, आन्दलिता, झुलणा, ३५. मा. ई.
झुल्लन. १२०२ झूलना ...................१९ ......" १३४० झूलना ...................२४ ...... १३९९ झूलना, झूल्लणा............ ४१७ ----शंपताल.................१२
६४
४०३
२६
......
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अनुक्रमणिका.
ट. १२२१ टकण ...................१९
...... . सम.
३७९
....
...
...
..
१४९९ डमरु १३२४ डम्बला .................२३
४६ ~~डारिल ................. ९. –डिल्ल .................. ६ ...... ९० –डिल्ला ................. ६ ...... ५३ डिल्ला .......................
९८ दुण्डि ...................
.......
"
२३७
४३३ ર૮૮
.
४१२
m
२३४
m
४०४
९४० ---तका ..................१४ ...... १४६३ तकामबाण, अरविंद, (पद्म)....२९ ...... १२.७३ तडिदम्बर,मदिरा.............२१
८६० -तनरुचिरा................१३ ४५४ तनिमा,वाणी................. १३९३ तनुकिलकिञ्चित..
७५ तनुमध्या, चौरस............
७१ तन्त्री... ................... १३४७ तन्वी, तन्वीसं................ १३४७ -तन्वीस..................
२२ -तरणीजा.................४ ७९० -तरल.................... ७९० -तरलक्.................१२ ७९• तरलनयन,तरल,तरलनयनी,
तरलदृक्. ............ ७९० –सरलनयनी. ............१२ ...... १०८४ तरचारिका.. ...............१६ १८० तरुगाशया. ............... .......
४०४
२२८
-
१२
३१७ ३१७
३१७
वि.व.
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.
सम.
वि..
.....
.":
व.दं.
४५
४६९ ३०४
३२१
अनुक्रमणिका. wishrawwarrroriwwwwwwwwwwwwww.r १२५५ तल्पकतल्लज................२१
४९६ त्वरितगति. २०७ त विपुला... १५२७ --तक्षक ..................५४ १२२ ताटंक. ................... __ - --ताणी .................. ३ ...... ३२४ ताणी...................... ८ ...... ९३ ताणुं वर्णनादंडक. ............५३
...... व.दं. ६९९ तामरस,अभिनवतामरस,
१२ ...... सम. ललितपद. ८२२ तारक .....................१३ ...... ११६८ तारका,महामालिनी. ........ १८ ...... ५९८ --ताल. ..................११ ......
" तालकिनी. ............... कुल ११९ वि.जा.
. -ताली .................. ३ ...... सम. २७ तादुरी,कृष्ण. ............... ...... १९ तितिक्षा. १५ –तिना................... ८९ -तिल .................. ६ ३६८ -तिलका. ............... ९ ९० तिलका,अर्द्धतोटक,झील,ति-)
लना,दंडलय,तिल,ध्वज,डिल,
खंडलया,डिल्ला,वनिता,तिल्ला.) ९० --तिल्ल. ९० --तिल्लना .................. ...... , ९० --तिल्ला. ............... १५ -तीर्णा ............ २९० -तुझ................ १९. तुझा, तुंग तुरंग. ......... ११९३ तुमुलक ................... ... १६ तुरग. ...............
१३८ २२६
२२७
२३६
२५५
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अनुक्रमाणिका.
सम.
___२५५
......
४६.
...१५
सम
२९० -तुरंग................... ८ ...... १०२४ तूणक, तूण, चामर,पंच यामल.१५ ...... १.१४ -तूण .................... ,
२३ तेत्रीश वर्णनादंडक............३३ ...... १५०५ तेत्रीशुकवित ...............
४३ तेतालीश वर्णनादंडक.........४३ १५ तैथिक. ७५३ तोटक, नंदिणी .............१२ ......
१७ तामर ..................... ४१. तोमर ..................... ९ १००० -त्रिनयन ............... १३४ त्रिभंगी ................... ११ त्रिनुपछंद ...............
३० त्रीश वर्णनादंडक ............३ १४७९ त्रीशुकवित .................
६३ प्रेसठ वर्णनादंडक............ १०८७ त्राटक,मणिकल्पलता ......... ...... ४९६ - त्वरितगति ...............
५३ २७९
४३६
सम.
४१७
भ
व.दं.
४३६
८५ -दटपट. .....
दण्डक..................... १४० दण्डक. १४७४ -~~-दण्डकत्रिभङ्गी. ..........३० ...... १३२ दण्डकला..................
९. -दण्डलय. ............... १२५० -दाण्डका ............... १.४३ -दण्डिका. ...............
४१६ दधि,उदधि,शुभोदर ......... ११.० दन्तालिका ................ १२६ -दमन. .................. ६ ......
......
२६८
......
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४४
......
१७९ दरदपूर ८०४ दर्पमाला, दर्भमाला ८१४ –दर्भमाला.
******.............
६३७ दमनक.. १२६ दुमनक, उपवलि, दमन, मदनक,
मदन, सदकल.
६८७ दल......
*****
४ दक्षिणान्तिका...
१४३८ दाम. ६.३१ दामघटिता.. ५४५ दारदेहा, दारुदेहा .. ६१० दारिका, नन्दिनी.
५४५ - दारुदेहा.
......
६७ दीपकी.
१५८ दीपमाला
१४२८ दुःखाकर
......
४६२ दीपकमाला.
३२८ दपिका.
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१३७८ दास. ...... १४ दिक्पाल २२८० दिगीश....
३ दिण्डा (अन्यदेशीय) १४४३ दिनकर...
१२९३ - दिवा १०१५ दीपक..
१० दीपक..
अनुक्रमणिका.
.............
.........
......
......
********.
१३.
...........
. १२
११७ —दुमन्दर. १३५७ दुमिला, मदिरा, द्विमिला,
दुर्मिल, चंद्रकला, दोमलया, सर्वया, मुकुन्द, रूपमकरंद, घोटक..
११
........११
....
...२७
११
११
११
.२५
...
..........
२७
२२
. १५
१०
८
२७
६.
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सम. *****
......
..
......
******
......
......
.........
19:
६० वै. प्र.
व. दं
सम.
......
.......
........
२४
......
....
......
...s
१०
******
.......
२०
४०
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******
...
2)
वि..
सम.
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"
अ.दे.
व.दं.
सम.
"
22
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"
मा. दं..
व. दं.
सम..
""
१९५
२६९
५१९
३१९
"
३०१
२१४
४२६
२९५
२.८१.
१९३
२८. १
४०.९
३८
२५४
५३५.
४१६
३९२
३.४६
५
२७३.
२५९
२.४.
६९
४२१
२३९.
४०५
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•अनुक्रमणिका.
४५
४०६
४०६
४०६
अ.स. सम.
१३८ -दुमिला................... .. .
१३८ ---दुमिलिया ............... ३२ .. १३५७ - दुर्मिन ..................२४ .
१३८ दुर्मिला,दुमिलया, दुमिला.......... १३५८ ---दुर्मिला. ...............२४ . ... १३५८ - दुमिलका................२४ . ... १३५८ दुर्लतिका,माधवी,दुर्मिला,दु-१..
मिलका,दुमेला. १३५८ ---दुमेला................ ८ -दूहा ...........
२४ १२६२ दूरावलोक............... २१ ...... ...८५ दृढपटा,दटपट.. ..........
१५८ दृति,करह. ............... ५ ९२२ दृप्तदेहा. १३. देव, महाभुजङ्गप्रयात,
महाभुजा, भुजङ्ग,सुधाप,
महानाग, सवैया. ९८६-देवरवरतनु............. १९९ देवले ...................... ५८. पोषक. ............. १११७ -दोमलया ...............२४ ......
१८ दोला,रामा,राम,विमला,भ्रमरी.. ४. ...... ६५५ दो-ला. ...... २३५ दोषा .......
...
...
२२८
१५०
.
.
.
१. दोहडिका...
भ.स.
२६ . , १२ सम.
७९ ३०४
८ दोहा,हा,द्विपथा,दोहरा......
"दोही ... ५.४ द्रुतपद,द्रुतपा ...............
७०४ -द्रुतपा............ '. २२ द्रुतमध्या ........... १२७६ द्रुतमुख...................२२
...... ......
अ.स.पू. सम.
४०० ३९०
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શા
०६३ द्रुतलम्बिनी...... ७३७ -- द्रुतविलम्ब ... ७३७ द्रुतविलम्बित, सुन्दरी, द्रुतविलम्ब १२
....
..........१२
४०४ - दुहणा. ................
४३२ द्वारवहा, भारवहा १४९३ द्वितीय उपविशाल.
१४०३ द्वितीयझूलणा
११४७ द्वितीयपंचचामर
२५७ - दंडलिया.
११९२ दंडी, दंडक.
९५ दंडी. १४८३ भोलि...
ध.
...
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२५० धनधरि,
१५०१ धनपाल ...... ४९५ धमनिका १२७२ धर्म.....
...
अनुक्रमणिका.
१७
१५०२ द्विनाराचिका, महानाराच ३२ १६ द्विपदी, द्विदला, दुविया, दुवैया, रे दोप.
१३५७ – द्विमिला.
११९२ --दंडक
१२७५ दंडिका.
...
१३
१०
. ३२
.२६
............
......... २४
२२
१८
१८
३१
• ३२
ܙ
१३९ -- धर
१९ धरा, विजया....... ५२ -- धवमती ....
१२२२ धवल, धवलाङ्ग, धवला, शशि. ६६८ धवलकरी ......
१२२२ – धवला
१२२२-धवला. ****
१०४८ - धर्वलङ्का ....................१५
१९
२. १२
....... १९
....१९
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......
......
......
.....
......
......
******
....
...
२४
......
......
...... सम.
......
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सम.
२८ अ.स.
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सम.
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"
व.दं.
सम.
33
व.दं.
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૨૮
३११
३११
२६७
४५७
४१३
३६७
४५९
८३
४०५
३७५
३८९
२५२
३७५
३९
४३८
२५१
४५९
२७६
૨૮૮
५९
२२८
४८३
३७९
२९९
३७९
३७९
३५२
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अनुक्रमणिका.
.
.
.
.
.
.
.....१४
अं.स.वृ. ४९९ सम. २८३
.....११
व.द.
४६२
२५-धारी ..................... ४ २५ धारि,धारा,धारी,धारिया.........४ १०५ धारिका,आर्भव ...............
२५-धारिया...... १५-धारी ..................... ६९७-धारी ..................... ९५६ धीरध्वान.... १०९२ धीरलालता. १२. धीरावर्त..................... ५६३ धीरा........ ४२१ धूम्राली. १५१३ धूली........ १३४२ धूवा................. १२६६-धृतधी... ३६२ धृतहाला..... ९७९-धृति .........
१८ धृतिछंद...................... ७०३ धृष्टपद...................... १०४० धोरित .....................
४०३ धौनिक..................... ९ १३३८ धोरेय,मानबिम्ब ............
३ -ध्रुव............ ........ ३ -धुवा. ................ ९. --ध्व ज .................. ६ २६ -ध्वाता ... ..............
......२१
२६३
३४१
२०४
१
अ.स.
७४
......
सम. अ.स.
२५९
२२८
। ३२० नखपदा,मालती. ............
२. नगणिका. ............... २. -नगनिका. ............... ७६५ नगमहिता,मुकवती ......... ९७१ -नगरालिका ............१४
२१८ ३१४
......
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अनुक्रमणिका.
....
"
"
"
......
.
.
.
.
.
..
...
...
.
...
३१२
......
२९५ –नगस्वरूपिणी ............
..... २० -नगानिका ............
..... .. २२८ २० -नगा. .................
...... " " २० -नगालिका ......... २० -नगी. १४९ नगोनिता ............
.... वि.कृ. ५१० १५१ नगोपमा. ४५ नरक.
अ.स.पू. ४८२ ९५३ -नटगति.
......
सम. १७५ नतभृगु.................... ...... वि.वृ. ५१० ८२४ नदिनी..................... ... सम. ७५३ -नंदिणी... ............... ९३९ नंदी. .....................
३३६ ८५१ -नन्दराग. ............... ...... ३२५ १७ नन्द. ..................... ४
, . २२८ १५४७ नन्द. .....................१०८ ...... २ नन्दक, वडवा, वरवा, बरवै,। बरवा, वरवय, वेर,
१९ अ.स. २०५ नन्दथु. ..................... ७ ...... सम. २४७ ११७० नन्दन .....................
...... ७ नन्दा, णंदा. ...............
११२ वि.जा. ११७ नन्दि , दुमन्दर............... ६ ...... , ८२६ नन्दिनी. ...................१३ ...... सम.. ३२२ ६१. .-नन्दिनी. ............
६९ नन्दी ४४० नमेरु ......................१० , २१ १९५ नयनपाली .................. ...... वि.व. ७१० नयमालिनी,वनमालिका,नवमा-१.. - लिनी,नवमालिका,नवमालती. १२ ...... सम. ३०५ ३०३ -नरक्रीड................... ८ .....
२३९
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www
२५
१८३
.
.
.
.
.
४४३ नरगा........................ ...... १.९४ नराशिखी ................... ......
६६ नरहरि..................... ३५२ नरहरी ............... . १.८३ नराच,नाराच,नराय,नाराज,र..
नागराज,पञ्चचामर,विपक." २९६ नराची,नाराची. ............ ११६६ -नराच ..................१४ । १.८३ - नराय ..................
८९२ नरावलि,निरावलि. ..........१३ ...... १२४१ –नराय ..................
४. नरी. ..................... ५ ११ -नरेन्द्र .................. ३ ......
१२ -नरेन्दु .................. , १२९१ नरेन्द्र,समुच्चय ............
१०६ -नरेश ११३४ -नर्कुटक. ............... ११३४ ---नर्दटक.................. ,, ११३४ --नटक..................
२.. नर्दि. .................. १३४८ -नर्दित १.४३ -नलिनी..................
१३ -नवनीलता............... १४६६ वमल्लिका...............२९
१० -नवमालिका .............१२ ...... १. -नवमालिनी... १. -नवमालती............... १४३ नवसरा,मदलेखा ............ ९९ नवाणुं वर्णना दंडक .........९९ ४ नवासिका,वानवासिका, .......
१९२ ३६५
२४५
......
अ.स.
सम.
.........
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...... भ.क.मे. ५३२
. शि.जाः
सम.
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२८८ २५८
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...
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३३५ २९३ २३२ २५६ ३५६
२५६
३.
३.६ न विपुला. ..................
४. -नाकि.................... १.८३ -नागराज ...............१६ ५८. नागसरुपी ............ ३१६ नागारि. ९२९ नान्दीमुखी, वसंत............ ११२ नाभस ..................
५८ -नायक ................... २९४ --नाराच .................. - १.८३ –नाराच ..................१६ १.८३ -नाराज ................ ११६६ -नाराच .....
२९६ –नाराची.................. ११६६ -नाराचक ............... २९४ नाराचिका, नाराच, भागन्द,
भानन्दरूपक. ___ नारी, ताणी, ताली, माली, सीसा. ३ १५६ नालिका...
३२ नाली ....................... ९७४ नासाभरण.................. ३७८ निभालिता.................. ७८३ निमग्नकोला ................. १३१ निम्नाशया .................. ३४८ ---मिरद ................... ४५२ निरन्तिक...................१. ६२९ निरवधिगति............. ८६ निरसिका, गिरा..
-निरावली ................ द, निरद................ ८
ला................... ।
५१२
२२९
...
२६४
२४.
...
......११
२९४ २३५ ३३.
:
२६१ २२८
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सम.
अनुक्रमानका.
marrrrrrrrrrrr१२.६ निर्गलितमेला .............१९ . ...... सम. ३०८ १७९ मिर्वाधिका, चूडामणि.......... ७
२४५ ११९ निर्मधुवारी
भ.स.पृ. ९८ ९८४ निर्मुकमाला ................
३४२ ४१४ निर्भधा................... ९२६ निर्यत्पारावार ............... ३६. निर्विन्ध्या, निर्यन्व्वा ......... ३६. --निर्वन्ध्या ................. १.३६ ~~-निशम्पालिका,............१५ ...... ७८० निशानी.....................१२ ...... १६. निशा,सालसा................ ......
६ निसानी..................... २३ १.३६. निशापाल...................१५ ......
२९ निशि,अर्जु. ............... ४ १.१६ निशिपाल, निसिपालक,निशि-)
पालिका, शंभु, निशंपालिका, १५
निशांपाल................ १.३६ ---निसिपालक................ १.३६ -निशिपालिका............ १.५३ निवल .....................
८६ निश्रेणी..................... १२९१ निकलकण्ठी. ............... ३९४ निषध....... .............
८. निस्का,सोमकुल,वीर्या......... ८४९ -निस्तुषा. ...............१३ १३४० -चीपक................... १३४. नीपवनीयक,वनीपक,नीपक..... ५१८ नीरनिधि.................... ४६. नीराजलि. ................ ५.३ नीरान्तिक. ..................१२ ४२२ नीरोहा .....................
...
..
३२५
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4
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20
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भर्मुक्रमणिका.
......
सम.
३५०
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..
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स
म
.
२८८
४३४
१०८८ मील, अश्वगति,नीलस्वरूप, )
निशेषिका,विशेषक,विशेष, १६
लीला,पदनील,खगति......) ७५६ नीलगिरिका. ...............१२ १४७१ नोलयक. ................... ...... ११५५ -मीलमालूर................ ११५७ नीलशार्दूल,नीलमालूर,नीलभार १८ ...... ११५७ ~~-नीलशालूर............... , ...... ५८. नीलसरूपी,नागसरुपी,दोभक, २..
बन्धु,वधा..............''. ... -नीलस्वरूप ..............१६ ...... १४६७ नीलोत्पन ९.६ नीलोहामा............. ६.२ नीळा .................. १५३६ नीहार ....
१९१ मीहारी .................... १.१. नूतनमाला ............... १.३३ -नूतन....................
१ तृगण, सुगण................. १७ ३२५ –नृतनम..... १८२ नेदिष्ठा. ५.२ नेमघारि ....................
९. नेवु वर्णना दंडक ............९.. १३५९ नेहपाल ..................... ...... २ न्हानो अभंग...
......
.
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अ.स. सम. वि.स.
२५९ ५२०
सम.
३७७
व.दं. ४६४ सम. ४०६ म.दे.ई. ५३४
......
सम.
२६३
३६८ ९०१
-पक .................. ९ -पक ..................
.
८२९ पङ्कममारिणी...............१३ ९११ -पकजमाला ............१३
.......
३२३
३३१.
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भनुक्रमणिका.
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३३१
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३३१
३३२
२३. २३२
.
...
३५६
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१.. -पएकजवाटिका............१३ ...... सम. ९.१ -पकजावामि ............१३ ...... ,
पनवती, पकममाला,पक, पक्कजावली, एकावली, कममावती, पका, कजअवली, १३ ...... , पकजवाटिका, चम्पकवाटि
का, पङ्कज .............. ) ३६८ --पङ्का ९.१ -पका .................. ९.२ पटकावली ................. ३७ --पक्षत..................
१ -पञ्च.................... ४४२ -पञ्चकमाला. ............ १२६६ -पम्बकावली ............ १.०३ पन्चचामर .............
७८५ पम्चचामर,विभावरी.......... १२. -पञ्चचामर. ............ १२४१ पञ्चचामर,नराय......... १.२४ -पञ्जयामक ......... ५७. पाचशास्त्री. ............... २७१ -पञ्चक्षिका
" -पञ्चा ................... ५ ...... २३ पञ्चा ......
_ वि.जा. " पञ्चाल,पाम्चालि,कामावतार .... ....... २६४ -पञ्चास्यांत्रि.............. ८ ५३१ पञ्जरि. .................. ८ ...... १५४ पब्जी
...... वि.व. ४९ पञ्झटिका, पद्धरी, पाधरी, ?
पद्धडी,पझ्झाटिका,प्रझटिका. S ४९ -प्रशटिका................ ३. पद हरि. १................. ४ ......
......
२३२ १८९
.
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......
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१२९
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भनुक्रमणिका.
२८.
"
३७४
३०५
.....
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...
...
...
...
..
पत्र
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५७४ पटुपक्किा .................... ...... ४७८ पणव. ....................... ...... ११८९ पतङ्गपाद ................... ४.० -पत्ति .....................
२७५ ७.९ पथिकान्ता .................११ ९५८ पथ्या,मगरी,बसुधा .........१४ ४६ पथ्या...............
आ.गी.प्र. १.५ १२३ पथ्याभार्यागीति. .............
मा.गी.मे. १२१ १.६ पथ्याउद्गीति...............
गी.मे. ११८ ८९ पध्याउपगीति ............ ७२ पध्यागीति ५५ पथ्यार्या ..................
भा.भे. १.८ २.१ पथ्यावक्त्र
न.प.मे. ५२९. १२९ पदचतुरुवं...
वि... ५.१ १.८८ -पदनील
...... सम. ३५८ १०३. -पदहंसक
४९ -पादडी.................... ५९ पद्धतिका.................... २२४ पद्धति
....... " २४९ ४९ -पद्धरी... १५२६ -पथक
३०० -पन. .................... ८. ...... सम. १५२७ -पद्मराग .................५४ ...... ५४ पद्मावती. ............
भ.स.पृ. ४४ १३६ पद्मावती,उपमावती. .........
३२ समः ३
५७ ४०२ -पद्मावती..................
... , २६४ ४१९ पद्मावत.................... १४० पद्या ..................... . ....... सम. ६४ पन्था....................... ......
...... , २३२ १४५१ पनगेन्द्र ...................२८ .....:
.....१
३४९.
......
...
...
...
...
६
,
१८
य.दं.
ब.दं.
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भनुक्रमणिका.
सम.
......
अ.स..
૪૮૮ २४८
सम.
.
.
३६८ ५१०
वि.व. अ.स.वृ. सम.
३५६
.
.
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.
.
.
.
.,
२७६
. ०
.....१२
३०४
१०३३ -पमंगल ................१५ ...... ८८५ परगति ..................
७१ परप्रीणिता. ............... २१६ परभानु ................... ७ ..... १६६ परभृत..................... ७ ११५४ परामोद ..................१८ १५. पराधिनी,वरार्थिनी
५२ -परावती. ............... १०७६ -परिखापतन ............१६ ...... १०७६ परिखायतन,परिखापतन ...... , ......
६२ परिचरिता... ४८८ परिचारवती ............. ९४६ परिणाही
७०६ परितोषा .... १३०८ परिधानीय. २६७ परिधारा ७२५ परिपुखिता ................. ११८२ परिपोषक ................. १०१६ परिमल .................. ५६४ परिमलललित ............. ६८३ परिमितविजया............... ६९७ परिलेख,धारी .. ८८९ -परिवाशिता. ............ ९२८ परिवाह
८४० परिवृड..................... १२९७ –परिस्तबक............... ......
... २६ –परिश्रुता ................ १०३१ पल्लवरी ................... ...... ११७१ पर्विणी.................. ३९८ -पवित्रा................. ९
m v.
dud ki wwww WWW w
२५३ ३०७
2 - Anm
० ० mm
५
. ३९४ अ.स.पू. ४७८ सम. .३४९
..१८
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अनुक्रमणिका.
सम.
,
२३८
"
२२७
अ.स.वृ. ४८१ सम. ३५५ म.स.न. ४८. सम. मा.स. २१२
............
सम. ,
१०
४१ पाइक ....................... १५... ३९८ –पाइता........ १०९ पाकाल. ३३९ पाकलि ..................... ११ -पाञ्चालि ............... ३
.. २६४ पाञ्चालांघ्रि, पञ्चास्यांघ्रि,वस्तु. ९ २६४. --पाञ्चास्यांघ्रि ............ ,
४३ पाटलिका ............... ...... १०६९ पाणी ...................... ......
३९ पातशीला.... ५. पादाकुलक,पायाकुलक.... ....
९ पादाकुलक.................. ३९८ --पादाताली................ ४९ --पाधरी
...१६ ३९८ -पापित्ता.................. ३०३ -पायक.................. ६१८ -पायका............... ३९८ पायत्त ..................... ३९८ --पायत्तारु ..........
५० -पायाकुलक............... २७४ पारान्तचारी................ ४३७ पारावत ... ९१३ पारावार .................. १३१९ -पारावारान्त ............२३ । १३१९ पारावारान्तस्थ,पारावारान्त...२३ ...... ११७९ -पार्थिव ...................१८ १३४९ पार्षतसरण...................२४
५. पालि....................... ५ ...... ४८० पावक, पत्ति .................. ...... १९५ --पावाणी .................. ८ ...
२५७ २९३
२६६
२५४:
३३३
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२३१
२५६
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अनुक्रमणिका.
......
......
८
२४४
२४१
३९८
.
३. पिकालिका, विधायिनी.........१२ ......। ७५ पिकाली ...................... ...... २३३ ६४२ पिचुल...................... ..... . ६५ पियूषवर्ध, भानन्दवर्धन ...... ४५ पिस्तालिश वर्णना दंडक .......४५ १८६ पिसंगी ..................... .
...... १५३२ --पीयूष ...................६६ ६७२ पुर,श्रीपुट,स्फूट ...............२ ...... २९९ ११. पुटमर्दि,कररंचा .............. ६ ...... १७४. पुरटि ....................... ...... ९.१ पुराली,नगरालिका ............ १४८ पुरोहिता.................... १३१४ पुलकाञ्चित................. १९०१ -पुष्पदाम................. ६८९ -पुष्पविचित्रा .............. ९१५ पुष्पशकटिका ............... ८०९ -पुरापताप्र.................
३१९ ५. पुष्पिताप्रा.
अ.स.पू. ४८३ ११ पूर्णा ........................
सम. ९ -पूर्विदुहो..................।
म.स. ७९ ९१५ --पूर्वेन्दु...................१४ ११११ पृथ्वी .....................१७ ...... ८४९ पृषद्वती,निस्तुषा ............१३
३२५ ११. -पैडि
४६ १३५ -पोमावती ...
,, ५६ १५१८ -पौड़क ..................५५ ...... वदं ४६५ २४५ पौरसरि ................... ७
सम. १८ पौराणिक ................... १. पंक्तिछंद ......................। १५ पंचोतेर वर्णना दंडक..........७५ ......
३३४
...
...
.
..
...
...
....
...
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...१८
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५८
मनुप्रामाणिका
.......
,
२७०
,
२९१
१५
......
सम.
५४ पांशु,वाकि.................. ५ ...... सम. १३१ २१ प्रकृतिछंद .................. २१ ...... १४४ प्रगीति .....
...५९. भा.पी.प्र. १२४ ३४ प्रगुण,चतुर्वेशा,धनपांकर........ ५ ...... सम. २२९ १४३२ प्रचितक,सिंहविक्रान्त.........२७
४९ -प्रझटिका ................. ...१६. सम. १० ४३५ -प्रणव....................१० २१२ प्रतर्दि,स्वरूप,सरूप............ .....
२४८ १२१ प्रतरि...................... ६ ....... ६.१ प्रतारिता ...................११ ...... ८५८ ---प्रातबोधिता ..............
३२६ ९५२ प्रतिभादर्शन............... ......
३३८ १२६९ प्रतिमा.....................
२१ ......
३८८ ६८ प्रतिविनीता .............
भ.स.वृ. ४८५ ११४४ प्रतिहार ...............
४ प्रतिष्ठाछंद. ................ ४ ..... २८३ प्रतिसीरा,संजा,संज ......... ८ १०६४ प्रतीपवल्ली..................
३५४ १३. प्रत्यापीड......
वि.यू. ३९८ -प्रपिता ................ ९ ...... १९१० -प्रपञ्च..................१९ ...... १३१० प्रपञ्चचामर,प्रपंच,पंचचामर... ,
९१४ प्रपमपानीय............... १४ ९५६ प्रपात......................१४ ८७५ प्रपातलिका .................३ ५२. प्रफुल्लकदली................ ८८१ -प्रबोधफलिता............. '६५८ ---प्रबोधिता................१ १३.१ -प्रभद्रक.................... ...... १.२६ प्रभद्रक,प्रभाद्रिका,मुसेलक......१५ ......
...
...
...
...
....
२६६
.
.
.
.
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३३०
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३४८
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भनुमागिका.
समं. ३४८ " ३.६ . ३२७ म.स... ४९२ सम. ३४१
, ३५८ आ.गी.प्र. १२३
सम.
२५६
___
अ.स. अ.स. सम
१५६ ४८६ ४८1
३१२
१.१६ -प्रभद्रिका.................१५ ...... ७१० --प्रभा....................१२ ...... ८५९ प्रभावती....................१३ ......
८९ प्रभासिता................... ...... ९७९ -प्रमदा ...................१४ ...... १.८६ प्रमदा......................१६ ...... 2. प्रंमदांगीति .................. ...५९ २९५ प्रमाणका, प्रमाणी, पावाणी, )
मर्दनाराच, सामाणी, प्रवाणिका, नगस्वरूपिणी, लत्रु
८ ...... नाराच............ २९५ --प्रमाणी. १४ प्रमाथिनी...................
४१ -प्रमालिका ................ ७५२ प्रमिता.................. ७५४ प्रमिताक्षरा.................. ७२० -प्रमुदितमदना............ ७२० -प्रमुदितवदना............. ८७० प्रमोदतिलका................. ८०९ प्रमोद, पुसपतान............. ८२ प्रमोदपद................... 52 प्रमोदपरिणीता............... १४७ प्रवर्दमान,वर्द्धमान. ...... १.६७ प्रवरललित, प्रवरनललिता.....१६ १०६७ -प्रवरनललिता..............१६ ...... ३८३ प्रवाल्हिका.................. ९ ...... २९५ --प्रवाणिका ............... ४८६ प्रवादपदा .................. १९७ प्रवालान्तिक १३८ प्रवाहिका................... ......
७ प्रत्तक. ..............
३१३
अ.स.पू. ४९० अ.स.ई. ४८९ वि.. ५०९ सम.
सम
२६५ २५६ २७६ ५२६
...... ......
२१५
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४४४ प्रसा......
२६ प्रसूमर मरालिका.
५९२ प्रमरकरा ......................................19 ९८५ प्रहरणकलिका, प्रहरणकळिता.... १४ ९८५ - प्रहरण कळिता.. ..............१४ ८१६ प्रहर्षिणी..
१२८ प्रहाण
८०२ प्रज्ञामूल
५५९ प्राकार विश्वक
44.
६ प्राच्यवृत्ति. ३९८ -- प्राप्ति....... ८२३ - प्रानपियारी
१४०४ प्रियजीवित
४०. प्रियतिलका
९४४ - प्रिया
९ - प्रिया
४२ प्रिया, रमा
७३३ प्रियंवद, प्रियंवदा
- प्रियंवदा
प्रीता
गंभीर,.......
•
*********
...
७३३
३३३
१२२५ प्रेम
११ प्रेमा
१३५ प्रेमावती, पोमावती
२१० प्रञ्छिता
११९ प्रोथा
१०२८ प्लवंगम.
७४ प्लवंगम.
......
...
अनुक्रमणिका.
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*********
..
फ.
४९४ फलधर......... ३६ - फलिताम..
.....
.........
*******
१०
. १२
. १३
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.
७
१३
११
.१३
..२६
*****
९
१४
१२
१९
११
१५
१०
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26.04.
......
......
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......
३२
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२१
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33
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सम.
अ.स.वृ.
१७१
३०८
२९०
३४२
३४२
३२०
२४०
३१९
२८३
२१६
२६६
३२१
४१३
२६७
३३५
२२६
२३०
31
२६०
३७९
२८६
५६
૨૪૦
२३९
३४९
२६
२७६
૪..
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अनुक्रमाणका.
सम.
३६७
४८२ फलिनी, चारुमुखी ............ ११४६ फल्गु ...... .........१७ ......
३५ -फारीआ ................. ३७ -फारी ...................
३० -फुल्लणा ................ ३७ १२०१ फुल्लदाम,पुष्पदाम. ..........१९ ...... ११५९ -फूलमाला
......
अ.स.जा. ८९
कवित ..........
:
:
.......
,
२८८
...१०
:
३२ वत्रिशवर्णना दटक ......... ...... व.दं. ४५७ १२९ बत्रिशासवैया ............... ३२ सम. ५ १४९६ -बत्रिशुकवित
...... व.दं. ४५८ ५८० -बधा .....................11
। ...... सम. २८८ ३७ बद्धास्य. ...
अ.स.अ. ४८० ६८१ बधिरा.
...... सम. ३०० ७८९ -बन्धा ............... ५८० -बन्धु. ............... ४२७ -बन्धूक...............
....... ., २६९ १३७९ वन्धुर .. ............
......
४०९ ६७ वभ्र ...................... . ९२३ वभ्रलक्ष्मी ............... १०६१-वम्भाण. ............
...... सम. २ -वरवा ............
अ.स.जा. ७३ २ -~-वरवे ५ बर्वरा ....................
१९ , ७५ ७२४ बरायति. ..................१२ ...... सम. ३०७ ४४८ बलधारी .................. ८ -बलाका. ................
२२६ १०७४ बलिवदन ................. ६८० बलोर्जिता.अचलचर्चिका ......१२
३५ -बहारी.................. ५
......
AN M Www
:
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..............
:
.......
,
२७२
३००
س
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अनुक्रमणिका.
२४५.
................
३६३
....
२७२
२५४
......
२३६ २६९
२६३
१८५ बहुलया ..................... ...... २००६ बहुलाभ्र ....................१५ ...... १३४३ -बाम .................... १४७७ बाललीलातुर ११२२ बालविक्रीडित ...............
८ बाला ...... ............. ४३६ -बाला ................... ४४९ ~बालिका. ............... १७७ -बितान..
९६ बिन्दु ..................... . ४२७ बिन्दु, बन्धूक................ .... २६८ बिम्ब, बिम्बा, ललिततिलका,)
विश्वा, पंक, पंका........... ११०६ बिम्ब.......................१९।
३६८ -बिम्बा .................. ९ ९२१ बिम्बालक्ष्य................
७९ बिहारी..................... २५५ -बीजुमाला. ............. २८ बुद्धि....................... ८१ बृहच्छरावती ...............
अ.स... ९ बृहतिछंद .................. ९ ....... सम. ४२ बेतालीश वर्णना दंडक. .......४१ ७२ बोतेरवर्णना दंडक. .........
६३ बोधक..................... ...१९ सैम. २८९ बोधा ..................... ८
....... , ४२९ बोधातुरा,
सबोधा .........१० १०१ --ब्रह्म ....................
, १०६१ ब्रह्मरूप.................. १.६१ -ब्रह्मरूपक ............... , ...... ६०६१ मारूपा ............... , ......
२५२ २२९ ४९.
२६२
४६३
४६.
२३ ३५५
३५४
" "
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अनुक्रमणिका.
भ.
व.दं. सम.
अ.स.पू.
,
२९१
......
२४६७ भकामवाण,भास्मरबाण,नीलो... त्पल,भुजंगविलास .........
४३४ १३९ -भक्ति.................... ....... २४१ १४५६ भगवता...................३१ १३.१ भद्रक,भद्रिक,प्रभद्रक,भद्रिका...२२ ...... . . ५ भद्रविराट,समुद्रकान्ता .......
१. भद्रा. .....................११ ...... , २०६
१० भद्रा,भद्रिका,(उ.जा.मे.)......कुल. ११७ मि.जा. १३. १३.१ - माद्रिक..................२२ ...... सम. १९४ ६०३ -मद्रिका .................. ...... ३८९ भद्रिका..................... ९
२६५ १. -भद्रिका ................ ११. वि.जा. १३० १३.१ -भद्रिका ..... ...........
सम. ३९४ १.४३ ---भमरावली ...............
, ३५१ १४६९ भवनिधि ..................
व.द. ४३४ १.४३ -भवरावलि ................
सम. २०४ भविपुला ................
अ.स.मे. ५३१ ८४४ -भसलपद ............... ८४४ भसलमद,भसलपद ........... ४४३ भसलविनोदिता .............
३११ १४.६ भसलसलाका ............... १२८५ भस्त्रानिस्तरण .............. १.४२ माम.......................
८०५ भाजनशीला. ............... १४७८ भाधर......................
५९. -भामिनी. ............... ५२० -भारती. ......... ४३२ --~भारवहा ................ ...... ११२९ भाराकान्ता. ...............१७
सम.
४३
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.
४१.
.
.
.
.
२६०
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२८३
४०९
४३४
१२३७ भारावतार,हारावतार ......... २७२ भाद्री....................... ८ ५९७ -भाविनी .. १३८१ भाविनीविलसित ..............२५
३३७ भाषा, भासा, संभाषा, संभासा.. ८. १३४१ -भासमान .................२४ १३४१ भासमानबिम्ब, भासमान......२४
३३७ -भासा... ................. ८ ६५० भासितभरण................ ७७८ भासितसरणि.................१२ ५६० -भासिनी.. १३७४ भास्कर, भास्करविलसित.......२५ १४६७ -भास्मरबाण...............२९ ४७६ भिन्नपद.....................
४७ भिन्ना ...................... १६३ -भिन्ना ................... १२७७ भीमाभोग ...............
१४७ भीमार्जन ...... १०७८ भीमावर्त ६०५ भुजगहारिणी ...............११ ३६६ भुजगशिशुभृता, भुजगशि
शुवृता,भुजगशिशुमृता,भुजग- (. शिशुयुता,अहिशिशु, भुजगश-(
शिभृता,भुजगशिशुसुता,जुक्ता ) ३६६ - भुमगशशिभृता ......... ३६६ -भुजगशिशुयुता............ ३६६ -भुजगशिशुवृता......... ३६६ -भुजगशिशुसुता. ...... ३६६ -भुजगशिशुसृता. ......... ७४८ भुजङ्गजुषी .................. ६७५ भुजङ्गप्रयात,भुयंगपथाङ ......१२
१५ २४३
m
२४१
mr
.
२९१
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অনুকমালা,
२९३
२९९
५१८
३०
.
...
......
...
...
८
२८०
११४ भुजङ्गभृता .................. ...... अ.स.पू. ४९७ १४६७ -भुजङ्गविलास ............२९ ...... व.दं. १४१४ भुजङ्गविजृम्भित ............ ३८० भुजंगसङ्गता ...............
. सम. २६४ १३३९ -भुजङ्ग ... ............... ५९. भुजङ्गी, कर्ण, सेहेल ........
२९० १४१३ भुजगेरित ..................
४१४ १२९६ भुजङ्गोद्धत ............... ६१६ भुजलता .................. ३७५ -भुयंगपभाउ ............ ...... १७६ भुवनाविरति ..............
३७ -भूतलमान्या ......... २५९ भूमधारी
२५२ ५३१ भूरिघटक ............ १४५ भूरियामा ............... २३९ भूरिमधु ........
२५० २४० भूरिवसु .... ९७२ भूरिशिखा ............... १२३४ भूरिशोभा ............... ३ भूषणगलितक ............
२१९ १२३१ भेकालोक ......
सम. ३८० ११९७ ---भेरौ ..................
३७५ ४१२ भैरव ..................
२६८ १०७२ भोगावली .................. १२९० भोगावली ..................२२ ...... , __३९२ १५३० --भोगी ...............
प.दं. ४६६ . १८४ भौजङ्ग............
वि.. ३७७ भौरिक, महालक्ष्मीका,
___ महालक्ष्मी, महालक्षी. ...... ९ ...... सम. २६४ १०४३ -भ्रमर ..................१५ ...... , ३५१
२५०
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
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.
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.
.....
,
३५५
५२१
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भनुक्रमणिका.
...२८ ......
३७४
.
.
.
.
.
.
२९५
१८ भ्रमरद्विपदी. ................ ११८६ भ्रमरपद ..................१८ ६३५ -भ्रमरललित ............ ६३५ --भ्रमरविलसित ............ ६३५ भ्रमरविलसिता, भ्रमरविलसि ।
त,भ्रमरकलित,भ्रमरवित ... '' ६३५ ~~-भ्रमरवित ..............." १.४३ भ्रमरावती .................. १०४३ भ्रमरावलिका,मनहरण,भ्रमरा-)
वल,दंडिका,रत्न,मनोहरण, भ्रमरावती,भ्रमरावली, भमरावली,भवरावलि,नलिनी,भ्रमर...)
-भ्रमरायल ............... १०४३ -भ्रमरावली ...............
१८ -भ्रमरी ............... ४८ भ्र ..................
१०४३
"
२२८
२११
४०३ ४०५
४२७
१४३• मकर, मतिकर. ............ १३४३ -मकरन्द............... १३५५ -मकरन्द. ................ १९१५ -मकरन्दी.................१९ १२१५ मकरन्दिका, मकरन्दी. .......१९
४९९ मकरमुखी. १४४५ मकरालय ................... १०३ मकर. ................... ९९४ मङ्गली......................१४ १३४३ --मञ्जरी................ ९५८ -मञ्जरी ................. .. १९६ मजिष्ठा. ............... ११५२ --मञ्जीर. ................१८ ...... ११५२ मजीरा,मजीर .. .........१८ ......
सम.
३३९
.
.
.
.
सम.
३६८ ३६८
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भनुक्रमणिका.
.
.
.
.
.
.
......
३६
....
...
...
...
.
..
८५८ मजुभाषिणी,प्रबोधिता,प्रति-)
बोधिता, कलहंस, कनकप्रभा, १३ ......
सुनंदिनी,चित्रवती,हंसनाद..) ८५७ मंजुमालती ...............१३ ...... १३३५ मञ्जुल.....................२३ ८५६ -मम्जुवादिनी .............१३ ८५६ मजुहासिनी, मजुवादिनी, .. मन्दभाषिनी..............."
...... १३३ --मञ्जरि
बि.इ. ५०३ १३६ --मञ्जरी ............
वि.. ५०४ १३३ -मंडरी
वि.व. ५.३ ११०९ मजारी ................
सम. ३६१ १४३ मन्जुगीति...............
.......
आ.गी.प्र. ११४ ४५ माळ..................... १.८७ -मणिकल्पलता ............
३५८ १.४८ मणिगुण, धवलंगा, शशिकला । चन्द्रावर्ता,शशिलखा. ......
___, ३५२ १.५० मणिगुणनिकर...............
१५२ . १६१ मणित्थक ..................
४९८ -मणिता................ १०४९ मणिनिकर ..................१५
३५२ ३९२ मणिबन्ध, मणिमध्य........... १२१३ मणिमञ्जरि.................. ३९२ -मणिमध्य. ३५५ -मणिमध्या............... ९ १२१३ मणिमाल ..................१९ ६८९ मणिमाला, पुष्पविचित्रा ......१२ ...... २१४ मणिमुखी .................. . १०. मणिहंस,मानहंस, मनहंस,रण-) इंस,मनहंसरूप, हंस, कलहंस,
-१५ ...... मनोहंस, मानसहंस, पदहंसक, चूलियारा, चूरियार .......
५१३ २.४
२६६
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६८
अनुक्रमाणका.
४२५
११४६ -मप्तकोकिल.................१८ ...... सम. १३११ मत्तगजेन्द्र,मत्तगयंद,मालती, )
इन्द्रविजय, इन्दय, मधुमाल- २३. ......
तिका,शोभा,सवैया ........ ) १३११ ~मत्तगयन्द ...............२३ ...... १६. मत्तचंचरीक ................ ४६ ८१९ मत्तमयूर,माया,मत्तमयूरी,मायक १३ ...... ८१९ -मत्तमयूरी ...............१३ ...... १४३६ मत्तमातंगस्नेलित, मत्तमातंग
लीलाकर................. . १४३६. --मत्तमातङ्गलीलाकर. ......२७ ७४० -मत्ता .................. ४४७ मत्ता,माता..................
७१. मत्ता,विनिहरण ............ १३३० मताक्रीड,मत्ताक्रीडा,वाजिवाहन.२३ १३.३० मत्ताक्रीडा................,
६५८ मत्ताली..................... १४३० --मतिकर .............. १२९९ मतेभ ......... १२३९ मतेभबिक्रीडित ......... ३९३ -मथना ........... १४३ मदकरण .................. १२६ ---मदकल... १२४७ मदकलनी १२६ -मदन... १२६ -मदनक.................. , ४.४ मदनक, रतिपद, कमला, ।
कम्बलया, द्रुणा...,... " १५५ -मदनग्रह. ................ ४० ८८८ मदनजवनिका................१३ ...... सम.
.
.
.
.
.
.
...
.
. २३९
२३९
२६७
३३०
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मा.दं.
६७
११
......
س
२५९
نم
اسف
मनुक्रमणिका.
rrrrrrrrrrmirmmmmmmmm १५५ --मदनदीपन................ ५८४ मदनमाला................... ४८१ -मदनाकुल................ १०२२ मदनमालिका................. ३१३ -मदनमल्लिका .......... ६१९ मदनया..................... १.९१ मदनललिता.................. १५५ -मदनहर. ........... ... १५५ --मदनहरण............ १५५ मदनहरा,मदनहर,मदनगृह, ।
मदनहरण,मदनदीपन......, ९९ मदनांतक ................. ३८७ मदनोद्धरा ..................
७८ -मदरशीर्षा .............. १२९४ –मदरा ............... ..१५१ मदलेखा .................. १८३ --मदलेखा
६९ मदाक्रान्ता. ............... ५६६ मदान्धा ....... ९३३ मदावदाता. .............
.....१४ १२७३ -मदिरा............... १३५७ -मदिरा............... १२९४ मदिरा,मदरा ............ १३१३ मदिरा,सवाइ
............... ६ मधु....................... १२५१ मधुकर, महूअर ............ ९९६ मधुपाली,मनोरम ............
७ मधुभार,छवी,वसुकला......... १९. -मधुमत.................. ८ २८ मधुमत्त.....................
३९३
'२४२
२४
......
अ.स.वृ.
४८७
...
२८४
...
mmmm Pr
३९३
,
२२६
......
२४६
१२
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अनुक्रमणिका.
३७
४
...
...
३३६
......
४९८
अ.स.वृ. सम.
......
.
.
.
.
.
.
... ....
, ,
२२६ . २६९
...
...
व.दं. सम. घ.दं.
४३७ ३५१
. १९. मधुमती,मधुमत,वास्तुमति ...... ......
३८५ मधुमल्ली ................... ९ ...... १३१ -मधुमालतिका.............१३ ...... ९४० -मधुमाधवी.... १०६ मधुमारक................... ६
...... १६३ मधुरा .................. ११८ मधुवारी ..................
३ --मध्यमाछंद. ............ ९१० मध्यक्षामा ..................
३ मध्या,मध्यमाछंद ............ ३ ४२५ मध्याधार ...............
२६ मनमोहन................ १४८२ मनहर (बीजो)............
.... ......
. १०४३ -मनहरण. ............ ...... १४८१ मनहर .................. ......
१९१ मनसुख.................... १.३० -मनहंस...................१५ १.३० -मनहंसरूप ...............
६२. --मनिमाल. ............... १२५१ मनोभव..................... ९९६ ---मनोरम... ४१५ मनोरमा..................
२९ मनोरमा.......................। - २५. मनोला...................... .
१.८ -मनोहर. १.४३ –मनोहरण ................ १४९७ मनोहरण...................३२ १.३० -मनोहंस..................
९७ मन्त्रिका..................... ...... १३१२ ~मन्थर.................. ......
५२३
,
१९४
"
३४
।..
...
अ.स. सम.
१५३
...... ......
४५८ ३४९
.१५
सम.
२३७
३९८
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अनुक्रमणिकां.
.
२३.
.
.
.
.
.
.
....
.
.
२३१२ मैन्यरायन, मन्धर.............२३ ...... ३३४ मन्थरि...................... ...... ९९ -मन्थाण. ................ ९९ -मन्थाणा. ...............
मन्मान,मन्थाणा,मन्माण, ।
मन्थानक ............... १.७ --मन्थान.
९९ -मन्थानक ............... . १३ -मन्दर ..................
१३ -मन्दरा..................
१३ मन्दरि,मन्दर,मन्दरा ......... १०८१ मन्दाकिनी..................
७१० --मन्दाकिमी............... १११३ मन्दाक्रान्ता. ............... १२५४ मन्दाक्षमन्दर ............... १६३ मन्देहा..................... ९४८ मन्मथ .....................४
१२ मयूपसरणि. ...............१३ ४३८ मयूरसारिणी,शिखिसारिणी...... २०८ मयूरी ...................... १.३१ मयूषदना ..................१५ .८६ -मयंधरमाळव.......... १११ ~-मरहटा. ............... ४६३ -मरालिका .............. ३४५ मर........................ १५३४ मर्कर्टफ...................
४. मर्मस्फुर ............... १.. मलयजसुरभी ...............
०१. -मठवा .................. . १३८७ मल्लपोप्रकाश ...............२५
.
.
६०
२४७
३४९
.
.
.
.
..
..
...
...
...
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अनुक्रमणिका.
२५९
.
१३६९ मल्लि. ..................२६ ...... सम. ४.८ १३२५ मल्लिका, मानिनी, सुमुसी, ? सवैया, कुंदसवैया ........
२३ ......
४.. ३२३ मल्लिका,समानिका,मालिका, र
मदनमल्लिका............ २०८ मविपुला.
अ.व.भे. ५३३ ८८ मशगा ..................
....... सम. २३५ ४०७ ममृण.............
...... , २६७ १५२ महनीया. ............... ....... , २४२ ५६ महचंद्र.
१७ , २१ ३७२ महर्ष ..................... ९ ...... , २६४
५० महा(उभय)विपुला ......... ५७ आ.गी.प्र. १०७ १५०२ -महानाराच. ............
......
व.दं. ६७ महाचपलापथ्यार्या. .........
आ.मे. ११० ६८ महाचपलादिविपुलार्या..
११. ६९ महाचपलान्तविपुलार्या. ७. महाचपलोभयविपुलार्या. ८४ महाचपलापथ्यागीति. ......... ८५ महाचपलाआदियिपुलागीति. ... ८६ महाचपलाअन्तविपुलागीति. ... ८७ महाचपलाउभयविपुलागीति..... १०१ महाचपलापथ्याउपगीति.......
उ.गी.मे. १०२ महाचपलाआदिविपुलाउपाति... १०३ महाचपलाअन्तविपुलाउपगीति... १०४ महाचपलाउभययिपुलाउपगीति.. ११८ महाचपलापथ्याउदूगीति........
, ११९ ११९ महाचपलाआदिविपुलाउद्गीति... १२१ महाचपलाउभयविपुला- 7
उद्गीति................. ) १३५ महायपलापथ्याआयांगीति. ... __ आ.गी.भे. १२२
,
१११
......
...
...
"
१२०
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अनुक्रमणिका.
अ.स.
१२२
५१६
वि.वृ. अ.सम. सम.
४०३
३०८
-
:
N
Au
१३६ महाचपलाभादिविपुलाभार्यागीति ...... १३७ महाचपलाअन्तविपुलाभार्यागीति ...... ११८ महाचपलाउभयविपुलाआर्यागीति ...... १६८ महातुरा. .................. ......
१४ -महादोहा. ............... २८ १३३९ -महानाग. ...............२४ ......
७२८ -महानिर्बन्धा. ............ १३३९ -महाभुजङ्ग................ १३३९ -महाभुजङ्गप्रयात. ........
१५५ ---महाणी.................. ११६६ -महामाला................ ११६८ -महामालिनी. ............ ११६६ महामालिका, नाराच, नराच,
नाराचक, महामाला........ ११५८ -महामोदकारी............. ११५८ --महामोद ............... १२१ महाराष्ट्र,मरहठा ............ ३७७ –महालक्षी ३७७ -महालक्ष्मीका ............ ३७७ -महालक्ष्मी ............
१७ महासंस्कारी १२८२ महास्रग्धरा. ............... १.५७ महाहव ................
७५ महिदीप ............ ५०० महिमावसायि.........
४ मही .................. १४४८ -महीधर. ............... १२५१ -महअर ................. ७३९ --महाज्वला. .............१२ ...... १६८ महोद्धता, कुमारिका ......... ७
२९
...............
.
...
सम.
......
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-७४
अनुक्रमणिका.
२४५
P
.
.
.
.
.
૨૮૮
.
.
.
१४. महोधिका .................... ....... सम.
१६७ महोन्मुखी.................. . ......... १५४३ माकंद, विमर्ष............... ९६ ......
१४ मागधीसवैयो. १४१३ -मागधी..................२७ ......
३०३ -माणव ................... ...... २०३ माणवक, माणवकक्रीड,माण-)
वकक्रीडित, पायक, नरक्रीड,
मानवक्रीडा, सुरक्रीडा,माणव.) ३.३ -माणवकक्रीड २.३ -माणवककौडित ........... ८१७ माणविकाविकास ............ ३०४ माण्डवक...................
२५७ ५६ -माणिक्यमाळा............ ८. मातङ्गी, मार्दगी.......
अ.स.वृ. ४९० १५१६ मातली..................... ४४७ -माता.................... ५८८ मात्रा..................... १२५० -मादृश...................२० ११४६ माधविका, कोक, सवैया,...
माधवी, मकरंद, वाम, वाम,
वामा, मंजरी............. iiri -माधविका ...............
m -माधवी.................. ११५८ -माधवी.................. १६३ -माधवी..................२४
४०७ १९१९ -माधवी..................२५ ५७९ माधो ..................... .११ -माधोराधा ...............१६
-मानबिम्ब ...............२४ ....
'व.दं.
...
...
४०३
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४३४.
.......
सम.
२४९
३०
अनुक्रमणिकाः mmmmmmmmmmmmmmmmmmm Pos मानमुखी, ................... ...... १४६८: मानदकर्षा ..................२९ ....... १०८ -मानव ................... १०८ -मानवक, ...............
३०३. -मानवक्रीडा. ............ १०३.० –मानहंस. ................ १०३.० --मानसहंस ............... १,१०८ मानाक्रान्ताः ................. १२९३ -मानिनी .................२२ १०१० -मानिनी..................१५ १३२५ -मानिनी .................२३,
८१९ -मायक. ................ ६९६ माया,गौरी.................. ८१९ --माया....................१३
६ माया..................... १६२ मायाविनी......
... । ३५६ मायांसारी.................. ९
५२० -~-मारती... ............... ११९८ माराभिसरण.................
८० -मादेगी.. १०८ -मालतिका... .............. ३२० -मालती.................. ८ ५२० --मालती. ...............११
७३१ मालती, शुभ, वरतनु, यमुना...१२. १४२३ -मालती..................२६
३४ मालती...... १३११ -मालती................. १०८ -मालती..................
५३३ -मालतीमाला. ............११ ...... १५१२ मालती.....................३७ ......
३२॥ उ.जा.भे. २८ सम. २४३,
२६२ " २७९
•
अ.स., ४९. सम, : २३८
...
"
३१..
१४
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अनुक्रमणिका.
अ.स.पू. ४७८
सम.
३८३
...... ......
२८
९३
अ.स.
सम.
३५२
......
,
२७९
४५
अ.स. सम.
२८३ ४३०
व.दं.
सम.
.
.
.
.
.
.
३५६
:: २६ मालभारिणी, औपच्छंदसिक, है
वसंतमालिका, परिश्रुता...., १२४५ मालब......................२०
११ मालविका...................११
१३-मालविका ................। १०५२ माना.......................१५ ५२० माला, मालती, भारती,
हीमाली, मारती.......... ' ३४ माला.......................
३ माला.......................११ ५५९ माला....................... १४५० माला....................... ११२३ मालाधर, मालाहरा........... १०७७ मालावलय................. ११२३ --मालाहरा................ ३२३ -मालिका..................
५५ मालिन ..................... ५ १०१० मालिनी, मानिनी, नूतनमाला...१५ १२९३ -मालिनी ..................२२ ५५८ -मालिनी..................११ - ७ -माली....................
५८ माली....................... १०६२ माल्योपस्थ..................
६५ मितभाषिगी.... १.५६ मितसकथि.
१५ । ६५३ मिथुनमाली...............
६७७ मिहिरा ..................... २१३ मीनपदी............... १३६३ -मुक्तहरा.................
. ९८ मुक्तामणि................... १४८५ मुक्तामणि...................३१
२५९
.
.
.
.
.
.
सम.
३९२
२८३
२२६
......
.
.
.
.
.
अ.स.पू.
.
.
.
.
.
.
.
३५४ ४८६ ३५३ २९७
......
,
२४०
४०७
४०
......
व.दं.
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अनुक्रमणिका.
७७
. ४०७
...... ......
___
,
......
"
,, गी.मे.
१२
,,
, ११३ आ.गी.प्र. ११३ उ.गी.भे. ११५
१३६३ -मुक्ताहरा................ २४
१२७ - मुक्तागुंफ................ १३५७ -मुकुन्द..................२४ ०४५ मुकुलितकलिकावली .........
४ मुखगलितक ............... ६. मुखचपलान्त विपुलार्या ...... ५९ मुखचपलापथ्या. ६. मुखचपलादिविपुलार्या. ६२ मुखचपलोभयविपुलार्या. ...... ५२ मुखचपलाआर्या ............ ७६ मुखचपलापथ्यागीति ......... ७७ मुखचपलाआदिविपुलागीति ,.. ७८ मुखचपलाअन्तविपुलागीति ... ७९ मुखचपला उभय विपुलागीति... ९३ मुखचपलापथ्याउपाति....... ९४ मुखच पलाभादिविपुलाउपाति.. .९५ मुखचपलाअन्तविपुलाउपर्गाति ..
९६ मुखचपलाउभयविपुलाउपगीति.. ११. मुखचपलापध्याउद्गीति......, १११ मुखचपलाआदिविपुलाउद्गीति.. ११२ मुखचपलाअन्तविपुलाउद्गीति... ११३ मुखचपलाउभयविपुलाउद्गीति.. १२७ मुखचपलापथ्याआर्यागीति.... १२८ मुखचपलाआदिविपुलाआर्यागीति . १२९ मुखचपलाअन्तविपुलाआर्यांगीति १३. मुखचपलाउभयविपुलाआर्यागीति ३९३ मुखला, सारङ्गिका, सारङ्ग, )
राङ्गिका, सारगीक,सारगिय,
सारवक, मथना. ४८ मुख(आदि)विपुला ..........
.,
११६
.
.
.
उद्.गी.मे. ११८
...
.."
आ.गी.मे. १२१
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
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७८
अनुक्रमणिका.
२२३
,
•४२४
२५.
१५ मुग्धगलितक................. ...... ग.प्र. २३ मुग्ध, गोपाल ............... ४ सम. २.२८ १५ मुग्धमाला गलितक.
......... ७८६ ~~-मुत्तियदाम. ............. . १३६९ -मुदिर ..................
४०८ २४ --मुद्रा. .................. १२२४ मुनि,मुनीश ...............
१४ मुनाश................. १२४३ -मुनिशेखर............ १४३३ मुनीन्द्र. .................... २३० मुरजिका........
२४९ १०१९ मुरेला ...... २५१ 'मुषकि.
.................. २३४ मुहुरा ..................... ७
२० मूळचन्द्र. .................. ४९६ मृगतिलका, अमृतगति,त्वरि-)
तगति, अमृततिलका, कुलटा, १०
सुधागत ...................) ८३ मृगाक
९ मृगी,प्रिया,विद्युत ............ ५१ मृगी,यवानी. ....... १२ मृगेन्दु,नरेन्दु, मृगेन्द्र, नरेन्द्र... ३ ...... १२ --मृगेन्द्र .................. ८१५ मृगेन्द्रमुख,हरिमुख. .........१३ १.१५ मृदंग ...................... १८९ मृदव. ..................
८२ मृदुकीला................... १९ मृदुगति. .........
१२ ४९ मृदुमालती .........
अ.स... ४८१ ११ पृष्ठपादा................... ...... सम..
अ.स.व.
४८३
सम.
......
धि.
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. २३ मेघध्वनिपूर
......११
१०० मेघविस्फूर्जिता, विस्मिता, मेघवंश १९
२०० --- मेघवंश...
३५४ मेघालोक.
७८१ - मेनावळी.
७८१
७८१ -मेणाउल.
२१७ मेथिका...
- १३६४ मेदुरदन्त, किरीट, किरत, माधविका, करीटी.
2
- १२७ - मेघाइ
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नुक्रमणिका.
- मेनिका ...........
******
-१३०४ --मोद.
- १३०४ मोदक, मोद.
११२८ मोहन...
.............................
७८६ - मोतीदाम..
७८९ मोदक, बन्धा, मोटक *१२८३ मोद
७८९ - मोटक..
६१० - मोटक..
६२० मोटनक, मोटक, मनिमाल......
*****
१८ मोहनवस्तू .
ह
६४ मोहनी....
८७८ मोहप्रलाप
३ मोहिनी, ध्रुव, ध्रुवा .. १०३९ मोहनी.
.........
१ म्होटोअभंग.. १२ मोहिनीरंडा... ७८६ मौतिकदाम, मोतीदाम, मुत्तियदाम, मयंधरमालव
२५८७ - मौक्तिकमाला
S
************
22
१.२
७
२४
...
९
१२
१२
१२
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१२
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२२
२२
२२
११७
.... १३
१५
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................................99
१२
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.....
*****.
......
......
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......
......
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5.4
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९६
......
१९
. १९
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- १२७
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सम.
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23
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2
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"
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वि.जा.
सम.
""
अ.स.जा.
२७९
३७६
सम.
"
३१६
२४८
४०७
२४०
२६२
३१६
११.६
३१७
२९४
·99
३१७
"
३९१
३९५
३९५
३६४
"१६०
२३
३१९
७४
सम. ३५०
अ.दे.
वि.जा.
५३४
१३९
३१७
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अनुकमणिका.
.
.
.
.
.
.
४१
२५५ -मौक्तिकतिलक............ १८१ मौरलिक,कलिता ,कलका....... ७ २६० मौलिमालिका ... ............ २१५ मौलित्रक् .................. १८ मंगलवस्तू . ................ . मंगलवस्तूनाभेद. ............ ९५८ -मंजरी ११०९ मंजारी.....................
५७ मंजुसौरभ ............... ८५६ -मंदभाषिनी. ............ १५३८ मंदार................... १२८९ मंदारमाला. १५८ मंशुमतिका. ................
......
२४. वि.जा. १७०
, १७१ सम. सम. अ.स.इ. ४८४ सम. क.दं. ४६८ सम.
५१२
.....
......
...... ......
.
..
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
वि..
य.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
१४६६ यकामवाण,नवमालिका. ......२९ ...... व.दं. ४३४
६२ यमक .................. ५ .. सम. २३२ १८६ यमनक..................... ७
२४५ ५२ --यमवती. ............
अ.स.पृ. ४८३ ७३१ -यमुना ..................
सम. ३१० ५१ -यवानी...............
अ.स.पू. ४८३ ५२ -यवामती. ............ २०९ यविपुला. ...............
अ.व.मे. ५३३ २६८ यशस्करी ............
३६ -यशोदा............... २६१ युगधारि. ...............
, २५२ २०३ -युग्मविपुला.........
अ.व.भे. ५३० १८७ युतक. ...............
वि.पु. ५२२ ३६६ -युता. ...............
सम. २६३ १७ युद्धविराट,कान्ता ............
अ.स.७. ४७६ १७३८ यूथिका ....................
१२ ......
सम.
"
२३०
...
...
.
.
.
.
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.
.
.
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अनुक्रमणिका. unronmmorammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmanmm ८ योग, ...................... . . सम.. २५
२६
......
४१३
२३ राशिका ...................... ९ १०.०० १४७ रङ्गिक्ता ....
मा.दं. १४५५ रङ्गियो,वर्णरंगी............... .२० १..... व.दं. ४.१ १४९८ रङ्गीका......
४५८ १२८८ रजतहसी ...................१२
३९१ - रजनी ..................... ३
२२५ ३९७ रजक ..................... ९ ...... १४०५ रजन..... ६.९ -रजिता.................११ ......
....... " २९२ ५ -रड्डा .................... १६६ वि.जा. १३१ ५ -रड्ढा ................... ......
" ६० रण........................ १८ सम. २२
१५ रण्डा, रुण्डा, रड्ढा, रड्डा.... १६६ वि.जा. १३१ ११५० रणशूर......................१८ ...... सम. ३६७ १०३० -रणहंस. ...............१५
...... , ३४९ ८७ रणोदय .....................
अ.स.कृ. ४९२ १०४३ -रत्न. ..................१५
सम. ३५१ ३९५ रत्नकरा,रलका. ............ ८३५ रति
१२ रतिकरी. .................. ४०४ -रतिपद ............... ९४७ रतिरेखा ... १०७९ रतिलेखा .................. ५५५ रथपद,वृत्ता,सुकृति,सुमनक, है
वत्रा,वृन्ता............. .'' ६.. रथोद्धता,रयोध्रता ..........११
१० रमण,रमणी,रमुना,रजनी. ... ३ ... १०५९ रमण .....................१५ .....
...
...
.
.
.
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३६५ रम्भा...
४२ रमा.
१० – रमुना
१९ रथणछप्पय.
२०१ रमणिय शिखा, पञ्चशिखा......
८८४. रमणी.............
१०. - रमणी...
३९५
१२५० - रल्यका
२०५ रविपुला. १२७ रविरुचि ३८१ रवोन्मुखी.
...
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- स्लका .........
......
अनुक्रमणिका
**********...
.........
*****.........
....
*****
......
******
......
१ रसउलाल, ......... ... ....५६
...............१३
*******...........
८०. १. रसधारा........... १३८ रसधारि
५०९ रसभूम. .................. १०
१२२६ रसाला.
१९
...............
१३
३
२०
..........
***************
....
................
...
८५१ राग. ............ .........................
१५.४ राजचन्द्र. १६३ राजराजि, भिन्नाः ............. ७
९. राजसेना ५९७ - राजहंसी: ..............११ ६ राजीवगण .
6 ू
.....................
१३
*****......
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.......
....
......
......
२३०.
३
२२७
"
कुल. १२० वि.जा. १८१६
.....
...
.....
......
९०. रसावली, रोडक, चतुष्पदी,
अर्कच्छाया. ८१ - रसावली | ...................................... & *****.
१.१
१.४ रसिक...... ७७० रसिकपरिचिता. १३.७२ रसिकरसाला: *..................२५
.१२ ......... *****
भरसिका, उत्कृच्छा, सुललित
३१
......
.......
......
******
......
......
२४
300000
......
......
•P.c...
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समा
**34**
23
39.
१८
>>
".
२६६
33.
सम.
३८४
अनुष्टुपू. घ. भे, ५३२
मा. स... ५००
सम.. २-६५५
वि.जा. १७३३
सम.
३.१९.
२४१:
२७८
३८०.
""
".
"3
१.
"
६.६ वि.जा
सम
३८ मा. दं.
सम
११६ वि.जा.
सम.
23:
सम..
"3
१६.
३.७५
१३.५५
७.
३.१४,
४०९
१२%
३.२.५५
६.६
२४३ः
१.३.७८
२९०.
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सम.
....... ...... ......१३ ......
३१४
.........१२
......... ४
२२८
.
.
.
.
५२४
सम.
२८६
.....
२२८
...... सम.
८४ वि.जा. १६६
,
२६
हा .................. . ...................... १४ -रामा ................... ३३६ रामा ..................... ११२० रामावद्ध ................... १५६ -रायपति. ............... १८ रायवस्तू ................. ७७ रास. ..................... ७४. रास,मता...................१ __ ७३ रासा. ..................... ११०६ रासा. .....................१६ २३८ ---रासा. .................. ७
२० रासाउल्लाल छप्पय............ '४४२ --रुक्मावती ........ ......
४४२ -रुकावती. ............ १०५८ रुचि. ..................... ११२ रुचिमुखी. .................. १५७ रुचिर...................... ८३१ रुचिरवर्णा,साला. ...........१३ १८६० रुचिरा,अतिरुचिरा,तनरुचि-..
रा,कलावती ............ २३ रुचिरा............ २८ रुजु,बुद्धि................... १० रुडाजाति ..................
१ ...... ...... १४.
.
२५० वि.जा. १८० सम. १७१
अ.स.यू. ४९७
संमे. __ "
३२३
१२ ८५
अं.स.जा.
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५ हेण्डा ................... १५२० रुद्रसारंग..................
२५३ रुद्राली..... १४९५ रूपकघनाक्षरी, रूपधनाक्षरी.)
बर्णकमनहर..
..
...
२६२
२६२
२७१ २६२ ३८५
......
"
१२५८ -रूपकमाला............... १४९५ --रूपकघनाक्षरी............. १३५७ रूपमकरंद................... ११४८ रूपमाल, रूपमाला ............
३५३ -रूपमाला ................ १०५४ -रूपमाला ................. ११४८ -रूपमाला ................ ३५३ रूपमाली ....................
९३ रूपमाळा.... ४४२ -रूपवती..................१० ३५३ ---रूपा..................... ९ १२५८ रूपामाला...................२१ ३५३ रूपामाली,रूपमाला,रूपमाली,रे.
रूपा. .................. . ७७६ रूपावली. .................. १०५४ रूवामाला,रूपमाला. १२५८ रूषामाला ..................२ १०१८ ---रेखा. ..................
१३१ रेणकी १५४ -रैरंग.
९० रोडक ............ ८९ --रोडा. ................. ५८१ रोधक...
८९ रोला,रोडा.................. १८ रोलावस्तू (वत्थू-वास्तूक)......
20. New NG. WWW WWW W M. W WW
३१५ ३५३
.........
३८५
......
,
३४७
...... सम.
२४ ,
२४ , ...... ,
२४ , कुल.९६ वि.जा.
२४२ ३. ३५ २८८
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
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.
१६. .
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अनुक्रमणिका.
सम.
४२
,
२५६
४.४
३७१
२८
गलि.प्रक. २२० भ.स.जा. . सम. " ३१२
......
उल्लाल .................. ५६ गणिय .................. ४ लघुझूलणा ..... 1 -लघुनाराच ............
...... .५२ लच्छी .................. .१७१ -सता. ..................
७ लम्बितगलितक. ............ ...... १४ लयद्विपदी,महादोहा ......... १५६ -ललत.................... ७ ...... ७५० ललना......................१२ ......
...... ७२४ ललामलालिताधरा,वसन्त- ।..
चत्वर, बरायति........... ७१४ -ललित...................१२ १३१९ -लित.... १४४७ ललित.....................२८ ...... १४२ ललित (विषम)........ ...... ५९७ ललित,भाविनी,कनकमंजरी,
भामिनी, इन्दिरा,शुद्धकामदा,"
विवुधवंदिता, राजहंसी......) १३ ललित,ललितपद,मालविका....
९ ललितगलितक............... ३६८ -ललिततिलका ............ ९ ...... ९१४ ललितपताका ...............
१३ –ललितपद. ............ ६९९ –ललितपद ............ १२७१ ललितललाम ...............
७११ ललिता,सुललित ............ ११३४ -ललिता. ............
५३७ ललितागमन. ...............११ ...... १२९३ --ललिता. ...............२१ ......
२ ललिता
......
भ.स.जी
ग. प्र. २११ सम. २६५
म.स.जा.
.
..
.
.......
४०२
, २८१
३९२ अ.स.वृ. ४४२
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अनुकमणिकाः
-
~
~-
~
६१ आ.र्ग
......सम ......
वि.प. वि..
...
...
..
२४० ४०४
१४९ ललितागीति,गाहिनी,गाहणी।
गाथिनी. ५३९ ललितालवाल................११ १३४ लवली ..................... १३५ लवली (द्वितीय) ............ ८८. लवलीलता. ............... १३९१ लविङ्गलता,कळाकुशळ, .... ।
विजय(बि )......... ३०० लसदसु,कमल,पद्म,कमला ...... ४
५४ लहुआ ..................... ५२८ लक्षणलीला. ............... १२७ - लक्ष्मी................ १३५२ -लक्ष्मी ................. ३१७ लक्ष्मी .................... ९५१ लक्ष्मी ................. ७१७ -लक्ष्मीधर ७१७ -लक्ष्मीधरा............. ११६५ लालसा................. १३०२ लालित्य..................
४६. -लालिनी.. १४५३ लावण्यलीलाप्लुत,उद्दाल........
७७ लास्यलीला.................. १०२१ लास्यकारी, चन्द्ररेखा.........
७० लास्यलीलालय............... १८४ लीढालर्क ................ ...१२ ९८९ लीला..................... ४०८ लीला.......................
.६ लीला....................... ९६ लीला ....................... १६५ -लीला .................... . २१९ --लीला ....................
,
२७४
..
भ.स. ४८९ सम. ३४० अ.स.पू. ४८७ सम.
'...
"
३४३
...२२ .
,
२
.
......
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भनुक्रमणिका.
...
...
...
"
गलाखेल ............
..............
३१८
सम.
२९९
सम.
"
२२९
१०८८ --लीला ..................१६ १५२१ लीला १५१८ लीलाकर ............. १००० -लीलाखेल १०३८ लीलाचन्द्र ............... ६६० लीलारत्न ...............
. २९८ १००० -लीलालेख ............
७९४ लीलालोल. १३३ लीलावती ............... ४७ लुप्ता ..................
......
.. अ.स.यू. ४८२ ६६९ -लुब्धाक्षी ............
२९९ ६६९ लुम्बाक्षी,लुब्धाक्षी . ५०७ लुलित................... ८२१ लोध्रशिखा ...............
३५ -लोल. ............... ९३ लोलघटिका,घटिका. ...
अ.स.पू. ४९३ ३४२ लोलतनु. ..................
२५० ११९९ लोललोलम्बलील
........... ९४२ -लोला. ..................
, ३३७ व. १९९ वक्त्र ............... ..... ...... अनु.व.मे. ५२७ ५५५ -वक्त्रा ..................११ ...... सम. २८२ १०६६ वक्रावलोक,चक्रावलोक......... २२२ -वच्छ ..................
...
२.४८ ३७ वज्रचन्द्र .........
१४ , १४ १००१ वज़ाली.....................१५ ...... , ३४५ २ ---वडवा ..................
अ.स.जा. ७३ ४७७ वडिशभेदिनी ............
सम. २७५ १४४. वत्तुं क .....................२७ ......
...... व.दं. ४२६ ४ वत्थू ...................
१६ वि.स. १६०
सम.
.
..
.
.
.
.
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८८
अनुक्रमणिका.
....
ताविनादा...............
...
४१५ वन्दारु ....................... ९१० --वन्ध्यारुढ ...............१४ ।
१. वनमालिका ............ १३०६ वनवासिनी
............... ९. -वनिता .................. ७५७ वनिताभरण. ............... ५०४ वनिताविनोदी. ६८५ वनिताविलोक............... ४९१ --वनिताक्षी ..........
३३० १३५० -वनीपक ............
१४४ वयस्य,जयमंगल ............ २२१ वरजापि.
२४४ ७३१ -वरतनु. १०९५ वरयुवति ...... २ -वरवय ..........
१९ अ.स.जा. १ २ -वरवा १४ वरवीर.............
१३ सम. . - ४ वरवेद.....................
म.स.जा. ५४ १४९ वरशशि ...
...... सम. २५१ ९५० -वरसुन्दरी............... ......
... , ३३८ १५० ---वरार्थिनी ............... ....... वि. पू. ५१० ७२४ -वरायति. ...............१२ ...... ८८९ परिवसिता, परिवसिता........१३
५६ वरीय...................... ५ १११७ वरुथिनी ....................१९ ... १७५ वर्करिता, सुभगा, बग्ग, खंगा,१७
__खंजा, खंडका .१९ वर्गवती.....................
म.स.यु. ४७६ १४९१ वर्णककुंडली..................३२ ...... .दं. ४५७ १४६० वर्णकदंडक..................२९ ...... १४९५ -वर्णकमनहर .............. ...... ,
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
0
.
.
४
.
.
.
३७८
२४४
•
"
४१
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अनुक्रमणिका.
aw
२८
४३१
कि..
...
.
..
सम.
५०७ वर्णत्रिभंगी..................३४ ...... :
वर्णदंडक................... ५७७ वर्णवलाका .................. १४५५ -वर्णरंगी. ...............२० १३१६ वर्णवाघेश्वरी,वागेश्वरी.........
सम. १६६ कर्तिकाविलसित.. ............
वि... ५१५ ६८५ कनिताविलोक ............ १४७ वर्द्धमान.
५.९ १९५ वर्द्धिष्णु,र. ............ ९२० -वन्ध्यारूढ ............
३३४ ४७२ वर्मिता. ............... ४६० वहातुरा. ............... ६८२ वलभी..................
२१ वला,समुहो. ३१८ वलीकेन्दु ....
८४ वलिमुखी,वाणी. ............ ४०५ वल्गा ..................... १५० -वल्गुगीति ...............
आ.गी.भे. १२५ ११११ -वल्गुज..................१७ ...... सम.. ३६१ १५० -वल्लरिगीति
आ.गी.भे १३५ १३७७ -वल्ल रिका .................२५ १३७७ वल्लरी.वलरिका .............. ११११ वल्वज, वल्गुन ..............
५३४ बलवीविलास ...............११ १४२३ वशम्बद,सुखं, सामन, सावन )
मागधी,सवैया,अम्बुज,कुन्द- २६
लता, किशोर,मालती...... ) ६५९ वसनविशाला ................१२ ...... १०८ वसन्त, मालतिका, मालती, .
मानवक, मनोहर, मानव... " "" ९२९ वसन्त .... .........२४. ......
८ NWW ७
८
. MS
............
२८०
.
.
.
.
.
.'
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.
.
.
१
२७२
.
.
.
.
.
७२४ -बसन्तयत्वर ............१२ ...... सम. ३०७ ९४० -वसन्ततिलक ............१४ ...... ९४० -वसन्ततिल...............१४ ......
...... " ३३६ ९४० वसन्ततिलका,उद्धर्षिणी, सिंहोद्धता,सिंहोनता,मधुमाधवी,
१४ ...... सम. तका, वसन्ततिलक, वसन्ततिल,
३३६ शोभावती,चेतोहिता ......... २६ -वसन्तमालिका............
अ.स.पू. ४५८ ६८८ वसन्तहास..................१२ __७ --वसुकला..................... ९५८ -वसुवधा .................१४ ...... , ३३९ १४५८ वसुधाधर ..................२९ ...... ११७४ वसुपदमजरी,हरिणाभिनन्दन...१८ ......
४ वसुमात.......... १०६० -वसुमाते ................१५
३५३ १२२८ वसुमती ....................
९१ वसुमती, कमला........... १३२२ वसुरत्न,वसुरयण ............ १३२२ -वसुरयण ............ ७९२ वस्तु,वास्तुक ............
४३ वस्तु .................. २६४ -वस्तु ......... ६९८ वसा ........ १७२ वहिर्वलि ..................
२४४ ५४ वाकी ..................... १३१६ -वागेश्वरी ............... १३३० –वाजिवाहन ............२३ ५२ वाङमती,यमवती,जममती, ) अमरावती,परावती,धवमती,
अ.स वृ. ४८३ यवामती. ९३२ ---वाटिका. ..................१४ ......
३
३१८
...
..
.
...
...
......
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wNN
......
३३५
३६२
२८५ २३५
0
aw
......
.
व
......
.................११
९३१ वाटिकाविकाश,वाटिका,वाटि-)
काविलास................" ९३१ -वाटिकाविलास ............१४ १०७० वाणिनी .................. १११५ वाणिनी ................... ४५४ -वाणी
.................. २ वाणी ....................... ८४- वाणी .....
१६९ -वाणी. १२३० याणीबाण .................. १००७ वाणीभूषा.... १५३४ -वात.................. ३३५ वातुलि... ५६१ वातोर्मी ५४० वार्ताहारी ............... २६३ वात्या...............
५२ वाड़ि ..................... २७८ वान्तभार ..... ............
४ -वानवासिका ............ १३४३ -वाम २ वाम
.................... ८४१ वामवदना. ................ ४८१ -वामा ............ ११५८ -वारवाणावृत्त ......... ५९६ वारयात्रिक. ............ ४८४ वारवती .................. १५३३ -वाराह ...............
८१ वारि ..................... २४ वारि, कर्तृ,मुद्रा. ............ ४०९ वारिधियान. ............... २७७ बारिशाला,वितान,बितान ...... ८
...... ......
८
२५४ मा.समक. २०० सम. ४०३
२७५
....११
२७६
......
व.दं.
A
२२८
०
२५४
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३१ वाला, संमोहासार, संमोहा, विद्युतभ्रान्ता वाला
४३६
४४९ - वालिका.
८७ —वालिका .
१२७४ वासकलीला.......
२३८ वासकि, सुवासक, सुवासा, सवासनि, सुवास, रासा, सवासन.
९०८ वासन्ति. ७८७ वासस्मणिका
४ वासववन्दिता ७९६ वासविलासवति
१२७ वासववासिनी..
१२८ वासिनी
.....
...........
......
.....
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अनुक्रमणिका.
७९२
वास्तुक
१९० - वास्तुमति...
૮૮
-- वास्तूक.
૧
वास्तूक
'हे' ११४१ वाहान्तरित ६७१ वाहिनी
४१४ विकचवती.
७५५ विकत्थन.
७८२ विकलबकुलवली..
५३५ विकसितंपद्मावली
१४०१ विकुण्ठकण्ठ....... २३ विकृतिछंद..
८ विगलितक..
१०५ - विगाथ..
१०५ – विगाथा.
५
१०
१०
२२
७
१४
१२
१३
.१३
१७
.१२
९
५.१२
.....१२
.११
. २६.
. २३
१०५
विगाहा.
४५ विगाहितगेह, गाहितगेह, गाहितदेह २४
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......
.....
1000**
२३
......
......
.....
......
......
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a
२४.
९६
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......
......
...
......
......
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......
......
सम.
23
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३३१
३१७
अ. स. त्रु. ४७२
सम.
३१८
अ. स. घु.
५००
अ. स.व.
सम.
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13
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वि.जा.
सम.
सभ.
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सम.
४१३
३९७
...... गलितकप्रकरण २२१
गी. भे. ११७
११७
११७
४०४
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१२९
२७०
२७२
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३०
३८९
२५०
सम.
५००
३१८
२४÷
३१
१६०
३६६.
२९९
२६८
३१३
३१६
२८०
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अनुक्रमणिका.
१२१ ४११ २२८
.....................
......
४५९ ३०१ ४२१ २५२ २५२
२३५
...
...
...
..
२३५ २३१ २५४
१४२ विगीति. ................... ...... गी.भे. १३९१ -विजय(वि)..............२५ ....... सम. १९ विजया....
...... १५९ विजया.................. ___ ४० मा.दं. १५०४ विजया..................
व.दं. ६९४ विजयपरिचया ......... १४२६ -विज्जाहर ............
व.दं. २५५ –विज्जुमाला. .........
सम. २५५ -विजुमाला ............ ८१ --विज्जोदा ............ ८१ -विजोहा. .. ८१ -विज्जोहा ............ ५३ विट. .......... २७७ वितान ..................... ३०१ वितान ............... १४३९ वितान ...... ९६६ वितानिता. ८७६ विदला ................... ३०७, विद्या,उद्या................... ...... ६४९ --विद्याधर .................१२
...... १४२६ विद्याधर, विज्जाहर...........२७ ६४९ विद्याधार,विद्याधर,विद्याधारी?
विद्याहार............... ६४९ -विद्याधारी................१२ ६४९ -विद्याहार.................
९ -विद्युत .................. ८४३ -विद्युत ..................
३१ -विद्युतभ्रान्ता ............ १४७० -विद्युत्कर्षा ...............२८ ...... ब.दं. १२५५ विद्युदाली ................... ...... सम.
४२६
३४०
......
...
...
४
२५८
४२१
...
सम.
१
२९७
२२६
३२४
२२९
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९४
२५५ विद्युन्माला, विद्यन्लेखा, बीजुमाला, वृंदामाला, मौक्तिकतिलक, विज्जुमाला, विद्वनमाला, सोमकांत, सोमकांत, सोमकंतो, सोमक्कतो, महाणी, सोमक...
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६९१ विद्रमदोला..
२५५ - विद्वनमाला.
अनुक्रमणिका.
2
२५५ – विद्युल्लेखा .... ६३ विद्युल्लेखा, शेषा, शेषराज, शेष .. ६
१२
...
..........
७३० - विधायिनी .
७२९ विधारिता
११९६ विधुनिधुवन ८३४ विधुरवितान. ११३९ विधुरविरहिता ..
८९१ विनताक्षी, वनिताक्षी...
९७० विनन्दिनी..
१४११ विनिद्रसिन्धुर
१३९४ विनयविलास
७१ - विनिहरण
--
.............
१२
१२
१९
.१३
१७
१३
.............. १४
५५९ – विध्वंकमाला.
९२० विन्ध्यारूढ, वन्ध्यारूढ
१०८३ - विपक्क..
१३५४
विपक्व .. ७९७ विपन्नकदन, विपन्नकलन, वि
}
पनकवल
............
......................................
८
......
७९७ - विपन्नकलन
७९७ --- विपन्नकवल ...
२०२ विपरित पथ्यावक्त्र.
९७ विपरिताख्यानकी........ ९७६ विपाकवती..
१०२३ विपिनतिळक, विपिनतिलका.
२६
.२६
.......
८
११
१४
• १६
. २४
१३
१.३
. १३
१४
• १५
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........
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......
......
......
......
......
......
......
२०
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......
......
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06
......
......
...
......
......
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सम.
15.
33
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29.
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अ. स. बु. सम.
२५२
2
२५२
२३२
३०१
२५.२
३१०
३०९
३७५
३२३
३६६.
३३०
३४०.
४१४
४१२
२५
१८३.
३३४
३५६
४०५
३१८
३१८
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अ.व.भे. ५३०
४९४
३४१
३४७,
३१८
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.......
७४१ विपुलपालिका ४७ विपुला ...
२०३ विपुला, युग्मविपुला.
३३० विपुला.... १३१७ विपुलायित.
७१८ विप्लुतशिखा
५९७ -- विबुधवन्दिता
८०० विभा
७८५ - विभावरी.
८७१ --- विभावरी..
१५४३ – विमर्ष...... १९८ विमला....... ५६७ विमला...
१८ – विमला.
२९ विमानिनी.
११३ विमुखी..
८१ विमोहा, विजोहा, विज्जोहा
अर्द्ध काममोहिनी, त्रग्विणी, रसावली, चंद्रमाला, विज्जोदा, वियोधा, जहा ७७३ वियोगवती
७ - वियोगिनी
८१ - वियोधा
.....
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अनुक्रमणिका.
*****....
... ....
......१२
१४२९ - विरयिकप्पो ४८४ विरलकाटेका ....... ३३ विरलविरांगा, विरलवैराग ८३३ - विरलवेराग.
२३
१२
११
...............
१३
१२
. १३
.९६
********
११
४
६
७४४ विरतप्रभा ..
...१२
१४२९ विरतिकल्प, विरयिकप्पो ......२७
१२
७१३ विरतिमहती ७ विरया
६
.१२
............ २७
१०
१३
१३
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......
३११
सम. ३०,२७=५७ (आ.प्र.) १०६
अ.व. भे. ५३०
सम.
२६०
३९९
३०६
२९०
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३१८
३१७
३२८
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व दें.
४६९
अ.व. भे. ५२७
सम.
२८४
२२८
अ. स.वृ.
४७८
अ. स.वृ. ४९७
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सभ.
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सम.
در
३१५
अ. स. वृ. ४७३
सम.
२३५
३१२
४२१
३०५
अ.स.जा. ७५
व.दं.
४२१
सम.
२७५
३२३
३२१
"
च. दं.
શ્ય
23
>>
73
२३५
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'४०९
.
अनुक्रमणिका. ७३४ विरला,वीरला. ............१२ ......
७६. विरलोद्धता. ...............१२ ...... ३१३ १३७३ विरहविरहस्य ...............२५ १३२६ विराजित,श्रवणाभरण,सवाइ...२३ २६२ विराजीकरा. ................
२५३ ४६६ विराट,शुद्धविराट.............१० । ८६१ विराधिनी..................
३२८ १४१८ विरामवाटिका............... ११३१ विरुदरुत .................. ५०५ विरेकी .....................
२७८ २२० विरोही.
२४८ १३२१ - विलें ...............
९३७ विलम्बनीया ............... १३२१ विलम्बललित,विल ...... ६ विलम्बितगलितक.
गलितक.प्र. २२० ५५० विलम्वितमध्या. ...........
२८२ २४२४ विलास. १०९८ विलसित
.................. ११६९ विलास.....................
३६ -विलास.................. १३१० ---विलास..................
....... , ३९७ १५२५ विलास .. १६ विलासवापी ...............
अ.स.पू. ४७६ १३१० विलासवास,सुभाग,विलास ...२३ सम. ३९७ ५६५ विलासिनी ................... ...... ५३० विलुलितमंजरी............... ११५५ विलुलितवनमाला .........
६६३ विवरविलसित ............... १०४५ विभकलिता ............... ४३३ विशदच्छाय,कलगीत .......... ...... ३.७ विशल्य..................... ९ ...... २६३
...........
.............
My
"
,
३७१
व.दं.
م
م
ع
३९८
ه
م
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अनुक्रमणिका.
२७३
२७२
२९८ '४५६
४१० ४६५
r
.
३५८ ४६२
m
४५६ विशालप्रभ ................. ...... ४५५ विशालान्तिक...............१० '६५६ विशालाम्भोजाली, अम्भोजाली.१२ . १४८८ विशाळ ..................३१ .......
७१९ विशिखलता ................१२ १३८३ विशेषकवलित, विशेषित......२५ १५२९ विशेषस्तबक............... १०८८. -विशेष.................. १०८८ -विशेषक................ १५११ --विशेषशालिन............ १०८८ -विशेषिका.............. २०३ -विशषित.........
३ विश्लोक .................. १२३२ विश्वग्वितान................ - ९१ विश्वप्रभा .................. .. — ४९० विश्वमुखी,सारवती,सारस्वती. १० १५२६ -विश्ववाह ...............
५६६ विश्वविराट,मदान्धा .........११ १३९५ विश्वविश्वास ...............
३६८ -विश्वा .................. १५३ विषकण्ठी .................. ...... ६५१ विषमव्याली ............ ...१२ ३३ विषमपदजाति.
........... ३४ विवमपदजाति. ३५ विषमपदजाति. ............
(मा.स.क.)२०४ सम. ३८१ अ.स.वृ. ४९३ सम.
२८४
४१२ .. २६३
......
वि.. सम.
२९७
वि.जा.
२०३
. २०४ २०४ २०५
,
...
ग.प्र. सम.
२२१ ४१४
.
.
.
.
.
.
......
१० विपमितगालतक......... १४१० विषाणाधित ५५१ विष्ठम्भ .................. ६१ -विष्णु ..................
" . ,
२८२ २३२
..."
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९८
१३६३ - विष्णु १०२ विष्णुपद १२२ विससि
-
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*****.*.............................
१२५० - वृत्त.
૧૬
अनुक्रमणिका.
************
.....
५१७ विनंसि. १५३४ विस्तार, वात. ..........७२
...............१९
१२०० - विस्मिता ५६० विहारिणी, भासिनी. २९१ विद्यावा.
१४ विक्षिप्तिकगलितक.. १४७० वीजकर्षा, विद्युत्कर्षा ६५७ वीणादण्ड.. १४१६ वीणार..
८७ वीर्या
२६ - वीर.
१२६ – वीर. ७७१ वीरणमाला. १२७८ वीरनीराजना ७३४ - वीरला
२४६ वीरवटु... १३९८ वीरविक्रान्त १२३८ वीरविमान १११० वीरविश्राम. १७
......
.........
.......
**************
*****.
*****....
.........
.................
..90
*
१२
२६
.... ६
४
*****
********.....
१४
.........
३९० वीरा, अवीरा, पापित्ता, पवित्रा पाइता, प्रथिता, प्राप्ति, पायल, पायत्तारु, पादाताली ४१३ वीरान्ता .................................. 90 ७२७ वीरासिका, इन्दुवंशा, इंद्रवंशा १२
२६ – वीर.........
४
६१४ वीवध
११
...
.२६
२०
******...
१३
२२
१२
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.........१०
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११ ......
-
- वृत्तचत्र. .................. 98
...
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ब.पं.
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१५६
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१५५
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१६९
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१२९
१९३
૧૪
R
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अनुक्रमणिका.
२५५.
.
.
.
.
.
.
२८२
.......
२८७ वृत्तमुखी.... १०४ वृतहारि .................... ६ ३६६ -वृत्ता..... ५५५ -कृता..................
८ -पत्ति ..................... ३ ८४६ पद्धवामा ....................१३ ३३० वृन्त........................ ५५५ -वृन्ता .....................
M२८३ २११ वृन्दा........................
" १४५ २५५ -वृन्दामाला................ ८
__, २५२ ................ ८ वेगवती ..................
अ.स... ४ ११३ -वेताल ................
मा.स.जा. ४५ ५६ वेदवाणी. ...... .........
भ.स.. ५०४ १३९ वेधा, भक्ति ९३५ -वेलांचल ................. ९३५ -वेलान्तर
................ ११६१ वेल्लितवेल... ................ ९९८ वेशम्भरी................... ३५१ -वेशि... ....... ....... १६. वेश्याप्रीति..................
४०६ ३५१ वेषि, वेशि...... २५ वेसर .....................
अद्धसमजाति ८८ १५३० -वैकुण्ठ
......
व.दं. ४६० १३५१ वैकुण्ठधामा ...............
......
सम. ४०४ . १६२ वैतालिक...................
वि.. ११३ वैतालिक.................... ....... सम. ४५ १ वैतालीय, अथवा,अपरवक्त्र।
...६० वै.प्र. ३११ प्रकरण......... ४१ वैनस, खंजा................. ५ ...... सम. २३० २१ कैयाली .................... ...... अ.स.द.. ४४६
__,
१४४
......
सम.
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१००
..२ - वैर. ६७३ वैश्वदेवी. ३५९ – वैसार..
१३ वैसारी....
३५९ वैसाह, वेसार
.....
Pop
११४२ – वंशपत्रपतिता.
९३४ वंशमूल
११३३ वंशल..
१३३७ वंशलोन्नता.
११४२ - वंशवदन ७२८ - वंशस्तनित.
११४२ – वंशदल
११४२ - वंशपत्र
११४२ वंशपत्र पतित, जलवररसित
७२८ - वंशस्थविल ४२६ वंशारोपी
९०७ वंशोत्तसा १३६६ व्याकोशकोशल
७७२ व्यायोगवती
21.
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१५११ व्याल, विशेषशालिन
१९७ व्याहारी
वंशवदन, वंशपत्र, वंशदल, १७ वंशपत्रपतिता.
१४५२ शकायतन
१४१२ शकुन्त कुन्तल..
अनुक्रमणिका.
१४ शर्करी [शकरी]छंद.
******
..
******
७२८ वंशस्य, सस्यविल, महानि
'
.........
..........१७
..............१७
१२०७ शक्र.
१०१ शकर, चावर ..........
१२
९
१७
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१७
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१२
१४
५११
१२
१०
१४
. २५
१२
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१२
......... 98 २८
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७
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...
१९
......
...
......
*****.
......
......
******
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... 149
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......
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......
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२६
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अ.स.जा. ७३
समवृत्त.
२९९
२६१
४७२
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वदं.
स.वृ.
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स.जा.
२६२
३.६६
३६६
३६६
३६३
३५५
३६५.
४०२
३६६
३०८
३०८
३०८
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४६२
२४६
३३२
४३०
४१४
३७७
४१
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अनुक्रमणिका.
१०१
स.न.
३७५
... ...... .....
३५२
व.दं.
...
...
...
..
......
२३३ २३३
२४९
४०५
......
२४०
४०७
२९७
११९४ -शङकर .................. १०४७ शङक्रावली ......... १५२३ शक्ल .................. ११४ . शङ्खद्युति....
७२ शङ्खधारी ७२ -शङ्खनारी............. ७१७ ----शङ्गारिणी ............... २२९ शंतनु,लीला. १३५६ शम्बर .................... . ३.७१ शम्बरधारी ............... ९
१३० शम्बूक.. ................... ११९४ शम्भु,शंकर,संभो............ १३६५ शम्भू....................... १०३६ शम्भू. ..................... - ६५२ शम्या .................. १०१७ शरकल्पा ................... १२६३ शरकाण्डप्रकाण्ड, ............ - १५३ शरगीति. ...............
४९१ शरत ...................... १०५१ शरभ .................. १३६७ शरभारेणी .................. - ७०१ शरमेया. ..................
३७३ शरलीढा .................. ५०६० शरति,वसुमति ............ १८३ शरक्षामा ...............
५८ शरावती ............... १५९ शर्म............... १२४३ -शर्वरी ............. ८२८ शलभलोला... ............... २९३ शल्लकप्लुत.................. ६२२ शल्कशकल..................
:::::::::::::::::::::::::::
___
२४२
.:: :: :: :
'' "
४०८ ३०४
।
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
..
वि.कृ. अ.स.कृ. वि.वृ.
......
३५३ ५२१ ४८५ ५१३ ३८२ ३२३ २५६ २९४
___ ,
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१०२
अनुक्रमणिका.
सम,
२६५ ३५२
३८३
२३३
२३४
२
.
.
.
३९. शशिकरी .................. ९ ...... १०४८ -शशिकला................१५ ...... १२२२ -शशि ................... १२४४ शशिधर.....................२० । १९७० -शशिभृता .. ............ ६
७८ -शशिमुखी ............... ...... ७८ शशिवदना शशिमुखी, चोरसा)
चउवंशा, चउरंशा, चंडरसा, । सीसा, चतुरवर्णा, चतुरंशा, (
मदरशीर्षा,चतुरंन. १०७ -शशिराट ............... ...... १२६६ शशिवदना,सरसी,पंचकावली,)
सिंहक,सलिलानिधि,सिद्धक,सि-२१
द्विका,सिद्धि, धृतश्री ........) १०४८ -शशिलेखा ............... १२२७ -शशिम. ...............१९ ......
८ शशी,बलाका,वृत्ति............ ३३१ शाखोटकि ............... १०४१ शान्तसुरभी ...............१५
५ -शानु ...............
४ शामउल्लाल............... १११७ शायिनी ..................."
९४४ शारदचन्द्र,प्रिया ............ ११५१ शार्दूल ..................... ११८३ शार्दूलललित,शार्दूललसित...... ११८३ -शार्दूललसित ............ १२०४ शार्दूलविक्रीडित ............ ११९. -शारदा ............... १०० शालभज्जिका............... ...... ५५८ शालिनी,मालिनी ............. ...... १४६१ शालुर, सालु, सालुर..........२९ ...... ५४६ शिखाण्डित..................११ ......
२२६
...
".
३६८
.
.
.
.
.
.
अ.स.पू. ४९५
सम.
२८१
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.........
...
.
.
.
.
.
...
...
.
.
...
.
.
अनुक्रमणिका. mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmwwwww
५५७ -शिखंडित ................११ ,..... सम. २८३ ११३६ शिखरिणी ..................१७ ......
३६५ ३९ शिखा
२८+३२%६. शि.जा. ९३ ४. शिखित..................... २८ ल+ ग=३. , ९३ ३१२ शिखिलिखिता, हंसकत ........ ...... समयू. २५८ ४३८ --शिखिसारिणी..............१० १३०० शिविका, थारु, सारु..........२५
४०१ १२७ -शिप्रा.................... ७
२४० *४४ शिला....................... ...
२३१ १२०८ शिलिमुखोज्जृम्भित ...........१९ ......
३७७ १५ शिशिरशिखा ................
अ.स. ४७९ १०८० शिशुभरण ..................१६
स.पू. ३५६ १२५ शिशुमुखी...................
अ.स.पू. ५०० १०५ शिशुलीला ....................
अ.स. ४९६ ११४० -शिशुवनिता .............१८ १२७ -शीर्षक................... ७ १२७ --शीर्वरूपक................. ......
२४० १०४६ शीर्षविरहिता............... १५ १२७ शीर्षा, शिप्रा,शिया शीर्षरूपको..
शीषक,लक्ष्मीमेधाइ,मुक्तागुम्फ " १२७ शाि ....
२४० ११४० शुक्रवनिता,शिशुवनिता........१७
१४ शुकावली.................... ... अ. स... ४७५ ५९७ शुद्धकामदा.................. ११ ......
२९० २६६ शुद्धगी..................... १४२ शुध्वनी ................... ...३२ सम. ६६४ शुदांत........................ ...... १४८ शुद्धविराटऋषभ,शुद्धविराडषभ, ?
शुद्धविराडार्षभ. १४८ शुद्धविराडार्षभ. ............... ...... वि.कृ. ५०९ १४८ -शुद्धविराडषभ............... ......
३६६
.
.
.
.
२५३
...
...
...
...
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.
...
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अनुक्रमणिका.
४२१
स.
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२३२
४६६ शुद्धविराट..................१० ...... स.व. २७३
८५ शुनक... .................. ६ ...... ७३१ -शुभ. ............... - ६ ----शुभगति ............
१०८ शुभगीता .............. १४३१ शुभङकर,सहकर ........... १२६० शुभता ..................
४१६ --शुभोदर, ............... १४१७ शृंखलवलयित ............ ७१७ -शृंगारिणी................ १९५-शूर. ..................... ७ १२४३ -शेखर................... ४२० शेफाली. ............ ६३ ---शेष .................. ६३ --शेषराज..................
६३ -शेषा. .......... ६४६ शेषापीड.............. १०८९ शैलशिखा..
३५८ १४७१ शोभनमणि ............. ९२ शोभना. ..........
४ स.जा. १३११ -शोभा...................
. स.यू. १२३५ शोभा.... ९४० -शोभावति............. ...१४ ६९० श्वेतमणिमाला . ..... ...१२ १९६ श्रोणी ..................
... , २४६ २६५ श्लोक .....................
२५३ १८ षट्पदी,छप्पय............... १५२ वि.जा. १४५
७३ षट्पद ..................... ...... अ.स.वृ. ४८८ ११७८ षटपदेरित... ...............१८ ...... सम. ३७३ ५९८ श्येनिका,श्येनी,श्येनक,श्रेणिका,.. श्रेणी,ताल.... ..............।
सम.व. २९१ ५९८ ~~येनी ..................११ ...... , २९१
....११
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३८१
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३०६ श्रद्धरा, उद्धरा
५७८ श्रमितशिखंडी .......
१३२६ - श्रवणाभरण
........
190***
८०६ श्राद्धरान्ता.. ५५४ श्रितकमला..
१
१ श्री ५८७ श्री, मौक्तिकमाला, कुड्मलदन्ती. ११
६७२ - श्रीपुर
..१२
१२० श्रीबन्धु.
८० श्रीमती..
५७६ श्रुतकीर्ति, अनवसिता, माणिक्यमाला ५९८ - श्रोणिका..
५९८
-श्रेणी. स.
४२९ - सदबोधा. १४६४ सकामबाण, अशोक...........२९
३१ सखी.. १० --- सुगणी
१३३६ सभा
...
...
३४९ सन्धुक १२८ सपादी.
www.kobatirth.org
अनुक्रमणिका.
......
*****....
.......
...
140 10*** *****....
५८२ - सगता....... १४२७ सज्जन १०७५ सतशिखा...... ११६१ सत्केतु.. १५४१ सत्कार..
........... १६
१८
.....९०
३५ सत्तावीशमात्रानी [विषमपदजाति. ]
५७ सत्तावन वर्णनादंडक
..५७
२७
*****...
११
. २३
१३
११
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११
********
२७ सत्तावीशवर्णनादंडक ८७ सत्याशीवर्णनादंडक. ..............८७
२२ सती, तरणीजा......
.........
८
१०
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११
२७
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Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
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३१
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२६९
४३३
१३
२२७
१८९
४२१
३५५
३७०
४६८
२०४
४६५
४१९
४६८
२२८
२६१
५१
४०२
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१.०६
११ समगलितक..
१२ समगलितक [ वीजुं]. ४३ समगलितक [श्रीजुं]... ७६६ समदवदना ..................................93 ११३७ समदविलासिनी
..................................१७
७६ समदाक्रान्ता.... ३७० सम्बुद्धि . ६७६ समय प्रहिता ..................११.
........... .....
....................
१० २.
समयवर्ती. १४५ समानसवैया, सुगतसवैयो
१६९ - समाना १६९ - समानिका..
३२३ - सम्मानिका. ४३.४४ समाहित ६३२ समित
www.kobatirth.org
.................
१३९ सरल २१९ सरांघ्रि ५१२ सरसमुखी.
अनुक्रमणिका.
..........
******..........
.....
...
*****....
...................................................
......
*****.
.......
...
......
१२.६१ समुच्चय .......
५ - समुद्रकान्ता. १२१९ समुद्रतता... * १ – समुहो ९०० समूह, समूहा ९०० - समूहा
७
२२३ सम्याक. ६०७ सम्मदमालिका. ............... 99 ७८४ सयल (शैल)
१२
३०१ सरधा
१०९९ सरभ
९२४ सरमासरणी
१२१४ सरल
*******........
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४०३
१९५
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२४९
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३५७
३६०
૨૪
१७८
५०५
२४८
२७५
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*****....
११० सरसि १२६६ – सरसी
१०९ सरसीक
४६४ सराविका
3x aft.......................
२१२
-सरूप
५११ सरोज .
५६८ सरोजवनिका ...... ७१६ सरोजावली..
११६६ – सलिलनिधि. १२८० सर्वगामी, केकनी. १३०९ सर्वगामी. १२४६ – सर्ववदना.
१११८ सलेखा
१३१३ – सवाइ.
१३२६ --सवाइ. २३८ -सवासन. ३३८ --- सवासनि. २१० सविपुला. १४२३ - सवैयो
१२६ सवैयो
.........
www.kobatirth.org
अनुक्रमणिका.
******
********
.....
......
......
...............२१
******............
*****
..............
१२९३ सवैया, मानिनी, ललिता, दिवा,
मालिनी, सुंदर
- सवैया
१३११ १३३४ – सवैया १३२५ सवैया
१३३९ - सवैया १३४३ - सवैया १३६९ – सवैया
१३६२ - सवेया १३५२ – सवैया
.......११
...
...
...
२१
.१२
२२
२३
.१०
१०
७
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64600
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२७३
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१९०
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३९८
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३९२
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४०१
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૪૩
૪૨
४०८
४०७
४०४.
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अनुकमणिका.
सम.
४४७
२६५
अ.दे. अ.स.. सम.
.
.
.
.
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.
.
४६२
...
...
...
१३६३ –सवैया .................. २४ ...... १३५७ --सवैयो
.................. २४ ...... १२६ सवैयो,वीर...... ७९१ सव्याली. .................. ४६८ सहजा. ............... ३८६ सहोलका....
४ साकी... ३३ साचीकृतवदना .............. १२५ साटक............... ३७ साडत्रीशवर्णनादंडक.........
६० साठवर्णनादंडक. ........... १५४० साधार. .................. १५४५ सानन्द .................. ६४४ सान्द्रपद................... ५८६ -सान्द्रपदा .............. १४२३ –सामन................. ६३३ सामपदा .................. २९५ -सामाणी ............... ८ ६१७ साचक .....................१ ५ सार -..................... ......
...... १५३२ सारपीयूष ...................६६ ...... ११९ सार............. ३९३ - सारङ्ग ................... ९ ...... ७८१ सारङ्ग,मेनावली,मेनिका,सारं-) ___ गरूप,मैणाउल,मदनाकुल,सा- १२ ......
रंगा,काम ...............) १००० -सारङ्ग ................
८६७ —सारङ्ग ................ १५१२ सारङ्ग......................३९ ...... १००० --सारङ्गक..................१५ ......
७८१ -सारङ्गरूप. ...............१२ ......
२८९ ४१६ २९५
२२६
, व.द. सम.जा. सम.
...२८
४७ २६६
३१६
३४४
३३१
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अनुक्रमणिका
सम,
३६६
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३२५
२६६
२२६
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२७८
३२४
३९३ --सारङ्गिक ............... ९ ...... १००० --सारङ्गिका ...............१५ १००० सारङ्गी,लीलालेख,लीलाखेल, )
कामक्रीडा,सासंगिका,सारंग, १५
सारंगक,केशवलेख,त्रिनयन. ) ३९३ -सारङ्गिका ............... ए ७८१ -सारङ्गा .................. ३९३ -सारङ्गीय. ............... ८५४ सार्द्धपदा. .................. ३९३ -सारवक. ............... ९
४९० --सारवती .............. १०९६ सारवरोहा ..................१
५ -सारस .................. २ ५१८ सारस .....................१० ...... ८७१ सारसनावली,विभावरी. ......१३ १११ सारसमाला. १०३३ सारसिका, हारवती,पमङ्गल,
नूतन,सक्कण............" ११८ सारसी. ................... ४९० -सारस्वती...............१० ११९० सारस्वती,शारदा............१८ । २८१ सारावनदा. ................
९८ सारिका ................... १२५९ सारीसुन्दरी ...............२१ ......
५ सारु,चारु,शानु,सार,सारस...... २ ...... १३४० -सारु ...................३५ ...... ६४५ सालन.....................११ ...... १५९ -सालका. ............... ..... ११६७ -सालसा.................१०
३१ -साला...................१३ १४६१ -सालु..................१९ ...... १४६१ --सालुर. ............... " ...... ११६ सावट .................. ......
२७६
२५४
अ.स.पू.
४९४
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.
.
.
.
.
सम.
३८६
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.
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सम,
४१६
२९८
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२३३
.
.
१४२३ --सावन..................२६ ......
९५ साहूति. .................. ६ ...... १२८८ साहंसी. ...............२२ ...... ६६६ साक्षी.....................१२ । ६९. सिक्तमणिमाला,श्वेतमाणमाला.१२ १२९७ सितस्तबक, परिस्तबक......२२ । १२६६ --सिद्धि ..................२१ ।। १२६६ -सिद्धक..................२१ १२६६ -सिद्धिका ...............
६९ सिन्धुरया .................. १२६६ -सिंहक. ............ १४७५ सिंहविक्रीडमोटो ......... १०२० सीता ...............
५९९ सीधु .................. १०३४ सीरिणी . ७८ --सीसा ..................
-सीसा ......... ८११ सुकर्णपुर ............ ..... ९६५ सुकेशर.................. १०२७ सुकेसर,सुखेलक .........
५५५ --सुकृति..................११ १४२३ ---सुख ..................
८९६ सुखकारिका. ............... १३६९ -सुखदा...................२५ ..... १९६३ सुखदा, विष्णु, सुरेश्वर, कोकी.)
मुक्ताहरा, मुक्तहरा, सवैया, २४
माधवी. ९९७ सुखदा... १३६९ -सुखदानी ...............
६९२ सुखशैल. ..................१२ ११०१ सुखसार ..................१६ ११०४ सुखसार. ................. " ... ६६५ सुखानन्द ..................१२ ......
.
..१४
२००
३४८
. .
.
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४०७
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३०१
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२९८
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अनुक्रमणिका.
१११
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३४८ ३४८ २७० ७३
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ग.प्र. २१८ सम. २६४ आ.गी.प्र. १२४
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१०२६ -सुखेलक. ...............१५ ....... १०२७ --सुखेलक ............... ...... ४३९ सुखेला ...............
१ सुगण ................
६ ---सुगत ............... १४५ -सुगतसवैयो ............
६ सुगति,सुगत,शुभगति .........
२ -सुगलितक ............ ३७५ सुगन्धि. १४६ सुगीति ..................... १०० सुगीतिका .................. ६०६ -सुचित्र..................११ ......
.... १३६९ ---सुछंद ................... ७२२ सुतल .....................
३८ -सुतसंगक. ............... ५ १२४ सुदाथि ..................... ११८४ सुधा. .....................१८ ......
९ सुधा . ..................... ४९६ --सुधागत.. ...............१०. ......
... .१३३९ -सुधाप. .................२४ ...... १४४२ सुधाधार....................२७ ...... ५४७ सुधाधारा..................११. ... ... ९६१ सुधाधरा ..................१४ ...... ११३८ सुधाधारा..................१७ १५०० सुधानिधि...................३२ १३२७ सुधालहरी..................२३
...... ८५८ -सुनन्दिनी................१३
२ सुन्दरगालतक,सुगलितक ...... १२९३ -सुन्दर...................२२ ...... १३२३ -सुन्दर...................२३ ...... १३२३ सुन्दरिका,सुन्दरी,सुन्दरिया,सुन्दर.२३ ...... १३२३ -सुन्दरिया ............... " ....... ७३७ -सुन्दरी..................१२ ......
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......
अ.स.३.
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४०० ३२६ २१८ ३९३
(ग.प्र.)
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२२
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सुन्दरी..
१३२३ १३६९ - सुन्दरी..
*****.
२३८ - सुबास.. २३८ - सुवासा.
-
७ सुन्दरी, सुरमालिका, कमला, ? वियोगिनी...
९५४ सुपवित्र, पवित्र. ५ सुप्रतिष्ठाछंद..
............
५५५ -- सुमनक.. १३६९ - सुमिला. ६२३ सुमुखी...
१३२५ = सुमुखी. ६०३ - सुमुद्रिका
५५६ सुमेरु १.३२ सुमोहिता ३०३ सुरक्रीड़ा
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१७१ सुरद्रु. १२६८ सुरनर्तकी १६९ सुरभि .
७ सुरमालिका
४८३ सुरयानवती
अनुक्रमणिका.
.......
*********
......
१२२० सुरसा
११६ सुरहिता
४४ सुरादया
१५२८ सुराम, पौण्ड्रक, ईश.
४३० सुराक्षी.. १४२ सुरि
................ १४
.........
२३
....
१७५ - सुभग..
१५७ सुभय, उद्धत, उद्धतचाली... ७५९ सुभद्रावतरणी ६०३ सुभद्रिका, सुमुद्रिका, भद्रिका. ... ११
१२
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१३१० - सुभाग..
२३
२५४ - सुमत..
७
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२७०
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अनुक्रमणिका.
१३
१२
सम.
४०७ ॥
, वि.जा. १२९ सम.
३१० ३५९
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२५०
२७७
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و
३. सुरुपी ...................... १४ १३६३ -सुरेश्वर ..................२४ ......
२९ -सुलक्षण ............... १४ २९ सुलक्षणी, सुलक्षण ............. . १४
१ सुललित..... ७३२ -सुललित. ................. १०९३ सुललिता. ..................१६ ...... १२१२ सुललिता. ..................
४६ सुलू,करता,कलमुखी. ......... ५ ...... १२४६ सुवदना,सर्ववदना................ ......
७६३ सुवनमालिका,उपवनमालिका ...१२ ...... २३८ -सवास . २३.८ -सुवासक. ४९६ -सुवागत. ............... २३८ -सुवासा ................. ७६१ सुविहिता
............... ५८९ सुवृत्ति ...................... १२३३ सुवंशा ..................... .४८१ सुषमा,वामा,सुषुमा .........
४८१ -सुषुमा ............ १४३१ -सुहंकर.................
८४८ सुक्षमा..................... १४०९ सूरसूचक ..................
३३ सूरिणी.................. १०३३ -मुक्कण .............. ३६६ -मृता ............... ३४४ सृतमधु ५९८ ---सेनक .................. “६४१ -सेनिका. ..............
५९० -सेहेल ................... ६४१ सैनिक,सेनिका................११ '१२९ सैरवी ..................... ७ '३५३१ सोत्कंट,इंद्र. ................६३ .......
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३२५ ४१४ २२९ ३४९
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२३८
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अ.स.जा.
सम.
४११ २८१
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११३ सोपधि .................. ...... २५५ -सोमक.................. २५५ –सोमकान्त............... २५५ ---सोमकन्तो.............
८७ -सोमकुल ............... २५५ -सोमकतो ............... २५५ --सोमकान्त ............... ७२ -सोमराज................ ६ ७२ सोमराजी,शंखधारी,अर्द्धभु. )
जंगी,हरिशंखाणा,शंखनारी,
सोमराज. ११२ सोमश्रुति .................. - ९ सोरठा,सौराष्ट्री,सौराष्ट्र,पूर्वीदुहो. १३८८ सौदामनदाम. ............२५ ...... ५४३ सोधांघ्रि .
..... ६१३ सौभगकला ............... १४५९ सौभाग्य. .................
४४२ -सौभाग्यवती ............ १४४४ सौममाला ..................२७
३६ सौम्याशिखा, अनंगक्रीडा...... १७७ सौरकान्ता.................. ७ १४१ सौरभक,सौरभ,सौरलक....... १४१ -सौरभ................... ६०४ सौरभवर्द्धिनी................ १२४८ सौरभशाभासार..............२०
४१ सौरभसंचित,प्रमालिका........ ९३ सौरभि..................... ६ १५७ सौरागी.....................
९ -सौराष्ट्र. ...............
९ -साराष्ट्री.............. ... १४१ -सौरलक ................. १७८ संकलि..................... ९०५ --संकल्पाधार...............१४ ......
४३१ २७१
व.दं. सम. व.दं. शि.जा.
४२६
९२
सम.
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अ.स.कृ. सम. वि.. अ.स.
५१२
वि.वृ.
वि.. सम.
३३२
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९०५ संकल्पासार, संकल्पाधार........१४
४७३ - संगतिका..
७७४ संगमवती .......... १ संगलितक
१४८ संगीति..............
४७३ -संजुक्ता
४७३ - संजुती . ४७३ - संजुता १५४६ संदोह ......
१५२७ संग्राम, पाराग, तक्षक, कालदंड,
.....
२८९ संध्या, बोधा.
१२ संपातशीला.
९१९ संबोधा..
३३७ - संभाषा
३३७ - संभासा १३३३ संभृतशराधे ११९४ - संभो
...
७६६ संमदवदना ३१ – संमोहा. ३१ - संमोहासार..
४७३ —संयुक्ता.. ४७३ - संयुगा ४७३ - संयुत
.......
१५४२ संस्कार... संस्कारी..
.........
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*****
अनुक्रमणिका.
४७३ संयुता, संहतिका, संयुगा, संयुत,
संजुती, संयुक्ता, संगतिका, संजुक्ता, गीतक, संजुता, कमला. १२३६ संलक्षलीला.. ६४० संश्रयश्री ५३८ संसृतशोभासार.
......
*****..
1
१०
१२
...
५४
१०
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१६
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आ.गी. प्र. १२५
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३३४
२६०
२६०
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३७५
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२२९
२२९
२७४
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23
२७४
३८१
-२९६
२८१
४६९
१६
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अनुक्रमणिका.
.......
४६७ २३३
'सम.
२५४
- २४ संस्कृतिछंद..................२४
सम. ४०२ ४७३ --संहतिका.................
२७४ १५३५ संहार ......................
६९ सिंधुरया..................... ११६४ सिंधुसौवीर..................१८
३७० ८२३ --सिंहनाद................., १०११ सिंहपुच्छ ...................
३४६ २७९ सिंहलेखा .................... ८ ...... १४३२ --सिंहविक्रांत...............२७ ...... १४३५ सिंहविक्रिड ................२७ ......
५२ --सिंहविलोकित............ १६ ,, ११५६ सिंहविस्फूर्जित ............१८ ...... सम. ५२ सिंहावलोकन,सिंहविलोकित ... १६
२० १५० सिंहिनी,वल्लरीगीति,वल्गुगीति. ६२ आ.गी.प्र. १२५ ९४० --सिंहोद्धता ............... ....... सम. ३३६ ९४० --सिंहोनता ............ १५१ --स्कन्धक ............
आ.गी.प्र. १२६ २४४ स्तरधि. ...............
........... ७ ...... सम. २५१ ३ -स्त्री...............
... , २२५ ८३ स्थाली,खंडा ............
२३५ १५५ स्थूला ......................
२४२ ३५५ स्निग्धा,मणिमध्या. ......... २ स्नु.....................
२२५ ४१७ स्फुटंघटिता ............... ६७२ –स्फूट .................. १००२ स्फोटक्रीड............... १४६२ स्मारमालाकुल ............ . व.दं. ४३२ '१०५२ स्रक्,माला..................
...........१५ ...... सम. ३५२ १२५८ स्रधरा ..................२१ १२५८ स्रग्धरा,रूपकमाला,रूपामाला,..
रूवामाला,सकधरा.
"
२६२
ه
२९९
३४५
ه سه
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अनुक्रमणिका.
सम्.
२३५
२४८
८१ -स्रग्विणी ............... ६ ...... ५१७ श्रग्विणी,शङ्गारिणी,लक्ष्मीधर,)
लक्ष्मीधरा,चंदायणा,चंदाणा, चंद्रानन,काममोहिनी,चंदाना, १२ ...... मलया,कामिनीमोहन,हिंगुदी,
झंपताळ. ............... ) १८२ स्वनकरी .................. ७ ६६७ स्वरवर्षिणी. ...............१२ २१२ -स्वरूप .................. ७ १२९१ स्व र्णाभर्ण ......... ........२२ ५८२ -स्वगता. ...............११ ५८२ स्वागता,स्वगता,सगता,स्वागत. ११ ५८२ –स्वागत.................." १८८ स्विदा ..................... ७ ८३९ स्विन्नशरीर ...............१३ १३५२ स्वैरिणीक्रीडन,गंगोदक,जान-)
की,खंजना, गंगाधर, लक्ष्मी, लच्छी ,सवैया. ............)
२८९ २८९
३२४
४०४
२५७
२८
अ.स.
२६७
३०५ हठिनी.................. ३२६ --हनुमंत ..................
६० -हर..................... ११४ हरगीत ...
२० हरगीति. ४०१ -हरमुख.................. ९९१ हरलीला,हरिलील.............१४ २४१ हर्षिणी..................... ७
३० -हरि ..................... ११२७ हरि........................१७ १३९० हरि........................ ६२८ हरिकान्ता... ...............११ ११२ हरिगीत..................... ११३ -हरिगीता...............
२२९
४११
२८
४४
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अनुक्रमणिका.
अ.स.पू. ४७७
३७२
२९४
२२७
अ.स. अ.स.पू.
सम.
" "
मा.द. सम.
४७७ २५९ ३९१ २५८
७९ ७० ३२० २९५ २९५ ४७८ ३४३
....१३
२३ --हरिणप्लुता ............... ...... ११७५ हरिणप्लुत,हरिणप्लुता .........१८ ...... ११७५ -हरिणप्लुता...............१८ ११७४ -हरिणाभिनंदन ............
६२१ -हरिणी..................११ . ...... ११२६ हरिणी .....................१७ ......
१४ हरिणी,कमाल,कमल.......... ३ ...... २८ हरिणी..................... २३ हरिणीप्लुता,हरिणप्लुता.......
...... ३२१ हरित्........... ........ ८ ...... १२८६ हरितकी... ................ ३१५ हरिपद,हृतपद...............
१२ हरिपद..................... १६१ हरिप्रिया ...................। ४६ ८१५ -हरिमुख ............... ६३० -हरिरूप............... ६३० हरिरूपक,हरिरूप..........
२८ हरिलुप्ता ....................। ९९१ -हरिलील................. ... ९९२ हरिलीला...................१४ ८९५ हरिवनिता,उपनमिता .........१
७२ -हरिशंखाणा ............... ९६३ -हरी .................... ४०१ -हलनमुख ................ ९ ४०१ हलनमुखी,हरमुख,हलनमुख.... , ...... ६२ हलि,जनमि,झमक,जमकाणा,...
अमक,यमक,आत्मक...... . ३८४ हलोदगता.................. ९
२५ -हाकल.................. ७५८ हाकलिका ..................
२५ -हाकलिका ............... १४ .. २५ हाकली,हाकल,कालिक .....?
हाकलिका............... "
स
अ.स.पू. सम.
२३३
२३२
.
.
.
.
१०
१४
,
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अनुक्रमणिका.
११९
ز م
GwA
م
س
م
سه
ر
८४
१३०५ हाटक......................२२ ......
१९५ १०७ हाटकशालि,मंथान,शशिराट ... ६ ... ११८० -हारक ...................१८ १०३३ -हारवती..................१५ १५ - हारा... ................. ५
२२९ १२३७ -हारावतार ...............२०
३८१ ११२० हारिणी.....................१७ । ३५ -हारी .................... ५
२२९ ३५ हारीत,लोल,हारी,बहारी,हारा,
हारीतबंधा,फारीआ. . ३५ -हारीतबंधा
२२९ ३९ हासिका. ................
२३० ७१७ -हिंगुदी...............
५९ हिन्दीर,सालका १५६ हिंदोल.................. १९ हिमकर. ...
अ.स. ५२० -हीमाली............ ..
सम. ४९ ही...................... १३६८ हीणहैयेंगवीन................
४०८ २४ हीनताली..................
अ.स.वृ. ४९१ ५२० हीमाली ..................
... सम. २७९ ८७ हीर,हीरक,वालिका ........... १८७ हीर........................ ७ ... ११८० -हीर .....................१८ ११८० हीरक,हीर,हारक,हीरा........१०
८७ --हीरक........... ११९१ हीरकहारधर ...............१८
... . , ३.७५ ५.०३ हारलंबि..
-हीरा..................... *३५ हीरागी,प्रणव................. ४ हीरामणि.................... १०८ वि.जा. १३१
१०८ ३.१५ -हतपद.................. ८ ...... सम.. २५८ ९९५ हेति .......................१४ ....... ,
......
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...
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२७७ ३७३ २७०
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૨૦
९९४ हेममिहिका. २९२ हेमरूप
४३६ हेमहांस, वाला, वाला
१५०८ हेलावली.
१५०९ हेली ...
१४९ होडपदा
१३४ होला...
३७ हंसपंक्ति, अक्षर पंक्ति, फारी,.
भूतलमान्या. हंस
१०३० १२८८ - हंस.
....
३१२ - हंसकृत
७० हंसगति ..
५ - हंस दोहरो.
८५८ - हंसनाद.. ४९७ - सर्पद.. २८८ - हंसपदी
......
८४३ - क्षमा
१०० क्षमापालि
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अनुक्रमणिका.
क्ष.
३५० क्षर, क्षुर
६१ क्षुत, विष्णु, पंचा, पंच..
६० क्षुप, हर.
३५० -क्षुर.
૧૪
..१०
.३४
. ३४
.....
.......
......
१४६ हंसमाला.... २८८ हंसरुत, हंसपदी. ९३० हंससेनी.
१५२ हंसाल... ४९७ हंसी, हंसपद. ५ - हंसी :
........११
१२८८ हंसी, रजत हंसी, हंस, साहंसी.. २२
३९ हंसीगति,
कपिला..
८
.१३
.... १०
.१५
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३७
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૧૪
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३९१
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२५
१७९
३२
२७७
२५५
२४१
२५५.
३३५
६६
२७७
२८६
३९५
१५
२३७ २६१
२३१
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रणपिंगल मात्रामेळजाति.
समजाति. एकथी ते. चार मात्री सुधीनी जाति उपयोगमां आवे एमैं न होवाथी एवी रचना कोइ करतुं नथी. याज्ञिक आदि छंदनां सामान्य नाम छंदःप्रभाकर उपरथी लीधां छे.
याज्ञिक. ५ मात्रानी ८ वृत्ति थायछे. १ गमक. अंते लघु.. त्रीनी मात्राए ताल.
कल बाण,
पद आण; रव* अन्त, घर सन्त. त्रय ताळ, संभाळ
ते गमक,
___ कळ समक. २. पिंगलादर्श तथा गणप्रस्तारप्रकाशमां पांच लघुज आणवा कयुं छे, पण तेम अवाथी वर्णवृत्त थइ जाय, माटे बोजाओए ते मत पाळयु नथी. जुवो पृ. २३२ अंक ६२.
मात्रामेळ जातिमा ज्यां ताल आवछे, ते अक्षरी पण जाडा मुक्या छे.
प्रत्येक जातिना प्रत्येक चरणनी जोडे जे आंकडा मूकेला छ, ते तेटली मात्रानां एकंदर जेटलां रूप (वृत्ति) थायछे, ते मांहेलं तेटलामुं. रूप छे एम समज. *लघु.
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मात्रामेळ.
रागी. ६ मात्रानी १३ वृत्ति थायछे. २. वाम. त्रीजी अने छठी मात्रा लघु आणवी. १,४ मात्राए ताल.
छ कल नाम, जाति वाम; ऋण छ हारा,
गुरू कदि न धार. ३. ८ एक उपर, १२ ने श्रुति पर; १२ नयन ताल,
८ बेताल आंवे. चरण घाल. ४. ८ गणप्रस्तारप्रकाशमा त्रण गुरु लाववा केहेछे पण ते जुवो वर्णछंदमा अं. ७
लौकिक. ५ मात्रानी २१ वृत्ति थायछे. ३ कान्ता, कन्ता. अन्ते ग ल. १, ५ मात्राए ताल.
मुनि कल जाह, .. १३ कान्ता माहा गल धर अन्त, तुं धीमन्त. ५. एके ताल, पांचे भाक; बे धर एम, फावे जेम. ६ ९
of mor a orr.
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GANA
४ वसुमति. १,५ मात्राए ताल.
वसुमति जात, कुल कल सात; प्रथमे शरे,
ताल तु करे. ७. ७ ५ चदुल. ४+३.७. १,५ मात्राए ताल.
कल श्रुति करो, त्रण पछौं घरो चटुले घाल, १०
शशि शर ताल. ८. १३ ६ सुगति,सुगत, शुभगति. ४,३ मात्राए यति. १,५ मात्राए ताल.
मुनि कल, गणो, ८ सुगति, भणो; श्रुति यति, धरो,
चरम ग, करो.९. ८ अन्ते. वासव. ८ मात्रानी ३४ वृत्ति थायछे. ७ मधुभार, छबी, वसुकला. २+३ (न के गल)+ग ल=८
३,६ मात्राए ताल. कल आठ माह, बे प्रथम ज्यांहा पछी त्रिकल धार, २१ गल उपर सार.१०, २१
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मात्रामेळ.
AARANA~~~
~
~
~
-~
त्रण छ पर ताल, छबी मांह घाला मधुभार एम; रच आणी प्रेम.११. १८ वसुकलज आम, रच आणी हाम; १४ कर ईश गान, १८
मळशेज मान. १:२. १८ काणीभूषणमां सगण+जण=८ मात्रा आणवा.. कञ्यु छ, पण. तेम . भवाथी तो वर्णवृत्त था .य, माटे तेनो हेतु एक चोकलीओ+जगण आणवानो, जणायछे, म प्राकृतपिंगळसूत्रनी टीकामां लख्युं छे. वळी प्रा. पिं. सूत्र, छ:दशास्त्र, भगवतापिंगळ, इत्यादिमां तो मात्र आठ मात्राज भाणवा कयुं छे. छंदःशृंगारमा ५ मात्रा+ग+ल आणवा कयुं छे, वळी मधुभारनाज मापनी वाग्वल्लभे वसुकला जाति कही छै; अने चिंतामणि तथा भाषाछंदोमंजरी वाळाए एनेज छबी जाति कही छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां एम कडं छे के:---
"मुख जगण सार, वसुकलमुदार;.
मधुभार वृत्त, मानय सुवृत्त.” आंक. ९ मात्रानी ५५ वृति थायछे. ६चरण. (ट)६+(ढ) ३. एमां अन्ते सगण..१,७ मात्राए ताल,
छ उपर त्रण विषे, २१ अंत सगण दौसे; २० वव कल पद धरो, २१ चरण जाति करो. १३. १६
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रणपिंगळ.
.
ताल प्रथम परे, २० "सात उपर करे; २० एम ताल धरे, १५
चरण ‘उपर खरे. १४. २१ ९ गंग. मात्रा ९ अंते बे गुरु. १, ६ मात्राए ताल.
नव मत्त आणो, ५ ते गंग जाणो ४ गुरु बेज छेला,
कविए कहेला.१५ १५ आ छंदःप्रभाकरमा नवी जाति कल्पी छे..
दैशिक. १० मात्रानी ८९ वृत्ति थायछे. १०.दीपक, दीप. ४+२+ज=१०. ३, ८ मात्राए ताल.
कल चार पर बेन * ५२ लघु धार पद तेन; ५२ पछी जगण धर छेह, ६५ दश कल दीपक एह. १६ ५५ गुण उपर धर ताल, ५५ वसु उपर वळी भाका ५५ ए दीप पण लाल! - ६१
रट प्रभुगुण तु बाल!. १७. ५५ . "* “बेज-लघु” एम बीजा पदसाथे अन्वय करवो. छंदःशंगार, भगवतपिंगळ अने पिंगळादर्शमां आ जातिनी नव मात्रा केहेछे ते भूल छे. नागराजपिंगळमां स, न, ग, ल. एवं माप छे, पण "ते" वर्णमेळ थइ जायछे. जुवो पृ.२५९ अंक. ३२८. लखपत
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६
मात्रा मळ.
जरासिंधु, छंदः शास्त्र, वृत्तमौक्तिक अने वाणीभूषणमां ४+ल+ल+ज, एवं माप छे. भाषाछंदोमंजरीमां छेलो लघु लाववा केहेछे. वाग्वलभमां ४, ६ ए यति कही छे. '
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66
छंदः प्रभाकरमां आ जातिनुं नाम दीप" लख्युं छे, अने तेमां प्रथम एक चोकलिया पछी अंतमां ( ।।। । ) एवी छ मात्रा लाववा कह्युं छे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां आनुं माप आ प्रमाणे छे:अंतकाळी एक चोकलियो+गुरु अंतवाळो एक पंचकलगण + १ लघु = १० मात्रा. ११ रुडा. मात्रा १० तेना अक्षर ७.३,८ मात्राए ताल.
गुरु
दाका देख,
३९
७
वरणो युनि पेल;
जातिज रूडा भाळ, त्रण आठ के ताल. १८.
१२ रतिकरी. (९+१+ज ) = १० मात्रा
पांच पर ल रखाय,
जगण ते पर थायः
५०
५५
दरण कलश मांय, रतिकरी रचुं त्यांय. १९.५०
ताल प्रथम गणाय,
५४
छ उपर अवर धाय;
५५
४९
एम ठीक रखाय, बे सरस पदमा २०. ५४
-
३९
४ १
३९
१, ६ मात्राए ताल.
५४
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रौद्र. ११ मात्रानी २४४ वृत्ति थाय छे.
१३ आभीर, आहीर. (७+ञ) ११ मात्रा १,५,९ मात्राएं ताल. कुल कल कर अगियार, ८९
अंते जगण चरम निरधार; ८९
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रणपिंगळ.
-
~
आभार आहीर नाम, ८० जाति. रच शुभ आम.२ १. ८५ छे शशि शर पर ताल, ८ वळी नव पर ठोक भाका ८९
ए रौतनी शुभ चाल, ८५ . आभीरमा रच बाल. २२. ८० एमां अंते गुरु लघु लाववा कवि दलपतराम केहेछ; छंदःशास्त्र, श्रीधरपिंगल, गौड पिंगल, लखपत जशसिंधु, छंदःप्रभाकर अने वाणीभूषणमा अंते जगण लाववा कयुं छे. जे पेहेली सात मात्रा छ, त्वांडण होय तो ठीक. बीजा प्राकृत पिंगल लखनाराओए पण ४ मात्राए यति पाळी छे. छदोवृत्तमुक्तावलीमा यति कही नथी, तेम अंते जगण लाव वा एण नियम बांध्यो नथी, पण तेना उदाहरणमां जगण आबेले. १४ रसीक. ४+७=११. तेमां अंते ऋणलघु. १,५,९, मात्राए ताल.
शिव कल रसिके गमती, १२३ छे श्रुति, हय पर विरति; १४३ चर कवि! लघु नि धर, १४१
ताल ५ शर नव उपर. २३. १४३ आदित्य. १२ मात्रानी २३३ वृत्ति थायछे. १५ अचला. ६+६ तेमां छेल्ला बे लघु. १,५,९ मात्राए ताल.
छ कल उपर, कर घट कल, २३३ अचला रच, तुं निर्मल; १५४ रवि कलमां, लल सिम धर, २२५ तालो शशि, शर नव पर.२४.२ २४
22
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मात्रामेळ.
१६-तुरग. 'चच्चारे यति, यतिमां जगण आणवो नहि.
४+४+४=१२. १,५,९ मात्राए ताल. चोकल, त्रण यति, धरजो, ८ रवि कल, पदमां, करजो; १८ प्रति यति, तालर्ज, आवे, २६
तुरगे, जगण न, लावे. २५. ३१ १७ तोमर. मात्रा १२ तेमां अंते गुरु लघु. ३,६,१० मात्राए ताल.
मात्रा बधी छे बार, ९३ तुं जाति तोमर धार; १२७ अंते धरी ग ल भाक, १२७
त्रण घट दिशाए ताल. २६. ९७ अक्षरमेळ प्रकरणमा तोमर वृत्त छ, पण छंदःप्रभाकर, तुलसीकृत रामायण, खुशबुकुमारी, वगेरे ग्रंथोमा मात्रामेळ तोमर जाति होता अहि दाखल करी छे. १८ अनुफल. +४=१२. १,५,९ मात्राए ताल.
बार कला सौ, आवत, १४८ यति आठे ठिक, लावत; १६७ ताल अनुफले. प्रथमज, २११
'चारे चारे, पछौ सज़. २७. २०० *१९ मृदुगति. ५+७=१२. १,७ मात्राए ताल.
आणिये कला राज, ११७ शर हये, धरी यतिन; ११८
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रणपिंगळ,
WANAPANNA
शशि मुनि, करी सुताल, ११८
मृदुगति, सुजाति भाळ.२८. १.१८ वाम जातिथी बमणी आ जाति छ, ३,६,९,१२मी मात्रा लघु आणवी.. भागवत- १३ मात्रानी ३७७ वृत्ति थायछे. २० मूळचंद्र..७,६ यति. अंते जगण. १,४,८,११ मात्राए ताल
तेर कल मुनि, पर विराम, २३२. जगण अन्ते, पद तमाम; २१५ शशि श्रुति वसु, शिव सु ताल, २२८
ए मूळचंद्र, जाति भाळ.२९. १९० २१ चंद्रमणि.मात्रा १३.लघु गुरुनो नियम नथी. १,५,९ मात्राए ताल
चरण चरण प्रति मात्रिका, आवे तेर प्रमाण जो; चन्द्रमाणिमां ताल तो,
५९ भू-शर भक्ति जाणजो. ३० ५९ भाषाछंदोमंजरमिां आ जाति छे, पण ते द्विदल जेवी जणायछे. २२. अवलंबक. मात्रा १३. १,४,५ मात्राए यति.
१, ५, ९ मात्राए ताल. श्रुति श्रुति, कल पर, शर करो, १४४. जख कल, प्रतिपद, कवि! धरो; १४४ प्रथमे, शर नव, ताल छे, ८६ अवलंचकनी, चाल छे. ३१.
Cure
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मात्रामेळ.
२३ जलतरण. ५,६, यति अंते ग ल, यतिमां जगण न आणवो.
१,६,११ मात्राए ताल. तेर कल, जलतरण, मांह, २३२ शर शरे, विरति छे जाहः १७३ शशि षडे, ने शिवे ताल, १६०
यति विषे, जगण नव घाल.३२. २२८ २४ वरवीर. ८,५, यति. १,५,९ मात्राए ताल.
यति आठे शर, राखजो, ७८ तेर कला पद, नांखनो; ८० वरवार जाति, चाल छे, ६०
शशि शर नव, पर ताल छे. ३३.८९ पिंगळादर्शमां आ जाति १२ मात्रामा राखी छे, ते भूल छे. मानव--१४ मात्रानी ३१० वृत्ति थायछे. २५ हाकली, हाकल, कालिक, हाकलिका. मात्रा १४.
१,५,९,१३ मात्राए ताल. द्विजां स भ मां ठीक गण जाणो, ८१ चार लघु. त्रण ते धरौं रवि कल आणोः ८६ अन्त गुरु धरौ चौद करो, १६९ हाकली जाति सु नाम धरो.३ ४.१६९ ताल प्रथमपर एक करी, १७७ श्रुति श्रुति चडती द्योज धरी; १५७
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रणपिंगळ.
एक बीजे शिव वर्ण खरा, १६९
त्रण चारे दश वर्ण नस्या. ३५. १६७ विप्र (चार लघु), सगण के भगण ए त्रण पैकी जे ठीक जणाय तेवा डगण रची बार मात्रा आणवी+ग. एमां कर्ण एटले बे गुरुनो उगण आवे तोपण अमने हरकत जणाती नथी. छंदोलतामा १०+४ मात्रामां अंते सगण लाववा केहेछे; वृत्तमौक्तिक, वाणीभूषण तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा १४ मात्रा (विप्र+स+भ गमे ते थइने) +ग, एम मात्रानोज मेळ कह्यो छे. मागधी नागपिंगळमां स, भ के विप्रगण थइ १२+ग, पेहेला बीजा चरण (पूर्वार्द्ध) मां अक्षर ११, जीजा चोथा चरण (उत्तरार्ध)मा अक्षर १० लाववा केहेछ श्रीधर पिंगलमां भ+म+४+ग. रामचंद्रिका काव्यमा हाकलिका नाम छे अने तेमां सगण, भगण अने विप्रगण +गुरु लावेछे, अक्षर-११,११,१२, १२ छे. .. छंदःप्रभा करमां पेहेला बीजा पादमा ११ ने वीजा चोथा चरणमा १० अक्षर लाववा कयुं छे, अने १४ मात्रामा ९+५ मात्रा करवा नियम कस्यो छे.
चिंतामणीमां पेहेला त्रीजा चरणमा १० अक्षर, बीजे ११ अक्षर, अने चोथा चरणमा १४ मात्रा आणवा काछे,.
छंदःशृंगारनी एक लिखित प्रतिमां "हालक नाम छे, ते लिखितदोष हशे एम जणायचे. तेमां १२+1=१४ मात्रा अने ११, १०, ११, १० एम अक्षर छे..
छंदःकामदुधावत्समां त्रण डगण+ग अने ११, १० अक्षर आणवा कर्तुं छे.
छंदशास्त्रमा वृत्तमौक्तिकना जेवूज पेहेला बे चरणनुं माप कयुं छे, पण त्रीजा चोथामां डगण पैकी स के भ अने अंते गुरु आणी १० अक्षर लाववा कयुं छे; पण वाणीभूषण इत्यादिमां अक्षरनो ए नियम मान्यो नथी, एरले आ मात्रामेळनी जातिमां अक्षरमेळनो नियम मानवो अमने उचित लागतो नथी.
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मात्रामेळ,
२६ गमल. ४+३+४+ग+ल=१४ मात्रा,
१, ५, ८, १२ मात्राए ताल. त्रण पर बे ड गण पर ताल',३६९ गुरु लघु. शशि शर आठ बारे ताला २४६ कुल कलं चौद चरणे थाय, २८०
गजल ज जाति सरस गणाय. ३६. ३६९ २७ कज्जल, कदली. १४ मात्रा. अन्ते जगण, वा तगण.
१, ५, ९, १२ मात्राए ताल. प्रति पद कुल कल चौद धार, ३२२ अन्त जगण वा तगण सार; ३९५ भू शर निधि रवि ताल आण, ३२१
कन्जल, कदली जाति जाण. ३७. ३०० २८ मधुमत्त. मात्रा १४. १, ४, ७, १०, १३ मात्राए ताल.
सकल कला चौद तो करो, ११५ प्रथम उपर त्रण त्रणे धरो १४४ पांच ताल सर्व आणजो ११७
मधुमत्त जाति जाणजो. ३८. ११६ २९ सुलक्षणी, सुलक्षण, ७+७=१४ मात्रा. . - प्रत्येक ७ मात्रामा अते गल. १,५,८, १२ मात्राए ताले
कर कल सात, ते पर सात, . ३३५ कुल कल चौद, छे प्रख्यात; २४६ प्रति यति आदि, शर छे ताळ, २८० सुलक्षणीज, जाति रसाल. ३९ ३३३
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मात्रामेळ.
१३
छंदोलतामां आनुं नाम सुगीति आप्युं छे, पण ए नामनो आर्याप्रकरणमां गीतिनो भेद छे, तेथी भ्रान्तिमां पडवार्नु कारण मळे, माटे अमे आ जातिनुं नाम मात्र सुलक्षणी ज राख्युं छे: ३० सुरुपी. मैत्रिी १४. १, ५, ९, १३ मात्राए ताल.
मात्रा चौद करो चरणे 'छंदार्णव' सुरुपी वरणे, १७४ भू शर भक्ति यक्ष परे,
चारे चडती ताल खरे. ४०. १५३ ३१ सखी. मात्रा १४. तेमां अंते मवा यगण ३,७,११ मात्राए ताला
कल चौद सखीनी जेमां, कर अन्त म वा य हुँ तेमां घर ताल प्रोजे मुनि रुद्रे. रच जाति भली सुभद्रे. ४१
आ जाति “बनजारा"ना रागनी देशीमां गायछे. ३२ उधोर. मात्रा १४. तेमां अन्ते ग,ल. १,३,५,८,१०,१२ मात्राए ताळ
कल कुल चौद पदमा आण, २८० गुरु लघु अन्त उपर जाण; ३२७ शशि त्रण शरे वसु दश ताल, ३६४
रवि पर उधोरे संभाळ! ४२. २४१ " ३३ चंपक. ८,६ यति. अंते ग, ग. १,५,९,१३ मात्राएं ताल.
चौद विषे गुरु, बे छेले, २५ ताल मूं शर नव, जख मेळे;
आठ छये यति, बे आणो. चपक जाति, ते जाणो. ४३.
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२४
३४ मालती.
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रणमिंगळ.
९, ९ यति. कल चौद, पदमां आणजो,
३, १० मात्राए ताल.
१०७
यति शरे, नवमे जाणजो;
ए जाति, जाणो मालती, त्रण दशे, तालो चालती. ४४.
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३५ कलमा. ४+४+४+२= १४. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
५८६
aण चोक लिया गण ठिक धर, ते पर बे कल छूटी कर चौद बने कल कलनामां
४०२
८०
५
„ १३
ताल शशि र नव जखमां. ४५.
२२४
३६ मनमोहन. १४ मात्रा, तेमां छेलो नगण. ३,१० मात्राएं ताल.
कर कला चौद चरण चरण, "वर प्रतिपदे अंते नगण
त्रण दश परे तालो सरस,
५.
छपर वसु, कल चौद जाण,
प्रथम नगण, अन्ते 'ज' आण,
१०५
९३
९२
५९२
४७४
४७४
४९७
मनमोहन जाति ए सुरस. ४६. गणप्रस्तारप्रकाशमां आनुं नाम मोहन अथवा मनमोहन आप्युंछे अने तेनुं मापं २+५+२+५ ( तेमां अन्ते नगण) = १४ मात्रा एम आप्युं छे. ३७ वज्रचंद्र. ६, ८ यति. प्रथम नगण ने अन्ते जगण.
१,५,९,१२ मात्राए ताल..
૧
૫
शशि शर नव, बारे ज ताल;
नियम वजरचंद्रेज चाल. ४७.
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३१४
३०१
३०१
३०१
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मात्रामेळ.
३
३८ किजल्क. गुरु लघुनो नियम नथी १,५,९,१३ मात्राए ताल.
कल चरणे चौद थायछे, प्रथम कले पे'लो ताल छे; २१५ श्रुति श्रुति चडती वळी करें, १२३.
किञ्जल्क थाय एम खरे. ४८.. १६१ १९ हंसीगति, कपिलाः +८= १४. एक पछी चच्चारे चडती
५ . १,५,९,१३ मात्राए ताल. पड पर वसु कल दे पूरी, हंसीगतिनी ए. रूढी चौद कला कुल तो भाळो,
प्रथम चचारे छे तालो. ४९. तैथिक-१५ मात्रानी ९८७ वृत्ति थायछे. ४० जयकरी. मात्रा १५,, तेमां अंते ल, ग.
१, ५, ९, १३ मात्राए ताल. चरण चरणमां पंदर कला, लघु गुरु अंते आवे भला; जाति जयकरी जुगते करो, २२९
शशि शर नव जख तालो धरो. ५०. १७८ छंदःशृंगार अने पिंगलादर्शमां अंते गुरुज आणवा कयुं छे अने गणप्रस्तारप्रकाशमां ६+६+३=१५ मात्रा आगवा कयु छे अने तेना पेहेला रूपमा बे. मगण अने लघु गुरु छे तथा छेलामा १५ लघु छे. ४१ पाइक्त. मात्रा १५. तेमां ७,८ यति. अंते सगण.
१, ५, ९, १३ मात्राए ताल.. तिथि कलमांह मुनि वसु करो, ३१४ ।
३०१
१४९
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रणपिंगळ.
AAAAAA
२
अंते एक, सगण ठोंक धरो; . ३६५ भू पर ताल, पछी श्रुति श्रुति, ३१३
पाईक्तनी, गणो शुभ गति. ५१. ३०९ ४२. चोपाइ, चतुष्पदी. ६+४+४(तेमां अंते गुरु होय)+ल
=१५ मात्रा. १, ५, ९, १३ मात्राए ताल. छ पर डगण बे पछी लघु धार, ५८९ तिथि कुल कलमां छेवट हार; ५३४ गुरु लघु. चतुष्पदी चोपाइ भाळ, ३८०
शशि शर नव जख उपर ताल, ५२. ५५५ पागवल्लभमां जयकरी अने चोपाइ एकज लखेछे, १५ मात्रामा अन्ते लवु. नागराजपिंगळमां ६+४+४+ल, ए प्रमाणे छे, पण रूपदीप पिंगळमा ८+७ तेमां अंते ग, ल, छे. गणप्रस्तारप्रकाशमां अन्ते ज, त, र, केस, लाववा केहेछ भने तेनुं छेल्लु रूप सर्व लघुनु आप्युं छे. ४३ वस्तु. ४+४+४+३=१५. १,५,९,१३ मात्राए ताल,
त्रण चोकल पर त्रण कल धरो, एवी पंदर कुल कल करो; ३६५ एक उपर चच्चारे ताल, ३८९
वस्तु जाति विषे संभाळ. ५३. ३९९ भानी अंते "जी" उमेरवाथी राग “सामेरी" थाय, एम "प्राचीन काव्यमाळा"ना रसिकवल्लभादि ग्रंथमां पृष्ठ पेहेले लख्युं छे ४४ गोपाल. १०,५ यति. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
दशने पांच उपर, विश्राम, ४५५ एकंदर पंदर, कल आमा एक उपर श्रुति श्रुति, पर ताल, ६०९ ए जाति रूडी, गोपाल. ५४.
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२७४
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मात्रामेळ. mmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmom
छंदःप्रभाकर आ जातिमा ५,८ विराम अने अन्ते जगण आणवानु लखी तेनुं बीजं नाम भुजंगिनी होवानुं पण केहछे.
संस्कारी-२६ मात्रानी १,५९७ वृत्ति थायछे. ४५ चरणाकुल. ८,८ यति, तेमां अंते ग, ग.
१,५,९,१३ मात्राए ताल. प्रतिपद मात्रा, सोळ ज जाणो, १४९ अंते तेमां, बे गुरु आणो १४५ ताल शशी शर, नव जख लायो, २२४
चरणाकुल बहु, देश बनावो. ५५. १७९ पिंगलादर्शमा छेवटे वे गुरु अथवा अंते यगण आणवा कामु छ; कवीश्वर दलपतराम " अंत एक गुरु होय तो नभे” एम लखेछे, पण तेम करवाथी पायाकुलक थह जायछे. ४६ अडल, डारिल, चोपाइकुलक. मात्रा १६
१, ५, ९, १३ मात्राए, ताल. चरण चरणमा मात्रा सोळे, गुरु लधु को नहि जेमां तोले; ताल अडलमा प्रथम उपर धर, १९७५
पझे शर नव जख उपर क कर. ५६.१५४२ डारिल, बियाखरी'. १६ मात्रा. १,६,९,१३ मात्राए ताल.
गुरु लघु नियम न कुल कल सोळज, १२२० डारिल जाति पण गण एमज; ११९० ताल प्रथम पर एमां आवे, ३३ पछो चच्चारे चडती लावे. ५७. ५७
१ मागधीछंदःशतक.
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१८
रणपिंगळ.
चोपाइ कुलक. मात्रा १६. १, ५, ९, १३ मात्राए ताल.
-सोळ कळा प्रति पदमां आवे, ८०. लघु गुरुनो कंइ नियम न लावे; २२५ भाषा चोपइ कुलक कहेछे, २२१
प्रथमे श्रुति श्रुति ताल रहेछे. ५८. १७५ ४७ मिन्ना. मात्रा १६. तेमां अंते ल. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
भिमामाहे सोळ कला कर, ११३२ स्तेमां अंते लघु आणी धर; १०४३ शशि पर ताल धरी पछी ते पर, ११५७
चच्चारे चडती कर कविवर! ५९. १५३० ४८ घातक. ४+४+४+४=१६ मात्रा, तेना अक्षर १२.
१, ५, ९, १३ मात्राए ताल. 'चारे चोकल गणो सरस धर, १४९६ अक्षर तेमां द्वादश कुल कर; १५१२ षोडश कल शशि पछौं चच्चारे, ८८
ताल सरस धर घातक ज्यारे. ६०. १७७ ४९. पंझटिका, पद्धरी, पाथरी, पद्धडी, पश्झटिका, प्रझाटका.
४+४+४+ज-१६. ३, ६,११, १४ मात्राए ताल. त्रण डगण उपरे जगण धार, . ९१९ कल सोळ पद्धरी चरण चार; ९१६ गुण शास्त्र रुद्र रत्ने मुताल, ७७२ 'कविराज! पंझटिका तुंभाळ. १६१ ७७२ वागवल्लभमा नवमी मात्रा गुरु लाववा केहेछे, तेमज अंते जगण के लघु 'लाववानो ना केहेछे, पण नागपिंगळ, प्राकृन्तपिंगळसूत्र, वाणीभूषण अने
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मात्रामेळ.
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१७
छंदोवृत्तमुक्तावलीमां अंते जगण लाववा कहेछे, माटे तेनु मत स्वीकारवा योग्य नथी. वळी छंदोवृत्तमुक्तावलीमा तो आदि डगंणमां जगण आणवोज “नहि, एवो खास नियम आप्यो छे, अने तेनुं नाम प्रझट्टिका आप्यु छे. वळी “छंदःप्रभाकरमा पद्धटिका, प्रज्वलय के प्रज्वलिया, एवां वीजां नाम आप्यां छे, अने विशेषमा लखेछे-आनाज बमणा मापवाळाने भिखारीदासे लोलावती छंद मान्यो छे. मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां प्रझटिका नाम छे. ५० पादाकुलक, पायाकुलक. ४+४+४+४=१६ मात्रा,
तेमां अंते ग (चरणमां यमक आवे). १,५,९,१३ मात्राए ताल.
चार चरणमां गुरु छेवट छे, ४४४ सोळ कळानो एवो पटाछे ३८१ समूह. पायाकुलक यमकथी शोभे,
भू शर नव जख तालज थामे. ६२. १७७ "मात्रासमक" प्रकरणमा लखेला [१]चर्पट, [२]विश्लोक, [३]नवासिका, [४] चित्रा अने [५] उपचित्राना मापमांथी गमे ते चार चरण रचवामां आवे तो तेनुं नाम “पादाकुलक" केहेवायछे, एम वृत्तरत्नाकर नी नारायणभट्टी टीकामां जणाव्युं छे; छंदोत्तमुक्तावलीमा चार चोकलिया तेमां अंते गुरु, एम सोळ मात्रा आवे-एटले अत्य गुरुवाळा अरिल्लने पादाकुलक कयो छे; वागवल्लभ अने छंदःशास्त्रमा आनुं नामः पादाकुलकज छः वृत्तमौक्तिक, छंदः• शास्त्र, घागवल्लभ, अने लखपतजशसिंधुमां गुरुलघुनो नियम नथी, एम · केहेछे, तेमज "छेल्ले गुरु जोइये" एम पण नियम करता नर्थः; पण छंदःशास्त्र
(पिंगळ) ना नियम प्रमाणे ज्यां विशेष नियम न होय त्यां पादान्ते गुरु आणवो • एम जणावी गया छे. प्राकृतपिंगळसूत्रमा गुरुलघुनी नियम क्यो नथी, एटले
सोळ मात्रा बधा गुरु के बधा लघुनी नहि, पण गुरुलघु मिश्रित लाववी, - एम का छे. वाणीभूषणमा कयुं छे केः• "अक्षर गुरु लघु नियम विरहितं, भुजगराज पिंगल परिभाणितम् भवति सु गुम्फित षोडश कलकं, वाणीभूपण पादाकुलकम्."
गणप्रस्तारप्रकाशमां आठ आठ मात्राना प्रति यतिए प्रास मळव्या छे, ' एजें पेहेलं रूप त्रण कर्ण ने एक भगणनुं थायछ अने छल्लं रूप त्रण विप्रने भगणनुं थायछे.
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रणपिंगळ.
५१ अरिल, अडिल्ल, अलिला, अलक. ४+४+४+४=१६.
लेमा जगण न आणवो. अन्ते बे ल. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
कल षोडशमां जगण ज ना रच, ११९६ द्विलघु अंते धरौं रचना रच; ११८८ अलिला भण शशि शर नव उपर, १२१७
ताल वळी जख पर पाछी धर.६३. १०६७ श्रीधर पिंगळमां जगण न लाववा केहेछ; चित्रसेन टीकावाळु मागधी पिंगळ, छंदार्णव अने प्राकृत पिंगळसूत्रनी टीका तथा गणप्रस्तारप्रकाशमा चार चौकलिया तेमां जगण न आवे, अने अंते भगण आवे एम कयुं छे; एज प्रमाणे करी एक पदमा बे वार यमक लावीने मागधी छंदःशतक एने मडिल नाम आपछे.
उपर प्रमाणे १६ मात्रा सर्वमान्य छतो छंदोवृत्तमुक्तावलीमां तेनी १८ मात्रा कहीने नीचे प्रमाणे (जगण सिवायना चार डगण)+बे लघु- उदाहरण आपेछे:
" बल धारण वारण मान विदारण,
भवकारण दानववंशनिवारण; मुखचंद्रसुधाकृत लोचन पारण,
जय कृष्ण कृपाकर सेवक तारण.” पण प्रारंभमां वे लघु वधारवानी तेनी भूल थएली लागेछे, केमके एणेज मरिल्ल पछी पादाकुलक (१६ मात्रा)- लक्षण बांधतां कर्तुं छे के-“अरिल्लमां भंते गुरु आवे तो पादाकुलक (१६ मात्रा) थाय"! एटले तेनुंज केहेवूपरस्पर विरोधी छे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणमही टीकामां अरिलनुं माप अमे लख्युं छे तेवं छे, पण छंदोवृत्तमुक्तावली प्रमाणे नथी. ५२ सिंहविलोकन, सिंहविलोकित. विप्र के सगण गमे ते आणीने मात्रा १६ करवी. पण तेमां अंते सगण अवश्य आणवो.
३, ७, ११, १५ मात्राए ताल. सगणे द्विज सोल कळा करजो, ४४२ कर जोडि 'स' छेवटमां धरजो ४४२
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AMAnnnnnnnnnx
धर जो पद अंततणुं रचशो, ४४२
रचशो ठीक सिंहविलोकित सो.६४. ४ ४२ छंदःप्रदीप भने छंदार्णवमा एम लख्यु छ के- “सोळ मात्रा तेमां अंते गुरु, अथवा विष (चार लघु) के सगण गमे ते थइने सोळ मात्रा लेवाय, पण छेल्लो तो सगणज आवे. तेमज प्रत्येक पादनो छेल्लो शब्द पछीना पादना प्रारंभमां आवे एम रचना करवी. छंदःप्रदीपमा आदि यमक लाववा केहेछे" पण तेणे पोते उदाहरणमां आणी नथी. गणप्रस्तारप्रकाशमां एनुं पेहेलं रूप त्रण कर्ग अने एक सगणनुं बताव्युं छे. मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां कयुं छे के एमान, न, न, ज, ल, ग.१४ वर्ण आणवा.
उंदोवृत्तमुक्तावलीमां गमे तेवा प्रण चोकलिया आणवानुं कही अंते सगण आणवा कहेछे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां४+स+६+ग. एवी रीते मात्राओ आणवानुं कर्तुं छे. ५३ डिल्ला, ४+४+४+भ-१६ मात्रा. १, ५, ९, १३ मात्राए ताल.
त्रण चोकलिया पूरा सुंदर, ९९७ तेना उपर भगण सदा धर;
१२०८ डिल्ला जगण न माहे आणन, १९८१
भू शर. नव. जख, ताल प्रमाण ज. ६५. ११६४ ५४ लहुआ. ४+४+४+४=१६ मात्रा. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
चोकलिया गण चार ज धरजो, ५४६ सोळ कळा ए रीते करजो; ३८१ शशि, शर, नव, नख ताल सुधारी, १७८
लहुआ जाति बने बहुसारी. ६६. १६७ ५५ अलिला, अनीला. चार डगण, तेमा अंते बे लघु.
१, ५, ९, १३ मात्राए ताल. चारे डगणो प्रति चरणे धर, ११९५ लघु बे अंते ते मध्ये कर
९८९
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तालो प्रथमे पछौं श्रुति उपर, ११९५
अलिला, अनिलामां लावी धर.६७. ९९७. छिंदोलतामां आ नाम छे. मागधी छंदःशतकमा एने “बिआषरी" केहेछे. महासंस्कारी-१७ मात्रानी २,५८४ वृत्ति थायछे. ५६ महचंद्र, ८,९ यति; अंते मगण. १,५,९,१२,१६ मात्राए ताल..
पदमां सत्तर, कुल कला आणो, १३३ आठे यति ने, वळो नवे जाणो ११९ शशि शर नव रवि, नप महच्चंद्रे, १४४
ताल धरो ठोक, कवि खरे वंदे. ६८ १३५. २७ राम ९,८ यति. अंते यगण. १,६,१२,१४ मात्राए ताल.
दश सात मात्रा, राम विषे छे, २३८ नव आठ एवी, विरति दिसेछे; ३२७ यगण विरतिये, यो पछी तालो,
आशा, मर्नुपर घालो. ३३० थम षट
छंदःप्रभाकरमा नवो कल्प्या छ. पौराणिक-१८ मात्रानी ४,१.८१ वृत्ति थायछे. ५८ माली. +४+४+४+२=१८मात्रा.१,५,९,१३,१७मात्राए ताल,
चार डगण पर बे कल लावेछे, १७७ अष्टादश कल एम ज आवेछे १७४ प्रथम पछी चच्चार चढे तालो, १४९
रचना माली जाति विषे. भाळो. ७०. १४६ ६९ पद्धतिका. नवमी दशमी मात्रा थइने एक गुरु, तेमज अंते पण गुरु.
कहिं पण जगणन आणवो. १,५,९,१३,१७ मात्राए ताल. अष्टादश कल पाद विष करजो, ११६६
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२३
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१०+८
१
गुरु नव दश मळीने अंते धरजोः १०२१ पद्धतिकानी मांह जगम न धरो, १५१२
एक उपर चच्चारे ताल करो. ७१. ९९९ ६० रण* मात्रा १४.९,९ यति,तेमां अंते ग.१,५,१०,१५ मात्राए ताल.
दश वसु कल कुल, रण जाति ए छे, ३५७ नव नवपर यति, तेमां रहेछ २५४ शशि बाण पंक्ति, तिथि ताल तेमां, ३२७
स्वर गुणि! पीलुनो, गाओज एमां.७२. २४६ * आ जाति अमारा नामथी नवी बनावी दाखल करेली छ. ६१ राजीवगण.९,९यति,मात्रा १८. ३,७,१०,१४,१७ मात्राए ताल.
कल सकल पुराण, पदमां आणवी, ७३३ 'नव नव उपर यति, बे तो जाणवी; ६६५ प्रण मुनि दिशि रत्न, सतरे ताल छे. ७३३
राजीवगणनीज, रूडी चाल छे. ७३. ६४३ छंदःप्रभाकर आने “माली" पण केहेछे, पण अंक ५८ मां "माली" जाति आधी जूदाज लक्षणवाळी छे. ६२ परिचरिता. ८, १० यति. तेमां छेल्ला वे लघु.
४+४+५+३+ल+ल. १,५,९,१३,१७ मात्राए ताल. बे चोकलपर, पांच त्रण कला कर, ३१३५ कुल कल अढार, बे ल चरम तुं धरः ३१२६ शशि पछौं श्रुति श्रुति, वाल वसु दश विरति, ४१२६
परिचरिता कवि! रचजो धरी सुमति. ७४. ३४ १९ महापौराणिक-१९ मात्रानी ६,७६५ वृत्ति थायछे. ६३ मेधक. १०,९ यति. १, ६, ११, १६ मात्राए साल.
... कल ओगणीश तो, चरणे रचाशे, ५३९
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रणपिंगळ.
दश ने वळी नवे, यति ठीक थाशे; ५३९ भूपरे पछी शरे, चडता ज तालो, ५४९
जाति बोधक तमे, कवि! एम भाळो. ७५. ५४९ अगियार अक्षरमा रूप २९३ मे ग्राहीवृत्तछे, तेने रागे अथवा "मदालसा अने ऋतध्वज" पृष्ट १२ मे “प्रार्थिये आदित्य सुर शुभकारी” ए रागे गवाशे. ६४ मोहनी मात्रा १९. अंते गुरु लघु. १,५,९,१३,१७मी मात्राए ताल.
ओगणि मात्रातणां चरण श्रुति आण, ४०६२ तेने मोहनी जाति चतुर जन! जाण; ४११४ प्रथम पछी चच्चार उपर धर ताल, ४०९७ अंतविषे गुरु लघु विचारी घाल. ७६. २७१९ * आ जाति प्रवीणसागर लेहेर ५३ मी प्रमाणे नवी बांधी छे. ६५ पीयूषवर्द्ध, आनंदवर्द्धन. १०, ९ यति. अंते ल ग.
१, ८, १५ मात्राए ताल. ओगणिश कल आण, प्रतिपदमाह तो, १९६२ प्रथम पछी वसु तिथि, एना ताल तो; १०२१ जाति पीयूषवर्द्ध, रचना आम छे, ११८० " ने अवर आनंदवर्द्धन नाम छे. ७७. १४०५ छंदःप्रभाकरमा पीयूषवर्ष अने आनंदवर्धक एवा नाम छे... ६६ नरहरि. मात्रा १९, १४,५ यति. तेमां अंते न ग..
३, ७, ११, १५,१८ मात्राए ताल. मनु शरे यति ओगणीस, कल करो, २२७० पण तेमां नगण ग अंते, ठीक धरो; २०१२ प्रण पछी चच्चारे तालो शर खरी; १९७९ ए जाति तो कवि! जाणो नरहरि. ७८. २०३०
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मात्रामेछ
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'मादैशिक- २० मात्रानी १०,९४६ वृत्ति धायछे.
६७ दीपकी.
( दीपक मात्रा १० थी बमणी )
३, ८, १३,१८ मात्राए ताल.
प्रति चरणनी मांह कल सकळ विश आण; ए दीपकी जाति छे एम कवि ! जाण
तजी बे पछी ताल त्रीजी उपर धार,
૫
वळ शर शरे सारी कर सकळ मळी चार. ७९. ६७१८
१,७,१३,१९ मात्राए ताल.
बार अने आठ कळा, वीश धरोने,
६७१८
६१९३
१९४
गणप्रस्तार प्रकाशमां आनं माप चार वाघ गण (टगर्नु IIS1 आबु रूप) आणवा कयुं छे. अने तेनुं नाम दीपक आप्युं छे.
६८ योगे. १२, ८ यति- २० मात्रा, तेमां अंते यंगण.
१०४६
११९४
चरण अंत एक यंगण, मांह करोने;
५
१२११
एक पछी खट खट पर, ताल सुधारो, योग जाति एह कवि ! आप विचारो. ८०. ११८०
आ जाति काफीना जिल्लाना स्वरमां (इंद्रसभाने रागे) गवायछे.
६९ नंदी. १२, ८ यति = २० मात्रा, तेमां अंते बे गुरु.
१, ५, ९, १३, १७ मात्राए ताल.
tata कळामां बे गुरू, अंते आवे, या आठे प्रति पद, विरति सुहावे; ताल प्रथम पछी चडती, चारे आणो, आनंदी जाति ए, रीते जाणो.
८१.
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૧
१४८
१५६४
८८
१
७० हंसगति. ११,९ यति = २० मात्रा. १,५,९,१३,१७ मात्राए ताल
अगियारे ने नवे, बिरति आवेछे,
४८९
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रणपिंगळ.
ए रीते कवि वीश, कला लावेछे; भूपर ने श्रुति क्रमे, धरो शर तालो, ११२२
हंसगतिनी जाति, भली ए भाळो. ८२. १४८ ७१ मत्ता, विनिहरण. ४+४+४+४+४=२० मात्रा. तेमां जगण कोइ ठेकाणे आणवो नहि, अन्ते एक गुरु आणवो.
१, ५, ९, १३, १७ मात्राए ताल. पांच उगणमां अंते तो गुरु आवे, ९९९ करजो कुल कल वीश जगण वण भावे; १५३९ एक उपर पी चारे चढता तालो, ४१० विनिहरणे मत्तामां शर तो घालो. ८३. ३८२
त्रैलोक--२१ मात्रानी १७,७११ वृत्ति थायछे. ७२ चंद्रायन, चांद्रायन. ११, १० यति=२१ मात्रा
१, ५, ९, १३, १७ मात्राए ताल. प्रतिपदमां अगियार, अने यति दश विषे, ६३२५ बधी मळी दोश एक, कला तेमां दिसे; २७५२ छे चांद्रायन ताल प्लवंगम ढाळनी, ३७३७ चंद्रायन पण कहे, रुदेरी चालनी. ८४. २७२४ छंदप्रभाकरमा ११ मात्रा अगणांत अने १० मात्रा रगणांत लाववानुं कयु छे, पण बीजा पिंगळकारोए तेम कार्वा नथी, तेथी अमे पण ते मत पाळ्युं नथी. ७३ रासा. १२,९ यति.. १,५,९,१३,१८.मात्राए ताल.
चरण चरणमा रचनो, कळ एकवीशे, . १४३२ बारे अने वळी नवे, यति ठीक दीसे . १४३६ शशि शर नव जख अढार, शर ताल थाशे, १९०८ वसंततिलके रासा, कवि राग गाशे. ८५. १३७५
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मात्रामेळ.
२७
amwaanwww
७४ प्लवंगम. ११,१० यति. (आदि गुरुनो) टि+५+४+ज+ग
___२१ मात्रा. १, ५, ९, १३, १७ मात्राए ताल. आदि गुरुनी छ कल, असु पछी जाणजो, ३७७४ चार उपर करौं जगण, गुरु पछी आणजो; ३८०३ भू पर चडती ताल, चतुर शर सौ करो, एह प्लवंगम नाम शिवे यति तो धरो. ८६ ३७४० _t छंदःप्रभाकरमा ८,१३ मात्राए यति कही छे.
हिर (sss), शक्र (sus), कमळ (sisi). कलि (ssi) के धर्म (sirii) टगण ए पांच आदि गुरुवाळा टगण (छ मात्रा) पैकीनो कोइ पण लाववो.
चिंतामणीमा ११, १० यति कही छे, बीजा पिंगळकारो तेम केहेता नधी, वागवल्लभ तथा मनहरपिंगळमां आदि गुरु आणवान लख्यु नथी, पण वाणीभूषणमां लख्युं छे; छंदःशास्त्र, वृत्तमौक्तिक अने नागपिंगळमां मात्रा ६ (तेमां आदि गुरु) +५+४+ज+ग लाववा कयुं छे. आनेज मळती पण यति रहित आभाणक के अहाणऊ जाति मागधी "छंदःशतक" मां कही छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा प्रथम गुरु पछी चार चोकलिया ते उपर लघुगुरु आणवा कयुं छे. उपरना माप सिवाय गणप्रस्तार प्रकाशमा आनुं वीजी रीते ड++8+3+3=२१ मात्रा एवं माप आप्यु छे, अने २१ मात्रानुं सामान्यनाम प्लवंगम आप्युं छे तेना रूपांतरमा शिरखंडी छंद कह्यो छे, पण २१ मात्रा सिवाय तेनुं विशेष लक्षण कंड् बताव्यु नथीं माटे अमे तेने दाखल कस्यो नधी.
महारौद्र--२२ मात्रानी २८,६५७ वृत्ति थायछे. ७५ महीदीप. १२,१० यति=२२ मात्रा, तेमां अंते वे गुरु.
१, ७, १३, १९ मात्राए ताल. चरण चरणमांह बधी, बावीश कल जामे, ३६३९ अंतमाह जुगल गुरु, रवि दशे विरामे; २४३४
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रणपिंगळ
•वाल एक सात तेर, ओगणीश ठामे, २०११ जाति तो बने रसाल, महीदीप नामे. ८७. १८५४
आ जाति राग खमायची जिल्ला आने जंगलामां पण गवायछे.. ७६ लीला. ११,११,यति, अंबे गुरु..१,५,९,१२,१६,२०मात्राए लाल. बाविश कुल कल थाय, चरण चरणमांह तो, ६७०९ तेमां कर गुरु एक, छेवट छे क्यांह तो -४८७६ शिव शिवमा यति थाय, जाति लीलाविषे, ४२६२
शशि शर नव रवि सोळ, विशपर तालो दिशे. ८८. ५११३ .५७ रास. ८,८,६ यति=२२ मात्रा. १,५,९,१३,१५,२१ मात्राए ताल.
आठ कलापर, आठ घरी षड, अंत करो . ७९२१ बावीश कळमां, खेतविषे तो, सगण, धरो; ९५०५ एक पछी श्रुति, श्रुति चडती शर, ताल दिशे, ७९७६
रासनी रचना, एम करो प्रति, चरणविषे. ८९. १०४९२ ७८ राधिका. १३,९ यति-२२.३,७,११,१५,१९ मात्राए ताल. याविश कळमां यति तेर, अने नव ठामे, २०२८ श्रण पर चचारे ताळ, चडी शर, जामे २९.६६ ए जाति राधिका छंदप्रभाकर के छे, २९७८ गातां गुणिजन ते राह, लावणी ले. छे. ९० ७८४
आ जात लावणीमां गवायछे, अने घणुं करी नामां; अंते बे. पुरु: आवेछे. ७९ विहारी. २२ मात्रा ८,६,८ यति. ३,९,१५,२१ मात्राए-ताल. कल आठ छने, आठ करो, बावो विचारी, २०१८ कल योग थकी, बे विशेष, थाय विहारी; २९६२ करीत्रण पछी खट, खट्या ताल, चार आणनो, ६५५५
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मात्रामेन
'ए गलं राह, तो गवाती, जाति जाणजो. ९१. ५४७१ ८. श्रीमती. १२,१० पति.६+६+५+५२२ मात्रा.
१, ५, १, १३, १७, २१ मात्राए ताल. छकल उपर छकला कर, शर शर कल त्यां धर, २१८३७ एम कळा नाशिं धर, रचना सरसन कर; .. २७६४० पार अने दश स्थाने, विरति रचवा मच, २०६९७ श्रीमतोमां शशिपर ने, तालो श्रुति श्रुति रच.९२. २७१४० ८१ वारि. १३, ९ यति. १,५,९,१४,१८, मात्राए ताल. प्रति पदमां बावीश तो, कुल कळ गायके, ६४४८ तेरे अने नवे खरे, यति ठीक थार्यछे ६४६० शशि शर नव मनुना पछी, पुराण ताल छे, ५४९० वारि जातिनी ए रुंडी, मधुररी चाल छे. ९३. ४८६८ ८२ एला. ६२५+३+१=२२. ११,११ यति. प्रनि यतिमा
१, ४, ७, १० मात्राश ताल. छ पर पांव थाय छे, छपर शर मुकायछे, ६६५० एम वीश बे कला..यति शिवे रखायछे, एक चार सात दश, ताल यति धारजो,
४९०८ एह ऍला नामनी, जाति छे विचारजो. ९४. ५४२६
रौद्रार्क-२३ मात्रानी ४६,३६८ वृत्ति थायछे. गणप्रस्तारप्रकाशमा २३ मात्रानु सामान्य नाम निश्चल आप्युछे. ८३ मृगांक १२,११ यति-२३ मात्रा, तेमां अंबे ग ल.
१, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल, तेवाश कलर्नु पद छे, बार शिवे यति आण, २५५३००
११
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३०
रणपिंगळ.
अंते गुरू लघु एमां, मृगांक जाति जाण; १८४९५ एक उपर पछौँ, चडती, चच्चारे छे ताल, १७७९९ प्रतिपदमाहे एमज, षड तालो संभाळ. ९५. १८२३७ ८४ उपमान. १३,१० यति. १,५,९,१२,१६,२० मात्राए ताल. कल कर कुल तेवीश जख, ने दश पर यति छ, १७०२५ शशि शर नव रवि सोल पोश, पर तालनी गति छे; १६०५९ ए रचना उपमाननी, कथतां ठीक हो, ४८७१ यावा कविवर तणुं अति, पूलं मन लोभे. ९६. ४४६५ छंदःप्रभाकरमा आ जातिमां अंते बे गुरू लाववा कयुं छे. पण तेवा नियमनी आना पछीनी अंक ८५ वाळी द्रढपटा जाति छ, एटले ए मत ग्राह्य नथीं. ८५ द्रढपटा, दटपद. १३,१०यति=२३ मात्रा. तेमां अंते बे गुरु.
१,५,९,१४,१८,२२ मात्राए ताल. वीश कुल कल चरणमां, जख दश यति जाणो, ६५३१ प्रतिपद केरा अंतमां, बे गुरु ठोक. आणो ५८३८ प्रतियतिमां पे ले अने, चडती चच्चारे, द्रढपटमांहे ताल तो, कवि षर्ड कुल धारे. ९७. ६४४८
* रूपदीपमा दटपट, गौडपिंगळमां दिढपटि. अने बीजां पिंगळोमां द्रढपदा, त्रिटपद, वगेरे नामो छे. ६६ निश्रेणी. १३, १० यति=२३ मात्रा, प्रति यतिमां अंते गुरु..
१,५,९,१४,१८,२२ मात्राए ताल. त्रेषिश मात्रा थायछे, प्रति पदनी माहे, विरति तेरे प्रथम छे, कीजी दश ज्यांहे; ४२९३ प्रति यतिअंते गुरु करो, बेमां वे धारी, ढपट पेठे ताल ते, निश्रेणी सारी. ९८..
१३
२२६६
११५.
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मात्रामेळ.
३१
८७ हीर, हीरक, बालिका २ (धर्म) 1टगण + र = २३ मात्रा. aणे गणमा यमक जोइये. १, ४, ७, १०, १३, १६, १९, २२. मात्राए ताल. धर्म टगण, धार तु त्रण, अंत रगण आणजे, १०९४७ आदि उपर, ताळ तु कर, श्री त्रण पर, जाणजे; १०५४७ बेविश कल, आण सकल, एम अचल, नेमथी, १०१४७ हीर होरक, जाति निरख, एम परख, प्रेमथी. ९९.१०,५४७
1त्तमौतिक, नागपिंगळ तथा वाणीभूषणमां आदि गुरु अने चार लघु ( SH ) वाळा त्रण धर्म गण+रगण आणवा कयुं छे. अने उदाहरण पण तेज प्रमाणे छे. वृत्तमौक्तिकमां आ प्रमाणे उदाहरण छे:
"आदि गयुत, वेर्दे लयुत, नाग रचित, षट्कलं, वन्हि गंदित, लोक विदित, मंत्यकथित, मध्यलं "
पण भाषा छंदोमंजरी, वाग्वल्लभ, ( भाषा) छंदार्णव, छंदोलता, भाषा छंदः शृंगार अने चिंतामणीमां त्रण टुकार आणवा कधुं छे, पण गणना १३ भेद पैकी धर्म दुगणज ( 51111) आवे, एवो नियम बांध्यो नथी, तेम तेमनां उदाहरणमां पण पाळयो नथी.
छंदोवृत्तमुक्तावलीमा क.धुं छे के, प्रत्येक धर्मटगणे यति आवे तो हीर जाति अने यति न आवे तो सुहीर जाति केहेवाय; धर्म ट व मूकतां शाली नामना ऋण दुगण [|||||| ] मूकी अंते रगण आवे तो लघुहीरक जाति केहवाय; अने ब्रह्म नमिता त्रण टगण ( 11151) मूकी. अंते रगण आणे तो परिवृत्तहीरक जाति केहेवायछे.
छंद: प्रभाकर ऋण यमक सहित आदि गुरु अने अंते रगण आगी कुल २३ माझा लाववानुं केहेले. गणप्रस्तारप्रकाशमां पेहेलां सगण वर्गना त्रण गण आणवा कधुं छे.
अवतारी --२४ मात्रानी ७५, ०२५ वृत्ति थाय छे.
८८ काव्य वास्तूक (प्राकृत पिमळसूत्र प्रमाणे). ११,१३ यति =
१४ मात्रा १, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल
६+१२ (४+४+ज* के द्विजगण ) + ६.
૧૨
आदि छ कल करों उपर, रवि कल त्रण गणमां कर, १६९३६
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१३३
रणपिंगळ.
मांत्रीजी जगण, अगर दिन मन लागी परे ५०५१६ पछी छ घी चोचीश, चतुर कवि जन कल लावे, १०८१२ काव्बे पति अगियार, त्रयोदश क्रमथी आवे. १००. ३७४.१
२१४६०
*
प्रथम उपर घर ताल, पछी श्रुति बढ़ती करने,
२८१९६
सकल अळीने ताल, बने पडे त्यम बंद धरजे; लावणी साखी राग, समानत्र बदला भाळचा, ३७१९ रोला छपय समान, वळी ठिक वेदता चाल्यां. १०१.३७४६ छंदःशास्त्रमां कथुंठे के वच्येवी बार मात्रामा ऋण चोकलियामां स अ. के विप्रगण, एमानो ममे ते त्रम दगण आचे, पण जगण आववाथी सार देखातुं नथी.
**** वृतमौक्तिकमा लेखेछे के-वचली बार मात्राना व गण अणिवा, 'तेमां छेलो. गण विप्र (ii) अथवा जंगण आणवी, एवीज रीते मागधी : नागपिंगळ तथा प्राकृतपिर्मसूत्रमा पंण- लख्ख छे. छंदः शास्त्रमा बल बार मात्रामा सज के विप्रगणमांधी गमे ते लाघवा, एम लखेछे; पण उपरना प्रथम एवी बंधी करी नथी, माटे अमे पण ते पाळी नथी; केमके चंद्रःशास्त्रनाकर्त्ता केहछे के “उपयमा प्रथम एक काव्य अने ते "उपर उल्लाल करवां" तो काव्यना वधा नियम एन अभिप्राय प्रमाणे एमी पण लागु पडी गया. एटले स, अ के विप्रगणमांथी गमे ते, बार मात्रामां आवनो जोइये, ते सिवाय वीजा आवे नहि. पण छपयनुं उदाहरण एमां आप्युं छे, तेमां "सुंदर भूषित' एवा शब्द भगणना आवी जायछे; एटले तेनो नियम जे सज के विप्रगण लाववानो ते तेणे पोते पण पाळयो नथी. छेदः शृंगारमा ६+१२+३= २४ ए रीते मात्रा लाववा केहेछें:
छंद्रः कामदुघावत्समा ६+४+४+ विप्र के ज+२+४ = २४ लावा केहेछे. भाषा छंदोमंजरी, छंदः प्रभाकर तथा छंदः प्रदीपमां ६+८+१० यति लाववा केहे छे.
छंदोवृत्तमुक्तावलीमां चोवीश मात्रा आणवानुं कही, प्रथम ११ मात्रा दोहान लक्षणयुक्त आणवा कहे छे तेमज १४ मी मात्रा लघु आणी, त्यां यति आणवा केहेछे, ते पछी चे चोकलिया [तेमा पेहेलो जगण सिवायनो ]
"
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मात्रामळ.
+२ मात्रा [वंने लघु किंवा एका गुरु] एम चौवीश,मात्रा.चरणमा लाववानु केहेछे. वळी चौदमी मात्राए विरसमान आये तो. चपला. काव्य नाम आपछे.
१६ लघुमांथी बब्बे लघु घटाडता आलेक गुरू बाधे, ए क्रमे नीचे प्रमाणे, काव्यना ४५ भेद थायछे. चडतो अंक, नागपिंगल प्रमाणे भेद. लघु. गुरु. शक
९६ .. शुदा जातिः शंभु.. सूर-सूर्व
गंड
स्कंध विजय
८४
८
.
७८
तालांक, तारांक, ताटंक* समर सिंह शेष, शीर्ष उत्तेज प्रतिपक्ष, फणीरक्ष, अरि. परिधर्म, प्रतिधर्मा मराल मृगेन्द्र
७६ ७४
१० ११
७० १३ ६८ १४ ६६ १५
दंड
मर्कट मदन
६० १८ महाराष्ट्र, मरहा वसंत
५६ २० कंठ
५४ २१ मयूर, मोर
५२ ३३ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभटी टीकामां ए नाम छ: 'माइत पिंगल, सूत्रकार रविकर ए नाम आपे छे.
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३५
૪
२५
२६
२७
૨૮
२९
३०
३१
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३३
३४
३५
३६
૩૭
T
૪૦
४१
४२
४३
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बंध
भ्रमर *
बीजो महाराष्ट्र
बलभद्र
राजा
वलित
राम
मन्थान
बली
मोह
सहस्त्र नेत्र.
बाल.
दप्त
शरभ.
दंभ.
अह, दिवस.
उदभ.
वलितांक.
तुरंग.
हरिण.
अंध.
रणपिंगळे
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५०
૪૮
↑
४४
४२.
४० २८
२३
२४ वैश्याजाति
२५
३८ २९
३६ ३०
३४
३०
३२
३२ ब्राह्मणी जाति
३०
૨૩
૨૮
३४
२६
२४
१२
१०
२६
२७ क्षत्रियाजाति
३५
३६
२२
३७
२० ३८
१८
३९
१६
४०
१४ ४१
४२
४३
४४
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S
अंगः
<*
४५
*केटलाक " भिन्न” नाम पण आपेछे, एम प्रा. पिं. सूत्रना टिप्पणमां लखलुं छे. काव्य अने षट्पदीना दोष विषे.
१ पददुष्ट एटले व्याकरण रीतिए अशुध्ध होय तो काव्य पंगु केहेवाय.
२ मात्रा ओछी होयतो खंज केहेवाय.
३ मात्रा अधिक होयतो- वातुल केहेवाय.
४ जेमां रकार के लकार न आवे-ते बधिर केहेवाय.
५ जेमां कोइ अलंकार आवे नहि ते-अंध केहेवाय.
६ छंदोभंग एटले मात्रानो क्रम होय ते टूटे तो मूर्क केहेवाय.
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. मात्रामेळ.
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७ अर्थहीन होय ते-दुर्बळ केहेवाय. ८ जेमा कर्णकठोर अक्षर आवे ते-केंकर केहेवाय, ५ ओज, प्रासाद, श्लष, आदिथी हीन होय तो ते काण (काणो) . केहेवाय.
उपर लखेला दोषो काव्यजाति अने षट्पदी जे तेनाज उपरथी थायछे; तेना प्रसंगमा नागपिंगळ अने वृत्तमौक्तिक आदिमा जणान्या छे, परंतु सामान्य रीते सर्व प्रकारनी कविताने पण ते लागु पडेछे. - काव्यजातिमा ३२ लघु सुधीना भेद होय ते ब्राह्मणी जाति केहेवाय, ४० लघु सुधीना क्षत्रियाजाति केहेवाय, ४४ लघु सुधीना वैश्याजाति अने ते उपरांतना शूद्राजाति केहेवाय. ८९ रोला, रोडा. ११,१३ यति= २४ मात्रा.
१,५,९,१३,१७,२१ मात्राए ताल. ___४+४+४+४+४+४=२४, तेमां अंते गुरु (चिं.पि.) चोकलिया गण छ कर, रची गुरु अन्ते एमां, १२११ अगियारे यति आण, पछी तेरे छे जेमां; प्रथम उपर छे ताल, पछी चच्चारे आवे, रोला, रोडामांह, कला कवि चोवीश लावे. १०२.७८९७
११ गुरू ने २ लघुना चरणवाळी कुन्द जाति थाय, तेना बधा मळीने ४४ गुरू तथा ८ लघु थइने ९६ मात्रा थाय; तेमांथी अकेक गुरू ओछों थाय तथा बब्बे लघु बधे, ए क्रमथी कर्णाशल आदि ११ भेद थाय. एम वागवल्लभ अने मागधी नागपिंगळमां जणावेछे. म, त, र, म, ग. एम लाववा लखपतजससिंधु तथा गौडपिंगळमां केहछे, ते तेर अक्षरना अतिजगति छंदनो १६१मो वस्तु नामे भेद थाय, पण जो तेने अक्षरमळ ठरा. पवामां आवे तो पछी तेना भेद थइ शके नहि. मनहरपिंगळमां ६+४+४ +४+४+२=२४ मात्रा लाववा केहेछे. पण वागवल्लभ, छंदशास्त्र अने वृत्तमौक्तिकमां कशा नियम विनानी मात्र २४ मात्राज लाववानु केहेछे, भने मागधी नागपिगळ अंते गुरु लाववा केहेछे.
छंदःप्रभाकर केहेछे के-“कोइ कोइ कवियोनुं मत एम छे के, एना
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रणांपैगळे.
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwmindiane अंतमां बे गुरु जोइये.” पण ते मत सर्वम्तन्य न होवानुं ते पोतेज केहेछे. बळी ऐज ग्रंथमां का छे के-"एनुं बीजं नम काम्य पण छे. जे रोलाना 'चारे चरणोमां ११मी मात्रा लघु होय ते रोला काव्य' केहेवापछे.. कुंडलियामां एनो प्रयोग थवो जोइये, कोइ कोइ कविए काव्यनी यति ६,८ भने १० उपर मानी छ."
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामा इच्छानुसार गुरु लघु लाववानुं कथु छे, वळी तेमांज ११ गुरु तथा ३ लघु लाववाथी शुद्धरोला थाय, एम पण काळे.
- प्रत्येक चरणमा ११ गुरु अने २ लघु आवे तो उपर लख्या प्रमाणे शुद्धराला काय, पण यति नं पाळिये तो १२ गुरु प्रत्येक चरणमा गणी अकेको गुरु घटाडी बब्बे लघु वधारी प्रस्तार करतां १२ भेद थाय, एम नारायणभट्टीमा जणाकी नीचे प्रमाणे भेद लखेछे:कम. भेद-नामः
गुरु. लघु.
करताल. मेघ. तालंक. काल.
कोकिल: कमल.
शंभुः चामर..
२४
गणेश्वर. वृत्तमौक्तिक तथा छंदःशास्त्रमा नीचे प्रमाणे रोलामा १३ भेद कल्पा छे.. क्रम. भेद-नाम.. गुरुः लघु. मात्रा
१३ कर्णासल (करताल).
१२ मेघ.
११५४९६
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४
૫
૬
७
तालङ्क.
कालरुद्र.
कोकिल.
હું
१०
૧૧
कमल.
चंद्र, इन्दु
शंभु.
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मात्रामैळ:
१०
"
૯
८
७
૬
૫
४
3
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७६
८०
૮૧
८४
८६
चानर.
८८
गणेश.
૯૦
૧૨
शेष +
૯૨
१
८४
૧૩
सहस्राक्ष.
+ प्राकृत पिंगळसूत्रमां १२ मुं सहस्राक्ष अने १३ मुं शेष एम नाम आप्यां छे.
૩૭
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૯૯
૯૬
૯૬
૯૬
૬
૯૬
૬
૯૬
૯૬
वाणीभूषणमां ११मी मात्राए यति लाववा कह्युं छे. मागवी पिंगळसूत्रमां तेमज वीजा केलांक पिंगळमां 'अंते गुरु आणवोज' एवो प्रतिबंध नथी, अने तेवां उदाहरणो पण मळी आवेछे. कृष्णभट्ट कृत छंदोवृत्तमुक्तावलीमां वारे यति जणावी, लखे छे के, अगियार यति आणवा केटलाक केहछे, पण तेम करवाथी काव्यजाति साथै मळी जायछे.
૯૬
९० रसावली, रोडक, चतुष्पदी, अर्कच्छाया. ११, १३ यति.
१, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राएं ताल.
चोविश कुल. कल करो, रसावलों के रोडकमा, १८८४१ अगियारे यति थाय, वळी तेरे छे तुकमां; १७८७८
१६८
चतुष्पदी मळी सर्व रचो रोलानी ताले, अर्कच्छायामोह, सरस कविवर संभाले. १०३. ४०८३ वाग्वलभादि केटलाक ग्रंथमां काव्य, रोय अने अर्कच्छायाने एकज मानेला छे, पण उपर प्रमाणे लक्षण भिन्न मळवाथी अमे तेने जूदा पाडयाछे.
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रणपिंगळ.
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९१ गुप्त. १४, १० यति. २४ मात्रा तेमां आयंते नगण.
. १, ५, ९, १३, १५, १९, २३ मात्राए ताल. प्रथम नगण धर प्रति पदमां, चरमे धरी नगण, ६१११८ यति धर चौद अने दशमां, कुल कल चोविशगण; ६७८२० शशि शर नव जख तिथि ओगणी, तालजत्रेविशपर, ६६८८६
सरसन गुप्त बने जाति, कोइ रचे कविवर. १०४ १६६८८ ९२शोभना.१४,१० यति २४मात्रा,तेमां अंतेजगण,छंदःप्रभाकर प्रमाणे,
१, ८, १५, २२ मात्राए ताल.. चौद कलने दश उपर यति, जगण छेवट आण, ४२१७७ एम चोविश कलतणी आ, शोभना कवि जाण; ४०६७3 प्रथम पर वळी सात साते, ताल सुंदर सार, ४०६४५ ढाळ रागे गाय तो ते, थाय छे सुखकार. १०५. ४०६२६ ९३रूपमाळा.छंदःप्रभाकर प्रमाणे. १४,१० यति-२४ मात्रा, तेमां अंते गल.
१, ८, १५, २२ मात्राए ताल... चौद ने दश बे विरामे, वीशने कल चार, ४०१८ शोभना सम ठाठ छे पण, जगण जरूर न धार; ४६१८४ अंतमां गुरु ने लघु तो, रूपमाळा थाय, . २८६८3 एकपर पछौं सात चडती, ताल एम रचाय. १०६. ४०७८८ ९४ दिक्पाल. १२, १२ यति.-२४ मात्रा, तेमां अंते बे गुरु.
३, ९, १५, २१ मात्राए ताळ. चोवीश कला पूरी, दर चरणमांहि अणो; १५४१ यति थाय कला बारे, दिक्पाल जाति जाणो; एक त्रण पछी भक्ति ताळो, तिथि एकवीश माथे, ५५६१ बेतोनी राह बोलो, ए जाति गाइ साथे. १०७. ५१८५. रेखता के नझीरना बेतोनी रतेि आ जाति गवाय छे.
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0
मात्रामेळ.
TY
९५. दंडी. मात्रा २४ तेना अक्षर १८ गग लल लल गग लललल गग ल ल ल ल.
१, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल. ये गुरु उपर मूको लघु कल चारे सरसन, ६५४७३ एवी ठीक रचना तुं त्रिपट करीने पद सज़ा ६५४७३ एवा वरणन अष्टादश कर चोवीश कलन, ६५४७3 भूने श्रुति श्रुति तालो चडोज दंडी महि धज. १०८.१५४७३
वागवल्लभमां लखेछे के आ प्रमाणे आ जाति अक्षरमेळ वृत्त थइ जायछे, तेथी जो तेमां गणना करवी होय तो छेल्लो सगण आणवो, अने तेनुं नाम दंड आपq. ९६ लीला. १२,१२ यति, ६+६+४+४+४=२४ मात्रा.
१,५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल. छ कल प्रथम रच चारू, ते पर पीथी छ कला, २१3१६ तेपर चोकलिया त्रण, रूडा गण रच तुं भला; २७२२८
-~-निठा लीला रचना करजे, २०४७3 रविपर यात कल च॥१५, .
१०९.२०५२८ शशिपर पछी श्रुति श्रुतिपर, तालो चडतीघरग.
भाषा छंदोमंजरी अने छंदःप्रभाकरमां,७,७,७,३ यति कही छे, विशेषमां छंदःप्रभाकर अंते सगण लाववा केहेछे; पण ते मत बीजा पिंगळकारो मान्य करता नथी. वळी एज ग्रंथकारे आना अर्द्धने पण लीला जाति कही छ, महावतारी-२५ मात्रानी १,२२,३९३ वृत्ति थायछे. ९७ खांग, गयणंग, गगनागन, गगनांग. १२,१३ मात्राए यति. ६+४+४+४+४+ल+ग-२५ मात्रा. तेना २० अक्षर,
१, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताळ. छ कल उपर चोकल गण, चार रुडाज रचायछे, २५६७५ ते पर लघु गुरु करतां, कुल पच्चिश कल थायछे; २७५२५
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૩૭
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-रणपिंगळ.
विरा अक्षर, प्रथमे ने, चडती चतुर पर ताल छे,
૨૮૪૫૫
१ 3
यति द्वादश व जखपर, गगनांगणनी चालछे ११० २०८०२
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चितामणी केछे के आदि छ कल, अंते रगण, अक्षर २० अने बारे विश्राम आणवो. भाषा छंदोमंजरी १६,९ यति कैहेछे, ते बराबर लागतुं नथी. वृत्तमौक्तिकमा प्रथम ६ मात्रा लाववा केहेछे, ते पछीनो नियम कइ जणाव्यो नथी. मागधी नागपिंगळमां प्रथम चार मात्रा अंते ल ग, मात्रा बधी २५, तेना अक्षर वीश, १२, १३ यति (पाठांतरे १६, ९ यति) कही छे.
वाग्वलभमां १२,१३, यति, मात्रा २५, अंते रगण आणवा कछे, मनहर पिंगलमा प्रथम विप्रगण, तेना अंते रगण, मात्रा २५, अने तेना अक्षर २० केहेछे; लखपतजशसिंधुमां अंते गुरु कह्यो छे.
मारवाडी हरिज शपिंगलमां अंते गुरु अने वीश अक्षर अवश्य लाववा कछे. छंद:सारमां वीश अक्षरमां २५ मात्रा लाववा केहेछे, अने तेमां पंदर लघु तथा पांच गुरु लाववा एम केहेछे. वाणीभूषणमां अंते लघु गुरु न केहेतां रगण आणवानुं कयुं छे, अने वीश अक्षर आणवानी फरज बतावी. नथी. प्राकृतपिंगळसूत्रकार प्रथम चोकलियो अने अंते गुरु लाववा केहेले
तथा अंते गण
छंदः प्रभाकरमा गगनान
• नाम आप्युं छे, अने तेमां १६, ९ यति लावा कह्युं छे, वळी तमां कत्युं छे के - “कोइ कोइ १२, १३ यति माने छे. अने तेज ग्रंथकार विशेष नियम बतावेले के- प्रत्येक पदमां पांच गुरु अने पंदर लघुथी वत्ता ओछा गुरु लघु न होवा जोइए.
९८ मुक्तामणि १३, १२ यति= २५ मात्रा. तेमां अंते वे गुरु.
३, ७, ११, १४, १८, २२ मात्राए ताल.
कल तेर उपर पछ बार, यति रुडेरा राजे,
८४०
छे सकल कला पचश, कहाँ मुक्तामणि काजे;
૧૧૭૧૨
७
૧૪
४
૬૫૬૬
त्रण मुनि शिव मनुए ताल, पछी श्रुति चडती आवे, दलदल प्रति खट ठिक ताल, रचिने कविवर लावे. १११. १५८७०
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मात्रामेळ.
Vvvvvvvvvvvv
९९ मदनांतक मात्रा २५. तेना अक्षर २० अंते ग.
. प्रथम एक चोकलियो. वच्चे गमे तेवा गुरु..
१, ५, ९, १२, १६, २१, २४ मात्राए ताल. थाय कला प्रतिपद पचिश परिपूर्ण मदनांतके, २७०५१. करनो वर्णो सकल वीश ज्यम पद विषे थइ शके 3८५६१ प्रतिपद प्रथम डगण धरी चरमें गुरु आणजो, . २००६२ पछी वचवचमां गमे त्यमगुरु लघु करी जाणजो.११२. १२४२६
* वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां आ जाति छे. १०० सुगीतिका. १५, १० यति=२५ मात्रा. आयंते लघु.
२, ५, ९, १२, १६, १९, २३ मात्राए ताल. सुगीतिकामां आदि लघु कल, चरण चरणे आण, ५७२२८ पचीश कल धर चरण चरणे, प्रभाकर परमाण; ७१८२४ द्वितीय उपर अनुक्रमे जो, ताल त्रणपर चार, ७२५७५ धरेज कविजन चरण चरणे,सात सौ निरधार.११३. १६०५१
६ छंदःप्रभाकर अने छंदार्णव प्रमाणे. महाभागवत-२६मात्रानी १,९६,४१८वृत्ति थायछे. १०१ शंकर, चावर..१६,१० यति २६मात्रा, तेमां अंते गुरु लघु.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४ मात्राए ताल. कल सकल छव्विश चरण चरणे, छे गुरु लघु छेह,१०६८९3 यति सोळ ने दशमांही आणो, जाति शंकर एह; १०१3८४ चावर कविजन अवर के'छे, छे त्रीजी पर ताल, १०६४८५ त्रण चार चडते ताल कविवर,सात तुं संभाळ. ११४.७८०८० १०२ विष्णुपद. १६, १० यति=२६ मात्रा, तेमां अंते गुरु..
१, ५, ९, १३, १७ २१, २५ मात्राए ताल, सोळ उपर वळी दशे विरति छे, छेलो गुरु धरो, ५८४२.
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रणपिंगळ.
एकंदर कळ छविश एवी, भाव धरीज करो; ५3309 एक उपर चच्चारे चडती, सात धरो तालो, ७१५४ विष्णुपद सोहाती जाति, गुणिजन मन घालो.११५. २७०६८ १०३ लघुझूलणा. ७,७,७,५ यति=२६ मात्रा. अंते ग,ल.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४ मात्राए ताल. मुनि सप्तने, मुनि पंच यति, चरमे गुरु, लघु मान, १०७७५८ ए रीत कुल, छब्बीश कल, प्रति पदविषे, परमाण; ११०३२० त्रण चारना, क्रमथो चडे, त्रीजी थकी, तो ताल, . ७७७७७ छे जाति ए, लघुझूलणा, कवि सरस ते, संभाळ. ११६.८१3०७
छंदःप्रभाकर आने "झूलना (प्रथम)" एबुं नाम आपेछे. १०४ गीता. १४, १२ यति=२६ मात्रा. अंते गुरु लघु. - ३, ६, १०, १३, १७, २०, २४ मात्राए ताल. मनु भानु विरति धारि गुरु, लघु अंतमां तुं आण, ७८०८० छव्वीश कल त्यां सकल तुं, प्रति चरणमाहे जाण; ८१३७५ त्रीजी पछी त्रण चार पर तो, सात छे शुभ ताल, १०६७७० ते जाति गीता थाय छे, कविराज! तुं संभाळ. ११७. ७८६८८ १०५. गीतिका १४, १२ यति =२६ मात्रा. अंते लघु गुरु.
१, ४, ८, ११, १५, १८, २२, २५ मात्राए ताल. रत्न रवि कल धारिने यति, अंत ल ग रचना करो, ४५२०२ सकळ कल छन्वीश चरणे, चरण मध्ये तो धरो; 3०८१७ प्रथम पर पछौं त्रण चचारे; ताल आठन आणजो, ४०६७८ जाति मात्रिक गीतिकानी, जुक्ति कविजन जाणजो.१ १८.४४८३०
छिंदःप्रभाकर प्रमाणे. रा. रा. नृसिंहराव भोलानाथे एने 'विषम हरिगीत' नाम आप्युछे..
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मात्रामेळ.
१०६ कामरूप. ९,७,१० यति=२६ मात्रा. तेमां अंते गुरु लघुा.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४ मात्राए ताल. नव सात दशपर, विरति लावी, अंत गुरु लघु आण, ११७४४२ छब्बीश कलनी, जाति एवी, कामरूप प्रमाण; १०६३७२ त्रीजी उपर धरी, ताल त्रण ने, चार चडतो चाल, ८८०१२ प्रभुतणी प्रीति, पामवाने, भजनमां मन घाल. ११९, १०८८४२
छिंदःप्रभाकर प्रमाणे. नाक्षत्रिक-२७ मात्रानी ३,१७,८११ वृत्ति थायछे. १०७ आत्रेय. १०,१०,७ यति=२७ मात्रा, तेमां अंते लघु गुरु.
१, ६, ११, १६, २१, २६ मात्राए ताल. कल सतावीशमा, लघु गुरू अंत छे, एक झडमां, ८४६३७ प्रथमपर ताल पछौं, पांच चडती धरो, ठीक पदमां; ८५१६३ दश पछी दश अने, सातपर यति करो, स्थान त्रणमां, ८६७१3 जाति आत्रेय तो,ठीक गणोजेय तो,कुशल जनमां.१२०.११२३४७ १०८. शुभगीता १५, १२ यति=२७ मात्रा, तेमां अंते रगण
२, ५, ९, १२, १६, १९, २३, २६ मात्राए ताल. यति धरी पंदर रवि पर, रगण अंते आणजो, ५०२८५ धरी कला सत्ताविशन कुल, शुभगीता ते जाणजो; ५०४६३ द्वितीय पर दइ ताल त्रण ने, चार पछौं चडती करी, ७२७६१ भलीन जाति प्रभाकर भणी, हरिगीते गाजोखरी.१२१.५०२५१
x छंदःप्रभाकर, छंदार्णव अन्ते गुरु ज आणवा केहेछे. १०९ अतिगीता. (छंदार्णव प्रमाणे) २७ मात्रा, तेमां अंते लघु.
१, ४, ८, ११, १५, १८, २२, २५ मात्राए ताल. वीश ने स्वर मात्रिकामां लघु करने अंत अंत, १५४६५७
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શ્વ
रणपिंगळ.
ए प्रमाणे चरण चारे रची हर्खे बुद्धिवंत;
૧૧૦૪૮૬
૧૬૨૧૯૬
पे'लोने त्रण चार चडते आठ आठज ताल घाल, आण अतिगीता विषे रचना रुडेरी एह चाल. १२२. १५१४५५ ११० सरसि १६, ११ यति = २७ मात्रा. तेमां अंते गुरु लघु
१, ५, ९, १३ १७, २१, २५ मात्राए ताल
रचिये सत्ताविश कलकेरी, सरसी जाति सार, सोळ अने अगियारे यति छे, अंते गुरु लघु धार; प्रथम पछी चच्चारे चडती, ताल चतुर संभाव, सकल मळीने एवी कविजन, सात सरस घर ताल. १२३.१५३६०६ भाषा छंदोमंजरी. * छंदः प्रभाकर प्रमाणे.
यौगिक - २८ मात्रानी ५, १४, २२९ वृत्ति थाय छे.
११.१ सारसमाला + ७ड(४+४+४+४+४+४+४)=२८मात्रा..
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल.
स्वात डगण संयुत तो अठ्ठाविश कल सर्वे लावों, भक्ति रसे भरपूर रहीने श्री प्रभु ने मन भावो; एक पछी चच्चारे चडती तालो सातज धरजो, छंदलतानी एवी रीते सारसमाला करजो. १२४. छंदोलता प्रमाणे.
१२४१७८
१८५८७४.
૧૪૬૨૫૧
૯૪૧૬
૧૩૩૦૨
૧૬૨૧૪૨
१२८१.६२.
११२ हरिगीत. +६+१+९+५+ ग = २८ मात्रा..
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४, २७ मात्राए ताल.
कल पांच उपर टगण करो पछी ठगण त्रण ठौक आणजो, १२१३७७ हरिगीतमां गुरु एक अन्ते एम अंतर जाणजो
१०६३८४
कुल, कला अठ्ठावीशमां त्रण उपर पेलो ताल छें,
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८१२७२.
४.
८
पणे श्रुतिना क्रमवडे वण जगण कुल वसु ताल छे. १२५.१२०८७७
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मात्रामेळ.
४५
उंदार्णवमां प्रारंभमां बे लघु मात्रा लाववा केहेछे पण वाणीभूषणमा प्रारंभमां इसन गण (Iss) वर्ण्य करीने पांच मात्रा लावबा कत्युंछे, तो कुसुमगण (151) लाववाने हरकत नथी एम समजायछे, पण ते मत उचित नथी.
छंदोवृत्तमुक्तावलीमा उपरनुं माप आपी यतिविषे कंइ लख्युं नथी.
छंदोवृत्तमुक्तावलीमां हरिगीतना मापमांथी अंतनो गुरु कमी करतां बाकी २६ मात्रानो अनुहरिगीत थायछे, एम कत्युं छे. विशेषमा तेमां लख्यु छे के अनुहरिगतिना मापमां आरंभे बे मात्रा वधारवाथी (२८ मात्रानी) मंद्रगीत जाति थायछे, अने ते (अनुहरिगीत) मांज वे मात्रा घटवाथी (२४ मात्रानी) लघुहरिगीत जाति थायछे.
१६,१२ यति=२८ मात्रा तेमां अन्ते रगण अथवा गुरु आणवा कही तेनुं नाम हरिगीत आपवानुं जे पिंगळमां होय ते बरावर नथी एम उपरना नियम
थी जणाशे. ११३ गिया,गीता,गीयऊ, हरिगीता, गियामालती, वेताल, वैतालिक, गीतक. ९,७,१२ यति =२८ मात्रा, तेमांअंते गुरु.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४, २७ मात्राए ताल. गण चार चोकल, बार तेपर रगण के गुरु राखजो, १०८८६५ नव सात द्वादश, विरति जेमां, ताल हरिगीतनी सजो; ११७४२८ बताल, गीया, हरिगीता वळी, गियामालती भाखजो, १०५८3८ गीतक कहे मरु देशमा ए, वात गोखी राखजो.१२६. ७७७३८
+ रूपदीपमां "कर चार चौगुन धार, संख्या बहरी वारही लीजिये.” एम जणावी अन्ते रगण लाववा केहेछे.
मागधी छंदःशतकमां ए बने नाम छे. *मारवाडमां ए नाम आफैछे.
वृत्तमौक्तिकना कर्त्ताना पिताए पिंगळविवृत्तिमा १४, १४ यति बीजा हावियोनी सम्मतिये राखेली छे. छंदःप्रभाकरमा हारगीतिका जाति छ, तेमां १६,१२ यति= २८ मात्रा. अन्ते रगण अथवा लघु गुरु लाववा केहेछे. अमने मळेल ग्रंथोमा आवी कोइ जाति नथी. ११४ हरगीत. ६+६+५+५+३+ ग, ग-२८ मात्रा.
१,५, ९, १३, १७,२१,२५ मात्राए ताल. अठ्ठाविश कल प्रति पदमाहे सकल सरस सट आवे, ७३६५७
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रणपिंगळ.
कल पांच उपर एक टगण करौ पछीर्थी ठगण बेलावे; १२८५४८ पछ• त्रण कलपर वे गुरु धरवा हरगीत रचवा काने, २७६१५ प्रथम उपर पछौं चडौं श्रुति श्रुतिये मुनि ताल बधा राजे.१२७.२०८०५ ११५. चोपाया. १६, १२ यति-२८ मात्रा, तेमां अंते गुरु.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल. अठ्ठाविश कल सौमळे आणो, चरमे गुरु शशि धरजो, १८८२३० प्रथम विरतीमां चार कलाना, चार रुडा गण करजो; १७४६८3 प्रथम उपर पछौं चच्चारे मुनि, ताल पदे न विसरजो, १७५५४७ चोपायामां सोळे बारे, बे यति एम उचरजो. १२८. १७४५२७
पादना प्रारंभमां जगण, नगण न लाववा चित्रसेन टीकावाळा नागपिंगळमां का छे; आ जाति बे चरणनी पण कोइ बोले छे, मारवाडमां एने ककुभा केहे छे, तेनो अर्थ दिशा थायछे, अने दिशा चार छे, माटे चोपाया.आ जातिना रागने माटे प्राचीन काव्यमाळा ग्रंथ ३जामां राजसूय यज्ञ पृ. ६ मा “राग रामग्री-चोपायानी देशी"एम लख्युं छे. ११६. ककुभा. (भाषा छंदोमंजरीप्रमाणे) १६,१२ यति-२८ मात्रा.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल. सकल कला अठ्ठाविश आणो, चरण चरणमां जोई, २७२०८ प्रथम विरति तो सोळे आवे, बीनी बारे सोईः १3 पे'ली कलपर ताल धरी पछौं, चडती चारे चारे, 3७४५ जाति ककुभाएम बने छे, कविजन एम उचारे.१२९. ५५८१७ ११७ पैडि १३, १५, यति=२८मात्रा, तेमां अंते रगण.
१, ५, ९, १२, १६, २०, २४, २७ मात्राए ताल. अठ्ठाविश कल तो खरे, प्रति चरण चरणमा आणजो, ८२४४४ प्रथम विरति छे तेरनो, वळी बीजो पनरे जाणजो; ८६६४५ रगणन अंते राखतां, ठिक पैडि जाति थायछे, ૭૫૬૮૫
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मात्रामळ.
शशिशर नव रविसोळ विश, चोविशसत्ताविशतालछे.१३०.१०५६०१ ११८ सारसी. ९+७+७+५=२८ मात्रा.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४, २७ मात्राए ताल. नव सातपर धरी सातपर वळी पांच मात्रा आणजो, ७८११४ अठ्ठाविशे छे चरण एवं सारसीमां जाणजो; १७७८१ धरो त्रण उपरतो ताल पछी त्रण चार क्रमथी तो धरो, ८००२८ तो जगण जुगते आठ एवाताल पदमांतो करो. १३१ ८८६६५ ११९ सार. १६,१२ यति=२८ मात्रा, तेमां अंते बे गुरु.
१, ५, ९, १३, १५, २१, २५ मात्राए ताळ. सोळे बारे विरति आणी, अठाविश कल मूको, ६४१३५ प्रथम पछी श्रुति श्रुतिनी उपर, ताल कदि नव चूको; ५४२०१ एकंदर गणतां ते थाशे, ताल बधा मळी साते, ५३१६७ अन्ते बे गुरु कोइ कहे छे, सार ज जाति आ ते. १३२. १८3१ ___आ जातिमां अन्ते वे गुरु छ, तेथी मराठी चालनी साखीने रागे ते वराबर गवायछे. १२० श्रीबन्धु. ७,७,७,७ यति-२८ मात्रा, तेमां अंते गुरु. U ३, ६, १०, १३, १७, २०, २४, २७ मात्राए ताल. मुनि मात्रनी, यति चार तो, अंते गुरु, एकज धरो, १५२७६२ श्रीबन्धुमां, प्रति चरणमां, विश आठ कल, कुल तो करो; ११८४१५ त्रीजी थकी, त्रण चार क्रम, करौ आठ धर, ठीक ताल तुं, ११८७०3 श्रीबन्धुए, दीनबन्धुरट, कलिकालनो, धरौ ख्याल तुं.१३३. १०७१५७ महायोगिक-२९ मात्रानी ८,३२,०४० वृत्ति थायछे. १२१ महाराष्ट्र, मरहठा. १०,८,११ यति, तेमां अंते ग, ल. ६+४+४+४+४+४+ग+ल=२९ मात्रा. ३,७,११,१५,१९,२३,२७ मात्राए ताल. तुं प्रथम छ कल कर पांच डगण धर, ते पर गुरु लघु मेल; ५०७3१८
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४८
रणापंगळे,
मात्रा ओगणत्रिश, पदमां तु धरिश, एवो आणी मेल; ३२१६०३
.
दश वसु यति धारे, पछ अगियारे, एम विरति त्रण थाय, ५०३८१७
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४
४
धरण पर तालन, श्रुति श्रुति पर सज मरहठ्ठा के ' वाय. १३४.३२८७३६
प्राकृत पिंगळसूत्र, वाणीभूषण, छंदः कामदुघावत्स, चिंतामणी, इत्यादिमां उपर प्रमाणे माप छे; पिंगळादर्शमां एनी ३० मात्रा लखी छे, ते भूल जणाय छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा सात चोकलिया [तेमां अंस चोकलियो अंय गुरुवाळो ) + = २९ मात्रा आणवा कत्युं छे.
महातैथिक ३०मात्रानी १३,४६, २६९ वृत्ति थायले
१२२ ताटंक. १६,१४ यति = २० मात्रा.
१, ५, ९, १३, १७२१, २५, २९ मात्राएं ताल.
त्रीशे त्रीशे मात्रा दीशे, प्रति पद मांहे बहु सारी, सोळे चौदे यति वे आणो, सारी रीते संभारी; प्रथम उपर पछी चारे चारे, तालो धारेछे जारी. ताटंके तो एवी तालो, भाळी आठे शुभकारी. १३५. १२१३८४ छंदः प्रभाकरमां अंते मगण लाववानुं कल्युं छे.
१२३ चौपैया, चतुष्पदी, चतुरपद. १०, ८, १२ यति. = ३० मात्रा. यमक आणवी. ४+४+४+४+४+४+स+ग = ३० मात्रा
१३०७४३
પદ
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૩૪
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७ मात्राए ताल.
घट चोकल पर घर, संगण तँ कविवर ! तेपर गुरु घर जेजी, १८८६ ५० कलीश करा पूरी, बहुज मधुरी, चौपया करजेजी; १२१६४५ दश आठे यति करो, बारे पछी घरी, एम विरति त्रण आवे, १८५१२१ दे ताल त्रीजी पर, श्रुति चडती घर, चौपयामां भावे. १३६.
३१६८
पादना आदिमां जगण नगण न लाववा चित्रसेनटीकावाळा नागपिंगळमां कछे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां विषम स्थाने जगण न लाववा कपुंछे; छंदः शास्त्र अने छंदः प्रभाकरमां ७ चोकालिया (तेंमां अंते स ) + ग = ३० मात्रा आणवा कां.
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मात्राभेळ.
४९.
वळी १०, ८ मात्राए प्रास लाच्या विनानी पण चौपया जाति मागधी
छंदःशतकमां कही छे.
१२४ चूडामणि १२, १८ यति= ३० मात्रा.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल
रण चरणमां मळीने, सकल कला त्रीश तो गणी करजो, ३५४६६५
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૧૮
रे अने पुराणे, विरति गोठवी सरस घरजो;
वना वे गीतिनी, गणिने आणो नियम बधा धारी, जातिने के' छे, चूडामणि शोभती सरस भारी. १३७.१५८४०० : २५ साटक. १८, १२ यति = ३० मात्रा, तेमां १८ मात्राना १२ अक्षर अने १२ मात्राना ७ अक्षर तेमां अन्ते गुरु.
१ सालूरो.
४ धीरो.
७ कंतो.
१० भदंगो.
१, ५, ९, १२, १५, १९, २४, २९ मात्राए ताल.
गोत्रीशकला प्रति पदविषे, अक्षरे ओगणीशे,
८३०८७
१८३०८२
मात्रा अटार बार अक्षरतणी, एक विराम दीशेः जो वार कल थइ वर्ण साते, योजी यति आणतो. २१४४८४ तेने साटक जाति शार्दूल सटा, रागे रुडी जाणजो. १३८. २१५४२६
आ जाति शार्दूलविक्रीडित वृत्तना राग बोलाय छे. एटले तेना ताल ते प्रमाणे समजवां तेना जे ४२ भेद थाय छे, ते कोइ मागधी पिंगळने आधारे लखेला छे, ए उपरथी एम धारणा थाय छे के ३० मात्रा साथे पूरेपूरा १९ अक्षर आणवा एवो नियम नथी, अने ते अभिप्राय अमने पण उचित लागेछे. मागधी नाग पिंगलमा साटकना ४४ गुरु तथा ३२ लघुमांथी बच्चे लघु वधारतां तथा अकेक गुरु घटाडतां नीचे प्रमाणे ४२ भेद लखेछे :
२ बंभो.
५ राहंसो.
८ सोमंतो.
४७५०२०
૬૪૪૫૮
११ चंगो.
3 भाणो.
६ चंदाणी.
८ सव्वंगो.
१२ सारंगो.
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रणपिंगळ.
- १३ भावो. १४ विभावो. १५ सूरंगो. १६ मारो. १७ सुमारो. १८ धम्मंगो. १८ धारो. २० सधीरो. २१. कासारो. २२ अलखो. २३ लखो. २४ रासारो. २५ आणंदो. २६ मंदो. २७ सावीणो. २८ पछन्नो. २८ छन्नो. ७० भाविणो. 31 सारंसो. ३२ कंसो. 33 हेरंबो. ३४ वीरो. ३५ सवीरो. ६ सेरंवो. उ७ मालका. 3८ चारो. संचारो. ४० भारो. ४१ विभारो. ४२ संभारो. अंक ४ अने १९ मे “धीरो” नाम मळी जावळे परंतु आ नाम सुधारी शकवा बीजी प्रति न मळवाथी देम चलावq पडयुं छे. अश्वावतारी--३१ मात्रानी २१,७८,३०९ वृत्ति थायछे. १२६ सवैयो, वीरइ. १६,१५ यति=३१ मात्रा, तेमां अंते गुरु,लघु.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. एकत्रिश मात्रा सौ मळीने, चरण चरणमां रचनो आप, . ८८०८७८ सोळ अने तिथिये यति आणी,अन्ते गुरुलघुतेमा माप; ८८६२८४ प्रथम उपर प. श्रुति श्रुति चडती,प्रतिपद मांहे ताल रखाय,११५८८१० एज सवैयो एकत्रीशो, कविजन रचिने मन हरखाय. १३९.१२८८3०८ आ जाति आशावरी रागमां गवायछे. प्राचीन काव्यमाला द्रौपदीहरण पृ. ४१. ६८, ८, १५ मात्राए यतिथी छंदःप्रभाकरमा “वीर" अथवा "मात्रिक
सवेयो” एज लक्षणनो कयो छे.. १२७ रविरुचि. १६,१५ यति. गुरु लघुनो नियम नथी. यमक आणवी.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. कत्रिश कल सकल सुबळनी, प्रतित प्रमाणे प्रति पद धरे, ७६६८९००
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Annnnnnnnn
मात्रामेळ. षोडश ने पंदर पर दर झड, बिरति रति धरी कविवर करे; १०२४६ ताल सवैया समान मानन, डा पण धरी कर यमक अपार, १३४७१८८ रुचिकर रविरुचि मात्रा जाति, बनी जाती ते एज प्रकार. १४०.
११५२४६८ १२८ सपादी. १६, १५ यति=३१ मात्रा. (वाग्वल्लभ प्रमाणे)
१,५, ९,१३, १७, २१, २३, २६, २८ मात्राए ताल. कुल पळीने कल एकत्रीश तो, प्रतिपदमा आगजो धारी, ५६१२० सोळ अने पंदर मात्राए, विरति रुडी लावजो सारी; ५५७७६ एकवी पछी बेत्रण बे चडती, रविरुचि केरी तालो आणो, २७५०४ ए रचनाथी थाय सपादी, जागीती जातिछे जाणो. १४ १. ४१५१६ छंदार्णवमां आने रूपसवैया केहेछे, एना बीजा यातिगां पुष्पिताग्रानो राग छे. लाक्षणिक-३२ मात्रानी ३५,२४,५७८ वृत्ति थायछे. १२९ बत्रीशा सवैया. १६, १६ यात=३२ मात्रा, अंते वे गुरु.
१,५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. बत्रिश मात्रा बधी मळीने, चरण चरणमा रचजो सारी, १४८५६७ सोळे सोळे यति आणीने, करजो पदरचना शुभकारी; 3८४५३० बने सवैया बत्रीशा ठिक, जमां बे गुरु छेल्ला आणो, ४७3'१८ एक पछी चच्चारे चडती, ताल तणी जुगती ठिक जाणो.१४२.७७१३२५ १३० केतकी (सवैया)४+४+४+४+४+४+४+ग ग, ३२मात्रा.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. चोकलिया गण सात रचीने, उपर वे गुरु आणो भारी, ५33०२ सोळे सोळे यति राखीने, पद रचना करजो कवि सारी; 3७३५८४ ताल सवैया बत्रीशा सम, चारे पादे सरखा आवे, १२२३८४ एम सवैयो रचनों केतकी, जे कविजनना मनमां भावे.१४३. १४६८१५
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५२
रणपिंगळ.
१३१ रेणकी ९,९,८,६ यति = ३२ मात्रा तेमां अन्ते लघु, गुरु.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१, मात्राएं ताल.
૩૨
सन सरस प्रतिपद, सकल कल रद रद, अन्ते लघु गुरु, प्रति झडमां,
८ ક્
नत्र उपर नव कर, पछी वसु खट पर, एम विरति घर, प्रति पदमां;
૧૩૨૧૭૯૩
૧૩૩૮૩૬૦
त्रण पर घर प्रथम, चचार उपर खम,
८
ताल वसु सुगम, एम नकी,
ए रेणकी जाति, रासिक गणाती,
३५०
कवि ठोक गाव सु, राग थकी. १४४. ८७४१९८ १३२ दंडकला. १०,८,१४ यति - ३२ मात्रा तेमां छेलो गुरु
४+४+४+४+६+४+४+३२. ३, ७, ११, १५, १९,२३,२७,३१ मात्राएं ताल.
प्रथमे चोकल गण, चार प्रथम भण, पछी षट कल कर ते उपरे, बे चोलिया कर, ते पर गुरु घर,
एम कला त्रीश खरे;
१४
दशने
आठे, विद्या ठाठे,
८
त्रण यति एवा एम सजे, ऋण पछी चच्चारे, वसु कुल ताले, दंडकला जाति निपजे. १४५.
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૧૦૨૧૫૪૯
१०२८३०३
८५३७६३
૮૫૬૫૬
८५०२७७
मनहरपिंगलमा १८, १४ यति लखेछे, पण ते बरावर नथी.
,
छंदः प्रभाकरमा अंते सगण लाववानुं कयुं छे, अने कोइ कोइ अंतमां एक गुरु मानेछे. छंदवृत्तमुक्तावलीमां आनुं नाम दंडकल आपी विशेषमां जगावेछे के, आना मापमांथी आरंभनी वे मात्रा ओछी करवाथी "लघुदंड
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मात्रामेळ.
१२.४५७
'कल' जाति थायछे. अने तेज रीते पद्मावती आदिमां पण चरणना आरं
भनी बे मात्रा ओछी करवाथी "लघुपद्मावती" आदि नाम पडेछे. १३३ लीलावती. १७ डगण+स-३२ मात्रा. १८,१४ विराम.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल. करी सात डगण दर चरण चरणमां, पछी ते पर तो सगण करो, २५७८ अष्टादश उपर पछौंथी चौदे, धीरज धरीने विरति धरोः ११७४५७५ त्रीजी पर प्रथमज पछी चच्चारे, ताल बधा मळी आठ गणो, ८७१३७3 कल बत्रौश केरी एवी जाति, लीलावती बहु ठीक भणो. १४६. ८८८८११
। वृत्तमौक्तिक, छंदःशास्त्र अने मागधी नागपिंगळ प्रमाणे. छंदार्णवमां अंते सगण लाववा केहछे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा मात्र ३२ मात्रा आणवा कयुं छे, पण तेना उदाहरणमां अंते सगण आण्यो छे. छंदःशास्त्रमा आठ डगण आणवान कही अंते गुरु के सगण कंइ आणवानुं कछु नी. १३४. त्रिभंगी. १०, ८, ८, ६ यति । ८ डगण=३२ मात्रा. तेमां अंते ग. आठे डगणमां जगण न आणवो. दरेक यातए
अनुप्रास, ३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल. लीलावती ताले, कल रद घाले, बहु संभाले, कविज खरो, ११५७१४६ अन्ते गुरु एमां, जगण न जेमां,
७.४ श्रुति यति तेमां, पास करो -७८७०४ यति दशने आठे, वसुना ठाठे, रंसने माथे, बेस भरो, ૮૩૮૯૫૪
३२
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रणपिंगळ.
wwwwwwwana
ए जाति त्रिभंगी, रचि बहु रंगी,
अधिक उमंगी, ठीक ठंरो. १४७. ८५७०४६ + छंदोवृत्तमुक्तावलीमा १०, १६, ६ यति कही छ. दलपतराम कविए अंते बे गुरु लाववा लख्युं छे, तेनुं प्रमाण मळतुं नथी. छंदःशृंगारमां पण अंते एक गुरु छे. चित्रसेन टीका, नागराज पिंगळ, छंदःशास्त्र तथा वागवल्लभमां आ जातिना उदाहरणमां पण एकज गुरु मूक्यो छे. तथापि नियममां गुरु लाववो एम जणाव्यु नथी. मागधी नागपिंगळमां छेल्लो सगण लाववाचं कर्तुं छे, वळी ते विशेष एम पण जणावेछे के “सम के विषम पदमां जगण आवे तेनी चिंता नहि.” लखपतजशसिंधुमां पण एमज छे. छंदःप्रभाकर केहेछे के "कोइ काइ कविए आ जातिने अन्ते लघु वर्ण पण राख्यो छे, पण श्रेष्ट कवियोए तो गुरुज राख्यो छे. अने ते रुचिकर पण लागेछे." चित्रसेन टीकामां लखेले के, यातने अंते जगण आवे नहि. त्रिभंगी जाति दैत्यकुळमाथी प्रसिद्ध थइ छ, एम केहेवायछे.
६० गुरु अने (लघु- पेहेलु रूप गणतां (मूळ रूप राखतां) अकेको गुरु घटी, बब्बे लघु वधतां त्रिभंगीना मुग्धादि ६१ भेद थायछे. ते नीचे प्रमाणेःक्रम. भेदनाम.
मुग्धा . नंदा. रोहिनि. रामा.
૫૮
५७
o am- 7 "v
कलसा.
૫૬
छंदा.
૫૫
मंदा.
૫૪
.43
संखिनी. हेरंबा. रवि.
'५२
लंका.
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मात्रामेळ.
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१२
30
तंका. कामिनि.
૧૩
33
४८
१४
कंटा.
३४
४७
पालका.
रोहा.
१७
लोहा. संकरा.
१८
X3
૧૮
पासा.
४२
४५
४१
४८
४०
५०
३८
२३
પર
३८
२४
आसा. मोहा. परमा. संसुता. कपालिनी. पारा. सारा. संभराः हारा.
५४
३७
૫૬
33
सारा.
૩૨
१
२८
२८
२७
1१८
२५
अंब. पाधा. पदमा. पारइ. पालीनी. परिभंगा. माथा. मंथा. चि. से. नाथा. अंसा. अमल अनंग. घेला.
३९
૨૫
३७
२४
34
२२
.
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रणपिंगळ.
४२
८
४३.
८४
૧૫
४७
१००
१४
४८
૧૦૨
बाला. बालिनि. बिंबा. माला. उर्ना. रेख. चित्रनी. वेगा. चारा. काला. हंसी. कंसनि. सुभकुम्मारि. कलहंस.
४८
१०४
૫૧
૧૧૦
૧૧૨ ૧૧૪
UY
૫૫
૧૧૬
दोसा.
११८
१७
૫૮
वोसा. संवरु. सारा.
१२२
૫૮
१२४
सीआ.
૧૨૬
अंक २६, २९, अने ५९ मे "सारा" नाम एनए आवेछे पण ते फेरववा बीजी प्रतिनो आधार न मळी सकवाथी एमज चलाव्युं छे. १३५ प्रेमावती,पोमावती १६,१६ यति=३२ मात्रा, तेमांअन्ते बेगुरु.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल.. . सोळे सोळे बे यति बोले, एम कला कुल बविश लावे, २४६०६४ तेमां चरण चरणनी मांहे, वे गुरु अक्षर अन्ते आवे; ५३२१८ प्रथम पछी चच्चारे ताले, चाले वसु कुल हारे हारे, र.2/ए रीते रचना करवाथी, प्रेमावती,पोमावतीधारे.१४८. 33५६८८
छदः प्रभाकरमां आवा मापने पद्मावतीनी यति मूकी तेनी साथे भेळवी
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' मात्रामेळ.
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देछे, वळी तेनुं बीजुं नाम कमळावती पण आपेछे, पण तेवी जाति जलहरण नामे जूदी ले. पद्मावतीनुं माप नीचे प्रमाणे सबळ मतथी प्रति पादन करयुछे, तेज योग्य छे. १३६ पद्मावती, पउमावती : १०, ८, १४ यति-३२ मात्रा.
४+४+४+४+४+४+४+स=३२ मात्रा.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल. गण चोकल केरा, रचनो साते, सगण सरस ते पर धरजो, १२२०८४८ दश वसु ने रत्ने, विरति प्रयत्ने, बत्रिश कल करतां करजो; १०१८०३८ त्रीजी कल उपर, पछी श्रुति श्रुति पर, ताल सकळ मळी वसु रचजो, १33८४७८ पद्मावौ माती, ठिक बनों जाति,
कविजन रचवाने मचजो. १४९. १२२१२२५ । मागधी छंदःशतकमां ए नामछे. प्राकृतपिंगळसूत्रकार, अने वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीना टीकाकार, आठ गग चोकलिया लाववानुं कही(जगण)सिवायना बाकीना चारमाथी गमे ते लाववानु केहेछे. तेमणे छेल्लो सगण आणवा खास नियम बताव्यो नी, पम तेमगे आपेलां उदाहरगमां ते जोवामां आवेळे. छंदःशास्त्रमा आठ डगण पैकी पयोधर (जगण) नामर्नु रूप न लावq एम कयुं छे. १३७ कामकला. १६, १६ यति=३२ मात्रा. तेमां अंते गुरु
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. सोळे सोळे यति सजी सारा, कुल कल बत्रिश पूरण करजो; १२०५७९८ तेमां कविवर प्रति पदमांहे, एक गुरु ठिक अन्ते धरजो ८८५७८
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५८
रणपिंगळ.
प्रथम उपर पछी चारे चडती, वसु कुल तालो पदमां गणजो; कामकला ए जाति सारी,
ए रीते आदरथी भणजो.
१५०
८५३४३७
† छंदार्णवमा अन्ते वे गुरु केहछे पण ते करवाथी ते प्रेमावती थइ जायछे. चिंतामणी पिंगळ अन्ते सगण आणवा केहेछे ते उचित छे.
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१३८. दुर्मिला, दुमिलिया, दुमिला १०, ८, १४ यति=३२ मात्रा.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१. मात्राए ताल. आठ डगण.
गण चोकलिया ठिक, आठ रची वध,
बाश मात्रा तो करजो; दश आठ अने वळी, चौद उपर यति, एम तमे त्रण ठिक धरजो;
४
४
तर्जी बे मात्रा पर्छ, श्रुति श्रुति उपर,
आठ करी कुल ताल खरे; दुमिला दुर्मिला, दुमिलिया वळ, नाम धरे कृति एम करे. १५१.
૯૬૩૧૯૩
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८५२७७७
૧૨૯૨૯૬૮
३०५ ૯૭૫૨૦૪
و۹۰ه و
८२८८८८
छंदः शास्त्र, नागपिंगळ, मनहरपिंगळ अने लखपत जशसिंधुमां १०, १४ यति केहेले, पण अन्ते गुरु विषे कई कहेलुं नथी, तो पण तेमनां दृष्टांतमां ते छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां १६ मात्राए यति कही छे. वळी विशेषमां जणाव्युं छे के "केटलाक अंते सगण लाववा केहेछे, छंदः प्रभाकर अन्ते सगण पछी
गुरु लाववानुं कही, टीकामां जणावेछे के" भीखारीदासे (छंदार्णवमां) उदाहरणमां पेहेलां बे पादमां अन्ते बे गुरु अने पछीनां वे पादमां अन्ते सगण राख्यो छे, पण ते सर्व सम्मत नथी. तेमज ते ( छंदः जाति) पृथाथी पण विरुद्ध छे. श्रीमद् भट्ट हलायुद्धे अन्तना गुरु लघु विषे विशेष कंइ कत्युं नथी.
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मात्रामेळ.
१३९ जलहरणा, कमलावती, धर. १०,८,८,६ यति=३२ मात्रा.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताळ. कुल कल बत्रीशे, पूरी दीशे, प्रति पद विषे, एम भणी, ८५६५२१ दशपर कल वसु धर, वसु कल तेपर, रस कल वळी कर, विरति तणी; १३४५२८२ तनों वे पछौँ धारे, चारे चारे, हारे हारे, वसु तालो,
3१७८२१ तो जलहरण अने, कमलावतांनी, जुगती वाळी छे भाळो. १५२. ७८२८
चिंतामणिमां आ जातिनुं माप जनहरण प्रमाणे लख्युंछे, ते भूल छे. चित्ररोनटीका-मागधी पिंगळ. भाषाछंदोमंजरी. १४० दंडक १८, १४ यति. कोई १०, ८, १४ यति करेछे.
३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल. कर बों मळीने कल, बत्रिश पूरी, चरण चरणमां ठीक धरी, ૯૦૩૩૨૯ यति एक अढारे, बीजो चौदे, एम प्रति पदमांह करी; ८७११५४ तो कल पौंथी, श्रुति श्रुति उपर, ताल चडे वसु सुधी जाती, ए दंडक नामे, कविता कामे,
आवे उपयोगी जाति. १५३. ४६५२१ छंदोवृत्तमुक्तावलीमा ४+४+४+४+६+४+४+ग-३२ मात्रा लाववा कयुं छे. पण १३२ अंकनी दंडकला जाति एज मापनी थाय छे. वळी वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां उपर मुजब गण पार्डीने तेनुं नाम दंडकाहल आप्युंछे.
(२२५
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रगपिंग
१४१ जनहरण. १०, ८, ८, ६ यति=३२ मात्रा, तेमां बधा लघु
अन्ते एक गुरु. ३,७,११,१५,१९,२३,९७,३१मात्राए ताल द्विजवर जल निधि कर, चरण चर्ण पर, पछी | सगण धर, प्रतिपदमां, १३४९२६८ रद कल कर बधी मली, सरस सरस वळी, नरस नरस तनी, दर झडमां; १३४६२६८ दश कल पर यति धर, वसु वयु पर कर, पछी धर रस पर, ठॉक गति तो, १३४६२६८ ठौक जनहरण जरुर, जलहरणज सुर, बन नहि कदीर, धरौं मति तो. १५४.१3४६२६८
प्राकृतपिंगळसूत्र अने वाणीभूषण, वखते चरणमां एकाद वे गुरु आवी जाय तो छूट मूकेछे, पण एम थवाथी ते त्रिभंगीमां मळी जाय, माटे ए अभिप्राय उचित लागतो नथी. छंदावृत्तमुक्तावलीमां अमे उपर आप्यु छ तेवु मापछे. छंदःप्रभाकरे “जलहरण" नाम कोइए वापरल छे ते अप्रमाणिक . मान्युं छे. १४२ शुद्धध्वनि. प्रथम छ मात्रा, ते पर दंडीनुं माप. १०,८,१४ यति=३२ मात्रा. ६+(ssum ssss)+ग ___३, ७, ११, १५, १९, २३ २७, ३१ मात्राए ताल. रस कल पर कर्णे। द्विज कर, कर्णे । द्विजवर, कर्णे द्विन धर तुं । ११७४८६१ ते पर पछी गुरु । झट धरौं पूरुं । रद पद एवं ठिक धर तुं, । ११७४८६० तजी वे पछौं ताले, श्रुति श्रुति चाले । वसु कुल घाले, चरण विषे । ११७४८५८
३२
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मात्रामेळ.
शुद्धध्वनि मांहे, दश वर्स ज्यांहे। मनु कल त्यांहे विरति दिशे. १५५. ११७४८५७
छंदःप्रभाकर केहेछ के, त्रिभंगाने वीररसना वर्णनमा कोइ कोइ कवि शुद्धध्वनि केहेछे, पण तेमां जगणनो निषेध कर्यो नथी.
* कर्ण (55) बे गुरु. द्विजवर (1) चार लधु. १४३ मदकरण.१०,१२,१० यति.(य+य++++8)=३२मात्राः
२, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल. घरो आदिमां बे, *तारापति गण ते पर,
बे ट ट गण धरजो, १२८२५३२ दिशा बार लावो, यति वली दश पर त्रीजी,
धरी त्रणज करजोः १२४६६८५ बौने सात तालो, पौंथी चडता श्रुति श्रुति,
पट तालज रचजो, १२२१८७२ कला थाय पूरी, बत्रौश एवी जाति,
मदकरण समनजो. १५६. १७१७८८५ आ जाति वागवल्लभमाथी लीधी छे.
* ।55 इन्द्रासन गण (पांच मात्रा, पेहेलं रूप-यगण.] १४४ मागधी सबैयो. आठड [चोकलिया गण.लघु गुरुनो नियम नथी.
१,५, ९, १३, १७ २१, २५, २९ मात्राए ताल, चोकलिया गण आठ रचीने कुल बत्रिश कल पूरी करो, ८८८८७२ गुरु लघुनो तो नियम कशी नहि । एम चतुर कविजन चित धरजो १३४७२७८ पेले पछी चच्चारे तालो •भाळो कुल वसुं प्रतिपद मांहे, ५०२२८२
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रंगपिंगळे,
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एम बने मागधी सवैया
जरुर विरतिनो नियम न जांहे. ११७.
४६६३७८ आ जाति गुर्जरी रागे गवायछे, अने ते जयदेवकृत अष्टपदीमां प्रसिद्ध छे.
१४५ समान सवैयो, सुगत सबैयो -
१६, १६ यति = ३२ मात्रा, तेमां अन्ते भगणः
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल:
त्रिश कल तुं सकल मळीने, चरण चरणमां रच निर्वाधिक, सोळे सोळे यति वे अंते एक भगण रंचनानुं साधक; प्रथम उपर पछी चारे चारे,
ताल तर तुं देने लागट,
एम समान सवैयो रचवा,
२३२६८७३
૨૨૪૯૨૦૯
૨૨૦૨૮૧૯
लाव लगार का कँइ ना घट. ११८. २५४८६५५
* भाषाछंदोमंजरी.
+ ए नाम छंदोलतामां छे.
अंते मगण लाववा छंदः प्रभाकरनां कह्युं छे. १४६. खरारि (छंद:प्रभाकर ) ८, ६, ८, १० यति= ३२ मात्रा:
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३, ९, १५, २१, २५, ३१, मात्राए ताल.
૩૨
प्रति चरण चरण, सारी दंत,
कल खरारिम, धरी पाद आदरो,
छे आठ छ ए, आठ दशे, एम चारतो, यति मापथी धरो; बेक कला, त्रीजी परे,ताल धरो रे! नव पंदरे करो,
पछी एकवीश, ने पत्रीश,
एकत्रीश पर, ठिक ताल तो भरो. १५९. ७०५१७५
६८८४६७
६८७३११
९८४७२७
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मात्रा मेळ.
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लघु गुरु लावी छेवट चरणे; तेश लाइ कला कुल खंतमां, रची प्रति चरणे कविवर श्वरणे;
४ ४
प्रथम पछी श्रुति श्रुतिने अंतरे, आवे ताल चतुर प्रति यतिमां; एवी रचना जो ठीक थाय तो, रंगिता खपशे कवि मतिमां.
मात्रा दण्डक.
३३ मात्रानी ५७,०२,८८७ वृत्ति थाय छे.
छंदः प्रभाकर, छंदार्णव, आदि ग्रंथोमां बत्रीश मात्रा पछीनी जातिने 'दंडक मात्रा जाति" कही छे.
<<
१४७. रंगिक्ता. १७,१६ यति = ३३ मात्रा, तेमां अंते लघु गुरु,
१, ५, ९, १३, १८, २२, २६, ३० मात्राए ताल.
सत्तर ने कल सोळे विरति रच,
६३
१६०
वृत्ति थाय छे.
३४ मात्रानी ९२,२७,४६५ १४८. ( अपरा ) सपादी मात्रा ३४ तेना अक्षर २२. गणनो नियम नहि. १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९, ३३ मात्राए ताल, बाविश अक्षर धरौने ते मध्ये चोत्रीश रचो कल तो सर्वे, जाति अपरा सपाद ए तो वखाणों वागवलभे विना गर्वे; एक उपर के ताल प्रथमनो ने चच्चारे चडता तो चाले, aar hot aata घर ताो प्रतिपादे नाडीथी शुभ म्हाले. १६१.
८
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६४
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रणपिंगळ.
३५ मात्रानी १, ४९, ३०, ३५२ वृत्ति थायछे. १४९ कानर. ८, + १०, +१२, यति + र = ३५ मात्रा.
१, ६, ११, १६, २१, २६, ३१ मात्राए ताल. पांतरिश सकल, कल प्रति चरण मांह, ठिक थायछे एम कवि ! जाणजो, आठ दश बार, पर विरति तो सरस, नेरगण वळी ते उपर, आणजो; प्रथम पर ताल, पछी चडे शेर उपर, ठिक एम सौ सात तो, ताल छे,
एह आ जाति, कानरतणी सरस, तो शोभती ठणकती, चाल छे. १६२.
३७ मात्रानी ३,९०,८८, १६९ वृत्ति थायछे.
१५० झूलणा, आंदोलिता, झुल्लाणा, झुल्लन. १०, १०, १०, ७ यति = ३७ मात्रा, तेमां अंते एक गुरु.
१, ६, ११, १६, २१२६, ३१, ३६ मात्राए ताल.
दश दशे ने दशे, विरति साते वसे, एम त्रिश सात कल, सकल आवे, सुकवि को होय ने, जे जरुर जोय ते, अंतमां एक गुरु, आप लावे; प्रथम पेली पछी, पांच पांचे चडे,
सुकुल मौ आठ छे, ताल जाते,
एज आंदोलिता, झूलणा जाणजो,
गाय छे सिन्धुमां ने प्रभाते.
१६३.
भाषा - छंदोमंजरीमा १०, १०, १७ यति कही छे. प्राकृत पिंगळसूत्रमां १०,१०,१७ यति कही छे. अने अंते एक के वे गुरु आणवा, ते विषे कंइ
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मात्रा मेळ.
६५
कथं नथी, तेम तेना उदाहरणमां पण एवो नियम कंइ पाळ्यो नथी. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा सात पंचकलिया + २मात्रा आणवा कही, प्रत्येक पंचकल छूटी राखवानुं जणावेछे. वळी एज ग्रंथमां कत्युं छे के – “झुलणानाज चरणमां अंत्य लघु अने उपांत्य गुरु आवीने ३८ मात्रा थाय तो उपझूलणा जाति बनेछे. अने झुलणाना मापमां अंते बे मात्रा (उदाहरणमा १ गुरु छे) वर्धाने ३९ मात्रा थाय तो सुझुल्लन थायछे; अने झूलणाना मापमां अंतें त्रण मात्रा (उदाहरणमां त्रणे लघु आण्या छे) वधे अर्थात् ४० मात्रा थायः तो अति झुल्लन थाय छे."
१५१ कडखा. १०,१०,१०,७ यति = ३७ मात्रा, तेमां अन्ते बे गुरु.
१, ६, ११, १६, २१, २६, ३१, ३६ मात्राए ताल..
प्रथम दश ते पछी, दश उपर आणजो,
ते पछी वळ दशे, विरति जाणो, एम साडत्रिशे, कल बधी आणतां, अन्तमां बे गुरु, अचुक आणो; ताल प्रथमे धरी, पांच पांचे चडी, आठ तो एम कुल, ताल आवे, झूलणां रागथी, थाय कडखा गळी, सिन्धु रागे भली, भात भावे. १५२ हंसाल. २०, १७ यति = ३७ मात्रा, तेमां अन्ते बे गुरु.. (भाषा छंदो मंजरी प्रमाणे ) ( ताल कडखा प्रमाणे.)
१६४.
सकल कल चरणमा साडीशेकरी, ते विषे अन्तमा कर्ण आणो,
वीश सत्तर विषे विरति बे आणतां,
थाय हंसाल ठिक एम जाणोः प्रथम पर ताल ने पांच पांचे पछी, तालनी जाळ तो जोइ गूंथों,,
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रणपिंगळ.
.wwwwwwwwmummmmmmmmmwwww
दश दशे सतर पर विरति कवि को कहे, पण तमे तेम जाति न चूंथो १६५. प्राकृत-पिंगळ सूत्रमा १०, १०, १७ यति कही छे. अने अन्ते एक के बै गुरु आणवा कंइ कह्यं नथी. तेमज तेना उदाहरणमां पण ए नियम पाळ्यो नथी. छंदःप्रभाकरमा २०, १७ यति अने अन्ते एक गुरु आणवा कयुं छे. १५३ करखा. ८, १२, ८, ९ यति=३७ मात्रा. वाल कडखा प्रमाणे.
(भाषा-छंदोमंजरी प्रमाणे) आठ पर प्रथम, पछौँ बार पर यति करी, आठ पर आणा, नव उपर करजे, एम यति चार, कल त्रीश ने सातमां, प्रति पदे थाय, उर एम धरजे; एक पछी पांच, पर ताल चडता रची, सकल मळी आठ, ठिक ताल राजे,
थायछे सरस, करखा भली भातनी, . प्रभु तणा गुण, ते मांह गाजे. १६६.
छंद:प्रभाकरमा अन्ते यगण आणवा कयुं छे, पण ते सर्व सम्मत नथी. छंदःभंगारमा २०, १७ यति, तेमां अंते गुरुछे. चिंतामणीमां १०, १०, १७ यति कही छे.
३८ मात्रानी ६,३२,४५,९८६ वृत्ति थायछे. १५४. राजचंद्र. ६,८,१०,१४ यति-३८ मात्रा.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९, ३३, ३७ मात्राए ताल. प्रथम छ पर, पछी आठ दशे, यति ठिक आणीने
छेल्ली यति चौदे लावो, मात्रा ए, रीते प्रतिपद, ठिक कविवर वरणे,
. आडत्रिश कुल थइ आवे:
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मात्रामेळ.
एक उपर, पछी श्रुति चडता, कवि! ताल धरो दश,
चालिश कुल ए रीत करो, जाति ए, राजचन्द्र पद, ते रचवा मचवा,
___ अतिशय अंग उमंग धरो. १६७. ४० मात्रानी १६,५२,८०,१४१ वृत्ति थायछे. १५५ मदनहरा, मदनहर, मदनगृह, मदनहरण, मदनदीपन
१०,८,१४,८ यति=४० मात्रा. तेमां आदि बे लघु, अंते गुरु, अने वचमां छत्रीस मात्राना नव चोकलिया आणत्रा तेमां पयोधर-जगण न लाववो. यमक आणवी. ३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१, ३५ ३९ मात्राए ताल,
लघु बे रोकडिया, नव चोकलिया, तेपर गुरु गरवो आवे, पद शोभावे; कुल मळी कळ चालिश, प्रतिपद भाळीश, मध्य जगण जो नव लावे, झड तो भावे; दश वमु मनु वसुए, विरति करो वळी, त्रण चच्चारे ताल धरो, पद एम करो; वळी मदनहरणने, मदनहरा कही,
मदनगृहा ए मदनहरज, रची चित्त ठरो. १६८. छदार्णवमांत्रिभंगी उपर आठ कल लाबवा केहेछ. चिंतामणीमा ६(८ चोकलिया) +ग एम माप का छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां कयुं छे के पद्मावतीना प्रत्येक चरणमां (अंत्य सगणवाळी) आठ मात्रा वधे तो मदनगृह अथवा मदनदीपन जाति थायले. छंदःप्रभाकरमां दर्शाच्यु छ के, क्या क्या आ जातिमा ३२, ८ उपर यति कही छे त्रे अशुद्ध जाणवी; पण एम पोतान अभिप्राय शाथी थयो छे, ते जणाव्यु नथी. घाणीभूषणमा प्रथम छ मात्रा लावता केहेछे, एटले गमे तेवी बे मात्रा उपर एक डगण लावतां प्रारंभमाँ
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रणपिंगळ. www बे लघु अथवा एक गुरु आणी शकाय एम अभिप्राय छे. छंदःशृंगारनी मारी पासे एक प्रति संवत् १८५३ नी सालनी छे. तेमां "तिहि बिच गन जगन न" इत्यादि छे. तेने बदले पिंगलादर्शना कर्ता हीराचंदना हस्ताक्षरनी लखेली एक प्रति मारी पासे छे तेमां तेणे "तिहि बिच रन जगरन” एम. अशुद्ध पाठ लख्यो छे. अने ते उपरथी तेवो अर्थ करी वच्चे रगण ने जगण न लाववा हीराचंदे लक्षण बांध्यु छे, ते भूल उपरना कारणधी थइ जणायछे. १५६ हिंदोल १०,१०,१०,१० यति=४० मात्रा. तेमां अंते लघु गुरु.
१, ६, ११, १६, २१, २६, ३१, ३६. मात्राए ताल. दशी पर दश करो, ते उपर दश धरो, सात कल वळी भरो, उपर ध्वजा आणजो; । लघु गुरु.. एम चालीश कल, थायछे ठिक सकल, जाति हिंदोलमां, जरुर करी जाणजो; दशनी पछी दश अने, दशनी पर दश बने, श्रुति कथी कविनने, विरति एवी खरे; प्रथम पछी पांच ने, पांच चडता बने,
आठ कुल ताल ते, कविजनो ठिक धरे. १६९. १५७ सुभगा, उद्धत, उद्धतचाली. १०,१०,१०,१० यति=४० मात्रा. तेमां अन्ते ग ल. ३,८,१३,१८,२३,२८,३३,३८ मात्राए ताल.
दश कल प्रथम सार, दश ते उपर धार, वळी दश त्रीजी वार, दश ते परे धार, कल सकल चालींश, यति चार भाळीश, दश उपर लावीश, प्रतिपद विषे सार; तजी के त्रीजे ताल, त्यां प्रथम संभाळ, चडी पांचनी चाल, कुल आठ भाळीज, छे सुभग ए जाति, उद्धत भली भाति,
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मात्रामेळ.
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ते थकीज विख्याति, ए उधतचाली ज. १७०. छिंदःसार तथा चिंतामणी प्रमाणे. भाषा-छंदोमंजरी प्रमाणे. छंदःप्रभाकरमां उद्धत नाम आपी तेना अंतमां गुरु लघु आणवा कयुं छे. पण केटलाक पिंगलकार गुरु लघुविषे केहेता नथी. एज ग्रंथकार शुभगने उद्धतथी जूदी पाडी तेने अंते गुरु लघुने बदले तगण आणवा केहेछे. १५८ दीपमाला. (दीपकथी चोगणो.) (छंदार्णव प्रमाणे.)
१२, १०, १०, ८ यति=४० मात्रा.
३, ८, १३, १८, २३, २८, ३३, ३८ मात्राए ताल. छे यति प्रथम बारने, दश उपर धार ने, ते उपर दश धरी, आठ पर आण, ए रीत रचवी चरण, चाळी मात्रा सकळ, दीपमाळा रुडी, जाति कवि जाण; छे त्रण उपर ताल ने, पांच चडते वळी, आण प्रति चरणमां, आठ धरी ठाठ, जागी प्रभाते करो, राग परभातथी,
ईश गुण गाननो, प्रेमथी पाठ. १७१. १५९ विजया. (छंदार्णव प्र.) १०,१०,१०,१०यति=४० मात्रा.
१, ६, ११, १६, २१, २६, ३१, ३६ मात्राए ताल. दश उपर दश करी, ते परे दश धरी,
आणजो दश फरो, विरति रुडा रची, पाम यति चार तो, प्रति चरण धारजो, चाळी मात्रा बधी, चरण मध्ये मची; एक उपर पछी, ताल तत्त्वे चडी, आठ प्रति चरणमां, आणजो प्रेमथी, सो उपर सानो, मात्रिका ठाठ तो,
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रणपिंगळ.
जाति विजया विषे, लावजो नेमथी.
१७२.
छंदः प्रभाकर केहे छे के " चरणने अंते रगण आणवाथी कर्णमधुर लागे - छे,” तेम स्वाभाविक रीते कवितामां पण तेम घणीक वार थइज जाय छे, पण ars afar एव नियम कर्यो नथी, तेथी अमे पण ते ग्रहण कर्यो नथी. ४६ मात्रानी २,९७,१२,१५,०७३ वृप्ति थायछे. १६० मत्तचंचरीक. (वाग्वलंभ प्रमाणे )
१०, १०, १०, १०, ६ यति = ४६ मांत्रा,
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१, ६, ११, १६, २१, २६, ३१३६, ४१ मात्राएं ताल.
दशनों पर दश करी, ते उपर दश धरी,
५
लावजो दश फरी, रस विषे यति करी, प्रति पदमां; एम यति पांच छे, दर चरण मांज छे, तेह संभाळीने, आणजो भाळीने, दर झडमां मत्तचंचरीक तो, एम बन जाति तो,
बध कला कुल मळी, थाय छेतालशे, चरण विपे, प्रथम पर एक तो, ताल मूकायछे,
पांच चडते पछी, नव सकल ताल तो, चरण दीशे. १७३. १६१. हरिप्रिया. भाषाछंदोमंजरी प्रमाणे. २४, २२ यति=४६ मात्रा. एक उपर पछी छए छए चडते ताल. छैतालिस सकल कला विरति माह बैज भला, चोairyर एक थाय बीजो बावीशे;
ताल प्रथम एक कले सात तेर उपर पछी, ओगणीश उपर ते दोड़ी जतो दीशे; पचीश पर फरी रखाय एकत्रिशे दोडी जाय, साडी उपर थाय पछी चुवालीशे:
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मात्रामळ,
....amarimmorarramanarwwwwww एम सकल आठ ताल चरण चरण मांह घाल,
हरिप्रिया बनेन बेश जोइ चित्त हीशे. १७४. १६२ चंचरी. १२+१२+१२+१० यति=४६ मात्रा.
१,७,१३,१९,२५,३१,३७,४३ मानाए ताल. बार उपर बार धार, तेज उपर बार सार, दश कला पछी उचार, एम विरति सोई; छेतालिस चरण मांह, एम कला लाव ज्यांह, विरति चार कह्या तेम, आण पदे जोई; ताल प्रथम उपर धार, षड पडे चडावी चाल, आठ सकल चरण घाल, नियम चित्त आणी; एम चंचरीज थाय, जाति ए रुडी जणाय,
महि प्रभु गुण गवाय, नकां धूळधाणी. १७५. ५६ मात्रानी ३,६,५,४३,५२,९६,१६२ वृत्ति थायछे. १६३ मधुरा. ७,७,७,७,७,७,७,७ यति=६६ मात्रा, बनता सुधी
नगण आवे. यतिये यतिये बनी शके तेटली यमक आणवी.
१, ८, १५, २२, २९, ३६, ४३, ५१ मात्राए ताल. सात कलना, आठ यति कर, एम कुल कल, छप्पनन धर, चरण चरणे, नगण वरणे, बनौ शके तो, पूरती कर; ताल प्रथमे, तुरत दइ दे, मुनि सुनि पछी, चडतों करौ दे, सात एमज, ताल चरणे, सरस हरखे, गणती करी धर; प्रति विरतिमा, यमक लावे, ठिकज भावे, तुक सुहावे, जाति मधुरा, भाति भाति, बहु विभाती, ख्यातिवाळी; अशरण शरण, वला सुख करण, जे दुख हरण, जग सुख भरण. तारण करण, दूर कर मरण, तेज प्रभु भन, हृदय घाली. १७६.
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रणपिंगळ:
१२० मात्रानी ८,६७,००,०७३,९,८,९,०,७,८,६,८,६५,८०,५१,९२ १
वृत्ति थायछे १६४. चतुष्पदी (वडी) १०,८,१२ यति तेमां अन्ते १ गुरु
एवां चार चरण-१२० मात्रानुं एक पद. न्हामी चोपदीना चार चरण प्रमाणे २८ ताल प्रति चरणमां. कर चोकलिया गण, सात वळी ते, पर गुरु एकज धरजे, ए उपर एवी, त्रण झड करीने, एक चरण ऊचरजे; चोपदी न्हानीना, चार चरण सम, प्रतिपद ताल रखाशे, कुल अठ्ठाविश तो, एवा तालो, पद पदमांह रचाशे; दशपर वळी आठे, रविने माथे, ए क्रम साथे यति छे, ते सकल मळीने, बारज आवे, प्रति पद कविनी पति छे; जो चौपदी न्हानी, चार करे तो, एक चरण बनी जाशे, त्रिश कलना टुकडा, चार गयेथी, सोने बोश कल थारा; जे आवी लांबी, जाति सारी, चतुष्पदी के 'वाशे, खुब खांत धरीने, एमां कवि को, प्रभुना गुण जो गाशे; मति विमलज थाशे, ज्ञान प्रकाशे, हरि एथी हरखाशे, मन चोख्खं राखी, नीति दाखी, प्रभुजनमा परखाशे; तुन भवनो भावट, भगवत भजतां, भट लइ भागी जाशे, छे सत्य प्रभु आ, जगमा एकन, एम तने समजाशे; तो पलीथी आडां, अवळां चलखां, को काळे नहि खाशे, को पाशे बांध्या, नहि बंधाता, लीधो नहि लेवाशे. १७७.
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अर्द्धसम
१ नृगण, सुगण.
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मात्रामेळ.
अर्द्धसमजाति.
समजातिमा चारे पद सरखां आवेछे, पण अर्द्धसममा मात्र अर्द्धा द एटले पेहेला अने वीजा (विषम) चरणोनां अने बीजा तथा चोथा (सम) चरणोनां लक्षण सरखां होयछे, ते माटे ते अर्द्धसमजाति केहेवायछे. पेहेलं विषम पद अने बीजुं सम पदं, ए वे मळीने जेटली मात्रा थाय, तेनुं प्रथम दल केहेवायछे तेमज त्रीजुं विषम पद अने चोथुं सम पद मळीने तेटलीज मात्रानुं बीजं दल केहेवायछें,
विषम पदमां ५+५=१० मात्रा; १, ६ मात्राए ताल.
,
२ नंदक, वडवा, वरवा, बरवै
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सम पदमा ४ + ३ = ७ मात्रा १, ६ मात्राए ताल.
૫
४ 3
बैठकल विषममां, ड ढ घरों समे; सुगण नृगण जाति, रचजो तमे. १ प्रथम पट पर धरो, ताल विषमे ए रोते आणजो, ताल ज समे. २ वाग्वलभ प्रमाणे.
१२
७
विषमे भानुं सममां, कल मुनि आण
विषम पदमा १२ मात्र
बरवा, वरवय, वैर.
सम पदमां ७ मात्रा.
प्रति दल अन्ते ग, ल. १, ५, ९, १३, १७ मात्राएं ताल.
तेमां प्रति दल अन्ते, गुरु लघु जाण.
४
४
प्रथमे श्रुति श्रुति प्रति दल, तालो थाय;
नंदक - asar - बरवै एम रचायें.
9
७३
४
छोलतामां वरवय नाम छे, वळी तेज ग्रंथमां कयुं छे के केटलाक आने आषाढ पण छे. छंदः प्रभाकरमां अन्ते जगण आणवानुं के हे छे, अने तेनुं नाम ध्रुव आपेछे, पण अमे ध्रुवजाति आनाथी जूदी बतावी छे. छंदोबोधमां वैर अथवा वानंद नाम आप्युं छे, अने तेमां जगण के गुरु
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७४
- रणपिंगळ.
लघुविषे कंइ न लखतां प्रति दलमा १२+७=१९ मात्रा आणवानुज कत्युं छे.
भाषा छंदोमंजरीमां बरवैया नाम आपी तेमां १२,७ नी यतिथी १९ मात्रा लाववा कयुं छे; अने जगण किंवा गुरु लघु लाववा नियम आष्यो नथी, पण तेना उदाहरणमां जगण छे. वागवल्लभ आदि ग्रंथोमां अंते गुरु लघु आणवा कयुं छे, माटे अमने पण ते अभिप्राय योग्य जणायछे.
(विषम पदमा १२ मात्रा.) १,५,९,१३,
३ मोहिनी, ध्रुव, ध्रुवामम पदमां ७ मात्रा.) १७मात्राए ताल.
विषमे रवि कल, मुनि कल-, सममां धरो; मोहिनी ने ध्रुव द्विपदी, एमज करो. ५ भूपर पछौं चच्चारे, चडता ताल;
पति पद मांहे कविवर! तुं संभाळ. छंदःप्रभाकरमां मोहिनीमां अंते सगण लाववानुं को छे; अने भाषाछंदोमंजरी आदि ग्रंथोमां सगण विषे कंइ कर्वा नथी, माटे अमे पण ते मत प्रहण कर्यु नथी. छंदार्णवमा ध्रुव नाम छे. वाग्वल्लभमां मोहिनी. १३,१० मात्राए यतिथी नीचे प्रमाणे छ:
त्रयोदश कला भवेयुर्यदि चरणे विषमे ।
फणिपति रिति निगदति भवति मोहिनी दश समे ॥ पण ए माप ग्रहण करवाने बीजं प्रमाण मळी आव्युं नथी.
(विषम पदमां १२ मात्रा; १, ५,९ मात्राए ताल. ४ वरवेद.
। सम पदमां ७ मात्रा. १,५ मात्राए ताल.
प्रत्येक दलमां अन्ते लघु. विषमे द्वादश कल रच, सममां सात; सममां अन्ते लघु तो, धर साक्षात. एक उपर पछौं चारे, चडता ताल;
वरवेदविषे. रचौ प्रति, पद संभाळ. ८. छंदःशृंगार प्रमाणे वरवेद नाम छे, पण भाषा छंदोमंजरीमा एने बरवै केहेछे.
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अर्द्धसम
मात्रामेळ.
_ (४+४+४=१२मात्रा विषम पदमां.) १, ५, ९, १३, ५ बर्बरा.
"।४+ग+ल=७मात्रा सम पदमां. १७मात्राएताल. चोकलिया गण त्रण कर, विषमे आप; सममां चार उपर गुरु, लघुर्नु माप. ९. प्रथम पछी चच्चारे, प्रति पद ताल; बर्बर जातिमाहे, कवि संभाळ. १०.
(विषम-पेहेले त्रीने पदे १३ मात्रा) प्रतिपदमां १,५,९ ६ निशानी
।सम बीजे चोथे पदे १० मात्रा) मात्राए ताल. विषम पदे कल तेर ने, सममा दश पूरी;
भू शर भक्ति तालथी, निशानी मधुरी. ११ भगवतपिंगळमां अने भाषाछंदोमंजरीमा निशानी अर्द्धसमजातिमां छे. निःश्रेणी मात्रा २३ तेमा १३,१० यतिवाळी समजाात अंक ८६ पृष्ट ३०मे छे.
(विषम पदमा ४+४+४+४=१६ मात्रा। वाग्वल्लभ ७ विरया
। सम पदमां ४+ग+ल = ७ मात्रा) प्रमाणे प्रत्येक दलमां १, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल. चोकलिया गण चार विषम पद, आवे ज्यांह;
चार उपर गुरु लघुछे सममां, विरयामांह. १२ ८ दोहा, दूहा, (१,३ विषममा ६+४(जगण विना)+ल+२=१३ मात्रा; द्विपथा,दोहरा. (२,४ सममां ६+४ (अंत्य गुरुवाळी) +ल=११ मात्रा.
प्रतिपदमा १, ५, ९, मात्राए ताल. छ कल उपर कल चार घर, तेमां जगण न छेक; .. तेपर त्रण विषमे वधे, समे वधे कल एक. १३ विषम पदे रच तेर कल, सम पदमां अगियार; लघु कल धर अगियारमी, दोहा चरणे चार. १४
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रणपिंगळ.
au.raninainamne
दोहाना विषम चरणोमां क्यांय जगण न आववो जोइये, अंतमां सगण रगण अथवा नगण अवश्य राखवो; अने समचरणोना अंतमांजगण अथवा तगण आणवो जोइये, अर्थात् अंते गुरु लघु आणवा जोइये. तेमन थवाथी कर्णमधुर यतुं नथी, अने तेज कारणथी दोहाना २१ भेद केटलाक ग्रंथकारोए स्वीकास्या छ, अने छेल्ला श्वान नामना २१मा भेदमां बेगुरु कायम राख्या छे, ते उचित छे. साहित्य सुधानिधिमा रत्नाकरे दोहानु लक्षण नीचे प्रमाणे जणाव्यु छ:
१,३ विषम पदमा ८+३+२=१३ मात्रा.
२,४ सम पदमा ८+51(ताल)=११ मात्रा. पण एषु लक्षण बांधतां तेने विशेषमां नीचेना नियमो बांधवा पड्या छे:१ आठ मात्राओमां आरंभनी त्रण मात्राओ पछी बे गुरु न आववा
जोइये. २ दोहाना विषम चरणो (पेहेली त्रीजी तुक) मां आठ मात्रा पछी
त्रण मात्रा आणवानी छे, तेमां ।ऽ वाळु रूप न आवq जाइये. पण अमे उपर जे दोहार्नु छ कल जूदी पाडवा- लक्षण बांध्युं छे, तेथी त्रण मात्रा पछी वे गुरु न लाववानो नियम पोतानी मेळेज नीकळी आवेछे: कारण के बे गुरु आणतां सात मात्रा थइ जाय.
वळी अगियारमी मात्रा लघु आणवा खास नियम छे, एटले आट मात्रा पछी 15 आवु रूप न आणवू, ए वात स्वतःसिद्ध थइ जायछे.
उपरना नियमाने अनुररीने एक दोहरामा चार लघु अक्षर तो अवश्य आणवाज जोइये, केमके प्रति चरणमा अगियारमी माना लघु आणवानो खास नियम कस्यो छे; माटे आखा दोहरानी ४८ मात्रा थाय, तमां चार लघु अक्षरनी चार मात्रा बाद करतां ४४ मात्रा रही, तेना गुरु करिये तो २२ पाय, एटले २२ गुरु अने ४लघुर्नु पेहेलं रूप गणतां, अक्केको गुरु घटाडी बध्ये लघु वधारतां, छेवट ४४ लघु अने २ गुरु थइने ४६अक्षर, एकवीशमु रूप थायछे.
जूदा जूदा पिंगळना ग्रंथोमां दोहाना आ एकवीश रूपनां नाम शूदां जूदां जोवामां आवेछे, ते नीचे विगत आपी छे, तेपरथी जणाइ आवशे,
वळी केटलाएक २१ ने बदले २३ रूप आपछे, पण प्रत्येक दोहरामां उपरना माप प्रमाणे बे गुरु आव्या वगर मधुरता रेहेती नथी, एटले ते अभिप्राय अमने उचित लागतो नथी,
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अर्द्धसम
मात्रामेळ
an...
नाचे दोहराना नाम बताव्यां छे, तेमां चार लघुथी आरंभीने बार लघु सुधीनी द्विपथा [दोहरा] ने विप्रा अथवा ब्राह्मणी केहेछ; तेर लघुथी आरंभीने बावीश लघु सुधीनीने क्षत्रिया केहछे; २३ लघुथी आरंभीने ३२ लघु सुधीनीने वैश्या केहेछ; अने त्यार पछीनी शूद्रा केहेवायछे.
जे दोहाना विषम (ला, ३जा) चरणोमां जगण आवे ते अंतक, दुष्ट के चांडाळ केहेवायछे. मुख्य दोष प्राचीन कवियोए जनकाव्यमा मान्यो छ, परंतु देव अथवा मंगळवाचक काव्यमा तेनो दोष मान्यो नी.
दोहराना भेद.
मकडु.
प्राकृतपिंगळसूत्र प्रमाणे. नागराजपिंगळ प्र. कम.. संस्कृत नाम. प्राकृत नाम नाम. गुरु, लघु, वर्ण. १ भ्रमरः
भमरु. हंस. २२ ४ २१ भ्रामर:
भामरु. गयंद, हथिया. २१ १ ३ शरभः
शरहु. वाराह. २० ८ २८ ४ इयेन: सेवाणु..
૧૪ ૧૦ ૨૯ ५ मण्ड्वाः
मुण्डअ. पिंगल. १.८ १२ ३० मर्कट:
तरल. ૧૭ ૧૪ ૩૧ ७ करभः
तमाल.. १९ १९ ३२ ८ नरः
णरु. सायर. ૧૫ ૧૮ ૩૩ ९ मरालः,रसाल:,हंसः. मआलु. मरुओ. ૧૪ ૨૦ ૩૪ ..मदकलः, गयंदः, मअगलु.
-
,
मेर. ૧૩ ૨૨ ૩૫ "। मदगंधः. मयअंधु. ११ पयोधरः,जलधरः पयोहरु. मरु. ૧૨ ૨૪ ૩૬ १२ चल:,बल:,चंचल: चलु.. कुंजर. ૧૧ ૨૬ ૩૭ १३ वानरः वाणरु.. हरि. १० २८ ३८ १४ विकल: तिण्णिअलु. शुकराल.
८ ३० १५ कच्छपः कच्छ. वरिहण. ८ ३२ ४० १.६ मत्स्यः मच्छ, चारण, ७ ३४ ४
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همه
می
४३
»
س
रणपिंगळ.
wwwwwwwwwwww १७ शार्दूल: सटूल. अहि. ९ ३६ ४२ १८ अहिवरः अहिवर. पवण. १९ व्याघ्रः,व्याल: वग्ध. वर्द्धय. २० बिडाल: विराडउ. धण. २१ श्वा,सुनकः,श्वानः सुणह. आणंद, हर्ष. २ ४४ ४६ २२ उदुबरः,उन्दुरः उन्दुरु,उंदर. अंकुल्ल. १ ४९ ४७ २३ सर्पः साप.. .
• ४८ ४८ __ हीराचंद कृत पिंगळादर्शमां अंक चोथे सेन, अने हरिजश पिंगलमां सिचाण नाम छे. चिंतामणी कृत छंदोलतामां अंक १९मे बग्ध नाम छे; अने छंदोमंजरीमा एज अंकमा व्याल नाम छे.
साहित्य सुधानिधिना भाग २ जाना अंक १० मामां २२ गुरु अने ४ लघु एम २६ अक्षरथी आरंभीने अकेक गुरु घटाडतां तथा बब्बे लघु वधारतां २ गुरु ने ४४ लघु, एम ४६ अक्षर पर्यतना अनुक्रमे नीचे प्रमाणे २१ भेद आप्या छे:
(१) हंस, (२) मोर, (३) पिक, (४) कीर, (५) कलहंस, (६) कपोत, (७) चातृक, (८) चकवा, (९) चकोर, (१०) गरुड, (११) गीध, (१२) राजहंस, (१३) कलकंठ, (१४) चटक, (१५) सेन, (१६) क्रौंच, (१७) लवा, (१८) टिटिभ, (१९) रायमुन, (२०) हारिल, अने (२१) खंजन.
चित्रसेन टीकावाळा मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा दोहाना २२ भेद नीचे प्रमाणे आपेछे:
(१) भवरु, (२) भावरु, (३) सीह, (४) संधाण, (५) अमरठउ, (६) मकडउ, (७) हरु, (८) मुरारी, (९) मयगल, (१०)पउहर,(११)चउराणण, (१२) तिणयण, (१३) संख, (१४) मच्छ (१५) सदूल, (१६) अहिवर, (१७) वरक, (१८) विराउल, (१९) सुनहड, (२०) उंदर, (२१) सप्पह अने (२२) दीस. वळी तेज ग्रंथकार पाठांतरे नीचे प्रमाणे बीजां नामो आपेछे:--
(१) हंसु, (२) वराहु, (३) गयंदु, (४) पहु, (५) पिंगलु, (६) तरलु, (७) तमाल, (८) सायरु, (९) सुंदरु, (१०) मेरु, (११) नरु, (१२) कुंजरु, (१३) हरि, (१४) शुकुलाल, (१५) दमणौ, (१६) मसुऔ, (१७) अहि, (१८) पवणुं, (१९) घj, (२०) वज्जू, (२१) आणंदु, अने(२२) आमुल्लो.
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३
॥
अर्द्धसम
मात्रामेळ. ९ सोरठा, सौराष्ट्री, । १, ३ विषम पदमां ११ मात्रा. सौराष्ट्र, पूर्वीदुहो. । २, ४ सम पदमां १३ मात्रा.
१, ३ पदनो प्रास मेळवेछे. दहाथी उलटां पद, बाकीना नियम अने ताल दुहा प्रमाणे, एम प्राकृतपिंगळसूत्र अने वाणीभूषण इत्यादिमां कां छे. विषम पदे अगियार, सम पदमां रच तेर कल;
दुहा नियम सौ धार, पद उलटावी सोरठे. १५ नागराज पिंगळमां एने चारणी दुहो केहेछे, छंदःशास्त्रमा ट+ड+ल,+ट+द+भ; एम अर्द्धमा लाववा केहेछे, पण ते नियम सर्वग्राह्य नथी जणातो. दोहाना सर्व नियमो पाळवाना छे, माटे सोरठाना सम चरणोमां जगणनो प्रयोग न ज थवो जोइये. १० दोहडिका.६१,२ पदे १३ मात्रा...
ताल दोहाना प्रति पद प्रमाणे. १३,४ पदे ११ मात्रा. पेले बीजे तेर कल, बीजे चोथे शिव कल; पद अंते लघु आण, दोहडिका ते जाण. १६
१, ३ विषम पदमां १५ मात्रा.) दलनेअंते लघु. विषममां ११ दोही.
चोपाइ अने समपदमां ।२,४ सम पदमां ११ मात्रा. ) दुहा प्रमाणे ताल. विषमे तिथि कल शिव समविषे, दोही जाति विचार; विषमे छे चोपाई ताल, समे दुहो निरधार. १७ (छंदःप्रभाकर प्रमाणे.) .
१२ हरिपद.१,३ विषम पदमां १६ मात्रा.)
१२,४ सम पदमां ११ मात्रा. )
तेमां १, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल. विषम पदे कल सोळन आवे, सममां रुद्र सुहाय;
एक उपर पछी चारे चडती, हरिपद ताल कहाय. १८ । छंदोलता अने वागवल्लभ सममा १२मात्रा आणवा केहेछे, पण ते मत प्राय नथी.
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रणपिंगळ.
(१,३विषम पदमा १६ मात्रा. २३ ललित, ललितपद, मालविका.
(२,४ सम पदमां १२ मात्रा. (चिंतामणी प्रमाणे.) १, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल. विषम पदे कल सोळ सुहावे, सममा बार कहावे;
प्रथमे पछी चच्चारे तालो, ललित-ललितपद आवे. १९ छंदोवृत्तमुक्तावलीमा आवा मापवाळी जातिने द्विपदी कही छे, पण द्विपदी साथी भिन्न लक्षणवाळी जूदी छे. छंदोलतामां मालविका नाम अने पहेली १.६ मात्राना ४ डगण आणवा का छे; वाग्वल्लभमां लालेतपद नाम. छे. १४ लयविपदी,महादोहा. ४+४+४+४+४+४+४=२८मात्रा
प्रत्येक दलमां. १,५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राए ताल. चोकलिया गण मुनि प्रति दलमा प्रथमे तालज धरजो;
चारे चडता लयवियदीमां महादुहामां करजो. २० १५ उलाला, उल्लास, उल्लाल. ४+४+४+३+६+४+३=२८
मात्रा, एवां बे दल. १५, १३, यति. ३, ७, ११ मात्राए विषम पदमां ताल अने १, ५, ९ मात्राए समपदमां ताल.. त्रण चोकलिया पर त्रण कल्य, छ चार पछी त्रण कल करो; उल्लाल, उलयसामांह तो, यति पंदर तेरे धरो. २१ त्रण सात पछी अगियार पर, विषम पदे तो ताल छे; सममां शशि शर नव पर धरो, अगियारे उल्लाल छे. २२
भाषा-छंदोमंजरी अने. तेना आधारे छंदःप्रभाकरमा तेर तेर मात्रानुं चरण एवां चार पद लाववा लखेछे, ते भूल छे. वळी छंदःप्रदीपमां १४, १३; १४, १३..मात्राथी कुल ५४ मात्रा लाववा केहेछे, अने १२, ३, ६, ४., ३ मात्राए यति होवा जणावे छे, पण ते अभिप्राय उचित ना
मागधी पिंगल छंदोग्रंथ जेनी चित्रसेने टीका करी छे तेमां उल्लालयना २६ भेद आपछे.. ते प्रथम रूप. (sss, sss,
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अद्धसम
मात्रामळ.
155, 55s, ss=२८ मात्रा) बेमगण+यगण मगण+रगणनुं गणछे, एटले बे पदना मळीने उल्लालयना २६ गुरु अने ४ लघुथी आरंभीने अक्केक गुरु घटाडतां तथा बब्बे लघु वधारतां नीचे प्रमाणे २६ भेद जणावेछे.:---- क्रम. भेद-नाम. गुरु. लघु. वर्ण.
२६४
30 कुंकम. ર૫ ૬ ૩૧ कणय.
२४ र २ मयरंदु. २3 १० 33 मालाहर. २२ १२ ३४ जलहरह.
२११४५ कंत.
२०१६ 38 कणउ.
१८ ७ मणरंग. १८ २० अंबर. भवरह.
१६ २४ मल्लह.
१५ २६ वरुण.
१४ २८ पारिजात. मंदार.
૧૨ ૩૨ संवर.
18 3४ ४५ घणुहर. १. 38
or wrar , Vo/2rrar
22
0
0
कुसुम.
करंज. मणि.
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..
रणपिंगळ.
- Wom
कंकण.
... ४४. ५० २२ कुंभ.
૫ ૪૬ ૫૧ नदीस.
४ ४८ ५२ चंदण.
3 ५० ५3. २५ सिहर.
૨ પર ૫૪ २६ कुरग.
૧ ૫૪ ૫૫ मागधी नागपिंगळना टिप्पणमा चोवीश गुरु अने आठ लघुथी आरंभीने अक्केक गुरु घटाडतां तथा बब्बे लघु वधारतां उल्लालयना नीचे प्रमाणे २५ भेद जणावेछे, पण उल्लालयनुं माप जोतां प्रथमना भेद उचित छ. २४ गुरु अने ८ लघुथी आरंभवू अनुचित लागेछे.. क्रम. भेद-नाम. गुरु. लघु. वर्ण. वाहो. २४८
३२ वोहा.
२३ १० वग्गो.
૨૨ ૧૨ वंधू,वधू,बंधु. ૨૧ ૧૪ वाणो. वओ.
३७ वरो.
सो. वेणू, वनु, वणुं. वणो, वनो. वरिठो, वरिद्धो. विवुहो. वलियो. वहो. विहओ. वामो,वानो. 'वुहो,बुहो. विसालो.
- < www
१८
१७
34
४०
१५
१४
१3
४३
४४
A
NN
८
४८
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अर्द्धसम
१९
२०
२१
२२
२३
२४
२५
विन्दो, चिन्दो.
बिहरो.
बिहू.
वसू.
विरहो.
विलओ.
विसओ, विसवो.
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मात्रामेळ.
४
©
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४४
૪૬
४८
૫૦
પર
૫૪
પર
૫૦
૫૧
+२+४+२+२+ल+ल+ल=२८.
પર
१६ द्विपदी, द्विदला, दुविया, दुवैया, दोपै. ६+४+४+४+४+४+ ग = २८ मात्रानुं एक दल,
૧૩
૧૪
૫૫
५६.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५ मात्राएं ताल.
४ ४
छ कल उपर चोकल गण पांच पछी तेपर गुरु आवे; ए रीते अठ्ठावीश कनुं द्विपदी दल मन भावे. २३ प्रथम उपर पछी श्रुति श्रुति चडता तालो मुनि कवि ! धरजो; द्विपदी एम रचीने रसिक जनानां हृदयज हरजो. २४ १७ कर्पूरद्विपदी. २+२+४+२+२+ल+ २,
१, ५, ९, १३, १६, २०, २४, २७ मात्राए ताल.
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४
४
कल बेबे श्रुति बे बे लघु, बे बे पर श्रुति तो तँ धर; बेबे ते पर तो ऋण लघु, कर्पूराद्विपदीमांह कर.
२५
૧૫
यति तिथि पर ने तेरे थशे, पण जणवे नहि कोइ जण;
*
प्रथमे पछी श्रुति तालज चडे, प्रति यतिमां ए रीत गण. २६
कर्पूरद्विपदीने मागधी लोको उल्लाल केहेछे, अने तेनी रचना मेळवतां पण मळती आवेछे, मात्र तेमां छेल्ली ऋण मात्रा छे, तेने बदले आमां त्रणे लघु आणवानुं कां छे. कर्पूरद्विपदीना छलां त्रण लघुमांथी एक घटाडतां २७ मात्रानी कुंकुम नामनी द्विपदी थायछे, एम मागधी नागपिंगळना टिप्पणमां छे.
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रणपिंगळ.
१८ भ्रमरविपदी. १०, १८ यति-२८ मात्रानुं प्रत्येक दल.
तेमां १, ५, ९, ११, १५ १९, २३, २७ मात्राए ताल. भ्रमरद्विपदी दले, दशे अहारे अठ्ठावि कलमां;
सम विषमे चडता, चचारे ताल छे प्रति दलमां. २७ आना पेहेला तथा त्रीजा पदमां बे मात्रा वत्ती बोलवाथी गीतिना रागे गवाशे: १९ हिमकर. १३, १५=२८ मात्रानुं प्रत्येक दल.
१, ५, ९, अने ३, ७, ११, १४ मात्राए प्रति पदे ताल.. विषम पदे धर तेर कल, सममा तिथि कलनी चाल छे; शशि शर नव रवि हिमकरे, त्रण मुनि शिव मनु यति ताल छे. २८
सोरसना जे वे विराम थायछे, ते उपर वेवे मात्रा क्धारकाची आ जाति बनेले. २० हरगीति. ९,७,१२ यति २८ मात्रानुं प्रत्येक दल. अंते गुरु.
३, ६, १०, १३, १७, २०, २४, २७ मात्राए ताल. नव मुनि बारे, यति करी गुरु, अंत अष्टाविश धरो श्रीजी थकी त्रण, चार चडता, ताल हरगीति करो. २९ २१ चुलियाला, चूडाला, चूडियाला, चुडिया, चूलका, चोटियाल. १३, ११ यति + (कुसुम गण ।।)
५ मात्रा=२९. मात्रानुं प्रत्येक दल; तेमा
१, ५, ९, १४, १८, २२, २६ मात्राए ताल. जख शिव यति पर कुसुमगण, दुहा उपर लेखाय, सदा ठिक; चुलियाला के चूडिया, चुलका रच कविराय! तजी ब/क. ३० प्रथम उपर पछि श्रुति श्रुति, चडता यतिमां ताल, मुनिवर; धूडाला ओगणत्रिसो, चुडियाला र भाल, भला नर! ३१ ।
दोहाना प्रत्येक दलमां. पांच मात्रा उमेरबी, ते छंदःशास्त्र प्रमाणे एक
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आईसम
मात्रा मळ.
कुसुमगण ( 1511 ) नी आणवी; पण छंदः कामदुधावत्समां मात्र टंगण पांच मात्राज लाववा कह्युं छे; छंदोलताना पण दोहाना प्रत्येक दल उपर जल (iii) आणवानुं कथुं छे; प्राकृतपिंगळसूत्र, वाणीभूषण, अने श्रीधरकृत पिंगळमां पण उपर प्रमाणे पांच मात्रा आणवानुं कथुं छे, पण छंदरला - बलीमा तेरे अने सोके यति आणवानुं कयुं छे.
२२ उडुराजा १९, १४ यति = २९ मात्रानुं प्रत्येक दल.
१, ५, ९, १३, १८, २२, २६ मात्राए ताल.
૧૫ ५४
दल तिथि मनु यति ओगणत्रीश, कल एम बने उडुराजा;
५३.
५
शशि शर नव जख ताल अढार, वाविश छव्विशपर ताजा. ३२
सोरठाना वे दलनां प्रारंभमां वचारं मात्रा वधारवी, अने तेनी छेटी मात्रा लघु छे, ते गुरु करवी.
२३ रुचिरा. जगणे सिवायना ७ डंगण+ग=३० मात्रा, प्रत्येक दलमां १६, १४ यति. १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राएं ताल.
.४
सात गणपर एक गुरु करो, कुल कल त्रीश पूरी जाणो:' सोळे चौदे यति रुची सारी, जगण न झडमां कदि आणो. ३६ प्रथम पछी चच्चारे चडता, कुल तालो आठे आवे; रुचिरा रूडी द्विपदी पूरी, बहु रागे गातां फावे.
३४
आ जाति वे दलनी छे; छंदः शास्त्र, वृत्तमौक्तिक अने वाग्म यतिनो नियम बताव्यो नथी. अमारी पासे संवत् १८५४ मां लखेलं चिंतामणीकृत भाषा पिंगळ छे, तेमां सात चोकलिया गण उपर एक गुरु raवानो नियम करेछे, पण तेमां यति बतायी नथी. तथापि घणुं करीने १६, १४ यति मळेछे, माने ए प्रमाणे यति पाळवामां आवे तो ठीक छे, पण एवो नियम करवानो विशेष आधार नथी. अतिजगती छंदमां रुचिरा नामनुं वृत्त अक्षरमैळमां छे, तेथी के गमे ते कारणे नागपिंगळ, मनहरपिंगळं अने लखपतजशसिंधुमां आ जाति नथी.
८
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रणपिंगळ.
मंदारमरंद चम्पूमां ओ जातिने मात्रासमकमां दाखल करीमे तेमां २९ लघु लाववा कह्यु ले, परंतु सर्व लधुनुं लक्षण एज जातिमां करवामां.. आवे तो तेमा “रुचिरा” ए नामनो समावेश थइ शके नहि, केमके "रा" ए गुरु छे. माटे ए लक्षण मान्य राखवा जेवू नथी:
छंदःप्रभाकरमां . १६ मात्रा विषमपदमां अने १४ मात्रा समपदमा आणतां छेवट बे गुरु लाववा केहे छे, पण मात्रिक सममां तेणे ककुभ जाति बतावी छे, तेनी साथे ते मळी जायछे, फेर मात्र एटलोज रहेछे के ते चार चरणनी छे, अने आ बे दलनी छे. वळी मात्रिक सममां चार चरणनी एज जाति तेणे जणावी ले, पण तेमां १४, १६ यति राखी, जगण नहि अने अन्ते गुरु आणवानुं ते केहेले. भाषाछंदोमंजरीमा प्रति दलमां १६, १४नी यतिथी ३० मात्रा लाववानु केहछे, ते साथे छेवट गुरु लाववानुं कर्तुं नथी, पण तेना उदाहरणमां बे गुरु आण्या छे. ते उपरथीज छंदःप्रभाकरना कीए वे गुरुर्नु लक्षण बांध्यु होय, एम जणायछे. भाइ मनसुखराम सूर्यरामे गूजराती पद्यमी रामायण रचवा मांडयुं छे, तेमां तेमणे आ अर्द्धसमजाते वापरी छे, ते नीचे लखेला रागोमां गवायछे, एम तमणे बेसार्यु छ:
"धीर समीरे यमुना तीरे, वसनि वने वनमाली.'' "क्यां गयो रे पेलो मोरलीवाले? अमने रसमा रोळी रे." "वैष्णव नथी थयो तुं रे, हारजन नथी थयो तुं रे"! "बिगरी कोन सुधारे? नाथ विन विगरी कौन सुधारे रे!' "तें तो घटमां घर कीधुं वालम! वरणागिया रे!''
____ x x x x x शिक्षा शाणाने. २४ चोबोला, चौयाला, चतुष्पथा,) १,३ विषम पदमा १६ मात्रा.
चतुर्वचा; चतुर्वचन, चउबोला.) २,४ सम पदमा १४ मात्रा.
प्रत्येक दलमी १. ५, ९. १३, १७, २१, २५, २९ मात्राएं ताल: विषम पदे करी सोळ कला पछी, सममां चौद सदा धरजो; प्रथम उपर पछौं श्रुति श्रुति चडता, तालो चोबोले करजो. ३५
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अर्द्धसम
मात्र मेळ.
त्रीश कलानां बे दल छे पण, चार पदे बोलायां छे; चतुर्वचा वळी कोइ कहेछे, चतुष्पथा चौयाला छे.
२५ सर
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३६
छंदोस्तामा अन्ते गुरु लावत्रा केहेछे. छंदरत्नावलीमां पण ४गणे = १६ मात्राए - यति अने अन्ते गुरु लाघववानुं कत्युं छे. वाग्वल्लभमां चतुष्पथा नाम छे, प्राकृत पिंगळसूत्रमां चौयाला नाम छे, अने छंदोवृत्तमुक्तावलीम चतुर्वचन ए नाम छे.
'ती' ३. पदमां १६ मात्रा..
( २, ४ पदमां १५ मात्रा.
छंदःशतक प्रजाणे.
८७
१,५,९,१३,१७,२१, २५, २९ मात्राए ताल.
विषम चरण छे सोळज कलनां, बेसर कल पंदर सम पदे; प्रथम उपर चारे ताल, प्रति दलमां कवि आठज बदे. २७
२६ घत्ता, ध्वाता. प्रत्येक दलमा १०,८,१३ यति = ३१ मात्रा.
७ ड+३ल= ३१. ३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१ मात्राए ताल.
७
८ ૧૩
मुनि चोकल गण पर, ऋण लघु ठॉक धर, दशवसु जख पर छे विराति घत्त(मांत्रण पर, पछौ श्रुति चडता, ताल वसु दे तु घरी रति. २८
४
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां ध्वाता नाम है, घत्ताने को धृत्वा पण के हे छे. छंदोत्तमुक्तावलीमांधता नाम आभ्युं छे. मारी पासे संवत् १८२३नुं लखेलं पिंगळ छंदोग्रंथ नामनुं सागवी पिंगळ हे तेमां प घत्ता नाम छे. वाग्वलभ, प्राकृतपिंगळसूत्र, अने वाणीभूषणमां ७ चोकलिया+३ लघु = ३१ मात्रानुं घत्तानुं प्रत्येक दल आणवा कयुं छे, अबे युति पाळवा ते ग्रंथोमां जणाव्यं नथी. पग छेदः प्रभाकरमां धत्ता नाम अने तेमां १८, १३ यति= ३१ मात्रा अने तेमां छेलो न गण आणवा नियम कस्यो छे. वृळी वाणीभूषण ने प्राकृतपिंगळसूत्रा उदाहरणोमा १०, ८१३ यति जोवामां आवे छे.
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रमपिंगळ.
अंते
७
१३
२७ घत्तानंद, घातोनंद. प्रत्येक दलमा ११, ७, १३ यति.
६+४+४+४+६+४+४=३१ मात्रा. तेमां अंते त्रण लघु. . प्राति यतिमा १,५,९; १, ५; अने १, ५, ९, १२ मात्राए ताल,
छ पर ड़गण त्रण वार, पांच हुँ धार, ड द्वयमहि नगण चरम' धर; घत्तानंद हर मुनि, जख यति थान,
चारे सुताल विरति-कर. ३९ वृतरत्नाकरनी नारायणभटी टीकामां घातोनंद नाम छे, अने ६+४ +४+४+५+६+ ल+ल-३१ मात्रा एक दलमा आणवा का छ: छंद:प्रभाकर इत्यादिमां आनुं नाम धत्तानंद आप्युं छे, पण ते घ ने धना मळतापणाने लीधे भूल थवेली होस एस समजायछे. २८. हरिणी. १,३ पदमां १५ अने २,४ पदमां १६ मात्रा; ....विनमा १, ५,९, १३ ने सममा ३, ७, ११, १५ मात्राए ताल. तिथि कल पेला त्रीजा पदे, सममां तो सोळ सदाय वदे हरिणी नामे जाति खरी, ते अर्द्धसमे कविये उचरी. ४० विषमे ताल प्रथम पर धरो, पछी चारे चडता आप करो; सममां त्रीने तालन थशे, पछी चारे चड़ता चाली नशे. ४१
भाषाछंदोमंजरीमाथी आ जाति लीधी छे. २९ मनोरमा. १८, १९, यति=३७ मात्रा. प्रत्येक दलमां विपनमा ३, ७, ११, १५ तथा सममा ४, ८, १२, १६ मात्राए ताल,
विषमे कल सकल अढार प्रमाणो,
ओगणीश कला सममा वळो आणो; विषमे बे त्रण तो सममां तालो,
चार मनोरमामा चडता चालो, ४२ आ जाति भाषा-छंदोमंजरीमा छे. परंतु तेना सम चरणोमा जे १९ मानानी योजना करी छे, ते पसंद करवा योग्य नथी, विषममां बे मात्रा छोड़ी
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अर्द्धसम .
मात्रामळ दइने अने सममा त्रण मात्रा छोडी दइने चार चार चडता ताल देवाथी गवाइ शकायछे. ३० उल्लन, फुल्लणा. १०, १०, १७=३७ मात्रा,प्रत्येक दल.. तमा १, ६, ११, १६, २१, २६, ३१, ३६ मात्राए ताल.
दशनी पर दश वळी, सत्तरें यति धरी, साडनाश कलतणुं दलन करजो, एक पछौं शर झारे, ताल दलमां ठरे,
फुल्लणा उल्लनन नाम धरजो. ४३ झूलना १९ अक्षरनुं वृत्तछे, ते नाम उपर झूलणाने वदले फुल्लणा पंचायुं हशे, तेथी भूलथयेली जगायले. चिंतामणीमां झूलना एवं नाम राख्यु ले अने वे दलमा १०, १०, १७ विराम कह्यो छे, एने करखा पण कहे छे. रुपदीपपिंगळ तथा भाषाछंदोमंजरीमा १०, ११, १०, ७ यति केहेछे.. ३१ गंधाना, मंधानक, १, ३ पदमा २० मात्रा तेना १७ अक्षर;
२, ४ पदमा २४ मात्रा तेना १८ अक्षर. यति के गणनो नियम नधी, यमक घणगि आवे. प्रत्येक दलमा एक पली चचार मात्राए चडता ताल.
वीश कल सतरज वर्ण विषम पदमाह, चोवीश कल दशअष्ट वरण सममा छे जांहे; प्रथमे ताल पीथी ठीक श्रुति श्रुति धरजो, गंधानक कदः वदत अपर गंधाना भणजो. ४.४ माप गंधानामां विषम पादे १७ तथा सम पादे १८ अक्षर अने प्रत्येकमा बच्चे यमक आणवा वाणीभूषणमा तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा दीव्यु छे, पण मात्रानो कंइ नियम बताव्यो नथी. ३२ चूडाणा.पेहेला दलमा १३,११,१३,११-४८मात्रा. आखौ दुहो बोजा दलमा १२,१८,१२,१५, ५७ मात्रा. आखी आर्या.
ताल दुहा तथा आर्या प्रमाणे, .
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रणापेंगळ.
आदि दलमा दोहरो, आखो आवी जाय, चूडामणी अथवा भले, चूडाणामां थाय; . बीना दलनी मांहे, आखी आर्या नियम सहित थायो अडतालिश सत्तावन, कलनां वे दल बनीं जाशे. ४६
छंदार्णवमां आ जातिनुं बानुं नाम चूडामणी बताव्युं छे. पण सम ज्यतिमां बे गोतिनी चूडामधी जाति पृष्ट ४९ अंक १२४मै छे, माटे एक एक नाम राखवाथी गुंचवारो थाय तेथी ए नाम अमे राख्यु नथी. ३३. खंजा, खंजिका. ३६ ल+१ रगण=४ १ मात्रानुं प्रत्येक दुल.
१,५,९,१३,१७,२१,२५,२९,३३,३७,४० मात्राए. लाल छतरिश' लघु कल चरण चरण प्रति, पंछौं थको उपर तुं शशि रगणन सज़ प्रति पद खंजिक प्रथम उपर पछी श्रुति श्रुति चडी चडी, सकल मळी तु दशः पछी त्रण पर ठिक द्वय दल ताल दे. ४६
वर्णमेळना विषम वृत्तना प्रकरणमा ३० लघु+१ गुरु सममा, अने २८ लघु+१ गुरु विषममा एवा मापनुं आ नाम- वृत्त ले.मनहरपिंगळमां ५+५+५+५+५+५+६+र-४१ मात्रा लाववा कल्धुं छे. पिंगळादर्शमी पण एज प्रमाणे लीधं छे. ३४माला. ३६ ल+१ रगण+गग (कर्ण)=४५ मात्रा- पेहेलुंदल
आर्याना उत्तरार्द्ध प्रमाणे १२+१५=२७ मात्रानुं बीजंदल. पेहेला दलमां. १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९, ३३,३७, ४०,४४ अने बीजा दलमा १, ५, ९, १३, १७, २२, २६ मात्राए ताल. छतरिश लघु कल प्रथम दल तुंधर रगणपर करण श्रुति श्रुति चझैज र उपर द्विआवता ताले; चीजें दल आर्याना, उत्तर दल सरखं घर माले. ४७
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मात्रामक.
३२
शिखा जाति. कृलरत्नाकर तथा छंदःशास्त्र उपरथी शिखा अने लेना ऑगमून छंदो के दलना सिद्ध थायछे; पण छेदःप्रभाकरमा तेनां चार चरण योज्यां छे, ते संस्कृत ग्रंथोथी विरुद्ध छे.
शिखामां एक दल सर्व लघु, तो बीजं सर्व गुरुर्नु आवैः .. एम छंदःसूत्रमा जणाव्यु छे. (दुहो) रद लघु कलनुं एक दल, अवरविषे गुरु सोळ;
तेने कविजन एम के', शिखा नामथी बोल. ४८ . शिखातणा बे भेद छे; कविता करवा कामः;
सौम्यशिखा ज्योति शिखा, एवा एना नाम. ४९ वागवल्लभ तथा छंदरत्नावलीमा २४ लघु+१ गुरु-३० मात्रानां बे दुल आणवा का छे. पण ते अभिप्राय सर्वमान्य नथी. गुरुना लघु अने लघुना गुरु, एम प्रस्तार करतां आना अनेक भेदो थायछे.
...(पूर्वार्द्धमा ३२ लघु=३२ मात्रा ) आठे अक्षरे ३५ ज्योतिःशिखा
" उत्तरार्द्धमा १६ गुरु=३९मात्रा) यति. १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल.
लघु कल दश षड, प्रथम विरति धर, द्वितीय प्रथम सम, रद कल कुल कर आठे आठे, थोभी की,
सोळे गुरु, अर्द्ध बीजे. ५० छदःप्रभाकर वगैरेमा यति कही नथी..
आना उलटानेज सौम्याशिखा के अनंगक्रीडा केहे छे. छंदः-- प्रभाकरमा अनंगक्रीडा अने ज्योतिःशिखाने तथा छंदाणक्यों अनुष्टुप (श्लोक),गंधा, घनाक्षरी वगैरेने मुक्तकमां गण्यां छे. ते मुक्तकनी व्याख्यामा
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रणपिंगळ.
जणावेछे के, जे वृत्तमा क्यांक गुरु लघु अने क्यांक मात्र अक्षरोनी संख्यानो . जो नियम होयछे, ते मुक्तक केहेवायछे. ६६ सौम्याशिखा, (पूर्वार्द्धमां १६ गुरु-३२ मात्रा ) आठ अक्षरे अनंगक्रीडा. उत्तरार्द्धमा ३२लघु-३२मात्रा यति.
१, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए वाल. पेले अर्द्ध, गुरु सोळे,
आठे आठे, थोभी बोले द्वितीय दलनी कल, बधी मळी रद कर,
पडे दश कल पर, विरति तरत-धर. ५१ अनंगक्रीडामा वाग्वल्लभ पेहेला दलमा आठ ममण एटले चौवीश मुरु अने वीजा दलमा आठ नगण एटले चोवीशः लघु आणवा केहेछे.
(पूर्वार्द्धमा २७ ल+ग-२९ मात्रा. १७ चूलिका.
"। उत्तरार्द्धमा २९ ल+ग-३१ मात्रा.
पेहेला दलमां १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २८ . अने.बीजा दलमा १,५,९, १३, १४, २१, २२, २९ मात्राए ताल:
प्रथम दल सकल लघु कल वाशपर मुनिवर धरी गुरु शशी करो . लघु कल सकल मळी वाशपर नव
धरी द्वितीय दलपर शशी गुरु धरो. ५२ छंदःशास्त्रमा जणाव्यु छ के-“केटलाक पूर्वार्द्धनी पेठे २७ लघु+ ५ गुरुना बने दल आणवार्नु केहेछे." पण तेम थवाथी अतिरुचिरामा मळी जायछे.. एटले अमे उपरनुं लक्षण बांध्यु छे..
शिखाना उपर जे व्रण भेद बताव्या छे, ते उपरांत केटलाक बीजा ग्रंथकारो नीचे प्रमाणे विशेष भेद बतावेछे. १८. अतिरुचिरा.. २७ ल+१ ग=२९ मात्रा प्रत्येक दलमां. ८८,७६ यति १,५,९,१३,१७,२१,२५, २८ मात्राए ताल..
प्रथम द्वितीय दल, लघु कल वाशपर,
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शिखा जात.
मात्रामक.
मुनि धरि चरम, रा धर धारा; +अन्ते. वसु पछौं वसुपर, मुनिवरना उपर, रसपर विरति, अतिरुचिरा. ५३
(४+४+४+४+४+४+न=२८ मात्रा, पेहेलुं दल, ३९ शिखा.
| ४+४+४+४+४+४+४+ज=३२ मात्रानुं बीजें, पेहेला दलमां १, ५, ९, १३, १७, २१, २५ अने बीजा दलमां
१,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल. कविवर! पट चोकल कर प्रथम दले पछी जगण धर एक; बळी जो बीजे सात ड उपर जगणनो शिखाविषे छे विवेक. ५४
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीटीकामां शिखानुं ए.प्रमाणे माप छे. . ४० शिखित. २८ल+१ग-३० मात्रा, प्रत्येक दल,
..१,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल, शि पर वसु कल कुल कल लघु धर ‘पछौं शशि गुरु धर प्रति दलमां; +टकर प्रथमपर पठौं श्रुति श्रुति चड़
+ ताल शिखित तु रच कविवर! पलमा. ४? अशिखा, (२४ ल+१=२८ मात्रा पूर्वार्द्धमा । एकपर चच्चारे नाकि. २८ल+१ ज=३२ मात्रा उत्तरार्द्धमां ) चडता ताल,
थोशपर श्रुति कल सकल तु लघु घर उपर जगण कर सदाय; धीशपर वसु कल सकल लघु तु कर
उपर जगण घर हुँ अशिख रचाय. ५६ छंदोलमुक्तावली तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा आनुं नाम शिखा के वालवलभमा नाकि नाम आप्युं छे.
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रणपिंगळ.
४२ (अपर शिखा २८ल+१ग-३० मात्रा पेहेला दलमां.
३०ल+१ग-३२ मात्रा बीजा दलमां. १, ५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. . विशपर वसु कल लघु कर तु प्रथम दलनी चरम धवल कमला छे; विशफर दश लघु कल कुल कर शशी
गुरु चरमनी उपर द्वितोय दल छे. आथी उलटुं ते खंना. अिन्ते गुरु
(३० ल+ १ ग-३२ मात्रा पेहेला दलमां ४३ (अपरा)खंजा (शिखा);
२८ ल+१ ग-३० मात्रा बीजा दलमा १,५, ९, १३, १७, २१, २५, २९ मात्राए ताल. प्रथम दल तु धर विशपर दश कल सकल कल तु लघु धर गुरु चरमे; द्वितीय दल सकल लघु कल किया बसु
चरम उपर शशी गुरु ज रमे. ५८ * अन्ते खंजाथी उलटुं ते शिखा. ४४ अतिशिखा, गुणित. ३० ल+१गुस=१२मात्रानुं प्रत्येक दल.
१, ५, ९, १३, १७. २१, २५, २९ मात्राए ताल. प्रथम द्वितीय दल सकल लघु कल तुं त्रीश कल पर शशी गुरु धर तु तिग्वा; प्रथम उपर पछी श्रुति श्रुति चडी कल टकर धरौ तु रच सरस अतिशिखा. ५९ ताल
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मात्रामेळ.
९५
आर्या प्रकरण. आर्यानो प्रयोग विशेषे करीने संस्कृत, मागधी अने मराठी भाषामां जोवामां आवेछे, वृनभाषामां बहु ओछो छे. हवणां गूजराती भाषामां कांइक विशेष प्रचार थवा मांडयो छे.
आर्यागण आर्या (गाहा) प्रकरणमा चच्चार मात्राना पांच गर्ण आवेछे, तेएवी रीते के मगण (sss)मांथी एक गुरु ओछो करी बाकीना बे गुरु (55)नी चार मात्रा गणायछे, तेने कर्ण अथवा मगण केहेछे. नगणमा एक लघु वधतां चार मात्रा थाय छे, तेने (m) विप्रगंण केहेछे. अने बाकीना घच्चार मात्राना स,ज. अने भ, ए त्रण मूळ गण छे, ते लेवायछे. तेथी आर्याना नीचे प्रमाणे पांच गण थायछे:--
१ ss कर्ण (मगण.) २ ॥ संगण. ३ ।। जगम. ४ ॥ भगण. ५ ॥ विप्र (नगण)
आर्यानुं सामान्य माप. प्रथम दलमां-७ चोकलिया गण+१ गुरु=३० मात्रा; .बीजा दलमां-५ चोकलिया गण+१ लघु+१ चोकलियो+१ गुरु=२७ मात्राः
पूर्वार्द्ध (प्रथम दल)मां चच्चार मात्रानो एक एंवा सात गण अने एक गुरु आवेछे तथा उत्तरार्द्ध (बीजा दल)मां पांच
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रणपिंग
धोकलिया गण+१ लघु+एक चोकल मण+१ गुरु आवे छ। अर्थात् बीनादलमा छठा गणने स्थाने मात्र एक लघु आणवों तथा बने दलमा १ला, ३जा, दमा, अने ७मा एटले विषम स्थानोमा जगण' आणवोज नहि. आयर्थाना पूर्वार्द्धमा छठा गणने स्थाने विप्र (नगण) अथका जगण ज जोइये जो विप्रगण होय तो तेना प्रथम अक्षरे विराम आवे, तेमज जो सातमो गण विप्र होय तो छठ्ठा गणना छेल्ला. अक्षरे यति आवे, पछी ते छछो गण जंगण होय तोपण चिंता नहि. तेमज उत्तरार्द्धमां पांचो न (विप्र)गण होय तो चोथा गणना छैल्ला अक्षरे यति आके. आ ऊपरथी एम समजवानुं छे के-गाथानी पेठे १२ अने. १८ सेमन १२ अने. १५ मात्राए पद छूटा पडतां नथी, पण उपर कह्या प्रमाणे ज्यां ज्यां विराम कह्या छे, त्यां त्यां पंदनी समाप्ति थायछ, अने बीजा पदनो प्रारंभ थाय छे. छठ्ठो अन सातमो बंने गण न.(विप्र) गण आवे तो प्रथम विराम मुख्य समजी त्यां आमळ पदनी समाप्ति समजवी, अने. बीजो विराम मौण समजवो.
पिंगळाचार्यना मत प्रमाणे पण आयर्यानां पूर्वार्द्ध अने उत्तराई एवां केदल केहेबामां आवेछे, पण पाद ठरावदामा आवतां नथी..
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां कयुं छे के - “ जे आर्यामां एकज जगण हाय ते कुलीना (कुळवती), बे जगण होय तो कुलटा (अथवा वीजा ग्रंथोना मत प्रमाणे धरुणी, संगृहिणी अथवा अभिसारिका केहेवाय.) बेथी वधारे जगण आवे तो वेश्या अथवा वारांगना कहवाय अंने एके जगण न आवे तो रंडा अथवा विधवा केहेवाय." केमके जगणनुं नाम नायक पालु छे. तेथी नायक अथवा धणी विनानी ते विधवा.
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आर्या-गाथा
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मात्रा.
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीका प्रमाणे गाहा बोलवानी
रीति नीचे प्रमाणे छे:
पेहेलं पाद हंसनी पेठे धीमेथी बोलवु,
बीजुं पाद सिंहविक्रमनी पेठे उद्धतपणे बोलवु त्री पाद गजगतिनी पेठे ललितपणे उच्चारखं, अने चोथुं पाद सर्पनी गतिनी पेठे डोलतुं गावं.
विप्रा
क्षत्रिया.
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वैश्चा
छंदोमंजरीना टीकाकार जीवानंद विद्यासागर भट्टाचार्य केहेले के- “ केटलाकनो एवो अभिप्राय छे के, १२, १८ अने १२, १५ मात्राए पाद गणी यति राखवामां आवी छे." पण आमत बराबर नथी; कारण के आ प्रमाणे पाद पाडी उपरना बधा नियम लागु करवामां आवे तो ते जूदो भेद थाय. छे, अने ते पया केहेवायचे, एटले तेने आर्या कही शकाय नहि.
विमादि आर्यानां नाम. विप्रा १३ लघु सुधीनी. क्षत्रिया...... १३ श्री २१ लघु सुधीनी. वैश्या....... २१ थी २७ लघु सुधीनी.
शूद्रा ......... २७ थी ५३ लघु सुधीन.
आर्या (गाथा ) देश.
. जाजनगर. (काशी भणी छे)
. अयोध्या.
महाराष्ट्र.
कर्णाटक.
९७
शूद्रा
उपर प्रमाणे चार जातिनो आर्याना चार देश लखपत
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९८
रंणापेंगळ..
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जशसिंधु तथा पिंगळछंदोग्रंथ इत्यादिमां कह्या छे, पण नागराजपिंगळमां अयोध्याने बदले पूर्वदेश अने महाराष्ट्ने बदले महुरा एवां नाम आध्यां छे.
पद्मिनीआदि चार जातिनी आर्या. जेमा प्रथम कर्ण गण होय ते पद्मिनी. जेमां आदि सगण होय ते चित्रिणी. जेमां आदि भगण होय ते हस्तिनी. अमां प्रथम विप्रगण होय ते शंखिनी.
आर्यानी अवस्था.. जेमा कर्ण गण बहु ते बाळा. जेमां विप्रगण बहु ते मुग्धा.
मां भगंण बहु ते प्रौढा.
जेमां सगण बहु ते वृद्धा केहेवाय. पण पिंगळ छंदोग्रंथ (चित्रसेनटीकावाळा) मां तथा बीजों कैटलांक पिंगळोमा विप्राने बाळा, क्षत्रियाने प्रौढा, वैश्याने अर्द्धवयसी अने शूद्राने वृद्धा केहेछे.
उत्पत्ति. गाथा- कुळ छंद, पिता वेद, माता सरस्वती अने जन्म श्रवण नक्षत्रमा छे.
आर्यानां वर्ण, वस्त्रादिक. जाति. वर्ण. वस्त्र. आभरण. तिलक विप्रो, गौर, श्वेत, मोती, श्वेत. क्षत्रिया, रक्त, रक्त, सोनु, लाल. वैश्या, पीत, पोत, रूप, पीछं.
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आयर्थी-गाथा
मात्रामेळ...
२२.
शूद्रा, श्याम, कृष्ण, पीतळ, श्याम,
पिंगळ छंदोग्रंथ (चित्रसेनीकावाळा)मां शूद्रानुं आभरण कलाइ जणाव्यु छे.
याधानी मात्रानो पिंड. गाथानी कुल ५७ मात्रा छे. तेमा पूर्वार्द्धमां चार मात्राना ७ मका अने उत्तरार्द्धमां चार मात्राना ६ गण एटले १३ गण चार मात्राना छे, तेना १३ अंश+ते सिवाय वळी पूर्वार्द्ध अने उत्तरार्द्धमां अंते अक्केक गुरु होय छे, ते एक गुरुनी बे मात्रा तेना २ अंश+छठ्ठा गणने स्थाने उत्तरार्द्धमा एक लघु आवेछे, तेनी एक मात्रानो १ अंश=१३+२+९ = १६ अंश एकंदर गाथाना गणायछे.
तोल.
(पिंगळ छंदोग्रंथ प्रमाणे)
चार कला = १ पल. १४ पल+१ कल (लघु)=१ गाथा.
अनुस्वार विचार. . कवि उन्नड़नीकृत भगवतपिंगक्रमां कह्यु के के-"जे अनु
स्वार वगरनी गाहा (आर्या) ते आंधळी, एक अनुस्वारवाळी काणी (एक आंखवाळी), बे अनुस्वार वाळी ते बै आंखवाळी (सुनयनी), अने बहु अनुम्वार काळी ते बहु आंखवाळी (मनोहरा) बनेछे."
कमळा आदि २६ जातिनी गाथा केहेवायछे, क्षत्रिया गाथा ते स्वभाव गाथा केहवायछे, अने पथ्याद्रि विशेष गाथा केहेवायले.
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रणांगळ,
४५. आर्या-गाथा, गाहा १. ४+४+४+४+४+ज के विप्रगण+४+ग-३०. २. ४+४+४+४+४+ल+४+ग%२७. - प्रथम दलमां १,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल.
द्वितीय दलमा १,५,९,१३,१७,२२,२६,मानाए ताल. पांच डगण पर छट्टो द्विजवर अथवा ज,गण धरो पदमां; तेपर एक डगण करौं, अंते ग करो प्रथम दलमां. ६० बीजुं दल एमज पण, छठे लघु मात्र एक तो धरवो; विषम गणे प्रति दलंमां अवश्य, जगण नहि कदि करवो. ६१ छठ्ठो जो द्विजवर तो प्रथमाक्षर पछौज, विरति, पद करजो; रस मुनि बे गण द्विज तो, रसनी पण अंत पद धरजो.. ६२ बीजा दलमां पंचम द्विजवर तो त्यां थकीज, पद गणजोः । अवर प्रकार बने तो अन्ते, यति पद सहज भणजी.
* मागधी छरदातक आदिमां आ नाम छे.
केदारकविनो संस्कृत भाषामां रचेलो "वृत्तरत्नाकर' नामे ग्रंथ छे, जेनापर "भावप्रदीपिका' नामनी टीका जनार्दने करी छे, तेमा लखेछे के जेमां विषम अक्षरवाळ पाद (जेवांके ८,१०, ७,९ अक्षरना अथवा ३,६ पादनां) होय ते गाथा केहेवायछे. जेमके मंगल, गीतिका, चेष्टक, विषद्विति, ध्रुवक, चर्चरी, पद्धतिका, कालिका, बल्लितका, द्विपदी, उत्साह, चत्वरी, पदुलिका, द्विपथ, आदि केटलाक एवा छंदोनो ‘एमां संग्रह थायछे माटे ए सर्व संग्रहिणी केहेवायछे. ___ "वृत्तरत्नाकर' अने तेनी नारायणभट्टे करेली टीकामां के छे के, “त्रण, छ, के. दश अथवा . तेथी अधिक जेमां चरण
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आर्या-गाथा
___मात्रांमळ.
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आवे तेने, अने प्रत्येक चरणमां न्यूनाधिक अने नियम वगरना गुरु लघु जेमां आवे तेने गाथा केहेछे. _छंदःशास्त्रमी एम केहेछे के प्रस्तार प्रमाणे छंदना ने भेद थायछे, तेमाथी प्राचीन मुनियो अने ग्रंथकारोजे प्रसिद्ध छंदोनां नाम कही गया छे तथा ते सिवाय प्रस्तारनी रीतिथी नवा थइ शके ते वर्ण्य करतां बाकी जे नवा छंद जोवामां आवे ते गाथा के हवाय.
वळी संस्कृतमां रचाय तो आर्या अने प्राकृतमां रचाय तो गाथा केहेवायछे. अने केटलाक मागधी ग्रंथोमां तेनुं नीचे. प्रमाणेज माप होयछे:
गाथा. १, ३ पादमां १२ मात्रा. २जा पादमां १८ मात्रा.
४था पादमां १५ मात्रा. गाथाना माप करतां विशेष नियम थवाथी आर्यादि भेद थायछे. एम केटलाकनुं मत छे..
आर्याना भेद नीचे प्रमाणे छ:भेद.
लघु गुरु वर्ण १. लक्ष्मी, लच्छी... 3 २७ . ७० २ ऋद्धि.
५ २६ २१ ३ बुद्धि.
७ २५ ३२ ४ लज्जा.
८ २४ 33 ५ विद्या, विजा. ६ क्षमा, खमाय. १३ २२ ७ वैदेही, देही, अदेही, १५
देवी, देहीया..
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रणपिंगळे.
re.
( गौरी, गोरी. १७ ९ धात्री, धाइ, रात्री, राया. १८१८ ३८ १० चूर्णा, जुना, पूर्णा. २१ ११ छाया..
२७७ ४० १२ - कान्ति, कन्तिः १३ महामाया, महामइया. २७ १४ कीर्ति, कीत्ती. २८ १५ सिद्धि, सिद्धा, मुद्दा.. 31 १६ मानी, मानिनी, मनोरमा, 33
मन्ना. १७ रामा.
૬૫ ૧૧ १८ गाहिनी.
१. .१९ विश्वा, विमा. २० वासिता, सीया. ४१ २१ शोभा.
७५० २२ हरिणी:
૫ ૬ ૫૧ २३ चक्री, चक्की. ४७. ५ ५२. २४ सारसी, रंसी.. ૪૯ ૪ ૫૩ २५ कुररीय.
૫૧ ૩ ૫૪ २६ सिंही.
પર ૨ પપ २७ हंसी.
પપ ૧ પ૬ पिंगळ छंदोग्रंथ (चित्रसेनटीकावाळा)मां अंक ७मे देहीया, अंक ९मे सया, अंक १५मे मुझ, १६ मे मन्ना, १८ मे रोहिणी, १९मे विभा, २०मे सीया, २३मे चक्की, अने २६ मे हंसी
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आर्यानाभेद
मात्रांमेळ.
जणावी तेणे एकंदर २६ भेद बताव्या छे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां अंक १.० मे पूर्णा नाम आप्युं छे.
वृत्तमौक्तिकमा २४मी "हंसी" अने २५ मी "सारसी" -गणी कुल पचीश भेद लख्या छे अने ते सर्वेनां उदाहरण "उदाहरण मंजरी" नामना ग्रंथमां आप्यां छे.
"छंदः प्रभाकर छे के " एक गुरुनी आर्या बनी शके नहि" एटले तेणे २७ने बदले २६ भेद उपर प्रमाणे कवि चंद्रशेखरना मत प्रमाणे गुरु लघुना क्रमयी आप्या छे, परंतु वच्ये १८ मो " गाहिनी" नामे मेद आप्यो नथी अने अंक ७मे देवी नाम आप्युं हैं.
७ चम्प्रका..
८ रूपा.
01 वरला वारला.
नागपिंगळमां गाहाना २६ भेद आप्या छे तेनां नामः१कमला, २लुलिया, लीला, जुना, रंभाय, ६ मागधी, ७ लच्छी, ८ विज्जू, ९ माला, १० हंसी, ११ शशिलेहा, १२ जाह्नवी, १३ मुग्धा, १४ काली, १५ कुमारी, १६ मेहा, १७ सिद्धि, १८ रिद्धि, १९ कुम्भिणी, २० धरणी, २९ जरकणी, २२वीणा, २३ भी, २४गंधव, २५ मंजरी अने २६ गौरी. शंभू अथवा स्वयंभू कृत छंदोग्रंथ प्रमाणे आर्यानां २६ नाम.
१ विमला
3 मदना. संतोपा
१:०३
२. सरसा..
४ रत्ना.
६ मालती.
८ कनका.
१० तम्बा..
१२ गंभी
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१०४
क्रम.
१३ सारंगा.
१५ चन्द्रानना..
१७ विप्रा.
१८ महोत्कटा.
१
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नाम.
रणपिंगळ.
२१ प्रभुश्रोणी.
२३ दीर्घकेशी.
२५ रंगदा.
आखी आर्यामां १३ लत्रु आवे तो ते विप्रा केहेवायछे, २१ लघु आवे तो ते क्षत्रिया केहेवाळे, २७ लघु आवे तो वैश्या केहेवायचे, अने ते उपरांत आवे तो ते शूद्रा केहेवायछे. अर्थात् अंक १ थी ६ सुधीनी विमा, ७ थी १० सुधीनी क्षत्रिया, ११ थी १३ सुधीनी वैश्या, अने १४ श्री २७ सुधीनी शूद्रा जाति केहेजायळे
आर्याना मुख्य पांच भेद नीचे प्रमाणे छे, तेनी मात्रा आदिनुं कोष्टक.
मात्रा
उत्तरार्द्ध. पूर्वार्द्ध.
सुन्द
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आर्या.
३०
२७ ५७
गीति. ३० ३० ६०
२७ / २७ / ५४
उपगीति उदगीति २७ ३० ५७
आर्यागीति. ३२ ३२६४
१४ लक्ष्मी.
१९ सिद्धिकरा.
१८ मोहकरा.
२० मदजनना.
२२ गजगमना.
२४ कदम्बा.
२६ रत्नगर्भा.
वीजां नाम.
गाहा, गाथा.
उम्माहा, उद्गाथा.
माहू.
विगाहा, विगाथा.
स्कंधक, संधा, साहिनी.
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अर्द्धराम.
के विषम.
विषम.
अर्द्धसम
अर्द्धसम
विषम.
अर्द्धसम.
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आयानाभेद
मानासेल.
ए पांच भेदोमांना प्रत्येकना नीचे प्रमाणे १६ भेद थायछे; १ पथ्या .
८ मुख विपुला. २ पथ्या चपला. १० मुखविपुला चपला.. 3 पथ्या मुखचपला. ११ मुखविपुला मुखचपला. ४ पथ्या जवनमपला. १२ गुखविपुला जघनचपला. ५ विपुला.
१3 जबनविपुला. ६ विपुला चपला. १४ जघनविपुला चपला. ७ विपुला मुखचपला. १५ जघनविपुला मुखचपला. ८ विपुला जवनचपला. १६ जघनविपुला जघनचपला. (छंदःप्रभाकरमां आ १६ नामो केटलाक फेरफार साथे वतावेलां छे.)
प्रथम लखेला मुख्य पांच भेद साथे आ सोळ भेद- संमिलन थतां एकंदर ८० भेद थायछे. वळी कोइ कवि केहेछे के सूक्ष्म रीतिना मिश्रणथी एना २००० भेद थइ शके.
४६ पथ्या. (विराम वर्ण्य करीने बधा नियम आर्या प्रमाणे एटले चच्चार मात्राना त्रण गण अर्थात् बार मात्राए विराम आवे.)
४+४+४, ४५-४+ज के विप्र+४+ग-३०
४-५-४+४, ४+४+१लघु-+४+ग=२७ त्रीजा गणनी अन्ते, अथवा कल बार तो पूरी थातां; पथ्यामा यति करजो, आर्या नियमे अवर गातां. ६४
वथ्या आदिना आंगिक नियम साथे आर्याना नियम पप लागु पडेछे, माटे एने पथ्याआर्या इत्यादि नाम पण आपवामा आवे छे.
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१०६
रणापंगळ
४७ विपुलाः सर्व रचना आर्या प्रमाणे पण पूर्वार्द्ध अथवा उत्तरार्द्धमां के उभयार्द्धमां त्रण गण एटले बार बार मात्रा उल्लंघीने त्रीजा गणनो शब्द ज्यां पूरो थाय त्यां विराम आवेछे, एटले चोथा के पांचमा गणना ‘अक्षर ग्रहीने त्रीजा मणनो शब्द पूरो थाय ते स्थाने यतिा मणायले.
४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+ग=३०
४+४+४+४+४+१ लघु+४+ग=२७ त्रीजा गणकेरो शब्द, ज्यां पूरो थाय त्यां विरति आणो; विपुलाआर्या त्रण जातिनी, बनेले खलं जाणो. ६५ (जेनो कोइ भाम विपुले एटले विस्तारवामां आवे ते विपुला केहेवाय).
१ मुख (आदि) विपुला, २ जघन (अन्त) विपुला अने ३ महा (उभय) विपुला, एवा विपुलाना त्रण भेद थायछे.
४८ मुख (आदि) विपुला. (आदि एटले पूर्वार्द्धना त्रीजा गणनो शब्द ज्यां चोथा गणनी मात्रा ग्रहीने पूरो थाय, त्यां विराम आवेछे माटे आदि विपुला; उत्तरार्द्धमा पथ्या प्रमाणे.)
आदि दले त्रीजा गणकरो, शब्दज पूरो थतां यति छे; आदि विपुला आर्या, रचनो ए रीति कविमति छे. ६६
४९ जघन (अन्त) विपुला. (अन्त एटले उत्तरार्द्धमांना त्रीजा गणनो शब्द चोथा गणनी मात्रा ग्रहीने ज्यां पूरो थाय, त्यां विराम आवेछ, माटे ते अन्तविपुला केहेवायछे. पूर्वार्द्ध पथ्या आर्या प्रमाणे.)
अन्तन दलना त्रीना, गणनो शब्दज जहां पूरो बनशे,. अन्तविपुला आयामां, त्यां यति सुकवि ठिक धरशे. ६५
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आर्यानाभेद
मात्राम
५०. महा (उभय) विपुला. पूर्वार्द्ध अने उत्तरार्द्ध ए बने दलना प्रथमना āण गण माहेला वीजा गणना शब्द ज्यां पूरा थायछे त्यां विराम अवेछे.
उभय दलोतणा त्रीजा, गणना शब्द ज्यां पूरा मानो; ते उभय विपुला आयाँ, छे एमज तमे जाणो. ६८
५१. चपला. सर्व नियम आर्या प्रमाणे, पण बीजो ने चोथो गण जगण जाइए. चाला रचाय आर्या, समान धारण करी नियम जो ते; । बीने श्रुति गणे तो, धरो पयोधर वळी पोते. ६९
$ पयो वर जगण. पिंगळाचार्यमा मत प्रमाणे बने जगगनी आसपास गुरु अक्षर आववा जोइए, एम अग्नि पुराणमां पणलख्यु छे. एटले पेहेला गणनी अन्ते गुरु आवे, तेमन त्रीसे गण बे गुरुंनो आवे, अने पांचमा गणना प्रारंभमां पण गुरु
आवे." पण सर्वत्र जगणनी आसपास गुरुज आवा जोइए, एम केदारभट्ट, गंगादास आदि घणा कविआनां मत नथी. अपलाना नीचे प्रमाणे त्रण भेद थायछे.
· ५२ मुख चपला. मुख एटले पूर्वार्द्धमा चपलानी नियम पाळवामां आवे अने उतराईमां आर्या प्रमाणे आवे. १ दल=४+ज+४+ज+४+ज अथवा वि०+४+गु-३०.
चपला समान जे, पहेलु तो दल मुखचपलामांछे; भार्या समान जेजें, बीजं दल तोज जेमां छे. ७०
५३ जयन चपला. पूर्वार्द्ध आर्या प्रमाणे पण जघन एटले उत्तराद्ध चपलाना नियम
.
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रणांगक
प्रमाणे एटले बीजु दल ४ज+४+ज+४+ल+४+गु=२७. जघनचपला प्रथम दल, आर्या सम तो अगत्य करों आवे; चपला समान बीजुं, सदाय तो सुकवि मन भावे. ७१
छंदोबोधमा पूर्वार्द्ध मुखचपला प्रमाणे लाववा कहुं छे, पण ते मत ग्राह्य नथी.
५४ उभय (महा) चपला. · जेनां बने दलमा चपलानो नियम पाळवामां आवे ते. १. ४+च+४+३+४+ज के वि०+४+गु-३०. २. ४+ज+४+ज+४+ल+४+-गु-२७. चपला समान जेना, दलो बने बे उभयजचपला छ चपला महा बळी ते, कवि कहेछे खरे आ छे. ७२
एक पथ्या त्रग विपुला थइने अर थाय अने वळी ते चार भेद साथै त्रग प्रकारनी चपला मिश्र थतां तेना बार भेद थाय छे, ए रीते एक आर्याना सोळ भेद थायछे त नी प्रमाणेः
५५ (१) पथ्यार्या. . आर्या सम पथ्यार्या, पण बारे पद गणांय विपमे तो; बीजे अढार यातां, चोथे पंदर कलाए तो. ७३
५६ (२) आदि विदुलार्या. आदि दले त्रीमा गगकेरो, शब्दन पूरो थतां यति छे; आदि वियुला आर्या, रचनो एम कविनी मति छे. ७४
आ उदाहरणमा त्रीजो गण ने बार मात्राए गण ए शब्दना ण आगळ पूरो थाय छे. ते शब्दनो छठी विभक्तिनो प्रत्यय केरो छे ते चौथा गणना अक्षरथी विपुल-विस्ताराय छे ने ते ठेकाणे यति आकेले.
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आर्याना भेद
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मात्रा मेळ
(३) अन्त ( जघन) विपुलार्या
अन्तt दलना त्रीजा, गणनो शब्दज जहां पूँरो करशे; त्यां यति कवि अन्त विपुला, आर्यामां खचित धरशे. ७५
अन्त एटले बीजा दलमां "विपुला" शब्दे श्रीजा गणनी बार मात्रा 'पु' आगळ पूरी थतां ला अक्षर चोथा गणनो छतां विपुला ए शब्द पूरो थवामां त्रीजा गणने विपुल करवामां एटले विस्तारवामां खपी जाय अने विपुला शब्दने छेडे यति आवे छे. ५८ (४) उभय विपुलार्या.
उभय दलोतणा त्रीजा, गणना शब्द ज्यां पूरा मानो; ते उभय विपुला आर्या, छे एमज तमे जाणो.
७६ उभय एटले पेहेला तथा बीजा दलमां त्रीजा गण उपरांत यति विलायछे एटले विस्ताराय छे, जेमके, पेहेला दलमां त्रीजा शब्दना श्री आगळ बार मात्रा पूरी थतां त्यां यति जोइये तेने बदले जा भळती, त्रीजा ए शब्द चोथा गणनी वे मात्रा लइने पूरो थायछे अने त्यां यति विपुल थाय छे तेमज बीजा दलमां आर्या एशब्दनी छेवटे यति विस्तार पामेछे.
५९ (५) मुखचपला पथ्यार्या.
पूर्वार्द्धमाह आवे, सदाय चपलातणा नियम ज्यारे; मुखचपला पथ्यार्थी, बारे पथ्याविरति धारे.
६० (६) मुखचपला आदिविपुला आर्या. मुखमा जणाय चपलातणाज, नियमो सदा समाया छे; यति विपुला आदिनो, मुखत्रपलादिविपुलार्या के.
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रणपिंगळे.
६१ (७) मुखचपलान्तविपुलार्या. पूर्वार्द्धमा धारी, अबाध चपलातणा नियम दीजे; मुखचपलान्तविपुलार्यामां, विपुला विरति बीजे. ६२ (८) मुखचपलोभय विपुलार्या. चपलातणा नियम सकल, तो घरो ठिक करी प्रथम दलमां मुखचपलोभय विपुलार्यामां विपुला यति द्विदलमां. ८० ६३ (९) जघनचपला पथ्यार्या.
जघनज चपला पथ्या, आर्यामां यति अणाय पथ्याना; बीजा दले नियम तो, अणाय सर्वेय चपलाना.
६५ (११) जघनचपलान्त विपुलार्या. जघनचपलान्तविपुला, आर्यामां विपुल विरति बीजे; चपलातो कवि! अचूक, उत्तर पदे नियम कीजे.
७९
६४ (१०) जघनचपलादि विपुलार्या. जघनचपलादि विपुलामां, विपुलातणी विरति पे'ले; चपलातणा नियम तो, जणाय जोता दले छेले.
८२
६६ (१२) जघनचपलो भयविपुलार्या. जघनचपलोभयविपुलार्यामांह, विरति विपुला द्विदले; चपलातणा नियम सकल, तो बीजे दल झटपट पळे.
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६७ (१३) महाचपलापयार्या.
पथ्या यति द्विदलमां, पळे द्विदल नियमज चपलाना तो; पथ्या महाज चपला, गणाय आर्या सरस आ तो.. ८५ ६८ (१४) महाचपलादि विपुलार्या.
पे'ले दले करो विरति, तो विपुलातणी सरव सारी;
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गीति
मात्रामेळ.
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आदि विपुलांन आर्या, महान चपला नियम धारी. ८६
६९ (१५) महा चपलान्तविपुलार्या. द्विदल चपला सुनियमन, महान चपला सुअन्त विपुलामां; उत्तर दले विपुलातणी, विरति आणमो आमां. . ८७
७० (१६) महाचपलोभय विपुलार्या. द्विदल चपला नियमन विपुला, यति त्यां धरो द्विदलमा तो; आर्या महाजचपलामहाविपुला, बने आ लो.
गीति.
७१ गीति, उद्गाथा, उग्गाहा. १. ४+४+४+४+४+ज अथवा विप्र+४+ग-३०,
८१ (१०) ५+५+ज अथवा विप्र+४+ग=३०, पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध आर्याना पूर्वार्द्ध प्रमागे, आर्याना पे'ला दल, समान नियमो रचो दले बे तो; तो पछौं जरूर जाणो, उद्गाथा-गीति छे खरे ए तो. ८९
उद्गाथानेन केटलाक पिंगळकारो "आयांगीति" केहेछे, एम प्राकृतपिंगळसूत्रनी लक्ष्मीनाथभद्दे करेली प्रदीप मामनी टीकामां कयुं छे.
उग्गाहा (गीति)नी ६ ० मात्रा थायछे, तेना गण पाडता, सात गण अने छेल्ला बे गुरु थशे. ते सात गणना गाहा प्रस्तारनी रीति प्रमाणे १२,८०० रूप पूर्वार्द्धनां थाय, अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थाय, माटे ते बनेनो परस्पर गुणाकार करतां कुल रूप १६,३८,४०,००० थायछे.
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रणापेंगळ
७२ (१) पथ्या गीति. पूर्वाई तथा उतरार्द्ध पथ्या आर्याना पूर्वार्द्ध प्रमाणे. पथ्या पूर्व दले ज्यम, त्रीश कला रवि अढार यति आवे; पथ्या गीति विषे तो, तेवां बे दल विवेकी कवि लावे. ९०
७३ (२) आदिविपुला गीति. पूर्वार्द्धनी यति आदि विपुला आर्याना पूर्वार्द्ध प्रमाणे. आदि दले यति विपुलानी, ने गीतितणा नियम बेमां; आदिविपुला गीति, रचवा काने प्रकार ए जेमां. ९१
७४ (३) अन्तवियुला गीति. उत्तरार्द्धनी यति अन्त विपुला प्रमाणे. अन्तविपुला गीति, रचतां गीतितणा नियम द्विदले; अन्त दले यति वियुलाकेरी, जेमां खरे खरीन पळे. ९२
७५ (४) उभय विपुला गीति. प्रवाई थप अत्तद्विनी यीत विपुलत्यार्पाना पूर्वार्द्ध प्रमाणे, उभयविपुला गीतिमाहे, द्विदले यति विपुलानी छे; नियम रचायन गीतिकेरा, जाणे सदाय ज्ञानी छे. ९३
७६ (५) मुखचपला पथ्या गीति. प्रथम दलमा मुख चपलाना नियम एटले वीजा तथा चौथा गगनै स्थाने जाग आवे अने पथ्या गीते प्रमाणे वारे अने अढारे यति आवे. गुखदलनी मांह नियमो, बधाय चपलातणा खराज पळे; मुख वाला पथ्या गोति, रचतां पथ्यातणी विरति द्विदले. ९४
७७ (६) मुखचंपला आदिविपुला गीति. प्रथम दलमा मुख वालाना नियम तथा आदिविपुलानी यति आबे, मुख दल विषेन चपलातणा, नियम यति धराय विपुलानी; प गीति मुखचपला, आदि विपुला गणायछे ज्ञानी९५
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गातिना भेद
मात्रामैळ.
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___७८ (७) मुखचपला अन्तविपुलागीति. प्रथम दलमां चपलानो नियम, अने द्वितीय दलमा विपुलानी यति. अन्तविपुलानगीति, गणायछे ते मुखचपला सारी; अन्त दले यात विपुलानी, ने मुख दल नि'म चपला धारी. ९६
७९ (८) मुखचपला उभयविपुलागीति. प्रथम दलमा चपलानो नियम अने वने दलमा विपुलानी यति. द्विदले यति विपुलातणीज, मुखदल निम चपला थाशे; मुखबपला उभय विपुला, गीति तो रचाइ ठिक जाशे ९७
८० (९) जघनचपलापथ्यागीति. . जघन एटले वीजा दलमा चपलाना नियम अने बेमा पथ्यानी यति. अन्तदले चपला निम, पथ्या गीतितणी विरति धारी; जघनविप्रलल पथ्या, रचाय मीति सदाय ते सारी. ९८
८१ (१०) जघनचपलाला उपनिपुलागीति. चीजा दलमां चपलाना नियम अने पेहेला दलमा विपुलानी यति. चपला नि'म उत्तर दलमां, यति आदि दल विपुला धरजो; जघन चपलान गीति, विपुलआदि खरेखरी करजो. ९९
८२ (११) जघनचपलाअन्तविपुलागीति. बीजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने विपुला प्रमाणे यति. जघननचपलागीति, अन्तविपुला सदाय रचवी तो; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम ने यति विपुलानी तो. १००
८३ (१२) जघनचपलाउभयविपुलागीति. वीजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने बन्ने दलमां विपुला प्रमाणे यति जघनचपलाउभयविपुलामां, विपुलातणी विरति द्विदले; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम ए गोति विषेन पके. १०१
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रणपिंगळ.
८४. (१३) महाचपलापथ्यागीति. पेहेला तथा वीजा दलमां चपला प्रमाणे नियम अने पथ्या प्रमाणे विरति. आवे. पथ्यातणी विरति तो, रचाय द्विदले नियमज घपलाना; पथ्याज गीति एतो, महाजचपला गणाय छे दाना! १०२
८५ (१४) महाचपला आदिविपुलागीति. पेहेला अने बीजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने पेहेला दलमा विपुला प्रमाणे यति. द्विदले महान चपलातणा, नियम ने यति विपुला आदि; गीति महान चपला, गणाय आदि विपुल बहु सादी. १०३
४६. (१५) महाचपला अन्तविपुला गीति. बन्ने दलमा नियम चपला प्रमाणे; बीजा दलमां विपुला प्रमाणे यति. द्विदल चपला नियम छे, महाज चपलाज अन्त मां; अन्त दलमां विपुलातणी यति आणजो ग आमां. १०४. .
८७ (१६) महाचपला उभयविपुला गीति.
बन्ने दलमां नियम चपला प्रमाणे अने यति विपुला' प्रमाणे. द्विदल चपला नियमन विपुला, विरति तो धरो उभय दलमां गीति महान चपलामहावियुला, बने खरी पलमां.. १०५
उपगीति.. ४८. उपगीति,गाहू, गाहो १२(४+४+४)+१५(४+४+ल+४+ग)=२७ नुं प्रत्येक दल.
आर्या उत्तर दल सम, बे दल जेमांह तो आवे; उपगीति गाहू रचवा, एवो नियम कवि समजावे. १०६ +. मागधी छंदःशतकमां आ नाम छे..
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उपगीतिना भेद
मात्रामेळ.
पूर्वार्द्धना छगण पैकी छेल्ला छठ्ठा गणनां चार रूप गणतां ४,२०,८०,४००, १६००, ६४०० एटलां रूप पूर्वार्द्धना छगणनां थाय, तेम तेटलांज उत्तरार्द्धनां थाय तेनो परस्पर गुणाकार करवाथी ४,०९,६०,००० रूप उपगीतिनां थायछे.
८९ (१) पथ्या उपगीति. आर्याना बीजा दल प्रमाणे बंने दलनुं माप आणवू, तथा पथ्या प्रमाणे (१२, १५) विरति आणवी.
आर्या उत्तर दल सम, बे दल जेमां जरूर आवे; पथ्यानी यति जेमां, पथ्या उपगीति मन भावे. १०७
९० (२) आदिविपुला उपगीति. बने दलनु माप उपगीति प्रमाणे पण प्रथम दलमा यति विपुला प्रमाणे, आदि दले यति विपुलाना, ने उपगीति नि'म जेमां; आदि विपुला नामे, उपगीति तो गणो एमां. १०८
९१ (३) अन्तविपुला उपगी बने दलनुं माप उपगीति प्रमाणे अने बीजा दलनी यति विपुला प्रमाणे.. उपगीति नियम द्विदले, विपुला यति अन्त दल मांहे; अन्त वियुला उपगीति, तो आवीज छे जांहे. १०९.
९२ (४) उभयविपुला उपगीति.. बने दलनु माप उपगीति प्रमाणे अने यति विपुला प्रमाणे..
उभय दले यति विपुलानी, ने उपगीति नियमन छे. उभयविपुला उपगीति, एनुं नाम सरसज छे.. ११०. ९३ (५) मुखचपलापथ्या उपगीति. प्रथम दलमा चपला प्रमाणे नियम अने बने दलमा पथ्या प्रमाणे यति. पथ्यातणी यति द्विदल, मुखेज चपलातणों धारो; मुखचालापथ्या तो, उपगीतिमाह ठिक धारो. १११
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रणपिंगळ.
९४ (६) मुखचपला आदिविपुला उपगीति, पेहेला दलमा चपला प्रमाणे माप अने विपुला प्रमाणे यति.
चपलातणान नियम विपुला यति, मुख दल तो धरवी; मुखचपलादिविपुला, उपगीतिनी राते रचत्री. ११२ ९५ (७) मुखचपला अन्तविपुला उपगीति. प्रथम दलमा चपलानुं माप अने बीजा दलमा विपुलानी यनि.
चपला मुखे धरोने, यति विपुलातणो छेले; मुखचपला अन्तविपुला, उपगीतितणे मेले. ११३ ९६ (८) मुखचपला उभयविपुला उपगीति. प्रथम दलमा चपलानु माप, अने बंने दलमां विपुलाना यति.
चपला रचो प्रथम दलविषे, विपुला विरति द्विदले; मुखचपला उभयविपुला, उपगीतिन नियम पळे. ११४ ९७ (९) जघनचपला पथ्या उपगीति. बीजा दलमा निगुरा चपला प्रमाणे अने बने दलमा यनि पथ्या प्रमाणे. जघनचपलानपथ्या, उपगीतिमा विरति पथ्याना; अन्त दलमांह नियमो, धराय सर्वन चपलाना.
९८ (१०.) जयनवाला आदिविपुला उपगीति. बीजा दलमां चपलानो नियम अने. पेहेला दलमा यति विपुला प्रमाणे. जघनन चपलादिवियुलामां, विपुला विरति प्रथमे; . अन्न दलमांह चपला, रचाय उपाति नियमथी क्रम. ११६
९९ (११) जघनचपला अन्तविपुला उपगीदि. बाजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने विपुला प्रमाणे यति. उपगीति जवन चाला, अन्नविपुलाज रचत्रानो; अन्त दलमा विरति विपुलातणी, नियम चपलानो. ११७
१००. (१२) जवनचपला उभयविपुला उपगीति. बीजो दलमा चालानो नियम अने बंने दलमा यति विपुला प्रमाणे.
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उद्गीतिना भेद
मात्रामेळ.
जघननचरला उभयविपुलाउपाति, रचवा मेळे; उभय दलमांह विरति विपुलानी, चपला नियम छेले. ११८
१०१ (१३) महाचपला पथ्या उपगीति बने दलमा चपलानो नियम अने पथ्या प्रमाणे यति. द्विदले रचाय चपला, अगाय पथ्या विरति द्विदले; पथ्या महाज चला, रचाय उपगौ त नियमन पळे. ११९
१०२ (१४) महाचपला आदिविपुला उपगीति. बने दलमां नियम चपला प्रमाणे अने प्रथम दलमा विपुला प्रमाणे यति. चपला रचाय बे दलविषे विपुला, यति प्रथममां; उपगीति महान चपला, रचाय आदि विपुला क्रममा १२०
१०३ (१५) महाचाला अन्तवियुला उपगीति. बने दलमां नियम चपला प्रमाणे अने बीजा दलमा विराम विपुला प्रमाणे. द्विदले रचाय.चपला, विराम विपुलातणो छेले अन्तविपुला महान वाला, उपाँति रचो मेले. १२१
१०४ (१६) महाचपला उभयविपुला उपाति. वने दलमा चपला प्रमाणे नियम अने विपुला प्रमाणे यति. द्विदले विराम विपुलातणोज, चपला नियम करजो; उपौति महाजचपलामहाविपुला, ठिकज रचजो. १२१
उद्गोति. १०५ उद्गीति, विगाथा, विगाहा, विगाथ.
गाथार्थी उलटां दल एटले गाहानु उत्तर दल ते उद्गातिनुं प्रथम दल अने गाथार्नु प्रथम दल ते उतिर्नु उत्तर दल.
४+४+४+४+४+ल+४+ग=२७ प्रथम दल. ४+४+४+४+४+विप्र के जगण+४+ग-३०बीजुं दल,
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रणपिंगळ.
प्रथम दले सत्तावश, बीजे त्रिश कल गणी आणो;
आर्या विलोम उद्गीति, एज विगाथा विगाह पण जाणो. १२३ नारायणभट्टी प्रमाणे आर्याथी विलोम एटले उलटं छे, माटे एनरे
८, १९,२०,००० एटले आर्या जेटलांज रूप थाय छे.
१०६ (१) पथ्या उदगीति.
R ૧૫
૧૨
૧૮
रवि तिथि प्रथम दले ने, रवि अष्टादश बीजे आवे; पथ्याउद्गीतिमां, एवी पथ्या समी विरति लावे. १०७ (२) आदिविपुलाउद्गीति. विपुलायति आदि दलमां, ने उद्गीति नियम आणो; आदिविपुला नामे, ए उद्गीति तमे खरी जाणो. १०८ (३) अन्तविपुला उद्गीति. अन्त दले विपुला यति, उदगीतिमांय तो आवे; अन्त विपुला उद्गीतिने, नामे कविजन मन भावे. १०९ (४) उभयविपुला उद्गीति. उभय दले विरति विपुलानो, आवे सदा जेमां; उभय विपुला उद्गीति, तो एवी जणायछे एम.
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११० (५) मुखचपला पथ्या उद्गीति. पथ्या यति द्विदलमां, मुखेज चपला धरो ज्यारे; मुखचपला पथ्या ते, उद्गीति तो गणो तमे त्यारे.
१११ (६) मुखचपला आदिविपुला उद्गीति. चपला अणाय मुखमांह, ठीक विपुला यति आवे; मुखचपलादि विपुला, उद्गीति नामनेज शोभावे १२९ ११२ (७) मुखचपला अन्तविपुला उद्गीति.
मुख दलनी मांह चपला, विराम विपुलातणो छेले;
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दद्गीतिना भेदं मात्रामेळ. मुखचपला अन्त विपुला, उद्गीति रचाय ए मेले. १३०
११३ (4) मुखचपला उभयविपुला उगीति. चपला धरो मुखे विपुला, विरति बे दले धरजो; मुखचपला उभयविपुला, उद्गीति नियम धरी करजो. १३१
११४ (९) जघनचपला पथ्या उद्गीति. अन्त दले चपला नि'म, पथ्याना ल्यो यति उतारी जघनचपलान पथ्या, रचाय उद्गीति तो सदा सारी. १३२
११५ (१०) जघनचपला आदिविपुला उद्गीति. जघनचपलादिविंधुलामां, यति विपुलातणी पे'ले; चपलातणा नियम तो, जणाय उद्गीतिने विषे छेले. १३३
११६ (११) जघनचपला अन्तविपुला उद्गीति. जधनन चपला उद्गीति, अन्त विपुला सदा मानी; अन्त दल मांह चपलातणो, नियमने विरति विपुलानी. १३४
११७ (१२) जघनचपला उभयविपुला उद्गीति. जघनचपला उभय विपुलामां, विपुला विरति द्विदले; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम उद्गीति विषेज पळे. १३५
११४ (१३) महाचपला पथ्या उद्गीति. पथ्या यति द्विदलमां, पळे द्विदल नियम चपलानो; पथ्या महाजचपला, रचाय उद्गीति सदाय ए जाणो. १३६ . ११९ (१४) महाचपला आदिविपुला उद्गीति. चंपला रचो द्विदलमांह, ने विपुला विरति पे'ले; उद्गीति महान चपला, रचाय आदि विपुला सरस मेळे.१३७
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रणपिंगळ.
१२० (१५) उभय(महा)चपला अन्तविपुला उद्गीति. चपला करो द्विदलमां, यति विपुला तणी छेले अन्तविपुला उभयनचपला, रचो उद्गीति सरस मेळे. १३८
१२१ (१६) महाचपला उभयविपुला उद्गीति. द्विदल चपला नियम विपुला, विरति तो धरो बेमां; उभय विपुलामहाचपल, तो बने उद्गीति सरस एमां. १३९
आर्या गीति.
१२२ आर्या गीति. गीतिना प्रति दलमां अंते एक गुरु वधे अने बीजें बधुं गीति प्रमाणे आवे ते आयोगाति केहेवायछे. मंदारमरंदचंयूनो कर्ता, पिंगलाचार्य अने तेना मतावलंबी अग्निपुराणपाळो तेमज केटलाक बीजा ग्रंथकारना मत प्रमाणे
आयर्याना पूर्वार्द्धमान एक गुरु वधारवा केहेछे. ४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+गु-+गु-३२ नुं प्रत्येक दल आठ डगणे प्रति दलमा, अथवा गीतिदलपर गुरु शशि आणोजी; तो ते आर्या गीति, गीतिकेरा नियमथकी जाणोजी. १४० ___ गीतिना मूळ लक्षणमां बने दलमां अंते एक गुरु होयछे, अने आया गीतिमा उपर प्रमाणे बीजो गुरु लाववा का, तेथी वे गुरु थया पण तेन बदले पेहेला वे लघु अने अंते एक गुरु पण आवी शके. एम"छंदःशास्त्र'', मां कयुं छे. “पिंगळादर्शमा" वतावेलुं आर्यागोतिनुं लक्षण "छंदःसूत्र' आदि प्रधान ग्रंथाथी विरुद्ध थायछे. ___ आमां गीतिनां बने दल उपर एक गुरु वधारवो, एम कर्दा छे. एटले छेल्ला बे गुरु तेना तेज. रेहेतां बाकीना आठ गणनां रूप गाति प्रमाणेज १६,३८,४०,००० आगळ कह्या प्रमाणे थाय छ,
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आर्यगीतिना भेद
मात्रामेळ.
१२३ (१) पथ्या आर्यागीति. पथ्यासम रवि वीशे, प्रति दलमा विरति बे बनी आवेछे; पथ्या आर्यागीति, एम कहीने कविजन बोलावेछे. १४१
१२४ (२) आदिविपुला आर्यागीति. आदि दलमां विरति विपुलानो, कवतां कदापि जो आवे तो; ते आर्यागीतिने, आदिविपुला वदाय ए दावे तो. १४२
१२५ (३) अन्तविपुला आर्यागीति. . अन्त दले कदि आवे, विपुलाकेरो विराम ठिक करीने जो; तो अन्तविपुला आर्यागीति, ते सदाय कवि! केहेजो. १ ४ ३
१२६ (४) उभयविपुला आर्यागीति. उभय दल विषे जो लावो, यति विपुलातणी ठिकज धारी जो; तो उभय विपुला आर्यागीति, ते गणाय सुखकारी जो.१४४ ___ १२७ (५) मुखचपलापथ्या आर्यागीति. चपलातणो नि'म मुखे, विराम पथ्यातणों रचो दल माहे; तो मुखचपला पथ्या, आर्यागीति बने सरस पल माहे. १४५ - १२८ (६) मुखंचपला आदिविपुला आर्यागीति. मुखदल विषेज चपलातणा, नियम ने यति विपुलानी आणो; मुखचपलादि विपुला, आर्यागीति खरी तमे तो जाणो.१४६
१२९ (७) मुखचपला अन्तविपुला आर्यागीति. चपलातणो नि'म मुखे, विराम विपुलातणो दले छेले छे; मुखचपला अन्तविपुला, आर्यागीति एमज बनावे छे. १४७
१३० (८) मुरवचपला उभयविपुला आर्यागीति. उभय दलमांह विपुलातणो, विरतिने नि'म चपलानो मुखमां; मुखचपला उभयविपुला, आर्यागीति तो रचोने सुखमां. १४८
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रणपिंगळ
१३१ (९) जघनचपलापथ्यार्यागीति... जघनन चपला पथ्या, आर्यागीति विचारी कहुँ त्यम करजो; अन्त दलमांह चपला, विराम पथ्यातणा द्विदलमां धरजो. १४९
१३२ (१०) जघनचपला आदिविपुला आर्यागीति. जघनजचपला आदिविपुला, आर्यागीति बने ठिक तो छे, छेला दलेज चपला, विराम आदि विषे विपुलांनो छे. १५०
१३३ (११) जघनचपला अन्तविपुला आर्यागीतिं. जघनजचपला अन्ते, विपुला आर्यागीति रचो तो तेमां; अन्ते रचाय चपलातणा, नियमने विरति विपुला जेमां. १५१
१३४ (१२) जघनचपलाउभयविपुला आर्यागीति. जघनजचपला उभयविपुला, आर्यागीति विषेछे सारा; द्विदले विराम विपुलातणा, जघनमां धरोज चपला धारा. १५२
१३५ (१३) महाचपलापथ्यार्यागीतिः द्विदले रचाय चफ्ला; अने द्विदलमा विराम पथ्याना तो; प्रथ्या महाजचपला, गणाय आर्यागीति खरी छे आ तो. १५३
१३६ (१४) महाचपला आदिविपुला आर्यागीति. आदि दलमांह विपुलातणो, विरति बे दल चपला नि'म रीति आदिविपुला सहित तो, महाज चपला रनाय आर्यागीति.१५४
१३७ (१५) महाचपला अन्तविपुला आर्यागीति. द्विदले रचाय चपला, यति विपुला जघन विषे छे स्थिति अन्तविपुला माज चपला, सहित तो रचाय आर्यागीति. १५५
१३८ (१६) महाचपला उभयविपुला आर्यागीति. द्विदले धराय चपलातणा, नियमने यति विपुलाना धारी; उभयविपुला महान चपलान, आर्या गीति बनेछे सारी. १५६
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मात्रामळ.
१२३
-
प्रचूर्णगीति.
१३९ गाहो. प्रथम दल ४+४+४, ४+४+ज अथवा विप्र+२=१२+ १४ =२६ द्वितीय दल ४+४+४, ४+४+ल + ४ + २ = १२+१=२७ बारे चौदे यति धरी, प्रथम रचो छव्विस कलनो; आर्या उत्तर दल करो, गाहो रचजो यति रविनो. १५७
"नागराज पिंगळ' प्रमाणे, मागधी छंदःशतकमां एनी ५४ मात्रा कही छे.
१४० प्रमदागीति. प्र० ४+४+४, ४+४+ल+४+४=१२+१७=२९ द्वि०४+४+४, ४+४+ज अथवा विप्र+४+२=१२+१=३० मुखदल कल ओगणत्रिश, उत्तर त्रिश गीतिनो नि'म धारी; बेमां विराम बारे, ए प्रमदागीति तो घणी सारी. १५८
१४१ चंद्रिकागीति. . प्र० ४+४+४, ४+४+ल +४+२=१२+१=२७. द्वि० ४+४+४, ४+४+ज अ० वि०+४+४=१२+२०=३२. प्रथम दले सत्ताविश, बीजे बत्रिंश कल आणो; बेमा यछि+४ करों, चंद्रिकागीति तो सरस ते जाणो. १५९
१४२ विगीति. १. ४+४+४, ४+४+ल +४+४=१२+१७=२९. २. ४+४+४, ४+४+ज अ० विप्र+४+४=१२+२०=३२. बार सतरनुं मुखदल, बार वोशतणुं अवर दल आवे; । यति पण ए विच्छेदे, आर्या नियमे विगीति एवी का'वे. १६०
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१२४
रणपिंगळ.
१४३ मंजुगीति.
मुखदल. ४+४+४, ४+४+ल+४+४=१२+१७=२९. उत्तरदल. ४+४+४, ४+४+ल+४+२=१२+१५=२७. मुखदल बार सतरनुं, आर्या उत्तर दल अवर आणो; बारे यति बे दलमां, ए मंजुगीति तो जाणो.
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*
१४४ अनुगीति (मंजुगीतिनुं विलोम . )
पेहेलुं दल. ४+४+४, ४+४+ल +४+२=१२+१९=२७. बीजुं दल. ४+४+४, ४+४+ल+४+४=१२+१७=२९. आर्या उत्तर दलसम, मुखदल संत्ताविशनुं करजो; बे कल बीजे वधती, यतौ बारे अनुगीति विषे घरजो. १६२ १४५ चारु गीति.
१६१
पेहेलं दल. ४+४+४, ४+४+ल+४+४=१२+१७=२९. बीजं दल. ४+४+४, ४+४+ल.+४+४=१२+१७=२९. आर्या अपर द वे, चडती कल सरस धारी आणो; बारे विराम बेमां, तेने चारुगाँति ठिक जाणो.
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१६३
१४६ सुगीति ( चंद्रिका गीतिनुं विलोम ) प्र. ४+४+४, ४+४+ अ० विप्र +४+४=१२+२०=३२ द्वि० ४+४+४, ४+४+ल +४+२=१२+१'.
गीतिपर बे वधतां, प्रथम दले कल बर्धी मळी बत्रिश छे तो; उत्तर दल आर्यानुं, बेमां रवि यति सुगीते तो. - १६४
१२
१४७ प्रगीति.
प्र० ४+४+४, ४+४+ज अथवा विप्र +४+२=१२+१८=३० द्वि० ४+४+४, ४+४+ल+४+४=१२+१७=२९
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प्रचूर्ण गीति.
मात्रामेळ
मुख दल गीति बीने, आर्या उत्तर दलपर कल वे छे । बारे बिराम बेमां, प्रगीति तेने कविजन के छे.
१४८ संगीति* प० ४+४+४, ४+४+ज अथवा विप्र+४+४=१२+२०=३२ द्वि०४+४+४,४+४+ल+४+४=१२+१७-२९ .. गीतिपर कल के वधु, मुख दलमां ने प्रगीति सम छेलु छे; बारे विरति बधामां, ए लक्षण संगीति केरुं छे. १६६ 'छंदोलतामा संगीति, माप३०-२९ तथा परिगीतिनुं २९-३०दाव्युछे.
१४९ ललितागीति, गाहिनी, गाहिणी, गाथिनी. प्र० ४+४+४, ४+४+ज अ० विप्र+४+२= १२+१=३०. द्वि० ४+४+४, ४+४+ज अ० विप्र+४+४=१२+२०=३२.. पथ्या गीति सम सौ, उत्तर दलमां पण कल बे वधती; ललिता गीति गाहिनी, गाथिनींनी पण गणाय एमां गणती.१६७
गाहिनीनी बासठ मात्रा थायछे, पूर्वार्द्धना सात गणना १२,८०० रूप थाय, तेने उत्तरार्द्धना आठ गणनां ५ १,२०० रूपथी गुणतां ६५,५३,६०,००० रूप थायछे.
१५० * सिंहिनी, वल्लरीगीति, वल्गुगीति'. प्र० ४+४+४/४+४+ज अविप्र+४+४=१२+२०=३२. द्वि० ४+४+४, ४+४+ज अ०विप्र+४+२=१२+१=३०. गीतिपर कल बे वधु, प्रथम दले यति रवि शिपर तो धरजो; उत्तर दल गीतिसम, वल्लरी सिंहिनि गोति विषे करजो. १६८
* भाषाछंदोमंजरीमा एनुं नाम साहिनी राख्यु छे. तथा छंदो दीपिकामां पण तेज नाम राख्युं छे. १ चित्रसेन कृत टीकावाळा
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रणपिंगळ.
मागधी पिंगळमां तथा पिंगळछंदोग्रंथमां "गाहिणि' नाम आप्यु छे. ने तेना नीचे प्रमाणे भेद कर्या छे:
१० रंगा २८ ल + १ गु.-३० २ भंगा २८ ल + २ गु.-३२ ३ रोहिणि २८ ल + ३ गु.-३४
४ रामा २८ ल + ४ गु.=३६ •प्रमदागीति आदि लइने उपर प्रमाणे. ११ भेद गीतिना थया, :तथा आर्याना पथ्यादि १६ भेद जे प्रथम कह्या छे, तेनुं परस्पर संमिलन थबाथी १६४११=१७६ भेद थायछे. __वळी उपर जे. (१) गीति, (२) उपमीति; (३) उद्गीति, (४) आर्यागीति, ए गीतिना चार भेद कह्याछे, तेनी साथे पथ्यादि १६ भेदनुं संमिलन थतां. ४४१६६४ रूप थाय छे, आ६४ रूपमा उपर लखेला १७६ भेद मेळवतां २४० जातना गीतिना प्रकार थायछे; आमां वळी शुद्ध आर्याना १६ मेद थायछे ते मेळविये तो २४०+१६=२५६ भेद थायछे...
१५१ कंदका, स्कंधक, खंधा, खंधान, खंधो.. प्र० ४+४+४; ४+४+४+४+४=१२+२०=३२ द्वि०४+४+४, ४+४+४+४+४=१२-२०=३२ चोकलिया गण वसु कर, प्रतिदल बारे वॉशे विरति धरौने तो स्कंधक, खंधा ने वळी, काइ कहे कंदका खरे एने तो. १६९
१ छंदोरत्नावलीमा १४, १३ ए प्रमाणे यति अने ३१ मात्रानुं एक चरण करवा केहेछे..
२ आ नाम "भगवत् पिंगळ" वगेरेमा के. ३ आ नाम मागधी छंदःशतकमां छे.
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प्रचूर्णगीति
मात्रामेळ.
१२७
vvvvvvvvAryan
स्कंधक-खंधनना भेद. वृत्तरत्नाकरनी नारायणमट्टी टीकामा स्कंधकना बधा नियम आर्या प्रमाणे अने बने दलमा ३२+३२=६४ मात्रा आणवानु केहेतां तेनुंज बीजुं. नाम आर्यागोति आप्यु छे..
२८ गुरु अने ( लघुने आरंभीने एकेक गुरु घटाडवाथी अने बवे लघु वधारवाथी एना २८ भेद नीचे प्रमाणे थाय छे:नाम..
गुरु. लघु. . अक्षर. १ नंद*
२८. ८ ३६ २. भद्र.. ३ शेष.
२६ १२ ३८ ४ सारंग.
२५ १४. ३९ ५ शिव..
२४ १६ ४. ६. ब्रह्मा,ब्रह्म. (वृ.र.ना.भट्टीप्रमाणे)२३. १८ ४१ ७ चारण, वामण. (१वर. २वा.व.)२२ २० ४२ वरुण..
२१ २२ ४३ ९. नील.
२० २४४४ १० निशंक
१९ २६ ४९ ११. मदन..
१८ २८. ४६ १२. ताल,तालांक,तालंक. १७ ३० ४७ १३ शेखर
१६ ३२ ४८
- * वृत्तमौक्तिकमा ३०गु+४ल =३४. अक्षरमो नंद लख्यो छे. . . .
मागधी नागपिंगळ. वृ. र.नी नारायणभट्टीमा आ नाम नथी तेने बदले २७ कुम्भ पछी कलश वधार्युछे पण कुम्भने कलशनो अर्थ एकज छे माटे समे ते दाखल कस्यो नथी. .
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स्णपिंगळ.
.
c
-
.
.
A
१४. शर. १५. गगन.. १६ शरभ.. १७ विमति. १८ क्षीर.. १९ नगर, निग्न. (वा. वल्लभ), १०. २० नर.. २१ स्निग्ध . . २२ स्नेह, स्नेहन.
७ ५० ५७ २३ मदकल
६ ५२ ५८ २४ भूपाल,भूप,लोभ.(वृ.र.नारायणभट्टी)६ ५४ ५९ २५ शुद्ध, सिद्ध. २६ सरित. २७ कुंभ, कलश.
२ ६० ६.२. २८ शशी,शशधर. (वृ.र.नारायणभट्टी)१ ६२ ६३
+ वृत्तमौक्तिक प्रमाणे. + वृत्तमौक्तिकमां लुमकल लख्युं छे. १ मागधी नागपिलमां सुर छे. .
उन्नडजीकृत भगवत् पिंगळमां चोसर गाहामा प्रत्येक चरणमा सोळसोळ मात्राना चार गण लावी अंते गुरु अक्षर लाववानु केहेछे. पण तेणेज तेनुं उदाहरण पेहेल आप्यु छे तेमां बे गुरु अंते लाववाथी बराबर बंध बेशतुं, नथी. तेमज गाहा ए विषम जाति प्रसिद्ध छे छतां उपरतुं माप. स्वीकारवाथी ते सम जाति थइ जाय वळी चरणाकुल प्रमाणे ते. तालः इ०मां भळी जायछे माटे अमे तेने गाहाना भेद तरीके जूदो पाडवो उचित धारयो नथी.
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मात्रामेळ.
१२९
विषमजाति.
जेनां चारे पादनी मात्रा अथवा लक्षण भिन्न भिन्न होय अथवा जेनां समे सम अने विषमे विषम पाद मळतां न होय; समेसम मळे पण विषमे विषम न मळतां होय अथवा जेनां विषमेविषम पाद मळे पण समेसम न मळे अथवा चार करतां विशेष पाद जेमां होय अर्थात् जे जाति मात्राना सम के अर्द्धसममां न होयं ते विषम जाणवी. ? रसिका, उत्कष्टा, उक्कच्छा, सुललित, छ पाद-मात्रा ६६ बे विप्र+ल+ल+ल= १ १ मात्रा. एवां छ पाद, (वृत्तमौक्तिक प्र.)
प्रति चरण कल हर कर, सकल कल पण लघु धर, यति नि'म चरण महि नहि, सकल पद पड रच अहि, सुललित कहाँ हृदय धर,
रसिक अपर वळी उचर. १७० . छंदःशास्त्रमा ११ मात्रानुं एक पद एवां छ पाद लाववा कहछे. वागवल्लभमां रसिका तथा सुललितमां सर्व लघु लाववा केहेछे; वृत्तरत्नाकरनी नारायण भट्टी टीकामां उत्कष्टा नाम आपी बे चोकल+ १ त्रिकल (४+४+३)=११ मात्रा आणवा कर्तुं छे. एटले विप्रगणन आवे एवो अभिप्राय नथी.-वळी तेना आठ भेद कल्प्या छे. ते जो सर्व लघु आणवानुं लक्षण मान्य राखिये तो थइ शके नहि. आ जातिमा छए चरणमां मळीने
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१३०
रणापेंगळ.
६६ मात्रा लघु थायछे. एटले सर्व लघुनो प्रथम भेद लोहांगिनी छे. चचार गुरु वधारतां तेने बदले आठ आठ लघु घटाडी तेणे नीचे प्रमाणे आठ भेद आप्या छे.
प्रा. पिं. सूत्र.
४ तालंकिणी
५ कंपिणी
६ गंभीरा
७ काली
द्ध कालरुद्राणी
वृत्तरत्नाकर ना. टी. तथा वाग्वलभ.
१ लोहांगिणी, लोहांगी. लोहांगिनी.
२ हंसिनी
हंसी
३ रेखा
तालंकी
कंपी
प्रा. पिं. सूत्र. वृत्तमातिक.
गुरु.
लघु.
६६
.६४
६०
.५८
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५६
५४
.५२
१२
१६
२०
२४
१०
२८.
प्राकृतपिंगळसूत्रमां उक्कच्छा नाम आप्युं छे. तेणे प्रथम भेद ६६ लघु अने शुन्य गुरुनो गणी पछी बबे लघु घटाडतां अकेको गुरु वधारी उपर कहेला ८ भेद बताव्या छे. मनहर पिंगळमां छ पांचे यति कही छे. प्राकृतपिंगळसूत्रमा यति विषे कांइ लख्युंज नथी. छंदः शात्रना दृष्टान्तमां पांच कमां आ प्रमाणे यति मळेछे, पण छहीमां तूटेछे, तेथी अमे यति पालवी • उचित मानीनथी.
२ कंछा -कच्छी.
४+४+३ = १९ एवां छ पाद.
१. बे चोकलिया आण,
२. ते पर ऋण कल जाण,
३. छ पाद एम रचाय, ४. कंछा कच्छी थाय,
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४
वृ. ना. भ.
वागवल्लभ.
6 ू
लघु.
६६
.५.८
गुरु.
४२
३४
२६
१८
፡
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विषमजाति
मात्रामेळ.
५. ताल प्रथम पर धरो,
६. चारे चडती करो. १७१ ३ अतुला-पाद ५ मात्रा ९४-यतिनो नियम नथी.
२. + 2 = १६ ३. ८+ ८ = १६ ४. + ८ = १६
५. १६+१४ = ३० एक चरणमां, सोळ कला कर,
नियम विरतिनो, जमां नव धर, ३. चार चरण रच, एवाँ सुखकर ४. त्रीश कलानी, झड कर ते पर,
५. तेमां सोळे चौदे यति कर, अतुला जाति पांच चरण. १७२ ४ हीरामणि-पाद ४ मात्रा १०८ १. ६+४+ल+२, ६+४+ल=२४ )
एक दुहो. २, ६+४+ल+२, ६+४+ल=२४ ।" ३. ४+४+४+४+४+ज अ० विप्र+४+२=३० ४. . ४+४+४, ४+४+ज अ० विग्र+४+२=३० तेर अने अगियार वळी, तेर अने अगियार, ए क्रमकेरो दोहरो, प्रथम चरण निरधार; बार अढारज केम पर, बार अढारज पछीथकी जाणो,
एम अवर पद गीति, हीरामाणिमा हृदय धरी आणो. १७३ ५ रंडा, रुण्डा, रड्डा, रड्ढा. नवपदी पाद ९ मात्रा १६६..
१ ३+४+४+ज के विप्र-१५.
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१३२
रणपिंगळ.
vni
=११
२ ४+४+४ (विप्र) =१२ ३ ३+४+४+२+२लघु=१५ ४ ४+४+३ लघु-११ ५ ३+४+४+२+२लघु-१५ ६ ६+४+ल +२ =१३ ७ ६+४+ल
एक दुहो. ८६+४+ल +२ =१३ ।
९ ६+४+ल =११ १ त्रिकल श्रुति श्रुति ज निकर द्विजवर. २ बे चोकल पर द्विज धर, ३ त्रि कल श्रुति श्रुति द्विकल द्विलघु. कर; ४ श्रुति श्रुति पर त्रण ले धर, ५ त्रि कल श्रुति श्रुति द्विकल द्विलघु धर; ६ छ पर चार पर लघु द्विकल, ७. छ पर चार पर बाण
*एक लघु ८ घट कल पर श्रुति ध्वज धरी,
९ छ पर चार रव* आण. १७४ छंदःशास्त्रमा प्रथम.पादमांढ+२ड+ज लाववा केहेछे.
बीजा पादमा २ड+ १भ लाववा केहेछे. श्रीजा अने पांचमामां ढ+३ड लाववा केहेछे. चोथा पादमां ढ+२ड अने ते पर एक दुहो लाववा केहेछे.
४
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विषमजाति
मात्रा मेळ.
भाकृत पिंगळसूत्रमां कह्युं छे के बीजा अने चीथा चरणम प्रथमनो चोकलियो एवो लाववो के जेमां पेहेली बे मात्रा छूटी आवे, अर्थात् बीजी अने श्रीजी भळे एको गण न मूकवों, अने श्रीजा तथा पांचमा पादमां ३+३डगण मात्र लाववा केहेछे. विशेषमां ते आजातिनुं नाम वस्तु केहेहे. वाग्वलभमांज मात्र ८, ७ यति आणवा कह्युं छे, बीजा ग्रंथकारो तेम केहेता नथी. वळी विषममां १५ अने सममां ११ मात्रा आणवा केहेछे, अने तेमां छेली मात्रा लघु लाववा जणावेछे, बीजी विगत आपी नथी.
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वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां त्रीजा अने पांचमा चरणने अंतें भगण आणवा कथं छे, ते, उपर जे माप बतान्युं छे, तेमां लावे. लघु पेहलांनी वे मात्रानो गुरु आववाथी थइ शके, वळी जामा छेलो विप्रगणन लाववो जोइये एवो नियम नथी.
५. भद्रा, भद्रिका (११७)
६. तालंकिनी (११९). ७. मोहिनी (१२७).
रंडाना सात भेद प्राकृतपिंगळसूत्र, वृत्तरत्नाकरनी नारायण मट्टी टीका, वृत्तमौक्तिक, अने छंदः शास्त्रमां आप्या छे. तेमां मात्रानी संख्यानो क्रम छेतेने अनुसरीने अमे नीचे प्रमाणे गोठल्या छे.
१३
१३३
१. करभी, नवपदी, उष्ट्री, कलभी (१०९ मात्रा ). २. नंदा (११२)
३. चारुसेना, चारुसेनी, चारुणी, बछुवा, वस्तु (१९१५) - ४. राजसेना (११६).
-
ruv.
मागवीछंदः शतक एज सात प्रकार, वस्तु जातिना नीचेने क्रम गणावेछे. ते उपरथी रंडानुं ए पण एक नाम होय एम कल्पना
थायछे..
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रणपिंगळ.
१. करही (१११). २. गंदा (११२). ३. मोहिणिय (११३). ४. चारुसेण (११४). ५. सुसभ६ (११५). ६. राय(इ)सेण (११६). ७. ताडंकिणी (११७). . पिंगळछंदोग्रंथ चित्रसेन टीकावाळामां चो) नाम चारणीया आप्यु छ ने तेणे पण उपरना ७ भेद बछुआना मणाव्या छे. ६ (१) करभी नवपदी, उष्ट्री, कलभी. मात्रा १०९.
१. ६+४+ल+२ = १३ २.६+४+ल =११ ३. ६+४+ल+३ =१३ ४. ६+४+ल =११
६+४+ल+२ =१३ ६. ६+४+ल+२ =१३ ७. ६+४+ल =११ ८. ६+४+ल+२ =१३
६+४+ल ११ १. छपर डगण पर लघु द्विकल। २. विषम चरणमां थाय, ३. छ चार पर लघु कल समे, ४. दुहा समान रचाय, ५. पछी पंचम पद तेरनु, ६. ते पण दो'। मेळy, ७. पछी दुहो रच त्यांय, ८. नव पद सो नव कलतमां., ९. कलभी-उप्ट्रीमांय. १७५
९.
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विषम जाति
मात्रामेळ.
वृत्तमौक्तिकमां कलभी नाम आपी, माप अमे उपर बांध्यु छे तेवू आप्युं छे. प्राकृतपिंगळसूत्रमा प्रथमनां चार पाद १३, ११, १३, ११ नां आणवा कही विशेष विगत जणावी नथी. तेम तेमां द्रष्टांत पण नथी.
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां कलभी नाम . आप्यु छ अने १, ३, ५ मा पादमां १४ मात्रा लाक्वा जणाव्युं छे. पण तेम करवाथी नंदाना माप साथे ते मळी जायछे. मागधी छंदःशतकमां आनुं नाम करही आपी तेनी मात्रा १११ आणावी छे अने तेने वस्तुना सात प्रकार पैकी पेहेलो गण्यो छे, 9 (२) नंदा-णंदा (माग छंदःश०) मात्रा ११९.
१. ६+४+४ =१४
३. ६+४+४ ४. ६+४+ल
=१४ = ??
६. ६+४+ल+२-१३ ७. ६+४+ल =?? ८. ६+४+ल+२=१३ एक दुह।
६+४+ल =११ १. छ पर गण ये विषम पहे. २. छ चार लघु सम थाय; .. ३. ए रोते पद पांच रची, ४. दुहो एक रचाय; ५. सौ कल मो ने बार यशे;
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रणपिंगळ.
६. नंदा रचना थायछे, ७. बीजो भेद गणाय; ८. कवि प्रभुगुण तेमां कवी,
९. मनमाहे हरखाय. १७६ चारुसेनी (वृ. र. ना. भ.) चारुणी (मा. छं. शा.) ८. (३) चारुसेना (बछुवा-वस्तु जाति) मात्रा १९२
१. ६+४+४+ल =१५ २. ६+४+ल =११ ३. ६+४+४+ल = १५ ४. ६+४+ल =११ ५. ६+४+४+ल =१५ ६. ६+४+ल+२ =१३
६+४+ल -११ ८. ६+४+ल+२ =१३ एक दुहो. ९. ६+४+ल =११ १. तिथि कल विषमे आण अनुप, २. सममां धर अगियार; ३. विषम वधी चोपाई रूप, ४. सम पद दोहो धार. २. ते पर दोहा के स्वरूप; ६. सो ने पंदर कल धरी; ७. खड़े करो कविराय! ८. चारुसेना चारुगी, ९. बछुवा तेह वदाय. १७७
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विषमजाति
मात्रामेळ.
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एक दुहो.
९ (४) राजसेना. मात्रा ११६.
१. ६+४+४+ल-१५ २. ६+४+२ =१२॥ ३. ६+४+४+ल%D१५ ४. ६+४+ल १.१
६+४+४+ल=१५ ६.. ६+४+ल+२ =१३ ७. ६+४+ल =११
६+४+ल+२=१३ । ९.. ६+४+ल. =११ ।
छ पर डगण बे ने लघु आण २. विषम पदे चोपाई; ३. छ चार बेनुं बीजुं जाण, ४.. चोथे छ युग लकार: ५. पांच पूरां रच एवां पाद, ६.. ते पर दोहो एक करी, ७. सोने कल रच सोळ; ८.. राजसेन रचना करी,
९. कविवर! वाणी बोल. १७८ +भाषा छंदोमंजरीमा ११ मात्रा लाववा केहेछे. पण प्राकृतपिंगळसूत्र, वृत्तरत्नाकरना नारायणभट्टी टीका' इत्यादिमा १२ मात्रा लाववा का छे माटे अमे ते माप राख्यु छे नहिकर चारुसेनाथी जूदुं न पडे. १० (५) भद्रा-भद्रिका. मात्रा ११७
१. ६+४+४+ल=१५
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रणपिंगळ:.
२. ६+४+२ =१२ ३. +४+४+ल=१५
६+४+२ =१२. ५. ६+४+४+ल=१५ ६. ६+४+ल+२=१३ ६+४+ल 3D११
। एक दुहो. ८.. ६+४+ल+२-१३ ९. ६+४+ल =११ ) १. भद्रा, भद्रिका नव हार, २.. विषम पदे चोपाई; ३. छ चार वे थइ सममां बार.. ४. पांच रचो पद भाई ५. सुसभद वकी को छे कथनार,
ते पर रचनो दोहरो, ७. पद नव रचवा काज; ८, सोने सत्तर कल करो,
९. सौ मळीने कविराज! १७९ मागधी छंदःशतकमां तथा बीजामा सुसभह नाम आप्यु छ. छंदःशतकमा सो मात्रा ११६ गणी छे-पग ते वधारे प्रमाणग्रंथोथी जूदं पडेछे:
११ (६) तालंकिनी-मात्रा ११९.
१ ४+४+४+४=१६. २. ६+४+२ =१२. ३ ४+४+४+४=१६ ४६ ६+४+ल. =११ ६. ४+४+४+४=१६
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विषमजाति
मात्रामेलः
VARMA
६.६+४+ल+२-१३ ७ ६+४+ल =११ ८६+४+ल+२=१३ ( दुहो. ९ ६+४+ल =११ ) १. तालंकिनी रचवा काजे, २. सोळ रचो कल विषमे; ३. छ चार बे कल बीजे राजे, ४. शिव कल चोथे थाय; ५. छ चार लघुनी विगत विराजे, ६. एम पांच पद आणीने; ७. सौ पर वीशकमएक, १००+(२०-१)१९ . ८.. कुल कला आणो कवि!
९.. धारी वचन विवेक... १८० वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां जणावेछे के, सम चरण (वीजा चोथा)मां बार बार अथवा अगियार अगियार मात्रा आणवी.
१२. (७) मोहिनीरंडा.. मात्रा १२७.
१. ४+४+४+४+३-१९. २.. ६+४+ल =११ . ३. ४+४+४+४+३=१९. ४. ६+४+ल. ११
४+४+४+४+३=१९ ६. ६+४+ल+२ =१३ ७. ६+४+ल ११ ८. ६+४+ल+२ =१३
दाहरो..
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रणपिंगळ
१. त्रण कल पे'ला चोकलिया गण चार, २. विषम पदे निरधार, ३. छ चार लघुनी शिव कल सममां सार, ४. पांच पदो सुखकार, ५. ते पर रचना दुहातणी भंडार, ६. सो सत्ताविश कुल कला, ७. . मोहिनीरंडा मांय, ८. मोहनी जाति मन धरी, पृ-२३ अंक ६४ जुवो.
९. कर एवी रचनाय. १८१ मागधी छंदःशतकमा ११३ मात्रा गणी तेने बीजो भेद मान्योछे पण ते प्रमाणग्रंथोथी जूदुं पडेछे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीका तथा प्राकृतपिंगळसूत्रने आधारे अमे उपरतुं माप बाध्युं छे. वृत्तमाक्तिकमा (१, ३, ५) विषमपादमां नव बीजामा दश तथा चोथामां आगयार अने उपर एक दुहो एम बधी ९६ मात्रा आणवा कयुं छे पण तेने बीजो आधार मळ्यो नथी एटले ए मत ग्राह्य नथा.
१३. कुंडलिया तोटक. मात्रा ११२. १. ६+४+ल+२ =१३) एक दुहो तेनी चो२.६+४+ल . =११ (थी तुकना छेला शब्दो ३. ६+४+ल+२=१३ नी कुंडली पांचमी तुक ४. ६+४+ल =११ मां वाळवी. ६. स+स+सास =१६)
है.
व+स+स+स
=१६।
एक तोटक.
७. स+स+स+स =१६ |
१. तेर अने अगियारना, २. चरण रचीने चार;
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चिनजाति
मानामेळ.
nnnnnnnn nnnnnnn.MARAMANARAANNAARANAANANA.
३. एम करीने दोहरो, ४. ते पर तोटक धार. ५. धर तोटक ते पर प्रेम धरी, ६. उलटी तुक चोथों दुहानों करी; ७. रच तोटक कुंडलिया सरखा,
८. कविता करी एम पछी हरखा. १८२ आ कुंडलियोतोटक प्रवीणसागरमां छे. आवी रीते बीजी कोइ पण मात्रामेळ जातिने वर्णमेळ साथे मेळवी आवा छंदो रची शकाय अने ते कर्तानी धून उपर छे. १४. चंद्रावली, चंद्राली. मात्रा ११८.
१. +४+गु+गु,१६ २.. +४+ल =११ ३. ८+४+गु+गु,=१६ ४. +४+ल =११ ५. ८+४+गु+गु-१६ ६. ८+४+गुस्गु-१६ / एक चरणाकुल 9. +४+गु+गु=१६ पृ.१६ अं.४५ जुवो. ८. ८+४+गु+गु=१६) १. चंद्रावलीमां के चंद्राली, २. वम पर यति पछी चार; ३. ते पर बे गुरु अन्ते आणी, ४. छ चार ने लघु धार; ५. छ चार ने लघु धार दुहानी, ६. बे झड पछी कुंडली करवामी;
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१४२
रणापिंगळ
७. .पछी चरणाकुलनी श्रुति आली,
८, चंद्रावलीमां के चंद्राली. १८३
गूजरातीमा हाल जे चंद्रावला नाम केहेवायछे ते अशुद्ध छे. छंदःकामदुधावत्समां एनुं नाम चंद्रावली लख्यु छे. चंद्र+आली अथवा आवली एटले चंद्राली अथवा चंद्रावली नाम आप्युं छे. तेमां कुंडली वाळवार्नु अथवा प्रथम चरण जेवुज छेलं एटले आठ{ चरण लावq एवो नियम कयों नथी. १५ चंद्रायणा. मात्रा १२८.
१. ६+४+ल+२=१३) २. ६+४+ल =११ / ३. ६+४+ल+२=१३/ एक दुहते.
४. ६+४+ल =११) ५थी८. रंगण अथवा ठगणनी २० मात्रानां चार चरणा
१. प्रथम दुहो करौ एकने, २. *चंदाना पंछौं धार; ३. रगण चार रचुं तो ठिकज, ४. वा पछी वीश कल सार; ५. वा पछी वीश कल ठगण चारे करो, ६. दोहरा अन्त पद कुंडलीमां धरो; ७. आदिना बोल ते अन्त देनो फरी,
८. जाति चंद्रायणे प्रथम दुहो करी. १८४ *जगती छंदना पेटामा १२ अक्षर (४ रगण) नुं चंदाना, चंदाया आदि नामनुं वृत्त छे ते. १६. अमृतध्वनि. पाद ६ मात्रा १४४.
१३+११=२४ । १३+११=२४ । दुहा.
प
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विषमजाति
मात्रामळ
++८=२४) ८++=२४
घणीयमक
(++=२४
+:+८=२४ प्रथम द्विदल रच दोहरो, अमृतध्वनिनी मांह चार चरण चोवीशनां, रचा कर झड पड जाह; रची कर ए झडं, प्रथम फरीथों धर, त्रण त्रण यति कर; वसु कल प्रति यति, अतिय यमकवा, दर झड झट धर; ताल प्रथम पर, श्रुति चडती धर, श्रुति पदमा त्यम; कदि तुं वण शक, कुंडली नियमक, अन्त रच प्रथम. १८६
वीर रसनुं वर्णन करवामां आ जाति विशेष योग्य गणायछे. गौड पिंगळमां केहेछे के, प्रथम दुहो लावीने उपर आठ आठ विरामनी २४ कलवाळां चार पार्दै आणवां.
चिन्तामणीमां पणे एमज केहेछे, लखपतनशसिन्धुमा केहेछ के, आठ आठ मात्राएं. विश्राम आवे एवा २४मात्रानां छ पाद; कुंडळीवाळी घणा अनुप्राससहित आवे ते अमृतध्वनि. - छंदःकामदुधावत्समांत्रणं दुहानी आ जाति बनेछे एम केहेछे. १७. कुंडली, कुंडलिया चरण ६, मात्रा १४४.
१. ६+४+१+२, ६+४+१=२४ । एक दुहो १३, २. ६+४+१+२, ६+४+१=२४ ) ११ यति. ३.६+४+४+४+४+२ =२४ । ४. ६+४+४+४+४+२ =२४ । एक काव्य ११, ५. ६+४+४+४+४+२ =२४ १३ यति. ६. ६+४+४+४+४+२ =२४)
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४ ।। १. कुंडलिये कर छ कल पर, डगण-जगणवण-जाण; २. समे एक *त्रण विषममा, एम दुहा पद आण; *१२ ३. एम दुहा पद आण, काव्य झड प्रथमन करता; ४. छ पर चोकला चार, उपर कळी कल बे धरतम ५. छ पर चोकला चार,एन पद फरी वळी करिये; ६. दुहा आदिना शब्द, अन्त धरवा कुंडलिये. १८६
वाणीभूषण अने प्राकृत पिंगळसूत्रमा दोहराना चार चरण गणी कुल आठ चरण मानेछे. - काव्यमा ६+१२ (४+४+४)+६ तेमां १२. मात्रा पैकी छेल्ले गण विप्र के जगण आणवानो नियम छे; पण कुंडलियामां तो छप्पय नातिनी पेठे मागधी नागपिंगळना उदाहरणमां त्रण चोकलियामा छेल्लो विप्र के जगण आण्यो नथी. वृत्तमौक्तिकमा श्रीजो सगण उदाहरणमा मोवामां आवेछे, पण काव्यना नियममां श्रीजो विप्र के जगण लाववा तेणे लख्यु छतां कुंडलियामां ते नियम. पोते पाळ्यो नथी. छंदः शास्त्रमा तो त्रण गणमां स ज़ के विप्र गण काव्यमा आणवानो नियम को छे ते प्रमाणे तेणे कुंडलियाना पोताना उदा. हरणमां श्रीजो सगण आण्यो छे. रूपदीप तथा लखपत पिंगळ अने वाणीभूषणमां दुहा उपर रोला जाति लायवानुं कहेछे. आ सर्व उपर विचार करीने कुंडलियाने माटे अमे उपर प्रमाणे नियम (छप्पयने अनुसरतो) को छे ते हाल सुधी वृजभाषामां अने गूजरातीमां चालेला नियमने अनुसरतो पण छे. काव्यनी बीजी अडनी प्रथम यति फरीने पाछी त्रीजी झडनी प्रथम यतिमा आणवी एको नियम छतां पछवाडी पाळवामा आक्तो नथी. "लखपतजशसिंधु". मां पाळ्यो छतां केटलाक कुंडलियामां तेम कर्यु नथी माटे ते विकल्पे राखनो ठीक छे.
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विषमजाति
मात्रामळ. प्राकृत पिंगळसूत्रनी टीकामां पशुपतिना मत प्रमाणे कुंडलियान माप एम लखेछे के, प्रथम दुहो, पछी सोरठी अने ते पछी एक काव्य जाति एम कुल १९२ मात्रा आणवी. __कुंडलियामां दोहराना अन्तनो लाटानुप्रॉस काव्यना प्रारंभमां मूकवो अने काव्यने अन्ते दोहराना प्रारंभनो लाटानुप्रास मूकवो एम छंदोवृत्तमुक्तावलिमां कां छे. ___ नागपिंगळ, प्राकृत पिंगळसूत्र, तथा वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां २+४+४+४+४+४+२=२४ एम गण आवे त्यारे षट्पदी केहेछे, अने प्रारंभमा छ मात्रा आवे (६+४+४+४+४+२-२४) तेने षट्पदी अथवा वस्तु एवं नाम आपछे.
५ मी अने ६ठी तुक उल्लालानी छे, तेनी प्रथमनी चार मात्रामा श्रीजी मात्राए ताल आणवो एम नियम छे, तेनो अर्थ एटलोज छे के, चार मात्रामाथी प्रारंभनी बे माना छूटी पाडवी; एटले २+२३४ मात्रा आणवी, मतलब के, बीजी अने त्रीजी मात्रा. एकठी आ. णवी नहि.
१८ षट्पदी-छप्पय. मात्रा १६२. . १. ६+१२ (४+४+४) +४+२=२४)
२. +१२ (४+४+४)+४+२=२४/ एक कार्य ३: ६+१२ (४+४+४)+४+२=२४ , ४. ६+१२ (४+४+४)+४+२=२४. ५. ४+४+४+३, ६+४+३ =२८) एक उल्लालो ६. ४+४+४+३, ६+४+३ =२८,१५,१३ यति. १. छप्पय-षट्पदी थाय, कला चोवीश कुल करजो, २. छ कल पर ड गण चार, ते पछी बेकल धरनो;
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रणपिंगळ.
३. एवी रीतें काव्य, एक बदलीने आणो;
४. अगियारे यति जरुर, तेर पर पछीची जाणी;
५. त्रण चोक लिया पर त्रण कली, छ चार पछी ऋण कल करो;
६. ए रीति उलालों एक करों, यति पंदर तेरे घरो. १८७
जे षट्पदीमां ४८ लघु होय ते विप्राजाति, तेनुं फळ सिद्धि छे; ७१ लघुवाळी क्षत्रिया केहेवाय, तेनुं फळ वृत्ति ( उपजीविका ) छे; ९६ लघुवाळी वैश्या केहेवायछे, तेनुं फळ धन छे; अने तेथी उपरांत लघुवाळी शूद्रा केहेवायछे, तेनुं फळ मरण छे. आ प्रमाणे टिप्पण “ चित्रसेन टीकावाळा मागधी पिंगळमां" दर्शाव्युं छे. वळी एक मतांतर एम छे के, अक वर्गदाळी विप्रा केहेवाय; च ट वर्गवाळी क्षत्रिया केहेवाय; त प वर्गनी वैश्या अने अर्गनी शूद्रा केहेवाय.
संस्कृत वृत्तमौक्तिकमां पण ६+१२ (४+४+४ ) +४+२ एवी रीते चोवीश मात्रा लाववा जणावतां केहेछे के, काव्यजातिमां १२ मात्राना चोकलिया त्रण गण लावतां छेलो विप्र (III) अथवा जम (ISI) आणवो जोइए, एम आदेश कर्यो छे ते षट्पदी संबंधमां पाळवानो नथी.
षट्पदीना ७१ भेद करवामां प्रथम रूपं १२ लघु अने ७० गुरुनुं अजय नामनुं योज्युं छे, तेनुं कारण एम जणायछे के, ६+१२ (४+४+४) छ कल उपर बार मात्राना त्रण चोकलिया लाववाना छे तेमां त्रीजो चोकलियो सगण ( 115 ) अथवा जगण ( 1st ) लावतां प्रत्येक चरणमां के लघु नियमित आववा जोइये. ए गणत्री प्रमाणे चार पादनी आठ लघु मात्रा थाय, ते उपरांत, उलालानी प्रत्येक यतिमां छेली त्रण त्रण मात्रा आणवानी छे, एटले
मां एकेको लघु आवेछे, ए हिसावे बे दलनी चार लघु मात्रा थाय ते (८+४) आठमा उमेरतां प्रथम रूपमा १२ लघु मात्रा आवे छे.
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विषमजाति
मात्रामेळ..
एटले पेहेला रूपमा १२ लघु+७० गुरु (१४०) थइने कुल १५२ मात्रा थायछे. तेमां अकेक गुरु घटाडतां अने ते बदले बबे लघु वधारतां सर्व लघु अक्षर आवी जाय त्यांसुधी एकंदर ७१ भेद थायछे.
आ उपरथी एटलं सिद्ध थायछे के, बार मात्राना त्रपा गणमां त्रीजो गण स अथवा जगण लाववानो अभिप्राय भेद पाडनारे अगत्यनो गण्यो छे. षट्पदीभेद प्राकृतपिंगळसूत्र प्रमाणे.
छप्पय अजअ विजअ बलि कण्ण, वीर वेआल विहण्णउ, मक्कलु हरि हर बंभ, इंदु चंदणु सुसुहंकर, साण सीह सङ्कल, कुंम कोइल खरु कुंजरु, मअण मच्छ तालंक, सेस सारंग पओहरु, ता कुंद. कमलु बारण सरहु, जंगम जुइअठवि लहइ, सरु सुसरु समरु सारसु सरअ, छप्पअ णाम पिंगल कहइ. १ मेरु मअरु म सिद्धि, बुद्धि करअलु कमलाअरु, धवल मणउ धुअ कणउ, किसणु रंजणु मेहाअरु, गिह्म गरुड ससि सूर, सल्ल णवरंग मणौहरु, गअणु रअणु णरु हीरु, भमरु सेहरु कुसुमाअरु, ता दिप्पु संख वसु सद्द मुथि, जाअराअ पिंगलु कहइ,
छप्पअ णाम एहत्तरिहिं, णाअराअ पत्थरि लहइ. २ अंक. प्रा.पिं.सूत्र प्रमाणे नाम. लघु. गुरु. प्राकृत नाम, १ अजय.
१२ ७०. अजअ. २. विनय. १४ ६९ विजअ. ३ वलि, बलि. १६६८ बलि. *छंदःप्रभाकर प्रमाणे: वृ० र० ना० भ०
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१९४८
रणपिंगळ.
इन्दु:
चंदणु.
साण.
४ कर्ण, वर्ण. (पृ. र. ना.) १८ ६७ कण्ण. ५. वीर.
२० .६६ बीर. ६ वेताल.
वेआल. ७ बृहन्नल, विहंकर. २४ ६४ विहण्णउ. ... मर्कट.
२६६३ मक्कलु. __९ हरि.
२८ ६२ हरि. १० हर.
३० ६१ हर. ११ ब्रह्मा,ब्रह्म.(छं.प्र..र.ना.)
बंभ. १२ इन्दु.
३४ ५९ १३ चन्दन,
३६ ५८ . १४ शुभंकर, . ३८ ५७ सुहकरु. १५ श्विान, कुक्कुर. ४० ५६
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीमा शाल नाम छे. १६ सिंह.
४२ ५५ १७ शार्दूल.
४४ ५४ सहुल.. १८ कूर्म, कमठ,कच्छ (छं.प्र.) ४६ काछव,कुंम. १९ कोकिल.
४८ ५२ कोईल. २० खर.
५० ५१ खरु. २१. कुंजर.
५२ ५.० कुंजरु. २२ मदन.
५४ ४९ मअण. २३ मीन, मत्स्य ५६ ४८ मच्छ. २४ तालांक, तारंग, ताटंक ५८
तारंग,तालंक. २५ शेष. २६ सारङ्ग..
सारंग. २७ पयोधर.
पओहरु.
सीह.
c ccc
सेस.
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विषम
२८ कुंद.
२९ कमल.
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मदकर.
मात्रा मेळ.
६ ६
६८
८०
८२
कुंद.
कमलु.
३० वारण. १
७० ४१
वारण.
१ वृत्तरत्नाकर नारायणभट्टीमां आने कारण केहछे ते कदाच भूल होय.
३१ शरभ, शलभ (छं. प्र.) ७२
४०
३२ जंगम, अजंगम.
७४
३३
द्युतीष्टम्.
७६
३४. दाता, बील. (हिंदीमिंगळ ७८
३५.
शर.
३६ सुशर.
३७ समर.
३.८ सारस.
३९ शारद, सरस.
मेरु,
४०
४१
४२ मद.
४३ सिद्धि.
४४ बुद्धि.
४५ करतल, कलकल.
१००
कमलाकर.
१.०२
४७
धवल..
१०४
४८
मन.
१०६
४९ ध्वज, ध्रुव.
१०८
५० कनक, वलय, करकंकन. ११०
कृष्ण.
-११२.
८४
८६
८८
९.०
९२
९४
९६.
شره منه
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९८
४३
४२
३९
३८
३७
३६
३५
३४
३३
३२.
३ १
३०
२९
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२७
२६
२५.
२४
२३
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२२
२.१.
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सरहु.
जंगम.
जुइअटूट्ठ..
सरु.
सुसरु.
समरु.
૨
सारसु..
सरअ.
मेरु.
मअरु..
मअ.
सिद्धि.
बुद्धि.
करअलु.
कमलाअरु.
धवल.
मणउ.
धुज्ज, धुअ
कणउ .
किसणु
A
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रणपिंगळ.
१८ शल्यः
रअणु..
५:२: रंजनः
११४, १९, रंजणु.. ५३ मेकर, मेधाकर.. ११६ १८ मेहाअरु. ५४ ग्रीष्म.
गिमः ५५. गरुड. १२० १६ गरुड. ५६. शशि.
१२२ १५. ससि. ५७. सूर्य
१२४ १४
१२६ १३ सल्ल. ५९ नवरंग. १२८ १२ णवरंग. ६० मनोहर. १३० ११
मणोहरु. ६.१. गमन. १३२ १० गअणु.. ६२ रत्न.
१२३४ः ९ १३ नर.
णरु.. ६४. हीर. १३८७ हीरु. ६५. भ्रमर.
१४०६ भमरु. २६ शेखरः १४२ ६७ कुसुमाकर. १४४
कुसुमाअरु.. ६८ दीप, दीपक. १४६ ६९ शंख
१४८२ संख.. ७० वसु..
१५०: १. वसु. ७१. शब्द १५२ . सद्द. काव्य जातिना भेद ४५)
हमळीने ७१ भेद छप्पयना थया. उल्लालयना. भेद २६)
१३६
सेहरु.
दीप्पु.
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मात्रामेळ
विषमजाति
१५१
जूदा जूदा पिंगळकारोए पोतपोतानी कवितामां गोठतो 'आवे एवो क्रम लीधो छे, अने नाम पण केटलॉक नविन कल्प्यां छे; तेथी तेना अंकना क्रममां फेरफार थइ जतां, तेमां केटला लघु गुरु थाय ए क्रम पण बदलाइ जायछे, माटे अमे उपर जे कम आप्यो छे तेज ग्राह्य छे भिन्न भिन्न पिंगळमांथी नीचेना भेद अहिं जणाव्या छे, ते उपरथी फेरफार केवो थइ जायछे ते वताववाने अमे नीत्रे विगत आपिये छिये..
चिन्तामणी पिंगळ प्रमाणे छप्पय नाम भेद..
छप्पय
अजय विजय बलि करन, बीर बेताल बिहंकर;
१
२ ३ ४
६
७
मरकर हरि हर ब्रह्म, इंद्र चंदन रु शुभंकर;
-८ ९ १० ११ १२ १३
१४
श्वान सिंह सार्दूल, कूर्म कोकिल खर कुंजर;
१५ १६ १७ १८
१९ २० २१
मदन मच्छ तारंग, सेस सारंग पयोहर;
२२ २३ २४ २५ २६
२७
कहि कुंद कमळ वारन सरभ, जंगम जुजिठिल अरु बिलहु; २८ २९ ३० ३१. ३२ ३३
३४
- सर सुसर समर सारस सरह, छपय छंद अनुक्रम लहु. ९
•
३५ ३६ ३७ ३८ ३९
मेरु मकर मद सिद्धि, बुद्धेि करतल कमलाकर;
४० ४१ ४२ ४३: ४४ ४५
४६
धवल मन धुज कनक, कृष्ण रंजन बहुरौं धरि;
४७ २४८. ४९. ५०
५१.
५२:
करि मनि ग्रीष्म, गरुड शशि सूर बखानिय;
५४ ५५ ५६ ५७
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१५२
रणमिंगळ.
सल्लक अरु नवरंग, मनोहर गगनज मानिय
५८
५९
६० ६१.
भनि रतन अवर नर हीरु भनि, भौंर सुशेखर कुसुम भरि;
६२
६३ ६४
६५ ६६
६७
कहिं दीप शंख बसु शद्द कवि, छपय छंद इमि नाम धरि. २
६८ ६९ ७०. ७१
पिंगळछंदोग्रंथ चित्रसेननी टीकावाळु संवत् १८२३ ना कार्त्तिक सित त्रयोदशिये लखेलुं छे ते प्रमाणे:
छप्पय.
अजय विजय बलिवंत, वीर वेयाल विहंकर;
१
३ ४
५
६
मक्कडु हरि हर बंभ, ईंद चंदाण सुहंकर; ८. ९. १.० १.१ १.२. - १३
साण सह सद्दल, कूर्म कोइल खर कुंजर;
१.४. १५: १.६. १.७. १८ १.९ २०
मयण मच्छ तारंक, सेस सारंग पयोहर;
२१ २२ २३ २४ २५ २६
तह कमल कुंद वारण वसह, सलभ अंजंगम बिल लहइ; २७ २८ २९ ३० ३१. ३२ ३.३
सरु सुरु समरु सारस मनस, छंदः पय रविच्छर कहइ.
३४ ३५ ३६ ३७ ३८
मेरु मरु मद सिद्धि, बुद्ध करयल कमलानन;
३९
४.० ४.१ ४२. ४.३. ४४
४५
धवल मन धुअ गण, किसण रंजण मेहा वनि; ४६ ४७ ४८. ४९ ५० ५.१ ५२ ५३ भिंग गरुड ससि सूर, सल्लु नवरंग मनोहर;
५४५५ ५६ ५७ ५८ ५९.
६
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१.
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विषमजाति
मात्रा मेळ.
गयण रयण नर हीर, तरल सेहर कुसुमाकर;
६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७
दीपक सह सुछेद मणि, णायराय पिंगलु कहइ;
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७
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३४.५५ ५६
ܟ
६८ ६९ ७० ७१
छप्पयह णाम एहत्तरिहिं, छद पय रविच्छरि लहइ.
एक मागधी पिंगळमां छप्पयना भेद नीचे प्रमाणे छे:--
अजय विजय बलवंत, वीर वेयाल विहंगम;
१
२ ३ ४
६
मंकुडु हरि हरु बंभ, इंद चंदाण सुहंगम;
. ९ १० ११ १२ १३
रयण मयण गुण निलय, तार ताराह यसंवरु; (सयंवर)
१४ १५ १६ १७ १८ १९
२०
अमल विमल मणहरण, मोह मोहण आडंबर (विहंडण):
२१ २२ २३
२४ २५
२६
कासीस चंग वसु चंगवर, रायगुणह शशिविच्छरण;
२७ २८ २९ ३०
३१
३२
सासिद्धि बलिमंडलह, कित्तिविमल साविच्छरण.
३३
३४
३५
३६
अमय सुमय रसराय, राज आकार अलंकय;
४०
४१
४२
३९ ३७ ३८ कालिंदी काल सबल, जाल माला कस्कंकय;
४३ ४४८ ४५ ४६ ४७
४८
कणय रखणछपीह, संग संगाण अलख्खयः
४९
५१ ५२
५३
घुर अवघुर संवडय, सिद्धि सारंग भुयंगय;
• ५७
५८
५९
१५३
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१५४
रणपिंगळ
अजय
तालंक साल संभ' ललु, मंथरमति सुहविच्छरण;
६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ वेयाण बंस बंभाणवर, जोवण पुणगुण नवगहण. ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ अनुक्रम टूटेछे ते बताववाने षट्पदीना ७१ भेद नीचे जणाव्या छे. नारायण
मा. छंदोग्रंथ चि उरग ७५ . भट्टीप्रमाणे ३९ ९ सनटीकापाठ. चूडामाणि १.अजय
७० . १.२ अजय अजय २ विजय विजय ६९ १४. बिजय बिजय. ३ बल वलि ६८ . १६ बलवंत बलिवंत ४ कर्न वर्ण ६७ १८ वीर . वीर ५ बीर . वीर ६६ २० वेयाल
वेयाल.. ६ बताल - बेताल ५६ २२ विहंकर विहंगमः ७ विहंकर बृहन्नल
मंकड मंकडं ८ मर्कट मर्कट
हरि ९ हरि हरि ६२ २८ हरू । १० हर हर ६१ ३० बंभ ११ ब्रह्म १२ इंद्र इन्दु ५९ ३४ चंदाण चंदाण १३ चंदन चंदन
३६ सुहकर. सुहंगम १४ शुभंकर शुभंकर
रखा १५ श्वान शाल
मयण १६ सिंह सिंह
४२ गुण
गुणः १७ शार्दूल शार्दूल ५४ ४४ निलय । निलय १८ कच्छ कूर्म ५३ ४६ तार । तार १९ कोकिल कोकिल ५२ ४८ ताराह । ताराह. २० खर. खर ५१ ५० सयंवर सयंवर
हरि
हरु ..
ब्रह्म
रखण
मयण
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विषम जाति
२१ कुंजर
२२ मदन
२३ मत्स्य
१४ ताटंक
८५ शेष
२६ सारंग
सारस
२७ पयोधर
पयोधर
२८ कमल
कुन्द
२९ कुंद
कमल
३० वारण
कारण
३१ शलभ शरभ
२ भवन
जंगम
३३ अजंगम
सर
३४ सर
३५ सरस
३६ समर
३७ सारस
३० मेरु
कुंजर
मदन
मत्स्य
सारंग
शेष
सुशर
समर
सारस
सरस
मेरु
सकल
मृग
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सिद्ध
बुद्धि
मात्रामळ.
५०
५२
४९ ५४
५६
४८
४७
४६
४५
४४
४३
४२
४१
४०
३९
३८
३७
૨ ૬
३५
३४
६०
६२
६४
६६
६८
७०
३३
३९ मकर
३२
४० अलि
३१
९०
४१ सिद्धि
३० १२
४२ बुद्धि •
२९ ९४
४३ करतल कलकल २८ ९६
४४ कमलाकार कमलाकर २७ ९८
४५ धवल
धवल
२६ १००
४६ मलय
मृतक
२५
१०२
४७ ध्रुव
ध्रुव
४८ कनक
वलय
८०
८२
८४
८६
८८
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२४ १०४
२३ १०६
अमल
विमल
मणहरण
मोह
मोह ह
वसु.
चंगधर
७२
राइगुणह
रायगुणह
७४ ससिविच्छर राशिविच्छरणं
७६
वंसाणसिद्धि वंसाणसिद्धि
७८. वलिमंडलह बलिमंडलह
कित्तिविमल कित्तिविमल
विहंडण
कासीर
चंग .
वसु
चंगवर
अमय
समय
रसराय
राज
आकार
कलंक्य
कलि
संबल
कालंबि
जाल
माल
करर्ककण
कणयः
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अमल
विमल
मणहरण
१५५
मोह
मोहण
आडंबर
कासीस
चंग
अमय
सुमय
रसराय
राज
आकार
अलंकय
कालिंदी
कलि
संबल
जाल
माला
करके किय
कणय.
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रेणापगळे
जन
संगाण
सिद्धि
४९ कृष्ण किंनर ५० रंजन
शक ५१ मेधा ५१ गिद्ध मेधाकर ५३ गरुङ ग्रीष्म ৬৫ মাহি गरुड ५५ सूर शशि ५६ शल्यः सूर्य ५५ नवल शल्य ५८ मनोहर नर ५९. गगन . तुरग ६० रक्ष मनोहर 4नर गगन ६२ हीर रस्न ६३ भ्रमर नव ६४ शेखर' हीर ६५ कुसुमाकर नमर १६ पाते शेखर ६७ दीप कुसुमाकर ६८ शेख - दीन ६९ वसु - शंख ४० शब्द वसु ७१ मुनि शब्द.
२२ १०८ रयण बप्पीह रयण छप्पी २१ ११० संगे संग २० ११२ संगाण १९ ११४ अलख अभंगह १८ ११६ धुर धर १७ ११८ अवच्छ अलख १६ १२० संवडय संवलय १५ १२२ सिद्धि १४ १२४ सारंग सारंग १३ १२६ भुयंगम भुयंगह १२ १२८ तालंक तालंक ११ १३० साल साल १० १३१ संभव संभव
९ १३४ नलिण नालण ८ १३६ लल लल ७ १३८ मेघर मंथरगति ६ १४० सुहविच्छरह सुहविच्छरग ५ १४२ बेयाण वेयाण ५ १४४ वंस वंस ३ १४६ बंभाणवर बंभाणवर २ १४८ जोयण जोवण १ १५०. वण वरगुण ० १५२ गुणवरगह नवगहण
नलिण
बयाण
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विषमजाति
मात्रामेळ.
उपरना कोठा.उपरथी जणायछे के, छद:प्रभाकर, वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीका, चित्रसेननी टीकावाळा छंदोग्रंथमा पाठांतरमा जणावेली विगत, अने उरगवूडामणीमां आपेला भेद; ए सर्वेना क्रममा घणो फेरफार आवेछे. उपरना कोठामा ५२ मा भेदनां नाम गिद्ध, मेधाकर, अलख, अभंगह एम जूदां जूदां छे अने ते भेदमां १९ गुरु अने ११४ लघु आवेछे; आपणे जे भेद नक्की कस्या छे तेमां ५२मुंरूप रंजन नामनुं छे, अने छंदःप्रभाकरमा रंजन भेद ५० मो छे अने तेनुं माप २१ गुरु अने ११० लघुर्नु छे. आ प्रमाणे बीजा पिंगळोमां पण क्रम टूटवाथी मापमा फेरफार आवेछे अने नाम पण जूदां पडेछे.
गणप्रस्तारप्रकाशमां तो नाम केवळ नवीनन कल्प्यां छे माटे अमे ते नीचे आपिये छिये. क्रम, भेद-नाम. गुरु. लघु. .१ अच्युत.
अनंत. .. अनाम. ४ अभूत.
अरूप. अनूप. अनादि. अनंत.
अजादि. १० अलोभ. ११... अशोक.
१४
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१५८.
रणपिंगळ
१२ -१३
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अमोह. अकोह. अकाम. अहंकार. अद्रोह. आतिंद्रय.
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१०४
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अपार. अधार. अधिष्टा. अनास्सै. अप्रमेय. अप्रमाद. अद्भूत. अलख. अनघ. अकल. अखल. अमर अजर. अछल. अमल. अचल. अतन. सत्य.
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११९ १२० १२१
३५
८६
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विषमजाति
मात्रामेळ.
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३७ .
शांत. . सिद्धि. सीत. सुरभ.
१२२ १२३ १२४ १२५
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शल. शोभ.
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शम्भु. कपिल.
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कृष्ण. कीर. कुशल. कूधर. केशव,
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कैटभहा.
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कौशल,
कंसहा.
१३
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.
१४४
बनमाली, वामन. विष्णु. वीरहा.
६१
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रणगिन..
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६२. . बुध.
१३८ १४७ ६३ बूझा.
१४० - १४८ वेदगा.
. १४२ १४९ वैदपत.
१४४ १५० बोधा.
१४६ १५१ बौध.
१४८ : १५२ बंशीधर.
१५० १५३ मंजु.
१५२. १५४. ७० मनोहर.
१५४ :... १६५ ७१ माधव.
उपर ७१ भेद बताव्या ते उपरांत गणप्रस्तारप्रकाशमां छप्पय संबंधी नीचे प्रमाणे विस्तार जणाव्यो छे:---
छप्पयनी रचना करवामां रोला आदि पांच वस्तू भेदनी उपर चार प्रकारना उल्लाल तथा हंस (दोहरानो प्रथम भेद) नो चडावो करवामां आववाथी छ पाद रचाइ ५४१=२५ भेद विशेष जणाव्या छे, ते समजवा माटे पांच वस्तूभेद किया? अने ते प्रत्येकना केटला भेद थायछे ते जाणवानी अगत्य छे. ए भेद नीचे प्रमाणे छे:--
१ रोलावस्तू. ४ मोहनवस्तू. २ आनंदवन्तू. ५ मंगळवस्तू.. ३ रायवस्तू,
(१) रोलावस्तू. (वत्थू वास्तूक)
६+४+ल, ६+४+ल+गु=२४. आवां चार चरणनी रोलावस्तू जाति थायछे, अने तेने काव्य
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क्रम.
१
२
३.
विषमजाति
मात्रामेळ.
जाति मानेछे, पण तेमां तफावत छे. जुवो पृ. ३९ अने ३५. रोलावस्तूनुं प्रथम रूप रचतां सर्व गुरु करवाने प्रत्येक चरण मां बेलघु आवेछे ते तो कायम राखवा पडेछें, माटे आखी जातिमां ए हिसावे ८ लघु अने ४४ गुरु थइ ५२ वर्ण थायछे ते समजाववाने. नीचे बिम्ब आपियें छिये..
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४४ गुरुमांथी अकेको गुरु घटाडी तेने बदले बबे लघु वधारतां ना कुल भेद ४५ थायछे अने छेलं रूप ९६ लघुनुं थायछे. ए. भेद नीचे प्रमाणे छे:
भेद - नाम..
वराह..
कृष्ण.
नरसिंह.
वलि. (बलि)
वामन:
गिरिधर..
विधि..
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हरि.
मोहन.
भामन.
माधव.
शिव.
शशि.
सूर.
धराधर.
बनमाली.
श्याम..
राम.
वैकुंठ.
देव.
द्विज.
कवि.
शाली.
यज्ञ.
बोध.
बलदेव.
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३३.. कपिल.
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२) आनंदवरत. प्रथम. ६+४+३, द्वितीयं. ६+४+३, तृतीय. ६+२+३, चतुर्थ. . ६+२+३,
६+४=२३
६+४=२३ ३+६+२=२२ ३+६+२=२२
१,५,९ मात्राए ताल. वस्तु आ आनंदमां, छ चार कल त्रण धर, छ चार आणी ते परे, वे पद त्रेविश कर, पड बे ने त्रण आण, त्रण पर छ पर द्वि उचर,
तीजे चाथे एम, कला कुल बाविश कर. १८८ ए रीते कुल ९० मात्रानी आ जाति बनेछे, तेमा छ मात्रा लघु खवानी फरज़ होतां एन सर्व गुरुनु प्रथम बिम्ब रचवाने ६ लघु
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तथा ४२ गुरु थइ कुल ४८ वर्ण थायछे, ते नीचे प्रमाणे:
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४२ गुरुमाथी अकेक गुरु घटाडतां अने ते प्रत्येकना बवे लघु वधार छेवट कुल ९० लघुनुं छेलं रूप वनेछे, ते मुद्धांत ४.३ भेद नीचे प्रमाणे थायडे क्रम.. नाम. गुरु. लघु. वर्ण
सरस. सारस. सरोज. सरभ.
३९ १२ सलिल.
३८ १४. समर. शशिज. सुकल..
३५. २०. ९. सूर.
३४ २२ १०. श्याम.
३.३ २४ १:१. सुधा.
३२ २६ १२. सत्य.
३१. . २८ समन.. सिंधु.
२९ ३२ १५. सभा.
२८ ३४ . १६ शोभा..
२७. ३६.
उ
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श्रमजाति
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( १
२२
३.
४
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शान्त.
सुख.
सती.
शची.
सोम.
सीम.
खड्ग .
खोल.
सार.
सेल.
शूल.
सिपर.
परिघ.
पांस.
परस.
चक्र.
गदा.
गुरज.
गोफन.
गुपती.
यमदाढ. तोमर.
तोप
तुपक.
शक्ति.
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मात्रामेळ.
२६
२५
२४
لله
२३
२२
२१
بده
२०
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३८
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४२.
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रणपिंगळ.
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३ सयवस्तू.
प्र. ६+२+३, ३+२+९=२१
द्वि. ६+२+३, ३+२+६=२१ पृ. २६ अं. ७७
प्लवंगमनी चाल..
६+२+३, ३+२+९=२१ ६+२+३, ३+२+९=२१,
८४
१,९, ९, १३, १७मात्राए ताल.
छ पर कला बेकरी, उपर त्रण कल कसे, ते पछी त्रण वे पांच, विगतनी कुल घरो; रायवस्तूनां चरण, प्लवंगम चालनां;
२ SSS S IS
९
૧૧
शिव दश यतिनां थाय, प्लवंगम तालनां.
૧ SSS S IS IS SISS
४ SSS S IS
१८
आ वस्तूमां १२ लघु राखवानी आवश्यकता होतां रूपमा १२ लघु अने ३६ गुरु थइ ४८ वर्ण धायछे, तेनुं नीचे प्रमाणे:
८८
IS S ISS
३. sss s IS IS S ISS
IS S ISS
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८६
प्रथम रूपना ३६ गुरुमांथी अकेक गुरु घटाडी के वधारतां कुल ८४ लघुनुं छेल्लं रूप थशे. ते सुद्धांत तेना ३
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विषमजाति
· प्रमाणे थायछे:
क.
भेदनाम.
गिरि.
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नद.
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नाक. नौल.
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हार.
हिरण्य.
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हुलस.
हूक.
हेम.
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मात्रामेळ.
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३६
३५
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लघु.
१२
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५०. ६७
५२
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६६
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१६५
रणपिंगळ
. .१३५
२४ २६ २६
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२
होम.. हौज.. हंस. हांसि. कपिल.. काम. किरण. कार. कुशल.
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5 9 9 ॐ . . . . .
कूर.
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। केर.
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कोक.
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कौम(मु)दी.
. .
४ मोहनवस्तू. प्रथम. ६+२, ६+२=१६ ) द्वितीय. .६+२, ६+२%१६ । चरणाकुलनी तृतीय. ६+२, ६+२%१६ । पृष्ट १६ अंक चतुर्थ. ६+२, ६+२=१६ )
१,५,९,१३, मात्राए ताल. छ कल उपर बे, कल यति त्यां धर, आठ कला ए, रीते वळो कर; चस्णाकुलनी, चाल चलावो, मोहनवस्तू, एम बनावो. १९०
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• रूपनुं बिम्ब नीचे प्रमाणे थाय छे:--
क्रम. नाम.
घट.
पट.
दल.
फल.
१
२
१६९
वस्तूम को लघुनी आवश्यकता नथी, तेथी ३२ गुरुना
३.
४
५
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फूल.
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रज.
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१०
११
तरन.
१२
तूर.
१३ . तन.
उपर प्रमाणे ३२ गुरुमांथी अकेको गुरु घटाडतां, अने तेने बबबे लघु वधारतां सर्व (६४) लघुनुं रूप थता सुधी तेना भेद नीचे प्रमाणे थायछे:--
ळ.
१ SSS S SSS S
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३ | sss | ssss s
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४ | sss s sss / s
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गुरु.
३२
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लघु.
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स्णपिंगळ
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पिक. सारस. शुक: रस. कल. वल. पद्म. . पव. पावन.
६०६२ सरस. सरभ.
(५) मंगलवस्तूं. प्रथम. ६+२+३, ६+२+३=२२ द्वितीय. ६+२+३, ६+२+३=२२ तृतीय. ६+२+३, ६+२+३=२२ चतुर्थ. +२+३, ६+२+३=२२
१,७ मात्राए ताल..८८ .
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विषमजाति
मात्रा मेळ.
छ बे त्रण धरायछे, छ बे ऋण करायछे; शिव कला यति करी, बावशे रखायछे;
૧ ૧
१९१
एला सम चालथी, चार चरण थायछे; मंगलवस्तू भली, एम तो रचायछे. मंगलवस्तुमा आठ लघु राखवानी आवश्यकता होतां बाकी ४० गुरुनुं आदि बिम्ब नीचे प्रमाणे थायछे :
२
क्रम. नाम.
तक.
ऋणांतक...
खोल्मुक..
अंगारक.
गगनोल्मुकः
५
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६
१ SSS SS SSS S IS
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४ | sss Is is sss s /is.
४० गुरुमांथी अकेको घटाडतां अने तेनी बचे लघु मात्रा वधारतां ८८ लघुवर्ण थता सुधी तेनां ४१ रूप थायछे; तेनां नामो गणप्रस्तारप्रकाशमां आप्यां नथी. तेथी अमे मंगलगृहनां नामो पडी शके तेवां पाडी नवां कल्प्यां छे:---
मंगलवस्तूना ४१ भेद.
गुरु.
४०
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२ SSS SS SSS S IS
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लोहितांग.
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· कुज.
भूमिज.
गोत्रांगन,
रसांगज.
अवनिज.
धरात्मज.
क्ष्मात्मज.
शिवधर्मज.
वसुधातनुज.
रक्तवर्ण.
रक्त.
भूसुत.
लोहित.
क्षितिसुत.
धरासुत.
महीसुत.
नवदीधिति.
भूमिपुत्र.
२४
२५
२६
धरापुत्र.
२७ भूमिनंदन.
२८
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३०
३१
पिंगललोचन.
धरासूनु.
भौम.
महाकाय.
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रणपिंगळ.
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विषमजाति
मानामेळ.
३३
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आवनेय. पृथ्वीतनय. आर.
रुधिर. ३६ घंटेश्वर.
पिंगल. ३८ मंगल. ३९. क्षितिबाल. ४० आषाढभव, ४१ पिंगलाक्ष.
उपरनी पांच प्रकारनी वस्तू उपर छप्पय करवाने चार जातिना उल्लाल नीचे प्रमाणे वधारवामां आवेळे:--
- (१) रस. सर्व मात्रा ५६.
(२) रंग. , , ५६. (३) काम. , , ६०. (४) श्याम. ,,, ५२.
(१) रसउल्लाल. (मात्रा ५६) प्रथम दल. २+६+२+३, २+३+५+३+२=२८ द्वितीय दल. २+६+२+३, २+३+५+३+२-२८
१, ५, ९, अने १, ५, ९, १३ मात्राए ताल. बे पट बेपर त्रण धरो, बे त्रणपर शर त्रण बे करो; रसउल्लाला दल रची, यति तेर अने तिथिपर धरो. १९२ आमां आठ लघु आणवानी आवश्यकता छे, तेथी तेटला
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रणपिंगळ. . rwwwwwwwwwarmirmwwwwwwwwwwwwwwwwwroommmmm.rammammumrammar
लघु राखतां बाकी २४ गुरु आववाथी एना आदि रूपनुं बिम्ब नीचे प्रमाणे थायछे:
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२४ गुरुमांथी अकेको गुरु घटाडी बबे लघु वधारवाथी तेना २५भेद नीचे प्रमाणे थतां छेल्लो भेदं ५६लघुनो थायछे:क्रम. नाम.
गुरु. लघु. वर्ण. १ मीन रसउल्लाल. २४८ ३२
वाराह. " . २३ १.० ३३ कमठ. ,
२२ १२ ३४ नरहरि.
२१ १४ ३५ बाल.
२०१६ ३६ वामन.
१९ १८ ३७ 'हंस.
१.८ २०३८ ऋषभ. .१७ २२ ३९ हयग्रीव. पृथु. , १५ २६४१
हरि. ,, १४ २८४२ १२ पशुधर. ,, १३. ३० ४३
राम. , १२ ३२ ४४ कृष्ण. , ११ ३४ ४५ कल्कि. ,, १० ३६ ४६
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विषमजाति
मात्रामेळ. rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrane १६ व्यास रसउल्लाल. १७. मनु. ,
४७
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कपिल. ,
सनकादिक. ,, २१ बौद्ध. , ४ ४८ ५२ २२ जगदीशः , ३ ५० ५३
धन्वन्तर. , २ १२ १४ २४ नारायण.
१ ५४ ५५ २५ ऋषभदेव. , ० ५६ ५६
ऋषभ नाम मूळ ग्रंथमाज बेवडं वायु छे एटले अमे रेहेवा दीधुं छे पण ते भूल छे, माटे २५मे अंक अमे ऋषभदेव राख्युं छे.
(२) रंगउल्लाल. (मात्रा ५६.) . प्र० द० २+३+५+३+२, २+६+२+३=२४
द्वि० द० २+३+५+३+२, २+६+२+३=२८ विषम पदमां ३,७,११ अने सममां १,५,९मात्राए ताल.
बेत्रण शर त्रणपर बेकला, बे पट बे त्रण आणजो; तिथि तेरतणा यतिनो तमे, रंगउलालो जाणजो.. १९३
रसउलाल प्रमाणे ५६ मात्रानी आ जाति थायछे, तेथी तेनुं ' आदि बिम्ब अने तेना भेद पण एज प्रमाणे थायछे माटे आहिं फरीने जणाववानी अगत्य नथी.
(३) · कामउल्लाल. (मात्रा ६०.) प्रथम दल. २+२+६+२+३, २+३+५+३+२=३०.
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रणपिंगळ
___ द्वितीय दल. २+२+६+२+३, २+३+५+३+२=३०.
.. ३, ७, ११ मात्राए ताल. बे वेषद बे त्रण बे त्रणे, कल पांच वळी त्रण बे करो; तिथि तिथिपर यति धरि त्रीशकला, कुल कामउलालादल धरो.१९४ - उपर प्रमाणेनी रचनाथी एमां आठ लघु अवश्य आववा जोइये ते राखतां बाकी २६ गुरु आवे, तेनुं आदि बिम्ब नीचे प्रमाणे थाय छे:
प्रथम दल. Issssssis|sis |ISSIST
द्वितीय दल. Esssssssis||SSIST ए प्रमाणेना २६ गुरुमांथी अकेको गुरु घटाडतां अने बबे लघु वधारतां नीचे प्रमाणे कुल २७ भेद थायछे अने छेला रूपमा ६० लघु. आवेछे:क्रम. नाम.
गुरु. लघु. वर्ण. मीन कामउल्लाल. २. वराह. "
२५ १० ३५ ३ कमठ. "
२४ १२ ३६ नरहरि. बलि.
२२ १६ ३८ वामन.
२११८ ३९ ७ हंस.
२०२० ४० ८ ऋषभ. , १९ २२ ४१ ९ हयग्रीव. " १८ २४ ४२
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कृष्ण.
कल्कि.
व्यास.
मनु.
१८. दत्त.
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२४.
२५
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पृथु कामउलाल.
हरि.
पर्शुधर.
राम.
कपिल:
सनकादिक.
बौद्ध.
जगदीश.
धन्वंतर.
नारायण.
ऋषभदेव.
पुरुषोत्तम.
श्रीपति.
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प्रथम दल.
द्वितीय दल,
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मात्रामेळ.
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श्यामउल्लाल . ( मात्रा ५२.)
६+२+३+२, +१+९+३+२=२६;
६+२+३+२, +३+५+३+२=२६;
१, ५, ९ मात्राए ताल.
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रणपिंगळ
षड बेत्रण पर बे कला, त्रण शर त्रण बे थायछे; तेरे यति प्रति दल विषे, श्यामउल्लालामांय छे. १९५ एमां आठ लघु राखी बाकीना २२ गुरुनु आदि चक्र नीचे प्रमाणे थायछे:--
प्र. द. sss siss is Iss is s/ द्वि. द./sss s iss is iss is s| बावीश गुरुमांथी अकेको घटाडी तेना लघु करता ५२लघुर्नु छेलुं रूप थतां, एना एकंदर २३ भेद नीचे प्रमाणे थायछे. क्रम, नाम.
गुरु. लघु वर्ण १ मीन श्यामउल्लाल. २२ र ३० २ वराह , ३ कमठ. , २० १२ ३२ नरहरि.
१९१४ ३३ ६ बलि. ,
वामन, हंस.
१६ २०. ३६ ऋषभ.
२२ ३७ हयग्रीव.
१४ २४ . . ३८
१३ २६ ३९ ११ हरि.. . १२ २८ ४० १२ पशुधर.
११: ३०. ४१ १३ राम.
१०. ३.२ ४२ १४ कृष्ण. . ९ ३४ ४३
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मात्रामेळ.
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१५ कल्कि श्यामउल्लाल.
३६ ४४ १६ व्यास.
७ ३८ १७ . मनु. १८ दत्त.
५ ४२४७ १९ कपिल.
४ ४४ ४८ २०. सनकादिक. २१ बौद्ध.
२ ४८ ५० जगदीश. २३ धन्वंतर. , . ५२ ५२ रसउल्लाल २५,रंगउल्लाल २५,कामउल्लाल २७ अने श्यामउल्लाल २३ भेद. आ सर्वे भेदनां नाम एनाएज राखवामां आव्यां छे, माटे तेनी ओलख रेहेवा जे प्रकारना उल्लालनां नाम ते होय ते प्रकार, नाम ते भेदना नाम साथै उमेरवु,जेमके मीन रसउल्लाल,मीन रंगउल्लाल,मीन कामउल्लाल,मीन श्यामउल्लाल.
उपरना चार उल्लाल उपरांत पांचमो हंस नामनो दुहानो भेद पांच प्रकारनी रोलावस्तू उपर चडावीने छप्पय करवामां आवेळे, आ हंसनुं माप अमारा भ्रमर नामना दुहाना पेहेला भेद प्रमाणे छे. (जुवो पृष्ट ७७ मे भेद १ लो)
(५) हंस दोहरो. २२गुरु+४लघु=२६ वर्ण, तेनी ४८मात्रा. १,५,९मात्राए ताल.. हंसा दोहा मांह तो, गुरु बावी' जाप्प; दोहा नी'मो नांखिने, चारे मेरु आण. लघु. १९६
दुहाना २३ भेद पृष्ट ७७ मे आप्या छे, तेमां पेहेलो भ्रमरहंस जणाव्यो छे, तेना २२ गुरु अने ४ लघु थई २६ वर्ण थायछे, वळी गणप्रस्तारप्रकाशमां दुहाना २१ भेद जंणाव्या छे, तेनी दीप पृ. ७८ मे आपीछे ते जुवो.
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१८०
रेणपिंगळ.
... उपर प्रमाणे पांच प्रकारनी वस्तू उपर हंस सुद्धांत पांच प्रकारनी उल्लाला जाति चडावतो तेंना मिश्रणथी छप्पयना (५४५)=२५ भेद विशेषमां नीचे प्रमाणे थायछे:
क्रम
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कला.
कला.
वस्तू
६०
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हंस.
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मिश्रण भेदः ।
कयी जातिनो
मात्रा.
कयो भेद रोलाहंस.
। लिा. ९६ हंस. ४८ १४४ रोलारस.
रोला. रोलारंग. रोला.
९६ रग. रोलाकाम.
..९६ काम. रोलाश्याम.
रोला. श्याम आनंदहंस. आनंद.
१३८ आनंदरस. आनंद.
१४६ आनंदरंग.
|५६ १४६ आनंदकाम. आनंद.
काम. ६०] १५० १० आनंदश्याम.
श्याम.
५२ १४२ ११ राजहंस.
राज.
|४८/ १३२ राजरस.
रस. .५६ १४० राजरंग:
राज.
रंग. राजकीम.
राज. काम.
१४४. राजश्याम. राज.
श्याम मोहनहंस. मोहन.
. ४८ ११२ मोहनरस.
रस मोहनरंग. मोहन. ६४/ रंग.
१२० मोहनकाम. मोहन. ६४, काम.
१२४ मोहनश्याम. मोहन. ६४ श्याम. २१ मंगलहंस:
मंगल. |८८ हंस. मंगलरस. मंगल, ८८, रस. मंगलरंग.
| मंगल. ८८ रंग. . ५६ १४४ | मंगलकाम. मंगल. ८८, काम. ६० १४८ २५, मंगलश्याम. । मंगल. ८८ श्याम. ५२ १४०
५६ १४०
१४
६४
मोहन.
५६
१२०
१८
१९
२२
२४
२४
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विषमजाति
मात्रामैळ: ... marwwwwwmarwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm पिंगळ छंदोग्रंथमां, नीचे प्रमाणेना ऋण छप्पय उपरना करतो भिन्न होता, हिं दाखल कर्या छे. छप्पयनी सामान्य मात्रा १५२ थायछे, ते करतो आ श्रण प्रकारना छप्पयर्मा मात्रानो पण फेर छे.
१९ रयण छप्पय. मात्रा १२० सोळ मात्रा, तेमा चार गुरु ने ८ लघु-ते आठमा अन्तै त्रण लघु एवों चार चरण उपर एक उल्लालो.
१ प्रति पादे कल सोळ सोळ कर, २ तेमां चार गुरु कर कविवर! ३ आठ लघुमा चरमे त्रण रव, अंते लघु ४ एक उलालो ते पर कवि! कव, ५ कल एम बी मळी सो अने, उपर वीश गर्णी आणजे; ६ ते रयण छपयनी जाति छे, पिंगळमांह प्रमाणजे. १९७
मात्रा १५२नो रयण नामनो एक भेद थायछे(पृ० १५० अं० ६२ पृत .१५६ अं० ४९) पण आमा मात्रा १२० होतां अहिं दाखल कयों छे.
२० रासाउल्लाल छप्पंय. कुलं मात्रा. १४० (१) १२+९२१ (२) १२+९=२१
रासा (३). १२+९-२१
द.२६ अं.७३ (४) १२+९-२१ (५) ४+४+४+३, ६+४+३=२८ उल्लाल.
(६) ४+४+४+३, ६+४+३-२८ पृ.८० अं.१५ रचजो एकज रासो, कल एकवीसे। बारे अने नव कले, विश्राम दीसे; . उल्लाल एक धरजो, ठिक माप लावी; तिथि ने तेरे विरति, सारी दिपावी.
१६.
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१८२.
रणापंगळ.
कुल कल रचजो कवि! भावथी, सो ने चालिश सौ मळी; रासाउल्लाल ज छपय ए, घटपद जातिमां भळी. १९८ २१ गयबंध छप्पय. मात्रा १४६.
(१) १३+१०२३ (२) १३+१=२३ (३) १४+८ =२२ (४) १४+८ =२२ (५) ४+४+४+३, ६+४+३=२८
(६) ४+४+४+३, ६+४+३=२८ त्रेवाश कुल कल प्रथममां, बीजे पण एवी; बाविश कल त्रीजे अने, चोथे गर्णी लेवी; ते पर आणा उल्लालो, पट. पद करवा; सो ने छेतालीश करो, कुल कल भरवा; ए जाति बनेछे शोभती, त्रण जेनामां भाति छे; गयबंध नामनी मागधी, षटपदकेरी जाति छे. १९९. २२ कुंडलिनी, कुंडलिणी, (आर्या कुंडलिनी) मात्रा १५३ १.४+४+४=१२, ४+४+४(वि. के ज.)+४+२=३०१ एक २. ४+४+४=१२, ४+४+१+४+२=२७ आर्या
४+४+३, १+४+४+४=२४ । " आर्याना छेला चरणनो उथलो. ४. ४+४+३,१+४+४+४ =२४
५. ४+४+३,१+४+४+४ =२४ । - ६.४+४+३,१+४+४+४ २४ ।
१. धरौने प्रथमन आर्या, अंत पदनी कुंडली फरी करजो; २. तेम थतां रोलापद, सरखं आवे त्यमन धरजो;
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विषमजाति
मात्रामैळ. ३. सरखं आवे त्यमज, तमे पछी रोला रचजो; ४. तेमां कल चोवीश, नियमसर रचवा मचनो ५. आदि रचेला बोल, उचारो अन्ते फरीने; ६. रचनो कुंडलिनीन, प्रथममा आर्या धरीने.. . २००
छंदोलतामा कुंडलिनी नाम कुंडलिया- आप्यु छे अने तेनुं बीजूं नाम. सारा छे, एम का छे ते ग्राह्य नी.
आर्या प्रकरणमा मुख्य पांच भेद गण्या छे; तेमांथी आर्या उपर रोलाजाति आणवाथी उपर बताव्या प्रमाणे आर्या कुंडलिनी थइ. एज रीते नीचेना कोष्टकमां बतान्या प्रमाणे बधी मळीने पांच प्रकारनी कुंडलिनी थायछे:----
आर्या
क्रम.
नाम.
प्रकार.
मात्रा.जातेि. मात्रा, कुल
आर्या कुंडलिनी. | आर्या
५७ | रोला | ९६
-
-
| गीति कुंडलिनी. | गीति ६० | रोला ९६ | १५६
| उपगीति कुंडलिनी. | उपगीति | ५४ | रोला | ९६ | १५० ४ | उद्गीति कुंडलिनी. उद्गीति | ५७ | रोला | ९६ /१५३ | ५ |आर्या गीति कुंडलिनी. आर्यागीति ६४ | रोला | ९६ | १६०
उपरना कोष्टकने अनुसरीने प्रचूर्ण गीति जेटलां प्रकारनी पृष्ट. १२३ मेथी जणावी छे, ते उपर रोला चडाववाथी तेटला भेदनी कुंडलिनी थइ शकेछे.
गणप्रस्तारप्रकाश नामना ग्रंथमां श्रीबाबा रामदासजिये उपर पांच प्रकारना मुख्य भेद जणाव्या छे. तेने बदले सिंहिनी एक नाम वधारीने ते छ प्रकार जणावेछे पण ए मुख्य भेद नथी,
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पाद.
૧૮૪
रणपिंगळ
माटे अमे तेनो समावेश प्रचूर्ण गीतिमां पृष्ट १२५, अंक. १९०
सिंहिनी (वल्लरी
मां कस्यो छे, तेना उपर रोला चडाववाथी वल्गुगीति) कुंडलिनी थइ शकेछे.
तेज प्रमाणे ललितागीति - गाहिनी उपर रोला चडाववाथी गाहिनी कुंडलिनी थायछे, तेमां प्रथम गाहिनीनां बे दल अने ते उपर रोलानां चार चरण चडाववामां आवे छे. ए रीतिए एनं आदि रूप रचवा गाहिनीना प्रथम दलमां छठ्ठे स्थाने जगण अने बोजा दलमां जगणने बदले विप्रगण लेइ ते उपर रोलानी ११ मी मात्रा लघु राखी बाकीनी सर्व गुरु राखतां तेनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे बनेछे:
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२
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१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ लघु गुरु वण मात्रा,
ssssss SS SSSSS S २ १४/१६ | ३०
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कुल.
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२१११३ २४
१४७२८६ १५८
'उपरना कोठामा बतावेला प्रत्येक गुरु स्थाने अनुक्रमे बबे लघु - मात्रा बदलावतां जतां छेवट अवश्यना गुरु राखतां तेनुं छेल्लं रूप नीचे प्रमाणे बनेछे: ----
२४
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१११३ २४
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विषमजाति
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मात्रामेळ.
भद्रा.
सुभद्रा.
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૮ लघु गुरु वर्ण. मात्रा.
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२६ २ २८
गुरु.
७२
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२८ २ ३० ३२
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૧૪
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१८५
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३०
१४ २४
कुल. १५० ४१५४ १५० गीतिने छट्टे स्थाने जगण अथवा विप्रगण लाववानो नियम होतां उपरना कोष्टकमा पेहेला पादमां जगण मूक्यो छे. अने बीजा पादमां विप्रगण राख्यो छे. ते मात्र भेद जणाववाने अर्थे छे. बन्ने स्थाने जगण के विप्रगण राखिये तोपण बाघ नथी.
० २४ २४
गाहिनीनी अन्ते गुरु आवेछे, तेथी बने दलमा आठमे स्थाने गुरु राख्यो छे, अने बीजा दलमां बे मात्रा छेवटमां उमेरवानो नियम छे, ते मात्रा गुरु गणी छे. तेथी उपरना चक्रमां १५० लघु ४ गुरु थइ १९४ वर्ण अने तेनी १५८ मात्रा थायछे.
૧૪
उपर आदि अने अन्तनां रूप जणाव्यां ते प्रमाणे अनुक्रमे एकथी ते ६९ सुधी रूप बनेछे, तेनो कोठो गणप्रस्तारप्रकाश उपरथी अमे नीचे आपिये छिये:
भेद - नाम.
क्रम.
लघु.
१ ४
१६
२४ २४
वर्ण.
८६
में
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१८६
रणागळं.
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३ विभद्रा. ४ जैता.
विजेता. सुनैता. अनैता. प्रमथा. सुमथा. सुगता. अगता. भगता.
विभगता. १४ सुभगता.
अनन्ता.
विनन्ता. १७ सुनन्ता. १८ मंजुल. १९ मनोहर. २० मनोरस. २१ धीर. २२ सुधीर. २३ अधीर. २४ विधीर. २५ सुधा.. २६ वसुधा. २७ प्रकृति. २८ विकृति.
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विषमनाति
मात्रामेळ..
१८७
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२९ सुकृति. ३० अकृति.
कारन. ३२ करन.
अकरन. ३४ विकरन. ३५ सुकरन.
३६ परम. • ३७ पवित्र. ३८ सुचित्र.
विचित्र. ४० चरित्र. ४१ आचित्र. ४२ मित्र. ४३ अमित्र. ४४ ईश्वर. ४५ अक्रै.
अचल. अलख.
अखिल. ४९ अच्युत ५० अनंत. ५१
अद्वैत. अशोष.
अनल. ५४ अमर.
४० .७९ ११८
११९
१२० ८४ १२१ ६ १२२
- १२३ ३४ ९० ३३ ९२ १२५ ३२ ९४ १२६ ३१ ९६ १२७ ३० ९८ १२८
१२९ १३०
१३१ २६ १०६ १३२ २९ १०८१३३
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१३५ १३६ १३७ १३८ १३९
२० १९
११८ १२०
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रणपिंगळ.
१८
६६ पूरन.
१२२ . १४० ६६ पावम. ६७ परा.
१६ १२६ १४२ ६८ पुरुष.
१५ १२८ १४३ ५९. पारधी. ६० पुरषोत्तम.
१३२ १४५ ६१ पदमास्त.
१२ १३४ १४६ ६२ . प्रभु.
१३६ १४७ ६३ विभु.
१० १३८ १४८ ६४ ब्रह्म.
१४० १४९ ६५ विरुज.
१४२ १५० ६६ विष्नु. ६७ बोध. ६८. वामन.
५ १४८ १५३ ६९ बलि.
उपर जे नाम आप्यां छे ते बीजा कोइ पिंगळमां जोवामा आवता नथी तेथी ग्रंथकर्ताए पोते कल्पेला जणायछे, एज प्रमाणे पांच प्रकारनी आर्या जातिना जेटला भेद थायछे तथा अमे प्रचूर्ण गीति जणावी छे तेओना नियम उपर आधार राखीने प्रत्येकना उपरनी सेतिने अनुसरीने भेद करवा होय तो थइ शकले अने तेनां नाम आपणे जेवां पाडवां होय तेवा पडी शकेछे.
खरु जोतां ते अमे पृष्ट. १२५मेगाहिनीनां ६५,५३,६०,००० रूप थायछे एम जणाव्युं छे ते प्रमाणे पण भेद थइ शकेले.
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मात्रामेळ .
चूडाणा कुंडलिनी. पृष्ट ४९ अंक ३२ चूडाणा अर्द्धसममां छे, ते दुहा उपर · आर्या चड़ाववाथी थायछे एम लख्युं छे. दुहामां तेना सर्वे भेदनो समावेश थइ जायछे, अने आर्यामां तेना जेटला प्रकारना भेद यायछे तेनो पण समावेश थइ जायछे. तेम छतां गणप्रस्तारप्रकाशमां चूडाणाने बदले चूडामणि नाम आपी तेनी कुंडली बनाववानो प्रकार जणाव्यो छे. पण चूडामणिनां चारे चरण गीतिना नियम प्रमाणेज थायछे. माटे अमे ते जातिने अलगी राखी चूडाणा उपर कुंडली करवानी रीति उपरना ग्रंथ उपरथी जणाविये छिये.
दोहा, सोरठा (उपदोहा) अथवा पंचा उपर गाहा (आर्या), विगाहा, उद्गीति, उग्गाहा (गीति), गाहू (उपगीति), सिंहिनी अने गाहिनी चडाववाथी ३४६=१८ भेद चूडाणाना थायछे. अने तेमा दोहानी छेल्ली तूकनी कुंडली गाहा आदिना प्रथम पादमां वाळवाथी तेना मिश्रणनी कुंडलिनीना १८ भेद थायछे, तेमां ओछामां ओछी १०० मात्रा अने वत्तामां वत्ती ११० मात्रा आवेछे.
पंचा जातिनी बनावट विषे नीचे प्रमाणे विवेचन करवामां आवेछे:
२३ पंचा.. पूर्वार्द्ध ६+४+२; ६+२+गु+ल=२३
उत्तरार्द्ध ६+४+२; ६+२+गु+ल=२३ प्रथम त्रीजा पदमाहे, घट चोकल बे आण; सममा पट वे तालनी, पंचा जाति जाण. २०१
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१९०
रणपिंगळ.
एनुं पेहेलं रूप नीचे प्रमाणे थायछे:--
क्रम.
१
SSS
SSS
नाम.
माला.
बाला.
३. बेनी.
ज्वाला.
५.
योगी.
६ गंगा.
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एना प्रथम रूपमा २२ गुरु अने २ लघु मंळीने २४ वर्ण थायछे, तेमां बीजा अने चोथा चरणमां ताल (SI) गुरु लघु लाववाना होतां वे गुरु अंतना रूपमा कायम रहेवाथी एना नीचे प्रमाणे २१ भेद थायछे:--
७ तारा:
८ तरुणी.
९ धरन.
१०
शोभा.
१.१. सिंधुर..
१२
रंग.
१३
१४
१५.
घरघर.
गौरी.
गणपती.
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गुरु. लघु.
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३३
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३७
३८
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१६
१७
१८
काम.
१९ चुरी.
२० चौसर.
२१ हार.
संख्या
३
४
५
६
७
३२
३४
३६
३८
४०
४२
चूहाणा कुंडलिनीना १८ भेद थायछे एम उपर जणाववामां आव्युं छे ते भेदप्रदर्शक कोष्टक नीचे प्रमाणे छे:
चूडाणा कुंडलिनीना भेद.
१ चूडाणा दोहा गाहा कुंडलिनी.
उपदोहा गाहा
पंचा गाहा
८
९
शंभू.
धाता.
१०
११
१२
१३
१४
१५
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१७
१८
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दोहा विगाहा
उपदोहा विगाहा पंचा विगाहा
हा उ उपदोहा उगाहा पंचा उगाहा
दोहा गाहू
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मात्रामेळ.
पंचा गाहू
दोहा सिंहिनी उपदोहा सिंहनी
पंचा सिंहिनी
दोहा
गाहिनी
उपदोहा गाहिनी
पंचा
गाहिनी
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५
कला.
छन्द.
४८ गाहा.
छन्द.
दोहा.
उपदोहा ! ४८
पंचा ૪Ë
दोहा
४८
उपदोहा | ४८
|
पंचा ४६ | दोहा | ४८ | उपदोहा | ४८
पंचा ४६
दोहा ४८
उपदोहा ४८
१९१
३९
४०
४ १
४२
४ ३
४४
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कुल
५७/१०५
गाहा. ५७ १०५
गाहा. ५७ १०३
विगाहा ५७ ५०५
विगाहा | ५७ /१०५ बिगाहा | ५७ / १०३
उगाहा
o १०८
१०८
उगाहा | ६० उगाहा ६० | १०६ गाहू ५४ १०२
गाहू
| ५४ | १०२
पचा ४६ गाहू
| ५४ १००
दोहा |४८
[ उपदोहा | ४८ पंचा | ४६ | दोहा ४८ |
सिंहिनी ६२ | ११० सिंहिनी | ६२ / ११० सिंहिनी | ६२ / १०८
गाहिनी | ६२ | ११०
[ उपदोहा | ४८ । गाहिनी | ६२/११०
पचा
४६ | गाहिनी | ६२ |१०८०
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उपगीति
रणपिंगळ.
१९२
२४ चुडाणापंचा उपगीति (गाडू) कुंडलिनी मात्रा १०० ६+४+२, ६+२+गु+ल, २३ मात्रा
पंचा!
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(६+४+२, ६+२+गु+ल, = २३ मात्रा ४+४+४, ४+४+३+४+गु, २७ मात्रा
४+४+४, ४+४+ल+४+गु, २७ मात्रा
५
प्रथम त्रिजा पदमाहे, पट- चोकल वे आण,
|| | MIT
u | umr |
3
सममां पट बेताले, पंचा जाति जाण; पंचा जाति जाणो, ते पर उपगीति तो आणों, चूडाणा कुंडलिनी, पंचाउपगीति कवि जाणो.
२०२
चूडाणा पंचाउपगीति (गाहू) कुंडलिनीनुं प्रथम रूप.
SSS SS
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गाहू
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ss | ss SS ४८ गुरु + ४ लघु = ५२ वर्णनी मात्रा १० चूडाणापंचा उपगीति (गाहू) कुंडलिनीनुं अंत्य रूप.
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पंचा गाहू Sult ut 1.1...
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४ गुरु + ९२ लघु = १९१६ वर्णनी मात्रा १००.
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गुरु अने ४ लघुनी आवश्यकता छे. बदले बचे लघु वधारतां छेल्ला रूपमा थायछे, ए रीते एना ४५ भेद बनी नाम आपवां होय ते आपी शकायछे:
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उपरना वे विम्व उपरथी जणाशे के प्रथम रूपमा ४८
तेमांथी प्रत्येक गुरुने
४ गुरु अने ९२ लघु शकेले. अने तेनां जे
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विषमजाति
मात्रामेळ.
गा
। ४११
२५ चूडाणादोहाउपगीति (गाहू) कुंडलिनी. मात्रा १०२.
६+४+ल ग, ६+२+। =२४ ! पृ.७५
६+४+ल ग, ६+२+। =२४j (४+४+४+४+४+लघु+४+गुरु-२७१ पृ.११४
(४+४+४+४+४+लघु+४+गुरु-२७, नियम ध्यानमा.धरी करी, रचो दोहरो एक, ते पर उपगीति धरी, कार्वजन! करो विवेक; कविजन! करो विवेके, दोहा उपगीति ए नामे; चूडाणाकुंडलिनी, आवे कवितातणे कामे. २०३ चूडाणादोहाउपगीति (गाहू) कुंडलिनी- प्रथम रूप. दोहा । ssssssssss पाल। 55s 5515| sssssi
| ss | ss | ss ssss | || sss | MIS SS SS SS SS SS "Tsss __४८ गुरु + ६ लघु =९४ वर्णनी मात्रा १०२. चूडाणादोहाउपगीति (गाहू) कुंडलिनी- अंत्य रूप. दोहा | m mum | ||si | दाहा || mmmms | | m
mm | | | चार | mmmmmms |
४ गुरु +९४ लघु =९८ वर्णनी मात्रा १०२. उपर प्रमाणे प्रथम रूपमा ४८ गुरु अने छ लघु आवेछे, तेमाथी अकेको गुरु घटाडी, तेने बदले बबे लघु वधारतां, छेवट रूप चार गुरु अने ९४ लवुनुं थायछे. अने तेना भेद ४५ बनेछे.
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-
-
२६ चूडाणापंचागाहा (आर्या) कुंडलिनी. मात्रा १०३:
(६+४+२, ६+२+। =२३) पृ. १८९ पंचा
(६+४+२, ६+२+s) =२३ | अ. २३
(४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+२=३०) पृ. १०० नाहा ४+४+४+४+४+ लघु +४+२ =२७) अं. ४५
पंचा एकज आणी, ते पर गाहा धार, चूडाणाकुंडलिनी, एवी छे सुखकार; एवी छे सुखकारी, पंचागाहा तणे भले नामे; कविजन कविता करवा, जोडे छे आपने कामे. २०४
चूडाणापंचागाहा ( आर्या) कुंडलिनी प्रथम रुप. पंचा. 15ss| ऽऽ | sऽऽऽ जज
SSS SS S/5551 S1 Si गाहाsssssssss||si ss | s| जयुक्त: | ssssssssss || 5|
· ४९ गुरु+५ लघु-६४ वर्णनी मात्रा १०३. चूडाणा पंचा गाहा (आर्या) कुंडलिनी अंत्य रुप. पंच | | II | || | || | |
चा.um | Im| ||si गाहा.mmmmm ISims जयुक्त | mmm In | ims
५ गुरु+९३ लघु-९८ वर्णनी मात्रा १०३ उपरना बिम्ब उपरथी जणाय छे के प्रथम रूपमा ४९ गुरु अने पांच लघु आवेछे, तेमाथी अकेको गुरु घटाडी बबे लघु वधारतां तेना कुल ४९ भेद थाय छे. अने छेवटनुं रूप ५ गुरु अने ९३ लघुनुं बनेछे.
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विषमजाति
मात्रामेळ..
nnnnnnnnnnnn
२७ चूडाणा उपदोहा विगाहा (उद्गीति) कुंडलिनी मात्रा १०५ उपदोहा (६+२+३, ६+४+ल+ग, =२४) पृ. ७९ (सोरठो)।६+२+३, ६+४+ल+ग, =२४) अं. ९
४+४+४ +४+४+ल+४+ग विगाहा
=२७/पू. ११७ 1४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+ग=३० अं. १०५ उपदोहो रच एक, जेने के छ सोरठो, तेपर राखी टेक, राख विगाहा शोभती; राख विगाहारूडो, जे उद्गीतितणे नामे; उपदोहाविगाहा, चडाणाकुंडलिनी बने आमे. २०६ उपदोहो एज सोरठो छे, पण दोहाना सर्वे नियम उपदोहामां दाखल करिये तो नवमे लघु अने ते उपर गुरु करवामां बाध आवे छे, ते नियम रामदासे पाळ्यो नथी, ते नोचना विम्ब उपरथी जणाइ आवेछे, तेमां तेणे नवमी अने बारमी मात्राने स्थाने लघु राखेला जणायछे, पण ते बराबर नथी. ज्यां त्यां बिम्ब गोठकती वेळाए विषम मात्राना कोठामा प्रथम लघु मात्रा मूकी पछीथी गुरु मूकेल छे, तेनुं कारण एज के प्रस्तार बतावदाने लघु प्रथम मूकवो जोइए. चूडाणाउपदोहाविगाहा (उद्गीति) कुंडलिनी प्रथम रूप
मात्रा १०५. उपदोहा. /Sss5 Is! is ssss| ४९ गुरु+७ लघु-५६ वर्ण,
sss si isiis sisssi sl बिगाहा. | 55/ssssss/ऽऽ ।
। SSİSS | 55155155) 1541 55 sla
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१९६
रणापेंगळ.
-
युत
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|
॥॥॥॥॥॥
चूडाणाउपदोहाविगाहा (उद्गीति) कुंडलिनी अंत्य रूप.
मात्रा १०५ सोडा ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ गुरु.+९९ लघु-१०२ १५१९ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ ॥
|॥| ॥॥ | ॥॥॥॥॥॥| । |॥॥57 जयुक्त विगाहा mn imminimmsms
उपरना बिम्भ उपरथी जणायछे के प्रथम रूपमा ४९ गुरु अने ७ लघु आवेछे, तेमांथी अकेको गुरु घटाडी बबे लघु वधारतां तेना कुल ४७ भेद थायछे; अने छेलं रूप ३ गुरु अने ९४ लघुर्नु बनेछे. २८ चूडाणापंचागीति (उग्गाहा) कुंडलिनी मात्रा १०६ . (+४+२, ६+२+गल =२३ । पृ. १८९
६+४+२, ६+३+गल ___=२३) अं. २३
(४+४+४+४+४+ज+४+ग=३० पृ. १११ उग्गाहा
। ४+४+४+४+४+ज+४+ग-३० अं. ७१ पंचा प्रथम रचीने, तेपर धर कविराय! उग्गाहा तुं एकज, जे गीति के'वाय; ने गीति के'वाती, ते धरवाथी बने सरस जाति;. पंचाउग्गाहानी, चूडाणाकुंडलिनि बहु भाती. २०६ चूडाणापंचाउग्गाहाकुंडलिनीनुं प्रथम रूप. मात्रा १०६ पंचा ... | sss | ss| s| sss ss। | गुरु ५०+६ लघु=५६ वर्ण.
SSS SS S SSS! Sisil
1 ss ss 5$ ss ss isi sss ! Wie 551 S5 / S51 SS SS ISI ss 1 s
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विषमजाति.
मात्रामळे
चुडाणा पंचा कुंडलिनीनुं अंत्य रूप. पंचा.
६गुरु+९४ लघु-१०० वर्ण, | ||||| || ||
1 11111m 1111 isi ils उग्गाहा || Imm |Is Ins|
उपरना बिम्ब उपरथी जणायछे के, प्रथम रूपमा ५० गुरु अने ६ लघु आवेछे, तेमांथी अकेको गुरु घटाडी बबे लघु वधारतां तेना कुल भेद ४५ थायछे, अने छेलं रूप ६ गुरु अने ९४ लघुबनेछे.
२९ चूडाणापंचासिंहिनीकुंडलिनी. मात्रा १०८. (६+४+२+६+२+ ग ल. =२३, पृ. १८९
६+४+२+६+२+ ग ल. =२३) अं. २३ सिंहिनी
४+४+४, ४+४+ज के विप्र+४+४=३२ ? पृ. १२५ (४+४+४, ४+४+ज के विप्र+४+२=३० jअं. १५० प्रथमे पंचा आणी, तेपर सिंहिनी थाय; बल्लरों गीति सिंहिनी, ए नामे के'वाय; ए नामे के'वायज, चूडाणाकुंडलिनों बहु रीतिनी; पंचा सिंहिनी शोभित, कविवर केरी अतिशय प्रीतिनी.२०७ चूडाणापंचासिहिनीकुंडलिनीनुं प्रथम रूप. मात्रा १०८
पंचा. 555 Sss sss
५० गुरु+ ८ लघु Isssss| Ssssss-५८ वर्ण.
Iss| ssss| ssss sss | Is ज.! सिहिना || ssss ssssmssis विन
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१९८
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चूडाणापंचासिंहिनी कुंडलिनीनुं अंत्य रूप मात्रा १०८
•
दोहा
गाहिनी
HII 11 THI
11
11111 1
111 11 m
| 1 |
59
रणपिंगळ
पंचा
सिंहिनी
उपरना बिम्ब उपरथी जणायछे के, प्रथम रूपमा ५० गुरु अने ८ लघु आवेछे, तेमांथी अकेको गुरु घटाडी, बचे लघु वधारतां, तेना कुल ४५ भेद थाय छे, अने छेलुं रूप ६ गुरु अने ९६ लघुनुं बनेछे.
३० चूडाणा दोहागाहिनी कुंडलिनी मात्रा ११० दोहा ( ६ + ४ ( जगण विना)+ल+२, ६+४ (अंत्य गुरु वाळी)+ल. पृ.७५-अं.८ (६+४ ( )+ल+२, ६+४ ( )+ल. विप्रयुक्त | ४+४+४,४+४+ विप्र +४+5=३० / पृ. १४९
1 1 1 1
अं. १२५९
।।।।
गाहिनी ( ४+४+४, ४+४+ विप्र +४+४ =३२
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11
11
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प्रथम स्थान पर रचकवि, दुहो सामटो आप; तेपर ललिता गीति जे, गाहिनी नामे थाप; गाहिनी नामे थापी, चूडाणाकुंडलिना कही देजो; तेने दो हागाहिनी, एवा नामर्थौ कविवर ! ठिकके हेजो. २०८ चूडाणादोहागाहिनी कुडलिनी प्रथम रूप मात्रा ११०
SI
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111 0111
६ गुरु +९६ लघु = १०२
चर्ण
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ss! ।।।।
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SS ज.
s | चित्र
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४९ गुरु + १२ लघु
६१ वर्ण.
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विषम जाति
मात्रामेळ.
चूडाणादोहागाहिनी कुंडलिनी अंत्य रूप. मात्रा ११० नोटा | Im! ॥ | m ॥ | ज ५ गुरु+१०० लघु | | ॥
१०५ वर्ण. mm | | | Im | Im | mum | s
उपरना बिम्ब उपरथी जणायछे के, प्रथम रूपमा ४९ गुरु अने १२ लघु आवेछे, तेमांथी अकेको गुरु घटाडी, बवे लघु वधारवां, तेना कुल ४५ भेद थायछे, अने छेलं. रूप, ५ गुरु अने १०० लघुनुं बनेछे. ३१ चूडाणाउपदोहागीति (उग्गाहा) कुंडलिनी. मात्रा. १०८ उपदोहा । ६+२+गल (ताल).६+४+ल+गु=२४ ? पृ. ७९ (६+२+गल (ताल),६+४+ल+गु–२४ ।
अं-९ विप्रयुक्त | ४+१+४++४+विप्र+४+s =३० ? पृ. १२१ जग्गाहा (४+४+४+४+४+विप्र+४+5 =३० अ-७१
प्रथम रचो कविराय! उपदोहो के सोरठो; तेपर पौंथों रचाय, उग्गाहा के गीति तो; उग्गाहा के गीति, चूडाणाकुंडलिनी ज करवाने उपदोहउग्गाहा, एबुं नामज अति रुद्दु धरवाने. २०९ चूडाणाउपदोहाउग्गाहाकुंडलिनी प्रथम रूप. मात्रा १०४
sss | 5 | Iss | 5 | ऽऽऽ| 5| ४८ गुरु+१२ " sss | 5 5 5 5| sss| | लघु-६० वण.
|ऽऽऽऽ | ऽऽ ऽऽऽऽ | | sss| Sellel 5s / 5s / SS SS SS MIT SS15
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-
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रणपिंगळ. wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww . चूडाणाउपदोहाउग्गाहाकुंडलिनी अंत्य रूप. मात्रा १०८ उपदोहा ।। ॥ ॥ ॥ ॥ २ गुरु+५०४ १ ॥ ॥
लघु १०६ वर्ण | ॥ [| ॥
॥ | mms उग्गाहा | Immmmmms|
उपर प्रमाणे प्रथम रूपमा ४८ गुरु अने १२ लघु आवे छे. तेमांथी अकेक गुरु घटाडी बबे लघु वधारतां, अंत्य रूपमा छेवट बे गुरु कायम रेहेवाना, एटले ४७ भेद थायछे, तेनु कोष्टक गणप्रस्तार प्रकाशमाथी नीचे आपवामां आव्युं छे.
चूडाणा (चूडामणि) उपदोहा (उग्गाहा) कुंडलिनीना भेद. क्रम. नाम.
गुरु. लघु. वर्ण. १ माला.
४८ १२ ६० २ बाला
४७ १४ ६१ ३ बेनी. ४ ज्वाला.
४५ १८ ५ गंगा६ जोगी. ७ तारा. र तरनी. ९ धरनी.
४० २८ ६८ १० शोभा.
३९ ३० ११ सिंधुर.
३८ ३२ १२ सैंधव..
३७ ३४ ७१ १३ सारँग.
३६ ३६ ७२
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विषमजाति.
मात्रामेळ.
२०१
Iron.oneMMAndianranRNANDANRAMNAA
३
__७३
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३३
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४२
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२९ २८
५० ५२
१४ सरसी. १५ सुखदा. १६ गिरिधर. १७ गिरिवर. १८ गिरिजा. १९ गजमुख. २० गोविंद. २१ शंभू. २२ शारद. २३ शशिभा. २४ सूरज. २५ शिवदा. २६ शुभदा. २७ धाता. २८ धैरज २९ धवला. ३० धनदा. ३१ धावन. ३२ धूवर. ३३. धूसर. ३४ धूपत. ३५ धात्री. ३६ माधघ, ३७ मोहन,
२५ .५८ २४ ६० २३ . ६२
१७
७४
१५
७८
- १३
८२
९५
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२०२
३८
३९
४०
मथुरा.
४१ मांडव.
४२ नंदन. ४३ नरहरि .
मंजुल.
मोपद
४४ नारद. ४५ नरपति. ४६ नागफतिः ४७ नाकपति.
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रण पिंगळ.
११
१. ४+४+४+२+गु=१६ २. ४+४+४+२+गु=१६
३. ४+४+४+२+गु=१६
४. ४+४+४+२+गु=१६
१.
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20
३
२
३२ उल्लास. मात्रा १९२.
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त्रण चोकलिया पर वे कल ने,
ते पर छेलो गुरु ठिक धरने; एवां चार चरण कवि! करने, ते पर एक त्रिभंगी धरने;
८६
८८
९०.
९२
९४
९६
९८
१००
१०२
१०४
20
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९८
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१००
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१०.१
१०२
१०३
१०४
१०५
१०६
एक पादाकुलक (ताल तेज प्रमाणे) जुओ दृष्ट १८ अंक ५.०.
५. २+४+४, ४+४, ४४, ४+गु ३२) एक त्रिभंगी, ६. २+४+४, ४+४, ४+४, ४+गु = ३२ ( ताल तेज प्रमाणे ७. २+४+४, ४+४, ४+४, ४+गु = ३२ ( जुओ पृष्ट ५३ ८. २+४+४, ४+४, ४+४, ४+गु = ३२ अंक १३४.
कवेि! त्रिभंगी धरजे, ए पद करजे, पे'ले दरजे, उलटावी,
८ ८
५
वसु चोकलिया कर, दश क्सु वसु पर, ने पट पर घर, यति लाघी
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विषमजासि
मात्रामेळ
गुरु तेमां करवो, छेलो धरवो, छंद उचरवो, लोभावी, उल्लास वखाणुं, सो ने बाणु, कुल कल आणुं, शोभावी. २१०
विषमपद जाति. गणप्रस्तारप्रकाशमां विषमपद छंद (जाति)नी रचना एम जणावी छे के, चोवीश मात्राथी प्रारंभ करीने इच्छापूर्वक मात्राना आवा छंद बनी शके छे. तेमां जेटली मात्राना छंद रचवा होय तेना अर्द्ध विरामनी मात्रानो एक टेक बांधवो, अने पांच चरणनो एक छंद पूरो गणी अन्ते पालो तेनो तेज टेक मूकवो. तथा पांचे चरणना अथवा तेम न बनी शके तो बब्बे चरणना अनुप्रास टेकना अनुप्रास साथे मेळववाः--
३३ चोवीश मात्रानी विषमपद जाति. (घj करीने) १४+१=२४ मात्राना पांच चरण. ४+३+४+३=१४ मात्रानो टेक १, ५, ८, १२मात्राए ताल. ३+४+३+४=१४ मात्रा तेमां १, ४, ८, ११मात्राए ताल. अने ३+४+३=१० मात्रा तेमां १, ४, ८, मात्राए ताल, ३+४+३+४, ३+४+३=२४ मात्रानां पांच चरण. प्रथमे टेक एकज आण--- चौद कलर्नु थाय छे ठिक, ते तपुंज प्रमाण; चौद ने दश एम एमां, विरति जूदी जाण; त्यार पछि चोवीश कलनां, चरण रच तुं वाण; पास पांचे आण मळता, जाण पण न दवाण; विषम पदनो छंद चोवीश, कलतणो सुख खाण. . . प्रथमे टेक एकज आण. २११
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२०४
रणपिंगळ.
____३४ छठवीश मात्रानी विषमपद जाति. चौद मात्रानो टेक.
१६+१०ना यतिथी छव्वीश मात्रानां पांच चरण करकां. ४+३+४+३ =१४मात्रानी टेक. १, ५, ८, १२ मात्राए ताल. २+३+४+३+४=१६ मात्रा,तेमां ३, ६, १०.१३ मात्राए ताल. ३+४+३ =१० मात्रा तेमां १, ४, ८ मात्राए ताल. २+३+४+३+४, ३+४+३=२६ मात्रा, एवां पांच चरण.
टेके चौद कल बी थाय,-- कल सोळ ने दश विरति वाळां, पाद पांच रचाय; कुल कला छन्वीश थाय चरणे, एम रच कविराय! त्रण पछी त्रणने चार चडता, ताल क्रमों अणाय; रचि पांच तुक ए रीतिथी पण, टेक पछिी गणाय; कल छब्बीशनो विषमपद ए, छंद कविवर गाय. टेके चौद कल बधी थाय. २१२ ३५ सत्तावीश मात्रानी विषमपद जाति.
४+३+४+३=१४ मात्रानो टेक, तेमां १,६,८,१२ मात्राए ताल.
(४+४+४+४=)१६+(४+४+३=)११=२७ एवां पांच चरण, तेमां अनुक्रमे १,५,९,१३ अने १,५,९ मात्राए ताल.
दशने चार कलनो टेक,सोळ शिवे धरि विरति चरणे, सत्ताविश कल नेक; एक शरे नव तेरे तालो, एक शरे नव ठेक; सत्तावीश विषम पद छंदे, एम विवेक जणाय;
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विषमजाति.
मात्रामैळ
आवी रचना रचवामांहे, जो कवि धरिने टेक; गाय प्रभुना गुण मन राखी, पद ते पामे एक. दशने चार कलनो टेक.
२१३ ३६ • अहावीश मात्रानी विषमपद जाति. ३+४+३+४=१४ मात्रानो टेक. तेमां १,४,८,११ मात्राए ताल. ३+४+३+४,३+४+३+४=२८ मात्रा. एवां पांच पद. १४, १४ मात्राए यति. प्रति यतिमां १, ४, ८, ११ मात्राए ताल.
टेकमां कल चौद आणो,- टेक. त्रण अने कल चार लावी, त्रण अने कल चार जाणो, एक चारे आठ रुद्रे, एम तालो तो प्रमाणो; टेकनी पछी पांच पूरां, पाद आणे प्रविण शाणो, वीशनी पर आठ कलनी, विषम जाति तो वखाणो; चतुर! ए तो पारखी ल्यो, जेम चरुमां एक दाणो. टेकमां कल चौद आणो.
२१४ ३७ एकत्रीश मात्रानी विषमपद जाति. ४+४+४+३=१५ मात्रानो टेक, तेमां १,५,९,१३ मात्राए, ताल, (४+४+४+४)=१६, +(४+४+४+३=)१५-३१ मात्रा, एवां पांच चरण तेमां ताल टेक प्रमाणे.
(क्यांक बै चोकलनी अष्ट कलने बदले ३+५ नी अष्टकल ताल तूले नहि एम आवे तो पण नभे.) पंदर कलनो टेकज थाय,चार चतुर ने चार पछी त्रण, वा त्रण पर शर सात रखाय; सोळ कलाना चतुर डगण रची, ते पर पंदर एम धराय; एक पछी चच्चारे चडता, कवितामांहे ताल रचाय;
१८ .
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२०६
रणपिंगळ.
तो सारी ए विषम कविता, एकत्रिश कलतणी गणाय; एमां हरिना गुण गवातां, अन्त समयमां थाशे सा'य. + पंदर कलनो टेकन थाय. + आनो राग एकत्रीशा सवैया (पृ.५० अं.१२६) ने मळतो छे.
प्रचूर्ण मात्रामेळजाति
मात्रासमक. आ सोळ सोळ मात्राना पदनी जाति छे, तेमां भिन्न भिन्न लक्षण आवेछे, तेमन, सम मात्रा तेनी पछीनी मात्रा साथे न भेळववा खास नियम छे. १ अचलधृति. (छंदःशास्त्र प्रमाणे गीत्यार्या.)
१, २, ३, ४ पादमां (+८ एवा १६ लघु-१६ मात्रा.
एवां चार पाद. १,५,९,१३ मात्राए ताल. चरण चरण धर दश षड लघु कल, वसु वसु पर यति द्विपदतणु ज दल; प्रथम पर टिकर पछौँ चढ़ श्रुति श्रुति, ताल सरस सरस रच द्विदल अचलधृति. २१६
अचलधृतिमा १६ लघुवाळां चार चरण आणवा लख्यु छे, एटले ते अक्षरमेळ वृत्त थइ जायछे, पण आ प्रकरणमां सोळ सोळ मात्रानी नीचे जणाव्या प्रमाणे जाति आवेछे, तेमां ए सोळ मात्रानी आवृत्ति बताववाने जाणे अधिकारसूत्र होय, एम गणी प्रारंभमां दाखल करवामां आवी छे. एने गीत्यार्या पण केहेछे, आ उपरथी ३२ मात्रानां बे दल करिये तोपण थाय.
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मात्रासमक.
मात्रामेळ.
२०७
AAAAAA
२ चर्पट. चारे पादमां सोळ सोळ मात्रा नियमसर आवे, पण नवमी मात्रा लघु आणवी, अने छेल्लो अक्षर गुरु आणवो.
१, ५, ९, १३ मात्राए ताल. सोळ कला, लघु नवमी आणो, चर्पटमां गुरु *चरमे जाणो; .. *अंते. एक उपर ने श्रुतिये चडता, ताल रचो ठिक क्रमथी पडता. २१७ मात्रासमकना प्रत्येक चरणमां चच्चार मात्राना चार गण आवेछे, अने तेमांनी सममात्रा तेनी पछीनी मात्रा साथे मळे नहि एवो खास नियम छे, माटे पेहेला स्थानमा चार मात्रानां पांच रूप पैकी जगणवाळु रूप (बीजी त्रीजी मात्रा एकठी थायछे माटे) बाद करतां बाकीनां चार रूप (ss, us, sum) काम लागेछे, ते गण्यां; बीजा स्थानमा उपर लख्या चार गणो पैकी विप्रगण पण काम लागतो नथी, कारण के ते विश्लोकमां लाववानो खास नियम छे-ते लाववाथी विश्लोक थइ जाय-माटे बीजा स्थानमा त्रण रूप (ss,us,st) काममां आवेछे; त्रीजा स्थानमां-नवमी मात्रा लघु आणवानी छे माटे पेहेलो लघु आवे एवास, ज अने विप्रगण पैकी मात्र एक सगणन काम लागेछे, कारण के ज के विप्रगणनुं वासिकामां विधान करेलुं छे, माटे त्रीजा स्थान- रूप एकज; चोथा स्थानने अंते गुरु लाववानो छे, माटे तेवां अंत्य गुरुनां रूप (ss,us) बेन छे, तेथी चोथा स्थानना बे रूप बने; एटले एकंदर ४४३४१४२=२४४२४ =५७६ पूर्वार्द्धनां, तेने उत्तरार्द्धनां तेटलांज रूपे गुणवाथी ५७६४ ५७६=३,३१,७७६ वधां मळीने रूप थायछे.
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रणापेंगळ
३ विश्लोक. प्रत्येक पादमां १६ मात्रा, तेमां चार मात्रा पछी जगण अथवा विप्रगण आणवो; बीजी नियमसर आवे. पिंगलाचार्य पांचमी ने आठमी मात्रा लघु आणया केहेछे. बाकी चारे चरणमां गमे तेम लाव. ते पण उपरना मत साथे मळतुंन छे. १, ५,९. १३ मात्राए ताल.
प्रति पद विषे कला कल लावे, श्रुति कल पछी ज के द्विज आवे; विश्लोक नियम एमज भाळो,
आदि पछाथी चडता श्रुति तालो. २१८ एनी रूपसंख्या नीचे प्रमाणे थायछे:
एमां पेहेले स्थाने जगण सिवायना चार गण आवेछे, माटे तेनां ४ रूप; बीजे स्थाने विप्र के जगण आणवा खास नियम छे, माटे तेनां बे रूप; त्रीजा स्थानमा कर्ण के भगणन आवेछे, केमके जगण, सगण के विप्र ए त्रण गण आववाथी नवासिका के चित्रानुं पाद बनेछे, माटे त्रीना स्थाननां रूप बेज; अने चोथा स्थानमा अते गुरु लाववानो सामान्य नियम होतां तेना पण रूप बेन, तेथी ४४२४२४२=३२४३२=१०२४४ १०२४=१०,४८,५७६ रूप बधां मळीने थायछे.
४, नवासिका, वानवासिका. आठ मात्रा पछी जगण अथवा विप्रगण, बाकी गमे तेम मात्रा आवे. पिंगलाचार्य केहेछे के, नवमी ने बारमी मात्रा प्रत्येक पादमां लघु आणवी, (एनो अर्थ पण एज थायछे, केमके, नवमी ने वारमी मात्राए लघु, जगण अथवा विष होय तोज आवे,) बाकी गमे तेम आवे. १,५,९,१३ मात्राए ताल,
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मात्रासमक.
मात्रामे.
आठ कला पछौं चरण चरणमां, द्विनवर वा जिलधर धर गणमां; जगण (Isi) ए छे जाति-नवासिका तो,
ताल प्रथम ने श्रुति चडौं गा तो. २१९ एनी रूप संख्या नीचे प्रमाणे थायछे:
प्रथम स्थाननां उपर जणाव्या प्रमाणे जगण बाद करतां बाकीनां ४ रूप थायछे, तथा बीजा स्थाननां पांच रूपमाथी जगण अने विप्रगण बाद थायछे, कारण के जगणथी छठ्ठी ने सातमी मात्रा एकठो थायछे, अने विप्रगण मूकवाथी विश्लोकमां अतिव्याप्ति थायछे, एटले ते वर्ण्य करतां बाकीनां त्रण रूप थायछे; त्रीजा स्थानमा मात्र जगण के विप्रगणन आवेछे, माटे तेनां ये रूप; अने चोथामां कर्ण के सगण आवे एटले ४४३४२४२=४८x१८= २३०४ रूप पूर्वार्द्धनां, अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां, माटे २३०४४ २३०४=५३,०८,४१६ रूप बधां मळीने थायछे. ५. चित्रा. पांचमी, आठमी ने नवमी मात्रा लघु, बाकी
गमे तेम आवे.=१६ मात्रा. १,५,९,१३मात्राए ताल.
सोळ सकल कल धर दर झडमां, शर वसु नव कल कर लघु पदमां; ताल प्रथम पर पछी श्रुति चडता,
चित्रा विषे सरस तो पडता. २२० एनां रूप ४४२४३४२=४८४४८=२३०४ पूर्वार्द्धनां, तेटलांन उत्तरार्द्धनां एटले २३०४४२३०४=५३,०८,४१६ थायछे. प्रथम स्थानमां पूर्वोक्त चार रूप थाय; बीना स्थानमा
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२१०
रणपिंगळ.
~
~
पांचमी ने आठमी मात्रा लघु लाववानी छे तेथी मात्र जगण ने विप्रगणन आवी शके, माटे तेनां बे रूप; त्रीजा स्थानमां नवमी मात्रा लघु आणवानी छे, माटे सगण, जगण ने विप्रगण एवां त्रण रूप थायछे; अने चोथा स्थानमां अंते गुरु आणवानो छे माटे पूर्वोक्त कर्ण अने सगण एम बे रूप थायछे. ६. (१) उपचित्रा. चारे पादमा नवमी ने दशमी मात्रा भेळी आवे, अर्थात् तेना गुरु आणवा, बाकी गमे तेम आवे.
१,५,९,१३ मात्राए ताल । सोळ कला बधी आण प्रति पदे, नव दश भेगी आण झटपटे उपचित्रानी रीति ए छे,
बीजा वे वळी नोखा के छे. २२१ आनुं लक्षण "छंदःप्रभाकरमां" आठ मात्रा+गुरु+छ मात्रा ( अंत्यगुरुवाळी) एम आपेछे, आमां बधां पादोमां अथवा एक के तेथी वधारे पादोमां जगण जोइये, एम केहेछ (पृ.४५)
पेहेला स्थाननां चार (ss,ls,si,m.) रूप,xबीजा स्थाननां त्रण (ss,us,su)xत्रीजा स्थाननां बे (ss,su) रूप,x चोथा स्थाननां वे(ss,us) =४८४४८=२३०४ पूर्वार्द्धनां x तेटलांज उत्तरार्द्धना=५३,०८,४१६ बधां मळीने रूप थाय. ७. (२) उपचित्रा. चारे पादमा आठ मात्रा पछी भगण ने
बे गुरु आवे. १, ५,९, १३ मात्राए ताल. सोळ कला प्रति पादन आवे, आठ कला पछी भो गण लावे; ते पर कर्ण करायज छेले, उपचित्रा बीजो कर मेळे. २२२
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मात्रासमक.
मात्रामेळ.
२११
जनार्दन वृत्तरत्नाकरनी टीकामां पाठांतर जणावेछे के "अष्टभ्यो भाद्गावुपचित्रा. इति क्वचित् पाठः"
आठ मात्रा पछी भगण आवे अने ते पछी बे गुरु आवे तो "उपचित्रा" थाय ( एवो क्यांक पाठ छे.) .
एनी रूपसंख्या आ प्रमाणे थाय.-- ४४३४१४१=१२४१२=१४४ एटलां रूप पूर्वार्द्धनांx १४४ उत्तरार्द्धनां=२०,७३६ बधां मळीने बीजो उपचित्रानां रूप थाय. ८. (३) उपचित्रा. चारे पादमां आठ मात्रा पछी भगण आवे, ___ बाकी गमे तेम १,५,९,१३ मात्राए ताल. सकळ मळी कल सोळज करजो, वसु कल पीथी भो गण धरजो; ते पर चार कला छुट सननो,
एमन उपचित्रा ठिक रचजो. २२३ जनार्दन वृत्तरत्नाकरनी टीकामां जणावेछे के "अष्टाभ्यो ग्ला वुपचित्रा मतान्तरमेतत्."
आठ मात्रा पछी एक गुरु आवे अने ते पछी बे लघु आवे तो "उपचित्रा" थाय (एवं पण केटलाकनुं मत छे.)
एनी रूपसंख्या आ प्रमाणे थायः-- ४४३४१४२=२४४२४=५७६ एटलां रूप पूर्वार्द्धनांx ५७६ उत्तरार्द्धना=३,३१,७७६ बधां मळीने त्रीजी उपचित्रानां रूप थाय.
मंदारमरंदचंपूमां पण एमज केहेछे.
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२१२
रणपिंगळ.
९. पादाकुलक. उपरनी पांच जातिमांथी गमे तेना पादथी मिश्रण होय ते. आना ७५ भेद थायछे. १,५,९,१३ मात्राए ताल चर्पट नवासिका विश्लोके
विश्लोक- पद चित्रानां पदं भळाय जो के नवासिकानुं पद उपचित्रा मिश्रण तो करजो, चर्पटनु पद पादाकुलक नामज धरजो. २२४ उपचित्रा (३) पद भाषा छंदोमंजरीमा पेहेलं ने त्रीपाद मात्रासमक प्रमाणे, अने बीजें ने चोथु सोळ मात्रानुं लाववा केहेछे.
वैतालीय अथवा अपरवक्त्र प्रकरण. प्रथम. ६+र (515)+ल+ग=१४ द्वितीय. +र (sis)+ल+ग=१६ तृतीय. ६+र (sis)+ल+ग-१४
चतुर्थ. <+र (515)+ल+ग-१६ । १, ३ पादमां २, ४, ६ ठी मात्रा तेनी पछीनी मात्रा भेगी आणवी नहि. एटले बीजी ने त्रीजी, चोथी ने पांचमी, तेमज छठी ने सातमी मात्रा एकठी आणवी नहि. जो प्रथम लघु पछी गुरु, एम क्रम आवे तो नियम तूटेछे, माटे तेम ना आवे एम करवू. __ २, ४था पादमा आठेय मात्रा लघु आणवी नहि.तेमज २,४,६ मात्राने तेनी पछीनी मात्रा भेगी भेळववी नहि, एटले बीजीसाथे त्रीजी, चोथीसाथे पांचमी, छठ्ठीसाथे सातमी मात्रा मळे नहि; पण पेहेलीसाथे बीजी, त्रीजीसाथे चोथी, पांचमीसाथे छठी अने सातमी साथे आठमी मात्रा मळे तेमां बाध नथी. छंदःप्रभाकरमां कयुं छे के, सम चरणोमा छ आदि लघु न आववा जोइये.
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वैतालीय.
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मात्रामेळ.
31 3 13
छकल विषममां र वास छे,
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८
313 13
वसु पर सममां तो र वास छे; विषमे कल चौद तो गमे,
वैतालीयमां सोळ तो समे. १.
सम कल न पराश्रिता करों, सममां तो लघु सर्व ना धरो; एन नियम पाळनो बधे. वैतालीय सौ एम तो सधे. २.
२१३
AAMAN
२२५
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२२६
वैतालीयनी रूपसंख्या नीचे प्रमाणे थायछेःवैतालीयना विषम चरणमां प्रथम छ मात्रा लाववानी छे, तेनां रूप १३ थायछे, ते पैकी ३जुं, ६टुं, ७मुं, मुं अने ११मुं रूप विरोधी आवेछे, केमके तेमां सम मात्रा - एटले २, ४, ६ ठ्ठीमात्रापोतानी पछीनी मात्रासाथे मळी जायछे, माटे ते पांच रूप वर्ज्य करतां बाकीनां ( १ ) sss, (२) 11ss, (४) 5115, ( 9 ) 11115, ( ९ ) ऽऽ ।।, (१०) ।। 5 ।।, ( १२ ) 5 ।।।।, (१३) ।।।।।।, ए प्रमाणे आठ रूप रहेछे.
एज प्रमाणे सम चरणमां प्रथम आठ मात्रा लाववानी छे, तेनां रूप ३४ थायछे, तेमां बाधकारक २१ रूप वर्ज्य करतां, बाकी १३ रूप रहेछे; ते १३ने विषम चरणनां ८ रूप साथे गुणतां १३४८ = १०४ रूप पूर्वार्द्धनां थायछे; तेटलांज उत्तरार्द्धनां थतां १०४×१०४=१०,८१६ रूप बधां मळीने वैतालीयनां थायछे.
वळी एज प्रमाणे गणत्री करतां औपच्छंदसिक अने आपातलिकानां रूप पण एटलांज थायछे.
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२१४
रणपिंगळ.
AAAAAAAA
२. औपच्छंदसिक. पे० ६+र (sis)+य (Iss)= १६.) बी० (+र (sis)+य (Iss)=१८. बाकीनो नियम त्री०६+र (sis)+य (Iss)=१६. वैतालीय प्रमाणे. चो०८+र (sis)+य (Iss)=१८. )
विषमे षड ने दिशा समे तो, र य धर ते पर सौ पदे क्रमे तो; कल सोळ गणायछे अयुग्मे,
औपच्छन्दसिके पुराण युग्मे. २२७ ३ आपातलिका, आपाताली' १,६,९,१३ मात्राए ताल.
पे० ६+भ (su)+s+s=१४) बी० ८+भ (su)+s+s=१६ बाकीनो नियम त्री०६+भ (si)+s+s=१४ (वैतालीय.प्रमाणे, चो० ८+भ (s)+s+s=१६ )
विषम पड आठ समे छे, तेपर भ ग बे ठीक गमेछे चौद विषम थाय कला ते,
सोळ समे आपातलिका ते. . २२८ १ मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे.
४ दक्षिणांतिका. पे० ६+र (sis)+ल+ग=१४) बी० ८+र (sis)+ल+ग=१६ वैतालीय प्रमाणे. त्री०६+र (sis)+ल+ग-१४ ची० ८+र (sis)+ल+ग=१६ )
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वैतालीय.
मात्रामेळ.
२१५
आमां बीजी मात्रा त्रीजी भेगी अवश्य लाववी एटले पेहेलो अक्षर लघु ने बीजो अक्षर गुरु आववाथी तेम थशे ४, ६, ८मी मात्रा पोतानी पछीनी मात्रा साथे भेगी भेळववी नहि.
313 13
समें दिशा + सूर्य वास छे, रगण.
कला छ विषमे तो घराय छे;
313 13
पछी रगण वास अंतिके,
रचाय रचना दक्षिणांतिके. २२९
"भाषा छंदोमंजरीमां" पेहेला त्रीजामा १४ अने वीजा चोथामा १५ मात्रा लाववा केहेछे, पण तेनो बीजो आधार नथी.
दक्षिणांतिकानी रूपसंख्या आ प्रमाणे थाय छेः
एनां चारे पादमां बीजी अने त्रीजी मात्रा भेळी आवे एवां रूप लाववानां छे, माटे त्रीजुं (ISIS), अने अगियारमुं ( ISIII ) एवां बेज रूप मात्र काममां आवेछे, तेथी विषम चरणनां बेज रूप थाय; अने सम चरणमां त्रीजुं (ISISS), ११ मुं (ISIS), २४ मुं ( ISISII), अने ३२ मुं (ISIII), ए रीते चार रूप काममा लागेछे, तेथी २x४ = ८ रूप पूर्वार्द्धनां, अने तेटलांज रूप उत्तरार्द्धनां थतां <×८ = ६४ रूप बधां मळीने चायछे.
५ उदीच्यवृत्ति. १, २. मां ६+र+ल+ग = १४. २, ४, मां ८+र+ल+ग =१६.
वैतालीय प्रमाणे पादनी रचना करवी.. पण पेहेला ने त्रीजा पादमां बीजी श्रीजी मात्रा दक्षिणान्तिका प्रमाणे एकठी आवे, ने बीजा चोथा पादमा ए नियम लागु नथी, एटलो दक्षिणान्तिका करतां आमां फेर छे.
अयुग्म पादे सदा भले, बीजी त्रीजी तो कला मळे;
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२१६
रणपिंगळ.
उदिच्यवृत्ति विष दिशे,
जुओ दक्षिणांतिका विषे. २३० उदीच्यवृत्तिनी रूप संख्या नीचे प्रमाणे थायछे:एनां विषम चरणमां बीजी अने त्रीजी मात्रा एकठी आणवानी होतां दक्षिणांतिका प्रमाणे त्रीशुं (155), अने अगियारमुं (II) ए बे रूपन काममां आवेछे, अने सम चरणोमां वैतालीय प्रमाणे १३ रूप काममां आवेळे; एटले २४१३-२६ रूप पूर्वार्द्धनां थाय, अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थतां २६४२६-६७६. रूप एकंदर थायछे.
६ प्राच्यवृत्ति. वैतालीय प्रमाणे सर्व रचना करवी, पण बीजाने चोथा पादनी चोथी मात्रा छूटी न राखतां पांचमी साथे भळेली आणवी-एटले चोथीने पांचमी मात्रानो एकन गुरु अक्षर आणवो.
वैतालीय नियमो सदा प्राच्यवृत्तिमां आणजो तदा श्रुति शर भेगी समे करो
गुरु तमे भले ठाम ते धरो. २३१ प्राच्यवृत्तिनी रूपसंख्या काहाडवा माटे एनां विषम चरणमा वैतालीयमा बतावेलां ( रूप काममा लागे छे, अने सम चरणमा चोथी अने पांचमी मात्रा एकठी आणवानी होतां (Issis) ६ हुँ, (Isis) < मुं, अने (SI) २८ मुं, (msu) २९ मुं, एवां चार रूप काममा लागेछे, माटे (x४ =३२ रूप पूर्वार्द्धनां थाय, अने तेटलांन उत्तरार्द्धनां थतां ३२४३२= १०२४ रूप बधां मळीने माच्यवृत्तिनां थायछे.
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तालिय
मात्रामेळ.
७ प्रवृत्तक. १, ३ पादमा उदीच्यवृत्ति प्रमाणे. (२-३ भेगी विषमे)
२, ४ पादमां प्राच्यवृत्ति प्रमाणे. (४-५ भेगी समे)
समे चार पांच तो मळे, बीजो त्रीजी ते विषमे भळे; बधा अवर बाकीना खरे,
नियम तेन प्रवृत्तके करे. २३२ प्रवृत्तकनी संख्या विषेः
एनां विषम चरणनां रूप उदीच्यवृत्ति प्रमाणे बे थायछे, अने समनां रूप प्राच्यवृत्ति प्रमाणे चार थायछे, माटे २ x ४ = ८ रूप पूवार्द्धनां थयां; अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थाय, माटे (xc=६४ रूप बधां मळीने थायछे. ८ अपरांतिका. प्रवृत्तकना सम पाद प्रमाणे चारे पाद आणबां. ८ (तेमां ४,५. भेगी)+र+ल+ग-१६मात्रा, एवां चार पाद.
आठ उपरे सूर्य वास छे, कल बधी मळी सोळ पाद छे; चार पांच तो एकठी दिसे,
नियम एज अपरांतिका विषे. २३३ प्रवृर्तकनां समचरण प्रमाणे एनां चारे चरण थायछे, तेथी ४४४-१६ रूप पूर्वार्द्धनां, अने तंटलांज उत्तरार्द्धनां थतां १६४१६- २५६ रूप बधां मळीने थायछे. . चारुहासिनी. प्रवृत्तकना विषम पाद प्रमाणे चारे पाद आणवां.
एटले, ६ (तेमां २,३ भेगी)+र+ल+ग=१४. छ उपरे सूर्य वास तो, भळे बौजी त्रीनी साथ तो;
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२१८
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www.nr.
•
रणपिंगळ,
वळी नियम चारुवाहिनी, मनोहरति चारुहासिनी. २३४
प्रवृत्तकानां विषम चरण प्रमाणे चारुहासिनीनां चारे चरण थायछे, माटे २x२=४ पूर्वार्द्धनां, अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थतां ४४४ = १६ रूप बध मळीने एनां थाय छे.
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गलितक प्रकरण.
आ प्रकरण मुख्यत्वे करीने छंदः शास्त्र, वृत्तमौक्तिक, अने छंदोलतामाथी लीधुं छे. घणा ग्रंथोमां आ विषय प्रसिद्ध नथी अने तेनां लक्षण पण अपूर्ण जेवां मळो आव्यां छे. अमे बनतो शोध करीने लभ्य लक्षणो आपी चलाव्युं छे.
संगलितक ते नाम छे;
૫
एक उपर शर नव परे,
१. संगलितक.
४+४+५=१३ मात्रानां चार चरण. १,५,९ मात्राए ताल.
४
४
डगण गण पछी पांच छे,
v
૫ ૫
शर शर कल पदम करो,
एम तालो रे.
२३५
२. सुंदरगलितक, सुगलितक. (आ नाम छंदोलतामां छे.) ५+५+ल+ग=१३. १,५,९ मात्राए ताल.
लघु गुरु पछी ते पर घरो;
प धू
शशि शर नव पर ताल छे,
सुंदरगलितक चाल छे.
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गालतक.
मात्रामेळ.
२१९
३ भूषणगलितक. ५+५+३(s)+३=१६. ३, ७, ११, १५ मात्राए ताल.
कल पांच परे फरी पांच धरे, सुर ते पर ने वळी अग्नि करे भण भूषण नाम गलितक रे,
धर ताल त्रणे मुनि शिव परे. २३७ आ गलितक छंदःशास्त्र तथा वृत्तमौक्तिकमां छे. ४ मुखगलितक. ६+३+३+३+३+ग-२० मात्रा.
३,७,११,१५,१९, मात्राए ताल. कल छ उपर धार कला त्रण त्रण त्रण तो, वळी त्रण पर हार विबुधवर! धर फरतो; त्रण पर धर ताल पछी श्रुति श्रुति चडतो,
मुखगलितक एम रचाय सरस पडतो. २३८ ५ गलितक. ५+५+४+४+ल+ग-२१.
१,५,९,१३,१७ मात्राए ताल. पांच उपर वळी पांच डाण वे वार छे, तेपर लघुज रखाय उपर वळी हार छे; शशिपर प्रथमज ताल चडे ज्यां चार छ,
गलितक रचवा काज घणोज विचार छे. २३९ छंदःशास्त्र तथा वृत्तमौक्तिकमां उपरनुं माप छे. छंदोलतामां
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रणापेंगळ.
८ १३
ठ(५)+ड(४)=१ मात्रा आणवानुं का छे, तेने बीजो आधार न होतां ते ग्राह्य नथी. ६ विलंबितगलितक.६+ज+४+ज+४(तेमां अंते गुरु)=२२
२,८,१३,१९ मात्राए ताल. घरो छपर पयोधर श्रुति कलनो वधारो, पछीथी जगण मूकी बे कल गुरुज सारो; द्वितीय वसु जखे पछी ताल ओगणिश तो,
विलंबित गलितक सरस बने सुगम तो. २४० उपर प्रमाणे माप वृत्तमौक्तिकमांछे, पण छंदःशास्त्रमा नीचे प्रमाणे छे. ६+४+४+४+४ (तेमां अंते गुरु)=२२. छंदोलतामां आ गलितकनुं माप (+४+न+४+ज+ग=२६ आप्युं छे, पण तेमां समजफेरथी गुरु जूदो राखवा कर्वा होय एम जणायछे, केमके गुरु अंतवाळो डगण आणवो एम कहलं छे.
७ लंबितगलितक. ४+४+४+४+४+ग=२२ मात्रा. (तेमां जगण नहि.) १,५,९,१३,१७,२१ मात्राए. ताल.
चोकलिया गण पांच उपर गुरु तो धरजो, लंबितगलितक मांहे जगण न कहिं करजो; एक उपर छे ताल पछी चारे चडशे.
आरतों रागे गातां ठीक मझा पडशे. २४१ $ छंदःशास्त्र तथा वृत्तमौक्तिकमां लंबिता एटलुंज नाम छे, अने गलितक प्रकरणमां होतां लंबितगालनक नाम राखवा- ठीक छे.
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गलितक.
मात्रामळ.
२२१
५
वृत्तमौक्तिकमां “विषम स्थानमा जगण न लाववो.” एटलं ज लक्षण बांध्यु छ, पण तेना उदाहरणमां तमाम स्थानमा जगण आवतो ना.
८ विगलितक. ५+५+४+४+६=२३ .
१,४,८,११,१५,१८,२२ मात्राए ताल. सकल कल त्रेवीश कर पदमाह ठिक जाणी, ठगण वे पर डगण वे वळी बाण कल आणी; प्रथम पछौं त्रण चार चढता ताल शुध आवे, विगलितक नामनी सुशोभित जाति सुहावे. २४२
छंदःशास्त्र तथा वृतमौक्तिकमां उपरनुं माप छे, छंदोलतामा ट (५)+ ठ (५)=१० मात्रा आणवा कयुं छे, पण तेने बीजो आधार न होतां ते ग्राह्य नथी. ९. ललितगलितक. ४+६+४+६+४+ग-२४ मात्रा.
३,७,११,१५,१९,२३ मात्राए ताल. कल चार उपर शर धरी पछी कल चार करो. वळी पांच उपर कल चार करी गुरु एक धरो त्रण कलपर झट धरी ताल पछी चच्चार चडो, ललितागलितक पद एम कला चोवीश घडो. २४३
आ गलितकनु केटलाक ग्रंथोमां ललिता एबुं नाम आप्युंछे, पण ललितगलितक नाम राखq उचित छे.
१० विषमितगलितक जाति. १,२. पदमा ५+४+६+४+(कमल) गलगल =२४ ३,४. पदमां ६+६+६+४+(सूर्य) गलग =२४
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૨૨૨
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૫ ૪
५ ४
3131
ठड उपर ठ ड कर ते उपर कमल चडाव एक,
प्रथम ने द्वितिय पद चोविश कुल कलनो विवेक;
૫ ४ ३ ३
त्रीने वळ चोथे त्रण उपर ड सूर्य चोविशे, विषमितज गलितक रचना एमज ठिक तो दिशे. ११ समगलितक. ४+५+५+४+४+लग=२५ मात्रा. १, ५, ९, १३, १७, २१ मात्राए ताल.
૫ પ
चार उपर धरि शर शर पर बे चोकल जाणजो, चरमे ल ग धरि प्रतिपद पच्चिस कल कवि ! आणजेो; ए समगलितक चरण चतुर कवि रचवा काज तो, रचना कहीं त्यम रचीने शिवे राजसमाज तो.
१२ समगलितक (बी). १, ३ पदे ४+३=७ मात्रा;
पचिस कल वढ़,
समगलितक एक अपर सरस जातिनो उचरवो.
२४४
२, ४ पदे ६+३+३+३+३+५+ग=२६ मात्रा
૪ 3
विषम ड ढ पद,
समे छ पर चार वार ढ घरि ठ उपर गुरु करवो;
२४५
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२४६
१३ समगलितक (त्रीजुं). १, ३. ६+३+३+३+३+५+ग=२६
(छं.शा.वृ. मौ.प्र.) २,४.
४+३=७
१,१,९,१३,१७,२१ मात्राए ताल.
૫
विषम पद छ कल पर ऋण ऋण ऋण ऋण ठ धराय छे,
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गलितक.
मात्रामेळ.
२२३
गुरु ते उपर; पच्चिश कुल कल विपरित समगलितके थायछे,
समे ड ढ धर. बीजा समगलितकथी आ उलटुं छे.
२४७
१४ विक्षिप्तिकगलितक. ५+४+६+४+५+ग-२५ मात्रा.
१,५,९,१४,१८,२२ मात्राए ताल. ठड पर ठड धर उपर शर, कल गुरु चरमे* करवो, विक्षिप्तिकगलितक चरण, कविवर करशे गरवो; पच्चिश कुल कल प्रतिपदे, गणीने विगते धरवी, तेर प्रथम कल धरि दुहे, रवि कल पछी उच रवो. २४८
*अते. आ गलितकमा प्रथम तेर कलनी दुहानी रचना अने ताल पण ते प्रमाणे, बाकीनी बार कलना प्रारंभने प्रथम अक्षरे ताल, पछी चच्चार चडते आवेछे. वृत्तमौक्तिकमां विक्षिप्तिका नाम आप्यु छे.
१५ मुग्धगलितक. ६ डगण (४+ज+४+ज+४+ज)+ग-२६ मात्रा.
१,५,९,१३,१७,२१,२५ मात्राए ताल, ड ज चार वार आणी गुरु धरो चरममां फरी, ए रीतिथी कला कुल करो वौशपर पट आदरी; मुग्धज गलितक चरण रचीज ज्यम रागमां गमे, ईश्वर कथा कथो आ गलितक विपे नमी तमे. २४९
४
.
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रणपिंगळ.
१६. उद्गलितक. ६++४+ज+४+ज+४=३० मात्रा.
त्रीजी मात्राए, पछी चच्चारे चडता ताल. छ कल उपर पयोधर धरी ड ते पर करी फरी पयोधर, ते उपर कल चार ने ज ड वळी धरो ते परे कवीश्वरः एम छ कल परे ज ड त्रण करतां कल त्रीश कुल थाय सरखी, उद्गलितक करो गणतरी करी मनविषे सदाय हरखी. २५०
छंदोलतामां ड+ड+s+s+ग=१८ मात्रा करवा केहेछे, पण छंदःशास्त्र अने वृत्तमौक्तिकमां अमे उपर बताव्युं ते प्रमाणे माप छे. मुग्धमालागलितक करतां आमां बे चोकलिया ओछा. छे. १७ मुग्धमालागलितक. ६+ज+४+ज+४+ज+४+न+४=३८
१,५,७,११,१५,१९,२३,२७,३१,३५ मात्राए ताल, श्रीश आहे, न मुग्धमाला विषे कला कुल समायछे ने रचाय सारी, विगत करो, कला छ प्रथमे धरी तमे चार वार ज ड गण पदे उचारी; मन दृढथी, सदाय हरिगुण गवाय नित्ये भमाय नहि तो जणाय रूई, माटे तुं, खमाय तेवी खमी पीडा पण प्रभु भजन कर तनीज कूटुं.२५१
बरोबर रागथी गवाय माटे पेहेली छ मात्रा पूरी थनां वे मात्रा वोलाय एटलो राग लंबाववो, अर्थात त्यां विराम लेवो.
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रणपिंगळ. वर्णमेळछंद.
समवृत्त. १ उक्ताछंद.२भेदछे. एक वर्ण. केटलामोभेद.-- १ श्री.
१ गुरु. १
गी, श्री. गणप्रस्तारप्रकाशमां आनुं नाम शूलधर आपीने तेने मात्रामेळमां गणलो छ; अने मात्रामेळनी रीति प्रमाणे तेनुं बीजं रूप बे लघु करी बताव्युं छे, पण तेम करवु योग्य नथी. २ स्नु.
१ लघु.
गणप्रस्तारप्रकाशमां आनुं नाम अचळ आपीने मात्रामेळमो गण्यो छे. २ अत्युक्ताछंद. ४ भेद छे. बे वर्ण.
गणप्रस्तारप्रकाशमां चारमात्रानां रूप बे गुरुथी शिरुकरीने तेनुं सामान्य नाम ब्रह्मा आप्युं छे. ३ कामा, स्त्री, काम. ग, ग.. १ गा गा, कामा.
ल. ग. २
ल गी, मही. गणप्रस्तारप्रकाशमां आवा रूपनु नाम वासव आप्यु छे, भने तेनी मात्रामेळमां गणना करी छे.
छंदालतामां आनुं नाम रनि"राग्व्यु छ, कारण के ते जणावेछे के,माहनु
४ मही.
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२२६
रणपिंगळ.
समवृत.
माप ग,ल राखq सूत्री विरुद्ध छे. आ विचार अनुचित छे, केमके घjकरीने वृत्तनां नाम एवां पाडेलां होयछे के, ते पोताना मापनी कवितारचनामां आवी शके. रतिमां "ति" -हस्व छे,तो ए शब्दना बे लघु थायछे, तेज प्रमाणे महिना पग वे लघु थायछे, एटले वे शब्द सरखा मापना होता, जो राति नाम ग्रहण करिये तो महि नाम ग्रहण करवाने हरकत नथी. महि शब्दमां"ही" दीर्घ पण थायछे, तेथी ए शब्दमां प्रथम लघु अने वीजो गुरु वर्ण आवतां मही नाम वधारे बंधबेसतुं छे. रतिमा “ति" आगळ विसर्ग होतां संस्कृतमां ते दीर्घ गणी शकाय. ५ सारु, चारु, शानु, सार, सारस, ग, ल. ३
गा लु, चारु. गणप्रस्तारप्रकाशमां आनुं नाम ताल आपीने तेने मात्रामेळमां गणेलो छे, अने तेमां त्रण मात्रानुं सामान्य नाम वज्र राख्युं छे. ६ मधु
ल लु, मधु. ३ मध्या, मध्यमाछंद. ८भेद छ, त्रण वर्ण. ७ नारी, ताणी, ताली, माली, सीसा. १ मगण. १
मा नारी. १ मागधी पिंगलछंदोग्रंथमां सीसा नाम आप्यु छे. ८ शशी, बलाका, वृत्ति. १ यगण. २
शशी यी. १ नाट्यशास्त्रमा आ नाम छे. ९ मृगी, प्रिया, विद्युत.
१ रगण. ३ री मृगी. १ छंदोलता पण आ नाम दर्शावेछे.
२ छंदोलतामां मध्याना भेदमां मृगी अने प्रिया एम भेद जूदा · पाडया छे, तेम मृगेन्दु जे छटो भेद छ, त लख्यो नथी. एम आठ भेद
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* प्रतिष्ठाछंद.
वर्ण मेळ.
गणावी केछे के, सूत्रकार आवी रीते दर्शावेछे.
३ नाट्यशास्त्र प्रमाणे.
१० रमण, रमणी, रमुना, रजनी, सगणी, रमणी.
१ नाट्यशास्त्र प्रमाणे.
११ पंचाल, पांचाल, कामावतार.
ता वाल, पंचाल.
१२ मृगेन्दु, नरेन्दु, मृगेन्द्र, नरेन्द्र.
ज थाय, कवाय;
मृगेन्द्र, नरेन्द्र.
१३ मंदरि, मंदर, मंदरा, भू घर, मंदर.
१ सगण. ४
१
२२७
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तगण. ६
१ जगण. ६
१४ हरिणी, कमाल, कमल.
नगर्णी, हरिणी.
गणप्रस्तार प्रकाशमां मात्रामेळमां आनुं नाम तांडव आप्युं छे.
४ प्रतिष्ठाछंद. १६ भेद, चार वर्ण.
१५ कन्या, कीर्णा, तीर्णा. १ तिन्ना. २
१ भगण. ७
१ नगण. ८
म, ग. १
मा गा कन्या.
१ एक रगणनुं नाम नागराज - पिंगळमां तीर्णा लख्युं छे, ए बराबर नथी, केमके तेनुं नाम चार अक्षरमां छे.
२ छंदः प्रभाकर प्रमाणे.
१६ क्रीडा
य, ग. २
य गा क्रीडा.
१ भीखारीदासाज्ञेये आना बमगा के चोगणाने शुद्धगा वृत्त मान्युं छे. (जुओ छंदः प्रभाकर टीका पृष्ठ १३० ) .
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रणपिंगळ.
१
१७ नंद,
र, ग. ६ नंद रा गा. १८ दोला, रामा, राम, विमला, भ्रमरी. स, ग. ४
। स ग दोला. १ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. १९ धरा, विजया.
त. ग. १ ता गा धरा. १ छंदोलतामां आ मापना छंदन नाम सती छे. २ नाव्यशास्त्र प्रमाणे. २० कला, नगानिका, कुमारिका, नगा, ।
नगणिका, नगी, नगनिका, जया, न, ग. ६ निर्गला, नगालिका, लग्गणिय.
जगा कला. . . छंदोलता प्रमाणे. २ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. ३ लग्गणिय (लग्ना) नाम मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां छे. २१ वला, समुहो.
भ, ग. ७ भा ग वला. २२ सती, तरणीजा.
न, ग. ८ न गि सती. २३ मुग्ध, गोपाल.
म, ल. ९ मा ला मुग्धः २४ वारि, कर्व, मुद्रा.
य, ल. १० य ला वारि. २५ धारि, धारा, धारी, धारिया'. र. ल. ११
रा ल धारि. 1 मागधी पिंगळछंदोग्रथ प्रमाणे,
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५ तुप्रतिष्ठा छंद.
वर्णमेळ
Nowwwwwwwwrom
स, ल. १२
त, ल. १३
२६ कारु, वीरु, वीर.
स ल कारु. २७ तारि, कृष्ण.
ले तावुरिः २८ रुजु, बुद्धि.
ज ले रुजु. २९. निशि, अनृजु.
भील निशिः ३० पटु, हरि.
ज, ल. १४
भ, ल. १५
न, ल. १६
नल पटु.
५ सुप्रतिष्ठा छंद. ३२ भेद. पांच वर्ण. ३१ वाला, संमोहासार, । म. ग. ग. १ संमोहा, विद्युतभ्रान्ता. )
मा गा गे वाला. १ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. ३२ नाली.
य, ग, ग. २ __य गा गे नाली. ३३ मूरिणी
र, ग, ग. ३ सूरिणी र ग्गे. ३४ प्रगुण, चतुर्वशा, घनपंक्ति. स, म, ग. ४
प्रगुणे स्गा गा. १ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. . ३५ हारीत, लोल; हारी, वहारी, ।,
त, ग, ग. ५ हारा, हारीतबंधा, फारीआ.१ ।
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समवृत्त
रणपिंगळ. . समवृत्त.
हारीत त ग्गे. लोले त गा गा. १ मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां आ नाम आप्यु छे. ३६ कंठी, विलास, यशोदा. ज, ग, ग. ६
जगं ग कंठी. १ आ नाम छंदःप्रभाकरवाळाए नवं पाडेलुं छे, एम ते पोते लखेछे; पण आगळ तेनां उपलां वे नाम छे, ते तेमना जाणवामां नहि होय, तेथी "यशोदा" नाम तेमणे उपजावी काहाऽधुं हशे. ३७ हंस, पंक्ति, अक्षरपंक्ति,।
भ, ग, ग. ७ फारी, भूतलमान्या.
हंस भ गा गे. १ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. ३८ कललि, सुतसंगक. न, ग, ग. /
कललि न गे. १ गणप्रस्तारप्रकाशमां आने सात मात्रानुं त्रीजुं रूप बताव्युं छे. ३९ हासिका.
म, ल, ग. ९ इलामे हासिका. ४० नरी.
य, ल, ग. १० य लागे नरी. ४१ वैनस, खंजा.१
र, ल, ग. ११ रैल गा धरो, वैनसे करो. (वैनसेलंगा). १ नागराज पिंगळमां खंजा नाम लख्युं छे. ४२ प्रिया, रमा.१
स, ल, ग. १२
स ल ग प्रियाः १ छंदोलतामां रमा केहेछे.
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५ सुप्रतिष्ठा छंद.
वर्णमेळ.
२३१
४३ कणिका.
त, ल, ग. १३ लागे कणिका. ४४ शिला.
ज, ल, ग. १४ __ज ला ग शिला. ४५ मंडल.
भ, ल, ग. १५ मंडल भ्ल गे. ४६ सुल, करना, कलगुखी.१ . न, ल, ग. १६
न ल ग मुल. १ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. ४७ कुम्भारि.
म, ग, ल. १७ मा ग्ले कुम्भारि. ४८ भ्र.
य, ग,. ल. १८ य गूले भू ज. ४९ -ही.
र, ग, ल. १९ -ही र गी ५० पालि.
स, ग, ल. २० स ग ले पालि. किंजल्कि.
त, ग, ल. २१ किंजल्कि ताग्ल. ५२ वाद्धि.
ज, ग, ल. २२ जगाल वादि. ५३ विद्.
भ, ग, ल. २३ विद् भगा ला था. ५४ पांशु, बाकि.
न, ग, ल. २४ न ग ल पांगु.
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२३२.
रणपिंगळ.
समवृत्त.
५६ मालिन.
म, ल, ल. २५ मला ले मालिन. ५६ वरीय.
य, ल, ल. २६ वरीये टल ल. ५७ कल्किः
र, ल, ल. २७. कल्किरी ल ल. ५.८ जतु, मायंक.
स, ल, ल. २८ स लि ले जतुः ५९ छिद्र.
त, ल, ल. २९ छिद्रे त ल ल. ६० क्षुष, हर.
ज, ल, ल. ३० ज ला ल क्षुप. ६१ क्षुत, विष्णु, पंचा, पंचः भ, ल, ल. ३१
भू ल ल क्षुत. ६ मागधी पिंगळछंदोग्रंथ ६२ हलि, जनमि, झमक, जमकाणा, । १२ जमक, यमक, आत्मक. "
न ल ल हलि. ६ गायत्री छंद. ६४ भेद छे. छ वर्ण. ६३ विद्युल्लेखा, शेषा, शेषराज, शेष. म, म. ११
मा मे विद्युल्लेखाः + शेष नाम प्राकृत पिंगळसूत्रमा छे. ६४ पंथा.
य, म. २ य मे पंथा थाशे.
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६ गायत्री छंद.
वर्णमेळ.
२३३
६५ करेणू.
र, म, ३ छे करेणू रा मे. ६६ अभिख्या.
स, म. ४ अभिख्या साया थी. सगणे मांभिख्या.
( सगण म अभिख्या.) ६७ बभ्रू.
त, म. ६ ता मा थकी बघू. ६८ कजा.
'ज, म. ६ जमा थकी कजा. ६९ सिन्धुरया.
सिन्धुरया भा मे. ७० गुणवती, शशिभृता.
'न, म. ४ गुणवती ना मे.
म, य. ९ मा ये थाय तंत्री. ७२ सोमराजी,शंखधारी,अर्द्धभुजंगी,)
य, य. १० हरिशंखाणा,शंखनारी, सोमराज..)
य येसोमराजी. गणप्रस्तारप्रकाशमां १० मात्रानुं सामान्य नाम सोमराजी राख्युं छे. तेना उदाहरणमां आज प्रमाणे वे यगण आवे छे. मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां " हरशंखाण " नाम आप्यु छे. ७३ पिकाली.
र, य. ११ राय थी पिकाली.
७१ तंत्री.
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२३४
रणपिंगळ.
समवृत्त.
७४ कमनी.
स, य. १२ कमनी स यी थी. ७५ तनुमध्या, चौरस (छंदःप्रभाकर.) त, य. १३
ताये तनुमध्या. ७६ अरजस्का.
ज, य. १४ जये अरजस्का. ७७ इति, कामलता.
भ, य. १६ छे इति भ ये थी. ७८ शशिवदना,' शशिमुखी, चोरसा,' । चउवंशा,३ चउरंसा, चंडरसा, ।
न, य. १६ सीसा, चतुरवर्णा, चतुरंशा,५ । मदरशीर्षा, ६ चतुरंत. में शशिवदना न्ये, शशिमुखों ना ये. १ छंदःप्रभाकरमां आनुं पादाकुलक एवं नाम पण जणावे छे, पृष्ट. १३३. २ भगवत पिंगळमां. ३ मनहर पिंगळ अने छंदःशृंगारमां. ४ नागराज पिंगळमां. ५ पृथीराजरासा तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा ए नाम छे. ६ नाट्यशास्त्र प्रमाणे. ७ छंदोवृत्तमुक्तावलिमांथी. आ रूप गणप्रस्तारप्रकाशमा सात्रामेळमां गण्डे छे. ७९ अवोढा.
म, र. १७ थाया ऽवोढा म रे.
(थाय अवोढा म रे.) ८० कच्छपी.
य, र. १८ य रे थी कच्छपी.
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वर्ण मेळ.
६ गायत्री छंद.
८१ विमोहा, विजोहा, विज्जौहा', अर्द्धकाममोहिनी, स्रग्विणी, रसावली, चंद्रमाला, विज्जोदार, वियोधा, जोहा. छे विमोहा रे.
१ छंदोवृतमुक्तावलि तथा गणप्रस्तारप्रकाश प्रमाणे. २ छंदः प्रभाकर पृष्ट १३४.
८२ मृदुकीला.
मृदुकीला सरे.
२८३ स्थाली, खंडा.
स्थाली त रा थकी.
८४ वलीमुखी, वाणी.
जरे वलीमुखी.
१ नाट्यशास्त्र प्रमाणे.
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११मां प्रसिद्ध छे, माटे ते वात मान्य नथी. ८६ निरसिका, गिरा'
निरसिका न रे. नर गिराविषे.
८७ निस्का, सोमकुल, वीर्या २. निस्का मास की.
२ नाट्यशास्त्र प्रमाणे.
.८८ मशगा.
२३५
छंदोलता आनुं नाम नगानिका केहेछे, पण अक्षर चारमां जग नामाथी नगानिका छे, गाढे ते मानवा जोग नथी.
८५ शुनक.
र, र. १९
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स, र. २०
शुनक भूर थी.
नाट्यशास्त्रमां आने शालिनी नाम आपेछे, पण शालिनी अक्षर
त, र. २१
ज, र. २२
भ, र. २३
न, र. २४
म, स. २५
य, स. २६
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रणपिंगळ.
समवेत.
य साथी मशगा. ४९ कर्मदा, तिल.
र, स. २७ कर्मदा र स थी. ६० तिलका, अर्द्धतोटक, झील,१ तिल्लना, दंडलय, तिल्ल, ध्वज,
स, स. २८ डिल्ल,२ खंडलया,३ डिल्ला, | वनिता, तिल्ला.६
तिलका स स थी. , छंदःशृंगार. २-३ नागराज पिंगल, ४ छंदःसार. ५ छंदोलता. व छंद: प्रभाकर. पृष्ट. १३५
खंडलया नाम मागधी पिंगलछंदोग्रंथमां पण छे. ९१ वसुमती, कमला..
त, स. २९ ता से वसुमती. गणप्रस्तारप्रकाश, ९२ कुही. अपरभाt.
ज, से.. ३० ज से कर कुही. गणप्रस्तारप्रकाश. ९३ सौरभि.
भ, स. ३१ सौरभि भ स थी. ५९४ सरि.
'न, स. ३२ सरि न स थकी. ९५ साहूति.
म, त. ३३ मा ती थी साहूति.
य, त. ३४ यतीथी छे बिन्दु.
५६ बिन्दु.
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६ गायत्री छंद:
९७ मन्त्रिका.
९८ दुण्डि .
१०२ अनिभृत.
१०३ मङ्कर.
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मंत्रिका रा ता थीं.
सत थी तो दुष्टि.
९९ मन्धान, मंधाणा, मंथाण, मन्थानक. त, त ३७ तं तार्थी मन्थान. मन्थानके तात.
१०० क्षमापालि.
ज, त. ३८
१०१ राढि.
१०६ मधुमारक.
वर्ण मेळ.
१ छंदोलता.
जता क्षमापालि.
छे मंकुर मूज.
१०४ वृत्तहारि.
य जे वृत्तहारि.
१०५ धारिका (छंदोलता), आर्भव. धारिका र जा थी.
भात थकी राढि.
अनिभृते ना त.
मधुमारके स्ज.
૧
१०७ हाटकशालि, मंधान, शशिराट. • त्जा हाटकशालि.
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२३७
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र, त. ३५
स, त. ३६
भ, त. ३९
न त ४०
म, ज. ४१
य, ज. ४२
र, ज. ४३
स, ज. ४५
त, अ. ४५
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२३८
रणपिंगळ.
समवृत्त.
१०८ वसंत मालतिका, मालती, । ज, ज. ४६ मानवक, *मनोहर, मानव. )
वसंत ज जा थी. मनोहर जाज.
ज मालती थाय. १ छंदोलता. २ मा. पिं. छं. ग्रंथ चि. टी. छंदोवृत्तमुक्तावलिमाथी.
मागधी पिंगलछंदोग्रंथ. छंदःप्रभाकरमां घणा मते आ वृत्तनुं माप उपर प्रमाणेज छे, पण कोइ कोइ पिंगळकार, त य, अने ज यथी आनुं माप बतावेछे, पण तेवा मापनां बीजां वृत्तो आ पिंगळमां दाखल छे. १०९ पाकलि.
भ. ज. ४७ पाकलि भ जा थी. ११० पुटमर्दि, करहंचा. न, ज. ४८
न ज पुटमदि. १११ कंसारि.
कंसारि मा भ थी. ११२ सोमश्रुति.
य, भ. ५० य थे सोमश्रुति. ११३ सोपधि.
र, भ. ५१ रो भ थी सोपधि. ११४ शङ्खधुति.
स, भ. ५२ स भ शङ्खधुति. ११५ इन्धा.
त, भ. ५३ इन्धा त भा था. ११६ सावटु.
ज, भ. ५४
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६ गायत्री छंद. वर्णमेळ.
२३९ ज भार्थी सावदु. ११७ नन्दि, दुमन्दर (छन्दार्णव प्रमाणे.) भ, भ. ५५
नन्दि भ भी थका. ११८ अयमित.
न, भ. ५६ अयमिते न भ. ११९ पोथा.
म, न. ५७ छे प्रोथा म न थी. १२० अतिः
य, न. ५८ य ने अर्ति कर. १२१ प्रतरि.
र, न. ५९ रीन थी प्रतरि. १२२ विससि
स, न. ६० स न थी विससि. १२३ अतिकलि.
त, न. ६१ ती ने अतिकलि. १२४ सुदायि.
ज, न. ६२ सुदायि ज न थी. १२५ अनति.
भ, न. ६३ भी न थी अनति. १२६ दमनक, उपवलि, दमन
ने, न. ६४ मदनक, मदन, मदकल.
न न दमनक. - १ छंदोलता प्रमाणे.
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५४०
रणपिंगळे.
समवृत्त.
७ उष्णिक छंद. १२८ भेदथायछे. सात वर्ण.
वृतरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां कह्यु छ के " सात अक्षरना छंदमां घे अने पांचे यति थाय” एम केटला एकनु मत्त छे. १२७ शीर्षा, शिप्रा, शिर्ष्या', शीर्षरूपक,).
म, म, गं. १ शीर्षक, लक्ष्मी, मेघाइ, ३मुक्तागुम्फ. "
मा मा गा थी छे शीर्षा. ' छंदःप्रभाकर. २ गणप्रस्तारप्रकाश. ३ छंदोवृत्तमुक्तावलि. १२८ प्रहाण.
___य, म, ग. २ महाणे या मा गा छे. १२९ सैरवी.
र, म, ग. ३ सैरवीमां रा मा गा. १३० शम्बूक
स, म, ग. ४ स म गा छे शम्बूके. १३१ निम्नाशयाः
तं, म, ग. ५ निम्नाशया ता मा गे. १३२ सुमोहिता.
ज, म, ग. ६ सुमोहिता जा मा गे. १३३ अधीराः
भ, मैं, ग. ७ थाय अधीरा भ्मा गे. १३४ होला.
न, म, ग. ८ न म ग थी होला छे. १३५ इभभ्रान्ता.
म, य, ग. ९ ___मा या गे इमभ्रान्ता. १३६ अभीक.
य, य, ग. १० अभीके य या गा छे.
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। उष्णिक छंद.
वर्णमेळ.
२४१
१३७ अहिंसा.
र, य, ग. ११ रा य गे अहिंसा छे: २३८ रसधारि.
स, य, ग. १२ रसधारि सा या गे. १३९ वेधा, भक्ति.
त, य, ग. वेधा रच ता या गे. १ छंदःप्रभाकरवाळे मूळचें वेधा नाम न जाणवाथी आ भक्ति नाम नईं कल्प्यु छे. १४० पद्या.
ज, य, ग. १४ ज या ग थकी पद्या. १४१ किणपा.
भ, य, ग. १६ थाय किणपा भ्या गे १४२ सुरि.
न, य, ग. १६ सुरिं न य गा थी छे. ५४३ किर्मीर.
म, र, ग. १५ किौरे छे म रा गा. १४४ वयस्य,जयमंगल (प्रवीणसागरमां). य, र, ग. १८
वयस्ये या रंगाछे. १४५ भूरिधामा.
भूरिधामा र रागे. १४६ हंसमाला.
स, र, ग. २० सरगे हंसमाला. १४७ भीमार्जन.
त, र, ग. २१ भीमार्जने त रा गा. १४८ पुरोहिता.
ज, र, ग. २२
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२४२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
पुरोहिता जरा गे. १४९ होडपदा.
भ, र, ग. २३ होडपदा भ रागे. १५० खरकरा.
न, र, ग. २४ खरकरा न रा गे. १५१ मदलेखा.
म, स, ग. २५ ___ मा सा गे, मदलेखा. आ वृतमा केटलाएक ३, ४ यति मानेछे. वळी कोइ आना बमणाने लीला वृत्त केहेछे. १५२ महनीयाः
य, म, ग. २६ य सा गे महनीया. १५३ शरगीति.
र, स, ग. २७ रा स गे शरगीति. १५४ करभित् , रैरंग (पिं. छं. ग्रं.). स, स, ग. २८
___ करभिट्स स गा थी. १५५ स्थूला.
त, स, ग. २९ __ स्थूला रच तसा गे. १५६ कुमारललिता, ललत, ।
ज, स, ग. ३० अविराम, रायपति. )
कुमारललिता तो,
जसा ग थको थातो. १ बे पांचे यति लाववा कोइ केहेछे. छंदःप्रभाकर आदि ग्रंथोमा यति कही नथी. आठ अक्षरमा आ नामनुं वृत्त अंक २९८ मे छे.
२ गणप्रसारप्रकाशमां. १५७ रुचिर.
भ, स, ग. ३१
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७ उष्णिक छंद.
वर्गमेळ.
भास ग रुचिरे छे. १५८ दृति, करह.
न, स, ग. ३२ दृति-करह ना स्गे. १५९ हिन्दीर, सालका(गणप्रतारप्रकाश). म, त, ग. ३३
हिन्दीरे मा ताग छे. १६० उपिक.
यता गा, छे उपिके. पिंगलछन्दःसूत्र प्रमाणे ३, ४ यति. १६१ मृष्टपादा.
र, त, ग. ३१ मृष्टपादा रा त गे. १६२ मायाविनी.
स, त, ग. ३६ सतगे मायाविनी. १६३ राजराजी, भिन्ना. त, त, ग. ३७
भिन्ना त ता गा थकी,
छे राजरानी नकी. १६४ कुठारिका.
ज, त, ग. ३८ कुठारिका जा त गे. १६५ कल्पमुखी, लीला.
भ, त, ग. ३९ कल्पमुखी भी त मे. १ छंदःप्रभाकरमां आ नामछे. १६६ परभृत.
न, त, ग. ५० परभृते ना त गा. १६७ महोन्मुखी.
म. ज, ग.४१ मा जी गे महोन्मुखी.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१६८ महोद्धता, कुमारिका.
यजा गे महोद्धता.
य, ज, ग. ४२
गणप्रस्तारप्रकाश.
१६९ चामर, समानिका,
र, ज, ग. ४३ समाना, वाणी.३
छे समानी रा ज गे. १ छंदोवृत्तमुक्तावली. २ भगवतपिंगळ अने कामदुधावत्स.
३ एक मागधी पिंगळ. १७० कठोद्ता.
स, ज, ग. ४४ स जगे कठोद्गता. १७१ पूर्णा.
त, ज, ग. ४५ पूर्णा त ज गा थकी. १७२ वहिर्वलि.
ज, ज, ग. ४६ वहिर्वलि जा जगे. १७३ उन्दरि.
भ, ज, ग. ४७ उन्दरि भजागथी. १७४ पुराटे.
न, ज, ग. ४८ पुरटि न जा गथी. १७५ वर्करिता, सुभग, खग्गा,
म, भ, ग. ४९ खंगा, खंजा, खंडका. )
माभागे वर्करिता. १ मागधी पिंगळ छंदोग्रंथ. २ गणप्रस्तारप्रकाश. १७६ केशवती.
य, भ, ग. ५० य भा गे केशवती.
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उष्णिक छंद. वर्णमेल.
२४५ १७७ सौरकान्ता.
र, भ, ग. ५१ सौरकान्ता र भ गे. १७८ अधिकारी.
स, भ, ग. अधिकारी स भ गे. १७९ निर्वाधिका, चूडामणि. त, भ. ग. ५३
निर्वाधिका त भ गे. १८० महोधिका
ज, भ, ग. ५४ महोधिका ज भ गे. १८१ मौरलिक, कलिता, कलका. भ, भ, ग. ५५
मौरलिके भ भ गा.. १ गणप्रस्तारप्रकाश. १८२ वनकरी.
न, भ, ग. ५६ स्वनकरी न भ गे. १८३ नवसरा, मदलेखा. म, न, ग. ५७
मा ना गे नवसरा. १ गणप्रस्तार प्रकाश. १८४ चिररुचि.
य, न, ग. ५८ ___य ना गे चिररुचि. १८५ बहुलया.
र, न, ग. ५९ रान गे बहुलया. १८६ यमनक.
स, न, ग. ६० सन गा यमनके. १८७ हीर.
त, न, ग. ६१ छे हीर त न गथी. १८८ विदा.
ज, न. ग. ६२
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
स्विदा रच ज न गे. १८९ उलपा.
भ, न, ग. ६३ भा न ग थी उलपा. १९० मधुमती, मधुमत, वास्तुमती.' न, न, ग. ६४
न न ग मधुमती. १ छंदोलता. वि..एस. आप्टेंनी डिक्षनेरीमां पांच वेये यति कही छे. १९१ नीहारी.
म, म, ल. ६६ . नीहारी मा मा ला था. १९२ कंसासारि.
य, म, ल. ६६ य मा. ले कंसासारि. १९३ खर्विणी.
स, म, ल. ६७ खविणी रा मा ले थी. १९४ गृहिणी.
स, म, ल. ६८ गृहिणी सा मा ले थी. १९५ वर्दिष्णु, शूर. . त, म, ल. ६९..
ता मा ल थी वद्धिष्णु. १९६. श्रोणी.
ज, म, ल.. ७०. ज मा ल थी श्रोणी ज. १९७ व्याहारि.
भ, म, ल, ७१ भा मल थी व्याहारि. १९८ किशलय.
न, म, ल. ७२ किशलये ना मा ल.. . १९९ देवल..
म, य, ल. ७३. म्या ला. देवले थाय.
५
.
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७ उष्णिक छंद.
वर्णमेळ.
.
२४७
..............................
.....nanararriaaraam....ne
२०० नर्दि.
य, य, ल. ७४ य या ला थकी नदि. २०१ अनासादि..
र, य, ल. ७५ राय ले अनासादि. २०२ अलालापि.
स, य, ल. ७६ स य ले अलालापि. २०३ गुजा.
त, य, ल. ७७ गुञ्जा त य ले थाय. २०४ ऋचा.
ज, य, ल. ७८ ऋचा ज य ले थाय.
. २०५ नन्दथु.
भ, य, ल. ७९ नन्दथु भ या ले थी.. २०६ अनु.
न, य, ल. (0. अनु न य ला थीज. २०७ अम्मेथी.
म, र, ल. ८१ अम्मेथी मो र ले थी. २०८ मयूरी.
य, र, ल. ८२ मयूरी या र ले थी.. २०९ सामिका.
र, र, ल. ८३ सामिका रा र ले थी. २१० प्रोञ्छिता.
स, र, ल. ८४ स र ले प्रोञ्छिता ज. २११ वृन्दा.
त, र, ल, (६ वृन्दा विपे त रा. ल.
ससस सस
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२४८ रणपिंगळ.
ममवृत्त, २१२ प्रतर्दि, स्वरूप, सरूप.१ ज, र, ल. ८६
प्रतर्दि जा र ला थी १ सरूप नाम मागधी पिंगळछंदोग्रंथनी चित्रसेन टीकामां छे. ६१३ मीनपदी.
भ, र, ल. ८७ मीनपदी भ रा ल. ३१४ मणिमुखी.
न, र, ल. ८८ मणिमुखी न रा ल. २१५ मौलिस्रक्.
म, स, ल. ८९ मौलिस्रक म स ला थी. . २१६ परभानु.
य, स, ल. ९० यसा ले परभानु. २१७ मेथिका.
र, स, ल. ९१ मेथिका रस ले थी. २१८ गोधि.
स, स, ल. ९२ सस ले कर गोधि. २१९ सरलांघ्रि.
त, स, ल. ९३ ता सा ल सरलांघ्रि. २२० विरोहि.
ज, स, ल. ९४ ज साल थी विरोहि. २२१ वरजापि.
- भा सल वरजापि. २२२ अहरि,करहंतृ,कलहंस,करह-)
न्ता,करहंज,करहंच,करहंची, करहंस, करहंत, बच्छ.
भ, स, ल. ९५
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७ उष्णिक छंद.
वर्णमंळ.
अहरि नसले थी.
२ छंदः प्रभाकर.
१ छंदोवृत्तसुक्तावलि. आने ८ मात्रानुं २१मुं रूप गणी तेनुं नाम
२२३ सम्पाक.
सम्पाके माता लघु.
यतो ले थी पद्धरि.
गूर्णिका रातालथी.
सतले काही कर.
२२४ पद्धरि.
२२५ पूर्णिका.
२२६ काही.
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२२७ कामांद्धता.
२२८ खर्पर.
२२९ शंतनु, लीला.
कामोद्धता तातल.
जतालथी खर्पर.
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शन्तनुमां भातल.
#<
" छंदार्णवमां " अंते गुरु कह्यो छे, ते भूल छे,
२३० गुरजिकों.
मुरजिका नातल.
२३१ कालम्बी.
कालम्बी मजा लथी.
२३२ उपोहा.
उपोहा यजा लघु.
२३३ कापिका.
३ गणप्रस्तार प्रकाशमां वच्छ आप्युं छे.
म, त, ल. ९७
૨૦૦
य, त, ल. ९८
र, त, ल. ९९
स, त, ल. १००
त, त, ल. १०१
ज, त, ल.
१०२
भ, त, ल, १०३
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न, त, ल. १०४
म, ज, ल, १०५
य, ज, ल. १०६
र, ज, ल. १०७
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२५०
रणपिंगळ.
समवृत्त.
कार्पिका रजा लघु. २३४ मुहुरा.
स, ज, ल. १०८ ___ मुहुरा स जो लघु. २३५ दोषा.
त, ज, ल. १०९ दोषा रच ताज ल. २३६ उपोदरि.
ज, ज, ल. ११० उपोदरि जो जल, २३७ जासरि.
भ, ज, ल. १११ जासरि भ जे ल थी. २३८ वासकि, सुवासक, सुवासा,२
सवासनि, सुवास, रासा, न, ज, ल. ११२ सवासन.३
न ज ल थी वासकि. १ गणप्रस्तारप्रकाश. २ छंदोवृतमुक्तावलि. ३ छंदःप्रभाकर. २३९ भूरिमधु.
म, भ, ल. ११३ मा भाले भूरिमधु. २४० भूरिवसु.
य, भ, ल. ११४ य भा ले भूरिवसु. २४१ हर्षिणी.
र, भ, ल. ११५ हर्षिणीमां र भल. २४२ लोलतनु.
स, भ, ल. ११६ . स भ ले लोलतनु. २४३ क्रोडान्तिक.
त, भ, ल. ११७ कोडांतिके त भ ल.
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७ उष्णिक छंद.
वर्णमेळ.
२४४ स्तरधि.
ज, भ, ल. ११८ ज भा ल थी स्तरधिः २४५ पारसरि.
भ, भ, ल. ११९ भा भ ल पौरसरि. २४६ वीरवटु.
न, भ, ल. १२० न भ ल वीरवटु. २४७ अमति.
म, न, ल, १२१ मा ना ले थी अमतिः २४८ अहति.
य, न, ल. १२२ य ना ले थी अहति. २४९ वरशशि.
र, न, ल. १२३ रान ले वरशशि. २५० धनधरि.
स, न, ल. १२४ स न ले धनधरि. २५१ मुपकि.
त, न, ल. १२५ ता ना लघु मुषकि. २५२ कुरदि.
ज, न, ल. १२६ ज ना लघु कुरदि. २५३ कोशि.
भ, न, ल. १२७ कोशि कर भ न ल. २५४ अचदु, सुमत (ग. प्र. प्र.). न, न, ल. १२८
अचटु न न लघु,
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२५२ रणागळं.
समवृत्तं. ८ अनुष्टुप्छंद. २५६ भेद थायछे. आठवर्ण, २५५ विद्युन्माला,विद्युन्लेखा,बीजुमाला,
'दामाला,मौक्तिकतिलक,विज्जु- . माला,विद्वनमाला, सोमकान्त, सोम, म, ग, ग.' मक्रान्त, सोमकंतो, सोमकतो, महाणी, सोमक.
मामा गा गे, विद्युन्माला. १ गणप्रस्तारप्रकाश. २ मुनिसुंदरपिंगलमाथी. गणप्रस्तारप्रकाशमा
आने १६ मात्रानुं पेहेलुं रूप गण्युं छे, अने तेमां अर्धे यति कही छे. विद्युन्माला, राग झींझोटी ताल चतुश्र जाति त्रिपुट. संगोतानुसार
छंदोमजरी प्रमाणे. ३ मागधी “छदःशतक" प्रमाणे. चारे चारे विश्राम, २५६ अनिर्भार.
स, म, ग, ग. ४ समगा गा निर्भारें छे.. २५७ इन्द्रफला, इन्द्रवला, दंडलिया. भ, में, ग, ग. ७
इन्द्रफला भा मा गागे. २५८ गोपावेदी.
न, म, ग, ग. ८ नमगगे गोपावेदी. २५९ भूमधारी.
य, य, ग, ग. १० बने भूमधारी व्या ग्गे. २६० मौलिमालिका.
र, य, ग, ग. ११ मौलिमालिका र्या गा गे. २६१ युगधारि.
स, य, ग, ग. १२ युगधारि सा या गा गे.
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८.अनुष्टुप् छंद.
वर्णमेळ.
२५३
२६२ विराजिकरा.
ज, य, ग, ग. १४ विराजिकरा ज्या गा गे. २६३ वात्या.
में, य, ग, ग. १५ __ भा य ग ग थी छे वात्या. २६४ पाञ्चालांघ्रि, पञ्चा- 1 स्यांघ्रि, वस्तु.१
न, य, ग, ग. १६ न य ग ग पांचालांधि. १ छंदोलता. २६५ श्लोक.
म, र, ग, ग. १७ मा रा गी गा धरो श्लोके. २६६ कुलाधारी, शुद्धगा. य, र, ग, ग १८
कुलाधारी यरी गी गे. प्रवीणसागर लेहेर ७१ मीए “चिंतामणी” नामना छंद छे, ते आथा अपभ्रंश थयो होय एम जणायछे. ए फारसी गझलनी रीते गवायछे. २६७ परिधारा.
स. र, ग, ग. २० परिधारा स रा गा गे. २६८ यशस्करी.
ज, र, ग, ग. २२ ___ यशस्करी जरी गा गे. २६९ कुररिका.
न, र, ग, ग. २४ __ कुररिका न रा गा गे. २७० मनोला.
य, स, ग, ग. २६ मनोला य स गागे थी. २७१ रमणियशिखा, पञ्चशिखा स, स, ग, ग. २७
रमणीयशिखाए तो,
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२५४
रणांपेंगळ.
स स गा ग धराशे तो. २७२ मांर्गी.
ज, स, ग, ग. ३० जसा मग थकी भांर्गी. २७३ साली.
ज, स, ग, ग. ३१ - न स ग गी रुमाली. २७४ पारान्तचारी.
य, त, ग, ग. १४ पतग्गे पारान्तचारी. २७५ कौचमार.
स, त, ग, ग. १६ स त गा गा कौचमारे. २७६ कराली, कामताका, केतुमाला. त, त. ग, ग. ३७
ता ता ग गा थो करालीः २७७ वारिशाला, वितान, विज्ञान. ज, त, ग, ग. ३८
जते गगे वारिमाला. छंदःप्रभाकरमां वितानना गण स, भ, स, पकल्या थे, पण तेदा मापनो अतिमोहा ५२ मा रूपनो छे, एट र अगिताय ग्राह्य नथी. वळी वाग्बालभ तथा भार.छंदोमंजरोमां पण वितानना गण ज, त, ग, ग. छे. • २७८ वान्तभार,
न, त, ग, ग. ४. न त ग गावान्तमारे. २७९ सिंहलेरखा.
र, ज, ग, ग. ४१ राजगी ग सिंहलेखा. २८० दिगीश.
स, ज, ग, ग. ४५ सज गाग छे दिगीशे. २८१ सारावनदा.
त, ज, ग, ग. ४५ सारावनदा त जाग्गे. २८२ कृष्णगतिकाः
म. न, ग, ग. ४७
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• अनुष्टुप् छंद.
वनेल.
कृष्णगतिका भ जाग्गे. २८३ प्रतितीरा, खंजा, खंज.* म, भ, ग, ग. ४९
__ मो भे गी गे प्रतिसीत. - 1 एक मागधी पिंगळ, जेना उपर चित्रसेननी टीका छे, तेमां खजानी 55-55-115-5 प्रमाणे मात्रा करी मात्रामा दाखल कर्यो छे, पण बीमा विजोगांधी उार माप थां, तथा आज प्रमाणथी ते वर्णभेक्नो सिद्ध थतां मा दाबल को छ.
* गगप्रस्तार प्रकास. २८४ अतिमोश.
स, भ, ग, ग, ६२ सप गागे अतिमोहा. २८५ चारीश.
ज, भ, ग, ग. ५४ जभेग गे परीहा. २८६ चित्रपदा, चित्रपद. म, भ, ग, ग. ५६
चित्रपदा भ भ गागे. २८७ वृतमुखी.
न, भ, ग, ग. ५६ तमुखी न भनीगे. २८८ इंसा ', हंसपदी. म, न, न, ग. ५७
माने सका था. १ छोनंजरीमा हंसकृत नागले. २ छंदोलता. २८२ संध्या, वोशा (गण. प्र. प्र.). त, न, ग, ग. ६१
संध्या तन गग आवे. २९० तुंगा, तुंग, तुरंग (द प्रभाकर). न, न, ग, ग. ६५
ननगग कर तुंगे. २९१ विहावा.
य, य, ल, ग. ७४ विहाया य या ला गथी.
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रणपिंगळ..
समवृत्त
२९२ हेमरूप..
र, र, ल, ग. (३ हेमरूपे र रा लगी. २९३ शल्लकप्लुत.
स, र, ल, ग. ८४. स.ल गा शल्लकप्लुते. २९४ नाराचिका, नाराच, आणंद,
त, र, ल, ग. (५ आनन्दरूपक.
नाराचिका त रा लगे. २९५ प्रमाणिका, प्रमाणी', पावाणी,
अर्द्धनाराच,सामाणी,प्रवाणिका, ज, र, ल, ग. ८६ बगस्वरूपिणी, लघुनाराच२. ।
प्रमाणिका ज स ल गे. १. मंदारमरंदचंपूनी टीकामां केहेछे के, कोइ प्रमाणी एq नाम पण आपछे. २ नानक गुरुनी कवितामा नराज एवं नाम आपेछे.
राग. परज ताल जलद दादरो (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) २९६ नराची, नाराची. भ, र, ल, ग. (७
भा र ल गा नराची मां. कोइ पिंगळकार आ वृत्तने लघुनाराच केहेछे. पण ते अयोग्य छे. २९७ उपलिनी, कृतवती. न, र, ल, ग. ८८
उपलिनी न से लगे. २९८ कलिला, करिला. .स, स, ल, ग. ८९
कलिला स स ला ग थी. २९९ कुमारललिता', कुमारिका. ज, स, ल, ग ९४
जसालग पदे धरो,
कुमारललिता करो. १. वृत्तरत्नाकर नी नारायणभट्टी टाकाना २९८ टिप्पणमा लेख छ के,
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८ अनुष्टुप् छंद.
वर्णमळ.
कुमार ललिता ज्सौ गौ इति सूत्रं कचित् पण जसगग मापवाळु भर्ग वृत्त २७२ मे अंके जूनुं छे. जसग एवा मापनुं कुमार ललिता नामनुं वृत्त अंक १५६ मे उष्णिकनुं ३० मुं रूप छे. २ गणप्रस्तारप्रकाश.
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३०० लसदसु, कमल, पद्म, कमला २. न, स, ल, ग. ९६ लसदसु नसा लगे.
१ मनहरपिंगळमां कमला छे पण बृहतिनो २५६मो भेद कमला थार्य छे. वळी छंदो वृत्तमुक्तावलिमां पण कमल नाम नीकळेछे मांटे कमल खरुं छे. २ मागधी पिंगळछंदोग्रंथ.
३०१ सरधा.
३०२ वितान.
३०३ माणवक, माणवकक्रीड, माणवकक्रीडित, पायक, 'नरक्रीड, मानवक्रीडा, सुरक्रीडा, ' माणव
३०४ माण्डवक
३०५ हठिनी.
सरधा साता लग थी.
स, त, ल, ग. १००
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वितान जा ता लग थी.
ज, त, ल, ग. १०२
भूत लगा, माणवके. चार परे, छेद टके.
राग सारंग, ताल जलद दादरो. (संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे.) मंदार मरंदचंपू पण माणवक " नुं माप तथा यति आ प्रमाणे आप्यां छे.
66
१ गणप्रस्तार प्रकाश.
३०६ श्रद्धरा, उद्धरा.
भ, त, ल, ग. १०३
न त लगा माण्डवके.
न त, ल, ग. १०४
मो जा ला ग थी हठिनी.
म, ज, ल, ग. १०६
र, ज, ल, रा. १०
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२५८
रणपिंगळ.
समत.
श्रद्धरा र जा लग थी. ३०७ विद्या, उध्या.
त, ज, ल, म. १०९ विद्या त जला ग थकी. ३०८ अरालि.
ज, ज, ल, ग. ११० अरालि जना लग थी. ३०९ अखनि.
न, ग, ल, ग. ११२ अनि न जा ल ग थी. ३१० कुरुवरी.
र, भ, ल, ग. ११५ राभलागे कुरुवरी. ३११ गजगति. ४, ४ वर्ग याी. न, भ, ल, ग. १२०
नभलगे, गजाति,
चतुर पें, धर यति. ३१२ शिस्विलिखिता, हंसकृत. म, न, ल, ग. १२१
नालागे शिस्विलिखिता. ३१३ ईडा, ईला.
त, न, ल, ग. १२५ . ईडा त न ल ग थकी. ३१४ अरि.
___भ, न, ल, ग. १२७
भा न ल ग अरि विषे. ३१५ हरिपद, हृतपद. न, न, ल, ग. १२८
हरिपद न न लगे. ३१६ नागारि.
स. य, ग, ल. १४० सय गा लथी नागारि. ३१७ लक्ष्मी.
र, र ग, ल. १४७ रार गा ला थी लक्ष्मी ज.
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' अनुष्टुप छंद.
वर्गमेछ
३१८ वलीकेन्दु.
. स, र, ग, ल. १४८ स र गाले वलीकेन्दु. ३१९ अमानिका.
अयानिका जरा गा ल. ३२० नवरदा, मालती. न, र, ग, ल. १५२
नावरदा न रागा ल. ३२१ हरित
न, स, ग, ल. १६० हरित न स गाला थी. ३२२ किकु.
त, त, ग, ल. १६५ ता ता ग ले थाय किष्कु. ३२३ मलिका, समानिका । र, ज, ग, ल. १७१ मालिका, मदनमल्लिका. चार वर्णे यति.
मल्लिका र, जा गले थो. ३२४ ताणी. (मा. पि., पं.) म, भ, ग, ल. १७७
ताणी गा भा ग ल थीज. राग विध्य होंडोल जाति एक ताल मध्य काळ तिश्र (संगीत छंदो
जरी प्रा). १ वळ मंदार मरंद चंपूनां पण नाम तथा यति आ प्रमाणे छे. ३२५ अनुतनर्म, नृतनम (छंदःप्रभाकर.)स, भ, ग, ल. १८०
सानम स भ गाल. ३२६ अमरन्दि, हनुमन्त. त, भ, ग, ल. १८१
ता भाग ले अमरन्दि. ३२७ कुउचारि.
ज, भ, ग, ल. १८२ जभा गले कुलचारि. १२८ दीपका.
स, न, ग, ल. १८६
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रणपिंगळ.
दीपका स न गले थी. १२९ करंजि.
ज, न, ग, ल. १९० करंजि ज न ग ले थी. ३३० वृन्त.
स, म, ल, ल. १९६ सम ला ला वृन्ते कर. ३३१ शाखोटकि.
ज, म, ल, ल. १९८ ज मा ल ले शाखोटकि. ३३२ पञ्जरि.
भ, म, ल, ल. १९९ भू म ल ले थी पंजरि. ३३३ अप्रीता, प्रीता, अतिप्रीता, )
'न, म, ल, ल. २०० अलिपीता.
नमल ले ऽपीता रच. ३३४ मन्थरि.
म, य, ल, ल. २०१ मा या लाल थी मन्थरि. ३३५ वातुलि.
य, य, ल, ल. २०२ य या लाल थी वातुलि. ३३६ रामा. (छंदःप्रभाकर) त, य, ल, ल. २०५
रामा त य ला ले रच. ३३७ भाषा, भासा, संभाषा, ।।
संभासा.
य, र, ल, ल. २१०
रचो भाषा य स ल ल. ३३८ विपुला. (छंदःप्रभाकर.) भ, र, ल, ल. २१३
छे विपुला भरा ल ल. २३९ पाकलि.
न, र, ल, ल. २१६
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८ अनुष्टुप् छंद.
वर्णमळ.
न र ल ले थी पाकाल. ३४० अमना, अमनसु. स, ल, ल, ल.. २२०
अमना स स लालथी. ३४१ आकतनु.
ज, त, ल, ल. २३० जताल ले आकतनु. ३४२ अरवेट.
र, ज, ल, ल. २३५ रज्ल ले अखेट रच. ३४३ अतिजनि.
म, भ, ल, ल. २४१. मो भा ला ले अनिजनि. ३४४ सृतमधु.
स, भ, ल, ल. २४४ स भ ला ले सृतमधु. ३४५ मरु.
ज, भ, ल, ल. २४६ जभाल ले रच मरु. ३४६ चयन.
य, न, ल ल. २५० यनालाल थी चयन. ३४७ कुशक.
र, न, ल, ल. २५१ रानला लथी कुशक... ३४८ निरुद, निरद
स, न, ल, ल. २५२ सनलालथी निरुद. २४९ सन्धुक
त, न, ल, ल. २५३ सन्धुक तनल ल थी. ३५० क्षर, शुर.
ज, न, ल, ल. २५४ जनालल क्षर धर.
. ३५१ वेपि. शि.
भ, न, ल, ल. २५५
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२६२
रणापंगळ.
समस्त.
वेषि भ न ल ल था. ३५२ कृतयु, कृपयु, नरहरी.१ न, न, ल, ल. २५६
ननल लथा कुलपु.
१ गणप्रस्तारप्रकाश.
९बृहतिछंद. ५१२भेद थायछे. नव वर्ण, ३५३ रूपामाली, रूपमाला, रूपमाली, रूपा. म, म, म. १
रूपामाली माहे मा मा मा. ३५४ मेघालोक.
य, म, म. २ यमो मा आवे मेघालोके. ३५५ स्निग्धा', मणिमध्या. ५, ४ यति. म, म, म. ७
भो मम आणो, स्निग्धा जाणो. मंदारमरंदचम्पू. ३५६ मायासारी.
न, य,म. १६ नियम थकी मायासारी. ३५७ खेलान्य.
म, स, म. २५ ___ मा सा मा रचनो खेलाढ्ये. ३५८ उदरश्रि, उदरस्रक, उदरासक'. स, स, म. २८
उदरश्रि स सा मे थाशे. १ आ मापनो छंद नागराजपिंगळमां बिम्बा करीने लख्यो छे, पण ते भूल छे, केमके ३६७मे अंके ९६मो भेद ए नामनो छे. ३५९ वैसारू, वैसार.
त. स, म. २९ जाणो त सम थी वैसारू. ३६० निर्विन्च्या, निर्वन्ध्या. ज, स, म, ३०
जसाम करतां निर्विघ्या.
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८ बृहति छंद.
वर्णमेळ.
३६१ कर्मिष्ठा, किर्मिष्ठा.
भ, स; मः ३१ भुस म रचतां कर्मिष्टा. ३६२ धृतहाला.
म, भ, म. ४९ मा भामा थी धृतहाला छे. ३६३ कलहः
स, में, म. ५२ कलहे साभम आवेछे. ३६४ अपनपताका.
म, न, म. ६७ मा ना मा ऽयनपताका छे. ३६५ रंभा.
त, न, म. ६१ रंभा तनम थकी था. ३६६ भुजगशिशुभृता-वृता-सृता-युता) ७, २ यति. अहिशिशु' भुजगशशिभृता,
न, न, म. ६४ भुजगशिशुसुता, जुकता.
भुजगशिशुमृता, नन्मे. १ गणप्रस्तार प्रकाश. २ आ नाम वृत्तरत्नाकरनी नारायणमही टीकामा आप्युं छे. पाठांतरने लीधे भित्र भित्र नामो थयां छे. ३६७ विशल्य,
___य, य, य. ७४ विशल्ये य कागे अणे छे. ३६८ बिम्ब, बिम्बा, ललित तिलका.) न, स, य. ९६ विश्वा, पंक, पंका.'
न स य धर विम्बमा तुं. मागधी पिंगळ छंदोग्रंथ. ३६९ अर्धक्षामा.
__म, त, य. ९७ अर्धक्षामा मा त य आण्ये.
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रणपिंगळ.
-
समवृत्त.
३७० सम्बुद्धि.
स, त, य. १०० स त ये सम्बुद्धि बनेछे. ३७१ शम्बरधारी.
भ, त, य. १०३ शम्बरधारी भ त ये छे. ३७२ महर्ष.
ज, ज, य. ११० महर्ष ज जा य थकी छे. ३७३ शरलीढा.
न, ज, य. ११ न ज य थकी शरलीढा. ३७४ कांसीक.
म, न, य. १२१ कांसीके म न य करोजी. ३७५ सुगन्धि.
स, न, य. १२१ स न ये थी रच सुगंधि. ३७६ कामा.
त, न, य. १२५ कामा त न य करवाथी. ३७७ भौरिक, महालक्ष्मीका, ।
र, र, र. १४७ महालक्ष्मी, महालक्षी.
भौरिके रा र रा थायछे. ३७८ निभालिता.
स, त, र. १६४ स तरे थाशे निभालिता. ३७९ चारुहासिनी.
ज, त, र. १६६ जता र थी चारुहासिनी. भाषा छंदोमंजरीमा मात्रामेळमां छे. ८, ६=१४. ३८० भुजंगसंगता. ३, ६ यति. स, ज, र. १७२
स जरे, भुजंगसंगता.
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९ वृहति छंद.
३८१ रवोन्मुखी.
३८२ अवनिजा.
३८३ प्रवह्निका.
३८५ मधुमल्ली.
३८६ सहेलिका.
३८७ मदनोद्धरा.
३८८ करशया.
३८९ भद्रिका.
३९० शशिकरो.
३०१ अर्थ.
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३८४ हलोद्गता.
वर्ण मेळ.
ताजा र वोन्मुखी विषे.
a safaar जजार थी:
मधुमल्ली भरे बने.
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भोज र थकी प्रवह्निका.
भू भरथी मदनोद्वरा.
नजर थकी हलोद्गता.
करशया न भरे करो.
त, ज, र. १७३
भद्रिका र नरथी बने.
ज, ज, र. १७४
समरे शशिकरी बने.
भ, ज, रं. १७५
सहेलिका रच जा भरे.
२६५
न, ज, र. १७६
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स, भ, र. १८०
ज, भ, र. १८२
भ, भ, र. १८३
न, भ, र. १८४
र, न, र. १८७
स, न, र. १८८
नन र चरण अर्थमां. नागपिंगळ, चित्रसेनटीका अने पिंगळ छंदोग्रंथ.
२३
न, न, र. १९२
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रणपिंगळ,
समवृत्त,
३९२ मणिबंध, मणिमध्य. ५,४ यति* भ, म, स. १९९
तुं मणिबंधे, भाम स दे.
___ पांच श्रुतिये, तुं यति दे. संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे आ वृत्त श्रीरंजनी रागमां गवायछे. ताल चतुश्र जाति प्रतिध्रुव छे.
* छंदः प्रभाकरमा यति कह्यो नथी, पण श्रुतबोधनी टीका अने छंदरत्ना वलीमा प्रथम पांच वर्ण अने त्यार पछी चार वर्णे यति कह्यो छे. ३९३ मुखला, सारंगिका, सारंग, रंगीका, २सारंगिक, सारंगिय, सारवक, ३मथना.,
न यस बनावे मुखला. १ मनहरपिंगळ. २ छंदःप्रभाकरमा मात्रामेळमां छे. ३गणप्रस्तारप्रकाश. ३९४ निषध.
भ, र, स. २१५ भू र स थायछे निषधे. ३९५ रनकरा, १रलका. ____म, स, स. २१७
थाशे रत्नकरा म स से. गणप्रस्तारप्रकाशमांथी. ३९६ अर्द्धकला.
स, स, स. २२० सस से रच अर्द्धकला. ३९७ रञ्जकः
भ, स, स. २२३ भा स स धर रञ्जक मां: ३९८ वीरा, अबीरा, पापित्ता, पवित्रा,)
पाइत्ता, प्रथिता, प्राप्ति, पायत्त म, भ, स. २४१ पायत्तारु,१ पादाताली.२
वीरामां मा भ स धरजो. ६ मागधीपिंगळ छंदोग्रंथ. २ गणप्रस्तारप्रकाश.
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९ बृहति छंद.
वर्णमेळ.
३९९ अनवीरा.
स, भ, स. २४४ अनवीरा स भ स थकी. ४०.० प्रियतिलका.
भ, भ, स. २४७ भू भ स थी प्रियतिलका. ४०१ हलमुखी, हरमुख, हलनमुख.१ र, न, स. २५१
रान से, कर हलमुखी,
छे त्रणे, पंट पर यति. १ गणप्रस्तारप्रकाश. ४०२ आकेकर, पद्मावती (छंदसार (भाषा.) त, न, स. २६३
आकेकर कर त नसे. ४०३ धौनिक.
भ, न, स. २५५ धौनिक रच भ न स थी. ४०४ मदनक, रतिपद, कमला, .. कम्बलया', द्रुहणा२. ।
न, न, स. २५६ मदनक न न स थकी. १ मागधीपिंगळ छंदोग्रंथ. २ गणप्रस्तार प्रकाश. ४०५ वल्गा.
त, त, त. २९३ वल्गा विषे ता त ता धार. ४०६ कीटमाला.
स, ज, त. ३०९ स ज ते थी कीटमालान. ४०७ मसृण.
न, न, त. ३२० ममृण न न त थी थाय. ४०८ लीला.
__न, य, ज. ३६६ न य ज थी लीला रचाय,
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२६८
रणपिंगळ.
समवृत्त
४०९ वारिधियान.
भ, त, ज. ३५९ भा त ज थी वारिधियान.. ४१० तोमर.
स, ज, ज. ३६४. स ज जे थी तोमर थाय. छन्दोमंजरीमा श्री गजाधरे मात्रामेळमां दाखल करेल छे.
ज, ज, ज. ३६६ कुहू कर जाज ज थी तु. ४१२ भैरव.
न, ज, ज. ३६८ नज जी भैरव थाय. गणप्रस्तारप्रकाशमां आने ११ मात्रानो ८१ मो भेद गग्यो छे ते वर्णवृत्त थइ जायछे माटे अहिं दाखल कर्यो छे. ४१३ कठिनास्थि, अहीरि. भ, न, ज. ३८३
___ भा न ज कर कठिनास्थि. ४१४ विकचवती.
न, य, भ. ४०० विकचवतीमां ना य भ. ४१५ वन्दारु,
म, स, भ. ४०९ वन्दारु मस भे थी रच. ४१६ दधि, उदधि, शुभोदर.१ भ, भ, भ. ४३९
छे दधिमां त्रण भू गण. १ गणप्रस्तारप्रकाश. ४१७ स्फुटघटिता.
न, य, न. ४६४ स्फुटघटितामां न य न. ४१८ चुलक, कुमुद.
न, न, न. ५१२ त्रण न गणी नुलक.
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वर्णमेळ.
२६९ १० पंक्तिछंद. १०२४भेद थायछे.दश वर्ण. ४१९ पद्मावत.
म, म, म, ग. .१ मा मा मा गा आवे पद्मावर्ते. ४२० शेफाली.
य, म, म, ग. २ ___य मा मा गा थी थाशे शेफाली. ४२१ धूम्राली.
य, य, म, ग. १० य या मा ग थी थाशे धूम्राली. ४२२ नीरोहा.
स, र, म, ग. २० स र मा गे बनेछे नीरोहा. ४२३ वीरान्ता.
ज, स, म, ग. ३० जसा म ग थकी वीरान्ता छे. ४२४ निर्मेधा.
न, त, म, ग. ४० न त म गे थाय निर्मेधा तो. ४२५ मध्याधार.
‘म, भ, म, ग. ४९ मो भो मागो धर मध्याधारे. ४२६ वंशारोपी.
य, भ, म, ग. ५० ___ य भा मा गा थकी वंशारोपी. ४२७ बिन्दु, बन्धूक.
भ, भ, म, ग. ५६ विन्दु विपे भ म मा गा आणो. गणप्रस्तारप्रकाशमां बन्धूक नाम आपी तेनुं रूप ८७मुं दर्शाव्युं छे, ते ५५मुं जोइये. ४२८ कूल.
त, न, म, ग. ६१ छे कूल त न मगा आण्याथी. ६२९ बोधातुरा, सकृदयोधा. य, म, य, ग. ६६
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२७०
रणपिंगळ.
समवृत्त.
य मा या गा बोधातुरामां छे. ४३० सुराक्षी.
न, य, य, ग. ८० न य य ग आणो सुराक्षीमां. ४३१ कलापान्तरिता.
य, स, य, ग.९० कलापान्तरिता य से या गे. ४३२ द्वारवहा, भारवहा. र, त, य, ग. ९९
रात योगा द्वारवहा वृत्ते. ४३३ विशदच्छाय, 'कलगीत.५,५यति. स, त, य, ग. १००
विशदच्छाये, सत योगा छे. १ आ नाम तथा यति “ मंदारमरंद चंपू" मांछे. ४३४ इन्द्र, ऐन्द्री.
ज, ज, य, ग. ११० जजा य ग थी रच ऐन्द्री तो. ४३५ हीराङ्गी, प्रणव.१ ५,५ यति. म, न, य, ग. १२१
हीराङ्गी रच, मन योगे थी.
पांचे बे यति, धर छोगेथी. १ गणप्रस्तार प्रकाशमां आनुं "प्रणव" एवं नाम आप्यु छे. ४३६ हेमहास, वाला, बाला. र, र, र, ग. १४७
हेमहासे रची राररागो. ४३७ आन्दोलिका. ५,५ यति. त, त, र, ग. १६५
आन्दोलिका छ, त तारगा थी. ४३८ मयूरसारिणी, शिखिसारिणी. र, ज, र, ग. १७१
__ छे मयूरसारिणी रजा गें. पादान्तयति. ४३९ सुखेला.
स, ज, र, ग. १७२ सज राग थायछे सुखेला.
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.१० पंक्ति छंद.
४४० नमेरु.
'४४१ गणदेहा.
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ताजा र ग थी रचेो नमेरु.
४४५ केर.
वर्णमेळ.
नय सग आणो नरगामां.
४४४ पसरा. ३, ७ यति.
गणदेहामा सामसगा छे.
४४२ चंपकमाला, चंपामाली, रुकावती, रुक्मावती, रूपवती, सौभाग्यवती, पंचकमाला. भू मसगाथी, चंपकमाला.
२
राग छाया, ताल चतुश्र जाति त्रीताल (संगीतानुसार छंदोमंजरी ) चंपामाली नाम गणप्रस्तारप्रकाशमां छे.
* श्रुतबोध, छंदरत्नावलि तथा मंदारमरंद चंपूमां ५, ५ यति को छे पण छंदः शास्त्र तथा प्राकृतपिंगल सूत्रमां पाळ्यो नथी.
२ छंदोबोधमां कोइना के हेवाथी.
४४३ नरगा.
वर्णे, प्रसरा मससंगे, त्रीने छे, यति सात प्रसंगे.
४४६ उदित, कीर्त्ति. १
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२७१
त, ज,र,ग. १७३
स, म, स, ग. १९६
भ, म,स,ग. १९९
(* पादान्ते यति.
केटलाक के छे.)
न, य, स, ग. २०८
म,स,स,ग. २१७
रम करजो रससंगा.
र, स, स, ग. २१९
स,स,स,ग. २२०
उदिते रचजो सससं गा.
१ छंदः प्रभाकरना कर्त्ता ए नाम नवुं गणेछे, पण ते वृत्त प्रथमथीज
बीजा ग्रंथोमां छे.
४४७ मत्ता, माता. ४, ६ यति.
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म, भ,स,ग. २४१
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ર૭ર
रणापेंगळ.
समहत्त,
मत्तामांहे, घर म भ सागा,
चारे छठे, यति कवि! गागा. राग कालिंगडा, ताल चतुश्र जाति त्रीताल (संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
गगप्रस्तारप्रकाश पिंगळमां माता नाम छे. ४४८ बलधारी.
स,भ,स,ग. २४.४ वलधारी कर सभ संगे. ४४९ अचलपंक्ति, वालिका. र,न,स,ग. २५.१
रान साग थी अचलपंक्ति. ४५० असितधारा.
स,न,स,ग. २५२ सनसंग थी असितधारा. '४५१ उन्नाल.
त,न,स;ग. २५३ उन्नाल तनसग थकी छे. ४५२ निरतिक.
ज,न,स,ग. २५४ निरंतिक रच जन संगे. ४५.३ उपधाय्या.
भ,न,स,ग. २५५ भा न स ग थकी उपधाय्या. ४५४ तनिमा, वाणी (मा. पिं. छ.ग्रं.) न,न,स,ग. २५६
न न स ग कर तनिमामां. ४५५ विशालान्तिक.
त,त त,ग. २९३ ता तातगा छे विशालान्तिके. १४५६ विशालप्रभ.
ज,त,त,ग. २९४ जतात गा छे विशालपमे. ६४५७ चरपद.
नतात,ग. २९६ चरूपदे नात वागा धसे.
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१० पंक्ति छंद.
४५८ उपसंकुला.
४५९ खेदक.
४६० वर्हातुरा.
४६१ नीराञ्जलि.
४६२ दीपकमाला.
४६३ कर्णपालिका, कामदा, ५, ६, यति
वर्णमेळ.
उपसंकुला सजाताना थी.
भाजन धारजे खेटके.
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स,ज, त, ग. ३००.
बहरा रचताभात गे.
२ आ नाम तथा यति "मंदारमरंदचंपूमां" छे.
४६४ सराविका.
भ,ज, त, ग. ३०३
नीराञ्जाल रच ता ना त गे.
४६५ मनोरमा ६, ४ यति
१ मंदार मरंदच प्रमाणे.
त, भ,त,ग. ३०९
दीपकमालामां भमाज गा. मालिका. २
४६६ विराट, शुद्धविराट. पादन्ते यति.
त, न, त, ग. ३१७
राय जाग थी, कर्णपालिका
१ संगीतानुसार छंदोमंजरीमां आ नाम छे तेमां राग केदारी, ताल
चतुश्र जाति त्रीताल जणावेछे.
२७३
भ, म, ज, ग. ३२७
जराजगा थकी सराविका.
र, य, ज, ग. ३३१
ज, र, ज, ग. ३४२.
नर जगा थकी, मनोरमा.
न, र,ज, ग. ३४४
म, स, ज,ग. ३४५
मासा जाग थकी विराट छे.
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४६८ सहजा.
२७४
रणपिंगळ.
४६७ अक्षरावली', लालिनी. रा स जा ग थ अक्षरावली.
१. मंदार मरदचंपू प्रमाणे.
४६९ अहिला.
४७० कुप्य.
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४७१ अनुचायिताः
४७५ जरा.
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सहजा स स जाग थी बने.
४७२ वर्मिता.
के' वाय अहिला तसा ज. गे.
र, स,ज,ग. ३४७.
स, स, ज, ग. ३४८
कुप्य रच कवि भ सा ज गे.
जरा रत्र वृत्त न जाज गे.
समवृत्त.
त, स, ज,ग. ३४९
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न्स ज ग अनुचायिता विषे.
भ, स, ज, ग. ३५१
न, स, ज, ग. ३५२.
वर्मिता रचाय र जा ज गे. ४७३ संयुता, संहतिका, संयुगा, संयुत,
'संजुती, संयुक्ता, संगतिका,
संजुक्ता, गीतक, संजुता, कमला. सजजाग थी, यति पांचमे. रच संयुता, शुभ ए क्रमे.
१ मागधी पिंगळछंदोग्रंथ. २ आ नाम तथा यति मंदारमरंदचम्पूमां छे. ४७४ उपस्थिता. २, स्यति केटलाकने मते. त,ज,ज, ग. ३६५
ताजा, जग थाय उपस्थिता.
र,ज,ज, ग. ३५३
स,ज,ज, ग. ३६४
९, ५ यति.
ज,ज,ज,ग. ३६६
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१० पक्ति छंद..
वर्णमेळ.
२७५
४७६ भिन्नपद.
भ,भ,ज,ग. ३७५ भिन्नपदे रच भ भा ज गा. ४७७ वडिशभेदिनी.
न,भ,ज,ग. ३७६ नभ जगे वडिशभेदिनी. ४७८ पणव'. ५, ५ यति.२ म,न,ज,ग. ३७७
माना जा ग थी, पणवे करो.
पांचे ने शर, यति तो धरो. १ छंदःशास्त्रमा आ वृत्तनुं माप मन य ग लख्युं छे, पण तेवू अं० ४६५ मे हीरांगी छे. छंदोबोध तथा छंदःप्रभाकरमां पण एनुं माप मन यगछे. __२ मंदारमरंदचम्पू तथा वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीमां आ प्रमाणे यति लख्यो छे. ४७९ चितिभृत.
न,न,ज,ग. ३८४ चितिभृत रच न ना जगे. ४८० पावक, पत्ति (मा. पिं. छं. ग्रं.). भ,म,भ,ग. ३९१
पावकमां आणो भामभगा. ४८१ सुषमा, वामा, 'सुषुमा. त,य,भ,ग. ३९७
ताया भग थी थाशे सुषमा. १ गौड पिंगळ. ४८२ फलिनी, चारुमुखी (छंदोलता). न,य,भ,ग. ४००
नयभग थी थाशे फलिनी ४८३ सुरयानवती.
सस,भ,ग. ४१२ - सुरयानवती सोस भ गे. ४८४ बिरल, कटिका.
भ,स,भ,ग, ४१५
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ટ્
४८५ छलितक:
४८६ प्रवादपदाः
रॅपिंगळे,
थाय विरल मां भास भगा.
४८७ वारवती.
४९१ शरत.
छलितके आण ना त भ गां
४८८ परिचारवती.
४९३ गहना.
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समभागे र वारवती.
४८९ काण्डमुखी.
सज भाग छे प्रवादपदा.
ता भाभ गे परिचारवती.
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४९४ फलधर.
४९५ धमनिका.
नं, त, भ, ग. ४२४
3
जभा भगे कर काण्डमुखी. ४९० विश्वमुखी, सारवती, सारस्वती. भ, म,भ,ग. ४३९
भाभंभ में रच विश्वमुखी.
सं.ज. भ. ग. ४२८
समवृत्त.
स.भ. भ. ग. ४३६
शरतमा कर ना भ भ गा.
४९२ इन्दुमुखी, चन्द्रमुखी (चंदोलता) त, न, भग. ४४६
दुख भोगवडे.
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त, भ, भ. ग. ४३७
ज,भ,भ,ग. ४३८
भानभग थर्को छे गहना.
फलधर रच ना न भ गे.
नं,भ,भ,ग. ४४०
भ,न,भ,ग. ४४७
नं,न,भ,ग. ४४८
स जना ग थीम धमनिका.
स, ज,न,ग. ४९२
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१० पंक्ति छंद.
वर्णमेळ.
४९६ मृतिलका, अमृतगति,१ । न,ज,न,ग. ४९६
त्वरितगति, अमृततिलका,२ कुलटा,३ सुआगा.४ ) ५,६ यति.
भूमतिका, न जनग थी. १ छंदोवृतमुक्तावलिमा अगाले नाम छ, गण मळेछे, पण तेमा यति
कहा नवी. २ वाणीभूग. ३ मंदारमरंदचन्नू प्रमागे. ४ "सुधागा” नान गगप्रस्तार में शां छे. ४९७ हंसी, हंसपद.१ ४, ६ यति.२ म,भ,न,ग. ४९७
हंसी माहे, रच म भ न गा. १छोलता. राग यदुकुल कांबोधी ताल मिश्रगारगी पंचक. सं. छं. मं.
होत ...... जालना ... याते आ प्रमाणे ज चलो अने अंदाक्रांताथी छेला सात अक्षर ओछा एतु माप आप छे. ४९८ कृतमणिता, मणिता. भ,न,न,ग. ५११
भान न ग थी कृतगणिता. ४९९ मकरगुची.
नन,न,ग. ५१२ नननग थी मा.मुखी. ५०० महिमावसायि.
सभर ल. ६९२ सभराले महिमावसायि. ५०१ कामचारि.
त,भ,र,ल. ६९३ ताभार ले रच कामचारि. ५०२ नेमधारि.
ज,भ,र,ल. ६९४ ज भा र ले रच नेमबारि. ५०३ हीरलंबि.
भ,भ,र,ल. ६९५ भाभ र ले कर हरिलंबि.
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२७८
रणपिंगळ,
समवृत्त
A
mwwwwwwwwwravave.wwwwwwwwww...m
५०४ वनिताविनोदि.
न,भ,र,ल. ६९६ न भर ले वनिताविनोदि. ५०५ विरेकि.
र,न,र,ल. ६९९ रानरांल थकी छे विरेकि. ५०६ कुकवादि.
न,र,स,ल. ७२८ नरसले बने कुकपादि. ५०७ लुलित.
स,स,स,ल. ७३२ लुलिते स स साल रचाय. ५०८ सारस. (गणप्रस्तारप्रकाश). न,स,स,ल. ७३६
नस स ल थों सारस थाय. ५०९ रसभूम.
स,ज,स,ल. ७४८ सज साल धार रसभूम. ५१. चारुचारण.
रन,स,ल. ७६३ चारुचारण रन स ला थी. ५११ सरोज. (गणप्रस्तारप्रकाश.) स,न,स,ल. ७६४
स न साल थी रच सरोज. ५१२ सरसमुखी.
तन,स,ल. ७६५ ताना स ल सरसमुखीन. ५१३ ऋत.
न,न,स,ल. ७६८ ऋत रच ननसल थीज. ५१४ कीलाल.
भ,म,त,ल. ७७५ भा मतला कीलाले आणज. ५१५ खौरलि.
न,य,त,ल. ७८४ न य त ल आण्येथी खौरलि.
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११ त्रिष्टुपछंद.
वर्गमेळ.
२७९
५१६ कामनिभा.
म,स,त,ल. ७९३ जाणो कामनिभा भासात ल. ५१७ विखंसि.
न,स,त,ल. ८०० न स त ल थकी विसंसि ज. ५१८ नीरनिधि.
न त न ले थाय नौरनिधि. ५१९ कृतकवलि.
न,न,न, ल. १०२४ न न न ल ाँ कृतकवलि. ११ त्रिष्टुपछंद. २०४८ भेद छे. वर्ण ११ ५२० माला', मालती, भारती,
। म,म,म,ग,ग. १ हीमाली२, मारती.
मामामागागा आवे माला माहे. गणप्रस्तारप्रकाशमां आने २२मात्राना सामान्य नाम कमन्दनु पेहेलु रूप गण्डे छे.
१ छंदोवृत्तमुक्तावलिमां आ नाम छे. २ गणप्रस्तारप्रकाशमांश्री. ५२१ आराधिनी.
त,म,म,ग,ग. ५ आराधिनी मांहे तामा मा गा गा. ५२२ अमालीन.
य,य,म,ग,म. १० अमालीनमां के साया मा गा गा. ५२३ मेघध्यानपूर.
त,य,म,ग,ग. १३ मेघध्वनिपूरे ता या मा गागा. ५२४ उद्धतिकरी.
भ,य,म,ग,ग. १५ उद्धतिकरीमा भायामागागा.
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२८०
रणपिंगळ.
समवृत्त.
५२५ अयोधा.
स,र,म,ग,ग. २० अयोधा विो सारीमा गंगा. ५२६ अंबिनिता.
म,स,म,ग,ग. २५ छे अंतर्वनिता मा सीमा गंगे. ५२७ प्रफुल्लकदली.
ज.स.म,ग,ग. ३० प्रकुलकदली जासामा गागे. ५२८ लक्षणलीला.
भ,त,म,ग,ग. ३९ लक्षणलीला भतामा गागेथी. ५२१ कूलिका, कलकाजी. मग,ग. ४३
कलिका रचाय राजामा गा गे. ५३० विलितममरी. न,ज,म,ग,ग. ४८
विलुलितमंजरी ना ज्मा गागे. ५३१ भरियक.
म,न,म,ग,ग. १७ ले भरिपक मा ना मा मागे. ५१२ कलितका लाला. न,न,म,ग,ग. ६४
पालिकमलबाला मांत्रावो,
ननम गग धरोने शोभावो. ५३३ मालतीमाला.
य,य,य,ग,ग. ७४ ययायाग गे मालतीबाला छे. ५३४ बल्लवीविलास.
र,य,य,ग,ग, ७५ बल्लनी विलासे र या या गागा. ५३५ विकसितपद्यारली. न,य,य,ग,ग, ८०
विकसितपमावली जो जाणो, न ययगगा एम एमां आणो.
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११ त्रिष्टुप छंद.
वर्णमेळ.
५३६ अमोघमालिका.
ज,र,य,ग,ग. ८६ अमोघमालिका जरा यागागे. ५३७ ललितागमन.
स,स,य,ग,ग. ९२. ललितागमने ससा या गागा. ५३८ संघलशोभासार. स,त,य,ग,ग. १००
___ स्तयगागा संतशोभासारे. १३९ ललितालबाल.
स,ज,य,ग,ग. १०८ ललितालबाल सजायागा गे. ५४० वातीहारी.
न,ज,य,ग,ग. ११२ नजय गगे कर वार्ताहारी. .५४१ उदितदिनेश.
ल,भ,य,ग,ग. ११६ सभ या अदितदिनेश गागा. १ वाग्वल्लभमां भ ने बदले न केहेछे पण सल व ग ग एणु रूप नीचे ५४३ मे अंके छे. ५४२ कडार.
रा,न,य,ग,ग. १२२ कडारे य न य गगा आदेछे. ५४३ सौवांघ्रि.
स,न,य,ग,ग. १२४ सनसागग थको सौराधि छे.
स.म.र,गका. १३२ समशेगीगाछे जालपादेतो. ५४५ दारदेहा, दारुहा. र,र,र,ग,ग. १४७
दारदेहा बने रार रागागे. ५४६ शिखंडित.
ज,स.र,ग,ग. १५८ शिखंडित विषे जा स रा गा गा.
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२८२
रणपिंगळ.
समवृत्त
५४७-सुधाधारा.
र,न,र,ग,ग. १८७ रा नरागग थकी सुधाधारा. ५४८ कुपुरुषजनिता. __न,न,र,ग,ग. १९२
कुपुरुषजनिता न ना र्गा गे. ५४९ कन्दविनोद.
भ,म,स,ग,ग. १९९ कन्दविनोदे भो म स गीगा छे. ५५० विलम्बितमध्या.
म,स,स,ग,ग. २१७ मासा सा ग्ग विलम्बितमध्यामां. ५५१ विष्टम्भ.
स,स,स,ग,ग. २२० स स सागग आण विष्टम्भे तुं. ५५२ क्रोशितकुशला. भ,स,स,ग,ग. २२३
क्रोशितकुशला भ स सा गा गे. ५५३ उपहितचण्डी.
स,भ,स,ग,ग. २४४ सभ सग्गा उपहितचण्डीमां. ५५४ श्रितकमला.
भ,भ,स,ग,ग. २४७ __ मूभ्स ग गे श्रितकमला थाशे. ५५५ रथपद, वृत्ता, सुकृति, । न,न,स,ग,ग. २९६ सुमनक', वक्त्रार, वृन्ता.) ४, ७ यति.
रथपद, रच न न सा गा गे.
यति धर, श्रुति पर तुं रागे. गणप्रस्तारप्रकाशमाथी. २ मंदारमरंदचम्पूमा ए नाम छे. ३ छंदःप्रभाकर. ४ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीका. ५५६ सुमेरु.
य,र,त,ग,ग. २७४ सुमेरुमा रचो यारा व गीगा.
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११ त्रिष्टुप छंद.
वर्णमेळ.
२८३
छंदःप्रभाकरना कर्ताए आने १९ मात्रानी जाति मानीने तेमां अंते यगण लाववानो नियम को छे तो ते चूकथी सुमेरुवृत्तने सुमेरु जाति मानी लीधी होय एम सहज अनुमान थायछे. ५५७ उपस्थित, शिखण्डित (शब्दकल्पद्रुममां) ज,स,त,ग,ग.२८६
उपस्थित विषे जा सा तगी गा. ५५८ शालिनी, मालिनी. ४,७ यति. म,त,त,ग,ग. २८९
माता तागा, गा धरो शालिनीमां. ४, ७ यति मंदारमरंदचंपू, शब्दकल्पद्रुम, तथा छंदोवृत्तमुक्तावलिमा कही छे. राग केदार ताल चतुश्र जाति उच्छव, विलंबकाळ. (संगीतानुसारछंदोमंजरी). मालिनी नाम गणप्रस्तार प्रकाशमां छे. ५५९ प्राकारबंध, ग्राही, विध्वंक- 1. माला, गंभीर'. त,त,त,ग,ग. २९३
प्राकारबंधे त ता ता ग गा छे. १ चित्रसेन टीकावाळा पिंगळ छंदोग्रंथमां गंभीर नाम छे.... ५६० विहारिणी, भासिनी. स,ज,त,ग,ग. ३००
रचवा विहारिणी-भासिनीमां;
स जताग गा धरो पाद सीमा. ५६१. बातोर्मी. ४,७ यति. म,भ,त,ग,ग. ३०५
वातोर्मीमां, रच माभा तगीगा. मंदारमरंदवंपूमा ४,७ यति कही छे.
शालिनी अने वातोर्मीना मिश्रणथी १४ आतिना उपजातियो थायछे. जोडाक्षरो आवेछे त्यां आ शोभेछे एम सुवृत्ततिलकमां लख्यु छे. ५६२ ईहामृगी. ४,७ यति. त,भ,त,ग,ग. ३०९
ईहामृगी, रच ता भात गीगे. ५६३ धीरा. (भाषाछंदोमंजरी) न,भ,त,ग,ग. ३१२
नभत गाग थी धीरा बनेछे.
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२८४
रणपिंगळ.
समवृत्त.
५६४ परिमलललित.
न,न,त,ग,ग. ३२० परिमलललिते पूर्ण प्रीते,
नन त ग ग करो ठीक रीते. ५६५ विलासिनी. (पादांते यति) ज,र,ज,ग,ग. ३४२
विलासिनी रचो जराज गागे. ५६६ विश्वविराट, मदान्धा. म,स,ज,ग,ग. ३४५
आणो विश्वविराट मांह प्रीते,
मा सा जा ग ग माप तो सुरीते. १ छंदोलता. ५६७ विमला.
स,स,ज,ग,ग. ३४८ विमला रचवा स साज गीगा. ५६८ सरोजवनिका.
ज,स,ज,ग,ग. ३५० सरोजवनिका जसाज गीगे. ५६९ अमन्दपाद.
भ,स,ज,ग,ग, ३५१ भू स्ज ग ग अमन्दपादमा छे. ५७० पंचशाखी.
न,स,ज,ग,ग. ३५२ न स ज ग ग थाय पंचशाखी. ५७१ इन्द्रवज्रा. ५,६ यति. त,त,ज,ग,ग. ३५७
ताता ज गा गे, कर इन्द्रवज्रा. छंदःशास्त्रमा पादान्ते यति केहेछे. श्रुतबोधमां पांचमे यति छे. मंदारमरंदचम्पूमां ५, ६ ए यति केहेछे. रागिणी नटभैरवी, ताल खंडषष्टीथकी गवायछे. (संगीतानुसारछंदोमंजरी) ५७२ उपेन्द्रवज्रा. ५, ६ यति जत,ज,ग,ग. ३५८
उपेन्द्रवज्रा, ज त जागगे थी. मंदारमरदचम्पूमा ५, ६ यति केहछे, छंदःशास्त्रमा पादान्ते यति
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११ त्रिष्टुमछंद.
वर्णमेळ.
२८५
केहेछे. श्रुतबोधमां पांचमे यति छ, तेम बोलवामां पण वपरायछे.
वामन शिवराम आप्टेना कोषमा इन्द्रवज्रा अने उपेन्द्रवज्रा बन्नेमा पांच छ ए यति कही छे, परंतु छंदोवृत्तमुक्तावलिमा बन्नेमा यति कही नथी. ५७३ *उपजाति', उपेन्द्रमाला२, आख्यानकी.
तानाजगी गा कदि पाद थाशे, ज ताजगीगा वळी तो रचाशे; ए मिश्रणे तो उपजाति जाणो,
त्रिष्टुपमांथी कवि! जोइ आणो. . * जुओ १२ अक्षरना मायावृत्त उपरनी आ विषेनी टीप.
१ संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे राग सिंधुरो कानरो, ताल सं- . कीर्ण जाति हंसनाद.
२ आ नाम मंदारमरंदचम्पूमा आप्युं छे.
आ स्थाने नीचे लखेलां नाम पिंगळोमा मळी आवेछे, अने ते इन्द्रवत्रा भने उपेन्द्रवज्राना मिश्रेणथी थयेलां छे.
इन्द्रवज्रा अने उपेन्द्रवज्रा मळी १४ भेद थायछे. तेनां उदाहरण भने प्रस्तार नीचे प्रमाणे छे, तेमां गुरुनी जग्याए इन्द्रवज्रा अने लधुनी जग्याए उपेन्द्रवज्रा जाणवा.:--
ssss चारे चरण इन्द्रवज्रानां. १ 15ss कीर्ति.* १ उपेन्द्रवज्रा, २ इन्द्रवज्रा,
ज,त,ज,ग,ग. त,त,ज,ग,ग. ३ इन्द्रवज्रा, ४ इन्द्रवज्रा.
त,त,ज,ग,ग. त,त,ज,ग,म. २ siss वाणी. १ इन्द्रवज्रा, २ उपेन्द्रवज्रा
३ इन्द्रवज्रा, ४ इन्द्रवज्रा. * आना १४ भेदनां उदाहरण छंदःप्रभाकर पृष्ट. १५९--६१ मे छे.
वागवल्लभमां कीत्ति नाम नथी तेथी वाणीथी प्रारंभ थतां क्रम फरी जायछे. एना १२ मे अंके वृद्धि छे अने १४ मे अंके मसणी छे.
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ફ્
ammar
३ 1155 माला.
४ Ss/s शाला..
4 15 15 हंसी.
६ St. 15 माया.
७ ।।15 जाया.
१० || भद्रा.
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२.१ ।।5। प्रेमा.
८ ssst बाला.
९ [ss | आर्द्रा १
रण पिंगळ.
१ उपेन्द्रवज्रा,
३ इन्द्रवज्जा,
१. इन्द्र ३ उपेन्द्र
"1
१ उपेन्द्र "
३ उपेन्द्र
१ इन्द्र "
३ उपेन्द्र
१ उपेन्द्र,,
३ उपेन्द्र "
उपेन्द्र
१ इन्द्र ”
३ इन्द्र
३ इन्द्र
१
ዓ
२ उपेन्द्रवज्रा
४ इन्द्रवज्रा.
२ इन्द्र "7
४ इन्द्र
२ इन्द्र
४ इन्द्र
२
19
४ इन्द्र * २ उपेन्द्र "
उपेन्द्र
३ इन्द्र
१ इन्द्र ”
"
4. गणप्रस्तारप्रकाशमां पावन. $ गणप्रस्तारप्रकाशमां बुद्धि.
17
75
""
19
३ इन्द्र ”
१२ss ।। रामा. + १ इन्द्र "
३ उपेन्द्र "
१३ | | | ऋद्धि. ९ १ उपेन्द्र
99
३ उपेन्द्र "
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उपेन्द्र
समवृत्त.
२ इन्द्र
४ उपेन्द्र
२ उपेन्द्र
४ उपेन्द्र
२ उपेन्द्र ४ उपेन्द्र
15
19
17
"
17
४ इन्द्र
२ इन्द्र 17
४ उपेन्द्र
139
99
"
"
17
""
"
97
२ इन्द्र "
४ उपेन्द्र
"7
२ इन्द्र "
४. उपेन्द्र x
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११ त्रिष्टुप छंद.
वर्णमेळ.
१४ ।।। सिद्धि. १ इन्द्र , २ उपेन्द्र ,,
३ उपेन्द्र , ४ उपेन्द्र, ।।।। उपेन्द्रवज्रानां चारे पाद... प्राकृत पिंगलसूत्रना की बुद्धि नाम भापेछे. तथा गणप्रसार प्रकाशमा ऋद्धि छे. आ उपरथी जणायछे के, जो बेज वृत्तनु मिश्रण थाय तो तेना मात्र १४ भेद थाय, पण बे करतो वधारे एटले त्रण के चार वृत्त मिश्रण थाय तो तेना घणा भेद थायछे.
गुरु अने लघु एवां बेज चिन्ह छे, माटे वे वृत्तना मिश्रणना भेदनो प्रस्तार भाई जणाव्या प्रमाणे थइ शकेछे, पण बे उपरांतनुं चिन्ह जणाववानुं साधन नथी तेथी तेनो प्रस्तार थइ शकतो नथी. पण ण वृत्तना मिश्रण- उपजाति वृत्त करतां बे पद तो एकनां आवे अने अककुं बीजार्नु आवे त्यारे चार पाद थाय तेनी चालवणी करतां चार मुख्य भेद किया किया मिश्रणथी थाव ते नीचे बताववामां आव्युं छे.
| पादांग. १ भेद. २ भेद. | ३ भेद. | ४ भेद. ।
م
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इ.
उ.
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م
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वं.
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س
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هه
४ ।
वं.
वं.
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उपर प्रमाणेनुं मिश्रण जोवामां आवेछे, पण एम करवु उचित नयी एम बार अक्षरना अंक ६९६ना माया वृत्तनी टीप जोवाथी जणाशे. एंटले आ ठेकाणे ए विषे विस्तार कर्यो नथी. ५७४ पटुपट्टिका.
स,ज,ज,ग,ग. ३६४ पटुपट्टिका स ज जा ग गे थी.
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૨૮૮
रणपिंगळ.
५७५ उपस्थिता. ६, १, यति. ताजा जगगाथ,
५७६ श्रुतकीर्त्ति, अनवसिता, माणिक्यमाला. १
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५७८ श्रमितशिखंडी.
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न य भ ग गा, लावो श्रुतकीर्त्ति
त,ज,ज, ग, ग. ३६५ उपस्थिता छे.
१ आ नाम मंदारमरंदचंपूमां छे, वळी तेमां ५, ६ उपर यति लखी छे. ५७७ वर्णवलाका.
५७९ माधो (गणप्रस्तारप्रकाश )
न, य, भ, ग, ग. ४००
५,६ यति.
स स भा ग ग थी वर्णबलाका.
५८० नीलसरूपी', नागसरुपी, दोधक, बन्धु, बधा.
स, स, भग, ग. ४१२
छे श्रमितशिखंडी भ्स भगी गे.
समवृत्त
भ, स, भ,ग, ग. ४१५.
सभ भागा ग थकी रच माधो.
स, भ, म, ग, ग. ४३६
भ, भ, भग, ग. ४३९
भो भ भ ग ग थी नीलसरूपी, दोधक बन्धु ज नागसरूपी;
पादान्ते यति होवानुं छंदः शास्त्रमां लखेछे. श्रुतबोधनी टीकामां ७, ४ ए . यति कही छे. छंदोवृत्तमुक्तावलिमां आमां कहेला गणोवाळु लीलसरोरुह वृत्त छे तेमां यति पाळी नथी. बधां नाम मागधी छंदःशतकमां छे. मागधी पिंगळ छंदोग्रंथमां पाठांतरे अन्ते बे लघु आणवा पण मत जणाव्युं छे.
संगीतानुसार छंदोमंजरीप्रमाणे राग दरबारी कानडो, ताल चतुश्र जाति त्रिताल, मात्रा १६ विलम्बकाळ.
५८१ रोधक.
न, भ,भ, ग, ग. ४४०
नभभ गागर्थी रोधक थाशे.
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११ त्रिष्टुपछंद.
५८२ स्वागता', स्वगता २,
सगता ३, स्वागत.
५८४ मदनमाला.
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५८५ उदितविजोहा.
नरनागा गथी मदनमाला.
तातानगी
५८६ अनुकूला, सांद्रपदा.
वर्ण मेळ.
स्वागता रच र नाभगगे थी.
१ मंदारमरंदचंपू, पिंगळछंदःसूत्र अने वृत्तदर्पणमां पादान्ते यति कही छे. २ संगीतानुसारछंदोमंजरी प्रमाणे राग छाया, ताल चतुश्र जाति तेताला; मात्रा १६, मध्य काळ. ३ गणप्रस्तार प्रकाश प्रमाणे.
न,न, भ,ग, ग. ४४८
५८३ कुपुरुषजनिता. कुपुरुषजनिता ननभग्गा.
( संगीतानुसार छंदोमंजरी. )
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५८७ श्री, मौक्तिकमाला', कुड्मलदन्ती २.
र, न, भ, ग, ग. ४४३
२८९
wwwww
नर, न, ग, ग. ४७२
उदितविजोहा.
त, त, न, ग, ग. ४८५
भूतनगा गे कर अनुकूला.
राग शंकरा, ताल चतुश्र जाति तेताला, मात्रा १६ मध्यकाळ.
भ, त,न, ग, ग. ४८७
भ, त, न, ग, ग. ४८७
५, ६, यति.
S
भूत न गागा, शैर छ यति श्री मौक्तिकमाला, रच तँ मतिथी.
अनुकूला प्रमाणे शंकरा रागथी गवायछे. तेमां यति कही नथी, अने
आमा ५, ६ यति छे एटलोज फेर छे.
१ मंदार मरंदचं धूमां ५ ने ७ यति कही छे, पण ५, ६ जोइये. २ पिंगळ छंदः सूत्रमां आ नाम छे अने ५, ६ यति कही छे. ५८८ मात्रा. (वाग्वल्लभ.)
मात्रा मांह मनन ग ग आणो.
२५
म,न, न, ग, ग. ५०५
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२९०
रणपिंगळ.
समवृत्त.
५८९ सुवृत्ति.
स,न,न,ग,ग. १०८ सन ना ग गी रच सुवृत्ति. छदार्णवमा आनुं माप नन सगग आप्यु छे. छंदःप्रभाकरमां पण आ माप वाळा वृत्तने वृत्ता अथवा वृन्ता वृत्त कयुं छे. अमे ए मापवाळा अंक ५५५ मे रूप २५६ जे नाम आप्यां छे तेथी छदार्णवमां आपलं माप भूलवालु जणायछे. ५९० भुजंगी कर्ण,सेहेल. ६, ५ यति. य,य,य,ल,ग. ५८६
भुजंगीन कर्णे, य या या ल गी. १ वाग्वल्लभ पृष्ट ५०मे तथा छंदःप्रभाकर पृष्ट १६८मे आ नाम छे. २ प्रवीणसागर लेहेर १२मीमां आ नाम छे. ५९१ जवनशालिनी.
न,र,य,ल,ग. ६०० जवनशालिनी नराया लगे. ५९२ प्रसृमरकरा. (वाग्वल्लभ.) न,स,य,ल,ग. ६०८
प्रसमरकरा नसाया लगे. ५९३ गल्लक. (वाग्वल्लभ.) न,न,य,ल,ग. ६४०
ननयल ग करजे गल्लके. ५९४ प्रपातावतार.
य,य,र,ल,ग. ६५० अपातावतारे या य राल गी. ५९५ गह्वर..
र,र,र,ल,ग. ६५९ गह्वरे आणवा रा र राल गी. ५९६ चारयात्रिक.
भ,र,र,ल,ग. ६६३ भार र ला गछे वारयात्रिके. • ५९७ ललित, भाविनी, कनकमंजरी,)
भामिनी, इन्दिरा,शुद्धकामदा, न,र,र,ल,ग. ६६४ विबुधवंदिता, राजहंसी.
२ ६, ५ यति.
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११ त्रिष्टुप छंद..
वर्णमेळ.
ललित थायछे, नार राल गे, कनकमंजरी, इन्दिरा चगे, विबुधवंदिता, भामिनी भणो,
यति छये धरी, भाविनी गणो. १ संगीतानुसार छंदोमंजरी अने छंदःप्रभाकरमां आ नाम आप्युं छे. आ वृत्त राग प्रदीपक, ताल चतुभ जाति त्रेताल, मात्रा १६ मध्य काळमां गाइ शकाय छे.
२ मंदारमरंदचम्पूमां माप न र रगग आप्युं छे ते भूलछे, तेने बदले उदाहरणमां अंते ल ग छे ते खरुं छे. ५९८ श्यनिका, श्येनी,सेनक । र,ज,र,ल,ग. ६८३ . श्रेणिका, श्रेणी, ताली. , ५, ६ यति.
श्येनिका रचो, र जार ला ग थी. गणप्रस्तारप्रकाशमां आ नाम छे. छंदोमंजरीमा “श्रेणी" नाम छे. १ छंदोवृत्तमुक्तावलिमां आ गणोथी ताल वृत्त का छे तेमा यति कही नथी. ५९९ सीधु. (वाग्वल्लभ.) स,भ,र,ल,ग. ६९२
स भ रा ला ग कराय सीधुमा. ६०० रथोद्धता', रथोध्रता२. र,न,र,ल,ग. ६९९
रान रा ल ग थकी रथोद्धता. १राग पुनाग वराड, ताल चतुश्रजाति तैताला, मात्रा 1६ मध्य काळ. (संगीतानुसार छंदामजरी.) २ गणप्रस्तारप्रकाश. ६०१ प्रतारिता.
स,न,र,ल,ग. ७०० स न रा ल ग थकी प्रतारिता. ६०२ नीला.
त,न,र,ल,ग. ७०१ नीला रच त न रा लगा थकी. ६०३ सुभद्रिका, १ सुमुद्रिका, । न,न,र,ल,ग. ७०४ भद्रिका. २
६.५ यति
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२९२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
नन र ल ग थकी सुभद्रिका. राग कौसीकानडा (श्रीरंजनी ) ताल चतुश्र जाति आडा चौताल. मात्रा १४ मध्यकाल (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) १ अपरांतिका अथवा परांतिका जाति जे वैतालीय भेदमा छे तेनी साथे मळेछे. छंदःशास्त्रमा पादांते यति लखछे. श्रुतबोध टीकामां ७, ४, यति लखछे.
२ छंदार्णव तथा वागवल्लभ (सुमुद्रिका) ६०४ सौरभवद्धिनी.
न,य,स,ल,ग. ७२० नयस लगे सौरभवद्धिनी. , ६०५ भुजगहारिणी.
न,र,स,ल,ग. ७२८ भुजगहारिणी नरसी लगे.. ६०६ उपचित्र,सुचित्र,नरेश. ६,५ यति.स,स,स,ल,ग. ७३२
सससा लग थी, उपचित्र छे,
घट पांच परे, यति मित्र छे. वाग्वल्लभमा यति कहीं नथी. पिंगळादर्शमां उपचित्रा नाम भागी छठे यात कही छे. ६०७ सम्म दमालिका. न,स,स,ल,ग. ७३६
न स स ल ग सम्मदमालिका. ६०८ कनककामिनी.
ज,त,स,ल,ग. ७४२ जतास लागे कनककामिनी. ६०९ उपदारिका, रंजिता. ५,६ यति. र,ज,स,ल,ग. ७४७
राजसालगे उपदारिका
दे शरे छये, विरति रंजिता. १ उपदारिका अने दारिकानुं मिश्रण थवाथी १४ प्रकारना उपजाति भेद थायछे, पण तेना नाम लभ्य नथी, संगीतानुसार छंदोमंजरीमा आनुं नाम ललित छे. राग कामेोदी, ताल चतुश्र जाति त्रेताला, मात्रा १६मध्यकाळ.
२ आ नाम तथा यति मंदारमरंदचं पूमा छे.
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११ त्रिष्टुप छंद.
वर्णमेळ.
६१० दारिका, नन्दिनी'. ५,६ यति. स,ज,स,ल,ग. ७४८
स ज सा लगे रच तु दारिका
शर ने छये, यति वदे टीका. १ मंदारमरंदचंपूमां ए नाम तथा यति छे. वाग्वल्लभमा दारिकामा यति कही नथी. ६११ मालविका.
त,ज,स,ल,ग. ७४९ छे मालविका त ज स ला ग थी. ६१२ नाभस.
ज,ज,स,ल,ग. ७५० ज जा स ल गा रच तु नाभसे. ६१३ सौभगकला.
भ,ज,स,ल,ग. ७५१ सौभगकला भ ज स ला ग थी. ६१४ वीवध.
न,ज,स,ल,ग. ७५२ न ज स लगी रच तु वीवधे. ६१५ आशापाद.
म,भ,स,ल,ग. ७५३ आशापादे म भ स ल गा धरो. ६१६ भुजलता.
न,स,त,ल,ग. ८०० रच भुजलना ना सात लगे. . ६१७ सायक.
स,भ,त,ल,ग. ८२० रचनो सायक सो भात लगे. ६१८ कलस्वनवंश,पायका. (ग.प्र.प्र.) भ,भ,त,ल,ग. ८२३
बे भ कलस्वनवंशे त ल गा. १ वागवल्लभ. ६१९ मदनया.
न,न,त,ल,ग. ८३२ रच तु मदनया नान्त लगे.
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२९४
रणपिंगळ.
समवृत्त.
६२० मोटनक, मोटक, मनिमाळ. त,ज,ज,ल,ग. (७७
ताजा ज ल गी कर मोटनके. १ छंदोलतामांथी. २ आ नाम प्रवीणसागरमां छे. कोइ पांचे यति केहेछै. ६२१ खटका,हरिणी. (छंदःप्रभाकर.) न,ज,ज,ल,ग. ८७८
जजाज लगे रचजो खटका. ६२२ शल्कशकल,
भ,ज,ज,ल,ग. ८७९ शल्कशकले भजजा ल ग छे. ६२३ सुमुखी. ७, ४ यति न,ज,ज,ल,ग. ८८०
न जज लगे रच तुं सुमुखी. *छंदःशास्त्र (कलकत्तानी छापेली प्रति) उपरना बेचर रामदेवना टिप्पण (पृ. २२२) प्रमाणे, पण "मंदारमरंदचंपू” पृष्ट १६मां ६,५ उपर अने वृतरत्नाकरनी नारायणभट्टीमा ५,६ उपर यति पृष्ट ४३मे कही छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा यति कही नथी. ६२४ जिलाशया.
त,भ,ज,ल,ग. ८८५ जिह्माशया त भज ला ग धरो. ६२५ चपला. ६,५ यति. भ,भ,ज,ल,ग. ८८७
भू भज ला ग थी, रचो चपला. ६२६ कुशलकलावतिका. म,न,ज,ल,ग. ८८९
म्ना ज्लागे कुशलकलावतिका. ६२७ अर्थशिखा.
भ,न,ज,ल,ग. ८९५ . भानज ल ग कर अशिखा, ६२८ हरिकान्ता.
स,भ,त,ल,ग. ९२० हरिकान्ता रच साभात लगे. ६२९ निरवधिगति. न,स,भ,ल,ग. ९२८
निरवधिगति ना स भ ल गे.
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११ त्रिष्टुपछंद.
वर्णमेळ.
२९५
६३० हरिरूपक, हरिरूप. र,न,भ,ल,ग. ९५५
छे हरिरूपक रा न भ लगे. ६३१ दामघटिता.
न,न,भ,ल,ग. ९६० नन भ ल ग थी दामघटिता. ६३२ समित्.
- न,य,न,ल,ग. ९७६ समित बनावो न य न लगे. ६३३ सामपदा.
म,स,न,ल,ग. ९८५. जाणो सामपदा म स न लगे. ६३४ अशुविलास. ५,६ यति. न,त,न,ल,ग. १०००
अशुविलासे, न त न ल ग छे. ६३५ भ्रमरविलसिता ,भ्रमरविलसित, म,भ,न,ल,ग. १००९ २भ्रमरललित, ३भ्रमरवित. ४,७ यति.*
मा नाला गे, भ्रमरविलसिता. १ राग हिंडोळ, ताल चतुश्र जाति तेताला, मात्रा १६ मध्यकाळ (संगी तानुसार छंदोमंजरी. २ छंदःशास्त्रमा भ्रमरललित नाम अने ४,७ यति कही छे. ३ गणप्रस्तारप्रकाश. * मंदारमरंदचंपूमां पण आ प्रमाणे यति छ. वागवल्लभमां यात नथी कही. ६३६ काहली.
स,भ,न,ल,ग. १०१२ सभ ना ला ग धर प्रति पदे, रचना काही सरस वदे; मनु मात्रा चरण पण गणे
कवि को' जाति कल प्रकरणे. "वृत्तरत्नाकर"नी नारायणभट्टी टीकामां आ मात्रामेळ जाति कही छे. ६३७ दमनक. ४,७ यति न,न,न,ल,ग, १०२४
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
दमनक, रच न न न लगे. छंदःशास्त्र, प्राकृतापिंगळसूत्र, वाणीभूषण, वागवल्लभ अने छंदोवृत्त मुक्तावलीमा आ यति पाळी नथी. ६३८ गंभारि.
र,र,र,ग,ल. ११७१ रा र रा गाल थी थाय गंभारि. ६३९ कामुकलेखा.
भ,म,स,ग,ल. १२२३ कामुकलेखा भू म स गा ले थो. . ६४० संश्रयश्री.
त,त,त,ग,ल. १३१७ छे संश्रयश्री त ता ता ग ला था. ६४१ सैनिक-१ सेनिका. ज,र,ज,ग,ल. १३६६
रचाय सैनिके ज रा ज गाल. १ वाणीभूषणमां तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा गुरु लघुने क्रमे ने लघु गुरुने क्रमे एम बने रतेि ११ अक्षरना छंदने सानेका एवं नाम आप्यु छे, पण आ पिंगळमां गणना भेदने लीधे श्येनिका ने श्येनी वृत्तने अंक ५९८ मे जूदुं गण्यु छे. ६४२ पिचुल.
स,स,ज,ग,ल. १३७२ पिचुले रचवा स साज गा ल. ६४३ कालवर्म.
न,भ,ज,ग,ल. १४०० न भज गा ल रच कालवर्म. ६४४ सान्द्रपद. चोथे यति. भ,त,न,ग,ल. १५११
सान्द्रपदे, आण भ त न गा ल. छंदोमंजरीना परिशिष्टमा छ पण यति नथी. ६४५ सालन. (गणप्रस्तार प्रकाश) भ,भ,म,ल,ल. १९९१
भू भ म लो ल थकी तो सालन. ६४६ शेषापीड.
म,भ,स,ल,ल. १७७७ शेषापीडे म भ स ल ला धर.
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ..
२९७
६४७ कोलिचर.
न,य,न,ल,ल. २००० न य न ल ले केलिचर कर. ६४८ अगरिम.
न,न,न,ल,ल. २०४८ नान न ल ल थको अगरिम.
१२ जगतीछंद. ४०९६ भेद छे. १२ वर्ण. ६४९ विद्याधार, विद्याधर, म,म,म,म. १ विद्याधारी, विद्याहार. छंदोलतामां४,४,४यति कही छे
मा मामामी, विद्याधारे, बारे आवे,
चारे चारे, चारे शोधी, छेदो लावे; छंदोवृत्तमुक्तावलीमां आ नामनुं वृत्त आज मापनुं छे, पण तेमां
यति कही नथी, परंतु वागवल्लभ इत्यादिमा यति कही छे. ६५० भासितभरण.
भ,स,म,म, ३१ भासितभरणे भासा मामा आणो. ६५१ विषमव्याली.
न,स,म,म. ३२ न सम विषमव्यालीमां छेलो मा. ६५२ शम्या.
त,न,म,म.६१ शम्या रच त नमामा आणी पोते. ६५३ मिथुनमाली.
न,न,म,म. ६४ रच तु मिथुनमाली नानामा मे. ६५४ किंशुकास्तरण.
र,स,य,म. ९१ . किंशुकास्तरणे रसायामा आवे. ६५५ दोर्लीला.
स,स,य,म. ९२ सस याम धरी बनावो दोर्लीला.
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२९८
रणपिंगळ.
समवृत्त.
६५६ विशालाम्भोजाली, अम्भोजाली. त,स,य,म. ९३
तासा य म थकी विशालाम्भोजाली. ६५७ वीणादण्ड.
ज,स,य,म. ९४ जसा य म धरो तमे वीणादण्डे. ६५८ मत्ताली. (वाग्वल्लभ) ४, ८ यति. म,त,य,म. ९७
मत्ताली मां, मा त य मा छेदो चोथे. ६५९ वसनविशाला.
न,न,य,म. १२८ नन य वसनविशाला छेलो मा. ६६० लीलारत्न.
म,म,स,म. १९३ लीलारने आणो मम सामा खोळी. ६६१ कान्तोत्पीडा.
भ,म,स,म. १९९ . भा म स माथी थायन कान्तोत्पीडा. ६६२ जलधरमाला. ४,८ यति म,भ,स,म. २४१
मा भा सा मा, जलघरमाला चोथे. १शब्दकल्पद्रुम,अने छंदोमंजरी प्रमाणे. वाग्वल्लभ इत्यादिमा यति कही नथी. ६६३ विवरविलसित.
त.म.स.म. २५३ ता ना विवरविलसिते छे सा मा. ६६४ शुद्धान्त.
न,न,स,म. २५६ न न स म ठिक रचनो शुद्धान्ते. ६६५ सुखानंद'.
य,र,त,म. २७४ सुखानंदे रचो या रा त मा शोधी. १ छंदःकामदुघावत्सना कर्ता सुखानंदे पोताना नामनो रच्यो छे. ६६६ साक्षी.
स,स,ज,म. ३४८ स स जा म धरो सदाय साक्षीमां.
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१२ जगती छंद.
६६७ स्वरवर्षिणी.
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६६८ धवलकरी.
वर्ण मेळ.
स्वरवर्षिणी रच सो ज जा माथी.
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६६९ लुम्बाक्षी, लुब्धाक्षी.
रच धवलकरी ननभा माथी.
स,ज,ज, म. ३६४
२९९
सस नाम थकी रच तँ लुम्बाक्षी.
६७३ वैश्वदेवी. १,७ विराम.
न, न,भ,मः ४४८
स, स,न,म.४७६
६७० मलयजसुराभ.
मन,न,म . ५०५
मा ना न्मा मलयजसुरभिमां छे. ६७१ वाहिनी. ७, ५ यति. (पिंगळछंदः सूत्रे) त, म, म, य. ५१७ छे बाहिनीमांसाते, दे ताम माया.
न,न,म, य. १७६
६७२ पुट, श्रीपुट', स्फूट. ८, ४ यति
४
पुट वसुं युग नाना, माय थी छे.
१ मंदार मरंदचंपूमा ए नाम छे. अने ते तथा छंदोमंजरीना परिशिष्ट् अने शब्दकल्पद्रुममां पण एज यति छे.
७ ૫
८ ४
वृत्तरत्नाकरमा मुनिशर विरति एम कहने वसु युग इति पाठ: एम छे.
म, म, य, य. ५७७
૫
मामाया ये छे, वैश्वदेवी शरे तो.
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राग बेहागडा, ताल विजयानंद, मात्रा ११ विलंब काळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
१ छंदः शास्त्र, छंदे/ मंजरी, प्राकृत पिंगळसूत्र अने मंदारमरंदचंपूमां पण आ प्रमाणे यति छे.
६७४ आधिदैवी. (वागवल्लभ) ६, ६ यति य, म, य, य. १७८ मायाया छठ्ठे, यति आधिदैवी.
६७५ भुजंगप्रयात', भुयंगपथाउ २.
य, य, य, य.६१८
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रणपिंगळ.
समवृत्त
य या या य आवे भुजंगप्रयाते. १ मागधी "छंदःशतक" आना दोढा छ य गणवाळाने क्रीडाचक्र अने बमणा-आठ यगणवाळाने महाभुजंगप्रयात केहेछे. पादान्ते यति. २ राग मालकौंस, ताल खंड जाति एकताल (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) ६७६ समयपहिता.
स,स,य,य. ६०४ समयपहिता ससा या य थी छे. ६७७ मिहिरा.
न,स,य,य. ६०८ रच तु मिहिरा नसायाय थी तो. ६७८ कलवल्लीविहंग.
जत,य,य. ६१४ जताय या छे कलवल्लीविहंगे. ६७९ अस्रधारा, असुधारा. (वागवल्लभ) ज,र,र,य. ६६२
जरारये बनेछे सदाऽस्रधारा. ६८० बलोर्जिता, अचलचर्चिका. न,ज,र,य. ६८८
रच तु बलोजिता न जा र या थी. ६८१ बधिरा.
स,भ,र,य. ६९२ बधिरामां रच सा भ रा य शोधी. ६८२ वलभी.
भ,भ,र,य. ६९५ तुं वलभी रच भा भ रा य आणी. ६८३ परिमितविजया.
न,न,र,य. ७०४ परिमितविजया न ना र ये छे. ६८४ लीढालर्क.
मत,स,य. ७३७ लीढाल मा त स य आणजोजी. ६८५ वनिताविलोक.
त,त,स,य. ७४१ ता ता स या आण वनिताविलोके.
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१३ जंगी
छंद.
वर्णमेल.
AAAAAA
AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
६८६ कुमुदिनीविकाश. ज,त,स,य. ७४२
जता स या छे कुमुदिनीविकाशे. ६८७ दल'.
भ,ज,स,य. ७५१ भू ज स य आण दल वृत्तमांहे. ' १कवि दलपतरामे आ वृत्त पोताना नामर्नु नवु बनाव्युं छे. ६८८ वसन्तहास.
म,भ,स,य. ७५३ मो भा सा या कर तु वसन्तहासे. ६८९ मणिमाला', पुष्पविचित्रा. ६,६ यति. त,य,त,य. ७८१
ता या त य आणो, छठे मणिमाला. १ मंदारमरंदचंपूमां तथा शब्दकल्पद्रुममां ६,६, यति छे. ६९० सिक्तमणिमाला, श्वेतमणिमाला. भ,य,त,य. ७८३
सिक्तमणिमाला भा या त य थी छे. ६९१ विद्रमदोला.
न,य,त,य. ७८४ न य त य थी थाशे विद्रमदोला. ६९२ सुखशैल.
म,भ,त,य. ८१७ माभा ता या धर शोधो सुखशैले. ६९३ करमाला.
स,भ,त,य. (२० करमाला कर साभात य आणी. . ६९४ विजयपरिचया.
न,न,त,य. (३२ विजयपरिचयामां न न ता या. ६९५ कासारक्रान्ता.
म,त,ज,य. ८६५ कासारक्रान्ता मत जाय थकी छे. ६९६ माया, गौरी.
त,ज,ज,य. ८७७ माया रचनो त ज जाय धरीने. १ छंदःप्रभाकरमा लखेछे के आ वृत्त “रामचंद्रिका"मां जोवामां आवेछे.
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३०२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
६९७ परिलेख', धारी.
ज,ज,ज,य. ८७८ जजाज य आण सदा परिलेखे. १ जेबे वृत्तना घणु करीनै पेहेला अक्षर गुरु अथवा लघु होय, अने बाकीना अक्षर विशेषे करीने सरखा होय तो तेवां बे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति वृत्त बनेछे जेमके-माया (अं. ६९६) अने परिलेख (अं. ६९७)एबेवृत्तमा पेहेलानो प्रथम अक्षर गुरु छे, अने बोजानो प्रथम अक्षर लघु छे, अने बाकीना बंने वृत्तना बधा अक्षर एक सरखाछे, तो ए बे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति थायछे. तेवीज रीते, धृष्टपद(अं.७०३)अने दृतपदना (अं.७० ४) मिश्रणथी पण उपजाति थायछे, अने ते प्रत्येक चौद चौद थायछे. विषमपदना प्रकरणमा असंकीर्णना पेटामां कहेलां वृत्त उपजाति गणायः तेमन विषमाक्षरपादवाळां वृत्तोनुं मिश्रण थवाथी पण उपजाति थायछे. नेमके, (अं.७२८) वंशस्थना अक्षर बार छे, अने उपेन्द्रवज्राना(अं.५७१) अक्षर ११ छे, तो पण ते बेनुं मिश्रण थवाथी उपजाति थायछे, तेनुं उदाहरण, वाल्मीकी रामायणना सुन्दर काण्डमां नीचे प्रमाणे छे:नमोऽस्तु वाचस्पतये सचक्रिणे, १२ वंशस्थy. स्वयम्भुवे चापि हुताशनाय; ११ उपेन्द्रवज्रानुं. अनेन चोक्तं यदिदं ममाग्रतो, १२ वंशस्थy. वनौकसां तच्च तथास्तु नान्यथा. १२ वंशस्थy.
वळी इन्द्रवंशा, उपेन्द्रवज्रा, अने वंशस्थ ए वणना मिश्रण थकी उपजाति थायछे, तेनुं उदाहरण भागवतना १० स्कंधमां नीचे प्रमाणे छे. (भागवत स्कंध १० पूर्वार्द्ध अध्याय १२ मो श्लोक २६)
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
३०३
तावत्प्रविष्टा स्त्वसुरोदरान्तरे, १२ इन्द्रवंशानु.. परंन गीर्णाः शिशवः सवत्सा; ११ उपेन्द्रवज्रानुं. प्रतीक्षमाणेन बकारिवेशनं, १२ वंशस्थy. हतस्वकान्तस्मरणेन रक्षसा. १२ वंशस्थy.
इन्द्रवज्रा, इन्द्रवंशा, उपेन्द्रवज्रा अने वंशस्थ, मिश्रण थवाथी उपजाति थायछे तेनुं उदाहरण प्रबोधचंद्रोदय नाटकमां नीचे प्रमाणे छे. अंक बीजो (प्रवेशक) श्लोक १२मो. विद्याप्रवोधोदय जन्मभूमि, ११ इन्द्रवज्रार्नु.
राणसी ब्रह्मपुरी दुरत्ययाः १२ इन्द्रवंशानुं. अतः कुलोच्छेद विधि विधित्सु, ११ उपेन्द्रवज्रानु. निवस्तु मत्रेच्छति नित्यमेवसः. १२ वंशस्थy.
उपरना उदाहरणो उपरथी एम सिद्ध थायछे के, प्राचीन विद्वानोए एम मान्युं छे के, समाक्षरवृत्तना मिश्रणथी उपजाति थाय, अने वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टोकामां कडंछे के- त्रिष्टुपमां वृत्तोनां मिश्रण थवाथी जेम उपजाति थायछे, तेमन बार तेर अक्षरना समानअक्षरना तथा समान यतिवाळा पादोना मिश्रणथी पण उपजाति थायछे. एटले विषम अक्षरना विषम यतिवाळा, तेमज बे करतां वधारे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति वृत्त थायछे, एम रामायण, भागवत अने प्रबोधचंद्रोदयनां द्रष्टांतो सहित उपर जे लखवामां आव्युं छे, ते मतनुं नारायणभट्टीना अभिप्रायथी खंडन थायछे. एटले एवा प्रकारनो उपजाति करवी योग्य नथी, एम अभिप्राय जणावेछे ले उचित छे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
३०४ ..........wimwwwww ६९८ वस्त्रा.
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भ,ज,ज,य. ८७९ भोज ज य थी बनशे कवि! वस्रा. ६९९ तामरस, अभिनवतामरस, . ललितपद२.
न,ज,ज,य. ८८० नज जय थायन तामरसे तो. 1 छंदोलता अने वृत्तरत्नाकरमां अभिनवतामरस'- भाषाछंदोमंजरीना मापमा त्रण नगण पछी एक जगण छे. पण कवितामा तेम नथी माटे ए भूल जणायछे. २ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी प्रमाणे. ७०० कुंभोनी.
__ म,भ,ज,य. ८८१ कुंभोनीमा मभज या करजो जी. ७०१ शरमेया.
स,भ,ज,य, ८८४ शरमेया रच स भा ज य आणी. ७०२ नीरान्तिक.
त,भ,ज,य. ८८५ नीरान्तिके त भ ज या ठीक आवे. ७०३ धृपद.
भ,भ,ज,य. ८८७ धृष्टपदे रच भ भा ज य आणी. ७०४ द्रुतपद, द्रुतपा.
न,भ,ज,य, ८८८ द्रुतपदे रच न भा ज य शोधी. १"शब्दकल्पद्रुममां” आ वृत्तना गण नभनय छे, पण तेने बीजा ग्रंथोनुं प्रमाण नथी. ७०५ अर्दितपाद.
र,न,ज,य. ८९१ रा न जा य धर तु अर्दितपादे. ७०६ परितोषा.
स,न,ज,य. ८९२ स न जा य थकी रचो पारितोषा.
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
.
७०७ छलितकपद.
"त,न,ज,य. ८९३ आणो छलितकपदे त न जा या. ७०८ उपधान.
ज,न,ज,य. ८९४ ज ना ज य थी उपधान रचेछे. ७०९ पथिकान्ता.
. भ,न,ज,य. ८९५ भानजय थकी रचो पथिकान्ता. ७१० नयमालिनी, वनमालिका, ) न,ज,भ,य. ९४४
नवमालिनी, नवमालिका, १८,४ यति. नारा. भट्टी नवमालती.
अने छंदःशास्त्र प्रमाणे. वसु नवमालिका न,जभ ये थी. १ सूत्रने अनुसरता केटलाक ५,७ यति मानेछे, वळी मंदारमरंदचंपूमां ७, ५ उपर यति कही छे. ७११ कुसुमविचित्रा. ६, ६ यति.१ न,य,न,य. ९७६
कुसुमविचित्रा, षर्ट न य ना ये. १ मंदारमरंदचंपूमां पण एज प्रमाणे यति छे. ७१२ अर्पितमदना.
भ,स,न,य. ९९१ अर्पितमदना रच भ स ना ये. ७१३ विरतिमहती.
त,न,न,य. १०२१ ताना न य थी विरतिमहती छे. ७१४ अगौरी, ललित.१ न,न,म,र. १०८८
ननमर थी अगौरी छे शोभती. १ वाग्वल्लभमां आ वृत्तनुं नाम ललित राख्युं छे पण ११ अक्षरमां प्रसिद्ध ललित छे. जुओ अंक ५९७ मे. कामदुघावत्समां पण आ नाम छे. ७१५ गलितनाला.
ज,भ,य,र. ११४२ ज भा य रे गलितनाला थायछे.
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रणविंगळ.
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३०६
७१६ सरोजावली. सरोजावली मां या यरारा करो.
७१७ स्रग्विणी, शृङ्गारिणी, लक्ष्मीधर, लक्ष्मीधरा', चंदायणा, चंदाणा, चंद्रानन', काममोहिनी, चंदाना, मलया ५, कामिनीमोहन, हिंगुदी, झंपताळ".
७१९ विशिखलता.
य, य, र, र. १९६२
स्रग्विणी तो रचो राररारा धरी.
१ छंदः प्रभाकरमांथी. २ " मागधी छंदःशतक"
३-४ मागधी पिंगळ छंदोग्रंथमां चंदाणा, चंद्रानन नाम आप्यां छे. ५ पृथ्वीराज रासामा ए नाम वापर्यु छे.
६ मागधी " छंदः शतक "मां एनुं कामिणीमोहण नाम लखी तेनी चार पंच कलथी २० मात्रा कही छे, अने तेना ताल स्त्रग्विणी प्रमाणे छे. ७ प्रवीणसागरमां आ नाम छे.
राग वाघेश्री, ताल तिश्रजाति रूपक, मात्रा ५, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
७१८ विप्लुतशिखा.
समवृत्त.
र, र, र, र. ११७१
पादान्ते यति.
विप्लुतशिखा रो भ जी रार थी.
भ, ज, र, र. ११९९
न, ज, र, र. १२००
विशिखलता रचो न जा रार थी.
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७२० गौरी १, प्रभार, मन्दाकिनी ३, न, नर, र. १२१६ प्रमुदितमदना, प्रमुदितवदना ४. (७, १ यति. हय शर५ न न रा र गौरी विषे.
,
१ भोजीदीक्षितना मत प्रमाणे ए नाम छे, तेमां यति आठे छे.
२ मल्लिनाथना मत प्रमाणे प्रभा नाम छे.
३ ए नाम तथा यति मंदारमरंदचम्पू अने वाग्वलभमां छे. वागू
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
३०७
वल्लभमां "प्रभा, मंदाकिनी" नाम छे, तेनुं माप उपर प्रमाणे अनि तेमां ७, ५ यति कही छे. शब्दकल्पद्रुममा यति कही नथी ते मत ग्राह्य नथी. . ४छंदःशास्त्र, मंदारमरंदचम्पू (पृष्ट १७) अने वृत्तरत्नाकर मां प्रमुदितवदना नामथी आ मापने यति छे. ७२१ चपलाक्षिका, चंचलाक्षिका. न,न,र,र. १२१६
___ न न र र चपलाक्षिकामां दिसे. १छंदःशास्त्र प्रमाणे आ नाम छे, पण कवियो घणुं करीने वृत्तना मापमा आवी शके नहि एवां नाम पाडता नथी. "चंचलाक्षिका” ए नाम कोइ कारे पण पोताना मापना गणमां आवी शकतुं नथी साटे अमे "चपलाशेका" एवो पर्याय मूक्यो छे. ७२२ सुतल.
स,र,स,र. १२३६ सुतले आणवा सरसारा गणो. ७२३ अंतर्विकाशवासक. . त,र,ज,र. १३६५
अंतर्विकाशवासके त रा ज रा. ७२४ ललामलालिताधरा,
वसंतचत्वर२, बरायति.३ । ज,र,ज,र. १३६६
__ ललामलालिताधरा ज रा ज रा. १ वागवल्लभमा यति कही नथी. अने ललामलालिताधरा नाम छे.
२ वसंतचत्वर नाम पिंगळादर्शमा छे तेणे ६, ६ यति कही छे पण तेनुं बीजं प्रमाण जडयुं नथी.
३ आ नाम प्रवीणसागर लेहेर १५ मीमां छे. आ गोवाला रूपने शब्दकल्पद्रुममां "पंचचामर” का छे, पण आ ग्रंथमां “पंचचामर" वृत्त अंक ७८५ मे जूदुं दाखल छे, तेथी अमे ए नाम उमेरघु नथी. ७२५ परिपुखिता.
र,स,ज,र. १३७१ - थायछे परिपंखिता र साजरे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
७२६' प्रसुमरमरालिका. न,स,ज,र. १३७६
प्रसुमरमरालिका न सा ज रे. ७२७ वीरासिका, इन्दुवंशा, । त,त,ज,र. १३८१ इंद्रवंशा.
५,७ यति.१ वीरासिकामां, शर छे त ताज रे. १ आ त्रणे नाम वागवल्लभमा छे पण तेणे यति कही नथी. श्रुतबोध टीकामां ५, ७ यति छे. राग नवरोझ, ताल त्रिखंडवज्र, मात्रा १९, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) ७२८ वंशस्थ, वंशस्थविल, । ज,त,ज,र. १३८२ महानिबंधा, वंशस्तनित. पादांते यति..
रचाय वंशस्थ जता जरा धरी. १ शब्दकल्पद्रुम. २ श्रुतबोधमां पांचमे यति केहेछे, पण मंदारमरंदचम्पूमां ६, ६ ए किंवा पादांते यति कही छे. छंदःशास्त्रमा पण पादांते यति छे. पिंगलादर्शमां वंशस्थमां ६, ६ यति कही छे तेनुं प्रमाण जडयु नथी. राग देवगांधार, ताल निसोरुक, मात्रा ९, विलंबकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
इन्द्रवंशा अने वंशस्थना चरणोना मिश्रणथी १४ प्रकारना उपजाति भेद थायछे. (s) आ चिन्ह इन्द्रवंशानुं छे. (1) आ चिन्ह वंशस्थनुं छे. ____ssss चारे चरण इन्द्रवंशानां छे एम सूचवेछे. १ ।ऽऽऽ वैरासिकी- १ वंशस्थ, २ इन्द्रवंशा,
३ इन्द्रवंशा, ४ इन्द्रवंशा. २ 5155 रताख्यानकी. १ , २ वंशस्थ,
३ , ४ इन्द्रवंशा. ३ ।।55 इन्दुमा. १ वंशस्थ, २ वंशस्थ,
३ इन्द्रवंशा, ४ इन्द्रवंशा.
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
४ ssis पुष्टिदा. १ इन्द्रवंशा, २ इन्द्रवंशा,
३ वंशस्थ, ४ इन्द्रवंशा. ५ ।।5 उपमेया, १ , २ ॥
रामणीयक. ३ , ४ , ६ ।। सौरभेयी. १ इन्द्रवंशा, २ वंशस्थ,
३ वंशस्थ, ४ इन्द्रवंशा. ७ ।।। 5 शीलातुरा. १ , २ वंशस्थ,
३ , ४ इन्द्रवंशा. < sss। वासन्तिका. १ इन्द्रवंशा, २ ,
,, ४ वंशस्थ. ९ ।ऽऽ। मन्दहासा. १ वंशस्थ, २ इन्द्रवंशा,
३ इन्द्रवंशा, ४ वंशस्थ. १० ऽ।ऽ। शिशिरा. १ इन्द्रवंशा, २ वंशस्थ,
११ ।।७। वैधात्री. १ वंशस्थ, २ ,
३ इन्द्रवंशा, ४ , १२ 55।। शंखचूडा. १ , २ इन्द्रवंशा,
३ वंशस्थ, ४ वंशस्थ. १३ ।।।। रमणा. १ , २ इन्द्रवंशा,
३ , ४ वंशस्थ. १४ ।।।। कुमारी. १ इन्द्रवंशा, २ ,
३ वंशस्थ, ४ , ७२९ विधारिता.
ज,ज,ज,र, १३९० जजाज र थाय विधारिता विषे.
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३१०
रणपिंगळ.
७३०. पिकालिका, विधायिनी .
७३१ मालती', शुभ, वरतनु, यमुना २.
??
भा जजर थाय पिकालिका विषे.
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भ, ज, ज, र. १३९१
यति शरछे, नजजार मालती.
१ मंदारमरंदचंपूमां कयुं छे के केटलाकने मते " मालिनी” नाम छे. २ शब्दकल्पद्रुम तथा प्राकृतपिंगलसूत्रमां (पृष्ट १५० ) मे केहेछे के, मालतीने कोइ यमुना के हे छे.
३ नारायणभट्टी प्रमाणे छंदोलतामां केछे के केटलाक मालती ने मालिनी केहे छे. ७,५, यति तेणे कही छे.
छंदोमंजरीमा यति नथी.
राग वसंत, ताल चतुश्र जाति तेताला, मात्रा १६, मव्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी. )
न,ज,ज, र. १३९२ ५, ७, यति. ३
७३२. ललिता, सुललित ५,७ यति. त,भ,ज, र. १३९७ पांचे विराम, ललिता त भाजरे.
७३४ विरला, वीरला.
वाग्वलभमां तथा छंदोमंजरीमां ललिता नाम छे तेमां यति नथी. मंदारमरदपूमा यति लखी नथी, पण छंदोर्णव तथा पिंगळादर्शमां ५, ७ यति कही छे. (पृष्ठ ८५) सुललित नाम भाषा छंदोमंजरीमा छे तेमां यति कहीं के पाळी नथी.
७३३ प्रियम्वद, प्रियंवदा.
समवृत्त.
न भजरा घर प्रियंवदा विषे.
७३५ अविरलरतिका.
न, भ, ज, र. १४०
राग त्रिवेणी, ताल चतुन जाति त्रिताल, मात्रा १६, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
विरला र सन जार आणिने.
स, न,ज, र. १४०४
छे अविरलरतिका भनाजरे.
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भ,न,ज,र. १४०७
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१२ जगती छंद.
वर्णभेक.
७३६ राधिका.
स,भ,भ,र. १४६० स भभारे रच वृत हुँ राधिका. ७३७ द्रुतविलम्बित, सुंदरी, । द्रुतविलंब. (गणप्रस्तारप्र.))
__न,भ,भ,र. १४६४ द्रुतविलम्बित थाय न भा भरे. १ मंदारमरंदचंपू प्रमाणे पदमा यति नहि. पिंगळादर्शमां ६, ६ यति कही छे, पण वृतरत्नाकर, छंदोमंजरी, प्राकृतपिंगळसूत्र (पृष्ट १५३) वगेरे प्रमाण ग्रंथमा यति नथी. प्राकृतपिंगळसूत्रमा “सुदरी' मां द्रुतविलंबितनुंज माप आप्युं छे, यति कही नथी. राग सोहनी, ताल चतुश्र जाति तेताला, मात्रा १६, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) ७३८ यूथिका. ३, ९ यति. र,न,भ,र. १४६७
यूथिका, र न भरे यति छे त्रणे. राग मध्यमावती सारंग मिश्रगजलीला, मात्रा १७,मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) ७३९ उज्वला, महोज्वला. न,न,भ,र. १४७२
न न भ र धरजो कवि! उज्वले. ७४० रास,१ मता.२ ६, ६ यति. न,र,न,र. १४९६
न र न रे मता, छ पर रासमां. १ रास भगवत्पिंगळमांथी. २ मंदारमरंदचंपूमा ए नाम तथा यति छे. ७४१ विपुलपालिका.
र,ज,न,र. १५१५ राज ना र आण विपुलपालिका. ७४२ उपलेखा.
स,भ,न,र. १५२४ उपलेखा रच स भ न रा थकी. ७४३. भसलविनोदिता. ज,भ,न,र. १९२६
जभानरा थी भसलविनोदिता.
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७४८. भुजङ्गजुषी.
रणपिंगळ.
३१२
७४४. विरतप्रभा.
भ, भ,न, र. १९२७
भाभनरे थोरच विरतंप्रभा. ७४५. मुकुलितकलिकावली. र, न, न, र. १५३१ रानरे मुकुलितकलिकावली.
.
७४६. जलमाला. ४, ८ उपर यति. भाभम सा, जलमाला वेद४ वसु मंदार मरंदचंपू पृष्ट १७ मे आ नाम तथा यति छे. ७४७. अतिवासिता.
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अतिवासितामां साय रास घरो.
७४९. अर्जितफलिका.
७५२. प्रमिता.
भ, भ, म, स. १४९१
रासरास थकी छे भुजङ्गजुषी.
स, य, र, स. १६७६
समवृत्त.
र, स,र,स. १६९१
"
अर्जितफलिका भा स रा स थकी. ५,७ यति.
७५०. ललना.
भ, म, स, स. १७३५
छे यति पांचे, भामस से ललना. वागवल्लभ, छंदःशास्त्रनुं टिप्पण, छंदोमंजरी, शब्दकल्पद्रुम इत्यादिमां
यति छे. छंदः प्रभाकरे यति पाळी नथी.
७५१ कुरङ्गावतार.
भ, स,र,स. १६९५
कुरंगावतारे यय सास घरो.
य, य, स, स. १७३८
स, र, स, स. १७४८
प्रमिता तो रचो सरसास धरी.
७५३ तोटक, नंदिणी. १ पादान्ते यति२ सस, स, स. १७५६ रचजो ठीक तोटक सास ससे.
१ मागधी पिंगळ छंदोग्रंथमां नंदिणी नाम आप्युं छे.
२ पिंगळादर्शमां ६, ६ यति कही छे. राग देश, ताल चतुश्र जाति ताला, मात्रा १६, मध्यकाळ, (संगीतानुसार छंदोमंजरी . )
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
३१३
६७५४ प्रमिताक्षरा.१ पादान्ते यति. सज,स,स. १७७२
प्रमिताक्षरा रच स जा स सथी. १ छंदःप्रभाकरनी टीकामां लख्युं छे के “आ वृत्तमां कोइ कोइ ठेकाणे न न भ र" गण आवेछे, पण तेनुं ए कथन उचित नथी, केमकै एवं रूप उज्वळा, अंक ७३९ मे प्रसिद्ध छे. राग अशावरी, ताल चतुश्र जाति सवारी, मात्रा १६, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) •७५५ विकत्थन. (वाग्वल्लभ) ज,ज,स,स. १७७४
विकत्थन मांह धर जाज स सा. ७५६ नीलगिरिका.
भ,ज,स,स. १७७५ नीलगिरिका रच भजा स सं थी. ७५७ वनिताभरण.
भ,भ,स.स. १७८३ भाभ संसा धर वनिताभरणे. ७५८ हाकालिका.
___न,न,स,स. १७९२ नन स स थको कर हाकलिका. •७५९ सुभद्रावतरणि.
मत,त,स. १८२.५ माताता सा थीं सुभद्रावतराण. ७६० विरलोद्धता.
म,स,ज,स. १८८१ मो स्नासे विरलोद्धता रच भले. . ७६१ सुविहिता.
य,स,ज,स. १८८२ यसा जा सथकी बने सुविहिता. ७६२ उदरचिता.
सस,ज,स. १८८४ सस जास थकी उदरचिता. ७६३ सुवनमालिका, उपवनमालिका. त,स,ज,स. १८८५
जाणो सुवनमालिका त स ज से. ७६४ जलोद्धतंगति. .६, ६. यति. जस,ज,स. १८८६
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समवृत्त,
जसाज स छये जलोद्धतगति. मंदारमरंदचंपू, वृत्तरत्नाकर, छंदोलता अने पिंगळ छंदःसूत्रमा पण एज प्रमाणे यति छे. छंदोमंजरीमा यति कही नथी.
राग दिनकीपूर्या अथवा पंथवराळी, ताल चतुश्र जाति तेताल, मात्रा १६, मध्य काळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी.) ७६५ नगमाहिता, क्रमुकवती. . स,भ,भ,स. १९७२
‘स भभा से करजो नगमहिता. ७६६ संमदवदना.
भ,भ,भ,स. १९७५ भा भ भ से कर संमदवदना. ७६७ चंद्रवर्ती, चन्द्रवर्तन, चंद्रमग, र,न,भ,स. १९७९ चंद्रमगा,२ चंद्रमग्म.
३ ४ ८ यति. चंद्रवर्त्म, श्रुति रान भ स थकी. १ चंद्रमग नाम भाषा छंदामंजरीमा छे तेमा यति कही नथी.
२ छंदरत्नावळी. ३ चंद्रमग्ग नाम छंदःरत्नावलिमा छे तेमा यति कही नथी. ४ मंदारमरंदचम्पू पृष्ट १७ मे' अने प्राकृतपिंगळसूत्र पृष्ट १५३ मे चंद्रवर्भ नाम छे पण तेमां अने छंदोलता तथा छंदोमंजरीमां यति कही नथी, परंतु पिंगळादर्श तथा वृत्तरत्नाकरनी टीका (नारायण भट्टी) प्रमाणे यति दाखल करी छे. ७६८ कुमारगति.
ज,न,भ,स. १९८२ कुमारगति रचो ज न भ स थी. ७६९ उदयनमुखी.
न,स,न,स. २०१६ उदयनमुखी रच न स न से. ७७० रसिकपरिचिता.
स,त,न,स. २०२० स त ना सा थी रसिकपरिचिता. ७७१ वीरणमाला. (वाग्वल्लभ) भ,त,न,स. २०२३
वीरणमाला रच तु भ त न से.
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१२ जगती छंद.
७७२ व्यायोगवती.
७७३ वियोगवती.
७७४ संगमवती.
व्यायोगवती रच त ज न स थी.
७७५ ज्वलिता.
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वियोगवती कर ज ज न स थी.
७७६ रूपावलि.
वर्णभेळ.
७७७ अनीचक.
संगमवती रच भ ज न सथी.
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७७८ भासितसरणि.
त, ज, न, स. २०२९
ज्वलिता रच् स न न स धराने.
ज, ज, न, स. २०३०.
७७९ कृतकतिका, कतिका.
७८० निशानी. १
रूपावलि रचत न न स धरी.
भ, ज, न, स. २०३१
स, न,न, स. २०४४.
अनीचक रच ज न न स थकी.
गुरु.....
११
१०
त, न, न, स. २०४५.
भासितसरणि रच भनन से.
३१५
ज, न, न, स. २०४६
भ, न, न, स. २०४७
न न न स गणर्थी कृतकतिका.
न, न, न, स. २०४८.
म,म,म, त. २०४९
मामा माता थी तो निशानी के 'वाय. १ निशानीमां ११ गुरु + १ लघु = १२ अक्षर.
एक गुरु घंटे तेम वे लघु वधे एम निशानीना बार भेद थाय छे.
भेद.
१ कीला.
२ लीला.
३ स्थिरा.
लघु.
१
३
५.
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अक्षर
१२
१३
१४
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३१६
रणपिंगळ.
समवृत्त..
२१
४. कुमारी. ५ वीणा. ६ रंगी. ७ चातुरचंगी. ५ १३ ८. वारी. - ९ विद्या. १० माला.::
९२ १९ ११ बालिका. १२ वामा, वाम. ७८१ सारङ्ग, मेनावळी, मेनिका).
। त,त,त,त. २३४ १. सारंगरूप २, मैणाउल ३,
( ३,९ यति मदनाकुल', सारंगा, काम. ) '
सारंग, तो थाय ता ता त ता थीज. १ वाणीभूषण नामे मिथिलाना दामोदरमिन कृत छंदग्रंथमां आ नामआप्युं छे. २ छंदोलता अने मागधी पिंगळ छंदोग्रंथमा केटलाकने मते ए नाम जगावेल छे... ३-४. मागधी छंदःशतकमां एने मदनाकुल अने मैणाउल केहेछे. _५ प्राकृतपिंगळसूत्र प्रमाणे, सारंगमा ३,९ यति छे. वाणीभूषणमा यति 'कही नथी.
आना बमणा-आठ तगणनुं 'आभार वृत्त मान्यु छे ते २४ वर्णमां रूप ९५,८६,९८१ मे दाखल छे. ७८२ विकलबकुलवल्ली.. न,न,त,त. २३६८
विकलबकुलवल्ली न नाता त. ७८३ निमग्नकीला.
जत,ज,त. २४०६ निमग्नकीला रच जात जाता थी. ७८४ सयल (शैल). ६,६ यति. य,य,य,ज. २६३४
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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
धरो शैल छठे, य या याजे ठीक. पिंगळादर्शने आधारे यति छे. गणप्रस्तारप्रकाशमां आने १९ मात्रानी तमाल जाति कही छे. ७८५ पंचचापर, विभावरी. र,न,र,ज. २७३१
- राजराज लाव पंचचामरे तु. - १ वाणीभूषणमा ए नाम छे. . ७८६ मौक्तिकदाम, . मोतादाम, जज,ज,ज. २९२६
मुत्तियदाम', मयंधरमालवे. '
जजाजज थी रच मौक्तिकदाम. .१ मागधी छंदःशतकमां आ बन्ने नाम छे. आना बमणाने मुक्तहरा केहेछे. पिंगलादर्शमां छठे यति कही छे, पण वीजु प्रमाण जड्यु नथी. ७८७ वासरमणिका.
. भ,स,स,भ. ३२९५ वासरमणिका रच भासास भ. ७८८ अरिला.
स,भ,भ,भ. ३५०८ अरिलामां घर ठीक सभा भ भ. ७८९ मोदक', बंधा, मोटक.२ भ,भ,भ,भ. ३५११
मोदक माह रचाय भ भाभभ. १ ताटकथी उलटो छे. २ शब्दकल्पद्रुममा आ नाम छे. मंदारमरंद चंपुमा चार भगणने “भामिनि" नाम आप्युं छे. पण ते अगियार अक्षरमां न,र,र,ल,ग. थी अंक५९७ मे छे एटले दाखल करवा जेवु 'नथी. प्राकृतछंदःकोषमां चार भ नो दोधंक कह्यो छे पण दोधक अक्षर अगियारमां अंक ५८० मे छे एटले आ भूल होय" एम लागेछे.
मोदकमां पिंगलादर्शमां ६,६ यति कही छे तेनुं प्रमाण जडयुं नथी. • ७९० तरलनयन, तरल, तरलनयनी
'नान,न,न. ४०९६
: तरलदृक्.
नननन थकी तरलनयन. तरलनर्थनमां पिंगलादर्शमा छठे विराम आप्यो छे तेनु प्रमाण जड्युं नथी
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३१८
समवृत्त.
१३ अतिजगती छंद. ८१९२ भेद. १३ वर्ण.
७९१ सव्याली.
७९२ वस्तु', वास्तुक.
रणपिंगळ.
सव्यालीमां तेरे गुरु आवेछे पादे .
७९६ कलाधाम.
मातारामागा रचायले वस्तु वृत्ते.
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१ चित्रसेन टीकावाळा मागधी पिंगळमां आ वृत्त छे. ते लखेछे के देवताने आनंद देछे, मित्र तथा गंधर्वनुं भूषण छे, मायिकने तोषक छे तथा कर्णने प्रिय छे.
७९६ वासविलासवती .
७९३ उल्काभास.
म, त, स, म, ग. २२५
उल्का भासे मात समगा आणो शोधी. ७९४ लीलालोल. ४, ९ यति. (वा. वं.) म, भ, स, म, ग. २४१
मासा मागा, विरति युगे लीलालोले.
- ७९७ विपन्नकदन, विपन्नकलन, विपन्नकवल.
म, म,म, म, ग. १
म, त, र.म.ग. १६९
भाभज मागधरजो कलाधामे तो.
७९८ राधा. (छंदः प्रभाकर)
८००. विभा.
वासविलासवती भभभा मागा थी.
७९९ कंदुक, कंद. (छंदोलता)
भ,भ,ज,म,ग. ३-७:५
भ, भ, भ, म, ग. ४३९
नरम विपन्नकदने आवेछे.
}न,र,न,म,ग. ४७२
रातमा या गावडे राधा रचो भाई.
र, त, म, य, ग. ५४७
`य, य, य, य, ग. ५८६
यया या यगा थायछे कंदुके कंदे.
न, य, त, य,ग. ७८४
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१३ अतिजगती छंद.
वर्ण मेळ.
नय तयगा आणो आप विभा मांही.
८०१ रसधारा.
-८०२ प्रज्ञामूल.
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न य न य गेथी र रसधारा तुं.
१८०३ चञ्चरीकावली १.
प्रज्ञामूले रच म भ न य गा आणी.
१ वाग्वल्लभमां ए प्रमाणे यति छे.
. ८०५ भाजनशीला.
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८०६ श्राद्धरान्ता.
य मा रारा गेथी चंचरीकावली छे.
१ मंदारमरंदचंपू अने वाग्वलभमां पण चंचरीकावली माटे यति मानी नथी.
८०४ दर्पमाला, दर्भमाला. ६, ७ यति १. य, य, र, र, ग. ११६२
ક
यारा र गे छे, रागथी दर्पमाला.
न, य, न, य, ग. ९७६
6 ू
म, भ, न, य, ग, १००९
छे भाजनशीला ता य रा रा ग धातां.
मानारा र ग थकी रचो
३.१९
य, म, र, र, ग. १९५४
८०९ प्रमोद, पुसपताग्र. २
र, र,,,. ११७१
राररागगयी थायछे श्राद्धरान्ता. -८०० चन्द्ररेखा', चन्द्रलेखा २.६, ७यति. न, स, र, र, ग. १९८४ न स र र गथी, ने छए चन्द्ररेखा,
त, य, र, र, ग. १९६९
यति छ मुनिथी, जाणजो चन्द्रलेखा.
१ शब्दकल्पद्रुममां ए नाम छे. २ वृत्तरत्नाकरना परिशिष्ट प्रमाणे ए नाम तथा यति लखेल छे; चन्द्रलेखा नाम आ माप अने यतिवाळु मळी आवतां वधार्थी छे, परंतु चन्द्रलेखा पंदर अक्षरमां रूप ४६२५ मुं छे. ८०८ आनता.
म, न, र, र, ग. १९२०९ आनना तो .
+न, न, र, र, ग. १२१६
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
नन र र ग घरो सुखेथी प्रमोदे. • १ वागवल्लभमां आ नाम छे. २ गणप्रस्तारप्रकाशमा ए नाम छे. ८१० उर्वसी. ७,६ यति. न,त,त,र,ग. १३२०
न त त रा गे मुनि, अंग उर्वसी छे. १ मंदारमरंदचंपूमा ए नाम तथा यति छे. ४११ सुकर्णपूर.
न,र,ज,र,ग. १३६८ न र जरा गायछे सुकर्णपूरे. ८१२ जगत्समानिका. स,स,ज,र,ग. १३७२
सस जार ग. थी जगत्समानिका छे. ४१३ ऋक्षपाद.
स,ज,ज,र,ग. १३८८ रच ऋक्षपाद से ना जरा ग आणी. ८१४ अतिरंह.
ज,ज,ज,र,ग. १३९० ' रचो अतिरंह ज जा जरा ग आणी. ८१५ मृगेन्द्रमुख, हरिमुख'. न,ज,ज,र,ग. १३९२
धर तु मृगेन्द्रमुखे न जा जरा गा. - १ छंदोर्णवमा ए नाम छे. ८१६ प्रहर्षिणी'. ३,१० यति. - मन,,र,ग. १४०१
'मा ना जा, र ग थी प्रहर्षिणी त्रणे छे. १ सुवृत्ततिलकमां लख्युं छे जे घणुं करीने आकारवाळा अने प्रथमनात्रण अक्षरो धीरे अने वाकीना उतावळी बोल्याथी आ वृत्त शोभेछे. प्राकृतपिंगलसूत्र, पिंगळछंदःसूत्र, छंदोमंजरी, वृत्तरत्नाकर, शब्दकल्पद्रुम, अने छंदोवृत्तमुक्तावलिने आंधारे अमे यति ऑपी छे; पण छंदःप्रभाकर (पृष्ट १८८ ) मा यति पाळी नथी. · राग शहना, ताल चतुश्र जाति प्रतिमट; मात्रां' १०, विलंब काळ. (लंगीतानुसार छदोमंजरी )
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१३ अतिजगती छंद. :
वर्णमेळ.
३२१
८१७ मागविकाविकास. त,भ,भ,र,ग. १४६१
वा भा भ रा गुरु माणविकाविकासे. ८१८ कीरलेखा.
नर,न,र,ग. १४९६ नर न रा ग थाय कविः कीरलेखा. ८१९ मत्तमयूर, माया, । मत,य,स,ग. १६३.३ मत्तमयूरी, मायक. ४,९ यति:१ .
छे मा ता या, सा ग युगे मत्तमयूरे. १ प्राकृतपिंगळसूत्रमा तथा वाणीभूषणमा यति कही नथी. मंदारमरं - द चंपू प्रमाणे- (वर्ण व्याघ्री स्तनैर्यतिः) चारे तथा नवे यति कही छे; वळी वाग्वलभ, छंदोमंजरी, वृत्तदर्पण अने शब्दकल्पद्रुममा ४,९ यति कही छे; पण बीजा केटलाक ग्रंथ कारोए तेमज छंदःप्रभाकरना कर्ताए यति पाळी. नथी.
संगीतानुसार छंदोमंजरीमा राग शाम, ताल षष्टितापुत्रीकन मात्रा ११, विलंबकाळ केहेछे. ८२० आननमूल.
भ,त,य,स,ग. १६३९ आननमूले रचवा भा त य सा गा. ८२१ लोध्रशिखा.
म,स,स,स,ग. १७५३ . मा सा सा स ग थी रच लोध्रशिखा तुं. ८२२ वारक..
स,स,स,स,ग. १७५६ रचजो कवि! तारक सा स स सागे. १ पिंगळादर्शमां छछे यति आपीछे पण वाग्वलभ, छंदोर्णव इत्यादिमा यति कही नथी. ८२३ कलहंस, सिंहनाद, ।
स,ज,स,स,ग. १७७२. कुटजा, प्रानपियारी.
कलहंस माह स ज सा स ग आवे..
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३२२
रणपिंगळ.
समवृत्त
छंदःप्रभाकर तथा शब्दकल्पद्रुममा नन्दिनी नाम विशेष छे पण अंक ८२६ मां ते जूतुं वृत्त छे. वाग्वल्लभमां आ मापर्नु क्षमा वृत्त मूकेल छे पण ते अंक ८४४ मां जूदुं छे.
कलहंस, सिंहनाद, क्षमा, अने कुटजा, ए नामो वागवल्लभ पृष्ट ६१ मे छे तेमां यति कही नथी.
प्राकृतपिंगळसूत्र पृष्ट १६३ मे, छंदोमंजरी पृष्ट ११५ मे, छंदोलता, वृत्तदर्पण इत्यादिमां लखेछे के, कलहंसनुं बीजुं नाम सिंहनाद छे तेना मापमां आ गणो छे, पण यति कही नथी.
शब्दकल्पद्रुममां कलहंस अने सिंहनाद ए बे नामो आपी तेमा यति कही नथी. पिंगळादर्शना कतीए कलहंस नाम आपी ६,७ यति कही छे (पृष्ट ७६), पण तेनुं प्रमाण शिष्ट ग्रंथोमां मळी आवतुं नथी; एटले ग्राह्य नथी. ८२४ नदिनी. ५,८ यति. न,ज,स,स,ग. १७७६
रच नदिनी, तु न ज सास ग पांचे. १ पिंगळादर्श प्रमाणे यति लखी छे. ८२५ चंडी.
न,न,स,स,ग. १७९२ रच कवि न न स स गा थको चंडी. ८२६ नन्दिनी
सम,त,स,ग. १७९६ समतासंगे नन्दिनी कवि रचेछे. १ अगियार वर्णमां नन्दिनी अंक ६१० मे छे तेमां स, ज, स, ल, ग, ए.माप छे अने ५.६ यति छे. ८२७ उपस्थित. ६,७ यति. ज,स,त,स,ग. १८२२
उपस्थित विषे, आणो ज स तसागा. छंदोमंजरी अने शब्दकल्पद्रुममा आ गणोथी आ वृत्त छे पण यति कही नथी.
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१३ अतिजगती छंद.
वर्णमेळ.
पिंगलादर्शमां ६,७ यति कही छे (पृष्ट ७२). पण तेनुं प्रमाण जडतुं नथी. ८२८ शलभलोला.
य,य,ज,स,ग. १८६६ यया जा सगे थी रचो शलभलोला. ८२९ पङ्कजधारिणी. म,स,ज,स,ग. १८९१
थाशे पंकजधारिणी मसजसांगे. ८३० कुबेरकटिका. सस,ज,स,ग. १८८४
सस जा स ग थी कुबेरकटिका छै. ८३१ रुचिरवर्णा,साला.(वाग्वल्लभ) ज,स,ज,स,ग. १८८६
जसाजस ग थी रचो रुचिरवर्णा. ८३२ मयूपसरणि.
भ,स,ज,स,ग. १८८७ भास जसग थी मयूपसरणि छे. ८३३ विरलविरागा,विरलवैराग'. स,स,भ,स,ग. १९४८
ससभासग थी छे विरल विरागा. १ गणप्रस्तारप्रकाशमां ए नाम छे. ८३४ विधुरवितान.
न,न,भ,स,ग. १९८४ रच विधुरवितान न न भ सागे. ८३५ रति.१ ४,९ यति. स,भ,न,स,ग. २०६६
___ सभना साग थको रति श्रुति खंडे. १ मंदारमरंदचंपूमाथी रति नाम लीधुं छे. ८३६ कुटजगती. ७,६ यति'. नजम,त,ग. २०९६
कुटजगती हये, नाजामा ता ग थी. १ शब्दकल्पद्रुममा तथा छंदोमंजरीना टिप्पणमां ए यति छे. ८३७ पारावत.
त,त,त,त,ग. २३४१ पारावते थाय ता ता जता गा खरे.
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vvvvvvvv....wwwwwww
रंणापमळ.
समवृत्त.
www.www.www..raniurmumwww. १८३४ प्रवाहिका.
"ज.त,त,त,ग. २३४२ "प्रवाहिका थाय जाता त तागा थकी. "८३९ स्विन्नशरीर.
भात,त,त,ग. २३४३ "स्विन्नशरीरे धराशे भताता तगा. १८४० परिवङ.
नत,तं,त,ग. २३४४ परिवढे नातता ताग आवे पदे. १८४१ वामवदना.
भ,ज,त,त,ग. २३६१ ‘वामवदना रचो भाज ताता ग थी. १८४२ किरात, कुटिलगति. नज,त,त,ग. २३५२
रच तु किरात ना जात तागा थकी. १८४३ चन्द्रिका,१ उत्पलिनी, । न,न,त,त,ग. २३६८ क्षमा,२ विद्युत.
३ ७६ यति. - 'न न त त ग हये, जोड़ तुं चंद्रिका. १ प्राकृत पिंगळसूत्रमा चंद्रिका नाम छ, तथा उत्पलिनी एवं नाम कोई कहेछे एवं लख्युं छे. ५,६ यति कही छे. छंदोर्णव तथा संस्कृत नोसडीमां चंद्रिकानुं आ माप छे, पण यति कही नथी. पिंगळादर्श, तथा छंदोलतामां न नतरग माप चंद्रिकानुं आप्युं छे अने चारे यति कही छे, छंदोमंजरीमां चंद्रिका नाम छे अने कोइ उत्पलिनी केहेछ एम जणाव्युं छे.
२ वृत्तरत्नाकर पृ. ४६ मे क्षमा नाम आपी ७,६ यति कही छे अने कोइ चंद्रिका नाम आपछे एम पण जणावेछे. पिंगलादर्शमा ७,६ यति क्षमामां 'कही छे.
मंदारमरंद चंपूमां पण क्षमा- एज मापछे, तेमां ७,६ यति कही छे. छंदः शास्त्रमा क्षमानुं न न जतग माप अने ७,६ यति कही छे; पण घणा प्रमागथी ए गो जूदा पडेछ माटे ग्राह्य नथी. छंदोर्णव तथा छंदोलतामां न,न, त,र, ग गण क्षमाना लखेछे ते भूल छे.
३ शब्दकल्पद्रुममा यति सहित आ मापना वृत्तनु नाम विद्युत पण आप्यु छे.
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१३ अतिजगती छंद.
वर्णमेळ.
३३५
८४४ भसलमद, भसलपद. भ,स,ज,त,ग, २३९९
छे भसलमदे भ सा ज ता गा पदे. ८४५ कठिनी.
नस,ज,त,ग. २४०० रंच तुं कठिनी न सो ज ता गा थकी. ८४६ वृद्धवामा.
त,त,ज,त,ग. २४०५ छे वृद्धवामा त त जा त गा आणवे. ८४७ मर्मस्फुर.
त,भ,ज,त,ग. २४२१ ता भाजता ग धर वृत्त मर्मस्फुरे. ४४८ मुक्षमा'.
न,न,म,ज,ग. २६२४ नन म ज ग धस्याथी थाय सुक्षमा. १ भाषाछंदोमंजरीमा सुछमा नाम छे. पृष्ट १८२. ८४९ पृषद्वती, निस्तुषा. तर,र,ज,ग. २७०९
लावो पृपद्धती माह तार राज गा. ८५० अखंडमंडन. ६,७ यति (वा०व०) ज,र,र,ज,ग. २७१०
अखंडमंडने, आपण जार राज गा. ८५१ कलापतिप्रभा, राग, नंदराग. र,न,र,ज,ग. २७३१
छे कलापतिप्रभा रजा र जाग थी. १ छंदःप्रभाकरमां आ वृत्त छ, ते पोते नवं रच्यु छ एम लखेछे, पण "कलापतिप्रभा" प्रथमथीज रचायलं वाग्वल्लभमां छे. ८५२ अशोकपुष्प.
न,न,र,ज,ग. २७५२ नन र ज ग अशोकपुष्पमां धरो. ८५३ करपल्लवोद्गता. य,य,स,ज,ग. २७६२.
य या साज गाथी करपल्लवोद्गता. ४५४ सार्द्धपदा.
र,य,स,ज,ग. २७६३ गय सा जगे सार्द्धपदा रचो तमे.
२८
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३२६
रणपिंगळ.
समवृत्त.
२५५ अम्बुदाबली.
स,य,स,ज,ग. २७६४ सयसा जगे थायन अम्बुदावली. ४५६ मंजुहासिनी', मंजुवादिनी, ...
ज,त,स,ज,ग. २७९० मंदभाषिनी३.
जता स जागे रच | मैजुहासिनी. १शब्दकल्पद्रुममां मंजुहासिनी नाम छे पण तेमा यति कही नथी. मंजुहासिनी नाम वृत्तरत्नाकर तथा छंदोमंजरीना टिप्पणमा ( पृष्ट ४७ मे) छे तेमा यति कहीं नथी.
पिंगळादर्शमां मंजुवादिनी नाम आपी तेमां ५, ८ यति जणावी छे, 'पण तेनु प्रमाण मळ्युं नथी.
३ छंदोर्णवमा ए नाम छे. तेणे ६, ७ यति कही छे. (पृष्ट८६) ८५७ मंजुमालती.
रज,स,ज,ग. २७९५ राजसा जगे रच तु मंजुमालती. ८५८ मंजुभाषिणी', प्रबोधिता, प्रति- ) स,ज,स्,ज,ग. २७९६
बोधिता,कलहंस, कनकप्रभा, ५, ८ यति. सुनंदिनी,चित्रवती ,हंसनाद५.) (वृत्तरत्नाकर.)
स जसा जगे, शर थी मंजुभाषिणी. १ प्राकृतपिंगळसूत्र, मंदारमरंदचंपू, छंदोलता, भाषाछंदोमंजरी, अने वाग्वल्लभमां ए माम छे, तेमा यति कही नथी. मंजुभाषिणीमां छंदःप्रभाकरमा ४,९ यति कही छे.
शब्दकल्पद्रुममां मंजुभाषिणीमा यति कही नथी तेमां अने प्राकृत पिंगळसूत्रमा मंजुभाषिणी अने शंभुने मते सुनन्दिनी केहछे एम जणाव्यु छे. पिंगळादर्शमां मंजुभाषिणी नाम आपी तेमां ५,८ यति कही छे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी ठीकामां मंजुभाषिणी नाम आपी तेमां ५,८ यति जणावी छे. २ वृत्तदर्पणमां ए नाम छे. ३ प्राकृतपिंगळसूत्रमा प्रवोधितामां यति कही नथी. तेणे मंजुभाषिणी तथा सुनन्दिनीथी प्रबोधिताने जूहूँ
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१३ अतिजगती छंद.
वर्णमेळ.
पाड्यु छे अने ते व्रणेमा यति कही नथी. ४ छंदोमार्तडमां तथा वृत्तमा क्तिकमां ए नाम छे.
संगीतानुसार छंदोमंजरीमां राग मुखारी, ताल वसंत, मात्रा १०, विलंबकाळ जणावेछे. ८५९ प्रभावती. ४,९ यति. त,भ,स,ज,ग. २८०५
चारे नवे, त भ ज स गे प्रभावती. १वृत्तदर्पणमा ज, भ, स, ज, ग, ए माप छे. २ वागवल्लभमा यति कही नथी. शब्दकल्पद्रुम, श्रुतबोध, छंदोवृत्तमुक्तावलि, अने पिंगळादर्शमा ४,९ यति कही छे. ४६० रुचिरा, अतिरुचिरा, । ज,भ,स,ज,ग. २८०६ तनरुचिरा, कलावती. ) ४,९ यति.
ज भा स जा, ग थी रुचिरा युगे नवे. १ वृत्तरत्नाकर पृष्ट ४७ मे, वागवल्लभ पृष्ट ६१ वे रुचिरा अने अतिरुचिरा नामो, उपरना पाप तथा यतिथी जणाव्यां छे, प्राकृतपिंगळसूत्र पृष्ट १६८ मां रुचिरा नाम आपी यति अने गणो उपर मुजब जणाव्यां छे.
२ मंदारमरंदचंपू पृष्ट १७ मे अतिरुचिरा नाम आपी तेना गण जभसरग जणावी ४,९ यति केहेछे, पण चोथा गणने स्थाने तेणे जगणने बदले रगण भूलथी गण्यो छे. __ ३ छंदोर्णव पृष्ट ८५ मे, तनरुचिरा नाम, उपरना गणे अने यतिवाळा वृत्तनुं आप्यु छे.
४ कलावती नाम छंदोवृत्तमुक्तावलिमांथी लीधुं छे.
छंदःप्रभाकर पृष्ट १८९ मे चिरामां यति कही नथी अने रुचिरानेज प्रभावती केहेवार्नु जणाव्युं छे, परंतु प्रभावती अंक ८५९ मे उपर जूदा मापथी छे,
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे राग प्रभाती, चतुश्रजाति गजलीला, मात्रा १८, मध्यकाळ. ८६१ विराधिनी.
न,भ,स,ज,ग. २००४ न भस जा गथको रचो विराधिनी. ८६२ चंद्रहासकरा.
र,स,ज,ज,ग. २९०७ चंद्रहासकरा र साज जगे बने. ८६३ द्रुतलम्बिनी.
स,स,ज,ज,ग, २९०८ सस जाज गथी रचो दूतलम्बिनी. ८६४ कनककेतकी, कनककेतन. त,स,ज,ज,ग. २९०९
थाशे कनककेतकी तस जा जगे. ८६५ गरुदवारिता. ज,स,ज,ज,ग. २९१०
रचो गरुदवारिता जस जा जगे. ८६६ अमितनगानिका. भ,स,ज,ज,ग. २९११
छे अमितनगानिका भ स जा जगे. ८६७ उपगतशिखा. न,स,ज,ज,ग. २९१२
उपगतशिखा न सा जज गाथकी. ८६८ आपंणिका,
जत,ज,ज,ग. २९१८ रचायछे आपणिका ज त जाज गे. ८६९ गुणसारिका, गणसारिका. ज,ज्ञ,ज,ज,ग. २९२६
रचाय ज जा ज ज गे गुणसारिका. ८७० प्रमोदतिलका.
त,भ,ज,ज,ग. २९३२ __ थाशे प्रमोदतिलका त भ जा जगे. ८७१ सारसनावलि, विभावरी१. न,भ,ज,ज,ग. २९३६
न भ ज जा गथकी सारसनावलि,
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८७३ उदात्तहास
१३ अतिजगती छंद.
३२९
१. वृत्तदर्पणमां आ नाम छे, तथा पादान्ते यति कही छे. विभावरीनो राग पील, ताल खंड जाति आडा चौताला, मध्यकाळ, मात्रा १७. (संगीतानुसार छंदोमंजरी . ) ..
८७२ उपचितरतिका..
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८७४ कलनायिका.
छे उपचितरतिका भन जाज गे
वर्णळ:
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८७५ अभ्रभ्रमशीला..
उदात्तहासे गणो ज त भ जाग छे.
८७६ विदला.
भ, न,ज,ज, ग. २९४३
ज, त, भ,ज, ग. २९८२.
जता न जागे कर तु कलनायिका
ज, त, न, ज, ग. ३०४६.
८८० लवलीलता.
अभ्रभ्रमशीला तय सा भा गयकी.
त,य,स,भ,ग. ३२७
न, स, त,भ, ग. ३३६०
रच तु विदला मांहे न सात भगा
८७७ प्रपातलिका. भास ज भ ग थी चो- प्रपातलिका
८७८ मोहमलाप १. ४,९ यति.
भ,स,ज,भ,ग. ३४२३
म,भ, भ, भ, ग. ३५०५:
४
मा भाभी भा, गयी मोहमलाप युगे..
१ आ वृत्त. "मंदारमरंद चंपूमाथी नवं मळ्युं छे, तेमां आ माप ने यति छे.. ८७९ कर्मट.
...
भ, भ, भ, भ, ग. ३५.११
कर्मठमां रच आप भभाभ भगा.
भ,र,न, भ,ग. ३५.४३
छे लवलीलता भरन.भागथकी.
८८१ अनिलोद्धनमुखी. नरनागथी तो ऽनिलोद्धतमुखी..
न,र,र,न, ग. ३७३६
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३३०
८८२ मबोधफलिता.
८८४ रमणी.
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छे प्रबोधफलितारनार न गथी.
८८६ परगति.
८८३ कोमलकल्पकलिका. ससा न गे कोमल कल्पकलिका.
रणपिंगळ.
८८६ अभिरामा.
८८७ उपसरसी.
जसा सन गयी रच ठीक रमणी.
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८८८ मदनजवनिका.
र,न, र, न, ग ३७७१
थायछे परगति र ना स न गथी..
८८९ वरिवशिता, परिवशिता. ससना न गयी रच
८९० अर्द्धकुसुमिता.
स,य,स,न,ग. ३७८८.
अभिरामा रचना साभत न गयी.
अर्द्धकुसुमिता र
८९१ विनताक्षी, वनिताक्षी.
ज, स,स,न, ग. ३८०६
४९२ नरावलि, निरावलि.
र, न, स, न, गं. ३८३९
सन जान गयी रचो उपसरसी.
स, भ, त.न, ग. ३८९२
समवृत्त.
नयन न गेथी मदनजवनिका.
स, न, ज, न, ग. ३९६४
नं, यं, न, न, गं. ४०४८
स, स, न, न, ग. ४०६० वरिवशिता.
भ, स, न, न, ग. ४०६३ भेसन नगे.
विनताक्षी रंच सभन न ग थकी.
स, भ,न,न, गं. ४०८५
तं, भै,न,न,गं. ४०८१
धासे नरावलि त भन न ग थकते.
८९३ अभीरुका. अभीरुका रेंच जंभनंनं गं थकी.
ज, भ, न, नं, ग. ४०८६
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१३ अतिजगती छंद.
वर्णमेळ.
८९४ कनकिता.
भ,भ,न,न,ग. ४०८७ भा भ न नाग थकी रच कनकिता. ८९५ हरिवनिता, उपनमिता. न,न,न,न,ग. ४०९६
__न न न न गर्थी रच हरिवनिता.
आ वृत्तना अंल गुरुने स्थळे लघु मूकवाथी अडमरुवृत्त थाय. जुओ अंक ९०४ मे. ८९६ सुखकारिका. से,ज,ज,म,ल. ४४६०
सुखकारिका रंच साज जामा लार्थी. ८९७ कन्द, कन्दा, कुंद, सारंग. य,य,य,य,लं. ४६८२
य या या य ला आववाथी बने कंद. १ कन्द वृत्त प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदःशास्त्र अने वाणीभूषणमां छे.
२ पिंगळादर्शमां कंधा. अने केटलांकमां कंदा नाम छे. कंधांमां पिंगलादर्शमां ७,६ यति कही छे, पण तेनुं बीजुं प्रमाण जड्युं नथी. ३ आ नाम प्रवीणसागरमा छे.
कवि दलपतराम डाह्याभाइए कन्दुक नाम आप्युं छे; अने तेमां छेलो लघु मूक्यो छे ते भूल छे. मागधीपिंगळ छंदोग्रंथमा सारंग नाम आप्यु छ. आ वृत्तमां अंत्य लघुने वदले गुरु मूकवाथी कंदुक थाय. जुओ अंक ७९९ मे. ८९८ कनीया, कनैया. त,स,य,य,ल. ४७०२
ता सा य य ल थी कनीया करो वृत्त. ८९९ अट्टासिनी.
त,भ,र,स,ले. १८१३ अट्टासिनी महि ता भरा स ल थाय. ९०० समूह, समूहा. न,ज,स,ज,ल. ६८९६
न जस जला थी समूहा समूह ज. १०१ पंकवती,पंकजमाला,पंक, )
पंकजावली,एकावली,कमला- (भ,न,ज,ज,ल. ७०३९ वली,पंका, कंजअवली,पंकजवाटिका, चंपकवाटिका, पकंज )
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रणपिगळ.
समवृत्त
.vvvvvvvvvvvvi
पंकवती महि भनाज जला. घर. 1 पंकवतीने पंकावलिना मिश्रणथीं उपजातिना १४ भेद थाय छे एम कागवल्लभमां लख्यु छ. छंदोमंजरी (भाषा)मां “एकावली, चंपकवाटिका" एवां नाम छे. ९०२. पंकावलि..
भ,न,य,न,ल.. ७८०७ भान य न लथको पंकावलि कर. ९०३ अशनि.
न,न,त,न,ल. ८००० नन तनल बनावी रच अशनि. ९०४ अडमरु
न,न,न,न,ल. ८१९२ अमरु महि धर न न न न ल.. शर्करी(शक्करी)छंद.१६,३८४भेद.१४वर्ण. ९०५ संकल्पासार, संकल्पाधार. म,म,म,म,ग,गः १
चौदे गुरु आवेळे सर्व संकल्पासारे. ९०६ नीलोहामा. ४,१२. यति.१ म,म,म,म,ग,ग.. १
नीलोदामा, वृत्ते मा मा मामा गा गा चारे..
१. छंदोलतामा ए प्रमाणे यति छे. ९०७ वंशोत्तंसाः
त,य,सम,ग,ग. २०५ शोधी त य सामागग जोो वंशोत्तंसा. ९०८ वासन्ती..
मत,न,म,ग,ग. ४८१. वासंतीमां लाव मत न मांगा गा शोधी. वासन्तीमां -७,७ यति कोइ कहेछे, परंतु प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदामंजरी, वृत्तरत्नाकरनुं टिप्पण, वागवल्लभ इत्यादि प्रमाण ग्रंथोमा पाळी नधी. ९०९ कालध्वान्त कालध्वान.६,(यतिम,म,न,य,ग,ग.९६१
कालध्वान्ते छठे, ममन य गागा आणो. १॥ वागवल्लभमां ए प्रमाणे यति छे..
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१४. शर्कर्स छंद.
वर्ण मेळ.
३३३
+९१० मध्यक्षामा. ४, १० यति. ' म, भ, न, य, ग, ग. १०००९ भना या गा गे.
४
मध्यक्षामा, युग यति म
शब्दकल्पद्रुममा तथा वृत्तरत्नाकरना परिशिष्ट भागमां ४, १० यति छे. राग रीतगौळ, ताल चतुश्रजाति प्रतिभानुमति, मात्रा ११, विलंबकाळ. ( संगीतानुसार छंदोमंजरी).
९११ चूडापीड. (बाग्वल्लभ )
९१२ कुटिल १. ४,१० यति.
चूडापीडे मभनयगग आणो शोधी.
९१४ प्रपन्नपानीय.
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४
यति वेदे, कुढिल रच सभा न्या गा गे.
१ आ नाम छंदः प्रभाकरमां छे तेमां यति आपी नथी; परंतु वृत्तरत्नाकरना टिप्पणमां अने शब्दकल्पद्रुमना टिप्पणमां तथा पिंगळादर्शमां आ नाम तथा यति कही छे.
९१३ पारावार.
म, भ, न, य, रा. ग. १००९
९१६ धीरध्वान. ८, ६ यति.
'आणो ठिक 'तन न य गंग पारावारे.
धीरवाने आठे छेदो,
९१७ ललितपताका.
स, भ, न, य, ग, ग. १०१२
तय, तर, ग.ग. १२९३
तायात र गागा आवे प्रपन्नपानीये. ९१५ अनिन्दगुर्विन्दु, गुर्विन्दु, पूर्वेन्दु न, य, त,र, ग, ग. १२९६
न तर गागे जोडो अनिन्दगुर्विन्दु.
त, न, न, य, ग, ग. १०२१
म, म,म, स, ग, ग. १५३७
माममसागी गा.
न, य, स, स, ग, ग. १७४४
ललितपताका रचनाय ससा गा गे.
2
९१८ असम्बाधा, असंबंधा. १, ९ यति म, त,न, स, ग, ग. २०१७
૫
माता नी संगे, ग शर यति असंबाधा.
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३३४
रणपिंगळ.
समवृत्त.
१ मंदारमरंदचंपूमां असंबंधा नामथी एज माप ने यति आपी छे.
२ वृत्तरत्नाकर, छंदःशास्त्र, वाग्वल्लभ अने छंदःप्रभाकरमां यति कही नथी. राग आरभी ताल चतुश्रजाति भानुमति, मात्रा ११, विलंबकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे.) ९१९ सम्बोधा. (वाग्वल्लभ) ज,त,न,स,ग,ग २०२२
जतानसा गा गर्थो कवि रच सम्बोधा. ९३० विन्ध्यारूढ, वन्ध्यारूढ. म,र,म,त,ग,ग. २०६५
विन्ध्यारूहे मरामा ता गागा आणजोजी. ९२१ बिम्बालक्ष्य. ७,७ यति. म,र,त,त,ग,ग. २३२१
विम्बालक्ष्ये हये छे, मार ता ताग गा थी. ९२२ दृप्तदेहा.
य,र,त,त,ग,ग. २३२२ य राता ता ग गा थी दृप्तदेहा बनेछे. ९२३ बभ्रुलक्ष्मी. (वाग्वल्लभ) र,र,त,त,ग,ग. २३२३
रा र ता ता ग गा थी व लक्ष्मी बनेछे. ९२४ सरमासराण.
स,स,त,त,ग,ग, २३३२ सरमासरणि जोडो ससा ता त गागे. ९२५ पुष्पशकटिका.
भ,स,त,त,ग,ग. २३३५ पुष्पशकटिकामांछै भ सा ता त गागे. ९२६ निर्यत्पारावार. ___ मत,त,त,ग,ग. २३३७.
निर्यत्पारावारमा छे म ता ता त गा गा. ९२७ कल्पकान्ता.
र,त,त,त,ग,ग. २३३९ कल्पकान्ता मांह रा ता त ता गा ग आवे. ९२८ परीवाह.
न,त,त,त,ग,ग. २३४४ रच परीवाह ना ता त ता गा ग आणी.
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१४ शकरी छंद.
वर्णमेळ.
'९२९ नान्दीमुखी, वसंत. ७,७ यति न,न,त,त,ग,ग. २३६८
न न त त ग ग थी, सात नान्दीमुखीमां. १ वाग्वल्लभा नान्दीमुखी नाम, आ माप ने ७,७ यति जणावेछे.
२ नारायणभट्टीना टिप्पणमांना सूत्र प्रमाणे बसंत नाम तथा यति छे. ९३० हंससेनी. ४, १० यति.१ म,भ,न,त,ग,ग. २५४९
चारे थोभो, म भन त ग गे हंससेनी. १ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीना टिप्पणमां अने पिंगळादर्शमा ए यति छे. '९३१ वाटिकाविकाश, वाटिका, ।
भ,न,य,ज,ग,ग. २६८७ वाटिकाविलास.
भान य जगग धरो वाटिकाविकाशे... ९३२ अर्कशेषा.
रज,र,ज,ग,ग, २७३१ राजराज गागथी रचाय अर्कशेषा. ९३३ मदीवदाता.
स,भ,र,ज,ग,गे. २७४० स भरा जा गगथी रचो मदावदाता. ९३४ वंशमूल.
स,भ,स,ज,ग,ग. २००४ सभ सा जागग रच जोइ वंशमूले. '९३५ चेलाञ्चल,वेलाञ्चल,वेलांतर. त,भ,स,ज,ग,ग. २८०५
चेलाञ्चले तभ स ज गाग आणजोजी. ९३६ कुसुम्भिनी.
ज,भ,स,ज,ग,गे. २८०६ कुसुम्भिनी ज भ से ज गा गथी रचाशे. ९३७ विलम्बनीया.
न,भ,स,ज,ग,ग. २००८ न भ स जा ग गर्थी थशे विलम्बनीया. ९३८ अनन्तदामा.
नकस,ज,ग,ग. २८१६ न न स ज ग गर्थी रचो अनन्तदामा.
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३३६
रणपिंगळ.
सप्रवृत्त.
९३९. नदी. ७,७ यति १ न,न,त,ज,ग,ग. २८८.
न न त ज ग ग थी, छेद हये नदी छे. १ शब्दकल्पद्रुम प्रमाणे यति आपी छे. ९४८ वसन्ततिलका, उद्धर्षिणी
सिंहोद्धता, सिंहोन्नता, मधुमाधवी, तत्का, त,भ,ज,ज,ग,ग. २९३३ वसंततिलक, वसंततिल,
शोभावति, चेतोहिता.) - थाशे वसंततिलका त मजाज गागे.
१ पिंगलाचार्यना मत प्रमाणे. २ सैतव मुनि. ३ काश्यप मुनि. ४राम अने गोमानसना मत प्रमाणे, वळी वृत्तरत्नाकरना टिप्पणमां नागे ए नाम आप्यानो पाठ जणाव्यो छे. नागराज पिंगळ, ६ छंदोलता, ७ गणप्रस्तारप्रकाश, ८ रामकीर्ति पंडिते चेतोहिता नाम आप्यु छे. श्रीकृष्ण कविये, मंदारमरंदचंपूमां वृत्तबिंदुना पेहेला भागमां पादांते अथवा ७, ७ उपर यति कहो छे. छंदःशास्त्रमा पादान्ते यति कही छे. पिंगळादर्शम वसंततिलका, सिंहोन्नता, उद्धर्षिणी, अने मधुमाधवी ए नामो आपी तेमां ८, ६ यति कही छे; तेज प्रमाणे शब्दकल्पद्रुममा पण यति कही छे. प्राकृतपिंगळसूत्रमा तथा वाणीभूषणमां वसंततिलका, अने सिंहोद्धता ए बन्ने नामो आपी तेमा यति कही नथी. राग यमनकल्याप्ला, ताल लक्ष्मी, मात्रा २१, मध्यकार
(संगीतानुसार छंदोमंजरी.)
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१४ शर्वरी छंद.
वर्णमेट
-
-
९४१ कुमारी,कुमारिका., यति. नन,मे,ने,गे,ग.२,९९२
नज मन गा ग आठ, वसुधी कुमारी. १ वृत्तरनाकर मूळ तथा शब्दकल्पद्रुममा ८, यति कहीं छे. ९४२ अलोला', लोला.२ ५,७ यति.म,स,म,म.म.ग.३,०९७
साते छे यति मा सा, मा भी गा गुअलोला. १ वागवल्लभः १ छंदःशास्त्रमा परिशिष्टमा ए नाम छ, तथा ७,७ यति कही छे. मंदारमरंदचंपूमां एनाम तथा याते छे, शब्दकल्पद्रुममां अने छंदःप्रभाकरमा लोला नाम तथा एज यति छे. वृत्तरत्नाकरनी टीकामा केहेछे के
आ वृत्तनेज केटलाक कुठिल केहेछे, पण ते जूदो छ, जुओ अंक ९१२ मे. ९४३ कृतमाल.
त,ज,य,भ,ग,ग. ३,१८१ आणो कृतमाल विषे ता जा य भ गा गा. ९४४ शारदचन्द्र, प्रिया. त,य,स,भ,ग,ग. ३,२७७
ता या स भ गा गा धरनो शारदचन्द्रे. ९४५ कलहंसी. ६,८ यति. त,य,स,भ,ग,ग. ३,२७७
ता या स भ गा गे, छ दिशाथी कलहंसी.
१ मंदारमरंदचंपूमाथी. ९४६ परिणाही.
म.भ,स.भ,ग,ग. ३,३१३ माभासाभूग गाँ रचाशे परिणाही. ९४७- रतिरेखा.
त,य,म.भ,ग,ग. ३,४६९ ता या भ भगागे तुं रचने रतिरेखा. ९४८ मन्मथ.
सस.भ.भ.ग,ग. ३,४८४ सस भाभगगा आण तु मन्मथ माहे. ९४९ जाहमुखी.
भ,भ,भ,भ,ग,ग. ३,५११ जाहमुखी रच भा भभ भा गग आणी.
ताया मम
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रणपिंगळ.
समवृत्त
६५० इन्दुवदना', इन्द्रवदना२,।
वरसुन्दरी..
भ,ज,स,न,ग,ग. ३,८२३
इन्दुवंदना रच भ जा स न ग गा थी. पिंगळादर्शमां इन्दुवदना नाम आपी ५,४,५ यति कही छे; परंतु मं. दारमरंदचंपू, छंदोमंजरी, वृत्तरत्नाकर, अने छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी .२ इन्द्रवदनामां शब्दकल्पद्रुममा यति कही नथी. वागवल्लभमां इन्दुवना अने इन्द्रबदना ए बने नामो आपी तेमा यति कही नथी. एटले अमे यति ग्राह्य गणी नथी. ९५१ लक्ष्मीः पादान्ते यति. म,स,त,न,ग,ग. ३,८६६
लक्ष्मीमां धरवा मा सात न ग ग पादे. १ आ वृत्तमा वृत्तरत्नाकरना परिशिष्ट भागमां न ने बदले म अर्थात् (म स त भ ग ग.) एवं लक्षण आप्यु छे. ९५२ प्रतिभादर्शन.
स,भ,त,न,ग,गं. ३,८९२ प्रतिभादर्शनमा छे स भ त न गी गा. ९५३ अलिपद, नटगति. न,न,न,न,ग,ग. ४,०९६
नटगति अलिपद न न न न गा गा. १ वागवल्लभमा अलिपद नाम छे, तेमा यति कही नथी.
२ छंदोलतामां छे; तमा यति कही नथी. ९५४ सुपवित्र, पवित्र. ८,६ यति. न,न,न,न,ग,ग. ४,०९६
मैं न न न ग ग वसु, यति सुपवित्रे. . १ शब्दकल्पद्रुम,छंदोमंजरीनाटिप्पणमा सुपवित्र नाम छ, एमां ८,६ यति कहीं छे. ९५५ कामलाः
न,न,म,य,ल,ग. ४,६७२ रच तु ननम यालागा थकी कामला. ९५६ प्रपात
य,य,य,य,ल,ग. ४,६८२
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१४ शर्करी छंद.
वर्णमेळ.
प्रपाते रचो या यया या लगा आणिने. ९५७ जलदरसिवा. न,स,य,य,ल,ग. ४,७०४
जलदरसिवा नसा यायला गायकी .
९५८ पथ्या, मजरा, ६.९, यति. स,ज,स,य,ल,ग. ४,८४४
वसुधा.
सजसा य ला, ग शर छेद पथ्या विषे. १ वागवल्लभमा पथ्या नाम छ पण यति नथीं. २ आ नाम छंदःकामदुधावत्समां छे. ३ आ नाम छंदःप्रभाकरमां छे. ४ शब्दकल्पद्रुममां तथा छंदोमंजरीना टिप्पणमा अने पिंगळादर्शमां ५,९ यति कही छे, मंदारमरंद्रचंपूमा १०,४ यति कही छे, ९५९ चंद्रौरस.
म,भ,न,य,ल,ग. ६, १.०६ थाशे चंद्रौरस ठिक म.भ ना या लगे. ९६० कल्पमीलिता.
रर,र,र,ल,ग. ५,२६७ रा र रा रा लगे थायछे कल्पमीलिवा. ९६१ सुधाधरा.
रज,त,र,ल,य. ५,४.१९ सा ज़ ता र ला ग आण्या थकी सुधाधरा. ९६२ कलाधर.
र,र,ज,र,ल.ग, ५,४५९ आणजो रा र जा र ला ग आ कलाधरे. ९६३ कुडशिका, हरी,आनन्दा. जर,ज,र,ल,ग. ५,४६२
कुडशिका रचो ज राज रा ल गे करी. १ छंदः प्रभाकरना प्रकटक ए ए नाम नवं कलप्यु छे, परंतु तेनुं “कुड. निका” नाम प्रथमनुज छे.
२ आनन्दा नाम गणप्रस्तार प्रकाशमा आप्युं छे.. ९६४ मङ्गली.'
स,स,ज,र,ल,ग. ५,४६४
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३४०
रणपिंगळ.
समवृत्त.
स स जा र ल गा धराय मङ्गली विषे. १ गणप्रस्तारप्रकाशमां ए नाम छे; छंदःकामदुधावत्समां पण ए नाम छ. एज नामनुं वृत्त पंदर अक्षरमां छे. ९६५ सुकेशर.
न.र,न,र,ल,ग. ५,५९२ रच खरे सुकेशर नरानराल गे. १ वृत्तरत्नाकरमां नरनरैलंगौच रचितं सुकेशरम् कयुं छे. १५५ वर्णमां जूदाज मापी सुकेसर वृत्त अंक १०२७ मे छे. ९६६ वितानिता.
नन,न,र,ल,ग. ५,६३२ मन न र ल ग धर वितानिता विषे. ९६७ अलकालिका, अलिकालका, त,भ,र,स,ल,ग. ५,८१३
ता भार सा लग थी रचो अलकालिका. ९६८ गगनोद्गता.
र,न,र,स,ल,ग. ५,८१९ रान रा स ल ग थी रचो गगनोगता. ९६९ अपराजिता. ७, ७ यति'. न,न,र,स,ल,ग. ५,८२४
ननरस लग थी, मुनि अपराजिता. १ वाग्वल्लभ, पिंगळ छंदःसूत्र, वृनरत्नाकर, छंदोमंजरी, शब्दकल्प. द्रुम, तथा मंदारमरंदचंपू प्रमाणे यति लखी छे. उंदःप्रभाकर (पृष्ट १९५) मां यति कही नथी. २७० विनन्दिनी.
स.स.स.स,ल,ग. ५,८९२ सस सास लगे रच ठीक विनन्दिनी. ९७१ *पुराली, नगरालिका. न,स,भ,य,ल,ग. ६,०५६
न त भ याला गथी कवि! पुराली करो. * मूळ नगरालिका नाम छे, पण ते माप कोइ प्रकारे आधा शकतुं नथी, माटे नगर+आलिका अथवा आली नगरआली शब्द थाय. अमे नगरने बदले पुर शब्द मूकी पुर+आली=पुराली नाम ग्रहण कर्यु छे. •७२ भूरिशिखा.
म,म.मत,ल,ग. ६
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१४ शर्करी छंद.
वर्णमेळ.
३४१
ससमा त ल गा आण्ये थाशे भूरिशिखा. ९७३ क्रीडायतन, क्रीडावसथ. स.स,स,त,ल,ग. ६,३६४
सस.सा.त.लगा रचनो क्रीडायतने. ९७४: नासाभरणः
तय,भ,त,ल,म. ६,१४१ ता या म त लागा आण. तु नासाभरणे. ९७५ कर्णिशर..
भाभ,भ,त,ल,ग. ६,५८३ कणिश धर ठीक भ भा भा तल मा. ९७६ विपाकवती.
न,भ,ज,ज,ल,ग. ७,०३२ न भाजा ल ग थी थाय विपाकवती. ९७७ काकिणिका. ज,ज,भ,न,ल,ग. ७,०८६
ज जा भ ज ला ग थी रच तु काकिणिका. ९७८ कारविष्षी
भ,ज,भ,ज,ल,ग.. ७,०८७ तुं रच भ जा भ जा ल. ग थी कारविणी. ९७९ कुररीरुता, धृति, प्रमदा. न,ज,भ, ज,ल,ग. ७,०८८
रच कुररीरुता न ज भ जा ल ग थी. १ वाग्वालभमां कुररीरुता सिवाय वीजा नाम नधी, अने. यति पण नधी. २. वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीना टिप्पणना सूत्र प्रमाणे धृति नाम छे पण तेमा यति नथी..
३ वृत्तरत्नाकर तथा शब्दकल्पद्रुममा यति नथी. छंदःकामदुधावत्स तथा छंदोमंजरीना टिप्पणमा छे, तेमा याते कही नथी, ९८० कूर्चलालित.
र,र,र,भाल,म. ७,३३५ रार राभा लगा थायछे कूर्चललिते. ९८१ कलहेतिका
स,ज,ज,भ,ल,ग.. ७,५३२ कलहेतिका स ज जाम लाग थी रचो. ९८२ अंचलवती..
भ,ज,ज,भ,ल,ग. ७,९३९
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३४२ रणपिंगळ.
समवृत्त. ......
अंचलवती भज जा भ लाग थी करो. ९८३ गगनगतिका.
र,स,ज,न,ल,ग. ८,०२७ रास जान लगे रचो गगनगतिका. ९८४ निर्मुक्तमाला..
म,रभ,नाल,गं. ८,०८१ जोडो निर्मुक्तमाला मर भ न ल ग थी. ९८५ प्रहरणकलिका,
७,७-यति : न,न,भ,नल,ग. ८,१२८ प्रहरणकलिता. )
न नभन लग. थी, प्रहरणकालिका, . मुनि विरतिथकी, प्रहरणकलिता. छंदोमंजरी पृष्ट ११६ मे प्रहरणकालका नाम उपरना गणोवाळु.छे,. तैमा यति कही नथी. प्राकृतपिंगळसूत्र पृष्ट १६७ मे, वाग्वल्लभ पृष्ठ ६४ मे, मंदारमरंदचंपू पृष्ट १८ मे, ए माप छ पण यति कोइए कही नर्थी.
१ शब्दकल्पद्रुममा प्रहरणकालेका नामना वृत्तनुं उपर-प्रमाणे माप अने ७,७ यति कही छे..
शब्दकल्पदुम, वृत्तदर्पण, वृत्तरत्नाकर नारायणभट्टी टीका (पृष्ट. ४४) वाळामा प्रहरणकलिता (प्रहरणकालका इति पाठः) नाम आपी तेमां ७,७ यति कही छे.
छंदःप्रभाकरमां आ गणोीज प्रहरणकलिका नाम आपो (याते कह्या कार) विशेषमा जणावेछे के, आ वृत्तनेज प्रहरणकलिता केहेछे.
पिंगलछंदःसूत्रनी हलायुधनी टीकामा ७,७. यति प्रहरणकालता नाम आपतां जणावेछे.
राग गारा (कानरा), ताल चतुश्र जाति तेताल, मात्रा १६. (संगीतागार छंदोमंजरी प्रमाणे.) ९८६. चक्र,चक्रपद,चक्रवर्ती,)
वृत्तचक्र, चक्रविरति, भ,न,न, नल,ग. ८,१९१ देवरवरतनु, चकरा. ).
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१४ शर्करी छंद.
वर्णमेळे.
३४३
vvvvra
चक्र रच भ न न न ल ग कवि गणी. १ पिंगळादर्शमां चक्रपद नाम आपी तेमां ७,७ यति कही छे. २ भगवत् पिंगळमां ए नाम छे. ३ छंदरत्नावलीमां ए नाम छे. ४ छंदःप्रेभाकरमां ए. नाम छे.. ५. नारायणभट्टीना टिप्पणना सूत्र प्रमाणे छे.
६ गणप्रस्तारप्रकाशमां ए नाम छे. ९८७ कामशाला.
। र,र,र,र,ग,ल. ९,३६,३ कामशाला विषे रा र रा रा ग ला थाय. ९८८ उन्नम.
भाभ,स,स,गल.. ६,९७५ ___ मी भ. स सा ग ल थकी तो रच उनमः ९८९ लीला
त,भ,य,ज,ग,ल. १०,८६९. लीला विषे ठिक त भा या ज गा ल थाय. १ पिंगळादर्शमां ५,९ यति कही छे पण तेने बीजुं प्रमाण मळयुं नथी. ९९० गोप, कुरंगर. ८,६ यति. र,ज,र,ज,ग,ल.. १०,९२३,
गोप आठ छेद राज, राज गा ल धार. पिंगळादर्श पृष्ट ८१ मे गोप नाम आपी ८,६ यति कही छे. २ प्रवीणसागरमां कुरंग नाम छे. ९०.१ हरलीला', हरिलील.. त,त,त,ज,ग,ल. ११.० ४९
तातात जंगाल थी थाय हरिलीलाज. १ गणप्रस्तारप्रकाशमा ए नाम छे.. ९९२ हरिलीला'. त,भ,भ,ज,ग,ल. ११, १८९.
ता भाभ जागल थो हरिलीला रचाय. १ भाषाछंदोमंजरी पृष्ट १८४ मे ए नाम आप्यु छे. ९९३ उपकारिका.
स,ज,ज,भ,ग,ल. ११,६.२८ उपकारिका रचवा स जा ज भ गाल. ९९४ हेममिहिका. भ,ज,ज,भ,ग,ल. ११,६२१:
हेममिहिका करवा भ जा ज भ गाल..
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९९७ सुखदा'.
३४४
९९५ हेति..
न, ज, ज, भ, ग, ल. ११, ६३२
नजज भगा ल थकी रचो कषि ! हेति. ९९६ मधुपालि, मनोरम १. स, स, स, स, ल,ल. १४,०४४ स.स.सा.स.लले मधुपालि रचो कवि !
1: गणप्रस्ता प्रकाशमां एनाम छे..
रणपिंगळ
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तय, स, त, ल,ल. १४, १४१
ता यास तलाले सुखदा शोभे सरस..
१ भाषाछंदोमंजरी पृष्ट १८३ मे ए नाम छे. ९९८ वैशम्भरि..
समवृत.
नान, य, न, ल, ल १६,०००
ननयन ल ल भी शम्भरि तु रच. ९९९ अकहरि, अकुहरि. न, न, नान, ल, ल .. १६, ३८४ अक़हरि रच ननन न ल ल थर्को.
१५ अतिशर्करी छंद. ३२,७६८भेद. १५वर्ण.
१०.००. सारङ्गी, लीलालेख', लीलाखेल,
कामक्रीडा, सारंगिका, सारंग, म. म. म. म. म. १ सारंग, केशकलेख, त्रिनयनः .
मामामा मा माथी जोड़ो सारंगी खडी रोते.
१ ए नाम प्राकृतपिंगळसूत्रा तथा छड्रोमंजर्समां छे. २. ए नाम छंदोलतामां छे..
लीलालेख, सारङ्ग अने कामक्रीडा नाम वाग्वल्लभमां छें मां यति आपो नथी; छंदोवृत्तमुक्तावलिमां सारङ्गी नाम आपी: यति कही नथीं..
३ त्रिनयन नाम चित्रसेनटीकावाळा मागधी पिंगळमां छे,. मां पंदर गुरु यति वगरना कला छे.
प्राकृत पिंगळसूत्र अने छंदोमंजरीमा यति कही नथी..
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१५ अतिशर्करी छंद.
वर्णमेळ.
छंदोलतामां पांच मगणवाळा वृत्तने कामक्रीडा नाम आपतां तेमां यति कही नथी, अने विशेषमा जणाव्यु छे के, कोइ एने ज लीलालेख, केशवलेख, अने सारंगक ए नाम पण आ..
प्रेछे.
कामक्रीडा अने सारंगिका नामर्नु उपर प्रमाणे माप आपी तेमां पिंगळादर्शमां पृष्ट ८९ मे ४, ४, ४, २, यति कही छे पण तेर्नु प्रमाण जोवामां आवतुं नथी. १००१ वज्राली. (वा. व.).८८७ यति. त,य,म,म,म. १३
ताया मम मा थी थाशे, आठे थोभी वज्राली. १००२ स्फोटकीड, (वा. व.) १०,५ यति. न,य,म,म,म. १६
विरति दशे स्फोटक्रीडे छे, नाया मा मा मा. १००३ क्रीडितकटका.(वा. व.) ११,४ यति. भ,स,स,म,ब.२२३
कीडितकटका घस सामामा, रुद्रे ११ थोभो. १००४ चावटक. (वा. व.) १०,५ यति. म,भ,भ,म,म. ४३१
दिशा पांचे यति चाटके,मा मा भामा मा. १००५ आनद. (वा. व.)१०,५ यति. र,न,स,त,म. २,२९९
रानसातम दश अने छे, पांच आनद्धे. १००६ बहुलाभ्र. (वा.व.) ९,६ यति. स,म,स,भ,म. ३,३१९
बहुलाः विरति नवे, सा मसभा मा छे. १००७ वाणीभूषा. (वा.व.) ८,७ यति. म,म,त,न,म. ३,८४१
वाणीभूषा आठे साते, ममत न माथी छ. १००८ चित्रा, चित्र२.
म,म,म,य,य. ४,६०९ चित्रा माहे शोधी शोधी आण मा माम या या. १ वागवल्लभ. २ प्राकृतपिंगळ्सूत्र अने छंदोमंजरीमा से.
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३४६
रणसिंगल.
समवृत्त.
१००९ चन्द्रलेखा', चन्द्रसेना. ७, ८यति. २ म, र, म, य, य. ४,६२५ साते छे चन्द्रलेखा, मारामया या कन्याथी.
१ मंदार मरंदचंपूमां ए नान तथा यति कही छ.
२ छंदोमंजरी, पिंगळादर्श, शब्दकल्पद्रुम, अने वागवल्लभमां ७,८ यति अने उपरना मापथी चन्द्रलेखा नाम आप्युं छे. छंदः प्रभाकरमा यति कही नथी. १३ वर्णमा ६.७ यति ने न स ररग ए गगोथी चन्द्रलेखा वृत्त अंक ८०७ मे छे.
१
१०१० मालिनी, मानिनी,
ગ્
नूतनमाला.
२०११ सिंहपुच्छ.
नन मयय वसुए, मालिनी ठीक थाशे.
१ चाग्वालभ, शब्दकल्पद्रुम, छंदोबोधमुलक अने मंदार परदेचंपूमां पण आ नाम अने आ प्रमाणेज यति छे. छंदसारमां मालती नाम आप्युं छे. [ पृष्ट २५ मे ]. संगीतानुसार छंदोमंजरीप्रमाणे राग सोरठ, ताल खंड जाति जगपाल, मात्रा ११, . विलंबकाळ.
२ गणप्रस्तार प्रकाशमां ए नाम छे.
१०१२ कुमारलीला.
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१०१३ चन्द्रकान्ता.
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वरो सिंहपुच्छे यया याय या आप आणी.
१०१४ वृषभ.
८,७ यति. न,न,म, य, य. ४,६७२
जो जोडो मनन र य बने कुमारलीला.
१०१५ दीपक.
य, य, य, य, य. ४,६८२
१०१६ परिमल.
मन,न,र, य १, ६२.५
७, ८ यति. रारमा साथी ने, साते यति चन्द्रकान्ता.
र, र, म, स, य. ५,६९१
वृषभे रचाय रचना स जसास या थी.
.स, ज,स,स,य. ५,८६८
भ, त, न, त, य. ६,६३१
दीपकमां लाव भतनता या कवि शाणा.
न, य, न, ज, य. ७, १२०
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१२ अतिशर्करी छंद.
वर्णमेळ.
wwwwwwwww...
परिमल माहे न य न ज या कर शोधी. १०१७ शरकल्पा.
न,न,स,न,य: ७,९३६ नन स न य कर सदा कवि शरकल्पा. १०१८ एला', रेखा, स,ज,न,न,य. ८,१७२ कवितरेला३.
५, १० यतिः स ज ना न या, शर दश यति धर एला. १ छंदःकामदुघावत्समां ए नाम छे. वागवल्लभ अने शब्दकल्पद्रममा एला नाम तथा ५, १० यति छ. २ मंदार मरंदचंपूमां ए नाम तथा यति छ:
३ पिंगळादर्शमां कवितरेलामा ५, १० यति कही छे. १०१९ मुरेला..
न,ज,न,न,य. ८,१७६. नजन न या धरों शुभ रच तु मुरेला. १०२० सीता'.
रत,म,य,र. ८,७३९ सतमा यारे करी सीता रचो आ नेमथी. ६ आ वृत्त छंदःप्रभाकरना काए नवु कल्प्युं छे. १०२१ लास्यकारी, चन्द्ररेखा. ७, ८ यति. र,र,र,र,र. ९,३६१
रा र रा रा र आणो, तमे लास्यकारी विपे.
रा र रा रा र साते, यति चंद्ररेखा दिसे. १ लास्यकारी नाम वाग्वल्लभमां छे, तेमी यति कही नधी. २ पिंगळादर्शमा ७,८ यति चन्द्ररेखामां कही छे.
तेर वर्णमां अंक ८०७ मे आ नामनुं वृत्त छे तेनुं माप जूतुं छे. १०२२ मदनमालिका.
न,र,न,र,र. ९,६८८ मदनमालिका न र न रा र थीं थायछे. १०२३ विपिनतिलक,विपिनतिलका२. न,स,न,र,र. ९,६९६
विपिनतिलके न स न रा र छे सामटा. १ वाग्वल्लभ.
२ छंदःप्रभाकर
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१०२४ तूणक, तूण, चायर, र,ज,र,ज,र. १०,९२३ पंचयामल,
८,७ यति आठ सात छ यति र, जा रजा र तूणके. १ तूर्णकनाम, छंदोमंजरी, अने शब्दकल्पद्रुममा छे, तेमा यति कही भधी. संस्कृत प्रोसडीमां ८,७ यति कही छे.
२ आ नाम छदःप्रभाकरमा छ पण तेमा यति कही नथी.
३ मंदारमरंदचंपूमां आ नाम आप्यु छे, अने तेमा र, र,ज,ज, र. गण . कस्या छे. तथा ७,८ यति कही छे, तेनुं बीजुं प्रमाण जड्यु नथी.
४ वृत्तदर्पणमां चामरमां पादान्ते यति कही छे. छंदोवृत्त मुक्तावलीमां अने प्राकृतपिंगळसूत्रमा तथा वाणीभूषणमां चामरमा यति कही नथी. वागवल्लममा तृणक अथवा पंचयामल नाम आपी यति विष कर्वा नथी. संगीतानुसार छंदोमंजरीमा राग पहाडी (कामोदी), ताल दिव्य जाति संकीर्ण, मात्रा २३, मध्यकाळ छे. १०२५ मृदंग. ८,७यति. (पि. द.) त,भ,ज,ज,र. ११,१२५
ताभा ज जार वसु ने, मुनिथी मृदंग छे. १०२६ प्रभद्रक', प्रभद्रिका', । न,ज,भ,ज,र. ११,१८४ मुखेलकर.
८,७यति३. न ज भ जरा कराय, वसुथी प्रभद्रके. १ प्रभद्रक नाम वाग्वल्लभमा छे पण तेमा यति कही नथी. पिंगळादर्शमा
८,७ यति कही छे. २ आ बन्ने नामो छंदःप्रभाकरमां छे. ३ नारायणभट्टी प्रमाणे. १०२७ सुकेसर,सुखेलक. १,१० यति. न,ज,भ,ज,र. ११,१८४
__न ज भ ज रा, शरे५ यति सुकेसरे करो.. वृत्तरत्नाकर पृष्ट ५०मे “नजभज विराजितमिदं सुकेसरम्" जणावी विशेषमा टिप्पण आप्युं छे के सुखलकम् इति पाठः.
पिंगळादर्शवाळाए सुकेसरमां ५, १० यति कही छे.
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१५. अतिशर्करी छंद. . वर्णमेळ.
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm १०२८ प्लवंगम.
भ,भ,त,भ,र. ११,५७५ भाभतभार धरो आप ठीक प्लवंगमे. १ मात्रामेळमां आ नाम छे. जुओ पृष्ट २६, अंक ७४. १०२९ उपमालिनी. ८,७ यति.१ न,न,त,भ,र. ११,१८५
न न त भर वसुएँ, रचो उपमालिनी.
१ वृत्तरत्नाकरमां ए यति छे. १०३० मणिहंस, मानहंस, मनहंस,
रणहंस, मनहंसरूप, हंस, कलहंस, मनोहंस, मानसहंस, स,ज,ज,भ,र. ११,६२८ पदहंसक,चूलियारा, चूरियार. )
मणिहंस धाय सदा स जा ज भरे करी. १ छंदःप्रभाकरमां मानहस छे. २ वाणीभूषणमा ममहंस छे. ३ छंदरत्नावलिमा ए नाम छे. ४ प्राकृतींपंगळसूत्रमा ए नाम छे. ५ शब्दकल्प द्रुममा ए नाम छे. ६ छंदोवृत्तमुक्तावालमा ए नाम छे. ७,८ मागधीपिंगळछंदोग्रंथमां आ मारवाळां वृत्तनां चूलियारा तथा चुरियार एम वे नाम. आपेलां छः १०३१ मयवदना.
भ,न,ज,भ,र. ११,६३१ तुं रच मयूवदना भजाज भरा थकी. १०३२ पल्लवरी.
भ,भ,भ,भ,रं. ११,७०३ ... भा भ भ भारथी पल्लवरी करजो तमे.
१ प्रवीणसागर लेहेर १५मीमांथी. ते प्लवंगग जातिने रागें गवायछे. १०३३ सारसिका,हारवती,पमं- र,न,भ,भ,र. ११,५०७
गल, नूतन, सूक्कण.
रान भा भ र थकी ठिक सारसिका बने. १.२ सारांसिका अने हारवती नाम वाग्वल्लभमा छे, पण तेमा यति कहीं
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३५०
स्णपिंगळ.
थी. ३ पिंगळादर्शमां मंगल नाम छे, तेमां ८,७ यति कही छे, एनाम.
क्याथी लीधुं ते जणातुं नथी,
१०३४ सीरिणी.
१०३५ चमरीचर.
सनसन र थकी रचो सरस सीरिणी.
र, न, र, न, र. ११,९६३
न, न, र, न, र. ११,९६८
तु रच कवि न नारनार चमरीचरे.
समवृत्त:
१०३६ निशिपाल, निशिपालक,
१
निशिपालिका, शंभु, निशं भ,ज,स,न,र. १२,०१६
२
२
पालिका, निशापाल:
वृत्त निशपाल रच भा ज स न रा घरी.
१ मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां ए नाम छे..
२ छंदः कामदुघावत्समां ए बे नाम छे. अर्ने विशेषमा ८,७ यति के छे. पिंगळादर्शमां पण निशंपालिकामा ८, ७ यति कही भजयन र गणो जणान्या छे, ते भूल छे; परंतु प्राकृतपिंगलसूत्र, वाणीभूषण, वाग्वलभ इत्यादि बीजाप्रथामा यति कहीं नथी, अने गणो उपर मुजब छे. १०३७ जलनिधिवेला.
नै, य, स, म, सं. १२,४९६
जलनिधिवेला रचना या सामास थकी. १०३८ लीलाचन्द्र. ८, ७ यति. (वा. व.) म,म, त, य, स. १३,०५७ लीलाचन्द्रे आठे साते, गंण मा मा त य सा.
१०३९ मोहनि १२
स, भ, त, य, स. १३,१०८
स.भायास कडे मोहनि तो वृत्त रचो.
१ आ वृत्त छंदः प्रभाकरमां आपलं छे अने तेनीज टीकामां लखेछ के, आसना आदिमा स ने बदले रगण पण आवेछे. एम कहीने प्रथमनां बे पादमां प्रारंभे सगण मूक्या छे अने बाकीनों वे पादमां प्रारंभ रगण मूक्यों छे, पण ए प्रमाणे शेळभेळ करवं उचित नथी; रगण मूकवार्थी १३, १०७मुं रूप जूनुं थाय छे.
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१५ अतिशर्करी छंद.
वर्णभेळ.
१०४० धोरित ९, ६ यति. (वा.व.)
धोरित यति नवे छए भान
१०४१ शान्तसुरभि.
१०४२ भाम.
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शान्तसुरभि रचो भनार ससा धरतां.
१०४३ भ्रमरावलिका १, मनहरण ९, १ भ्रमरावल, दंडिका रे, रत्न४,
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आम ससा सा आण गणो कवि! भाम विषे.
१ आ वृत्त छंदः प्रभाकरना कर्त्ताए नवुं कल्प्युं छे,
८ भगवत् पिंगळमां ए नाम छे.
१०४४ कर्णेलम.
१०४५ त्रिशकलिता.
भन,र,र,स. १३,५०३
रार सथी.
भ, न, र, स, स. १४,०१५
मनोहरण, भ्रमरावती, स, स, स, स, स. १४, ०४४ भ्रमरावली, भमरावली ", भवरावलि, नलिनी, भ्रमर',
भ्रमरावालिका र सास ससास घरी,
१ वाग्वलभ २ छंदः प्रभाकरमां ए नाम छे. ३ नागराज पिंगळमां
आ नाम छे. ४ छंदः कामदुघावत्समां ए नाम छे. ५ गणप्रस्तार प्रकाशसां ए नाम छे. छंदोबोधमां लखेछे के भाषामा ए नाम छे. ६ छेदः शास्त्र प्रमाणे. ७ भमरावली नाम पिंगळादर्शमा छे, तेमां ९, ६ यति कही छे.
१०४६ शीर्षविरहिता.
भ, म, स, स, स. १४, ०२३
रचजो कर्णलता स भ भ स सा करिने.
३५१
ख, भ, भ, स, स. १४,२६०
माभासा भास थी झट जोडो विशकलिता.
म, भ,स,भ, स. १५,६०१
म, य, भ, म, स. १५, ७५३
माया का भसा आणी रच कवि ! - शीर्षविरहिता.
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३५२
रणपिंगळ.
'समवृत्त.
१०४७ शंकावली.
त,स,र,न,स. १६,०५३ शंकावली रच ताभ रा न स धरों पदे. २०४८ मणिगुण, . धवलंगा, )
शशिकला,चन्द्रावर्ता३, न,न,न,न,स. १६,३८४ शशिलेखा.
मणिगुण रच न न न न स धरी करी. १ मागधी पिंगळ्छंदोग्रंथ. २ प्रा. पिंगळसूत्रमा ६,९ यति केहेछ पण वाग्वल्लभ तथा छंदःप्रभाकर, छंदोमंजरी अने शब्दकल्पद्रुसमां ए नाम छे पण यति नथी. पिंगळादर्शे एमां ७,८ यति कही छे. ३ छंदःशास्त्रमा चन्द्रावर्ता नाम आपी तेमां ७,८ यति केहेछे. ४ संस्कृत प्रोसडीमां शशिलेखा अथवा शशिकला नाम आप्युं छे. १०४९ मणिनिकर. १०,५ यति।. न,न,न,न.स. १६,३८४
मणिनिकर रच न न न, न स दशथी.
१ वागवल्लभमां ए प्रमाणे यति छे. १०५० मणिगुणनिकर'. ८,७ यति. न,न,न,न,स. १६,३८४
भन ननस वसुथी, मणिगुणनिकरे. ... वाग्वल्लभ, छंदोमंजरी, मंदारमरंदचंपू, प्राकृतपिंगळसूत्र, तथा शब्दकल्पद्रुममा ए नाम तथा यति छे. पिंगळादर्शमां मणिगुणनिकर अथका माला नाम आपी तेमा ८, ७ यति केहेछे. २०५१ शरभ.. ५,६,५ यति. न,न,न,न,स. १६,३८४
न न न न स, शर विरति, त्रणा शरभे. १ वाग्वल्लभ प्रमाणे यति लखी छे; पण प्राकृतपिंगळसूत्र, वाणीभूषण, छंदोबोध, तथा छंदोवृत्तमुक्तावलीमा यति नथी. २०५२ स्रक, माला. ६,९ यति. न,न,न,न,स. १६,३८४
पड नव पर, यति न न न न स सके.
-
५
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Vvvvvvvvvvvv
१५ अतिशर्करी छंद. वर्णमेळ.
३१३ ..................................... प्राकृत पिंगलसूत्र, छंदःशास्त्र, शब्दकल्पद्रुम, छंदःप्रभाकर, वाग्वल्लभ, तथा छंदोबोध अने पिंगळादर्शमां, ए नाम तथा यति छे. १०५३, निश्चल.. ५,६,४ यति, (पिं.द.) भ,त,न,म,त.. १६,१७१
निश्चल पांचे, षड युग भाता, ना.मा.ता थी.. १०५४ रूवामाला, रूपमाला. त,र,र,य,जे. २१,१३००
तारा रया जथी थायछे बैचामाल वृत्त. १ मागधी पिंगळछंदाग्रंथमा आ वृत्तनुं माप न र ज र ज कयुं छे ले २१,८४८ मुं. रूप थायछे.. १०५५ उहिनी. ८,७ यति. (वा.व.) र,सें,य,ज,ज. २३,१३१
आठथी उहिनी गणो, रा स या जज आण १०५६ मितसविथः (वा. क.) न,स,सं,ज,ज. २३,२६४
मितसविथमां न.स.सा.ज.जा पद थाय. १०५७ महाहवः
ज,ज,ज,जे,ज. २३,४०६ महाहवमा रचवा ज ज जा ज ज पाद.
१ चित्रसेनटीकावाळा मागीपिंगळमा ए नाम छे. १०५८ रुचि. (मंदारमरंदचंपू.) भाभ,भ,भ,भ. २८, (७.
भू भ भ भू भ करी रुचि तुं रंच सुंदर. १०५९ रमण..
न,न,ज,न,भ. २८,५४४” सरस रमण विषे न न ज न भा धर. १०६० शरहति, वसुमति... न,न,न,न,न. ३२,७६८
शरहति वसुमति न न न न न थका... .. १५ शरहात नाम वागवल्लभमा छ
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रणपिंगळ.
समऋत.
.
१६ अष्टिछंद. ६५,५३६ भेद. १६ वर्ण. १.०६१ चन्द्रापीड, ब्रह्म, ब्रह्मरूप, )
ब्रह्मरूपक, ब्रह्मारूपा, क्रामकी, म,म,म,म.म,ग. १ माधोराधा, बंभाणः
मामामा मामागा आवें चंद्रापीडे के ब्रह्मे तो. विद्युन्माळाथी आ वृत्त बमणुं छे. एटले कोइ ८,८ यति कहेछे,
परंतु ते सर्वसंमत नथी. १ चन्द्रापीड तथा ब्रह्म ए बे नाम वागवल्लभमा छे, तेमा यति कही नथीं. २ ब्रह्मरूप नाम प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोमंजरीनुं टिप्पण, शब्दकल्पद्रुम अने छंदोवृत्तमुक्तावलिमा आप्यु छे, तेमा यति कही नथी. ब्रह्मरूपक अने ब्रह्मारूपा ए वे नाम छंदसारमा छे, तेमा यति कही नथी; ब्रह्मरूपक नाम मागधी मिळछंदोग्रंथमां पण छे. ५ आ नाम गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. ६ ब्रह्मनुं अपभ्रंश रूप. १.०६२ माल्योपस्थ.. न,न,न,य,म,ग. १,०२.४
नन न य मग पद रच माल्योपस्थे शोधी. १.०६३ कल्पाहारी.
न,न,न,न,म,ग. ४,०.९६ - न न न न मग थकी पद रच कल्पाहारी. १०६४ प्रतीपवल्ली.
स,स,भ,र,य,ग. ६,५३२ स सभार य गा आप धरो प्रतीपवल्लीमां. १०६५ आरभटी.
भाभ,न,ज,य,ग. ७,१५९ ___आरभी.रच भ.भनाज याग. पढे लावी.
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१६ अष्टि छंद.
वर्णमेळ.
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
१०६६ वक्रावलोक, चक्रावलोक. न,न,म,र,र,ग. ९,२८०
नन मरस्ग आक्छे वृत्त वक्रावलोके. १०६७ प्रवरललित, वरन ललिता'. य,म,न,स,र,ग. १०,१.७८ यमानासारागा प्रवरलालते. लाववाना..
१. छंदोर्णवमा ए नाम छे. २०६८ अभिधात्री. स,स,स,ज,र,ग... १०,९७२
अभिधात्रीतणी रचना ससा स जार गा थी. १०६९ पाणी.
न,र,भ,ज,र,ग. ११,१६० नर भ जा रगा थी कवि! रचाय वृत्त पाणी. संस्कृत प्रोसडी पृ. ३८ मां वाणिनी ने बदले वाणि समजी भूल करी वाणि वृत्त तेणे जूदुं पाड्यु. अमे वाणिने बदले पाणी नाम नवं आधी तेज मापनुं वृत्त आ स्थाने कायम राख्युं छे. १०७० वाणिनी ७,९. यति२ः, नजभजारम. ११,१६४ .
मुनि नव छेदी, न ज भ जार्ग वाणिनीमा. १ वर्ण १७मां आ नामर्नु वृत्त अंक १११५ मे छः
२ मंदारमरदचंपूमा ७,९ यति छ: १०७१ अनिलोहा.
सभ,त,य,स,ग. १३,१०८ अनिलोहा' रच सा भात य सा गा धरवाथी. १०७२ भोगावलि. तन,न,य,सं,ग. १३,३०९
भोगावलि रच तन न य सा गा पद लावी. १०७३ कलधौतपद. स,स,स,स,स,ग. १४,०४४
कलधौतपदे स स सा स स गा धर पादे. २०७४ बलिवदन- नयम,भ,स,ग.. १५,३७६
पलिवदने लावो ना या मा भ स. गुरु शोधी.. १०७५ मतशिखा. ९,७ यति'. त,य,स,भ.स,ग. १५,५६.५६
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रणपिंगळ.
समवृत्तः.
00mm
छे, सूतशिखा खंड हये, ता य स भास गा. थीं,
१ वागवल्लभमा ए प्रमाणे यति छे.. १०७६ परिवायतन, परिखापतन.स,स,स,भ,स,ग.. १५,५८०
परिवायतने स स साभा स ग धर लावी. १०७७ मालावलयः. म,भ,स,भ,स,ग. १५,६०१
पादे मोलावलय विर्षे मा भसभ स गा छे.. १०७८ भीमावर्त.. म,भ,न,न,स,ग. १६,३६९
भीमावर्ते म भ न न स ग धर पदमाहे.. १०७९ रतिलेखा.
स,नन,न,स,ग. १६,३८० कवि! जाणः स न न न स ग थकी रतिलेखा. १०८० शिशुभरणः नन,न,न,सा,ग. १६,३८४.
न न न न सग थको शिशुभरण बनेछे. १०८१ मन्दाकिनी'.४,४,४,४यति२.त,म,य,र,त,ग. १.७,४७७.
तामा यारा, तागा थकी, चच्चारथी, मन्दाकिनी. प: आ सिवाय. १२ अक्षरमां पण अंक ७२० मे मंदाकिनी वृत्त आवेछे.
२ मंदारमरंदचंपूमा ४, ४, ४, ४ यति कही छे.. १०८२ गरुडरुती, गरुडधृतरे. न,ज,भ,ज,त,ग. १९,३७६
गरुडरुते रचो न ज भजात गा पादमां..
१.वागवल्लभ. २ छंदःकामदुधावत्समां आ नाम छे. १०८३ नराची,नाराचर,नराय३, )
नाराज४, नागराज, ज,र,ज,रज,गः २१.८४६ पंचचामर, विपक्क.
जरा जरा जगा धरो नराच माह भावथीं. प्रमाणिकाथी बमणुं आ वृत्त छे. १वागवल्लभ अने छंदोवृत्तमुक्तावलिमां नराच नाम आपो यति
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१६ अष्टि छंद.
वर्णमेल.
३५७
AAP
कही नथी. आ मापमां एक लघु वधारतां १७ वर्णमां अंक १.१.४७ मे द्वितीय पंचचामर छे.
२ भाषाछंदोमंजरीमा नाराच नाम छे. ३ मागधी छंदः. शतकमां नराय नाम छे. ४ सरोजसिंधुमां नाराज लखेछे.
५ छंदःप्रभाकरे दीकामां नागराज नाम आप्यु छे, पण तेमा यति कही नथी, अने तेणे नराच, पंचचामर ए नामो पण आप्यां छे.
६ शब्दकल्पद्रुममा १६ अक्षरमा प्रमाणिकाथी बमणुं आ वृत्त जणावी १७ अक्षरमां पण एज नामनुं वृत्त, ज र जर जगल ए मापथी आप्युं छे, परंतु तेनुं बीजुं प्रमाण न मळतां अमे १७ वर्णमां दाखल कस्युं नथी.
संस्कृत प्रोसडी पृष्ट ३८ मे पंचचामरनुं बीजु नाम विचित्र आप्युं छे. ७ मागधी पिंगळ छंदोग्रंथमा विपक्क नाम आप्यु छे.
प्राकृतपिंगळसूत्र, वाणीभूषण, छंदोमंजरी आदि प्राचीन प्रमाण ग्रंथोमा यति कही नथी; वळी मंदारमरंदचंपूना वृत्तबिंदुमां तो स्पष्ट कहुं छे के, नराचना पदमां छेद(यति)नज आवे. वृत्तदर्पणमां पादांते यति कही छे. कवीश्वर दलपतरामे अने छंदःप्रभाकरे पणा यति पाळी नथी. परंतु पिंगळादर्शमां ८,८ यति कही छे. तेनुं कारण एम समजायछे के, प्रमाणिकाथी बमणुं पद करी बोलतां यति आठे लेवायछे, तेथी तेपो यति कही छे अने बीजाए ते गौण मासी छे, किंवा ते विषे मौन्य पकडयुं छे,
राग श्रीराग कर्णाटकी, तिश्रजाति एकताल, मात्रा ३, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी) १०८४ तरवारिका. (वाग्वल्लभ) न,स,स,ज,ज,ग. २३,२६४
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३५८
रणपिंगळ.
समवृत्त. rammmmmmmmmmm
न स स ज जगे तरवारिका रचनो पदे. १०८५ कमलकर, कमठकर. न,य,न,य,भ,ग. २५,५५२
कमलकरे छे न प न य भागा पादविषे. १०८६ प्रमदा'. ४,४,४,४ यति. स,त,य,स,भ,ग. २६,२१२
यति चारे, वेद स ता, या स भ गा, छे प्रमदा. . १ मंदारमरंदचम्पूमां. वर्ण चौदमां पण प्रमदा नामे वृत्त अंक ९७९ मे छे. १०८७ त्रोटक, मणिकल्पलता. न,ज,र,भ,भ,ग. २७,८२४
नजर भ भाग त्रोटके छ मणिकल्पलता. बार वर्णमां चार सगणना मापवाळु प्रसिद्ध तोटक वृत्त अंक ७५३ पृष्ठ ३१२ मे छे तेथी आ भिन्न छे. १०८८ नील,अश्वगति,नीलवरूप,)
विशेषिका,विशेषक,विशेष, भ,भ,भ,भ,भ,ग.२८,०८७ लीला,पदनील,खगति. )
नील विशेष विषे धर पांच भ तेपर गा. १ आ नाम छंदोलतामा छे. २ छंदःकामदुधावत्समां ए नाम छे, ३ आ नाम छंदःप्रभाकरमा छे. ४ छंदःशास्त्र तथा मागधी छंद:
शतकमा ए नाम छे, ५ प्रवीणसागरमा ए नाम छ, पिंगळादर्शमां नील, विशेष अने अश्वगति ए नामो आपी तेमां पांचे पांचे यति कही छे.
६ वाग्वल्लभमां खगति, नील, विशेषिका ए नामो छे तेमा यति नथी. १०८९ शैलशिखा.
भ,र,न,भ,भ,ग. २८,११९ शैलशिखा रचो भ र न भा भ ग आप धरी. १०९० कलहकर.
न,न,न,न,भ,ग. २८,६७२ न च त न भ ग थी कलहकर वृत्त बो.
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१६ अष्टि छंद.
ईप
१०९१ मदनलालता. ४, ६, ६. यति १ म, भ, न, म, न, ग: २९, १६.९
.
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चारे शास्त्रे, मदनललिता, मां भा न मं न गे
१ वागवल्लभ, छंदोमंजरी, शब्दकल्पद्रुम, इत्यादिमां पण आज प्रमाण यति छे. संस्कृत प्रोसडीमां मदनललित नाम आपी तेमां यति कहीं नेथ.
१०९४ नरशिखी
वर्ण.
१०९२ धीरललिता.
भैर, न, र, न, गं. ३०, १६७
भारनरान गा धरी रचाय धीरललिता. १०९३ सुललिता'. ४,४, ४, ४ यति. न, म, जं, स, न, ग. ३.०,१३६
यति युगे, चारे न मा, जसनगा, सुललिता.
१ मंदार मरंदचंपूमांथी
नरशिखी रच न भा ज स
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१०९५ चकिता ८,८ यति '.
१०९६ सांरवरोडा :
१०९७ वरयुवति.
८
आठ वसु परे छेदों, आणो भा से मत न गा
न, भ,ज, स, न, ग. ३०, १८४. न गा कवि! करी.
१ वाग्वल्लभ, अने शब्दकल्पद्रुममां पण ए प्रमाणे यति छे. छंदः प्रभा - करमा यति नथी:
भ, स, म, त, न, म. ३०, ७५१
१०९८ ऋषभगज, चिलसित
गजविलसित, गजतुरगविलसित, विलसित.
सारवरोहा रचं भं त नां तां न ग धरिने.
भ, त, न, त, न, ग. ३१, २०७
भ,र, य, न, न, ग. ३२, ३४३
लाकू भराय ना नगा ठीक वरयुवतिये.
भ,र,न,न,न, ग. ३२,७२७ ७, ९ यति३.
४
भारनना न गाच, ऋषभ - गजविलासते,
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रणपिंगळ.
सात नवें धराय, विरति ठिक विलसिते.
१ प्राकृतपिंगळसूत्र अने वृत्तरत्नाकरमा ७,९ यति छे. २ दोलता. ३. मंदार मरंदचंपूमा ए प्रमाणे यति छे. (स्वर घनाश्छिन्नम्.)
४ व अहीं तथाने बदले वापस्यो छे.
१०९९ सरभ १ ८,८ यति.
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वसुं वसुं यति नन, नन नग सरभमां. १ पिंगळादर्श पृष्ट ९४ प्रमाणे.
न, न, न, न, न, ग. ३२,७६८
११०० दन्तालिका (वा.व.) त, म,र,म, य, ल. ३६,९९७ तामार मायाला आण शोधी दन्तालिका मांह.
११०४ सुखसार'.
११०१ सुखसार.
भ, त, य, ज, र, ल. ४३, ६२३
भातय जाराल धरो पाद सुखसारमाह. ११०२ कल्पधारि, कल्पचारि. र, र, र, ज, र, ल. ४३,६६७ रारराजारला थी बने सदाय कल्पधारि.
૨
११०३ चित्र, चन्चला, चित्रसंग. र,ज, र, ज,र,ल. ४२,६९१ चित्र, चंचला, रचायछे र जारजारला थी
१ पिंगळ छेदः सूचना टिप्पणमां चित्र नाम छे मा यति कही नथी.
समवृत्त.
२ छंदवृत्तमुक्तावलीमां पण आ नाम छे, तेमां यति आपी नथी. २ वाग्वल्लभमां चित्र अने चंचला नाम आपी यति कही नथी. २ छंदः प्रभाकरे चंचला अने चित्र ए बन्ने नाम आपी यति कही नथी. ३. छंदोलता, छंदोमंजरी, तथा प्राकृतः पिंगळसूत्रानी टीकामा चित्रसंग नाम छे, तेमां यति कही नथी. समानिका वृत्तनुं बमणुं आ वृत्त छे.
११०५ कुल्याव, कुल्यावुत्त.
2
६, १० यति.
भात या साग करावो सदाय सुखसारे
१ वाग्वल्लभ प्रमाणे..
૧
भ, त, य, ज, स, ग. ४७,७१९
म, मं, स, भ, त, ल. १२, ११७
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१७ अत्यष्टि छंद.
वर्णमेळ.
छठे कुल्यावर्ते, यति मा मा स भ ताला धरः
१ वामवल्लभ प्रमाणे: ११०६ रासा.
भ,भ,भ,भ,भ,ल. ६०,८५६ __भा भ भ भाभल थी रचनो झट रास कवि! १ चित्रसेन टीकावाळा नागपिंगल तथा मोगधीछंदःशतकमां ए नाम छ:
रासा नाम वृत्तमां आवी शकतुं नथी माटे अमे रास राख्यु छे. ११०७ अचलधृति'. न,न,न,न,न,ल. ६५,५३६
ननननन ल थकी अचलचति तु रच. जुऔं प्रचूर्ण मात्रामेळ जातिमां पृष्ट २०६ मात्रासमक प्रकरण.
१ छंदःशास्त्र प्रमाणे आर्नु बीजुं नाम “ गीत्या-" आप्युं छे, अने से उपरथी छंदःप्रभाकर पण एमज केहेतां विशेषमा केहेछे के, आना बमणाने “डमरु" केहेछे, ते दंडक प्रकरणमा ३२ लघु अक्षरनुं छे. १७अत्यष्टि छंद. १,३१,०७२भेद.१७वर्ण. ११०८ मानाक्रान्ता.
मम,म,म,म,ग,ग. १ मानाक्रान्ता नामे वृत्ते मा मा मामी मागी गो आवे. ११०९ मंजारी.
म,म,भ,त,य,ग,ग. ६,५२९ मामा भा तू योगेगा पद सारी कविता मंजारी.
१ गणप्रस्तारप्रकाशमां ए नाम छे. १११० वीरविश्राम. न,न,र,न,र,ग,ग. ११,९६८
धर तु न नर ना र गा ग पद कीरविश्रामे. ११११ वल्वज, वल्गुज. भ,भ,त,न,स,ग,ग. १६,१८३
वल्वज- वल्गुज माहे भमत न स ग गा आवे. १११२ कूराशन, क्रूराशन,
स,न,त,न,स,ग,म. १६,१८९ करासन, क्रूरासन
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रणपिंगळे.
समवृत्त कूराशन रच तानात न स गग धरी पादे. १११३ मन्दाक्रान्ता. ५,६,७यति. म,भ,न,त,त,ग,ग. १८,९२९
मन्दाक्रान्ता, श्रुति षड हये, माभना तात गा गे. १ छंदःशास्त्र, छंदोवृत्तमुक्तावलि, मंदार मरंदचंपू, छंदोमंजरी अने वृत्तरत्नाकरमां ए प्रमाणे यति छे.
राग वेगवाहिनी, ताल मिश्रजाति रूपक, मात्रा ९, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी प्रमाणे.)
शब्दकल्पद्रुममां का छे के, कोइने दूत तरीके मोकलतां तेनुं वर्णन आ वृत्तमा सारूं लागेछेः कालिदासवें मेघदूत खंडकाव्य आ वृसमां छे: १११४ कामरूप. मर,भ,न,त,गे,ग. २०,३६९ मारा भा ना त गागा कविवर! धरो कामरूपे.
१ आ नाम वाग्वल्लभमां छे. १११५ वाणिनी'. ७,१० यति. न,ज,भ,ज,ज,ग,ग. २३,४७२
मुनि दश वाणिनी, यति न जा भंज जाग गे छे. १ वाणिनी १६ अक्षरमां अंक १०७० मे छे, तेम छतां पिंगळादर्शमां ७,१० यत्तिथी १७ वर्णमां क्याथी लाबी उमेन्यो तेनुं प्रमाण जडतुं नथी. १.११६ अतिशायिनी', । सस,ज,भ,ज,गं,ग. २३,९००
चित्रलेखा२. १०, ७ यति.
ससजा भजगागथी दशे, म अतिशायिनी छे. वागवल्लभमा १०, ७ यति छे. २ वृसरत्नाकरमां चित्रलेखा नाम छे. तेमा यति नथीं; वळी चित्रलेखा १८ वर्णमां अंक ११५३मे छे. १११७ शायिनी. न,स,ज,भ,ज,ग,ग. २३,९०४ नसजभ जगाग थी बने सरस शायिनी तो.
१. वागवल्लभमां.
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१७ अत्यष्टि छंद.
१११८ सलेखा'.
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१९१९ तितिक्षा".
वर्ण.
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ननमन नगगे जोड़ो कवि! सरस सलेखा.
१ वाग्वल्लभमां.
વધુ
न,न,म, न, न, ग, ग. ३२, ३२७
भ, न, य, न, न, ग, ग. ३२,३८३
भानयन नगग आणी रच तु पद तितिक्षा,
१ वाग्वल्लभमां छे.
१२२० हारिणी १ ४, ६, ७यतिर म, भ, न, म, य, ल, ग, ३७,३६१
•
७
चारे चक्रे, मुनि मभन मा, या ला गयो हारिणी.
१ छंदः प्रभाकरमां आ वृत्तने हरिणी साथ एक गण्युं छे, ते भूल छे. २ छंदोमंजरी, वाग्वल्लभ, प्राकृतपिंगळसूत्र अने छंदः शास्त्रमां आ यति छे.
१९१२१ पृथ्वी. ८,९ यति ज, स, ज, स. य, ल, ग. ३८,७५० दिशा' नवपरे जसा, ज स य लाग पृथ्वी घरो.
१ मंदार मरंदचंपू, वाग्वल्लभ, छंदोमंजरी, प्राकृतपिंगळसूत्र, वाणी - भूषण, अने वृत्तरत्नाकरमा ए प्रमाणे यति छे.
राग गौरी, ताल चतुश्र जाति एक लाल, मात्रा ४, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी).
११२२ बालविक्रीडित,
भ,स,ज, स, य, ल,ग. ३८, ७५१
भास जसयलाग पाद रच बालविक्रीडिते.
११२३ मालाधर,
मालाहरा'.
वसुं नव यति न सा, ज स य लाग मालाधरे.
न, स, ज, स, य, ल, ग. ३८,७५२ ४, ९ यति२.
१ पिंगळादर्शमां ए नाम अने यति छे पण तेनुं बाजुं प्रमाण मळतुं नथी. २ छंदोवृत्तमुक्तावलि, छंदः प्रभाकर, प्राकृतपिंगळसूत्र, वाग्वल्लभ, अने वाणीभूषणमां मालाधर नाम साथे यति नथी, पण छंदोर्णवमां ८, ९ यति कही छे, ने मालाधर नाम आप्युं छे.
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रणपिंगळ.
'समवृत्त
११२४ कालसारोद्धता. जत,जास,य,ल,ग. ३८,७५८ जता जसा या ल ग धार कवि! कालसारोद्धते.
१ वागवल्लभमां. छे. ११२५ घनमयूर१ ७,६ यति. न,न,भ,स,र,ल,ग. ४२,९४४ घनमयूर हये, रसथों न नाभा,स रा लगे.
१ मंदारमरंदचंपूमां छे. ११२६ हरिणी. ६,४,७ यति'. न,स,म,र,स,ल,ग. ४६,११२
छ युग मुनिये, नस्मा रासा, लगे हरिणी करो. . . चागवल्लभ, वृत्तरत्नाकर, प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोमंजरी, अने मंदारमरंदचंपू. राग कामोद, ताल मिश्रजाति धृवपंच, मात्रा २५, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी) ११२७ हरि. ६, ४, ७ यति'. न,न,म,र,स,ल,ग. ४६,१४४ छ चरण हय, छेदे नाना, मरा स लगे हरि.
१ वृतरत्नाकर प्रमाणे. ११२८ मोहन. ९,८ यति'. य,र,स,र,स,ल,ग. ४६,२९० नवे आठे बने य र सा, रा स ला गुरु मोहने.
१ पिंगळादर्श प्रमाणे यति छे. ११२९ भाराकान्ता. ४,६,७यति'.म,भ,म,र,स,ल,ग. ४६,५७७
'भाराकान्ता, युग छ मुनिये, म भा न र सा ल गे.
१ प्राकृतपिंगळसूत्र तथा छंदोमंजरी प्रमाणे यति छ. ११३० कान्ता. ४,६,७ यति १. य,भ,न,र,स,ल,ग. ४६,५७८
करो कान्ता,युग छ मुनिये, य भा न र सा लगे. १ शब्दकल्पद्रुम अने नारायणभट्टी टीकाबाळा वृत्तरत्नाकरमा ४,६, ७ यति कही छे. पण छंदोमंजरीन टीपमां (भवेत्कान्ता रस युग हयैर्यभौ परसा लगौ) ६,४,७ यति कही छे.
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१७. अत्यष्टिं छंदः
वर्णमळ:
१.१३.१ विरुदरुत.. (वा.व) म,भ,स,भ,त,ल,ग.. ५२,४६.५,
चारे पादे विरुदरुते छे म भ सा भा त ल गा. ११३२ कासार. ८,९ यति(वा.व.) म,म,त,नत,ल,ग. ५२,९९३६
आठे खंडे मा मा ता ना, त लग थी कासार करो.. १.१३३. वंशल. (वा..व.) · मत,ज,ज,ज,ल,ग. ५६,१६ १.
मा ताजी जा जा ल ग आप धरो कवि! वंशलमां. ११३४ अवितथ, नटक, ) नानाभ,ज,जाल,ग, ५६,२.४०
नर्कुटक, नर्द्धटक', ७.१० यति२. मर्कटक...
अवितथमा रचो, न ज भाजाज लगा पदमां. १ संस्कृत मोसडीमाथी.. भागवतना दस्मस्कंधना ८७मा अध्या यमां वेदस्तुति: आ वृत्तमा छे,, अने. तेमां ७, १० यति। छे. . २. वृत्तरत्नाकरमा ७, १० यति जणावी. तेनां नाम नर्दटक, नकुटक, आप्यां छे छंदःशास्त्रनी टीपमा यति नथी, छंदोमंजरीमा नर्दटक नाम छे पण यति नथी, मंदारमरंदचंपूमां. पण, यति नथी.. छंद्रोलतामां ७, १० यति छे; सुवृत्ततिलकमा यति. नथी, पिंगळावर्शमां नर्कुटकमां ७, ४, ६ यति कही छे. ३ वृत्तरत्नाकरनीटीप.. १:१३५. कोकिल, न,ज,भ,ज,ज,ल,गः ५६,२४.००
कोकिलक. ७,६, ४. यति.
हय षट.कोकिले, न ज भ जा जल, गा करजो. १ वृत्तरत्नाकर तथा प्राकृतपिंगळसूत्रना क्षेपकमां तथा शब्दकल्पद्रुममा ७,६,४ उपर यति दर्शावी छे, पण छंदःशास्त्रना आठमा अध्यायमा पंदरमा। सूत्रमा ८,५,४ यति कही छे. १.१३६. शिखरिणी. ६,११यति. य,स,न,स,भ,ल,ग. ५९,३३००
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३६६
रणपिंगळ.
समवृत्त
छ ए रुद्रे छेदो, यमन स भ लागे शिखरिणी. १. प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोमंजरी, वागवल्लभ, छंदोवृत्तमुक्तावली,, वृत्तरत्नाकर अने पिंगळादर्शमां ६,११ यति मूकी छे, राग बाहार, ताल मिश्रजाति धुवपंच, मात्रा २५, मध्यकाळ.. (संगीतानुः सार छंदोमंजरी.) ११३७. समदविलासिनी. न,ज,भ,ज,भ,ल,ग. ६०,३३६
. समदविलासिनी न ज भ जाम ला गुरु रचो, ११३८ सुधाधारा. ६, ११ यति. य,त,न,न,भ,ल,ग. ६१,४१० सुधाधारा राग, शिव यतिं यतनान.भलगे.
१पिंगळादर्श प्रमाणे यति छे.. १.१३९ विधुरविरहिता:६, १२यति.स,त,य,भ,न,ल,ग.६५,६ १.२. स्त य भा नाला, गुरुथी पांचे विधुरविरहिताः
वागवल्लभ. ११४० शुकवनिता,शिशुवनिता. स,स,भ,भ,न,ल,ग. ६४,९२४६
स स भाभ नलागा धरिने रच शुकवनिता.. ११४१ वाहान्तरित. तन,भ,भ,न,ल,ग. ६४,९५७ वाहान्तरित विषे धरजो तनभभ नलगा.
१ वाग्यल्लभमां छे.. ११४२ वंशपत्रपतित,जलधर
रसित,. वंशवदन', ( भ,र,न,भ,न,ल,ग. ६४,९८२ वंशपत्र,वंशदल,वंश- १०,७ यति३. पत्रपतितार..
दिग्मुनि वंशपत्रपतिते, भर न भ न लगा. शंभुमते प्राकृतपिंगळसूत्रमा जणाव्युं छे. २ "माघकाव्य" मां ए नाम छे.. ई छंदःशास्त्र, मंदारमरंदचंपू, वागवल्लभ, अने वृत्तरत्नाकरमां ए. प्रमाणे
यति-छ..
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१८ धृति छंद.
वर्णमेळ.
११४३ कर्णस्फोट.
न,य,त,न,म,ग,ल. ६९,३९२ कवि पद कर्णस्फोटे नय तनमा गा ला धार.
वागवल्लभमा छे. ११४४ प्रतिहार (वा व०) र,र,र,र,र,ग,ल. ७४,८९९
रा र रा रा र गाला थकी आप जोडो प्रतिहार.. ११४५ कान्तार (वा० व) यम,न,स,र,ग,ल. ७५,७१४
__ तमे जोडो या मा न स र ग ल थी वृत्त कान्तार.. १.९४६ फल्गु. ६,६,५ यति. स,भ,स,भ,स,ग,ल. ८१,१४० रस शास्त्रे शर, यति सा भास भ, स ग ले फल्गु.
१ वागवल्लभमां छे.. ११४७ द्वितीयपंचचामरः ज,र,ज,र,ज,ग,ल. ८७,३८२
द्वितीय पंचचामरे रचो जराजराजगाल.
आ वृत्त शब्दकल्पद्रुममां छे. आ पिंगळमा १६ वर्णमां अंक १०८३ में "पंचचामर" आवी, जायछे, तेथी अहिं. पंचचामरना नाम साथे "द्वितीय" जोडवामां आव्यु छ.. ११४८ रूपमाल, रस,ज,ज,भ,ग,ल. ९३,०१२
रूपमाला. ८,६,३ यति.. रूपमाल वसु छ ए, र स जाज भा ग, ल थायः १. पिंगळादर्शमां आ नाम अने ८,६,३ यति कही छे. ११४९ अचलनयन. न,न,न,न,न,ल,ल. १,३१,०.७.२.. न न न न न ल ल थकी रच अचलनयनः
वाग्वल्लभमां छे. १८ धृतिछंद.२,६२,१४४ भेद. १८वर्ण, ११५० रणशूर'. १.०,८ यति. म,सस,र,र,म. ९,४३३
आशाए. रणशूर रचेछे, म सासा र रा.मा. आणी...
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रणावेगळ.
११ आ वृत्त अमारा नामथी नवुं रच्युं छे. शनो छ थायछे अने र नों ड. थायछे, एटले. रणछूड एम शब्द थयो तेमां उ नो ओ धतां रणछोड एम छेवटे थाय छे..
२११५१ शार्दूल १२, ६ यति म, स, ज, सर,म.. १०,०७३. बारे छे यति छेवटे म स जसा, राम शार्दूले तो..
१) शब्दकल्पद्रुम, वृत्तरत्नाकर अने छंदोमंजरीमां ए. प्रमाणे यति छे. ११५२ मंजीरा, मंजीर १९, ९ यति म, म, भ, म, स, म: १.२,६७३
८
मंजीरामांहे खंडे यति, मामा भामसमा आणोजी.
११ ए नाम छंदः प्रभाकरमां छे, तेमां लक्षणमां यतिः कही नथी, पण उदाहरणमां उपर मुजब यति पाळी छे, २ मंजीरा नाम : वाग्वल्लभमां छे, पण तेमां तथा प्राकृतपिंगळसूत्र अने वाणीभूषणमां यति कही नथी, पण छंदः शास्त्रनुं टिप्पण, छंदः पारिजात, छंदोवृत्तमुक्तावली अते. पिंगळा दर्शमां उपर प्रमाणे यति छे.
११५३ चित्रलेखा १ ४, ७, ७यति २: म, न, न, त, त, म. १८९३७,
•
४ ७.
मानानात, तम युग हये छे, यति चित्रलेखामां
२४१५४ परामोद
१. १७ वर्णमां अंक १११६ मे आ नामनुं वृत्त छे:
२ वृत्तरत्नाकर, छंदोमंजरी, अबे शब्दकल्पद्रुममा ए यति छे
समवृत्तः
य, स, स, ज, न, म.. ३१,४५०..
परामोद विषे यससाज नाम खचित आवेछे.
न, न, म, न, न, म. ३२,३२०..
१११५५ विलुलितवनमाला. विलुलितवनमालामां नन मनन म आवेछे.. ११५६ सिंहविस्फूर्जित. ५, ६, ७ यति. म, म, भ, म, य, य. ३७,२४९ माम्भा माया. या पांचे पट साते, सिंहविस्फार्जते छे..
"
वृत्तरत्नाकरना परिशिष्टमां आ नाम तथा यति छे,
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१ धृति छंद.
वर्णमेल.
aararamramma
rammarrrrmvir
AAAAAN
११५७ नीलशार्दूल, नीलमालूर,)
नीलशालूर. न,न,म,य,य,य. ३७,४४०
नन म य य य आणो नीलशार्दूलमां ठीक धारी. ११५८ क्रीडचंद्रा,वारवाणावृत्त', क्रीडमा,चंद्रिका, क्रीडा
चंद्र, क्रीडाचक्र३, कीलानंद, चंद्रक्रीडा, महामोदकारी, महामोद", क्रीडचक्र.
य,य,य,य,य,य. ३७,४५० 'यया याय या या धरो क्रीडचन्द्रे वळी चंद्रिकामां. १ वागवल्लभमां, २ प्राकृतपिंगळसूत्र, ३ पिंगळादर्शमां, ११,७ यति कही छे, पण तेनुं प्रमाण जड्युं नथी. ४-५ भगवत् पिंगळमां छे. ६ छंदः प्रभाकर. ७ भाषा छंदोमंजरी. र शब्दकल्पद्रुम. ११५९ कुसुमितलता, कुसुमितलतावेल्लिता२, कुमुमलतावल्लिता, फूलमाला, कुसमिलता.
५,६,७ यति. म,त,न,य,य,य, ३७,८२७ पांचे चक्रे छे, कुसुमितलता, मा त ना या य ये थी. १ मंदारमरंदचंपूमां ए नाम तथा यति छे. २ प्राकृत पिंगळ सूत्रमा आ नाम छे अने यति पण एज प्रमाणे छे. ३ प्राकृत पिंगळसूत्र, छंदोमंजरी, वृत्तरत्नाकर, अने छंदःशास्त्रप्रमाणे ए यतिछे, पण छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी. ११६० चन्द्रलेखा, । म,भ,न,य,य,य. ३७,८७३
चित्रलेखा'. ४, ७, ७ यति२. चारे साते, यति म भन्य या, ये बने चन्द्रलेखा.
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.mmmmmmrrrrrrrroww........
३७० रणपिंगळ.
समवृत्त.
.wir १ छंदोमंजरीमां अने प्राकृत पिंगळसूत्रना परिशिष्ट भागमा ए नाम तथा यति छे, पण छंदः:प्रभाकरमा ए नाम साथे यति नथी.
२ शब्दकल्पद्रुम अने वागवल्लभमा बन्ने नाम छे, पण तेणे यति कहीन नथी. वर्ण १५मां अंक १००९ मे चंद्रलेखा नाम छे, ११६१ सत्केतु.
म,न,न,ज,र,य. ४४,०२५ आ सत्केतु मन न ज रय आणवे खरे बनेछे, ११६२ चन्द्रकुल. १०, ८ यति. स,स,ज,भ,स,य. ४८,४७६ घर चन्द्रकुले दशे यति, स स ज भसा य लावी.
पिंगळादर्श प्रमाणे आ नाम तथा यति छे. ११६३ केशर. ४, ७, ७ यति. म,भ,न,य,र,र. ७४,७३७
चारे साते, म भन य रर थी, थाशे पदो केशरे.
- वृत्तरत्नाकर प्रमाणे आ नाम तथा यति छे. ११६४ सिन्धुसौवीर. (पा० व०) र,र,र,र,र,र. ७४,८९९
सर रा रा र रा आणजो गोठवी सिन्धुसौवीरमां. ११६५ लालसा. ९,९ यति'. त,न,र,र,र,र. ७४,९४१ छेदो नव नव लालसा, ने गणो ता न रा रा र रा.
१ छंदोमंजरीनी टपि. ११६६ महामालिका, नाराच', नराच,नाराचक,महामाला. ६,६,६ यति.
न,न,र,र,र,र. ७४,९४४ छ छ छ बिरति, छे महामालिका, ना न रा रा र रे. १ वागवल्लभ. २ नाराच के नराचमा प्राकृत पिंगळसूत्रना परिशिष्ट भागमा १२,६ यति कही छे.
३ छंदोलतामाथी. ११६७ निशा,सालसा२.१०,८ यति. न,न,र,र,र,र. ७४,९४४
दिग वसु यतिथी निशा छे, न ना रा र रा रा धरे,
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१८ धृति छंद.
वर्णमेळ:
mmmmmmmmmmmm.in.s..४४४
१ मंदारमरंदचंपू, तेमा यति एज छे.
२ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीना टिप्पणमां छ: ११६८ तारका,१ . न,न,र,र,र,र. ७४,९४७
महामालिनी.२ । १३,५ यति१.
जख शर यति नानरराररे छ, सदा तारका. १ पिंगळादर्श. २आ माम छंदःप्रभाकरमा छ पण तेमा' यति कही नथी, अने तेणे तारका ने नाराचने एकठा गण्या छे. ११६९ विलास. ४,६,८ यति. म,स,स,र,र,र: ७४,९६९ चो छो आठ, विलास रचो मा, ससा राररा आणिने.
मंदारमरंदचंपूमा छे. ११७० नन्दन. ११९७ यतिः नज,भ,ज,र,र. ७६,७२०
शिव मुनिये यति न ज भ जा,ररा करो नन्दने.
छेदोमंजरीमां आ यति छे. शब्दकल्पद्रुममां आनी जोडे महामालिका नाम आपल छे, पण तेना लक्षणमां "वेदरेफैश्छिन्ना" आप्युं छे, एटले वागवल्लभमां आपलं माप बराबर छे. वाग्वल्लभ, प्राकृतपिंगळसूत्र तथा सब्दकल्पद्रुममां पण एज नाम तथा यति छे, ११७१ गजेन्द्रलता, ।
ने,न,र,भ,र,र ७६,९९२ लताः । १०,८ यति. ननर भरर थी लता ने, यति छे दशे आठमे. . १ छंदोमंजरीना परिशिष्टमा १०,८ यति कही छे:
२ लब्द्क ठुममा १०,८ यवि. ११७२ पर्विणी. ९,९ यति. न,न,र,न,र,र. ७७,५०४
नव नव यति ना न रा, न र रथी बने पर्विणी. ११७३ क्रोडक्रीड.
म,भ,न,न र,र. ७७,८०९
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गोभिलीयकर्मप्रकाशिका |
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३१ २
१
२२ ३
१ २
३
१
ग्निभिहतारं त्वा वृणीमहे । श्रा त्वामनक्तु प्रयता देवि
२ ३१ २
२३१
२ ३ १ २
मती यजिष्ठं बरामदे । श्रादि त्वा सहसः सूनो अंगिर :
३ १- २३
नपा
सुचश्चरन्त्यध्वरे ।
तकेशमीम ऽग्निं यज्ञषु
१ २
१ २
पव्यं ॥ ७ ॥ अका नः शीरशोचिषं गिरो यंत दर्शतं । अका
३३
३ २ ३ १३
३१२
३ २ ३१२ ३ २ ३१- २२
यज्ञामा नमसा पुरुषसुं पुरुप्रशस्तमूतये | अग्निश्सूनुश्चसेा
३ २उ
३ १२
३ १३ १
३ २ ३ २३१
२.
जातवेदसं दानाय वार्याणां । हितायोभूदमृतो मत्त्वा होता
1
३१२
२ २ १ २
३२
३२ ३ 9- श
मंद्रतमा विशि ॥ ८ ॥ अदाभ्य: पुर एता विशामग्निमानुषीणां
२३ २३ १२
३१
१ २
३ १ २
तूणीरथः सदानवः । अभि प्रयास वाचसा दावा नोति
१२
३ १
२३
मर्त्यः । तयं पावक शोचिषः । साव्हान्विश्वा अभियुज:
१२३२ ३ १ २
३ २ ३ १२
३ ૧
क्रतुर्दवानाममृक्तः | अग्निस्तु विश्रवस्तमः । भद्रो नो अग्न
र
३ २ ३ १ २
૧ २३ २
३२ ३१- २२
राहुतो भद्रारातिः सुभग भद्रो अध्वरः । भद्रा उतं प्रश
३१.
श
३२ ० १ २ ३ १ २ ३ २
स्तयः । भद्रं मनः कृणुष्व चतुर्य्यं येनासमत्सु सासचिः
३
।
१२ ३ ૧ २ ३ २ ३१२०
२
३ १२
व स्थिरा तनुहि भूरि शतां वने मा ते अभिष्टये ॥ १० ॥
२ ३
२३ १२
३
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसायो | अहि
३२३१ २
३ १
रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि । क्षपो रुतोषसः । स तिग्मजंभ रक्षमा दक्ष
३१
૧
२ ३ १ २ ૧ २ ३१- श ३ २३ २३ १ २ ३२
जातवेदो महि श्रवः । स दूधानो वसुष्कविरग्निरीडेन्द्यो गिरा ।
२
३ २२
३ १
राजन्नुत मनाने वस्तो
३ १२
3
प्रति । विशेोविशेो बेो
३ १२
३२३ १२ ३ २ ३२ ३
अतिथिं वाजयतः पुरुप्रियं । अग्निं वा दुर्यं वचः दुर्यं वचः स्तुषे शषस्य
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१९४
गोभिलीयरह्मकर्मप्रकाशिका।। छन्दो ऽग्निर्देवता ऽऽज्य हामे विनियोगः । अन्नस्य पृतमेव रसस्तेजः सम्पत्कामो जुहामि स्वाहा ॥ अग्नय इदं न मम । तन्त्र शेषं समाप्य ब्रह्मणे दक्षिणां दत्वा वामदेव्यगानं कृत्वा ब्राह्मणान्भोजयेत् । इति पुरुषाधिपत्यप्रदप्रयोगः ॥
... अथ पशुकामस्य पशुप्रदप्रयोग उच्यते ॥ तत्करिष्यन् गोष्ठेष्वग्निमुपसमाधायाज्यतन्त्रेण व्याहृतित्रयहामान्ते ऽन्नस्य एतमितिपूर्वोक्तमन्त्रेणाज्याहुतिं कुर्यात् । ततस्तन्त्रशेषं समापयेत् । इतिपशुप्रदप्रयोगः ॥
____ अथ गोषु तप्यमानासु तत्तापशान्तये होम उच्यते ॥ पूर्ववगोष्ठाग्निमुपसमाधाय क्षिप्राविधिना लोहचूर्णानि अन्नस्य एतमितिमन्त्रेण जुहुयात । अस्य चीवरहामकर्मति नाम । उक्तानामाधिपत्यप्रदपशुप्रदचीवर होमकर्मणां परिभाषासूचोक्तकाले सकृदेवानुष्ठानम, अभ्यासानुपदेशात् । सकृत्प्रयोगेणोक्तफलाप्राप्तावात्तिं वा कुर्यात् ॥ ___अथ स्वस्ययनग्रन्यिकरणप्रयोगः ॥ मार्ग गच्छतः प्रतिभये जाते स्वकीयस्यान्यस्य वा वस्त्रस्य दशानां बीन ग्रन्थीन कात । अन्न वा एक छन्दस्यमित्यादिभिरुक्ताभिस्तिसृभिग्भिस्स्वाहान्ताभिरेकैकयी एकैकग्रन्यिकरणम । एतकर्मणा सहायानामपि स्वस्त्ययनम् ॥ इति स्वस्ययनग्रन्यिकरणप्रयोगः ॥
अथाचितसहस्रकामस्थाक्षतसत्त्वाहुतिप्रयोगः ॥ तत्करिध्यन्नग्निमुपसमाधाय क्षिप्र होमविधिना ऽक्षतमत्वाहुतिसहस्रं
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पृष्ठम्
ا
س
... ४९१
.३५८
३७२
... १९२
३५२
م
م
م
م
م
. १३३
... ...
... ... २६७
و
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याज्ञवल्क्यस्मृतिः। श्लोकाः
पृष्ठम् श्लोकाः ऊरुस्थोत्तानचरणः ... ... ३६६ / एवं मातामहाचार्य ऊर्ध्वमेकः स्थितस्तेषां ... ३६० एवं विनायकं पूज्य ... ऋग्गाथा पाणिका दक्ष
एवमस्त्विति होवाच ... ऋग्यजुःसामविहितं ...
एवंवृत्तोऽविनीतात्मा ऋणं दद्यात्पतिस्तासां ...
एवमस्यान्तरात्मा च ... ऋणं लेख्यकृतं देयं ... ... १७५ एवमुक्त्वा विषं शाङ्ग ऋतुसंधिषु भुक्त्वा वा
एवमेतदनाद्यन्तं ... ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैः ...
एवमेनः शमं याति ... ऋत्विक्पुरोहितापत्य. ...
एष एव विधिज्ञेयः ... ऋत्विजां दीक्षितानां च ... ३२० एष एव विधिज्ञेयः ऋषभैकसहस्रा गाः ...
एषां त्रिरात्रमभ्यासात्... एकं घ्नतां बहूनां च ... | एषामन्नं न भोक्तव्यं ... एकदेशमुपाध्यायः
एषामन्यतमाभावे एकभक्तेन नक्तेन
एषामपतितान्योन्य ... एकरात्रोपवासश्च
एषामभावे पूर्वस्य ... एकरात्रोपवासश्च
एषामसंभवे कुर्यात् ... एकादशगुणं दाप्यो
ऐणरौरववाराह एकारामः परिव्रज्य
ओङ्कारामिष्टुतं सोमं एकैकस्यात्राष्टशतम्
औरसाः क्षेत्रजास्त्वेषां एकैकं ह्रासयेत्कृष्णे
औरसो धर्मपत्नीजः एकोद्दिष्टं देवहीनम्
औवेणकं सरोबिन्दुम् एकोनत्रिंशल्लक्षाणि
औष्ट्रमैकशफं स्त्रैणम् ... एतद्यो न विजानाति
कटेरौि यथा पक्के ... एतत्सपिण्डीकरणम्
कथमेतद्विमुह्यामः एतान्सर्वान्समाहृत्य
कदर्यबद्धचौराणां एते महापातकिनो ...
कनिष्ठादेशिन्यङ्गुष्ठ एते मान्या यथापूर्व
कनीनिके चाक्षकूटे एतैः प्रभूतैः शूद्रोऽपि ... ... | कन्धराबाहुसक्नांच ... ... २६३ एतैरुपायैः संशुद्धः
कन्यां कन्यावेदिनश्च एतैरेव गुणैर्युक्तः ...
कन्याप्रदः पूर्वनाशे एभिश्च व्यवहर्ता यः ... ... २६८ कन्याप्रदानं तस्यैव एभिस्तु संवसेद्यो वै ... | कन्यासंदूषणं चैव
.. ३८१ एवं गच्छन् स्त्रियं क्षामां ... २१ कन्यां समुद्वहेदेषां ... एवं पुरुषकारेण ... ... १०८ | कपिला चेत्तारयति ... एवं प्रदक्षिणावृत्को ... ... ७७ करणैरन्वितस्यापि ... ... ३५३
ه
... २५२
م
२२७
२१३
३५५
४८
::::::::::::::
४१२ ।
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याज्ञवल्क्यस्मृतिः।
س س سه سر سه سه س
س س س
س
. विषयाः . पृष्ठं विषयाः सपणविवादस्थले निर्णयप्रकारः १२९ शिरोमुण्डनादिदण्डाः छलनिरसनप्रकारः ... ... १२९ | अङ्कने च व्यवस्था ... छलानुसारिव्यवहारलक्षणम् ... १३० चक्षुर्निरोधशब्दार्थः ... निद्भुतैकदेश विभावने निर्णयप्रकारः १३० कीदृशो भोगः प्रमाणम् ... १३९ न्यायाधिगमे तर्कः... ... १३० आगम निरपेक्षस्य भोगस्य प्रामाण्यं १४० अनेकार्थाभियोगे निर्णयः ... १३१ अनागमोपभोगे दण्डः ... स्मृत्योर्विरोधे निर्णयप्रकारः ... १३१ आगमसापेक्षभोगविषये ... धर्मशास्त्रार्थशास्त्रयोर्विप्रतिपत्ती त्रिविधः स्वीकारः ... ... १४१
निर्णयः ... ... १३२ | स्वीकारे नियमः ... ... १४१ धर्मशास्त्रार्थशास्त्रोदाहरणम् ... १३२ पुरुषव्यवस्थया प्रामाण्यव्यवस्थया आततायिहननविषये निर्णयः ... १३२ च आगमविषये दण्डव्यवस्था १४१ द्विजातीनां शस्त्रग्रहणे
अभियुक्ते मृते निर्णयः ... १४२ आततायिनः ... .... | व्यवहारसिद्धये व्यवहारदर्शिनां अन्योदाहरणम् ... ... | बलाबलम् ... ... १४२ अन्यथाकरणे प्रायश्चित्तम् ... १३३ प्रबलदृष्टव्यवहारविषये ... १४३ प्रमाणचतुष्टयम् ...
| मत्तोन्मत्तादिभिनिर्णीतव्यवहारप्रमाणभेदाः
विषये ... ... १४३ मानुषदिव्यप्रमाणग्रहणे निर्णयः १३४ गुरुशिष्यपितृपुत्रादीनां व्यवहारतत्रोदाहरणम् ... ... विषये दिव्यप्रमाणग्रहणे निषेधः ... १३४ | स्त्रीभर्तृव्यवहारविषये ... १४३ तदपवादः ... ... १३५ खामिदासव्यवहारविषये .... लेख्यादीनामपि क्वचिनियमः ... १३५ अनादेयवादविषये . ... १४४ प्रमाणबलाबलविचारः ... १३५ गोपशौण्डिकादिस्त्रीणां व्यवहारे १४४ आध्यादिषु पूर्वोत्तरक्रियानिर्णयः १३६ परावर्त्यद्रव्यविषये निर्णयप्रकारः १४४ दशविंशतिवर्षोपभोगे निर्णयः ... १३६ तत्र कालावधिः ... ... १४४ अनागमोपभुक्तौ दण्डः ... १३७ | तत्र नृपतिभागः ... ... १४४ अस्वलस्य दाने दण्डः ... १३७ स्वाम्यनागमविषये ... ... दशविंशतिवर्षोपभोगे हानेरपवादः १३७ निधिप्राप्तौ निर्णयप्रकारः ... १४५ उपनिक्षेपलक्षणम् ...
ब्राह्मणस्य निधी प्राप्ते निर्णयः ... १४५ आध्यादीनां हर्तुर्दण्डः ... १३८ | ब्राह्मणभिन्नस्य निधौ लब्धे निर्णयः १४५ दण्डपरिमाणम् ...
अनिवेदितनिधिविषये निर्णयः १४५ दण्डप्रकाराः ...
धनस्वामिन्यागते निर्णयः ... १४५ धनदानाशक्तौ दण्डप्रकारः ... १३८ / तत्र राजभागः ... ... १४५ उत्तमसाहसदण्डखरूपम् ... १३८ चौरहतद्रव्य विषये ... ... १४६ ब्राह्मणस्य वधदण्डनिषेधः ... १३८ चौरहतद्रव्यापहारे राज्ञो दोषः ... १४६
... १४३
१३७
س
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
1
4
~
~~...
...........४४४mins
आणीद्यो मा भ ननर र गणज क्रोडक्रीडा मही. ११५४ वसुपदमंजरी,हरिणाभिनंदन न,ज,भ,ज,ज,र. ८९,००८ वसुपदमंजरी रंच न जाभज जार आणिने.
१. वाग्वल्लभ. २ छंदौलता.. ११७५ हरिणप्लुत,? म,स,ज,ज,भ,र. ९३,०१७
हरिणप्लुता. ८,५, ५ यति. आठे छे हरिणप्लुता, शर पांच मा, सज जा भरे. वृत्तरत्नाकर, छंदोमंजरीनुं टिप्पण, अने शब्दकल्पद्रुम. ११७६ विबुधप्रिया, मत्तकोकिल',)
कूर्पर, चर्चरी२, चंचरी३, र,स,ज,ज,भ,र.९३,०१९
चंचली, चका. थायछे विबुधप्रिया ठिक वृत्त रासज जा भरे. १ मत्तकोकिल, चर्चरी, कूपर, चंचरी ए नामो वाग्वल्लभमां छे, तेमां यति कही नथी. २ छंदोवृत्त मुक्तावलि, प्राकृत पिंगळसूत्र, वाणीभूषणमां अने छंदोलतामां आ नाम छे, तेमां यति कही नथी. ३ चंचरी अने चर्चरी ए बे नामो पिंगळादर्शमां आपी. तेणे १०, ६ यति कही छे, परंतु १८ अक्षरनुं आ वृत्त होतां ६ने बदले ८ लखवा जोइये, ६नो अंक हस्तदोष हशेः दशे यति बोलायछे, परंतु बीजां प्रमाण नहि होतां अमे आवश्यकता गणी नथी.
४ छंदःप्रभाकरमां बीजां केटलांक नामो साथे आ नवं नाम छे, तेणे यति कही नथी. राग असावरी (जीवनपुरी), ताल मिश्रजाति षष्टीताल, मात्रा २६, मध्यकाळ; विबुधप्रिया, चंचरी अने चर्चरी वृत्तनां छे, एम संगीतानुसार छंदोमंजरीमा लख्युं छे.
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धृति छंद.
वर्णमेळ.
११७७ चल.. ४,७,७ यति. म,भ,न,ज,भ,रं.. ९३११९
चारे साते, म भनजभर थी, रचो चल रीअर्थी. वृत्तरत्नाकर तथा छंदोमंजरीना टिप्पणमा ए नाम तथा यति छे. ११७८ षटपदेरितः
नेर,ने,र,न,र. ९९,७०४ षटपदेरितें नर नरानरा पद रचायचे. ११७९ पार्थिकः १२,श्यति. (वा.व.) ,स,ज,स,न,र.९६,०९४ विराम रविये जसाजसनरा, चरण पार्थिवे.
भ,स,न, जौ,न,र. ९७,२४७ हारक, हीरा. ) . १२, ६. यति.
हीरक रचवी भंस नजनार, रवि छये यति. १ छंदोमंजरीना टिप्पणमां तथा भब्दकल्पद्रुममा हीरक नामः आपी तेमा यति कही नथी. परंतु प्रत्यक छ वर्णे अथवा १२,६ वर्णे यति बोलायछे. २ छंदःप्रभाकरमां हीरक नाम' आपी तेमां १२,६ ये यति कही छे. मात्रा जातिमां हीरक हार, पृष्ट ६०, अंक ८७, मात्रा २३मा छ, ते आनन विकृति छे. आनी मात्री २३ थायछे. ३ गणप्रस्तारप्रकाशमा हीरा नाम छे. ११८१ जगदउदय जगदुदयः न,न,नान,न,र. ९८,३०४
जगदउदय नननननर चरण थायछे.
१' मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां जगदुदय नाम छे. १.१८२ परिपोषक सस,स,स,स;स. १,१.२,३४८
परिपोषकमा कविः सास ससास सं आम धरो:: ११८३ शार्दूलललित । म,स,ज,स,त,स. १,१६,६६९
शार्दूललसितर. १२,६ यति.. अरे छेद छ ए मसाज-सत.सा, भाईलललिते.
१२
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३७४ रणपिंगळ.
समवृत्त. १ वागवल्लभ तथा छंदोमंजरीमा ए नाम अने १२, ६ यति कही छे. २ छंदःप्रभाकरंमा यति कही नथी अने एनुं नाम शादलललिता आप्यु छे अने टीकामां जणाव्यु छे के कोइ कोइ एने "शार्दूललसिता" पण केहेछ. ११८४ सुधा.. ६,६,६ यति. य,म,न,स,त,स. १,१६,६७४
छएं चक्रे छेदो, यमन स त सा, आणो पद सुधा.
१ वृत्तरत्नाकर आदिमां आ नाम तथा यति छे. ११८५ अश्वगति. भ,भ,भ,भ,भ.स. १,२६,३९१
. पाद विषे रच भा भ भ भा भ स अश्वगति सदा.
छंदोलतामा केहेछे के, कोइ एने सुधा केहेछ. पण बीजा प्रमाणो उपरथी सुधा वृत्त तो अं.११८४ मे जूदु छे. ११८६ भ्रमरपद
भ,र,न,न,न,स. १,३१,०३१ भारन ना न से कवि भ्रमरपद चरण रचो. ११८७ अन्तरालापि', ।
त,त,त,त,त,त. १,४९,७१७ अद्धान्तरालापि२. अर्द्धान्तरालापि माहे त ता ता त ता ता बधा आण.
१-२ वागवल्लभमां आ नाम छे, तेमा यति कही नथी. ११८८ छेल. ११,७ यति, त,त,त,त,त,त. १,४९,७९७
रुद्रे हये छेद ता ता त ता ता, त छे छेलनी मांह. पिंगळादर्शमां आ नाम अने यति छे तेनुं बीजं प्रमाण जड्यु नथी. १९८९ पतङ्गपाद.. जत,त,त,त,त. १,४९,७९८
पतङ्गपादे रचो जा त ता ता त ता पाद शोभीत. ११९० सारस्वती', । त,भ,र,स,ज,ज. १,८६,०३७
शारदार. ९,९ यति. सारस्वती नव ने नवे, त भ रा स जा ज धराय. १ पिंगळादर्शमो सारस्वतीमा ९,९ यति कही छे. २ गणप्रस्तारप्रकाश.
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१९ अतिधृति छंद.
वर्णमेळ.
११९१ हीरकहारधर. (वा.व.) भ,भ,भ,भ,भ,भ. २,२४,६९५
हीरकहारघरे पद भा भ भ भा भ भ थी रच. ११९२ दंडी, दंडक. (ग.प्र.प्र.) तन,त,न,त,न. २,४९,६६६
दंडी रच कवि! ता ना त न त न आणी झटपट.
१ वागवल्लभमां छेल्ले स लखछे पण दृष्टांत्मा न गणेछे. ११९३ तुमुलक.
न,न,न,न,न,न. २,६२,१४४; न न न न न न थको रच कविवर! तुमुलक. १९अतिधृति छंद.५,२४,२८८ भेद.१९वर्ण .. ११९४ शम्भु', शंकर, संभो२. स,त,य,भ,म,म,ग. ३,१७२.
स त या भा मा म ग आवे शंकर संभो. शंभु बत्ते तो...... १ छंदोलतामा ७,५ यति लाववा केहेछे पण वागवल्लभ, छंदः, प्रभाकर तथा छंदोवृत्तमुक्तावलीमा यति विषे कह्यु नथी. तेमजु, प्राकृत पिंगळसूत्र अने वाणीभूषणमां पण यति नथी.'२ संभो नाम गणप्रस्तार प्रकाशमां छे, ते शंभुनो अपभ्रंश छे. ११९५ झिल्लीलीला. ८,११ यति. न,य,म,म,ज,म,ग. २०,४९६ वसु शिव छेदे ना या, मा मा जा मा ग थाय झिल्लीलीला.
१ वागवल्लभमां आ यति कही छे.. ११९६ विधुनिधुवन'. म,न,न,त,न,म,ग. ३१,२२५ आवेछे विधुनिधुवनमां मा न न त न.मा.गा. पादे.
१ आ मृत वागवल्लभमां छे.. ११९७ गीतका, भैरौ. न,य,र,र,र,य,ग. ४२,१२८
नयर र रा या गा थकी गीतका थायछे तथा भैरौ. ... ११९८ माराभिसरण. त,न,म,भ,स,य,ग. ४८,१८९,
माराभिसरणमां आवेछे त न म भ सा य गा पादे.
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वागळ.
समात्त
११९९ लोललोलम्बलील. (वा व.) र,ररररर,ग. ७४,९९९
लोललोलम्बलीले रचो रार रारारसमा पदे तो. कोइ आवृत्तमा ६,६,७ यति मानेछे, पण तेने बीजं प्रमाण मळ्तुं नथी. १२०० मेघविस्फूर्जिता', । य,म,न,स,र,र,ग. ७५,७१४
विस्मिता, मेघवंश, ,, यति.३
ए चक्रे छे या, मनसरर.सा, मेघविस्फूर्जिता छ. ११ वाग्वालभमां आ नाम अने अति छ. २ मेघवंश. नाम गणप्रस्तारप्रकाशमां छे.
३ आ वृत्तमा छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी, पण प्राकृत पिंगळसूत्र, इतरत्नाकरको परिशिष्ट भाग, वाणीभूषण अने मंदारमरंदचंपू एओमां आं प्रमाणे गण अने यति छे. १२०१ फुल्लदाम, पुष्पदाम. म,त,न,स.र.र.ग. ७६,५४९
३,५,७, यति. पांचे साते छे, मतनसररमा, पादमा फुल्लदामे. फुल्लदामने कोई पुष्पदाम केहे छे, एम शब्दकल्पद्रुममा कयुं छे. छंदोमंजरी अने माकृतापंगळसूत्रमा एयति कही छे, छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी. सुरसा अंक १२२० मे छे, तेथी आनी यति जलंटी छे. पुष्पदाम नाम (यति सहित) आ मापथी वृत्तरत्नाकरमां.छे. १२०२ झूलना. १०,५,४ यति. स,ज,ज,भ,र,स,ग. १,०९,९३२ सज जाभरासग थी रचो, झट घूलना, दश पांचे.
संगमदर्शमा १०,५,४ यति कही छ. . १२०३ किरणकीर्ति'. त,ज,त,भ,न,स,ग १,३०,३४० . साते रविये यति, ताजताभनसग किरणकीर्ति,
१ बाग्बालभमा ा नाम तथा ५,१२ यति हे.
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९ अतिभूति छद.
वर्णमेळ
१२०४ शार्दूलविक्रीडितः म,स,ज,स,त,त,ग.. १,५९,३३७०
१२,७ यति मोसा जा सकताग सूर्य मुनिये, शार्दूलविक्रीस्ति।
१ वागवल्लभ, छंदोमंजरी आदि प्रमाणे यति छे. ___ओं मूळ प्रकृति छ एनी विकृति जुओ मात्रामेळमां पृ. ४१ बैंक २५ मे साटक अने तेना भेदो. रोग मुखावरी, ताल खंड जाति, मात्रा ५, विलंबकाळ. (समीतानुसार छंदोमनरी): . १२०५ छाया..६,६९७ यति: यामान:स,लत,गः १,४९,४४२
छए चक्रे छाया, विरति वरची; या मानसा तातगे. छंदःकामदुधावत्स, छंदोर्णव, वृत्तरत्नाकर- परिशिष्ट, छंदशांख अने प्राकृतपिंगळसूत्र, तथा वाणीभूषण एओमां पण ए माप अने यति छ. छंदोमंजरी अने शब्दकल्पद्रुममा १२ मे तथा अंत्याक्षरे यति कही छे; अने छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी.. १२०६ विम्ब. ५,७,७ यति मतान,सतत,गः १,४९,४७३०
पांचे साते ने, हय यति मत ना, सांतात गा बिम्बमां. १ छंदोमंजरीना टिप्पणमां अने शब्दकल्पद्रुममा ए यति छे. १२०७ शक्र १०, यति. रस,ज,जत,त,ग १,५०,३६३३ रास जाजत तां गछ देश, ने नवे छेद तो शक्रमां.
पिंगळादर्शमा ए यति छै. १२०८ शिलीमुखोज्जृम्भिता:म,सन,न,जात,ग. १,६५,४८१ मासा जानजताग आण चरण शिलीसुखोज्नृम्भिते.
१ वागवल्लभः १२०९ कलापदीपक रन,राज,र,ज,ग: १,७४७६१
राजराजराजगा धरों सदा तमे कलापदीपके. १२१० प्रपञ्चचामर', ।
प्रपञ्च पंचचामर३:(नान,र,ज,रज,ग.१,७४,७६४४
ति छ.
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समवृत्त. r e....
३७८
रणपिंगळ.
......mirmirmirmwa ननरज र जगाधरो भले तमे प्रपंचचामरे.
१-२ वागवल्लभ. ३ वृत्तरत्नाकर. १२११ कल्पलतापताकिनी.(वा.व.)म,न,न,स,स,ज,ग.१,७८,१६९
मा ना ना स स ज ग की रच कल्पलतापताकिनी १२१२ सुललिता. न,स,न,म,ज,ज,ग. १,८४,८००
रच सुललिता चरण ना सा नाम जाज गथी करी. १२१३ मणिमंजरी.१२,७ यतिी.य,भ,न,य,ज,ज,ग.१,८९,३३० यति बारे मुनि यमन मजा ज्गे, रचो मणिमंजरी.
. १ वृत्तरत्नाकरमा ए यति छे. १२१४ सरल. ९,१० यति. न,भ,र,स,ज,ज,ग. १,८६,०४० - सरलमां नव दोपथी, न भ रास जी जम आणनो..
१ आ वृत्त उपर प्रमाणेना माप अने यतिथी मंदारमरंदचम्पूमा छ, अने ते हरिगीतने रागे गवायछ, प्रथमनी वे मूकी देवानी मात्रा ओछी छे. १२१५ मकरंदिका', मकरंदी. य,म,न,स,ज,ज,ग. १,८६,३०६
छए चक्रे साते, यमन स ज जा,गथी मकरंदिका. १ वृत्तरत्नाकरमा मकरंदिका नाम अने ६,६,७ यति छे. १२१६ निर्गलितमेखला.(वा.व.) न,न,र,न,भ,ज,ग.१,९२,१९२
चरण न नरनाभ जाग रच निर्गलितमेखला. १२१७ वरूथिनी.५,५,६,४ यति.ज,न,भ,स,न,ज,ग.१,९४,४९४ जना भस न, जं गा विरति, शरो त्रणी, वरूथिनी.
आ वृत्त मंदारमरंदचम्पूमा छे. १२१८ ग्रावास्तरण.१ म,भ,स,भ,म,भ,ग. १,९९,९२१
१०,९ यति. ... . मा भासा भाम भ ग दशे ने, यति अन्ते ग्रावास्तरणे.
वागवल्लभमां आ नाम अने यति छ.
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१९ अतिधृति छंद.
वर्णमेळ.
३७९
१२१९ समुद्रतता. ८,४,७ यति. ज,स,ज,स,त,भ,ग. २,१४,८७८
यति बसु युगे जसा,जस त भा, गे छे समुद्रतता.
वृत्तरत्नाकर तथा छंदोमंजरीना परिशिष्टमां आ नाम तथा यति छे. १२२० सुरसा. ७,७,५, यति. म.र,भ,न,य,न,ग.२,३७,४५१
मारा भी ना य नागे, मुनि हयं शर थी, थाय सुरसा. १ वाग्वल्लभ, नागराजपिंगळ छंदःकामदुधावत्स, प्राकृतपिंगळसूत्र अने छंदोमंजरीमा ए नाम तथा यति छे. १२२१ टङ्कण.९,१० यति. र,न,र,न,र,न,ग. २,४१,३३९. आण टंकण विषे सदा, र नर ना र नाग-कवि! तुं.
वाग्वल्लभमां आ नाम तथा यति छे. १२२२ धवल', धवलांग,
न,न,न,नानान,ग. २,६२,१४४ धवला, शशि२. )
धवल पद सरस धर गण न न न न न न गा. १ वागवल्लभ, प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोवृत्तमुक्तावली, वाणीभूषण, आदिमां यति कही नथी. २ ए नाम मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा छे. १२२३ मणिमाल. (ग. प्र. प्र.) स,ज,ज,भ,र,स, ल. ३,७२,०७६ . मणिमाल माह स जा ज भा र स ला धरों कवि! आप. १२२४ मुनि', मुनीश२. न,मन,स,न,स,ल. ३,९१, ११२
मुनि विष छेदो दश नव, न मा नस न सल आण.. १ पिंगलादर्शमां आ वृत्तमा १०,९ यति कही छे. २.ए नाम गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. १२२५ प्रेम. ९,१० यति. स.स,र,म,न,स,ल, ३,९२,८६०
स स रा न न साला थकी, नत्र दश यति कर प्रेम. प्रेमानंद कविये द्रौपदीहरणनी समाप्तिमा पोताना नामनु नवु वृत्त वनावेलुं जणायछे, अने ते दूहाना रागथी गवायछे; वृत्तना पादमां दूहाना सर्वे नियमो सचवायछे. जुवो पारळ पृ. ७५ अंक ८.
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रणपिंगळ.
समवृत्त..
१२२६: रसाला. भ,न,ज,भ,ज,ज,ल. ४,४९,९१९:
भा नजभज जल छे रसाल शुभ छंद विषे पद. १२२७. चन्द्रमन, चन्द्रमाला)
चंद्र, शशिंसन,नन जान,न,ल.५,२३,२६४. चंदमालु.४.
नानन.जाननाल चरण चन्द्रमन धरः सरस. १ चंद्रमालामां पिंगळादर्शमा ११, यति कहाँ छे; पण प्राकृत पिंगळसूत्र, वाणीभूषण इत्यादिमा यति कहीं नथी, तेथी ते सर्वमान्य नथी.
२ संस्कृत छदौलतामा तेमन छंदोमवमां चंद्र नाम आपी २० मात्राना मात्रामेळमां दाखल कस्युं छे. पण छंदोवृत्तमुक्तावलीमा आमां कहेला गणो वडे मापवतावल हॉबाथी अमे तेने वर्णमेळमा दाखल करेल छे. वाणीभूषणमां चंद्र नाम आप्यु छे; तेमा यति कही नथी. ३: गणप्रस्तारप्रकाशः ४. चंदसालु नाम छंदसारमा छे. १२२८ वसुमती... जज,नान,न,नाल. ५,२४,२६९
जजा न न ना नल की कविवर! वसुमति रच.
__ आ वृत्त मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा छे.. २० कृतिछंद.१०,४८,५७६ मैदछे.२०वर्ण: १२२९ चतुरानन.. न,न,स,स,स,म,ग,ग.. १४,०८०
ननसस समगगं थीं चतुरानन जोडी शोधी पादे.. १२३० वाणीवाण. १०,१०यति. म,भ,स,भ,त,य,ग,ग. ५२,४६५' वाणीबाणे रत्र म भसा भात य गागा दश छेदे आणी.
१. वागवल्लभ.. २३१ भेकालोक. (वाग्वाल्लभ) भ,ममत,न,स,ग,ग. १,२९,०३१
तुं रच भेकालोके भामामा तानसगग पद लावीने
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१२३३ सुवंशाः "
३० कृति छंद.
त, भ,ज,न, त, त, ग, ग. १,५१,४१३
१२३२ विष्वग्वितान. विष्वग्वितान रचजो पद त भजा ना त ता गा ग आणी.
(वागवल्लभ)
१२३४ भूरिशोभा.
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म, र, भन, त, त, ग, म. १९,५१, ४४१ माराभानातता गाग कवि रसिया ! आण सुवंश वृत्ते. १ वृत्तरत्नाकरवी नारायणभट्टी टीका अने शब्दकल्पद्रुम.
वर्णमेळ.
१२३७ भारावतार,
ममन, न, त, ख, ग, ग. १,५९,४८९ चक्रे साते साते, ममननत त गा, गा थकी भूरिशोभा. वाग्वल्लभ्रमां६,५,७ यति कही छे.
१२३५ शोभा. ६, ७,७ यति य,मन,न, त, त, ग, ग. १,११,४९० छए साते साते, यमन न त त गा, गा थकी थाय शोभा. १ प्राकृतपिंगळसूत्र, तथा वाग्वल्लभ प्रमाणे यति छे. वर्ण २३. मां अंक १३११ मे आ नामनुं वृत्त पण ले.
१२३६ संलक्ष्यलीला.
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१२३८ वीसवमान.
न रन रानता ग ग थकी बने चरण संलक्ष्यलीला.
वाग्वल्लभ.
३२३९ मत्तेभविक्रीडित.
नर, न, र, न, त, ग, ग. १,६१,२४.०
हारावतार'. पदविषे आण न ता ज न न त त गग भारावतारे.
१ वाग्वल्लभ.
च, त, ज,न,म, तप, ग. १,६३,६८८
भ, भ, म, भ, भ, भ. ग.ग. २,२४,६९६
वीरवमान विषे र भाभभभव भ भगा गुरु आणी.
वाग्वल्लभ्र.
स, भ,र,न,म, य, ल, ग. २,९८, ६७६
43
जख छे छेद सभारनामय लगा, मत्तेभविक्रीडिते.
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३८२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
___ मत्तमातेलो+इभ-हाथी+विक्रीडित तेनी क्रीडा-मातेला हाथीनी क्रीडा पेठे बोलाय माटे.
छंदोमंजरीना टिप्पणमां तथा शब्दकल्पद्रुममां आ वृत्तमा १३,७ यति कही छे. १२४० अक्थ्योपचार. य,य,य,य,य,य,ल,ग. २,९९,५९४.
अवन्थ्योपचारे य या या य या या ल गा आणजो पादमा. १२४१ पंचचामर, नरायी.ज,र,ज,र,ज,र,ल,ग. ३, ४९,५२६. जरा जरा जरा लगा थी पंचचामरे नराय थायछे.
१ मागघी छंदःशतकमा ए नाम छे. १२४२ उत्पलमालिका. भ,र,न,भ,भ,र,ल,ग. ३,५५,७९९
उत्पलमालिका भर न, भूभ र ला ग थकी नवे शिवे.
- १ मंदारमरंदचम्पूमा ९,११ यति छे. १२४३. गीतिका, मुनिशेखर२, )
शेखर, गीता, शर्वरी३, स,ज,जु,भ,र,स,ल,ग. गीतक.
३,७२,०७६ मुनिशेखरे रच गीतिका सज जे भ रे स ल गे करी. १ छंदोमंजरी, वाणीभूषण, प्राकृतपिंगळसूत्र, शब्दकल्पद्रुम, वाग्वल्लभ अने छंदःप्रभाकरमा गीतिकामां यति कही नथी. २ पिंगळादर्शमां आ वृत्तनुं गीतिका अने मुनिशेखर नाम आपी तेमां १०,१० यति कही छे, पण तेनुं बीजुं प्रमाण जडतुं नथी, बो लतां यति वपराय छे खरी. ३ ए नाम भगवत्पिंगळमां छे, तेमां यति कही नथी, पण उदाहरणमां केटलांक पदोमां १०,१० यति पाळी छे. ४ मागधी पिंगळछंदोग्रंथ. आ वृत्त हरिगीत जातिने रागे
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२० कृति छद.
वर्णमेळ.
गवायछे. तेम वळी छंदोवृत्तमुक्तावलिमा उपरना मापवाळा वृत्तने हरिगीत नाम आप्युं छे, पण तेमा यति कही नथी. १२४४ शशिधर.९,११यति'. भ,भ,र,स,स,स,ल,ग. ३,७४,४५५ अंक शिवे यति भा भ रा स स सा ल ग थाय शशिधरे.
१ पिंगळादर्शमा ए यति कही छे. १२४५ मालव'. र,ज,र,ज,र,ज,ल,ग. ४,३६,९०७ राजराजराजलाग थी रचो तमेज छंद मालव तो.
१ मंदारमरंदचम्पू प्रणाणे. १२४६ मुंवदना', । म,र,भ,न,य,भ,ल,ग. ४,६६,८३३
सर्ववदना२. ) ७,७,६ यति. साते अश्वे छये छे, मर भ न य भला, गा थी सुवदना.
१ प्राकृतपिंगळसूत्र अने वागवल्लभमां ए नाम अने यति छ. मंदारमरंदचम्पूमां पण एज यति छे. २ छंदोर्णवमां सर्ववदना नाम आपीने एज यति कही छे. १२४७ मदकलनी. न,ज,न, भ,स,न,ल,ग. ५,०७,३७६
नजनभसा, न लग थकी, कर कवि! तुं, मदकलनी.
मंदारमरंदचम्पूमां “ शरांगवाणांगैः " ( शर-५ अंग=५, जेम पंचांग. बाण=५ अने अंग-५ एम ) यति कही छे, अने तेनुं उदाहरण इतरवृत्तमां आप्युं छे, एटले तेनी यति विपे स्पष्ट लेख जड्यो नथी. बीजा ग्रंथोमां ए नाम नथी. १२४८ सौरभशोभासार.(वा.व.) भ,म,त,न,स,न,ल,ग.५०७६५६
सौरभशोभासारे आण भ मत न सना ल ग पदमा. १२४९ कनकलता. न,न,न,न,न,न,ल,ग. ५,२४,२८८
ननननन न लघु गुरु धर चरण कनकलता..
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रंगपिंगळ.
समत.
wwwwwww....
६,९९,०५१
१२५० गंडकार, गंडकी,
मंडिका, गांजका, रज,र, ज,र,नं,ग,ल. इद्रश३, मादश दंडिका', वृत्त५, चित्रहत्तरल्यका". राजरा जराज गौल गंडका चं गंडकी विर्षे कराय.
१ गंडको नाम प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोमंजरी, अने वाणीभूषणमां छे, पण त्रणे ग्रंथोमा यति कहीं नथीं. २ ए नाम भगवपिंगळमां छे, तेमां यति. कही नथी. ३ ए. बंने नामो वागवल्लभमां छे, पण तेभा यति नथी. ४ भाषा छंदोमंजरी. ६ छंदःशास्त्र अने छंदोमंजरी प्रमाणे वृत्त नाम छे, तेमां पादांते यति कही छे; शब्दकल्पद्रुममां ए. नाम छे, पण तेमां यति नथी. ६ छंदोमंजरीमां गंडकातुं ए. नाम छे, पण तेमां यति कहीं नीं. ७ गणप्रस्तार प्रकाशमां ए नाम अने १२, ८ यति छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीनी लिखित प्रतिमां आ मापर्नु मंडक वृत्त लख्युं छे, ते नकुंज नाम होय के गंडक ने बदलें लिखित दोष पण होय. १२५१ मधुकर, महूअर'. न,य,न,य,भाभ,ग,ले. ७,४६,४४९: मधुकरमाहे न य नय भाभा गाल कराय सदाय.
१ मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा ए नाम छे. १२५२ मनोभव.६,६,८यति. स,स,स,स,स,स,ल,ल. ८,९८,७८०
रस चक्र दिशा, यति सास ससा,स सलाल मनोभव. पिंगळादर्शमां ६,६,६: यति कही छे, पण तेम करतांबे वर्ण खूटेछे एटले अमे आठे मूकी छे.
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२१ प्रकृति छंद.
वर्णमेळ.
३८५
२१प्रकृतिछंद.२०,९७,१५२भेदछे.२१वर्ण. १२५३ अशोकलोक,अशोक-)
लोकालोक. ४ म+तर+म. ८१,९२१ चारे मा छे तारा छे मा अन्ते आणो वृत्ते अशोकलोके खोळी. १२५४ मन्दाक्षमन्दर'.१०,११ यति.२न+२म+ज,र,म.८६,०८० द्वि न द्विम पर छे जा रामा, मन्दाक्षमन्दरे पदे आवेछे.
१ वागवल्लभमां आ यति तथा नाम छे. १२५५ तल्पकतल्लज. ५भ+जम. १,९१,९२७ तल्पकतल्ज पांच भ ते पर आण ज म तुं बधे पादे.
गीतिने रागे गवायछे अने एमां तेनुं वधुं माप सचवायु छ जुवा पृष्ठ १११ अंक ७१. १२५६ अहि. (छंदःप्रभाकर.) भ+म. २,२४,६९६ भाछ करी धर मा चरमे चरणे अहि वृत्त विषे शोधी.
गीतिने रागे गवायछे. १२५७ विद्युदाली. (वा. व.) ७य. २,९९,५९४
रचा विद्युदाली तमे सात या पाद आणी करी शोभता जे. १२५८ स्रग्धरा, रूपकमाला', ) मर+भन+३य.
रूपामाला२, रुवामाला३, ३,०२,९९३ सधरा.
) ७,७,७ यति. मारापूठे भ ना छे, त्रण य हय हये, छेद छे स्रग्धरामां..
१ प्राकृतपिंगळसूत्र तथा मंदारमरंदचम्पूमां ए नाम तथा यति छे. २ मागधी छंदःशतक. ३ मागधीपिंगळछंदोग्रंथ.
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૮૬
रणपिंगळ.
समवृतः
४ गणप्रस्तार प्रकाश. राग हरिश्चंद्रिका, ताल चतुश्र पंचक, मात्रा ३३, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी. )
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१२५९ सारीसुन्दरी. १ २स+भसं+त+जयं. ४,४४,३१६. द्विसछे भस छे ता पर ज य सारीसुन्दरौना पदमांहे.
१२६१ नरेन्द्र', समुच्चय २.
१ त्रेवीश अक्षरमां अंक १३२३मे “सुंदरी " वृत्त छे, अने ते केटलांक पिंगळोमां छे, छतां २९ अक्षरमां पण तेज नाम छे, माटे फेर रेहेवा सारी विशेषण मूकी सारीसुंदरी नाम राख्युं छे. १२६० शुभता. ७,७, ७यति १. मर+ भन + जजय.
४,५०,४४९
७ เร่
मारा पूढे भ ना छे, हय हय यति छे, जंज या शुभतामां
१. पिंगळादर्शमां ए यति कही छे.
{
भर + २न + २जं+य. ।
}
१४, ७ यति.
- ४,१०,११९
भार नरेन्द्रमां द्विन द्विज पर य छे, यति चौद हये छे.
१ वाणीभूषण, प्राकृतपिंगळसूत्र, अने छंदोवृत्तमुक्तावलीमाँ ए नाम छे, पण यति कही नथी. पिंगळादर्शमां नरिन्द्र नाम आपी तेमां १४,७ यति कही छे. २ भाषा छंदोमंजरीमा यति वगरन ऐज मापना वृत्तने समुच्चय नाम आप्युं छे.
मर+भन+यरर.
१२६२ दुरावलोक.
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०५
१४,७ यति.
ક ७
मारा छे भान छे यारर मनु हय वे, दूरावलोके यति. १ वाग्वल्लभमां ए यति छे.
१२६३ शरकांडप्रकांड. सरन+४र. ९,९९,५०८ शरकांडप्रकांड सरना पछी चार छे रा गणो पादमां. १२६४ कलमतल्लिका. (वा व . )
३नर+र. ६,१९,९९९
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२१ प्रकृति छंद.
वर्णमैळ.
कलमतल्लिका त्रण न रापछी र गण छेवटे थायछे. १२६५ चम्पकमालिका', चम्पकावली.
नत सछे ने जत्रण छे र छेवट चम्पकमालिका पदे.
१२६६ शशिवदना, सरसी १,
पंचकावली, सिंहक ३ सलिलनिधि, सिद्धक५, सिद्धिका ६, सिद्धि,
धृतश्री.
૩૭.
नतस + ३ज + र ७,११,४००
१ वाग्वल्लभमां आ बने नाम आपी तेनुं माप नजभजजजर आप्युं छे अने ते ७,११,४०० मुं रूप छे एम जणाव्युं छे, पण एवा गणवाळु रूप ७, ११, ६०० मुं थाय अने ते तो अंक १२६६ मे जूनुं आपवामां आव्युं छे एटले आ वृत्तमां गण लखवानी वागवल्लभमां भूल थइ गइ छे.
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बज़भ+३ज+र.
७,११,६ ० ०
शशिवदना नजाभ पर जात्रण ते पर रा पदे करो.
१ - २ एबे नाम वाग्वल्लभमां छे, छंदोमंजरी, अने छंदःप्रभाकरमां पण सरसी नाम आपी यति कही नथी. छंदोर्णव सरसीमा एकादश (११) वर्णे यति केहे छे. २ - ४ सरसीने कोइ एवां नाम आपेछे, एम शब्दकल्पद्रुममां छे. पण तेमां यति कही नथी. ४ वृत्तरत्नाकरमां के छे के, आज कोई सिद्धक केहे छे. ५ प्राकृत पिंगळसूत्रनी टीकामां सिद्धक नाम छे, पण तेमां यति नथी. ६ छंदोबोधमां कह्युं छे के कोइ एने सिद्धिका केहे छे. १२६७ कनकमालिका. (वा. व . ) ३रन+र.
७,६९,६२७
थायछे कनकमालिका ऋण र ना पछी र धरवा थकी. १२६८ सुरनर्त्तकी'. ६,६,६, ३यति. ३ रन + २. ७,६५,६२७
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३८८.
रणपिंगळ.
समवृत्त.
करान पर,रा थको रस छ, शास्त्र छेद सुर, नर्तकी
मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे. २२६९ प्रतिमा.
स. ८,९८,७८० रचनो प्रतिमा कवि! सात स सर्व मळी पदमांह करी. १२७० कलमशिखा. न य म+भ+३ स. ९,००,११२
कलमशिखा ना या मा आणी, भ पर तमे त्रण सा करजो.
अमारा आभप्राय प्रमाणे १०, ११ यति आवेछे. १२७१ ललितललाम. न+२ ज+३ त+स ९,३६,३०४
ललितललाम न थाय बे जा पछी लोक ताछे स चरमे. १२७२ धर्म. भस+न ज+न भस. १०,१४,७५१
भा स पर न जा धर न भ सा कवि! रच धर्म चरणमां. १२७३ तडिदम्बर, मदिरा'. ७ भ. १७,९७,५५९
तुं तडिदम्बरमां रच भा गण सात बधा पदमां कवि! १ छंदोर्णवमा केहेछे के, साधारण रीते आवां वृत्त सवैयानी संज्ञाथी ओळखायछे. ते नीचे प्रमाणे:क्रम. अंक. नाम.
माप. वर्ण. ११२७३ तडिदम्बर, मदिरा.
७ भ. २१ मदिरा, मदरा, मालिनी.
७ भ+ग. =२२ मत्तगजेंद्र मत्तगयंद, इन्द्रविजय, ) ३. १३११२ इन्दव, मधुमालतिका, शोभा, मदिरा, भ+ग,ग.२३
सवैया. ४ १३२५, मालेका, मानिनी, सुमुसी, कुंदसवैया,) ०१३। सवैया.
७ज+ल,ग.-२३ ५ १३३४ चकोर, चित्तपदा, ललिता, संवैया. भ+ग,ल.=२३ ६ १३३५ मंजुल. १२,११ यति. . भ+ग,ल.-२३
.: महाभुजंगप्रयात,भुजङ्ग, सुधाप, महा- ५. १३३९ । भुजंगदेव, महानाग, सवैया.
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ज+य.
-२४
१५ १३६४ , करिटी.
२२ आकृति छंद. वर्णमेळ. ८१३४१, माधविका, कोक, माधवी. मकरंद
२१ वाम, बाम, वामा, मंजरी, सवैया. " ( गंगोदक, वैकुंठधामा,जानकी, खंजना,..
८ रगण । गंगाधर, लक्ष्मी, लच्छी, सवैया. "
=२४ १० १३५५ अरसात, मकरंद, अलसा. ७ भ+र २४
दुमिला, मदिरा, द्विमिला, दुर्मिल, चंद्र-) ११ १३५७२ कला, दोमलया, मुकुन्द, रूपमकरंद, ८ सगण =२४
घोटक, सवैया.
दुर्लतिका, माधवी; दुर्मिला, दुर्मिलका, १ ८ सगण =२४ १२ १२१८। दुमेला.
८,६,१० यति. १३ १३६२ आभार, सवैया.
तगण =२४ सुखदा, विष्णु, सुरेश्वर, कोकी, मुक्ता-१ ८जगण =२४ २१ हरा, मुक्तहरा, माधवी, सदया. १२,१२ यति. ... मेदुरदन्त, किरीट, किरत, माधावका, ८भगण =२४
१२,१२ यति. मुदिर, मल्लि, सुमिला, कमला, माधवी, १६ १३६९२ अमला, चंद्रकला, सुछंद, सुंदरी,सुखदा,
सुखदानि, सवैया.
वशंवद, लीला, मागधी, कुन्दलता,) - १७ १४२३१ सुख, सामन, सावन, अंबुज, किशोर, ११.४ यति.
८स+२ल. =२६ सालती, संवया. २२आकृतिछंद.४१,९४,३०४भेद छे.२२वर्ण. १२७४ वासकलीला. भ,म,स+त,य+भ,म+ग. २,०२,९५१
चासकलीला मा म स छे ताया उपर भा मा पर छे गा अन्ते.. १२७५ दंडिका'. य,य,य,य,य,य,य,ग. २,९९,५९४.
रचो दंडिका सात या आणिने ने पछीथी गुरु एक अंते छे.
१ चित्रसेन टीकावाळा मागधी पिंगळमां आ वृत्त छे, तेना तेणे नीचे प्रमाणे सात भेद पाडया छे पण ते भेद दंडकना थायछे:----
अंक. संस्कृत नाम. प्राकृत नाम. माप. वर्ण. • १ ४२५ उद्दर्प, उद्दप्पो. २न+र-२५
८समण
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१४२६ विद्याधर, विजाहर. ३न+६र=२७ १४२७ सज्जन, साजण. ४न+५र२७ १४२८ दुःखाकर, दुखाकरो. ५न+४र=२७' १४२९ विरतिकल्प, विरयकप्पो. ६न+३र-२७ १.४.३० मतिकर, मकर. ७न+२र=२७.
१४३१ शुभंकर, सुहंकर. (न+ र=२७ १२७६ द्रुतमुख.
४ न+मर+यग. ३,३१,७७६ द्रुतमुख चरण चरण कर चारे, ना छे मरा पछी या गाः
अमारा अभिप्राय प्रमाणे १४, ८ यति आवेछे.
_१ मत,त,म,म,र,र,ग.। १२७७ भीमाभोग'. मान) ४,७,४,७, यति.
। ५,९०,११३. चारे साते, चार साते विरामे, भीमाभोगे, मात तामा मरार्गे.
१ शालिनीथी बमणो. आ वृत्त वाग्वल्लभमां छे १२७८ वीरनीराजना. ४+३र+ग. ५,९८,६०२ करो चार या लाक रा अन्तमां गा वीरनीराजना वृत्त मांहे. १२७९ कङ्कणक्वाणवाणी. म+र+ग. ५,९९,१८५ मा आणीने छ रा ने ग आणी रचो युक्तिथी कंकणक्वाणवाणी. १२८० सर्वगामी.)
र+ग. ५,९९,१८७ केकनी.
१२, १०, यति.. सर्वगामी विषे छेद. सूर्ये दशे, स गणो सात अन्तै ग आणो.
पिंगळादर्शमा १२,१० यति कही छे. केकनी गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. वळी सर्वगामी नामर्नु वृत्त २३ अक्षरमा अंक १३०९ मे छे. १२८१. कंकणक्वाण.
७र+ग. ५,९९,१८७ कंकणक्वाणमां आणवा रा. गणो सात अन्ते ग पादे बधे तो.
0
.
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२२ आकृति छंद.
वर्ण मेळ.
सर्वगामी अथवा केकनी करतां फेर एटलाज के, आमां पाळवानी नथी. आ बन्ने वृत्त, झूलणा जाति जे पृ. ६ ४ मे अंक १५० मे छेतेने अने प्रभातियाने रागे गवांयछे.
३९१.
१२८२ महास्रग्धरा. ८, ७, ७यति. स, ज, त, न, स, र, र, ग. ६,०५,९९६ वसु सात छेद साजा, तन सरर गथी, छे महास्रग्धरा तो. वृत्तरत्नाकरना टिप्पणमां आ वृत्त अने यति छे.
१२८३ मोदः५भ+मस+ग. ८, १४, ११९ पांच भ थी मस थोग थकी रक्त मोद रुडेरुं वृत्त भला ! तुं. जुओ टीप अंक १३०४. १२८४. अर्भकमाला.. भतनत+नम + सँग. ८,१७,६३९ अर्भकमाला भतनत आणों न म पर सा गा पाद धरीने.. १२८५ भवानिस्तरण- मसभ+नजर + सग. ८,७६,४४१ भवानस्तरणे मासभ पर न जरा पछी सगा पद मांहे. १२८६ हरितकी. १४, ८ यति. ७स+ग. ८,९८,७८० सनु आठ विराम हरितको मांह स, सात पछी ग करेछे.. हकोछंद मागधी छंदः शतकमां एज मापथी छे, पण ८, १६ प्रास लाववा केहे छे..
૧૪
१२८७ अंयमान.
७स+ग. ८,९८,७८० गण सात स आण पदे अयमान तणे चरमे ग करीने..
१२८८ हंसी ', रजत हंसी २, हंस, साहसी ३.
८, १४ यति. मम+तन+नन+सग. १०.४८, ३२१ आठ चौदे छेदो मामा, तन पर न नं घर. स.ग कर हंसी. १ छंदोमंजरीमां ८, १४ यति कही छे. वाणीभूषणमां ८, ६, ८ विराम छे. २ हंसी अने रजतहंसी ए नाम वाग्वल्लभमां पी तेमां ८.१४ यति कही छे. ३ पिंगळाचार्यकृत छंदः शास्त्रम
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३९२
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रणपिंगळ.
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समवृत्त.
८
१४
हंसीनुं "साहंसी" नाम आप्युं छे अने तेना टिप्पणमां वसु भुवन
यतिः एम कह्युं छे.
.
१२८९ मंदारमाला. ४, ६, १२यति १ ७त्+ग. ११,९८,३७२ चारे छए, बारथी ता गणो, सात अन्तेग मंदारमाला विषे. १ वृत्तदर्पणमां ४, ६, ६, ६ यति केळे पण ते प्रमाणे यति रूरातां मंदारमाला ए नाम कोइ प्रकारे वृत्तमां बंध बेसतुं आवी शकतुं नथी, तेमज एवी चार यति करवानुं सबल कारण जणातुं नथी; माटे अमे ४,६,१२ यति राखी छे. पण छंदः प्रभाकरमां तथा संगीतानुसार छंदोमंजरीमा यति कही नथी. तेथी यतिनो नियम नहि पळाय तोपण अयोग्य नथी. राग रविचंद्रिका, ताल सत्यप्सेना, मात्रा ३७, मध्यकाळ. (संगीतानुसार छंदोमंजरी . ) १२९० भोगावली.
तभर + सनन + जग. १५,७०,४८५ भोगावली रच ताभरा पर सानन प्रति पद जगा धरी. १२९१ स्वर्णाभर्ण. ४स+नय+भग. १६, ३६,०६० पचास छेन आण पछी भाग घर स्वर्णीभर्ण विषे. १२९२ निष्कलकण्ठी. भ, म, स, त, य, स, भ,ग १६, ३७,१११ पंदर सा छेद थी निष्कलकण्ठी, भ म सा त्या सभगे. १५, ७ यति वाग्वलभ प्रमाणे.
७थ+ग.
१२९३ सबैमा', मानिनी', ललितारे, दिवा, मालिनी, सुंदर. १७,९७,५१९ सात भ ने गुरुवीज दिवा वळ मालिनी मानिनों ने ललिता. १ छंदोवृत्तमुक्तावलिमां संत्रेवा नाम आपी तेमां यति कहीं नथी. २ वाग्वल्लभमां मदिरा अने मानिनी नाम आपी तेमां यति कही नथी.
३. छंदोलतामां ललिता नाम आपी तेमां यति कही नथी. वळी
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२२ आकृति छंद.
वर्ण मेळ.
विशेष जणावेछे के, तेने केटलाक मदिरा पण केहे छे.
४ दिवा नाम छंदः प्रभाकरमां छे तेणे यति कही नथी अने आ साज उमा, मालिनी, मदिरा अने सवैया एकज गण्या छे. तेणे सात भगणने वे गुरुनो बीजो सवैयो, आठ नगणनो त्रीजो अने आठ सगणनो चोथो सवैयो को छे.
५ छंदः पारमां मालिनी नाम छे. ६ छंदरत्नावली.
१२९४ मंदिरा', मदरा.
३.९३..
E
७भ+ग. १७,९७,१५९ १२,१० यति. बार दशे यति छे मदिरा हय, भा गण अन्त ग तो धरवे. १. वृत्तरत्नाकरमां मदिरा नाम आपी तेमां यति कही नथी. वाग्वल्लभमां मंदिरा ने मालिनी नाम आपी तेमां यति कही नथी. प्राकृत पिंगळसूत्रमां तथा शब्दकल्पद्रुममां मदिरा नाम आपी तेमां यति कही नथी. पिंगळादर्शमां १२, १० यति कही छे. मंदारमरंदपूमां मदिरा नाम आपी तेमां यति कही नथी. गणप्रस्तारप्रकाशमां मदरा नाम छे, मदिरा नामनुं वृत्त २३ वर्णमां अंक. १३११ मे छे. तेनुं बीजुं नाम शोभा अथवा इन्द्रविजय पण छे. १२९५ उमा. ६, ६, ६, ४यति. ७भ+ग. १७,९७,५५९
૬
राग छए षड, चार उमा यति, भा गण सात ग, अन्त रचो. वृत्तदर्पणमां उमा नाम आपी आ माप अने आ यति के छे. संगीतानुसार छंदोमंजरीमां उमा अथवा मदिरानुं एकज नाम आपी मां यति कही नथी. तेनो राग सिंधुरा, ताल दिव्यमणि, मात्रा ३०, विलंबकाळ छे.
१२९६ भुजंगोद्भुत.
तभ+रर+सर + नग. १९,१४,०३७. ता भा पछी र र छे भुजंगोद्धते स र छे ने न गा चरणमा
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१२९७ सितस्तबक,
परिस्तबक. तभयम+सरनग. १९,१५,६०९ आवे सितस्तबक वृत्ते त भा य ज पछी सा र ना ग पदमां.
आ बंने नाम वागवल्लभमां छे. आज गणोवाळु अश्वधाटि वृत्त छे, परं. तु तेमां कंइ बंधन विशेष होवाथी अमे आ नीचे तेने जूदुं पाडयुं छे. १२९८ अश्वधाटि. त,भ,य,ज,स,र,न,ग, १९,१५,५०९ ताभा य जासन गछे भाइ! वृत्त कविता अश्वधाटी रचवा.
अश्व एटले घोडो, ने धाटी एटले रूढी- चाल, घोडाने चालवानी रूढी. घोहो चालतां एक डावलामा पछवाडेना पगनो डाबलो मूकेछे, एवो आधार गणीने अश्वधाटी वृत्त रचवामा प्रत्येक पादमां बीजो, नवमो, अने सोळमो अक्षर जे गुरु होयछे ते तेनो तेम आववो जोइये. एज प्रमाणे अमारी रचनामां बीजो भा छे, नवमो भा छे, ने सोळमो भा आणवो जोइये पण ते आवी शके एम नथी. अश्वनो अ दीर्घ छे तेथी आ गणवो. आ प्रमाणेज अश्वधाटी काव्य २६ वृत्तनुं जगन्नाथ पंडिते रच्युं छे. जुओ सुभाषितरत्नाकर पृष्ट ३१६ थी ३३० मे. . १२९९ मत्तेभ. ७,७,८ पति. तभय+जसर+नग. १९,१५,६०९ मत्तेभ सात हय, आठे त भा य पर, जा सा र ने न ग करो,
___ आ वृत्त मंदारमरंदचंपूमां छे. १३०० अमृतध्वनि.ति,भ,य,ज,स,र,न,ग.)
। १९,१५,६०९ । ४,७,७,४ यति. ' ता भा य जा, स र न गा चार ने, हय हये अमृतध्वनि बने. १३०१ भद्रक', भद्रिकर, प्रभद्रकरे, भद्रिका.
१०,१२ यति. भ+३रन+ग. १९,३०,७११ भद्रकमां भ ले त्रण र ना, ग अन्त दश बारथी यति करो,
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१२ आकृति छंद.
वर्णमेळ.
१ वृत्तरत्नाकर, छंदःशास्त्र; छंदोलता अने पिंगळादर्शमां भद्रक माम आपी १०,१२ यति कही छे छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी.
२ भद्रिक, भद्रक ए बे नामो वागवल्लभमां आपी १०, १२ यति कही छे, पण तेमां चोथो गण र ने बदले स गण्यो छे, ए हिसाबे ते १९,३१,२२३ मी वृत्ति थोय, तेने बंदले १६,३०,६५१ मी लेखी छे माटे एना मापमां पणं भूल जणायछे कारण के १९,३०,६५१ नी वृत्ति प्रमाणे तेनुं रूप र स भ र न र न ग एवं थायछे.
३ मंदारमरंदचंपू. ४ भाषाछंदोमंजरी. १३०२ लालित्यः मसर+सत+जन+ग. २०,१६,९२११
लालित्ये म स रा छे स ता पर जाना ते पर गा कर चरमे. १३०३ अचलविरति. (वाग्वलभ) ७न+ग. २०,९७,१५२
हंय न गणपरं ग धर कविवर! तु अचलविरतिमां. १३०४ मोदक, १ मोद. (ग.प्र.प्र.) मोरोस
भ+म+स+ल.
। २९,११,६७१ मोदकमांह भ पांच पछी म स ने लघु लावो एक सदाय. मोद नामनुं वृत्त अंक १२८३ मे उपरना गणो साथे अंत्ये लघुने बदले गुरुवाळू पण छे: १ भाषा छंदोमंजरीमा मोद सवैया एवं नाम छे. १३०५ हाटक. ७ सं+ल: २९,९६,९३२
झट हाटकमां हय सा कर ला चरमे करजे कविराय! चित्रसननी टीकावाला नागपिंगळमां हाटक नाम छे. मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा हाटका नाम छे तेमां लखेछे के:यस्यां प्रथमं गुरु द्वयं सा हाटकी अजया. यस्यां प्रथम हस्त गण: सा विजया. यस्यां प्रथम चरण गणः सा. मंगला.
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रणपिंगळ.
समवृत,
यस्यां प्रथमं विप्रगण: सा रसमंगला.
• शेषे पूर्वोक्ता एव.
एनो अर्थ नीचे प्रमाणे:१ अजपा तेमां पेहेले कर्ण(ss) गण बाकी उपर प्रमाणे. २ विजया तेमां पेहेल (हस्त) सगण बाकी उपर प्रमाणे. ३ मंगला तेमां पेहेले (चरण) भगण बाकी उपर प्रमाणे. ४ रसमंगला तेमां पेहेले विप्र गण (1) बाकी उपर प्रमाणे.
जो प्रतिपदनी २९ मात्रा कायम राखिये अने सूचव्या प्रमाणे प्रारंभमां वधारो घटाडो करिये तो नीचे प्रमाणे रूप थायछे:अजया- २ ग+६ स+ल=२१ वर्ण तेनी मात्रा २९. रूप १४,९७,९६५मुं. विजया-एक सगण वधारीने तेने बदले एक सगण घटाडतां ७स+ल-हाटका मंगला- भ+६स+ल-२२ वर्ण=२९ मात्रा. रूप २९,९५,९३५ मुं. रसमंगला- न+ल+इस+ल=२३ वर्ण, २९ मात्रा. रूप ५९,९१,८७२ मुं.
जो उपर प्रमाणे कारये छिये तो अजयामा एक वर्ण घटेछे. विजयानु रूप तो मूळ हाटका प्रमाणेज थइ जायछे. मंगलामा मात्र २२ वर्ण कायम रहेछे; रसमंगलामा २३ वर्ण थइ जायछे, पण सर्वेमा मात्रा तो २९ कायम रहेछे.
हवे जो “शेषे पूर्वोक्ता एव” एटले बाकीपूर्वे कह्या प्रमाणे,"तेनो अर्थ एवो करिये के, हाटकानु रूप जे ७स +ल छे ते कायम राखीने प्रत्येक भेदना प्रारंभमां सूचव्या प्रमाणे उमेरो करिये तो नीचे प्रमाणे रूप थायः---- अजया- २ ग+७स+ल=२४ वर्ण. १,१९,८३,७२५. मुं रूप. विजया- स+७स+ल=२५ वर्ण. अंक. १३८९ मे अरविंदमुखी छे. मंगला- भ+७स+ल=२५ वर्ण. २,३९,६७,४५५ मुं रूप. रसमंगला- ४ ल+७स+ल=२६ वर्ण. ४,७९,३४,९१२ मुं रूप. . - आ रीते, "शेषे पूर्वोक्ता एव" एवा लखाण उपरथी बने प्रकारे रचना थइ शकेछ.
१३०६ वनवासिनी
सज+जभ+रन+सल.). । १०,१२ यति. ३१,२४,१८८
'बनवासिनी सज छे जभा, रन छे स ला विरति दश सूर्य.
वागवल्लभ प्रमाणे.
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२३ विकृति छंद.
वर्ण मेळ.
३९७
२३ विकृतिछंद. ८३,८८,६०८भेद. २३ वर्ण.
१३०७ इच्छा.
७ म +२ग. १
वीशे वाजी वर्णो आवेछे माताजीने नामे इच्छा वृत्ते तो सारा. अमारां माताजीना नामनुं नवं वृत्त छे.
१३०८ परिधानीय नन+भत+जय+स+गंग. ८,४२,१७६ नन पर भत छे जय पूठे स पछी घर गागा परिधानीये. १३०९ सर्वगामी. ७त+२ग. ता सात आणी धरो गाग अन्ते बने एम तो वृत्त आ सर्वगामी. गणप्रस्तार प्रकाश प्रमाणे. सर्वगामी वृत्त, वर्ण २२ मां अंक १२८० मे छे तेथी आ माप भिन्न छे.
११,९८,३७३
१३१० विलासवास, ) सुभाग, विलास. ।
यस+भभ+सज+भगग. १७,५२,४७२ भास पर भभा छे सज ते पर भगगां विलासवास- सुभागे. आ नाम वाग्वल्लभमां छे.
'१३११ मत्तगजेन्द्र', मत्तगयंदर, मालतीर, इन्द्रविजय, इन्दवरे, मधुमालतिका, शोभा', सवैया ६.
१२, ११ यति.
७भ+२ग. १७,९७,१५९
૧ ૧
७
बार शिवे यति भा हय अन्त ग, -बे पर मत्तगजेन्द्र-सवैया.
१ वाग्वलभमां आ नाम छे, अने तेणे यति कही नथी.
२ मत्तगयंदमां सात भगण +२ गुरु आवेछे, अने तेनेज मालती केहेछे, एम छंदः प्रभाकरमां कयुं छे. ३ छंदरनावली तथा गणप्रस्तारप्रकाशमां इन्दव नाम छे तेमां यति कही नथी. ४ वृत्तदीपिकामां आ नाम छे, तेमां यति कही नथी. ५ शोभा अने इंद्रविजय नाम पिंगळादर्शमां आपी तेमां १२, ११ यति कही छे अने ते बोलतो ठीक पछे माटे अमे स्वीकारी छे. हाथीनो कान फरेछे ते प्रमाणे गावानी ढब
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रंणापगळं.
समत
छ. वीश अक्षरमा शोभा नाम छे जुओ अंक १२३५मे.
सवैयामां लखपतजशसिंधुप्रमाणे १६,१५ यतिथी ३१ मात्रा-२३ वर्ण समां अंते ल अथवा ग. वळी मुनिनायकनुं मत पण ए छे के बे गुरु अथवा ल ग अवि. मंदिरा; शोभा, अथवा इन्द्रविजे ए: नाम संगीतानुसार छंदोमंजरीमा छे, पण तेमां तेणे यति कही नथी. वळी मदिरा नाम २२ वर्णमा (भ+ग) आव्युं छे, एटले अहिं प्राह्य नथी. राग खमाच, ताल चतुश्रजाति तेताल, मात्रा १६, मध्यकाळ. १३१२ मन्धरायन, मन्थर. नर+२ न+म+गग. १७,९८, १०४ न र पछी नबे त्रण भ चरण छे चरमे ग ग मंथर मांहे.
आ बने नाम वागवल्लभमा छे. १३१३ मदिरा',सवाइ२. ६,६,६,५ यति. १८,१३,९४३
११२ भादस सवा ४भ+रन+म+रंगें. चार भ ने रन, दे भ पछी द्विग, छे सवाइ छ छ, छो मदिरामां.
१ मराठी वृत्तदर्पणमा आ नाम तथा यति आप्यो छे. पण जुओं वर्ण २२मा अंक १२७३मे मदिरा नाम छे. - २ संगीतानुसार छंदोमंजरीमा मदिरा किंवा सवाइ नाम आपी तेमां आ गण लख्या छे, पण यति कही नथी. राग स्वरहरप्रिया, ताल चतुश्र जाति तेताला; मात्रा १६, मध्यकाळ १३१४ पुलकाञ्चित. भस+नय+२न+म+२ग. १८,३१,९०३
भास पर नया धर द्वि न छे भा पर द्वि ग पुलकांचित पादे. १३१५ इन्द्रविमान. भत+नम+भ+२ न+२ ग. २०,८९,४४७ इन्द्रविमाने भत पर नामा छे भा पर द्वि न द्वि ग पद अन्ते. १३१६ वर्णवाघेश्वरी', ७य+लग. २३,९६,७४६.
वागेश्वरी२. । १२, ११ यति. रचो वर्णवाघेश्वरी बार रुद्रे, धरी या गणो सात लागा पदे.
१ पिंगळादर्शमां बारनबाघेश्वरी(अशुद्ध)नाम जणावी तेमां १२,११
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२३ विकृति छंद.
वर्णमेळ.
यति कही छे. २ गणप्रस्तारप्रकाशमां वागेश्वरी नाम पण अशुद्ध छे. १३१७ विपुलायित. मन+जभ+नज+रलग. २८,१७,४०१ माना दे ज भ पर नाज आण र ल ग विपुलायिते बधे पदे. १३२४ कालिका', . ३रन+रलग. २८,६२,७७९ - कालका. । १२, ११ यति. बार रुद्र यति आण रान त्रण, ते पछी र लग कालिका पदे. १ पिंगळादर्शमां कालिका नाम आपी तेमां १२, ११ यति कही छे.
२ गणप्रस्तारप्रकाशमां आ नाम छे ते कालिकानो अपभ्रंश छे. १३१९ पारावारान्तस्थ', पारावारान्त३.
'१३म+सभ+सत+लग.३२,७०,१४६
HTHHTHI पारावारान्तस्थे छे मा तो त्रण साभा पर सत अन्ते लाग करो, १३२० रामावद्ध. म,भ,स,भ,त,न,त,ल,ग. ३३,९४,८०१
१०,४,९ यति. रामावद्ध रच म भ सा भा, तनताला, ग दश युगे खंड यति, १३२१ विलम्बललित, विल. ३जस+न+लग. ३५,२८,६४२ विलम्बललिते रचो त्रण जसा पछी ज पर लाग अन्त करो. १३२२ वसुरत्न', वसुरयण२. ५भ+तन+लग. ३६,६७,०३१
आ वसुरत्न विषे धर पांच भ ते पर ताजा पर लाग पदे. १ चित्रसेन टीकावाला नागपिंगळमां छे. २ मागधी पिंगळ्छंदोग्रंथमा छे. १३२३ सुंदरिका', सुंदरी२, २स+भस+त+२ज+लम.
सुंदरिया, सुंदर३. ) ३५,९९,०४४. घर बे स पछी भास कर त ने बे जा पर छे ल ग सुंदरिका.
, प्राकृत पिंगळसूत्र, वाणीभूषण, शब्दकल्पद्रुम एकेयमा यति कही नथी. छंदोलता अने छंदःकामदुधावत्समां ७,६,१० यति कही छे.
२ सुंदरीवृत्तमा ७,६,१० वर्णे यति पिंगळादर्शमां कही छे. पण प्राक
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४००
रणागले.
समवृत्त.
त पिंगळसूत्र, वाणीभूषण, छंदोमंजरी, छंदोर्णव तथा छंदःप्रभाकरमां यति कही नथी, पण बोलतां पळायचे. ३ सुंदर-गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. १३२४ डम्बलया. त+६ ज+लग. ३५,९५,०१७
ता उपर जा. छ करी लग छेवट पाद धरी रच डम्बलया. मागधी पिंगळछंदोग्रंथमा एनुं चरण ३२ मात्रानुं कही ते वृत्तना पिंडमां ३६ गुरु ५६ लघु अने ९२ वर्ण तथा १२८ सर्व मात्रा कही छे, ते आ मापने मळतुं छे.
आमां एक कर्ण (ऽऽ), गण उपर ६ सगण थायछे. १.३२५ मल्लिका', मानिनी२,)
सुमुखी३, सया, ना+लग, ३५,९५,११८ — कुंदसवैया. ) ज सात धरी लग अन्त करी मलिका-मुमुखी रच कुंद कवि! १ छंदःप्रभाकर, तेमा यति कही नथी. पिंगळादर्शमां मलिका नाम छे: .
२ छंदःप्रभाकर, छंदोर्णव, छंदसार एमां यति कही नथी. अंक ३२३ मे ८ वर्णनु मल्लिका नामनुं वृत्त जूदुं छेः ३ छंदोबोध, छंदःप्रभाकर,
४. छंदोर्णव. १३२६ विराजित,श्रवणाभरण२, सपाइ.३ / न+६ज लग.
। ३५,९५,१२० न गण पछी छ ज ने ल ग आण. विराजित ने श्रवणाभरणे.. १-२: वाग्वाल्लभ. ३ संगीतानुसार छंदोमंजरी, राग जारकुरंजी, ताल चंद्रकान्ता, मात्रा ३०, मध्यकाळ. रामकृष्ण कविकृत भगवती पद्य पुष्पांजली नाम स्तोत्र अने शंकराचार्य कृत यमुनाष्ठक आ वृत्तमा छे ते जूद जूदा रागमां गवाय छे. वृत्तपणमा ७, ६, ६, ४ यति केहेछे. ते प्रमाणे, यमुनाष्टकमां घणोखरो नियम सचवायो छे. १३२७ सुधालहरी. न+न+ल ग. ३५,९५,१२० न पर छ जा पर अन्त लगा, हर शास्त्र छये, ज सुधालहरी.
मंदारमरंदचंपूमां ११,६,६ यति छे.
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२३ विकृति छंद.
वर्णमेळ.
४०१
.nanoran.nl
१.३२८ अद्रितनया. नज+२ भज+भल ग. ३८,६१,४२४ नज पर बे भ जा धर पछी भलाग कर पाद अद्रितनया.
प्राकृतपिंगळसूत्र, छंदोमंजरी, अने शब्दकल्पद्रुममा यति कही-नथी, तेमां जणाव्युं छे के, आनेज बीजा अश्वललित नाम आपेछे. परंतु वाणीभूषणमा यति न मानीने अश्वललितथी आवृत्त जूदु मान्यु छे. वागवल्लभ मां यति कही नथी अने आद्रितनया तथा अश्वललित एम बे नाम "एकठां आप्यां छे. १३२९ अश्वललित, ( नज+२ भन+भलग. ३८,६१,४२४
ललित२. । ११, १२ यति. . नज पर बे भ जा धर पछी, भलाग शिव सूर्य अश्वललिते.
१ वृत्तरत्नाकर, छंदःशास्त्र, अने मंदारमरंदचंपूमां अश्वललितना "न,ज,भ,ज,स,ज,न,ल,ग गण आप्या छे. परंतु ते प्रमाण ग्रंथोथी विरुद्ध
होतां तेमां भूल थयेली जणायछे, छंदोलतामां न ज भ जाम ल ग एवं •माप छे तेमां पण भूल थइ छे.
२ पिंगळादर्शमां अद्रितनया के अश्वललित एके नाम न आपतां एकलं ललित नाम आपी तेमां ११, १२ यति कही छे. अगियार अक्षरमां पृष्ट २९० अंक ५९७ मे ललित नामनुं प्रसिद्ध वृत्त जूदुं छे. १३३० मत्ताक्रीडा, मत्ता- (२म,त,४ न,लग.४ १,९.४, ०४९
क्रीडा,वाजिवाहन३।८, १५ यति. मत्ताक्रीडे बे मा छे ता, चतुर न पर ल ग वसु तिथि यति छे.
१ मत्ताकीड नाम आपी छंदःशास्त्र, छंदोमंजरी, अने वृत्तरत्नाकरची नारायणभट्टी टीकामां ८, १५ यति कहीं छे. परंतु छंदोलता, छंदोबोध, प्राकृत पिंगळसूत्र, शब्दकल्पद्रुम, संस्कृत प्रोसडी अने पिमळादर्शमा तथा १५ ने बदले ५, १० यति कही छे, ते मूळनो अर्थ खोटो समजाय थी भूल करी जणायछे, एवो स्पष्ट लेख वृत्तरत्नाकरनी टीप पृष्ट ५४ मे 'पण आप्यो छे.
२ छंदःप्रभाकरमा यति कही नथी अने आ नाम आप्युं छे. ३ नारायणभट्टी प्रमाणे आ नाम छे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
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vvvvour
१३३१ अमरचमरी. ७न+लग.
४१,९४,३०४ हय नगणपर लग थको पद रच कवि! अमरचमरी. १३३२ केकिनीशारदा. १२,११यति. ७र+गल.५७,९३,४९१
बार रुद्रे यति सात रा अन्तमां, गाल छे कैकिनीशारदा पाद. १३३३ संभृतशरधिः २भनय+स+गल. ५०,४५,३७५ __संभृतशरधि विषे वे भानय पर स तथा गाल पदे अन्त: १३३४ चकोर:, चित्तपदा, सवैया, ललिता.
___७भ+गल. ५९,९१,८६३
" भा गण सात तथा गलथी रच चित्तपदा-ललिता च चकोर. ... वाग्वल्लभ. २ छंदोलता, वृत्तदीपिका. ३ छंदोलता. १३३५ मंजुलः
७भ+गल. १९,९८,८६३ १२, ११ अक्षरे एटले १६ ने १६ मात्राए यति. सात भ ने गले अन्त धरी. रवि, रुद्र यति कर मंजुल पाद. १३३६ सभा. १२,११यति. ७स+लल. ७१,९९,२३६ रवि रुद्र परे यति बे हय सा, गण अन्त ललार्थो सभा पदः
२४ संस्कृति छंद. १,६७,७७,२१६ भेद छे. २४ वर्ण. १३३७ वंशलोन्नता. रजर+२म+ज+र+म. ६,८८,२९९. वैशलोन्नता विर्षे रजा स ने बे मा छे जा पछी रथाय अन्ते माछे. २३३८ धौरेय,मानबिम्ब.२भ+२+२ न+स+म.१०,४६,२६३
बैंभ पर द्विस पर बेन करी स पर मचरण करो धौरेये.
१२ ११
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२४ संस्कृति छंद.
वर्णमेळ.
४०३
१३३९ देव, महाभुजङ्गप्रयात, महाभुजङ्ग है ये:
भुजङ्गर, सुधापर, महानागरे,सवैया.२३,९६,७४६ करो आठ या देवा बार छेदे, भुजंगे-महानाग पादे सवैये. १ पिंगळादर्शमां आनुं देव अथवा महाभुजंगप्रयात नाम आपी १२,
१२ यति कही छे. २ महाभुजंग, भुजंग अने सुधापं ए प्रणे नाम वागवल्लभमां छे. काव्य
सुधाकर अने छंदोर्णवमा एने भुजंग कहेछे. ३ गणप्रस्तारप्रकाशमा महानाग नाम छे. १३४० झूलना. १२,१२ यति. ७स+य. २९,९५,९३२ कर सात स नी पर या चरमे, यति बार परे गॅलना पदे तुं.
गणप्रस्तारप्रकाशमांथी. १३४१ भासमानबिम्ब
भासमानः रज+भंस+जंभ+सय. ३१,०२,६३६ भासमानबिंबमा रज पर भासछे जमा पर सय भासमाने
आ वन्ने नाम वागवल्लभमां छे. १३४२ धूवाः स+२+भर+स ज+य. ३५,१७,८०४ स पछी जे के कर भार ने सज आण ते पर या धरी रच धूवा.
चित्रसेनटीकावाळु मागीपिंगळ. १.३४३ माधविका, कोक, सवैया । __ माधवी, मकरंदर, वाम३, ७ज+यं. १५,९५,११८
बाम, वामा, मंजरी. ज सात पछी य पदें धरी मंजरी-माधविका रच कोक-सवैया.
१ छंदोटोधमां आ नाम छे, ते जणावे छे के भाषामां आनुं नाम धामा छे. २, ३ आ बन्ने नाम भाषा छंदोमंजरीमा छे.
४ आ वामनुं अपभ्रंश रूप गणप्रस्तारप्रकाशमां छे.
५ छंदोबोध. ६ काव्यसुधाकर अने शब्दकल्पद्रुममा आ नाम छे. १३४४ समाहित.
न+६ज+य. ३५,९५, १२.६
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४०४
रणपिंगळ.
'समवृत्त.
hAAAAA
न पर छ जा धर ते पर या कर ने रच पाद समाहित केरा. १३४५ विगाहितगेह, गाहितगेह,गाहितदेह. . ३न+य+मन+जय.
३६,३८,२७२ त्रण न पर य धर मन आणी जाया जोड़ पद विगाहितगेहे.
आ त्रणे नाम वागवल्लभमां छे.. १३४६ अधीरकरीर. म+२न+भस+नन+य. ३६,६३,११६.
मा ने बेन पर भ स करी न ज पर या चरण अधीरकरीरे. १३४७ तन्वी', भत+न+सभ+म+नय. ४१,५५,३६३
तन्वीस२. ५,७,१२ यति. भात पछी ना, कर स भ पर भा, ना य थकी शर हय रवि तन्वी. १ वृत्तरत्नाकर, छंदोमंजरी, वाग्वल्लभ, अने प्राकृतपिंगळसूत्र, इत्यादिमा आ नाम अने यति छे. २ गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. १३४८ अर्दित, नर्दित. +न+य. ४१,५६,८५५ अर्दित नर्दितमाह छ भा गण, ते पर ना पर य गण धरोजी.
___ अमारा अभिप्राय प्रमाणे १२,१२ यति आवेछे. १३४९ पार्पतसरण. भन+य+म+३न+य. ४१,९०,३३५
पार्षतसरण पदे भाना छे या पर म पर त्रि न पर य अन्ते. १३५० कोकपद. भम+सभ+३न+य. ४१,९३,४७९
कोकपदे भामा पर साभा उपर त्रण न पर य गण करोजी. १३५१ वैकुंठधामा. ८र. १२,१२, यति. ४७,९३,४९१ बार ने बार छेदो अने आठ रा, आणजो आप वैकुंठधामा पदे. १३५२ स्वैरिणीक्रीडन, गंगोदक, ।
जानकी, खंजना, गंगाधर, ८ र. ४७,९३,४९१ लक्ष्मी, लच्छी, सवैया. .
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२४ संस्कृति छद.
वर्णमेळ.
४०५
स्वैरिणीक्रीडने आठ रा आणजो पाद पादे तमे शोभता जोइने.. १. मंदारमरदचंपूमां आ वृत्त छे, छछे अक्षरे यति लइ ठीक बोलायछे. २ वाग्वल्लभमां यति कही नथी. भाषाछंदोमंजरीमां पण तेज प्रमाणे छे. ३ छंदोलता.. ४ गणप्रस्तारप्रकाश. ५,६ छंदःप्रभाकरमा छे, पण तेमां __ यति कही नथी: १३५३ उत्कटपट्टिका. तज+रज+नस+रर. ४८,४८,३०१ छे उत्कटपट्टिका पदे त जा पर र ज पर ना सा पछी रार छे..
वाग्वालभ प्रमाणे. १३५४ विपक. १६,८ यति. ४ जर. ५५,९२,६०६ विपक पाद सोळ आठ एम बे विराम ने, रचाय चार जारथी..
चित्रसेनटीकावाळा मागधीपिंगळमांधो.. १३५५ अरसात, मकरंद, अलसा. ७भ+र. ५९,९१,८६३ सात भ आण र अन्तः पदे अलसा-मकरंद अने अरसातमा..
१ छंदोर्णवमा सवैया प्रकरणमां आ तथा अलसा नाम छे. २ गणप्रस्तारप्रकाश. ३ काव्यसुधाकर.
न+भभ+रन+मभ+र.
। ६.६,६,६, यति । ५९,९३,९१२ छ छ छ छो यति, ना पर छे भभा, पर रना भ भ, रा पछी शम्बरे. द्रुतविलंबित (पृष्ट ३११ अंक ७३७ मे) न+२भ+र= १२ वर्णनाथी बम'.. ( दुमिला, मदिरा, द्विमिला', )
दामल,चद्रकला३,दामलया, ७१.९०.२३४ ") सवैया, मुकुन्द, रूपमकरंद, (
(घोटक'. दुमिला-मदिरा-द्विमिला रचनो सगणो कुल आठ विचार करी.
१ वाग्बालभ, २ छंदामंजरी, परिशिष्ट, भाषाछंदोमंजरी. ३ भाषाछंदोमंजरी. ४ मंदारमरंदचंपू.
१.१५७. दुर्मिल
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४.६
रणपिंगत.
समवृत्त.
.... दुर्लतिका,माधवी, दुर्मिला । (स. ७१,९०,२३६ १३५८१
दुमिलका, दुमेला. ८,६, १० यति. वसु ने छ दशे यति, दुर्लतिका वो,माधवामां वसु सा पद छे.
१,२ दुर्लतिका नाम अने ८,६,१० वर्णे यति छंदोबोधमां छे. भाषामां एने माधवी केहेछे.
३ प्राकृत पिंगळसूत्रमा दुर्मिला नाम आपी तेमां १०,८,१४ मात्राए एटले ८,६,१० वर्णे यति कही छे, ते एकनु एकज छे.. ___ ४ दुर्मिलका नाम वृतदीपिकामां आपी ८,६,१० वर्णे यति कही छे; वागीभूषगमां दुर्मिलका, दुर्मिला नाम आपी तेमा यति कही नथी.
५ दुर्मिला, दुमेला नाम पिंगळादर्शमां आपी १२,१२ यति कही छे. बोलवामां पण ते ठीक छे. १३५९ नेहपाळ. १२, १२यति.मतर+सत+जभ+स.८०,४६,२४१ बारे बारे नेहपाळ मा तर छे, साता पर जाम छे स चरममां
पिंगळादर्शमा १२, १२ यति कही छे. १३६० वैश्याप्रीति. म भ+य म+नभ+नस. ८३,५१,८५५ आठे आठे त्रण यति, छे वेश्याप्रीति म भ ने, यम पर नभ नसा,
मंदारमरंदचंपूमां आ वृत्तमा ८,८,८ यति कही छे. १३६१ वेल्लितवेल. ३भ+मस+नन+स. ८३,६८,५७७ वेल्लितवेल विषेत्रण भा ने मा स पछी न न चरम स रचनो.
वागवल्लभ. १३६१ (अ.) अतुलपुलक. न+स. ८३,८८,६०८ अतुलपुलक कविवर! रच हय न गणपर सी चरणे.
आ वृत्त वागवल्लभ प्रमाणे छे.
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२५ अतिकृति छंद..
वर्गमेळ.
१३६२ आभार , सवैया.
त. ९५,८६,९८१ आणो तमे आठ तपाद पादे गणी नाम फाडी सवैया च आभार
१ छंदोर्णव तथा काव्यसुधाकर अने छंदःप्रभाकर २३६३ सुखदा', विष्णु, )
सुरेश्वर, कोकी, जि. १,१९,८३,७२६ मुक्ताहरा२, मुक्तहरा, ( १२,१२यति.
सवैया, माधवी. ) रंचो सुखदा रक्येि यति कोकी, सुरेश्वर आठ ज माधवी-विष्णु
१ पिंगळादर्शमां सुखदा नाम आपी १२,१२ यति कही छे.
२ छंदोर्णव. ३ छंदःप्रभाकर. ४ गणप्रस्तारप्रकाश १३६४ मेदुरदन्त', किरीटर, किस्त ३,) (भ. १,४३,१०,४७ है.
__ माधविका, करीटी४: १२,१२ यति. मेदुरदन्त-किरीट विषे रवि, छेद धरी रच आठ भ पादज.
पं वागवल्लंभमा यति कही नथी. २ वाणीभूषण, छंदःप्रभाकर, प्राकतांगळसूत्र अने वागवल्लभमां आ नाम छ पण एकेयमा यति कही नथी.
३ छंदोवृत्तमुक्तावलीमां आने त्रीजा प्रकारनो सवैयो कह्यो छे; पिंगळादर्शमां किरीट अने कीरत नाम आपी ५२,१२ यति कही छ:
४ करीटी गणप्रस्तारप्रकाशमां छे. ३५ अतिकृति अथवा अभिकृति छंद:
३,३५,५४,४३२ भेद छे. २५ वर्ण. १३६५ शंभु. चच्चारे यति. म+ग. १ शंभुवृत्ते,पादे पादे,आठे मा ने,गा आणीने,चारे चारे,छेदो लावेछे.
शंभु नामनुं बीजं वृत्त पाछळ जुओ वर्ण १९ अंक ११९४ मे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त
१३६६ व्याकोशकोशल. त भ+य भ+३स+ज ग. १४,२२,९६५ याकोशकोशल ल भा,याभा पर त्रण सा,जग आठ हये दशे यति.
बाग्वल्लभमां आ नाम तथा ८,७,१० यति छे. १३६७ शरभूरिणी. रस+जज+भर+सय+ग. २९,७६,६०३ रास छे जज छे पछी भर छे अने सय अन्त गा शरभूरिणी पादे. १३६८ होगहैयंगवीन.
र+ग. ४७,९३,४९१ आठ रा पाद पादे तमे आणजो शोभता वृत्तमा हीणहैयंगवीने. १३६९ कमला, मुदिर,मल्ली, सुमिला, माधवी,अमला,चंद्रकला,
सुछंद, सुंदरी, सवैया, सुखदा, सुखदानि.
१२,१३ यति. (स+ग ७१,६०,२३६ कमला-सुमिला-मुदिरे रविये,यति ने धर आठ स ने गवळी तुं.
१ वागवल्लभ, तेमा यति कही नथी. २ छंदःसारमा आ मापथी मल्लिका नाम आपी तेमा यति कही नथी. ३ पिंगळादर्शमां आ नाम आपी तेमां १२,१३ यति कही छे. ४छंदरत्नावळी. ५ काव्यसुधाकर. ६ भगवत्पिंगळ ७ छंदबोध. अने ८ गणप्रस्तार-प्रकाशमां अनुक्रमे ए नाम छे पण ते ग्रंथोमा यति कही नथी. १३७० नीपवनीयक,
भनन+सभ+३स+ग.१२,०२,८१५ वनीपक, नीपक. भा न न पर सभ पर त्रण सा छेवट गुरु नीपवनीयक वृत्ते. १३७१ कुमुदमाला. नतसभ य+न त स ग. ७५,७६,८०८
अथवा (न+कर्णगण (।।।ss) एवा पांच यतिना पांच टूकडा.) कुगुदमाला, न त सभा या, न त स गाछे, यति शरे छे, शर शरे ना
__ अथवा
नगण कर्णे,पचिश वर्णे,क्रम करीने, शर धरीने,कुमुदमाला.
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२५ अतिकृति छंद.
वर्णमेळ.
१३७२ रसिकरसाला. नन+सस+भतन+सग. ८२,८३,९०४ नन पर स स धर भात न आणी सग पादे रच रसिकरसाला. १३७३ विरहविरहस्य.मन+नत+यन+नस+ग. ८३,६२,४८९ माना छे नत पर य न पूठे नस अन्ते ग पद विरहविरहस्ये. १३७४ भास्कर, भास्करावलासत.।।३.८१.३११
भन+ज+यभ+नन+सग. भास्कर भ न पर जा धर या भातेपर न न पर सग कर शाणा. १३७५ चित्तचिंतामणि. ),
३र+नज+३त+ग.९५,९२,४६७ ९, ८, ८ यति. " लोक राने नजा लोकता, यति नव आठ अन्ते, गछेचित्तचितामणी. १३७६ गुणमालाधरा. । १२,१३ यति.
७भ+त+ग. १,०१,८६,१६७
१८
छे रवि ने जखथी यति बे पद,सात भथी रचजो गुणमालाधरा. १३७७ वल्लरी,वल्लरिका.५न+जन+ज+ग. १,२५,१७,३७६
शर न गण पर ज न धर जगण कर अन्त ग चरण वल्लरी. १३७८ दास. ६,६,६,७यति. ४सभ+ग. १,३५, ८१,५५६ छ छ चके हय, यति आणो कवि! युग साभापर,ग धरी दास करो.
पिंगळादर्शमां उपर प्रमाणे यति छे. १३७९ बंधूर. (छंदोलता) ४ न+२स+२भ+ग. १,४२,७०,४६३.
चतुर नगण पर द्वि स धर द्वि भ अन्त ग बंधूर पदे करजो. १३८० शिबिका', । (भ+ग. १,४३,८०,४७१
चारु२, सारु.) १२, १३ यति.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१३
बार वळी जख उपर छे यति, भा गण आठ पछी ग कस्ये शिविकः ___ १ वागवल्लभमा छे पण तेमा यति नथी. २ पिंगळादर्शमां १२,१३ यहि कही छे, अने तेम बोलाय पण छे. १३८१ भाविनीविलसित. ४रन+ग. १,५४,४५,६९ चार छ रन गणो तथा चरम गा धरो चरण भाविनीविलसिते. १३८२ कलकंठ. २
८,८,९ यति. सन+नज+भनर+नग.
• १,५४,६१,३५६ कलकंठ साज पर, न ज छे भ नार न ग, यति आट आठ नवर्ष
__आ नाम अने यति मंदारमरंदचम्पूमा छे. १३८३ विशेषकवलित, विशेषित । २न+२+३ज+न ग.
। १,६१,७५,१६८ प्रथम न गण वे आवे बे मा लोक जा पद थाय विशेषकवलिते. १३८४ अभ्रभ्रमण. तन+मस+४न+ग. १,६७,७४,७१७
अभ्रभ्रमण विषे ताना पर मा स कर चतुर न धर ग चरमे. १३८५ क्रौंचपदा', । भमस+भ+४न+ग १,६७,७६,३९१
क्रौंशपदा२. ५,६,८,७यति. क्रौंचपदामां, भा म स छे भा, युग न पर गशर शर वसु हय छे.
१ छंदःशास्त्र, वृत्तरत्नाकर, शब्दकल्पदुम, छंदोलता अने छंदोमंजरीमां क्रौंचपदाना उपर प्रमाणे गण तथा यति छे.
२ क्रौशपदा नाम वाग्वल्लभमां छे, तेमां उपर प्रमाणे गण अने यति छे. तेणे छंदोमंजरीनुं अक्षरे अक्षर माप उतारी लीधु छे. मात्र प्रारंभमां क्रौंच शब्द फेरवीने कोश शब्द मूक्यो छे.
पिंगळादर्शमां कौंचपदामां भमनभननननग एg माप अने ५,५,८.७ यात कही छे, पण छंदःशास्त्रमा “मौ स्भौ नौ नौ ग" इत्यादि सूत्र छे, तेमां बीजो गण स छे, त्यां आगळ ननी भ्रान्ति थवाथी पिंगळादर्शमां मौ न्भौ नौ नौ ग एम उतास्युं छे, तेथीज तेमां भूल थइ छे.
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१३.
२५ अतिकृति छंद.
वर्णमेळ.
. ४११ १३८६ अलका, अलिका. (न+ग. १,६७,७७,२१६
चरण चरण प्रति वसु नगण पर चरम ग कर हँ अलका. १३.८७ मल्लपल्लीप्रकाश. य+ल: १,९१,७३,९६२ रचो मल्लपल्लीप्रकाशे बधा आठ या ने पछी ला धरी पादनी मांह.
___ आ वृत्त वाग्वल्लभमा छे. भुजंगप्रयातनां बे चरणोमां एक लघु : उमेरवाथी आ वृत्त थायछे. १३८८ सौदामनदाम. ४स+नज+यस+ल. २,३५,२५, ०८४
रच चार स ने न ज ने य स ने ल चरममां कर सौदामनदाम. १३८९ अरविंदमुखी, अरविंद. (स+ल. २,३९,६७,४५२
१२.१३ यति. अरविंदमुखी वसु सा धरतां, पर ला करतां रवि तेर विराम.
१ पिंगळादर्शमां आ नाम अने यति छे. २ गणप्रस्तारप्रकाश. १३९० हरि. २स+भसत+३ज+ल. २,८७,५५,८६८ यति सात छये ने, युग वसु साबे,ने भ सता, त्रण जा पर ला हरि.
पिंगळादर्शमां ७, ५, ४, ८ यति छे, तेमां शत्रु अथवा रिपुनी संज्ञा, ५ लखी छे ते भूल छे; षट् अरि केहेवायछे. १ काम, २ क्रोध, ३ लाभ, ४ मोह, ५ मद, अने ६ मत्सर. १३९१ लविंगलता', कळाकुशळ२, विजय,३ (विजै).
१२, १३ यति. (ज+ल. २,८७,६०,९४२ लविंगलता. वसु जा पर अन्त, ल पाद विराम कळाकुशळे रकि.
१ भगवपिगळमां बने नाम छे, पण यति विषे कशें कहुं नथी; अने तेणे उदाहरणमां कहिंक ११ अने कहिंक १२ वर्णे यति पाळी छे, ते अनियामत छ एटले १२, १३ यति पाळवी ठीक छे.
२ विगळादशंमा ए नाम आपी उपर प्रमाणे गण तथा यति केहेछे, ३ गणप्रस्तारप्रकाशमां विजयने बदले विजै एम अशुद्ध पाठ छे.
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४१२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
२६ उत्कृति छंद. ६,७१,०८,८६४ भेद छे. २६ वर्ण. १३९२ जीमूतध्वान', गौरी२. . म+२ग. १ जीमूतध्याने छव्वीशे लांबा वर्णोना आठे मा बे गुरु गौरी अन्ते आवेछे.
१ वाग्वल्लभ. २ छंदोलता. १३९३ ननुकिलकिंचित. ३म+नजन+तय+२ग. ३३,९९,१६९ आठे आशा आठे छेदो, छे तनुकिलकिंचित मम,माना जनताया गागा.
वाग्वल्लभमां ८,१०,८ यति छे. १३९४ विनयविलास. ४नय+२ग. ३९,९४,५७६ विनयविलासे चरण विषे चार नय पछी बे गुरु चरमे आवेछे.
___(म+३+२र+२त+२ग.९५,११,४९७ १३९५ विश्वविश्वास.
"।५,७,७,७ यति. मा ने लोक या,बे र बे ता गुरु बे, विश्वविश्वासपांचे, सात साते विरामो. १३९६ अशोकानोकह. मभ+नभ+नर+२त+२ग.९५,३४,९६१ 'माभा छे नाम पर नर छे द्वित पर ग बे अशोकानोकहे पाद पादे. १३९७ आभासमान. ४य+४त+२ग. ९५,८५,२२६ रचो चार या चार ता अन्त बेगा आभासमाने पदो चार एवां रसेथी. १३९८ वीरविक्रांत. मनज+५त+२ग. ९५,८७,०६५ जोडो चार चरण वीरविक्रांत माहे मनाजा पछी पांच ता अन्त बेगा. १३९९ झूलना, नस+यन+रभ+जत+२ग. ९९,०७,८०८
झूल्लणा. ) ८,१५ यति. मस पर यना करो, राम पर जात ने बेग वसु पंदरे झूलणामां.
१ मागधी पिंगळछंदोग्रंथ प्रमाणे.
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२६ उत्कृति छंद.
वर्णमेळ.
१४०० अपवाह',अपवाहक.म+६न+स+२ग.१,०३,८८,९०१ : मा छे ना छ पर सगण, पर द्वि ग यति, नव छ छ शर, अपवाहे छे.
१ वृत्तरत्नाकर तथा कान्वल्लभमां ९,६,६,५ यति कही छे. १४०१ विकुण्ठकण्ठ ४ रज+२ग. १,११,८४, ८१ १ थायछे विकुण्ठकण्ठ माह चार राज थाय अन्त पाद बेग आणवाथी., १४०२ चारुगति. २न+सम+नज+रज+२ग. १,१२,०२,८१६ द्वि न पर स म धरी ना जाथी चारुगति विषे रचाय रा ज अन्त बे गा. १४०३ द्वितीयझूलणा.न+२+२जभ+ज+२ग.१,२२,४९,८२४; न पर द्वि स बेज भ ने ज छे द्वि गा रच द्वितीयझूलण जरूर सारा.
मात्रामेळ झुलणाना रागमां आ वृत्त बराबर बेसतुं नथी, कारण के आवा गणथी बे मात्रा घटेछे, पण उपर अंक १३९९मे झुलणाना जे. गण. आप्या छे ते वधारे भरोसा पात्र छे. एटले अमे आ माप, यथोचित मानता नथी, तोपण मागधी पिंगळछंदोग्रंथमां आ प्रमाणे माप . होतां एने द्वितीयझूलणा एवं नाम आपी दाखल कर्यु छे. १४०४ प्रियजीवित... भ+२ग. १,४३,८०,८७१..
छे प्रियजीवितमां वसु भा गण ते पर अंतविषे गुरु बे धरजोजी. १४०५ रंजन. भन ज+न स+२न+भ+२ग. १,४६,६३,५५१.
७,७,७,५ यति.. रंजन मुनि हय, सात शर भनज,छे न स पर द्विन, भा गण वे गा.. १४०६ भसलसलाका., म भ+सम न+यत+न+२ ग.
। १,५७,९०,३२१ आठे आठे दशम भ, छेसा मा ना पर य त,नाछे बेगा भसलसलाका.
वागवल्लभमां आ नाम तथा ८,८,१० यति. कही छे...
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१४०७ उझितकदन. भन+३+३न+२ग १,६७,६७,८७१ उम्झितकदन विषे भन छे त्रण जा पर त्रण न पर चरम बे गा. १४०८ कुहककुहर. २न+मय+२न+मय+लग. १,९१,३२,९९२ कुहककुहरमां बेना तथा मा यपर द्विन पछी माया अने लाग छे. १.४०९ सूरसूचक. म स ज+३स+२ य+ल ग. १,९२,४८,९८५ मा साजा पद सूरसूचक विषेत्रण सा पर बे य आणो लगा अन्तमां. १४१० विषाणाश्रित.
.. य न+रभ+ज त+स य+ल ग. १४१० विषाणामा १,९८,१५.६१० 'विषाणाश्रितविषे यना छे र म अने जताछे सय तथा लगा अन्तमां. १४११ विनिद्रसिन्धुर. १२+२ ज र+ल ग. २,२३,६९.४२७ चार रा आणजो बे जरा जाणजो विनिद्रसिन्धुरे धरो लगा पदे पदे. १४१२ शकुन्तकुन्तली. १४१२ शकुन्तकुन्तल'. ।
म+२+२न+ रज र+ल ग.
२,२३,८०,१७७ मा ने बेरान बेनेर जा, र पर ल ग नवे, हये दशे शकुन्तकुन्तले,
१ वागवल्लभमां आ नाम अने ९,७,१० यति छे. १४१३ भुजगेरित. म य+न त+२न+रस+ल ग. २,३८,५३,५१३ माया ने न ताछे द्विन, रसा ने ल ग यति वसु हरे, हये भुजगेरिते.
पिंगळादर्शमां ८,११,७ यति छे. १४१४ भुजंगविजूंभित.ममत+३न+रस+लग.२,३८,५४,८४९ आठे रुद्रे मा मा ता छ, त्रण न पर रस पर लगा, भुजंगविज्रभिते.
वृत्तरत्नाकर, प्राकृतापंगळसूत्र, वाग्वल्लभ, अने शब्दकल्पद्रुममा ८, ११, ७ यति कही छे. पिंगळादर्शमां ८, १२, ६ यति कही छे, तथा छंदःप्रभाकरमां याते कही ना, ते उपर जणावेला प्रमाण ग्रंथोमां माप नहि. जोवाथी बन्युं हशे.
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२६ उत्कृति छंद.
वर्णमेळ.
__ कथा एवी छे के, गरुड, भुजंग (नाग) पछवाडे पडयो हतो, तेने भुजंगे पिंगळ समजाववा मांड्युं अने आ वृत्त सुधी समजावतो अने प्रस्तार करतो चालता चालतां समुद्रकिनारा सुधी आवी पोहोच्यो, पछी समुद्रमा प्रवेश करी गयो. ते उपरथी भुजंग-नाग अने विजम्भित= पळायन-भुजंगर्नु नाशी जवू, एवो अर्थ थायछे.. १४१५ काकलीकलकोकिल.
र रस+२ज+भर+सज+लग.
.
। २,८१,४२,४२७ काकलीकलकोकिले रस ने द्विजा पर भारछे सज अन्त लाग करो. १४१६ वीणार'. त+७ज+लग. २,८७,६०,९४.१ वीणार विषे गण ता पर सात ज ते पर अन्त लगा चरणे धरनो.
१ आ वृत्त मारवाडी हार जशपिंगळमां छे. १४१७ शृंखलबलयित.
भ+२न+भम+नन+जलग.
। २.९३,३०,९४३ शृंखलवलयित पद भा पर बे ना छे भ म पर न न पछी ज ल गा. १४१८ विरामवाटिका. नज+रसन+जर+न+लग.
। ३,२१,७५,७९२ चरण विरामवाटिका नजछे र सन पछी जरा अने नगण ल गा. १४१९ कर्णाटक. तभ+२ जभ+२ न+लग. ३,३५, १२,८२ १
कर्णाटके त भ रचाय बे ज भ अणाय वे न पर लग चरम विषे. '१४२० अरिदमन,
२म+त+न+लग. ३,३५,५४,१.१७ अरिदलन. 'आठे आशा आठे बे भा, त पर शर न पर ल ग, पद अरिदमनमा.
आ वृत्त मागधी पिंगळछंदोग्रथमां छे अने तेमां १६,१०,९ मात्राए टले ८,१०,८ वर्णे यति आणवा केहेछे. १४२१ कुंभक. २न+६र+गल ३,८३,४७,९६८ ‘धरण चरण कुंभके बेनछे ने छ छे रा गणो वे पछी अन्तमांगा ल.
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रणपिंगळ.
समवृत्त..
१४२२ कलधुनि. २सज+नस+२न+गल. ५,०१,९९,२७६
सज़ बे पछी नस पछी न बे कलधुनि पदमाह चरम गल थाय. १४२३ वशम्बद', सुख२, सामन३, सावन ३, मागधी,
सवैयो, अम्बुज, कुन्दलता, किशोर५, मालती.
१२,१४ यति. (स+२ल. ५,७५,२१,८८४ रविये यति छे गण सा वसु बे,-लघु अम्बुज, सुख, वशम्बद, सामनः
१ आ नाम वागवल्लभमा छे, पण तेमा यति नथी. १ ए नाम छैदःप्रभाकरमा छे तेमां यति नथी. ३ ए बे नाम गणप्रस्तारप्रकाशमां छे.. ४ भाषाछंदोमंजरीमांछे. ५ छंद:शंगारमा किशोर नाम छ तेणे यति कही नथी, ए वृत्त पिंगळादर्शमा छंदःशृंगारमाथी लीधुं छे. परंतु १२, १४ यति वोलाय छे तेथी तेणे ते प्रमाणे यति आपी छे. ६ छंदोर्णव. १४२४ विलास'.. भ+२ल. ६,४७,१२,११९ बार मनु यति मा वसु छे गण, ने लघु बेथको थाय विलास चरण.
१. गौडपिंगळ तथा लखपतजशसिन्धुमा अन्ते बे गुरु कह्या छे, परंतु... तेम थवाथी तो १,४३,८०,८७१ मुं रूप अंक १४०४ नुं प्रियजिवित थायछे; जेथी ते योग्य नथी. पिंगळादर्शमां १२, १४ यति छ, ।
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४१७
वर्णदण्डक. छन्वीश वर्ण उपरांतना सम चरणना पद्यने दंडक केहेछे. पण पिपीडिका आदि केटलांक छव्वीश अक्षर उपरांतनां पद्य छ तेनी गणना आमां थती नथी. __ओछामा ओछा २७ वर्ण अने घणामां घणा ९९९ वर्णन एक पाद थाय एटलो तेना एक चरणनो विस्तार छे; एवां चार समचरणनो एक दंडक थायछे. छंदःशास्त्रमा सूत्र 'छे के,
दंडको नौरः ७।३१। । २न+र आववाथी दंडक थाय छे. आ सूत्रनी वृत्तिमा हलायुधे २न उपर ७रगण आवे एम कयुं छे, पण
प्रथम थंडवृष्टिःप्रयातः ७३२। ए सूत्रमा पेहेलो दंडक २७ वर्णनो चंडवृष्टिप्रयात थायछे, एम केहेछे, तो २न उपर इच्छा पूर्वक रगण आवे ते दंडक केहेवाय, एम मानवामां आव्युं छे ते उचित छ.
__ अन्यत्र रात माण्डव्याभ्याम् ।७।३३। ए सूत्रमा एम केहेछे के, रात अने माण्डव्य ऋषियोए आ चंडवृष्टिप्रयातने अन्य स्थाने बीजं नाम ठराव्युं छे, पण नारायणभट्ट केहेछे के ए ऋषियोए एनुं बीजुं नाम नथी ठराव्यु.
शेषः प्रचितः ।७।३४। आ चंडष्टिप्रयात उपरांत दंडकप्रस्तारपूर्वक रगण वधता जाय तेनी सामान्य संज्ञा प्रचित अथवा प्रचितक केहवायछे. पछवाडे गयेला वर्णछंदोमां अकेको वर्ण वधता २६ वर्ण सुधी छंद बनेछ, तेम अहिं अकेको गण वधवाथी प्रचितक थायछे.
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४१८
रणपिंगळ.
समवृत्त.
प्रचित अथवा प्रचितक एटले वृद्धि पामेलुं. अर्थात् अकेको रगण वृद्धि पामतो जायछे, माटे एनु सामान्य नाम एवं कल्प्युं छे. केटलाएकनो अभिप्राय एवा छे के, २न उपर अकेको रगण वधारवानुं कथन छे ते दंडकना चरणमां वधारो करवानुं सूचवेछे. अने वृत्तरत्नाकरनी अवधूरि टीकामां केहेछे के, ए प्रमाणे चरणमां रगणनो वधारो करवाथी जे दंडक थाय तेनां नाम अर्ण, अर्णव एवां छे ते नहि पण बीजां कल्पवा. जो आ प्रमाणे करवामां आवे तो नीचे दर्शावेला अर्ण दंडकना पेहेला चरणमा ८ र आवे तो बीजामा ९ आवे, त्रीजामा १० आवे, अने चोथामां १.१ आवे एटले अर्णनी रचना नीचे प्रमाणे थायः
प्रथम चरणमा २न+(र=३० वर्ण. बीजा चरणमा २न+९ र=३३ वर्ण. त्रीजा चरणमा २न+१०र३६ वर्ण.
चोथा चरणमा २न+११र=३९ वर्ण.. तेमज अर्णवमां नीचे प्रमाणे थायः----
प्रथम चरणमा २ न+ ९र=३३ वर्ण. बीजा चरणमा २न+१०र=३६ वर्ण.. त्रीजा चरणमा २न-+ ११र-१९ वर्ण.
चोथा चरणमा २न+१२र=४२ वर्ण. एज प्रमाणे व्याल, जीमूत आदिना प्रथम चरणमा १०, ११ एम अनुक्रमे गणनो वधारो करवो; पण जो आ प्रमाणे करवामां आवे तो सम चरण रेहेतां नथी. पण प्रत्येकमां त्रण त्रण वर्ण वधवाथी विषम थइ जायछे माटे एवो अर्थ करवो केवळ अयोग्य छे. अने नारायणभट्टनो अभिप्राय पण एमज छे.
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वर्णदण्ड क.
वर्णमेळ.
२७ वर्णना दंडक १४२५ चंडवृष्टिप्रयात', चंडवृष्टि- । न+र=२७ वर्णः
प्रपात२, चंडवृष्टि३, उद्दप.) द्वि न पर हय रागणो चंडवृष्टिप्रयाते धरो चार पादो विषे भावथी. १ छंदःशास्त्र; २ वृत्तरत्नाकर, प्राकृतापंगळसूत्र. ३ छंदोवृत्तमुक्तावली. ४ मागधीपिंगळछंदोग्रंथ.
चंडवृष्टिप्रयात उपरांत अकेको रगण वधारतां जे दंडको थायछे, ते वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां तथा छंदःशास्त्र आदिमां नीचे प्रमाणे जोवामां आवेळे. तेमां छंदोबोधमा मात्र अंक १ थी ६सुधी नामछे, अने छंदोमंजरीमां अंक १थी ७सुधीछेःक्रम, · नाम,
लक्षण, वर्ण. १४७० अर्ण, दंडकतृभंगी...................२न+ (र= ३० १४९७ अर्णव. ................२ न+ ९र= ३३ १५०२ व्याल, विशेषशालीन..............२न+ १०र= ३६ १५०५.जीमूत................................२न+११र= ३९ १५०९ लीलाकर............................२न+१२र- ४२ १५१२ उद्दाम............... ...............२न+१३र= ४५ १५१४ शंख..................................२ न+१४र% ४८ १५१७ आराम, अर्क', पद्मकर, विश्ववाह. २न+१५र= ५१ १५१८ संग्राम, चंद्र, तक्षक२, ।
२न+१६र= ५४ - पद्मराग, चंद्रेश, कालदंड.)
छिंदोवृत्तमुक्तावलीनी लिखित प्रतिमां व्याज नाम छे, ते भूल जणायछे. १ आ निशानवाळां नाम छंदोवृत्तमुक्तावलीमा छे.. २ वृत्तरत्नाकरनी जनार्दननी टीकामां आ नाम छे,
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रणपिंगळ.
समवृत्त
१५१९ सुराम, ईश, पौण्डक, भोगीन्द्र.....२न+१७र= ५७ १५२१ वैकंठ, भोगी, उदारपाद............२न+१ (र- ६० १५२२ सोत्कंठ, इंद्र....... ..............२न+१९र- ६३ १५.२३ सार, पीयूष'........................२न+२०र= ६६ १५२४ कासार, वाराह ....................२ न+२१र= ६९ १५२५ विस्तार, वात'.....................२न+२२र= ७२ १५२६ संहार.................................२न+२३र= ७५ १५२७ नीहार........ ..............२न+२४र= ७८ १५२९ मंदार ........ ..............२न+२५र= ८१ १५३० केदार ........... ...........२न+२६र= ८४ १५३१ साधार.......... .............२न+२७र= ८७ १५३२ सत्कार........ .............२न+२८र= ९० १५३३ संस्कार. ........ .......... २न+२९र= ९३ १५३४ माकंद... ..............२ न+३०र= ९६ १५३५ गोविंद
..............२न+३१र= ९९ १५३६ सानंद.......... ...........२न+३२२१०२ १५३७ संदोह............ ..............२न+३३र= १०६ १५३८ नंद............. ..............२न+३४र=१०८
उपर प्रमाणे प्रमाणग्रंथोमां रन कायम राखी ते उपर अकेको रगण वधारीने जूदा जूदा दंडक रचवायूँ केहेवामां आवे छे, त्यारे मागधीपिंगळछंदोग्रंथमां एथी उलटुं ७ रगणमां अकेकानो घटाडो करीनै नगणमां वधारो करवानु केहछे, २ न+रनु रूप से उपर लखवामां आव्युं छे तेने ते उद्दर्प नाम आपेछे अने तेना भेद उपर जगावेला क्रमे नीचे प्रमाणे थायछे:
......
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...
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४२३
१४२६ विद्याधर, विज्जाहर. ३न+६ र=२७ वर्ण. त्रण न गण पर घट रा गणो धारिने पादमां आण विद्याधरे दंडके. १४२७ सज्जन.
४न+५ र २७ वर्ण. चतुर नगण पर शर रगणो धरो पाद पादे तमे सज्जने दंडके. १४२८ दुःखाकरो.
५न+४र=२७ वर्ण. शर नगण पर चतुर रगण धरतां बनेछे खरो भेद दुःखाकरो. १४२९ विरतिकल्प, विरयिकप्पो. न+३र-२७ वर्ण. षट नगण उपर धर त्रण रगण विरतिकल्पमां पाद पादे खरे. १४३० मकर, मतिकर.
७न+२र२७ वर्ण. हय नगण पर र धर प्रतिपद मकर-मतिकर दंडके पादमां. १४३१ शुभंकर, सुहंकर.
न+१=२७ वर्ण. वसु न गण पर र गण धरी कविवर! प्रतिचरण रच शुभंकरे.
उपर जणाव्या प्रमाणे मागधीपिंगळछंदोग्रंथमां नगण वधारी रगण घटाहया छे, पण प्रमाणग्रंथामां एम नथी. तेमां तो २नगण+७ रगणनो चंडवृष्टिप्रयात थायछे, तेना उपर अकेको रगण वधारतां ९९९ अक्षर सुधीनुं एक पाद. करवाने बे नगण उपर ३३१ रगण सुधी वधारवान केहेछे. ए हिसाबे तेना ३२५ भेद थायछे, तेमांथी ३४ भेदनां नाम तो ग्रंथोमां प्रसिद्ध छे, ते उपर जणाववामां आव्यां. जनादन, सुखानंद, आदि केहेछे के, आवा दंडकोनां नाम नीचे प्रमाणे कल्पवां:कुमुद, तक्षक, अन्ज, मंजुल, वारिधि, तरंग, इत्यादि.
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४२२
रणपिंगळ.
समवृत्त.
anwwwwwwwwwwwwwwnaparnama
वाग्बलभमा केहेछे के, कविनी इच्छा प्रमाणे जेमां विराम बराबर सचवाय तेवा गणोथी अनेक दंडको थायछे अने ते घणा गणोथी गुंथायछे, माटे तेनां गुच्छक, दाम, हास, प्रसून, मंजरी अने रुचिरा एवा अर्थवाळां नाम कल्पवा. वृत्तरत्नाकरनी अवधूरि टीकामां केहेछे के, गगन, समुद्र, एवां नाम पण अपायछे.
छंदःशास्त्रनो उपर अभिप्राय लखवामां आव्यो तेमां २ नगण उपर ७ रगण आवे तेज दंडक केहवाय अने रगणनो वधारो करवाथी जे दंडक थाय ते प्रचित केहेवाय, एम ठरेछे; पण बीजो ग्रंथो जोतां तथा कविना प्रयोगोनुं अवलोकन करतां रगण सिंवायना गणो जोडवाथी पण दंडक बनेला जणायछे. गंगादास अने केदारभट्टे २ नगण उपर ७ यगणनो प्रचितक कह्यो छे अने बीजा ग्रंथोमां पण तेमज जोवामां आवेळे. ___छंदःशास्त्रना टिप्पणमां, छंदःपारिजात उपरथी लखेछे के, छवीश अक्षर सुधी एकेक वर्ण वधतां जे छंद थया ते बताववामां आव्या, हवे ते उपरांत अकेक गण के वर्ण वधवाथी दंडक अने प्रचितक केहेवायछे; एटले नगण साथे रगणनो प्रयोग करतां जे बने ते दंडक अने बोजा गणनी रचना वाळाभे प्रचितक केहछे. नगण साथे य, त, र तथा भ; स, ज ना परस्परना प्रयोगथी, अथवा ते गणोना मांहोमांहेना संमिलनथी, तेमज केवळ सगण अने भगणना योगथी, प्रचितकना करोडो भेद थई शकेछे, ते केवळ शेषन जाणी शकेछे.
छंदःशास्त्रनी टीकामां छंदःपारिजातनुं वचन छे के:-- विहाय मगणं शुद्धं गणैरन्यैरशेषतः षड्विंशादधि कैर्वर्णैश्यन्ते प्रचितानि च.
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४२३
मगण वर्ण करतां बाकीना बधा गणोना संमिलनथी २६ वर्ण उपरांतना प्रचितको जोवामां आवेछे.
उपर प्रमाणे मगणने वर्ज करवा केहछे पण अंक १४३४. नो उद्दाल ९ मगणनो थायछे, तेथी उपरना वचन उपर आधार राखवो उचित नणातो नथी..
उपर जणाव्या प्रमाणे रगणवटित दंडक ३२५ मुधी बनी शकेछ, अने एन प्रमाणे यगणघटित प्रचितक पण बनेछे. तेमन बीजा गणोनी योजनाथी पण बनेछे. छंदःशास्त्रमा बे नगण उपर ५. रगणवाळाने दंडक मान्यो छे, अने सात उपरांतना रगणवाळाने प्रचितक मान्यो छे. अने तेनुं सूत्र नीचे जणाव्युं छे—
शेषः प्रचितः इतः ___ एमां शेषनो अर्थ, सात रगण उपरांत अकेक रगण वधवाथी जे दंडको थायछे ते प्रचित केहेवायछे, एम हलायुधे कस्यो छे; पण वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टनी बनावेली टीकामां केहेछे के, यगण आदि प्रयोगथी रचेला दंडको कविओए बनाव्या छे माटे, शेषः एटले रगणवाळा दंडक सिवायना यगणोथी रचायला दंडकोने पण प्रचित केहेवा. १४३२ प्रचितक, सिंहविक्रान्तर, २न+७य २७वर्ण, प्रचितक पद पदे बे न छे ने य छे सात पूरा रचो ए प्रकारे प्रवीणो!
१ वागवल्लभ अने छंदोवृत्तसुक्तावलीमां प्रचितकनुं माप आ प्रमाणे छे.
२ छंदोवृत्तमुक्तावलीमा सिंहविक्रान्त नाम आपी तेमां २ल+ ५य लाववा कही उदाहरणमां ५य आप्या छे, ते उपरथी जणायछे के, य यथेच्छ आणवा. पण छंदोमंजरीनुं परिशिष्ट तथा वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीमां केहेछे के
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४२४
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रणपिंगळ.
॥ नयुगलगुरुयुगेवं यकाराः कवीच्छानुरोधात्तदा यत्र वक्ष्यन्त एषोऽपरो दण्डकः पण्डितैरीरितः सिंहविक्रांतनामा || २ + इच्छापूर्वक य एवा मापना दंडकने सिंहविक्रान्त केहेछे. छंदोमंजरीना उदाहरणमां १३ य मूक्या छे.
समवृत्त
जेम चंडवृष्टिप्रयातमा २२+७२ आवेछे अने ते उपरांत एकेक रगण वचवाथी जूदा जूदा दंडक थायछे तेम, २न+७य उपरांत अकेको गणनेो चडावो करतां ९९९ वर्ण सुधीनुं पद थतां ३३१ य आवे अने तेना ३२५ भेद थाय तेनां नाम प्रथम सूचव्या प्रमाणे पडी शकेछे.
चंडवेगदंडक २न+य ( यथेच्छनो) थायछे, एम छंदोवृत्तमुक्तावलीमां केहेळे पण छंदोलतामां तेनुं माप रन +८य +२न आप्युं छे; माटे अ ते अहिं दाखल करया नथी.
नियम लागु
मुक्तक दंडक. गणना नियमथी मुक्त एटले जेने गणना पडता नथी, पण इच्छापूर्वक वर्णनी रचना करवामां आवेछे ते मुक्तकदंडक केहेवायछे.
१४३३ मुनीन्द्र. लघु गुरुनो नियम नहि. २७ वर्ण. मुनीन्द्रमहे लघु गुरु केरो निम न आवे पण सत्ताविश अक्षर लावे. मनहर पिंगळमां छे.
बीजा मुक्त वर्णसंख्याना क्रमे आगळ जोवामां आवशे.
मयत जमनगल एथी थता दंडक.
उपर प्रमाणे आठ गण तथा गुरु अने लघु एवा प्रत्येकना सतावीश अक्षरप्रारंभी प्रतिचरणमा ९९९ वर्ण आवे त्यां सुधी दंडक वनेछे. तेमां केटलाक तो वर्ण वधता जाय तोपण ऍकनु एकज नाम राखेछे, परंतु २७
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वर्णदंडक.
वर्णभेळ.
वर्णनुं थड बतावी ते उपरांत तेनी शाखाओ भेद रूपे थाय, ते ओळखवाने
जूदां नाम पाडवां उचित छे.
१४३४ उद्दाल, उद्दालक.
१४३५ सिंहविक्रीड.
उहाले आवेछे पादे पादे सत्तावाशे
८
गुरु केरा मा सौखंडे पोहोंची जाता.
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१४३६ मत्तमातंगखेलित,
मत्तमातंगलीलाकर.
८
गणो या वधा खंड तो थायछे सिंहविक्रीडना पादमां वर्ण सत्ताविशेना.
१५०६ सारंग.....
१५२१ रुद्रसारंग.
९म= २७ वर्ण.
९२= २७ वर्ण.
&
मत्तमातंग लीलाकरे लावजो खंडरा
छेक ओछा अने तो गमे एटला.
......
४२५
९य = २७ वर्ण..
वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकाना परिशिष्ट भागमां तथा छंदोलतामां इच्छा प्रमाणे रगण करवाथी आ दंडक थायछे, एम लक्षण बांधी, उदाहरणमां १३ रगण आप्या छे. ( महाकवि कालिदासकृत श्यामला दंडकना. टिप्पणमां बे नागण+ यथेच्छ रगणथी आ दंडक बनवानुं लख्युं छे.) छंदो
मां १४ रगण सुधी, वाणीभूषणमां ११ रगण सुधी, अने प्राकृत पिंगळसूत्रमा १० के ११ रगण लाववा कव्युं छे. छंदः प्रभाकरे ९रनुं माप बतावी तेज उदाहरण आपी, नोटमां जणाभ्युंछे के, जेमां ९थी अधिक रगण होय ते पण आनाज भेदमां गणायछे वाग्वल्लभमां ९र अने छंदोमंजरीमां यथेच्छ र लाववा कछे, पण ए बने ग्रंथीनां उदाहरण ९ रनां छे, एटले. नव करतां वधारे इच्छापूर्वक रगण आणवानुं प्रमाणग्रंथोपरथी नीकलेछे. एना भेदमांथी नीचेना बे मळी आव्या छे:
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.१३२ = ३९ वर्ण. १९२=४५ वर्ण
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४२६
रणपिंगळ.
समवृत्त.
wvvvvvvvvvvwww
१४३७ कुसुमस्तबक', कुसुमास्तरण. ९स=२७ वर्ण नव सा गण शोभित तो सनजो कुसुमस्तबके प्रतिपाद विषे समजी.
१ छंदोबोध तथा कान्वल्लभ. छंदःप्रभाकरमां स यथेच्छ अने छंदोवृत्तमुक्तावलीमा १२ सतुं उदाहरण छे. १४३८ दाम.
९त=२७ वर्ण, छे तागणो खंड सर्वे मळी पादपादे बधा दाममा वर्ण सत्ताविशेथाय.
उदाहरण १२ तगणनुं छे. २४३९ वितान.
९ज=२७ वर्ण. वितान विषे जगणो नव थाय पदेपदमां कुल वीश.अने हय वर्ण.
उदाहरण १२ जगणनुं छे, १४४० वर्तुल.
९भ=२७ वर्ण. वर्तुल दंडकमांह पदेपद छे नव भा गणना विश ने हय अक्षर.
उदाहरण १२ भ गणनुं छे. १४४१ अचल.
९न=२७ वर्ण. नव तु नगण धर चरण चरण पर विश हय कुल कर अचल.
उपर प्रमाणे मय रस तजभन ए गणना दंडक थइ रह्या बाकी गल ना रह्या ते जुवो अंक १४४६ तथा १४४७ १४४२ सुधाधार.
४+३त+२भ=२७ वर्ण. चार भ उपर छे त्रण तागण तेनी परे तुं सुधाधारमाह भबे कर. १४४३ दिनकर.
१भ+<न=२७ वर्ण. एक भगण पर वसु तु न गण धर दिनकर चरण चरण रच. १४४४ सौममाला. ४जर+ज=२७ वर्ण. तेमां ९,८ यति. जराजराजराजराज, सौममालमा विराम, तो नवेज आठ वर्ण धार,
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वणेदंडक.
वर्णमेळ.
४२७
२८ वर्णना दंडक. २४४५ मकरालय. न+ग+र एम सात वर्णनो नगर गण चार
वार आवे.=२८ वर्ण. नगरनां झूमखां वरण सौ सातनां चरणमां चार छे सकरना आलये.
नगरनां झूमखां चारथी आरंभीने ९९९ वर्ण थाय त्यांसुधीनी इदमां जेटलां आवी शके तेटला आना भेद थायछे. आ उपरांत छंदोवृत्तमुक्तावलीना अभिप्राय प्रमाण नगर झूमखामां नग उपर अनुक्रमे अकेक र गण वधारवाथी इच्छापूर्वक दंडको बनेछे. एनी रचनामां कांइक चमत्कार होय एम होवू जोइये. एना नीचे प्रमाणे भेद प्रसिद्ध छ:--
क्रम. नाम.. माप. वर्ण. १४५१ पन्नगेन्द्र. न+१ग+ (र=२८ १४७८ दंभोली. न+१ग+ ९र-३१ १४९९ हेलावली. न+१+१०र३४ १५०३ मालतो. न+१+११र-३७ १५०८ केली. 'न+१ग+१२र-४० १५१० कंकेली. न+१ग+१३र४३ १५१३ लीला. न+१+१४र४६
१५१६ विलास. न+१ग+१५र=४९ इत्यादि, 'उपर- विवेचन नीचे प्रमाणे छंदोवृत्तमुक्तावलीमां करथु छे:नगणतश्चेद्गुरुस्तस्य पश्चाद्यदाष्टौ तु रेफ़ास्तदा पनगेन्द्र कृतः पन्नगैः (न+ग+८र) प्रतिपदं पन्नगेन्द्रात्पुनारेफवृद्धया तु दंभोलिहेलावलीमालती केलिकंकेलिलीलाविलासादयः (न+ग+११२) __ छंदालतामां आ विषे नीचे प्रमाणे लखेछे:--- जलधिलघोर्भवेद्रेफकैरष्टभिः पन्नगेन्द्राभिधो दंडकश्चाथ
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४२८
रणपिंगळ.
समवृत्त.
बृद्धिं कमाइंडकं प्रत्युपतीह पादे यदेकादिरेफेण चांभोलि हेलीफ़ूलीमानलीकेलिलीलाविलासादयः (न+ल+२०२)
नगणने एक लघु उपर आठ रगण लाववाथी पन्नगेन्द्र दंडक थायछे अने. त्यार पछी अकेको रगण वधारवाथी अंभोली(१४७९), हेली (१६००), धूली (१९०४), मातली (१९०७), कलि (१५०८),लीला(१५२३),विलास(१५१६)आदि दंडक थायछे.
आ बंने ग्रंथोना जूदाजूदा कथनथी भ्रांति थाय एवं छे, केमके छंदोवृत्तमुक्तावलीमा न+ग+८र अने छंदोलतामां न+ल+(र ना प्रारंभथी भेद बतावेछे अने तेनां नाममां पण अवळसवळ फेरफार थइ गयो छे, परंतु मकरालयना झूमखामां न+ग+र आवेछे तेथी छंदोवृत्त मुक्तावलीनो अभिप्राय, बीनां सबळ प्रमाणने अभावे अमे मान्य राख्यो छे. १४४६, चंद्र
२८ गुरु वर्ण. चंद्रे आवेछे अठ्ठावीशे वर्णो पादे ने पादे पूरेपूरा ओछो आवेछे उद्दाले.
अहावीश करतां एक वर्ण ओछो राखिथे तो उद्दाल (१४३४) थइ जाय माटे आ दंडकनो प्रारंभ अठाविश अक्षरथी करवो उचित छे. १४४७ ललित.
२८ लघु वर्ण. ललित चरण पर लघु तु वरण कुल विश पर वसु धर कविवर!
जो सत्ताविश. अक्षरथी प्रारंभिये तो अचलदंडक थइ जायछे, जुओ अंक १४४१.
आठ गण अने लघु गुरुना मिश्रणथी थता दंडक. १४४८ अनंग शेखर, महीधर. १४ ल ग=२८ वर्ण..
अनंगशेखरे रचाय चौद लाग सामटा
बधा गणाय वर्ण वीश आठ तो. १ महीधर नाम छंदःप्रदीप अने छदःप्रभाकरमा १४ ल गर्नु जणाव्यु छे.
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वडक.
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वर्णमेळ.
४२९
लघुगुरुना क्रमे २८ अक्षरनो आ दंडक छंदोवृतमुक्तावलीमा छे. आमां प्रत्येक पादमा इच्छापूर्वक लघु गुरु आणवा, एम प्रमाणग्रंथोनो अभिप्राय छे. प्राकृत पिंगळसूत्रमां यथेच्छ लघु गुरु लाववा केहेछे, पण तेनो वृत्तिकार लक्ष्मीनाथ भट्ट विशेषमां एम विस्तार आपछे के, लगना क्रमथी एटले यथेच्छ जगण रगणना क्रमे छेवट जगण लावी ते उपर अन्तमां एक लघु आणी २८ वर्ण अथवा तेथी वधारे १० के ११ गण उपर एक लघु आवे एम रचना करवी. पण आ कथन उचित नथी, केमके आ दंडकमा लग नो क्रम इच्छापूर्वक आणवानो प्रमाणग्रंथोनो अभिप्राय छे तेमज मूळ सूत्र छे
"लघुगुरु निजेच्छया यदा निवेश्यते तदैष दण्डको भव त्यनङ्गशेखरः ३०५." आ प्रमाणे छे तेमां पण वृत्तिकारे जणावेलो अभिप्राय आवतो नथी माटे ते ग्राह्य नथी.
.
वागवल्लभमां इच्छापूर्वक लग लाववा केहेछे, अने गोठतो आवे एवी यति आणवी एम जणावेछे, पण लक्षण बांधतां जे रचना करी छे तेमां ल ग नो क्रम साचव्यो नथी अने वर्ण २७ आण्या छे, ते पण तेनीज उक्तिथी तथा प्रमाणग्रंथोथी विरुद्ध पडतुं छे.
छंदःशाखनी टीकामां छंदोमंजरी उपरथी प्रतिपादमां अक्षर अठ्ठावीश आण्या छे, अने लघु गुरुनो क्रम साचव्यो छे, छंदोमंजरीमां यथेच्छ लग लाववा केहेछे. उदाहरणमां २८ वर्ण छे. गणप्रस्तारप्रकाशमां लगना क्रमथी ३२ वर्णना दंडकनुं आ नाम आयु छे, पण तेनां बीजां नाम द्विनाराचिका, महानाराच, एवां छेते आना भेद छे. बीजा भेद ९९९ वर्णनी हद सुधी बनी शकेछे. १४४९ अशोकपुष्पमंजरी. १४ गल = २८ वर्ण. चौदवार गा लवीश आठ वर्ण छे अशोकपुष्पमंजरी पदे पदे सदाय.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१४ गलना प्रारंभथी बेकीना ९९९ अक्षर सुधी आना भेद थायछे. १६ ग लनो सुधानिधि (अं. १४९४) आनो भेद छे.
वागवल्लभमा र ज ना क्रमे २७ वर्ण आण्या छे, तेमज छंदःकामदुधावत्समां २७ अक्षर राखी छेल्लो लघु मूकी दीधो छे. ए. विरुद्ध पडतुं छे. छंदःप्रभाकरमा यथेच्छ गुरु लघु लाववानु केहेछे. प्राकृतपिंगळसूत्रमा गुरु लघुना क्रमे अर्थात् रगण जगणना क्रमे नव गण अने तेमां नवमा रगण उपर अंते एक लघु एम अठ्ठावीश वर्ण लाववानु केहेछे. ने एज प्रमाणे छंदःशास्त्रनी टीकामां गुरु:लघुने क्रमे अठ्ठावीश अक्षर आणी तेमां छेल्लो लघु आण्यो छे. अनंगशेखर आथी उलटुं छे. जुवो अंक १४ ४ ८ मे. १४५० माला. (छंदोलता) २न+म+ग=२८ वर्ण..
द्वि नगण पर साते मा ते पूठे गा अन्ते
आणो सर्वे वर्णो अठ्ठावी' मालामांहे. १४५१ पन्नगेन्द्रः
न+ग+(र=२८ वर्ण, नगण ने गा पछी आठ छ रा गणो
शोभता पभगेन्द्रे बधा वर्ण अठ्ठाविशे. . छंदोलतामा ४लघु+(र-२८ वर्ण लाववा केहेछे, पण अंक १४३३ मे मकरालय छे तेनो आ भेद छे, ते जाणवामां नहि होवाथी छंदोलताना कर्ताए भूल करेली जणायछे. १४५२ शकायतन. (वागवल्लभ) ९भ+१ग-२८ वर्ण.
पाद विषे वसु भा गण आण
शकायतने पछी एक गुरु धर छेवट तो. १४५३ लावण्यलीलाप्लुत, उद्दाल. १न+(य+ल=२८ वर्ण.
नगण परे आठ या ने ल अन्ते धरो आप लावण्यलीलाप्लुते पादमां ठीक.
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
१४५४ आलानिक. (वाग्वल्लभ) ननर+६य+ल=२८ वर्ण.
ननर पर य छो ल अन्त आलानिके
आणजो पादमां सर्व अठ्ठाविशे वर्ण. १४५५ रंगियो,वर्णरंगी. लघु गुरुनो नियम नथी, अंते ल ग.
९,७,७,५ यति. नव साते साते ने पांचे, एम यतिना वर्ण, अंते गुरु ने लघु, रंगिया विषे. १४५६ भगवता. (ग. प्र. प्र.) भनस+नभ+नभ+मय+ल.
भा ज स परे न भ करे ज भ धरे
भगवता विषे म य पूठे अन्त ला पाद. १४५७ अश्वघाटी. तभय+जसर+नतभ+लग. =२९ वर्ण.
ता भा य छे, गण ज सा रा पछी, न त भ छे
अश्वधार्टी पदमाहे लघु गुरु वेळी. १४५८ वसुधाधर. (छंदःप्रदीप) ९स+२ल=२९ वर्ण.
स स सा स स सा स स सा धरिने लघु बे
वसुधाधर दंडक माह सदा कर, १४५९ सौभाग्य. भन+ततत+सयय+नगल=२९ वर्ण. भाज पर छे त ता ता गणो सा य या छे न गेल पाद सौभाग्य माहे सुकविराय!
गणप्रस्तारप्रकाश. १४६० वर्णक दंडक. २न+यं+लग=२९ वर्ण.
द्वि न गण पर करो या बधा सात तो वर्णके दंडके पादमां अन्त ला गा धरी.
भाषाछंदोमंजरीमां.
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४३२
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रणपिंगळ.
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૧
२
१४६१ शालुर, सालु, सोलुर. त+न+लग=२९ वर्ण.
८,८,१३ यति.
ता शालुर पर वसु, न गण चरम लग,
८ ८ ૧૩
विरति वसु वसु जख पर धरो.
समत.
१ " ब्रह्माए ए छंद सरस्वतीने कंथो, अने सरस्वतीना मुखधी शेषनागे सांभळ्यो, तेणे गरुडने को." एम लखपत जशसिंधुमां लखेछे.
२ गणप्रस्तार प्रकाश.
ariat firojariथमां प्रारंभमां वे गुरु+नगण+१सगण लाववा कयुं छे. ते माप उपर प्रमाणेज थायछे, पण तेमां पाठांतरे सगणने बदले रगण आवे एम कह्युं छे.
१४६२ स्मारमालाकुल. (वाग्वल्लभ) स+ (य+लग = २९ वर्ण.
स पछी वसु या पछी लाग तो पाद पादे रचीने तमे स्मारमालाकुले आणजो.
कामवाण.
कामनां बाण पुष्पनां बनेलां कल्पवामां आव्यां छे अने तेनी संख्या पांच छे ते पुष्पनां नाम नीचे प्रमाणे छेः
१ अरविंद, २अशोक, ३आम्र, ४नत्रमल्लिका, ५नीलोत्पल.
ए प्रमाणे कामचाण पांच होतां आ दंडक कविए पांच प्रकारना कल्पेला होवा जोइये; पण छंदोवृत्तमुक्तावलीमा लखेछे के, - स्यात्कामवाणाभिधो दंडको ऽयं यथेच्छं निवद्धैस्तसज्यैर्गुरुभ्यां च चित्ताभिहारी.
कामवाण नामनो दंडक त स ज य ए चार यथेच्छ गण उपर अनुक्रमे बे गुरु लाववाथी चिंत्तने हरण करे एवो थायले. वळी आगळ जतां आ ग्रंथकारे भुजंगविलास नामनो दंडक लख्यो छे तेनुं माप एवं आप्युं छे केः---
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वर्णदण्डक..:
वर्णमेळ.
यत्र यथारुचि भा विलसन्ति गुरू च स एष भुजंगविलासः यथारुचि भगण उपर.बे गुरु आणवाथी भुजमविलास थायछेः
आ उपरथी जणायछे के, पांच प्रकारनां कामबाण छे तेने अनुसरता त स जय. अने भ एवा पांच गण यथेच्छ लावीने उपर अनुक्रमे बे गुरु आणतां पांच प्रकारना कामबाण दंडक थायछे. यथेच्छ एटले आ दंडकना ओछामा ओछा २९ (९ गणना २७+२ग=२९) वर्ण थाय, त्यांथी प्रारंभ करीने ते ९९९ वर्ण थता सुधी जेटला करवा होय तेटला भेद प्रत्येक कामबाणना थइ शकेले. आ कामबाण दंडक एक बीजाथी ओळखावा माटे जेमां जे गण प्राधान्य छे ते गणनो अक्षर प्रारंभमां मूक्यों छे. वळी वधारे स्पष्ट थवामाटे जे जे पुष्पनां पांच बाण बन्यां छे ते ते पुष्पहुँ नाम अनुक्रमे तेनी साथे मूकीने ते पुष्पना नामथी पण ते दंडक
ओळखाय एम कम गोठव्यो छे, ते रोते नीचे प्रमाणे दंडको बनेछे:१४६३ त कामवाण, अरविंद, (पद्म.) ९त+२ग-२९ वर्णः
ताकामबाणे धरो तागणो खंड ने ते.
पछी तो करो वे गुरु अन्तमां पद्ममाहे. प्रत्येक दंडकमां २७ वर्णथी ओछा अक्षर लाववा न जोइये, एटला माटे अमे ९ तगणना २७ अक्षर उपर बे गुरु मूकी २९ वर्ण कस्या छे. एना भेद वधारवा होय तो १०, ११, १२ इत्यादि अकेको तगण वधारवाथी ९९९ अक्षर सुधीमां इच्छापूर्वक दंडक थइ शकेछे. १४६४ स कामबाण, अशोक. ..९स+२ग=२९ वर्ण.
कवि! तुं नव सा गण आण पछी गुरु बै धर पादं अशोक सकामतणा बाणे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
१४६५ ज कामबाण, आम्र. ९ज+२ग=२९ वर्ण.
धरो ज गणो नव ने पर बे गुरु तो
घरजो पद आम्र सदाय जकामबाणे. १४६६ य कामबाण,नवमल्लिका. ९य+२ग-२९ वर्ण.
धरो खंड या ने पछी वे गुरु अन्त आणो
तमे माल्लका मांह याकामबाणे पादे. १४६७ भ कामबाण,भास्मरबाण, नीलोत्पल, भुजंगविलास.
९भ+२ग= २९ वर्ण. छे नव भागणी पर बे गुरु अन्त
नौलोत्पलमां चरणे कवि! भास्मरवाणे. १४६८ मानदकर्षा. नतस+नभनसरन+गग-२९ वर्ण.
. नतस छे नाभनस, रान घर पाद पर,
चरम पछी गाग मानदजकर्षा.. आनी मात्रा ३७ छे एटले झूलणा (प्रभात) रागमां गवायछे. 'आना प्रत्येक पादना पूर्वार्द्धमा ८+८-१६ वर्ण अने उत्तरामां ७+६ अगर ८+५=१३ वर्ण आणवाथी लय ठीक सचवाशे.
१छंदमालिका प्रमाणे. १४६९ भवनिधि भजसन+नततसय २७ वर्ण:
भाजसन छे नतत्त, साय.भवनिधि विषे
पादमाहेज कवि तो वदेछे. झूलणा (प्रभात) ना रागमां गंवायछे. कारण आनी मात्रा ३७ छे. आना प्रत्येक पादना पूर्वार्द्धमा ८+८=१६ वर्ण अने उत्तरार्द्धमां ५+६=११ अथवा ७+४ मळी अगियार के तेना उलटा कडका मूकीने ११ वर्ण आणवाथी लय ठीक सचवाशे.
१ छंदमालिका प्रमाणे. (आ दंडक आटलं छपाया बाद मळी आवतां 'आहे दाखल करयो छे, ते २७ ना पेटामां गणवो.)
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
१४७० वीजकर्षा, विद्युत्कर्षा' भज+तन+सनन+स+र+ग
=२८ वर्ण
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१४७१ शोभनमणि. १
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भाज पर तान, सानान पर सगण छे' रगण पर चरम गा वीजकर्षा.
आनी पण मात्रा ३७ छे, एटले झूलणा (प्रभात) रागमां गवाय छे. आना प्रत्येक पादना पूर्वार्द्धमा छ नव, नव छ, सात आठ, के आठ सातना कडकाथी १५ वर्ण अने उत्तरार्द्धमां ९+४ = १३ वर्ण आणवाथी लय ठीक सचवाशे.
१. छंद मालिका प्रमाणे. ( आ दंडक आटलं छपाया बाद मळी? आवतां अहिं दाखल कस्यो छे ते २८ वर्णना पेटामां गणवो.)
३० वर्णना दंडक.
१४७२ नीलचक्र.
शर५ न पर रगण धर, नतभ गण ते पछी यगण पादान्त, शोभनमणीमां..
- १४७३ खंज.
४३५
५न+र+नतभ+य=३० वर्ष.:
आ दंडकनी पण मात्रा ३७ थायछे एटले ते झूलणा (प्रभात) रागमां गवायछे एना प्रत्येक पादना पूर्वार्द्धमा १०+ ८ = १८ वर्ण, अने उत्तरार्द्धमां ६+६= १२ अथवा ९+७ अने तेथी उलटा एम १२ वर्ण मूकवाथी लय ठीक सचवाशे.. १ छेदमालिका प्रमाणे.
५ रज - ३०
राज पांच थायछे बधाय पाद पादमां सदाय नीलचक्रमांह वर्ण
1
श्रीश भाई!
९ नगण+ र = ३० वर्ण..
नव नगण कविवर ! कर तरत पछी उपर घर रगण चरण- खंजमां.
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वर्ण.
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रणपिंगळ.
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४३६
१४७४ अर्ण, दंडकत्रिभंगी.
२ न + ८२ = ३० वर्ण.
.
नन पर वसु रागणो भावथी आणजो अर्णना पादमां जेथको त्रीश वर्णो बने. १४७५ सिंहविक्रीड मोटो. (१४३५) १० य = ३० वर्ण.
नव अथवा इच्छानुसार यगण मूकवाथी पण आनाज उपभेद थायछे. ral सिंहविक्रsमोटो तमे पाद पादे
૧.
य आशा गणी सामटा जेम शोभे रुडेरा. १४७६ आर्द्रस्तत्रक. (न, य, न, य, न, य, न, य, न, य.) = ३० वर्ण. शरै नय आणी प्रतिपदमां तो झट
१४७९ त्रीसुं कधित*
रचजेतुं मन घरी आर्द्रस्तवक क्रमेथी.
१४७७ बाललीलातुर. बाललीलातुर नामे आवे एवा वर्ण त्रीश रुडा घरजो जी.
वाग्वल्लभमां भ,र,न, न, र, न, ज, न, र, र, गण आण्या छे. १४७८ भाघर. १ नन सभ+नन+त र त+य = ३० वर्ण.
नन स भ पर न न, आणो त र त चरण, कवि ! अन्ते य जो करो, तो भाधर जाणो.
१ गणप्रस्तार प्रकाश प्रमाणे.
समत
गमे ते क्रमे १० गण - ३० वर्ण. दंडक रचवा का
{
१६, १४ यति (गुरु लघुनो नियम नहि.) कुलीश वर्ण पाद यति सोळ चौद धार, त्रीसुं एम-कवित तो चार पादकेरुं.
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३० वर्ण.
* व्रजभाषामां ३०, ३१, ३२ अने ३३ वर्णनां कवित थायछे, ते विषे अमे विशेष वर्णन कवित प्रकरणमां हवे पछी जणावीशुं, परंतु अत्रे एटलं जणाववानी आवश्यकता छे के, त्रीश वर्णना कवितमां बधा नियम ३१ वर्णना
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वर्णदंडक.
वर्णमेल.
कवित प्रमाणेज पाळवामां आवेछे, मात्र छेल्ली यति १५ ते बदले चौद्द्वी थायछे, अने तेमां अंते गुरु राखवामां आवेछे. घनाक्षरी नियम रत्नाकरना कर्ता ३० वर्णना कवितर्नु नीचे प्रमाणे उदाहरण आपेछे:
"जै जै वन दुलह दुलारे जसुदाके सुत, ... महाराज मोहन मदन मदहारी; आनंद अखंड रासमंडल विलास भुव,मंडलके आखडल देव हितकारी; बंसीधर श्रीधर गुपाल बनमालधर, राधाबर गोपवर गिरवरधारी; वृन्दावनचंद नंदनंदन गोविंदश्याम, सुंदर कुंवर कुंज-मंदिर विहारी."
३१ वर्णना दंडक. १४८० कळाधर. (काव्यसुधाकर) ५ रज+ग. =३१ वर्ण.
राज पांच वार थाय अन्त गा कळाधरे
सदा धरो सुदंडके भले प्रकार भावथी. १४८१ मनहर. १६,१५ यति. १० म+ग=३१ वर्ण.
सोळे ने तिथिये आवे विश्रामो बे पूरे पादे,
एकत्रीशे गुरु वर्णो सर्वे तेमां आवेछे. कवित अथवा घनाक्षरीने घणे भागे केटलाक मनहर केहेछे. तेनुं माप जुओ अंक १४८६ मा. १४८२ मनहर (बीजो.) त ज+सज+भजरस+म+त+ग-३१वर्ण.
ताजा सज छे मनहरे बाजे पछी भजर
ते पछी सभा पर ता ते पर गा अन्तमां. आ दंडक गणप्रस्तारप्रकाशमां छे.
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ત
१४८३ दंभोलि.
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रणपिंगळ.
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५.
नगण ने एक गुरु धरी ते पछी खंड आणो तमे रागणी त्रीश ने एक दंभोलिमां.
न+ग+९२=३१ वर्ण.
जुवो अंक- १४३३ नी टीप छंदोलता प्रमाणे एनुं नाम अभोलि छे अने तेनुं माप तेचा जणाव्या प्रमाणे नीचे मुजब थायछे:
९ १४८४ अंभोलि.
•
नगण घरी ल लावो तमे खंड राते पछी पाद अंभोलि मध्ये करो वर्ण एकत्रीशे.
"समवृत्त.
न+ल+ ९२ = ३१ वर्ण.
दंभोलि एटले इन्द्रनुं वज्र पण अंभोलिनो प्रसिद्ध अर्थ जाणवामां नथी, कदापि अंभस्+अलि-अंभोलि एटले पाणी उपर फरनारी भ्रमर एम अर्थ थइ शके.
आ प्रमाणे होतां पण अंभोलि नाम अने तेनुं माप दंभोलियो भिन्न 'छे एटले अमे एने जूदों दाखल कस्यो छे.
* १४८५ मुक्तामणि. १ भमर + तरन + सय+मज + ग - ३१ वर्ण. भामर साथै ताराज छे मुक्तामणि विषे
सया पर मजा पछी अन्ते गा थाय पादमां.
१ छंदमालिका प्रमाणे.
*
१४८६ घनाक्षरी. (लघु गुरुनो नियम नथी, अन्ते ग = २१ वर्ण. घनाक्षर कवित. १६, १५ यति.
एकत्रीश वर्ण जेमां गुरु लघु निम नहि, अंते गुरु एक यति सोळे घनाक्षरीमां. केटलाक आने कावत अथवा मनहर केहे छे.
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
४३९
कवित प्रकरण. घनाक्षरी आदि लइने केटलाक दंडक कवितना सामान्य नामथी ओळखायछे माटे आ ठेकाणे "कवित” विषे विस्तार आपवानी अगत्य छे. ... छंदःप्रभाकरमां कह्यु छे के "कवितनी लय ठीक थवा माटे प्रथम तेनी ध्वनी सिद्ध करवी जोइये, पछी तेमां सम अथवा विषम प्रयोगनी योग्य योजना करवी जोइये. कवितमा सम (बेकी) प्रयोगबहु कर्णमधुर छे, परंतु कहिंक विषम (एकी) प्रयोग आवी जाय तो तेनी आगळ एक बीजो विषम प्रयोग आणवाथी ते विषमता मटी समता बनी जायछे.
कवितनो साधारण नियम एवो छे के- पेहेलां त्रण अष्टक अने पछी एक सप्तक मूकवं. अर्थात् ८,८,८,७ एम वर्ण मूकवा, परंतु शब्दयोजना के विभक्तियोना संबंधथी ए विभाग करवामां कंइ कंइ अंतर पडी जायछे. जेमकेःआनंदके कंद जग ज्यावन जगत बंद दशरथनंदके निवाहेइ निबहिये:
कहैं पदमाकर पवित्र पन पालिकेको चोर चक्र पाणिके चरित्रनकोचहिये:
अवधबिहारीके बिनोदनमेंबीधिबीधि गीध गुह गीधेके गुणानुवाद गहिये;
रेनदिनआठोजाम राम राम राम राम सीतारामसीताराम सीताराम कहिये.
- आवी कठणाइने लीधे प्राचीन ग्रंथकारोए केवळ १६, १५ यति मानी छे.
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४४०
रणागळ.
समत.
- सत्य छ के-"शिष्टस्य गतिश्चिन्तनीया.". परंतु सूक्ष्मदृष्टिथी जोइयेछिये तो, एमां पण उपर जणावेलो नियम पळायछे. बीजा अंने त्रीजा चरणना पूर्वार्द्धमां १६ वर्ण छे, तो तेमाए ७ विषम आगळ ९ विषम आवीन जायछे, एटले बे विषम मळीने एक सम थइ जायछे. परंतु उत्तरार्द्ध केवळ १५ वर्णन थायछे, ते पोते विषम अंक छे, एटले तेना विभागमां बे पैकी एक स्थानमां विषमता अवश्य आववानीज. ते कारणथी आठ आठ वर्गना त्रग अष्टक अने अंतमां एक सप्तक मानी लेवु बराबर छे.जेमके उपरनुं कवितन नीचेना कोष्टकमां बताक्वामां आवेळे:
आनंदके कंदजग ज्यावन जगतवंद दशरथ नंदके नि बाहेइ निबहिये;
कहैं पदमाकर पवित्रपन पालिकेकों चोरचक्रपाणिके च रित्रनको चहिये;
अवधबिहारीके बी नोदनमें बीधिबीधि गीधगुहगीधेके गु णानुवाद गहिये;
रैनदिनआठोजाम रामराम रामराम सीतारामसीताराम सीताराम कहिये.
जे अष्टकमा सम अधिक होय तेने "सम" अने जेमां विषम अधिक होयतेने विषम" कहेवायछे. सम विषमनो विचार विशेषे करीने अष्टकना प्रथमार्द्धमांन करवो जाइये. सप्तकमां तो बधा प्रयोग विषमज थायछे ते माटे नीचे जणावेला नियमो ध्यानमा राखवा जोइयेः--
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वर्णदंडक
वर्ण.
"आनंदके" विभक्ति सहित चार वर्णनुं पद... " कहै पद" बेवर्णना बे शब्द
****
= सम.
सम.
*
"अवध" त्रण वर्णनो शब्द + "विहारी" त्रण वर्णनो शब्द-विषम.
" रैन" बे वर्णनो शब्द. "ज्यावr" aur वर्णनो शब्द " दशरथ" चार वर्णनो शब्द
= सम.
. = विषम.
सम.
(१) अष्टकमां बधा सम शब्दो रही शकेछे, जेम - " रैनदिन आठो जाम,” “कहे पदमाकरप" "वित्रपन पालिबेकों" ए त्रणे सम प्रयोग छे. जे अष्टकनो प्रारंभ अपूर्ण शब्दथी थाय छे, तेमां ते अपूर्णने सम मानो लेवो जोइये; कारणके एनी. विषमता तेना आदिना पदांतमां लोपाइ गइ होय छे. जेमके :"वित्रपन" = ४ वर्ण. - "नोदनमे" ४ वर्ण. ए वे सम छे. (२) अष्टकमां विषम विषम अने सम पण रही शकेछे. जेमके "अवध विहारीके वि", "कुंजमें ललित केलि," "कौनको सुजस गाय, " ए त्रणे विषम प्रयोग छे.
--
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(३) अष्टकमां कहिं कहिं सम, विषम, विषम, एम पण आवेछे. प्रेम " राम भजन करत. " ए विषम प्रयोग छे. आ सम, विषम, विषम, प्रयोग प्रथम कहेला बे प्रयोगोथी उतरतो छे एटले विशेषे करीने एवो प्रयोग थतो नथी. एटले एनी गणना सर्वथी छली करी छे. केवल बत्रीश वर्णोंना कवित अथवा बीजा दंडकोमा ए कहि कहि काममां आवेछे अने ए प्रयोग ज्यां काममां आवेछे, त्यां आदिथी अंतसुधी आखुं अष्टक एक सरखुं थायछे.
( ४ ) बे विषमना वचमां एक सम आववुं न जोइये. जेमके "कुंज में केलि ललित" "कौनको गाय सुजस" इत्यादि. ए बे अष्टक कर्णकटु छे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त
(५) अंत्य सप्तकमां सात वर्ण होवाना कारणथी सर्व प्रयोग विषम थायछे. जेमके "सीताराम कहिये." "रित्रनको चाहिये,"
“णानुवाद गहिये." "बाहेइ निबहिये." "रामहिं मनाइये."... - "राधिके शरण है.” इत्यादि. (६) सोळ अने पंदर वर्णोपर शब्द पूर्ण होवोन जोइये. (७) समअथवा विषम प्रयोगनो योग्य उपयोग प्रत्येक अष्टक
मां अथवा अष्टकना परस्पर संबंधमां पण राखवो योग्य छे.. निकृष्ट प्रयोग रचवाथी बनी शके तेटलुं अलग रेहे,
जोइये, नहितो कवित कर्णकटु थशे. (८) कवितनी रचनामादे नीचेनुं कवित कंठस्थ करवू लाभकारी थशे. आठ आठ आठ पछी, सात वर्ण सारा सज, अंतपर एक गुरु, धारी धारी आणजे; सम सम सम सम, विषम विषम सम, सम पछी चे विषम, एम योग जाणजे; युगल विषम मध्य, समपद सज नहि, लय नष्ट थाय,सज्ये एम उर धारजे, आवी रीति प्रतिपद, नियंम कवित केरा,अंतरमा आणी आणी, कवित सुधारजे. . प्रत्येक कवित अथवा सवैयाने बेवार बोलवानी रीति छे, केमके तेनो संपूर्ण आशय चोथा चरणमां अथवा तेना पण उत्तरार्द्धमा रहेलो होयछे. एटले चो) चरण बोलवानो समय आवेछे, त्यां सुधी पेहेला त्रण चरणनो संबंध ठीक स्मरणमां रेहेतो नथी, एटले तेने बेवार बोलवाथी सारी रीते अर्थ समजी शकायछे." छंदःप्रभाकर बीजी आवृत्ति (पृ. १८८ थी १९०)
कवित विषे विशेष विचार. जे दंडक कवितना सामान्य नामथी ओळखाय छे, अने जे : ३.०थी ते ३३ वर्ण सुधीना बनेछे, ते विषे श्रीयुत बाबू जगनाथदासे "घनाक्षरी नियम रत्नाकर' नामनो ग्रंथ बनाव्यो छे; तेमां तेना विशेष नियम नीचे प्रमाणे जणाव्या छे:----
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
४४३
नियम पेहेलो. कवितना.चरणनी आदिमां तथा ४,८,१२,१६,२०,२४ अने २८ एम चच्चार चडता वर्ण पछी कोइ शब्दनो आरंभ थाय तो तेना आदिमां जमण (ISI) के त गण (ss) न आववो जोइए; वळी एवा शब्दना आरंभमां यगण (Iss) के म गण (sss) आववाथी पण मध्यम श्रेणीनी गति थइ जायछे.
पण तेमां एक वात लक्षमा राखवानी छे के, त्रण वर्णथी ओछा वर्णना शब्दने आ नियम लागु पडतो नथी. केमके त्रण वर्गयो ओछा वर्णनो गग बनी शकतो नथी; जेमके "न होयं" एम आदिमां रचना आवे, तेमां आदि शब्द "न" त्रण अक्षरनो गण बनेछे ते करता ओछी संख्यानो छे, ते साथे "होय" शब्द जोडायाथी जगण बनेछ; अने आदिमां जगण आणवानो निषेध कस्यो छे; तोपण ते "न होय" एवी रचनाने लागु . पडतो नथी. पण---
“निकुंज विलोकी वर वृंदावन काननके,
लाजे बन नंदन यों शोभा सरसति है." आ उदाहरणमां “निकुंज” शब्द त्रण अक्षरनो परिपूर्ण छ. अने तेनो जगण बनेछे, तेथी सरळताथी बोलवामां उच्चार करी शकातो नथी, तो उक्त नियमथी विरुद्ध छे. चार अक्षर पछी पण जगणादि शब्दनो निषेध छे.जेमके
"दूरहीसों कलींद सुता रंध्रन बीचिनिसों,
भीनी श्याम रंगमें सुखद दरसति है." एमां चार अक्षरो पछी “कलींद" शब्द जगणादिवाळो होला गति बगडेछे.
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४४४
रणपिंगळ.
समवृत्त.
आरंभमां तगणादि शब्दनो निषेध छे. जेमके"आकाशमें लसति सुहाई मनभाइ घटा,
छहरी छेहरी बुंद झीनी बरसती है". एमां आरंभमां-"आकाशमें" एशब्द तगंणादि छे, तेथी गति बगडेछे. पण चार अक्षर पछी तगणादि शब्दनो निषेध छे. जेमके
"ऐसे समै सारंगधर क्यों न चले वीर!
बैठी कहा मनमैं मसूसी तरसती है". एमां आरंभना चार अक्षर पछी सारंगधर अंतर्गत “सारंग" शब्द तगणादि छे, तेथी गति बगडे. ___ आरंभमां मगणादि शब्द मध्यम छे. जेमके
"आकांक्षी तिहारे दरशनको भयो हौं हौं तो" - एमां आरंभनो “आकांक्षी" शब्द मगण होतां गतिने मध्यम करेछे।
चार वर्ण पछी मगणादि शब्द मध्यम छे. जेमके-- . "केसनमें तातारी मृगमद सुगंध लसै"-इ. एमां आरंभना चार अक्षर पछी "तातारों" शब्द मगण छे, तेंथी मध्यम गति थायछे. प्रारंभमां यगणादि शब्द मध्यम छे. जेमके
"निकाई तिहारी पर वारी जाती रंभा रमा--" इ. एमां प्रारंभमां "निकाई" शब्द यगण होतां गति मध्यम श्रेणीनी बनावी देछे.... चार वर्ण पछी पण यगणादि शब्द मध्यम छे. जेमके--
"जोम भरो जवानी"--इ० एमां चार अक्षर पछी “जवानी” शब्द यगण छे, तेथी गति मध्यम थायछे. एन रोते ८,१२, इत्यादि वर्णो पछीनेमाटे पण समजी लेवू.
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वर्णदंडक.
वर्णमळ.
४४५
anwwwww
inn
पेहेला नियमनो अपवाद. __ जो आरंभमां अथवा चार, आठ, इत्यादि वर्णोनी पछी एवो शब्द आवे के जे चार अक्षरनो पूरो एक शब्द होय तो जगण, तगण, मगण तथा यगण आरंभमां अथवा चार वगैरे वर्णो पछी आववा विषे आगळ जे पेहेला नियममां कहीं गया छिये तेनो बाध आवतो नथी; पण जो ते चार अक्षरना शब्दनो अन्त्याक्षर गुरु होय तो गति मध्यम थइ जायछे. चार वर्णमां जगणादि शब्द निर्दोषY उदाहरण.
"छपाकर छत्रे मोती झालरन छत्र 'मानो.". एमां आरंभे "छपाकर" शब्द जगणादि छे, तथापि चार अक्षरनो पूरो शब्द होतां ते निर्दोष छे.
चार वर्णना तगणादि शब्द निर्दोषY उदाहरण. __ "चामीकर देखिकै लजात रूप रावरों है."
एमां आरंभमां "चामीकर" शब्द तगणादि छे, तोपण ते. चार वर्णनो एक पूरो शब्द होवाथी निर्दोष छे. चार वर्णना यगणादि शब्द मध्यम नहि. उदाहरण.
"निराधार प्राण, बिन प्रीतम रहेंगे किमि." एमां आरंभमां "निराधार" शब्द यगणादि छे, परंतु ते चार वर्णनो एक पूर्ण शब्द होवाथीं मध्यम नथी... चार वर्णनो मगणादि शब्द मध्यम नहि. उदाहरण.
"पारावार पूरन अपार पार ब्रह्म रासि"-इ. एमां आरंभ मां "पारावार" शब्द मगणादि छे, परंतु चार वर्णनो एक पूर्ण शब्द होवाथी मध्यम नथी...: ..
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समवृत्त
| নষ্ট, • mmmmmmmmmmmmmmmmmm - एनप्रमाणे चार, आठ, इत्यादि वर्णो पछीने माटे पण समजी लेवु.
चार वर्णना जगणादि गुर्वन्त शब्द मध्यम.
"विभावरी संग कोक शोक लाग्यो बाढन है" एमां आरंभमां "विभावरी" शब्द जगणादि छे, अने चार वर्णनो पूरो शब्द छ, तथापि अंतमा गुरु होवाना कारणथी मध्यम छे.
चार वर्णना तगणादि गुर्वत शब्द मध्यम.
"धर्मध्वजा धारी है विचारत न बात नेक"एमां आरंभमा “धर्मध्वजा" तगणादि शब्द जो के चार वर्णनो पूरो छे, तथापि गुर्वन्त होवाना कारणथी मध्यम छे.
चार अक्षरना मगणादि गुर्वन्त शब्द मध्यम.
"धर्माचारी धर्मकी कहानी कहें लाख भांति" एमां आरंभमा “धर्माचारी" शब्द मगणादि चार अक्षरनो पूरो छे, तोपण गुर्वन्त होवाथी मध्यम गणायछे.
चार वर्णना यगणादि गुर्वन्त शब्द मध्यम. .. "समाधानी करत रहत समाधान सदा"एमां आरंभमां "समाधानी" यगणादि शब्द जो के चार वर्णनो पूरो छे, तथापि गुर्वन्त होवाना कारणथी मध्यम छे.
एज प्रमाणे चार, आठ, इत्यादि वर्णो पछीना वर्ण माटे पण समजवू.
नियम बीजो. - जो कोइ शब्द ५, ९, १३, १७, २१, २५, अथवां २९ अक्षर उपर समाप्त थाय तो तेना अंतमां लघु गुरु (15)
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वर्णदंडक
वर्गमेळ.
४४७
आववा जोइये. परंतु तेना अंतमां जो वे गुरु (ss) आवे तो तेनी गति सर्वथा नष्ट तो थती नथी, पण मध्यम श्रेणीनी तो अवश्य थइ जायछे:
निर्दोषनुं उदाहरण. "सिन्धुको सपूत सुत सिन्धुवनयाको बन्धु"-इ.... एमां "तनया" शब्द तेर अक्षर उपर समाप्त थायछे, अने तेना अंतमां लघु गुरु (15) छे, तेथी ते निर्दोष छे. .
बे गुरु मध्यमर्नु उदाहरण. "आज सुदामाके खाइ तन्दुल अघाने इमि.” इ एमां "सुदामा" शब्द पांच वर्णपर समाप्त थायछे, अने तेना अंतमां बे गुरु छे, तेथी गति मध्यम थइ गइ छे.
. दूषितर्नु उदाहरण, "निरखि श्याम सुघर धीरज धरै न मम"-इत्यादि. तथा "निरखी मृदु निकाइ धीरज धरै न मन” -इत्यादि.
आ बने उदाहरणोमां "श्याम" तथा "मृदु" शब्दो पांच वर्ण पर समाप्त थायछे, परंतु तेना अंतमां लघु गुरु (15) अथवा बे गुरु (ss) न होवाथी गति बगडी गइ छे. ___ एज प्रकारे नव, तेर, सत्तर, इत्यादि अक्षर पर पूर्ण थता शब्द विषे पण समनी लेवु.
नियम त्रीजो. - ५,९, १३, १७, २१, २५ अने २९ वर्णोनी पछी आवनारो शब्द जो एक वर्णनो होय तो ते गमे तो लघु होय अथवा गुरु होय तो चाले; परंतु ते जो एकथी वधारे अक्षरनो होय तो तेना आदिमां लघु आणवो जोइए,
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ઉછર્ટ रणपिंगळ.
समवृत्त. निर्दोष उदाहरण. १ पांच नव तेर अने, चार चार चडतांनी,
पाछळ होय जो शब्द, एक वर्ण आवतो; २ ते लघु के गुरु होय, तोय तेनो दोष नहि,
उलटो जणाय ए तो, कवि मन भावतो; ३ पण जो ते शब्दमाह, वधु वर्ण होय तो तो,
लघु लागे कर्णप्रिय, कवित शोभावतो; ४ षट दश चौद अने, ते पछी अढार बावी
छविश ने त्रीश एम, लघु कवि लावतो.
आना प्रथम चरणमां “तेर" ए शब्द अंतर्गत "र" लघु छे. अने तेर वर्ण पछी "चडतानी" शब्द छे ते "च" लघुथी प्रारंभायलो छे. प्रथम चरणना उत्तरार्द्धमा “पाछळ" शब्द अंतर्गत १८मो वर्ण “छ" लघु छे अने बावीशमो वर्ण "जो" परिपूर्ण एकज वर्णनो एक शब्द छे तेथी ते गुरु छे तोपण तेनो बाध नथी. ए प्रमाणे बीजार्नु पण अंक उपरथी समजी लेवं.
दूषितर्नु उदाहरण. " मेघ बरसैं बीर बडी बडी हैं बुंद लखो" इत्यादि. एमां पांचमा अक्षर पछी “बीर” शब्दनो आरंभ गुरुथी थायछे, तेथी गति दूषित थायछे. एज प्रमाणे ९, १३ इत्यादि वर्णोनी पछी पण समजी लेवु.
नियम चोथो, २, ६, १०, १४, १८, २२ अने २६ वर्णो पछी जे शब्द
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
४४९.
आवे तेना आदिमां जगण, तगण, पराण, अने युगणमाथी गमे ते होय तो मध्यम गति थायछे.
वे अक्षर पछी जगणादि मध्यमर्नु उदाहरण. “देखी निकुंजनकी अनुप सुखमाको रूप,
हियमें हुलास बाढयो कहत बनै नहि."-इ. एमां बे अक्षरो पछी “निकुंजन" जगणादि शब्द मध्यम छे.
बे अक्षर पछी तगणादि शब्द मध्यम. "घेरि आकाशहि राख्यो सरस घनेरी घटा,
चपला चमं चख चहत बनै नहि."-इ. एमां बे अक्षर फ्छी "आकाश" शब्द तगण होवाथी मध्यम
वे अक्षरो पछी मगणादि शब्द मध्यम. "गं. सारंगीनि मंजु गुंजै यों भँवर भीर,
केकी सहनाइसुर रंचक गनै नहि."-इ. एमां बे अक्षरपछी “सारंगीनि” शब्द मगणादि होवाथी मध्यम छे.
वे अक्षर पछी यगणादि शब्द मध्यम. "ऐसी निकाईहिं लखि मान तजी एरी बीर,
जोगी जनहूसों सुनि धीरज ठनै नहि."-इ. एमां बे अक्षरो पछी “निकाई' शब्द यगण होवाथी मध्यम छै. एन प्रमाणे ६, १० इत्यादि अक्षरो पछी पण समजी लेवु.
नियम पांचमो. ३,७,११,१५,१९,२३ अने २७ अक्षरो पछी जे शब्द आवे. अने. ते. एकथी वधारे अक्षरनो होय तो तेना आरंभमां लघु
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૧૦
रणपिंगळ.
गुरु ( 15 ) होवानी आवश्यकता छे, पण जो ते एकज अक्षरनो शब्द होय तो तेने माटे कंह नियम नथी..
निर्दोषनं उदाहरण..
" शोभाक सकेलि ऊंची बेलि बाँधी बलीभद्र, राख्यो सम लोचन कुरंगनिको रोस है; दीपतिको दीपककै मुख दीपको सुमेरु, मृदु मुख सारसको सिफाकन्द जोस है;; कलपतरो वरकी कली कैधा कुंदफली,, उपमा अनुपनिको विध निसोस है; तिलको सुमन है कि नासिका तरुनि तेरी, सुखकी सरन कैधों सौरभको कोस है. "
.
आमां पंहेला चरणमां त्रण अक्षर पछी "सकेलि" शब्द: अने २३ वर्ण पछी । “कुरंग" शब्द; तथा त्रीजा चरणमा ३
अक्षर पछी "तरोवर" शब्द, १९ अक्षर पछी " अनुपनि " शब्द अने २७ अक्षर पछी "निसोस” शब्द लघु गुरु (IS)) थी आरंभायछे.
समवृत्त.
बीजा चरणमा ३ अक्षर पछी "कों" शब्द, ७ अक्षर पछी "कै" शब्द अने २३ अक्षर पछी "क" शब्द गुरु पडेला छे.. • वळी चोथा चरणमा ७ अक्षर पछी "कि" शब्द लघु छे, पण ते एकाक्षरी शब्द होवाथी बने रूप निर्दोष छे.
एज प्रमाणे बीजां स्थानोंपर पण समजी लेवं जोइये..
दूषित उदाहरण.
"सरस बन लसत नाचत मयूरगन" इ..
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४५१
m
__ "सरस कुंजनी लखि नाचत मयूरगन" इ.
"सरस. आकाश लसै नाचत मयूरगन" इ.. एमांत्रण वर्णो पछी “बन” "कुंज” तथा “आकाश” शब्दो. लघु गुरु (Is) थी आरंभाता नथी, तेथी गति बगडेछ. . एज रीतेः बीजां स्थानो उपर पण. समजी, लेवु जोइये.
पांचमा नियममां अपवाद.. जो ३ अक्षर पछी नगण (।।।) नो पूरो शब्द आवे तो घाले. अर्थात् जो तेता आरंभमां लघु गुरु (15) थता नथी, तोपण ते निर्दोष छे..
जेम-उपरना “शोभाको सकेलि” ए शब्दोथी आरंभाता कवितना चोथा चरणमा ३ अक्षर पछी "सुमन" शब्द तथा १.१ अक्षर पछी "तरुनि" शब्द त्रण लघुना पूरा होवाथी. निर्दोष छे.. एज प्रमाणे बीजी जग्याए पण समजq.
एकंदर गुरु लघु संख्याविषे. अंते एक वात ध्यान आपवा योग्य जणायछे के प्रस्तारनी सेति प्रमाणे जेटलां रूप घनाक्षरीनां थाय, सेटलां तमाम आवी शकेछे, तोपण घणा लघु अथवा घणा गुरु एकन स्थानमां आववाथी रुचिकर थता नथी एटले ए वात उपर ध्यान आपq. जोइये के,-१२थी वधारे गुरु अने २४थी वधारे लघु एकठा न थइ जाय तो सारु. १० गुरु तथा २३ लघु सुधीनां उदाहरणो. मक्री आवेछे..
सामान्य विचार.. कवितनी रचनामां कये स्थाने केवा प्रकारना कया शब्दनी
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४५२.
रणपिंगळ.
समवृत्त.
केवी रीते योजना करवी, ए कर्त्ताना ज्ञान, अनुभव, सुघडता, सहृदयता, अभ्यास अने निपुणता उपर आधार राखेछे. ए विपे व्रजभाषाना कवि पद्माकर, पजनेस, तथा बुदेलखंडी किशोरादिनां कवितोनी गति सारी मार्गदर्शक थशे.
३० अने ३३ अक्षरनां कवित घणा कवियोना काव्यमां जोवामां आवतां नथी. अने ते कानने पण विशेष रुचिकर थतां नथी. तेथी ते विषे विशेष वर्णन करवा उचित धारता नथी. जे नियमो ३१ तथा ३२ वर्णना कवितोने माटे नक्की करवामां
आव्याछे, तेज ३० अने ३३ वर्णनां कवितोने पण लागु पडेछे. ___ ३१ वर्णना कवितमांथी एक अंत्याक्षर कमी करवाथी ३० अक्षरवाळु कवित बनी शकेले. अने ३२ अक्षरवाळा कवितना अंतमां एक अक्षर वधारवाथी ३३ अक्षरवाळु कवित थायछे. परंतु ३.३ अक्षरवाळा कवितमां अंतना त्रण किंवा वधारे अक्षरो लघु होवानी आवश्यकता जणायछे. अथवा वीप्सा थवा माटे त्रण लघु अक्षरवाळो शब्द बे वार आवे तो ते अत्युत्तम छे.
यति विचार. विशेषे करीने प्रत्येक ग्रंथमां कवितमां १६ अक्षरे यति मानी छे एटले "मनहर घनाक्षरी"ना एक चरणमां १६,१५ अने “रूपघनाक्षरी"ना प्रत्येक चरणमा १६,१६ अक्षरे यति आवे, एज रीते ३० अक्षर वाळा कवितमा १६ १४, अने. ३३ असरवाळा- कवितमा १६, १७ अक्षरे यति आवेछे. कोइ कोइ कविये ८,८,८ उपर त्रण यतियो मानी छे, पण ते नियम सुप्रसिद्ध कवियोनां कवितोमां पण सर्वत्र पळायो स्थी. एटले सर्वसंमत नथी. वळी १६ अक्षर उपर यति नक्की.
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४५३
वर्ण
.
.
.
करेली छे, तथापि केटलाक-सारा कवियोए ते नियमनो केटलीक जगोए भंग कस्यो छे, तेम छतां तेवां कवित कोइ पण रीते अरुचिकर थतां नथी-अर्थात् १६ अक्षर पर यतिनो नियम छे, पण तेनी अति आवश्यकता नथी, एम जणाइ आवेछे. साधारण रीते आवा दंडको कवितनी संज्ञाथी
ओळखायचे, ते नीचे प्रमाणे:क्रम. अंक नाम.
माप. १ १४७९ त्रीशु कवित............१ अंते गुरु १६, १४ यति.
गुरु लघुनो नियम नहि.. २ १४८६ घनाक्षरी, घनाक्षर......: गुरु लघुनो नियम नहि अंते).
. ग. १६, १५ यति. ३ १४८७ कवित, मनहरण........ लघु गुरुनो नियम नहि. ...
१ ८, ८, ८, ७ यति. 1 ४ १४८८ विशाळ ...........
S गुरु लघुनो नियम नहि.
र १६, १५ यति. ५ १४८९ खंजविशाळ ......
S गुरु लघुनो नियम नहि. ।
" . १५, १६ यति. ३१ ६ १४९० जनहरण..................३० लघु+ग;...............३१ ७ १४९१ वर्णककुंडळी ...............यथेच्छ ३० वर्ण+गल......३२ ८ १४९२ उपविशाळ.:........... यथेच्छ ३० वर्ण+गल.)
" १६, १६ यति.
(यथेच्छ ३० वर्ण +लल. ९ १४९३ द्वितीय उपविशाळ...... १
..
१ १६ यति. १३२ .१० १४९४ कृपाण, किरपाण......, यथेच्छ ३० वर्ण+गल ?..
८, ८, ८, ८ यति. ११ १४९५
रूपक घनाक्षरी, रूप घना- गुरु लघुनो नियम नहि अंते।.. क्षरी ............... ल ८, ८, ८, ८ यति. '
। यथेच्छ ३० वर्ण+लल. १२ १४९६ जलहरण, बत्रीशुं कवित्त.
.. ८, ८, ९, ७ यति. २१
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४५४
१३ १४९७ : मनोहर..
१४ १४९८ रंगीका....
१५ १४९९ डमरु...
१६ १५०४ विजया......
......
***
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रणपिंगळ.
*****......
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f यथेच्छ ३० वर्ण+लल. ( ८, ८, ८, ८ यति.
( यथेच्छ ३१ वर्ण ल. १०, ८, ८, ६ यति.
....... बधा लघु वर्ण...
समवृत्त.
.......
}
'यदि वर्ण ।
अंते लग अथवा नगण. यथेच्छ ३३ वर्ण. गुरु लघुनो नियम नहि. १६. १७ यति.
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३२
}
३२
३२
३२
१७ १५०५ त्रीशुं कवित..
१४८७ कवित, मनहरण. लघु गुरुनो नियम नहि ८,८,८,७ यति. ३१ वर्ण. आठ आठ आठ साते, यति एकत्रीश मांह,
गुरु लघु केरो निम, कवितमां छे नहि. आने पंण केटलाक मनहर के छे. एकत्री, बत्रीशुं अने तेत्रीशुं कवित केहेवायछे. वृत्तरत्नावलीमां नीचे प्रमाणे छे:
३३
एकद्वित्रियुतास्त्रिंशद्वर्णाः संति कवित्वके, अन्ते गुरुलघुप्सातः क्रमात् कविभिः कृता वीप्सा त्रिवर्णाभिहिता गुरुशून्या सुखावहा, अन्यथा कर्णतुलया तोलिता विषमा भवेत्.
व्रजभाषामा कवित घणां रचायां छे, अने तेमां उपर लख्या प्रमाणे प्रासमां वीप्सा आणेली घणी जोवामां आवेछे, अने ते aatai अने त्रीशां कवितमां होयछे. तेमां छेल्ला बे के ऋण लघुवाळी वीप्सा मधुरी लागेछे.
मनहरण दंडकनुं राजा संग्रामसिंहजीकृत काव्यार्णवमां १६ अने १५ अक्षर मळी ३१ अक्षरनुं चरण कह्युं छे. अने तेनुं बीजुं नाम सौरदंडक आप्युं छे. वळी वृंदावनकृत छंदो
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वर्णदंडक.
वर्णभेळ.
निधि पिंगळमां मनहरण दंडकना (१) प्रकर्ष, (२) काम, (३) सोमकर, अने (४) शोभाधर ए प्रमाणे चार भेद कंह्या छे, तेनां लक्षण नीचे प्रमाणे आप्यां छे:---- (१) प्रकर्षनुं लक्षण. (दोहा).
शश दश पुनि घट नख बरन, चरन होत विश्राम; इकतिस बरनहि अंत गुरु, दंडक प्रकर्ष नाम. प्रथमनो "शश' शब्द ते दशने बदले हस्तदोष होय तो अने नख एटले वशिने बदले पांच गणिये तो १०,१०,६,९. =३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, एवो अर्थ थाय.. (२) कामनुं लक्षण. (दोहा)
वसु वसु वसु पुनि सात पर, विरति अंत गुरु होय;
इकति बरन वसु चरनहिं, काम नाम हे सोय. ८,८,८,७=३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, तेने काम दंडक केहे छे. उपर जणावेला काव्यार्णव ग्रंथमां पण आ दंडकनुं माप उपर प्रमाणे छे. उपरना दोहाना उत्तरार्द्धमां "वसु चरनहि" ए कंइ अशुद्धि छे. (३) सोमकर. लक्षण. (दोहा)
अंत गुरुहि कामस बरन, चरन एक परमान;
वसु वसु पुनि पंद्रह विरति, कहत सोमकर जाने. ८,८,१५=३१ वर्ण तेमां अंते गुरु. “कामस बरन" एटले काम समान वरण ३१ एवो अर्थ थइ शके.
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समवृत्त
रणपिंगळ. wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
(४) शोभाधर. लक्षण. (दोहा) दश दश पट नव पर विरति, प्रथम तृतिय पद होय; चतुर द्वितीय वसु आठपर, नव अक्षरपर सोय इकतिस बरन सुचरन इक, पछपाछे गुरु दीन; सो शोभाधर कहतहै, वृंदावन परबीन.
दश, दश, छ, अने नवने बदले नख एटले पांच करिये तो पहेला तथा त्रीजा पदमा १०+१०+६+५=३१ वर्ण थाय. अने बीजा तथा चोथामां चतुर द्वितीय-६+६+६+९=३१ वर्ण थाय
अने दरैक पदने अन्ते गुरु आवे. १४८८ विशाळ. लघु गुरुनो नियम नहि एवा ३१ वर्ण.१६,१५ यति.
नियम विनाना वर्ण एकत्रीश विशाळमां, सोळने पंदरपर विरति रचायछे.
, छंदोवृत्तमुक्तावली प्रमाणे. १४८९ खंजविशाळ. गुरु लघुनो नियम नहि एवा ३१ वर्ण.
. १.५,१६ यति. तिथि सोळ यतिथी वर्ण एम एकत्रीश,
चरण खंजविशाळ कविवर! तुं संभाळ. छंदोवृत्तमुक्तावलि प्रमाणे. कृष्ण कवि कलानिधिकृत वृत्तचंद्रिकामा आनुं नाम चपलाघनाक्षरी जणाव्युं छे. १४९० जनहरण. ३० लघु+ग-३१ वर्ण.
जनहरण चरण त्रीश लघु धरौं रच,
उपर पृथिवी गुरु धर तुं चरममां. छंदःप्रभाकरमा जणावेछे के कोइ कोइ कविये आने जलहरण कह्यो छे ते अप्रमाण छे. गणप्रस्तारप्रकाशवाळा रामदासजिये एने मनहरण मान्यो छे.
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वर्णदंडक
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वर्ण मेळ,
३२ वर्णना दंडक,
१४९१ वर्णककुंडली. यथेच्छ वर्ण ३० + ग+ल= ३२ वर्ण. वर्णककुंडली विषे, यथेच्छ श्रीश अक्षरो
ते पर अन्तमा गुरु, लघु लावो धारी आप ! १४९२ उपविशाल. यथेच्छ वर्ण ३०+गल = ३२ वर्ण. १६, १६ यति. त्रीश छे यथेच्छ वर्ण गुरु लघु अन्तपर, उपविशाल कविते सोळ सोळ पर छेद.
छंदोवृत्तमुक्तावली तथा कलानिधिकृत वृत्तचंद्रिका प्रमाणे.
१४९३ द्वितीय उपविशाल. यथेच्छं वर्ण ३०+ल+ल=३२ वर्ण. मां १६, १६ यति.
श्रीश वर्ण गमतेम पछी बे लघु छे अन्त,
द्वितीय उपविशाल छेद सोळ सोळ पर.
१४९४ कृपाण, किरपाण यथेच्छ ३० वर्ण + गल = ३२ तेमां ८,८,८,८ यति.
कृपाणमां आठ आठ, एम यति केरो पाठ,
४५७
बीस वरण ठाठ, चरण चरम गा ल.
छंदः प्रभाकर प्रमाणे आनी प्रत्येक यति सानुप्रास लाववी जोइये. विशेषे करीने आ वृत्तमां वीर रसनुं वर्णन थायछे. प्रत्येक चरणना अंतमां न कारनो प्रयोग अति कर्णमधुर मान्यो छे. जमके तेना उदाहरणमां " महान घमासान, तडितान" इत्यादि शब्द आवेछे, जुवो छंदः प्रभाकर बीजी आवृत्ति पृ. १९३
१४९५ रूपकघनाक्षरी, रूपघनाक्षरी, वर्णकमनहर.
३९
लघु गुरुनो नियम नथी, अन्ते ल. ८,८,८,८ यति = ३२ वर्ण. रूपकवनाक्षरीमां, चार यति आठ केरा,
૩૨
अन्तेल आणो एक, कुल वर्ण रद मांह.
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४५८
रणपिंगळ.
समवृत्त. rwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
छंदोलता तथा छंदःप्रभाकर १६,१६ यति केहेछे. भाषा छंदोमंजरी आने वर्णकमनहर केहेछे. १४९६ जलहरण, लघु गुरुनो नियम नथी.
। ३२ वर्ण.
, वत्रीशुं कवित.। अन्ते २ ल. १६,१६ यति.
बत्रीशा कवितकेरा रद वर्ण अन्त बेल,
जलहरण छे नाम सोळ सोळ पर यति. कोइ कोइ आनुं नाम जनहरण आपेछे, ते छंदःप्रभाकर, अप्रमाण केहेछे. ब्रिजभाषाना ग्वाल आदि कवियोए ३२ अक्षरनां विप्सावाळां कवित घणां कस्यां छे. १४९७ मनोहरण. यथेच्छ वर्ण ३०+२ ल-३२ वर्ण.
८, ८, ८, ८ यति. चार वसु केरी यति, बत्रीशा कवितमांह,
अन्ते बे लघु लावेछे, रचतां मनोहरण. .
जलहरण प्रमाणेज माप छे, मात्र यतिमांज फेर छे. १४९८ रंगीका. गुरु लघुनो नियम नहि, अंते लघु. ३२ वर्ण.
१०, ८, ८, ६ यति. दश आठ आठ छये यति, गुरु लघु नि'म नथी, वर्ण दांत रंगीकामां, अन्त लघु आण. आ अन्त्य लघुवाळु बत्रीसाक्षरी रूपघनाक्षर नामे कवित छे, आनुं माप रूपघनाक्षरी प्रमाणेज छे, मात्र यतिमां फेर छे. १४९९ डमरु.
बधा लघु. ३२ वर्ण. प्रति चरण चरण रद धर सुवरण
डमरु कवित कर कविवर! स्मर हर. आ दंडक काव्यसुधाकर तथा छंदःप्रभाकरमां छे. छंदःप्रभाकरमां ११+११+५+५=३२ वर्ण कद्या छे, अने जणाव्यु छ के." श्रीयुत भीखारीदासजी अने वैजनाथजी आने जलहरण मानेछे.
३२
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
१५०० सुधानिधि. गुरु लघुने क्रमे ३२ वर्ण.
गाल छे क्रमे क्रमे सुवर्ण शुद्ध दांत सर्व
धारजो गणी गणी सुधानिधि विष सदाय. आ दंडक अशोक पुष्पमंजरीनो भेद छे. छंदमालिकामां आनुं माप ३ भ+जर+जज+नभज+गग-३२ आप्यु छे. १५०१ धनपाळी. रतन+न रज+र न भ+न गंल-३२ वर्ण,
रातना नाराज धर पद धनपाळ दंडके रची र ना भ कर ना ग ल चरममांह.
१ गणप्रस्तारप्रकाश प्रमाणे, १५०२ द्विनाराचिका, महानाराच. १६ ल ग=३२ वर्ण.
रचाय द्विनराचिका महानराच मांह तो, ___ पदे लघु गुरु क्रमे बधा बतीश अक्षरो.
अनंगशेखर पृ. ४२८ अंक १४४८ मे छे, तेनो आ भेद छे. गणप्रस्तारप्रकाश तथा छंदमालिकामां आनुं नाम अनंगशेखर आप्युं छे, पण आ तो तेनो भेद छे, अन तेनां उपर प्रमाणे बे नाम तो प्रसिद्ध छे. आ कवि नर्मदाशंकरना जाणवामां नहि होय तेथी तेमणे नाराचथी बमणो "नर्मछंद" पोताना नामथी नवो कल्प्यानुं जणाव्युं छे. १५०३ खंजोपविशाळ. · १५, १७ यति. ३२ वर्ण,
वर्ण दंत आणवा खंजोपविशाळ थवा,
तिथिने सतरे सारा छेद शोधी आणवा नवा. १५०४ विजया. ८, ८, ८, ८, यति.
__ अन्ते ल ग अथवा नगण.-३२ वर्ण. अक्षर बधा बत्रीश छे, विरति वसु उपर, अंतमां लग अथवा, नगण धर चरण,
२
.
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३३ वर्ण
१७यति.
४६०. रणपिंगळ.
समवृत्त. छदःप्रभाकरमां कवित करतां आमां फेर एटलोज जणाव्यो छे के, "कवितमां बे विषम अक्षरोना शब्दनी वच्ये सम अक्षरना शब्द आवे नहि,” अने आ विजयामां ए प्रमाणे आववा ओइये.
३३ वर्णना दंडक. १.५०५ तैत्रीशुं कवित.
गुरु लघुनो नियम नहि, .
। १६,१७यति. अक्षर मळीने बधा तेत्रीशे करोजी पूरा,
सोळ सतर विभागे तेत्रीशांकवित चरण. आवां कक्तिमा त्रण त्रण अक्षरनी विप्सा पण लावेछे जेमः-- "झिल्लि झनकारे पिक चातकी पुकारे बन, मोरन गुहारे उठे जुगनु चमकि चमकि; घोर घन कारे भारे धुरवा धरारे धामधूमन मचाये नचे दामनी दमकि दमकि; झूकन बयारि बारि लूकन लगावे अंग, कूकन भभूकनसों और मो खमकि खमकि; केसें रहे प्राण प्राणप्यारे यशवंत विन,
छोटी छोटी बुंदनसों बरसे झमकि झमकि." १५०६ अर्णव.
२ न+९.र=३३ वर्ण. नगण पर न थायछे ते पछी पादमां खंड रा
आणंजो अर्गधे वर्ण चित्ते धरी तेत्रिशे.
- ३४ वर्णना दंडक. १५०७ वर्णत्रिभंगी., २० लघु+म+त+य+भ+गग=) ३४.
र ८,८,९,४,५, यति ) वर्ण. वसु वसु नव श्रुति, शर पर यति वॉश, लघु धरी वर्णत्रिभंगी, मत याभा,गाग थकी छे.
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वर्णदंडक
वर्ण.
ચંદ્
छंदःशाखना टिप्पणमां आनुं नाम त्रिभंगी छे, पण मात्रामेळ पृ. ५३ अंक १३४ मे त्रिभंगी छे, तेनी साथे भळी न जाय माटे अमे “वर्णत्रिभंगी" एवं नाम राख्युं छे.
itsinळमां भ ने बदले स छे, लखपत जशसिन्धुमां पण तेमज छे; उदाहरणमां पण ते प्रमाणे छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां द्वितीय ( बीजो) त्रिभंगी नाम आपी आमो कहेला गणो बताव्या छे, पण तेमां यति कही नथी. छंदःप्रभाकरमा यति नथी, अने गण आ प्रमाणे छे पण रूप नीचे प्रमाणे गोठव्युं छे:
१५०८ हेलावली.
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६ न+सस भ म सग - ३४ वर्ण. न+ग+ १० र=३४ वर्ण. गण आणो पछी एक गा गोठवी ते पछी रा
१०
गणो आप आशा करो पाद हेलावलीमांह तो.
जूओ अंक १४३३ नी टीप.
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२५०९ हेली.
न+ल+ १० र=३४ वर्ण.
नल पर थायछे रा दशे सामटा तेतणा अक्षरो सर्व चोत्रीश छे पाद हेलीत दंडके.
१९१० चंडवेग.
जुओ अंक १४३३ नी टीप. हेलावलीने बदले छंदोलतामां हेलीनाम आपी उपर प्रमाणे माप आप्युं छे, ते भिन्न होतां आ स्थाने दाखल करवामां आव्युं छे.
३६ वर्णना दंडक.
न न+ ८ य+न न=३६ वर्ण.
नन उपर घर या आठ आणी अने बे बने ना बधा वर्ण छत्रीश तो चंडवेंगे शुभ कविवर !
१ छंदोलतामां उपर प्रमाणे माप छे पण छंदोवृत्तमुक्तावलीमा २न+य (यथेच्छ ) लाववाकयुं छे ते उपर छेला व नगण लाववा क नथी, पण तेवों दंडक अंक १४३२ मे छ, माटे अमे छंदोलतानुं माप प्रमाण गण्युं छे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
Ar
१५११ व्याल, विशेषशालिन.१ २+१० र ३६ वर्ण.
न न पर दश रा गणो व्याल विशेषशालीनना पादमां मूकनो छत्रिशे अक्षरो आणिने युक्तिथी. १ वागवल्लभमा ३० र उपरांतनाने आq नाम आपवा सूचव्युं छे, पण ए अभिप्राय योग्य नथी.
३७ वर्णना दंडक. १५१२ मालती. न+ग+११ र ३७ वर्ण.
नगण प्रारंभमां ते परे गा करो त्यार पूठे तमे मालती मांह तो रा अगियार आणो पदे गोठवी. जुवो अंक १४३३नी टीप.
छंदोलताना क्रममा धुली नाम आवेछे तेनुं शुद्ध स्वरूप तो धूलीं थाय पण ते रगणनी रचनामां आवी शकतुं नथी. "चांभोली धुली मातली केलि लीला विलासादयः' एमां धुली पछी मातली छे ते आ स्थाने जोइये अने मालती शब्द नु उलटपालट थइने मातली थयेउ लागेछे. तोपण. मातली इन्द्रनो सारथी केहेवायछे, तेने नामे जूदो दंडक गणिये तो
आ स्थाने, धूली कायम रेहेतां तेनी रचना नीचे प्रमाणे थायछे.. १५१३ धूली. न+ल+ ११ र ३७ वर्ण.
नल पर रुद्र छे रागणो पादपोद मळी ने बधा त्रीश ने सात तो वर्ण प्रत्यकमां एम धूली विषे.
३९ वर्णना दंडक. १५१४ जीमूत. २ न+ ११ र ३९ वर्ण.
'नन पर गण रा अगियार आणी धरो पाद जीमूतमां अक्षरो त्रीश ने खंड खोली बधा आप आ दंडके.
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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
१५१५ सारंग.
१३ र=३९ वर्ण. पादपादे रचो तेर तो रागणो शुद्ध सारंगना दंडके त्रीश ने खंड छे अक्षरो सर्व तो एम जाणो तमे.
__.४० वर्णना दंडक. १५१६ मातली. न+ल + १२ र ४० वर्ण.
नल पर बार आणो तमे रागणो सामटा ते तणा सर्व चाळीश छे वर्ण प्रत्येक पादे सदा मातली दंडके.
१ छंदोलतामांथी. जुवो अंक १४३३नी टीप. १५१७ केली.
न+ग+ १२ र ४० वर्ण. नगण ने एक गा ते पछी बार छे रागणी पादपाद मळी अक्षरो सर्व चालीश केली विषे थायछे सामटा.
४२ वर्णना दंडक. १५१८ लीलाकर. २ न+ १२ र= ४२ वर्ण.
ननर ररर राररा रारा रार छे पाद लीलाकरे एटले बे न छे बार तो रा पछी एम लावी धरो दंडके.
४३ वर्णना दंडक. १५१९ कंकेली. न+ग+ १३ र= ४३ वर्ण.
नगणनी उपरे एक गुरू धरी तेर तो आणजे रागणो, तेतणा अक्षरो अग्नि ने आण चालीश कंकेलीना पादमां.
४५ वर्णना दंडक. १५२० रुद्रसारंग.
१६ -४६ वर्ण. रार रा रा रा राररा रा रा रा रा रुद्रसारंगना पादमा आणनो पांच चाळीश जेना बने वर्ण ने तिथि के रागणो..
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
www.ar
१५२१ उद्दामा, उद्दाम. २ न+१३ र ४५ वर्ण.
ननर ररर सररा राररा राररा आणजो एटले आप उदामनां पाद ज्यारे रचो बे न ने तेर रा ते विषे लावनो.
४६ वर्णना दंडक. १५२२ लीला. न+म+१४र=४६ वर्ण. न पर गा थायछे चौद रा पाद पादे बधा आण आ दंडके शोभिता नाम लीला धस्युं जेह, मांद छेताळीशे अक्षरो थायछे. १ छंदोलताना कम प्रमाणे आनुं माप न+ल+१४ र थायछे.
जुओ अंक १४३३.
४८ वर्णना दंडक. १५२३ शंख.
२ न+ १४ र=४८ वर्ण. ननर ररर राररा राररा राररा रा करो एटले बे न ने चोद रा आणजो शंखना पादमां आप सारी रोते गोठवी गोठवी. १५२४ विदग्पत्रिभंगी. ३ त न+२+३ त न+२ भ=४८ वर्ण.
आवेत्रण तन वे भात्रणतन पाछा द्विभधर पाद विदग्धत्रिभंगी तणी रचनामां काववर तेमां प्रभुगुण गा मनपूर्वक.
१ वाग्वल्लभमां छे.
४९ वर्णना दंडक. १५२५ विलास.
न+ग+ १५ र ४९ वर्ण, नपर गो थायछे ते पछी पंदरे रा गणो सामटा छे विलासे पदे वर्ग चाळीश ने खंड आगो बधा ते विषे गुण गाओ सदा ईशना. । छंदोलतामा न+ल+१५ र एवं माप छे. जुओ अंक १४३३.
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वर्णदण्डक.
वर्ण मेळ.
५१ वर्णना दंडक,
२
3
१५२६ आराम, पद्मक, विश्ववाह, अर्क. २+१५ र ११ वर्ण. ननर ररर राररारारराराररा रार के पद्मके ने वळी विश्ववाहे अने अर्क आरामना दंडके बे न ने पंदरे रागणो थाय छे. १ वृत्तरत्नाकरनी जनार्दनी टीका. २ वागवल्लभ.
३ छंदोलता तथा छंदोवृत्तमुक्तावली.
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१५२७
{
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५४ वर्णना दंडक.
•
संग्राम, पद्मराग, तक्षक,
૧
3
२ न + १६ र= ५४ वर्णं.
कालदंड, चन्द्रेश, चन्द्र. नवर ररर रारराराररा रा रा राररा एम बे ना अने सोळ रा थायछे परागे अने तक्षके कालदंडे तथा चन्द्र संग्राममां सामटा. २ छंदोलता.
१ वाग्वल्लभ.
३ छंदोवृत्तमुक्तावली.
५७ वर्णना दंडक.
*
पौंड्रक,
१५२८ सुराम, पौंक, ईश. २ न + १७ र १७ वर्ण. ननर ररर रार रार रारा रारा रा सुरामे अने पौंड्रके ईश ए दंडके थायछे सौ मळी वे न ने सत्तरे रा बधा सामटा पाद पादे खरे.
१-२ छंदोवृत्तमुक्तावलीमां तेमज छंदोलतामाथी. १ पौण्ड्कनुं माप वाग्वलभमां आ प्रमाणे छे.
१५२९ विशेषस्तत्रक'.
४.६५.
1 नय नय नय नय भस भस भस मभस | अस= ४नय + ३भस + म +२भस =५७ नय युग आणो ऋण भस जाणो पछी म प्रमाणो द्वि भस वखाणो नेचरण करो भाव मन घरो अक्षर सबळा आणी सत्तावनज विशेष स्तवकविषे.
१ वागवलभमां छे.
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रणपिंगळ.
समवृत्त.
६० वर्णना दंडक, १५३० उदारपाद', वैकुंठ२, भोगी३. २न+१८र६०वर्ण.
ननर ररर राररा राररा गररा राररा रार छे एम बे ना धरो रा अढारे करो अक्षरे साठ उदारपादे
अने वृत्त वैकुंठ भोगी विषे पादपादे तमे.. . १ वाग्वल्लभ. २ छंदोवृत्तमुक्तावलि तथा छंदोलतामाथी, ३ छंदोवृत्तमुक्तावली.
६३ वर्णना दंडक. १५३१ सोत्कंठ, इन्द्र. २ न+१९ र ६३ वर्ण.
न न र! र र र राररा राररा राररा राररा राररा आणिने बे न ने ओगणी' रा करों सोतकंठे अने इंद्रमां, अक्षरो तो बधा अंक तो त्रेसठे जाय पो'ची तमे जाणजो.
. ६६ वर्णना दंडक. १५३२ सार, पीयूष. २ न+२० र ६६ वर्ग.
ननर ररर रारा राररा रारा राररा राररा रा धरी एटले ना रचो बेवळी रा करो वीश पूरा तमे ने बधा असरो छासठे आणनो सार पीयूष केरा धरी पादमां.
६९ वर्णना दंडक, १५३३ कासार वाराह. २ न+२१ र ६९ वर्ण.
ननर ररर रारा राररा राररा राररा राररा रार आणी तमे ना धरो बे अने रा करो वीश ने एक पूरा बधा, अक्षरो साठ ने खंड कासार-वाराहना पादमांध्यान धारी रची.
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दणदंडक.
वर्णगेल.
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७२ वर्णना दंडक. १५३४ विस्तार, वात. २ न+२२ र ७२ वर्ण.
ननर ररर राररा राररा राररा राररा राररा राररा एम बे ना धरी बाविशे रा करो सामटा माप विस्तार के वातमां वर्ण बोतेर तो पादमा आणजो आ खरी रीत ए दंडके जाणजो.
७५ वर्णना दंडक. १५३५ संहार. . २ न+२३ र=७५ वर्ण. ___मनर ररर रारा राररा राररा राररा राररा राररा राधरी सर्व ना बे अनेरा करो त्रेविशे एम सर्वे मळी वर्ण सित्तेर ने पांच पूरा रच्ये पाद संहारनुं पूर्ण तो थायछे एम मानो तमेः
७८ वर्णना दंडक. १५३६ नीहार. २ न + २४ र ७८ वर्ण:
ननर रररराररा राररा राररा रारराराररा राररारार आणी तमे बेन ने ते परे सर्व चोवीश रा लाविने वर्ण सित्तेर ने आठ पूरा करो पाद नीहारमा ईशना गुण गावा तमे भावथी आदरोः
20 वर्णना दंडक.
(मम+त,न,त+य,ज,त+र,भ, ) १५३७ कुसुमितकाय?. स+भ,स,भ+स,भ,त+य,स, १८० वर्ण.
( भ,+तयस+भ न,न+ग,ग. ) एंशी पूरा वर्णो आणो कुसुमितकाये ठिक भाइ ! रचाय तेमां पदे पदे तो गण समुदायो ठिक ठिक मामा पछी तन ताछे यजता छे रभसा छे भस भाछे समता छ यस भा छे त यसाछे पछी थको भन न गगा छे.
१ वाग्वल्लभ.
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रणपिंगठ.
समवृत्त
८१ वर्णना दंडक. १९३८ मंदार.
२ न+२५ र=८१ वर्ण. ननर ररर रारराराररा राररा राररा राररा राररा राररा आणिने सौ मळी बेन ने वीश ने पांच रा लावजो आप मंदारमां ते पछी एहमां भक्तिना भावथी गुण माजो तमे सर्वव्यापी प्रभुना सदा प्रेमथी.
८४ वर्णना दंडक. १५३९ केदार. . २ न+२६ र ८४ वर्ण. ननर ररर राररा राररा राररा राररा रारस राररा राररा रा थई बे न ने ते परे रा धरो सर्व छठवीश तो जे थकी अक्षरो अॅशिने चार सौ थायछे पाद एकेकमां एम केदार जोडायछे ते तमे जुक्तिथी जाणजो.
८७ वर्णना दंडक. १९४० साधार. २ न+२७ र ८७ वर्ण.
ननर ररर राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा रार साधार छे आ.रौते बेन ने वीश ने सात रा तेहना अक्षरो एंशि ने सात तो थायछे पादमां तेहमां गायछे गुण गोविंदना के कवि भक्तिना भाववाको खरो.
९० वर्णना दंडक. १५४१ सत्कार.
२ न+२८ र ९० वर्ण. ननर ररर राररा राररा राररा रारा राररा राररा राररा राररा लावतां आम सत्कारमा बे न ने वीश ने आठ रा थायछे तेतणा अक्षरो नेवु तो थायछे पाद एकेकमां एम आ दंडके आप आणी पछी गुंथजो काव्य तेमां तमे.
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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
९३ वर्णना दंडक. १५४२ संस्कार.
२ न + २९ र=९३ वर्णः ननर ररर राररा राररा राररा रोररा राररा राररा राररा राररा रा धरी तेहना बे न चोवीश ने पांच रा लावतां त्राणु संस्कारना थायछे अक्षरो पादपादे खरा तेहमां गुण जो ईशना गाय तो थाय शुद्धि भली चित्तनी एम जाणो तमे.
९६ वर्णना दंडक. १५४३ माकंद, विमर्ष. . २ न+३० र=९६ वर्ण.
ननर ररर राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा रार तो थायछे तेहना बे न ने त्रीश रा आणतां अक्षरो छन्नु सौ थायछे पाद माकंदमां ने विमर्षे रची जे कवि कोइ आ दंडके ईशना गुणनुं गान गाशे जशे मुक्ति पामी खरे.
आ निथम प्रमाणे जो बे नगण पछी ३० रगण उपरांत वधता जाय । तो, तेने विशेषशालीन केहेछे, एवं वागवल्लभमां कयुं छे.
९९ वर्णना दंडक. १५४४ गोविंद.
२न + ३१ र ९९ वर्ण. ननर ररर राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा एम लावो तमे जे थकी बेन ने त्रीश ने एक रा तो थतां थाय नव्वाणु सौ अक्षरो पादपादे अने नाम गोविंद केवायछे एहनु ते विषे तो रचो गुण गोविंदना भाव पूरो धरी.
१०२ वर्णना दंडक. १५४५ सानंद.
२ न+ ३२ र=१०२ वर्ण. . ननर ररर राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा राररा
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ܗܘ ܀
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समवृत्त,
रारा रा धरी लावजो पाद सानंदमां बेन ने उपरे बत्राशे राधा एम सौ एक सो बे करो अक्षरो पादपादे तमे प्रेम आणी पछी गाइ ल्यो गुण आ दंडके दीनआधारना दुःखीना बंधुना: १०५ वर्णना दंडक.
१५४६ संदोह.
२ न + ३३ र= १०५ वर्ण:
नंनर ररर रार रारा रारा राररा रारा रारा रार राररा रारा रार आणी करो कुल वे ना गणो ने वळी रा गणो तेत्रिशे तोरो एम सौ अक्षरो एक सो पांच संदोहने पादपादे गणी आणजो ते विषे गुण गोविंदना गुंथजो जे थको चित्त चोखुं थशे साम: १०८ वर्णना दंडक.
१५४७ नंद.
२ न + ३४२ = १०८ वर्ण.
ननर ररर राररा रार राररा रारराराररा राररा राररा रारा राररा रारंश एम आण्या थकी नंद नामे बने दंडके बेन ने त्रीश ने चार तो रा गणो सामटा तेता अक्षरो एक सोने पछी आठ तो थायछे पादपादे बधा गोठता. घाटमां आवता रागमां बेसता आणजो.
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संकीर्ग.
वर्णमेळ.
अई सम वृत्त. जेमां बे पदोनां सर्व लक्षण मळतां आवे एवंः एटले लुं अने त्रीजुं पाद (विषमपद) तेमन बीजं अने चोथु पाद (समपद) समान होय ते अईसमवृत्त केहवाय. एना बे भेदछे.
१ संकीर्ण. २ असंकीर्ण. १ संकीर्ण एटले वर्णमां वधघट थवाथी विषमपाद करतां समपादनी वर्णसंख्या भिन्न रहे ते.
२ असंकीर्ण एटले विषम तथा समपादना वर्ण सरखा होय पण गण भिन्न भिन्न होय ते.
आ एक जातनी उपजाति पण केहवाय छे. .. असम, ओन, अयुग्म अयुग्मक, अने अयुज ए विषम एटले पहेला त्रीजा पदनां नाम छे.
अनोज, युग्म, युग्मक, अने, युन ए सम एटले बीजा , चोथा पदनां नाम छे.
संकीर्ण. विषम पदना ८ ने समना १० वर्ण होय तो तेनां कुल २,६२,१४४ रूप थायछे. १ आवृत्त.
(१,३. स ज ग ग. =८ दिगीश. अंक. २८० । २,४. स स ज ग. = १० सहजा. अंक. ४६८ .
विषमे स जा ग गा छै;
स स जा ग समेज आवृत्ते. पाछळ समवृत्तना पेटामां अंक २८० मे दिगीश नामे वृत्त . छे, तेना माप प्रमाणे आ वृत्तनां विषम चरण (१,३).थायछे अने अंक ४६ ८ मे सहजा नामे वृत्त छे, तेना माप प्रमाणे आ
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अर्द्ध समवृत्त.
वृत्तनां सम चरण (२,४) थायछे. ए रीते दिगीश अने सहजाना मिश्रणथी आवृत्त थायछे. एज प्रमाणे, जे पदनी सामे अंक सहित वृत्तनुं नाम होय ते वृत्तनां ते पद थायछे, एम समजवू. २ ललिता.
. १,३. र स ल ग. = ८ रूप. ९१ । २,४. स ज ज ग. =१० संयुता. अंक ४७३ ‘रा स ला विषमे ग छ ।
ललिता समे स ज ना ग छे. विषम पदनुं अहिं ने माप र स ल ग आप्युं छे, एवा मापर्नु समवृत्तमा ८ वर्णनुं कोइ वृत्त नथी, तेथी ८ वर्णमां ए मापर्नु रूप ९१ मुं थायछे, ते अहिं जणाव्युं छे. एज प्रमाणे समवृत्तना पेटामां, जे पाछळ वृत्त दाखल नथो तेनुं जेटलामु रूप थायछे तेनो अंक आप्यो छे.
९,१०,नां रूप ५,२४,२८८ थायछे. ३ वैयारी ) १,३. त ज र.-९ रवोन्मुखी. अंक 312
१२,४. म स जग.=१० विराट,शद्धविराट.अंक ४६६
ता जा र अयुग्ममां गमे;
वैसारी म स जा ग थी समे. आनुं विलोम करिये तो वासववंदिता थायछे. जुवो अंक. ४
१०, ९नां रूप ५,२४,२८८ थायछे. ४ वासववंदिता.
१,३. म स ज ग.=१० विराट. अंक ४६६ "। २,४. त ज र.=९ रवोन्मुखी. अंक ३८१
मा सा वासववंदिता ज गे;
‘ता जा र करो समे वगे. आ वृत्तमा वैसारीनां विषम पद छे ते समपद् थयां छे अने तनां समपद
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वर्णमेळ.
छे ते आनां विषम पद थयां छे, आ प्रमाणे उलटासुलटी थाय ते विलोम केहेवायछे. वैसारीनुं विलोम जुवो अंक ३.
१०,११ना रूप २०,९७,१५२ थायछे. ५ भद्रविराट, (१,३. त ज र ग़.=१० नमेरु. .. ४४० समुद्रकान्ता..२,४. म स ज ग ग.११. विश्वविराट. १६३
छे भद्रविराट ता ज रागे;
युग्मे मा स ज गा ग ठीक लागे. कान्ता, युद्धविराटनुं विलोम, जुवो अंक १७. वैतालिय प्रकरणमा औपच्छदासिक, पाछळ पृ. २१४ मे जुवो. तेमां ६ अने ८ मात्रा अनुक्रमे जणावी छे, तेने बदले आहे गण नकी कया छे एटलोज फेर छे.
(१,३. स ज स ग. = १० रूप २३६ ६ केतुमती. २
। २,४. भ र नग ग. = ११ रूप ४७१
धरजो स जा स ग अयुग्मे; केतुमती भ रा न ग ग युग्मे.
विलोमे केतु. जुवो अंक १८. ७ सुंदरी, सुरमालिका, (१.३. स स ज ग.=१० सहजा.४६८ कमला, वियोगिनी.१२,४. सभ र ल ग.=११ सीधु. ५९९
विषमे स स जा ग सुंदरी
कमला सा भरला गथी ठरी. १ प्राकृत पिंगळसूत्रमा केहेछे केःअयुजो यदि सौ लगौ। पुनः
समायोःस्भौ रलगाश्च सुन्दरी. . १ एमां लगो छे त्यां जगी जोइये. तेमज छंदोमंजरीमा छे कै:--
अयुजो यहिं सौ जगौ युजो
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रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimmimmmmmmmmmmmmm
सभरा गौर यदि सुन्दरी तदा. २ एमां गौ छे तेने बदले ल्गी जोइये.
वृत्तास्नाकरनी टीपमा केहेछे के:विषमे यदि सौ जगौ समे; स्तर लागोऽपरवक्रमीरितम्.
३ एमां स्तने बदले स्भ जोइये. आवी रचनाथी अपरवक्र बनेछे, पण अंक २७मां ते जूदा मापथी छे अने आ माप तो सुन्दरोने लागु पडेले.
(१,३. स स स ग. =१० उदित. अंक ४४६ ८ वेगवंती.
१२,४. भ भ भ ग ग११दोधक,नीलसरूपी.५८०
गण छे स स सा ग अयुग्मे वेगवती भ भ भा ग ग युग्मे. विलोमे वर्गवती, जुबो अंक १९ (१,३. म स ज ग.=१० विराट, शुद्धविराट, ४६६ २,४. स भ र ल ग.११ सीधु. अंक. १९९
ओजे थाय म सा ज. गा खरे; - स भ म लग ग सुधा समे करे.
[ १,३. म स ज ग.-१०विराट, शुद्धविराट.४६६ .१० करधा.
२,४. न न र ल ग.=११ सुभद्रिका. ६०३
ओजे. तो म स ज ग छे; समे न न र ल करधा ग तो गमे. विलोमे वैयाली, अंक २१
(१,३. स. स. जग.=१० सहजा. ११ अरुन्तुद.१२,४. न ज ज र.=१२ मालती. ७३१
विषमे स स जा ग तो धरो
९ सुधा.
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
v.innnnnnnnnwwvarwwwwww
न ज ज र युग्म अरुन्तुदे करो. विलोमे अनूकप. जुवो अंक. ३८
(१,३. त म र ग.=१० रूप १३३ १२ संपातशीला.
। २,४. स न म य.=१२ रूप ५७२ ओजे त मा रा गा छे रसीला; स न मा य सममां संपातशीला.
विलोमे पातशीला थायछे, जुवो अंक. ३९ १३ अवनीलता, १,३. स स ज ग.-१० सहना. ४६८ नवनीलता,
(२,४. स भ ज र.=१२ रूप १३९६ . अवलीलता.
विषमे स स जा ग तो गमे स भ जा रा थी अवनीलता समे.
विलोमे करीरिता. जुओ अंक. ४० .
१०,१३ ना रूप ८३,८८,६०८ थायछे. १४ शुकावली.
१,३. त ज र ग, =१० नमेरु. ४४० १२,४. म नजर ग.१३ प्रहर्षिणी. ८१६
ओजे त ज रा ग तो गमेछे मा ना जा र ग थी शुकावली समे छे. विलोमे किंशुकावली, जुवो अंक. ६०
१,३. न. त त ग. =१० चरपद. ४५७ १५ जारिणी. २
। २,४. स र न त ग. =१३ रूप २५१५ मुं विषममां ना त ता गा धरो; ..
जारिणीमा र रा न त ग आणी करो.
विलोमे अलिपद, अंक. ६१ मे जुवो. १०,१४ नां रूप १,६७,७७,२१६ थायछे.
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४७६
रणपिंगळ.
अर्द्धसमवृत्त.
१६ विलासवापी. १,३. त ज र ग. =१० नमेरु. ४४०
"१२,४.स भर जगग:=१४मदावदाता.९३३ ओने ते जरा ग छ तथापि; सममां सा भ र जा ग गा विलासवापी.
विलोमे अकोषकृष्टा, जुवो अंक ७२. ११, १० नां रूप २०, ९७, १५२ थायछे. १७ युद्धविराट, १,३. म स ज ग ग=११ विश्वविराट. १६६ कान्ता. । २,५. त ज र ग=१० नमेरु.अंक. ४४०
ओजे युद्धविराट मा स्ज गा गे; ता जा र ग युग्म ठीक लागे.
विलोमे भद्रविराट. जुवो अंक ५ मो. . १८ केतु. २
१,३, भर न ग ग. =११ रूप. ४७१ १२,४. स ज स ग. =१० रूप. २३६
छे प्रथमे भरा न ग ग त्रीने; .. स ज सा ग केतु सम कीने. विलोम करतां केतुमती थायछे, जुवो अंक ६
१,३. भ भ भ ग ग.=११ दोधक. अंक. ५८० । २,४. स स स ग.=१० उदित. अंक. ४४६
वर्गवती भ भ भा ग ग ओजे;
करजो स स साग अनोजे. बिलोम करतां वेगवती थायछे. जुवो अंक ८..
. १,३. स भ र ल ग.=११ सीधु. ५९९ २० असुधा.
"१२,४. म स ज ग. =१० विराट, अंक. ४६६
असुधा सा भर लाग ओजमां; मासा जाग धरो अनोजमां. ___ विलोमे सुधा. अंक. ९
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
४७७
२१ वैयाली. १,३. न न र ल ग.=११ सुभद्रिका. ६०३
(२,४. म स ज ग. =१० विराट. अंक. ४६६ न न र ल ग अयुग्ममां गमे; वैयाली म स जा ग थी समे.
विलोमे करधा.जुवो अंक. १० ११, १२ नां रूप ८३,८८,६०८ थायछे.
( १,३. भ भ भ गग. =११ दोधक. १८० २२ द्रुतमध्या..
। २,४. न ज ज य. = १२ तामरस. ६९९
भो भ भगा ग अयुग्म पदे छे; न ज ज य युग्म विषे द्रुतमध्या.
अंक ४२ मे इहा छ तेनु विलोम. २३ हरिणीप्लता.) १,३. स स स ल ग.=११ उपचित्र. ६०६ हरिणप्लुता.। २,४. न भ भ र.-१२ द्रुतविलंबित. ७३७
स स सा ल ग छे विषमे पदे; न भ भ रा सममां हरिणीप्लुता.
१,३. भ भ भ ग ग.=११ दोधक. १८० २४ कोरकिता.२
। २,४. न य न य.=१२ कुसुमविचित्र.७११ कोरकिता भ भ भा ग ग ओजे; न य न य आवे चरण अनोजे. अंक ४३ ना पाटलिकानुं विलोम.
१,३.न न र ल ग.=११ सुभद्रिका. अंक.६०३ २५ अपरचक्र.
(२,४. न ज ज र.=१२ मालती. अंक. ७३१ विषम न न र छे ल गा गमे
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रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त.
न अपरवक्र ज जा र छे समे. जुवो पाछळ पृ. २१२ वैतालिय अथवा अपरवक्र तेमां ६,८ मात्रा, कही छे तेने बदले अहिं मणं नक्की कस्या छे. २६ मालभारिणी, )
औपच्छंदसिक, १,३. सस जगग.-११ विमला. ५६७ वसन्तमालिका, (२,४. स भ र य.-१२ बधिरा. ६८१ परिश्रुता.
विषमे स स जाग गा धरे छे ..
सममां साभ्रय मालभारिणीमां.. अंक ४१ प्रमालिका अने सौरभसंचितनुं विलोम.
5 १,३. न स ज ग ग.= ११ पंचशाखी.अंक. ५७० १२,४. भ भ र य. =१२ वलभी. अंक. ६८२
न स ज ग ग थी उपाढय ओजे;
भा भ र या धरजो तमे अनोजे.
(१,३. स स स ल ग.=११ उपचित्रा.अंक.६०६ २८ हरिलुप्ता..
१२,४. स भ भ र. =१२ राधिका. अंक.७३६ विषमे स स सा ल ग ए गमे हरिलुप्ता स भ भा र थकी समे. विलोमे लुप्ता. जुवो अंक ४७
(१,३. स भ र ल ग. =११ सीधु. ५९९ २९ विमानिनी..
(२,४. म न ज र. =१२ रूप. १४०१ सभ रा ला ग विमानिनी विधेः । मा नाजा र समविषे बधे दिसे. .
(१,३. म सजग ग. =११ विश्वविराट. १६६ ३० असुराढया.
"(२,४. न न र य. = १२ परिमितविजया. ६८३
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संकीर्ण.
३२ किन्नटकः
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वर्ण मेळ,
मासा जागग ओजमां गमछे; ननरय असुराढ्यमां समे छे.. विलोमे सुराढद्या जुवो अंक ४४.
३१ किलिकिता, (१, ३. र नरलग. = ११ रथोद्धता. ६००
किलकिता.
३३ साचीकृतवदना.
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२, ४. नभ अर. = १२ प्रियंवदा. ७३३ शनरी लोग कराय ओजमां;
किलकिता न भ ज रा अनोजमां.
१,३. . त ज ज ल गं. = १९ मोटनक. ६२० = १२ तोटक. ७५३
२, ५. स स स स . ओजे त ज जा लग आप घरो; समनिट स स सा स करो. अंक ४५ मे नटक छे ते आ वृत्तनुं विलोम छे.
| १, ३. नय भगग. = ११ श्रुतकीर्ति. १७६ २,४. त न भ सं. = १२ रूप. १९८१ नयभंगंगा आणो कवि! ओजे; साचीकृतवदना त न भस थी.
विलोमे अवाचीकृतवदना थायछे, जुवो अंक ४६. १, ३. भभभग ग. = १९ दोधक. ५८० (२, ४. भंनजय. १२ पथिकान्ता ७०९ कमलाकर भाभभगा गे;
छे
भान जय पद समे ठिक लागे.
३४ कमलाकर.
હવે
विलोमे कुसुमचर, जुवो अंक ४८
३५ शिशिरशिखा.१,३. नन र लग. = ११ सुभद्रिका. ६०३ ४. नजंजर. = १२ मालति. ७३१ ननरलग अयुग्ममां गमे;
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४८
रणपिंपळ.
अर्द्ध समवृत्तः
"शिशिरशिखा, न ज जा र थी समे. ६,७ यति.
विलोमे मृदुमालति. जुवो अंक ४९ ३६ उपोद्गता, १,३. स स ज गग.-११ विमला. ५६७ फलितान. । २,४: संभ र य. = १२ बधिरा. ६८१
विषमे स स जा ग गा गमछे; संभ रा या थी उपोद्गत्ता समे छे.
विलोमे एन एज नाम रेहेछे. ११,१३ नां रूप १,६७,७७,२१६ थायछे.
(१,३, म भन ल ग.=११ भ्रमरविलसिता.६३६ ३७ बद्धास्य.
२.४. स स न न ग.= १३ वरिवशिता. ८८९ ओजे आणो म भ न ल ग तमे; स बधास्य रचाय स न न ग समे.
विलोमे कामाक्षी, जुवो अंक ६२. १२,१० नां रूप ४१,९४,३०४ थायछे.
१,३. न ज ज र.=१२ मालती. ७३१ ३८ अनूकप.
(२,४. स स ज ग.=१० सहजा. विषम विषे न ज जा र तो खपे; स स जा ग समे अनूकपे.
विलोमे अरुन्तुद, जुवो अंक. ११
. १,३. स न म य.=१२ रूप. ५७२ ३९ पातशीला. २
२,४. त म र ग =१० रूपः १३३ विषमे स न म या थी पातशीला%3; ता मा र गा युग्मे आण कीला! संपातशीलानुं विलोम, जुवो अंक. १२
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संकीर्ण .
वर्णमेळ.
૪૮૬
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(१,३. स भ ज र.१२. रूप. १,२९६ ४० करीरिता.
। २,४. स स ज ग =१० सहजा ४६८ विषमे सा भ ज र लावजो तमे । स स ना ग करीरिता समे.
विलोमे अवनीलता, जुवो अंक. १३ १२,११ नां रूप ८३,८८,६०८ थायछे. ४१ सौरभसंचित, (१,३. स भ र य. = १२ बधिरा. ६८१ प्रमालिका. १२,४. स स ज ग ग.=११ विमला. ५६७
स भ रा सौरभसंचिते य ओजे; स स जा ग ग थायछे अनोजे.
विलोमे परिश्रुता, जुवो अंक, २६. (१,३. न ज ज य. = १.२ तामरस. अंक. ६९९ ४२ इहा.
1 २,४. भ भ भ ग ग.-११ दोधक. अंक. ५८०
न ज ज य थाय सदाय अयुग्मे; भा भ भ आण इहा ग ग युग्मे. अंक २२ मे द्रुतमध्या छे तेनुं विलोम.
(१,३. न य न य. = १.२ कुसुमविचित्रा. ७११ ४३ पाटलिका...
२,४. भ भ भ ग ग:-११ दोधक. १८० न य न य आणो चरण अयुग्मे; भा भ भ पाटलिका ग ग युग्मे. अंक २४ मे कोरकिता छे, तेनुं विलोम.
..(१,३. न न र य. =१२ परिमितविजया. ६८३ ४४ सुराढ्या.
1 २,४. म सजग ग.-११ विश्वविराट. ५६६ नन र य विषमे रचो सुराढया;
४१
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रणपिंगल.
अर्द्ध समवृत्त.
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युग्मे मा स ज गा ग थाय, भाई !
अंक ३० मे असुराढ्यानुं विलोम. ४५. नटक.
(१,३. स स स स. =१२ तोटक. ७५३ १२,४. त ज ज ल ग.११ मोटनक. ६२० विषमे स स सास धरो नटके ताजा जल गा सम पाद टके.
अंक ३२मे किंनटक छे तेनुं विलोम. ४६ अवाचीकृतवदना..
(१,३. तन भस.=१२ रूप. १,९८१
"१२,४. न य भ गग: ११ श्रुतकीर्ति.६७६ ता ना भस अवॉचीकृतवदना;
समपदमां ना या भगगा छे. अंक ३३ मे. साचीकृतवदना छे तेनुं विलोम.
(१,३. स भ भ र. =१२ राधिका. अंक. ७३६ ४७ लुप्ता..
(२,४. स स स ल ग.=११ उपचित्रा. अंक. ६०६
स भ लुप्ता भ र तो विषमे करो; स स सा ल म युग्म पदे धरो.
अंक २८मे हरिप्लुता छे तेनुं विलोम. ४८ कुसमचर. १,३. भ न ज य.=१२ पथिकान्ता. ७०एं
। २,४. भ भ भ ग ग.=११ दोधक.. ५८० छे कुसुमचर भ ना ज य ओजे; छे भ भ भा ग ग पाद अनौजे. अंक ३४ मे कमलाकर छे तेनुं विलोम. (१,३. न ज ज रें.=१२ मालती. अंक. ७३१ (२,४. न न र ल ग.-११ सुभद्रिका. ६०३ न ज ज र थी मृदुमालती बने;
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संकीर्ण.
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वर्णभेळ.
नन र ल ग धरो तमे समे. अंक ३५ शिशिरशिखा छे तेनुं विलोम. १२,१३ नां रूप ३,३५,५४, ४३२ थाय छे.
५० पुष्पिताग्रा.
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१, ३. ननरय. - १२ परिमितविजया. ६८३ २, ४. न ज ज र ग = १३ मृगेन्द्रमुख. ८१९ नन र य पद एकी पुष्पिताग्रा;
न जज र गा रचजो तमे समेतो. जुंबो पृ. २१४ औपच्छंदसिक.
अंक ६३ मे अंचिताना छे ते आनुं विलोम छे.
५२ वाङ्मती' यमवती,
५१ मृगी, यवानी. १,२. र ज र ज.=१२ पंचचामर. ७८९
२,४. त र ज र ग. - १३ रूप. १,३६५ राजराज छे मृगी अयुग्म पाद; तारा जरा गछे अनोज पादमांहे.
૪૮૩
जममती, अमरावती, ( १९, ३. र ज र ज = १२ पंचचामर. ७८१ परावती, धवमती १, २, ४ . जरजर ग. = १३ रूप १,३६९ यवामती.
वाङ्मती र जा रजा अयुग्ममांहः समे घरो ज रा ज रा ग प्रीति आणी.
अमरावतीं विलोम करवाथी एज नाम रहेछे एम वाग्वल्लभमां कह्युं छे. १ छंदोलता प्रमाणे. २ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी asini 'स्याद युग्मके रजौ रयौ' एम पाठ छे, पण जनार्दन ने अवधूरि टीकावाळा मूळ पाठमा 'रजौ रजौ' एवो पाठ छे ते खरो छे. शब्दकल्पद्रुममां उपरना पाठ उपरथी विषम पदमां रअर य मूकीने भूल खाधी छे.
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रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त. ५३ अप्रमाथिली १,३. स भ र य.= १२ बधिरा. अंक ८१
( २,४. न नजर ग.=१३ मृगेंद्रमुख. ८१५ स भ रा या थकों अपमाथिनी छे; न ज ज र गा कथनी अनोजनी छे.
विलोमे प्रमाथिनी, अंक ६४. ५४ पद्मावती. र
(१,३. त भ ज य. = १२ नीरान्तिक. ७०२ । २,४. स ज स म ग.-१३ कलहंस. ८२३ पद्मावती त भज या थकी ओजे;
रचजो सदा स स साग अनोजे. ५५ चमूरुभीर..
(१,३. र न ज र. =१२ रूप. १,४०३ । २,४. स न ज र ग. = १३ रूप. १,४०४ ओजमां र न ज र थायछे शिरु; स न जा र ग समथी चमूरुभीरु.
विलोमे चमूरु. अंक ६६. . ५६ वेदवाणी १,३. म स ज म. =१२ रूप. ३४५
१२,४. स भ र य ग. =१३ रूप. ६९२ . ओजे पंक्ति म सा ज मा वखाणी छे;
सममां सा भ र या ग वेदवाणी छे. विलोम करवामां आवे तोपण वेदवाणो नाम रेहेछे. २७ जोर १,३. न ज ज र.=१२ मालेती. अंक ७३१
१२,४. स ज य ज ग.=१३ रूप. २,६६८ विषम पदे न ज जा र थाय छे । सम मंजुसौरभ सा जा य जा ग छे. वृतरत्नाकरमां नीचे प्रमाणे छे.
यदि विषमे भवतो नजौ जरौ,
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संकीर्ण.
_
वर्णमेळ.
wwurrinaiawaar.......onein
___ स ज या समे ज गुरु मंजुसौरभम्. बीजो पाठ शब्दकल्पद्रुममा छे.
स ज याः समेतु जगौ मंजुसौरभम्. आ उपरथी जणाय छे के छंदोमंजरीनी टीपमा : स ज गाः समेतु ज गुरु" एम छे तेमां गाः ने ठेकाणे याः जोइये.
१२,१५ नां रूप १३,४२,१७,७२८.
१,३. न न र य. = १२ परिमितविजया. ६८३ ५८ शरावती.
(२,४. स भ न ज र.=१५ रूप. ११,२५२ विषम पद न ना र या थकी छे
सममा सा भ न ज र थी बने शरावती. विलोमे बृहच्छरावती, जुवो अंक ८१. १२,१६नां रूप २६,८४,३५,४५६ थायछे.
र.१,३. म न ज र. =१२ रूप. १,४०१ ५९ अहीनताली...
१२,४. स भ स ज र ग.=१६ रूप. १,९९६ ओजे छे म न ज र पाद मांह तो; स भ सा जा रग सममां धस्ये अहीनताली.
विलोमे हीनताली, अंक ८४. १३, १० नां रूप ८३,८८,६०८ थायछे.
१,३. म न ज र ग.-१३ महर्षिणी. ८१६ ६० किंशुकावला.२.४. त ज र ग.=१० नमेरु. ४४०
ओजे पंक्ति म न जरा ग नी भली छे . ताजा र ग किंशुकावली छे.
शुकावलीनुं विलोम, जुवो अंक १४.
. १,३. र र न त ग.-१३ रूप. २,५१५ ६१ अलिपद.१
॥२,४. न त त ग. =१० चरपद. अंक. ४५७
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४८६
रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त.
ओजमां रा र ना अलिपदे ता ग छे; सम पदे तो न ता ता ग. छे.
अंक १५ मे जारिणी छे तेनुं विलोम. १३,११ नां रूप १,६७,७७,२१६ थायछे. ६२ कामाक्षी.
(१,३. स स न न ग. =१३ वरिवशिता. ८८९ । २,४. म भ नल ग. =११ भ्रमरविलसिता. ६३५ चरणे स स ना न ग धर असंमे; कामाक्षी मा भ न ल ग थों समे.
बद्धास्य विलोम, जुवो अंक ३७ १३,१२ नां रूप ३,३५,५४,४३२ थायछे. ६३ अंचिताग्रा.
.(१,३. न ज ज र ग.=१३ मृगेन्द्रमुख. ७१५
(२,४. न न र य.-१२ परिमितविजया.६ ८३. न ज ज र गा विषमेथों अंचिताग्राः
न न र य सम पाद अंचिताया.
अंक ५० मे पुटिपताना छे तेनुं विलोम. ६४ प्रमाथिनी.
१,३. न ज ज रग.=१३ मृगेन्द्रमुख. ८१५ ।।२,४. स भ र य =१२ वधिरा. ६८१
न ज ज र गा विषमे प्रमाथिनीमां;
सममां सा भ र या कराय सीमा. अंक ५३ मे अप्रमाथिनो छे तेनुं विलोम.
(१,३ स ज स ज ग.=१३ मंजुभाषिणी.८५८ ६५ मितभाषिणी..
१२,४. स ज स स. १२ प्रमिताक्षरा. ७५४ मितभाषिणी स ज स जा ग विषमे; स. जसा स छे चरण मांह समेः '
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संकीण.
वर्णमेळ.
४८७
६६ मा १,३. स न ज र ग.१३ रूप १,४०४
१२,४. र न ज र. =१२ रूप १,४०३ विषमे स न ज र गा चमूरु आणो; रा न जा र सम पदे धरो तमे.
अंक ५५ मे चमूरुभीरु छे तेमुं विलोम. १३,१४ नां रूप १३,४२,१७,७२८ थायछे. ६७ आलेपन..
- (१,३. न त त त ग. =-१३ परिवृढ. ८४० १२,४. न भ य य ल ग.=१४ रूप ४,७२८ विषममां ना त ता ता ग आलेपने; समपदे गण न भा या य ला गा बने.
विलोमे अनालेपन थायछे, जुवो अंक ७४. ६८ प्रतिविनीता.
१,३. न य ज र ग. =१३ रूप १,३६० १२,४. स भ र न ग ग.१४ रूप ३,७६४ विषमविषे ना य जा र गा धरोजी; सममा सा भ र ना ग गे प्रतिविनीता. विलोमे आतेप्रतिविनीता, जुवो अंक ७५.
[१,३.स स जर ग१३ जगतसमानिका.८.१२ ६९ मदाक्रान्ता.
। २,४. मसज र गग=१४ रूपं १,३६९ विषमे धरजो स साजराग कान्ता! बेकीमा म स जार गा ग थी मदाक्रान्ता.
विलोमे संमदाकान्ता, जुवो अंक ७६. ७० लास्यलीलालय.
_ (१,३. त य र र ग=१३ भाजनशीला.८०५
"। २,४.भस त त ग ग= १४ पुष्पशकटिका ९२५ शा या र र गा आ ओज केरा पदे छे
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रणपिंगळ.
समवृत्तद्ध.
भा स त त ग गा आ लास्यलीलालये छे.
विलोमे लास्थलीला, जुवो अंक ७७. १३, १६नां रूप ५३,६८,७०,९१२ थायछे.
. १,३. न न त त ग.= १३ चंद्रिका. ८४३ ७१ परमीणिता.
। २,४. न न स त तग:= १६ रूप १८,६८८ न न त त ग धरो ओज पादे तमे; न न स त त ग परप्रीणिता रचोजी समे.
विलोमे अपरप्रीणिता, अंक ८५. १४,१०नां रूप १,६७,७७,२१६ थायछे.
. (१,३.सभर ज ग ग=१४मदावदाता.९३३ ७२ अकोषकृष्टा. २
१२,४. तजर ग, =१० नमेरु. ४४० स भ रा जा ग ग ओजमां अकोषकृपाः ता जा र ग छ अनोज दृष्टा. विलोमे विलासवापी, जुवो पाछळ अंक ५६.. १४,१२ नां रूप ६,७१,०८,८६४ थायछे.
_ (१,३. भ र ज र ग ग. =१४ रूप १,३६७ ७३ षट्पद.१२.४. र ज र य. =१२ रूप ५८३
षट्पद भा र जा र गा ग ओजमां आवे;
राज रा य पाद तो समे समावे. १४,१३ नां रूप १३,४२,१७,७२८ थायछे. ७४ अनालेपन...
(१,३. न भ य य ल ग=१४ रूप ४,७२८ .॥२,४. न त त त ग. =१३ परिवृह. ८४० विषममां न भ य या ल गा अनालेपने समविपे आ न ता ता त गा तो बने.
आलेपन अंक ६७ मे छे तेनुं विलोम,
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संकीर्ग.
वर्णमेळ.
४८९
७५ अतिप्रतिविनीता. १,३. स भ र न ग ग =१४रूप ३,७६४
१२,४. न य ज र ग.=१३ रूप.१,३६० स भ रा छे न ग गा अतिमतिविनीता; समपदमां ना य जा र गा विनीता. प्रतिविनीतानुं विलोम, जुओ अंक ६८.
),२.म सजरगग.-१४जगतसमानिका १२ ".२,४. स स ज र ग.-१३ रूप १,३६९ ओजे छे म स जा र गा ग संमदाक्रान्ता; सममां स स जा र गा धराय शान्ता! मदाक्रान्तानुं विलोम, जुवो अंक ६९.
(१,३.भ स त त ग ग:-१४ पुष्पशकटिका.९२५ ७७ लास्यलीला.
१२,४. त य र र ग.-१३ भाजनशीला. ८०५ छे विषम विषे भा सा त ता गा ग कीला! ता या र र गा छे युग्ममा लास्यलीला.
लास्यलीलालय विलोम, जुवो अंक ७०.
१४,१५नां रूप ५३,६८,७०,९१२ थायछे. ७८ प्रमोदपरिणीता...
.१,३. न न र ज ग ग.-१४रूप २,७५२
"१२,४. न ज ज भ य.=१५ रूप ७,५३६ विषम चरण ना न राज गा ग गीता; न ज ज भ याथी समे प्रमोदपरिणीता.
विलोमे प्रमोदपद, जुवो अंक ८२. ७९ अवरोधवनिता..
. १,३. न भ भ र ल ग.१४ रूप ५,५६०
१२,४.स स ज भ य.=१५ रूप ७,५१६ विषम पादविषे न भ भा र ला ग छे; अवरोधवनितमा समे स स ज भा या.
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रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त.
अंक ७३७ मे द्रुतविलंबितं छे तेना पाद उपर ल ग वधारवाथी आनां विषम पद थायछे. विलोममां पण आ नाम रहेछे.
१४,१८ नां रूप ४,२९,४९,६७,२९६ थायछे. ८० मातंगी, (१,३. स न स न ग ग. =१४ रूप. ३,८३७ मागी.१२,४. म न ज न न य. =१८ रूप. ६५,४०१
" स न छे स न पर ग गा कवि! अयुग्मे; मातंगी म न पर जा न पर न य चरण युग्मे.
विलोम थतां पण एज नाम रहेछे. १५,१२, नां रूप १३,४२,१७,७२८ थायछे.
र १,३ स भ न ज र.-१५ रूप. ११,२५२
२,४ न नर य.=१२ परिमितविजया. ६६३ विषमे सा भ न ज र थी बृहच्छरावती न न र य सम पादमां धरेछे. |
शरावतीनुं विलोम, जुवो अंक ५८ १२,१४ नां रूप ५३,६८,७०,९१२ थायछे. ८२ प्रमोदपद. २
(१,३. न ज ज भ य. =१५ रूप. ७,५३६
२,४. न न र ज ग ग. ==१४ रूप. २,७५२ न ज ज भ या करजो प्रमोदपद ओजे; सम चरण न ना र जा ग गा अनोने.
विलोमे प्रमोदपरिणीता, जुवो अंक ७८. १५,१६ नां रूप २,१४,७४,८३, ६४८. थायछे. ८३ आसववासिता. १,२. न
.१,३. न भ र र य.=१५ रूप ५,३०४
१२,४. स भर ज स-ग.=१६ रूप १५,०२८ विषममां न भ छे र रा अन्त या कवेछे;
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सममांहे स भ छे रना पछी स ग पदे छे
१ वागवल्लभमां नीचे प्रमाणे छे. न भ रा श्च विषमे रयौ यदा समे चेत्, स भ रा आसववासिता जसौ च गुरु रेषा. विषम पादमां न भ र र य =१५
समपादमां स भ र ज स ग = १६ उपरनी कवितानी रचना प्रमाणे तो विषम पदमां चौद वर्ण ने स न र ज ग ग-१४ थायछे, एमां भूल छे. प्रथम नगण जोइये पण ते थतो नथी.
विलोमे अनासववासिता थायछे, जुवो अंक ८६. . . १६,१२ नो रूप. २६,८४,३५,४५६ थायछे. ८४ हीनताली. १,३. स भ स ज र ग. १६ रूप. १०,९९६
२,४. मन ज र. =१२ रूप. १,४०१ विषमे सा भ स ज र गे रचाय हीनताली; आवेछे म न ज र युग्ममां सदा.
अहीनतालीनुं विलोम, अंक ५९. १६,१३ नां रूप. ५३,६८,७०,९१२ थायछे. ८५ अपरीणिता)१,३. न न स त त ग.१६ रूप. १६.६८८
१२,४. न न त त ग.=१३ चंद्रिका. ८४३ न न स अपरप्रीणिता ता ता ग छे ओजमां; न न त त ग अनोजे रचो मोजमां. परप्रीणितानुं विलोम. जुवो अंक ७१
__(१,३.स भर जसग:१६ रूप.१५,०२८ ८६ अनासववासिता.
(२,४. न भ र र य.-१५ रूप. ५,३०४
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रणपिंगळ.
अ.
स भ ने राज पछी सगा कराय असमे तो; न भ अनासववासिता रा र या समे तो.
आसववासितानुं विलोम, जुवो अंक ८३. १८,१९नां रूप. १,३,७,४३,८९,५२,४७२.
.१,३. मस+स र+र म. =१८ रणशूर. १,१५० ८७ रणोदयः
“१२,४ जम+भ भ+तय+ग.=१९ रूप, ५२,६१४ .. मा सा ने सर नी पर रामा, गणो ओज पादे आवे;
रणोदये जा मा ने भभ छ, त य अन्ते ग समे लावे. रण+उदय-रणोदय-रणछोडभाइ उदयराम एबुं नामसूचक आ वृत्त नवं कल्प्युं छे.
भैरव रागां गवायछे; तेमज लावणीने रागे पण गाइ शकायचे. ८८ कलिकाललिता. २समत यसमग ग=२० रूप२०९
।२,४ स भ त य स स १८रूप १ १ १ ४ १२ प्रथमे ने पद त्रीजे स भ ता या स भ गा गा धरजोजी; . स भ ता या स स आणो समपादे कलिकाललिता.
असंकीर्ण. १०,१०नां रूप १०,४७,५५२ थायछे.
(१,३. स स ज ग.=१० सहजा. अंक ४६८ ८९ प्रभासिता.१२,४. म स ज ग.=१० विराट,शुद्धविराट.४६६
.... विषमे स स जा ग तो गमे;
मा सा ना ग प्रभासिता समे. ९० अतैल. (१,३. ज त त ग.=१० विशालप्रभ. अंक ४५६ अतिल.(२,४. त त त ग.=१० विशालान्तिक. अंक ४५५
अतैल ओजे ज ता ता ग छे;
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असंकीर्ण
वर्णमेळ.
ता ता त गा युग्मनां पाद छे.
विलोमे विश्वप्रभा, जुवो अंक ९१.. . ९१ विश्वप्रभा.र
[१,३. त त त ग. १०विशालान्तिक.अंक ४५६ । २,४. ज त त ग.=१० विशालप्रभ. अंक ४५६
ओने त ता ताग आण्या गमे । जता त विश्वप्रभा गा समे.
अतैजनुं विलोम, जुवो अंक ९०. ९२ आगोल १,३. स स ज ग.=१० सहजा. अंक ४६८
(२,४. तसज ग.=१० अहिला. अंक ४६९ विषमे स स जा ग थायछे
आलोलघटिका त स ज्ग छे.
-विलोमे लोलघटिका थायछे, जुवो अंक ९३. ९३ लोलघटिका, (१,३. त स ज ग.= १० अहिला. अंक ४६९ घटिका. २,४. स स ज ग.=१० सहजा. अंक ४६८
ओजे त स ज गा पदे गमे घटिका स स ना गं थी समे. आलोलघटिका, विलोम, जुवो अंक ९२.
११,११,नां रूप ४१,९२,२५६ थायछे. ९४ उपचित्र, (१,३. स स स ल ग.-११ उपचित्र. अंक ६०६ उपचित्रा.२,४. भ भ भगग. = ११ दोधक. अंक ५८०
विषमे स स सा ल ग आणजो;
भा भ भ गा ग समे उपचित्रे. इहानां समपद ते आनां समपद छे. द्रुतमध्यानां विषम पद ते आनां समपद छे. अवहित्र-त्रा अंक ९५मे छे, तेनुं विलोम.
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४९४
रणपिंगळ.
अर्द्ध सगवृत्त.
९५ अवहित्र, (१,३. भ भ भ ग ग.= ११ दोधक. अंक ५८० अवहित्राः।२,४.स स स ल ग.=११ उपचित्र. अंक ६०६
भा भ भ गा ग धरो विषमे तो; अवहित्र स सा स ल गा युजे. अंक ९४ उपचित्र, उपचित्रानुं विलोम.
१,३. त त ज ग ग.=११ इंद्रवज्रा. ५७१
(२,४, ज त ज ग ग= ११ उपेंद्रवज्रा. १७२ आख्यानकी ता त जगा ग ओजे; ज ता ज गा गा. करजो अनोजे. आना उलटाने विपरीताख्यानकी केहेछे. जुवो अंक ९७.
आ अने एना पछीनो भेद उपजातिनी अंदर आवी शकेछे, तो पण ते विशेष नाम वताववाने अहि ग्रहण करवामां आव्या छे. ९७ विपरीतारख्याकी १,३.जत जगग:=११ उपेंद्रवज्रा.९७२
। २,४.त त जग ग.=११ इंद्रवज्रा. ५७१ विलोम आख्यानकीन प्रमाणो; आख्यानकी ए विपरीत जाणो. आख्यानकी, विलोम, जुयो अंक ९६.
१,३. र म र ल ग. =११. रथोद्धता. ६०० (२,४. र न भ ग ग, =११ स्वागता. १८२ ओजमां र न र ला ग सारिका; युग्ममा र न भ गा ग धरेछे. कर्णिनी अंक ९९मे छे तेनुं विलोम.
१,३. र न भ ग ग. = ११ स्वागता. ५८२ १२,४. र न र ल ग.=११ स्थोद्धता. ६०० कर्णिनी विषम रा न भ गा गे; आणजो र न र ला ग युग्ममां. सारिका अंक ९८में छे, तेनुं विलोम.
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असंकीर्ग.
वर्णमेळ.
१०० शालभजिका.
१,३. स न र ल ग. =११ प्रतारिता.६०१
१२,४. म त र ल ग.=११ रूप ६७९ स न रा ल ग थी ओज तो गमे । भा व ल गाशालभंजिका समे. करभोद्धता, अंक १०१ में छे तेनुं विलोम.
... १,३. म त र ल ग. =११ रूप ६७९ १०? कराद्धता.१२.४. सन र ल ग.=११ प्रतारिता. ६०१
ओज विषे भा त रा ल गा गमे; स्न र ला ग करभोद्धता समे. शालभंजिका अंक १०० मे छे, तेन विलोम.
१,३. त न त ल ग. = ११ रूप ८२९ १२,४. समनल ग. =११ रूप ९६४ तानात ल ग करो ओज गति; स्म न ला गा युग्मे समयवती. अयवती अंक १०३मे छे तेनु विलोम.
(१,३. स म न ल ग.-११ रूप ९६४ १०३ अयवती.
१२,४. त न त ल ग.= ११ रूप ८२९ स म ना ला गा ओज पद गमे; ताना त अयवती ला ग समे. समयवती अंक १०२मे छे तेनुं विलोम. (१,३. नर र ल ग.= ११कनकमंजरी,ललित.५९७ १२,४, भर र ल ग:- ११. वारयात्रिक. ५९६ विषममां न रा, रा ल गा गमे; (६,५ यति)
औषगवे भराराल गा समे. औपगीत विलोम, अंक १०६.
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४९६
रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त.
(१,३. स स ज ग ग =११ विमला. ५६७ १०५ शिशुलीला.
" २,४. स र जग ग.=११ रूप ३४० विषमे रचजो ससा जगागा; शिशुलीला समे सराज गा गा.
(१,३.भ र र ल ग.११.वारयात्रिक.अंक ५९६ १०६ औपगवीत. १,२
१२,४.न र र ल ग.११. ललित. अंक १९७
औपगवीतमां भा र रा ल गा; समविषे करो ना र रा ल गा.
औपगव, विलोम, जुवो अंक १०४. १२,१२ नां रूप १,६७,७३,१२० थायछे. १०७ कौमुदी. १३
(१,३.न न भ भ.-१२ रूप. ३,४८० १२,४.न न र र.=१२ चपलाक्षिका.अंक७२१ न न भ भ विषमे करजो कवि! न न र र सममां धस्ये कौमुदी.
_(१,३.स भ ज य.=१२ शरमेया. अंक ७०१ १०८ उपसरसीक.
१२,४. त भ ज य.=१२ नीरान्तिक.अंक७०२ स भ जा उपसरसीक य आवे; ता भा ज या युज विषे कवि लावे. सरसीकनुं विलोम, जुवो अंक १०९. . [१,३. त भ ज य.-१२ नीरान्तिक. अंक ७०२
।२,४. स भ ज य.=१२ शरमेया. अंक ७० १ ता भा ज या थी सरसीक अयुग्मे; स भ जा या कवि ! पदे कर युग्मे. उपसरसीक, विलोम जुवो, अंक १०६.
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असंकीर्ण.
११० अर्भकपंक्ति.
१११ उलपोटा.
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२,४. भ भ र य. विषमे सा भर या धरो तमे तो; अर्भकपंक्ति भ भार या समे तो.
उलपोटा अंक १११ मे छे तेनुं विलोम .
२ रुचिमुखी.
वर्णमेळ.
१, ३. स भर य.
११३ विमुखी.
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१, ३. भ भ र य. २,४. स भ र य. ओज भ भा र य थायछे अयुग्मे; उलपोटा स भ रा य थाय युग्मे. अर्भक पंक्तिनुं विलोम, जुवो अंक ११०. १३,१३ नां रूप ६,७१,००,६७२ थाय छे.
= १२ बधीरा. ६८१ = १२ वलभी. ६८२
१, ३. न न स स ग. = १३ चण्डी. ८२९ २, ४ . न न भ स ग . = १३ विधुरवितान. ८३४ ननस स ग रुचिमुखी विषमे तो; न न भ स ग धराय पद समेतो. विमुखीनुं विलोम अंक ११३.
१, ३. न न भ स ग. = १३ विधुरवितान. ८३४
८२५
११४ भुजङ्गभृता.
=१२ वलभी. ६८२ = १२ बधीरा. ६८१
२,४. न न स स ग. - १३ चण्डी.
=
४९७
न न भ स ग अयुग्म पद मुखी छे; ननस सग सम पदे विमुखी छे. रुचिमुखीनुं विलोम अंक ११२.
१, ३. स स स स ग = १३ तारक. ८२२ २,४. भ भ भ भग. - १३ कर्मठ. ८७९ विषमे रचजो स स सा सग भाई !
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४९८
११६ सुरहिता.
रणपिंगळ..
भाभ भ भाग समेथी भुजंगभृता. विलोमे अनंगपद, जुवो अंक ११५.
११५ अनंगपद. [ १,२. भ भ भ भग. = १३ कर्मठ. ८७९
२, ४. स स स स ग. १३ तारक. ८२२ ओज भ भ भ भ गाथी अनंगपदे; कवियो सममां स स स स ग आणो. भुजंगभृतानुं विलोम अंक ११४.
s
१, ३. न न स सग. = १३ चण्डी. ८२५ ( २, ४ . त न न न ग. १३ रूप. ४,०९३ विषम चरण न न सा स ग आण्ये; ताना न न ग समर्थक सुरहिता. अतिसुरहितानुं विलोम अंक ११७.
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११७ अतिसुरहिता.
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१, ३. त न न नग. = १३ रूप. ४,०९३ ( २, ४ . ननस सग. - १३ चण्डी. ८२५ ओने त न न न ग अतिसुरहिता; ननस सग समपदे रचजी जी. सुरहितानुं विलोम अंक ११६.
११८ मधुवारी. {१,३. त म र स . १३ अट्टासिनी. ८९९
स ज स जग. = १३ मंजुभाषिणी. १९८
सजसा जगा
चारों ओज छे;
ता भार साल समे रचो कवि ! आप. निर्मवारीनुं विलोम, जुबी अंक ११९.
११९ निर्मधुवारी.
अर्द्धसमवृत्त.
१,३. त भर सल. = १३ अट्टासिनी. ८९९ २,४. सज सजग . = १३ मंजुभाषिणी. ८५८ ला भार साल थॉ ओज निर्मधुवारों;
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असंकीर्ण.
वर्णमेक.
सममां स जा स ज ग थायछे खरे. मधुवारीनुं विलोम अंक ११८.
(१,३. म त य स ग.=१३ मत्तमयूर,माया.८ १९ १२० धीरावर्त.
W)२,४, म भस मग.=१३ लीलालोल. ७९४ मापे ओजे, मा त य सा गा कवि लावे; (४,९ यति) धीरावर्ते; म भ स म गा युग्मे आवे. (४,९ यति)
विलोमे पण एज नाम रहेछे. १०१ १ , २. भ न य न ल.=१२ पंकावली. अंक ९.२
१२,४. म न ज ज ल.=१३ पंकवती. अंक ९०१ अर्द्धरुत विषममां भा न य न ल; युग्म चरण रचवां भ न जा ज ल. विलोमे अल्परुत थायछे, जुवो अंक १२२.
(१,३.म न ज ज ल.=१३ पंकवती.अंक९०१ १२२ अल्परुत.
१२,४.भ न य न ल.=१३ पंकावली.अंक९०२ अल्परत भ न ज जा ल पदे पर; युग्म चरण भ न या ना लथी कर.
विलोमे अर्द्धरुतं, जुवो अंक १२१.
(१,३. स ज स स ग.-१३ कलहंम. अंक (२३ १२३ कलना.
१२,४. स ज स ज ग.-१३ मंजुभाषिणी.अंक (५८ विषमे स जा, स स ग थी कलना छे; (५,८ यति) सममां स जा स ज ग तो रचायछे.
कलनावतीनुं विलोम, जुचो अंक १२४. १२४ कलनावती...२
(१,३. स ज स ज ग.-१३ मंजुभाषिणी. (५८
। २,४. स ज स स ग.=१३ कलहंस. अंक ८२३ कलनावती स ज स जा ग ओजमां; सममां स जा स स ग आण सदा तुं. . कलना, अंक १२३ न पिलोम.
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५००
रणपिंगळ.
अर्द्ध समवृत्त.
१२५ शिशमखी. १,३. न भ ज ज ग.=१३ सारसनावली.८७१
१२,४.न भसजग. =१३ विरोधिनी. ८६१ शिशुमुखी न भ ज जा गुरु ओजमां; पद विषे न भ स ज गा अनोजमां.
विलोमे अनिरया, अंक १२६,
(१,३. न भ स ज ग.१३ विरोधिनी. ८६१ १२६ अनिरया.
"१२,४. न भ ज ज ग.=१३ सारसनावली.८७१ विषममां न भ स ज गा करो तमे; अनिरया न भ ज जा ग धरो समे.
शिशुमुखीनुं विलोम, जुवो अंक १२५. . १६,१६ नां रूप ४,२९,४९,०१,७६० थायछे. १२७ वासववासिनी..
१,३.न ज भ ज ज ग=१६ रूप२३,४७२
१२,४. त ज भ जज ग-१६ रूप२३,४६९ न ज भ ज जा ग ओज पद वासववासिनी;
युग्मे धरवा त जा भ ज ज गा पद वासिनी. वर्ण १४मा अंक ९७९मे कुररीरुता छे ते उपर ल ग वधारवाथी आनुं विषमपद थायछे.
विलोमे वासिनी, अंक १२८.
१,३. त ज भ ज ज ग.=१६ रूप २३,४६९ । २,४. न ज भ ज ज ग.१६ रूप २३,४७२ ता जा भ ज वासिनी विषममां ज ग को करे;
न ज भ ज जा ग माप समपाद विषे धरे. वर्ण १४मां अंक ९७९मे “कुररोरुता" छे ते उपर ल ग वधारवाथी आनां समपद थायछे.
विलोमे वासववासिनी, अंक १२७.
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वर्णमेळ,
AAAARA
NAANIm/MNAAMAAAAAAAAAAAAAAAAAAAP
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असम अथवा विषमत्त. भिन्न भिन्न लक्षणवाळां, एटले जेनां चारे पाद विषम होय ते विषमवृत्त केहेवायछे; तेना संकीर्ण अने असंकीर्ण एवा भेद छे अने ते त्रण जातिना छे:-~~
१ पदचतुरूवं (अथवा पादचतुर्व), २ उद्ग्रता, ३ उपस्थितपचुपित.
संकीर्ण.
(पद+चतुर+ऊर्ध्व-पदचतुरूवं, जेना पदमां १२९ पदचतुरूवं. चार चार वर्ण वधे एवं; वळी जेमां लघु गुरुनो
(नियम नहि एq. प्रथमे अक्षर आठ; बीजे बारतणो रचायछे ठाठ; त्रीजामां अक्षर सोळ सर्व मळीने आणजो, चोथे अक्षर वीश पदचतुरूवं पदमाह जाणजो.
वृत्तरत्नाकर अने मंदारमरंदचंपू प्रमाणे. ८,१२,१६, अने २० ए क्रममा उथलपाथल करवामां आवे तो पदचतुरूनां २४ रूप थायछे.
(१.६ ल+२ ग. = ८ वर्ण. तुंगा. २९० १३० आपीड. २
.) २.१०ल+२ग. =१२ वर्ण. रूप १,०२४ • ) ३.१४ल+२ग.=१६ वर्ण.शिशुभरण.१,०८०
(४.१८ल+२ग.=२० वर्ण. रूप २,६२,१४४ (अन्तमा प्रतिपदे बे गुरु बाकीना सर्वे लघु,) छ ल द्विग प्रथमे छे, दश ल उपर द्वि ग युगले छे;
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रणपिंगळ.
विषम.
मनु ल उपर द्विग कवि घर पद त्रीजे; धृति ल उपर गगधरों कविवर! श्रुति पद कीजे उपरनी रीते आना पण चोवीश भेद प्रस्तारथी थायछे.
(१.२ग+ ६ ल ८ वर्ण सन्धूक. ३४९ १३१ प्रत्यापीड.
.) २. २ग+१० ल=१२ वर्ण. रूप ४,०९३
३. २ग+१४ ल-१६ वर्ण. रूप ६५,५३३
५. २ग+१८ ल=२० वर्ण. रूप १०,४८,५७३ वे गा छ ल प्रथमन, __बे गा पर दश ल द्वितीय पद;
बे गा उपर मनु ल तृतीय चरण धर, .. बे गा उपर चरम चरण दश वसु ल कवि! कर.
(१.२ ग+ ४ ल+२ ग= ८ संध्या,बोधा.२८९ १३२ उभयापीड.
१) २.२ ग+ ८ ल+२ ग-१२ विरतिमहती.७१३.
३. २ग+१२ल+२=१६ रूप. ८,१८९ (४. २ग+१६ल+२ग=२० रू.प.२,६२,१४१ गा गा ल न ग ग पे'ले, गा गा वसुल उपर ग ग बीजे; गा गा पर रवि ल पर ग ग चरण त्रीजे,
गा गा पर दश पट ल उपर ग ग धर पद चोथे. उभय+आपीड-उभयापीड-जेमां आपीड अने प्रत्यापीड ए बनेनां लक्षण आवे ते. एटले एना मापमां आपीडमां अंतमां बे गुरु आवेछे ते लोधा, अने प्रत्यापीडमां प्रारंभमां बे गुरु आवेछे ते आना प्रारंभमां लीधा छे. ए रीते प्रत्येक पादमां आदि अने अन्तमां बबे गुरु आवेछे, बाकीना वच्ये लघु अक्षर थायले. .
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वर्णक.
१४
उभय एटले आदि अने अंत एम वे स्थाने बे गुरुआवे. १३३ कलिका,
(१. १० ल+२ ग-१२ वर्ण. रूप १,०२४
२. ६ ल+२ ग% ८ तुंग, तुंगा.अंक २९० मञ्जरी, मन्डरी.
) ३. १४ ल+२ ग=१६ शिशुभरण. १,०८०
( ४. १८ ल+२ ग-२० रूप २,६२, १४४ दश ल पर ग ग प्रथम दीजे, छ ल ग ग पद बीजे; मनु ल पर ग ग तृतीय पद धरजो जी, १०८ दश वमु ल पर ग ग चतुरथ चरण करजो जी.
१ मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे.
(१. १० ल+२ग=१२ रूप १,०२४ १३४ लवली.) २. १४ ल+२ग-१६ शिशुभरण अंक १,०००
। ३. ६ ल+२ग= ८ तुंग, तुंगा. अंक २९०
४. १८ ल+२ग=२० रूप २,६२,१४४ दंश ल पर ग ग प्रथम आणो, (आपोउनुं २जु पद = १३० मनु ल उपर द्वि ग लवली द्वितीय जाणो; (,, ३ जु) छ ल द्वि ग पद त्रीजे, (आपीडन प्रथम पद) चतुरंथ पद दश वनु ल उपर टौंक ग ग कीजे. (,, ४ थु)
आमां सकल चरणने अंते वे गुरु आवे. वृत्तरत्नाकर तथा मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे.
( १. १४ल+२ग-१६ शिशुभरण.अंक १,०८० १३५ लवली.)२. १०ल+२ ग=१२ वणे. रूप १,०२४ (द्वितीय)) ३. ६ल+२ग= ८ तुंग, तुंगा. अंक २९०
(४. १८ल+२ग-२० वर्ण. रूप २,६२,१४४ प्रथम चरण मनु ल उपर द्वि ग दीजे,
१४
१०+८
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४
रणपिंगळ.
विषम.
...........wwwrrrrow
दश ल पर द्वि ग चरण बीजे; छ ल पर ग ग. त्रीजे, १०+८ दश वसु ल पर द्वि ग चतुरथ पद लवली कीजे. पिंगल नागना मत प्रमाणे छंदःशास्त्रमा लख्या मुजब.
( १. १० ल+२ग =१२ रूप १,०२४ १३६ अमृतधारा) २. १४ ल+२ग =१६ शिशुभरण १,०८० - मञ्जरी२.) ३. १८ ल+२ग =२० रूप २,६२,१४४
(४. ६ ल+२ग = ८ तुंग, तुंगा. २९० दश ल पर द्वि ग प्रथम आवे, द्वितीय चरण मनु ल उपर ग ग लावे; ।
८+ १० वसु दश ल उपर ग ग तृतीय पद अमृतधारा,
छ ल द्वि ग पद चारा. १ वृत्तरत्नाकर तथा मंदारमरंदचंपूना मत प्रमाणे. २ मंदारमरंदचंपू केहेछे के कोइ एने मंजरी केहेछे.
( १. १८ ल+२ ग =२० रूप. २,६२,१४४ १३७ अमृतधारा.)२. १० ल+२ ग=१२ रूप. १,०२४ (द्वितीय) ) ३. १४ ल+२ ग=१६ शिशुभरण.१,०८०
(४.६ ल+२ ग = ८ तुंग, तुंगा. २९०
८+ १० . प्रथम चरण वसु दश ल पर ग ग अमृतधारा; दश ल द्वि ग द्वितीय पद सारा, तृतीय पद मनु ल पर द्वि ग ठिक गोठे, छ ल पर ग ग चोथे.
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संकर्णि
वर्णमेळ.
५०५
wwwwwwwwwwwwww
AVVVVvvvvvvvv
( १. स ज स लै =१० रसभूम. अंक ५०९
२. न स ज ग =१० अनुचायिता.अंक ४७१ .) ३. भन ज ल ग ११ अर्थशिखा. अंक ६२७
(४. स ज स ज ग=१३ मंजुभाषिणी.अंक ८५८ प्रथमे स जा स ल धराय, न स ज ग द्वितीय पादमां; भा न ज ल ग तृतीये चरणे,
स ज सा न गा पद चतुर्थ उद्गता. छंदःशास्त्र, प्राकृत पिंगळसूत्र, वृत्तरत्नाकर, छंदोमंजरी, अने मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे.
१ माघ अने भारवि कविनी रचनामां आवा प्रकारनी उद्गता रची छ, माटे तनी प्रकारान्तर गणना करी छे.
( १ स ज स ल =१० रसभूम. अंक ५०९
२. न स ज ग =१० अनुचायिता. ,, ४७१ १३९ सरल.
') ३. भ न ज ल ग=११ अर्थशिखा. अंक ६२७ (४. न न न ग =१० रूप प्रथमे स जा स ल धराय, न स ज ग करो बीजे पदे भा न ज ल ग तृतीये चरणे, त्रि न ग पद युग सरला. ( १. स ज स ल=१०. रसभूम. ५०९
२. न स ज ग=१० अनुचायिता. ४७१ १४० उद्गगता ) ३.भ न भ ग =१० गहना. ४९३
(४.सजस जग-१३ मंजुभाषिणी. ८५८ प्रथमे स जा स ल रचाय, न स ज ग द्वितीय उद्गता;
४३
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रणांपेंगळ..
विषमवृत्तं.
३
.
सौरलक.
सज सजग-१३
भा न भ ग अनले धरजो,
स ज सा ज गा पद चतुर्थमां सजो. १ छंदोमंजरी तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा प्रथम जणावेलु उद्गतावृत्त आपीने आ माप पण जणाव्युं छे, अने तेनुं उदाहरण नीचे प्रमाणे आप्युं छे:
१ विललास गोपरमणीषु, .. २ तरणितनया प्रभोद्गता; ३ कृष्णनयनचकोरयुगे,
४ दधती सुधांशुकिरणोमिविभ्रमं. उद्गतानुं त्रीजुं पद शब्दकल्पद्रुममां मळ्तुं आवतुं नथी पण छंदो- . मंजरी साथे मळेछे तेमां बीजो प्रकार छे. १४१ सौरभक,
(१. सं जस ल=१० रसभूम. अंक ५०९ सौरभ, १२. न स ज ग=१० अनुचायिता.अंक ४७१
. *) ३. र न भ ग=१० रूप. ४४३
(४. स ज स जग=१३ मंजुभाषिणी. अंक ८५८ प्रथमे स जा स ल कराय, द्वितीय चरणे न सा ज गा; छे तृतीय पद रा न भ गा,
स ज साज गा पद चतुर्थ सौरभे. पेहेलु, बाजूं, अने चोथु चरण उद्गता प्रमाणे थायछे. मात्र त्रीजुं चरण जूदं पडेछे. आ विषे वागवल्लभ, प्राकृतपिंगलसूत्र, अने मंदारमरंदचम्पूनी संमति मळेछे.
परिभूत फुल्ल शत पत्र =१० वन विसृत गन्ध विभ्रमा १० कस्य हुन्न हरतीह हरे १०
मुख पद्म सौरभ कला तवाद्भुता=१३ पण खरं उदाहरण उपर प्रमाणे छे तेने बदले संस्कृतप्रोसडीमां
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
५०७
बीजा चरणनी आदिमां वन ने बदले वदन शब्द मूकवाथी एक अक्षर वधेछे अने तेथी माप न न र ल ग गण्युं छे ते भूल छे. तेमज प्रा. पिं. सू. मां चोथा चरणना प्रारंभमां मुख शब्द मूकी दीधो छे, तेथी १३ ने बदले ११ वर्ण थायछे अने तेनी उदृवणिका तेमां जणाव्या प्रमाणे रन र ल ग थायछे, ते पण भूल छे.
. * मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे. . . .
[१. स ज स ल =१० रसभूम. अंक ५०९ १४२ ललित. २. न स ज ग=२० अनुचायिता.अंक ४७१ (विषम) | ३. न न स स =१२ हाकलिका. अंक ७५८
४.स जस जग=१३ मंजुभाषिणी. अंक ८५८ प्रथमे स जा स ल रचाय, द्वितीय चरणे न सा ज गा; तृतीय चरण न न सा स करो,
स ज सा ज गा ललितमां युगे४ धरो. त्रीजा चरण सिवाय बाकीनां चरण उद्गता प्रमाणे छ.
मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे पण आ ललित छे.--- - जेम उद्गताना भेद थायछे तेम आना पण भेद थइ शकछे. वळी संस्कृत प्रोसडोमां बे जातनुं ललित छे तेमां एकमां नीचे प्रमाणे गण आप्या छे:
१ पादमां स ज स ल. रसभूम. अंक ५०९ २ पादमां न स ज ग. अनुचायिता. अंक ४७१ ३ पादमां न न भ ग. फलधर. अंक ४९४ ४ पादमां स ज स ज ग. मंजुभाषिणी. अंक ८५८
(१.स ज न ग=१० धमनिका. अंक ४९५ १४३ अपरा+ २. न स ज ग=१० अनुचायिता. अंक ४७१. उद्गता. ३. भन जल ग=११ अर्थशिखा. अंक ६२७ .
(४.सजसजग=१३ मंजुभाषिणी, अंक ८५८
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५०८ रणपिंगळ.
विषमत. www.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmar प्रथमे स जा न ग कहिजे, न स ज ग धरो प्रदे बीजे; भा न ज ल ग पंद मांह त्रीजे, . स ज सा ज्य तुर्य अपरोद्गता कोजे.
१. स ज भ ग=१० प्रवादपदा. अंक.४८६ १४४ अपरोद्गता. २. भ स ज ग=१० कुप्य. अंक ४७०
३.जभजल ग%११ शल्कशकल.अंक ६२२
। ४.र जस जग=१३ मंजुमालती. अंक(५७ प्रथमे गणो स जा भ ग छे, भा स ज ग द्वितीय पाद छे; ज भा ज ला ग पद थाय त्रीजे, राज सा ज छे ग अपरोद्गता युगे.
(१. स भ स ल = १० रसभूम. ५०९ १४५ अपरोद्गता.) २. न न ज ग = १० चितिभृत. ४७९ (बीजी) )३. भ ज ज ल ग=११ शल्कशकल. ६२२
(४. स ज स ज ग-१३ मंजुभाषिणी. ८५८ स भ सा ला प्रथम रचाय, न न ज ग पद द्वितीय छे भा ज ज ल गा अनले कवि छे, अपरोद्गता स ज स जा ग तुर्य छै.
उपस्थित प्रचुपित.
१. म स ज भ ग ग=१४ रूप ३,४ १७ १५६ उपस्थित- २. स न ज र ग =१३ रूप १,४०४ प्रचुपित. । ३. न न स = ९ मदनक. ४०४
(१. न न न ज य =१५ रूप ७,१६८
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
पे'ले पाद म सा ज भा ग गा कवि! आणो, स न जा र ग पद छे द्वितीय नाणो; न न स चरण तृतीये, न न न ज य प्रचुपित उपस्थित चोथे.
मंदारमरंदचंपू प्रमाणे.
[१. म स ज भ ग ग=१४ रूप. ३, ४ १७ १४७ प्रवद्धमान, २. स न ज र ग =१३ रूप. १,४०४ वर्तमान. । ३. न न स न न स == १ ८रूप. १,३०,८१६
( ४. न न न ज य =१५ रूप. ७,१६८ मासा ज्भा ग ग वर्द्धमानमा प्रथमे छे, सन जा र ग चरणे बोजे करेछे; न नसन न स गण आ अनल पद कवि करे,
त्रिन पर ज य प्रवरधमान चतुर्थे. १४८ शुद्धविराटऋ- १. म स ज भ ग ग=१४ रूप. ३,४१७
षभ, शुद्ध वि- २. सनजरग =१३ रूप. १,४०४ राषभ, शुद्ध । ३. त जर = ९ रवोन्मुखी. ३८१ विराडाभ. (४. न न न ज य =१५ रूप. ७,१६८
पेहेले चरणे म सा ज भा ग ग कीजे, स न जा रे ग कवि! आण पाद बीजे; ता जा र तृतीय पाद दे,
न न न ज य श्रुति चरण शुद्धविराटे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणमट्टी टीकामां लखेछे के पेहेलाज पादने अतै थति मानी बाकीनां त्रणे पादो साथे बोलाय तो आर्षभ एवं नाम पडे अने प्रत्येक चरणने अंते यति रखाय तो शुद्धविराडषभ थाय. एम यतिना भेद भी वे नाम पडछे एम केटलाक केहेछे.
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रणपिंगळे.
विषमवृत्त.
१. त र ले ग=८ नाराचिका. अंक २९४ १४९ नगोनिता. २. जर ल ग=८ प्रमाणिका. अंक २९५
)३. र ज ग=७ चामर. अंक १६९ । ४. जर ल ग% प्रमाणिका. अंक २९५ तारा नगोनिता लगा, बोजा विषे जरा ल गा; राज गा त्रौजे धरो, जरा लगा युगे करो.
( १. न य स = ९ सारंगिका. अंक ३९३ १५० परार्थिनी, २. ज त भ ग=१० रूप ४२२ वरार्थिनी.) ३. भ म स = ९ मणिबंध. अंक ३९२
(४. त ज र ग ग=११ रूप १७३ प्रथम न या सा करजो, बोजे न ता भा ग तो धरजो; भा म स त्रीने पाद धरो, ना जा र ग गा परार्थिनी चोथे. ( १. त ज र = ९ रवोन्मुखी. ३८१
२. म स ज ग =१० विराट. १५१ नगोपमा.) ३. त ज र ९ रवोन्मुखी. ३८१
( ४. स भर ल ग-११ सीधु. पेले त ज रा बने खरे, बीजे मा स ज गा पदे धरे त्रीजे त जरा तमे करो, स भ रा ला ग नगोपमा धरो.
(१. त ज र = ९ रवोन्मुखी. ३८१
२२. म स ज ग=१० शुद्धविराट. ४६६ १५२ अगाधिका. ३. स स ज ग=१० सहजाः ४६८
१४. म स ज ग=१० शुद्धविराट. ४६६
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संकीर्ण.
वर्णमेळ,
Vvvvvvm
पे'ले त जरा करो भले, बीजे मा स जागा पदे भळे; स स जा ग त्रीजे अगाधिका. चोथे पाद धरो म सा ज गा.
(१. न भ र = ९ करशया. ३८८. १५३ विषकण्ठी..
२. स स ज ग =१० सहजा. ४६८ । ३. न न र ल ग-११ सुभद्रिका. ६०३
(४. स भ स ज ग=१३ रूप. २,८०४ प्रथम ना भ र थायछे, स स जा ग बीजे रचायछे न न र ल ग त्रौने पदे करो. विषकंठी स भ स ज गा युगे धरो. [१. स स य = ९ रूप.
। २. न ज ज र =१२ मालती. ७३१ १५४ पंजी. ३. न न र ल ग =११ सुभद्रिका. ६०३
( ४. न ज ज र ग=१३ मृगेन्द्रमुख. ८१५ स स या प्रथमे करो जो, .. न ज ज र पाद द्वितीय आणजो; न न र ल ग तृतीय जाणजो,
न ज ज र गा थकी तुर्य पाद पंजी. छंदोलतामां आना चोथा पदनुं लक्षण उपर प्रमाणे छे पण तेमा उदाहरणमा रगण ने बदले मगण थइ गयो छे.
१. न ज न ग =१० अमृतगति. अंक ४९६ १५५ उदया. २. स भ स = ९ अनवीरा. अंक ३९९
| ३. न न न ल ग-११ दमनक. अंक ६३७ .८४. म न न ग =१० रूप.
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५१२
रणपिंगळ.
प्रथम पदे न ज न ग छे,
२
उदया नेत्र स भ स छे;
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तृतीय चरण न न न ल गा, चोथे वर्ण दश म न न गा.
१५७ सौराङ्गी.
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१. स स ज ग = १० सहजा अंक ४६८
१५६ नालीका. २. सभरल ग=११ सीधु. अंक १९९ ३. त ज र = ९ रवोन्मुखी. अंक ३८१ ( ४. मसजग = १० विराट अंक ४६६ प्रथमे स स जाग नालीका,
स भराला ग द्वितीय छे कोका ! त्री त ज रा तमे करो,
चोथे पाद म सा जगा घरो.
१५८ मक्षुमतिका.
""
" ४६८ ४६६
१. स स ज ग = १० सहजा. अंक ४६८ २. स भ र ल ग = ११ सीधु. ५९९ ३. स स ज ग = १० सहजा. ४. म स ज ग - १० विराट. प्रथमे स स जाग थाय रे, पद बीजे स भ रा लगा धरे; तृतीये स स जाग कार छे, सौराङ्गी म स ज ग चार छे.
विषमवृत्त.
१. न ज ज ल ग = ११ सुमुखी. २. भ भ भ ग = १०
३. न भ भ ग = १० ४. भ ज त ग = १० प्रथम पदे न ज जा लघु गा,
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??
६२३ विश्वमुखी. ४०९ शरत. ४९१ खेटक. ४१९
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वर्णमेळ.
छे द्वितीये पद भा भ भ गा; तृतीय पाद न भा भ ग छे, मंचमतिका भ जा ता ग छे.
( १. न न न ल ग%११ दमनक. अंक ६३७ १५९ शर्मः २
२. न ज न ग=१० त्वरितगति,अमृतगति. ४९६ ) ३. भ भ स = ९ प्रियतिलका. अंक ४०० (४. भन न ग=१० कृतमणिता. अंक ४९८
प्रथम चरण न न न ल गा, चरण द्वितीय न मम गा छे तृतीये भ भ स. खरे, शर्म युग भ न न ग करे.
(१. स स ज ग=१० सहजा. अंक ४६८ १६० चिरकरका.
...)२. सभरल ग=११ सीधु. अंक ५९९
) ३. त ज र == ९ रवोन्मुखी.अंक ३८१
(४. न ज जर-१२ मालती. अंक ७३१ प्रथमे स स जा ग थायछे, द्वितीये सा भ र ला ग गायछे। त्रीने त ज रा तमे धरो, चिरकरका म ज जा र थी करो. ( १. न न र ल ग=११ सुभाद्रिका. ६०३
२. स भ र ल ग =११ सीधु. ५९९ १६१ माणित्थक.) ३. स स ज ग =१० सहजा. ४६८
(४. म स ज ग =१० विराट, ४६६ प्रथम न न र ला ग तो कि, स भ रा ला ग मणित्यके बीजे; .
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रणपिंगळ.
विषमवृत्त
तृतीये चरणे स साज गा, चोथे पाद करो म सा ज गा. ( १. स स ज ग=१० सहना. ४६८
)२. म स ज ग=१० विराट,शुद्धविराट.४६६ १६२ वैतालीक.) ३. न न र ल ग=११ सुभाद्रिका. ६०३
(४. स भ र ल ग=११ सीधु. . ५९९ प्रथमे स स जाए तो कीजे, वैतालीक म सा ज गा बौने तृतीय चरण ना न रा ल गा, श्रुति पादे रच सा भ रा ल गा.
( १. न. न भ स =१२ रूप १,९८४ १६३ मन्देहा. २१
२, मन न ल म-११ रूप १,०१७ । ३. भ स ज ग =१० रूप ३५१ (४. म त र = ९ रूप १६१ प्रथम चरण ना न भ स धरो, मन्दहा म न न ल ग थी करो; भा स ज ग त्रीजे पदे करे, चोथे पादे मा त रा धरे.
( १. न ज य ग ग=११ वार्ताहारी.अंक ५४० १६४ कुथिनी..
२. न न स म =१२ शुद्धान्त. अंक ६६४
३. त न म ग =१० कुल. अंक ४२८ १४. स न य ग ग =११ सौधांघ्रि. अंक ५४३ प्रथम पदे न ज या गा गा छे, न न स म कर कुथिनीमां बीजे; त्रीजे चरण त ना मा गा छे
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१६६ वर्त्तिका
वर्णमेळ.
सन या ग ग पद चोथामां छे.
१. ससज गग=११ विमला. १६५ कामकल-२: समरय = १२ वधिरा.
शिका.
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अंक ५६७
अंक ६८ १
6
३. तजरमं . = १० नमेरु, लाजवती . ४४ ( ४. भसजग ग=११ अमंदपाद.
१६९
प्रथमे स स जा ग गा करोजी, पद बीजे स भ रा य तो धरोनी; त्रीने पद थाय ता जरा गां, कामकलाशिका में सा जगा गा.
१. र नर लग=११ रथोद्धता. अंक ६०० २ रन भगग = ११ स्वागता. अंक १८२ विलसित. ) ३. नररलग=११ भाविनी. अंक १९७ १,२११
४. रनरर = १२
रूप.
१६७ उपवैतालिक.
थायछे प्रथम रा न रा लगा, छे द्वितीय पदरान भगा गा; न र र ला ग आवे त्रौजे पदे, वर्तिकाविलसिते र नारा र दे.
५१५
१. त भ त ग ग ११ इहामृगी. १६२ २. त भ त ग ग = ११ इहामृगी. ५६२ ३. त त जर = १२ विरासिका. ७२७ ४. त भ त ग ग - ११ इहामृगी. ५६२ ता भा ग गा उपवैतालिके छे,
बीजे पदे त भता याग के' छे; त्री पदे छे त त जा र मापमां, चोथे पदे कवि! ता भा त गा ग.
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रणांपेंगळ.
विषमवृत्तं
( १. स न स ल ग=११ रूप. ७६४
२. स भ न र =१२ उपलेखा. ७४२ १६८ महातुरा.
) ३. त ज न र =१२ रूप १,५१७ (४. म न न र =१२ रूप १,४०१ प्रथमे स न स ल ग आणजो, पद बीजुं स भ न र थी जाणजो त्रीजे चरणे त ज न र छे छूरा! चोथे मा न ज र बने महातुरा.
१. मज र र =१२ विशिखलता. अंक ७१९ १६९ सुरभि. २. न ज ज र =१२ मालती.. अंक ७३१
| ३. न न र य =१२ परिमितविजय .अंक ८३ ( ४. न ज ज र ग-१३ मगेंद्रमुख. अंक ८१५ प्रथम पड़े न जा र रा जाणजो, द्वितोय पदे न ज जा र आणजो; तृतीय चरण ना न रा य आणो,
सुरथि चतुर्थ न जा जरा ग जाणो. आ वृत्त छंदोलतामांधी मळ्युं छे. छंदोलतामां तेनां प्रथम पादना लक्षणमा उपर प्रमाणे गण कह्या छ पण उदाहरणमां एक रगण आछो छे.
. [१.स स ज ग ग -११विमला. अंक५६७
२.स म र य =१२बधिरा. अंक .८१
३.सस ज य ससजसग-२५रूप ७६,६३,१२८
१४.स ज स स ग =१३कलहंस. अंक ८२३ प्रथमे स स जा ग गा धरीजे, गिरिकन्या स भ रा य आण बीजे; सृताये चरणे ससा जय सा साज सगा करवा वसन्तरि भाखे, स ज सा स गा श्रुति पदे कवि दाखे.
छंदोलतामाथी आ वृत्त लीधुं छे.
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
[१. ४ रगण=१२ स्रग्विणी. अंक ७१७ १७१ सुरद्रु.
| २.३य+लग-११ भुजंगी, कर्ण. अंक १९० । ३.४ य गण=१२ भुजंगप्रयात. अंक ६७५. ( ४.३त+२ग=११ प्राकारबंध. अंक ५५९ आदिना पादमां चार रा तो वदे, त्रि या छे ल गा छे, द्वितीये पदे य तो चार त्रीने सुरद्रु पदे छे, चोथे त्रिता ने द्वि गा माप देखें: [ १. स ज स स=१२ प्रमिताक्षराः अंक ७५४
२.तभजल ग=११ जिलाशया. अंक ६२४ १७२ अत्सरु.
। ३. भजस स=१२ नीलभिरिका. अंक ७५६ (४. ज ज सस=१२ विकत्थन. अंक ७५५ स ज सा स अत्सरु विषे प्रथमे, बीजे त भा ज ल ग थाय क्रमे; भा ज स स छे गण तृतीय पदे, ज जा स स तुर्य पदमांह वदे. [१. भ भ म भ=१२ मादक. ७८९
२. ज ज ज ज=१२ मौक्तिकदाम.७८६ १७३ छेकवती.२
। ३. स स स स १२ तोटक. ७५३
1. भ भ भग ग=११ दोधक, बंधु. ५८० भा भ भ भा थकी छेकवती कर, ज जा ज ज पाद बीजे कवि! धार; स स सा स त्रौजे पद आण सदा, भा भ भ गा ग बने पद चोथे.
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५१८ रणपिंगळ.
विषमवृत्त.
wwwmmmmmmm ( १. न न म स ग=१३ विधुरवितान.८३४
२. भ स न य =१२ अर्पितमदना.७१२ १७४ मानमुखी. ३. न य न य =१२ कुसुमविचित्रा.७१.१
४. भ त न ग ग%११ अनुकूला. ५८६ न न भ स ग बंधां पद प्रथमे छे, मा से न य द्वितीय पद धरेछे; न य न य त्रीने चरण करेछे, मानमुखी भा न ग ग युगे छे. ( १. म भ न ल ग= ११ भ्रमरविलसिता. ६३५
२. स त न स =१२ रसिकपरिचिता. ७७० १० .१३. न य न नग=१३ मदनजवनिका. ८८t
(४. भ त न स-१२ वीरणमाला. ७७१ पे'ले पादे म भ न ल ग धरो, पदं बीजे सा त न स कवि! करो; मतभृगु त्रीजे न य न न ग पदे, तुर्य पदे भा त न सगण वदे.
(१. न भ ज य=१२ द्रुतपद. ७०४ १७६ भुवनविरति. २. र न भ ग ग-११ स्वागता. ५८२
। ३. जनज य =१२ उपधान. ७०८
( ४. न न स स ग-१३ चंडी.. ८२५ प्रथम पाद न भ जा य धरेछे, रा न भा ग ग द्वितीय पदे छे; जना ज य पद रचो कवि! त्रीने, भुवनविरति न न सा स ग चोथे,
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संकीर्ण.
१७७ उदक्.
वर्ण मेळ.
( १. न भ स ज ग = १३ विरोधिनी. ६८१
२.
स नजर = १२
७३४
३.
तन र ल ग = ११
६०२
४. भ न ज र = १२
अविरलरतिका. ७३५
न भ स जाग उदक आदिमां धरो,
स न जा र कवि ! द्वितीयमां करो; त्रीजे त न र लगा रचायछे, भान जर चरण तुर्य थाय छे.
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१७८ संकलि
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( १. न ज ज य = १२ २. भ भ भगंग = ११ ३. न न स सग=१३ ४. भनजय = १२ प्रथम पदे न ज जा य रचावो,
१७९ दरदपूर.
विरला. नीला.
3
भात्रि द्वितीय पदे ग ग लावो; तृतीय चरण द्विन सास ग जाणो, संकलि चतुर भ ना न य आणो.
तामरस.
दोधक. चंडी.
६९९
५८०
८२५
पथिकान्ता. ७०९
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५१९
७६८
१. न न स ल ग = ११ रूप. २. स भ न र = १२ उपलेखा. ७४२
३. न ज भ ज ग - १३ रूप.
४. तन र न ग ग = १४ रूप.
प्रथम न न स ल ग आणजो, पद बीजे स भ न र प्रमाणजो; तृतीय पदे न जा भ ज ग जाणजो, ता ता र दरदपूरमां न ग ग चोथे,
२,९९२
३,७७३
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५२०
रणपिंगळं.
विषमवृत्त
( १. न ज ज र ग=१३ मृगेन्द्रमुख.८१५
२. भ भ र य =१२ वलभी. ६८२ १८० तरुणाशया. र
') ३. ज ज ज र ग=१३ अतिरंह. ८१४
(४. स ज ज र ग=१३ ऋक्षपाद..८१३ प्रथम पदे न ज जा र गा धरो जी, भा भ र या पदमां बीजे करो जी; त्रौजे चरणे ज ज जा र गा नकी छे, तरुणाशया स ज जा र गा थकी छे. (१.. न स ज त ग=१३ कठिनी. ८४५
२. न ज र र=१२ विशिखलता. ७१९ १८१ अतुल.
..) ३. भ ज र र=१२ विप्लुतशिखा. ७१८
(४. भ स ज त ग=१३ भसलपद. ८४४ अतुल प्रथमे न सा ज ता गा करे, न ज र र पादमाह बीजे धरे । भा ज र र थाय पाद त्रीजा विषे, भा स ज त ग माप पाद चोथे दिसे. ( १. म न भ ल ग-११ रूप ९५३
२. नयज भगग-१४ रूप ३,४०८ १८२ नेदिष्ठा. २
) ३. त न र न ग=१३ रूप २,७७३
( ४. म न ज न य=१५ रूप ८,०५७ पेले पाद म न मा ल ग हजो, चरण द्वितीये न या ज भा ग ग आयो; तीजे चरण त ना र ना ग करजो, नेदिष्ठा चरण युगे म न ज न य जाणो.
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संकीर्ण.
वर्णमेळ.
(१. न भ ज र =१२ प्रियंवद. अंक ७३३ १८३ शरक्षामा. २. स भज र स=१५ रूप १३,६८४
। ३. भ न सजग%=१३ रूप २,८१५
( ४. मन स जम=१५ रूप. २,८०९ प्रथम पाद न भ जा र जाणजो,. गण बीजे स भ ज रा स पादमांह सजो भा न स ज ग पद तृतीयके हजो, चोथे मा न स ज म करी करो शरक्षामा.
(१. स स ज ग ग=११. विमला. अंक ५६७' १.८४ भौजंग.) २. स न ज र य=१५ रूप ५,५००
) ३. न न भ स ल ग=१४ रूप ६,०८० ( ४. म न ज न र ग =१६ रूप. १२,१५३ . प्रथमे स स जा ग गा धरो जी, स न जा र य चरणे द्वितीयके करों जी; तृतीय चरणमां न न भ स ला ग छे,
भौजंगे म न ज न रा ग चरण थाय चोथे. वागवल्लभमां आवं माप छे, पण तेमां जे उदाहरण छे तेमां त्रीजो जगण जोइये तेने बदले नगण आवेछे. अने वळी एक अक्षर पण खूटेछे, जुवो चोधुं पद आ प्रमाणे छे:
'मो नो जो नर गण गुरुरपिच भौजंग'
( १. न न भ न ल ग-१४ प्रहरण कलिका.९८५ १८५ उपनयर
२. भ स न न ग=१३ अर्द्धकुसुमिता. ८९० ) ३. स स न न ग=१३ वरिवसिता. ८८९ (४. त ज न स=१२ व्यायोगवती. ७७२. उपनय प्रथमे न न भ न ल ग छे, पादपर द्वितीय भ स न न ग छे;
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५२२
रणपिंगळ,
विषमवृत्त.
पदमाह तृतीय स स न न ग छे, चोथे चरणे गण त ज न स छे.
( १. नजम जल ग=१४ कुररीरुता. ९७९ १८६ पिसंगी.
.)२. भर न भ ग=१३ लवलीलता. ८८० ) ३. भज भज लग=१४ कारविणी. .९७८ (४. ज ज भ ज ल ग=१४ काकिणिका. ९७७ प्रथम पदे न जा भ ज ल गा रजो, भा र न भा ग आप द्वितीये करजो; भा ज भ ज ला तृतीय ग पदे रचनो, पिसंगी चतुर्थ ना ज भ ज ला ग सनो.
( १. सन ज भ ग ल=१४ उपकारिका.अंक ९९३ १८७ युतक.) २. तभ र सल = १३ अट्टासिनी. अंक ८९९
) ३. भ ज ज भ ग ल=१४ हेममिहिका. अंक ९९४ (४. न स स ज ज =१५ मितसकिथ अंक १,०५६ प्रथमे सदा स ज जा भ गा ल रचाय, बीजे पदे त भ रा स ला ठिक थाय; छे गण तृतीय पदे भ जा ज भ गाल, युतक पद तुर्य न सा स जाज निहाल. (१. न न म य य १५ मालिनी.अंक १,०१०
१२. भसतत गग=१४ पुष्पशकटिका. ९२५ १८८ अनसूय.)
) ३. स स त त गग=१४ सरमासरणी. ९२४ १४. त य र र ग=१३ भाजनशीला. ८०५ प्रथम चरण ना ना मा य या आप कोजे, भा स त त ग गा आणो तमे पाद बीजे; अनसूय विषे सा-सा त ता गा ग त्रीजे, चोथे त य रा रा गा पदे आप दीजे.
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संकर्णि
वर्णमेळ.
( १. स ज ज भर=१५ मणिहंस, अंक १,०३० .)२. त भ र सलग-१४ अलकालिका. अंक९६७
३. भ ज ज भ र=१५ मयूबदना. अंक १,०३१ (४. न स स ज जग-१६. तरवारिका. अंक १,०८४ प्रथमे तमे स ज जा भरा गण आणजो, बीजे पदे त भ रा स ला ग खरे सजो; सज्जन तृतीय पदे भ जा ज भ रा धरो, मृदव श्रुतिमां न स सा ज जा ग पदे करो.
(१. न भ भ र य=१५ रूप ५,३०४ १. १९० कलंबडंबर.
२. सभ स ज र ग-१६ रूप १०,९९६ ) ३. न न र ज र ग=१६ रूप १०,९४४
(३. म न ज र य ग-१६ रूप ५,४९७ प्रथममां न भ भा र य सद्य तो धरेछे, स भ सा जा र ग कवि तो द्वितीयमां करछे; न न र ज र ग ए त्रोंजे कलंक्डंबरे छे,
चोथे पाद म न ज रा य गा सदाय रहेछे. ( १. म स त य भ म =७+६+६=१८ रूप: २५,३६९ ए)२.तन त य म स ग ग-+५+७=२०, १,२३,७०९
) ३. त न म स भ स गग-८+१+१=२.०, १,२४,४७७
(४. तज जन स न यग-(+७+७=२१,,५,०७,७५७ पले पाद म सा ता, या भ म साते, पांच छए. छेदो, बीजे त न त य भा सा, ग ग आठे ने, शर मुनि छे छेदो;
आठे शर मुनि ता ना, मा सः भः सा ग्गा, मनसुखमां त्रीजे, चोथे त ज जा न स ना, य ग वसु मुनि ने, मुनि यति तो कीजे. मारा परम मित्र मनसुखराम सूर्यरामना नामर्नु आ वृत्त नवु कल्प्यु छ,
मनसुख.
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१२४
रणपिंगळ.
विषमवृत्त.
आ वृत्त गीतिना रागथी पण गवायछे. मापमां फेर मात्र एटलोज छे के आना पेहेला चरणमां छठो विप्र अथवा जगण आववो जोइये तेने बदले भगण छे; वाकीनां त्रण घरण घणुं करीने गीति प्रमाणे छे; गीतिमा प्रथमनी १२ मात्राए विराम एकज आवेछे तेने बदले आमां वच्ये बे विराम आवेळे. ए विरामना प्रास मळता आववाथी विशेष मधुर थायछे, अने ते भैरव रागथी गवायछे: वधारे समजण पडवा माटे एनी सारीगम नीचे आपवामां आवी छे:१. पेले | पाद म सा ता| या भ म साते | पांच छए छे | दो
सा से | नी सा नी ध प नी सा नी ध प म ग म ध नी २. बीजे त न त य भा सा| ग ग आठे ने | शर मुनि छे छे |
सारी नी नी सानीधप नो नी सानीधप म्म् ग म धनी सा ३. आठे शर मुनि ताना मा स नी सा गा मनसुखमां त्री | जे,
सारी नी नी सानी धप नी सा नी धप म्म् गम धनी - सा ४. चोथे | तज जा न स ना | यग वसु मुनि ने मुनि यति तो की जे. सारी नीनी सानीधप नीनीसानीधप म्म्मगधनी सा'
(१. म स ज स त त ग=१९) शार्दूलविक्रीडित.
२. म स ज स त त ग=१९ अंक १२०४ १९२ रामरक्षा । ३. म र भन+३ य=२१। स्रग्धराः
(४. म र भ न+३ य=२१) अंक १२५८ मा सा जा स त ता ग सूर्य मुनिथी, पे'ले पदे आणजो,. पेहेला पद जेटला गण बधा, बीजे पदे जाणजो; त्रीजे मारा भ ना छे, त्रण य हय हये, छेदथी रामरक्षा,
चोथे त्रीजा समाने, सकळ गण करो, शोभती जेम कक्षा. रामरक्षा स्तोत्रमा २६ मो श्लोक आ मापनो छे, पण तेनुं नाम प्रसिद्ध वी, माटे अमे आ मिश्र वृत्तनुं रामरक्षा एवं नाम नवु कल्प्युं छे..
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असंकीर्ण.
वर्णमेळ.
(१.स भस स स न य=१२+९=२१रूप९,०५,५८८
२.स म भ भ म स ग-१०+९=१९रूप१,२६,३४० TE ) ३.नमन जय भसग=१४+८=२२ रूप९,९०,२०८
(४.म त य म स स ग-१०+९=१९रूप १,१३,७६७ प्रथमे सा पर भस सा स न या, रवि ने नव यति जाणी, रच खेंगारे बीजे चरणे, स म भा भ भ स ग आणी; तृतीय चरण न न न ज या भ स गा, चौदे वसु यति जेमां, मा त य भा सा स ग चोथे छे, दश नव छे यति एमां.
कच्छाधिपति महाराव श्री खंगारजी सवाइ बहादुरना नामर्नु आ वृत्त नवु कल्प्युं छे. ते मराठी चालनी साखोना रागमां गवायछे. ____ "धीर समीरे यमुना तीरे वसति वने वनमाली"
एवो गीतगोविंदनो राग छ तेमां गवायछे. "मधुवनचारिणि भास्करवाहिनि जाह्रविसंगिनि सिंधुसुते"
ए प्रारंभर्नु यमुनाष्टक छे ते रागथी गवायछे. "आयि गिरिनदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते" भगवतीपुष्पांजली स्तोत्रनां ए आदि पद छे तेना रागमां पण गवायछे. तेमज चोपाया जाति जे पृ. ४६ अंक ११५ मे छे तेने रागे पण गवायछे.
असंकीर्ण.
( १. त र ल ग%-८ नाराचिका. २९४ १९४ अहानिया. २. ज र ल ग%=( प्रमाणिका. २९५
) ३.र ज ल ग श्रद्धरा,उद्धरा.३०६ ( ४. ज र ल ग%८ प्रमाणिका. २९५ ता रा ल गा अहानिगा, द्वितीयमा ज रा ल गा; छे तृतीय रा ज ल गा, चतुर्थमां ज रा ल गा.
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५२६
रणपिंगळ,
विषमवृत्त.
[१. म भ ज य=१२ कुम्भोदनी. ७०० १९५ नयनपाली. २
२. त भ ज य=१२ नीरान्तिक.७०२ ३. न भ ज य=१२ द्रुतपद. ७०४
। ४. न ज भ य =१२ वनमालिका.७१० पे'ले पादे म भ ज या गण आणो, बीजे पदे त भ ज या ठिक जाणो; नयनपाली न भ जा य त्रीजे छे, न ज भ य तुर्य पाद कवि के छे.
( १. स स स स ग=१३ तारक. ८२२
.) २. स ज स स ग=१३ कलहंस. ८२३ १९६ मंजिष्ठा.
ar.) ३. स ज स ज ग=१३ मंजुभाषिणी. ८५८
(४. म न ज र ग=१३ महर्षिणी. ८१६ चरणे प्रथमे स स सा स ग कीजे, स ज सा स गा कर सदा पद बीजे; स ज सा ज गा कवि पदे त्रीजे कथे, मंजिष्ठा चरण म ना ज रा ग चोथे.
(१. न त त त ग-१३ परिवृद. ८४० १९७ प्रवालान्तक. २. भजत त ग=१३ वामवदना. ८४ १
। ३. जतत त ग-१३ प्रवाहिका. ८३८
(४. त त त त ग=१३ पारावृत्त. ८३७ प्रथम पादे रचेछे न ता ता त गा, छे पद द्वितीयमांहे भ जा ता त गा; त्रोजे प्रवालान्तिके छ ज ता ता त गा, आणो तमे पाद चोथे त ता ता त गा.
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अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद.
वर्णमेळ.
१. न रंजन ग ल =१४ रूप १२,१२०
। २. नर न ज ग ल=१४ रूप ११,२२४ १९८ विमला.
३. न र न न ग ल=१४ रूप १२,२४८ । ४. त म स ज ग ल=१४ रूप १०,९९७ प्रथम पादमां न रा ज न ग ल आण, द्वितीय पादमां न र न ज गा ल जाण; न र न ना ग ला तृतीय पद रचाय, . ता भा स जा ग ल विमला चतुर्थ थाय.
१९९१
अनुष्टुप् वक्त्रादि' भेद. (आ भेद श्लोकना नामथी ओळखायछे.)
हेला वर्ण पछी नगण के सगण आणवो नहि.
चोथा अक्षर पछी ५,६,७ अक्षरने स्थाने यगण आगवो. १. (ल के ग) १+३ (न स वW)+य+१ (ल के र २. (ल के ग) १+३ (न स वर्य)+य+१ (लके ग)=८ ३. (ल के ग) १+३ (न स वयं)+य+१ (ल के ग)=८ ४. (ल के ग) १+३ (न स वज्ये)+ य+१ (ल के ग)-८
एक वर्ण पछी पासे, न स छोडी गणो धारे; _ पछी यने धरे एक, वाण वक्त्र पदे चारे. १ अनुष्टप्ना असंख्य भेद पायछे, अने तैना पेटामां आ पण आवी आय एवो छ, पण जनादन केहेछे के, सम विषम अने गुरु लघुना भेदे करान तनाया जूदा पाडवामां आवेछे. वागवल्लभमा केहेछे के, अर्द्धसम अने विषम एवां वे जातिनां आ वृत्त थायछे. जेनां चारे चरण अनुष्टुपना जेवां होय ते विषममां गणायछे.
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५२८
रेणापंगळ.
विधमत्त
केटलाक नीचे प्रमाणे माप बतावेछे:-- १,३ विषममा ४ वर्ण+य+लके ग-८
२,४ सममां म+ग+य+ल के ग-८ वाग्वल्लभमां वक्त्रनो श्लोक नियम-१,२,३,४ पदमा पांचमो लघु ने छठो गुरु आवे. १,३ पदमां ७मो वर्ण गुरु, २,४ पदमां ७मो लघु आवे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा तथा प्राकृत पिंगळसूत्रमा पण ए प्रमाणे नियम छै:
पांचमो लघु चारेमां, छ साते गुरु तो करो;
समे साते लघु लावो, श्लोके आठन अक्षरो.
हलायुधवृत्ति वगेरे छंदोग्रंथमां अनेक प्रकारना गण भेदथी आ अनुष्टुप् वृत्तने "विषमवृत्तमां" वक्त्र एवां नामथी ओळखाव्यां छे. सघळां पुराणोमां सामान्य रीते आठ अक्षरना पदवाळां वृत्त अनुष्टुपना नामथी ओळखाय छे,
चक्नी रूपसंख्या नीचे प्रमाणे नीकळी शकेछेःएमो आठ अक्षर आवेछे, तेमां पेहेलो अक्षर गुरु के लघु आवतां तेनोखे रूप थाय; अने त्यार पछीना त्रण अक्षरमां न अने सगण वयें , तो ते बे आठ गणमाथी बाद करता बाकी ६ रूप रह्यां, ते वडे आगलां बे ने गुणतां १२ रूप थयां; त्यार पछी पांच, छ, भने सातमा अक्षरने ठेकाणे मात्र एकज यगण आवेछे, तेनुं एकजेर रूप थायछे, ते उपर एक अक्षर लघु के गुरु आवेछे, एटले तेन बे रूप थाय. तो ए प्र. माणे १२४१४२=२४ रूप एक चरणना थाषा वीज रीते बीजा घरणनां तेटलांज रूप थतां २४४२४=१७६ रूप पूर्वा नां थाय अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थतां ५७६४५७६%
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६०० चपलावतंत्र. {
अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद.
वर्णमेळ.
५३५
३,३१,७७६ रूप बंधां मळीने थायछे एक (पेहेला) अक्षर पछी जेम न स वर्ज्य गणेला छे, तेम छंद शास्त्र अने वृत्तर
करन नारायणभट्टी ठीकामां समपदमां रगणने पण वर्ज्य 'गण्यो छे. तेम गणतां पेहेला चरणनां २४ रूप थाय, अने बीजा 'चरणमा रगण वर्ज्य थवाथी बाकी ५ गण रहेछे, तेथी तेनां रूप २×१×१x२=२० थायचे, एटले २४x२०= ४८० रूप पूर्वार्द्धनां थाय, तेटलगंज उत्तरार्द्धनां धतां ४८०x४८०= २,३०,४०० रूप बधां मळीने थायछे तेमज पथ्यावक्त्र, विपरीत पथ्यावक्त्र अने चपलावक्त्र ए त्रणेना पण वक्त्रनीं पेठे ३, ३१, ७७६ भेद थायेछे.
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विषम पदमा चोथा अक्षर पछी नगण आणवो. बाकी वक्त्र प्रमाणे.
१. (ल के गं) १+३ ( स न विना)+नं+१ (ल के
२. (ल के ग) २+३ ( स न विना ) +
+
३. (ल के ग) १ + ३ ( स ४. (ल के ग) १+२ ( स (१) विषमे चार पर न,
२०१ पथ्यावक्त्रः
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{
न
विना ) + न +
न
(२)
विना
) +
+ १ (ल के
समे तो य करो एक
(३) वक्त्र धारा अपर जे, (४) चपलामांह विवेक ८
गं) =
१ (ल के ग) = ८
१ (ल के
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ग) = ८
ग) =
2.
विषम पदम वस्त्र प्रमाणे सम पदमां चोथा अक्षर पछी जगणं.
१. (ल के ग) १+ ३ ( न स वर्ज्य ) + + १ (ल के ग) = ८ २. (ल के ग) १ + २ (नस वर्ज्य) +ज+१ (ल के ग)= ३. (ल के ग) १+३ (न स वर्ज्य) + + १ (ल के ४. (ल के गं) १+२ ( न स वर्ज्य) +ज+१ (ल के
ग) = <
ग) = ८
४५
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रणपिंगळ..
विषमवृत्तः
(१) समे चार परे जाछे, (२) विषमे य रह्यो वळी, (२) पथ्यावक्त्र बने तेह, (४) वक्त्र धारा विषे भली.
आठ वर्णनां चार चरण आवेळे ते “श्लोक" केहेवायछे. अनुष्टुप्ना लक्षणमा आ नियम म्होठा प्रबंधमां पाळेलो जणातो नथी. आ नियम क्वचिज पाळवामां आवछे, एम केटलाकनो अभिप्राय छे. ...विपरीत पथ्या-) विषम पदमां चोथा अक्षर पछी ज-.
- वक्त्री . गण आणवोः समपद वक्त्र प्रमाणे. १. १(ल के ग)+३(सन वय॑)+ज+१ (ल के ग)=८ २. १(ल के ग)+३(सन विना)+य+१ (ल के ग)=८ ३. १(ल के ग)+३(सन विना)+ज+१ (ल के ग)=k ४. १(ल के ग)+३(सन विना)+य+१ (ल के ग)=८ (१) पे'ले त्रीने धरी जने, (२) बीजे चोथे य मूकाय; (३) विपरीत थवा थकी, (४) पथ्या विपरीता थाय. १ केरलाकना मत प्रमाणे विपरीत करवाथी पण पथ्या थायछे, ते ओळखवा माटें जूतुं नाम राख्यु छे. २०३ विपुला, सिम चरणमा सातमो अक्षर लघु आणवो. युग्मविपुला. बाकीना वक्त्र प्रमाणे.
पण सैतव आचार्यना मत प्रमाणे चारे पदमां सातमो लघुरे आणवो जोइये.
चारे परे भ न त ज, सातमा लघुथी थशे, विपुला वक्त्रने विषे, एम चारे पदे वसे । एक वर्ण पछी न स, वसु वर्ण विषे तनो, विपुला वक्त्रना नि'म, सर्व विपुलामां सजो.
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अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद.
वर्णमेळ.
AAAAAAAAAL
१ चार अक्षर पछी पथ्यावक्त्रमा सम चरणमां ज आव. छे. युग्मविपुलामां सम चरणमा सातमो अक्षर लघु लाववो, एम जो नियम करिये तो चार अक्षर पछी जगण मूकतां पण सातमो अक्षर लघु आवी जायछे, तेथी ए रूप पथ्यावा साथे मळी जायछे, माटे तेथी भिन्न रूप पाडवा सारु मात्र सम चरणने बदले चारे पदमा सातमो लघु आणवो ए नियम स्वीकारवो ठीक छे तेथी अमे तेनुं ग्रहण कस्युं छे. ____२ विपुलामां युग्म (२-४) पदमां सातमो अक्षर लघु आवेछे, माटे केटलाक, विपुलाने बदले युग्मविपुला नाम आपेछे. मंदारमरंदचम्पूमां आने युग्मविपुला कहेल छे. विपुलानी रूपसंख्या काहाडवानी रीति आ प्रमाणे छे:
एनां मात्र सम चरणमांज सातमो अक्षर लघु आणवो, एम स्वीकारिये तो वक्त्रनां रूप प्रमाणे आनुं पण माप पेहेला त्रीजा पदमां वक्त्र प्रमाणे होतां, प्रथम चरणनां २४ रूप थाय; अने सम चरणना प्रथम स्थाननां २ रूप, त्यारपछी ६ गणनां ६ रूप, त्यारपछी अंत लघुवाळां (भ, न, त, ज,) चार रूपने उपर कहेला छेल्ला स्थाननां २ रूपे गुणतां एकंदर (२४६४४४२)=९६ रूप थायछे. एटले पूर्वार्द्धनां २४x ९६२,३०४ रूपं थयां, तेटलांन रूप उत्तरार्द्धनां गणतां २३०४४२३०४=१३,०८,४१६ रूप थयां. परंतु आपणे चारे चरणमा सातमो.अक्षर लघु आणवा स्वीकास्यो छे, ते हिसावे प्रत्येक चरणनां ९६ रूप थायछे एटले तेनो चतुर्घात करतां (९६४९६-९२१६४९२१६)=८,४९,३४,६५६ रूप थायछे.
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रणपिंगळ.
विषमवृत्त. (विषमपादे चोथा अक्षर पछी भगण आवे, २०४ भविपुला'.
सम पदमा भन त के ज मांथी कोइ आवे. विषमे तो चार पछी, भ थायछे पदे खरे; ..
भविपुलामां भ न त, वा ज पादे समे धरे. १ केटलाकनो मत एम पण छे के, प्रत्येक चरणमां चार अक्षर पछी भगण आणिये तो ते भविपुला केहेवाय, तेवीज रीते रविपुला, नविपुला तथा तविपुलामां पण प्रत्येक चरणमा चार अक्षर पछी जे नामनी विपुला होय ते गण आणवा. दरेक विपुलानी रूपसंख्यानो प्रकार उपर जे नियम बताव्या छे तेथी समनी लेवो. २०५ रविपुला. र विषम पदे चोथा अक्षर पछी रगण आवे,
"। बाकी भविपुला प्रमाणे. चार पूढे भा न ता के, जमाथी को' धरे समे;
विपुला रमा र धार, चार पाछळ विषमे. २०६ नविपुला.
विषम पदे चोथा अक्षर पछी नगण आवे,
बाकी भविपुला प्रमाणे. चार धारी भ न त के, ज धरो ने पदे समे;
नविपुला विषममां, न धरीने रचो तमे. २०७ तविपुला.
.. विषमपदे चोथा अक्षर पछी तगण आवे,
" बाकी भविपुला प्रमाणे. चार पूछे भा ना त के, ज समे तो करो तमे; तविपुलामां थायछे, चार पूठे त विषमे.
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अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद.
वर्णमेळ.
__महाकवियोना प्रयोगमां बे विषमपदने बदले गमे ते एकमां पण भगण आणेलो नोवामां आवेछे, ते उपरथी गमे ते विषम पदमां भगण आणिये तोपण चाले, अने आ विकल्प नियम बीमा गण नांखवाथी विपुलाने पण लागु पडेछे.
. विषम पदे चोथा अक्षर पछी मगण आवे.
२०८ मविपुला. बाकी भविपुला प्रमाणे.
२००
विपुला ममां आणो म, चारनी पछी विषमे; भ न ता के जा माथी तो, चार पूठे धरो समे.
विषम पदे चोथा अक्षर पछी यगण आवे. । बाकी भविपुला प्रमाणे. यविपुला य आण्येथी, विषमे पदे थायछे; म ना ता के जमांथी को, लावी समे रचायछे.
(विषम पदे चोथा अक्षर पछी सगण आवे.
२१० सविपुला.बाकी भविपुला प्रमाणे.
सविपुला स धस्याथी, विषमे तो बने खरी; भ किंवा न त ज मांथी, समे साचवीने धरी.
(विषम पदे चोथा अक्षर पछी जगण आवे, २११ जविपुला प्र माणे.
जविपुला ज विषमे, चार पूठे धरी करो;
ज वा भवान केत ए, साचवीने समे धरो. १ वक्त्रथी ते विपुला सुधीना छंदोना पदोनुं एक बीजामां मिश्रण थवाथी अनेक भेद थायछे. अने एवा संकीण असंकीर्णमा चोथो अक्षर घणुं करीने गुरु मूकवानो आम्नाय छे.
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५३४
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रणपिंगळ.
अन्यदेशीय.
दक्षिणना छंद.
अभंग मुख्यत्वे वे प्रकारना छे. एक म्होटो अने बीजो न्हानो. १ म्होटो अभंग.
दक्षिणना चंद.
१,२,३ पादमां छ छ अक्षर. ४ पादमां चार अक्षर. महोटा अभंगना वे प्रकार छे:पेहेला प्रकारमां वीजी अने त्रीजी झडना प्रास मळे.
--
'
पड अक्षर छे, पेले बीजे श्रीजे; चोथे चार कीने, अभंगमां.
बीजा प्रकारमां त्रणे झडना प्रास मळे. अक्षर छ त्रणे, चोथे चार गणे; त्रणे प्रास भणे, अभंगमां. २ न्हानो अभंग.
एनां बे चरण थाय छे. प्रति पदमां आठ अक्षर क्वचित् छ अक्षर पण प्रथम पदमां आवेछे बन्ने पदना अनुप्रास मळे छे.
न्हाना अभंगनो पेहेलो प्रकार.
वर्ण आठ आठ करो, एवां चरण वे धरो,
क्वचित छ पे'ले थाय, एम अभंग रचाय.
न्हाना अभंगनो बीजो प्रकार.
. बेहेला चरणमां आठ अक्षर, बीजा चरणमां सात अक्षर होतां यमक आवे.
वर्ण आठ पेले दले, बीजे तो दीजे सात
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दक्षिणना छंद.
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अन्यदेशीय.
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न्हाना अभंगनो श्रीजो प्रकार.
आठ अक्षरनां चार चरण तेमां प्रथम त्रणनी यमक मळे.
मात्र छेलो अक्षर मळे तोपण चाले.
आठवर्ण पदे थाय,
चार चरण रचाय;
त्रण प्रास मळी जाय, तेने अभंग गणाय.
३ दिंडी.
१. (३+६) ९, (३+३+ग+ग) १० = १९ २. (३+६) ९, (३+३+ग+ग) १०= १९ ३. (३+६) ९, (३+३+ग+ग) १०=१९
४. (३+६) ९, (३+३+ग+ग) १०= १९ पेहेली बीजीना प्रास मळे, श्रीजी चोथीना मळे, अथवा चारेना मळे,
3
33,
कला त्रण खट ण, त्रिपर कर्ण आणो; दिंडीमा विरति, नव दशमे जाणो.
४ साकी.
-५३५
१. ४+४+४+४+४+४+२+ग=२८ २. ४+४+४+४+४+४+२+ग=२८ चोक लिया गण सात रचातां, तेमां गुरु घर छेले; साकी द्विपदी छे सोहाती, अठ्ठावीशने मेळे.
जुबो आज मापनो चोपाया पृष्ट ४६ अंक ११५ मे,
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रणमिळ.
५ ओवी.
१.
आठ अक्षर
२.
आठ अक्षर
३..
आठ अक्षर
४. सात अक्षर
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नथी वर्णनुं प्रमाण,
ओवीकेरा रागमां.
ओछा वत्ता अक्षर पण भइ जायछे.
त्र वर्ण आठ आण,
चोथे पदे सात जाण;
ना प्रास मळे.
दक्षिणा
६ घनाक्षरी कवित.
चार ओवीनो एक छंद थायछे.
८,८,८,७=३१ अक्षरनां चार चरण.
घणुं करने आठ आठ अक्षरनी बार बार मात्रा थवी जोइये..
सात अक्षरनी ११ मात्रा घणुं करीने थवी जाइये एको प्रायः नियम छे. आठ अक्षरब्रा त्रमे वतिना प्रास मळे अने सात अक्षरवाळी छेली झडना वारे प्रास मळे. पृष्ट ४५४ अंक १४८७ मे कवित- मनहरण साथै आसना वधारी सिवाय आनुं मळतापणुं छे.
एकत्रिश वर्ण आवे, यति तेमां युग लावे,
प्रतिपदे एक भावे, ओवी रच आदरे;
• आठ वर्णो त्रण वार, एक पछी एक धारकर्ण सात वळी सार पाद- वणा पादरे,
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दक्षिणना छंद.
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५३७
आठतणी कला बार, साततणी अभियार,
एम बधी मळी धार, सुडतालीस खरे मात्रानो न नि'म कांय, भण ओवी रागमांय, सर्व प्रास मळे जांय, घनाक्षरी ते ठरे
७ कटाव -कटिबंध.
कटाव रचना करवा काजे, आठ कला प्रति यति बिराजे; वे यति चरणे चरणे लावो, अथवा फावे तेम बनावो; यति यति केरा प्रासो मळता, लागट एक बीजाशुं भळता; करण घाटपर मधुर ज लागे, रणकारा प्रासोना वागे; एवी रीते प्रीते प्रीते, प्रास घरीने सोज करीने; मोज प्रमाणे टाणे टाणे, टूको मूको;
कटिबंधनो बंध बांधवा, बे छेडा सरखाज सांधवा; प्रथम चरण ते ध्रुवपद जाणो, टेक नाम तेनेज प्रमाणी; ते तो छेले चणे राजे, कटाव रचना करवा काजे.
सामान्य कटावनी रचना तो अमे उपमनानी छे ते प्रमाणेछे. एमी आठ आठ मात्रानी टूको इच्छा पूर्वक वधारी शकाय छे. केटलाएक प्रारंभमां ध्रुवपद जूदां जूदां मूकेछे. केटला - एक अमृतध्वनिनेज कटाव गणेछे, जुवो पृ. १४२ मात्रामेळ विषम जाति अंक १६, एमां प्रारंभमां एक दुहा अने पछी त्रण अष्टकलनुं २४ मात्रानुं समं चरण एवां चार चरण आवेछे. कवि दलपतरामे (जुवो दलपतकाव्य प्रथम आवृत्ति पृ. १२६ मे)
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रणपिंगळ
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५३८
विषमवृत्त.
" प्रभुस्तुति कटाव अमृतध्वनि छंद " एम लख्युं छे; पण प्रारंभमां दुहाने बदले चौद चौद मात्रानां चार चरण मूकीने इच्छापूर्वक अष्टकलनी टूको मूकी छे अने अंतमां टेकना अनुप्रास मेळवावा माटे छेल्ला अष्टकल उपर बे गुरु वर्णनी चार मात्रा वधारी प्रारंभनो चौद मात्रावाळो चारे चरणनो टेक फरी मृक्यो छे, जेमके :
प्रारंभ.
"जय जय जन अंतरजामी, निर्मळ गुणमय बहुनामी; खुदमां न मळे कशी खामी, छो सकळ जगतना स्वामी.” 'टेक.
अन्त.
सदा स्वतंतर, दलपत अंतरगामी;
जय जय (इत्यादि चारे चरण प्रारंभनां मूक्यां छे.)
कवि दयारामें टेकमां चौद चौद मात्रानां बे चरण मूक्यां छे. . ( जुवो दयारामकाव्यसंग्रह त्रीजी आवृत्ति पृ. ५९६, ) छेवटे टेकने अनुसरतुं एक एक चरण आण्युं छे.
" श्री वृंदावन अस धैर्ये, प्रीतम प्यारी रस पैयें. " ए प्रमाणे प्रारंभमां टेक छे, अने अन्तमां
" कहो जु क्यां लग गये, श्री वृंदावन अस धैये.” इत्यादि. मराठी भाषामां अमृतरावना कटाव वधारे वखणायछे. ( नवनीत बीजी आवृत्ति पृ. २२४) एमां जूदा जूदा, कटावमां नीचे प्रमाणे जूदां जूदां ध्रुवपद अथवा टेक छे.
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दक्षिणना छंद.
अन्यदेशीय.
राजाधिराज रामचंद्र गावा हो = २० मांत्री थायछे.
सज्जन हो निज गुज आपुलें उमजाना, = २० मात्रा. | हरिलामि भजाना. = १० मात्रा.
श्री कृष्ण सुदामजीला सोन्याची नगरी दिधली. = २८ मात्रा. स्वानुभूत हृदया मधिली. = १४ मात्रा.
( भगवंत भक्तजनाचे निजनामें संकटवारी, २७ मात्रा. करुणाकर कृष्ण मुरारी. = १४ मात्रा.
आनंदे वंदावा गणनायक तो. मंगलदायक तो. =२०+१० मात्रा. नर्म कविता पृ. ८०२ मे नीचे प्रमाणे ध्रुवपद आप्युं छे. मोर्पियो खेंचाइ हरिनी भणी ते; वांसलडी सुणी ते. टेक. नर्म कविता पृ. २०८ मां नीचे प्रमाणे छेःअदभुत कृत्य पाताळे, संतोषे हर्षे भाले, सृष्टिक्रम काळे काळे, कीधां जे देव दयाळे; मुलांने पण पाळे, आवे नहि खूब ख्याले .
ख्याले ख्याले.
टेक.
( अवशेष भाग पाछळथी छपाशे.)
इति प्रथम भागः
५३६
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अन्तमां नीचे प्रमाणे छे:--
सुखनां साधन आले आले, आवे नहि खुबी ख्याले ख्याले.
आ उपरथी जणायछे के कवियोए ध्रुवपद आणवामो
सरखो नियम पाळ्यो नथी.
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(श्री खंगार वृत्त.)
. (पृष्ट ५२५.) नृप खेंगारजी शरणे रहीने, रणशूर उदयरामे, धिरजे झाझे यत्ने करीने, कविने सुखकर कामे प्रतिनिधि पद पण नियमे चलवी, कार्ये तनमन दीधु, त्यार पछीथी अवकाशे आ, निज रणपिंगळ कीg.
(रणोदय वृत्त.)
(पृष्ट ४९२.) छे पंचावन संवत सारो, रह्यो ओगणीसें व्यापी; अढार ने अठाणु सनमां, भुजयंत्रे रचना छापी; बीजा आश्विननी पुनमे आ, थयो भाग पे'लो आखो, प्रभु सदा अभ्यासीजनने, जगमांहे सुखिया राखो.
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भाइ मनःसुखराम सूर्यरामा पुस्तक.
रु. आ. पै. १ अस्तोदय अने नलदमयंती (चतुर्थ आवृत्ति) .. ... २ देशी राज्य अने मनुस्मृतिमांनो राजनीतेसार ... ... ३ विचारसागर (गूजराती द्वितीय (आवृत्ति) ...
४ फार्स जीवनचरित्र (सचित्र) (द्वितीयावृत्ति) ... 28 ५ सुज्ञ गोकूलजी झाला अने वेदान्त (द्वितीयावृत्ति)...
६ करशनदास अने तत्सबंधमां विचार ... ... ... | ७ मणिरत्नमाला. ८ उत्तर जयकुमारी.
... ... ... ... नथी. ९ विपत्ति विष निबंध. १. A Sketch of the Vedanta Philosophy... 1-8-09 ११ वेदान्तविचार ... ... ... ... ... .-४-०
उपर लखेलां पुस्तको ग्रन्थकर्ता पासेथी तेमम मुंबाइमां मेसर्स एन. 4 एम. एन्ड कंपनी अने पंडित ज्येष्टाराम मुकुन्दजी पासेथी रोकडी
किंमते मळशे.
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888888888800
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