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सम्पादकीय मानव का जीवन नदी की धारा की तरह है। कभी तेज गति कभी मन्द गति, कभी उतार कभी चढ़ाव । कभी सरल सीधी चाल कभी सर्प की तरह वक्र गति, सुख, दुख, पुण्य, पाप, हर्ष, विशाद का धूप छांही खेल ही जीवन का क्रम है।
जो इस खेल में खिलाड़ी की तरह स्वस्थ मन, स्वस्थ चित्त बना कर खेलता है उसका जीवन सफल हो जाता है। पुण्य पाप में व्यक्ति दु:खी, सुखी होता है। आज का मानव धीरज खो बैठा है। प्रतीक्षा नहीं करना चाहता वह तो तुरन्त फल चाहता है।
मानव को अच्छे कार्य करने चाहिए जिससे स्वयं सुख की अनुभूति कर सके तथा दूसरे की सुख की अनुभूति करेगा तो पुण्य को प्राप्त करेगा।
जैन चित्र कथाएं
जैन चित्र कथा
Vikrant Patni
JHALRAPATAN
कृति
आशीर्वाद परम पूज्या गणिनी सुपार्श्वमती माता जी प्रकाशक
: आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला : पुण्य का फल
: सर्वाधिकार सुरक्षित सम्पादक
ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य शब्दाकन : ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य पुष्प नं
: 42 मूल्य
20.00 प्राप्ति स्थान
जैन मंदिर गुलाब वाटिका लोनी रोड़ जिला गाजियाबाद (उ.प्र.) 914-600074 S.T.D.0575-4600074
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Vikrant Patni
JHALRAPATAN
राजगृह में धनमित्र नाम का एक सेठ रहता था। उसकी पत्नी का नाम धारिणी था।
इसी प्रकार भूमिगृह नामक नगर में आनन्द नामक एक गृहस्थ रहता था। उसकी पत्नी का नाम मित्रवती था
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पुण्य
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चित्र- बनेसिंह जी. एस. राजावत विजय, गीताश्री अक्षर- शरद
उसके एक पुत्र था - दत्त । इनकी कन्या का नाम-वीरवती था, जो अत्यन्त सुन्दर थी।
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जैन चित्रकथा धनमित्र के बेटे दत्त का विवाह वीरवती के साथ हुआ।
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कुछ समय बाद दत्त स्नद्वीप में व्यापार करने चला गया।
वीरवती अपने माता-पिता के घर रहती थी।
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वहां गारक नामक एक चोर रहता था। वह अत्यन्त सुन्दर था।
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पुण्यका फल एक दिन उसने वीरवती को देखा। वीरवती की सुन्दरता पर वह मुग्ध हो गया।
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वीरवती ने भी गारक को देखा। उसे भी गारक से प्रेम हो गया। गारक और वीरवती अक्सर मिलने लगे। कुछ समय बाद सेठ दत्त स्नद्वीप से धन कमाकर लौटा। वीरवती, मैं
मेरी पत्नि चोर हूं। क्या तुम्हें यह
वीरवती पतानहीं कैसी (जानकर भी मैं अच्छा
है? क्योंन पहले ससुलगता है?
राल चलकर उसका 65.0
हाल जानें।
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तुम क्या करते हो, इससे मुझे क्या लेनादेना। मैं तो तुमसे प्रेम
करती हूँ।
उसके पास बहुत धन था।
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जैन चित्रकथा सेठदत को रास्ते में एक जंगल पड़ा।
मैंने इतना धन कमाया है। इसमें से कुछ भाग उसे भी दूंगा। वह अवश्य मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी।
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इस जंगल में सहसभट नामक एकचोर रहता था।
सेठ दत्त उस जंगल से गुजरा तो सहसभट ने उसे देख लिया।
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ये कोई सेठ है। इसके पास अवश्य ही धन होगा। मुझे इसका पीछा करना
चाहिए।
सहसभट चौर,सेठ दत्त के पीछे-पीछे छिपकर चलने लगा।
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पुण्य का फल सहसभट पीछा करते-करतेनगर में आगया पर सेठ दत्त को लूटने का मौका न मिला।
इतने बड़े सेठ कोयू हीनहीं छोडूमा।इस पर नजर रखनी होगी कभी न कभी तो मौका मिलेगा।
सेठ दत्त अपनी ससुराल पहुंचा। वहां उसका खूब स्वागत हुआ।
तो ये अपनी ससुराल आया है चलो,कभी तो अपनेघर जायेगा-तब देखूगा। किन्तु घर में भी तो मौका मिल सकता है। क्यों न इस पर यहीं से
नजर रखें।
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जैन चित्रकथा सेठ दत्त से वीरवती भी बड़ी प्रसन्नता से मिली।
बस कितने दिन
धंधा चल रहा लगा दिएनाथ,
था,सो रूकना परदेस में
पड़ा।
अचानक क्या बात है वीरवती का वीरवती? तुम उदास चेहरा उदास क्यों होगयीं? मेरे आने हो गया। से प्रसन्न नहीं हुई?
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देरवो! तुम्हारे लिए कितने बहुमूल्य रून लाया हूं। इन्हें पहनने से तुम और सुन्दर
लगोगी।
किन्तु वीरवती के मन में तो कोई और ही दुख था।
अरे! इतने सुन्दरत्नपाकर भी तुम प्रसन्न नहीं हुई।
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पुण्य का फल
वीरवती ने नकली मुस्कान दिखाकर सेठ दत को समझा दिया कि वह प्रसन्न है।
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वीरवती के नकली व्यवहार से सेठ दत्त प्रसन्न हो गया।
उसे क्या पता था कि वीरवती के मन में कौन सादुख है। वीरवती के दरख का कारण था-गारक चोर, जिससे वह प्रेम करती थी। गारक एक रात चोरी करते पकड़ा गया।
अगले दिन राजदरबार में
महाराज की जय हो! हमने आज गारक चोरको पकड़ लिया है। ये बड़ाही
चतुरचोर है।
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इसने सैकड़ों चोरियां की है,हत्या की है। अब तक ये हमारी आंखों में धूल कोंककर भागता रहा।
जैन चित्रकथा किन्तु आज ये चन्दन सेठ के घर में घुसा । उनके पहरेदारों ने ललकारा तो ये भागा। तभी हमारे
सिपाही उधर से निकले।
हमारे सिपाहियों ने इसे दबोच लिया। इसकी हमें बहुत दिनों से खोज थी। आजइसे
हमने पकड़ा है।
महाराजा ये बड़ाही खतरनाक चोर है। इसे छोड़ान जाय। इसे कठोर से कठोर
दण्ड दिया जाय।
ठीक है। इसे प्राण दण्ड दिया जाता है। इसे सूली पर
चढ़ा दो।
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उधर वीरवती को गारकके पकड़े जाने का दुख था।
पूण्य का फल सुना! वीरवती। राजाने गारक को सूली (पर चढाने का आदेश
दिया है।
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पर कैसे सरिख। राजा के सिपाही कभी
न मिलने देंगे।
तूकहना, मैं इसकी पत्नी हूँ।
क्या? निर्दयी राजाको तरसन आया कि ऐसे ताकतवर, जवान) आदमीको सूली परचढ़ा रहे
तू किसी तरह उससे मिलले!
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लेकिन मैं जिसकी पत्नी हूँ. वो सेठ दत्त भी | आज ही आ गया है। उसे भी आज ही आना था। हुँह
वीरवती सारे दिन विचलित रही।
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यह हाल देखकर सेठ दत्त चुप हो गया ।।
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तुम कुछ परेशान हो क्या ?
सेठ दत्त की परवाह क्यों करती है। उसे तो तूने पहले ही वश में कर रखा है। वो कभी) तेरे बारे में सन्देह न करेगा।
नाराज न
हो ! ठीक है, जो हो सके वही करो।
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क्या हो गया है आपको ? जबसे आए हैं- यही पूछे जा रहे हैं कि परेशान हो, उदास हो ... क्या करूँ, मेरा चेहरा ही ऐसा है ।
उधर रात होते ही गारक को सूली पर चढ़ा दिया गया।
हाथ कैसे सब लोग सोएं और मैं अपने प्रेमी के शव से जाकर लिपट जाऊं
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आधी रात हुई ....
मुझे इस रहस्य का पता लगाने के लिए इसके पीछे चलना होगा।
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पुण्य का फल
आगे-आगे चलने वाली वीरवती को लगा कि कोई पीछा कर रहा है।
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अरे ये मैं क्या देख रहा हूँ? अपने पति को छोड़कर तलवार लिए वह कहां जा रही है ?
वीरवती को लगा कि कोई पीछे आ रहा है।
कौन है ? पर यहां तो कोई नहीं है ।
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अचानक वीरवती ने पीछे की ओर करके तलवार चला दी, जिससे पीछे आ रहे सहसभट चोर की उंगलियां कट गयीं, पर उसने उफ तक न की
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जैन चित्रकथा वीरवती को फिर संदेह हआ कि कोई आ | वीरवती फिर अंधेरे में आगे बढ़ी तो सामने ही शमशान था रहा है, किन्तु अन्धेरे में कुछ भीन देख सकी। जहां गारक को सूली पर चढ़ाया गया था।
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अभी जिन्दा है,कुछ सांसबाकी है।
वीरवती सूली परचढे गारक केपास पहुंची तो देखा कि वह अरे येतो
नहीं प्रिये पलक झपका रहा मुझे बचाने का प्रयत्न है। ये तो जिन्दा है। व्यर्थ जायेगा।समय नष्ट मुझे तुरन्त इसे न करो। मैं कुछ ही पल बचाने का प्रयत्न का मेहमान है। मेरीतुम्हाकरनाचाहिए।
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पुण्य का फल
एक पेड़ के पीछे छिपा सहस्रभट यह दृश्य देख रहा था।
देर मत करो प्रिये! आओ, अपने मुख का पान मुझे दो और सुखी बनाओ।
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किंतु गारक तो सूली पर आर था। वहां वीरवती कैसे पहुंचे ? तब दीखती ने वहीं पड़े मुर्दो को उठाकर एक के ऊपर एक रखा
| अब वह मुर्दों पर बढ़कर कारक के मुख के पास पहुंच गयी मारक ने उसके होठों का चुम्बन किया
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जैन चित्रकथा अचानक एक मुर्दा लुढ़का औरवीरवती गिर गयी। किंतु उसके होठ कट गए।
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अपने कटे हुए होठों वाले मुंह को कपड़े, से छिपाकर वीरवती वहाँ से भागी।
सहस्रभट चौर फिर उसका पीछा करने लगा।
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वीरवती घर आयी और अपने पति के पास खड़ी होकर चिल्लाने लगी।
दौड़ो-दौड़ो इस पापी ने मेरे होठ काट लिए।
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पुण्य का फल
वीरवती का चिल्लाना सुनकर आस-पड़ोस के लोग आ गए और उन्होंने सेठ दत्त को बांध लिया।
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सवेरा होने पर सेठ दत्तको राजा के सामने पेश किया गया।
महाराज! इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी के होंठ काट डाले हैं।
हां,महाराज! यह बहुत दुष्ट है। इसने मेरे होठ काटकर मेरी सुंदरता बिगाड़ दी है।
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तब लो ये बहुत बड़ा अपराधी है। ठीक है! ले जाओ इसे सूली
पर चढ़ा दो।
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जैन चित्रकथा सहसभट राजदरबार में सुंदर कपड़े पहनकर उपस्थित था। उससे राजाका अन्याय न देखा गया।
ठहरिए महाराज। इस व्यक्तिको मृत्युदण्ड देने से पहले मेरी बात सुनने
DD की कृपा करें।
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यह कौन है? अवश्य ही यह कोई भगवान का भेजा दूत है जो मुझे पुण्य कर्मों का फल देने आया है। वरना यहां मेरी बेगुनाही सुनने वाला
कौन है!
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कौन हो तुम? क्या कहना
चाहते हो?
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यह सब बता. कर तुमने बहुत अच्छा किया, अन्यथा आज एक बेगुनाह व्यक्ति फांसी)
पर चढ़ जाता।
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और फिर सहसभट ने सारी कथा सच-सच सुना दी।
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पुण्य का फल
सिपाहियों सेठ दत्त को छोड़ दो, और इस कुल्टाको पकड़ लो। इसका सिर मुंडवा कर,नगर में घुमाओ और फिर
फांसी पर लटकादो।
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धन्यवाद भाई! तुमने आज मुझे इस कुल्टा के जाल से
बचा लिया।
नहीं भाई में चोर अवश्य है,पर आज यह पुण्यकर्म करके मैं भी अपने पाप से मुक्त,
हो गया।
सच है, पुण्यकर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते। वे हमारी रक्षा भी करते है और हमें उचित अवसर पर
उनका फल भी मिलता है।
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सहका
जैन चित्रकथा मालवा में घटगांव नामक एक समृद्ध नगर था।
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- अभयदान का कथा
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AN और धमिल नामक एकनाई रहता था।
यहां देवलि नामक एक कुम्हार रहता था।
एक दिन---
भाई घर्मिलमैंने मिट्री के बर्तन बच-बेचकरबहुत धन कमा लिया है। सोचता हूँ उसे किसी अच्छे कार्य में लगाऊ
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देवलि भाई! तुमने तो मेरे मन की बात जान ली। मैं भी यही सोच
रहा था कि क्या करूं?
अभयदानकीकथा
हम जो भी करें,उससे मानव कल्याण होना चाहिए।
हां मैं भी इसबात से सहमत हा
तो क्यों न हम दोनों मिलकर एक धर्मशाला बनवा दें, जहां मुनि-तपस्वी भी रह सके अपने यहां ऐसी कोई धर्मशाला
है भी नहीं।
अच्छा सुझाव है मित्रालो कलसेही काम शुरू करदो।
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जैन चित्रकथा देवलि और धर्मिल के प्रयत्नों से कुछ ही दिनों में वहां एक सुन्दर धर्मशाला बनकर तैयार हो गयी।
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दिन...
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आइये मुनिराज ! इस धर्मशाला में आप विश्राम करें और जब तक जी चाहे
यहां रहें।
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मुनिराज धर्मशाला में रह कर पूजा- तप करने लगे
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फिर एक दिन धर्मिल, एक साधु को लेकर आया ।
आइये साधु महाराज ! आप यहां मेरी बनवाई धर्मशाला में विश्राम करें।
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अभयदान की कथा किंतु जब धर्मिल ने वहां मुनिराज को देखा तो उसको बड़ा क्रोध आया। मुनीमजी! आपने
मैनें नहीं। ये तो देवलि किसकी अनुमति से इस जीने मुनिराज को यहां ठहराया कमरे में मुनिको
है। मेरे लिए तो आप दोनों ही ठहराया है?
धर्मशाला के मालिक हैं।मैं उन्हें
कैसे रोक सकता था?
नहीं। धर्मशाला में, मेरी अनुमति के बिना कोई नहीं ठहर सकता। देवलि कौन होता है?
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किंतु..
इसके बाद गुस्से से भरा हुआ धर्मिल मुनिराज के पास गया।
मुनिराज! आपको यहां (ठहरने का कोई अधिकार नहीं है। आप कृपा कर यहां से इसी समय चले जाएं।
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जैन चित्रकथा
देवलि की बात देवलि जाने। मुझे
यह कमरा इसी समय खाली चाहिए !
आप स्वयं चले जाएं तो अच्छा है, वरना मैं आपको धक्के मारकर बाहर निकाल दूंगा,
मुनिराज ने अपना कमंडल उठाया और बाहर एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गए ।
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क्रोध न
करो! मैंने जाने
के लिए मजा तो नहीं
किया। मैं अभी चला
जाता हूं, पर तुम
शांत रहो।
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आइए साधु महाराज। आप इस कमरे में विश्राम कीजिए !
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मुनिराज पेड़ के नीचे बैठे रहे। रात में उन्हें मच्छरों ने बहुत काटा, पर वह शांत भाव से सब सहन करते रहे।
तभी मुनीमजी आए
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सवेरे देवलि धर्मशाला में आया तो मुनिराज को न देखकर परेशान हुआ। मुनिराज कहां गए? कहीं वह नाराज होकर चले तो नहीं गए। पर ऐसा संभव, नहीं लगता।
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मुनीम जी ! कल जो मुनिराज यहां ठहरे थे, वह अचानक कहाँ चले गए?
स्वामी क्या कहूं? मेरे लिए तो आप भी स्वामी हैं और धर्मिल भी। कल शाम धर्मिल जी एक साधु के साथ आए थे। वह मुनिराज कॉ देखकर बहुत क्रोधित हुए !
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लेकिन क्यों ?
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वहां!
यह तो वही जानें। किंतु उन्होंने मुनिराज का बहुत अपमान किया। मुनिराज शांत भाव से सुनते रहे। धर्मिल ने तब उन्हें यहां से चले जाने को कहा।
जैन चित्रकथा
क्या ? धर्मिल का यह साहस? उसने मुनिराज को निकाल दिया
पर मुनिराजगए। कहां?
सामने वृक्ष के नीचे वह बैठे हैं।
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। हां, क्योंकि यह (धर्मशाला मुनियों के
लिए नहीं है!
मुनिराज के अपमान और कष्टों की बात सुनकर देवलि क्रोध से भर गया। तभी धर्मिल आ गया।
धर्मिल! तुम्हारी ये मजाल कि मेरे अतिथि,मुनिराज को धर्मशाला से तुमने निकाल दिया।
मत भूलो कि इस धर्मशाला पर आधा हकमेरा
भी है।
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उससे क्या होता हैं? यहां वही ठहरेगा, जिसे मैं चाहूंगा।
अभयदान की कथा नहीं। जिसे
यह नहीं मैं चाहूंगा,वही
होगा। ठहरेगा।
यही
होगा!
धर्मिल और देवलि का क्रोध बढ़ता गया। दोनों मारपीट करने लगे।
दोनों में इतनी जबरदस्त मारपीट हुई कि दोनों ही मर गए।
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जैन चित्रकथा अपने कर्मो और क्रोध में एक दूसरे की हत्या करने का और धर्मिलने शेर की योनि में जन्म लिया। पापलेकर वे पशू योनि में गए। देवलि ने सूअर योनि में जन्म लिया।
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ये दोनों एक ही जंगल में रहते थे।
एक दिन दो मुनिराज कहीं से आए और जंगल की गुफा में ठहरे।
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अभयदान की कथा उन्हें देखकर,सुअर को अपना / पूर्व जन्म अगले दिन वह गुफा द्वार पर आकर बैठ गया।उस समय पूर्व जन्म याद हो आया। में मैंने भी मुनि
मुनिराज उपदेश दे रहे थे। सेवा का वृत लिया था।
मुनिराज के उपदेशों से मेरा कष्ट निवारण होगया।
किंतु तभी उसे दर से शेर की गन्ध आयी।
तो इसका अर्थ है किधर्मिल जो शेरका रूप है। उसे यहां मनुष्य होने कीगन्ध लग गयी।
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जैन चित्रकथा उधर मनुष्य की गंध पाकर दहाड़ता हआ शेर चला आ रहा था।
जो भी हो। मुझे (इन मुनियों की रक्षा तो
करनी ही है।
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सुअर,मुनियों की रक्षा करना चाहता था और शेर उन्हें रवाना चाहता था।
दोनों मुनि शांतभाव से तप करते रहे।
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शेर ने आते ही सुअर पर आक्रमण किया।
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सुअर भी तैयार था। उसने अपने दांतो मैं शेर को दूर फेंक दिया।।
अंत में दोनों ने प्राण त्याग दिए ।
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किंतु शेर फिर झपटा और दोनों में युद्ध शुरू हो गया ।
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Vikrant Patnt JHALRAPATAN
जैन चित्रकथा
दोनों मुनि बाहर आए ----
ओह! इन्होने इस जन्म में भी आपस में लड़
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सुअरने मुनि रक्षा का वृत लिया हुआ था उसे पुण्यफल स्वग मिला।
और शेर ने हत्या करने की इच्छा की इसलिए उसे नरक मिला
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आपके परिवार के लिए अति ही उपयोगी साहित्य
जैन चित्र कथा की प्रकाशित कृतियां
२८. पारसनाथ २६. भावना का फल ३०. भगवान राम ३१. आओं बच्चों गाये गीत
सुनो सुनाएं सत्य कथाएं अनमोल कथाओं का प्रकाशन
१. तीन दिन में २. भाग्य की परीक्षा ३. त्याग और प्रतिज्ञा ४. आटे का मुर्गा ५. करें सो भरें ६. कवि रत्नाकर ७. चमत्कार ८. प्रद्युमन हरण ६. सत्यघोस १०. सात कोडियों में राज्य ११. टीले वाले बाबा १२. चन्दनवाला १३. ताली एक हाथ से बजती रही १४. सिकन्दर और कल्याण मुनि १५. चरित्र चक्रवती १६. रूप जो बदला नहीं जा सकता १७. राजुल १८. स्वर्ग की सीढ़ी १६. मुनिरक्षा २०. मुक्ति की राही २१. महादानी भामाशाह २२. प्रतिशोध २३. अभय कुमार २४. चेलना की विजय २५. पद्मावती देवी २६. गाये जा गीत अपन के २७. बाहुवली
१. भगवान मल्लिनाथ २. महाबली बरांग भाग-एक ३. महाबली बरांग भाग-दो ४. तीर्थ कर विमल नाथ ५. जीवन्धर का राज्य पद ६. कुमार जिनदत्त ७. पांच पाण्डव ८. पाण्डवों का अज्ञात वास ६. बरांग १०. बरांगी की जीत ११. शकाहार का माहल्म्प १२. अहिंसा की जीत १३. अदि ब्रह्मा भाग-१,२,३,४ १४. भगवान पार्श्वनाथ १५. भावना का फल १६. भगवान राम १७. बाहुबली १८. सत्यत्व कथा १६. दान का फल २०. नन्हें मुन्नों के गीत ।
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जैन चित्र कथा के आगामी प्रकाशन १. आदिनाथ
२. अनोखा त्याग
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Vikrant Patni
JHALRAPATAN
३. चारुदत्त
४. मृगावती ५. नेमीनाथ
६. विम्बसार की विजय
७. स्वर्ग तेरे आगन में
८. संजयन्त मुनि
६. तीर्थकर ऋषभदेव
१०. आचार्य कुन्द कुन्द
११. नाग कुमार
१२. अकलंक स्वामी
१३. जीवन का रहस्य १४. मृगसैन धीवर
१५ जीवन्धर स्वामी
१६. रेवतीरानी और प्रतिकर मुनि १७. बजसैन
१८ जम्बू कुमार
१६. देवी अंजना
२०. चारित्र ही मंन्दिर
२१. महावली बरांग भाग एक
२२. महाबली बरांग भाग दो
२३. बेताल गुफा
२४. तीसार नेत्र
२५. हरिषेण चक्रवर्ती २६. नारद और पर्वत
२७. सम्राट बिम्बसार
२८. केरल की राजकुमारी
२९. पुण्य का फल
३०. सोलह कारण भावना
३१. दशलक्षण पर्व
३२. क्षमा दान
३३. क्रोध का फल
३४. महासत्ती नीली
३५. सुकौशल मुनि
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३६. सुभौम चक्रवर्ती
३७. राजा सगर
३८. राजा का नगर प्रवेश
३६. एक चोर
४०. नारी की शक्ति
४१. सम्राट चन्द्रगुप्त
४२. अमृतफल
४३. अनोखा चोर
४४. आचार्य विधासागर
४५. आचार्य परम्परा
४६. आचार्य संमतभद्र स्वामी
४७. तीर्थराज सम्मेदशिखर
४८. बाड़ा बाबा
४६. महाराज श्रेणिक
५०. दान का फल
५१. मनुष्य की कीमत ५२. आचार्य माघनन्दि
५३. धूले वा
५४. अन्तरिक्ष पारसनाथ
५५. बर्तनों की बाबड़ी
५६. सोने का पर्वत
(केशरयानाथ)
५७. गजकुमार मुनि
५८. कमल श्री
५६. साधना का फल ६०. धन का लोभी
६१. सोने की ईटें
६२. एक रात में परिवर्तन
६३. सीमंधर स्वामी
६४. रोट का फल
६५. मुनि निन्दा का फल
६६. खांपड़ी को ठोकर
६७. चमत्कार का फल - लालप मंन्दिर
६८. तिरवाल वाले बाबा
६६. मोतियों का दान
७०. पानी में मीन प्यासी ७१. सिहंद्वार
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________________ आप से कुछ कहूँ जैन आगम साहित्य प्रथमानुयोग में, संसार की श्रेष्ठ कहानियाँ का अक्षय भंडार भरा है। चारित्रता, नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, विनयगुण, धैर्य, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता, व्रत उपवास तपस्या आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर शिक्षाप्रद रोचक कहानियों में से चुन चुन कर सरल भाषा शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का सर्व प्रथम प्रयास हमने किया था जो काफी प्रगृति पर है। ही इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और जीवन मूल्यों से आपका सीधा सम्पर्क होगा। Vikrant Patni JHALRAPATAN निवेदक प्रकाशक आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला जैन चित्र कथा आप पढ़े तथा दूसरों को पढ़ाये