Book Title: Pushpvati Vichar Tatha Sutak Vicahr
Author(s): Khimji Bhimsinh Manek
Publisher: Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 08 प्यवती भूतक Lo पुष्पवतीविचार तथा श्री जैन पोरवाल जैन ज्ञान भंडारा सूतक विचार • गाडीव (राज०) संग्रहकर्ता श्रा. खीमजी जीमसिंह माणेक. वीर संवत् २४४२ SARA वा ग्रंथने यथाशक्ति शुद्ध करावी तेनी बीजी श्रावृत्तिमां प्रथम सजायना जावार्थनो तथा शील पालवाना बोलोना संग्रहनो वधारो करी उपावी प्रसिद्ध करनार श्रावक जीमसिंह माणेक, जैनपुस्तको प्रसिद्ध करनार तथा बेचनार. मांगवी, शाकगल्ली-मुंबइ. Ka विक्रम संवत् १९७२ सने १९१६. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनोपयोगी अति उत्तम ग्रंथो. क प्रकरण रत्नाकर नाग १ लो प्रकरण रत्नाकर नाग 9 मो जैनकथारत्नकोष नाग १ लो जैनकथारत्नकोष नाग २ जो जैनकथारत्नकोष नाग ४ श्रो जैनकथारतकोष जाग ६ ने जैनकथारतकोष जाग ७ मो जैनकथारत्नकोष जाग मो जैनतत्त्वादर्श हिंदी जाषांतर जैनतत्त्वादर्श गुजराती नाषांतर .... पांवचरित्र रंगीन चित्र सहित वैराग्यकटपलता नाषांतर अज्ञानतिमिरजास्कर सुक्तमुक्तावली अनेक कथा युक्त हरिनसूरिकृत बत्रीश अष्टक .... जैनकुमारसंजव महाकाव्य शत्रुजयमाहात्म्य जाषांतर अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर ग्रंथ. जंबूस्वामी चरित्र कथा युक्त वर्धमान देशना शास्त्री चंद राजानोरास अर्थ तथा वित्र साये समरादित्य केवलीनो रास श्रीपाल राजानो रास .... । ए-4-0 9-0-0 --0 २-४-० ३-0-0 --० ३-४-० ३-0-0 ५-0-0 ४-0-0 ए-0-0 ३-0-0 २--0 २-७-० १-१२-० १-१२-० २-४-० 2-0-0 0-0-0 २-1-0 ४-0-0 ३-७-0 2-4-0 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. श्रा जगतमा समस्त प्राणीमात्रने त्राणनूत,शरणनूत, श्रा नव तथा परनवमां हितकारी, सुखकारी, कल्याणकारी ने मंगलकारी एवां त्रण तत्व बे. तेनां नाम कहे . एक तो देव श्रीअरिहंतजी, बीजा गुरु सुसाधु तथा त्रीजो धर्म ते श्रीकेव लिजाषित. ए त्रण तत्त्व बे, तेने आराधवानुं मुख्य कारण अनाशातना जे, अने एने विराधवानुं मुख्य कारण आशातना डे. ते आशातना पण विशेषे करीअशुचिपणा थकी थाय बे. ते अशुचि वली बे प्रकारनी ने एक तो अव्य थकी अशुचि, बीजी नाव थकी अशुचि जाणवी. तेमां नाव अशुचि कार्यरूप बे, अने अव्य श्रशचि तेना कारणरूप जे. कारणथी कार्य थाय बे, ए वात सर्व शास्त्रोमां प्रसिक, तो अहीं नाव अशुचि जे जे, ते अशुभ लेश्या तथा अशुद्ध मनादिकना योग अने कषायादिकनी बे, केमके ए अशुभ लेश्यादिकनां जे पुजलो ले ते केवां ? तो के श्वान, सर्प, अश्वादिक मरण पामेला जे पशु तेमनां ऋ० १ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सडी गयेलां कलेवरमा जे उगंध होय , ते करतां पण अनंतगणी मुर्गंध ए अशुफ बेश्यादिकनां पुजलोमां कहेल बे; ए वात श्री उत्तराध्ययन तथा नगवती प्रमुख सूत्रोमां प्रसिद्ध बे. __ हवे अशुद्ध लेश्यादिक थकी ब्याशी पापप्रकृति बंधाय , ते पण अशुचिज जाणवी; कारण के अशुचिरूप कारणश्री कार्य पण अशुचि थाय बे, एटले अशुचिरूप कर्म बंधाय ,अने ते थकी नरकादिकनी गति जीवने प्राप्त थाय जे. एम कारणे कार्य थाय बे. ___ हवे ए पूर्वोक्त जे नाव अशुचि दे, तेनी मूलोत्पत्ति अव्य अशुचि थकी थाय बे; कारण के अव्य ते नाव- कारण बे, माटे प्रथम अव्य थकी अशुचि टालवा विषे प्राणीमात्रने यत्न करवानी घणीज जरुर बे. ते ऽव्य अशुचिना अनेक प्रकार ने, तेनो अधिकार श्रीगणांग प्रमुख सूत्रोने विषे ज्यां असजायनो विवरो कस्यो ने त्यांथी जाणी लेवो. हवे ते समस्त असजायमां मोटी असहाय तथा समस्त अशुचिमां मोटी अशुचि अने समस्त आशातनामां शिरोमणीनूत आशातना तेमज सर्व पापबंधननां कारणोमां महत् पाप उपार्जन करवानुं Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुख्य कारण तो स्त्रीने जे तु प्राप्त थाय बे, अर्थात् जे पुष्पवती कहेवाय , एटले स्त्रीने अटकाव अथवा कोरे बेसवानुं थाय डे अने जेने लोकोक्तिए ऋतुधर्म कहे , ते तुधर्म यथार्थपणे न पालवा विषेर्नु बे. ते विषेनो सर्व जनोने बोध थवा सारु संदेपमात्र शास्त्रोमांथी सार लश्ने पुष्पवती स्त्रीए केवी रीते वर्तवं ते संबंधीना अधिकारनी बे सकायो जे पूर्वे लोकोपकारने अर्थे को महापुरुषोए बनावेली ते तथा एज विषय संबंधी सिद्धांतोक्त ब गाथा तथा असहाश्ना अटकाव संबंधीनी सकाय, ए रीते बधा मलीने चार ग्रंथोनो समावेश करीने या पुस्तक अमोए उपाव्यु बे. तो या ग्रंथमां करेला उपदेश प्रमाणे जे पुष्पवती स्त्री पोते प्रवर्तशे, बीजाने प्रवर्तावशे तथा प्रवर्तनारने सहाय आपशे, तेने अत्यंत लाज थशे, अने तेने परंपराए मोदसुखनी प्राप्ति पण अवश्य थशे. जे प्राणी या ग्रंथमां करेला उपदेशथी विपरीत प्रवृत्ति करशे, अथवा ए वातमां शंका कांदा करशे, ते प्राणीनी लक्ष्मी तथा बुझिनो या नवमां नाश Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशे, अने सम्यक्त्व तो तेमां होयज क्याथी ? श्रर्थात् नज होय. तेना घरना अधिष्ठायिक देवो तेने मूकी जशे, श्रने तेजीव मिथ्याष्टि, अनंत संसारी, पुराचारी तथा कदाग्रही जाणवो, केमके एम कस्या थकी देव, गुरु तथा धर्मनी मोटी आशातना थाय बे, ते वात था ग्रंथ वांचवा थकी विवेकी जनोना ध्यानमा तरत आवशे. वली हालमां विषम कालने विषेधूम्रकेतु ग्रहना प्रजाव थकी अत्यंत जम बुछिने धारण करनारा जिनप्रतिमाना रेषी . वली थावी रीते प्रतिकूलपणे प्रवृत्ति करनारा लोको एम कहे ले के गुंबडा फूट्यानी माफक अथवा अन्य को शरीरमां विकार थाय तेनी पेरे शतुवंती स्त्रीने श्रमक. वाथी कांश पण अशुचिपणुं प्राप्त यतुं नथी, कारण के शरीरनी मांहेली कोरे पण अशुचि जरेलीज , एवं तेनं बोलवं अयोग्य बे; कारण के गुबमा विगेरे जे फूटे ने तेने पण असकाश् श्रीगणांग प्रमुख सूत्रने विषे कहेलीज , अने शरीरनी श्रत्यंतर जे अशुचि कहेवाय डे, ते तो शरीर उपरथी मोहनो परित्याग करवाने अर्थे लावनारूप Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे, पण ए रक्तादिक जे ले ते शरीरथी बहार नीकठ्या विना एने अशुचि कहेवायज नहीं एवो नियम बे, कारण के श्रीपन्नवणाजी उपांगमां शरीर थकी बाहिर अशुचि नीकल्या पली तेमां चौद प्रकारना श्रशुचिस्थानीया जीवो उत्पन्न थाय , परंतु ते जीवो शरीरमां अशुचि रह्या थकी उत्पन्न थताज नथी. ए उपरथी स्पष्ट देखाय डे के शरीरनी अंदरनी अशुचि कहेवायज नहीं. झतुवंती स्त्रीना रुधिरनी जे अशुचि , ते श्रत्यंत चष्टताना विकारने धारण करनारीने, कारण के शरीर संबंधी लघुनीति, वमीनीति, थुक, श्लेष्म, रुधिर विगेरे जे अशुचि , तेमां पण परस्पर घणो तफावत . तेम तुवाली स्त्रीनी अशुचि दे ते बीजी श्रशुचि करतां अत्यंत विशेष अशुचिमय बे. जेम सादिक फेरी जनावरोना मुखमा फेर तो थाय बे, परंतु कोश्कना करमवाथी तरत माएस मरणदशाने प्राप्त थाय , अने कोश्कना करमवाथी तेने कचित पीमा भायले, पण तेथी कशी हरकत थती नथी, एवी तारतम्यता जे. वली श्री गणांग तथा जगवती प्रमुख सूत्रोमां एवं पण Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहेढुं ने के मनुष्यनुं उत्कृष्ट फेर जे जे ते फेरना पुजल अढीछीप प्रमाणे जे अने जघन्य थकी तो अनेक प्रकारे . ___ ए रीते जेम फेरनां पुस्लमां तारतम्यता , तेम अशुचिनां पुजलमां पण तारतम्यपणुं बे. ते कारणे पूर्वोक्त फेरने दृष्टांते पुष्पवती स्त्रीनी अशुचिनां जे पुजल बे, ते सर्वोत्कृष्ट अशुचिमय जाणवां. एथी समस्त शुज लक्षण तथा शुज गुणोनो नाश थाय बे, माटे अशुचि अवश्य टालवी. विशेष नवी आवृतिमां प्रथम सफायनो जावार्थ तेमज बीजो केटलोएक सुधारो वधारो करी पावेल . या ग्रंथनी अंदर शास्त्रविरुष उपायुं होय तो तेनी श्री समस्त संघ पासे क्षमा चाहीए बीए. ली. प्रकाशक. १" आ ग्रंथमां कहेली हकीकत यथार्थ ने शास्त्रोक्त ने एम अमो खात्रीश्री कही शकता नथी." VI Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमगुरुन्यो नमः ॥अथ शतुवंती स्त्रीनी सकाय प्रारंनः॥ झतुवंती नारी परिहरे रे, बीजे वस्त्रे न अमके ॥ सांके रात्रे नारी मत फरोरे, मत बेसजो तमके ॥१॥ अर्थात् जेने रजस्वला प्राप्त थइ होय अथवा जे बाश्ने दूर बेसवार्नु प्राप्त थयुं होय तेमणे नीचेनी बाबतोनो त्याग करवो. पोते जे वस्त्र पहेर्यु होय ते सिवायना बीजावस्त्रने श्रमकवू नहीं तेमज सायंकाले अने रात्रीए एवी नारीउए बहार फैरवा नीकलवू नहीं, अने दिवसना नागमां तमके पण न बेस.. मत नालवी नार मालनी रे, बांगवां धर्मगम ॥ प्रजु दर्शन पूजा सद्गुरु रे, वांदवा तजो नाम॥२॥ मालणने जोवी नहीं अने धर्मस्थानकोमा जर्बु आवq नहीं, कारण के तेथी श्राशातना थाय. प्रनुनां दर्शन करवा, प्रनुनी पूजा करवा देरासरे जवू अने सद्गुरुने वांदवा उपाश्रयम ज, ए सर्व बाबतोनो ऋतुवंती बाश्ने माटे निषेध करवामां आव्यो . पमिकमणुं पोसह सामायिक रे, देववंदन माला ॥ जलसंघ ने रथजातरा रे, दर्शन दोष गला ॥३॥ पमिक्कमj, पोसह, सामायिक तथा देववंदन पण ते दिव Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमां आवी बाउने माटे निषिच ने तेमज जलयात्राना वरघोमामां के रथयात्राना वरघोमामां नाग लेवो ए पण ऋतु. वंती बाळने माटे नकामां पापनां नातां बांधवा जेवू . रास वखाण धर्मकथा रे, व्रत पञ्चरकाण मेलो ॥ स्तवन सजाय रास गहुँअली रे,धर्मशास्त्र म खेलो॥४॥ ज्यां रास वंचातो होय, व्याख्यान चालतुं होय तथा धर्मकथा थती होय त्यां पण न जवं. व्रत पच्चरकाण पण ते दिवसे न करवां, अने स्तवन, सकाय, रास तथा गहुँली अने धर्मशास्त्र पण वांचवां नहीं. लखणुं लखे नहीं हायशुं रे, न करे धर्मचर्चा ॥ धूप दीवो गोत्रकारणां रे, नहीं पूजा ने अर्चा ॥५॥ झतुवंती बाइट हाथथी का लेखनकार्य करी शके नहीं, तेमज धर्मचर्चा करवानी पण मना करवामां आवी . धूप, दीवो तथा गोत्रने कारवां विगेरे धर्मकर्मो पण परिहरवां जोश्ए. पूजा अने अर्चामां पण नाग न लेवो. संघ जिमण प्रजावना रे, हाथे देजो म लेजो ॥ बलिदान पूजा प्रतिष्ठानुं रे, मत रांधीने देजो ॥६॥ ज्यां संघ जमतो होय, अनावना थती होय, त्यां जवू नहीं, अने हाथथी कां आपq के लेवू नहीं. पूजा प्रतिष्ठा माटे रसोई रंधाती होय अथवा निर्दोष बलिदाननी रसोइ माटे तैयारी थती होय त्यां न जवु अने पोताना हाथथी कां रांधी न आपq. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वज पाणी न नामीये रे, देव देवी हनुमान ॥ फल फूल तेल सिंदूर तजोरे, धन धान सुदान ॥७॥ केटलीक बाळ पूर्वजोने पाणी पहोंचामवा वटवृदने पाली पाय , ते पण करवू नहीं. देव, देवी अने हनुमान आदि देवोने फल, फूल के सिंदूर चमाववा जq नहीं. धन धान्यनुं सुदान पण पोताना हाथे न आपQ. जण गणवू न वांचवें रे, नोजन पाणी न पावें ॥ लग्न विवाह सीमंतनां रे, गीत गावा न जाएं ॥ ७॥ रजस्वलाना दिवसोमां लगवा गणवानुं तथा वांचवानुं पण बंध राखq. कोश्ने जोजन पीरस, नहीं तथा हाथेथी पाणी पण न आप. जे स्थले लग्न के विवाह थतो होय तथा सीमंतनो उत्सव थतो होय ते स्थले पण गीत गावा न जq. धान्य सोफे नवि काटके रे, रांधणुं ते केम रांधे ॥ दलवू न खांगवु नरडवं रे, कर्म कठणशुं बांधे ॥५॥ धान्यने फाटकQतथा धान्यमांथी कांकरावीणवानुं काम पण तेटला दिवसो सुधी तजी देवू. ज्यारे धान्यने काटकवानी तथा सोवानी मनाइ करी बे, तो पठी रांधणुं तो रंधायज केम? अर्थात् रजस्वला बाइए रांधवा सींधवानुं काम न करवं, तेमज काचा धान्यने पण स्पर्श न करवो. दखवार्नु, खांडवानुं तथा जरमवानुं काम जे बाइ आ दिवसोमां करे ने ते बहु कग्नि कर्मो उपार्जे जे. ऋ०२ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शाक नीतुं मत मोलजो रे, फल फूल चुलचाक ॥ राश्तानी राइ वाटे नहीं रे, मूली औषध पाक ॥१॥ ऋतुवंती बाइए लीलु शाक समारवा बेसवुनहीं. फल, फूलने स्वच करवा पण न बेसवु. राश्ता माटे राश्वाटवी तथा औषध के पाक तैयार करवा माटे उसमीयां खांमवां ए पण निषिध . खांम साकर गोल फुध दही रे , घृत तैल सुखमीचं॥ खटरसने मत फरसजो रे, वली धसाणुं नमीठं॥११॥ खांड, साकर, गोल, उध, दहीं आने घी, तेल तथा सुखमीनो स्पर्श न करवो. ती, खारं, गट्यु, कम्वु विगेरे षट् रसोने पण अमवू नहीं. ते सिवाय तेनां जे पक्वान्न थतां होय तेनो स्पर्श न करवो जोइए. पमिलाने नहीं साधु साधवी रे, वस्त्र पात्र अनुपान ॥ रांक ब्राह्मणने हाथे आपे नहीं रे,दाणा लोटने दान१५ . साधु के साध्वी वहोरवा आवे तो शतुवंती बाइए तेमने पोताना हाथथी वहोरावq नहीं. साधु, साध्वीने वस्त्र, पात्र के अनुपाननी सामग्री पण स्वहस्ते वहोरावी न शके एटझुंज नहीं, पण गरीब ब्राह्मण आंगणे मागवा आवे तो तेने पण दाणा, लोट के एवं बीजुं कांइ दान आपी शके नहीं. गाय नेंस ढोर दोवा ने बांधवा रे,बाण वासीहाथे॥ बाश वलोणुं माखण तजो रे,अथाणुं न वि ते आथे १३ गाय अथवा नेंसने दोवां तेमज बांधवां नहीं. शतुवंती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) बाइए पोताना हाथे गण के वासी5 पण न करवू. गश वलोववानुं के माखण करवानुं पण तजवं. तेमज अथाएं करवानुं होय ते पण न करवं. जल जरवाने जावे नहीं रे, गंडे गार ने माटी॥ गम उटकंता दोष उपजे रे,वढवा मेलो घाटी॥१४॥ पाणी नरवा जवू नहीं. तीपण गुंपणनुं काम पण एवी बाश्थी थर शके नहीं. ए वासणो मांजवाथी पुष्पवंती बाइ दोषमां जराय . आवा दिवसोमां कोश्नी साथे गाढ क्लेश कंकास पण न करवो. जरत चित्रामण मत जरो रे, रंगराग मत करजो॥ जोj रोणुं वगोणुं सदा रे, तमे जोवाने वरजो ॥१५॥ नरत के चित्रामणर्नु काम पण शतुवंती नारीए परिहरवू. ज्यां उत्सव-आमोद थतो होय, किंवा ज्यां रंग-राग चालतो होय त्यां न जवं. तेमज जोj, रोणुं अने वगोणुं ए हमेशां झतुवंती बाइए तजवां जोइए. पापम वमी ने सीधावमी रे, जली खांड विखेरो ॥ शेव सुंवाली ने फाफमा रे, वणतां दोष घणेरो॥१६॥ विवाहप्रसंगे अथवा एवाज बीजा उत्सवसमये बाल पोतपोतानां सगावालांउमां पापम, वडी, सीधावमी तथा शेव, सुंवाली अने फाफमा वणवा जाय , तेम शतुवंती स्त्रीनए जवू नहीं; कारण के एवी अवस्थामा शेव विगेरे वणवामां घणो दोष शास्त्रोमां कह्यो . Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) सांधण सुंधण शीवणुं रे, म करो जोर विचारी ॥ ढोर खाण बाफवा मत मेलजो रे,रमत बाजी निवारी१७ शीव, सांधवू पण पुष्पवंती बाळए परिहरवू. जाणी जोश्ने एवा दोषमां नराई नहीं. ढोरने माटे जे खाण बाफवामां आवे ने ते पण न वाफवू अने बीजी रमतो पण त्यजी देवी. परघर जमवा उजमे रे, मत बेसजो पांते ॥ हाथे जोजन पीरसे नहीं रे, न करे गोष्ठि एकांते १७ उत्सव दरमियान कोने त्यां जमवानुं होय त्यां बधी बाळ एक पंक्तिए बेगी होय तेमनी साथे शतुवंती स्त्रीए अमीने बेसबुं नहीं. शतुवंती बाइ पोताना हाथे कोश्ने पीरसे पण नहीं तेमज कोश्नी साथे एकांतमा वार्तालाप पण न करे. दातण अंजन विखेपने रे, वस्त्राचरण स्नान ॥ दर्पण फूल जोजन राते रे,पाणी मेलजो पान ॥१॥ दातण, अंजन, सुगंधी व्योनुं स्वशरीरे विलेपन, स्नान तथा सुंदर वस्त्रानरण न करे, कारण के ए बधा श्रृंगारो बे, अने ते आवा अवसरे सजवा ए अयोग्य . दर्पणमां मुख जोवू, फुलनी माला धारण करवी, रात्रीएआहार करवो तेमज पाणी पी विगेरे त्याज्य . बडीयाल दाल तुम मत करो, मत बेसजो हिंमोले॥ धाणी दालीया म शेकजो रे, मुख म जरो तंबोले २० Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) • दालने उमवामां आवे , अथवा तो दालने फोतरांथी मुक्त करवामां आवे बे, ते कार्य पण रजस्वलाप्राप्त बाइए न करवू. हिंमोले बेसवानी पण मनाश्वे. तंबोल खावु के धाणी मालीया शेकवा ए पण अविधेय . खत पत्र हुंडी न वांचवी रे, नामुं बेखु न सूझें ॥ इस न बोलवू दोमवं रे, पुष्ट थाहार न जुंके ॥१॥ खत पत्र के ढुंमी वांचवी नहीं. तेमज नागें ले करवानुं पण काम न करवू. हसवू, बोलवु तथा दोम, विगेरे कर्मो पण परिहरवां. पौष्टिक आहार न करवो. धातुपात्रे नोजन तजो रे, माटी काष्ठ पाषाण ॥ जोयण सोयण तेहमां रे, खाट पाट म जाण ॥२२॥ ___ धातुपात्रमा जोजन करवुनहीं. माटीनु, लाकमार्नु के पाषागर्नु पात्र होय तो तेमां नोजन करीने पात्र क्यांश परग्वी देवं. विचार करतां एम लागे ले के धातुपात्र प्राणने संग्रही शकवानी शक्ति धरावे ने अने तेमां आकर्षक गुण रहेलो , तेथी तेमां लोजन करवानी ऋतुवंती बाश्ने मना करवामां आवी हशे. सूq होय तो जोय उपर सूवं, तेमां पण खाट पाटनो त्याग करवो. बुंदकावो तमे मत पीयो रे, मत द्यो हाथ ताली॥ रासमंमल मत खेलजो रे,नारी होय धर्मवाली ॥२३॥ शतुवंती बाइए बुंदनो कावो करीने पीवो नहीं. अर्थात् जेटखां उत्तेजक पीणां ने ते वर्जवां. परस्पर हाथनी ताली देवी Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नहीं तेमज खेवी पण नहीं. रासमंगल के ज्यां अनेक स्त्री मलीने रास रमे तेमां नाग लेवा न जq. साजन आवे मलो नहीं रे, तुंबणां लीयो केम ॥ नग्न बालक धवरावीये रे, घरे मत फरो तेम ॥२॥ साजन आवे तो तेने मलवू नहीं.ज्यारे मलवानो निषेध थयो त्यारे तेनां तुंबणां के उवारणां तो लेवायज केम ? बालकने धवरावq होय तो नग्न करीने धवराव, अर्थात् तेना अंग उपर वस्त्र रहेवा न देवू. घरमां चोतरफ फस्या करवू नहीं. मत बेसजो माथु गुंथवा रे, मत घालजो तेल ॥ नावं न धो सिंपूर सेंथो रे, मस्तक उल मेल २५ माथु गुंथवा बेसवु नहीं, तेमज तेल पण माथामां नाखवू नहीं. न्हावार्नु तथा धोवानुं त्यजी दे, अने सेंथामां सिंदूर न लरवो तथा माथू पण न ओलq. झतुवंती हाथे जल जरी रे, देरासरे जो आवे ॥ समकितबीज पामे नहीं रे, फल नारकीनां पावे ॥२६॥ झतुवंती नारी जो हाथमां पाणी लश्ने देरासरे जाय तो समकितनुं बीज तेने प्राप्त थाय नहीं, माटे एवी स्त्रीए पवित्र देरासरमां पग पण मूकवो नहीं. बतां जो कोई देरासरे आवे तो तेने नारकीनां फुःखो सहन करवां पमे. नव क्षेत्रमें रज खालनी रे, नारी वशे अजाणे ॥ बुंडण लुमण ने सापिणी रे, पापिणी होये प्राणे ॥२॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) जे नव क्षेत्रो पवित्र कह्यां बे, तेमां रुतुवंती नारीश्री अजातां रज पी जाय तो ते पापिणी नारीने प्राण जतां बुंरुण, hण के सापिणीनो अवतार लेवो पके बे. स्तुवंती यात्राए चालतां रे, मत बेसजो गाडे ॥ संघतीर्थ फरस्यां थकां रे, पमशो पाताल खाडे ॥ २८ ॥ तुवंती नारीए यात्रार्थे जती वखते गामामां न बेस, अने जो एवं स्थितिमां कोइ संघतीर्थने स्पर्धा तो जाणजो के पातालना खाने परुवुं पडशे श्रर्थात् बहु अशातावेदनीय कर्मो जोगवां परुशे. चोवीश होर एकांतमां रे, चोथे दिन नावुं धोतुं ॥ पुरुष बीजो नव पेखवो रे, मुख दर्पणमां न जोतुं ॥ २ए ॥ चोवीस होर एटले त्रण दिवस रजस्वला बाइए एकांतमां रहे, चोथे दिवसे न्हाइ धोइ पवित्र थ, परपुरुषने जोवो नहीं तेमज दर्पणमां मुख पण न जोवुं. मूत्र ढांटे पावन गायनुं रे, घरमां सहु वामे ॥ लीपे धूपे धोवे दिन चोथे रे, जोजन रांधवा पामे ॥३०॥ " चोथे दिवसे घरमां बधे गोमुत्र बांट, कारण के ते बहु पवित्र लेखाय, अने तेना व अशुद्धिनो नाश थाय बे. ते उपरांत घरमां लींपण करी बधे शुद्धि करवी जोइए. ट कर्या पी ते बाइ रसोमामां जइ रसोड़ करी शके. दर्शन पूजा दिन सातमे रे, जिननक्ति करवी ॥ व्रत पच्चरकाण वखाण सुपो रे, पुण्य पालखी नरवी ३१ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सातमे दिवसे ते बाइ जिनमंदिरमा जवाने माटे योग्य बनी शके, अर्थात् सातमे दिवसे जिननक्तिनो अधिकार तेने प्राप्त थाय. ते पहेलां नहीं. व्रत पच्चरकाण करवां तथा व्याख्यान सांजलq ते सातमा दिवसे करी शके. पुण्यनी पालखी लरवी होय तोपण तेने माटे श्रा सातमो दिवसज योग्य गणाय. सोल शणगार सजी जला रे, आवे जरतार पासे ॥ गर्न अनुपम उपजे रे, संपूर्ण नव मासे ॥ ३२ ॥ आवी नारी सोले श्रृंगार सजी पोताना पति पासे आवे. श्रावी रीतनी विधिने मान आपनारी स्त्रीने पेटे जे गर्न रहे ते अनुपम थाय, अने बराबर नव मासे सुंदर संताननी प्राप्ति थाय. दिन सोलमे रतुवंतीनो रे, गर्न उपजवा काल ॥ चोथे दिवसे गर्न उपजतां रे,अल्पायुष लहे बाल ३३ ऋतुवंती नारीने सोलमे दिवसे गर्न उपजवानो काल प्राप्त थाय जे. सोलमा दिवसने बदले जो चोथे दिवसे गर्भ रहे तो ते संतान बहु टुंकी मुदत सुधी जीवीने मरी जाय, अर्थात् अट्पायुषी थाय. षट आठ दश बार चौदमे रे, सोलमे दिवसे गान॥ नंदन उपजे गुणनिलो रे, रूप रंग जशलाल ॥ ३४ ॥ ब, श्राउ, दस, बार, चौद अने सोलमे दिवसे अर्थात् बेकीना दिवसे.जे गर्न धारण थाय ते रूप-गुणमां अनुपम तथा यशस्वी आय, एम बुद्धिमान् पुरुषोनुं मानवू . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) दोश् काम रात्रे लोग तजो रे, वीर्ये उपजे बेटी॥ दिवसनो जोग निर्बलो रे, जली रातमी नेटी॥३५॥ रात्रीना बे प्रहर वीत्या पनी लोग करवो नहीं. दिवसे लोग करवानो तद्दन निषेध के. रात्रीनो अवसरज योग्य गणाय . बे प्रहर पनी लोग करवाथी पुत्री उत्पन्न थाय, एम कहेवानो आशय होय तेम जणाय . बारथी मामी पञ्चावन्ने रे, वर्षे जणे नारी ॥ नर चोवीश नारी सोलनी रे, सुत होय सुखकारी॥३६॥ __ बार वर्षनी अंदरनी तथा पंचावन वर्ष उपरनी नारी साथे लोग करवो अनुचित ने, कारण के तेनाथी पुत्रोत्पत्ति थती नश्री. नर चोवीश वर्षनो अने नारी सोल वर्षनी होय तो तेनाथी जे पुत्र उत्पन्न बाय ते बहु सुखकारी थाय. पुरुष वीर्य बहु बेटमो रे, बेटी रक्ते वखाणुं ॥ सम लागे नपुंसक नीपजे रे, प्रजु वचने हुंजाणुं ॥३॥ पुरुषनुं वीर्य वधारे होय तो पुत्र उत्पन्न बाय, अने स्त्रीन रक्त वधारे होय तो पुत्री उत्पन्न थाय; वीर्य अने रक्त उजय सम जागे होय तो नपुंसक संतान प्राप्त थाय; या वात प्रजुना शब्दोमां होवाथी हुँ तेने मानपूर्वक वखाणुं बु. मध्यम गर्न होय रेवतीमा रे, जन्मे मूलक मूल ॥ श्रवणपंचक दस रोगथी रे, गर्न फूल अनमूल ॥३०॥ रेवती नक्षत्रमा जो गर्ने रहे तो ते मध्यम थाय, मूल नक्षत्रमा जन्मे तो उत्तम थाय, अने जो श्रवणपंचकमां जन्मे तो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 30 ) दश रोगथी पूर्ण थाय, अथवा तो गर्जनुं फूल अनमूल-मूलविनानुं थाय. गर्भ जन्मीची मां रे, पुत्र थाय तो कर्मी ॥ हस्त सूर्ययोगे जन्म जलो रे, सुत होय सुधर्मी ॥ ३५ ॥ श्रीची नक्षत्रमां बालक गर्भमां आवे तो ते पुत्र कम थाय. हस्त नक्षत्रनी साथै सूर्ययोग थये बते जन्म याय तो ते बहु सारो ने धार्मिक थाय. मंगलनो जन्म अश्लेषां रे, बेटी बहुत रीसाल ॥ पूनम मूल सूर्यवारनो रे, चटको चोर बीनाल ॥ ४०॥ मंगलवारे अश्लेषामां जन्म थाय ते पुत्री बहु रीसाल बाय. मूल नक्षत्र ने सूर्यवार तथा पूर्णिमाने दिने पुत्र जन्मे ते लुच्चो, चोर के बीनालवो थाय. ज्येष्ठानुराधा रोहिणी विशाषा रे, मृग अश्विनी जरणी॥ गर्न पडे सुखावडे रे, पुरुष मेले कां परणी ॥ ४१ ॥ ज्येष्ठा, अनुराधा, रोहिणी, विशाखा, मृगशर, अश्विनी नरणी नक्षत्रमां गर्ज रहे तो ते कां तो पमी जाय, अथवा सुवावरुना वखतमां तेनो धणी स्त्रीने तजीने जाय ( अर्थात् मरण पामे). गर्ज जन्म पूर्वा नक्षत्रमां रे, घणुं बालक ढीलो ॥ वादी प्रमादी उत्तरा तणो रे, विद्यावंत बबीलो ॥ ४२ ॥ पूर्वा नक्षत्रमां जे बालक जन्मे ते घणो ढीलो बालक थाय. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) उत्तरा नक्षत्रमां जन्मे ते वादी किंवा प्रमादी अथवा सुंदर विद्यावंत थाय. पंच मासे नारी गर्नणी रे, मेले पुरुषनो संग ॥ दोष लागे ने बालक जांगे रे, जोग रोग प्रसंग ॥ ४३ ॥ गर्भ धारण कर्या पी पांच मासे गर्भिणी स्त्रीए पुरुषनो संग त्यागवो जोइए. बतां जे दंपती जोग करे ते जोग छानेक रोगने उत्पन्न करे, तेमज गर्भपातनो पण दोष लागे; कारण के पांच मास पीना जोगथी गर्जने घणी इजा थवानो जय रहे बे. ठे मासे बालक आगरु रे, सातमे होये कोढ ॥ रांक तोले मास आठमे रे, नवमे जन्मतां पोढ ॥४४॥ मासे जे बालक जन्मे ते बहु लांबो वखत जीवे नहीं. सात मासे जन्मे ते कोढी थाय, ठमे मासे जन्मे ते दीन, दुःखी ने रोगीष्ट थाय तथा नवमे मासे जन्मे ते प्रौढ थाय. पंच बोले गर्ने उपजतो रे, जरतार विना साधुं ॥ पुरुषजोगे पन्नर जेदशुं रे, गर्ज थावानुं काचुं ॥ ४५ ॥ जरतार विना पांच दे करी गर्भ रहेवानुं कांबे ने पुरुषो योग बतां १५ नेदे गर्भ रहेतो नथी. आ पांच ने पंदर नेद कह्या ते गुरुगम्यथी अथवा शास्त्रोक्तथी समजी लेवापडवे ने बीरशे रे, जन्म बालक जोलो ॥ बीज सातम ने बारस तणो रे, जन्म थाय तो गोलो ४६ " परुवे, बड़े के अगी आरशने दिवसे जन्म थाय तो ते Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) बालक बहु नोलो थाय, अने बीज, सातम के बारसने दिवसे जन्मे ते गोलो अर्थात् लुच्चो अने मूर्ख थाय. वली त्रीजाम ने तेरशे रे, पुत्र होय सुनोगी॥ चोथ चौदश पुत्र नवमीनो रे,कमवो क्रोधी रोगी॥४॥ त्रीज, आठम अने तेरशने दिवसे जे बालक जन्मे ते सारा लोगनोगववावालो थाय. चोथ, चौदश अने नवमीए जे पुत्र थाय ते कमवो, क्रोधी अने रोगी थाय. पांचम दशम ने पुनमनो रे, जन्म होय नाग्यशाली॥ जन्म्योअमासे तो उलटुं रे,मूर्ख महोटो ते हाल॥४॥ पांचम, दशम ने पुनेमने दिवसे जे पुत्र जन्मे ते बहु लाग्यशासी थाय, श्रने तेथी उलटी रीते अर्थात् अमासने दिवसे जन्मे ते मूर्ख थाय, एम समजवानुं . मीन लग्न मेष वृषनो रे, पुत्र धारजो गलीयो । लग्न मिथुन कर्क सिंहनो रे, बुद्धिवान ने बलीयो॥४॥ मीन, मेष अने वृष राशिमा जे पुत्र जन्मे ते गलीया बखद जेवो ढीलो थाय, अने मिथुन, कर्क अने सिंह राशिमां जन्मे ते बुद्धिवान् थयानी साथे बलवान् पण थाय. लग्न कन्या तूल वृश्चिकनो रे, पुत्र कुल माहे दीवो॥ धन मकर लग्न कुंजनोरे, घणुं जशनामीजीवो ॥५०॥ ___ कन्या, तूला अने वृश्चिक राशिमा जे पुत्र जन्मे ते कुलमां दीपक समान उज्ज्वल थाय अने श्राखा कुटुंबने अजवाले, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 23 ) तेमज जे पुत्र धन, मकर ने कुंभ राशिमां जन्मे ते घणो जशनामी तथा दीर्घायुषी थाय. सूर्य मंगलवारे जन्मीयो रे, बालक रोगीयो तापी ॥ शनि सोम शुक्र टाढो सदा रे, बुध गुरु बे प्रतापी ॥ ५१ ॥ रविवारे ने मंगलवारे जे जन्मे ते रोगी तथा क्रोधी थाय, शनिवार, सोमवार ने शुक्रवारे बालक जन्मे ते शांत थाय, ने बुधवारे तथा गुरुवारे जन्मे ते महा प्रतापी थाय. पुत्र उदासी उद्वेगमां रे, लाजामृत शुभ वेला ॥ रोगे रोगी क्रोधी कालमां रे, चलमां चोकस चाला ५‍ उद्वेग चोघमीयामां जन्मे ते बालक उदासी थाय, लाभ, अमृताने शुन चोघमीयामां जन्म थाय ते बहु सारो लेखाय बे, रोग चोघमीयामां रोगी छाने काल चोघमीयामां क्रोधी तथा चल चोघमीयामां चोकस प्रकारना चाला करनारो पुत्र थाय. रांध्युं जोजन ऋतुवंती तणुं रे, जाणे लाडु सवाद ॥ जोग जोग माठा मले रे, रोग शोक प्रमाद ॥ ५३ ॥ शतुवंती नारीए जे जोजन रांध्यं होय ते जोजनमां लागु जेटलो स्वाद मानी जे मनुष्य आहार करे तेने अनेक प्रकारना मावा जोगोनो जोग प्राप्त थाय, तथा रोग, शोक छाने प्रमादनो पण तेनामां पार न रहे. वेद पुराण कुरानमां रे, श्री सिद्धांतमां जाख्युं ॥ तुवंती दोष घणो कह्यो रे, पंचांगे पण दाख्युं ॥ ५४ ॥ वेद, पुराण तथा कुरानमां पण लख्युं वे के रुतुवंती नारी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २) साथे श्राप लेनो व्यवहार राखवाथी घणुं पाप लागे जे. आ वातने आपणा जैन सिद्धांतो तथा पंचागी पण टेको श्राप बे. पहेसे दाहाडे चांमालिणी कही रे, ब्रह्मघातक बीजे॥ धोबण त्रीजे चोथे दिवसे रे, शुधनारी वदीजे ॥५॥ • शतुवंती नारीने प्रथम दिवसे चांमालणी जेवी समजवी, बीजे दिवसे ब्रह्मघातक जेवी समजवी अने त्रीजे दिवसे धोरण समान लेखववी. चोथे दिवसे न्हाइ धोइने शुद्ध थाय त्यारे पवित्र लेखववी. माकण साकण कामणना रे, मंत्र पामशो खोटा ॥ देवनुंसाधन अथ्थमशेरे, मत वालजोगोटा ॥५६॥ __ जो शतुवंतीनो संसर्ग राखशो तो माकण, शाकण अने कामणना मंत्रो खोटा पामशो अने कोइ देवनुं साधन हशे तो ते पण आश्रमी जशे, माटे ए बाबतमा गोटा वाळशो नहीं. रतुवंतीनुं मुख देखतां रे, एक आंबिल दोष ॥ वातमी करतां रागनी रे, पांच आंबिल पोष ॥५॥ शतुवंती नारीनु मुख मात्र निरखवाथी एक आंबिलनुं प्रायश्चित्त लागे जे, अने रसपूर्वक एटखे के जो होंशथी तेनी साथे वात करवामां आवे तो पांच आंबित करवां जोइए. आटर्बु प्रायश्चित्त शास्त्रमा कडं . झतुवंती श्रासने बेसतां रे, सात आंबिल साचां ॥ बहबार तास जाणे जम्या रे,नव गढ होये काचा॥५॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतुवंती नारीना श्रासन उपर बेसवाथी सात आंबिलनी आलोयण देवी पमे , अने तेने जाणे जमवाथी बार बच्नी आलोयण श्रावे ने अने शीयलना नव गढ कह्याने ते शिथिल श्रा जाय . रंतुवंती नारीने आजड्यां रे, बघ्नु पाप लागे । वस्तु देतां येतां अमनोरे, कहो केम दोष नागे।एए॥ ऋतुवंती स्त्रीने अमवाथी बन्नु पाप लागे , अने वस्तु आपवा लेवाथी अज्मनो दोष श्रावे . आवो दोष कहोबीजी शीरीते दूर थाय ? . खाधुं जोजन नारी हाथर्नु रे, जव लाखनुं पाप ॥ जोग जोग नव लाखनुं रे, वीर बोले जबाप ॥६॥ आवी नारीना हाथर्नु जो नोजन करवामां आवे तो लाख जव पर्यंत संसारमा ज्रमण करवू पके,अने तेनीसाथेनोग करवामां आवे तो नव लाख लव करवा पमे. या वात वीर प्रतुए एक प्रश्नना उत्तरमा जणावी : साधु साख नारी नोगथी रे, जोजन पाप अघोर ॥ नरक निगोदमांजव अनंतारे, कर्म बांधे कगेर ॥६॥ - साधु पुरुषनी सादीए एम कहीए जीए के एवी नारी साथे लोग करवाथी अने नोजन करवाथी अघोर पाप बंधाय बे, अने नरक-निगोदमां अनंता नव जमवा उतां तेनो बुटको थतो नथी, कारण के ते एवां कगेर कर्मो बांधे . Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) 'तुवंती खातां जोजन वध्युं रे, ढोरने लावी नाखे ॥ जव बार गुंमा करवा पडे रे, चंद्र शास्त्रनी साखे ॥६॥ "N चंद्र शास्त्रनी साक्षीए कहेवुं पडे बे के रुतुवंती स्त्रीना जाणामां जे जोजन वध्युं होय ते जो ढोर ढांखरने खावा देवामां आवे तो बार जव जुंकी रीते जमवा पके. रजखला वहाणे समुद्रमां रे, बेसतां बढ़ाण डोले ॥ जांगे कां लागे तोफानमां रे, माल वामे कां बोले ॥ ६३ ॥ रजस्वला बाइ जो वहाणमां बेसे तो ए वहाण पण मोलवा लागे बे, अनेकां तो वचमां जांगी जाय बे के तेने तोफान लागे बे, तेथी अंदरनो माल पाणीमां वामवो पके बे अथवा वहाण डूबी जाय बे. लख जव जाण अजाणमां रे, लघु वम जव आठ ॥ जव लाख ने बाएं घातमां रे, एम शास्त्रनो पाठ ॥ ६४ ॥ उपर कह्यो ते दोष जो जाणतां थाय तो लाख जव ने अजातपय जाय तो नाना मोटा व जव करवा पसे, छाने एक लाख ने बाणुं घातो सहन करवी पके, एवो शास्त्रनो पाठ बे. धर्मवाली नारी नाई धोइ रे, संगमें जोजन खाय ॥ पुत्ररत्न पाने संपदा रे, देवलोकमां जाय ॥ ६५ ॥ धर्मवाली बाई चोथे दिवसे न्हाइ धोइने सौ साथे जोजन करे. यावी बाइने जे पुत्र थाय ते रत्न जेवो थाय छाने बहु संपत्ति प्राप्त करे एटलुंज नहीं, पंण एवी बाइ आयुष्य पूरुं श्रये देवलोकमां जाय. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 24 ) कमला राणी प्रभु वदतां रे, बार लाख जव कीधा ॥ माल फूल अटकाव मां रे, लख जव फल लीधां ॥६६॥ कमला राणी रुतुवंती हती त्यारे जूलथी तेणे प्रभुने वंदना कीधी. आथी करीने तेने बार लाख जव सुधी संसारअटवीमां परिभ्रमण कर पड्युं. एक मालणे एवीज स्थितिमां फूल वेच्यां, तेथ तेने एक लाख जव करवा पड्या. ढुंढ जणे फूटुं गुंबडुं रे, धर्माधर्म विरोध ॥ शास्त्र विना मते माचता रे, लहे नरक निगोद ॥ ६७ ॥ ढुंढी लोको एम कहे बे के ए तो फुटेला गुंबका जेवुं बे, तेथ ते धर्माधर्ममां विरोधरूप नथी, पण श्रम कहेनारा शास्त्रनी साक्षी विना पोताना मत प्रमाणे बोले बे. तेथी करीने ते नरक निगोदना अधिकारी थाय बे. एम सांजली रुतुवंतीनो रे, अधिकार श्रानंदे ॥ घर मांदे सावचेत राखजो रे, जाख्युं वीर जिणंदे ॥ ६८ ॥ या प्रमाणे तुवंती नारीनो जे अधिकार कह्यो बे, तेनुं आनंदी बराबर मनन करी स्मरणमा राखवो अने ते प्रमाणे बहु सावचेती थी घरमां वर्त्तन राखवं. ए प्रमाणे कहेलुं बे. निज धर्म पालवा नारी रे, जली सजाय जणजो ॥ धोल ग्रामे तपागच्छमांरे, श्रावक श्राविका सुणजो ॥६९॥ पोतानो धर्म पालवानी रुचिवाली बाइए ए श्र सजायनो सारी रीते यास करवो. या सजाय भोल गाममां लखायेली Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६.) बे, तेथी घोल निवासी तप गहना श्रावक तथा श्राविकार्डने संबोधी ने कहे बे के हे बाइ तथा माइ ! श्र सजाय सारी रीते सांजलजो. संवत अढार पांसग्मां रे, दीवाली लटकाली ॥ कदे खीमचंद शिवराजनो रे, करजो धर्म संजाली 90 सजाय संवत् १०६५ मां रची बे, अने प्रसंग पण दीवाली नो हतो. लखनार पोतानुं नाम पतां कहे बे के ढुं शिवराजनो पुत्र खीमचंद कहुं हुं के सौ कोइ पोतपोतानो धर्म बराबर संजालीने पालजो. ॥ अथ बोतिनास प्रारंभः ॥ राग रामग्री ॥ ॥ वीर जिनेश्वर पाय प्रणमीने, प्रणमीये शारद माय रे ॥ बोति निवारण जास जणेशुं, जेम पापमल जाय रे ॥ बोति निबांधी वंश न वाधे, धर्म कर्म नवि कोय रे ॥ एम जाणीने बोति निवारो, जेम वांबित फल होय रे ॥ बो० ॥ १ ॥ जे हिंसादिक महामल बोति, ते लोपे जीव ज्योति रे ॥ ते तो टले तपानल तापे, जो दयारस व्यापे रे ॥ बो० ॥ २ ॥ बोति मूर्ति स्त्रीधर्मिणी जाणो, तेदनो जय घणो यो रे ॥ जेहनो दोष दीसे निज नयणे, वली कह्यो जिनवयणे रे ॥ बो० ॥ ३ ॥ जेह बोति धातु Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) रस फूटे, पीठ कणकवांक त्रूटे रे ॥ विकसी घाय तिमिक बहु लागे, गमगुंबम रोग जागे रे ॥ बो॥ ॥४॥ दी। अंध होय नेत्र रोगी, षंढ होये संनोगी रे ॥ गंधे अन्नादिक कश्मल थाये, पापमी पमी धाबलाये रे ॥ बो० ॥५॥ बेमी बुडे जेहने संगे, जावा रंग उरंगे रे ॥ स्नानजले वेल वृद सुकाये, फूल फल नवि थाये रे ॥ बो॥६॥ एम जाणी बीजे घरे राखो, तेदशुं जाष म नाषो रे ॥ वस्तु वानी थानमवा न दीजे, दूर थकांज रहीजे रे ॥ बो० ॥ ॥ पुण्यवंत सुणो सविचारी, एह दोष होय नारी रे ॥ जुक्त्वा तो उपवास करीजे, स्नान करी बोलीजे रे ॥ ॥ ७॥ बीजे दिन स्नान जब कीजे, तव वस्त्र जीजवीजे रे॥अवर वस्त्र धोयां पहेरीजे, जोजन निरस लीजे रे ॥ ए॥जेणे नाजने जोजन कीजे, ते घर माहे न लीजे रे ॥केहने ते अडवा नवि दीजे, नूमि मांहे बूजीजे रे ॥ो ॥ १० ॥ नदी सरोवरे स्नान न कीजे, तेह मांहे शोच न लीजे रे ॥ तेणे थाय अपवित्र पाणी, दुःख सहुनी खाणी रे ॥जो ॥११॥त्रीजे चोथे दिन एम पालो, गेति Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) पाप पखालो रे ॥ पांचमे दिन पवित्र होइ खावो, जेम पुण्यफल पावो रे ॥ बो० ॥ १२ ॥ जेम वन मांहे दवे जीव बले, तेम तिहां तेणे जले रे ॥ अपगल नीर नवि खरचीजे, जीव यतन घणुं कीजे रे ॥ बो० ॥ १३ ॥ एम न राखे जे नर निज गोरी, तेह पापरथ घोरी रे ॥ एम न रहे जे नारी असारी, ते पामे दुःख जारी रे ॥ बो० ॥ १४ ॥ शाकिनी जेम कुटुंब खाये, नरक मांहे ते जाय रे ॥ दुःख देखे ते त्यां अति घणां, बेदादिक वध बंध तणां रे ॥ ॥ बो० ॥ १५ ॥ सापिणी वाघणी बणी सिंहणी, श्यालिणी शुनी होय कागणी रे ॥ अशुद्ध योनिमां पी दुःख पामे, जवोजव पातक ठामे रे ॥ बो० ॥ १६ ॥ एम जाणी राखे नर नारी, जेह रहे सवि - चारी रे ॥ ते सहु सुख जोगवे संसारी, पढी मुक्ति वरे नारी रे ॥ बो० ॥ १७ ॥ एम जाणी स्त्रीधर्ममल टालो, निज मन मेल पखालो रे ॥ ब्रह्मशांतिनी वाणी संजालो, निर्मलाचार व्रत पालो रे ॥ बो० ॥ १८ ॥ इति सजाय ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥अथ सूतकनी सकाय लिख्यते ॥ ॥ देशी चोपाश्नी ॥ सरस्वती देवी समर माय, सद्गुरुने वली लागुं पाय ॥ विचारसार ग्रंथथी कहुं, ते परमारथ जाणो सहु ॥१॥ सूतक तणो हुँ कहुं विचार, सांजलजो नर नारी सार ॥ जेने घेर जन्म थाय ते जाण, दश दिवसनुं कर्तुं प्रमाण ॥२॥ एटलो पुत्र जन्मनो सार, पुत्री जन्मे दिन अगीआर ॥ मृत्यु घरनुं सूतक दिन बार, ते घेर साधु न व्होरे आहार ॥३॥ ते घरचं जल अग्नि जाण, जिनपूजा नव सूजे सुजाण ॥ एम निशीथचीमां कह्यो, ए तत्त्वार्थ गुरुमखथी लह्यो ॥ ४॥ निशीथ सोलमे उद्देशे सार, ए महंत मुनि कहे अणगार ॥ जन्म तथा मरण घर जाणो सहु, उगंबनिक गुरुमुखथी लडं ॥५॥ एम व्यवहार नाष्यमा वली, नाषे सूधा साधु केवली॥ मलयगिरिकृत टीका जाण, दश दिन जन्म सूतक परिमाण ॥ ६॥ हवे सांजलो जिनवाणी सार, एम नाषे सूधा अणगार ॥ विचारसार प्रकरणे सार, एम नाषे श्रीजिन गणधार ॥७॥ मास Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) एक प्रसवतीने धार, प्रतिमादर्शन न करे विचार ॥ दिवस चालीश जिनपूजा सार, नहीं करे स्त्री ए व्यवहार ॥ ८ ॥ साधु पण नव लीए आहार, तिहां सूतके कहे अणगार ॥ तेना घरनां माणस होय, जन्म मरणनुं सूतक जोय ॥ ए ॥ न करे पूजा दिन बार ते जाण, समजी लेजो चतुर सुजाण ॥ मृतकने rareारा कह्या, चोवीश होर ते साचा सह्या ॥ १० ॥ पक्किमणादिक न करे जाणे, एम जाखे बे त्रिभुवनजाय ॥ वेशना पालटहारा कह्या, श्राव व्होर ते साचा सह्या ॥ ११ ॥ मृतक कांध देनारा जाए, अन्य ग्रंथथी लेजो सुजाण ॥ सोल व्होर पक्किमणुं नव को, ए जिन जाख्यो आगम लह्यो ॥ १२ ॥ जन्मनुं सूतक दश दिन सार, जन्मने थानक मास विचार ॥ घरना गोत्रीने दिन पांच, सूतक टाले गुरु जाखे साच ॥ १३ ॥ जन्म हुर्द तेहीज दिन मरे, वली देशांतर फरतां मरे ॥ संन्यासी अनेरो मृत्युक होय, सूतक दिन एक जाणो सोय ॥ १४ ॥ दास दासी घरमा मृत्यु होय, दिन एक बे त्रणनुं सू१ मोढे बोलीने न करे, मौनपणे करी शके. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) तक सोय ॥ श्रव वर्षथी न्हानो मरे शिशु, तो दिन आउनुं सूतक इस्युं ॥ १५ ॥ ए जन्म मरणनुं सूतक कयुं, अन्य ग्रंथमां एमज लघुं ॥ वली विचारसार मांडे सार, एम जाखे बे श्री अणगार ॥ १६ ॥ तुवंती नारी तणो विचार, त्रण दिन लगे जंमादिक सार ॥ नव बूवे कुलवंती नार, disकमणां दिन चार निवार ॥ १७ ॥ तपस्या करतां लेखे सही, दिन पांच पढी जिनपूजा कही ॥ वली स्त्रीने रोगादिक होय, दिवस त्रण उल्लंघ्या सोय ॥ १८ ॥ रुधिर दीगमां आवे सही, तेनो दोष नव जाणे कहीं ॥ विवेके करी पवित्र थाय नार, पढी जिनदर्शनथी लहे जवपार ॥ १७ ॥ एम जिनप्रतिमा पूजा करो, जवसायर लीलाए तरो ॥ वली साधु सुपात्रे दीजे दान, जेम पामो तमे स्वर्ग विमान ॥ २० ॥ जिनपकिमा अंगपूजा सार, न करे तुवंती जे नार ॥ एम चर्चरी ग्रंथ मांदे विचार, ए परमारथ जाणो सार ॥ २१ ॥ वली जाख्यो सूतक विचार, जाखं सद्गुरु त थाश्राधार ॥ तिर्यंच तो लवलेशज कहुं, ते यागमयी जाणो सहु ॥ २२ ॥ घोमा जेंस उंट घरमां होय, Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) प्रसवे दिन एक सूतक जोय ॥ गाय आदिनुं मरण जव थाय, कलेवर घरथी बाहिर जाय ॥ ३ ॥ एटली वेला सूतक होय, दास दासी कन्या घर सोय ॥ जन्म होय के मृत्यु जाण, त्रण रातनुं होय प्रमाण ॥ २४ ॥ जेटला मासनो गर्नज पडे, तेटला दिवस, सूतक नडे ॥ नेंस विश्रायां दिन पंदर दूध, ते मांहे तो कहीए अशुद्ध ॥ २५॥ गौवूधनुं कह्यु प्रमाण, दिवस दश जाणो गुणजाण ॥ गली दिन श्राव पठी ते दूध, ते पहेलां तो कहीए अशुद्ध ॥ २६ ॥ गौमूत्र मांहे चोवीश प्होर, संमूर्छिम जीव उपजे ते जोर ॥ सोल प्होर जेंसनी नीत मांहे, संमूर्छिम जीव उपजे ते मांहे ॥ २७ ॥ द्वादश प्होर बकरीनी नीत मांहे, आठ प्होर गामर नीत ज्यांय ॥ एहमां संमूर्छिम उपजे सही, एह वात गुरुमुखथी लही ॥ ॥ ए सूतकनो कह्यो विचार, थोमा मांहे नाख्यो सार ॥ सूतक विचार आगममां कह्यो, जिनेश्वर मुखथी सूधो सह्यो ॥ए॥ सोहम शुरु परंपरा जाण, तेजे करी दीपेजेम जाण ॥ अचलगळे वंॐ श्रणगार, श्री पुण्यसिंधु Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) सूरीश्वर सार ॥ ३० ॥जणे सांजले जे नर नार, पाले ते तो शुद्धाचार ॥अनुक्रमे अमर विमाने सोहाय, रयणानूषण धरी मुक्त जाय ॥३१॥ संवत् उंगणीश बीबोतरो सार, श्रावण कृष्ण पंचमी हितकार ॥ जखौ बंदर चोमासुं करी, चोपा सूतकनी कही स्थिर करी ॥३२॥ श्रावक श्राविका पाले जेह, श्री जिनवाणाए चाले तेह ॥ सहु शकि सिफितणां सुख सार, वली मुक्ति तणां सुख लहे निर्धार ॥ ३३ ॥ इति सूतकनी सजाय समाप्त ॥ ॥अथ रजस्वला स्त्रीना अधिकारनी गाथा ॥ जा पुप्फपवलं जाणी,-नण नहु संका करे नियचित्ते ॥ विश् अनंडगाइ, तथ्थय दोसा बढू ढुंति ॥१॥ अर्थः-जे पुष्पवती स्त्री जाणी करीने पोताना चित्तने विषे शंकाय नहीं, अने हामलादिक गमने आजडे, तेने घणा मोटा दोष लागे ॥१॥ बची नासर दूरं, रोगायंतह वहंति Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) - अणुवरयं ॥ गिददेव य मुच्चंति, तं गेदं जे न वऊंति ॥२॥ अर्थः-तेनी लक्ष्मी पूर नासी जाय तथा रोग आतंक विषम अनिवारक थाय, अधिष्ठायिक देव तेनुं घर मूकी जता रहे. ए रीते थानमटवालानुं घर जे नथी मूकतो, तेने पूर्वोक्त वानां थाय ॥॥ जइ कहवि अणानोगे, पुरिसे वि य बिवर निय महिलाए ॥ एहायस्स होइ सुझी, श्य नणियं सबलोएसु॥३॥ अर्थः-जो कदाचित् अजाणतो थको कोइ पुरुष ते स्त्रीने स्पर्श करे तो स्नान करवाथी शुक्षि थाय ए वात सर्व लोक मांहे कहेली ॥३॥ विदि जिणनवणे गमणं, घर पमिमापूअणं च सज्छायं ॥ पुप्फवश्श्बीणं, पडिसिई पुवसूरीहिं॥४॥ अर्थः-विधिपूर्वक जिनजवनने विषेजावं, घरमां देवपूजा करवी अने खाध्याय करवो, एटलां वानां पुष्पवती स्त्रीने पूर्वसूरिए निषेध्यां डे ॥४॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) आलोअणा न पढइ, पुप्फवजं तवं करे नियमा॥नविध सुत्तं अन्नंता गुण तिहिं दिवसेदिं॥५॥ श्रथैः-पुष्पवती स्त्री त्रण दिवस सुधी गुरु पासेथी आलोयण सेवाने अर्थे पोतार्नु पाप प्रकाशे नहीं, वली तपस्या न करे, नियम करे नहीं, सूत्र गणे नहीं. वली अन्य पण कांश नाषण न करे ॥५॥ लोए लोउत्तरिए, एवंविद दंसणं समुद्दि ॥ जानण नबि दोसा,सिईत विरादगो सोन॥६ अर्थः-लोक मांदे तथा लोकोत्तर एटले जिनशासन मांहे उपर प्रमाणे कहेढुंचे. जे कहे डे के एमां दोष नथी, तेने सिद्धांतना विराधक जाणवा ॥६॥ शति समाप्त ॥ ॥अथ स्त्रीने शील पालवाना यत्किंचित् बोलो लखीए बीए॥ १ पिता बांधव प्रमुख कोइ पण पुरुषनी कोटे वलगी मलq नहीं. २ कोई परपुरुषने नवराववो नहीं. ३ कोई परपुरुषर्नु उवटणादिकथी अंगमर्दन करवू नहीं. ४ कोइ परपुरुष साथे पत्रादिकथी खेल नहीं. ५ कोइ परपुरुषनो बेडो पकमी वात Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) करवी नहीं. ६ को परपुरुष साथे हसीने हाथताली लेवी नहीं. ७ कोई परपुरुषनी वेणी गुंथवी नहीं. ८ को परपुरुषनां अंग चांपवां नहीं. ए कोई परपुरुषना हाथनी पाननी बीमी लेवी नहीं. १० कोइ परपुरुष साथे एक शय्याए बेसवु अने सुवू नहीं. ११ वाटे शेरीए पुरुषना संघमां जq नहीं. १२ घोमा वगेरे आमश विनाना वाहन पर बेसवु नहीं. १३ ज्येष्ठ, ससरो, सासु तथा सासरामां कोई मोटेरानी साथे उचाबाजी करवी नहीं. १४ कोइ परपुरुष साथे एकांतमा रहेवू नहीं. १५ परपुरुषथी दृष्टि मेलावी सरागश्री जोवू नही. १६ कोइ परपुरुष साथे सांकेतिक नापाथी बोलवू नहीं. १७ योगी, जरमा अने लिदाचरनी साथे नाषण करई नहीं. १० कोई पुरुष देखे तेम वडीनीति लघुनीति करवी नहीं. १ए ज्यां पुरुष सुता होय, त्यां अनर्गल अझ फरवू नहीं. २० पुरुष देखतां आलस मरमवी नहीं. १ तेम शरीरना अवयव उघामा करी बताववा नहीं. २२ अत्यंत मिष्ट पदार्थ खावा पर प्रीति राखवी नहीं. १३ जोजन अप करवू. २४ मोटे स्वरथी हसवू नहीं. २५ अजाणे घेर जq नहीं. २६ पीयर काउं रहे, नहीं. २७ घरनी वात कोइने कहेवी नहीं. २७ सासरानुं जव्य कपटथी पीयरीयाने आपq नहीं. शए धीरा तथा नीचा स्वरथी बोलवं, ३० अंग सर्व मंमित राखवू. ३१ पोताना स्वामीनू अपमान थाय त्यां जनता राखवू. ३, मा नीचा स्वरथ Acer Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंद केवलीनो रास वीश स्थानकनो रास धर्मपरीक्षानो रास धनाशालीजनो रास .. महाबल मलयासुंदरीनो रास .... हितशिक्षानो रास नर्मदासुंदरीनो रास वैराग्योपदेशक विविध पदसंग्रह 0000 *** 9086 0000 2000 0000 8000 e 6008 0.0 8400 neon 6330 2000 बहोंतेरी पदसंग्रह प्रतिमाशतक जाषांतर.... जैनप्रबोध-खुट स्तवनोनो संग्रह सकायमाला - सजायोनो संग्रह. लावणीसंग्रह गली संग्रह .... 800 .... .... **** 6960 8300 0000 08.0 8005 **** .... 000 .... 0800 .... **** 0000 .... .... २-०-० 21010 १-८-० १-४-० १-०-० १-०-० ७-१२-० Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck, 225-231, Mandvi, Sackgalli, Bombay. 01210 P1618 ०-१२-० ३-०-० २-०-० 0-0-0 61518 पुस्तक मलवानुं ठेका श्रावक भीमसिंद माणेक, जैनपुस्तको प्रसिद्ध करनार तथा वेचनार. मांगवी, शाकगली-मुंबई. Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnayasagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHASTRISARAScasesamAnastastrasoon अमारा तरफथी जैनपंचांग प्रति वर्षे नवा सुबोधक उत्तमोत्तम 'चित्र साथे बहार पमेने. SRSRSRSRSRSR S अमार जैनपंचाग जैनपणानुं अनिमान धरावनार प्रत्येक गृहस्थे पोताना घरमा खटकावी राखतुं जोइए. वार्षिक जैनपर्वो तथा रात्रि दिवसनां चोघमीयां तेमज बीजी हकीकतोनो तेमा समावेश घाय . पंचांगनी सुंदरता तथा मनोहरता अपूर्व ने. (किमत एक आनो.) SUSURSU senseNASRSRSRSZASAS SRSRSRSRSRS र पर्वाधिराज पर्युषणना माटे सारां सस्तां नचनावनाथी। नरेखां दमापनानां मारवामी तेमज गुजराती जापानां कार्मों तथा कंकोत्री फेन्ती तेमज मनमोहक अमारे त्यां 5 Sजथाबंध प्रकट थाय ने छाने तदन कीफायत जावे वेचाय / (ने, माटे ग्राहकोए मगावदा कृपा करवी. OPSEASEASERSEASERSETTERSERSEREST श्रावक नीमसिंह माणेक, जैनपुस्तको प्रसिद्ध करनार तथा देवनार. मांगवी, शाकगही-मुंबइ. VewsERSERSERSESSERSERC SASS