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દિલ્હી તારા
સિદ્ધાન્ત ટટ . તારકુથી પ્રેમ ભેટ.
श्रीविजयधर्मसूरिंगुरुभ्यो नमः । 033333333333:033339332236
॥ अहम् ॥
प्राकृत मार्गोपदेशिका त भारत
कर्तावानिवासी
जयपुर |
पंडित, वहेचरदास जीवराज.
0ec3c38eeceeeeeee333333123133232cececceo
प्रकाशकश्रीयशोविजय जैनग्रंथमालाना व्यवस्थापकमंडळ तरफथी -शेठ प्रेमचंद रतनजी... तथा DELISTED
मा. श. फामा
3003c38ec2329cíclicecotiesbazaresche
भावनगर
वीर सं..२४४६
सर्वहक्क स्वाधीन. द्वितीयावृत्ति. ५०० प्रत.
स. १९१९
किंमत रु. १-४-.
2910390233:209033333330
Page #2
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AN
-
वडोदरा-शियापुरामां, श्री लुहाणामित्र स्टीम प्रिन्टींग प्रेसमां, विट्ठलभाइ आशाराम ठक्करे प्रकाशक माटे छापी प्रसिद्ध
- कर्यु. ता. २५-७-१९१९.
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आ श्रीकैलाससागरसूरि मानEिEL HERO ferikodaes धारा सप्रेम भेंट ता. .... अपनी
प्रथमावृतिनी प्रस्तावना :
जा
साक्षरो!
... जेम संस्कृतभाषा पवित्र अने सनातन-मानवामां आवे छे, तेवीज़ रीते- प्राकृतभाषा पण पवित्र अने प्राचीन छे, जो के सांप्रत । संस्कृतभाषा सरलताथी शीखवा माटे घणां अक साधनो नजर पर आवेछे, परंतु प्राकृतभापा शीखवा माटे सिवाय हैमव्याकरण वीजें संपूर्ण सुन्दर साधन मळतुं नथी, अने आ युगना युवानो ‘गोखवू ते मगजमारी छे' अम मानी ते व्याकरण सांगोपांग जोइ शकता नथी, तेथीन दिन प्रतिदिन आ प्राकृतभाषा लुप्तप्राय थयेली जोवामां आवेछे, परन्तु हवेथी ओम न थवा पामे अने केवल गुजराती शीखेला विद्यार्थिओपण प्राकृतभापा सरलताथी शीखे, ते माटे आ लघु पुस्तक तैयार करवामां आव्युं छे.
आ पुस्तकने तैयार करवामां, तेनी भाषा सुधारा माटे अने प्रेमकॉपी तैयार करवा माटे श्रीमान् मास्तर रायचन्दमाई कसलचन्द भाईए तथा ग्रुफ विगेरे गोवामां बीना साक्षरोसे पण मने घणी सारी सहायता आपेली छे, ते माटे तेओ पूज्योनो आ स्थले ९ सान्तःकरण उपकार मानुछु. यद्यपि पुस्तक लखतां सावचेती राखेली होवा छतां पण ‘सहभूर्भ्रान्तिदुर्वारा' ए वाक्य मूनब कोइ पण स्थले साक्षरोनी नजरे
.भूलेलो. .देखाउं, तो. तेओ. मने क्षमा करशे अने मने फरीथी भूल : : न थवा माटे सूचना करशे तो तेओनो हुं आभार मानीश.
वीरवर्ष २४३८. ) प्राकृतभाषोपासककार्तिक कृष्ण अष्टमी
बेचर जीवराज. श्रीजैनयशोविजयसंस्कृतपाठशाला.
बला. वाराणसी.
• (काठियावाड).
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PEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
निवेदन ।
प्राकृत भाषाना वधता जता अभ्यासवें आ साक्षात प्रमाण छे के-आ मार्गोपदेशिकानी अमारे बीजी आवृत्ति बहार पाडवानी ज़र पडीछे. आशा छे के-आवीन रीते आ मधुर अने मूळ . भाषांना अभ्यासनो विकास उत्तरोत्तर वधारे ने वधारे थतो रहेशे. दिलगीर छीए के कागळोना हदपार वघेला भावोना समयमांज. अमारे आ आवृत्ति छपाववी पडेली होवाथी आ वखते. किंमतमा न छूटके थोड़ो वधारो करवो पज्यो छे.
यशोविजय जैनग्रंथमाला ऑफिस ) - हेरीसरोड--भावनगर.. . . . . प्रकाशक,
. ता. १२-७-१९. )
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.. अनुक्रमणिका
gar.
विषय. मंगलादि . . . साधारण सूचना अने वर्णमाला.. वर्तमानकाळना त्रणे पुरुषना एकवचन, धातुओ; तेने लगता · नियमो, प्राकृत, गुजराती वाक्यो. वर्तमानकाळना त्रणे पुरुषना बहुवचन-बीजं पूर्ववत्, धातुओ अने वाक्यो. स्वरांन्त धातुओ; तेने लगता नियमो, संधिना नियमों अने वाक्योः. ९ · प्रश्नो अने उपसर्गो.
प्रथमा विभक्ति; अकारांत; इकारांत, उकारांत पुंलिंगतियां ... नपुंसक; अव्यय अने वाक्यो.. चालु शब्दो; बीनी विभक्ति अने वाक्यों. चालु शब्दो, विशेषणो, तृतीय विभक्ति अने वाक्यो.. ....' :. २१ चालु शब्दो, चतुर्थी; पंचमी, षष्ठी, अने वाक्यो:. : . चालु शब्दो, सप्तमी, संबोधन भने वाक्यो. . ३४,
सारांश (पूर्वोक्त शब्दनां सर्वविभक्तिनां रूपो.) तथा प्रश्नो.., . ३९ -: संख्यावाचक शब्दो, अन्ययो, आकारांत पुंलिंग. .. ....... .१२ संपूर्ण आज्ञार्थ, विध्यर्थ, शब्दो, धातुओ; तत्संबन्धिः नियमोः
..अने वाक्यो. धातु; शब्दो अने वाक्यो. स्त्रीलिंग, आकारांत; इकारांत, उकारांत, उकारांत शब्दो, प्रथमा ।
तथा द्वितीया विमक्ति, परचूरण शब्दो, धातुओ:मने वाक्यों..१३
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( ६ )
विषय.
तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, संप्तमी, संबोधन, चालु शब्दो, धातुओ अने वाक्यो.
सारांश ( पूर्वोक्त शब्दना वधां रूपो ) तथा सवाल. भूतकालना सघळा प्रत्ययो धातुओ, शब्दो अने वाक्यो. धातु, ऋकारान्त शब्दोनां रूपाख्यान अने वाक्यो. भविष्यकाल, क्रियातिपत्तिना सचळा प्रत्ययो धातुओ, शब्दो
अने वाक्यो. धातुओ, शव्दो भने वाक्यो.
सवालो.
कर्मणि, भावे प्रयोग, अपवादि धातुओ, शब्दो अने वाक्यो. हेत्वर्थ कृदन्त, संबन्धक मूत कृदन्त, वर्तमान कृदन्त, कर्मणि भूत : कृदन्त, अनियमित कृदन्त, शब्दो, धातुओ अने वाक्यो... ८६.. सवालो.
९०
प्रेरकभेद, तेने लगता सामान्य विशेष नियमो, धातुओ, शब्दो
अने वाक्यो.
९१ :
चालु - प्रेरक भेद, तेथी थता कृदन्तो, धातुओ, शब्दो अने वाक्यो.. ९६.
१००
सवाल.
केटलाएक कृदन्त तथा तद्धितना प्रत्ययो शब्दो धातुओ अने
वाक्यो.
नकारांत शब्दो, तेने, लगता प्रत्ययो अने तेनां रूपो, बीजा शब्दो, धातुओ अने वाक्यो.
.
•
सवाल .
सर्वादि शब्दो, बीजा: शब्दों, धातुओ, सर्वादिना त्रणे लिंगनां रूपो अते वाक्यो.....
..: .......
पानुं
•
५८
६३;
६५:
.७०.
७३
७८ ·
. ८१ :
८२
१०१
१०६
१११
. ११२
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विषय.
किं शब्द, तेने लगता त्रणे लिंगना नियमो, तेनां रूपो, शब्दो, . धातुओ अने वाक्यो. यद्, तद्-शब्द, तेने लगता सर्वलिंगी नियमो, तेनां रूपो, बीजा . शब्दो, धातुओ अने वाक्यो. अदम् शब्द, तेने लगता त्रणे लिंगना नियमो, तेनां रूपो, वीना ___शब्दो, धातुओ अने वाक्यो. इदम्-शब्द, तेना नियमो, रूपो; वीजा शब्दोधातुओ अने वाक्यो. १२७ एतद्, युष्मद्, अस्मदनां वधां रूपो, तेना नियमो, वीना शब्दो, ___धातुओ अने वाक्यो. संस्कृत शब्दोथी प्राकृत शब्दो बनाववाना नियमो. १३७ समासाख्यान अने शब्दो. उपदेशजनक प्रकृत श्लोको (गाथाओ) 'एक प्राकृत अधूरा कथा, लेखकना पूज्योन नामोल्लेखन तथा
ग्रंयसमाप्तिनी प्रार्थना. शब्दकोश.
१४१
શ્રી તારાબાઈ આયજી સિદ્ધાન્ત ટ્રસ્ટ
તરફથ્રી સપ્રેમ ભેટ.
.
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॥ अहम् ॥ श्रीविजयधर्मसूरिगुरुभ्यो नमः । प्राकृतमार्गोपदेशिका।
:. सिद्धत्थं सिद्धत्यांगयं गमिअमोहकोहसन्दोहं।
भासासमूहविबुहं विबुहबुहनयं जिणं वीरं ॥१॥ संवण्णुं कलिकाले आयरिअं हेमचन्दभगवन्तं । सत्थविसारदजइणायरिअं गुरुं धम्मसूरिन्दं ॥२॥ कुणन्ति विग्धनासं जिणमुहसुहमंडवनडीसमाणं । सुअदेव अ सुद्धं अमञ्चमहणिजपयजुगलं ॥३॥ सँड्ढाजुत्तं धम्मे पिअरं जीवरायमुत्तमं मा। वन्धवं हरिसचन्दं मह विन्नाणदाणनिआणं ॥४॥ सायरं वन्दिऊणं वुच्छं पाययमग्गोवदेसि। वालाणं वोहत्थं गुरुमुकिवाए मन्दपवरो ॥५॥
(कुलयं)
-
१ वीतराग श्रीवारभगवानने नमस्कार.
२ कलिकालसर्वज्ञ प्रभुश्रीहेमचन्द्राचार्यने तथा पूज्यपादगुरुश्रीशास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरिने वंदना.
३ श्रीश्रुतदेवताने प्रणमन.
४ पूज्य श्रीपिता तथा माताने तथा परमपूज्य उपकारी ज्येष्ठवंधु हर्षचन्द्रभाईने प्रणाम..
५ लेखक पोतानी लघुतापूर्वक अधिकारी, प्रयोजन तथा अभिधेयनुं सूचन करेछे.
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(२) साधारण सूचना..
_१ अहीं लखाता दरेक नियमो श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित सिद्धहेम
व्याकरणने अनुसारेज जाणवा. प्राकृतमा (संस्कृतमां जेम थाय छे तेम) द्विवचननो प्रयोग थतो नथी, परंतु तेने बदले 'वे' संख्यानो वाचक 'द्वि' शब्द
जोडी बहुवचनमा प्रयोग थायछे. __३ प्राकृतमां चतुर्थी विभक्तिने बदले षष्ठी विभक्ति वपरायछे, परंतु
कोइ ठेकाणे चोयी विभक्तिनुं एकवचन संस्कृतनी तुल्य पण
थायछे. ४ संस्कृत शब्द माहेला जोडाक्षरो प्राकृतमा विशेष नियमोयी
फारफेर कर्या सिवाय वपराता नथी. ५ 'अस् (थर्बु )' धातुने छोडीने प्राकृतमा दरेक धातुओनी
सरखी प्रक्रिया होवाथी अहीं गण, आत्मनेपद तथा परस्मैपढ़ संबंधी विभाग करवामां आवशे नहि.
वर्णमाला. प्राकृतमां वपराता मूलाक्षरो नीचे प्रमाणेः
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ.
व्यञ्जनक्, ख, ग, घ, ङ, च्, छ्, ज, झ्, , , , , इ, ण, त्, थ्, द्, ध्, न्: ५, फ, व्, भ, म्;
. य, र, ल, व्, स्, ह.
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बोल्लू - बोलवं. सोल्लू - रांधवं. जाणू जाणवु. हणमाखं. :
( ३ )
पाठ १ लो.
वर्तमान काळ;
एकवचनना प्रत्ययो -
-
पुच्छ— पूछ. गरिहूं— निंदा करवी. जेम् जमवुं.
१ पुरुष, मि.
२ सि, से.
३
13
१, इ,
इ, ए.
धातु - .....
तोड़-तोडं.
वीहवीj. पिज्जू - पीव्रं .
पडू पडवं.
. देक्ख — देखवं. छज्जू - शोभवं.
१ दरेक व्यञ्जनान्त धातुओने दरेक काळना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाढता पहेलां विकरण' प्रत्यय 'अ' उमेरवामां आवेछे, जेमकेबोल्लू + अ +इ = बोल्लइ.
.
::
२ पहेला पुरुषना 'मि' प्रत्ययनो पूर्वना 'अ' नो 'आ' विकल्पे थावले. जेमके - गरिह+मि गरिहामि, गरिहमि.
३ ज्यारे धातु विकरण द्वारा अकारांत थयो होय अथवा मूलथीज 'अकारान्त होय त्यारेज बीजा तथा ' त्रीजा पुरुपना 'से' तथा 'ए' प्रत्ययों लगाडवामां आवे छे. प्रत्युदाहरण-वा+सि वासि, वा+ इ-वाह.
४ वर्षमान काळ, भविष्यकाळ, आहार्य तथा विध्यर्थना प्रत्ययों
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( ४ )
अने वर्त्तमान कृदन्तमां आवता दरेक प्रत्ययोनी पूर्वना विकरणना 'अ' नो 'ए' विकल्पे थायछे. जेमके बोल्लेइ, बोलाइ. ५ धातुओ पछी आवेला वर्त्तमानकाळ, भविष्यकाळ, आज्ञार्थ तथा विध्यर्थना तमाम प्रत्ययोने ठेकाणे 'ज' भने 'जा' एवा वे आदेशो विकल्पे थाय छे. जेमके वोलेज, वोल्लेजा, वोल्लइ. ६. 'ज' भने 'जा' नो पूर्वना 'अ' नो 'ए' नित्य थाय छे'वोल्लू' धातुना त्रणे पुरुषनां एकवचननां रूपो
१ पु० वोल्लेमि, वोल्लाभि, बोल्लेज, वोल्लेजा, वोल्लुमि. २ पु० बोल्लेखि, बोल्लसि; बोल्लेसे, बोल्लसे, वोल्लेज, बोलेना. ३ पु० चोल्लेड, बोलाइ, बोल्लेए, बोल्लए, बोलेज, बोल्लेजा.
जाणेमि ।
वीहसि ।
नवेमि ।
सोलेन ।
तोडे ।
छजामि |
पिज्जसे ।
जिव, जीव-जीवबुं. चयू -- छोडं.
नव्--नमवुं.
वाक्यो
देक्खेमि ।
जेमेसि |
पडसि ।
देखे ।
छज्जई
जेमामि ।
पढड़ |
धातु
1
चयसे ।
हणमि ।
चल
डहामि ।
पुच्छेजा !
गरिहामि ।
जीवसि ।
चल्— चाल.
डहू— बाळबुं. *अस्थवुं.
भूतकाळना प्रत्ययाने छोडीने दरेक काळना ग्रत्ययोनी साथे अस् घ्रातुनुं 'अस्थि' रूप थायछे, पण 'सि' प्रत्यय साथे 'अस्' नुं रूप 'सि' ज थायछे, तथा 'मि' प्रलय साथै 'अस्' नुं रूप 'म्हि' विकल्पे थायछे तेमज बहुवचनना 'मो' सने 'ग' प्रलयनी साथे 'लस्' हं रूप 'हो' तथा 'ए' विकल्पे थायडे,
"
:
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( हुँ) बीउंछु. (ते) मारेछे.
( ते ) जमेछे.
(ते) चालेछे.
(हुं ) चालुंलुं.
(ते) बीएछे.
(तुं ) पूछेछे.
(ते) पडेछे.
(9)
गुजराती वाक्यो -
(हुं ) बलुंडं.
(ते) छोडेछे.
( हुं ) बोलु.
( ते ) छे.
(तुं ) जाणेछे,
(ते) जाणेछे:
(तुं ) नमेछे.
(तुं ) जीवेछे.
(ते) देखेछे.
पाठ २ जो.
द्विवचनवाळा वाक्यनुं प्राकृत करवा माठे प्रथमा तथा द्वितीया
विभक्तिना 'द्वि' शब्दनां रूपो आपीए छीए
(हुं.) जाएंलुं. (ते.) रांधेछे.
( तुं ) छे.
( डुं ) हुं.
( ते ) बळेछे.
(तुं ) शोभेछे.
(अमे) छीए.
(तुं ) बीएछे.
दुण्णि, विण्णि, दोण्णि, वेण्णि, दुवे, दो, वे.
जेमके - दुवे नविमो - अमे वे नमीए छीए.
वर्तमानकाळ ( चालु )
बहुवचनना प्रत्ययो -
१ पुं० मो, मु, म.
२ पु० इत्था, ह. ३ ५०. न्ति, न्ते, इरे.
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गच्छू-जत्रुं. नस्सू - नाशं थवो.
सिज्ज्-सिद्ध थवुं.
गेह-ग्रहण कर, ले.
मुज्झ-मुंझावं, पेला थ.
जुन्नू -लडं.
नच्चिरे ।
पूसिम ।
वीहामो ।
चयित्था |
नचेह |
गेहे ।
दहेज्जा ।
( ६ )
धातु
नच्च-नाच.
बुज्झ्-जाणवुं.
पूस-पोषण करवुं. वेद-वींटवं.
फास्- स्पर्श करवो, अडकवुं.
वन्दनमन कर.
'वाक्यो
नच्चिमो ।
वेदन्ते ।
जाणाम ।
वे पुच्छिमो ।
मुज्झित्था |
गच्छन्ति ।
वुज्झेज्जा |
नस्सामो ।
सोलिरे ।
जुज्झिमो ।
नविमो |
दो बोलामो ।
सिज्झेज्ज |
जीवेज्ज |
१ प्रथम पु० ना बहुवचनना प्रत्ययो पर रहेता पूर्वना 'अ' नो 'आ' तथा 'इ' विकल्पे थाय छे. जेमके नञ्चामो, नविमो, नञ्चमो.
२ ज्यारे स्वर पर होय त्यारे पूर्वनो स्वर लोपायछे. नश्च+इरे= तखिरे. • आ नियम अमुक स्थळेज चपराय छे. माटे वापरनारे प्रयोग उपर भ्यान आए.
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(७),
धातुःकह ~~-कहे. तर-त. निन्द्-निंदवू. सुण-सांभळवं. कुण, कर-कर. निण-नितबु. सूसू-सूकावू. चिण्–एकटुं करवं. रूस्-रोप करवो.. ।
वाक्यो(अमे) पालीए छीए. (तेओ) सूकायछे. (तमे) लो छो. | (तेओ) वे नाचेछे. (अमे) जाणीए छीए. | ( अमे.) कहीए छीए. (तेओ) पडेछे. (तमे) तोडोछो. (तमे) वींटोछो. (तेओ) स्पर्श करेछे. (तमे) देखोछो. (तेओ) जीवेछे. (तमे) एकटुं करोछो. (अमे) करीए छीए. (तेओ) सांभळेछे. (तमे) छो. (अमे) मुंझाइए छीए. | (तेओ) पीएछे. (तेओ) जीतेछे. (तमे) चे शोभोछो. (अमे ) लडीए छीए. (तेओ) वे सांभळेछे... (तेओ) नमेछे. । । (तेओ) तरेछे. । ( अमे) निंदीए. छीए. (तेओ) रांधेछे.. . . . (तेओ) लेछे. ... ... ( अमे) रोप करीए छीए. (तमे) वे मुंझाओछो.
-
-
-
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सुमर - याद कर. हिन्दू - छेदं.
पुणे - पवित्र कं. - स्तुति करवी.
वच्चू - ज.
लहू - साफ कर. कुज्ज्-क्रोध करवो.
थुणिमो | लुणह ।
पुणिमो
चच्चामु ।
मच्चिम |
छिन्दिमु ।
भिन्दिरे ।
(<)
पाठ ३ जो.
धातु -
कुज्झन्ते 1.
गण्ठन्ति ।
गज्जामु ।
सुमरिमु ।
वे नवह |
[ अमे ] गुंथीए छीए.
[ तेओ ] शुद्ध करेछे.
[ अमे ] सिंचीए छीए.
लुहाम |
दुवे सिञ्चन्ति ।
[ तेओ ] स्तुति करेछे.
[ अमे] कोपीए छीए.
लुण्- काप, लवं
गण्ठ्- गुंथवुं.
वाक्यो
[ अ ] नमीए छीए. [तेओ ] स्मरण करेछे.
गज्ज्–गाजबुं.
भिन्द्-भेदवुं, तोडवुं. सिञ्च्-सिंचनुं. मच्च् – मढ़ करवो, हर्षकरवो.
पडिमो ।
दो देखिरे ।
पुच्छन्ति ।
बोल्लह ।
वीहन्ते |
जाणिरे ।
हणन्ति ।
[ तेओ ] जायछे.
[ तमे ] हर्प करोछो.
[ हुं ] कापुंहुं.
[ ते ] सांभळेछे.
[हुं] थाउं.
[ अ ] जीवीए छीए. [ तेओ ] वळेले.
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________________
(९) [तमे ] पडोछो. . . . [ अमे ] निंदा करीए छीए. [अमे] मारीए.छीए. [तुं ] तरेछे. . [९] वींटेंडं. | [हुं] वीउछं. [तमे] वे तरोछो. [तमे] क्रोध करोछो. [ तमे ] पवित्र करोछो. [अमे] देखीए छीए. [अमे] पूछीए छीए. . [] शुद्ध करुंछु. [तेओ ] गाजेछे. [ ते ] वे नमेछे.. [तमे ] रांधोछो. . [हुं] पीउँछु. [तेओ ] शोभेछेः [ ते ] वांदेछे.
पाठ ४ थो. झा-ध्यान करवू.
जा-जवं. मिला-म्लान थy, करमावू. होथg. दा-देवू, आपq.
धा-दोडबु. खा-खावं.
वा-वावं. चिइच्छ-चिकित्सा करवी. गा-गावू.
१ अकारान्त सिवायला स्वरान्त धातुओने विकरण प्रत्यय 'अ'
विकल्पे लागेछे, उदाहरण-होइ, होइ. २ स्वरान्तं धातुओ पछी आवेला वर्तमानकाळ, भविष्यकाळ,
आज्ञार्थ तथा विध्यर्थना सधळा प्रत्ययोनी पूर्व, ज' तथा 'जा' एवा आगमो विकल्पे मूकवामां आवेछे. जेमके-होजा, होजाइ,
*होज, होजा. . . ३ 'खा' तथा 'धा' धातुओने बधा काळना बहुवचनना प्रत्ययो
लागतां तेओने बदले अनुक्रमे 'खाद' तथा 'धाव' वापरवामां आवेछे. . .. * ( जूओ पाठ १ नियम ५ गो ).
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. . . संधिना नियमो. . १ प्रारुतमां अंतरंग (एटलेके एकज पदनी अंदर वे स्वरो लाथे ।
आल्या होय तोपण) संधि थतो नथी, किंतु बहिरंग (एटलेके चे पदोनो बच्चे) संधि विकल्पे थायछे. उदाहरण-विलम+
आयवो-विसमायवो, विलमआयवो. २ भिन्नपदमां पण इ, ई, उ, ऊ पछी विजातीय स्वर आवे तो __ संधि थतो नथी. जेमके-हरी+उंघए. ३ भिन्नपदमां पण ए, ओ पछी कोइ पण स्वर आव्यो होय तो
तेनो संधि थतो नथी. जेमके-रामो+अच्चइ. ४ क्रियापद पछी कोइ पण स्वर आव्यो होय तो तेनो संधि थती
नथी. जेम-होइइह, होइ इह.
धातु
अच्च-पूनर्बु. जग्ग्-जागg. उंबू-उंघg. वीसर-भूलचु. जम्म-जन्मकुं.
वड्ढ-वधg. रुव-रोवू. तोल्-तोळg. भमङ्-भमg.
वाक्यो
झाइ। होजह । खाअसि। जासे । उंघिरे । वीसरामि। वामु।
चिइच्छसे वान्ते । गाइत्था । मिलामि । जग्गन्ते । सिञ्चिमो। रुबह ।
।
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देन्ति ।
भमडेजा वड्ढन्ते ।
होजा. झाअन्ति। .
होजह । जम्मसि।
अच्चसे। जन्ति ।
जग्गह। संयुक्त व्यञ्जननी पूर्वना दीर्घस्वरनो प्रायः हूस्व थायछे जा+न्ति • =जन्ति; दा+अ+न्ति-दा++न्ति-देन्ति-दिन्ति.
(अमे ) बे ध्यान करीए छीए. । (हुं) पीउँछु. (तेओ) वे गायछे.
(तुं) भूलेछे. (तमे) बे जाओछो. (तेओ) भमेछे. (तेओ) वधेछे.
(तमे) वे पूछोछो. (अमे) बे करमाइए छीए. (तेओ) पेदा थायछे. (अमे) उंघिए छीए. (अमे) बे जाणीए छीए. (तेओ) वे पूछे.
(तेओ) छोडेछे. (तुं) सींचेछे.
(हुं ) बलुछु. (तमे) वे जीतोछो. (तेओ) चे मुंझायछे. (ते ) नमेछे.
(अमे) वे वीइए छीए. (तेओ) याद करेछे. (तेओ) वे ग्रहण करेछे. (तेओ) वे रांधेछे.
(ई) आपुंछु. (तमे) वे दोडोछो.
(तेओ) गरजेछे. (अमे) जीवीए छीए.
ऊपरना चार पागेमांना केटलाएक प्रश्नोः-. प्राकृतभाषामां वपराता स्वरो तथा व्यंजनो गणी बतावो, तथा बचनो केटलां छे, ते कहो.
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(१२) २ होअइ, वोल्लेइ, खाभए, ते रूपोनी अंदर वे स्वर साथे होवा
छतां संधि केमन थयो? ३ क्या धातुओने विकरणप्रत्यय नित्य लागेळे, तथा क्या धातु
____ओने विकल्पे लागेछे, ते वतावो. ___ ४ होइ + अच्छेइ, बोल्लन्ते + उंघन्ति, अहीं भिन्नपदोमां स्वर
संधि केम न थयो ? ५ प्रथम पुरुषना एकवचनना 'मि,' तथा बहुवचनना 'मो,' 'मु,'
_ 'म,' प्रत्ययोनी पूर्वना अकारनुं शुं थायछे ? ६ 'ज' तथा 'जा' आ वे, आदेशरूपे तथा आगमरूपे क्या
वपरायछे ?. __७ अस्, खा, दा, हो, लुण् आ धातुओनां केटलांक रूपो लखो.
८ वा (दोडवू ) धातु इरे प्रत्यय पर छतां केधुं रूप थाय ?.
उवसग्ग. उपसर्ग धातुनी पूर्व आवी घणुं करीने धातुना असल अर्थमां न्यूनाधिक्य करी विशेष अर्थ वतावेछे. मुख्य उपसर्ग नीचे भूजवः१ अइ- हद वहार; अइवोल्लेइ-ते हद वहार बोलेछे. २ अणु- पाछळ, सरखं, अणुगच्छइ-ते पाछळ जायछे, अणुकरइ
ते अनुकरण करेछे. ३ अहि- ऊपर, अहिगच्छह-ते ऊपर जायछे, ते मेळवेछे, एटले
जाणी जायछे. ४ अहि- तरफ, पाले; अहिगच्छिन्जा-तेओ तरफ जायछे, तेयो
पासे जायछे. ५ आ-सुधी, उलटुं, आगच्छइ-ते आवेछे. ६ शव, ओ- नीचे, दूरः अवतरइ, ओतर, नीचे जायछे, उतरेछे;
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(१३) ७ 3-ऊंचे, *उग्गच्छई-उंचे जायछे, उगेछे. ८ उव, ओं, ऊ- पासे, उवपडइ, ओपडइ, ऊपड़इ-पासे पड़ेछे. ९ णि, नि- नीचे, हमेशां निपडइ-नीचे पडेछे. णिथुणइ-निरंतर
स्तुति करेछ. . . १० प- आगळ; पजाइ-आगळ जायछे. ११ पडि- सामु; पडिवोल्लइ-सामु बोलेछे, १२ परा- सामुं, उलटुं, पराहोइ-सामोथायछे, पराभवकरेछे (हरावेछे)
पराजिणइ- पराजय करेछे. १३ वि- विशेष, नहि, विपुणइ-विशेष पवित्र करेछे. वियुंजइ
वियोग करेछे. १४ सं- एकठा, साथे; संचलइ-साथे चालेछे.
inde
पाठ ५ मो.
प्रथमा विभक्ति.
१ अकारान्त नाम.
प्रत्ययों
एकवचन. पुंलिंग. ओ नपुंसकलिंग. म् ।
। अरिहंतो. वणं.
अनेकवचन. आ. . इं, ई, णि. अरिहंता. वणाई, वणा', वणाणि.
* ( पाठ ३० नियम चारमा (अ) जूओ) + (जूओ पाट २. नियम २.)' . '
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अम
पूज्य, राग- '
आइरिअ आचार्य, गणनो स्वामी. / चन्द-चंद्रमा.
नाम (पुंलिंग) ___ अरिहंत 1
। हरिस-हर्प. अरुहंत
*नयण-आंख. अरहंत । विपरहित देव.
निव-राजा, नृप. आयरि
समुद्ददरियो. ___ अज्ज-वैश्य, वाणीओ.
बुह-डाह्यो माणस. उवन्झाय
हत्य-हाथ. ओज्झाय उपाध्याय, पाठक. । पवण-वायरो, पवन. उज्झाय
आइच्च–सूर्य, आदित्य. लोअ-लोक.
सग्ग-स्वर्ग. खमासमण-साधु. जीव-जीव. काउसग्ग-शरीरनो त्याग, कायोत्सर्ग. विबुह-देव. धम्म-धर्म.
| इन्द-इन्द्र.
परपुरुष.
१नपुंसकलिंगवाळा नामोनी पहेली तथा वीजीविभक्तिनाबहुवचननी पूर्वना इस्व स्वरनो दीर्घ थायछे. जेमके- वणाई, वारीई, महूई, महूइँ, महणि.
- (नपुंसकलिंग) मत्यय-माथु.
राईव-कमल, राजीव. पाव-पाप.
मंगल-पवित्र क्रिया. नाण
वण-जंगल, वन. ज्ञान. णाण
वण-धन, दोलत. दसण-श्रद्धा, सम्यक्त्व.
मित्त-मित्र. * प्रातमा 'आंख' वाची दरेक शब्दो विकल्पे पुंलिंगमां चापरी शकायछे.
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.
चरण-चारित्र. वयावच्च-सेवा. खित्त-क्षेत्र, शरीर. वत्थ-वस्त्र.
. मुह-सुख.
मुह-मुख, मोढुं.. फल-फळ.. नयण-आंख. .
-
-
२ पदने अन्ते मकारनो अनुस्वार नित्य थायछे. परन्तु तेनी पछी कोइ स्वर आन्यो होय तो तेनो अनुस्वार विकल्पे थायछे. जेमके
धणम्-धणं. चणम् अस्थि-वणं अस्थि, वणमथि.
वाक्योअरिहंतो पुणइ। . धम्मा पूसन्ति । बुहो बुझइ। लोओ टुणइ । दुवे वणाई इहन्ति । नरो धाइ। उज्झायो वोलइ । . दुण्णि हत्था चिणन्ते । समुद्दो गजिजा। गरा जीविरे। इन्दो जिणइ ।
निवो खाअइ । . नयणाई देक्सन्ति । पावं सूसइ । नाणं अस्थि । राईवाइँ छज्जन्ति । वत्थं पडइ। मत्थयं नवइ। मंगलं होइ। खित्तं नस्सइ । हरिसा होन्ति । . पवणो वाइ ।
चांदो शोभेछे. राजाओ वादेले. . . . आचार्य पूछेछे... कमलो करमायछे.
वाणिओ तोळेछे. शरीरनो त्याग' थायछे. सूर्य उगेछेः . . .. ये मित्रो स्मरण करे..
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शरीर वधेछ. साधुओ जाणछे. माणसो निंदेछे.
धर्म पवित्र करेछे.
वे कमलो पडेछे.
देवो तजेछे.
एकवचन
२. इकारान्त तथा उकारान्त नाम.
प्रत्ययो ---
पुंलिंग.
नपुंसकलिंग. म्
जलही
भाणू
( १६ )
दहिं
महुं
वे माणसो रांधेछे.
डाह्या माणसो जीतेछे.
मार्थं सूकायछे..
हाथ देछे.
पाठक जमेछे.
बहुवचन
णो, अओ, अउ, ई.
इं, इँ, णि.
जलहिणो, जलहओ, जलहउ,
जलही.
भाणुणो, *भाणओ, भाण्ड, भाणवो भाणू.
दही, दही, दहीणि. महूईं, महूइँ, महूणि.
3
पुंलिंग तथा स्त्रीलिंगना इकारान्त, उकारान्त, शब्दोनो स्वर प्रथमाना एकवचनमां दीर्घ थायछे. पुं० सुविही, भाणू, बुद्धी, घेणू.
अन्त्य -
स्त्री०
इकारान्त तथा उकारान्त नामोनां रूपो, प्रत्ययो विगेरेनी बावतोमां मळतां होवाथी उकारान्तनां रूपो पण साधेज आपवामां आवेछे, पुंलिंगमां तफावत मात्र पटलोज के प्रथमना बहुवचनमां
* ( लूओ पाठ २ नियम २ )
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( १७ )
'अवो' प्रत्यय वधारे लागेछे तेमज प्रथमा तथा द्वितीयाना बहुवचना 'ई' प्रत्ययने बदले 'ऊ' लागेछे
भाणवो (प्र० नुं ), भाणू (प्र० द्वि० नुं ) बहुवचनं.
सुविहि- नवमा तीर्थंकरनं नाम.
सरयरवि - शरदऋतुनो सूर्य .
. सरयससि - शरदऋतुनो चन्द्र. धरणीधरवइ - मेरुपर्वत, चक्रवर्ती.
तिअसगणवइ - इन्द्र.
नरवइ - राजा.
घणवइ - शेठ, धनवान..
मुणिव - मुनिराज .
दुंदुहि - देवताइ बाजुं.
मुअगवइ - शेषनाग .
जोइसवासि - ज्योतिक देव
अच्छि - आंख.
महु - मध.
न - नहि.
नाम [ पुंलिंग ]
3
( सूर्यविगेरे ).
विमाणवासि - वैमानिक देव.
रिसि
इसि
}स
सत्तु - शत्रु.
असि - तलवार.
साधु.
हरि - इंद्र, सिंह. जलहि- समुद्र.
निवइ - राजा.
भाणु - सूर्य .
अच्छि - आंख.
तरणि- सूर्य.
(नपुंसकलिंग )
( अव्यय )
|
वारि - पाणी.
च-नक्की.
!
•
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(१८)... .
वाक्योसरयससी छज्जइ।
दुवे रिसिणो नवन्ति । धरणीधरवउ जुज्झन्ति । सत्तुणों कुज्झन्ति । नरवणो वंदिरे। .. • वारि डहइ । तिअसगणवई जिणइ ।
महइँ पडन्ति । धणवई कहेज़ । . दहिमथि। इंदुही गजन्ति ।
दुण्णिअच्छीइंच देक्सन्ति । मुअगवई चलइ ।
सुविही न कुज्झइ । तरणी ममडे ।
तलवार कापेछे. वे इंद्रो जायछे. . समुद्र वधेछे. सूर्य पूजेछे. शरदऋतुनो चंद्र दोडेछे. राजा जीवेछे. ज्योतिष्क देवो गायछे. ।
वैमानिक देवो नाचेछे. ऋषिओ जमेछे. धनवानो ऊंचता नथी. मुनिराजो ध्यान करेछे. मध सुकातुं नथी. अरिहंतो क्रोध करताज नथी. डाह्या माणसो याद करेछे.
पाठ ६ हो. द्वितीया विभक्ति.
१. अकारान्त नाम. एकवचन..
बहुवचन. लिंग म्
ए, आ.
अरिहंते, अरिहंता, नपुंसकलिंग- प्रथमा प्रमाणे.
अरिहंतं.
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(१९),
नाम (पुंलिंग) वीर-चोवीसमा तीर्थकर, योद्धो. | विणय-विनय, नम्रता. दुक्खक्खय-दुःखनो क्षयं.' सावअ-श्रावक लोगविरुद्धच्चाअ-लोकथी- पण्ण-बुद्धिमान माणस.
विरुद्धको त्याग. ) मुक्ख-मोक्ष. मुत्त-मोक्षनो जीव.
सीस-चेलो, शिष्य. जलण-अग्नि.
सिंघ-सिंह. पाहाण-पत्यर.
थूण 1. संख-शंख.
चोर.
थण इंगाल-अंगारो.
पुत्त-दीकरो. भगवन्त-ज्ञानवान, पूज्य.
जणय-बाप, पिता. भवसायर-संसाररूप समुद्र अंत्र-आंवो. नमोक्कार
सीह-सिंह..
मिच्च-नोकर. सावगधम्म-श्रावकनो धर्म (वारव्रत). | पाय-पग. मणुअ-माणस.
. पुरिस-पुस्य.
नमस्कार.
नमुक्कार
. (नपुंसकलिंग): तत्त-तत्त्व, स्वरूप.
सिव-कल्याण, मोक्ष. तण-घास.
चेइअ-देव मन्दिर, नयर-शहेर.
कम्म-कर्म, कार्य.. मंस 1
पायच्छित्त-पापनुं शोधन,
दोगच्च-दुर्गति. सरीर-शरीर.
स्कूल-वृक्ष, झाड.
.
मास
मांस. .
-
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-
(२०)
'वाक्योसंखा गज्जन्ति ।
पवणा वाअन्ति। .. वीरो तत्तं कहेइ ।
पाहाणा पडेजा। पुत्तो जणयं थुणइ।
भिच्चा कम्मं वीसरन्ति । चन्दो पविसइ ।
पुरिसा तत्तं सुमरेज । भगवन्ता भवसायरं तरन्ति ।। रिसी नयरं पुणइ । सीसा विणयं कुणन्ति । सीहा तणं न भक्खन्ति । सावओ सावगधम्म रक्खइ । वीरा दुक्खक्खयं करन्ति । पण्णो भगवन्तं अच्छे । मुणिवइणो चेअं गच्छन्ति । जलणो रुक्खं डहइ ।
नरवई सिवं गेण्हइ । थेणा अम्बं तोडन्ति । वारिं सूसइ । बुहा मुक्खं जन्ति ।
जणो मुहं देक्खड़ । मणुआ पायच्छित्तं करन्ति । इसिणो फलाई जेमन्ति । सिंवा मंसं खादन्ति ।
महूई पिज्जन्ति । मुत्ता जग्गन्ति च ।
हरी सग्गं न चयइ। धणाणि वड्ढन्ति । लोको पापने निन्देछे. । पवनो झाडने स्पशेंछे. ऋषिओ चारित्रने पाळेछे. डाह्या पुरुषो पापने छेदेछे. चोरो दुर्गतिने ग्रहण करेछे. वाणिआओ धन, ध्यान करेछे. वे शिष्यो पगने शुद्ध करेछे. (अमे ) झाडोने सींचीए छीए. दीकराओ रडेछे.
माणसो कमलोने कापेछे. पिता भमेछे. . (तेओ) वे नमस्कार करेछे. वे सिंह मांस खायछे.
शत्रुओ मुंझायछे. (तमे) वे फळ खाओछो. चोर दोडेछे. नोकरो मध पीएछे. (अमे) ज्ञानने एकटुं करीए छीए.
-
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-
-
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वीरो कल्याण करेछे. वृक्षो वधेछे.
वे नोकरो रांधेछे. सिंह गरजेछे. (तमे) वे गूंथोछो.
एकवचन
पुंलिंग- म्.
जलहिं.
भाणं.
+
२. इकारान्त, उकारान्त नाम.
प्रत्यय -
मुणि साधु.
हत्थि - हस्ती, हाथी.. वाहि रोग.
गुरु- धर्मोपदेशक. अन्धु -- कृवो.
जन्तु --- जीव.
थाणु - महादेव.
( २१ )
सन्ति - शान्तिनार्थ तीर्थकरनुं नाम.
(तमे) वे वस्त्रोने वीटोछो. 'उपाध्याय वे शिष्योने धर्म कहे छे.
मुनिराजो धनने तजेछे. ( तेओ) वे वे क्षेत्रने शुद्ध करेछे. (अ) पापने जाणताज नथी.
नपुंसकलिंग - प्रथमा प्रमाणे.
अहिवइ -- स्वामी, उपरी. सारहि सारथी, रथ हांकनार.
नाम (पुंलिंग )
बहुवचन
•
णो, ई. जलहिणो, जलही. भाणुणो, 'भाणू.
अलि-भ्रमर, मधमांखी. अगणि—अग्नि.
दवग्गि- दावानल.
'विहि विधि, नसीत्र. कलि-कजीओ..
:
असणि वज्र . मणिमणि.
मेह मेघ, वरसाद:
फलिह - स्फटिक .
1
निसंस- क्रूर.
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________________
( २२ )
(नपुंसकलिंग) जउ-जतु, लाख. . अररि-कपाट. .. जाणु-साथळ. खाणु-स्थाणु, खीलो.
(अव्यय)
*अपि-पण इच्छ-इच्छ,.
प+विस-प्रवेश करवो. रक्खू-पाळg.
सलह-श्लाघा करवी, प्रशंसा अच्छ-सg.
करवी. अणु+कुण्-अनुकरण क. वि+हर-विहार करवो, फखं. आमाच्छ्-आवq.
सन्नाम्-आदर करवो.
वाक्योहरिणो हणन्ति हत्यि । । दुवे आइञ्चं नविमु। मुणिणो अगणिपि न फासन्ति। | भिच्चा अहिवई अणुकुणन्ति । अली विहरन्ति ।
दुवे अच्छेह । वारि सिञ्चन्ति मेहा ।
मुणिवइणो सिवं च इच्छन्ति । सारहिणो अहिवई सन्नामते। . निसंसा पावं गेण्हन्ति । निसंसो हणिज्ज हरिणो। दो सन्तिमच्चिम । सन्ति सलहेज्ना हरउ । निवई नरा नवन्ति । विही वाहिणो न भिन्दंइ । जंतुणो अररिं करन्ति । हत्थिणोवि सीहं जिणेन्ति । जउं डहइ । विहरन्ति सिंवा।
वारीइँ अन्धु पविसन्ति । * आ अव्यय कोइ पण पदथी पर आव्युं होय, तो तेनी आदिनो अकार विकल्पे लोपायछे; तथा तेनी अंदरनो पकार ज्यारे स्वरथी पर होय त्यारे 'प' नो 'व' थायझे. हरी+अपि-हरीवि, हरीअवि. जलं+अपि-जलंपि, जलमवि.
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________________
मुणिणो कलिं नेच्छन्ति । । असणी आगच्छइ । वो फलि चिणन्ति ।
(
● भमराओ मध खायछे.
१ + 'अ' के 'आ' पछी ह्रस्व अथवा दीर्घ 'इ', 'उ' आवे तो तेओने बदले अनुक्रमे 'ए' अथवा 'ओ' विकल्पे मूकाय छे.
( हुं ) सिंहोने मारुतुं.
:
सारथि रथ अडकेछे.
माणसो तरवारोने इच्छेले.
क्रूर मुनिओ चारित्रने पाळेछे. पाणी अग्निने हछे.
मेघ वृक्षोनुं पोषण करेछे.
वीरपुरुषो नसीबनो आदर
हुं प्रवेश करुं. : (तमे) वे बेसोछा.
ऋपिओ मन्दिरे जायछे.
( २३ )
करता नथी.
'अकारान्त
L
+
खाणुं पढइ |
थां सावआ फासन्ति विन ।
एकवचन
(अ) नगरमा प्रवेश करीए छीए. व्याधिओने इन्द्रो जीतेछे.
(तेओ) वे सांभलेछे.
पाठ ७ मो.
तृतीया विभक्ति.
अकारान्त, इकारान्त तथा उकारान्त नाम.
प्रत्ययो -
सिंहो गुस्से थाय छे.
हाथी गर्जना करेछे.
दावानल वनने वालेछे.
स्फटिक शोभेळे... भमराओ वेसेले.
वे दीकरा वस्त्रने गूंथे. बाप साथलने साफ करेछे.
शांतिनाथ कर्माने छेदेछे.
(अमे) कल्याणने इच्छीए छीए.
(पुंलिंग- एण
नपुंसकलिंग - १,
* धातु सकर्मक होवाथी द्वितीया वापरावी.
बहुवचन हिं, हिं, हि.
""
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________________
( २४ )
अरिहंते. वणेण.
इकारान्त तथा (पुंलिंग - णा
उकारान्त
(नपुंसकलिंग -,, जलहिणा.
अरिहंतेहिं, अरिहंतेहि, अरिहंतेहि.
वणेहिं, वणेहि,
वणेहि.
हिं,
हिँ,
. हि.
35
जलहीहिं, जलहीहि, जलहीहि, भाणूहिं, भाणूहि, भाणूहि.
भाणुणा.
वारिणा. वारीहिं, वारीहि, वारीहि. महूहिं, महूहि, महूहि.
महुणा.
१ तृतीया तथा सप्तमीना बहुवचनना प्रत्ययो लगाडतां पहेलां अन्त्य 'अ' तो 'ए' थाय छे. अरिहंतेहिं; इत्यादि.
२ तृतीयाना, पञ्चमीना 'तो' प्रत्यय सिवायना, पष्ठीना तेमज सप्तमीना बहुवचनना प्रत्ययो लगाडतां पहेलां अन्त्य इकार तथा उकार दीर्घ श्रायछे, जेमके - जलहीहिं, भागूहिं, वारीहिं, महहिं, जलहीओ, जलहीउ, जलही हिंतो, जलही सुंतो, जलहीण, जलहीसु; विगेरे.
३ विभक्त्यन्त कोइ पण नाम ( नाम, सर्वनाम, विशेषण) ने छेडे 'ण' अथवा 'सु' होय तो विकल्पे तेने बदले 'णं' तथा 'सुं' थायछे. अरिहंतेणं, अरिहंतेसुं, अरिहंतेण, अरिहंतेसु.
नाम (पुंलिंग )
भरहेसर - भरतेश्वर, चक्रवत्तनुं नाम । पाइक - पदाति, पाळो, पगे चालनार. कोह - क्रोध. उवहार-भेट, इनाम.
जत्त-यत्न.
सिलोग-लोक,
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________________
दह - दह, कुंड. आतव - तडको .
जिणंद - तीर्थंकर. वाण - तीरं.
सहसागार - सहसाकार.
डसण
दांत.
दसण
डंड
लाकडी.
दंड
डोहल] मनोरथ, दोहद: दोहल
डाह
दाह
वळवं.
धन्न-धान्य, अनाज, इंधण - वळतण. पाणिअ-पाणी.
बल - लश्कर. भूसण- घरेणं. चक्क - चक्र, पैडु.
रयण - रत्न.
मण - मन.
जीविअ - जीवित. जिंदगी.
दारु-काष्ठ, लाकडुं.
पुण्ण- पुण्य.
गेह-घर. 4
( २५ )
}
. कंदप्प - कामदेव.
डंभ :
भ
कपट.
बाहुबलि - भरत राजानो भाइ. पयावइ - प्रजाप्रति, ब्रह्मा.
जक्ख-यक्ष.
जई - यति, साधु . सिहरि - पर्वत, 'शिखंरी. करेणु - हाथी. • महु-दारु, मदिरा. भाणु - किरण
साणु-शिखर: मत्थु - साथवो.
जीवाउ - जीवातु, जीवाडनारूं, औषध. कमंडलु -कमंडळ.
(नपुंसकलिंग ) जन्त - संचो, यंत्र.
वयण - वचन.
सुअ-श्रुत, आंगम, सिद्धान्त.
निलंडण - चिह्न रहित करवु.
रुप्प - रुपुं.
मज्ज - मद्य, दारु.
सुवण्ण-सोतुं .
पुप्फ-पुष्प, फूल.
कम्बु- शंख.
सत्तु - साथवो. पीलु - पीलु.
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(२६)
* (विशेषण) सामाइअवयजुत्त-सामायिक | विअट्टछउम-कपट वगरनो.
तथी युक्त. | वीराय-रागरहित. उज्जोअगर-उद्योकतर, प्रकाश- | समत्त-समस्त, सघळु.
५० करनार. J समत्थिअ-समर्थन करेलुं.
(अव्यय) सह-साथे.
सइ-सदा, हमेशां. . व-अथवा.
विणा-वगर, सिवाय.
धातुप+हर-प्रहार करवो, मारवू. हर-हरण कर. मेल्ल-मेलवू, मूकबुं. | धुणे-कंप, धूण. घड्-घडवू, चेष्टा करवी, बनाव. विढव-उपार्जन करवू. थिप्प-तृप्त थर्बु, धरावं.
भ-भांग. खिव-फेकबु.
चुलुचुल्-फरकg.
वाक्योसावया निलंटणं न कुणन्ति । | चक्केहिं रहो चला।
। निवो दंडेण थेणे हणइ । सरीरं छज्जइ भूसणेणं । जणां धन्नमिंधणेहिं सोलन्ति । निवा बाणेहिं सत्तवो जिणन्ति । मुणिणो सुअं सुणन्ति । कंदप्पं खिवइ वीअरायो वीरो। बुहा वीरं रयणेहिं अच्चन्ति । पवणेण रुक्खाणि चुलुचुलन्ति । पयावई जन्तेण जीवे घडे । नइणो रयणाई न गेल्हन्ति । साहुणो जत्तेणं नाणं विढवन्ति । | भमडेइ उज्जोअगरो भाणू । निसंसा वाणेहिं सीहे पहरन्ति । । बुहा मजं पिज्जन्ति न । ___ * विशेषणने विशेष्यनी जाति, विभक्ति तथा वचन लागेछे.
-
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( २७ )..
सावया पुप्फेहि सन्तिमच्चन्ति । खादन्ति बसणेहिं हत्यिणो सिंवा । दुवे न कुणिमो डम्भं । वयणं न सुणन्ति । थुणन्ति सिलोगेहि साहवो वीरं । अहिवणो रखन्ति घणेण मिचे ।
रथो यत्रो वढे चालेछे. राजा लश्कर वंडे शत्रुओने मारेछे, कुंड तडका बडे कायछे.
मेववढे अनाज वधेछे.
विट्टछउमो बाहुबली समत्तं देक्खड़ |
धणवड़णो न थिप्पन्ति सुवण्णेर्हि रूपेण व ।
हाथीओ मुखंवडे गरजेछे.
जीवोंने ब्रह्मा बनावतो नथी..
सवळा जीवो अनाजवडे शरीरनं ) ( तेओ) पगवडे नाचेछे.
पाळेछे.
+
पत्रो रक्खाई भञ्ज | मेल भरसरो कोहं ।
(अमे) रथ वडे जइए छीए. * जीवनी साथ पुण्य चालेछे. साधु पृण्ये करीने भव समुद्रने
तरेछे.
सिंहो पाणी पीछे. हो कमलोवडे शोभे छे.
( तेओ ) वे वनने वृक्षोवडे
( अमे) पापवडे कंपीएडीए. माणसो हाथ खायछे. शिष्यो गुरुने मायावडे नमेछे. ह्यामाणसो वचनas aधा माण- पृत्रोनी साथ पिता ऋपिओने
जाणेछे.
वांदेछे.
सोनो आदर करेछे. सामायिक व्रतयुक्त श्रावक मनवडे | (तमे) वे लाकडा वडे घरोने पण जीवोने मारतां नथी.
वाळोछो.
(अमे) तपवढे कामदेवने जीतीए
ज्ञानवडे पुरुषो तत्त्वाने जाणेछे. छीए. | (ओ) वे धर्म व जीते.
* सह तथा तेना अर्थवाळा शब्दोनो साथ जोडाएला नामो तृतीया विभक्ति ले ले.
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(२८): (तेओ) वलात्कारे पण मांस । ( अमे.) हर्ष वडे पूछीए छीए.
खाता नथी. (अमे) वे मनवडे ध्यान करीएछीए, माणसो. मंदिरा बडे मुंझायछे. साधुओ हमेशां पगवडेज विहार. * जीव धान्य विना शरीरने छोडेछे. |
करेछे.
पाठ ८ मो. चतुर्थी * षष्ठी तथा पंचमी विभक्ति.
प्रत्ययो
ण, .
-
POPM
-
-
-
एकवचन.
बहुवचन. अकारान्त पुंलिंग । तथा नपुंसकलिंग स.
तो, ओ, उ, तो, ओ, उ, हि
हि, हितो, ०(टुक्)... हितो, सुतो. ___ अरिहंतस्स
अरिहंताण. अरिहंतत्तो, अरिहंताओ, अरिहंतत्तो, अरिहंताओ, अरिहंताउ, अरिहंताहि, अरिहंताउ, अरिहंताहि, अरिहंताहितो, अरिहंता. अरिहंतेहि, अरिहंताहिंतो,
( अरिहंतेहितो, अरिहंतासुतो, अरिहंतेसुंतो. “वण" शब्दना रूपो पण ऊपर प्रमाणे जाणी लेवा. पञ्चमीना बहुवचनना 'ओ,' 'उ' प्रत्यय पर छतां अकारान्त नामोना अंत्य 'अ' नो 'मा' थायछे तेमज 'हि, 'हिंतो' तथा
* 'विना ' नी साथै जोढाएला नामो, द्वितीया, तृतीया अथवा पन्चमीमां वपरायछे.
साधारण सूचना नियम ३ जूओ,
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(२९): 'लुतो' प्रत्यय पर. छतां अन्त्य 'अ'नो 'आ' तथा 'ए' थायछे . पष्ठीना बहुवचनना 'ण' प्रत्ययनी पूर्व 'अ' नो 'या' थायछे.. २, अकारान्त तथा इकारान्त, उकारान्त नामोना पञ्चमीना एक
वचननाणो, त्तो' प वे'प्रत्ययो सिवायंना प्रत्ययों (तथा लुक प्रत्यय) पर छतां अन्त्य स्वर दीर्घ थायछे.
एकवचन
वहुवचन उकारान्त । इकारान्त पुंलिंगर तथा नपुंसकलिंग. णो, स्स " णो, त्तो, ओ. हो
तो, ओ, उ, हितो.
उ, हितो, सुंतो. : जलहिणो, जलहिस्स. जलहीण.'
जलहिणो, जलहितो, जलहितो, जलहीओ, *जलहीलं, जलहीओ, जलहीउ, जलहीहितो. जलहीहिंता, जलहीसुंतो.
'वारि । शन्दना रूपो ऊपर प्रमाणे: भाणुणों, भाणुस्स.
भाणूण. : भाणुणों, भाणुत्तो, भाणूओ, भाणुत्तो, भाणूओ, भाणूड, . भाणूउ, भाणूहितो. ... भाणूहितो, भाणूसुंतो. . 'महुना' पण तेन प्रमाणे जाणवा.
नाम (पुंलिंग). नातपुत्त-महावीर तीर्थकर. कुलिंगि-मिथ्यात्वी. वम्हण-ब्राह्मण.
विहु-चंद्रमा, विधु. डिम्भ-बालक,
मयारि-मृगारि, सिंह. तरु-झाड, वृक्ष, . सूरि-आचार्य, पंडित.
* जूओ नियम २ पाट ७.
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स
(३०) दीव-दीप, दीवो. | मणुअ-माणस. धीर-धीरजवान.
मन्नु-मन्यु, क्रोध. घोडअ, घोड-घोटक, घोडो. विहस्सइ-वृहस्पति, देवनो गुरु. पाणाइवाय-प्राणातिपात, हिंसा. | *वह-वध, घात. पावपबंध-पापनी रचना.
--चंद्र, उवएस-उपदेश.
सिंधु-समुद्र. जलहर-मेव.
झुणि-ध्वनि, शब्द. भत्त-भात, भक्त.
पाणि-हाथ. साहम्मिअ-सरखा धर्मवाळो. वाहु-हाथ. भारवह-मजूर.
उरु-साथळ. संभु-तीर्थकर, शंकर. मउलि-मुकुट. सत्त-जीव, प्राणी.
मणिलाल-विशेषनाम छे. दिअह-दिवस.
विज्जत्थि-विद्यार्थी. अइआर-अतिचार, दोष. मयरन्द-मकरंद. मुसावाय .
मुरुक्ख-मूर्ख माणस. मूसावाय मृपावाद, नूठ असत्य. | विजयधम्मसूरि-विजयधर्म' मोसावाय
नामना जैनाचार्य, नपुंसकलिंग. विजालय-पाठशाला. .
भोअण-भोजन, खावानु. सिंघासण-सिंहासन. धण-पैसो. रज-राज्य.
दुक्कड-दुष्कृत, खराव काम. आसण-आसन, वेठक. सिंग-शींगडुं, शिखर. उज्जाण-उद्यान, वाडी, थाम-बळ, स्थाम. कल्लाण-कल्याण, सारु. लोअग्ग-लोकाग्र, मोक्ष.
. * " वधने माटे" एम चतुर्थी एकवचनमा वोलवू होय त्यारे 'वह' थकी 'भाइ' प्रत्यय विकल्पे लागेछ; वहाई, वहस्स. .
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(३१)
(आप) खीर
दूध.
जोअण-चार गाउ.
अदिन्नादाण-अंदत्तादान, नहिं - सर-सरोवर..
. अपायेलं लेबु ते.
विशेषण, . उवगय-पासे गएलं, पहोंचेलं. . तइअ-त्रीजुं.
ओहरिअमर-अवहृतभर, | चउत्थ-चोथु. .
जेणे भार नीचे उतार्यों छे एवं. गुरु-भारे, मोटुं. पढम-पहेलु. .. | साउ-स्वादिष्ठ, स्वादु. दुइअ-बीजु.
} सुइ-शुचि, शुद्ध... . . . . . ( अव्यय) . ..
| थू-निंदा वाचक.
अम्मो~-आश्चर्य द्योतक. उवरि-ऊपर. किर-निश्चय, नक्की.
*णमो नमो नमस्कार. .
अने.
धातु
पडि+कम्-पार्छ हट्यू. ताड़-मारवू. हरिस्. हर्प पामवो. परिसाम्-शांतथ.. उव+दिसू-उपदेश करवो. खिर-खरबू, झरj. धर-~~धारण करg.
खेड्ड्-रम, खेलg. प+यास-प्रकाश करवो. | सिर्स रज, वनावबुं. . चोर-चोर.
| वो+सिर्-त्याग करवो. प+मज्ज-प्रमाद करवो,चूकबु, भूलचु., .
. .* भा भव्ययंना योगमा आवनार नामने पष्ठी विभाक्ति वापरवी.
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। ३२)
वाक्योवम्हणा हरिसेणंभोअणाय धावन्ति। पुप्फेहिं अञ्चेसि मुक्खाय पढमं पाइको गच्छइ नयराय ।
वीअरायं । हरिसइ निवो उवहारत्तो। दीवो चुलुचुलइ पवणेण । णमो अरिहंताणं ।
साहू पुण्णाय सरीरं वोसिरइ ।
सुहेणं उंघइ नरवइणो तइओ पुत्तो। जणा।
हत्थिणो खेड्डन्ति सिहरीणं सिंगाण सीहेहितो वीहन्ति किर पुरिसा ।
उवरि। जला अगणिणो परिसामन्ति । भाणुणो सिंगं पयासन्ति । वीरो हत्यणं वाणेण च जिणइ
साहुणो सावया च मुक्खं नहि
सत्तणो। हत्थिणो पडन्ति सिंगेसुंतो।
गच्छन्ति विणा दंसणं विणा नाणेण
विणा चरणा च । थूणा निवाणं सुवण्णं रुप्पं च
चोरति विज्जालयस्स मणिलालो विपावा रक्खेड़ जणे नायपुत्तो।
ज्जत्थी अस्थि । खीरं पिजन्ति ओहरिअभरा सिंधुत्तो जलाइ मेहा चोरन्ति ।
भारवहा । गुरुणो मुहत्तो मूसावायं नससिणो किरणाउ उजाणं पयासन्ति।
वोल्लन्ति । कुलिंगिणो वीरं न अच्चन्ति मणे- | चउत्थस्स निणंदस्स नमो।
णवि। | घोडआ पायेहिं उजाणाय धीरा हत्येहि तरंति सिंधुं ।
वचन्ति। अदिन्नादाणं न गेण्हिमो दुण्णि। | समत्ता पावपबंधा पायच्छित्तेण विहस्सई तिअसगणवइणो गुरू
परिसामन्ति । अस्थि। रज्नं विढवन्ति थामाउ अन्जा। * "ने माटे, ने वास्ते” एवा अर्थमां अकारान्त नामो चतुर्थीनां एकवचनमां विकल्ये 'माय' प्रत्यय लेछे. तेमज इकारान्त पुंलिंग 'अये', उकारान्त पुंलिंग 'अ' भने इकारान्त उकारान्त नपुंसक नामो 'गे' प्रत्यय विकल्पे चतुर्थी एकवचनमां लेखे-जिगाय, जिणस्त. हरये हरिस्स. गुरवे, गुरुस्स. वारिणे वारिस इत्यादि.
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દડી તારાબાઈ આર્થીજી સિન્દ્રાન કર
( ३३ ) उद्यानना फूलो तडकाथी करमाय छे. सिंहो तळावमांथी पाणी पीएछे. ... (तेओ)वे चन्द्रमाथी हर्प पामे छे. राजाओ राज्यो- शत्रु थकी रक्षण सूर्यना ताप बडे द्रहोनां पाणी
करेछे. सूकाय छे. (९) धर्मने माटे जीवनो वन समुद्रथी चार गाउ छे.
त्याग करंछ. वरसादथी मजूरो मुंझाय छे. छोकरो वाप पासेथी धन एकळं वे मिथ्यात्वीओ पुत्रने माटे यक्षने . . करेछे..
पूजेछे. / (ते) वाडीमांथी फूलो चोरेछे. . ब्राह्मणोना वाळको हपंथी दूधनी वरसादथी धान्य थायछे.
साथे भात जमेछे. | राजा सिंहासननी ऊपर वेसेछे. क्रोधथी पुण्य नाश पामेछे. चन्द्रथकी नेत्रो हपने ग्रहण करेछे. (तेओ) वे दंडवडे पर्वतना । भमराओ फूलोमांथी शुद्ध मक
शिखरोने तोडेछे. ___ . रन्द पीएछे. __ आश्चर्य ! बे हाथीओ दांत वडे ( अमे ) ज्ञानने माटे गुरुओनो सिंहने हणे छे.
विनय करीए छीए. वीरपुरुषो खराव काम करता नथी. | लोकाग्रे पहोंचेला सिद्धोने नमस्कार. (अमे) उपाध्याय पासेथी सिद्धा- | मूर्खाओ धर्मथी चूके छे.
न्तोने सांभळीए छीए. । पापथी दुःख थाय छे. चोथा तीर्थकरने मोक्षने माटे | विजयधर्मसूरि तत्त्वोने उपदेशेछे.
चित्तवडे सेवीए छीए. (अमे) पापी पाछा हठीए छीए. राजानो दीकरो वळवडे आनन्दने । पर्वतथी अग्नि झरेछे.
सारु सिंहने मारेछे. धर्म दुर्गतिमांथी जीवने धारण (तओ) वे वृक्षो थकी स्वादिष्ठ फलोने
करेछे. सुखने माटे तोडेछे.
.
..?
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(३४)
पाठ ९ मो.
सप्तमी.
प्रत्यय. एकवचन
• बहुवचन __ अकारान्त पुंलिंग (ए, म्मि.
तथा नपुंसकलिंग । -
अरिहंते, अरिहंतम्मि. *अरिहंतेसु. ....... वणे, वणम्मिः . वणे. इकारान्त, उकारान्त मि. पु० तथा नपुं० । जलहिम्मि.
जलंहीसु. भाणुम्मि.
भाणूसु. वारिस्मि.
वारीसु. महुम्मि.
महूसु. . संबोधन. एकवचन.
बहुवचन. . (पुं-ओ, आ, अ.
प्रथमाप्रमाणे. अकारान्त २
(नपुं-. . हे अरिहंतो, हे अरिहंता, हे अरिहंता. हे अरिहंत.
हे वणाई, हे वणाइँ,.
हे वणाणि. * पाऊ. ७ नियम १ जुओ.. + पाट ७. नियम २ जुओ.
हे वण,
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1
इकारान्त पुं-ई, इ. तथा ऊ, उ. उकारान्त नपुं.
हे
हे नही, हे जलहि. हे जलहिणो, हे जलहओ,
भाणू, हे भाणु.
हे वारि
वाणरत्रांदरो. सद- शठ, लुच्चो.
विवाह - लग्न, परणं.
हे महु
किसाणु - कृशानु, अग्नि. किविण - कृपण.
उसह - वृषभ, बलद दुइच-दैत्य.
मुइंग-मृदंग नामनुं वाजूं.
संघार-संहार. सिमिण
सिविण (आर्ष ) सुमिण
( ३६ )
स्वप्न.
छाव. - शाव, बालक. पणाम - नमस्कार.
मंतु - अपराध.
प्रथमाप्रमाणे.
39
प्रथमाप्रमाणे.
नाम (पुंलिंग )
हे जलहउ, हे जलही.
हे भाणुणो, हे भाणवो, 'हे भाणओ, हे भाणउं, हे भाणू :
हे वारी, हे वारी,
हे वारीणि.
हे महूई, हे महूइँ, हे . महूणि.
रसच्चाय - रसनो त्याग.
विश्व - विभव, संपत्ति,
लोह - लोभ.
बन्धु-भाइ, सगो.
सव्वण्णु - सर्वज्ञ..
वुि-रिपु, शत्रु.
जोगि - योगी.
कवि – कवि, कपि. निहि - भंडार. आयर-आदर...
हरगोविन्द - विशेष नाम.
पइ-पंति.
मग्ग-मार्ग.
सिद्धसेन - सिद्धसेन, एक जैन महाकवि.
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कमल-कमल. . घय-घृत, घी. कब-काव्य. पण्ण-पर्ण, पांडु, पातुं. अमय-अमृत, मोक्ष. हिम-वरफ. सुंदर-सौंदर्य, सुंदरता. वइर-वैर, शत्रुता. जूह-यूथ, जथ्यो. जढर-जठर, पेट. अंसु-आंसु, अश्रु. वसु-पैसो.
( ३६ ) नपुंसकलिंग
परत्थकरण-परोपकार. लांगूल-पूछईं. गरल-झेर. छीअ-शुत, छींक घर-गृह, घर. जिणहर-जिनगृह, मंदिर. गहवइ-गृहपति. तितउ-चालणी. विंदु-विंदु, टी. गयण-आकाश, गगन. दुस्सउण-अपशुकन.
विशेषणगेन्झ-ग्राह्य, ग्रहणकरवा लायक. | कम्मटविणासण-आठ कर्मोनो नाश नायब्व-ज्ञातव्य, जाणवायोग्य.
करनार. असुद्ध-अशुद्ध.
| अप्पडिहयसासण-जेनी आज्ञा जगभावविअक्खण-दुनियाना पदा
स्खलना नथी पामती ते. थोने जाणनार. दायय-दायक, आपनार.
मणहर-मनोहर. सच्च-साधु, सत्य,
निळ्-मोटें, ज्येष्ठ. अष्टावयसंविअरुव-जेनी प्रतिमा | जुछ-जुष्ट, सेवाएंलं. अष्टापद पर्वतमा
संथुअ-संस्तुत, स्तुति कराएलं. स्थपाएली छे ते. वुड्ढ-घर९. लार-सार,खालं.
पुट-पुष्ट.
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( ३७) अव्यय
सया-सदा. अज्ज-आजे.
अहो-अधः, नीचे. सणि-शनैः, धीमे धीम. निचं-नित्य.
चड्-चडवू. रम्प–पातलं कर. पद-मणवू. करिस-खेच.
धातु
वह-वहन करवू. मरिस-विचार. सम्+अव+सर्-समवसरवू, आवq.
वाक्योदहम्मि कमलाई उग्गच्छन्ति । । किविणा वम्हणा भोअणम्मि वि उज्जाणम्मि गुणेहिं निठो सव्व
घयं न खादन्ति । ज्णू जिणो समवसरह। । इच्चेहितो नणा वीहन्ति । । जणे तत्तमुवदिसइ नयरे रिसीहिं रिक्षणो मणुआणं कुज्झन्ति ।
जुको हरीहि संथुओ अ वीरो। विवाहे सुहं न जाणिमो दो। आसणम्मि अच्छा तिअसगणवई।। मुणीणं वयणं सच्चं । . मुणी जग्गइ दिअहे। | दइच्चा सत्ताण संघारं कुणन्ति । भारवहा नयरम्भि वयं वहन्ति । | अगणित्तो करिसह जणओ पुत्तस्स विज्जत्थिणो घरे पढन्ति ।
- हत्यं । वणेसुं धावन्ति सिंवा । सिहरिम्मि हिमाणि पडन्ति । मयारीणां जूहं वणम्मि विहरइ ।। बाहुबली भरहेसरेण सह जुज्झइ कम्मढविणासणो नायपुत्तो रम्पइ
। रज्जाय। : णिच्चं जीवाणं पावं । कविणो कवहिं थुणन्ति जिणे ___ मग्गम्मि छावा अहो पड़न्ति ।
... . . . :: . मुक्खाय। पुरिसो घोडअं चडइ । | इसिणो करन्ति रसच्चायं । ...
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( ३८ ) जणा न पिन्जन्ति सिंधुणो खारं वारि पुरिसा पडिक्कमन्ति पावाउं । *धम्मो चिअ गेझो। पडन्ति पण्णाई तरुणो! . मणएहि मणम्मि पुण्णं तत्तं । नायपुत्तो जणाणं मत्थयम्मि नायन्न।
हत्थं मेला। जलाणं निही जलहरो। विजयधम्मसूरीणं मुहत्तो उसहा उपन्ति ।
हरगोविंदो मणिलालो च वंधुणो वसुणे मरिसन्ति ।
उवदेस सुणइ । लोहो दुक्खं देइ जोगीणं पि। | हे पुरिसा ! विजयधम्मसूरी अज्ज बुड्ढो सणिों सणिअंचलइ दंडेणं ।।
नयरं पविसइ ।
नथी | मसाला
me
घरमां पवन वडे सुख थायछे. वांदराओना पूछडाओने वाळको मुनियो स्वप्नमां पण विवाह करता
अडकेछे.
मृदंगनी साथे कवि गायछे. ब्रह्मा दंड वडे धीमे धीमे चाले छे. | छींक वडे अपशुकन थायछे. (अमे) समुद्रमां विष देखता नथी. | पुत्रो पिताने प्रणमेछे. मनोहर वनमां पुरुषो रमेछे. भाइओ युद्ध करेछे. खेतरमा धान्य थायछे. सधळा कविओमा सिद्धसेन सूर्य वडे दिवस शोभेछे. कामदेव महादेवने पण दुःख देछे. | योगी तडकाने ग्रहण करेछे. हाथीओ टोटु मार्गमां दोडेछे. । समूद्रमां झेरछे. इंद्रना कल्याण माटे वृहस्पति | चोरो धन माटे राजाना घर विचार करेछे.
ऊपर चडे छे. वाळकोनी आंखोमां आंसु आवेछे. ) तेओ लोभथी पीलु चोरेछे.
प्रथमछे.
* जे वाक्यमा कोइपण क्रियापद न होय त्यां 'अस्' धातुनो प्रयोग करवो.
+ भावा स्थलमा सप्तमी अथवा षष्ठी विभाक्त वपरायछे. जेमके कवीसु, कवीणं.
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(३९)
.
__मणिलाल फूलो तथा फळोने । ब्राह्मणो पैसा माटे भमेछे. . .
झाडथकी फेंकेछे. | सिंह अग्निथी नासेछे. हे जगना पदार्थने जाणनार वीर! | आकाशमां मेघ गर्जना करेछे.
'अमे नमीए छीए. | देवो अरिहंतोने नमस्कार करेछे. लुचाओ पापथी बीता नथी. (तमे) वे अरिहंतने पूजो छो. . बळदीआओ रथोने वहन करेछे. ।
सारांश. पुलिंगम्मि अयन्तो जिणसद्दो. एंकवचन
बहुवचन १: जीणो.
जिणा. २. निणं.
जिणे, जिणा. ३. जिणेण, निणेणं.
जिणेहि, जिणेहिं, जिणेहिं. १. जिणाय, जिगस्स.
जिणाणं, जिणाण. ५. जिणत्तो, निणाभो.
जिणत्तो, जिणार, जिणाउ, जिणाहि,
जिणाओ, निंणेहि निणाहितो, जिणा. जिणाहि, जिणेहिती, निणाहितो,
जिणासुंतो, जिणेसुतो. ६. निणस्स.
निणाण, निणाणं. ७. जिणे, जिणम्मि. निणेसु, जिणेसुं.
सं०-हे निणो, निणा, जिंण. जिणा.
१. वणं २."
नपुंसए अयन्तो वणसद्दो. .. 1 : 'वणाई, वाइँ, वणाणि
.. . "
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}
सवोधन हे वण.
६. सुविहिस्स. ७. सुविहिम्मि
१. सुविही.
२. सुविहिं.
३. सुविहिणा.
४. सुविहये, सुविहिस्स. ५. सुविहिणो, सुविहित्तो, सुविहीओ, सुविहीउ, सुविहीहिंतो.
@
सं. - सुविहि, सुविही.
१. भाणू २. भाणं
शेष रूपाख्यान पुंलिङ्ग प्रमाणे.
( ४० )
१. वारिं
२.
"3
४. वारिणे वारिस्स
सं हे वारि
३. भाणुणा ४. भाणवे भाणुल्स
·
वणाई, वणाइँ, वणाणि
सुविहि पुंलिंग
सुविहउ, सुविहओ, सुविहिणो, सुविही.
सुविहिणो, सुविही.
सुविहीहि, सुविहीहिं, सुविहीहि ".
सुविहीणं, सुविहीण.
सुविहिणो, सुविहित्तो. सुविहीओ, सुविहीउ, सुविहीहितो, सुविहीतो. सुविहीणं, सुविहीण.
सुविहीसुं, सुविहीसु.
सुविहर, सुविहओ, सुविहिणो, सुविही.
वारि - नपुंसक.
वारी, वारी वारीणि
"3
""
वारीणं, वारीण. वारी, वारीइँ, वारीणि
शेप रूप पुलिङ्ग प्रमाणे.
भाणु- पुंलिङ्ग.
भाणवो, भाणओ, भाणउ, भाणुणो, भाणू.
भाणुणो, भाणू.
भाणूहिं, भाणूहि, भाणूहि.
भाणूणं, भाणूण.
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(४१:) ५. भाणुणो, भाणुत्तो, भाणूओ, भाणुणो, भाणुत्तो, भाणूओ,
भाणूड, भाणूहितो. भाणूड, भाणूहितो, भाणूसंतो. ६. भाणुस्स.
भागूणं, भाणूण. ७. माणुम्मि.
भाणूसुं, माणूसु. सं--हे भाणू, भाणु. हे भाणुणो. भाणओ, भाणवो, भाणउ, भाणू.
मधु-नपुंसक.
महूई, महूइँ, महूणि.
२." सं-हे महु.
" " ४. महुणे महुस्स.
शेप रूप पुलिंग प्रमाणे. विद्यार्थिओने पूछवा माटे सामान्य प्रश्नो. १. पदने अन्ते आवेला 'म्' नुं शुं थायछे १. २. पदान्त 'म्' पछी कोइ पण स्वर आवे तो शं थाय ?. ३. 'अ' तथा 'इ' मळीने शुं संधि थाय ? तेनुं उदाहरण पण आपो. ४. दंडेणं, भाणूणं, हरीसुं; आ रूपोनी अन्दर अनुस्वार कया
नियमथी थयो ?.. ५. “ विना " ना योगमां नामने कइ विभक्तिओ आवे ?. ६. वणाई, महूइँ, दहीणि, आ त्रणे रूपो साधी आपो. ७. "वध" शब्दनु (तादर्थ्य) चतुर्थीनू एकवचन आपो. ८. थू, अम्मो, च, आ अन्ययो कया अर्थमां वपराय छे ?. ९. तितउं, ए रूपमा अ, अने उ नी संधि केम न थइ ?. १०. पातळ करवू, भूलचु, मूकबू, घडवू, पाछा हठवू, खेलबू, आवा __ अर्थ वाळा धातुओनां रूपो लखो. ११. दुंदुहि, सिद्धसेण, वि, मह, तथा वारि शल्दोनां रूपो लखी छायो,
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*एग} एक.
इक दुबे.
+ति--त्रण.
§ चउ-चार.
( ४२ )
संख्यावाचक विशेषणो
छछ.
सत्त - सात.
अठ्ठ-आठ.
नव-नव.
दह-दश.
#1 पंच पांच.
१ दरेक संख्यावाचक शब्दो थकी षष्ठीना बहुवचनमां 'ण' ने वदले 'ह' 'हं,' प्रत्ययो आवे छे. जेमके उन्हं कसायाणं. अव्ययो ( केटलाएक उपयोगी )
अत्तो-अहिंथी, आथी.
अत्थ
एत्य } अहिं.
अज-आज.
अहुणा - हमणां
पिव- पेठे, जेम, जाणे.
कह
कह
.
* एग, इक शब्दनां रूपो, (हवे पछी चोवीशमा पाठमा वताव्या प्रमाणे ) "सव” शब्दनी माफक थाय छे. आ शब्दन रूपो एकवचनमां थाय छे परंतु ज्यारे तेनो अर्थ "भन्य” एवो होय छे त्यारे तेनां रूपो दरेक वचनमां थाय छे. "दु" शब्द ना प्रथमा, तथा द्वितीयामां 'दोणि,' 'वेण्णि,' 'दो,' 'वे' 'दुवे' आ पांच रूपो थाय छे, तथा याकोनी विभक्तिओमां 'दो' 'वे' एवा वे आदेशो थायछे, अने तेनी पछी (पूर्वोक्त इकारान्त शब्दोने लगाढवामां आवता बहुवचनना प्रत्ययो, लगाडवाथी तेनां रूपो सिद्ध थाय छे.
- केम, शीरीते.
+ 'ति' शब्दनुं प्रथमा तथा द्वितीयामां "तिष्णि" रूप थाय छे, तथा वाकीनी विभक्तिओमां इकारान्त शब्दोनी माफक तेनां रूपो जाणवां.
$ "चर" शब्दनां रूपो प्रथमा तथा द्वितीयामां चउरो,' 'चत्तारो, 'चत्तारि' भावा त्रण रूपो धाय छे, तथा वाकीनी विभक्तिओमां उकारान्त शब्दोनां प्रत्ययो लागेछे, तथा पष्ठो सिवायनी विभक्तिओमां पाठ सातमा मांहेलो वोजो नियम विकल्पे लागे छे.
|| 'पंच' थी लइने 'दह' पर्यन्त शब्दोनां रूपो "जिण " शव्दनी माफक धाय से, तेमज बहुवचनमांज थाय छे.
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कया-क्यारे. कत्तो क्याथी. कहि-क्यां. . चिरं-लांवा वखत सुधी. तहि-त्यां. तया-त्यारे.
|.एवं-एवी रीते.
सव्वत्थ-सर्वत्र, सर्व स्थळे. किणो-प्रश्न पूछवामां वपराय छे.. मोरउल्ला-मुधा, फोकट. किर-किल, निश्चय.
पाडिक्क
जण फरीने.
पत्तेयं
एक एक,
पाडिए/प्रत्येक.
तह
तेम.
म.
तहा
जहि-ज्यां.
जह
जेम.
जहा"
वाअथवा
व
अथवा
एक्कसरिअं-संप्रति, चालु काळमां. माई-निषेध अर्थमां वपराय. णवर-केवल, एकळ. इहरा-इतरथा, तेम न होय तो. *इ)
इइए प्रमाणे, इति. +ति एगहुत्तं-एकवार. सयहुत्तं-सोवार. अण्णहा-अन्यथा, . . .
अप्पणो-पोतानी मेळे . | मिच्छा-खोटं, मिथ्या.
जइ-यदि, जो.
सइ-हमेशां. . सुठु-सारी रीते.
मुसा
मूसा मृपा, जूढुं. मोसा
१. दरेक संख्यावाचक शब्दथकी "वार" ऐवा अर्थमा " ,हुक्तं " · प्रत्यय जोडवामां आवेछे जेमके एगहुत्तं. ...
* ' इअ ' अव्यय कोइ पण वाक्यनी आदिमांज वपरायछे.
+ 'ति'. पद थकी परज वपरायछे, तथा पद जो स्वरांत होय तो 'ति' ने बदले 'ति' थायछ. जेम, तहा+ति-तहत्ति.
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(४४) " आकारान्त पुंलिंग नामोनां रूपो. आकारान्त नामो जेवां के गोवा, हाहा इत्यादि शब्दोनों रूपो अकारान्त नामोनी माफक थायछे; परंतु आ नियममां अपवाद नीचे प्रमाणे छ
आकारान्त नाम थकी सप्तमीमां केवल 'मि' प्रत्यय लागेछ, चतुर्थी एकवचनमां 'ए' प्रत्यय लागेछे, पंचमीना एकवचन तथा घहुवचनमा 'हिं प्रत्यय नथी लागतो, तेमज द्वितीयाना बहुवचनमा 'आ' प्रत्ययज लागेछे. तथा वळी तृतीयाना एकवचनमां 'ण' प्रत्यय लागेछ.
गोवा-पुंलिंग.
बहुवचन
एकवचन १. गोवो.
गोवा. २. गोवां. ३. गोवाण, गोवाणं. गोवाहि, गोवाहिँ, गोवाहि. ४. गोवे गोवस्स. गोवाणं, गोवाण. ५. गोवत्तो, गोवाओ, गोवाउ, गोवत्तो, गोवाओ, गोवाउ,
गोवाहितो. गोवाहितो, गोवासुंतो. ६. गोवस्स.
गोवाणं, गोवाण. ७. गोवम्मि.
गोवासु, गोवामुं. सं-हे गोवो, गोवा.
हे. गोवा.
-
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(४६) पाठं १० मो... आज्ञार्थ तथा विध्यर्थ.*
प्रत्ययो:
Colon
एकवचन
वहुवचन १. पु० २. पु० सु, हि. ३. पु०
आ सामान्य प्रत्ययो उपरान्त ज्यारे धातुने छेडे अकार भावेलो होय छे त्यारे वीजा पुरुपना एकवचनमा पजाहि, 'एजसु,' 'एजे आटला प्रत्ययो वधारे जोडायछे. तेमज कोइ पण पुरुषवोधक प्रत्यय लाग्या वगरतुं पण रूप बनछे.
सामान्य रूपो-(वा धातु) (ज्यारे विकरण प्रत्यय नथी लागतो एकवचन
बहुवचन १ पु० वामु.
वामो. २ पु० वासु, वाहि. ३ पुं० वाउ..
वाह..
वान्तु.
बहुवचन
" वोल्ल् " धातु (विकरण 'अ' वालाधातुनां रूपो)
एकवचन १ पु० बोलमु.
वोल्लमो. ___* पूर्वोक्त पाठोनी अंदर आशार्थ तथा विध्यर्थ संबंधां जे काइ नियमो . बतावेला होय ते ध्यानमा राखीने विद्यार्थिओए रूपो बनाववा. .
* आशीरर्थमां पण आ प्रत्ययो चपराय छे.
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(.४६.) २ पु० बोल्लसु, वोल्डेनहि, वोल्लेज्जसु, वोलह.
.. वोलेज्जे, वोल्ल, वोल्लेहि. ३ पु०वोल्लउ.
वोल्लन्तु. (१) आज्ञार्थ करत विध्यर्थमां विशेष एटलोज छे के ज्यारे आज्ञार्थमां विकल्पे 'न' प्रत्यय लागेछे, त्यारे विध्यर्थमां तेने वदले 'जई' लागेछे. जेमके आज्ञार्थ-होज; विध्यर्थ-होजइ. (२) पहेला पुरुपना सघळा प्रत्ययो पर छतां पूर्वना 'अ' नो आ, तथा इ विकल्पे थायछे. जेमके-चोल्लामु, वोल्लिमु, बोल्लमु, बोल्लामो, घोल्लिमो, वोल्लमो.
सं+पज्ज-उत्पन्न थ. सिन्व्-सीवg. उम्मिल्-विकसg. परिस्-वरसवू. आलुख-वळg. पंग-ग्रहणकर. झंड-निसासो नाखवो. उल्लूर-कापy. सिलेस्-आलिंगन करवू. गुंज-हसवू. उसल्-उल्हास पामवो. मल्-मर्दन क. . लोटू-सू. खंड्-तोडधं. णिञ्चा-पोरो खावो. खुम्-खळभळg. डर-बीg.
धातु
पूर-पूरुं कर. पास-देखवू. ढंढोल-ढंढोळg, गवेषणा करवी. मुक्क्-भसवू. भमड्-मम. आयंव-कंपq. हक्क्-निषेध करवो. घुम्म्-कंप. सं+दिस्-कहें. मुसुमूर-तोडg. बुड्ड्-चूड. कम्म–वापर. पउल्-संधg. जूर-झूर, खेद करवो. विरल्ल्-विस्तार करवो. महम-धनुं फेलावं. समाण-पूरुं थर्बु. .
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(४७)
शब्दो पुलिंग. सारमेय-कूतरो. . विलय-नाश. ससहर-चांदो.
दुरायार-दुराचार. सहोअर--भाइ,
| तिहुअण-त्रिभुवन (विशेपनाम छे). सलिलरासि-समुद्र.
पड-वस्त्र, पट. सुमेरु-मेरु पर्वत.
कड-सादडी, कट. हय-घोडो.
ईसर-ईश्वर. वित्थर-विस्तार.
घर-घडो, घट. राहु-राहु नामनो ग्रह, कुंभार-कुंभकार, कुंभार. विसहर-सर्प,
विसाय-खेद. धम्मसारहि-धर्मरथने हांकनार. सरदहतलायसोस-सरोवर, तुसार-वरफ.
द्रह, तलाव, सूकावg. चण्ण-रंग.
पुग्गलक्खेव-पुद्गल क्षेप, कांकइन्दु-चंद्र.
राविगेरेनुं फेंक. उवसाम-शान्ति.
नपुंसक लिंग. कुन्द-मोगरानुं फूल.
पारितोसिअ-इनाम. गोखीर-गाय दूध, गोक्षीर. घणु -मेहुण थुम. विरमण-अटकg.
गीअ-गीत. पणिहाण-प्रणिधान, ध्यान. जस-यश. भय-बीक.
विशेषण
राइअ-रात्रि संबंधी.
वट्टमाण-वर्तमान,
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(१८) सुरविंदपंद-सुरना समूह वडे | वइक्कंत-गएलो, व्यतिक्रान्त.
वांदवा योग्य. | संतिगर-शांतिना करनार. महायस-मोटा यशवाळा. निविस-विष वगरनुं. जावय-जीतावनारा.
पुन्बुप्पन्ना-पहेला उत्पन्न थएला. देवसिअ-दिवस संबंधी.
-
वाक्यो.
हे वीरो ! पावं छिन्दसु। मिच्चा! पउलन्तु भत्तं । हे साहू ! पणिहाणं कुण। मित्त ! मित्तं सिलेसेहि । हे ससहरा ! दिअहो वकन्तो। | जणय ! पारितोसिअं देसु । असचं न बोलेजहि । | थूणो ! समुद्दम्मि बुड्ड। हयस्सोवरि कहं चडेमो । इन्दू ! गुंजसु । कमलाणि ऊसलन्तु।
हे मेहो ! नयरम्मि परिसेजे । हे धम्मसारहि ! दुरायारे भंजेज्जसु। भारवह ! णिचाउ । हे पुत्त ! जणयं वंद।
देव । संकप्पं पूरउ। हे सीसा ! विणयं माई चयह । ईसर ! भिचं पावा हक्कउ । हे मित्ताई! फुल्लाई पासन्तु। कुम्भार ! घडं घड। पाणिभं चय, घयं पिज्ज । किविण ! धणं जणेण न आगच्छइ, हे मिच ! अहिवई मलउ। __अत्तो धम्मम्मि कम्मवेज्जे । हे हरी ! दोणि लोट्टाम। नायपुत्त ! दुःखाई उल्लूर । हे तिहुअण! कव्वं सुणेज्ने। मुणी ! माई जूर । वट्टमाणं आयरिअं अच्चसु । कल्लाणं होउ निच्चं। हे सहोभर ! तत्तं ढंढोल। जइ गोखीरं होजइ तया पिज्जामि।
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. ( ४९ )
(तमे) लांबा काळ सुधी जीवो.
(तुं) कपडुं सीव.
.
(अ) ग्रहण करीए.
यक्ष राजाओं शत्रुओश्री रक्षण
करो.
(ं) झाडथी फळो तथा फूलोने काप.
हे भाइ ! तुं भवसमुद्री डर. हे कूतरातुं स नहि. ब्राह्मणो सुखी जमो. (तुं) निसासो नहि नांख. समुद्र ! तुं शामाटे खळभलेछे. कविओ ! तमे विजयधर्मसूरिना
यशने विस्तारो .
लोकोने सुख उत्पन्न थाओ. पिता ! हुं जमुं ? (तुं) त्यां नाच. (हुं) क्यारे चोरने मारुं ? मैथुनथी विराम कर.
हे श्रावक ! वीरना ध्यानथी भव
समुद्रनेतुं तर. चलाओ, तमे प्रायश्चित्त लो. मनमां शान्ति ग्रहण कर. बधा जीवोनुं हे गुरु ! तुं हमेशां
कल्याण कर.
वाळको गीत गाओ. तुं विपरहित औषधने खा.
7
शान्ति करनार नरो मनुष्योने सुख आपो.
हे माणस ! तुं कविओनुं अनुकरण
कर.
शांतिनाथने मोक्षने माटे पूजो. पंडितो तत्त्वोने विचारो.
त्रिभुवन ! सुखथी भण.
(तमे) नगरमा प्रवेश करो.
(हुं) पितानो आदर करूं ?. ( तेओ) वे शत्रुने जीतो. भगवन् ! मानवना मनने पवित्र कर. (हूं) शान्त थाउं.
(तुं) वनमां रम.
(तमे) गूंथो.
पुण्य वधो.
पाप नाश थाओ.
हे ब्राह्मण ! तुं तृप्त था. वाणिआओ ! तमे मुनिओने पूजो.
हुं गायनुं दूध पीउं ?
भमराओ आवो, अने मोगराना
फूल उपर वेसो.
1
हे शूर ! तुं धनुपोने फेंक. मणिलाल ! तुं सादडी उपर आव
अने सुइ जा.
जीवो संसारमा मा भमो.
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• भमाडू - भंमाडवु. * अणु - हव्- अनुभववुं.
परि+इक्ख्=परिक्ख्-परीक्षा करवी,
पारखं
(५०)
पाठ ११ मो.
धातु -
वट्ट्-वर्तकं.
अणु+रुन्धू- मानं, तावे थवं.'
अविक्ख्। आशा राखवी, अव+इक्ख्=अवैवख् ∫ अपेक्षा करवी.
पेक्खू जोवुं. प+इक्ख पिक्खू J भम् - ममवु. संकू - शंका करवी.
चरण 7 चलणपग.
}
मवनिव्वेअ-भवनिर्वेद, वैराग्य. कम्मल - कर्मनो क्षय.
⋅
णीव - खावाने इच्छवं.
अमुत्त्हावं. आइग्घ्-संघवुं.
व्हा - न्हावुं, स्नान करवुं.
वस रहेवुं.
पमाय-प्रमाद.
महिस - पाडो.
सिआवाअ - स्याद्वाद.
उ-टूट्टू -उठवुं. कम्मू -हजामत करवी. वग्गोल बागोळबुं.
प+सर्-फेलावुं.
पडिक्खू - राह जोवी . वावर - चापखुं.
नाम -- पुंलिंग.
अवराह- अपराध.
विज्ज - वैद्य.
दिणमणि - सूर्य .
सुहि - पंडित.
बइल - चळद.
सयंमुत्रह्मा.
मंजर - मार्जार, विलाडो.
सिहि-अग्नि.
जिणवरवसह - केवलज्ञानिओमां उत्तम अनंग - कामदेव.
वद्धमाण - विशेष नाम छे.
अंगि- शरीरवाळो.
भग - ज्ञान.
विसारय- पण्डित. दीण - दीन, गरीब.
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निआणवंधण - नियाणं बांधवं.. बम्हचेर ब्रह्मचर्य .
ण्हाण स्नान...
असद्दहण - अश्रद्धा.
(११):
नपुंसकलिंग.
काइअ - कायिक, शरीरसंबंधी. वाइअ - वाचिक, वचनसंबंधी.
माणसिअ - मानसिक.
वारसविह-बार प्रकारनं..
वज्झ - वाह्य, वहारनुं.
बीअ - वीजुं, द्वितीय: सुहिअ-सुखी.
खिप्पं - जलदी, क्षिप्र. वाहिरं - बहार...
י
विशेषण -
,पूण-पूजन:
लक्ख-लाख [ संख्या ]. 'सामाइअ - सामायिक ( त्रतनुं नाम).
साहुणो भवनिवे अणुहवन्तु । गुरु! कम्मक्खयं करसु । निआणबंधणं माई कर । जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स इक्को वि नमुक्कारो जणाणं दुक्खं भंजेल ।
पुत | धम्मम्म पमायं नहि करसु ।
'दुहिअ - दुःखी..
अप्प - अल्प, थोडं.
खलपृ-खळं साफ करनार,: गामणि- गामनो नेता.
अव्यय
}
कयपाव - जेणे पाप क छे ते.
हलुअ, लडुअ-हलकुं.
सुह - शुभ, सारं.
वाक्यो
हे हेळ, नीचे.
: :
"
20
निवइ ! जणे अणुरुन्ध | विज्जा दीणाणं वाहिणो वर्ण
,, विणावि उल्लुरन्तु ।
"
कुन्दं आइग्घन्तु सेहिणो. ! वम्हणा, सडणीरवन्तु अवि न कुत्तो भोअण आगच्छइ ।
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________________
(98)
अम्मो ! अणगो वि वम्महो अंगिं संमुं कहं दुक्खं देउ ? | समत्थाणं लोआणं वि वज्यं तवं विणा कहं कल्लाणं होउ ? ।
सहोअर ! तिहुअण ! घरम्मि वस, बाहिरं न गच्छेजे ।
जिणाणं पूअणाय जलेहिं ण्हाणं
करेज्जहि । सुहिआ माणवा दुहिआणं पुरिसाणं भोभणं दिन्तु । सावय ! वारसविहं सावगधम्मं रक्खेज्ज, जत्तो खिप्पं मुक्खो होउ ।
|
(तुं ) बहार आव अने भगवानने पूजवा माटे मणिलाल साथै मन्दिरमां जा.
(तमे) वे जणा स्नान करो. मणिलाल तुं गुरुने पूज, जेथी कल्याण जल्दी थाय.
(ते) नोकर हजामत करे ?. बलदीआओ तथा पाडाओ घासने सारी रीते वागोलो.
हे गुरु ! डुं स्याद्वादने भणुं ?. (तमे) गरीवोने धन आपो.
। गामणी विज्जत्थिणो परिक्खउ । जणय ! मित्तं तिहुअणं पडिक्खेमु । साहूणं चलणाणं पूअणम्मि जुंजह | साहु ! मुक्खाय उट्ठ, पमायं नहि कर । भिच्च ! सेट्ठिणो मत्ययं कम्मसु । विसारय ! जिणाणं वयणम्मि अस
सूर्य तुं शामाटे भमे छे ?. भाइ ! धर्ममां शरीरसंबंध दोपोने शामाटे करेले ?.
दहणं माई कर ।
सिआवाए कहं संकेमो . सुहिणो परत्थकरणाय जीविअं
दिन्तु ।
खलपू ! खित्तं लहसु ।
विजयधर्मसूरि विद्यार्थिओना सुखने माटे जीवित आपो.
पिता ! अमे कल्याणने माटे जीवितनो त्याग करीए. हरगोविन्द ! तुं गुरुना चरणने पूज. ! (हुं) जिनमन्दिरमां जाउं.
हे राजन् ! तुं शत्रुओ साथै लड, ढरे छे शामाटे ?
छोकराओ तमे भणो. हे शंभु | तुं कामदेवने तावे कर. हे चोरो ! तमे सत्य बोलो, जेथी तमे सुख पामो.
(अमे) श्लोक बोलीए. गुरु वधानुं कल्याण करो.
1.
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________________
(GR)
हे वीर ! लोभथी शुं कदापि लाभ | भाइ ! बिलाडाने दूध आप अने तेने
थाय ?
"! पाळ.
हे त्रिभुवन ! तुं पंडितनुं अनुकरण (हुं) सादडीमां सूउं ?.
(ते) नीचे वेसे. (तुं) जीवोने न मार.
कर.
हे इन्द्रो ! तमे वरसादने मोकलो, जेथी लोको सुखी थाय.
पाठ १२ मो.
स्त्रीलिंग.
[ आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्तः ]
प्रथमा तथा द्वितीया.
प्रत्ययां -
१.
نم نه من
२. मू.
१.
एकवचन
२.
5
आ, ०.
म्.
आकारान्त }रम
इकारान्त } मई
उकारान्त } घेणं..
..
बहुवचन. उ, ओ;
O'
11 11 ""
उ, ओ, आ, ०.
35 35 33 51
,
आकारान्त, इकारान्त,
उकारान्त तथा उकारान्स.
दीर्घ ईकारान्तने माटे.
रमाउ, रमाओ, रमा.
"3
39
मईउ, मईओ, मई.
17
""
""
33
घेणूर, वेणूओ, वेणू.
53 33 13
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वहूउ; वहुओ, वहूर. . . .
ऊकारान्त
ईकारान्त ।
सही, सहीआ. " सहिं .
सहीउ, सहीओ, सहीआ, सही.: . . "
" "
१ ज्यारे 'म्' प्रत्यय पर होय त्यारे पूर्वनो स्वर इस्व थायछे. जेम,
रमइत्यादि. २ 'उ, 'ओ' प्रत्यय तथा तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी तथा सप्तमी
ना प्रत्ययो स्त्रीलिंग नामो थकी पर होय त्यारे पूर्वनो स्वर दीर्घ
थायछे. जेम. 'धेणूउ, 'घेणूओ... ३ आ स्त्रीलिंग नामोनी अंदर जे स्थळे कोइ. प्रत्यय,नथी..लागतो
त्यां नामनो अन्त्य स्वर इस्व होय तो ते दीर्घ थायछे. जेमके प्रथमाना एकवचन तथा बहुवचनः तथाः द्वितीयाना बहुवचनमा "घेणू, मई" एवां रूपो थायछे.
नाम (स्त्रीलिंग). मरुदेवा-पहेला जिननी माता । मइ-बुद्धि,
नामं. धूलि-धूळ. गंगा-गंगा.
भूमि-जमीन. तिसला-वीरनी मातानुं नाम. पुददि-पृथ्वी. रमा लक्ष्मी .
दित्ति-तेज, दीप्ति. अम्बा-माता.
सत्ति-शक्ति. माला-माला.
पंति-हार, पंक्ति.. सोहा-शोभा.
साडी-सादी, पहेरवान: वस्त्र,
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________________
पमया-स्त्री, प्रमदा.:... नई-नदी. लज्जा-लाज.
रयणी-रात. अप्पविजा-आत्मविद्या, अध्यात्म. | मणंसिणी-पंडिता. . घेणु-गाय.
सही-मित्र. रज्जु-दोरी.
| सरस्सई-सरस्वती. चंचु-चांच.
भिउडी-भ्रकुटी. तणु-शरीर.
नारी-स्त्री. 'वहू-स्त्री, वधू.
नलिणी-कमलिनी. अज्जू-सासु.
बहिणी-बहेन. '. अलाऊ, लाऊ-तुंबडी.
.:. साधारण शब्दो. वंछिअ, वि०-इच्छेखें.. अयल, विor-अचल... समण, पुं०-साधु.
अरुअ, वि०-रोग वगरनुं. विहंग, पुं०-पक्षी.
चाइ वि०-त्यागी. • पक्ख, पुं०-पांख.
अपुणरावित्ति, न०-जेमां फरीने । 'अणुराग, अणुराय पुं०-प्रीति. : आवतुं नथी ते स्थान- नाम.
सज्झाय, पुं०-स्वाध्याय. कप्पपायव, पुं०-कल्पवृक्ष. . हिअ, न०-सारं.
सिआल, पुं०-शियाल.. दढव्वय, वि०-दृढ छे व्रत जेर्नु. गिम्ह, पुं०-ग्रीष्म ऋतु. अलिअ, न० जूठ.
'सिणेह, पुं०-स्नेह. ' सुहुम (आप); वि०-नानु, सूक्ष्म. | भारह, न०-भरतक्षेत्र.
धातु" प संस्-प्रशंसा करवी. पदा-देवु. । अणु+जाण-आंज्ञा आपवी. । सह-सहे.
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(५६)
लड्-लाम पामवो, मेळव.. खम्-क्षमा करवी. अल्लिब्-आपQ, अर्पण कर.
तर्-शकg. साह-साधg, कहे. हर-हर, लइ जवू.
.
अव्ययसंपइ-संप्रति, आजकाल.
वाक्योअम्बा पुत्तं खीरेण रक्खेइ। । रयणी गच्छइ, दिअहो आगच्छइ । समणो अप्पविजां पढइ। धूलीउ पडन्ति घरस्मि । पुरिसा नारिं सिणेहा देक्सन्ति । दृढन्वयो महावीरो तिसलमंबं विहंगो पक्खेण चला।
___ पसेंसेइ । माणू दित्तिं पदे ।
माणवाणं मई तत्तं ढंढोलइ । संपइ वट्टमाणे जिणे जणा प्रसंसन्ति । नई वहइ । अज्जू वहुं साडिं अल्लिवइ । असुद्धो अणुरागो दुक्खं देइ । दहम्मि कमलेहिं सह नलिणी छज्जा । साडि छिन्दइ अज्जो। मणंसिणी सामाइअम्मि सन्झायंकर साहुणो अणुरागेणं वि अलिअं घेणु खित्तम्मि तणाई खाइ।
न वोल्लन्ति । मुणी तणुं तवेहिं रम्पइ।
अज्जा डंभेणं धणाणि लहन्ति । वहिणी सहोअरस्स मालं देह। साहु ! अवराहं खम । वीरस्स सतिं न जाणामि । घेणू जणाणं दुद्धेणं रक्खेइ । गुरुणो अणुजाणह जत्तो उज्जा- | कप्पपायवो समत्ताणं विबुहाणं
णम्मि गच्छेमु ।। जणाणं च वंछिअंदेह । पमया सुहं देइ ।
संपइ कम्पपायवो जिणाणं धम्मो गुरुणो ! जणाणं हि करह ।
अस्थि । रिसिणो मुक्खं साहन्ति । भारहम्मि खित्ते धणेणं समत्ता अलाई न भंजेजा।
लोआ सुहिआ अत्थि।
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खीनी चांच शोमभूषणसहित पूजामाता सौं जीवा
करो.
(१७) (९) लक्ष्मी महेनतवडे मेळg छु...पहेला जिननी मातानुं नाम मरुस्त्री बहु दुःख आपेछे.
देवी छे. सेथी सासु लाकडी वडे वहुने हणे. | पंखीमो झाड उपर से छे. सरस्वती विद्यार्थीओने सुख आपेछे. | गंगा माता भलं करो. पानाचन्द जिनमदिनमा नाचे छे. । भरतक्षेत्रमा आज काल कल्पवृक्ष
नथी. स्त्रीओ शरीरने आभूषणसहित | धूळ पाणीमां पडे छे.
__ करेछे. | त्रिशला माता सौं जीवोनु कल्याण पृथ्वी धान्य आपेछे थी अमे
. .. . सुखी छीए. लोको लक्ष्मीने पूजे छे. घडू सासुने विनर्यथी नमे छे.. शङ्कर गङ्गाने तथा चन्द्रनं माथामां पण्डित स्त्री पाप करती नथी. :
.... राखे छे. (अमे) सरस्वतीने देखता नथी.. | तेओ बे रत्न माटे समुद्रमा डूबे छे. स्त्री घरमांथी राजाओना मुखने | हाथी नदी तरेछे :
जुझे छे. . गङ्गा अहीं वहे छे. - नदी समुद्रमां जाय छे. . पण्डितो गङ्गाने पूछे, .. लक्ष्मी लोकोना नेत्रोने शांत करेछ. बुद्धि घणां सारा कामो करे. छे. .योगीओ रात्रिने इच्छेछे. मदनथी पीडाला लोको. रात्रिने पंखीओनी.पंक्तिने ब्राह्मण पाळे छे.
पखाणे छे. अरे ब्राह्मण ! महादेवने शा सारु | पुत्र जन्मे छे. . .
__ पूजतो नथी ? | कामदेव बधा जीवोने वश करेछे. आत्मविद्या लोकोने सुख आपेछे. .
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(..६८ ) पाठ १३ मो. स्त्रीलिंग-चाल.
प्रत्ययोतृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी. *एकवचन
बहुवचन अ, आ, इ, ए. (इकागंत पुलिङ्गनी जेवा) । रमाअ, रमाइ, रमाए. रमाहि. रमःहि, रमाहि.
" " , रमःण, रमाणं. भाकारांत , " " " रमत्ता, रमार, ग्माओ,
माहितो, रमासुतो. | " " " रमाण, रमाणं.
J" " " रमासु, रमासुं. - इकारान्त-मई, मईआ, मईइ, मईए. ईकारान्त-सहीभ, सहीआ, सहीइ, सहीए. उकारान्त-घेणूभ, घेणूभा, धेगु, घेणूए. ॐकारान्त-वहून, गर्मा, बहूः, बहुए.
इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्न तथा ऊकारान्त स्त्रीलिङ्ग नामो. ‘ना बहुवचनना सा विद्यार्थीओए उार प्रमाणे पीतानी मेले बनाववा.
* मा बीलि नामाथको पूर्वोक्त इकारान्त पुंलिङ्गना पन्चमांना एकवचनना "णो" सिवायना वाकीना प्रत्ययो पण पञ्चमीमा लागेछ. जेमके; मइत्तो, मईओ, मईउ, मईहिंतो; रमत्तो इत्यादि.
। आ 'आ' प्रत्यय आकारान्त नामाने लागतो नयी.
( जुओ पाठ १२ नियम बीजो.
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अच्छरसा-अप्सरा.
कउहा - दिशा.
भूख.
i
पडवो.
* छुहा (आप) खुहा
आसिसा - आशीप.
नणंदा-नणंद.
नावा - नाव.
वाहा - हाथ, बाहु. पडंसुआ - पडघो.
वाया - वाचा.
पडिवआ
पाडिवआ
माउसिआ - मासी
सरिआ - सरित, नदी. चडवीमजिणविणिग्गयकहा
चोवीश तीर्थकरो ए कहेली बात. भवसय सहस्समहणी · लाख
भवनो नाश करनारी.
(१६)
विवरी अपरूवणा - उल्टुं कहे. वं.
मित्ती - मैत्रीइत्थी -स्त्री.
नाम
1
सिद्धि-सिद्धि. पिवासा - पीवानी इच्छा.
कित्ति - कीर्ति.
घंटिआ - झालर.
आणा आज्ञा.
कहा- कथा.
चिरसंचि पावपणासणीलांचा काळी एकट्ठा करेल पापने नाश करनारी.
वावी - वाव.
लज्जा - लाज,
कला-कळा.
थुइ - स्तुति.
किरिया किरिआ
} क्रिया.
आराहणा-आराधना
विराहणा- विराधना.
सिक्खा - शिक्षा, शिखामण: नडी-सूत्रधारनी बहू, नटी.
संज्ञा - संध्या.
संति-शांति.
* अहंपी चार शब्दो (सरिआ पर्यंत ) आकारान्त ज छे; पण आयन्त नथी,
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अल्पकैर, वि०- आपणुं. पारक, वि०-पारकुं.
गमण, न०-जवं
आगमण, न०-आववुं.
ठाण, न०-स्थान.
नाडय, न०- नाटक. खासिअं, न०- उधस, खांसी.
अन्मुडिअ, वि० उठेलं. विरअ, विरय वि० - विरमेल, बंध पडेल.
सड्ढ, पु० - श्राद्ध, श्रावक. किच्च, न०- कर्तव्य, कृत्य.
सम्म, न०-सुख, शर्म.
अंतरिक्ख, न०- आकाश.
नह, न०- आकाश, नभ.
सेव-सेवयुं . पहुप्प्-समर्थ थकुं. णिन्वर्-दुःख कहेवुं.
( 0 )
साधारण शब्दो. नह, पुं० - नख.
एआरह - अगीआर. वारह - वार.
केवलि, पुं०- सर्वज्ञ.
पन्नत्त, वि०-कहेलं.
दिवस } पुं०-दिवस
आयर, पुं०-आदर.
भुत्रण, न० - जगत्. विहल, वि० - विफल, फोकट. पुर, न० - नगर.
धातु
पायाल, न०- पाताल.
नरय, पुं० - नरक.
तल, न० -तलीयुं.
पास, न०- पार्श्व, पडखं. झवेर, पुं० - विशेष नाम.
वव (वि+अव ) हरू- व्यवहार
करवो.
अहिरच्चुभ - आवबुं.
सद्दह - श्रद्धा करनी.
पलट-छु आवj.
दुर्गुछ- निन्द्रा करवी, जुगुप्सा करवी गुम्मू- मोह पामवो, मुग्ध थ.
संख्यावाचक विशेषण.
पण्णरह - पंढर. सोलस-सोळ.
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________________
"
तेरह - तेर. चउद्दह, चउदह-चौद
अच्छरसाउ जिणाण चेइअम्मि
( ६१)
वाक्यो
सत्तरह -सत्तर..
अट्ठारह-अढार.
अहा रयणीभ अ गच्छन्तु । केवलिणा पन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणाए अब्भुट्टिओ म्हि, विराहore विरओ म्हि |
सड्ढा अप्परं किचं लज्जाए
नच्चन्ति ।
गामम्मि संझाए घंटिआ बोलइ । चिरसंचिअपावपणासणीइ भवसयसहस्स महणीए चउवीसजिण
भुवणं पयासेइ । विणिग्गय कहाइ बुहाणं जणाणं दि- जीवेसु मित्तिं रक्ख, जत्तो सुहं
अणुहव ।
कुणन्ति ।
गुरुणो सीसाणं सिक्खं दिन्ति । जिणाणमणः मुत्रणम्मि पसरइ । म्हणो कहे | खासिएण दुहिओ अस्थि । सरिआए हांणाय नणा गच्छन्ति गमण इत्थीणं पायम्मि दुहं होइ । वीरस्स कित्ती सत्य पसरउ । साहुणो खुहं सिणेहेण सहन्ति । भिचो नरवईणं मालमल्लिइ ।
झवेरो आयरेण विजयधम्मसूरीणामाणं रक्खर ।
नडी पुरम्म नच
|
| कउहासु चउसु चंदो रयणीए
•
नाणं विणा किरियांए विणा च सिविणे वि मुक्खो नत्थि* । सड्ढ ! विवरी अपरूवणं माई कुण ।
संतिं रक्खन्तु साहुणो । नडी नाडयं कुणइ ।
सरस्सई साह नाणाय । नहत्तो भूमीए मेहो पडइ ।
कलाहिं चिय पुरिसा नारीओ च छजन्ति !
I
सीस ! वीररस थुई बोल । मुक्खस्स अरुअं अपुगरावित्ति
।।।
अयलं सम्मं लह |
पारकं किचं सम्माय कर । वीरं - मालाहिं अच्च ।
* जुओ पाठ बीजानो नियम बीजो.
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( ६२ )
तेओ वे वावनुं खारुं पाणी पीता । माला वडे हरिनुं शरीर मनोहरंछे.
नथी..
नदीओमां गंगा पहेली छे. केवली समुद्रना तळने देखे छे. पितानी शरमने लीघे ते चोरी
करतो नथी.
क्रिया विनानुं ज्ञान फोकट छे. माणसो नाटक जुझे छे. स्त्रीओ धीमे धीमे चाले छे. सज्जनो आदरथी ज्ञान ग्रहण करे छे. आभूषणनी शोभावडे स्त्रीओनुं शरीर शोभे छे.
आकाशमां दुंदुभि वोले छे. ज्ञान विनयथी वधे छे.
दूध पीवानी इच्छाने लीधे ते गायने इच्छे छे.
स्त्रीओनुं स्नान कुंडमां थाय छे.
:
हे महावीर ! तुं सिद्धि आप.. योगी स्त्रीओने इच्छतो नथी.
पक्षी स्त्रीनी पासे वेसे छे अने चांच वडे फल खाय छे. राजा स्त्रीओनी साथे वनमां फरे छे. कल्याणने माटे गुरुनी पासे रहे. शा माटे मासीनी पासे जतो नथी. देवो जमीनने अडकता नथी. वृहस्पति बुद्धिनो दरियो छे. पुत्रो मातांने नमे छे.
राजा नगरनी परीक्षा करे छे. हे भाइ, तुं उठ अने यत्न कर. रात्री गई हवे प्रमाद शासारु करे छे? जाय छे पुत्रो पितानो विनय करे छे. विद्यार्थीओने तेओ वे इनामं आपे छे.
स्त्रीलिङ्ग - संवोधन.
वा एकवचनमां अन्त्य स्वरनो 'ए' किं० नमानी जेडुज थायछे. तथा मूळ आकासे समान प्रथमानी जेमन जागवां.
मारन्न शीना मेवं कल्पे थाक्छे, तथा बहुवचन रान्त नानोनां संवोधन एकागमन तथा उक कामांना संवोधननुं एकवचन 'हरि तथा भाणु' नी माऊक थायछे तेमज बहुवचन प्रथनानी जेवुंज छे. ईकागन्त तथा अकागन नामोना संबोधन' एल्वचनमां कोह पण प्रत्यय नहि जोडां अन्त्य स्वर हूस्व थायछे.. बहुवचन प्रथमा जेवुंज छ.
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________________
• एकवचन आबन्त-हे रमे, रमा.. आकारान्त-हे माउसिमा.
__ . वहुवचन हे रमाउ, रमाओ रमा. हे माउसिआउ, म उसिआओ,
माइसिआ, . हे मईड, मईओ, मई. । हे घेणूड, घेणूओ, घेणू. ... हे सहीड, सहीओ, महीआ, सही. हे वहूउ, बहूओ, यहू.
इकारान्त-हे मइ, मई. उकारान्त- हे घेणु, घेणू. ईकारान्त-हे सहि. उकारान्त-हे वहु.
सारांश तथा सवाल,
तिसला. एकवचन .
बहुवचन . १ तिसला.
तिसलाओ, तिसलाउ, तिसला. २ तिसलं. ३ तिसलाए, निसलाम, तिसलाहिं, तिसलाहिँ, तिसलाहि. तिसलाइ.
तिसलाण, तिसलाणं.
तिसलत्तो, तिसलाउ, तिसलाओ, तिमलत्तो, तिसलाड,
तिसलाहिंतो, तिसलासुंतो.. तिसलाओ, तिसलाहितो. ६ तिसलाए, तिसलाअ, तिसलाण, तिसलाणं. तिसलाइ.
तिसलासु, तिसलासु. सं० हे तिसले, तिसला. हे तिसलाओ, तिसलाउ, तिसला,
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________________
१ मई.
२ मई.
३ मईआ, मईए, मईअ, मई,
"
५
""
17 "1
( ६४ )
93
37
7!
""
महत्तो, मईओ, मई, महिंतो.
६ मईआ, मईए, मईन, मईइ.
15 23 37 13
सं० - हे मई, मइ.
१ सही, सहीआ.
मइ.
मईओ, मईउ, मई.
33 93 ""
मई, महिं, मई हि.
मईण, मईणं.
महत्ता, मईओ, मईड, मईहिंतो, मईसुतो ईण, मईणं.
मईसु, मईसुं.
हे मईओ, मईउ, मई.
"
सही.
सहीउ, सहीओ, सहीआ, सही.
इत्यादि.
१ आज्ञार्थ तथा विध्यर्थमां धातुनां रूपोनी अंदर शो भेद छे ?. २ अकारान्त धातुओनां आज्ञार्थ वीजा पुरुष एकवचनमां केटला रूपो थाय छे ?
३ इकारान्त पुंलिंग तथा उकारान्त पुंलिंगना शनां रूपोमां शो तफावत छे ?
४. " गोवा " ( आकारान्त पुंलिंग ) शब्दना पञ्चमी, सप्तमी, तृतीया, तथा द्वितीयामां रूपो लखो.
५ गयेला पाठोमां आकारान्त स्त्रीलिंग नामो केटलां छे.
६ ' माउसिभ तथा रमा ' शब्दनुं संबोधनमां रूप लखो.
७ सहि, रमं अहिं ह्रस्व क्या नियमथी थयो ?
८ 'सहि विणा दुहिओ होमि' आ वाक्यनुं गुजराती करो, तथा 'वि
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(६५) णा' ना योगमा 'सहि शब्दने द्वितीया विभक्ति कया नियमथी
आवी, ते नियम लखो. ९ "मणिलाल एक दिवसमां त्रण वार महावीरने पूजेछे, हरगोविन्द
एक दिवसमां चार वार जमेछ, जयचंद रातमां पांच वार उठेछे"
आ वाक्योन शुद्ध प्राकृत करो. १० मोरउल्ला, इहरा, अप्पणो, पाडिएक्क, सह, अपि आटला अन्ययो
लगाडीने जुदा जुदा वाक्यो प्राकृतमां वनावो. ११ हासेण व, कोहेण व, लोहेण व, भयेण व, मोसा माई बोल्ल ।
इत्थी सामि, पुत्तं, नणय, अम्वं च दुक्ख दे । अरिहन्तं विणा दुइओ धम्मसारही नथि। '
दिवसे दिवसे लक्वं
देइ सुवण्णस्स माणवो एगो। एगो पुण सामाइअं
करेइ न पहुप्पए तस्स (तस्य) ॥१॥ आ वाक्योनो अर्थ गुजरातीमां, तथा आ वाक्योमाथी जे कोइ
रूपो महेताजी तमने साधवा आपे ते साधी आपो. १२ कोई पण दश क्रियापदो मोढे वोली जाओ.
-
पाठ १४ मो.
भूतकाल. भूतकाल घण प्रकारनो के-अद्यतन, हास्तन अने परोक्ष. सामान्य रोते गइ रातना वार वाग्याथी मांडीने तेनी पछीनी रातना चार वाग्या सुधीनो काळ " अद्यतन " कहचाय छे, तेटला कालनी अंदर गयेल काळमां को क्रिया थइ गई' पम कहेधु होय तो अद्यतन aanRRINEERTANT ENETी Intो सी
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(६६) गयेला काळमां हस्तनी पपरायछे, ज्यारे परोक्ष काळ, हास्तन कालमांज ने क्रिया न देखेली होय तेमां पापरी शकाय छे.
प्रत्ययोस्वरान्त धातुओने लगाडवाना ) १ पु० सी, ही, हीअ.
२ पु० ॥ " " एकवचन अने वहुवचन ३ पु० "" " उदाहरण-धातु)" का "-कासी, काही, काही..
व्यंजनान्त धातुओने माटे.) १ पु० ईअ.
- २ पु० , एकवचन अने बहुवचन । ३ पु० "
उदाहरण-(धातु) 'हु-छुचीम.
श्रणे भूतकालनी अंदर दरेक पुरुष तथा वचनमा सरमांजा रूप थायछे.
धातु*का-कर.
अङ्गुम्-पूर.
ओह-अवत, जन्मg. ठा-रहे.
घिस-खा. अल्ली-आलिंगन करवं. मिस-शोभq. भा-त्री.
गिम-ललचा. कोक्क्-वोलवू.
बोज्ज्-डर. परिवस-रहेg.
कड्ड-खंचवू, काढQ. प+आव-पाव-पाम. | निवल्-निपजई.
* मा धातु केवल भूतकाल अने भविष्यकालमा ज वपराय छे.
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अव + लंबू - आश्रय लेवो.. आ+राहू - आराधकं. मु-जाणवुं.
:
लज्जू -लाजवुं. जीहू - लाजं. णीहरू - नीकलं. पयल्लू - शिथिल बावम्फू - परिश्रम करवो.
थवुं.
कम्मवू - उपभोग करवो.
परी - फेंक, भमनुं.. आ+- रंम् - आरंभ, शरु कखु. रिअं - प्रवेश करवो. किलिकिञ्च - रमवुं. अब्मिढ़-संगम करवो, मळवुं. समणु + जाणू - सम्मति 'आपवी.
देवत्तण, न०- देवपणं.
आणा, स्त्री० - आज्ञा, हुकम .
खन्ति, स्त्री० - क्षमा. महाविज्जा, स्त्री० - मोटी विद्या. दुरिअ; न०- पाप.
) ܀ (
निम्ब, पुं० -लींवडो. कसण, वि० - काळो. गेन्दुभ, पुं०-दडो.
सील, न०- शील... कुलआहरण, न०कुलनं भूषणः
नाम
-
¿
णिव्वडू-जू दुं थवुं. उ+द्धमा - संताप, खूब धमवु. वय् – बोलकं, वद. निज्झा - देखj.
पडिसा - शांत कर.
उत्थल्लू - उछळवू.
फरिस - स्पर्श करवो. चोप्पड्-चोपडं.
उ+व्विव्-उदास थवुं.
तूस —तुष्ट थवुं. चिइच्छ-रोगनो प्रतीकार करवो, चिकित्सा करावी.
छन्द - आक्रमण करवुं. हुण्-हवन करवो, होमनुं.
विड्डा, स्त्री० - लज्जा. दाढा, स्त्री० - दाढ.
दिण, न०-दिवस
सलाहा, स्त्री० - प्रशंसा.
रयण, न०-रत्न.
निहि, पुं० - भंडार.
उअर, न०- उदर, पेट.
नयरी, स्त्री० - नगरी.
•;
जडुट्टिल, पुं० - युधिष्ठिर, धर्मराजा.
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गय, वि०-गयो. अजा, स्त्री० - साध्वी.
थेर, वि० - स्थविर, वृद्ध. कोसम्बी, स्त्री० - नगरीनुं नाम.
गयदसण, वि० - दांत वगरनो.
मच्चु, पुं०-मृत्यु, मरण. सणिच्छर, पुं०-शनैश्चर. लोहसिला, स्त्री० - लोनी शिला. लडुवी, स्त्री० - नानी. घय, न०- घी.
मुरुक्ख, पुं०-मूर्ख. चंडाल, पुं० - चंडाळ.
कण्ह, पुं०-कृष्ण, वासुदेव.
( ६८ )
मण्डुक्क, पुं०-दंडको. बुहप्फइ, पुं०- बृहस्पति.
मीरो दुक्खम्मि खन्ति काही । वयमाणो कोसम्बीए समवसरीअ । चम्हणन्स घरम्मि दलिदो पुत्तो
वि० दुष्ट.
दुट्टु, थोर, वि० - जाडो.
वाक्य
सुण्हा, स्त्री० - पुत्रवधू.
छुहा, स्त्री० - सुधा, अमृत. वोर, न० - बोर.
असिविण, पुं० - अस्वप्न, देव.
भाण, न०- भाजन, भाणं.
दलिद्द, वि०-दरिद्र, आळसु.
विसम
विसढ
ओसह, ओसर, न० - दवा, औषध.
केली, स्त्री० - केळ.
-
केल, न० – केलं. बहिर, वि० - बधिर, बहेरो.
पुरिसो रवणी इत्थी अल्लीसी 1नहुट्ठिलो वणे परिवसीअ । असिविणा समुद्दाओ छुहं पांवीअ । शयम्मि दिवहे कसणो विसहरो
णीहरी ।
S
चंडालो वम्हणं फरिसीअ । सरियाए जलम्मि लोहसिला बुद्दी अ । सुविही समत्तं निज्झाही | हुवीअ || प्रत्तो जणयाण पायम्मि घयं चोप्पड़ी।
} fão-ais.
अन्धुणो जणं जणो कड्ढीभ । | सहोअराउ सहोरो णिव्वडीअ । डिम्भा गामम्मि किलिकिञ्चीअ । नईए मंडुक्का बोल्ली ।
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(१९) जणाणां कुलआहरणं सीलं। माणवो सुहं पावी । वीरो कंद्धप्पाओ न डरी। विड्डाए धम्मं कुणी। . . . मणीलालो गुणाण निही विजय- | उयरं धन्नेहिं अगुमीअ जणो।
. धम्मसूरी अञ्चीय । | कण्हो भूमि रक्खी । जयचन्दो दुरिएसुन्तो भाही। भाणं लुहीअ भिन्चो। सरिआए जलं उत्यल्ली। मुक्खो न पढी। मुरुक्खो रयणं परीही। हरगोविन्दो रयणं गेण्ही। खन्ती दुरिअंडही। तिहुअणो सामाइयम्मि अच्छी। भारवहो दिणम्मि वावंफी। ' सुहं हवी ।
(d) गुरुनी पासे जूठं वोल्यो । मणीलाले स्त्रीने छोडी. (त) क्रियामां शिथिल थयो. तिहुअण जयचन्दनी माताने नम्यो (तमे) वेए भोजनमां घी खाई. । । हरगोविन्दे आज अमृत, पीg. : (ते) पाडो नदीमां पड्यो.. ... (तणे) वे बोर खाधां. .. . (ओ) सघळा सिंहथी वीधा. : .सिंहे वे माणसने हण्या. (तेणे) नगरमा प्रवेश को. . . () दुष्ट माणस पापथी लाज्योनहि::: (तेणे) आकाशमां दुडो फेंक्यो. () संसारथी उदास थयो. . , ... (तमे) वे घरमा रम्या. . () गाममा रह्यो. . बामणना घरे चंडाल अवतो. (तेणे) स्याद्वादने जाण्यो. (तेणे) यूवामाथी पाणी खेच्यु. गंगाए समुद्रनो संगम कर्यो. (तेणे) ज्ञान माटे श्रम कर्यो, पण (ते) वैद्य गरीबोने औषध आपतो. . फोकट गयो.
हतो. महादेवे विपने ग्रहण कर्यु. हेमचन्द देवपणाने पाम्यो. खेतरमा धान्य, नीपज्यु. . . | इन्द्रे भगवानने पूज्या..
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(00.).
गीतथी राजा संतुष्ट थयो. (तेओ) वे स्त्रीथी ललचाया.. (तमे) आरंभ कर्यो. वनमां वे सिंह अवतर्या.
(तेओ) वेए वे केरी खाधी. समुद्रनुं पाणी पवनथी उळयुं. (र्ते) पगमां घी चोपड्युं. राजानुं घर शोम्युं.
(तेणे) औषधमाटे लींबडो काप्यो.
(में) महावीरनी आज्ञा हमेशां पाळी.
(तेओ) वेए पाणीनो उपभोग कर्यो । सुविधि भगवाने लोकोनुं सारुं कर्यु.
माणसो दुःखने लीधे मरणने -
-
+
नि+वड् - पड़बुं सं+मिल्लू - मळवु, मेळाप करवो. हर-हखुं, चोखुं .. घुसल- मथवं..
इच्छता हता.. साध्वीओ विजयधर्म सूरिने नमी. मावजिए केळां खाधां.
तेओ बेए मोक्षने माटे आत्मविarat आश्रय कर्यो ..
पाठ : १५. मो.
धातु
युधिष्ठिर कोइ वखत पण जूटुं बोलतो नहोतो.
लग्ग्-लागवुं.
नट्ट् - नाचघुं...
चुम्बू - चुम्बन करयुं. उव+सम्-शांत थवं. धुण - कंपकं, धूणवं.
-एक कर .
·
जा - उत्पन्न थवं.
बेल्ट् - रमबुं. संभाव्-लोभावुं.
पश्चार्-उपको आपको, उपालंभ देवो. नि+हर्-हंगवुं.
कंख्-इच्छवं.
ले-लेवुं, ग्रहण कखुं.
भूतकालमा 'अस्' धातुना वे रूपो थायछे, १ आसि, २ असि. या रूपो वधा पुरुपोमां तथा बधा वचनोमां चपराय
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________________
*भाया
xभायर पुं०-माइ, भ्रातृ.
÷भाउ
*जामाआ
-xजामाअर
÷जामाउ
*कत्ता
कत्तार
÷कतु
÷दाउ
+ माआ
ऋकारान्त तथा साधारण
नाम
पुं० - जमाइ,
जामातृ.
(
( ७१ )
वि० - करनार, कर्तृ.
*दाया
दायार वि०-देनार, दातृ.
÷माउ
रुण्ण, न०- रोधुं.
मुइंग, पुं०-मृदंग.
स्त्री० - माता, मातृ.
Cairns
मय, पुं० - हरिण, मृग.
*पिआ
xपिअर
÷पिउ
*भत्ता
भत्तार
पुं०-बाप, पितृ.
पुं० स्वामी, भर्तृ.
÷भत्तु
#माअरा
xमाउ
*माआ
+ ससा, स्त्री० - बहेन,
दुहिआ, स्त्री० - दीकरी.
छाही, स्त्री० - छाया.
हल्दी, स्त्री० - हलदूर. दसरह, पुं० - दशरथ, रामनो पिता. सर, पुं० - वाण..
स्त्री० -देवी.
8 आ नामोमां आकारान्त, अकारान्त, उकारान्तना रूपो पूर्वोक्त भाकारान्त, अकारान्त, उकारान्तनी माफकज जाणवा अपवाद माटे नीचेनी नोटो उपर ध्यान देवु.
* आ चिह्नवाळा शब्दो प्रथमाना एकवचनमांज वपरायछे तेमज बळी संबोधनमां तेज रूपोनो अन्त्य स्वर ह्रस्व करीने बोलायछे.
X आवा चिह्नवाळा शब्दोना संबोधनमां एकवचनमा अन्ते अनुस्वार लगाडीने रूप थायछे.
1
÷ आ चिह्नवाळा शब्दोना रूपो प्रथमा तथा द्वितीया विभक्तिना एकवचनमा तथा ज्यां द्विवचनने बदले बहुवचन बोलातुं होय त्यां पण वपरातांनी. + i चिह्नवाळा शब्दो मूलथीज आकारान्त छे.
"
1
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(७२) इसमूह, पुं०-रावण. | मरण, म०-मरण. सकाल, पुं०-सत्कार, सन्मान. | पारेवा, न०-पा. मय, न०-मुडदूं.
तुसखंडण, न०-फोफानु खांडवू, डोला, स्त्री०-हिंडोळो. सुन्नरन्न, न०-निर्जन वन. दिअर, पुं०-देर.
अणुठाण, न०-विधि. सिन्न, न०-सैन्य.
मयमंडण, न०-मुडदानुं आभूषण. विअण, न०-वींनणो, पंखो. आणारहिअ, वि०-आज्ञा वगरनुं. राम, पुं०-नाम.
वाक्योजह तुसखंडणं मयमंडणाई सुन्नरलम्मि ।
विहलाणि, तह जाणसु आणारहियं अणुदाणं ।। १ ।। पारेवओ हे निवडीअ। मयं डहइ । राम ! दसरहं संमिल्ली | भत्ता इथि लेइ । दसमुहस्स मत्थयम्मि सरो लग्गीभ। माया ससं कहेइ । जामारं दुहिअं देसु । मुइंगो वोल्लइ । दाऊणं सकालं कुरु ।
सुन्नरन्नम्मि पुरिसा जलं विणा दिअरो डोलाए अच्छी।
मच्चुं पावन्ति । पिअरस्स पायेसु वन्दी। माआ कल्लाणं होउ, एवं वोल्लेइ । विअणं पवणं देह।
तु शान्त था. ति] आंबानी छाया नीचे नाच्यो. तिमे] चेए हलदर खाधी. तिणे] सत्कारने एकठो को. ही भावना सैन्यने हण. Meth सो कोन मिशिगेको
माणसो रामने सेवेछे. ई सघळा कार्यमां समर्थ छु. रामर्नु पण मरण थयु, तेथी तुं
धर्म कर. तिणे] दही मथ्यु. . त अपन पयो ... ..
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(.:०३) ': दशरथ मोक्षने इच्छतो हतो... | पारेवा ! हुँ नाच.
(a) देवीने नम्यो. (ते) हर्ष आपछे. पिताए पुत्रने चुम्बन क[..--... - मणिलाले उपको आप्यो. (तेओ) वे देवीनी पासे धूण्या. । (त) गाममा गयो. (त) सिंहे वे हरणने हण्या. सौनुं सारं थयु.
पाठ, १६ मो.
भविष्पकाल. भविष्यकाळना वे प्रकार छे-श्वस्तन भविष्य तथा अद्यतन भविष्य . पूर्वे कहेला अद्यतन काल ( गइ रातना बार वाग्याथी आवती रातना बार वाग्या सुधीनों २४ कलाकनो वखत ) नी अन्दर हवे पछी क्रिया थवानी छे "एम कहेg होय तो अद्यतन भविष्य वपराय छे; तेमन त्यार पछीना काळमां — अमुक क्रिया थशे ' एम कहे, होय तो श्वस्तन वपराय छे..
.
प्रत्ययो
'बहुवचन
एकवचनं . १ पु० मि, स्सं.
मो, मु, म, हिस्सा, हित्या:: २ पु० हिसे, हिसि. हित्या, हिह. ३ पु० हिइ, हिए. हिन्ति, हिन्ते, हिरे.. १ पहेला पुरुषना 'म' थी शरु थता प्रत्ययो लगाडतां पहेलो धातुओने 'हि, 'स्ला' अथवा 'हा' माथी गमे ते को
लगाडवामां आवे छे. २ वळी पाठ पोलाना-चौथा नियममां का प्रमाणे सकार'मो
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( ') 'एकार विकल्पे'करवामां मावेछ, तो विकल्प पक्षमा प्रकार नो 'इकार' करवो. .
धातुवोस टू-विकसित थq. सम्+आव् समास थq. हस्-हस.
लोट्ट-सू. पालीव-दीपQ.
सह-शोभg. उस्-डंखg.
वि+म्हर-भूलवु, विसर. अप्पाह-कहेवू, संदेशो आपवो. अहीर-उंघg. . विज्-जाणवू.
णिवर्-दुःख कहे. शिवह-नाश थवो.
अवह-रच. पास-देखg.
वि+आव बाव-व्याप्तथq. भो+वाह-अवगाहवू. परि+ -भमवू, पर्यटन कर. उम्मथ-सामे आव. १७. चवg, नष्ट थg. वलग्ग-चंडबुं.
अक्खोड्-तलवार खेचती. उव+सप्पू-पासे जg.
परि+गेण्ड्-ग्रहण करई.
नाम (पुंलिङ्ग)पाउस-वर्षा ऋतु, प्रावृट्.
आणल-हाथीने बांधवानो खीलो, माण-मान, अहंकार. छप्पय-भमरो, पटाद. आणामंग-आज्ञानो भंग. वि.हु-विष्णु. निग्गह-निग्रह.
परोक्यार-परोपकार. पवेश-प्रवेश.
पडह-ढोल, पटह. पकवट्टि-चक्राती राना. उछाह-उत्साह. वइसाह-वैशाख मास.
छण-उत्सव, क्षण. मुक्त-मूर्ख.
उट्ट-अंट,
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अत्यं-धन, पैसो . निप्फाव - चाल (प्रमाणनुं नाम).,
पीइ - प्रीति, स्नेह,
माया- कपट.
प्रत्थय-ग्रंथ, पुस्तक. उवलखंड - पाषाणनो टूकडो. दासत्ता - दासपणुं, दासत्व.
(१) दु
छउम-- कपट, छद्म. दुवार - चारणं, द्वार.
स्त्रीलिंग --
गद्दह-गधेडो
खग्गद्वारा सप्रेम भेंट ता
चक्कवहिरिद्धि - चक्रवर्तीनी ऋद्धि. जीहा
जीआ-दोरी.. गरुवी - मोटी.
रत्ती - रात.
सव्व विगाणानो नाश
करनार.
एआरिच्छ एवो, एतादृश. तुम्हारिच्छमारा जेवा. केरिच्छ - केवो.
'.
सेज्जा - शय्या.
जिन्भा
-जीम.
रुपिणी - रुक्मिणी, कृष्णनी स्त्री.
जयणा-यतना.
गड्डा - खाडो.
नपुंसक -
तिस्थ
1.
विशेषण -
कलासागरसूरि ज्ञानमन्दि
तीर्थः
तूह
अट्ठि - हाडकुं. कुम्पन्न - कुंकुं, फणगो.
नयर - नगर,
DELISTED मा. के. शा. फोदा
........
अम्हारिच्छे-अमारा जेगे. खगशील - स्खलित छ शी
ल नेनुं,
-
सिगद्ध चीमाएं, जिव दुट्ठ दृष्ट.
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(ti अन्नारिच्छ-बीजानी जेवों, नारिच्छ-जेवो. .
अन्याश... | जिण्हु-जीतनार.
* क्रियातिपत्ति.. ___ ज्यारे शरत वाळां वे वाक्योनुं एक संयुक्त वाक्य वनेलं होय, अने तेमां देखाती बन्ने क्रियाओनो कोइ पण प्रतिकूल सामग्रीथी नाश थतो जणाय त्यारेज आ 'क्रियातिपत्ति" वपरायछे.
प्रत्ययोज, ज्जा, अिन्त, माण. " " " "
एकवचन अने। १ पु०
.
बहुवचन
। २ पु० | ३ पु०
"
"
"
"
वाक्यजइ मेहो होज, तया तणं होज्जा ।। पुत्तो न पढेज, तया जणयो जइ साहू होन्तो, तया मुक्खो
हणेजा। होमाणो। जइ मणीलालो दिक्खं गेण्हिज चकाट्टिणो विमरणं अंत्यि। तया तिहुअणो वि दिक्खं गेण्हिज्जा। सिद्धसणो मुक्खं गच्छिहिई । " साहुणो मायं न कुणिहिन्ति । विण्ह नग्गिहिह।
मिच निवणो आणाभंग न मणीलालो बुहो होहिद।
काहिन्ति । पाउसम्मि मेहो वरिसंहिइ । घोडयं वलग्गिहिए ।
-
* मा काळने अमुक अंशमां · संकेत भूतकाळ ' गुजराती व्याकरण मुजव कही शकाय छ.
__f धातुने क्रियातिपतिना आ ' अन्त अंने माण' ए वे प्रत्ययो लाग्या पछी तयार यएला रूपन नामनी माफक काय थायछ.
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दिवसम्मि भाणू पलीविहिइ । भूमीए परोवयारं कुणिस्सामो ।
रुक्खस्स कुम्पलं अहिपच्चुएहि । तिहुअणो प्रत्थयं अवहहिए । तवेहि मुक्खो वि बुहो होहिए ।
अप्यविज्ञं विम्हरिहिस्सा । रयणीए लोहित्या | कसणो विसहरो डसिहि ।
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नयरम्मि पडहो बोलिहिइ । अप्पाहेहिन्ति पुरिमा ।
णाणेणं पावाई णित्रह्निर्हिति । छप्पओ उज्जाणम्मि परिअट्टेहिए ।
गुरुमुवसप्पिहि: । :. उवलखंड भंजिहि ।
(ते) दीवो करशे तो अंधकार जशे भणीश तो ते गाम जशे.
(त) घोडाओ खाडामां पडशे. (तेओ) वे भोजनमां वाल अने घी खाशे.
साधुओनी जीभ सारू बोलशे.
धनथी उत्साह थशे.
बारणं नीचे पडशे.
कूतरो हांडकाने खाशे.
(ते) कल्याण माटे तीर्थमां आवशे. (ते) अमारा जेवो पंडित थशे.
निवई धूणस्स निग्रहं काहिए ।. छणे इत्थीओ सहिहिन्ति । हसहित्था विज्जत्थिणो ।
पुत्थयं पासिस्सं ।
रयणीए - ओहरिस्सं । चविहिमि जणो. पुत्थयं समावेहिए ।
लोहं माणं च न कुणिहि ।
पाविणो नरयं गच्छिहिन्ति ।
(ते) प्रतिक्रमण करत तो पुण्य (तमे) जशो तो तेओ जीवशे.
मेळवत.
(तेओ) नमशे तो तुं साधु थइश. देवताओ आवशे तो श्रावको जागशे.
(ते) ऊंट उपर चडशे.
(हूं) हरगोविंदनी साथे कोशाम्बी नगरीमां जइश.: (ते) मोढावडे हसरो.
स्त्रीओ पुरुषोने सुखमाटे जोशे. राजाओ माणसोने आज्ञा वडे
ताबे करशे.
(ते) नगर माणसोयी शोभशे.
हाथी नदीनुं पाणी पीशे
.
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( ७८.)
(अ) तमारा जेवा. वैशाख मासमा ताप पडशे. (तमे), बेनगरथी बहार नीकळशो. (ते) वाणीओ-पैसामाटे कपट कर शे. (ते) राजा तलवार खेचशे . मोटी पृथ्वीमां साधु पुरुषो जीतशे
(हूं) महावीरने पूजीश. रात्रीमा चन्द्रमा आवशे.
x सोच्छु - सांभळ. ४. गच्छू-जबुं. x रौच्छ- रोवु :
x वेच्छ् - जाणवुं:
x दच्छ्र-नोवं.
(ओ) वे भाइ वस्त्रोनो- उपभोग : करशे. (अमे) ज्ञानकडे अने क्रियावडे भव.. समुद्रने तरीशुं.
(ते) रात्रीए शय्यांनां. सू. दृष्ट माणसे पःपना ढगलाने लीधेनरकमां जशे.
(तेओ) वे नहावा माटे नदीमां
पडशे.
(ते) दासपणाने ग्रहण करशे.
(ते) मूर्ख चक्रवर्तीनी ऋद्धिनो । (ते) सौनुं कल्याण करशे.
त्याग करशे:
पाठ, १७ मो.
धातु -
x मोच्छ - मूक.
x वोच्छ बोलकं.
x छेच्छ-छेद.
x भेच्छ-भेद. x भोच्छून.
* आ चिह्नवाळा धातु फक्त भविष्यकाळ ज वपराय, वळी ते घातुओने बीजा तथा जा पुरुरमां भविष्यन्ना प्रत्यये लाल. तेमज वर्तमान काळना पण प्रत्यो लागेछे. तेमन जा धानुशेनुं प्रथम पुरुषना एकवचनमां अन्तमा कोइ पण- प्रत्यय लगड्या विना केवल अनुसार लगाडीने पण रूप धाय छे. जेम के सारिए, से. च्छिहिः साच्छं.
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;
1
'
हणू-सांमळवू. फुट्टू टू-स्फुट थं. चल्लू - चालं.
निमिल्लू -बींचा.
पंगू -ग्रहण करवं. निसेह - निषेध करवो: ढंस वर्तवं ..
विदट् ट्-वर्तनुं.
निम्मवू - कर, सरजर्बु., विहीर - वाट नोवी.
i
·
·(OBR)
नाम
पञ्चअ - पच्चय, पं० - विश्वास. पहा, स्त्री० - कार्मि, कान्ति 'वारण, न०-व्याकरण. या क्ररण साला, श्रीः- निशाळ.
आचारंग, न०- पुत्रतुं नाम.
'पडिमा स्त्री०-प्रतिमा, छत्री.
गोवाल, - पुं०- गोपाळ.
लच्छी, स्त्री० - वन. नेह, पुं० - स्नेह.
छम्पुह, पुं०- एक यक्षनं नाम. नाअ, पुं०याय.
विच्छिअ, पुं०-पिंछी.
चच्चाहरन० - चोक. थम्भ, पुं०-गलो.
लोअप्रिय, वि० - लोको ने बहालो,
घोस् - गोख.. आढव्- आरंभ करवो.
गुरुलू-मारी रीते कर.
नीलू-नीचे पड
सार- प्रहार करवो, मारखं.
ग्यू- रमवु.
गुम्म्- मोह पांवों, गुम्म यवं.
परिसाम् - शांत थj.
संतप्पू - तपी जनुं, संताप - पामवो. वि+विणू - विक्रय करवो.
पया, स्त्री०-प्रजा.
हिरी, स्त्री० शरम' लज्जा. पलक्ख, पुं०- पीपलो.
गरिहा, स्त्री० निन्दा. संमार, पुं०-संसार. दीह, वि० ठावु, मोडं. मीरु, वि०-चीकण.
विन्ध, न० - चिह्न.
इट्टा, स्त्री०ईट.
हिट्ट, वि०, हरखेढुं.
कडु, वि० कडवं.
कुपर, पुं०- कुमार. त्रिज्जु, स्त्री० विजळी.
.
चन्दिना, स्त्री० - चन्द्रिका; ... चंद्रनी कळा.
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अलीअ, न०-जू ठु.
दाण, न०. - दान.... दिक्खा, स्त्री० -- दीक्षा.
वंचण, न० ठगनुं. गव्म, पुं० गर्भ.
तिअस, पुं० - देव
पुच्छ, न०- पूछडु.
८,८०,१
•
संकला, स्त्री० -- सांकळ.:
कारण, न०- कारण. भामिणी, स्त्री० -स्त्री.
मग्ग, पुं० – मार्ग.
छाल, पुं० - बकरो.
छाली, स्त्री० -- बकरी.
दयालु, वि० -- दयालु.
वाक्यो
महावीरस्स पडिमा मुक्खं दाहिइ । । तवं काह* गुरूणमाणाए ।
इहाहिं घराई होहिन्ति । विच्छिओ रयणीए डसिहि ।
आचारंग सोच्छं ।
सियावायं वोच्छं ।
भम्भों पीलुछिहि । जणयो पुत्तं संक्लाहिं सारेहिं । चचरम्मि विजत्थिणो गुरुर्हि सह गच्छिहिन्ति । इत्थीओ नेत्ताई निमिले हिन्ति । लोभपियो सड्ढो सोच्छिइ ।
।
सिआलो वञ्चणं काहि । अविजाए दुन्नि जणा गुम्महिन्ति । विज्जत्थिणो घोसिहिन्ति रत्तीए । तिहुअणस्स झवेरो विहीरे हई | डिम्भो कारणं विणा रोच्छिइ । पयावई भूमि न निम्महिइ ! ; भीरुणो जणा गुललन्ति । जणा साहूगं गरिहं संसारे काहिन्ति । महिमो मग्गमिलिहि । ससा सहोअराय आमिमं दाहि ।
तिअसो मच्चूओ संतप्पिहिर । साहुं चिणं च्छिन्ति ।
छम्मूहो जणे रक्खिहि ।
वाणरो दीहं पुच्छं णीहुन्छंहि । भूमीए विज्जू पडिहिर । साहु दिक्खं दाहिन्ति । दाणं दाहं* भणाणं ।
नणंदा नेहं पंगेहि ।
जक्खो कुमरस्स कल्लाणं काहिह ।
*(जुओ पाठ १४ नी *टोप) वळी 'का' तथा 'दा' घ'तुने प्रथम पुरुष एकवचनमो 'ई' प्रत्यय पण लागेछ, जेमके काहुँ, दाई, पक्षमां काहिम, दाहिम इत्यादिः
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( १) गोवाळनो छोकरो वकरां तथा | दीवो घीवडे धरने प्रकाशशे.
वकरीओने पाळशे. | शुद्ध वचन व्याकरण विना थशे राजानो कुमार वे स्त्रीओने ग्रहण
_ नहि. करशे. | (ते) घरमां वे पुस्तकोने मूकशे. मूर्ख माणस साधुना बोलवा (वचन) | (९) गाममां लक्ष्मीने मूकीश.
थकी हसशे. (हं) ब्राह्मणोनी साथ खीर जमीश. . वे धडाओ फूटशे.
योगी स्त्रीचं मोढुं जोशे नहि. (ते) गामना चोकमां छोकराओ वाणीओ आजे पी वेचशे.
साथे रमशे. | त्रिभुवन शरम विना भगवान पासे राजाओ न्यायथी प्रजाने वश करशेः
नाचशे. (ते) भगवानने देखशे. मणिलाल गुरुना पूजन विना खाशे हे भाइ ! तमे आसन उपर वेसशो!
नहि. साधुओ देवपणानो अनुभव करशे. | सूर्यना तापथी वृक्षो सूकाशे. (d) निशाळमां व्याकरण भणशे.. चन्द्रनीचन्द्रिकायी लोको सुखी थशे. (इं) साधुओना उपदेशने सांभळीश. | लोको सांकळोथी पाडाओने (हणशे) (अमे) वे पिताना मृत्युथी रोइशं.
• मारशे. (तेओ) वे साधुना पूजन माटे | सिंहो भोजनने माटे हरणोने मारशे.
गाममां जशे. | माणसो हरगोविन्दनो विश्वास कम्शेः इंधणाओथी अग्नि संतप्त थशे. | केरीओ अने केळां वैशाख मासमां राजा वे चोरोने तलवारथी मारशे.
मळशे.
केटलाएक सवालो. १ शस्तन, अद्यतन तथा परोक्षमां भेद वतावो ?. २ वस्तन. भविष्य तथा अद्यतन भविष्यमा शो तफावत ?, ३ वर्तमान काळना वीजा अने त्रीजा पुरुषना प्रत्ययोमा अने भविष्य
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(८२) काळना तेज प्रत्ययोमा शो भेद छे ?. . . . . ४ हुं आपीश, हुं करीश, तेओ वे ऊंचशे, ते जमशे, अमे वे जम्या; ___ आ वाक्योनुं प्राकृत करो ?. ५ अत्यार सुधीमां तमे भणी गयेला आर्ष शब्दो लखो?.
६ पितृ शदना प्राकृतमां रथी विभक्तिओनां रूपो लखो ?. . ७ 'नणन्दा' अने 'रमा' आ वे शब्दोना रूपमां भेद वतावो ?. ८ हर्, जा, वेल्लू, इच्छ, वेच्छ्, आटला धातुओना 'भूत' मां तथा
भविष्या मां रूपो लखो?.
- CRPP-m
पाठ १८ मो. * कर्मणि प्रयोग तथा भावे प्रयोग (सह्यभेद).
कोइ पण धातुनो ज्यारे अमुक काळमां कर्मणि अथवा भावे प्रयोग बनाववो होय त्यारे पुरुपयोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेलां धातु थकी 'ई', अथवा. इन सामान्य रीते लगाडवामां आवेछे, भने त्यार वाद जे काळमां सबभेद वनाववो होय ते काळना पूर्वे (कर्तरि प्रयोगमा) कहेवाइ गयेला प्रत्ययो लगाडवाथी आ रूपो सिद्ध थायछे, जेमके-बोलिजइ, बोल्लीअइ.
+धातुदीस-देख.
| हम्म्-हणवू. वुच्च-कहे.
। खम्म्-खणबु. ___ * सकर्मक धातुओनो कर्मणि प्रयोग करवामां आवेछे. तथा मूल अकर्मक अथवा अविवक्षितकर्मक धातुओनो भावे प्रयोग आयछे. ___ + आ धातुओ थकी ‘ई भने इज' (कर्मणि अथवा भावेना) प्रत्ययो लागता नथी, कारणके आ धातुओ मूळ धातुओ उपरथी आदेश थइने कर्मणिमां अथवा भावेमा उपर प्रमाणे वनेला छे; तेथी तेने परभार्या विकरण तथा अमुक भमुक काळना प्रत्ययो लगाडी सहभेदना रूपो वनाववा; एटलेके आ धातुओ कृतरि प्रयोगमां तो वपरायज नहि.
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चिम्म । एकछु कर.
(८३) चिव्व् )
दुभ-दो.
लिम्-चाटवं. जिन्व-जीतवं.
बुभ-वहन करवं. सुन्व्-सांभळg.
रूम-रोकवं. हुव्व्-होमg.
गम्म्-जg. पुत्व-पवित्र कर.
हास्-हसवू. थुव्व-स्तुति करवी.
भण-भण. धुव्व-कंपg.
छुप्प्-स्पर्श करवो. कत्थ्-कहेवू.
रुंब्व-रोवं. हीर-हरवू.
लन्भ-लाभ थवो. कीर्-करवू. तीर-तर.. जीर-जीर्ण थq.
वाहिप्प्-बोलवू. विढप्प्-पेदा कर, अर्जन कर. आढप्प-आरंभ. सिप्प्-सिंचवू, स्नेह करवो. सं+रुज्झ्-तावे थq. घेप्प-ग्रहण करवू.
अणु+रुज्य्-मान', तावे थg. छिप्प्-स्पर्श करवो.
उव+रुज्झ्-आग्रह करवो. डज्म–बळg.
मुज्ज्-जमवं. वज्-बांधवं.
ण
जाण. ..
णज्ज
जाणवू. ..
कण्ण-कान. भार.-मार. सह-शब्द. बुंदारय-देव.
नाम (पुंलिंग).
वुत्तन्त-वृत्तान्त, चरित्र. कयण्णु-कृतज्ञपुरुप. एरावण-इन्द्रनो हाथी. उच्छव-उत्सव...
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उसह-ऋषभदेव.
धअ-ध्वज. सुद्धोअणि-शौद्धोदनि, बुद्ध. साव-शाप. कुढार-कुहाडो, कुठार.
स्त्रीलिंग. भुइ-नोकरी, भृति.
निण्णया-नदी, निम्नगा. मज्जा-भार्या, स्त्री.
मज्जाया-मर्यादा. पडाया-पताका.
| वलहि-वलभीपुर. नपुंसक.
वुन्द-समूह. गारव
पायाल-पाताल. मुसल-सांवेटुं.
ओसह पग-नगर.
ओसढ
गउरव, मोटाइ.
औषध.
विशेषण--
निण्ण-नीचुं, निम्न.
दच्छ-डायं. टड्ढ-स्तब्ध, ठंडु.
वाक्यो
धएणं चुलचुलिन। पुरिसेहिं घराई बंधन्ति । गोवालेण घेणू दुभइ । भारव्हेहिं भारो चिन्न । रुस्खेहिं धुणिजइ पवणेणं ।। मिचेहि कुटारेण भूमी खम्मइ : मित्तेण नयरं दीसए।
जणाणं वुन्देण तत्तं जाणिज्जेहिह। बम्हणेहिं भोअणं जेमिएहिए। जोगिणा संसारो तीरेहिइ । जणेण दोहिं कण्णेहिं सुज्वए। वेहिं थूणेहिं धणाई हीरन्ति । महिसो संकलाहि वन्धिज्जा । इन्देण एरावणो चडीए।
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(४७)
तिहुअणेण सिआवायो पढिजइ। | हरगोविन्देणं कत्यिहिए। .. सारमेयेणं दुन्नि अत्थीइं लिभन्ति। भिच्चेण मुई कीरए । मुक्खेणे महिसो दुहिजइ। | विजेण दीणाणं जणाणमोसहं मणीलालेण मुहत्तो वयणाई वुच्ची।
दाईअए। महावीरेणं वम्महो जिब्वीम। | उसहोवुन्दारयाणवुन्देण वन्दिजइ। कयण्णुणा जयचन्देण विनयधम्म- पिटणा पुत्तो हम्मए ।
सूरी थुन्नी। माअराए दुहिआ लट्ठीए हणिज्जा। पुरिसेण वम्हणो हम्मी। इत्थीए भत्ता नविज्जइ । नणेहिं रयणाई चिम्मी । नणंदाए कुसलाय हुन्वए। तिहुअणेण लच्छी चिव्वेहिइ। । रिसिणा सावो दाइज्जइ ।
(तेनावडे ) रोन महावीरन मुख | सांबेला वडे धान्य शुद्ध थाय छे.
देखाय छे. भरतथी राज्य एकळं करायु. माणसोना कपडावडे जीर्ण थवायछे. (तेनाथी) स्याद्वाद भूलायो. कुंभारना घडा वडे फूटाय छे. | त्रिभुवनथी हसाशे, तेयी (तुं) न वालको वडे घरमा रोवाय छे.
बोल. मूर्ख वडे अशुद्ध तत्त्व वोलायु. मणिलालथी सुखनो समूह अनुवहाण वडे समुद्र पण तराय छे.
भवाय छे. पापी वडे नरकमां पडाय छे. । | विनयधर्मसूरिथी निशाळना विद्यामाणसोथी मोटाइ इच्छाय छे. ओ (नी परीक्षा लेवामा श्रावको वडे वीरनु चरित्र वोलाशे. ___ आवी) परखाया, अने (तेओने) योगीओथी मर्यादा मूकाती नथी. इनाम आपवामां आन्यां. मणीलालथी गाम जवाशे. माताथी आशीप अपाय छे. लोको वडे वलभी नगरी प्रशंसाइ. | जयचन्द वडे व्याकरण भणाय छे. शेठ वडे धन पेदा कराय छे. (ते) वे वडे वे घरमा रहेवायुं.
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( ८६ ) पुरुपोथी रातमां पथारीने विषे । तेनाथी) आसनथी उठाय छे.. ..
सूवाय छे. मुनिओ वडे क्षमा रखाय छे. सुख वडे थवाय छे. | मेघ वडे वरसायु.
- reamiman-retra
पाठ १९ मो.
केटलाएक खास उपयोगी कृदन्त. (हेत्वर्थकृदन्त, संवन्धकसूतकदन्त, वर्तमानकृदन्त तथा कर्मणि
भूतकृदन्त विषे.) १ कोइपण धातुने उं ( अथवा जवलेज तुं ) प्रत्यय लगाडवाथी हेत्वर्थ
कृदन्त थाय छे. जेमके, वोल्लेडं, वोल्लिङ, वोलवाने, वोलवामाटे.. २ कोइपण धातुने उं, अ, ऊण, उणं, उआण, उआणं ( अथवा
जवलेज तुं, तूण, तुआण, तूणं अने तुआणं) प्रत्ययो लगाडवाथी संबन्धकभूतकृदन्त थाय छे. जेम, रमेङ, रमिअ, रमिऊण, रमिऊणं, रमिउआण, रमिउआणं; रमीने. ३ कोइपण धातुने 'न्त, माण' प्रत्ययो लगाडवाथी पुंलिंग तथा नपुं
सकमां वर्तमान कृदन्तना रूपो थाय छे; तथा स्त्रीलिंगमां ई, न्ता, न्ती, माणा अने माणी प्रत्ययो लगाडवाथी स्त्रीलिंग वर्तमान कृदन्त थाय छे; जेम, * कहेन्तो, कहन्तो, कहमाणो, कहन्तं, कहमाणं,
हसेई, हसन्ती, हसन्ता, हसेमाणा, हसेमाणी इत्यादि. ४ देरेक धातुओ थकी पुंलिंग तथा नपुंसकमां 'इअ ' तथा स्त्रीलिंगमां 'इआ' तथा इई प्रत्ययो लगाडवाथी कर्मणिभूतकृदन्त थाय छे
जेम, उंघिओ, उंविअं, संघिआ, उघिई. ५ चालु पाठमां कहेला दरेक प्रत्ययो लगाडता पहेलां धातुथी विकरण
' पण जोडाय छे अने हेत्वर्थकृदन्त तथा संवन्धकभूतकृदन्तना पूर्वना विकरणना 'अ' नो 'ए' अथवा 'इ' थाय छे. * जुओ पाठ पहेलो नियम चोथो.
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(८५) __केटलाएक अनियमित कृदन्तोनी यादी. . अप्फुण्ण-घेराएलो.
विदन्त-पेदा करेल. उकोस-उत्कृष्ट,
निमिअ-स्थापेलं. फुड-स्पष्ट..
चक्खिअ-चाखेलं. वोलीण-गयेल.
लुअ-कापेलं. वोसट्ट-फूलेल.
जद-छोडेल. निसुट्ट-नीचे पाडेल. . निच्छूट-उंचे फंकेल. लुग्ग-रोगी, भांगेल. . ज्झोसिम ) रुण्ण-रोएलु. ..
पल्हत्य में फेंकेल. पलोट्ट
हीसमण-घोडानु हणहणवू. पम्हटु
रिहको नासेल. .
रोत्-रो.
मोत-मूकg. भोत-भोजन कर.
. *धातु
वोत-बोलवु.
घेत्-ग्रहण करवं. । दट्ट-देखवं.
नाम. आरंभ, पुं०-आरंभ.
गुज्झ, न०-गुह्य, गुप्त. पल्लाण, न०-पलाण.
मुत्ताहल, न०-मुक्ताफल. पायार, पुं०-किल्लो.
पिउसिआ, स्त्री०-फइ. * आटला धातुओनो प्रयोग हत्वर्थकृदन्तना तथा संवन्धकमतकृदन्तना केवळ व्यन्जनादि प्रत्ययोमा ज थाय छे (वीजे स्थले प्रयोग थाय ज नहि) वळी तेने विकरण पण लागतो नथी. ।
आ धातुनो हेत्वर्थकृदन्तना तथा संवन्धकभूत कृदन्तना स्वरादि प्रत्ययो मांज प्रयोग थाय छे (बीजे नहि)
+ आ शब्द आकारान्त छे.
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(८) उम्बर, पुं०-झाडनुं नाम, उंबरो. | लोण, न-मीठं. विग्य, पुं०-विघ्न.
सोमाल, वि०-सुंवालु. डक, वि०-डसायेल. पोप्फल, न०-सोपारी. माह, पुं०-माघ मास. चिलाय, पुं०-भिल्ल दुवालसंग, (आप) न०-बार अंग. | रवि, पुं०-सूर्य. छिहा, स्त्री०-स्पृहा, इच्छा. चविडा, स्त्री०-लापोट. निप्पिह, वि०-निःस्पृह विअणा, स्त्री०-दुःख, वेदना. कत्तिभ, पुं०-कार्तिक मास. अम्ब, न०-केरी. मच्छर, पुं०-अहंकार, मत्सर.
आढिअ, वि०-आदर पामेलु. वत्ता, स्त्री०-वार्ता.
विडूण, वि०-रहित. रोगिल्ल, वि०-रोगवाळो. सणिच्छर, पुं०-शनैश्वर. विम्हय, पुं०-विस्मय. हरडई, स्त्री०-हरडे. मसाण, न०-मसाण.
मेरा, स्त्री०-मर्यादा.
गम्-जबु. खण्-खो. दुह-दोबु. वह-वहन कर. जर-जीर्ण थर्बु.
धातु
लिह-चाटवू. बंधू-बान्धवू. भण-भणq. छुन्-स्पर्श करवो.
वाक्यमणीलालो हसन्तो गुरुं वन्दइ। | जम्मन्तो डिम्मो विअणं सहए। हरगोविन्दोव्हाउं चेइअम्मि गच्छइ। | सेटी जेमेऊणं पोप्फलाई मुञ्ज । उंघिओ तिहुअणो सिविणं देक्खइ। पयासन्तो रवी समुद्दम्मि पडए । कत्तिए मासम्मि वड्ढन्ताई रुक्खाई| हसेई पिउसिआ पुत्तं चुम्वइ ।
जणेहिं देक्खिज्जन्ति ।।
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(८) नणो अच्छिऊणं वोल्लइ । घरम्मि निमि धन्नं दिन्तो त्रिवइसाहम्मि मासे पसरन्तो अम्वो
लायो पुण्ण बन्ध। नणाणं अम्वं देह । सुवण्णं चोरिअ गच्छन्ता थूणा दुवालसंग पढमाणो जणो मच्छरं ।
निर्वण हणिआ। न कुणइ । | गोवालो घेणुं दुमन्तो खीरं पिज्जइ। सोमालो कुमरो दुक्खमणुहवन्तो आरंभम्मि सणिच्छरो विग्धं देह ।
रोवइ । | लोणं विणा भोअणं साउं न होइ। इन्देहिं वि आढिअं वीरं जणाणं | पडिओ पुरिसो उठ्इ ।
बुन्दं नवए । निवई पयं रक्खन्तो पायारं बन्धड़। विम्हयो होइ।
रोगिलो जणो हरडई खाइ। मसाणम्मि आगच्छन्तो जणो डरइ। घोडयस्सोवैरि पल्लाणं विवइ । निप्पिहो विजयधम्मसूरी गामे गामे | गुन्झमत्यि।
विहरेऊण तत्तमुवदिसइ ।। पावं कुणिऊण नरयम्मि पहन्तं वणम्मि जलं पिज्जेमाणो उंबरो जीवं रक्खिर तित्थयरो वि समत्यो वड्दए ।
नत्यि । वम्हणो धणस्स छिहाए वत्तं कहेड़ा| तवं काउं मुक्खं पावी । (ते ) पाणी पीवा माटे कूवाने । ( तेनाथी ) गुरुनी दयायी तत्त्व खोदतो हवो.
जणाय छे. (ते ) जमीने नगरमां गयो. देवनी पूजाने लीधे पापोथी जीर्ण (९) न्हावा माटे नदीमां पहुंछु.
थवायछे. (ते) मीठंलेवा माटे समुदनी पास राजानी आनाथी समुद्रमां पडीने
जायछे. रनोनो समूह ग्रहण करायछे. वनमां पडेलो साप मुनिनी पासे | मजूगेयी पेटने पूरवामाटे हमेशा
आवीन नमेछे. ___ भार बहेवामां आवछे. * जुओ पाठ नवमानी * टीप. १ जुओ पाठ, ६ नियम-१t.
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( ९० )
(तैनाथी) निशांळमां जइने भणायछे.) ( तेनाथी ) कार्य आरंभायुं. पुरुपना मुखने देखीने हसती स्त्री । गामथकी नीकळेलो माणस भोजन खाडामां पडी. करेछे.
वाडीमां रमतो पुरुष फूलो लइने
घरे जायछे.
नीचे पडेलुं दूध बिलाडा चाटेछे. सूंघेल फूलने माणसो सूत्रता नथी. कूतरो भसतो भसतो जायछे. (ते ) राजानी हजामत करीने घेर
संसारथी डरेल आदमी पाप नथी करतो.
दुःखने अनुभवतो - माणस संसारथी उदास रहेछे.
वागोळतां पाडो भारने वहेछे. ( तेनाथी ) बेसीने रोवायछे. (तैनाथी) दीवाने अडकीने दझायुं.
वीरनी प्रतिमाने पूजतो माणस मोक्षने पामेछे तथा पामशे. राजाने मर्दन करीने नोकरो खावा माटे आवेछे.
गयो. उलसेलो माणस धनने पेदा करीने धर्ममां वापरशे.
खळभळेलो समुद्र मर्यादाने मूकरो. महावीरने वंदीने जमवाथी सुख थयुं. परीक्षित (पारखेल) बाळको महा
मासमां दडावडे रोज रमे छे.
सवालो.
१. जे धातुओने 'ई' अने 'इज्जत' नयी लागता ते धातुओना थोडा एक रूपो लखो ?.
२. कर्मणिभूतकृदन्तनुं स्त्रीलींगमां रूप केवी रीते थाय ते उदाहरण पूर्वक बतावो !.
३. कर्मणि रूप तथा भावे रूपने गुजरातीमां शुं कहे छे ?. 8. कर्मणिभूतकृदन्त, हेत्वर्थकृदन्त तथा संबंधकभूतकृदन्त करवामाटे शो उपाय छे ?.
९. संबंधक भूतकृदन्त तथा हेत्वर्थकृदन्तना प्रत्ययोनी पूर्वे विकरण 'अ' नुं शुं थायछे !.
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(8)
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६. दीस्, भण्णू, वुच्च्, हम्मू, खम्म्, आटला धातुओना कर्मणि अथवा भावे रूप कोइपण पुरुषनी अंदर बोलो ?.
७. तुं, तुआण, तूण, तथा हेत्वर्थ तुं, लागे एवा क्या धातुओ छे ते दाखला साथे लखो ?.
८. चाखेलुं छोडेलुं स्थापेलं, नीचे पाडेलं, गएलं तेनुं प्राकृत करो..
पाठ, २० मो. प्रेरक भेद.
कोइ पण धातुने 'अ, ए, आव तथा आवे' प्रत्ययो जोडवाधी . ते धातुनुं भंग प्रेरकमां तैयार थायछे, वळी जे धातुनो आद्यक्षर गुरु होय तेओनुं प्रेरक अंग बनाववामां एक 'अवि' प्रत्यय पण विशेष लागेछे. बळी ज्यारे कर्मणि अथवा भावे प्रयोगमां प्रेरक रूप कखुं होय त्यारे फक्त 'आवि' प्रत्यय विकल्पे जोडवो; त्यार बाद विवक्षित काळना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडवाथी दरेक काळना रूपो तैयार थायछे उदाहरणो-कार, कारेइ, करावह, करावे.
आद्यक्षर गुरु होय त्यारे, बोल्लविइ, बोलाइ, बोले, बोलावर, इत्यादि ( कर्मणि तथा भावे ) हसावीभइ, हासीअर, इसाविज्जर, हासिज्ज इत्यादि, खम्माविर, खम्मइ.
१ 'भ' तथा 'ए' प्रत्यय पर छतां, तथा 'आत्रि' प्रत्ययना विकल्प पक्षमां कोइ पण प्रत्यय नहि लगाडता धातुना उपान्त्य 'अ'नो '' थायछे. जेम, कारह, कारेइ, हासीभइ, हासिजइ: (कर्मणि तथा भावे नां) हंसावि - इंजर - हसाविजह, हसावि-ईअइ-हंसाचीभइ तथा कराव- इअं (भूतकुंदन्त) = कराविर्भ, कराव- अन्तो ( वर्तमान कृदन्त करावन्तो. आ रूपी बनाववामां पाठ बीजानो बीजो नियम ध्यानमा राखवो.
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( ९२)
सामान्य सूचना. मूळभेदमा क्रियापदनी अंदर जो कर्म न बोलायु होय तो प्रेरकरूपवाळा क्रियापदनी अंदर मूळभेदना क्रियापदनो कर्ता, कर्म तरके पण गणायछे, अथवा त्रीजी विभक्तिमां वपरायछे. जेम, मणीलालो वावरइ (मूळ) (वावरन्तं मणीलालं तिहुमणो पेरणं कुणइत्ति) तिहुअणो मणीलालं मणीलालेण वा वावरावेइ (प्रेरक)-त्रिभुवन मणोलालने वापरवानी प्रेरणा करेछ, अर्थात् त्रिभुवन मणीलाल पाले वपरावे.
अपवाद. (१) गत्यर्थक, आहारार्थक, ज्ञानार्थक, बोलवाना अर्थवाळा तथा जे धातुओनुं शब्दप कर्म होय एवा तथा नित्य अकर्मक धातुओनो मूळभेदनो कर्ता, प्रेरक रूपनी अंदर मात्र कर्मज थायले.
उदाहरण१. हरगोविन्दो जयचन्दं नयरं गच्छावइ. २. झवेरो माअरं खीरं भुजविइ. ३. तिहुअणो मणीलालं गीअं सुणावेइ. ४. पिआ पुत्तं पूअणाय बोल्लावेइ. ५. विजयधम्मसूरी सीसे आचारंगं सिक्खावेइ. ६. अम्बा डिम्भ उंचावेइ.
(२) 'भक्ख्', धातुनो अर्थ हिंसायुक्त भोजनार्थक होय त्यारे तथा 'वह', धातुनो मूळ कर्ता, जेने वारंवार प्रेरणा करवी पडती होय तेवो होय त्यारेज तेओनो प्रेरक रूपमा मूळभेदनो कर्ता कर्म थायछे; अन्यथा नहिं. जेम-भिच्चो महीसं तणं भक्खाइ, भिञ्चा घडल्लं भारं वहावन्ति, जणयो पुत्तेण खीरं भक्खावेइ. अहिवई भिश्चेहि भारं वहावह
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(१९३). (३) : हर तथा. कर्' धातुओनो मूळभेदनो कर्त्ता प्रेरक रूपमा कर्म गणाय छे, अथवा त्रीजी विभक्तिमां वपरायछे. रिख थूणं (थूणेण वा) सुवणं हारेइ. अजोमित्तं (मित्तण वा) कडं करावेइ.
(४) 'अहि-वय्, देवख्' भाबे धातुओनी अंदर मूळ भेदन कर्म पोते ज्यारे प्रेरकमां कर्ता थइ जाय त्यारे अथवा गमे ते कर्ता प्रेरक भेदमां होय परंतु ज्यारे ते कर्ताने काइ लाभ जणातो होय त्यारे मूळभेदनो कर्ता कर्म थायछ, अथवा त्रीजी विभक्तिमा आवेछे.
उदाहरण-सीसो गुरुं अभिवयइ. (मूळ) (१) गुरू सीसं (सोसेण वा) अभिवयावेइ. (प्रेरक), (२) भिन्चो निवई देखिइ. (मूळ) निवई भिच्चं (भिच्चेण वा) देखावेइ. (प्रेरक), सुही गुरु सीसं (सीसेण वा ) अभिवयावेइ, सही भिच्चं (भिच्चेण वा) निवई देवखविइ.
धातुसिक्ख्-शीखवू.
नि=णु+मज्ज-बेसबुं. रुण्टोg. .
अ+क्खि-आक्षेप करवो. उवेल्ल-फेला.
निरप्प-ऊभा रहे. फल-फळg.
फंस्-स्पर्श करवो. सिम्प-सींचg:
भक्ख्-खा. निप्पज्ज्-नीपजq.
रुम्भ-रोकg.
नामसंझा, स्त्री०-संध्या.
नह, न०-आकाश. वेरग्ग, न०-वैराग्य,
रसायल, न०-रसातल. दास, पुं०-नोकर.
सई, स्त्री०-इंद्राणी, शची. पउर, वि०-घणं, प्रचुर. सुई, स्त्री०-सोय, सूचि. पउर, पुं०-नगरना लोको, पौर. | नय, पुं०-पहाड, नग.
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वञ्जर, पुं०-बिलाडो. मुक्क, वि० – मुंगो... थल, वि० - जाडो, स्थूल. जीविअ, न० - जीवित, आयुष्य. आअ, वि०-आवेलो.
हरिअन्द, पुं०–हरिश्चन्द्र, विशे
पनाम.
अम्वादास, पुं० - विशेषनाम.
पवाह, पुं० - प्रवाह. विंझ, पुं० - विन्ध्य पर्वत.
( ९४ )
पुंछ, न०- पूंछडुं.
देव, न० – दैव, भाग्य. किसाणु, पुं० – अग्नि. पृट्ठ, वि० – अडकेलं.
-
परिवार, पुं० - परिवार.
वन्ति । सेट्ठी भिच्चे भोअणाय सोल्लविइ । सामी गोवालेण घेणं दुहावे ।
सत्तुञ्जय, पुं० - शत्रुंजय नामनों पहाड.
कलाव, पुं०-समूह, कलाप. सवह, पुं० - सोगन, शपथ. उवमा, स्त्री० - उपमा.
समुद्दो मज्जायं मोत्तूण घराई
बुड्डावे
वाक्य
गुरुणो सीसं सिआवायं सिक्खा - | नायपुत्तो वलेहिं मेरुं कम्पावीही ।
दीणाणं जणाणं दाणं दावेसि | सेंट्ठी वत्थाणि सिन्वाविहिर । asो डिं गामम्मि ट्टावेइ । तवेहिं पात्राइं णिवहावेमि । गुरुणो किवाए अवहावेह | हे पहो ! मुक्खस्स मग्गं देवखाव । पउरा पउरा नरवई भिच्चेण मरावेइ
!
इत्थी मुणिपि हासे ।
महिवाल, पुं० - राजा, महिपाल.
वहुत्त, वि० - घणुं, प्रभूत. दिवायर, पुं० – सूर्य. तेअ, पुं० - तेज.
जस, पुं० - यश, कीर्ति.
जम, पुं० - यम, जम.
विज्जु, पुं० - वीजळी.
।
निवई महीसे तहा बइले तणाईं
मम्म, पुं० – मर्म .
उर, पुं०- छाती, हैयुं. सिर, न०- मा. कड, पुं०-सादडी, कट.
भक्खावेइ ।
हरगोविन्दं वित्रुहो अम्वादासो नायं
मणावर |
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(६६) जणा पुण्णेहि सुहाई अणुहवन्ति। | हेमचन्दस्स वारणं देक्खिऊणं . रिखू भिन्चेण निवई हणावेइ। विबुहा मत्थयं धुणावन्ति । मणीलालो जयचन्दं गुरुणा सह | हे जणय ! पुत्तं सालाए ठविऊणं संम्मिल्लावेइ ।
समत्तं कलं पढावसु । अम्बा पुत्तं जलेहिं ण्हावेइ। । | पुरिसो जलेहिं रुक्खाई दासेणं माहम्मि मासे अक्को रुक्खं फालेइ।
सिम्पावे। मुणिं धम्म कारेमि ।
मणीलालो मायराए दिक्खं पयासन्तो भाणू लोए जग्गविइ ।
गिण्हावे। माणवा धन्नाई निप्पज्जावन्ति । अन्तरिक्खाओ देवा पुप्फाई संझाए जणे वत्तं कहावेमु।
वरिसावन्ति । पुत्तो जणयमासणम्मि गुमज्जावेइ ।
भाइ वेनने दडावडे रमाडेछे. | हुँ पुछावीश. (१) क्रोधथी तेने करडाबुछु. (ते) सघर्छ भुलावशे. (ते) शास्त्र संभळावेछे. (तेओ) घरमां पाडाओने तथा (ई) शब्द गोग्वाबू .
गायोने बंधावेछे. ब्रह्मचर्य सर्व लोकोने स्वर्ग एमाडेछे. (ते) वस्तुओने वेचावेछे. ( अमे बे) राजाने तुष्ट करावीए । (तुं) स्नेह वडे स्त्रीने शोभावेछे.
छीए (संतोषीए छीए) (अमे) शरीरे धी 'चोपडावीशं.. बे स्त्रीओ केलनी छायामां वेसीने राजाओ पाणीमाटे कूवा खोदावेछे.
पतिने फूल सुंबाडेछे. (ते) विद्यार्थीओनी परीक्षा लेवजीवित लेवाने आवला यमन हणवा
डावशे. ___ माटे योगीओ प्रयत्न करावेछे. | माता वालकोने दूध पीवडावेछे. (तमे) वे सोगन अपावोछो. (ते) लापोट सहन करतो छतो पण (ते) माणसोने घोडा उपर चडावतो
सारं काम करावशे. हतो. | (a) सोयवडे दुःख देवरावेछे.
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(९१) ... माता पुत्रने भणवामाटे जगाडेछे. शराओ यशने माटे माथां कपावेले.
(ते) क्षेत्रमा वधता धान्यने कपावशे. हरिश्चंद्रनी उपमा नथी. (तमे) कूतराना बच्चाने पळावोछो. (ते) छाती उपर हाथ मूकावेछे. महावीरना चरणमां देवो माधुं| साधुओना खोटा मर्मने बोलावशो नमावेछे.
नहिं.
पाठ, २१ मो.
प्रेरक भेद, (चालु) अगाउ वीशमा पाठमां कहेल प्रेरकना 'ए, अ, आव, आवे, अवि, आवि । प्रत्ययो धातुओने लगाड्या पछी पाठ १९मामां कहेला वर्तमानकृदन्त, संबंधकभूतकृदन्त, हेत्वर्थकृदन्त तथा कर्मणिभूतकृदन्त, पण तेना तेना प्रत्ययो लगाडवाथी थइ शकेले. जेम-करावन्तो,करावमाणो, कराविऊण, कराविउं, कारिअं, कराविअं, करावीअन्तो, करावीअमाणो, इत्यादि.
(१) शब्दार्थक धातुओ (वोलवारूप अर्थवाळा तथा जेनं कर्म शब्दस्वरूप होय एवा), ज्ञानार्थक धातुओ, आहारार्थक धातुओ ज्यारे कर्म सहित होय अने तेओनो मूळ भेदनो कर्ता प्रेरकमा कर्म थायछे त्यारे तेओ द्विकर्मक थइ जायछे तो ते वखते तेनां कर्मणिरूप करवामां वे कर्ममांथी गमे ते एक कर्म प्रथमामां मूकाय छे; जेमके१-मणीलालेण धणं सही बोलिन, (अथवा) मणीलालेण धणं सहि
वोलिज्जइ। २-तिहुअणेण पुत्तो नमुक्कारं भाणीअइ, (अथवा ) तिहुअणेण पुत्तं
नमुक्कारो भाणीअइ । ३-गुरुणा सीसं सिआवायो बोहाविजइ, (अथवा) गुरुणा सीसो
सिआवायं वोहाविजइ। ४-पुत्तेण जणयो भोयणं जेमावीअइ, ( अथवा) पुत्तेण जणयं भोयणं
जेमावीअइ ।
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. ( ९७ )
(२) गमनार्थक धातुओ ज्यारे प्रेरकमां द्विकर्मक होयछे त्यारे जो तेनुं कर्मणि रूप बनाववुं होय तो मूळभेद मांहेनो जे कर्ता कर्म 'थयो होयछे तेज कर्म प्रथमामां आवेछे जेम - जयचन्द्रेण हरगोविन्दो नयरं गच्छाविज्जइ ।
आवण- बजार. आस - घोडो.
इब्भ-पैसादार, इभ्य. विग्गह - शरीर.
तरुण - जुवान पुरुष. आमोअ - हर्प, सुगंध.
आयार-आकार.
नाम - ( पुंलिङ्ग ). आयरिस - काच, आरीसो. ' आयंक--रोग, आतंक.
रमण - स्वामी, वर.
कीणास - जम.
अणुअर - दास, अनुचर.
अब्भास - अभ्यास.
अंस - भाग, अंश.
मग्गण- चाण, याचक, मांगण.
कन्ना - कन्या.
ईंहा - इच्छा.
*गिरा - वाणी.
धुरा - घोंसरी. पुरा-नगरी.
घरिणी -स्त्री. अम्बिलिआ - आंवली.
अक्खंडल - इन्द्र. गवक्ख-गोंखलो.
तन्तुवाय - कपडा वणनार.
मऊह-किरण.
मायंद - आंवो.
वेणु - बांसड़ो.
डोम्ब - चंडाळ.
स्त्रीलिङ्ग.
विराली - बिलाडी.
जुवइ - युवान स्त्री.
अग्गला - भोगळ अर्गला .
घरा- पृथ्वी.
बोरी-चोरडी .
हरिणी - हरणी.
*"अर्हिथी त्रण शब्दो आवन्त नथी, पण आकारान्त छे:
प्रसुविधा
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उत्तिमंग-माथु. चेल-वस्त्र.. रिक्ख-तारो, चांदरj. केऊर-बाजूबंध: नेउर-झांझर.
(६८) नपुंसकलिङ्ग.
चाव-धनुष्य. आहरण-घरेणुं, आभरण. अगण-आंगणुं. धंत-अंधकार,ध्वान्त.
भव-धएलं. अल्ल-भीनु. अहम-नीच.
विशेषणो.
अवदाय-धोळं, अवदात. अगाह-अगाध.
-
धातुसोह-शोभq. .
अ+कन्द-राडो पाडवी, पोकारवू. मेलव-मेळवq, मिश्रण करवू. लिम्प-लेपाव, लेप करवो. ढक्क्-डांक.
विर-व्याकुल थर्बु. उ+तर्-उतर. .
अइच्छ-जबु. झि-क्षीण थq.
आलुख-वळg. नि+दा-उंघg.
उग्घड्-उघडवू. आदर-सन्मान करवू. वेव-कंप. मज्ज-शुद्ध करवं.
लक्ख्-जो.
वाक्यपरिसा केउरेहिं विग्गहं सोहानन्ति । आयकेण जणा विराविजन्ति । इत्थीओ नेउरेहिं पाये छज्जावन्ति । दुण्णि आयारेण अम्बं पुतं भिच्चेणं भाणाई मजामि।
.सुमरावे।
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(९९) पई देवाणं गिरं वोल्लिडं घरिणि । सड्ढेण कन्ना न गेण्हावीअए। .
ईंह कारेइ । | जुवई तरुणं न वोल्लाविहिइ । आवणम्मि गमिऊणं अजो.
दारस्स पासम्मि अग्गला . अणुअरेणं आयरिसे विक्किणावेइ ।
दाविज्जइ। भाणू नहम्मि भमन्तो जणे अक्क
| अदिन्नादाणं गेण्हन्तं गेहावन्तं न्दावे।
वा न समणुजाणइ जई। वीरो चावं गवक्खम्मि मेल्लिऊण
बुहं वोल्लाविडं आओ अत्यि । ___ओसहेण सरीरं लिम्पावेइ ।
अंगणम्मि डिम्भा सारमेयं भमाडसी। रमणा रत्तीए आगच्छिा इत्थीहिं . दाराई उग्घडावन्ति ।
जणेहिं अगाहम्मि संसारसमुद्दम्मि
जीवो पावेहिं बुड्डाविज्जइ । इन्भो अल्लाई चेलांणि खिवावेइ ।
भिच्चो अहिवई निद्दावेइ। निवइणो बइल्लाणं सरीरं चेलेहिं
ढकावन्ति ।
| गयणम्मि रिक्खाई भमडन्ति । नहत्तो उत्तरन्तं अक्खंडलं
जणो कोहा खित्तं आलुखावेइ । लक्खिऊण सारमेयो भुक्का। गवक्खम्मि अच्छिआ इत्थी निसंसा वि जणा मुणीणं पासे
- पुरिसं आदरइ । उत्तमंगं निपाडन्तिः। | विअणाए झिज्जेमि । अहमेण डोम्वेण बिराली हणावीअइ।| विजो ओसहं भिच्चेण मेलवावेइ । जयचन्देण मणीलालमम्बिलिआ हे वीरजिण ! भवसमुदं साहुं मुजाविज्जइ ।।
उत्तराव।
(b) रात्रिए खातो नथी अने | हे पिता ! विजयधर्मसुरिने घर
माणसोने खवरावतो नथी. पवित्र करवा माटे घरमां बोलावू ? साधु पुरुषो विनोनो नाश करेछे. पवन आकाशमां तणता समहने लोकोने हसावतो नट आत्माने | भमाडतो छतो.आंगणामां सूतेलाने . नरकमां पाउछे.
हप करावेछे. शाळामां निमाएल (स्थाएल) हे प्रभु! देवपणामां अनुभवेल
पंडित अंबादास घर बंधावेछे. . सुखने तमे एकवार देखाडो.
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( १०० )
कन्याने अपावती माशी दुःखो | (तमे) शय्यामां सुवाडेला छोकराने
नीपजावेछे.
नवरावो.
(हुं) आरिसामां मोढुं जोतो लोकोने अधम माणस खावा माटे मांस
हसाउंछु.
( अमे) वे वाजूबन्धवडे बाह्य शरीर शोभावीए छीए.
(तमे) वे बजारमां जइने वात जणावोछो.
(अमारा वडे) वे विलाडीओने दूध
पीवरावायछे
( तेओ) बेवडे शरीर लेवा माटे
आवतो जम मरावातो नथी. (हूं) जुटुं बोलतो नथी, तथा भाइने बोलावतो नयी अने जूटुं बोलता मित्रने अनुमति आपतो नथी. महावीरने पूजावतो माणस इंद्रोथी पण पूजायछे.
दंभने करतो माणस लोको वडे नीचे पाडवामां आवे छे. शिवनी भक्ति धनने अपावेछे. प्रमुनी प्रतिमाना पूजनवडे माणस लोकोना दुःख समूहने फेंकावेछे.
पकावशे.
(हूं) दूध पीवामाटे गाय दोवरावीश. कविना काव्योने देखीने राजा
नोकरवडे इनाम अपावशे. (तमे) वे पुस्तको लखीने जीवितने
चलावता हता.
घरमां जमतो जमतो मित्रने
जमवा माटे प्रवेश करावेछे. (ते) साप तथा वींछीने रमाडतो (छतो) लोकोने पाछा हठावेछे. (ते) दोडता माणसोने खाडामां
पाडेछे.
काष्ठोने पातळा करतो सुतार कूतराने पाणी पीवरावेछे. (ते) भाईने जमाडीने जमेछे. पवन झाडोने कंपावेछे. (ते) गुरुना हाथने माथा उपर
मूकावेछे. योगीओ अभिलापोने सिद्ध करावो.
सवाल.
१. मूलभेदनो कर्ता प्रेरक भेदमां कर्म थाय तेनो उदाहरण माथे . एक सर्व साधारण नियम आपो.
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(१.०१), . २. केटलाएक प्रेरक अर्थवाळा वर्तमानकृदन्त, भूतकृदन्त, हेत्वर्थ
कृदन्त तथा संबन्धकभूतकृदन्त लखो. ' ३. कर्मणि प्रयोगमा कर्तामां कई विभक्ति तथा कर्ममां का विभक्ति
__ आवे ?. ४. ज्ञानार्थक तथा गत्यर्थक धातुओनाप्रेरकमां कर्मणि प्रयोगो लखो
Grakameca
पाठ, २२ मो. थोडाएक परचूरण नियमो. (कृदन्त) (१) कोइपण धातुने कर्तरि प्रयोगमा 'इर' प्रत्यय लगाडवाथी अमुक कृदन्त नाम बने छे; जेमके, 'बोल्लिरो, चोल्लिरं, * बोल्लिरी तथा * बोलिरा, आवा कृदन्तोनो अर्थ " (बोलवा)ना स्वभाव वालो, सारं ( चोलवा ) वाळो, अथवा (वोलवा) ना धर्मवाळो थाय छे".
तद्धित. (१) हरकोइ नामने 'और' प्रत्यय लगाडवाथी “फलाणानुं . आ " एवो अर्थ थायछे, जेमके, भाणुकेरो तो भानुचं तेज, + पारकर-पारकुं, रायकेरो करो-राजानो कर. ।
(२) हरकोइ नामथकी ' तेमां थएल' एवा अर्थमां इल्ल अने उल्ल' प्रत्ययो लागी शकेले. जेम-(नयरे भवो), नयरिल्लो, नयरिलं नयरिल्ला, नयल्लो-इत्यादि-नगरमा थएल. . (३) हरकोइ नामथकी " पणु " अर्थमां 'तण' प्रत्यय आवे. छे, जेम, जिणत्तणं, दासत्तणं, (दालपणुं) विगेरे. ___ * ज्यारे अकारान्त विशेषणानुं स्त्रीलिंग कर होय त्यारे अन्तना अकारने चदले 'ई' अथवा 'आ' थायछे.
+ 'कर' प्रत्यय पर छतां 'पर' शब्दनो 'पार' थाय छे.
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( १०२) (४) दरेक नाम थकी ( पोतानाज अर्थमां ) 'अ' प्रत्यय लागेछे, जेम, घडओ-घडो, चन्दओचंद्रमा.
(५) हरकोइ नाम थकी ' वालु' अर्थमा आलु, इल्ल, उल्ल, आल, वन्त, मन्त, इत्त, इर अने मण' प्रत्ययो जोडायछे, जेम, दयालू ( दयावाळो, दयावाळो ), सोहिल्लो (शोभावाळो), दप्पुल्लं ,( अहंकार वाळ ), जडालो ( जटावाळो ) धणवन्तो ( धनवाळो), पुण्णमन्तो ( पुण्यवाळो ), माणइत्ती ( मानवाळी ), गघिरा (गर्ववाळी ) धणमणो ( धनवाळो ).
हर
महादेव, हर.
नाम, (पुंलिङ्ग). पहिस-वटेमागु, पथिक. कंकोड-कंकोडा नामर्नु शाक. वयंस-मित्र, वयस्य.
छन्द-छन्द. मणसि-मनस्वी.
कररह-नख. आवणिअ-सोदागर, आपणिक. पण्ह-प्रश्न. कंटज, कंटय-कांटो, कंटक. कासव-एक ऋपिनुं नाम. सास-श्वास.
वीसास-विश्वास. उस-किरण. . पावासु)
दक्षिण आगमण्णु-आगमनो जाणकार. मणूस-मानवी.
दाहिण जाडो.
पवासु
मुसाफर, प्रवासी.
पत्तल-भांडु, पतरावली.
नपुंसक
वय-उमर, सम्म-सुख, शर्म. चम्म-चामडुं.
पीवलपीतळ.
पीअल)
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अंसु-आंसु. गुंठ-गुच्छो. किंसुअ-केसुडानं फूल. अन्तेउर-अन्तःपुर. सेय-कल्याण, श्रेय.
५ (१६३)
छन्द-उन्द. कररुह-जख. चाउरन्त-चारगतिर्नु नाश करनार.
पउम-कमळ, पद्म. । समरंगण-रणस्थळ, रणभूमि. .
स्त्रीलिंग
| पाहा-प्रभ.
विज्जुला-वीनळी.
पइट्ठा प्रतिष्ठा.
परिट्ठा )
मणसिणी-सारा मनवाली.
| सामिद्धि-समृद्धि.
वीसा-वीश
पा
पारकुं.
परक )
विशेषणराइक-राजाचं.
नवल्ल-नवं. दीहर-लांबू, दीर्घ.
चंक-वांकुं. तुम्हेच्चय-तमारं. ..
तंस-त्रांसु, सीधुं नहि. अम्हेच्चय-अमारु.
पडु-चतुर, पटु. अप्पणय-पोता, आपणुं.
मसल-पुष्ट. एत्तिल-एटलु. .
संमुह-सामुं. केत्तिल-केटलं.
मज्झिम-मध्यम. जेत्तिल-जेटलु. तेत्तिल-तेटलु.
पक
पाकुं.
पिक) उत्तिम-उत्तम.
एकल एकल.
कइम-केटलुक.
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( १०४ )
धातु - सिंह - इच्छवं.
मण - मानवं.
अप्पू- आप. वद्भाव - वधावबुं.
सोव्
सूबुं.
सुव्
पुञ्छ्र-शुद्ध करखुं.
दुहाव - दुभव, दुःख देवं. उत्थ - रोध करवो, अटकाव वडवडू - विलाप करवो.
आवणिओ पीवलं पुञ्छन् । मणंसिणी अज्जू पइट्ठ अप्पावे । कवी छन्द्राणि करेइ | पहिओ मग्गम्मि चलन्तो पउमाई आइग्वावेइ | कासवो रिसी पहं पुच्छावेइ | मणसी मणसिणि मणावर । चिलाया किंसुएहिं अप्पाणं रेहावर । दाहिणा मणूसा तत्तं सिक्खावन्तु ।
।
गुरो ! परिट्टं इच्छसु । दीहरो कंटयो दुहावर | सासो गेहेज्जइ । आगमण्णुणा उत्तिमो कररुहो
अवहू - कृपा करवी.
अबू- दीपबुं.
वाक्य
तोडिज्जइ ।
दुण्दुल्लू - गवेषवं, शोधवं.
तस्-वीबुं. रेहू -शोभवु.
मुर् - हसवाथी विकसकुं.
अतिरिक्खाओ पडन्ती विज्जुला नवले एकले अनणे दुहावावेइ |
मग्गमलम्बिअ रमिउं चलन्ताणं जणाणं सम्मं होहिए ।
::
दक्षिणो मणूसो लहुत्तो वयत्तो चिप सेयाय धम्मं मणए ।
गुरुगा अप्पणयं कलाणं समत्ता लोआ कारन्ति ।
सूरा लोअम्मि अवहुआण
जीव दिन्ति ।
समरङ्गणम्मितसन्ता जणा
लोएहिं अहमा वृच्चन्ते ।
समरगणे रेहन्ता पुरिसा भूमीए मज्झिमा वृच्चन्ति ।
निवो अन्तेउरं रक्खावेड़ |
मज्झिमो जणो पुप्फेणं वद्धाविज्जइ । उसे खिवन्तं भाणुमन्त्राम् ।
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( १०५ ) अम्हकेरं संमुहं दीवो तेअवइ । । मुक्खमहिलसमाणा जणा उत्तिजसरस वोल्लिरा पडुणो पुरिसा
मा बोल्लिन्जन्ति । हरिसं करावही। वीसासं दाऊण थूणा देक्खन्ताणं केत्तिलं जलं पिज्जाविहिइ ।
जणाणं घणं धणं चोरन्ति । एत्तिलं घयं अस्थि ।
चक्कवट्टी चाउरन्तं धम्म सुणिऊणं जेत्तिलं धणं सिहइ तेत्तिलं दाहं ।
रजं चयइ। तंसम्मि भाणम्मि मुल्लाविमु । | वम्हणा परोप्परं पत्तलम्मि : वयंस ककोडं जेमावही।
मुंगावंति। (तओ) बे घोडा उपर चडीने गाम | काश्यप ऋपिए लोको वडे धर्म जाय छे.
पळायो. (ह) तमारीचोपडी जोवामाटे ल..
शिव शरीरने चामडा वडे ढांकेछे. चोरोए राजानुं धन ह[. पतिने नहि देखीने ते स्त्री विलाप
करती हती. कूतराना पूछडानो गुच्छो लांबो |
हतो.
सिंहथी डरीने हुँ घरमा पेसुंछु. (a) श्वास लेता माणसने हाथी । एक समयमा स्त्रीन रोवू सांमळी
उपर चडावे छे. राजाए नोकरोवडे पूछाव्यु. घर उपर रमती दीकरीने साप धनवाळा माणसो धननेमाटे अधम उस्यो .
कामो करावेछे. राजा पोताना परिवार सहित मुनिने तेणे) कपटथी राजाने मराज्यो.
वांदवा माटे गयो. । राजाना शरीरमा तेणे अमृत अभाइओ! स्नेह दुःख कारण छे.
डाड्यु, विनयधर्मसूरिने लोको मुक्ताफ- | हे माता! भाइने दीक्षा ग्रहण
ळथी वधावेछे. करावो, जेथी तमे अने भाइ खाए पाताना पतिनविष भरखाव्यु.
सुखने अनुभवशो. पारकी स्त्रीने इच्छता माणसो पो- सामायिक करावतो श्रावक पुण्य ताना आत्माने नरकमां पाडेछे..
एकटुं करेछे.
14
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( १०६ ) पंडितोवडे मोहमां मंझाता पुरुषो । वीरचन्द शेठ शाळामां भणनार.
वाळको कहेवामां आवेछे. विद्यार्थीओने रोज जमांडेछे. (तमे) तमारा शरीरने वैद्यो वडे | संसारमा पडता प्राणीनुं रक्षण
__ पोपावो. | करवामाटे मुनिओ उपदेश आपी (ई) मरीने पुण्यवडे देवपणाने । दीक्षा ग्रहण करावेछे.
पामीश. | अभिमानथी ज्ञान दूर नासेछे. (१) तमारु कल्याण कराववा माटे (ते) क्रोधवडे नरकनुं बारj ईश्वरने पूजीश.
. उघाडेछे. । लाम लोभने वधारेछे.
पाठ २३ मो. संस्कृतमा जेने अन्ते ' अन् ' होयछे एवा केटलाएक
पुंलिंग नामोनां प्राकृतमा रूपाख्यान. आवां नामो प्राकृतमा अकारान्त लेखायछे, जेमके(सं० राजन) राय अथवा, रायाण, (पूषन) पूस अथवा पूसाण; (श्वन) स अथवा साण विगेरे...' ' आ (अकारान्त तथा आणान्त) नामोनां रूपो अकारान्त नामोनी मांफकज छे, परंतु अकारान्त नामोमां ते उपरान्त नीचे मूजय प्रत्ययो वधारे लागेछे, तेथीज फक्त ते विशेषरूपो नीचे प्रमाणे जणाचीए छोए.
. . विशेप प्रत्ययोएकवचन आ
बहुवचन आणो, इणो.
१.
"
"
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३. इणा, ण्णा ४, ६. ण्णो, आणो, इणो .
५.
७. इम्मि
एकवचन
९. राया सं. }}
२. राइणं
33 33 32
३. राइणा, रण्णा
४, ६. रण्णो, रायाणो, राइणो
11 73
५.
"
७. राइम्मि
१. पूसा
सं.
( . १०७ )
};
२. पूसिणं
राय.
पूस.
i
३. पूसिणा, पुसण्णा. ४, ६. पूसण्णो, पूसाणो, पूसिणो
५.
इहिं, ईहि, ईहि.
इणं, ईणं.
इतो, ईओ, ईउ,
ईहितो, ईसुतो.
ईसु.
बहुवचन रायाणो, राइणो.*
""
33
"1
राईहिं, राईहि, राईहि. राईणं, राहणं.
राइतो, राईड, राईओ, राईहिंतो राईतो. राईसु.
.
35
पूसाणो, पूसिणो.
"5
""
""
"3
पूसीहिं, पूसीहि, पूसीहि. पूसीणं, पूसिणं. पूसितो, पृसीउ, पूसीओ,
************ 55
21
* आ उपर कहेला प्रत्ययो महिला सघळा इकारादि तथा ईकारादि, तेमज 'पणा' तथा 'ण्णी' प्रत्ययो पर होय त्यारे फक्त 'राय' शब्दनो ' य "लोपाय छे.
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(. १०८)
पूसीहितो, पूसीसुतो. पूसीसु..
७. पूसिम्मि
नाम-(पुंलिंग). अद्ध, अद्धाण (सं०-अध्वन् )-रस्तो. राय, रायाण (सं०-राजन् )-राजा. पूस, पूसाण (सं०-पूषन् )-सूर्य. वन्ह, वम्हाण (सं०-ब्रह्मन् )-ब्रह्मा. जुव, जुवाण (सं०-युवन् )-जुवान, तक्ख, तक्खाण (सं०-तक्षन् )-सुतार. उच्छ, उच्छाण (सं०-उक्षन् )-वळद. स, साण (सं०-वन् ) कूतरो. महव, महवाण (सं०-मघवन् )-इन्द्र. +अप्प, अप्पाण ( सं०-आत्मन् )-आत्मा, जीव. सुकम्म, सुकम्माण (सं०-सुकर्मन् )-सारां कर्मवाळो. गाव, गावाण (सं०-ग्रावन )-पत्थर. मुद्ध, मुद्धाण (सं०-मूर्धन् )-माथु.
कूव-कूवो.
पंडव-पांडव. इंगाल-अंगारो.
नेरइअ-नारकीनो जीव. अवुह-अज्ञानी माणस. विद्दुम-परवाळ. वोह-ज्ञान.
वणत्सइ-वनस्पति. खग-पक्षी. . . .
हरिआल-हडताल. नारइअ-नारकीनो जीव.
रसिन्द-पारो. नीसास-नीसासो.
खल्लिड-टालबाळो. + आ शब्दनां पण रूपो पूर्वोक्त रीते छे, परन्तु ते उपरान्त तृतीयाना एकनचनमा 'अप्प' शब्दना 'अप्पणिआ, अप्पणइआ 'ए थे रूपो विशेष थाय के.
-
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( १०९ ), तस-चालवानी शक्तिवाळो जीव. निण्णय-निश्चय, निर्णय, थावर चालवानी शक्तिरहित जीव. | दुआइ-ब्राह्मण. .
नपुंसक• खइर-खेरनुं लाकडं. थीण-थीj. हिंगुल-हिंगळोक, हिंगुल. बार-बारणं. अभय-अबरख.
अंगुअ-फलविशेप. वेरुलिअ-वैडूर्य रत्नन नाम.
उक्का-उल्काविला थी-स्त्री. दिहि-धैर्य, संतोप.
स्त्रीलिङ्ग। उच्छु-शेलडी. सुण्हा-गलकंबल.
खुडिअ-तोडेलु. सन्त-थतो, होतो. थुवअ-स्तुति करनार.
विशेषणो
बिउण-वमणं, द्विगुण. नेअ-ज्ञेय, जाणवा लायक.
संबंधक भूतकृदन्त___णच्चा (सं०-ज्ञात्वा ) जाणीने. | सोचा (सं०-श्रुत्वा.) सांभळीने.
भोच्चा (सं०-भुक्त्वा ) खाइने. | बुझा (सं०-बुद्ध्वा) जाणीने.
धातुअणुप्प+विस-प्रवेश करवो. सज्ज-तैयार थg. . उव, आ-उवा+गच्छ-आवq. पडि+हा-प्रतिभान थg. लिह-लखg.
। झर-झv, टपकवू,
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णिगच्छ-नीकळg, कप्प-करप. आ+हर-खा. उपप्पड्-उडवू.
(११० ) | जअड्-झट करवं, त्वरा करवी.
अहिरेम्-पूरुं कर. . सम्+आव-समाप्त थq.
वाक्यतित्ययराणं जम्मं णंचा महवा । एत्थ नयरमहेसित्ति कप्पे ।
उवागच्छइ ।। अज्जा भोअणेण वम्हणे थिप्पागुरूणं आणं सोचा सीसा नय
वन्ति । राओ णिग्गच्छन्ति। साहुणो परोप्परं न जुझेहिन्ति वम्हणाअन्नं भोच्चा सिजाए पडन्तिा
नवि जुन्झविहिन्ति । बुहो तत्तं बुज्झा अबुहे जणे तत्तं । अंगणम्मि आहारे । .
जाणावेइ । । खगा गयणम्मि उप्पडन्ति । तसे जीवे सावगो न मारेइ, मारतं । धणं अहिरेमावही ।
पुण न समणुजाणेइ । रायाणो आउहाई सज्जावेइ । धम्मम्मि जअडन्ता जणा संसारं । पूसाणो सूसाविइ जलाणं।
___ झत्ति तरन्ति । | कूवत्तो वारीणि करिसावेइ इत्थीहिं। थीणंघयं पूसस्स तावओ हेर्से झरइ। पुत्थयं समावइ । थी विद्दमे पासिअ नीसासे मेल्लइ । । घडं घडावेइ । उच्छाणा सइ भार वहन्ति । । इह सन्तो तत्य सन्ताई जिणाण विजो रसिन्दं पिज्जावेइ ।
निम्बाई वन्दामि। वीरं अच्छरसाओ खुम्भावन्ति । हेमचन्दस्स कन्वम्मि पडिहाइ सिन्नं समरंगणम्मि निणावेइ ।
घणं तत्तं । गायनी गलकंवल जमीनन जुवान सुतार लाकडांने पातळां • अडकेले.
करेछे.
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(१११) (तेओ) चोकमां जइने नाचती | (तेओ) दडो गंठावेछ. ___ स्त्रीने जोवा माटे उभा छे. (तमे) वेए वीरतुं स्मरण कराव्यु. हिंगुलमां अने हडतालमां जीव छे. (तेओ) वेए स्त्रीने हसावी. पृथ्वी उपर पडेली उल्काए । रस्तामां जतो छतो ते पडी गयो.
कूतराने वाळ्यो. . प्रमुनी. मूर्तिने जोइने तमारं मन राजाना मुकुटमां वैडूर्य रत्न छे. . उलस्यु... नारकीनो जीव बहु रोवेले. तेवडे) घडो माथामां मूकायो. स्तुति करनार धन मेळवेछे. वधालोको सारा कर्मवाळाने जुएछे. पंडितो तत्त्वनो निर्णय करेछे. (). अज्ञानीने पूनावीश नहि. शेनाना दर्शनथी बमणुं पुण्य थायछे. हुं मणीलालने घोडा उपर अबरख अने पत्थर माटे लोकोवडे | चडावीश.
जमीन खोदायछे. घोडा उपरथी उतरीने नीचे पडेलो पांडवो पण वनमां गया हता. __ माणस. नीसासो मूकेछे.. ब्राह्मणो शेलडी खायछे. फूलनो गंध फेलायछे. (त) गुरुनी सामे जवा माटे घरथी | एक वणकरे पट कर्यो. वहार नीकळ्यो.
कल्याण थाओ. (तेणे) रस्तामा प्रशंसा करावी. .... .
. . . . . "सवाल... .. .... १. 'इअ, अने केर' आ चे प्रत्यय मांहेलो क्यो प्रत्यय नामने ___ लागेछ अने क्यो धातुने लागेछे ?, वळी तेना अर्थ सहित
उदाहरण आपो. २. 'घटपणुं' तेनुं प्राकृत शुं थाय ?.
३. 'जुव' शब्दनां रूपो लखो. .. ४. राय. ,अथवा रायाण ( राजन्. शब्द प्राकृत ) शब्दोनां
रूपो लखो. ५, 'अप' शब्दना तृतीयाना एकवचनमां रूपों लंखो..
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( ११२ )
पाठ २४ मो. . केटलाएक सर्वनाम (पलिंग ). सव्व ( सर्व ), अण्ण ( अन्य ), अण्णयर ( अन्यतर), इअर ' (इतर ), कइम (कतम ), नेम ( अर्ध), इक, एग (एक), सम (सघळं), सिम (सघळू), पुन्य (पूर्व), उत्तर (उत्तर), अवर (अपर ), दाहिण, दक्षिण ( दक्षिण), अहर ( अधर), अन्तर (अन्तर ), आ सर्वादि शब्दोनां रूप अकारान्त पुंलिंग नामोनी माफक करवां, परन्तु जे स्थळे विशेषता छे ते विभक्तिना प्रत्ययो वतावीए छीएप्रयमा वहुवचन, ए. जेमके- सन्वे 'चतुर्थी तया पठी बहुव०, एसि, ण. जेमके-सव्वेसि, सव्वाण. सप्तमी एकवचन, स्सि, म्मि, त्य, हिं, जेमके-सव्वसि, सव्वम्मि,
सम्वत्थ, सव्वहिं. वाकीनी विभक्तीओनां रूपो जिनशब्दनी नेम जाणवां.
स्त्रीलिंगआ उपर कहेलां सर्वनामोनां आकारान्त तथा ईकारान्त स्त्रीलिं.गनां सघळां रूपो आकारान्त स्त्रीलिंग' तिसला' तथा ईकारान्त स्त्रीलिंग 'सही' नी जेवां थाय छे.
नपुंसकवळी उपर कहेलां. सर्वनामोनां नपुंसक लिंगनां प्रथमा, संवोधन तथा द्वितीया विभक्तिनां रूपो अकारान्त नपुंसकलिंग 'वण ' नामनी जेम वनाववां, तया नाकीनां रूपो 'सच ! पुंलिंगनी माफक जाणी लेवां.
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(११३)
नाम-(पुंलिङ्ग). निसिअर-चंद्रमा.
सिरीस-एकजातनुं फूल. मिलिच्छ--म्लेच्छ, यवन. वम्मिअ-फडो. नरिन्द-राजा.
मोग्गर-मुद्गर. ईसर-ईश्वर.
कोन्त-भालं. बहेडअ, बहेडय-बहेडं. पोत्थय-पुस्तक. मूसअ-उंदर.
उम्भ-स्तम्भ. तित्तिर-तेतर. . छुर छुरो, अस्तरो.. जहिट्ठिल-युधिष्ठिर. छार-खारो. ओझर-झरो.
दच्छ-डाहो. . करीस-छा'.
सिन्दूर-सिंदूर. · दोवयण-द्विवचन.
नेड-माळो. तोंड-मोहुँ. मोड-मुंडो. पोक्खर-पाणी. पोग्गल-शरीर.
नपुंसक
कोऊहल ) कोउहल कुतूहल. कुऊहल दुऊल दुअल्ल वस्त्र, दुकूल 'दुगुल्ल (आप))
वच्छ-छाती. । नाम-नाम.
गलोई-गळो. मोत्या-मोथ.
स्त्रीलिङ्ग| मच्छिआ-माखी. कच्छा-काख.
15
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( ११४) विशेषणो.:.:
साहसिक्षम..
जिण्ण-जीर्ण.. .. कोंढ-कुंठ.
सुबह सूक्ष्म. .
छय-तूटेल,
. अव्ययकिंचि-काइ पण.
. . धातुआइ-वापरवं. . . .
णिल्लम-उल्लस. विरमालू-वाटजोवी.
वोल्-जबु. आयर-आचर.
वाक्यसन्वे मिलिच्छा मंसं आअड्डन्ति। | ईसरस्स नामं गेण्हिमो । नरिन्दा कोन्ताई खिवन्ति । मूसआ वहेडसे आहरिस्सन्ति । आयकवन्ता नणा गलोई पिजन्ति। तित्तिरा खित्तम्मि धावन्ति । . सवेसि निसिअराणं तेअहि समुद्दो | पोक्खराउ ओझरो झरइ ।
जिल्लसइ । मोग्गरेहिन्तो तसा तसन्ति । एगा मच्छिा छुरस्मारि निलइ। करीसाणमग्गिणा मोत्या डहइ । सन्चाई पोग्गलाई निण्णाई अस्थि । वच्छम्मि सिरीसस्स हारो छज्जा । अण्णे मुणिणो अद्धाणम्मि वोलन्ति । | इच्छा किंचि वि कोऊहलं न रयणीए सव्वहिं नडम्नि पक्षिणो
देवखन्ति । उंबन्ति । इत्थीओ सुण्हेहिं दुअल्लेहि तोण्डं इअरे अहिणो वम्मिहिन्तो
ढक्कन्ति । __णिग्गच्छन्ति । | बहुणो वाला कच्छाए पोत्ययं खिविभ कोदो जणो उम्भस्स सम्मुहं परीइ। .. .. सालाअ जन्ति ।
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( १९६
दुणि असिविणा नहिट्ठिलं वन्दन्ति । दुहिआणं नराणं छयम्मि सरीर हत्थीणं मत्थयम्मि सिन्दूरसमूहो
छारो पडइ ।
. भिसीअ । सुहायारं आयरन्तु ।
{
केटलाएक उंदरो रात्रिए घरमा | म्लेच्छो झाडो कापवा माटे वनमां
दोडेछे अने नाचेछे.
भाइ भाइनी वाट 'जोशे. ' बाणोवडे राजाए' पोताना नीवि -
·
तनुं रक्षण कर्यु.
गरीब माणसो जाढा वस्त्रोवडे
शरीर ढांकेछे. ईश्वरना गुणोने सांभळीने भक्तोनं
मन आनंदवाळु थायछे.
"
वैद्यो गलोने पाणी पायछे. माणसो तेतर ने लडावेछे.. लोको झरामांथी निर्मळ पाणीने
1.
;
गया.
ब्राह्मणो मुद्गरोवडे बहेडाने भांगेछें. थांभला उपर राखेल पुतलिओ गीत गायछे.
, घरे लइ जायछे. ऋपिओ द्विवचनने वापरता नहता.
संसारना सुख भोगवीने राजा युधिष्ठिरे साधुपणं लीधुं. सिन्दूरखडे उंदरोनां मोढा लाल माणसो नदीमां पडीने तरेछे. ' बालको खावा माटे रोज सवारे रोवेछे.
थायछे.
सारां पुत्रो / पिता अने मातानी
·
सेवा करेछे.
पाठ, २५ मो.
सर्वनाम - चालु.
'क' (पुंलिंग)•
1
क ' ( किं )=कोण, शुं.
आ शब्दना तमाम रूप ' सब्ब' शब्दनी माफक छे परन्तु जे
कांइ विशेषछे ते बतावीए, छीए
rath..
..
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तृतीया एकवचन-इणा, इण, जेम-किणा, केण. पञ्चमी , -म्हा, इणो, ईस; (बीजा प्रत्ययो 'सध:
शब्द माफक) जेम-कम्हा, किणो, कीस (वीजा 'सन्च । माफक) षष्ठी एकवचन-आस, स्स, जेम-कास, कस्स, , बहुवचन-आस, एसिं, ण, जेम-कास, केसि, काण. सप्तमी एकवचन-आहे, आला, इआ; (वीजा 'सन्च' माफक ) नेम-काहे, काला, कइआ; ( वीजा 'सव ' माफक)
स्त्रीलिङ्ग 'का, की ' आ सर्वनामनां रूप ' आकारान्त तथा ईकारान्त' स्त्रीलिंग नामोनी जेवांन छे; पण विशेषछे ते कहीए छीए
'की' शब्दनां प्रथमा तथा द्वितीयाना एकवचनमां तथा षष्ठीना बहुवचनमां रूपो थतांज नथी वळी 'की' शब्द थकी षष्ठीना एकवचनमा 'स्सा, से, आस' आ त्रण प्रत्ययो वधारे लागेछे जेमकिस्सा, कीसे, कास (वीनां 'सही' प्रमाणे)
नपुंसकनपुंसकमां 'क' शब्दनुं रूप.प्रथमाना तथा द्वितीयाना एकवचनमा 'कि' थाय छे. अने वाकीनां वध रूपो 'सव । नपुंसक लिंगनी माफक समजवां. .
एकवचन १-कि २-, ३-किणा, केण
'क'-(नपुंसकलिङ्ग).
- बहुवचन काई, काइँ, काणि. " " केहिं, केहि केहि.
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४-६-कास, कस्स .. कास, काण. ५-कम्हा, किणो, कीस, कत्तो, काउ, काओ, .
कत्तो,काओ, काउ, काहि, काहि, केहि, काहिंतो, केहितो, काहिंतो, का , कासुंतो, केसुतो. ७-कस्सि, कम्मि, कत्य, कहिं केसु.
थव-स्तुति. . सिलिम्ह-श्लेष्म. हणूमन्त-हनूमान. . वाऊल-पवननो समूह. सिंगार-शृंगार. कोहवाल-कोटवाल.
नाम-(पुंलिङ्ग).
मिच्चु-मृत्यु. जामाउअ-जमाई. वुन्दारय-देव. भइरव-देवविशेष, भैरव. मंगलविजय ।
विशेषनाम. मयिन्दविजय
.
नपुंसक
तम्ब-तांबु.
मोल्ल-किंमत. तूर-वाजीन.
कलत्त-स्त्री. तोणीर-माथु. . .
माउक-नरमाश. तम्बोल-तंबोल, पान.. घुसिण-चन्दन.. वृन्दावण-वृन्दावन.
सइन्न-सैन्य. मुणाल-हंसने खावानो तंतु. दइअव-दैवत. केसर-केशर.
पम्ह-पांख. सिन्धव-सैन्धव, मीहुँ. . . . दइन्न-दैन्य, गरीबाइ.
। इन्दिअ-इन्द्रियः
वज वज.
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सण्णा - संज्ञा..
जरा-घडपण.
किसरा - खीचडी.
रिद्धि-धन, ऋद्धि. कइ - क्रिया, कृति.
उड्ढ - स्तव्ध. दिण्ण- दीधेलं.
}
घट्ट - घसेलुं.
तबिअ}तपेलं, गरम थएलं.
मउ-नरम.
उभ उद्ध
ऊंचं.
कोआसू - विकस. वि+ वह् - विवाह करवो. तच्छू - पातळं करवुं.
( ११८ )
स्त्रीलिङ्ग
पउत्ति - प्रवृत्ति.
पुत्तलिआ - पुतळी.
सडूढा } श्रद्धा.
सद्धा
दिलिआ - आनंद.
विशेषण -
मट्टिआए वि बहुं मोलमहोसि । किस्सा इत्थीए मणम्मि माउक्क
वाहित्त-बोलेल.
पर - त्रीजुं. उक्किट्ठ- उत्कृष्ट, ऊंचुं.
धिट्ठ-धी, धृष्ट.
भविअ - भव्य, सुंदर. वन्दणिज्ज - वांदवा योग्य.
कास
किंस कृश.
धातु
सामग्ग् - चोंट . घोट्ट - पीवुं.
वाक्य
भवि सड्ढा ! जिणधम्मे उक्किट्ठा
रिद्धी अत्थि ।
मत्थि ? | | हणूमन्तो वरेण पव्वयं तोडीअ ।
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(( ११९९ ))
किणा मिच्चू निणिज्जइ ? | सन्नं काला गच्छिहि । समणो पिव सावयो हवइ जम्हा ।
घुसिणं वि अग्गिणा तविअं होइ ।
विइहा जणा सव्वे मस्से संसा
राओ तारन्ति ।
किसरा सोल्लिज्जइ । जामाउआ तम्बोलं दिन्ति । उभो कोट्टवालो भइरवस्स पासे थवं बोल ।
|
जणा जराए जिण्णा तवहि आसाए
जह सिलिम्हम्मिं मच्छिआ सामइ, तेहेव संसारे जो सामग्गड़ । किसराए सिन्धवं खिवन्ति । वृन्दारया छुहं घोट्टन्ति । भविआइ कईइ पउत्ती करणिज्जा । को वि नरो मऊ नत्थि, अवि सव्वे
धिट्ठा अत्थि ।
न विवहिहिमि ।
तोणीरा वाणे करिसिअ भूमीए खिविऊण, काउसग्गम्मि अच्छा । इन्दिआई जिणिउं वन्दणिजो वीरो समत्यो आसि ।
न जुण्णा । ¡
पर्वतमांथी तां निकळेले. हनूमान वांदरा न हता पण साधु
|
पुरुप हता.
जेम मुखथी कहेलं तेम करनारा माणसो जगतमां थोडा छे. स्त्रीओ जगतने दुःख देवा जन्मे छे. पिठो माणस गरीवाईथी पीडायो. खारा पाणीथी मीटुं थायछे. वे पांखोवडे पृथ्वी उपर चालतो हंस मृणालने खायछे.
जिनेश्वरे धर्मने संभळाव्यो.
वाजांओना शब्दो कानमां भराया. | मंगलविजयमुनि अने मयिंद गरीब माणसो सांजे खीचडीने जमशे. ( मृगेन्द्र ) विजयमुनि विजयधर्म - मुखनो शृंगार चोळ छे.
सूरिगुरु पासेथी पञ्चकखाण लेछे. घडपण मृत्यु पहेलुं चिह्नछे. खेतरमां केसरना झाडो विकसशे. पवनना समूहो वायछे. जीवनी कोइ पण संज्ञा कर्मथीज थाय छे. स्तब्ध माणसो कांई पण काम करी शकता नथी.
सोनुं माटीमाथीज नीकळयुं. साधु पुरुषो पोतानी स्तुति करता नथी. दीघेल दाननं वमणुं फल थशे. ऋपिओए पापने पातलुं कर्यु.
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( १२०) पाठ, २६ मो. सर्वनाम-चाल.
ज. त. पुंलिंग. ज ( यत् )-जे, *म, त, + ण (त) ते, आ घेउ शब्दनां रूपो पुंलिंग मां 'क' सर्वनामनी माफक थायछे. परंतु विशेष एलुंज के'क' ने लागता इणो तथा ईस, प्रत्यय आ वन्ने शब्दोने लागता नथी.
'त' (तद) शदना पष्ठीना एकवचनमा ‘से' तथा ' बहुवचनमा सिं' तथा पञ्चमीना एकवचनमां 'तो' एटलां रूपो वधारे वपरायछे.
स्त्रीलिंग. जा, जी ( यत् ) सा, ता, तीणा (तत ) आ शब्दनां वां रूपो ' का तथा की ' नी माफक यथायोग्य जाणी लेवां.
नपुंसक. :ज तथा त' शब्दनां तमाम रूपो नपुंसक 'सव्व' शब्दनी माफक थायछे.
नाम-पुंलिंग. वइभ-वैदर्भ.
निहस-कसोटी.
जडिल-जटावाळो. चहत्त, चेत्त-चैत्रनामनो मास.
लिम्ब-लींवडो.
उवसग्ग-उपसर्ग, धातुनी पूर्वमां कइलास
जोडातो शब्द.
केलास
पहाडनु नाम.
* आ शब्द केवळ प्रथमाना एकवचनमा पुलिंगमा ज वपरायछे. + आ शब्दनां रूपो क्वचित् ज वपरायछे. S 'सा' शब्द केवल प्रथमाना एकवचनमांज तथा 'णा' जवलेज वपरायछे.
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सीमरविंद
( १२१ ) कोञ्च-पक्षीनी नाति विशेप| पईव-दीवो.
फणस-फणस सीहर।
कमन्ध-घडवगरन शरीर. नाह-नाथ.
इन्दविनय-विशेषनाम. पिसल-पिशाच.
परिसह-दुःख.
अइसरिअ-ऐश्वर्य. कड़अव-कपट. वेर-वैर. सररह-कमल. आवज-वामुं. जोव्वण-यौवन. सउह-घर. मउण-मौन.
नपुंसक
पडरिस-पौरुष. सयड-गाईं, शकट. . मरगय-मरकत, रत्ननु नाम. जहण-साथळ. मडय-मुडदूं. रयय-रूप. . कवाल-कपाल.
पुलोमी-इन्द्राणी. जंडणा-यमुना. • पडण्णा-प्रतिज्ञा.
स्त्रीलिङ्ग
सहा-सभा. कथा-गोदडी.
-
-
समागय
पास गएलं.
विशेषण
पेज-पीया योग्य. कड़वाह-केटलं.
उवगय। काहल-चीकण, कातर.
16 .
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(१२२)
अव्यय
अन्तुन्न । परस्पर.
अन्नन्नं ।
पह
धातुकील-म.
वंच-उगवू. लि - लख.
सं+मिल्ल्-मळवू. तव्-तप.
समा+चर्-आचरण कर. हा-हीन थर्बु.
उव+इ-पामg. पीट-पीडबु.
पाल-पालवू. तम्मि केलासे जडिलो संभू तवं । अइसरिअवन्तो नाहो पोत्ययं तवी।
लिहावइ । तलायम्मि सररुहेहिं पुलोमीओ फणसम्स फलं संमिल्ली।
कीलन्ति । | रययम्मि मरगयं छज्जा । पुत्तलिआ पईवं हत्यम्मि घरइ। | नाहो निहसेणं सुवण्णं परिक्खइ। चेत्तेमासे लिम्बो थाणू पिव दीसइ। परिसहा साहुणो सरीरं पीडन्ति । उवसग्गरस बहुणो अत्या होन्ति । | जहणे जलस्स सीहरं समागयं । कवालं कमन्धो च पिहं हवीअ । । सयढं जणे गामं गमावेइ। काहलो पुरिसो सउहम्मि वि भयं । कथाए सा सव्वा समा लोडिहिइ ।
___ पावइ । अन्नन्नं केण वि वेरं न करणिज । जंउणाए सरिआअ मडयं तरह। । तेण जा पइण्णा चित्ते कया तं जोवणे वि सो मउणं पालेइ।
तहेव सो पालि। पररिसवन्ता जणा कइअवेण पावं हाहिह ।
सन्ने वञ्चन्ति ।
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હી તારાભાઈ આર્યજી સિન્હાત ટ્રસ્ટ ( १२३17 सभ लेट.
वीर त्रिशलाना उदरथी अवतों. ते गाडाने माणसोए यमुनामांथी कपालमां नानु तिलक शोभशे.
.. खेच्यु. पूर्वकालमांवधा माणसोए अन्योऽन्य लींवडो गाममां अने जंगलमां पण प्रीति राखी हती.
उगेछे. ते नदी पीवा योग्य छे.
| पौरुप विना कर्म काइ पण करतुं क्रौंचने वचाववामाटे ते माणस
नथी. दोड्यो.
इन्द्राणीने घरे वाजां वाग्यां. माथा विनाना धडथी लोहीनीकळेछे.
मौन धरीने वेठेला विनयधर्मसूरि रात्रीए भमता पिशाचो माणसोने
__ राजा साथे पण वोल्या नहिं. पीडेछे.
| स्त्रीना साथळ केळनी सरखा होयछे. ते पुरुप सभामां गोदडीवडे शरीर
टांकीने सारं बोलो वैदर्भ दमयन्तीने वोलावी.. केटलाएक बीकण माणसो कोइन । इन्द्रावनयमान घणा कि
| इन्द्रविजयमुनि घणी विद्या पामीने पण भलु करता नथी. पण अभिमान. नथी करता. वाणिआनुं पहेलं काम कपट छे. | कोण मरणने नथी पामतो? जे जीव साधु पुरुषोने ठगशे तेज | तलावथी पाणिना विन्दु निकळेछे.
जीव दुःख अनुभवशे.
-
-
पाठ, २७ मो.
सर्वनाम-चालु.
अमु ( अदस् ) =आ, पेलं. आ शब्दना रूप पुंलिंगमा ' भाणु 'जेवां, स्त्रीलिंगमा 'धेणु' जेवां तथा नपुंसकलिंगमां महु 'जेवां थायछे, परंतु ते उपरान्त प्रथमाना एकवचनमा 'अह' एबुं एक रूप प्रणे लिंगमां विशेष थायछे, तथा सप्तमीना एकवचनमा 'अयम्मि तथा इमम्मि' एवां वे कपणे लिंगनी अंदर विशेष थाय छे.
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(१२४ ) अमु-पुंलिंग.
बहुवचनं.
एकवचन. १ अमू, अह.
अमुणो, अमवो, अमओ, अमउ,
अमू. अमूसु, अमूसुं. इत्यादि.
७ अयम्मि, इअम्मि,
अमुम्मि.
नाम-(पुंलिङ्ग). वंस-वंश.
मज्झन्न-मध्यान दहमुह-रावण.
वग्ध-वाघ. पार-किल्लो.
परामरिस-विचार. गिम्ह-ग्रीष्म ऋतु.
कम-परिश्रम. अन्तप्पाय-मध्यमां पडवू. पिलोस-दाह. मग्गसिर-मासन नाम.
चारण-चारण. मेलं-मेळो, सभा.
राउल-राजकुल. उण्हीस-पाघडी. कम्मस-पाप.
नपुंसक
आणवण-जणावg. बरिह-पीछु. कोडिअ-कोडीयु, दीपक राखवानु
पात्र.
कुल्ला-धोरीयो, नीक. आणत्ति-जणावg.
स्त्रीलिङ्ग
| मेइणी-जमीन, मेदिनी. | सासू-सासू..
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हिरी - लज्जा. सिप्पी - छीप.
निच्चल-निश्चळ.
सेर - विकसित..
तिक्ख - तीखुं.
मणोज्ज - सुंदर.
अप्पज्ज - आत्मज्ञ.
अम्बिल - खाटुं.
एहि हमणां
एताहे
( १२५ )
एक्कसि राउल मग्गसिरे मेले
मामी - मामी.
सलाहा-श्लाघा.
विशेषणो
अव्यय
किलिट्ठ-कठण.
पुरिम - पूर्व.
रम्म - सुंदर,
दुइवज्ज - दैवने जाणनारो. इंगिअज्ज - इंगितने जाणनार.
धातु -
अव + लम्बू - अवलंब, आशरो लेवो. । अव + मणू-तिरस्कारखं.
अलं+कुण-शणगारखं.
कीलू - रमवु.
वि+रम् - अटक. :
कीलिहि ।
एक्कसिअं
एक्कसि कोइ दिवस. एकइआ
gha
वाक्य-
गिम्हे उउम्मि मज्झने वि साहूणो बहुणा कमेण सिप्पीए मोत्तिआई
उहीसं न धरन्ति ।
पाविज्जन्ति ।
दइवज्जा णरा कजं समावन्ति, अवि अन्तप्पायं ण कुणन्ति ।
1
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________________
( १२६ )
चारणा परिमल्स वंसस्स मणोज्जे गुणे गायन्ति ।
दहमुह पारमवलम्बीअ । सासू कोडिए दीवे काऊणं घरं
पिलोसो सव्वमाखइ |
चिज्जत्थीहिं बहुं तिक्खं तह अ
अलंकुणड़ ।
त्रिलं वत्युं न जेमीअइ ।
आयरिसम्मि सासूए मुहं देक्खि
अप्पज्जा किलिट्ट्ठाणि कम्मसाई न । मोरो वरिहाई चान्नन्नं छज्जन्ति । करन्ति । | साहुणी सलाहं पि अवमणन्ति । दहमुहस्स वि दहाई मुहाई समरे रामस्स वन्धू छिन्दीअ । चारणा हिरीए रहिआ हवन्ति । वग्घो सव्वे जीवे डरावेइ । कम्मसाउ विरम |
ज्जइ ।
कुल्लाए जलं नीहरिऊण रुक्खाण
मूलम्मि गच्छइ ।
इंगिअज्जा एहि थोका अस्थि । सो तं परामरिसं करावे |
मामी सेराई रम्माई पुप्फाई मेइ-1 णीअ चिणिहि ।
रावणना मुकुटमां पीछां देखातां । पोतानी प्रतिज्ञामां निश्चल माणसो हतां. कार्यमा जय पामेछे. निश्चल माणसो एकज काम पुरुं ते चारण शरम विना जेम तेम करे छे. वोल्यो. 'धर्मनुं जणाववुं' ए काम पृथ्वीमां उत्तम छे. वाघथी शूर माणसो थोडुं पण
ज्यारे त्यारे माणसोन भूले छे. विजयधर्मसूरिए मुनि इन्द्रविजय
नामना इंगितज्ञ शिष्यने भणावी पोतानी पासे राख्या. मागशर मासमा पर्वतो उपर वरफ
डरता नथी.
सारा माणसो पापने तिरस्कारे छे. (हूं) कोइनी साथे रमीश नहि. तेणे मने शणगार्यो. ते माथी पावडी फेंकतो हवो.
होयछे.
मध्याहनमां पण साधुओ नदीकांठे सूता हता.
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___(१२७ ) जे पाणिनुं टीएं छीपमां मोती थाय । कोइ दिवस महावीरदेवे आ देश . छे, तेज पाणिनुं टीपु सर्पनां । . पवित्र कर्यो हतो.
____ मुखमां विष थायछे. | आ मेलामा घणां माणसो मळ्या गुण अने दोपोनुं कारण पात्र छे.
हता. ते विचार विना काम करीने रोयो. । तेनीमामी धर्मने आराधीने स्वर्गगइ.
पाठ, २८ मो.
सर्वनाम-चालु. *अ, ण, इम (इदम् )- आ.
पुंलिंग. 'इम' शब्दनां रूपो सामान्य रीते 'सच' नी जेवां छे, परंतु विशेष ए छे के प्रथमाना एकवचनमा 'अयं, 'द्वितीयाना एकवचनमां 'इणं,' सप्तमीना एकवचनमा 'इह' षष्ठीना एकवचनमां से' तथा बहुवचनना 'सि' भाटला रूपो बधारे थायछे तेमज सप्तलीना एकचचन महेनः " स्थ, हि" आ वे प्रत्ययो लागता नथी.
. स्त्रीलिङ्ग-इमा, इमी. आ शब्दोनां रूप आकारान्त तथा ईकारान्त स्त्रीलिंग जेवांज छ परंतु विशेष ५ के प्रथमाना एकवचनमा इमिआ, तथा तृतीयाना बहुवचनना 'हिं प्रत्ययमा 'आहि आ के रूपो वधारे थायछे. जेमकेप्रथमा एकवचन-इमिआ, इमा, इमी, इमीआ. तृतीया बहुवचन-आहि, इमाहि, इमीहि, इमाहिं विगेरे.
-
* “अ' शब्द पुंलिंग तथा नपुंसकलिंगमां तृतीयाना बहुवचननो 'हि' प्रत्यय पर छतां, सप्तमीना एकवचनना 'स्सि' प्रत्यय पर छतां, तथा षष्ठीना एकबचननो ' स्स' प्रत्यय पर छतांज फक्त वपराय छे, जेम एहि, अस्सिं, अस्स.
'ण' शब्दनां रूप फक्त द्वितीया तथा तृतीयामाज त्रणे लिंगमां थायछे.
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. ( १२८)
नपुंसकएकवचन.
बहुवचन. १. इणं, इदं, इणमो. इमाई, इमाइँ, इमाणि. २. " " "
शेष रूपो पुलिंग प्रमाणे.
मत्तंड-सूर्य. कुक्कुड-कूकडो. वासर-वार. सत्त-जीव. वसन्त-वसन्त. कप्पूर-कपूर. पंक-गारो, कचरो. थण-स्तन. दन्त-दांत. उअन्त-समाचार. अवसर-समय. अन्तेवासि-शिण्य.
नाम-(पुंलिङ्ग).
विवाह-विवाह. उवल-पाणो, पत्थर, आमय-रोग. सेअ-परसेवो. केस-वाळ. खल-लुचो. दुम-झाड. । हंस-हंस. दाणव-राक्षस. मूढ-मूर्ख. अमच्च-अमात्य, मंत्री. अहीसर-तीर्थकर.
गोउल-गोकुल. तिमिर-अंधकार. वित्त-धन.
• नपुंसक.
तवणिज-सोनु, सुवर्ण. छत्त-छत्र.
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करिणी-हायणी.. वीणा-वीणा. गोआवरी-गोदावरी. तिसा-तरस, तृपा.. छल्ली-छाल. तुलसी-तुलसीनुं झाड. गुहा-गुफा. लीला-क्रीडा.
( १२९ ) स्त्रीलिंग
कत्यूरी-कस्तूरी. तणया-छोकरी, पुत्री. वसहि-घर. चूला--चोटली. सिहा-चोटली, शिखा. वाला-बालकी. इच्छा-इच्छा. तरंगिणी-नदी..
घोर-भयंकर. दुठ-दुष्ट. कढिण-कठण.
विशेषण
| चउर-चतुर, होशियार.
जडिअ-जडेलु, संवद्ध. | सिअ-धोलू.
नि+व-पार्छ फरवू. पादा-देवू. परि+णे-परण.
धातु
णे-लइ नबुं. सं+वड्दू-वध. पार्-शकवू.
.
वाक्यकुक्कुडोइमंजणाण समूह जग्गावेइ । | चउरो इमो हंसो समाचार पदेइ । गोआवरीए सेअवन्ता सत्ता प्रहा- | तवणिज पीअं सिआ।
अन्ति । | पंकाउ नीहरि अपारन्तं इत्यि तुलसीए छल्ली वम्हणेहिं पवित्ता | हत्यिणी आकरिसइ । . . . . कहीअइ । ) इणं गोउलं तेण पालिजइ ।
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( १३० ) तवं तवन्ता इसिणो गुहाभ चिभ | जहोवलो जले बुड्डइ, तह धम्मेणं
निवसन्ति ! | रहिओ जणो संसारम्मि बुड्डुइ । मत्तण्डस्स पडमाणे तावम्मि अय | मे मदा अन्तेवासार तिमिरा दीणो जणो तिसाए पीडीअइ ।
निवट्टी। इमाए वसहीए वसन्तो इमो पु गीवाए थणाणं दन्ताणं चोवरि रिसो वीणं वयावेइ ।
इत्थीहि अलंकारा जडिआ। वसन्तम्मि उउम्मि इमिआ तणया
खलो अवसरं चुक्किहिइ ।
परिणे।। दुलो मणुओ वासरे वि अलंकारे | अमचो रण्णो धणं णेइ ।
चोइ।
केण वि सुहमहिलसन्तेण विवाहो कत्यूरीए कप्पूरस्स च गंधो भु
न करणिज्जो। वणम्मि वित्थरइ । । चउरा णिचं जिणन्तु । कस्तूरी मृगनी नाभिमां उत्पन्न | धनने माटे माणसो दुःखने पण थायछे.
जोता नथी. ब्राह्मणो माथामां मोटी चोटली | काळी कस्तूरी पण गुणवाळी छे.
राखेछे. | आंवानुं झाड ग्रीष्मऋतुमा फल धोळू छत्र हाथमा धरिने आ नग
आपशे. रनो राजा वनमां जायछे. | सघळा हंसो दूधमांथी पाणी जुएं 'झाडमां जीव छे ए प्रमाणे वा करी (जुएं करवामाटे) शकेछे.
ह्मणो पण मानेछ. | आ वालिकाए स्तनमाथी आवता रोगवाळो पुरुष शान्तिनेमाटे कु- |
दूधने पीधं. देवने पण पूजे. | कपूर पाणिमां पण वळेछे. राक्षसो पण देवनी जातिमां कहेवायछे. ते झाडनी छाल उतरावेछे. झवेर अने वेचर बन्ने सहोदरो छे. | आ मुनिनुं नाम वल्लभ (वल्लह) गोदावरी नदीमां न्हाएला माण
विजयछे. सो पण पाप जतुं नयी. | आ छोकराओनी चोटली वधीछे.
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( १३१) ऊंटनी डोक लांबी छे. ... पानाचन्द ! आ संसारमा एक हाथणीना दांत धोळा अने नाना पण सुख कोइ पण जीवे अनु
. . . . होयछे. .. भव्यु नथी.
पाठ, २९ मो.
सर्वनाम-चालु. एअ (एतद् आ.
आ शब्दनां सघळां रूप ' सव्व । शब्दनी जेम थायछे. परंतु आटलां नीचेनां रूपो वधारे थायछे
प्रथमा एकवचन- एस, इणं, इणमो, एसोः तृतीया ,
एदिणा, एदेण. पञ्चमी ,
एत्तो, एत्ताहे.
एत्थ, अयम्मि, ईअस्मि, षष्ठी ,
" बहुवचन- सिं.
वळी आ 'एअ.शब्दने सप्तमीना एकवचन मांहेना 'त्य' तथा 'हिं! प्रत्ययों लागता नथी, तेमज प्रथमाना एकवचनना 'ओ' प्रत्ययतुं रूप पण थतुं नथी.
सप्तमी ,
स्त्रीलिंग. एआ, एई. . आ शब्दनां रूपो आकारान्त तथा ईकारान्त स्त्रीलिंग. नामो जेवां छे, परंतु प्रथमाना एकवचनमा : एसा, एस, इणं, इणमो' आ चार रूपज थायछे.
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( १३२)
नपुंसक. 'एअ' शब्दनां नपुंसक लिंगनां प्रथमानां रूपो 'ए' चालु पुंलिंगनी माफक अने पूर्वोक्त अकारान्त नपुंसकनी माफक थायछे, तथा द्वितीयानां रूपो अकारान्त नपुंसकलिंग नामोनीज माफक थायछे. तथा बाकीनां रूपो चालु पुंलिंगनी माफक जाणवां.
अम्ह ( अस्मद् )- हु. (त्रणे लिंगमां सरखां) एकवचन-
बहुवचन१. हं, अहं, अहयं, म्मि, अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, अम्हि, अम्मि.
वयं, मे. २. णे, णं, मि, अम्मि, अम्ह, अम्हे, अम्हो, अम्ह, णे.
मम्ह, में, ममं, मिमं, अहं. ३. मि, मे, ममं, ममए, ममाइ, अम्हेहि, अम्हाहि, अम्ह,
मइ, मए, मयाइ, णे. अम्हे, णे. ४-६. मे, मइ, मम, मह, महं, गे, गो, मज्झ, अम्ह, अम्हं, मझ, मज्झं, अम्ह, अम्हं. अम्हे, अम्हो, अम्हाण, अम्हाणं,
ममाण, ममाणं, महाण, महाणं,
मझाण, मज्झाणं. ५. मम, *मह, मज्झ, *मइ. *मम, *अम्ह. ७. *अम्ह, मम, *मह, *मज्झ, *अम्ह, *मम, *मह, *मझ.
मि, मइ, ममाइ, मए, मे,
___ * पंचमी तथा सप्तमीमां ' अम्ह' शब्दनां आ प्रमाणे आदेशो थायछे ते लख्याछे तथा तेनां रूपो दरेकने अकारान्त पुंलिंगना प्रत्ययो लगाडवाथी थायछे जेम- ममत्तो, ममाउ, ममाहि, ममाओ, ममाहिती, ममा, मइत्तो, विगेरे. : ममम्मि, ममेसु विगैरे.
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उव्हेहिं.
.
( १३३) तुम्ह (युष्मद् ) = तुं, (त्रणे लिंगमा सरखां) १. तं, तुं, तुवं, तुहं, तुमं. भे, तुमे, तुम्हे, तुझे, तुझ,
... तुम्ह, तुम्हे, उव्हे.'' २. तं, तुं, तुमं, तुवं, तुह, . वो, तुज्झ, तुम्मे, तुम्हें, तुझे, तुमे, तुए.
तुम्हे, उय्हे, मे... ३. भे, दि, दे, ते, तइ, तए, भे, तुन्भेहिं, तुझेहि, तुम्हेहिं,
तुमं, तुमइ, तुमऐ, तुमे, उज्झेहि, उम्हहिं, तुम्हेहिं,
तुमाइ. ४-६. तइ, तु, ते, तुम्हं, तुह, तु, वो, भे, तुज्झ, तुम्ह, तुब्भ,
तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुझं, तुम्हं, तुमं, तुम्भाण, तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, तुवाण, तुज्झाण, तुम्हाण, तुमाण, ए, तुन्भ, तुन्झ, तुम्ह, तुहाण, उम्हाण, तुव्माणं, तुवाणं, उन्म, उन्झ, उम्ह, उव्ह. ___तुन्झाणं, तुम्हाणं, तुमाणं, तुहाण,
उम्हाणं. *तइ,*तुव, *तुम, *तुह,. . *तुब्म, *तुज्झ, *तुम्ह, *तुम्ह, *तुम्भ, *तुन्झ, *तुम्ह, *उरह, उम्ह.
तुम्ह, तुम, तुज्झ, तुम्ह, तहितो. ७. तु,* तुप,* तुम,*तुह,* तु,* तुव,* तुम,* तुह,
तुब्भ, तुझ,* तुम्ह,* *तुभ, *तुज्झ, *तुम्ह.. तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, 'तए.
* पन्चमी तथा सप्तमीमां 'तुम्ह' शब्दना आ प्रमाणे आदेशो थायछे, तेने अकारान्त पुंलिंगना ते ते विभक्तिना प्रत्ययो लगाढवाथी तेनां रूपो बनेछे, जेम- तइत्तो, तईओ, तईउ, तईहि, तईहितो, तई, तुवत्तो विगेरे. .. . तुभिम, तुने, तुम्मि विगेरे. तूस, तुवेंसु विगेरे.
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( १३४ )
नामः पुंलिंग. भूअ-जीव..
| उविन्द-उपेन्द्र. गहत्यि-किरण.
पास-पासो. चउमुह-ब्रह्मा.
मोर-मोर. सरअ-शरदऋतु.
संदोह-समूह वित्थर-विस्तार.
पहाविअ-हजाम. महीरह-झाड, वृक्ष.
तड-कांठो. मंथण-रवैयो.
पयर-समूह. कलस-कलश्यो, लोटो. कडक्स-कटाक्ष. वप्पीह-वपैयो, चातक. वच्छ-वत्स, छोकरो, वृक्ष, झाड, फग्गुण-फाल्गुन (मासतुं नाम) लउड-लाकडी. तुरंगम-घोडो.
वेअ-वेग, वड-वड.
संदण-रथ. सलह-शलभ, पतंग.
सवण-कान.
उअर-पेट. वयण-मों, पदन. रहस्स-रहस्य. वास-क्षेत्र. . माणस-मन. कुंडल-कुंडल. पाहिज-भातुं. रंध-काण.
नपुंसक.
सप्पि -ची. नवणीअ-माखण. नंदण-इन्द्रनुं वन. तप्प-शय्या. जूअ-द्यूत. पडिवित्र-पडछायो. विआण-चंदरवो.
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रमणी-स्त्री.. गंती-गाईं.. चिल्ला-चकली. सव्वरी-रात्री. सारिआ-मेना. वंछा-वांछा. सिवा-दुर्गादेवी. कुमरी-कुमारी.
( १३६ ) स्त्रीलिंग
| सेणा-सेना. विवणी-वजार. वसुंधरा-पृथ्वी. तडिआ-विजळी. निसा-रात्रि. अवस्था—अवस्था. पुप्फिआफुइ.
सोण-लाल. साम-काळ. विअड-विकट.
विशेपण
रुइर-सुंदर संकिण्ण-संकडाएल, सांकडूं. | थरहरिअ'कंपेल, थरथरेल. अव्यय
दिआ-दिवस.
मिच्छा-खोटुं. सहसा-वगर विचायें.
धातु-- प+अस्थ्=पत्थ्—प्रार्थना करवी. | उवसम्-शांत थर्बु. थक्कू-नीचे जवू.
उड्डे-उडवू. पडिसा-शांत थg. .
कुंप्प-कोपg, वेल्ल्र मg.
नस्स-नाश थवो. अग्घाड़-पूर.
खम्-खमवं. निअ-जो...
सलह-प्रशंसg. फंस-अडकवू,
स
वमव.
.
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वाक्य*तो हुँ तुं च जिणं नविमो। | सारिआ गीअं गासी। हियो तुं हं च इन्दविनयं मुणिन्दं । मइ रमणीए सवणेसु कुंडलाई वन्द्रिस्सामो।
सलहीअन्ति । संदणाओ उत्तरिडं सो हं च तं मंथणेण नवणीअं कड्ढ । संकिण्णे मग्गे चलिमो।
इमस्सि महीरहे रंधाई अत्थि । सो तुं च जलेण घडमग्घाडित्था । तुहोअरं सोणमत्यि ।
फग्गुणचउद्दसीए तिहीए मुरुक्खा पाहिजेण सहिओ जणो इमिआअ |
माणवा अन्नुन्नं मालिं दिन्ति । गन्तीए गामं गच्छइ ।
इन्दस्स नंदणं वणमत्थि । उविन्दस्स सेणा समरम्मि वेल्लइ ।
| दिआ चिल्ला सदं कुणेइ । तुह पुप्फिआ ममं खमावेइ ।
मत्तंडस्स गहत्थो निसाए नस्सी। तुं विवणीए रमिडं गच्छ ।
सरए उउम्मि तडिआ सरिआए मे मोरो वेएण उड्डे ।
तडे पडइ । सवरीए सव्वत्य सामंतमं निआमि।। ण्हाविआ कम्मवन्ति ।
मारा मोटा भाइ भगवान मने सारां | ब्रह्माए अमने कर्या नथी पण अमे
कामो करावशे. अमारा कर्मथी थया छीए. कारीगरो लाकडानो घोडो अने | पृथिवीमां वसता शान्त पुरुषोने
लोटो बनावेछे. पण स्त्रीओनां कटाक्षो संसारमा वपैये मेघनी साथे प्रीति करी.
ममावेछे. आ कुमारी पथारीमां कंपेछे. स्त्रीओ पासे हुरहस्य नहि कहीश. ___* जे वाक्यमा त्रणे पुरुष साथे वपरायेला होय यातो पेला पुरुषनी साथे वाकीना कोइ पण पुरुप प्रयोजायेल होय तो ते वाक्यना क्रियापदथी पेला पुरुष, बहुवचन ज आवेछे, वळी जे वाक्यमां पेला पुरुप सिवायना वाकीना वे पुरुषो आवला होय तो ते वाक्यना क्रियापदधी वीजा पुरुपर्नु बहुवचन ज वपरायछे. उदाहरणो उपरना वाक्यो ज छे.
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(१३७ ) जीवोना रक्षणमाटे घरमां माणसो । पाठशालामा रहेता सवळा छात्रोने
चंदवा वांधेछे. हुं भाइ तुल्य मार्नुछु.. कूतरानो पडछायो पाणिमां पडेछे | जीवराज नामना मारा पिताए, मने
अने तेथी ते भसेछे.. केटलीएक सारी क्रियाओ करस्नेहथी पतंग दीवामां पडीने वामाटे वालपणमां शिखयु.
मरेछे.
उत्तमा नामनी मारी माताए मने हुँ संसारना पासथी क्यारे छूटीश.
घणा स्नेहथी पोते कष्ट सहीने
पण मोटो को. हुं हर्षचन्द्र अने भगवान नामना
जगजीवन (ण) नामना शिक्षके मने मारा वे मोटा बंधुओने सदा
. भापानुं ज्ञान आप्यु. प्रणमीश.
विनयधर्म सूरि नामना गुरुए मने मारो नानो सहोदर झवेर आज
__सर्वत्र सुखने आफ्नार धर्मने काल अभ्यास करेछे.
शिखडाव्यो. हरगोविन्द त्रिभुवन-मणिलाल
| हुँ तेओ सघळानो उपकार कदी जयचंद अने पानाचंद नामना
पण भूलीश नहि. ___ मारा सवळा मित्रो मने प्रत्येक | ई सघळाने प्राथुछ के आ पुस्तक
धर्मकार्यमां याद करशे तथा प्रेरशे. भणवाना समये सौए हंस मारा उपर दलीचन्द प्रीतिवाळो
तुल्य थर्बु जोइए. विद्यार्थी छे. सज्जनो मारा उपर प्रसन्न थाओ.
पाठ ३० मो. संस्कृत (शब्दो) उपरथी प्राकृत (शब्दो) बनाववाना
सामान्य नियमो.
(१) चे स्वरोनी बच्चे आवेला ‘क, ग, च, ज्, त्, इ, प, , ,'
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( १३८ )
व्यञ्जननो लोप धायछे. जेम-सं०- प्रा०
अपवाद - अ-अथवा आथकी पर' प्' नो लोप थतो था
जेम
सं०-शाप:- सावो.
सं०- प्रा०
लोक:- लोभ. | गदा - गया. रिपुः-रिऊ (रिवू ). प्रिय:- पिओ.
नगरम् - नयरं कचः- कयो.
गजः गयो..
लावण्यं - लायण्णं.
वितानं विआणं.
( २ ) पूर्वना नियम प्रमाणे क् विंगरे व्यंजनांनो लोप कर्या वाद तेना पछीनो 'अ अथवा आ' जो 'अ अथवा आ' थकी पर आवतो होय तो तेने ठेकाणे अनुक्रमे 'य के या' मूकाय छे. जेम- गज:- गयो; पाद:- पायो; गदा- गया; वाचा - वाया.
(३) वे स्वरती वच्चे आवेला 'ख्, घ्, जेम - मुखं - मुहं; मेघ:- मेहो; क्षोभ :- खोहो.
थ्, घ्, भू,' नो 'ह्', धायछे. नाथ:- नाही; बधिरः- वहिरो;
( ४ ) वे स्वर वच्चे आवेला ट्, ठू, ड्, न्, प्, फ्, व्, नो अनुक्रमे ड्, ढ्, ल्. ण्, व्, भ्, (अथवा ह्', तथा व्, थाय छे. जेम- घट:- घडा; पीठं- पीढं; गरुडः- गरुलो, मदनःमयणो; कूप:- कूवो, रेफः- रेभो; मुक्ताफलं - मुत्ताहलं; अलाबू:- अलावू.
(५) शब्दनी आदिमां आवेला 'नू' नो 'ण्' विकल्पे थायछे जेमनरः - णरो, नरो.
(६) शब्दनी आदिमां आवेला 'य' तो 'ज्' अनुस्वारथी पर आवेला 'ह' नां 'घ्' अने हस्व स्वर थकी पर आवेला थ्यू, प्स्, इच्, त्स् नो 'छ्' थाय छे. जेम - यमः- जमो; संहारः- संघारो; पथ्यं - पच्छं, अप्सरा :- अच्छरा पश्चात् - पच्छा; उत्साहःउच्छा हो.
,
* 'फू' नो कोइ कोइ प्रयोगोमां 'भ्' थायले; अमुकमां 'हू' थायछे. अने अमुक अमुक प्रयोगोमां ं अथवा हू वन्ने थायछे. माटे आ कार्य करती वखते प्रयोगो उपर ध्यान राख.
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(१३९) (७) प्राकृतमा क्ष् नो ख्. श्, नो स्; छु, ५, य्यूनो ज्; स्त्
नो थ्, प्यू, स्नो प; मा नो ; मनो स्; इम्, क्मनो अने ष्टनो स् थायछे. जेम-क्षयः-खयो; शब्दःसद्दो, कपाय:- कसायो; मचं- मज, भार्याः-- भजा, जय्य:जजो; स्तुतिः- थुई; निष्पावः- निष्फावी, बृहस्पति:- वुहम्फई 'निम्न-निणं; ज्ञान- णाणं, मन्मथ:-वम्महो, कुडमलं-कुंपलं; रुक्मिणी-रुप्पिणी; कष्टं- कह.
अपवाद:
(१) समस्त, तथा स्तम्ब शब्दनी अन्दर स्तनो थ् थती नथी;
जेम- समतो, तम्बो. (२) उष्ट्र, इटा तथा संदिष्ट; फक्त आ त्रण शब्दोनी अन्दर
नोट थत नथी. जेम- उट्टो, इट्टा, संदिट्टो. (८) ग्मनो म तथा हनो भू विकल्पे थायछे, जेम- युग्म- जुम्म,
जुग्ग; विह्वलः- विमलो, विहलो. (९) छन् , प्ण, स्न् , ह, हू, क्ष्णूनो ण्ड् थायछे, जेम-प्रश्नः
पण्हो; विष्णुः-विण्ह, स्नातः-हाओ, वह्निः-चण्ही; पूर्वाह्णः
पुव्वण्हो; तीक्ष्णं-लिण्हं. (१०) श्म्, एम् , स्स्, मनो म्ह् थायछे, तेगज हनो र थायछे.
जेम- कुश्मानः- कुम्हाणो; ग्रीष्मः- गिम्हो; विस्मयः-विम्हयो; . ब्रह्मा-चम्हा; आबाद: आल्हायो. (११) (अ) कोइपण व्यजननी पूर्वमा जोडायेला क, ग, , ,
'त, दु, ए, श् , , स् , जिह्वामूलीय (४), तथा उपध्मानीय (४) नो लोप थायछे. जेम- भुतं- भुत्तं; दुग्धं-दुद्ध; कटफलं-कप्फलं खड़ा- खगो उत्पलं उत्पलं, मुद्र-मुग्गरो
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( १४० )
सुप्तः- सुत्तो ; निश्चल:-* निञ्चलों; निष्ठुः- निरो; स्खलितःखलिओ; दुःखं - दुक्खं, अन्तपातः-अन्त पाओ.
( व ) कोइपण व्यञ्जन थकी पर जोडायेला म्, न्, य् लोपायछे, जेम- युग्मं- जुग्गं, नग्नः- नग्गो; श्यामा- सामा. (क) जोडाक्षर महिला 'लू, व, (च) तथा र' सर्वत्र लोपायछे. जेम - उल्का- उक्का; लक्षणं- सण्हं शब्द:- सहो; उल्बणं- उल्लणं, पर्क- पक्कं; वर्ग:- वग्गो; चक्रं - चकं. (ड) 'द्र' मां रहेलो 'र्' विकल्पे लोपायछे समुद्रः- समुद्दो, समुद्रो. तेमज 'श' (ज्ञ) नी अंदर ञ्नो लोप विकल्पे थायछे, जेम- जाणं, णाणं.
(१२) (अ) दीर्घ स्वर तथा अनुस्वार सिवाय वाकीना स्वर तथा व्यञ्जन पछी आवेला र् तथा हू सिवायना शेप ( संयुक्त व्यंजन मांहेना एकनो लोप थइ अवाधी जे एक व्यंजन वाकी रहे ते ) व्यंजननो तथा आदेश ( अमुक एक व्यंजनना स्थानमां कोइ वीजो व्यंजन थाय ते) व्यंजननो द्विर्भाव थायछे. उदाहरण - शब्द:- सहो, पुष्पं- पुष्कं प्रत्युदाहरण- स्पर्श:फासो, सिंहः- सिंघो. ब्रह्मचर्य - वम्हचेरं; विह्वल:- विहलो. ( ब ) आ नियम समासनी अंदर विकल्पे लागे छे; जैमकुसुमप्रकरः- कुसुमप्पयरो, कुसुमपयरो; देवस्तुति:- देवत्युई; देवथुई.
66
(क) ' (अ) ' नियम प्रमाणे द्विर्भावथी थपला “ख्खू, छछ्, ठ्ठ्ठ्, थ्थ्, फ्फ्, ध्य्, इझू, ढ्ढ्, ध्ध्, भूना स्थानमां अनुक्रमे क्खू, च्छ्, ठ्, त्थू, प्फू, ग्घ्, ज्झ, इद, दूध्, तथा च्भू, थायछे. जेम - व्याख्यानं - वक्खाणं; मूर्छा-मुच्छा; कष्टं कर्ड:
* अहिं नाल पाठनो नियम ६ टो लागतो नथी.
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तीर्थ- तित्थं, पुष्पं-पुप्फ, ध्याघ- बग्यो; निर्झरस-निज्मरो;
वृद्धः-धुड्ढो, निर्धनः-निद्धणो, निर्भरः-निभरो. (१३) दरेक (संस्कृत) शदना अन्तनो व्यंजन (प्राकृतमां) लो
पायछे. जेम- यशस्-जसो. अपवाद- व्यंजनान्तस्त्रीलिङ्ग नामोना अन्तनो 'आ' अथवा 'या' तथा रकारान्त स्त्रीलिंगनामोना अन्तनो 'रा'थायछ. अने त्यारवाद तैयार थयेलो शब्द आवन्त नहि पण आका
रान्त गणाय छे. जेम- सरित्-सरिया, सरिया गिर-गिरा. (१४) दामन, शर्मन्, चर्मन , शिरल, नमस्, श्रेयस्, वचस्,
सुमनस्, सिवायना नकारान्त तथा सकारान्त नामो पुलिंगमा
थायछे. जन्मन्-जस्मो; समन्-मम्मो; तमल-तमो. (१५), पनी अंदर, 'श' तथा पनी पृ ' आवेछ. जम
परामर्श:-परामरिलो; वर्ष-चरिलं. (१६) ई, तथा संयुक्त ल् (लनी पूर्वमा व्यंजन होय त्यारे )नी अंदर
ह, तथा लनी पूर्वमा 'इ' मृकायछे; गहा गरिहा, प्लोपःपिलोसो.
..
...
पाठ ३१ मो.
समास. समास एटले संक्षेप अर्थात् घणां पदोनुं जे एकपद करतुं ते.
बहुबीही (बहुव्रीहि ). जे समासमा समास करातां पदोना वाच्य सिवाय अन्य कोई अर्थ प्रधान होय तेनु नाम बहुव्वीहि समास कहेवामां आवे छे. जेमके
चडिओ आसो जेण सो चडिआसो. चडिओ सुंदरो आसो जेण सो चडिअसुंदरासा. . पावेण सह जो सो संपावो*. * बहुव्रीहि समासमा आपला 'सह' शब्दनो 'स' भादेश पण यायछे.
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' (१४२ )
. तप्पुरिसो (तत्पुरुष ). जे समासमां समास करातां वे पदमांनुं पाछलु पद प्रायः करीने प्रधान होय तेनु नाम तप्परिस समास कहेवाय छे जेमके
. रायस्स नयर-रायनयरं, * न धम्मो अधम्मो, न इसी अनिसी; विगेरे. वळी आ तत्पुरुष समास दरेक विभक्ति साथे थायछे.
कम्मधारय (कर्मधारय ). आ समासमां समास करातां वे पदो विशेष्य अने विशेषण होवां जोइए. जेमके--गुरू च विनयधम्मसूरी च गुरुविनयधम्मसूरी, मित्तं च पानाचन्दो च मित्तपानाचन्दो.
दंद (द्वन्द्व). आ समासमां समास करातां पदोनी सहोक्ति होवी जोइए, वळी आज समासमां चकार वधारे वपराय छे. जेमके
वडा अ लिम्बा अ वडलिम्बा इत्यादि. ___ आ समासो माटे वधारे वधारे वातो (पूर्वनिपात-एकशेषादि ) श्रीहैमसंस्कृतशब्दानुशासनथी जाणवा जिज्ञासुओने भलामण छे.
शब्दो . पंगुल-वि-पांगळो.
| भागि-वि-भागवाळो. सीलड्ढ-वि-शीलाढ्य, शीलयुक्त. खर-पुं-गधेडो. . पाणिवह-पुं-प्राणिवध... . सुग्गइ-स्त्री-सारी गति. सेअम्बर-मुं-श्वेताम्बर. दारिद-न-दारिद्रय. आसंबर-1-दिगम्बर. निम्ब-पुं-लींवडो. बुद्ध-पुं-बुद्ध.
एगंतसुहावह-वि-एकलं समभावभाविअप्प-वि-शांतात्मा.
सुख देनार, संदेह-पु. शंका.
| पहुअत्तण-न-ऐश्वर्य. * मा 'न' पछी जो व्यंजनादि नाम आवे तो 'न'नो 'म' करवो भने स्वरानि नाम आवे तो न' नो 'अन् ' करवो.
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( १४३.) भगवई-स्त्री-भगवती. अहिंसा-स्त्री-अहिंसा.
परयण-पुं-पर माणस. .. पंथ-पुं-रस्तो.
पलालपूल-पुं-वासनो पूळो. . पराभव-पुं-पराजय.
निग्गह-पु-दंड. . जणणी-स्त्री-माता.
भव-पु-संसार. . जइधम्म-'-साधुनो धर्म. कणअकोडि-स्त्री-सोनानी कोड. रक्वण-न-रक्षण,
बंभन्वय-न-ब्रह्मचर्य. पवेस-पुं-प्रवेश.
फलविवाअ-पुं-फल परिणाम. सम्मादिवि-पुं-सारी दृष्टिवालो. सया-अ-हमेशा. गहिअव्वयभंग-पुं-लीधेलव्रतनो भंग. | पंडित्त-न-पांडित्य. खन्ति-स्त्री-क्षमा.
निमित्तमित्त-अ-निमित्तमात्र. महाविजा-स्त्री-मोटी विद्या. धाराहय-वि-धाराथी हणायेल. . दुरिअ-न-पाप.
पलोअन्त-(वर्त-कृ) वि-जोतो. विकहा-स्त्री-विकथा.
विहिकय-वि-कर्मथी करेल. पञ्चमी-स्त्री मी.
सयण-पुं-स्वजन. किया-त्री-क्रिया.
मच्छ-पुं-माछटुं. चन्दणभारवाहि-वि-चदननो भार | उच्छलिअ-(भूत-कोवि-उच्छळेलु.
वहनार. आरत्त-वि-खूब लाल. परोक्यारकरणिकतलिच्छ-वि
समर-न-युद्ध स्थळ. परोपकारमांज तत्पर.
उसमदत्त-पुं-विशेषनाम. जम्बूदीव-पु-जम्बूद्वीप.
सिरीकन्ता-स्त्री-विशेषनाम. दीव-पुं-बेट. विदेह-पुं-क्षेत्रनुं नाम.
निरुवम-वि-अनुपमेय. खेत्त-न-क्षेत्र.
चन्दाणणविमाण-न-चन्द्रानन
नामर्नु देवधर. अपरिमिअ-(भूत-कृ)वि-नहि मापेल.
आउअ-न-आवरदा. निहाण-न-निधान.
चुअ-(भूत-कृ)वि-च्युत, चवेल अणुगारि-वि-अनुकरण करनार. | सुद्द-पुं-शूद्र.
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भूअ - (भूत - कृ ) वि भूत, थयेलुं जयपुर-न- ते नामनुं नगर.
भाअ - पुं- भाग.
सुरुव-वि-सारा रूपवाळु नेवत्थ - न - नेपथ्य.
१४ )
द्वार - पुं-स्त्री. (बहुवचनांत ). किलीव - पुं-क्लीव, नपुंसक. अववाय - पुं- अपवाद, निन्दा. भासण -न-चोलवं.
अवहरण - न- चोखं.
संकुचिअ- (भूत-कृ) वि-संकोचवा.
वग्ग - पुं- समूह.
निसिअ - (भूत - क) वि - तीक्ष्ण. निद्दलिअ- (भूत-कृ)वि-तोडी नांखेल दरिअ- (भूत - कृ ) वि-मानी.
। केसर - पुं- केसरा.
सडा - स्त्री-सटा. आपिंगल - वि - थोडुं पीळं.
लेहा - स्त्री - रेखा.
पिहुल - वि- पृथुल, पहोकुं. महिलायण - पुं- स्त्री समूह. सुवट्टिअ - (भूत - कृ ) वि-सुवृत्त. कटिअड - पुं-कटितट, कडनो भाग.
आवलिभ- (भूत-कृ)वि-वळेलं. सुपइट्रिअ-(भूत-कृ)वि-सुप्रतिष्ठित. संठाण - न-संस्थान,
किसोरग - पुं-बच्चु.
अहिराम - पुं- सुन्दर. वोहि-न- सम्यक्त्व.
पाठ ३२ मो.
अलसो होड़ अकले पाणिवहे पंगुलो सया होड़ । परनिन्दासु य बहिरो जं चान्धो परकलत्तेषु ॥ १ ॥ ते कहं न बंदणिज्जा रूवं ठूण परकलत्ताणं ? | धाराहयच्च वसहा वच्चन्ति मही पलोअन्ता ॥ २ ॥ सेअंबरो य आतंत्ररो य बुद्धो अ अहव अन्नो वा । समभावभाविअप्पा लहेइ मुक्खं न संदेहो || ३ || सन्याओ विनईओ कमेण जह सायरम्मि निवडन्ति । तह भगवई अहिंसं सव्वे धम्मा संमिलन्ति ॥ ४ ॥
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. : (१४५ ) जाव जरा न पीडइ वाही जाव न वटइ। . ... . जाव इंदिआ न हाअन्ति ताव धम्म समाचर ॥ ५ ॥ पंथसमा नत्यि जरा खुहासमा वेअणा नत्यि। ' मरणसमं नत्यि भयं दारिदसमो पराभवो नत्थि ॥६॥ मूलं धम्मस्स दयाऽसेसनीवाणं सा होइ जणणी । जं तसथावरजीवाणं खणं जइधम्मो होइ ।। ७ ।। वरमग्गिम्मि पवेसो वरं विसुद्धेण कम्मणा मरणं । मा गहिअन्वयमंगो मा जीविखलिअसीलस्स ॥ ८॥ को चक्कवष्टिरिद्धि चयिउं दासत्तणं सममिलसइ । को व रयणाई मोत्तुं परिगेण्हइ उवलखंडाई ? ॥९॥ . लभइ सुरसामित्तं लब्मइ पहुअत्तणं न संदेहो । एंगे नवरि न लब्भइ दुल्लहरयणं च सम्मत्तं ॥ १० ॥ . निन्दपसंसासु समो समो अ माणावमाणकारीसु । समसयणपरयणमणो सामाइअसंगओं जीवो ॥ ११ ॥ आणाइ तवो आणाइ संजमो तह य दाणमाणाए। आणारहिओ धम्मो पलालपूछन्च पडिहाइ ॥ १२ ॥ रणो आणामंगे इसकुच्चिय होइ निग्गहो लोए । सवण्णुआणाभंगे अणंतसो निग्गहो होइ ॥ १३ ॥ . . सम्वो पुवकयाणं कम्मणां पावो फलविवायं । . . अवराहेसु गुणेसु अ निमित्तमित्तं परो होइ ॥ १४ ॥
जहा खरो चंदणमारवाही . भारस्स भागी न हु चन्दणस्त । · एवं खु नाणी चरणेण हीणो
भारस्स भागी न हु सुग्गईए ॥ १५ ॥
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(१४६ )
को कस्स इत्थ सयणो ? .. . . __ को वा परो भवसमृद्दभमणम्मि ? | . मच्छुन्छ भमन्ति जीवा . "मिलन्ति पुण जन्ति अइदूरं ॥ १६ ॥
......पाठ ३३ मो... . . . . . . . कहा* . ..
अत्यि इहेव जम्बूदीवे दीवे, अवरविदेहे खेते, अपरिमिअगुणनिहाणं, तिअसपुरवराणुगारि उजाणारामभूसिअं, समत्तमेइणितिलयभूअं, जयउरं नाम नगरं ति। जत्थ सुरूवो, उज्जलनेवत्यो, कलाविअक्खणो,. लज्जालुओ महिलायणो। जत्थ य परदारपरिभोअम्मि किलीवो, परच्छिद्दावलोअणम्मि अन्धो, पराववायभासणम्मि मूओ, परदव्वावहरणस्मि संकुचिअहत्यो. परोवयारकरणिकतल्लिच्छो पुरिसवग्गो। तत्थ य निसिअनिकड्डिआऽसिनिद्दलिअदरिअखुिहत्यिमत्यउच्छलिअवहलरुहिराऽऽरत्तसमरभूमिमाओ राया नामेण परिसदत्तोत्ति । देवी य से सयलन्तेउरप्पहाणा सिरीकन्ता नाम । .... ___ सो इमाए सह निरुवमे भोए 'मुजी । इओ अ सो चन्दाणणविमाणाहिबई देवो अह आउसं पालिऊणं तओ चुओ सिरीकन्ताए गम्भे उववन्नो त्तिः। दिट्ठो य णाए सुविणयम्मि तीए चेव रयणीए निघूमसिहिसिंहाजालसरिसकेसरसडाभारभासुरो, विमलफलिहमणिसिलानिहसंहसहारधवलो, आपिंगलमुपसन्नलोअणो, मिअंकसरिसनिग्गयदाढो, पिहुलमणहरवच्छत्थलो, अइतणुअमज्झमाओ, सुवट्टिमकढि
* तित्ययरकप्पेण भगवया गुरुगुरुणा सिरीहरिभद्दसूरिणा विरइआए समरा. इचकहाए आदिनं ) :
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( १४७ ) णकडिअडो, आवलिअदीहलंगूलो, सुपट्टिओसंठाणो, किं वहुणा ? सव्वंगसुंदराहिरामो सीहकिसोरगो वयणेण उअरं पवि.माणोत्ति ।।
इअ बुद्धीए बुहप्फईणं पिव समत्तसत्थविसारद-जइणायरिआणं गुरुसिरीविजयधम्मसूरीणं सावगसीसेण, तहय नाणाऽऽदाणनिआणाणं अमयसाहुक्यणाणं पूअणिज्जपायपउमजुगलाणं सिरीहरिसचन्दभगवन्तबन्धूणं लहुसहोअरेण, तह य बलहीनयरनिवासिसयलसेडिसेट्टजीवरायपुत्तेणं, तह य सीलालंकारधारिणीए उत्तमाए उत्तमामायाए उयरजायेण वेचरेण कासीए पुरीए विक्कममुणि-रस-निहिभूमि-१९६७ वासे निट्ठमासम्मि पुण्णिमादिणे सुक्कवासरे अप्पपरोवयारत्यमिणं पुत्थयं समत्थिों ।
सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाणं परंपरगयाणं । लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सम्वसिद्धाणं ॥१॥ मम मंगलमरिहन्ता सिद्धा साहू सुअंच धम्मो य । सम्मट्ठिी जीवा दिन्तु समाहिं च वोहिं च ॥ २॥ खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमन्तु में । मित्ती मे सव्वभूअसु वे मज्झं न केणइ ॥ ३ ॥ अज्जिअं मई पुण्णं जं. गंथस्सेमस्स किईए । जिणाणं गयदोसाणं तेण होत्थु सासणे ॥ ४ ॥
इअ पत्येइवेचरो।
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कोशः।
..
.. अ अ-अ-अने. . अइआर-पुं-अतीचार. अइच्छ-जवू. अइसरिअ-न-ऐश्वर्य. अंगण-न-आंगj. अंगि-पु-शरीरवाळो. अंगुअ-न-फलविशेप. अंगुम-पूर. अंतप्पाय-पुं-अन्तःपात. अंतर-वि-बीजं. अंतेडर-न-अंतःपुर. अंतवासि-पु-शिष्य, अंधु-पुं-कूवो. अंव-पु-आंवो, अंब-न-केरी, .. अंबा-स्त्री-माता. .. अंबादास-पु-विशेपनाम. अविल-वि-खाटुं. अबिलिआ-स्त्री-आंचली. अंस-पं-माग. अंसु-न-आंड, ..
अकंद-रो. अ+क्खिवू-फेंकg. अक्खोड्-तलवार खंचवी. अक्वंटल-पुं-इन्द्र.. अगणि-पुं-अग्नि. अगाह-वि-उंडं. अग्गला-स्त्री-अर्गला. अग्घाड्-पूर. अच्च-पूजवं. अच्छ्-वेसवू. अच्छरसा-स्त्री-अप्सरा अच्छि -न-आंख. अन-पु-वैश्य, आर्य. अन्ज-अ-आजे. अजा-स्त्री-साध्वी. अजू-स्त्री-सासू. अट्ठ-वि-आठ. अठारह-वि-अढार. अछावयसंठविअरूव-वि-अष्टा
पदमा छ मूर्ति जेनी. अछि-न-हाडकुं. अणंग-पुं-कामदेव. | अणुअर-पुं-सेवक.
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अणु+कुण्-अनुकरण करवं. | अप्प-वि-अल्प.. अणुगारि-वि-अनुकरण करनालं. अप्पर-वि-आपणं. अणु+जाण-आज्ञा आपवी. अप्पज-वि-आत्मज्ञ. अणुट्ठाण-न-विधि.
अप्पडिहयसासणं-वि-अनुलंध्य छ अण+प्प+विस-प्रवेश करवो. .
शासन जे. अणुराग-पुं-प्रीति. .
अप्पणय-वि-आपणुं. अणुराय-पुं-स्नेह,
अप्पणो-अ-पोतानी मेळे. अणुरुंध-तावे थg.
अप्पविजा-स्त्री-आत्मविद्या. अणु+ह-अनुभवबुं.
अप्प्-आपq. अण्ण-वि-बीजु.
अप्पा-संदेशो आपवो. अण्णण्ण-क्रियावि-परस्पर. अप्फुण्ण-वि-(भू-क)घेरायेलं. अण्णयर-वि-चेमांथी एक. अबुह-पु-मूर्ख. अण्णहा-अ-अन्यथा.
अभय-पुं-अवरख. अण्णारिच्छ-वि-वीजा जे.
अन्भास-पुं-अभ्यास. अण्णुण्णं-क्रियावि-परस्पर.
अमिड्-मलवं. अत्तो-अ-अहिंथी.
अन्मुठिअ-वि-उठेलु. अत्य-पुं-पैसो.
अभुत्त-न्हावू. अत्थ-अ-अहिं.
अमच्च-पुं-मन्त्री. अदिन्नादाण-न-अदत्तादान, अमय-न-मोक्ष, अमृत.. अद्ध-पुं-मार्ग,
अम्मो-अ-आश्चर्य. अद्धाण-पुं-गार्ग.
अम्हारिच्छ-वि-अमारा जेवू. अपरिमिअ-वि-माप वगरनु. अम्हेच्चय-वि-अमाउं. अपुणरावित्ति-न-ज्यांथी फरीथी न | अयल-वि-अचल.
अवाय ते. । अररि-न-कपाट. अप्प-पु-आत्मा.
। | अरहन्त पुंजिनदेव.
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अरिहन्त-पुं- जिनदेव. अरुअ-वि-रोगवगरनं. : अरुहन्त-पुं- जिनदेव.
अलं+-कुण्-शणगारखं.
अलाऊ - स्त्री - तुंबडी.
अलि- पुं-भ्रमर.
:
अलिअ-न-जुठु, मृपा. अल-वि- भीनुं.
अलिप् - आपवं.
अल्ली - आलिंगवु.
अव-+-इक्खू अपेक्षवं.
अवस्था स्त्री- अवस्था.
अवदाय-वि-घोळु.
अव + मण्- अपमान करवुं. अवर - वि-बीजु.
अवराह-पुं- अपराध.
अव+लंबू- आश्रय लेवो.
अववाय-पुं- अपवाद.
अवसर- पुं-समय,
अवहू - कृपा करवी..
अवहू - रचवुं.
अवहरण-न- हरवुं.
अस्-थवं, होवुं.
असणि-पुं वज्र.
असद्दहणन - अश्रद्धा..
( ३ )
असि - पुं- तरवार. असिविण - पुं-देव.
असुद्ध - वि-अशुद्ध.
अहम-वि-नीच.
अहर-वि-बीजूं. अहिपच्चुअ-आववं. अहिराम-वि- सुंदर.. अहिरेम्- पूर.
अहिवइ- पुं- अधिपति.
अहिंसा - स्त्री-अहिंसा.
अहीसर - पुं- तीर्थंकर.
अहुणा-अ-हमणां
अहो - अ-नीचे.
-X
आ
आभ-वि- (भू-कृ) आलो.
आअड्ड-वापरखं.
आइग्घ्-संघवुं.
आइच-पुं-सूर्य.
आइरिअ - पुं- आचार्य.
आउअ-न-आवरढ़ा.
आ+गच्छू-आववुं.
आगमण-न-आवj.
आगमण्णु-पुं- आगमनो जाणनार. आचारंग-न-सूत्रनुं नाम,
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________________
आढव्-आरंभबुं. आढिअं-वि- (भू-कृ) आदरेलं. आणत्ति स्त्री-जणाववुं.
आणवण-न-जणाववुं. आणा स्त्री- आज्ञा
आणाभंग-पुं-आज्ञाभंग.
आणारहिअ-वि-आज्ञारहित. आणाल-पुं-हाथीने बांधवानो खीलो.
जातव-पुं-तडको
आ+-दुर्-सम्मान आपवुं.
आपिंगल-वि-पीलुं. आमय-पुं-रोग.
आमोअ-पुं- हर्प.
आयंव-कंपवं. आयंक- पुं- रोग.
आ+यर्-आचरखं.
आयर- पुं- आदर.
आयरिअ-पुं-आचार्य.
आयरिस-पुं-आरिसो.
आयार-पुं-आचार, आकार.
आ+रंभ-शरू करवुं.
आरंभ- पुं- आरंभ.
आरत-वि-लाल.
( १ )
आ+राहू- आराधं. आराहणा-स्त्री-आराधना.
आलुंख्-वळवं. आवज्ज-न-बाजुं.
आवण- पुं-बजार.
आवणिअ-पुं-सोदागर.
आवलिअ-वि-वळेलं.
आस- पुं-घोडो.
आसण-न-आसन.
आसम्बर - पुं- दिगंबर, नागो.
आसिसा स्त्री- आशिष.
आ+हरू-आहार करवो.
आहरण-न-आभरण, घरें.
इ
इअ-अ- ए प्रमाणे. इ-वि-बीजं.
इइ-अ-ए प्रमाणे.
इंगाल- पुं- अंगारो.
इंगिअज्ज - वि- इंगित जाणनार.
इंद-पुं-इन्द्र.
इंदु विजय- पुं- विशेष नाम.
इंदिअ-न- इन्द्रिय.
इंदु-पुं-चन्द्र.
इक-वि-एक.
इच्छ्र-इच्छवं. इच्छा -स्त्री- इच्छा,
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________________
इट्टा-स्त्री-इंट. इत्थी-स्त्री-स्त्री. इम-पुं-पैसादार. इसि-पु-ऋषि. इहरा-अ-इतरथा.
३
ईसर-पुं-ईश्वर. ईहा-स्त्री-इच्छा.
-
x
उअर-न-पेट. उअंत-घु-समाचार. उउ-पुं-ऋतु. उक्का-स्त्री-उल्का. उकिट-वि-उत्कृष्ट. उक्कोस-वि-उत्कृष्ट. उघड-उघाडवू. उ-ऊंचवू. उच्छ-पुं-वळद. उच्छलिअ-वि-उछळेलं. उच्छव-पु-उत्सव. उच्छाण-पुं-वळद, . उच्छाह-पुं-उत्साह. उच्छु--शेरडी. उज्जाण-न-वाडी. . 20
उज्जोअगर-वि-प्रकाशक. उट्ट-पुं-ऊंट.
अट्ठा-उठवू. उड्डे-उडवू. उण-अ-फरीने. उण्हीस-न-पावडी. उत्तर-उतरवू. उत्तर-वि-उत्तर. उत्थंघ-अटकाव. उत्थल्ल-उछळवू. उत्तिम-वि-उत्तम. उत्तिमंग-न-माथु. उद्ध-वि-ऊंचं. उद्भुिमा-खूब धमg. उप्पिड्-उडवू. उन्भ-वि-ऊंचुं. उम्बर-पुं-उंबरानुं झाड. उम्मत्य्-सामे आवq.. उम्मिल्-विकसवं. उर-न-छाती. उरु-न-साथळ. उल्लूर-काप. उ+इ-पाम. उवएस-पुं-उपदेश. उवगच्छ्-पासे जवं.
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________________
उवज्झाय- पुं- उपाध्याय. उव+दिस- उपदेश देवो.
उवमा - स्त्री - उपमा.
उवरि - अ- उपर.
उवल- पुं- पाषाण.
उवलखंड न पापाणनो टुकडो. अव + सप्पू-पासे नपुं.
उव+सम्-शांत थवुं.
उवसाम- पुं-उपशम.
उवहार-पुं-भेट.
उविंद-पुं- उपेन्द्र.
उवेल्लू-फेला .
उ + त्रिव - उदास थवं.
उसमदत्त - पुं- विशेष नाम.
उसह - पुं- वृषभ.
ऊ
ऊज्झाय-पुं- उपाध्याय.
ऊस-पुं-किरण.
उसल्-उल्लास.
ए
एआरह - वि-अगीआर. एआरिच्छ-वि-एवो. एक आ-अ-कोइ दिवस.
(ई)
एकल-वि-एकलं.
एकल-वि. एकलं.
एक्कसरिअं चालु कालमां. एक्कसि कोई दिवस.
एक्कसिअं कोई दिवस.
एग - वि - एक.
एगंत- पुं- एकान्त.
एगहुत्तं-अ- एकवार. एहि-अ-हमणां
एत्ताहे - अ-हमणां एत्तिल - वि-एटलं.
एत्थ -अ-अहिं.
एरावण- पुं- ऐरावण हाथी.
एवं अ-एवी रीते.
6
ओ
ओग्गाल - वागोळं. ओझर - पुं-झरो.
ओज्झाय. पुं- उपाध्याय.
ओ+वाह्- अवगाहनुं. ओसढ-न-औषध.
ओसह-न-औषध.
ओहरिअभर - वि- भार वगरनुं.
ओहीर्-उंघवं.
X-
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________________
क- वि-शुं. कइ - स्त्री-क्रिया.
क
कइअव-न-कपट.'
कइम-वि-केटला .
कइलास - पुं- एक पहाडनुं नाम. कइवाह-वि-केटलं. कउहा- स्त्री - दिशा.
कंकोड- पुं-कंकोडानुं झाड.
कंख - इच्छवं.
कंटय-पुं- कांटो.
कथा - स्त्री - गोदडी.
कंदप्प - पुं- कामदेव.
कंबु-पुं-शंख. कच्छा - स्त्री - काख. कडूद-काढवं, खेचं.
कड-पुं-साढ़डी.
कडक्ख-पुं- कटाक्ष.
कडिअड- पुं- केडनो भाग.
कडुअ-वि-कडं. कणअकोडि-स्त्री-क्रोडसोनैया.
कण्ण-पुं-कान.
कण्ह-पुं- कृष्ण.
कत्ता- पुं-करनार.
कत्तार करनार.
( 6 )
कत्तिअ-पुं-कार्तिकमासः
कत्तु पुं-करनार. कत्तो- अ-क्यांथी.
कत्थूरी - स्त्री-कस्तूरी.
कन्ना- स्त्री-कन्या.
कप्पू- कल्पवं.
कप्पपायव-पुं-कल्पवृक्ष.
कपूर-पुं-कपूर.
कम-पुं- परिश्रम.
कमंडलु-पुं-कमंडल,
कमन्ध-पुं-धड रहित शरीर.
कमल-न-कमल.
कम्मू-हजामत करवी.
कम्म-न-कर्म.
कम्मक्खय- पुं- कर्मनो क्षय. कम्मवू - उपभोग करवो.
कम्मस-न- पाप.
कयण्णु-पुं- कृतज्ञ. कयपाव-वि-कर्युं छे पाप जेणे.
कया - अ-क्यारे.
कर्-करवुंः
कररुह - पुं-नख.
करिणी-स्त्री- हाथणी:
करिस - खेचवं.
करीस-न-छाणं.
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________________
(८) करेणु-पुं-हाथी.
कित्ति-स्त्री-कीर्ति. कलत्त-न-स्त्री.
किया-स्त्री-क्रिया. कलस-पुं-घडो, कलश्यो. किर-अ-निश्चय.. कला-स्त्री-कळा.
किरिआ-स्त्री-क्रिया. कलाव-पुं-समूह.
किरिया-स्त्री-क्रिया. कलि-पु-क्लेश.
किलिकिंच-रम. कल्लाण-न-कल्याण.
किलिष्ट-वि-क्लिष्ट. कवाल-न-कपाल.
किलीव-पु-क्लीव, नपुंसक कवि-पु-कवि.
किस-वि-दुर्वळ. कन्व-न-काव्य.
किसरा-स्त्री-खीचडी. कसण-वि-काळो.
किसाणु-पुं-अग्नि. कह-कहे.
किसोरग-पुं-बच्चुं. कह-अ-केम.
कीणास-पुं-जम. कहं-अ-केम.
कील्-रम. कहा-स्त्री-कथा.
कुउहल-न-कुतूहल. कहि-अ-क्यां.
कुंडल-न-कुंडल. काइअ-वि-शरीर संबंधी. कुंपल-न-कळी. काउसग्ग-पु-कायोत्सर्ग. कुंभार-पुं-कुंभार. कारण-न-कारण.
कुक्कुड-पुं-कूकडो. कास-वि-कृश.
कुज्झ्-क्रोध करवो. कासव-पुं-एक ऋषितुं नाम. कुढार-पुं-कुठार. काहल-वीकण.
कुण्-करवू. किंचि-अ-कांइपण.
कुप्प-क्रोध करवो. किच्च-न-कृत्य.
कुमर-पुं-कुमार. किणो-अ-प्रभसूचक अन्यय. कुमरी-स्त्री कुमारी.
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________________
(९)
कुलआमरण-न-कुळ आ कुलिंगि-पुं-मिथ्यात्वी. । खइर-न-खेरनु लाकडं.. कुल्ला-स्त्री-घोरीयो.
खंड्-तोडg. कूव-पु-कूवो.
खग-पुं-पक्षी. केऊर-न-बाजूबंध.
खग्ग-पुं-तरवार. केत्तिल-वि-केटलु.
खन्ति-स्त्री-क्षमा. केरिच्छ-वि-के.
खम्-खमg. केल-न-केळु.
खमासमण-पुं-साधु. केलास-पु-कैलास पर्वत. खल-पुं-लुच्चो. केलि-स्त्री-क्रीडा.
खलपु-वि-खळु साफ करनार. केवलि-पुं-सर्वज्ञ.
खलिअसील-वि-स्खलितशील. केस-पुं-वाळ.
खल्लिड-पुं-टालवाळो. केसर--केशर.
खा-खा. केसरा-स्त्री-केसरा (सिंहनो गुच्छो)
खाणु-न-खीलो. कोआस-विकसg
खार-पुं-क्षार. कोउहल्ल-न-कुतूहल.
खासिअ-न-उधरस. . . कोऊहल-न-कुतूहल.
खित्त-न-खेतर, शरीर. कोंच-पु-क्रौंच पक्षी- .
खिप्पं-अ-जलदी. कोंढ-वि-कुंठ, लंगडो. खिर-खरबु, झर. कोंत-पु-भालो.
खिल्-फेंक. ।। कोक्क्-बोलवू.
खीर-न-दूध. कोट्टवाल-पुं-कोटवाल.
खुडिअ-वि-खंडित. .. कोडिअ-न-कोडियुं.
खुन्भ-खळभळg. .. कोसंबी-स्त्री-कौशाम्बी नगरी. खुहा-(आप) स्त्री-भूख. कोह-पुं-क्रोध.
खेड्ड्-रम.
-
-X-
--
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________________
ग
गउरख-न-गौरव.
गंगा - स्त्री-गंगा.
गंती-स्त्री-शकट, गाडुं.
गच्छू-जबुं.
गज्ज्-गाजबुं.
गण्ठ्- गूंथवं. गड्डा - स्त्री- खाडो.
गद्दह-पुं-गधेडो.
गन्भ-पुं-गर्भ.
गम्-जबुं.
गमण - न-जवं.
गय-वि- (भूक) गयेलं.
गयण-न-आकाश. गयदसण-वि-दांतवगरनो.
गरल-न- विप.
गरिह-निंदवुं.
गरिहा - त्री-निंदा.
गरुवी - स्त्री-मोटी.
गलोई - स्त्री- गलो. गवक्ख- पुं-गोखलो.
गहवइ - पुं- गृहपति.
गा-गाउँ.
गामणि -वि- गामनो नायक.
गारव-न-मोटाइ.
( १० )
गाव-पुं- पत्थर.
गावाण-पुं- पत्थर.
गिज्झ्-ललचावुं.
गिम्ह-पुं- ग्रीष्म ऋतु गिरा - स्त्री - वाणी.
गीअ-न- गीत.
गुंछ-पुं-गुच्छो.
गुंज- हसवं.
गुज्झ-न-गुह्य.
गुम्मू-मूंझावुं.
गुरु-वि-भारे, मोटुं.
गुलल्-सारुं करवुं. -- डो. गेज्झ-न-ग्राह्य. गेहू ग्रहण करं. गोडल-न- गोकुल.
गोखीर-न-गायनं दूध.
गोवा - पुं-गोवाल.
गोवाल- पुं-गोवाल.
व
घंटिआ स्त्री- झालर.
घट्ट - वि-घसेलुं.
घड्-वडं. घड- पुं-घडो.
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________________
(११)
घय-न-बी. घर-न-घर. घरिणी-स्त्री-स्त्री. घुम्म्-कंपy. घुसल्-मथg. घुसिण-न-चंदन. घोट-पी. घोडअ-(य) पुं-घोडो. घोर-वि-भयंकर. घोस्-गोख.
च-अ-अने. च-अ-निश्चय. चइत्त-पुं-चैत्रमास. चउ-वि-चार. चउत्थ-वि-चोथु. चउदह-वि-चौद. चउवीस-वि-चोवीस. चंचु-पुं-चांच. चंडाल-पुं-चंडाल.
चचर-न-चोक. चड्-चडवू चन्दिमा-स्त्री-चंद्रिका, चम्म-न-चामडं. चय-छोडवू. चरण-पु-पग. चरण-न-चारित्र. चल-चालवू. चलन-पुं-पग.. चल्ल-चालवू. चक्-चव. चविडा-स्त्री-लापोट. चाइ-पुं-त्यागी. चाउरन्त-न-चारगतिनुं नाशक. चारण-पु-चारण, भाट. . . चाव-पु-धनुप. चिइच्छ्-रोगनो प्रतीकार करवो. चिण्-एकहुं करवू. . चिन्ध-न-चिह्न. . चिर-अ-लांवो वखत.. चिलाय-पुं-भिल्ल. . चुण्-एकहुं करवू. .. चुम्व्-चुंब_. चुलुचुल्-फरक.. चेइअ-न-चैत्य, मंदिर.
चंद-पुं-चंद्र.
चक्क-न-चक्र, पै९. चक्कपट्टि-पुं-चक्रवर्ती. चक्खिअ-वि-चाखेखें.
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________________
चेल-न-वस्त्र. चोप्पड्-चोपडं. चोर्-चोखं.
छ
छ -वि-छ.
छउम-न-कपट.
छंद - पुं-छंद.
छज्जू -शोभवु, छाजवं.
छण-पुं-उत्सव.
छत्त-न-छत्र.
छप्पय - पुं- भमरो.
छम्मूह-पुं-यक्षनुं नाम.
छय-वि- तूटेल. छली - स्त्री -छाल.
छार - वि-खार.
छाल - पुं-त्रकॅरो.
छाली - स्त्री-त्रकरी.
छाव-पुं-बाळक.
छाही स्त्री- छाया.
छिंट-काप, छेदवं.
छिअ-न-छींक.
छिहा- स्त्री-स्पृहा.
छीर-न- दूध.
हुँद-आक्रमण कर.
( १२ )
छुर- पुं- अस्तरो, छरो. हुव-स्पर्श करवो. छुहा स्त्री-भूख. हा स्त्री-अमृत, सुधा.
-X
ज-वि- जे.
जभडू - उतावळ करवी.
जइ- पुं-साधु:
जउ-न- लाख.
जंत-न-यंत्र.
जंतु-पुं- जीव.
जंबूदीव - पुं-जम्बूद्वीप.
उणा - स्त्री-यमुना नदी.
जक्ख- पुं-यक्ष.
जग-न-जगत्.
जग्गू - जागबुं.
जडिअ -वि-संबद्ध.
नडिल-वि- जटावाळो.
जढ-वि- (भू-कृ) छोडेल.
जढर-न- पेट.
जणय-पुं-पिता.
जत्त- पुं-यत्न.
जम- पुं-यम,
जम्मू-जन्मवं.
:
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________________
(१३)
मयउर-न-नगरनुं नाम, जयपुर. | जारिच्छ-वि-जेवो. जयणा-पु-यतना.
जिह-वि-मोटं. जर-जीर्ण यं.
जिण-जीत. जरा-स्त्री-घडपण.
जिण-पु-जिन. जल-न-पाणी.
निणंद-पु-जिनेन्द्र जलण-पुं-अग्नि.
जिणवरवसह-पुं-जिनोमां उत्तम.. जलहर-पु-वरसाद.
जिणहर-न-जिनमन्दिर जलहि-पु-समुद्र.
जिण्ण-वि-जीर्ण. जव-पु-यव.
जिण्हु-पं-जीतनार. जस-पु-यश.
निम्मा-स्त्री-जिह्वा. जह-अ-जेम.
जिव्-जीवg. जहण-न-साथळ.
जीआ-स्त्री-दोरी. जहा-अ-जेम.
जीव-जीवg. जहि-अ-ज्यां.
जीव-पु-जीव. जहिछिल-पुं-युधिष्ठिर. जीवाउ-न-जीवनौषध.. जहुठ्ठिल-पु-युधिष्ठिर. जीविअ-न-जीवित. जा-जवं.
नीह-लाजवू. जा-पेदा थg.
जीहा-स्त्री-निह्वा. जाण-जाणवू.
जुन्झ-लडg. जाणु-न-साथळ.
जुट्छ-वि-सेवित. जामाअर-पुं-जमाइ.
जुव-पु-युवान, जामाआ-पुं-जमाइ.
जुवइ-स्त्री-युवति. जामाउ-पुं-जमाइ.
जुवाण-पु-युवान. जामाउअ--जमाइ.
जूअ-न-चूत. .. नावय-पु-जीतावनार.
जुर्-जूर. .
21
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________________
(१४)
जूह-न-यूथ, जथ्यो. जेत्तिल-वि-जेटलु. जेम्-जमवं. जोअण-न-योजन, चार गारं. जोइसवासि-ज्योतिष्कदेव.
(सूर्यादि)
| डंभ-पुं-कपट, . . डक्क-वि-(भू-क) डसेल. डर-वीवं, भय पामवो. डस्-डसg. उसण-पुं-दांत. डह-बळg. डाह-पुं-दाह, वळg. डिंभ-पुं-बालक. डॉव-पु-चांडाल. डोला-स्त्री-हिंडोळो. डोहल-पुंदोहद, मनोरथ.
जोगि-योगी. जोवण-न-यौवन. झोसिअ-वि-(भू-कृ) फेंकेल.
झंख्-नीसासो नाखवो. झर-टपकg. झवेर-पुं-विशेषनाम. झा-ध्यान करवू. झि-क्षीण थq. झुणि-पुं-ध्वनि, शब्द.
ढंढोल-गवेषणा करवी. ढंस्-वर्त. ढक्क्-ढांक. दुंदुल्ल-गोतवू.
ठंभ-पुं-स्तम्भ. ठड्ढ-वि-(भू-क) स्तब्ध. ठा-रहेg. ठाण-न-स्थान, ठेकाj.
णमो-अ-नमस्कार करवो. गर-पुं-पुरुष. णवर-अ-केवल. णाण-न-ज्ञान, णि गच्छ-निकळg. जिल्लम-उलसवू.
डंड-पुं-दंड, लाकडी.
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________________
णिन्वड्-जुदुं थवं. णिम्वर- दुःख कहेनुं. णिवहू - नाश थवो.
णिव्वा थाक खावो.
नीरव - खावाने. इच्छ. णीलुल्लू-नीचे पडं.
णीहरू - नीकळं. णु+मज्ज्-बेसवं.
णे- लड् नपुं. हा - स्नान करं.
व्हाण-न-स्नान.
ण्हाविअ-पुं-हजाम.
त
त-वि-ते.
तइअ - वि-त्रीजुं.
तंतुवाय- पुं-वणकर.
तंब - न-तांबु.
तंबोल - न - नागरवेनुं पान.
तंस - वि वांकुं, तांसु.
तक्ख- पुं-बळद. तक्खाण-पुं-वळद.
तच्छु पातलुं कर. तड-पुं-तट.
तडिआ स्त्री-विजळी.
:
( १ )
तण-न-घास.
तणया स्त्री. छोडी ..
तणु-स्त्री-शरीर.
तत्त-न-तत्त्व.
तत्त-न- तप्त.
तत्थ-अ-त्यां.
तत्तिल-वि-तेटलं..
तप्प - पुं- पथारी.
तया - अ-त्यारे.
तर्-तरबुं.
तर - शक बुं.
तरंगिणी - स्त्री - नदी. तरणि- पुं- सूर्य. तरु-पुं-झाड.
तरुण- पुं- युवान.
तल-न-तळीयुं.
तव्- तपवुं.
तव-न- तप.
तवणिज्ज-न- सोनुं.
तविअ-वि-तपेलुं, गरम थयेलं.
तस्- बी.
तस - पुं-त्रसजीव. तह-अ-तेम.
तहा- अ-तेम. तहि-अ-त्यां.
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________________
(१६) ताड्-मारवं.
| तेरह-वि-तेर, सख्या . ति-अ-ए प्रमाणे.
तोड्-तोड. ति-वि-त्रण.
तोणीर-न-माथु. तिअस-पु-देव.
तोण्ड-मुख. तिअसगणवइ-पुं-इंद्र. तोल्-तोळवं. तिक्ख-वि-तीखं. तितउ-पु-चालणी. तित्तिर-पुं-तेतर.
थंभ-पुं-थांभलो. तित्य-न-तीर्थ.
थक्क्-नीचे जq. तिमिर-न-अंधकार.
थण-पुं-स्तन, तिसला-स्त्री-श्रीवीरनी माता. थरहरिअ-वि-कम्पेखें. तिसा-स्त्री-तृपा.
थव-पु-स्तव, स्तवन. तिहुअण-पुं-त्रिभुवन, विशेषनाम. थाणु-पु-महादेव. तुम्ह-त्रि-तमे.
थाम-न-बल. तुम्हारिच्छ-वि-तमारा जे. थावर-पुं-स्थावर. तुम्हेच्चय-वि-तमारु.
थिप्प-तृप्त थq. तुरंगम-पुं-घोडो.
थी-स्त्री-स्त्री. तुलसी-स्त्री-तुळसी.
थीण-वि-थी'. तुसखंडण-न-फोफां खांडवा. थुइ-स्त्री-स्तुति. तुसार-पुं-बरफ.
थुण-स्तुति करवी. तूर-न-वामुं.
थुल्ल-वि-स्थूल. तूस-वि-तुष्ट थq.
थुवअ पुं-स्तुति करनार. तूह-न-तीर्थ.
थू-अ-निंदावाचक. तेअ-न-तेज.
थूण-पु-चोर. तेअव-दीपवं.
थेण-पुं-चोर,
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________________
थेर-वि-स्थविर, वृद्ध. थोर-वि-जाई.
.
दइअव-न-दैवत. दुइच्च-पु-दैत्य. दइन्न-न-गरीवपणुं. दुइवज-वि-दैवज्ञ. दंड-पु-दंड, लाकडी. दंत-पु-दंत. दम-पु-कपट. . दसण-न-दर्शन. दक्षिण-पु-डायो. दच्छ-वि-डाह्यो. दढन्वय-वि-हढ छे व्रत जेतुं. दया-स्त्री-दया. दयाल-पुं-दया. दरिअ-वि-मत्त. देवग्गि-पुं-अग्नि. दसण-पुं-दांत. दसमुह-पुं-रावण. दसरह-पु-दशरथ. दह-वि-दश. दह-पु-कुंड. दहमूह-घु-रावण.
दा-दे. दाउ-पुंदेनार. दाढा-स्त्री-दाढ. दाण-न-दान. दाणव-पु-दैत्य. दायय-वि-देनार. दाया-पु-देनार. दायार-पुं-देनार. दार-पुं-स्त्री. दारिद्द-न-आळस. दारु-न-लाकडं. दास-पुं-नोकर. दासत्तण-न-दासपणुं. दाह-पु-दाह, बळ. दाहिण-पुं-डाह्यो. दिअर-पुं-देवरः . दिअह-पुं-दिवस. दिआ-अ-दिवस. दिक्खा-स्त्री-दीक्षा. दिठिआ-अ-हर्पसूचक, ... दिण-पुं-दिवस. .. दिणमणि-पुं-सूर्य. दिण्ण-वि-[भू-कृ] दत्त, आपेलु. दित्त-वि-[भू-दीप्त.
दित्ति-स्त्री-दीप्ति. 1 दिवस-पुं-दिवस.
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________________
दुह-न-दुःख. दुहाव्-दुभावg. दुहिअ-वि-दुःखित. दुहिआ-स्त्री-दीकरी. देख-देखg. देव-पु-देव. देवत्तण-न-देवपणुं. देवसिअ-वि-दिवस संबंधी. दोगच्च-न-दुर्गतिपणु. दोवयण-न-द्विवचन. दोहल-पु-मनोरथ. द्रह-पु-कुंड.
दिवह-पुं-दिवस. दिवायर-पुं-सूर्य. दिहि-स्त्री-धति, धैर्य. दीण-वि-क्षीण. दीव-पु-वेट. दीह-वि-लांबु. दीहर-वि-लांबु. दु-वि-वे. दुअल्ल-न-वस्त्र. दुआइ-पुं-त्राह्मण. दुइअ-वि-बीजो. दुऊल-न-वस्त्र. दुंदुहि-पुं-दुंदुमि, दिव्य वाणु. दुकड-न-पाप, दुष्कृत. दुक्ख-न-दुःख. दुक्खक्खय-पुं-दुःखनो क्षय. दुगुल्ल-न-वस्त्र. दुगुंछ-घृणा करवी. दुळ-वि-दुष्ट. दुम-पुं-झाड. दुरायार-पुं-दुराचार. दुरिअ-न-पाप. दुवार-न-बारण. दुवालसंग-न-द्वादशांग, दुस्सउण-न-अपशुकन. दुह-दोबु.
धअ-पु-ध्वज. धंत-न-ध्वांत, अंधकार.. धण-न-धन, पैसो. धणवइ-पुं-धनपति, शेठ. घणु-न-धनुष्य. घणुह-न-धनुष्य. धन्न-न-धान्य. धम्म-पुं-धर्म. धम्मसारहि-पुं-धर्मसारथि. धर-धारण कर. धरणिधरवइ-पुं-चक्रवर्ती, मेरु.
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________________
धरा- स्त्री- पृथ्वी, धा-दोडं. धाइ - स्त्री - धात्री.
धाराहय-वि-धारावी हणायेल. धिट्ठ-वि-धृष्ट. वीर - वि- धीरजवान.
धुण-कंप, धुकं. धुरा- स्त्री-घोसरी.
धूलि - स्त्री- धूळ. वेणु-स्त्री-गाय.
न
न-अ-निषेध, नहि. नई - स्त्री - नदी. नंदण - पुं-दी करो.
नच्च-नाचवं.
नट् ट्- नाचवुं.
नडी - स्त्री-नटी, सूत्रधारनी स्त्री.
नणंदा - स्त्री-नणंद.
नमुक्कार - पुं- नमस्कार.
नमो - अ - नमस्कार.
नमोक्कार - पुं- नमस्कार.
नय- पुं- नग, पर्वत.
नयण-पुं- आंख.
नयर - न- नगर, शहेर.
( १९ )
नयरी - स्त्री-नगरी. नर-पुं- पुरुप.
नरय-पुं- नरक.
नरवइ - पुं-राजा.
नरिंद्र- पुं-राजा.
नलिणी - स्त्री-कमलिनी.
नव-नमवुं.
नव-वि-नव.
नवणीअ-न-माखण.
नवरि-अ-किन्तु.
नव्वल - वि-नवुं.
नस्सू - नाश थवो.
नह-पुं- नख.
नह-न- आकाश.
नाअ-पुं- न्याय.
नाड्य-न-नाटक.
नाण-न-ज्ञान.
नातपुत्त- पुं- महावीरदेव.
नाम-न- नाम.
योग्य.
नायन्त्र - वि - जाणवा नारइअ - पुं- नारकीनो जीव.
नारी - स्त्री-स्त्री.
नावा -स्त्री-नाव.
नाह-पुं-नाथ.
निअ-जोवं.
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________________
निआणवंधण-न-निआ' वांध निद-निंदवू. निव-पु-लींवडो. निग्गह-पुं-निग्रह, निच्च-अ-हमेशां. निच्चल-पु-निश्चल. निच्छूढ-वि-फेंकेल. नि+ज्झा-जोबु. निण्ण-वि-नीचुं. निण्णय-पु-निर्णय निण्णया-स्त्री-नदी. निहलिअ-वि-खंडित. नि+दा-निद्रा करवी. निदा-स्त्री-निद्रा. निप्प-निपज. निम्पिह-वि-निस्पृह. निष्फाव-पुं-बाल. निमित्तमित्त-वि-निमित्तमात्र. नि+मिल्ल्-मींचावू. निम्मव-करवं. निम्मिअ-वि-करेलु. निरप्प-उमा रहेg. निरुवम-वि-अनुपम. निव-पु-राजा. निवइ-पु-राजा.
निबट्-निवर्त. निस्वड्-पडवू. निरज्वल-निपज.. निल्लंछण-न-निर्लोछन. निसंस-पुं-क्रूर. निसा-स्त्री-रात. निसिअ-वि-तीक्ष्ण. निसिअर-पुं-चंद्र. निसट्ट-दि-नीचे पाडेल. नि+-हर-झाडे फरवू. निहाण-न-भंडार. निहि-पु-समुद्र. निहस-पुं-कसोटी. नीसास-पुं-निश्वास. नेअ-वि-ज्ञेय. नेउर-न-झांझर. नेड-पुं-मालो. नेम-वि-अधुं. नेरइअ-पुं-नारकीनो जीव. नेवत्थ-न-नेपथ्य. नेह-पुं-स्नेह.
प+आव-पाम. पइ-पुं-स्वामी.
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________________
(२१)
प+इ-जोवू. पइटा-स्त्री-प्रतिष्ठा. ... पइण्णा-स्त्री-प्रतिक्षा. . पईव-पु-दीवो. पउत्ति-स्त्री-प्रवृत्ति. पउम-न-कमळ. पउर-वि-नगर संबंधि, पउर-वि-घणं. पउरिस-न-पुरुषार्थ. पउल्-रांधवं. पंक-पुं-कीचड. पंग-ग्रहण कर. पंगुल-वि-पांगळो. पंच-वि-पांच. पंचमी-स्त्री-पांचमी. पंडव-पुं-पांडव. पंडित्त-न-पांडित्य. पति-स्त्री-श्रेणी. पंथ-पुं-रस्तो. पक्क-वि-पाकेल. पक्ख-पुं-पक्ष. पच्चय-पुं-विधास. पचार-ठपको देवो. पच्छा-अ-पाछळ. पट्टण-न-नगर.
-22
पड़-पड. पड-पुं-पट, वस्त्र. पडंसुआ-स्त्री-पडयो. पडह-पुं-पटह, ढोल. पडाया-स्त्री-धना. पडि+कम्-पार्छ हटवू. पडिवा-वाटनोवी. पडिविव-पु-मूर्ति. पडिमा-स्त्री-प्रतिमा. पडिवआ-त्री-पडवो. पडिसा-शांत थq. पडि+हा प्रतिमान थq. पढम-वि-पहेलं. पण्ण-पु-डाह्यो. पण्ण-न-पांदडं. पण्णरह-वि-पंदर. पण्ह-पुं-प्रश्न. पण्हा-स्त्री-प्रश्न. पणाम-पुं-नमस्कार, पणिहाण-न-ध्यान. पत्तल-न-पतरावल. पत्तेयं-अ-प्रत्येक. पत्थू-प्रार्थवं. प+दा-दे. पन्नत्त-वि-प्रज्ञप्त.
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________________
(२२)
पम्ह-न-पापण. पम्हुट्ट-वि-नाशेल. प+मज्ज-साफ कर. पमया-स्त्री-स्त्री. पमाय--प्रमाद. पयर-पु-समूह. पयललू-शिथिल थq. पया-स्त्री-प्रजा. पयावइ-पुं-ब्रह्मा. प+यास्-प्रकाशp. पर-वि.वी. परक-वि-पारकुं. परत्यकरण-न-परोपकार. परयण-पुं-परजन. पराभव-पु-पराजय. परामरिस पु-विचार. परि+अट्-ममबुं. परिकल्-पारखवू. परि+गेण्ह-परिग्रह करवो. परिट्ठा-स्त्री-प्रतिष्ठा. परिणे-परणg. परिवस-रहे. परिवार-पुं-परिवार. परिसह-पुं-परिपह. परिसाम्-शांत करवू.
परी-फेंक. परोवयार-पुं-परोपकार. पलक्ख-पुं-पीपळो. पलालपूल-पुं-घासनो पूळो.. प+लीव-दीपचं. पलोअन्त-वि-जोतो. पल्लाण-ज-पलाण. पल्लोट्ट-वि-फेंकेल. पलोड्द-पाछा आवq. परहत्थ-वि-फेंकेल. पवण-पुं-पवन. पवासु-मु-मुसाफर. पवाह-पुं-प्रवाह. प+विस्-प्रवेश, पेस. पवेस-पुं-प्रवेश करवो. प+संस्-प्रसंश. पसंसा-स्त्री-प्रशंसा. प+सर-फेलावू. पसर-पुं-फेलाव. पह-पुं-मार्ग. प+हर-मारवं. पहा-स्त्री-क्रांति. पहिअ-पुं-वटेमा. पहुअत्तण-न-सामर्थ्य. पहुप्प्-समर्थ थ_.
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________________
(२३)
पाइक-पुं-पाळो. पाउस-पु-वर्षा ऋतु. पाडिएक-अ-प्रत्येक. पाडिकं अ-प्रत्येक. ' पाडिवआ-स्त्री-पडवो. . पाडिवया-स्त्री-पडवो. पाणाइवाय-पु-हिंसा. पाणि-पुं-हाथ. पाणिअ-न-पाणी- . पाणिवह-'-हिंसा. पाय-पुं-पग. पायच्छित्त-ज-प्रायश्चित्त. पायार-पुं-किल्लो. पार-पू-किल्लो. पारक-वि-पारकुं. पारितोसिअ-न-इनाम. पारेवअ-पुं-पारे. पाल्नक्षण कर.
पाव-न-पाप, . . पावपबंध-पुं-पापनी रचना.
पावासु-पुं-मुसाफर. पास्-देखq. पास-न-पडखं. पास-पुं-पासो. . पाहाण-पुं-पापाण.
पाहिज-न-भातुं. पिअर-पुं-पिता. पिआ-पुं-पिता. पिउ-पुं-पिता. पिउसिआ-स्त्री-फइ. पिक-वि-पाकेल. पिज्ज-पीg. पिध-अ-जूदु. पिलोस-पुं-बलवं. पिव-अ-पेठे. पिवासा-स्त्री-पीवानी इच्छा. पिसल्ल--पिशाच. पिह-अ-जूदं. पिहुल-वि-पहोळु. पीअल-न-पीतल. पीइ-स्त्री-प्रीति. पीड्-पीडबुं. पीलु-पुं-पीलु. पुंछ-न-पूछडुं. पुच्छ्-पूछबुं. पुच्छ-न-पूछडुं. पुन्छ-साफ करवू. पुठ्ठ-वि-पुष्ट. .
पुढवि-स्त्री-जमीन. . | पुण्-पवित्र करवू.
..
।
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________________
| पोप्फल-न-सोपारी.
.
.
पुण-अ-फरीने. . पुण्ण-न-पुण्य. पुत्तलिआ-स्त्री-पुतळी. पुत्त-पुं-पुत्र. पुत्थय-न-पुस्तक. पुधं-अ-जूदूं. पुप्फ-न-पुप्प, फूल. पुप्फिआ-स्त्री-फइ. पुर-न-नगर. पुरा-अ-पहेलां. पुरिम-वि-पूर्व. पुरिस-पुं-पुरुष. पुलोमी-स्त्री-इंद्राणी. पुन्च-वि-पूर्व. पुन्नुपण्ण-वि-पूर्वे थयेलं. पूअण-न-पूजा. पूर-पूर. पूस-पुष्ट थर्बु. पूस-पुं-सूर्य. पूसाण-पुं-सूर्य. पेज-वि-पीवा योग्य. पोक्खर-न-तलाव. पोग्गल-न-पुद्गल, पोग्गलक्खेव-पु-कांकरानुं फेंकg. पोत्यय-न-पुस्तक.
फंस्-अडकवू. फग्गुण-पुं-फाल्गुन, फागण मास. फणस-पुं-फणस. फरिस-स्पर्श करवो. फल्-फळ. फल-न-फळ, फलविवाअ-पुं-परिणाम, फलिह-पुं-स्फटिक. फास्-स्पर्श करवो. फुटू-स्फुट थg. फुङ-वि-स्फुट,
वइल-पु-वळद. वंध्-बांधवं. वंधु-पु-भाइ. वमन्वय-न-ब्रह्मचर्य. वज्झ-वि-वाह्य. बप्पीह-पुं-चातक.
वम्ह-पुं-ब्रह्मा. | बम्हचेर-न-ब्रह्मचर्य.
वम्हण-पुं-त्रासण. ।
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________________
(२५)
बम्हाण-पुं-ब्रह्मा.
बुहम्फइ-पु-वृहस्पति.. बरिह-न-पीछु.
वोज्ज्-डरवू. बल-न-लश्कर.
बोर-न-बोर. बहिणी-स्त्री-बहेन.
बोरी-स्त्री-वोरडी. बहिर-पुं-बहेरो.
वोल्ल-बोलवू. बहेडअ-न-बहेडं.
बोलीण-वि-गयेलं. बाण-पुं-जाण.
बोह-पुं-ज्ञान. बार-न-द्वार.
वोहि-न-सम्यक्त्व. वारसविह-वि-बारजातनो. बारह-वि-बार. बाला-स्त्री-बालकी.
भइरव-पु-भैरव. बाहा-स्त्री-हाथ.
भक्ख्-भक्षण कर. बाहिरं-अ-बहार.
भग-पुं-ज्ञान, बाहु-पुं-हाथ.
भगवई-स्त्री-भगवती. बाहुबलि-पुं-विशेषनाम. भगवंत-पुं-परमात्मा. बिउण-वि-बमj.
भज्जा-स्त्री-भार्या. बिन्दु-पुं-बिन्दु.
भन्ज-मांगg. बिराली-स्त्री-बिलाडी.
भत्त-पुं-ओदन. बिहस्सइ-पुं-बृहस्पति.
भत्ता-पुं-स्वामी. बीअ-वि-बीजुं.
भत्तार-पुं-स्वामी. बीह-बी.
भत्तु-पु-स्वामी. बुन्यू-जाणवू.
भम्-भम. बुड्ड्-डूबg.
भमड्-भमg. बुद्ध-पुं-बुद्धदेव.
भमाड्-भमाडवू. बुह-पु-पंडित... .. ... । भय-न-भय, वीक,
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________________
मरहेसर - पुं- भरतेश्वर चक्रवर्ती.
भव. पुं- संसार.
भवनिव्वेअ-पुं-भवथी वैराग्य.
भवसायर-पुं- भवसमुद्र,
भविअ-वि-सुंदर.
भा-दीपकुं.
भाअ-पुं-भाग,
भाउ-पुं- भाइ. भागि-वि-भागवाळो.
भाण-न-भाणुं, भाजन.
भाणु-पुं- सूर्य.
भाणु-पुं-किरण.
भामिणी-स्त्री-स्त्री.
भायर-पुं-भाइ.
भाया- पुं-भाइ.
भार-पुं-भार.
भारवह-पुं-मजूर.
भारह-न- भरतखंड.
भासण - न-भाषण.
भिउडी - स्त्री-भ्रकुटी.
भिंद्-भेदवं.
भिच्च पुं-नोकर.
भिस्-शोभवु.
भीरु-वि-त्रीकण.
मुअगवइ- पुं- शेषनाग,
( २६ )
मुइ-स्त्री-नोकरी. भुक्क्-भसबुं.
भुवण - न-जगत्.
भूअ-वि-थयेलुं.
भूमि- स्त्री पृथ्वी. भूसण-न-घरेणुं. भोअण-न-भोजन.
म
मइ - स्त्री-बुद्धि.
मउ-वि-नरम.
मउण-न- मौन.
मउलि- पुं-मुकुट. मऊह-पुं-किरण.
मंगल-न-मंगल.
मंगल विजय - पुं- विशेषनाम.
मंजर - पुं-बिलाडो.
मंडुक्क - पुं-देडको .
मंतु-पुं- अपराध. मंथण-पुं- रवैयो.
मंस-न- मांस.
मंसल-वि-पृष्ट.
मग्ग- पुं-मार्ग.
मग्गण-पुं-मागण, बाण. मग्गसिर- पुं- मागशर मास.
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________________
मच्च् - उन्माद करवो.
मच्चु-पुं-मृत्यु.
मच्छ-पुं-माछलुं.
मच्छर-पुं-मच्छर.
मच्छिआ-स्त्री-माखी.
मज्जू-साफ करं.
मज्जाया-स्त्री-मर्यादा.
मज्झ-वि-मध्य.
मज्झन्न - न - मध्याह्न.
मज्झिम-वि-मध्यम.
मणंसि - पुं- मनस्वी. मणंसिणी - स्त्री - मनस्विनी. मणू- मानवुं.
मण-न-मन.
मणहर-वि-सारं.
मणि-पुं-मणि.
मणिलाल - पुं- विशेष नाम.
मणुअ-पुं- माणस.
मणूस - पुं- माणस.
मणोज्ज-वि-सुंदर.
'मत्तंड-पुं-सूर्य.
मत्थय-न- माथु. मत्थु - न- साथवो.
मन्नु-पुं-क्रोध. मम्म-न- मर्म.
( २७ )
मय- पुं-मृग,
मय-वि-मरेलुं.
मयमंड-न- मुडदाने घरेणं.
मयरंद-पुं-मकरंद.
मयारि- पुं- सिंह.
मदि विजय- पुं- विशेष नाम.
मरगय-न- मरकतमणि.
मरिस्-सहं.
मरुदेवा - स्त्री - पहेला जिननी माता.
मल-मर्दन करवुं.
मसाण-न- मसाण,
महमहू-गंधनुं फेलावुं.
महायस-वि-मोटा यशवाळु.
महाविज्जा - स्त्री-मोटी विद्या.
महिलायण-पुं-स्त्रीलोक.
महिवाल- पुं-राजा.
महिस- पुं- पाडो.
महीरुह-पुं-झाड.
महु-न- मद्य, मघ.
माअरा-स्त्री. देवी.
माआ-स्त्री-देवी.
माआ-स्त्री-माता.
माई-अ-निषेध सूचक.
माउ- स्त्री माता.
माउ- स्त्री-देवी.
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________________
.
(२८)
माउक-न-कोमळता. माउसिआ-स्त्री-माशी. माण-पुं-अहंकार. माणस-न-मन. मामी-स्त्री-मामी. मायंद-पुं-आंवो. माया-स्त्री-कपट. माला-स्त्री-माळा. मास-पुं-महीनो. मास-न-मांस. माह-पु-माघ मास. मिच्छा-अ-खोटुं. मित्त-न-मित्र. मित्ती-स्त्री-मैत्री. मिलाकरमा. मिलिच्छ-पुं-म्लेच्छ. मुइंग-पुं-मृदंग. मुक-वि-मुक्त. मुक्ख-पुं-मोक्ष. मुक्ख-पुं-मूर्ख. मुझू-मूंझावं. मुणाल-पुं-कमलना नाळनो तंतु. मुणि-पुं-मुनि. . मुणिवइ-पुं-मुनिरान. मुत्त-वि-मुक्त,
| मुत्ताहल-न-मुक्ताफल. मुद्ध-न-माथु. मुद्धाण-न-माथु.. मुर-हासथी विकस. मुरुक्ख-पुं-मूर्ख. मुसा-अ-जूढुंमुसावाय-पुं-जूटुं बोलवू. मुसुमुर-छेवू. मुह-न-मुख. मूसअ-पु-उंदर. मूसा-अ-जूहूं, मूसावाय-पुं-जूटुं बोलवू. मेइणी-स्त्री-पृथ्वी. मेरा-स्त्री-मर्यादा. मेल-पु-मेळो. मेल्ल्-मेळवबुं. मेलव-मेळवg. मेह-पु-वरसाद, मेहुण-न-मैथुन. मोड-पुं-मुण्ड. मोग्गर-पुं-मुद्र. मोत्था-स्त्री-मोथ. मोर-पुं-मोर. मोरउल्ला-अ-व्यर्थ. मोल्ल-न-किंमत,
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________________
मोसा- अ- जूटुं. मोसावाय-पुं- जूटुं वोलवं.
-X---
र
रंध-न-काणं. रक्ख-पाळ.
रक्खण-न-पाळं.
रज्ज-न-राज्य.
रज्जु-न- दोरी.
रत्ती-स्त्री-रात्री.
रम्पू- पातळु कर.
रमण - पुं- पति.
रमणी-स्त्री-स्त्री.
रमा-स्त्री-स्त्री.
रम्म-वि-सुंदर.
रयण-न-रतन.
रयणी-स्त्री-रात्री.
रयय-न-रूपुं.
रवि-पुं-सूर्य.
रसच्चाय- पुं- रसत्याग. रसिंद-पुं- पारो. राइभ-वि-रात्रिसंबंधी. राइक-वि-राजानुं.
राइव-न- कमळ.
राउल-न- राजकुल.
23
( २९ )
राणी-स्त्री-राणी,
राया - पुं-राजा.
रायाण- पुं-राजा.
राहु-पुं- राहु. रिअ - प्रवेश करवो.
रिक्खन- नक्षत्र.
रिद्धि-स्त्री-धन.
वि-पुं-शत्रु.
रिसि - पुं- ऋपि.
रुइर - वि- सारं.
रुंटू-रोबुं.
रुंभ-रोकj.
रुक्ख- पुं-झाड.
रुग्ण-न-रुदन.
रूप्प-न-रूपुं.
रुप्पिणी - स्त्री - कृष्णनी स्त्री.
रुव-रोवं.
रूस्-रोप करवो.
रेह-शोभवं. रोगिल-वि-रोगवाकुं.
X
ल
लउड-न-लाकडी.
लक्ख्-जोवुं. लक्ख-न-लाख (संख्या) . .
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________________
(३०)
लोह-पुं-लोभ. लोहसिला-स्त्री-लोढानी शिला. हिक-वि-नासेलं.
व-अ-अथवा. वअ-न-व्रत. वइकंत-वि-व्यतिक्रांत. वइदम्भ-पु-वैदर्भ. वर-न-वन.
वहर-न-वैर.
लाग-लागवू. लच्छी-स्त्री-लक्ष्मी. लज्ज-लाज. लज्जा-स्त्री-लाज. लह-मेलवईं. लहुअ-वि-ना. लहुवी-त्री-नानी. लाऊ-स्त्री-तुंबडी. लांगूल-न-पूंछड़ें. लाह-पुं-लाम. लिम्प-लेप. लिला-स्त्री-क्रीडा. लिह-लखg. लिह-चावू. लुअ-वि-कापेलं. लुग्ग-विनोगी. लुण-कापवं. लुह-साफ कर. ले-ग्रहण कर. लेहा-स्त्री-रेखा. लोअ-पुं-लोक. लोअग्ग-न-मोक्ष. लोअप्पिय-वि-लोकप्रिय. लोटू-सू. लोण-न-मीढुं.
वइसाह-पु-वैशाख. वंक-वि-वांकु. वंच-ठगवं, वंचण-न-उगवू. वंछा-स्त्री-इच्छा. वंछिअ-न-इच्छेलं. वंजर-पुं-विलाडो. वंद-वांदवू. वंदणिज्ज-वि-वंदनीय. वंस-पु-वंश. वग्ध-पुं-ज्यान, वग्गोल्-वागोळg. वच्च्-जg. वच्छ-पुं-वत्स.
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________________
वच्छ-न छाती. वज्जू -वर्जवृं.
वज्ज-न-वज्र.
वट्ट्-वर्तयुं. वट्टमाण-वि-वर्तमान.
वड- पुं- वड.
वडवड्-विलपत्रं. वढ्ड्-वधj.
वण - न-वन.
वणस्स इ- पुं-झाड.
वण्ण पुं वर्ण.
वत्थ-न-वस्त्र.
वत्ता स्त्री-वार्ता.
वद्धमाण- पुं- विशेषनाम.
वद्धावू वधावj. वम्मिअ-न-फडो.
वय्-बोलवं.
वय-न-उमर.
वयंस- पुं-मित्र.
वयण-न-मुख.
वयण-न-वचन..
वरिस्-चरसवं.
वलग्गू - चडवं.
(. ३१ · )
वलहि- स्त्री - नगरीनुं नाम, (वळा) वसंत पुं- वसंत.
वस्-रहेवं. वसहि- स्त्री -घर.
वसुंधरा - स्त्री - पृथ्वी.
वसु-न-धन.
वह वहन कावं.
वह-पुं-पीठ.
वहुत्त-वि-घणं.
वहू-स्त्री-वहू. वा-त्रावुं.
वा-अ- अथवा.
वाइअ - वि-वचनसंबंधी.
वाऊल-पुं-पवनसमूह.
वार - पुं-वानरो.
वाया - स्त्री - वाचा.
वारण- पुं-हाथी.
वारि-न-पाणी.
वावम्फू-इच्छ्बुं.
वावर्-वापखं.
वावी - स्त्री - वाव.
वास-पुं-वास.
वासर - पुं- दिवस.
वाहि- पुं-व्याधि.
वाहित्त-वि-वोलें. विअट्टछउम-वि-निष्कपट.
विड-वि-विकट..
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________________
( ३२ )
विअण-न-पंखो. विअणा-स्त्री-वेदना. विआण-न-चंदरखो. वि+आव-व्यापg. विछिअ-पुं-वींछि. वि+किण-विक्रय करवो. विग्गह-पु-शरीर. विग्ध-पुं-विघ्न. विनयधम्मसूरि-पु-विशेषनाम, विज-पु-वैद्य. विजत्थि-पुं-विद्यार्थी. विज्जालय-न-विद्यालय. विज्जु-स्त्री-विजली. विजुला-स्त्री-विजली. विज्झ-पु-विंध्याचल. विड्डा-स्त्री-लज्जा. विढन्त-वि-पेदा करतुं. विढव-पेदा करवू. विणय-पुं-विनय. विणा-अ-विना. विण्हु-पुं-विष्णु. वित्त-न-धन. वित्थर-पुं-विस्तार. विदेह-पुं-महाविदेहक्षेत्र. विदुम-पुं-परवाळ..
| विबुह-पुं-देव. विमाणवासि-पुं-वैमानिकदेव. विम्हय-पुं-विस्मय. विम्हर-पु-भूलवं. विर-व्याकुल थg. वि+रम्-अटकवू. विरमण-न-अटकवू. विरमाल्-वाटनोवी. विराहणा-स्त्री-विराधना. विलय-पुं-नाश. विवठ्ठ-वि-वर्त. विवणी-स्त्री-बजार. विवरीअपरूवणा-स्त्री-खोटुं कहेवू. वि+वह-परण. विवाह-पुं-विवाह. विसढ-वि-विषम. विसम-वि-विषम. विसहर-पुं-सर्प. विसाय-पुं-खेद. विसारय-पुं-विद्वान. विहंग-पुं-पक्षी. वि+हर-विहरवू. विहल-वि-विफल. . विहिकय-वि-भाग्य करेलं. | विहीर-वाट जोवी.
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विहु-पुं-चंद्र. विहूण-वि- विहीन. वीणा स्त्री-वीणा.
वीर - पुं- वीर.
वीसर्-भूलवं. वीसा - स्त्री-वीश.
वीसास - पुं- विश्वास.
वृंद-न-समूह. वुड्ढ-वि-वृद्ध.
वुड्ढ - स्त्री - वृद्धि.
वृत्तंत- पुं-समाचार.
वृन्दारय- पुं- देव.
अ-पुं-वेग.
वेद-वींटवं.
वेणु-पुं- बांसडो. वेयावच्च-न-वैयावृत्य.
वेर-न-वैर.
वेरग्ग-न-वैराग्यः
वेरुलिअ - न - रत्नविशेष.
वेल्ल्-रमवुं.
वेव्-कंपवुं.
वोल्-जं. वोसट्ट - वि - फूलेलं.
वो+सिर्-छोडी देवु.
( ३३ )
स- पुं-ते.
स- पुं- कूतरो.
सह-अ- सदा.
स
सइन्न-न-सैन्य.
सई - स्त्री - इन्द्राणी. सउह-न- महेल.
संक्- शंका करवी.
संकली - स्त्री-सांकळ. संकिण्ण-वि-सांकडु..
संख-पुं-शंख.
संग- पुंसंग...
संघार- पुं-संहार.
संझा- स्त्री-संध्या.
संठाण-न-संस्थान, आकार.
संढ- पुं- नपुंसक.
संत-वि- विद्यमान.
संत-वि-शांत.
सं+तप्पू-संतपवं.
संति- स्त्री - शांति.
संतिगर - वि-शांति करनार.
संथुअ-वि-संस्तुत.
संदण-पुं-रथ.
सं+दिस्-संदेशो कहेवो. संदेस -पुं-संदेशो.
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________________
(३४)
संदेह पुं-शंका. संदोह-पुं-समूह. संपइ-अ-संप्रति. सं+पज्ज्-थq. संभाव-संभावना करवी. संभु-पुं-शिव. सं+मिल्लू-मळg. संमुह-वि-सासुं. सं+बड्डू-वधg. संप्तार-पु-संसार. सक--इन्द्र. सकार-पुं-संस्कार, सत्कार. सग्ग-पुं-सर्ग. सच-वि-सत्य. सज-तैयार थq. सज्झाय-पुं-स्वाध्याय. सडा-स्त्री-सटा. सड्ढ-पुं-श्राद्ध, श्रावक. सवा-स्त्री-श्रद्धा. सड-पुं-लुच्चो. सणिअं-अ-धीमे. सणिच्छर-पुं-शनैश्चर. सण्णा-स्त्री-संज्ञा. सह-वि-सूक्ष्म. सत्त--जीव.
सत्त-वि-सात. सत्तरह-वि-सत्तर. सत्ता-स्त्री-सत्ता. सत्ति-स्त्री-शक्ति. सत्तु-पुं-शत्रु. सत्तुंजय-वि-शत्रुनय. सद्द-पु-शब्द. सद्द-श्रद्धा करवी. सद्धा-स्त्री-श्रद्धा. सन्नाम्-आद. सप्प-पुं-सर्प. सप्पि-न-घी. सम-वि-सर्व. समण-पुं-साधु. समणु+जाण-आज्ञा देवी. समत्त-वि-समस्त. समथिअ-वि-करेलुं. समरंगण-न-रणक्षेत्र. समर-न-युद्ध. समव+सर-आवQ. समागय-वि-समागत, आवेढुं. समा+चर्-आच. समाण-समाप्त क. समाव-समाप्त करवू. समुद-पु-समुद्र.
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( ३५ )
सम्म-न-सुख. , सम्मदिट्टि-पुं-सम्यग्दृष्टि. संयंभु-पु-शिव. सयढ-न-शकट, गाडूं. सयण-पुं-स्वजन. सयहुत्तं-अ-सोवार. सया-अ-हमेशां. सर-पुं-कामदेव. सर-पुं-बाण. सरअ-पुं-शरद ऋतु. सरयरवि-पु-शरदऋतुनो सूर्य. सरयससि-पुं-शरदनो चन्द्र सररुह-न-कमळ. सरस्सई-स्त्री-सरस्वती देवी. सरिआ-स्त्री-नदी. सरीर-न-शरीर. सलह-श्लाघा करवी. सलाहा-स्त्री-श्लाघा. सलिलरासि-पुं-समुद्र. सन्व-वि-सर्व. सवण-न-कान. सवह-पुं-सोगन. सम्वत्थ-अ-सर्वत्र, वधे. सव्वरी-स्त्री-रात्री. सम्वविणासण-वि-सर्वनो नाश
करनार.
ससहर-पुं-चन्द्र ससां-स्त्री-वहेन. ससि-पुं-चन्द्र. सह-शोभq. सह-सहन करवं. सह-अ-साथे. सहसागार-पुं-सहसाकार. सहा-स्त्री-समा. सही-स्त्री-मित्र. सहोअर-पु-भाई. साउ-वि-स्वादु. साडी-स्त्री-साडी. साण-पुं-कूतरो. साणु-न-शिखर. साम-वि-श्याम. सामग्ग-चोंटवू. सामाईअ-न-सामायिक. सामिद्धि-स्त्री-समद्धि. सार-प्रहार करवो. सारमेय-पुं-कूतरो. सारहि-पुं-सारथि. सारिआ-स्त्री-मेना. साला-स्त्री-शाला.
सालि-पु-चोखा. ! साव-पु-शाप.
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શ્રી તારાબાઈ આર્યાજી સિન્દ્રાન જ
तथा सभ ले३६)
सावअ-पुं-श्रावक. सावगधम्म-पुं-श्रावकधर्म. सास-पुं-श्वास. सासु-स्त्री-सासू. साह-कहेवू, साधq. सिम-विश्वेत, धोलू. सिआवाय-पुं-स्याद्वाद. सिआल-पुं-शृगाल. सिंग-न-शिखर, शींगडं. 'सिंगार-पुं-शृंगार. सिंघ--सिंह. सिंघासण-पुं-सिंहासन. सिंच-सिंचवं. सिंदूर-न-सिंदूर. सिंघव-वि-सैंधव, सिन्धमां थयेल. सिंधु-पुं-समुद्र. सिं-सींच. सिक्ख-शीख. सिक्खा-स्त्री-शिक्षा. सिन्झ्-सिद्धथ. सिणिद्ध-वि-स्निग्ध, सिणेह-घु-स्नेह. सिद्धसेण-पुं-एक जैन महाकवि. सिद्धि-स्त्री-सिद्धि. सिन्न-न-सैन्य.
सिप्पि-पुं-कारीगर. सिम-वि-सर्व. सिमिण-पुं-स्वप्न. सिर-बनाव. सिरीस-न-शिरीष. सिर-न-माधुं. सिरी-स्त्री-श्री, लक्ष्मी. सिरीकंता-स्त्री-नाम, (श्रीकांता) सिलिम्ह--श्लेष्म, सिलेस्-चोंटवू. सिलोग-पुं-श्लोक. सिव-न-कल्याण. सिवा-स्त्री-पार्वती. सिविण-पुं-स्वप्न. सिव्व्-सीवq. सिह-स्पृहा करवी. सिहरि-पुं-पहाड. सिहा-स्त्री-शिखा. सिहि-पुं-अग्नि. सिहु-न-दारु. सीमर-न-जलबिन्दु. सीलड्ढ-वि-शीलयुक्त. सीस-पु-शिष्य. सीह-पुं-सिंह. सीहर-न-जलविन्दु.
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सुअ-न- सिद्धांत. सुइ-वि- पवित्र.
सुई - स्त्री-सोय. सुंदेर-न-सौन्दर्य.
सुकम्म पुं-सारां कर्म वाळो. सुकम्माण- पुं- सारां कर्म वाळो.
सुग्गर-स्त्री-सुगति. सुठु-अ-सारी रीते.
सुण्- सांभळं.
सुन्ह - वि-सूक्ष्म.
सुहा - स्त्री-पुत्रवधू. सुण्हा स्त्री- गलकंबल.
सुद्द - पुं- शूद्र.
सुद्ध-विशुद्ध. सुद्धोअणि पुं-बुद्ध.
सुन्न - वि-शून्य. सुन्नरण्ण-न-निर्जन रण.
सुपट्टि - न- नगरनुं नाम.
( ३७ )
सुमर्याद कर.
सुमिण - पुं-स्वप्न.
सुमेरु-पुं-मेरु पर्वत.
सुर- पुं-देव. सुरविंदवंद-वि-देवपूज्य. सुरूव-वि-सारा रूप वाळो.
सुव्-सुइ जवं. सुवट्टि - वि- सारुं. सुवण्ण-न-सोनुं.
सुविहि- पुं- नवमा जिननुं नाम.
सुह-न-सुख. सुह-वि-शुभ.
सुहि-वि- सुधी.
सुहिअ-वि-सुखी.
सुडुम - वि-सूक्ष्म.
सूरि-पुं- आचार्य. सूसू-सूकावुं.
से अ-पुं- परसेवो. सेभ - वि श्वेत.
से अंवर - पुं-श्वेताम्बर सेज्जा - स्त्री - शय्या.
"सेणा स्त्री-सेना.
सेय-न-कल्याण.
सेर-वि-विकस्वर.
सेव-सेववुं. ( सुप्रतिष्ठित ) सोण-वि-लाल
सोमाल - वि-सुंवालुं.
सोलस - वि-सोळ (संख्या).
सोल्लू - रांधवं. सोवू-सूवं. सोहा - स्त्री - शोभा.
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श्री ताराभाई यानी दु
तारकूल संक ३८ )
ह
हंस-पुं हंस. हक्कू निषेधवु.
हण्- हणं.
हणू-सांभळवु.
हणुमंत- पुं- हनूमान्.
हत्थ - पुं-हाथ.
हत्यि - पुं-हाथी. हय-पुं- घोडो.
हर - महादेव.
हरगोविंद पुं- विशेष नाम.
हरडई - बी-हरडे. हरि-पुं-चोर.
हरिअद- पुं- हरिश्चन्द्र.
हरिआल पुं- हडताल.
हरिणी - स्त्री - हरणी.
हरिस्- हरखवं. हल्दी -स्त्री-हळदर. हलुअ-वि- हळकुं
हा तजवु.
हार- पुं-हार. हिंगुल - न- हिंगळो.
हिअ-न-हित.
हि-वि.हृ.
हिम-न-बरफ.
हिरी - स्त्री- लज्जा.
हीर- पुं-शंकर.
हीसमण-न- घोडानुं हणहणवं. हुण - होमj.
हुव-थवं.
DELISTED हलाह Root.... 3'
शा. फे
आ श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
द्वारा सप्रेम भेंट ता.
M/s----
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