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एक पं. हरगोविन्द वाचनिकचंद सेठ कृत
पाडा-सह-महगणवोक्रिश्चित् परिवर्तित आवृत्ति
प्राकृत-हिन्दी कोश
डा.के. र शन्द्र
SLOTT
EMANU
HENKER LGOUS
प्रकाशक
प्राकृत जैन विद्या विकाश फण्ड -
slam Education International
अहमदाबाद-१५ सहप्रकाशक
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
वाराणसी-2
For Private &ersonal Use
www.jainelibrary. prg;
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स्व० पं० हरगोविन्ददास त्रिकमचंद सेठ कृत
पाइअ-सद्द-महण्णवो
की
किञ्चित् परिवर्तित आवृत्ति
प्राकृत-हिन्दी कोश
नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत etary
समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. Jain जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. ७ Fand
सम्पादक
डॉ० के० आर० चन्द्र, एम० ए०, पीएच० डी०
अध्यक्ष प्राकृत-पालि विभाग भाषा-साहित्य भवन गुजरात युनिवर्सिटी अहमदाबाद-९
प्रकाशक प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड ७७/३७५, सरस्वती नगर, आजाद सोसाइटी, अहमदाबाद-१५
सह प्रकाशक पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
आई० टी० आई० रोड, वाराणसी-५
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प्रकाशक
डॉ० के० आर० चन्द्र मानद मंत्री
प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड
७७/३७५, सरस्वती नगर
आजाद सोसाइटी
अहमदाबाद- ३८००१५
प्रथम संस्करण : ई० सन् १९८७
प्रति : ११००
मूल्य : रु० १२०-००
प्राप्ति स्थान
(१)
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
आई० टी० आई० रोड, बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी,
वाराणसी-२२१००५;
( २ ) श्रीपार्श्व प्रकाशन
निशा पोल, जवेरीवाड, रीलीफ रोड,
अहमदाबाद - ३८०००१;
(३) मोतीलाल बनारसीदास
चौक, वाराणसी - २२१००१
मुद्रक :
रत्ना प्रिंटिंग वर्क्स
बी० २१/४२ ए कमच्छा वाराणसी
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आभार
प्रस्तुत कोश के प्रकाशन-व्यय का वहन श्रेष्ठी श्रीकस्तूरभाई लालभाई स्मारक निधि बी. ११, न्यू क्लॉथ मार्केट, अहमदाबाद-१
41050566666666666666666284400069656
किया है
एतदर्थ हम उक्त ट्रस्ट एवं उसके उदारमना ट्रस्टियों
श्री अरविन्दभाई नरोत्तमभाई श्री आत्मारामभाई भोगीलाल सुतरिया श्री रसिकलाल मोहनलाल शाह श्री कल्याणभाई पुरुषोत्तमदास फडिया श्री रमेशभाई पुरुषोत्तमभाई शाह
के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हैं।
-प्रकाशक
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सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई
जन्म-ई० सन् १८९४
स्वर्गवास-ई० सन् १९८० अहमदाबादonal Use Only
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सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई
(१८९४-१९८०) मेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई के जीवन काल का विस्तार उन्नीसवीं शती के अंतिम दशक से लेकर बोसवीं शती के आठ दशकों तक रहा। गुजरात के श्रेष्ठी-वर्ग की परम्परा के अंतिम स्तम्भ के रूप में उन्होंने न्याय-नीति एवं प्रामाणिकता के साथ अपने व्यावसायिक आदर्शों का निर्वाह किया था । औद्योगिक क्षेत्र में वे आधुनिकीकरण की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले एवं युगप्रवर्तक माने जाते हैं। कला एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी उनकी दृष्टि प्रगतिशील रही। व्यवसाय के क्षेत्र में भी निजी लाभ की अपेक्षा राष्ट्र-हित की भावना ही उनमें प्रमुख रही। भारत के गिने चुने उद्योगपतियों में उन्होंने प्रशंसनीय स्थान प्राप्त किया था। विदेशी कम्पनियों के सहयोग से उन्होंने भारत में रासायनिक रंगों का उत्पादन प्रारम्भ किया और अपनी अनोखी सूझ-बूझ से वे भारतीय अर्थनीति के आधार-स्तंभ बने । अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक विकट आर्थिक और व्यावसायिक समस्याओं को सुलझाने में उनकी विवेक बुद्धि को अद्भुत सफलता मिली। विश्व के वस्त्र उद्योग के इतिहास में उनका नाम स्वणाक्षरों में लिखा जाने योग्य है। अपने उद्योग-संकुल के किसी भी व्यक्ति के सुख-दुःख के प्रत्येक प्रसंग में उसकी पूरी मदद करते थे। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता और मानवीय गुणों की विशेषता थो।
उनका जन्म १९ दिसम्बर १८९४ को अहमदाबाद में सेठ श्री लालभाई दलपतभाई के घर हुआ जो सुशिक्षित, संस्कार-सम्पन्न और समाज सेवा की भावना से ओतप्रोत थे। एक बार लार्ड कर्जन ने माउंट आबू के देलवाडा क मन्दिरों के शिल्पस्थापत्य से प्रभावित होकर उन्हें शासकीय पुरातत्व विभाग के द्वारा अधिगृहीत करने का प्रस्ताव रखा तब सेठ लालभाई ने सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेढी के अध्यक्ष की हैसियत से उसका विरोध किया और आठ-दस वर्षों तक अनेक कारोगरों को काम में लगाकर यह सिद्ध कर दिया कि पेढ़ी की तरफ से मन्दिरों के संरक्षण में कितनी सुव्यवस्था है। अनेक विद्यालयों, पुस्तकालयों एवं संस्थाओं के निर्माता के रूप में उनकी उदारता की सुवास सम्पूर्ण गुजरात में फैली हुई है। उन्होंने १९०८ में सम्मेतशिखर पर व्यक्तिगत बंगला बनाने के शासकीय आदेश को निरस्त करवाया था। वे जैन श्वेताम्बर कॉन्फरेन्स के महामन्त्री भी थे। ब्रिटिश शासन ने उनकी सेवाओं की सराहना की थी और उन्हें सरदार का खिताब प्रदान किया था।
सेठ लालभाई के सात संतान थीं। तीन पुत्र और चार पुत्रियाँ । श्री कस्तूरभाई उनकी चौथी संतान थी। पिता के अनुशासन और माता के वात्सल्य के बीच इन सातों संतानों का लालन-पालन हुआ।
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श्री कस्तूरभाई ने प्राथमिक शिक्षा नगरपालिका द्वारा संचालित एक शाला में प्राप्त की और वे १९११ में आर० सी० हाईस्कूल से मेट्रिक्युलेशन की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। जिस समय वे चौथी कथा में थे उस समय चल रहे स्वदेशी आन्दोलत का उनके चित्त पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेट्रिक के पश्चात् उन्होंने गुजरात कालेज में प्रवेश प्राप्त किया किन्तु कालेज जीवन के प्रथम छः महीने में ही सन् १९१२ में पिताजी का देहान्त हो जाने से मिल की व्यवस्था में अपने भाई की सहायता करने के लिए उन्हें अपना अध्ययन छोड़ देना पड़ा। उन्होंने अपने चाचा के मार्गदर्शन में अपने हिस्से में आयी रायपुर मिल में टाइमकीपर, स्टोरकीपर आदि से कार्य प्रारम्भ किया और बाद में मिल के संचालन विषयक सभी कार्यों में योग्यता अजित करके अपनी तेजस्वी बुद्धि एवं कार्य कुशलता से उसे भारत की प्रसिद्ध एवं अग्रगण्य कपड़ा मिलों की श्रेणी में लाकर रख दिया। उसके बाद अशोक-मिल, अरुण-मिल, अरविंद-मिल, नूतन-मिल, अनिल-स्टार्च और अतुल संकुल आदि अनेक उद्योग-गृहों की सन् १९२१ से १९५० के बीच स्थापना करके लालभाई-ग्रुप को देश के अग्रगण्य उद्योगगृहों में प्रतिष्ठित कर दिया।
व्यावसायिक कार्यों के साथ-साथ कस्तूरभाई ने अपने पूज्य पिताजी की तरह लोक कल्याण के कार्यों में भी बड़े उत्साह से भाग लिया । सन् १९२१ में अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्देश से उन्होंने और उनके अन्य भाइयों ने नगरपालिका की प्राथमिक शाला को ५० हजार का दान दिया था। सन् १९२१ के दिसम्बर माह में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ तब पंडित मोती लाल नेहरू के साथ उनका मैत्री सम्बन्ध हुआ। १९२२ में सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से वे भारतीय संसद में मिल मालिकों के प्रतिनिधि के रूप में चुने गये । १९२३ में जब स्वराज पक्ष की स्थापना हुई तब अहमदाबाद तथा बम्बई के मिलमालिकों की ओर से उसे पाँच लाख का दान दिलवाया था। संसद में वस्त्र पर चुंगी समाप्त करने का प्रस्ताव कस्तूरभाई ने रखा था और शासन की अनेक विघ्न-बाधाओं के बावजूद भी उसे स्वीकार करवा लिया। स्वराज पक्ष के सदस्य नहीं होने पर भी कस्तूरभाई को पं० मोतीलाल जी ने स्वराज-श्रेष्ठ की उपाधि प्रदान की थी। लम्बे समय से चल रहे मिल-मजदूरों के बोनस एवं वेतन सम्बन्धी वाद-विवाद को निपटाने के लिए सन् १९३६ में गाँधी जी और कस्तूरभाई का एक आयोग बनाया गया। प्रारम्भ में दोनों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया परन्तु अन्त में दोनों किसी एक विकल्प पर सहमत हो गये । इन सब कार्यों में कस्तूरभाई की निर्भीकता, साहस और योग्यता के दर्शन होते हैं।
सन् १९२९ में उन्होंने जिनेवा की मजदूर परिषद में मजदूरों के प्रतिनिधि के रूप में और सन् १९३४ में उद्योगपतियों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बाद भी इसी प्रकार के अनेक प्रतिनिधि मण्डलों में उन्होंने भाग लिया था। इन सब प्रसंगों पर देश के हित को ही सर्वोपरि मानकर वे विदेशियों के साथ की चर्चाओं में विलक्षण बुद्धि और कुशलता का परिचय देते थे।
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( ७ ) शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। अहमदाबाद की एजुकेशन सोसायटी के आयोजक वे ही थे जिसकी स्थापना सन् १९३४ में हुई थी। नगर के भावी शैक्षणिक विकास को लक्ष्य में रखकर उन्होंने ७० लाख रुपये व्यय करके छ सौ एकड़ जमीन संपादित करवाई थी जिसके परिणामस्वरूप गुजरात विश्वविद्यालय का भव्य और विशाल संकुल अस्तित्व में आया। उनके परिवार की ओर से एल० डी० आर्टस् कॉलेज, एल० डी० इन्जिनियरिंग कॉलेज तथा एल० डी० प्राच्य विद्या मन्दिर को लाखों रुपये दान में दिये गये । विगत तीस-पैंतीस वर्षों में लालभाई दलपतभाई परिवार, ट्रस्ट की ओर से दो करोड़ पचहत्तर लाख का और अपने ही उद्योग गृहों की ओर से चार करोड़ का दान दिया गया। कस्तूरभाई को शिक्षा के प्रति कितनी रुचि थी इसका अनुमान उनके इन सब कार्यों से लगाया जा सकता है। यदि ऐसा न होता तो अटीरा, पी० आर० एल०, ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, इन्डियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट, स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, नेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ डिजाइन और विक्रम साराभाई कम्युनिटी सेन्टर जैसी ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ अहमदाबाद में कैसे निर्मित हो सकती ? यह उद्योगपति कस्तूरभाई और युवा वैज्ञानिक डॉ० विक्रम साराभाई के संयुक्त स्वप्न की ही सिद्धि है।
भारतीय संस्कृति के प्रति उनके प्रेम का परिचायक है विश्वविद्यालय-संकुल में स्थित जहाज के रमणीय आकार में निर्मित ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर जो सन् १९५५ में बनकर तैयार हुआ था और उसका उद्घाटन प्रधान मन्त्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था। मुनि श्री पुण्य विजय जी ने उस संस्था को १०,००० हस्तप्रतों एवं ७००० पुस्तकों का अत्यन्त मूल्यवान भेंट अर्पित की थी। आज इस संस्था के पास ३०,००० के प्रायः प्रकाशित ग्रन्थों का एवं ७०,००० के प्रायः पाण्डुलिपियों का संग्रह है। उसमें से दस हजार पाण्डुलिपियों की सूची केन्द्रीय सरकार की सहायता से एवं ७००० पाण्डुलिपियों की सूची गुजरात सरकार की सहायता से प्रकाशित हो चुकी है। अद्यावधि इस संस्था की ओर से १०० से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। ४८०० पाण्डुलिपियों की ट्रान्सपेरेन्सी एवं दो हजार मूल्यवान हस्तप्रतों की माईक्रोफिल्म भी कर ली गयी है साथ ही साथ १००० से अधिक पुराने सामायिकों के अंक भी संग्रहीत हैं। इस संस्था का मुख्य आकर्षण सांस्कृतिक संग्रहालय है। कस्तूरभाई एवं उनके परिवार के लोगों की ओर से भेंट में दी गयी बहुत सी पुरातात्त्विक वस्तुओं को इस संग्रहालय में संग्रहीत किया गया है । सुन्दर चित्र, कलाकृतियाँ, प्राचीन वस्त्र-आभूषण, सजावट की वस्तुएँ, हस्तप्रत एवं बारहवीं शती की चित्र युक्त हस्तप्रत आदि प्रायः चार सौ से अधिक वस्तुएँ इस संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जो प्राचीन भारतीय जीवन और संस्कृति की मोहक झलक प्रस्तुत करती हैं। पुराने प्रेमाभाई हॉल का स्थापत्य कस्तूरभाई को कला की दृष्टि से खटक रहा था। उन्होंने लगभग छप्पन लाख रुपये खर्च करके उसका नव संस्करण करवाया जिसमें बत्तीस लाख का दान कस्तूरभाई परिवार एवं लालभाई ग्रुप के उद्योग समूह ने दिया।
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( ८ )
विख्यात इन्जीनियर लूई साहब ने कस्तूरभाई को कुदरती सूझ वाले इन्जीनियर कहा था । उन्होंने अपनी स्वयं की निगरानी में राणकपुर, देलवाड़ा, शत्रुंजय और तारंगातीर्थ के मन्दिरों के शिल्प स्थापत्य का जो जीर्णोद्धार करवाया है उसे देखते हुए लूई का कथन सही मालूम पड़ता है । सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अनेक जीर्ण तीर्थस्थलों का कलात्मक दृष्टि से जीर्णोद्धार करवाया। उन्होंने उपेक्षित राणकपुर तीर्थ का पुनरुद्धार करके उसे रमणीय बना दिया । उन्होंने बहुत ही परिश्रम उठाकर पुरानी शिल्प कला को पुनर्जीवित किया । देलवाड़ा के मन्दिर के निर्माण में जिस जाति के संगमरमर का उपयोग हुआ है उसी जाति का संगमरमर दाँता के पर्वत से प्राप्त करने में बहुत ही अवरोध आये थे। कारीगरों ने जीर्णोद्धार का व्यय पचास रुपये घनफुट बताया था किन्तु उसका खर्च बढ़ते बढ़ते पचास की जगह दो सौ रुपये प्रतिघनफुट आया फिर भी प्रतिकृति इतनी सुन्दर बनी कि कस्तूरभाई की कलाप्रेमी आत्मा प्रसन्न हो गयी और अधिक व्यय की उन्होंने तनिक भी चिन्ता नहीं की । शत्रुंजयतीर्थं में उन्होंने पुराने प्रवेश द्वार के स्थान पर नया द्वार बनवाया और मुख्य मन्दिर की भव्यता में अवरोध करने वाले छोटे-छोटे मन्दिर और उनकी मूर्तियों को बीच में से हटवा दिया ।
जिस प्रकार धर्मदृष्टि उद्घाटित होते ही जीवन दर्शन के होता है उसी प्रकार जीर्णोद्धार के बाद इन धर्मस्थानों के हो गए ।
एक अमेरिकन यात्री ने एक बार कस्तूरभाई से पूछा ! यदि कल ही आपकी मृत्यु हो जाय तो "
!
कस्तूरभाई ने सस्मित कहा मुझे आनन्द होगा । किन्तु बाद में क्या ?
बाद में क्या होगा इसकी मुझे चिन्ता नहीं है ।
आपका क्या होगा उसका विचार नहीं आता है क्या !
क्षितिजों का विस्तार क्षितिज भी विस्तृत
मैं पुनर्जन्म में आस्था रखता हूँ ।
उसका तात्पर्य ?
जैन तत्त्वज्ञान के अनुसार ईश्वर जैसा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है । प्रत्येक प्राणी और मैं स्वयं भी ईश्वर की स्थिति को पहुँच सकता हूँ अर्थात् मुझे मेरे चरित्र को उतना ऊँचा ले जाना चाहिये और यह विश्वास उत्पन्न करना चाहिए कि मैं क्रमश: उस पद के लिए योग्य बन रहा हूँ । इस विचारधारा में मुझे आस्था और गौरव है । उस स्थिति तक कैसे पहुँचा जा सकता है ? उसके उपाय भी हमारे दर्शन में बताये हैं :- सत्य बोलना चाहिए, धन के प्रति ममत्व नहीं रखना चाहिए, हिंसा नहीं करनी चाहिए, आदि । इतने उच्च आदर्श शायद ही दूसरी जगह पर देखने को मिले ।
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जैन धर्म क्या है ?
सत्य तो यह है कि जैन धर्म एक धर्म नहीं अपित जीवन जीने की कला है जिसका आचरण करने से मानव इसी जन्म में उच्च आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त कर सकता है।
क्या जैन धर्म में धन संचय न करने को कहा गया है ?
नहीं, उसमें कहा गया है कि निश्चित मर्यादा से अधिक धन-सम्पत्ति नहीं रखनी चाहिए।
क्या आपने उसका व्रत लिया है ?
नहीं, किन्तु स्वयं प्राप्त धन का कुछ हिस्सा सार्वजनिक कल्याण के लिए खर्च करने का मेरा नियम है।
दिनांक ८ जनवरी १९८० को कस्तूरभाई बम्बई में बीमार पड़े, डाक्टर ने उनके स्वास्थ्य को देखकर पन्द्रह दिन बिस्तर में ही आराम करने की सलाह दी। किन्तु कस्तूरभाई ने कहा मुझे अहमदाबाद ले चलो मैं वहीं आराम करूँगा। डाक्टर ने प्रवास नहीं करने की सलाह दी किन्तु कस्तूरभाई के मन में अहमदाबाद के प्रति ऐसी आत्मीयता थी कि उन्होंने अपने अंतिम दिन अहमदाबाद में ही बिताने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। उनको बेचैन देखकर डाक्टर ने अंत में अहमदाबाद जाने की सम्मति दी। वेदना होने पर भी कस्तूरभाई के मुख पर आनन्द छा गया एम्ब्यूलेन्सवान द्वारा स्टेशन लाए गये। दूसरे दिन सुबह जब अहमदाबाद पहुंचे तब मन प्रसन्न हो गया, मानो सारी पीड़ा समाप्त हो गयी हो, परन्तु १९ जनवरी को दिव्यधाम के आमंत्रण को शान्ति पूर्वक स्वीकार कर उन्होंने उसके लिए प्रस्थान कर दिया।
कस्तूरभाई मानते थे कि व्यक्ति की मृत्यु से देश का उत्पादन रुकना नहीं चाहिए। उनके अनुसार व्यक्ति को सही श्रद्धांजलि तो उसकी भावनानुसार काम करके ही दी जानी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया था कि मेरे अवसान के शोक में एक भी मिल बन्द नहीं रहनी चाहिए। उनके पुत्रों ने उनकी यह इच्छा लालभाई ग्रुप की नौ मिलों के सभी कर्मचारी-गणों को सूचित कर दी। ‘कार्य करो' इसे सेठ का अंतिम आदेश मानकर काम पर लग गये। सारा अहमदाबाद शहर जिनके शोक में बन्द रहा वहीं उन्हीं की मिलें उस दिन कार्यरत रहीं यह एक अपूर्व घटना थी।
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प्रस्तुत संस्करण के विषय में स्व० पं० हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ कृत पाइय-सद्द-महण्णवो का द्वितीय संस्करण आज से २३ वर्ष पूर्व ई० सं० १९६३ में छपा था और अनेक वर्षों से यह कोश उपलब्ध नहीं हो रहा था। इससे प्राकृत भाषा के विद्यार्थियों को कठिनाई अनुभव हो रही थी। इस कमी की पूर्ति के लिए हमारे सामने तीन विकल्प थे
१. अद्यावधि प्रकाशित सभी नये प्राकृत ग्रन्थों की शब्दावली का समावेश __ करके एक संवर्धित संस्करण प्रकाशित करना। २. पाइय-सद्द-महण्णवो का ही पुनः मुद्रण करना । ३. मूल पाइय-सद्द महण्णवो को ही संक्षिप्त और लघुकाय बनाना ।
प्रथम विकल्प अत्य त खर्चीला और दीर्घकालीन था एवं अनेक विद्वानों के सहयोग के बिना यह शीघ्र कार्यान्वित भी नहीं हो सकता था। द्वितीय विकल्प भी खर्चीला था और उसमें कोई नवीनता नहीं थी। तत्काल इन दोनों में से एक भी विकल्प की पूर्ति करने में हमारी संस्था असमर्थ ही थी। अतः हमारे लिए संभव यही था कि तृतीय विकल्प चुना जाय । तदनुसार प्राकृत और जैन विद्या के सुविख्यात और माननीय विद्वान् पं० थी दलसुखभाई मालवणिया और डॉ० श्री ह० चू० भायाणी के साथ इस बारे में विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने फिलहाल इस योजना को ही उचित समझा और अपनी तरफ से पूर्ण सहयोग देने की उदारता दर्शायी। उनके इस प्रोत्साहन के फल-स्वरूप ही यह कोश अपने परिवर्तित एवं संक्षिप्त रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो सका है।
यहाँ इस किञ्चित् परिवर्तित आवृत्ति की आवश्यकता और महत्व पर कुछ प्रकाश डालना जरूरी है। पाइय-सद्द-महण्णवो में प्रत्येक शब्द के साथ प्राकृत ग्रन्थों से संदर्भ दिये गये हैं और अनेक स्थलों पर मूल ग्रन्थों से उद्धरण भी दिये गये हैं। उनकी अपनी उपयोगिता है परन्तु सबके लिए इनका महत्व एक समान नहीं होता है। विद्यार्थियों के लिए ऐसे संदर्भो और उद्धरणों की उपयोगिता कम ही होती है। अनेक जगह ग्रन्थों की हस्तप्रतों से उद्धरण दिये गये हैं और उन हस्तप्रतों को प्राप्त करना भी दुष्कर ही होता है। ई. स. १८४२ और उसके पश्चात् अधिकतर ई. स. १९२४ तक प्रकाशित संस्करणों में से दिये गये उद्धरणों की बहुलता है और ये संस्करण आज सब जगह उपलब्ध भी शायद ही हों, अतः उनकी उपादेयता अल्प रह गयी है । मूल पाइयसद्द-महण्णवो को पुनः प्रकाशित करने के लिए यह आवश्यक था कि उसमें दिये गये उद्धरणों के साथ नये संस्करणों के संदर्भ जोड़े जाय परन्तु ऐसा शीघ्र संभव नहीं होने के कारण यह किञ्चित् परिवर्तित आवृत्ति तैयार की गयी। इसमें पा.स.म. का एक भी मूल शब्द या अर्थ छोड़ा नहीं गया है, मात्र उद्धरण निकाल दिये गये हैं। अर्थों की
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पुनरावृत्ति करने वाले शब्द, अर्थों के साथ लगे संख्यावाची अंक और अनावश्यक वर्णनात्मक विस्तार निकाल दिये गये हैं। तत्सम शब्दों के सामने कोष्ठक में दिये गये संस्कृत शब्द भी निकाल दिये गये हैं। अन्य जो भी परिवर्तन किये गये हैं उनके विषय में आगे नियम प्रस्तुत किये गये हैं उन्हें देख लेना पाठकों के लिए उपयोगी होगा । इस आयोजन से कोश का महत्व भी नहीं घटा और मूल कोश । भारी और दीर्घ-काय था वह हलका, लघुकाय और संक्षिप्त बन गया तथा स्थानान्त ण के लिए वह सुवाह्य और सुविधाजनक हो गया। अर्थ लाभ की दृष्टि से प्रकाशित नहीं किये जाने के कारण इसका मूल्य बाज़ार-भाव से कम ही रखा गया है, ताकि यह सर्वजन सुलभ हो सके। लगभग तीन-चार वर्ष पूर्व जब इस आवृत्ति की योजना बनायी गयी उस समय हमारी नवोदित इस संस्था के पास इस कार्य को प्रारम्भ करने के लिए भी पर्याप्त रकम नहीं थो अतः इस दिशा में प्रयत्न किये गये । पू. आचार्य श्री भुवनशेखरमूरिजो, अहमदाबाद पू. आ. श्री विजयसुशील सूरिजी, सिरोही, पू. मुनि श्री क हैयालाल जी 'कमल', आबू पर्वत, पू. गणिवर्य श्री प्रद्युम्नविजयजी, अहमदाबाद और पू. मुनि श्री धरणेन्द्र सागरजी, अहमदाबाद की प्रेरणा से हम कुछ संस्थाओं और द्गृहस्थों से आवश्यक रकम दान के रूप में प्राप्त कर सके और उससे इस संस्करण का सम्पादन हो सका। पुनः इस संस्था के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कितने ही नये सदस्य भी बनाये गये । इस कार्य में मुख्यतः मद्रास से श्री सी० आर० जैन ने प्रशंसनाय परिश्रम किया और वहाँ से इस संस्था के लिए अनेक सदस्य बनाये। एतदर्थ हम उन सबका हृदय से आभार मानते हैं।
इस कोश का सम्पादन-कार्य हो जाने के बाद कठिन कार्य तो उसे प्रकाशित करने का था जिसके लिए एक बड़ी रकम की आवश्यकता थी। यह संस्था इतनी समृद्ध नहीं था कि प्रकाशन का खर्च उठा सके। योगानुयोग माहित्यिक कार्य की यह बात मैंने आदरणीय एवं सौजन्यशील श्री आत्मारामभाई भोगीलाल सुतरिया के ध्यान में लायी तब उन्होंने ज्ञान-प्रचार के कार्य में अपनी रुचि बतलायी और हमारी इस योजना की पुष्टि की। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस कोश के प्रकाशन का पूरा खर्च उनकी संस्था 'श्रेष्ठी श्री कस्तूरभाई लालभाई स्मारक निधि' वहन करेगी। दीर्घ काल से प्रतीक्षित आर्थिक सहायता के वचन पाकर मुझे अत्यंत हर्ष हुआ और इस कोश के प्रकाशन का कार्य आगे बढ़ाया। एतदर्थ इस ‘स्मारक निधि', उसके ट्रस्टियों एवं श्री आत्माराम भाई का हम सहृदय आभार मानते हैं।
इस कोश के सम्पादन के कार्य में पं. दलसुखभाई मा लवणिया और डॉ० ह० चू० भायाणी का जो मार्गदर्शन मिला है उसके लिए मैं उनका अन्तःकरण पूर्वक आभार मानता हूँ। इस कोश की मुद्रण के योग्य प्रति तैयार करने में मेरे विद्यार्थियों डॉ० कु० गीता पी० मेहता, श्रीमती संगीता पी० देसाई एम० ए० और श्री दीना नाथ शर्मा एम० ए० ने जो कार्य एवं सहायता की है उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ | श्री धीरू भाई ठाकर ने सेठ कस्तूरभाई का जीवन-परिचय गुजराती में लिखा और उसका हिन्दी अनुवाद श्री जितेन्द्र शाह ने किया एतदर्थ हम उनके आभारी हैं।
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( १२ । ग्रन्थ के प्रकाशन की इस वेला में सहयोगी संस्था पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी और उसके निदेशक डॉ० सागर मल जैन का हम आभार मानते हैं, जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के मुद्रण सम्बन्धी सम्पूर्ण व्यवस्था की । मात्र यही नहीं इस ग्रन्थ के रख-रखाव और विक्रय का दायित्व भी स्वीकार कर उन्होंने हमें व्यवस्था सम्बन्धी सभी चिन्ताओं से मुक्त रा ।
रत्ना प्रिंटिंग वर्क्स, वाराणसी ने इस कोश को अल्प समय में सुन्दर ढंग से मुद्रित किया है इसके लिए उसका एवं उसके व्यवस्थापक श्री विनयशंकर जी का भी हम आभार मानते हैं। प्रूफ संशोधन का बड़ा ही दुरूह कार्य सुचारु रूप से करने के लिए डॉ० श्री रविशंकर मिश्र, सह-शोधाधिकारी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान का भी आभार मानते हैं। श्री महावीर बुक बाइंडिंग वर्क्स, वाराणसी के श्री मोहनलाल जी के द्वारा सुन्दर पुस्तकावरण बाँधने के लिए हम उनके भी आभारी हैं ।
प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद एवं श्री यशोविजय ग्रन्थमाला, भावनगर द्वारा प्रकाशित पाइय-सह-महण्णवो का उपयोग करने के लिए उनका एवं उनके ट्रस्टियों का भी आभार मानना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। कातिक पूर्णिमा
के० आर० चन्द्र वि. सं. २०४३
मानद मंत्री प्रा. जै. वि. वि. फंड अहमदाबाद
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प्राकृत-हिन्दी कोश का सम्पादन 'पाइय सद्द महण्णवो' की इस किञ्चित् परिवर्तित आवृत्ति में अपनाये गये नियम ।
यदि मूल शब्दों के वर्गों अथवा अर्थ में किसी प्रकार का भेद, परिवर्तन या विशेषता नहीं हो तो निम्न प्रकार के शब्द एवं उनके रूप निकाल दिये गये हैं।
१. प्राकृत ग्रन्थों में से उद्धत अवतरण २. अर्थों के साथ दिये गये संख्यावाची अंक ३. भेद न रखने वाले एक से अधिक अर्थ, जैसे :_मस्तक, सिर; हस्त, हाथ; हस्ति, हाथी ४. अनावश्यक वर्णनात्मक विस्तार ५. सादृश्यता बतलाते हुए आधुनिक भाषा के शब्द ६. प्राकृत शब्द के सामने कोष्ठक में दिया गया संस्कृत शब्द यदि वह तत्सम,
है, जैसे-उत्ताल, काम, ताल, वायस, समूह ७. 'आ' या 'ई' प्रत्यय लगाकर बनाया गया स्त्रीलिंगी शब्द यदि उसका अन्य
लिंगी शब्द आ गया हो, जैसे-पुत्त (पुत्ती), अणुमासण (अणुमासणा) अमर
(अमरी) ८. कभी-कभी आवश्यकतानुसार ऐसे शब्द जिनमें 'न' या 'न्न' हो जबकि 'ण'
या 'ण' वाला वही शब्द आ गया हो, जैसे-मणुस्स (मनुस्स), पुण्ण (पुन्न) ९. शब्द में तृतीया या पंचमी विभक्ति लगाकर बनाये गये अव्यय, जैसे-अइर
(अइरेण), अग्ग (अग्गओ) १०. मूल शब्द आ जाने पर उसमें स्वार्थ 'अ', 'य' अथवा 'ग' लगे हुए शब्द,
जैसे-अगुरु (अगुरुअ), अर (अरग), अंगुलीय (अंगुलीयय), भद्द (भद्दअ) ११. इ (इन्) प्रत्यय लगाकर बनाये गये शब्द जो धारण करने, प्रवृत्ति करने या ___स्वामित्व के अर्थ वाले हो, जैसे-अणुभव (अणुभाव) अक्खा (अक्खाइ),
संसय (संसइ) १२. 'इर' प्रत्यय लगाकर बनाये गये शीलवाची शब्द, जैसे-अणुगम (अणुगमिर)
मुअ (मुइर), भी (भोइर) १३. 'इल्ल, इल्लग, इल्लय, उल्ल, एल्ल, एल्लग' प्रत्यय लगाकर बनाये गये
स्वार्थ शब्द, जैसे--पुत्त (पुत्तिल्ल, पुत्तुल्ल), बाहिर (बाहिरिल्ल), सच्च
(सच्चिलय), भंड (भंडुल्ल), अंध (अंधिल्लग, अंधेल्लग) हिअअ (हअउल्ल) १४. मूल धातु के साथ दिये गये उसके अनेक कालवाची एवं कृदन्त रूप १५. अलग-अलग स्थलों पर आने वाले कृदन्त रूप जिनका मूल धातु आ
गया हो।
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( १४ )
१६. मूल धातु
आ जाने पर लिंग-सूचक प्रत्यय लगाकर नाम के रूप में अलग से दिया गया वही शब्द, जैसे- आढा (आढा) हक्क (हक्का), अभिक्कम ( अभिक्कम) समीह (समीहा), सलाह ( सलाहा )
१७. 'धातु या नाम शब्द में मात्र इअ, इय (इत ) प्रत्यय लगाकर बनाये गये कर्मणिभूतकृदन्त या विशेषण, जैसे--भज्ज (भज्जिय), पाव (पाविय) अंकुर (अंकुरिय) विसेस (विसेसिय), भी ( भीइय), कंडू (कंडूइय), मा ( माइअ ), पुंज (पुंजिअ ), संकेअ (संकेइअ ), संजोअ (संजोइअ ), अंधयार (अंधयारिय), अंध (अंधिय ) जैसे - 9
१८. धातु में 'ण' 'णा', या 'जया' जोड़कर बनाये गये नाम शब्द,
- पुच्छ
(पुच्छण, पुच्छणया), समप्प (समप्पण), सिणा (सिणाण), विसोह ( विसोहया) संथव (संथवणा), अभिवंद (अभिवंदणा)
१९. शब्द के प्रारम्भ में उपसर्ग 'अ' जोड़कर बनाये गये मात्र निषेधवाची शब्द, जैसे -- कप्प ( अकप्प ), जयणा ( अजयणा), खज्ज (अखज्ज)
२०. शब्द के प्रारंभ में 'सु' उपसर्ग जोड़कर निम्नार्थबोधक शब्द,
(१) सुन्दर, अच्छा, भला (२) अच्छी तरह, सुखसे, (३) शुभ प्रशस्त, उत्तम (४) अति, अत्यन्त, अतिशय बहुत ( ५ ) दृढ और (६) बिलकुल, जैसे(१) सुकुसुम, सुतवस्ति, सुपहाय (२) सुचरिय, सुलभ (३) सुपह, सुजाइ, सुगुरु (४) सुगरिट्ठ, सुपसन्न, सुदुक्कर, सुदिप्प (५) सुनिच्छय और (६) सिंक, सुविण ।
२१. मध्यवर्ती अ, आ, इ और उ के स्थान पर य, या, यि और यु परस्पर क्रमशः समझ लेने चाहिए ।
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संकेत-सूची
अक
REEEEEEEEEEEE.
(अप) = (अशो) = उभ कर्म कवकृ = कृ - क्रि - क्रिवि =
अव्यय।
(पै) = अकर्मक धातु।
प्रयो = अपभ्रंश भाषा। अशोक शिलालेख । भकृ सकर्मक तथा अकर्मक धातु भवि = कर्मणि-वाच्य।
भूका = कर्मणि-वर्तमान-कृदन्त। कृत्य-प्रत्ययान्त । क्रियापद ।
वकृ = क्रिया-विशेषण | वि = चलिकापैशाची भाषा। (शौ) = त्रिलिङ्ग।
स - देश्य-शब्द ।
संकृ - नपुंसकलिङ्ग।
सक पुंलिङ्ग ।
स्त्री = पुंलिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग स्त्रीन = । पुंलिङ्ग तथा स्त्रीलिङ्ग। हेकृ =
पैशाची भाषा। प्रेरणार्थक णिजन्त। बहुवचन । भविष्यत्कृदन्त । भविष्यत्काल भूतकाल। भूत-कृदन्त । मागधी भाषा। वर्तमान कृदन्त । विशेषण । शौरसेनी भाषा। सर्वनाम | संबन्धक कृदन्त । सकर्मक धातु । स्त्रीलिङ्ग। स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग हेत्वर्थ कृदन्त ।
(चपै)
=
त्रि [दे]
= -
पुन : पुंस्त्री -
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अ पुं प्राकृत-वर्ण-माला का प्रथम अक्षर । विष्णु, अइंछ देखो अइंच ।। कृष्ण ।
अइंत वि [अनायत्] नहीं आता हुआ। जो अ देखो च अ।
जाना न जाता हो। अ [दे] देखो इव ।
अइंदिय वि [अतीन्द्रिय] इंद्रियों से जिसका °अ अ इन अर्थों का सूचक अव्यय-निषेध । ज्ञान न हो सके वह । विरोध, उल्टापन । अयोग्यता, अनुचितपन । अइंमुत्त देखो अइमुत्त। अल्पता । अभाव । भेद । सादृश्य । बुरापन ।। अइकम अक [अतिक्रम्] गुजरना, बीतना । लघुपन ।
देखो अइक्कम = अति + क्रम् । °अ पुं [क] सूर्य । अग्नि । मोर । न. पानी । अइकाय पुं [अतिकाय] महोरग-जातीय शिखर, टोंच । मस्तक ।
देवों का एक इन्द्र । रावण का एक पुत्र । °अ वि [°ज] उत्पन्न ।
वि. बड़ा शरीरवाला । अअंख वि [दे] स्नेह-रहित, सूखा ।
अइक्कत वि [अतिक्रान्त] अतीत । तीणं । अअर देखो अवर।
जिसने त्याग किया हो वह । अअर देखो आयर।
अइक्कम सक [अति + क्रम्] उल्लंघन करना । अइ अ [अयि] संभावना और आमन्त्रण अर्थ
व्रत-नियम का आंशिक रूप से खण्डन करना। का सूचक अव्यय ।
अइक्ख वि [अतीक्ष्ण] तीक्ष्णतारहित । अइ अ [अति] इन अर्थों का सूचक उपसर्ग । | अइक्ख वि [अनीक्ष्य] अदृश्य । अतिशय। उत्कर्ष, महत्त्व । पूजा, प्रशंसा। अइगच्छ । अक [अति + गम्] गुजरना, अतिक्रमण । ऊपर, ऊँचा । निन्दा । अइगम ) बीतना । सक. पहुँचना । प्रवेश अइ अ [अति] सामर्थ्य-सूचक अव्यय । करना । उल्लंघन करना । गमन करना । अइ सक [आ + इ] आगमन करना, आ अइगमण न [अतिगमन] प्रवेश-मार्ग । गिरना ।
उत्तरायण । अइइ स्त्री [अदिति] पुनर्वसु नक्षत्र का | अइगय वि [दे] आया हुआ। जिसने प्रवेश अधिष्ठाता देव ।
किया हो वह । न. मार्ग का पिछला भाग । अइइ सक [अति + इ] उल्लंघन करना । | अइगय वि [अतिगत] अतिक्रान्त, गुजरा हुआ। गमन करना । प्रवेश करना ।
अइगय वि [अतिगत] प्राप्त । अइउट्ट वि [अतिवृत्त] अतिगत, प्राप्त । अइचिरं अ [अतिचिरम्] बहुत काल तक । अइंच सक [अति + अञ्च] अभिषेक करना, अइच्च अइइ = अति + इ का संकृ । स्थानापन्न करना। उल्लंघन करना। अइच्छ सक [गम्] जाना, गमन करना । आकर्षित करना । अक. दूर जाना । । अइच्छ सक [अति + क्रम्] उल्लंघन करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
अइच्छा-अइमाय अइच्छा स्त्री [अदित्सा] देने की अनिच्छा। शिला] मेरु पर्वत पर स्थित दक्षिण दिशा की प्रत्याख्यान विशेष ।
एक शिला। अइजाय पुं [अतिजात] पिता से अधिक संपत्ति अइपडाग पुं [अतिपताक] मत्स्य की एक को प्राप्त करनेवाला पुत्र ।।
जाति । स्त्री. पताका के ऊपर की पताका । अइट्ठ वि [अदृष्ट] जो न देखा गया हो वह । अइपरिणाम वि [अतिपरिणाम] आवश्यकता न. कर्म, दैव, भाग्य । °उव्व, 'पुव्व वि न रहने पर भी अपवाद-मार्ग का ही आश्रय [ पूर्व] जो पहले कभी न देखा गया हो वह । लेने वाला, शास्त्रोक्त अपवादों की भर्यादा अइट्ट वि [अनिष्ट] अप्रिय । खराब, दुष्ट । का उल्लंघन करने वाला। अइट्टा सक [अति + स्था] उल्लंघन करना । अइपाइअ वि [अतिपातिक] हिंसाकरनेवाला । अइट्ठिय वि [अतिष्ठित] अतिक्रान्त, उल्लंधित । अइपास पुं [अतिपावं] भगवान् अरनाथ के अइण न [दे] गिरि-तट, तराई ।
समकालिक ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकरदेव । अइण न [अजिन] चर्म ।
अइपास सक [अति + दृश्] खूब देखना। अइणिय वि [दे. अतिनीत लाया हुआ। अइप्पगे अ [अतिप्रगे] पूर्व-प्रभात, बड़ी सबेर । अइणिय । वि [अतिनोत] फेंका हुआ । अइप्पमाण वि [अतिप्रमाण] तृप्त न होता अइणीय जो दूर ले जाया गया हो। __ हुआ भोजन करनेवाला । न. तीन बार से अइणीअ वि [अतिगत] गया हुआ। अधिक भोजन । अइणीय वि [दे. अतिनीत] लाया हुआ। । अइप्पसंग पुं [अतिप्रसङ्ग] अतिपरिचय । अइणु वि [अतिनु] जिसने नौका का उल्लंघन | तर्क-शास्त्र में प्रसिद्ध अतिव्याप्ति-नामक दोष । किया हो वह, जहाज से उतरा हुआ । । अइप्पहाय न [अतिप्रभात] बड़ी सबेर । अइतह वि [अवितथ] सत्य, सच्चा ।। अइबल वि [अतिबल] शक्ति-शाली । न. अइतेया स्त्री [अतितेजा] पक्ष को चौदहवीं अतिशय बल । बड़ा सैन्य । पुं. एक राजा, जो रात।
भगवान् ऋषभदेव के पूर्वीय चतुर्थ भव में पिता अइदंपज्ज न [ऐदंपर्य] तात्पर्य, रहस्य। या पितामह था। भरत चक्रवर्ती का एक अइदुसमा । स्त्री [अतिदुष्षमा] देखो। पौत्र । भरत क्षेत्र में आगामी चौबीसो में होने अइदुस्समा दुस्समदुस्समा।
वाला पाँचवाँ वासुदेव । रावण का एक योद्धा । अइदूसमा
अइभद्दा स्त्री [अतिभद्रा] भगवान् महावीर अइदंपज्ज देखो अइदंपज्ज ।
के प्रभास नामक ग्यारहवें गणधर की माता । अइधाडिय वि [अतिध्राटित] फिराया हुआ, अइभूइ पुं [अतिभूति] एक जैन मुनि, जो घुमाया हुआ ।
पंचम वासुदेव के पूर्व जन्म में गुरु थे। अइनिळुहावण वि [अतिविष्टम्भन ] स्तब्ध अइभूमि स्त्री [अतिभूमि परम प्रकर्ष । बहुत करनेवाला, रोकनेवाला।
जमीन । गृहस्थों के घर का वह भाग, जहाँ अइन्न न [अजीर्ण] बदहजमी । वि. जो हजम न साधुओं को प्रवेश करने की अनुज्ञा न हो । हुआ हो वह । जो पुराना न हुआ हो, नूतन । अइमट्टिया स्त्री [अतिमृत्तिका] कीचवाली अइन्न वि [अदत्त] नहीं दिया हुआ । °ायाण मिट्टी। न [दान] चोरी।।
अइमत्त । वि [अतिमात्र] बहुत, परिमाण अइपंडुकंबलसिला स्त्री [अतिपाण्डुकम्बल- अइमाय 5 से अधिक ।
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अइमुंक-अइवय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अइमुक । पृ [अतिमुक्त] स्वनाम ख्यात एक । अइरत्त पुं [अतिरात्र] अधिक तिथि । अइमुंत | अन्तकृद् ( उसी जन्म में मुक्ति | अइरत्त वि [अतिरक्त] गाढा लाल । विशेष अइमुत्त ) पानेवाला ) जैन मुनि, जो पोलास- रागी। कंबलसिला, कंबला स्त्री
पुर के राजा विजय का पुत्र था। [°कम्बलशिला, कम्बला] मेरु पर्वत के और जिसने बहुत छोटी ही उम्र में पांडुक वन में स्थित एक शिला, जिसपर भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली | जिनदेवों का जन्माभिषेक किया जाता है । थी। कंस का एक छोटा भाई । | अइरा । स्त्री [अचिरा] पाँचवें चक्रवर्ती वृक्षविशेष । माधवी लता। न. | अइराणी । और सोलहवें तीर्थंकर-देव की अन्तगड़दसा नामक अंग-ग्रन्थ का | माता। एक अध्ययन ।
अइराणी स्त्री [दे] इन्द्राणी। सौभाग्य के अइय वि [अतिग] अतिक्रान्त, करनेवाला, ___ लिए इन्द्राणी-व्रत करनेवाली स्त्री । प्राप्त ।
अहरावण पुं ऐरावण] इन्द्र का हाथी । °अइय वि [दयित] प्रिय, प्रीतिपात्र । दया अइरावय पुं [ऐरावत] इन्द्र का हाथी । करने योग्य ।
अइराहा स्त्री [ अचिराभा ] बिजली। अइयच्च देखो अइगच्छ
अइरि न [अतिरि | धन या सुवर्ण का अतिअइयण न [अत्यदन] अधिक भोजन करना । __ क्रमण करनेवाला, धनाढ्य । अइयय वि [अतिगत] गया हुआ । अइरिंप पुं [दे] कथाबन्ध, बातचीत, कहानी । अइयर सक [अति + चर्] उल्लंघन करना ।
अइरित्त वि [अतिरिक्त] अवशिष्ट । अधिक । व्रत को दूषित करना।
°सिज्जासणिय वि[शय्यासनिक] लम्बीचौड़ी अइया सक [अति + या] जाना, गुजरना ।
शय्या और आसन रखने वाला(साधु)। अइया स्त्री [अजिका] बकरी ।
अवरूव वि [अतिरूप] सुरूप, सुडौल । पुं. °अइया स्त्री [दयिता] स्त्री, पत्नी । भूत-जातीय देवविशेष । अइयाण न [अतियान] गमन, गुजरना । राजा अइरेइय वि [अतिरेकित] अतिरेक-युक्त, वगैरह का नगर आदि में धूम-धाम से प्रवेश | अतिप्रभूत । करना ।
अइरेग पु [अतिरेक आधिक्य, अतिशय । अइयाय वि [अतियात] गया हुआ, गुजरा | अइरेय देखो अइरेग। हुआ।
अइव अ [अतीव] अतिशय । अइयार पुं [अतिचार] उल्लंघन, अतिक्रमण । अइवट्टण न [अतिवर्तन] उल्लंघन ।
गृहीत व्रत या नियम में दूषण लगाना । अइवत्त सक [अति + वृत्] अतिक्रमण करना । अइर अ [अचिर] शीघ्र ।
अइवत्तिय वि [अतिव्रतिक] जिसका उल्लंघन अइर न [अजिर] आंगन, चौक ।
किया गया हो वह । प्रधान। उल्लंघन अइर पुं [दे] आयुक्त, गांव का राजनियुक्त
करनेवाला । मुखिया ।
अइवय सक [अति+वृत्] उल्लंघन करना । अइर न [दे. अतर] देखो अयर = अतर ।
| अइवय सक [अति + व्रज्] उल्लंघन करना। अइर वि [दे] अतिरोहित ।।
| संमुख जाना । प्रवेश करना । अइरजुवइ स्त्री (दे) दुलहिन ।
| अइवय सक [अति + पत्] उल्लंघन करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अइवह-अउज्झा सम्बन्ध करना। प्रवेश करना । अक. मरना । | अइसेस पुं [अतिशेष] महिमा, प्रभाव, गिर जाना।
आध्यात्मिक सामर्थ्य । बचा हुआ । अतिशय अइवह सक [अति+वह] वहन करने में समर्थ | वाला । होना।
अइसेसि वि [अतिशेषिन] महिमान्वित । अइवाइ वि [अतिपातिन्] हिंसक । विनश्वर ।। समृद्ध, ज्ञान आदि के अतिशय से सम्पन्न । अइवाइत्तु वि [अतिपातयितु] मारनेवाला। | अइसेसिय वि [अतिशेषित] ज्ञात, जाना अइवाइय वि [अतिपातिक] ऊपर देखो। हुआ। अइवाएत्तु देखो अइवाइत्तु।
अइहर पुं [अतिभर] हद, अवधि । अइवाय पुं [अतिपात] हिंसा आदि दोष । अइहारा स्त्री [दे] बिजली । विनाश ।
अइहि पुं [अतिथि] जिसके आने की तिथि अइवाय पुं [अतिवात] उल्लंघन । भयंकर
नियत न हो वह, पाहुन, यात्री, भिक्षुक, पवन, तूफान ।
साधु । °संविभाग पुं साधु को भोजन अइवाह सक [अति + वाहय्] बिताना,
__ आदि का निर्दोष दान । गुजारना।
अई सक [गम्] जाना। अइविरिय वि [अतिवीर्य] बलिष्ठ, महा- अईअ ' [अतीत] भूतकाल । वि. जो बीत पराक्रमी। पुं. इक्ष्वाकु वंश का एक राजा।
चुका हो । अतिक्रान्त । जो दूर हो गया हो । नन्दावर्त नगर का एक राजा ।
| अईअ ) अ [अतीव] बहुत, विशेष, अइविसाल वि [अतिविशाल] बहुत बड़ा, | अईव अत्यन्त । विस्तीर्ण । स्त्री. यमप्रभ नामक पर्वत के दक्षिण | अईसंत वि [अ+ दश्यमान] जो दिखता तरफ की एक नगरी ।
न हो। अइस [अप] वि [ईदृश्] ऐसा, इस तरह का । | अईसय देखो अइसय । अइसइ वि [अतिशयिन्] अतिशय वाला, अईसार पुं [अतीसार] संग्रहणी रोग । इस विशिष्ट, आश्चर्य-कारक ।
नाम का एक राजा। अइसंधण देखो अइसंधाण ।
अउ देखो आउ = स्त्री। अइसंधाण [अतिसंधान] ठगाई ।
अउअ न [अयुत] दस हजार की संख्या । अइसक्कणा स्त्री [अतिष्वष्कणा] उत्तेजना, 'अउअंग' को चौरासी लाख से गुणने पर प्रेरणा, बढ़ावा।
जो संख्या लब्ध हो वह । अइसय सक [अति+शी] मात करना। | अउअंग न [अयुताङ्ग] 'अच्छणिउर' को अइसय पुं [अतिशय] श्रेष्ठता। महिमा, | चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध प्रभाव । अत्यन्त । चमत्कार । वैशिष्ट्य । हो वह । भरिय वि [°भृत] पूर्ण ।
अउंठ वि [अकुण्ठ] निपुण । अइसरिय न [ऐश्वर्य] संपत्ति, गौरव ।। अउचित्त न [औचित्य] उचितपन । अइसाइ वि [अतिशायिन्] श्रेष्ठ । दूसरे को | अउज्झ वि [अयोध्य] युद्ध में जिसका सामना मात करनेवाला । स्त्री. °णी।
न किया जा सके वह । जिस पर रिपु-सैन्य अइसायण न [अतिशायन] उत्कृष्टता, उत्कर्ष । आक्रमण न कर सके ऐसा किला, नगर आदि । अइसार पुं [अतिसार] संग्रहणी रोग । अउज्झा स्त्री [अयोध्या नगरी-विशेष ।
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अउण-अंकुडग
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अउण वि [एकोन] जिसमें एक कम हो बत्तीस प्रशस्त लक्षणों में से एक । आसन
वह । ठ्ठि स्त्री [°षष्टि] उनसाठ, ५९।। -विशेष । पुन. एक देव-विमान । °कण्ड पुंन. °त्तरि स्त्री [°सप्तति] उनसत्तर, ६९।। [काण्ड] रत्नप्रभा पृथ्वी के खर-काण्ड का °त्तीस स्त्रीन [°त्रिंशत्] उनतीस, २९ ।। एक हिस्सा, जो अंक रत्तों का है । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] उनसाठ, ५९ । अरेल्लुग, करेल्लुअ पुं [करेल्लुक]
पन्न, वन्न स्त्रीन [पञ्चाशत् उनपचास, पानी में होनेवाली एक जाति की वनस्पति । ४९ । देखो एगण ।
टिइ स्त्री [°स्थिति] अंक रेखाओं की अउणतीसइ स्त्री देखो अउण-त्तीस। विचित्र स्थापना, ६४ कलाओं में से एक अउणप्पन देखो अउणापन्न ।
कला। °धर पु चन्द्रमा । °धाई स्त्री अउणासट्टि देखो अउण-सट्ठि।
[°धात्री] पाँच प्रकार की धाई-माताओं अउणोणिउत्ति स्त्री [अपुननिवृत्ति] अन्तिम | में से एक, जिसका काम बालक को उत्संग निवृत्ति, मोक्ष ।
में ले उसका जी बहलाना है । °लिवि स्त्री अउण्ण न [अपुण्य] पाप । वि. अपवित्र । [लिपि] अठारह लिपियों में की एक लिपि, पापी।
वर्णमाला-विशेष । वणिय पु [°वणिक्] अउम देखो ओम।
अंक-रत्नों का व्यापारी । वालि,°वाली स्त्री अउमर वि [अद्मर खानेवाला, भक्षक । [°पालि, पाली] आलिंगन । हर देखो अउल वि [अतुल] असाधारण, अद्वितीय । । धर । अउलीन वि [अकुलीन] कुल-हीन, कुजाति, अंक [दे अङ्क] समीप । संकर ।
अंककरेलुअ देखो अंक-करेल्लुअ। अउव्व वि [अपूर्व] अनोखा, अद्वितीय । अंकण न [अङ्कन] चिह्नित करना । बैल अउस पुं [दे] उपासक, पुजारो ।
आदि पशुओं को लोहे की गरम सलाई आदि अए अ [अये] आमन्त्रण-सचक अव्यय । से दागना । वि. अंकित करनेवाला, गिनती अओ अ [अतस्] यहाँ से लेकर । इसलिए । में लानेवाला। अओ° [अयस्] लोह । °घण पु [घन] अंकदास पु [अङ्कदास] बालक को उत्संग लोहे का हथौड़ा । °मय वि लोहे की बनी में लेकर उसका जी बहलानेवाला नौकर । हुई चीज । मुह पुं [°मुख] इस नाम का अंकवाणिय देखो अंक-वणिय । अन्तर्वीप और उसके निवासी । वि. लोहे की अंकार पु[दे] सहायता । माफिक मजबूत मुंह वाला । °मुही स्त्री अंकावई स्त्री [अङ्गावती] महाविदेह क्षेत्र [°मुखी] एक नगरो।
के रम्य नामक विजय की राजधानी । मेरु अओग्ग वि [अयोग्य] नालायक ।
की पश्चिम दिशा में बहती हुई शीतोदा अओज्झा देखो अउज्झा।
महानदी की दक्षिण दिशा में वर्तमान एक अं अ [दे] स्मरण-द्योतक अव्यय ।
वक्षस्कार पर्वत । अंक पुं [अङ्क] उत्संग। रत्न की एक जाति । अंकिअ न [दे] आलिंगन । नौ को एक संख्या । संख्या-दर्शक चिह्न अंकिअ वि [अङ्कित] चिह्नित । १, २, ३ । नाटक का एक अंश । सफेद अंकिइल्ल पु [दे] नट, नर्तक । मणि को एक जाति । चिह्न। मनुष्य के अंकुडग पु [अङ्कुटक] नागदन्तक, खूटी,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंकुर-अंग ताख ।
। काटा गया हो वह । °जाय वि [°जात] अंकुर पुं [अङ्कुर] प्ररोह, फुनगी। लड़का। °द देखो य = °द । 'पविट्ठ न अंकुस पुं [अङ्कुश] आंकडी, लोहे का एक [प्रविष्ट] बारह जैन अंग-ग्रन्थों में से कोई हथियार, जिससे हाथी चलाये जाते हैं। भी एक । अंग-ग्रन्थों का ज्ञान । बाहिर न ग्रह-विशेष । सीता का एक पुत्र, कुश। बाह्य] अंग-ग्रन्थों के अतिरिक्त जैन नियन्त्रण करनेवाला । अंकुशाकार खूटी।
आगम । अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन आगमों का पुन. एक देव-विमान । पुन. गुरु-वन्दन का ज्ञान । °मंग न [Tङ्ग] अंग-प्रत्यङ्ग । हर एक दोष ।
एक अवयव । °मंदिर न [°मन्दिर] चम्पा अंकुसइय न [दे. अंकुशित] अंकुश के । नगरी का एक देव-गृह । 'मद्द, °मय पु आकारवाली चीज।
[°मर्द, 'मर्दक] शरीर की चम्पी करनेवाला अंकुसय पुं [अकुशक] देखो अंकुस ।
नौकर । वि. शरीर को मलनेवाला । °य पुं संन्यासी का एक उपकरण, जिससे वह देवपूजा ['द] वाली नामक विद्याधरराज का पुत्र । न. के वास्ते वृक्ष के पल्लवों को काटता है। बाजूबंद, केहंटा । °य वि [°ज] शरीर में अंकुसा स्त्री [अङ्कुशा] चौदहवें तीर्थकर । उत्पन्न । पुं. पुत्र । °या स्त्री [°जा] पुत्री।
श्री अनन्तनाथ भगवान् की शासन-देवी। रक्ख, रक्खग वि [°रक्ष, रक्षक] शरीर अंकुसिअ वि [अङ्कुशित] अंकुश की तरह । की रक्षा करनेवाला । °राग, राय पु शरीर मुड़ा हुआ।
में चन्दनादि का विलेपन । प्राय पुं [राज] अंकुसी स्त्री [अकुशी] देखो अंकुसा।
अंगदेश का राजा । अंग देश का राजा कर्ग । अंकूर देखो अंकुर ।
°रिसि देखो °इसि । रुह वि देखो अंकेल्लण न [दे] घोड़ा आदि को मारने का !
°य = °ज । रुहा स्त्री पुत्री । विज्जा स्त्री चाबुक, कोड़ा, औंगी।
[°विद्या] शरीर के स्फुरण का शुभाशुभ अंकेल्लि पु [दे] अशोक-वृक्ष ।
फल बतलानेवाली विद्या। उस नाम का एक अंकोल्ल पु [अङ्कोठ] वृक्ष-विशेष ।
जैन ग्रन्थ । "वियार पुं[विचार] देखो
पूर्वोक्त अर्थ । °संभूय [°संभूत] संतान । अंग ब. पु [अङ्ग] इस नाम का एक देश,
हारय पुं [ हारक] शरीर के अवयवों के जिसको आजकल बिहार कहते हैं। राम का
विक्षेप, हाव-भाव । गदाण न [°ादान] एक सुभट । न. आचारांग सूत्र आदि बारह
पुरुषेन्द्रिय। जैन आगम-ग्रंथ । वेद के शिक्षादि छः अंग । कारण । आत्मा, जीव । पुन. शरीर । शरीर
अंग पुं [अङ्ग] भगवान् आदिनाथ के एक के मस्तक आदि अवयव । अ. मित्रता का पुत्र का नाम । न. लगातार बारह दिनों का आमन्त्रण, सम्बोधन । वाक्यालंकार में प्रयक्त उपवास । ज देखो °य। हर वि. [ धर] किया जाता अव्यय । °इ पु। जित्] इस
१०
अङ्ग-ग्रन्थों का जानकार । नाम का एक गृहस्थ, जिसने भगवान् पार्श्वनाथ अंग वि [आङ्ग] शरीर का विकार । के पास दीक्षा ली थी। इसि पार्षि] शरीर-सम्बन्धी। न. शरीर के स्मरण चंपा नगरी का एक ऋषि । [चलिया] स्त्री आदि विकारों के शुभाशुभ फल को बतलाने[°चूलिका] अंग-ग्रन्थों का परिशिष्ट। वाला शास्त्र, निमित्त-शास्त्र । °च्छहिय वि [°छिन्नाङ्ग] जिसका अंग अंग वि [चङ्ग] सुन्दर ।
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अंगइया- अंच
अंगइया स्त्री [अङ्गदिका ] एक नगरी, तीर्थ - विशेष । अंगंगीभाव पुं [अङ्गाङ्गीभाव ] अभेद भाव । अभिन्नता ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंगण न [ अङ्गण] आंगन | अंगणा स्त्री [अङ्गना ] औरत । अंगदिआ देखो अङ्गइया | अंगवड्ढण न [दे] बीमारी | अंग लिज्ज न [ दे] शरीर को मोड़ना । अंगार पुं [अङ्गार] जलता हुआ कोयला । जैन साधुओं के लिए भिक्षा का एक दोष । मग पुं [मर्दक] एक अभव्य जैनआचार्य | वई स्त्री ['वती ] सुंसुमार नगर के राजा धुन्धुमार की एक कन्या का नाम ।
अंगारग पुं [अङ्गारक] ऊपर देखो । अंगारय । मंगल ग्रह | पहला महाग्रह |
करना ।
अंगुलिअ
अंगुलिज्जक अंगुलिज्जग
अंगालग देखो अंगारग ।
अंगुली स्त्री [ ] प्रियंगु, वृक्ष - विशेष । अंगुली स्त्री [अङ्गुली] देखो अंगुलि | अंगुलीय पुंन [ अङ्गुलीयक] अंगुठी । अंगुलेज्जक | अंगुले
अंगालिय न [ दे] ईख का टुकड़ा । अंगालिय देखो अंगारिय ।
अंगि पुं [अङ्गिन् ] प्राणी, जीव । वि अंगुलेयग देखो अंगुलेयय । शरीरवाला | अंग-ग्रन्थों का ज्ञाता । अंगुरंग न [अङ्गोपाङ्ग] शरीर के अंगिरस न [ अङ्गिरस ] एक गोत्र, जो अंगोवंग अवयव । नख वगैरह शरीर गोतम - गोत्र की शाखा है । के छोटे-छोटे अवयव | 'णाम न [' नामन् ] शरीर के अवयवों के निर्माण में कारण-भूत कर्म-विशेष |
अंगिरस वि [ आङ्गिरस ] अंगिरस - गोत्र में
राक्षस वंश का एक राजा ।
अंगारिय वि [अङ्गारित ] कोयले की तरह जला हुआ, विवर्ण ।
अंगाल देखो अंगार ।
उत्पन्न । पुं. एक तापस ।
अंगीकड ) वि [अङ्गीकृत] स्वीकृत । अंगीय
अंगीकर सक [अङ्गी + कृ] अंगण करना ।
स्वीकार
अंगुअ पुं [इङ्गुद] वृक्ष - विशेष । न. इंगुद वृक्ष का फल |
अंगुट्ट पुं [ अङ्गुष्ठ | अंगूठा । 'पणि पुं [प्रश्न ] एक विद्या । 'प्रश्नव्याकरण' सूत्र का एक लुप्त अध्ययन । [] घूंघट |
अंगुत्थल न [] अंगुठी, अंगुलीय । अंगुब्भव वि [अङ्गोद्भव ] संतान | अंगु सक [ ] पूर्ति करना । अंगुर, स्त्री [अङ्गुलि, ली] उंगली | अंगु न [अंगुल ] यव के आठ मध्यभाग के बराबर का एक नाप, मान - विशेष | 'पोहत्तिय वि [° पृथक्त्वक] दो से लेकर नव अंगुल तक का परिमाण वाला । अंगुलि स्त्री [अङ्गुलि] उंगली । कोस पुं [कोश ] अंगुलित्राण, दास्ताना | फोडण न [स्फोटन ] उंगली फोड़ना, कड़ाका
[ अङ्गुलीयक] अंगुठी |
अंगोहलि स्त्री [दे] शिर को छोड़कर बाकी शरीर का स्नान
अंघो अ [अङ्ग ] भय-सूचक अव्यय । अंच सक [कृष्] खींचना। जोतना, चास करना । रेखा करना । उठाना । अंच सक [ अञ्च् ] पूजा करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंच-अंडय अंच सक [अञ्च] जाना।
अंजणई स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । अंचल पु [अञ्चल] कपड़े का शेष भाग । अंजणईस न [दे] देखो अंजणइसिआ। अंचि पु [अञ्चि ] गमन, गति । अंजणा स्त्री [अंजना] हनूमान् की माता । अंचि पु[आञ्चि ] आगमन ।
स्वनाम-ख्यात चौथी नरक-पृथिवी। एक अंचिय वि [अञ्चित] युक्त । पूजित । प्रशस्त । पुष्करिणी । तणय पुं [°तनय ] हनून. एक प्रकार का नृत्य । एक बार का मान् । °सुन्दरी स्त्री हनूमान् की माता । गमन । °यंचि पु [°ाञ्चि] गमनागमन । | | अंजणाभा [अञ्जनाभा] चौथी नरक पृथिवी । ऊँचा-नीचा होना।
अंजणिआ स्त्री [दे] देखो अंजणइसिआ। अंचियरिभिय न [अञ्चितरिभित] एक अंजणी स्त्री [अञ्जनी] कज्जल का आधारतरह का नाट्य ।
पात्र । अंचिया स्त्री [अञ्चिका] आकर्षण । अंजलि, °ली स्त्री [ अञ्जलि ] हाथ का अंछ सक [कृष्] खींचना । अक. लम्बा होना । संपुट । एक या दोनों संकुचित हाथों को अंछिय वि [दे] आकृष्ट । खींचा हुआ। ललाट पर रखना। कर-संपुट, नमस्कार अंज सक [अञ्ज] आंजना।
रूप विनय, प्रणाम °उड पुं [पुट] हाथ का अंजण पु [अञ्जन] कृष्ण पुद्गल-विशेष ।
संपुट । °करण न विनय-विशेष, नमन । देव-विशेष । पर्वत-विशेष । एक लोकपाल °पग्गह पु[प्रग्ग्रह] नमन, हाथ जोड़ना । देव । पर्वत-विशेष का एक शिखर, जो
संभोग-विशेष । दिग्हस्ती कहा जाता है। वृक्ष-विशेष ।
अंजस वि (दे) ऋजु । न. एक जाति का रत्ल । देवविमान-विशेष ।
अंजु वि [ऋजु] सरल, अकुटिल, संयम में काजल । जिसका सुरमा बनता है ऐसा
तत्पर, संयमी । स्पष्ट व्यक्त । एक पार्थिव द्रव्य । आंख को आंजना । तैल
अंजुआ स्त्री [अञ्जका] भगवान् अनन्तनाथ आदि से शरीर की मालिश करना ।
___ की प्रथम शिष्या। रत्नप्रभा पृथिवी के खरकाण्ड का दशवाँ | अंजू स्त्री [अ] एक सार्थवाह की कन्या । अंश-विशेष । केसिया स्त्री [केशिका] | 'विपाकश्रुत' का एक अध्ययन । एक इन्द्राणी वनस्पति-विशेष। °जोग ५ [ °योग ] | । 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन । कला-विशेष। दीव पुं [ द्वीप] द्वीप- अंठि पुन [अस्थि] हड्डी, हाड़ । विशेष । 'पुलय पुं[ °पुलक ] एक जाति / अंड न [अण्ड] अंडा। अंडकोश । का रत्न । पर्वत-विशेष का एक शिखर । अंडअ ! 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का तृतीय
पहा स्त्री [प्रभा] चौश्री नरकपृथिवी ।। अंडग अध्ययन । °कड वि [कृत] जो °रिठ्ठ पं ["रिष्ट] इन्द्र-विशेष । °सलागा
अण्डे से बनाया गया हो। °बंधु स्त्री [°शलाका ] जैन-मूर्ति की प्रतिष्ठा ।
पु [°बन्ध] मन्दिर के शिखर पर अंजन लगाने की सलाई। °सिद्ध वि आंख
रखा जाता अण्डाकार गोला । में अंजन-विशेष लगाकर अदृश्य होने की
वाणियय पु [°वाणिजक] शक्तिवाला । सुन्दरी स्त्री एक सती स्त्री, अण्डों का व्यापारी। हनूमान् की माता।
| अंडग । वि [अण्डज] अण्डे से पैदा होने अंजणइसिआ स्त्री [दे] श्याम तमाल का पेड़।। अंडय , वाले जंतु, पक्षी, साँप, मछली
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अंडा उय - अंतराइय
वगैरह | रेशम का धागा । रेशमी वस्त्र |
अंतअ वि [ आयात् ] आता हुआ । अंत व [अन्तग] पार-गामी ।
शण का वस्त्र ।
अंडाउ वि [अण्डज ] अण्डे से पैदा होने- अंतअ वि [अन्तद] शाश्वत । जिसकी सीमा
वाला ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंत पुं [अन्त] स्वरूप, स्वभाव । प्रान्त भाग । हद । नजदीक । भग, विनाश । निश्चय । प्रदेश, स्थान । राग और द्वेष । रोग । वि. इन्द्रियों को प्रतिकूल लगनेवाली चीज, असुन्दर, नीरस वस्तु । सुन्दर । नीच, क्षुद्र, तुच्छ । कर वि. उसी जन्म में मुक्ति पानेवाला । करण वि नाशक । काल पुं मृत्यु काल । प्रलय काल । किरिया स्त्री [क्रिया ] मुक्ति, संसार का अत करना | कुलन क्षुद्र कुल । 'गड वि [कृत् ] उसी जन्म में मुक्ति पानेवाला । ● गडदसा स्त्री [कृद्दशा ] जैन अंग-ग्रंथों में आठवाँ अंग-ग्रंथ । 'चर वि भिक्षा में नोरस पदार्थों की ही खोज करनेवाला । अंत वि [अन्त्य ] अन्तिम । क्खरिया स्त्री [क्षरिका] ब्राह्मी लिपि का एक भेद | कला - विशेष ।
न हो वह ।
अंतअ
अंतग
अंत न [ अ ] आंत ।
अंत अ [अन्तर्] मध्य में । उर न [°पुर ] देखो अंतेउर । 'करण, 'क्करण [' करण] मन, हृदय । ग्गय वि ['गत ] मध्यवर्ती । 'द्धा स्त्री [°धा] तिरोधान नाश ( आचू) । 'द्धा न ['धान] अदृश्य होना, तिरोहित होना । 'द्धाणी स्त्री [°र्धानी] जिससे अदृश्य हो सके ऐसी विद्या । द्वाभूअ वि [ "धाभूत] नष्ट | पाअ पुं [ 'पात] अन्तर्भाव । भावपुं समावेश | " मुहुत्त न [मूहूर्त ] न्यून मुहूर्त | 'रद्धा स्त्री [धा] तिरोधान । नाश । 'रद्धा स्त्री [अद्धा ] मध्य काल | °रप्प पुं [आत्मन् ] आत्मा, जीव । रहिय, रहिद (शौ) वि [हित] व्यवहित । गुप्त, अदृश्य | पुं [वेदि] गंगा और यमुना के बीच का देश | 'अंत वि ["कान्त ] मनोहर ।
|
२
वि [ अन्तक ] सुन्दर । अन्तर्गत, समाविष्ट । पर्यन्त प्रान्त भाग ।
यम, मृत्यु ।
अंतंग वि [अन्तग] पार - गामी । जो कठिनाई से छोड़ा जा सके । 'अंतगय देखो अंत-ग्गय | 'अंतण न [यन्त्रण] बन्धन, नियन्त्रण | अंतद्वाण वि [ अन्तर्धान] तिरोधान-कर्त्ता । अंतरभाव देखो अंत-भाव ।
अंतर न [अन्तर] मध्य, भीतर । भेद, विशेष । अवसर | समय । व्यवधान, अवकाश, अन्तराल | छिद्र । रजोहरण । पात्र । पुं. आचार, कल्प । सूत के कपड़े पहनने का आचार, सौत्र कल्प । 'कप्प पुं [कल्प ] जैन साधु का एक आत्मिक प्रशस्त आचरण | कंद पुं कन्द की एक जाति, वनस्पति- विशेष । करण न आत्मा का शुभ अध्यवसाय - विशेष | हि न [गृह] घर का भीतरी भाग । दो घरों के बीच का अन्तर । 'ई स्त्री ['नदी] छोटी नदी । दीव पुं [ द्वीप ] द्वीप - विशेष । लवण समुद्र के बीच [ 'शत्रु ] भीतरी शत्रु,
द्वीप | काम-क्रोधादि ।
अंतर सक [ अन्तरय् ] व्यवधान करना । अंतर वि[ आन्तर ] अभ्यन्तर, भीतरी, मानसिक ।
अंतरंग वि [अन्तरङ्ग ] भीतरी । अंतरंजी स्त्री [आन्तरञ्जी] नगरी - विशेष । अंतरपल्ली स्त्री [अन्तरपल्ली ] मूल स्थान से गत की दूरी पर स्थित गाँव । अंतरमुहुत्त देखो अंत-मुहुत्त । अंतरा अ [अन्तरा ] बीच में । पहले, पूर्व अंतराइय न [ आन्तरायिक ] कर्म-विशेष, जो
मैं
I
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष अंतराईय-अंदुया दान आदि करने में विघ्न करता है । विघ्न । अंतेआरि वि [अन्तश्चारिन्] बीच में जानेअंतराईय न [अन्तरायीय] ऊपर देखो। वाला। अंतरापह पुं [अन्तरापथ] रास्ता का बीचला | अंतेउर न [अन्तःपुर] राजस्त्रियों का निवासभाग ।
गृह । रानी। अंतराय पुन. [अन्तराय] देखो अंतराइय। अंतेउरिगा । स्त्री [आन्तःपुरिकी, °री] अंतराल पुं [अन्तराल] अंतर, बीच का भाग। अंतेउरिया । अन्तःपुर में रहनेवाली स्त्री,
अंतेउरी । राज्ञी। रोगी का नाममात्र अंतरावण पुन [अन्तरापण] दूकान । अंतरावास पुं [अन्तरवर्ष, अन्तरावास]
लेने से उसको नीरोग बनाने वाली एक
विद्या। वर्षा-काल। अंतरिक्ख पुन [अन्तरिक्ष]अन्तराल, आकाश ।
अंतेल्ली स्त्री [दे] मध्य । उदर । तरंग । °जाय वि [°जात] जमीन के ऊपर रही हुई
अंतेवासि वि [अन्तेवासिन्] शिष्य । प्रासाद, मंच आदि वस्तु । °पासणाह । अंतेवुर देखो अंतेउर। [°पार्श्वनाथ] खानदेश में अकोला के पास | अंतो अ [अन्तर] बीच, भीतर । °खरिया का एक जैन-तीर्थं और वहाँ की भगवान् स्त्री [°खरिका] नगर में रहनेवाली वेश्या । श्रीपार्श्वनाथ की मूर्ति ।
गइया स्त्री [गतिका] स्वागत के लिए अंतरिक्ख वि [आन्तरिक्ष] आकाश-सम्बन्धी, । सामने जाना । °गय वि [गत] मध्यवर्ती, आकाश का। ग्रहों के परस्पर युद्ध और भेद समाविष्ट । °णिसणी स्त्री [निवसनी] का फल बतलानेवाला शास्त्र ।
जैन साध्वियों को पहनने का एक वस्त्र । अंतरिज्ज न [अन्तरोय] वस्त्र । शय्या का °दहण न [°दहन] हृदय-दाह । 'मज्झावनीचला वस्त्र ।
साणिय पुन [°मध्यावसानिक] अभिनय अंतरिज न [दे] करधनी, कटिसूत्र ।
का एक भेद । °मुहुत्त न [°मुहूर्त] कम अंतरिजिया स्त्री [अन्तरीया] जैनीय वेश- मुहूर्त, ४८ मिनिट से कम समय । वाहिणी वाटिक गच्छ की एक शाखा ।
स्त्री [°वाहिनी] क्षुद्र नदी। °वीसंभ पुं अंतरित । वि [अन्तरित] व्यवहित, अंतर- [°विश्रम्भ] हार्दिक विश्वास । °सल्ल न अंतरिय ) वाला।
[°शल्य] भीतरी शल्य,घाव । कपट, माया । अंतरिया स्त्री [दे] समाप्ति ।
°साला स्त्री [°शाला] घरका भीतरी भाग । अंतरिया स्त्री [अन्तरिका] छोटा अन्तर, :
हुत्त वि [°मुख] भीतर। थोड़ा व्यवधान ।
अंतोहुत्त वि [दे] अधोमुख । अंतरीय न [अन्तरीप] द्वीप।
अंबडी (अप) स्त्री [अन्त्र] आंत, आंतो। अंतरेण अ [अन्तरेण] बिना, सिवाय । अंद पुं [चन्द्र] चन्द्रमा । कपूर । °राअ पुं अंतरेण अ [अन्तरेण] बीच में, मध्य में। [°राग] चन्द्रकान्त मणि । अंतलिक्ख देखो अंतरिक्ख ।
अंदरा स्त्री [ कन्दरा] गुफा । °अंति देखो पंति ।
°अंदल पुं [कन्दल] वृक्ष-विशेष । अंतिम वि [अन्तिम] चरम, शेष, अन्त्य । अंदावेदि (शौ) देखो अंतावेइ । अंतिय न [अन्तिक] समीप । अंत । चरम। अंदु । स्त्री [अन्दु] शृंखला, जंजीर । अंतीहरी स्त्री [दे] दूती।
अंदुया ।
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अंदेउर -- अंबड
अंदेउर (शौ) देखो अंतेउर ।
अंदोल अक [ अन्दोल् ] झूलना । कंपना, हिलना | संदिग्ध होना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वाली एक विद्या ।
अंधार पु] [अंधकार ] अंधेरा | अंधार सक [अन्धकारय् ]
अन्धकार-युक्त
करना ।
अंधाव सक [ अन्ध | अंधा करना । अंधिआ स्त्री [अन्धिका ] द्यूत- विशेष | अधिआ स्त्री [अन्धिका ] चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति ।
अंदोलय देखो अंदोलग |
अंदोलि वि [आन्दोलिन् ] हिलानेवाला, कंपा- अंधीकिद (शौ) वि [ अन्धीकृत ] अंध किया नेवाला ।
अंदोल सक [अन्दोलय् ] कंपाना, हिलाना । अंदोलग पुं [आन्दोलक ] हिंडोला । अंदोलण न [आन्दोलन] हिचकना, झूलना। हिंडोला । मार्ग - विशेष ।
अंदोलिर वि [आन्दोलितृ] झुलनेवाला । अंदोलण देखो अंदोलण ।
अंध वि [अन्ध] अन्धा । अज्ञान, ज्ञानरहित ।
इज्जन [ कण्टकीय] अंध पुरुष के कंटक पर चलने के माफिक अविचारित गमन करना । 'तम न [° तमस ] निबिड अन्धकार | पुर न नगर विशेष |
अंध पुं [अन्ध] पांचवाँ नरक का चौथा नरकेन्द्रक, एक नरक- स्थान ।
अंध पु. ब. [ अन्ध्र ] इस नाम का एक देश । अंध वि [आन्ध्र] आन्ध्र देश का रहनेवाला । अंधंधु पुं [दे] कुँआ ।
अंधकार देखो अंधयार ।
वि [ अन्ध] अन्धा |
अंधरअ
अंधल
अंधरिल्ली स्त्री [अन्धयित्री] अंध बनाने
हुआ ।
अंधु [ अन्धु ] कूप | 'अंप पु [ कम्प] कंपन ।
११
अंधग पुं [दे] वृक्ष | 'वहि पु ['वह्नि] अंब न [ अम्ल ] तक्र, मट्ठा | खट्टा रस । खट्टी
।
स्थूल अग्नि ।
अंधग देखो अंध | 'वहि पुं [व] सूक्ष्म अग्नि । वहि पुं [वृष्णि] यदुवंश का एक राजा, जो समुद्र विजयादि का पिता था ।
चीज | वि. निष्ठुर वचन बोलनेवाला । अंब वि [ आम्ल ] खट्टी वस्तु । मट्ठे से संस्कृत चीज ।
अंब वि [ ताम्र ] लाल, रक्तवर्णवाला । अंबग देखो अंब = आम्र °ट्टिया स्त्री [Tस्थि] गुठली ।
अंधय पुं [अन्धक] अंधा । वानरवंश का एक राजकुमार ।
आम
अंधयार पुन [ अन्धकार ] अंधेरा । पक्ख
[ पक्ष ] कृष्णपक्ष ।
अंब [अम्बष्ठ] देश-विशेष | जिसका पिता ब्राह्मण और माता वैश्य हो वह । अंबड पुं [ अम्बड ] एक परिव्राजक, जो महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जायगा । भगवान् महावीर का एक श्रावक, जो आगामी चौबीसी मे २२ वा तीर्थकर होगा ।
अंब पुं [अम्ब] एक जात के परमाधार्मिक देव, जो नरक के जीवों को दुःख देते हैं ।
पुं [आ] आम का पेड़ । न. आम्र फल 1 'गट्टिया स्त्री [दे] आम की आँठी, गुठली । 'चोयग न [ दे] आम का रुंछा । आम की छाल | डगल न [] आम का टुकड़ा | 'डालग न [ दे] आम का छोटा टुकड़ा | 'पेसिया स्त्री [शिका] आम का लम्बा टुकड़ा । भित्तन [] आम का टुकड़ा । सलग न [ दे] आम की छाल । 'सालवण न [ शालवन] चैत्य- विशेष |
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंबड-अंह अंबड वि [दे] कठिन ।
न कमल । °वह पु मेघ । °वाह पुवारिस । अबधाई स्त्री [अम्बाधात्री] धाई माता। अंबुपिसाअ [दे] राहु । अंबमसी स्त्री [दे] कठिन और वासी कनिक। अंबुसु पु [दे] श्वापद जन्तु विशेष, हिंसक पशुअंबर पुन [अम्बर] एक देव-विमान । विशेष, शरभ । अंबर न [अम्बर] आकाश । वस्त्र । °तिलय अंबेट्टिआ । स्त्री [दे] मुष्टि-छूत । पु [°तिलक] पर्वत-विशेष । °वत्थ न | अंबेट्री , [वस्त्र] स्वच्छ वस्त्र ।
अंबेसि पु [दे] दरवाजे का तख्ता । अंबरस पुन [अम्बरस] आकाश । अंबोच्ची स्त्री [दे] फूलों को बिननेवाली स्त्रो। अंबरिस पुन [अम्बरीष] भट्ठी । कोष्ठक । पु अंभ पु[अम्भस् ] पानी । नारक-जीवों को दुःख देनेवाले एक प्रकार के | अंभु (अप) पु [अश्मन] पत्थर । परमाधार्मिक देव ।
अंभो पु [अम्भस्] पानी। अ°न [°ज] अंबरिसि पुं [अम्बऋषि] ऊपर का तीसरा ___ कमल । °इणो स्त्री [°जिनी] कमलिनी । अर्थ देखो । उज्जयिनी नगरी का निवासी एक
निहि पु [°निधि] समुद्र । ब्राह्मण।
रुह न पद्म । अंबरीस देखो अंबरिस ।
अंभोहि पु [अम्भोधि] समुद्र । अंबरीसि देखो अंबरिसि।
अंस पु [अंश] भाग, अवयव । भेद, विकल्प । अंबसमिआ )
पर्याय, धर्म, गुण।
अंस पु [अंश] विद्यमान कर्म । हर वि अंबहुंडी स्त्री [अम्बहुण्डी] एक देवी।
[°धर] भागीदार। अंबा स्त्री [अम्बा] माता । भगवान् नेमिनाथ अंस पु [अंस] कान्ध, कंधा । को शासनदेवी । वल्ली-विशेष ।
अंसलग ) अंबाड सक [खरण्ट्] लेप करना।
अंसि स्त्री [अश्रि] कोण, कोना । धार । अंबाड सक [तिरस् + कृ] उपालंभ देना, अंसिया स्त्री [अंशिका] भाग, हिस्सा । तिरस्कार करना।
अंसिया स्त्री [अर्शिका] बवासीर का रोग । अंबाडग । पु [आम्रातक] आमला का । न. नासिका का एक रोग । फुनसी, फोड़ा। अबाडय ) आमला का
अंसु पु [अंशु] किरण । °मालि पु अंबिआ स्त्री [अम्बिका] भगवान् नेमिनाथ [°मालिन्] सूर्य । की शासनदेवी । पाँचवें वासुदेव की माता । | अंसु देखो अंसुय = अंशुक ।। °समय पुगिरनार पर्वत का एक तीर्थ स्थान । अंसु पु [अंशु] किरण । मंत, °वंत वि अंबिर न [आम्र] आम का फल ।
[°मत्] किरणवाला । पु. सूर्य । अंबिल पु [आम्ल] खट्टा रस । वि. खटाई अंसु न [अश्रु] आँसू । मंत, °वंत वि ['मत् वाली चीज । नामकर्म-विशेष ।
अश्रुवाला। अंबिलिया स्त्री [अम्लिका] इमली का पेड़ । अंसुय न [अंशुक] वस्त्र । बारीक वस्त्र । इमली का फल ।
पोशाक । अंबु न [अम्बु पानी। °अ, °ज न [°ज] | अंसोत्थ देखो अस्सोत्थ । कमल । [°णाह] पु [°नाथ ] समुद्र । रुह | अंह पुन [अंहस्] मल ।
अंबसमी
। देखो अंबमसो
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अंहि-अकोस
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अंहि पु [अंहि] पाँव ।
त्थ वि [°Tथं] असफल । अकइ वि [अकति] असंख्यात, अनन्त । अकय वि [अकृत्य करने के अयोग्य या अकंड देखो अयंड।
अशक्य । न. अनुचित काम । °कारि वि अकंडतलिम वि [दे] स्नेह रहित । जिसने ["कारिन्] अकृत्य को करनेवाला । शादी न की हो वह ।
अकय्य (मा) ऊपर देखो। अकंपण वि [अकम्पन] कंप रहित । पु अकरण न नहीं करना । मैथुन । रावण का एक पुत्र ।
अकाइय वि [अकायिक] शारीरिक चेष्टा से अकंपिय वि [अकम्पित] कम्प रहित । पु रहित । पुं. मुक्तात्मा ।
भगवान् महावीर का आठवाँ गणधर । अकाम पु अनिच्छा। वि. निष्काम । अकज देखो अकय = अकृत्य ।
°णिज्जरा स्त्री [निर्जरा] कर्म-नाश को अकण्ण वि [अकर्ण] कर्ण रहित । पु. स्वना- |
अनिच्छा से बुभुक्षा आदि कष्टों को सहन मख्यात एक अंतर्वीप और उसमें रहनेवाला । |
करना। अकप्प पु [अकल्प] अयोग्य आचार, | अकामग ) [अकामक] ऊपर देखो । अवांशास्त्रोक्त विधि-मर्यादा से बाहर का
अकामय । छनीय, इच्छा करने के अयोग्य । आचरण ।
अकामिय वि [अकामिक] निराश । अकप्प वि [अकल्प्य] अनाचरणीय, शास्त्र- अकाय वि शरीररहित । पुं मुक्तात्मा । निषिद्ध आहार-वस्त्र आदि अग्राह्य वस्तु । अकार पुं 'अ' अक्षर, प्रथम स्वर वर्ण । अकप्पिय पुं [अकल्पिक] जिसको शास्त्र का अकारग पुं [अकारक] अरुचि, भोजन की पूरा-पूरा ज्ञान न हो ऐसा जैन साधु ।
अनिच्छा रूप रोग । वि. अकर्ता । °वाइ वि अकप्पिय देखो अकप्प = अकल्प्य ।
[वादिन] आत्मा को निष्क्रिय माननेवाला । अकम वि [अक्रम] क्रम रहित । एक अकासि अ [दे] निषेध-सूचक अव्यय, अलम् । साथ ।
अकिंचण वि [अकिञ्चन] साधु, मुनि, भिक्षुक । अकम्म न [अकर्मन्, °क] कर्म का अभाव । निर्धन । पु मुक्त, सिद्ध जीव । कृषि आदि कर्म अकिरिय वि [अक्रिय] आलसी, निरुद्यम । रहित ( देश, भूमि वगैरह )। भूमग,
अशुभ व्यापार से रहित । परलोक-विषयक भूमय वि [ "भूमक ] अकर्म-भूमि में |
क्रिया को नहीं माननेवाला, नास्तिक । °ाय उत्पन्न होने वाला। भूमि, भूमी स्त्री वि [°ात्मन्] आत्मा को निष्क्रिय माननेवाला, जिस भूमि में कल्प वृक्षों से ही आवश्यक सांख्य ।। वस्तुओं की प्राप्ति होने से कृषि वगैरह कर्म | | अकीरिय देखो अकिरिय । करने की आवश्यकता नहीं है वह, भोग- अकुइया स्त्री [अकुचिका] देखो अकूय । भूमि । भूमिय वि ['भूमिज] अकर्म-भूमि अकुओभय वि [अकुतोभय] जिसको किसी में उत्पन्न ।
तरफ से भय न हो वह, निर्भय । अकम्हा अ [अकस्मात्] अचानक, निष्का- अकुय वि [अकुच] निश्चल । रण ।
अकोप्प वि [अकोप्य] सुन्दर । अकय वि [अकृत] नहीं किया हुआ। अकोप्प पु [दे] अपराध । मुह वि [°मुख] अपठित, अशिक्षित । । अकोस देखो अक्कोस = अक्रोश ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अल-अक्ख
अक्क पु [अ] सूर्य । आक का पेड़। रावण अक्किय वि [अक्रिय] क्रियारहित । का एक सुभट । 'तूल न आक की रूई। अक्कुट वि [दे] अध्यासित, अधिष्ठित । 'तेअ पु ['तेजस्] विद्याधर वंश का एक अक्कुस सक [गम्] जाना । राजा । बोंदीया स्त्री [°बोन्दिका] वल्ली- अक्कुहय वि [अकुहक] निष्कपट । विशेष ।
अक्कूर पु [अक्रूर] श्रीकृष्ण के चाचा का अक्क पु[दे] दूत ।
नाम । वि. क्रूरतारहित, दयालु । "अक्क देखो चक्र ।
अक्केज देखो अक्किज्ज । अक्कअ वि [अकृत] नहीं किया गया ।
अक्केल्लय वि [एकाकिन्] अकेला, एकाकी । अक्कंड देखो अकंड।
अक्कोड पु [दे] बकरा। अक्कंत वि [आक्रान्त] बलवान् के द्वारा दबाया
अक्कोडण न [आक्रोडन] इकट्ठा करना, संग्रह हुआ । घेरा हुआ, ग्रस्त । परास्त । एक जाति
करना। का निर्जीव वायु । न. आक्रमण, उल्लंघन ।
अक्कोस न [अक्रोश] जिस ग्राम के अति नज°दुक्ख वि [°दुःख] दुःख से दबा हुआ।
दीक में अटवी, श्वापद या पर्वतीय नदी आदि अक्कंत वि [दे] बढ़ा हुआ, प्रवृद्ध ।
का उपद्रव हो वह। अक्कंत वि [अकान्त] अनभिलषित, अनभिमत ।
अक्कोस सक [आ + क्रुश्] आक्रोश करना । अक्कंद अक [आ + क्रन्द्] रोना, चिल्लाना ।
अक्कोस पु [आक्रोश] कटु वचन, शाप, विलाप करना।
भर्त्सना । अक्कंद (अप) देखो अक्कम = आ + क्रम् ।
अक्कोसग वि [आक्रोशक] आक्रोश करने. अक्कंद पु [आक्रन्द] रोदन, विलाप, चिल्ला
वाला। कर रोना। अक्कंद वि [दे] रक्षक ।
अक्कोह वि [अक्रोध] अल्प-क्रोधी । क्रोधरहित । अक्कंदावणय वि [आक्रन्दक] रुलानेवाला ।
अक्ख पु [अक्ष] जीव, आत्मा। रावण का
एक पुत्र । चन्दनक, समुद्र में होनेवाला एक अक्कम सक [आ+क्रम्] आक्रमण करना,
द्वीन्द्रिय जन्तु. जिसके निर्जीव शरीर को जैन दबाना। परास्त करना। पु चढ़ाई
साधु लोग स्थापनाचार्य में रखते हैं। पहिया करना।
की धुरी, कील । चौसर का पासा । बिभीअक्कमण न [आक्रमण] पराक्रम । वि. आक्रमण |
तक । चार हाथ या ९६ अंगुलों का एक करनेवाला।
मान । रुद्राक्ष । न. इन्द्रिय । जूआ । °चम्म अक्कसाला स्त्री [दे] जबरदस्ती । उन्मत्त-सी न ['चर्मन्] पखाल, मसक । “पाडय न स्त्री ।
["पादक] कील का टुकड़ा। "माला स्त्री अक्का स्त्री [दे] बहिन ।
जपमाला। °लया स्त्री [°लता] रुद्राक्ष अक्का स्त्री कुट्टनी, दूती ।
की माला । °वत्त न [°पात्र] पूजा का अक्कासी स्त्री व्यन्तर-जातीय एक देवी।। पात्र । वलय न रुद्राक्ष की माला । अक्किज्ज़ वि [अक्रेय] खरीदने के अयोग्य । °वाअ [°पाद] नैयायिक मत के प्रवर्तक अक्किट्ठ वि [अक्लिष्ट] क्लेश-वजित । बाधा- गौतम ऋषि । °वाडग पुं [°वाटक] रहित ।
अग्वाड़ा । मुत्तमाला स्त्री [°सूत्रमाला] अकिट्ट वि [अकृष्ट] अविलिखित ।
जपमाला।
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अक्ख-अक्खीण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अक्ख देखो अक्खा = आ + ख्या ।
अक्खाइया स्त्री आख्यायिका] उपन्यास, अक्खइय वि [आख्यात] उक्त, कथित वार्ता, कहानी।
| अक्खाउ वि [आख्यातृ] कहनेवाला। अक्खउहिणी देखो अक्खोहिणी।
अक्खाग पु [आख्याक] म्लेच्छों की एक अक्खंड वि [अखण्ड] संपूर्ण । अखण्डित । जाति । निरन्तर, अविच्छिन्न ।
अक्खाडग ) पु[अक्षवाटक] जूआ खेलने अक्खंडल पुं [आखण्डल] इन्द्र ।
अक्खाडय 5 का अड्डा । अखाड़ा, व्यायामअक्खड सक [आ + स्कन्द्] आक्रमण करना। स्थान । प्रेक्षकों को बैठने का आसन । अक्खणवेल न [दे] संभोग । संध्या काल । अक्खाण न [आख्यान] कथन, निवेदन । अक्खणिआ स्त्री [दे] विपरीत मैथुन । वार्ता, उपकथा। अक्खम वि [अक्षम] असमर्थ । अनुचित । अक्खाय वि [आख्यात] प्रतिपादित, कथित । अक्खय वि [अक्षत] घावरहित । संपूर्ण । पुं.. न. क्रियापद । ब. अखण्ड चावल ।
अक्खाय न [अखात] हाथी को पकड़ने के °rयार वि [°चार] निर्दोष आचरणवाला।। लिए किया जाता गढ़ा, खड्डा । . अक्खय वि [अक्षय] क्षय का अभाव । जिसका | अक्खाया स्त्री [आख्याता] एक प्रकार की कभी नाश न हो वह।
जैन दीक्षा। °निहि पुन [°निधि] एक प्रकार की तप
अक्खि त्रि [अक्षि] आंख । श्चर्या । तइया स्त्री [°तृतीया] वैशाख अक्खिअ वि [आक्षिक] पासा से जुआ खेलनेशुक्ल तृतीया।
वाला, जुआड़ी। अक्खर पुन [अक्षर] अक्षर, वर्ण। ज्ञान
अक्खिअ वि [आख्यात] प्रतिपादित, कथित । चेतना । वि. नित्य । त्थ पु[र्थि] शब्दार्थ । अक्खितर न [अक्ष्यन्तर] आंख का कोटर । पुट्टिया स्त्री [°पुष्ठिका] लिपिविशेष । अक्खित्त वि [आक्षिप्त] सब तरह से प्रेरित । समास पु अक्षरों का समूह । श्रुत-ज्ञान का व्याकुल । जिस पर टीका की गई हो वह । एक भेद ।
आकृष्ट । सामर्थ्य से लिया हुआ । अक्खल पु [दे] अखरोट वृक्ष । न. अखरोट | अक्खित्त न [अक्षेत्र] मर्यादित क्षेत्र के बाहर वृक्ष का फल ।
का प्रदेश । अक्खलिय वि [दे] प्रतिध्वनित । व्याकुल । | अक्खिव सक [आ + क्षिप्] आक्षेप करना, अक्खलिय वि [अस्खलित] अबाधित, निरु- टीका करना, दोषारोप करना। रोकना । पद्रव । अपतित ।
गँवाना । व्याकुल करना। स्वीकार करना । अक्खवाया स्त्री [दे] दिशा ।
घबराना। अक्खा सक [आ + ख्या] कहना, बोलना । | अक्खिव सक [आ + क्षिप्] आक्रोश करना।
उपदेश देना । प्रतिपादित करना। अक्खीण वि [अक्षीण] क्षयरहित, अखूट । अक्खा स्त्री [आख्या] नाम ।
परिपूर्ण । महाणसिय वि [°महानसिक] अक्खाय न [आख्यातिक] क्रियापद, क्रिया जिसको निम्नोक्त अक्षीण महानसी शक्ति प्राप्त वाचक शब्द ।
हुई हो वह । महाणसी स्त्री [°महानसी] वह अक्खाइय वि [अक्षितिक] स्थायी, शाश्वत । । अद्भुत आत्मिक शक्ति जिससे थोड़ा भी
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अक्खुअ-अगंठिम भिक्षान्न दूसरे सैकड़ों लोगों को यावत्-तप्ति । अक्खोड पुं [अक्षोट] अखरोट का पेड़ । न. खिलाने पर भी तबतक कम न हो, जबतक | अखरोट वृक्ष का फल । राजकुल को दी जाती भिक्षान्न लानेवाला स्वयं उसे न खाय। सुवर्ण आदि की भेंट ।
महालय वि जिससे थोड़ी जगह में भी बहुत | अक्खोड पुं [आस्फोट] प्रतिलेखन की क्रियालोगों का समावेश हो सके ऐसी अद्भुत | विशेष । आत्मिक शक्ति से युक्त।
__पुं [अक्षोभ] क्षोभ का अभाव,
अक्खोभ । अक्खुअ वि [अक्षत] अक्षीण, श्रुटि-शून्य ।।
! घबराहट का अभाव । यदुवंश
अक्खोह । के राजा अन्धकवृष्णि का एक अक्खुडिअ वि [अखण्डित संपूर्ण, अखण्ड, त्रुटिरहित ।
पुत्र, जो भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा अक्खुण्ण वि [अक्षुण्ण] अविच्छिन्न ।
लेकर शत्रुजय पर मोक्ष गया था । न. 'अन्तअक्खुद्द वि [अक्षुद्र] गंभीर, अतुच्छ । दयालु । !
कृद्दशा' सूत्र का एक अध्ययन । वि. क्षोभउदार । सूक्ष्म बुद्धिवाला।
रहित, अचल, स्थिर। अक्खुद्द न [अक्षौद्रय] क्षुद्रता का अभाव ।। अक्खोहिणी स्त्री [अक्षौहिणी] एक बड़ी अक्खुपुरी स्त्री [अक्षपुरी] नगरी-विशेष । सेना, जिसमें २१८७० हाथी, २१८७० रथ, अक्खुब्भमाण वि [अक्षुभ्यमान] जो क्षोभ ६५६१० घोड़े और १०९३५० पैदल को प्राप्त न होता हो।
होते हैं। अक्खभिय देखो अक्खुहिय ।
अखंड वि [अखण्ड] परिपूर्ण, खण्डरहित । अक्खुहिय वि [अक्षुभित] क्षोभरहित, त्रुटिरहित । अक्षुब्ध ।
अखंडल पुं [आखण्डल] इन्द्र । अक्खूण सि [अक्षूण] अन्यून, परिपूर्ण । अखंपण वि [दे] स्वच्छ, निर्मल । अक्खेअ अक्खा -आ + ख्या । का कृ । | अखत्त न [अक्षात्र] क्षत्रिय-धर्म के विरुद्ध । अक्खेव पुं [अ+क्षेप] शीघ्रता ।
जुलुम । अक्खेव पुं [आक्षेप] आकर्षण, खींच कर अखरय पुं [दे] एक प्रकार का दास । लाना। सामर्थ्य, अर्थ की संगति के लिए | अखादिम वि [अखाद्य] खाने के अयोग्य । अनुक्त अर्थ को बतलाना । आशंका, पूर्वपक्ष। अखाय वि [अखात] नहीं खुदा हुआ। °तल उत्पत्ति ।
न छोटा तलाव। अक्खेवग पुं [आक्षेपक] खींचकर लानेवाला, | अखिल वि सर्व, सकल, परिपूर्ण । ज्ञान आदि आकर्षक । समर्थक पद, अर्थसंगति के लिए गुणों से पूर्ण । अनुक्त अर्थ को बतलानेवाला शब्द । सान्निध्य- | अखुट्ट वि [दे] अम्बूट । कारक ।
अखेयण्ण वि [अखेदज्ञ] अकुशल, अनिपुण । अक्खेवणी स्त्री [आक्षेपणी] श्रोताओं के मन | अखोड देखो अक्खोड + आस्फोट । को आकर्षित करनेवाली कथा ।
अखोहा स्त्री [अक्षोभा] विद्या-विशेष । अक्खोड सक [कृष] म्यान से तलवार को | अग पुवृक्ष । पर्वत । खींचना, बाहर करना।
अगइ स्त्री [अगति] नीच गति, नरक या अक्खोड सक [आ+ स्फोटय] थोड़ा या एक पशु-योनि में जन्म । निरुपाय । बार झटकना।
अगंठिम न [अग्रन्थिम] केला । फल को फाँक
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अगंडिगेह-अगुरुलहु
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
टुकड़ा।
1 अगरु देखो अगर। अगंडिगेह विदे] यौवनोन्मत्त ।
अगरुलहु वि [अगुरु लघु] जो भारी भी न हो अगंडूयग वि [अकण्डूयक] नहीं खुजलाने- और हलका भी न हो वह । °णाम न वाला।
[°नामन्] कर्म-विशेष, जिससे जीवों का अगंथ वि [अग्रन्थ] धनरहित । पुस्त्री. शरीर न भारी न हलका होता है । निग्रन्थ, जैन साधु ।
अगलदत्त पु [अगडदत्त] एक रथिक-पुत्र । अगंधण पु[अगन्धन] इस नाम की सर्पो की अगलय देखो अगर। एक जाति ।
अगहण पु [दे] कापालिक, एक ऐसे संप्रदाय अगड पु[दे. अवट] कूप, इनारा । 'तड के लोग, जो माथे की खोपड़ी में ही खानेत्रि [तट] इनारा का किनारा। दत्त पं पीने का काम करते हैं । इस नाम का एक राजकुमार । ददर | अगहिल्ल वि [अग्रहिल] जो भूतादि से
दर्दर कंए का मेढक अल्पज्ञ व मानण्य | आविष्ट न हो, अपागल । प्राय पु [राज] जो अपना घर छोड़ बाहर न गया हो। एक राजा, जो वास्तव में पागल न होने अगड [अवट] कप के पास पशुओं के जल पर भो पागल-प्रजा के आक्रमण से बनावटी पीने के लिए जो गर्त बनाया जाता है वह। पागल बना था । अगड वि [अकृत नहीं किया हआ। अगाढ वि [अगाध | अथाह, बहुत गहरा । अगणि पु [अग्नि] आग। 'काय अग्नि अगामिय वि [अग्रामिक] ग्रामरहित ।
के जीव । °मुह [°मुख देव, देवता। अगार पु [अकार] 'अ' अक्षर ।। अगणिअ वि [अगणित] अवगणित, अपमा
- अगार न गृह । पु. गृहस्थ, गृही, संसारी । नित ।
__त्थ वि [°स्थ] गृही । °धम्म पु [°धर्म] अगस्थि । पु[अगस्ति, °क] इस नाम का !
गृहि-धर्म, श्रावक-धर्म । अगस्थिय । एक ऋषि । वृक्ष-विशेष । एक !
अगारग वि [अकारक] अकर्ता । तारा, अठासी महाग्रहों में ५४ वा महाग्रह। अगारि वि [अगारिन्] गृहस्थ, गृही। अगन्न वि [अकर्ण्य] नहीं सुनने लायक ।। अगारी स्त्री [अगारिणी] गृहस्थ स्त्री। अगम पु वृक्ष । वि. स्थावर । न. आकाश । । अगाल देखो अयाल । अगमिय वि [अगमिक] वह शास्त्र, जिसमें अगाह वि [अगाध] गहरा, गंभीर । एक सदश पाठ न हो, या जिसमें गाथा वगैरह अगिणि देखो अग्गि। पद्य हो।
। अगिला स्त्री [अग्लानि] अखिन्नता, अगम्म वि [अगम्य] जाने के अयोग्य । स्त्री. । उत्साह । भोगने के अयोग्य, भगिनी, पर-स्त्री आदि। अगिला स्त्री [दे] अवज्ञा, तिरस्कार ।
गामि वि [°गामिन] पर-स्त्री को भोगने- अगुण देखो अउण । वाला, पारदारिक ।
अगुण वि [अगुण] गुणरहित, निर्गुण । पुं. दोष, अगय न [अगद] औषध ।
दूषण । अगय पु [दे] दानव ।
अगुणासी देखो एगूणासी। अगर पुन [अगरु] सुगन्धि काष्ठ-विशेष । | अगुरु वि छोटा । पुन. सुगन्धि काष्ठविशेष । अगरल वि [अगरल] सुविभक्त, स्पष्ट । । अगुरुलहु देखो अगुरुलहु ।
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१८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अगुलु-अग्गि अगुलु देखो अगुरु।
दिया जाता है वह घर । अग्ग न [अग्रव] प्रकर्ष ।
अग्गल वि [दे] अधिक । अग्ग पुन [दे] परिहास । वर्णन ।
अग्गवेअ पुं [दे] नदी का पूर । .अग्ग न [अग्र] आगे का भाग, ऊपर का | अग्गह पु [आग्रह] हठ, अभिनिवेश ।
भाग । पूर्वभाग । परिमाण । वि. प्रधान, अग्गहण न [अग्रहण] अज्ञान । नहीं लेना । श्रेष्ठ । अग्रवर्ती । प्रथम । क्वंध पु[स्कन्ध] | अग्गहण न [दे. अग्रहण] अनादर । सैन्य का अग्र भाग । गामिग वि [°गामिक] | अग्गहणिया स्त्री [दे] गर्भाधान के बाद किया अग्रगामी । °ज देखो °य । °जम्म [जन्मन् | __ जाता एक संस्कार और उसके उपलक्ष्य में देखो य । °जाय [°जात] देखो °य। मनाया जाता उत्सव । °जीहा स्त्री [जिह्वा] जीभ का अग्र-भाग । | अग्गहिअ वि [दे] निर्मित । स्वीकृत । °णिय, °णी वि [°णी] नायक । °तावस | अग्गाणी वि [अग्रणी] मुख्य । पुं [तापस] ऋषि-विशेष का नाम । °द्ध न अग्गारण न [उद्गारण] वमन । [T] पूर्वार्ध । °पिंड पु [°पिण्ड] एक | अग्गाह वि [अगाध] अगाध । प्रकार का भिक्षान्न । °पहारि वि ['प्रहा- | अग्गाहार पु [अग्राधार] ग्राम-विशेष का रिन] पहले प्रहार करनेवाला । °बीय वि नाम । [°बीज] जिसमेंबीजपहले ही उत्पन्न हो जाता | अग्गाहार पु[दे. अग्राहार] उच्च जीविका । है या जिसकी उत्पत्ति में उसका अग्रभाग ही
अग्गि पुं [अग्नि] एक नरक-स्थान । कारण होता है; जैसे आम, कोरंटक आदि
°हुत्त देखो °होत्त। अग्गि पु वनस्पति । °मणि पु [°मणि] मुख्य, श्रेष्ठ,
स्त्री [अग्नि] आग। कृत्तिका नक्षत्र का शिरोमणि। °महिसी स्त्री [°महिषी] पट
अधिष्ठायक देव । लोकान्तिक देव-विशेष । रानी । °य वि [°ज] आगे उत्पन्न होने
आरिआ स्त्री [°कारिका] होम । °उत्त वाला । पुं ब्राह्मण । बड़ा भाई। स्त्री. बड़ी
पु[पुत्र] ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर का बहन । °लोग पु ["लोक] मुक्तिस्थान । हत्थ पु [°हस्त] हाथ का अग्र-भाग । हाथ
नाम । °कुमार पु भवनपति देवों को एक
अवान्तर जाति । °कोण पु पूर्व और दक्षिण का अवलम्बन । अंगुली।
के बीच की दिशा । °जस पु [ यशस] देवअग्ग न [अग्र] प्रभूत, बहु । उपकार । °भाव
विशेष । ज्जोय [°द्योत] भगवान् महान धनिष्ठा-नक्षत्र का गोत्र । °माहिसी देखो
वीर का पूर्वीय बीसवें ब्राह्मण-जन्म का नाम । °महिसी।
ट्ठ वि [°स्थ] आग में रहा हुआ। "टोम अग्ग वि [अग्र्य] श्रेष्ठ । प्रधान ।
पु [°ष्टोम] यज्ञ-विशेष । °थंभणी स्त्री अग्गंथ वि [अग्रन्थ] धनरहित । पु जैन |
[स्तम्भनी] आग की शक्ति को रोकनेवाली साधु ।
एक विद्या । °दत्त पु भगवान् पार्श्वनाथ के अग्गक्खंध पु [दे] रणभूमि का अग्रभाग ।।
समकालीन ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर देव । अग्गल न [अर्गल] किवाड़ बन्द करने की | भद्रबाहु स्वामी का एक शिष्य । दाण पु लकड़ी। पु. एक महाग्रह । °पासय पु ["दान]सातवें वासुदेव के पिता का नाम । ['पाशक] जिसमें आगल दिया जाता है वह । °देव पु देवविशेष । भूइ पुं [भूति] भगवान् स्थान । पासाय पु [°प्रासाद] जहाँ आगल ! महावीर का द्वितीय गणधर । भगवान् महावीर
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अग्गिअ - अग्घविय
पूर्वीय अठारहवें ब्राह्मणजन्म का नाम । 'माण' अग्निकुमार देवों का उत्तर- दिशा का इन्द्र | माली स्त्री एक इन्द्राणी । 'वेस पुं [वेश] इस नाम का एक प्रसिद्ध ऋषि । न. एक गोत्र | °वेस पुं ं [वेश्मन् ] चतुर्दशी तिथि । दिवस का बाईसवाँ मुहूर्त | 'वेसायण पुं [वैश्यायन] अग्निवेश ऋषि का पौत्र । अग्निवेश गोत्र में उत्पन्न । गोशालक का एक दिक्चर । दिन का बाईसवाँ मुहूर्त | 'सक्कार पुं [संस्कार ] विधि पूर्वक दाह देना । सभा स्त्री ['सप्रभा] भगवान् वासुपूज्य की दीक्षा समय की पालकी का नाम । सम्म
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
|
[ शर्मन्] एक प्रसिद्ध तपस्वी ब्राह्मण । सिंह पुं [शिख] सातवें वासुदेव का पिता । अग्निकुमार देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र सिंह [सिंह ] एक जैन मुनि | सिहाचारण [शिखाचारण] अग्निशिखा में निर्बाधतया गमन करने की शक्ति वाला साधु | सीह पु[° सिंह] सातवें वासुदेव के पिता का नाम । " सेण पु' [°षेण] ऐरवत क्षेत्र के तीसरे और बाईसवें तीर्थंकर । 'होत्त न] [होत्र] अग्न्याधान, होम | पुरं ब्राह्मण । 'होत्तवाइ वि [ 'होत्रवादिन् ] होम से स्वर्ग की प्राप्ति माननेवाला । 'होत्तिय वि [ होत्रिक ] होम करनेवाला ।
ही
अग्गिअ पुं [अग्रिक ] यमदग्नि नामक एक तापस । भस्मक रोग ।
अग्गअ ' [ दे] इन्द्रगोप, एक जाति का क्षुद्र कीट | वि. मन्द
पु
अगिआय पुं [दे] इन्द्र गोप |
for a [ आग्नेय ] अग्नि-सम्बन्धी । पुं लोकान्तिक देवों की एक जाति । न. गोतम गोत्र की शाखा ।
अग्गिञ्चाभ न [ आग्नेयाभ ] देव- विमान विशेष | अग्गज्झ वि [ अग्राह्य ] लेने के अयोग्य |
।
अग्गिम वि [अग्रिम ] प्रथम । श्रेष्ठ, प्रधान । अग्गियय पु [ आग्नेयक ] इस नाम का एक राजपुत्र ।
अग्गिल देखो अग्गिल्ल अग्निल | अग्गिलिय देखो अग्गिम |
अग्गिल्ल पुं [ अग्निल ] एक महाग्रह । अगिल्ल वि [ अग्रिम ] अग्रवर्ती । अग्गीय देखो अगीय ।
अग्गीवय न [ दे ] घर का एक भाग । अगुच्छ वि [ दे ] प्रमित, निश्चित । अग्गे अ [ अग्रे ] आगे, पहले । [ तन ] आगे का, पहले का ।
नायक ।
अग्गेई स्त्री [ आग्नेयी ] अग्निकोण | अग्गेणिय न [ अग्रायणीय ] दूसरा पूर्व, बारहव जैनागम का दूसरा महान् भाग । अग्गेणी देखो अग्गेई | अग्गेणीय देखो अग्गेणिय ।
वि सर वि
अग्गेय वि [ आग्नेय ] अग्नि (कोण) सम्बन्धी | अग्नि सम्बन्धी । न शस्त्र - विशेष । वत्स गोत्र की शाखा | अग्नि कोण, दक्षिण-पूर्व दिशा । अग्गोदय न [ अग्रोदक ] समुद्रीय वेला की वृद्धि और हानि ।
अग्घ अक [ राज् ] शोभना, चमकना । अग्घ सक आघ्रा ] सूंघना | अग्घ शक [ अर्ह ] योग्य होना । अग्ध सक [ अर्घ ] अच्छी कीमत से बेचना ।
आदर करना ।
अग्घ [ अर्ध ] एक देव- विमान । पूजा मछली की एक जाति । पूजा सामग्री । पूजा में लादिना । मूल्य । वत्तन [ पात्र ]
पूजा का पात्र ।
अग्घवि [ अर्ध्य ] पूजा में दिया जाता जलादि द्रव्य | कीमती ।
अव सक [ पूर् ] पूर्ति करना ।
विवि [ अधित ] पूजित, सत्कृत |
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अग्घा सक [ आ + घ्रा ] संघना | अग्घाड सक [पूर्] पूरा करना । अग्घाड पुं [दे] वृक्ष - विशेष, अपामार्ग, चिचड़ा, लटजीरा |
वाणवि [ दे] तृप्त ।
अग्घाय वि [आघात] सूंघा हुआ । अग्घियवि [ अति] बहुमूल्य, कीमती । | अचिरजुवइ देखो अइ रजुवइ ।
अचिरा देखो अइरा ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पूजित ।
अग्घोदय न [ अर्धोदक] पूजा का जल । अघ न पाप । वि. शोचनीय, शोक का हेतु । अघो देखो अहो ।
अचक्खु पुंन [अचक्षुस् ] आँख के सिवाय बाकी इन्द्रियाँ और मन | वि. अंधा । दंसण न [दर्शन] आँख को छोड़ बाकी इन्द्रियाँ और मन से होने वाला सामान्य ज्ञान । 'दंसणावरण न [° दर्शनावरण] अचक्षुर्दर्शन को रोकनेवाला कर्म । फास पु [ स्पर्श] अंधकार । अचक्खुस वि [अचाक्षुष ] जो आँख से देखा न जा सके ।
अचवखुस्स वि [अचक्षुष्य ] जिसको देखने का मन न चाहता हो ।
अचर वि पृथिव्यादि स्थिर पदार्थ । अचल विनिश्चल । पुं यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम । एक बलदेव का नाम । पर्वत । एक राजा, जिसने रामचन्द्र के छोटे भाई के साथ जैन दीक्षा ली थी । पुरन ब्रह्म- द्वीप के पास का एक नगर । पन [त्मन् ] हस्तप्रहेलिका को ८४ लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह, अन्तिम संख्या | 'भाय पु [भ्रातृ] भगवान् महावीर का नववाँ गणधर । अचल पुं छठवाँ रुद्र पुरुष ।
अचल न [ दे] घर । घर का पिछला भाग । वि. कहा हुआ । निर्दय । नीरस, सूखा । अचला स्त्री पृथिवी । एक इन्द्राणी । अचित वि [ अचिन्त ] निश्चिन्त ।
अग्घा -
अचित वि [ अचिन्त्य ] अनिर्वचनीय, अद्भुत । अचितियवि [अचिन्तित ] आकस्मिक, असंभावित |
अचित्त वि जीव-रहित, अचेतन । अचियंत
अचियत्त
-अच्चन्भुय
वि [ दे] अनिष्ट | न. अप्रीति ।
सहन करना ।
अचिराभा स्त्री बिजली ।
अचेल न वस्त्रों का अभाव । अल्प-मूल्यक वस्त्र | थोड़ा वस्त्र । वि. वस्त्र रहित । जीर्ण वस्त्र वाला । अल्प वस्त्र वाला । मैला | परिसह, परीसह पुं [° परिषह, परीषह ] वस्त्र के अभाव से अथवा जीर्ण, अल्प या कुत्सित वस्त्र होने से उसे अदीन भाव से
अचेलग
वि [अचेलक] नग्न | फटा-टूटा वस्त्र वाला । मलिन वस्त्र वाला |
अचेलय
अल्प वस्त्र वाला । निर्दोष वस्त्र वाला । अनियत रूप से वस्त्र का उपभोग करनेवाला | अच्च सक [अ] पूजना । अच्च पुं [अर्च्य] लव ( काल मान) का एक भेद । वि. पूजनीय |
अच्चंग न [अत्यङ्ग] भोग के मुख्य साधन | अच्चंत वि [ अत्यन्त ] हद से ज्यादा । थावर वि [° स्थावर ] अनादि काल से स्थावर-जाति में रहा हुआ । " दूसमा स्त्री [° दुष्षमा ] देखो दुस्समदुस्समा ।
अचंति वि [आत्यन्तिक ] अत्यन्त शाश्वत । अच्चगवि [अर्चक | पूजक | अच्चगल वि [अन्य] निरंकुश | अच्चणिया स्त्री [अर्चनिका ] अर्चन । अच्चत वि [अत्यक्त] नहीं छोड़ा हुआ । अञ्चत्थवि [अत्यर्थ] बहुत । गंभीर अर्थ
वाला । अत्यंत ।
अच्चब्भुय वि [अत्यद्भुत ] बड़ा आश्चर्य
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२१
अच्चय-अच्चे
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जनक।
अच्चीकर सक [अर्ची + कृ] प्रशंसा करना । अच्चय पु [अत्यय] विपरीत आचरण । | खुशामद करना। विनाश, मरण।
अच्चुअ पु [अच्युत] विष्णु । बारहवाँ देवअच्चय वि [अर्चक] पूजक ।
लोक । ग्यारहवाँ और बारहवाँ देवलोक का अच्चर । न [आश्चर्य] विस्मय, चम- इन्द्र । अच्युत-देवलोकवासी देव । 'नाह पु अच्चरिअ । त्कार ।
[°नाथ] बारहवाँ देवलोक का इन्द्र । °वइ अच्चरीअ
पु [पति] इन्द्र-विशेष । डिसग न अच्चहम वि [अत्यधम] अति नीच । [°ावतंसक] विमान-विशेष का नाम । सम्ग अच्चा स्त्री [अर्चा] शरीर । पूजा । सत्कार । पु"स्वर्ग] बारहवाँ देवलोक पुन एक देवलेश्या, चित्त-वृत्ति । ऐश्वर्य ।।
विमान । अच्चासण पु [अत्यशन] द्वादशी तिथि। अच्चुआ स्त्री [अच्युता] छठवें और सतरहवें अच्चासणया स्त्री [अत्यासनता] खूब बैठना, तीर्थकर को शासन देवी । देर तक या बारंबार बैठना।।
अच्चुइंद पु [अच्युतेन्द्र] ग्यारहवाँ और बारअच्चासणया स्त्री [अत्यशनता] खूब खाना।। हवाँ देवलोक का स्वामी । अच्चासण्ण न [अत्यासन्न] अति समीप । | अच्चुक्कड वि [अत्युत्कट] अत्यन्त उग्र। अच्चासाइय । वि [अत्याशातित अप- | अच्चुग्ग वि [अत्युग्र] ऊपर देखो । अच्चासादिय । मानित, हैरान किया गया। अच्चुच्च वि [अत्युच्च] खूब ऊँचा । अच्चासाय सक [अत्या + शातय] अपमान | अच्चुट्ठिय वि [अत्युत्थित] अकार्य करने को करना, हैरान करना।
तैय्यार । अच्चाहिअ , वि [अत्याहित] महा-भीति । | अच्चुण्ह वि [अत्युष्ण] खूब गरम । अच्चाहिद । झूठा। ऐसा जखमी कार्य, | अच्चुत्तम वि [अत्युत्तम] अति श्रेष्ठ । जिसमें प्राणहानि की सम्भावना हो। अच्चुदय न [अत्युदक] बड़ी वर्षा । प्रभूत अच्चि स्त्री [अचिस्] कान्ति । अग्नि की पानी। ज्वाला । किरण । दीप की शिखा। न. । अच्चुदार वि [अत्युदार] अत्यन्त उदार । लोकान्तिक देवों का एक विमान । °मालि | अच्चुन्नय वि [अत्युनत्त] बहुत ऊँचा ।। पु°मालिन] सूर्य । वि. किरणों से शोभित । | अच्चुब्भड वि [अत्युद्भट] अति-प्रबल । न. लोकान्तिक देवों का एक विमान । °माली | अच्चुवयार पु [अत्युपकार] महान् उपस्त्री चन्द्र और सूर्य की तृतीय अग्रमहिषी | कार । का नाम । 'ज्ञातासूत्र' के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के | अच्चुवयार पु [अत्युपचार] विशेष सेवाएक अध्ययन का नाम । शक्रेन्द्र की तृतीय | शुश्रूषा ।। अग्रमहिषी की राजधानी का नाम । | अच्चुब्वाय वि [अत्युद्वात] अत्यन्त थका °मालिणी स्त्री [ मोलिनी] चन्द्र और | हुआ । सूर्य की एक अग्रमहिषी का नाम । । अच्चुसिण वि [अत्युष्ण] अधिक गरम । अच्चिअ वि [अचित] पूजित, सत्कृत । न. अच्चे अक [अति + इ] अतिक्रान्त होना, विमान-विशेष ।
गुजरना । सक. उल्लंघन करना । अच्चित्त देखो अचित्त ।
| अच्चे सक [अत्या + इ] त्याग करवाना ।
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२२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अच्चेअर-अच्छिघरुल्ल अच्चेअर न [आश्चर्यं] आश्चर्य ।
अध्ययन । देवी । रूपवती स्त्री। अच्छ अक [आस्] बैठना।
अच्छरा स्त्री [दे. अप्सरा] चुटकी । चुटकी अच्छ सक [आ + छिद्] काटना । खींचना।। की आवाज ।। अच्छ वि स्वच्छ । पु. स्फटिक रत्न । पु. ब. | अच्छराणिवाय पु [दे] चुटकी। चुटकी आर्य देश-विशेष ।
बजाने में जितना समय लगता है वह, अत्यल्प अच्छ पु [ऋक्ष] रीछ ।
समय । अच्छ वि [आच्छ] अच्छे देश में उत्पन्न ।
अच्छरिअ. अच्छ पु मेरु पर्वत । न. तीन बार औटा हुआ अच्छरिज
) न आश्चर्य] विस्मय,
चमत्कार । स्वच्छ पानी।
अच्छरीअ अच्छ न [दे] अत्यन्त । शीघ्र ।
अच्छल न निर्दोषता, अनपराध । 'अच्छ वि [अक्षि] आँख ।
अच्छवि वि जैन दर्शन में जिसको स्नातक कहते °अच्छ पु[कच्छ] अधिक पानीवाला प्रदेश ।
हैं वह, जीवनमुक्त योगी। लताओं का समूह । तृण ।
अच्छविकर पु [अक्षपिकर] एक प्रकार का "अच्छ पु [वृक्ष] वृक्ष ।
मानसिक विनय । अच्छअ पु [अक्षक] बहेड़ा का वृक्ष । ना अच्छहल्ल पु [ऋक्षभल्ल] रोछ । स्वच्छ जल।
अच्छा स्त्री वरुण देश की राजधानी । अच्छअर न [आश्चर्य] विस्मय, चमत्कार ।
°अच्छा स्त्री [कक्षा] गर्व । अच्छंद वि [अच्छन्द] पराधीन ।
अच्छाइ वि [आच्छादिन] ढकनेवाला । अच्छक्क देखो अत्थक्क ।
अच्छायण न [आच्छादन] ढकना । वस्त्र । अच्छण न [आसन] बैठना । पालकी वगैरह । अच्छायंत वि [अच्छातान्त] तीक्ष्ण । सुखासन । °घर न [°गृह] विश्राम-स्थान । अच्छि त्रि [अक्षि] आँख । °चमढण न अच्छण न [दे] सेवा । देखना । अहिंसा, ! [°मलन] आँख का मलना । °णिमीलिय दया।
न [ निमोलित ] आँख को मूंदना, अच्छणिउर न [अच्छनिकुर] अच्छनिकुरांग
मींचना । आँख मिचने में जो समय लगे वह । को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या °पत्त न [°पत्र] आँख का पक्ष्म । °वेहग पु लब्ध हो वह।
[°वेधक एक चतुरिन्द्रिय जन्तु । °रोडय अच्छणिउरंग न [अच्छनिकुराङ्ग] नलिन
पु [°रोडक] एक चतुरिन्द्रिय जन्तु । °ल्ल को चौरसी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध
वि [°मत्] आँख वाला प्राणी । चतुरिन्द्रिय हो वह ।
जन्तु । °मल पु आँख का मैल । अच्छण्ण वि [अच्छन्त] प्रकट । अच्छभल्ल पु [ऋक्षभल्ल] रीछ ।
अच्छिंद सक[आ + छिद्] थोड़ा छेद करना । अच्छभल्ल पु [दे] यक्ष, देव-विशेष ।
एक बार छेद करना । बलात्कार से छीन अच्छरआ देखो अच्छरा।
लेना । थाड़ा काटना । अच्छरय पु [आस्तरक] शय्या पर बिछाने । अच्छिद पु [अक्षीन्द्र] गोशालक के एक दिकका वस्त्र-विशेष ।
चर (शिष्य) का नाम । अच्छरसा । स्त्री [अप्सरस्] इन्द्र की पट- अच्छिक्क वि [दे] अस्पृष्ट । अच्छरा रानी। 'ज्ञातरधर्मकथा' का एक | अच्छिघरुल्ल वि [दे] अप्रीतिकर । '
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अच्छिज्ज-अजिअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२३
पोशाक।
वेणी । मृगया । अच्छिज्ज वि [आच्छेद्य] जबरदस्ती जो दूसरे | अच्छोडाविय वि [दे. आच्छोटित] बंधित । से छीन लिया जाय। पुजैन साधु के लिए आच्छोडिअ वि [दे आकृष्ट । भिक्षा का एक दोष ।
अछिप्प वि [अस्पृश्य] स्पर्श करने के अयोग्य । अच्छिज्ज वि [अच्छेद्य] जो तोड़ा न जा अज देखो अय = अज । सके।
अजगर देखो अयगर। अच्छित्ति स्त्री नित्यता । वि. नाश-रहित । अजड पु[दे] जार। °णय पु["नय वस्तु को नित्य माननेवाला
अजड वि पक्व, विकसित । निपुण । पक्ष।
अजम वि [दे] सरल । जमाईन ।
अजय वि [अयत] पाप-कर्म से अविरत, अच्छिद्द वि [अच्छिद्र] छिद्र-रहित, निबिड ।
नियम-रहित । अनुद्योगी। उपयोग-शून्य, निर्दोष ।
बेख्याल। अच्छिण्ण वि [आच्छिन्न] बलात्कार से छीना
अजय पु षट्पद छंद का एक भेद । हुआ । छेदा हुआ, तोड़ा हुआ ।
अजर वि वृद्धावस्था-रहित । पुदेव । मुक्त अच्छिण्ण वि [अच्छिन्न] नहीं तोड़ा हुआ। आत्मा । अन्तर-रहित।
अजराउर वि [दे] गरम । अच्छिप्प वि [अस्पृश्य] छूने के अयोग्य । अजरामर वि बुढ़ापा और मृत्यु से रहित । अच्छिवडण न [दे] आँख का मूंदना । न. मुक्ति । स्त्री. "रा विद्या-विशेष । अच्छिविअच्छि स्त्री [दे] परस्पर-आकर्षण ।
अजस पु [अयशस् | अपयश । 'कित्तिणाम अच्छिहरिल्ल । देखो अच्छिघरुल्ल ।
न [ कीर्तिनामन्] अपकीत्ति का कारण-भूत अच्छिहरुल्ल ।
एक कर्म। अच्छी देखो अच्छि
अजस्स क्रिवि [अजस्र] निरन्तर, हमेशा । अच्छुक्क न [दे] आँख का कोटर ।
अजा देखो अया। अच्छुत्ता स्त्री [अच्छुप्ता] एक विद्याधिष्ठात्री
अजाय वि [अजात] अनुत्पन्न । कप्प पु देवी । भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी की शासन
कल्प] शास्त्रों को पूरा-पूरा नहीं जाननेदेवी।
वाला जैन साधु, अगीतार्थ । कप्पिय पु अच्छुद्धसिरी स्त्री [दे] असंभावित लाभ ।।
[°कल्पिक] अगीतार्थ जैन साधु । अच्छुल्लूढ वि [दे] निष्कासित, स्थान-भ्रष्ट किया हुआ।
अजिअ वि [अजित] अपराजित । पु दूसरे अच्छेज देखो अच्छिन्न ।
तीर्थंकर का नाम । नववें तीर्थंकर का अधिष्ठाता अच्छेर न [आश्चर्य] विस्मय, चमत्कार । पुन. देव । एक भावी बलदेव । बला स्त्री भगवान् अपूर्व घटना । °कर वि विस्मय-जनक, अजितनाथ की शामनदेवी । °सेण पु[°सेन] चमत्कार उपजानेवाला।
एक प्रसिद्ध राजा । चौथा कुलकर । एक अच्छोड सक[आ+छोटय्] पटकना । सिंचना । विख्यात जैन मुनि । पु भगवान् मल्लिनाथ अच्छोड पुं [आच्छोट] सिंचन । आस्फालन का प्रथम श्रावक। करना, पटकना।
नाह पु [नाथ] नववाँ रुद्र पुरुष । अच्छोडण न [आच्छोटन] सिंचन । आस्फालन, | अजिअ वि [अजीव] जीव-रहित ।
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२४
अजिअ वि [ अजय ] जो जीता न जा सके । अजिया स्त्री [अजिता ] भगवान् अजितनाथ की शासन देवी । चतुर्थ तीर्थंकर की एक मुख्य शिष्या ।
अजिण न [ अजिन] हरिण आदि पशुओं का चमड़ा | वि. जिसने राग-द्वेष का सर्वथा नाश नहीं किया है वह । जिन भगवान् तुल्य
सत्योपदेशक जैन साधु | अजिधर पुं [अजितधर] ग्यारह रुद्रों में
आठवाँ रुद्र पुरुष ।
अजिर न आँगन । अजीर देखो अइन्न = अजीर्ण |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अजीव पु अचेतन, निर्जीव जड़ पदार्थ | 'काय पु धर्मास्तिकाय आदि अजीव पदार्थ । अजुअ ' [ दे] वृक्ष - विशेष, सप्तच्छद, सतौना । अजुअ न [ अयुत ] दश हजार । अजुअलवण्ण [ अयुगलपणं ] सतौना । अजुअलवण्णा स्त्री [ दे ] इमली का पेड़ । अजुत वि [ अयुक्त ] अयोग्य । 'कारिवि [ कारिन् ] अयोग्य कार्य करनेवाला । अजुत्तीय वि [ अयुक्तिक ] अन्याय्य । अ देखो अउ |
अजेअ वि [ अजय ] जो जीता न जा सके । अजोग ! [ अयोग ] मन, वचन और काया के सब व्यापारों का जिसमें अभाव होता है वह सर्वोत्कृष्ट योग, शैलेशी-करण | अजोग वि [ अयोग्य ] अयोग्य । अजोगि पुं [ अयोगिन् ] सर्वोत्कृष्ट योग को प्राप्त योगी । मुक्त आत्मा ।
अज्ज सक [ अ ] पैदा करना, उपार्जन
करना, कमाना ।
अज्ज वि [ अर्य ] वैश्य । स्वामी ।
अज्जवि [ आर्य ] निर्दोष । आर्य-गोत्र में उत्पन्न । शिष्ट- जनोचित | 'खउड पुं [ खपुट ] एक जैन आचार्य । उत्तम | मुनि । सत्यकार्य करनेवाला । पूज्य |
अजिअ - अज्जव
मातामह । पितामह । एक ऋषि का नाम । न. गोत्र - विशेष | जैन साधु, साध्वी और उनकी शाखाओं के पूर्व में यह शब्द प्रायः लगता है, जैसे अज्जवइर, अज्जचंदणा, अज्जपोमिला । 'उत्त पु [ पुत्र ] पति । मालिक का पुत्र । 'घोस [घोष ] भगवान् पार्श्वनाथ का एक गणधर । मंग [ मङ्ग] एक प्राचीन जैनाचार्य | मिस्स वि[ मिश्र ] पूज्य, मान्य ।
समुद्द [ "समुद्र ] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य । अज्ज अ [ अद्य ] आज । 'त्त वि ['तन ] आजकल का । 'त्ता स्त्री [ता] आज कल ।
भइ अ [प्रभृति ] आज से ले कर । अज्ज पुं [दे] जिनेन्द्र देव । बुद्ध देव | अज्ज न [ आज्य ] घी । अज्ज देखो रि = ॠ ।
अज्जं अ [ अद्य ] आज ।
अनंत वि [ आयत् ] आगामी । काल पु भविष्य काल |
अज्जहिज्जो अ [ अद्यह्यः ] आजकल | अज्जकालिअ वि [ अद्यकालिक ] आजकल
का ।
अज्जग देखो अज्जय = अर्जक ।
अज्जण
अज्जणण
अज्जम पुं [ अर्यमन् ] सूर्य । देव - विशेष । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठायक देव | न. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र ।
) [ अजंन] उपार्जन । पैदा करना ।
}
अज्जय पुं [ आर्यक ] मातामह । पितामह । अज्जय वि [ अर्जक ] उपार्जन करनेवाला | वृक्षविशेष ।
अज्जय ' [ दे ] सुरस नामक तृण । गुरेटक नामक तृण । तृण ।
अज्जल पुं [ आर्यल ] म्लेच्छों की एक जाति । अन्जव न [ आर्जव ] सरलता, निष्कपटता । अज्जव (अप) देखो अज्ज = आर्य । 'खंड पु | [ खण्ड ] आर्य देश |
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अज्जवया अज्झाय
अज्जवया स्त्री [ आर्जव ] ऋजुता । अज्जविय न [ आर्जव ] सरलता । अज्जा स्त्री [ आर्या ] साध्वी । पार्वती । आर्या छन्द । भगवान् मल्लिनाथ की प्रथम शिष्या । पूज्या स्त्री । एक कला । अज्जा स्त्री [ आज्ञा ] आदेश । अज्जाय वि [ अजात ] अनुत्पन्न | अज्जाव सक [ आ + ज्ञापय् ] आज्ञा करना । अजिआ स्त्री [आर्यिका ] पूज्या स्त्री । संन्यासिनी । माता की माता । पिता की माता ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ड्ड वि [] दिया हुआ । अज्जिण देखो अज्जणण | अज्जीव देखो अजीव । अज्जु (अप) अ [ अ ] आज । अज्जुअ (शौ) देखो अज्ज = आर्य । अज्जुआ (शौ) देखो अज्जा = आर्या । अज्जुण पुं [अर्जुन ] तीसरा पाण्डव । वृक्ष - विशेष | गोशालक के एक दिक्चर (शिष्य) का नाम । न श्वेत सुवर्ण । तृण विशेष । अर्जुन वृक्ष का पुष्प |
} [अर्जुनक ] एक माली का
नाम ।
अज्जुणग अज्जुणय
अज्जू स्त्री [आ] सास ।
अज्जोग देखो अजोग = अयोग । अज्जोरुह न [दे] वनस्पति- विशेष । अज्झक्ख वि [अध्यक्ष ] अधिष्ठाता । अझ ' [ दे] यह (पुरुष, मनुष्य ) 1 अज्झत्त देखो अज्झप्प | अज्झत्थ वि [दे] आगत । अज्झत्थ
न [ अध्यात्म] आत्मा में, आत्मअज्झप्प विषयक | मन में, मन-संबंधी । मन, चित्त । शुभ ध्यान । पुं आत्मा । 'जोग
[योग] योग- विशेष, चित्त की एकाग्रता । 'दोस पु' [° दोष ] आध्यात्मिक दोष - "क्रोध, मान, माया और लोभ । 'वत्तिय वि [प्रत्यधिक ] मन से ही
उत्पन्न
४
२५
होनेवाला शोक, चिन्ता आदि । विसोहि स्त्री [ विशुद्धि ] आत्म-शुद्धि | संवुड वि [संवृत] मनोनिग्रही । सुइ स्त्री [श्रुति] अध्यात्मशास्त्र, आत्म-विद्या, योग- शास्त्र | सुद्धि स्त्री [शुद्धि] मन की शुद्धि | सोहि स्त्री [शुद्धि] मन::-शुद्धि |
अज्झत्थिय वि [आध्यात्मिक ] आत्मा या मन से संबंध रखनेवाला ।
अझथीअ देखो अज्झत्थिय ।
अज्झप्पिस वि [आध्यात्मिक ] अध्यात्म का जानकार | अध्यात्म-सम्बन्धी । अझ वि [दे] पड़ोसी । अज्झयण पुंन [ अध्ययन]
शब्द, नाम ।
पढ़ना, अभ्यास । ग्रन्थ का एक अंश । अज्झयाव सक [ अधि + आप ] पढ़ाना | अज्झवस सक [अध्यव + सो] विचार करना । निश्चय करना । चिन्तन करना | अज्झवसण
न [ अध्यवसान ] चिन्तन, विचार, आत्म- परिणाम |
अज्झवसाण
अज्झवसाय पुं [अध्यवसाय ] विचार, आत्मपरिणाम, मानसिक संकल्प | अझवसिय न [] मुंडा हुआ मुँह । अज्झसिय वि[दे] दृष्ट ।
अज्झस्स सक [ आ + क्रुश ] आक्रोश करना, अभिशाप देना |
अज्झस्स वि [आक्रुष्ट ] जिस पर अज्झस्सिय । आक्रोश किया गया हो वह । अझ वि [अत्यधिक ] अत्यंत । अज्झा स्त्री [ दे] कुलटा । प्रशस्त स्त्री । नवोढ़ा | युवती स्त्री । यह (स्त्री) । अज्झा सक [ अधि + इ ] अज्झाअ अज्झाअ सक [ अध्यापय् ] पढ़ाना । अज्झाइअव्व वि | अध्येतव्य ] अज्झाय पुं [ अध्याय ] पठन | अंश ।
करना ।
पढ़ने योग्य । ग्रन्थ का एक
अध्ययन
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२६
अट्र
)
- संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अज्झारुह-अट्टिय अज्झारुह पु [अध्यारुह] वृक्ष-विशेष । वृक्षों , अज्झोववण्ण वि [अध्युपपन्न] अत्यंत आसक्त । के ऊपर बढ़नेवाली वल्ली या शाखा वगैरह । अज्झोववाय पुं [अध्युपपाद] अत्यन्त आसक्ति, अज्झारोव पु [अध्यारोप] आरोप, उप- तल्लीनता। चार।
अट । सक [अट्] भ्रमण करना । अज्झारोवण न [अध्यारोपण] आरोपण, ऊपर चढ़ाना । प्रश्न करना ।
अट्ट सक [कथ्] क्वाथ करना। अज्झारोह पु [अध्यारोह] देखो अज्झारुह। अट्ट अक [शुष्] सूखना । अज्झाव देखो अज्झाअ = अध्यापय् । अट्ट वि [आर्त] पीड़ित । ध्यान-विशेष-इष्टअज्झावग देखो अज्झावय।
संयोग, अनिष्ट, वियोग, रोग-निवृत्ति और अज्झावय वि [अध्यापक] शिक्षक, गुरु । भविष्य के लिए चिन्ता करना । °ण वि अज्झावस अक [अध्या + वस्] वास करना। [ज्ञ] पीड़ित की पीड़ा को जाननेवाला । अज्झास पु [अध्यास] ऊपर बैठना । निवास- | अट्र वि [ऋत] गत, प्राप्त । स्थान।
अट्ट पुन दूकान । महल के ऊपर का घर, अज्झासणा स्त्री [अध्यासना सहन करना। अटारी। आकाश । अज्झासिअ वि [अध्यासित] आश्रित, |
अट्ट वि [दे] दुर्बल । बड़ा, महान् । बेशरम । अधिष्ठित । स्थापित ।
आलसी । पुंशुक । आवाज । न. सुख । अज्झाहय वि [अध्याहत] उत्तेजित ।
असत्योक्ति। अज्झीण वि [अक्षोण] अखूट । न. अध्ययन ।
अट्ट वि दे] गत । अज्झुववज्ज देखो अज्झोववज्ज।
अट्टहास पु देखो अट्टहास । अज्झुववण्ण देखो अज्झोववण्ण । अज्झुववाय देखो अज्झोववाय ।
अट्टण न [अट्टन] व्यायाम, कसरत । पु. इस अज्झसिअ वि [अध्युषित] आश्रित ।
नाम का एक प्रसिद्ध मल्ल । °साला स्त्री अज्झुसिर वि [अशुषिर] छिद्र-रहित ।
[°शाला] व्यायाम-शाला। अज्झेउ वि [अध्येत] पढ़नेवाला ।
अट्टणा स्त्री [आवर्तना] आवृत्ति । अज्झेल्ली स्त्री [दे] दोहने पर भी जिसका | अट्टमट्ट वि [दे] व्यर्थ । पुं आलवाल, कियारी । दोहन हो सके ऐसी गैया ।
अशुभ संकल्प-विकल्प, पाप-संबद्ध अव्यवस्थित अज्झेसणा स्त्री [अध्येषणा] विशेष याचना ।
विचार । अज्झोयरग । पु [अध्यवपूरक] साधु के
अट्टय पु [अट्टक] हाट । पात्र के छिद्र को अज्झोयरय J लिए अधिक रसोई करना ।
बन्द करने में उपयुक्त द्रव्य-विशेष । साधु के लिए बढ़ाकर की हुई रसोई।
अट्टयक्कली स्त्री [दे] कमर पर हाथ रखकर अज्झोल्लिआ स्त्री [दे] वक्षः-स्थल के आभू
खड़ा रहना। षण में की जाती मोतियों की रचना ।
| अट्टहास पुखिलखिला कर हँसना । अज्झोवगमिय वि [आभ्युपगमिक] स्वेच्छा
अट्टालग । पुन [अट्टालक] महल का से स्वीकृत।
अट्टालय ) उपरिभाग, अटारी ।। अज्झोववज्ज अक [अध्युप + पद्] अत्यासक्त अट्टि स्त्री [आति] पीड़ा। होना, आसक्ति करना।
अट्टिय वि [अदित] व्याकुल, व्यग्र ।
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अट्ठ-अठ्ठाणवइ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२७ अट्ट पु [अर्थ] संयम । पुन वस्तु, पदार्थ।। विह वि [विध | आठ प्रकार का । °वीस विषय । शब्द का अभिधेय, वाच्य । तात्पर्य । स्त्रीन [°ाविंशति] अट्ठाईस । °सट्टि स्त्री परमार्थ । हेतु । इच्छा । उद्देश्य । धन । फल, [षष्टि] अठसठ । 'समइय वि [°सामयिक] लाभ । मोक्ष । °कर पु मंत्री । निमित्त जिसकी अवधि आठ 'समय' की हो वह । शास्त्र का विद्वान् । °जाय वि [°जातार्थ] °सय न [°शत] एक सौ आठ । °सहस्स न जिसकी आवश्यकता हो, जिसका प्रयोजन हो [सहस्र] एक हजार और आठ । °सामइय वह । °जाय वि [°याच] धनार्थी । °सइय देखो °समइय । °सिर वि [°शिरस्, °सिर] वि [°शतिक] जिसका सौ अर्थ हो सके ऐसा अष्ट-कोण । °सेण पु [°सेन] देखो अट्ठि(वचन आदि)। °सेण पु [°सेन] देखो | सेण । हत्तर वि [°सप्ततितम] अठत्तरवाँ । अट्टिसेण, देखो अत्थ = अर्थ ।
हत्तरि स्त्री | सप्तति अठत्तर की संख्या ।
हा अ [धा] आठ प्रकार का । अट्र [ अष्ठन् ] आठ । °चत्ताल वि [°चत्वा- | अट न काष्ठ] काष्ठ, लकड़ी। रिश] अठतालीसवाँ । °चत्तालीस त्रि
| अटुंग वि [अष्टाङ्ग] जिसके आठ अंग हों [°चत्वारिंशत्] अठतालीस । 'टुमिया स्त्री |
वह । °णिमित्त न [निमित्त वह शास्त्र [°ष्टिमिका] जैन साधुओं का ६४ दिन का |
जिसमें भूमि, स्वप्न, शरीर, स्वर, आदि आठ एक व्रत, प्रतिमा विशेष । 'तालीस वि
विषयों के फलाफल का प्रतिपादन हो । [°चत्वारिंशत् ] अठतालीस । °तीस त्रि
°महाणिमित्त न [°महानिमित्त] देखो [ °ात्रिंशत् ] अठतीस । °तीसइम वि
अनन्तर-उक्त अर्थ । [°त्रिंश] अठतीसवाँ । त्तरि स्त्री |
अटुंस वि [अष्टास्र] अष्ट-कोण । [°सप्तति] अठत्तर । °त्तीस त्रि [°त्रिंशत्] अठतीस । दस त्रि [°दशन्] अठारह ।
अदिट्ठि स्त्री [अष्टदृष्टि]. योग की आठ 'दसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशत्] एक सौ |
दृष्टियाँ, वे ये हैं :-मित्रा, तारा, बला, अठारहवाँ । दह त्रि [°दशन्] अठारह ।
दीप्रा, स्थिरा, कान्ता, प्रभा और परा । °पएसिय वि [प्रदेशिक] आठ अवयव
अट्ठय न [अष्टक] आठ का समूह । वाला । °पया स्त्री [°पदा] छन्द-विशेष ।
अट्ठा स्त्री [अष्टा] मुष्टि । मुट्ठीभर चीज । °पाहरिअ वि [प्राहरिक] आठ प्रहर संबंधी । भाइया स्त्री [ भागिका] तरल वस्तु नापने | अट्ठा स्त्री [अर्थ] वास्ते । "दंड पु कार्य के का बत्तीस पलों का एक परिमाण । °म न लिए की गई हिंसा । तेला, लगातार तीन दिनों का उपवास । अट्ठाइस वि [अष्टाविंश] अठाईसवाँ । मंगल पुन स्वस्तिक आदि आठ मांगलिक | अट्ठाइस ) स्त्रीन [अष्टाविंशति] अठाईस । वस्तु । °मभत्त पुन [°मभक्त] तेला, लगातार तीन दिनों का उपवास । मभत्तिय वि अट्ठाण न [अस्थान] अयोग्य स्थान । कुत्सित [°मभक्तिक] तेला करनेवाला । °मी स्त्री स्थान । अयोग्य । अष्टमी । °मुत्ति पु[मूर्ति] महादेव । °याल | अट्ठाण न [ आस्थान ] सभा, सभा-गृह । त्रि [ °चत्वारिंशत् ] अठतालीस । °ववन्न | अट्ठाणउइ स्त्री [अष्टानवति] अठानबे । त्रि [पञ्चाशत्] अट्ठावन । °वरिस, 'वारिस | अट्टाणउय वि [अष्टानवत] अठानबेवाँ । वि [ °वार्षिक ] आठ वर्ष की उम्र का । | अट्ठाणवइ देखो अढाणउइ ।
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२८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अट्ठाय वि [अस्थानिक ] अपात्र अनाश्रय । अट्ठि स्त्रीन
हुआ ।
अट्ठायमाण a [ अतिष्ठत् ] नहीं बैठता अट्ठार त्रि. ब. [ अष्टादशन् ] अठारह । अठ्ठारस विह वि [विध ] अठारह प्रकार
}
का ।
अट्ठारसग न [ अष्टादशक ] अठारह का समूह | वि. जिसका मूल्य अठारह मुद्रा हो वह ।
अट्ठारसम वि [अष्टादश] अठारहवाँ । लगातार आठ दिनों का उपवास ।
न.
अट्ठारह | देखो अट्ठार |
}
अट्ठाराह
अट्ठावण्ण स्त्रीन [ अष्टापञ्चाशत् ] अठावन । अट्ठावय पुं [अष्टापद ] स्वनाम -ख्यात पर्वतविशेष, कैलास । न एक जाति का जुआ । द्यूत - फलक, जिस पर जुआ खेला जाता है वह । सुवर्ण । सेल [शैल] मेरु पर्वत | स्वनाम -ख्यात पर्वत- विशेष, जहाँ भगवान् ऋषभदेव निर्वाण पाये थे ।
|
अट्ठावय न [ अर्थपद ] गृहस्थ | अर्थ-शास्त्र, संपत्ति-शास्त्र |
अट्ठावीस स्त्री [अष्टाविंशति ] अठाईस । अट्ठावीस स्त्री [अष्टाविंशति] अठाईस । विह वि [विध] अठाईस प्रकार का । अट्ठावीस म वि [अष्टाविंश ] अठाईसवाँ । न. तेरह दिनों के लगातार उपवास । अट्ठासट्ठि स्त्री [अष्टषष्टि ] अठराठ । अट्टासि
स्त्री [अष्टाशीति ] अठासी ।
अट्ठासीइ
अट्ठासीय वि [ अष्टाशीत ] अठासी । अट्ठाहन [ अह ] आठ दिन ।
अट्ठाहिया स्त्री [अष्टाहिका ] आठ दिनों का
एक उत्सव | उत्सव ।
अट्ठ वि [अर्थिन्] प्रार्थी, गरजनाला लाषी ।
अ [अस्थि ] हड्डी । फल की गुट्ठी ।
अभि
अट्ठाणिय- अ
-अडड
[ अस्थि ] हाड़ । जिसमें बीज उत्पन्न न हुए हों ऐसा अपरिपक्व फल | पु. कापालिक । मिजा स्त्री [ मिला | हड्डी के भीतर का रस । सरक्ख पु [°सरजस्क] कापालिक । सेण न [°षेण ] वत्सगोत्र की शाखारूप एक गोत्र । पुं. इस गोत्र का प्रवर्तक पुरुष और उसकी
सन्तान ।
अट्ठयवि [अर्थिक ] गरजू, याचक | अर्थ का कारण, अर्थ सम्बन्धी । मोक्ष का हेतु । अयि वि [ आर्थिक ] अर्थ का कारण, अर्थसम्बन्धी । मोक्ष का कारण ।
afga [f] अभिलषित, प्रार्थित । अट्ठियवि [ अस्थित]
यमित । चंचल |
अद्विय वि [ आस्थिक ] हड्डो-सम्बन्धी । अट्ठ [आस्थित] स्थित रहा हुआ । अट्टिय पुं [ अस्थिक] वृक्ष-विशेष । अस्थिक वृक्ष का फल 1 अल्लिय पुं [अस्थि ] फल की गुट्ठी ।
अव्यवस्थित, अनि
न.
अट्ठत्तर वि [अष्टोत्तर] आठ से अधिक । सयन [° शत] एक सौ और आठ वि [ शततम] एक सौ आठवाँ ।
सय
अठ
} देखो अट्ठ = अष्टन् ।
अड
अड सक [अट् ] भ्रमण करना । अड पुं [अवट ] कूप, इनारा । कूप के पास पशुओं के पानी पीने के लिए जो गर्त किया जाता है वह ।
'अड देखो तड = तट |
अss ) स्त्री [अटवि, वी] भयानक जंगल, अडई वन ।
अssज्झिय न [ दे] विपरीत मैथुन । अडखम्म सक [दे] संभालना, रक्षण करना । अडड न [ अटट] 'अटटांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह ।
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२९
हुआ सत्कार ।
अडडंग-अणंग
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अडडंग न [अटटाङ्ग] संख्या-विशेष, 'तुडिय' , °अड्ढिय वि [कृष्ट खींचा हुआ । या 'महातुडिय' को चौरासी लाख से गुणने अड्ढट वि [अर्धचतुर्थ] साढ़े तीन । पर जो संख्या लब्ध हो वह ।
अड्ढेज न [आढ्यत्व] श्रीमंताई । अडणी स्त्री [दे] रास्ता।
अड्ढेजा स्त्री [आढयेज्या] श्रीमंत से किया अडपल्लण न [दे] वाहन-विशेष । अडयणा । स्त्री [दे] कुलटा ।
अड्ढोरुग पु [अ? रुक] जैन साध्वियों के अडया
पहनने का एक वस्त्र । अडयाल न [दे] प्रशंसा ।
अढ (अप) देखो अट्ट = अष्टन् । अडयाल ) स्त्री [अष्टचत्वारिंशत्] ४८ /
अढाइस (अप) स्त्रीन [अष्टाविंशति] अडयालीस ) की संख्या । °सय न
अठाईस । [°शत] १४८ ।
अढारराग देखो अट्ठारसग । अडवडण न [दे] स्खलना, रुक-रुक चलना ।। अढारसम देखो अट्टारसम । अडवि । स्त्री [अटवि, "वी] भयंकर | अण अ [°अ, अन्°] देखो अ° । अडवी , जंगल, गहरा वन ।। अण सक [अण्] आवाज करना । जाना। अडसट्टि स्त्री [अष्टषष्टि] अठसठ । °म वि जानना । समझाना।। [°तम] अठसठवाँ ।
अण पु शब्द, आवाज। गमन । कषाय । अडाड पु [दे] जबरदस्ती।
आक्रोश, अभिशाप । न. पाप । कर्म । वि. अडिल्ल पु [अटिल] एक जाति का पक्षी । कुत्सित । अडिल्ला स्त्री [अडिल्ला] छन्द-विशेष । अण पु [अन] देखो अणंताणुबंधि । अडोलिया स्त्री [अटोलिका] एक राजपुत्री, अण पु[अनस्] गाड़ी। जो युवराज की पुत्री और गर्दभराज की अण देखो अण्ण = अन्य । बहिन थी। चूही।
अण न ऋण] करजा । धारग वि [ धारक] अडोविय वि [अटोपित] भरा हुआ । . करजदार । °बल वि लेनदार । 'भंजग वि अड्ड वि [दे] जो आड़े आता हो, बीच में | [°भञ्जक] देउलिया । बाधक होता हो वह।
°अण देखो गण। अड्डक्ख सक [क्षिप्] फेंकना, गिराना। अण देखो जण। अड्डण न [अड्डन] चर्म । ढाल, फलक । °अण देखो तण। अड्डिअ वि [दे] आरोपित ।
°अणअरद देखो अणवरय । अड्डिया स्त्री [अड्डिका] मल्लों को क्रिया
अणइवर वि [अनतिवर] सर्वोत्तम । विशेष ।
अणइवुट्ठि स्त्री [अनतिवृष्टि] वर्षा का अभाव । अड्ढ देखो अद्ध = अर्ध ।
अणईइ वि [अनीति] ईति-रहित, शलभादिअड्ढ वि [आढय] सम्पन्न । सहित । परिपूर्ण।। कृत उपद्रव से रहित । अड्ढअक्कली स्त्री [दे] देखो अट्टयक्कली। ! अणंग पु [अनङ्ग] काम । कामदेव । एक अड्ढत्त वि [आरब्ध]शुरू किया हुआ,प्रारब्ध । __राजकुमार, जो आनन्दपुर के राजा जीतारि अड्ढाइज्ज । वि अर्धतृतीय] ढाई ।। का पुत्र था । न. विषय-सेवन के मुख्य अंगों
| के अतिरिक्त स्तन, कुक्षि, मुख आदि अंग ।
अड्ढाइय ।
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३०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणंत-अणगारिय बनावटी लिंग आदि। बारह अंग-ग्रन्थों से ; तीर्थंकर का नाम । संसारिय वि [ संसारिक] भिन्न जैन शास्त्र । वि. शरीर-रहित ।। अनन्त काल तक संसार में जन्म-मरण पाने°घरिणी स्त्री [गृहिणी] रति । °पडि- वाला । °सेण पु [°सेन] चौथा कुलकर । सेविणी स्त्री [प्रतिषेविणी] अमर्यादित रीति एक अन्तकृद् मुनि । से विषय-सेवन करनेवाली स्त्री । °पविट्ठ न अणंतइ पु [अनन्तजित्] चालू काल के [प्रविष्ट] बारह अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन चौदहवें जिन-देव । ग्रन्थ । °बाण पु काम के बाण । °लवण पु अणंतग । देखो अणंत । न. वस्त्र-विशेष । [°लवन] रामचन्द्रजी का एक पुत्र । °सर पु अणंतय । पु ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव । [°शर] काम के बाण । °सेणा स्त्री [ सेना] अणंतर वि [अनन्तर] व्यवधान-रहित । पु, द्वारका की एक विख्यात गणिका।
वर्तमान समय ।
अणंतरहिय वि [अनन्तहित] अव्यवहित । अणंत पू[अनन्त] चालू अवसर्पिणी काल के
सजीव, सचित्त, चेतन । चौदहवें तीर्थंकर-देव । विष्णु, कृष्ण । शेष
अणंताणुबंधि पु [अनन्तानुबन्धिन्] अनन्त नाग । जिसमें अनन्त जीव हों ऐसी वनस्पति,
काल तक आत्मा को संसार में भ्रमण करानेकन्द मूल वगैरह । न. केवल-ज्ञान । आकाश ।
वाले कषायों की चार चौकड़ियों में प्रथम वि. शाश्वत । निःसीम, अपरिमित । बहुत,
चौकड़ी, अतिप्रचंड क्रोध, मान, माया और विशेष । °काइय वि | कायिक] अनन्त
लोभ । जीववाली वनस्पति, कन्द-मूल आदि । °काय
अणंस वि [अनंश अखण्ड । पु कन्द-मूल आदि अनन्त जीववाली
अणक्क पुदे] एक म्लेच्छ देश । एक म्लेच्छ वनस्पति । °खुत्तो अ [कृत्वस्] अनन्त
जाति । बार । °जीव पु देखो °काइय। °जीविय
अणक्ख पु[दे] क्रोध । लज्जा । वि [ जीविक] देखो 'काइय । °णाण न
अणक्खर न [अनक्षर] श्रुत-ज्ञान का एक ["ज्ञान] केवल-ज्ञान । णाणि वि ।
भेद-वर्ण के बिना संपर्क के, छींकना, [ज्ञानिन] केवल ज्ञानी, सर्वज्ञ । °दंसि वि
चुटकी बजाना, सिर हिलाना आदि संकेतों से ['दर्शिन्] सर्वज्ञ । °पासि वि ["शिन] ऐरवत क्षेत्र के बीसवें जिन-देव । °मिस्सिया
दूसरे का अभिप्राय जानना । स्त्री [मिश्रिका] सत्यमित्र भाषा का एक अणगार वि अनगार] जिसने घर-बार त्याग भेद; जैसे अनन्तकाय से भिन्न प्रत्येक वनस्पति ।
__ किया हो वह, साधु, यति, मुनि । घर-रहित, से मिली हुई अनन्तकाय का भी अनन्तकाय भिक्षुक । पु. भरतक्षेत्र के भावी पांचवें कहना। °मीसय न [°मिश्रक] देखो तीर्थंकर का एक पूर्वभवीय नाम । "मिस्सिया। रह पुरथ] विख्यात राजा सुय न [श्रुत] 'सूत्रकृतांग' सूत्र का एक दशरथ के बड़े भाई का नाम । °विजय पु अध्ययन । भरतक्षेत्र के २४वें और ऐरवत क्षेत्र के अणगार वि [ऋणकार] करजा करनेवाला । बीसवें भावी तीर्थंकर का नाम । °वीरिय वि ! दुष्ट शिष्य, अपात्र । [°वीर्य] अनन्त बलवाला। पु एक केवल- अणगार वि [अनाकार] आकाररहित । ज्ञानी मुनि का नाम । एक ऋषि, जो कार्त- अणगारिय वि [आनगारिक] साधु-सम्बन्धी, वीर्य के पिता थे। भरतक्षेत्र के एक भावी मुनि का ।
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अणगाल-अणरहू
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणगाल पु [अकाल] दुभिक्ष ।
अद्वितीय। अणगिण वि [अनग्न] जो नंगा न हो, वस्त्रों | अणत्त वि [अनात्त] अगृहीत । से आच्छादित । पुं. कल्पवृक्ष की एक जाति, अणत्त [अनात अपीडित । जो वस्त्र देता है।
अणत्त वि [ऋणात्तं ऋण से पीड़ित । अणग्ध देखो अनघ ।
अणत्त वि [अनात्र] दुःखकर, सुख-नाशक । अणग्ध वि [ऋणघ्न] ऋण-नाशक, कर्म- अणत्त नदे] निर्माल्य, देवोच्छिष्ट द्रव्य । नाशक ।
अणत्थ देखो अणट्ट । अणग्घ । वि [अनध्य] अमूल्य । महान्,
अणथंत वकृ [अतिष्ठत्] नहीं रहता हुआ । अणग्धेय ) गुरु । उत्तम ।
अस्त होता हुआ। अणघ वि [अनघ] शुद्ध ।
अणपन्निय देखो अणवण्णिय । अणच्छ देखो करिस = कृष ।
अणप्प वि [अनयं] अर्पण करने के अयोग्य अणच्छिआर वि [दे] अच्छिन्न ।
या अशक्य । अणज्ज वि [अन्याय्य] अयोग्य, जो न्याययुक्त अणप्प वि [अनल्प] अधिक । नहीं।
अणप्प पु [अनात्मन् | आत्मा से परे। ज अणज्ज वि [अनायं] आर्य-भिन्न । खराब । वि [°ज्ञ] मूर्ख । पागल, भूताविष्ट, पराधीन । पापी।
वसग वि ["वश] पराधीन । अणज्जव (अप) ऊपर देखो। °खंड पुं। अणप्प पु दे] तलवार । [°खण्ड] अनार्य देश ।
अणप्पिय वि [अनर्पित] नहीं दिया हुआ । अणज्झवसाय पु [अनध्यवसाय] अव्यक्त
सामान्य । °णय पु[नय] सामान्य-ग्राही ज्ञान, अति सामान्य ज्ञान ।
पक्ष । अणज्झाय पु [अनध्याय] अध्ययन का अणभंतर वि [अनभ्यन्तर] भीतरी तत्त्व अभाव । जिसमें अध्ययन निषिद्ध है वह को नहीं जाननेवाला। काल ।
अणभिग्गह न [अनभिग्रह] 'सर्वे देवा वन्द्याः ' अणट्ट वि [अनार्त] आर्त-ध्यान से रहित । ।
इत्यादि रूप मिथ्यात्व का एक भेद । अणठ्ठ पु [अनर्थ] नुकसान । प्रयोजन का अणभिग्गहिय वि [अनभिगृहीत] कदाग्रहअभाव । वि. निष्कारण, वृथा। °दंड पु
शून्य । अस्वीकृत । [°दण्ड] निष्कारण हिंसा।
अणभिण्ण वि [अनभिज्ञ] अजान, निर्बोध । अणड पुदे] जार, उपपति ।
अणभिलप्प वि [अनभिलाप्य] अनिर्वचनीय । अणड्ढ वि अनर्ध] अखण्ड ।
अणमिस वि [अनिमिष] विकसित, खिला अणण्ण वि [अनन्य] अभिन्न । मोक्ष-मार्ग। हुआ । निमेष-रहित ।
अद्वितीय । तुल्ल वि [°तुल्य] अनुपम । दंसि | अणयार देखो अणगार । वि [°दर्शिन्] पदार्थ को सत्य-सत्य देखने | अणरण्ण पु [अनरण्य] साकेतपुर का एक वाला। °परम वि संयम, इन्द्रिय-निग्रह। राजा, जो पीछे से ऋषि हुआ था ।
मण, मणस वि [°मनस्क] एकान | अणरह वि [अनह] अयोग्य, नालायक । चित्तवाला, तल्लीन । °समाण वि [°समान] | अणरहू स्त्री [दे] नवोढ़ा।
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३२
अणरामय पुं [दे] अरति, बेचैनो । अणराय वि [अराजक ] राज-शून्य, जिसमें
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
राजा न हो वह । अणराह पुं बिरंगी पट्टी |
अणरिक्क वि [दे] अवकाश-रहित, फुरसतरहित । दधि, क्षीर आदि गोरस भोज्य ।
वि [ अनर्ह ] अयोग्य, नालायक ।
[दे] सिर में पहनी जाती रंग
अणरिह}
अणरुह
अणलं अ [अनलम् ] असमर्थ |
अणल पुं [ अनल] अग्नि । वि. असमर्थ । अयोग्य |
अणव वि [ऋणवत् ] करजदार । पुं. दिवस काछब्बीसवाँ मुहूर्त |
अणवकय वि [ अनपकृत | जिसका अपकार
अणरामय - अणहुल्लिय
अणवयमाण a [ अनपवदत् ] अपवाद नहीं करता हुआ । सत्यवादी | अणवरय वि[अनवरत ] निरन्तर, अविच्छिन्न । न. हमेशा ।
अणवराइस (अप) वि [ अनन्यादृश ] असा
धारण ।
अणवसर वि [ अनवसर] आकस्मिक | Start a [ अबाध ] बाधा-रहित । वि अणवेक्य वि [अनपेक्षित ] उपेक्षित, जिसकी परवाह न हो ।
अणवेक्य वि [ अनवेक्षित ] नहीं देखा हुआ । नहीं सोचा हुआ । कारि वि [कारिन्] साहसिक | कारिया स्त्री [कारिता ] साहस कर्म ।
अणसण न [ अनशन] आहार का त्याग,
न किया गया हो वह ।
उपवास ।
अणवगल्ल वि [अनवग्लान] ग्लानि-रहित, अणसिय वि [ अनशित] उपोषित, उपवासी ।
निरांग |
अणहवि [ अनघ] निर्दोष, पवित्र । अह वि [] अक्षत, व्रणशून्य । अहण न [ अनभस् ] पृथिवी । trafa [] विद्यमान । अवयव [] तिरस्कृत । स्त्री [अधुना ] इस समय । अहारय ' [ दे] खल्ल, जिसका मध्यनीचा हो वह जमीन ।
खला,
अणवच्च वि [ अनपत्य ] सन्तान - रहित | अणवज्जन [ अनवद्य ] पाप का अभाव, कर्म का अभाव | वि. निर्दोष निष्पाप | अणवज्ज वि [ अणवर्ज्यं ] ऊपर देखो । अणवट्ठप्प वि [अनवस्थाप्य] जिसको फिरसे दीक्षा न दी जा सके ऐसा गुरु अपराध करने वाला | न. गुरुप्रायश्चित्त का एक भेद । अणवट्ठिय [अनवस्थित] अव्यवस्थित्, अनियमित । अस्थिर । पल्य-विशेष | अणवण्णय [ अणपत्रिक, अणपणिक ] वानव्यंतर देवों की एक जाति । aratra [ अनवस्थ ] अव्यवस्थित, अनिय- अणहिष्ण देखो अअणभिण्ण । मित, असमंजस । अणवत्था स्त्री [अनवस्था] अवस्था का अहिल अभाव | एक तर्क- दोष । अव्यवस्था | अणवदग्गवि [दे] अनन्त । अविनाशी | tat a [ अनवद्य] निर्दोष | अणवयग्ग देखो अणवदग्ग ।
अअवि [अहृदय ] निष्ठुर ।
अहिfa [ अनधिगत ] नहीं जाना हुआ । पु. वह साधु, जिसको शास्त्रों का ज्ञान हो ।
}
अणहियास वि [ अनध्यास ] असहिष्णु । न [ अणहिल्ल] गुजरात देश की अणहिल्ल प्राचीन राजधानी । 'वाडय न [पाटक] देखो अणहिल । अहणवि [अधीन ] स्वतन्त्र, अनायत्त । अहुलिय वि [] जिसका फल प्राप्त न हुआ
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अणाइ-अणायार
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष हो वह ।
अणाढिय वि [अनादृत] तिरस्कृत । पुं. जम्बूअणाइ वि [अनादि] आदि-रहित । णिहण, द्वीप का अधिष्ठायक एक देव । स्त्री. जम्बूद्वीप वि [निधन] शाश्वत । °मंत, °वंत वि के अधिष्ठायक देव की राजधानी । [मत्] अनादि काल से प्रवृत्त ।
अणाणुगामिय वि [अनानुगामिक] पीछे अणाइज वि [अनादेय] अनुपादेय । नाम-कर्म नहीं जानेवाला । न. अवधि-ज्ञान का एक का एक भेद, जिसके उदय से जीव का वचन
भेद। युक्त होने पर भी ग्राह्य नहीं समझा जाता
अणादि देखो अणाइ। अणादिय । देखो अणाइय।
अणादीय । अणाइय वि [अनादिक] आदि रहित ।। अणाइय वि [अज्ञातिक] स्वजन-रहित,
अणादेज देखो अणाइज ।
अणाभिग्गह न [अनाभिग्रह] मिथ्यात्व का अकेला ।
एक भेद। अणाइय वि [अणातीत] पापिष्ठ ।
अणाभोग पुं [अनाभोग] अनुपयोग । न, अणाइय ऋणातीत] संसार ।
मिथ्यात्वविशेष । अणाइय वि [अनादृत] जिसका आदर न किया
अणामिय वि [अनामिक] नाम-रहित । पुं. हो वह । अणाइल वि [अनाविल ] अकलुषित,
असाध्य रोग । स्त्री. कनिष्ठांगुली के ऊपर की
अंगुली। निर्मल । अणाईअ देखो अणाइय ।
अणाय पुं [अनाक] मर्त्यलोक, मनुष्य-लोक । अणाउ पुं [अनायुष्क] जिन-देव । मुक्तात्मा,
अणाय पुं [अनात्मन्] आत्मा से परे । सिद्ध ।
अणायग वि [अज्ञातक] स्वजन-रहित,
अकेला । अणाउल वि [अनाकुल] धीर ।
अणायग वि [अज्ञायक] अजान, निर्बोध ।। अणाउत्त वि [अनायुक्त]बेख्याल, असावधान । अणाएज देखो अणाइज्ज ।
अणायतण । न [अनायतन] वेश्या आदि अणागय पुं [अनागत] भविष्य काल । वि.
अणाययण , नीच लोगों का घर । जहाँ भविष्य में होनेवाला । द्धा स्त्री [द्धा]
सज्जन पुरुषों का संसर्ग न होता हो वह भविष्य काल ।
स्थान । पतित साधुओं का स्थान । पशु, अणागलिय वि [अनर्गलित] नहीं रोका |
नपुंसक वगैरह के संसर्गवाला स्थान । हुआ।
अणायत्त वि [अनायत्त] पराधीन । अणागलिय वि [अनाकलित]नहीं जाना हुआ, अणायर पुं [अनादर] अ-बहुमान, अपमान । अलक्षित । अपरिमित ।
अणायरण न [अनाचरण] अनाचार, खराब अणागार वि [अनाकार] आकार-रहित । आचरण । विशेषता-रहित । न. दर्शन, सामान्य ज्ञान ।
अणायरिय देखो अणज्ज = अनार्य । अणाजीव वि [अनाजीव] आजीविका-रहित । अणायार देखो अणागार = अनाकार ।
आजीविका की इच्छा नहीं रखने वाला। अणायार पुं [अनाचार] शास्त्र-निषिद्ध आच. निःस्पृह, निरीह ।
रण । गृहीत नियमों का जान-बूझ कर उल्लंअणाड पुंदे] जार, उपपति ।
धन करना, व्रत-भङ्ग ।
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३४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणारिय-अणियट्टि अणारिय देखो अणज्ज = अनार्य । । की गई हो वह, उत्तम । पुं. किन्नर देव की अणारिस वि [अनार्ष] जो ऋषि-प्रणीत न एक जाति । हो वह ।
अणिदिय वि [अनिन्द्रिय] इंद्रिय-रहित । अणारिस वि [अन्यादृश] दुसरे के जैसा । पुं. मुक्त जीव । केवलज्ञानी । वि. अतीन्द्रिय । अणालत्त वि [अनालपित] अनुक्त, नहीं अणिदिया स्त्री [अनिन्दिता] ऊर्ध्व लोक में बुलाया हुआ।
रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी।। अणालवय पुं [अनालपक] मौन ।
अणिक्क वि [अनेक] एक से ज्यादा । वाइ अणाव सक [आ + नायय] मंगवाना। वि [°वादिन] अक्रियावादी । अणावरण वि [अनावरण| आवरण-रहित । अणिक्किणी स्त्री [अनीकिनी] ऐसी सेना न. केवल-ज्ञान ।
जिसमें २१८७ हाथी, २१८७ रथ, ६५६१ अणाविट्टि । स्त्री [अनावृष्टि] वर्षा का घोड़े और १०९३५ प्यादें हों । अणावुट्टि , अभाव ।
अणिगण । देखो अणगिण । अणाविल वि [अनाविल] रवच्छ ।। अणिगिण । अणासंसि वि [अनाशंसिन] अनिच्छु, निस्पृह । अणिग्गह वि [अनिग्रह] स्वच्छन्द, असंयत । अणासण देखो अणसण ।
अणिच्च वि [अनित्य] नश्वर, अस्थायी । अणासय पुं [अनाश, °क] अनशन, भोजना- । °भावणा स्त्री [ भावना] सांसारिक पदार्थों भाव ।
की अनित्यता का चिन्तन । °णुप्पेहा स्त्री अणासव वि [अनाश्रव] आश्रव-रहित । पुं. [°नुप्रेक्षा] देखो पूर्वोक्त अर्थ ।।
आश्रव का अभाव, संवर । अहिंसा, दया ।। | अणि? वि [अनिष्ट] अप्रीतिकर, द्वेष्य । अणासिय वि [अनशित] भूखा।
अणिण देखो अणिरिण। अणाह वि [अनाथ] शरण-रहित । स्वामि- अणिदा स्त्री [दे.अनिदा] बिना ख्याल किये रहित । गरीब, बेचारा । पं. एक जैन मुनि । को गई हिंसा । चित्त की विकलता । ज्ञान का अणाहार पं [अनाहार] एक दिन का उप- अभाव । वास ।
अणिमा पुंस्त्री [अणिमन्] आठ सिद्धियों में अणाहि वि [अनाधि] मानसिक पीड़ा से । एक सिद्धि, अत्यन्त छोटा बन जाने की रहित ।
शक्ति । अणाहिट्ठि पुं [अनाधृष्टि] एक अन्तकृद् मुनि । अणिमिस न [अनिमिष] फल-विशेष । अणिइण देखो अणगिण ।।
अणिमिस । वि [अनिमिष, °मेष] निमेष अणिइय वि [अनियत] अनियमित, अन्य- अणिमेस । शन्य । पुं मछली। देवता । वस्थित । पुं. संसार ।
'नयण पुं [नयन] देव। अणिचिय वि अनिजिता टेढा नहीं किया ! अणिय न [अनीक] सैन्य । हुआ, सरल।
अणिय न [अनृत] असत्य । अणित
अणिय न [दे] अग्र-भाग। अणिउँतय । देखो अइमुत्त ।
अणिय वि [अनित्य] अस्थिर । अणिउँत्तय )
अणियट्ट पुं [अनिवर्त] मोक्ष । एक महाग्रह । अणिदिय वि [अनिन्दित] जिसको निन्दा न अणियट्टि वि [अनिवर्तिन्] निवृत्त नहीं होने
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अणियट्टि - अणुअंपा
वाला । न शुक्ल-ध्यान का एक भेद । पुं. एक महाग्रह । आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाले एक तीर्थंकर देव का नाम ।
[अनिवृत्ति ] निवृत्ति - रहित, व्यावृत्ति-वर्जित । नववाँ गुणस्थानक । करण न आत्मा का विशुद्ध परिणाम - विशेष । ' बादर न नववां गुण-स्थानक । नववें गुणस्थान में प्रवृत्त जीव ।
अणियण देखो अणगिण ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अणिय वि [ अनियत ] अव्यवस्थित, अनियमित, कल्पवृक्ष की एक जाति, जो वस्त्र देती है ।
अणिया देखो अणिदा ।
अणिया स्त्री [दे] धार, अग्र भाग । अणिरिक वि [दे] परतन्त्र | अणिरिण वि [ अनृण] ऋण - वर्जित । अणिरुद्ध वि [ अनिरुद्ध ] अप्रतिहत । अन्तकृद् मुनि ।
अलि पुं [ अनिल ] पवन । एक अतीत तीर्थकर का नाम | राक्षस-वंशीय एक राजा । अणिला स्त्री [अनिला] बाईसवें तीर्थंकर की एक शिष्या ।
अणिल्ल न [ दे] प्रभात । अणिस न [ अनिश ] हमेशा । अण वि [ अनिसृष्ट] अनिक्षिप्त, असंअणिfe ) मत । ऐसी भिक्षा, जिसके मालिक अनेक हों और जो सबकी अनुमति से ली न गई हो । साधु की भिक्षा का एक दोष । afrate fa [ अनिशीथ ] शास्त्र - विशेष, जो प्रकाश में पढ़ा या पढ़ाया जाय । afreens fव [अनिश्रीकृत ] जिस पर किसी खास व्यक्ति का अधिकार न हो, सर्व
एक
साधारण ।
अणितिय वि [ अनिश्रित ] आसक्तिरहित, रुकावट रहित, अनाश्रित, किसी के साहाय्य की इच्छा न रखनेवाला । न. ज्ञान-विशेष, अव
|
३५
ग्रहज्ञान का एक भेद, जो लिंग या पुस्तक के बिना ही होता है । afe fa [ अह ] धीर, निष्कपट, निर्मम, निःस्पृह |
अणिह वि [ अस्निह | स्नेहरहित । अणिह वि [दे] सदृश, न. मुख । अणिय वि [ अनिहत] अहत | °रिउ पुं [°रिपु ] एक अन्तकृद् मुनि ।
अइस वि [अनीदृश ] इस माफिक नहीं, विलक्षण |
अणीय न [ अनीक] सेना ।
अणीयस पुं [अनीस ] एक अन्तकृद् मुनि का
नाम ।
अणीस वि [ अनीश ] असमर्थ | अणीसकड देखो अणिस्सकड ।
हारिम वि[अनिहरिम] गुफा आदि में होनेवाला मरण-विशेष |
अणु अ [अ] इन अर्थों का सूचक उपसर्गनजदीक, छोटा, परिपाटी, भीतर, लक्ष्य करना, योग्य, वीप्सा, बीच का भाग, अनुकूल, हितकर, प्रतिनिधि, पीछे, बहुत, मदद करना । निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है । अणुवि अल्प, छोटा, पुं. परमाणु । मय वि [ मत] उत्तम कुल | 'विरइ स्त्री [विरति ] देखो देसविरइ |
अणु पुं [दे] धान-विशेष, चावल की एक जाति । अणु स्त्री [ तनु ] शरीर | [अ] मूर्ख ।
अ अ
अणुअ पुं [दे] आकृति, आकार । पुंस्त्री. धान्य- विशेष |
अणुअवि [ अनुग] अनुसरण करनेवाला | अणुअवि [ अनुज ] पीछे से उत्पन्न । पुं. छोटा भाई । स्त्री. छोटी बहिन |
अणुअंच सक [ अनु + कृष् ] पीछे खींचना । अणुअंप मक [ अनु + कम्प् ] दया करना । अणुअंपा स्त्री [अनुकम्पा ] दया,
करुणा ।
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३६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणुअत्तय-अणुक्खित्त अणुअत्तय वि [अनुवर्तक] अनुकूल आचरण न [ °दान ] करुणा से गरीबों को अन्न आदि करनेवाला, अनुसरण करनेवाला।
देना। अणुअत्ति देखो अणुवत्ति।
अणुकड्ढ सक [अनु + कृष्] खींचना । अनुअणुअर वि [अनुचर] सहायताकारी, सहचर, सरण करना । नौकर । अनुसरण-कर्ता।
अणुकड्ढि स्त्री [अनुकृष्टि] अनुवर्तन, अनुअणुअल्ल न [दे] सुबह।
सरण । अणुआ स्त्री [दे] लाठी।
अणुकप्प पुं [अनुकल्प] बड़े पुरुषों के मार्ग अणुआर पुं [अनुकार] अनुकरण । | का अनुकरण । वि. महापुरुषों का अनुकरण अणुआस पुं [अनुकास] प्रसार, विकास । करनेवाला । अणुइअ पुंदे] चना।
अणुकम पुं [अनुक्रम] परिपाटी । अणुइअ देखो अणुदिय।
अणुकर सक [अनु + कृ] अनुकरण करना । अणुइण्ण वि [अनुकीर्ण] व्याप्त, भरा हुआ, अणुकह सक [अनु + कथय] अनुवाद करना, नहीं गिरा हुआ।
पीछे बोलना। अणुइण्ण वि [अनुद्गीर्ण] बाहर नहीं निकला अणुकार ' [अनुकार] अनुकरण, नकल । हुआ।
अणुकिइ स्त्री [अनुकृति] अनुकरण, नकल । अणुइण्ण देखो अणुचिण्ण।
अणुकिण्ण वि [ अनुकीर्ण ] व्याप्त, भरा अणुइण्ण देखो अणुदिण्ण। अणुऊल वि [अनुकूल] अप्रतिकूल, प्रसन्न । अणुकित्तण न [अनुकीर्तन] वर्णन, प्रशंसा। अणुऊल सक [अनुकूलय] अनुकूल करना। अणुकित्ति देखो अणुकिइ । प्रसन्न करना।
अणुकुइय वि [अनुकुचित] पीछे फेंका हुआ । अणुओअ ' [अनुयोग] व्याख्या, टीका, सूत्र ऊंचा किया हुआ।
का विस्तार से अर्थ-प्रतिपादन । पृच्छा। अणुकुण सक [अनु + कृ] अनुकरण करना । अणुओइय वि [अनुयोजित] प्रवर्तित, प्रवृत्त अणुकूल देखो अणऊल। कराया हुआ।
अणुक्कंत वि [अन्वाकान्त] आचरित, अणुओग देखो अणुओ।
अनुष्ठित । अणुओग पुं [अनुयोग] सम्बन्ध । अणुक्कंत वि [अनुक्रान्त] आचरित, विहित, अणुओगिअ वि [अनुयोगिक] दीक्षित मुनि- | अनुष्ठित । शिष्य ।
अणुक्कम सक [अनु + क्रम्] क्रम से कहना । अणुओयण न [ अनुयोजन ] सम्बन्धन, अतिक्रमण करना । जोड़ना ।
अणुक्कम देखो अणुकम। . अणुकंप सक [अनु + कम्प्] दया करना। अणुक्कमण न [अनुक्रमण] गमन, गति । भक्ति करना । हित करना ।
अणुक्कुइअ वि [अनुकुचित] थोड़ा संकुचित । अणुकंप वि [अनुकम्प्य] अनुकम्पा के योग्य । अणुक्कोस पुं [अनुक्रोश] क्या । अणुकंप । वि [अनुकम्प] दयालु, करुण । अणुक्कोस पं [अनुत्कर्ष] उत्कर्ष का अभाव । अणुकंपय , भक्त ।
_ वि. उत्कर्षरहित । अणुकंपा स्त्री [अनुकम्पा] ऊपर देखो । °दाण | अणुक्खित्त वि [अनुत्क्षिप्त] ऊँचा न किया
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अणुग- अणुचरंग
हुआ ।
अणु a [ अनुग] नौकर, अनुसरण - कर्त्ता । वि अणुगंतव्व अणुगम = अनु + गम् । का कृ. ariपा स्त्री [अनुकम्पा ] करुणा । अनुगच्छ देखो अणुगम = अनु + गम् । अणुगज्ज अक [अनु + गर्ज ] प्रतिध्वनि करना । अणुगम सक [अनु + गम् ] अनुसरण करना, जानना, समझना । व्याख्या करना, सूत्र के अर्थों का स्पष्टीकरण करना । अणुगम पुं [अनुगम] निश्चय करना । सूत्र की व्याख्या | अन्वय, एक की सत्ता में दूसरे की विद्यमानता । व्याख्या | अणुगवि [ अनुगत ] अनुसृत, ज्ञात । अनुवृत्त, पूर्व से बराबर चला आया हो । अतिक्रान्त |
1
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अणुगामि
अणुगामिय
वि [ अनुगामिन् मिक ] अनुसरण करनेवाला | शुद्ध कारण | अवधिज्ञान का एक भेद । अनुचर । अणुगारि वि [अनुकारिन्] अनुकरण करने
वाला ।
अगि स्त्री [अनुकृति ] अनुकरण, नकल । अणुगिरह देखो अणुग्गह = अनु + ग्रह । अणुगिद्ध वि [ अनुगृद्ध ] अत्यन्त आसक्त, लोलुप ।
अणुगर देखो अणुकर । अणुगवेस सक [अनु + गवेष् ] तलाश करना | अणुग्गहीअ अणुगह देखो अणुग्गह = अनु + ग्रह । अणुगाम पुं [अणुग्राम] छोटा गाँव । उपपुर, शहर के पास का गाँव । विवक्षित गाँव से दूसरा गाँव ।
अणुद्धि स्त्री [अनुगृद्धि] अत्यासक्ति । अगिल क [अनु + गृ] भक्षण करना । अणुगिहीअ वि [अनुगृहीत ] जिस पर मेहरबानी की गई हो वह ।
अनुगीय वि [अनुगीत ] पीछे कहा हुआ, अनूदि । पूर्व ग्रन्थकार के भाव के अनुकूल किया
।
३७
हुआ ग्रन्थ, व्याख्यान आदि । कीर्तित, वर्णित । गीत | ara [ अनुगुण] अनुकूल, उचित, तुल्य, सदृश गुणवाला |
अनुसार
अगुरु a [ अनुगुरु] गुरु-परम्परा वि के जिस विषय का व्यवहार होता हो वह । अणुगूल वि [ अनुकूल ] अनुकूल । अणुगेज्झ वि [ अनुग्राह्य ] कृपा - पात्र | अणुगेण्ह देखो अणुग्गह = अनु + ग्रह अणुग्गह सक [अनु + ग्रह ] कृपा करना । अणुग्गह पुं [ अनुग्रह ] कृपा, मेहरबानी । उपकार | वि. जिस पर अनुग्रह किया जाय वह ।
1
अणुग्गह पुं [अनवग्रह] जैन साधुओं को रहने के लिए शास्त्र - निषिद्ध स्थान । अहि
वि [ अनुगृहीत ] जिस पर कृपा की गई हो वह, afra | आभारी । अणुग्घाइम न [ अनुद्घातिम] महा - प्रायश्चित्त का एक भेद । वि. महा प्रायश्चित्त का पात्र । अणुग्धाय वि [अनुद्घातिक] अनुद्घातिक नामक महा प्रायश्चित्त का पात्र । न ग्रन्थांशविशेष, जिसमें अनुद्घातिक प्रायश्चित्त का वर्णन है ।
अणुग्धाय वि [ अनुद्घात ] उद्घात-रहित । न. निशीथ सूत्र का वह भाग, जिसमें अनुद्घातिक प्रायश्चित्त का विचार है ।
अणुग्धाय न [ अनुद्घात ] गुरु- प्रायश्चित्त । अणुग्घायण [ अणोद्घातन ] कर्मों का नाश | अणुग्घास सक | अनु + ग्रासय् ] भोजन
कराना ।
अणुचय पुं [अनुचय ] फैलाकर इकट्ठा करना । अणुचर सक [ अनु + चर् ] सेवा करना । अनुसरण करना | अनुष्ठान करना । अणुचर देखो अणुअर |
अणुचरग वि [अनुचरक] सेवा करनेवाला ।
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३८
अणुचीइ
देखो अणचित ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणुचरिय-अणुणायं अणुचरिय वि [अनुचरित! अनुष्ठित, विहित, : अणुजीव सक [अनु + जीव] आश्रय करना । किया हुआ।
। अणुजीवि वि [अनुजीविन्] आश्रित, नौकर । अणुचि सक [ अनु + च्य् ] मरना, एक जन्म : 'त्तण न [°त्व] आश्रय, नौकरी। से दूसरे जन्म में जाना।
अणुजुंज सक [ अनु + युज् ] प्रश्न करना । अणुचित सक [ अनु+चिन्त् ] पर्यालोचन
अणुजुत्ति स्त्री [अनुयुक्ति] योग्य युक्ति, उचित करना, विचारना, याद करना, सोचना।
न्याय । अणुचिट्ठ सक [अनु + स्था! अनुष्ठान करना ।
रना । अणुजेट वि [अनुज्येष्ठ] बड़े के नजदीक का । अणुचिण्ण वि [अनुचीर्ण] अनुष्ठित, आचरित, छोटा, उतरता । विहित । प्राप्त । परिण मित ।।
अणुजोग देखो अणुओअ । अणुचिण्णव वि [अनुचीर्णवत्] जिसने अनुष्ठान अणुज वि [अनूज] उत्साह-रहित, हताश । किया हो वह ।
अणुज वि [अनोजस्क] तेजरहित, फोका । अणुचिय वि [अनुचित] अयोग्य । अणुज वि [अनूद्य] उद्देश्य, लक्ष्य ।
अणुज्जा स्त्री [अनुज्ञा] अनुमति । अणुचीति । देखो अणुचित ।
अणुज्जा देखो अणोजा। अणुच्च वि [ अनुच्च ] ऊँचा नहीं, नीचा।। अणुजिय वि [अनूजित] निर्बल । कुइय वि [°कुचिक नीची और अस्थिर ।
अणुज्जुय वि [अनृजुक] वक्र, कपटी । शय्या वाला।
अणुज्झा सक [अनु + ध्या] चिन्तन करना, अणुच्छहंत वि [अनुत्सहमान] उत्साह नहीं
___ ध्यान करना। रखता हुआ।
अणुझा देखो अणुज्झा। अणुच्छित्त वि [अनुत्क्षिप्त] अत्यक्त ।
अणुझिअअ वि [दे] प्रयत्न-शील । सावधान । अणुच्छित्त वि [अनुत्थित] गर्भ-रहित, विनीत । स्फीत, समृद्ध । सर्वोच्च ।
अणुझिजिर वि [अनुक्षयिन्] क्षीण होनेवाला । अणुच्छूढ वि [अनुत्क्षिप्त] अत्यक्त।
अणुट्ठ वि [अनुत्थ] नहीं उठा हुआ, स्थित । अणुज पुं [अनुज] छोटा भाई ।
अणुट्ठा सक [अनु + स्था] अनुष्ठान करना, अणुजत्त न [अनुयात्र] यात्रा में।
शास्त्रोक्त विधान करना । करना। अणुजत्ता स्त्री [अनुयात्रा] निर्गम, निःसरण । अणुट्राण न[अनुष्ठान] कृति । शास्त्रोक्त विधान । अणुजा सक [अनु + या] अनुसरण करना, अणद्राण न [अनुत्थान] क्रिया का अभाव । पीछे चलना।
अणुट्टावण न [अनुष्ठापन] अनुष्ठान कराना । अणुजाइ स्त्री [अनुयाति] अनुसरण ।
अणुट्ठिय वि [अनुष्ठित ] विधि से संपादित, अणुजाण न [अनुयान] पीछे-पीछे चलना ।
विहित। महोत्सव-विशेष, रथयात्रा ।
अणुट्ठिय वि [अनुत्थित] बैठा हुआ । आलसी । अणुजाण सक [अनु + ज्ञा] सम्मति देना।
अणुटुंभ न [अनुष्टुप्] एक प्रसिद्ध छंद । अणुजाणावण न [अनुज्ञापन] अनुमति लेना। अणट्रेअ देखो अणदा। अणुजाय वि [अनुयात] अनुगत, अनुसृत। अणुण देखो अणुणी। अणुजाय वि [अनुजात] पी गे उत्पन्न । अणुणय पुं [अनुनय] विनय, प्रार्थना । सदृश ।
अणुणाय पुं [अनुनाद] प्रतिध्वनि ।
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अणुणाय - अणुद्ध
अणुणाय व [अनुज्ञात] अनुमत, अनुमोदित । अणुणास पुंन [ अनुनास] अनुनासिक । वि. अनुस्वारयुक्त । अणुणासि पुं [अनुनासिक ] देखो ऊपर का पहला अर्थ |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अणुणी सक [ अनु + नी] अनुनय करना । समझाना, दिलासा देना |
[अ] का वकृ० । अणुण्यवि [ अनुन्नत] नीचा, नम्र । गर्वरहित ।
अणुण्णव सक [ अनु + ज्ञापय् ] अनुमति देना । आज्ञा देना ।
अणुत्थान देखो अणुद्वाण |
अणुत्थाय वि [अनुत्साह ] हतोत्साह ।
अण्णवणी स्त्री [अनुज्ञापनी] अनुमति लेने अणुदत्त पुं [अनुदात्त ] नीचे से बोला जाने
का वाक्य |
वाला स्वर |
अण्णा स्त्री [अनुज्ञा ] अनुमोदन । आज्ञा । पठन-विषयक गुरु आज्ञा- विशेष । सूत्र के अर्थ का अध्ययन । कप्प पुं [कल्प] जैन साधुओं के लिए वस्त्र पात्रादि लेने के विषय में शास्त्रीय विधान |
वह |
अणुतड पुं [अनुतट] भेद, पदार्थों का एक जाति का पृथक्करण; जैसे संतप्त लोहे को हथौड़े से पीटने से स्फुलिंग (चिनगारी ) पृथक् होते हैं । अणुतडिया स्त्री [अनुतटिका ] ऊपर देखो । तलाव, द्रह आदि का भेद ।
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पूर्ण शरीरवाला |
अणुत्तर वि [अनुत्तर] सर्वश्रेष्ठ । एक सर्वोत्तम देवलोक का नाम । छोटा । 'ग्गा स्त्री [ग्रया] एक पृथिवी, जहाँ मुक्त जीवों का निवास है । णाणि वि ['ज्ञानिन् ] केवलज्ञानी । विमाण न [विमान] एक सर्वोत्कृष्ट देवलोक । ववाइय वि [पपाfre] अनुत्तर देवलोक में उत्पन्न । विवा - इयदसा स्त्री. ब. [ पपातिकदशा] नवव जैन अंगग्रंथ |
O
अण्णाय वि [ अनुज्ञात] जिसको आज्ञा दी अणुदिअस न [ अनुदिवस ] प्रतिदिन । गई हो वह । अनुमत, अनुमोदित ।
अणुहवि [अनुष्ण] ठंडा, जो गरम नहीं है
अणुदिज्जत वि [ अनुदीयमान ] उदय में न आता हुआ । अदि न [ अनुदिन ] हमेशा । अणुदिण्ण वि [अनुदित ] उदय को प्राप्त । फल- दान में अतत्पर ।
अणुत्तवि [अनुक्त] अकथित ।
अणुत्तंत देखो अणुवत्त ।
अणुत्तप्प वि [ अनुत्त्रप्य] परिपूर्ण शरीर ।
अणुदय पुं [अनुदय] उदय का अभाव । कर्मफल के अनुभव का अभाव । अणुदवि न [दें] सुबह ।
अणुदिअ वि [अनुदित] जिसका उदय न हुआ हो ।
अणुतप्प अक [अनु + तप्] पछताना | अणुतावक [अनु + तापय् ] तपाना । अताव [ अनुताप ] पश्चात्ताप ।
अणुदिय वि [अनुदित ] उदय को अप्राप्त । अहि न [ अनुदिवस ] प्रतिदिन | अणुदिव न [दे] प्रातःकाल |
अणुतावयवि [अनुतापक] पश्चात्ताप कराने | अणुदिसा स्त्री [ अनुदिक् ] विदिक्,
वाला ।
ईशान कोण आदि विदिशा ।
अणि वि [अनुदीरित] जिसकी उदीरणा दूर भविष्य में हो । जिसकी उदीरणा भविष्य में न हो ।
अणुद्दिवि [अनुद्दिष्ट] जिसका उद्देश्य न
किया गया हो वह ।
अणुद्ध व [ अनूर्ध्व ] नीचा । वि
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४०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणुद्धय-अणुप्पवत्त अणुद्धय वि [अनुद्धत] सरल, भद्र, विनयी। अणुपविस सक [अनुप्र + विश्] पीछे से अणुद्धरि पुं [अनुद्धरिन्] एक क्षुद्र जन्तु, कुंथु ।। प्रवेश करना । भीतर जाना । अणुद्धिय वि [अनुद्धृत] जिसका उद्घार न | अणुपवेस पुं [अनुप्रवेश प्रवेश, भीतर जाना।
किया गया हो वह । बाहर नहीं निकाला हुआ। अणुपस्स सक[अनु + दृश्] पर्यालोचन करना । अणुद्धय वि [अनुचूत] अपरित्यक्त । | अणुपाल सक [ अनु + पालय् ] अनुभव अणुधम्म पुं [अणुधर्म] गृहस्थ-धर्म । करना । रक्षण करना । प्रतीक्षा करना । अणुधम्म पुं [अनुधर्म] अनुकूल - हितकर अणुपास देखो अणुपस्स । धर्म । °चारि वि [°चारिन्] हितकर धर्म
| अणुपिट्ट न [अनुपृष्ठ] अनुक्रम । का अनुयायी, जैन-धर्मी।
अणुपिहा देखो अणुपेहा। अणुधम्मिय वि [अनुधार्मिक] धर्म के अनु
अणुपुंख न [अनुपुङ्ख] मूल तक, अन्त-पर्यन्त । कूल, धर्मोचित ।
अणुपुव्व वि [अनुपूर्व] क्रमवार, क्रिवि. अणुधाव सक [अनु + धाव पीछे दौड़ना।
क्रमशः । °सो [शस्] अनुक्रम से । अणुनाय वि [अनुज्ञात] अनुमत, जिसको
अणुपुव्व न [आनुपूर्व्य] क्रम, परिपाटी, अनुअनुमति दी गई हो वह ।
क्रम । अणुपंथ पुं [अनुपथ] समीप का मार्ग । रास्ता
अणुपुव्वी स्त्री [आनुपूर्वी] ऊपर देखो। के पास ।
अणुपेक्खा स्त्री [अनुप्रेक्षा] भावना, चिन्तन, अणुपत्त वि [अनुप्राप्त] प्राप्त ।
विचार । अणुपन्न वि [अनुपन्न] प्राप्त । अणुपयट्ट वि [अनुप्रवृत्त] अनुसृत, अनुगत ।
अणुपेहण न [अनुप्रेक्षण] ऊपर देखो।
अणुपेहा स्त्री [अनुप्रेक्षा] ऊपर देखो। अणुपयाण न [अनुप्रदान] दान का बदला प्रतिग्रहण ।
अणुपेहि वि [अनुप्रैक्षिन्] चिन्तन-कर्ता । अणुपरियट्ट सक [अनुपरि + अट्] घूमना, |
अणुप्पइन्न वि [अनुप्रकीर्ण] एक दूसरे से परिभ्रमण करना।
मिला हुआ, मिश्रित । अणुपरियट्ट अक [अनुपरि + वृत्] फिरना, | अणुप्पणी सक [अनुप्र+णी] प्रणय करना ।
फिरते रहना । परिवर्तन करना। । प्रसन्न करना। अणुपरिवठ्ठ देखो अणुपरियट्ट = अनुपरि + अणुप्पगंथ [अणुप्रग्रन्थ] सन्तोषी, अल्प परिवृत् ।
ग्रह वाला। अणुपरिवाडि, डी स्त्री [अनुपरिपाटि, टी] | अणुप्पण्ण वि [अनुत्पन्न] अविद्यमान । अनुक्रम ।
अणुप्पत्त देखो अणुपत्त । अणपरिहारि वि [अणुपरिहारिन्] 'परिहारी' | अणुप्पदा सक [अनुप्र+दा] दान देना, फिरको मदद करनेवाला, त्यागी मुनि की सेवा- | फिर देना। शुश्रूषा करनेवाला।
अणुप्पदाण न [अनुप्रदान] दान, फिर-फिर अणुपवन वि [अनुप्रपन्न] प्राप्त ।
दान देना। अणुपवाएत्त वि [अनुप्रवाचयितु] पाठक, | अणुप्पभु पु [अनुप्रभु] स्वामी के स्थानापन्न, उपाध्याय ।
प्रतिनिधि । अणुपवाय देखो अणुप्पवाय = अनुप्र + वाचय । | अणुप्पया देखो अणुप्पदा । अणुपविट्ट वि [अनुप्रविष्ट] पीछे से प्रविष्ट । | अणुप्पवत्त सक [अनुप्र + वृत्] अनुसरण
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हुआ।
अणुप्पवाइत्तु-अणुभुंज संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष करना ।
वाला। अणप्पवाइत्त । वि [ अनुप्रवाचयितृ ] | अणुबंधण न [अनुबन्धन] अनुकूल बन्धन । अणुप्पवाएत्तु , अध्यापक, पाठक, पढ़ानेवाला। अणुबंधणा स्त्री [अनुबन्धना] अनुसन्धान, अणुप्पवाद पुं [अनुप्रवाद] कथन ।
विस्मृत अर्थ का सन्धान । अणुप्पवाय सक [ अनुप्र + वाचय ] पढ़ाना ।। अणुबंधिअ न [दे] हिक्का-रोग, हिचकी । अणुप्पवाय न [अनुप्रवाद] नवाँ पूर्व, बार- अणुबंधेल्ल वि [अनुबन्धिन्] विच्छेद-रहित,
हवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक अंश-विशेष । _ अनुगमवाला, अविनश्वर । अणुप्पविट्ठ देखो अणुपविट्ठ।
अणुबज्झ ) वि [अनुबद्ध ] बँधा हुआ, अणुप्पवित्ति स्त्री [अनुप्रवृत्ति] अनुप्रवेश, अणुबद्ध ) संबद्ध । सतत । व्याप्त । अत्यन्त । अनुगम।
प्रतिबद्ध । उत्पन्न । अणुप्पविस देखो अणुपविस।
अणुबद्ध वि [अनुबद्ध] अनुगत । पीछे बँधा अणुप्पवेस देखो अणुपवेस। अणुप्पसाद (शौ) सक [ अनुप्र + सादय् ] | | अणुबूह देखो अणुवूह। प्रसन्न करना।
| अणुब्भड वि [अनुभट] अनुद्धत, अनुल्वण । अणुप्पसूय वि [ अनुप्रसूत ] उत्पन्न, पैदा अणुब्भूय वि [अनुभूत] अप्रकट, अनुत्पन्न । किया हुआ।
अणुभअ देखो अणुभव = अनुभव । अणुप्पाइ वि [ अनुपातिन् ] युक्त, संबद्ध, अणुभव सक [अनु + भू] अनुभव करना । संबन्धी।
जानना, समझना । कर्मफल को भोगना । अणुप्पिय वि [अनुप्रिय] अनुकूल, इष्ट । | अणुभव पुं [अनुभव] ज्ञान, बोध, निश्चय । अणुप्त वि [अनुत्प्रयत्] दूर करता, हटाता कर्म-फल का भोग।
अणुभव्व वि [अनुभव्य] आसन्न भव्य । अणुप्पेच्छ देखो अणुप्पेह।
अणुभाग पुं [अनुभाग] प्रभाव, माहात्म्य । अणुप्पेसियवि[अनुप्रेषित]पीछे से भेजा हुआ । सामर्थ्य । कर्मों का विपाक-फल । कर्मों का अणुप्पेह सक [अनुप्र + ईक्ष्] चिन्तन करना, रस, कर्मों में फल उत्पन्न करने की शक्ति । विचारना।
°बंध पुं [°बन्ध] कर्म-पुद्गलों में फल उत्पन्न अणुप्पेहा स्त्री [अनुप्रेक्षा] चिन्तन, भावना, करने की शक्ति का बनना । विचार, स्वाध्याय-विशेष ।
अणुभाय । पुं [अनुभाव] ऊपर देखो। अणुप्फास पुं [अनुस्पर्श] अनुभाव, प्रभाव । अणुभाव ) मनोगत भाव की सूचक चेष्टा । अणु फुसिय वि [अनुप्रोञ्छित] पोंछा हुआ, मेहरबानी । साफ किया हुआ।
| अणुभावग वि [अनुभावक] बोधक, सूचक । अणुबंध सक [ अनु + बन्ध् ] अनुसरण अणुभास सक [अनु + भाष्] अनुवाद करना।
करना । संबन्ध बनाये रखना । अणुबंधंति । कही हुई बात को उसो शब्द में, शब्दान्तर में अणुबंध पुं [अनुबन्ध] निरन्तरता, विच्छेद या दूसरी भाषा में कहना । चिन्तन करना । का अभाव । संबन्ध । कर्मों का संबन्ध । कर्मों | अणुभासय वि [अनुभाषक] अनुवादक, अनुका विपाक, स्नेह ।
वाद करनेवाला। अणुबंधअ वि [अनुबन्धक] अनुबन्ध करने | अणुभुंज सक [अनु + भुज्] भोग करना।
हुआ।
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४२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अणुभूइ-अणुरूव अणुभूइ स्त्री [अनुभूति] अनुभव। अणुम्मुह वि [अनुन्मुख] विमुख । अणुभूय वि [अनुभूत] ज्ञात. निश्चित । °पुन्व अणुय पुं[अणुक] धान्य-विशेष । 'वि [पूर्व] पहले ही जिसका अनुभव हो गया अणुयंपा देखो अणुकंपा। हो वह ।
अणुयत्त देखो अणुवत्त = अनु + वृत् । अणुभूस सक [अनु + भूष्] शोभित करना । अणुयत्तिय वि [अनुवृत्त] अनुकूल किया हुआ, अणुमइ स्त्री [अनुमति] सम्मति ।
प्रसादित । अणुमंतव्व देखो अणुमण्ण ।
अणुयरिय वि [अनुचरित] आचरित, अनुअणुमग्ग न [दे] पीछे-पीछे । गामि वि | ष्ठित । [°गामिन् पीछे-पीछे जानेवाला। अणुया देखो अणुण्णा। अणुमज सक [अनु + मस्ज] विचार करना ।
अणुयाव देखो अणुताव । अणुमण्ण सक [अनु + मन् ]अनुमोदन करना ।
अणुयास पुं [अनुकाश] विशेष विकास ।
अणुरंगा स्त्री [दे] गाड़ी। अणुमन्निय । वि [अनुमत] सम्मत ।
अणुरंगि वि [अनुरङ्गिन] अनुकरण-कर्ता । अणुमय
अणुरंगिय वि [अनुरङ्गित] रंगा हुआ । अणुमर अक [अनु + मृ]मरना । सती होना ।
अणुरंज सक [ अनु + रञ्जय ] अनुरागी अणुमर अक [अनु + मृ] क्रम से मरना, पीछे- |
करना, प्रीणित करना। पीछे मरना।
अणुरंजिएल्लय । वि [अनुरञ्जित] अनुरक्त अणुमहत्तर वि [अनुमहत्तर] मुखिया का
अणुरंजिय किया हुआ, अनुरागी प्रतिनिधि । अणुमाण न [अनुमान] अटकल-ज्ञान, हेतु के
बनाया हुआ।
अणुरक वि [अनुरक्त] अनुराग-प्राप्त । द्वारा अज्ञात वस्तु का निर्णय । अणुमाण न [अनुमान] अभिप्राय-ज्ञान । अनु
अणरज अक [अनु + रज्] अनुरक्त होना । सार।
अणुरत्त देखो अणुरक्क। अणुमाण सक [अनु + मानय] अनुमान अणुरसिय वि [अनुरसित] बोलाया हुआ, करना।
आहूत । अणुमाय वि [अणुमात्र] बहुत थोड़ा, थोड़ा
अणुराइ । वि [अनुरागिन्] अनुरागपरिमाणवाला।
अणुराइल्ल वाला, प्रेमी । अणुमाल अक [अनु + मालय] शोभित होना, अणुराग पुं [अनुराग] प्रेम, प्रीति । चमकना।
अणुरागय वि [अन्वागत] पीछे आया हुआ । अणुमिण सक [अनु + मा] अटकल से जानना । ठीक-ठीक आया हुआ । न. स्वागत । अणुमेअ वि [अनुमेय] अनुमान के योग्य । अणुराय देखो अणुराग । अणुमेरा स्त्री [अनुमर्यादा] हद । | अणुराहा स्त्री [अनुराधा] नक्षत्र-विशेष । अणुमोय सक [अनु + मुद्] अनुमति देना, | अणुरुंध सक [अनु + रुध्] अनुरोध करना । प्रशंसा करना।
स्वीकार करना । आज्ञा का पालन करना । अणुमोयग वि [अनुमोदक] अनुमोदन करने- प्रार्थना करना । अक. अधीन होना । वाला।
| अणुरूअ ) वि [अनुरूप] योग्य, उचित । अणुम्मुक्त वि [अनुन्मुक्त ] नहीं छोड़ा हुआ । । अणुरूव ) अनुकूल । सदृश । न. समानता,
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अणुरोह-अणुवलद्धि संक्षिष्ट प्राकृत-हिन्दी कोष योग्यता।
अणुवक्ख वि [अनुपाख्य] नाम-रहित, अनिअणुरोह पुं [अनुरोध] प्रार्थना, दाक्षिण्य ।।
र्वचनीय। अणुलग्ग वि [अनुलग्न] पीछे लगा हुआ । अणुवक्खड वि [अनुपस्कृत] संस्कार-रहित । अणुलद्ध वि [अनुलब्ध] पीछे से मिला हुआ । अणुवच्च सक [अनु + व्रज्] अनुसरण करना । फिर से मिला हुआ ।
अणवजीवि वि [अनुपजीविन्] अनाश्रित । अणुलाव पुं [अनुलाप] फिर-फिर बोलना ।। __ आजीविका-रहित । अणुलिप सक [अनु + लिप्] पोतना, लेप | अणुवजुत्त वि [अनुपयुक्त असावधान । करना । फिर से पोतना।
अणुवज्ज सक [गम्] जाना। अणुलित्त वि [अनुलिप्त] लिप्त, पोता हुआ। | अणुवज्ज सक [दे] रोवा-शुश्रूषा करना । अणुलिह सक [अनु + लिह] चाटना । छूना । | अणुवट्ट देखो अणुवत्त = अनु + वृत् । अणुलेवण न [अनुलेपन] लेप, पोतना । अणुवड सक [अनु + पत्] अभिन्न होना । फिर से पोतना।
अणुवडइ। अणुलेविय वि [अनुलेपित] लिप्त, पोता| अणुवडिअ वि [अनुपतित] पीछे गिरा हुआ । हुआ।
अणुवत्त सक [अनु -- वृत्] अनुसरण करना । अणुलोम सक [अनुलोमय्] क्रम से रखना। सेवा-गुश्रूषा करना । अनुकूल बरतना । व्याकअनुकूल करना।
रण आदि के पूर्व-सूत्र के पद का, अन्वय के अणुलोम न [अनुलोम] अनुक्रम, यथाक्रम । लिए नीचे के सूत्र में जाना । अणुलोम वि [अनुलोम] सीधा, अनुकूल । अणुवत्त वि [अनुवृत्त] अनुत्पन्न । अणुल्लग देखो अणुल्लय।
| अणुवत्त वि [अनुवृत्त] अनुसृत, अनुगत । अणुल्लण वि [अनुल्बण] अनुद्धत, अनुद्भट । अनुकूल किया हुआ। प्रवृत्त । अणुल्लय पुं [अनल्लक] एक द्वीन्द्रिय क्षुद्र | अणुवत्तग वि [अनुवर्त्तक] अनुकूल प्रवृत्ति जन्तु ।
करनेवाला, सेवा करनेवाला। अणुल्लाव पुं [अनुल्लाप] खराब कथन, दुष्ट अणुवत्तग वि [अनुवर्तक] अनुसरण-कर्ता । उक्ति ।
अणुवत्तय देखो अणुवत्तग। अणुव पुं [दे] बलात्कार, जबरदस्ती।
अणुवत्ति स्त्री [अनुवृत्ति] अनुसरण । अनुकूल अणुवइट्ट वि [अनुपदिष्ट] अ-कथित, अव्या- प्रवृत्ति । अनुगम ।
ख्यात । जो पूर्व-परम्परा से न आया हो। | अणुवम वि [अनुपम] उपमा-रहित, अद्वितीय । अणुवउत्त वि [अनुपयुक्त] असावधान। | अणुवमा स्त्री [अनुपमा] एक प्रकार का खाद्य अणुवएस पु [अनुपदेश] अयोग्य उपदेश । द्रव्य । उपदेश का अभाव । स्वभाव ।
अणुवय देखी अणुव्वध । अणुवओग वि [अनुपयोग] उपयोग-रहित । | अणुवय सक [अनु + वद्] अनुवाद करना, असावधानता।
कहे हुए अर्थ को फिर से कहना । अणुवंक वि[अनुवक्र] अत्यन्त वक्र, बहुत टेढ़ा । | अणुवरय वि [अनुपरत] असंयत, अनिग्रही । अणुवंदण न [अनुवन्दन] प्रति-नमन, प्रति- | क्रिवि० निरन्तर, हमेशा। प्रणाम ।
अणुवलद्धि स्त्री अनुपलब्धि] अभाव, अणुवक्क देखो अणुवंक।
अप्राप्ति । अभाव-ज्ञान ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणुवलब्भमाण-अणुवेह अणुवलब्भमाण वि [अनुपलभ्यमान] जो । अकस्मात् मृत्यु हो जाने पर गण की रक्षा के उपलब्ध न होता हो, जो जानने में न आता | लिए शास्त्रीय विधान । हो ।
| अणुवालय वि [अनुपालक] रक्षक, पुं. गोशाअणुवलेवय वि [अनुपलेपक] उपलेप-रहित, | लक के एक भक्त का नाम । अलिप्त ।
अणुवास सक [अनु + वासय् व्यवस्था करना। अणुवसंत वि [अनुपशान्त] अशान्त, कुपित । अणुवास पुं[अनुवास] एक स्थान में अमुक अणुवसम पुं [अनुपशम] उपशम का अभाव । काल तक रह कर फिर वहीं वास करना। अणुवसु वि [अनुवसु] प्रीतिवाला ।
अणुवासण न [अनुवासन] ऊपर देखो । अणुवह न [अनुपथ] पीछे ।
यन्त्र-द्वारा तेल आदि को अपान से पेट में अणुवहण न [अनुवहन] वहन ।
चढ़ाना। अणुवहय वि [अनुपहत] अभिनाशित । अणुवासणा स्त्री [अनुवासना] ऊपर देखो । अणुवहुआ स्त्री [दे] नवोढ़ा स्त्री, दुलहिन । कप्प पुं [°कल्प] अनुवास के लिए शास्त्रीय अनुवाइ वि [अनुपातिन्] अनुसरण करनेवाला व्यवस्था । सम्बन्ध रखनेवाला।
अणुवासग वि [अनुपासक] सेवा नहीं करनेअणुवाइ वि [अनुवादिन्] अनुवाद करनेवाला । | __ वाला, पुं. जैनेतर गृहस्थ । उक्त अर्थ को कहनेवाला ।
अणुवासर न [अनुवासर प्रतिदिन । अणुवाइ वि [अनुवाचिन्] पढ़नेवाला, | अणुवित्ति स्त्री [अनुवृत्ति] अनुकूल वर्तन । अभ्यासी।
अनुसरण । अणुवाएज्ज वि [अनुपादेय] ग्रहण करने के | अणुविद्ध वि [अनुविद्ध] संबद्ध । अयोग्य ।
अणुविस सक [अनु + विश्] प्रवेश करना । अणुवाद देखो अणुवाय = अनुवाद । अणुविहाण न [ अनुविधान ] अनुकरण । अणुवादि देखो अणुवाइ = अनुपातिन् । __ अनुसरण । अणुवाय पुं [अनुपात] अनुसरण । संबन्ध, । अणुवीइ स्त्री [अनुवीचि] अनुकूलता। संयोग । आगमन ।
अणुवोइ अणुवाय पुं [अनुवात] अनुकूल पवन । वि. अणवीई | अ [अनुविचिन्त्य] विचार
कर, पर्यालोचना कर । देखो अनुकूल पवन वाला प्रदेश- स्थान । अणुवाय [अनुपाय] निरुपाय । अणुवाय पुं [अनुवाद] अभाषण, उक्त बात अणुवीइत्तु । देखो अणुवीई। को फिर से कहना।
अणुवीय । अणुवायण न [अनुपातन] अवतारण, उता
अणुवूह सक [अनु + बृह, ] अनुमोदन करना, रना।
प्रशंसा करना। अणुवायय वि [अनुवाचक] कहनेवाला।
अणुव्हेत्तु वि [अनुबंहित] अनुमोदन करनेअणुवाल देखो अणुपाल ।
वाला। अणुवालण न [अनुपालन] रक्षण, परिपालन। अणुवेद सक [अनु + वेदय] अनुभव करना। अणुवालणा स्त्री [अनुपालना] ऊपर देखो। अणुवेध । पुं [अनुवेध] अनुगम, अन्वय, °कप्प पुं [कल्प] साधु गण के नायक की । अणुवेह , सम्बन्ध । संमिश्रण ।
अणुवोतिय
अणुचित ।
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अणुवेयण - अनुसुय
अणुवेण न [ अनुवेदन] फल-भोग, अनुभव | अणुवेल अ [अनुवेल ] सदा । अणुवेलंधर पुं [अनुवेलन्धर ] नाग - कुमार देवों का एक इन्द्र अणुवे देखो अप्पे |
अणुव्व वि [अनुजित ] अनुसृत । अणुव्वज सक [अनु + व्रज् ] अनुसरण करना, सामने जाना | अणुव्वयन [ अणुव्रत ] साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा लघु व्रत । पुं श्रावक-धर्म अणुव्वयण न [ अनुव्रजन] अनुगमन । अणुब्व्वयय वि [अनुव्रजक] अनुसरण करने
वाला ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अणुव्वया स्त्री [अनुव्रता ] पतिव्रता स्त्री । अणुव्व वि [अनुवश] अधीन | अणुव्वाण वि [अनुद्वान ] खुला हुआ | स्निग्ध |
अणुविग्गवि [ अनुद्विग्न] खेद रहित । अणुव्विवाग न [ अनुविपाक ] विपाक के
अणुसंग पुं [ अनुषङ्ग ] प्रसंग, प्रस्ताव । संसर्ग । अणुसंग वि [आनुषङ्गिक] प्रासङ्गिक । अणुसंचर सक [अनुसं + चर्] परिभ्रमण पीछे चलना ।
करना,
अनुभव करना ।
अणुसंसर तक [अनुसं + सृ] गमन करना,
भ्रमण करना ।
संधि [] अविच्छिन्न हिक्का | अणुसंभर सक [अनु + स्मृ] याद करना | अणुसंवेयण न [ अनुसंवेदन] पीछे से जानना,
अणुसंसर सक [अनुसं + स्मृ] स्मरण करना । अणुसज्ज अ[अनुसं + संज् ] अनुसरण करना, पूर्व काल से कालान्तर में अनुवर्तन करना, प्रीति करना, परिचय करना । अणुस व [ अनुशिष्ट] शिक्षित । अणुसट्ठि वि [ अनुशिष्टि] शिक्षण, सीख, श्लाघा । आज्ञा, सम्मति ।
अणुसमय न [ अनुसमय ] प्रतिक्षण | अणुसय पुं [अनुशय ] पश्चात्ताप, अभिमान । अणुसर सक [ अनु + सृ ] पीछा करना । अनुवर्तन करना ।
अनुसार ।
अणुवीय देखो अणुवीइ ।
अणुसंकम सक [ अनुसं + क्रम् | अनुसरण अणुसार पुं [अनुसार ] अनुसरण, अनुवर्तन |
करना ।
माफिक ।
अणुसर सक [ अनु + स्मृ ] याद करना, चिन्तन करना |
अणुरिव [अनुस्मृर्तृ] याद करनेवाला | अणुसरिच्छ वि [अनुसदृश ] समान, योग्य ।
अणुसरिस
अणुसार पुं [अनुस्वार] वर्ण- विशेष, बिन्दी | a. अनुनासिक वर्ण ।
अणुसास सक [अनु + शास्] उपदेश देना, आज्ञा करना, सजा देना ।
अणुसंज देखो अणुसज्ज ।
अणुसंध सक [अनुसं + धा] खोजना, विचार अणुसिट्ठ देखो अणुसट्ट |
करना, पूर्वापर का मिलान करना । अणुसंध न [ अनुसंधान ] विचार, अणुसंधान चिन्तन, गवेषणा, खोज, पूर्वापर की संगति ।
अणुसासण न [ अनुशासन ] सीख, उपदेश । आज्ञा । शिक्षा, सजा | अनुकम्पा । अणुसिक्खिर वि [अनुशिक्षितृ] सीखनेवाला ।
अणुस देखो अणुस । अणुसिण वि [ अनुष्ण] ठण्डा । अणुसील सक [ अनु + शीलय् ] पालन करना,
रक्षण करना ।
अणुवि [] अनुकूल ।
अणुसुमर सक [अनु + स्मृ] याद करना । अणु अक [ अनु + स्वप्] सोने का अनु
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणुसूआ-अणोत्तप्प करण करना।
| अणेअ वि [अनेक] देखो अणेक्क । अणुसआ स्त्री [दे] शीघ्र ही प्रसव करनेवाली | अणेकज्झ वि [दे] चञ्चल । स्त्री।
अणेक्क । वि [अनेक] एक से अधिक । अणुसूय वि [अनुस्यूत] अनुविद्ध, मिला हुआ। अणेग ) °करण न पर्याय, धर्म, अवस्था । अणुसूयग वि [अनुसूचक जासूस की एक प्राइय वि [ रात्रिक] अनेक रातों में होनेश्रेणी ।
वाला, अनेक रास संबन्धी (उत्सवादि)। अणुसेढि स्त्री [अनुश्रेणि] सीधी लाइन, न. अणेगंत पुं [अनेकान्त] अनिश्चय, नियम का लाइनसर ।
अभाव । °वाय पुं [°वाद] स्याद्वाद, जैनों अणुसोय पुं [अनुस्रोतस्] अनुकल प्रवाह । का मुख्य सिद्धान्त । वि. अनुकल । न. प्रवाह के अनुसार।
अणेगावाइ वि [अनेकवादिन] पदार्थों को अणुसोय सक [अनु + शुच्] सोचना, चिन्ता
सर्वथा अलग-अलग माननेवाला, अक्रियावादकरना । अफसोस करना ।
मत का अनुयायी। अणुस्सर देखो अणुसर = अनु + स्मृ ।
अणेच्छंत वि [अनिच्छत्] नहीं चाहता अणुस्सर देखो अणुसर = अनु + सृ ।
हुआ। अणुस्सार पुं [अनुस्वार] अनुस्वार, बिन्दी । अणेज वि [अनेज] निष्कम्प । वि. अनुस्वारवाला अक्षर ।
अणेज वि [अज्ञेय] जानने के अयोग्य, जानने अणुस्सुय वि [अनुत्सुक] उत्कण्ठा-रहित । के अशक्य । अणुस्सुय वि [अनुश्रुत] अवधारित, सुना | अणेलिस वि [अनीदृश] अनुपम, असाधारण । हुआ । न. भारत-आदि पुराण-शास्त्र । | अणेवंभूय वि [अनेवम्भूत ] विलक्षण, अणुहर सक [अनु + ह] नकल करना ।। विचित्र। अणुहव सक [ अनु + भू ] अनुभव करना । । | अणस देखो अण्णेस । अणुहारि वि [अनुहारिन्अनुकरण करने | अणेसणा स्त्री [अनेषणा] एषणा का अभाव । वाला।
अणेसणिज्ज वि [अनेषणीय] अकल्पनीय, जैन अणुहाव देखो अणुभाव ।
साधुओं के लिए अग्राह्य (भिक्षा-आदि)। अणुहियासण न [अन्वध्यासन] धैर्य से सहन | अणोउया स्त्री [अनृतुका] जिसको ऋतु-धर्म करना।
न आता हो वह स्त्री। अणुहु सक [अनु + भू] अनुभव करना।। अणोक्वंत वि [अनवक्रान्त] जिसका पराभव अणुहुंज सक [ अनु + भुञ्ज ] भोग करना। न किया गया हो वह । अणुहुत्त देखो अणुहू।
'अणोग्गह देखो अणुग्गह - अनवग्रह । अणुहअ वि [अनुभूत] जिसका अनुभव किया
| अणोग्घसिय वि [अनवर्षित] अमाजित । गया हो वह । न. अनुभव ।
अणोज्ज वि [अनवद्य] निर्दोष, शुद्ध । अणुहो सक [अनु + भू] अनुभव करना ।। अणोज्जंगी स्त्री [अनवद्याङ्गी] भगवान् अणूकप्प देखो अणुकप्प ।
महावीर की पुत्री का नाम । अणूण वि [अनून] अधिक ।
| अणोज्जा स्त्री [अनवद्या] ऊपर देखो। अणूय ! पुं [अनूप ] अधिक जलवाला अणोणअ वि [अनवनत] नहीं झुका हुआ ।
अणोत्तप्प देखो अणुत्तप्प ।
अणूव , देश।
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हुआ।
अणोम-अण्णाण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४७ अणोम वि [अनवम] परिपूर्ण । । खानेवाला । विहि पुंस्त्री [विधि] पाकअणोमाण न [अनपमान] सत्कार ।
कला। अणोरपार वि [दे] प्रचुर, प्रभूत । अनादि- अण्ण न [अर्णस्] पानी । अनन्त । अति विस्तीर्ण।
अण्ण वि [दे] आरोपित । खण्डित । अणोरुम्मिअ वि [अनुद्वान] गीला । "अण्ण देखो कण्ण = कर्ण । अणोलय न [दे] प्रातःकाल ।
अण्णअ पुं [दे] तरुण । धूर्त । देवर । अणोवणिहिया स्त्री [अनौपनिधिकी] आनु- अण्णइअ वि [दे] तृप्त । सर्वार्थ-तृप्त । पूर्वी का एक भेद क्रम-विशेष ।
अण्णण्ण वि [अन्योन्य] परस्पर । अणोवणिहिया स्त्री [अनुपनिहिता] ऊपर अण्णण्ण वि [अन्यान्य] और-और, अलगदेखो।
अलग । अणोल्ल वि [अनार्द्र] सूखा हुआ। °मण वि अण्णत्त अ [अन्यत्र]दुसरे में, भिन्न स्थान में । [°मनस्क निर्दय ।
अण्णत्ति स्त्री [दे] अवज्ञा, अपमान । अणोवदग्ग वि [अनवदन] अनन्त ।
अण्णत्थ देखो अण्णत्त ।
अण्णत्थ वि [अन्यस्थ] दूसरे (स्थान) में रहा अणोवम वि [अनुपम] अद्वितीय । अणोवसंखा स्त्री [अनुपसंख्या] अज्ञान, सत्य
अण्णत्थ वि [अन्वर्थ] यथार्थ, यथा नाम तथा ज्ञान का अभाव ।
गुण वाला। अणोवहिय वि [अनुपधिक] परिग्रहरहित,
अण्णमण्ण देखो अण्णण्ण = अन्योन्य । संतोषी । सरल ।
अण्णमय वि [दे] पनरुक्त । अणोवाहणग। वि [अनुपानत्क] जो जूता न :
अण्णय देखो अन्नय। अणोवाहणय पहिना हो।
अण्णयर वि [अन्यतर] दो में से कोई एक । अणोसिय वि [अनुषित] जिसने वास न अण्णया अ [अन्यदा कोई समय में । किया हो । अव्यवस्थित।
अण्णव पुं [अर्णव समुद्र । संसार । अणोहतर वि [अनोघन्तर] पार जाने के
अण्णव न [ऋणवत् एक लोकोत्तर मुहूर्त का लिये असमर्थ ।
नाम । अणोहट्रय वि [अनपघट्टक] निरंकुश। अण्णह न [अन्वह] प्रतिदिन । अणोहीण वि [अनवहीन] हीनता-रहित ।
___अण्णह देखो अण्णत्त । अण्ण सक [ भुज् ] भोजन करना।
। अण्णह ) अ [ अन्यथा ] अन्य प्रकार से, अण्ण स [ अन्य ] दूसरा । °उत्थिय वि अण्णहा ) विपरीत रीति से । भाव पुं उलटा[तिथिक, यूथिक] अन्य दर्शन का अनु- पन । यायी। ग्गहण न [°ग्रहण] गान के समय अण्णहि देखो अण्णत्त (षड्) । होनेवाला एक प्रकार का मुख-विकार । पुं. अण्णा स्त्री [आज्ञा] आज्ञा । गान्धर्विक, गवैया । धम्मिय वि [ धार्मिक] ' अण्णाइट्ट वि [अन्वादिष्ट] जिसको आदेश भिन्न धर्म वाला।
दिया गया हो वह। अण्ण न [अन्न] नाज, चावल आदि धान्य । अण्णाइट्ट वि [अन्वाविष्ट] व्याप्त । पराधीन । भक्ष्य पदार्थ । भक्षण, भोजन । °इलाय, अण्णाइस (अप) वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा । °गिलाय वि [°ग्लायक] बासी अन्न को । अण्णाण न [अज्ञान] अज्ञान, मूर्खता । मिथ्या
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४८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अण्णाण-अत्त ज्ञान । वि. ज्ञान-रहित, मूर्ख ।
°अण्हा स्त्री [तृष्णा] तृषा, प्यास । अण्णाण न [दे] दाय, विवाह काल में वधू को | अण्हेअअ वि [दे] भ्रान्त, भूला हुआ। अथवा वर को जो दान दिया जाता है वह । अतक्किय वि [अतकित] अचिन्तित, आकअण्णाय वि [अज्ञात] अविदित ।
स्मिक । ठीक-ठीक नहीं देखा हुआ, अपरिलअण्णाय पुं [अन्याय] न्याय का अभाव । क्षित। अण्णाय विदे] आर्द्र ।
अतड त्रि [अतट] छोटा किनारा । अण्णाय वि [अन्याय्य न्याय-विरुद्ध । अतण्हाअ वि[अतृष्णाक]तृष्णा-रहित,निःस्पृह। अण्णाय्य (शौ) ऊपर देखो।
अतर देखो अयर। अण्णारिच्छ वि [अन्यादृक्ष] दूसरे के जैसा । | अतव पुं [अस्तव] अ-प्रशंसा, निन्दा। अण्णारिस वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा। | अतसी देखो अयसी। अण्णासय वि [दे] विस्तृत, बिछाया हुआ। अतिउट्ट अक [अति + त्रुट] खूब टूटना, टूट अण्णिय वि [अन्वित] युक्त ।
जाना । सब बन्धन से मुक्त होना । अण्णिया स्त्री [दे] देखो अण्णी।
अतिउट्ट सक [अति + वृत्] उल्लंघन करना । अण्णिया स्त्री [अनिका] एक विख्यात जैन
व्याप्त होना। मुनि की माता का नाम । °उत्त पुं [°पुत्र] | अतिउट्ट वि [अतिवृत्त] अतिक्रान्त । अनुगत, एक विख्यात जैन मुनि ।
व्याप्त। अण्णी स्त्री [दे] देवर की स्त्री। पति की | अतित्थ न [अतीर्थ] तीर्थ का अभाव । वह
बहिन, ननद । फूफी, पिता की बहिन । काल, जिसमें तीर्थ की प्रवृत्ति न हुई हो या अण्णु । वि [अज्ञ] अजान, निर्बोध, | उसका अभाव रहा हो । 'सिद्ध वि [°सिद्ध] अण्णुअ । मूर्ख ।
अतीर्थ काल में जो मुक्त हुआ हो वह, 'अतिअण्णुण्ण वि [अन्योन्य] परस्पर, आपस में ।
त्थसिद्धा य मरुदेवी'। अण्णूण वि [अन्यून] अहीन, परिपूर्ण । अतिहि देखो अइहि । अण्णे सक [अनु + इ] अनुसरण करना।
अतीगाढ़ वि [अतिगाढ] अति-निबिड । क्रिवि. अण्णेस सक [अनु + इष्] खोजना, तहकीकात | अत्यंत, बहुत । करना । चाहना, वांछना । प्रार्थना करना । । अत्त देखो अप्प = आत्मन् । 'लाभ पुं अण्णेसणा स्त्री [अन्वेषणा] खोज, तहकीकात [°लाभ] स्वरूप की प्राप्ति, उत्पत्ति । (प्राप)। प्रार्थना (आचा)। गृहस्थ से दी
आ (आचा)। गठस्थ से दी | अत्त वि [आत्तं] पीड़ित, हैरान (कुमा) । जाती भिक्षा का ग्रहण ।
अत्त वि [आत्त] गृहीत । स्वीकृत । पुं. ज्ञानी अण्णेसय वि [अन्वेषक] गवेषक ।
मुनि । अण्णोण्ण देखो अण्णुण्ण ।
अत्त वि [आप्त] ज्ञानादि-गुण-संपन्न, गुणी । अण्णोसरिअ वि [दे] अतिक्रान्त, उल्लंधित । | रागद्वेष वजित । प्रायश्चित्तदाता गुरु । मुक्ति । अण्ह सक [भुज्] भोजन करना। पालन | एकान्त हितकर । प्राप्त । करना । ग्रहण करना।
अत्त वि [आत्र] दुःख का नाश करनेवाला, °अण्ह न [अहन्] दिवस, ।
सुख का उत्पादक। अण्हग ) पुं [आश्रव] कर्म-बन्ध के कारण अत्तअ [अत्र] यहाँ, इस स्थान में। °भव वि अण्हय । हिंसादि।
[°भवत्] पूज्य, माननीय ।
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अत्तअ-अत्थणिऊर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अत्तअ देखो अच्चय-अत्यय ।
अत्थ देखो अट्र = अर्थ। जोणि स्त्री अत्तकम्म वि [आत्मकर्मन्] जिससे कर्म- [योनि] धनोपार्जन का उपाय, साम, दाम, बन्धन हो वह । पं. आधाकम दोष ।
दण्ड रूप अर्थ-नीति । °णय पुं [°नय] शब्द अत्तट्ट वि [आत्मार्थ] आत्मीय, स्वकीय । | छोड़ अर्थ को ही मुख्य वस्तु माननेवाला पक्ष । पुं. स्वार्थ ।
°सत्थ न [शास्त्र] अर्थ-शास्त्र, संपत्तिअत्तट्टिय वि [आत्मार्थिक] आत्मीय । जो शास्त्र । °वइ पं [पति] धनी । कुबेर । अपने लिए किया गया हो ।
°वाय पुं [°वाद] गुणवर्णन । दोष-निरूपण । अत्तण , देखो अप्प = आत्मन् । केरक | गुण-चाचक शब्द । दोष-वाचक शब्द । °वि अत्तणअ । वि [आत्मीय] निजी । वि [°वित्] अर्थ का जानकर । °सिद्ध वि अत्तणअ । (शौ) वि [आत्मीय] स्वकीय । | प्रभूत धनवाला । पुं. ऐरवत क्षेत्र के एक अत्तणक ,
भावी जिनदेव । लिय न [°ालीक] धन के अत्तणिज्जिय वि [आत्मीय] स्वकीय । लिए असत्य बोलना । °गलोयण न [°लोचन] अत्तणीअ (शौ) ऊपर देखो ।
पदार्थ का सामान्य ज्ञान । लोयण न अत्तमाण देखो आवत्त = आ + वृत् । [°लोकन] पदार्थ का निरीक्षण। . अत्तय पुं [आत्मज] पुत्र । 'या स्त्री [जा] अत्थ गं [अस्त] जहाँ सूर्य अस्त होता है वह पुत्री, लड़की।
पर्वत । मेरु पर्वत । वि. अविद्यमान । °गिरि अत्तव्व वि [अत्तव्य] भक्ष्य ।
पुं अस्ताचल । °सेल पुं [शैल] अस्ताचल । अत्ता स्त्री [दे] माता । सासू । फूफी । सखी ।।
गमि। °अत्ता देखो जत्ता।
अत्थ [अस्त्र] हथियार । अत्ताण देखो अत्त = आत्मन् ।
अत्थ सक [अर्थय] याचना करना, प्रार्थना अत्ताण वि [अत्राण] शरण-रहित, रक्षक- करना, विज्ञप्ति करना। वर्जित । पुं. कन्धे पर लाठी रखकर चलनेवाला | अत्थ अक [स्था] बैठना। मुसाफिर । फ़टे-टूटे कपड़े पहनकर मुसाफिरी | अत्थ ) देखो अत्त = अत्र । करनेवाला यात्री।
अत्थं ) अत्ति पुं [अत्रि] इस नाम का एक ऋषि । अत्थंडिल वि [अस्थण्डिल] साधुओं के रहने अत्ति स्त्री [अत्ति] दुःख । हर वि [ हर] | | के लिए अयोग्य स्थान, क्षुद्र जन्तुओं से व्याप्त दुःख का नाश करनेवाला।
स्थान । अत्तिहरी स्त्री [दे] दूती।
अत्थकिरिआ स्त्री [अर्थक्रिया] वस्तु का अत्तीकर सक [आत्मी + कृ] अपने अधीन व्यापार, पदार्थ से होनेवाली क्रिया। करना, वश करना।
अत्थक्क न [दे] अकाण्ड, अकस्मात्, बेसमय । अत्तक्करिस , पुं [आत्मोत्कर्ष] अभिमान । | वि. अखिन्न । क्रिवि, अनवरत, हमेशा ।। अत्तुक्कोस ।
अत्थग्घ वि [दे] मध्य-वर्ती, बीच का। अत्तेय पुं [आत्रेय] अत्रि ऋषि का पुत्र । एक | अगाध, गंभीर । न. लम्बाई, आयाम । स्थान, जैन मुनि ।
जगह। अत्तो अ [अतस] इससे, इस हेतु से । यहां | अत्थणिऊर पुन [अर्थनिपूर] देखो अच्छ
णिउर ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अत्थणिऊरंग-अत्थुअ अत्थणिऊरंग पुन [अर्थनिपूराङ्ग] देखो । अस्थि वि [अर्थिन्] याचक । धनी, मालिक, अच्छणिउरंग।
स्वामी । गरजू, चाहनेवाला । अत्थत्थि वि [अर्थाथिन्] धन की इच्छावाला । | अत्थि न [अस्थि] हाड़, हडडी ।। अत्थम अक [अस्तम् + इ] अस्त होना, अस्थि अ [अस्ति] सत्त्व-सूचक अव्यय है, अदृश्य होना।
| प्रदेश, अवयव । अवत्तव्व वि [अवक्तव्य] अत्थयारिआ स्त्री [दे] सखी ।
सप्तभङ्गी का पाँचवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्य अत्थर सक [आ+स्तु] बिछाना, शय्या | आदि की अपेक्षा से विद्यमान और एक ही करना, पसारना।
साथ कहने को अशक्य पदार्थ । 'काय पुं अत्थरय वि [आस्तरक] आच्छादन करने | प्रदेशों का-अवयवों का समूह । °णत्थवाला । पुं. बिछौने के ऊपर का वस्त्र । वत्तव्व वि [°नास्त्यवक्तव्य] सप्तभङ्गी का अत्थरय वि [अस्तरजस्क शुद्ध ।
सातवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थवण देखो अत्थमण ।
विद्यमान, परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थसिद्ध पुं[अर्थसिद्ध] दशमी तिथि । अविद्यमान और एक ही समय में दोनों धर्मों अत्था देखो अठ्ठा = आस्था ।
से कहने को अशक्य पदार्थ । °त्त न [°त्व] अत्था ) सक [अस्ताय] अस्त होना, विद्यमानता। °त्ता स्त्री [°ता] हयाती। अत्थाअ । डूब जाना, अदृश्य होना । °त्तिणय पुं [इतिनय] द्रव्याथिक नय । अत्थाअ वि [अस्तमित] डबा हुआ।
नत्थि वि [°नास्ति] सप्तभङ्गी का तीसरा अत्थाइया स्त्री [दे] गोष्ठी-मण्डप ।
भङ्ग-प्रकार, स्वद्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थाण न [आस्थान] सभा, सभा-स्थान ।
विद्यमान और परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थाणिय वि [अस्थानिन्] गैर-स्थान में
अविद्यमान वस्तु । नत्थिप्पवाय न
[°नास्तिप्रवाद] बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का लगा हुआ। अत्थाणी स्त्री [आस्थानी] सभा-स्थान ।
एक भाग, चौथा पूर्व । अत्थाणीअ वि [आस्थानीय] सभा-संबन्धी । अत्थिक्क न [आस्तिक्य] आत्मा-परलोक आदि अत्थाम वि [अस्थामन्] निर्बल ।।
पर विश्वास । अत्थार पुंदे] सहायता ।
अत्थिय देखो अत्थि = अर्थिन् । अथारिय पुंदे] नौकर, कर्मचारी ।
अत्थिय वि [अर्थिक] धनवान् । अत्थावरगह देखो अत्थुग्गह ।
अत्थिय न [अस्थिक] हाड़ । पुं वृक्ष-विशेष । अत्थावत्ति स्त्री [अर्थापत्ति] अनुक्त अर्थ को
न. बहु बोजवाला फल-विशेष । अटकल से समझना, एक प्रकार का अनुमान- अस्थिय वि [आस्तिक] आत्मा परलोक आदि ज्ञान।
की हयाती पर श्रद्धा रखनेवाला । अत्थाह वि [अस्ताघ] थाह-रहित, गंभीर । | अत्थिर देखो अथिर । नासिका के ऊपर का भाग भी जिसमें डूब सके अत्थीकर सक [अर्थी+कृ] प्रार्थना करना। इतना गहरा जलाशय । पुं. अतीत चौबीसी में याचना करना । भारत में समुत्पन्न इस नाम के एक तीर्थंकर- | अत्थु सक [आ + स्तृ] बिछाना, शय्या देव ।
करना। अत्थाह वि [दे] देखो अत्थरह। | अत्थुअ वि [आस्तृत] बिछाया हुआ।
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अत्थुग्गह-अद्दण्ण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अत्थुग्गह पं [अर्थावग्रह] इन्द्रियाँ और मन । अदिस्स देखो अहिस्स । द्वारा होनेवाला ज्ञान-विशेष, निर्विकल्पक अदीण वि [अदीन] दीनता-रहित । सत्तु पुं ज्ञान ।
[°शत्रु] हस्तिनापुर का एक राजा। अत्थुग्गहण न [अर्थावग्रहण] फल का अदु अ [दे] आनन्तर्य-सूचक अव्यय, अब, निश्चय ।
इससे । अथवा, या अधिकारान्तर का सूचक । अत्थुड वि [दे] छोटा।
अदुत्तरं अ [दे] आनन्तर्य-सूचक अव्यय, अब, अत्थुरण न [दे. आस्तरण] बिछौना ।
बाद । अत्थुरिय वि दे. आस्तृत] बिछाया हुआ । अदुय न [अद्रुत] धीरे-धीरे । बंधण न अत्थुवड न [दे] भिलावाँ वृक्ष का फल । । [°बन्धन] दीर्घकाल के लिए बन्धन । अत्थेक्क वि [दे] आकस्मिक, अचिन्तित ।। । अदुव । अ [दे] या । और । अत्थोग्गह देखो अत्थुग्गह ।
अदुवा अत्थोग्गहण देखो अत्थुग्गहण ।
अदोलि । वि [अदोलिन्] स्थिर । अत्थोडिय वि [दे] आकृष्ट ।
अदोलिर । अत्थोभय वि [अस्तोभक] 'उत', 'वै' आदि अद्द वि [आर्द्र] गीला, अकठिन । पुं. इस नाम निरर्थक शब्दों के प्रयोग से अदूषित ।। का एक राजा । एक प्रसिद्ध राजकुमार और अत्थोवग्गह देखो अत्थुग्गह।
पीछे से जैन मुनि । वि. आर्द्रराजा के वंशज । अथक्क न [दे] अकाण्ड, अनवसर, अकस्मात् ।
नगर-विशेष । °कुमार पुं एक राजकुमार (षड्) । वि. फैलनेवाला ।
और बाद में जैन मुनि । °मुत्था स्त्री अथव्वण पुं [अथर्वण] चौथा वेद-शास्त्र ।
["मुस्ता] कन्द-विशेष, नागरमोथा । मलग अथिर वि [अस्थिर] चंचल, अनित्य, शिथिल, न [Tमलक] हरा आमला। पीलु-वृक्ष की निर्बल, मजबूती से नहीं बैठा हुआ। °णाम
कली। शण वृक्ष की कली। रिट पुं न [°नामन्] नाम कर्म का एक भेद ।
[°ाटिष्ट] कमल कौआ। अद सक [अद्] खाना।
अद्द पुं [अब्द] मेघ, वर्षा । संवत् । अदसण देखो असण।
अद्द पुं [अ] आकाश । अदसण पुं [दे] चोर, डाकू।
अद्द पुंन [दे] परिहास । वर्णन । अदंसिया स्त्री [अदंशिका] एक प्रकार की अद्द सक [अर्द्र] पीटना । मीठी चीज ।
अद्दइअ न [ अद्वैत ] भेद का अभाव । वि. अदण न [अदन] भोजन ।
भेदरहित ब्रह्म वगैरह। अदत्त वि नहीं दिया हुआ। हार वि चोर। अद्दइन्ज वि [आर्दीय] आर्द्रकुमार-सम्बन्धी ।
हारि वि [ हारिन्] चोर । दाण न इस नाम का 'सूत्रकृताङ्ग' का एक अध्ययन । [दन] चोरी । दाणवेरमण न [°ादान- अईसण न [ अदर्शन ] दर्शन का निषेध, विरमण] चोरी से निवृत्ति, तृतीय व्रत । नहीं देखना। वि. परोक्ष, अन्धा । अधम अदन देखो अद्दण्ण।
निद्रा वाला । भूअ, हूय वि [°भूत] अरब्भ वि [अदभ्र] बहुत ।
जो अदृश्य हुआ हो। अदय वि [अदय] निर्दय, निष्ठुर । अद्दण । वि [दे | व्याकुल । अदिइ देखो अइइ।
अद्दण्ण ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अद्दव-अद्ध अद्दव वि [आद्रव] गला हुआ।
परिमाणवाला घड़ा, छोटा घड़ा। °चंद पुं अद्दव्व न [अद्रव्य] अवस्तु ।
[°चन्द्र] आधा चन्द्र, गल-हस्त, गला पकड़ अद्दह सक [आ+द्रह] उबालना, पानी-तैल | कर बाहर करना । न.एक हथियार । अर्ध चन्द्र वगैरह को खूब गरम करना ।
के आकारवाले सोपान । एक तरह का बाण । अद्दहिय वि [आहित] रखा हुआ, स्थापित । 'चक्कवाल न [°चक्रवाल] गति-विशेष । अद्दा स्त्री [आर्द्रा] नक्षत्र-विशेष, छन्द-विशेष । चक्कि पुं [°चक्रिन्] चक्रवर्ती राजा से अर्ध अद्दा पुं [दे] दर्पण । पसिण पुं [प्रश्न] विभूति वाला राजा, वासुदेव । °च्छट्ठ, विद्या-विशेष, जिससे दण में देवता का °छट्ठ वि [°षष्ठ] साढ़े पाँच । 'ट्ठम वि आगमन होता है । विज्ञा स्त्री ["विद्या] | [ष्टम] साढे सात । णाराय न [°नाराच] चिकित्सा का एक प्रकार, जिससे बीमार को चौथा संहनन, शरीर के हाड़ों की रचना-विशेष । दर्पण में प्रतिबिम्बित कराने से वह नीरोग °णारीसर पुं[°नारीश्वर महादेव । तइय होता है।
वि [ तृतीय] ढाई। °तेरस वि [°त्रयोदश अदाइअ वि[दे]आदर्शवाला, आदर्श से पवित्र । साढ़े बारह । °तेवन्न वि [°त्रिपञ्चाश] अद्दाग [दे] देखो अदा।
साढ़े बावन । °द्ध वि [I] चौथा भाग। अद्दि पुं [अद्रि] पर्वत ।
"नवम वि [ नवम] साढ़े आठ । °नाराय अद्दिट्ठ वि [अदृष्ट] नहीं देखा हुआ, दर्शन | देखो °णाराय। पंचम वि [°पञ्चम] साढ़े का अविषय।
चार । °पालिअंक वि [पर्यङ्क] आसनअद्दिय वि [अदित] पीटा हुआ, पीड़ित । विशेष । °पहर पुं [प्रहर] ज्यौतिष शास्त्र अद्दिस्स वि [अदृश्य] देखने के अयोग्य या प्रसिद्ध एक कुयोग । °बब्बर पुं [°बर्बर] अशक्य ।
देश-विशेष । °मागहा, ही स्त्री [°मागधी] अद्दीण वि [अद्रीण] अक्षुब्ध, निर्भीक ।
प्राचीन जैन साहित्य की प्राकृत भाषा, जिसमें अद्दीण देखो अदीण।
मागधी भाषा के भी कोई नियम का अनुसरण अदुमाअ वि [दे] पूर्ण ।
किया गया है। °मास पुं ["मास] पक्ष । अद्देस वि [अदृश्य] देखने के अशक्य ।
पनरह दिन । °मासिय वि [°मासिक] अद्देसीकारिणी स्त्री [अदृश्यीकारिणी] पाक्षिक, पक्षसम्बन्धी। यंद देखो °चंद । अदृश्य बनानेवाली विद्या ।
रन्जिय वि [°राज्यिक] राज्य का आधा अद्देस्सीकरण वि [अदृश्यों करण] अदृश्य
हिस्सेदार । रत्त पुं [रात्र] मध्य रात्रि करना, अदृश्य करनेवाली विद्या ।
का समय, निशीथ। °वेयाली स्त्री [°वेताली] अद्दोहि वि [अद्रोहिन्] द्रोह-रहित, द्वेषवजित ।। विद्या-विशेष। संकासिया स्त्री[°सांकाश्यिका] अद्ध पुन [अर्ध] आवा, अंग। करिस पुं एक राज-कन्या का नाम। °सम न एक वृत्त । [कर्ष] परिमाण-विशेष, फल का आठवाँ । हार पुं नवसरा हार, इस नाम का एक भाग । °कुडव, °कुलव पं एक प्रकार का द्वीप-विशेष । °हारभद्द [ हारभद्र] अर्धहारधान्य का परिमाण । क्खेत्त न [ क्षेत्र एक द्वीप का अधिष्ठाता देव । °हारमहाभद्द पुं अहोरात्र में चन्द्र के साथ योग प्राप्त करनेवाला [हारमहाभद्र] पूर्वोक्तही अर्थ । हारमहावर नक्षत्र । °खल्ला स्त्री [°खन्वा] एक प्रकार पुं अर्धहार समुद्र का एक अधिष्ठायक देव । का जूता । °घडय पुं घटक] आधा । हारवर पुं द्वीप-विशेष, समुद्र-विशेष, उनका
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अद्ध-अधम्म
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अधिष्ठायक देव । हारवरभद्द पुं [ हार- एक छोटा परिमाण, दो आवलिका परिमित वरभद्र] अर्धहारवर द्वीप का एक अधिष्ठाता काल । °पच्चक्खाण न [प्रत्याख्यान] देव । °हारवरमहावर पुं अर्धहारवर समुद्र अमुक समय के लिए कोई व्रत या नियम का एक अधिष्ठाता देव । हारोभास पु करना । °मीसय न [°मिश्रक] एक प्रकार [हारावभास] द्वीप-विशेष, समुद्र-विशेष । की सत्य-मृषा भाषा। मीसिया स्त्री हारोभासभद्द पु [°हारावभासभद्र] अर्ध- [°मिश्रिता] देखो पूर्वोक्त अर्थ । °समय पुं हारावभास नामक द्वीप का एक अधिष्ठाता सर्व-सूक्ष्म काल । देव । हारोभासमहाभद्द पु [°हाराव- अद्धाण पुं [ अध्वन् ] मार्ग। °सीसय न भासमहाभद्र] पु पूर्वोक्त ही अर्थ । हारो- [°शीर्षक] मार्ग का अन्त, अटवी आदि भासमहावर पु [°हारावभासमहावर ] का अन्त भाग, °सोसय न [ °शीर्षक ] अर्धहारावभास नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता ! जहाँ पर संपूर्ण साथ के लोग आगे जाने के देव । हारोभासवर पु [हाराभासवर] | एकत्र हों वह मार्ग-स्थान । देखो पूर्वोक्त अर्थ । °गढ़य पु [°ाढ़क] अद्धाणिय वि [आध्विक] पथिक । आढ़क का आधा भाग ।
अद्धासिय वि [अध्यासित] अधिष्ठित, आश्रित, अद्ध पु [अध्वन्] रास्ता ।
आरूढ । अद्धत पु [दे] पर्यन्त, अन्त भाग, पुं. ब. अद्धि देखो इड्ढि । कतिपय ।
अधिइ स्त्री [अधृति धीरज का अभाव । अद्धक्खण न [दे] प्रतीक्षा करना, परीक्षा अधुइअ वि [अर्कोदित] थोड़ा कहा हुआ । करना।
अधुग्धाड वि [अर्धाद्घाट] आधा खुला । अद्धक्खिअ न[दे]संज्ञा करना, इशारा करना । अधु? वि [अर्धचतुर्थ] साढ़ तीन । अद्धक्खिअ वि [अर्धाक्षिक] विकृत आंख अद्धुत्त वि [अर्थोक्त] थोड़ा कहा हुआ । वाला।
अद्धव वि [अध्रुव]चंचल, विनश्वर, अनियत । अद्धजंघा । स्त्री [दे. अर्धजङ्घा] मोचक
अद्धेअद्ध वि [अर्धाध] द्विधा-भूत, खण्डित । अद्धजंघी ) नामक जूता, मोजड़ी।
क्रिवि. आधा-आधा जैसा हो । अद्धद्धा स्त्री [दे. अद्धाद्धा] दिन अथवा रात्रि | अद्धोरु । देखो अडढोरुग। का एक भाग।
| अद्धोरुग । अद्धपेडा स्त्री [अधपटा] सन्दूक के अधं भाग अद्धोवमिय वि [अद्धौपम्य, अद्धीपमिक] के आकारवाली गृह-पंक्ति में भिक्षाटन ।
काल का वह परिमाण जो उपमा से समझाया अद्धर पुं [अध्वर] यज्ञ । याग ।
जा सके, पल्योपम आदि उपमा-काल । अद्धर वि [दे] प्रच्छन्न । गुप्त ।
अध अ [अधस्] नीचे । अध (शौ) अ [अथ] अद्धविआर न [दे]मण्डन, भूषा । मंडल, छोटा अब, बाद । मंडल ।
अधई (शौ)[अथकिम्] हाँ, और क्या, अवश्य । अद्धा स्त्री [दे. अद्धा] समय, संकेत, लब्धि । अधं अ [अधस्] नीचे । अ. वस्तुतः, प्रत्यक्ष, दिवस, रात्रि । °काल पुं अधम देखो अहम । सूर्य आदि की क्रिया (परिभ्रमण) से व्यक्त अधमण्ण वि [अधमर्ण] करजदार । होनेवाला समय । "छेय पुं [°छेद] समय का अधम्म पुं [अधर्म] पाप-कार्य, निषिद्ध कर्म,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अधम्मिट्ठ-अपजत्तग अनीति, एक स्वतन्त्र और लोक-व्यापी अजीव । अनियमिय वि [अनियमित] अव्यवस्थित । वस्तु, जो जीव वगैरह को स्थित करने में असंयत, इन्द्रियों का निग्रह नहीं करनेवाला । सहायता पहुँचाती है । वि. धर्म-रहित, पापी । | अनिहारिम देखो अणोहारिम ।
केउ पुं [ केतु] पापिष्ठ । °क्खाइ वि | अनु (अप) देखो अण्णहा। [ख्याति प्रसिद्ध पापी। क्खाइ वि | अनुचिट्ठिय देखो अणुट्ठिय । [°ख्यायिन्] पाप का उपदेश देनेवाला । | अन्नओ । हुत्त क्रिवि [°मुख] दूसरो तरफ । °त्थिकाय पुं [स्तिकाय] अधम्म का | अन्नत्थं देखो अण्णत्थ । दूसरा अर्थ देखो। °बुद्धि वि पापी, पापिष्ठ । | अन्नय पुं [अन्वय] एक की सत्ता में ही दूसरे अधम्मिट्र वि [अमिष्ठा धर्म को नहीं करने की विद्यमानता, जैसे अग्नि की हयाती में ही वाला । महा-पापी।
धूम की सत्ता, नियमित सम्बन्ध । अधम्मि? वि [अधर्मेष्ट] अधर्म-प्रिय । अन्ना स्त्री [दे] जननी। अधम्मिट्ठ वि [अधर्मीष्ट] पापियों का प्यारा । अन्नाइट्ठ वि [अन्वाविष्ट] आक्रान्त । अधर देखो अहर ।
अन्नाहुत्त वि दे] पराङ्मुख । अधवा (शौ) देखो अहवा।
अन्नि वि [अन्यदीय] परकीय । अधा स्त्री [अधस्] अधो-दिशा ।
अन्नियसुय पुं [अन्निकासुत] एक विख्यात अधि देखो अहि = अधि ।
जैन मुनि । अधिकरण देखो अहिगरण ।
अन्नुत्ति स्त्री [अन्योक्ति] साहित्य-प्रसिद्ध एक अधिग वि [अधिक] विशेष, ज्यादा ।
अलङ्कार । अधिगम देखो अहिगम।
अन्नुमन्न देखो अण्णुण्ण । अधिगरण देखो अहिगरण ।
अप स्त्री. ब. [अप्] पानी । काय. पु पानी अधिगरणिया देखो अहिगरणिया।
के जीव । अधिगार देखो अहिगार।
अपइट्ठाण देखो अप्पइट्ठाण । अधिण्ण (अप) वि [अधीन] आयत्त, परवश ।
अपइट्ठिअ पुं [अप्रतिष्ठित] नरक-स्थान अधिमासग पुं[अधिमासक] अधिक मास ।
विशेष । देखो अप्पइट्ठिअ। अधिरोविअ वि [अधिरोपित] आरोपित ।
अपएस वि [अप्रदेश] निरंश । पुं. खराब अधीगार देखो अहिगार ।
स्थान । अधीय देखो अहीय।
अपंग पुं [अपाङ्ग] नेत्र का प्रान्त भाग । अधीस वि [अधीश] नायक ।
तिलक । हीन अंग वाला। अधुव देखो अधुव ।
अपंडिअ वि [दे] अ-नष्ट, विद्यमान । अधो देखो अहो % अधस् ।
अपकरिस पुं [अपकर्ष] ह्रास । अनालंफ (चूपै) वि [अनारम्भ] पाप-रहित । अपगंड वि [अपगण्ड] निर्दोष । न. फेन । अनालंफ(चूपै) वि[अनालम्भ] अहिंसक, दयालु अपचय पुं अपकर्ष, हीनता । अनिगिण देखो अणगिण ।
अपच्च देखो अवच्च । अनिदाया । देखो अणिदा।
अपच्छिम वि [अपश्चिम] अन्तिम । अनिद्दाया
अपज्जत्त । वि [अपर्याप्त] अपर्याप्त, अनिमित्ती स्त्री लिपि-विशेष ।
अपजत्तग , असमर्थ । पर्याप्ति (आहारादि
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अपडिच्छिर-अपिट्ट संक्षिप्त प्राकृत हिन्दी कोष ग्रहण करने की शक्ति) से रहित । 'नाम न । अपराजिया स्त्री [अपराजिता] भगवान ["नामन्] नाम-कर्म का एक भेद ।
मल्लिनाथ की दीक्षा-शिविका । पक्ष की दशवों अपडिच्छिर वि [दे] जड़ बुद्धि ।
रात। अपडिण्ण वि [अप्रतिज्ञ] प्रतिज्ञारहित, निश्चय अपरिग्गहा स्त्री [अपरिग्रहा] वेश्या । रहित । राग-द्वेष आदि बन्धनों से वर्जित । | अपरिग्गहिआ स्त्री [अपरिगृहीता] वेश्या, अपडिपोग्गल वि [अप्रतिपुद्गल] दरिद्र । कन्या वगैरह अविवाहिता स्त्री। विधवा । अपडिवाइ देखो अप्पडिवाइ।
घरदासी । पनहारी । देव-पुत्रिका, देवता को अपडिहटु अ [अप्रतिहत्य] न देकर ।
भेंट की हुई कन्या। अपडिहय देखो अप्पडिय।
अपरिणय वि [अपरिणत] रूपान्तर को अपडुप्पण्ण वि [अप्रत्युत्पन्न] अ-विद्यमान । अप्राप्त । जैन साधु की भिक्षा का एक दोष । प्रतिपत्ति में अ-कुशल ।
अपरिसेस वि [अपरिशेष] सकल, निःशेष । अपभासिय देखो अवभासिय = अपभाषित । अपरिहारिय वि [अपरिहारिक] दोषों का अपमाण न [अप्रमाण] असत्य । वि. ज्यादा। परिहार नहीं करनेवाला । पु. जैनेतर दर्शन अपय वि [अपद] पाँव रहित, वृक्ष, द्रव्य, का अनुयायी गृहस्थ । भूमि वगैरह पैर रहित वस्तु । पु. मुक्तात्मा । | अपवग्ग [अपवर्ग] मुक्ति । सूत्र का एक दोष ।
अपविद्ध वि प्रेरित । न. गुरु-वन्दन का एक दोष, अपय स्त्री [अप्रज] सन्तानरहित ।
गुरु को वन्दन करके तुरन्त ही भाग जाना। अपर देखो अवर। वैशेषिक दर्शन में प्रसिद्ध अपह वि [अप्रभ] निस्तेज । अवान्तर सामान्य ।
अपहत्थ देखो अवहत्थ । अपरच्छ वि [अपराक्ष] परोक्ष ।
अपहारि वि [अपहारिन]अपहरण करनेवाला । अपरद्ध देखो अवरज्झ।
अपहिय वि [अपहृत] छीना हुआ । अपरंतिया स्त्री [अपरान्तिका] छन्द-विशेष । अपाइय वि [अपावित] भाजन-वजित । अपराइय वि [अपराजित] अ-परिभूत । पुं. | अपाउड वि [अपावृत] नहीं ढका हुआ, नग्न । सातवें बलदेव के पूर्वजन्म का नाम । भरतक्षेत्र अपादाण न [अपादान] कारक-विशेष, जिसमें का छठवाँ प्रतिवासुदेव । उत्तम-पंक्ति के देवों | पञ्चमी विभक्ति लगती है। की एक जाति । भगवान् ऋषभदेव का एक | अपाण न [अपान] पान का अभाव । पानी पुत्र । एक महाग्रह । अनुत्तर देवलोक का एक जैसा ठंडा पेय वस्तुविशेष । न. अपान विमान- देवावास । रुचक पर्वत का एक |
| वायु । गुदा । वि. निर्जल (उपवास)। शिखर । जम्बूद्वीप की जगती का उत्तर द्वार । | अपायावगम पु [अपायापगम] जिनदेव का अपराइया स्त्री [अपराजिता] विदेह-वर्ष की | एक अतिशय । एक नगरी। आठवें बलदेव की माता । | अपार वि पार-रहित, अनन्त । अंगारक ग्रह की एक पटरानी का नाम । एक | अपारमग्ग पु[दे] विश्रान्ति । दिशा-कुमारी देवी । ओषधि-विशेष । अञ्ज- | अपाव वि [अपाप] पाप-रहित । न. पुण्य । नाद्रि पर्वत पर स्थित एक पुष्करिणी। अपावा स्त्री [अपापा] नगरी-विशेष, जहां अपराजिय देखो अपराइय ।
भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था। अपराजिया देखो अवराइया । । अपिट्ट वि [दे] पुनरुक्त ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अपुणबंधग-अप्पकेर
अपूणबंधग , वि [अपूनर्बन्धक] फिर से । अपेहय वि [अपेक्षक] अपेक्षा करने वाला। अपुणबंधय । उत्कृष्ट कर्मबन्ध नहीं करने अपोरिसिय । वि [अपौरुषिक] पुरुष से
वाला, तीव्र भाव से पाप को नहीं करनेवाला। अपोरिसीय | ज्यादा परिमाणवाला, अगाध। अपूणब्भव [अपुनर्भव] फिर से नहीं अपोरिसोय वि [अपौरुषेय] पुरुष से नहीं होना । वि. मुक्ति-प्रद ।
बनाया हुआ, नित्य । अपुणब्भाव वि [अपुनर्भाव] फिर से नहीं अपोह सक [अप + ऊह.] निश्चय करना, होनेवाला।
निश्चय रूप से जानना। अपुणभव देखो अपुणब्भव ।
अपोह पु [अपोह] निश्चय-ज्ञान । भिन्नता । अपुणरागम पु [अपुनरागम] मुक्त आत्मा । अप्प देखो अत्त = आप्त । मोक्ष ।
अप्प वि [अल्प] थोड़ा। अभाव । अपुणरावत्तग) पु अपुनरावर्तक] अप्प पु [आत्मन्] आत्मा, जीव, चेतन । अपुणरावत्तय f फिर नहीं घूमने वाला, मुक्त। निज, शरीर । स्वभाव, स्वरूप । °धाइ वि आत्मा । मुक्ति ।
[ धातिन्] आत्महत्या करनेवाला। छंद अपुणरावत्ति पुं[अपुनरावर्तिन] मुक्तआत्मा।। वि [°च्छन्द] स्वच्छन्दी । °ज वि [ज्ञ] अपुणरावित्ति पुं [अपुनरावृत्ति] मोक्ष । आत्मज्ञ । स्वाधीन । जोइ पु[ज्योतिस] अपुणरुत्त वि [अपुनरुक्त] फिर से अकथित, | ज्ञानस्वरूप । °णु वि [°ज्ञ] आत्म-ज्ञानी । पुनरुक्ति-दोष से रहित ।
°वस वि [वश] स्वतन्त्र । °वह पु [°वध] अपुणागम देखो अपुणरागग ।
आत्म-हत्या, अपघात । °वाइ वि [°वादिन] अपुणागमण न [अपुनरागमन] फिर से नहीं आत्मा के अतिरिक्त दूसरे पदार्थ को नहीं आना । फिर से अनुत्पत्ति ।
माननेवाला। अपुण्ण वि [दे] आक्रान्त ।
अप्प [दे] पिता। अपुत्त । वि [अपुत्र] पुत्र-रहित । स्वजन- अप्प सक [अपंय्] अर्पण करना । अपुत्तिय , रहित, निर्मम, निःस्पृह । अप्पआस देखो अप्पगास । अपुम न [अपुंस्] नपुंसक।
अप्पआस सक [श्लिष् ] आलिङ्गन करना । अपुल्ल देखो अप्पुल्ल ।
अप्पआसइ (षड्)। अपूव्व वि [अपूर्व] नवीन । अद्भत । असाधा- अप्पइट्ठाण पुन [अप्रतिष्ठान] मुक्ति । सातवीं रण । करण न आत्मा का एक अभूतपूर्व । नरक भूमि का बिचला आवास ।
शुभ परिणाम । आठवाँ गुणस्थानक । अप्पइदिअ वि [अप्रतिष्ठित] अप्रतिबद्ध । अपूय । पु[अपूप] एक भक्ष्य पदार्थ, पूजा, अशरीरी । देखो अपइट्टिअ । अपूव ) पूड़ी।
अप्पउलिय वि [अपक्वौषधि] नहीं पकी हुई अपेक्ख सक [अप + इक्ष] अपेक्षा करना, राह: फल-फलहरी । देखना।
अप्पओजग वि [अप्रयोजक] अ-गमक, अअपेच्छ वि [अप्रेक्ष्य] देखने के अशक्य । निश्चायक । देखने के अयोग्य ।
| अप्पंभरि वि [आत्मम्भरि स्वार्थी । अपेय वि पीने के अयोग्य, मद्य आदि ।
अप्पकंप वि [अप्रकम्प] स्थिर । अपेय वि [अपेत] गया हुआ, नष्ट ।
अप्पर वि [आत्मीय] निजी ।
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अप्पक्क-अप्पत्थुय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५७
अप्पक्क वि [अपक्क] कच्चा।
रुका हुआ । अखण्डित, अबाधित । विसंवादअप्पग देखो अप्प।
रहित । अप्पगास पु [अप्रकाश] अन्धकार । | अप्पडीबद्ध देखो अपडिबद्ध । अप्पगुत्ता स्त्री [दे] कपिकच्छू, कौंच वृक्ष। अप्पड्ढिय वि [अल्पद्धिक] अल्प वैभववाला । अप्पजाणुअ वि[आत्मज्ञ]आत्मा का जानकार। अप्पण न [अर्पण] उपहार, दान । प्रधान रूप अप्पजाणुअ वि [अल्पज्ञ] मूर्ख ।
से प्रतिपादन। अप्पज्झ वि [दे] स्वाधीन ।
अप्पण देखो अप्प = आत्मन् । अप्पडिआर वि [अप्रतिकार] उपाय-रहित । अप्पण वि [आत्मीय स्वकीय । अप्पडिकंटय वि [अप्रतिकण्टक] प्रतिस्पधि- अप्पणा अ [स्वयम्] खुद । रहित ।
अप्पणिज्ज । वि [आत्मीय] स्वकीय । अप्पडिकम्म वि [अप्रतिकर्मन्] संस्काररहित ।
अप्पणिज्जिय । अप्पडिक्कत वि [अप्रतिक्रान्त] दोष से
से अप्पणो अ [स्वयम्] आप, निज । अनिवृत्त, व्रत-नियम में लगे हुए दूषणों की
अप्पण्ण देखो अक्कम = आ+क्रम् । जिसने शुद्धि न की हो वह ।
अप्पण्णुअ देखो अप्पजाणुअ = आत्मज्ञ, अप्पडिकुट वि [अप्रतिक्रुष्ट] अनिवारित ।
अल्पज्ञ । अप्पडिचक्क वि [अप्रतिचक] असमान ।
अप्पतक्विय वि [अप्रकित] अवितकित, अप्पडिण्ण देखो अपडिण्ण ।
असंभावित । अप्पडिबंध पुं [अप्रतिबन्ध] प्रतिबन्ध का
अप्पत्त पुंन [अपात्र] अयोग्य, नालायक, अभाव । प्रतिबन्ध-रहित ।
कुपात्र । वि. आधार रहित, भाजन-शून्य । अप्पडिबद्ध देखो अपडिबद्ध ।
अप्पक्ष वि [अपत्र] पत्ता से रहित (वृक्ष)। अप्पडिबुद्ध वि [अप्रतिबुद्ध] अ-जागृत ।
पांख से रहित (पक्षी)। कोमल ।
अप्पत्त वि [अप्राप्त] अलब्ध । °कारि वि अप्पडिम वि [अप्रतिम] असाधारण, अनुपम । [°कारिन्] वस्तु का बिना स्पर्श किये ही अप्पडिरूव वि [अप्रतिरूप] ऊपर देखो। (दूर से) ज्ञान उत्पन्न करनेवाला । अप्पडिलद्ध वि [अप्रतिलब्ध] अप्राप्त । अप्पत्ति स्त्री [अप्राप्ति नहीं पाना । अप्पडिलेस्स वि [अप्रतिलेश्य] असाधारण | अप्पत्तिय पुन [अप्रत्यय] अविश्वास । अश्रद्धा । मनो-बलवाला।
अप्पत्तिय न [अप्रीति] प्रेम का अभाव । अप्पडिलेहण न [अप्रतिलेखन] अनवलोकन । क्रोध । मानसिक पीड़ा । अपकार । अप्पडिलेहिय वि [अप्रतिलेखित] अ-पर्यवे- अप्पत्तिय वि [अपात्रिक पात्र-रहित, आधारक्षित, अनवलोकित, नहीं देखा हुआ।
वजित । अप्पडिलोम वि [अप्रतिलोम] अनुकूल। अप्पत्थ वि [अप्रार्थ्य] प्रार्थना करने के अप्पडिवरिय पुं [अप्रतिवृत] प्रदोष काल । अयोग्य । नहीं चाहने लायक । अप्पडिवाइ वि [अप्रतिपातिन्] नित्य । अव- अप्पत्थण क [अप्रार्थन] अयाश्चा । अनिच्छा। विज्ञान का एक भेद, जो केवल ज्ञान को अप्पत्थिय वि [अप्राथित] अयाचित । अनबिना उत्पन्न किये नहीं जाता।
भिलषित । पत्थय, पत्थिय वि [°प्रार्थक, अप्पडिहत्थ वि [अप्रतिहस्त] अद्वितीय । र्थिक] मरणार्थी ,मौत को चाहनेवाला। अप्पडिहय वि [अप्रतिहत] किसी से नहीं ' अप्पत्थुय वि [अप्रस्तुत] प्रसंग के अनुपयुक्त,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अप्पदुट्ठ-अप्पिय विषयान्तर ।
अप्पसज्झ वि [अप्रसह्य] सहन करने के अप्पट्ट वि [अप्रद्विष्ट] जिसपर द्वेष न हो अयोग्य । वह, प्रीतिकर।
अप्पसण्ण वि [अप्रसन्न] उदासीन । अप्पदुस्समाण वकृ [अप्रद्विष्यत्] द्वेष नहीं । अप्पसत्थ वि [अप्रशस्त] असुन्दर । करता हुआ।
अप्पसत्तिय वि [अल्पसत्त्विक] अल्प सत्त्वअप्पप्प वि [अप्राप्य] प्राप्त करने के अशक्य । वाला। अप्पभाय न [अप्रभात] बड़ी सबेर । वि. ! अप्पसारिय वि [अप्रसारिक] निर्जन (स्थान)। कान्ति-वजित ।
| अप्पहवंत वकृ [अप्रभवत्] समर्थ नहीं होता अप्पभु वि [अप्रभु] असमर्थ । पुं. मालिक से हुआ, नहीं पहुंच सकता हुआ । भिन्न, नौकर वगैरह ।
| अप्पहिय वि [अप्रथित] अविस्तृत । अप्रसिद्ध । अप्पमज्जिय वि [अप्रमार्जित] साफ नहीं | अप्पाअप्पि स्त्री [दे] औत्सुक्य । किया हुआ।
अप्पाउड वि [अप्रावृत] अनाच्छादित । अप्पमत्त वि [अप्रमत्त] सावधान । °संजय अप्पाउय वि [अल्पायुष्क] थोड़ी आयुवाला । पुंस्त्री [ संयत] प्रमाद-रहित मुनि । न. | अप्पाउरण वि [अप्रावरण] नग्न । न. वस्त्र सातवाँ गुण-स्थानक ।
का अभाव । वस्त्र नहीं पहनने का नियम । अप्पमाण देखो अपमाण ।
अप्पाण देखो अप्प = आत्मन् । °रक्खि वि अप्पमाय पुं [अप्रमाद] प्रमाद का अभाव । [रक्षिन्] आत्मा की रक्षा करनेवाला। अप्पमेय वि [अप्रमेय] जिसका माप न हो अप्पाबहु न [अल्पबहुत्व] न्यूनाधिकता । सके, अनन्त । जिसका ज्ञान न हो सके। अप्पावय वि [अप्रावृत] वस्त्ररहित । बन्द प्रमाण से जिसका निश्चय न किया जा सके नहीं किया हुआ। वह ।
अप्पाविय वि [अर्पित] दिया हुआ । अप्पय देखो अप्प।
अप्पाह सक [सं + दिश] संदेश देना, खबर अप्परिचत्त वि [अपरित्यक्त] नहीं छोड़ा पहुँचाना । हुआ।
अप्पाह सक [आ +भाष्] संभाषण करना । अप्परिवडिय वि [अपरिपतित] अनष्ट, | अप्पाह सक[अधि+आपय]पढ़ाना-सिखाना । विद्यमान ।
उपदेश देना । संदेश देना । अप्पलहुअ वि [अप्रलघुक] महान्, बड़ा। अप्पाहणी स्त्री [दे] संदेश, समाचार । अप्पलीण वि [अप्रलीन] असंबद्ध, सङ्ग- अप्पाहण्ण न [अप्राधान्य] गौणता।। वर्जित ।
अप्पिड्ढिय वि [अल्पद्धिक] अल्प संपत्ति अप्पलीयमाण वकृ [अप्रलीयमान] आसक्ति वाला । नहीं करता हुआ।
। अप्पिण सक [अर्पय] अर्पण करना । अप्पवित्त वि [अप्रवत्त] प्रवत्ति-रहित । । अप्पिणिच्चिय वि [आत्मीय] निजी। अप्पवित्ति स्त्री [अप्रवृत्ति]प्रवृत्ति का अभाव । अप्पिय वि [अर्पित] दिया हुआ, भेंट किया अप्पसंत्त वि [अप्रशान्त] अशान्त, कुपित । हुआ। विवक्षित, प्रतिपादन करने को इष्ट । अप्पसंसणिज्ज वि [अप्रशंसनीय प्रशंसा के अप्पिय वि [अप्रिय] अप्रीतिकर । न. मन का अयोग्य।
दुःख । चित्त की शंका।
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अप्पी - अब्ब म्हण
|
अप्पी स्त्री [अप्रीति ] अप्रेम, अरुचि । अप्पीक वि[आत्मीकृत ] आत्मा से संबद्ध अप्पुट्ट वि [अस्पृष्ट] नहीं छूआ हुआ, असंयुक्त | अट्ठ वि [अपृष्ट ] नहीं पूछा हुआ । अप्पुण व [दे. आपूर्ण] पूर्ण । अप्पुल्ल वि [आत्मीय] आत्मा में उत्पन्न । अप्पुव्व देखो अपुव्वं ।
अप्पेयव्व अप्प = अर्पय् का कृ. । अप्पोलि स्त्री [अप्रज्वलिता] कच्ची फलफुलहरी |
अप्पोल्ल वि [दे] नक्कर |
अप्फडिअ वि [आस्फालित ] आहत । अप्फाल सक [आ + स्फालय् ] हाथ से आघात करना । पीटना | ताल ठोकना । अप्फालिय वि [आस्फालित ] हाथ से अब हिल्लेस
ताडित, आहत । वृद्धि - प्राप्त, उन्नत ।
अब हल्लेस्स
अप्फुंद सक [ आ + क्रम् ] आक्रमण करना ।
हो, संयत ।
जाना ।
अप्फुडिय देखो अफुडिय ।
अप्फुण्ण वि [दे. आक्रान्त ] आक्रान्त, दबाया
हुआ ।
अप्फुण्ण वि [अपूर्ण ] अधूरा ।
अप्ण्णव [दे. आपूर्ण ] पूर्ण, भरा हुआ । अप्फुल्लय देखो अप्पुल्ल ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
टूटा हुआ ।
अस व [अस्पृश्य ] स्पर्श करने के अयोग्य | अफुसिय वि [अभ्रान्त ] भ्रम-रहित । अफुस्स देखो अफुस ।
अभ न [ अब्रह्म ] मैथुन । चारि वि [चारिन्] ब्रह्मचर्य नहीं पालनेवाला । अद्धि [अबद्धिक ] 'कर्मों का आत्मा से स्पर्श ही होता है, न कि क्षीर-नीर की तरह ऐक्य' ऐसा माननेवाला एक निह्नव - जैनाभास । न उसका मत ।
अप्फोआ स्त्री [दे] वनस्पति- विशेष | achis
अप्फोल
सक [ आ + स्फोटय् ] आस्फालन करना, हाथ से ताल ठोकना,
ताड़न करना ।
अबला स्त्री महिला 1
अबस पुं [अबश] वडवानल |
अबहिट्ट न [ दे. अबहित्य ] मैथुन, स्त्री-सङ्ग । अहम्ण [अबहिर्मनस्क ] धर्मिष्ठ ।
fa [ अहिलेश्य ] जिसकी चित्त-वृत्ति बाहर न घूमती
अबाधा देखो अबाहा ।
अबाह पुं. देश - विशेष ।
अबुझ अ [अबुद्ध्वा ] नहीं जान कर । अबुद्ध वि [अबुध ] अजान, मूर्ख । अविवेकी । अबुद्धिय वि [ अबुद्धिक ] बुद्धि-रहित, अबुद्धीय मूर्ख ।
अप्फोया स्त्री [ दे] वनस्पति- विशेष । अप्फोव वि [दे] वृक्षादि से व्याप्त, गहन । अफाय पुं [दे] भूमि- स्फोट, वनस्पति- विशेष | अफास [अस्पर्श ] स्पर्श-रहित । खराब स्पर्श वाला । अफाय वि [ अप्राक] सजीव । अग्राह्य ( भिक्षा) ।
अबोह पुंस्त्री [अबोध ] ज्ञान का अभाव । जैन धर्म को अप्राप्ति । बुद्धिविशेष का अभाव । मिथ्याज्ञान | वि. बोधि-रहित । अब्" स्त्री. ब. [ अप्° ] पानी । अब्बंभ देखो अबंभ |
अब्बभण्ण
न [ अब्रह्मण्य ] ब्रह्मण्य का अभाव ।
अफुडिअ वि [ अस्फुटित ] अखण्डित, नहीं | अब्बम्हण्ण
५९
बाहा स्त्री [अबाधा | बाघ का अभाव । व्यवधान, बाध-रहित समय । अबाहिर वि [अबाह्य ] आभ्यन्तर । बाहिरिय वि [अबाहिरिक ] जिसके किले के बाहर व सति न हो ऐसा गाँव या शहर | अबीय देखो अवीय |
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६०
अब्बीय देखो अवोय |
अब्बुद्धसिरी स्त्री [] इच्छा से भी अधिक फल की प्राप्ति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अब्बु पुं [अर्बुद ] आबू पर्वत ।
अब्बु [अर्बुद ] जमा हुआ शुक्र और शोणित । अब्भ न [ अ ] आकाश । अब्भ सक [ आ + भिद् ] भेदन करना । अभंग सक [ अभि + अ ] तैल आदि से मर्दन करना ।
वि.
अब्भंग पुं [अभ्यङ्ग] तैल-मर्दन, मालिश । अब्भंगिएल्लय वि [ अभ्यक्त] तैलादि से अब्भंगिय मदत, मालिश किया हुआ । अब्भंतर न [अभ्यन्तर] भीतर, में | भीतर का, भीतरी । समीप का । ठाणिज्ज वि [°स्थानीय] नजदीक के सम्बन्धी, कौटुम्बिक लोग । 'तव पुं ['तपस् ] विनय, वैयावृत्य, प्रायश्चित्त, स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग रूप अन्तरंग तप । परिसा स्त्री [ परिषद् ] मित्र आदि समान जनों की सभा | 'लद्धि स्त्री [°लब्धि ] अवधिज्ञान का एक भेद | संबुक्का स्त्री ['शम्बूका ] भिक्षा को एक चर्या, गतिविशेष । °सगडुद्धिया स्त्री [°शकटोद्धिका] कायोत्सर्ग का एक
दोष ।
अब्भंसि वि [अभ्रंशिन् ] भ्रष्ट नहीं होनेवाला ।
अनष्ट ।
अब्भक्खइज्ज देखो अब्भवखा ।
अभक्खण न [ दें] अपयश |
अब्भक्खा सक [ अभ्या + ख्या] दोषारोप
करना ।
अभक्खाण न [ अभ्याख्यान झूठा अभियोग | अब्भट्ट देखो अब्भत्थिय ।
अब्भड अ [दे] पीछे जाकर ।
अजाण सक [अभ्यनु + ज्ञा] देना, सम्मति देना ।
अब्भणुण्णा [अभ्यनुज्ञा ] अनुमति ।
अनुमति
अब्भणुष्णाय वि [ अभ्यनुज्ञात]
संमत |
अब्भण्ण न [ अभ्यर्ण] निकट । वि. समीपस्थ । पुरन. नगर- विशेष |
अब्भत वि [ अभ्यक्त] तैलादि से मर्दित, मालिश किया हुआ ।
अब्भत्थ वि [ अभ्यस्त ] पठित । शिक्षित । अब्भत्थ सक [अभि + अर्थय्] सत्कार करना । प्रार्थना करना ।
अब्बीय - अब्भास
अनुमत,
अब्भपडल न [दे] उपधातु - विशेष, अभ्रक । अब्भपिसा पुं [दे. अभ्रपिशाच ] राहु । अभय पुं [अर्भक ] बालक | अब्भरहिय वि [अभ्यर्हित] सत्कारप्राप्त, अब्भय पुं [अभ्रक ] अबरख । गौरवशाली | अब्भवहरिय वि [अभ्यवहृत ] भुक्त | अब्भवहार पुं [अभ्यवहार ] भोजन । अन्भवालुया स्त्री [दे] अभ्रक का चूर्ण | अब्भव्व देखो अभव्व ।
अब्भस सक | अभि + अस्] सीखना, अभ्यास
करना ।
अभहर पुं [] अभ्रक |
अब्भहिय वि [अभ्यधिक] विशेष, ज्यादा । अब्भाअच्छवि [ अभ्या+ गम् ] संमुख आना । अब्भाइक्ख देखो अब्भक्खा ।
अब्भागम पुं [ अभ्यागम ] संमुखागमन । समीप स्थिति ।
अब्भागमिय
अब्भागय
}'
वि [ अभ्यागत ] संमुखागत |
पु. आगन्तुक अतिथि ।
वि [] वापस आया हुआ ।
अब्भायत्त
अब्भायत्थ
अब्भास पुं [अभ्यास ] गुणकार ।
अब्भास न [ अभ्यास] नजदीक । वि. समीप - वर्ती । पुं. पढ़ाई, सीख । आवृत्ति । आदत आवृत्ति से उत्पन्न संस्कार | गणित का संकेतविशेष 1
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अब्भास-अभत्त
अब्भास सक [अभि+अस्] अभ्यास करना,
आदत डालना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्तेजित ।
अब्भुत अक [स्ना] स्नान करना । अब्भुत अक [ प्र + दीप् ] प्रकाशित होना । उत्तेजित होना ।
For a [ अभ्याहत ] आघात-प्राप्त । अभिग देखो अब्भंग अभि + अंज् ।
अभिग देखो अब्भंग = अभ्यंग |
=
अभितर देखो अब्भंतर । अभितरिय वि [आभ्यन्तरिक ] भीतर का,
अन्तरंग |
अब्भितरुद्धि पुं [अभ्यन्तरोध्विन् ] कायोत्सर्ग का एक दोष, दोनों पैर के अंगूठों को मिलाकर और पृश्नियों को बाहर फैलाकर किया जाता ध्यान - विशेष ।
अब्भवि [] संगत, सामने आकर भिड़ा हुआ ।
अब्भिड सक [ सं + गम् ] संगति करना, मिलना ।
forfa वि [] सार, मजबूत । अभिण्ण वि [ अभिन्न ] भेदरहित । अब्भुअअ देखो अब्भुदय । अब्भुक्खसक | अभि + उक्ष्] सोंचन करना । अक्खणीया स्त्री [अभ्युक्षणीया ] सीकर, आसार, पवन से गिरता जल ।
अब्भुगम पुं [अभ्युद्गम ] उदय, उन्नति । अब्भुग्गय वि [अभ्युद्गत] उन्नत । उत्पन्न। उठाया हुआ । चारों तरफ फैला हुआ । अब्भुग्गय वि [अभ्रोद्गत ] ऊंचा, उन्नत । अब्भुञ्च पुं [अभ्युच्चय ] समुच्चय । अब्भुज्जय वि [अभ्युद्यत] उद्यत । तैयार | पुं. एकाकी विहार । जिनकल्पिक मुनि । अब्भुट्ठ उभ [ अभ्युत् + स्था] आदर करने के लिए खड़ा होना । प्रयत्न करना । तैयारी
करना ।
अब्भुट्ठा देखो अब्भु । अब्भुट्टेत्तु [ अभ्युत्थातृ] अभ्युत्थान करने
वाला ।
अन्य वि [ अभ्युन्नत] उन्नत,
अब्भुत्थवि [अभ्युत्थ] उत्पन्न । अब्भुत्थ देखो अब्भुट्ठा ।
}
६१
अब्भुत्था
अब्भुदय पुं [अभ्युदय ] उन्नति, उदय । अब्भुद्धर सक [ अभ्युद् + धृ] उद्धार करना । अब्भुब्भड वि [अभ्युद्भट ] अत्युद्भट, विशेष
उद्धत ।
अब्भुयन [अद्भुत ] आश्चर्य । वि. आश्चर्य - कारक । पुं. साहित्य शास्त्र प्रसिद्ध रसों में से एक
अब्भुवगच्छ सक [अभ्युप + गम् ] स्वीकार करना । पास जाना ।
अब्भुवगम पुं [अभ्युपगम ] स्वीकार । तर्कशास्त्र - प्रसिद्ध सिद्धान्त - विशेष ।
अब्भुवयवि [अभ्युपगत ] स्वीकृत । समीप में गया हुआ ।
अब्भुववण्ण वि [ अभ्युपपन्न] अनुगृहीत । अब्भुववत्ति स्त्री [अभ्युपपत्ति ] मेहरबानी 1 अब्भुवे सक [अभ्युप + इ] स्वीकार करना । अब्भो देखो अव्वो ।
अब्भोक्खिय वि [अभ्युक्षित] सोंचा हुआ । अब्भोज्ज वि [अभोज्य ] भोजन के अयोग्य । अब्भोय (अप) देखो आभोग | अब्भोवगमिय वि [आभ्युपगमिक ] स्वेच्छा से स्वीकृत | स्त्री [T] स्वेच्छा से स्वीकृत तपश्चर्यादि की वेदना | अव्हिड देखो अब्भड | अहुत देखो अब्भुत ।
अभग्ग वि [अभग्न] अखण्डित | इस नाम का एक चोर |
अभक्त वि [अभक्त ] भक्ति नहीं करनेवाला । ऊंचा || न. भोजन का अभाव |
पुं [र्थ ]
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[र्थिक ] उपोषित,
उपवास | जिसने उपवास किया हो वह । अभय न. भय का अभाव, धैर्य । जीवित, मरण का अभाव। वि. निर्भीक । पुं. राजा श्रेणिक का एक विख्यात पुत्र और मन्त्री, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी। कुमार पुं. देखो अनन्तरोक्त अर्थ । 'दय वि. भयविनाशक, जीवित-दाता | दाण न [° दान ] जीवित-दान | देव पुं. कई एक विख्यात जैनाचार्य और ग्रन्थकारों का नाम । पदाण न [' प्रदान ] जीवित का दान । 'वत्त न [वत्त्व] निर्भयता | सेण पुं [°सेन] एक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
राजा का नाम ।
अभयकरा स्त्री. भगवान् अभिनन्दन की दीक्षाशिविका ।
अभया स्त्री. हरीतकी । राजा दधिवाहन की स्त्री का नाम । अभयारिट्ठ न [अभयारिष्ट ] मद्य-विशेष । अभाअ वि [अभाग] अस्थान, अयोग्य स्थान | अभाइ वि [ अभागिन् ] अभागा । हतभाग्य । अभागधेज्जवि [ अभागधेय ] ऊपर देखो । अभाव पुं. ध्वंस, नाश । अविद्यमानता । असत्व | असम्भव | अशुभ परिणाम । अभावि वि [अभावित ] अयोग्य, अनुचित । अभासग वि [अभाषक] बोलने की शक्ति जिसको उत्पन्न न हुई हो वह । नहीं बोलनेवाला । पुं. केवल त्वग्इन्द्रियवाला, एकेन्द्रिय जीव | मुक्त आत्मा । अभासा स्त्री [अभाषा ] असत्य वचन | सत्यमिश्रित असत्य वचन |
अभासय
अभि अ. इन अर्थों का सूचक उपसर्ग - संमुख, चारों ओर । बलात्कार | उल्लंघन । अत्यन्त । लक्ष्य । प्रतिकूल | विकल्प | संभावना | निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है । अभिअण पुं [अभिजन ] कुल | जन्मभूमि | अभिआवरण वि [ अभ्यापन्न ] संमुख आगत ।
-अभि
अभिइ स्त्री [अभिजित् ] नक्षत्र - विशेष । अभिइसक [अभि + इ] संमुख जाना । अभिउंज देखो अभिजुंज ।
अभिओअ ) पुं [ अभियोग] उद्यम | आज्ञा । अभिओग बलात्कार | बलात्कार से कोई भी कार्य में लगाना । पराभव । वशीकरण, वश करने का चूर्ण या मन्त्र-तन्त्रादि । अभिमान । आग्रह | पण्णत्ति स्त्री [ प्रज्ञप्ति ] विद्याविशेष | देखो अहिओय । अभिओगी स्त्री [अभियोगी ] भावना - विशेष, ध्यान - विशेष, जो अभियोगिक देव-गति ( नौकर - स्थानीय देव - जाति) में उत्पन्न होने का हेतु है । अभिओयण न [ अभियोजन ] देखो अभिओग | अभिंग
अभि
देखो अब्भंग |
अभिकख सक [अभि + काङ्क्ष ] चाहना । अभिकखा स्त्री [अभिकाङ्क्षा ] इच्छा | अभित वि [ अभिक्रान्त ] गत, अतिक्रान्त | संमुख गत | आरब्ध | उल्लंघित । अभिक्कम सक [अभि + क्रम् ] जाना, गुजरना । सामने जाना । उल्लंघन करना शुरू करना । अभिक्ख अ [अभीक्ष्ण] बारंबार ।
अभिक्खा स्त्री [अभिख्या ] नाम | अभिगच्छ सक [ अभि + गम् ] प्राप्त करना । सामने जाना ।
अभिगज्ज अक [ अभि + गर्ज ] गर्जना | अभिगम देखो अभिगच्छ ।
अभिगम पुं [ अभिगम] प्राप्ति, स्वीकार । आदर | ( गुरु का ) उपदेश । ज्ञान, निश्चय । सम्यक्त्व का एक भेद । प्रवेश । अभिगय वि [ अभिगत ] प्राप्त । सत्कृत | उपदिष्ट । प्रविष्ट । ज्ञात, निश्चित । अभ िन [ अभिग्रहिक ] मिथ्यात्वविशेष |
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अभिगिज्झ-अभिणिव्वुड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अभिगिज्झ अक [अभि + गृध्] अति लोभ | अभिट्ठिअ वि [अभीष्ट] अभिलषित । करना, आसक्त होना।
| अभिठ्ठय वि [अभिष्टुत] वर्णित, प्रशंसित । अभिगिण्ह सक [अभि + ग्रह.] ग्रहण करना, अभिड्डुय देखो अभिदुय । स्वीकारना ।
| अभिणंद सक [अभि + नन्द्] स्तुति करना । अभिग्गह पुं [अभिग्रह] प्रतिज्ञा। जैन आशीर्वाद देना । प्रीति करना । खुशी मनाना। साधुओं का आचारविशेष । प्रत्याख्यान, चाहना, बहुमान करना। ( नियम विशेष ) का एक भेद । हठ । एक अभिणंदण न [अभिनन्दन] अभिनन्दन । प्रकार का शारीरिक विनय ।
पुं. वर्तमान अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ जिनदेव । अभिग्गहणी स्त्री [अभिग्रहणी] भाषा का | लोकोत्तर श्रावणमास । एक भेद, असत्य-मृषा वचन ।
। अभिणय पुं [अभिनय] शारीरिक चेष्टा के अभिग्गहिय वि [अभिग्रहिक] अभिग्रहवाला।
द्वारा हृदय का भाव प्रकाशित करना, नाट्यअभिग्गहिय वि [अभिगृहीत] जिसके विषय क्रिया। में अभिग्रह किया गया हो वह ।
अभिणव वि [अभिनव नया । अभिघट्ट सक [अभि + घट्ट] वेग से जाना । अभिणिक्खंत वि [अभिनिष्क्रान्त] दीक्षित । अभिघाय पुं [अभिघात] प्रहार, मार-पीट, | | अभिणिगिण्ह सक [अभिनि+ ग्रह.] रोकना। हिंसा।
अभिणिचारिया स्त्री [अभिनिचारिका] अभिचंद पुं [अभिचन्द्र] यदुवंश के राजा | भिक्षा के लिए गति-विशेष । अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा अभिणिपया स्त्री [अभिनिप्रजा] अलगली थी। इस नाम का एक कुलकर पुरुष । अलग रही हुई प्रजा। मुहूर्त-विशेष ।
अभिणिबुज्झ सक [अभिनि+बुध] जानना, अभिजण देखो अभिअण।
इन्द्रिय आदि द्वारा निश्चित रूप से ज्ञान अभिजस न [अभियशस्] इस नाम का एक
करना। जैन साधुओं का कुल (एक आचार्य की अभिणिबोह पुं [अभिनिबोध] ज्ञान-विशेष, संतति)।
मति-ज्ञान। अभिजाइ स्त्री [अभिजाति] कुलीनता । | अभिणियट्टण न [अभिनिवत्तंन] वापस जाना। अभिजाण सक [अभि+ज्ञा] जानना।
अभिणिविट्ट वि [अभिनिविष्ट] तीव्र रूप से अभिजात पुं. पक्ष का ग्यारहवाँ दिन । निविष्ट । आग्रही। अभिजाय वि [अभिजात] उत्पन्न । कुलीन ।। अभिणिवेस पुं [अभिनिवेश] आग्रह । अभिमुंज अक [अभि + युज्] मन्त्रतन्त्रादि से अभिणिवेह पुं [अभिनिवेध] उलटा मापना । वश करना । कोई कार्य में लगाना । आलिंगन | अभिणिव्वागड वि [दे. अभिनिाकृत] करना । याद दिलाना।
भिन्न परिधि वाला, पृथग्भूत (घर वगैरह)। अभिजुत्त वि [अभियुक्त] व्रत-नियम में जिसने अभिणिव्वट्ट सक [अभिनि + वृत्] रोकना, दूषण न लगाया हो वह । पण्डित । दुश्मन से प्रतिषेध करना। घिरा हुआ।
अभिणिव्वट्ट सक [अभिनिर् + वृत्] संपादित अभिज्झा स्त्री [अभिध्या] लोभ, आसक्ति। करना, निष्पन्न करना । उत्पन्न करना। अभिज्झिय वि [अभिध्यित] वांछित । अभिणिव्वुड वि [अभिनिवृत्त] मुक्त । शान्त,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अभिणिसज्जा-अभिप्पेय __ अकुपित । पाप से निवृत्त ।
हैरान करना। अभिणिसज्जा स्त्री [अभिनिषद्या] जैन साधुओं अभिद्दविय वि [अभिद्रुत] उपद्रुत, हैरान के स्वाध्याय करने का स्थान-विशेष । किया हुआ। अभिणिसट्ठ । वि [अभिनिसृष्ट] बाहर अभिदुय देखो अभिद्दविय । अभिणिसिट्र । निकला हुआ।
अभिधाइ वि [अभिधायिन्] वाचक, कहनेअभिणिसेहिया स्त्री [अभिनषेधिकी] जैन
वाला। साधुओं के स्वाध्याय करने का स्थान-विशेष । अभिधार सक [अभि +धारय] चिन्तन अभिणिस्सव अक [अभिनिर् + सु] निक
करना । स्पष्ट करना । धारण करना । लना।
अभिधेज्ज ) पुं [अभिधेय] अर्थ, वाच्य, अभिणी सक [अभि + नी] अभिनय करना । अभिधेय पदार्थ ।। अभिणम न [अभिनूम] माया, कपट । अभिनंदि स्त्री [अभिनंदि] आनन्द, खुशी। अभिण्ण वि [अभिज्ञ] जानकार, निपुण । अभिनिक्खम अक [अभिनिर् + क्रम्] दीक्षा अभिण्ण वि [अभिन्न] अत्रुटित, अविदारित, । (संन्यास) लेना, दीक्षा लेने की इच्छा करना। अखण्डित ।
अभिनिवेस सक [अभिनि+वेश्य] स्थापन अभिण्णपुड [दे]खाली पुड़िया, लोगों को ठगने करना । करना। के लिए लड़के जिसको रास्ता पर रख अभिनिवेसिय न [अभिनिवेशिक] मिथ्यात्व देते हैं।
| का एक प्रकार, सत्य वस्तु का ज्ञान होने पर अभिण्णाण न [अभिज्ञान] निशानी। भी उसे नहीं मानने का दुराग्रह । अभिण्णाय वि [अभिज्ञात विदित । अभिनिव्वट्ट अक [अभिनि + वृत्] पृथक् अभितज्ज सक [अभि + तर्ज] तिरस्कार होना । करना, ताड़न करना ।
अभिनिव्वट्ट सक [अभिनिर् + वृत्] खींचना । अभितत्त वि [अभितप्त] तपाया हुआ, गरम अभिनिव्वागड वि [अभिनिाकृत] विभिन्न किया हुआ।
द्वार वाला (मकान)। अभितव सक [अभि + तप्] तपाना। पीड़ा
'' अभिनिन्विट्ठ वि [अभिनिविष्ट] संजात, करना।
उत्पन्न । अभिताव सक [अभि + तापय] तपाना, गरम करना । पीड़ित करना।
अभिनिसढ वि [अभिनिःसट] जिसका स्कन्ध अभिताव पुं [अभिताप] दाह । पोड़ा। प्रदेश बाहर निकल आया हो वह । अभितास सक [अभि + त्रासय्] त्रास उप- अभिनिस्सव अक [अभिनि+स्र] टपकना, जाना, भयभीत करना।
झरना। अभित्थु सक [अभि + स्तु] स्तुति करना, अभिपल्लाणिय वि [अभिपर्याणित] अध्याश्लाघा करना, वर्णन करना ।
रोपित, ऊपर रखा हुआ। अभित्थुय वि [अभिष्टुत] स्तुत, श्लाचित । - अभिपवुटु वि [अभिप्रवृष्ट] बरसा हुआ । अभिथु देखो अभित्थु ।
अभिपाइय वि [आभिप्रायिक] अभिप्राय अभिदुग्ग वि [अभिदुर्ग] दुःखोत्पादक स्थान । सम्बन्धी, मनःकल्पित । अतिविषम स्थान ।
अभिप्पाय पुं [अभिप्राय] आशय,मनपरिणाम। अभिद्दव सक [अभि +दु] दुःख उपजाना, | अभिप्पेय वि [अभिप्रेत] इष्ट, अभिमत ।
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अभिभव-अभिवाहार
अभिभवक [ अभि + भू] पराभव करना,
परास्त करना ।
अभिभास सक [ अभि + भाष्] संभाषण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
करना ।
afras स्त्री [अभिभूति] पराभव, अभिभव । अभिभूय वि [ अभिभूत ] पराभूत, पराजित । अभिमंत सक [ अभि + मन्त्रय् ] करना, मन्त्र से संस्कारना ।
मंत्रित
अभिमन्न सक [ अभि + मन्]
करना ।
अभिलप्प वि [ अभिलाप्य ] कथन योग्य, निर्वचनीय |
अभिलस सक [ अभि + लष् ] चाहना । अभिलाअ ) [ अभिलाप ] शब्द, ध्वनि । अभिलाव संभाषण । अभिमान अभिलास पुं [अभिलाष ] इच्छा, चाह । अभिलासुगवि [अभिलाषुक ] अभिलाषी । अभिलोयण न [ अभिलोकन ] जहाँ खड़े रह कर दूर की चीज देखी जाय वह स्थान । अभिलोयण न [ अभिलोचन ] ऊपर देखो । अभिवंद सक [अभि + वन्द् ] नमस्कार करना,
करना । सम्मत करना |
अभिमय वि [ अभिमत ] इष्ट, अभिप्रेत । अभिमाण पुं [अभिमान] अभिमान, गर्व । अभिमार पुं [अभिमार ] वृक्ष - विशेष | अभिह वि[अभिमुख ] संमुख, सामने स्थित । अभियागम [ अभ्यागम] संमुख आगमन | अभियावन्न वि [अभ्यापन्न ] संमुख प्राप्त । अभिरइ स्त्री [अभिरति ] रति, संभोग ।
प्रणाम करना ।
अभिवंद वि[अभिवन्दक ] प्रणाम करनेवाला । अभिवड्ढ अक [ अभि + वृध् ] बढ़ना, बड़ा होना, उन्नत होना । अभिवढि देखो अभिवुढि । अभिवढि देखो अहिवड्ढि ( इक ) । अभिवदिवि [अभिवर्धित ] बढ़ाया हुआ । अधिक मास | अधिक मासवाला वर्ष । अभिवड्ढे क [ अभि + वर्धय् ] बढ़ाना । अभिवत्त वि [ अभिव्यक्त ] आविर्भूत । अभवत् स्त्री [अभिव्यक्ति ] प्रादुर्भाव | अभिवय क [ अभि + व्रज् ] सामने जाना । अभिवात पुं [ अभिवात ] सामने का पवन । सामने का पवन । प्रतिकूल ( गरम या रूक्ष ) पवन ।
अभिवाद ) सक [ अभि + वादय् ] प्रणाम अभिवाय करना । नमस्कार करना । अभिवाय देखो अभिवात ।
अभिरुह क [ अभि + रुह् ] रोकना । ऊपर अभिवाहरण न [ अभिव्याहरण] बुलाहट, चढ़ना, आरोहना । पुकार । अभिरोहिय वि [अभिरोधित] चारों ओर से अभिवाहार पुं [ अभिव्याहार] प्रश्नोत्तर,
निरुद्ध, रोका हुआ ।
सवाल-जवाब |
प्रीति, अनुराग । अभिरम अ [ अभि + रम् ] क्रीड़ा करना, संभोग करना । प्रीति करना । तल्लीन होना, आसक्ति करना ।
अभिरय वि [अभिरत] अनुरक्त । तल्लीन,
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अभिरोहिय वि [ अभिरोहित ] ऊपर देखो । अभिव सक [अभि + लङ्घ् ] उल्लंघन
तत्पर ।
अभिराम वि [अभिराम ] सुन्दर, मनोहर । अभिराम सक [ अभि + रामय् ] तत्परता से कार्य में लगाना ।
अभिरुइय वि [अभिरुचित] पसंद, मन का अभिमत ।
अभिरुय सक [ अभि + रुच्] पसंद पड़ना,
रुचना ।
[अभिरूपिन् ] सुन्दर रूप
अभिख्यंसि वाला, मनोहर ।
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६६
अभिविहि पुंस्त्री [अभिविधि ] मर्यादा, व्याप्ति । अभिवुट्ठि स्त्री [ अभिवृष्टि ] वृष्टि, वर्षा । अभिgs देखो अभिवड्ढ । अभिवुढि स्त्री [अभिवृद्धि] वृद्धि, बढ़ाव |
उत्तरभाद्रपद नक्षत्र का अधिष्ठाता देव । अभिवुढे देखो अभिवड्ढे ।
अभिवेदना स्त्री [अभिवेदना ] अत्यन्त पीड़ा । अभिव्वंजण न [ अभिव्यञ्जन] देखो अभि
वत्ति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अभिव्वाहार देखो अभिवाहार ।
अभिसंकण न [ अभिशङ्कन] शंका, वहम | अभिका स्त्री [अभिशङ्का ] संशय, संदेह | अभिसंकि वि [अभिशङ्किन् ! संदेह करनेवाला | भीरु, डरनेवाला |
अभिसंग पुं [अभिष्वङ्ग ] आसक्ति । अभिसंजाय वि [अभिसंजात] उत्पन्न । अभिसंण क [ अभिसं + स्तु ] स्तुति करना, वर्णन करना ।
अभिसंधारण न [अभिसंधारण ] पर्यालोचन, विचारना ।
अभिसंधि पुंस्त्री [अभिसंधि] आशय, अभि
प्राय
अभिसंधिय वि [अभिसंहित] गृहीत, उपात्त । अभिसंभूय वि [अभिसंभूत ] उत्पन्न, प्रादुर्भूत । अभिसंबुद्ध वि [अभिसंबुद्ध ] ज्ञान-प्राप्त, बोध
प्राप्त ।
अभिसंवुड्ढ वि [अभिसंवृद्ध ] बढ़ा हुआ, उन्नत अवस्था को प्राप्त । अभिसमण्णा वि [अभिसमन्वागत ] अच्छी तरह जाना हुआ, सुनिर्णीत । व्यवस्थित । प्राप्त, लब्ध ।
अभिसमागम सक [अभिसमा + गम् ] सामने जाना । प्राप्त करना । निर्णय करना, ठीकठीक जानना । अभिसमे सक [ अभिसमा + इ] देखो अभिसमागम = अभिसमा + गम् ।
अभिविहि-अभीजि
अभिसर सक [ अभि + सृ ] प्रिय के पास
जाना ।
अभिसव पुं [ अभिषव ] मद्य आदि का अर्क । मद्य-मांस आदि से मिश्रित चीज । अभिसारिआ देखो अहिसारिआ । अभिसिच सक [ अभि + सिच्] अभिषेक
करना ।
अभिसित वि [ अभिषिक्त ] जिसका अभिषेक किया गया हो वह ।
अभिसेअ । पुं [अभिषेक ] राजा, आचार्य अभिसेग आदि पद पर आरूढ़ करना । स्नान-महोत्सव | स्नान । जहाँ पर अभिषेक किया जाता है वह स्थान । शुक्र शोणित का संयोग । वि. आचार्य आदि पद के योग्य अभिषिक्त । अभिसेगा स्त्री [अभिषेका] संन्यासिनी । साध्वियों की मुखिया, प्रवत्तनी । अभिसेज्जा स्त्री [अभिशय्या ] देखो अभिणिसज्जा । भिन्न स्थान ।
अभिसेवण न [ अभिषेवण]पूजा, सेवा, भक्ति । अभिसेवि वि [अभिषेविन् ] सेवा कर्ता । अभिस्संग पुं [अभिष्वङ्ग ] आसक्ति । अभिहट्टु अ [अभिहृत्य ] जबरदस्ती करके । अभिहड वि [ अभिहृत ] सामने लाया हुआ । जैन साधुओं की भिक्षा का एक दोष । अभिहण क [ अभि + हन्] मारना, हिंसा
करना ।
अभिवि [अभिहत] मारा हुआ, आहत । अभिहा स्त्री [अभिधा ] नाम |
"
अभिहाण न [ अभिधान ] नाम । वाचक शब्द । कथन, उक्ति । उच्चारण । कोशग्रन्थ | अभिहिय वि [ अभिहित ] कथित । अभिहेअ वि [ अभिधेय ] वाच्य, पदार्थ । अभीइ स्त्री [अभिजित् ] नक्षत्र विशेष । अभीजि । पुं. एक राजकुमार । राजा श्रेणिक का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा ली थी ।
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अभीरु - अमरिसण
अभीरु वि. निडर । स्त्री. मध्यम ग्राम की एक मूच्र्छना |
अभेज्झा देखो अभिज्झा | अभोज वि [अभोज्य ] भोजन के अयोग्य । 'घर न [गृह] भिक्षा के लिए अयोग्य घर, धोबी आदि नीच जाति का घर ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अम सक [ अम् ] जाना । आवाज करना । खाना | पीडना । अक रोगी होना । अमग्ग पुं [अमार्गं] खराब रास्ता । मिध्यात्व, कषाय आदि हेय पदार्थ । कुमत, कुदर्शन । अमग्घाय पुं [अमाघात ] द्रव्य का अहरण | मारिनिवारण, अभय - घोषणा । अच्च पुं [ अमात्य ] मन्त्री |
अमच पुं [अत्यं] देव ।
अमज्झवि [ अमध्य ] मध्यरहित, अखण्ड | परमाणु ।
अमण न [ अमन ] ज्ञान, निर्णय |
अवसान ।
अन्त,
अमण
अमणक्ख
अमणाम
[ अमनआप ] अनिष्ट, अमनोहर । अणाम वि [ अमनोम] ऊपर देखो । अमणामवि [ अवनाम] दुःखोत्पादक । अमणुस्स पुं [ अमनुष्य ] मनुष्य - भिन्न देव आदि । नपुंसक
अमत्त न [ अमत्र ] भाजन |
वि [अमनस्क ] अप्रीतिकर, अभीष्ट । मनरहित ।
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पूं [° घोष] एक राजा का नाम । 'फल न. अमृतोपम फल | 'मइय - मय वि [मय ] अमृत- पूर्णं । ● मऊह पुं [मयूख] चन्द्र | 'वल्लरि, 'वल्लरी स्त्री. अमृतलता, वल्लोविशेष, गुडूची । वल्लि, 'वल्ली स्त्री. वल्ली विशेष, गुडूची । 'वास पुं [वर्ष] सुधा-वृष्टि देखो अमिय = अमृत । अमय पुं [दे] चन्द्र । दैत्य | अमयणिग्गम पुं [ दे. अमृतनिर्गम ] चन्द्रमा । अमघडिअ पुं [दे. अमृतघटित ] चन्द्रमा । अमर वि [आमर] दिव्य, देव-सम्बन्धी | अमर पुं. देव । मुक्त आत्मा । भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र । अनन्तवीर्य नामक भावी जिनदेव के पूर्वजन्म का नाम । वि. मरणरहित । कंका स्त्री [°कङ्का] एक नगरी का नाम | उ पुं[ केतु] एक राजकुमार |
गिरि पुं. मेरु पर्वत । गेह न स्वर्ग | 'चन्दण न [° चन्दन] हरिचन्दन वृक्ष | एक प्रकार का सुगन्धित काष्ठ । "तरु पुं. कल्पवृक्ष | "दत्त पुं. एक श्रेष्ठ पुत्र का नाम । नाह पुं [नाथ ] इन्द्र । पुर न. स्वर्ग | 'पुरी स्त्री. स्वर्गपुरी, अमरावती । पभ पुं [भ] वानर- द्वीप का एक राजा । ' वइ पुं [ पति ] इन्द्र | "बहू स्त्री ['वधू ] देवी । सामि पुं [ स्वामिन् ] इन्द्र | सेण पुं [ सेन] एक राजा का नाम । एक राजकुमार का नाम । लय त्रि. स्वर्ग । वई स्त्री [Tवती ] देव-नगरी, स्वर्गपुरी । मर्त्यलोक की एक नगरी | राजा श्रीसेन की राजधानी ।
अमम वि. ममता-रहित, निःस्पृह । पुं. आगामी काल में होने वाले एक जिनदेव का नाम । युग्म रूप से होने वाले मनुष्यों की एक जाति । दिन के २५ वें मुहूर्त का नाम । तवि [व] निःस्पृह, ममता-रहित । अमय वि [अमय ] विकार रहित । अमन [अमृत] अमृत । क्षीरसमुद्र पानी । पुं. मोक्ष वि. नहीं मरा हुआ । कर पुं. चन्द्रमा । किरण पुं.
चन्द्र । °कुंड पुं [कुण्ड ] चाँद | 'घोस | अमरिसण वि [अमसृण] उद्यमी ।
अमरंगणा स्त्री [अमराङ्गना ] देवी | अमरिंद पुं [अमरेन्द्र] देवों का राजा, इन्द्र । अमरिपुं [अमर्ष ] असहिष्णुता । कदाग्रह | क्रोध ।
अमरिसण न [ अमर्षण] ऊपर देखो । वि. असहिष्णु, क्रोधी । सहिष्णु, क्षमाशील ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अमरिसिय-अमूढ अमरिसिय वि [अमर्षित] मत्सरी, अस-, नाम । °णाणि वि [ ज्ञानिन्] सर्वज्ञ । हिष्णु ।
ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव का नाम । °तेय अमरीस पुं[अमरेश] इन्द्र ।
पुं. [ तेजस्] एक जैन मुनि का नाम । °बल अमल वि. स्वच्छ । पुं. भगवान् ऋषभदेव के
पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम । एक पुत्र का नाम ।
°वाहण पुं [°वाहन] दिक्कुमार देवों के अमला स्त्री. शक्र की एक अग्रमहिषी का |
एक इन्द्र का नाम । वेग पं. राक्षस वंश के नाम ।
एक राजा का नाम । सिणिय वि अमवस्सा देखो अमावस्सा ।
[°Tसनिक चंचल । अमाइ । वि [अमायिन्] निष्कपट ।
अमिल न [दे] ऊन का बना हुआ वस्त्र । अमाइल्ल
पुं. मेष, भेड़ । अमाघाय देखो अमग्घाय ।
अमिल वि [दे. आमिल] अमिल देश में बना अमाण वि [अमान] गर्वरहित । असंख्य ।
हुआ। अमाय वि [अमात] नहीं समाया हुआ। अमिला स्त्री. बीसवें जिनदेव की प्रथम शिष्या । अमाय वि. निष्कपट ।
पाड़ी, छोटी भैस । अमारि स्त्री. हिंसा-निवारण। जीवितदान । अमिलाण । वि [अम्लान] म्लान-रहित,
घोस पुं [°घोष] अहिंसा की घोषणा। अमिलाय ' ताजा, हृष्ट । पुं. कुरण्टक वृक्ष । °पडह पुं [°पटह] हिंसा-निषेध का डिण्डिम। कुरण्टक वृक्ष का पुष्प ।। अमावसा । स्त्री [अमावास्या] तिथि
अमु स [अदस्] वह, अमुक । अमावस्सा विशेष, अमावन ।
अमुअ स [अमुक वह, कोई । अमावासा
अमुअ देखो अमय = अमृत । अमिज्ज वि [अमेय] माप करने के लिए |
अमुअ वि[अस्मृत]स्मरण में नहीं आया हुआ ।
अमुइ वि अमोचिन्] नहीं छोड़नेवाला । अशक्य, असंख्य ।
अमुग देखो अमुअ = अमुक । अमिज्झ न [अमेध्य] अशुनि वस्तु । विष्ठा ।
अमुगत्थ वि [अमुत्र] अमुक स्थान में । अमित्त पुंन [अमित्र] रिपु, दुश्मन । अमुण वि [अज्ञ] अजान, मूर्ख । अमिय देखो अमय = अमृत । °कुंड न | अमुणिय वि [अज्ञान] मर्ख, अजान । [°कुण्ड] नगर-विशेष का नाम । °गइ स्त्री
अमुदग्ग ) न [अमुदन] अतीन्द्रिय मिथ्या[गति] एक छन्द का नाम । °णाणि पुं
अमुयग्ग ) ज्ञान विशेष, जैसे देवताओं [°ज्ञानिन्] ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थकर देव |
के पुद्गलरहित शरीर को देखकर जीव का का नाम । भूय वि [भूत] अमृत-तुत्य ।
शरीर पुद्गल से निर्मित नहीं है ऐसा निर्णय । मेह पुं [ मेघ] अमृतवर्षा । "रुइ पुं| अमुस वि [अमृष] सत्य । [°रुचि] चन्द्रमा।
अमुह वि [अमुख] निरुत्तर । अमिय वि [अमित] परिमाण-रहित, असंख्य, अमुहरि वि [अमुखरिन्] अवाचाल, भितअनन्त । °गइ पुंगति] दक्षिण दिशा के | भाषी। एक इन्द्र का नाम, दिक्कुमारों का इन्द्र । अमूढ वि. अमुग्ध, विचक्षण । °णाण न °जस पुं [°यशस्] एक चक्रवर्ती राजा का ! [ज्ञान] सत्य-ज्ञान । दिट्ठि स्त्री [दृष्टि]
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अमूस-अय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सम्यग्दर्शन । अविचलित बुद्धि । वि. अविच- । पिउ, पियर "पोइ पुं. ब. [पित ] लित दृष्टिवाला, सम्यग्दृष्टि ।
मां-बाप । पेइय वि [ °पैतृक ] माँ-बापअमूस वि [अमृष] सत्यवादी ।
सम्बन्धी । अमेज्ज देखो अमिज्ज।
अम्माइआ स्त्री [दे] अनुसरण करने वाली अमेज्झ देखो अमिज्झ ।
स्त्री। अमोल्ल वि [अमूल्य बहुमूल्य ।
अम्मो अ. आश्चर्य-सूचक अव्यय । माता का अमोसलि न [दे. अमुशलि] वस्त्रादि निरी- संबोधन, हे माँ। क्षण का एक प्रकार।
अम्मोगइया स्त्री [दे] संमुख-गमन, स्वागत अमोह वि [अमोघ]अवन्ध्य, सफल । पुं. सूर्य |
न करने लिए सामने जाना । के उदय और अस्त के समय किरणों के
अम्मोस वि [अमj] अक्षम्य, । विकार से होने वाली रेखा विशेष । एक यक्ष | अम्ह स [अस्मत्] हम, खुद । "केर, क्केर, का नाम । 'दसि वि [दर्शिन्] ठीक-ठीक
°च्चय वि [ीय] हमारा । देखनेवाला । न. उद्यान-विशेष । पुं. यक्ष- अम्हत्त वि [दे प्रमृष्ट, प्रमाजित । विशेष । °पहारि वि [ प्रहारिन्] अचूक | | अम्हार (अप) वि [अस्मदीय] हमारा । - प्रहार करनेवाला, निशानबाज । °रह पुं | अम्हारिच्छ वि [अस्मादृक्ष] हमारे जैसा । [°रथ] इस नाम का एक रथिक ।
अम्हारिस वि [अस्मादृश] हमारे जैसा । अमोह पुं. मोह का अभाव, सत्यग्रह । रुचक
अम्हेच्चय वि [अस्माकम्] हमारा । पर्वत का एक शिखर । वि. निर्मोह।
अम्हो अ [अहो] आश्चर्य-सूचक अव्यय । अमोह पु [अमोघ] सूर्य-बिम्ब के नीचे कभी
अय पु[अग] पहाड़ । साँप । सूर्य । कभी दीखती श्याम आदि वर्णवाली रेखा। अय पु [अज] छाग । पूर्वभाद्रपद नक्षत्र का पुन. एक देवविमान ।
अधिष्ठायक देव । महादेव । विष्णु । रामचन्द्र । अमोहा स्त्री [अमोघा] एक जम्बूवृक्ष, जिसके
ब्रह्मा । कामदेव । महाग्रह-विशेष । बीजोनाम से यह जम्बूद्वीप कहलाता है। एक
पादक शक्ति से रहित धान्य । °करक पुं. पुष्करिणी।
एक महाग्रह का नाम । वाल पु[°पाल] अम्म देखो अंब = आम्ल ।
आभीर । अम्मएव पु [आम्रदेव] एक जैन आचार्य । | अय पु [अय] गमन, गति । लाभ । अनुभव । अम्मगा देखो अम्मया ।
न. पुण्य । भाग्य । अम्मच्छ वि [दे] असंबद्ध ।
अय न [अक] दुःख । पाप । अम्मड देखो अंबड।
अय न [अयस्] लोह । °आगर पुं [ आकर] अम्मडी (अप) स्त्री [अम्बा] माता ।
लोहे की खान । लोहे का कारखाना । कंत, अम्मणुअंचिय न [दे] अनुगमन, अनुसरण ।। क्खंत पुं [°कान्त]लोह-चुम्बक । कडिल्ल अम्मधाई देखो अंबधाई ।
न [दे."कडिल्ल]कटाह । कुंडी स्त्री[°कुण्डी] अम्मया स्त्री [अम्बा] जननी । पांचवें वासुदेव | लोहे का भाजन-विशेष । °कोट्ठय पुं की माता का नाम ।
[°कोष्ठक] लोहे को कुशूल, लोहे का गोला। अम्महे (शौ) अ. हर्ष-सूचक अव्यय ।
गोलय पुं [°गोलक] लोहे का गोला । अम्मा स्त्री [दे. अम्बा] माता। °पिइ, °दव्वी स्त्री [°दवीं] लोहे की कड़छी या
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अये-अरइ करछुल, जिससे दाल, कढ़ी आदि हिलाया । अयरामर वि [अजरामर] जरा और मरण जाता है। °पाय न [ °पात्र ] लोहे का | से रहित । न. मुक्ति । भाजन । °सलागा स्त्री [°शलाका] लोहे | अयल देखो अचल =अचल । की सलाई।
अयला देखो अचला। अय सक [ अय् ] जाना । प्राप्त करना । अयस देखो अजस । जानना।
अयसि वि [अयशस्विन्] कीर्ति-शून्य । अयंछ सक [ कृष् ] खींचना । जोतना, चास अयसि । स्त्री [अतसी] धान्य-विशेष, अलसी, करना । रेखा करना।
अयसी | तीसी। अयंड पुं [अकाण्ड] अनुचित समय । अक- अया स्त्री [अजा] बकरी । माया, अविद्या । स्मात्, हठात् ।
कुदरत । °किवाणिज्ज [कृपाणीय] न्यायअयंतिय वि [अयन्त्रित] अनादरणीय । विशेष; जैसे बकरी के गले पर अनधारी छुरी अयंपिर वि [अजल्पित] मौनी ।
पड़ती है उस माफिक अनधारा किसी कार्य अयंपुल पुं [अयंपुल] गोशालक का एक शिष्य । का होना । पाल पुं. आभीर । 'वय पुं अयंस पुं [आदर्श] दर्पण । °मुह पुं [°मुख] | [°वज] बकरी का बाड़ा। इस नाम का एक द्वीप । द्वीप विशेष का | अयागर देखो अय-आगर। निवासी।
अयाण न [अज्ञान] ज्ञान का अभाव । वि अयंसंधि वि [इदंसंधि] उपयुक्त कार्य को यथा- _ [अज्ञ] अजान । मूर्ख । समय करनेवाला ।
अयाणुय देखो अजाणुय । अयकरय पुं [अयकरक] एक महाग्रह । अयार पुं [अकार] 'अ' अक्षर । अयक्क । पुं. [दे] दानव, असुर । अयाल पुं [अकाल] अयोग्य समय । अयग.
अयालि पुं [दे] दुर्दिन । मेघाच्छन्न दिवस । अयगर पुं [अजगर] मोटा साँप ।
अयालिय वि [अकालिक] आकस्मिक, अयड पुंदे. अवट] कुंआ ।
अकाण्डोत्पन्न । अयण न [अतन] सतत होना।
अयि देखो अइ = अयि । अयण न [अयन] गमन । प्राप्ति, लाभ । अयुजरेवइ स्त्री [दे] अचिर-युवति, नवोठा । ज्ञान, निर्णय । गृह, मन्दिर । वि. प्रापक । | अयोमय देखो अओ-मय । पुन. वर्ष का आधा भाग, जिसमें सूर्य दक्षिण अय्यावत्त (शौ) पुं [आर्यावर्त] भारत । से उत्तर में या उत्तर से दक्षिण में जाता है ।
| अय्यण (मा) देखो अजुण । अयण न [अदन] भक्षण । भोजन ।
अर पुं. धूरी, पहिये के बीच का काष्ठ । अठा. अयणु वि [अज्ञ] अजान ।
रहवाँ जिनदेव और सातवाँ चक्रवर्ती राजा । अयणु वि [अतनु] स्थूल, मोटा, महान् । समय का एक परिमाण, कालचक्र का बारअयतंचिअ वि [दे] पुष्ट, उपचित ।
हवाँ हिस्सा। अयर वि [अजर] वृद्धावस्थारहित । | °अर पु [°कर किरण । हाथ । शुल्क । अयर पुंन [अतर] समुद्र । समय का मान- अरइ स्त्री [अरति] अर्श, मसा। बेचैनी । विशेष । वि. तरने के अशक्य । असमर्थ, कम्म न [°कर्मन्] अरति का हेतुभूत कर्मबीमार ।
| विशेष । परिसह, परीसह पु [°परिषह,
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अरजर-अरि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
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°परीषह] अरति को सहन करना । °मोह- । अरलाया स्त्री [दे] चीरी, कीट-विशेष । णिज न [°मोहनीय] अरति का उत्पादक | अरलु देखो अरडु । कर्म-विशेष । 'रइ स्त्री [रति] सुख-दुःख । | अरविंद न [अरविन्द] कमल । अरंग देखो तरंग।
अरविंदर वि [दे] दीर्घ । अरंजर पुन [अरञ्जर] घड़ा, जल-घट । अरस पुं. रसरहित, नीरस । °अरक्ख देखो वरक्ख ।
अरस पु[ अर्शस् ] व्याधि-विशेष, बवासीर । अरक्खरी स्त्री [अराक्षरी] नगरी-विशेष । अरस न [अरस] तप-विशेष निर्विकृति तप । अरज्झिय वि [अरहित] निरन्तर, सतत ।। | अरह वि [अर्हत्] पूज्य । पु. जिनदेव, तीर्थअरडु [अरटु] वृक्ष-विशेष ।
कर । °मित्त पु [मित्र] एक व्यापारी का अरण न. हिंसा।
नाम । अरणि पुं. वृक्ष-विशेष । इस वृक्ष की लकड़ी, | अरह देखो अरिह = अह । जिसको घिसने पर अग्नि जल्दी पैदा होती है। अरह वि [ अरहस् ] प्रकट । जिससे कुछ भी अरणि पुंस्त्री [दे] रास्ता । पंक्ति ।
न छिपा हो । पुं. जिनदेव, सर्वज्ञ । अरणिया स्त्री [अरणिका] वनस्पति-विशेष ।। अरह वि [अरथ] परिग्रहरहित । अरणेट्रय पुदे. अरणेटक] पत्थरों के टुकड़ों | अरहंत वकृ [ अहंत् ] पूजा के योग्य, पूज्य । से मिली हुई सफेद मिट्टी।
पु. जिन भगवान्, तीर्थकरदेव । अरण्ण वि [आरण्य] जंगल में रहने वाला। | अरहंत वि [ अरहोन्तर् ] सर्वज्ञ । पूज्य । अरण्ण न [अरण्य] वन । डिसग न पु. जिन भगवान् । [°वतंसक] देवविमान विशेष । °साण पु अरहंत वि [अरथान्त] निःस्पृह, निर्मम । पु. [श्वन्] जंगली कुत्ता।
जिनदेव । अरबाग पं ] एक अनार्य देश, अरब देश । अरहंत वकृ [ अरहयत् ] अपने स्वभाव को अरमंतिया स्त्री [अरमन्तिका] अरमणता, | नहीं छोड़नेवाला । पु. जिनेश्वर देव । कार्य में अतत्परता।
अरहट्ट पु [अरघट्ट] अरहट, पानी निकालने अरय वि [ अरजस् ] रजोगुण-रहित । एक
का यन्त्र विशेष । महाग्रह का नाम । वि. धूलीरहित, निर्मल ।
अरहट्टिय वि [अरघट्टिक] अरहट चलाने न. पांचवें देवलोक का एक प्रतर । रजोगुण
वाला। का अभाव ।
अरहणा स्त्री [अर्हणा] पूजा । योग्यता । अरय पुंन [ अरजस् ] एक देवविमान । अरहण्णय पु [अरहन्नक] एक व्यापारी का अरया स्त्री [अरजा] कुमुद नामक विजय की
| नाम । राजधानी।
अरहन्न पु [अर्हन्न] एक जैन मुनि का नाम । अरयणि पु [अरलि] परिमाण विशेष, खुली | अराइ पु [अराति] दुश्मन । अंगुलीवाला हाथ ।
अराइ स्त्री [अरात्रि दिवस । अरर न. युद्ध । ढकना । "कुरि स्त्री. नगरी- अरि देखो अरे। विशेष ।
| अरि पुं. रिपु । छव्वग्ग पुं [°षड्वर्ग] छ. अररि पुंन. किवाड़, द्वार ।
आन्तरिक शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अरल न [दे] चीरी, कीट-विशेष । मच्छर । । मद, मात्सर्य । °दमण वि [°दमन] रिपु
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७२
विनाशक । पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम । एक जैन मुनि जो भगवान् अजितनाथ के पूर्वजन्म के गुरु थे । ' दमणी स्त्री ['दमनी ] विद्या-विशेष । विद्धंसी स्त्री [विध्वंसिनी ] रिपु का नाश करनेवाली एक विद्या | 'संतास पुं [संत्रास] राक्षस वंश में उत्पन्न लंका का एक राजा । 'हंत वि [ हन्तु ] रिपु-विनाशक । पुं. जिनदेव । अरिअल्लि पुंस्त्री [दे] व्याघ्र, शेर । अरिंजय पुं [अरिजय] भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र । न नगर- विशेष । अरिपुं [अरिष्ट] वृक्ष - विशेष । पनरहवें तीर्थकर का एक गणधर । पुंन. एक देवविमान । न. माण्डव्य गोत्र की शाखा । रत्न की एक जाति । फल-विशेष, रीठा । अनिष्ट सूचक उत्पात | 'मि, नेमि पं. वर्तमान काल के बाईसवें जिनदेव |
अरिट्ठा स्त्री [अरिष्टा] कच्छ नामक विजय की राजधानी ।
अरित न [ अरित्र ] पतवार, कन्हर । अरिरिहो अ. पादपूरक अव्यय । अरिस देखो अरस । अरिसल्ल वि [अर्शस्वत् ] बवासीर अरिसिल्ल रोगवाला ।
अरिहवि [अर्ह ] योग्य । पुं. जिनदेव । अरिह सक [अर्ह ] योग्य होना । पूजा के योग्य होना । पूजा करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अरिह देखो अरह = अर्हत | 'दत्त, दिण्ण पुं. जैन मुनि विशेष का नाम । अरिहणा देखो अरहणा । अरिहंत देखो अरहंत = अर्हत् । 'चेइय न ['चैत्य ] जिनमन्दिर | सासण न [ शासन ] जैन आगम ग्रन्थ । जिन-आजा | 'अरु देखो तरु |
अरु वि [अरुज्] रोग-रहित । अरु देखो अरूव ।
अरिअल्लि - अरुय
अरुगन [दे. अरुक] व्रण | अरुंतुद वि [ अरुन्तुद] मर्म- बेधक । मर्मस्पर्शी |
अरुण पुं. सूर्य । द्वीप - विशेष
।
सूर्य का सारथी । संध्याराग ।
समुद्र - विशेष । एक ग्रह-देवता का नाम । गन्धावती - पर्वत का अधिष्ठाता देव | देव - विशेष । रक्त रंग । न विमानविशेष | वि लाल । 'कंत न [कान्त ] देवविमान - विशेष । [कील ] न. देवविमानविशेष | 'गंगा स्त्री [गङ्गा ] महाराष्ट्र देश की एक नदी । ' गव न. देवविमान विशेष । 'झय न [° ध्वज ] एक देवविमान का नाम । भ, पहन [प्रभ] इस नाम का एक देवविमान | भद्द [भद्र ] एक देवता का नाम । 'भूयन ['भूत] एक देवविमान | महाभद [ महाभद्र] देव-विशेष | 'महावर पुं. द्वीपविशेष । समुद्र - विशेष । 'afsसय न [raiसक ] एक देवविमान | वपुं द्वीप - विशेष | समुद्र - विशेष | वरोभास पुं. [वरावभास ] द्वीप - विशेष । समुद्रविशेष | ° सिट्ट न [ °शिष्ट ] एक देवविमान | भ न. देवविमान - विशेष
अरुण न [ दे] कमल ।
अरुण पुंन. एक देव - विमान । वभ पुं [प्रभ] अनुवेलन्धर नामक नागराज का एक आवासपर्वत । उस पर्वत का निवासी देव । भ पुं. कृष्ण पुद्गल - विशेष ।
अरुणिम पुंस्त्री [अरुणिमन्] लाली । अरुणिय वि [अरुणित] रक्त, लाल । अरुणुत्तरवर्डिसग न [ अरुणोत्तरावतंसक ] इस नाम का एक देवविमान । अरुणोद पु. समुद्र - विशेष ।
अरुणोदय पुं [अरुणोदक ] समुद्र-विशेष | अरुणोववाय पुं [अरुणोपपात ] ग्रन्थ-विशेष
का नाम ।
अरु वि [अरुष्] घाव ।
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अरुय-अलमल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७३ अख्य वि [अरुज्] निरोगी।
[°सभा] भूषा-गह। . अरुह देखो अरह = अर्हत् ।
अलंकारिय पुं[अलंकारिक] हजाम । °कम्म अरुह वि. जन्मरहित । पुं. मुक्त आत्मा । जिन- न [°कर्मन्] हजामत । °सहा स्त्री [°सभा] देव ।
हजामत बनाने का स्थान । अरुह देखो अरिह = अर्ह, ।
अलंकिय वि [अलंकृत] विभूषित, सुशोभित । अरुह वि [अहं] योग्य ।
न. संगीत का एक गुण । अरुहंत देखो अरहंत = अर्हत् ।
अलंकुण देखो अलंकर । अरूव वि [अरूप] रूपरहित, अमूर्त । अलंघ वि [अलध्य] उल्लंघन करने के अरे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-संभाषण अयोग्य । उल्लंघन करने के अशक्य ।
और रतिकलह । आक्षेप । विस्मय । परिहास । अलंप पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा । अरोअ अक [उत् + लस्] उल्लास पाना, अलंबुसा स्त्री [अलम्बुषा] एक दिक्कुमारी विकसित होना।
देवी का नाम । गुल्म-विशेष । अरोअअ पुं [अरोचक] रोग-विशेष, अन्न की अलंभि स्त्री [अलाभ] अप्राप्ति । अरुचि ।
अलका स्त्री. नगरी-विशेष, पहले प्रतिवासुदेव अरोइ वि [अरोचिन्] अरुचि वाला, रुचि
की राजधानी । देखो अलया। रहित ।
अलक्ख पुं [अलक्ष] इस नाम का एक राजा, अरोग वि. रोगरहित । °या स्त्री [°ता]
जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर आरोग्य, नीरोगता।
मुक्ति पाई थी। न. 'अंतगडदसा' सूत्र के एक अरोग्ग , देखो आरोय = आरोग्य ।
अध्ययन का नाम । अरोय ।
अलक्खमाण वि [अलक्ष्यमाण] जो पहिचाना अरोस वि [अरोष] गुस्सा-रहित । पु. एक |
न जा सकता हो, गुप्त । म्लेच्छ देश और उसमें रहनेवाली म्लेच्छ
अलग देखो अलय = अलक । जाति ।
अलगा देखो अलया। अल न. बिच्छू के पुच्छ का अग्र भाग । अलग्ग न [दे] कलंक देना, दोष का झूठा
अलादेवी का एक सिंहासन । वि. समर्थ ।। आरोप । °पट्ट न. बिच्छू की पूंछ जैसे आकारवाला एक अलचपुर न [अचलपुर नगर-विशेष । शस्त्रा
अलज्ज वि. बेशरम । °अल देखो तल।
अलट्टपल्लट्ट न [दे] पार्श्व का परिवर्तन । अलं अ. [अलम्] पर्याप्त, पूर्ण । प्रतिषेध, अलत्त पुं [अलक्त] आलता । निवारण, बस । अलङ्कार ।
अलत्तय पुं [अलक्तक] ऊपर देखो। वि. अलंकर सक [अलं+कृ] भूषित करना। आलता से रंगा हुआ। अलंकरण न [अलङ्करण] अलंकार । वि. अलधोय देखो कलधोय । शोभाकारक।
अलमंजुल वि [दे] आलसी, सुस्त । अलंकार पुं [अलङ्कार] साहित्यशास्त्र । अलमंथु वि [अलमस्तु] समर्थ । निषेधक, पुन. एक देवविमान ।
निवारक । अलंकार पुं. गहना । शोभा । °सहा स्त्री ' अलमल पुं [दे] दुर्दान्त बैल ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अलमलवसह-अल्ल अलमलवसह पुं [दे] उन्मत्त बैल । 1 [विरुत] भ्रमर का गुजारव । अलय न [दे] प्रवाल ।
अलिअल्ली स्त्री [दे] कस्तूरी । व्याघ्र, शेर । अलय पुं [अलक] बिच्छू का कांटा। केश, | अलिआ स्त्री [दे] सखी। धुंघराले बाल।
अलिआर न [दे] दूध । अलया स्त्री [अलका] कुबेर की नगरी । देखो
अलिंजर न [अलिञ्जर] घड़ा, कुम्भ । कुंड, अलका।
पात्र-विशेष । रंग-पात्र । अलव वि [अलप] मौनी ।
अलिंद न [अलिन्द] एक प्रकार का जलपात्र । अलवलवसह पुं [दे] धूर्त बल।
अलिंदग पु [अलिन्दक] द्वार का एक प्रकोष्ठ । अलस वि. आलसी। मन्द । पुं. क्षुद्र कीटविशेष, । घर के बाहर के दरवाजे का चौक । बाहर भ-नाग, वर्षाऋतु में साँप सरीखा लाल रंग का अग्रभाग। का जो लम्बा जन्तु उत्पन्न होता है। अलिंदय पुंन [आलिन्दक] धान्य रखने का अलस वि [दे] मधुर आवाजवाला। कुसुम्भ पात्र-विशेष । रंग से रंगा हुआ । न. मोम ।
अलिण पु [दे] बिच्छू । °अलस देखो कलस।
अलिणी स्त्री [अलिनी] भ्रमरी । अलसग , [अलसक] विसूचिका रोग। अलित्त न [अरित्र] नौका खेवने का डाँड, अलसय । श्वयथु, सूजन ।
चप्पू । अलसाइअ वि [अलसायित] जिसने आलसी अलिय न [अलिक] कपाल । की तरह आचरण किया हो, मन्द ।
अलियन [अलीक असत्य वचन । वि. खोटा। अलसाय अक [ अलसाय ] आलसी होना, निष्फल, निरर्थक । °वाइ वि [°वादिन्] आलसी की तरह काम करना ।
मृषावादी। अलसी देखो अयसी।
अलिल्ल सक [ कथय् ] कहना, बोलना। अला स्त्री. इस नाम की एक देवी । एक इन्द्राणी अलिल्लह न [दे] छन्द विशेष का नाम । वि. का नाम । °वडिसग न [°वतंसक] अलादेवी अप्रयोजक, नियमरहित । का भवन ।
अलिल्ला स्त्री. इस नाम का एक छन्द । °अला देखो कला।
अलीग। देखो अलिय = अलीक । अलाउ न [अलाबु] तुम्बी फल, लौकी ।
अलीय । अलाऊ । स्त्री [अलाबू] तुम्बी-लता। अलीबहू स्त्री [ अलिवधू ] भ्रमरी । अलाबू ।
अलीसअ स्त्री पु[दे] शाक-वृक्ष, साग का अलाय न [अलात] उल्मक, जलता हुआ पेड़ । काष्ठ । कोयला ।
! अलुक्खि वि [अरूक्षिन्] कोमल । अलावणी स्त्री [अलाबुवीणा] वीणा-विशेष। अलेसि वि [अलेश्यिन्] लेश्यारहित । पु. अलावु देखो अलाउ।
मुक्त आत्मा । अलाबू देखो अलाऊ।
अलोग पु [अलोक] जीव-पुद्गल आदि रहित अलाहि देखो अलं।
आकाश। अलि पुंस्त्री. वृश्चिक राशि । पुं. भ्रमर । °उल अलोय देखो अलोग । न [°कुल] भ्रमरों का समूह । °विरुय न अल्ल न [दे] दिवस ।
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अल्ल-अवउडय
अल्ल देखो अद्द | अल्ल अक [नम् ] नीचे झुकना । अल्लई स्त्री [आर्द्रकी ] आर्द्रकलता । अल्लग देखो अल्लय = आर्द्रक । अल्लत्थ सक [ उत् + क्षिप् ] ऊँचा फेंकना । अल्लत्थ न [दे] जलार्द्रा, गीला पंखा । केयूर, भूषण - विशेष ।
तिय न
अल्लय न [ आर्द्रक] अदरक । [क] आदी, हल्दी और कचूर । अल्लय वि [दे] परिचित, ज्ञात । अल्लय [ अल्लक ] इस नाम का एक विख्यात जैन मुनि और ग्रन्थकार, उद्योतनसूरि का उपाध्याय अवस्था का नाम । अल्लल्ल पुं [दे] मयूर ।
अल्लविय [ अप] देखां आलत्त अल्ला स्त्री [दे] माता ।
अल्लि
देखो अल्ली ।
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आलपित ।
1=
अल्लिअ
अल्लिअ सक [ उप + सृप्] समीप में जाना । अलिअवि [आद्रित ] गीला किया हुआ । अल्लियावण न [आलायन] आलीन करना, श्लिष्ट करना, मिलान ।
अल्लिल्ल पुं [दे] भमरा ।
अल्लव क [अ] अर्पण करना ।
अल्ली
सक [ आ + ली] आना ।
अल्लीअ प्रवेश करना | जोड़ना । आश्रय करना । आलिंगन करना । अक. संगत होना ।
अल्लीण वि [आलीन ] आश्लिष्ट । आगत । प्रविष्ट । संगत । योजित | थोड़ा लीन । आश्रित । तल्लीन, तत्पर । अल्लेसवि [अलेश्य ] लेश्यारहित । अल्लोग देखो अलोग ।
अल्हाद पुं [आह्लाद] आनन्द | अव अ [अप] इन अर्थों का सूचक विपरीतता । वापसी । बुरापन |
रहितपन, वियोग | बाहरपन ।
अव अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - निम्नता । पीछेपन | तिरस्कार, अनादर ।
बुराई । गमन | अनुभव | हानि, ह्रास । अभाव । मर्यादा । निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है । अव सक [अव्] रक्षण करना । जाना, गमन करना । इच्छा करना । जानना । प्रवेश करना | सुनना । माँगना । करना, बनाना । चाहना | प्राप्त करना । आलिङ्गन । हिंसा करना | जलाना । अक प्रीति करना । तृप्त होना । प्रकाशना । बढ़ना । अव पुं. आवाज ।
अवअक्ख स [दृश्] देखना | अवअक्खिन [] मुंड़ाया हुआ मुँह । अवअच्छ न [ दे] कक्षा - वस्त्र | अवअच्छ अक [ह्लाद् ] खुश होना । अवअच्छ सक [ह्लादय् ] खुश करना । अवअच्छि [दे | देखो अवअक्खिअ । अवअज्झ सक [दृश्] देखना । afra [] असंघटित, असंयुक्त | अवअण्ण पुं [दे] ऊखल, गूगल । अवअत्त वि [अपवृत्त] स्खलित । अवआस सक [दृश्] देखना । अवइ वि [ अव्रतिन् ] असंयत । अवइण वि [ अवतीर्ण ] उतरा हुआ, जन्मा हुआ ।
व्रतशून्य, अविरत,
अवइद (शौ) वि [ अवचित] एकत्रित | अवइद (शौ) वि [ अपकृत] जिसका अहित किया गया हो वह । न अपकार, अहित । अवउज्न सक [ अवकुब्ज् ] नीचे नमना । अवउज्झ सक [अप + उज्झ्] परित्याग
करना ।
अवउज्भ देखो अववह ।
अव्यय -
अवउडग
न्यूनता । अवउडय
देखो अवओडग ।
७५
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७६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवउंठण-अवक्कम अवउंठण न [अवगुण्ठन] ढकना । मुंह , अवंदिम वि [अवन्ध] प्रणाम के अयोग्य । ढकने का वस्त्र, चूंघट ।
अवकंख सक [अव + काङ्क्ष] चाहना । अवऊढ वि [अवगूढ] आलिंगित ।
देखना। अवऊसण न [अपवसन] तपश्चर्या-विशेष। अवकत देखो अवक्कंत। अवऊसण न [अपजोषण] ऊपर देखो। अवकप्प सक [अव + कल्पय] कल्पना करना, अवऊहण न [अवगृहन] आलिङ्गन । __ मान लेना। अवएड पुं [अवएज] तापिका-हस्त, पात्र- अवकय वि [अपकृत] जिसका अपकार किया विशेष ।
गया हो वह । अपकार, अहित । अवएस पुं [अपदेश] बहाना, छल ।
| अवकर सक [अप + कृ] अहित करना । अवओडग न [अवकोटक] गले को मरोड़ना, अवकरिस पु [अपकर्ष] ह्रास, हानि ।' कृकाटिका को नीचे ले जाना । बंधण न अवकलुसिय वि [अपकलुषित] मलिन । [°बन्धन] हाथ और सिर को पृष्ठ भाग से | अवकस सक [अव + कृष्] त्याग करना । बाँधना । वि. रस्सी से गला और हाथ को
अवकारि वि [अपकारिन्] अहित करने मोड़कर पृष्ट भाग के साथ जिसको बांधा जाय
वाला। वह।
अवकिण्ण वि [अवकीर्ण] परित्यक्त । अवंग पुं [अपाङ्ग] नेत्र का प्रान्त भाग ।
अवकिण्णग । पु [अपकीर्णक] करकण्डू अवंग पुं [दे] कटाक्ष ।
अवकिण्णय ) नामक एक जैन महर्षि का अवंगु । वि [दे. अपावृत] नहीं ढका
पूर्व नाम । अवंगुय । हुआ।
अवकित्ति स्त्री [अपकीत्ति] अपयश । अवंगुण सक [दे] खोलना ।
अवकिदि स्त्री [अपकृत्ति] अपकार, अहित । अवंचिअ वि [अवाञ्चित] अधोमुख, अवाङ्
अवकीरण न [अवकरण] त्याग, उत्सर्ग । मुख ।
अवकीरिअ वि [दे. अवकीर्ण] विरहित । अवंझ वि [अवन्ध्य] सफर, अचूक । "पवाय अवकीरियव्व वि [अवकरितव्य] त्याज्य । न [प्रवाद] ग्यारहवाँ पूर्व, जैन ग्रन्थांश- अवकूजिय न [अवकूजित] हाथ को ऊँचाविशेष ।
नीचा करना। अवंतर वि [अवान्तर] भीतरी।
अवकेसि पु[अवकेशिन्] फल-वन्ध्य वनअवंति पुं. भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र ।। स्पति । अवंति । स्त्री. मालव देश । मालव देश की | । अवकोडक देखो अवओडग । अवंती ) राजधानी, जो आजकल राजपूताना अवक्त्रंत वि [अपक्रान्त] पीछे हटा हुआ, में 'उज्जैन' नाम से प्रसिद्ध है। गंगा स्त्री वापस लौटा हुआ । निकृष्ट । [°गङ्गा] आजीविक मत में प्रसिद्ध काल- अवक्कंत पु [अवक्रान्त] प्रथम नरक भूमि का विशेष । °वड्ढण पुं [°वधन] इस नाम का ग्यारहवाँ नरकेन्द्रक--नरक-स्थान विशेष । एक राजा। "सुकुमाल पुं. एक श्रेष्ठि-पुत्र, अवक्कंति स्त्री [अपक्रान्ति] अपसरण । निर्गजो आर्यसुहस्ति आचार्य के पास दीक्षा लेकर | देव-लोक के नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न | अवक्कंति स्त्री [अवक्रान्ति] गमन । हुआ है । 'सेण पुं[°षेण एक राजा । अवक्कम अक [अप + क्रम्] पीछे हटना । बाहर
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अवक्कम-अवग्गह
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७७
निकलना । भागना।
अवगम सक [अव + गम्] जानना । निर्णय अवक्कम सक [अव + क्रम्] जाना ।
करना। अवक्कमण न [अपक्रमण] अवतरण । | अवगमिअ ) वि [अवगत] ज्ञात, विदित । अवक्कय पु [अवक्रय] भाड़ा, भाटि । अवगय निश्चित, अवधारित । अवक्कय वि [अपकृत] जिसका अहित किया | अवगय वि [अपगत] गुजरा हुआ, विनष्ट । गया हो वह ।
अवगर सक [अप+ कृ]अपकार करना, अहित अवक्करस पु [दे] दारु।
करना। अवक्करिस । पु [अपकर्ष] हानि, अपचय ।
अवगरिस देखो अवकरिस । अवकास
अवगल वि [दे] आक्रान्त ।
अवगल्ल वि [अवग्लान] बीमार । अवक्कास पु [अवकर्ष] ऊपर देखो ।
अवगहण न [अवग्रहण] निश्चय, अवधारण । अवकास पु [अप्रकाश] अन्धकार ।
अवगाढ देखी ओगाढ । अवक्कोस पु [अवक्रोश] अहंकार ।
अवगाढु वि [अवगाहित] अवगाहन करनेअवक्ख सक [दृश्] देखना ।
वाला। अवक्खंद पु [अवस्कन्द] शिविर, सैन्य का
अवगार पु [अपकार]अपकार, अहित-करण । पड़ाव । नगर का रिपु-संन्य द्वारा वेष्टन ।।
अवगारय वि [अपकारक] अपकार-कारक । अवक्खर पु[अवस्कर] पुरीष, विष्ठा ।
अवगास पु [अवकाश] फुरसत । स्थान । अवक्खारण न [अपक्षारण] निर्भर्त्सना,
अवस्थान। कठोर वचन । सहानुभूति का अभाव ।
अवगाह सक अव+गाह.] अवगाहन अवक्खेव पु [अवक्षेप विघ्न ।
करना। अवक्खेवण न [अवक्षेपण] बाधा, अन्तराय ।
अवगाह पुं [अवगाह] अवगाहन । अवकाश । क्रिया-विशेष, नीचे जाना। अवखेर सक [दे] खिन्न करना । तिरस्कार
अवगाहणा देखो ओगाहणा।
अवगिचण न [दे. अववेचन] पृथक्करण । करना। अवग पुन [दे. अवक] जल में होने वाली
अवगिज्झ देखो ओगिज्झ। वनस्पति-विशेष ।
अवीय वि [अवगीत] निन्दित । अवगइ स्त्री [अपगति] खराब गति । गोपनीय अवगुंठण देखो अवउंठण । स्थान ।
अवगुठिय वि [अवगुण्ठित] आच्छादित । अवगंड न [अवगण्ड] सुवर्ण। पानी का | अवगुण पुं [अवगुण] दुर्गुण, दोष ।
अवगुण सक [अव + गुणय्] उद्घाटन करना। अवगच्छ सक [अप + गम्] जानना।
अवगूढ वि [अवगूढ] आलिंगित । व्याप्त । अवगच्छ अक [अप + गम्] दूर होना, निकल अवगूढ न [दे] व्यलोक, अपराध । जाना।
अवगृहण न [अवगृहन] आलिंगन । अवगण । सक [अव+गणय्] अनादर अवगृहाविय वि [अवगूहित] आश्लेषित । अवगण , करना।
अवग्ग वि [अव्यक्त] अस्पष्ट । पुं. अगीतार्थ, अवगद वि [दे] विस्तीर्ण, विशाल ।
शास्त्रानभिज्ञ साधु । अवगम पुं [अपगम] अपसरण । विनाश । अवग्गह देखो उग्गह।
फेन ।
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७८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष __ अवग्गहण-अवड अवग्गहण न [अवग्रहण] देखो उग्गह। | अवज्जस सक [गम] जाना। अवच देखो अवय = अवच ।।
अवजा स्त्री [अवज्ञा] अनादर । अवचइय वि [ अपचयिक] अपकर्षप्राप्त, अवज्झ सक [दृश्] देखना । ह्रासवाला।
अवज्झस न [दे] कटि । वि. कठिन । अवचय पु [अपचय] ह्रास ।
अवज्झा स्त्री [अवध्या] अयोध्या नगरी । अवचय पुं. इकट्ठा करना ।
विदेह वर्ष की एक नगरी । अवचि अकअप + चि]हीन होना, कम जाना। अवज्झाण । पुन [अपध्यान] दुनि, बुरा
अवझाण , चिन्तन । अवचि । सक [अव + चि] इकट्ठा करना अवचिण ) (फूल आदि को वृक्ष से तोड़
अवज्झाय वि [अपध्यात] दुर्ध्यान का विषय । तिरस्कृत।
अवज्झाय (अप) देखो उवज्झाय । अवचिय वि [अवचित] हीन, ह्रासप्राप्त ।
अवट्ट सक [अप+वृत्] घुमाना । अवचिय वि [अपचित] इकट्ठा किया हुआ ।
अवट्ट अक [अप+ वृत्] पीछे हटना । अवचुण्णिय वि [अवचूर्णित] तोड़ा हुआ, | अवठ्ठा स्त्री [आवर्ता] राजमार्ग से बाहर को चूर-चूर किया हुआ।
जगह । अवचुल्ल पुं. चूल्हे का पोछला भाग। अवटुंभ पुं [अवष्टम्भ] अवलम्बन । दृढ़ता, अवचूल देखो ओऊल ।
हिम्मत । अवच्च वि [अवाच्य] बोलने के अयोग्य । | अवटुंभ देखो अवठंभ । बोलने के अशक्य ।
अवटुंभण । न [अवष्टम्भन] सहारा । अवच्च न [अपत्य] संतान । °व वि ["वत्] अवट्ठहण । संतानवाला।
अवटुद्ध वि [अवष्टब्ध] रोका हुआ। अवच्चिज देखो अवच्चोय।
अवटूद वि [अवष्टब्ध अवलम्बित । आक्रान्त । अवच्चीय वि [अपत्यीय] संतान-सम्बन्धी। अवठ्ठव सक [अव+स्तम्भ] अवलम्बन अवच्छण्ण न [दे] क्रोध से कहा जाता मार्मिक | करना। वचन ।
अवट्ठाण न [अवस्थान] अवस्थिति, अवस्था । अवच्छेय पु [अवच्छेद] विभाग, अंश । ! व्यवस्था। अवछंद वि [अपच्छन्दरक] छन्द के लक्षण से | अवट्ठिअ वि [अवस्थित] अवगाहन करके रहित, छन्दोदोष-दुष्ट ।
स्थित । कर्म-बन्ध विशेष, प्रथम समय में अवजस पु [अपयशस्] अपकीर्ति । जितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध हो द्वितीय अवजाण सक [अप+ज्ञा] अपलाप करना।। आदि समयों में भी उतनी ही प्रकृतियों का अवजाय पुं [अपजात] पिता की अपेक्षा हीन | जो बन्ध हो वह । स्थिर रहनेवाला । नित्य । वैभववाला पुत्र ।
जो बढ़ता-घटता न हो। अवजिब्भ पुं [अपजिह्वा दूसरी नरक-पृथिवी | अवट्टिइ स्त्री [अवस्थिति] अवस्थान ।
का आठवाँ नरकेन्द्रक-नरक-स्थान विशेष ।। अवठंभ सक [अव+ स्तम्भ ] अवलम्बन अवजीव वि [अपजीव] मृत, अचेतन । | करना। अवजय वि [अवयुत] पृथग्भूत ।। अवठंभ पुं [दे] ताम्बूल । अवज्ज न [अवद्य] पाप । वि. निन्दनीय। । अवड पुं [अवट] कुंआ ।
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अवड-अवस्थय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७९ अवड पु[दे] कूप । बगीचा ।
। अवणी देखो अवणि । °सर पुं [°श्वर] अवडअ पु [दे] चञ्चा. घास-फूस का पुतला, भूमिपति ।। तृण-पुरुष ।
अवणी सक [अप+नी] दूर करना, हटाना। अवडंक पु [अवटंङ्क] प्रसिद्धि, ख्याति । अवणीय वि [अपनीत] दूर किया हुआ। अवडक्किअ वि [दे] कूप आदि में गिरकर अवणीयवयण न [अपनीतवचन] निन्दावचन। मरा हुआ, जिसने आत्म-हत्या की हो वह ।। अवणोय पुं [अपनोद] अपनयन । अवडाह सक [उत् + क्रुश्] ऊँचे स्वर से अवण्ण न [दे] अवज्ञा । रुदन करना।
अवण्णा स्त्री [अवज्ञा] तिरस्कार । अवडाहिअ न [दे] ऊँचे स्वर से रोदन । वि. अवण्हअ [अपह्नव] अपलाप । उत्कृष्ट ।
अवण्हवण न [अपह्नवन] अपलाप । अवडिअ वि [दे] खिन्न, परिश्रान्त ।। अवण्हाण न [अवस्नान] साबुन आदि से । अवडु पुं[अवटु] कृकाटिका, घंटी या घांटी, स्नान करना। कण्ठमणि ।
अवतंस देखो अवयंस - अवतंस । अवडुअ पु [दे] उलुखल ।
अवतंस पुं. मेरुपर्वत । अवडुल्लिअ वि [दे] कूप आदि में गिरा हुआ। अवतंसिय वि [अवतंसित] विभूषित । अवड्डा स्त्री [दे] कृकाटिका, घट्टी, गर्दन का | अवत? वि [अवतष्ट] तनुकृत, छिला हुआ । ऊँचा हिस्सा।
अवतट्टि देखो अवयट्ठि = अवतष्टि । अवड्ढ वि [अपाध] आधा। आधा दिन । अवतारण न उतारना। योजना करना ।
आधे से कम । °क्खेत्त न [°क्षेत्र] नक्षत्र- अवतासण न [अवत्रासन डराना । विशेष । मुहूर्त-विशेष ।
अवतित्थ न [अपतीर्थं] खराब किनारा । अवण [दे] पानी का प्रवाह । घर का अवत्त वि[अव्यक्त] अस्पष्ट । कम उमर वाला। फलहक।
असंस्कृत । पुं. देखो अवग्ग । अवण न [अवन] गमन । अनुभव ।। अवत्त वि [अवात] पवनरहित । अवणण देखो अवणयण ।
अवत्त वि [अवाप्त प्राप्त, लब्ध । अवणद्ध वि [अवनद्ध] संबद्ध । आच्छादित । अवत्त न [अवत्र] आसन-विशेष । अवणम अक [अव + नम्] नीचे नमना। अवत्तय वि[दे] विसंस्थुल, अव्यवस्थित । अवणमिय वि [अवनत] अवनत ।
अवत्तव्व वि [अवक्तव्य] अनिर्वचनीय । सप्तअवणमिय वि [अवनमित] नीचे किया हुआ, भंगी का चतुर्थ भंग । नमाया हुआ।
अवत्तिय न [अव्यक्तिक] एक जैनाभास मत, अवणय वि [अवनत] नमा हुआ।
निह्नवप्रचालित एक मत । वि. इस मत का अवणय पुं [अपनय] अपनय, हटाना । निन्दा। अवणयण न [अपनयन] हटाना, दूर करना। अवत्थंतर न [अवस्थान्तर] भिन्न अवस्था । अवणाम पुं[अवनाम] ऊर्ध्वगमन ।। अवत्थग वि [अपार्थक] व्यर्थ । असम्बद्ध अर्थअवणि स्त्री [अवनि पृथिवी ।
वाला। अवणिद पुं[अवनीन्द्र] राजा ।
अवत्थद्ध वि [अवष्टब्ध] अवलम्बन-प्राप्त । अवणिय देखो अवणीय ।
अवत्थय वि [अपार्थक] निरर्थक ।
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८०
देखो अवदार |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अवत्थरा स्त्री [दे] पाद-प्रहार | अवस्था स्त्री [अवस्था ] दशा, अवस्थिति | अवत्थाव सक [अव + स्थापय् ] स्थिर करना, ठहराना । व्यवस्थित करना ।
अवत्थिय देखो अवट्टिय | अवत्थिय वि [ अवस्तृत ] प्रसारित ।
अवत्थु न [ अवस्तु ] अभाव, असत्त्व | वि. अवपंगुर
निरर्थक, निष्फल |
अवथंभ देखो अवठंभ |
अवदग्ग देखो अवयग्ग |
अवदल वि [अपदल] साररहित | अपक्व । अवदहण न [ अवदन] दम्भन, गरम लोहे चर्म ( फोड़े आदि ) पर
|
के कोश आदि दागना ।
अवदाण न [ अवदान ] शुद्ध कर्म ।
अवदाय वि [ अवदात ] पवित्र, निर्मल । सफेद । अवदार न [ अपद्वार ] छोटी खिड़की । गुप्त
द्वार ।
अवदाल सक [अव + दलय् ] खोलना । विकसित करना । विजृम्भित करना । अवदिसा स्त्री [अपदिक् ] भ्रान्त दिशा ।
अवदेस देखो अवएस ।
अवद्दार
अबद्दाल
अवद्दाहणा स्त्री. देखो अवदहण ।
अवदुस न [दे] उलूखल आदि घर का
सामान्य उपकरण ।
अवद्धंस पुं [अवध्वंस ] विनाश । अवधंसि वि [ अपध्वंसिन् ] विनाशकारक | अवधार सक [अव + धारय् ] निश्चय करना । अवधारणा स्त्री. दीर्घकाल तक याद रखने की शक्ति ।
अवधाव सक [अप + धाव् ] पीछे दौड़ना । अवधिका स्त्री [] उपदेहिका, दीमक । अवधीरियवि [अवधीरित] तिरस्कृत, अपमानित |
अवत्थरा - अवमग्ग
अवधुण
सक [अव + धू] परित्याग करना ।
अवधूण
अवज्ञा करना ।
अवधूयवि [ अवधूत ] अवज्ञात, तिरस्कृत | विक्षिप्त ।
अवनय पुं [अपनिद्रक] निद्रा का अभाव । अवगुण सक [] खोलना |
अवपक्का स्त्री [अवपाक्या ] छोटा तवा । [अवस्पृष्ट] जिसका स्पर्श किया
गया हो वह ।
सिवि [] संघटित, संयुक्त । अवपूर सक [ अव + पूरय् ] पूर्ण करना । अवपेक्ख सक [ अवप्र + ईक्ष् ] अवलोकन
करना ।
अप्पओग पु [अपप्रयोग] उलटा प्रयोग, विरुद्ध औषधियों का मिश्रण ।
अवप्फार पुं' [अवस्फार] विस्तार, फैलाव । अवबंध [अवबन्ध ] बन्ध, बन्धन । अवबद्ध वि. बँधा हुआ, नियन्त्रित । अवबाण वि [ अपबाण ] बाणरहित । अवबुज्झ सक [ अव + बुध् ]
जानना ।
समझना ।
अवबोह पुं [अवबोध ] ज्ञान, बोध | विकास |
जागरण । स्मरण ।
अवबोहि पु [ अवबोधि ] ज्ञान । निश्चय, निर्णय ।
अवभास अक [ अव + भास् ] प्रकाशित होना ।
चमकना,
अवभास पुं. प्रकाश । ज्ञान । अवभासण वि [ अवभासन] प्रकाश कर्त्ता । अवभासय वि [अवभासक ] प्रकाशक । अवभासिय वि[ अपभाषित] आक्रुष्ट,
अभिशप्त ।
अवम देखो ओम |
अवमग्ग पु [अपमार्ग ] खराब रास्ता । अवमग्ग पुं [अपामार्ग] वृक्ष - विशेष, चिचड़ा,
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अवमच्चु-अवयास
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लटजीरा ।
अवयग्ग न [दे] अन्त, अवसान । अवमच्चु पुं [अपमृत्यु] अकाल मृत्यु । अवयच्छ सक [ अव+ गम् ] जानना । अवमज सक [अव + मृज्] पोंछना, झाड़ना, | अवयच्छ सक [ दृश् ] देखना । साफ करना।
अवयच्छिय वि [दे] प्रसारित । अत्रमण्ण सक [अव + मन्] तिरस्कार करना। अवयज्झ सक [ दृश् ] देखना । निरादर करना । अवज्ञा करना ।
अवयट्ठि स्त्री [अवतष्टि] पतला करना । अवमद्द पु[अवमर्द] मर्दन, विनाश ।
अवयट्टि वि [अवस्थायिन्] स्थिर रहनेवाला । अवमग वि [अवमर्दक] मर्दन करने वाला । अवयट्टि स्त्री [अवकृष्टि] आकर्षण । अवमन्निय । वि [अवमत] अवज्ञात, अव- अवयढिअ वि [दे] युद्ध में पकड़ा हुआ। अवमय गणित ।
अवयण न [अवचन] कुत्सित वचन, दूषित अवमाण पुं [अपमान] तिरस्कार ।
भाषा। अवमाण पुन [अवमान] अवज्ञा । परिमाण ।
| अवयर सक [अव+तृ] नीचे उतरना । जन्म अवमाण सक [अव + मानय] अवगणना
ग्रहण करना। करना।
अवयरिअ ' [दे] वियोग । अवमाणिय वि [अवमानित] अवज्ञात, अना
अवयरिअ वि [अपकृत] जिसका अपकार दृत । अपूरित ।
किया गया हो वह । न. अपकार, अहितअवमार पु[अपस्मार] भयंकर रोग-विशेष, करण ।। पागलपन ।
अवयव पं. अंश, विभाग । अनुमान-प्रयोग का अवमारिय वि [अपस्मारित, °रिक] अप
वाक्यांश । स्मार रोग वाला।
अवयाढ देखो ओगाढ। अवमारुय पु [अवमारुत] नीचे चलता पवन ।
अवयाण न [दे] खींचने की डोरी, लगाम । अवमिच्चु देखो अवमच्चु ।
अवयाय पु[अववाय] अपराध, दोष । अवमिय वि[दे]जिसको घाव हो गया हो वह । अवयाय वि [अवदात] निर्मल । अवमुक्त वि [अवमुक्त] परित्यक्त ।
अवयार पु [अपकार] अहित-करण । अवमेह वि [अपमेघ मेघ-रहित ।
अवयार पु [अवतार] उतरना । देहान्तर
धारण, जन्म-ग्रहण । मनुष्य रूप में देवता का अवय देखो अपय = अपद ।
प्रकाशित होना । संगति, योजना । प्रवेश । अवय न [अब्ज] कमल ।
समावेश । अवय वि [अवच] नीचा । जघन्य । प्रतिकूल । अवयंस पु [अवतंस] शिरोभूषण विशेष ।
अवयार दे] माध-पूर्णिमा का एक उत्सव, कान का आभूषण ।
जिसमें ईख से दतवन आदि किया जाता है । अवयंस सक [ अवतंसय् ] भूषित करना। अवयारण न [अवतारण] उतारना। अवयवख सक [अप + ईक्ष] अपेक्षा करना, अवयारय देखो अवगारय । राह देखना।
अवयालिय वि [अवचालित] चलायमान अवयवख सक [ अव + ईक्ष ] देखना । पीछे किया हुआ। से देखना।
अवयास सक [ श्लिष् ] आलिंगन करना। अवयवखा स्त्री [अपेक्षा] अपेक्षा।
अवयास सक [अव + काश्] प्रकट करना ।
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૮૨
हुआ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अवयास-अवरूव अवयास देखो अवगास।
अवरद्ध न[अपराद्ध] अपराध । वि. अपराधी । अवयास [श्लेष]आलिंगन ।
विनाशित । अवयासाविय वि [श्लेषित] आलिंगन कराया | अवरद्धिग वि [अपराधिक] अपराधी, दोषी।
पु. लूता-स्फोट । सर्पादि-दंश । अवयासिणी स्त्री [दे] नाक में डाली जाती | अवरद्धिग । पुंस्त्री [अपराधिक] सर्पदंश । डोर।
अवरद्धिय । फुनसी, छोटा फोड़ा। अवर वि [अपर] अन्य, दूसरा, तद्भिन्न । | अवरा स्त्री [अपरा] विदेहवर्ष की एक नगरी। °हा अ [°था] अन्यथा ।
पश्चिम दिशा। अवर स [अपर] पिछला काल या देश । | अवराइया देखो अपराइया । पिछले काल या देश में रहा हुआ, पाश्चात्य । । अवराइस देखो अण्णाइस । पश्चिम दिशा में स्थित। कंका स्त्री | अवराजिय देखो अपराइय । [°कङ्का] घातकी-खंड के भरतक्षेत्र की एक अवराजिया देखो अपराइया। राजधानी । इस नाम के 'ज्ञातधर्मकथा' सूत्र | अवराह पु[अपराध] गुनाह । अनिष्ट, बुराई । का एक अध्ययन । °ण्ह (ह्न) दिन का | अवराह पु [दे] कटी । अन्तिम प्रहर । दिन का उत्तरी भाग । | अवराहिय न [अपराधित] अपराध । अपकार, दाहिण [दक्षिण] नैऋत्य कोण । वि. ___ अनिष्ट, अहित । नैऋत्य कोण में स्थित । दाहिणा स्त्री | अवराहत्त बि [अपराभिमुख] पराङ्मुख । [°दक्षिणा] पश्चिम और दक्षिण दिशा के | पश्चिम दिशा की तरफ मुंह किया हुआ। बीच को दिशा, नैऋत्य कोण । °फाणु स्त्री | अवरि । [°पाष्णि] एड़ी, अड्डी का पिछला भाग । | अवरिं अ [उपरि ऊपर । राय पु [रात्र] देखो अवरत्त = अपर
अवरिक वि [दे] अनवसर। रात्र । °विदेह पुं. महाविदेह नामक वर्ष का
अवरिगलिअ वि [अपरिगलित]पूर्ण, भरपूर । पश्चिम भाग । विदेहकड न [विदेहकूट]
अवरिज वि [दे] अद्वितीय, असाधारण । पर्वत-विशेष का शिखर-विशेष । देखो अपर ।
अवरिल्ल वि [उपरि] उत्तरीय वस्त्र, चादर । अवरंमुह वि [अपराङ्मुख] संमुख । तत्पर । | अवरिल्ल वि [अपरीय] पाश्चात्य, पश्चिम अवरच्छ देखो अपरच्छ ।
दिशा सम्बन्धी। अवरज पु[दे] गत दिन । आगामी दिन । | अवरिहड्ढपुसण न [दे] अकोत्ति, अजस । प्रभात, सुबह ।
असत्य । दान । अवरज्झ अक[अप + राध्] गुनाह करना । | अवरुंड सक [दे] आलिङ्गन करना। नष्ट होना।
अवरुत्तर पु [अपरोत्तर] वायव्य कोण । वि. अवरत्त पु [अपररात्र, अवररात्र] रात्रि वायव्य कोण में स्थित । का पिछला भाग।
अवरुत्तरा स्त्री [अपरोत्तरा] वायव्य दिशा । अवरत्त वि [अपरक्त]विरक्त,उदास । नाखुश । अवरुद्ध वि. घिरा हुआ। अवरत्तअ । पु[दे] पश्चात्ताप । अवरुप्पर देखो अवरोप्पर । अवरत्तेअ )
| अवरुह अक [अव + रुह.] नीचे उतरना। अवरदक्षिणा देखो अवर-दाहिणा। अवरुव देखो अपुव्व।
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अवरोप्पर-अववरक संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवरोप्पर । वि [परस्पर] आपस में । । अवलेह पुं. चटनी। अवरोवर ।
अवलेहणिया स्त्री [अवलेखनिका] बांस का अवरोह पु[अवरोध] अन्तःपुर । अन्तःपुर में छिलका । धूलि आदि झाड़ने का एक उपरहनेवाली स्त्री। नगर को सैन्य से घेरना । करण । संक्षेप। प्रतिबन्ध । जुवइ स्त्री [°युवति] अवलेहि , स्त्री [अवलेखि, का] बांस अन्तःपुर की स्त्री।
अवलेहिया का छिलका । लेह्य विशेष । अवरोह पुं. उगनेवाला ( तृण आदि )। चावल के आटा के साथ पकाया हुआ दूध । अवरोह पु [दे] कटि ।
अवलोअ सक [अव + लोक] देखना, अवअवलंब सक [अव + लम्ब्] आश्रय लेना। लोकन करना । लटकना ।
अवलोग ) पु अवलोक] अवलोकन, अवलंब , पु [अवलम्ब, °क] सहारा, | अवलोय । दर्शन । अवलंबग । आश्रय । वि. लटकनेवाला । अवलोयण न [अवलोकन] विलोकन । स्थानसहारा लेनेवाला।
विशेष । शिखर-विशेष । अवलंबणया स्त्री [अवलम्बनता] अवग्रह- | अवलोयणी स्त्री [अवलोकनी] देवी-विशेष । ज्ञान ।
अवलोव पु [अपलोप] छिपाना, लोप अवलक्खण न [अपलक्षण] खराब लक्षण, ! करना। बुरी आदत ।
अवलोवणी स्त्री [अपलोपनी] विद्याअवलग्ग वि [अवलग्न] आरूढ़ । संलग्न । विशेष । अवलत्त वि [अपलपित] छिपाया हुआ। अवलोह वि [अपलोह] लोहरहित । अवलद्ध वि [अपलब्ध] अनादर से प्राप्त ।
अवल्लय न [दे. अवल्लक] नौका खेवने का अवलद्धि स्त्री [अवलब्धि] अप्राप्ति ।।
उपकरण-विशेष । अवलय न [दे] मकान ।
अवल्लाव ) पु [दे. अपलाप] असत्यअवलव सक [अप+लप्] असत्य बोलना। | अवल्लावय , कथन, अपलाप । सत्य को छिपाना।
अवव न. संख्या-विशेष, अववाङ्ग' को चौरासी अवलाव पु [अपलाप] अपह्नव ।
लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । अवलिअ न [दे] झूठ।
अववंग न [अववाङ्ग] संख्या-विशेष, 'अडड' अवलिंब पु [अवलिम्ब] जीव या पुद्गलों से को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या व्याप्त स्थान-विशेष ।
लब्ध हो वह । अवलिच्छअ वि [दे] अप्राप्त, अनासादित । अववक्कल वि [अपवल्कल] त्वचारहित । अवलित्त वि [अवलिप्त] व्याप्त । लिप्त । अववक्का स्त्री [अवपाक्या] छोटा तवा । गवित ।
अववग्ग [अपवर्ग] मोक्ष । अवलुअ देखो अवल्लय।
अववट्टण न [अपवर्तन] अपसरण । कर्मपरअवलुआ स्त्री [दे] गुस्सा ।
माणुओं की दीर्घ स्थिति को छोटी करना। अवलुत्त वि [अवलुप्त] लोप-प्राप्त । अववत्त वि [अपवृत्त] वापस लौटा हुआ । अवलेअ , पु [अवलेप] अहंकार । लेप, अपसृत । अवलेव । लेपन । अनादर ।
| अववरक पु [अपवरक] कोठरी, छोटा घर ।
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८४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अववह-अवसेस अववह सक [अप + वह ] बाहर फेंकना, दूर | अवसरिय वि [आवसरिक] सामयिक, समहटाना।
योपयुक्त । अववाइअ वि [आपवादिक] अपवाद-संबंधी। अवसरीर पु[अपशरीर] रोग । अववाइय वि [अपवादिक] अपवादवाला। अवसवस वि [अपस्ववश] पराधीन । अववाय पु [अपवाद] विशेष नियम, अप- अवसव्व न [अपसव्य] वाम पार्श्व । वाद । निन्दा, अवर्ण-वाद । अनुज्ञा, संमति । | अवसव्वय न [अपसव्यक] शरीर का दाहिना निश्चय, निर्णय वाली हकीकत ।।
भाग। अववास सक [अव + काश्] अवकाश देना, अवसह पु [आवसथ] घर । जगह देना।
अवसह न [दे] उत्सव । नियम । अववाह सक [अव + गाह ] अवगाहन करना। अवसाइअ वि [अप्रसादित] प्रसन्न नहीं किया अवविह पु [अवविध] गोशालक के एक भक्त हुआ । का नाम ।
अवसाण न [अवसान] नाश । अन्त भाग । अववीड पु[अवपीड] निष्पीड़न, दबाना।। अवसाय पु [अवश्याय] हिम । अवस वि [अवश] पराधीन । स्वतन्त्र । अकाम, अवसारिअ वि [अप्रसारित] न. फैला हुआ, अनिच्छु ।
अविस्तारित । अवसं अ [अवश्यम्] जरूर, निश्चय । अवसारिअ वि [अपसारित] आकृष्ट । हटाया अवसउण न [अपशकुन] अनिष्ट-सूचक | हुआ। निमित्त ।
अवसावण न [अवस्रावण] कांजी। भात अवसंकि वि [अपशङ्किन] अपसरणकर्ता। वगैरह का पानी। अवसक्क सक [ अव+वष्क] पीछे हट अवसावणिया स्त्री [अवस्वापनिका] सुलानेजाना।
वाली विद्या। अवसण्ण वि [दे] टपका हुआ।
अवसिअ वि [अपसृत] पीछे हटा हुआ। अवसण्ण वि [अवसन्न] निमग्न ।
अवसिअ वि [अवसित] समाप्त । ज्ञात । अवसद्द पु [अपशब्द] अशुद्ध शब्द । खराब
अवसिज्ज अक [अव + सद] हारना। वचन । अपकीत्ति ।
अवसित्त वि [अवसिक्त] सींचा हुआ। अवसप्प अक [ अव + सृप ] पीछे हटाना । | अवसिद (शौ) वि [अवसित] समाप्त । निवृत्त होना । उतरना।
अवसिद्धत पु [अपसिद्धान्त] दूषित सिद्धांत । अवसप्पण न [अपसर्पण] अपसरण, अपवर्तन । अवसीय अक [अव+ सद्] क्लेश पाना, खिन्न अवसप्पिणी देखो ओसप्पिणी ।
होना। अवसमिआ [दे] देखो अंबसमी।
अवसुअ अक [उद् + वा] सूखना, शुष्क अवसय वि [अपशद] अधम ।
होना। अवसर अक [अप + सृ] पीछे हटना । निवृत्त अवसेअ पु [अवसेक] सिंचन । होना।
अवसेअ वि [अवसेय] जानने योग्य । अवसर सक [अव+ स] आश्रय करना । अवसें (अप) देखो अवसं । अवसर पुं. काल, समय । प्रस्ताव, मौका। अबसेण देखो अवसं। अवसरण देखो ओसरण ।
| अवसेस पु [अवशेष] अवशिष्ट । वि. सर्व ।
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अवसेसिय-अवहास संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवसेसिय वि [अवशेषित] समाप्त किया | अवहत्थरा स्त्री [दे] लात मारना । हुआ, पार पहुँचाया हुआ । अवशिष्ट । अवहय वि [अपहत] नष्ट । अवसेह सक [गम्] जाना।
अवहय वि [अघातक] अहिंसक । अवसेह अक [ नश् ] पलायन करना। अवहर सक [गम्] जाना। अवसोइया स्त्री [अवस्वापिका] निद्रा। अवहर अक [नश्] भाग जाना। अवसोग वि [अपशोक] शोक-रहित । देव- | अवहर सक [अप + ह] छीन लेना, अपहरण विशेष ।
करना। भागाकार करना, भाग देना। अवसोण वि [अपशोण] थोड़ा लाल । परित्याग करना। अवसोवणी स्त्री [अवस्वापनी] निद्रा । । अवहर वि [अपहर] अपहारक, छीन लेनेअवस्स वि [अवश्य] जरूरी, नियत । कम्म वाला। न |°कमन्] आवश्यक क्रिया। करणिज्ज | अवहस सक [अव, अप + हस्] तुच्छ करना, वि [करणीय] अवश्य करने लायक कर्म, तिरस्कार करना, उपहास करना। सामयिक आदि । °किरिया स्त्री [क्रिया] | | अवहाउ सक [दे] आक्रोश करना। आवश्यक अनुष्ठान । किच्च वि [°कृत्य] | अवहाडिअ वि [दे] उत्कृष्ट, जिस पर आक्रोश आवश्यक कार्य।
किया गया हो वह । अवस्सं अ [अवश्यम्] जरूर, निश्चय ।
अवहाण न [अवधान] ख्याल, उपयोग । ज्ञान, अवस्सप्पिणी देखो अवसप्पिणी।
जानना। अवस्साअ देखो अवसाय ।
अवहाय पु[दे] विरह, वियोग । अवस्सिय वि [अवाश्रित] आश्रित, अवलग्न । अवहाय अ [अपहाय] छोड़ कर, त्याग कर । अवह सक [रच्] निर्माण करना ।
अवहार सक [अव + धारय्] निर्णय करना, अवह स [उभय] दोनों, युगल ।
निश्चय करना। अवह वि. न बहता हुआ, जो चालू नहीं है। । अवहार (अप) देखो अवहर = अप + ह । अवहइ स्त्री [अपहति] विनाश।
| अवहार पु [अपहार] अपहरण । दूर करना, अवहट्ट वि [दे] अभिमानी ।
परित्याग । चोरी । बाहर करना, निकालना। अवहट्ट अवहर = अप+ह का संकृ.। भागाकार । विनाश । अवहड वि [अपहृत ले लिया गया, छीना | अवहार पु [अवधार] निश्चय, निर्णय । °व हुआ।
वि [वत्] निश्चय वाला। अवह वि [अवहृत] ऊपर देखो। अवहार पु [अवधार्य] ध्रुवराशि, गणितअवहड नदी मसल ।
प्रसिद्ध राशिविशेष । अवहण्ण पु[दे] उदूखल ।
अवहारय वि [अपहारक] छीननेवाला, अपअपहत्थ पु [अपहस्त] मारने के लिए या | हरण करनेवाला । निकाल बाहर करने के लिए ऊँचा किया | अवहाव सक [क्रप्] दया करना, कृपा हुआ हाथ ।
करना । अवहत्थ सक [अपहस्तय] हाथ को ऊंचा | अवहाविअ वि [अवधावित] गमन के लिए करना । त्याग करना, छोड़ देना। दूर | प्रेरित । करना।
| अवहास पु [अवभास] प्रकाश ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवहासिणी-अवि अवहासिणी स्त्री [अवहासिनी] नासारज्जु । ( अवाउड वि [अ-व्याप्त] किसी कार्य में न अवहि देखो ओहि।
लगा हुआ। अवहिट्ठ वि दे] अभिमानी।
अवाउड वि [अप्रावृत] अनाच्छादित, नग्न, अवहिट्ट न दि] मैथुन ।
दिगम्बर । अवहिय वि [अपहृत] छीन लिया हुआ। अवाडिअ वि [दे] वञ्चित, प्रतारित । अवहिय वि [अपहित] अहित ।
अवाण देखो अपाण। अवहिय वि[अवधृत]नियमित । न. अवधारण। | अवाय पुं[अपाय पानी का आगमन । अवहिय वि [अवहित] सावधान । °मण वि अवाय वि [अपाय भाग्यरहित । [°मनस् ] तल्लीन, एकाग्र-चित्त । अवाय वि [अपाग] वृक्षरहित । अवहिय वि [रचित] निर्मित ।
अवाय वि [अपाक] पापरहित । अवहीण वि [अवहीन] हीन, उतरता, कम अवाय पुं [अवाय] प्राप्ति । दरजा वाला।
अवाय पुं[अपाय] अनर्थ, अनिष्ट । दोष, दूषण । अवहीय वि [अपधीक दुद्धि ।
उदाहरण-विशेष । विनाश । वियोग, पार्थक्य । अवहीर सक [अव+धीरय] अवज्ञा करना, संशय-रहित निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष । °दंसि तिरस्कार करना । अवहेलना करना।
वि [दर्शिन्] भावी अनर्थों को जाननेवाला । अवहील देखो अवहोर।
विजय न[°विचय, विजय ध्यान-विशेष । अवहीला स्त्री [अवहेला] अनादर । अवाय पुं. संशय-रहित निश्चयात्मक ज्ञान विशेष, अवहूय वि [अवधूत] मार भगाया हुआ । मति ज्ञान का एक भेद । प्राप्ति । अवहेअ वि [दे] कृपा-पात्र ।
अवाय वि [अम्लान] म्लानरहित, ताजा । अवहेड सक [ मुच् ] छोड़ना, त्याग करना । | अवायाण न [अपादान] कारक-विशेष, अवहेडग । पुन [अवहेटक] आधे सिर का स्थानान्तरीकरण । अवहेडय , दर्द, आधा सीसी रोग। अवार वि [अपार] अनन्त । अवहेडिय वि [दे] नीचे की तरफ मोड़ा हुआ। अवार पुं [दे] दूकान । अवहेरि स्त्री [अवहेला अवगणना, तिर- अवारी स्त्री [दे] ऊपर देखो। अवहेरी स्कार।
अवालुआ स्त्री [दे] होठ का प्रान्त भाग । अवहेलअ वि [अवहेलक] तिरस्कारक। अवाव पुं [अवाप] रसोई । कहा स्त्री अवहेलण वि [अवहेलन] उपेक्षा करने वाला। [कथा] रसोई-सम्बन्धी कथा । अवहोअ पुंदे] विरह, वियोग । | अवास । (अप) देखो अवसें। अवहोडय देखो अवओडग। अवहोमुह वि [उभयमुख] दोनों तरफ मुंह | अवाह पुं. देश-विशेष । वाला।
अवाहा देखो अबाहा। अवहोल अक [अव + होलय] झूलना । संदेह | अवि अ [अपि] इन अर्थों का सूचक अव्ययकरना।
अवधारण । समुच्चय । संभावना । विलाप । अवाइ वि [अपायिन्] दुःखी । दोषी, अपराधी। वाक्य के उपन्यास और पादपूर्ति में भी इसका अवाईण वि [अवाचीन] अधामुख ।
प्रयोग होता है। अवाईण वि [अवातीन] वायु से अनुपहत। । अवि पुं. अज । मेष ।
अवासें
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अविअ-अविस्साम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८७ अविअ वि [दे] उक्त ।
अविणयवई स्त्री [दे] कुलटा । अविअ वि [अवित] रक्षित ।
अविणि वि [अविनिद्र] निद्रा-विच्छेदरहित । अविअ अ [अपिच विशेषण-सूचक अव्यय । | अविण्णा स्त्री [अविज्ञा] अनुपयोग, ख्याल समुच्चय-द्योतक अव्यय ।
का अभाव । अविअ ' [अविक] मेष, भेड़ ।
अविद । अ. विषाद-सूचक अव्यय । अविउ वि [अवित्] अज्ञ, मुर्ख ।
अविदा अविउक्कंतिय वि [अव्युत्क्रान्तिक] उत्पत्ति- अविनाण वि [अविज्ञान] अजान । अज्ञात, रहित ।
अपरिचित । अविउसरण न [अव्युत्सर्जन] अपरित्याग, | अवियत्त न [अप्रीतिक] प्रीति का अभाव । पास में रखना।
वि. अप्रीतिकारक । अविकप वि [अविकम्प निश्चल ।
अविरइ स्त्री [अविरति] विराम का अभाव, अविकरण न. गृहीत वस्तुओं को यथास्थान न | अनिवृत्ति । पाप कर्म से अनिवृत्ति । हिंसा । रखना।
मैथुन । विरति-परिणाम का अभाव । वि. अविक्ख देखो अवेक्ख ।
विरतिरहित । °वाय पुं [°वाद] अविरति अविक्खग वि [अपेक्षक] अपेक्षा करने वाला। | की चर्चा । मैथुन-चर्चा । अविक्खण न [अवेक्षण] अवलोकन, निरीक्षण। | अविरइय वि [अविरतिक] विरति से रहित, अविक्खण न [अपेक्षण] अपेक्षा, परवाह । । पापनिवृत्ति से वर्जित, पाप कर्म में प्रवृत्त । अविक्खा देखो अवेक्खा।
अविरय वि [अविरत] विरामरहित, अविअविगइय वि [अविकृतिक] घृत आदि | च्छिन्न । पाप निवृत्ति से रहित । चतुर्थ गुणविकार-जनक वस्तुओं का त्यागी।
स्थानक वाला जीव । °सम्मदिदि स्त्री अविगडिय वि [अविकटित] अनालोचित । । [°सम्यग्दृष्टि] चतुर्थ गुण स्थानक । अविगप्पग वि [अविकल्पक] विकल्परहित । | अविराम वि [अविराम] विरामरहित । वि. न. कल्पनारहित प्रत्यक्ष ज्ञान ।।
निरन्तर, हमेशा। अविगल वि [अविकल] अखण्ड, पूर्ण । अविराय वि [अविलीन] अभ्रष्ट । अविगिच्छ वि [अविचिकित्स्य] जिसका | अविराहिय वि [अविराधित] अखण्डित,
इलाज न हो सके ऐसा, असाध्य व्याधि । आराधित । अविगीय पुं [अविगीत] अगीतार्थ, शास्त्रों के | अविल पुं [दे] पशु । वि. कठिन । रहस्य का अनभिज्ञ साधु ।
अविला स्त्री. मेषी। अविग्गह वि [अविग्रह] शरीर-रहित । युद्ध- अविसंधि वि. पूर्वापर विरोध से रहित, संगत, रहित, कलह-वजित । सरल, सीधा । गइ संबद्ध । स्त्री [गति] अकुटिल गति ।
अविसंवाइ वि [अविसंवादिन] विसंवादरहित, अविच्छ वि [अवीप्स्य] वीप्सारहित, व्याप्ति- प्रमाणभूत, सत्य । रहित ।
अविसेस वि [अविशेष] समान । अविज वि [अबीज] बीजशक्ति से रहित । | अविस्स न [अविश्र] मांस और रुधिर । अविणयवइ । [दे] जार, उपपति । अविस्साम वि [अविश्राम] विश्रामरहित । अविणयवर ।
क्रिवि. निरन्तर, सदा।
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अवि पुं [दे] बालक । अविव वि [ अविभव ] दरिद्र । rfar देखो अविदा |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
एक समास ।
अव्वंग वि[अव्यङ्ग] अखण्ड, अन्यून | संपूर्ण |
विहावि वि [] गरीब । न मौन । अविवि [] मत्त, उन्मत्त । अविहित a [ अविघ्नत् ] नहीं मारता हुआ, हिंसा न करता हुआ । अविहीर व [ अप्रतीक्ष] प्रतीक्षा नहीं करने
वाला ।
अविडय वि [अविटक] आदर करनेवाला । अवी देखो अवि ।
अवीय अ [ अविविच्य ] अलग न होकर । अवीय वि [अद्वितीय] असाधारण, अनुपम । एकाकी, असहाय ।
अवुक्क सक [वि + ज्ञपय् ] विज्ञप्ति करना, प्रार्थना करना ।
अग्गह देखो अविग्गह । अह देखो अवोह |
अवे सक [अव + इ] जानना ।
अवे अक [अप + इ] दूर होना, हटना । अवेक्ख सक [अव + ईक्ष्] अपेक्षा करना । परवाह करना ।
अवेक्ख स [ अव + ईक्ष् ] अवलोकन
करना ।
अarfa [ अपेत] रहित, वर्जित । रुइ वि [°रुचि ] रुचि रहित, निरीह ।
अवे वि [अवेद] पुरुष - वेदादि वेद से रहित । मुक्त, मोक्ष प्राप्त ।
अवेसि देखो अंबेसि ।
अवेह देखो अवेक्ख = अव + ईक्षु । rates वि [अव्याकृत] अव्यक्त, अस्पष्ट अवोह सक [अप + ऊह्] विचार करना । निर्णय करना ।
अवोह पुं [अपोह] विकल्पज्ञान, तर्कविशेष | त्याग | निर्णय । अव्वभाव पुं [अव्ययीभाव] व्याकरण- प्रसिद्ध
अविहड-अव्वाबाह
न. पूर्ण अंग, पूरा शरीर । अव्वक्खित्त वि [अव्याक्षिप्त ] विक्षेपरहित ।
तल्लीन, एकाग्र ।
अव्वग्ग वि [अव्यग्र ] अनाकुल ।
अव्वत्त
वि [अव्यक्त ] अस्पृष्ट, अस्फुट अव्वत्तय छोटी उमर का बालक । अगीतार्थ, शास्त्र - रहस्यानभिज्ञ ( साधु ) । पुं. अव्यक्त मत का प्रवर्तक एक जैनाभास मुनि । सांख्य मत में प्रसिद्ध प्रकृति । मय न [मत ] एक जैनाभास मत ।
अव्वत्तव वि [ अवक्तव्य ] अवचनीय । पुं. कर्मबन्ध विशेष, जब जीव सर्वथा कर्मबन्धरहित होकर फिर जो कर्मबन्ध करे वह । अवत्तिय देखो अवत्तिय । अव्वभिचारिवि [अव्यभिचारिन् ] ऐकान्तिक । अव्वय न [अव्यय ] 'च' आदि निपात | अव्वयन [ अव्रत] व्रत का अभाव । वि. व्रतरहित ।
अव्वय वि [अव्यय ] अखुट । शाश्वत । अव्यवसिय वि [अव्यवसित] अनिश्चित, संदिग्ध । अपराक्रमी ।
अवसण व [अव्यसन] व्यसन रहित । पुंन. लोकोत्तर रीति से १२वाँ दिन ।
अव्वह a [ अव्यथ] व्यथारहित । न निश्चल
ध्यान |
अव्वा स्त्री [अर्वाक् ] पर भिन्न । roar स्त्री [दे. अम्बा ] माता । अव्वाइद्ध वि [अव्याविद्ध] अविपरीत । न. सूत्र का एक गुण, अक्षरों की उलट-पुलट का
अभाव ।
अव्वागड वि [अव्याकृत] अव्यक्त | अव्वाण वि [ आव्यान ] थोड़ा स्निग्ध । अव्वाबाह वि [अव्यावाध] हरज-रहित । न. रोग का अभाव । सुख । मोक्ष - स्थान,
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अव्वावड-असंगिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मुक्ति। पुं. लोकान्तिक देव-विशेष । पुन. एक | असइ । देवविमान।
| असई अ [असकुत्] बारंबार । अव्वावड वि [अव्याप्त] जो व्यवहार में न असई ) लाया गया हो, व्यापार-रहित । एक प्रकार | असई स्त्री [असती] कुलटा । दासी । °पोस का वास्तु
पुं [ पोष] धन के लिए दासी, नपुंसक या अव्वावन्न वि [अव्यापन्न] अविनष्ट । पशुओं का पालन । अव्वावार वि [अव्यापार] व्यापार-वर्जित । असउण पुंन [अशकुन] अपशकुन । अव्वाहय वि [अव्याहत] रुकावट-वर्जित । असंक वि [अशङ्क] असंदिग्ध । निर्भय । आघातरहित । पुव्वावरत्त न [पूर्वापरत्व] असंकल वि [अशृङ्खल] शृङ्खला-रहित, जिसमें पूर्वापर का विरोध या असंगति न हो | अनियन्त्रित । ऐसा (वचन)।
असंकिलिङ्क वि [असंक्लिष्ट] संक्लेश-रहित । अव्वाहार पुं [अव्याहार] मौन ।
विशुद्ध, निर्दोष । अव्वाहिय वि [अव्याहृत] न बुलाया हुआ। असंख वि [असंख्य] संख्या-रहित, परिमाणअन्विरय वि [अविरत] विरति-रहित । ___ रहित । अव्वो अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-सूचना । असंख [असंख्य] सांख्य मत से भिन्न दर्शन । दुःख । संभाषण । अपराध। विस्मय । आनन्द । असंखड स्त्रीन [दे] कलह । आदर । भय । खेद । विषाद । पश्चात्ताप। असंखड न [दे] कलह, झगड़ा। अन्वोगड वि [अव्याकृत] अविशेषित । | | असंखडिय वि[दे] कलह करने वाला, झगड़ाफैलाव-रहित । नहीं बांटा हुआ। अस्फुट, | खोर । अस्पष्ट । न. एक प्रकार का वास्तु । असंखय देखो असंख = असंख्य । अव्वोच्छिण्ण वि[अव्युच्छिन्न, अव्यवच्छिन्न] असंखय वि [असंस्कृत] संस्कार-हीन । संधान सतत । नित्य । अव्याहत ।
करने के अशक्य । अव्वोच्छित्ति स्त्री [अव्युच्छित्ति, अव्यव
असंखिज्ज वि[असंख्येय] गिनती या परिमाण
करने के अशक्य । च्छित्ति] सातत्य, प्रवाह, परंपरा से बराबर
असंखेज देखो असंखिज्ज । चला आना । नय पुं. वस्तु को किसी न किसी रूप से स्थायी माननेवाला पक्ष, द्रव्यार्थिक
असंखेजइ° वि [असंख्येय] असंख्यातवां ।
°भाग पुं. असंख्यातवां हिस्सा। नय। अव्वोयड देखो अव्वोगड ।
असंखेजय पुंन [असंख्येयक] गणना-विशेष । अस सक [अश्] व्याप्त करना । खाना । असंग वि [असङ्ग] अनासक्त। पुं. आत्मा । अस अक [अस्] होना।
मुक्त जीव । न, मोक्ष । अस वकृ [असत्] अविद्यमान ।
असंगय न [दे] वस्त्र । असइ स्त्री [असृति] उलटा रखा हुआ हस्त | असंगहिय वि [असंगृहीत] जिसका संग्रह न तल । धान्य मापने का एक परिमाण । उससे | किया गया हो वह । अनाश्रित । मापा हुआ धान्य ।
असंगहिय वि [असंग्रहिक] संग्रह न करने असइ स्त्री [दे. असत्त्व] अभाव, अविद्य- वाला । पुं. नैगम नय का एक भेद । मानता।
| असंगिअ पुं [दे] घोड़ा। वि, अनवस्थित, १२
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष असंघयण-असणि चश्चल ।
। असंवरीय वि [असंवृत] अनाच्छादित । नहीं असंघयण वि [असंहनन] संहनन से रहित । | रुका हुआ। वज्र, ऋषभ, नाराच आदि प्राथमिक तीन | असंसद वि [असंसृष्ट] दूसरे से न मिला हुआ । संघयणों से रहित ।
लेप-रहित । स्त्री. पिण्डैषणा का एक भेद । असंजण न [असञ्जन] अनासक्ति । असंसि वि [अस्रंसिन] अविनश्वर । असंजम वि [असंयम] हिंसा, झूठ आदि असक्क वि [अशक्य] जिसको न कर सके वह । सावद्य अनुष्ठान । हिंसा आदि पाप कार्यों | असक्कय वि [असत्कृत] सत्कार-रहित । से अनिवृत्ति । अज्ञान । असमाधि ।। असक्कणिज्ज वि [अशकनीय] अशक्य । असंजय वि [असंयत] हिंसा आदि पाप कार्यों | असगाह पुं [असद्ग्रह] कदाग्रह । से अनिवृत्त । हिंसा आदि करने वाला। पुं. | असम्गह । विशेष आग्रह । साधु-भिन्न, गृहस्थ ।
असग्गाह असंजल पुं [असंज्वल] ऐरवत वर्ष के एक असच्च न [असत्य] झूठ वचन । वि. झूठा । जिनदेव का नाम ।
°मोस न [ मृष] झूठ से मिला हुआ सत्य । असंजोगि वि [असंयोगिन्] संयोग-रहित । °वाइ वि [वादिन्] झूठ बोलने वाला । पुं मुक्त जीव ।
मोस न [मृष] न सत्य और न झूठ ऐसा असंत वकृ. [असत्] अविद्यमान । असत्य । वचन । °ामोसा स्त्री [मृषा] देखो अनन्तअसुन्दर।
रोक्त अर्थ । 'संध वि. असत्य-प्रतिज्ञ । असत्य असंत वि असत्व सत्त्व-रहित, बल-शून्य । अभिप्राय वाला। असंथरंत वकृ. [दे. असंस्तरत्] समर्थ न
असज्ज । वकृ [असजत्] संग न करता होता हुआ । खोज न करता हुआ। तृप्त न
असज्जमाण । हुआ। होता हुआ।
असज्झाइय पुं [अस्वाध्यायिक] पठन-पाठन
का प्रतिबन्धक कारण । असंथरण न [दे. असंस्तरण] निर्वाह का
असज्झाय वि [अस्वाध्याय] अनध्याय, वह अभाव । पर्याप्त लाभ का अभाव । असमर्थता,
काल जिसमें पठन-पाठन का निषेध किया अशक्त अवस्था।
गया है। असंथरमाण वकृ [दे. असंस्तरमाण] देखो
' असढ वि [अशठ] सरल, निष्कपट । 'करण असंथरंत ।
वि [°करण] निष्कपट भाव से अनुष्ठान करने असंधिम वि. संधान-रहित, अखण्ड ।
वाला। असंभंत पुं [असंभ्रान्त] प्रथम नरक का छठवां | असण न [अशन] भोजन । खाद्य पदार्थ । नरकेन्द्रक-नरक-स्थान विशेष ।
असण पुं [असन] बीजक नामक वृक्ष । न. असंभव्व वि [असंभाव्य] जिसकी संभावना
फेंकना। न हो सके ऐसा।
असणि पुंस्त्री [अशनि] एक प्रकार की असंभावणीय वि [असंभावनीय] ऊपर देखो। बिजली । पुं. एक नरक-स्थान । असंलप्प वि [असंलप्य] अनिर्वचनीय । असणि पुंस्त्री [अशनि] वज्र । आकाश से असंलोय पुं असंलोक] अप्रकाश । भीड़ रहित गिरता अग्नि-कण । वज्र की अग्नि । अग्नि । स्थान ।
अस्त्रविशेष । °प्पह पुं [प्रभ] रावण के असंवर पुं. आश्रव, संवर का अभाव । मामा का नाम । °मेह पुं [मेघ] वह वर्षा
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असो- असि
जिसमें ओले गिरते हैं । अति भयंकर वर्षा, प्रलय मेघ । वेग पुं. विद्याधरों का एक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
राजा ।
असणी स्त्री [अशनी] एक इन्द्राणी । जीभ, जिह्वा ।
असण्णव [असंज्ञ] अचेतन ।
|
for a [ असंज्ञिन् ] संज्ञि-भिन्न, मनोज्ञान से रहित (जीव ) । सम्यग्दृष्टि भिन्न, जैनेतर । सुयन [° श्रुत] जैनेतर शास्त्र । असत्य वि [अस्वस्थ ] अतंदुरुस्त, बीमार | असत्थ न [ अशस्त्र] शस्त्र भिन्न । संयम, निर्दोष अनुष्ठान ।
असद्द पुं [अशब्द ] अपयश | वि. शब्दरहित । असबल वि. [ अशबल ] अमिश्रित । निर्दोष, पवित्र ।
असब्भाव पुं [असद्भाव ] यथार्थता का अभाव, झूठ | वि. असत्य ।
असब्भूय वि [असद्भूत ] असत्य ।
असम वि. असमान, असाधारण । एक, तीन, पाँच आदि इकाई संख्या वाला, विषम । 'सरपुं [र] कामदेव | असमवाइन [ असमवायिन् ] नैयायिक और वैशेषिक मत प्रसिद्ध कारण-विशेष |
असमंजस वि [असमञ्जस ] अव्यवस्थित, गैरव्याजबी ।
असमिक्खिय वि [असमीक्षित] अनालोचित, अविचारित । कारि वि [कारिन्] साहfar | कारिया स्त्री [कारिता ] साहस
कर्म | असरासय वि [दे] निर्दय ।
असलील वि [अश्लील ] असभ्य भाषा । असव पुं [अ] प्राण ।
असवण्ण वि [असवर्ण] असमान, असाधारण । असवार पुं [अश्ववार ] घुड़सवार । असह वि. असहिष्णु । असमर्थ । खेद करने
वाला ।
अहणवि [अस] असहिष्णु, क्रोधी । असहाय वि. सहाय रहित । एकाकी । असहिज्ज वि [असाहाय्य ] सहायतारहित । सहायता का अनिच्छुक | असहुवि [ असह । असहिष्णु । असमर्थ, अशक्त | बीमार । सुकुमार ।
असहेज्ज देखो असहिज्ज । असागारयवि [असागारिक] गृहस्थों के आवागमन से रहित स्थान ।
असाढभूइ पुं [अषाढभूति] एक जैन मुनि । असाढ न [असाढक ] तृण - विशेष | असाय न [ असात | दुःख । वेयणिज्ज न 1 [वेदनीय] दुःख का कारण-भूत कर्म । असारा स्त्री [दे] कदली वृक्ष । असालिय पुंस्त्री [दे] सर्प की एक जाति । असाण न [असाधन] असिद्धि | असाहारण वि [ असाधारण ] अतुल्य, अनुपम ।
असि पुं. तलवार । इस नाम की नरकपाल देवों की एक जाति । स्त्री. बनारस की एक नदी का नाम 1 'कुण्ड न [° कुण्ड] मथुरा का एक तीर्थ स्थान | घाय पुं ['घात] तलवार का धाव | 'चम्मपाय न ['चर्मपात्र ] तलवार की म्यान, कोश | 'धारा स्त्री धेणु, आस्त्री [, 'धेनुका] छुरी | 'पत्त न [ पत्र] तलवार | तलवार के जैसा तीक्ष्ण पत्र । तलवार की पतरी । पुं. नरकपाल देवों की एक जाति । पुत्तगा स्त्री [ पुत्रिका ] छुरी । मुट्ठि स्त्री [ मुष्टि ] तलवार की मूठ । रयण न ['रत्न] चक्रवर्ती राजा की एक उत्तम तलवार । लट्ठि स्त्री [°यष्टि ] खड्गलता, तलवार | 'वण न ['वन] खड्गाकार पत्ते वाले वृक्षों का जंगल । 'वत्त देखो [A] | हर [°धर] तलवार-धारक, ar | 'हरा देखो 'धारा । असिइ (अप) देखो असीइ ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
असिण-असोग असिण न [अशन] भोजन ।
| असुय वि [अश्रुत न सुना हुआ । णिस्सिय असिस्थ न [असिक्थ] आटा लगे हुए हाथ या न [निश्रित] शास्त्र-श्रवण के बिना ही बर्तन का कपड़े से छना हुआ धोवन । होनेवाली बुद्धि-ज्ञान । पूव्व वि [पूर्व] असिद्ध वि. अनिष्पन्न । तर्कशास्त्र प्रसिद्ध दुष्ट | पहले कभी नहीं सुना हुआ। हेतु।
असुर पुं. दैत्य, दानव । देवजाति-विशेष, असिय वि [अशित] खादि ।
भवनपति और व्यन्तर देवों की जाति । असिय वि [असित] कृष्ण, श्वेतरहित । दास-स्थानीय देव। कुमार पुं. भवनपति अशुभ । अबद्ध, अयन्त्रित । °क्ख पुं|क्ष] | देवों को एक अवान्तर जाति । प्राय पुं यक्ष-विशेष ।
[राज] असुरों का इन्द्र। °वंदि पुं असिय न [दे] दात्र, दाँती।
[°बन्दिन] राक्षस। असिलेसा स्त्री [अश्लेषा नक्षत्र-विशेष। | असुरिंद पुं [असुरेन्द्र] असुरों का राजा, असिव न [अशिव] विनाश । असुख । देव
शि। असुख । देव- इन्द्र-विशेष । तादि कृत उपद्रव । मारी रोग ।
असुह न [अशुभ] अमंगल, अनिष्ट । पापअसिविण पुं अस्वप्न] देव, देवता ।
कर्म । वि. खराब, असुन्दर । °णाम न असिव्व देखो असिव।
[°नामन्] अशुभ फल देनेवाला कर्म-विशेष । असिसुई स्त्री [अशिश्वी] शिशुरहित स्त्री।। असूअ सक [असूय्] असूया करना । असिह वि [अशिख] शिखारहित । असूया स्त्री. [असूचा] सूचना का अभाव । असीइ स्त्री [अशीति] संख्या-विशेष, अस्सी, दूसरे के दोषों को न कह कर अपना ही दोष ८० । °म वि [°तम] असीवाँ, ८०वाँ।।
कहना। असीइग वि [अशीतिक] अस्सी वर्ष की उम्र | असूया स्त्री. असूया, असहिष्णुता । वाला।
असूरिय वि [असूर्य] सूर्यरहित, अन्धकारमय असीम वि असीमन्] निस्सीम ।
स्थान । पुं. नरक-स्थान । असील वि [अशील] असदाचारी। न. अस- | असेव्व देखो असिव । दाचार, अब्रह्मचर्य । °मंत वि वत] असेस वि [अशेष] निःशेष, सर्व । अब्रह्मचारी । असंयत ।
असोअ । पुं [अशोक] देव-विशेष । पुन. असु पुं. ब. प्राण । न. चित्त । ताप ।
असोग ) एक देवविमान । शक्र आदि इन्द्रों असु देखो अंसु।
का एक आभाव्य विमान । वडिसय पुन असुइ वि [अशुचि] अपवित्र, अस्वच्छ । न [वतंसक] सौधर्म देवलोक का एक अमेध्य, विष्ठा।
विमान । असुइ वि [अश्रुति शास्त्रश्रवण-रहित । असोग पुं[अशोक] सुप्रसिद्ध वृक्ष-विशेष। महाअसुईकय वि [अशुचीकृत अपवित्र किया ग्रह विशेष । हरा रंग । भगवान् मल्लिनाथ का हुआ।
चैत्यवृक्ष । देव-विशेष । न. तीर्थ-विशेष । यक्षअसुग पुं [असुक देखो असु - असु। विशेष । वि. शोक रहित । °चंद पुं [°चन्द्र] असुणि वि [अश्रोतृन सुननेवाला । राजा श्रेणिक का पुत्र, राजा कोणिक । एक असुद्ध वि [अशुद्ध] मलिन । न. मैला। प्रसिद्ध जैनाचार्य । ललिय पुं [°ललित] विसोहय पुं [विशोधक] भंगी। चतुर्थ बलदेव का पूर्व-जन्मीय नाम । 'वण न
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असोगा-अस्सासण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विन] अशोक वृक्षों वाला वन । 'वणिया | अस्स न [अस्र आँसू । रुधिर । स्त्री [°वनिका] अशोक वृक्ष वाला बगीचा। | अस्संख वि [असंख्य संख्या रहित । "सिरि पुं [°श्री] इस नाम का एके प्रख्यात | अस्संगिअ वि दे] आसक्त । राजा, सम्राट अशोक ।
अस्संघयणि वि [असंहननिन्] संहनन-रहित, असोगा स्त्री [अशोका] इस नाम की एक किसी प्रकार के शारीरिक बन्ध से रहित । इन्द्राणी। भगवान् श्री शीतलनाथ की शासन- अस्संजम देखो असंजम । देवी । एक नगरी का नाम ।
अस्संजय वि [अस्वयत] गुरु की आज्ञानुसार असोय देखो असोग।
चलनेवाला, अस्वच्छंदी। असोय पुं [ अश्वयुक् ] आश्विन मास ।। अस्संजय देखो असंजय। असोय वि [अशौच] शौचरहित । न. शौच अस्संदम पुं [अश्वन्दम] अश्व-पालक । का अभाव । वाइ नि ["वादिन] अशीच अस्सच्च देखो असच्च । का ही माननेवाला ।
अस्सण्णि देखो असण्णि । असोयणया स्त्री [अशोचनता, शोक का | अस्सत्थ पुंअश्वत्थ वृक्ष-विशेष, पीपल । अभाव।
अस्सत्थ वि [अस्वस्थ] रोगी, बीमार । । असोया देखो असोगा।
अस्सन्नि देखो असण्णि। असोल्लिय वि [अपक कच्चा ।
अस्सम पुं [आश्रम स्थान, जगह । ऋषियों असोहि स्त्री [अशोधि] अशुद्धि । विराधना ।
का स्थान । °ठाण न ['स्थान पाप-कर्म । अशुद्धि स्थान।
अस्समिअ वि [अश्रमित] श्रमरहित, अनदुर्जन का संसर्ग । अनायतन ।
भ्यासी। अस्स न [आस्य मुख ।
अस्सवार देखो असवार । अस्स वि अस्व निर्धन । निर्ग्रन्थ, साधु, | अस्सस अक [आ+ श्वस्] आश्वासन लेना। मुनि ।
अस्साइय वि [आस्वादित] जिसका आस्वादन अस्स पुं [अश्व] घोड़ा। अश्विनी नक्षत्र का |
किया गया हो वह । अधिष्ठायक देव। ऋषि-विशेष । °कण्ण पुं
अस्साद सक [ आ + सादय् प्राप्त करना । [कणं। एक अन्तर्वीप। इन अन्तर्वीप का | अस्साद सक [आ + स्वादय]आस्वादन करना । निवासी । °कण्णी स्त्री [°कर्णी वनस्पति- | अस्सादण देखो अस्सायण । विशेष । करण न. जहाँ घोड़ा रखने में आता | अस्साय देखो अस्साद = आ + सादय् । हो वह स्थान, अस्तबल । 'ग्गीव पुं [ग्रीव] | अस्साय देखो अस्साद = आ + स्वादय । पहले प्रतिवासुदेव का नाम । तर पुंस्त्री. | अस्साय देखी असाय। खच्चड़ । मुह ( [°मुख] इस नाम का एक अस्सायण पुं [आश्वायन] अश्व ऋषि की अन्तर्वीप और उसके निवासी। °मेह पुं| संतान । अश्विनी नक्षत्र का गोत्र । [ मेघ] यज्ञ-विशेष, जिसमें अश्व मारा जाता | अस्सावि वि [आस्राविन्] झरता हुआ, है। °सेण पुं [°सेन] एक प्रसिद्ध राजा, भग- | टपकता हुआ, सच्छिद्र । वान् पार्श्वनाथ का पिता। एक महाग्रह का | अस्सास सक [आ + श्वासय] आश्वासन देना, नाम । यर पुं दर] विद्याधर वंश के एक दिलासा देना। राजा का नाम ।
अस्सासण [आश्वासन] एक महाग्रह ।
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संक्षिप्त प्राकृत हिन्दी कोष
अस्सि -अहर अस्सि स्त्री [अधि] कोण, घर आदि का अनुक्रम से । °क्खाय, °खाय न [ख्यात] कोना । तलवार आदि का अग्रभाग-धार । । निर्दोष चारित्र, परिपूर्ण संयम । क्खायसंजय अस्सि पुं[अश्विन्] अश्विनी नक्षत्र का अधि- वि [°ख्यातसंयत] परिपूर्ण संयम वाला। ष्ठायक देव ।
°च्छंद देखो अहाछंद । 'त्थ वि [°स्थ] अस्सिणी स्त्री [अश्विनी] इस नाम का एक ठीक-ठीक रहा हुआ, यथास्थित । स्थ वि नक्षत्र।
[र्थ] वास्तविक । °प्पहाण अ [°प्रधान] अस्सिय वि [आश्रित] आश्रय-प्राप्त । प्रधान के हिसाब से। अस्सु पुन [अश्रु] आँसू ।
अहइं अ [अथकिम्] स्वीकार-सूचक अव्ययअस्सु (शौ) न [अश्रु] आँसू ।
हाँ, अच्छा । अस्सुक वि [अशुल्क] जिसकी चुंगी या फीस | अहंकार पुं. अभिमान । माफ की गई हो वह ।
अहंणिस न [अहर्निश] रात-दिन, सर्वदा । अस्सुद ( शौ ) देखो असुय = अश्रुत । अहकम्म देखो अहेकम्म। अस्सुय वि [अस्मृत] याद नहीं किया हुआ। अहण वि [अधन] निधन । अस्सेसा देखो असिलेसा।
अहण्णिस न [अहर्निश] रात-दिन, निरन्तर । अस्सोई स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन मास की | अहत्ता अ [अधस्तात्] नीचे । पूर्णिमा ।
अहण्ण वि [अधन्य] अप्रशस्य, हतभाग्य । अस्सोई स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन मास की | अहम वि [अधम] अधम, नीच । अमावस देखो आसोया।
अहमंति वि [अहमन्तिन्] अभिमानी । अस्सोकंता स्त्री [अश्वोत्क्रान्ता] संगीत-शास्त्र | अहमहमिआ । स्त्री [अहमहमिका] मैं प्रसिद्ध मध्यम ग्राम की पांचवीं मूर्च्छना । अहमहमिगया। इससे पहले हो जाऊँ ऐसी अस्सोत्थ देखो अस्सत्थ ।
अहमहमिगा ' चेष्टा, अत्युत्कण्ठा । अस्सोयव्व वि [अश्रोतव्य सुनने के अयोग्य ।। अहमिद पुं [अहमिन्द्र] उत्तम-श्रेणीय पूर्ण अह अ [अथ] इन अर्थों का सूचक अव्यय- स्वाधीन देवजाति विशेष, ग्रेवेयक और अनुत्तर अब, बाद । अथवा, और । मंगल । प्रश्न । विमान के निवासी देव । अपने को इन्द्र समुच्चय । प्रतिवचन, उत्तर विशेष ।यथार्थता, समझने वाला, गर्विष्ठ । वास्तविकता । पूर्वपक्ष । वाक्य की शोभा अहम्म देखो अधम्म। बढ़ाने के लिए और पादपूर्ति में भी इसका अहम्म वि [अधम्य] घमरहित, गरव्याजबी । प्रयोग होता है।
पाप । अह न [अहन्] दिवस ।
अहम्माणि वि [अहम्मानिन्] अभिमानी। अह अ [ अधस् ] नीचे । 'लोग पुं लोको अहम्मि वि [अर्मिन्] धर्म-रहित, पापी । पाताल-लोक । 'त्थ वि [ "स्थ ] निम्न- अहम्मिट्ठ देखो अधम्मिट्ठ । स्थित ।
अहम्मिय वि [अधार्मिक] अधर्मी, पापी। अह स [अदस्] यह, वह ।
अहय वि [अहत] अनुबद्ध, अव्यवच्छिन्न । अह न [दे] दुःख ।
अखण्डित । जो दूसरी तरफ लिया गया हो अह न [अघ] पाप।
नूतन । अह° देखो अहा । क्कम, कमसो अ[°क्रम] | अहर वि [दे] अशक्त ।
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अहर-अहि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अहर पुं [अधर] होठ। वि. नीचला। °पडिरूव वि [ प्रतिरूप] उचित, योग्य । अधम । दूसरा, अन्य । गइ स्त्री [गति] पवत्त वि [ प्रवृत्त] पूर्व की तरह ही प्रवृत्त, अधोगति, दुर्गति, नीच गति ।
अपरिवत्तित । न. आत्मा का परिणाम-विशेष । अहरिय वि [अधरित] तिरस्कृत ।
पवित्तिकरण न [प्रवृत्तिकरण] आत्मा का अहरी स्त्री [अधरी] पेषण-शिला, जिस पर परिणाम-विशेष । बायर वि [°बादर] मसाला वगैरह पीसा जाता है वह पत्थर, निस्सार । भूय वि [°भूत] तात्त्विक, वास्तसिलवट । °लोट्ठ पुं[लोष्ट] जिससे पीसा विक । राइणिय, रायणिय न [रात्निक] जाता है वह पत्थर, लोढा ।
यथाज्येष्ठ, बड़े के क्रम से। °रिय न [ऋजु] अहरीकय वि [अधरीकृत] तिरस्कृत, अव
सरलता के अनुसार । °रिह न [ह] यथोगणित।
चित । वि. योग्य । °रीय न [रीत] रीति अहरीभूय वि [अधरीभूत] तिरस्कृत । के अनुसार । स्वभाव के माफिक । °लंद पुं अहरुट पुंन [अधरोष्ठ] नीचे का होठ ।
['लन्द] काल का एक परिमाण, पानी से अहरेम देखो अहिरेम।
भीजा हुआ हाथ जितने समय में सूख जाय अहरेमिअ वि [पूरित] पूरा किया हुआ ।
उतना समय । °वगास न [°वकाश] अवकाश अहल वि [अफल] निष्फल, निरर्थक ।
के अनुसार । वच्च वि [°पत्य] पुत्र-स्थानीय। अहलंद न [यथालन्द] पाँच रात का समय ।
संथड वि [ संस्तृत] शयन के योग्य । अहलंदि देखो अहालंदि।।
संविभाग पुं. साधु को दान देना । सच्च अहव देखो अहवा।
न [°सत्य] वास्तविकता, सचाई । °सत्ति न अहवइ (अप) देखो अहवा।
[शक्ति] शक्ति के अनुसार । सुत्त न[सूत्र] अहवण ) अ [अथवा] वाक्यालंकार में
आगम के अनुसार । सुहन[°सुख] इच्छानुसार । अहवा । प्रयुक्त किया जाता अव्यय ।
°सुहुम वि [सूक्ष्म] सारभूत । देखो °अह । या, अथवा।
अहालंद वि [यथालन्द] यथानुज्ञात (काल), अहव्व देखो अभव्व ।
इच्छानुसार (समय)। अहव्वण [अथर्वन्] चौथा वेद-शास्त्र । अहालंदि पुं यथालन्दिन] 'यथालन्द' अनुष्ठान अहव्वा स्त्री [दे] असती, कुलटा स्त्री।
करने वाला मुनि । अहह अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय- अहासंखड वि [दे] निष्कम्प । आमन्त्रण । खेद । आश्चर्य । दुःख । आधिक्य, | अहासल वि [अहास्य] हास्य-रहित । प्रकर्ष ।
अहाह अ [अहाह] देखो अहह । अहा अ [यथा] जैसे, माफिक, अनुसार । | अहि देखो अभि। 'छंद वि [°च्छन्द] स्वच्छन्दी । न. मरजी के अहि अ [अधि] इन अर्थों का सूचक अव्ययअनुसार । जाय वि[जात] प्रावरण-रहित । | आधिक्य, विशेषता । अधिकार, सत्ता । ऐश्वर्य, न. जन्म के अनुसार । जैन साधुओं में दीक्षा काल के परिमाण के अनुसार किया जाता | अहि पुं. साँप । शेषनाग । च्छत्ता स्त्री वन्दन-नमस्कार । णुपुव्वी स्त्री [°नुपूर्वी] | [च्छत्रा]नगरी-विशेष । 'मड पुंन [°मृतक] यथाक्रम, अनुक्रम । तच्च न [ तत्त्व] तत्त्व साँप का मुर्दा । °वइ पुं[पति शेषनाग । के अनुसार । °तच्च न [तथ्य] सत्य-सत्य । विछिअ पुं [वृश्चिक] सर्प के मूत्र से उत्पन्न
ऊँचा, ऊपर।
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होने वाली वृश्विक जाति । अहिल न [] गुस्सा । अहिआअ न [ अभिजात ] कुलीनता । अहिआइ स्त्री [अभिजाति] कुलीनता । अहिआर पुं [दे] लोक यात्रा, जीवन निर्वाह । अहिउत्तवि [] व्याप्त, खचित ।
अहिउत्त वि [ अभियुक्त ] विद्वान् । उद्यत, उद्योगी | शत्रु से घिरा हुआ । अहिऊर सक [ अभि + पूरय् ] पूर्ण करना.
व्याप्त करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अहिऊल सक [ दह, ] जलाना ।
afe
j[अभियोग ] सम्बन्ध | दोषारोपण | देखो अभिओ ।
अहिंद पुं [अहीन्द्र ] सर्पों का राजा, शेषनाग । श्रेष्ठ सर्प । वुर न [° पुर] वासुकि नगर 'वराह पुं [ पुरनाथ ] विष्णु, अच्युत । अहिंसा स्त्री. दूसरे को किसी प्रकार से दुःख न देना ।
अहंसि वि [अहिंसित] अमारित, अपीड़ित । अहिख देखो अभिकख । अहिकंखि देखो अहिकंखिर । अहिकय वि [ अधिकृत ] प्रस्तुत । अहिकरण देखो अहिगरण । अहिकरणी देखो अहिरगणी । अहिकार देखो अहिगार । अहिकारि देखो अहिगारि । अहि
अ [ अधिकृत्य ] अधिकार कर
स्थापन | प्रेरणा |
अहिखिव देखो अहिक्खिव ।
अहिअल-अहिगार
अहिग देखो अहि = अधिक ।
अहिखीर क [] पकड़ना | आघात करना । अहिगंध वि [ अधिगन्ध] अधिक गन्धवाला | अहिगम क [ अधि + गम् ] जानना । निर्णय
करना । प्राप्त करना ।
अहिगम तक [अभि + गम् ] सामने जाना ।
अहिगय वि [ अधिगत ] उपलब्ध । ज्ञात । पुं. गीतार्थ मुनि, शास्त्राभिज्ञ साधु । अहिगर पुं [दे] अजगर । अहिगरण पुंन [अधिकरण] युद्ध | असंयम, पाप कर्म से अनिवृत्ति । आत्म-भिन्न बाह्य वस्तु | पाप जनक क्रिया । आधार । उपहार | कलह, विवाद । हिंसा का उपकरण । कड़, कर वि [ कर] कलहकारक । किरिया स्त्री [क्रिय ] पाप जनक कृति, दुर्गति में ले जानेवाली क्रिया । सिद्धंत पुं [ सिद्धान्त ] आनुषंगिक सिद्धि करनेवाला सिद्धान्त । अहिरणी स्त्री | अधिकरणी ] लोहार का एक उपकरण । " खोडि स्त्री [ 'खोटि ] जिसपर अधिकरणी रखी जाती है वह काष्ठ । अहिगरणिया स्त्री [आधिकरणिकी]
उद्देश्य कर ।
अहिक्खण न [दे] उपालंभ, उलहना । अहिक्खित्त वि [ अधिक्षिप्त ] तिरस्कृत । निन्दित । स्थापित । परित्यक्त । क्षिप्त । अहिक्खिव सक [ अधि + क्षिप् ] तिरस्कार करना | फेंकना । निन्दना । स्थापित करना । छोड़ देना ।
अहिखेव पुं [ अधिक्षेप ] तिरस्कार । अहिगरणीया ) देखो अहिगरण - किरिया ।
अहिगार पुं [ अधिकार ] वैभव | हक ।
प्रस्ताव | ग्रन्थविभाग । योग्यता ।
आदर करना ।
अहिगम पुं [ अधिगम ] ज्ञान । प्राप्ति । गुरु आदि का उपदेश । सेवा भक्ति । न गुरु आदि के उपदेश से होने वाली सद्धर्म-प्राप्तिसम्यक्त्व । रुइ स्त्री [°रुचि] सम्यक्त्व का एक भेद । सम्यक्त्व वाला । अहिगम देखो अभिगम ।
for a [ अधिगमक] जाननेवाला । अहिगम्म देखो अहिगम = अधि + गम् । अहिगम्म देखो अहिगम = अभि + गम् । अहि वि [ अधिकृत ] प्रस्तुत । न. प्रस्ताव, प्रसंग |
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अहिगार - अहिs
अहिगारि अहिगारिय
वि [ अधिकारिन् ] अमलदार, राजनियुक्त सत्ताधीश । for a [ अधिकृत्य ] अधिकार करके । अहिघाय पुं [अभिघात ] आस्फालन, आघात । अहिछत्ता स्त्री [अहिच्छत्रा ] नगरी- विशेष, कुरुजंगल देश की प्राचीन राजधानी । अहिजाइ स्त्री [अभिजाति] कुलीनता । हिजाक [अभि + ज्ञा] पहिचानना । हिजा वि [अभिघात ] कुलीन । अहिजुंज देखो अभिजुंज । अत्ति देखो [अभिजुत्त ] । अहिन्न सक [ अधि + इ] पढ़ना,
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अभ्यास
हिज्जन [ अध्ययन] पठन, अभ्यास । अहिज्जाण ( शो ) देखो अहिण्णाण | अहिज्जावि वि [ अध्यापित ] पढ़ाया हुआ अहिज्जिय वि [ अधीत ] पठित ।
अहिज्झिय वि [अभिध्यित ] लोभ-रहित । rega [ अधि + ष्ठा] करना । अहिट्टग व [ अधिष्ठr] अधिष्ठाता, विधायक,
कारक ।
देखो अहिद्वाण |
a
[ अधि + स्था ] ऊपर चलना । आश्रय लेना । रहना, निवास करना । शासन करना । हराना । आक्रमण करना । ऊपर चढ़ बैठना । वश करना ।
करना ।
aforce a [ अभिनि + वस्] रहना !
अहिज्ज वि [ अधिज्य ] धनुष की डोरी पर अहिणिविट्ट वि [अभिनिविष्ट ] आग्रह ग्रस्त । चढ़ाया हुआ (बाण) । अहिणिवेस पुं [अभिनिवेश] आग्रह, हठ ।
वि [अभिज्ञ ] जानकार, निपुण । अहिणी स्त्री [अहि] नागिन ।
अहिज्ज अहिज्जग
afort देखो अभी ।
अहिणील वि [अभिनील ] हरा, हरा रंग
२३
अहिद्वावण न [ अधिष्ठापन ] ऊपर रखना । ] अध्यासित | अधीन
[ अ
९७
किया हुआ । आक्रान्त, आविष्ट । अहिठाण न [ अधिष्ठान] अपान- प्रदेश | अवि [. अभिद्भुत ] पीड़ित । अहिणंद देखो अभिनंद । अहिणय देखो अभिणय । अहिणव पुं [अभिनव ] सेतुबन्ध काव्य का कर्ता राजा प्रवरसेन । वि. नूतन । afar देखो अहिणी । अणिवेमा देखो अहिणु । अहिणाण देखो अहिणाण ।
अहिणिवोह पुं [अभिनिबोध ] ज्ञान-विशेष, मतिज्ञान |
अहिट्ठाण न [ अधिष्ठान ] बैठना । आश्रयण । मालिक बनना । स्थान, आश्रय । अहिट्ठायग वि [ अधिष्ठायक ] अध्यक्ष, अधि- अहिपच्चुअ सक [ ग्रह ] ग्रहण करना । पति । अहिपच्चुअ सक [ आ + गम् ] आना ! अहिपच्चुइअ न [दे] अनुगमन, अनुसरण । अहिपड सक [ अभि + पत्] सामने आना ।
वाला ।
अहिणु सक [ अभि + नु] स्तुति करना, प्रशंसना ।
अहणवि [अभिन्न] भेदरहित, अपृथग्भूत | अहिण्णाण न [अभिज्ञान] चिह्न, निशानी | अहिष्णु वि [ अभिज्ञ] निपुण, ज्ञाता । अहितत्तव [अभितप्त ] तापित, संतापित | अहित्ता देखो अहिज्ज = अधि + इ । अहिदाय वि [अभिदायक ] दाता । अहिदेवया स्त्री [अधिदेवता ] अधिष्ठाता देव । अहिदव सक [अभि + द्रु] हैरान करना । अहि वि [अभिद्रुत ] हैरान किया हुआ । अहिधाव सक [अभि + धाव् ] दौड़ना, सामने दौड़कर जाना ।
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९८
पास [ft + दृश्] अधिक देखना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समान रूप से देखना । Safer at अभिपाय । अहिप्पे देखो अभिप्पेय । अहिभव देखो अभिभव ।
अहिमंजु पुं [अभिमन्यु ] अर्जुन के एक पुत्र
अहिमंतिअ वि [अभिमन्त्रित] मन्त्र से
संस्कृत |
का नाम ।
अहिरम्म वि [अभिरम्य ] सुन्दर ।
अहिमंत वि [अभिमन्त्रण ] मन्त्रित करना, अहिराम वि [ अभिराम ] मनोहर । मन्त्र से संस्कारना ।
अहिमज्जु देखो अहिमंजु । अहम
अहिमय वि [ अभिमत ] सम्मत, इष्ट । अहिमयर पुं [अहिमकर] सूर्यं । अहिमर पुं [अभिमर] धनादि के दूसरे को मारने का साहस करने गजादिघातक ।
अहिमाण पुं [अभिमान ] अहंकार । अहिमार पुं [अभिमार ] वृक्ष-विशेष |
हमास पुं [अधिमास ] अधिक मास । अहमुहवि [अभिमुख] संमुख |
अहियाइ देखो अहिजाइ । अहियाय देखो अहिजाय ।
लोभ से वाला ।
अहिपास - अहिलव
अहियास वि [अध्यास, अधिसह] सहिष्णु । अहियासण न [ अधिकाशन] अधिक भोजन, अजीर्ण |
अहिर पुं [आभीर] अहीर ।
अहिरम अक [अभि + रम् ] क्रीड़ा करना, संभोग करना ।
अहियार देखो अहिगार ।
अहियास सक [अधि + आस्, अधि + सह ] सहन करना, कष्टों शान्ति से झेलना ।
अहिरामिण वि [ अभिरामिन् ] आनन्द देने
वाला ।
अहिराय पुं [ अधिराज ] राजा । स्वामी, पति
अहिराय न [ अधिराज्य ] राज्य, प्रभुत्व । अहिरिअ देखो अहिरीअ ।
अहिरेम सक [पृ] पूति करना । अहिरोइअ वि [] पूर्ण ।
अहिहिहूअ वि [अभिमुखीभूत] सामने अहिरोहण न [ अधिरोहण ] ऊपर चढ़ना,
आरोहण | अहिरोहि वि [ अधिरोहिन् ] ऊपर चढ़ने
वाला ।
अहिमुहीहूअ ) आया हुआ । अहि वि [ अधिक ] ज्यादा, विशेष । अवि [अहित] अहितकर, शत्रु । अहि वि [ अधीत ] पठित, अभ्यस्त । अहिया स्त्री [अधिका] भगवान् श्रीनमिनाथ की प्रथम शिष्या ।
अहिरीअ वि [दे] निस्तेज | अहिरी व [अ] निर्लज्ज ।
अहिरीमाण वि [दे. अहारिन्, अह्रीमनस् ] अमनोहर, मन को प्रतिकूल । अलज्जाकारक । अहिरूव वि [ अभिरूप ] सुन्दर | अनुरूप, योग्य ।
अहियार पुं [अभिचार ] शत्रु के वध के लिए अहिलक्ख
किया जाता मन्त्रादि-प्रयोग ।
अहिरोहिणी स्त्री [अधिरोहिणी] निःश्रेणी, सीढ़ी 1
अहिल वि [अखिल ] सकल ।
अहिलंख अहिलंघ
सक [काङ्क्ष ] चाहना, करना ।
अभिलाष
अहिलक्ख वि [अभिलक्ष्य] अनुमान से जानने
योग्य | अहिलव सक [ अभि + लप्] संभाषण करना, कहना ।
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अहिलस-अहिहय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अहिलस सक [अभि + लष्] अभिलाष | अहिवासण न [अधिवासन] संस्काराधान । करना, चाहना।
अहिवासि वि [अधिवासिन्] निवासी। अहिलाण न [अभिलान] मुख का बन्धन | अहिवासिअ वि [अधिवासित] सजाया हुआ। विशेष ।
अहिविण्णा स्त्री दे] कृत-सापत्न्या स्त्री, उपअहिलाव पुं [अभिलाप] शब्द, आवाज । पत्नी । अहिलास पुं [अभिलाष] इच्छा।
अहिसंका स्त्री [अभिशङ्का] भ्रम, संदेह । अहिलिअ न [दे] पराभव । गुस्सा ।
भय, डर। अहिलिह सक [ अभि + लिख ] चिन्ता | अहिसंजमण न [अभिसंयमन] नियन्त्रण । करना । लिखना।
अहिसंधारण न [अभिसंधारण] अभिप्राय । अहिलोयण न [अभिलोकन] ऊंचा स्थान । अहिसंधि पुंस्त्री [अभिसंधि] अभिप्राय, अहिलोल वि [अभिलोल] चञ्चल ।
आशय। अहिलोहिआ स्त्री [अभिलोभिका] लोलुपता, | अहिसंधि पुं [दे] बारम्बार । तृष्णा ।
अहिसक्कण पुंन [अभिष्वष्कण] संमुख-गमन । अहिल्ल वि [दे] धनवान् ।
अहिसर सक [अभि + स] प्रवेश करना । अहिल्लिया स्त्री [अहिल्या] एक सती स्त्री। अपने दयित-प्रिय के पास जाना। अहिव [अधिप] ऊपरी, मुखिया। मालिक, | अहिसहण न [अधिसहन सहन करना । स्वामी। राजा।
अहिसाअ देखो अक्कम = आ + कम् । अहिवइ वि [अधिपति] ऊपर देखो।
अहिसाम वि [अभिशाम] काला, कृष्णवर्ण अहिवंजु देखो अहिमंजु।
वाला। अहिवंदिय वि [अभिवन्दित] नमस्कृत ।
अहिसाय वि [दे] पूर्ण, पूरा। अहिवज्जु देखो अहिमंजु । अहिवड अक [अधि+पत्] क्षीण होना।
अहिसारण न [अभिसारण] आनयन । पति अहिवड सक [अधि+ पत्] आना ।
के लिए संकेत स्थान पर जाना । अहिवड्ढ देखो अभिवड्ढ ।
अहिसारिअ वि [अभिसारित] आनीत । अहिवढि ) स्त्री [अभिवृद्धि] उत्तर प्रोष्ठ- अहिसारिआ स्त्री [अभिसारिका] नायक को अहिवद्धि ) पदा नक्षत्र का अधिष्ठाता | मिलने के लिए संकेत स्थान पर जानेवाली देवता ।
स्त्री। अहिवण्ण वि [दे] पीला और लाल रंग वाला। | अहिसिम न [दे] अनिष्ट ग्रह की आशंका से अहिवण्णु देखो अहिमंजु।
खेद करना-रोना । वि. अनिष्ट ग्रह से
भयभीत। अहिवल्ली स्त्री. नाग-वल्ली। अहिवस सक [अधि + वस्] निवास करना,
अहिसिंच देखो अभिसिंच।
अहिसित्त देखो अभिसित्त । रहना। अहिवाइय वि [अभिवादित] अभिनन्दित ।
| अहिसेअ देखो अभिसे। अहिवायण देखो अभिवायण ।।
अहिसोढ़ वि [अधिसोढ] सहन किया हुआ। अहिवाल वि [अधिपाल] पालक, रक्षक ।। अहिस्संग पुं [अभिष्वङ्ग] आसक्ति । अहिवास [अधिवास]बासना(गन्ध), संस्कार । | अहिहय वि [अभिहत] आघात-प्राप्त । मारित,
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१००
व्यापादित।
अहिहर सक [ अभि + हृ] लेना । उठाना | अक . शोभना । प्रतिभास होना, लगना । अहिहर न [ दे] देवकुल, पुराना देवमन्दिर | वल्मीक ।
अहिसक [ अभि + भू] पराभव करना । अहिहाण न [दे. अभिधान] वर्णन, प्रशंसा । अहिहाण देखो अभिहाण | देखो अवि ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अहिहूअवि [अभिभूत ] परास्त अही सक [अधि + इ] पढ़ना । अही स्त्री. नागिन । अहीकरण न [अधिकरण] कलह, झगड़ा । अहीगार देखो अहिगार । अहीण व [ अधीन ] आयत्त । अहीण व [ अह ] अन्यून, पूर्ण । अहीय देखो अहिय = अधिक | अहीय वि [अधीत ] पठित |
अहीरगवि [अहीरक ] तन्तुरहित ( फलादि ) । अहीरु वि [अभीरु ] निडर । अहोलास देखो अहिलास । अहीसर पुं [अधीश्वर ] परमेश्वर । अहुआ
[अताशेय] अग्नि के अयोग्य ।
इस समय,
आज
अ अ [अधुना ] अभी,
कल |
अहुणि (i) देखो अहुणा ।
अल [अ] अनाशक । अहुल्ल वि[अफुल्ल] अविकसित | अहुवंत व [अभवत् ] न होता हुआ । अहूण देखो अहीण = अहीन |
।
[कर्मन् ।
अहू व [अभूत] जो न हुआ हो । 'पुव्व वि वि [° पूर्व ] जो पहले कभी न हुआ हो अहे अ [अधस् ] नीचे । कम्म न आधाकर्म, भिक्षा का एक दोष । काय पुं. शरीर का निचला हिस्सा । चर वि. बिल आदि में रहने वाले सर्प वगैरह जन्तु ।
अहिर- अहो
'तारग पुं ['तारक ] पिशाच - विशेष | ° दिसा स्त्री [° दिक् ] नीचे की दिशा । ° लोग पुं [°लोक] पाताल-लोक | 'वाय पुं [वात] नीचे बहने वाला वायु । अपानवायु, पर्दन । fars वि [विकट] भित्त्यादिरहित स्थान, खुला स्थान | सत्तमा स्त्री [ सप्तमी ] सातवीं या अन्तिम नरकभूमि | देखो अहो अधस् ।
अहे देखो अह = अथ ।
अहेउ पुं [अहेतु] सत्य हेतु का विरोधी, हेत्वाभास | वि. कारणरहित, नित्य । 'वाय पुं [वाद] आगमवाद, जिसमें तर्क- हेतु को छोड़कर केवल शास्त्र ही प्रमाण माना जाता हो ऐसा वाद |
अम्म पुंन [ अधः कर्मन्] अधोगति में ले जाने वाला कर्म । भिक्षा का आधाकर्म दोष । आहेस णिज्जवि [ यथैषणीय] संस्काररहित, कोरा ।
अहेसर पुं [अहरीश्वर ] सूर्य |
अहो देखो अहं = अधस् | "करण न. कलह | 'गइ स्त्री [° गति] नरक या तिर्यञ्जयोनि । अवनति । गामि [गामिन्] दुर्गति में जानेवाला । 'तरण न झगड़ा । मुह वि [°मुख ] अधोमुख, अवनत मुख, लज्जित । 'लोइ वि[लौकिक ]पाताल लोक से सम्बन्ध रखने वाला | 'हिवि [° अवधि ] नीचे दर्जा का अवधिज्ञान वाला । पुंस्त्री नीचे दर्जा का अवधिज्ञान, अवधिज्ञान का एक भेद । अ अ [ अह ] दिवस में ।
अहो अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय -- आश्चर्य । शोक । आमन्त्रण, संबोधन | वितर्क | प्रशंसा | असूया, द्वेष । दीनता । दाण न [°दान] आश्चर्य-कारक दान । पुरिसिंगा, पुरिसिया स्त्री [पुरुषिका ] अभिमान । विहार पुं. संयम का आश्चर्यजनक अनुष्ठान । अहो पुंन [ अहम् ] दिवस । णिस, निस,
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अहोरण-आइअंतिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष निसि न [°निश] गत और दिन, दिन- प्रधान अनुष्ठान-विशेष । 'राइंदिय न रात । रत्त पुं [ रात्र] दिन और रात्रि [रात्रिन्दिव] दिनरात ।। परिमित काल, आठ प्रहर। चार-प्रहर का | अहोरण न [दे] उत्तरीय वस्त्र, चादर । समय । °राइया स्त्री [रात्रिकी] ध्यान
आ
आ पुं [आ] प्राकृत वर्णमाला का द्वितीय स्वर- आअत्ति देखो आयइ । वर्ण। इन अर्थों का सूचक अव्यय--अ. | आअद देखो आगय । मर्यादा, सीमा । अभिविधि, व्याप्ति । थोड़ा- आअम देखो आगम । पन, चारों ओर। अधिकता, विशेषता। स्मरण। | आअर सक [आ + द] आदर करना, सत्कार . आश्चर्य । क्रियाशब्द के योग में अर्थविस्तृति | करना। और विपर्यय । वाक्य की शोभा के लिए | आअर न दे] ऊखल । कूर्च । भी इसका प्रयोग होता है । पादपूर्ति में प्रयुक्त
आअल्ल पुं [दे] रोग । वि. चंचल । देखो किया जाता अव्यय ।
आयल्लया। आ अ. नीचे।
आअल्लि । स्त्री [दे] झाड़ी, लताओं से आ अ. [आस्] इन अर्थों का सूचक अव्यय
आअल्ली ) निबिड प्रदेश । खेद । दुःख । गुस्सा।
आअव्व अक [वे काँपना । आ सक [या] जाना।
आआमि देखो आगामि । आअ वि [दे] बहुत । लम्बा । विषम, कठिन । आआस देखो आयंस। न. लोहा । मुसल ।
आइ सक [अ + दा] ग्रहण करना, लेना। आअ वि [आगत] आया हुआ ।
आइ पुं [आदि] प्रथम । प्रभृति । समीप । आअअ वि [आगत] आया हुआ। . प्रकार, भेद । अवयव, अंश । प्रधान, मुख्य । आअअ वि [आयत] लम्बा, विस्तीर्ण । उत्पत्ति । संसार । 'गर वि [ कर] आदि आअंछ सक [कृष्] खींचना । जोतना, चास प्रवर्तक । पुं. भगवान् ऋषभदेव । 'गुण पुं. करना । रेखा करना।
सहभावी गुण । °णाह पुं [°नाथ] भगवान् आअंतुअ देखो आगंतुय ।
ऋषभदेव । °तित्थियर पुं [तीर्थंकर] आअंब वि [आताम्र] थोड़ा लाल ।
भगवान् ऋषभदेव । °देव पुं. भगवान् ऋषभ°आअंब पुं [कादम्ब] हंस ।
देव । °म पुं. प्रथम । मूल न. मुख्य कारण । आअक्ख सक [आ + चक्ष्] कहना, बोलना, | °मोक्ख पुं [°मोक्ष] संसार से छुटकारा, उपदेश करना ।
मोक्ष । शीघ्र ही मुक्त होने वाली आत्मा। आअच्छ देखो आगच्छ ।
राय पुं [°राज] भगवान् ऋषभदेव । आअडु अक [दे] परवश होकर चलना। वराह पुं. कृष्ण, नारायण । आअड अक [व्या + प्र] काम में लगना । आइ वि [आदिन] खानेवाला । आअड्डिअ वि [दे] दूसरे की प्रेरणा से चला | आइ स्त्री [आजि] मंग्राम । हुआ।
आइअंतिय देखो अच्चंतिय ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आई-आइरिय आई अ [दे] वाक्य की शोभा के लिए प्रयुक्त | आइज्जमाण वकृ [आर्दीक्रियमाण] भीजाया किया जाने वाला अव्यय ।
जाता। आइंखणा , स्त्री [दे] देवता-विशेष, । आइट्ट वि [आदिष्ट] उक्त, उपदिष्ट । विवआइंखणिया कर्ण पिशाचिका देवी।। क्षित । आइंखिणिया, डोमिनी, चांडाली । आइट्ट वि [आविष्ट] अधिष्ठित, आश्रित । आइंग न [दे] वाद्य-विशेष ।।
| आइट्ठि स्त्री [आदिष्टि] धारणा। आइंच देखो आयंच।
आइड्ढि स्त्री [आत्मद्धि] आत्मा की शक्ति । आइंच देखो अक्कम = आ + क्रम् ।
आइड्ढिय वि [आत्मद्धिक] आत्मीय शक्तिआइंचवार पुं [आदित्यवार] रविवार । सम्पन्न । आइंचिय वि [आदित्यिक]आदित्य-सम्बन्धी । आइड्ढिय वि [आकृष्ट] खींचा हुआ। आइंछ देखो आअंछ ।
आइण्ण देखो आइन्न। आइक्ख सक [आ + चक्ष्] कहना, उपदेश | आइत्त वि [आदीप्त] थोड़ा प्रकाशितदेना।
ज्वलित। आइक्खग वि [ आख्यायक ] कहनेवाला, आइत्त वि [आयत्त] अधीन, वशीभूत । वक्ता ।
आइत्तु वि [आदात] ग्रहण करने वाला। आइक्खण न [आख्यान] कथन, उपदेश । आइत्थ न [आतिथ्य] अतिथि-सत्कार । आइक्खिया स्त्री [आख्यायिका] वार्ता, आइदि स्त्री [आकृति] आकार । कहानी । एक प्रकार की मैलो विद्या, जिससे आइद्ध वि [आविद्ध] प्रेरित । छूआ हुआ । चाण्डालिनी भूत काल आदि की परोक्ष बातें पहना हुआ। कहती है।
आइद्ध वि [आदिग्ध] व्याप्त । आइग्ग वि [आविग्न उद्विग्न, खिन्न । आइन्न वि [आकीर्ण] व्याप्त, भरा हुआ । आइग्घ सक [आ +घ्रा] सूंघना ।
पुं. वस्त्रदायक कल्पवृक्ष । आइच्च अ [दे] कोईबार ।
आइन्न वि [आचीर्ण] आचरित, विहित । आइच्च पुं [आदित्य] सूर्य । लोकान्तिक देव- | आइन्न वि [आदीर्ण] उद्विग्न, खिन्न । विशेष । न. देवविमान-विशेष । पुं. तन्निवासी आइन्न पुं [दे] कुलीन घोड़ा । देव । वि. आद्य । सूर्य-सम्बन्धी। गइ पुं आइप्पण न [दे] आटा। घर की शोभा के [°गति] राक्षस वंश के एक राजा का नाम । लिए जो चूना आदि की सफेदी दी जाती है °जस पुं [ यशस्] भरत चक्रवर्ती का एक वह । चावल के आटा का दूध । घर का पुत्र, जिससे इक्ष्वाकु वंश की शाखारूप सूर्य- मण्डन-भूषण । वंश की उत्पत्ति हुई थी। °पभ न [प्रभ] आइय (अप) वि [आयात] आया हुआ । इस नाम का एक नगर । पीढ न [°पीठ] आइय वि आचित] एकत्रीकृत । व्याप्त । भगवान् ऋषभदेव का एक स्मृतिचिह्न- ग्रथित, गुम्फित । पाद-पीठ । रक्ख पुं[°रक्ष] इस नाम का आइय वि [आदत] आदरप्राप्त । लङ्का का एक राजपुत्र । °रय पुं [°रजस्] आइयण न [आदान] ग्रहण । वानर वंश का एक विद्याधर गजा। आइयणया स्त्री आदान] उपादान । आइज्ज देखो आएज्ज ।
आइरिय देखो आयरिय = आचार्य ।
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आइल-आउच्छिय
आइल वि [ आविल ] कलुष, अस्वच्छ । वि [ आदिम ] प्रथम |
आइल्ल आइल्लिय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आइवाहिअ पुं [आतिवाहिक ] देव - विशेष, जो मृत जीव को दूसरे जन्म में ले जाने के लिए नियुक्त है ।
आइवाहिग पुं [आतिवाहिक ] मार्गदर्शक | आइस सक [ आ + दिश्] आदेश करना, हुकुम करना ।
आइस वि [] परित्यक्त । आईण वि [आदीन] बहुत गरीब । न दुषित | आउ अ [दे] अथवा |
आउ
भिक्षा |
आई पुं [दे] जातिमान् अश्व । आईण न [आजिन ] चमड़े का बना हुआ वस्त्र । पुं. द्वीप - विशेष । समुद्र - विशेष | भद्द पुं [भद्र] आजिन द्वीप का अधिष्ठाता देव । महाभ६ [महाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थ | 'महावर पुं. आजिन और आजिनवर नामक समुद्र का अधिष्ठाता देव । ' वर पुं. द्वीप - विशेष । समुद्र - विशेष । आजिन और आजिनवर समुद्र का अधिष्ठाता देव | 'वरभद्द पुं [वरभद्र ] आजिनवरद्वीप का अधिष्ठाता देव। ॰वरमहाभद्द पुं[°वरमहाभद्र] देखो अनन्तर उक्त अर्थं । °वरोभास पुं [वराव - भास] द्वीप-विशेष । समुद्र - विशेष । ° वरो भासभद्द पुं [वरावभासभद्र ] उक्त द्वीप का अधिष्ठायक देव । ' वरोभासमहाभद्द पुं [°वरावभासमहाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थ । 'वरोभासमहावर पुं['वरावभासमहावर ] अजिनवराभास नामक समुद्र का अधिष्ठाता देव | 'वरोभासवर ['वरावभासवर] देखो अनन्तरोक्त अर्थ ।
आईनीइ स्त्री [आदिनीति ] सामरूप पहली राजनीति |
आईये देखो आइ = आदि । आई वि[आतीत ] विशेष ज्ञात । संसार में
घूमनेवाला ।
आईल पुंन [आचील ] पान का थूकना । आईव अक [आ + दीप् ] चमकना । आईसर पुं [आदीश्वर] भगवान् ऋषभदेव । आउ स्त्री [ दे] पानी । इस नाम का एक नक्षत्र - देव । काय, क्काय पुं [ काय ] जल का जीव | "काइ, 'क्वाइय पुं [' कायिक] जल का जीव । जीव पुं. जल का जीव । बहुल वि. जल- प्रचुर | रत्नप्रभा पृथिवी का तृतीय काण्ड |
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न [आयुष्] आयु, जीवनकाल । आउअ वय | आयु कारणभूत कर्मपुद्गल । 'क्काल पुं [°काल ] मृत्यु । क्खय पुं [य] मरण | खेम न [क्षेम] आयुपालन, जीवन । विज्जा स्त्री [° विद्या ] चिकित्साशास्त्र | 'व्वेय पुं [वेद] चिकित्सा
शास्त्र |
आउंच सक [आ + कुञ्चय् ] संकुचित करना, समेटना |
आउंचिअ वि [आकुञ्चित] संकुचित । उठाकर धारण किया हुआ । आउंजि वि [आकुञ्चिन् ] संकुचनेवाला । निश्चल |
आउंट देखो आउट्ट = अ-वर्त्तय् । आउंट अक [आ + कुञ्च् ] संकोचना । आउंटण न [आकुण्टन ] आवर्जन । आउंबालिय वि [दे] आप्लावित, डुबाया हुआ, पानी आदि द्रवपदार्थ से व्याप्त । आउक्क देखो आउ = आयुष् 1
आउग
आउच्छ सक [ आ + प्रच्छ् ] आज्ञा लेना । अनुज्ञा लेना ।
आउच्छणा स्त्री [आप्रच्छना] प्रश्न । आउच्छिय वि [आपृष्ट ] जिसकी आज्ञा ली गई हो वह ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आउज्ज-आउस
आउज्ज देखो आआज्ज = आतोद्य । । आउट्टि विदे] साढ़े तीन । आउज्ज पुं [आवर्ज] सम्मुख करना। शुभ आउट्टिम वि [आकुट्ट्य] कूटकर बैठाने योग्य क्रिया।
(जैसे सिक्के में अक्षर)। आउज्ज वि [आवयं] सम्मुख करने योग्य । आउट्टिय देखो आउट्ट = आवृत्त । आउज्ज वि [आयोज्य] सम्बन्ध करने योग्य। आउट्टिय पुं [आकुट्टिक] दण्ड-विशेष । आउज्जिय वि [आतोधिक] वाद्य बजाने- आउट्टिय वि [आकुट्टित] छिन्न, विदारित । वाला।
आउट्टिया स्त्री [आकुट्टिका] पास में आकर आउजिय वि [आयोगिक] उपयोगवाला, सावधान ।
आउट्ठ वि [आतुष्ट] संतुष्ट । आउजिया स्त्री [आवर्जिका] क्रिया, व्या- आउड सक [आ+जोडय्] सम्बन्ध करना, पार । करण न. शुभ व्यापार-विशेष । । जोड़ना। आउज्जीकरण न [आवर्जीकरण] शुभ आउड सक [आ + कुट] कूटना, पीटना । व्यापार-विशेष ।
ताडन करना, आघात करना। आउट्ट सक [आ + वृत्] करना। भूलाना ।
आउड सक [लिख लिखना । व्यवस्था करना । अक. सम्मुख होना, तत्पर
आउड्ड अक [मस्ज] मज्जन करना, डूबना । होना । निवत्त होना । घूमना ।
तल्लीन होना। आउट्ट सक [आ + कुट्] छेदन करना, हिंसा |
आउण्ण वि [आपूर्ण] पूर्ण, भरपूर, व्याप्त । करना।
आउत्त वि [आयुक्त] उपयोग वाला, साव. आउट्ट वि [आवृत्त] निवृत्त, पीछे फिरा हुआ।
धान । न. पुरीषोत्सर्ग । पुं. गाँव का नियुक्त भ्रामित, भुलाया हुआ। ठीक-ठीक व्यवस्थित ।
किया हुआ मुखिया। कृत, विहित ।
आउत्त वि [आगुप्त] संक्षिप्त । संयत । आउट्ट । वि [आदृत] आदर-युक्त ।
आउत्थ वि [आत्मोत्थ] आत्म-कृत । आउट्टि ।
आउर वि [आतुर] रोगी। उत्कण्ठित । आउट्टण न [आवर्तन] आराधन, सेवा, पीडित । भक्ति । अभिमुख होना, तत्पर होना । इच्छा। आउर न [दे] युद्ध । वि. बहुत । गरम । धूमाना, भ्रमण । निवृत्ति । करना, क्रिया, | आउल सक [आकुलय्] व्याप्त करना। व्यग्र कृति।
करना । दुःखी करना । संकीर्ण करना । प्रचुर आउट्टणया स्त्री [आवर्त्तनता] अपायज्ञान ।।
करना। आउट्टावण न [आवत्तंन] अभिमुख करना, आउलि स्त्री [आतुलि] वृक्ष-विशेष । तत्पर करना।
आउलीकर सक [आकुली + कृ] देखो आउट्टि स्त्री [आकुट्टि] हिंसा, मारना ।
आउल = आकुलय् । निर्दयता।
आउलीभूअ वि [आकुलीभूत] घबड़ाया आउट्टि स्त्री [आवृत्ति] देखो आउट्टण :
हुआ। आवर्तन । बार-बार करना, पुनः-पुनः क्रिया।
आउल्लय न [दे] जहाज चलाने का काष्ठमय आउट्टि वि [आकुट्टिन्] मारनेवाला, हिंसक ।
उपकरण। अकार्य-कारक।
आउस अक [आ-+वस्] रहना, वास करना।
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आउ-आकड्य
आउस सक [ आ + क्रुश्] आक्रोश करना, शाप देना, निष्ठुर वचन बोलना । आउस सक [आ + मृश् ] छूना । आउस सक [आ + जुष् ] सेवा करना । आउ न [] कूर्च । क्षुरकर्म ।
आउस देखो आउ = आयुष् । आउस
}
आउसंत
आउस्स देखो आउस = आ + क्रुश् ।
करण
आउस्स पुं [आक्रोश] दुर्यचन, असभ्य वचन | आउस्सिय वि [आवश्यक ] जरूरी । न. मन, वचन और काया का शुभ व्यापार । मोक्ष के लिए प्रवृत्ति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वि [आयुष्मत् ] दीर्घायु ।
आउ न [ आयुध] शस्त्र । विद्याधर वंश के एक राजा का नाम । 'घर न [गृह] शस्त्रशाला । 'घरसाला स्त्री [गृहशाला ] देखो अनन्तर उक्त अर्थ । घरिय वि [° गृहिक ] आयुधशाला का अध्यक्ष - प्रधान कर्मचारी | गार न. शस्त्रगृह ।
उहि [ आयुधिन् ] योद्धा, शस्त्रधारक । आऊड अक [दे] जुए में पण करना । आऊडियन [] द्यूत-पण, जुए में की जाती प्रतिज्ञा ।
आऊर सक [आ + पूरय् ] भरना, पूर्ति करना,
भरपूर करना ।
आऊरियवि [ आपूरित] भरा हुआ, व्याप्त । आऊसिय वि [आयूषित ] प्रविष्ट । संकुचित । आज वि [आ] ग्रहण करने के योग्य उपादेय । णाम न ['नामन्] कर्म- विशेष, जिसके उदय से किसी का कोई भी वचन ग्राह्य माना जाता है । आएस वि [ऐष्यत् ] आगामी, भविष्य में
होने
वाला ।
आएस पुं [आदेश] अपेक्षा | प्रकार, रीति । वि. नीचे देखो |
आएस
आएसम
१४
पुं [आदेश] उपदेश, शिक्षा । आज्ञा, हुकुम । विवक्षा, सम्मति ।
1
१०५
अतिथि । निर्देश | प्रमाण । इच्छा । दृष्टान्त । सूत्र, ग्रन्थ, शास्त्र । उपचार, आरोप । शिष्टसम्मत ।
आएस देखो आवेस ।
आसण न [आदेशन, आवेशन] लोहा वगैरह का कारखाना, शिल्पशाला । आएसिय वि [आदेशिक] आदेश सम्बन्धी | विवाह आदि के जिमन में बचे हुए वे खाद्यपदार्थ जिनको श्रमणों में बांट देने का संकल्प किया गया हो ।
आओ अ [ दे] अथवा ।
आओ पुं [आयोग ] लाभ । अत्यधिक सूद के लिए करजा देना । परिकर, सरंजाम । अर्थोपार्जन का साधन ।
आओग्ग पुं [आयोग्य ] परिकर, सरंजाम । आओज्ज पुंन [आयोग्य ] बाजा | आओज्ज वि [आयोज्य ] सम्बन्ध-योग्य । आओड सक [आ + खोटय् ] प्रवेश कराना, घुसेड़ना |
आओडण न [आकोलन ] मजबूत करना । आओडिअ वि [ दे] ताडित । आओध अक [ आ + युध् ] लड़ना । आओस क [ आ + क्रुश्, क्रोशय् ] आक्रोश करना, शाप देना ।
आओस पुं [दे] प्रदोष समय, सन्ध्या - काल । आओसणा स्त्री [आक्रोशना ] निर्भर्त्सना, तिरस्कार |
आओहण न [आयोधन ] युद्ध | आंत वि [अन्त्य ] अन्त का ।
आकंख सक [ आ + काङ्क्ष ] इच्छना | आकंद अक [आ + क्रन्द्] रोना, चिल्लाना । आकंप अक [ आ + कम्पू] थोड़ा काँपना | तत्पर होना । आराधन करना । आवर्जन करना । थोड़ा चलना, प्रसन्न करना । आकड्ढ पुं [आकर्ष] खिंचाव | विकढि स्त्री [वकृष्टि ] खींच-तान । आकड्ढिय वि [दे] बाहर निकाला हुआ ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आकण्णण-आगरिसग आकण्णण न [आकर्णन] श्रवण ।
आगंतुग । वि. [ आगन्तुक ] आनेवाला । आकदि देखो आकिदि।
आगंतुय । अतिथि । कृत्रिम, अस्वाभाविक । आकम्हिय वि आकस्मिक] अकस्मात होने- | आगंप सक [आ + कम्पय्] फँपाना, हिलाना। वाला, बिना ही कारण होनेवाला ।
आगच्छ सक [आ + गम्] आना, आगमन आकर पुं. खान । समूह ।
करना। आकस देखो आगस।
आगत देखो आगय। आकार देखो आगार।
आगत्ती स्त्री [दे] कूप-तुला । आकास देखो आगास।
आगम सक [आ + गम्] आना, आगमन आकासिय वि [दे] पर्याप्त, काफी।
करना । जानना। आकिइ स्त्री [आकृति] स्वरूप, आकार ।।
आगम पुं. समागम । ज्ञान,जानकारी । आगमन। आकिंचण न [ आकिञ्चन्य ] निस्पृहता,
शास्त्र, सिद्धान्त । 'कुसल वि [ कुशल] निष्परिग्रहता।
सिद्धान्तों का जानकार । ज वि [ज्ञ] आकिंचणिय , देखो आकिंचण । शास्त्रों का जानकार । °णीइ स्त्री [°नीति] आकिंचण्ण
आगमोक्त विधि । °ण्णु वि [°ज्ञ] शास्त्रों का आकिट्ठि स्त्री [आकृष्टि] आकर्षण । जानकार । °परतंत वि [°परतन्त्र] सिद्धान्त आकिदि देखो आकिइ ।
के अधीन । °वलिय वि [°बलिक] सिद्धान्तों आकुंच सक [आ + कुञ्चय] संकोच करना।
का अच्छा जानकार । °ववहार पुं आकुट्ट न [आक्रुष्ट] आक्रोश । वि. जिस पर
[°व्यवहार] सिद्धान्तानुमोदित व्यवहार । आक्रोश किया गया हो वह ।
आगम सक [आ+ गम्] प्राप्त करना । आकुल देखो आउल।
आगमिय वि [आगमिक] शास्त्र-सम्बन्धी, आकूय न [आकूत] इङ्गित, इशारा । अभि- शास्त्र प्रतिपादित । शास्त्रोक्त वस्तु को ही प्राय।
माननेवाला। आकेवलिय वि [आकेवलिक] असम्पूर्ण। आगमिस्स वि [आगमिष्यत्] आगामी, होनेआकोडण न [आकोटन] कूट कर घुसेड़ना। वाला । आनेवाला। आकोस देखो अक्कोस = आक्रोश ।
आगमिस्सा स्त्री[आगमिष्यन्ती] भविष्यकाल । आकोसाय अक [आकोशाय] विकसित होना। आगमेस ) देखो आगमिस्स । आक्कंद (मा) देखो आकंद ।
आगमेसि आखंच (अप) सक [आ + कृष्] पीछे खींचना।
आगय वि [आगत] आया हुआ । उत्पन्न ।
आगर देखो आकर = आकर । आखंडल पुं [आखण्डल] इन्द्र । धणुह न [°धनुष्] इन्द्रधनुष । भूइ मुं [भूति]
आगरि वि [आकरिन्] खान का मालिक, भगवान् महावीर के मुख्य शिष्य गौतम-स्वामी।
खान का काम करनेवाला। आगइ स्त्री [आगति] आगमन ।
आगरिस पुं [आकर्ष] ग्रहण, उपादान । आगइ देखो आकिइ।
खिंचाव । ग्रहण कर छोड़ देना । प्राप्ति । आगंतगार । न [आगन्त्रगार] धर्मशाला, | आगरिस सक [आ+ कृष] खींचना । आगंतार J मुसाफिरखाना ।
| आगरिसग वि [आकर्षक] खींचनेवाला। पुं. आगंतु वि [आगन्तु] आनेवाला ।
लौह-चुम्बक।
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आगरिसणी-आघुम्म संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आगरिसणी स्त्री [आकर्षणो] विद्या-विशेष । , प्राप्त । आगल सक [आ + कलय] जानना । लगाना। आगासिय वि [आकर्षित] खींचा हुआ। पहुँचाना । संभावना करना ।
आगासिया स्त्री [आकाशिकी] आकाश में आगल्ल वि [आग्लान] ग्लान, बीमार । गमन करने की लब्धि-शक्ति । आगस सक [आ+ कृष] खींचना ।
आगाह सक [अव + गाह.] अवगाहन करना, आगह देखो आगाह ।
स्नान करना । आगहिअ वि [आगृहीत] संगृहीत । आगिइ स्त्री [आकृति] आकार, रूप, मूर्ति । आगाढ वि. प्रबल, दुःसाध्य । अपवाद, खास आगिट्ठि स्त्री [आकृष्टि] आकर्षण । कारण । अत्यन्त गाढ । जोग पुं [°योग] । आगी देखो आगिइ । योग-विशेष, गणि-योग । °पण्ण न [प्रज्ञ] आगु पुं [आकु] इच्छा । शास्त्र, आगम । 'सुय न [°श्रुत] आगम- आघं देखो आघव । 'सूत्रकृतांग' सूत्र के प्रथम विशेष।
श्रुतस्कन्ध का दसवाँ अध्ययन । आगामि वि [आगामिन्] आनेवाला । आघंस सक [आ+घृष् ] घर्षण करना । आगार सक [आ+ कराय] बुलाना, आह्वान ! आघंस सक [ आ+घृष् ] थोड़ा घिसना । करना । त्याग करना।
आघंस वि [आघप] जल के साथ घिसकर आगार न. गृह । वि. गृहस्थ । 'त्थ विस्थ] जो पिया जा सके वह । गृही।
आघयण न [दे] वध-स्थान । आगार पुं [आकार] अपवाद । इंगित, चेष्टा- आघव सक [आ + ख्या] कहना, उपदेश विशेष । आकृति, रूप ।
देना । ग्रहण करना। आगारिय वि [आगारिक] गृहस्थ-सम्बन्धी । आघवइत्तु वि [आख्यायक] वक्ता, उपआगाल पुं. समान प्रदेश में रहना । सम भाव ।
देशक । से रहना । उदीरणा-विशेष ।
आघविय वि [दे] गृहीत, स्वीकृत । आगास पुंन [आकाश] आकाश, अन्तराल ।
आघवेत्तग वि [आख्यापयितृक] उपदेष्टा,
वक्ता । गमा स्त्री. विद्या-विशेष, जिसके बल से आकाश में गमन कर सकता है। गामि वि.
आघस सक [आ + घस्] थोड़ा घिसना । [°गामिन्] आकाश में गमन करने वाला,
आधा सक [आ + ख्या] कहना ।
आघा सक [आ+ध्रा] सूंघना । पक्षि-प्रभृति । 'जोइणी स्त्री [योगिनी] पक्षिविशेष । °त्थिकाय पुं [°स्तिकाय]
आघाय वि [आख्यात] कथित । न. उक्ति, आकाश-प्रदेशों का समूह, अखण्ड आकाश
कथन । द्रव्य । 'थिग्गलन [दे] मेघरहित आकाश
आघाय पुं [आघात] एक नरक-स्थान । का भाग । 'फलिह, फालिय पुं [°स्फ
विनाश । टिक] निर्मल स्फटिक-रत्न । °फालिया स्त्री
आघाय पुं [आघात] वध । चोट, प्रहार । [फालिका] एक मीठा द्रव्य । इवाइ वि आघाव देखो आघव । ["तिपातिन] विद्या आदि के बल से । आघुटु वि [आघुष्ट] घोषित, जाहिर किया आकाश में गमन करनेवाला।
हुआ। आगासिय वि [आकाशित] आकाश को आधुम्म अक [आ + घूर्ण ] डोलना, हिलना,
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हुआ।
१०८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आघोस-आढत्ते काँपना, चलना।
साधु के लिए भिक्षा का एक दोष । आघोस सक [आ+ घोषय्] घोषणा करना, | आजुत्त वि [आयुक्त] अप्रमादी । ढिंढोरा पिटवाना।
आजुज्झ अक [ आ + युध् ] लड़ना । आचक्ख सक[ आ+ चक्ष् ] कहना । आजुह न [आयुध] हथियार । आचरिय वि [आचरित] अनुष्ठित, विहित । आजोज्ज देखो आओज्ज । न, आचरण ।
आडंबर पुं. आटोप, ऊपरी दिखाव । वाद्य की आचाम सक [ आ+चामय ] चाटना, खाना, आवाज । यक्ष-विशेष । न. यक्ष का मन्दिर । पीना ।
आडंबर पुं [आडम्बर] पटह। आचार देखो आयार = आचार ।
आडंबरिल्ल वि [आडम्बरवत् आडम्बरी । आचारिअ देखो आयरिय = आचार्य ।
आडविय वि [दे] चूर्णित, चूर-चूर किया आचिक्ख सक [ आ + चक्ष् ] कहना । आचुण्णिअ वि [आचूर्णित] चूर-चूर किया | आडविय वि [आटविक] जंगल में रहनेवाला, हुआ।
जंगली । आचेलक्क न [आचेलक्य] वस्त्र का अभाव । आडह सक [ आ+ दह ] चारों ओर से वि. आचार-विशेष ।
जलाना। आच्छेदण न [ आच्छेदन ] नाश । वि..
आडह सक [आ +धा] स्थापन करना, नियुक्त नाशक।
करना। आजाइ देखो आयाइ ।
आडाडा स्त्री [दे] बलात्कार । जबरदस्ती । आजि देखो आइ = आजि ।
आडासेतीय पुं [आडासेतोक] पक्षि-विशेष । आजीरण पुं [आजीरण] स्वनामख्यात एक | आडि स्त्री [आटि] पक्षि-विशेष । मत्स्य जैन मुनि ।
विशेष । आजीव । पुं. आजीविका । जैन साधु के | आडियत्तिय पुं [दे] शिविका-वाहक पुरुष । आजीवंग लिए भिक्षा का ।क दोष-गृहस्थ | आडुआल सक [दे] मिश्र करना, मिलाना। को अपनी जाति, कुल आदि की समानता | आडुआलि पुं[दे] मिश्रता, मिलावट । बतलाकर उससे भिक्षा ग्रहण करना। | आडाय देखो आडोव = आटोप । गोशालक मत का अनुयायी साधु । धन का आडोलिय वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ। समूह ।
आडोव सक [आ+टोपय् ] आडम्बर आजीवग पुं [आजीवक] धन का गर्व । करना । पवन द्वारा फुलाना । सकल जीव । देखो आजीवय । | आडोविअ वि [दे] आरोपित, गुस्सा किया आजीवण न [आजीवन] जीवन-निर्वाह का | हुआ। उपाय । जैन साधु के लिए भिक्षा का एक आडोविअ वि [आटोपिक] आटोपवाला, दोष।
स्फारित । आजीवय देखो आजीवग।
आढई स्त्री [आढकी] वनस्पति-विशेष । आजीविय वि [आजीविक] गोशालक के आढग पुंन [आढक] चार प्रस्थ (सेर) का मत का अनुयायी।
- एक परिमाण । चार सेर परिमित चीज । आजीविया स्त्री [आजीविका] निर्वाह । जैन | आढत्त वि [दे] आक्रान्त ।
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१०९
आढत्त-आणवणिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आढत्त वि [ आरब्ध ] शुरू किया हुआ, आणंदण न [आनन्दन] खुशी। वि. खुश प्रारब्ध ।
करनेवाला, आनन्ददायक। आढप्प देखो आढव।
आणंदवड । पुं [दे] पहली बार की आढय देखो आढग।
आणंदवस । रजस्वला का रक्त वस्त्र । आढव सक [ आ+रभ् ] शुरू करना। आणंदा स्त्री [आनन्दा] देवी-विशेष, मेरु की आढा सक [आ + द] आदर करना, मानना । पश्चिम दिशा में स्थित रुचक पर्वत पर रहने आढिअ वि [आदत] सत्कृत, सम्मानित ।। वाली एक दिक्कुमारी । इस नाम की एक आढिअ वि [दे] अभीष्ट । गणनीय, माननीय । पुष्करिणी। अप्रमत्त, उद्युक्त । गाढ़, निबिड ।
आणंदिय वि [आनन्दित] हर्षप्राप्त। रामचन्द्र आण सक [ज्ञा] जानना ।
के भाई भरत के साथ दीक्षा लेने वाला एक आण सक [आ + णी] ले आना।
राजा । आण पुं [आन] श्वासोच्छ्वास । श्वास के आणक्ख सक [परि + ईक्ष] परीक्षा करना। पुद्गल ।
आणच्छ देखो आअंछ । °आण देखो जाण = यान ।
आण? वि [आनष्ट] सर्वथा नष्ट । आणंछ देखो आअंछ ।
आणण न [आनन] मुख । आणंतरिय न [आनन्तर्य] अविच्छेद, व्यवधान आणण न [आनयन लाना । का अभाव । अनुक्रम ।
आणत्त वि [आज्ञप्त) जिसको हुकुम दिया गया आणंद अक [आ + नन्द्] खुश होना ।
हो वह । आणंद सक [आ + नन्दय] खुश करना।
आणत्ति स्त्री [अज्ञप्ति] आज्ञा, हुकुम । °अर
वि [ कर] आज्ञाकारक, नौकर । 'किंकर आणंद पुं [आनन्द] अहोरात्र का सोलहवाँ
वि. नोकर। हर वि. आज्ञावाहक, संदेशमुहूर्त । एक देवविमान । हर्ष । भगवान्
वाहक। शीतलनाथ के मुख्य-शिष्य । पोतनपुर नगर
आणत्थ न [आनर्थ्य अनर्थता । का एक राजा, जो भगवान् अजितनाथ का
आणप (अशो) देखो आणव = आ + ज्ञपय् । मातामह था। भावी छठवाँ बलदेव । नाग
आणपाण देखो आणापाण। कुमार जातीय देवों के स्वामी धरणेन्द्र के एक रथ सैन्य का अधिपति देव । मुहूर्त-विशेष ।
आणप्प वि [आज्ञाप्य] आज्ञा करने योग्य । भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र । भगवान् । आणम अक [आ+अन्] श्वास लेना। महावीर के एक साधु शिष्य का नाम । आणमणी देखो आणवणी। भगवान् महावीर के दस मुख्य उपासकों | आणय पुन [आनत] देवलोक-विशेष । पं. उस (श्रावक-शिष्य) में पहला। देव-विशेष । देवलोकवासी देव । राजा श्रेणिक के एक पौत्र का नाम । 'उपास- | आणय पुन [आनत] एक देवविमान । गदसा' सूत्र का एक अध्ययन । 'अणुत्तरोप- आणयण न [आनयन] लाना, आनना । पातिकदसा' सूत्र का सातवाँ अध्ययन । आणव सक[आ+ज्ञपय] आज्ञा देना,फरमाना। 'निरयावली' सूत्र का एक अध्ययन । ब. देश- आणव देखो आणाव = आ + नायय् । विशेष । °पुर न. नगर-विशेष । °रक्खिय पुं आणवण न [आनायन] मँगवाना। [रक्षित] स्वनामख्यात एक जैन साधु । | आणवणिय वि [आज्ञापनिक] आज्ञा फरमाने
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११०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आणवणिया-आतंब
वाला।
स्तम्भ । आणवणिया स्त्री [आज्ञापनिका, आनाय- आणाव देखो आणव-आ+ज्ञपय् । निका] देखो दोनों आणत्रणी।
आणाव सक [आ+ नायय्] मँगवाना । आणवणी स्त्री [आज्ञापनी] क्रिया-विशेष, | आणाव (अप) सक [आ + नी लाना । हुकुम करना । हुकुम करने से होनेवाला। आणावण न [आनायन] दूसरे से मँगवाना। कर्मबन्ध ।
आणावण न [आज्ञापन] आज्ञा, हुकुम । आणवणी स्त्री [आनायनी] क्रिया-विशेष, आणि देखो आणी। मँगवाना । मँगवाने से होनेवाला कर्म-बन्ध । । आणिअ वि [आनीत लाया हुआ। आणा स्त्री [आज्ञा] आदेश, हुकुम । उपदेश । आणिअ [दे] देखो आढिअ । निर्देश । आगम, सिद्धान्त । सूत्र की व्याख्या। आणिक्क वि [दे] टेढ़ा, वक्र । °ईसर पुं [ ईश्वर] आज्ञा फरमाने वाला आणिक्क न [दे] तिर्यक् मैथुन । मालिक । °जोग पुं [ योग] आज्ञा का आणी सक [आ+नी] लाना । सम्बन्ध । शास्त्र के अनुसार कृति । रुइ | आणीय वि [आनोत] लाया हुआ। स्त्री [रुचि] सम्यक्त्व-विशेष । वि. आगमों | आणुअ न [दे] आकार, आकृति । पर श्रद्धा रखने वाला । °व वि ["वत्] आणुओगिअ वि [आनुयोगिक व्याख्याकर्ता। आज्ञा मानने वाला । °वत्त न [°पत्र] आज्ञा- | आणुकंपिय वि[आनुकम्पिक]दयालु, कृपालु । पत्र, हुकुमनामा । °ववहार पुं [व्यवहार] | आणुगामि वि [अनुगामिन्] नीचे देखो। व्यवहार-विशेष । °विजय न [विचय, | आ गामिय वि [आनुगामिक] अनुसरण °विजय] धर्मध्यान-विशेष, जिसमें आज्ञा-- करनेवाला । न. अवधिज्ञान का एक भेद । आगम के गुणों का चिन्तन किया जाता है । | आणुगुण्ण न [आनुगुण्य] औचित्य, अनुआणाइ पुं [दे] पक्षी।
रूपता । अनुकूलता। आणाइत्त वि [आज्ञावत्] आज्ञा माननेवाला। आणुधम्मिय वि [आनुर्मिक] सर्वधर्म-सम्मत । आणाइय वि [आनायित] मंगाया हुआ। आणुपाणु देखो आणापाणु । आणापाण पुं [आनप्राण] श्वासोच्छ्वास । आणुपुव्व न [आनुपूर्व्य] अनुक्रम, परिपाटी। श्वासोच्छ्वास-परिमित समय । पज्जत्ति स्त्री
आणुपुव्वी स्त्री [आनुपूर्वी] क्रम, परिपाटी । [°पर्याप्ति] श्वासोच्छ्वास लेने की शक्ति।
___ °णाम न [नामन्] नामकर्म का एक भेद । आणापाणु स्त्री [आनप्राण] ऊपर देखो।
| आणुलोमिअ वि [आनुलोमिक] अनुलोम, आणापाणुय पुं [आनप्राणक श्वासोच्छवासपरिमित काल ।
अनुकूल, मनोहर । आणाम पुं [आनाम] श्वास, अन्तःश्वास ।।
आणुवित्ति स्त्री [अनुवृत्ति अनुसरण ।
आणूग पुंन [अनूप] सजलप्रदेश । आणामिय वि [आनामित] थोड़ा नमाया
आणूव पुं [दे] श्वपच, डोम । हुआ । अधीन किया हुआ।
आणे सक [आ + नी] लाना, ले आना। आणाल पुं [आलान] बन्धन । हाथी बाँधने आणे सक [ज्ञा] जानना। की रज्जु-डोरी। जहाँ पर हाथी बाँधा आणेसर देखो आणा-ईसर । जाता है वह स्तम्भ, कील । °क्खंभ, खंभ आत देखो आय = आत्मन् । पुं[स्तम्भ] जहाँ हाथी बाँसा जाता है वह आतंब देखो आयंब = आताम्न ।
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आतित्थ-आबाहा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१११ आतित्थ देखो आइत्थ ।
आदेस पुं [आदेश] व्यपदेश, व्यवहार । आत्त देखो अत्त = आत्मन् ।
देखो आएस = आदेश । आत्त देखो अत्त = आत्त ।
आधरिस सक [ आ + धर्षय् ] परास्त आत्त वि [आत्मीय] स्वकीय ।
करना, तिरस्कारना। आदंस देखो आयंस ।
आधा देखो आहा। आद (शौ) देखो अत्त = आत्मन् ।
आधार देखो आहार = आधार । आद देखो आइ = आ + दा ।
आधोरण पुं. हस्तिपक, महावत । आदण्ण वि [दे] आकुल, व्याकुल, घबड़ाया आपण देखो आवण । हुआ।
आपण्ण देखो आवण्ण । आदयाण वि [आददान] ग्रहण करता हुआ। आपत्ति स्त्री. प्राप्ति । आदर देखो आयर - आ+दृ ।
आपाइय वि [आपादित] जिसकी आपत्ति आदरिस देखो आयंस।
की गई हो वह । उत्पादित । जनित । आदाउ वि [आदातृ] ग्रहण करनेवाला। आपायण न [आपादन] संपादन । आदाण देखो आयाण।
आपीड पुं. शिरोभूषण । आदाण न [आर्द्रहण] गरम किया हुआ | आपीण देखो आवीण। (जल, तैल आदि)।
आपुच्छ सक [ आ + प्रच्छ ] आज्ञा लेना, आदाणिय न [आदानीय] लाभ, नफा । सम्मति लेना। आदि देखो आइ = आदि ।
आपुटु वि [आपृष्ट] जिसकी आज्ञा या सम्मति आदिच्च देखो आइच्च ।
ली गई हो वह । आदिच्छा स्त्री [आदित्सा] ग्रहण करने की आपुण्ण वि [आपूर्ण] पूर्ण, भरपूर । इच्छा ।
आपूर पुं. पूरनेवाला। आदिज देखो आएन्ज ।
आपूर देखो आऊर। आदिट्ट देखो आइट।
आपेड ) आदित्त देखो आइच्च।
आपेड्ड देखो आपीड। आदित्तु वि [आदातृ] ग्रहण करनेवाला ।
आपेल्ल आदिय सक [आ + दा] ग्रहण करना ।
आप्पण न [दे] पिष्ट, आटा। आदिल्ल देखो आइल्ल।
आफंस पुं[आस्पर्श] अल्प स्पर्श । आदी स्त्री. इस नाम की एक महानदी। आफर पुं[दे] द्यूत ।। आदीण वि [आदीन] बहुत गरीब । न. दूषित आफाल सक [ आस्फालय् ] आस्फालन भिक्षा । °भोइ वि [°भोजिन्] दूषित भिक्षा | करना, आघात करना । देखो अप्फाल । को लेनेवाला।
आफुण्ण वि [दे] आक्रान्त । आदीणिय वि [आदीनिक] अत्यन्त दीन- आफोडिअ न [आस्फोटित] हाथ पछाड़ना । सम्बन्धी।
आबंध सक [ आ+बन्ध ] मजबूत बाँधना । आदु (शौ) देखो अदु।
आबंध पुं [आबन्ध] सम्बन्ध, संयोग । आदेज्ज देखो आएज्ज।
आबद्ध वि. बंधा हुआ। आदेस देखो आएस = आदेश ।
आबाहा स्त्री[आबाधा] अल्प बाधा । अन्तर।
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११२
मानसिक पीड़ा । आभंकर पुं [आभङ्कर ] ग्रह-विशेष । न. विमान - विशेष | ° पभंकर न [ प्रभङ्कर ] | आभिट्ट
विमान - विशेष ।
आभिडिय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आभक्खाण देखो अब्भक्खाण ।
भट्ट व [आभाषित ] उक्त । संभाषित |
आभरण न. आभूषण ।
आभव्व वि [आभव्य ] होने योग्य, संभाव्य ।
आभा स्त्री. प्रभा, कान्ति, तेज । आभागि वि [आभागिन् ] भोक्ता ।
आभार पुं. बोझ, भार ।
करना ।
आभास पुं. जो वास्तविक में वह न होकर उसके समान लगता हो । विपरीत । आभास पुं [आभाषिक ] इस नाम का एक म्लेच्छ देश । उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति । एक अन्तद्वीप । उसमें रहनेवाला । अभिओ देखो आभिओगिय । आभिओग पुं [अभियोग्य ] किंकरस्थानीय देव - विशेष | नौकर । नौकरी ।
अभिओगा स्त्री [आभियोग्या ] अभियोगिक
भावना ।
आभिओगि वि [ आभियोगिन् ] किकर
स्थानीय देव |
आभिओगिय वि [ आभियोगिक ] मन्त्र आदि से आजीविका चलानेवाला । नौकर स्थानीय देव - विशेष | वशीकरण, दूसरे को वश में करने का मन्त्रादि-कर्म 1
आभास सक [ आ + भाष् ] कहना, संभाषण आभीर
आभीरिय
आभिओगिय वि [आभियोगित] वशीकरण
आदि से संस्कृत |
अभिओग्ग देखो आभिओग । अभिग्गहिअ वि [आभिग्रहिक ] अभिग्रहसम्बन्धी | न. मिथ्यात्वविशेष | अभिग्गयि वि [ आभिग्रहिक ] प्रतिज्ञा से सम्बन्ध रखनेवाला । प्रतिज्ञा का निर्वाह करने -
आभंकर - आमंड
वाला | न. मिथ्यात्व - विशेष | अभिनंद पुं [अभिनन्दित ] श्रावण मास ।
}
आभिणिबोगदेखो आभिणिबोहिय । भबिहिन [आभिनिबोधिक ] इन्द्रिय और मन से होनेवाला प्रत्यक्षज्ञान- विशेष । अभिप्पा अवि [आभिप्रायिक ] अभिप्राय
.वि [दे] प्रवृत्त |
वाला ।
अभिसेक्क वि [ आभिषेक्य ] अभिषेक के योग्य | मुख्य ।
पुं [आभीर ] एक शूद्र- जाति, हर
आभूअ वि [आभूत ] उत्पन्न । भेडिय [] देखो आभिट्ट । आभोइअ वि [आभोगित ] देखा हुआ । आभोग पुं. विलोकन, देखना । प्रदेश, स्थान । उपकरण, साधन । प्रतिलेखन । उपयोग, ख्याल । विस्तार । ज्ञान, जानना । देखो आभोय = आभोग |
आभोगि वि [आभोगिन् ] परिपूर्ण । णी स्त्री [°नी] मानसिक निर्णय उत्पन्न करानेवाली विद्या - विशेष ।
आभोय सक [ आ + भोगय् ] देखना ।
जानना । ख्याल करना ।
आभोय पुं [आभोग] सर्प का फण । देखो आभोग ।
आम अ. अनुमति - प्रकाशक अव्यय - हाँ । आम अ [ भवत् ] आप |
आम पुं. रोग, पीड़ा । वि. अपक्व, कच्चा । अशुद्ध, अपवित्र । 'जर पुं ['ज्वर] अजीर्ण से उत्पन्न बुखार | आमइ वि [आमयिन् ] रोगी । आमं अ [आम] स्वीकार सूचक अव्यय - हाँ । अतिशय ।
| आमंड न [ दे] कृत्रिम आमलक ।
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११३
आमंडण-आमोसहि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आमंडण न [दे] भाण्ड ।
आमुक्त वि [आमुक्त] त्यक्त । उतारा हुआ । आमंत सक [ आ + मन्त्रय ] आह्वान परिहित ।
करना, सम्बोधन करना । अभिनन्दन करना । आमुट्ठ वि [आमृष्ट] स्पृष्ट । उलटा किया आमंतण न [आमन्त्रण] आह्वान, सम्बोधन । हुआ। °वयण न [°वचन] सम्बोधन-विभक्ति ।। आमुय सक [आ + मुच्] छोड़ना, त्यागना । आमंतणी स्त्री [आमन्त्रणी] सम्बोधन की आमुस सक [आ + मश्] थोड़ा या एक बार भाषा, आह्वान की भाषा । आठवीं सम्बोधन
स्पर्श करना। विभक्ति।
आमेडणा स्त्री [आमेडना] विपर्यस्त करना। आमघाय'' [अमाघात] अमारि-प्रदान, हिंसा
आमेल पुं [दे] लट, जटा। निवारण ।
आमेल पुं [आपीड़] फूलों की माला, जो मुकुट आमज्ज सक [ आ + मृज् ] एक बार साफ | पर धारण की जाती है, शिरोभूषण । करना।
आमेल्ल देखो आमेल = आपीड़ । आमद्द पुं [आमद] संघर्ष, आघात ।। आमोअ अक [आ + मुद्] खुश होना । आमय पुं. रोग, दर्द । °करणी स्त्री. विद्या- | आमोअ पुं [दे. आमोद] खुशी। विशेष ।
आमोअ पुं [आमोद] सुगन्ध । आमय वि [आमत] सम्मत ।
आमोअ पुं [आमोद] वाद्य-विशेष । आमराय पुं [आमराज] एक प्रसिद्ध राजा । आमोअअ वि [आमोदक] सुगन्ध उत्पन्न आमरिस पं आमर्ष] स्पर्श ।
करनेवाला । आनन्द-जनक । आमल पुंन [आमलक] आमला का फल ।
आमोअअ वि [आमोदद] सुगन्ध देनेवाला । आमलई स्त्री [आमलकी] आमला का पेड़ ।
आमोक्ख पुं [आमोक्ष] मोक्ष । आमलकप्पा स्त्री [आमलकल्पा] नगरी | आमोक्खा स्त्री [आमोक्ष ळरकार
आमोक्खा स्त्री [आमोक्ष] छुटकारा। परिविशेष ।
त्याग । आमलग पुं [ आमरक ] चारों ओर से | आमोड पुं [दे] जूट, लट, समूह । मारना । विपाक-श्रुत का एक अध्ययन ।
आमोडग न [आमोटक] वाद्य-विशेष । फूलों आमलग, पॅन [आमलक] आमला का पेड़।। से बालों का एक प्रकार का बन्धन । आमलय । आमला का फल ।
आमोडण न [आमोटन] थोड़ा मोड़ना । आमलय न [दे] नूपुर-गृह, नूपुर रखने का | आमोडिअ वि [आमोटित] मर्दित । स्थान।
आमोद । देखो आमोअ। आमसिण वि [आमसृण] थोड़ा चिकना । उल्लसित ।
आमोय पुं [आमोक] कूड़े का पुञ्ज । आमिल्ल सक [ आ + मुच् ] छोड़ना । आमोरअ वि [दे] विशेषज्ञ । आमिस न [आमिष] मांस, नैवेद्य । वि. | आमोस पुं [आमर्श, °र्ष] स्पर्श । मनोहर, सुन्दर । आसक्ति का कारण, आमोस पुं [आमोष] चोर । आहार, फलादि भोज्य वस्तु ।
आमोसग वि [आमोषक] चोर । चोरों की आमुच सक [ आ + मुच् ] छोड़ना। एक जाति । उतारना । पहनना।
| आमोसहि पुं [आमीषधि] लब्धि-विशेष, १५
आमोय ।
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११४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
आय -आयड्ढि जिसके प्रभाव से स्पर्श मात्र से ही सब रोग। का पात्र-विशेष, जिसमें वह पात्र बनाने के नष्ट होते हैं।
समय मिट्टीवाला पानी रखता है। आय पुं. लाभ, प्राप्ति, फायदा। वनस्पति- आयंचणी स्त्री [आतश्चनी] ऊपर देखो । विशेष । कारण, हेतु । अध्ययन । गमन । आयंत वि [आचान्त] जिसने आचमन किया आय पुं [आय] अध्ययन, शास्त्रांश-विशेष ।। हो वह । आय वि [आज] अज-सम्बन्धी । बकरे के बाल आयंतम वि [आत्मतम] आत्मा को खिन्न से उत्पन्न (वस्त्रादि)।
करनेवाला। आय वि [आगत] आया हुआ (काल)। आयंतम वि [आत्मतमस्] अज्ञानी, अजान । आय वि [आत्त] गृहीत ।
क्रोधी । आय पुं [आगस्] पाप । अपराध । आयंदम वि [आत्मदम] आत्मा को शान्त आय पुंस्त्री [आत्मन्] आत्मा, जीव । निज, रखनेवाला, मन और इन्द्रियों का निग्रह स्वयं । शरीर । ज्ञान आदि आत्मा के गुण। करनेवाला । अश्व आदि को संयत रहने को 'गुत्त वि [गुप्त] जितेन्द्रिय । जोगि वि सिखानेवाला। [°योगिन]मुमुक्षु, ध्यानी । °ट्टि वि [°र्थिन्]
आयंप पुं [आकम्प] काँपना, हिलना । कंपानेमुमुक्षु । तंत वि [तन्त्र] स्वाधीन । 'तत्त
वाला । न [तत्त्व] परम पदार्थ, ज्ञानादि रत्न-त्रय । आयंब अक [वेप्] काँपना, हिलना। °प्पमाण वि [प्रमाण] साढ़े तीन हाथ का | आयंब , वि [आताम्र] थोड़ा लाल । परिमाण वाला। पवाय न प्रवाद] आयंबिर । बारहवें जैन अङ्ग ग्रन्थ का एक भाग, सातवाँ आयंबिल न [आचाम्ल]तपो-विशेष, आम्बिल । पूर्व । °भाव पुं. आत्म-स्वरूप । निज-अभि- वड्ढमाण न [°वर्धमान] तपश्चर्या-विशेष । प्राय । विषयासक्ति । °य पुं [°ज] पुत्र, आयंबिलिय वि [आचाम्लिक] आम्बिल-तप लड़का । रक्ख वि [°रक्ष] अङ्गरक्षक । का कर्ता । व वि [°वत्] ज्ञानादि आत्मगुणों से आयंभर । वि [आत्मम्भरि] स्वार्थी । सम्पन्न । हम्म वि [°न] आत्मा को अधो- आयंभरि गति में ले जानेवाला । देखो आहाकम्म। आयंव अक [आ + कम्प् ] कांपना, हिलना। आय° देखो आवइ।
आयंस पुं [आदर्श] दर्पण । बैल आदि के गले आयइ स्त्री [आयति] भविष्य काल ।
का भूषण-विशेष । °मुह पुं [°मुख] एक आयइजणग न [आयतिजनक] तपश्चर्या- अन्तर्वीप । उसके निवासी मनुष्य । विशेष ।
आयक्ख देखो आइक्ख । आयंक पुं [आतङ्क] दुःख । पीड़ा। दुःसाध्य आयग वि [आजक] देखो आय = आज । आशु-घाती रोग।
आयज्झ अक [वेप्] काँपना, हिलना । आयंकि वि [आतङ्किन्] रोगी।
आयट्ट सक [आ+ वर्तय] घुमाना। उबाआयंगुल न [आत्माङ्गुल] परिमाण का एक लना। भेद ।
आयड्ढ सक [आ + कृष्] खींचना । आयंच सक [आ + तञ्च्] सींचना। आयड्ढण न [आकर्षण] आकर्षण, खिंचाव । आयंचणिया स्त्री [आतञ्चनिका] कुम्भकार आयड्ढि स्त्री [आकृष्टि] ऊपर देखो ।
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आयड्ढि-आयाम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आयड्ढि पुंदे] विस्तार ।
आयल्लिय वि [दे आक्रान्त, व्याप्त । आयण्ण सक [आ+कर्णय] सुनना । आयव पुं [आतपवत्] अहोरात्र का २४वाँ आययंत वकृ [आददत्] ग्रहण करता हुआ। मुहूर्त । आयत्त वि. अधीन, स्ववश ।
. आयव वि [आत५] उद्योत, प्रकाश। ताप, आयम सक [आ + चम्] आचमन करना, घाम । न. मुहूर्त विशेष । णाम न [°नामन्] कुल्ला करना।
नामकर्म का एक भेद । आयमण न [आचमन] शुद्धि, शौच । आयवत्त न [आतपत्र] छत्र, छाता। आयमिअ देखो आगमि।
आयवत्त पुं [आर्यावर्त] हिन्दुस्तान । आयमिणी स्त्री [आयमिनी] विद्या-विशेष । आयवा स्त्री [आतपा] सूर्य की एक अग्रआयय वि [आयत] लम्बा, विस्तत । पं. मोक्ष। महिषी-पटरानी। इस नाम का 'ज्ञाता
धर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन । आयय सक [आ + दद्] ग्रहण करना ।
आयस वि. लौह-निर्मित । आययण न [आयतन] प्रकटीकरण । उपादान
आयसी स्त्री. लोहे का कोश । कारण । घर । आश्रय, स्थान । देव-मन्दिर ।
आया देखो आय = आत्मन् । धार्मिक जनों का एकत्र होने का स्थान ।।
आया सक [आ+या] आना, आगमन कर्म-बन्ध का कारण । निर्णय, निश्चय ।। करना। निर्दोष स्थान ।
आया सक [आ + दा] ग्रहण करना । आयर सक [आ + चर्] आचरना, करना। | आयाइ स्त्री [आजाति] उत्पत्ति, जन्म । आयर पुं [आकर] खानि, खान । समूह। | जाति, प्रकार । आचार, आचरण । 'ट्ठाण न आयर देखो आयार = आचार ।
[°स्थान] संसार, जगत् । 'आचाराङ्ग' सूत्र आयर पुं [आदर सत्कार, सम्मान । परिग्रह, | के एक अध्ययन का नाम । असन्तोष । ख्याल, संभाल ।
आयाइ स्त्री [आयाति] आगमन । उत्पत्ति, आयरंग पुं [आयरङ्ग] इस नाम का एक गर्भ से बाहर निकलना । आयति, भविष्य म्लेच्छ राजा।
काल । आयरण न [आचरण] प्रवृत्ति, अनुष्ठान । आयाण पुंन [आदान] ग्रहण, स्वीकार । आयरणा स्त्री [आचरणा] परम्परा का। इन्द्रिय। जिसका ग्रहण किया जाय वह, रिवाज ।
ग्राह्य वस्तु । कारण, हेतु । आदि, प्रथम । आयरणा स्त्री [आचरणा] आचरण, अनु- आयाण न [आदान] संयम, चरित्र । वि. ष्ठान ।
आदेय, उपादेय । °पय न [°पद] ग्रन्थ का आयरिय वि [आचरित] अनुष्ठित, विहित, प्रथम शब्द । कृत । न. शास्त्र-सम्मत चाल-चलन ।
आयाण न [आयान] आगमन । अश्व का एक आयरिय पुं [आचार्य] गण का नायक, आभरण-विशेष । मुखिया । उपदेशक, गुरू, शिक्षक । अर्थ पढ़ाने । आयाम सक [आ+यमय] लम्बा करना । वाला।
___ आयाम सक [आ + यम्] शुद्धि करना । आयरिस देखो आयंस ।
आयाम सक [दा] देना, दान करना । आयल्ल अक [लम्ब] व्याप्त होना । लटकना। आयाम पुं. लम्बाई, दैर्घ्य । आयल्लया स्त्री [दे] बेचैनी । देखो आअल्ल । आयाम पुं [दे] बल ।
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११६
आयाम न [आचाम्ल] तपो विशेष | थायम्बिल |
आयाम न आदि का पानी ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[आचाम] अवस्रावण, चावल
आयामणया स्त्री [आयामनता ] लम्बाई | आयामि वि [आयामिन् ] लम्बा । आयामुही स्त्री [आयामुखी ] इस नाम की एक नगरी ।
आयाय वि [आयात ] आया हुआ ।
आयार सक [ आ + कारय् ] बुलाना, आह्वान करना ।
आयार पुं [आकार] आकृति, रूप । इङ्गित, इशारा ।
आयार पुं [आकार ] 'अ' अक्षर | आयार पुं [आचार] आचरण, अनुष्ठान । चाल-चलन, रीत-भात । बारह जैन अङ्गग्रन्थों में पहला ग्रन्थ । निपुण शिष्य । क्खेवणी स्त्री [क्षेपणी] कथा का एक भेद । भंडग, 'भंडयन [ भाण्डक ] ज्ञानादि का उप
करण साधन ।
आयारिमय न [आचारिमक ] विवाह के समय दिया जाता एक प्रकार का दान । आयारियवि [आकारित] आहूत । न. आह्वान-वचन, आक्षेप वचन ।
आयाव सक [आ + तापय् ] सूर्य के ताप में शरीर को थोड़ा तपाना । शीत, आतप आदि को सहन करना ।
आयाव पुं [आताप] असुरकुमार जातीय देवविशेष |
आयाव पुं [आताप] आतप नामकर्म । आयावग वि [ आतापक] शीत आदि को सहन करनेवाला |
आयावण न [आापन ] एक बार या थोड़ा आतप आदि को सहन करना । भूमि स्त्री. शीतादि सहन करने का स्थान । आयावल आयावलय
पुं [दे] सबेर का तड़का,
बालातप ।
आयाम - आरंभ
आयास सक [ आ + यासय् ] तकलीफ देना, खिन्न करना ।
आयास पुं. तकलीफ, परिश्रम, खेद । परिग्रह, असन्तोष । 'लिवि स्त्री ['लिपि] लिपिविशेष |
आयास देखो आयंस ।
आयास देखो आगास । तिलय न [तिलक] नगर- विशेष । आयासइत्तिअ वि [आयासयितृ] तकलीफ देनेवाला |
आयासतल न [आकाशतल ] चन्द्रशाला, घर के ऊपर को खुली छत । आयासतल न [दे] प्रासाद का पृष्ठ भाग । आयासलव न [ दे] नीड़ ।
आयाम्म वि [आत्मघ्न] आत्मविनाशक । न. आधाकर्म दोष ।
आयाहिण न [आदक्षिण] दक्षिण पार्श्व से भ्रमण करना | पाहिण वि [' प्रदक्षिण] दक्षिण पार्श्व से भ्रमण कर दक्षिण पार्श्व में स्थित होनेवाला | पयाहिणा स्त्री [' प्रदक्षिणा ] दक्षिण पार्श्व से परिभ्रमण, प्रदक्षिणा ।
आयु देखो आउ = आयुष् ।
आर पुं. इह लोक, यह जन्म । मनुष्यलोक । नुकीली लोहे की कील | न. गृहस्थपन । आर पुं. मंगल ग्रह | चौथा नरक का एक नरकावास | वि. पूर्व का 'आरअवि [कारक ] कर्ता :
आरओ अ [आरतस्] पूर्व, पहले । समीप में, शुरू करके, पीछे से ।
आरंदर वि [] अनेकान्त । संकट, व्याप्त । आरंभ सक [ आ + रभ्] शुरू करना । हिंसा
करना ।
आरंभ पुं [आरम्भ] शुरूआत, प्रारम्भ । जीवहिंसा, वध । जीव, प्राणी । पाप कर्म । य वि [ज] पाप-कार्य से उत्पन्न । विजय पं
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आरंभग-आराह
[विनय ] आरम्भ का अभाव । [विनयन्] आरम्भ से विरत । आरंभग पुं [आरम्भक] ऊपर आरंभय वि. शुरू करनेवाला । हिंसक पाप-कर्म करनेवाला ।
देखो ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विणइ वि । आरत्तिय न [आरात्रिक] आरती । आरद्ध वि [ आरब्ध] शुरू किया हुआ (काल) |
आरंभि पुं [दे] माली । आरंभिया स्त्री [आरम्भिकी] हिंसा से सम्बन्ध रखनेवाली क्रिया । हिंसक क्रिया से होनेवाला कर्म-बन्ध |
आरक्खग वि [आरक्षक ] रक्षण करनेवाला | त्राता । पुं. क्षत्रियों का एक वंश । वि. उस वंश में उत्पन्न ।
आरक्खि वि [आरक्षिन् ] रक्षक, त्राता । आरविखग आरविख
वि
[आरक्षिक ] रक्षक, त्राता । पुं. कोतवाल । आरज्झ सक [ आ + राध्] आराधन करना । आरज्झवि [आराध्य ] पूज्य, माननीय | आरड सक [ आ + रट् ] चिल्लाना । रोना । आरडिअन [दे] विलाप, क्रन्दन । वि. चित्रयुक्त
आरण पुं. देवलोक - विशेष । उस देवलोक का निवासी देव । पुंन. एक देवविमान । आरण न [ दे] होठ । फलक ।
आरणाल न [आरनाल ] कांजी, साबूदाना । आरणाल न [ दे] कमल ।
आरण्ण वि [आरण्य] जंगली, जंगल-निवासी । आरण्णग
आरण्णय
fa [आरण्यक ] जंगली, जंगलनिवासी, जंगल में उत्पन्न । न. शास्त्र - विशेष, उपनिषद् - विशेष | आरण्णय वि [ आरण्यक ] जंगल में बसने -
वाला (तापस आदि) । आरत वि. थोड़ा रक्त । अत्यन्त अनुरक्त ।
आरंभ देखो आरंभ = आ + रभु । आरभड न [आरभट ] नृत्य का एक भेद । इस नाम का एक मुहूर्त्त । एक तरह की नाट्यविधि । भसोलन. नाट्यविधि-विशेष । आरभडा स्त्री [आरभटा] प्रतिलेखना विशेष । आरक्ख वि [आरक्ष] रक्षण करनेवाला । पुं. आरभिय न [आरभित] नाट्यविधि-विशेष । आरयवि [आरत] उपरत | अपगत । आरय वि [आरत] उपरत, सर्वथा निवृत्त । आरव पुं. शब्द, आवाज, ध्वनि ।
आरक्ख न [आरक्ष्य ] कोतवाल का ओहदा, कोतवाली, आरक्षकता ।
कोतवाल |
1
आरद्ध वि [दे] बढ़ा हुआ । सतृष्ण, उत्सुक । घर में आया हुआ ।
आरब देखो आरव ।
११७
आरव पु [आरब] इस नाम का एक प्रसिद्ध म्लेच्छ-देश | वि. अरब देश में उत्पन्न, अरब देश का निवासी ।
आरविंद वि [आरविन्द ] कमल-सम्बन्धी । आरस सक [ आ + रस् ] चिल्लाना, बूम
मारना ।
आरसिय पुं' [आदर्श ] दर्पण | आरह देखो आरभ ।
अरहंत आरतिय
वि [ आर्हत] अर्हन् का, जिनदेव सम्बन्धी |
आरा स्त्री. लोहे की सलाई, पैने में डाली जाती लोहे की खीली ।
आरा अ [आरात् ] अर्वाक्, पहले । पूर्व-भाग । आइवि [] गृहीत, स्वीकृत । प्राप्त । आराडि स्त्री [आराटि] चीत्कार, चिल्लाहट । आराडी स्त्री [दे] देखो आरडिअ । आराम पुंन. बगीचा, उपवन । आरामिअ पुं [आरामिक ] माली । आराव पु [आराव ] शब्द, आवाज । आराह सक [ आ + राधय् ] सेवा करना, भक्ति करना । ठीक-ठीक पालन करना ।
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११८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आराह-माल आराह वि [आराध्य] आराधन-योग्य । आरेइअ वि [दे] मुकुलित, संकुचित । भ्रान्त । आराहग वि [आराधक] आराधन करने | मुक्त । रोमाञ्चित । वाला । मोक्ष का साधक ।
आरेण अ. समीप । पहले । प्रारम्भ कर । आराहण न [आराधन] सेवना । अनशन । आरोअ अक [उत् + लस्] विकसित होना, आराहणा स्त्री [आराधना] आवश्यक, साम- उल्लास पाना। यिक आदि षट्-कर्म।
आरोअणा देखो आरोवणा। आराहणी स्त्री [आराधनी] भाषा का एक
आरोइअ [दे] देखो आरेइअ।
आरोग्ग सक [दे] भोजन करना। प्रकार।
आरोग्ग न [आरोग्य] एकासन तप । आराहिय वि [आराधित] सेवित, परि
आरोग्ग न [आरोग्य] नीरोगता। वि. रोगपालित । अनुरूप, योग्य ।
रहित । पुं. एक ब्राह्मणोपासक का नाम । आरिट्ठ वि [दे] गत, गुजरा हुआ ।
आरोग्गरिअ वि [दे] रँगा हुआ। आरिय न [आऋत] आगमन ।
आरोद्ध वि [दे] प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ। गृहागत । आरिय देखो अज्ज = आर्य । आरिय वि [आरित] सेवित ।
आरोय न [आरोग्य] क्षेम, कुशल । नीरो
गता। आरिय वि [आकारित] आहत । आरिया देखो अज्जा = आयी ।
आरोल सक [पुञ्ज] एकत्र करना । आरिल्ल वि [दे] पहले जो उत्पन्न हुआ हो ।
आरोव सक [आ+रोपय्] ऊपर चढ़ाना,
ऊपर बैठाना । स्थापन करना । आरिस वि [आर्ष] ऋषि-सम्बन्धी ।
आरोवण न [आरोपण] ऊपर चढ़ाना । आरिहय देखो आरहंत ।
सम्भावना। आरुग्ग देखो आरोग्ग - आरोग्य ।
आरोवणा स्त्री [आरोपणा] ऊपर चढ़ाना। आरुट्ठ वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, रुष्ट ।
प्रायश्चित्त-विशेष । प्रारूपणा, व्याख्या का एक आरुण्ण (अप) सक [ आ + श्लिष् ] आलि- |
प्रकार । प्रश्न, पर्यनुयोग। ङ्गन करना। आरुभ देखो आरुह = आ + रुह ।
आरोस पुं [आरोष] म्लेच्छ देश-विशेष । वि. आरुवणा देखो आरोवणा।
उस देश का निवासी। आरुस सक [ आ + रुष ] क्रोध करना. रोष | आरोसिअ वि [आरोषित] कोपित, रुष्ट किया करना।
हुआ। आरुह सक [आ + रुह ] ऊपर चढ़ना,
आरोह सक[आ + रुह.]ऊपर चढ़ना, बैठना । ऊपर बैठना।
आरोह सक [ आ + रोहय् ] ऊपर चढ़ाना । आरुह वि [आरुह] उत्पन्न, उद्भूत, जात । आरोह पुं. सवार । हाथी, घोड़ा आदि पर आरुहण न [आरोहण] आरोपण, ऊपर चढ़नेवाला । ऊँचाई । लम्बाई । चढ़ाना ।
आरोह पुं [दे] स्तन, थन, चूंची। आरुहिय वि [आरोपित] स्थापित । ऊपर आरोहग वि [आरोहक] सवार होनेवाला । बैठाया हुआ।
हाथी का रक्षक । आरुहिय । वि [आरूढ] ऊपर चढ़ा हुआ। आल न [दे] अनर्थक । आरूढ कृत, विहित ।
आल न [दे]छोटा प्रवाह । वि. मृदु । आगत ।
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आल-आलि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आल न. दोषारोपण ।
| आलद्ध वि [आलब्ध] संसृष्ट । संयुक्त । °आल देखो काल।
स्पृष्ट, छुआ हुआ। मारा हुआ। °आल देखो जाल।
आलप्प वि [आलाप्य] कहने के योग्य, निर्वच°आल देखो ताल।
नीय । आलइअ वि [आलगित] यथास्थान स्थापित, आलभ सक [आ + लभ्] प्राप्त करना । योग्य स्थान में रखा हुआ।
आलभण न [आलभन] विनाशन । आलइअ वि [आलयिक गृही, आश्रयवाला । आलभिया स्त्री [आलभिका] नगरी-विशेष । आलइय वि [आलगित] पहना हुआ। आलय पुन. घर, स्थान । आलंकारिय वि [आलङ्कारिक] अलंकार- आलय पुन. बौद्धदर्शन-प्रसिद्ध विज्ञान-विशेष । शास्त्र-ज्ञाता। अलंकार-सम्बन्धी । अलंकार आलयण न [दे] शय्या-गृह । के योग्य ।
आलव सक [आ + लप्] कहना, बातचीत आलंकिअ वि [दे] पंगु किया हुआ।
करना । थोड़ा या एक बार कहना। आलंद न [आलन्द] समय का परिमाण- आलवाल न. कियारी, थाँवला । विशेष, पानी से भीजा हुआ हाथ जितने | आलस वि. आलसी, सुस्त । °त्त न [°त्व] समय में सूख जाय उतने से लेकर पाँच अहो- आलस, सुस्ती। रात्र तक का काल ।
आलसिय वि [आलसित] आलसी, मन्द । आलंदिअ वि [आलन्दिक] उपर्युक्त समय का आलसुय देखो आलसिय। उल्लंघन न कर कार्य करनेवाला ।
आलस्स पुंन [आलस्य सुस्ती । आलंब सक [आ + लम्ब्] आश्रय करना, आलाअ देखो आलाव । सहारा लेना।
आलाण देखो आणाल। आलंब न [दे] भूमि-छत्र, वनस्पति-विशेष जो | आलाणिय वि [आलानित] नियन्त्रित, मजवर्षा में होता है।
बूती से बाँधा हुआ। आलंबण न [आलम्बन] आश्रय, आधार, आलाव पुं [आलाप] सम्भाषण, बातचीत । जिसका अवलम्बन किया जाय वह । कारण, अल्प भाषण । प्रथम भाषण । एक बार की हेतु, प्रयोजन ।
उक्ति। आलंभिय न [आलम्भिक] नगर-विशेष । आलावक देखो आलावग। भगवती सूत्र के ग्यारहवें शतक का बारहवाँ
आलावग पुं [आलापक] परिच्छेद, ग्रन्थ का उद्देश।
अंश-विशेष । आलंभिया स्त्री [आलम्भिका] नगरी-विशेष ।
आलावण न [आलापन] बाँधने का रज्जु आलक्क पुं [दे] पागल कुत्ता। आलक्ख सक [आ+लक्षय] जानना । चिह्न
आदि साधन, बन्धन-विशेष । °बंध पुं से पहिचानना।
[°बन्ध] बन्ध-विशेष । आलग्ग वि [आलग्न] लगा हुआ, संयुक्त ।
आलावणी स्त्री [आलापनी] वाद्यविशेष । आलत्त वि [आलपित] सम्भाषित, आभा
आलास पुं[दे] बिच्छू । षित ।
आलाहि देखो अलाहि। आलत्तय देखो अलत्त।
आलि पुं[अलि] भ्रमर । आलत्थ पुं[दे] मोर।
| आलि देखो आली।
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१२०
अलि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष - आलिंग-आलोअ आलिंग सक [आ + लिङ्ग] आलिङ्गन , आली स्त्री. पंक्ति, श्रेणी। सखी। वनस्पतिकरना।
विशेष । आलिंग पुं [आलिङ्ग] वाद्य-विशेष । आलीढ वि [आलीढ] आसक्त । न. आसनआलिंग वि [आलिङ्ग्य] आलिङ्गन करने | विशेष । योग्य । पुं. वाद्य-विशेष ।
आलीढ पुन. योद्धा का युद्ध समय का आसनआलिंगण न [आलिङ्गन आलिंगन, भेंट । | विशेष ।
वट्टि स्त्री [°वृत्ति] गाल या कपोल का आलाण वि [आलीन लीन, आसक्त, तत्पर । उपधान-तकिया, शरीर-प्रमाण उपधान । आलिंगणिया स्त्री [आलिङ्गनिका] देखो | आलीयग वि [आदीपक जलानेवाला, आग आलिंगणवट्टि।
सुलगानेवाला। आलिंगिणी स्त्री [आलिङ्गिनी] जानु आदि
आलील न [दे] समीप का भय । के नीचे रखने का तकिया ।
आलीवग देखो आलीयग । आलिंद पुं [आलिन्द] बाहर के दरवाजे के
आलीवण न [आदोपन] आग लगाना । चौकटे का एक हिस्सा ।
आलीविय वि [आदोपित] आग से जलाया
। हुआ। आलिंप सक [आ + लिप्] पोतना, लेप
आलु पुन. कन्द विशेष । करना। आलिंपण न [आलेपण] लेप करना, विले
आलुई स्त्री [आलुको] वल्ली विशेष ।
आलुंख सक [दह] जलाना, दाह देना । पन । जिसका लेप होता है वह चीज ।
आलुंख सक [स्पृश्] छूना । आलिगा देखो आवलिआ। आलित्त न [आलित्र] जहाज चलाने का काष्ठ
आलुंघ सक [स्पृश्] छूना । विशेष ।
| आलुंप सक [आ +लुम्प्] हरण करना। आलित्त वि [आलिप्त] खरण्टित, खरड़ा
आलुप वि. अपहारक। हुआ । लिपा हुआ।
आलुगा स्त्री [दे] घटी, छोटा घड़ा। आलित्त वि [आदीप्त] चारों ओर से जला | आलुयार वि [दे] निरर्थक, व्यर्थ । हुआ । न. आग लगनी, आग से जलना।। आलेक्ख । वि [आलेख्य] चित्रित । आलिद्ध वि [आश्लिष्ट] आलिंगित ।
आलेक्खिय। आलिद्ध वि [आलीढ] आस्वादित । आलेलृ । आसिलिस का हेकृ. । आलिसंदग पुं [दे. आलिसन्दक] धान्य- आले/अं। विशेष ।
आलेव पुं [आलेप] विलेपन, लेप । आलिसिंदय पुं[दे.आलिसिन्दक] ऊपर देखो। आलेसिय वि [आश्लेषित] आलिंगन कराया आलिह सक [स्पृश्] छूना । आलिह सक [आ + लिख्] विन्यास करना, | आलेह पुं [आलेख] चित्र । स्थापन करना। चित्र करना, चितरना या | आलोअ सक [आ + लोक] देखना, विलोकन चित्र बनाना।
करना। आली सक [आ + ली] लीन होना, आसक्त | आलोअ सक [आ+लोच] देखाना। गुरू होना । आलिंगन करना । निवास करना। | को अपना अपराध कह देना। विचार
हुआ।
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आलोअ-आवडिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१२१ करना । आलोचना करना ।
| आवइ स्त्री [आपद्] आपत्ति । आलोअ पुं [आलोक] तेज, प्रकाश । विलोकन, आवंग पुं[दे] अपामार्ग, वृक्ष-विशेष,लटजीरा । अच्छी तरह देखना । पृथ्वी का समान-भाग । आवंडु वि [आपाण्ड] थोड़ा सफेद, फोका । गवाक्षादि प्रकाशस्थान । जगत्, संसार । आवंडुर वि [आपाण्डुर] ऊपर देखो । ज्ञान ।
आवंत देखो जावंत । आलोअग । वि [आलोचक] आलोचना | आवग्गण न [आवल्गन] अश्व पर चढ़ने की आलोअय ) करनेवाला ।
कला। आलोअण न [आलोकन] विलोकन, दर्शन, | आवच्चेज वि [अपत्यीय] अपत्य-स्थानीय । निरीक्षण ।
आवज देखो आओज्ज । आलोअणा स्त्री [आलोचना] देखना, आवज अक [अ + पद्] प्राप्त होना, लागु बतलाना । प्रायश्चित्त के लिए अपने दोषों को होना। गुरू को बता देना । विचार करना। आवज सक [आ + वजं] सम्मुख करना । आलोइत्तु वि [आलोकयित] देखने वाला, प्रसन्न करना। द्रष्टा ।
आवज सक [आ + पद्] प्राप्त करना । - आलोइल्ल वि [आलोकवत्] प्रकाश-युक्त। आवज्ज वि [आवर्ज] प्रीत्युत्पादक । आलोग देखो आलोअ = आलोक । 'नयर आवजण न [आवर्जन] सम्मुख करना । न [°नगर नगर-विशेष ।
प्रसन्न करना। उपयोग, ख्याल । उपयोगआलोच देखो आलोअ = आ + लोच् । विशेष । व्यापार-विशेष । आलोड सक [आ + लोडय] हिलोरना, मन्थन | आवजिय वि [आवजित] प्रसन्न किया हमा। करना।
अभिमुख किया हुआ। करण न. व्यापारआलोयण न [आलोकन] गवाक्ष ।
विशेष । आलोल सक. देखो आलोड।
आवज्जिय देखो आउजिय = आतोधिक । आलोव सक [आ+ लोपय] आच्छादित | आवजीकरण न [आवर्जीकरण] उपयोगकरना।
विशेष या व्यापार-विशेष का करना, उदीरआलोव देखो आलोअ = आलोक ।
णावलिका में कर्म-प्रक्षेप रूप व्यापार । आव वि [यावत्] जितना।
आवट्ट अक [आ + वृत्] चक्र की तरह धूमना, आव अ [यावत्] जब तक, जब लग। कह |
फिरना । विलीन होना । सक. शोषण करना, वि [°कथ] देखो कहिय । °कहं अ
सुखाना । पीड़ना, दुःखी करना । [कथम्] यावज्जीव । कहा स्त्री [कथा] | आवट्ट देखा आवत्त ।। जीवन-पर्यन्त । कहिय वि [कथिक] | आवट्टिआ स्त्री [दे] नवोढ़ा । परतन्त्र स्त्री। यावज्जीविक, जीवन-पर्यन्त रहनेवाला। | आवड देखो आवत्त-आवर्त । आव पुं [आप] प्राप्ति, लाभ । जल का समूह । | आवड सक [आ + पत्] पास में आना, 'बहुल न. देखो आउ-बहुल ।
आगमन करना । आ लगना। गिरना । आव सक [आ + या] आना, आगमन करना। | आवणवीहि स्त्री [आपणवोथि] हट्ट-मार्ग, आवआस सक [उप + गूह] आलिंगन | बाजार । रथ्या-विशेष, एक तरह का मुहल्ला। करना ।
| आवडिअ वि [दे] संगत, सम्बद्ध । सार,
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१२२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आवण-आवा मजबूत ।
आवर सक [आ + वृ] आच्छादन करना। आवण पुं [आपण] हाट । बाजार । आवरण न. ढकनेवाला, तिरोहित करनेवाला । आवणिय पुं [आपणिक] गौदागर, व्यापारी। वास्तु-विद्या। आवण्ण वि [आपन्न] आपत्ति-युक्त । प्राप्त । | आवरिसण न [आवर्षण] सिंचन । सुगन्ध जल °सत्ता स्त्री [सत्त्वा] गर्भवती स्त्री। की वृष्टि । आवण्ण वि [आपन्न] आश्रित ।
आवरेइया स्त्री [दे] करिका, मद्य परोसने का आवत्त सक [आ + वृत्] आना ।
पात्र-विशेष । आवत्त अक [आ + वृत्] परिभ्रमण करना। आवलण न [आवलन] मोड़ना। बदलना। चक्राकार घूमना । सक. पठित आवलि स्त्री. पङ्क्ति । पु. एक विद्यार्थी का पाठ को याद करना । घुमाना।
नाम। आवत्त पुं [आवत्तं] चक्राकार परिभ्रमण । आवलिआ स्त्री [आवलिका] श्रेणी । परिमुहूर्त विशेष । महाविदेह क्षेत्रस्थ एक विजय | पाटो । समय-विशेष, एक सूक्ष्म काल-परि(प्रदेश) का नाम । एक खुरवाला पशु विशेष ।
माण । 'पविट्ठ वि [प्रविष्ट] श्रेणी से व्यवएक लोकपाल का नाम । पर्वतविशेष । मणि
स्थित । 'बाहिर वि [बाह्य] विप्रकीर्ण, का एक लक्षण । ग्राम-विशेष । शारीरिक
श्रेणि-बद्ध नहीं रहा हुआ। चेष्टा-विशेष, कायिक व्यापार-विशेष । कूड | आवलिय वि [आवलित] वेष्टित । न [°कूट] पर्वत-विशेष का शिखर-विशेष । आवली स्त्री. पंक्ति । रावण की एक कन्या
यंत बक ["यमान] दक्षिण की तरफ | __ का नाम । चक्राकार घूमनेवाला।
आवस सक [आ + वस्] रहना, वास करना। आवत्त पुंन [आवर्त] एक तरह का जहाज ।
आवसह पुं [आवसथ] घर, आश्रय, स्थान । न. लगातार २५ दिनों का उपवास ।
मठ, संन्यासियों का स्थान । आवत्त न [आतपत्र छत्र, छाता। आवमहिय पं [आवसथिक] गृहस्थ, गृही। आवत्तण न [आवर्त्तन] सक्राकार भ्रमण ।। संन्यासी।
पेढ़िया स्त्री [°पीठिका] पीठिका-विशेष । आवसिय । वि [आवश्यक] अवश्य कर्त्तव्य, आवत्तय पुं [आवर्तक] देखो आवत्त । वि. आवस्सग जरूरी । न. सामयिकादि धर्माचक्राकार भ्रमण करनेवाला।
आवस्सय 'नुष्ठान, नित्य-कर्म । जैन ग्रन्थआवत्ता स्त्री [आवर्ता] महाविदेह-क्षेत्र के | विशेष, आवश्यक सूत्र । °णुओग पुं [°ानुएक विजय (प्रदेश) का नाम ।
योग] आवश्यक सूत्र की व्याख्या । आवत्ति स्त्री [आपत्ति] दोप-प्रसंग । कष्ट ।। आवस्सय पुन [ आपाश्रय ] ऊपर देखो। उत्पत्ति ।
आश्रय । आवत्ति स्त्री [आपत्ति प्राप्ति ।
आवस्सिया स्त्री [आवश्यकी] सामाचारीआवदि स्त्री [आवृति] आवरण ।
विशेष, जैन साधु का अनुष्ठान-विशेष । आवय पु [आवर्त] देखो आवत्त। .
आवह सक [ आ+वह ] धारण करना, आवय देखो आवड।
वहन करना। आवया स्त्री [आपगा] नदी।।
आवह वि. धारण करनेवाला । आवया स्त्री [आपद्] विपद्, ख । | आवा सक [आ+पा] पीना । भोग में लाना,
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आवाइया-आविहू
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी काष
१२३
दृष्टा ।
उपभोग करना।
| आवाहण न [आवाहन] आह्वान । आवाइया स्त्री [आवापिका] प्रधान होम । | आवाहिय वि [आवाहित] बुलाया हुआ, आवाग पु [आपाक] आवा, मिट्टी के पात्र आहुत । मदद के लिए बुलाया हुआ देव या पकाने का स्थान ।
देवाधिष्ठित वस्तु । आवाड पु [आपात] भीलों की एक जाति । आवि न दे]प्रसव-पोड़ा । वि. नित्य, शाश्वत । आवाणय न [आपाणक] दूकान । आवाय पुन [आपात] अभ्यागम, आगमन ।
आवि अ [चापि समुच्चय द्योतक अव्यय । आवाय देखो आवाग।
आवि अ [आविस्) प्रकटता-सूचक अव्यय । आवाय पुं [आपात] प्रारम्भ । प्रथम मिलन ।।
आविअ सक [आ+पा] पीना। तुरन्त । पतन । सम्बन्ध, संयोग ।
आविअ वि [आवृत्त] आच्छादित । आवाय पुं [आवाप] आवा, मिट्टी के पात्र
| आविअ पुंदे] इन्द्र गोप, क्षुद्र कोट-विशेष । पकाने का स्थान। आलवाल । प्रक्षेप,
वि. मथित, आलोडित । प्रोत । फेंकना । शत्रु की चिन्ता । बोना, वपन । आविअ वि [आविच] अविच-देशोत्पन्न । आवायण न [आपादन] सम्पादन ।
आविअज्झा स्त्री [दे] दुलहिन । पराधीन स्त्री। आवाल देखो आलवाल।।
आविध सक [आ+ व्यध्] विंधना । पहनना । आवाल ) न [दे] जल के निकट का | मन्त्र से अधीन करना। आवालय । प्रदेश ।
| आविकम्म पुंन [आविष्कर्मन्] प्रकटरूप से आवाव देखो आवाय = आवाप । कहा स्त्री किया हुआ काम । [कथा] रसोई सम्बन्धी कथा, वि. कथा- आविग वि [आविग्न] उद्विग्न, उदासीन । विशेष ।
आविट्ठ वि [आविष्ट] आवृत, व्याप्त । प्रविष्ट । आवास पुं. वास-स्थान । निवास, अवस्थान,
अधिष्ठित, आश्रित । भूत आदि के उपद्रव से रहना । नीड । पड़ाव । पन्वय पुं [°पवंत
आविद्ध वि [आविद्ध] परिहित, पहना हुआ । रहने का पर्वत ।
आविद्ध वि [दे] क्षिप्त, प्रेरित । आवास । देखो आवस्सय = आवश्यक ।
आविब्भाव पुं [ आविर्भाव ] उत्पत्ति । आवासगी आवासणिया स्त्री [आवासनिका] आवास
प्रादुर्भाव, अभिव्यक्ति ।
आविब्भूय वि [आविर्भूत] उत्पन्न । प्रादुर्भूत । स्थान ।
अभिव्यक्त । आवासय न [आवासक] आवश्यक, जरूरी ।
आविल वि. मलिन, अस्वच्छ । आकुल, व्याप्त । नित्य-कर्तव्य धर्मानुष्ठान । पुं. नीड़ । वि.
आविलिअ वि [दे] कुपित, क्रुद्ध ।। संस्काराधायक, बासक । आच्छादक।
| आविलुपिअ वि [आकाङ्क्षित] अभिलषित । आवाह सक [आ + वाहय्] सान्निध्य के लिए | आविम
आविग सक[आ + विश्]प्रवेश करना,घुसना । देव या देवाधिष्ठित चीज को बुलाना । बुलाना । | आविस अक [आ + विश्] सम्बद्ध होना, युक्त आवाह पुं [आबाध] पीड़ा, बाधा ।
होना । सक. उपभोग करना, सेवना । आवाह पुं. नव-परिणीता वधू को वर के घर | आविहव अक [आविर् + भू] प्रकट होना । लाना । विवाह के पूर्व किया जाता पान देने उत्पन्न होना । का एक उत्सव ।
| आविहूअ देखो आविब्भूय ।
युक्त।
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१२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आवी-आसंघ आवी देखो आवि = आविस् । °कम्म देखो | आस अक [आस्] बैठना । आविकम्म।
| आस पुं [अश्व] अश्व । अश्विनी नक्षत्र का आवीअ वि [आपीत] पीत । शोषित ।
अधिष्ठायक देव । अश्विनी नक्षत्र । मन, चित्त। आवीइ वि [आवीचि] निरन्तर, अविच्छिन्न । °कण्ण पुं [कर्ण] एक अन्तर्वीप । उसका °मरण न. मरण-विशेष ।
निवासी। ग्गीव पुं [°ग्रीव] एक प्रसिद्ध आवीकम्म न [आविष्कमन्] उत्पत्ति । अभि- राजा, पहला प्रतिवासुदेव । 'तर पुं. खच्चर । व्यक्ति।
त्थाम पुं[स्थामन्] द्रोणाचार्य का प्रख्यात आवीड सक [आ + पीड्] पीड़ना । दबाना । पुत्र । °द्धअ पुं [ध्वज] विद्याधर वंश का आवीण न [आपीन] स्तन ।
एक राजा। धम्म पुं[°धर्म] देखो पूर्वोक्त आवील देखो आमेल = आपीड ।
अर्थ । धर वि. अश्वों को धारण करनेवाला । आवील देखो आवीड।
°पुर न. नगर-विशेष । पुरा, °पुरी स्त्री आवीलण न [आपीडन] समूह, निचय ।
[°पुरी] नगरी-विशेष । मक्खिया स्त्री आवुअ ' [आवुक] नाटक की भाषा में पिता। [°मक्षिका] चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष । आवुण्ण वि [आपूर्ण] भरपूर ।
°मद्दग, मद्दय पुं [°मर्दक] अश्व का मर्दन आवुत्त पुं [दे] भगिनी-पति ।
करनेवाला । "मित्त पुं [मित्र]एक जैनाभास आवुद वि [आवृत] ढका हुआ ।
दार्शनिक, जो महागिरि के शिष्य कौण्डिन्य आवुदि स्त्री [आवृति] आवरण ।
का शिष्य था और जिसने सामुच्छेदिक पन्थ आवूर देखो आपूर - आ + पूरय ।
चलाया था । °मुह पुं [ मुख] एक अन्तर्वीप। आवेअ सक [आ + वेदय] विनति करना,
उसका निवासी । °मेह पुं ["मेघ] यज्ञनिवेदन करना । बतलाना ।
विशेष । °रह पुं [°रथ] घोड़ा-गाड़ी। °वार आवेअ पुं [आवेग] कष्ट, दुःख ।
पुं. घुड़-सवार । °वाहणियास्त्री[°वाहनिका] आवेउं (आवा का हेकृ.)।
घोड़े को सवारी । °सेण पुं[°सेन] भगवान् आवेड्ढिय वि [आवेष्टित] वेष्टित, घिरा
पार्श्वनाथ के पिता। पाँचवें चक्रवर्ती का हुआ।
पिता । 'रोह पुं[°रोह] घुड़-सवार । आवेड देखो आमेल।
आस पुंस्त्री [आश] भोजन । आवेढ पुं [आवेष्ट] वेष्टन । मण्डलाकार
आस पुं. फेंकना। करना।
आस न [आस्य] मुख । आवेयण न [आवेदन] निवेदन, मनो-भाव का
आसइ वि [आश्रयिन्] आश्रय-स्थित । प्रकाश-करण ।
आसंक सक [आ + शङ्क] सन्देह करना । आवेवअ वि [दे] विशेष आसक्त । प्रवृद्ध, | अक. भयभीत होना। बढ़ा हुआ।
आसंका स्त्री [आशङ्का] भय, वहम, संशय । आवेस सक [आ + वेशय्] भूताविष्ट करना । सम्भावना । आवेस पुं [आवेश] अभिनिवेश । जोश । भूत- आसंग पुं [दे] शय्या-गृह । ग्रह । प्रवेश ।
आसंग पुं [आसङ्ग] आसक्ति, अभिष्वंग। आवेसण न [आवेशन] शून्य-गृह ।
सम्बन्ध । रोग। आस देखो अस्स % अस्त्र ।
आसंघ सक [सं + भावय] सम्भावना करना ।
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आसंघ-आसस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
१२५ अध्यवसाय करना । स्थिर करना, निश्चय | उसके कक्षादि अंगों में जुड़कर सोनेवाला करना।
नपुंसक । आसंघ पुं [दे] श्रद्धा, विश्वास । अध्यवसाय, आसत्ति स्त्री[आसक्ति] अभिष्वङ्ग, तल्लीनता। परिणाम । आशंसा, इच्छा ।
आसत्थ पुं [अश्वत्थ] पीपल का पेड़ । आसंघा स्त्री [दे] इच्छा । आसक्ति । आसत्थ वि [आश्वस्त] आश्वासन-प्राप्त, आसंघिअ वि [दे] अध्यवसित । अवधारित । । स्वस्थ । विश्रान्त । सम्भावित ।
आसम [आश्रम] तापस आदि का निवास आसंजिअ वि [आसक्त] पीछे लगा हुआ। स्थान, तीर्थ स्थान । ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, बानआसंदय न [आसन्दक] आसन-विशेष । पुन. प्रस्थ और भैक्ष्य (संन्यास) ये चार प्रकार की मञ्च ।
अवस्था। आसंदाण न [आसन्दान] अवष्टम्भन, अव- | आसमपय न [आश्रमपद] तापसों के आश्रम रोध ।
से उपलक्षित स्थान । आसंदिआ स्त्री [आसन्दिका] छोटा मञ्च । । आसमि वि [आश्रमिन्] आश्रम में रहनेवाला, आसंदी स्त्री [आसन्दी] आसन-विशेष, मञ्च । ऋषि, मुनि वगैरह । आसंधी स्त्री [अश्वगन्धी] वनस्पति-विशेष ।। आसय अक [ आस् ] बैठना । आसंबर वि [आशाम्बर] दिगम्बर । जैन का आसय सक [आ + श्री] आश्रय करना, एक मुख्य भेद । उसका अनुयायी।
अवलम्बन करना । ग्रहण करना । आसंसइय वि [असंशयित] संशय-रहित । आसय पुं [आशक] खानेवाला । आसंस न [आशंस्] इच्छा करना, अभिलाषा आसय पुं [आश्रय | अवलम्बन । करना।
आसय पुं [आशय। मन, चित्त, हृदय । अभिआसक्खय पुं [दे] प्रशस्त पक्षि-विशेष, श्रीवद । प्राय। आसग देखो आस = अश्व ।
आसय न [दे] समीप । आसगलिअ वि [दे] आक्रान्त । प्राप्त ।
आसरिअ वि [दे] सम्मुख-आगत । आसज्ज अ [आसाद्य] प्राप्त करके ।
आसव अक [ आ + जु] धीरे-धीरे झरना, आसड पुं. विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का
टपकना। स्वनाम-ख्यात एक जैन ग्रन्थकार।
आसव सक [ आ + सु] आना। आसण न [आसन] जिसपर बैठा जाता है वह | आसव पुं [आश्रव] सूक्ष्म छिद्र । कर्मों का चौकी आदि । स्थान, जगह । शय्या । बैठना। प्रवेश-द्वार, जिससे कर्मबन्ध होता है वह हिंसा उपवेशन ।
आदि । वि. श्रोता, गुरु-वचन को सुननेवाला । आसणिय वि [आसनित] आसन पर बैठाया | °सक्कि वि [°सक्तिन्] हिंसादि में आसक्त । हुआ।
आसव पुं. दारू। आसण्ण न [आसन्न] समीप, वि. समीपस्थ । | आसवण न [दे] शय्या-धर । °वत्ति वि [वत्तिन्] नजदीक में रहनेवाला । | आसवाहिया स्त्री [अश्ववाहिका] अश्वआसत्त वि [आसक्त] लीन, तत्पर । नीचे |
क्रीडा। लगा हा । पुं. नपुंसक का एक भेद, वीर्य- आसस अक [ आ + श्वस् ] आश्वासन लेना, पात होने पर भी स्त्री का आलिंगन कर विश्राम लेना।
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१२६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आससण-आसिसा आससण न [आशसन] विनाश, हिंसा। | आसावि वि [आस्राविन्] झरनेवाला, आससा स्त्री [आशंसा] अभिलाषा।
सच्छिद्र । आसा स्त्री [आशा] उम्मीद । दिशा । उत्तर आसास सक [आ + शास्] आशा करना । रुचक पर बसनेवाली एक दिक्कुमारी, देवी- | आसास अक[आ+श्वासय]सान्त्वना करना । विशेष ।
| आसास पुं [आश्वास] आश्वासन । विश्राम । आसाअ सक [आ+सादय् ] स्पर्श करना ।। द्वीप-विशेष । आसाअ सक [आ+स्वाद् चखना।
आसास पुं [आश्वासक] विश्राम-स्थान, ग्रन्थ आसाअ सक [आ+सादय् ] प्राप्त करना ।
__ का अंश, सर्ग, परिच्छेद, अध्याय । वि. आसाअ सक [ आ+ शातय ] अवज्ञा करना, आश्वासन देनेवाला। अपमान करना।
आसासग पुं [आशासक बीजक-नामक वृक्ष । आसाअ पुं[आस्वाद] स्वाद, रस । तृप्ति । । आसासण न [आश्वासन] सान्त्वना । ग्रहों के आसाअ पु [आऽस्वाद] स्वाद का बिलकुल | देव-विशेष । एक महाग्रह । वि. आश्वासनअभाव ।
दाता। आसाअ देखो आसय = आथय ।
आसि सक [आ + श्रि] आश्रय करना । आसाअ पु[आसाद] प्राप्ति ।
आसि वि [आशिन्] खानेवाला, भोजक । आसाढ पु [आषाढ] आषाढ़ मास । एक | आसिअ वि [आश्विक] अश्व का शिक्षक । निह्नव, जो अव्यक्तिक मत का उत्पादक था। आसिअ वि [आशित] खिलाया हुआ। 'भूइ पु [भूति] एक प्रसिद्ध जैन मुनि । भोजित । आसाढा स्त्री [आषाढा नक्षत्र-विशेष ।
आसिअ वि [आसित उपविष्ट, बैठा हुआ । आसाढी स्त्री [आषाढी] आषाढ़ मास की
रहा हुआ, स्थित । पूर्णिमा । आषाढ़ मास की अमावस ।
आसिअ देखो आसित्त। आसादेत्तु वि [आस्वादयितु] आस्वादन | आसिअअ वि [दे लौह-निर्मित । करनेवाला।
आसिआ देखो [आसिका] बैठना, उपवेशन । आसामर पु [आशामर] सातवें वासुदेव और आसिआ देखो आसी = आशिष् । बलदेव के पूर्वभवीय धर्मगुरु का नाम। आसिंच सक [आ+ सिच्] सींचना । आसायण न [आशातन] नीचे देखो। आसिण वि [आशिन्] खानेवाला, भोक्ता । अनन्तानुबन्धि कषाय का वेदन ।
आसिण पुं [आश्विन] आश्विन मास । आसायणा स्त्री [आशातना] विपरीत वर्तन,
आसित्त वि [आसिक्त] थोड़ा सिक्त । सीचा अपमान, तिरस्कार।
हुआ। पुं. नपुंसक का एक भेद । आसार सक [आ + सारय] तन्दुरस्त करना, आसित्तिया स्त्री [दे] खाद्य-विशेष । वीणा को ठीक करना।
आसियावाय देखो आसीवाय। आसार पुं. समीकरण, वीणा को ठीक करना । | आसिल पुं एक महर्षि । वेग से पानी का बरसना ।
आसिलिट्ठ वि [आश्लिष्ट] आलिगित । आसालिय पुंस्त्री [आशालिक सर्प की एक | आसिलिस सक [आ + श्लिष्] आलिंगन जाति । स्त्री. विद्याविशेष ।।
करना। आसावल्ली स्त्री [आशापल्ली] एक नगरी। आसिसा देखो आसी = आशिप ।
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आसी-आहम्मिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१२७ आसी स्त्री [आशी] दाढ़ा । विस पुं[विष] आसेवणया) स्त्री [आसेवना] परिपालन, जहरीला साँप । पर्वत-विशेष का एक शिखर। आसेवणा विपरीत आचरण । अभ्यास । निग्रह और अनुग्रह करने में समर्थ, लब्धि- शिक्षा का एक भेद । विशेष को प्राप्त ।
आसेविय वि आसेवित] परिपालित । आसी स्त्री [आशिष] आशीर्वाद । °वयण न अभ्यस्त । आचरित । अनुष्ठित । [°वचन] आशीर्वाद । °वाय पुं [°वाद] आसोअ पुं [अश्वयुक्] आश्विन मास । आशीर्वाद ।
आसोअ वि [आशोक] अशोक वृक्ष-सम्बन्धी । आसीण वि [आसीन] बैठा हुआ।
आसोइया स्त्री दे. आसोतिका] ओषधिआसीवअ पुं [दे] दरजी।
विशेष । आसीसा देखो आसी = आशिष् । आसोई । स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन मास आसु पुन [अश्रु] आँसू ।
आसोया की पूर्णिमा । आश्विन मास की आसु । अ [आशु] शीघ्र। क्कार पुं| अमावस । आसं कार] हिंसा, मारना। मरने का आसोकंता स्त्री [आशोकान्ता] मध्यम ग्राम कारण । शीघ्र उपस्थित । °पण्ण वि [प्रज्ञ] | की एक मूर्च्छना। शीघ्र-बुद्धि । दिव्य-ज्ञानी, केवल-ज्ञानी। आसोत्थ पुं [अश्वत्थ] पीपल का पेड़ । आसुर वि. असुर-सम्बन्धी।
| आह सक [ ] कहना । आसुरत्त न [आसुरत्व] गुस्सा ।
आह सक [काङ्क्ष] इच्छा करना । आसूरिय पुं [आसुरिक] असुर, असुर रूप से | आहंडल देखो आखंडल । उत्पन्न । वि. असुर-सम्बन्धी।।
आहच्च न [दे] अत्यर्थ, बहुत । अ. शीघ्र । आसुरीय पुं [असुरीय] असुर-सम्बन्धी।
कदाचित् । उपस्थित होकर । व्यवस्था कर । आसुरुत्त वि [आशुरुप्त] शीघ्र-क्रुद्ध । अति | विभक्त कर । छीन कर । अन्यथा। निष्काकुपित ।
रण । भाव पुं. कादाचित्कता । आसुरुत्त वि [आसुरोक्त] अति-कुपित ।
आहवा स्त्री [आहत्या] प्रहार । आसुरुत्त वि [आशुरुष्ट] अति-कुपित ।
आहट्ट न दे] देखो आह? = दे । आसूणि न [आशूनिन्] बलिष्ठ-बनानेवाली आह? स्त्री [दे] पहेलियाँ। खुराक । रसायन-क्रिया।
आहड [आहृत] छीन लिया हुआ। चोरी आसूणी स्त्री [आशूनी] प्रशंसा ।
किया हुआ। सामने लाया हुआ, उपस्थापित । आसूणिय वि [आशू नित] थोड़ा स्थूल किया
| आहड न [दे] सुरत-शब्द । हुआ।
| आहण सक [आ-हिन्] आघात करना, आसूय न [दे] मनौती।
मारना। आसेअणय वि [आसेचनक] जिसको देखने से | आहण सक [आ + हन्] उठाना । मन को तृप्ति न होती हो वह ।
आहत्तहीय न [याथातथ्य] वास्तविकता । आसेव सक [आ+सेव्] सेवना। पालना। तथ्य-मार्ग-सम्यग्ज्ञान आदि । 'सूत्रकृताङ्ग' आचरना।
सूत्र का तेरहवां अध्ययन । आसेवण न [आसेवन] परिपालन, संरक्षण । | आहम्म सक [आ + हम्म्] आगमन करना । आचरण । मैथुन ।
आहम्मिअ वि [अधार्मिक] अधर्म सम्बन्धी।
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१२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आहम्मिय-आहि आहम्मिय वि [अधार्मिक] अधर्मी, पापी। आहातहिय वि [याथातथ्य] सत्य, वास्तआहय वि [आहत] आघात प्राप्त, प्रेरित। विक। आहय वि [आहृत] आकृष्ट, खींचा हुआ। | आहार सक [आ + हारय् खाना । छीना हुआ।
आहार पुं. खुराक । भक्षण । न. देखो आहाआहर सक [आ + ह] छीनना। चोरी | रग। °पज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] भुक्त करना । खाना।
आहार को खल और रस के रूप में बदलने आहर सक [आ + ह] लाना ।
की शक्ति । °पोसह पुं [पोषध] व्रत-विशेष, आहरण पुंन [आहरण] दृष्टान्त । आह्वान । जिसमें आहार का सर्वथा या आंशिक त्याग स्वीकार । व्यवस्थापन । आनयन ।
किया जाता है। °सण्णा स्त्री [°संज्ञा] आहरण पुंन [आभरण] अलंकार ।। आहार करने की इच्छा। आहरणा स्त्री [दे] नाक का खरखर शब्द । आहार पुं [आधार] आश्रय, अधिकरण । आहरिसिय वि [आधर्षित] तिरस्कृत । आकाश । अवधारण, याद रखना। आहल्ल (अप) अक [आ + चल] हिलना, | आहारग न [आहारक] शरीर-विशेष, चलना।
जिसको चौदह-पूर्वी, केवलज्ञानी के पास जाने आहल्ला स्त्री [आहल्या] विद्याधर-राज की के लिए बनाता है। वि. भोजन करनेवाला । एक कन्या ।
आहारक-शरीर-वाला। आहारक-शरीरआहव सक [आ + ह] बुलाना ।
उत्पन्न करने का जिसे सामर्थ्य हो वह । आहव पुं. युद्ध ।
जुगल न [°युगल] आहारक शरीर और आहवण । न [आह्वान] बुलाना । उसके अंगोपाङ्ग। °णाम न [°नामन्] आहव्वण । ललकारना ।
आहारक शरीर का हेतु-भूत कर्म । °दुग न आहव्व वि [आभाव्य] शास्त्रोक्त क्षेत्रादि । [°द्विक] देखो जुगल। आहव्वणी स्त्री [आह्वानी] विद्या-विशेष । आहारण वि. [आधारण] धारण करनेवाला । आहा सकं [आ+ ख्या] कहना ।
आधार-भूत । आहा सक [आ + धा] स्थापन करना। आहारण वि. आकर्षक । आहा स्त्री [आभा] तेज ।
आहारय देखो आहारग। आहा स्त्री [आधा] आश्रय । साधु के निमित्त | आहाराइणिया स्त्री [याथारानिकता] यथाआहार के लिए मनः-प्रणिधान । °कड वि ज्येष्ठ, ज्येष्ठानुक्रम । [कृत] आधा-कर्म-दोष से युक्त । कम्म न | आहारिम वि [आहाय] खाने योग्य । जल के [°कर्मन्] साधु के लिए आहार पकाना । साथ खाया जा सके ऐसा योग्य चूर्ण-विशेष । साधु के निमित्त पकाया हुआ भोजन, जो आहावणा स्त्री [आभावना] गणना का जैन साधुओं के लिए निषिद्ध है । कम्मिय वि अभाव । उद्देश्य । [कर्मिक] देखो पूर्वोक्त अर्थ ।
आहाविअ वि [आधावित] दौड़ा हुआ । आहाण न [आधान] स्थापन । स्थान,
आहाविर वि [आधावितृ] दौड़नेवाला । आश्रय ।
आहास देखो आभास = आ + भाषु । आहाण न [आख्यान] उक्ति । किंवदन्ती, आहाह अ. आश्चर्य-द्योतक अव्यय । कहावत ।
आहि पुंस्त्री [आधि] मन की पीड़ा ।
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आहिआइ-इ
आहिआइ स्त्री [आभिजाति ] कुलीनता,
खानदानी |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आहिआई स्त्री [अभिजातो ] कुलीनता । आहिंसक [आ + हिण्ड् ] जाना । परिश्रम
? वि [आहिण्डक] चलनेवाला,
आहु [आ + हु] दान करना, त्याग करना । आहुअ. अथवा, या ।
आहु पुं [दे] घूक, उल्लू ।
आइ व [आहोतृ] दाता, त्यागी ।
स्त्री [आहुति ] हवन, होम का पदार्थ,
इ
इ पुं. प्राकृत वर्णमाला का तृतीय स्वरवर्ण । वाक्यालङ्कार और पादपूर्ति में प्रयुक्त किया
१७
बलि ।
आहंदुर
आहुंदुरु
करना । घूमना ।
आहिंडग आडिय परिभ्रमण करनेवाला | आहिक्क न [आधिक्य ] अधिकता ।
सम्पूर्ण
आहिजा देखो आहिआइ । आहिजाई देखो आहिआई । आहितंsai[आहितुण्डिक ] गारुडिक, सपेरा । आहित्य वि [दे] चलित, गत । कुपित, क्रुद्ध | आकुल, घबड़ाया हुआ । द्धिवि [दे] रुद्ध | गलित । आत्तिन [आधिपत्य ] नेतृत्व । आहिय वि [आहित] निवेशित । हितकर । विरचित । ग्गि पुं [अग्नि] अग्निहोत्रीय ब्राह्मण | आहिय वि [आहित] व्याप्त । उत्पादित । प्रथित । सर्वथा हितकारी । आहिय व [आख्यात] प्रतिपादित, उक्त । हियार पुं [अधिकार ] अधिकार, सत्ता । आहिवत्त देखो आहिपत्त । आहिसारिअ वि [अभिसारित ] नायक - बुद्धि आहोअ देखो आभोग ।
आहे व [आधेय ] स्थाप्य । आश्रित । आहेर देखो आहीर | आहेवच्च न [आधिपत्य ] मुखियापन | आहेवण न [आक्षेपण] आक्षेप | क्षोभ उत्पन्न
करना ।
से गृहीत पति -बुद्धि से स्वीकृत । आहोअ देखो आभोय = आ + भोजय् । आहीर पुं. देश- विशेष । शूद्र जाति- विशेष, आहोइअ वि [आभोगित ] ज्ञात, दृष्ट |
अहीर । इस नाम का एक राजा ।
उपयोग ही
आहुस [ आ + हवे ] बुलाना ।
पुं [दे] बालक, बच्चा ।
विक्रय ।
आहुड न [ दे] सीत्कार गिरना ।
आहुण सक [ आ + धु] हिलाना । आहुणिय वि [आधुनिक ] आजकल का, नवीन । पुं. ग्रह - विशेष ।
आहुत न [ दे. अभिमुख ] सम्मुख । आहूअवि [ आहूत ] बुलाया हुआ । आहूअ पुं [आहूक ] पिशाच - विशेष | [आ] उत्पन्न ।
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आहोइअ वि [आभोगिक ] जिसका प्रयोजन हो वह ।
आहेड पुंन [आखेट] शिकार, मृगया । आहे व [आखेटक ] मृगया-सम्बन्धी | आहेण न [दे] विवाह के बाद वर के घर वधू के प्रवेश होने पर जो जिमाने का उत्सव किया जाता है वह ।
अक.
जाता अव्यय ।
इदेखो इइ ।
आहोड सक [ताsय् ] पीटना । आहोरण [आधोरण ] महावत । आहोहि वि [आधोवधिक] अवधि • आहो ज्ञानी का एक भेद, नियत क्षेत्र को अवधिज्ञान से देखनेवाला ।
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१३०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष इ सक. जाना । जानना।
अधिष्ठायक देव । ज्येष्ठा नक्षत्र का अधिष्ठायक इअहरा देखो इयरहा।
देव । उन्नीसवें तीर्थंकर के एक स्वनामख्यात इइ अ [इति] इन अर्थों का सूचक अव्यय- गणधर । सप्तमी तिथि । मेघ, वर्षा । न. देवसमाप्ति । अवधि । परिमाण । निश्चय । हेतु ।। विमान-विशेष । °इ पु [°जित्] इस नाम एवम, इस तरह । देखो इति।।
का राक्षस वंश का एक राजा, एक लंकेश । इओ अ [ इतस् ] इससे, इस कारण । इस रावण के एक पुत्र का नाम । °ओव देखो तरफ । इस (लोक) में।
°गोव । °काइय पुं. [ कायिक] श्रीन्द्रिय इओअ अ [इतश्च] प्रसंगान्तर-सूचक अव्यय । जीव-विशेष । कोल पुं. दरवाजा का एक इंखिणिया स्त्री [दे. इङ्किनिका] निन्दा । अवयव । °कुंभ पु["कुम्भ] बड़ा कलश । इंखिणी स्त्री [दे. इङ्खिनी] ऊपर देखो। उद्यानविशेष । °केउ पु केतु] इन्द्र-ध्वज, इंगार , देखो अंगार । कम्म न [°कर्मन्] इन्द्र-यष्टि । °खील देखो °कील । °गाइय इंगाल कोयला आदि उत्पन्न करने का और देखो °काइय। गाह पु [°ग्रह] इन्द्रावेश, बेचने का व्यापार । °सगडिया स्त्री [°शक- किसी के शरीर में इन्द्र का अधिष्ठान, जो टिका] अंगीठी, आग रखने का बर्तन ।। पागलपन का कारण होता है। गोव पु इंगारडाह पुन [अङ्गारदाह] आवा, मिट्टी के | [गोप] वर्षा ऋतु में होनेवाला रक्त वर्ण का पात्र पकाने का स्थान ।
क्षुद्र जन्तु-विशेष । °ग्गह पु [°ग्रह] ग्रहइंगाल वि [आङ्गार] अङ्गार-सम्बन्धी ।
विशेष । °ग्गि पुं [°ग्नि] विशाखा नक्षत्र इंगालग देखो अंगारग।
का अधिष्ठायक देव । महाग्रह-विशेष । ग्गीव इंगालय देखो इंगालग।
पुं [°ग्रीव] ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष । °जसा इंगाली स्त्री दे] ईख का ट्वड़ा, गंडेरी।
स्त्री [ यशस्] काम्पिल्य नगर के ब्रहाराज इंगाली स्त्री [आङ्गारी] देखो इंगाल-कम्म।
की एक पत्नी। °जाल न. माया-कर्म, कपट । इंगिअ न [इङ्गित] इशाग, अभिप्राय के जालि वि [°जालिन्] मायावी, बाजीगर । अनुरूप चेष्टा । ज, ण, °ण्णु वि []
°जुइण्ण पु [°द्युतिज्ञ] स्वनाम-ख्यात इक्ष्वाइशारे से समझनेवाला । मरण न. मरण
कुवंश का एक राजा । °ज्झय [ध्वज] विशेष ।
बड़ी ध्वजा। ज्झया स्त्री [ध्वजा] इन्द्र इंगिअजाणुअ देखो इंगिअज्ज ।
द्वारा भरतराज को दिखाई हुई अपनी दिव्य इंगिणी स्त्री [इङ्गिनी] मरण-विशेष, अनशन- अङ्गलि के उपलक्ष में राजा भरत से उस क्रिया-विशेष।
अङ्गलि के समान आकृति की की हुई स्थापना इंगुअन [इङ्गद] इंगुदी वृक्ष का फल ।
और उसके उपलक्ष में किया गया उत्सव । इंगुई } स्त्री [इङ्गदी] वृक्ष-विशेष । °णील पुन [°नील] नीलम, नीलमणि, रत्न
विशेष । 'तरु पुं. वृक्षविशेष, जिसके नीचे इंघिअ वि [दे] सूंघा हुआ।
भगवान् सम्भवनाथ को केवल-ज्ञान हुआ था। इंणर देखो किण्णर।
°त्त न [°त्व] स्वर्ग का आधिपत्य, इन्द्र का इंद पुं [इन्द्र] देवराज । श्रेष्ठ, प्रधान । परमे
असाधारण धर्म । राजत्व । प्राधान्य । °दत्त श्वर । जीव, आत्मा। ऐश्वर्य-गाली । विद्या- | पुं. इस नाम का एक प्रसिद्ध राजा । एक जैन धरों का प्रसिद्ध राजा । पृथ्वीकाय का एक | मुनि । °दिण्ण पुं [दिन] स्वनाम-ख्यात एक
इंगदी।
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इंद-इंदिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१३१ जैन आचार्य । °धणु न [ धनुष् ] शक्र-धनु, धणु। उह न [युध] इन्द्रधनु । सूर्य की किरण मेघों पर पड़ने से आकाश में | उहप्पभ पुं [Tयुधप्रभ] वानरद्वीप का एक जो धनुष का आकार दीख पड़ता है वह। राजा । "मअ पुं [°ामय] राजा इन्द्रायुधविद्याधर-वंश के एक राजा का नाम । प्रभ का पुत्र, वानर द्वीप का एक राजा । 'पाडिवया स्त्री [प्रतिपत्] कात्तिक (गुज- इंद पुंन [इन्द्र] एक देवविमान । राती आश्विन) मास के कृष्णपक्ष की पहली इंद वि [ऐन्द्र] इन्द्र-सम्बन्धी । न. संस्कृत का तिथि । 'पुर न. इन्द्र का नगर, अमरावती। एक प्राचीन व्याकरण । नगर-विशेष, राजा इन्द्रदत्त की राजधानी। इंदगाइ पुं [दे] साथ में संलग्न रहनेवाले
पुरग न [°पुरक] जैनीय वेशवाटिक गण | कीट-विशेष । के चौथे कुल का नाम । °प्पभ पु [प्रभ] इंदग्गि पुं [दे] बर्फ । राक्षस वंश के एक राजा का नाम, जो लङ्का। इंदग्गिधूम न [दे] हिम । का राजा था। भूइ पु [भूति] भगवान् | इंदड्ढलअ पुं[दे] इन्द्र का उत्थापन । महावीर का प्रथम - मुख्य शिष्य, गौतम- इंदमह वि [दे]कुमारी में उत्पन्न । न. यौवन । स्वामी । “मह पुं. इन्द्र की आराधना के | इंदमहकामुअ पुं [दे. इन्द्रमहकामुक] श्वान । लिए किया जाता एक उत्सव । आश्विन | इंदा स्त्रा [इन्द्रा] एक महानदी । धरणेन्द्र की पूर्णिमा । °मालो स्त्री. राजा आदित्य की एक अग्र-महिषी । पत्नी । मुद्धाभिसित्त पु [°मूर्द्धाभिषिक्त] | इंदा स्त्री [ऐन्द्री] पूर्व-दिशा । पक्ष की सातवी तिथि, सप्तमी। °मेह पु
इंदाणी स्त्री [इन्द्राणी] इन्द्र की पत्नी । एक [°मेघ] राक्षस वंश में उत्पन्न एक राजा ।
राज-पत्नी। य पु[क] देखो इन्द्र। नरक-विशेष ।
इंदासणि पुं [इन्द्राशनि एक नरक-स्थान । द्वीप-विशेष । न. विमान-विशेष । °याल देखो
इंदिदिर पुं [इन्दिन्दिर] भ्रमर । °जाल । 'रह पुं [°रथ] विद्याधर-वंश के
इंदिय पुन [इन्द्रिय] आत्मा का चिह्न, ज्ञान एक राजा का नाम । प्राय पु [ राज]
के साधन-भूत इन्द्रिय-श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, इन्द्र । लट्ठि स्त्री [यष्ठि] इन्द्र-ध्वज ।
जिह्वा, त्वक् और भन । शरीर के अवयव । °लेहा स्त्री [ लेखा] राजा त्रिकसंयत की
"अवाय पुं [°Tपाय] इन्द्रियों द्वारा होनेवाला पत्नी। °वज्जा स्त्री. [ वज्रा] छन्द-विशेष
वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष । °ओगाका नाम, जिसके एक पाद में ग्यारह अक्षर
हणा स्त्री [विग्रहणा] इन्द्रियों द्वारा होते हैं । वसु स्त्री. ब्रह्मराज की एक पत्नी ।
उत्पन्न होनेवाला ज्ञान-विशेष । 'जय पुं. °वाय पुं [ वात] एक माण्डलिक राजा ।
इन्द्रियों का निग्रह । तपो-विशेष । 'ट्ठाण न "वारण पुं. इन्द्र का हाथी । °सम्म पुं [°स्थान] इन्द्रियों का उपादान कारण । ["शमंन्] स्वनाम-ख्यात एक ब्राह्मण ।। °णिव्वतणा स्त्री [निर्वर्तना] इन्द्रियों के °सामणिय पुं [°सामानिक] इन्द्र के समान आकार की निष्पत्ति । णाण न [ज्ञान] ऋद्धिवाला देव । “सिरी स्त्री [°श्री] राजा इन्द्रिय-द्वारा उत्पन्न ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान । त्थ ब्रह्मदत्त की एक पत्नी। °सुअ ( [°सुत] | पुं [Tथं] इन्द्रिय से जानने योग्य वस्तु, रूपइन्द्र का लड़का, जयन्त । सेणा स्त्री["सेना] | रस-गन्ध वगैरह । पन्नत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] इन्द्र का सैन्य । एक महानदी । "हणु देखो । शक्ति विशेष, जिसके द्वारा जीव धातुओं के
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१३२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
इंदिय-इच्छ रूप में बदले हुए आहार को इन्द्रियों के रूप में | इक्खाउ देखो इक्खागु । परिणत करता है । विजय पुं. देखो °जय। इक्खाग वि [ऐक्ष्वाक] इक्ष्वाकु नामक प्रसिद्ध °विसय पुं[°विषय] देखो °त्थ ।
क्षत्रियवंश में उत्पन्न । इंदिय न [इन्द्रिय] लिंग, पुरुष-चिह्न ।
| इक्खाग । पुं. [इक्ष्वाकु] एक प्रसिद्ध क्षत्रिय इंदियाल देखो इंद-जाल।
इक्खागु ) राजवंश, भगवान् ऋषभदेव का इंदियाल । देखो इंद-जालि ।
वंश । उस वंश में उत्पन्न । कोशल देश । इंदियालि ।
भूमि स्त्री. अयोध्या नगरी। इंदिर पुं [इन्दिर] भ्रमर ।
इक्खु पुं[इक्षु] ईख । धान्य-विशेष,' बरट्रिका' इंदिरा स्त्री [इन्दिरा] लक्ष्मी।
नाम का धान्य । गंडिया स्त्री [°गण्डिका] इंदीवर न [इन्दीवर] कमल ।
ईख का टुकड़ा। °घर न [°गृह] उद्यानइंदु पुं [इन्दु] चन्द्रमा ।
विशेष । 'चोयग न [दे] ईख का कुच्चा । इंदुत्तरवडिसग न [इन्द्रोत्तरावतंसक] देव- °डालग न [दे] ईख की शाखा का एक विमान-विशेष ।
भाग । ईख का छेद । पेसिया स्त्री["पेशिका] इंदुर पुंस्त्री [उन्दुर] चूहा।
गण्डेरी । भित्ति स्त्री [दे] ईख का टुकड़ा। इंदोकंत न [इन्दुकान्त] विमान-विशेष । मेरग न ["मेरक] गण्डेरी । लट्ठि स्त्री इंदोव देखो इंद-गोव।
[°यष्टि] इक्षु-दण्ड । °वाड पुं [°वाट] ईख इंदोवत्त पुं [दे] इन्द्रगोप, कीट-विशेष । का खेत । °सालग न [दे] ईख की लम्बी इंद्र देखो इंद = इन्द्र ।
शाखा । ईख की बाहर की छाल । देखो इंध न [चिह्न] निशानी। इंधण न [इन्धन] ईंधन, लकड़ी वगैरन् दाह्य- इग देखो एक्क । वस्तु । अस्त्र-विशेष । उद्दीपन । पलाल, तृण | इगयाल स्त्रीन [एकचत्वारिंशत्] ४१-एकवगैरह, जिससे फल पकाये जाते हैं। °साला चालीस । स्त्री ["शाला] वह घर, जिसमें जलावन रक्खे इगवीसइम वि [एकविंश] एक्कीसवाँ । जाते हैं।
इगुचाल वि [ एकचत्वारिंशत् ] चालिस इंधिय वि [इन्धित] उद्दीपित, प्रज्ज्वलित । ! और एक । इक न [दे] प्रवेश।
इगुणवीस वि [एकोनविंश] उन्नीसवाँ । इक्क देखो एक्क।
इगुणीस । स्त्री [एकोनविंशति] उन्नीस । इक्कड पुं. तृण-विशेष ।
इगुवीस । इक्कड वि [ऐक्कड] इक्कड़ तृण का बना हुआ ।। इगुसट्ठि स्त्री [एकोनषष्टि] उनसठ । इक्कण वि [दे] चोर।
इग्ग वि [दे] डरा हुआ। इक्कार देखो एक्कारह।
इग्ग देखो एक्क। इक्किक्क वि [एकैक] प्रत्येक ।
इग्घिअ वि [दे] तिरस्कृत । इक्किल स्त्रीन [एकचत्वारिंशत्] एकचालीस । इच्चाइ पुन [इत्यादि] प्रभृति । इक्कुस न [दे] नीलोत्पल ।
इच्चेवं अ [इत्येवम्] इस प्रकार । इक्ख सक [ईक्ष्] देखना।
इच्छ सक [इष्] इच्छा करना। इक्खअ वि [ईक्षक] देखनेवाला ।
इच्छ सक [आप् + स् = ईप्स् प्राप्त करने को
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पत्र ।
इच्छकार-इत्तरिय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चाहना।
न. स्व-सिद्धान्त । न. निर्विकृति-तप । यागइच्छकार देखो इच्छा-कार।
क्रिया । इच्छक्कार [इच्छाकार] 'इच्छा' शब्द । इट्ठि स्त्री [इष्टि] इच्छा । याग-विशेष । इच्छा स्त्री. पक्ष की ग्यारहवीं रात्रि । अभि- इट्ठि स्त्री कृष्टि] खिंचाव, खींचना । लाषा, चाह । कार पुं. स्वकीय-इच्छा । छंद इडा स्त्री. शरीर के बाएँ भाग में स्थित वि [°च्छन्द] इच्छा के अनुकूल । °णुलोम
__ नाड़ी। वि [°नुलोम] इच्छा के अनुकूल । °णलोमिय इड्डर न [दे] गाड़ी। वि [°नुलोमिक] इच्छा के अनुकूल । 'पणिय इड्डरग । न [दे] रसोई ढकने का बड़ा वि [°प्रणीत] इच्छानुसार किया हुआ। 'परिमाण न. परिग्राह्य वस्तुओं के विषय की इड्डारया स्त्री [दे] मिष्ठान्न-विशेष । इच्छा का परिमाण करना, श्रावक का पाँचवाँ
इड्ढ वि [ऋद्ध] ऋद्धि-सम्पन्न । व्रत । मुच्छा स्त्री [°मूर्छा] अत्यासक्ति,
इड्ढि स्त्री [ऋद्धि] ऐश्वर्य । लब्धि, शक्ति, प्रबल इच्छा । लोभ पु. प्रबल लोभ ।
सामर्थ्य । पदवी। गारव न [गौरव]
सम्पत्ति या पदवी आदि प्राप्त होने पर °लोभिय वि ["लोभिक] महालोभी। लोल
अभिमान और प्राप्त न होने पर उसकी पुं. महान् लोभ । वि. महालोभी।
लालसा । पत्त वि [प्राप्त] ऋद्धिशाली। --- "इच्छा स्त्री [दित्सा] देने की इच्छा।
म, मंत वि [ मत्] ऋद्धिवाला । इच्छु देखो इक्खु । --
इड्ढिसिय वि [दे मांगन की एक जाति । इच्छु वि [इच्छु] अभिलाषी। इज्ज सक [आ + इ] आना, आगमन करना ।
इणं । अ [एतत् यह । इज्ज पुन [इज्या यज्ञ । इज्जा स्त्री [इज्या] याग । ब्राह्मणों का
"इण्ण देखो दिण्ण।
°इण्ण देखो किण्ण। सन्ध्यार्चन । इज्जा स्त्री [दे] जननी।
इण्ह न [चिह्न] निशान । इज्जिसिय वि [इज्यैषिक पूजा का
"इण्हा स्त्री [तृष्णा] प्यास, स्पृहा । अभिलाषी।
इण्हि अ [इदानीम्] इस समय । इज्झा अक [इन्ध चमकना ।
इतरेतरासय पुं [इतरेतराश्रय] तर्कशास्त्र
प्रसिद्ध एक दोष, परस्पर एक दूसरे की इट्टग [द] सेवईं।
अपेक्षा । इट्टगा स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, सेव ।
इति देखो इइ। "हास पुं. पूर्ववृत्तान्त, पुराइट्टगा स्त्री [इष्टका] नीचे देखो इट्टा।
वृत्त । पुराणशास्त्र । इट्टवाय देखो इट्टा-वाय ।
इत्तर वि [इत्वर] थोड़ा। अल्प-कालिक । इट्टा स्त्री [इष्टका] ईंट । °पाय, वाय पुं परिग्गहा स्त्री [°परिग्रहा] थोड़े समय के [पाक] ईंटों का पकना । जहाँ पर ईंटें के लिए रक्खी हुई वेश्या आदि । परिग्गपकाई जाती हैं वह स्थान ।
हिया स्त्री ['परिगृहीता] देखो °परिइट्टाल न. ईंट का टुकड़ा।
ग्गहा। इट्ट वि [इष्ट] अभिलषित, अभिप्रेत, पूजित, इत्तरिय वि [इत्वरिक] ऊपर देखो। सत्कृत । आगमोक्त, सिद्धान्त से अविरुद्ध । इत्तरिय देखो इयर ।
इणमो।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
इत्तरी-इरिया इत्तरी स्त्री [इत्वरी] थोड़े काल के लिए इदिवित्त (शौ) न [इतिवृत्त] इतिहास । रखी हुई वेश्या आदि ।
| इदुर न दे] धान्य रखने का एक तरह का इत्तहे (अप) अ [अत्र] यहाँ पर । इत्ताहे अ [इदानीम्] अधुना ।
| इदंड पुं [दे] भौंरा। इत्ति देखो इइ।
इद्धग्गिधूम न [दे] हिम। इत्तिय वि [इयत्, एतावत्] इतना । इद्धि देखो इड्ढि। इत्तिरिय वि [इत्वरिक] अल्पकालिक । इध (शौ) देखो इह । इत्तिल देखो इत्तिय।
इन्भ पुं[इभ्य] धनी। इत्तो देखो इओ।
इब्भ पुं[दे] व्यापारी। इत्तोअ देखो इओअ।
इभ पुं. हाथी। इत्तोप्पं [दे] इतःप्रभृति ।
इभपाल पुं. महावत । इत्थ अ [अत्र] यहाँ, इसमें ।
इम स [इदम्] यह । इत्थं अ [इत्थम् इस प्रकार । 'थ वि [°स्थ
इमेरिस वि एतादृश] ऐसा । नियत आकारवाला, नियमित ।
इय देखो इम। इत्थंथ वि [इत्थंस्थ] इस तरह रहा हुआ।
इय देखो इइ। इत्थत्थ पुं[इत्यर्थ] वह अर्थ ।
इय न [दे] प्रवेश। इत्थत्थ पुं [स्त्यर्थ] स्त्री-विषय । ' इयं वि इत] गत । प्राप्त । ज्ञात । इत्थयं देखो इत्थ।
इयहिं अ [इदानीम्] हाल में । इत्थि स्त्रीन [स्त्री] महिला।
इयर वि [इतर] अन्य, दूसरा । हीन । इत्थि । स्त्री [स्त्री औरत । 'कला स्त्री. इयरहा अ [इतरथा] अन्यथा, नहीं तो । इत्थी , स्त्री के गुण, स्त्री को सीखने योग्य इयरेयर वि [इतरेतर] अन्योन्य । कला। कहा स्त्री [कथा] स्त्री-विषयक इयाणि । अ [इदानीम्] इस समय । वार्तालाप । °णपुंसग पुंन [°नपुंसक एक इयाणि , प्रकार का नपुंसक । °णाम न ["नामन] इर देखो किल । कर्म-विशेष, जिसके उदय से स्त्रीत्व की प्राप्ति इरमंदिर पुं[दे] ऊँट । होती है । °परिसह पुं [परिषह] ब्रह्मचर्य । इराव पुं [दे] हाथी । विप्पजह वि [विप्रजह] स्त्री का परि- इरावदी (शौ) स्त्री [इरावती] नदी-विशेष । त्याग करनेवाला । पुं. मुनि । °वेद, °वेय पुं इरि देखो गिरि । [°वेद] स्त्री को पुरुष-संग की इच्छा। कर्म- इरिण न [ऋण] करजा । विशेष, जिसके उदय से स्त्री को पुरुष के साथ इरिण न [दे] सुवर्ण । भोग करने की इच्छा होती है।
इरिय सक [ईर] गति करना । इत्थेण त्रि [स्त्रैण] स्त्रियों का समूह ।
इरिया स्त्री दे] कुटिया। इदाणिं देखो इयाणि।
इरिया स्त्री [ई-] गमन। वह पुं [पथ] इदाणि (शौ) देखो इयाणि ।
मार्ग में जाना। रास्ता। केवल शरीर से इदाणी । देखो इदाणि ।
होनेवाली क्रिया । °वहिय न [°पथिक] इदाणी ।
केवल शरीर की चेष्टा से होनेवाला कर्म
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इल-इह
बन्ध, कर्म - विशेष | 'वहिया स्त्री ['पथिकी ] कषाय-रहित केवल कायिक क्रिया । समिइ स्त्री [समिति ] दूसरे जीव को किसी प्रकार की हानि न हो ऐसा उपयोग पूर्वक चलना । समय वि [ समित] विवेक पूर्वक चलने
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वाला ।
इल पुं. वाराणसी का वास्तव्य स्वनाम - ख्यात एक गृहपति- गृहस्थ । न इलादेवी के सिंहासन का नाम । 'सिरी स्त्री [श्री] इल नामक गृहस्थ की स्त्री । 'इलंत देखो किलंत ।
इला स्त्री पृथिवी, भूमि । धरणेन्द्र की एक अग्र-महिषी । इल नामक गृहस्थ की पुत्री । रुचक पर्वत पर रहने वाली एक दिक्कुमारी । राजा जनक को माता । इलावर्धन नगर में स्थित एक देवता । 'कूड न [° कूट ] इलादेवी के निवास-भूत एक शिखर । पुत्त पुं [° पुत्र ] इलादेवी के प्रसाद से उत्पन्न एक श्रेष्ठ पुत्र । वपुं [पति ] एलापत्य गोत्र का आदि पुरुष । 'वर्डसय न [वतंसक ] इलादेवी का प्रासाद ।
इलाइपुत्त देखो इला -पुत्त । इलिया स्त्री [इलिका ] चीनी और चावल में उत्पन्न होनेवाला कीटविशेष |
इली स्त्री. एक जाति की तलवार की तरह का हथियार ।
इल्ल पुं [दे] चपरासी । दाँती | वि. दरिद्र । कोमल । काला ।
इल्लपुलिंद पुं [दे] व्याघ्र, शेर ।
इल्लि पुं [ दे] शार्दूल | सिंह । छाता । इल्लिय वि [] आसिक्त ।
इल्लिया स्त्री [ इल्लिका ] अन्न में उत्पन्न इस्सर देखो ईसर ।
इस्सरि देखो ईसरिय |
होनेवाला कीट - विशेष ।
इल्लीर न [ दे] आसन - विशेष ।
छाता ।
दरवाजा, गृह-द्वार
इव अ. इन अर्थों का द्योतक अव्यय - उपमा | सादृश्य । उत्प्रेक्षा ।
इसअ वि [ दे] विस्तीर्ण | इसणा देखो एसणा । इसाणी स्त्री [ ऐशानी ] ईशानकोण | इसि पुं [ ऋषि ] मुनि, साधु, ज्ञानी, महात्मा । ऋषिवादि निकाय का दक्षिण दिशा का [गुप्त ] स्वनाम -ख्यात एक जैन मुनि । न जैन मुनियों का एक कुल । ● गुत्तिय न [ गुप्तीय] जैन मुनियों का एक कुल । दास पुं. इस नाम का एक सेठ, जिसने जैन दोक्षा ली थी । 'अनुत्तरोववाइदसा' सूत्र का एक अध्ययन । 'दत्त, दिण्ण पुं [ दत्त] एक जैन मुनि । पालिय पुं [पालित] ऐरवत क्षेत्र के पाँचवें तीर्थंकर का नाम । पालिया स्त्री ['पालिता] जैन मुनियों की एक शाखा । भद्दत्तं [ भद्रपुत्र ] एक जैन श्रावक । भासिय न [भाषित ] अंगग्रन्थों के अतिरिक्त जैन आचार्यों के बनाये हुए उत्तराध्ययन आदि शास्त्र । 'प्रश्नव्याकरण' सूत्र का तृतीय अध्ययन । 'वाइ, 'वाइय, वादियं [ 'वादिन्] व्यन्तरों की एक जाति । वाल पुं [ 'पाल ] ऋषिवादिव्यन्तरों का उत्तर दिशा का इन्द्र । पाँचवें वासुदेव का पूर्वभवीय नाम । वालिय पुं [पालित] ऋपिवादिव्यन्तरों के एक इन्द्र
का नाम ।
इसि पुं [इसिन] अनार्य देश - विशेष | इसिय वि [इसिनक] इसिन नामक अनार्य देश में उत्पन्न |
इसिया स्त्री [ इषिका ] शलाका ।
१३५
[इ] बाण |
इस वि [ एष्यत् ] भविष्यकाल | होनेवाला ।
इस स्त्री [ ईर्ष्या ] द्रोह, असूया । इस्सास पुं [ इष्वास ] धनुष । तीरंदाज । इह पुं [इभ] हाथी 1
इह अ [इदानीम् ] इस समय, अधुना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
इह-ईसालु इह अ. यहाँ, इस जगह । °पार लोइय वि । इहइं अ [इदानीम्] सम्प्रति, इस समय । [ऐहिकपारलौकिक] इस और परलोक से इहं , देखो इह = इह । सम्बन्ध रखनेवाला । भविय वि [ऐह- इहयं । भविक] इस जन्म-सम्बन्धी । °लोअ, °लोग ।
इहरहा । देखो इयर-हा । पुं [लोक] वर्तमान जन्म, मनुष्य लोक ।
इहरा । °लोय, °लोइय वि[ऐहलौकिक] इस जन्म
इहरा देखो इहई = इदानीम् । सम्बन्धी, वर्तमान-जन्म-सम्बन्धी । इहअ ) ऊपर देखो।
इहामिय देखो ईहामिय। इहई ।
इहिं अ [इह] यहाँ ।
ई पुं. प्राकृत वर्णमाला का चतुर्थ वर्ण, स्वर-। ईसर पुं [ईश्वर] प्रभु । महादेव। पति । विशेष ।
मुखिया । बेलंधर-देवों का आवास-विशेष । ईअ स [एतत्, इदम्] यह ।
एक पाताल-कलश । आढ्य । ऐश्वर्य-शाली । ईअ अ [इति] इस तरह ।
युवराज । माण्डलिक, सामन्त-राजा । मन्त्री। ईह पुंस्त्री [ईति] धान्य वगैरह को नुकसान भूतवादि-निकाय का इन्द्र । पाताल-विशेष ।
पहुँचानेवाला चूहा आदि प्राणि-गण । एक राजा का नाम । एक जैन मुनि । यक्षईइस वि [ईदृश] ऐसा, इसके समान । विशेष । ईजिह अक [ध्रा] तृप्त होना।
ईसर पुं [ईश्वर] अणिमा आदि आठ प्रकार ईड देखो कीड = कीट ।
के ऐश्वर्य से सम्पन्न । ईडा स्त्री. स्तुति ।
ईसरिय न [ऐश्वर्य] वैभव, ईश्वरपन । ईण वि [ईन] प्रार्थी, अभिलाषी।
ईसा स्त्री [ईषा] लोकपालों की अग्रमहिषियों °ईण देखो दीण।
की एक पार्षदा । पिशाचेन्द्र की एक परिषद् । ईति देखो ईह।
हल का एक काष्ठ । ईदिस देखो ईइस ।
ईसा स्त्री [ईर्षा] ईर्ष्या, द्रोह। °रोस पुं ईर सक. प्रेरणा करना। कहना । गमन | [ रोष] क्रोध । करना । फेंकना।
ईसाण पुं [ईशान] दूसरा देवलोक । दूसरे ईरिया देखो इरिया।
देवलोक का इन्द्र । ईशान-कोण । मुहूर्तईरिस देखो ईइस ।
विशेष । दूसरे देवलोक के निवासी देव । प्रभु, ईस न [दे] खुंटा, खीला ।
स्वामी । वडिसग न [°ावतंसक] विमानईस सक [ईर्ष ] द्वेष करना ।
विशेष का नाम । ईस पुं [ईश] देखो ईसर = ईश्वर । न. | ईसाण पुं [ईशान] अहोरात्र का ग्यारहवां ऐश्वर्य, प्रभुता।
मुहूर्त । ईस देखो ईसि।
ईसाणा स्त्री ऐशानी] ईशान-कोण । ईसअ पुं [दे] रोझ, हरिण की एक जाति । । ईसाणी स्त्री [ऐशानी] ईशान कोण । विद्याईसत्थ न [इष्वस्त्रशास्त्र] धनुर्वेद, बाणविद्या। विशेष । ईसर पुं [दे] कामदेव ।
| ईसालु वि [ईर्ष्यालु] असहिष्णु, द्वेषी ।
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सास-अ
ईसास देखो इस्सास । ईसि अ [ ईषत् ] अल्प | पृथिवी - विशेष, सिद्धिक्षेत्र, मुक्तभूमि । पब्भार वि[ प्राग्भार] थोड़ा अवनत । पब्भारा स्त्री [प्राग्भारा ] पृथिवी - विशेष, सिद्धि क्षेत्र | ईसिअ न [ ईष्यित ] ईर्ष्या, द्वेष । वि. जिसपर
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ईसि
ईसी
ईह सक [ई, ईह ] देखना । विचारना । चेष्टा करना ।
ईहा स्त्री. विचार, ऊहापोह, विमर्श । चेष्टा, प्रयत्न । मति - ज्ञान का एक भेद । मिग, ° मय पुं [ मृग ] वृक, भेड़िया । नाटक का एक भेद |
हा स्त्री [ ईक्षा] अवलोकन, विलोकन |
ईर्ष्या की गई हो वह ।
ईसिअ न [ दे] भील के सिर पर का पत्रपुट या पगड़ी | वि. वशीकृत ।
उ पुं, प्राकृत वर्णमाला का पञ्चम अक्षर, स्वरविशेष । उपयोग रखना, ख्याल करना । गति - क्रिया ।
उ अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - सम्बोधन, आमन्त्रण | कोप- वचन । अनुकम्पा । नियोग, हुकुम । आश्चर्य । स्वीकार । पृच्छा । उअ [तु] इन अर्थों का सूचक अव्यय - विशेषण । कारण । समुच्चय और । निश्चय । किन्तु । आज्ञा । प्रशंसा । विनिग्रह । शंका की निवृत्ति । पादपूर्ति के लिए भी इसका प्रयोग होता है ।
उ देखो उव ।
उ° अ [उत्] इन अर्थों का सूचक ऊर्ध्व । विपरीत | अभाव | ज्यादा, अ अ [] विलोकन करो, देखो । अ अ [उत] इन अर्थों का सूचक अव्यय - विकल्प । वितर्क, विमर्श । प्रश्न । समुच्चय । अतिशय ।
उअ अ [दे] ऋजु ।
उअ देखो उव ।
अव्यय - विशेष |
समुद्र ।
उअ वि [ उदञ्च] उत्तर, उत्तर दिशा में स्थित | महिहर पुं [° महिधर] चलपर्वत ।
हिमा -
१८
}
देखो ईसि ।
उअअ न [ उदक] पानी । उअअ देखो उदय ।
उअअ न [ उदर] पेट | उअअ वि [ दे] सरल, सीधा । उअअद (शौ) देखो उवगय । उअआरअवि [ उपकारक ] उपकार करने
वाला |
अआरिवि [ उपकारिन्] ऊपर देखो । अवि [ उपजीव्य ] आश्रय करने योग्य, सेवा करने योग्य |
उअ न [उद] पानी | °सिंधु पुं [° सिन्धु ] उअगअ देखो उनगय ।
१३७
अहसक [उप + गूह ] आलिंगन करना । उअएस देखो उवएस ।
उअंचण न [ उदञ्चन] ऊँचा फेंकना या उठाना, ढकने का पात्र ।
अंचिद (शौ) वि [ उदञ्चित] ऊँचा उठाया हुआ, ऊँचा फेंका हुआ ।
अंत पुं [ उदन्त] हकीकत, वृत्तान्त | उअकिद (शौ) वि [ उपकृत ] जिसपर उपकार
किया गया हो वह |
उअक्किअ वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ ।
अचित्त व [] अपगत, निवृत्त ।
उअजीवि वि [ उपजीविन् ] आश्रित । उअज्झाअ देखो उवज्झाय ।
अस्त्र [] नीवी, स्त्री के कटि-वस्त्र की
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उअट्ठिअ-उईरिय नाडी।
उआअ देखो उवाय । उअट्ठिअ देखो उवट्टिय।
उआअण देखो उवायण । उअणिअ ) देखो उवणीय ।
उआर देखो उराल। उअणीअ
उआर देखो उवयार। उअण्णास देखो उवण्णास ।
उआलंभ देखो उवालंभ = उपा+लभ् । उअत्तंत देखो उव्वट्ट = उद् + वृत् । उआलंभ देखो उवालंभ = उपालम्भ । उअत्थाण देखो उवट्ठाण ।
उआलभ देखो उआलंभ = उपा + लभ् । उअत्थिअ देखो उवट्ठिय ।
उआलि स्त्री [दे] शिरोभूषण । उअदिट्ट देखो उवइट्ठ ।
उआस वि [उदास] नीचे देखो। उअभुत्त देखो उवभुत्त।
उआस देखो उवास = उपा+ आस् । उअभोग देखो उवभोग।
उआसीण वि [उदासीन] उदासी, दिलगीर । उअमिजंत वकृ [उपमीयमान] जिसकी
मध्यस्थ । तुलना की जाती हो वह ।
उआहरण देखो उदाहरण । उअर न [उदर पेट ।
उइ सक [उप+इ] समीप जाना। उअरि । देखो उवरि ।
उइ अक [उद् + इ] उदित होना । उअरि
उइ देखो उउ । °राय पुं [°राज] वसन्त उअरी स्त्री [दे] शाकिनी देवी।
ऋतु । उअरुज्झ देखो उवरुज्झ ।
उइअ वि [उदित] उदय-प्राप्त, उद्गत । उअरोअ । देखो उवरोह।
कथित । परक्कम पुं [°पराक्रम] इक्ष्वाकुवंश उअरोह )
के एक राजा का नाम । उअलद्ध देखो उवलद्ध। उअविटुअ न [औपविष्टक] आसन ।
उइअ वि [उचित] योग्य । उअविय वि [दे] उच्छिष्ट ।
उइंतण न [दे] उत्तरीय वस्त्र, चादर ।
उइंद पुं [उपेन्द्र] इन्द्र का छोटा भाई, विष्णु उअसप्प देखो उवसप्प। उअसम । देखो उवसम = उप+ शम् ।
का वामन अवतार, जो अदिति के गर्भ से
हुआ था। उअसम्म उअह अ [दे] देखिए ।
उइट्ठ वि [अपकृष्ट] हीन, संकुचित । उअहस देखो उवहस ।
उइण्ण देखो उदिण्ण। उअहार देखो उवहार ।
उइण्ण वि [उदीच्य] उत्तर दिशा-सम्बन्धी, उअहारी स्त्री [दे] दोहनेवाली स्त्री ।
उत्तर दिशा में उत्पन्न । उअहि पुं [उदधि] सागर । स्वनाम-ख्यात एक उइन्न देखो ओइण्ण । विद्याधर राजकुमार । काल परिमाण, साग
उईण देखो उदीण। रोपम । स्वनामख्यात एक जैन मुनि । देखो
उईर देखो उदोर। उदहि।
उईरण देखो उदीरण। उअहि देखो उवहि = उपधि ।
उईरणया) देखो उदीरणा। उवहुंज देखो उवभुंज ।
उईरणा उअहोअ देखो उवभोग ।
उईरिय देखो उदीरिय।
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उउ-उक्कंछण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१३९ उउ त्रि [ऋतु]ऋतु, दो मास का काल-विशेष, , उंदर , पुंस्त्री [उन्दुर] चूहा । वसन्त आदि छः प्रकार का काल । स्त्री-कुसुम, | उंदूर । रजो दर्शन, स्त्री-धर्म । °बद्ध पुं. शीत और | उंदु न [दे] मुख । रुक्क न [दे] मुंह से वृषभ उष्णकाल । °मास पुं. श्रावण मास । तीस | आदि की तरह आवाज करना । दिनवाला मास । °य वि [°ज] ऋतु में | उंदुरअ पुं [दे] लम्बा दिवस । उत्पन्न, समय पर उत्पन्न होनेवाला । संधि उंदुरु पुंस्त्री [उन्दुरु] मूषक । पुंस्त्री. ऋतु का सन्धि-काल, ऋतु का अन्त | उंब पुं [उम्ब] वृक्ष-विशेष । समय । °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-उंबर पुं [उदुम्बर] गूलर का पेड़ । न. गूलर विशेष । देखो उइ = उउ ।
का फल । देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी । उउंबर देखो उंबर = उदुम्बर ।
°दत्त पुं. यक्ष-विशेष । एक सार्थवाह का पुत्र । उउवहिय न [ऋतुबद्ध] मास-कल्प, एक मास | °पंचग, पणग न [°पञ्चक] बड़, पीपल,
तक एक स्थान में साधु का निवासानुष्ठान ।। गूलर, प्लक्ष और काकोदुम्बरी इन पाँच वृक्षों उऊखल ) न [ उदूखल ] उलूखल, गूगल । के फल । पुप्फ न [°पुष्प] गूलर का फूल । उऊहल
| उंबर वि [दे] प्रचुर ।। उएट्ट पुं [दे] शिल्प-विशेष ।
उंबर उप्फ न [दे] नवीन अभ्युदय, अपूर्व उओग्गिअ वि [दे] सम्बद्ध, संयुक्त । | उन्नति । उं अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय-क्षेप, उंबरय पुं. [दे] कुष्ठ रोग का एक भेद । निन्दा । विस्मय । खेद । वितर्क । सूचन। । उंबा स्त्री [दे] बन्धन । उंघ अक [नि + द्रा] नींद लेना।
उंबी स्त्री [दे] पका हुआ गेहूँ। उंचहिआ स्त्री [दे] चक्रधारा ।
उंबेभरिया स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष । उंछ पुन [उञ्छ] भिक्षा । पु. माधुकरी । उभ सक [दे] पूर्ति करना, पूरा करना । उंछअ ' [दे] वस्त्र छापने का काम करनेवाला
उकिट्ट देखो उक्विट। शिल्पी।
उकुरुडिया [दे] देखो उक्कुरुडिया। उंज सक [ सिच् ] छिड़कना ।
उक्त वि [उत्क] उत्सुक, उत्कण्ठित । एक उंज सक [ युज् ] प्रयोग करना, जोड़ना । ।
विद्याधर राजा का नाम । उंजायण न [उञ्जायन ] गोत्र-विशेष, जो | उक्क वि [उक्त] कथित । वशिष्ठ-गोत्र की एक शाखा है।
उक्क न [दे] पाद-पतन, पांव पर गिर कर उंड , वि [दे] गभीर, गहरा। पुं. पिण्ड ।। नमस्कार करना । उंडग ( चलते समय पाँव में पिण्ड रूप से लग | उक्कम वि [दे] प्रसृत, फैला हुआ । उंडय ) जाय उतना गहरा कीचड़, कर्दम । उक्तंचण न [दे] खुशामद । उठाना । शरीर का एक भाग, मांस-पिण्ड ।
उक्कंचणया । झाडू निकालना । रिश्वत । मूर्ख उंडग ) न [दे] स्थण्डिल, स्थान, जगह ।। पुरुष को ठगनेवाले धूर्त का, समीपस्थ विचउंडुअ॥
क्षण पुरुष के भय से थोड़ी देर के लिए उंडल न [दे] मञ्च, मचान, उच्चासन । समूह । निश्चेष्ट रहना । °दोव पुं [°दोप] ऊँचा उंडिया स्त्री [दे] मुद्रा-विशेष ।
दंडवाला प्रदीप । उंडी स्त्री [दे] पिण्ड, गोलाकार वस्तु । । उक्छण न [दे] देखो उक्तबण ।
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उक्कंती
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उक्कंठ-उरिसण उक्कंठ अक [उत् + कण्ठ्] उत्कण्ठा करना, | उत्सुक होना।
उक्कड्ढग पुं [अपकर्षक] चोर की एक-जातिउक्कंठुलय वि [उत्कण्ठित] उत्सुक । जो घर से धन आदि ले जाते हैं। जो चोरों उक्कंड वि [उत्कण्डित] खूब छटा हुआ। को बुलाकर चोरी कराते हैं। चोर के उक्कंडय सक [उत्कण्टय] पुलकित करना। सहायक। उक्कंडय वि [उत्कण्टक] रोमाञ्चित । उक्काड्ढय वि [उत्कर्षित] उत्पाटित, उठाया उक्कंडा स्त्री [दे] रिश्वत ।
हुआ । एक स्थान से उठाकर अन्यत्र स्थापित । उक्कंडिअ वि [दे] आरोपित । खण्डित ।
उक्कण्ण वि [उत्कर्ण] सुनने के लिए उत्सुक । उक्त वि [उत्क्रान्त] ऊँचा गया हुआ। उक्कत्त सक [उत् + कृत्] काटना, कतरना । उक्कंति) स्त्री [दे] देखो उक्कंदि । उक्त्त वि [उत्कृत्त] कटा हुआ, छिन्न ।
उक्कत्थण न [उत्कथन] उखाड़ना । उक्कंद वि [दे] विप्रलब्ध, ठगा हुआ। | उक्कप्प पुं [उत्कल्प] शास्त्र-निषिद्ध आचरण । उक्कंदल वि [उत्कन्दल] अंकुरित । उक्कनाह पुं दे] उत्तम अश्व की एक जाति । उक्कंदि) स्त्री [दे] कूपतुला ।
उक्कम सक [उत् + क्रम् ] ऊँचा जाना। उक्कंदी।
उलटे क्रम से रखना। उक्कंप अक [उत् +कम्प्] काँपना, हिलना।
उक्कम पुं [उत्क्रम] उलटा क्रम, विपरीत क्रम । चञ्चल होना।
उक्कमण न [उत्क्रमण] ऊर्ध्वगमन । बाहर उक्कंपिय वि [दे] धवलित ।
जाना । उक्कंबण न [दे. अवकम्बन] काठ पर काठ |
उक्कमित वि [उपक्रान्त] प्रारब्ध । क्षीण । के हाते से घर की छत बाँधना, घर का
उक्कर सक [उत् + कृ] खोदना । संस्कार-विशेष ।
उक्कर पुं [उत्कर] समूह, संघात । कर-रहित, उक्कंबिय वि [दे. अवकम्बित] काठ से बाँधा
राज-देय शुल्क से रहित । हुआ।
उक्करड देखो उक्कर = उत्कर । उक्कच्छ वि [उत्कच्छ] स्फुट, स्पष्ट ।
उक्करड पुं [दे] अशुचि-राशि। जहाँ मैला उक्कच्छा स्त्री [उत्कच्छा] छन्द-विशेष ।।
इकट्ठा किया जाता है वह स्थान । उक्कच्छिा स्त्री [औपकक्षिकी] जैन
उक्करिअ वि [दे] विस्तीर्ण, आयत । आरोसाध्वियों को पहनने का वस्त्र-विशेष ।
पित । खण्डित । उक्कज्ज वि [दे] अनवस्थित, चञ्चल ।
उक्करिद (शौ) वि [उत्कृत] ऊंचा किया उक्कट्टि स्त्री [अपकृष्टि] अपकर्ष, हानि ।।
हुआ। उक्कट्ठि स्त्री [ उत्कृष्टि ] उत्कर्ष । देखो
" उक्करिया स्त्री [उत्करिका] जैसे एरण्ड के उक्किट्ठि।
बीज से उसका छिलका अलग होता है उस उक्कड वि [उत्कट] तीव्र, प्रचण्ड । विशाल । |
तरह अलग होना, भेद-विशेष । प्रबल । °उक्कड देखो दुक्कड।
उक्करिस सक [ उत् + कृष् ] खीचना । गर्व उक्कडिय वि [दे] तोड़ा हुआ, छिन्न ।
करना, बड़ाई करना । उन्मूलन करना । उक्कडिय देखो उक्कुडुय ।
उक्करिस देखो उक्कस्स = उत्कर्ष । उक्कड्ढ सक [उत् +कर्षय्] उत्कृष्ट करना, | उक्करिसण न [उत्कर्षण] उत्कर्ष, बड़ाई,
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१४१
उक्कल-उक्कुट्ठ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष महत्त्व । स्थापन, आधान ।
| उक्कालिय वि [उत्कालिक] वह शास्त्र, उक्कल देखो उक्कड ।
जिसका अमुक नमय में ही पढ़ने का विधान उक्कल अक [ उत् + कल् ] उत्कट रूप से न हो। बरतना।
उक्कास देखो उक्कस्स = उत्कर्ष । उक्कल वि [उत्कल] धर्म-रहित । न. चोरी । | उक्कास वि [दे] उत्कृष्ट, ज्यादा से ज्यादा । पुं. देश-विशेष ।
उक्कासिअ वि [दे] उत्थित, उठा हुआ। उक्कलंब सक [उत् + लम्बय]फांसी लटकाना । उक्किट्ठ वि [उत्कृष्ट] ज्यादा। पुंन. इमली उक्कला देखो उक्कलिया।
आदि के पत्तों का समूह । लगातार दो दिन उक्कलिय वि [दे] उबला हुआ।
का उपवास । उक्कलिया स्त्री [उत्कलिका] लूता, मकड़ो। उक्किट्ठ वि [उत्कृष्ट] उत्तम । फल का शस्त्र नीचे की तरफ बहनेवाला वायु। छोटा । द्वारा किया हुआ टुकड़ा। समुदाय, समूह-विशेष । लहरी, तरंग । ठहर- उक्किट्ठि स्त्री [उत्कृष्टि] हर्षध्वनि। देखो ठहर कर तरंग की तरह चलनेवाला वायु । । उक्कट्ठि। उक्कस सक [गम्] जाना, गमन करना। उक्किण्ण वि [उत्कीर्ण] खोदा हुआ । नष्ट । उक्कम देखो ओकस ।
चचित, उपलिप्त । उक्कस देखो उक्कुस।
उक्वित्त वि [उत्कृत्त] कटा हुआ । उक्कस देखो उक्कस्स = उत्कर्ष ।
उक्कित्तण न [उत्कीर्तन] कथन । प्रशंसा । उक्कसण न [उत्कर्षण] अभिमान करना। | उक्कित्तिय वि [उत्कीत्तित] कथित, कहा ऊँचा जाना । निवर्तन, निवृत्ति । प्रेरणा।
हुआ। उकसाड वि [उत्कशायिनी सकारादि के उक्किर सक [उत् +क] खोदना, पत्थर लिए उत्कण्ठित।
आदि पर अक्षर वगैरह का शस्त्र से लिखना । उक्कसाइ वि [उत्कषायिन्] प्रबल कषायवाला ।
उकिरणग न [उत्करणक] अक्षत आदि से
बढ़ाना, बधावा, वर्धापन । उक्कस्स अक [अप + कृष्] ह्रास प्राप्त होना ।
उक्कीर देखो उक्किर। फिसलना, गिरना।
उक्कीलिय न [उत्क्रीडित] उत्तम क्रीड़ा। उक्कस्स पुं [उत्कर्ष] गर्व । अतिशय ।
उक्कीलिय वि [ उत्कीलित ] कीलक से उक्कस्स वि [उत्कर्षवत्] उत्कृष्ट, ज्यादा से
नियंत्रित । ज्यादा । अभिमानी।
उक्कुचण न [उत्कुञ्चन] ऊँचे चढ़ाना । उक्का स्त्री [उल्का] लूका, आकाश से जो एक
उक्कंड वि [दे] मत्त, उन्मत्त । प्रकार का अंगार सा गिरता है। छिन्न-मूल
उक्कुक्कुर अक | उत् + स्था] उठना, खड़ा दिग्दाह । अग्नि-पिण्ड । °मुह पुं [°मुख]
होना। अन्तर्वीप-विशेष । उसके निवासी लोक । °वाय
उक्कुज अक [उत्+कुब्ज्] ऊँचा होकर पुं [°पात] तारा का गिरना, लूका गिरना ।
नीचा होना। उक्का स्त्री [दे] कूप तुला।।
| उक्कुज्जिय न [उत्कूजित] अव्यक्त शब्द । उक्काम सक [ उत् + क्रामय् ] दूर करना, उक्कुट न [उत्कुष्ट] वनस्पति का कूटा हुआ पीछे हटाना।
चूर्ण। उक्कारिया देखो उक्करिया।
उक्कुट वि [उत्क्रुष्ट] ऊँचे स्वर से आक्रुष्ट ।
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उक्कुरुडी )
१४२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उक्कुडुग-उक्खंभिय उक्कुडुग , वि [उत्कुटुक] आसन-विशेष, उक्कोल पुं [दे] धूप, गरमी। उक्कुडुय । निषद्या-विशेष । °ासणिय वि उक्कोवण न [उक्कोपन] उद्दीपन, उत्तेजन । [°ासनिक] उत्कुटुक-आसन से स्थित । उक्कोविअ वि [उत्कोपित] अत्यन्त क्रुद्ध उक्कुद्द अक [उत् + कुद्] कूदना, उछलना। किया हुआ। उक्कुरुआ देखो उक्कुरुडिया। | उक्कोस सक [उत् + क्रुश्] रोना, चिल्लाना। उक्कुरुड पुं. देखो उक्कुरुडी।
तिरस्कार करना। उक्कुरुड पुं [दे] राशि, ढेर ।
उक्कोस वि [उत्कर्ष] उत्कृष्ट, मुख्य । उक्कुरुडिगा , स्त्री [दे] धूरा, कूड़ा डालने उक्कोस पुं [उत्कर्ष] प्रकर्ष, अतिशय । गर्व । उक्कुरुडिया की जगह ।
उक्कोस वि [उत्कृष्ट] उत्कृष्ट, अधिक से
अधिक । उक्कुस सक [गम्] जाना, गमन करना । उक्कोस पुं[उत्क्रोश] कुरर । वि. जोर से उक्कुस वि [उत्कृष्ट] उत्तम, श्रेष्ठ ।
चिल्लानेवाला। उक्कूइय न [उत्कूजित] अव्यक्त महा-ध्वनि । उक्कोसण न [उत्क्रोशन] क्रन्दन । निर्भर्त्सन, उक्कूल वि [उत्कूल] सन्मार्ग से भ्रष्ट करने तिरस्कार । वाला । किनारे से बाहर का । न. चोरी। उक्कोसा स्त्री [उत्कोशा] कोशानामक एक उक्कूब अक [उत् + कूज्] चिल्लाना । प्रसिद्ध वेश्या। उक्केर पुं [उत्कर] राशि, ढेर । करण-विशेष, | उक्कोसिअ पुं [उत्कौशिक] गोत्र-विशेष का कर्मों की स्थित्यादि को बढ़ाना । भिन्न, एरण्ड
दि को बढाना । भिन्न, एरण्ड प्रवर्तक एक ऋषि । न, गोत्र-विशेष । के बीज की तरह जो अलग किया गया हो। उक्कोसिअ वि [दे] पुरस्कृत,आगे किया हुआ। वह।
उक्कोसिया स्त्री [उत्कृष्टि] उत्कर्ष, आधिक्य । उक्केर पुं [दे] उपहार।
उक्कोस्स देखो उक्कोस = उत्कृष्ट । उक्केल्लाविय वि [दे] उकेलाया हुआ, खुल- उक्ख सक [ उक्ष् ] सींचना । वाया हुआ।
उक्ख [ उक्ष ] सम्बन्ध । जैन साध्वियों के उक्कोट्टिय वि [दे] अवरोध-रहित किया हुआ, __ पहनने के वस्त्र-विशेष का एक अंश । घेरा उठाया हुआ।
उक्ख देखो उच्छ = उक्षन् । उक्कोड न [दे] राजा आदि को दिया जाता उक्खइअ वि [उत्खचित] व्याप्त, भरा हुआ । उपहार ।
उक्खंड सक [उत् + खण्डय] तोड़ना, टुकड़ा उक्कोडा स्त्री [दे] रिश्वत ।
करना। उक्कोडिय वि [दे] घूसखोर ।
उक्खंड पुं [दे] सङ्घात, समूह । स्थपुट, विषउक्कोडी स्त्री [दे] प्रतिध्वनि ।
मोन्नत प्रदेश । उक्कोय वि [उत्कोप] प्रखर, उत्कट । उक्खंडण न [उत्खण्डन] उत्कर्तन, विच्छेदन । उक्कोयण देखो उक्कोवण ।
उक्खंडिअ वि [दे] आक्रान्त, दबाया हुआ । उक्कोया स्त्री [उत्कोचा] रिश्वत । मूर्ख को | उक्खंद पुं. [अवस्कन्द] घेरा डालना । छल ठगने में प्रवृत्त धूर्त पुरुष का, समीपस्थ से शत्रु-सैन्य को मारना । विचक्षण पुरुष के भय से थोड़ी देर के लिए उक्खंभ पुं [उत्तम्भ] अवलम्ब, सहारा । अपने कार्य को स्थगित करना।
उक्खंभिय देखो उत्थंभिय ।
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उक्लभिय-उग्ग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१४३
१४३ उवखंभिय न [औत्तम्भिक] अवलम्ब, सहारा।। उठाना। उवखडमड्डा अ [दे] पुनः-पुनः ।
उखंड पुं [दे] उल्मुक, अलात, मशाल । उवखण सक [उत् + खन्] उखाड़ना, उच्छेदन | समूह । अञ्चल । करना, काटना।
उक्खुड सक [तुड्] तोड़ना, टुकड़ा करना। उवखण सक [दे] खाँड़ना, मुसल वगैरह से उक्खुडिअ वि [तुडित] खण्डित, छिन्न, भिन्न । व्रीहि आदि का छिलका दूर करना ।
व्यय किया हुआ। उक्खण वि [दे] अवकीर्ण, चूर्णित ।
उखुत्त वि [दे. उत्कृत्त] काटा हुआ। उक्खत्त देखो उक्खय।
उक्खुब्भ अक [उत् + क्षुभ्] क्षुब्ध होना । उवखम्म देखो उक्खण = उत् + खन् ।। उवखुरुहंचिअ वि [दे] उत्क्षिप्त । उवखय वि[उत्खात]उखाड़ा हुआ, उन्मूलित । | उक्खुलंप सक [दे] खुजवाना । खुला हुआ, उद्घाटित ।
उक्खुहिअ वि [उत्क्षुब्ध] क्षोभ-प्राप्त । उक्खल देखो उऊखल ।
उक्खेव पु [उत्क्षेप] उत्पाटन, उन्मूलन । उक्खलिय वि [दे. उत्खण्डित] उन्मूलित, ऊंचा करना। फेंकना। जो उठाया जाय उत्पाटित ।
वह। उक्खलिया। स्त्री [दे] थाली ।
उक्खेव पुं [उपक्षेप उपोद्घात, भूमिका । उक्खली
उक्खेवग वि [उत्क्षेपक] ऊँचा फेंकनेवाला । उक्खा स्त्री [ऊखा] स्थाली।
पुं. एक जाति का पंखा। उक्खाइद (शौ) वि [उत्खातित] उद्धृत ।
उक्खेविअ अ [उत्क्षेपित] जलाया हुआ (धूप)। उक्खाय देखो उक्खय। उक्खाल सक [उत् +खन्, खालय]
उक्खोडिअ वि [उत्खोटित] उत्क्षिप्त, उड़ाया उखाड़ना, उन्मूलन करना।
हुआ। छिन्न, उखाड़ा हुआ। उक्खिण देखो उक्खण% उत् + खन् ।
उग अक [उत् + गम्] उदित होना। उक्खिण्ण वि [दे] अवकीर्ण, ध्वस्त, चूर्णित ।
उग (अप) वि [उद्गत] उदित । आच्छन्न, गुप्त । एक तरफ से ढीला । उगाहिअ वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ। उक्खित्त । वि [उत्क्षिप्त] फेंका हुआ । उगुणपण्ण स्त्रीन[एकोनपञ्चाशत्] ऊनपचास । उक्खित्तय ) ऊँचा उड़ाया हुआ । ऊँचा उगुणवीसा स्त्री [एकोनविंशति] उन्नीस । किया हुआ । उन्मूलित, उत्पाटित । बाहर | उगुणुत्तर न [एकोनसप्तति] उनहत्तर । निकाला हुआ। उत्थित । न. गेय-विशेष । उगुणउइ स्त्री [एकोननवति] नवासी । 'चरय वि [चरक] पाक पात्र से बाहर उगुसीइ स्त्री [एकोनाशीति] उनासी । निकाले हुए भोजन को ही ग्रहण करने का उग्ग अक [उद् + गम्] उदित होना । नियमवाला (साधु)।
उग्ग सक [उद् + घाटय] खोलना। उक्खिप्प देखो उक्खिव = उत् + क्षिप् । उग्ग वि [उग्र] तेज, तीव्र, प्रबल । पुं. क्षत्रिय उक्खिय वि [उक्षित] सींचा हुआ।
की एक जाति, जिसको भगवान् आदिदेव ने उक्खिल्ल सक [दे] उखाड़ना ।
आरक्षक-पद पर नियुक्त किया था । वई स्त्री उक्खिव सक [उप + क्षिप्] स्थापन करना। [°वती] ज्योतिः-शास्त्र प्रसिद्ध नन्दा-तिथि उक्खिव सक [उत् + क्षिप्] फेंकना। ऊँचा | की रात । सिरि ९ [°श्रीक] राक्षस वंश फेंकना । उड़ाना। बाहर करना। काटना।। का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एक लंकेश ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१४४
° सेण पुं [ सेन] मथुरा नगरी का एक यदुवंशीय राजा ।
उग्गंठ सक [ उत् + ग्रन्थ्] खोलना, गाँठ खोलना ।
उग्गंध वि [ उद्गन्ध] अत्यन्त सुगन्धित । उग्गच्छ अक [ उद् + गम् ] उदय होना । }
उग्गम
उगम पुं [ उद्गम] उत्पत्ति, उद्भव । उदय । उत्पत्ति से सम्बन्ध रखनेवाला एक भिक्षादोष । उग्गमियवि [ उद्गमित] उपार्जित । उग्गय वि [ उद्गत ] उत्पन्न । उदय प्राप्त । व्यवस्थित |
उग्गह सक [रचय् ] बनाना, निर्माण करना ।
करना ।
उग्गह सक [उद् + ग्रह] ग्रहण करना | उग्गह पुं [अवग्रह] इन्द्रिय द्वारा होनेवाला सामान्य ज्ञान - विशेष । अवधारण, निश्चय । प्राप्ति | भाजन । साध्वियों का एक उपकरण । योनिद्वार | ग्रहण करने योग्य वस्तु । आश्रय, वसति । वस्तु, जिसपर अपना प्रभुत्व हो । मर्यादित भू-भाग, गुर्वादि की चारों तरफ की शरीर - प्रमाण जमीन । णंत न [नन्त ] जैन साध्वियों का एक गुह्याच्छादक वस्त्र, जाँघिया । पट्टन [पट्ट] देखी पूर्वोक्त
अर्थ |
उग्गह पुं [अवग्रह] परोसने के लिए उठाया हुआ भोजन ।
उग्गहण न [ अवग्रहण ] इन्द्रिय द्वारा होने
वाला सामान्य ज्ञान ।
उग्गहवि [ अवगृहीत ] सामान्य रूप से ज्ञात । परोसने के लिए उठाया हुआ । गृहीत । आनीत । मुख में प्रक्षिप्त । उहि वि [] अच्छी तरह लिया हुआ । उग्गा सक [ उद् + गै] ऊँचे स्वर से गान करना | वर्णन करना । श्लाघा करना ।
उग्गंठ-उग्घड
उग्गाढ वि [ उद्गाढ ] अति गाढ़, प्रबल
स्वस्थ |
उग्गामियवि [ उद्गमित ] ऊपर उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ ।
उग्गार
पुं [ उद्गार ] उक्ति । आवाज, उग्गाल ध्वनि । डकार । वमन | जल का छोटा प्रवाह । रोमन्थ, पगुराना ।
उग्गाल पुं [दे. उद्गाल ] पान की पिचकारी । उग्गाल पुं [ उद्गार ] बाहर निकलना । उग्गाह सक [उद् + ग्रह] ग्रहण करना । उग्गहसक [अव + गाह् ] अवगाहन करता उगाह सक [उद् + ग्राह्य् ] तगादा करना ! ऊंचे से चलना |
उग्गाह पुं. देखो उग्गाहा ।
उग्गहा स्त्री [ उद्गाथा ] छन्द - विशेष | उग्गाहि वि [दे. उद्ग्राहित] गृहीत | फेंका हुआ। वर्तत । ऊँचे से चलाया हुआ । उग्गाहिम वि [अवगाहिम] तली हुई वस्तु । उग्गिण वि [ उद्गीर्णं ] कथित | वान्त ऊपर किया हुआ । उग्गिर देखो उग्गिल ।
उग्गल सक [ उद् + गृ] कहना, बोलना । डकार करना । उलटी करना । उठाना । उग्गीय वि [ उद्गीत ] उच्च स्वर से गाया हुआ । न सङ्गीत गीत । उग्गीर देखो उग्गिर ।
उग्गीव वि [ उद्ग्रीव] उत्कण्ठित, उत्सुक है कवि [कृत] उत्कण्ठित किया हुआ । लुंछि स्त्री [] भावोद्रेक ।
उग्गोव सक [ उद् + गोपय् ] खोजना | प्रकट करना । विमुग्ध करना । भ्रान्त होना । उग्घ देखो उंघ ।
स्त्री [दे] अवतंस, शिरोभूषण !
उघट्टि
उघट्टी
उग्घड सक [उद् + घाटय् ] खोलना । उग्घड अक [उद् + घट् ] खुलना ।
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षषण।
उग्घडिअ-उच्चय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उग्घडिअ वि [उद्घाटित] खुला हुआ। छिन्न, कर जाहिर करना । नष्ट किया हुआ।
उग्घोसिय वि [माजित] साफ किया हुआ । उग्घर वि[उद्गृह]गृह-त्यागी, संन्यासी, साधु । उघूण वि [दे] पूर्ण, भरपूर।। उग्घव देखो अग्धव ।
उचिय वि [उचित] योग्य, अनुरूप । °ण्णु उग्घसिय न [अवघर्षित] घर्षण ।
वि [°ज्ञ] विवेकी। उग्धाअ पुं [दे] समूह, सङ्घात । स्थपुट, | उच्च न [दे] नाभि-तल । विषमोन्नत प्रदेश।
उच्च वि [उच्च, उच्चैस्] ऊँचा। उत्तम, उग्घाअ पुं [उद्घात] आरम्भ । प्रतिघात उत्कृष्ट । °च्छंद वि [°च्छन्दस्] स्वेच्छाठोकर लगना। लघूकरण, भाग-पात । चारी । °त्त न [°त्व] ऊँचाई । उत्तमता । उपोद्घात । ह्रास । न. प्रायश्चित्त-विशेष । °त्तभयग, त्तभयय पुं [त्वभृतक] जिससे निशीथ सूत्र का एक अंश, जिसमें उक्त समय और वेतन का इकरार कर यथासमय प्रायश्चित्त का वर्णन है।
नियत काम लिया जाय वह नौकर । उग्घाअ सक [उद् + घातय] विनाश करना । °त्तरिया स्त्री [तरिका] लिपि-विशेष । उग्घाइम वि [ उद्घातिम ] लघु, छोटा । त्थवणय न ["स्थापनक] लम्बगोलाकार न. लघु प्रायश्चित्त।
वस्तु-विशेष । °वचिआ स्त्री [°वचिका] उग्घाइय वि [उद्घातित] विनाशित । न.
ऊँचा-नीचा करना, जैसे-तैसे रखना । °वाय लघु प्रायश्चित्त । लघु प्रायश्चित्त वाला। पुं [°वाद] श्लाघा । देखो उच्चा। उग्घाइय न [उद्घातिक] लघ प्रायश्चित्त। उच्चइअ वि [उच्चयित] एकत्रीकृत । उग्घाड सक उद् + घाटय] खोलना । प्रकट / उच्चडिय वि [६] ऊंचा चढ़ाया हुआ। करना । बाहर करना ।
उच्चंतय पुं [उच्चन्तग] दन्त-रोग । उग्घाड [उद्घाट]प्रकट । वि.अनाच्छादित। उच्चपिअ वि दे] दीर्घ, लम्बा। आक्रान्त,
थोड़ा बन्द किया हुआ । परिपूर्ण, अन्यून। दबाया हुआ, रौंदा हुआ। उग्घायण न [उद्घातन] नाश, विनाश । उच्चड्डिअ वि [दे] ऊंचा फेंका हुआ। पूज्य-स्थान, उत्तम जगह । सरोवर में जाने। उच्चत्त वि [उत्त्यक्त] पतित, त्यक्त । का मार्ग।
उच्चत्तवरत्त न [दे] दोनों तरफ का स्थूल उग्घार पुं [उद्घार] सिञ्चन ।
भाग । अनियमित भ्रमण, अव्यवस्थित विवउग्घिट्ट ) वि [उद्धृष्ट] संघृष्ट ।
र्तन । दोनों तरफ से ऊँचा-नीचा करना। उग्घुटु ।
उच्चत्थ वि [दे] दृढ़, मजबूत । उग्घुटु वि [उ ष्ट] घोषित, उद्घोषित ।। उच्चदिअ वि [दे] चुराया हुआ । उग्घुट्ठ वि [दे] उत्प्रोञ्छित, लुप्त, दूरीकृत, उच्चप्प वि [दे] आरूढ़ । विनाशित ।
उच्चय सक [उत् + त्यज्] छोड़ देना । उग्घुस सक [मृज्] साफ करना।
उच्चय पुं. समूह, राशि । ऊँचा ढेर करना । उग्घुस सक [उद् + घुष्] देखो उग्घोस । नीवी, स्त्री के कटी-वस्त्र की नाड़ी । °बंध उग्घोस सक [उद् + घोषय] घोषणा करना, पुं [°बन्ध] बन्ध-विशेष, ऊपर-ऊपर रख ढिंढोरा पिटवाना, जाहिर करना ।
कर चीजों को बाँधना। उग्घोसणा स्त्री [उद्घोषणा] ढिंढोरा पिटवा- उच्चय पृ [अवचय] इकट्ठा करना ।
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१४६
उच्चर सक [ उत् + चर् ] उत्तीर्ण होना । बोलना । पहुँच सकना । बाहर निकलना ।
अक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पार जाना,
समर्थ होना,
उच्चलण न [ उच्चलन] उन्मर्दन, उत्पीड़न । उच्चलिय वि [ उच्चलित ] चलित, गत । उच्चल वि[दे] अध्यासित आरूढ़ | विदारित ।
उच्चल्ल सक [उत् + चल् ] चलना, जाना | समीप में आना ।
उच्चा अ [उच्चैस् ] ऊँचा । उत्तम, श्रेष्ठ | 'गोत, 'गोय न [ 'गोत्र ] उत्तम गोत्र, श्रेष्ठ-वंश । कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से जीव उत्तम माने-जाते कुल में उत्पन्न होता है । 'वयन [ व्रत ] महाव्रत । वि. महाव्रतधारी ।
उच्चाअवि [] श्रान्त । पुं. आलिङ्गन । उच्चाइय वि [दे. उत्त्याजित] उत्थापित,
उठाया हुआ ।
उच्चाग पुं हिमाचल पर्वत । °य वि [ज] उच्चड अक [ उत् + चुड् ] अपसरण करना । हिमाचल में उत्पन्न । उच्च क [ चट् ] आरूढ़ होना । उच्चरण [दे] उच्छिष्ट ।
उच्चाड वि [दे] विपुल, विशाल । उच्चाड सक [दे] रोकना । करना ।
उच्चु लउलिअन [ दे] कुतूहल से शीघ्र शीघ्र
जाना ।
अक अफसोस
उच्चाडण न [उच्चाटन ] एक स्थान से दूसरे स्थान में उठा ले आना, स्व-स्थान से भ्रष्ट करना । मन्त्र - विशेष, जिसके प्रभाव से वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है । उच्चाडणी स्त्री [उच्चाटनी ] विद्या विशेष जिसके द्वारा वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है ।
उच्चर-उच्चेव
उच्चाल सक [उत् + चालय् ] ऊँचा फेंकना ।
दूर करना ।
उच्चाइय वि [उच्चालयितृ] दूर करनेवाला, त्यागने वाला ।
उच्चाव
सक [ उच्चय् ] ऊँचा करना,
उच्चारण न कथन ।
उच्चारिअ वि [दे] गृहीत, उपात्त ।
उठाना ।
उच्चावयवि [ उच्चावच ] ऊँचा और नीचा । उत्तम और अधम । अनुकूल और प्रतिकूल । असमञ्जस, अव्यवस्थित । नानाविध । विशेष उत्तम |
उच्चिट्ठ अक [ उत् + स्था ] खड़ा होना । उच्चिडिम वि [ दे] मर्यादा -रहित, निर्लज्ज । उच्चिन सक [ उत् + चि] फूल वगैरह को तोड़ कर एकत्रित करना, इकट्ठा करना । उच्चिय देखो उचिय । उच्चिवलय न [ दे] कलुषित जल । उच्चुंच वि [दे] दृप्त, अभिमानी । उच्च व [] अवस्थित ।
उच्चार सक [उत् + चारय् ] बोलना । मलो- उच्चे देखो उच्चिण ।
त्सर्ग करना ।
उच्चार वि [दे] स्वच्छ |
उच्चुल्ल वि [दे] उद्विग्न | अधिरूढ । भीत । उच्चड पुं. निशान का नीचे लटकता हुआ श्रृंगारित वस्त्रांश | उच्च व [] बहुविध ।
उच्चूल पुं [अवचूल] निशान का नीचे लटकता हुआ शृङ्गारित वस्त्रांश | औंधा-सिर - पैर ऊपर और सिर नीचे कर - खड़ा किया हुआ ।
उच्चेय वि [उच्चेतस् ] चिन्तातुर मनवाला । उच्चेल्लर न [दे] ऊसर भूमि । जघनस्थानीय
केश ।
उच्चैव वि [] प्रकट, व्यक्त ।
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उच्चोड-उच्छित्त
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१४७
उच्चोड पुं. [दे] शोषण ।
उच्छविअ न [दे] शय्या, बिछौना। उच्चोदय पुं. चक्रवर्ती का एक देवकृत प्रासाद ।। उच्छह सक [ उत् + सह ] उद्यम करना । उच्चोल पुं [दे] खेद, उद्वेग । नीवी, स्त्री के | अक. उत्साहित होना। कटि-वस्त्र की नाड़ी।
उच्छाइअ वि [अवच्छादित] आच्छादित, उच्छ पुं [उक्षन्] वृषभ ।
ढका हुआ। उच्छ पुं [दे] आँत का आवरण । वि. न्यून, उच्छाडिअ (अप) वि [अवच्छादित] ढका हीन ।
हुआ। उच्छअ पुं [उत्सव क्षण, उत्सव ।
उच्छाण देखो उच्छ = उक्षन् । °उच्छअ वि [पृच्छक] प्रश्न-कर्ता । उच्छाय पुं [उच्छाय] उत्सेध, ऊँचाई । उच्छइअ वि [उच्छदित] आच्छादित । उच्छाय सक [ अव + छादय् ] ढकना। उच्छंखल वि [उच्छृङ्खल] शृङ्खला-रहित, | उच्छायण वि [उच्छादन] नाशक ।
अवरोध-वर्जित, बन्धन-शून्य । उद्धत । उच्छायणया) स्त्री [उच्छादना] उच्छेद, उच्छंग पुं [उत्सङ्ग] मध्य भाग । गोद । पृष्ट उच्छायणा । विनाश । व्यवच्छेद, देश ।
व्यावृत्ति । उच्छंगिअ वि [उत्सङ्गित] कोरा, कोली या | उच्छार देखो उत्थार = आ + क्रम् । गोद में लिया हुआ।
उच्छाल सक [ उत् + शालय ] उछालना, उच्छंगिअ वि [दे] आगे किया हुआ, आगे | ऊँचा फेंकना। रखा हुआ।
उच्छास देखो ऊसास। उच्छंघ देखो उत्थंघ।
उच्छाह सक [ उत् + साहय ] उत्साह उच्छंट पुं [दे] झड़प से को हुई चोरी । दिखाना, उत्तेजित करना। उच्छट्ट पुं दे] चोर, डाकू।
उच्छाह पुं [उत्साह] उत्साह । दृढ़ उद्यम, उच्छडिअ वि [दे] चोरी का माल ।
स्थिर प्रयत्न । उत्कण्ठा, उत्सुकता । पराक्रम । °उच्छण न [प्रच्छन] प्रश्न, पूछना।
शक्ति । उच्छण्ण वि [उत्सन्न] छिन्न, खण्डित, नष्ट । । | उच्छाह पुं [दे] सूत का डोरा । उच्छत न [अपच्छत्र] अपने दोष को ढकने | उच्छिद सक [उत् + छिद्] उन्मूलन करना, का व्यर्थ प्रयत्न । मृषावाद ।
उखाड़ना । उच्छप्प सक [उत् + सर्पय] उन्नत करना,
उच्छिदण न [दे] उधार लेना। प्रभावित करना।
उच्छिपग वि [अवच्छिम्पक] चोरों को खानउच्छल अक [उत् + शल्] उछलना, ऊँचा | पान वगैरह की सहायता देनेवाला। जाना । कृदना । पसरना, फैलना। उच्छिपण न [उत्क्षेपण] ऊपर फेंकना । बाहर उच्छल्ल देखो उच्छल ।
निकालना। उच्छल्ल वि [उच्छल] उछलनेवाला। उच्छि? वि [उच्छिष्ट] जूठा । अशिष्ट, असभ्य । उच्छल्लणा स्त्री [दे] अपवर्त्तना, अपप्रेरणा । । उच्छिण्ण वि [उच्छिन्न] उच्छिन्न, उन्मूलित । उच्छल्लिअ वि [दे] जिसकी छाल काटी गई | उच्छित्त वि [दे] विक्षिप्त । पागल । हो वह ।
उच्छित्त वि [उत्क्षिप्त] फेंका हुआ । उच्छव देखो उच्छअ । उत्सेक ।
उच्छित्त देखो उठ्ठिय ।
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१४८
उच्छित्त वि [ उत्सिक्त ] सींचा हुआ । उच्छिष्प देखो उक्खिव । उच्छिय वि [ उच्छ्रित] उन्नत, ऊँचा । उच्छिरण वि [] उच्छिष्ट, जुठा । उच्छिल न [ दे] विवर । वि. अवजीर्ण | उच्छु देखो इक्खु । जंत न [ यंत्र ] ईख पेरने का सांचा ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उच्छु पुं [दे] वायु । उच्छुअवि [ उत्सुक ] उत्कण्ठित 1
उच्छुअन [दे] डरते-डरते की हुई चोरी । उच्छुअरण न [दे] ईख का खेत । उच्छुआर वि [दे] संछन्न, ढका हुआ । उच्छृंडिअ वि [दे] बाण वगैरह से आहत | छीना हुआ ।
उच्छुच्छु वि [दे] अभिमानी ।
उच्छुण्ण a [ उत्क्षुण्ण] खण्डित, तोड़ा हुआ ।
आक्रान्त |
उच्छुद्ध व [] विक्षिप्त । पतित ।
उच्छुभ सक [ अप + क्षिप् ] आक्रोश करना, गाली देना ।
उच्छुभण न [उत्क्षेपण] ऊँचा फेंकना । उच्छुर वि [दे] अविनश्वर, स्थायी । उच्छुरण न [दे] ईख का खेत । ईख । उच्छुल्ल पुं [दे] अनुवाद | खेद, उद्वेग । उच्छू [] आरूढ़, ऊपर बैठा हुआ । वि उच्छूढ वि [ उत्क्षिप्त ] उज्झित । हुआ । निष्कासित |
उच्छूढ वि [उत्क्षुब्ध] त्यक्त |
=
उच्छूर देखो उल्लूर - तुड़ । उच्छूल देखो उच्चूल |
उच्छेअ पुं [उच्छेद ] नाश, उन्मूलन ।
चुराया
उच्छेर अक [उत् + श्रि ] ऊँचा होना, उन्नत होना । अधिक होना, अतिरिक्त होना । उच्छेव पुं [उत्क्षेप] ऊँचा करना, उठाना | फेंकना ।
उच्छेव पुं [उत्क्षेप] प्रक्षेप |
उच्छित्त-उज्जल
उच्छेवण न [ दे] घी ।
उच्छेह पुं [उत्सेध] ऊँचाई । उच्छोडि वि [ उच्छोटित ] मुक्त किया
हुआ । उच्छोभ वि शोभा-रहित । न चुगली । उच्छोल सक [ उत् + मूलय् ] उखाड़ना । उच्छोल सक [उत् + क्षालय् ] प्रक्षालन करना | उच्छोला स्त्री [दे] प्रभूत जल । उच्छोलित्तु वि [उत्क्षालयितृ] डूबोनेवाला । उजु देखो उज्जु ।
उज्ज देखो ओय = ओजस् ।
उज्जन [ऊर्ज] तेज, प्रताप । बल । उज्जअणी स्त्री [उज्जयनी, यिनि] नगरीउज्जइणी विशेष |
उज्जंगल न [] बलात्कार, जबरदस्ती । वि. दीर्घ, लम्वा ।
उज्जगरय पुं [ उज्जागरक] जागरण | उज्जग्गिर न [ उज्जागर] निद्रा का अभाव । उज्जग्गुज्ज वि [दे] निर्मल । उज्जड व [दे] उजाड़, वसति-रहित । उज्जणि वि [दे] वक्र, टेढ़ा |
उज्जम अक [ उद् + यम् ] उद्यम करना,
प्रयत्न करना ।
उज्जमण (अप) न [ उद्यापन ] उद्यापन, व्रतसमाप्ति कार्य ।
उज्जयि (अप) वि [ उद्यापित ] समापित (व्रत) | उज्म्ह अक [उत् + जृम्भ् ] जोर से जँभाई लेना ।
उज्जय हि [ उद्यत ] उद्योगी, प्रयत्नशील । 'मरण न. मरण-विशेष |
उज्जयंत पुं [ उज्जयन्त] गिरनार पर्वत । उज्जर वि [दे] मध्य-गत, भीतर का । पुं. निर्जरण, क्षय ।
उज्जल अक [उद् + ज्वल्] जलना | प्रकाशित होना ।
उज्जल वि [ उज्ज्वल ] निर्मल | चमकीला ।
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उज्जल-उज्जोअय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१४९ उज्जल विदे] देखो उज्जल्ल ।
हुआ। उज्जलिअ पुं [उज्ज्वलित] तीसरी नरक-भूमि उज्जु वि [ऋजु] निष्कपट, सीधा। °कड़ वि का सातवाँ नरकेन्द्रक ।
[कृत] निष्कपट तपस्वी । °कड़ वि [कृत्] उज्जलिअ वि [उज्ज्वलित]उद्दीप्त, प्रकाशित । माया-रहित आचरणवाला । जड़, जड्डु वि ऊँची ज्वालाओं से युक्त । न. उद्दीपन । [°जड़] सरल किन्तु मूर्ख, तात्पर्य को नहीं उज्जल्ल वि [दे] पसीनावाला, मलिन, समझनेवाला । मइ स्त्री [°मति] मनःपर्यव बलवान।
ज्ञान का एक भेद, सामान्य रीति से दूसरों उजल्ल न [औज्ज्वल्य] उज्ज्वलता ।
के मनोभाव को जानना । वि. उक्त मनोउज्जल्ला स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती ।
ज्ञानवाला । वालिया स्त्री [°वालिका उज्जव अक [उद् + यत्] प्रयत्न करना ।
नदी-विशेष, जिसके किनारे भगवान् महावीर उज्जवण देखो उज्जावण ।
को केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ था। °सुत्त पुं उज्जह सक [उद् + हा] प्रेरणा करना ।
[°सूत्र] वर्तमान वस्तु को हो माननेवाला उज्जाअर) पुं [उजागर] जागरण, निद्रा का नय-विशेष । सुय पुं [ °श्रुत ] देखो पूर्वोक्त उजागर । अभाव ।
अर्थ । हत्थ पुं [ हस्त] दाहिना हाथ । उजाडिअ वि [दे] उजाड़ किया हुआ।
उज्जु पुं [ऋजु] संयम । उज्जाण न [उद्यान] उपवन । जत्ता स्त्री
उज्जआइअ वि [ऋजुकारित] सरल किया [ यात्रा] गोष्ठी। पालअ, वाल वि |
हुआ। [°पालक, पाल] माली ।
उज्जुत्त वि [उद्युक्त उद्यमी, प्रयत्नशील । उज्जाणिअ वि [औद्यानिक]उद्यान-सम्बन्धी, | उज्जुरिअ वि [दे] क्षीण, शुष्क, सूखा । बगीचा का।
उजूढ वि [उद्व्यूढ] धारण किया हुआ । उज्जाणिअ वि [दे] निम्नीकृत ।
उज्जेणग पुं [उज्जयनक] श्रावक-विशेष, एक उज्जाणिआ। स्त्री [ औद्यानिका ] गोष्ठी,
उपासक का नाम । उज्जाणिगा) गोठ ।
उज्जेणी देखो उज्जइणी। उज्जाणी स्त्री [औद्यानी] गोष्ठी। उज्जायण न [उद्यायन] गोत्र-विशेष ।
उज्जोअ सक [उद् + द्योतय] प्रकाश करना,
उद्योत करना। उज्जाल सक [उत् + ज्वालय्] उज्ज्वल करना, विशेष निर्मल करना।
उज्जोअ पुं [उद्योग] प्रयत्न, उद्यम । उज्जाल सक [उद् + ज्वालय]उजाला करना।
उज्जोअ पुं [उद्द्योत] प्रकाश, उजेला । °गर
वि [°कर] प्रकाशक । उयोत का कारणजलाना। उज्जालय वि[उज्ज्वालक]आग सुलगानेवाला।
भूत कर्मविशेष । 'त्थ न [°ास्त्र] शस्त्रउज्जावण न [उद्यापन] व्रत का समाप्तिकार्य।
विशेष । उज्जाविय वि [दे] विकासित ।
उज्जोअग वि [उद्द्योतक] प्रकाशक । उजित देखो उजयंत ।
उज्जोअण न [उद्योतन प्रकाशन, अवभासन । उज्जीरिअ वि [दे] अपमानित, तिरस्कृत ।। वि. प्रकाश करनेवाला । पं. सूर्य । एक प्रसिद्ध उज्जीवण न [उज्जीवन] पुनर्जीवन, जिलाना। जैनाचार्य । - उद्दीपन ।
उज्जोअय वि[उद्द्योतक] प्रकाशक । प्रभावक, उज्जीविय वि [उज्जीवित] पुनर्जीवित, जिलाया । उन्नति करनेवाला ।
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१५०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उज्जोमिआ-उडंक उज्जोमिआ स्त्री [दे] रश्मि, रस्सी। पुं[श्रमण] आजीविक-मत का साधु, जो उज्जोव देखो उज्जोअ% उद् + द्योतय । बड़े घड़े में बैठ कर तपस्या करता है । उज्झ सक [उज्झ्] त्याग करना, छोड़ देना। उट्र अक [उत् + स्था] उठना, खड़ा होना। उज्झ पुं [उज्झ, उद्ध्य] उपाध्याय, पाठक । उट्र वि [उत्थ] उठा हुआ । °बइस अप उज्झअ ) वि [उज्झक] त्याग करनेवाला, । [पवेश] उठ-बैठ । उज्झग । छोड़नेवाला।
उट्ट [ओष्ठ] ओठ । उज्झणिअ वि [दे] विक्रीत, निम्नीकृत ।
उट्ठ पुं[उष्ट्र] जलचर जन्तु-विशेष । उज्झमण न [दे] पलायन, भागना ।
उ?ण देखो उट्ठाण । उज्झमाण वि [दे] पलायित, भागा हुआ । उटुंभ सक [अव + स्तम्] सहारा देना। उज्झर पुं [निर्झर]पहाड़ का मरना । °वणी आक्रमण करना। स्त्री [°पणी] जल-प्रपात ।
उडवण न [उत्थापन] ऊँचा करना, उठाना । उज्झरिअ वि [दे] टेढ़ी नजर से देखा हुआ । उट्ठा देखो उ8 = उत् + स्था। विक्षिप्त । फेंका हुआ । परित्यक्त ।
उदा स्त्री [उत्था] उत्थान, उठान । उज्झल वि [दे] प्रबल, बलिष्ठ ।
उट्ठाइअ वि [उत्थित] जो तैयार हुआ हो, उज्झलिअ वि [दे] प्रक्षिप्त । विक्षिप्त । प्रगुण । उत्पन्न, उत्थित । उज्झस पुं [दे] उद्यम, उद्योग प्रयत्न । उदाण न [उत्थान] उठान, ऊँचा होना । उज्झसिअ वि [दे] उत्कृष्ट, उत्तम ।
उद्भव, उत्पत्ति । आरम्भ । उद्वसन, बाहर °उज्झा देखो अउज्झा।
निकलना । सुय न [ श्रुत] शास्त्र-विशेष । उज्झाय पुं [उपाध्याय] विद्या-दाता गुरु, | उट्ठाय देखो उट्ठ - उत् + स्था। शिक्षक।
उहाव सक [उत् + स्थापय्] उठाना । उज्झासि वि [उद्भासिन्] देदी यमान । | उढावण देखो उट्ठवण । उज्झिखिअ न [दे] लोकापवाद । वि. निन्द
उट्ठावण देखो उवट्ठावणा । नीय । कथनीय ।
उट्ठावणा देखो उवट्ठावणा। उज्झिय वि [उज्झित विमुक्त । भिन्न । |
उद्याविअ वि [उत्थापित] उठाया हुआ, न. परित्याग। °य पुं [क] एक सार्थवाह
___ खड़ा किया हुआ । उत्पातित ।
उट्टिय वि [उत्थित] खड़ा हुआ। उत्पन्न, का पुत्र । उज्झिय वि [दे] शुष्क । निम्नीकृत ।
उद्भूत । उदित । उद्यत, उद्युक्त । उद्वसित,
बाहर निकला हुआ। उज्झिया स्त्री [उज्झिता] एक सार्थवाह- उदिसिय वि [उद्घषित] पुलकित । पत्नी।
उट्ठीअ (अप) देखो उद्विय । उट्ट पुंस्त्री [उष्ट्र] ऊँट ।
उठुभ । अक [अव + ष्ठीव्] थूकना । उदार पुं [अवतार] तीर्थ, जलाशय का तट । उटठह उट्टिगा देखो उट्टिया।
उठिअ (अप) देखो उट्टिय। उट्टिय । वि [औष्ट्रिक] ऊँट-सम्बन्धी । °उड पुंन [कुट] कुम्भ।। उट्रियय ऊँट के रोओं का बना हुआ। | °उड पुं [कूट] समूह, राशि । पुं. भृत्य । घड़ा।
°उड देखो पुड। उट्टिया स्त्री [उष्ट्रिका] घड़ा, कुम्भ । "समण ! उडंक [उटङ्क] तापस-विशेष ।
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उडंब-उड्ढ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उडंब विदे] लिपा हुआ।
उड्डाण पुं[दे] प्रतिशब्द, कुरर । पक्षि-विशेष । उडज पुं [उटज] ऋषि-आश्रम, पर्ण- विष्ठा । मनोरथ । वि. गर्विष्ठ । उडय शाला ।
उड्डामर वि. उद्भट प्रबल । भीति । आडम्बरउडव )
वाला, टीपटापवाला। उडाहिअ वि [दे] फेंका हुआ ।
उड्डाव सक [उद् + डायय्] उड़ाना । उडिअ वि [दे] खोजा हुआ ।
उड्डाव वि [उड्डाय] उड़ानेवाला । उडिउ पुं [दे] उरद, धान्य-विशेष। उड्डावण न [उड्डार'न] उड़ाना । आकर्षण । उडु पुं. एक देव-विमान । 'प्पभ पुन [प्रभ] . उड्डास पुं [दे] सन्ताप, परिताप । उडु नामक विमान के पूर्व तरफ स्थित एक उड्डाह पुं [उद्दार] भयङ्कर दाह, जला देव-विमान । °मज्झ पुंन [°मध्य] उडु- देना । मालिन्य, निन्दा, उपधात । विमान के दक्षिण तरफ का एक देव-विमान । उडिअ वि औड़] उडीसा देश का निवासी । यावत्त पुंन [°कावर्त] उडुविमान के उडि वि [दे] उक्षिप्त, फेंका हुआ। पश्चिम तरफ का एक देव-विमान । सिट्ट उडि आहरण न दे छरी पर रक्खे हए फल पंन °सष्ट] उडुविमान के उत्तर तरफ का को पांव की दो उँगलियों से लेते हुए चल एक देव विमान ।
जाना। उडु न. नक्षत्र । विमान-विशेष । °प, °व पुं
पु उड्डिय वि [उड्डीन] उड़ा हुआ। [प] चन्द्रमा । जहाज, नौका । एक की
| उड्डिहिअ वि [दे] ऊपर फेंका हुआ। संख्या । °वइ पुं [पति] चन्द्र । °वर पुं.
उड्डी अक [उद् + हा] उड़ना । सूर्य ।
| उड्डी स्त्री [औडी] उत्कल देश की लिपि । उडु देखो उउ ।
उड्डीण वि [उड्डीन उड़ा हुआ । उडुंबरिजिया स्त्री [उदुम्बरीया] जैन उड्डुअ पुं [दे] डकः र, उद्गार । मुनियों की एक शाखा ।
उड्डुश्य । पुं[दे देखो । उड्डुअ । उडहिअ न [दे] विवाहिता स्त्री का कोप । उडोअ । वि. जूठा।
उड्डुवाडिय पुंउड्डुवाटिक] भगवान् उडूहल पुंन [उडूखल] उलूखल ।
महावीर के एक गण का नाम । उड्ड पुं [उड्र] उत्कल, ओड़, ओड नामों से | उड्डुहिअ देखो उडु हिअ । प्रसिद्ध देश, जिसको आजकल उड़ीसा कहते उड्डोय देखो उड्डुअ । हैं । इस देश का निवासी, उड़िया।
उड्ढ न [ऊर्ध्व] ऊपर, ऊँचा । वमन । वि. उड्ड वि [दे] कुआ आदि को खोदनेवाला,
उत्तम, मुख्य । खड़ा, दण्डायमान । उपरितन । खनक ।
कंडूयग पुं [कण्डूयक] तापसों का एक उड्डण पुं [दे] बैल, साँड़ । वि. लम्बा । सम्प्रदाय जो नाभि के ऊपर भाग में ही खुजउड्डूंस देखो उद्देस।
लाते हैं। काय . शरीर का उपरितन उडुस पुं [दे] खटमल, खटकीरा, उड़िस । भाग । °काय पुं [काक] काक । "गम वि उड्डहण पुं [दे] चोर, डाकू ।
ऊपर जानेवाला ।"चर वि. ऊपर चलनेवाला, उड्डाअ पुं[दे] उद्गम, उद्भव ।
आकाश में उड़नेवाला(गृध्रादि)। दिसा स्त्री उड्डाण न [उड्डयन] उड़ान, उड़ना।
। [°दिश्] ऊर्ध्व दिशा । ° रेणु पुं. परिमाण
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१५२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उड्ढं-उत्तुइय विशेष, आठ । लोग, लोय लोक] मानी । गर्व । स्वर्ग, देव-लोक । °वाय पुं [°वात] ऊँचा उण्णय पुं [उन्नय] नीति का अभाव । गया हुआ वायु ।
उण्णा स्त्री [ऊर्णा] ऊन, भेड़ के रोम । उड्ढं ऊपर देखो।
°पिपीलिया स्त्री [°पिपीलिका] चींटी।। उड्ढंक न [दे] मार्ग का उन्नत भू-भाग ।। उण्णाअक वि [उन्नायक] उन्नति-कारक । पुंन. उड्ढल । पुं [दे] उल्लास, विकास । छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध मध्य-गुरु चतुष्कल की उड्ढल्ल
संज्ञा। उड्ढविय वि [ऊध्वित] ऊँचा किया हुआ ।
उण्णाग [उन्नाक] ग्राम-विशेष । उडढा स्त्री [ऊर्वा] ऊर्ध्व-दिशा ।
उण्णाम पुं [उन्नाम] उन्नति, ऊँचाई । अभिउड्ढि (दे] देखो उद्धि।
मान । गर्व का कारण-भूत कर्म । उड्ढि देखो वुड्ढि ।
उण्णाम सक [उद् + नमय] ऊँचा करना । उड्ढि देखो इद्धि ।
उण्णाल सक [उद् + नमय] ऊँचा करना।
उण्णालिय वि [दे] कृश । उन्नमित । उड्ढिय देखो उद्धरिअ = उद्धृत ।
उण्णिअ वि [उन्नीत] वितर्कित, विचारित । उड्ढिया स्त्री (दे] पात्र-विशेष । कम्बल
उण्णिअ वि [औणिक] ऊन का बना हुआ। वगैरह ओढ़ने का वस्त्र ।
उण्णिद्द वि [उन्निद्र] विकसित, उल्लसित । उणं देखो पुण = पुनर् ।
निद्रा-रहित । उण न [ऋण] करजा। उण ।
उण्णी सक [उद् + नी] ऊँचा ले जाना। उणा | देखो पुण।
कहना। उणाइ
उण्णुइअ पुं [दे] हुँकार । आकाश की तरफ उणपन्न स्त्रीन [एकोनपञ्चाशत् उनचास । | मुंह किए हुए कुत्ते की आवाज । वि. गर्वित । उणाइ पुं [उणादि] व्याकरण का एक | उण्ह पुं [उष्ण] गरमी । वि. तप्त । प्रकरण ।
उण्हवण न [उष्णन] गरम करना। उणाइ पुं [दे] प्रिय, पति, नायक । उण्हिआ स्त्री [दे] कृसर, खिचड़ी। उणो देखो पुण।
उण्हीस पुंन [उष्णीष] पगड़ी, मुकुट । उण्ण न [ऊर्ण]भेड़ या बकरी के रोम, रोआँ । उण्होदयभंड पुं [दे] भमरा । °कप्पास पुं [°कापास] ऊन । °णाभ पुं उण्होला स्त्री [दे] कोट-विशेष । [°नाभ] मकड़ी।
उताहो अ [उताहो] अथवा । °उण्ण देखो पुण्ण = पूर्ण ।
उत्त वि [उक्त] कथित ।। उण्णअ सक [उद्+नद्] पुकारना, आह्वान | उत्त वि [उप्त] बोया हुआ। निष्पादित, करना।
उत्पादित । उण्णइ स्त्री [उन्नति] अभ्युदय ।।
पति-विशेष । उण्णम अक [उत् + नम्] ऊँचा होना, उन्नत | °उत्त वि [गुप्त] रक्षित । होना।
उत्त देखो पुत्त । उण्णम वि [दे] समुन्नत, ऊंचा।। उत्तइय। वि [उत्तेजित] । उण्णय वि [उन्नत] ऊँचा । गुणवान् । अभि- | उत्तुइय,
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उत्तंघ-उत्तर
उत्तंघ देखो उत्थंघ = रुध् । उत्तंघ देखो उत्तंभ |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्तंत देखो वृत्त । उत्तंपि वि [ दे] खिन्न, उद्विग्न । उत्तंभ सक [उत् + स्तम्भ्] रोकना । सहारा देना |
उत्तंभय वि [उत्तम्भक] रोकनेवाला । अवलम्बन देनेवाला, सहायक । उत्तंस पुं [अवतंस ] शिरोभूषण । उत्तंस पुं [उत्तंस] कर्णपूरक, कर्णभूषण । उत्तइव [] उत्तेजित अधिक दीपित । उत्तणवि [] गवस । देखो उत्तुण । उत्तणवि [उत्तण] तृणवाली जमीन । उत्तणुअवि [उत्तनुक] अभिमानी । उत्तत्तवि [उत्तप्त] बहुत गरम । उत्तत्तवि [] अध्यासित, आरूढ़ । उत्तत्थ वि [उत्त्रस्त] भयभीत, त्रास प्राप्त उत्तद्ध देखो उत्तरद्ध :
उत्तप्प व [] अभिमानी । अधिक गुणवाला । उत्तप्प वि [उत्तप्त ] देदीप्यमान । उत्तम पुं. एक दिन का उपवास । वि. श्रेष्ठ, सुन्दर । मुख्य । परम, उत्कृष्ट । अन्तिम । पुं. मेरुपर्वत । संयम, त्याग । राक्षस वंश का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एक लङ्केश । ट्ठपुं. [[ ] श्रेष्ठ वस्तु । मोक्ष । मोक्षमार्ग । अनशन, मरण । ण वि [f] लेनदार । उत्तम वि [उत्तमस् ] अज्ञान - रहित । उत्तमंग न [उत्तमाङ्ग ] मस्तक । उत्तमा स्त्री णायाधम्मकहा' का एक अध्ययन । इन्द्राणी । पक्ष की प्रथम रात्रि ।
उत्तम अक [उत् + तम् ] खिन्न होना, उद्विग्न होना । दिलगीर होना ।
उत्तर अक [उत् + तृ] उतरना, नीचे आना । बाहर निकलना । सक. पार करना । उत्तर अक [ अव + तृ] उतरना, नीचे आना । उत्तर वि. श्रेष्ठ, प्रशस्त । प्रधान । उत्तर-दिशा में रहा हुआ । उपरि-वर्त्ती । अधिक, अति
२०
१५३
रिक्त । अवान्तर भेद शाखा । ऊन का बना हुआ वस्त्र, कम्बल वगैरह । न. प्रत्युत्तर | वृद्धि । पुं. ऐरवत क्षेत्र के बाईसवें भावी जिनदेव का नाम । वर्षा-कल्प | आर्यमहागिरि के प्रथम शिष्य । कंचुय पुं [ कञ्चुक ] बख्तर-विशेष । 'करण न. उपस्कार, संस्कार, विशेष - गुणाधान । कुरा स्त्री [ कुरु ] स्वनाम - ख्यात क्षेत्र विशेष | ° कुरु पुं. वर्ष - विशेष | देव - विशेष | 'कुरुकूड न [° कुरुकूट ] माल्यवन्त पर्वत का एक शिखर | देव-विशेष | 'कोडि स्त्री ['कोटि ] सङ्गीतशास्त्रप्रसिद्ध गान्धार-ग्राम की एक मूर्च्छना | गंधारा स्त्री ['गान्धारा] देखो पूर्वोक्त अर्थ । 'गुण पुं. शाखा गुण, अवान्तर गुण । चावाला स्त्री नगरी - विशेष । 'चूल [चूड] गुरुवन्दन का एक दोष, गुरु को वन्दन कर बड़े आवाज से 'मत्थएण वंदामि' कहना | 'चूलिया स्त्री [° चूलिका] देखो अनन्तर उक्त अर्थ । ड्ढ न [°Tधं] पिछला आधा भाग, उत्तरा । दिसा स्त्री [दिश् ] उत्तर- दिशा । 'द्ध न [T] पिछला आधा भाग । पगइ पयsि स्त्री [° प्रकृति ] कर्मों के अवान्तर भेद | 'पन्चत्थिमिल्ल पुं [पाश्चात्य ] वायव्य कोण । पट्ट पुं. बिछौना के ऊपर का वस्त्र | पारणग न [पारणक] उपवासादि व्रत की समाप्ति, पारण । 'पुरच्छिम, पुरत्थम पुं [पौरस्त्य ] ईशान कोण । ° पोटुवया स्त्री [प्रोष्ठपदा ] उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र | फग्गुणी स्त्री [फाल्गुनी] उत्तर- फाल्गुनी नक्षत्र । 'बलिस्सह पुं. एक प्रसिद्ध जैन साधु । उत्तर बलिस्सह- नामक स्थविर से निकाला हुआ एक गण, भगवान् महावीर का द्वितीय गणसाधु सम्प्रदाय | भद्दवया स्त्री [भाद्रपदा ] नक्षत्र - विशेष | 'मंदा स्त्री. मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना । महुरा स्त्री [ "मथुरा ] नगरी - विशेष । 'वाय पुं [वाद] उतरवाद |
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१५४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्तरंग-उत्तास विक्किय, वेउब्विय वि [वैक्रिय] 1 उत्तर । स्वाभाविक-भिन्न वैक्रिय, बनावटी वैक्रिय । | उत्तरिल्ल वि [औत्तराह] उत्तर-दिशा या °साला स्त्री [°शाला] क्रीडा-गृह । पीछे से काल में उत्पन्न या स्थित, उत्तर सम्बन्धी, बनाया हुआ घर। वाहन गृह, हाथी-घोड़ा | उत्तरीय । आदि बाँधने का स्थान, तोला । "साहग, उत्तरीअ देखो उत्तरिय = उत्तरीय । °साहय वि [°साधक] विद्या, मन्त्र वगैरह
उत्तरीकरण न. उत्कृष्ट बनाना, विशेष शुद्ध का साधन करनेवाले का सहायक । देखो
करना। उत्तरा।
उत्तरो? पुं [उत्तरौष्ठ] ऊपर का ओठ । मूंछ । उत्तरंग न [उत्तरङ्ग] दरवाजे का ऊपर का
उत्तलहअ पुं [दे] विटप, अङ्कुर । काष्ठ । वि. चञ्चल ।
उत्तव वि [उक्तवत्] जिसने कहा हो वह । उत्तरकुरु पुं.ब. देव-भूमि, स्वर्ग । स्त्री. भगवान् उत्तस अक [उत् + त्रस्] बास पाना, पीड़ित नेमिनाथ की दीक्षाशिविका ।
होना । भयभीत होना । उत्तरणवरंडिया स्त्री [दे] उडुप, जहाज। उत्ताड सक [उत् + ताडय] ताड़न करना । उत्तरविउविवय वि [उत्तरवैकियिक] उत्तर- वाद्य बजाना। वैक्रिय नामक लब्धि से सम्पन्न ।
उत्ताण वि [उत्तान] उन्मुख, ऊर्ध्वमुख । उत्तरसंग देखो उत्तरा-संग।
चित्त । विस्फारित । अनिपुण । "साइय वि उत्तरा स्त्री. उत्तर-दिशा। मध्यम ग्राम की | ["शायिन्] चित्त सोनेवाला। की एक मूर्च्छना। एक दिशा-कूमारी देवी। उत्ताणपत्तय वि [दे] एरण्ड-सम्बन्धी ( पत्ती दिगम्बर-मत प्रवर्तक आचा शिवभूति की।
__ वगैरह)। स्वनामख्यात भगिनी। अडिच्छत्रा नगरी | उत्ताणिअ वि [उत्तानित] चित्त किया हुआ। की एक वापी का नाम । °णनास्त्री[°नन्दा] | चित्त सोनेवाला । एक दिक्कुमारी देवी । पह पुं [पथ] | उत्तार सक [अव + तारय्] नीचे उतारना । उत्तरदिशा-स्थित देश। फग्गुणी देखो उत्तार सक [उत् +तारय] पार पहुँचाना । उत्तरफग्गुणी। भद्दवया देखो उत्तर- बाहर निकालना । दूर करना । भवया । 'यण न. सूर्य का उत्तर दिशा में उत्तार पुं [उत्तार] उतरना, पार करना । गमन, माघ से लेकर छः महीना । 'यया परित्याग । उतारनेवाला, पार करानेवाला । स्त्री [यता] गान्धार ग्राम की एक मुर्छना । | उत्तार पु [दे] आवास स्थान । °वह देखो "पह। °संग पुं. उत्तरीय वस्त्र | उत्तारय वि [उत्तारक] पार उतारनेवाला । का शरीर में न्यास-विशेष, उत्तरासण । | उत्ताल वि [उत्ताल] महान्, बड़ा। उतावला। "समा स्त्री. मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना। उद्धत । बेताल, ताल-विरुद्ध गान का एक "साढा स्त्री [ °षाढा ] नक्षत्र-विशेष । दोष । हुत्त न [भिमुख] उत्तर की तरफ। वि. | उत्ताल न [दे] लगातार रुदन । उत्तर दिशा की तरफ मुंह किया हुआ। उत्ताल देखो उत्ताड । उत्तरिज ) न [उत्तरीय] चादर, दुपट्टा। | उत्तावल न [दे] उतावल, शीघ्रता। वि. उत्तरिय ।
शीघ्रकारी, आकुल। उत्तरिय वि [औत्तरिक, अंतराह] देखो। उत्तास सक [उत् + त्रासय्] भयभीत करना।
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उत्तासइत्तु - उत्थल्ल
पीड़ना ।
उत्त पुं [दे] तटशून्य कूप 1
उत्तासइत्तु वि [उत्त्रासयितृ] भयभीत करने- उत्तेअ वि [उत्तेजस् ] तेजस्वी, प्रखर । पुं. वाला । हैरान करनेवाला |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्तासणअ वि [उत्त्रासनक] भयंकर, उत्तासग उद्वेगजनक । हैरान करनेवाला । उत्ताहि वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ । उत्ति स्त्री [उक्ति ] वचन, वाणी । उत्तंग पुं [ उत्तिङ्ग] गर्दभाकार कीट - विशेष | चीटियों का बिल । चींटियों की सन्तान । तृण के अग्रभाग पर स्थित जल-बिन्दु । वनस्पतिविशेष सर्पच्छत्रा । न छिद्र | लोण न [लयन] कीट - विशेष का गृह -- बिल । उत्तिगणग पुंन [उत्तिङ्गपनक] कोटिकानगर, चोटियों का बिल ।
उत्तिट्ठ अक [ उत् + स्था ] उठाना । उदित होना ।
उत्तिण व [ उत्तॄण] तृण-शून्य |
उत्तिण वि [उत्तीर्ण] बाहर निकला हुआ । पार पहुँचा हुआ । जो कम हुआ हो । रहित । निपटा हुआ, जिसने कार्य समाप्त किया हो वह । उल्लंघित, अतिक्रान्त |
उत्तिष्णवि [ अवतीर्ण] नीचे उतरा हुआ । उत्तित्थ पुंन [उत्तीर्थं ] अपमार्ग | उत्तिम देखो उत्तम ।
उत्तिमंग देखो उत्तमंग ।
उत्तिरिविडि ) स्त्री [दे] भाजन वगैरह का उत्तिवडा 5 ऊँचा ढेर ।
उत्तुंग वि [उत्तुङ्ग] ऊँचा, उन्नत ।
उत्तुंड वि [उत्तुण्ड ] उन्मुख, ऊर्ध्व - मुख । उत्व [] अभिमानी । उत्पय वि [] स्निग्ध, चिकना ।
उत्तु सक [उत् + तुद्] पीड़ा करना, हैरान
करना ।
उत्तरद्धि स्त्री [] गर्व । वि. अभिमानी । उत्तु वि [] दृष्ट | उहि वि [] उत्खाटित, छिन्न, नष्ट ।
मात्रावृत्त का एक भेद | उत्तेण न [उत्तेजन] उत्तेजन ।
उत्ते अ उत्तेजि
उत्तेड पुं [दे] बिन्दु |
उत्थ न [ उक्थ] स्तोत्र-विशेष | योगविशेष । उत्थ वि. उत्पन्न, उत्थित । उत्थ (शौ) देखो उट्ठ
= उत् + स्था ।
उत्थाय वि [ अवस्तृत ] व्याप्त | प्रसारित । आच्छादित ।
उत्थंगिअ देखो उत्यंधिअ = उत्तम्भित । उत्थंध सक [उद् + नमय् ] ऊँचा करना, उन्नत करना ।
१५५
}
वि [उत्तेजित ] उद्दीपित, प्रोत्साहित, प्रेरित ।
उत्थंध सक [उत्+स्तम्भ् ] उठाना । अवलम्बन देना । रोकना ।
उत्थंध सक [उत् +- क्षिप्] ऊँचा फेंकना । उत्थंच सक [रुध्] रोकना । उत्थंध पुं [उत्तम्भ ]
फैलाना । उत्थघिअवि [उत्तम्भित] उत्थापित, उठाया हुआ। ।
उत्थभिवि [उत्तम्भिन् ] आघात प्राप्त, अवलम्बन करनेवाला ।
1
उत्यभिवि [उत्तम्भित] अवलम्बित | रुका हुआ । बन्धन मुक्त किया हुआ । उत्थपुं [] सम्मर्द, उपमर्द । उत्थप्पण देखो उट्टपण | उत्थय देखो उत्थइ ।
उत्थर सक [ आ + क्रम् ] आक्रमण करना ।
उत्थर
उत्थल्ल
दबाना
उत्थर सक [अव + स्तृ] आच्छादन करना ।
पराभव करना ।
ऊर्ध्व-प्रसरण, ऊँचा
सक
करना ( ? ) ।
[उत् + स्तृ] आच्छादन
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१५६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उत्थरिय-उदरिय उत्थरिय वि [दे] निस्सृत, निर्गत । उठा , उदंप पुं [उदृप्त] कृष्णराज पुत्र उदय । हुआ।
उदग पुन [उदक] पानी । वनस्पति-विशेष । उत्थल न [उत्स्थल] ऊँची धूल-राशि ।। जलाशय । पुं. स्वनाम-ख्यात एक जैन साधु । उन्मार्ग, कुपथ ।
सातवें भावी जिनदेव । गब्भपुं[°गर्भ]बादल । उत्थलिअ न [दे] घर । वि. उन्मुख गत ।। °दोणि स्त्री [°द्रोणि] जल रखने का पात्रउत्थल्ल अक [उत् + शल्] उछलना, कूदना। विशेष,ठण्ढा करने के लिए गरम लोहा जिसमें उत्थल्लपत्थल्ला स्त्री [दे] दोनों पार्थों से
डाला जाता है वह । जो अरघट्ट में लगाया परिवर्तन, उथल-पुथल ।
जाता है वह छोटा घड़ा। °पोग्गल न उत्थल्ला स्त्री [दे] परिवर्तन । उद्वर्तन ।
[°पौद्गल]मेघ । °मच्छ पुं [°मत्स्य] इन्द्रउत्थाइ वि [उत्थायिन्] उठनेवाला।
धनुष का खण्ड, उत्पात-विशेष । °माल पुंस्त्री. उत्थाइय वि [उत्थापित] उठाया हुआ।
जल का ऊपर चढ़ता तरङ्ग, उदकशिखा, उत्थाण न [उत्थान] वीर्य, बल, पराक्रम । |
वेला । वत्थि स्त्री [°वस्ति] पानी भरने का
मशक । °सिहा स्त्री [°शिखा] वेला । उत्पत्ति ।
°सीम पुं [°सीमन्] पर्वत-विशेष । उत्थामिय (अप) वि [उत्थापित] उठाया |
उदग्ग वि [उदन] सुन्दर । उत्कट, प्रखर । हुआ।
मुख्य । उत्थार सक [आ+क्रम्] आक्रमण करना,
उदड्ढ पुं [उद्दग्ध] एक नरक-स्थान । दबाना।
उदत्त वि [उदात्त] उदार । उत्थार देखो उच्छाह - उत्साह । उत्थिय देखो उत्थइअ ।
उदत्त वि [उदात्त] जो उच्च स्वर से बोला °उत्थिय वि [°तोथिक] मतानयायी, दर्शना
जाय वह स्वर । नुयायी।
उदन्ना स्त्री [उदन्या] तृषा । °उत्थिय वि [ यूथिक] यूथ-प्रविष्ट ।।
उदय देखो उदग। उत्थुभण न [अवस्तोभन] अनिष्ट की शान्ति
उदय पुं. लाभ । उन्नति । उत्पत्ति । कर्मके लिए किया जाता एक प्रकार का कौतुक,
परिणाम । प्रादुर्भाव । भरतक्षेत्र के भावी थू-थू आवाज करना।
सातवें जिनदेव । भरतक्षेत्र में होनेवाले तीसरे उद न, जल । °उल्ल, ओल्ल वि [T] जिनदेव का पूर्व-भवीय नाम । स्वनाम-ख्यात पानी से गीला । गत्ताभ न [°ग भ]
एक राजकुमार । आयल पुं [°चल] पर्वतगोत्र-विशेष ।
विशेष, जहाँ सूर्य उदित होता है। उदइय देखो ओदइय।
उदयण पुं [उदयन] राजा सिद्धराज का उदइल्ल वि [उदयिन्] उदयवान्, उन्नतिशील। प्रसिद्ध मन्त्री। कोशाम्बी नगरी के राजा उदंक पुं. जल का पात्र-विशेष, जिससे जल शतानीक का पुत्र । एक विख्यात जैन राजा । ऊँचा छिड़का जाता है।
न. उन्नति । वि. उन्नत होनेवाला, प्रवर्धमान । उदंच सक [उद् + अञ्च] ऊँचा जाना । । उदर न. पेट । पेट की बीमारी । उदंचण पुं. ऊँचा फेंकना । वि. ऊँचा फेंकने- | उदरंभरि वि. स्वार्थी, अकेलपेटू । वाला।
उदरि वि [उदरिन्] पेट की बीमारीवाला। उदंत पुं. हकीकत, वृत्तान्त ।
। उदरिय वि [उदरिक] ऊपर देखो ।
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उदवाह-उदंडग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१५७ उदवाह वि. जल-वाहक। पुं. छोटा प्रवाह । उदिय वि [उदित] उद्गत । उन्नत । उक्त। उदसी [दे. उदश्चित् ?] तक।
| उदीण वि [उदीचीन] उत्तर दिशा से सम्बन्ध उदहि पुं [उदधि] समुद्र । भवनपति देवों की | रखनेवाला, उत्तर दिशा में उत्पन्न । °पाईणा एक जाति, उदधिकुमार । 'कुमारपुं. देवों स्त्री [°प्राचीना] ईशान कोण । की एक जाति । देखो उअहि।
उदोणा स्त्री [उदीचीना] उत्तर-दिशा । उदाइ पुं [उदायिन्] एक जैन राजा, महा- उदीर सक [उद् + ईरय] प्रेरणा करना । राजा कोणिक का पुत्र, जिसको एक दृष्ट ने कहना, प्रतिपादन करना । जो कर्म उदयजैन साधु बनकर धर्मच्छल से मारा था और प्राप्त न हो उसको प्रयत्न-विशेष से फलोन्मुख जो भविष्य में तीसरा जिनदेव होगा। पुं. करना । राजा कूणिक का पट्टहस्ती।
| उदीरग देखो उदी रय। उदाइण देखो उदायण ।
उदीरय न [उदीरण] कथन, प्रतिपादन । उदात्त देखो उदत्त ।
प्रेरणा । काल-प्राप्त न होने पर भी प्रयत्नउदायण पुं [उदायन] सिन्धु-देश का एक |
विशेष से किया जाता कर्म-फल का अनुभव । राजा, जिसने भगवान महावीर के पास दीक्षा |
| उदीरय वि [उदीरक] कथक, प्रतिपादक । ली थी।
प्रेरक, प्रवर्तक । उदीरणा करनेवाला, कालउदार देखो उराल।
प्राप्त न होने पर भी प्रयत्न-विशेष से कर्मफल उदासि वि [उदासिन्] उदास, उदासीन ।
का अनुभव करनेवाला। °व न [°त्व] औदासीन्य ।।
उदीरिद । वि [उदीरित] प्रेरित, कथित, उदासीण वि [उदासीन] मध्यस्थ । उपेक्षा उदीरिय ) प्रतिपादित । जनित, कृत । करनेवाला।
समय-प्राप्त न होने पर भी प्रयत्न-विशेष से उदाहड वि [उदाहृत] कथित, दृष्टान्तित ।। खींच कर जिसके फल का अनुभव किया जाय उदाहर सक [उदा+ह] कहना। प्रतिपादन वह । करना।
उदु देखो उउ। उदाहिय वि [उदाहृत] कथित, प्रतिपादित । उदुबर देखो उंबर। दृष्टान्तित ।
उदुरुह सम [उद् + रुह ] ऊपर चढ़ना । उदाहिय वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका गया । उदूखल देखो उऊखल । उदाहु देखो उदाहर।
उद्ग पुन [दे] पृथिवी-शिला । उदाहु अ [उताहो अथवा ।
उदूलिय वि [दे] अवनत । उदाहू देखो उदाहर।
उदूहल देखो उऊहल। उदाहो देखो उदाहु = उताहो ।
उद्द न [दे] जल-मानुष । बैल के कंधे का उदि अक [उद्+इ] उन्नत होना। उत्पन्न कूबड़ । मत्स्य-विशेष । उसके चर्म का बना होना ।
हुआ वस्त्र । उदिक्खिअ वि [उदीक्षित] अवलोकित । उद्द वि [आर्द्र] गीला । उदिण्ण वि [उदीच्य] उत्तर-दिशा में उत्पन्न। उद्दअ वि [मद्यत] उद्यम-युक्त । दिण्ण वि [उदीर्ण] उदित । फलोन्मुख उदंड । वि [उद्दण्ड] प्रचण्ड, उद्धत । पुं. (कर्म) । उत्पन्न । उत्कट, प्रबल ।
| उदंडग । हाथ में दण्ड को ऊंचा रखकर
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१५८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उदंतुर-उद्दिसिब चलनेवाले तापसों की एक जाति । | उद्दाम वि. स्वच्छन्द । प्रचण्ड, प्रखर । अव्यउदंतुर वि. जिसका दाँत बाहर आया हो वह ।। वस्थित । ऊँचा ।
उद्दाम पुं [दे] संघात । स्थपुट, विषमोन्नत उद्दभ पुं. छन्द का एक भेद ।
प्रदेश । उददंस पं. मधमक्षिका, मताण आदि लोटा | उद्दामिय वि [उद्दामित] लटकता हआ, कीट ।
प्रलम्बित । उद्दड्ढ पुं [उद्दग्ध] रत्नप्रभा नरक-पृथिवी का |
उद्दाय अक [शुभ्] शोभित होना, अच्छा एक नरकावास । °मझिम पुं [°मध्यम] | रत्नप्रभा पृथिवी का एक न कावास । वित्त
उद्दार देखो उराल = उदार । पुं [वर्त] देखो पूर्वोक्त अ। विसिट्र पं| उद्दरिअ वि [दे] युद्ध से पलायित । उत्खात, [वशिष्ट] देखो पूर्वोक्त ।।
उन्मूलित। उद्दद्दर न [दे. ऊर्ध्वदर] सुभिक्ष, सुकाल । । उद्दाल सक [आ + छिद्] खींच लेना, हाथ उद्दम पुन देखो उज्जम = उद्यम ।
से छीन लेना। उद्दरिअ वि [दे] उखाड़ा हुआ। स्फुटित,
उद्दाल पुं [अवदाल] दबाव, अवदलन । वृक्षविकसित ।
विशेष । अवसर्पिणी काल का प्रथम आरा
समय-विशेष । उद्दरिअ वि [उद् + दृप्त] गर्वित, उद्धत । उद्दलण न [उद्दलन] विदारण ।
उद्दालिय वि [आच्छिन्न] छोना हुआ, खींच
लिया गया । उद्दव सक [उद्, उप + द्र] उपद्रव करना,
उद्दावणया स्त्री [उपद्रावणा] उपद्रव, पीड़ा करना । मारना, विनाश करना, हिंसा
हैरानी। करना।
उद्दाह पुं. प्रखर-दाह । आग । उद्दवअ ' [उद्रव, उपद्रव] उपद्रव । हर कत । पीड़ा । विनाश, हिंसा :
उद्दाहग वि [उद्दाहक] आग लगानेवाला । उद्दवइत्तु वि [उद्घोतृ उपद्रोतृ] उपद्रव उद्दिष्ट्र वि [उद्दिष्ट] कथित, प्रतिपादित । करनेवाला । हिंसक, विनाशक ।
निर्दिष्ट । दान के लिए संकल्पित (अन्न, उद्दवण न [अपद्रावण] मृत्यु का छोड़कर सब पानादि)। लक्षित । न. उद्देश्य । °कड वि प्रकार का दुःख ।
[कृत] साधु के उद्देश्य से बनाया हुआ, साधु उद्दवाइअ देखो उड्डुवाइय ।
के निमित्त किया हुआ (भोजनादि)। उद्दवेत्तु देखो उद्दवइत्तु ।
उद्दिवा स्त्री [दे. उद्दिष्टा] अमावस्या । उद्दा सक [उद् + दा] बनाना, निर्माण उद्दित्त वि [उदीप्त] प्रज्ज्वलित । करना।
उद्दिस सक [डद् + दिश्] आज्ञा करना । उद्दा अक [अव + द्रा] मरना । | उद्दिस सक [उद् + दिश्] नाम-निर्देश-पूर्वक उद्दाइआ स्त्री [उद्घोत्री, उपद्रोत्री] उपद्रव
वस्तु का निरूपण करना । देखना । करनेवाली स्त्री।
संकल्प करना । लक्ष्य करना। अंगीकार उद्दाइ देखो उद्दाय ।
करना। सम्मति लेना। समाप्त करना । उहाण स्त्री [दे] चूल्हा ।
उपदेश देना। उद्दाण वि [अवद्रात] मृत ।
उद्दिसिअ देखो उद्दिट्ट।
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उद्दिसिअ उद्धव
उद्दिस वि [] उत्प्रेक्षित, वितर्कित । उद्दरणा देखो उदीरणा ।
उद्दवण न [ उद्दीपन ] उत्तेजन । वि. उत्तेउद्दीपक |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उatara [ उद्दीपित ] प्रदीपित, प्रज्ज्वालित । उवि [ उद्भुत ] पलायित । उवि [ उपद्रुत ] हैरान किया हुआ । उद्देस देखो उद्दिस |
उद्देस पुं [ उद्देश ] पठन- विषयक गुर्वाज्ञा । नाम उच्चारण । वाचन, सूत्र प्रदान, सूत्रों के मूल पाठ का अध्यापन ।
उद्देस पुं [ उद्देश ] नाम निर्देशपूर्वक वस्तु निरूपण । शिक्षा, उपदेश । व्यपदेश, व्यवहार | लक्ष्य । अभिप्राय, मतलब | ग्रन्थ का एक अंश । प्रदेश | गुरुप्रतिज्ञा, गुरु- वचन । जगह, स्थान |
उद्देस वि [औद्देश] देखो उद्देसिय = औद्देशिक |
उद्देसण न [ उद्देशन] पाठन, बाचना, अध्यापन | अधिकारिता, योग्यता । उद्देसणकाल पुं [उद्देशनकाल ] मूलसूत्र के
अध्यापन का समय
उद्देसियन [औद्देशिक] भिक्षा का एक दोष, साधु के लिए भोजन- निर्माण । वि. साधु निमित्त बनाया हुआ (भोजन) । उद्देसिय वि [ औद्देशिक] उद्देश सम्बन्धी उद्देश से किया हुआ । विवाह आदि के उपलक्ष्य में किये गये जीमन में निमन्त्रितों के भोजन की समाप्ति के अनन्तर बचे हुए वे खाद्य द्रव्य जिनको सर्वजातीय भिक्षुओं को देने का संकल्प किया गया हो ।
उद्देह पु. भगवान् महावीर का एक गण -- साधु समुदाय ।
उद्देहिया उद्देही
उद्देहलिया स्त्री [उद्देहलिका ] वनस्पति- विशेष । स्त्री [दे] दीमक, त्रीन्द्रिय जन्तु - विशेष |
}
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उद्दोग व [ उद्रोहक] घातक ।
उद्ध देखो उड्ढ । उद्धअवि [ उद्धत ] उन्मत्त । उत्पादित । अतिप्रबल । उद्धअ देखो उद्धरिअ = उद्धृत । उद्धअवि [दे] शान्त, ठण्ढा ।
उस सक [ उत् + धृष्] मारना । आक्रोश करना, गाली देना । वध करना । उद्धंससक [ उद् + ध्वंस्] विनाश करना । उद्धच्छवि वि [] विसम्वादित, अप्रमाणित । उद्धच्छविअवि [दे] सज्जित । उद्धच्छिवि [दे] निषिद्ध |
अभिमानी ।
उद्घड वि [ उद्धृत] उठा कर रखा हुआ । उद्घण व [] अविनीत | उद्धत्थवि [] वञ्चित ।
उद्धदेहिय न [ और्ध्वदेहिक ] अग्नि संस्कार आदि अन्त्येष्टि क्रिया ।
उद्धम सक [ उद् + हन्] शङ्ख वगैरह फूंकना, वायु भरना । ऊँचा फेंकना, उड़ाना । उद्धर सक [ उद् + ह् ] फँसे हुए को निकालना । उन्मूलन करना | दूर करना । खींचना | जीर्ण मन्दिर वगैरह का परिष्कार-संस्कार करना | किसी ग्रन्थ या लेख के अंश-विशेष को दूसरी पुस्तक या लेख में अविकल नकल
करना ।
उद्धर (अप) देखो उङ्कुर | उद्धरण वि [दे] उच्छिष्ट ।
उद्धरिअ वि [ उद्धृत ] उत्पाटित, उत्क्षिप्त । किसी ग्रन्थ या लेख के अंश - विशेष को दूसरे पुस्तक या लेख में अविकल नकल कर देना । आकृष्ट । निष्कासित | जीर्ण वस्तु का परिष्कार करना ।
उद्धरिअवि [] अदित, विनाशित।
उद्धल पुं [दे] दोनों तरफ की अप्रवृत्ति । उद्धव पुं. ऊधो, श्रीकृष्ण का चाचा, मित्र और भक्त ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उद्धवअ-उप्पइअ
उद्धव वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ। । ञ्चित । उद्धविअ वि [दे] अघित, पूजित । | उधू सक [उद् +धू] कँपाना, चलाना । उद्धा । सक [उद्+धाव्] दौड़ना । वेग | पंखा करना। उद्धाअ से जाना। ऊँचे जाना । फैलना । | उद्धृणिय देखो उद्धृय । उद्धाअ अक [ऊर्ध्वाय] ऊँचा होना। उद्धृद (शौ) देखो उद्घय । उद्धाअ पुं [दे] विषमोन्नत-प्रदेश । समूह । उधूल सक [उद् +धूलय] व्याप्त करना । वि. थका हुआ।
धूलि लगाना। उद्धार पुं. रक्षण । ऋण देना, उधार देना।
उद्ध्वणिया स्त्री [उद्धृपनिका] धूप देना ।
उद्धृविअ वि [उद्धृपित] जिसको धूप अपहरण । अपवाद । धारणा, पढ़े हुए पाठ को नहीं भूलना । पलिओवम न[°पल्योपम]
किया गया हो वह।
उद्घोस पुं [उद्धषं] उल्लास, ऊँचा होना । समय का परिमाण । °समय पुं. समय-विशेष ।
उन्न न [ऊर्ण] ऊन । °मय वि [°मय] ऊन °सागरोवम न [°सागरोपम] समय का
का बना हुआ। एक दीर्घ परिमाण । उद्धरय वि [उद्धारक] उद्धार-कारक ।
उन्न (अप) वि [विषण्ण] विषाद-प्राप्त ।
उन्नइय वि [उन्नीत] ऊँचा लिया हुआ । उद्घाव देखो उद्धा।
उन्नंद सक [मद् + नन्द्] अभिनन्दन करना । उद्धवण न [उद्धावन] नीचे देखो। उद्धावणा स्त्री [उद्धावना] प्रबल-प्रवृत्ति ।
उन्ना देखो उण्णा । °मय वि [°मय] ऊन का
बना हुआ। दूर-गमन । कार्य की शीघ्र सिद्धि ।
उन्नाडिय न [उन्नाटित] हर्ष-द्योतक आवाज । °उद्धि देखो बुद्धि।
उन्नाह पुं. ऊँचाई। उद्धि स्त्री [दे] गाड़ी का एक अवयव ।
उन्निक्ख सक [उन्नि + खन्] उन्मूलन उद्धिअ देखो उद्धरिअ = उद्धृत ।
करना । उद्धीमुह वि [ऊर्वीमुख] मुंह ऊँचा किया
उन्निक्खमण न [उन्निष्क्रमण] दीक्षा छोड़ हुआ।
कर फिर गृहस्थ होना। उधुंधलिय वि [दे] धुंधलाया हुआ।
उन्हाल (अप) पुं [उष्णकाल] ग्रीष्म ऋतु । उधुणिय देखो उद्धय ।
उपक्खर न [उपस्कर] घर का उपकरण । उधुम सक [] पूर्ण करना।
उपंत न [उपान्त] पीछे का भाग । वि. उद्धमा सक [उद् + ध्मा] आवाज करना ।
समीपस्थ । जोर से धमनी को चलाना ।
उपरि । देखो उवरि। उद्घमाइअ वि [उद्धमापित] ठण्ढा किया | उपरि । हुआ, निर्वापित ।
उपरिल्ल देखो उवरिल्ल। . उधुमाय वि [दे] परिपूर्ण । उन्मत्त । उपवाय देखो उववाय = उप + वादय् । उद्घय वि [उद्धृत] पवन से उड़ा हुआ। उपसप्प देखो उवसप्प । प्रसूत, फैला हुआ । प्रकम्पित । उत्कट, प्रबल । उपाणहिय पुंस्त्री [उपानह] जूता । प्रकट ।
उप्प देखो ओप्प = अर्पय । उधुर वि [उद्धर] ऊँचा । प्रबल । उप्पइअ वि [उत्पतित] ऊँचा गया हुआ, उद्घसिय वि [उद्घषित] रोमाञ्च । रोमा- उड़ा हुआ। उन्नत, उत्पन्न । न.उत्पतन, उड़ना ।
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उप्पइअ - उप्पायणा
उप्पइअ वि [उत्पाटित] उत्थापित। उठाया
हुआ ।
उ समूह |
उपंग [दे] समूह |
उपज्ज अक [ उत् + पद्] उत्पन्न होना । उप्पड सक [उत् + पत्] उड़ना, ऊँचा जाना, कूदना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[] अत्यन्त । पुं. कीचड़ । उन्नति ।
उप्पड पुं [उत्पट] क्षुद्र कीट - विशेष ।
उम्पडिअ देखो उप्पइअ ।
- उत्पाद ।
उप्पण सक [उत् + पू] धान्य वगैरह को सूप उप्पह पुं [ उत्पथ ] उन्मार्ग, कुमार्ग । ° जाइ वि ['यायित्] उलटे रास्ते जानेवाला । उप्पा स्त्री देखो उप्पाय उपात्तु वि [उत्पादयितृ] उत्पादक । उप्पाइय न [ औत्पातिक ] भूकम्प आदि उत्पातों का सूचक शास्त्र । अस्वाभाविक । आकस्मिक । उत्पात ।
आदि से साफ-सुथरा करना । उप्पण्ण वि [ उत्पन्न ] उत्पन्न । उप्पत्त व [] गलित । विरक्त । उपपत्तिवि [उत्पत्ति ] उत्पत्ति । उपपत्तिया स्त्री [ औत्पत्तिकी ] बुद्धि-विशेष, बिना शास्त्राभ्यासादि के ही होनेवाली बुद्धि | उप्पय सक [उत् + पत्] उड़ना, कूदना । उप्पय देखो उप्पव ।
उप्पय पुं [ उत्पात ] ऊंचे जाना, कूदना, उड्डयन । उत्पत्ति । निवय पुं [निपात] ॐचा - नीचा होना । नाट्य-विधि का एक
प्रकार ।
१६१
उप्पला स्त्री [ उत्पला ] एक इन्द्राणी । इस नाम का 'ज्ञाताधर्मकथा' का एक अध्ययन | स्वनामख्यात एक श्राविका । एक पुष्करिणी । उप्पली स्त्री [उत्पलिनी ] कमलिनी । उप्पल्ल वि [दे] अध्यासित आरूढ़ । उपवसक [ उत् + प्लु] लाँघना, तैरना । ऊँचा जाना, उड़ना ।
उपas a [ उत्प्रव्रजित] जिसने दीक्षा छोड़ दो हो वह |
उलटा क्रम ।
उप्परोप्पर अ [ उपर्युपरि ] ऊपर-ऊपर | उप्पल न [उत्पल] कमल । विमान- विशेष । संख्या - विशेष | सुगन्धि - द्रव्य - विशेष । पुं. परिव्राजक विशेष | द्वीप - विशेष | समुद्रविशेष | वेंटग पुं [वृन्तक] आजीविक मत का एक साधु-समाज | उप्पलंग न [उत्पलाङ्क] संख्या - विशेष, 'हुहुय'
लाख से
( समय की माप - विशेष) को चौरासी गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह ।
२१
उप्पाड सक [उत् + पाटय् ] ऊपर उठाना । उन्मलन करना । उत्खनन करना । उत्थापन करना ।
उपयण न [ उत्प्लवन] तैरना । उप्पणी स्त्री [ उत्पतनी] विद्या - विशेष | उप्पर (अप) देखो उवरि ।
उपाय पुंन [ उत्पात] उत्पतन, ऊर्ध्व-गमन | आकस्मिक उपद्रव । निमित्त - शास्त्र - विशेष | ● निवाय पुं [° निपात] चढ़ना और उतरना ।
उपरिवाडि, डी स्त्री [ उत्परिपाटि, °टी] उप्पाय पुं [ उत्पाद] उत्पत्ति । पव्वय पुं [पर्वत] एक प्रकार के पर्वत जहाँ आकर कई व्यन्तर-जातीय देव देवियां क्रीड़ा के लिए विचित्र प्रकार के शरीर बनाते हैं । 'पुव्व न [ पूर्व ] प्रथमपूर्व, बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का एक भाग ।
उपासक [ उत् + पादय् ] उत्पन्न करना । उप्पादअ वि [ उत्पादक ] उत्पन्नकर्त्ता । उपासक [ उत् + पादय् ] उत्पन्न करना, बनाना । उपार्जन करना ।
उपायग वि [ उत्पादक ] उत्पन्न करने वाला । कीट - विशेष |
उप्पायण न [ उत्पादन ] उत्पादन,
उपायणया उपायणा
उपार्जन |
स्त्री [उत्पादना] उपार्जन, उत्पन्न करना । जैन साधु
की
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भिक्षा का एक दोष ।
उप्पाल सक [क] कहना, बोलना । उप्पाव सक [ उत् + प्लावय् ] तैराना । कुदाना, उड़ाना | उपासक [ उत् + अस् ] हँसी करना । उप्पाहल न [दे] उत्कण्ठा ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लँघाना,
उप स [अ] देना ।
उप्प अ [ उपरि] ऊपर ।
उपगलिआ स्त्री [दे] हाथ का मध्य भाग, करोत्संग |
उप्पिजल न [दै] सुरत, सम्भोग । रज ।
अपयश ।
उप्पल अक [उत्पिञ्जलय् ] आकुल की तरह
आचरण करना ।
उपिच्छ [दे] देखो उप्पित्थ ।
उप्पिण देखो उप्पण |
उप्पथ व [] स्त भीत । क्रुद्ध । विधुर, आकुल ।
उपत्थवि [] श्वास-युक्त ।
उप्पिय सक [ उत् + पा] आस्वादन करना । फिर-फिर श्वास लेना ।
उप्पियण न [ उत्पान] फिर-फिर श्वास लेना । उप्पिलण न [ उत्प्लावन] लाँघना | उप्पिलाव देखो उप्पाव ।
उप्पीड देखो उप्पील |
उप्पील सक [ उत् + पीडय् ] कस कर बाँधना, उठवाना, दबाना । पीड़ा करना, उपद्रव करना ।
उप्पील पुं [दे] समूह राशि । स्थपुट, विषमोन्नत प्रदेश |
उप्पु वि [ उत्प्लुत] उच्छलित, कूदा हुआ । उप्पुंसिअ देखो उप्पुसिअ ।
उप्पुणि वि [ उत्पूत ] सूप से साफ-सुथरा किया हुआ ।
gora [उत्पूर्ण] पूर्ण, व्याप्त । वि
उप्पुलइअ वि [उत्पुलकित ] रोमाञ्चित ।
उप्पाल - उप्फुस
उप्पुसिअ वि [ उत्प्रोञ्छित ] लुप्त, प्रोञ्छित । उप्पूर पुं [ उत्पूर] प्राचुर्यं । प्रकृष्ट-प्रवाह । उप्पेक्ख (अप) देखो उविक्ख । उप्पेक्खसक [ उत् + ईक्ष] सम्भावना करना । उप्पेक्खा स्त्री [उत्प्रेक्षा ] अलङ्कार - विशेष । सम्भावना |
उपेय न [] अभ्यङ्ग, तैलादि की मालिश । उप्पेल सक [उद् + नमय् ] ऊँचा करना । उप्पेल्ल पुं [ उन्नमन] ऊँचा करना । उप्पेस पुं [ उत्पेष ] त्रास, भय । उपेड व [] उद्भट, आडम्बरवाला । उफ देखो पुप्फ ।
उफणस [ उत् + फण् ] छाँटना, पवन में धान्य आदि का छिलका दूर करना । उप्कंदोल वि[दे] चल, अस्थिर । उप्फाल पुं [दे] दुर्जन । उप्फाल सक [ उत् + पाट्य् ]
उखाड़ना ।
उप्फाल सक [कथ्] कहना, बोलना । उप्फाल वि[ कथक ] कहनेवाला, सूचक | उप्फिड अक [ उत् + स्फिट् ] कुण्ठित होना, असमर्थ होना ।
उप्फिड अक [उत् + स्फिट् ] मण्डूक की तरह
कूदना, उड़ना ।
उप्फिडण न [उत्स्फेटन ] कुण्ठित होना । उम्फिडिय वि [ उत्स्फिटित ] कुण्ठित । बाहर निकला हुआ ।
स्त्री [] धोबिन ।
उठाना ।
उफुंकि उफुंडिअ वि [दे] बिछाया हुआ । उप्फुण्ण वि [दे] आपूर्ण । व्याप्त । उप्फुन्न वि [दे] स्पृष्ट | उप्फुल्ल वि [उत्फुल्ल ] विकसित । उप्फुल्लिआ स्त्री [उत्फुल्लिका ] क्रीड़ाविशेष । पाँव पर बैठ कर बारम्बार ऊँचानीचा होना ।
उप्फुस सक [उत् + स्पृश् ] सिंचना, छिड़कना ।
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१६३
उप्फेणउप्फेणिय-उन्भिज्जा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उप्फेणउप्फेणिय क्रिवि [दे] क्रोध-युक्त प्रबल / उभंत पुं [उद्भ्रान्त] प्रथम नरक-पृथिवी वचन से।
का चौथा नरकेन्द्रक । उप्फेस पुं [दे] त्रास, भय । मुकुट, पगड़ी, | उब्भग्ग वि [दे] गुण्ठित, व्याप्त । शिरोवेष्टन।
उब्भजि स्त्री [दे] कोद्रव-समूह । उप्फोअ पुं [दे] उद्गम, उदय ।
उब्भड वि [उद्भट] प्रबल, प्रचण्ड । भयंकर। उबुस सक [मृज्] शुद्धि करना, साफ करना । उद्धत, आडम्बरी। उब्बंध सक [उद् + बन्ध] फाँसी लगाना । उब्भम पुं [उद्भ्रम] उद्वेग । परिभ्रमण । वेष्टन करना।
उब्भव अक [उद् + भू] उत्पन्न होना । उब्बण वि [उल्बण] उत्कुट ।
उब्भव अक [ऊर्ध्वय] ऊँचा करना, खड़ा
करना । उब्बद्ध वि [उद्बद्ध] जिसने फाँसी लगाई हो
उब्भाअ वि [दे] शान्त, ठण्ढा । वह । वेष्टित । शिक्षक के साथ शर्तों से
उब्भाम सक [उद् + भ्रामय] घुमाना। बँधा हुआ। उब्बिब वि [दे] खिन्न । शून्य । क्रान्त । प्रकट
उब्भाम पुं [उद्भ्राम] परिभ्रमण । वि.
परिभ्रमण करनेवाला। वेष वाला । डरा हुआ । उद्भट ।
उन्भामइल्ला स्त्री [उद्भ्रामिणी] स्वैरिणी, उब्बिबल वि [दे] कलुष जलवाला । न. मैला
कुलटा स्त्री। पानी।
उब्भामय पुं [उद्भ्रामक] जार, उपपति । उब्बुक्क सक [उद् + बुक्क] बोलना, कहना।
उन्भामग पुं [उद्भ्रामक] पारदारिक, परउब्बुक्क न [दे] प्रलपित, प्रलाप । सङ्कट । स्त्री-लम्पट । वायु-विशेष । वि. परिभ्रमण बलात्कार।
करनेवाला। उब्बुड अक [उद् +ब्रुड्] तैरना।
उम्भामिगा । स्त्री [उद्घामिका] कुलटा उब्बुड } पुं [उद्बुड] तैरना। निबुड, | उभामिया
उब्भामिया । स्त्री, स्वैरिणी। उब्बुड्ड ' °निब्बुड्डण न [निब्रुड, °ण] उब्भालण न [दे] सूप आदि से साफ-सुथरा उभचुभ करना।
करना, उत्पवन । वि. अपूर्व, अद्वितीय । उब्बुड्ड वि [उद्बुडित] उन्मग्न, तीर्ण ।। उब्भालिअ वि [दे] सूप आदि से साफ किया उब्बुहुण न [उद्बुडन] उन्मज्जन । हुआ । उब्बुह अक [उत् +क्षुभ्] संक्षुब्ध होना। उब्भाव अक [रम्] क्रीड़ा करना, खेलना । उब्बूर वि [दे] अधिक । पुं. समूह । स्थपुट, उब्भावणया । स्त्री [उद्भावना] प्रभावना, विषमोन्नत प्रदेश।
उम्भावणा ' गौरव, उन्नति । उत्प्रेक्षा, उब्भ सक [ऊर्ध्वय] ऊँचा करना, खड़ा वितर्कणा । प्रकाशन । करना।
उब्भाविअ न [रमण] सुरत, क्रीड़ा, सम्भोग। उब्भ देखो उड्ढ ।
उब्भास मक [उद्+भासय्] प्रकाशित उब्भंड पुं [उद्भाण्ड] उत्कट भाँड़, बहुरूपा, निर्लज्ज हंडा, उग्र विदूषक । न. गाली। उब्भासुअ वि [दे] शोभाहीन । उभंत वि [दे] ग्लान, बीमार ।।
उब्भि देखो उब्भिय = उद्भिद् । उभंत वि [उद्भ्रान्त] आकुल, खिन्न । उब्भिउडि वि [उद्धृकुटि] भौंह चढ़ाया हुआ। मूच्छित । भ्रान्तियुक्त, भौचक्का, चकित । | उभिजा स्त्री [उद्भेद्या] एक तरह का शाक।
मारा
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१६४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उभिद-उम्मत्थ उब्भिद सक [उद् +भिद्] ऊँचा करना, खड़ा उमच्छ सक [अभ्या + गम्] सामने आना। करना । विकसित करना । अङ्कुरित करना। उमा स्त्री. गौरी, पार्वती । द्वितीय वासुदेव की खोलना।
माता। देव-गणिका-विशेष । स्त्री-विशेष । उब्भिग देखो उब्भिय = उद्भिद् ।
°साइ [°स्वाति] स्वनामधन्य एक प्राचीन उब्भिडण न. [उद्भेदन] लग कर अलग जैनाचार्य और विख्यात ग्रन्थकार। होना, आघात कर पीछे हटना ।
उमाण न [दे] प्रवेश । उन्भिण्ण वि [उद्धिन्न] अङ्करित । खोला उमार देखो कुमार । हुआ। न. जैन साधुओं के लिए भिक्षा का उमीस वि [उन्मिश्र] मिश्रित । एक दोष, मिट्टी वगैरह से लिप्त पात्र को उमय सक [उद्+मुच्] छोड़ना । खोलकर उसमें से दी जाती भिक्षा । वि उम्मइअ वि [दे] मूर्ख । उन्मत्त । ऊँचा हुआ, खड़ा हुआ।
उम्मऊह वि [उन्मयूख] प्रभाशाली । उब्भिय वि [उद्भिद्] पृथ्वी को फाड़कर उम्मंड पुं [दे] हठ । उगनेवाली वनस्पति ।
उम्मंथिय वि [दे] जला हुआ। उब्भिय न [उद्भिद्] लवण-विशेष । खंजरीट, उम्मग्ग वि [उन्मग्न] पानी के ऊपर आया शलभ आदि प्राणी।
हुआ, तीणं । न. उन्मज्जन, तैरना । °जला उब्भीकय वि [ऊर्वीकृत ऊँचा किया हुआ ।
स्त्री. नदी-विशेष । उन्भुअ अक [उद्+भू] उत्पन्न होना। | उम्मग्ग पुं [उन्मार्ग] कुपथ, उलटा रास्ता । उब्भुआण वि [दे] उबलता हुआ।
छिद्र । अकार्य करना । उब्भुग्ग वि [दे] चल, अस्थिर ।
उम्मच्छ न [दे] क्रोध । वि. असम्बद्ध । प्रकाउब्भुत्त सक [ उत् + क्षिप् ] ऊँचा फेंकना ।
रान्तर से कथित । उब्भुत्तिअ वि [दे] उद्दीपित ।
उम्मच्छर वि [उन्मत्सर] ईर्ष्यालु । उद्भट ।
उम्मच्छविअ वि [दे] उद्भट । उन्भूअ वि [उद्भूत] उत्पन्न । आगन्तुक
उम्मच्छिअ वि [दे] रुषित । आकुल । कारण । उब्भूइआ स्त्री [औद्भूतिकी] श्रीकृष्ण वासु
उम्मज्ज न[उन्मज्जन] तरण । °णिमज्जिया देव की एक भेरो जो किसी आगन्तुक प्रयो
स्त्री ["निमज्जिका] पानी में ऊँचा-नीचा जन के उपस्थित होने पर बजाई जाती थी।
होना। उन्भेअ ' [उद्भेद] उद्गम ।
उम्मज्जग वि [उन्मज्जक] उन्मज्जन करनेउन्भेइम वि [उभेदिम] स्वयं उत्पन्न होने- वाला, गोता लगानेवाला । उन्मज्जन से ही वाला ।
स्नान करनेवाले तापसों की एक जाति । उभ पुं. दोनों।
। उम्मड्डा स्त्री [दे] जबरदस्ती । निषेध । उभओ अ [उभयतस्] द्विधा, दोनों तरह से। उम्मण वि [उन्मनस्] उत्कण्ठित-उत्सुक । उभज्जायण देखो ओमज्जायण । । उम्मत्त पुं [दे] धतूरा । एरण्ड, वृक्ष-विशेष । उभय वि. दोनों । °त्थ अ [°त्र] दोनों जगह। उम्मत्त वि [उन्मत्त] उद्धत, उन्माद-युक्त ।
लोग पुं [°लोक] यह और पर जन्म । हा पागल, भूताविष्ट । °जला स्त्री. नदी-विशेष । __ अ ["था] दोनों तरफ से, द्विधा ।
उम्मत्थ सक [अभ्या+गम्] सामने आना । उमच्छ सक [ वञ्च् ] ठगना। । उम्मत्थ वि [दे] अधो-मुख, विपरीत ।
|
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उम्मर - उम्हाअ
उम्मर पुं [दे] देहली, द्वार के नीचे की
संक्षिप्त प्रात-हिन्दी कोष
उम्मरिअ वि [दे] उत्खात, उन्मूलित । उम्मल वि [दे] स्त्यान, कठिन, घट्ट । उम्मलण न [ उन्मर्दन] मसलना । उम्मल्ल पुं . [ दे] राजा । बलात्कार | वि. पीवर, पुष्ट । उम्मल्ला स्त्री [दे] तृष्णा ।
म्हण व [ उन्मथन] नाशक ।
मेघ, बारिश ।
उम्माइअ वि [ उन्मादित] उन्मत्त किया हुआ । उम्माडियन [दे] उल्मुक, जलता काष्ठ | उम्माण न [ उन्मान ] माप । जो तौला जाता है वह
उम्माय अक [ उद् + मद् ] उन्माद करना । उम्माय पुं [ उन्माद ] चित्त-विभ्रम | कामा
धीनता | आलिङ्गन ।
उम्माल देखो ओमाल ।
उम्मालिय व [ उन्मालित ] सुशोभित । उम्माह पुं [उन्माथ ] विनाश | उमावि [उन्मायक ] विनाशक । उम्मि पुंस्त्री [ऊर्मि] कल्लोल, तरङ्ग । भीड़ । मालिणी स्त्री [ मालिनी ] नदी - विशेष | उम्मठ व [] महावत रहित, निरङ्कुश । उम्मिण क [ उद् + मी] तौलना । उम्मिय वि [ उन्मित ] प्रमित । उम्मिलिर वि [ उन्मीलितृ] विकासी । उम्मिल्ल अक [ उद् + मील् ] विकसित होना । प्रकाशित होना । उल्लसित होना । उम्मिल्लिय वि [उन्मीलित ] विकसित, उल्लसित । खुला हुआ । प्रकाशित, बहिष्कृत, न विकास ।
उम्माद देखो उम्माय ।
उन्मादइत्तअ (शौ) वि [ उन्मादयितृ] उन्माद उम्मुग्गा
करानेवाला ।
उम्मु
उम्मुटु वि [ उन्मृष्ट] स्पृष्ट ।
उम्मिस अक [ उद् + मिष्] खुलना, विकसना । उम्मसि वि [ उन्मिषित ] विकसित, प्रफुल्ल |
न. विकास, उन्मेष । उम्मिस्स देखो उम्मीस । उम्मीलण देखो उम्मिल्लण । उम्मीलणा स्त्री [उन्मीलना] प्रभव, उत्पत्ति । उम्मीलिय देखो उम्मिल्लिय । उम्मीस व [ उन्मिश्र ] मिश्रित, युक्त । उम्मु देखो उ |
उम्मुअ न [ उल्मुक] अलात, लूका । उम्मुच सक [ उद् + मुच् ] परित्याग करना । उम्मुक्क वि [ उन्मुक्त ] विमुक्त, रहित । उत्क्षिप्त । परित्यक्त |
उम्मुग्गवि [ उन्मग्न] जल के ऊपर तैरा हुआ । न. तैरना । निमुग्गिया स्त्री [° निमग्नता] उभचुभ करना ।
स्त्री. देखो उम्मग्ग = उन्मग्न ।
१६५
उम्मुद्दि उद्घाटित ।
[ उन्मुद्रित ] विकसित, प्रफुल्ल ।
उम्मुयण व [उन्मोचन ] परित्याग | उम्मुयणा स्त्री [ उन्मोचना ] त्याग, उज्झन । उम्मुहवि [दे] दृप्त, अभिमानी ।
वि [उन्मुख ] सम्मुख । ऊर्ध्व-मुख | उम्मूढ वि [उन्मूढ] अत्यन्त मुग्ध । विसूइया स्त्री [विसूचिका ] रोग-विशेष, हैजा । उम्मूल वि [ उन्मूल] उन्मूलन करनेवाला, विनाशक ।
उम्मूल सक [उद् + मूलय् ] मूल से उखाड़ फेंकना ।
उम्मेंठ [दे] देखो उम्मिठ ।
उम्मेस पुं [ उन्मेष] उन्मीलन, विकास । उम्मोयणी स्त्री [उन्मोचनी] विद्या-विशेष | उम्ह पुंस्त्री [ऊष्मन् ] सन्ताप, गरमी । उम्हइअ
वि [ऊष्मायित] सन्तप्त, गरम किया हुआ ।
उम्हवि उम्हाअ अ
[ऊष्माय् ] गरम होना । भाप
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उम्हाल-उलुंगो निकालना।
। उरल देखो उराल। उम्हाल वि [ऊष्मवत् गरम, परितप्त। वाष्प- उरविय वि [दे] आरोपित । खण्डित, छिन्न । युक्त।
उरसिज पुं [उरसिज] स्तन । उम्हाविअ न [दे] सुरत, सम्भोग । उरस्स वि [उरस्य] सन्तान। हार्दिक उयचिय वि [दे] देखो उविअ - परिकर्मित । आभ्यन्तर। उयट्ट देखो उव्वट्ट = उद् + वृत् । उद्धृत्त । उराल वि [उदार] प्रबल । मुख्य । सुन्दर, उयत्त अक [अप + वृत्] हटना ।
श्रेष्ठ । अद्भत । विशाल, विस्तीर्ण। न. उयर वि [उदार] श्रेष्ठ ।
शरीर-विशेष, मनुष्य और तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) उयरिया स्त्री [अपवरिका] छोटा कमरा । इन दोनों का शरीर। उयविय देखो उविअ% (दे)।
उराल वि [उदार] स्थूल, मोटा। उयाइय न [उपयाचित] मनौती ।
उराल वि [दे] भयंकर । उयाय वि [उपयात] उपगत ।
उरालिय न [औदारिक] शरीर-विशेष । उयारण न [अवतारण] निछावर, उतारा, उरिआ स्त्री [उड्रिका] लिपि-विशेष । हर्षदान ।
उरितिय न [दे. उरसि-त्रिक] तीन सरवाला उयाहु देखो उदाहु।
हार। उय्यकिअ वि [दे] इकट्ठा किया हुआ। °उरिस देखो पुरिस । उय्यल वि [दे] अध्यासित, आरूढ़ । उरु वि [उरु] विशाल, विस्तीर्ण । उर पुंन [उरस्] छाती। °अ, °ग पुंस्त्री | उरुपुल्ल पुं [दे] अपूप, पूआ। खिचड़ी । [ग] सर्प । °तव पुं [तपस्] तप-विशेष । | उरुमल्ल ।
त्थ न [°ास्त्र] अस्त्र-विशेष, जिसके फेंकने | उरुमिल्ल वि [दे] प्रेरित । से शत्रु सर्पो से वेष्टित होता है। परिसप्प | उरुसोल्ल) पुंस्त्री [[परिसर्प] पेट से चलनेवाला प्राणी । | उरोरुह पुं. स्तन । न. जैन साध्वियों का °सुत्तिया स्त्री [सूत्रिका] मोतियों की हार ।। उपकरण-विशेष । उर न [दे] आरम्भ ।
°उल देखो कुल। उरनंरेण अ [दे] साक्षात् ।
उलय } पुन [उलप] तृण-विशेष । उरत्त वि [दे] खण्डित ।
उलव उरत्थ वि [उरःस्थ] छाती में स्थित । छाती | उलवी स्त्री [उलपी] तृण-विशेष । में पहनने का आभूषण ।
उलिअ वि [दें] असङ्कुचित नजरवाला। उरत्थय न [दे] वर्म, बख्तर, कवच ।
उलित्त न [दे] ऊँचा कुआ। उरब्भ पुंस्त्री [उरभ्र] मेष, भेड़ ।
°उलोण देखो कुलीण। उरब्भिअ वि [औरभ्रिक] भेड़ चरानेवाला। उलुउडिअ वि [दे] प्रलुठित, विरेचित । उरम्भिज्ज । वि [उरभ्रीय] मेष-सम्बन्धी। उलुओसिअ वि [दे] रोमाञ्चित । उरब्भिय , उत्तराध्ययन सूत्र का एक | उलुकसिअ वि [दे] ऊपर देखो। अध्ययन ।
उलुखंड पुं [दे] उल्मुक, अलात, लूका । उरय पुं [उरज] वनस्पति विशेष । | उलुग पुं[उलूक उल्लू, पेचक। देश-विशेष । उररि पु [दे] पशु, बकरा।
| उलुगी स्त्री [औलूकी] विद्या-विशेष ।
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उलुग्ग-उल्लिच संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उलुग्ग वि [अवरुग्ण] बीमार ।
उल्लरय न [दे] कौड़ियों का आभूषण । उलुग्ग वि [दे] देखो ओलुग्ग ।
उल्लल अक [उत् + लल्] चञ्चल होना । उलुफुटिअ वि [दे] विनिपातित, विनाशित ।
ऊँचा चलना । उत्पन्न होना । प्रशान्त ।
उल्ललिअ वि [दे] शिथिल । उलुय देखो उलूअ।
उल्लव सक [उत् + लप्] कहना । बकवाद उलुहंत पुं [दे] कौआ ।
करना, खराब शब्द बोलना। उलुहलिअ वि [दे] अतृप्त।
उल्लव सक [उद्+लू] उन्मूलन करना । उलुहुलअ वि [दे] तृप्तिरहित ।
उल्लविय वि [उल्लपित] कथित, उक्त । न, उलूअ पुं [उलूक] उल्लू, पेचक । वैशेषिक मत उक्ति-वचन। का प्रवर्तक कणाद मुनि ।
उल्लस अक [उत् + लस्] विकसित होना। उलूखल देखो उऊखल।
खुश होना। उलूलु पुं [उलूलु] मङ्गल-ध्वनि ।
उल्लस देखो उल्लास । उलहल देखो उऊखल ।
उल्लसिअ वि [दे. उल्लसित] पुलकित, उल्ल सक [आर्द्रय] गीला करना, आर्द्र करना। रोमाञ्चित । अक. आर्द्र होना । गच्छ पुं [°गच्छ] जैन | उल्लाय वि [दे] लात मारना । मुनियों का गण-विशेष ।
उल्लाय वि [उल्लाप] वक्र-वचन । कथन । उल्ल न [दे] ऋण ।
उल्लाल सक [उत् + नमय] ऊंचा करना । उल्लअण न [उल्लयन] अर्पण, समर्पण। ऊपर फेंकना। उल्लंक पुं [उल्लङ्क] काष्ठ-मय बारक ।
उल्लाल सक [ उत् + लालय] ताडन करना, उल्लंघ सक [उत् + ल ] उल्लङ्घन करना । बजाना । उल्लंघण न [उल्लङ्घन] अतिक्रमण,उत्प्लवन ।
उल्लाल पुन [उल्लाल] छन्द-विशेष । वि. अतिक्रमण करनेवाला ।
उल्लाव सक [उत् + लप्, लापय्] कहना, उल्लंठ वि [उल्लण्ठ] उद्धत ।
बोलना । बकवाद करना । बुलवाना । बकउल्लंडग पुं [उल्लण्डक] छोटा मृदङ्ग । वाद कराना। उल्लंडिअ वि दे] बहिष्कृत ।
उल्लाव पुं [उल्लाप] शब्द, आवाज । उल्लंबण न [उल्लम्बन] उद्बन्धन, फाँसी | उत्तर। बकवाद, विकृत-वचन । उक्ति, लगाकर लटकना।
कथन । सम्भाषण । उल्लक्क वि [दे] भग्न । स्तब्ध ।
उल्लासग वि [उल्लासक] विकसित होने°उल्लट्ट देखो उव्वट्ट =उद्-वृत् ।
वाला । आनन्दजनक । उल्लट्ट वि [दे] उल्लुण्ठित, खाली किया हुआ।
उल्लासण न [उल्लासन] विकास । उल्लण वि [उल्बण] उत्कट ।
उल्लाह सक [उत् + लाघय] कम करना, उल्लण न [दे] खाद्य वस्तु-विशेष, ओसामन । हीन करना। उल्लणिया स्त्री [आद्रयणिका] जल पोंछने | उल्लिअ वि [दे] उपसर्पित, उपागत । का गमछा, टोपिया ।
उल्लिअ वि [दे] चीरा हुआ, फाड़ा हुआ। उल्लदिय विदे] भाराकान्त, जिसपर बोझा | उपालब्ध, उलाहना दिया हुआ । लादा गया हो वह ।
उल्लिच सक [उद् + रिच्] खाली करना।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उल्लिक्क-उवइण्ण उल्लिक्क न [दे] खराब चेष्टा ।
उल्लुह अक [निस् + स] निकलना । उल्लिगण वि [उल्लिङ्गन] उपदर्शक । उल्लुइंडिअ वि [दे] उन्नत, उच्छ्रित । उल्लिपण न [उपलेपन] उपलेप ।
उल्लूढ वि [दे] आरूढ़। अङ्कुरित । उल्लिया स्त्री [दे] राधा-वेध का निशाना । उल्लूढ सक [आ + रुह.] चढ़ना । उल्लिर वि [आर्द्र] गीला ।
उल्लूर सक [तुड्] तोड़ना । नाश करना । उल्लिह सक [उद्+लिह] चाटना । भक्षण उल्लूरण न [तोडन] छेदन, खण्डन । करना।
उल्लूह वि [दे] शुष्क । उल्लिह सक [उद् + लिख] रेखा करना । उल्लेव पुं दे] हास्य । लिखना । घिसना । छिलना ।
उल्लेहड वि [दे] लम्पट, लुब्ध । उल्ली स्त्री [दे] चूल्हा । दाँत का मैल । उल्लोइय न [दे] पोतना । वि, पोता हुआ । उल्लीण वि [उपलीन] प्रच्छन्न, गुप्त । उल्लोक वि [दे] त्रुटित, छिन्न । उल्लुअ वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ। उल्लोच पुं [ दे. उल्लोच] चाँदनी । रंगा हुआ।
उल्लोढ सक [उल्लोध्रय] लोध्र आदि से उल्लुअ वि [दे. उद्गत] उदय-प्राप्त । घिसना। उल्लुअ वि [उल्लून] उन्मलित । न. उन्म- | उल्लोय पुं [उल्लोक] अगासी, छत । थोड़ी
देर। उल्लुंचिअ वि [उल्लुञ्चित] उखाड़ा हुआ, | उल्लोय देखो उल्लोच । उन्मलित।
उल्लोल अक [उत् + लुल] लुठना, लेटना । उल्लुंटिअ वि [दे] संचूर्णित, टुकड़ा-टुकड़ा | पुं. शोकाकुल-स्त्री-रुदन-शब्द । किया हुआ।
उल्लोल सक [उद् + लोलय] पोंछना । उल्लंठ वि [उल्लुण्ठ] उल्लण्ठ, उद्धत । उल्लोल पुं [दे] शत्रु । कोलाहल । उल्लुंड अक [वि+ रेचय] झरना, बाहर | उल्लोल पुं. प्रबन्ध । वि. उद्भट, उद्धत । वि. निकलना।
उत्सुक । उल्लुक्क वि [दे] टूटा हुआ।
उल्लोव (अप) देखो उल्लोच। उल्लुक्क सक [तुड्] तोड़ना।
उल्हव सक [वि + ध्मापय] ठण्ढा करना, उल्लुग° ) स्त्री [उल्लुका] नदी-विशेष । |
आग को बुझाना । शान्त करना। उल्लुगा ) उल्लुका नदी के किनारे का ।
| उल्हसिअ वि [दे] उद्भट, उद्धत । प्रदेश । 'तीर न. उल्लुका नदी के किनारे उल्हा अक [वि + ध्मा] बुझ जाना । बसा हुआ एक नगर।
उव अ [उप] इन अर्थों का सूचक अव्ययउल्लुज्झण न [दे] पुनरुत्थान, कटे हुए हाथ समीपता । सदृशता । समस्तपन । एकबार । पाँव की फिर से उत्पत्ति ।
भीतर। उल्लुट्ट अक [उत् + लुट्] नष्ट होना। उव न [उद] पानी। उल्लुट्ट वि [दे] मिथ्या, असत्य ।
उवअंठ वि [उपकण्ठ] समीप का । उल्लुरुह पुं [दे] छोटा शङ्ख ।
| उवइट्ट वि [उपदिष्ट] कथित, प्रतिपादित, उल्लुलिअ वि [उल्लुलित] चलित । शिक्षित । उल्लुव देखो उल्लव = उद् + लू । । उवइण्ण वि [उपचीर्ण] सेवित ।
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उवइय-उवक्खडिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१६९ उवइय वि [उपचित] मांसल । उन्नत । | उवकस सक [उप-+ कष्] प्राप्त होना । उवइय पुंस्त्री [दे] त्रीन्द्रिय जीव-विशेष, देखो उवकसिअ वि [दे] सन्निहित । परिसेवित । ओवइय।
सर्जित, उत्पादित । उवइस सक [उप+ दिश] उपदेश देना, उवकार देखो उवगार। सिखाना । प्रतिपादन करना
उकारिया देखो उवगारिया । उवउंज सक [उप + युज्] उपयोग करना । उवकिइ । स्त्री [उपकृति] उपकार । उवउज्ज पुं [दे] उपकार । वि. उपकारक । उवकिदि । उवउत्त वि [उपयुक्त] न्याय्य । अप्रमत्त । उवकुल न [उपकुल] नक्षत्र-विशेष, श्रवण उवऊढ वि [उपगूढ] आलिङ्गित ।
आदि बारह । उवऊह सक [उप+ गृह ] आलिङ्गन करना। उवकुल पुन [उपकुल] कुल नक्षत्र के पास का उवएइआ स्त्री [दे] शराब परोसने का पात्र । नक्षत्र। उवएस पुं [उपदेश] बोध । कथन, प्रतिपा- उवकोसा स्त्री [उपकोशा] एक गणिका, कोशा दन । शास्त्र, सिद्धान्त । उपदेश्य ।।
वेश्या की छोटी बहन । उवएसग वि [उपदेशक] उपदेश देने वाला। उवक्कंत वि [उपक्रान्त] समीप में आनीत । उवओग पुं उपयोग] ज्ञान, चैतन्य । ध्यान, प्रारब्ध, प्रस्तावित । सावधानी । प्रयोजन, आवश्यकता ।
उवक्कम सक [उप + क्रम्] शुरू करना । उवओगि वि [उपयोगिन्] उपयुक्त, योग्य,
प्राप्त करना । जानना। समीप में लाना।
संस्कार करना । अनुसरण करना । प्रयोजनीय ।
उवक्कम पुं [उपक्रम] आरम्भ । प्राप्ति का उवंग पुन [उपाङ्ग] छोटा अवयव, क्षुद्र भाग।
प्रयत्न । कर्मों के फल का अनुभव । कर्मों की मल-ग्रन्थ के अंश-विशेष को लेकर उसका
परिणति का कारण-भूत जीव का प्रयत्नविस्तार से वर्णन करनेवाला ग्रन्थ, टीका ।
विशेष । मरण, विनाश । दूरस्थित को समीप 'औपपातिक' सूत्र वगैरह बारह जैन ग्रन्थ ।
में लाना। आयुष्य-विघातक वस्तु । शस्त्र । उर्वजण न [उपाञ्जन] मालिश ।
उपचार । ज्ञान, निश्चय । अनुवर्तन, अनुकूलउवकंठ देखो उवअंठ।
प्रवृत्ति । संस्कार, परिकर्म । उवकंठ न [उपकण्ठ] समीप ।
उवक्कम पुं [उपक्रम] अनुदित कर्मों को उदय उवकदुअ (शौ) अ [उपकृत्य] उपकार ।। __ में लाना। करके।
उवक्कमिय वि [औपक्रमिक] उपक्रम से सम्बन्ध उवकप्प सक [उप + क्ल] उपस्थित करना।
रखनेवाला। करना।
उवक्काम सक [उप + क्रम्] दीर्घकाल में भोगने उवकप्प पुं [उपकल्प] साधु को दी जाने वाली योग्य कर्मों को अल्प समय में ही भोगना । भिक्षा, अन्नपान वगैरह।
उवक्कामण न [उपक्रमण] उपक्रम कराना। उवकय वि [उपकृत] अनुगृहीत ।
उवक्केस पुं[उपक्लेश] बाधा । शोक । उवकय वि [दे सज्जित, प्रगुण, तैयार । उवक्खड सक [उप + स्कृ] पकाना, रसोई उवकर देखो उवयर = उप + कृ ।
करना । पाक को मसाले से संस्कारित करना। उवकर सक [अव+क] व्याप्त करना।
उवक्खड । वि [उपस्कृत] पकाया हुआ। उवकरण देखो उवगरण ।
। उवक्खडिय , मसाला वगैरह से संस्कार-युक्त
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१७०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उवक्खडिय-उवधाय पकाया हुआ। पुन. रसोई, पाक । °ाम वि । बाह्य इन्द्रियविशेष । [Tम] पकाने पर भी जो कच्चा रह जाता | उवगस सक [उप+कस्] समीप आना। हैं वह, मूंग वगैरह अन्न-विशेष ।
उवगा सक [उप +गै] वर्णन करना । गुणगान उवक्खर पुं [उपस्कर] संस्कार। जिससे | करना । संस्कार किया जाय वह ।
उवगार देखो उवयार - उपकार । उवक्खर पुं [उपस्कर] घर का उपकरण । | उवगारग वि [उपकारक] उपकार करनेवाला । साधन।
उवगारिया स्त्री [उपकारिका] प्रासाद आदि उवक्खरण न [उपस्करण] ऊपर देखो।
की पीठिका। °साला स्त्री [°शाला] रसोई-घर ।
उवगिअ न [उपकृत] उपकार । वि. जिसपर उवक्खा सक [उपा+ ख्या] कहना।
उपकार किया गया हो वह । उवक्खा स्त्री [उपाख्या] उपनाम ।
उवगिण्ह सक [उप+ ग्रह] उपकार करना । उवक्खाइत्तु वि [उपख्यापयितु] प्रसिद्धि
पुष्टि करना । ग्रहण करना । करानेवाला।
उवगीय वि [उपगीत] वणित, श्लाधित । न. उवक्खाइया स्त्री [उपाख्यायिका] उपकथा । संगीत, गीत । उवक्खाण न [उपाख्यान] कथा ।
उवगूढ वि[उपगूढ]आलिङ्गित । न. आलिङ्गन । उवक्खित्त वि [उपक्षिप्त] प्रारब्ध, शुरू किया |
उवगह सक [उप+ गुह.] आलिङ्गन करना। हुआ।
गुप्त रीति से रक्षण करना । रचना करना । उवक्खिव सक [उप + क्षिप्] स्थापन करना । उवग्ग न [उपाग्र] अग्र के समीप । आषाढ़ प्रयत्न करना । प्रारम्भ करना ।
मास । उवक्खीण वि [उपक्षीण] क्षय-प्राप्त । | उवग्गह पुं [उपग्रह] पुष्टि । उपकार । ग्रहण, उवक्खेअ पुं [उपक्षेप] प्रयत्न । उपाय । उत्पादन । उपधि, उपकरण । उवक्खेव पुंदे. उपक्षेप] मुण्डन ।
उवग्गह पुं [उपग्रह] सामीप्य-सम्बन्ध । उवग वि [उपग] अनुसरण करनेवाला । समीप | | उवग्गहिअ न [उपगृहीत] उपकार । में जानेवाला ।
उवग्गहिअ वि [उपगृहित] उपस्थापित । उवगच्छ सक [उप + गम्] समीप में आना। आलिंगनादि चेष्टा । उपकृत । उपष्टम्भित ।
प्राप्त करना । जानना । स्वीकार करना। उवग्गहिअ देखो ओवग्गहिअ । उवगणिय वि [उपगणित] गिना हुआ। उवग्गाहि वि [उपग्राहिन्] सम्बन्धी, सम्बन्ध उवगप्पिय वि [उपकल्पित] विरचित ।
रखनेवाला। उवगम देखो उवगच्छ।
उवग्घाय पुं[उपोद्घात] ग्रन्थ के आरम्भ का उवगय वि [उपगत] पास आया हुआ । ज्ञात । वक्तव्य । युक्त । प्राप्त । प्रकर्ष-प्राप्त । स्वीकृत । उवघाइ वि [उपघातिन्] उपघात करनेवाला । अन्तर्भूत ।
उवघाइय वि [उपघातिक] उपघातकारक । उवगय वि [उपकृत] जिसपर उपकार किया हिसा से सम्बन्ध रखनेवाला । गया हो वह ।
| उवघाय पुं [उपघात] विराधना, आघात । उवगर सक [उप+क] हित करना।
अशुद्धता । विनाश । उपद्रव । दूसरे का अशुभ उवगरण न [उपकरण] साधन, साधक वस्तु ।। चिन्तन । 'नाम न [°नामन्] कर्म-विशेष ।
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उवधायग-उवठावणा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१७१ उवधायग वि [उपघातक] विनाशक । उवजिण सक [उप+अर्ज ] उपार्जन करना । उवचय पुं [उपचय] वृद्धि । समूह । शरीर । उवज्झय । पुं । उपाध्याय ] अध्यापक । इन्द्रिय-पर्याप्ति । पुष्टि ।
उवज्झाय । सूत्राध्यापक जैन मुनि को दी उवचर सक [उप+ चर] सेवा करना । समीप | __ जाती एक पदवी। में घूमना-फिरना । आरोप करना । समीप में | उवज्झिय वि [दे] आकारित, बुलाया हुआ। खाना। उपद्रव करना। उपासना करना, उवझाय देखो उवज्झाय । उपचार करना।
उवट्टण देखो उव्वट्टण। उवचर सक [उप+ चर् ] व्यवहार करना। उवट्टणा देखो उव्वट्टणा । उवचरय वि [उपचरक]सेवा के बहाने से दूसरे | उवट्ठ वि [उपस्थ। एक स्थान में सतत अव
का अहित करने का मौका देखनेवाला। पुं. स्थित । °काल पुं. आने की वेला । जासूस ।
उवटुंभ पुं [उपष्टम्भ] अवस्थान । अनुकम्पा । उवचरिय वि [उपचरित] कल्पित । उवटुप्प वि [ उपस्थाप्य ] उपस्थित करने उवचि सक [उप + चि] इकट्ठा करना । पुष्ट __ योग्य । व्रत-दीक्षा के योग्य । करना।
उवट्ठव सक [ उप + स्थापय् ] युक्ति से उवचिट्ट सक [उप+ स्था] उपस्थित होना,
संस्थापित करना । उपस्थित करना । व्रतों समीप आना।
का आरोपण करना, दीक्षा देना। उवचिणिय । वि [ उपचित ] पुष्ट, पीन ।
उवट्ठवणा स्त्री [उपस्थापना] चारित्र-विशेष, उवचिय " स्थापित, निवेशित । उन्नति । एक प्रकार की जैन दीक्षा । शिष्य में व्रत की व्याप्त । बढ़ा हुआ ।
स्थापना। उवच्चया स्त्री [उपत्यका] पर्वत के पास की |
| उवट्ठवणीय वि [उपस्थापनीय] देखो नीची जमीन।
उपटुप्प। उवच्छंदिद (शौ) वि [ उपच्छन्दित ] उवढ़ा सक [उप+स्था] उपस्थित होना। अभ्यथित ।
उवट्ठाण न [उपस्थान] बैठना, व्रत-स्थापन । उवजंगल वि [दे] दीर्घ ।
एक ही स्थान में विशेष काल तक रहना, उवजा अक [उप+जन्] उत्पन्न होना। अनुष्ठान, आचार । 'दोस पुं [°दोष] उवजाइ स्त्री [उपजाति] छन्द-विशेष । नित्यवास दोष । °साला स्त्री [°शाला] उवजाइय देखो उवयाइय।
सभा-स्थान । उवजाय वि [उपजात] उत्पन्न ।
उवट्ठाणा स्त्री [उपस्थाना] जिसमें जैन साधुउवजीव सक [ उप + जीव ] आश्रय लेना।
लोग एक बार ठहर कर फिर भी शास्त्रउवजीवग वि [उपजीवक] आश्रित । निषिद्ध-अवधि के पहले ही आकर ठहरें वह उवजीवि वि [उपजीविन्] आश्रय लेनेवाला।
स्थान। उपकारक।
उवट्ठाव देखो उवट्ठव। उवजोइय वि [उपज्योतिष्क] अग्नि के समीप | उवट्ठावणा देखो उवट्ठवणा। में रहनेवाला । पाक-स्थान में स्थित ।
न । समीप स्थित उवन अक [उत् + पद्] उत्पन्न होना।
तैयार । आश्रित । मुमुक्षु । उवजण न [उपार्जन कमाना।
उवठावणा देखो उवट्ठवणा।
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१७२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उवडहित्तु-उवदेसग उवडहित्तु वि [उपदहित] जलानेवाला। उवणीअ न [उपनीत] उपनयन । वयण न उवडिअ वि [दे] अवनत ।
| [°वचन] प्रशंसा-वचन । उवणगर न [उपनगर] शाखा-नगर । उवणीय वि [उपनीत] समीप में लाया हुआ। उवणच्च सक [ उप+ नर्त्तय ] नचाना । अर्पित, उपढौकित । उपनययुक्त, उपसंहृत । उवणद्ध वि [उपनद्ध] घटित ।
प्रशस्त, श्लाषित । °चरय पुं [°चरक] उवणम सक [उप+नम्] उपस्थित करना, ला | अभिग्रह-विशेष को धारण करनेवाला साधु । रखना, प्राप्त करना ।
उवण्णत्थ वि [उपन्यस्त] उपन्यस्त, उपउवणय वि [उपनत] उपस्थित ।
ढौकित । उवणय पुं[उपनय ] उपसंहार, दृष्टान्त के उवण्णास पुं [उपन्यास] वाक्योपक्रम, अर्थ को प्रकृत में जोड़ना, हेतु का पक्ष में | प्रस्तावना । दृष्टान्त-विशेष । रचना। छलउपसंहार । स्तुति, श्लाघा । अवान्तर नय ।। प्रयोग। यज्ञोपवीत संस्कार, उपहार, भेंट।
उवतल न [उतपल] हस्त-तल की चारों ओर उवणयण न [उपनयन] उपवीत-संस्कार, यज्ञ- का पार्श्वभाग। सूत्र-धारण-संस्कार।
उवताव पुं [उपताप] सन्ताप, गरम । उवणिअ देखो उवणीय ।
उवत्त वि [उपात्त] गृहीत । उवणिक्खित्त वि [उपनिक्षिप्त] व्यवस्थापित । | उवत्थड वि [उपस्तृत] ऊपर-ऊपर आच्छाउवणिक्खेव पुं [उपनिक्षेप] धरोहर, रक्षा के । | दित । लिए दूसरे के पास रखा धन ।।
उवत्थाण देखो उवट्ठाण। उवणिग्गम [उपनिर्गम] द्वार । उपवन । उवत्थाणा देखो उवट्ठाणा । उवणिग्गय वि [उपनिर्गत] समीप में निकला उवत्थिय देखो उवट्ठिय । हुआ।
उवत्थु सक [उप + स्तु] स्तुति करना, उवणिमंत सक [उपनि + मन्त्रय] निमन्त्रण | | श्लाघा करना। देना। .
उवदंस सक [उप+ दर्शय] दिखलाना। उवणिवाय पुं [उपनिपात] सम्बन्ध ।
उवदंस पुं [उपदंश] रोग-विशेष, गर्मी, उणिविट्ठ वि [उपनिविष्ट] समीप स्थित ।
सुजाक । चाटना। उवणिसआ स्त्री [उपनिषत्] वेदान्त-शास्त्र ।
उवदंसण न [उपदर्शन] दिखलाना। कूड उवणिहा स्त्री [उपनिधा] मार्गण, मार्गणा।
पुं[°कूट] नीलवन्त नामक पर्वत का एक उवणिहि पुंस्त्री [उपनिधि] समीप में |
शिखर । आनीत । विरचना । उपस्थापन, अमानत ।
उवदंसेत्तु वि [उपदर्शयित] दिखलानेवाला । उवणिहिअ वि [औपनिधिक] उपनिधि
| उवदव पुं [उपद्रव] ऊधम, उपसर्ग ।। सम्बन्धी । °आ स्त्री [°की] क्रम-विशेष ।
उवदा स्त्री [उपदा] भेट । उवणिहिय वि [उपनिहित] समीप में स्था- | उवदाई स्त्री [उदकदायिका] पानी देनेपित । आसन्न-स्थित । °य पुं [क] नियम- वाली। विशेष को धारण करनेवाला भिक्षु । उवदिस सक [उप + दिश्] उपदेश देना। उवणी सक [उप + नी] समीप में लाना । | उवदीव न [दे] द्वीपान्तर । अर्पण करना । इकट्ठा करना ।
| उवदेसग वि [उपदेशक] व्याख्याता ।
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उवदेसि उवयारिअ
उवदेसि वि [उपदेशिन् ] उपदेशक । देही स्त्री [उपदेहिका ] क्षुद्र जन्तु - विशेष, दीमक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उद्दव सक [उप + द्रु] पीडित करना । उपद्रव करना, ऊधम मचाना ।
उवद्दव देखो उवदव | उवदुअवि [उपद्रुत ] हैरान किया हुआ । उवधाउ पुं [ उपधातु] निकृष्ट धातु । उवधारणया स्त्री [उपधारणा ] अवग्रह- ज्ञान ।
धारण करना ।
उवधारयवि [ उपधारित ] धारण किया हुआ ।
उवनंद पुं [ उपनन्द] स्वनाम - ख्यात एक जैन मुनि ।
उवनंद सक [उप + नन्द्] अभिनन्दन करना । निक्खेव स [ उपनि + क्षेपय् ] धरोहर
रखना | स्थापन करना ।
उवनिबंधण न [ उपनिबन्धन ] सम्बन्ध । वि.
सम्बन्ध-हेतु ।
उवनिवि वि [ उपनिविष्ट ] समीप स्थित । उवनिहि वि[ औपनिधिक ] देखो उवणिहिय । उवन्नत्थ वि [ उपन्यस्त] स्थापित । उवन्नास पुं [ उपन्यास ] निवेदन | उवप्पदाण न [ उपप्रदान ] नीति-विशेष, उवप्पयाण दान नीति, अभिमत अर्थ का दान | उaga [ उपप्लुत] उपद्रुत, भय से व्याप्त । वि उवभुंज सक [ उप + भुज् ] उपभोग करना, काम में लाना ।
उक्त वि [ उपभुक्त] जिसका उपभोग किया ह | अधिकृत ।
१७३
भोग | धारण करना । उवभोग्ग ) वि [ उपभोग्य ] उपभोग योग्य । उवभोज्ज
उवमा स्त्री [ उपमा ] सादृश्य, दृष्टान्त । सत्य । खाद्य-पदार्थ- विशेष । 'प्रश्नव्याकरण' सूत्र का एक लुप्त अध्ययन | अलङ्कार - विशेष । प्रमाणविशेष, उपमान प्रमाण ।
उवमाण न [ उपमान ] दृष्टान्त, सादृश्य । जिस पदार्थ से उपमा दी जाय वह । प्रमाणविशेष | उवमालिय वि [ उपमालित ] विभूषित । उवमिय वि [ उपमित] जिसको उपमा दी गई हो वह । न. उपमा, सादृश्य । उवमेअ वि [ उपमेय] उपमा के योग्य । उवय पुं [दे] हाथी को पकड़ने का गड्ढा । उवय देखो ओवय । उवय (अप) देखो उदय ।
उवयर सक [उव + कृ] उपकार करना । उवयर सक [ उप + चर्] आरोप करना । भक्ति करना । कल्पना करना । चिकित्सा
करना ।
उवयरण न [ उपकरण] साधन | उपकार । उवयरिया स्त्री [ उपचारिका ] दासी । उवया सक [ उप + या ] समीप में जाना । उवयाइयवि [उपयाचित] प्रार्थित । मनौती | उवयार पुं [उपकार ] भलाई । उवयार पुं [ उपचार ] पूजा, चिकित्सा | शब्द- शक्ति - विशेष, अध्यारोप | व्यवहार | कल्पना । आदेश | उवयारगवि [ उपचारक] सेवा-शुश्रूषा करने
आदर ।
वाला ।
उवयारण न [ उपकारण ] अन्य द्वारा उपकार
करना ।
उवभोअ पुं [ उपभोग ] भोजनातिरिक्त उवभोग भोग, जिसका फिर-फिर भोग किया जाय जैसे - वस्त्र, गृहादि । जिसका एक बार भोग किया जाय वह अशन, पान
उवयारयवि [ उपकारक ] उपकार करने
वाला ।
वगैरह । एक बार भोग, आसेवन । अन्तरङ्ग । उवयारिअ वि [ औपचारिक ] उपचार से
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२७४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उवयालि-उवलीण सम्बन्ध रखनेवाला।
आग्रह। उवयालि पुं [उपजालि] एक अन्तकृद् मुनि, उवल पुं [उपल] पत्थर । टाँकी वगैरह को जो वसुदेव का पुत्र था और जिसने भगवान् । संस्कृत करनेवाला पाषाण-विशेष । श्रीनेमिनाथजी के पास दीक्षा लेकर शत्रुञ्जय | उवलम्बण पुं [उपलम्बन] साँकल वाला एक पर मुक्ति पाई थी। राजा श्रेणिक का इस प्रकार का दीपक । नाम का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर उवलंभ सक [उप+लभ्] प्राप्त करना । के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर-विमान में देव- जानना । उलाहना देना । गति प्राप्त की थी।
उवलंभ पुं [उपलम्भ] लाभ । ज्ञान । उवरइ स्त्री [उपरति] विराम ।
उलाहना। उवरंज सक [उप + रज ग्रस्त करना। उवलंभ देखो उवालंभ = उपालम्भ । उवरग देखो ओअरय ।
उवलक्ख सक [उप + लक्षय्] जानना, पहिउवरत्त वि[उपरक्त] अनुरक्त । राहु से ग्रसित।। चानना। म्लान ।
उपलक्खण न [उपलक्षण]पहिचान । अन्यार्थउवरम अक [उप + रम्] निवृत्त होना, विरत बोधक सङ्केत । होना । नाश होना।
उवलग्ग दि [उपलग्न] लगा हुआ। उवरय वि [उपरत] विरत, निवृत्त । मृत ।।
उवलद्ध वि [उपलब्ध] प्राप्त । विज्ञात । उवरय देखो उवरग।
उपालब्ध । उवरल (अप) देखो उव्वरिय [दे। उवलद्धि स्त्री [उपलब्धि] प्राप्ति, लाभ । उवराग । पुं [उपराग] सूर्य या चन्द्र का | ज्ञान । उवराय , ग्रहण, राहु-ग्रहण ।
उवलधु वि [उपलब्धृ] ग्रहण करनेवाला, उवराय पुं [उपरात्र] दिन ।
जाननेवाला। उवरि अ [उपरि] ऊपर । °भासा स्त्री |
| उवलभ देखो उवलंभ = उप + लम् । [°भाषा] गुरु के बोलने के अनन्तर ही
उवलभत्ता । स्त्री [दे] कङ्गन ।
उवलयभग्गा विशेष बोलना । °म, मग, “मय, ल्ल वि [°तन] ऊपर का। हुत्त वि [°अभिमुख
उवलल अक [उप + लल] क्रीडा करना, ऊपर की तरफ।
विलास करना। उरि ऊपर देखो।
उवललय न [दे] सुरत, मैथुन । उवरितण देखो उवरि-म ।
उवलह देखो उवलंभ % उप + लभ् । उवरुंध सक [उप+रुध्] अड़चन डालना।
उवला सक [उप+ला] ग्रहण करना । आश्रय रोकना।
करना। उवरुद्द पुं [उपरुद्र] नरक के जीवों को दुःख |
उलि देखो उवल्लि। देनेवाले परमाधार्मिक देवों की एक जाति । उवलिंप सक [उप + लिप्] लीपना, पोतना । उवरुद्ध वि [उपरुद्ध] रक्षित । प्रतिरुद्ध । चुम्बन करना। उवरोह सक [उप + रोधय] अड़चन डालना। उवलित्त वि [उपलिप्त] लीपा हुभा, पोता उवरोह पुं [उपरोध] बाधा। प्रतिबन्ध । हुआ। नगर आदि का सैन्य द्वारा वेष्टन । निर्बन्ध, ' उवलीण देखो उवल्लीण ।
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उवलुअ-उवसंधारिय
उवलुअ वि [ दे] लज्जा-युक्त । उवलेव पुं [ उपलेप ] लेपना । कर्मबन्ध | संश्लेष | आश्लेष |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उवलोभ सक [ उप + लोभय् ] लालच देना । उवलोहिया वि [ उपलोभित] जिसको लालच दी गई हो वह ।
उवल्लि सक [ उप + ली] रहना । आश्रय
उववइ पुं [ उपपति] जार ।
उववज्ज अक [ उप + पद्] उत्पन्न होना । सङ्गत होना ।
उववज्जण न [ उपवर्जन ] त्याग |
उववज्झ वि [उपवाह्य ] राजा आदि का वल्लभ - प्रधान सेनापति आदि ।
उवज्झ वि [ औपवाह्य ] प्रधान आदि का, प्रधान आदि को बैठने योग्य ।
करना ।
उवल्लीण वि [ उपलीन ] स्थित । प्रच्छन्न- उवविट्ट वि [उपविष्ट ] बैठा हुआ ।
स्थित |
उवट्ट अक [ उप + वृत् ] च्युत होना, मरना, एक गति से दूसरी गति में जाना । उववण न [ उपवन] बगीचा |
उववण्ण वि [ उपपन्न ] उत्पन्न । सङ्गत, युक्त प्रेरित । न उत्पत्ति ।
उववत्ति स्त्री [ उपपत्ति ] उत्पत्ति, जन्म | युक्ति, न्याय । विषय | सम्भव । उववत्तु वि [ उपपत्तृ] उत्पन्न होनेवाला । उववयण न [ उपपतन] देखो उववाय = उप
पात ।
उववसण न [ उपवसन] उपवास । उववाइय वि [ औपपादिक, औपपातिक ] उत्पन्न होनेवाला | देवरूप या नारक रूप से उत्पन्न होनेवाला ।
उववाय सक [ उप + पादय् ] सम्पादन करना, सिद्ध करना ।
उववाय पुं [ उप + वादय् ] वाद्य बजाना । उववाय पुं [उपपात] देव या नारक जीव की
१७५
उत्पत्ति | सेवा, आदर | विनय । आज्ञा । प्रादुर्भाव । उपसम्पादन, सम्प्राप्ति । कप्प पुं [कल्प ] साध्वाचार- विशेष पार्श्वस्थों के साथ रहकर संविग्न-विहार की सम्प्राप्ति । 'य वि [ज] देव या नारक गति में उत्पन्न जीव |
उववास पुंन [ उपवास] अनाहार । उववि देखो उववीअ ।
उवविणिग्गय वि [ उपविनिर्गत ] सतत निर्गत । उवविस अक [ उप + विश्] बैठना । उववीअ न [ उपवीत ] यज्ञसूत्र । वि. सहित । उववीड अ [ उपपीड] उपमर्दन । उवहसक [ उप + बृंह ] पुष्ट करना | वृद्धि करना । प्रशंसा करना ।
उववूणिय वि [ उपबृंहणीय] पुष्टि - कर्त्ता । स्त्री. पट्ट - विशेष, राजा वगैरह के भोजनसमय में उपभोग में आनेवाला पट्टा । उad वि [ उपेत ] युक्त |
उवसंकम सक [ उपसं + क्रम्] समीप आना । उवसंखड सक [ उपसं + कृ] राँधना । उवसंखा स्त्री [ उपसंख्या] यथावस्थित पदार्थज्ञान |
उवसंगह सक [ उप + ग्रह] उपकार करना । उवसंघर सक [ उपसं + हृ] उपसंहार करना । उवसंघिय वि [ उपसंहृत] जिसका उपसंहार किया गया हो वह, समापित । उवसंचि सक [उप + चि] सञ्चय करना । उवसंठिय वि [ उपसंस्थित] समीप में स्थित । उपस्थित |
उवसंत वि [ उपशान्त ] क्रोधादि विकाररहित । नष्ट, अपगत । पुं. ऐरवत क्षेत्र के स्वनामधन्य एक तीर्थङ्कर-देव । मोह पुं. ग्यारहवाँ गुण-स्थानक । उवसंति स्त्री [उपशान्ति] उपशम । उवसंधारिय वि [ उपसंधारित ] सङ्कल्पित ।
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१७६
उवसंपज्ज [ उपसं + पद् । समीप में जाना । स्वीकार करना । प्राप्त करना । उवसंपण्ण वि [ उपसंपन्न ] प्राप्त । समीप-गत । उवसंपया स्त्री [ उपसंपद् ] ज्ञान वगैरह की प्राप्ति के लिए दूसरे गुर्वादि के पास जाना । अन्य गुरु आदि की सत्ता का स्वीकार करना ।
लाभ ।
उवसंहर सक [ उपसं + हृ] हटाना । सङ्केलना । समेटना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उवसंहार पुं [ उपसंहार ] सङ्कोचन, समेट | समाप्ति । उपनय ।
उवसंहार पुं. उपसंहार । उवसग्ग पुं [ उपसर्ग ] उपद्रव, बाधा । अव्यय - विशेष, जो धातु के पूर्व में जोड़े जाने से उस धातु के अर्थ की विशेषता करता है । उवसग्ग वि [दे] मन्द, आलसी । उवसज्ज अक [ उप + सृज् ] आश्रय करना । उवसज्जण न [ उपसर्जन ] गौण । सम्बन्ध | उवसत्त वि [ उपसक्त ] विशेष आसक्तिवाला । उवसद्द पुं [ उपशब्द ] सुरत समय का शब्द । प्रच्छन्न शब्द | समीप का शब्द | उवसप्प सक [ उप + सृप् ] समीप जाना । उवसम पुं [ उप + शम् ] क्रोध-रहित होना । शान्त होना । ठण्ढा होना । नष्ट होना । उवसम पुं [उपशम] क्रोध का अभाव, क्षमा । इन्द्रिय - निग्रह | पन्द्रहवाँ दिवस | मुहूर्त्तविशेष । 'सम्म न [ सम्यक्त्व] सम्यक्त्व - विशेष | उवसमणा स्त्री [ उपशमना] आत्मिक प्रयत्नविशेष, जिससे कर्म - पुद्गल उदय उदीरणादि के अयोग्य बनाए जाँय वह । उवसमिअ पुं [ औपशमिक ] कर्मों का उपशम । उवसमय वि [ औपशमिक ] उपशम से होनेवाला । उपशम से सम्बन्ध रखनेवाला । उवसाम सक [ उप + शमय् ] शान्त करना । रहित करना ।
उवसाम पुं [उपशम] उपशान्ति ।
उवसाम देखो उवसम । उवसामग वि [ उपशमक] क्रोधादि को उपशान्त करनेवाला । उपशम से सम्बन्ध रखने
उवसं पज्ज-उवह
वाला ।
उवसामय देखो उवसामग । उवसामिय वि [ औपशमिक ] उपशमसम्बन्धी । पुं. भाव-विशेष । न. विशेष |
सम्यक्त्व
उवसाह सक [ उप + कथ् ] कहना । उवसाहण वि [ उपसाधन ] निष्पादक । उवसायि वि [ उपसाधित] तैयार किया हुआ । उवत्ति वि [ उपसिक्त ] छिड़का हुआ । उवसिलोअ सक [ उपश्लोकय् ] वर्णन करना, प्रशंसा करना । उवसुत वि [ उपसुप्त ] सोया हुआ । वसुद्ध वि [ उपशुद्ध] निर्दोष । वसूयवि [ उपसूचित ] संसूचित । उवसेर वि [दे] रति-योग्य | उवसेवण न [ उपसेवन ] सेवा, परिचय | उपसेवय वि [ उपसेवक ] सेवा करनेवाला,
भक्त ।
उवसोभ अक [ उप + शुभ्] शोभना । उवसोहा स्त्री [ उपशोभा ] शोभा । उवसोहिय वि [ उपशोधित] निर्मल किया
हुआ ।
उवसग्ग देखो उवसग्ग ।
उवस्य पुं [ उपाश्रय ] जैन साधुओं के निवास करने का स्थान ।
उवस्सा स्त्री [ उपश्रा ] द्वेष ।
उवस्य वि [ उपाश्रित] द्वेषी । अङ्गीकृत समीप में स्थित । न द्वेष |
उवस्सुदि स्त्री [ उपश्रुति] प्रश्न - फल को जानने के लिए ज्योतिषी को कहा जाता प्रथम
वाक्य ।
उवहस [ उभय ] दोनों, युगल ।
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उवह-उवायाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१७७ उवह अ [दे] 'देखो' अर्थ को बतलानेवाला कार्य में लाना । अव्यय ।
उवहुत्त देखो उवभुत्त। उवहट्ट सक [समा + रम्] शुरू करना। उवाइकम सक [उपाति + क्रम्] उल्लंघन उवहड वि [उपहृत] उपढौकित, उपस्थापित । | करना। भोजन-स्थान में अर्पित भोजन ।
उवाइण सक [उपाति+नी] गुजारना । उवहण सक [उप+हन्] विनाश करना। उवाइण सक [उप+याच्] मनौती करना । आघात पहुँचाना।
उवाइण सक [उपा+दा] ग्रहण करना । उवहत्थ सक [समा + रच्] रचना, उत्तेजित
प्रवेश करना। करना।
उवाइणाव सक [अति + क्रम्] उल्लंघन उवहम्म° देखो उवहण।
करना । गुजारना। उवहय वि [उपहत] विनाशित । दूषित ।।
उवाइय देखो उवयाइय । उवहर सक [उप+ह] पूजा करना । उपस्थित
उवाई स्त्री [उलावकी] पोताकी-नामक विद्या
की प्रतिपक्षभूत एक विद्या । करना । अर्पण करना।
उवाएज्ज । वि [उपादेय] ग्राह्य । उवहस सक [उप+हस्] उपहास करना।
उवाएय उवहा स्त्री [उपधा] माया, कपट ।
उवागच्छ । सक [उपा+ गम्] समीप में उवहाण न [उपधान] तकिया। तपश्चर्या ।
उवागम ) आना। उपाधि ।
उवागमण न [उपागमन] समीप में आगमन । उवहार पुं [उपहार] भेंट । विस्तार ।
स्थान, स्थिति । उवहारणया देखो उवधारणया।
उवागय वि [उपागत] समीप में आया हुआ । उवहारिअ वि [उपधारित] अवधारित ।
प्राप्त । निश्चित । उवहारिआ स्त्री [दे] दोहनेवाली स्त्री।
उवाडिय वि [उत्पाटित] उखाड़ा हुआ। उवहारी )
उवाणया । स्त्री [ उपानह ] जूता । उवहारुल्ल वि [उपहारवत्] उपहारवाला ।
उवाणहा ) उवहास पुं[उपहास] हंसी।
उवादा सक [उपा + दा] ग्रहण करना । उवहास वि [उपहास्य] हँसी के योग्य । उवादाण न [उपादान] ग्रहण । कार्यरूप में उवहासणिज्ज वि [उपहसनीय] हास्यास्पद ।
परिणत होनेवाला कारण । ग्राह्य । उवहि पुं [उदधि] समुद्र ।
उवादिय वि [उपजग्ध] उपभुक्त । उवहि पुंस्त्री [उपाधि] माया, कपट । कर्म । | उवाय पुं [उपाय] हेतु, साधन । दृष्टान्त । उपकरण ।
प्रतीकार। उवहिंड सक [उप+ हिण्ड्] पर्यटन करना । उवाय सक [उप + याच] मनौती करना । उवहिय वि [उपहित] उपढौकित, अर्पित । | उवायण न [उपायन] भेंट । स्थापित । न. उपढौकन, अर्पण।
उवायणाव देखो उवाइणाव । उवहिय वि [औपाधिक] माया से प्रच्छन्न | उवायाण देखो उवादाण । विचरनेवाला ।
उवायाय वि [उपायात] समीप में आया उवहुंज सक [उप + भुज्] उपभोग करना, J हुआ ।
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१७८
उवारूढ वि [उपारूढ ] आरूढ़ । उवालंभ सक [उपा + लभ्] उलाहना देना । उवालद्ध वि [उपालब्ध] जिसको उलाहना दिया गया हो वह |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लेटने से
उवालह सक [ उपा + लभ्] उलाहना देना । उवावत्त पुं [उपावृत्त] वह अश्व जो श्रममुक्त हुआ हो । उवावत्तिद (शौ) वि [ उपावृत्तित] अश्व से युक्त ।
उपर्युक्त
उवास स [ उप + आस् ] उपासना करना । उवास पुं [ अवकाश] खाली जगह, आकाश | उवासंग वि [ उपासक ] उपासना करने वाला,
सेवक । पुं. श्रावक, जैन या बौद्ध गृहस्थ । 'दसा स्त्री ['दशा] सातवाँ जैन अंग ग्रन्थ । 'पडिमा स्त्री [' प्रतिमा] श्रावकों को करने योग्य नियम - विशेष |
उवासणा स्त्री [उपासना ] क्षौर कर्म; हजामत वगैरह सफाई | सेवा |
उवासय देखो उवासग ।
उवासय पुं [ उपाश्रय ] जैन मुनियों का निवासस्थान ।
उवाहण सक [ उपा + हन्] विनाश करना,
मारना ।
उवाहणा देखो उवाणहा |
वाहि पुंस्त्री [उपाधि] कर्म-जनित विशेषण | सामीप्य, अस्वाभाविक धर्म ।
उवि सक [ उप + इ] समीप आना । स्वीकार
करना । प्राप्त करना ।
उवि देखो अविअ = अपि च ।
उवि वि [ उपेत ] युक्त |
उवि न [दे] शीघ्र | वि. परिकर्मित | उविंद पुं [ उपेन्द्र ] कृष्ण, एक देवविमान | ' वज्जा स्त्री ['वज्रा ] ग्यारह अक्षरों के पादवाला एक छन्द । उविक्ख स [ उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना ।
अनादर करना ।
उवारूढ -उव्वट्टण
उविक्खेव पुं [उद्विक्षेप ] हजामत, मुण्डन । उवियग्गवि [उद्विग्न] खिन्न | उवीव अक [ उद् + विच् ] उद्वेग करना । वे देखो उवि ।
उवेक्ख देखो उविक्ख । उवेय वि [ उपेत ] समीप गत । युक्त | उवे वि [उपेय] उपाय - साध्य । उवेल्ल अक [प्र + सृ] फैलना । उस अक [उप + विश्] बैठना ।
उवेह सक [ उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना, उदासीन रहना ।
उवेह सक [ उत् + ईक्ष्] जानना । निश्चय
करना | कल्पना करना । 'उव्व देखो पुव्व ।
उव्वंत वि [ उद्वान्त ] वमन किया हुआ । निष्क्रान्त |
उव्वक्सक [ उद् + वम् ] बाहर निकालना ।
वमन करना |
उव्वग्ग देखो ओवग्ग ।
उव्वट्ट उभ [ उद् + वृत्, वर्त्तय् ] चलनाफिरना । मरना, एक गति से दूसरी गति में जन्म लेना । पद से भ्रष्ट करना । पिष्टिका आदि से शरीर के मल को दूर करना । कर्म-परमाणुओं की लघु स्थिति को हटाकर लम्बी स्थिति करना । पार्श्व को चलाना - फिराना । उत्पन्न होना, उदित होना ।
देखो उव्वयि ।
उ वि [] राग-रहित । गलित । उट्टण न [ उद्वत्तन ] शरीर पर से मल वगैरह को दूर करना । शरीर को निर्मल करनेवाला द्रव्य - - सुगन्धित वस्तु । दूसरे जन्म में जाना, मरण । पार्श्व का परिवर्तन | कर्म-परमाणुओं की ह्रस्व स्थिति को दीर्घ
करना ।
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उव्वट्टण - उब्विज्ज
उट्टण न [ उद्वत्तंन] तुले से उसके बीज को
अलग करना |
उव्वट्टण न [ अपवर्तन ] देखो उव्वट्टणा : अपवर्त्तना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उव्वट्टणा स्त्री [अपवर्त्तना ] जीव का एक प्रयत्न जिससे कर्मों की दीर्घ स्थिति का ह्रास होता है । उव्वट्टि व [उद्ववर्तित ] साफ किया हुआ । उव्वड्ठ वि [ उद्वृद्ध] वृद्धि प्राप्त ।
उव्वण वि [ उल्बण] प्रचण्ड, उद्भट ।
उव्वत्त देखो उव्वट्ट = उद् + वृत् ।
उव्वत्त देखो उव्वट्ट
उवत्त सक [ उद् + वर्तय् ] खड़ा करना ।
उलटा करना ।
उवत्त वि[ उद्वर्त्त] खड़ा करनेवाला । उवत्त वि[ उद्वृत्त] उत्तान, चित्त । उल्लसित | जिसने पार्श्व को घुमाया हो वह । ऊर्ध्व स्थित | घुमाया हुआ । उठवत्त वि[ अपवृत्त ] उलटा रहा हुआ, विपरीत स्थित |
उव्वत्तण न [ उद्वर्त्तन] पार्श्व का परिवर्तन । ऊँचा रहना, ऊर्ध्व - वर्त्तन ।
उवत्तिय वि [ उद्वत्तित] परिवर्तित चक्रा
कार घुमा हुआ ।
उव्वद्ध देखो उव्वड्ढ ।
उव्वम सक [ उद् + वम् ] उलटी करना । उव्वर अक [उद् + वृ] शेष रहना । उव्वर पुं [दे] धर्म, ताप । उवरि वि [] अधिक, बचा हुआ । अनीप्सित । निश्चित | अगणित । न गरमी । वि. अतिक्रान्त | उव्वरिअ न [अपवरिका ] छोटा घर । उव्वल सक [ उद् + वल्] मालिश करना । उपलेपन करना । पीछे लौटना ।
उव्वल सक [ उद् + वलय् ] उन्मूलन करना । उव्वलणा स्त्री [ उद्बलना] उन्मूलन । उद्बलन
योग्य कर्म - प्रकृति |
उव्वस वि [ उद्वस] वसति-रहित । उव्वसी स्त्री [ उर्वशी ] एक अप्सरा । रावण की एक स्वनाम - ख्यात पत्नी । उब्वह सक [ उद् + वह ] धारण करना ।
उठाना ।
उव्वणन [दे] महान् आवेश । उव्वा स्त्री [दे] धर्म, ताप ।
उव्वा
अक [उद् + वा] सूखना ।
उव्वाअ
उव्वाअ
वि [ दे] खिन्न, परिश्रान्त ।
उव्वाइअ
उव्वाउल न [दे] गीत । उपवन । उव्वाडुलन [दे] विपरीत सुरत । मर्यादारहित मैथुन ।
उवाढ व [] विस्तीर्ण । दुःखरहित । उव्वाण देखो उव्वाअ = उद्वात । उव्वाय देखो उवाय = उपाय | उव्वार (अप) सक [ उद् + वर्तय् ] त्याग
करना ।
उव्वाल सक [कथ्] कहना |
१७९
उब्वास सक [ उद् + वासय् ] दूर करना । देशनिकाला करना । उजाड़ करना । वाह पुं [दे] धर्म, ताप ।
वह [उद्वाह] विवाह |
उव्वाह सक [ उद् + बाधय् ] विशेष प्रकार से पीड़ित करना ।
उव्वाहि वि [दें] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ । उब्वाहुल न [ दे] उत्सुकता, उत्कण्ठा । वि. द्वेष्य, अप्रीतिकर ।
उब्विआइअ वि [ उद्वेदित] उत्पीडित । उव्वक्कन [दे] प्रलपित, प्रलाप । उविग्ग वि [उद्विग्न] खिन्न । भीत | उव्विग्गिर वि [ उद्वेगशील ]
वाला ।
उविज देखो उब्विय ।
उद्वेग करने -
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१८०
उडि वि [दे] चकित भीत । क्लान्त | क्लेश-युक्त |
उव्विडिम वि [दे] अधिक प्रमाण वाला । मर्यादा -रहित, निर्लज्ज । उब्विण्ण देखो उब्विग्ग ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उव्वद्ध वि [ उद्विद्ध] ऊँचा गया हुआ । जिसकी ऊँचाई का माप किया गया हो वह । गम्भीर, गहरा, विद्ध । उब्विन्न देखो उब्विग्ग ।
उब्विय अक [ उद् + विज्] उद्वेग करना, उदासीन होना ।
उब्वियणिन्न वि [ उद्वेजनीय] उद्वेग- प्रद । उव्विरेण न [ उद्विरेचन] खाली करना । उव्विल्ल अक [ उद् + वेल् ] चलना, काँपना । सक. वेष्टन करना । तड़फड़ाना | उठिवल्ल अक [ प्र + सृ] फैलना । उब्विल्ल वि [ उद्वेल ] चञ्चल । उब्विव अक [ उद् + विज्] उद्वेग करना, खिन्न होना ।
उष्विव्व
देखो उब्विव ।
उव्वेअ
उब्वीढ देखो उब्वूढ |
उव्वोढ वि [दे] खोदा हुआ ।
उव्वीढ वि [उद्विद्ध] उत्क्षिप्त । उब्वील सक [अव + पीडय् ] पीड़ा पहुँचाना,
मार-पीट करना ।
उव्वीलय वि [ अपव्रीडक ] लज्जा - रहित करनेवाला, शिष्य को प्रायश्चित्त लेने में शरम को दूर करने का उपदेश देनेवाला । उago
[] उद्विग्न । उत्सिक्त । शून्य ।
उद्भट, उल्बण |
उवूढ वि [ उद्व्यूढ] धारण किया हुआ । परिणीत । उव्वेअणीअ वि [ उद्वेजनीय] उद्वेग-कारक | उब्वेग पुं [उद्वेग] शोक, दिलगीरी ।
व्याकुलता ।
उव्वेढ सक [उद् + वेष्ट् ] बाँधना
उब्विड - उसढ
परिवेष्टित
करना | पृथक् करना, बन्धन मुक्त करना । उत्ताल न [दे] निरन्तर रोदन । उव्वेय देखो उव्वेग ।
उव्वेयगवि [ उद्वेजक ] उद्वेग-कारक । उव्वेयणग वि [उद्वेजनक] उद्वेग-जनक | उब्वेयणय
उव्वेयणय पुंन [ उद्देजनक] एक नरक-स्थान | उब्वेल अक [ प्र + सृ] फैलना । उव्वेल वि [उद्वेल] उच्छलित । उब्वेल्ल देखो उव्वेद |
उव्वेल्ल सक [उद् + वेल्ल् ] सत्वर जाना । त्याग करना । ऊँचा उड़ना, ऊँचा जाना । अक फैलना ।
उब्वेल्ल वि[ उद्वेल ] उच्छलित, हुआ । प्रसृत, फैला हुआ । उद्भिन्न । उव्वेल्लिअ वि [ उद्वेल्लित ]
उव्व्व व [] क्रुद्ध । उद्भट वेश वाला | उहि सक [ उत् + व्यध्] ऊँचा फेंकना ।
ऊँचा जाना, उड़ना ।
उव्विह पुं [ उहि ] स्वनाम - ख्यात
आजीविक मत का उपासक ।
उब्वी पुं [उर्वी] पृथिवी । °स पुं ['श] उव्वेवग वि [ उद्वेजक ] उद्वेग-कारक ।
राजा ।
उव्वेवणय वि [ उद्वेजनक] उद्वेग-जनक | उव्वेव देखो उव्वेवग |
उत्सारित । प्रसारित ।
एक उब्वेव देखो उग्विव ।
उव्वेव देखो उव्वेग ।
उछला
उड्ड वि [दे] ऊँचा । उसढ देखो ऊसद |
उब्वेसर पुं [उव्वेश्वर ] इस नाम का एकराजा । उव्वेह पुं [ उद्वेध] ऊँचाई । गहराई । जमीन का अवगाह ।
कम्पित ।
उव्वेहलिया स्त्री [ उद्वेधलिका ] वनस्पतिविशेष |
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उसण-उस्सप्पणा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१८१ उसण पुं [उशनस्] ग्रह-विशेष, शुक्र । । उसुअ पुं [दे] दोष, दूषण । उसणसेण पुं [दे] बलभद्र ।।
उसुअ न [इषुक] बाण के आकार का एक उसत्त वि [उत्सत] ऊपर बँधा हुआ। आभूषण । तिलक । उसन्न पुं [उत्सन्न] भ्रष्ट यति-विशेष की एक | उसुअ वि [उत्सुक] उत्कण्ठित । जाति ।
उसुयाल न [दे] उदुखल । उसप्पिणी देखो उस्सप्पिणी।
उसूलग पुं [दे] परिखा, शत्रु-सैन्य का नाश उसभ पुंन [वृषभ] एक देव-विमान । करने के लिए ऊपर से आच्छादित गर्तउसभ पुं [ऋषभ, वृषभ] स्वनामख्यात प्रथम | विशेष। जिनदेव । बैल । वेष्टन-पट्ट। देव-विशेष । उस्स पुं [दे] हिम, ओस । ब्राह्मण-विशेष । 'कंठ पुं [°कण्ठ] बैल का | उस्संकलिअ वि [उत्संकलित] निसृष्ट, गला । रत्न-विशेष । कूड पुं ["कूट] पर्वत- परित्यक्त। विशेष । °णाराय न [°नाराच] संहनन- उस्संखलअ वि [उच्छृङ्खलक निरङ्कुश । विशेष, शरीर-बन्ध-विशेष । 'दत्त पुं. ब्राह्मण- उस्संग पुं [उत्सङ्ग) क्रोड, कोला । कुण्ड ग्राम का रहनेवाला एक ब्राह्मण, उस्संघट्ट वि [ उत्संघट्ट ] शरीर-स्पर्श से जिसके घर भगवान् महावीर अवतरे थे। रहित । °पुर न. नगर-विशेष । पुरी स्त्री. एक राज- उस्सक अक [उत् + ष्वष्क्] उत्कण्ठित होना । धानी । °सेण पुं [°सेन] भगवान् ऋषभदेव पीछे हटना । सक स्थगित करना। के प्रथम गणधर ।
उस्सक सक [उत् + वष्क्] प्रदीप्त करना, उसर (पै) पुंस्त्री [उष्ट्र] ऊँट ।
उत्तेजित करना। उसलिअ वि [दे] रोमाञ्चित ।
उस्सक्कण न [उत्वष्कण] उत्सर्पण । उसह देखो उसभ।
उस्सग्ग पुं [उत्सर्ग] त्याग । सामान्य विधि । उसहसेण पुं [वृषभसेन] तीर्थङ्कर-विशेष ।
उस्सग्गि वि [उत्सर्गिन्] उत्सर्ग-सामान्य जिनदेव की एक शाश्वती प्रतिमा।
नियम-का जानकार । उसा अ [उषस्] प्रभात-काल ।
उस्सण्ण वि [अवसन्न] निमग्न । उसिण वि [उष्ण] गरम । पुन. गरम स्पर्श । उस्सण्ण अ [दे] प्रायः । गरमी।
उस्सण्हसण्हिआ स्त्री [उत्रलक्ष्णश्लक्ष्णिका] उसिय वि [उत्सृत] व्याप्त ।
परिमाण-विशेष, ऊर्ध्व-रेणु का ६४वाँ हिस्सा। उसिय वि [उषित] निवसित ।
उस्सन्न देखो उस्सण्ण = दे। °भाव पुं. उसिर ) न [उशीर] सुगन्धि तृण विशेष ।
बाहुल्यभाव। उसीर ।
उस्सन्न वि [उत्सन्न] निज धर्म में आलसी उसीर न [दे] कमल-दण्ड ।
साधु । उस पुं [इषु] बाण । धनुराकार क्षेत्र का उस्सप्पण न [उत्सर्पण] उन्नति, पोषण । वि. बाणस्थानीय क्षेत्र-परिमाण । °कार, गार, | उन्नत करनेवाला । प्यार पुं. पर्वत-विशेष । इस नाम का एक उस्सप्पणा स्त्री [उत्सर्पणा] उन्नति, राजा। स्वनाम-ख्यात एक पुरोहित । वि. | प्रभावना। बाण बनानेवाला । स्वनाम-ख्यात एक नगर। | उस्सप्पणा स्त्री [उत्सर्पणा] विख्यात करना ।
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१८२
उस्सप्पिणी-उह
से जल वगैरह को बाहर को खींचना | सिंचन के उपकरण ।
उस्सप्पिणी स्त्री [ उत्सर्पिणी] उन्नत काल विशेष, दश कोटाकोटि-सागरोपम-परिमित काल- विशेष, जिसमें सब पदार्थों की क्रमशः उन्नति होती है ।
उस्सिक्क देखो उस्सक्क ।
उसिक्क सक [मुच् ] त्याग करना ।
उस्सय पुं [उच्छ्रय] उन्नति, उच्चता । अहिंसा । उस्तिक्क सक [ उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना । शरीर । उसिक्किम वि [ उत्क्षिप्त ] ऊँचा फेंका हुआ ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उस्सयण न [ उच्छ्रयण] अभिमान । उस्सर अक [उत् + सृ] दूर जाना । उस्सव सक [उत् + श्रि] ऊँचा करना । खड़ा
करना ।
हुआ ।
उस्सव पुं [ उत्सव ] उत्सव | उसवणया स्त्री [ उच्छ्रयणता] ऊँचा ढेर | उस्सिय वि [ उत्सृत ] व्याप्त । ऊँचा किया किया हुआ । अहंकारी ।
करना ।
उस्सस अक [ उत् + श्वस्] उच्छ्वास लेना, उस्सीस न [ उच्छीर्ष ] तकिया ।
श्वास लेना । उल्लसित होना ।
उस्सा स्त्री [ उस्रा ] गैया, गौ ।
उस्सा [दे] देखो ओसा । चारण पुं. ओस के अवलम्बन से गति करने का सामर्थ्यवाला मुनि ।
उस्सार सक [ उत् + सारय् ] दूर करना । बहुत दिन में पठनीय ग्रन्थ को एक ही दिन में पढ़ाना | कप्प पुं [कल्प ] पाठन सम्बन्धी आचार-विशेष |
उस्सारंग वि [उत्सारक ] दूर करनेवाला । उत्सार कल्प के योग्य ।
उस्सास पुं [उच्छ्वास ] ऊँचा श्वास । प्रबल श्वास । 'नाम् न ["नामन् ] उसाँस-हेतुक कर्म - विशेष ।
ऊपर रखा हुआ ।
उस्सिन्न वि [उत्स्विन्न ] विकारान्त को प्राप्त, अचित्त किया हुआ ।
उस्सिय वि [ उच्छ्रित] उन्नत । ऊँचा किया
उस्सासय वि [उच्छ्वासक ] उसाँस लेनेवाला । उस्साह देखो उच्छाह ।
उस्सिखल वि [उच्छृङ्खल ] स्वेच्छाचारी । उस्सघिय [] सूंघा हुआ । उस्सिच सक [ उत् + सिच्] सिंचना, सेक करना। ऊपर सिचना । आक्षेप करना । खाली करना । उस्सिंचण न [ उत्सेचन ] सिञ्चन । कूपादि
उस्सुआव सक [उत्सुकय् ] उत्कण्ठित करना । वि [ उच्छुल्क ] शुल्क-रहित, कररहित ।
उस्सुक
उस्सुक्क
उस्सुक्क वि [ उत्सुक ] उत्कण्ठित ।
न [ औत्सुक्य] उत्सुकता ।
उस्सुक्क
उस्सुग उस्सुक्काव वि [ उत्सुकय् ] उत्कण्ठित करना । उस्सुगवि [ उत्सूत्र ] सूत्र -विरुद्ध, सिद्धान्तविपरीत |
उस्सु देखो उस्सु ।
उस्सु न [ औत्सुक्य ] उत्कण्ठा । 'कर वि.
उत्कण्ठा जनक 1
उस्सूण वि [ उच्छून ] सूजा हुआ । उस्सूर न [ उत्सूर] सन्ध्या । उस्सेअ पुं [उत्सेक] सिंचन । उन्नति । गर्व । उस्सेइम वि [उत्स्वेदिम ] आटा से मिश्रित पानी |
उस्सेह पुं
अभ्युदय ।
उत्सेध ] ऊँचाई । शिखर ।
उस्सेहं गुल न [ उत्सेधाङ्गुल] एक प्रकार का परिमाण ।
उह स [भ] दोनों, युग्म, युगल ।
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उहट्ठ- ऊसत्थ
[+] नष्ट होना ।
उहट्टु = उव्वट्ट का संकृ. । उह स [ उभय] दोनों । उहर न [ उपगृह] छोटा घर । उहस सक [उप+हस्] उपहास करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ऊ पुं. प्राकृत वर्णमाला का षष्ठ स्वरवर्ण । ॐ अ [दें] इन अर्थों का सूचक अव्यय - निन्दा | आक्षेप | प्रस्तुत वाक्य के विपरीत अर्थ की आशंका से उसे उलटाना । विस्मय । सूचना । अट्ठ वि [ अववृष्ट ] वृष्टि से नष्ट | ऊआ स्त्री [दे] यूका, जूं । ऊआस पुं [ उपवास] भोजनाभाव । ऊगिय वि [दे] अलंकृत |
ऊज्झाअ देखो उवज्झाय ।
'ऊड देखो कूड ।
ऊढ वि. वहन किया हुआ, धारण किया हुआ । परिणीत ।
ऊदिअय वि [दे] प्रावृत, आच्छादित । न.
ऊण न [ऋण] ऋण । ऊदिअ वि [दे] आनन्दित । ऊणिमा स्त्री [पूर्णिमा] पूर्णिमा | ऊणिय व [ऊनित ] कम किया हुआ । ऊणिय पं [ऊणिक] सेवक - विशेष । ऊणोरिआ स्त्री [ऊनोदरिता ] कम आहार
करना, तप- विशेष ।
ऊतालीस
'ऊर पुं [दे] ग्राम । संघ 'ऊर देखो तूर ।
ऊर देखो पूर ।
ऊरण पुं. मेष ।
ऊरणी स्त्री [] मेष, भेड़ ।
ऊरणीअ वि [ औरणिक] भेड़ी चरानेवाला । 'रवि [पूरक] पूति करनेवाला । ऊरस वि [ औरस ] स्व-पुत्र | ऊरिसंकिअ वि [दे] रोका हुआ । ऊरी अ. अङ्गीकार । [कृत] अंगीकृत |
विस्तार । कय वि
ऊरु पुं. जाँघ । जाल न. जांघ तक लटकनेवाला एक आभूषण ।
आच्छादन, प्रावरण |
ऊरुदग्घ वि [ऊरुदन] जंघा - प्रमाण |
ऊण वि [ऊन] न्यून, हीन । 'वीसइम वि ऊरुद्दअस वि [ऊरुद्रयस] ऊपर देखो ।
[विंशतितम] उन्नीसवाँ ।
ऊरुमेत्त वि [ ऊरुमात्र ] ऊपर देखो ।
ऊल पुं [] गति भङ्ग
'ऊल देखो कूल ।
ऊस पुं [ उस्र] किरण | मालि पुं [मालिन् ] सूर्य
ऊस पुं [ऊष ] क्षार-भूमि की मिट्टी । ऊसअ न [दे] तकिया ।
ऊसढ वि [ उत्सृष्ट ] परित्यक्त । न उत्सर्जन । मलादि का त्याग |
2
ऊस व [दे. उच्छ्रित] उच्च श्रेष्ठ । ताजा । ऊसण न [दे] गति-भङ्ग ।
}
स्त्री न [ एकोनचत्वारिंशत् ] उनचालीस ।
ऊयाल
ऊमिणण न [ दे] प्रोंखणक, चुमना । ऊमिणिय वि [दे] जिसने स्नान के
J
शरीर पोंछा हो वह । ऊमित्ति न [] दोनों पार्श्वो में आघात करना ।
उहार पुं. मत्स्य - विशेष । उहिजल पुं [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु- विशेष । हिंजलि स्त्री [] ऊपर देखो | उहु (अप) देखो अहो = अहो ।
उरवि [] अवाङ्मुख, अधोमुख ।
ऊ
बाद ऊसन्हसहिया देखो उस्सण्हसहिया । ऊसत्त देखो उसत्त ।
ऊसत्थ पुं [दे] जम्भाई । वि. आकुल ।
१८३
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हुआ।
१८४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ऊसर-ए ऊसर अक [उत् + स] खिसकना । दूर होना। करना । सक, त्यागना।
ऊसिक्क सक [उत् + ऽवष्क] ऊँचा करना । ऊसर न [ऊषर] क्षार-भूमि ।
ऊसिक्किअ वि [दे] प्रदीप्त, शोभायमान । ऊसरण न [उत्सरण] आरोहण ।
ऊसित्त वि [उत्सिक्त] गर्वित । उद्धत । बढ़ा ऊसय पुं[उच्छ्य ] उत्सेध, ऊँचाई । उत्से
हुआ। अतिशायित । धांगुल।
ऊसित्त वि [अवसिक्त] उपलिप्त । ऊसल अक [उत् + लस्] उल्लसित होना ।
उसिय देखो उस्सिय = उच्छित । प्रादुर्भूत होना।
ऊसीस ऊसल वि दे] पीन, पुष्ट ।
ऊसोसग | न [उच्छीषं, 'क] उसीसा । ऊसलिअ वि [दे] रोमाञ्चित ।
| ऊसीसय ऊसव देखो उस्सव % उत्सव ।
ऊसअ वि [उत्सुक] उत्कण्ठित । ऊसव देखो उस्सव = उत् + श्रि । ऊसविअ वि [दे] उद्भ्रान्त । ऊँचा किया
| ऊसुअ वि [उच्छुक] जहाँ से शुक उद्गत हुआ
हो वह । ऊसस सक [उत् + श्वस्] ऊँचा साँस लेना ।
ऊसुंभ अक [उत् + लस्] उल्लसित होना । विकसित होना । पुलकित होना।
ऊमुंभिअ न [दे] गला बैठ जाय ऐसा रुदन । ऊससण न [उच्छवसन उसाँस । लद्धि ऊसुक्किअ वि [दे] विमुक्त ।। स्त्री [°लब्धि] श्वासोच्छ्वास की शक्ति ।
ऊसुग देखो ऊसुअ = उत्सुक । ऊसाअंत वि [दे] खेद होने पर शिथिल ।।
ऊसुग न [दे] मध्य भाग । ऊसाइअ वि [दे] विक्षिप्त । उत्क्षिप्त ।
ऊसुम्मिअ वि [दे] उसीसा किया हुआ । ऊसार सक [उत् + सारय] दूर करना,
ऊसुर न [दे] ताम्बूल । त्यागना।
ऊसुरुसुंभिअ [दे] देखो ऊसुंभिअ । ऊसार पुंदे] गर्त्त-विशेष ।
ऊह सक [ऊह ] तर्क करना । विचारना । ऊसार पुं [आसार] वेग वाली वृष्टि ।
ऊह न [ऊधस्] स्तन । ऊसारि वि [आसारिन्] वेग से बरसनेवाला। ऊह पुं. विचार, विवेक-बुद्धि । तर्क । संख्याऊसास पुं [उच्छ्वास] ऊँचा श्वास । मरण । विशेष । ओध-संज्ञा, अव्यक्त ज्ञान ।
°णाम न [°नामन] कर्म-विशेष ।। ऊहंग न [ऊहाङ्ग] संख्या-विशेष । ऊसासय वि [उच्छ्वासक] उसाँस लेनेवाला। ऊसासिअ वि [उच्छ्वासित] बाधा-रहित ऊहसिय वि [उपहसित] जिसका उपहास किया हुआ।
किया गया हो वह । ऊसाह पुं [उत्साह] उत्साह, उछाह । | ऊहापोह पुं. सोच-विचार । ऊसि सक [उत् + श्रि] ऊँचा करना, उन्नत अहिअ वि [ऊहित] अनुमान से ज्ञात ।
ए पुं स्वर वर्ण-विशेष ।
। आमन्त्रण, सम्बोधन । वाक्यालंकार । स्मए अ [ए, ऐ] इन अर्थों का सूचक अव्यय-! रण । असूया । अनुकम्पा । आह्वान ।
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ए-एक्कूण
ए सक [ आ + इ] आगमन करना । अवि [ ए ] आया हुआ ।
अस [ एतत् ] यह । रिस वि [दृश ] ऐसा । रूव वि [रूप] इस प्रकार का एअ देखो एग। 'आइ वि [ किन्] अकेला | रह त्रि. ब. [ दशन् ] ग्यारह की संख्या । रहम वि [दश] ग्यारहवाँ |
एअ देखो एव = एव ।
देखो एवं ।
एअ
एअं
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अंत देखो एक्कत |
एआईस (अप) पुं. ब. [ एकविंशति]
एक्कीस |
एयारिच्छवि [एतादृश ] ऐसा । एइवि [ एजित ] कम्पित । इस देखो एईस ।
एईस वि [ एतादृश] ऐसा एउंजि (अप) अ [ एवमेव ]
यही । एऊण देखो
एगूण I
एक देखो एक तथा एग। इआ अ [° दा] एक समय में । 'ल (अप) वि [क] एकाकी । लिय वि [न्]ि एकाकी | स्त्री [नवति ] एकानबे ।
एकूण देखो अउण = एकोन |
एक्क देखो एक तथा एग । 'वए देखो एगए । सणिय वि [शनिक ] एक ही बार भोजन करनेवाला | सत्तरि स्त्री [ सप्तति] एकहत्तर | सरग, सरय [सरक, ° सर्ग] एक समान । °सि अ [स्] एक बार | ° स अ [] एक ( किसी एक ) में । सि, सिअं अ [दा ] कोई एक समय में । सि अ [स्] एक बार । इवि [T] अकेला | पुं [द] स्वनाम - ख्यात एक माण्डलिक । णय वि [नवत ] ९१ वाँ ।
इ
रसम
२४
इसी तरह ।
१८५
वि [ दश ] ग्यारहवाँ । °रह त्रि. ब. [द] ग्यारह | सीइ स्त्री [शीति] एकासी । सीइविह वि [शीतिविध ]
एकासी तरह का सीय वि [ शीत ] एकासीवाँ नेत्तरस्य वि [त्तरशततम ] एक सौ एक वाँ । यर पुं [दर ] सगा भाई । यस स्त्री [ दरा ] सगी बहिन |
एक्कवि [एक] अकेला |
एक्क व [ ] प्रेम-तत्पर ।
एक्कई (अप) वि [ एकाकिन् ] एकाकी । एक्कंग न [दे] चन्दन !
एक्कंत पुं [ एकान्त ] सर्वथा । तत्त्व, प्रमेय । जरूर । असाधारणता । निर्जन, निराला । देखो एगंत ।
एक्कT fa [ एकै] प्रत्येक ।
एक्कक्कम [दे] देखो एक्केक्कम | एक्कासित्थ न [ एकसिक्थ ] तपो विशेष | एक्कग्ग देखो एग-ग्ग = एक क । एक्करिल्ल पुं [दे] देवर | एक्कड पुं [दे] कथा कहनेवाला । एक्कमुह वि [] धर्म-रहित । दरिद्र । प्रिय । एक्मेक्क वि [एकैr] प्रत्येक । एक्कल व [] प्रबल ।
एक्कल्लपुडिंग न [ दे] अल्प बिन्दुवाली बारिश | एकसरि अ [] शीघ्र । सम्प्रति, आजकल । एक्कसिरिआ अ [] शीघ्र । एक्कसाहिल वि [दे ] एक स्थान में रहने
वाला ।
एक्कसिंबली स्त्री [ दे] शाल्मली - पुष्पों से नूतन फलवाली ।
एक्सेस देखो एग सेस । एकह देखो एग ।
एक्कार देखी एक्का रह ।
एक्कार पुं [अयस्कार ] लोहार | एकूण देखो अउ ।
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एक्केल्ल
देखो एग।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष एक्केक्कम-एग एक्केकम वि [दे] परस्पर ।
[भूत] एकीभूत । समान । °मण वि
[°मनस्] एकाग्रचित्त । मेग वि [°एक] एक्कोल्ल ।
प्रत्येक । °य वि [क] एकाकी । °य वि
[ग] अकेला जानेवाला । °यर वि [°तर] एग स [एक] एक, प्रथम-संख्या । एकाकी ।
दो में से कोई भी एक । °या अ [°दा] अद्वितीय । असहाय । अन्य । समान । "इय देखो एग । °इय वि[क]अकेला । क्खरिय
एक समय में । °राइय वि [°रात्रिक] एकवि [°ाक्षरिक] एक अक्षरवाला। खंधी स्त्री
रात्रि-सम्बन्धी । °राय न [ रात्र] एक [°स्कन्ध] एक स्कन्धवाला (वृक्ष वगैरह) ।
रात्र । 'ल्ल वि [एक] एकाकी। विह वि °खुर वि. एक खुरवाला ( गौ वगैरह पशु ) ।
[विध] एक प्रकार का। विहारि वि °ग वि [क] एकाकी। °ग्ग वि [°ाग्र]
[विहारिन्] एकल-विहारी। °वीसइम वि तल्लीन, तत्पर । °चवत्रु वि [°चक्षुष्क]
[विंशतितम] एक्कीसवाँ । °वीसा स्त्री एक आँखवाला । °चत्ताल वि [चत्वारिंश]
[विंशति] एक्कीस । °सट वि [°षष्ट] एकतालीसवाँ । °चर वि. एकाकी विहरने
एकसठवाँ । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] एकसठ । वाला । °चरिया स्त्री [चर्या] एकाकी
सत्तर वि [°सप्तत] एकहतरवाँ । °समइय विहरना । °चारि वि [°चारिन्] अकेल
वि [°सामयिक] एक समय में होनेवाला । विहारी। °चूड पुं. विद्याधर वंश का एक
°सरिया स्त्री [°सरिका] एकावली, हारराजा । °च्छत्त वि [°च्छत्र] पूर्ण प्रभुत्व
विशेष । साडिय वि [°शाटिक] एक वस्त्रवाला। अद्वितीय । °जडि वि [°जटिन्]
वाला । °सिअं अ [°दा] एक समय में । महाग्रह-विशेष । °जाय वि [°जात] अकेला, °सेल पुं [शैल] पर्वत-विशेष । °सेलकूड निस्सहाय । "ट्ट वि [°स्थ] इकट्ठा । 8 वि पुंन [°शैलकूट] एक शैल पर्वत का शिखर[°ार्थ] एक अर्थवाला, पर्याय-शब्द । टु, विशेष । °सेस पुं [शेष] व्याकरण-प्रसिद्ध "टु अ [°त्र] एक स्थान में। °ट्टिय वि समास-विशेष । हा अ [°धा] एक प्रकार [°र्थिक] एक ही अर्थवाला, पर्याय-शब्द । का । हुत्त अ [°सकृत्] एक बार । °ाणिअ द्विय वि [°स्थिक] जिसके फल में एक ही
वि [°किन्] अकेला। दस त्रि. ब. बीज होता है ऐसा आम वगैरह का पेड़ । [दशन्] ग्यारह । दसुत्तरसय वि °णासा स्त्री [°नासा] एक दिक्कुमारी ।
[दशोत्तरशततम] एक सौ ग्यारहवाँ । °त्त न [५] एक ही स्थान में । "त्थ देखो भोग पुं [°भोग] एकत्र-बन्धन । °ामोस 'टु । °पए अ [°पदे] युगपत् । °पक्ख वि वि [°Tमर्श] प्रत्युपेक्षणा का एक दोष, वस्त्र [°पक्ष] असहाय । ऐकान्तिक, अविरुद्ध । को मध्य में ग्रहण कर दोनों आँचलों को हाथ °पन्नास स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन ।
से घसीट कर उठाना । °ायय वि [°ायत] पन्नासइम वि [ पञ्चाशत्तम] एकावनवाँ । एकत्र सम्बद्ध । परस देखो [°ादस] । °पाइअ वि [°पादिक] एक पाँव ऊँचा Tरसी स्त्री [दशी] एकादशी। गवण्ण रखनेवाला । °पासग वि [°पार्श्वक] एक | स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन । °ावलि, ली ही पार्श्व की भूमि से सम्बन्ध रखनेवाला। स्त्री [वलि, ली] विविध प्रकार की मणियों °पासिय वि [पाश्विक] देखो पूर्वोक्त अर्थ । से ग्रथित हार। वलीपविभत्ति न भत्त न [ भक्त] एकासन व्रत । भूय वि | [वलीप्रविभक्ति] नाटक-विशेष । °वाइ
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एगंत - एणेज्ज
पुं [वादिन्] एक ही आत्मा वगैरह पदार्थ को माननेवाला दर्शन, वेदान्त दर्शन । वीस स्त्रीन [ 'विंशति ] एक्कीस | सण न [शन, सन] एकाशन | हि पुंन [ह] एक दिन । च वि [हत्य ] एक ही प्रहार से नष्ट हो जानेवाला । हिय वि [हिक ] एक दिन का उत्पन्न । पुं. एकान्तर ज्वर । यि वि [धिक] एक से ज्यादा | देखो एअ, एक और एक्क । एगंत देखो एक्कंंत । ° दिट्ठि स्त्री [° दृष्टि ] ज़ैनेतर दर्शन | वि. जैनेतर दर्शन को माननेवाला । स्त्री निश्चित सम्यक्त्व, निश्चल सत्य-श्रद्धा | दूसमा स्त्री ['दुष्षमा ] अवसर्पिणी-काल का छठवाँ और उत्सर्पिणी-काल का पहला आरा । पंडिय पुं [पण्डित ] साधु, संयत । बाल पुं. जैनेतर दर्शन को माननेवाला । असंयत जीव | [वादिन् ] जैनेतर दर्शन का अनुयायी । °वाय पुं [°वाद] जैनेतर दर्शन । स्त्री [सुषमा ] अवसर्पिणी काल का प्रथम और उत्सर्पिणी काल का छठवाँ आरा । एतिय वि [ ऐकान्तिक ] अवश्यम्भावी । अद्वितीय । न. मिथ्यात्व का एक भेद - वस्तु को सर्वथा क्षणिक आदि एक ही दृष्टि से देखना | जैनेवर दर्शन ।
'वाइ वि
सुसमा
गट्टि देखो एग्ग-सट्टि | गट्टिया स्त्री [] नौका |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
एगठाण न [ एकस्थान ] एक प्रकार का तप 1 एगिंदि वि [ एकेन्द्रिय ] केवल स्पर्शेन्द्रिय
वाला ।
१८७
स्त्री [त्रिंशत् ] उनतीस | 'तीसइम वि [त्रिंशत्तम] उनतीसवाँ । 'नउइ देखो उ | नउवि ['नवत ] नवासीवाँ । पन्न, पन्नास स्त्रीन [पञ्चाशत् ] उनचास | पन्नास वि [ 'पञ्चाश] उनपचासवाँ | पन्नासइम वि [ पञ्चाशत्तम ] उनपचासवाँ | 'वीस स्त्रीन ['विंशति] उन्नीस | ans स्त्री [विंशति] उन्नीस । 'वीसइम, वसईम, वीसम वि[विंशतितम] उन्नीसवाँ । सवि [ षष्ट] उनसठवाँ | 'सत्तर वि ['सप्तत] उनसत्तरवाँ । सी,
सी स्त्री [शीति] उन्नासी । सीय वि [[शीत ] उन्नासीवाँ | देखो अउण | एगूरुय पुं [ एकोरुक ] इस नाम का एक अन्तर्द्धपि । वि. उसका निवासी । एग्ग (अप) देखो एग ।
एज पुं. वायु ।
एजणया स्त्री [ एजना ] कम्प, एज्ज देखो एय = एज् ।
एज्जण न [आयन ] आगमन । एड सक [ एड् ] त्याग करना । एड सक [एडय् ] दूर करना । एडक्क पुं [एडक] मेष, भेड़ । एडा स्त्री [एडका ] भेड़ी । एण पुं. कृष्ण मृग । कस्तूरी |
भूत व [ एकीभूत] मिला हुआ । एगूण देखो अउण । चत्ताल वि [ चत्वा - रिंश ] उनचालीसवाँ । चत्तालीस स्त्रीन [ चत्वारिंशत्] उनचालीस | 'चत्तालीस - इमवि [ चत्वारिंशत्तम ] उनचालीसवाँ ।
उइ स्त्री [नवति] नवासी । 'तीस | एणेज्ज देखो एणिज्ज ।
काँपना |
णाहि स्त्री [नाभि ]
एक पुं [एणाङ्क] चन्द्र । एणिज्ज वि [ एणेय] हरिण सम्बन्धी |
एणिजय पुं [ एणेयक ] स्वनाम - ख्यात एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी ।
एणिस पुं. वृक्ष - विशेष ।
|
एणी स्त्री [ एणो] हरिणी । यार पुं [चार] हरिणी को चरानेवाला । एणुवासिय पुं [ दे] भेक, मेढ़क
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एरंडय ।
१८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
एण्ह-एलगच्छ एण्हं ) अ [इदानीम्] अधुना ।
एय अक [एज्] काँपना, हिलना । चलना । एहि ।
। एय पुं [एज गति । एताव देखो एत्तिअ - एतावत् ।
एयंत देखो एक्वंत। एत्तअ वि [इयत्, एतावत्] इतना ।। एयाणि देखो इयाणि। एत्तहि (अप) अ [इतस्] यहाँ से । एयावंत वि [एतावत्] इतना । एत्तहे देखो इत्तहे।
एरंड पुं [एरण्ड] एरण्ड का पेड़ । तृणएत्ताहे देखो इत्ताहे।
विशेष । मिजिया स्त्री [मिञ्जिका] एत्तिअ । वि [ इयत्, एतावत् ] इतना। एरण्ड-फल । एत्तिल , मत्त, मेत्त वि [°मात्र] इतना एरंड वि [ऐरण्ड] एरण्ड-वृक्ष-सम्बन्धी । ही।
एरंडइय । पुं [दे] पागल कुत्ता। एत्तिक (शौ) देखो एत्तिअ = एतावत् । एत्तुल (अप) ऊपर देखो।
एरण्णवय न [ऐरण्यवत] क्षेत्र-विशेष । वि. एत्तूण अ [दे] अधुना।
उस क्षेत्र में रहनेवाला। एत्तो देखो इओ।
| एरवई स्त्री [ऐरावती, अजिरवती] नदीएत्तोअ अ [दे] यहाँ से लेकर ।
विशेष । एत्थ अ [अत्र] यहाँ, यहाँ पर ।
एरवय न [ऐरवत] क्षेत्र-विशेष । पुं. पर्वतएत्थी देखो इत्थी।
विशेष । °कूड न [°कूट] पर्वत विशेष का एत्थु (अप) देखो एत्थ।
शिखर-विशेष । एदंपज्ज न [ऐदंपर्य] तात्पर्य ।
एराणी स्त्री [दे] इन्द्राणी व्रत का सेवन करने एदिहासिअ (शौ) वि ऐतिहासिक] इतिहास
वाली स्त्री। सम्बन्धी।
एरावई स्त्री [ऐरावती] नदी-विशेष । एदह देखो एत्तिअ।
एरावण पुं [ऐरावण] इन्द्र का हाथी । एम (अप) अ [एवं] इस त ह ।।
"वाहण पुं [°वाहन] इन्द्रवाहन । एमइ (अप) अ [एवमेव] ऐसा ही।
एरावय पुं[ऐरावत] ह्रद-विशेष । ह्रद-विशेष एमाइ । वि [एवमादि] इत्यादि ।
का अधिष्ठाता देव । छन्दः-शास्त्र-प्रसिद्ध पञ्चएमाइय ।
कला-प्रस्तार में आदि के ह्रस्व और अन्त के एमाण वि [दे] प्रवेश करता हुआ।
दो गुरु अक्षरों का संकेत । लकुच वृक्ष । सरल एमिणिआ स्त्री [दे] वह स्त्री, जिसके शरीर | और लम्बा इन्द्रधनुष । इरावती नदी का को किसी देश के रिवाज के अनुसार सूत के । समीपवर्ती देश । इन्द्र का हाथी । धागे से माप कर उस धागे को फेंक दिया एरिस वि [ईदृश] इस तरह का । जाता है।
एरिसिअ (अप) ऊपर देखो। एमेअ ) अ [एवमेव] इसी प्रकार ।
एल वि [दे] निपुण । एमेव ।
| एल ) पुं [एड, एल] मृगों की एक एम्ब (अप) अ [एवम्] इस तरह । । एलग जाति । मेष, भेड़ । °मूअ, °मूग वि एम्वइ (अप) अ [एवमेव] इसी तरह। [मूक] भेड़ की तरह अव्यक्त बोलनेवाला । एम्वहिं (अप) अ [इदानीम्। इस समय । एलगच्छ न [एलकाक्ष] स्वनाम-ख्यात नगर
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१८९
काल।
एलय-एहिम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विशेष ।
एवमेव , देखो एमेव । एलय देखो एल।
एवामेव । एलविल विदे] धनाढ्य । पुं. वृषभ । एव्वं देखो एवं । एला स्त्री [एला] इलायची का पेड़ । इला- | एव्व देखो एव = एव ।
यची-फल । °रस पुं. इलायची का रस। । एव्वहि (अप) अ [इदानीम्] इस समय । एलालुय पुन [एलालुक] आलू को एक | एव्वारु पुं [इर्वारु] ककड़ी। जाति ।
एस सक [इष्] इच्छा करना। खोजना । एलावच्च न [एलापत्य] माण्डव्य गोत्र का एक
प्रकाशित करना। शाखा-गोत्र ।
एस सक [आ + इष्] करना । खोजना, शुद्ध एलावच्च वि [ऐलापत्य] एलापत्य-गोत्र का।
भिक्षा की खोज करना। निर्दोष भिक्षा का एलावच्चा स्त्री [एलापत्या] पक्ष की तीसरी
ग्रहण करना। रात । एलिक्ख वि [ईदृक्ष] ऐसा।
एस वि [एष्य] भावी पदार्थ। पुं. भविष्य एलिंघ पुं [एलिङ्ग] धान्य-विशेष ।।
°एस देखो देस। एलिया स्त्री [एडिका,एलिका] एक जाति की |
| एसग वि [एषक] अन्वेषक । मृगी । भेड़िया।
एसज्ज न [ऐश्वर्य] वैभव, प्रभुत्व । एलिस देखो एरिस। एलु पुं. वृक्ष-विशेष ।
एसणा स्त्री [एषणा] अन्वेषण । प्राप्ति ।
प्रार्थना । निर्दोष आहार की खोज करना। एलुग) पुंन [एलुक] द्वार के नीचे की
निर्दोष भिक्षा । इच्छा । भिक्षा का ग्रहण । एलुय । लकड़ी।
°समिइ स्त्री [°समिति] निर्दोष भिक्षा का एल्ल वि[दे] दरिद्र ।
ग्रहण करना । °समिय वि [°समित] एव अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय- अव- | निर्दोष भिक्षा को ग्रहण करनेवाला । धारण । सादृश्य । चार-नियोग। निग्रह । एसणिज्ज वि [एषणीय] ग्रहण-योग्य । परिभव । अल्प ।
एसिय वि [एषिक] खोज करनेवाला । पुं. एव देखो एवं।
व्याध । पाखण्डि-विशेष । मनुष्यों की एक एवइ वि [इयत्, एतावत्] इतना। खुत्तो अ | नीच जाति । [कृत्वस्] इतनी बार।
एसिय वि [एषित] भिक्षा-चर्या की विधि से एवं अ [एवम्] इस तरह । भूअ पुं [भूत] | प्राप्त । व्युत्पत्ति के अनुसार उस क्रिया से विशिष्ट अर्थ
एस्सरिय देखो एसज्ज । को ही शब्द का अभिधेय मानानेवाला पक्ष । एह अक [ए] बढ़ना । उन्नत होना। वि. इस तरह का । विह वि [°विध] इस एह (अप) वि [ ईदृक् ] इसके जैसा । प्रकार का।
एहत्तरि (अप) स्त्री [एकसप्तति] संख्याएवंहास पुं. इतिहास ।
विशेष, ७१ । एवड (अप) वि [इयत्] इतना।
एहा स्त्री [ एधस् ] समिध । एवमाइ देखो एमाइ।
एहिअ वि [ऐहिक] इस जन्म-सम्बन्धी ।
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१९०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ऐ-ओआहिम
ऐ अ [अयि] इन अर्थों का सूचक अव्यय- सम्भावना। आमन्त्रण, सम्बोधन । प्रश्न ।
अनुराग । अनुनय ।
ओ
ओ पुं. स्वर वर्ण-विशेष ।
ओअरण न [उपकरण] साधन । ओ देखो अव% अप ।
ओअरय पुं [अपवरक] कमरा, कोठरी । ओ देखो अव।
ओअरिअ वि [औदरिक] पेटू, उदर भरने ओ देखो उव ।
मात्र की चिन्ता करनेवाला । ओ देखो उअ = उत ।
ओअरिया स्त्री [अपवरिका] कोठरी, छोटा ओ अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-वितर्क। कमरा । प्रकोप, विस्मय । सूचना । पश्चात्ताप । सम्बो- ओअल्ल देखो ओवट = अप+ वृत् । धन । आमन्त्रण । पादपूर्ति में प्रयुक्त किया ओअल्ल अके [अव + चल्] चलना। जाता अव्यय ।
ओअल्ल पुं [दे] खराब आचरण । काँपना । ओअ न [दे] वार्ता।
गौओं का बाड़ा । वि. पर्यस्त, प्रक्षिप्त । लम्बओअअ वि [अपगत] अपसृत ।
मान । जिसकी आँखें निमीलित होती हों वह । ओअंक पुं [दे] गजित, गर्जना ।
ओअल्लअ वि [दे] विप्रलब्ध, प्रतारित । ओअंद सक [आ+छिद्] बलात्कार से छीन ओअव सक [साधय्] साधना । वश में करना। लेना । नाश करना।
जीतना। ओअंदणा स्त्री [आच्छेदना] नाश । जबर- ओआअ पुं दे] ग्रामाधीश । आज्ञा । हस्ति दस्ती छीनना।
वगैरह को पकड़ने का गर्त । वि. अपहृत । ओअक्ख सक [दृश] देखना ।
ओआअव पुं [दे] अस्त-समय । ओअग्ग सक [वि + आप्] व्याप्त करना। ओआर सक [अप+वारय] ढाँकना । ओअग्गिअ वि [दे] अभिभूत । न. केश वगैरह ओआर पुं [अपकार] अनिष्ट, क्षति । को एकत्रित करना ।
ओआर पुं [अवतार] अवतारण । देहान्तरओअग्घिअ । वि [दे] सूंघा हुआ ।
धारण । उत्पत्ति । प्रवेश । उतारना । ओअघिअU
ओआर देखो उवयार। ओअण्ण वि [अवनत] नमा हुआ। ओआल पुं [दे] छोटा प्रवाह । ओअत्त वि [अपवृत्त उलटा किया हुआ । ओआली स्त्री [दे] खड्ग का दोष । पंक्ति । ओअत्तअ वि [अपत्तितव्य] अपवर्तन- ओआवल पुं [दे] सुबह का सूर्यताप । योग्य । त्यागने योग्य ।
ओआस देखो अवगास। ओअम्मअ वि [दे] अभिभूत ।
ओआस देखो उववास। ओअर सक [अव + तु] जन्म-ग्रहण करना । | ओआहिअ वि [अवगाहित] जिसका अवनीचे उतरना।
। गाहन किया गया हो वह ।
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ओइंध - ओगुट्टि
ओइंध सक [ आ + मुच् ] छोड़ देना | फेंक
देना । उतार कर रख देना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ओइण्ण वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ । ओइत्त न [] परिधान | वस्त्र | ओइत्तण
ओइल्ल वि [] आरूढ । ओउंठण न [ अवगुण्ठन] घूंघट | ओउल्लिय वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ ।
ओऊल न [ अवचूल ] लटकता हुआ वस्त्राञ्चल । देखो ओचूल |
अ अ [ओम् ] प्रणव । मुख्य मन्त्राक्षर । ओंकार पुं [ओङ्कार] 'ओं' अक्षर ।
गण अक [क्वण् ] अव्यक्त आवाज करना । अघ देखो उंघ |
ओंडल न [ दे] केश-गुम्फ । केश रचना | अदुर देखो उंदुर ।
अबाल सक [छादय् ] ढकना ।
ओंबाल सक [ प्लावय् ] डुबाना | व्याप्त
करना ।
ओकंबण देखो उक्कंबण ।
ओकच्छिया देखो उक्कच्छिआ । ओकड्ढ व [अपकृष्ट] खींचा हुआ । न. अपकर्षण |
ओकड्ढग देखो उक्कड्ढग | ओकरग पुं [अवकरक] विष्ठा ।
ओक्कस सक [ अव + कृष् ] निमग्न होना । खींचना । बह जाना ।
वमन ।
ओक्खंच सक [ आ + कृष्] खींचना । ओक्खंड सक [अव + खण्डय् ] तोड़ना ।
ओक्खंडिअ वि [दे] आक्रान्त | ओक्खंद देखो अवक्खंद | ओक्खल देखो उऊखल । ओक्खली [दे] देखो उक्खली । ओक्खमाण (शौ) वि [ भविष्यत् ] भावी । ओक्खण वि [] अवकीर्ण । खण्डित । ढका हुआ । पार्श्व में शिथिल । ओक्खित्त वि [ अवक्षिप्त ] फेंका हुआ । ओखंच देखो ओक्खंच |
ओगम देखो अवगम ।
ओगय वि [ उपगत ] प्राप्त ।
ओगर देखो ओग्गर ।
१९१
ओलिअ वि [ अवगलित ] गिरा हुआ, खिसका हुआ ।
ओगसण न [ अपकसन] ह्रास |
ओहि वि [ अवगृहीत] उपात्त, गृहीत | ओगाढ वि [ अवगाढ] आश्रित । अधिष्ठित । व्याप्त । निमग्न । गहरा ।
ओक्कंत वि [ अवक्रान्त ] निराकृत । पराजित |
ओक्कंदो देखो उक्कंदी |
ओक्कणी स्त्री [] यूका ।
ओविकअ न [दे] वास, वसन, अवस्थान । ओगिण्हणया स्त्री [अवग्रहणता] ऊपर देखो ।
मन से जानना ।
ओगास पुं [अवकाश ] जगह | मार्ग |
गाह क [अ + गाह, ] पाँव से चलना । अवगाहन करना । अगाहणा स्त्री [ अवगाहना ] आधार-भूत, आकाश-क्षेत्र | शरीर । शरीर-परिमाण । अवस्थान, अवस्थिति । णाम न ['नामन् ] कर्म- विशेष । णाम पुं [नाम] अवगाहनात्मक परिणाम ।
करना ।
ओगाहिम वि [ अवगाहिम ] पक्वान्न । ओगिज्झ सक [अव + ग्रह ] आश्रय लेना । ओfro अनुज्ञा-पूर्वक ग्रहण जानना | उद्देश करना | लक्ष्य कर कहना । ओगिण्हण न [ अवग्रहण ] सामान्य ज्ञान - विशेष, अवग्रह |
His a [ अवगुण्डित] लिप्त । ओट्ठ स्त्री [अपकृष्ट] अपकर्ष, हलकाई ।
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हुआ।
१९२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ओगूहिय-ओज्झरिअ ओगहिय वि [अवगहित] आलिङ्गित । ओचल । देखो ओऊल । मुख से हटा ओग्गर पुं [ओगर] व्रीहिविशेष ।
ओचुलग । शिथिल (वस्त्र)। ओग्गह देखो उग्गह।
ओच्चय देखो अवचय। ओग्गह सक [प्रति+इष्] ग्रहण करना ।। ओच्चिया स्त्री [अवचायिका] तोड़ कर (फूलों ओग्गहण देखो ओगिण्हण। °पट्टग पुन | को) इकट्ठा करनेवाली। [पट्टक] जैन साध्वियों के पहनने का एक | ओच्चेल्लर न [दे] ऊषर-भूमि । जघन के रोम । गुह्याच्छादक वस्त्र।
ओच्छअ । वि [अवस्तृत] आच्छादित । ओग्गहिय वि [अवगृहीत] अवग्रह का विषय । ओच्छइय , निरुद्ध । अनुज्ञा से गृहीत । बद्ध । देने के लिए उठाया ओच्छदिअ वि [दे] अपहृत । व्यथित ।
ओच्छण्ण वि अवच्छन्न] आच्छादित । ओग्गारण न [उद्गारण] उद्गार ।
अवष्टब्ध, आक्रान्त । देखो ओच्छन्न । ओग्गाल पुंदे] छोटा प्रवाह ।
ओच्छत्त न [दे] दन्त धावन, दतवन । ओग्गाल सक [रोमन्थाय्] चबाई हुई वस्तु ओच्छर (शौ) सक [अव+स्तृ] बिछाना । को पुनः चबाना ।
आच्छादित करना। ओग्गाह देखो उग्गाह = उद् + ग्राहय । ओच्छविय । वि [अवच्छादित] आच्छाओग्गिअ वि [दे] अभिभूत ।
ओच्छाइय । दित । ओग्गीअ पुं [दे] हिम ।
ओच्छाय सक [अव+ छादय] आच्छादन ओग्घ देखो उग्घड।
करना। ओग्धसिय वि [अवघर्षित] प्रमार्जित । ओच्छाहिय देखो उच्छाहिय । ओघ पुं. समूह । संसार । अविच्छेद । सामान्य । | ओच्छिअ न [दे] केश-विवरण । °सण्णा स्त्री [°संज्ञा] सामान्य ज्ञान । देस ओच्छिण्ण वि [अवच्छिन्न] आच्छादित । पुं [°ादेश] सामान्य विवक्षा । देखो ओह = | ओच्छंद सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना । ओघ ।
गमन करना। ओघट्टिद (शौ) वि [अवघट्टित] आहत । ओच्छुण्ण वि [आक्रान्त] दबाया हुआ । ओघसर [दे] घर का जल-प्रवाह । अनर्थ ।। उल्लंधित । खराबी, नुकसान ।
ओच्छोअअ न [दे] घर की छत के प्रान्त भाग ओघसिय देखो ओग्घसिय ।
से गिरता पानी। ओघाययण न [ओघायतन] परम्परा से पूजा ओजिम्ह अक [ध्रा] तृप्त होना । जानेवाला स्थान । तलाब में पानी जाने का ओजर वि [दे] भीरु । साधारण रास्ता।
ओजल देखो उज्जल। ओघेत्तव्व ओगिण्ह का कृ.।
ओजल्ल वि [दे] बलवान् । ओचार पुं [दे. अपचार] धान्य रखने की बड़ी | ओज्जाअ पुं [दे] गजित । गरिव । कोठी । मिट्टी का पात्र-विशेष ।
ओज्झ वि दे] मैला । ओचिदी (शौ) स्त्री [औचिती] उचितता। ओज्झमण न [दे] पलायन । ओचुंब सक [अव = चुम्ब] चुम्बन करना। ओज्झर पुं [निझर] झरना । ओचुल्ल न [दे] चूल्हा का एक भाग । ओज्झरिअ [दे] देखो उज्झरिअ ।
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ओज्झरी-ओइंपिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
१९३ ओज्झरी स्त्री [दे] आँत का आवरण । : ओणणअ वि दे] अभिभूत । ओज्झा सक [अप+ ध्या] खराब चिन्तन ओण्णिद्द न [औन्निद्रय] निद्रा का अभाव । करना।
ओण्णिय वि [औणिक] ऊन का बना हुआ । ओज्झा देखो अउज्झा।
ओणेज वि [उपनेय] साँचे में ढाल कर बना ओज्झाय देखो उवज्झाय ।
हुआ फूल आदि, साँचे से बनता मोम का ओज्झाय वि [दे] दूसरे को प्रेरणा कर हाथ ! पुतला। से लिया हुआ।
ओत्तलहअ पुं [दे] विटप। ओज्झावग देखो उवज्झाय ।
ओत्ताण देखो उत्ताण । ओट्ठ पुं [ओष्ठ] अधर ।
ओत्थ सक [स्थग्] ढकना । ओद्विय वि [औष्ट्रिक] उष्ट्र-सम्बन्धी, उष्ट्र के ओत्थअ वि [अवस्तृत] फैला हुआ । आच्छाबालों से बना हुआ।
दित । ओडड्ढ वि [दे] रागी।
ओत्थअ वि [दे] अवसन्न, खिन्न । ओड्ड पुं [ओड्र] उत्कल देश । वि. उत्कल देश ओत्थइअ देखो ओच्छइय । का निवासी ।
ओत्थर देखो ओच्छर । ओड्डिअ वि [ओड्रीय] उत्कलदेशीय । ओत्थर पुं [दे] उत्साह । ओड्ढण न [दे] ओढ़न, उत्तरीय ।।
ओत्थरिअ वि [दे] आक्रान्त । जो आक्रमण ओड्ढिगा स्त्री [दे] ओढ़नी ।
करता हो वह। ओढण न [दे] अवगुण्ठन ।।
ओत्थल्ल देखो उत्थल्ल= उत् + स्तु । ओण देखो ऊण = ऊन ।
ओत्थल्लपत्थल्ला देखो उत्थल्लपत्थल्ला । ओणंद सक [अव + नन्द्] अभिनन्दन करना।
ओत्थाडिय वि [अवस्तृत] बिछाया हुआ। ओणम अक [अव+नम्] नीचे नमना ।
ओत्थार सक [अव+स्तारय] आच्छादित ओणय वि[अवनतानमा हआ। न.नमस्कार। करना। ओणल्ल अक [अव+लम्ब्] लटकना। | ओदइग । पुन [औदयिक] उदय, कर्मओणविय वि अवनमित नमाया हआ। ओदइय } विपाक । वि. उदय निष्पन्न । ओणाम सक [अव+नमय] नीचे नमाना। पुं कर्मोदय रूप भाव । वि. उदय होने पर ओणामणी स्त्री [अवनामनो] एक विद्या, होनेवाला। जिसके प्रभाव से वृक्ष वगैरह स्वयं फलादि ओदच्च न [औदात्य] उदात्तता । श्रेष्ठता । देने के लिए अवनत होते हैं।
ओदज न [औदार्य] उदारता । ओणिअत्त अक [अपनि + वृत्] पीछे हटना। ओदण न [ओदन] भात । वापिस आना।
ओदरिय वि [औदरिक] पेट भरा, पेट भरने ओणिमिल्ल वि [अवनिमीलित] मुद्रित । के लिए ही जो साधु हुआ हो वह ।। मूंदा हुआ।
ओदहण न [अवदहन] तप्त किये हुये लोहे के ओणियट्ट देखो ओणिअत्त ।
कोश वगैरह से दागना। ओणियव्व पुं [दे] वल्मीक, चींटियों का खुदा ओदारिय न [औदार्य] उदारता । हुआ मिट्टी का ढेर।
ओद्द वि [आर्द्र] गीला । ओणीवी स्त्री दे] नीवी, कटि-सूत्र । ओइंपिअ वि [दे] आक्रान्त । नष्ट ।
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१९४
ओद्धस-ओमीस
ओस क [ अव + ध्वंस्] गिराना । हटाना ।
हराना ।
अधावक [अव + धाव् ] पीछे दौड़ना । ओण देखो अवण |
और मलिन वस्त्र धारण करनेवाला । रत्त पुं [ रात्र] ज्योतिष की गिनती के अनुसार जिस तिथि का क्षय होता है वह । अहोरात्र । ओमइल्ल वि [ अवमलिन] मलिन । ओमंथ [] देखो ओमत्थ ।
ओअ वि [ अवधूत ] कम्पित ।
वाला, हलका पीला रंगवाला ।
ओधूसरिअ वि [ अवधूसरित ] धूसर रंग ओमंथिय वि [ अवमस्तिक ] शीर्षासन से स्थित । ओमंस वि[] अपसृत, अपगत । ओमज्जण न [ अवमज्जन ] स्नान- क्रिया । ओमज्जायण पुं [ अवमज्जायन ] ऋषि- विशेष । ओम ज्जअ वि [ अवमार्जित] स्पर्शित । ओम [ अवमृष्ट] स्पृष्ट । ओप्पा स्त्री [दे] शाण आदि पर मणि वगैरह ओमत्थ वि [ दे] नत, अधोमुख ।
ओप्प वि [] सृष्ट, ओप दिया हुआ । ओप्प a [ अर्पय् ] अर्पण करना ।
ओमल्ल न [ निर्माल्य ] निर्माल्य, देवोच्छिष्ट
का घर्षण करना । ओप्पाइय वि [ औत्पातिक ] उत्पात -सम्बन्धी । ओपि वि [दे] शाण पर घिसा हुआ ।
ओन डिवि [अवनटित ] अवगणित तिरस्कृत । ओपल्ल व [दे] अपदीर्ण, कुण्ठित ।
ओपील पुं [दे] समूह |
ओप्पुंसिअ ओप्पुसिअ
}
देखो उप्पुस ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
द्रव्य |
ओमल्ल वि [दे] घनीभूत । कठिन, जमा हुआ । ओमाण पुं [अपमान] अपमान, तिरस्कार । ओमाण न [ अवमान ] जिससे क्षेत्र वगैरह का माप किया जाता है वह, हस्त, दण्ड वगैरह मान | जिसका माप किया जाता है वह क्षेत्रादि ।
ओमाय वि [ अवमित] परिमित, मापा हुआ । ओमाल देखो ओमल्ल = निर्माल्य । ओमाल अक [ उप + माल् ] शोभना । सक. सेवा करना । पूजा करना । ओमालिअ देखो ओमल्ल = निर्माल्य ।
| ओमालिआ स्त्री [अवमालिका ] चिमड़ी या मुरझाई हुई माला |
ओबद्ध वि [ अवबद्ध ] बँधा हुआ । अवसन्न । ओबुझ सक [अ + बुध् ] जानना । ओब्भालण देखो उब्भालण । ओभग्ग वि [अवभग्न] भग्न, नष्ट । ओभावणा स्त्री [अपभ्राजना ] लोक- निन्दा | ओभास अक [ अव + भास्] प्रकाशना । ओभास सक [अव + भाष्] याचना करना । अभास पुं [ अवभास] प्रकाश । महाग्रह विशेष | ओभासण न [ अवभासन] प्रकाशन, उद्यो- ओमास पुं [ अवमर्श ] स्पर्श ।
तन । आविर्भाव । प्राप्ति ।
ओमिण सक [ अव + मा] मापना। मान
करना ।
ओभुग्गवि [अवभुग्न ] वक्र । ओभेडिय वि [अवमुक्त ] छुड़ाया हुआ । रहित ओमिणण न [ दे] प्रोंखनक । वर के लिए किया हुआ । सासू की ओर से किया हुआ न्योछावर । ओमिव [ अमित ] परिच्छिन्न, परिमित । ओमील अक [ अव + मील् ] मुद्रित होना, बन्द होना ।
ओम वि [अवम] असार ।
ओमीस वि [ अवमिश्र ] मिश्रित । समीपस्थ ।
ओम व [अवम] कम । लघु । न दुर्भिक्ष 1 वि[कोष्ठ ] जिसने कम खाया हो वह । 'चेलग, 'चेलय वि ['चेलक] जीर्ण
|
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ओमुक्क-ओरुभियं संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१९५ न. सामीप्य ।
ओयार सक [अव+ तारय] नीचे उतारमा । ओमुक्त वि [अवमुक्त] परित्यक्त ।
ओयार पुं [अवतार] घाट, तीर्थ।। ओमुग्ग देखो उम्मुग्ग।
ओयारंग वि [अवतारक] उतारनेवाला । ओमुच्छिअ वि [अवमूच्छित] महा-मूर्छा को | प्रवृत्ति करनेवाला । प्राप्त ।
ओयारण देखो उयारण । ओमुद्धग वि [अवमूर्धक] अधोमुख । ओयावइत्ता अ[ओजयित्वा] बल दिखा कर । ओमुय सक [अव + मुच्] पहनना ।
चमत्कार दिखा कर । विद्या आदि का ओमोय पुं [ओमोक] आभरण ।
सामर्थ्य दिखा कर । ओमोयर वि [अवमोदर]भूख की अपेक्षा न्यून ओर वि [दे] सुन्दर । समीप । भोजन करनेवाला ।
ओरंपिअ वि [दे] आक्रान्त । नष्ट । पतला ओमोयरिय न [अवमोदरिक] न्यून भोज- किया हुआ, छिला हुआ । नत्व । दुर्भिक्ष, अकाल ।
ओरत्त वि [दे] गर्विष्ठ । कुसुम्भ से रक्त । ओम्माय पुं[उन्माद] उन्मत्तता।
विदारित। ओय न [ओजस्] विषम संख्या-जैसे एक, | ओरद्ध देखो अवरद्ध - अपराद्ध । तीन, पाँच आदि । आहार-विशेष, अपनी | ओरम अक [उप+रम्] निवृत्त होना । उत्पत्ति के समय जीव प्रथम जो आहार लेता ओरल्ली स्त्री [दे] लम्बी और मधुर आवाज । है वह। बल प्रकाश । उत्पत्ति-स्थान में आहत ओरस सक [ अव + त ] नीचे उतरना। पुद्गलों का समूह । आर्तव, ऋतु-धर्म । ओरस वि [उपरस] स्नेह-युक्त । ओय ।व [ओकस्] गृह ।
ओरस वि [औरस] स्व-पुत्र । हृदयोत्पन्न । ओय वि [ओज] एक, असहाय । मध्यस्थ, ओरस्स वि [औरस्य] हृदयोत्पन्न, आभ्यउदासीन । पुं. विषम राशि ।
न्तरिक । ओयंसि वि [ओजस्विन्] बलवान् । तेजस्वी। | ओराल देखो उराल। ओयट्टण न [अपवत्तंन] पीछे हटना। ओराल न [औदार] नीचे देखो । ओयड्ढ सक [अप + कृष्] खींचना। ओरालिय न [औदारिक] शरीर-विशेष, ओयड्ढिया । स्त्री [दे] ओढ़नी। चादर, | मनुष्य और पशुओं का शरीर । वि. शोभायओयड्ढी , दुपट्टा।
मान । औदारिक शरीरवाला । °णाम न ओयण देखो ओदण ।
[°नामन्] औदारिक शरीर का हेतुभूत कर्म । ओयत्त वि [अववृत्त] अवनत, अधोमुख । ओरालिय वि [दे] व्याप्त । उपलिप्त । पोंछा ओयत्त सक [अप + वर्तय] खाली करने के | हुआ । प्रसारित । लिए नमाना।
ओराली देखो ओरल्ली। ओयत्तण न [अपवतंन] खिसकाना। ओरिकिय न [अवरिङ्कित] महिष की ओयविय वि [दे] परिकर्मित ।
आवाज । ओया स्त्री [ओजस्] शक्ति । प्रकाश । माता | ओरिल्ल पुं [दे] दीर्घ काल । का शुक्र-शोणित ।
ओरी [दे] समीप । ओयाइअ देखो उवयाइय।।
ओरंज न [दे] क्रीडा-विशेष । ओयाय वि [उपयात] समीप पहुँचा हुआ। । ओलंभिय वि [उपरुद्ध] आवृत्त ।
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१९६
अरुण वि [ अवरुदित] रोगा हुआ । ओरुद्ध वि [ अवरुद्ध ] रुका हुआ, बन्द किया हुआ।
ओरुभ सक [ अव + रुह्
1
उतारना ।
ओरुम्मा अक [ उद् + वा ] सुखना । ओ देखो ओरु |
ओरोध देखो ओरोह = अवरोध | ओरोह देखो ओरुभ |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ओरोह पुं [ अवरोध ] अन्तःपुर की स्त्री । नगर के दरवाजा का अवान्तर
द्वार ।
संघात ।
ओलि सक [दे] खोलना । [ ? लिप्प ] । ओलिंप सक [ अव + लिप्] लीपना । ओलिंभा स्त्री [दे] उपदेहिका, दीमक ।
उतरना । ओलित्त वि [ अवलिप्त, उपलिप्त ] लीपा
ओलअ पुं [दे] बाज पक्षी । अपलाप, निह्नव । ओलअणी स्त्री [दे] नवोढा ।
ओलइअ वि [दे. अवलगित ] शरीर में सटा
ओरुण्ण - ओल्लट्टेण
अलग्ग वि [ अवरुग्ण] ग्लान, बीमार । दुर्बल
अलग्ग वि [ अवलग्न ] पीछे लगा हुआ । अलग्ग [दे] देखो ओलुग्ग । ओलावअ पुं [दे] बाज पक्षी । ओलि देखो ओली = आली । ओलिंद पुं [अलिन्दक] बाहर के दरवाजे का प्रकोष्ठ ।
हुआ ।
ओलित्ती स्त्री [दे] खड्ग आदि का एक दोष । ओलिप्प न [ दे] हास, हँसी । ओलिप्पती स्त्री [दे] खड्ग आदि का एक दोष |
ओलिह सक [ अव + लिहू ] आस्वादन
हुआ, परिहित । लगा हुआ ।
ओलइणी स्त्री [दे] प्रिया, स्त्री ।
ओलंड सक [उत् + लङ्घ] उल्लंघन करना । ओलुंड सक [वि + रेचय् ] झरना, टपकना, ओलंब पुं [ अवलम्ब] नीचे लटकना ।
बाहर निकलना ।
करना ।
ओली सक [ अव + लो] आगमन करना । नीचे आना । पीछे आना । ओली स्त्री [आली] श्रेणी । ओली स्त्री [दे] कुलाचार |
ओलुंकी स्त्री [] बालकों की एक प्रकार की क्रीड़ा |
ओलुंप पुं [अवलोप] मसलना । ओलंबण न [अवलम्बन] सहारा । दीव पुं | ओलुंपअ पुं [दे] तवा का हाथा ।
सहारा ।
[प] शृङ्खलाबद्ध दीपक ।
1
ओलंबिय वि [ उल्लंबित ] लटकाया हुआ ओलंभ पुं [ उपालम्भ ] उलाहना । ओलक्खि वि [उपलक्षित] पहिचाना हुआ । ओलगि (अप) देखो ओलग्गि । अलग्ग सक [ अव + लग ] पीछे लगना । सेवा करना ।
ओलुग्ग वि [ अवरुग्ण ] रोगो । भग्न, नष्ट | ओलुग्गवि [दे] सेवक । बल-हीन । निस्तेज । ओलुग्गाविय वि [दे] बीमार | विरह, पीड़ित ।
ओट्ट व [दे] असंघटमान । मिथ्या । ओलेड वि [ दे] अन्यासक्त | प्रवृद्ध ।
ओलोअ देखो अवलोअ ।
ओलोट्ट सक [अप + लुठ् ] पीछे लौटना । ओलोयण न [ अवलोकन ] देखना | गवाक्ष । खोज, दृष्टि ।
तृष्णा-पर ।
ओल्ल पुं [दे] पति । स्वामी । दण्डप्रतिनिधि पुरुष, राजपुरुष - विशेष ।
ओल्ल देखो उल्ल - आर्द्र । आर्द्रय् । ओल्लट्टण पुं [अवलटन] एक नरक-स्थान ।
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ओल्लणी-ओवर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ओल्लणी स्त्री [दे] मार्जिता, इलायची, दाल- ओवट्ट पुं [अपवर्त्त) ह्रास, हानि । भागाकार। चीनी आदि मसाला से संस्कृत दधि । ओवट्टिअ न [दे] चाटु, खुशामद । ओल्लरण न [दे] स्वाप सोना ।
ओवट वि [अनवृष्ट] जिसने वृष्टि की हो ओल्लरिअ वि [दे] सुप्त ।
वह । ओल्लविद (शौ) नीचे देखो।
ओवट्ठ पुं [दे. अववर्ष] वृष्टि । ओल्लिअ वि [आदित] आर्द्र किया हुआ ।
ओवदिइअ वि [औपस्थितिक] उपस्थिति के ओल्ली स्त्री [दे] पनक, काई ।
योग्य, नौकर । ओल्हव सक [वि +ध्यापय] बुझाना । ठण्ढा
ओवड अक [अव -- पत्] गिरना । करना।
। ओवडण न [अवपतन अधःपात । झम्पापात । ओव न [दे] हाथी वगैरह को बाँधने के लिए
ओवड्ढ वि [उपाध] आधे के करीब । किया हुआ गर्त ।
__ मोयरिया स्त्री [°वमोदरिका] बारह
कवल का हो आहार करना, तप-विशेष । ओवअण न [अवपतन] नीचे गिरना ।
ओवड्ढि वि [अपवृद्धि] ह्रास । ओवइणी स्त्री [अवपातिनी] विद्या-विशेष,
ओवड्ढा स्त्री [दे] ओढ़नी का एक भाग । जिसके प्रभाव से स्वयं नीचे आता है या
ओवण न [उपवन] बगीचा, आराम । दूसरे को नीचे उतारता है।
ओवणिहिय पुं[औपनिहित, औपनिधिक] आवश्य वि अवपाती नाच आया हुआ। समीपस्थ भिक्षा को लेनेवाला साधु । आ पड़ा हुआ, आ डटा हुआ। न. पतन ।
ओवणिहिया स्त्री [औपनिधिकी] आनुपूर्वीओवइय पुंस्त्री [दे] तीन इन्द्रियवाला एक
विशेष । क्षुद्र जन्तु।
ओवत्त सक [अप + वर्तय] उलटा करना । ओवइय वि [औपचयिक] उपचित, परिपुष्ट ।
फिराना । फेंकना। ओवगारिय वि [औपकारिक] उपकार करने
| ओवत्त वि [अपवृत्त] फिराया हुआ। वाला उपकारार्थक ।
ओवत्थाणिय वि [औपस्थानिक] सभा का ओवग्ग सक [अप+क्रम्] व्याप्त करना ।
कार्य करनेवाला नोकर । ढकना। ओवग्ग सक [उप + वल्ग्, आ + क्रम्]
ओवम देखो ओवम्म। आक्रमण करना । पराभव करना ।
ओवमिय वि [औपमिक] उपमा-सम्बन्धी । ओवग्गहिय वि [औपग्रहिक] जैन साधुओं ओवमिय । न [औपम्य] उपमा । उपमान, का एक प्रकार का उपकरण, जो कारण-विशेष | ओवम्म प्रमाण । से थोड़े समय के लिए लिया जाता है। ओवय सक [अव + पत्] नीचे उतरना। आ ओवग्गिअ वि [दे. उपवल्गित] अभिभूत । पड़ना। आक्रान्त ।
ओवयण न [दे. अवपदन] प्रोङ्खणक, चुमना । ओवघाइय वि [औपघातिक] उपघात करने | | ओवयाइयय वि [औपयाचितक] मनौती से वाला, पीड़ा उत्पन्न करनेवाला।
प्राप्त किया हुआ। ओवच्च सक [उप +वज्] पास जाना। ओवयारिय वि [औपचारिक] उपचारओवट्ट अक [अप + वृत्] पीछे हटना । कम सम्बन्धी। होना, ह्रास-प्राप्त होना ।
| ओवर पुं [दे] समूह ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ओववाइय-ओस ढि ओववाइय वि [औपपातिक] एक जन्म से । ओवास पुं [उपवास] उपवास । दूसरे जन्म में जाने वाला। जिसकी उत्पत्ति । ओवासंतर पुन [अवकाशान्तर] आकाश । होती हो वह । पुं. संसारी, प्राणी । देव या | ओवाह सक [अव + गाह.] अवगाहना । नारक जीव का शरीर । जैन आगम ग्रन्थ ओवाहिअ वि [अपवाहित] नीचे गिराया विशेष, औपपातिक सूत्र ।
। हुआ । घुमाकर नीचे डाला हुआ। ओवसग्गिय वि [औपसर्गिक] उपसर्ग से ओविअ वि [दे] आरोपित । मुक्त। छोना सम्बन्ध रखने वाला, उपद्रव-समर्थ रोगादि। हुआ । न, खुशामद । रोदन । वि. परिकर्मित । शब्द-विशेष, प्र, परा आदि अव्यय रूप शब्द। खचित, व्याप्त । उज्ज्वालित, शृङ्गारित । ओवसमिअ पुन [औपशमिक] उपशम । वि.
देखो उविय। उपशम से उत्पन्न ।
ओविद्ध वि [अपविद्ध] प्रेरित, आहत । नीचे ओवसेर न [दे] चन्दन । वि. रति-योग्य ।।
गिराया हुआ। ओवस्सय देखो उवस्सय।
ओवील सक [अव + पीडय] पीड़ा पहुँचाना, ओवह सक[ अव + वह ]बह जाना । डूबना ।
मार-पीट करना। ओवहारिअ वि [औपहारिक] उपहार
ओवीलय देखो उध्वीलय । सम्बन्धी।
ओवुब्भमाण देखो ओवह का कवकृ. । ओवहिय वि [औपधिक] माया से गुप्त विच
ओवेहा स्त्री [उपेक्षा] उपदर्शन । अवधीरण । रनेवाला।
°ओव्वण देखो जोवण। ओवाअअ पं [दे] जल-समूह की गरमी । ओव्वत्त अक [अप+ वृत्] पीछे फिरना । ओवाइय देखो ओववाइय।
लौटना । अवनत होना। ओवाइय देखो उवयाइय ।
ओव्वत्त वि [अपवृत्त] पीछे फिरा हुआ। ओवाइय वि [आवपातिक सेवा करनेवाला । नमा हुआ। ओवाडण न [अवपाटन] विदारण । नाश । ओन्वेव्व देखो उन्वेव । ओवाडिय वि [अवपाटित विदारित। ओस देखो ऊस = ऊष । ओवाय सक [उप+याच्] मनौती करना । ओस पुंदे] देखो ओसा। °चारण पुं. हिम ओवाय अवपाती सेवा। भक्तिी गर्न । के अवलम्बन से जानेवाला साधु । गड्ढा । नीचे गिरना।
ओसक्क सक [अव + ष्वक्] कम करना । पीछे ओवाय वि [औपाय] उपाय जन्य । उपाय- हटना, अपसरण करना। पलायन करना । सम्बन्धी।
उदीरण करना, उत्तेजित करना । नियत काल ओवार सक [अप+वारय] ढकना।
से पहले करना। ओवारि न [दे] धान्य भरने का एक प्रकार ओसक्क वि [दे. अवष्वष्कित] अपसृत, पीछे का लम्बा कोठा, गोदाम ।
हटा हुआ। ओवारिअ वि [दे] राशिकृत ।
ओसट्ट अक [वि + सृप्] फैलना । ओवास अक [अव+काश्] शोभना । जगह ओसट्ट वि [दे] विकसित, प्रफुल्लित । मिलना।
ओसडिअ वि [दे] आकीर्ण, व्याप्त । ओवास पुं [अवकाश] अवकाश, खाली | ओसढ न [औषध] दवा, इलाज। जगह।
| ओसढिअ वि [औषधिक] वैद्य, चिकित्सक ।
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ओसण-ओसिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१९९ ओसण न [दे] उद्वेग, खेद ।
नगरी-विशेष । महिहर पुं [ महिधर] ओसण्ण वि [अवसन्न] खिन्न। शिथिल, पर्वत विशेष ।। ढीला । निमग्न । न. एकान्त ।
ओसहिअ वि [आवसथिक] चन्द्रार्घ-दानादि ओसण्ण वि दे] अटित, खण्डित ।
व्रत को करनेवाला। ओसण्णं अ [दे] प्रायः ।
ओसा स्त्री [दे] ओस । हिम । ओसत्त वि [अवसक्त] सम्बद्ध, संयुक्त। ओसाअ पुं]दे] प्रहार की पीड़ा । ओसधि देखो ओसहि।
ओसाअ पुं [अवश्याय] हिम, ओस । ओसद्ध वि [दे] गिराया हुआ।
ओसाअंत वि [दे] अँभाई खाता हुआ आलसी। ओसप्पिणी स्त्री [अवसर्पिणी] दश कोटा- बैठता । वेदना-युक्त ! कोटि सागरोपमपरिमित काल-विशेष, जिसमें ओसाअण वि [दे] जमीन का मालिक । सर्व पदार्थों के गुणों की क्रमशः हानि होती
आपोशान । जाती है।
ओसाण न [अवसान] अन्त । समीपता । गुरु ओसम सक [उप + शमय] उपशान्त करना। के समीप स्थान, गुरु के पास निवास । ओसर अक [अव+त] नीचे आना। अव- ओसाणिहाण विदे] विधि-पूर्वक अनुष्ठित । तरना।
ओसाय पुं[अवश्याय] ओस । ओसर अक [अप + स] अपसरण करना, पोछे
ओसायण न [अवसादन] परिशाटन, नाश । हटना । सरकना, खिसकना, फिसलना।
ओसार सक [अप + सारय] दूर करना । ओसर सक [अव + सृ] आना, तीर्थकर आदि
ओसार पुंदे] गो-वाट, गो-बाड़ा। महापुरुष का पधारना ।
ओसार देखो ऊसार = उत्सार । ओसर पुं [अवसर] अवसर, समय । अन्तर ।
ओसार पुं [अवसार] कवच, बख्तर । ओसरण न [अवसरण] जिन-देव का उपदेश ओसारिअ वि [अवसारित] अवलम्बित, स्थान । साधुओं का एकत्रित होना।
लटकाया हुआ। ओसरण न [अपसरण] हटना, दूर होना। ओसास (अप) देखो ओवास = अवकाश । वि. दूर करनेवाला।
ओसिअ वि [दे] अबल । अपूर्व ! ओसरिअ वि [दे] आकीर्ण, व्याप्त । आँख के ओसिअ वि [उषित] बसा हुआ, रहा हुआ। इशारे से संकेतित या इंगित । अधोमुख । न. व्यवस्थित । आँख का इशारा।
ओसिअंत वकृ. [अवसीदत्पीड़ा पाता हुआ । ओसरिअ वि [उपसत] सम्मुखागत । | ओसिंघिअ वि [दे] सूंघा हुआ । ओसरिआ स्त्री [दे] अलिन्दक, बाहर के दर- ओसिंचित्तु वि [अपसेचयितु] अपसेक करनेवाजे का प्रकोष्ठ ।
वाला। ओसव पुं [उत्सव] उत्सव, आनन्द-क्षण। ओसिक्खिअ न [दे] गति-व्याघात । अरतिओसव देखो ओसम।
निहित । ओसविय वि [उच्छयित] ऊंचा किया हुआ। ओसित्त वि [अवसिक्त] भिगोया हुआ, सिक्त। ओसबिअ वि[दे]शोभा-रहित । न. अवसाद । । ओसित्त वि [दे] उपलिप्त । ओसह न [औषध] दवाई, भैषज ।
ओसिय वि [अवसित] पर्यवसित । उपशान्त । ओसहि', ही स्त्री [ओषधि] वनस्पति । जीत, पराभूत ।
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२००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ओसिरण-ओहाइअ
ओसिरण न [दे] व्युत्सर्जन, परित्याग । जाता है वह शिला। ओसीअ वि [दे] अधो-मुख ।
| ओहट्ट अक [अप + घट्ट ] कम होना, ह्रास ओसीर देखो उसीर।
पाना । पीछे हटना । सक. हटाना, निवृत्त ओसीस अक [अप+ वृत्] पीछे हटना । करना । निषेध करना । घूमना, फिरना।
ओहट्ट पुं [दे] अवगुण्ठन । नीवी, कटि-वस्त्र । ओसीस वि [अप + वृत्त] अपवृत्त ।
वि. अपसृत, पीछे हटा हुआ । ओसुअ वि [उत्सुक] उत्कण्ठित ।
ओहट्ट । वि [अपघट्टक] निवारक, हटानेओसंखिअ वि [दे] उत्प्रेक्षित, कल्पित ।
ओहट्टय ) वाला, निषेधक । ओसंभ सक [अव+पातय्] गिरा देना ।
ओहट्टिअ वि [दे] दूसरे को दबाकर हाथ से नष्ट करना।
गृहीत । ओसुक्क सक [तिज] तीक्ष्ण करना, तेज
ओहट्ट पुं[दे] हास, हँसी। करना।
ओहट्ट वि [अवघृष्ट] घिसा हुआ। ओसुक्क वि [अवशुष्क] सूखा हुआ । ओहड वि [अपहृत] नीचे लाया हुआ। ओसुक्ख अक [अव+ शुष्] सूखना। ओहडणी स्त्री [दे] अर्गला। ओसुद्ध वि [दे] विनिपतित । विनाशित ।
ओहत्त वि [दे] अवनत । ओसुय न [औत्सुक्य] उत्सुकता ।
ओहत्थिअ वि [अपहस्तित] परित्यक्त, दूर ओसोयणी स्त्री [अवस्वापनी] विद्या- किया हुआ। ओसोवणिया विशेष, जिसके प्रभाव से दूसरे | ओहय वि [उपहत] उपघात-प्राप्त । ओसोवणी को गाढ़ निद्राधीन किया जा | ओहय वि [अवहत] विनाशित । सकता है।
ओहर सक [अप+ह] अपहरण करना। ओस्सक्क पुं [अवष्वष्क] अपसर्पण, पीछे ओहर अक [अव+ह] टेढ़ा होना, वक्र हटना।
होना । सक. उलटा करना । फिराना। ओस्सा [दे] देखो ओसा।
ओहर न [उपगृह] छोटा गृह । कोठरी । ओस्साड पुं [अवशाट] नाश ।
ओहरण न [दे] विनाशन, हिंसा । असम्भव ओह देखो ओघ ।
अर्थ की सम्भावना । अस्त्र । वि. आघ्रात । ओह सक [अव+तृ] नीचे उतरना। ओहरिअ वि [दे. अपहृत] फेंका हुआ । नीचे ओह पुन [ओघ] उत्सर्ग, सामान्य नियम । गिराया हुआ । उतारा हुआ । अपनीत । सामान्य । प्रवाह । सलिल प्रवेश । आम्रव- | ओहरिस वि [दे] आघ्रात । पुं. चन्दन घिसने द्वार । संसार । 'सूय न [°श्रुत] शास्त्र- की शिला। विशेष ।
ओहल देखो उऊखल। ओहंक पुं [दे] हास, हँसी।।
ओहल सक [अव + खल्] घिसना । ओहंजलिया स्त्री [दे] क्षुद्र जन्तु-विशेष, | ओहली स्त्री [दे] ओघ, समूह । चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ।
ओहस सक [उप + हस्] उपहास करना । ओहंतर वि [ओघतर] संसार पार करने- ओहसिअ न [दे] वस्त्र । वि. धूत, कम्पित । वाला।
ओहाइअ वि [दे] अधो-मुख । ओहंस पुं [दे] चन्दन । जिसपर चन्दन घिसा | ओहाइअ वि [अवधावित] चरित्र से भ्रष्ट ।
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ओहाडण-ओहूय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२०१ ओहाडण न [अवघाटन] प्रायश्चित्त-विशेष। पदार्थ का अतीन्द्रिय ज्ञान-विशेष । जिण पुं ढकना, पिधान ।
[°जिन] अवधिज्ञानवाला साधु । °णाण न ओहाडणी स्त्री [दे. अवघाटनो] पिधानी। [ज्ञान] अवधिज्ञान । °णाणावरण न एक प्रकार की ओढ़नी।
[°ज्ञानावरण] अवधिज्ञान का प्रतिबन्धक ओहाडिय वि [अवघाटित] पिहित । स्थगित। कर्म । °दसण न [°दर्शन] रूपी वस्तु का ओहाण न [उपधान] स्थगन, ढकना। अतीन्द्रिय सामान्य ज्ञान । °दसणावरण न ओहाण न [अवधान] उपयोग, ख्याल । [दर्शनावरण] अवधिदर्शन का आवारक ओहाण न [अवधावन] अवक्रमण, पीछे कर्म । °मरण न. मरण-विशेष । हटना।
ओहिअ वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ। ओहाम सक [तुलय] तौलना, तुलना करना । ओहिअ वि [औधिक] औत्सर्गिक, सामान्य ओहामिय वि [दे] अभिभूत । तिरस्कृत । बन्द रूप से उक्त । किया हुआ, स्थगित ।
ओहिण्ण वि [अपभिन्न] रोका हुआ। ओहार सक [अव + धारय] निश्चय करना । ओहित्थ न [दे] विषाद । रभस, वेग । वि. °व वि [°वत्] निश्चयवाला । नियम करना। विचारित। ओहार पुं [दे] कच्छप । नदी वगैरह के बीच ओहिर देखो ओहीर । की शुष्क जगह, द्वीप । अंश, विभाग। जल- ओहिर देखो ओहर = अप +ह । चर-जन्तु-विशेष।
ओहीअंत वि [अवहीयमान] क्रमशः कम ओहारइत्त वि [अवहारयितु] निश्चय करने- होता हुआ। वाला।
ओहीण वि [अवहीन] पीछे रहा हुआ । ओहरइत्तु वि [अवहारयितु] दूसरे पर मिथ्या- गुजरा हुआ। भियोग लगानेवाला ।
ओहीर अक [नि + द्रा] निद्रा लेना। ओहारणी स्त्री [अवधारणी] निश्चयात्मक ओहीर अक [सद्] खिन्न होना । भाषा।
ओहीरिअ वि [ अवधीरित ] तिरस्कृत, ओहारिणी स्त्री [अवधारिणी] ऊपर देखो। परिभूत। ओहाव सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना । ओहीरिअ वि [दे] उद्गीत । अवसन्न, खिन्न । ओहाव अक [अव + धाव] पीछे हटना। ओहुअ वि [दे] अभिभूत । दीक्षा को छोड़ देना।
ओहुंज देखो उवहुंज । ओहावण न [अवभावन] अपमान, अपकीर्ति। ओहुड वि [दे] विफल । ओहावणा स्त्री [अपहापना] लाघव । ओहुप्पंत वि [आक्रम्यमाण] जिसपर आक्रमण ओहावणा स्त्री [अपभावना] तिरस्कार ।। किया जाता हो वह । ओहाविअ वि[अपभावित] तिरस्कृत । ग्लान । ओहुर वि [दे] अवनत, अवाङ्मुख । खिन्न । ओहास पुं [अवहास, उपहास] हँसी। स्रस्त, ध्वस्त । ओहासण न [अवभाषण] याचना। विशिष्ट ओहुल्ल वि [दे] खिन्न । अवनत । भिक्षा।
ओहूणण न [अवधूनन] कम्प । उल्लङ्घन । ओहासिय वि [अवभाषित] याचित। अपूर्व करण से भिन्न ग्रन्थि का भेद करना । ओहि पुंस्त्री [अवधि] मर्यादा, सीमा । रूपी- ओहूय वि [अवधूत] उल्लवित ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
क-कउरव
क [क]प्राकृत वर्ण-माला का प्रथम व्यञ्जना- केवांच, कौंछ, कवाछ । क्षर, जिसका उच्चारण-स्थान कण्ठ है। कइगई स्त्री [कैकयी] राजा दशरथ की एक ब्रह्मा । किये हुये पाप का स्वीकार । न. रानी । पानी । सुख । देखो 'अ = क ।
कइत्थ पुं[कपित्थ] कैथ का पेड़ । फल-विशेष । क देखो कि।
कइम वि [कतम] बहुत में से कौन सा ? कअवंत देखो कय-व = कृतवत् ।
कइयव्व देखो कइअव। कइ वि. ब. [कति] कितना । °अ वि [°क] कइयहा (अप) अ [कदा] कब, किस समय ? कतिपय । अव वि [°पय] कतिपय । °इ अ| कइयाइ अ [कदाचित् किसी समय में । [°चित्] कईएक। 'त्थ वि [°थ] कौन | कइर देखो कयर = कतर । संख्या का ? । °वइय, वय, वाह वि[°पय] | कइर पुं [कदर] वृक्ष-विशेष । कईएक। "वि अ [°अपि] कईएक । विह | कइरव न [कैरव] कमल । कुमुद । वि [°विध] कितने प्रकार का ।
कइरविणी स्त्री [ कैरविणी ] कुमुदिनी, कइ वि [कृतिन्] विद्वान् । पुण्यवान् । कमलिनी । कइ अ [कचित्] कहीं, किसी जगह में। कइलास पुं [कैलास, श] स्वनाम-ख्यात कइ अ [कदा] कब, किस समय ? | पर्वत-विशेष । मेरु पर्वत । देव-विशेष, एक कइ पुं [कपि] बन्दर । °दीव पुं [°द्वीप] नाग-राज । °सय पुं[°शय] महादेव । देखो द्वीप-विशेष, वानर-द्वीप । °द्धय, धय पुं केलास । [ध्वज] वानर-द्वीप के एक राजा का नाम । कइलासा स्त्री [कैलासा, °शा] देव-विशेष की अर्जुन । हसिअ न [°हसित] स्वच्छ आकाश | एक राजधानी। में अचानक बिजली का दर्शन । वानर के | कइल्लबइल्ल पुं [दे] स्वच्छन्द-चारी बैल । समान विकृत मुंह का हंसना ।
| कइविया स्त्री [दे] बरतन-विशेष, पीकदान । कइ देखो कवि = कवि । °अर (अप) पुं | कइस (अप) वि [कीदश] कैसा । [कवि] श्रेष्ठ कवि । मा स्त्री [त्व]कवित्व। | कईया (अप) देखो कइआ।
राय पुं [ राज] श्रेष्ठ कवि । 'गउडवहो' | कईवय देखो कइवय । नामक प्राकृत काव्य के कर्ता वाक्पतिराज- | कईस पुं [कवीश] श्रेष्ठ कवि । नामक कवि।
कईसर पुं [कवीश्वर] उत्तम कवि । कइअ वि [क्रयिका खरीदने वाला। कउ पुं [क्रतु] यज्ञ । कइअंक पुं [दे] निकर ।
| कउ (अप) अ [कुतः] कहाँ से । कइअंकसइ)
कउअ वि [दे] मुख्य । पुंन. चिह्न । कइअव न [कैतव] कपट, दम्भ ।
कउच्छेअय पुं [कौक्षेयक] पेट पर बँधी हुई कइआ अ [कदा] कब, किस समय ? तलवार । कइउल्ल वि [दे] थोड़ा।
| कउड न [दे. ककुद] देखो कउह - ककुद । कइंद पुं [कवीन्द्र] श्रेष्ठ कवि ।
| कउरअ । पुं [कौरव] कुरु देश का राजा । कइकच्छु स्त्री [ कपिकच्छु ] वृक्ष-विशेष, ' कउरव , पुंस्त्री. कुरु वंश में उत्पन्न । वि.
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कउल - कंगणी
कुरु (देश या वंश) से सम्बन्ध रखनेवाला । कुरु देश में उत्पन्न ।
कउल न [ दे] करीष, गोइँठा का चूर्ण । कउल न [ कौल] तान्त्रिक मत का प्रवर्त्तक ग्रन्थ, कौलोपनिषद् वगैरह । वि. शक्ति का उपासक । तान्त्रिक मत को जाननेवाला । तान्त्रिक मत का अनुयायी । देवता-विशेष | क उलव देखो कउरव ।
कउसल पुंन [ कौशल ] चतुराई | कुशलता,
दक्षता ।
उह न [दे] नित्य ।
कउह पुंन [ककुद ] बैल के कन्धे का कुब्बड़ । सफेद छत्र वगैरह राज-चिह्न | पर्वत का अग्रभाग, टोंच । वि. प्रधान, मुख्य । कउहा स्त्री [ककुभ् ] दिशा । शोभा, कान्ति । चम्पा के पुष्पों की माला । इस नाम की एक रागिणी | शास्त्र । विकीर्ण केश ।
उहि वि [ककुदिन्] वृषभ ।
कए
कणं
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अ [कृते] निमित्त लिए ।
कएण
एल्ल वि [कृत ] किया हुआ ।
ओ अ [कुत: ] कहाँ से ? । हुत्त क्रिवि [] किस तरफ ।
कओ अ [क] कहाँ, किस स्थान में । ओह व [कदुष्ण] थोड़ा गरम । कओल देखो कवोल ।
कं अ [क] उदक | is अ [] किससे ।
कंक पं [कङ्क] पक्षि-विशेष । एक प्रकार का मजबूत और तीक्ष्ण लोहा | वृक्ष - विशेष | 'पत्तन [पत्र] एक प्रकार का बाण, जो उड़ता है। लोह पुंन. एक प्रकार का लोहा । 'वत्त देखो 'पत्त |
कंकइ पुं [कति] वृक्ष - विशेष, नागबलानामक ओषधि ।
२०३
कंकड पुं [कङ्कट] वर्म, कवच |
कंकडुअ पुं [का] दुर्भेद्य माष, उरद की एक जाति, जो कभी पकती हो
कंकडुग नहीं ।
कंकण न [कङ्कण] कँगन । कंकण पुं [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति ।
कंकणी स्त्री [कङ्कण] हाथ का आभरणविशेष |
कति पुं [कङ्कति] ग्राम-विशेष | कंकतिज पुंस्त्री [काकतीय] माघराज वंश में
उत्पन्न ।
नागबला - नामक ओषधि ।
कंकय पुं [कङ्कत ] सर्प की एक जाति । पुंस्त्री. कंघा । कंकलास पुं [कृकलास] कर्कोट, साँप की एक जाति ।
कंकसी स्त्री [] कंघी ।
कंकाल न [कङ्काल] चमड़ी और मांस रहित अस्थिपञ्जर |
कंकावंस पुं [कङ्कावंश ] वनस्पति- विशेष | कंकिल्लि देखो कंकेल्लि ।
कंकुण देखो कंकण = दे | कंकेलि पुं [कङ्केलि] अशोक वृक्ष । कंकेल्लि पुं [दे. कङ्केल्लि] अशोक वृक्ष । कंकोड न [ दे. कर्कोट ] ककरैल, एक प्रकार की सब्जी । पुं. एक नागराज । साँप की एक जाति ।
कंकोल पुं [कङ्कोल] शीतल-चीनी के वृक्ष का एक भेद । न उस वृक्ष का फल | देखो कक्कोल |
कंख सक [काङ्क्ष ] वाञ्छना ।
कंखा स्त्री [काङ्क्षा ] अभिलाप | आसक्ति । अन्य धर्म की चाह अथवा उसमें आसक्ति रूप सम्यक्त्व का एक अतिचार । 'मोहणिज्ज न ['मोहनोय] कर्म - विशेष ।
कंगणी स्त्री [दे] वल्ली - विशेष, कांगनी ।
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२०४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कंग-कंटी कंगु स्त्रीन [कङ्ग] धान्य-विशेष, काँगन। कवच । वृक्ष-विशेष । वस्त्र । वल्ली-विशेष ।
कंचुइ पुं [कञ्चुकिन्] अन्तःपुर का प्रतीहार । कंगलिया स्त्री [दे. कङ्गलिका] जिन-मन्दिर | साँप । जव । चना। जुआर, जोन्हरी । वि. की एक बड़ी आशातना, जिन-मन्दिर में या | जिसने कवच धारण किया हो वह । उसके नजदीक लघु या वृद्ध नीति का करना। कंचुइअ वि [कञ्चकित] कञ्चकवाला। कंचण पुंन[काञ्चन]एक देव-विमान । वि.सुवर्ण | कंचुइज्ज पुं [कञ्चुकीय] अन्तःपुर का
का। पह न [प्रभ] रत्न विशेष । वि. रत्न- प्रतीहार । विशेष का बना हुआ। °पायव पुं [°पादप] | कंचुइज्जत वि [कञ्चुकायमान] कञ्चुक की वृक्ष-विशेष ।
तरह आचरण करता। कंचण पुं [काञ्चन] वृक्ष-विशेष । स्वनाम- | कंचुग देखो कंचुअ। ख्यात एक श्रेष्ठी । न. सुवर्ण । °उर न[°पुर] | कंचुगि देखो °कंचुइ। कलिंग देश का एक मुख्य नगर । कूड न | कंचुलिआ स्त्री [कञ्चुलिक] चोली । ["कूट] सौमनस-नामक वक्षस्कार पर्वत का | कंछुल्ली स्त्री [दे] कण्ठाभरण । एक शिखर । देवविमान-विशेष । रुचक पर्वत | कंजिअ न [काञ्जिक] काञ्जिक । का एक शिखर । °केअई स्त्री [ केतकी] | कंट देखो कंटग। लता-विशेष । तिलय न [तिलक] इस | कंटअंत वि [कण्टकायमान] कण्टक जैसा । नाम का विद्याधरों का एक नगर । स्थल न | पुलकित होता। [°स्थल] स्वनामख्यात एक नगर । °वला- कंटइअ वि [कण्टकित] कण्टकवाला। रोमाणग न [°बलानक] चौरासी तीर्थों में एक | चित, पुलकित । तीर्थ का नाम । °सेल पुं [शैल] मेरुपर्वत । | कंटइज्जत देखो कंटअंत । कंचणग पुं [काञ्चनक] पर्वत-विशेष । काञ्च । कंटइल पुं [कण्टकिल] एक जाति का बाँस । नक पर्वत का निवासी देव ।
वि. कण्टकों से व्याप्त । कंचणा स्त्री [ कञ्चना ] स्वनामख्यात एक कंटउच्चि वि [दे] कण्ट प्रोत । स्त्री।
कंटकिल्ल देखो कंटइअ । कंचणार पुं [कञ्चनार] वृक्ष-विशेष । कंटग । पुं [कण्टक] कांटा। रोमाञ्च । कंचणिया स्त्री [काञ्चनिका] रुद्राक्ष-माला। कंटय , शत्रु । वृश्चिक की पूंछ । शल्य । कंचा (प) देखो कण्णा।
दुःखोत्पादक वस्तु । ज्योतिष शास्त्र-प्रसिद्ध कंचि । स्त्री [काञ्चि, °श्ची] स्वनाम-ख्यात एक कुयोग । °बोंदिया स्त्री [°दे] कण्टककंची । एक देश । कटि-मेखला। स्वनाम- शाखा। ख्यात एक नगर।
कंटाली स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, कण्टकारिका, कंची स्त्री [दे] मुशल के मुंह में रक्खी जाती भटकटया । लोहे की एक वलयाकार चीज ।
कंटिय वि [कण्टिक] कण्टकवाला । वृक्षकंचीरय न [दे] पुष्प-विशेष ।
विशेष । कंचीरय न [काञ्चीरत] सुरत-विशेष । कंटिया स्त्री [कण्टिका] वनस्पति-विशेष । कंचु । पुं [कञ्चक] स्त्री का स्तनाच्छादक | कंटी स्त्री [दे] कण्ठिका, पर्वत के नजदीक की कंचुअ । वस्त्र । साँप की केंचली। वर्म, | भूमि ।
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कंटुल्ल - कंडियायण
कंटुल्ल कंटोल
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कौष
[दे] देखो कंकोड = (दे) ।
कंठ पुं [दे] सूकर । मर्यादा |
कंठ पुं [कण्ठ] गला, घाँटी । समीप । अञ्चल 'दखलअ वि ["दरस्खलित ] गद्गद् । "मुरयन ['मुरज ] आभरण- विशेष | 'मुरवी स्त्री. गले का एक आभरण | मुही स्त्री ['मुखी] गले का एक आभूषण । न [°सूत्र] सुरत-बन्ध-विशेष | गले का एक आभूषण 1
त्
कंठ वि [ कण्ठ्य ] कण्ठ से उत्पन्न । सरल | कंठकुंची स्त्री [दे] वस्त्र वगैरह के अञ्चल में बँधी हुई गाँठ । गले में लटकती हुई लम्बी नाडी-ग्रन्थि ।
कंठदीणार पुं [दे] छिद्र । विवर । कंठमल्ल न [दे] ठठरी, मृत-शिविका । यानपात्र, वाहन |
कंठमाल पुंस्त्री [कण्ठमाल ] रोग - विशेष । कंठय पुं [ कण्ठक ] स्वनाम - ख्यात एक चौर
नायक ।
कंठाकंठ अ [कण्ठाकण्ठि ] गले गले में ग्रहण
कर 1
कंठाल वि [ कण्ठवत् ] बड़ा गलावाला । कंठिअ पुं [दे] चपरासी, प्रतीहार ।
कंठ स्त्री[कण्ठिका ] गले का एक आभूषण | कंठीरअ पुं [ कण्ठीरव] सिंह । शार्दूल ।
}
कंठीरव
कंडक [कण्ड् ] ब्रीहि वगैरह का छिलका अलग करना । खींचना । खुजवाना | साफसुथरा करना ।
कंड न [काण्ड ] अंगुल का असंख्यातवाँ भाग । कंड पुंन [काण्ड ] लाठी । निन्दित समुदाय । पानी | पर्व | वृक्ष का स्कन्ध । वृक्ष की शाखा । वृक्ष का वह एक भाग, जहाँ से शाखाएँ निकलती हैं । ग्रन्थ का एक भाग गुच्छ । अश्व | प्रेत, पितृ और देवता के यज्ञ
२०५
का एक हिस्सा । रीढ़, पृष्ठ भाग की लम्बी हड्डी | खुशामद | प्रशंसा । गुप्तता । एकान्त । तृण- विशेष । निर्जन पृथ्वी । अवसर, प्रस्ताव । समूह | बाण | देव -विमान- विशेष । पर्वत वगैरह का एक भाग । खण्ड । अवयव | च्छारिय पुं [छारिक ] इस नाम का एक ग्राम ! एक ग्रामनायक | देखो कंडग, कंडय |
कंड पुं [दे] फेन, फोन । वि. दुर्बल । विपन्न | कंडइअ देखो कंटइअ ।
कंडइज्जत देखो कंटइज्जत |
कंडग न [ कण्डक] संख्यातीत संयम-स्थानसमुदाय | विभाग, पर्वत आदि का एक
भाग ।
कंडग पुंन [ काण्डक] देखो कंड = काण्ड | संयम श्रेणि-विशेष । इस नाम का एक ग्राम । देखो कंडय |
कंडण न [ कण्डन] हि वगैरह को साफ करना । कंडपंडवा स्त्री [दे] परदा ।
काण्ड तथा
कंड पुंन [काण्डक] देखो कंड कंडग । राक्षसों का चैत्य वृक्ष । तावीज़, गण्डा, यन्त्र |
कंडरीय पुं [ कण्डरीक ] महापद्म राजा का एक पुत्र, पुण्डरीक का छोटा भाई, जिसने वर्षों तक जैनी दीक्षा का पालन कर अन्त में उसका त्याग कर दिया था ।
-
कंडरीय वि [ कण्डरीक] अशोभन । अप्रधान । कंडलि स्त्री [कन्दरिका] गुफा ।
कंडलिआ
कंडवा स्त्री [कण्डवा ] वाद्य-विशेष | कंडार सक [ उत् + कृ] खुदना, छील- छाल कर ठीक करना ।
कंडावेल्ली स्त्री [ काण्डवल्ली ] वनस्पतिविशेष | कंडियायण न [ कण्डिकायन] वैशाली ( बिहार ) का एक चैत्य |
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कंडग )
२०६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कडिल्ल-कंदल कंडिल्ल पुं [काण्डिल्य] काण्डिल्य गोत्र का ! कति स्त्री [क्रान्ति] परिवर्तन । गमन । प्रवर्तक ऋषि-विशेष । पुंस्त्री. काण्डिल्य गोत्र कंतु पुं [दे] काम, कामदेव । में उत्पन्न ! न. गोत्र-विशेष, जो माण्डव्य गोत्र कंथक पुं [कन्थक] अश्व की एक जाति । की एक शाखा है। °ायण पुं [यन] कंथा स्त्री [कथा] कथड़ी, गुदड़ी, पुराने वस्त्र स्वनाम-ख्यात ऋषि-विशेष ।
से बना हुआ ओढ़ना। कंडु देखो कंडू।
कंथार पुं [कन्थार] वृक्ष-विशेष । कंडु देखो कंदु।
कथारिया ) स्त्री [कन्थारिका, °री] वृक्षकंडुअ सक [कण्डूय्] खुजवाना ।
कथारी विशेष । °वण न [°वन] कंडुअ पुं [कान्दविक] हलवाई।
उज्जैन के समीप का एक जंगल, जहाँ अवन्तीकंडुअ । पुं [कन्दुक] गेंद ।
सुकुमार-नामक जैन मुनि ने अनशन व्रत किया
था। कंडुज्जुय वि [काण्डर्जु] बाण की तरह सीधा।
कथेर पुं [कन्थेर] वृक्ष-विशेष । कंडुयग वि [कण्डूयक] खुजानेवाला ।
कन्थेरी स्त्री [कन्थेरी] कण्टकमय वृक्ष-विशेष । कंडुयण न [कण्डूयन] खुजली । खुजवाना ।
कंद अक [क्रन्द्] काँदना, रोना । कंडुयय देखो कंडुयग।
कंद वि [दे] दृढ़ । मत्त । न. आच्छादन । कंडुरु पुं [कण्डुरु] स्वनाम-ख्यात एक राजा, कंद पुं [क्रन्द, क्रन्दित] व्यन्तर देवों को एक जिराने रामचन्द्र के भाई भरत के साथ जैनी जाति । दीक्षा ली थी।
कंद पुं [कन्द] जमीकन्द, सूरन, शकरकन्द, कंडू स्त्री [कण्डू] खुजवाना । रोग-विशेष ।
बिलारीकन्द, ओल, गाजर, लहसुन वगैरह । कंडूइ स्त्री [कण्डूति] ऊपर देखो।
मूल । छन्द-विशेष । कंडूय देखो कंडुअ = कण्डूय् । कंडूयइ ।
कंद पुं[स्कन्द] कात्तिकेय । कंडूर पुं [दे] बक, बगुला।
कंदणया स्त्री [कन्दनता] मोटे स्वर से कंडूल विकण्डूल] खाजवाला, कण्डू-युक्त ।।
चिल्लाना। कंत सक [कृत्] काटना, छेदना। कातना । कंदप्प पुं [कन्दर्प] कामदेव । कामोद्दीपक कंत वि [कान्त] मनोहर । अभिलषित । पुं. हास्यादि। देव-विशेष । काम-सम्बन्धी पति । देव-विशेष । न. कान्ति ।
कषाय । वि. कामी। कंत वि [क्रान्त] गत।
कंदप्प वि [कान्दर्प] कान्दर्प-सम्बन्धी। कंता स्त्री [कान्ता] स्त्री । रावण की एक कंदप्पिय पुं [कान्दर्षिक ] मजाक करनेवाला पत्नी का नाम । एक योगदृष्टि ।
भाण्ड वगैरह। भाण्ड-प्राय देवों की एक कतार न [कान्तार] जंगल ! दुष्ट, दूषित । जाति । हास्य वगैरह भाण्ड कर्म से आजीनिराश्रय । पागल। जल-फलादि-रहित अरण्य । विका चलानेवाला । वि. काम-सम्बन्धी। कंति स्त्री [कान्ति] तेज । शोभा, सौन्दर्य । कंदर न [कन्दर] रन्ध्र । गुहा । गुफा । इस नाम की रावण की एक पत्नी । अहिंसा। कंदरा । स्त्री [कन्दरा] गुहा, गुफा । इच्छा। चन्द्र की एक कला। पुरी स्त्री. कंदरी । नगरी-विशेष । °म, °ल्ल वि ["मत्] कान्ति- कंदल पुं [कन्दल] अंकुर । लता-विशेष । कन्द
विशेष ।
युक्त।
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कंदल - कंसाला
कंदल न [ दे] कपाल । कंदलग पुं [कन्दलक] एक खुरवाला जानवर
विशेष |
वि [कन्दलित] अंकुरित ।
कंदलिअ कंद लिल्ल
कंदली स्त्री [कन्दली] लता-विशेष | अंकुर । कंदली स्त्री [कन्दली ] कन्द - विशेष । कंदविपुं [कान्दविक] हलवाई |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कंदिंद पुं [कन्देन्द्र क्रन्दितेन्द्र ] क्रन्दित-नामक
देव - निकाय का इन्द्र
कंदिय पुं [क्रन्दित] वाणव्यन्तर देवों की एक जाति । न रोदन, आक्रन्द
कंदी स्त्री [] मूला ।
कंदु पुंस्त्री [कन्दु ] एक प्रकार का बरतन, जिसमें माण्ड वगैरह पकाया जाता है, हाँडा । कंदुअ [कन्दुक] गेंद । वनस्पति- विशेष | कंदुइअ पुं [कान्दविक] हलवाई | कंदुक देखो कंदु |
कंदु देखो कंदुअ । कंदु [] देखी कंदोट्ट | कंदुब्व पुंन [] कन्द- विशेष |
कंदु देखो कंदुइअ । कंदोइय देखो कंदुइअ । कंदो न [दे] नील कमल । कंध देखो खंध = स्कन्ध | कंधरा स्त्री [कन्दरा] ग्रीवा । कंधार पुं [दे] ग्रीवा का पिछला भाग । कंप अक [कम्प्] काँपना ।
कंप पुं [कम्प ] अस्थैर्य, चलन, हिलन । कंपड [] पथिक ।
कंपण न [ कम्पन] कम्प, हिलन । रोग विशेष । 'वाइअ [ वातिक ] कम्प वायु नामक रोगवाला ।
कंपिल्ल वि [कम्पवत् ] काँपनेवाला, अस्थिर । कंपल्लि पुं [काम्पिल्य] यदुवंशीय राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम । न पंजाब देश
का एक नगर । 'पुर न. नगर - विशेष । कंब वि [क] कामुक । सुन्दर । कंब देखो कंबा |
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कंबर पुं [दे] विज्ञान |
कंबल पुंन [ कम्बल ] कामरी । पुं. स्वनामख्यात एक बलीवर्द । गौ के गले का चमड़ा, सास्ना, गलकम्बल, लहर ।
कंबा स्त्री [कम्बा ] यष्टि, लकड़ी ।
कंबि कंबो
स्त्री [afम्ब, बी] दव, कड़छी । लीला यष्टि, छड़ी ।
कंबिया स्त्री [afम्बका ] पुस्तक का पुट्ठा । कंबु [कम्बु ] शङ्ख । इस नाम का एक द्वीप | पर्वत - विशेष । न. एक देव -विमान । गवन [ग्रीव] एक देव - विमान | कंबोपुं [ कम्बोज ] देश-विशेष | कंबो[िकाम्बोज ] कम्बोज देश में उत्पन्न । कंभार पुं. ब. [ कश्मीर ] इस नाम का एक प्रसिद्ध देश | जम्म न [ जन्मन् ] कुंकुम, केसर | देखो कम्हार ।
कंभूर (अप) ऊपर देखो ।
कंस पुं. राजा उग्रसेन का एक पुत्र, श्रीकृष्ण का मातुल । महाग्रह - विशेष । काँसा । णाभ पुं [नाभ] ग्रह-विशेष | वण्ण पुं [वर्ण] ग्रह - विशेष । वण्णाभ पुं [वर्णाभ ] ग्रहविशेष | संहारण पुं. कृष्ण, विष्णु ।
कंसन [ कांस्य ] कांसा । वाद्य विशेष । परिमाण-विशेष | प्याला । 'ताल न. वाद्यविशेष । पत्ती, पाई स्त्री ['पात्री ] कांसा का बना हुआ पात्र - विशेष | पाय न [पात्र] कांसा का बना हुआ पात्र । कंसारपुं [दें] कसार, एक प्रकार की मिठाई । कंसारी स्त्री [दे] त्रीन्द्रिय क्षुद्र जन्तु की एक जाति ।
कंसाल पुं [कांस्याल] वाद्य विशेष । कंसाला स्त्री [कंसताला, कांस्यताला] वाद्य का एक प्रकार का निर्घोष ।
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ककुभ ,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कंसालिया-कवखल कंसालिया स्त्री [कांस्यतालिका] एक प्रकार कक्कराइय न [कर्करायित] कर्कर की तरह का वाद्य।
| आचरित । दोषोच्चारण । कंसिअ पुं [कांस्यिक] कसेरा, कसारी, कांस्य- कक्कस वि [कर्कश] कठोर । प्रखर, चण्ड । कार । वाद्य-विशेष ।
तीव्र, प्रगाढ । अनिष्ट । निष्ठुर । चबा-चबा कंसिआ स्त्री [कसिका] ताल । वाद्य- कर कहा हुआ वचन । विशेष।
कक्कस , पुंदे] दध्योदन, दरम्ब । ककाणि पुंस्त्री [दे] मर्म स्थान ।
कक्कसार ककुध । देखो कउह - ककुद ।
कक्कसेण पुं [कर्कसेन] अतीत उत्सर्पिणीकाल
में उत्पन्न एक स्वनामख्यात कुलकर पुरुष । ककुह देखो कउह = ककुद । हरिवंश का एक
| कक्कालुआ स्त्री [कर्कारुका] कूष्माण्डवल्ली, राजा
कोहड़ा का गाछ। ककुहा देखो कउहा।
| कक्किड पुं [दे] कृकलास, गिरगिट । कक्क पुं [कल्क] उद्वर्तन-द्रव्य । न. पाप ।
| कक्कि पुं [कल्किन] भविष्य में होनेवाला पाटमाया, कपट । °गरुग न [°गुरुक] माया,
लिपुत्र का एक राजा। कपट ।
कक्किय न [कल्किक] मांस । कक्क पुंन [कल्कचन्दन आदि उद्वर्तन द्रव्य ।
कक्वेअण पुन (कर्केतन] रत्न की एक जाति । प्रसूति-रोग आदि में किया जाता क्षार
कक्केरअ पुं [कर्केरक] मणि-विशेष की एक पातन । लोध्र आदि से उद्वर्तन । 'कुरुया
जाति । स्त्री [°करुका] माया, कपट।
कक्कोड न [कर्कोट] कक रैल, कक्कोडा। देखो कक्क पुं [कर्क] चक्रवर्ती का एक देव-कृत | कक्कोडय। प्रासाद । कर्क राशि।
कक्कोडई स्त्री [कर्कोटको] ककोडे का वृक्ष, कक्कंध पुं [कर्कन्ध] ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष ।
ककरैल का गाछ । कक्कंधु स्त्री [कर्कन्धु] बैर का वृक्ष ।
कक्कोडय न [कर्कोटक] देखो कक्कोड । पुं. कक्कड पुं [कर्कट] कर्कराशि । न. जलजन्तु- अनुवेलन्धर-नामक एक नाग-राज । उसका विशेष, कुलीर । ककड़ी। हृदय की एक आवास पर्वत । प्रकार की वायु ।
कक्कोल पुं [कङ्कोल] शीतल-चीनी के वृक्ष कक्कडच्छ पुं [कर्कटाक्ष] ककड़ी, खीरा । । का एक भेद । न . फल-विशेष, जो सुगन्धित कक्कडिया ) स्त्री [कर्कटिका, °टी] ककड़ी | होता है । देखो कंकोल। कक्कडी ) (खीरा) का गाछ । कक्कोली स्त्री [ककोली] वृक्ष-विशेष । कक्कणा स्त्री [कल्कना] पाप । माया। कक्ख देखो कच्छ = कक्ष । कक्कब पुं [दे] गुड़ बनाते समय की इक्षु-रस कक्खग वि [कक्षाग] कक्षा-प्राप्त । पुं. कक्षा की एक अवस्था।
का केश । कक्कर पुं [कर्कर] कंकर, पत्थर । वि. कठिन ।
कक्खड देखो कक्कस। कर्कर आवाजवाला।
कक्खड वि [दे] पीन, पुष्ट । कक्करणया स्त्री [कर्करणता] दोषोद्भावन, कक्खडंगी स्त्री [दे] सखी। दोषोद्भावनगर्भित प्रलाप ।
कक्खल [दे] देखो कक्कस।
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कक्खा - कच्छा
कक्खा देखो कच्छा = कक्षा | कग्घाड पुं [दे] अपामार्ग, चिरचिरा, लटजीरा । किलाट, दूध की मलाई । कघायल पुं [दे] किलाट, दूध का विकार, दूध की मलाई ।
कच्चन [ दे. कृत्य ] कार्य ।
कच्च (पै) देखो कज्ज ।
कच्च न [काच] काच, शीशा । कच्चंत वि [कृत्यमान ] पीड़ित किया जाता । कच्चरा स्त्री [ दे] कचरा, कच्चा खरबूजा । कचरा को सूखाकर, तलकर और मसाला डालकर बनाया हुआ खाद्य-विशेष । कच्चबार पुं [दे] कतवार, कूड़ा । कच्चाइणी स्त्री [कात्यायनी ] देवी विशेष,
चण्डी ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
स्वनाम ख्यात
कच्चायण पुं [ कात्यायन] ऋषि - विशेष । न कौशिक गोत्र की शाखारूप एक गोत्र। पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न । कच्चायणी स्त्री [कात्यायनी ] पार्वती । कच्चि अ [कच्चित् ] इन अर्थों का सूचक अव्यय -- प्रश्न । मण्डल | अभिलाप । हर्ष । कच्चु (अप) ऊपर देखो ।
कच्चूर पुं [कर्चूर] वनस्पति- विशेष, कचूर, काली हलदी ।
कचोल ) पुंन [कञ्चोलक] पात्र विशेष, कच्चोलय प्याला ।
कच्छपुं [कक्ष] काँख, कखरी । वन । तृण । शुष्क तृण । वल्ली । शुष्क काष्ठों वाला जंगल | राजा वगैरह का जनानखाना । हाथी को बाँधने की डोर । पार्श्व बाजू । ग्रहभ्रमण | कक्षा । द्वार | गूगल । विभीतक वृक्ष । घर की भीत | स्पर्धा का स्थान । जल-प्राय देश |
कच्छ पुं. ब. स्वनाम -ख्यात देश । जलप्राय देश । कच्छा, लँगोट । इक्षु वगैरह की वाटिका । महाविदेह वर्ष में स्थित एक विजय प्रदेश |
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तट । नदी के जल से वेष्टित वन । भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र । कच्छ-विजय का एक राजा । कच्छ - विजय का अधिष्ठायक देव । पार्श्ववर्ती प्रदेश । राजा वगैरह के उद्यान के समीप का प्रदेश । दोधक छंद का एक भेद । 'कूड न [° कूट ] माल्यवन्त नामक वक्षस्कार पर्वत का एक शिखर कच्छ - विजय के विभाजक वैताढ्य पर्वत के दक्षिणोत्तर पार्श्ववर्त्ती दो शिखर । चित्रकूट पर्वत का एक शिखर । विपुं [प] कच्छ देश का राजा । विपुं [धिपति] कच्छ देश
का राजा ।
कच्छ पुन नदी के पास की नीची जमीन । मूला आदि की बाड़ी ।
कच्छकर पुं [दे] काछिआ, सब्जी बेचने
वाला ।
कच्छगावई स्त्री [कच्छकावती ] महाविदेह वर्ष का एक विजय प्रदेश | कच्छट्टी स्त्री [] कछौटी, लँगोटी ।
कच्छभ पुं [कच्छप ] कूर्म । राहु । 'रिंगिय न [रिङ्गित ] गुरु-वन्दन का एक दोष, कछुए की तरह चलते हुए वन्दन करना । कच्छभाणिया स्त्री [ दे] जल में होनेवाली वनस्पति- विशेष |
कच्छभी स्त्री [कच्छपी ] कूर्मी । वाद्य विशेष । नारद की वीणा । पुस्तक - विशेष । कच्छर पुं [दे] पङ्क |
कच्छरी स्त्री [कच्छरी ] गुच्छ - विशेष | कच्छव (अप) पुं [ कच्छ ] स्वनाम - प्रसिद्ध देशविशेष |
कच्छद देखो कच्छभ । कच्छवी देखो कच्छभी । कच्छह देखो कच्छभ ।
कच्छा स्त्री [ कक्षा ] विभाग । उरो बन्धन, हाथी के पेट पर बाँधने की रज्जु । काँख । श्रेणी | कमर पर बाँधने का वस्त्र । जनान
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२१० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कच्छा-कट्ट खाना । संशय-कोटि । स्पर्धा-स्थान । घर की कजला स्त्री. इस नाम की एक पुष्करिणी । भीत । प्रकोष्ठ ।
कजलाव अक [वुड डूबना। कच्छा स्त्री. कटि-मेखला । वई स्त्री [°वती] कजलिअ देखो कज्जलइअ । देखो कच्छगावई। °वईकूड न [°वतीकूट]
कजव पुंदे] विष्ठा, मैला । तृण वगैरह महाविदेह वर्ष में स्थित ब्रह्मकूट पर्वत का एक : कज्जवय का समूह , कूड़ा। शिखर ।
कज्जिय वि [कार्यिक] कार्यार्थी, प्रयोजनार्थी । कच्छादब्भ पुंदे. कक्षादर्भ] रोग-विशेष । कजोवग पं [कार्योपग] अठासी महाग्रहों में कच्छु स्त्री [कच्छू] खुजली, खाज । खाज को
एक ग्रह का नाम । उत्पन्न करनेवाली औषधि, कपिकच्छु । °ल,
कज्झाल न [दे] सेवाल । ल्ल वि [मत्] खाज रोगवाला।
कटरि (अप) अ [कटरे] इन अर्थों का द्योतक कच्छुट्टिया स्त्री [दे. कच्छपटिका] कछौटी ।
अव्यय-आश्चर्य । प्रशंसा । लँगोटी।
कटार (अप) न [दे] छुरी। करिअ वि [दे] इर्षित । न. ईर्ष्या ।।
कट्ट सक [कृत्] काटना, छेदना । कच्छुरिअ वि [कच्छुरित] व्याप्त, खचित ।
कट्ट वि [कृत्त] काटा हुआ, छिन्न । कच्छुरी स्त्री [दे] कपिकच्छ , केवाच ।
| कद्र न [कष्ट] दुःख । वि. कष्ट-कारक । कच्छुल पुं. गुल्म-विशेष ।
कट्टर पंन [दे] कढ़ी में डाला हुआ घी का कच्छुल्ल पुं. स्वनामख्यात एक नारद-मुनि ।
बड़ा। कच्छू देखो कच्छु।
कट्टर न [दे] खण्ड, अंश, टुकड़ा । कच्छोटी स्त्री [दे] कछौटी, लँगोटी।
कट्टराय न [दे] छुरी। कज वि [कार्य] जो किया जाय वह । करने- कटारी स्त्री दे] छरी । योग्य । न. प्रयोजन । कारण । काम । जाण कट्रिअ वि [त्तित] काटा हुआ, छेदित । वि [°ज्ञ] कार्य को जाननेवाला । °सेण पुं कटु वि [कत] कर्ता । [°सेन] अतीत उत्सर्पिणीकाल में उत्पन्न
| कट्टु अ [कृत्वा] करके । स्वनामख्यात एक कुलकर पुरुष ।
कट्टोरग पुं [दे] कटोरा । प्याला, पात्र विशेष । कन्जआ (शौ) स्त्री [कन्यका] कन्या ।
कट्ठ न [कष्ट] दुःख, पीड़ा । पाप । वि. कष्टकजउड पुं[दे] अनर्थ ।
दायक । °हर न [°गृह] कठघरा । कन्जमाण वि [क्रियमाण] जो किया जाता
कट्ठ न [काष्ठ] काठ, लकड़ी। पुं. राजगृह हो वह ।
नगर का निवासी एक स्वनाम-ख्यात श्रेष्ठी । कजल न. काजल । सुरमा । °प्पभा स्त्री
°कम्मत न [°कर्मान्त] लकड़ी का कार[प्रभा] सुदर्शना-नामक जम्बू-वृक्ष की उत्तर
खाना । करण न. श्यामक-नामक गृहस्थ के दिशा में स्थित एक पुष्करिणी।
एक खेत का नाम । °कार पुं. काष्ठ-कर्म से कजलइअ वि [कजलित] काजलवाला ।
जीविका चलानेवाला। कोलंब पुं श्याम ।
[°कोलम्ब] वृक्ष की शाखा के नीचे झुकता कन्जलंगी स्त्री [कजलाङ्गी] कज्जल-गृह, हुआ अग्र-भाग । “खाय पुं ["खाद] कीट. दीप के ऊपर रखा जाता पात्र, जिसमें काजल | विशेष, घुण । 'दल न. रहर की दाल । इकट्ठा होता है।
°पाउया स्त्री [°पादुका] खड़ाऊँ। पुत्त
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कटुं-कडण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२११ लिया स्त्री [पुत्तलिका] कठपुतली । “पेज्जा | पुं [वादिन्] जगत्कर्तुत्ववादी । "आइ पुं स्त्री [°पेया] मूग वगैरह का क्वाथ । घृत [°ादि] देखो जोगि । देखो कय = कृत । से तली हुई तण्डुल की राब । 'मह न | कडअल्ल पुं [दे] दौवारिक । ["मधु] पुष्प-मकरन्द । °मूल न. द्विदल | कडअल्ली स्त्री [दे कण्ठ, गला । धान्य । हार पुं. त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष । कडइअ पुंदे] स्थपति । "हारय पुं [हारक] कठहरा ।
कडइअ वि [कटकित]वलय की तरह स्थित । कट्ट वि [कृष्ट] विलिखित, चासा हुआ।
कडइल्ल पुंदे] दावारिक । कट्ठण न [कर्षण] आकर्षण ।
कडंगर न [कडङ्गर] तुष, छिलका, भूसा । कट्टहार पुं [काष्ठहार] कठहरा ।
कडंत न [दे] मूली । मुसल । कट्ठा स्त्री [काष्ठा] दिशा। हद । अठारह
कडंतर न [दे] पुराना सूर्प आदि उपकरण । निमेष । प्रकर्ष ।
कडंतरिअ वि [दे] विदारित, विनाशित । कट्टिअ पुं [दे] चपरासी, प्रतीहार । कडंब पुं [कडम्ब] वाद्य-विशेष । कट्ठिअ वि [काष्ठित] काठ से संस्कृत भीत कडंबा पुंस्त्री [कदम्बा] वाद्य-विशेष । वगैरह ।
कडभुअ न [दे] कुम्भग्रीव-नामक पात्र-विशेष । कट्ठिण देखो कढिण।
घड़े का कण्ठ-भाग । कट्टेअ वि [काष्ठेय] देखो कट्ठिअ-काष्ठित । | कडक देखो कडग । कट्ठोल देखो कट्ट = कृष्ट ।।
कडकडा स्त्री. अनुकरण शब्द-विशेष, कड़-कड़ कड वि [दे] क्षीण । मृत, विनष्ट ।
आवाज । कड पुं [कट] गण्ड-स्थल, गाल । तृण । | कडकडिअ वि [कडकडित] जिसने कड़-कड़ चटाई । लकड़ी । बांस । तृण-विशेष । छिला ___ आवाज किया हो वह, जीर्ण । हुआ काष्ठ । ‘च्छेज न [°च्छेद्य] कला- कडकडिर वि कडकडायितु] कड़-कड़ विशेष । °तड न [°तट] कटक का एक | आवाज करनेवाला। भाग । गण्ड-तल । पूयणा स्त्री [पूतना] | कडक्किय न कडक्कित] कड़कड़ आवाज । व्यन्तरी-विशेष ।
कडक्ख पुं [कटाक्ष | कटाक्ष, भाव-युक्त दृष्टि, कड वि [कृत] किया हुआ। रचित । पुन. | आँख का संकेत । सत्ययुग । चार की संख्या । "जुग न [युगकडक्ख सक [कटाक्षय] कटाक्ष करना । सत्य-युग, १७२८००० वर्षों का यह युग |
कडग पुंन [कटक] कड़ा, वलय । यवनिका । होता है। °जुम्म पु [°युग्म] सम राशि
पर्वत का मूल भाग । पर्वत का मध्य भाग । विशेष, चार से भाग देने पर जिसमें कुछ भी
पर्वत की सम भूमि । पर्वत का एक भाग । शेष न बचे एसो राशि । जुम्मकडजुम्म पुं। शिविर, सेना के रहने का स्थान । पुं. देश['युग्मकृतयुग्म] राशि-विशेष । “जुम्मक- |
विशेष । देखो कड़य। लिओय [युग्मकल्योज] राशि-विशेष । |
कडच्छु स्त्री [दे] की, चमची, डोई।। जम्मतआग पु [युग्मत्र्याज] राशि- | कडण न [कदन] मार डालना । नाश विशेष । जम्मदावरजुम्म पुं.[ जुग्मद्वापर- करना । मर्दन । पाप । युद्ध । विह्वलता। युग्म] राशि-विशेष । °जोगि वि [योगिन्] | कडण न [कटन] घर की छत । घर पर छत कृत-क्रिय । गीतार्थ, ज्ञानी। तपस्वी । °वाइ डालना। चटाई आदि से घर के पार्श्व
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२१२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कडणा-कडुच्छु भागों का किया जाता आच्छादन ।
भाग। 'तड न [°तट] कटि-तट । मध्य कडणा स्त्री [कटना] घर का अवयव-विशेष । । भाग । °पट्टय न [°पट्टक] धोतो। °पत्त न कडणी स्त्री [कटनी] मेखला ।
[°पत्र] सर्गादि वृक्ष की पत्ती। पतली कडतला स्त्री [दे] लोहे का एक प्रकार का कमर । °यल न[°तल] कटि-प्रदेश । °ल्ल न हथियार, जो एक धारवाला और वक्र होता [°टीय] देखो कडिल्ल (दे) का दूसरा अर्थ ।
वट्टी स्त्री [ °पट्टी ] कमर का पट्टा, कडत्तरिअ वि [दे] देखो कडतरिअ। कमर-पट्टा। वत्थ न [°वस्त्र] धोती, कडद्दरिअ वि [दे] छिन्न, काटा हुआ। न. कमर में पहनने का कपड़ा। °सुत्त न छिद्रता।
[°सूत्र] कमर का आभूषण, मेखला । हत्थ कडप्प पुं [दे. कटप्र] समूह, कलाप । वस्त्र का | ___पुं [°हस्त] कमर पर रखा हुआ हाथ । एक भाग ।
| कडि वि [कटिन्] चटाईवाला। कडमड पुंन [दे] उद्वेग ।
कडिअ वि [कटित] कट-चटाई से आच्छाकडय न [कटक] ऊख आदि की यष्टि । | दित । कट से संस्कृत । एक दूसरे में मिला कडय देखो कडग लश्कर । पुं. काशी देश हुआ। का एक राजा । गवई स्त्री [वती] राजा | कडिअ वि [दे] प्रोणित । कटक की एक कन्या ।
| कडिखंभ पुं [दे] कमर पर रखा हुआ हाथ, कडयड पुं [कडकड] कड़-कड़ आवाज । | कमर में किया हुआ आघात । कडयडिय वि [दे] परावर्तित, फिराया हुआ। | कडिण पुंन [दे] तृण-विशेष । कडसक्करा स्त्री [दे] बाँस की सलाई। कडित्त देखो कलित्त । कडसार न [कटसार] मुनि का एक उप- कडिभिल्ल न [दे] शरीर के एक भाग में करण, आसन ।
होनेवाला कुष्ठ-विशेष। कडसी स्त्री [दे] श्मशान ।
कडिल्ल वि [दे] छिद्र-रहित । न. कटि-वस्त्र, कडह पंकटभू] वृक्ष-विशेष ।
धोती वगैरह । वन । वि. गहन । आशीर्वाद । कडा स्त्री [दे] कड़ी, सिकड़ो, जंजीर की |
पुं. प्रतीहार । विपक्ष, शत्रु । कटाह। उपलड़ी।
करण-विशेष । कडार न [दे] नारिकेल ।
कडी देखो कडि। कडार पुं. तामड़ा वर्ण, भूरा रंग । वि. कपिल
कडु । पुं [कटुक] कडुआ, तिक्त । वि. वर्णवाला।
कडुअ ) तीता। अनिष्ट । भयंकर । कडाली स्त्री [दे. कटालिका] घोड़े के मुंह पर
__ निष्ठुर । स्त्री. कुटको । बांधने का एक उपकरण ।
कडुअ (शौ) अ [कृत्वा] करके । कडाह पुं [कटाह] लोहे का पात्र, लोहे की | कड़आल पुं[दे] घण्टा, घण्ट । छोटी मछली । बड़ी कड़ाही । वृक्ष-विशेष । पाँजर की हड्डी |
कडुइय वि [कटुकित] कड़आ किया हुआ । शरीर का एक अवयव ।
दूषित। कडाहपल्हत्थिअ न [दे] दोनों पावों को | कडुइया स्त्री [कटुकी] वल्ली-विशेष, कुटकी । घुमाना-फिराना।
कडुच्छय । पुंस्त्री [दे] देखो कडच्छु । कडि स्त्री [कटि] कमर । वृक्षादि का मध्य | कडुच्छु ,
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कडुयावि कणग
२१३
डुयावि [] प्रहृत, जिस पर प्रहार किया गया हो वह । व्यथित, पीड़ित । पराभूत । भारी विपद् में फँसा हुआ । कडूइद (शौ ) वि [ कटूकृत ] कटुक किया हुआ ।
ऋषि । “वित्ति स्त्री [वृत्ति ] भिक्षा | वियाग पुं [ "वितानक] देखो कणगवियाग | संताणय पुं [° संतानक ]
देखो कणग-संताय । द पुं. वैशेषिक मत का प्रवर्तक ऋषि । यण्ण वि [[कर्ण] बिन्दुवाला |
कडेवर न [कलेवर] शरीर 1
कड्ढ सक [कृष्] खींचना । चास करना । रेखा करना । पढ़ना । उच्चारण करना । कड्ढ पुं [कर्ष] आकर्षण ।
कण पुं [क] शब्द, आवाज । कइके पुं [कनकिकेतु] इस नाम का एक
राजा ।
कड्ढण न [कर्षण] खोंचाव | वि. खींचने- कणइपुर न [ कनकपुर ] नगर- विशेष । वाला, आकर्षक । कणइर पुं [कर्णिकार ] कणेर । कणइल्ल पुं [दे] तोता, सुग्गा, सुआ । कई स्त्री [] वल्ली ।
कड्ढाविय वि [कर्षित ] खींचवाया हुआ, बाहर निकलवाया हुआ ।
for a [] बाहर निकला हुआ । कड्ढोकड्ढ न [कर्षापकर्ष ] खींचातान | कढ सक [ कथ् ] क्वाथ करना । उबालना ।
गरम करना ।
कढकढकढेंत वि[कडकडायमान ] कड़कड़
आवाज करता ।
कढि न [ दे] कढ़ी |
कढि स्त्री [दे] कढ़ी, भोजन - विशेष । कठिण वि [कठिन] कठिन, कर्कश, परुष । न. तृण - विशेष । पर्ण |
कढोर वि [कठोर] कठिन, निष्ठुर । पुं. इस नाम का एक राजा ।
कण सक [क्वण] आवाज करना । कण सक [कण्] आवाज करना । कण पुं. लेश । विकीर्ण दाना । वनस्पति- विशेष । पुं. एक म्लेच्छ देश । ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव - विशेष | ओदन । कनिक | बिन्दु | "इअ वि ['वत् ] बिन्दुवाला | कुंडग पुं [° कुण्डक] ओदन की बनी हुई एक भक्ष्य वस्तु । पूपलिया स्त्री [ पूपलिका ] भोजन- विशेष, कणिक (आटा) की बनाई हुई एक खाद्य वस्तु । भवख पुं ['भक्ष] वैशेषिक मत का प्रवर्त्तक एक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कणंगर न [कनङ्गर ] पाषाण का एक प्रकार का हथियार ।
कणकणकण अक [दे] कण-कण आवाज
करना ।
कणकणग पुं [ कनकनक ] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव - विशेष |
कणक्कणिअवि [कणकणित] कण-कण
आवाजवाला ।
कणखल न [दे] उद्यान - विशेष ।
कणग वि [ कानक] सुवर्ण-रस पाया हुआ ( कपड़ा) । 'पट्ट वि. सोने का पट्टावाला । कणग देखो कण ।
कणग [दे] देखो कणय = (दे) ।
कणग पुं [ कनक] ग्रह - विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव - विशेष | रेखा सहित ज्योतिः पिण्ड, जो आकाश से गिरता है । बिन्दु । शलाका । घृतवर द्वीप का अधिपति देव । बिल्व वृक्ष | न. सुवर्ण | कंत वि ['कान्त ] कनक की तरह चमकता । पुं. देव - विशेष । 'कुड न [ " कूट ] पर्वत विशेष का एक शिखर । पुं. स्वर्णमय शिखरवाला पर्वत । 'केउ पुं [°केतु] इस नाम का एक राजा । गिरि पुं. मेरु पर्वत । स्वर्ण- प्रचुर पर्वत । ज्झय पुं [° ध्वज ] इस
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कणगसत्तरि-कणिआरिअ नाम का एक राजा । °पुर न. नगर-विशेष ।। महावर पुं [वलिवरावभासमहावर] प्पभ पुं [प्रभ] देव-विशेष । 'प्पभा स्त्री कनकावलिवरावभास-समुद्र का एक अधिष्ठाता [प्रभा] देवी-विशेष । 'ज्ञाता-धर्मसूत्र' का
देव । वलिवरोभासवर पुं [°ावलिवराव. एक अध्ययन । °फुल्लिअ न [°पुष्पित] जिसमें
भासवर] कनकावलिवरावभास-समुद्र का एक सोने के फूल लगाये गये हों ऐसा वस्त्र ।
अधिष्ठाता देव । °ावली स्त्री. देखो °ावलि °माला स्त्री. एक विद्याधर की पुत्री। एक
का पहला और दूसरा अर्थ । देखो कणय =
कनक । स्वनामख्यात साध्वी । °रह पुं [°रथ] इस नाम का एक राजा । 'लथा स्त्री [°लता] | कणगसत्तरि स्त्री [कनकसप्तति] एक प्राचीन चमरेन्द्र के सोम-नामक लोकपालदेव की एक | जनेतर शास्त्र । अग्रमहिषी। "वियाणग पं [वितानक] कणगा स्त्री [कनका] भीम-नामक राक्षसेन्द्र ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष । °संता- की एक अग्रमहिषी । चमरेन्द्र के सोम-नामक णग पुं [°सन्तानक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक लोकपाल की एक अग्र-महिषी । 'णायाधम्मदेव-विशेष । वलि स्त्री. सुवर्ण की मणियों कहा' सूत्र का एक अध्ययन । चतुरिन्द्रिय से बना आभूषण । तप-विशेष । पुं. द्वीप- | जीव-विशेष । विशेष । समुद्र-विशेष। वलिपविभत्ति | कणगुत्तम पुं [कनकोत्तम] इस नाम का एक स्त्री [विलिप्रविभक्ति] नाट्य का एक | देव। प्रकार । वलिभद्द पुं [°ावलिभद्र] कनका- कणय पुं [दे] फूलों को इकट्ठा करना, बाण । वलि द्वीप का एक अधिष्ठायक देव । °वलि- | कणय पुन [कनक] एक देव-विमान । महाभद्द पुं [°वलिमहाभद्र] कनकावलिवर कणय देखो कणग = कनक । पुं. राजा जनक नामक समुद्र का एक अधिष्ठायक देव । के एक भाई का नाम । रावण का इस नाम वलिमहावर पुं. कनकावलिवर नामक
का सुभट । धतुरा। वृक्ष-विशेष । न. छन्दसमुद्र का एक अधिष्ठाता देव । वलिवर . | विशेष । पव्वय पं पर्वता देखो का इस नाम का एक द्वीप । इस नाम का एक गिरि। "मय वि. सुवर्ण का बना हुआ । समुद्र। कनकावलिवर समुद्र का अधिष्ठाता | भि न. विद्याधरों का एक नगर । ली देव-विशेष । वलिवरभद्द [ [वलिवर- स्त्री. घर का एक भाग । वली स्त्री. देखो भद्र] कनकावलिवर नामक द्वीप का एक कणगावली । एक राज-पत्नी । अधिपति देव। वलिबरमहाभद्द पुं। कणयंदो स्त्री (दे] वृक्ष-विशेष, पाउरी, [विलिवरमहाभद्र] कनकावलिवर नामक | पाढल । द्वीप का एक अधिष्ठाता देव । वलिवरा- | कणविआणय पुं [कणवितानक] देखो भास पुं [वलिवरावभास| इस नाम का कणगवियाणग। एक द्वीप । इस नाम का एक समुद्र । वलि- | कणवी स्त्री [दे] कन्या । वरोभासभद्द पुं [वलिवरावभासभद्र] कणवीर पुं करवीर] कनेर । न. कणेर का कनकावलिवरावभास द्वीप का एक अधिष्ठाता फल । देव । वलिवरोभासमहाभद्द पुं [वलिव- कणि पुंस्त्री [दे] स्फुरण, स्फूति । रावभासमहाभद्र] कनकावलिवरावभास द्वीप | कणिआर देखो कण्णिआर।। का एक अधिष्ठाता देव । वलिवरोभास- | कणिआरिअ वि [दे] कानी आँख से जो देखा
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कणिका-कण्णस्सरिय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२१५
गया हो वह । न. कानी नजर से देखना। इस नाम का एक राजा, युधिष्ठिर का बड़ा कणिका स्त्री रोटी के लिए पानी से भिजाया भाई। काना, वस्तु के छोर का एक अंश । हुआ आटा।
उर, ऊर न [पूर] कान का आभूषण । कणिक्क वि. मत्स्य-विशेष ।
°गइ स्त्री [°गति] मेरु-सम्बन्धी एक डारी । कणिक्का देखो कणिका ।
°जयसिंहदेव पुं. गुजरात देश का बारहवीं कणि? वि [कनिष्ठ] छोटा, लघु । निकृष्ट, शताब्दी का एक यशस्वी राजा । °देव पुं. जघन्य।
विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का सौराष्ट्र-देशीय कणिय न [कणित] आर्त स्वर । आवाज, एक राजा। °धार पुं. नाविक, निर्यामक । ध्वनि।
°पाउरण पुं [प्रावरण] इस नाम का एक कणिय' ) देखो कणिका। कणिका, अन्तर्वीप। उस अन्तर्वीप का निवासी । कणिया । चावल का टुकड़ा। कुंडय °पावरण देखो °पाउरण। °पीढ न [°पीठ] देखो कण-कुंडग।
कान का एक प्रकार का आभूषण । 'पूर कणिया स्त्री [कणिता] वीणा-विशेष । देखो °ऊर। °रवा स्त्री. नदी-विशेष । कणिल्ल न [कनिल्य] नक्षत्र विशेष का गोत्र । वालिया स्त्री [°वालिका] कान के ऊपर कणिल्लिका स्त्री [कनिष्ठिका] छोटी अंगुली । भाग में पहना जाता एक प्रकार का आभूषण। कणिस न [कणिश] धान्य का अग्र-भाग। °वेहणग न [°वेधनक] उत्सव-विशेष, कर्णकणिस न दे] किंशारु, सस्य-शूक, सस्य का वेधोत्सव । सक्कुली स्त्री [°शष्कुली] कान तीक्ष्ण अग्र भाग।
का छिद्र । कान की लम्बाई । सोहण न कणीअ । वि [कनीयस्] छोटा, लघु । [°शोधन] कान का मैल निकालने का एक कणीअस )
उपकरण । °हार पुं [ धार] देखो °धार । कणीणिगा स्त्री [कनीनिका] आँख का तारा। देखो कन्न। छोटी उंगली।
कण्णधार देखो कण्णिआर । कणीर देखो कणेर।
कण्ण उज्ज पुं [कान्यकुब्ज] देश-विशेष । न. कणुय न [कणुक] त्वग् वगैरह का अवयव । उस देश का प्रधान नगर । कणूया देखो कणिया = कणिका ।
कण्णबाल न [दे] कुण्डल ।
कण्णगा देखो कन्नगा। कणेड्ढिआ स्त्री [दे] गुञ्जा, घुघची। कणेर देखो कण्णिआर ।
कण्णच्छुरी स्त्री [दे] गृह-गोधा, छिपकली। कणेरु । स्त्री [करेणु] हस्तिनी । कण्णडय (अप) देखो कण्ण । कणेरुया
कण्णल (अप) वि [कर्णाट] कर्णाटक । वि. कणोवअ न [दे] गरम किया हुआ जल, तेल | उस देश का निवासी। वगैरह।
कण्णलोयण पुंन [कर्णलोचन] देखो कण्णिकण्ण पुं [कन्या] कन्या-राशि ।
लायण। कण्ण पुं [कण्व] इस नाम का एक परिव्राजक, कण्णल्ल पुंन [कर्णल] ऊपर देखो । ऋषि-विशेष ।
कण्णस वि [कन्यस] अधम, जघन्य । कण्ण पुं [कणं] कोटि भाग, अग्रांश । एक | कण्णस्सरिय वि [दे] कानी नजर से देखा म्लेच्छ-जाति । पुन. कान । पुं. अङ्ग देश का । हुआ । न. कानी नजर से देखना ।
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कण्णा स्त्री [कन्या ] ज्योतिष शास्त्र - प्रसिद्ध एक राशि । कुमारी । 'चोलय न [° चोलक ] धान्यविशेष, जवनाल । णय न [नय ] चोल देश का एक प्रधान नगर । °लिय न [°लीक] कन्या के विषय में बोला जाता झूठ । कण्णाआस न [दे] कान का आभूषण । कण्णाधण न [ दे] कुण्डल |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कण्णा पुं [कर्णाट] देश - विशेष । वि. उस देश में उत्पन्न, वहाँ का निवासी । कण्णास पुं [दे] पर्यन्त, अन्त-भाग ।
for पुं [कर्ण] एक नरक-स्थान । कण्णिआ स्त्री [कर्णिका ] पद्म-उदर, कमल का बीज - कोष । कोण, अस्त्र । शालि वगैरह के बीज का मुख-मूल, तुष- मुख । कण्णिआर पुं [कण्णिकार] कनेर का गाछ । गोशालक का एक भक्त । न. कनेर का फूल । कण्णिलायण न [ कणिलायन] नक्षत्र विशेष का एक गोत्र ।
कण्णीरह देखो कन्नीरह । कण्णुप्पल न [कर्णोत्पल ] कान का आभूषणविशेष |
कणेर देखो कण्णिआर ।
कण्णोच्छडिआ स्त्री [दे] दूसरे की बात गुपचुप सुननेवाली स्त्री ।
कण्णोढ ) स्त्री [दे] स्त्री को पहनने का }
आ
कण्णोढत्ती [दे] देखो कण्णोच्छडिआ । कण्णोप्पल देखो कण्णुप्पल
कण्णोल्ली स्त्री [दे] चञ्च, पक्षी का ठोर, ठोंठ । अवतंस, शेखर, भूषण - विशेष । कण्णोवगण्णिआ स्त्री [कर्णोपकणिका] कर्णा
कर्णी, कानाकानी ।
कोरिअ [] देखो कण्णस्सरिय | कण्ह पुं [कृष्ण] कन्द- विशेष | श्रीकृष्ण । पाँचवाँ वासुदेव और बलदेव के पूर्वजन्म के गुरु का नाम । देशावकाशिक व्रत को अति
कण्णा - कण्हा
चरित करनेवाला एक उपासक । विक्रम की तृतीय शताब्दी का एक प्रसिद्ध जैनाचार्य, दिगम्बर जैन मत के प्रवर्तक शिवभूति मुनि के गुरु । काला वर्ण । इस नाम का एक परिव्राजक, तापस । वि श्याम वर्ण । 'ओराल पुं. वनस्पति- विशेष | कंद पुं [ कन्द] वनस्पति- विशेष, कन्द- विशेष | कण्णयार पुं [कर्णिकार ] काली कनेर का गाछ । " कुमार पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र । 'गोमी स्त्री ['गोमिन् ] काला शृगाल | 'णाम न [नामन् ] कर्म-विशेष, जिसके उदय से जीव का शरीर काला होता है । पक्खिय वि [ पाक्षिक ] क्रूर कर्म करनेवाला । बहुत काल तक संसार में भ्रमण करनेवाला (जीव ) । बंधुजीव पुं [' बन्धुजीव] वृक्ष - विशेष, श्याम पुष्पवाला दुपहरिया | 'भूम, भोम पुं [भूम ] काली जमीन । 'राइ, राई स्त्री [° राजि, 'जी] काली रेखा | एक इन्द्राणी, ईशानेन्द्र की एक अग्र महिषी । ' ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन-परिच्छेद । रिसि पुं [ऋषि] इस नाम का एक ऋषि, जिसका जन्म शंखावती नगरी में हुआ था । लेस, लेस्स वि [°लेश्य] कृष्ण-लेग्यावाला । 'लेसा, 'लेस्सा स्त्री [ 'लेश्या ] जीव का अति निकृष्ट मन:परिणाम, जघन्य - वृत्ति । वडिसय, 'वडेंसय न [वतंसक ] एक देव- विमान । वल्लि, 'वल्ली स्त्री. वल्ली-विशेष, नागदमनी लता । 'सप्प [सर्प ] काला साँप। राहु । सह न जैन साधुओं का एक कुल 1.
कण्हई अ कण्हुइ ।
[कुतश्चित् ]
किसी से। देखो
कण्हा स्त्री [कृष्णा ] एक इन्द्राणी, ईशानेन्द्र की एक अग्र महिषी । एक अन्तकृत् स्त्री । द्रौपदी । राजा श्रेणिक की एक रानी । ब्रह्म देश की एक नदी ।
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कण्हुइ-कन्नोलो संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
२१७ कण्हुइ , अ [कचित्] क्वचित्, कहीं भी। कत्थ अ [कुतः] कहाँ से ? कण्हुई । कहाँ से।
कत्थ अ [क, कुत्र] कहाँ ? °इ अ [°चित्] कतवार पुं[दे] कूड़ा।
कहीं, किसी जगह । कति देखो कई = कति ।
कत्थ वि [कथ्य] कथनीय । न. काव्य का एक कतु देखो कउ = कतु ।
भेद । वनस्पति-विशेष । कत्त सक [कृत्] छेदना । कतरना । कातना। कत्थभाणी स्त्री [कस्तभानी] पानी में होनेकत्त वि [क्लप्त] निर्मित ।
वाली वनस्पति-विशेष । कत्त न [दे] कलत्र स्त्री।
कत्थूरिया । स्त्री कस्तूरी] हरिण की नाभि कत्तणया स्त्री [कर्तनता] लवन, कतराई । | कत्थूरी में होनेवाली सुगन्धित वस्तु । कत्तर पुं [दे] कतवार, कूड़ा।
कथ वि [दे] उपरत, मृत । क्षीण । कत्तरिअ वि [कृत्त, कत्तित] कतरा हुआ, | कद (मा) देखो कड = कृत । काटा हुआ, लून ।
कदग देखो कयग। कत्तरी स्त्री [कर्तरी] कैंची।
कदण देखो कडण = कदन । कत्तवीरिअ पुं [कात्तवीर्य] नृप-विशेष । कदली देखो कयलो। कत्तव्व वि [कर्तव्य] करने योग्य । न. काम । | कदु देखो कउ = ऋतु । कत्ता स्त्री [दे] अन्धिका-द्यूत की कपदिका, कदुअ (शौ) अ [कृत्वा] करके । कौड़ी।
कदुइया स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, कद्दू । कत्ति स्त्री [कृत्ति] चर्म ।
कदुशण (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम । कत्ति वि [क] करनेवाला ।
कद्दम पुन [कर्दम] कीचड़ । °ल वि. कत्तिकेअ पुं [कात्तिकेय] महादेव का एक | __ कीचड़वाला। पुत्र ।
कद्दम पुं [कर्दम] कीच। देव-विशेष, एक कत्तिगी स्त्री [कात्तिकी] कात्तिक मास की | नागराज । पूर्णिमा ।
कद्दमिअ पुं [दे] महिष । कत्तिम वि [कृत्रिम] बनावटी ।
कन्न देखो कण्ण = कर्ण । अयंस पुं[°ावतंस] कत्तिय पुं [कात्तिक] कार्तिक मास । इस | कान का आभूषण । नाम का एक श्रेष्ठी। भरत क्षेत्र के एक भावी | कन्न देखो कण्ण । °एव देखो कण्णदेव । तीर्थङ्कर के पूर्व भव का नाम ।
°वट्टि, °ावट्टि स्त्री [°वृत्ति] किनारा, अग्न कत्तिया स्त्री [कृत्तिका] नक्षत्र-विशेष । भाग। कत्तिया स्त्री [कत्तिका] कतरनी । कन्नगा स्त्री [कन्यका] कन्या । कत्तिया स्त्री [कात्तिकी] कात्तिक मास की | कन्नस वि [कनीयस्] कनिष्ठ, जघन्य । पूर्णिमा या अमावास्या ।
कन्नारिय वि [दे] विभूषित । कत्तिवविय वि [दे] कृत्रिम, दिखाऊ । कन्नीरह पुं [कर्णीरथ] एक प्रकार की कत्तु वि [कर्तृ] करनेवाला ।
शिविका, धनाढ्य का एक प्रकार का वाहन । कत्तो अ [कुतः] कहाँ से, किससे ? °च्चय वि कन्नुल्लड (अप) पुं [कर्ण] श्रवणेन्द्रिय । [°त्य] कहाँ से उत्पन्न ?
कन्नेरय देखो कण्णिआर। कत्थ सक [ कत्थ् ] श्लाघा करना । कन्नोली [दे] देखो कण्णोल्ली।
पिलाऊ।
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२१८
कपंध देखो कमन्ध | कपिंजल पुं. चातक । गौरा पक्षी । कपूर देखो कप्पूर |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कप्प अक [कृप्] समर्थ होना । कल्पना, में आना । सक. काटना ।
काम
कप्प सक [ कल्पय् ] करना, बनाना । वर्णन
करना । कल्पना करना ।
कप्प वि [ कल्प्य ] ग्रहण-योग्य |
कप्प पुं [कल्प ] प्रक्षालन | आचार, व्यवहार । दशाश्रुतस्कन्धसूत्र | कल्पसूत्र | व्यवहारसूत्र | वि. उचित | ° काल पुं. प्रभूत काल | 'धर वि. कल्प तथा व्यवहार सूत्र का जान
कार ।
कप्प पुं [कल्प ] काल- विशेष, देवों के दो हजार युग परिमित समय । शास्त्रोक्त विधि, अनुष्ठान | शास्त्र - विशेष । कम्बल - प्रमुख उपकरण | देवों का स्थान, बारह देवलोक । बारह देवलोक । निवासी देव, वैमानिक देव | कल्पवृक्ष | शस्त्र - विशेष | अधिवास स्थान । राजा नन्द का एक मन्त्री | वि. समर्थ, शक्तिमान् । सदृश । °ट्ठ पुं [°स्थ] बालक । "ठ्ठि स्त्री [स्थिति] साधुओं का शास्त्रोक्त अनुष्ठान | °ट्टिया स्त्री [स्थिका ] बालिका | तरुण स्त्री । "ट्ठी स्त्री [स्था ] लड़की | कुल-वधू | 'तरु पुं. कल्पवृक्ष । 'त्थी स्त्री ['स्त्री] देवी । दुमदुम [म] कल्प वृक्ष | 'पायव पुं [° पादप] कल्पवृक्ष | 'पाहुड न[ प्राभृत] जैन ग्रन्थ-विशेष | 'रुक्ख पुं | 'वृक्ष ] कल्प वृक्ष | ' वडिसय न [वितंसक) विमान विशेष । विमानवासी देव - विशेष । ' वडिसया स्त्री [rai सिका] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें कल्पावतंसक देव- विमानों का वर्णन है । विवि पुं [विपिन्] कल्प वृक्ष । 'साल पुं ['शाल ] कल्प वृक्ष । साहि पुं [शाखिन् ] कल्प वृक्ष | 'सुत न [सूत्र ] श्रीभद्रबाहु स्वामि-विरचित एक जैन ग्रन्थ ।
कपंध- कप्पोवग
सुय [ श्रुत] ज्ञान - विशेष | ग्रन्थ - विशेष | अपुं [ती] उत्तम जाति के देवविशेष, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के निवासी देव | ग पुं [क] विधि को जाननेवाला । य पुं.
चुङ्गी, राज-देय
भाग ।
कप्पंत पुं [कल्पान्त ] प्रलय-काल । कप्पड पुं [कर्पट] वस्त्र । जीर्ण वस्त्र,
कार कपड़ा ।
कपडि
मायावी ।
लकुटा
वि [काटिक] भिक्षुक, कपटी,
कप्पणा स्त्री [कल्पना ] रचना, निर्माण । प्ररूपण निरूपण । कल्पना विकल्प | कप्पणी स्त्री [कल्पनी] कैंची ।
कप्पर पुं [कर्पर] खप्पर, सिर की खोपड़ी । देखो कुप्पर = कर्पर । परिअ वि [दे] दारित |
कप्पास पुं [ कार्पास] कपास, रुई, ऊन 1 कप्पासत्थि पुं [ कार्पासास्थि] त्रीन्दिय जीवविशेष, क्षुद्र जन्तु विशेष |
कप्पासिअ वि [कार्पासिक ] कपास बेचनेवाला | न. जैनेतर शास्त्र - विशेष । कपास का बना हुआ, सूती वगैरह । कप्पासी स्त्री [कर्पासी] रुई का गाछ । कपिआकप्पिअन [कल्पाकल्प ] एक जैन
शास्त्र ।
कप्पिय वि [कल्पित ] रचित, निर्मित । स्थापित, समीप में रखा हुआ । कल्पनानिर्मित, विकल्पित । व्यवस्थित | छिन्न
काटा हुआ ।
कप्पिय वि [कल्पिक] अनुमत, अनिषिद्ध | योग्य । पुं. गीतार्थ, ज्ञानी साधु । कप्पिया स्त्री [कल्पिका ] जैन ग्रन्थ- विशेष, एक उपाङ्ग-ग्रन्थ | कपूर [कर्पूर] कपूर ।
कप्पोवग पुं [कल्पोपक] कल्प-युक्त । बारह
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२१९
कप्पोववण्ण-कमल
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष देव लोक-वासी देव ।
स्थालो । बलदेव ! मुख । कप्पोववण्ण पुं [कल्पोपपन्न] ऊपर देखो। कमढ पु [कमठ तापस-विशेष, जिसको कप्पोववत्तिआ स्त्री [कल्पोपपत्तिका] देव- भगवान पार्श्वनाथ ने वाद में जीता था और लोक-विशेष में उत्पत्ति ।
जो मरकर दैत्य हुआ था । कच्छप । बाँस । कप्फल न कटफल] इस नाम की एक वन- शल्लकी वृक्ष । न. मैल । साध्वियों का एक स्पति, कायफल ।
पात्र । साध्वियों को पहनने का एक वस्त्र । कप्फाड देखो कवाड - कपाट ।
कमण न [क्रमण] गति, चाल । प्रवृत्ति । कप्पाड [दे] देखो कफाड ।
कमणिया स्त्री [क्रमणिका] जूता । कफ पुं. शरीर-स्थित धातु-विशेष । कमणिल्ल वि [क्रमणीवत्] जूतावाला, जूता कफाड पुं [दे] गुफा ।
पहना हुआ। कबंध (शौ) देखो कमंध ।
कमणी स्त्री [क्रमण जता । कब्बट्टी स्त्री [दे] छोटी लड़की ।
कमणी स्त्री [दे] सी।। कब्बड पुंन [कर्बट] कुत्सित शहर । पुं. ग्रह- |
कमणीय वि कमनीय] सुन्दर, मनोहर । विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष । वि. कुन- कमल पुं दे] स्थाली । पटह । मुंह । मृग । गर का निवासी।
कलह । कब्बर देखो कब्बुर।
कमल पुंन. एक देव-विमान । न. पद्म । कमकब्बाडभयय पुं [दे] ठीका पर जमीन खोदने
लाख्य इन्द्राणी का सिंहासन । संख्या-विशेष, का काम करनेवाला मजदूर ।
'कमलांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो कब्बुर । वि [कर्बुर] चितकबरा । पुं. संख्या लब्ध हो वह । छन्द-विशेष । पुं. कब्बुरय । ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव
कमलाख्य इन्द्राणी के पूर्वजन्म का पिता । विशेष ।
श्रेष्टिविशेष । पिंग 3-प्रसिद्ध एक गण, अन्त्य कभ (अप) देखो कफ ।
अक्षर जिसमें गुरु हो वह गण । एक जाति कभल्ल न [दे] कपाल ।
का चावल, कलम । °क्ख पुं [°क्ष] इस कम सक [क्रम्] चलना, पाँव उठाना । नाम का एक यक्ष । जय न. विद्याधरों का उल्लंघन करना। अक. फैलना, पसरना। एक नगर । °जोणि पुं [योनि] विधाता । होना।
°णअण पुं [°नयन | विष्णु, नारायण । °पुर कम सक [कम्] वाञ्छना ।
न. विद्याधरों का क नगर । °प्पभा स्त्री कम अक [क्रम्] युक्त होना, घटना । अधिक [°प्रभा] काल-नामक पिशाचेन्द्र की अग्ररहना।
महिषी । 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अध्यकम पुं [क्रम्] पाँव । परम्परा । परिपाटी । यन । 'बन्धु पुं ["बन्धु] सूर्य । इस नाम का
मर्यादा, सीमा । न्याय, फैसला । नियम ।। एक राजा। °माला स्त्री. पोतनपुर नगर के कम पुं [क्लम] थकावट ।
राजा आनन्द की। क रानी, भगवान् अजितकमंडलु पुन. संन्यासियों का एक मिट्टी या नाथ की दादी। 'रय पुं[ "रजस् ] कमल काष्ठ का पात्र ।
का पराग । वडिस य न [°ावतंसक] कमला कमंध पुंन [कबन्ध] मस्तकहीन शरीर। नामक इन्द्राणी का प्रासाद । °सिरी स्त्री कमढ पुं दे] दही की कलशी। पिठर, [श्री कमला-नामक इन्द्राणी की पूर्व जन्म
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२२०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कमलंग-कम्म की माता का नाम । °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] [किल्विष] खराब काम करनेवाला । इस नाम की एक रानी। °सेणा स्त्री क्खंध पुं [°स्कन्ध]कर्म-पुद्गलों का पिण्ड । [°सेना] एक राज-पुत्री। अर, अगर पुं . गर देखो कर। °गार पु [°कार] [°कर] कमलों का समूह । सरोवर, ह्रद कारीगर, शिल्पी । देखो कर। °जोग पुं वगैरह जलाशय । पोड, मेल पुं: ["योग] शास्त्रोक्त अनुष्ठान । 'ट्ठाण न [°पीड] भरत चक्रवर्ती का अश्व-रत्न । [°स्थान] कारखाना । टिइ स्त्री[°स्थिति] सण पुं[°ासन] ब्रह्मा ।
कर्म-पुद्गलों का अवस्थान-समय । वि. संसारी कमलंग न [कमलाङ्ग] संख्या-विशेष, चौरासी जीव । °णिसेग पु [°निषेक] कर्म-पुद्गलों लाख महापद की संख्या ।
की रचना-विशेष । °धारय पु [°धारय] कमला स्त्री [दे] हरिणी ।
व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास । °परिसाडणा कमला स्त्री. लक्ष्मी । रावण की एक पत्नी।। स्त्री [°परिशाटना] कर्म-पुद्गलों का जीवकाल नामक पिशाचेन्द्र की एक अग्र-महिषी, प्रदेशों से पृथक्करण । 'पुरिस पु ["पुरुष] इन्द्राणी-विशेष । 'ज्ञाताधर्मकथा' सत्र का कर्म-प्रधान पुरुष, कारीगर, शिल्पी । महारम्भ एक अध्ययन । छन्द-विशेष । °अर पुं [कर] | करनेवाले वासुदेव वगैरह राजा लोग । धनाढ्य ।
प्पवाय न [प्रवाद] जैन ग्रन्थांश-विशेष, कमलिणी स्त्री [कमलिनी] पद्मिनी, कमल | आठवाँ पूर्व । "बंध पु[°बन्ध] कर्म-पुद्गलों का गाछ।
का आत्मा में लगना, कर्मों से आत्मा का कमलुब्भव पुं [कमलोद्भव] ब्रह्मा । बन्धन । भूभग वि [ भूमिक] कर्म भूमि में कमव । अक [स्वप्] सो जाना। उत्पन्न । भूमि स्त्री. कर्म-प्रधान भूमि, भरत
क्षेत्र वगैरह। भूमिग देखो भूमग । कमसो अ [क्रमशः] क्रम से. एक-एक करके । °भूमिय वि [भूमिज] कर्म-भूमि में उत्पन्न । कमिअ वि [दे] पास आया हुआ ।
°मास पुं. श्रावण मास। °मासग पु[°माषक] कमेलग, पुंस्त्री [क्रमेलक ऊँट ।
मास-विशेष, पांच गुञ्जा, पाँच रत्ती । °य कमेलय
वि [°ज] कर्म से उत्पन्न होनेवाला। कर्मकम्म सक [कृ] क्षौर-कर्म करना ।
पुद्गलों का बना हुआ कार्मण-शरीर । कम्म सक [भुज] भोजन करना।
'या स्त्री [°जा] अभ्यास से उत्पन्न होनेवाली कम्म देखो कम % कम् ।
बुद्धि, अनुभव । °लेस्सा स्त्री ["लेश्या] कर्म कम्म पुंन [कर्मन्] जीव द्वारा ग्रहण किया | द्वारा होनेवाला जीव का परिणाम । °वग्गणा जाता अत्यन्त सूक्ष्म पुद्गल । काम, क्रिया.. स्त्री ["वर्गणा] कर्मरूप में परिणत होनेवाला करनी, व्यापार । जो किया जाय वह। पुद्गल-समूह । °वाइ वि [°वादिन] भाग्य व्याकरण-प्रसिद्ध कारक-विशेष । वह स्थान, को ही सब कुछ माननेवाला । °विवाग पुं जहाँ पर चूना वगैरह पकाया जाता है। .. [°विपाक] कर्म-परिणाम, कर्म-फल । कर्मभाग्य। कार्मण-शरीर। कार्मण-शरीर नामकर्म, विपाक का प्रतिपादक ग्रन्थ । °संवच्छर पुं कर्मविशेष । °कर वि. चाकर । देखो °गार। [°संवत्सर] लौकिक वर्ष । 'साला स्त्री °करण न. कर्म-विषयक बन्धन, जीव-पराक्रम- [°शाला] कारखाना। कुम्भकार का घटादि विशेष । °कार वि. नौकर । किब्बिस वि बनाने का स्थान। सिद्ध पुं.कारीगर, शिल्पी ।
कमवस
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कम्म-कये संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२२१ जीव कारीगर । कारीगरी का कोई कम्मार वि [कर्मकार] नौकर । कारीगर, भी काम बतलाकर भिक्षादि प्राप्त करने- शिल्पी । वाला साधु । °ादाण न [Tदान] जिससे कम्मारिया स्त्री [कर्मकारिका] स्त्री-नौकर, भारी पाप हो ऐसा व्यापार । °ायरिय पुं दासी । [[य] निर्दोष व्यापार करनेवाला । °वाइ कम्मि वि [कमिन्] कर्म करनेवाला, देखो वाइ।
अभ्यासी, पाप कर्म करनेवाला। कम्म वि [कार्मण] कर्म-सम्बन्धी, कर्मजन्य, कम्मिया स्त्री [कमिका, कामिका] अभ्यास कर्म-निर्मित, कर्म-मय । न. कर्म-पुद्गलों का से उत्पन्न होनेवाली बुद्धि । अवशिष्ट कर्म । ही बना हुआ एक अत्यन्त सूक्ष्म शरीर, जो कम्हल न [कश्मल] पाप । भवान्तर में भी आत्मा के साथ ही रहता; कम्हा अ [कस्मात क्यों, किस कारण से । है। कर्म-विशेष, कार्मण-शरीर का हेतु-भूत
। कम्हार देखो कभार । °ज न. केसर, कुंकुम । कर्म । कर्मण-शरीर का एक व्यापार ।
कम्हिअ पुं [दे] माली । कम्मइय न [कर्मचित, कार्मण] ऊपर देखो।
कम्हीर देखो कंभार । कम्मत पुं [दे. कर्मान्त] कर्म-बन्धन का
कय पुकच] केश। कारण । कर्मस्थान, कारखाना ।
कय पुं [क्रय] खरीदना। कम्भंत वि [कुर्वत्] हजामत करता हुआ ।
कय देखो कड = कृत । °उण्ण वि [ पुण्य] नापित । °साला स्त्री [शाला] जहाँ पर
पुण्यशाली, भाग्यशाली । °क देखो °ग । उत्तरा-बाल बनाने का छुरा आदि सजाया
°कज्ज वि [°काय] कृतार्थ, सफल-मनोरथ । जाता हो वह स्थान ।
करण वि. अभ्यासी, कृताभ्यास । °किच्च कम्मक्कर देखो कम्म-कर।।
वि [कृत्य] सफल-मनोरथ । °ग वि [क] कम्मग न [कर्मक, कार्मक, कार्मण] देखो
अपनी उत्पत्ति में दूसरे की अपेक्षा करने कम्म = कार्मण ।
वाला, प्रयत्न-जन्य । पुं. दास-विशेष, कम्मण न [कामण] कर्म-मय शरीर । औषध,
गुलाम । न. सुवर्ण । ग्घ वि [°न] मन्त्र आदि के द्वारा मोहन, वशीकरण,
कृतघ्न । °जाणुअ वि [°ज्ञायक] कृतज्ञ । उच्चाटन आदि कर्म । °गारि वि [°कारिन्]
°ण, °ण्णु वि ["ज्ञ] किये हुये उपकार की कार्मण करनेवाला । जोय पुं [°योग]
कदर करनेवाला । °ण्णुया स्त्री [ज्ञता] कार्मण-प्रयोग।
एहसानमन्दी । 'त्थ वि [°ार्थ] कृतकृत्य । कम्मण न [भोजन] भोजन ।
'नासि वि [नाशिन्] कृतघ्न । कम्मय देखो कम्मग।
पंजलि वि [प्राञ्जलि] नमस्कार के लिए कम्मव सक [उप + भुज्] उपभोग करना। जिसने हाथ ऊँचा किया हो वह । पडिकइ कम्मवण न [उपभोग] उपभोग, काम में । स्त्री [ प्रतिकृति] प्रत्युपकार, विनय-विशेष । लाना।
°पडिकइया स्त्री [प्रतिकृतिता] प्रत्युपकार । कम्मस वि [कल्मष] मलिन । न. पाप। विनय का एक भेद । °बलिकम्म वि [°बलि. कम्मा स्त्री [कर्मन्] क्रिया, व्यापार । कर्मन्] जिसने देवता की पूजा की है वह । कम्मार पुं [कर्मार] लोहार, लोहकार। मंगला स्त्री [ मङ्गला] इस नाम की एक ग्राम-विशेष ।
नगरी । °माल वि [°माल] जिसने माला
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२२२
मटका ।
नाई हो वह । पुं. वृक्ष - विशेष, कनेर का गाछ । तमिस्रा नामक गुफा का अधिष्ठायक देव | लक्खण वि [लक्षण] जिसने अपने शरीर-चिन्ह को सफल किया हो वह । "ववि [[वत् ] जिसने किया हो वह । "वणमालपिय पुं [ वनमालप्रिय ) इस नाम का एक यक्ष । वम्म पुं. ['वर्मन् ] नृप-विशेष, भगवान् विमलनाथ का पिता । ' वीरिव पुं [वीर्य ] कार्तवीर्य के पिता का नाम ।
कयलि, °ली स्त्री [कदलि, "ली] केला का गाछ । समागम पुं. इस नाम का एक गाँव । 'हर न [गृह] कदली-स्तम्भ से बनाया हुआ घर ।
कयल्लय देखो कय = कृत ।
कयं अ [कृतम्] अलम्, बस ।
कयवर पुं [दे] कूड़ा, मैला, विष्ठा ।
कयंगला स्त्री [कृतङ्गला ] श्रावस्ती नगरी के कयवरुज्झिया स्त्री [दे. कचवरोज्झिका ]
समीप की एक नगरी ।
कूड़ा साफ करनेवाली दासी । कयवाउ पुं [कृकवाकु] कुकड़ा, मुर्गा । कयवाय पुं [कृकवाक] कुक्कुट | कयसण न [कदशन] खराब भोजन । कयसेहर पुं [दे] मुर्गा |
कया अ [कदा] कब, किस समय ?
काइ अ [ कदापि ] कभी भी, किसी समय भी । कयाइं अ [कदाचित् ] किसी समय,
कभी । वितर्क द्योतक अव्यय ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कयंत पुं [कृतान्त ] यम, मृत्यु | शास्त्र, सिद्धान्त । रावण का इस नाम का एक सुभट । 'मुह पुं [°मुख] रामचन्द्र के एक सेनापति का नाम । "वयण पुं [ "वदन] राम का एक सेनापति ।
कसंध देखो कमंध ।
कब देखो कलंब |
कयंब
[कदम्ब] समूह |
कबिय वि[कदम्बित ] अलंकृत ।
कयंबुअ देखो कलंबुअ ।
कवि [कृत ] प्रयत्न - जन्य | कयग वि [क्रायक] खरीदनेवाला ।
कयग पुं [कतक] वृक्ष- विशेष निर्मली । न. कतक - फल, निर्मली - फल, पायपसारी । यज्जवि [कदर्य ] कंजूस ।
ड्ड पुं [पदन्] इस नाम का एक यश्न देवता ।
कयण न [कदन] हिंसा, मार डालना | कत्थ सक [कदर्थय् ] हैरान करना, पीड़ा
करना ।
कयन्न वि [ कदन्न ] खराब अन्न । कवि [कतम ] बहुत में से कौन ?
न. करीर का फल ।
कयल पुं [कदल ] केला का गाछ । न. केला । कयल न [दे] अलिञ्जर, बड़ा गगरा, झंझर,
कयं - करअरी
क्याइ
कयाई
कयाण न [क्रयाणक] बेचने योग्य वस्तु, करियाना ।
कयार पुं [दे] कूड़ा |
कवि देखो कयाइ = कदापि । योग पुं. बहुरूपिया ।
कर सक [कृ] करना, बनाना ।
करअडी
कर वि [तर] दो में से कौन ? कयर पुं [क्रकर] वृक्ष-विशेष, करीर, करील । करअरी
कर पुं. एक महाग्रह | हाथ | महसूल । किरण | हाथी की सूंड । करका, शिला-वृष्टि, ओला । ह पुं [ग्रह ] हाथ से ग्रहण करना । शादी | य पुं [ज] नख । रुह पुंन [" कररुह्] नख । पुं. नृप - विशेष । लाघव न कला-विशेष, हस्तलाघव । वंदण न [वन्दन] वन्दन का एक दोष ।
स्त्री [दे ] मोटा कपड़ा ।
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करआ-करमरी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
२२३ करआ स्त्री [करका] ओला ।
करच्छोडिया स्त्री दे] ताली, ताल । करइल्ली स्त्री [दे] सूखा पेड़।
करट्ट पुं [दे] अपवित्र अन्न को खानेवाला करंक पुं [दे. करङ्क] भिक्षा-पात्र । अशोक
__ ब्राह्मण । वृक्ष ।
करड पुंकरट] कौआ । हाथी का गण्डकरंक पुंन. हड्डी। अस्थि-पञ्जर । पानदान । __ स्थल । वाद्य-विशेष । कुसुम्भ-वृक्ष । करीरहड्डियों का ढेर ।
वृक्ष । गिरगिट, भरट । नास्तिक । श्राद्धकरंज सक [भञ्ज्] तोड़ना, फोड़ना । विशेष । करंज पुं. वृक्ष-विशेष, करिञ्जा।
करड पुंदे] व्याघ्र, शेर । वि. कबरा । करंज पुंदे] सूखी त्वचा।
करडा स्त्री (दे] लरवा---एक प्रकार का करञ्ज करंड पुंन. वंशाकार हड्डी।
वक्ष । पक्षि-विशेष, चटक । भ्रमर । वाद्यकरंड पुं [करण्ड] डिब्बा ।
विशेष। करंडिया स्त्री [करण्डिका छोटा डिब्बा । करडि पुं [करटिन् ] हाथी । करंडी स्त्री. पेटिका, कुंडी।
करडी स्त्री [दे. करटी] वाद्य-विशेष । करंडय न [दे] पीठ के पास की हड़ी। करडुयभत्त न [दे। श्राद्ध-विशेष । करंब पुं. दध्योदन ।
करण न. इन्द्रिय । आसन, पद्मासन वगैरह । करंबिय वि [करम्बित] व्याप्त, खचित ।। आश्रय । क्रिया, विधान । कारक-विशेष, करकंट पुं [करकण्ट] इस नाम का एक साधकतम । उपाधि, उपकरण । न्यायालय । परिव्राजक ।
वीर्य-स्फुरण। ज्योतिःशास्त्र-प्रसिद्ध बवकरकंडु पुं. एक जैन महर्षि ।
बालवादि करण । प्रयोजन । जेल । वि. जो करकचिय वि [क्रकचित] करवत आदि से | किया जाय वह । करनेवाला । हिवइ पुं फाड़ा हुआ।
[°ाधिपति] जेल का अध्यक्ष । °साला स्त्री करकड वि [ दे. कर्कर, कर्कट] परुष । [°शाला न्यायालय । करकडी स्त्री [दे. करकटी] चिथड़ा, निन्द
करणया स्त्री [करणता] अनुष्ठान, क्रिया। नीय वस्त्र-विशेष, जो प्राचीन काल में वध्य संयमानुष्ठान । पुरुष को पहनाया जाता था।
करणि स्त्री [दे] क्रिया। करकय पुं [क्रकच] करपत्र, आरा। करणि स्त्री दे] रूप, आकार । सादृश्य । करकर पुं. 'कर-कर' आवाज । °सुंठ पुन __ अनुकरण । स्वीकार । [°शुण्ठ] तृण-विशेष ।
करणिल्ल वि [दे] गमान, सदृश । करकरिग पुं [करकरिक] ग्रह-विशेष, ग्रहा
करपत्त न [करपत्र] क्रकच । धिष्ठायक देव-विशेष ।
| करभ पुं. ऊँट । करग देखो कारग = कारक ।
करभी स्त्री. ऊँटनी । धान्य भरने का बड़ा करग पुं [करक] ओला । पानी की कलशी। पात्र ! देखो करही। देखो करय = करक ।
करम वि [दे] क्षीण, दुर्बल । करगय देखो करकय।
करमंद पुं. फलवाला वृक्ष-विशेष । करग्गह देखो कर-गह ।
| करमद्द पुं [करमद] वृक्ष-विशेष, करौंदा । करघायल पुं [दे] दूध की मलाई । करमरी स्त्री [दे] हठ-हत स्त्री, बाँदी ।
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२२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
करय-करेडु करय देखो करग । पक्षि-विशेष ।
निर्मापन । करयंदी स्त्री [दे] मल्लिका, बेला का गाछ । । कराविय वि [कारित] कराया हुआ। करयर अक [करकराय] 'कर-कर' आवाज करि पुं [करिन्] हाथी। °धरणट्ठाण न करना।
[°धरणस्थान] हाथी को बाँधने की डोरकररुद्द पुं [कररुद्र] छन्द-विशेष ।
रज्जु । 'नाह पुं [°नाथ] ऐरावण, इन्द्र का करलि । स्त्री कदलि, °ली] पताका । | हाथी । उत्तम हस्ती। °बंधण न [°बन्धन] करली , हरिण की एक जाति । हाथी का | हाथी पकड़ने का गर्त । °मयर पुं [मकर] एक आभरण ।
जल-हस्ती। करव पुंन [दे. करक] जल-पात्र ।
करिअ पुं [करिक] एक महाग्रह । करवंदी स्त्री [करमन्दी] लता-विशेष, एक | करिआ स्त्री [दे] मदिरा परोसने का पात्र । जाति का पेड़ ।
करिणिया । स्त्री [करिणी] हथिनी । करवत्तिआ स्त्री [करपात्रिका] जल पात्र- | करिणी । विशेष ।
करिण पुं [करिन्] हस्ती। करवाल पुं. तलवार ।
करिमरी [दे] देखो करमरी । करविया स्त्री [दे. करकिका] पान पात्र
करिल्ल न दे] वंशांकुर, बांस का कोपड़, विशेष ।
रेतीली भूमि में उत्पन्न होनेवाला वृक्ष-विशेष, करवीर पुं. कनेर का गाछ ।
जिसे ऊँट खाते हैं । करैला, तरकारी-विशेष । करसी [दे] देखो कडसो।
अंकुर, कन्दल । पुं. करील वृक्ष, करील । करह पुं [करभ] उष्ट्र । सुगंधी द्रव्य-विशेष ।
वि. वंशांकुर के समान । करहंच न [करहञ्च] छंद-विशेष ।।
करिस देखो कड्ढ = कृष् । करहाड पुं [करहाट] वृक्ष-विशेष, करहार, |
करिस पुं [कर्ष] आकर्षण । विलेखन, रेखाशिफा कन्द, मैनफल ।
करण । पल का चौथा हिस्सा । करहाडय पुं [करहाटक] ऊपर देखो । देश
करिस देखो करीस। विशेष ।
करिसग वि [कर्षक] कृषीवल । करही देखो करभी। इस नाम का एक छन्द । करिसण न [कर्षण] खींचाव । खेती करना। __ रुह वि [°रोह] ऊँट-सवार ।
कृषि । कराइणी स्त्री [दे] शाल्मली वृक्ष । करिसय देखो करिसग। करादल्ल पुं. स्वनामख्यात एक राजा ।
करिसावण पुंन [कार्षापण] सिक्का-विशेष । कराल वि उन्नत। दन्तुरित । भयंकर । फाड़ने करिसिय वि [कृशित] दुर्बल किया हुआ। वाला । विकसित । व्यवहित । वि. इस नाम | करीर पु. वृक्ष-विशेष । का विदेह-देश का राजा ।
करीस पुं [करीष] जलाने के लिए सुखाया कराल सक [करालय] फाड़ना, छिद्र करना । हुआ गोबर, कण्डा, गोइठा । विकसित करना।
करुण देखो कलुण । करलो स्त्री [दे] दतवन, दांत शुद्ध करने का | करुणा स्त्री दया। काष्ठ ।
करे सक [कारय] कराना । करावण न [कारण] करवाना, बनवाना, | करेडु पुं [दे] कृकलास, गिरगिट, सरट ।
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करेणु -कलणा
करेणु पुं. हाथी । कनेर का गाछ । स्त्री. हस्तिनी । दत्ता स्त्री. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक स्त्री । °सेणा स्त्री. [°सेना] देखो पूर्वोक्त अर्थ ।
करेणुआ स्त्री [करेणु] हथिनी ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कलंतर न [ कलान्तर ] ब्याज, सूद |
पीड़ित ।
करेवाहिवि [करबाधित] राज-कर से कलंद पुं [ कलन्द] कुण्ड, कुण्डा रङ्गपात्र । जाति से आर्य एक प्रकार के मनुष्य । कलंब पुं [ कदम्ब] वृक्ष - विशेष, नीप कदम का गाछ । 'चीर न. शस्त्र विशेष । 'चीरिया स्त्री ['चोरिका ] तृण - विशेष, जिसका अग्र भाग अति तीक्ष्ण होता है । 'वालुया स्त्री [ वालुका] कदम्ब के पुष्प के आकारवाली धूली । नरक की नदी । कलंबु स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, नालिका । कलंबुअन [कदम्बक] कदम्ब वृक्ष एवं उसका पुष्प ।
करोड पुं [दे] नारिकेल | काक 1 वृषभ । करोडग पुं [दे] कटोरा । करोड स्त्री [करोटि] सिर की हड्डी । करोडिय पुं [करोटिक ] कापालिक, भिक्षुकविशेष | करोडिया
स्त्री [करोटिका, °टो] कुण्डा, बड़े मुँह का एक पात्र,
करोडी
कांस्य
पात्र विशेष | स्थगिका, पानदान । मिट्टी का एक तरह का पात्र । कपाल, भिक्षा पात्र । परोसने का एक उपकरण ।
करोडी स्त्री [ दे] एक प्रकार की चींटी, जन्तु - विशेष
।
करोडी स्त्री [] मुरदा, शव ।
कल सक [ कलय् ] संख्या करना | आवाज करना । जानना । पहिचानना । सम्बन्ध
करना ।
कल वि [कल] मधुर, मनोहर । पुं. अव्यक्त मधुर शब्द । कोलाहल, कलकल । कर्दम । धान्य- विशेष, गोल चना, मटर। कंठी स्त्री [कण्ठी] कोयल । 'मंजुल वि [ वि [•मञ्जुल] शब्द से मधुर । यंठ पुं [ कण्ठ] कोकिल । 'यंठी देखो 'कण्ठी | हंस पुं. राज-हंस | कलंक पुं [कलङ्क] दोष । लाञ्छन, चिह्न | कलंक सक [कलंङ्कय् ] कलङ्कित करना । कलंक पुं [दे] बाँस, वंश । बाँस की बनाई
क्षुद्र
हुई बाड़ |
कलंकल वि. असमंजस, अशुभ | कलंकलीभागि वि [कलङ्कलीभागिन्] दुःखव्याकुल । २९
२२५
कलंकलीभाव पुं [कलङ्कलीभाव] दुःख से व्याकुलता | संसार - परिभ्रमण |
कलंकवई स्त्री [ दे] काँटे आदि से परिच्छन्न स्थान- परिधि ।
कलंबुआ [दे] देखो कलंबु । कलंबुआ स्त्री [ कलम्बुका ] कदम्ब पुष्प के समान मांस- गोलक । एक गाँव का नाम, जहाँ पर भगवान् महावीर को कालहस्ती ने
सताया था ।
कलंबुगा स्त्री [लम्बुका ] जल में होने वाली वनस्पति की एक जाति ।
कलकल पुं. कोलाहल, कल-कलरव । स्पष्ट आवाज | चूना आदि से मिश्रित जल । कलकल अक [कलकलाय् ] 'कल-कल' आवाज करना । कोलाहल करना ।
कलक्ख देखो कडक्ख = कटाक्ष |
कलचुलि पुं [करचुलि ] क्षत्रिय - विशेष । इस नाम का एक क्षत्रिय वंश | कलण देखो करण ।
कलण न [कलन] शब्द, आवाज । संख्यान, गिनती । धारण करना । जानना । प्राप्ति, ग्रहण |
कलणा स्त्री [कलना ] कृति, करण । धारण करना,
लगाना ।
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२२६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कलत्त-कलिअ कलत्त न [कलत्र] भार्या ।
कलहोय न [कलधौत] सुवर्ण । चाँदी । कलधोय देखो कलहोय।
कला स्त्री. अंश, भाग, मात्रा । समय का सूक्ष्म कलभ पुंस्त्री. हाथी का बच्चा । बच्चा।। भाग । चन्द्रमा का सोलहवां हिस्सा। कला, कलभिआ स्त्री [कलभिका] हाथी का स्त्री । विद्या, विज्ञान । पुरुष-योग्य कला के मुख्य बच्चा ।
बहत्तर और स्त्री-योग्य कला के मुख्य चौसठ कलम पुं [दे. कलम चोर । एक प्रकार का
भेद हैं । °गुरु पुं [गुरु] कलाचार्य । यरिय उत्तम चावल ।
पुं [°चार्य] देखो पूर्वोक्त अर्थ । °वई स्त्री कलमल पं. पेट का मल । वि. दुर्गन्धि, दुर्गन्ध- [वती] कलावाली स्त्री। एक पतिव्रता वाला।
स्त्री । °सवण्ण न [°सवर्ण] संख्या-विशेष । कलमल पुन [दे] मदन-वेदन । कम्पन, कलाइआ स्त्री [कलाचिका] कोनी से लेकर थरथराहट, घृणा ।
| मणिबन्ध तक का हस्तावयव । कलय देखो कालय।
कलाय पुं [कलाद] सुवर्णकार । कलय पुं[दे] अर्जुन वृक्ष । सोनार ।
कलाय पुं. गोल चना, मटर । कलय पुं कलाद] सुवर्णकार ।
कलाव पुं [कलाप] समूह, जत्था। मयूरकलयंदि वि [दे] विख्यात । स्त्री वृक्ष-विशेष, पिच्छ । शरधि, तूण, जिसमें बाण रखे पाडरी, पाढल ।
जाते हैं । कण्ठ का आभूषण । कलयजल न [दे] ओष्ठ-लेप, होठ पर लगाया |
कलावग न [कलापक] चार श्लोकों की एकजाता लेप-विशेष ।
वाक्यता । ग्रीवा का एक आभरण । कलयल देखो कलकल।
कलावय न [कलापक] चार पद्यों की एककलरुद्दाणी स्त्री [कलरुद्राणी] इस नाम का
वाक्यता। छन्द ।
कलावि पुंस्त्री [कलापिन्] मयूर । कलल न. वीर्य और शोणित का समुदाय ।
| कलि पुं. एक नरकावास । गर्भवेष्टन चर्म । गर्भ के अवयव रूप रेत
कलि पुं. झगड़ा। कलियुग । पर्वत-विशेष । विकार । कर्दम ।
प्रथम भेद । एक, अकेला । दुष्ट पुरुष । कलविक पुं. चटक, गौरिया पक्षी, गौरैया।।
°ओग, ओय पुं [ ओज] युग्म-राशिकलवू स्त्री [दे] तुम्बी-पात्र ।
विशेष । ओयकडजुम्म पु [°ओजकृतकलस पुं [कलश] घड़ा। स्कन्धक छन्द का
युग्म] युग्म-राशि-विशेष । "ओयकलिओय एक भेद । पुन. एक देवविमान । वाद्य-विशेष।
पु [°ओजकल्योज ] युग्म-राशि-विशेष । कलसिया स्त्री [कलशिका] छोटा घा।
°ओजतेओय पु[ ओजन्योज] युग्म-राशिवाद्य-विशेष ।
विशेष । ओयदावरज़म्म पु[°ओजद्वापरकलह पुं. झगड़ा।
युग्म] युग्म-राशि-विशेष । 'कुंड न [°कुण्ड] कलह देखो कलभ ।
तीर्थ-विशेष । °जुग न [°युग] कलियुग । कलह न [दे] तलवार की म्यान । कलि पुदे] शत्रु । कलह अक [कलहाय] झगड़ा करना, लड़ाई | कलिअ वि [कलित] सहित । गृहीत। विदित । करना।
कलिअ देखो कल = कलय् ।। कलहाअ देखो कलह - कलहाय । | कलिअ पु[दे] नकुल । वि. गर्वित ।
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कलिआ--कवड
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२२७
कलिआ स्त्री [दे] सखी।
कल्लाण न [कल्याण] सुवर्ण । कलिआ स्त्री [कलिका] कली।
कल्लाण पुंन [कल्याण] सुख, मंगल, क्षेम । कलिंग पु [कलिङ्ग] देश-विशेष । कलिङ्ग निर्वाण । विवाह । जिन भगवान् का पूर्व भव देश का राजा । कलिंग पुं. भगवान् आदिनाथ से च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-ज्ञान तथा का एक पुत्र ।
मोक्ष-प्राप्ति रूप अवसर । वैभव । वृक्षकलिंच देखो किलिंच।
विशेष । तप-विशेष । देश-विशेष । नगरकलिंज पु[कलिञ्ज] चटाई ।
विशेष । पुण्य । वि, हित-कारक, सुख-कारक। कलिंज न [दे] छोटी लकड़ी ।
कडय न [कृतक] नगर-विशेष । कलिंब पुन. बाँस का पात्र-विशेष । सूखी कल्लाणी स्त्री [कल्याणी] कल्याण करनेवाली लकड़ी।
स्त्री । दो वर्ष की बछिया। कलित्त न [कटित्र] कमर का पहना जाता
कल्लाल पुंकल्यपाल] कलाल । एक प्रकार का चर्ममय कवच ।
कल्लि अ [कल्ये] कल दिन, कल को । कलिम न [दे] कमल ।
कल्लुग पुं [कल्लुक] द्वीन्द्रिय जीव-विशेष, कलिमल देखो कलमल = कलकल ।
। कीट की एक जाति । कलिल वि. गहन, घना, दुर्भेद्य ।
कल्लुय पुं [कल्लुक] द्वीन्द्रिय जन्तु की एक
जाति । कलुण वि [करुण] दीन, दया-जनक, कृपा
कल्लुरिया [दे] देखो कुल्लरिया । पात्र । पु. साहित्यशास्त्र-प्रसिद्ध नव रसों
कल्लेउय पुंन [दे] कलेवा, प्रातराश । में एक रस ।
कल्लोडय पुं [दे] दमनीय बैल । कलुणा देखो करुणा।
कल्लोडिआ [दे] देखा कल्होडी। कलुस वि [कलुष] अस्वच्छ । न. पाप, दोष,
कल्लोल पुं. तरंग, मि । मैल।
कल्लोल वि [दे. कल्लोल] दुश्मन । कलेर पु [दे] कङ्काल, अस्थि-पञ्जर । वि.
कल्लोलिणो स्त्री [कल्लोलिनी] नदी। भयानक ।
कल्हार न [कलार सफेद कमल । कलेवर न. देह ।
कल्हि देखो कल्लि। कलेसुय न [कलेसुक] तृण-विशेष । कलोवाइ स्त्री [दे] पात्र-विशेष ।।
कल्होड पुं दे] बछड़ा।
कव अक [कु] आवाज करना । कल्ल न [कल्य] कल, गया हुआ या आगामी दिन । शब्द, आवाज । संख्या, गिनती।
कवइय वि [कवचित] बख्तरवाला । आरोग्य । सुबह । वि. निरोग ।
कवंध देखो कमंध। कल्लवत्त पुं [कल्यवर्त्त]प्रातर्भोजन, जलपान । कवग्ग पुं [कवर्ग] 'क' से 'ङ' तक के पाँच कल्लवाल पुं [कल्यपाल] शराब बेचनेवाला। अक्षर । कल्लविअ वि [दे] तीमित, आदित । कवचिअ देखो कवइय । विस्तारित ।
. कवचिया स्त्री [कवचिका] कलाचिका, कल्ला स्त्री [दे] दारू ।
प्रकोष्ठ । कल्लाकल्लि । अ [कल्याकल्य] प्रतिदिन ।। कवट्टिअ वि [कर्थित] पीड़ित । कल्लाकल्लि । रोज-सुबह ।
कवड न [कपट] माया, छद्म, शाब्य ।
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२२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कवेडि-कस कवडि देखो कवड्डि ।
कविलडोला स्त्री [दे. कपिलडोला] क्षुद्र कवड्ड पुं [कपदं] बड़ी कौड़ी।
जन्तु-विशेष। कवड्डि पुं [कपर्दिन्] यक्ष-विशेष । शिव ।। कविलास देखो कइलास । कवड्डिया स्त्री [कपदिका] कौड़ी। कविल्लुय न [दे] कड़ाही। कवण वि [किम्] कौन ?
कविस पुं [कपिश] कृष्ण-पीत-मिश्रित वर्ण । कवय पुंन [कवच] बख्तर ।
वि. कपिश वर्णवाला। कवय न [दे] वनस्पति-विशेष, भूमिच्छत्र । कविस न [दे] मदिरा। कवरी स्त्री [कबरी] के श-पाश ।
कविसा स्त्री [दे] अर्धजङ्घा । कवल सक [कवलय] ग्रसना ।
कविसायण पुंन [कपिशायन] गुड़ की दारू । कवलिआ स्त्री [दे] ज्ञान का एक उपकरण । कविसीसग । पुन [कपिशीर्षक] प्राकार का कवल्ल पुं [दे] लोहे का कड़ाह ।
कविसीसय अग्र-भाग। कवल्लि । स्त्री [दे] गुड़ वगैरह पकाने का कविहसिय पुंन [कपिहसित] आकाश में कवल्ली भाजन, कड़ाह ।
अकस्मात् होनेवाली भयंकर आवाज करती कवाल । पुं [कपाट] किवाड़, किवाड़ी।
ज्वाला। कवाड
कवेल्लुय देखो कविल्लुय । कवाल न [कपाल] खोपड़ी । भिक्षा-पात्र ।
| कवोड) पुं [कपोत] कबूतर । म्लेच्छ-देशकवास पुं [दे] एक प्रकार का जूता, अर्धजङ्घा। कवोय । विशेष । न. कूष्माण्ड, कोहड़ा। कवि देखो कई = कपि ।
कवोल पुं [कपोल] गाल । कवि पुं. कविता करनेवाला । शुक्र ग्रह । °त्त
कवोशण (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम । न [त्व] कविता, कवित्त । देखो कई =
कव्व न [काव्य] कविता, कवित्व । ग्रह-विशेष, कवि ।
शुक्र । वि. वर्णनोय, श्लाघनीय । °इत्त वि कविअ न [कविक] लगाम ।
[वत्] काव्यवाला। कविंजल देखो कपिजल ।
कव्व न [क्रव्य] मांस । कविकच्छु । देखो कइकच्छु ।
कव्वट्ठ पुं [दे] बालक । कविगच्छ
कव्वड देखो कब्बड । कविट्ठ देखो कइत्थ।
कव्वा स्त्री [क्रव्या] माया । कविड न दे] घर का पिछला आँगन ।
कव्वाड पुं [दे] दाहिना हाथ । कवित्थ देखो कइत्थ।
कव्वाडिअ वि [दे] काँवर उठानेवाला, बहँगी कवियच्छु देखो कइकच्छु ।
से माल ढोनेवाला। कविल पुं [दे] कुत्ता।
कव्वाय पुं [क्रव्याद] राक्षस, पिशाच । वि. कविल पुं [कपिल] भूरा रंग, तामड़ा वर्ण। कच्चा माँस खानेवाला । मांस खानेवाला । पक्षि-विशेष । सांख्य मत का प्रवर्तक मुनि- कव्वाल न [दे] कार्यालय । घर । विशेष । एक ब्राह्मण महर्षि । इस नाम का | कस सक [कष्] ठार मारना। कसना, एक वासुदेव । राहु का पुद्गल-विशेष । वि. घिसना । मलिन करना । विनाश करना । भूरा रंग का, मटमैला रंग का । स्त्री. एक | कस पुं [कग] चाबुक । ब्राह्मणी का नाम ।
कस पुं [कष] कसौटी। कसौटी का पत्थर ।
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कसई-कहिं संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२२९ वि. हिंसक, मार डालनेवाला। पुंन. संसार, कसेरुग पुन [कशेरुक] जल में होनेवाली भव । न. कर्म, कर्म-पुद्गल । °पट्ट, वट्ट पुं| वनस्पति की एक जाति । [°पट्ट] कसौटी का पत्थर । °हि पुंस्त्री. सर्प | कसोति स्त्री [दे] खाद्य-विशेष । की एक जाति ।
कस्स पुंदे] कर्दम । कसई स्त्री [दे]अरण्यचारी वनस्पति का फल । | कस्सय न [दे] भेट । कसट (१) देखो कट्ठ = कष्ट ।
कस्सव पुं [काश्यप] वंश-विशेष । ऋषिकसट्ट पुं [दे] कतवार ।
विशेष । कसण पुं [कृष्ण] वर्ण-विशेष । वि श्याम | कह सक [कथय] कहना, बोलना । वर्णवाला। °पक्ख पुं [ पक्ष] कृष्णपक्ष । कह सक [कथ्] क्वाथ करना, उबालना । °सार पुं. वृक्ष-विशेष । हरिण की एक जाति । कह पुं [कफ] कफ। कसण वि [कृत्स्न] सकल ।
कह देखो कहं। कहवि देखो कह-कहंपि। कसणसिअ पुं दे] बलभद्र ।
वि देखो कहं-पि। कसमीर देखो कम्हीर।
कहआ अ [कथंवा] वितर्क और आश्रय अर्थ कसर पुं [दे] अधम बैल ।
को बतलानेवाला अव्यय । कसर पुंन [दे. कसर] रोग-विशेष, कण्डू- | कहं अ [कथम्] कैसे, किस तरह ? क्यों, किस विशेष ।
लिए ? °कहंपि अ [°कथमपि] किसी तरह । कसरक्क पुंन [दे. कसरत्क] चर्वण-शब्द, खाते कहा स्त्री [कथा] राग-द्वेष को उत्पन्न समय जो शब्द होता है वह । फूल की कली।
करनेवाली कथा, विकथा । °चि, °ची अ कसव्व न [दे] वाष्प । वि. अल्प । प्रचुर, । [°चित्] किसी तरह, किसी प्रकार से । "पि व्याप्त । आर्द्र । कर्कश ।
अ [°अपि] किसी तरह। कसा स्त्री [कशा, कसा] चर्म-यष्टि , कोड़ा। कहकह अक [कहकहय] खुशी का शोर कसा देखो कासा।
मचाना । कसाय सक [कशाय] ताड़न करना, मारना । कहक्कह पुं [कथंकथा] बातचीत । कसाय पुं [ कषाय ] क्रोध, मान, माया कहग वि [कथक] कहनेवाला, पुं. कथा-कार ।
और लोभ । रस-विशेष, कषैला । लाल-पीला | कहण न [कथन] कथन, उक्ति । रंग । क्वाथ, काढ़ा । वि. कषैला स्वादवाला। कहणा स्त्री [कथना] ऊपर देखो। कषाय रंगवाला । खुशबूदार ।
कहय देखो कहा। कसार [दे] देखो कंसार।
कहल्ल पुन [दे] खप्पर । कसिअ न [कशिका] चाबुक ।
कहा स्त्री [कथा] कथा, वार्ता, हकीकत । कसिआ स्त्री [दे] अरण्यचारी नामक वनस्पति | कहाणग ) न [कथानक] कथा, वार्ता का फल ।
कहाणय प्रसंग, प्रस्ताव । प्रयोजन, कार्य । कसिट (पै) देखो कट्ठ - कृष्ट ।
कहाव सक [कथय] कहलाना, बुलवाना । कसिण देखो कसण = कृष्ण, कृत्स्न । कहावण पुं [कार्षापण] सिक्का-विशेष । कसुमीरा स्त्री [कश्मीर] एक उत्तर भारतीय | कहि । अ क्व, कुत्र] कहाँ, किस स्थान देश।
कहिआ में ? कसेरु पुन [कशेरु] जलीय कन्द-विशेष । कहिं .
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काइंची
२३० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कहित्तु-कागी . कहित्तु वि [कथयित] कहनेवाला, भाषक। काओली स्त्री [काकोली] कन्द-विशेष, कहिया स्त्री [कथिका] कथा, कहानी। वनस्पति विशेष । कहु (अप) अ [कुतः] कहाँ से ।
काओवग पुं [कायोपग] संसारी आत्मा । कहेड वि [दे] जवान ।
काओसग्ग देखो काउसग्ग । कहेत्तु देखो कहित्तु ।
काक पुं. कौआ । ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देवकाअइंची। स्त्री [काचिञ्ची] गुना । विशेष । °जंघा स्त्री [°जका] वनस्पति
विशेष, चकसेनी, धुंघची। देखो काग, काइअ वि [कायिक] शरीर-सम्बन्धी । काय = काक। काइआ । स्त्री [कायिको] शरीर-सम्बन्धी काकंदग पुं [काकन्दक] एक जैन महर्षि । काइगा क्रिया । शौच-क्रिया । पेशाब । कादिय पुं [काकन्दिक] एक जैन महर्षि । काइंदी स्त्री [काकन्दी] बिहार की एक काकंदिया स्त्री [काकन्दिका] जैन मुनियों की नगरी।
एक शाखा । काइणी स्त्री [दे] लाल रत्ती ।
काकंदी देखो काइंदो। काई स्त्री [काकी] कौए की मादा। काकणि देखो कागणि। काउ स्त्री [कापोती] लेश्या-विशेष । लेसा काकलि देखो कागलि। स्त्री [°लेश्या] आत्म-परिणाम-विशेष । °लेस्स काग देखो काक । तालसंजीवगनाय पं वि [°लेश्य] कापोत लेश्यावाला । "लेस्सा ["तालसंजीवकन्याय] काकतालीयन्याय । देखो °लेसा ।
°तालिज्ज, तालीअ न [°तालीय] काउंबर , पुं [काकोदुम्बर] ओषधि-विशेष । अकस्मात् किसी कार्य का होना । थल काउंबरी।
न [°स्थल] देश-विशेष । पाल पुं काउकाम वि [कर्तुकाम] करने को चाहने- [पाल] कुष्ठ-विशेष । पिंडी स्त्री [°पिण्डी] वाला।
अग्र-पिण्ड देखो। काय = काक । काउड्डावण न [कायोड्डावन] उच्चाटन, दूर, कागदी देखो काइंदी। स्थित दूसरे के शरीर का आकर्षण करना। कागणि स्त्री [दे] राज्य । मांस का छोटा काउदर पुं [काकोदर] साँप की एक जाति । टुकड़ा। काउमण वि [कर्तुमनस्] करने की चाह- कागणी देखो कागिणी। वाला।
कागणी स्त्री [काकिणी] सवा गुञ्जा का एक काउरिस पुं [कापुरुष] नीच पुरुष । डरपोक पुरुष ।
कागल पुं [काकल] ग्रीवास्थ उन्नत प्रदेश । काउल्ल पुं दे] बक ।
कागलि । स्त्री [काकलि, ली] सूक्ष्म काउसग्ग । पुं [कायोत्सर्ग] शरीर पर के ! कागलो । गति-ध्वनि, स्वर-विशेष । भगवान् काउस्सग्ग , ममत्व का त्याग । कायिक-क्रिया अभिनन्दन की शासन-देवी । का त्याग । ध्यान के लिए शरीर की | कागिणी स्त्री [काकिणो] कौड़ी। बीस कौड़ी निश्चलता।
के मूल्य का एक सिक्का । रत्न-विशेष । काऊ देखो काउ।
कागी स्त्री [काकी] कौए की मादा । विद्याकाओदर देखो काउदर ।
विशेष ।
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का कोणंद- कामं दुहा
काकोणंद पुं [काकोनन्द ] इस नाम की एक म्लेच्छ जाति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
काठिण्ण न [काठिन्य ] कठिनता ।
काढ पुं [ क्वाथ ] काढ़ा |
काण वि. एकाक्ष ।
काण वि [दे] सच्छिद्र । चुराया हुआ । क्कय पुं [क्रय] चुराई हुई चीज को खरीदना । काणच्छि स्त्री [दे] टेढ़ी नजर से काणच्छिया देखना |
काणण न [कानन] वन । बगीचा । कत्थेव पुं [दे] बूंद-बूंद बरसना । काणद्धी स्त्री [] परिहास | काणिक्का स्त्री [दे] बड़ी ईंट | काणिट्टा स्त्री [काष्टा ] लोहे की ईंट | काणिआर देखो कण्णिआर ।
कायि न [ काण्य] आँख का रोग | काणीं [कानीन] कुँआरी कन्या
उत्पन्न
पुत्र ।
कादंब देखो कार्यब |
कादंबरी देखो कायंबरी ।
कादूसण वि [ कदूषण ] आत्मा को दूषित करनेवाला |
कापुरिस देखो काउरिस ।
काम पुं बीमारी । एवदेखो कामदेव । ग्घ न [न] आयंबिल तप | 'हण पुं [ 'दहन ] महादेव | 'रुय देखो कामरूअ । काम सक [कामय् ] चाहना ।
काम पुं [ काम ] इच्छा । सुन्दर शब्द, रूप वगैरह विषय | विषय का अभिलाष । मदन | इन्द्रिय-प्रीति । मैथुन । छन्द विशेष | कंत न [कान्त ] देव-विमान- विशेष । 'कम न. लान्तक देव-लोक के इन्द्र का एक यात्रा - विमान | काम वि. विषय की चाहवाला । कामि वि [' कामिन् ] विषयाभिलाषी । 'कूड न [कूट ] देव -विमान- विशेष । गम वि. स्वेच्छाचारी । न देखो कम । गामि
२३१
स्त्री [गामी ] विद्या - विशेष । 'गुण न. मैथुन । शब्द- प्रमुख विषय | ° घड पुं [घट] ईप्सित चीज को देनेवाला दिव्य कलश । 'जल न. स्नान पीठ | जुग [ 'युग ] पक्षि-विशेष |
झय न [ ध्वज ] देव -विमान- विशेष । 'ज्झया स्त्री ['ध्वजा ] इस नाम की एक वेश्या ।
वि [T] विषयाभिलाषी । ड्ढिय [] जैन साधुओं का एक गण । न. जैन मुनियों का एक कुल । 'नयर न ['नगर] विद्याधरों का एक नगर । 'दाइणी स्त्री [ 'दायिनी ] ईप्सित फल को देनेवाली विद्या - विशेष | 'दहा स्त्री ['दुधा] कामधेनु । 'देअ, 'देव' [देव] अनंग | एक जैन श्रावक का नाम । 'धेणु स्त्री ['धेनु ] प् फल देनेवाली गौ । पाल पुं. देव विशेष । बलदेव | पिपासय वि [पिपासक] विषयाभिलाषी । पुर न. इस नाम का एक विद्याधर-नगर । वभ न [प्रभ] देवविमानविशेष | फास पु [स्पर्श ] ग्रह-विशेष । ग्रहाधिष्ठाता देव - विशेष । महावण न [ महावन ] बनारस के समीप का एक चैत्य । अपुं [रूप] देश - विशेष । 'लेस्स ['लेश्य] देव -विमान- विशेष । 'वण्ण न [वर्ण] एक [' शास्त्र ] रति-शास्त्र | [समनोज्ञ ] [शृङ्गार] देव-विमान- विशेष । ° सिष्ट न [शिष्ट ] एक देव-विमान- विशेष । वट्ट न [व] देव-विमान-विशेष | वसाइत्त स्त्री [वशायिता ] योगी का एक तरहका ऐश्वर्य | सा स्त्री [शंसा] विषयाभिलाष । कामं अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - अवधारण | सम्मति । स्वीकार | अतिशय । कामंग न [कामाङ्ग ] कन्दर्प का उत्तेजक स्नान वगैरह ।
देव - विमान । सत्थ न
समणुण्ण वि
कामान्ध । सिंगार न
कामदुहा स्त्री [काकदुधा ] कामधेनु ।
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२३२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो काष
कामंध-कायरिया कामंध पु [कामान्ध] विषयातुर ।
शरीररोग की प्रतिक्रिया। उसका प्रतिपादक कामकिसोर दे] गर्दभ ।
शास्त्र । भवत्थ वि [भवस्थ] माता के कामग वि [कामक] अभिलषणीय । इच्छुक । उदर में स्थित । °वंझ पुं वन्ध्य] ग्रहः कामण न [कामन] अभिलाष ।
विशेष । °समिअ वि [ समित] शरीर की कामय देखो कामग।
निर्दोष प्रवृत्ति करनेवाला । °समिइ स्त्री कामि वि [कामिन्] विषयाभिलाषी। [°समिति] शरीर की निर्दोष प्रवृत्ति । अभिलाषी।
काय पुं [काक] वायस । काला उम्बर । देखो कामिअ वि [कामिक] काम-सम्बन्धी, विषय- काक, काग। सम्बन्धी । न. तीर्थ-विशेष । सरोवर-विशेष । काय पुं [काच] शीशा । वि. इच्छा पूर्ण करनेवाला । वि. साभिलाष । | काय पुं [दे] काँवर, बोझ ढोने के लिए तराकामिआ स्त्री [कामिका] इच्छा ।
जूनुमा एक वस्तु । कोडिय पुं [कोटिक] कामिंजुल पु [कामिज़ुल] पक्षि-विशेष । काँवर से भार ढोनेवाला । देखो काव । कामिड्ढि पुं [काद्धि] एक जैन मुनि, आर्य | काय पुं [दे] लक्ष्य, निशाना । उपमान । सुहस्तिसूरि का एक शिष्य ।।
कायंचुल पुं[दे] कामिञ्जुल जल-पक्षी । कामिड्ढिय न [कामद्धिक] जैन मुनियों का कायंदी स्त्री [दे] उपहास । एक कुल ।
कायंदी देखो काइंदी। कामिणी स्त्री [कामिनी] स्त्री।
कायंधुअ पुं [दे] कामिञ्जुल जल-पक्षी । कामिय वि [कामित] यथेष्ट ।
कायंब पुं[कादम्ब] हंस-पक्षी । गन्धर्व-विशेष । कामुअ । वि [कामुक] कामी । °सत्थ न
कदम्ब-वृक्ष । वि. कदम्ब-वृक्ष-सम्बन्धी । कामुग । [°शास्त्र] रति-शास्त्र ।
कायंबर न [कादम्बर] गुड़ की दारू । कामुत्तरवळिसग न [कामोत्तरावतंसक]
कायंबरी स्त्री [कादम्बरो] एक गुहा का देवविमान-विशेष । काय पु. वनस्पति की एक जाति । एक महा.
कायंबरी स्त्री [कादम्बरी] दारू । अटवी
विशेष । ग्रह । पुन. जीव-निकाय । °मंत वि [°वत्] बड़ा शरीरवाला । °वह पु [°वध] जीव
| कायक न[दे. कायक] हरे रंग की रूई से हिंसा।
बना हुआ वस्त्र । काय पु [काय] शरीर । समूह । देश-विशेष । कायस्थ पुं [कायस्थ] कायस्थ जाति, कायस्थ वि. उस देश में रहनेवाला । °गुत्त वि | नाम से प्रसिद्ध जाति, लेखक, लिखने का [°गप्त] शरीर को वश में रखनेवाला। काम करनेवाली मनुष्य-जाति । गुत्ति स्त्री ["गुप्ति] जितेन्द्रियता । °जोअ, | कायपिउच्छा । स्त्री [दे] कोयल । जोग पु ["योग ] शारीरिक क्रिया। कायपिउला । °जोगि वि [°योगिन् ] शरीर-जन्य | कायर वि [कातर] अधीर, डरपोक । क्रियावाला । टिइ स्त्री [स्थिति] मर कर कायर वि [दे] प्रिय । फिर उसी शरीर में उत्पन्न होकर रहना । कायरिय वि [कातर] भयभीत । पुं. गोशालक °णिरोह पुं [°निरोध] शरीर-व्यापार का | का एक भक्त । परित्याग । तिगिच्छा स्त्री [°चिकित्सा] ) कायरिया स्त्री [कातरिका] माया ।
नाम।
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कायल-काल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२३३
२३३ कायल पुं[दे] काक, वि. स्नेह-पात्र ।
यक। कायलि देखो कागलि ।
कारिका देखो कारिया। कायवंझ [कायवन्ध्य] ग्रह-विशेष, ग्रहाधि- | कारिम वि [दे] नकली। ष्ठायक देव-विशेष ।
कारिय देखो कज्ज = कार्य । कायह वि [कायह] देश-विदेश में बना हुआ कारियल्लई स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, करेला (वस्त्र)।
का गाछ । काया स्त्री. देह ।
कारिया स्त्री [कारिका] की । कार सक [कारय] करवाना, बनवाना । कारिल्ली स्त्री [दे] करैला का गाछ । कार वि [दे] कड़वा, तीता ।
कारीस पुंकारीष] गोइठा की अग्नि । कार पुंन. देखो कारा = कारा।
कारु पुं. कारीगर, शिल्पी । नव प्रकार के कारु कार पुं. क्रिया, कृति, व्यापार । रूप, आकृति ।
चर्मकर आदि। संघ का मध्य भाग।
कारुइज्ज वि [कारुकीय] कारीगर से सम्बन्ध 'कार वि. करनेवाला।
रखनेवाला । कारंकड वि [दे] कठिन ।
कारुणिय वि [कारुणिक] कृपालु । कारंड [कारण्ड] पक्षि-विशेष । कारुण्ण न [कारुण्य] दया । कारंडग
कारेल्लय न [दे] करैला। कारंडव
कारोडिय पुं [कारोटिक] कापालिक, भिक्षुककारग वि [कारक] करनेवाला । करानेवाला । |
विशेष । ताम्बूल-वाहक, स्थगीधर । न. व्याकरणप्रसिद्ध कारक । कारण, हेतु ।
काल न [दे] अन्धकार । उदाहरण । पुंन. सम्यकत्व-विशेष । कारण न. हेतु । प्रयोजन । अपवाद ।
काल पुं. समय । मृत्यु । प्रस्ताव, प्रसंग । कारणिज वि [कारणीय] प्रयोजनीय ।
विलम्ब । उमर । ऋतु । ग्रह-विशेष, ग्रहा
धिष्ठायक देव-विशेष । ज्योतिः-शास्त्र प्रसिद्ध कारणिय वि [कारणिक] प्रयोजन से किया
एक कुयोग। सातवीं नरकपृथ्वी का एक जाता । कारण से प्रवृत्त । पुं. न्यायाधीश ।
नरकावास । नरक के जीवों को दुःख देनेकारय देखो कारग।
वाले परमाधार्मिक देवों की एक जाति । कारव सक [कारय] करवाना, बनवाना।
वेलम्ब इन्द्र का एक लोकपाल । प्रभजन कारवस पुंकारवश] देश-विशेष ।
इन्द्र का एक लोकपाल । पिशाच-निकाय का करवाहिय वि [कारबाधित] देखो करे
दक्षिण दिशा का इन्द्र । पूर्वीय लवण समुद्र के वाहिय ।
पाताल-कलशों का अधिष्ठाता देव । राजा कारह वि [कारभ] करभ-सम्बन्धी ।
श्रेणिक का एक पुत्र । इस नाम का एक गृहकारा स्त्री. कैदखाना । गार पुन. जेल । °घर । पति । अभाव । पिशाच देवों की एक जाति ।
न [°गृह] कैदखाना। मंदिर न. जेलखाना। निधि-विशेष । श्यामवर्ण । न. देव-विमानकारा स्त्री [दे] लेखा, रेखा।
विशेष । 'निरयावली' सूत्र का एक अध्ययन । कारायणी स्त्री [दे] शाल्मलि-वृक्ष ।। काली देवी का सिंहासन । वि.काला रंग का । काराव देखो कारव।
'कखि वि [ काङ्क्षिन्] समय की अपेक्षा कारावय वि [कारक] करानेवाला, विधा- | करने-वाला। अवसर का ज्ञाता। कप्प पुं
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२३४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कालंजर-कालिंजर
[°कल्प] समय-सम्बन्धी शास्त्रीय विधान । विशेष । देखो कालिंजर । उसका प्रतिपादक शास्त्र । काल पुं. मृत्यु-समय। कालक्खर सक [दे] निर्भर्त्सना करना, फटकूड न [°कूट] उत्कट विष-विशेष । °क्खेव कारना । निर्वासित करना, बाहर निकाल पुं[°क्षेप] विलम्ब । °गय वि [°गत] मृत । देना । °चक्क न [°चक्र] वीस सागरोपम परिमित कालक्खर पुंन [कालाक्षर] अल्प-ज्ञान, अल्पसमय । एक भयंकर शस्त्र । °चूला स्त्री शिक्षा। वि. अल्प-शिक्षित । [°चूडा]अधिक-मास वगैरह का अधिक समय। कालक्खरिअ वि [कालाक्षरिक] देरी से °ण्ण, °ण्णु वि [°ज्ञ] अवसर का जानकार। अक्षर जाननेवाला, अशिक्षित। °दटू वि [दष्ट] मौत से मरा हुआ । देव पुं. कालग । पु [कालक] प्रसिद्ध जैनाचार्य । देव-विशेष । 'धम्म पुं [°धर्म] मरण । कालय J भ्रमर । देखो काल । °परियाय पु [°पर्याय] मृत्यु-समय । परि- कालय वि [दे] धूर्त । हीण न [परिहीन] विलम्ब । °पाल पु. | कालव? न [दे. कालपृष्ठ] धनुष । देव-विशेष, धरणेन्द्र का एक लोकपाल । | कालवेसिय पु [कालवैशिक] एक वेश्या°पास [पाश] ज्योतिः-शास्त्र प्रसिद्ध एक पुत्र । कुयोग । °पिटू, पृट्ट पुन [°पृष्ठ] धनुष । काला स्त्री. श्याम-वर्णवाली। तिरस्कार करनेकर्ण का धनुष । काला हरिण । क्रौञ्च पक्षी। वाली । एक इन्द्राणी, चमरेन्द्र की एक पट
पुरिस पु[पुरुष] जो वेद कर्म का अनुभव | रानी। वेश्या-विशेष । करता हो वह । °प्पभ पु[प्रभ] इस नाम | कालाइक्कमय न कालातिक्रमक] तपका एक पर्वत । °फोडय पुंस्त्री [°स्फोटक] / विशेष । प्राणहर फोड़ा। °मास पु. मृत्यु-समय । कालाकोण पुन [काललवण] काला नोन या °मासिणी स्त्री [°मासिनी] गभिणी । °मिग | नमक ।
मग] कृष्ण मृग की एक जाति । रत्ति स्त्री | कालि पु [कालिन] बिहार का एक पर्वत । [ रात्रि] प्रलय-रात्रि, प्रलय-काल । °वडि- कालिअसूरि पु [कालिकसूरि] एक प्रसिद्ध सग न [°ावतंसक काली देवी का विमान । प्राचीन जैन आचार्य ।
वाइ वि [°वादिन] जगत् को कालकृत कालिआ स्त्री [दे] देह । कालान्तर । बारिश । माननेवाला । °वासि पु [°वर्षिन्] अवसर मेघसमूह ।। पर बरसनेवाला मेघ । संदीव पु कालिआ स्त्री [कालिका] देवी-विशेष । एक [°संदीप] त्रिपुरासुर । °समय पु. वक्त । प्रकार का तूफानी पवन । °समा स्त्री. आरक रूप समय । °सार पु. | कालिंग पु [कालिङ्ग] देश-विशेष । वि. कालामृग । सोअरियपु[सौकरिक स्वनामख्यात एक कसाई । गरु, गुरु, यरु कालिङ्गी स्त्री [कालिनी] तरबूज का गाछ । न ["गुरु] सुगन्धि द्रव्य-विशेष । यस, | विद्या-विशेष । °ास न [यस] लोहे की एक जाति । | कालिंजण [दे] श्याम तमाल का पेड़ । °ासवेसियपुत्त पु [°ास्यवैशिकपुत्र] इस |
कालिंजर पु [कालिञ्जर] देश-विशेष । पर्वतनाम का एक जैन मुनि ।
विशेष । न. जंगल-विशेष । तीर्थ स्थानकालंजर पु [कालञ्जर] देश विशेष । पर्वत- । विशेष ।
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कालिंदी-कास संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२३५ कालिंदो स्त्री [कालिन्दी] यमुना नदी । कालोद देखो कलोय । शक्रन्द्र की एक पटरानी।
कालोदधि पुं [कालोदधि] समुद्र-विशेष । कालिंब पु [दे] शरीर । मेघ, बारिश । कालोदाइ पुं [कालोदायिन्] इस नाम का कालिग देखो कालिय = कालिक ।
एक दार्शनिक विद्वान् । कालिगी स्त्री [कालिकी] संज्ञा-विशेष, बहुत | कालोय पुं [कालोद] समुद्र-विशेष जो घातकीसमय पहले गुजरी हुई चीज का भी जिससे | खण्ड द्वीप को चारों तरफ घेर कर स्थित है। स्मरण हो सके वह।
काव । पुं[दे] काँवर, बोझ ढोने के लिए कालिज्ज न [कालेय] हृदय का गूढ मांस- | कावड ) तराजूनुमा एक वस्तु । 'कोडिय पुं विशेष ।
r°कोटिक] काँवर से भार ढोनेवाला । देखो कालिम पुस्त्री [कालिमन्]श्यामता, दागीपन । | काय = (दे) । काालय पु [कालिय] इस नाम का एक सर्प । | कावडि । स्त्री दि] काँवर । कालिय वि [कालिक] काल में उत्पन्न, काल
कावोडि सम्बन्धी । अनिश्चित, अव्यवस्थित । वह शास्त्र, | कावडिअ पुं [दे] वैवधिक, काँवर से भार जिसको अमुक समय में ही पढ़ने की शास्त्रीय ढोनेवाला । आज्ञा है । °दीव पु ["द्वीप] द्वीप-विशेष । कावध पुं [कावध्य] एक महाग्रह, ग्रहाधि
पुत्त पु[पुत्र] एक जैन मुनि जो भगवान् ___ष्ठायक देव-विशेष । पार्श्वनाथ की परम्परा में से थे। °सण्णि वि | कावलिअ वि [दे] असहिष्णु । [संज्ञिन्] कालिकी संज्ञावाला । °सुय न | कावलिअ वि [कावलिक] कवल-प्रक्षेप रूप [°श्रुत] वह शास्त्र जो अमुक समय में ही पढ़ा । आहार । जा सके । °ाणुओग पु [°ानुयोग] देखो |
कावालिअ पुं [कापालिक] वाम-मार्गी, अघोर पूर्वोक्त अर्थ।
सम्प्रदाय का मनुष्य । कालो स्त्री.विद्या-देवी-विशेष । चमरेन्द्र की एक | काविट्ट न [कापिष्ठ] देव-विमान-विशेष । पटरानी। वनस्पति-विशेष, काकजङ्घा । काविल न [कापिल] सांख्य-दर्शन । वि. श्यामवर्णवाली स्त्री। राजा श्रेणिक की एक सांख्य मत का अनुयायी। रानी । चौथी जैन शासन-देवी । पार्वती । इस काविलिय वि [कापिलीय] कपिल मुनिनाम का एक छन्द ।
सम्बन्धी । न. कपिल-मुनि के वृत्तान्तवाला कालुण न [कारुण्य] दया। °वडिया स्त्री एक ग्रन्थांश । 'उत्तराध्ययन' सूत्र का आठवाँ
[°वृत्ति भीख माँग कर आजीविका करना । अध्ययन । कालुणिय ) देखो कारुणिय ।
काविसायण देखो कविसायण । कालुणीय ।
कावी स्त्री [दे] नीलवर्णवाली, हरे रंग की कालय पु [दे] अश्व की एक उत्तम जाति । चीज । कालुसिय न [कालुष्य] मलिनता ।
कावुरिस देखो कापुरिस । कालुस्स न [कालुष्य] कलुषपन ।
कावेअ न [कापेय] वानरपन, चञ्चलता। कालेज न [दे] तापिच्छ ।
कावोय वि [दे] काँवर वहन करनेवाला । कालेय न. काली देवी का अपत्य । सुगन्धि द्रव्य- | कास देखो कड्ढ = कृष । विशेष, कालाचन्दन । कलेजा ।
कास अक [कास्] रोग-विशेष से खराब
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२३६
कासव
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कास-काही आवाज करना। खाँसी की आवाज करना।। स्थान । भूमि स्त्री. नितम्ब-प्रदेश । खोखार करना । छींक खाना ।
कासार न [दे] धातु-विशेष, सीसपत्रक । कास पुं [काश, °स] रोग-विशेष, खाँसी ।।
कासि पुं [काशी] काशी देश । काशी देश का तृण-विशेष । उसका फूल जो सफेद और
राजा । स्त्री. बनारस शहर । °पुर न. काशी शोभायमान होता है। ग्रह-विशेष, ग्रह-देव
नगरी। °राय पुं [राज] काशी देश का विशेष । रस । जगत् ।
राजा। °व पुं [4] काशी देश का राजा । कास देखो कंस = कांस्य ।
°वड्ढण पु [°वर्धन] इस नाम का एक कासंकस वि [कासङ्कष] प्रमादी, संसार में
राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा आसक्त।
ली थी। कासग देखो कासय।
कासिअ न [दे] बारीक कपड़ा। सफेद वस्त्र । कासमद्दग पुं [कासमर्दक] वनस्पति-विशेष, कासिअ न [कासित] छींक । । गुच्छ-विशेष ।
। कासिज्ज न [दे] काकस्थल-नामक देश । कासय । पुं [कर्षक] किसान ।
कासिल्ल वि [कासिक] खाँसी रोगवाला ।
कासी स्त्री [काशी] काशी। राय पु कासव पुं [कश्यप] इस नाम का एक ऋषि ।।
[°राज] काशी का राजा। °स पु [श] हरिण की एक जाति । एक जाति की मछली ।
काशी का राजा । °सर पु [°श्वर] काशी दक्ष प्रजापति का जामाता। वि. दारू पीने
का राजा। वाला।
काह सक [ कथय् ] कहना । कासव न [काश्यप] इस नाम का एक गोत्र ।
काहर देखो काहार। पुं. भगवान् ऋषभदेव का एक पूर्व पुरुष । वि.
काहल वि [दे] कोमल । काश्यप गोत्र में उत्पन्न । पुं. नापित । इस
काहल वि [कातर] डरपोक, अधीर । नाम का एक गृहस्थ । न. इस नाम का एक काहल न. वाद्य-विशेष । अव्यक्त आवाज। 'अंतगडदसा' सूत्र का अध्ययन ।
काहला स्त्री. वाद्य-विशेष, महाढक्का । कासवनालिया स्त्री [काश्यपनालिका] श्री
काहलिया स्त्री [काहलिका] आभूषण-विशेष । पर्णीफल ।
काहली स्त्री [दे] युवती। कासविजया स्त्री [काश्यपोया] जैन मुनियों
काहल्लो स्त्री [दे] खर्च करने का धान्यादि । की एक शाखा।
तवा । कासवी स्त्री [काश्यपी] पृथिवी । ऋश्यप
| काहार पुं [दे] कहार, एक जाति जो पानी गोत्रीया स्त्री। 'रइ स्त्री [°रति] भगवान् भरने और डोली वगैरह ढोने का काम सुमतिनाथ की प्रथम शिष्या ।
करती है। कासा स्त्री [कृशा] दुर्बल स्त्री।
काहार पुंन [दे] काँवर । कासाइया) स्त्री [काषायी] कषाय-रंग से | काहावण पुं [कार्षापण] सिक्का-विशेष । कासाई रंगी हुई साड़ी, लाल साड़ी।। काहिय वि [काथिक] कथा-कार । कासाय वि [काषाय] कषाय-रंग से रंगा हुआ काहिल पुं[दे] ग्वाला। वस्त्रादि।
काहिल्लिा स्त्री [दे] तवा । कासार न. तलाब । कँसार । पुं. समूह । । काहीअ देखो काहिय ।
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काहीइदाण-किपुरिस
काहीइदाण न [कारिष्यतिदान ] प्रत्युपकार
की आशा से दिया जाता दान | काहे अ [का] कब, किस समय ? काहेणु स्त्री [] गुञ्जा कि देखो कि
।
कि सक [कृ] करना, बनाना ।
किअ देखो कय = कृत ।
किअ देखो किव = कृप । किअंत वि [ कियत्] कितना । किअंत देखो कयंत ।
किआडिआ स्त्री [कृकाटिका] गला का उन्नत
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कौष
दूसरा भी ।
किंचण न [किञ्चन ] चोरी | अ. कुछ । किंचण न [ किञ्चन ] द्रव्य, वस्तु । किचहिय व [ किञ्चिदधिक] कुछ ज्यादा | किंचि अ [ किञ्चित् ] अल्प | किंचिम्मत्त वि[किञ्चिन्मात्र ] बहुत थोड़ा । किंचूण वि [ किञ्चिदून ] कुछ कम, पूर्ण प्राय । किंजक्क पुं [किञ्जल्क] पुष्प - रेणु, पराग । किंजक्ख पुं [दे] शिरीष-वृक्ष |
किणेदं (शौ ) । अ [ किमिदम् किमेतत् ] यह क्या ?
किंतु अ [ किन्तु ] परन्तु । कियुग्घ देखो किंसुग्घ ।
भाग ।
किइ स्त्री [कृति ] क्रिया, विधान । 'कम्म न [कर्मन्] वन्दन । कार्य-करण | विश्रामणा । किस [[क] कौन, क्या, क्यों, निन्दा, प्रश्न, अतिशय अल्पता और सादृश्य को बतलानेवाला शब्द | ° उण अ [पुनः ] तब फिर, फिर क्या ? किकत्तव्वया देखो किंकायव्वया । किंकम्म पुं [किकर्मन्] इस नाम का एक गृहस्थ 1
किंकर पुं. नौकर, दास | सच्च पुं [ 'सत्य ] परमात्मा । विष्णु |
किंकाइअ देखो केकाइय |
किंकायव्या स्त्री [[कंकर्त्तव्यता ] क्या करना है यह जानना । मूढ वि. हक्का बक्का | किंकार पुन [क्रेङ्कार ] अव्यक्त शब्द- विशेष | किकिअ वि [दे] सफेद । किकिञ्चजड वि [किंकृत्यजड] हक्का बक्का | fifafa स्त्री [ङ्किणिका ] क्षुद्र घण्टिका, करधनी ।
fifaणी स्त्री [ofङ्कणी] ऊपर देखो । किंकिल्लि देखो कंकिल्लि | foगिरिड पुं [ किङ्किरि ] क्षुद्र कीट - विशेष,
त्रीन्द्रिय जीव की एक जाति ।
किंच अ. समुच्चय- द्योतक अव्यय, और भी,
किंदिय न [केन्द्र ] वर्त्तुल का मध्य-स्थल | ज्योतिष में इष्ट लग्न से पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ स्थान | किं पुं [कन्दुक] गेंद । किधर पुं [दे] छोटी मछली ।
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किनर [ किन्नर ] व्यन्तर देवों की एक जाति । भगवान् धर्मनाथ जी के शासनदेव का नाम । चमरेन्द्र की रथ- सेना का अधिपति देव | एक इन्द्र | देव- गन्धर्व, देव- गायक । ° कंठ पुं [° कण्ठ] किन्नर के कण्ठ जितना बड़ा एक
मणि ।
किनरी स्त्री [ किन्नरी] किन्नर देव की स्त्री । किंनु अ [[कंनु ] पूर्वपक्ष, आक्षेप, आशङ्का का
सूचक अव्यय । कंपय वि [दे] कृपण ।
किंपाग पुं [ किम्पाक ] वृक्ष - विशेष । न. उसका फल, जो देखने में और स्वाद में सुन्दर, परन्तु खाने से प्राण का नाश करता है । किंपि अ [ किमपि ] कुछ भी । किंपुरिस पुं [ किंपुरुष ] व्यन्तर देवों की एक जाति । किन्नर - निकाय के उत्तर दिशा का इन्द्र | वैरोचन बलीन्द्र की रथसेना का अधिपति देव | कंठ पुं [ कण्ठ] मणि की एक
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष किंबोड-किडिभ जाति, जो किम्पुरुष के कण्ठ जितना बड़ा करना । वर्णन करना । कहना। प्रतिपादन होता है।
करना । बोलना । किंबोड वि [दे] स्खलित, गिरा हुआ, भूला किट्ट स्त्रीन. धातु का मल, मैल । रङ्ग-विशेष । हआ।
तेल, घी वगैरह का मैल । किमज्झ वि [किंमध्य] निःसार ।
किट्टि स्त्री. अल्पीकरण-विशेष, विभाग-विशेष । किंवयंती स्त्री [किंवदन्तो] जनश्रुति । किट्रिया स्त्री कीटिका] वनस्पति-विशेष । किंसारु पुं [किंशारु] सस्य का तीक्ष्ण अग्र | किट्टिस न. खली, सरसों, तिल आदि का तेल भाग।
__ रहित चूर्ण । एक प्रकार का सूत, सृता। किंसुअ पुं [किंशुक] पलाश का पेड़, टेसू । किट्टिस न. ऊन आदि का बाकी बचा हुआ न. पलाश का पुष्प ।
अंश । उससे बना हुआ सूता। ऊन, ऊँट के किसुग्घ पुं [किंस्तुघ्न] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक | बाल आदि की मिलावट का सूता । स्थिरकरण ।
किट्टी देखो किट्ट = किट्ट । किक्किंडि पुं [दे] साँप।
किट्टीकय वि [किट्टीकृत] आपस में मिला किक्किंधा स्त्री [किष्किन्धा] नगरी-विशेष ।
| हुआ, एकाकार, जैसे सुवर्ण आदि का किट्ट किक्किंधि पु [किष्किन्धि] पर्वत-विशेष । उसमें मिल जाता है उस तरह मिला हुआ।
इस नाम का एक राजा । पुर न.नगर-विशेष । किट्ट वि [क्लिष्ट] क्लेश-युक्त । बाधा-युक्त। किच्च वि [कृत्य] करने-योग्य, फरज । पूज- | किट्ठ वि [कृष्ट] जोता हुआ, हल-विदारित । नोय । पु. गृहस्थ । न. शास्त्रोक्त अनुष्ठान, | न. देव-विमान-विशेष । क्रिया, कृति ।
किट्टि स्त्री [कृष्टि] कर्षण । खींचाव। देवकिच्चंत वि [कृत्यमान] काटा जाता । सताया | विमान-विशेष । कूड न [°कूट] देवविमानजाता ।
विशेष । °घोस न [°घोष] विमान-विशेष । किच्चण न [दे] प्रक्षालन ।
जुत्त न [युक्त] विमान-विशेष । ज्झय न किच्चा स्त्री [कृत्या] कर्त्तन । क्रिया, काम । [ध्वज] विमान-विशेष । °प्पभ न [प्रभ]
देव वगैरह की मूर्ति का एक भेद । जादू ।। देवविमानविशेष । °वण्ण न [°वर्ण] विमानमहामारी का रोग।
विशेष । सिंग न [शृङ्ग] विमान-विशेष । किच्चा देखो कर = कृ का संकृ.।
°सिटु न [°शिष्ट] एक देव-विमान । किच्चि स्त्री [कृत्ति मृग वगैरह का चमड़ा । किट्टियावत्त न [कृष्टयावत्तं] देवविमानचमड़े का वस्त्र । भूर्जपत्र । कृत्तिका नक्षत्र । । विशेष । °पाउरण पु [प्रावरण] महादेव । °हर किठुत्तरडिसग न [कृष्ट्यत्तरावतंसक] पु[धर] शिव ।
इस नाम का एक देवविमान । किच्चिरं अ [कियच्चिरम्] कब तक ? | किडग वि [क्रीडक] क्रीड़ा करनेवाला । किच्छ न [कृच्छ्] दुःख । वि. कष्ट-साध्य । किडि पु [किरि] सूकर । क्रिवि. दुःख से, मुश्किल से ।।
किडिकिडिया स्त्री [किटिकिटिका] सूखी किज्ज वि [क्रय] खरीदने-योग्य ।
हड्डी की आवाज । किज्जअ वि [कृत किया गया, निर्मित । किडिभ पु [किटिभ] एक प्रकार का क्षुद्र किट्ट सक [कीर्तय] श्लाघा करना, स्तुति । कोढ़।
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किडिया-किब्बिसिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
२३९ किडिया स्त्री [दे] खिड़की।
किण्ह देखो कण्ह। किड्ड अक [ क्रीड़ ] खेलना ।
किण्ह न [दे] बारीक कपड़ा । सफेद कपड़ा। किडकर वि [क्रीडाकर] क्रीड़ा-कारक । किण्हग पुं [दे] वर्षाकाल में घड़ा आदि में किडा स्त्री [क्रीडा] खेल । बाल्यावस्था। होनेवाली एक तरह की काई । किड्डाविया स्त्री [क्रोडिका] बालक को खेल । कूद करानेवाली दाई।
। कितव पुं. जूआरी। किढि वि [दे] सम्भोग के लिए जिसको एकान्त कित्त देखो किच्च। स्थान में लाया जाय वह ।
कित्त देखो किट्ट == कीर्त्तय । किढिण न [किठिन]संन्यासियों का एक पात्र। कित्तय वि [कीर्तक] कीर्तन-कर्ता । किण सक [क्री] खरीदना ।
कित्तवोरिअ देखो कत्तवीरिअ । किण पु. घर्षण-चिह्न। मांस-ग्रन्थि । सूखा- कित्ता देखो किच्चा = कृत्या । घाव।
कित्ति स्त्री [कोत्ति यश । एक विद्या-देवी । किणइय वि[दे] शोभित ।
केसरि-द्रह की अधिष्ठात्री देवी । देव-प्रतिमाकिणा देखो किण्णा।
विशेष प्रशंसा। नीलवन्त पर्वत का एक किणि वि क्रयिन्] खरीदनेवाला ।
शिखर । सौधर्म देवलोक की एक देवी। पुं. किणिकिण अक [किणिकिणय] किणकिण इस नाम का एक जैन मुनि, जिसके पास आवाज करना।
पाँचवें बलदेव ने दीक्षा ली थी। °कर वि. किणिय पु [किणिक] मनुष्य की एक जाति, यशस्कर । पुं. भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र जो बाजा बनाती और बजाती है। रस्सी | का नाम | °चंद पुं [°चन्द्र] नप-विशेष । बनाने का काम करनेवाली मनुष्य जाति । । धम्म पुं [°धर्म] इस नाम का एक राजा। किणिय न [किणित] वाद्य-विशेष ।
°धर पुं. नृप-विशेष । एक जैन मुनि, दूसरे किणिया स्त्री [किणिका]छोटा फोड़ा, फुनसी। बलदेव के गुरु । पुरिस पुं [°पुरुष] कोर्तिकिणिस सक [शाणय् ] तीक्ष्ण करना, तेज प्रधान पुरुष, वासुदेव वगैरह । °म वि [°मत्] करना।
कीति युक्त । °मई स्त्री [मती] एक जैन किणो अ [किमिति] क्यों, किसलिए ? साध्वी । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक स्त्री । य किण्ण वि [कीर्ण] उत्कीणं । क्षिप्त ।
वि [°द] कीर्तिकर । किण्ण पुं [किण्व] फलवाला वृक्ष-विशेष, | कित्ति स्त्री [कृत्ति चमड़ा। जिससे दारू बनता है । न. सुरा बीज, किण्व- कित्तिम वि [कृत्रिम] बनावटी। वृक्ष के बीज, जिसका दारू बनता है । सुरा | कित्तिय वि [कियत्] कितना। स्त्री. किण्व-वृक्ष के फल से बनी हुई मदिरा। किन्न वि [क्लिन्न] गीला । किण्ण वि [दे] शोभमान ।
किन्ह देखो कण्ह । किण्ण अ [किनम्] प्रश्नार्थक अव्यय । किपाड वि [दे] स्खलित, गिरा हुआ। किण्णर देखो किनर।
किब्बिस न [किल्बिष] पाप । मांस । पुं. किण्णा अ [कथम्] क्यों, कैसे ?
चाण्डाल-स्थानीय देव-जाति । वि. मलिन । किण्णु अ [किनु] इन अर्थों का सूचक अव्यय- अधम, नीच । पापी, दुष्ट । चितकबरा । प्रश्न । वितर्क । सादृश्य । स्थान । विकल्प । । किब्बिसिय पुं [किल्बिषिक] चाण्डाल-स्थानीय
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष किब्बिसिया-किरीय देव-जाति । केवल वेषधारी साधु । वि. अधम, किर पु[दे] स्अर । नीच । पापफल को भोगनेवाला दरिद्र, पंगु किर अ [किल] इन अर्थों का सूचक अव्ययवगैरह । भाण्ड-चेष्टा करनेवाला।
सम्भावना । निश्चय । हेतु, निश्चित कारण । किब्बिसिया स्त्री (कैल्बिषिकी] भावना- वार्ता-प्रसिद्ध अर्थ । अरुचि । असत्य । संशय । विशेष, धर्म गुरु वगैरह की निन्दा करने की पाद पूर्ति में भी इसका प्रयोग होता है ।
आदत । केवल वेष-धारी साधु की वृत्ति ।। किर सक [कृ] फेंकना । पसारना । बिखेरना । किम (अप) अ [कथम्] क्यों, कैसे ? किरण पुन. किरण, रश्मि प्रभा । किमण देखो किवण।
। किरणिल्ल वि [किरणवत्] किरणवाला, किमस्स पुं [किमश्च] नृप-विशेष ।। तेजस्वी। किमी पुं [कृमि] क्षुद्र जीव, कीट-विशेष । पेट किराड । पु [किरात] अनार्य देश-विदेश । में, फुनसी में और बवासीर में उत्पन्न होने- किराय , भील, एक जंगली जाति । वाला जन्तु-विशेष । द्वौन्द्रिय कीट-विशेष । किरात (शौ) देखो किराय । °य न r°ज] कृमि-तन्तु से उत्पन्न वस्त्र । किरि देखो किर - किल । राग, °राय पुं[राग] किरमिजी का रंग। किरि पु. भालू की आवाज ।
रासि पु[ राशि] वनस्पति विशेष । किरि पुं. स्कर। किमिघरवसण [दे] देखो किमिहरवसण। । किरिआण देखो कयाण । किमिच्छय न[किमिच्छक] इच्छानुसार दान।
किरिइरिया । स्त्री [दे] कर्णोपकणिका, किमिण वि [कृमिमत्] कृमि-युक्त ।
किरिकिरिआ , गप । कुतूहल । किमिराय वि [दे] लाक्षा से रक्त । किरिकिरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, बाँस किमिहरवसण न [दे] रेशमी वस्त्र ।। आदि की कम्बा-लकड़ी से बना हुआ एक किमु अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-प्रश्न । प्रकार का बाजा। वितकं । निन्दा । निषेध ।
किरित्त देखो किट। किमय अ [किमुत] इन अर्थों का सूचक किरिया स्त्री [क्रिया] क्रिया कृति, व्यापार,
अव्यय-प्रश्न । विकल्प । वितर्क । अतिशय ।। प्रयत्न । शास्त्रोक्त अनुष्ठान, धर्मानुष्ठान । किम्मिय न [दे. किम्मित] जड़ता। सावध व्यापार । ट्ठाण न [°स्थान] कर्मबन्ध किम्मीर वि [किर्मीर] कर्बुर । पु. राक्षस- का कारण । °वर वि [°पर] अनुष्ठान-कुशल । विशेष ।
वाइ वि [°वादिन] आस्तिक, जीवादि का किय देखो कीय।
अस्तित्व माननेवाला। केवल क्रिया से ही कियंत वि [कियत्] कितना ।
मोक्ष होता है ऐसा माननेवाला । विसाल न कियत्थ देखो कयत्थ ।
[विशाल] एक जैन ग्रन्थांश, तेरहवां पूर्वकियव्व देखो कइअव ।
ग्रन्थ । किया देखो किरिया।
किरोड पु [किरीट] मुकुट । कियाडिया स्त्री [दे] कान का ऊपरी भाग । | किरीडि पु [किरीटिन्] अर्जुन । कियाणं देखो कर = कृ का संकृ.।
किरीत वि [क्रीत] खरीदा हुआ। कियाणग न [क्रयाणक] किराना, नमक, किरीय पु. एक म्लेच्छ देश । उसमें उत्पन्न मसाला आदि बेचने योग्य चीजें ।
म्लेच्छ जाति ।
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किरोलय-किसर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष किरोलय न [किरोलक] फल-विशेष, किरो- | किलिम्म देखो किलम्म । लिका वल्ली का फल ।
किलिम्मिअ वि [दे] कथित । किल देखो किर = किल ।
किलिव देखो कीव । किलंत वि [क्लान्त] खिन्न, श्रान्त ।। किलिस अक [क्लिश्] थक जाना, दुःखी किलंज न [किलिञ्ज] बाँस का एक पात्र, होना। जिसमें गैया वगैरह को खाना खिलाया जाता किलिस देखो किलेस। है। तृण-विशेष ।
किलिस्स देखो किलिस - क्लिश् । किलकिल अक [किलकिलाय] 'किलकिल' किलीण देखो किलिन्न । आवाज करना, हँसना ।
किलीव देखो कीव । किलणी स्त्री [दे] रथ्या, गली। | किलेस अक [क्लिश्] क्लेश पाना, हैरान किलम्म अक [क्लम्] क्लान्त होना, खिन्न
होना। होना ।
किलेस पुं [क्लेश] खेद, थकावट । दुःख, किलाचक्क न [क्रीडाचक्र] इस नाम का एक पीड़ा, बाधा । दुःख का कारण । कर्म, शुभाछन्द ।
शुभ-कर्म । °यर वि [कर क्लेशजनक । किलाड पु [किलाट] दूध का विकार-विशेष | किल्ला देखो किड्डा । मलाई।
| किव पुंशकृप] कृपाचार्य । किलाम सक [क्लमय] क्लान्त करना, खिन्न
किवं (अप) देखो कह। करना, ग्लानि उत्पन्न करना । हैरान करना । किवण वि [कृपण] गरीब । निर्धन । कंजूस । पीड़ा करना । कवक किलामीअमाण । कायर। किलिंच न [दे] छोटी लकड़ी का टुकड़ा। किवा स्त्री [कृपा] दया, मेहरबानी । °वन्न किलिंचिअ न [दे] ऊपर देखो।
वि [पत्र] कृपा-प्राप्त, दयालु । किलित देखो किलंत।
किवाण पुंन [कृपाण] खड्ग । किलिकिच अक [रम्] रमण करना, क्रीड़ा | किवालु वि [कृपालु] दयालु । करना।
किविड न [दे] खलिहान, अन्न साफ करने का किलिकिल अक [किलकिलाय] 'किल-किल' | स्थान । वि. खलिहान में जो हुआ हो वह । आवाज करना।
किविडी स्त्री [दे] किवाड़, पार्श्व-द्वार । घर किलिकिलि न [किलकिलि] इस नाम का का पिछला आँगन । एक विद्याधरनगर।
किविण देखो किवण। किलि किलिकिल देखो किलकिल। किवोडजोणि पुं [कृपीटयोनि] अग्नि । किलिगिलिय न [किलिकिलित] 'किल-किल' किस सक [क्रशय] अपचित करना ।
आवाज करना, हर्ष-द्योतक ध्वनि-विशेष ।। किस वि [कृश] निर्बल । पतला । किलिट्ठ वि [क्लिष्ट] क्लेश-युक्त। कठिन
किसंग वि [कृशाङ्ग] दुर्बल शरीरवाला। विषम । क्लेश-जनक ।।
किसर पुं कृशर] पक्वान्न-विशेष, तिल, किलिण्ण देखो किलिन्न ।
चावल और दूध की बनी हुई एक खाद्य किलित्त वि [क्लप्त] कल्पित, रचित ।
चीज । खिचड़ी। किलिन्न वि [क्लिन्न] आई ।
किसर देखो केसर।
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युवती।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष किसरा-कीलिअ किसरा स्त्री [कृशरा] खिचड़ी ।
कीय वि [क्रीत] खरीदा हुआ, मोल लिया किसल देखो किसलय।
हुआ । जैन साधुओं के लिए भिक्षा का एक किसलय पुंन [किसलय] नूतन अंकुर । कोमल
दोष । न. खरीद । °कड, गड वि [कृत] पत्ता । °माला स्त्री. छन्द-विशेष ।
मल्य देकर लिया हुआ । साधु के लिए मोल किसा देखो कासा।
से खरीदा हुआ, जैन साधु के लिए भिक्षाकिसाणु पुं [कशानु] अग्नि । चित्रक वृक्ष । दोषयुक्त वस्तु । तीन की संख्या ।
कीयग पुंकीचक] विराट देश के राजा का किसि स्त्री [कषि] खेती।
साला। किसिअ वि [कषित] विलखित, रेखा किया कोया स्त्री [कीका] नयन-तारा ।
हुआ । जोता हुआ, कृष्ट ! खींचा हुआ। कीर पुं [दे. कीर] शुक । किसीवल पुं [कृषीवल] किसान ।
कीर पु. काश्मीर देश । वि. काश्मीर देश किसोर पं [किशोर] बाल्यावस्था के बाद की। सम्बन्धी । वि. काश्मीर देश में उत्पन्न । अवस्थावाला बालक ।
कीरल पु. देश-विशेष । किसोरी स्त्री [किशोरी] कुमारी, अविवाहिता
कीरिस देखो केरिस।
कीरी स्त्री. कीर देश की लिपि । किस्स देखो किलिस = क्लिश् ।
कील अक [क्रीड्] खेलना । किह । देखो कहं।
कील वि [दे] अल्प।
कोल देखो खोल। कीअ देखो कीव । कोइस वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का।
कील पुंन [दे. कोल] गला ।
कीलण न [कीलन] खीले में नियन्त्रण । कीकस पु [कीकश] कृमि-जन्तु-विशेष । न.
कीलण न [क्रीडन] खेल। धाई स्त्री हड्डी, हाड़ । वि. कठिन, कठोर । कोच देखो कीयग।
[ धात्री] बालक को खेल-कूद करानेवाली कीड देखो किड्डु = क्रीड् ।
दाई। कीड पु[कीट] कीड़ा, क्षुद्र-जन्तु । कीट-विशेष, । कोलणअ न [क्रीडनक] खिलौना । . चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति ।
कोलणिआ । स्त्री [दे] रथ्या, गली । कीडइल्ल विकीटवत कीड़ावाला,कीटकयक्त।। कालणा। कीडय न [कीटज] कीड़े के तन्तु से उत्पन्न कोला स्त्री [दे] नव-वधू । होनेवाला वस्त्र।
कीला स्त्री. सुरत समय में किया जाता हृदयकीडा देखो किड्डा।
ताड़न-विशेष । कीडाविया देखो किड्डाविया।
कीला स्त्री. [क्रीडा] क्रीडन । °वास पु. क्रीड़ा कीडिया स्त्री कीटिका] पिपीलिका । करने का स्थान । कीडी स्त्री [कोटी] ऊपर देखो ।
कीलाल न. रुधिर । कीण सक [क्री] मोल लेना।
कीलावण न [क्रीडन] खेल कराना। कीणास पाकीनाश] यम । 'गिह [गह] कीलावणय न [क्रीडनक] खिलौना । मौत।
कीलिअ न [क्रीडित] क्रीड़ा, रमण । कीदिस (शौ) देखो कीरिस ।
कोलिअ वि [कोलित] खूटा ठोका हुआ।
किहं )
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कोलिआ-कुऊल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कीलिआ स्त्री कीलिका] खूटी। शरीर- क्षुद्र जन्तु । वि. कुतीर्थिक, दूषित धर्म का संहनन-विशेष, शरीर का एक प्रकार का अनुयायी। °लिंगि पु [लिङ्गिन्] कीट बाँधा, जिसमें हड्डियाँ केवल खूटी से बंधी हुई वगैरह क्षुद्र जन्तु । वि. कुतीर्थिक, असत्य धर्म हों ऐसा शरीर-बन्धन ।
का अनुयायी। वय न [°पद] खराब शब्द । कीव पु [क्लीब] नपुंसक । वि. कातर,
°वियप्प पु[विकल्प] कुत्सित विचार । अधीर ।
°वुरिस देखो °उरिस । संसग्गपु[°संसगं] कोव पु [दे. कीव] पक्षि-विशेष ।
दुर्जन-संगति । सत्थ पुन [°शास्त्र] कीस वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का। कुत्सित शास्त्र, अनाप्त-प्रणीत सिद्धान्त । कीस वि [किस्व] कैसे स्वभाव का ।
°समय पु. अनाप्त प्रणीत शास्त्र । वि. कुतीकीस अ [कस्मात्] क्यों, किस कारण से ?
थिक, कुशास्त्र का प्रणेता और अनुयायी। कोस देखो किलिस्स।
°सल्लिय वि [°शल्यिक] जिसके भीतर कु अ. थोड़ा । निषिद्ध, निवारित । कुत्सित ।
खराब शल्य घुस गया हो यह । °सील न विशेष, ज्यादा । °उरिस पु [पुरुष]
[°शील] खराब स्वभाव । व्यभिचार । वि.
दुराचारी। अब्रहाचारी। °स्सूमिण पुन दुर्जन । 'चर वि. खराब चाल-चलनवाला, सदाचार-रहित । °डंड पुं [°दण्ड] जिसका
[°स्वप्न] खराब स्वप्न । °हण वि [°धन] प्रान्त भाग काष्ठ का होता है ऐसा रज्जु-पाश ।
अल्प धनवाला। डंडिम वि [°दण्डिम] दण्ड देकर छीना
कु स्त्री. पृथिवी, भूमि । °त्तिअ न [त्रिक] हुआ द्रव्य । 'तित्थ न [°तीर्थ] जलाशय
स्वर्ग, मर्त्य और पाताल लोक । तीन जगत् में उतरने का खराब मार्ग। दूषित दर्शन ।
में स्थित पदार्थ । "त्तिअ वि ["त्रिज] तीनों 'तिथि वि ["तीथिन्] दूषित मत का
जगत् में उत्पन्न वस्तु । °त्तिआवण पुन अनुयायी । दंडिम देखो °डंडिम। °दसण
[°त्रिकापण] तीनो जगत् के पदार्थ जहाँ मिल न ["दर्शन] दुष्ट मत, दूषित धर्म । °दंसणि
सकें ऐसी दूकान । 'वलय न. पृथ्वी-मण्डल । वि [°दर्शनिन्] दुष्ट दार्शनिक । दूषित मत
कुअरी देखो कुआँरी। का अनुयायी। दिट्ठि स्त्री [°दृष्टि] कुत्सित
कुअलअ देखो कुवलय। दर्शन । दूषित मत का अनुयायी। °दिट्ठिय
कुआँरी देखो कुमारो। वि [ दृष्टिक] दुष्ट दर्शन का अनुयायी,
| कुइअ वि [कुचित] सकुचा हुआ । मिथ्यात्वी । प्पवयण न [प्रवचन] दूषित
कुइमाण वि [दे] म्ान, शुष्क । शास्त्र । वि. दूषित सिद्धान्त को मानने- कुइय वि [कुचित अवस्यन्द्रित, क्षरित । वाला। °प्पावयणिय वि [प्रावनिका कुइय वि [कुपित] क्रुद्ध । दूषित सिद्धान्त का अनुसरण करनेवाला। कुइयण्ण पु [कुविकर्ण] इस नाम का एक दूषित आगमन-सम्बन्धी (अनुष्ठान)। भत्त | गृहपति, एक गृहस्थ । न [भक्त] खराब भोजन । "मार पु. कुउअ पुंन [कुतुप घी-तैल वगैरह भरने का कुत्सित मार । मृत-प्राय करनेवाला ताड़न । चमड़े का पात्र-विशेष । देखो कुतुव ।
रंडा स्त्री [ रण्डा] विधवा । ‘रुव, रूव कुउआ स्त्री [दे] तुम्बी-पात्र, तुम्बा । न [°रूप] खराब रूप । माया-विशेष । लिंग कुउव देखो कुउअ। न [°लिङ्ग] कुत्सित भेष। पु. कीट वगैरह। कुऊल न [दे] नीवी । नारा । अञ्चल ।
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२४४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
कुऊहल-कुंडल कुऊहल न [कुतूहल] अपूर्व वस्तु देखने की । पाखण्ड-विशेष । वि. मन्त्रतन्त्रादि से आजीलालसा । कौतुक, परिहास ।
विका चलानेवाला। कुओ अ [कुतः] कहाँ से ? °इ अ [°चित्] कंटार वि [दे] म्लान, सूखा, मलिन । कहीं से, किसी से । °वि अ [°अपि] कहीं कंटि स्त्री [दे] गठरी, गाँठ। शस्त्र-विशेष, से भी।
एक प्रकार का औजार । कुंआरी स्त्री [कुमारी] वनस्पति-विशेष, कंठ वि [कुण्ठ] मन्द, आलसी । मूर्ख । अनिकुवारपाठा, घीकुवार, घीगुवार ।
पुण । कुंकण न [दे] रक्त-कमल । पु. क्षुद्र जन्तु- कुंठो स्त्री [दे] सँड़सी, चीमटा । विशेष, चतुरिन्द्रिय कीड़े की एक जाति ।।
कंड न. कुंडा, पात्र-विशेष । जलाशय-विशेष । कुंकण पु [कोङ्कण] देश-विशेष ।
इस नाम का एक सरोवर । आज्ञा, आदेश । कुंकुण देखो कुंकण।
"कोलिय पु [°कोलिक] एक जैन उपासक । कुंकुम न. केसर, सुगन्धी द्रव्य-विशेष ।
ग्गाम पु [°ग्राम] मगध देश का एक कुंग पु. देश-विशेष ।
गाँव । धारि वि [°धारिन्] आज्ञाकारी । कुंच सक [कुञ्च] जाना, चलना । अक. संकु- पर न. ग्राम-विशेष । चित होना । टेढ़ा चलना।
कंड न [दे] ऊख पेरने का जीर्ण काण्ड, जो कुंच पु [क्रौञ्च] पक्षि-विशेष । इस नाम का | बाँस का बना हआ होता है । एक असुर । इस नाम का एक अनार्य देश। कुंडग पुन [कुण्डक] अन्न का छिलका । वि. उसके निवासी लोग । °रवा स्त्री. दण्ड- | चावल से मिश्रित भूसा । कारण्य की इस नाम की एक नदी । °वीरग| कुंडभी स्त्री [दे. कुटभी] छोटी पताका । न [°वीरक] एक प्रकार का जहाज । °ारि
कुंडमोअ पुन [कुण्डमोद] हाथी के पैर की पु. स्कन्द । देखो कोंच।
आकृतिवाला मिट्टी का एक तरह का पात्र । कुंचल न [दे] कली। कुंचि वि [कुञ्चिन्] कुटिल । कपटी ।
कुंडल पुंन [कुण्डल] एक देव-विामन । तपकुंचिगा देखो कोंचिगा।
विशेष, ‘पुरिमड्ढ' या निर्विकृतिक तप । कान कुंचिय वि [कुञ्चित] संकुचित । कुण्डल के
का आभूषण । पु. विदर्भ देश के एक राजा
का नाम । द्वीप-विशेष । समुद्र-विशेष । देवआकारवाला, गोलाकृति । वक्र ।
विशेष । पर्वत-विशेष । गोल आकार । भद्द कुंचिय पु [कुश्चिक] इस नाम का एक जैन
पु[भद्र] कुण्डल द्वीप का एक अधिष्ठायक उपासक।
देव । मंडिअ वि [°मण्डित] कुण्डल से कुंचिया देखो कोंचिगा। रूई से भरा हुआ
विभूषित । विदर्भ देश का इस नाम का एक पहनने का एक प्रकार का कपड़ा।
राजा। महाभद्द पु [°महाभद्र] देवकुंचिया स्त्री [कुञ्चिका] कुञ्जी, ताली।
विशेष । °महावर पु. कुण्डलवर समुद्र का कंजर पु.हस्ती । °पुर न. हस्तिनापुर । °सेणा अधिष्ठाता देव । °वर पु. द्वीप-विशेष । समुद्र स्त्री [°सेना] ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक विशेष । पर्वत-विशेष । °वरभद्द पु [°वर
रानी । वित्त न [°ावर्त] नगर-विशेष । भद्र] कुण्डलवर द्वीप का एक अधिष्ठायक कुंट वि [कुण्ट] कुब्ज, वामन । हाथ-रहित । देव । °वरमहाभद्द पु [°वरमहाभद्र] कुंटलविंटल न [दे] मन्त्र-तन्त्रादि का प्रयोग, ' कुण्डलवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव ।
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कुंडला-कुंभ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२४५ °वरोभास पु [°वरावभास] द्वीप-विशेष । कुंताकुंति न [कुन्ताकुन्ति] बर्छ की लड़ाई । समुद्र-विशेष । °वरोभासभ६ पु [°वराव- | कंती स्त्री [दे] मंजरी, बौर । भासभद्र] कुण्डलवरावभास द्वीप का अधि- | कुंती स्त्री [कुन्ती] पाण्डवों की माता का ष्ठाता देव । °वरोभासमहाभद्द पु[°वराव- | नाम । °विहार पु. नासिक-नगर का एक भासमहाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थ । °वरो
जैन मन्दिर । भासमहावर पु [°वरावभासमहावर] | कुंतीपोट्टलय वि [दे] चतुष्कोण, चारकोणकुण्डलवरावभास समुद्र का अधिष्ठायक देव
वाला, चौकोर । विशेष । °वरोभासवर पु[°वरावभासवर]
कथु पु [कुन्थु] एक जिन-देव, इस अवसमुद्र-विशेष का अधिपति देव-विशेष ।।
सर्पिणी काल में उत्पन्न सत्तरहवाँ तीर्थङ्कर कुंडला स्त्री [कुण्डला] विदेहवर्ष-स्थित नगरी
और छठवाँ चक्रवर्ती राजा। हरिवंश का विशेष ।
एक राजा । चमरेन्द्र की हस्ति-सेना का कुंडलिआ वि [कुण्डलिका] छन्द-विशेष ।।
अधिपति देव-विशेष । एक क्षुद्र जन्तु, त्रीन्द्रिय कुंडलोद पु [कुण्डलोद] इस नाम का एक
जन्तु की एक जाति । रामुद्र । कुंडाग पु [कुण्डाक] सन्निवेश-विशेष, ग्राम
कुंद पु [कुन्द] पुष्प-वृक्ष विशेष । न. पुष्पविशेष ।
विशेष, कुन्द का फूल । विद्याधरों का एक
नगर । न. छन्द-विशेष । कुंडि देखो कुडी।
कुंदय वि [दे] कृश, दुर्बल । कुंडिअ पुं[दे] गाँव का मुखिया । कुंडिअपेसण न [दे] ब्राह्मण विष्टि, ब्राह्मण
कुंदा स्त्री कुन्दा] मानिभद्र इन्द्र की पट
रानी। की नौकरी, ब्राह्मण की सेवा ।
कुंदीर न [दे] बिम्बी-फल, कुन्द्ररुन का फल । कुडिगा) स्त्री [कुण्डिका] नीचे देखो। कुडिया
कुंदुक्क पु [कुन्दुक्क] वनस्पति-विशेष । कुडिण न [कुण्डिन] विदर्भ दंश का एक
कुन्दुरुक्क पु [कुन्दुरुक] सुगन्धि पदार्थ विशेष ।
कुंदुल्लुअ पं [दे] उलूक । नगर । कुडी स्त्री [कुण्डी] कुण्डा, पात्र-विशेष ।
कुंधर पुं [दे] छोटी मछली। कुंढ देखो कुंठ।
कुंपय पुन [कूपक] तैल वगैरह रखने काकुंढय न [दे] चूल्हा । छोटा बरतन ।
पात्र-विशेष । कुंत पु [दे] तोता।
कुंपल पुंन [कुट्मल, कुड्मल] इस नाम का कुंत पु [कुन्त] भाला । राम के एक सुभट
एक नरक । कली। का नाम ।
कुंबर [दे] देखो कुंधर। कुंतल पु [कुन्तल] केश । देश-विशेष । | कुंभ पुं. साठ, अस्सी और एक सौ आढ़क की
हार पु. धम्मिल, बाँधे हुए बाल । नाप । ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि । एक बाजा। कुतल पु [दे] सातवाहन । नृप-विशेष । भगवान् मल्लिनाथ का पिता । स्वनाम-ख्यात कुंतला स्त्री [कुन्तला] एक रानी।
जैन महर्षि, अठारहवें तीर्थङ्कर के प्रथम शिष्य । कुंतली स्त्री [दे] करोटिका ।
कुम्भकर्ण का एक पुत्र । एक विद्याधर सुभट कुतली स्त्री [कुन्तली] कुन्तल देश की रहने का नाम । परमाधार्मिक देवों की एक जाति । वाली स्त्री।
कलश । हाथी का गण्ड-स्थल । धान्य मापने
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२४६
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वाय पुं
का एक परिमाण । तरने का उपकरण । लाट | अण पुं [कर्ण] रावण के छोटे भाई का नाम । 'आर पुं [ 'कार ] कुम्हार । उर न [° पुर] नगर विशेष । 'गार देखो [आर]। 'ग्गन [[]] मगध देश-प्रसिद्ध एक परिमाण | सेण पुं | सेन] उत्सर्पिणी काल के प्रथम तीर्थङ्कर के प्रथम शिष्य का नाम कुंभंड न [ कूष्माण्ड ] कोहड़ा, कुम्हड़े का फल | कुंभार पुं [कुम्भकार ] कुम्हार | [ THE ] कुम्हार का बरतन पकाने का स्थान । कुंभि पुं [कुम्भिन् ] हाथी । नपुंसक - विशेष | कुंभक्क देखो कुंभ | कुंभणी स्त्री [ ] जल का गर्त । कुंभियवि [कुम्भिक ] कुम्भ- परिमाणवाला । कुंभिल [ दे. कुम्भिल ] चोर | दुर्जन । कंभिल्ल व [] खोदने- योग्य | कुंभी स्त्री [कुम्भो] घड़े के आकारवाला छोटा कोष्ठ । घड़ा | °पाग पु ं ['पाक ] कुम्भी में पकना । नरक की एक प्रकार की यातना । कुंभी स्त्री [कूष्माण्डो] कोहँड़ा का गाछ । कुंभी स्त्री [दे] केशरचना, केश-संयम | कुंभील पुं [कुम्भील] मगर । कुंभुब्भव पुं [कुम्भोद्भव] अगस्त्य ऋषि । कुकम्मिवि [कुकर्मिन्] खराब कर्म करने
वाला ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कुंभंड- कुच्चंधरा
के अवयवों की कुचेष्टा करनेवाला । कुक्कुअ न [ कौकुच्य ] कुचेष्टा, कामोत्पादक अङ्ग-विकार ।
कुक्कुअवि [ कुकूज ] आक्रन्दन करनेवाला | कुक्कुआ स्त्री [कुचकुचा ] अवस्यन्दन, रस
रस कर चूना ।
कुक्कुइअ वि [कौकुचिक ] भाँड़ की तरह कुचेष्टा करनेवाला, काम- चेष्टा करनेवाला । कुक्कुइअ न [ कौकुच्य ] काम-कुचेष्टा ।
[ कुर्कुट ] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक
कुक्कुड
जाति ।
कुक्कुड [ कुक्कुट ] मुर्गा | वनस्पति- विशेष | विद्या द्वारा किया जाता हस्त-प्रयाग विशेष । 'मंसय न [ मांसक ] मुर्गा का मांस । बीजपूरक वनस्पति का गुदा । कुक्कुड व [दे] मत्त, उन्मत्त । कुक्कुडय न [ कुक्कुटक ] देखो कुक्कयय । कुक्कुड़िया स्त्री [कुक्कुटिका ] मुर्गी । कुक्कुडी स्त्री [कुक्कुटी ] कपट | कुक्कुडेसर न [कुक्कुटेश्वर ] तीर्थ विशेष । कुक्कुर . श्वान |
कुक्कुरुड [ ] समूह |
कुक्कुस ' [ दे] धान्य आदि का छिलका । कुक्कुह पु' [कुक्कुभ] पक्षि-विशेष । कुक्कुहाइअ न [दे] चलते समय का अश्व का शब्द - विशेष |
कुकुला स्त्री [ दे] नवोढ़ा |
कुकुस [दे] देखो कुक्कुस ।
afra [दे. कुक्षि ] देखो कुच्छि ।
कुकुहाइय न [कुकुहायित ] चलते समय का | कुक्खिंभरि देखो कुच्छिभरि ।
शब्द - विशेष |
कुक्खेअअ देखो कुच्छेअय ।
कुग्गाह [कुग्राह] हठ । जलजन्तु विशेष । कुच पु. स्तन ।
कुचोज्ज न [कुचोद्य] कुतर्क ।
कुकूल पु. कण्डे की आग ।
कुक्क देखो कोक्क ।
कुक्क पुं [दे] कुत्ता, कुक्कुर ।
कुक्कयय न [दे] आभरण-विशेष | देखो कुक्कु | कुच्च पुं ं [कूर्च] कँधी ।
डय ।
कुच्च न [कूर्च ] दाढ़ी-मूंछ । तृण-विशेष देखो
कुक्की स्त्री [दे] कुत्ती, कुक्कुरी । कुक्कुअवि [कुत्कुच] भाँड की तरह शरीर | कुच्चंधरा स्त्री [ कूर्चधरा ] दाढ़ी-मूंछ धारण
कुच्चग ।
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कुच्चग-कुडिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२४७ करनेवाली।
कुट्टणा स्त्री [कुट्टना] शारीरिक पीड़ा। कुच्चग वि [कौर्चक] शर-नामक गाछ का बना कुट्टणी स्त्री [कुट्टनी] मूसल । दूती । हुआ।
कुट्टयरी स्त्री [दे] चण्डी, पार्वती । कुच्चग ) देखो कुच्च । कूँची, तृण-निर्मित | कुट्टा स्त्री [दे] पार्वती। कुच्चय । तूलिका।
कुट्टाय पु[दे] मोची। कुच्चिय वि [कुचिक] दाढ़ी-मूंछवाला। कुट्टितिया देखो कोट्टंतिया। कुच्छ सक [कुत्स्] निन्दा करना, धिक्कारना । | कुट्टिब [दे] देखो कोट्टिब । कुच्छ पु [कुत्स] ऋषि-विशेष । गोत्र-विशेष । | कुट्टिणी स्त्री [कुट्टिनी] दूती । कुच्छग पु [कुत्सक] वनस्पति-विशेष ।। कुट्टिम देखो कोट्टिम = कुट्टिम । कुच्छा स्त्री [कुत्सा] निन्दा, घृणा । कुट्ट पुन [कुष्ठ] पंसारी के यहाँ बेची जाती कुच्छि पुंस्त्री [कुक्षि] पेट। अड़तालीस कुठ । कोढ़ । अंगुल का मान । °किमि पु[कृमि] उदर में कुटु पु [कोष्ट] उदर । कोठा, कुशूल, धान्य उत्पन्न होनेवाला कीड़ा द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष । भरने का बड़ाभाजन । बुद्धि वि. एक बार धार पु जहाज का काम करनेवाला नौकर। जानने पर नहीं भूलनेवाला । देखो कोट, एक प्रकार का जहाज का व्यापारी। पूर | कोट्रग ।। पु. उदर-पूर्ति । वेयणा स्त्री [°वेदना] | कुट वि [क्रुष्ट]अभिशप्त । न. अभिशाप-शब्द । उदर का रोग-विशेष । °सूल पुन [°शूल] | कुटुग पुन [कोष्ठक] शून्य घर । रोग-विशेष ।
कुट्ठा स्त्री [कुष्ठा] इमली। कुच्छिभरि वि [कुक्षिम्भरि] पेटू. स्वार्थी । कुड पु [कुट] घड़ा, कलश । पर्वत । हाथी कुच्छिमई स्त्री [दे. कुक्षिमती] गर्भिणी। वगैरह का बन्धन-स्थान । पेड़ । कंठ पु. कुच्छिमद्दिका (मा) देखो कुच्छिमई ।। घड़ा के जैसा पात्र । 'दोहिणी स्त्री कुच्छिय वि [कुत्सित] खराब, निन्दित । [°दोहिनी] घड़ा भर दूध देनेवाली। कुच्छिल्ल न [दे] बाड़ का छिद्र । विवर ।
कुडंग पुन [कुटङ्क कुञ्ज । वन । बाँस की कुच्छेअय पु कौक्षेयक] तलवार ।
__ जाली, बाँस की बनी हुई छत । कोटर । कुज पु. वृक्ष ।
वंशगहन । कुजय पु. जूआरी।
कुडंग पुंन [दे. कुटङ्क] लता-गृह । कुज्ज वि [कुब्ज] कुब्ज, वामन । पुन. पुष्प- | कुडंगा स्त्री [कुटङ्का] लता-विशेष । विशेष ।
कुडंगी स्त्री [दे. कुटकी] बाँस को जाली । कुजय पु [कुब्जक] शतपत्रिका वृक्ष । न.
कुडंब देखो कुडुंब। उस वृक्ष का पुष्प ।
कुडभी स्त्री [कुटभी] छोटी पताका । कुज्झ सक [क्रुध्] गुस्सा करना।
कुडय न [दे] लता-गृह, कुटीर । कुट्ट सक [कु] कूटना, पीटना । काटना, | कुडय पुन [कुटज] कुरैया वृक्ष ।
छेदना । गरम करना । उपालम्भ देना। कुडव पु [कुडव] अनाज या अन्न नापने का कुट्ट पु [कुट] घड़ा।
एक माप । कुट्ट पुन [दे] कोट, किला । नगर । °वाल पु | कुडाल देखो कुड्डाल । [°पाल] कोतवाल ।
| कुडिअ वि [दे] वामन ।
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२४८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कुडिआ-कुत्थुह कुडिआ स्त्री [दे] बाड़ का विवर । । कुणक्क पु [कुणक] वनस्पति-विशेष । कुडिच्छ न [दे] बाड़ का छिद्र । झोंपड़ी । वि. | कुणव न [कुणप] मृत-शरीर । वि. दुर्गन्धी। त्रुटित, छिन्न ।
कुणाल पुं. ब. देश-विशेष । प्रसिद्ध महाराज कुडिल वि [कुटिल] टेढ़ा ।
अशोक का एक पुत्र । 'नयर न [°नगर] कुडिलविडल न [दे. कुटिलविटल] हस्त- उज्जैन । शिक्षा।
कूणाला स्त्री. इस नाम की एक नगरी । कुडिल्ल न दे] विवर । वि. कुब्ज । कुणि । पु [कुणि] हाथ-कटा मनुष्य । कुडिल्लय वि [दे. कुटिलक] कुटिल, टेढ़ा ।
कुणिअ ) जन्म से ही जिसका एक पांव कूडिब्बय देखो कूलिव्वय ।
छोटा हो वह । जिसका एक पाँव छोटा हो कुडी स्त्री [कुटी] कुटीर ।
वह, खञ्ज । कुडीर न [कुटीर] कुटी।
कुणिआ स्त्री [दे] बाड़ का छिद्र। कुडीर न [दे] बाड़ का छिद्र।
कुणिम पुंन [दे. कुणप] मुरदा । मांस । कुडंग पु[दे] लतागृह ।
नरकावास-विशेष । शव का रुधिर, वसा कुडुब न [कुटुम्ब] परिजन, परिवार ।
वगैरह। कुडुंबय पु [कुस्तुम्बक] धनियाँ। कन्द- | कुणकुण अक [कुणुकुणाय] शीत से कम्प होने विशेष ।
पर 'कड़कड़' आवाज करना । कुडुबि वि [कुटुम्बिन्] गृहस्थ । कर्षक । | | कुण्हरिया स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष । सम्बन्धी।
कुतत्ती स्त्री [दे] मनोरथ । कुडुंबीअ न दे] मैथुन ।
कुतुंब पु [कुस्तुम्ब] वाद्य-विशेष । कुडुंभग पु [दे] पानी का मेढक । कुतुंबर पु [कुस्तुम्बर] वाद्य-विशेष । कुडुक्क पु[दे] लता-गृह ।
कुतुव पुन [कुतुप] तेल वगैरह भरने का कुडुच्चिअ न [दे] संभोग ।
चमड़े का पात्र । देखो कुउअ । कुडुल्ली (अप) स्त्री [कुटी] कुटिया । | कुत्त पु[दे] कुत्ता। कुड्ड पुन [कुड्य] भित्ति ।
कुत्त न [दे. कुतक] ठेका, इजारा । कुड्ड न [दे] आश्चर्य ।
कुत्तार वि [कुतार] अयोग्य तारक । कुड्डगिलोई [दे] छिपकली।
कुत्तिय पुस्त्री [दे] एक तरह का कीड़ा, चतुकुडलेवणी स्त्री [दे. कुढयलेपनी]सुधा, चूना। रिन्द्रिय जन्तु-विशेष । कुड्डाल न [दे] हल के ऊपर का विस्तृत अंश । कुत्थ अ [कुत्र] कहाँ ? कुढ पुन [दे] चुराई हुई वस्तु की खोज में | कुत्थ सक [कोथय] सड़ाना । जाना। छीनी हुई चीज को छुड़ानेवाला, । कुत्थ देखो कढ । वापस लेनेवाला।
| कुत्थर न [दे] विज्ञान । कोटर । सर्प वगैरह का कुढार पु[कुठार] फरसा ।
बिल। कुढावय न [दे] अनुगमन ।
कुत्थल देखो कोत्थल। कुढिय वि [दे] मूर्ख, जिसके माल की चोरी |
कुत्धुंब पु [कुस्तुम्ब] वाद्य-विशेष । हो गई हो वह ।
कुत्थंभरी स्त्री [कुस्तुम्बरी] वनस्पति-विशेष । कुण सक [क] करना, बनाना ।
कुत्थुह पुंन [कौस्तुभ] मणि-विशेष, जो विष्णु
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कुत्थुहवस्थ-कुमुअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२४९ की छाती पर रहती है।
कुब्बर पुं [कूबर] वैश्रमण के एक पुत्र का कुत्थुहवत्थ न [दे] नीवी, इजारबन्द । नाम । कुदो देखो कुओ।
कभंड पुं [कुभाण्ड] देव-विशेष की जाति । कुद्द वि [दे] प्रभूत ।
कुभंडिंद पुं [कुभाण्डेन्द्र] इन्द्र-विशेष, कुद्दण पुं [दे] रासक ।
कुभाण्ड देवों का स्वामी । कुद्दव पुं [कोद्रव] धान्य-विशेष, कोदों, कुमर देखो कुमार ।। कोदव ।
कुमार पुं. प्रथम-वय का बालक, पाँच वर्ष तक कुद्दाल पुं. कुदारी । वृक्ष-विशेष ।
का लड़का। युवराज, राज्याह पुरुष । कुद्ध वि [क्रद्ध] कुपित ।
भगवान् वासुपूज्य का शासनाधिष्ठाता यक्ष । कुपचि (पै) अ [क्वचित्] किसी जगह में । लोहार । कात्तिकेय। शुक । घुड़सवार । कुप्प सक [कुप्] गुस्सा करना ।
सिन्धु नद । वरुण-वृक्ष । अविवाहित । कुप्प सक [भाष्] कहना।
_ 'ग्गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष । °णंदि पुं कप्प न [कुप्य] सुवर्ण और चाँदी को छोड़ [नन्दिन] इस नाम का एक सोनार। कर अन्य धातु और मिट्टी वगैरह के बने धम्म पुं [°धर्म] एक जैन साधु । °वाल पुं हुए गृह-उपकरण ।
[पाल] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का कुप्पढ पुंदे] घर का रिवाज ।
गुजरात का एक सुप्रसिद्ध जैन राजा । कुप्पर न [दें] सुरत के समय किया जाता |
कुमार पुं [दे] कुआर का महीना, आश्विन
मास । हृदय-ताड़न-विशेष । समुदाचार । नर्म, ठट्ठा। कुप्पर पुं [कूर्पर] हाथ का मध्य भाग । जानु ।
कुमारा स्त्री. एक सन्निवेश ।
कुमारिय पुं [कुमारिक] कसाई, सौनिक । रथ का अवयव-विशेष । कुप्पर पुं [कपर] देखो कप्पर । भीत का
कुमारिया स्त्री [कुमारिका] देखो कुमारी। जीर्ण-शीर्ण थर ।
कुमारी स्त्री. प्रथम वय की लड़की । अविवाहित कुप्पल देखो कुंपल।
कन्या । घीकुआरी वनस्पति । नवमल्लिका । कुप्पास पुं [कूसि] कञ्चुक, जनानी कुरती ।
नदी-विशेष । जम्बू-द्वीप का एक भाग । अपकुप्पिस देखो कुप्पास।
राजिता । सीता । बड़ी इलाची। वन्ध्या कुबर पुं [कूबर] भगवान् मल्लिनाथ का ककड़ी की लता। पक्षि-विशेष । शासनाधिष्ठायक यक्ष।
कुमारी स्त्री [दे. कुमारी] पार्वती । कुबेर पुं.भगवान् कुन्थुनाथ के प्रथम श्रावक का कुमुअ पुं [कुमुद] एक वानर । महाविदेह-वर्ष नाम । यक्ष-राज, धनेश । भगवान् मल्लिनाथ का एक विजय-युगल, भूमि प्रदेश-विशेष । का शासनाधिष्ठाता यक्ष-विशेष । काञ्चनपुर न. चन्द्र-विकासी कमल। कुमुदाङ्ग को के एक राजा का नाम । इस नाम का चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध एक श्रेष्ठी। एक जैन मुनि । °दिसा पुं हो वह । शिखर-विशेष । वि. पृथ्वी में आनन्द [°दिश्] उत्तर दिशा। नयरी स्त्री पानेवाला। खराब प्रीतिवाला। देखो [°नगरी] कुबेर की राजधानी, अलका । कुमुद। कुबेरा स्त्री. जैन साधु-गण की एक शाखा। कुमुअ पुं [कुमुद] देव-विशेष । °चंद पुं कुब्बड वि [दे] कुबड़ा ।
चन्द्र] आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की मुनि
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२५०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कुमुअंग-कुरुचिल्ल अवस्था का नाम ।
| कुरंटय पुं [कुरण्टक] वृक्ष-विशेष, पियवाँसा । कुमुअंग न [कुमुदाङ्ग] 'महाकाल' को कुरकुर देखो कुरुकुरु । चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध कुरय पुं. [कुरक] वनस्पति-विशेष । हो वह संख्या ।
कुरय न [कुरबक] पुष्प-विशेष । कुमआ स्त्री [कुमुदा] इस नाम की एक |
| कुरर पुं. कुरर पक्षी, उत्क्रोश । पुष्करिणी । एक नगरी।
कुररी स्त्री [दे] पशु । कुमुइणी स्त्री [कुमुदिनी] चन्द्र-विकासी कमल
कुररी स्त्री. कुरर पक्षी की मादा । गाथा छन्द का पेड़ । इस नाम की एक रानी।
का एक भेद । मेढ़ी। कुमुद देखो कुमुअ। देव-विमान-विशेष ।
कुरल पुं. केश । पक्षि-विशेष । °गुम्म न [गुल्म] देव-विमान-विशेष । °पुर
कुरली स्त्री. केशों की वक्र सटा । कुरलन. नगर-विशेष । 'प्पभा स्त्री [प्रभा] इस
पक्षिणी। नाम की एक पुष्करिणी । °वण न [°वन]
कुरवय पुं [कुरबक] वृक्ष-विशेष, कटसरैया । मथुरा नगरी के समीप का एक जङ्गल ।
कुरा स्त्री. वर्ष-विशेष, अकर्म भूमि-विशेष । °गर पुं [°कर] कुमुद-षण्ड, कुमुदों से भरा
कुरिण न [दे] बड़ा जंगल, भयंकर अटवी। हुआ वन ।
कुरु पुं. ब. आर्य देश-विशेष । भगवान् आदिकुमुदंग देखो कुमुअंग।
नाथ का इस नाम का एक पुत्र । अकर्म-भूमि कुमुदग न [कुमुदक] तण-विशेष ।
विशेष । इस नाम का एक वंश । पुंस्त्री. कुरु कुमुली स्त्री [दे] चूल्हा ।
वंश में उत्पन्न । अरा, °अरी देखो नीचे कुम्म पुं [कूर्म] कच्छप । 'ग्गाम पुं [°ग्राम] °चरा, °चरी। खेत्त क्खेत्त न ["क्षेत्र] मगध देश के एक गाँव का नाम ।
दिल्ली के पास का एक मैदान, जहाँ कौरव कुम्मण वि [दे] म्लान, शुष्क ।।
और पाण्डवों की लड़ाई हुई थी। कुरु देश कुम्मार पुं [कूर्मार] मगध देश के एक गाँव की राजधानी, हस्तिनापुर नगर । °चंद पं का नाम।
[°चन्द्र] इस नाम का एक राजा । °चर वि. कुम्मास पुं [कुल्माष] अन्न-विशेष, उरद ।। कुरु देश का रहनेवाला । स्त्री. चरा, चरी । थोड़ा भीजा हुआ मूंग वगैरह धान्य। °जंगल न [°जङ्गल] कुरु-भूमि । °णाह कुम्मी स्त्री [कूर्मी]कछुई, कच्छपी । नारद की पुं [°नाथ] दुर्योधन । दत्त पुं. इस नाम का माता का नाम । पुत्त पुं [पुत्र] दो हाथ एक श्रेष्ठी और जैन महर्षि । °मई स्त्री ऊँचा इस नाम का एक पुरुष, जिसने मुक्ति | [°मती] ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की पटरानी। पाई थी।
राय पु [राज] कुरु देश का राजा । "वइ कुम्ह पुंब. [कुश्मन्] देश-विशेष ।
पुं[°पति] कुरु देश का राजा। कुम्हड देखो कोहंड।
कुरुकुया स्त्री [कुरुकुचा] पाँव का प्रक्षालन । कुम्हंडी देखो कोहंडी।
कुरुकुरु अक [कुरुकुराय] 'कुर-कुर' आवाज कूय पुंकुच] स्तन । वि. शिथिल | अस्थिर। करना, कुलकुलाना, बड़बड़ाना। कुयवा स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । | कुरुकुरिअ न [दे] रणरणक, औत्सुक्य । कुरंग पुं. मृग की एक जाति । हरिण । °च्छी | कुरुगुर देखो कुरुकुरु । स्त्री [°ाक्षी] मृगनयनी स्त्री।
कुरुचिल्ल पुं [दे] कुलीर, जल-जन्तु-विशेष ।
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कुरुच्च-कुलक्ख
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष न. ग्रहण, उपादान । देखो कुरुविल्ल । नाम । तंतु पुं [तन्तु] कुल-सन्तति । कुरुच्च वि [दे] अप्रिय ।
°तिलग पुन [°तिलक] कुल में श्रेष्ठ । °स्थ कुरुड वि [दे] निर्दय । निपुण, चतुर । वि [ स्थ] कुलीन । °त्थेर धुं [°स्थविर] कुरुण न [दे] राजा का या दूसरे का धन । । श्रेष्ठ साधु । °दिणयर पुं [°दिनकर] कुल में कुरुमाल सक दे] टटोलना, धीरे-धीरे हाथ श्रेष्ठ । °दीव पुं । °दीप] कुल प्रकाशक । फेरना।
°देव पुं [°देव] गोत्र-देवता । 'देवया स्त्री कुरुय न [दे. कुरुक] कपट ।
[°देवता] गोत्र-देवता। देवी स्त्री. गोत्रकुरुया स्त्री [दे. कुरुका] स्नान ।
देवी । धम्म पुं ["धर्म] कुलाचार । पव्वय कुरुर देखो कुरर।
पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष । °पुत्त पुं [पुत्र कुरुल { [दे] कुटिल केश। वि. निर्दय ।
वंश-रक्षक पुत्र । 'बालिया स्त्री [°बालिका] निपुण, चतुर ।
कुलीन कन्या । "भूसण न [भूषण] वंश को कुरुल अक [कु] आवाज करना, कौए का
दिपाने या चमकाने वाला। पुं. एक केवली बोलना।
भगवान् । मय पुं [ मद] कुल का अभिमान । कुरुव देखो कुरु।
°मयहरिया, महत्तरिया स्त्री [°महत्तकुरुवग देखो कुरवय।
रिका] कुटुम्ब की मुखिया । °य देखो "ज । कुरुविंद पुं. मणि-विशेष, रत्न की एक जाति । |
रोग पुं. कुल व्यापक रोग । वइ पुंपति]
प्रधान संन्यासी । °वंस पुं [°वंश] कुल रूप तृण-विशेष । कुटिलिक-नामक रोग, एक
वंश । °वंस पं | वंश्य] कुल में उत्पन्न । प्रकार का जंघा रोग । वित्त पुंन [वर्त]
वडिसय पुं [वितंसक] कुल-भूषण, कुलभूषण-विशेष । कुरुविंदा स्त्री [कुरुविन्दा] इस नाम की एक
दीपक । वहू स्त्री [°वधू] कुलीन स्त्री।
°संपण्ण वि [°सम्पन्न] कुलीन । °समय पुं. वणिग्भार्या ।
कुलाचार । °सेल पुं [शैल] कुल-पर्वत । कुरुविल्ल [दे] देखो कुरुचिल्ल ।
°सेलया स्त्री [शैलजा] कुल-पर्वत से कुल पुंन. वंश, जाति । पैतृक वंश । कुटुम्ब ।। निकली हुई नदी । 'हर न [गृह] पितृगृह । सजातीय समूह । गोत्र । एक आचार्य की
जीव वि. अपने कुल की बड़ाई बतला कर सन्तति । घर । सान्निध्य, सामीप्य । ज्योतिष
आजीविका प्राप्त करनेवाला । "य न. नीड़ । शास्त्र-प्रसिद्ध नक्षत्र-संज्ञा । °उव्व पुं[°पूर्व] |
यार पुं [°ाचार] वंश-परम्परा से चला पूर्वज । °कम पुं [क्रम] कुलाचार । कर
आता रिवाज । °ारिय पुं [°ार्य] पितृ-पक्ष देखो नीचे गर । कोडि स्त्री [°कोटि]
की अपेक्षा से आर्य । °ालय वि. गृहस्थों के जाति-विशेष । “क्कम देखो कम । °गर पुं|
घर भीख मांगनेवाला। [°कर] कुल की स्थापना करनेवाला, युग के प्रारम्भ में नीति वगैरह की व्यवस्था करने
कुलंकर पुं [कुलङ्कर] इस नाम का एक
राजा । वाला महापुरुष । गेह न [°गृह] पितृ-गृह । 'घर न [°गृह] पितृ गृह । °ज वि [ज] | कुलप पुं[कुलम्प] इस नाम का एक अनार्य कुलीन । °जाय वि [°जात] खानदानी कूल देश । उसमें रहनेवाली जाति । का । "जुअ वि [°युत] कुलीन । °णाम न | कुलकुल देखो कुरकुर । [नामन्] कुल के अनुसार किया जाता | कुलक्ख पुं [कुलक्ष] एक म्लेच्छ देश । उसमें
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२५२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रहनेवाली जाति ।
कुलाग्घ पुं [कुला] एक अनार्य देश । कुलडा स्त्री [कुलटा] व्यभिचारिणी स्त्री । कुलत्थ पुंस्त्री. कुलथी ।
कुलफंसण पुं [दे] कुल का दाग । कुलय देखो कुडव ।
कुलय न [कुलक] तीन या चार से ज्यादा परस्पर सापेक्ष पद्य |
कुलल पुं. गृद्ध पक्षी । कुरर पक्षी । मार्जार । कुललय पुंन [] गंडूष । कुलव देखो कुडव । कुलसंतइ स्त्री [] चूल्हा | कुलाअल पुं [कुलाचल ] कुलपर्वत । कुलाण देखो कुणाल |
कुलाल पुं. कुम्भकार ।
कुलाल पुं [कुलाट] बिलाड़ | ब्राह्मण | कुलिंगाल पुं [कुलाङ्गार] कुल में कलंक लगानेवाला, दुराचारी ।
कुलिअ न [कुलिक ] खेत में घास काटने का छोटा काष्ठ विशेष ।
कुलिक } पुं [कुलिक] ज्योतिष-शास्त्र में कुलिय प्रसिद्ध एक कुयोग । न. एक प्रकार
का हल |
हुई भीत।
कुलिया स्त्री [कुलिका ] भोंत ।
कुलिर पुं. मेष वगैरह बारह राशि में चतुर्थ राशि |
कुलिव्वय पुं [ कुटिव्रत ] परिव्राजक का एक भेद, तापस - विशेष, घर में ही रहकर क्रोधादि का विजय करनेवाला |
कुलिस पुंन [ कुलिश ] वज्र | निणाय पुं [निनाद ] रावण का इस नाम का एक सुभट | मज्झन [ मध्य] एक प्रकार की तपश्चर्या ।
कुलीकोस पुं [कुटीक्रोश ] पक्षि- विशेष ।
कुलाग्घ - कुव्व
कुलीण वि [कुलीन ] उत्तम कुल में उत्पन्न | कुलीर पुं. जन्तु - विशेष |
कुलुंच सक [ दह, म्लै] जलाना । म्लान
करना ।
कुलुक्किय वि [दे] जला हुआ ।
कुलोकुल पुं [कुलोपकुल ] ये चार नक्षत्र - अभिजित्, शतभिषा आर्द्रा और अनुराधा । वि. असमर्थ ।
कुल्ल पुं [दे] ग्रीवा, कण्ठ | छिन्नपुच्छ
कुलियन [कुड्य ] भित्ति । मिट्टी की बनाई कुल्ह पुं [दे] शृगाल |
कुल्ल पुंन [] चूतड़ |
कुल्ल अक [कू" ] कूदना । कुल्लउर न [कुल्यपुर] नगर- विशेष । कुल्लड न [दे] चुल्ली । छोटा पात्र, पुड़वा । कुल्लरिअ पुं [दे] हलवाई । कुल्लरिया स्त्री [दे] हलवाई की दूकान । कुल्ला स्त्री [कुल्या ] जल की नाली । कृत्रिम नदी ।
कुल्लाग पुं [ कुल्याक ] मगध देश का एक गाँव ।
कुल्ली देखो कुल्ला । कुल्लुडिया स्त्री [कुल्लुडिका ] घड़ी | कुल्लुरी स्त्री [ दे] खाद्य-विशेष | कुल्लूरि [ ] देखो कुल्लरिअ ।
कुवणय न. [ दे] यष्टि, छड़ी । कुवलय न. नीलोत्पल, हरा रंग का कमल । कुवली स्त्री [ दे] वृक्ष-विशेष | कुविंद पुं [ कुविन्द] कपड़ा बुनने वाला | 'वल्ली स्त्री. वल्ली - विशेष | कुवि वि [ कुपित ] क्रुद्ध ।
कुविय देखो कुप्प = कुप्य । 'साला स्त्री ['शाला ] बिछौना आदि गृहोपकरण रखने की कुटिया ।
कुवेणी स्त्री. एक प्रकार का हथियार । कुवेर देखो कुबेर ।
कुव्व क [कृ, कुर्व] करना, बनाना ।
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कुस-कुहर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२५३ कुस पुंन [कुश] दर्भ। पुं. दाशरथी राम के कामदेव । रअ पुं [रजस्] मकरन्द । °रद एक पुत्र का नाम । °ग्ग [°TI] दर्भ का। पुं. देखो °दंत। °लया स्त्री [°लता] छन्दअग्र-भाग। ग्गनयर न [ग्रनगर] राज- विशेष । संभव पुं. मधुमास । °सर पुं गृह, नगर । °ग्गपुर न [°नपुर] देखो [°शर] कामदेव । °अर पुं. [°कर] इस पूर्वोक्त अर्थ । 'ट्र पुं [वत्तं] आर्य देश- | नाम का एक छन्द । उह पुं [°ायुध] विशेष । 'ट्ठ पुं [°ार्य] आर्य देश-विशेष । | कामदेव । °ावई स्त्री [°ावती] इस नाम
त्त न [क्त, °क्त] आस्तरण-विशेष । की एक नगरी । सव पुं. पराग। त्थलपुर न [ स्थलपुर] नगर-विशेष ।
कुसुमसंभव पुं [कुसुमसम्भव] वैशाख मास °मट्टिया स्त्री [ मृत्तिका] डाभ के साथ कूटी
का लोकोत्तर नाम । जाती मिट्टी । °वर पुं. द्वीप-विशेष । कुसुमाल वि [कुसुमवत्] फूलवाला । कुस वि [कौश] दर्भ का बना हुआ।
कुसुमाल पुं [दे] चोर । कुसण न [दे] आर्द्र करना । गोरस ।
कुसुमालिअ वि [दे] शून्य-मनस्क । कुसणिय वि [दे] गोरस से बना हुआ करम्बा | कुसुमिल्ल वि [कुसुमवत्] ऊपर देखो । आदि खाद्य ।
कुसुर [दे] देखो झसुर। कुसल वि [कुशल] निपुण, चतुर, अभिज्ञ । कुसूल पुं [कुशूल] कोष्ठ । न. सुख, हित । पुण्य ।
कुस्सुमिण पुं [कुस्वप्न] दुष्ट स्वप्न । कुसला स्त्री [कुशला] अयोध्या ।
कुह अक [कुथ्] सड़ जाना, दुर्गन्धी होना। कुसार देखो कूसार।
कुह पुं. वृक्ष । कुसी स्त्री [कुशी] लोहे का बना हुआ एक | कुह देखो कहं । हथियार ।
कुहंड पुं [कूष्माण्ड] व्यन्तर देवों की एक कुसीलव पुं [कुशीलव] अभिनयकर्ता नट ।
जाति । न. कुम्हड़ा, पेठा। कुसुंभ पुंन [कुसुम्भ] वृक्ष-विशेष, कुसुम, बरैं। कुहंडिया स्त्री [कूष्माण्डी] कोहड़ा का गाछ । एक-पुष्प । रंग-विशेष ।
कुरुक । देखो कुहय । कुसुंभिल पुं [दे] दुर्जन, चुगलखोर । कुसुंभी स्त्री, कुसुम का पेड़ ।
कुहग पुं [कुहक] कन्द-विशेष । कुसुम अक [ कुसुमय ] फूल आना । कुहड वि [दे] कूबड़ा । कुसुम न. फूल । पुं. इस नाम का भगवान् | कुहण पुं [कुहन] वृक्षों की एक जाति । पद्मनाभ का शासनाधिष्ठायक यक्ष । °केउ पुं | वनस्पति-विशेष । भूमि-स्फोट । देश-विशेष । [°केतु] अरुणवर द्वीप का अधिष्ठायक देव । इसमें रहनेवाली जाति । °चाय, °चाव पुं [°चाप] कामदेव । °ज्झय | कुहण वि [क्रोधन] क्रोधी । पुं [ध्वज]वसन्त ऋतु । °णयर न [°नगर] कुहणी स्त्री [दे] हाथ का मध्य-भाग । पाटलिपुत्र । °दंत पुं [°दन्त] एक तीर्थङ्कर | कुहय पुंन [कुहक दौड़ते हुये अश्व के उदरदेव का नाम, इस अवसर्पिणी काल के नववें | प्रदेश के समीप उत्पन्न होता एक प्रकार की जिनदेव, श्री सुविधिनाथ । °दाम न[ दामन्] वायु । इन्द्रजालादि कौतुक । फूलों की माला । धणु न [°धनुष्]कामदेव । कुहर न. पर्वत का अन्तराल । विवर । पुं. देश°पुर न. देखो ऊपर °णयर । °बाण पुं. । विशेष ।
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२५४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कुहाड-कूय कुहाड पुं[कुठार] फरसा।
जनक स्थान । शिखर । पर्वत का मध्य भाग । कुहाडी स्त्री [कुठारी] कुल्हाड़ी ।
पाषाणमय यन्त्र-विशेष । समूह । °कारि वि कुहावणा स्त्री [कुहना] आश्चर्य-जनक, दम्भ- [°कारिन्] दगाखोर । ग्गाह पुं [°ग्राह] क्रिया। लोगों से द्रव्य हासिल करने के लिए धोखे से जीवों को फंसानेवाला । °जाल न. किया हुआ कपट-भेष ।
धोखे का जाल, फाँसी। °तुला स्त्री. झूठी कुहिअ वि [दे] लिप्त ।
नाप । °पास न [°पाश] एक प्रकार की कुहिअ वि [कुथित] थोड़ी दुर्गन्धवाला । सड़ा | मछली पकड़ने का जाल । °प्पओग पं हुआ । विनष्ट । 'पूइय वि [पूतिक] अत्यन्त । [प्रयोग] प्रच्छन्न पाप । °लेह पुं[°लेख] सड़ा हुआ।
दूसरे के हस्ताक्षर-तुल्य अक्षर बना कर धोखेकुहिणी स्त्री [दे] कूर्पर । रथ्या, महल्ला । बाजी करना । दूसरे के नाम से झूठी चिट्ठी कुहिल पुंस्त्री [कुहुमत्] कोयल पक्षो । वगैरह लिखना । 'वाहि पुं ["वाहिन्] बैल । कुह स्त्री. कोकिल पक्षी की आवाज ।
°सक्ख न [°साक्ष्य] झूठी गवाही । °सक्खि कुहुण देखो कुहण = कुहन ।
वि [°साक्षिन्] झूठी साक्षो देनेवाला । कुहुव्वय पुं [कुहुव्रत] कन्द-विशेष ।
°सक्खिज्ज न [°साक्ष्य] झूठी गवाही । कुहेड पुं [दे] ओषधी-विशेष, गुरेटक, एक
°सामलि स्त्री [°शाल्मलि] वृक्ष-विशेष के प्रकार का हर का गाछ ।
आकार का एक स्थान, जहाँ गरुड-जातीय
देवों का निवास है। नरक-स्थित वृक्षकुहेड । पुं [कुहेट, °क] चमत्कार उपकुहेडअ ) जानेवाला मन्त्र-तन्त्रादि ज्ञान ।
विशेष । गार न. शिखर के आकारवाला
घर । पर्वत पर बना हुआ घर । पर्वत में आभाणक। कुहेडग पुंन [दे] अजमा।
खुदा हुआ घर । हिंसा-स्थान । °गारसाला कुहेडगा स्त्री [कुहेटका] पिण्डालु ।
स्त्री [°गारशाला] षड्यन्त्र वाला घर,
षड्यन्त्र करने के लिए बनाया हुआ घर । कूअ देखो कूव = कूप ।
पहच्च न [हित्य] पाषाण-मय यन्त्र की कूअण न [कूजन] अव्यक्त शब्द । वि. ऐसी |
तरह मारना, कुचल डालना । आवाज करनेवाला । कूइआ स्त्री [कूपिका] छोटा कूप ।
। लगातार २७ दिन का
उपवास । कूइय न [कूजित] अव्यक्त आवाज । कूइया स्त्री [कूजिका] किवाड़ आदि का |
कूडग देखो कूड। अव्यक्त आवाज ।
कूण अक [कूणय] संकुचित होना । कूचिआ स्त्री [कूचिका] दाढ़ी-मूंछ का बाल ।
कूणिअ वि [दे] ईषद् विकसित । कूचिया स्त्री [कूचिका] बुबुद, बुलबुला।
कूणिअ ' [कूणिक] राजा श्रेणिक का पुत्र । कूज अक [कूज्] अव्यक्त शब्द करना । कूणिय वि [कूणित] सड़ा हुआ। कूड सक [कूटय] झूठा ठहराना । अन्यथा । कूय अक [कूज्] अव्यक्त आवाज करना । करना।
कूय पुं [कूप] कुंआ । घी, तेल वगैरह रखने कूड पुं [दे. कूट] फाँसी, जाल ।
का पात्र । ददुर पुं ["दर्दुर] कूप का कूड पुंन [कूट] असत्य, छल-युक्त । भ्रान्ति- मेढ़क । वह मनुष्य जो अपना घर छोड़ जनक वस्तु । कपट । धोखा । नरक । पीड़ा- बाहर न गया हो, अल्पज्ञ । देखो कूव ।
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कूर-केऊर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२५५ कूर वि [क्रूर] निर्दय, हिंसक । भयंकर । पुं. कूहंड पुं [कूष्माण्ड] व्यन्तर देवों की एक
रावण का इस नाम का एक सुभट । जाति । कूर पुंन. वनस्पति-विशेष । न.ओदन । 'गडुअ, | के सक [क्री] खरीदना ।
गड्डुअ पुं [गडुक] एक जैन महर्षि । के वि [कियत्] कितना ? °चिरेण अ. कितने कर अ [ईषत्] अल्प ।
समय में ? °चिरं अ. कितने समय तक । करपिउड न [दे] खाद्य-विशेष ।
°चिरेण देखो चिरेण । "दूर न. कितना कूरि वि [रिन्] निर्दयो। निर्दय परिवार- दूर ? °महालय वि. कितना बड़ा ? °महा
लिय वि [°महत्] कितना बड़ा ? °महिवाला। कूल न [दे] सैन्य का पिछला भाग ।
ड्ढिय वि [महद्धिक] कितनी बड़ी ऋद्धिकूल न तट । धमग पुं [ मायक] एक प्रकार |
वाला। का वानप्रस्थ जो किनारे पर खड़ा हो आवाज
केअइ पुं [केकय) देश-विशेष । कर भोजन करता है। वालग, वालय पुं
केअई स्त्री [केतकी] केवड़ा का वृक्ष । [बालक] एक जैन मुनि ।।
केअग) केतक] केवड़ा का गाछ । न. कूलकंसा स्त्री [कूलङ्कषा] तीर को तोड़ने
केअय | केतकी पुष्प । चिह्न । वाली नदी।
केअगी स्त्री [केतकी] केवड़ा का गाछ या कूव पुंन [दे] चुराई चीज की खोज में जाना ।। चुराई चीज को छुड़ानेवाला।
केअल देखो केवल। कूव [कूप,°क] कुंआ, गर्त । स्नेह पात्र ।। | केअव देखो कइअव = कैतव । कूवग जहाज का मध्य स्तम्भ । तुला स्त्री. | केआ स्त्री [दे] रज्जु । कूवय ढेकुवा । मंडुक्क पुं [°मण्डूक] कूप केआर पुं [केदार] खेत । क्यारी । का मेढक । अल्पज्ञ मनुष्य, जो अपना घर केआरवाण पुं [दे] पलाश का पेड़ । छोड़ बाहर न जाता हो।
केआरिआ स्त्री केदारिका]पासवाली जमीन, कूवय पुं [कूपक] देखो कूव = कूप । स्वनाम- गोचर भूमि । प्रसिद्ध एक जैन मुनि ।
केउ पुं [केतु] पताका । ग्रह-विशेष । निशान । कूवर पुन.जहाज का मुख-भाग । रथ या गाड़ी रूई का सूता । °खेत्त न [°क्षेत्र] मेघ-वृष्टि वगैरह का एक अवयव, युगन्धर ।
से ही जिसमें अन्न पैदा हो सकता हो ऐसा कूवल न [दे] जवन-वस्त्र।
क्षेत्र-विशेष । °मई स्त्री [°मती] किन्नरेन्द्र कविय न [कूजित] अव्यक्त शब्द ।
और किंपुरुषेन्द्र को अग्र-महिषी का नाम । कविय पुंकूपिक] इस नाम का एक सन्निवेश °माल न. वैताट्य पर्वत पर स्थित इस नाम -गाँव ।
का एक विद्याधर-नगर । कृविय वि [दे] चुराई हुई चीज की खोज कर केउ पुं [दे] काँदा ।
उसे लानेवाला । चोर की खोज करनेवाला । केउ पुंन [केतु] एक देवविमान । कूविया स्त्री [कूपिका] छोटा कूप । छोटा केउग } [केतुक] पाताल-कलश विशेष । स्नेह-पात्र ।
केउय । कूवी स्त्री [कूपी] ऊपर देखो ।
केऊर पुन [केयूर] अङ्गद, बाजूबन्द । दक्षिण कुसार पुं दे] गतं जैसा स्थान, खड्डा । । समुद्र का पाताल-कलश।
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२५६
केऊरपुत्त पुं [दे] गाय तथा भैंस का बच्चा । केऊव पुं [केयूप] दक्षिण समुद्र का एक
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पाताल-कलश ।
काय अक [ केङ्काय् ] 'कें कें' आवाज
करना ।
केंसुअ देखो किं ।
केकई स्त्री [कैकयी] रानी, केकय देश के वासुदेव की माता । वासुदेव की माता ।
केकय पुं. देश-विशेष | इस देश का रहनेवाला । केकय देश का राजा ।
केकसिया स्त्री [कैकसिका ] रावण की माता
राजा दशरथ की एक राजा की कन्या । आठवें अपर - विदेह के विभीषण
काइयन [केकायित ] मयूर का शब्द | क्कई देखो के कई ।
क्क देखो केक |
केक्कसी स्त्री [कैकसी] रावण की माता । क्वाइय देखो काइय |
गई देखो कई ।
गाइय देखो केकाइय ।
केज्ज वि [क्रेय ] बेचने की चीज ।
केट
केढव
का नाम ।
केका स्त्री. मयूर वाणी । रव पुं. मयूर की केलाय सक [समा + रचय ] साफ कर ठीक
हुआ ।
आवाज ।
करना ।
केलास पुं [कैलास ] राहु का कृष्ण पुद्गलविशेष | स्वनाम - प्रसिद्ध पर्वतविशेष । इस नाम
पुं [ कैटभ ] इस नाम का एक प्रति वासुदेव राजा । दैत्य- विशेष । रिउ पुं [°रिपु ] श्रीकृष्ण ।
}
केत्त देखो केत्तिअ ।
केत्तिअ । वि [ कियत् ] कितना ? केत्तिल
केत्तुल (अप) ऊपर देखो । केत्थु (अप) अ [ कुत्र ] कहाँ ।
केद्दह देखो केत्ति |
केम
केम्व
haa [a] गृह | निशानी ।
(अप) देखो कहं ।
ऊरपुत्त - केली गिल
केयण न [केतन ] वक्र-वस्तु । चंगेरी का हाथा | संकेत, संकेत स्थान । धनुष की मूठ | मछली पकड़ने का जाल । जगह । केयय देखो केकय ।
hear a [ क्रेतव्य] खरीदने योग्य वस्तु | केर वि [दे सम्बन्धिन् ] सम्बन्धी वस्तु |
केरय
केरव न [ कैरव ] सफेद कमल । कपट | केरिच्छवि [कीदृक्ष] कैसा, किस तरह का ? रिस वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का ? केरी स्त्री [क्रकटी ] करीर का गाछ । केल देखो कयल = कदल |
केलाइय वि[समारचित] साफसुथरा किया
का एक नाग राज । इस नागराज का आवास पर्वत । मिट्टी का एक तरह का पात्र । देखो कइलास ।
ho देखो कलि ।
केलि स्त्री [] कन्द- विशेष |
केलि) स्त्री [केलि, °ली] खेल, मजाक 1 केली । परिहास, कामक्रीड़ा । 'आर
[ कार ] क्रीड़ा करनेवाला, विनोदी | 'काणण न [' कानन] क्रीड़ोद्यान । °किल, "गिल वि [ 'किल] विनोदी, क्रीड़ा प्रिय । पुं. व्यन्तर-जातीय देवविशेष । पुंन. स्थानविशेष | भवण न [भवन] क्रीड़ा-गृह विमाण न [ 'विमान ] विलास महल | 'अण न [ 'शयन ] काम - शय्या | °सेज्जा स्त्री [ शय्या ] काम शय्या |
केली देखो कयली ।
केली स्त्री [दे] कुलटा ।
केलीगिल वि [कैली किल] केलीकिल स्थान में
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केव - कोइला
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्पन्न ।
ha" देखो के ।
ha (अप) देखो कहं । hasa [कियत् ] कितना ? वपुं [व] मछलीमार । has (अप) देखो के त्तिअ । केवल वि. अकेला, असहाय । अद्वितीय । शुद्ध । सम्पूर्ण । अनन्त । न सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, सर्वज्ञता । कप्प वि [कल्प ] परिपूर्ण । णाण न ['ज्ञान] सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान । णाणि वि [ज्ञानिन् ] केवल - ज्ञानवाला, सर्वज्ञ । पुं. इस नाम के एक अर्हन् देव, अतीत उत्सपिणी - काल के प्रथम तीर्थंकर । ण्णाण, "ना देखो णाण | 'दंसण न [° दर्शन] परिपूर्ण सामान्य बोध |
केवलं अ [केवलम् ] सिर्फ । केवलाअ सक [समा + रभ्] शुरू करना । केवल वि [ केवलिन् ] केवल ज्ञानवाला, सर्वज्ञ । क्खि व [ 'पाक्षिक ] स्वयं बुद्ध | पुं. जिनदेव, तीर्थंकर ।
केवलिअ वि [केवलिक ] केवलज्ञानवाला । सम्पूर्ण ।
केवलिअ वि [केवलक] केवल - ज्ञान से सम्बन्ध रखनेवाला । केवलिप्रोक्त । केवल-ज्ञानसम्बन्धी । न केवल ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान । केवलिअन [कैवल्य] केवल ज्ञान । केवली स्त्री. ज्योतिष विद्या - विशेष । केस पुं [केश] बाल | पुर न वैताढ्य पर स्थित एक विद्याधर नगर । °लोअ पुं [°लोच] केशों का उन्मूलन । 'वाणिज्ज न [ वाणिज्य ] केशवाले जीवों का व्यापार । हत्थ पुं [हस्त ] केशपाश, समारचित केश ।
केस देखो रिस |
केस देखो किलेस |
केसर पुं [ कवीश्वर ] श्रेष्ठ कवि |
३३
२५७
केसर पुंन. एक देवविमान । पराग सिंह वगैरह के कंधा का बाल । पुं. बकुल वृक्ष । न. काम्पिल्य नगर का एक उपवन । फलविशेष | सुवर्ण । छन्द - विशेष | | पुष्प - विशेष | केसरा स्त्री. सिंह वगैरह के स्कन्ध पर के बालों की सटा ।
केसरि [केसरिन् ] सिंह, कण्ठीरव । नीलवन्त पर्वत पर स्थित एक हृद । नृप विशेष, भरतक्षेत्र के चतुर्थं प्रतिवासुदेव । ६ह पुं [ह] द्रह - विशेष |
केसरिआ स्त्री [केसरिका ] साफ करने का कपड़े का टुकड़ा ।
केसरिल्ल वि [केसरवत् ] केसरवाला | केसरी स्त्री [केसरी] देखो केसरिआ । केसव पुं [केशव ] अर्ध चक्रवर्ती राजा । श्रीकृष्ण वासुदेव ।
सिवि [क्लेशिन् ] क्लेश-युक्त, क्लिष्ट | केसि पुं [केशि ] एक जैन मुनि, भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य । अश्व के रूप को धारण करनेवाला एक दैत्य |
केसि पुं [केशिन्] देखो केसव | केसिअ वि [केशिक] केशवाला । केसी स्त्री [केशी] सातवें वासुदेव की माता | 'केसी स्त्री [' केशी] केशवाली स्त्री । देखो किं ।
केह (अप) वि [ कीदृश् ] कैसा, किस तरह
का ?
केहि (अप) अ. वास्ते ।
कैअव न [कैतव] कपट, दम्भ । कोअ देखो कोक ।
को देखो को |
कोअंड देखो कोदंड |
आ अ [fa + स् ] विकसना, खिलना । कोइल पुं [कोकिल ] कोयल । छन्द का एक भेद । च्छ्यपुं [°च्छद] तलकण्टक । कोइला स्त्री [कोकिला ] स्त्री - कोयल |
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२५८
कोइला स्त्री [दे] कोयला, काष्ठ के अंगार । कोउआ स्त्री [दे] गोइठा की अग्नि, करी - षाग्नि ।
कोउग १ न [कौतुक ] कुतूहल, अपूर्वं वस्तु कोउय देखने का अभिलाष । आश्चर्य । उत्सव । उत्सुकता, उत्कण्ठा । दृष्टि-दोषादि से रक्षा के लिए किया जाता काजल का तिलक, रक्षा बन्धनादि प्रयोग । सौभाग्य आदि के लिए किया जाता स्नपन, विस्मापन, धूप, होम वगैरह कर्म ।
कोंढुल्लु पुं [दे] उलूक |
|
कोंत देखो कुंत । कोंतल देखो कुंतल = कुन्तल । ती देखो कुंती ।
कभी देखो कुंभी ।
कोक पुं. चक्रवाक पक्षी । भेड़िया ।
कोहवि [कदुष्ण] थोड़ा गरम ।
को उहल को उहल्ल
देखो कुऊहल |
कोहल कोऊ हल्ल
देखो कुऊहल |
कोंकण पुं [कोङ्कण] देश - विशेष । अनार्य देश-विशेष | वि. उस देश में रहनेवाला । कोंच पुं [क्रौञ्च] इस नाम का एक अनार्य देश | पक्षि - विशेष । द्वीप - विशेष । इस नाम का एक असुर । वि. क्रौञ्च देश का निवासी । °रिपुं [°fry] कार्त्तिकेय । ° वर पुं. इस नाम का एक द्वीप । वीरग पुन ['वीरक] एक प्रकार का जहाज । देखो कुंच । safair स्त्री [कुञ्चिका ] ताली, कुंजी ।
चिवि [कुञ्चित] आकुञ्चित, संकुचित । कोंटलय न [ दे] ज्योतिष सम्बन्धी सूचना । शकुनादि निमित्त सम्बन्धी सूचना । कोंठ देखो कुंठ |
देखो कुंड
his j [ कौण्ड, गौड] देश-विशेष ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कोइला कोजरिअ
कराकर छल से गाँव का मालिक बन बैठनेवाला ।
aisiya a [ कौण्डिनपुर ] नगर - विशेष । कोंडिण्ण देखो कोडिण्ण । कोंडिया देखो कुंडिया | कोंढ देखो कुंढ ।
कोकंतिय पुंस्त्री [दे] जन्तु-विशेष, लोमड़ी, लोखरिआ ।
कोकणद देखो कोकणय ।
कोकणय न [ कोकनद] लाल कमल 1 कोकास [दे] देखो कोक्कासिय । को कुइय देखो कुक्कुइअ ।
कोक्क सक [ व्या + हृ] बुलाना, आह्वान
करना ।
कोक्कास पुं. इस नाम का एक वर्धकि, बढ़ई । कोक्का सिय [दे] विकसित । कोक्कुइय देखो कक्कुइअ । कोखुब्भ देखो खोखुब्भ । कोच्चप्प न [दे] झूठी भलाई । कोच्चि पुंस्त्री [] मया शिष्य ।
कोच्छ न [ कौत्स ] गोत्र - विशेष । पुंस्त्री कौत्स गोत्र में उत्पन्न ।
कोच्छवि [कौक्ष ] कुक्षि सम्बन्धी । न. उदरप्रदेश |
कोंडल देखो कुंडल। 'मेत्तग पुं [°मित्रक ] | कोच्छभास पुं [ दे. कुत्सभाष ] कौआ ।
एक व्यन्तर देव का नाम ।
कोच्छेअय देखो कुच्छेअय ।
कोंडलग पुं [कुण्डलक] पक्षि-विशेष ।
कोंडलिआ स्त्री [दे] श्वापद जन्तु- विशेष,
को देखो कुज्ज ।
कोज्जप्प न [ दे] स्त्री- रहस्य | कोज्जय देखो कुज्जय ।
साही, श्वावित् । क्रीड़ा, कीट ।
कोंडिअ पुं [३] ग्राम-निवासी लोगों में फूट कोज्जरिअ वि [दे] पूर्ण किया हुआ, भरा
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कोज्झरिअ-कोडिण्ण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२५९ हुआ।
कोट्ट पुं [कोष्ठ] धारणा, अवधारित अर्थ का कोज्झरिअ वि [दे] ऊपर देखो।
कालान्तर में स्मरण-योग्य अवस्थान । सुगन्धी कोटर देखो कोट्टर।
द्रव्य-विशेष । कोटिंब पुं [दे] गौ।
कोट । देखो कुटु = कोष्ठ । आश्रय-विशेष, कोटुंभ पुंन [दे] हाथ से आहत जल । देखो कोटग | आवास-विशेष । अपवरक, कोठरी । कोटुंभ।
| कोट्टय । चैत्य-विशेष । गार न. धान्य भरने कोटीवरिस अ [कोटीवर्ष] लाट देश की का घर । भण्डार । प्राचीन राजधानी।
कोठार पुन [कोष्ठागार] भाण्डागार। कोट्ट देखो कुट्ट = कुट्ट ।
कोठ्ठिया स्त्री [कोष्ठिका छोटा कोष्ठ, लघु कोट्ट न [दे] नगर । दुर्ग । °वाल पुं [°पाल] ! कुशूल। नगर-रक्षक।
कोठ्ठ [क्रोष्ट] सियार । कोट्टंतिया स्त्री [कुट्टयन्तिका] तिल वगैरह कोडंड देखो कोदंड । को चूरने का उपकरण ।
कोडंडिय देखो कोदंडिय। कोट्टकिरिया स्त्री [कोट्टक्रिया] देवी-विशेष, कोडंब न [दे] कार्य । दुर्गा आदि रुद्र रूपवाली देवी ।
कोडय [दे] देखो कोडिअ । कोट्टण देखो कुट्टण।
कोडर न [कोटर] गह्वर, वृक्ष का पोल भाग, कोट्टर देखो कोडर।
विवर। कोट्टवीर पुं. इस नाम का एक मुनि, आचार्य
कोडल पुं [कोटर] पक्षि-विशेष । शिवभूति का एक शिष्य ।
कोडाकोडि स्त्री [कोटाकोटि] करोड़ को कोट्टा स्त्री [दे] पार्वती । गर्दन ।। करोड़ से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह । कोट्टाग पुं [कोट्टाक] बढ़ई। न. हरे फलों कोडाल पुं. गोत्र-विशेष का प्रवर्तक पुरुष । न. को सुखाने का स्थान-विशेष ।
गोत्र-विशेष । कोट्टिब पुं [दे] द्रोणी, नौका, जहाज। कोडि स्त्री [कोटि] धनुष का अग्र भाग । कोट्टिम पुंन[कुट्टिम] रत्नमय भूमि । फरस- प्रकार । संख्या-विशेष, करोड़ । अग्र-भाग । बन्ध जमीन । भूमि-तल । एक या अनेक | अंश, विभाग। कोडि देखो कोडा-कोडि । तलावाला घर । मढ़ी। रत्न की खान । °बद्ध वि. करोड़ संख्यावाला। भूमि स्त्री. अनार का पेड़।
एक जैन तीर्थ । °सिला स्त्री [°शिला] एक कोट्टिम वि [कृत्रिम] बनावटी, बनाया हुआ। जैन तीर्थ । °सो अ [°शस्] अनेक करोड़ । कोटिल । पुं [कौट्टिक] मुग्दर, मुगरी, देखो कोडो। कोट्टिल्ल । मुगरा, जोड़ी।
कोडिअ न [दे] सकोरा। पुं. दर्जन, चुगलकोट्टी स्त्री [दे] दोहन । विषम स्खलना। खोर । कोटुंभ पुंन [दे] हाथ से आहत जल। कोडिअ पुं. [कोटिक] एक जैन मुनि । एक कोटुम अक [रम्] क्रीड़ा करना ।
जैन-मुनि-गण । कोटुवाणी स्त्री [क्रोटुवाणी] जैन मुनिगण कोडिअ वि [कोटित] संकोचित । की एक शाखा।
कोडिण्ण न [कौडिन्य] इस नाम का एक कोट्ट देखो कुट्ठ = कुष्ठ ।
नगर । वाशिष्ठ गोत्र की शाखा रूप एक
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२६०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष कोडिन्ना-कोदंडिय गोत्र । पुं. कौडिन्य गोत्र का प्रवर्तक पुरुष। कोड्डिय वि [दे] विनोद-शील, उत्कण्ठित । वि. कौडिन्य-गोत्रीय । पुं. एक मुनि जो शिव- | कोड्ढ , वि [कुष्ठि] कुष्ठ-रोग । भूति का शिष्य था! महागिरि-सूरि का | कोढ । शिष्य । गोतम-स्वामी के पास दीक्षा लेनेवाले कोण वि [दे] श्याम वर्णवाला । पुं. लकड़ी। पाँच सौ तापसों का गुरु ।
वीणा वगैरह बजाने की लकड़ी। कोडिन्ना स्त्री कौण्डिन्या] कौडिन्य गोत्रीय | कोण । पंन कोण] कोन. अस्त्र
कोण । पुन [कोण] कोन, अस्त्र, घर का स्त्री।
कोणग ) एक भाग। कोडिल्ल पुं [दे] पिशुन ।
कोणव पुं [कौणप] राक्षस । कोडिल्ल देखो कोट्टिल्ल।
कोणायल पुं [कोणाचल] भगवान् शान्तिकोडिल्ल पुं [कौटिल्य] इस नाम का एक | नाथ के प्रथम श्रावक का नाम ।। ऋषि, चाणक्य मुनि ।।
कोणालग पुं [कोनालक] जलचर पक्षिकोडिल्लय न [कौटिल्यक] चाणक्य-प्रणीत विशेष। नीति-शास्त्र।
कोणाली स्त्री [दे] गोष्ठी, गोठ । कोडिसाहिय न [कोटिसहित] प्रत्याख्यान
कोणिअ | पुं [कोणिक] राजा श्रेणिक का विशेष, पहले दिन उपवास करके दूसरे दिन
कोणिग । पुत्र । भी उपवास की ली जाती प्रतिज्ञा ।
कोणु स्त्री [दे] रेखा। कोडी देखो कोडि । करण न. विभाग ।
| कोणेट्ठिया स्त्री [दे] गुञ्जा देखो, चणोट्ठिया । °णार न [ नार] इस नाम का सोरठ देश
कोण्ण पुं [दे. कोण] घर का एक भाग, का एक नगर । °मातसा स्त्री. गान्धार ग्राम
कोना। की एक मूर्च्छना। वरिस न [°वर्ष] लाट
कोतव न [कौतव] मूषक के रोम से निष्पन्न देश की राजधानी, नगर-विशेष । 'वरिसिया स्त्री [°वर्षिका] जैन मुनि-गण की एक
कोतुहल देखो कुऊहल।
कोत्तलंका स्त्री [दे] दारू परोसने का भाण्ड । शाखा । °सर पुं["श्वर] करोड़पति ।। कोडीण न [कोडीन] इस नाम का एक गोत्र,
कोत्तिअ वि [कौतुकिक] कुतूहली । जो कौत्स गोत्र की एक शाखा रूप है। वि.
कोत्ति पुं [कोत्रिक] भूमि-शयन करनेवाला इस गोत्र में उत्पन्न ।
वानप्रस्थ । न. एक प्रकार का मधु । कोडुंब न [दे] कार्य ।
कोत्थ देखो कोच्छ = कौक्ष ।। कोडुबि देखो कुडुंबि।
कोत्थर न [दे] विज्ञान । कोटर । कोडुंबिय पुं [कौटुम्बिक] कुटुम्ब का स्वामी। कोत्थल पुं [दे] कुशल । कोथली, थैला । ग्राम-प्रधान, गाँव का आदमी । वि. कुटुम्ब में | °कारा स्त्री [°कारी] भौंरी। उत्पन्न, कुटुम्ब-सम्बन्धी।
कोत्थुभ । पुं [कौस्तुभ] वासुदेव के वक्षःकोडूसग पुं [कोदूषक] अन्न-विशेष, कोदों की | कोत्थुह स्थल की मणि । एक जाति ।
कोथुम , कोड दे] देखो कुड्ड।
कोदंड पुं. धनुष । कोड्डम देखो कोट्टुम ।
कोदंडिम । कोड्डमिअ न [रत] रति-क्रीड़ा-विशेष। कोदंडिय
सूता।
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कोदूसग-कोलंब संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२६१ कोदूसग देखो कोडूसग।
| कोरंग पुं [कोरङ्क] पक्षि-विशेष । कोद्दव देखो कुद्दव ।
कोरंट ) पुं [कोरण्ट,°क] वृक्ष-विशेष । कोद्दविया स्त्री [दे] मातृवाहा, क्षुद्र कीट- | कोरंटग ) न. इस नाम का भृगुकच्छ विशेष ।
(भडौंच) शहर का एक उपवन । कोरण्टक कोदाल देखो कुद्दाल।
वृक्ष का पुष्प । कोद्दालिया स्त्री [कुद्दालिका] कुदारी। कोरअ (शौ) देखा कउरव । कोध पुं. इस नाम का एक राजा। कोरय । पुंन [कोरक] फलोत्पादक मुकुल, कोप्प देखो कुप्प = कुप् ।
कोरव , फल की कली। कोप्प पुं [दे] अपराध ।
कोरव देखो कउरव । कोप्प वि [कोप्य] द्वेष्य, अप्रीतिकर । कोरविआ स्त्री कौरव्या]देखो कोरव्वीया । कोप्पर पुं [कूर्पर] हाथ का मध्य भाग । नदी कोरव्व पुंस्त्री [कौरव्य] कुरु-वंश में उत्पन्न । का तट ।
कौरव्य-गोत्रीय । पुं. आठवाँ चक्रवर्ती राजा कोबेरी स्त्री [कौबेरी] विद्या-विशेष । ब्रह्मदत्त । कोभग पुं [कोभक] पक्षि-विशेष ।
कोरब्बीया स्त्री [कौरवीया] इस नाम की कोमल वि. मृदु।
षड्ज ग्राम की एक मूर्च्छना । कोमार वि [कौमार] कुमार-सम्बन्धी । | कोरिट कुमारी-सम्बन्धी । कुमारी में उत्पन्न । स्त्री.
कोरिटय । देखो कोरंट। °रिया, °री। °भिच्च न [°भृत्य] वैद्यक
| कोरेंट । शास्त्र-विशेष ।
कोल पुंदे] ग्रीवा। कोमारी स्त्री [कौमारी] विद्या-विशेष ।।
कोल पुं [क्रोड] सूअर । गोद । कोमुइया स्त्री [कौमुदिका] श्रीकृष्ण वासुदेव | कोल पुं.देश-विशेष । काष्ठ-कीट । शूकर । मूषिक की एक भेरी।
के आकार का एक जन्तु । अस्त्र-विशेष । कोमुई स्त्री [दे] पूर्णिमा।
मनुष्य की एक नीच जाति । बदरी-वृक्ष । न. कोमुई स्त्री [कौमुदी] शरद् ऋतु की पूर्णिमा। बदरी-फल । 'पाग न [°पाक] नगरचाँदनी। इस नाम की एक नगरी। कात्तिक विशेष जहाँ श्रीऋषभदेव भगवान् का मन्दिर को पूर्णिमा । 'नाह पुं [°नाथ] चन्द्रमा । है, यह नगर दक्षिण में है। °पाल पुं.
महूसव पुं [°महोत्सव] उत्सव-विशेष ।। धरणेन्द्र का लोकपाल । °सुणय, सुणह कोमुदिया देखो कोमुइया।
पुंस्त्री [°शुनक] बड़ा शूकर, सूअर की एक कोमुदी देखो कोमुई = कौमुदी ।
जाति, जङ्गली वराह । शिकारी कुत्ता । कोयव वि [कौतव चूहे के रोमों से बना | स्त्रो. °णिया। आवास पुंन. काष्ठ । हुआ (वस्त्र)।
कोल वि [कौल] शक्ति का उपासक, तान्त्रिक कोयव वि [कौयव] 'कोयव' देश में निष्पन्न । मत का अनुयायी। तान्त्रिक मत से सम्बन्ध देखो कोयवग।
रखनेवाला । न. बदर-फलसम्बन्धी । °चुण्ण कोयवग । पुं [दे] रजाई ।
न [°चूर्ण]वेर का चूर्ण । ट्ठिय न [°ास्थिक] कोयवय ।
बेर की गुठिया या गुठली । कोयवी स्त्री [दे] रूई से भरा हुआ कपड़ा। | कोलंब पुं [दे] स्थाली । घर ।
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२६२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
कोलंब-कोस कोलंब पुं [कोलम्ब] वृक्ष की शाखा का नमा। कोलेय पुं [कौलेयक] श्वान । हुआ अग्रभाग।
कोल्ल पुंन [दे] कोयला। कोलगिणी स्त्री [कोली, कोलकी] कोल- कोल्लइर न [कोल्लकिर] नगर-विशेष । जातीय स्त्री।
कोल्लपाग न [कोल्लपाक] दक्षिण देश का कोलघरिय वि [कौलगृहिक]कुलगृह-सम्बन्धी, | एक नगर, जहाँ श्रीऋषभदेव का मन्दिर है । पितृगृह-सम्बन्धी ।
| कोल्लर पुं [दे] थाली, थरिया । कोलज्जा स्त्री [दे] धान्य रखने का एक तरह | कोल्ला देखो कुल्ला। का गर्त ।
कोल्लाग देखो कुल्लाग। कोलर देखो कोटर।
कोल्लापुर न [कोल्लापुर] दक्षिण ,देश का कोलव न [कौलव] ज्योतिप-शास्त्र में प्रसिद्ध एक नगर, महालक्ष्मी का स्थान । एक करण ।
कोल्लासुर पुं [कोल्लासुर] इस नाम का एक कोलाल वि [कौलाल] कुम्भकार-सम्बन्धी। दैत्य । न. मिट्टी का पात्र ।
कोल्लुग [दे] देखो कोल्हुअ । कोलालिय पुं [कौलालिक] मिट्टी का पात्र | | कोल्हाहल न [दे] बिम्बी-फल । बेचनेवाला।
कोल्हुअ पुं [दे] शृगाल । चरखी, ऊख से रस कोलाह पुं[कोलाभ] साँप की एक जाति । निकालने का कल। कोलाहल पुं [दे] पक्षी की आवाज । कोव सक [ कोपय् ] दूषित करना । कुपित कोलाहल पुं. शोरगुल, हल्ला ।
करना । कोलाहलिय वि [कोलाहलिक] कोलाहल- कोव पुं [कोप] गुस्सा। वाला, शोरगुलवाला।
कोवण वि [कोपन] क्रोधी । कोलिअ ' [दे] एक अधम मनुष्य-जाति । कोवाय पुं [कोर्पक] अनार्य देश-विशेष । कोलिअ पु [दे] कोली, जुलाहा । जाल का | कावास देखो कोआस । कीड़ा, मकड़ा।
कोविअ वि [कोविद] निपुण, विद्वान् । कोलित्त न [दे] उल्मुक, लूका ।
कोविआ स्त्री [दे] सियारिन । कोलिन्न न [कौलीन्य] कुलीनता ।
कोविआर पुं [कोविदार] वृक्ष-विशेष । कोलीकय वि [क्रोडीकृत] स्वीकृत । कोविणी स्त्री [कोपिनी] कोप-युक्त स्त्री। कोलीण न [कौलीन] जन-श्रुति । वि. वंश
कोशण (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम । परम्परागत । उत्तम कुल में उत्पन्न । तान्त्रिक
कोस पुं [दे] कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ रक्त मत का अनुयायी।
वस्त्र । समुद्र । कोलीर न दे] लाल रंग का एक पदार्थ, | कोस पुं [क्रोश] मार्ग की लम्बाई का परिकुरुविन्द ।
माण, दो मील। कोलुण्ण न [कारुण्य] दया। °पडिया, कोस पुं [कोश, ष] खजाना। तलवार की °वडिया स्त्री [°प्रतिज्ञा] अनुकम्पा की | म्यान । कुडमल । गोल । दिव्य-भेद, तप्त प्रतिज्ञा ।
लोहे का स्पर्श वगैरह शपथ । अभिधानशास्त्र। कोलेज पुं [दे] नीचे गोल और ऊपर खाईं | पुंन. चषक । न. नगर-विशेष । 'पाण न के आकार का धान्य आदि भरने का कोठा ।। [°पान] शपथ । 'हिव पुं [°ाधिप]
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कोसंबिया-कोहल्ली संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
२६३ भण्डारी । कोसंब पुं [कोशाम्र] फल-वृक्ष- नाम का एक तापस । पुंस्त्री. कौशिकविशेष । गंडिया स्त्री [गण्डिका] खड्ग- गोत्रीय । विशेष ।
कोसिया स्त्री [कोशिका] भारतवर्ष की एक कोसंबिया स्त्री [कौशाम्बिका] जनमुनिगण | नदी । इस नाम की एक विद्याधर राजकन्या। की एक शाखा।
चमड़े का जूता । देखो कोसी। कोसंबी स्त्री कौशाम्बी] वत्स देश की मुख्य- कोसियार पुं [कोशिकार] रेशम का कीड़ा । नगरी।
न. रेशमी वस्त्र । कोसग पुं [कोशक] साधुओं का एक चर्ममय | कोसी स्त्री [कोशी] छीमी, फली। तलवार
उपकरण, चमड़े की एक प्रकार की थैली ।। को म्यान । देखो कोसिया। गोलाकार एक कोसट्टइरिआ स्त्री[दे] चण्डी, पार्वती ।
वस्तु । कोसय न [दे. कोशक] छोटा पान-पात्र ।। कोसुम्भ वि[कौसुम्भ] कुसुम्भ-सम्बन्धी (रंग)। कोसल न [कौशल] निपुणता, चातुरी।। कोसुंम वि [कौसुम] फूल-सम्बन्धी, फूल का कोसल न [दे] नीवी।
बना हुआ। कोसल । [कोसल, °क] देश-विशेष । | कोसुम्ह देखो कुसुंभ । कोसलग एक जैन महर्षि । कोसल देश का कोसेअ । न [कौशेय] रेशमी वस्त्र । तसर
राजा । वि. कोशल देश में उत्पन्न । °पुर न. | कोसेज का बना हुआ वस्त्र । अयोध्या नगरी।
कोह पुं [क्रोध] गुस्सा । मुंड वि. क्रोधरहित । कोसला स्त्री. अयोध्या-नगरी । कोसल-देश ।
कोह पुं [कोथ] शीर्णता । कोसलिअ न [दे. कोशलिक] उपहार ।।
कोह पुं [दे. कोथ] कोथली, थैला । कोसलिआ स्त्री[दे. कौशलिका] ऊपर देखो।
कोह वि [क्रोधवत्] क्रोध-युक्त । कोसल्ल न [कौशल्य] निपुणता ।
कोहंगक पुं [कोभङ्गक] पक्षि-विशेष । कोसल्ल न [दे] भेट ।
कोहंझाण न [क्रोधध्यान] क्रोध-युक्त चिन्तन । कोसल्लया स्त्री [कौशल्य] चतुराई।
कोहंड न [कूष्माण्ड] कुष्माण्डी-फल । न. कोसल्ला स्त्री [कौशल्या] दाशरथि राम की देव-विमान-विशेष । पुं. व्यन्तरश्रेणीय देवमाता।
जाति-विशेष । कोसल्लिअ न [दे. कौशलिक] भेंट।
कोहंडी स्त्री [कूष्माण्डी] कोहँड़े का गाछ । कोसा स्त्री [कोशा] इस नाम की एक प्रसिद्ध | कोहण वि [क्रोधन] क्रोधी । पुं. इस नाम का वेश्या ।
रावण का एक सुभट । कोसिण वि [कोष्ण] थोड़ा गरम । कोहल देखो कुऊहल। कोसिय न [कौशिक] मनुष्य का गोत्र-विशेष । | कोहलिअ वि [कुतूहलिन्] कुतूहली, कुतूहलबीसवें नक्षत्र का गोत्र । पुं. उल्लू । चण्ड- | प्रेमी । कोशिक-नामक दृष्टि-विष सर्प जिसको भगवान् | कोहलिआ स्त्री [कूष्माण्डिका] कोहँड़ा का श्रीमहावीर ने प्रबोधित किया था। वृक्ष- गाछ । विशेष । इन्द्र । नकुल । खजानची, अनुराग। कोहली देखो कोहंडी। इस नाम का एक राजा। इस नाम का एक | कोहल्ल देखो कोहल । असुर । सपेरा । मज्जा। शृंगाररस । इस । कोहल्ली स्त्री [दे] तवा ।
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कोहल्लो-खंगार
२६४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कोहल्ली देखो कोहंडी।
क्खंभ देखो खंभ। कोहि । वि [क्रोधिन्] गुस्साखोर ।।
क्खम देखो खम। कोहिल्ल
°क्खलण देखो खलण । °क्खिंसा देखो खिसा।
°क्खु देखो खु। °क्किसिय देखो किसिय = कृषित । °क्खुत्त देखो खुत्त । °क्कूर देखो कूर = कूर।
°वखेड्डु देखो खेड्ड । क्कर देखो केर।
क्खेव देखो खेव । °क्खंड देखो खंड।
क्खोडी देखो खोडी।
कौरव । देखो कउरव
कौलव । देखो क उरव।
ख पु. व्यंजन-वर्ण-विशेष । न. आकाश । | खउड पुं [खपुट] स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैनाइन्द्रिय । °ग पु[ग] पक्षी । मनुष्य की एक चार्य । जाति जो विद्या के बल से आकाश में गमन | खउर अक [ क्षुभ् ] डर से विह्वल होना। करती है, विद्याधर लोक । देखो खय = | सक. कलुषित करना। खग । °गइ स्त्री [गति] आकाश गति । खउर वि [दे] कलुषित । कर्म-विशेष । °गामिणी स्त्री [गामिनी] खउर न [क्षौर] हजामत । विद्या-विशेष । पुप्फ न [°पुष्प] आकाश- खउर पुन [खपुर] खैर वगैरह का चिकना कुसुम, असम्भावित वस्तु ।
रस, गोंद । कढिणय न [°कठिनक] खअ । सक [खव] सम्पत्ति-युक्त करना ।
तापसों का एक प्रकार का पात्र । खउर
खउरिअ वि [क्षुब्ध] कलुषित । खइ वि [क्षयिन्] नाशवाला । क्षय-रोगी।
खउरिअ वि [क्षौरित] मुण्डित लुञ्चित, केशखइअ वि [क्षपित] नाशित ।
रहित किया हुआ। खइअ वि [खचित] व्याप्त । विभूषित । खइअ वि [खादित] भुक्त, ग्रस्त । आक्रान्त ।
खउरिअ वि [खपुरित] खरण्टित, चिपकाया खइअ वि [क्षयित] क्षीण ।
हुआ । खइअ ' [दे] हेवाक, स्वभाव ।
खउरीकय वि [खपुरीकृत] गोंद वगैरह की
तरह चिकना किया हुआ । खइअ ) पु [क्षायिक] विनाश । वि. क्षय खओवसम ५ क्षियोपशम] कुछ भाग का खइग से उत्पन्न, क्षय-सम्बन्धी । कर्म-नाश
विनाश और कुछ का दबना । से उत्पन्न ।
खओवसमिय वि [क्षयोपशमिक] क्षयोपशम खइत्त न [क्षेत्र] खेतों का समूह ।
से उत्पन्न । पुंन. क्षयोपशम । खइया स्त्री [खदिका]सेका हुआ व्रीहि-धान । खंखर पुदे] पलाश-वृक्ष । खइर पु[खदिर] खैर का गाछ । खंगार पु [खङ्गार] राजा खेगार, सौराष्ट्र खइर वि [खादिर] खदिर-वृक्ष-सम्बन्धी। देश का एक भूपति । °गढ पुं. सौराष्ट्र का खइव [दे] देखो खइ।
। एक नगर, जूनागढ़।
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खंच-खंदय
खंच सक [ कृष् ] खींचना । वश में करना । खंज अक [ खच् ] लंगड़ा होना । खंज
[ख] पंगु, लूला । न गाड़ी में लोहे के डंडे के पास बाँधा जाता सण आदि का
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गोल कपड़ा ।
खंजण
[खञ्जन] राहु का कृष्ण पुद्गलविशेष । खञ्जरीट । वृक्ष - विशेष |
खंजण पुं [दे] कीचड़ । पहिए के भीतर का काला कीच ।
खंजरपुं [दे] सूखा हुआ पेड़ । खंजा स्त्री. छन्द - विशेष |
काजल । गाड़ी के
खंड सक [ खण्डय् ] तोड़ना, टुकड़ा करना, विच्छेद करना ।
खंड पुं [ खण्ड ] एक नरक-स्थान । 'कव्व न ['काव्य] छोटा काव्यग्रन्थ |
खंड (अप) देखो खग्ग ।
|
खंड पुंन [खण्ड] टुकड़ा, अंश । चीनी । पृथ्वी का एक हिस्सा । 'घडग [ घटक ] भिक्षुक का जल - पात्र । ● पाया स्त्री [प्रपाता] वैताढ्य पर्वत की एक गुफा । भेय [भेद] विच्छेद - विशेष पदार्थ का एक तरह का पृथक्करण, पटके हुए घड़े की तरह पृथग्भाव । मल्लय पुंन [ मल्लक] भिक्षापात्र । सो अ [°शस् ] टुकड़ा टुकड़ा । The देखो 'भेय |
खंड न [] मस्तक । दारू का बरतन । खंडई स्त्री [दे] कुलटा ।
खंडग पुंन [ खण्डक] चौथा हिस्सा । खंडग न. शिखर - विशेष |
खंडण न [ खण्डन] विच्छेद, भञ्जन, नाश । कण्डन, धान्य वगैरह का छिलका अलग करना । वि. नाशक ।
खंडपट्टे ' [ खण्डपट्ट] जूआरी । धूर्त्त । अन्याय से व्यवहार करनेवाला ।
खंडव न [ खाण्डव] इन्द्र का वन - विशेष | खंड स्त्री. [खण्ड ] शक्कर ।
खंडा स्त्री. इस नाम की एक विद्याधर - कन्या । खंडाखंडि अ [ खण्डशस् ] टुकड़ा टुकड़ा । 'डोकय वि [कृत ] टुकड़ा टुकड़ा किया हुआ। खंडामणिकंचण न [ खण्डामणिकाञ्चन] इस नाम का एक विद्याधर नगर ।
खंडावत्तन [ खण्डावर्त्त ] इस नाम का एक विद्याधरनगर ।
खंडाहंड वि [ खण्डखण्ड ] टुकड़े-टुकड़ा किया
हुआ ।
खंडि
खंड
खंड
खंड
' [ खण्डिक] विद्यार्थी ।
[] भाट । वि. अनिवार्य ।
२६५
स्त्री [खण्डिका] खण्ड, टुकड़ा ।
स्त्री [] बीस मन की नाप ।
खंडी स्त्री [दे] छोटा गुप्त द्वार । किले का
छिद्र |
खंडु (अप) देखो खग्ग | खंडुअ न [दें] बाजूबन्द । खंडुय देखो खंडग । खंत पुं [दे] पिता ।
खंत वि [क्षान्त ] क्षमा-शील | तव्व वि [ क्षन्तव्य ] क्षमा-योग्य ।
खंदग खंडरक्ख पुं [ खण्डरक्ष ] कोतवाल । चुङ्गी खंदय वसूल करनेवाला |
३४
खंति स्त्री [क्षान्ति [ क्षमा, क्रोध का अभाव | खंतिया स्त्री [दे] माता |
}
खंती
खंद [ स्कन्द ] कार्त्तिकेय । राम का स्कन्द नाम का एक सुभट । कुमार पु. एक जैन हि [ग्रह] स्कन्दकृत उपद्रव | ज्वर - विशेष । मह पुं. स्कन्द का उत्सव | सरी स्त्री [श्री] एक चोर सेनापति की भार्या का नाम ।
पुं [ स्कन्दक ] ऊपर देखो । एक जैन मुनि । एक परिव्राजक, जिसने भगवान् महावीर के पास पीछे से जैन दीक्षा
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२६६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ली थी ।
खंदरुद्द न [स्कन्दरुद्र ] शास्त्र विशेष । खंदिल पुं [स्कन्दिल] एक प्रख्यात जैनाचार्य, जिसने मथुरा में जैनागमों को लिपिबद्ध किया ।
[स्कन्ध] भीत। पुद्गलों का पिण्ड | समूह । कन्धा । पेड़ का धड़ । छन्द-विशेष | 'करणी स्त्री. साध्वियों को पहनने का उपकरण - विशेष । 'मंत व [ मत् ] स्कन्ध
| 'वी' [° बीज] स्कन्ध हो जिसका बीज होता है ऐसा कदली वगैरह का गाछ । 'सालि पुं ['शालिन् ] व्यन्तर देवों की एक जाति ।
खंधग्गि पुं [दे. स्कन्धाग्नि] स्थूल काष्ठों की
आग ।
खंधमंस पुं' [दे] हाथ । बाहु | खंधमसी स्त्री [दे] स्कन्द-यष्टि, हाथ | खंधय देखो खंध |
खंट्ठि स्त्री [दे. स्कन्धर्याष्ट] हाथ | खंधर पुं [कन्धर] गरदन । खंधलट्ठ स्त्री [दे. स्कन्धयष्टि ] हाथ । खंधवार देखो संधावार ।
खंधाआर देखो खंधावार ।
खंधार पुंब. [ स्कन्धार] देश-विशेष | खंधार देखो खंधावार ।
धावि [ स्कन्धवत् ] स्कन्धवाला | खंधावार पुं [स्कन्धावार ] सैन्य का पड़ाव । शिविर |
धीधार [] बहुत गरम पानी की धारा । खंप सक [ सिच् ] छिड़कना । खंपणय न [दे] कपड़ा 1
खंदरुद्द - खट्ट
खंभावत्तन [ स्तम्भादित्य ] गूर्जर देश का प्राचीन नगर खम्भात ।
खंभालण न [ स्तम्भालगन] खम्भे से बांधना | खक्खरग पुंन [दे] सूखी रोटी ।
.
खग्ग पु [ खड्ग ] गेंड़ा । पुंन तलवार | °णुआ स्त्री [° धेनु ] छूरी । 'पुरा स्त्री. विदेह वर्ष की स्वनाम - प्रसिद्ध नगरी । पुरो
स्त्री. पूर्वोक्त ही अर्थ | खग्गाखगि न [ खड्गाखड्गि ] तलवार की
लड़ाई ।
खग्ग पुं [ खड्गिन् ] गेंडा । खग्गिअ पुं [दे] गाँव का मुखिया । खग्गी स्त्री [ खङ्गी] विदेह वर्ष की नगरीविशेष |
खग्गूड वि [ दे] धूर्त - सदृश । धर्मरहित, नास्तिकप्राय । निद्रालु । रसलम्पट ।
खच सक [ खच् ] पावन करना । कसकर बाँधना |
खचिअ देखो खइअ = खचित । पिञ्जरित । खच्चल पुं [दे] भालू । खच्चोल पुं [दे] व्याघ्र । खज्ज पुं [खर्ज] वृक्ष - विशेष । खज्जवि [ खाद्य] खाने योग्य वस्तु । न. खाद्य - विशेष |
खज्ज वि [क्षय्य ] जिसका क्षय किया जा सके वह ।
खज्जिअ वि [दे] जीर्ण, सड़ा हुआ । उपालब्ध । खज्जिर (अप) वि [ खाद्यमान] जो खाया गया हो वह ।
खज्जू स्त्री [खर्जू] खुजली ।
खज्जूर पुं [खर्जूर] खजूर का पेड़ । न खजूर
का फल |
खंभ पुं [ स्तम्भ ] थम्भा । खंभ स [ स्कभ् ] क्षुब्ध होना ।
खंभतित्थ न [ स्तम्भतीर्थ ] एक जैन तीर्थ, खज्जोअ पुं [दे] नक्षत्र ।
गुजरात का प्राचीन 'खंभणा' गाँव | खंभल्लिअ वि [ स्तम्भ ] खम्भे से बांधा हुआ ।
खज्जूरी स्त्री [खर्जूरी] खजूर का गाछ ।
खज्जोअ पुं [खद्योत] जुगनू ।
खट्टन [] कढ़ी | वि. अम्ल । 'मेह पुं
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खटुंग-खण्ण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२६७ [°मेघ] खट्टे जल की वर्षा ।
खडिअ पुंदे] स्याही का पात्र । खट्टंग न [दे] छाया।
खडिआ स्त्री [खटिका] लड़कों को लिखने खट्टंग न [खट्वाङ्ग] शिव का एक आयुध । की खड़ी या खडिया । चारपाई का पाया या पाटी । प्रायश्चित्तात्मक खडी स्त्री [खटी] ऊपर देखो। भिक्षा माँगने का एक पात्र । तान्त्रिक मुद्रा- खडुआ स्त्री [दे] मोती। विशेष ।
| खडुक्क अक [आविस् +भू] प्रकट होना, खट्टक्खड पुं [खट्वाक्षक] रत्नप्रभा नामक उत्पन्न होना । पृथिवी का एक नरकावास ।
खडुक्क । पुंस्त्री [दे] मुण्ड सिर पर उँगली खट्टा स्त्री [खट्वा] पलंग । मल्ल पुं. बीमारी खडुक । का आघात । की प्रबलता से जो खाट से उठ न सकता हो खडु सक [ मृद् ] मर्दन करना । वह।
खड्ड । न [दे] दाढ़ी-मूंछ । बड़ा महान् । खट्टिअ [दे. खट्टिक] कसाई ।
खड्ग ) गत के आकारवाला । खट्टिक्क ।
खड्डा स्त्री [दे] आकर । पर्वत का गर्त । खड पुं [दे] एक म्लेच्छ जाति । न. तृण। गड्ढा । खडइअ वि [दे] सङ्कुचित ।
खड्डुया स्त्री [दे] ठोकर । खडंग न [षडङ्ग] छ: अंग, वेद के ये छ: खड्डोलय पुं [दे] गड्ढा । अंग-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, खण सक [खन्] खोदना । छन्द, निरुक्त । °वि वि [वित्] छहो अंगों खण पुं [क्षण] बहुत थोड़ा समय । °जोइ वि का जानकार ।
["योगिन्] क्षणमात्र रहनेवाला। भंगुर वि खडक्य पुन खटत्कृत] आहट देना, सिकड़ी [°भङ्गुर] क्षणिक । °या स्त्री [°दा] रात्रि । वगैरह की आवाज ।
खणक्खण । अक [खणयणाय] खणखण खडक्कार पुं [खटत्कार] ऊपर देखो। खणखणखण ) आवाज करना । खडक्किआ । स्त्री [दे] खिड़की। खणग वि [खनक] खोदनेवाला। खडक्की
खणण न [खनन] खोदना । खडक्किय देखो खडक्कय।
खणय देखो खण = क्षण । खडक्खड पुं [खटखट] खट-खट आवाज ।
खणि स्त्री [खनि] खान । खडक्खर देखो छडक्खर ।
खणिक्क , देखो खणिय = क्षणिक । खडखड पुं. देखो खाडखड ।
खणिग । खडखडग वि [दे] छोटा और लम्बा ।
खणित्त य [खनित्र] खोदने का अस्त्र । खडट्टोबिल पुंदे] एक म्लेच्छ जाति । खणिय वि [क्षणिक] क्षण-विनश्वर । वि. खडणा स्त्री [दे] गौ।
फुरसत वाला, काम-धन्धा से रहित । °वाइ खडहड [खटखट]साँकल वगैरह की आवाज । वि [°वादिन] सर्व पदार्थ को क्षण-विनश्वर खडहडी स्त्री [दे] जन्तु-विशेष, गिलहरी माननेवाला, बौद्धमत का अनुयायी । गिल्ली।
खणो देखो खणि । खडिअ देखो खट्टिम।
खणुसा स्त्री [दे] मानसिक पीड़ा । खडिअ देखो खलिअ।
खण्ण न [दे] खोदा हुआ।
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२६८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
खण्ण-खरे खण्ण वि [खन्य] खोदने-योग्य ।
खमा स्त्री [क्षमा] पृथिवी । क्रोध का अभाव । खण्णु देखो खाणु।
वइ पु [°पति] राजा। °समण पु खण्णुअ पु [दे. स्थाणुक] कीलक, खूटा ।। [श्रमण] ऋषि । °हर पु[ धर] पर्वत । खत्त न [दे] खात । शस्त्र से तोड़ा हुआ। साधु । सेंध । गोबर । °खणग पु [°खनक] सेंध | खमावणया । स्त्री क्षमणा] माफी लगाकर चोरी करनेवाला। खणण न । खमावणा , माँगना। [°खनन] सेंध लगाना। °मेह ' [°मेघ] खम्म देखो खण = खन् । करीष के समान रसवाला मेघ ।
खम्मक्खम पुं [दे] संग्राम । मन का दुःख । खत्त पु क्षत्र] क्षत्रिय ।
पश्चात्ताप का निःश्वास । खत्त वि[क्षात्र]क्षत्रिय-सम्बन्धी। न. क्षत्रियत्व। खय देखो खच । खत्तय पु[दे] खेत खोदनेवाला । सेंध लगा- खय अक [क्षि] नष्ट होना । कर चोरी करनेवाला । राहुग्रह ।
खय देखो खग। आकाश तक ऊँचा पहुंचा खत्ति पुं [A] एक म्लेच्छ-जाति ।।
हुआ। °राय पुं [°राज] गरुड-पक्षी । °वइ खत्ति पुंस्त्री [क्षत्रिन्] नीचे देखो।
पुं [ पति] गरुड़ पक्षी। खत्ति पुंस्त्री [क्षत्रिय राजन्य । °कुंडग्गाम खय न [क्षत] धाव । वि. वणित । "यार पुं [कुण्डग्राम] नगर-विशेष । °कुंडपुर न | स्त्री. पु [°ाचार] शिथिलाचारी साधु या [कुण्डपुर] पूर्वोक्त ही अर्थ । विज्जा स्त्री | साध्वी। [विद्या] धनुर्विद्या ।
खय वि [खात] खोदा हुआ। खत्तिणी । स्त्री [क्षत्रिवाणी] क्षत्रिय जाति
खय पु [क्षय] प्रलय, विनाश । राज-यक्ष्मा । खत्तियाणी की स्त्री।
°कारि वि [°कारिन्] नाश-कारक । काल खद्द न [दे] प्रभूत लाभ ।
°गाल पु [ काल] प्रलय-काल । °ग्गि पुं खद्ध वि [दे] भुक्त। बहुत । विशाल । अ. [°ाग्नि] प्रलय-काल की आग। नाणि पुं शीघ्र । दाणिअ वि. [दानिक] समृद्ध ।। [°ज्ञानिन्] केवल-ज्ञानी। समय पु. प्रलयखपुसा स्त्री [दे] एक प्रकार का जूता। काल। खप्पर पुं [कर्पर]मनुष्य-जाति-विशेष । भिक्षा
खयंकर वि [क्षयकर] नाश-कारक । पात्र । खोपड़ी । घट वगैरह का टुकड़ा।
खयंतकर वि [क्षयान्तकर] नाश-कारक । खप्पर ! वि [दे] रूक्ष, निष्ठुर ।
खयर पुंस्त्री [खचर] आकाश में चलनेवाला,
पक्षी। विद्याधर । प्राय पु [ राज] खम सक [क्षम्] माफ करना । सहन करना । विद्याधरों का राजा। खम वि [क्षम] उचित । समर्थ ।
खयर देखो खइर = खदिर। . खमग पुं [क्षमक, क्षपक] तपस्वी जैन साधु । खयरक्क वि [खादिरक] खदिर-सम्बन्धी । खमण न [क्षपण] तपश्चर्या, बेला, तेला आदि | खयाल पुंन [दे] बाँस का वन । तप।
खर अक [क्षर] झरना । नष्ट होना । खमण न [क्षपण, क्षमण उपवास । पु. खर वि. निष्ठुर, परुष ! पुंस्त्री. गर्दभ । पु. तपस्वी जैन साधु ।
छन्द-विशेष । न. तिल का तेल । °कंट न खमय देखो खमग।
[°कण्ट] बबूल वगैरह की शाखा । °कंड न
खप्पुर
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खर-खलिण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [°काण्ड] रत्नप्रभा पृथिवी का प्रथम काण्ड- खरहर अक [खरखराय] 'खर-खर' आवाज अंश-विशेष । 'कम्म न [°कर्मन्] जिसमें | करना । अनेक जीवों की हानि होती हो ऐसा काम । खरहिअ पुं [दे] पौत्र । कम्मिअ वि [°कमिन्] निष्ठुर कर्म करने- खरा स्त्री. नेवला की तरह भुज से चलनेवाला वाला । पु. कोतवाल । °किरण पुं. सूरज । जन्तु-विशेष । °दूसण पुं [°दूषण] इस नाम का एक विद्या- खरिअ वि [दे] भुक्त । धर राजा। नहर पु [°नखर] श्वापद । खरिआ स्त्री [दे] दासी । जन्तु, हिंसक प्राणी। निस्सण पु खरिंसुअ पु [दे. खरिशुक] कन्द-विशेष । [°निःस्वन] इस नाम का रावण का एक खरुट्टी स्त्री [खरोष्ट्रो] एक प्राचीन लिपि । सुभट । “मुह पुं [°मुख] अनार्य-देश-विशेष ।। गांधार लिपि । अनार्य देश-विशेष का निवासी । °मुही स्त्री खरुल्ल वि [दे] कठिन, कठोर । स्थपुट, विषम [°मुखी] वाद्य-विशेष । नपुंसक दासी । यर और ऊँचा। वि [°तर] विशेष कठोर । पु. इस नाम का खरोट्टिआ स्त्री [खरोष्ट्रिका] लिपि-विशेष । एक जैन गच्छ । "सन्नय न [°संज्ञक] तिल खल अक [स्खल] गिरना । भूलना । रुकना । का तेल । °साविआ स्त्री [°शाविका] | अपसरण करना। लिपि-विशेष । स्सर पु [ स्वर] परमा- | खल अ. [खलु] पादपूर्ति में प्रयुक्त होता धार्मिक देवों की एक जाति ।
अव्यय । खर वि [क्षर] विनश्वर ।
खल वि. दुर्जन । न. धान साफ करने का खरंट सक [खरण्टय] निर्भर्त्सना करना । लेप | स्थान । पू वि. खलिहान या खलियान को करना।
साफ करनेवाला। खरंट वि [खरण्ट] धूत्कारनेवाला । उपलिप्त खलइअ वि [दे] खाली। करनेवाला । अशुचि पदार्थ ।
खलक्खल अक [खलखलाय] 'खल-खल' खरंटण न [खरण्टन] निर्भर्त्सन । प्रेरणा । आवाज करना । खरंसूया स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष ।
खलगंडिअ वि [दे] उन्मत्त । खरड पु [दे] हाथी की पीठ पर बिछाया
खलणा स्त्री [स्खलना] निपतन । विराधना ।
अटकायत । जाता आस्तरण । खरड सक [लिप्] लेपना, पोतना ।
खलभलिय वि [दे] क्षुब्ध । खरड पु [खरट] एक जघन्य मनुष्य जाति । खलहर । पु[खलखल] नदी के प्रवाह की खरडिअ वि [दे] रूखा । भग्न, नष्ट । खलहल , आवाज । खरण न [दे] बबूल वगैरह की कण्टक-मय | खला अक [दे]खराब करना, नुकसान करना। डाली।
खलिअ वि [स्खलित] रुका हुआ। गिरा खरफरुस पु [खरपरुष] एक नरक स्थान । हुआ, पतित । न. अपराध, भूल । खरय पु [खरक] भगवान् महावीर के कान खलिअ वि [खलिक] खल से व्याप्त, खलिमें से खीला (मांस कील) निकालनेवाला एक खचित । वैद्य।
खलिण पुन [खलिन] लगाम । कायोत्सर्ग का खरय पु [दे] नौकर । राहु ।
एक दोष ।
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२७०
खलिया स्त्री [ खलिका ] तिल वगैरह का तैलरहित चूर्ण, खली । खलियार सक [खली + कृ]
तिरस्कार
करना । धूत्कारना । ठगना । उपद्रव करना । खली स्त्री [दे. खली ] तिल- पिण्डिका, तिल वगैरह का स्नेहरहित चूर्ण |
खलीण न [ खलीन] देखो खलिण । नदी का किनारा |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कौष
खलु अ [खलु] इन अर्थों का सूचक अव्यय -- अवधारण, निश्चय । पुनः । विशेष पादपूर्ति और वाक्य की शोभा के लिए भी इसका प्रयोग होता है । खित्त न [° क्षेत्र ] जहाँ पर जरूरी चीज मिले वह क्षेत्र । खलुंक
[दे] गली बैल, अविनीत बैल,
कुशिष्य ।
खलुंकिज्ज पुं [ दे] गली बैल सम्बन्धी । न. उत्तराध्ययन सूत्र का इस नाम का एक अध्ययन |
खलुग
न [ खलुक ] गुल्फ, पाँव का मणि
बन्ध |
खलुय खल्ल न [दे] बाड़ का छिद्र । विलास । वि. रिक्त ।
खल्ल वि[ ] जिसका मध्य भाग नीचा हो वह | खल्लइअ वि [दे] संकुचित, संकोच-युक्त | हर्षयुक्त
खल्लग
पुंन [ दे] पत्ता | पत्र-पुट |
खल्लय
खल्लग न [दे] पाँव का रक्षण करनेखल्लय वाला चमड़ा, एक प्रकार का जूता । थैला ।
खल्ला स्त्री [दे] चर्म । खाल | खल्लाड देखो खल्लीड ।
खलिया - खेह
खल्लीड पुं [ खल्वाट] गंजा, चंदला । खल्लूड पुं' [खल्लूट] कन्द-विशेष | खव सक [ क्षपय् ] नाश करना। डालना, प्रक्षेप करना । उल्लंघन करना । खव पुं [दे] बायाँ हाथ । गर्दभ ।
खवग वि [क्षपक] नाश करनेवाला । पुं. तपस्वी - वि. क्षण में आरूढ़ । °से स्त्री [श्रेणि] क्षपण कर्मों के नाश की परिपाटी ।
खवण खवणय
खवडिअ वि [दे] स्खलित, स्खलन प्राप्त । न [ क्षपण ] क्षय । डालना, प्रक्षेप । पुं. जैन मुनि ।
खवण देखो खमण ।
खवणा स्त्री [ क्षपणा ] अध्ययन, शास्त्र
प्रकरण ।
खवय [दे] कन्धा । खवय देखो खवग | खवलिअ वि [दे] कुपित | खवल्ल पुं. मत्स्य - विशेष |
खवा स्त्री [क्षपा] रात्रि । जल न. आवश्याय, हिम |
खवि वि [क्षपित] विनाशित । उद्वेजित । खव्व [दे] वायाँ हाथ । रासभ । खव्व वि [खर्व] वामन । लघु, थोड़ा । खव्वुर देखो कब्बुर । खव्वुलन [दें] मुख ।
खस अक [दे] खिसकना, गिर पड़ना ।
खस पु. ब. अनार्य देश - विशेष । पुंस्त्री. खस देश में रहनेवाला मनुष्य ।
खसखस पुं. पोस्ता का दाना, उशीर, खस । खसफस अक [दे] खिसकना, गिर पड़ना । खसफसि वि [] अधीर ।
खल्लिरा स्त्री [दे] संकेत । खल्लिहड (अप) देखो खल्लीड | खल्ली स्त्री [दे] सिर का वह चमड़ा, जिसमें खसु पुं [दे] रोग-विशेष, पामा ।
खसर देखो कसर = दे कसर । खसिअ देखो खइअ = खचित ।
केश पैदा न होता हो ।
खह पुन [ख] आकाश ।
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खह-खारायण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२७१ खह देखो ख।
| खाण न [ख्यान] कथन । खहयर देखो खयर।
खाणि स्त्री [खानि खान । खहयरी स्त्री[खचरो]मादा पक्षी । विद्याधरी। खाणिअ वि [खानित] खुदवाया हुआ । खा । सक [ खाद् ] भोजन करना, भक्षण | खाणी देखो खाणि । खाअ ) करना।
खाणु ) पुं [स्थाणु] टूठा वक्ष, अचल । खाअ वि [ख्यात] प्रसिद्ध, विश्रुत । कित्तीय | खाणुय । वि [°कीतिक] यशस्वी। °जस वि | खादि देखो खाइ = ख्याति । [ यशस् ] वही अर्थ ।
खाम सक [क्षमय् ] माफी मांगना । खाअ वि [खादित] भुक्त, भक्षित । खाम वि [क्षाम] दुर्बल । क्षीण, अशक्त । खाअ वि [खात खुदा हआ। न. खुदा हआ | खामण न [क्षमण] खमाना । जलाशय । ऊपर में विस्तारवाली और नीचे | खामिय वि [क्षमित] खमाया हआ। सहन में संकुचित ऐसी परिखा। ऊपर और नीचे | किया हुआ । विलम्बित । समान रूप से खुदी हई परिखा । खाई। खाय पु [खाद] पाँचवी नरक-भूमि का एक खाइ स्त्री [खाति] परिखा।
नरक-स्थान । खाइ स्त्री [ख्याति] प्रसिद्ध ।
खायर देखो खाइर। खाइ [दे] देखो खाई।
खार पु [क्षार] एक नरक-स्थान । भुजपरिखाइअ देखो खइअ = क्षायिक ।
सर्प की एक जाति । दुश्मनी । °डाह पुन खाइआ स्त्री [दे. खातिका] खाई । [°दाह] क्षार पकाने की भट्टी। 'तंत पुन खाई अ [दे] वाक्य की शोभा और पुनः शब्द [तन्त्र] आयुर्वेद का एक भेद, वाजीकरण । के अर्थ का सूचक अव्यय ।
खार पु [क्षार] क्षरण, झरना, संचलन । खाइग देखो खाइअ = क्षायिक ।
भस्म । खार । लवण-विशेष । लवण । जानखाइम न [खादिम] अन्न-वजित फल, औषध वर-विशेष । सज्जी। वि. कटु या चरपरा वगैरह खाद्य चीज।
स्वादवाला, कटु चीज । खारी चीज, नमकीन खाइर वि [खादिर] खदिर-वृक्ष-सम्बन्धी, खैर स्वादवाली वस्तु । 'तउसी [त्रपुषी] कटु का, कत्थई ।
त्रपुषी, वनस्पति विशेष । तिल्ल न ["तैल] खाउय न [खाद्यक खाद्यपदार्थ ।
खारे से संस्कृत तैल । °मेह पुं [मेघ] क्षार
रसवाले पानी को वर्षा । °वत्तिय वि खाओवसमिअ ( देखो खओवसमिय । [°पात्रिक] क्षार-पात्र में जिमाया हुआ । खाओवसमिग)
क्षार-पात्र का आधार-भूत । वित्तिय वि खाडइअ वि [दे] प्रतिफलित, प्रतिबिम्बित । [°वृत्तिक] खार में फेंका हुआ, खार से खाडखड पुं चौथी नरक-पृथिवी का एक | सींचा हुआ । °वावी स्त्री [°वापी] क्षार से नरकावास।
भरी हुई वापी, कुंआ। खाडहिला स्त्री [दे] एक प्रकार का जानवर, | खारंफिडी स्त्री [दे] गोधा, गोह । गिलहरी ।
खारदूसण वि. खरदूषण का। खाण पु[दे] एक म्लेच्छजाति ।
खारय न [दे] कली। खाण न [खादन] भोजन ।
। खारायण पुं [क्षारायण] ऋषि-विशेष ।
खाओवसम
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२७२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
खारि - खिप्प
माण्डव्यगोत्र के शाखाभूत एक गोत्र । खिखिणी स्त्री [ofङ्कणी] ऊपर देखो । खारि स्त्री [खारी] एक प्रकार की नाप, सेर खिखिणी स्त्री [दे] शृगाली | की तौल | खिंग पुं. व्यभिचारी । खारिभरी स्त्री [खारिम्भरो] खारी-परिमित वस्तु जिसमें अट सके ऐसा पात्र भर दूध देनेवाली ।
खिंस सक [ खिस् ] निन्दा करना । खिक्खिंड पुं [दे] गिरगिट, सरट । खिक्खियंत वि [खिखीयमान] 'खि-खि'
खारिक्क न [दे] फल- विशेष, छुहारा ।
आवाज करता ।
खारयवि [क्षारित ] स्रावित । पानी में घिसा | खिक्खिरी स्त्री [दे] डोम वगैरह का स्पर्श
रोकने की लकड़ी ।
हुआ ।
खारी देखो खारि ।
खारुगणिय पुं [क्षारुगणिक] म्लेच्छ देशविशेष | उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति । खारोदा स्त्री [क्षारोदा] नदी - विशेष । खाल सक [ क्षालय् ] धोना । खाल स्त्रीन [दे] मोरी । खावण न [ ख्यापन] प्रतिपादन | खावणा स्त्री [ ख्यापना] प्रसिद्धि ।
खावियंत वि [ खाद्यमान ] जिसको खिलाया जाता हो वह । खावियगवि [खादितक ] जिसको खिलाया गया हो वह ।
खावेंत वि [ ख्यापयत् ] प्रख्याति करता हुआ ।
खास अक [ कास् ] खाँसना । खास [कास] खाँसी की बीमारी । खासिअ [खासिक ] म्लेच्छ देश विशेष । उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति । खि अक [क्षि] क्षीण होना । खिs स्त्री [क्षिति] पृथिवी । गोयर पुं [' गोचर ] मनुष्य । पटु न [ 'प्रतिष्ठ नगर - विशेष । पट्टिय न [ प्रतिष्ठित ] इस नाम का एक नगर । राजगृह नाम का नगर । सार पुं. इस नाम का एक दुर्ग । खििख अक [ सिङ्खय् ] खिखि आवाज करना । खिखिणिया स्त्री [ किङ्किणिका ] क्षुद्र
]
घण्टिका ।
खिच पुंन [] खीचड़ी, कृसरा ।
खिज्ज अक [खिद् ] अफसोस करना । उद्विग्न
होना, थक जाता ।
खिज्जणिया स्त्री [खेदनिका] खेद क्रिया, अफसोस ।
खिज्जिअ न [ दे] उपालम्भ |
खिज्जिअ वि [ खिन्न ] खेद प्राप्त । न खेद । प्रणय-जन्य रोष |
खिज्जिअय न [ खेदितक ] छन्द - विशेष । खिड्ड न [ खेल ] क्रीड़ा, मजाक । खिण्ण वि [ खिन्न ] खेदप्राप्त । श्रान्त । खिoण देखो खीण
|
वित्त वि[क्षिप्त ] फेंका हुआ । प्रेरित । इत्त, ° चित्त व [चित्त ] भ्रान्त-चित्त, पागल | मण वि [ मनस् ] चित्त-भ्रमवाला ।
खित्त देखो खेत्त । देवया स्त्री [' देवता] क्षेत्र का अधिष्ठायक देव । वाल पुं [पाल ] देव - विशेष, क्षेत्र-रक्षक देव ।
खित्तज पुं [ क्षेत्रज ] गोद लिया हुआ लड़का | खित्तय न [ क्षिप्तक ] छन्द- विशेष ।
खित्तय न [ दे] अनर्थ नुकसान | वि.
प्रज्ज्वलित ।
खित्तअ वि [क्षैत्रिक ] क्षेत्र सम्बन्धी । पुं. व्याधि-विशेष |
खिप्प अक [ कृप् ] समर्थ होना । दुर्बल होना ।
खप्प वि [ क्षिप्र ] शीघ्र । 'गइ वि [' गति ]
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खिप्पं-खु संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२७३ शीघ्र गतिवाला । पुं. अमितगति इन्द्र का एक , वनस्पति-विशेष, खीरविदारी। जल पुं. लोकपाल ।
क्षीर-समुद्र । °जलनिहि पु [जलनिधि] खिप्पं अ [ क्षिप्रम् ] तुरन्त ।
वही पूर्वोक्त अर्थ । 'दुम, °म पु [°द्रुम] खिप्पामेव अ [क्षिप्रमेव] शीघ्र ही, तुरन्त । दूधवाला पेड़, जिसमें दूध निकलता है ऐसे खिमा स्त्री [क्ष्मा] पृथिवी ।
वृक्ष की जाति । °धाई स्त्री [धात्री] दूध खिर अक [क्षर] गिरना, गिर पड़ना । | पिलानेवाली दाई । पूर पु. उबलता हुआ टपकना।
दूध । °प्पभ पु[प्रभ] क्षीरवर द्वीप का खिल न [खिल] ऊसर जमीन ।
एक अधिष्ठाता देव । °मेह पु[ मेघ] दूधखिलीकरण ब [खिलीकरण] खाली करना । समान स्वादवाले पानी की वर्षा । °वई स्त्री खिल्ल सक [ कीलय् ] रोकना । डालना। [°वती] प्रभूत दूध देनेवाली । °वर पुं. द्वीपखिल्ल अक [खेल ] क्रीड़ा करना, तमाशा
विशेष । 'वारि न. क्षीर समुद्र का जल । करना।
हर पुं [°गृह, धर] क्षीर-सागर । °सव खिल्ल पु [दे] फोड़ा, फुनसी।
[°श्रव] लब्धि-विशेष, जिसके प्रभाव से खिल्लण न खेलन] खिलौना ।
वचन दूध की तरह मधुर मालूम हो । ऐसी खिल्लहड ) [दे. खिल्लहड] कन्द-विशेष ।
लब्धिवाला जीव । खिल्लहल )
खीरइय वि [क्षीरकित] सञ्जात-क्षीर । खिल्लुहडा स्त्री [दे] कन्द-विशेष ।
खीरिणी स्त्री [क्षीरिणी] दूधवाली। वृक्षखिव सक [क्षिप] फेंकना । प्रेरना । डालना ।
विशेष । इधर-उधर चलाना।
खीरी स्त्री [क्षरेयी] खीर । खिव्व देखो खिव।
खीरोअ पु [क्षीरोद] क्षीरसागर । खिस अक [दे] सरकना, खिसकना । खीरोआ स्त्री [क्षीरोदा] इस नाम की एक खीण देखो खिण्ण % खिन्न ।
नदी। खीण वि [क्षिण] नष्ट, विच्छिन्न । कृश । दुह, खीरोद देखो खीरोअ । वि [ दुःख] दुःखरहित । °मोह वि. जिसका खीरोदा देखो खीरोआ। मोह नष्ट हो गया हो वह। न. बारहवाँ
खील पुं [कील, °क] खीला, खूट । गुण-स्थानक । राग वि. वीतराग। पुं.
खोलग °मग्ग पु [°मार्ग] मार्ग-विशेष, तीर्थङ्कर देव ।
| खीलव , जहाँ धूली ज्यादा रहने से खूटे के खीयमाण वि [क्षीयमाण] जिसका क्षय होता | निशान बनाये गये हों। जाता हो वह ।
खीलावण न [क्रीडन] खेल कराना, क्रीड़ा खीर न [क्षीर] बेला, दो दिन का उपवास। कराना। °धाई स्त्री [ धात्री] खेलकूद
डिडिर पुं.देव-विशेष । डिडिरा स्त्री.देवी- करानेवाली दाई । विशेष । °वर पुं. समुद्र-विशेष । द्वीप-विशेष । | | खीलिया देखो कीलिआ। खीर न [क्षीर] दूध । पानी। पुं. क्षीरवर खीलिया स्त्री कीलिका] छोटी खूटी। समुद्र का अधिष्ठायक देव । क्षीर-समुद्र । | खीव पु [क्षीब] मदोन्मत्त, मस्त । कयंब पुं [कदम्ब] इस नाम का एक खु अ [खलु] इन अर्थों का सूचक अव्ययब्राह्मण-उपाध्याय। काओली-स्त्री[°काकोली] | निश्चय । वितर्क, विचार । सन्देह । सम्भा
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२७४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
खुं-खुर वना । विस्मय ।
धारण करनेवाला । स्त्री. °आ। खु देखो खुहा।
खुड्डु । विदे. क्षुद्र, क्षुल्लक] लघु, छोटा। खइ स्त्री [क्षुति] छींक, छींक का निशान । | खुडुग , अधम दुष्ट । पु. छोटा साधु, लघु खुइय वि दे] विच्छिन्न । विध्यात । शान्त । | शिष्य । पुन. अंगूठी। खुंखुणय पु [दे] नाक का छिद्र । | खुडुमड्डा अ [दे] अत्यन्त । फिर-फिर । खुंग्वुणी स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला । | खुड्डय देखो खुड्ड। खुंगाह पु [दे] अश्व की एक उत्तम जाति । खुड्डाग । देखो खुडग। ‘णियंठ न खुंट पु [दे] खूट, खंटी। °मोडय वि | खुड्डाय । [°नैग्रंन्थ] उत्तराध्ययन सूत्र का [°मोटक] खूटे को मोड़ने वाला, उससे छूट- छठवाँ अध्ययन । कर भाग जानेवाला । पु. इस नाम का एक | खुड्डिअ न [दे] मैथुन । हाथी ।
खुड्डिआ स्त्री [दे. क्षुद्रिका] छोटी । डाबर, खुंडय वि [दे] स्खलित ।
नहीं खुदा हुआ छोटा तलाव । खुंद (शौ) सक क्षुद्] जाना । पीसना,कूटना। खुणुक्खुडिआ स्त्री [दे] नासिका । खंद अक [ क्षुध् ] भूख लगना ।
खुण्ण वि [क्षुण्ण] मर्दित । चूर्णित । मग्न । खुंपा स्त्री [दे] वृष्टि रोकने के लिए बनाया | खुण्ण वि दे] परिवेष्टित । जाता एक तृणमय उपकरण ।
खुत्त वि [दे] निमग्न, डूबा हुआ। खंभण वि [क्षोभण] क्षोभ उपजानेवाला । खुत्तो अ [ °कृत्वस् ] बार, दफा । खुज्ज अक [परि + अस्] फेंकना। निरास | खुद्द वि. क्षुद्र] तुच्छ, नीच, दुष्ट । करना।
खुद्द न [क्षीद्रय] क्षुद्रता, तुच्छता। खुज्ज । वि [कुब्ज] कूबड़ा । वामन । खुद्दिमा स्त्री [क्षुद्रिमा] गान्धार ग्राम की एक खज्जय ) टेढ़ा । एक पार्श्व से हीन । न. मूर्च्छना। संस्थान-विशेष, शरीर का वामन आकार। खुद्ध वि [क्षब्ध] क्षोभ-प्राप्त । खुजिय वि [कुब्जिन्] कुबड़ा।
खुधा स्त्री [क्षुध् ] भूख । खुट्ट सक [तुड] तोड़ना, खण्डित, टुकड़ा | खुधिय वि [क्षुधित] भूखा । करना । अक. खूटना, क्षीण होना। टूटना, खुप्प सक [ प्लुष ] जलाना । त्रुटित होना।
खुप्प अक [ मस्ज् ] डूबना । खुट्ट वि [दे] त्रुटित, खण्डित, छिन्न । खुप्पिवासा स्त्री [क्षुत्पिपासा] भूख और खुड देखो खुट्ट = तुड्।
प्यास। खुडक्क देखो खुडुक्क - (दे)।
खुब्भ अक [ क्षुभ् ] क्षोभ पाना, नीचे डूबना । खुडिअ वि [खण्डित] त्रुटित, खण्डित, खुभ अक [क्षम् ] डरना, घबड़ाना । विच्छिन्न ।
खुभिय वि[क्षुभित]क्षोभ-युक्त । न, घबड़ाहट । खुडुक्क सक [ अप+ क्रमय ] दूर करना। | कलह । खडक्क अक [दे] नीचे उतरना । स्खलितहोना। | खुम्म अक [क्षुध ] भूख लगना ।
शल्य की तरह चुभना । गुस्सा से मौन रहना। खुम्मिय वि [दे] नमित । खुडुक्किअ वि [दे] शल्य की तरह चुभा हुआ, | खुय न [क्षुत] छींक । खरका हुआ। रोषमूक, गुस्सा से मौन । खुर पु. जानवर के पाँव का नख ।
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खुर-खेड्डय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष खुर पु [क्षर] उस्तरा । °पत्त न [पत्र] को शान्ति से सहन करना । छू रा।
खूण न [क्षण] नुकसान । अपराध । न्यूनता । खुरप्प पुंन [क्षुरप्र] एक तरह का जहाज । पुं. खेअ सक [खेदय] खिन्न करना। खेद उपघास काटने का अस्त्र-विशेष । शर-विशेष ।। जाना । खुरसाण पु [खुरशान] देश-विशेष । खुरशान
खेअ पुं [खेद] उद्वेग । तकलीफ, परिश्रम । देश का राजा।
संयम । थकावट । °ण वि [°ज्ञ] निपुण
जानकार। खुरहखुडी स्त्री [दे] प्रणय-कोप । खुरासाण देखो खुरसाण ।
खेअ देखो खेत्त । खुरि वि [खुरिन्] खुरवाला जानवर ।
खेअ पुंक्षेप] त्याग, मोचन । खुरु पु खुरु] आयुध-विशेष ।।
खेअण न [खेदन] खेद, उद्वेग । वि. खेद छुरुडुक्खुडी स्त्री [दे] प्रणय-कोप ।
उपजानेवाला। खुरुप्प देखो खुरप्प ।
खेअर देखो खयर । हिव पुं [°ाधिप] खुल क [दे] वह गाँव जहाँ साधुओं को भिक्षा |
विद्याधरों का राजा। हिवइ. पुं कम मिलती हो या भिक्षा में घृत आदि न
| [°ाधिपति विद्याधरों का राजा । मिलता हो।
खेअरिंद पुंखेचरेन्द्र] खेचरों का राजा । खुल देखो खुम्म।
खेअरी देखो खहयरी। खुलिअ देखो खुडिअ ।
खेआलु वि [दे] मन्द, आलसी । असहिष्णु, खलुह पु[दे] गुल्फ, फीली ।
ईर्ष्यालु। खुल्ल न [दे] कुटी।
खेचर देखो खेअर। खुल्ल वि [क्षुल्ल] छोटा, लघु, क्षुद्र । पु. खेजणा स्त्री [खेदना] खेद-सूचक वाणी, द्वीन्द्रिय जीव-विशेष ।
खेद । खुल्लग देखो खुड्डग ।
खेड सक [कृष्] खेती करना। खुल्लण (अप) देखो खुड्ड।
खेड सक [खेटय] हाँकना । खुल्लय वि [क्षुल्लक] क्षुद्र , छोटा। कदर्पक- खेड न [खेट] धूली का प्राकारवाला नगर । विशेष, कौड़ी।
नदी और पर्वतों से वेष्टित नगर । पुं. मृगया । खुल्लासय पु [दे] खलासी, जहाज का कर्म- खेडग न [खेटक] फलक, ढाल । चारी-विशेष ।
खेडण न [खेटन] खदेड़ना, पीछे हटाना। खुल्लिरी स्त्री [दे] सङ्केत ।
खेडणअ न [खेलनक] खिलौना । खुव पुं [क्षुप] जिसकी शाखा और मूल छोटे | खेडय पुं [क्ष्वेटक] विष । ज्वर-विशेष । होते हैं ऐसा वृक्ष ।
खेडय वि [स्फेटक] नाशक । खुवय पुं [दे] कैंटीला घास ।
खेडय न [खेटक] छोटा-गाँव । खुव्व देखो खुभ ।
खेडावग वि [खेलक तमासगिर । खुव्वय न [दे] पत्ते का पुड़वा, दोना। खेडिअ ' [स्फेटिक] नश्वर । अनादरवाला । खुह देखो खुभ ।
खेड्ड अक [रम्] क्रीड़ा करना। खुहा स्त्री [क्षुध] बुभुक्षा । °परिसह, °परी- खेड्ड । न [खेल] खेल, तमाशा, मजाक । सह पुं[°परिषह परीषह] भूख की वेदना | खेड्डय ) बहाना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष खेड्डा-खोखुन्भ खेड्डा स्त्री [क्रीडा] खेल, तमाशा। खेल वि [खेल] खेल करनेवाला, नाटक का खेड्डिया स्त्री दे] बारी।
पात्र। खेत्त पुंन [क्षेत्र]आकाश । खेत । जमीन । देश, | खेल पु [श्लेष्मन्] कफ। गाँव, नगर वगैरह स्थान । भार्या । कप्प | खेलण । न [खेलन, क] क्रीड़ा ।
[°कल्प] देश का रिवाज । क्षेत्र-सम्बन्धी | खेलणय , खिलौना । अनुष्ठान । ग्रन्थ-विशेष, जिसमें क्षेत्र-विषयक खेलोसहि स्त्री [श्लेष्मौषधि] लब्धि-विशेष, आचार का प्रतिपादन हो । 'पलिओवम न
जिससे श्लेष्म ओषधि का काम देने लगे। आपल्योपम] काल की नाप-विशेष । रिय | वि. ऐसी लब्धिवाला। पु [°ार्य] आर्य भूमि में उत्पन्न मनुष्य । देखो
खेल्ल देखो खेल = खेल । खित्त =क्षेत्र ।
खेल्ल देखो खेल - श्लेष्मन । खेत्तय पुं [क्षेत्रक] राहु ।
खेल्लण देखो खेलण। खेम न [क्षेम] कुशल, कल्याण । प्राप्त वस्तु | खेल्लावण । न [खेलनक] क्रीड़ा कराना । का परिपालन । वि. कुशलता-युक्त, हितकर, | खेल्लावणय | न. खिलौना। °धाई स्त्री उपद्रव-रहित । पु. पाटलिपुत्र के राजा जित- [°धात्री] खेल करानेवाली दाई । शत्रु का एक अमात्य । °पुरी स्त्री. नगरी- | खेल्लिअ न [दे] हसित । विशेष ।
खेल्लुड देखो खल्लूड। खेमंकर पुं. कुलकर पुरुष-विशेष । ऐरवत । क्षत्र | खेव पं [क्षेप] फेंकना । स्थापना। संख्याके चतुर्थ कुलकर-पुरुष । ग्रह-विशेष, ग्रहा- विशेष । धिष्ठायक देव-विशेष । रवनाम-प्रसिद्ध एक |
| खेव पुंक्षेप] देरी। जैन मुनि । वि. कल्याण-कारक ।
खेव पुं खेद] खेद, क्लेश । खेमंधर पु [क्षेमन्धर] कुलकर पुरुष-विशेष । | खेवण न [क्षेपण] प्रेरण । ऐरवत क्षेत्र का पाँचवाँ कुलकर पुरुष-विशेष ।
| खेवय वि [क्षेपक] फेंकनेवाला। वि. क्षेम-धारक, उपद्रव-रहित ।
खेह पुन [दे] रज । खेमय पु [क्षेमक] स्वनाम-प्रसिद्ध एक अन्त- | खोअ पु[क्षोद] इक्षु । इक्षुवर द्वीप । इक्षुरस कृद् जैनमुनि ।
समुद्र। खेमराय पु क्षेमराज] राजा कुमारपाल का | खोइय वि [दे] विच्छेदित । एक पूर्व-पुरुष ।
खोउदय पु क्षोदोदक] समुद्र-विशेष । खेमलिजिया स्त्री [क्षेमलिया] जैनमुनि-गण | | खोओद देखो खोदोद। की एक शाखा।
खोंटग । [दे] खूटी, खूटा । खेमा स्त्री [क्षेमा] विदेह वर्ष की एक नगरी। | खोटय । क्षेमपुरी-नामक नगरी-विशेष ।
खोक्ख अक [खोख्] बन्दर की आवाज खेर पुं [दे] एक म्लेच्छ जाति ।
करना। खेरि स्त्री [दे] परिशाटन, नाश । उद्वेग । | खोक्खा । स्त्री [खोखा] वानर की आवाज । उत्सुकता।
खोखा । खेल अक [खेल] खेलना, तमाशा करना ।। | खोखुब्भ अक [चोक्षुभ्य] अत्यन्त भयभीत खेल पु[दे] जहाज का कर्मचारी-विशेष । होना ।
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खोज - गइ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२७७ खोज पुन [दे] मार्ग-चिह्न।
| मधुर है। मधुर पानीवाली वापी । न. इक्षुखोट सक [दे] खटखटाना। ठकठकाना । रस के समान मीठा जल । ठोकना।
खोद्द न [क्षौद्र] शहद । खोट्टिय [दे] बनावटी लकड़ी।
खोभ सक [क्षोभय] विचलित करना। खोट्टी स्त्री [दे] चाकरानी।
धैर्य से च्युत करना। आश्चर्य उपजाना। खोड पु[स्फोट] फोड़ा।
रंज पैदा करना। खोड पु[दे] सीमा-निर्धारक काष्ठ, खूटा । खोभ पु[क्षोभ] सम्भ्रम । इस नाम का एक वि. धार्मिक, धर्मिष्ठ । लंगड़ा। सियार ।
रावण का सुभट । जगह । प्रस्फोटन, प्रमार्जन । न. राजकुल में
खोभण न [क्षोभण] क्षोभ उपजाना। देने योग्य सुवर्ण वगैरह द्रव्य ।। खोडपज्जालि पु [दे] स्थूल काष्ठ की अग्नि ।
खोम । न [क्षोम] कपास का बना हुआ खोडय पु [वोटक] नख से चर्म का
खोमग , वस्त्र । सन का बना हुआ वस्त्र । निष्पीड़न ।
रेशमीवस्त्र ।वि.अतसी-सम्बन्धी,सन-सम्बन्धी। खोडय पु [स्फोटक] फुसी।
°पसिण न [प्रश्न] विद्या-विशेष, जिससे
वस्त्र में देवता का आह्वान किया जाता है । खोडिय पु [खोटिक] गिरनार पर्वत का |
खोमिय न [क्षौमिक] कपास का वस्त्र । सन क्षेत्रपाल देवता। खोडी स्त्री [दे] बड़ा काष्ठ । काष्ठ की एक
__ का वस्त्र । रेशम-सम्बन्धी, सन-सम्बन्धी।
खोय देखो खोद। प्रकार की पेटी । नकली लकड़ी। खोणि स्त्री [क्षोणि] पृथिवी । °वई पु खोर । न [दे] कटोरा । [पति] राजा । खोणिद पुं [क्षोणीन्द्र] भूमिपति । खोल पुं [दे] छोटा गधा । वस्त्र का एक देश । खोणी देखो खोणि।
मद्य का निचला कीट-कर्दम । खोद क्षोद] चूर्णन, विदारण । इक्षु-रस । खोल [दे] गुप्तचर । रस पुं. समुद्र-विशेष । 'वर पुं. द्वीप-विशेष । खोल्ल न [दे] कोटर । खोद पु [क्षोद] चूर्ण, बुकनी।
खोसलय वि [दे] दन्तुल । खोदोअ , पु [क्षोदोद] समुद्र-विशेष । खोसिय वि [दे] जीर्ण-प्राय किया हुआ। खोदोद , जिसका पानी इक्षु-रस के तुल्य खोह देखो खोभ = क्षोभय ।
खोरय ।
ग [ग]व्यञ्जन-वर्ण-विशेष, इसका स्थान कण्ठहै। तिर्यञ्च, नरक और मुक्त जीव की अवस्था, °ग वि [ग] जानेवाला । प्राप्त होनेवाला । देवादि-योनि । तस पुं [त्रस] अग्नि और गअवंत वि [गतवत्] गया हुआ। वायु के जीव । नाम न [°नामन्] देवादिगइ स्त्री [गति] ज्ञान । भेद । चलन, देशा- गति का कारणभूत कर्म। पवाय पुं न्तर-प्राप्ति, जन्मान्तर-प्राप्ति । देव, मनुष्य, । ['प्रपात] गति की नियतता। ग्रन्थांश
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२७८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विशेष |
गइंद पुं [गजेन्द्र ] ऐरावण हाथी । श्रेष्ठ हाथी । पयन [पद] गिरनार पर्वत का एक जल- तीर्थ ।
गउ
पुं [गो] बैल, सांड़ | "पुच्छ पुंन. गउअ बैल की पूँछ । बाण - विशेष | गउअ पुं [गवय ] गो-तुल्य आकृतिवाला जंगली पशु- विशेष, नील गाय | गउआ स्त्री [गो] गया ।
गउड पुं [गौड] बंगाल का पूर्वी भाग । गौड़ देश का निवासी । गौड़ देश का राजा । "वह पुं [वध ] वाक्पतिराज का बनाया हुआ प्राकृत भाषा का एक काव्य-ग्रन्थ । गण व [गौण] अप्रधान ।
गउणी स्त्री [गौणी] शब्द की एक शक्ति । गउरव देखो गारव ।
गउरी स्त्री [गौरी] पार्वती । गौर वर्णवाली स्त्री | स्त्री- विशेष | 'पुत्त पुं [पुत्र ] कार्तिकेय | गंअ देखो गय = गत |
गंग पुं [ग] मुनि-विशेष, द्विक्रिय मत का प्रवर्तक आचार्य | दत्त पुं. एक जैन मुनि, जो षष्ठ वासुदेव के पूर्वजन्म के गुरू 1 नववें वासुदेव के पूर्वजन्म का नाम । इस नाम का एक जैन श्रेष्ठी । 'दत्ता स्त्री एक सार्थवाह की स्त्री का नाम ।
गंग देखो गंगा ।प्पवाय पुं ['प्रपात] हिमाचल पर्वत पर का एक महान् ह्रद, जहाँ से गंगा निकलती है । °सोअ पुं [स्रोतस् ] गंगा नदी का प्रवाह । गंगली स्त्री [दे] मौन ।
गंगा स्त्री [गङ्गा ] स्वनाम - प्रसिद्ध नदी । स्त्रीविशेष । गोशालक के मत से काल-परिमाण - विशेष | गंगा नदी की अधिष्ठायिका देवी । भीष्मपितामह की माता का नाम । कुंड न [ कुण्ड ] हिमाचल पर्वत पर स्थित हृदविशेष, जहाँ से गंगा निकलती है । 'कूड न
इंद-गंठि
[ कूट] हिमाचल पर्वत का एक शिखर । दीप [ द्वीप ] द्वीप - विशेष, जहाँ गंगा देवी का भवन है । 'देवी स्त्री. गंगा की अधिष्ठायिका देवी । 'वत्त [वर्त्त] आवर्त्त-विशेष | ● सय न [ 'शत] गोशालक के मत में एक प्रकार का काल-परिमाण । 'सागर पुं. प्रसिद्ध तीर्थ-विशेष, जहाँ गंगा समुद्र में मिलती है । गंगेपुं [गाङ्गेय] गंगा का पुत्र, भीष्म पितामह । द्वैक्रिय मत का प्रवर्त्तक आचार्य । एक जैन मुनि, जो भगवान् पार्श्वनाथ के वंश के थे । गंछ ' [ दे] वरुड़, इस नाम की एक म्लेच्छ जाति ।
गंछय
गंछिय पुं [दे] तेली । घाँची ।
गंज सक [गञ्ज ] तिरस्कार करना । उल्लंघन करना । मर्दन करना | पराभव करना । मारना, पीडित करना । गंज पु [दे] गाल |
गंज पुं [ग] एक प्रकार की खाद्य वस्तु | 'साला स्त्री ['शाला ] तृण, लकड़ी वगैरह ईन्धन रखने का स्थान । गंजण न [गञ्जन] अपमान । गंजण वि [गञ्जन] मर्दनकर्ता । गंजा स्त्री [ गल्ला ] मद्य की दूकान । गंजिअ पुं [गाञ्जिक ] दारू बेचने वाला
कलाल |
गंजिल्ल वि [ दे] वियोग प्राप्त, वियुक्त । पागल । गंजुल्लिय वि [दे] रोमाञ्चित । गंजोल वि [दे] व्याकुल ।
गंजोल्लिअ वि [दे] रोमाञ्चित । गुदगुदी । गंठ सक [ ग्रंथ ] गठना, गूंथना । पिरोना,
बनाना ।
गंठ देखो गंथ |
गंठि स्त्री [गृष्टि ] एकबार व्यायी हुई गौ । गंठि पुंस्त्री [ग्रन्थि] गाँठ, जोड़ । बाँस आदि की गिरह, पर्व । गठरी । रोग विशेष । राग
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गंठिम - गंदिला
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
द्वेष का निबिड़ परिणाम विशेष । छेअ | गंडाग पुं [गण्डक] हजाम |
[ च्छेद ] गाँठ तोड़नेवाला, जेबकतरा । भेय पुं [°भेद ] ग्रन्थि का भेदन | 'भेग वि [भेदक ] ग्रन्थि को भेदनेवाला | पु. चोर - विशेष | 'वण्ण पुं [वर्ण] सुगन्धि गाछ- विशेष । सहिय वि [सहित] गाँठयुक्त । न प्रत्याख्यान - विशेष, गठिम न [ग्रन्थिम ] ग्रन्थन से बनी हुई माला
व्रत- विशेष ।
वगैरह । गुल्म- विशेष ।
गठिय वि [ ग्रन्थिक] गाँठवाला । गंठिल्ल वि [ ग्रन्थिमत्] ग्रन्थि-युक्त, गाँठ
वाला ।
गंड पु] [दे] जङ्गल | कोतवाल । छोटा मृग । नाई । न. गुच्छ, समूह |
गंड पुन [गण्ड ] कपोल । गण्डमाला, रोग । हाथी का कुम्भस्थल । स्तन | इक्षु समूह | छन्द - विशेष । स्फोटक | ग्रन्थि । ° भेअ, अअ ' [भेदक] जेबकतरा । 'माणिया ['माणिका ] धान्य की एक प्रकार की नाप । माला स्त्री रोग विशेष । यल न [°तल] कपोल-तल । 'लेहा स्त्री [°लेखा ] कपोल-पाली, गाल पर लगाई हुई कस्तूरी वगैरह की छटा । वच्छा स्त्री [° वक्षस्का] पीन स्तनों से युक्त छातीवाली स्त्री ! वाणिया स्त्री [पाणिका ] बाँस का पात्र विशेष | 'वास' [°पार्श्व ] गाल का
पार्श्व भाग ।
गंड न [गण्ड] दोष, नाग । 'माणिया स्त्री ['मानिका ] पात्रविशेष । विश्वाय पुं [व्यतिपात] ज्योतिष शास्त्र - प्रसिद्ध एक योग |
iss स्त्री [गण्डकका ] नदी - विशेष ।
गंड पुं [गण्डक] गेंडा । उद्घोषणा करने
वाला पुरुष ।
गंडली स्त्री [] गॅडेरी । गंडा देखो गंठि = ग्रन्थि |
गंड पुं [गण्डि ] जन्तु - विशेष । गंडिया स्त्री [गण्डिका ] ऊख का टुकड़ा । सोनार का एक उपकरण । एक अर्थ के अधिकारवाली ग्रन्थ-पद्धति ।
गंडिल देखो गंधिल | गंडिलावई देभो गंधिलावई ।
गंडी स्त्री [गण्डी] सोनार का एक उपकरण । कमल की कणिका । तिदुगन [ °तिन्दुक ] यक्ष - विशेष । पय पुं [पद ] हाथी वगैरह चतुष्पद जानवर | पोत्थय पुंन [' पुस्तक ] पुस्तक विशेष |
गंडोरी स्त्री [दे] गण्डेरी ।
गंडीव न [गाण्डीव] अर्जुन का धनुष । गंडीव न [ दे. गाण्डीव] कार्मुक । istfa पुं [गाण्डीविन् ] अर्जुन | गंडुअ न [गण्डु ] सिरहाना | गंडुअ न [गण्डुत् ] तृण- विशेष । गंडुल पुं [ गण्डोल ] कृमि - विशेष ।
२७९
गंडुवहाण न [गण्डोपधान] गाल का तकिया । गंडूपय पु [ गण्डूपद ] जन्तु-विशेष | गंडूल देखो गंडुल |
गंडूस पुं [गण्डूष ] पानी का कुल्ल्म तिन [गन्तृक ] तृण-विशेष | गंती स्त्री [गन्त्री ] शकट । गंतुंपच्चागया स्त्री [गत्वाप्रत्यागता ] जैन मुनियों की भिक्षा का एक प्रकार । गंथ देखो गंठ-ग्रन्थ |
गंथ पुं [ग्रन्थ] शास्त्र, सूत्र, पुस्तक । धनधान्य वगैरह बाह्य मिथ्यात्व, क्रोध, मान आदि आभ्यन्तर परिग्रह | धन । स्वजन, लोग । [ती] जैन साधु ।
गंथि वि [ ग्रन्थिन् ] रचना - कर्ता । गंथि देखो गंठि ।
गंथिम देखो गंठिम ।
दिला स्त्री [गन्दिला ] देखो गंधिल ।
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२८०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष गंदीणी-गंधिलावई गंदीणी स्त्री [दे] आँख-मिचौनी । | गंधव्व पु [गन्धर्व] स्वर्ग-गायक । व्यन्तर देवों गंदुअ देखो गेंदुअ।
की एक जाति । भगवान् कुन्थुनाथ का गंध पु [गन्ध] महक । लेश । चूर्ण-विशेष । शासनाधिष्ठायक । न. मुहूर्त विशेष । नृत्यवानव्यन्तर देवों की एक जाति । न. देव- युक्त गान । °कंठ न [°कण्ठ] रत्न की एक विमान-विशेष । वि. गन्धयुक्त पदार्थ । °उडी
जाति । °घर न [गृह] संगीत-गृह । °णगर स्त्री ["कुटी] गन्ध-द्रव्य का घर । °कासा- न [°नगर] सन्ध्या के समय में आकाश में इया स्त्री [°काषायिका] सुगन्धि कषाय
दिखता मिथ्या-नगर, जो भावी उत्पात का रंग की साड़ी। °गुण पु. गन्धरूप गुण ।
सूचक है । °पुर न. देखो °णगर । लिवि 'ट्रय न[°गट्टक]गन्ध-द्रव्य का चूर्ण। °ड्ड वि स्त्री [°लिपि] लिपि-विशेष । °विवाह पुं. [Tढय] गन्धपूर्ण, सुगन्धपूर्ण । °णाम न स्त्री-पुरुष की इच्छा के अनुसार विवाह । [°नामन्] गन्ध का हेतुभूत कर्म-विशेष । °साला स्त्री [°शाला] संगीतालय ।
तेल्ल न [°तैल] सुगन्धित तैल । °दव्व न गंधव्व वि [गन्धर्व] गन्धर्व-सम्बन्धी । पुं. [°द्रव्य] सुगन्धित वस्तु, सुवासित द्रव्य ।
उत्सव-हीन विवाह । न, गान । देवी स्त्री. सौधर्म देवलोक की एक देवी।
गंधव्विअ वि [गान्धर्विक] गन्धर्व-विद्या में °द्धणि स्त्री [ध्राणि] गन्ध-तृप्ति । °मय
कुशल ।
| नगरी-विशेष । पुं [ मृग] कस्तूरी मृग । °मंत वि [°वत्] सुगन्धित, सुगन्ध-युक्त । अतिशय गन्धवाला।
गंधाण न [गन्धान] छन्द-विशेष । °मादण, 'मायण पुं [°मादन] पर्वत-विशेष।
| गंधार पुगन्धार] कन्धार देश । पर्वतपुन. पर्वत-विशेष का एक शिखर । न. नगर
विशेष । न. नगर-विशेष । विशेष । °वई स्त्री [°वती] भूतानन्द-नामक
गंधार पु [गान्धार, रागिनी-विशेष । नागेन्द्र का - आवास-स्थान । °वट्टय न
गंधारी स्त्री [गान्धारी] सती-विशेष, कृष्ण [°वर्तक] सुगन्धित लेप-द्रव्य । वदि स्त्री वासुदेव की एक स्त्री । विद्यादेवी-विशेष । [°वत्ति] गन्ध-द्रव्य की बनाई हई गोली। भगवान् नमिनाथ की शासनदेवी। °वह पु. पवन । वास पुं. सुगन्धित वस्तु का | गंधारी स्त्री [गान्धारी] विद्या-विशेष । पुट । चूर्ण-विशेष । °समिद्ध वि [°समृद्ध] गंधावइ ) पु [गन्धापातिन्] स्वनामसुगन्ध पूर्ण । न. नगर-विशेष । °सालि पु गंधावाइ प्रसिद्ध एक वृत्त, वैताढ्य पर्वत । [°शालि] सुगन्धित व्रीहि । हत्थि पुं गंधिअ वि [दे] दुर्गन्ध, खराब गन्धवाला। [हस्तिन्] उत्तम हस्ती । हरिण पु. कस्तु- गंधि पु [गान्धिक] गन्ध-द्रव्य बेचनेवाला, रिया हिरन । हारग पु [हारक] इस पसारी । नाम का एक म्लेच्छ देश । गन्धहारक देश का गंधिअ वि [गन्धिक] गन्ध-युक्त । °साला स्त्री निवासी।
[°शाला] दारू वगैरह गन्धवाली चीज की गंधण पु [गन्धन] एक सर्प जाति ।
दूकान । गंधपिसाय पुं[दे] गन्धिक, पसारी। गंधिल पु [गन्धिल] वर्ष-विशेष, विजय-क्षेत्रगंधय देखो गंध ।
विशेष । गंधलया स्त्री [दे] नासिका।
गंधिलावई स्त्री [गन्धिलावती] क्षेत्र-विशेष । गंधवाह पु [गन्धवाह] पवन ।
विजयवर्ष-विशेष । नगरी-विशेष । कूड न
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गंधिल्ली-गट्टिया
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[कूट ] गन्धमादन पर्वत का एक शिखर | | गग्गिर देखो गग्गर ।
वैताढ्य पर्वत का शिखर - विशेष ।
गंधिल्ली स्त्री [दे] छाया । गंधुत्तमा स्त्री [गन्धोत्तमा] मदिरा । गंधेल्ली स्त्री [] छाँह । मधु मक्षिका । गंधोदग न [गन्धोदक] सुगन्धित जल, गंधोदय सुगन्धवासित पानी |
गंधोल्ली स्त्री [दे] इच्छा । रजनी । गंभीर न [गाम्भीर्य ] गम्भीरता । अनौद्धत्य । गंभीर वि [ गम्भीर ] अस्ताव अतुच्छ, गहरा । पुंन. गहन-स्थान । पुं. रावण का एक सुभट | यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । न समुद्र के किनारे पर स्थित इस नाम का एक नगर । पोय न [° पोत] नगर- विशेष । 'मालिणी स्त्री [मालिनी] महाविदेह वर्ष की एक नगरी ।
२८१
गच्छ सक [गम् ] जाना । जानना । प्राप्त
करना ।
गच्छ पुन [गच्छ ] समूह, सार्थं । एक आचार्य का परिवार । गुरु- परिवार । 'वास पु. गुरुकुल में रहना । 'विहार पुं गच्छ का आचार | सारणा स्त्री गच्छ का रक्षण | गच्छागच्छ अ. गच्छ गच्छ से होकर । गच्छिल्ल वि [ गच्छवत् ] गच्छ में रहने
वाला |
गज देखो गय = गज । सार पुं. एक जैन मुनि दण्ड-ग्रन्थ का कर्ता । गज्जपुं [दे] जव, अन्न- विशेष । गज्जन [गद्य ] छन्द-रहित वाक्य, प्रबन्ध | गज्ज अक [गर्ज ] गरजना, गड़गड़ाना । गज्जण न [गर्जन] गर्जन, भयानक ध्वनि, मेघ या सिंह का नाद | नगर - विशेष | गज्जणसद्द पुं [दे. गर्जनशब्द ] पशु और हाथी की आवाज ।
गज्जफल
वि [ दे] देश-विशेष में उत्पन्न (वस्त्र) ।
गज्जल
गज्जभ पुं [गर्जभ ] पश्चिमोत्तर दिशा का
पवन ।
गंभीरा स्त्री [गम्भीरा ] गम्भीर - हृदया स्त्री । मात्रा छन्द का एक भेद । क्षुद्र जन्तु विशेष । चतुरिन्द्रिय जीव - विशेष ।
गज्जर ' [ दे] गाजर ।
गंभीरिअ न [गाम्भीयं ] गम्भीरता । गंभीरिम पुंस्त्री [गाम्भीयं] ऊपर देखो । गगण न [गगन] आकाश | णंदण न ['नन्दन] वैताढ्य पर्वत पर का एक नगर । 'वल्लभ, वल्लह न ['वल्लभ] वैवाढ्य पर्वत पर का एक नगर । गगणंग पुंन [गगनाङ्ग] छन्द-विशेष | गग्ग पुं' [ग] ऋषि - विशेष । गोत्र - विशेष । गौतम गोत्र की एक शाखा ।
गज्जल व [गजल ] गर्जन करनेवाला । गज्जह देखो गज्जभ ।
गन्जि स्त्री [गजि] गर्जन, हाथी वगैरह की
आवाज ।
गग्ग पुं [गर्ग] एक जैन महर्षि । विक्रम की गज्जित्तु वि [ गर्जितृ] गर्जन करनेवाला | बारहवीं शताब्दी का एक श्रेष्ठी ।
गरजने वाला |
गग्ग पु [गार्ग्य ] गगं गोत्र में उत्पन्न ऋषि- गज्जिल्लिअ न [ दे] गुदगुदाहट । अंग- स्पर्श से विशेष |
होनेवाला रोमांच |
गज्झ वि [ ग्राह्य] ग्रहण - योग्य |
गग्गर वि [ गद्गद् ] गद्गद आवाजवाला, अति अस्पष्ट वक्ता । आनन्द या दुःख से अव्यक्त कथन |
गण [गट्टन] धरणेन्द्र की नाट्य-सेना का अधिपति ।
गगरी स्त्री [गर्गरी] छोटा घड़ा ।
या स्त्री [] गुठली ।
३६
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गड़अ
गम = गम् का संकृ ।
गडरिआ ।
२८२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
गड-गणिया गड न. मोटा पत्थर । खाई।
स्वामी । गणेश । °सामि पुं ["स्वामिन्] गड (मा) देखो गय = गत ।
गण का मुखिया । हर पुं [°धर] जिनदेव गडयड अक [दे]गर्जन करना, भयानक आवाज का प्रधान शिष्य । अनुपम ज्ञानादिगुण-समूह करना।
को धारण करनेवाला जैन साधु, आचार्य गडयडी स्त्री [दे] वज्र निर्घोष, गड़गड़ वगैरह । हरिद [धरेन्द्र] प्रधान गणआवाज मेघ-ध्वनि।
घर । °हारि पु [धारिन्] देखो °हर । गडवड न [दे] गोलमाल ।
जीव पु. गण के नाम से निर्वाह करनेगडिअ )
वाला । वच्छेइय, विच्छेदय, विच्छे
यय पु[वच्छेदक] साधु-गण के कार्य की गडुल न [दे] चावल आदि का धोवन । चिन्ता करनेवाला साधु । °ाहिवइ पु गड्ड पुंस्त्री [गत] गड्ढा ।।
[धिपति] गजानन । जिनदेव का प्रधानगड्ड न [दे] गाड़ी।
शिष्य । गड्डरिगा । स्त्री दे] मेषी ।
गणग पु[गणक] ज्योतिषी, दैवज्ञ । भण्डारी ।
गणणाइआ स्त्री [दे. गण-नायिका] पार्वती। गड्डरी स्त्री [दे] बकरी । भेड़ी।
गणय देखो गणग। गड्डह पुंस्त्री [गर्दभ] गधा। °वाहण | गणसम वि [दे] गोठ में लीन । [°वाहन] रावण ।
गणायमह पु [दे] विवाह-गणक । गड्डिआ , स्त्री [दे] शकट ।
गणाविअ वि [गणित] गिनती कराया हुआ।
गणि वि [गणिन्] गण का मुखिया । पु. गड्ढ न दे] बिछौना।
आचार्य, गच्छनायक । जिनदेव का प्रधान गढ देखो घड = घट् ।
साधुशिष्य । परिच्छेद, निश्चय, सिद्धान्त । गढ पुंस्त्री दे] दुर्ग, कोट ।
°पिडग न [पिटक] बारह मुख्य जैन गढिअ वि [घटित] गढ़ा हुआ, जटित ।
आगम ग्रन्थ, द्वादशाङ्गी । नियुक्ति वगैरह से गढिअ वि [ग्रथित] गंथा हआ, निबद्ध । युक्त जैन आगम । पुं. यक्ष-विशेष, जिनशासन गुम्फित, निर्मित । गृद्ध, आसक्त ।
का अधिष्ठायक देव । निश्चय-समूह, सिद्धान्तगण सक [गणय] गिनती करना । संख्या
समूह । विज्जा स्त्री [°विद्या] शास्त्र-विशेष । करना । आदर करना। आवृत्ति करना ।
ज्योतिष और निमित्तशास्त्र का ज्ञान । पर्यालोचन करना।
गणि पुंस्त्री. प्रकरण । गण पुं. समुदाय । समान आचार-व्यवहारवाले / गणिम न. संख्या पर जिसका भाव हो वह । साधुओं का समूह । छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध | गिनती । वि. संख्येय । मात्रा-समूह । शिव का अनुचर । मल्लों का गणिय वि [गणित] गिना हुआ । न. संख्या । समुदाय । ओ अ [°तस्] अनेकशः । नायग जैन साधुओं का एक कुल । अंकगणित, पुं [°नायक] गण का मुखिया । 'नाह पुं| गणित-शास्त्र । °लिवि स्त्री [लिपि] अंक[°नाथ] गण का स्वामी । गणधर । °भाव | लिपि । पुं. विवेक-विशेष । राय पुं[राज] सामन्त गणिय पुं [गणिक गणित-शास्त्र का ज्ञाता । राजा । सेनापति । °वइ पुं["पति] गण का | गणिया स्त्री [गणिका] वेश्या ।
गड्डी
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गणेत्तिआ-गमणिया संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२८३ गणेत्तिआ , स्त्री [दे] रुद्राक्ष का बना हुआ । गद्दिअ वि [दे] गर्वित । गणेत्ती । हाथ का एक आभूषण-विशेष । | गद्ध पु [गृध्र] गीध । अक्ष-माला।
गब्भ पु [ग] कुक्षि । उत्पत्ति-स्थान । गणेसर पु [गणेश्वर] गण का नायक । छन्द- भ्रूण । भीतर का। °गरा स्त्री [°करी] विशेष ।
गर्भाधान करनेवाली विद्या-विशेष । घर न गण्ण वि [गण्य] गणनीय, संख्येय । माननीय । [°गृह]भीतर का घर, घर का भीतरी भाग । गण्णा (मा) स्त्री [गणना] गिनती।
°ज वि. गर्भ में उत्पन्न होनेवाला प्राणी, गत्त न [गात्र] शरीर ।
मनुष्य, पशु वगैरह । 'त्थ वि [°स्थ] गर्भ गत्त देखो गड्ड।
में रहनेवाला । गर्भ से उत्पन्न होनेवाला गत्त न [दे] ईषा, चौपाई या चारपाई की
मनुष्य वगैरह । 'मास पु. कात्तिक से लेकर लकड़ी-विशेष । कर्दम । वि. गत, गया हुआ। माघ तक का महीना । °य देखो ज । वई °गत्तण वि [कर्तन] छेदक ।।
स्त्री [°वती] गर्भिणी स्त्री। °वक्कंति स्त्री गत्तडि । स्त्री [दे] गोचर-भूमि । [°व्युत्क्रान्ति] गर्भाशय में उत्पत्ति । गत्ताडी. गायिका।
°वक्कंतिअ वि [°व्युत्क्रान्तिक] गर्भाशय गत्थ वि [ग्रस्त कवलित ।
में जिसकी उत्पत्ति होती है वह । °हर देखो गद सक [गद्] बोलना, कहना ।
घर। गदि देखो गइ = गति ।
गब्भर न [गह्वर] कोटर । गहन, विषम गदुअ (शौ) अ [गत्वा] जाकर ।
स्थान। गह देखो गज्ज - गद्य।
गब्भर देखो गहर। गद्दतोय पु [गदतोय] लोकान्तिक देवों की |
गब्भाहाण न [गर्भाधान] संस्कार-विशेष । एक जाति ।
गन्भिज्ज पु [दे. गर्भज] जहाज का निम्न गद्दब्भ पु[दे] कटु-ध्वनि ।
श्रेणी का नौकर । गद्दभ देखो गद्दह = गर्दभ ।
गब्भिण । वि [गर्भित] गर्भ-युक्त । सहित । गद्दभय देखो गद्दहय ।
| गब्भिय । गहभाल पु [गर्दभाल] स्वनाम-प्रसिद्ध एक | गम्भिल्ल देखो गम्भिज्ज । परिव्राजक।
गम सक [गम्] चलना । जानना, समझना । गद्दभालि पु [गर्दभालि] एक जैन मुनि ।
प्राप्त करना। गद्दभिल्ल पु [गर्दभिल्ल] उज्जयिनी का एक | गम सक [गमय] ले जाना । व्यतीत करना । राजा।
गम पु. गमन, गति, चाल । प्रवेश । शास्त्र का गद्दभी स्त्री [गर्दभी] गदही । विद्या-विशेष । | तुल्य पाठ । व्याख्या, टीका । ज्ञान, समझ । गद्दह पु [गर्दभ] खर । इस नाम का एक
मार्ग । प्रकार । वि. जंगम । मन्त्रिपुत्र ।
गमग वि [गमक] बोधक, निश्चायक । गद्दह न [दे] चन्द्र-विकासी कमल ।
गमण न [गमन] गति । बोध । व्याख्यान, गद्दहय पु [गर्दभक] क्षुद्र जन्तु-विशेष । देखो टीका । पुष्य वगैरह नव नक्षत्र । गद्दह।
गमणिया स्त्री [गमनिका] संक्षिप्त, व्याख्यान, गद्दही देखो गद्दभी।
दिग्-दर्शन । गुजारना, अतिक्रमण ।
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२८४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गमणी-°गरण गमणी स्त्री [गमनी] विद्या-विशेष, जिसके । हस्ती। °वइ पुं [पति] गजेन्द्र । वर पुं. प्रभाव से आकाश में गमन किया जा सकता। प्रधान हाथी । वरारि पुं [°वरारि] वनहै । जूता।
राज । 'वहू स्त्री [°वधू] हस्तिनी । वीही गमय देखो गमग ।
स्त्री [°वीथी] शुक्र वगैरह महाग्रहों का चारगमार वि [दे, ग्राम्य] अविदग्ध, मूर्ख । क्षेत्र-विशेष । °ससण पुं [°श्वसन] हाथी गमाव देखो गम = गमय ।
सूड़। "सुकुमाल पुं. एक प्रसिद्ध जैन मुनि, गमिअ वि [गमिक] प्रकारवाला ।
उसी भव में मुक्ति-गत जैन साधु-विशेष । गमिद वि [दे] अपूर्ण । गुढ़ । स्खलित । °रि पुं. सिंह, पञ्चानन । आरोह पुं. महावत । गमिय वि [गमिक] सदा पाठवाला शास्त्र । गय पुं [गद] बीमारी। गमेर देखो गमार।
गयंक पुं [गजाङ्क] दिक्कुमार देव । गमेस देखो गवेस।
गयंद पुं [गजेन्द्र श्रेष्ठ हाथी । गम्म वि [गम्य] जानन-योग्य । जो जाना गयकंठ पुं [गजकण्ठ] रत्न-विशेष ।
जा सके। हराने योग्य, आक्रमणीय । गयकन्न पुं [गजकर्ण] अनार्य देश-विशेष । जाने-योग्य । भोगने-योग्य-स्वपत्नी वगैरह । गयग्गपय न [गजाग्रपद] दशार्णकूट का एक गम्म न [गम्य] गमन ।
तीर्थ। गय वि [दे] धूणित । निर्जीव ।
गयण न [गगन] 'ह'अक्षर । °मणि पु. सूर्य ।
गयण न [गगन] आकाश । °गइ पुं [गति] गय वि[गत]गया हुआ । अतिक्रान्त । विज्ञात ।
___ एक राजकुमार । चर वि. आकाश में चलनेनष्ट । प्राप्त । स्थित । प्रविष्ट । प्रवृत्त ।। व्यवस्थित । न. गमन । °पाण वि ['प्राण]
वाला, पक्षी, विद्याधर वगैरह। मंडल पुं
[मण्डल] एक राजा। मृत । 'राय वि [ राग] वीतराग, निरीह । °वइया, °वई स्त्री [पतिका] विधवा ।
गयणरइ पुं [दे] बादल । प्रोषित-भर्तृका । °वय वि [°वयस्] वृद्ध । गयाणदु पु [गगनन्दु] विद्याधर वश के एक °णुगइअ वि [°नुगतिक] अन्ध, परम्परा
राजा का नाम । का अनुयायी, अन्धश्रद्धालु ।।
गयनिमीलिया स्त्री [गजनिमोलिका] उपेक्षा,
उदासीनता। गय पुं [गज] हाथी । एक अन्तकृत् जैनमुनि, गज सुकुमाल मुनि । इस नाम का एक सेठ। गयमुह पु [गजमुख] अनार्य देश-विशेष । रावण का एक सुभट । 'उर न [°पूर] गयसाउल । वि [दे] वैरागी । हस्तिनापुर । °कण्ण पुंकणं] द्वीप-विशेष ।
गयसाउल्ल उसमें रहनेवाला । 'कलभ पुं. हाथी का गया स्त्री[गदा] लोहे या पाषाण का अस्त्रबच्चा। गय वि [°गत] हाथी के ऊपर विशेष । एक देव-विमान । हर पुं ['धर] आरूढ़। °ग्गपय पुं [आयपद] पर्वत-विशेष । वासुदेव ।
त्थ वि [°स्थ] हाथी के ऊपर स्थित । °पूर गया स्त्री. स्वनाम-प्रसिद्ध नगर विशेष । देखो °उर । °बंधय पुं| बन्धक] हाथी को °गर वि [°कर] कर्ता । पकड़नेवाली जाति । °मारिणी स्त्री. वनस्पति- गर पुं. एक प्रकार का जहर । ज्योतिष शास्त्रविशेष, गुच्छ-विशेष । °मुह पुं [°मुख गण- प्रसिद्ध बवादि करणों में से एक । पति । यक्ष-विशेष । प्राय पुं [°राज] श्रेष्ठ | 'गरण देखो करण।
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गरल-गल्ल
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
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गरल न, विष । रहस्य । वि. अव्यक्त। गल अक [ गल ] गल जाना, सड़ना। खतम गरलिगाबद्ध वि [गरलिकाबद्ध] निक्षिप्त, होना । झरना । पिघलना । सक. गिराना । उपन्यस्त ।
गल । पु [गल] गला, कण्ठ । वंशी, गरह सक[ गर्ह, निन्दा करना, घृणा करना। गलअ । मछली पकड़ने का कांटा । गज्जि
गरिअ वि [कृत] किया हुआ, निर्मित । स्त्री [गजि] गले की गर्जना । °गज्जिय न गरिट वि [गरिष्ठ] बड़ा भारी ।
[गजित] गल-गर्जन । 'लाय वि [°लात] गरिम पुंस्त्री [गरिमन्] गुरुत्व, गौरव । कण्ठ न्यस्त । गरिह देखो गरह।
गलई स्त्री [गलकी] वनस्पति-विशेष । गरु देखो गुरु।
गलग देखो गलअ। गरुअ वि [गुरुक] गुरु, बड़ा, महान् ।। गलत्थ देखो खिव । गरुअ सक [ गुरुकारय । गुरु करना, बड़ा गलत्थलिअ वि[दे] क्षिप्त, फेंका हुआ । प्रेरित । बनाना।
गलत्थल्ल पु[दे] हाथ से गला पकड़ना । गरुआ । अक [ गुरुकारय् ] बड़े की | गलत्थल्लिअ [दे] देखो गलत्यलिअ । गरुआअ ) तरह आचरण करना।
गलत्था स्त्री [दे] प्रेरणा। . गरुई । स्त्री [गुर्वी] बड़ी, ज्येष्ठा, महती।
गलत्थिअ वि [क्षिप्त] प्रेरित, फेंका हुआ। गरुगी)
बाहर निकाला हुआ। गरुक्क देखो गरुअ।
गलद्धअ पुदे] प्रेरित, क्षिप्त । गरुड देखो गरुल। छन्द-विशेष । 'त्थ न
गलहत्थिअ वि [गलहस्तित] गला पकड़कर [ख] उरगास्त्र का प्रतिपक्षी अस्त्र । °द्धय
बाहर निकाला हुआ।
गलाण देखो गिलाण। पु ["ध्वज] विष्णु, वासुदेव । °वूह पु ["व्यूह] सेना की एक प्रकार की रचना ।।
गलि देखो गल = गल । गरुडंक पु [गरुडाङ्क विष्णु, वासुदेव ।
गलि वि [गलि, क] दुर्दम । °गद्दह पु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम ।
गलिअ । [गर्दभ] अविनीत,गदहा । °बइल्ल गरुल पु [गरुड] एक देव-विमान ।
पु["बलीवर्द] दुविनीत बैल । °स्स पु गरुल पुगरुड] पक्षि-राज । भगवान् शान्ति- |
[°ाश्व] दुर्दम घोड़ा। नाथ का शासन यक्ष । भवनपति देवों को एक | गलिअ वि [गलित] गला हुआ। प्रक्षालित । जाति, सुपर्णकुमार देव । सुपर्णकुमार देवों | स्खलित । नष्ट । का इन्द्र । °केउ पु [केतु] देखो ज्झय । | गलिअ वि [दे] स्मृत । °ज्झय, 'द्धय पु [ध्वज] गरुड़ पक्षी के | गलिच्च वि [गलीय, गल्य] गले का पिण्ड । चित्र वाली ध्वजा । कृष्ण । देव-जाति-विशेष, | | गलिर वि [गलित] निरन्तर पिघलता । सुपर्णकुमार देव । °ब्वूह देखो गरुड-वूह । | गलुल देखो गरुल। 'सत्थ न [°शस्त्र] गरुड़ास्त्र । सण न |
गलोई । स्त्री [गुडूची] वल्ली-विशेष, ["सन] आसन-विशेष । विवाय न | गलोया ) गिलोय, गुरुच । [पपात] शास्त्र-विशेष, जिसको याद करने | गल्ल पु. कपोल । हाथी का गण्डस्थल, कुम्भसे गरुड़देव प्रत्यक्ष होते हैं । देखो गरुड । स्थल । °मसूरिया स्त्री [°मसूरिका] गाल गरुवी देखो गरुई।
का उपधान ।
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२८६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गल्लक्क-गहणं गल्लक्क पुन [दे] स्फटिक मणि ।
ग्रहण । गल्लत्थ देखो गलत्थ ।
गवेसाविय वि [गवेषित] दूसरे द्वारा खोज गल्लप्फोड पु[दे] डमरुक ।
किया गया । अन्वेषित। गल्लूरण न [दे] मांस खाते हुए कुपित शेर गव्व पु [गर्व] अभिमान । की गर्जना।
गव्वर न [गह्वर] गुहा । गल्लोल्ल न [दे] गडुक ।
गविट्ठ वि [गविट्ट] विशेष अभिमानी। गव पुंस्त्री [गो] जानवर ।
गस सक [ग्रस ] खाना, निगलना, भक्षण गवक्ख पु [गवाक्ष] झरोखा। गवाक्ष के | करना।
आकृति का रत्न-विशेष । °जाल न. रत्न- गह सक [ ग्रथ ] गूंथना, गठना । विशेष का ढेर । जालीवाला वातायन ।
गह सक [ ग्रह. ] लेना। गवच्छ पु[दे] आच्छादन ।
गह पु [ग्रह] ग्रहण, स्वीकार । सूर्य, चन्द्र, गवच्छिय वि [दे] आच्छादित, ढका हुआ ।
वगैरह ज्योतिष्क-देव । कर्म का बन्ध । भूत गवत्त न [दे] घास ।
वगैरह का आक्रमण । आसक्ति, तल्लीनता । गवत्थिय देखो गवच्छिय ।
संगीत का रस-विशेष । 'खोभ पु [°क्षोभ] गवय पुं.गो की आकृति का जंगली पशु-विशेष,
राक्षस वंश के एक राजा का नाम, एक नील गाय ।
लंकेश । °गजिय न [°गजित] ग्रहों के गवर पु [दे] वनस्पति-विशेष ।
संचार से होनेवाली आवाज । गहिय वि गवल पु. जंगली महिष । न. महिप का सिंग ।
["गृहीत] भूतादि से आक्रान्त, पागल । गवा स्त्री [गो] गाय ।
°चरिय न [°चरित] ज्योतिष शास्त्र का गवादणी । स्त्री [गवादनी] गोचर-भूमि ।
परिज्ञान । ‘दंड पु. दण्डाकार ग्रह-पंक्ति । गवायणी
°नाह पु [°नाथ] सूरज । चन्द्र । °मुसल गवार वि [दे] गँवार, छोटे गाँव का निवासी। न. मसलाकार ग्रह-पंक्ति । सिंघाडग न गवालिय न [गवालीक] गौ के विषय में ।
[°शृङ्गाटक] पानी-फल के आकारवाली अनुत भाषण ।
ग्रहपंक्ति । ग्रह-युग्म । हिव पु [°ाधिप] गविअ वि [दे] निश्चित ।
सूर्य । गविट्ठ वि [गवेषित] खोजा हुआ।
गह पुं [ग्रह] सम्बन्ध । पकड़ । ग्रहण, ज्ञान । गविल न दे] शृद्ध मिस्री ।
°भिन्न न. जिसके बीच से ग्रह का गमन हो वह गवेधुआ स्त्री [गवेधुका] जैनमुनि-गण की एक |
नक्षत्र । °सम न, गेय काव्य का एक भेद । गवेलग पुंस्त्री [गवेलक] मेष । गौ और भेड़ । गह न [गृह मकान । वइ पु["पति]गृहस्थ, गवेस सक [गवेषय ] गवेषणा करना ।
संसारी । °वइणी स्त्री [°पत्नी] गृहिणी । गवेसइत्तु वि [गोषयितु] गवेषक ।
गहकल्लोल पुं [दे. ग्रहकल्लोल] राहु । गवेसग वि [गवेषक] ऊपर देखो।
गहगह अक [दे] आनन्दपूर्ण होना । गवेषणया स्त्री [ गवेषणा] ईहा-ज्ञान,
गहण न [ग्रहण] आदान । आदर, सम्मान । सम्भावना-ज्ञान।
ज्ञान। शब्द, आवाज । वि. ग्रहण करनेवाला। गवेसणया । स्त्री [गवेषणा] खोज । शुद्ध न. इन्द्रिय । चन्द्र-सूर्य का उपराग-ग्रहण । गवेसणा भिक्षा की याचना । भिक्षा का । वि. ग्राह्य । न. शिक्षा-विशेष । आदान का
शाखा।
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गहण - गाम
कारण । आक्षेपक ।
गहण न [ग्राहण] अङ्गीकार कराना । निबिड़, दुर्भेद्य ।
वन,
गहण वि [ गहन ] झाड़ी । वृक्ष का कोटर । अरण्य क्षेत्र । ● विदुग्गन [विदुगं] पर्वत के एक प्रदेश
में स्थित वृक्ष वल्ली समुदाय । गहण न [ दे] निर्जल-स्थान । बन्धक | गहणय न [दे] आभूषण ।
गहणया स्त्री [ग्रहण ] ग्रहण, उपादान | गहणी स्त्री [ग्रहणी] गुदाशय । गहणी स्त्री [ग्रहणी] पेट ।
गहणी स्त्री [दे] जबरदस्ती हरण की हुई स्त्री,
बांदी |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गहत्थि पुं [गभस्ति | किरण |
हरपुं [] गृ ।
हर पुंन [गर] निकुञ्ज । जङ्गल । दम्भ, कपट | विषम स्थान । रोदन । गुफा । अनर्थों का सङ्कट |
अनेक
गहवर पुं [गृहपति ] कृषक । गवई व [] ग्रामीण । पुं. चन्द्रमा । गहि वि [दे] मोड़ा हुआ, टेढ़ा ।
गहि वि [ गृहोत] स्वीकृत | पकड़ा हुआ । ज्ञात, उपलब्ध |
अवि [गृद्ध] आसक्त, तल्लीन ।
हि स्त्री [] काम-भोग के लिए जिसकी प्रार्थना की जाती हो वह स्त्री । ग्रहण करने योग्य स्त्री ।
गहिर वि [गभीर] गहरा, गम्भीर, अस्ताघ । गहिल वि [ ग्रहिल ] भूतादि से आविष्ट, पागल । गहिलिय वि [ दे. ग्रहिल ] आवेश-युक्त, गहिल्ल पागल, भ्रान्त-चित्त । गहीअ देखो गहिअ = गृहीत | गहीर देखो गभीर |
हरिअ न [गाभीर्य ] गहराई | गहीरिम पुंस्त्री [गभीरिमन् ] गम्भीरता । गत (अप) देखो गह = ग्रह । गहु इ
२८७
सक [] गाना | वर्णन करना ।
श्लाघा करना ।
गा गाअ
गाअ पुं [गो] बैल,
वृषभ, साँड़ ।
गाअ न [गात्र ] शरीर । शरीर का अवयव । गाअ वि [ गायक ] गानेवाला । गाअंक पुं [गवाङ्क] महादेव । गाअण वि [ गायन] गवैया |
गाइअ वि [ गोत] गाया हुआ । न. गीत । गाइआ स्त्री [गायिका ] गानेवाली स्त्री । गाई स्त्री [गो] गया ।
गाउ
न [गव्यूत ] कोस, क्रोश, दो हजार धनुष - प्रमाण जमीन । दो कोस ।
गाउअ
गाऊअ
गागर पुं [दे] स्त्री को पहनने का वस्त्र - विशेष, लहँगा, घाँघरा । मत्स्य - विशेष ।
गागरी [दे] देखो गायरी | गालि पुं. एक जैनमुनि । गागेज्ज वि [] मथित । गागेज्जा स्त्री [दे] दुलहिन । गाडि वि [] विधुर, वियुक्त । गाढ वि. निविड़ | मजबूत | गाण न [गान] गीत | गाण वि [ गायन] गवैया |
-
गाणंगणि पुं [गाणङ्गणिक] छः ही मास के भीतर एक साधु-गण से दूसरे गण में जानेवाला साधु | गाणी स्त्री [दे] गोचर भूमि । गाथा देखो गाहा ।
गाध वि. कम गहरा ।
गाम पुं [ग्राम ] समूह । प्राणि-समूह, जन्तुनिकर । गाँव, वसति । इन्द्रिय-समूह | कंडग, कंडय पुं [ कण्टक] इन्द्रियसमूह रूप काँटा । दुर्जनों का रुक्ष आलाप, गाली | घाय वि [° घातक ] गाँव का नाश करनेवाला । णिद्धमण न [°निर्धमन ] नाला | धम्म ' [ धर्म] विषयाभिलाष | इन्द्रियों का स्वभाव । विषय-प्रवृत्ति । मैथुन ।
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२८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गामउड-गारुल्ल शब्द, रूप वगैरह इन्द्रियों का विषय । गाँव | वाली स्त्री। का धर्म , गाँव का कर्तव्य । °द्ध पुंन [°र्ध] | गामिल्ल , वि [ग्रामीण] गाँव का आधा गाँव । उत्तर भारत, भारत का उत्तर- | गामिल्लुअ / निवासी, गँवार । प्रदेश । °मारी स्त्री. गाँव भर में फैली हुई | गामीण । बीमारी-विशेष । रोग पु. ग्राम-व्यापक | गामुअ वि [गामुक] जानेवाला । बीमारी। वइ [पति] गाँव का | गामेइआ स्त्री [ग्रामयिका] गाँव की रहनेमुखिया । Tणुग्गाम न [°ानुग्राम] एक गाँव वाली स्त्री, गंवार स्त्री। से दूसरे गाँव । °rयार पु[°ाचार] विषय । गामेणी स्त्री [दे] बकरी। गामउड । पु [दे] गाँव का मुखिया। | गामेय । वि [ग्रामेयक] ग्राम का निवासी, गामऊड
गामेयग । गँवार । गामंतिय न [ग्रामान्तिक] गाँव की सीमा । | गामेरेड [दे] देखो गामरोड । वि. गाँव की सीमा में रहनेवाला । पुं. जैनेतर
| गामेलुअ । देखो गामिल्ल । दार्शनिक-विशेष ।
गामेल्ल , गामगोह पु [दे] गाँव का मुखिया । गामेस पुं [ग्रामेश] गाँव का अधिपति । गामड पु [ग्रामक] छोटा गाँव ।।
गायण वि [गायन] गायक । गामण न[दे. गमन]भूमि में गमन, भू-सर्पण ।। गादरो स्त्री [दे] गगरी, छोटा घड़ा। गामणह न [दे] ग्राम-स्थान, ग्राम-प्रदेश । "गार वि [°कार] कर्ता । गामणि देखो गामणो।
गार पुं [दे. ग्रावन्] पत्थर, कङ्कड़ । गामणिसुअ पु [दे] गाँव का मुखिया ।
गार न [अगार] मकान । 'त्य पुंस्त्री गामणी पु [दे] गाँव का मुखिया ।
[स्थ] गृही। °त्थिय पुंस्त्री [°स्थित
संसारी। गामणी वि [ग्रामणो] श्रेष्ठ, नायक । पु. तृण-विशेष ।
गारय वि [कारक] करनेवाला । गामपिंडोलग पु [दे] भीख से पेट भरने के गारव पुंन [गौरव] अभिमान । अभिलाष । लिए गाँव का आश्रय लेनेवाला भिखारी। महत्व, गुरुत्व, प्रभाव । आदर । गामरोड ] छल से गांव का मखिया गारवित वि [गौरवित] गौरवान्वित, महत्त्वबन बैठनेवाला।
शाली । अभिमानी । अभिलाषी । गामहण न [दे] ग्राम-स्थान, गाँव का प्रदेश । गारविल्ल वि [गौरववत्] ऊपर देखो। छोटा गाँव ।
गारहत्थ वि [गार्हस्थ] गृहस्थ-सम्बन्धी । गामाग पु [ग्रामाक] ग्राम-विशेष, इस नाम गारि पुंस्त्री [अगारिन्] संसारी, गृहस्थ । का एक सन्निवेश।
गारिहत्थिय स्त्रीन [गार्हस्थ्य] गृहस्थगामार वि [दे. ग्रामीण] ग्रामीण, छोटे गाँव सम्बन्धी । का रहनेवाला।
गारुड । वि [°गारुड] गरुड़-सम्बन्धी । गामि वि [गामिन] जानेवाला ।
गारुल्ल , सर्प-विष को दूर करनेवाला । पु. गामि वि [ग्रामिक] देखो गामिल्ल । ग्राम | सर्प-विष को दूर करनेवाला मन्त्र । न. मन्त्रका मुखिया । विषयाभिलाषी।
शास्त्र-विशेष । °मंत पु[°मन्त्र] सर्प-विष गामिणिआ स्त्री [गामिनिका] गमन करने-1 का नाशक मन्ध । विउ वि [वित्] गारुड
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- गि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
शास्त्र का जानकार ।
जन्तु - विशेष
गाल सक [गालय् ] गालना, छानना । नाश गाहावई स्त्री [ग्राहावती ] नदी - विशेष । द्वीपकरना । उल्लंघन करना ।
विशेष | हृद - विशेष ।
गालणा स्त्री [गालना ] गालना, छानना । गाहिणी स्त्री [गाहिनी] गाहने वाली स्त्री । गिरवाना | पिघलवाना | गावाहिया स्त्री [] छोटी नौका ।
छन्द - विशेष |
गालि स्त्री. अपशब्द, असभ्य वचन | गालिय वि [ गालित ] छाना हुआ। अतिक्रान्त । विनाशित । क्षिप्त ।
गाली स्त्री. देखो गालि ।
गाल-1
गाव (अप) देखो गा ।
गाव (अप) देखो गव्व । गाव वि [दे] गत, गुजरा हुआ । गाव
पुं [ ग्रावन् ] पत्थर | पहाड़ |
गावाण
गावि (अप देखो गव्विय । गावी स्त्री [गो] गौ ।
गास पुं [ग्रास] कवल । भोजन । गाह देखो गह = ग्रह ।
गाह क [ग्राहय् ] ग्रहण कराना ।
गाह सक [गाह ] ढूंढ़ना । पढ़ना | अनुभव
करना | टोह लगाना ।
गाह पुं [गाध] अस्ताघ- रहित, थाह । गाह पुं [ग्राह] मगर । आग्रह । ग्रहण | rose | स्त्री ['वती ] नदी - विशेष | गाहग वि [ ग्राहक ] ग्रहण करनेवाला समझनेवाला, जाननेवाला । गुरु । बोधक | प्राप्ति करनेवाला |
गाहण न [ग्राहण] ग्रहण कराना । आदान । शास्त्र सिद्धान्त । उपदेश ।
गाहा स्त्री [गाथा ] ग्रन्थ प्रकरण | आर्या, गीतिछन्द | प्रतिष्ठा । निश्चय । 'सूत्रकृतांग' सूत्र का सोलहवाँ अध्ययन | गाहा स्त्री [दे] मकान | वइ पुंस्त्री [ पति ] गृहस्थ, संसारी । धनी । भाण्डागारिक । गाहाल पुं [ग्राहाल] कोट-विशेष, श्रीन्द्रिय
३७
गाहपुर न [गाधिपुर ] नगर- विशेष । गाहिय वि [ग्राहित] जिसको ग्रहण कराया गया हो वह । भ्रामित, उकसाया हुआ । गाय वि [गीकृत ] एकत्रित । गहु स्त्री [गाहु] छन्द - विशेष । गालि पुंस्त्री [] मगर । गालिया देखो गाहा = गाथा ।
२८९
fifठ [गृष्टि ] एक बार ब्यायी हुई । एक बार
अ ।
व्यायी हुई गाय । गंधु [] देखो गिधुल्ल [दे] देखो ठुल्ल । गिभ (अप) देखो ह्मि ।
गिह देखो ह्मि ।
गिज्झ अक [गृध ] आसक्त होना ।
गिज्झ वि [गृह्य, ग्राह्य ] ग्रहण करने योग्य | अपनी तरफ में किया जा सके ऐसा । गिट्टि देखो गठि ।
गिड़िया स्त्री [] गेंद खेलने की लकड़ी । गिण देखो गण = गणय् । गिण्ह देखो गह ग्रह ।
गिण्हणा स्त्री [ग्रहण] उपादान, आदान । गिण्हाविअ वि [ ग्राहित] ग्रहण कराया
हुआ ।
गिद्ध पुं [] गीध |
गिद्ध वि [गृद्ध] लोलुप |
गिद्धपिट्ठ न [गृद्ध स्पृष्ट, गृधपृष्ठ ] मरणविशेष, आत्महत्या के अभिप्राय से गीध आदि को अपना शरीर खिला देना । गिद्धि स्त्री [गृद्धि] एक देव - विमान । गिद्ध स्त्री [गृद्धि] आसक्ति, लम्पटता । गिा पुं [ ग्रीष्म ] ऋतु- विशेष ।
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। गिलोई )
२९० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
गिह्मा-गीय गिह्मा स्त्री. देखो गिह्म।
गिलायय वि [ग्लायक] ग्लानि युक्त, ग्लान । गिर सक [यै] उच्चारण करना । निगलना। | गिलासि पुंस्त्री [ग्रासिन्] भस्मक रोग।। गिरा स्त्री [गिर] वाणी, भाषा ।
गिलिअवंत वि [गिलितवत्] जिसने भक्षण गिरि पुं. पर्वत । °अडी स्त्री [ तटी] पर्वतीय किया हो वह । नदी। कण्णई, कण्णी स्त्री [कर्णी] | गिलोइया । स्त्री [दे] गृह-गोधा । लता-विशेष । कूड न [ कूट] पर्वत का शिखर । पुं. रामचन्द्र का महल । 'जण्ण पु गिल्लि स्त्री [दे] हाथी की पीठ पर कसा जाता [यज्ञ] कोंकण देश में वर्षाकाल में किया हौदा, हौदा । डोली। जाता एक प्रकार का उत्सव : °णई स्त्री गिव्वाण पुं [गीर्वाण] देव ।। [°नदी] पर्वतीय नदी। णाल पुं [°नार] गिह न [गृह] घर । 'त्थ पुंस्त्री [स्थ] प्रसिद्ध पर्वत-विशेष । दारिणी स्त्री. विद्या- संसारी । नाह पुं[नाथ] घर का मालिक । विशेष । पक्खंदण न [प्रस्कन्दन] पहाड़
लिंगि पुंस्त्री [लिङ्गिन्] गृही, संसारी । पर से गिरना । यडय न ["कटक]पर्वत का
°वइ पुंस्त्री [°पति] गृहस्थ । घर का मध्य भाग । °पन्भार पुं [प्रारभार] पर्वत. मालिक । °वास पुं. घर में निवास । द्वितीयानितम्ब । °राय पुं [राज] मेरु पर्वत । "वर श्रम । विट्ट पुं [°ावर्त] संसारिपन । °ासम पुं. प्रधान पर्वत, उत्तम पहाड़। वरिंद पुं
पुं[°श्रम] द्वितीयाश्रम । [°वरेन्द्र] मेरु पर्वत । सुआ स्त्री [°सुता]
गिहिकोइला स्त्री [गृहकोकिला] छिपकली। पार्वतो।
गिहमेहि पुं [गृहमेधिन] गृहस्थ । गिरि पुं[दे] बीज-कोश ।
गिहवइ पुं [गृहपति] देश का अधिपति, सूबेगिरिंद पुं [गिरीन्द्र] श्रेष्ठ पर्वत । मेरु पर्वत । दार । हिमाचल ।
गिहि पुं [गृहिन्] संसारी, गृहस्थ । धम्म पुं गिरिडी स्त्री [दे] पशुओं के दाँत को बाँधने । [°धर्म] गृहस्थ-धर्म, श्रावक-धर्म । °लिंग न का उपकरण विशेष ।
[°लिङ्ग] गृहस्थ का वेश । गिरिनयर न [गिरिनगर] गिरनार पर्वत के गिहिणी स्त्री [गृहिणी] भार्या । नीचे का नगर ।
गिहीअ वि [गृहीत] आत्त, उपात्त, ग्रहण गिरिफुल्लिय न [गिरिपुष्पित] नगर-विशेष । किया हुआ। गिरिस पुं [गिरिश] शिव । 'वास पं. कैलाश गिहेलुग । पुं [गृहैलुक] देहली। पर्वत ।
गिहेलुय । गिरीस पुं [गिरीश] हिमालय पर्वत । महादेव । गी स्त्री [गिर] वाणी। गिल सक [ग] गिलना, निगलना, भक्षण । गीआ स्त्री [गीता] श्रीमद्भगवद्गीता, ज्ञानमय करना।
उपदेश, छन्द-विशेष । गिला । अक [गलै] ग्लान होना, बीमार गीइ स्त्री [गीति] आर्या-वृत्त का एक भेद । गिलाअ । होना । खिन्न होना, थक जाना। गान । उदासीन होना । असमर्थ होना।
गीइया स्त्री [गीतिका] ऊपर देखो। गिलाणि स्त्री [ग्लानि] पलानि, खेद, गीय वि [गीत] पद्य-मय वाक्य, गेय, जो गाया थकावट।
जाय वह । कथित, प्रतिपादित । प्रसिद्ध । न.
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गुंपा।
गोवा-गुज्झग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२९१ ताल और बाजे के अनुसार गाना। संगीत- गुंड न [दे] मुस्ता से उत्पन्न होनेवाला तृणकला, गान-कला, संगीत-शास्त्र का परिज्ञान । विशेष । पुं. गीतार्थ, उत्सर्ग और अपवाद वगैरह का गुंडण न [गुण्डन] धूलि का लेप । जानकार जैन साधु, विद्वान् जैन मुनि । जस | गुंडिअ वि [गुण्डित] धूलियुक्त । लिप्त । घिरा पं[यशस्] गन्धर्व देवों का एक इन्द्र । त्थ हुआ । आच्छादित । प्रेरित । पुं [Tथं] विद्वान् जैन मुनि। संगीत-रहस्य । गुंथण न [ग्रन्थन गूंथना। 'पुर न. नगर-विशेष । 'रइ स्त्री [रति] | गुंद पुं [गुन्द्र] वृक्ष-विशेष । संगीत-क्रीड़ा। पुं. गन्धर्व देवों का एक इन्द्र । गुंदल न [दे. गुन्दल] आनन्द-ध्वनि । खुशी गन्धर्व-सेना का अधिपति देव-विशेष । वि ___ की वृद्धि, खुशी में लीन । संगीत-प्रिय ।
गुंदवडय न [दे] एक प्रकार की मिठाई । गोवा स्त्री [ग्रीवा] गरदन ।
गुंदा । स्त्री [दे] बिन्दु । अधम । गंछ देखो गुच्छ । गुंछा स्त्री [दे] बिन्दु । दाढ़ी-मूंछ । अधम ।
गुंध सक [ग्रन्थ्] गठना। गुंज अक [हस्] हँसना ।
गुंफ सक [गुम्फ्] गूंथना, गठना । रचना । गुंज अक [गुज्] गुन-गुन करना, भ्रमर आदि
गुंफ पुं [गुम्फ] । का आवाज करना । गर्जना।
गुंफ पुंदे] कारागार । गुंज पुं. गुजारव करता वायु । पर्वत-विशेष ।
गुंफण न [दे] गोफन । गुंजा स्त्री. लता-विशेष । फल-विशेष, घुघची।
गुंफी स्त्री [दे] गोजर, कनखजूरा । भम्भा । परिणाम-विशेष । गुञ्जारव । गुञ्जारव
गुग्गुल पुं. गूगल । करनेवाला वायु । °फल, हल न ["फल]
गुग्गुली स्त्री [गुग्गुल] गूगल का पेड़ । घुघची।
गुग्गुलु देखो गुग्गुल । गुंजालिआ स्त्री [गुञ्जालिका] गम्भीर तथा टेढ़ी वापी--बावली या बावड़ी। .
गुच्छ । पुं [गुच्छ] स्तबक । वृक्षों को एक गुंजालिया स्त्री [गुजालिका] टेढ़ी कियारी ।
गुच्छय , जाति । पत्तों का समूह । गोल पुष्करिणी । वक्र नदी।
गुच्छय देखो गोच्छय। गुंजुल्ल देखो गुंजोल्ल ।
गुच्छिय वि [गुच्छित] गुच्छा वाला । गंजेल्लिअ वि [दे] इकट्ठा किया हुआ।
गुज्ज देखो गोज्ज । गुंजोल्ल सक [वि + लुल्] बिखेरना ।
गुज्जर पुं[गूर्जर] गुजरात देश । वि. गुजरात गुंजोल्ल अक [उत् + लस्] उल्लास पाना,
__ का निवासी । विकसित होना।
गुजरत्ता स्त्री [गूर्जरत्रा] गुजरात देश । गुंठ सक [उद् +धूलय, गुण्ठ] धूसरित
गुज्जलिअ वि [दे] संघटित । करना।
गुज्झ पुं[गुह्य] एक देव-जाति । गुंठ पुं[दे] अधम अश्व । वि. मायावी, कपटी। गुज्झ । वि [गुह्य] गोपनीय । न. रहस्य । गुंठा स्त्री [दे] दम्भ, छल ।
गुज्झअ लिंग । योनि । सम्भोग । हर वि गुंठिअ वि [ गुण्ठित ] धूसरित । व्याप्त । गुज्झग / [°धर] गुप्त बात को प्रकट नहीं आच्छादित ।
| करनेवाला । हर वि. गुप्त बात को प्रसिद्ध गुंठी स्त्री [दे] नीरंगी, स्त्री का वस्त्र-विशेष । । करनेवाला । पुं [गुह्यक देवों की एक जाति ।
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२९२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष गुट्ठ-गुत्तण्हाण गुट्ट न [दे] स्तम्ब ।
गुणी पुरुष । °मंत वि [वत्] गुण-युक्त। गुट्ठ देखो गोट ।
°रयणसंवच्छर न [रत्नसंवत्सर] तपगुट्ठी देखो गोदी।
श्वर्या-विशेष । °व, °वंत वि [°वत्] गुणगुड सक [गुड] हाथी को कवच वगैरह से युक्त। व्वय न [व्रत] जैन गहस्थ को सजाना । लड़ाई के लिए तैयार करना, पालने-योग्य व्रत-विशेष । सिलय न सजाना।
[°शिलक] राजगृह नगर का एक चैत्य । गुड सक [गुड्] नियन्त्रण करना ।
°सेढि स्त्री [°श्रेणि] कर्म-पुद्गलों की रचनागुड पुं. गुड़ लाल शक्कर । एक प्रकार का
विशेष । °सेण पुं [°सेन] इस नाम का एक कवच । सत्थ न [°सार्थ नगर-विशेष। । प्रसिद्ध राजा। हर वि [°धर] गुणी । गुडदालिअ वि. [दे] पिण्डीकृत ।
तन्तु-धारक । °ायर पुं [°कर] गुणों की गुडा स्त्री. हाथी का कवच । अश्व का कवच ।
खान, अनेक गुणवाला। गुडिअ वि [गुडित] कवचित, वर्मित, कृत
गुण देखो एगूण। संनाह।
"गुण वि. गुना, आवृत्त । गुडिआ स्त्री [गुटिका] गाली ।
गुणण न [गुणन] गुणकार । ग्रन्थ-परावर्तन, गुडोलद्धिआ स्त्री [दे] चुम्बन ।
आवत्ति । गुड्डर पुंन [दे] तम्बू, वस्त्र-गृह ।
गुणयालीस स्त्रीन [ एकोनचत्वारिंशत् ] गुण सक [गुणय] गिनना। आवृत्ति करना,
उनचालीस । याद करना।
गुणवुड्ढि स्त्री [गुणवृद्धि] लगातार आठ गुण पुं उच्चारण । रसना, मेखला । पुन. गुण,
दिनों का उपवास । पर्याय, स्वभाव, धर्म । ज्ञान, सुख वगैरह एक
| गुणसेण पुं [गुणसेन] एक जैन आचार्य जो ही साथ रहनेवाला धर्म । ज्ञान, विनय, दान. सुप्रसिद्ध हेमाचार्य के प्रगुरु थे। शौर्य, सदाचार वगैरह दोष-प्रतिपक्षी पदार्थ । । गुणा स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष । लाभ। प्रशंसा। रज्जू, डोरा । व्याकरण-प्रसिद्ध गुणाविय वि [गुणित] पाठित । ए, आ और अर् रूप स्वर-विकार । जैन गुणिअ वि [गुणित] जिसका गुणा किया गया गृहस्थ को पालने का व्रत-विशेष । रूप, रस, हो वह । चिंतित, याद किया हुआ । पठित । गन्ध वगैरह द्रव्याश्रित धर्म । प्रत्यञ्चा । कार्य, जिस पाठ की आवृत्ति की गई हो वह, पराप्रयोजन । गौण । अंश, विभाग। उपकार । वत्तित ।
कर वि.लाभ-कारक । कार पुं.गुणा करना, | गुणिल्ल वि [गुणवत्] गुणी । अभ्यास-राशि । °चंद पुं [°चन्द्र] एक गुण्ण देखो गोण्ण । राजकुमार । एक जैन मुनि और ग्रन्थकार । गुण्ह (अप) देखो गिण्ह । श्रेष्ठि-विशेष । 'ट्ठाण न [ स्थान] गुणों का गुत्त न [गोत्र] साधुपन । स्वरूप-विशेष, मिथ्यादृष्टि वगैरह चौदह गुण- गुत्त वि [गुप्त] प्रच्छन्न । रक्षित । स्व-पर की स्थानक । °Bिअ पुं [आर्थिक] गुण को प्रधान | रक्षा करनेवाला, मन वगैरह की निर्दोष माननेवाला मत, नय-विशेष । °ड्ढ वि प्रवृत्तिवाला । एक स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य । [य] गुणवान् । °ण, ‘ण्णु वि [ज्ञ] | गुत्त देखो गोत्त। गुण का जानकार । °पुरिस पुं [°पुरुष] [ गुत्तण्हाण न [दे] पितृ-तर्पण ।
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गुत्ति-गरु संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
२९३ गुत्ति स्त्री [गुप्ति] जेल। कठघरा। मन, | लिल । भरपूर । वचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति को | गुमुगुमुगुम देखो गुमगुम। रोकना। मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्ति । गुम्म अक [ मुह ] मुग्ध होना, घबड़ाना । 'गुत्त वि [°गुप्त] मन वगैरह की निर्दोष | गुम्म पुं [गुल्म] परिवार, परिकर । प्रवृत्तिवाला, संयत । पाल पं. कैदखाना का | गुम्म पुंन [गुल्म वल्ली, वनस्पति-विशेष । अध्यक्ष । सेण पुं [°सेन] ऐरवत क्षेत्र में झाड़ी। सेना-विशेष, जिसमें २७ हाथी, उत्पन्न एक जिनदेव ।
२७ रथ, ८१ घोड़ा और १३५ प्यादा हों गुत्ति स्त्री [गुप्ति] गोपन, रक्षण ।
ऐसी सेना । समूह । गच्छ का एक हिस्सा, गुत्ति स्त्री [दे] बन्धन । अभिलाषा । वचन, जैनमुनि-समाज का एक अंश । जगह । आवाज । लता। सिर पर पहनी जाती फूल | गुम्मइअ वि [दे] मूर्ख । अपूरित । पूरित । की माला ।
स्खलित । संचलित, मूल से उच्चलित । गुत्तिदिय वि [गुप्तेन्द्रिय] संयतेद्रिय । विघटित, वियुक्त । गुत्तिय वि [गौप्तिक] रक्षक ।
गुम्मड देखो गुम्म । गुत्तिय वि [गौत्रिक] समान गोत्रवाला । गुम्मडिअ वि [मोहित] मोह-युक्त, मुग्ध किया गुत्तिवाल देखो गुत्ति-पाल ।
हुआ। गुत्थ वि [ग्रथित] गुम्फित ।
गुम्मागुम्मि अ. जत्थाबन्ध होकर । गुत्थंड पुं [दे] भास-पक्षी।
गुम्मिअ वि [मुग्ध] मोह-प्राप्त, मूढ़ । घूणित, गुद पुंस्त्री. गुदा।
मद से घूमता हुआ। गुद्दह न [गोद्रह] नगर-विशेष ।
गम्मिअ पुं [गौल्मिक] कोतवाल, नगररक्षक । गुप्प अक [ गुप् ] व्याकुल होना।
गुम्मिअ वि [दे] उन्मूलित । गुप्प वि [गोप्य] छिपाने-योग्य । न. एकान्त,
गुम्मी स्त्री [दे] इच्छा। विजन ।
गुम्मी स्त्री [गुल्मी] खटमल, जूं। गुप्पई स्त्री [गोष्पदी] गौ का पैर डूब उतना | गुम्ह (शौ) सक [गुम्फ्] गूंथना, गठना । गहरा।
गुह्य देखो गुज्झ। गुप्पंत न [दे] शयनीय, शय्या । वि. गोपित, | गुरव देखो गुरु। रक्षित । संमूढ़, मुग्ध, व्याकुल ।
गुरु ।पुं [गुरु] शिक्षक । धर्मोपदेशक । गुप्पय देखो गो-पय ।
गुरुअ माता, पिता वगैरह पूज्य लोग । गुप्फ पुं [गुल्फ] फीली, पैर की गाँठ । बृहस्पति । स्वर-विशेष, दो मात्रावाला आ, गुफगुमिअ.वि [दे] सुगन्धी, सुगन्ध-युक्त । ई वगैरह स्वर, जिसके पीछे अनुस्वार या गुब्भ देखो गुप्फ।
संयुक्त व्यञ्जन हो ऐसा भी स्वर वर्ण। वि. गुभ सक [गुफ्] गूंथना, गठना ।
बड़ा, महान् । भारी। उत्कृष्ट, उत्तम । गुम सक [भ्रम्] घूमना, पर्यटन करना। कम्म वि [°कर्मन्] कर्मों का बोझवाला गुमगुम । अक [ गुमगुमाय् ] 'गुमगुम' पापी। °कुल न. धर्माचार्य का सामीप्य । गुमगुमाअ , आवाज करना। मधुर अव्यक्त गुरुपरिवार । °गइ स्त्री [°गति] गति-विशेष, ध्वनि करना।
भारीपन से ऊँचा-नीचा गमन । लाघव न. गुमिल वि [दे] मूढ़, मुग्ध । गहन । प्रस्ख- । सारासार, अच्छा और बुरापन । °सज्झि
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२९४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गुरुई-गेवेज्जय ल्लग पुं [°सहाध्यायिक] गुरु के भाई । जंगल । गुरुई देखो गरुई।
गुविल वि [दे] चीनी का बना हुआ मिष्टान्न । गुरुणी स्त्री [गुर्वी] गुरु-स्थानीय स्त्री। धर्मो- गुम्विणी स्त्री [गुर्विणी] गर्भवती स्त्री। पदेशिका, साध्वी।
गुह देखो गुभ। गुरेड न [गुरेट] तृण-विशेष ।
गुह पुं. कात्तिकेय । गुल देखो गुड = गुड ।
गुहा स्त्री. कन्दरा। गुल न [दे] चुम्बन ।
गुहिर वि [दे] गम्भीर, गहरा । गुलगुंछ सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। गूढ वि. प्रच्छन्न । दंत पु. एक अन्तर्वीप । गुलगुंछ देखो गुलुगुंछ = उद् + नमय । द्वीप-विशेष का निवासी। एक जैन मुनि । गुलगुल अक [गुलगुलाम्] 'गुलगुल' आवाज 'अनुत्तरोपपातिक दशा' सूत्र का एक भावी
करना, हाथी का हर्ष से चिधाड़ना या बोलना। चक्रवत्ता राजा। गुलगुलाइअ ) न [गुलगुलायित] हाथी की गूह सक [गुह, ] छिपाना, गुप्त रखना। गुलगुलिय । गर्जना।
गूह न [गूथ] विष्ठा । गुलल सक [चाटौ कृ] खुशामद करना। | गृण्ह । (अप) देखो गिण्ह । गुललावणिया स्त्री [गुडलावणिका] गोलपापड़ी । गुड़धाना।
गेअ वि [गेय] गाने-योग्य । न. गीत । गुलहाणिया स्त्री [गुडधानिका] खाद्य-विशेष। गेंठुअ न [दे] स्तनों के ऊपर की वस्त्र-ग्रन्थि । गुलिअ वि [दे] विलोड़ित । पुं. गेंद । | गेंठुल्ल न [दे] कञ्चुक । गुलिआ स्त्री [दे] बुसिका । गेंद । स्तबक । | गेंड न [दे] देखो गेंठुअ । गुलिआ स्त्री [गुलिका गोली। वर्णक द्रव्य
| गेंडुई स्त्री [दे] क्रीड़ा, विनोद । विशेष, सुगन्धित द्रव्य-विशेष ।
गेंदुअ पु [कन्दुक] गेंद। गुलुइय वि [दे] लता समूहवाला ।
गेज्ज वि [दे] मथित । गुलुंछ पुं [गुलुञ्छ] गुच्छा ।
गेज्जल न [दे] ग्रीवा का आभरण । गुलुगुंछ देखो गुलगुंछ = उत् + क्षिप् ।
गेज्झ वि [ग्राह्य] ग्रहण-योग्य । गुलुगुछ सक [उत् + नमय] उन्नत करना ।
गेडण न [३] फेंकना । दे देना। गुलुगुछिअ वि [दे] बाड़ से अन्तरित ।
गेड्ड न [दे] पक्व । यव । गुलुगुल देखो गुलगुल ।
गेड्डी स्त्री [दे] गेड़ी। गुलुच्छ विदे] भ्रमित ।
गेण्ह देखो गिण्ह । गुलुच्छ पुं. स्तबक ।
गेण्हिअ न [दे] उरः-सूत्र, स्तनाच्छादक वस्त्र । गुल्लइय वि [गुल्मवत्] लता-समूहवाला, गुल्म
गेद्ध देखो गिद्ध।
गेरिअ) पुन [गैरिक] गेरु । मणि-विशेष, वि. युक्त। गुव देखो गुप्त - गुप् ।
गेरुअ । गेरु रंग का । पुं. त्रिदण्डी साधु । °गुवलय देखो कुवलय।
गेलण्ण न [ग्लान्य] बीमारी, ग्लानि । गुवालिया [दे] देखो गोआलिआ। गेविज्ज न [ग्रैवेयक]ग्रीवा का आभूषण । गुविअ वि [गुप्त] व्याकुल, क्षुब्ध । गेवेज्ज अवेयक देवों का विमान । पुं. गुविल वि [गुपिल] गहरा, निबिड़ । न. झाड़ी, | गेवेज्जय | उत्तमश्रेणीके देवों की एक जाति ।
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गेवेय-गोउर
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष गेवेय देखो गेवेज्ज।
| [पद] गौ का खुर डूबे उतना गहरा । गेह पुन. घर । “जामाउय पुं [जामातृक] |
गोपद-परिमित भूमि । गौ का खुर । भद्द पुं घर-जमाई । °ागार वि [°कार] घर के | [भद्र] शालिभद्र के पिता का नाम । भूमि आकारवाला। पुं कल्पवृक्ष की एक जाति । | स्त्री. गौओं को चरने की जगह । °म वि °लु वि [°वत्] गृही, संसारी। °सम पुं | [°मत्] गौवाला। मड न [ मृत] गौ का [श्रम] गृहस्थाश्रम ।
शव । °मय न. गो-विष्ठा । °मुत्तिया स्त्री गेहि वि [गृद्ध] अत्यासक्त।
[°मूत्रिका] गोमूत्र । गोमूत्र के आकारवाली गेहि स्त्री [गृद्धि] लालच ।
गृहपंक्ति । मुहिअ न [°मुखित] गौ के मुख गेहि वि [गेहिन्] नीचे देखो।
की आकारवाली ढाल । प्रहग पुं[°रथक] गेहिअ वि [गेहिक] गृही । पुं. पति । तीन वर्ष का बैल । रोयण स्त्रीन [°रोचन] गेहिअ [गृद्धिक] लोलुप ।
स्वनामख्यात पीत-वर्ण द्रव्य-विशेष, गोमस्तकगेहिणी स्त्री [गेहिनी] गृहिणी, स्त्री। स्थित शुष्क-पित्त ! °लेहणिया स्त्री [°लेहगो पुं. राजा। 'माहिसक्क न [°माहिषक] निका] ऊपर भूमि । °लोम पुं. गौ का गौ और भैंस का झुंड या समूह ।
रोम । द्वोन्द्रिय जन्तु-विशेष । °वइ पुं गो पुं. किरण । स्वर्ग । बैल । पशु । स्त्री. गैया [पति] इन्द्र । सूर्य। राजा। महादेव । वाणी । भूमि । आल देखो °वाल । इल्ल वि | बैल । °वइय पुं [°वतिक] गौओं की चर्या [°मत्] जिसके पास अनेक गौ हों वह । °उल का अनुकरण करनेवाला एक प्रकार का न [°कुल] गौओं का समूह । गोष्ठ, गोबाड़ा, | तपस्वी। वय देखो °पय । °वाड पुं °उलिय वि [°कुलिक] गोवाला । °किलं- [°वाट] गौओं का बाड़ा। व्वइय देखो जय न [किलञ्जक] पात्र-विशेष । कीड । °वइय। °साला स्त्री [शाला] गौओं का पुं [°कीट] पशुओं की मक्खी । °क्खीर, | बाड़ा । °हण न [°धन] गौओं का समूह ।
खीर न [°क्षीर] गैया का दूध । 'गह पुं | गोअ देखो गोव = गोपय् । [°ग्रह] गाय की चोरी। गहण न | गोअंट पुं [दे] गौ का चरण । स्थल में होने[°ग्रहण] गो-ग्रहण । °णिसजा स्त्री वाला शृङ्गाट या सिंघाड़ा का पेड़ । [निषद्या] आसन-विशेष, गो की तरह
गोअग्गा स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला। बैठना । तित्थ न [ तीर्थं] गौओं का तालाब गोअर पुं [गोचर] छात्रालय । आदि में उतरने का रास्ता, क्रम से नीची |
गोअलिणी स्त्री [गोपालिनी] ग्वालिन । जमीन । लवण समुद्र वगैरह की एक जगह ।
गोअल्ला स्त्री [दे] दूध बेचनेवाली स्त्री। 'त्तास वि ["त्रास] गौओं को त्रास | गोआ स्त्री [गोदा] गोदावरी नदी । देनेवाला। पुं. एक कूटग्राह का पुत्र । गोआ स्त्री [दे] कलशी, छोटा घड़ा। °दास पं. एक जैनमनि, भद्रबाह स्वामी का | गोआअरी स्त्री [गोदावरी नदी-विशेष । प्रथम शिष्य । एक जैनमुनिगण । 'दोहिया | गोआलिआ स्त्री [दे] वर्षा ऋतु में उत्पन्न स्त्री [°दोहिका] गौ का दोहन । गौ दुहने | होनेवाला कीट-विशेष । का आसन-विशेष । °दुह वि [ दुह.] गौ को | गोआवरी देखो गोआअरी। दोहनेवाला। धूलिआ स्त्री [°धूलिका] | गोउर न [ गोपुर ] नगर या किले का दरलग्न-विशेष, सायंकाल। °पय °प्पय न | वाजा।
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२९६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गोउलिय-गोत्ति गोउलिय वि [गोकुलिक] गोकुल-रक्षक । । निवासी। गोंजी । स्त्री [दे] मंजरी , बौर । गोड पुं [दे] गोड़, पैर । गोंठी ।
गोडा स्त्री [गोला] गोदावरी । गोंड देखो कोंड - कौण्ड ।
गोडी स्त्री [गौडी] गुड़ की दारू । गोंड न [दे] जंगल ।
गोड्ड वि [गौड] गुड़ का बना हुआ । मधुर । गोंडी स्त्री [दे] मंजरी, बौर ।
गोड [दे] देखो गोड। गोंदल देखो गंदल।
गोण पुं (दे] साक्षी । बलीवर्द । °इन्न वि गोंदीण न [दे] मोर का पित्त ।
[°वत्] गौओं का मालिक । वइ पंस्त्री गोंफ पुं [गल्फ] पाद-प्रन्थि, पैर की गाँठ। [°पति] गौ वाला। गोकण्ण पुंगोकर्ण] गौ का कान । दो खुर
गोण (शौ) पुंन [गो] बैल । वाला चतुष्पद विशेष । एक अन्तर्वीप । गो
गोण वि [गौण] गुण-निष्पन्न, गुण-युक्त, कर्ण-द्वीप का निवासी मनुष्य ।
_ यथार्थ । अमुख्य । गोकिलिंज देखो गो-कलिंजय ।
गोणंगणा स्त्री [गवाङ्गना] गाय । गोक्खुरय पुं [गोक्षुरक] गोखरू ।
गोणत्त । पुन. [दे] वैद्य का औजार
गोणत्तय ) रखने का थैला । गोच्चय पुंदे] चाबुक । गोच्छ देखो गुच्छ।
गोणस पुं [गोनम] सर्प की एक जाति, फणगोच्छअ । पुन [गोच्छक] पात्र वगैरह
रहित साँप की एक जाति । गोच्छग 5 साफ करने का वस्त्र-खण्ड ।
गोणा स्त्री [दे] गाय । गोच्छड न [दे] गोमय ।
गोणिक्क पुं दे] गौओं का समूह । गोच्छा स्त्री [दे] मञ्जरी, बौर ।
गोणिय वि [दे] गौओं का व्यापारी ।
गोणी स्त्री दे] गया। गोच्छिय देखो गुच्छिय।
गोण्ण देखो गोण = गौण । गोछड देखो गोच्छड।
| गोतिहाणी स्त्री [दे. गोत्रिहायणी] गौ की गोजलोया स्त्री [गोजलौका क्षुद्र कीट-विशेष, द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष ।
बछड़ी। गोज पुं [दे] शारीरिक दोषवाला बैल। गोत्त पुं [गोत्र] पर्वत । न. नाम । कर्म-विशेष, गवैया ।
जिसके प्रभाव से प्राणी उच्च या नीच जाति गोट्ठ पुं [गोष्ठ] गोबाड़ा।
का कहलाता है। पुंन. गोत्र, वंश, कुल, गोट्ठामाहिल पुं [गोष्ठामाहिल] कर्मपुद्गलों
जाति । °क्खलिय न [°स्खलित] एक के को जीव-प्रदेश से अबद्ध माननेवाला एक
बदले दूसरे के नाम का उच्चारण । °देवया जैनाभास आचार्य ।
स्त्री [°देवता] कुलदेवी । "फुस्सिया स्त्री गोटि देखो गोदी।
["स्पर्शिका वल्ली-विशेष । गोटिल पुं [गौष्ठीक] एक मण्डली के सदस्य, गोत्त पुंन [गोत्र] पूर्वज पुरुष के नाम से प्रसिद्ध मित्र ।
अपत्य-संतति । वि. वाणी का रक्षक । गोदी स्त्री [गोष्ठी] मण्डलो, समान वयवालों गोत्ति वि [गोत्रिन्] समान गोत्रवाला, कटम्बी. की सभा । वार्तालाप, परामर्श ।
स्वजन। गोड पुं [गौड] देश-विशेष । वि. गौड़ देश का | गोत्ति देखो गुत्ति ।
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गोत्तिअ - गोर
गोत्तिअ वि [ गोत्रिक ] स्वजन, भाई-बंद | गोथुभ देखो गोथुभ । गोभा देखो गोभा ।
गोथुभ पुं [गोस्तूप ] ग्यारहवें जिनदेव का गोभ प्रथम- शिष्य । वेलन्धर नागराज का एक आवास पर्वत । न मानुषोत्तर पर्वत का एक शिखर | कौस्तुभरत्न । गोथूभा स्त्री [गोस्तूपा ] वापी - विशेष, अंजन पर्वत पर को एक वापी । शक्रेन्द्र की एक अग्रमहिषी को राजधानी ।
गोदा स्त्री [दे. गोदा] गोदावरी नदी । गोध पुं. म्लेच्छ देश । गोध देश का निवासी । गोधा स्त्री. गोह, हाथ से चलनेवाली एक साँप की जाति । गोपुर देखो गोउर ।
गोप्पहेलिया स्त्री [गोप्रहेलिका ] गौओं को चरने की जगह 1
गोफणा स्त्री [दे] गोफन |
गोमद्दा स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला । गोमा पुं [गोमायु] सियार, गीदड़ । } गोमाउ
गोमासिया स्त्री [गोमानसिका ] शय्याकार स्थान- विशेष ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गोमाणसी स्त्री [गोमानसी ] ऊपर देखो । गोमि वि [गोमिन्] जिसके पास अनेक गोमिअ गौ हों वह । गोमिअ देखो गोम्मिअ ।
गोमिआ [दे] देखो गोमी । गोमिक (मा) [गौरवित ] सम्मानित । गोमी स्त्री [] कनखजूरा, त्रीन्द्रिय जन्तु - विशेष 1 गोमुह पुं [ गोमुख ] भगवान् ऋषभदेव का शासन-यक्ष । एक अन्तद्वीप । गोमुख द्वीप का निवासी । न उपलेपन ।
गोही स्त्री [गोमुखी] वाद्य-विशेष |
गोमेअ
गोमेज
३८
}
पुं [गोमेद ] रत्न की एक जाति, राहुरत्न ।
२९७
गोमेह पुं [गोमेध ] यक्ष-विशेष, भगवान् नेमिनाथ का शासन - देव । यज्ञ-विशेष, जिसमें गौ का वध किया जाता है । गोम्मिअ पुं [गौल्मिक ] कोतवाल । गोम्ही देखो गोमी ।
गोय देखो गोत्त । वाइ वि ['वादिन् ] अपने कुल को उत्तम माननेवाला, वंशाभिमानी ।
गोय न [ दे] उदुम्बर – गूलर वगैरह का फल | गोय न [गोत्र ] मौन, वाक्-संयम । 'वाय पुं ['वाद] गोत्र सूचक वचन ।
गोयम पुं [ गोतम] ऋषि - विशेष | बैल | न. गोत्र - विशेष |
छोटा
गोयम वि [ गौतम] गोतम गोत्रीय । पुं. भगवान् महावीर का प्रधान-शिष्य । राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । एक मनुष्य जाति, जो बैल द्वारा भिक्षा माँग कर अपना निर्वाह चलाती है । एक ब्राह्मण । द्वीप विशेष । 'केसिज्जन [° केशीय] 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक अध्ययन । सगुत्त वि[° सगोत्र ] गोतम गोत्रीय | सामि पुं ['स्वामिन् ] भगवान् महावीर के सर्व-प्रधान शिष्य का
नाम ।
गोयमज्जिया) स्त्री [गौतमार्यिका ] जैनमुनि| गोयमेज्जिया । गण की एक शाखा । गोयर पुं [गोचर] गौओं को चरने की जगह | विषय । इन्द्रिय का विषय, प्रत्यक्ष । भिक्षाटन | माधुकरी | वि. भूमि में विचरनेवाला | 'चरिआ स्त्री ['चर्या] भिक्षा के लिए भ्रमण | भूमि स्त्री. पशुओं को चरने की जगह । भिक्षा - भ्रमण की जगह । वत्ति वि [वर्तिन् ] भिक्षा के लिए भ्रमण करनेवाला । गोयरी स्त्री [गौचरी] भिक्षा |
गोर पुं [गौर] शुक्ल वर्ण । वि. गौर वर्णवाला | निर्मल । खरपुं गर्दभ की एक जाति । गिरि पु. हिमाचल | मिग पुं [ मृग ]
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२९८
हरिण की एक जाति । न उस हरिण के चमड़े का बना हुआ वस्त्र । गोरअ देखो गोरव ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गोरंग वि [गौराङ्ग] गोरा शरीरवाला । गोरंफिडी स्त्री [दे] गोधा, गोह, जन्तु विशेष । गोल्हा स्त्री [दे] बिम्बी, कुन्दरुन की लता । गोव क [गोपय् ] छिपाना । रक्षण करना । पुं [ गोप] ग्वाला | °जिरि पुं [ गिरि] पर्वत - विशेष ।
गोरडित वि [दे] त्रस्त, ध्वस्त । गोरव न [गौरव ] महत्व, गुरुत्व | आदर ।
गोव
गमन ।
गोवअ
गोरव्व वि [गौरव्य ] गौरव - योग्य |
गोवड्ढण देखो गोवद्धन ।
गोरस पुंन. गोरस, दूध, दही, मट्ठा या छाछ गोवद्वण पुं [ गोवर्धन] पर्वत- विशेष | ग्राम
वगैरह । पुं. वाणी का आनन्द ।
विशेष |
गोरह पुं [दे] हल में जोतने-योग्य बैल | गोरा स्त्री [दे] हल - रेखा । आँख । ग्रीवा । 'गोरि देखो गोरी ।
गोरअ - गोवी
गोली स्त्री [दे] दही मथने की लकड़ी | गोल न [दे] बिम्बी-फल, कुन्दरुन का फल | गोल्ल पुं [गौल्य ] देश-विशेष | न. गोत्रविशेष | वि. गौल्य गोत्र में उत्पन्न ।
गोल पुंस्त्री [दे] गोला, जार से उत्पन्न । गोलव्वायण न [गौलव्यायन] गोत्र - विशेष | गोला स्त्री [दे] गौ । नदी । सखी । गोदावरी नदी |
गोलिय ' [गौडिक] गुड़ बनानेवाला । गोलिया स्त्री [] गुटिका । गेंद | बड़ा कुण्डा, बड़ी थाली । °लिंछ, °लिच्छ न. चुल्ली, चूल्हा | अग्नि- विशेष । गोलियायण न [गोलिकायन] गोत्र - विशेष, जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है । वि. गोलिकायन - गोत्रीय |
गोरिअन [गौरिक] विद्याधर का नगर विशेष । गोरी स्त्री [गौरी] शुक्ल वर्णा स्त्री । पार्वती । श्रीकृष्ण की एक स्त्री का नाम । इस नाम की एक विद्या देवी । 'कूड न [° कूट] विद्याघर - नगर - विशेष |
गोरी स्त्री [गौरी] विद्या - विशेष |
गोरुव न [गोरूप] प्रशस्त गाय । गोल
[दे] साक्षी | पुरुष का निन्दा गर्भ गोवा पुं [गोपा] ग्वाला | आमन्त्रण | कठोरता ।
गोल पु. वृक्ष - विशेष । गोलाकार वस्तु | कुंडा । गेंद
गोवयव [ गोपक] छिपानेवाला, ढाँकनेवाला । गोवर पुंन [दे] गोबर ।
गोवर पुं. मगध देशका एक गाँव, गौतम स्वामी की जन्मभूमि । वणिग् - विशेष । गोवल न [गोबल ] गोधन । गोत्र - विशेष | गोवलायण देखो गोवल्लायण । गोवलिय पुं [ गोबलिक] अहीर | गोवल्ल पुंन [गोवल ] गोत्र - विशेष । गोवल्लायण वि [ गोवलायन] गोवल गोत्र में उत्पन्न | न. गोत्र - विशेष |
गोवा सक[गोपाय ] छिपाना । रक्षण करना । गोवाल पुं [गोपाल] अहीर | 'गुज्जरी स्त्री [° गुर्जरी] भैरव रागवाली भाषा - विशेष, गुजरात के अहीरों का गीत । गोवाली स्त्री [गोपाली ] वल्ली - विशेष | गोविअ वि [दे] नहीं बोलनेवाला । गोविआ स्त्री [गोपिका ] गोपांगना । गोविंद पुं [गोपेन्द्र ] स्वनाम -ख्यात एक योगविषयक ग्रन्थकार । एक जैनमुनि । [ गोविन्द ] विष्णु, कृष्ण । एक जैन मुनि । णिज्जुत्ति स्त्री [°नियुक्ति ] इस नाम का एक जैन दार्शनिक ग्रन्थ |
गोविल्ल न [ दे] कञ्चुक | गोवी स्त्री [दे] कन्या ।
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गोवी-घट्टणग
गोवी स्त्री [गोपी] अहीरिन । गोव्वर [दे] देखो गोवर । गोस पुंन [ दे] प्रातःकाल । गोसंधिय पुं [गोसंधित] गोपाल | गोसग्ग पुंन [ दे. गोसर्ग] प्रभात । गोस [] मूर्ख | गोसाल
गोसालग
पुं. ब. [ गोशाल] देश-विशेष । पुं. भगवान् महावीर का एक शिव्य, जिसने पीछे अपना आजीविक मत
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चलाया था ।
गोसाविआ स्त्री [दे ] वारांगना । मूर्ख जननी । गोसिय वि [] प्रातः काल - सम्बन्धी । गोसीस न [गोशीर्ष ] चन्दन- विशेष |
घ पुं. कण्ठ- स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष | घअअंद न [दे] मुकुर, दर्पण ।
घई (अप) अ. पाद- पूरक और अनर्थक अव्यय । ओअ पुं [घृतोद ] समुद्र - विशेष । मेघघओद विशेष | वि. जिसका पानी घी के
समान मधुर हो ऐसा जलाशय ।
घंघ पुं [दे] घर | साला स्त्री [ 'शाला ] अनाथ मण्डप, भिक्षुओं का आश्रय स्थान | घंघल (अप) न [झकट] कलह | मोह, घब
राहट ।
लिअ वि [दे] घबड़ाया हुआ । घोर वि [ दे] भ्रमण - शील ।
घंचिय पुं [दे] तेली, घांची । घंट पुंस्त्री. घण्टा, कांस्य - निर्मित वाद्य - विशेष । घंटिय पुं [घण्टिक ] चाण्डाल का कुल देवता, यक्ष - विशेष ।
घ
घंटिय पुं [घाण्टिक ] घण्टा बजानेवाला । घंटिया स्त्री [घण्टिका ] छोटी घण्टी | fifaणी, घुंघरू | आभरण-विशेष । धं पुं [घ] घर्षण, घिसन ।
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गोह [] गाँव का मुखिया | योद्धा । जार । सिपाही, पुलिस । मनुष्य | कोतवाल आदि क्रूर मनुष्य | वि. देहाती ।
गोहा देखो गोधा । गोहिया स्त्री [गोधिका ] गोधा, जल-जन्तु - विशेष | साँप की एक जाति । वाद्य विशेष | गोहुर न [ दे] गोऩय | गोहूम पुं [गोधूम ] गेहूँ ।
गोहेर
पुं [ गोधेर ] जन्तु - विशेष, की तरह का जानवर |
गोरय
'गह देखो गह = ग्रह | गहण देखो गहण = ग्रहण | गहण देखो गहण = ग्रहाण |
साँप
चक्कूण देखो घे का संकृ. 1 घग्घर न [दे] घवरा, लहँगा । घग्घर पुं [ घर्घर] शब्द - विशेष । खोखला गला | खोखली आवाज । न श्याद्वल, शैवाल या सेवार वगैरह का समूह
घट्ट सक. छूना । हिलना, चलना | संघर्ष करना । आहत करना ।
घट्ट क [घट्टय् ] हिलाना, प्रेरित करना । घट्ट अ [भ्रंश्] भ्रष्ट होना ।
घट्ट पुं [दे] कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ वस्त्र | नदी का घाट | वेणु, बाँस ।
घट्ट पुं. शर्कराप्रभा नामक नरक-भूमि का एक नरकावास । पुंन. जमाव । समूह, जत्था । वि. निबिड |
घट्टसुअ न [ दे. घटयंशुक ] बूटेदार कौसुम्भ
वस्त्र ।
घट्ट व [घट्ट] चालाक, हिला देनेवाला । वि न. स्पर्श करना | चलाना, हिलाना । घट्टण पुं [घट्टनक] पात्र वगैरह को चिकना करने के लिए उस पर घिसा जाता एक
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३००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
घट्टणया-घणा
प्रकार का पत्थर।
। घडुक्कय पुं [घटोत्कच] भीम का पुत्र । घट्टणया । स्त्री [घट्टना] आघात । चलन, | घडुब्भव वि [घटोद्भव] घट से उत्पन्न । पुं. घट्टणा हिलन। विचार । पृच्छा । । ___ अगस्त्य मुनि । पीड़ा । स्पर्श ।
घढ न [दे] थूहा, टीला, स्तूप । घट्टय देखो घट्ट।
घण पुं [घन] बादल । हथौड़ा । गणित-विशेष, घट्ट वि [घृष्ट] घिसा हुआ।
तीन अंकों का पूरण करना, जैसे दो का घड सक [घट] चेष्टा करना । करना, बनाना । धन आठ होता है। वाद्य का शब्द-विशेष । अक. परिश्रम करना । संगत होना ।
कांस्यताल वगैरह । वि. दृढ़, ठोस । घड सक [घटय] जोड़ना। निर्माण करना। अविरल, निबिड़, निश्छिद्र, सान्द्र । संचालन करना।
प्रगाढ़। अधिक। कठिन, तरलता-रहित, घड पुं [घट] कुम्भ । कार पुं. कुम्भकार ।
स्त्यान । न. देवविमान-विशेष । पिण्ड । °चेडिया स्त्री [°चेटिका] पानी भरनेवाली
वाद्य-विशेष । °उदहि देखो घणोदहि । दासी, पनहारिन । °दास पुं. पानी भरनेवाला
°णिचिय वि [°निचित] अत्यन्त निबिड़ । नौकर, पनिहारा । °दासी स्त्री. पनिहारी। °तव न [ तपस्] तपश्चर्या-विशेष । दंत पुं घड वि [दे] बनाया हुआ।
['दन्त] इस नाम का एक अन्तर्वीप । उसका घडइअ वि [दे] संकुचित ।
निवासी मनुष्य । °माल न. वैताढ्य पर्वत पर घडग पुं [घटक] छोटा घड़ा ।
स्थित विद्याधर-नगर-विशेष । मुइंग पुं घडगार देखो घड-कार ।
[मृदङ्ग] मेघ की तरह गम्भीर आवाजवाला घडचडग पुं [घटचटक] एक हिंसा-प्रधान
वाद्य-विशेष । रह पुं [°रथ] एक जैन सम्प्रदाय ।
मुनि । °वाउ पु [°वायु] स्त्यान वायु, जो
नरक पृथिवी के नीचे है। °वाय पुं [°वात] घडण स्त्रीन [घटन] घटना । सम्बन्ध । घडणा स्त्री [घटना] संयोग ।
देखो °वाउ । °वाहण पुं [°वाहन] विद्याघडय देखो घडग।
धरों के राजा का नाम । °विज्जुआ स्त्री घडा स्त्री [घटा] समुह ।
[विद्युता] दिक्कुमारी देवी । °समय पुं. घडाघडी स्त्री [दे] गोष्ठी, सभा, मण्डली। वर्षा ऋतु । घडाव सक [घटय] बनाना । बनवाना । संयुक्त घणंगुल पुंन [घनाङ्गुल] परिमाण-विशेष । करना।
सूची से गुना हुआ प्रतरांगुल । घडि स्त्री [घटी] देखो घडिआ = घटिका । घणघणाइय न [धनधनायित] रथ की धन
मंतय, °मत्तय न [ मात्रक] छोटे घड़े के | घनाहट या गड़गड़ाहट, अव्यक्त शब्द-विशेष । आकार का पात्र-विशेष । जंत न [यन्त्र] | घणवाहि पुं [दे] इन्द्र । रेहट ।
घणसंमद्द पुं [धनसंमर्द] ज्योतिष-प्रसिद्ध योग घडिअघडा स्त्री [दे] गोष्ठी, मण्डली। विशेष । घडिआ स्त्री [घटिका] छोटा घड़ा। घड़ी, घणसार पु [धनसार] कपूर । मंजरी स्त्री. मुहूर्त । °लय न. घण्टागृह ।
एक स्त्री का नाम । घडिआ, स्त्री [दे] गोष्ठी, मण्डली । घणा स्त्री [घना] धरणेन्द्र की एक अग्र-महिषी । घडी
| घणा स्त्री [घृणा] घृणा, गरे ।
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घणिय-घरिल्ला संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३०१ घणिय न [घनित] गर्जना।
°सागर पुं. समुद्र-विशेष । घणोदहि पुं [घनोदधि] पत्थर की तरह | घयण पुं [दे] भाण्ड । कठिन जल-समूह । °वलय न. वलयाकार घयपूस पु [घृतपुष्य] एक जैन महर्षि । कठिन जल-समूह।
घर पुंन [गृह] मकान । कुडी स्त्री ["कुटी] घण्ण पु [दे] उर । वि. रंगा हुआ। मार घर के बाहर की कोठरी । चौक के भीतर की डालने-योग्य । ...
कुटिया । स्त्री का शरीर । °कोइला, °कोइघत्त सक [क्षिप्] फेंकना, डालना । प्रेरणा। लिआ स्त्री ['कोकिला] छिपकली । गोली घत्त सक [ग्रह.] ग्रहण करना ।
स्त्री. गृह-गोधा । गोहिआ स्त्री [°गोधिका] घत्त सक [गवेषय] ढूंढ़ना, अनुसन्धान करना । छिपकली, जन्तु-विशेष । °जामाउय पुं घत्त सक [यत्] यत्न करना ।
[जामातृक घर-जमाई । 'त्थ पु [ स्थ] घत्त वि [घात्य] मार डालने-योग्य । संसारी। नाम न [°नामन्] असली नाम, घत्ता स्त्री [घत्ता] छन्द-विशेष ।
वास्तविक नाम । °वाडय न [पाटक] ढको घत्ताणंद न [घत्तानन्द] छन्द-विशेष । हुई जमीन वाला घर । °वार न [ द्वार] घत्ति अ [दे] शीघ्र।
घर का दरवाजा । °सउणि पुं [°शकुनि] घत्तु वि [घातुक] घातक, जल्लाद ।
पालतू जानवर । °समुदाणिय पु [समुदाघत्थ वि [ग्रस्त] गृहीत, पकड़ा हुआ । भक्षित,
निक] आजीविक मत का अनुयायी साधु । निगला हुआ, कवलित । आक्रान्त, अभिभूत ।
°सामि [°स्वामिन्] घर का मालिक । घम्म पु [घर्म] गरमी, सन्ताप । पसीना।
°सामिणी स्त्री [स्वामिनी] गृहिणी, स्त्री । घम्मा स्त्री [घर्मा] पहली नरक-पृथिवी ।
सूर [°शूर] झूठा शूर, घर में ही बहादुरी घम्मोई स्त्री [दे] तृण-विशेष ।
दिखानेवाला । घम्मोडी स्त्री [दे] मध्याह्न काल । मच्छर ।
घरंगण न [गृहाङ्गण] चौक । ग्रामणी नामक-तृण ।
घरकूडी स्त्री [गृहकूटी] स्त्री-शरीर । घय न [घृत] घी। आसव पुं [ व] | घरग देखो घर। जिसका वचन घी की तरह मधुर लगे ऐसा | घरघंट पु [दे] चटक, गौरैया पक्षी । लब्धिमान् पुरुष । °किट्ट न. घी का मैल । घरघरग पुं [दे] गला का आभूषण-विशेष । किट्टिया स्त्री [°किट्टिका] घी का मैल । घरट्ट पु. जाँता, चक्की। °गोल न [°गौल] घी और गुड़ की बनी | घरट्ट पु [दे] पानी का चरखा । हुई एक प्रकार की मिठाई, मिष्टान्न विशेष । घरट्टी स्त्री. तोप । °घट्ट पु. घी का मैल । °पुन्न पु [ पूर्ण] घरणी देखो घरिणी । घेवर । 'पूर पुं. घेवर मिष्टान्न विशेष । 'पूस- घरयंद पु [दे] दर्पण, शीशा । मित्त पु ["पुष्यमित्र] एक जैन मुनि, आर्य- | घरस पु [दे. गृहवास] गृहस्थाश्रम । रक्षित सूरि का एक शिष्य। मंड पु घरसण देखो घंसण । [°मण्ड] ऊपर का घी, घृतसार । मिल्लिया घरित वि [गृहवत्] घरवाला । स्त्री [इलिका] घी का कीट, क्षुद्र जन्तु- | घरिणी स्त्री [गृहिणी] भार्या । विशेष । °मेह पुं[ मेघ] धी के तुल्य पानी | घरिल्ल पु [गृहिन्] घरबारी । बरसनेवाली वर्षा । °वर पु. द्वीप-विशेष । । घरिल्ला स्त्री [गृहिणी] पत्नी ।
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३०२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
घरिल्ली-घि घरिल्ली स्त्री [दे. गृहिणी] गृहिणी । | घाड अक [भ्रंश्] च्युत होना । घरिस पुं [घर्ष घर्षण, रगड़ ।
घाड पुं [घाट] मित्रता। मस्तक के नीचे का घरोइला स्त्री [दे] छिपकली।
भाग। घरोल न [दे] गृह-भोजन-विशेष ।
घाडिय वि [घाटिक] मित्र । घरोलिया । स्त्री [दे] गृहगोधिका, छिपकली। घाडेरुय पुं [दे] खरगोश की एक जाति । घरोली
| घाण पुं [दे] घानी, कोल्हू । धान, चक्की आदि घलघल पु. 'घल-घल' आवाज ।
में एक बार डालने का परिमाण । घल्ल सक [क्षिप्] फेंकना, डालना, घालना। घाण पुंन [घ्राण] नासिका। °ारिस पुन घल्ल वि दे] अनुरक्त, प्रेमी ।
[शस्] पीनस रोग। घल्लय । पुं [दे] द्वीन्द्रिय जीव की एक | घाणिदिय न [घ्राणेन्द्रिय] नासिका । घल्लोय जाति ।
घाय सक [हन] मारना, विनाश करना। घल्लिअ वि [दे] घटित, निर्मित । घाय सक [घातय्] मरवाना, दूसरे द्वारा मार घस सक [घष] घिसना, रगड़ना। मार्जन डालना, विनाश करवाना। करना, सफा करना।
घाय पुं [घात] गमन, प्रहार, वार । नरक । घस स्त्रीन [दे] फाटवाली भूमि । शुषिर भूमि, । हत्या, विनाश । संसार । क्षार भूमि ।
घायग वि [घातक] मार डालनेवाला, विनाघसणिअ वि [दे] गवेषित ।
शक। घसणी स्त्री [घर्षणी] टेढ़ी लकीर । घायण पुंदे] गायक । घसा स्त्री [दे] पोलो जमीन । भूमि-रेखा ।। घायणा स्त्री [हनन] मारना, हिंसा, वध । घसिर वि [ग्रसितृ] बहुत खानेवाला । घायय पुं [घातक] नरक-स्थान-विशेष । घमी स्त्री दे] भमि-राजि. लकीर। नीचे घायावणा स्त्री [घातना] मरवाना, दूसरे उतरना, अवतरण । [दे] जमीन का उतार, द्वारा मारना । लूटपाट मचवाना । ढाल ।
| घार अक [घारय] विष का फैलना, विष के घसुमर वि [घस्मर] खाने की आदतवाला। असर से बेचैन होना। सक. विष से बेचैन घाइ वि [घातिन्] नाशक, हिंसक । कम्म न | करना । विष से मारना । [°कर्मन्] ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय घार पुंदे] दुर्ग। और अन्तराय ये चार कर्म । °चउक्क न घारंत पुंदे] घेवर। [चतुष्क] पूर्वोक्त चार कर्म ।
घारिया स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष, घारी । घाइअ वि [घातित] मारित, विनाशित । घारी स्त्री [दे] पक्षि-विशेष । छन्द-विशेष । घवाया हुआ। सामर्थ्यरहित ।
| घास सक [घृष्] घिसना । पीड़ा करना । घाइआ स्त्री [घातिका] विनाश करनेवाली | घास पुं. तृण । स्त्री, मारनेवाली स्त्री। घात, हत्या । घाव घास पुं [ग्रास] कवल । आहार । करना।
घास पुं [घर्ष] घर्षण, रगड़ । घाइर वि [घ्रायिन्] घनेवाला। घासंसणा स्त्री [ग्रासैषणा] आहार-विषयक घाउकाम वि [हन्तुकाम] मारने की इच्छा- शुद्धि-अशुद्धि का पर्यालोचन । वाला।
| घि देखो धे।
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घिअ-धुसिरसार
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३०३
घुम
घिअ न [घृत] घी।
धुणिय वि [धुणित]धुणों से विद्ध, घुना हुआ । घिअ वि [दे] तिरस्कृत, अवधीरित।।
घुण्ण देखो घुम्म। घि° , पुं [ग्रीष्म] ग्रीष्म-काल । गरमी, घुत्तिअ वि [दे] गवेषित। प्रिंसु । अभिताप ।
घुन्न) देखो घुम्म । चिट्ठ वि [दे] कूबड़ा। घिट्ट वि [घृष्ट] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ। घुमघुमिय वि [घुमघुमित] जिसने 'घुमघुम घिणा स्त्री [घृणा] जुगुप्सा, अरुचि । दया। आवाज किया हो वह । न. 'धुम-घुम' ध्वनि । घिणिल्ल वि [घृणावत्] घृणावाला, नफरत : घुम्म अक [धुणं ] घूमना, चक्राकार फिरना । करनेवाला।
भटकना। घित्त (अप) वि [क्षिप्त] फेंका हुआ, डाला।
घुयग पु[दे] एक तरह का पत्थर, जो पात्र हुआ।
वगैरह को चिकना करने के लिए उस पर चित्तुमण वि [ग्रहीतुमनस्] ग्रहण करने की
घिसा जाता है, खराद या चरखो। इच्छावाला।
घुरहुर देखो घुरुघुर। घिस सक [ग्रस्] प्रसना, निगलना, भक्षण
घुरुक्क अक [दे] गरजना। करना।
धुरुक्कार पु [घुरुत्कार] सूअर आदि की घिसरा स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल
आवाज। विशेष ।
घुरुघुर अक [घुरुचुराय] धुरघुराना । व्याघ्र घुघुरुड पु[दे] ढेर, समूह।
वगैरह का बोलना। घुट पु[दे] चूंट ।
घुरुघुरि [दे] मण्डूक । घुग्घ । (अप) पुंन [घुग्घिका] बन्दर की |
घुरुधुरु । देखो घुरुधुर। घुग्घिअ । चेष्टा । घुग्घुच्छण न [दे] खेद, तकलीफ, परिश्रम ।
घुल देखो घुम्म । घुग्घुरि पु [दे] मेढ़क ।
घुलघुल अक [घुलघुलाय] 'घुल-घुल' आवाज घुग्घुस्सुअ वि [दे] निःशंक होकर गया हुआ। घुग्घुस्सुसय न [दे] आशंकायुक्त वाणी।
घुलिकि स्त्री [दे] हाथी की आवाज । घुघुघुघुघुघ अक [घुघुघुघाय] 'घुघु' आवाज
घुल्ला स्त्री [दे] कीट-विशेष, द्वीन्द्रिय जन्तु की करना, घूक या उल्लू का बोलना ।
एक जाति । घुघुय अक [घुघूय] ऊपर देखो।
घुसण देखो घुसिण। घुटग पु [घष्टक] लिपे हुए पात्र को घिसने घुसल सक [मथ् | मथना, विलोड़ना। का पत्थर ।
घुसिण न [घुसृण] कुंकुम, केसर । घुट्टधुणिअ न [दे] पहाड़ की बड़ी शिला।। घुसिणल्ल वि [घुसृणवत्] कुंकुमवाला । घुट्ठ वि [घुष्ट] घोषित ।
घुसिणिअ वि [दे] गवेषित । घुडुक्क अक [ गर्ज ] गर्जारव करना। घुसिम न [दे] घुसृण, कुंकुम । घुण पु. काष्ठ-भक्षक कीट, घुन ।
घुसिरसार न [दे] अवस्नान, विवाह के अवघुणहुणिआ, स्त्री [दे] कर्णोपकणिका, सर में स्नान के पहले लगाया जाता मसूरादि घुणाहुणी कानाकानी।
का पिसान, उबटन ।
घुरुहुर)
करना।
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घुसुल-च
हुआ।
३०४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष घुसुल देखो घुसल।
घोर वि. भयंकर, विकट । निर्दय । घूअ पुंस्त्री [घूक]उलूक । स्त्री. धूई । °ारि पुं. घोरि पुं[दे] शलभ-पशु की एक जाति । कौआ।
घोल देखो घुम्म । घृणाग पुं [घूणाक] स्वनाम-ख्यात सन्निवेश- घोल सक [घोलय] घिसना, रगड़ना। विशेष, ग्राम-विशेष ।
मिलाना । मर्दन करना। घुरा स्त्री [दे] जंघा । खलका, शरीर का घोल न [दे] कपड़े से छाना हुआ दही । अवयव विशेष ।
| घोलणा स्त्री [घोलना] पत्थर वगैरह का पानी घे देखो गह = ग्रह ।
की रगड़ से गोलाकार होना । घेउर पुन [दे] घेवर, घृतपूर, मिष्टान्न-विशेष । घोलवड न [दे] दहीबड़ा। घेक्कूण घे का संकृ.।
घोलाविअ वि [घोलित] मिश्रित किया हुआ। घेत्तुमण वि [ग्रहीतुमनस्] ग्रहण करने की घोलिअ न [दे] शिलातल । हठ-कृत । इच्छावाला।
घोलिअ वि [पूर्णित] घुमाया हुआ। अत्यन्त घेप्प
लीन । घेप्पंत घेका वकृ.।
घोलिअ वि [घोलित] आम की तरह घोला घेप्पमाण घेवर [दे] देखो घेउर।
घोस सक [घोषय] घोषणा करना । घोखना। घोट्ट ।सक [पा] पीना, पान करना।।
जोर-जोर से बोल कर पढ़ना या रटना । घोट्टय ) घोड देखो घुम्म।
घोस पुं [घोष] ऊँची आवाज । अहीरों का घोड पुंस्त्री [घोट, क] अश्व । पुं.
महल्ला, अहीर टोली। गोष्ठ, गौओं का घोढग कायोत्सर्ग का एक दोष । 'रक्खग |
बाड़ा । स्तनितकुमार देवों की दक्षिण दिशा
का इन्द्र । उदात्त आदि स्वर-विशेष । अनुघोडय Dj [रक्षक] अश्वपाल । ग्गीव [°ग्रीव] अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव, नृप
नाद । न, देव-विमान-विशेष । °सेण पु विशेष । °मुह न [°मुख] जैनेतर शास्त्र
[°सेन] सातवें वासुदेव का पूर्वजन्म का धर्मविशेष ।
गुरु, एक जैन मुनि । घोडिय [दे] मित्र ।
घोस न [घोष] लगातार ग्यारह दिनों का उपघोडी स्त्री [घोटी] घोड़ी । वृक्ष-विशेष ।
वास। घोण न [घोण] घोड़े की नाक ।
घोसय न [दे] दर्पण रखने का उपकरणघोणस पुं [घोनस] एक प्रकार का साँप ।
विशेष । घोणा स्त्री. नाक । घोड़े की नाक । सूअर का ।
घोसाडई स्त्री [घोषातकी] लता-विशेष । मुख-प्रदेश ।
घोसाडिया देखो घोसाडई। घोर अक [घुर्] निद्रा में 'धुर-धुर' आवाज
घोसालई । स्त्री [दे] शरद् ऋतु में होनेकरना।
घोसाली । वाली लता-विशेष । घोर वि [दे] विनाशित । पु. गोध । घोसावण न [घोषण] घोषणा।
च पुं. तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष ।
। च अ, इन अर्थों का सूचक अव्यय-और, तथा ।
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चइअ चय = त्यज्
का संकृ. ।
चइअच
का सकृ. ।
चआ-चउ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३०५ पुनः। निश्चय । भेद, विशेष । अतिशय, चौथा। पुंन. उपवास । त्थंच उत्थ पुन आधिक्य । सम्मति । पाद-पूत्ति । अथवा । [°थचतुर्थं] एक-एक उपवास । 'त्थभत्त न चआ स्त्री [त्वक्] चमड़ी।
[°थभक्त] एक दिन का उपवास । त्थभचइअ वि [शकित] जो समर्थ हुआ हो । त्तिय वि [°थभक्तिक] जिसने एक उपवास चइअ देखो चविअ।
किया हो वह । °त्थिमंगल न [°थीमङ्गल] चइअ वि [त्यक्त] मुक्त, परित्यक्त ।
वधू-वर के समागम का चतुर्थ दिन, जिसके चइअ वि [त्याजित] छुड़वाया हुआ ।
बाद जामाता अकेला अपने घर जाता है, चौठारी । °त्थी स्त्री [°थी] चौथी । सम्प्र
दान-विभक्ति। तिथि-विशेष । दंत देखो चइइअ देखो चेइअ।
"दंत । 'दस त्रि. ब. [दशन्] चौदह । चइत्त देखो चेइअ।
°दसव्वि पुं [°दशपूर्विन्] चौदह पूर्व ग्रन्थों चइत्त पुं[चैत्र] चैत्र मास ।
का ज्ञानवाला मुनि । °दसम वि. देखो चइद (शौ) वि [चकित] भीत, शंकित ।
'इसम। दसहा अ [°दशधा] चौदह
प्रकार से । दसी स्त्री [°दशी] चतुर्दशीचउ वि [चतुर] चार, संख्या-विशेष । आलीस
तिथि । °इंत पुं [दन्त] इन्द्र का हाथी । स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] चौआलीस । °कट्ठः
दस देखो °दस । दसपुवि देखो दसन [ 'काष्ठा ] चारों दिशा । °कट्ठी स्त्री [°काष्ठी] चोकठा । द्वार का ढाँचा । "क्कोण
पुवि । इसम वि [°दश] चौदहवाँ । पुंन. वि [°कोण] चार कोणवाला, चतुरस्र । °ग
लगातार छः दिनों का उपवास । ६सी देखो न. देखो चउक्क = चतुष्क । °गइ स्त्री[°गति]
°दसी। सुत्तरसय वि [°दशोत्तरशततम] नरक, तिर्यग्, मनुष्य और देव की योनि ।
एक सौ चौदहवाँ 1 °६ह देखो दस । दही गइअ वि [गतिक] चारों गति में भ्रमण
देखो °दसी। दिसं, द्दिसि अ [°दिश्] करनेवाला। गमण न [गमन] चारों चारों दिशाओं की तरफ, चारों दिशाओं में । दिशाएँ । गुण, गुण वि [°गुण] चौगुना । °द्धा अ [°धा] चार प्रकार से । नाण न °चत्ता स्त्री °चत्वारिंशत्] चौआलीस । [°ज्ञान] मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यव °चरण पुं. चौपाया, चार पैर के जन्तु, पशु ।
ज्ञान । °नाणि वि [°ज्ञानिन्] मति वगैरह °चूड पुं. विद्याधर वंश के एक राजा का चार ज्ञानवाला । °पण्णइम वि [°पञ्चाश] नाम । 'टु देखो °त्थ । 'टाणवडिअ वि चौवनवाँ । न, लगातार छब्बीस दिनों का [°स्थानपतित] चार प्रकार का । °णउइ उपवास । °पन्न, पन्नास स्त्रीन [°पञ्चास्त्री [°नवति] चौरानबे। °णउय वि
शत्] चौवन । पन्नासइम वि [[पञ्चा[°नवत]चौरानबेवाँ । °णवइ देखो °णउइ ।
शत्तम] चौवनवाँ । °पय देखो °प्पय । °ण्ण देखो °पन्न । °तिस, तीस न
पाल न. सूर्याभ देव का प्रहरण-कोश । [°त्रिंशत्] चौतीस । तीसइम देखो °त्तीस- °पइया, °प्पइया स्त्री [°पदिका] छन्दइम । तीसा स्त्री. देखो तीस । त्तालोस विशेष । जन्तु-विशेष की एक जाति । °प्पई वि [°चत्वारिंश] चौआलीसवाँ । °त्तीसइम
स्त्री [°पदी] देखो °पइया । °प्पन्न देखो वि [त्रिंश] चौतीसवाँ । न. सोलह दिनों °पन्न । °प्पय पुंस्त्री [°पद] चौपाया प्राणी, का लगातार उपवास। त्थ वि [°थ] | पशु । न. ज्योतिष प्रसिद्ध एक स्थिरकरण ।
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३०६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चक्क-चउरासीइ
ce [पथ ] चौराहा । पुड वि | चउक्किआ स्त्री [दे. चतुष्किका ] आँगन, [पुट ] चार पुटवाला, चौसर, चौपड़ | छोटा चौक । फाल वि[° फाल] देखो पुड । 'ब्बाहु वि [°बाहु] चार हाथवाला । पुं. चतुर्भुज, श्रीकृष्ण । भुअ [भुज ] देखो 'बाहु | "भंग पुंन. चार प्रकार, चार विभाग | 'भंगी स्त्री [भङ्गी] चार प्रकार, चार विभाग । 'भाइया स्त्री [भागिका ] चौसठ पल का एक नाप । मट्टिया स्त्री [°मृत्तिका ] कपड़े के साथ कूटी हुई मिट्टी | मंडलग न [ मण्डलक] लग्न मण्डप | 'मासिअ देखो चाउमासिअ | मुह मुह पुं [मुख ] ब्रह्मा, विधाता | वि. चार मुँहवाला, चार द्वारवाला । 'वग्ग पुंन [वर्ग] चार वस्तुओं का समुदाय । वण्ण स्त्रीन [पञ्चाशत् ] चौवन । 'वार वि [°द्वार] चार दरवाजेवाला (गृह) | विह वि [विध ] चार प्रकार का । वीस स्त्री [विंशति ] चौबीस | 'das (अप) । स्त्री [विशति ] चौबीस | 'वीसइम वि [ विंशतितम] चौबीसवाँ । न ग्यारह दिनों का लगातार उपवास | 'वग्ग देखो 'वग्ग | 'व्वार पुन [वार] चार दफा | व्विह देखो वह । 'व्वीस देखो 'वीस । व्वीसइम देखो वीसम | सट्ट स्त्री [ षष्टि ] चौसठ | off [ष्टतम] चौसठवाँ । स्सट्टि | देखो 'सट्ठि | 'स्साल न ['शाल ] चार शालाओं से युक्त घर । 'हट्ट पुंन ['हट्ट ] बाजार | हत्तर वि ['सप्तत] चौहत्तरवाँ । 'हत्तर स्त्री ['सप्तति] चौहत्तर | ° हा अ [T] चार प्रकार से | देखो चो' । चक्क न [चतुष्क] चौकड़ी, चार वस्तुओं का समूह
चक्क [दे. चतुष्क] चौक, चौराहा । आँगन । चक्कर [] कार्तिकेय । चउक्कर वि [चतुष्कर ] चतुर्भुज ।
चउज्झाइया स्त्री [दे] नाप - विशेष । चउड पुं [चोड] देश-विशेष । चउद देखो चउ-दस । चउद्दह वि [चतुर्दश] चौदहवाँ । चउपंचम वि [चतुष्पञ्च] चार या पाँच | चउपाडियन [ चतुष्प्रतिपत्] चार पडवा या परिवा तिथियाँ |
चउप्पाय पुं [ चतुष्पाद ] एक दिन का उप
वास ।
चउप्फल वि [चतुष्फल ] चौगुना । चउबोल स्त्रीन [ चौबोल] छन्द - विशेष | चउम्मुह पुं [ चतुर्मुख] दो दिन का उपवास । चउर वि [ चतुर ] निपुण, होशियार । चउरंग वि [चतुरङ्ग] चार अंगवाला, चार विभागवाला (सैन्य वगैरह ) । न. चार अंग, चार प्रकार ।
चउरंगय न [ चतुरङ्गक] एक तरह का जुआ ।
चउरंगि वि [चतुरङ्गिन् ] चार विभागवाला ( सैन्य वगैरह ) । स्त्री. 'णी । चउरंत वि [चतुरन्त ] चार सीमाओंवाला । पुं. संसार । स्त्री. ता [°ता] पृथिवी । चउरंतन [ चतुरन्त ] पहिया । चउरंस वि [चतुरस्र] चतुष्कोण, चार कोण
वाला ।
चउरंसा स्त्री [ चतुरंसा ] छन्द - विशेष । चउरचिंध पुं [दे] सातवाहन राजा शालिवाहन ।
चउरय पुं [दे] चबूतरा, गाँव का सभा स्थान । चउरस्स देखो चउरंस |
चउराणण वि [चतुरानन] चार मुँहवाला | पुं. ब्रह्मा, विधाता ।
चउरासी स्त्री [ चतुरशीति] संख्या - विशेष, चउरासीइ चौरासी की संख्या ।
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चउरासीइम-चंड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३०७ चउरासीइम व[चतुरशीतितम] चौरासीवाँ । | चंग क्रिवि [दे] अच्छा, ठीक । चउरासीय स्त्रीन [चतुरशीति] चौरासी। चंगदेव पुं [चङ्गदेव] हेमाचार्य का गृहस्थाचरिदिय वि [चतुरिन्द्रिय] त्वक् , जिह्वा, | वस्था का नाम । नाक और चक्षु इन चार इन्द्रियवाला। चंगवेर पुन [दे] काठ का तख्ता । पुं. काठ का चउरिमा स्त्री [चतुरिमन्] चतुराई, निपु- बना हुआ छोटा पात्र विशेष । णता।
| चंगिम पुंस्त्री [दे. चङ्गिमन्] सौन्दर्य, श्रेष्ठता । चउरिया । स्त्री [दे] लग्न-मण्डप । चंगेरी स्त्री [दे] टोकरी, चंगेली, डलिया, चउरी ।
कठारी, तृण आदि का बना पात्र-विशेष । चउरुत्तरसय वि [चतुरुत्तरशततम] एक | चंच देखो चंछ । सौ चारवाँ।
चंच पुं [चञ्च] पङ्कप्रभा नरक-पृथिवी का चउवीस वि [चतुर्विश] चौबीसवाँ ।। एक नरकावारा । न. देवविमान-विशेष । चउवीसिगा स्त्री [चतुर्विशिका] समय-मान- | चंचपुड पुंन [दे] आघात, अभिघात । विशेष, चौबीस तीर्थङ्कर जितने समय में / चंचप्पर न [दे] असत्य । होते हैं उतना काल-एक उत्सर्पिणी या एक | चंचरीअ ' [चञ्चरीक] भ्रमर । - अवसर्पिणी-काल ।
चंचल वि [चञ्चल] चपल, चञ्चल । पुं. चउवेद वि [चतुर्वेद] चारों वेदों का | रावण के एक सुभट का नाम । चउवेय ज्ञाता, चौबे ।
चंचला स्त्री [चञ्चला] चञ्चल स्त्री। छन्द
विशेष । चउसट्रिआ स्त्री [चतुःषष्टिका] रसवाली | चंचा स्त्रो [चञ्चा] नरवट की चटाई । चीज तौलने का एक नाप, चार पल का एक
चमरेन्द्र की राजधानी, स्वर्ग-नगरी-विशेष । माप।
घास का पुतला। चउसर वि [दे] चौंसर, चार सरा (लड़ी)
चंचाल (अप) देखो चंचल । वाला (हार आदि)।
चंचु स्त्री [चञ्चु] चोंच, पक्षी का ठोर । चउहत्थ पुं [चतुर्हस्त] श्रीकृष्ण ।।
चंचुच्चिय न [दे. चञ्चुरित, चञ्चूच्चित] चउहार पुं [चतुराहार] चार प्रकार का
कुटिल गमन, टेढ़ी चाल ।
चंचुमाल इय वि [दे] रोमाञ्चित । आहार, अशन, पान, खादिम और स्वादिम । चओर पुन [दे] पात्र-विशेष ।
चंचुय पुं [चञ्चुक] अनार्य देश-विशेष । उस चओर } पुंस्त्री. [चकोर] पक्षि-विशेष ।
देश का निवासी मनुष्य । चओरग
चंचुर वि [चञ्चुर] चपल, चञ्चल । चओवचइय वि [चयोपचयिक] वृद्धि हानि
चंछ सक [तक्ष] छिलना । वाला।
चंड सक [पिष्] पीसना। चंकम ) अक [चक्रम्] बार-बार चलना। चंड देखो चंद । चंकम्म | इधर-उधर घूमना । बहुत भटकना। | चंड वि [चण्ड] प्रबल, उग्र, प्रखर, तीव्र । टेढ़ा चलना । चलना-फिरना ।
भयानक । अति क्रोधी, क्रोध-स्वभावी । चंकार पुं [चकार] च वर्ण, 'च' अक्षर ।। तेजस्वी। पुं. राक्षस वंश के एक राजा का चंग वि [दे. चङ्ग] सुन्दर ।
| नाम । क्रोध । किरण पुं. सूर्य । °कोसिय
चउग्वेद
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चंडंसु-चंद पुं [°कौशिक] एक सर्प, जिसने भगवान् | राम । राम के एक सुभट का नाम । रावण महावीर को सताया था । °दीव पुं[°द्वीप] | का एक सुभट । राशि-विशेष । आह्लादक द्वीप-विशेष । °पजोअ ' [°प्रद्योत] उज्ज- वस्तु । कपूर । स्वर्ण । पानी। एक जैन यिनी के एक प्राचीन राजा का नाम । भाणु आचार्य । द्वीप-विशेष । राधावेध की पुतली पुं[ भानु] सूरज । °रुद्द पुं [°रुद्र] प्रकृति- का बायाँ नयन, आँख का गोला । न. देवक्रोधी एक जैन आचार्य । वडिसय पुं विमान-विशेष । रुचक पर्वत का एक शिखर । [वतंसक] नप-विशेष । °वाल पुं [°पाल] अंत देखो कंत। °उत्त देखो गत्त । नप विशेष । °सेण [ सेन] एक राजा का | °कंत पुं [°कान्त] मणि-विशेष । न. देवनाम । °लिय न [°ालीक] क्रोध-वश कहा विमान विशेष । वि. चन्द्र की तरह आह्लादक । हुआ झूठ।
°कंता स्त्री [°कान्ता] नगरी-विशेष । एक चंडंसु पुं[चण्डांशु] सूर्य ।
कुलकर-पुरुष की पत्नी । कूड न [°कूट] चंडण देखो चंदण।
देवविमान-विशेष । रुचक पर्वत का एक चंडमा पुं [चन्द्रमस्] चाँद ।
शिखर । °गुत्त पुं[°गुप्त] मौर्यवंश का एक चंडा स्त्री. चमरादि इन्द्रों की मध्यम परिषद् । स्वनाम-विख्यात राजा। °चार पुं. चन्द्र की भगवान् वासुपूज्य की शासनदेवी ।
गति । °चूड, °चूल पुं [°चूड] विद्याधर चंडातक न [चण्डातक] चोली, लहँगा।
वंश का एक स्वनाम-प्रसिद्ध राजा । चंडार पुंन [दे] भण्डार ।।
°च्छाय पुं. अङ्ग देश का एक राजा, जिसने चंडाल पुं [चण्डाल] वर्णसङ्कर जाति-विशेष ।
भगवान् मल्लिनाथ के साथ दीक्षा ली थी। डोम।
°जसा स्त्री [°यशस्] एक कुलकर पुरुष की चंडालिय वि [चाण्डालिक]चाण्डाल-सम्बन्धी,
पत्नी। °ज्झय न [ध्वज] देवविमानचण्डाल जाति में उत्पन्न ।
विशेष । °णक्खा स्त्री [°नखा] रावण की चंडाली स्त्री [चण्डाली] चण्डाल-जातीय स्त्री। बहिन का नाम । °णह पुं[°नख] रावण विद्या-विशेष ।
का एक सुभट । °णही देखो °णक्खा । चंडिअ वि [दे] कृत, छिन्न, काटा हुआ। °णागरी स्त्री [ नागरी] जैन मुनि-गण की चंडिक्क पुंन [दे. चाण्डिक्य] रोष, क्रोध, | एक शाखा । दरिसणिया स्त्री[°दर्शनिका] रौद्रता।
उत्सव-विशेष, बच्चे के पहली बार के चन्द्रचंडिज्ज पुं [दे] कोप, गुस्सा । वि. पिशुन, दर्शन के उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव । खल, दुर्जन ।
°दिण न [दिन] प्रतिपदादि तिथि । °दीव चंडिम पुंस्त्री [चण्डिमन्] चण्डता, प्रचण्डता । पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष । °द्ध न [°र्ध] आधा चंडिया स्त्री [चण्डिका] देखा चंडी। चन्द्र, अष्टमी तिथि का चन्द्र । °पडिमा चंडिल वि [दे] पीन, पुष्ट ।
स्त्री ["प्रतिमा] तप-विशेष । पन्नत्ति स्त्री चंडिल पुं चण्डिल] हजाम ।
[प्रज्ञप्ति] एक जैन उपाङ्ग ग्रन्थ । °पव्वय चंडी स्त्री [चण्डी] क्रोध-युक्त स्त्री, कर्कशा | पु [पर्वत] वक्षस्कार पर्वत-विशेष । °पुर
और उग्र स्त्री। पार्वती। वनस्पति-विशेष । न. वैताढ्य पर्वत पर स्थित एक विद्याधर°देवग वि [°देवक] चण्डी का भक्त । नगर । °पुरी स्त्री. नगरी विशेष, भगवान् चंद पुं [चन्द्र] चन्द्रमा । नृप-विशेष । दाशरथी | चन्द्रप्रभ की जन्मभूमि । °प्पभ वि [प्रभ]
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चंद-चंदण
'
चन्द्र के तुल्य कान्तिवाला । पुं. आठवें जिनदेव का नाम | चन्द्रकान्त मणि । एक जैन मुनि । न. देवविमान विशेष | चन्द्र का सिंहासन | पभा स्त्री [ प्रभा ] चन्द्र की एक अग्र-महिषी । मदिरा - विशेष । इस नाम की एक राज कन्या । इस नाम की एक शिविका जिसमें बैठकर भगवान् शीतलनाथ और महावीर स्वामी दीक्षा के लिए बाहर निकले थे । पह देखो प्भ | भागा स्त्री. एकनदी | 'मंडल पुन [ " मण्डल ] चन्द्र का मण्डल, चन्द्र का विमान | चन्द्र का बिम्ब । मग्ग [मार्ग ] चन्द का मण्डल - गति से परिभ्रमण | चन्द्र का मण्डल मणि पुं. मणिविशेष | माला स्त्री. चन्द्राकार हार, चन्द्रहार | छन्द - विशेष | 'मालियास्त्री ['मालिका ] वही पूर्वोक्त अर्थ | मुही स्त्री [ मुखी] चन्द्र के समान आह्लादक मुखवाली स्त्री । सीतापुत्र कुश की पत्नी । 'रह पुं [° रथ] विद्याधर वंश का एक राजा । °रिसि पु[ऋषि] एक जैन ग्रन्थकार मुनि । 'लेस न [°लेश्य ] देवविमान - विशेष | लेहा स्त्री [°लेखा ] चन्द्रकला | एक राज - पत्नी । ' वडिंग न [वतंसक] चन्द्र के विमान का नाम । देखो चंडवडसग । 'वण्ण न ['वर्ण] एक देवविमान | 'वयण वि [' वदन] चन्द्र के तुल्य आह्लादजनक मुँहवाला । पुं. राक्षस-वंश का एक राजा । विकंप [विकम्प] चन्द्र का विकम्प - क्षेत्र । 'विमाण न [विमान] चन्द्र का विमान । विलासि वि [°विलासिन् ] चन्द्र के तुल्य मनोहर । " वेग पुं. एक विद्याधर- नरेश । ' संवच्छर पुं [ संवत्सर] चान्द्रमासों से निष्पन्न संवत्सर । 'साला स्त्री [ 'शाला ] अटारी । 'सालिया स्त्री [शालिका ] अट्टालिका | सिंग न ['शृङ्गः] देव-विमान- विशेष । [शिष्ट ] एक देवविमान |
पुंन
सिरी स्त्री
संक्षिप्त प्राकृत • हिन्दी कोष
३०९
[श्री] द्वितीय कुलकर पुरुष की माँ का नाम । सिहर पुं [° शिखर ] विद्याधर वंश का एक राजा । 'सूरसावणिया, सूरपासणिया स्त्री [ सूरदर्शनिका] बालक का जन्म होने पर तीसरे दिन उसको कराया जाता चन्द्र और सूर्य का दर्शन और उसके उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव | सूरि पुं. स्वनामविख्यात एक जैन आचार्य । °सेण पुं [ सेन] भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र । एक विद्याधर राज कुमार । सेहर पुं [शेखर ] भूप-विशेष | महादेव | 'हास पुं. खड्गविशेष |
चंद पुं [ चन्द्र ] जिसमें अधिक मास न हो वह वर्ष । 'उडु पुं [ऋतु] कुछ अधिक उनसठ दिनों की एक ऋतु । परिवेस पुं [' परिवेष ] चन्द्र-परिधि | पहा स्त्री ['प्रभा ] देखो चंदप्पा | वदी स्त्री [ती] एक नगरी ।
चंद वि[ चान्द्र ] चन्द्र-सम्बन्धी । 'कुल न. जैन मुनियों का एक कुल । चंदअ देखो चंद = चन्द्र । चंदइल्ल पुं [दे] मोर ।
चंदंक पुं [चन्द्राङ्क] विद्याधर वंश का एक स्वनाम - प्रसिद्ध राजा ।
चंदग [ चन्द्रक] देखो चंद । विज्झ, 'वेज्झ न] [वेध्य] राधावेध |
चंदट्टिआ स्त्री [ दे] भुज, शिखर, कन्धा । गुच्छा ।
चंदण पुं [ चन्दन] एक देवविमान । रत्न की एक जाति । पुं. द्वीन्द्रिय जीव- विशेष, अक्ष का जीव ।
चंदण पुंन [ चन्दन] चन्दन का पेड़ । न. चन्दन की लकड़ी । घिसा हुआ चन्दन । छन्द - विशेष | रुचक पर्वत का एक शिखर । 'कलस पुं [° कलश ] चन्दन- चर्चित कुम्भ, माङ्गलिक घट | ° घड
पुं [ घट ] मंगल
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चंदणग-चंपयवडिसय कारक घड़ा । °बाला स्त्री. एक साध्वी स्त्री, | चंदाविज्झय देखो चंदग-विज्झ । भगवान् महावीर को प्रथम शिष्या। वइ पुं. | चंदिआ स्त्री [चन्द्रिका] चन्द्र की प्रभा । [°पति] स्वनाम-ख्यात एक राजा। चंदिकोजलीय वि [दे. चन्द्रिकोज्ज्वलित] चंदणग पुन [चन्दनक] ऊपर देखो। पुं. चन्द्रकान्ति से उज्ज्वल बना हुआ। द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष, जिसके कलेवर को जैन | चंदिण नदे] चन्द्रप्रभा । साधु लोग स्थापनाचार्य में रखते हैं। चंदिम देखो चंदम एक जैन मुनि । चंदणा स्त्री [चन्दना] भगवान् महावीर की चंदिमा स्त्री [चन्द्रिका] ज्योत्स्ना । प्रथम शिष्या, चन्दनबाला ।
चंदिमाइय न [चान्द्रिक] 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र चंदणि स्त्री [दे] आचमन, कुल्ला । "उयय |
का एक अध्ययन । न [°उदक] कुल्ला फेंकने की जगह । चंदिल पु [चन्दिल] नापित । चंदणी स्त्री [दे] चन्द्र की पत्नी, रोहिणी।
चंदुत्तरडिसग न [चन्द्रोत्तरावतंसक] एक चंदम पु [चन्द्रमस्] चाँद ।
देवविमान । चंदरुद्द देखो चंड-रुद्द।
चंदेरी स्त्री [दे] नगरी-विशेष । चंदवडाया स्त्री [दे] जिसका आधा शरीर
र चंदोज । न [दे] कुमुद, चन्द्र-विकासी ढका और आधा नंगा हो ऐसी स्त्री।
चंदोजय , कमल । चंदा स्त्री [चन्द्रा] चन्द्र-द्वीप की राजधानी।
| चंदोत्तरण न [चन्द्रोत्तरण] कौशाम्बी नगरी चंदाअव पुं [चन्द्रातप] चाँदनी । देखो | | का एक उद्यान । चंदायय।
चंदोयर पु [चन्द्रोदर] एक राज-कुमार । चंदाणण पु [चन्द्रानन] एरवत क्षेत्र के प्रथम चंदोवग न [चन्द्रोपक] संन्यासी का एक जिनदेव ।
उपकरण । चंदाणणा स्त्री [चन्द्रानना] चन्द्र के तुल्य | चंदोवराग पु [चन्द्रोपराग] चन्द्र ग्रहण । आह्लाद उत्पन्न करनेवाली, चन्द्रमुखी ।। चंद्र देखो चंद। शाश्वती जिन-प्रतिमा-विशेष ।
चंप सक [दे] चाँपना, दबाना । चंदाभ वि [चन्द्राभ] चन्द्र के तुल्य आह्लाद- | चंप सक [चर्च ] चर्चा करना। जनक । पु. आठवाँ जिनदेव, चन्द्रप्रभ स्वामी। चंप सक [आ+रुह.] चढ़ना। इस नाम का एक राज-कुमार । न. एक देव- चंप देखो चंपय ।। विमान ।
| चंपग पुन [चम्पक] एक देवविमान । चंदायण न [चान्द्रायण] तप-विशेष, जिसमें चंपग देखो चंपय ।। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार भोजन के | चंपडण न [दे] प्रहार, आघात । कौर घटाने-बढ़ाने पड़ते हैं।
चंपय पु [चंपक] चम्पा का पेड़ । देव-विशेष । चंदायण न [चन्द्रायण] चन्द्र का छः-छः |
न. चम्पा का फूल । °माला स्त्री. छन्दमास पर दक्षिण और उत्तर दिशा में गमन ।। विशेष । चम्पा के फूलों का हार । 'लया चंदायय देखो चंदाअव । आच्छादन-विशेष, स्त्री [°लता] लताकार चम्पक वृक्ष । चम्पक वितान, चॅदवा।
वृक्ष की शाखा । °वण न [°वन] चम्पक चंदालग न [दे] ताम्र का भाजन-विशेष । वृक्षों की प्रधानतावाला वन । चंदावत्त न [चन्द्रावत] एक देवविमान । चंपयवडिसय पु [चम्पकावतंसक] सौधर्म
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चंपा-चक्कार संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
३११ देवलोक में स्थित एक विमान ।
स्त्री [°शाला] तैलिक गृह । °सुह पु[°शुभ, चंपा स्त्री [चम्पा] अंग देश की राजधानी, | "सुख] मानुषोत्तर पर्वत का अधिपति देव । नगरी-विशेष । 'पुरी स्त्री. वही अर्थ। सेण पु[°सेन] स्वनाम-ख्यात एक राजा । चंपा स्त्री. देखो चंपय । कुसुम न. चम्पा का हर पु [°धर] चक्रवर्ती राजा, सम्राट् । फूल । °वण्ण वि [°वणं] चम्पा के फूल के | वासुदेव, अर्ध-चक्रो राजा। तुल्य रंगवाला, सुवर्ण-वर्ण ।
चक्कआअ देखो चक्कवाय । चंपारण (अप) पु [चम्पारण्य] देश-विशेष, चक्कंग पु [चक्राङ्ग] पक्षि-विशेष । चंपारन, तिरहुत कमिश्नरी (बिहार) का एक चक्कणभय न [दे] नारंगी का फल । जिला । चंपारन का निवासी।
चक्कणाहय न [दे] तरङ्ग, कल्लोल । चंपिअ न [दे] आक्रमण, दबाव ।
चक्कम । अक [भ्रम्] घूमना, भटकना । चंपिजिया स्त्री [चम्पीया] जैन मुनिगण की | चक्कम्म) एक शाखा।
चक्कम्मविअ वि [भ्रमित] घुमाया हुआ, चंभ पु[दे] हल से विदारित भूमि-रेखा। फिराया हुआ। चकप्पा स्त्री [दे] त्वचा।
चक्कय देखो चक्क। चकिद देखो चइद।
चक्कल न [दे] कुण्डल । हिंडोला का पटिया । चकोर पुंस्त्री. चकोर पक्षी ।
वि. वर्तुल, गोलाकार पदार्थ । विशाल, चक्क पुं [चक्र] चक्रवाक पक्षी, न. गाड़ी का |
विस्तीर्ण । पहिया । समूह । अस्त्र-विशेष । चक्राकार | चक्कलिअ वि [दे] चक्राकार किया हुआ । आभूषण, मस्तक का आभरण-विशेष । व्यूह- भिण्ण वि [भिन्न] गोलाकार खण्ड, गोल विशेष, सैन्य की चक्राकार रचना-विशेष । न. | टुकड़ा। एक देवविमान । °कंत पु[कान्त] स्वयं- | चक्कवा
की] चकवी। भूरमण समुद्र का अधिष्ठाता देव । °जोहि पु चक्कवाग । पु[चक्रवाक] चकवा । [योधिन्] चक्र से लड़नेवाला योद्धा ।
चक्कवाय । वासुदेव, तीन खण्ड पृथिवी का राजा । ज्झय चक्कवाल न [चक्रवाल] चक्राकार भ्रमण ।
[ध्वज] चक्र के निशानवाली ध्वजा ।। मण्डल, चक्राकार पदार्थ, गोल वस्तु । गोल °पहु पु[प्रभु] चक्रवर्ती राजा । पाणि पु. | जलाशय । गोल जल-समूह, जल-राशि । चक्रवर्ती राजा, सम्राट् । वासुदेव, अर्ध-चक्रवर्ती आवश्यक कार्य, नित्य-कर्म । समूह, राशि, राजा । °पुरा, °पुरी स्त्री [°पुरी] विदेह ढेर। पुं. पर्वत-विशेष । विक्खंभ पु वर्ष की एक नगरी । °प्पहु देखो °पहु । यर [विष्कम्भ] चक्राकार घेरा, गोल परिधि ।
[चर] भिक्षुक । °रयण न [°रत्न] | °सामायारी स्त्री [°सामाचारी] नित्य-कर्मचक्रवर्ती राजा का मुख्य आयुध । °वइ पु | विशेष । [°पति] सम्राट् । °वइ,°वट्टि पु [°वर्तिन्] | चक्कवाला स्त्री [चक्रवाला] गोल पंक्ति, छः खण्ड भूमि का अधिपति राजा, सम्राट् । चक्राकार श्रेणी। वट्टित्त न [°वर्तित्व] सम्राटपन, साम्राज्य। | चक्काअ देखो चक्कवाय । वत्ति देखो °वट्टि । °विजय पु. चक्रवर्ती | चक्काग न [चक्रक] चक्राकार वस्तु । राजा से जीतने-योग्य क्षेत्र-विशेष । °साला चक्कार पु [चक्रार] राक्षस वंश का एक
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३१२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चक्कावाय-चच्चा राजा, एक लंकापति । बद्धन. शकट । का नियम, नयनेन्द्रिय का संयम । °दय वि. चक्कावाय पुंन. देखो चक्कवाय ।
ज्ञानदाता । पडिलेहा स्त्री[प्रतिलेखा]आँख चक्काह पु [चक्राभ] सोलहवें जिन-देव का से देखना। परित्राण न [°परिज्ञान] रूपप्रथम शिष्य।
विषयक ज्ञान । °पह पुं [पथ] नेत्र-मार्ग, चक्काहिव पु [चक्राधिप] चक्रवर्ती राजा,
नयनगोचर । °फास पु [स्पर्श] दर्शन, सम्राट ।
अवलोकन । °भीय वि [°भीत] अवलोकन चक्काहिवइ पु [चक्राधिपति] ऊपर देखो।
मात्र से ही डरा हुआ । °म, °मंत वि [°मत्] चक्कि वि [चक्रिन्, चक्रिक] चक्रवाला,
लोचन युक्त, आँखवाला । पु. एक कुलकर चक्किय ) चक्र-विशिष्ट । पु. चक्रवर्ती राजा, पुरुष का नाम । °लोल वि.देखने का शौकीन, सम्राट् । तेली। कुम्भार । °साला स्त्री जिसकी नयनेन्द्रिय संयत न हो वह । लोलुय शाली] तेल बेचने की दूकान ।
वि [°लोलुप] वही पूर्वोक्त अर्थ । 'ल्लोयणचक्किय वि [चकित] भयभीत ।
लेस्स वि[°लोकनलेश्य] सुरूप । वित्तिहय चक्किय पु [चाक्रिक] चक्र से लड़नेवाला
वि[°वृत्तिहत] दृष्टि से अपरिचित । स्सव योद्धा । भिक्षुक की एक जाति ।
[°श्रवस] साँप । चक्किया क्रि [शक्नुयात्] कर सके, समर्थ हो
चक्खुड्डण न [दे] तमाशा । सके।
चक्खुय देखो चक्खुस । चक्की स्त्री [चक्रा] छन्द-विशेष ।
चक्खुरक्खणी स्त्री [दे] लज्जा । चक्कुलंडा स्त्री [दे] सर्प की एक जाति ।
|चक्खुस बि [चाक्षुष] आँख से देखने योग्य चक्केसर पुं [चक्रेश्वर] चक्रवर्ती राजा।
वस्तु, नयन-ग्राह्य । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का एक जैन ग्रन्थ
चक्वुहर वि [चक्षुहर] दर्शनीय । कार मुनि ।
चगोर देखो चुओर। चक्केसरी स्त्री [चक्रेश्वरी] भगवान् आदि- चच्च सक [ चर्च ] चन्दन आदि का विलेपन नाथ की शासनदेवी । एक विद्या-देवी।। करना। चक्कोडा स्त्री [दे] अग्नि-भेद, अग्नि-विशेष ।
| चच्च पुं [चर्च] हेमाचार्य के पिता का नाम । चक्ख (अप) सक [आ + चक्ष्] कहना ।
समालम्भन, चन्दन वगैरह का शरीर में
उपलेप । चक्ख सक [आ + स्वादय्] चखना । चक्खडिअ न [दे] जीवितव्य, जीवन ।
चच्चर न [चत्वर चौरास्ता, चौराहा, चौक । चक्खिंदिय न [चक्षुरिन्द्रिय] आँख ।
चच्चरिअ पु[दे. चश्चरीक] भौंरा । चक्ख पंन [चक्षष] नेत्र । पु. इस नाम का चच्चरिया स्त्री [चर्चरिका] नृत्य-विशेष । देखो एक कुलकर पुरुष । न. देखो नीचे °दसण । चच्चरी। ज्ञान, बोध । दर्शन, अवलोकन । चच्चरी स्त्री [चर्चरी] गीत-विशेष, एक प्रकार °कंत पु [कान्त] कुण्डलोद समुद्र का का गान । गानेवाली टोली । छन्द-विशेष । अधिष्ठाता देव । °कंता स्त्री [°कान्ता] एक | हाथ की ताली की आवाज । कुलकर पुरुष को पत्नी । °दसण न [°दर्शन] | चच्चसा स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । चक्षु से वस्तु का सामान्य ज्ञान । °दसण-चच्चा स्त्री [दे] शरीर पर सुगन्धि पदार्थ का वडिया स्त्री [°दर्शनप्रतिज्ञा] आँख से देखने । लगाना, विलेपन । तल-प्रहार, हाथ की
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चच्चार-चणयग्गाम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३१३ ताली ।
। चडाविय वि [आरोहित] चढ़ाया हुआ, ऊपर चच्चार सक [उपा + लभ्] उपालम्भ देना, | स्थापित । उलाहना देना।
चडाविय वि [दे] प्रेषित । चच्चिक्क वि [दे] मण्डित, विभूषित । पुन. चडिआर पुं. [दे] आडम्बर । विलेपन, चन्दनादि सुगन्धि वस्तु का शरीर | चडु पु [चटु] प्रिय वचन । व्रती का एक पर मसलना।
आसन । उदर । पुन. खुशामद । °आर वि चच्चुप्प सक [अपंय] अर्पण करना, देना। [°कार] खुशामद करनेवाला, खुशामदी । चच्छ सक [ तक्ष् ] छिलना, काटना । °आरअ वि [°कारक] खुशामदी । चज सक [ दृश् ] देखना, अवलोकन करना। | चडुकारि वि [चटुकारिन्] खुशामदी। चज्जा स्त्री [चर्या] आचरण, वर्तन । चलन,
चडुत्तरिया स्त्री [दे] उतरचढ़ । वाद-विवाद । गमन । परिभाषा, संकेत ।
चडुयारि देखो चडुकारि। चटुअ देखो चट्टुअ।
चडुल वि [चटुल] चंचल, चपल । कंपवाला, चट्ट सक [दे] चाटना।
हिलता हुआ। चट पंन दे] भख । पु. विद्यार्थी । °साला चडलग विदे. चटलक] खण्ड-खण्ड किया स्त्री [°शाला] चटशाला, चटसार, छोटे
हुआ। बालकों की पाठशाला।
चडुला स्त्री [दे] रत्न-तिलक, सोने की मेखला चटु ।' [दे] दारु-हस्त, काठ की में लटकता हुआ रत्न-निर्मित तिलक । चटुअ / कलछी, परोसने का पात्र-विशेष । | चडुलातिलय न [दे] ऊपर देखो। चटुल
चडुलिया स्त्री [दे] अन्त भाग में जला हुआ चड सक [आ + रुह ] चढ़ना, ऊपर बैठना ।
घास का पूला, पास की आँटी । चड पु[दे] शिखा।
चड्डु सक [मृद्] मर्दन करना, मसलना । चडक्क पुंन [दे] चटका । शस्त्र-विशेष ।
चड्ड सक [ पिष् ] पीसना । चडक्कारि वि [चटत्कारिन्] 'चटत्' शब्द
चड्ड सक [ भुज् ] भोजन करना । करनेवाला (पवन आदि)।
चड्डु न [दे] तैल-पात्र, जिसमें दीपक किया चडग देखो चडय।
जाता है। चडगर पु[दे] समूह, जत्था । आडम्बर।।
चड्डण न [भोजन] भोजन । खाने की वस्तु । चडचड पुं. 'चड-चड' आवाज।
चड्डावल्ली स्त्री. इस नाम की एक नगरी । चडचडचड अक [चडचडाय] 'चड-चड'
चढ देखो चड = आ + रुह । आवाज करना।
चढ देखो चड। चडड पु [चटट] बिजली के गिरने की
चण । पुं [चणक] चना । आवाज।
चणअ चडपड अक [दे] चटपटाना, छटपटाना, क्लेश चणइया स्त्री [चणकिका] मसूर । पाना।
चणग देखो चणअ । °गाम पुं [°ग्राम] गौड़ चडय पुंस्त्री [चटक] गौरैया पक्षी ।
देश का एक ग्राम । °पुर न. नगर-विशेष, चडवेला स्त्री. देखो चवेडा।
राजगृह-नगर का असली नाम । चडावण न [आरोहण] चढ़ना ।
चणयग्गाम देखो चणग-गाम ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चणोट्ठिया-चम्मट्ठिअ चणोटिया स्त्री [दे]गुञ्जा । देखो कोणेटिया। चमर पुं. पशु-विशेष, जिसके बालों का चामर चत्त पुंन [दे] तकली।
या चॅवर बनता है। पुं. पाँचवें जिनदेव का चत्त वि [ त्यक्त ] छोड़ा हुआ। सत की प्रथम शिष्य । दक्षिण दिशा के असुरकुमारों आँटी।
का इन्द्र । °चंच पुं [°चञ्च] चमरेन्द्र का चत्तर देखो चच्चर।
आवास-पर्वत । °चंचा स्त्री [°चञ्चा ] चमचत्ता देखो चत्तालीसा।
रेन्द्र की राजधानी, स्वर्गपुरी-विशेष । °पुर न. चत्ता स्त्री [चर्चा] शरीर पर सुगन्धी वस्तु
विद्याधरों का नगर-विशेष । का विलेपन । विचार, चर्चा ।
चमर पुन [चामर] चंवर, बालव्यजन । चत्ताल वि [चत्वारिंश] चालीसा ।
°धारी, हारी स्त्री [°घारिणी] चामर चत्तालीस न चत्वारिंशत] चालीस । वि. बीजने या डोलानेवाली स्त्री। चालीस वर्ष की उम्रवाली ।
चमरी स्त्री. चमर-पशु की मादा, सुरही गाय । चत्तालीसा स्त्री [चत्वारिंशत् चालीस।।
| चमस पुंन. चमचा, कलछी, दर्वी । चत्थरि पुंस्त्री [दे. चस्तरि] हास्य । चमुक्कार पुं [चमत्कार] आश्चर्य, विस्मय । चपेटा स्त्री [दे. चपेटा] तमाचा ।
बिजली का प्रकाश। चप्प सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना, चमू स्त्री. सैन्य । सेना-विशेष, जिसमें ७२९ दबाना।
हाथी, ७२९ रथ, २१८७ घोड़े और ३६४५ चप्प सक [ चर्च ] अध्ययन करना । कहना। पैदल हों ऐसा लश्कर । भर्त्सना करना । चन्दन आदि से विलेपन चम्म न [चर्मन् ] छाल, त्वक, चमड़ा। करना।
°किड वि [°किट] चमड़े से सीआ हुआ । चप्पडग नदे] काष्ठ-यन्त्र-विशेष ।
°कोस, °कोसय पुं [°कोश, °क] चमड़े का चप्परण न [दे] तिरस्कार, निरास ।
बना हुआ थैला । एक तरह का चमड़े का चप्पलअ वि [दे] असत्य । बहुत झूठ बोलने ।
जूता । कोसिया स्त्री [°कोशिका] चमड़े की वाला ।
बनी हुई थैली। खंडिय वि [°खण्डिक] चप्पुडिया) स्त्री [चप्पुटिका] चपटी, चुटकी, चमड़े का परिधानवाला । सब उपकरण चमड़े चप्पुडी । अंगुष्ठ के साथ अंगुली की ताली ।
का ही रखनेवाला । °ग वि [क] चमड़े का चप्फल न [दे] शेखर-विशेष, एक तरह का । बना हुआ चर्ममय । °पक्खि पुं[°पक्षिन् ] शिरोभूषण । वि. असत्य, मिथ्याभाषी। चमड़े की पाँखवाला पक्षी। °पट्ट पु. चमड़े चमक्क पुं [चमत्कार] विस्मय, आश्चर्य ।। का पट्टा, वधं । °पाय न [°पात्र] चमड़े का चमक्क । सक [चमत् + कृ] विस्मित । पात्र। °यर पु[°कर] मोची। °रयण न चमक्कर | करना, आश्चर्यान्वित करना। [रत्न] चक्रवर्ती का रत्न-विशेष, जिससे चमक्कार पुं [चमत्कार] आश्चर्य, विस्मय। सुबह में बोये हुए शालि वगैरह उसी दिन पक चमड । सक [भुज्] भोजन करना, खाना । कर खाने-योग्य हो जाते हैं। रुक्ख पुं चमढ
। [वृक्ष] वृक्ष-विशेष । चमढ सक [दे] मर्दन करना, मसलना । प्रहार चम्मट्ठि स्त्री [चर्मयष्टि] चर्मदण्ड, चमड़ा करना। पीड़ना। निन्दा करना । आक्रमण लगी हुई छड़ी। करना। उद्विग्न करना।
चम्मट्टिअ अक [ चर्मयष्टीय ] चर्म-यष्टि की
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चम्मट्ठिल-चरिया संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
३१५ तरह आचरण करना।
का मूल और उत्तर गुण । °करणाणुओग पुं चम्मटिल पु [चर्मास्थिल] पक्षि-विशेष ।
[करणानुयोग] संयम के मूल और उत्तर चम्मार पु [चर्मकार] चमार ।
गुणों की व्याख्या । कुसील पुं [ कुशील चम्मिय वि [चर्मित] चर्म में बँधा हुआ ।
शिथिलाचारी साधु । °णय [°नय] क्रिया चम्मेढ़ पु [चर्मेष्ट] चमड़े से वेष्टित पाषाण
को मुख्य माननेवाला मत । मोह पुम. वाला आयुध ।
चारित्र का आवारक कर्म-विशेष । चम्मेढग पुस्त्री [चर्मेष्टक] शस्त्र-विशेष ।
चरम वि. अन्तिम, अन्त का, पर्यन्तवर्ती । चय सक [ त्यज् ] त्याग करना ।
जिसका विद्यमान भव अन्तिम हो वह । चय सक [ शक् ] सकना, समर्थ होना।
°काल पु. मरणसमय । °जलहि पु चय अक [च्यु] मरना, एक जन्म से दूसरे
[°जलधि] अन्तिम समुद्र, स्वयंभूरमण जन्म में जाना।
समुद्र। चय पु [चय] देह । समूह । इकट्ठा होना ।
चरमंत पुं [चरमान्त] सब से अन्तिम, सब वृद्धि । ईटों की रचना-विशेष ।
से प्रान्त-वर्ती। चय पु [च्यव] जन्मान्तर-गमन ।
चरय देखो चरग। चयण न[चयन]इकट्ठाकरना। ग्रहण, उपादान । | चरि पुंस्त्री. पशुओं के चरने की जगह । चयण न [त्यजन] परित्याग ।
चारा। चयण न [च्यवन] मरण, जन्मान्तर-गमन । | चरिगा देखो चरिया = चरिका । पतन, गिर जाना । °कप्प पु [°कल्प] | चरित्त न [चरित्र] चरित, आचरण । चारित्र वगैरह से गिरने का प्रकार । शिथिल | व्यवहार । स्वभाव, प्रकृति । साधुओं का विहार ।
चरित्त न [चरित्र] जीवन-कथा, कहानी। चयण न [च्यवन] च्युति, भ्रंश, क्षय । चरित्त न [चारित्र] संयम, विरति, व्रत, चर सक [ चर् ] चलना, जाना । भक्षण | नियम । कप्प पुं [°कल्प] संयमानुष्ठान का करना । सेवना । जानना ।
प्रतिपादक ग्रन्थ । °मोह पुन. संयम का चर पु. गमन, गति । वर्तन । जङ्गम प्राणी । आवारक कर्म । 'मोहणिज्ज न [°मोहनीय] °चर वि. चलनेवाला।
वही पूर्वोक्त अर्थ । चरित्त न [°ाचारित्र] चरंती स्त्री. जिस दिशा में भगवान् जिनदेव | आंशिक संयम, श्रावक-धर्म । यार पुं वगैरह ज्ञानी पुरुष विचरते हों वह । . rचार] संयम का अनुष्ठान । रिय पुं चरग पु [चरक] देखो चर = चर । यूथबन्ध | [°ार्य] चारित्र से आर्य, विशुद्ध चारित्रवाला, घूमने वाले त्रिदण्डियों की एक जाति । दंश- साधु, मुनि । मशकादि जन्तु ।
चरिम देखो चरम। चरचरा स्त्री. 'चर-चर' आवाज ।
चरिय पु [चरक] जासूस, दूत । चरड पु [चरट] लुटेरे की एक जाति । | चरिय न [चरित] चेष्टित, आचरण । जीवनचरण पुन. संयम, चारित्र । आचरण । न. व्रत, चरित । चरित्र-ग्रन्थ । सेवित, आश्रित । नियम । चरना, पशुओं का तृणादि-भक्षण । चरिया स्त्री [चरिका] परिवाजिका, संन्यापद्य का चौथा हिस्सा । गमन, विहार । सिनी । किला और नगर के बीच का मार्ग । सेवन, आदर । पाद, पाँव । करण न. संयम | चरिया स्त्री [चर्या] आचरण, अनुष्ठान ।
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चविडा
चवेला
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चरीया-चाई गमन, गति, विहार । गाड़ी।
चव सक [कथय] कहना, बोलना। चरीया देखो चरिया = चर्या ।
चव अक [च्यु] मरना, जन्मान्तर में जाना । चरु पुं. स्थाली-विशेष । पात्र-विशेष । गिर जाना, पतन होना। चरुगिणय देखो चारुइणय ।
चव पु [च्यव] मौत । चरुल्लेव न [दे] नाम, आख्या।
चवचव पु. 'चव-चव' आवाज । चल सक [चल्] चलना, गमन करना । अक. चवल वि [चपल] चंचल, अस्थिर । आकुल, कांपना, हिलना।
व्याकुल । पुं. रावण का एक सुभट । चल वि. चंचल । पु. रावण का एक सुभट । चवल पु[दे] अन्न-विशेष, बोड़ा। चलचल वि. अस्थिर। पुं. घी में तली जाती | चवलय पुंदे] धान्य-विशेष । हुई चीज का पहला तीन घान ।
चवला स्त्री [चपला] बिजली । चलण पु [चरण] पाँव, पाद । °मालिया | चविआ स्त्री [चविका] वनस्पति-विशेष । स्त्री [°मालिका] पैर का आभूषण-विशेष । °वंदण न [°वन्दन] पैर पर सिर झुका कर | चविला स्त्री [चपेटा] तमाचा, थप्पड़ । प्रणाम। चलण न [चलन] चलना, गति, चाल, प्रथा, | चवेडी स्त्री [दे] श्लिष्ट कर-संपुट । संपुट, रिवाज ।
समुद्र, डिब्बा । चलणाउह पु [चरणायुध] कुक्कुट । चवेण न [दे] वचनीय, लोकापवाद । चलणाओह पु [दे. चरणायुध] ऊपर देखो। चवेला देखो चविडा। चलणिया । स्त्री [चलनिका, नो] जैन | चव्व सक [चर्व ] चबाना। चलणी साध्वियों को पहनने का कटि-चव्व (शौ) देखो चच्च = चर्च । वस्त्र।
चव्वक्किअ वि [दे] धवलित, चूने से पोता चलणी स्त्री [चलनी] साध्वियों का एक | हुआ। उपकरण । पैर तक का कोच ।
चव्वाइ देखो चव्वागि। चलवलण न [दे] चटपटाई, चंचलता। चव्वाक | पुं [चार्वाक] नास्तिक, बृहचलाचल वि. चंचल, अस्थिर ।
चव्वाग ) स्पति का शिष्य, लोकायतिक । चलिंदिय वि [चलेन्द्रिय] इन्द्रिय-निग्रह करने | चव्वागि वि [चार्वाकिन्] चबानेवाला । में असमर्थ, जिसकी इन्द्रियाँ काबू में न हों। दुव्यवहारी।। बह।
चस सक [चष्] चखना। चलिअ न [चलित] विकलता, अस्थैर्य, | चसग । पु[चषक] दारू पीने का प्याला। चंचलता । वि. चला हुआ, कम्पित । प्रवृत्त ।
| चसय ) प्याला । पक्षि-विशेष । विनष्ट ।
चहुतिया स्त्री [दे] चुटकी, चुटकीभर । चल्ल देखो चल = चल ।
चहुट्ट अक [दे] चिपकना, चिपटना, लगना । चल्लणग न [दे] कटि-वस्त्र ।
चट्ट वि [दे] निमग्न, लीन । चिपका हुआ । चल्लि स्त्री [दे] नाचते समय की एक प्रकार | चहाड पु [दे] एक मनुष्य-जाति । की गति ।
चाइ वि [त्यागिन्] त्याग करनेवाला । दानी, चल्लि स्त्री [दे] मदन-वेदना ।
| उदार । निःसंग, निरीह, संयमी ।
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चाइय-चाडु संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३१७ चाइय वि [त्याजित] छोड़वाया हुआ। । चाउम्मासी स्त्री [चातुर्मासी] देखो चाउम्माचाइय वि [शकित] जो समर्थ हुआ हो। | सिअ। चाउअंगी स्त्री [चार्वङ्गी] सुन्दर अंगवाली | चाउरंग देखो चउरंग। स्त्री।
चाउरंगिज्ज वि [चतुरङ्गीय] चार अंगों से चाउंड पु [चामुण्ड] राक्षस-वंश का एक सम्बन्ध रखनेवाला । न. 'उत्तराध्ययन' सूत्र राजा, एक लङ्का-पति ।
का एक अध्ययन । चाउकाल न [चतुष्काल] चार समय । चाउरंत देखो चउरंत। चाउकोण वि [चतुष्कोण] चार कोनावाला, चाउरंत पुं [चातुरन्त] चक्रवर्ती राजा, चतुरस्र ।
सम्राट् । न. लग्न-मण्डप, चौरी । चाउग्घंट ) वि [चतुर्घण्ट] चार घंटा | चाउरंत न [चातुरन्त] भारतवर्ष । चाउघंट , वाला, चार घण्टाओं से युक्त । चाउरंत न [चतुरन्त] चक्र, पहिया । चाउजाम न [चातुर्याम] चार महाव्रत, चाउरक्क वि [चातुरक्य] चार बार परिणत । साधु-धर्म-अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरि- गोखीर न [°गोक्षीर] चार बार परिणत ग्रह ये चार साधु-व्रत ।
किया हुआ गो-दुग्ध, जैसे कतिपय गौओं का चाउज्जाय न [चातुर्जात] दालचीनी, तमा- | दूध दूसरी गौओं को पिलाया जाय, फिर लपत्र, इलायची और नागकेसर।।
उनका अन्य गौओं को, इस तरह चार बार चाउत्थिग । पुं [चातुर्थिक] रोग-विशेष, | परिणत किया हुआ गो-दुग्ध । चाउत्थिय । चौथे-चौथे दिन पर होनेवाला चाउल वि [दे] चावल का । पुं. तण्डुल । ज्वर ।
चाउल्लग न [दे] पुरुष का पुतला-कृत्रिम चाउद्दसिया स्त्री [चतुर्दशिका] चौदस ।
पुरुष । चाउद्दसी स्त्री [चतुर्दशी] ऊपर देखो।
| चाउवण्ण । वि [चातुर्वर्ण्य] चार वर्णवाला, चाउद्दाह (अप) त्रि. ब. [चतुर्दशन्] चौदह ।
चाउव्वण्ण ) चार प्रकार वाला। पुं. साधु, चाउद्दिसिं देखो चउ-दिसि ।
साध्वी, श्रावक और श्राविका का समुदाय । चाउप्पाय न [चतुष्पाद] चतुर्विध ।
न. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार चाउमास , पुंन [चातुर्मास] चौमासा ।
मनुष्य-जाति । चाउम्मास ' आषाढ़, कार्तिक और
चाउग्विज्ज । न [चातुर्वद्य] चार प्रकार फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्दशी। चाउव्वेज ) को विद्या-न्याय, व्याचाउम्मासिअ वि [चातुर्मासिक] चार मास करण, साहित्य और धर्म-शास्त्र । पुं. चौबे, सम्बन्धी, जैसे आषाढ़ से लेकर कार्तिक तक | ब्राह्मणों का एक अल्ल-उपगोत्र या वर्ग। के चार महीने से सम्बन्ध रखनेवाला । न. चाउस्साला स्त्री [चतुश्शाला] चारों तरफ आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल के कमरों से युक्त घर । चतुर्दशी तिथि, पर्व-विशेष ।
चाँउंडा स्त्री [चामुण्डा] स्वनाम-ख्यात देवी । चाउम्मासी स्त्री [चातुर्मासी] चार मास, काउअ पुं [ कामुक] महादेव । चौमासा, आषाढ़ से कार्तिक, कार्तिक से | चाग देखो चाय = त्याग । फाल्गुन और फाल्गुन से आषाढ़ तक के चार | चाड वि [दे] मायावी, कपटी । महीने ।
। चाडु पुन [चाटु] प्रियवाक्य । खुशामद ।
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३१८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चाणक्क-चालण प्यार वि [°कार] खुशामदी।
चारण [दे] अन्थि-च्छेदक, पाकेटमार । चाणक्क पुं [चाणक्य] राजा चन्द्रगुप्त का | चारण पुं. आकाश में गमन करने की शक्ति
स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री । एक मनुष्य-जाति । रखनेवाले जैन मुनियों की एक जाति । स्तुति चाणक्की स्त्री [चाणक्यी] लिपि-विशेष । करनेवाली भाट जाति । एक जैन मुनि-गण । चाणिक्क देखो चाणक्क।
चारणिआ स्त्री [चारणिका) गणित-विशेष । चाणूर पुं. मल्ल-विशेष ।
चारभड पुं [चारभट] शूर पुरुष, लड़वैया । चामर पुन. बाल-व्यजन । छन्द-विशेष । गाहि | चारभड पु [चारभट] लुटेरा। वि [ग्राहिन चामर बीजनेवाला नौकर ।। चारय देखो चारग। °छायण न [°च्छायन] स्वाति नक्षत्र का | चारवाय पुं [दे] ग्रीष्म ऋतु का पवन । गोत्र। ज्झय पुं [ध्वज] चामर-युक्त | चारहड देखो चारभड । पताका । °धार वि ['धार] चामर बीजने- चारहडी स्त्री [चारभटी] शौर्यवृत्ति, सैनिकवाला ।
वृत्ति । चामरच्छ न [चामरथ्य] गोत्र-विशेष । | चारागार न. कैदखाना । चामीअर न [चामीकर] सुवर्ण ।
चारि स्त्री. चारा। चामुंडराय पुं [चामुण्डराज] गुजरात का |
चारि वि [ चारिन् ] प्रवृत्ति करनेवाला ।
चलनेवाला, गमन-शील । चालुक्य वंश का एक राजा । चामुंडा देखो चाँउंडा।
चारिअ वि [चारित] जिसको खिलाया गया
हो वह । विज्ञापित, जताया हुआ । चाय देखो चय - शक । चाय देखो चाव।
चारिअ पुं [चारिक] चर-पुरुष । पंचायत का चाय पुं [त्याग] छोड़ना, परित्याग । दान । । मुखिया पुरुष, समुदाय का अगुआ। चायग । चातक चातकपक्षी ।
| चारित्त देखो चरित्त = चारित्र । चायव ।
चारित्ति देखो चरित्ति । चार सक [चारय] चराना, खिलाना। चारिया स्त्री [चर्या] आचरण, इधर-उधर चार पुं. गति, गमन, भ्रमण, परिभ्रमण । | ___ गमन, जीविका । चेष्टा । जासूस । कारागार । संचार, संचरण । अनु- | चारी स्त्री. देखो चारि = चारि । ठान, आचरण । ज्योतिष-क्षेत्र, आकाश। चारु वि. सुन्दर, प्रवर । पुं. तीसरे जिनदेव का चार पु [दे] पियाल वृक्ष, चिरौंजी का पेड़ ।। प्रथम शिष्य । न. शस्त्र-विशेष । बन्धन स्थान । इच्छा, अभिलाष । न. फल चारुइणय [चारुकिनक] देश-विशेष । वि. विशेष, मेवा-विशेष । °वकय पुं [क्रय] | उस देश का निवासी। बेचनेवाले की इच्छानुसार दाम देकर चारुणय पु [चारुनक] ऊपर देखो । खरीदना।
चारुवच्छि पु. ब. [चारुवत्सि] देश-विशेष । चारग दे [चारक] देखो चार । ["पाल] पुं. | चारुसेणी स्त्री [चारुसेनी] छन्द-विशेष । [पाल] जेलखाना का अध्यक्ष । °पालग | चाल सक [चालय् | चलाना, हिलाना, पाना। पुं [°पालक] जेलर । भंड न [ भाण्ड] | विनाश करना। कैदी को शिक्षा करने का उपकरण । 'पहिव | चालण न [चालन] चलाना, हिलाना । पुं [धिप] कैदखाना का अध्यक्ष ।
विचार । शंका, प्रश्न, पूर्वपक्ष ।
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चालणा - चिचिणी
चालणा स्त्री [ चालना ] शंका, पूर्वपक्ष, आक्षेप | चालणिया ) स्त्री [ चालनिका] । चालणी स्त्री [ चालनी] आखा, छानने का पात्र चलनी या छलनी । चालवास ' [ दे] सिर का भूषण - विशेष । चालिर वि [चालयितृ ] चलानेवाला । चलनेवाला |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चाली स्त्री [चत्वारिंशत् ] चालीस । चालीस स्त्रीन [ चत्वारिंशत् ] चालोस । चालुक्क पुंस्त्री [चौलुक्य ] चालुक्य वंश में उत्पन्न । पुं. गुजरात का प्रसिद्ध राजा कुमार
चास पुं [दे] हल - विदारित भूमि- रेखा, खेती । चाह सक [वाञ्छ् ] चाहना । अपेक्षा करना ।
३१९
चिअ अ [ इव] उपमा और उत्प्रेक्षा का सूचक
अव्यय ।
चिअ वि [चित ] इकट्ठा किया हुआ । व्याप्त । पुष्ट, मांसल ।
चिअ न [ चित] ईंट आदि का ढेर । चिअ देखो चित्त = चित्त । चिआ स्त्री [ त्विष् ] कान्ति, तेज । चिआ देखो चियगा ।
पाल ।
चाव सक [ चर्व ] चबाना | चाव ' [ चाप] धनुष । चावल न [ चापल] चंचलता । चावल्ल न [ चापल्य] ऊपर देखो । चावाली स्त्री. ग्राम- विशेष | चावि वि [च्यावित ] मरवाया हुआ । चावेडी स्त्री [चापेटी] विद्या-विशेष, जिससे दूसरे को तमाचा मारने पर बीमार आदमी का रोग चला जाता है ।
चिंच
चावोणय न [चापोन्नत] विमान विशेष, चिचअ एक देव विमान ।
चास पुं [ चाष] स्वर्ण चातक, पपीहा, लह- चिचणिआ टोरवा |
चिचणिगा
याचना ।
चाहिणी स्त्री [ चाहिनी] हेमाचार्य की माता
का नाम ।
चिइ स्त्री [चिति] उपचय, पुष्टि, वृद्धि | इकट्टा करना । बुद्धि । भीत वगैरह बनाना । चिता । कम्मन [ 'कर्मन् ] वन्दन, प्रणाम - विशेष |
चिइ देखो चेइअ |
चिइगा देखो चिया ।
चिइच्छ सक [ चिकित्स् ] दवा करना, इलाज करना । संशय करना । चिइच्छवि [चिकित्सक ] दवा करनेवाला, इलाज करनेवाला । पुं. वैद्य । चिइयचित का भू. कृ. ।
चिउर पुं [चिकुर ] केश । पीत रंग का गन्धद्रव्य-विशेष |
[मण्ड ] विभूषित करना ।
चिंचणी
चिंचणी स्त्री [] अन्न पीसने की चक्की | चिंचा स्त्री [चञ्चा] तृण की बनाई हुई चटाई वगैरह । पुरिसपुं [पुरुष] तृण का मनुष्य, जो पशु, पक्षी आदि को डराने के लिए खेतों में गाड़ा जाता है ।
चाहुआण पु[चाहुयान] चौहान वंश । पुंस्त्री. चौहान वंश में उत्पन्न ।
चिचा स्त्री [दे. चिञ्चा]] इमली का पेड़ । चिचिणिआ
चि देखो चिण ।
चिअ अ [ एव] निश्चय को बतलानेवाला चिंचिणिचिचा - स्त्री [दे] इमली का पेड़ ।
अव्यय ।
चिचिणी
}
चिचइअ वि [] चलित, चला हुआ ।
स्त्री [दे] देखो चिचिणी ।
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३२०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चिंचिल्ल-चिट्टिय चिंचिल्ल सक [ मण्डय ] अलंकृत करना। | चिक्का स्त्री [दे] थोड़ी चीज । सूक्ष्म छींटा । चिंत सक [ चिन्तय ] चिन्ता करना, विचार | चिक्कार पुं [चीत्कार] चिल्लाहट, चिंघाड़। करना । याद करना। ध्यान करना। अफ- | चिक्किण देखो चिक्कण । सोस करना।
चिक्खअण वि [दे] सहिष्णु । चिंत विचिन्त्य] चिन्तनीय, विचारणीय । । चिक्खल्ल पुं [दे] कीच ।। चिंतग वि [चिन्तक] चिन्ता करनेवाला, | चिक्खल्लय न [चिक्खल्लक] काठियावाड़ विचारक।
का एक नगर । चिंतण न [चिन्तन] विचार, पर्यालोचन । चिक्खिल्ल । स्मरण, स्मृति ।
चिखल्ल [दे] देखो चिक्खल्ल । चिंतणिया स्त्री [चिन्तनिका] याद करना, | चिखिल्ल , चिन्तन करना।
चिगिचिगाय अक [ चिकचिकाय ] चकचिंतय वि [चिन्तक] चिन्ता करनेवाला। चकाट करना, चमकना । चितव देखो चिंत = चितम् ।
चिगिच्छग देखो चिइच्छअ । चिंता स्त्री. विचार, पर्यालोचन । अफसोस, | चिगिच्छण न [चिकित्सन]चिकित्सा, इलाज। शोक। ध्यान । स्मृति । इष्ट-प्राप्ति का सन्देह । । चिगिच्छय देखो चिइच्छअ । °उर वि[°तुर] शोक से व्याकुल । °दिट्ठ वि चिगिच्छा स्त्री [चिकित्सा] दवा, प्रतीकार, [दृष्ट] विचार-पूर्वक देखा हुआ। °मइअ वि | इलाज । "संहिया स्त्री [°संहिता] वैद्यक[°मय] चिन्ता-युक्त । मणि पुं. मनोवाञ्छित | शास्त्र । अर्थ को देनेवाला रत्न-विशेष, दिव्यमणि । चिच्च वि [दे] चिपटी नासिकावाला। न. वीतशोक नगरी का एक राजा । °वर वि | सम्भोग । [°पर] चिन्ता-मग्न ।
चिच्च वि [त्याज्य] छोड़ने-योग्य । चितायग । वि [चिन्तक] चिन्ता करने- चिच्चर वि [दे] चिपटी नासिकावाला। चितावग ) वाला।
| चिच्चा देखो चय = त्यज । चिंध न [चिह्न] लाञ्छन, निशानी । ध्वजा। चिच्चि पुं.चीत्कार, चिल्लाहट,भयंकर आवाज। °पट्ट पुं. निशानी रूप वस्त्र खण्ड । °पुरिस | चिच्चि पुं [दे] अग्नि । पुं [पुरुष] दाढ़ी-मूंछ वगैरह पुरुष की चिट्ठ अ [दे] अत्यन्त । निशानी वाला नपुंसक, हिंजड़ा । पुरुष का वेष | चिट्ठ अक [स्था] बैठना, स्थिति करना । धारण करनेवाली स्त्री वगैरह। चिट्ठ देखो चेछ । चिधाल वि [चिह्नवत्] चिह्न-युक्त । चिट्ठइत्तु वि[स्थातृबैठनेवाला, ठहरनेवाला । चिंधाल वि [दे] सुन्दर । मुख्य, प्रवर । चिट्ठण न [स्थान] खड़ा रहना । चिफुल्लणी स्त्री [दे] लहँगा।
चिट्ठण न [चेष्टन] चेष्टा, प्रयत्न । चिकिच्छ देखो चिइच्छ।
चिट्ठणा स्त्री[स्थान]स्थिति,बैठना,अवस्थान । चिकुर देखो चिउर।
चिट्ठा देखो चेटा। चिक्क वि [दे] अल्प । न. छोंक। | चिट्रिय वि [चेष्टित] जिसने चेष्टा की हो चिक्कण वि [चिक्कण] चिकना, स्निग्ध । वह । न. चेष्टा, प्रयत्न । निबिड । दुर्भेद्य, दुःख से छूटने-योग्य । चिट्ठिय वि [स्थित] अवस्थित, रहा हुआ।
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चिडिग-चित्ता संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३२१ न. अवस्थान, स्थिति ।
एक लोकपाल, देव-विशेष । क्षुद्र जन्तु-विशेष, चिडिग पुं [चिटिक पक्षि-विशेष ।
चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष । °फल, °फलग, चिण सक [चि] इकट्ठा करना।
°फलय न [°फलक] तसवीरवाला तख्ता । चिण देखो चण।
°भित्ति स्त्री. चित्रवाली भीत । स्त्री की चिण देखो चित्त।
तसवीर । यर देखो °गर । °रस पुं. भोजन चिणोट्ठी स्त्री [दे] गुञ्जा।
देनेवाली कल्पवृक्षों की एक जाति । °लेहा चिण्ण वि [चीर्ण] आचरित, अनुष्ठित । अंगी- स्त्री [°लेखा] छन्द-विशेष । °संभूइय न कृत, आदृत । विहित ।
[°संभूतीय] 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक चिण्ह न [चिह्न] निशानी।
अध्ययन । °सभा स्त्री. तसवीरवाला गृह । चित्त सक [चित्रय] चित्र बनाना, तसवीर |
°साला स्त्री [°शाला] चित्र-गृह ।। खींचना।
चित्तंग पुं [चित्राङ्ग] पुष्प देनेवाले कल्पवृक्षों चित्त न. मन, अन्तःकरण, हृदय । ज्ञान, |
की एक जाति । चेतना । बुद्धि । अभिप्राय, आशय । उपयोग,
| चित्तग देखो चित्त = चित्र । ख्याल । °ण्णु वि [°ज्ञ] दिल का जानकार । चित्तजाणुअ देखो चित्त-ण्णु। °निवाइ वि [ निपातिन् ] अभिप्राय के | | चित्तठिअ वि [दे] परितोषित, खुश किया अनुसार बरतनेवाला । °मंत वि [°वत्] हुआ। सजीव वस्तु ।
| चित्तण न [चित्रण] चित्र-कर्म । चित्त देखो चइत्त = चैत्र ।
चित्तदाउ पुं [दे] मधपुड़ा। चित्त न [चित्र] आलेख्य, तसवीर । आश्चर्य । | चित्तपत्तय पुं [चित्रपत्रक] चतुरिन्द्रिय जीव काष्ठ-विशेष । वि. विलक्षण, विचित्र । नाना- की एक जाति । विध । अद्भत । चितकबरा। पं. एक लोक- | चित्तपरिच्छेय वि [दे] लघु, छोटा। पाल । पर्वत-विशेष । चित्रक, चीता, श्वापद | चित्तय देखो चित्त = चित्र । विशेष । चित्रा नक्षत्र । उत्त पुं [°गुप्त] चित्तयलया स्त्री [चित्रकलता] वल्लीभरत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव । कणगा | विशेष । स्त्री [ कनका] एक विद्युत्कुमारी देवी। चित्तल वि [दे] विभूषित । रमणीय ।
कम्म न [कर्मन् ] आलेख्य, छवि । चित्तल वि [चित्रल] कबरा । पुं. जंगली °कर देखो °गर । °कह वि [°कथ] नाना पशु-विशेष । प्रकार की कथाएँ कहनेवाला । कूड [°कूट] | चित्तलि पुंस्त्री [चित्रलिन्] साँप की एक सीतानदी के उत्तर किनारे पर स्थित एक जाति । वक्षस्कार-पर्वत । पर्वत-विशेष । न. नगर- चित्तलिअ वि [चित्रलित, चित्रित] चित्रविशेष ।शिखर-विशेष । °क्खरा स्त्री[°ाक्षरा] युक्त किया हुआ। छन्द-विशेष । गर पुं[°कर] चित्रकार । गुत्ता | चित्तविअअ वि [दे] परितोषित । स्त्री गुप्ता] देवी-विशेष, सोमनामक लोकपाल | चित्तवीणा स्त्री [चित्रवीणा] वाद्य-विशेष । की एक अग्र-महिषी । दक्षिण रुचक पर्वत पर चित्ता स्त्री [चित्रा] नक्षत्र-विशेष । एक बसनेवाली एक दिक्कुमारी, देवी-विशेष । विद्युत्कुमारी देवी। शक्रेन्द्र के एक लोक°पक्ख पुं [°पक्ष] वेणु-देव नामक इन्द्र का । पाल की स्त्री, देवी-विशेष । औषधि-विशेष ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चित्ताचिल्लडय-चिलाअ चित्ताचिल्लडय , पुं [दे] जंगली पशु- चिरं अ [चिरम्] दीर्घ काल तक । तण वि चित्ताचेल्लरय विशेष ।
°तना पुराना। चित्तावडी स्त्री [चित्रपटी] वस्त्र-विशेष, छींट चिर न. दीर्घ काल । विलम्ब । वि. दीर्घ काल (बूटीदार) आदि कपड़ा।
तक रहनेवाला । °आरअ वि [कारक] चित्तिया स्त्री [चित्रिका] स्त्री-चीता, श्वापद- विलम्ब करनेवाला । °जीवि वि [जोविन्] विशेष की मादा।
दीर्घ काल तक जीनेवाला। जीविअ वि चित्ती देखो चेत्ती।
[जीवित] वृद्ध । °दिइ °ट्टिइय, ‘ट्टिईय चित्ती स्त्री [चैत्री] चैत्र मास की पूर्णिमा।। वि [स्थितिक] लम्बा आयुष्यवाला, दीर्घ चिद्दविअ । वि [दे] निर्णाशित, विना. काल तक रहनेवाला । 'राअ पुं [रात्र चिद्दाविअ । शित।
बहु काल, दीर्घ काल । चिप्प सक [दे] कूटना । दबाना। चिर अक [चिरय] विलम्ब करना। आलस चिप्पग पुंन [दे] कूटी हुई छाल ।
करना। चिप्पड देखो चिविड।
चिरच्चिय वि [चिरचित] चिरकाल से उपचिप्पय देखो चिप्पग।
चित-इकट्ठा किया हुआ या बढ़ा हुआ। चिप्पिअ पुं [दे] नपुंसक-विशेष, जन्म के चिरडी स्त्री [दे] वर्ण-माला । समय में अंगूठे से मर्दन कर जिसका अंडकोश चिरड्डिहिल्ल [दे] देखो चिरिडिहिल्ल । दबा दिया गया हो वह ।
चिरमाल सक [प्रति + पालय] परिपालन चिप्पिडय पुं[दे] अन्न-विशेष ।
करना। चिबुअ न [चिबुक] होठ के नीचे का अव- चिरया स्त्री [दे] कुटी-झोपड़ी। यव, ठोढ़ी।
चिरस्स अ [चिरस्य] बहुत काल तक । चिब्भड न [चिभिट] खीरा, ककड़ी का फल। चिराअ देखो चिर = चिरम् । चिब्भडिया स्त्री [चिभिटिका] ककड़ी का
चिराइय वि (चिरादिक] पुराना। गाछ । मत्स्य की एक जाति ।
चिराईय वि [चिरातीत] प्राचीन । चिब्भिड देखो चिब्भड ।
चिराणय (अप) वि [चिरन्तन] पुरातन । चिमिट्ट । वि [चिपिट] चिपटा, बैठा
चिरादण वि [चिरन्तन] ऊपर देखो। चिमिढ ) हुआ, दबा हुआ (नाक)।
चिराव अक [चिरय] विलम्ब करना । आलस चिमिण वि [दे] रोमाञ्चित, गद्गद ।।
करना । सक. विलम्ब कराना, रोक रखना। चिय देखो चेइअ = चैत्य ।।
चिरिचिरा स्त्री [दे] जलधारा, वृष्टि । चियका । स्त्री [चिता] मुर्दे को फूंकने के चिरिक्का स्त्री [दे] मशक । अल्प वृष्टि । प्रातः चियगा । लिए चुनी हुई लकड़ियों का ढेर । काल । चियत्त देखो चत्त।
! चिरिचिरा [दे] देखो चिरिचिरा। चियत्त वि [दे] सम्मत । प्रीतिकर। प्रीति, चिरिडी देखो चिरडी। रुचि।
चिरिड्डिहिल्ल न [दे] दही। चियया देखो चियगा।
चिरिहिट्टी स्त्री [दे] गुञ्जा, धुंधची, लालरत्ती । चियाग । देखो चाय = त्याग । चिलाअ पुं [किरात] अनार्य देश-विशेष । चियाय ।
। किरात देश में रहनेवालो म्लेच्छ-जाति,
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चिलाइया - चीहाडी
भिल्ल, पुलिंद । धन सार्थवाह का एक दास नौकर |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चिलाइया स्त्री [ किरातिका] किरात देश की चिल्हय पुं [दे] चक्र-मार्ग |
रहनेवाली स्त्री ।
चिलाई स्त्री [किराती] ऊपर देखो । पुत्त
पु [°पुत्र] एक दासी पुत्र और जैन - महर्षि । चिलाद देखो चिलाअ ।
चिलिचि लिआ स्त्री [दे] धारा, वृष्टि |
चिलिचि लिय वि [दे] भीजा या भीगा हुआ । चिलिचिल्ल
चिलिचिल >वि [दे] आर्द्र, गीला । चिलिचील
चिणि [दे] देखो चिलीण । चिलिमिणी
चिलिमिलिगा | स्त्री [दे] परदा, आच्छादनचिलिमिलिया | पट | चिलिमिली
चिलीण न [] अशुचि, मैला, मल-मूत्र । चिल्ल पुं [दे] बाल, लड़का । शिष्य । चिल्ल पु. वृक्ष - विशेष । न. पुष्प - विशेष । चिल्ल न [ दे] सूर्प, छाज । चिल्लअ न [दे] देदीप्यमान | चिल्लग [दे] देखो चिल्लिय । चिल्लड [दे] देखो चिल्लल । चिल्लणा स्त्री [चिल्लणा ] एक सती स्त्री, राजा श्रेणिक की पत्नी ।
चिल्लय न [ दे] खराब आँख |
चिल्लल पुं [ चिल्वल ] अनार्य देश - विशेष । उस देश का निवासी ।
चिल्लल पुंस्त्री [दे] चीता । स्त्री. °लिया । न. काँदोवाला जलाशय, छोटा तालाब आदि ।
३२३
चिल्लूर न [दे ] मुसल | जिससे चावल आदि अन्नकूटे जाते हैं ।
वि [चिपिट] चिपटा, बैठा या धँसा हुआ (नाक) |
चिविडा स्त्री [चिपिटा ] गन्ध- द्रव्य-विशेष | चिविढ देखो चिविड ।
[चिकुर] केश
देखो चैइअ ।
चिविट्ठ चिविड
चिर
ची
चीअ
चीअ न [चिता] मुर्दे को फूंकने के लिए चुनी कड़ियों का ढेर |
ची देखो चेइअ ।
चीड व [दे] काले काँच की मणिवाला । चीण वि [ चीन ] लघु । पुं. चीन देश । चीन देश का निवासी । व्रीहि का भेद । पट्ट पु. चीन देश में होनेवाला वस्त्र-विशेष | पिट्ठ न [° पिष्ट] सिन्दूर - विशेष ।
चीणंसु
चीसु
[चीनांशु, क] कोट - विशेष, जिसके तन्तुओं से वस्त्र बनता है । चीन देश का वस्त्र - विशेष । चीया स्त्री. देखो चीअ = चिता । चीर न. कपड़े का टुकड़ा | कंडूसगपट्ट पु [° कण्डूस कपट्ट] जैन साधुओं का एक उपकरण, रजोहरण का बन्धन- विशेष । चीरग पुं' [चोरक] नीचे देखो । चोरिय पुं [चोरिक] रास्ते में पड़े हुए चीथड़ों को पहननेवाला भिक्षुक | फटा-टूटा कपड़ा पहननेवाली एक साधु-जाति । चीरिया) स्त्री वस्त्र खण्ड | क्षुद्र कीट - विशेष, चोरी झींगुर |
चमकता ।
चीवी स्त्री [दे] भल्ली, भाला ।
चिल्ला स्त्री [] चील, पक्षि-विशेष, शकु चीवर न संन्यासियों या भिक्षुओं के पहनने का
निका ।
कपड़ा ।
चिल्लिय व [] लीन, आसक्त । देदीप्यमान । चीहाडी स्त्री [दे] चीत्कार, पुकार, हाथी की चिल्लिरिपुं [दे ] मशक, मच्छर ।
गर्जना |
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चीही स्त्री [दे] मुस्ता का तृण- विशेष । चु अक [ च्यु ] मरना, जन्मान्तर में जाना । विनाश पाना । गिरना । भ्रष्ट होना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कौष
चुअ अक [ श्चुत् ] झरना, टपकना । चुअ सक
चुच्चय
चुचू
[ त्यज् ] त्याग करना, परिहार | चुच्छवि [ तुच्छ] थोड़ा, हलका । जघन्य,
करना ।
नगण्य |
चुइ स्त्री [ च्युति ] च्यवन, मरण ।
चुज्जन [ दे] आश्चर्य ।
चुकारपुर न. एक नगर ।
चुडण न [दे ] जीर्णता, सड़ जाना ।
चुंचुअ पु ं [दे] शेखर, अवतंस, मस्तक का चुडलिअ न [ दे] गुरु-वन्दन का एक दोष, रजोहरण को अलात (मशाल) की तरह खड़ा रखकर वन्दन करना ।
भूषण ।
चुडली [दे] देखो चुडुली । fs देखो डुली |
हाथ का सम्पुटाकार |
चुंचुलिअ वि [दे] अवधारित । न तृष्णा । चुंचुलिपूर [] चुलुक, पसर । चुंट सक [च] फूल वगैरह को तोड़कर इकट्ठा
करना ।
चुंढी स्त्री [ दे] थोड़ा पानीवाला अखात जला
शय ।
चुंपालय [दे] देखो चुप्पालय । चुंबक [ चुम्बू ] चुम्बन करना । चुंभल पुं [दे] शेखर, अवतंस, शिरोभूषण । चुक्क अक [ भ्रंश् ] चूकना, भूल करना । भ्रष्ट होना, रहित होना, वञ्चित होना । सक. नष्ट करना, खण्डन करना । अनवधित होना, बे-ख्याल होना ।
चुक्क पुं [दे] मुट्ठी |
चुक्कार पुं [दे] आवाज, शब्द । चुक्कुड पुं [दे] बकरा ।
चुक्ख [दे] देखो चोक्ख ।
चुचुय
चुंचुअ
[ चुञ्चुक ] म्लेच्छ देश-विशेष | उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति । चंचुण [चुञ्चुन] एक धनी वैश्य जाति । चुंचुणि वि [] चलित, गत । च्युत, नष्ट | चुंचुणिआ स्त्री [दे] गोष्ठी की प्रतिध्वनि । सम्भोग । इमली का पेड़ । मुष्टि- द्यूत । यूका, खटमल, क्षुद्र कीट - विशेष |
चंचुमालि वि [] अलस, दीर्घसूत्री । चुंचुलि पुं [३] चोंच | चुलुक, पसर, एक चुण सक [चि] चुगना, पक्षियों का खाना ।
चीही-चुण्णा
न [ चूचुक] स्तन का अग्र भाग । [चुचूक ] स्तनों की गोलाई, चुची ।
चुडुप्पन [] खाल उतारना । घाव । चमड़ी, त्वचा ।
चुडुप्पा स्त्री [दे] त्वचा, चमड़ी, खाल | डुली स्त्री [] उल्का, अलात, जलती हुई लकड़ी, उल्मुक !
अ [] चाण्डाल | बच्चा | इच्छा | अरुचि, भोजन की अप्रीति । व्यतिकर, सम्बन्ध | वि. अल्प | मुक्त, त्यक्त | सूंघा हुआ ।
चुणि वि [] विधारित, धारण किया हुआ । चुण्ण सक [चूर्णय् ] चूरना, टुकड़ा टुकड़ा
करना ।
चुण पुंन [चूर्णं] चूर, बुकनी, बारीक खण्ड | आटा । रज । गन्ध द्रव्य का रज । चूना । वशीकरणादि के लिए किया जाता द्रव्यमिलान । कोसय न [कोशक] भक्ष्यविशेष |
चुण्ण न [चौर्ण ] गम्भीरार्थक पद, महार्थक शब्द । चुण्णइअ वि [दे] चूरन से आहत - जिस प्रकार चूर्ण फेंका गया हो वह ।
चुणग पुं [चूर्णक] वृक्ष - विशेष चुणा स्त्री [चूर्णा] छन्द- विशेष ।
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चुण्णाआ-चूला संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३२५ चुण्णाआ स्त्री [दे] कला, विज्ञान ।
उपासकों में से एक । हिमवंत पु[हिमवत्] चुण्णासी स्त्री [दे] नौकरानी।
छोटा हिमवान् पर्वत । हिमवंतकूड न चुण्णि स्त्री [चूणि] ग्रन्थ की टीका-विशेष । [हिमवत्कूट] क्षुद्र हिमवान्-पर्वत का शिखरचुण्णिअ वि [चूर्णित] चूर-चूर किया हुआ। विशेष । पु. उसका अधिपति देव-विशेष । धूली से व्याप्त ।
हिमवंतगिरिकुमार पु [हिमवगिरि चुण्णिा स्त्री [चूर्णिका] भेद-विशेष, एक | कुमार] देव-विशेष । तरह का पृथग्भाव, जैसे पिसान का अवयव | चुल्लग न [दे] सन्दुक । अलग-अलग होता है।
चुल्लग [दे] देखो चोल्लक। चुण्णिय वि [णिक] गणित-प्रसिद्ध सर्वा- चुल्लि, स्त्री. चूल्हा । वशिष्ट अंश ।
चुल्ली ) चुद्दस देखो चउ-दस ।
चुल्ली स्त्री [दे] शिला, पाषाण-खण्ड । चुप्प वि [दे] सस्नेह, स्निग्ध ।
चुल्लुच्छल अक [दे] छलकना, उछलना । चुप्पल पुं[दे] शेखर, अवतंस ।
चूल्लोडय पु [दे] बड़ा भाई । चुप्पलिअ न [दे] नया रँगा हुआ कपड़ा।
चूअ पुदि] थन का अग्र भाग, चूची। चुप्पालय पुं [दे] झरोखा, गवाक्ष, जंगला । चूअ पु [चूत] आम का गाछ । देव विशेष । चुरिम न [दे] खाद्य-विशेष ।
वडिंसग न [वतंसक] सौधर्म विमानचुलचुल अक [चुलचुलाय] उत्कण्ठित होना, | विशेष । वडिसा स्त्री [°ावतंसा] शक्रेन्द्र उत्सुक होना।
की एक अग्न-महिषी। चलणी स्त्री चलनी] दपद राजा की स्त्री।। चूआ स्त्री [चूता] शक्रेन्द्र को एक अग्रमहिषी। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की माता। °पिय पं चूचुअ पुन [चूचुक] स्तन का अन-भाग । [पितृ] भगवान् महावीर का एक मख्य | चूड पु [द बाहु-भूषण, वलयावली । उपासक ।
चूडा देखो चूला। चुलसी स्त्री [चतुरशोति] चौरासी की
चूडुल्लअ (अप) देखो चूड। संख्या।
चूर सक [ चूरय, चूर्णय ] खण्ड करना, चुलसीइ देखो चुलसी।
तोड़ना, टुकड़ा-टुकड़ा करना । चुलिआला स्त्री [चुलियाला] छन्द-विशेष । चूर (अप) पुन [चूर्ण] चूर, भुरभुर । चुलुअ पुन [चुलुक] चुल्लू ।
चूरिम पुन [दे] चूर्मा लड्डू । चुलुक्क देखो चालुक्क।
चूल° देखो चूला। मणि न. विद्याधरों का चुलुचुल अक [स्पन्द्] फड़कना, फरकना, एक नगर । थोड़ा हिलना, स्पन्दित होना ।
चूलअ [दें] देखो चूड। चुलुप्प पुं[दे] अज।
चूला स्त्री [चूडा] सिर के बीच को केशचुल्ल पुं [दे] बालक । दास । वि. छोटा, शिखा। शिखर । मयूरशिखा । कुक्कुट-शिखा। लघु । °ताय पु [°तात] चाचा । °पिउ पु शेर की केसरा । कुन्त वगैरह का अग्र भाग । [°पित] चाचा । माउया स्त्री[°मात] छोटी | विभूषण, अलंकार । अधिक मास । अधिक माँ, सौतेली माँ । चाची। °सगय, °सयय | वर्ष । ग्रन्थ का परिशिष्ट । 'कम्म न पु. [शतक] भगवान महावीर के दस मुख्य | [°कर्मन् ] संस्कार-विशेष, मुण्डन । °मणि
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चेअ
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष चूलिय-चेदि पुंस्त्री. सिर का सर्वोत्तम आभूषण-विशेष, [ यात्रा] जिन-प्रतिमा-सम्बन्धी महोत्सवमुकुट-रत्न, शिरो-मणि । सर्वोत्तम । विशेष । °थूभ पु[स्तूप] जिन मन्दिर के चूलिय पु [चूलिक] अनार्य देश-विशेष । उस समीप का स्तूप । °दव्व न [°द्रव्य] देव-द्रव्य, देश का निवासी। स्त्रीन. संख्या-विशेष, जिन-मन्दिर-सम्बन्धी स्थावर या जंगम चूलिकांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो मिल्कत । °परिवाडी स्त्री [°परिपाटी] क्रम संख्या लब्ध हो वह ।
से जिन-मन्दिरों की यात्रा। °मह पु. चैत्यचूलियंग न [चूलिकाङ्ग] संख्या-विशेष, प्रयुत सम्बन्धी उत्सव । रुक्ख पु [°वृक्ष] चबूतरा को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या
वाला वृक्ष । जिन-देव को जिसके नीचे केवल लब्ध हो वह।
ज्ञान उत्पन्न होता है वह वृक्ष । देवताओं का चूलिया देखो चूला।
चिह्नभूत वृक्ष । देव-सभा के पास का वृक्ष । चूव (अप) देखो चूअ।
वन्दण न [°वन्दन] जिन-प्रतिमा की मन, चूह सक [ क्षिप् ] फेंकना, डालना, प्रेरणा ।
वचन और काया से स्तुति । "वास पुं. जिनचे अ [ चेत् ] यदि, जो, अगर ।
मन्दिर में यतियों का निवास । °हर देखो चे देखो चय = त्यज् ।
°घर। चे , देखो चि।
चेइअ वि [चेतित] कृत, विहित ।
चेंध देखो चिध। चेअ अक [ चित् ] सावधान होना, ख्याल चेच्चा चे = त्यज् का सं. कृ. । रखना । सुध आना, स्मरण करना । सक. चेट अक [चेष्ट] प्रयत्न करना, आचरण जानना । अनुभव करना।
करना। चेअ सक [ चेतय् ] ऊपर देखो। देना, अर्पण चेटू देखो चिट्ठ = स्था । करना, वितरण करना । करना, बनाना।
चेट्टण न [स्थान] स्थिति, अवस्थान ।
चेट्टण देखो चिट्ठण - चेष्टन । चेअ अ [एव] अवधारण-सूचक अव्यय, निश्चय बतानेवाला अव्यय ।
चेट्ठा स्त्री [चेष्टा] प्रयत्न, आचरण । चेअ न [ चेतस् ] चेतना, ज्ञान । मन, चित्त । चेड पुं [दे] बाल, कुमार । चेइ पु [चेदि] देश-विशेष । “वइ पु[पति] चेड पुं [चेट, °क नौकर नृप-विशेष, चेदि देश का राजा।
चेडग मैला देवता, देव की एक जघन्य चेइ° । पुन [चैत्य] चिता पर बनाया | चेडय जाति । चेइअ ) हुआ स्मारक, स्तूप, कबर या कब्र चेडिआ स्त्री [चेटिका] दासी । वगैरह स्मृतिचिह्न । व्यन्तर का स्थान । चेडी स्त्री चेटी] ऊपर देखो । . जिन-मन्दिर । इष्ट देव की मूर्ति, जिन- चेडी स्त्री [दे] कुमारी, बाला । देव की मूत्ति । उद्यान । सभा वृक्ष ।। चेत्त न चैत्य] चैत्य-विशेष । चबूतरावाला वृक्ष । देवों का चिह्न भूत वृक्ष । चेत्त पुचैत्र] चैत मास । जैन मुनियों का वह वृक्ष जहाँ जिनदेव को केवल ज्ञान उत्पन्न एक गच्छ। होता है। पेड़ । यज्ञ-स्थान । मनुष्यों का चेत्ती स्त्री [चैत्री] चैत मास की पूर्णिमा या विश्राम-स्थान । 'खंभ पुं [°स्तम्भ] स्तूप । अमावस ।। °घर न [गृह] जिन-मन्दिर । जत्ता स्त्री चेदि देखो चेइ ।
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चेदीस-चोर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३२७ चेदीस पुं [चेदीश] चेदि देश का राजा। । संन्यासिनी । चेयग वि [चेतक] दाता।
| चोज्ज न [दे] आश्चर्य। चेयण पुं [चेतन] आत्मा, जीव, प्राणी । वि. | चोज्ज न [चौर्य] चौर-कर्म । चेतनावाला, ज्ञानवाला ।
चोज्ज न [चोद्य] प्रश्न, पृच्छा । आश्चर्य, चेयणा स्त्री [चेतना] ज्ञान, चैतन्य, सुध ।
अद्भुत । वि. प्रेरणा-योग्य । चेयण्ण न [चैतन्य] ऊपर देखो।
चोट्टी स्त्री [दे] चोटी, शिखा । चेयस देखो चेअ = चेतस् ।
चोड न [दे] वृन्त, फल और पत्ती का बन्धन । चेया देखो चेयणा।
चोढ पुं [दे] बेल का पेड़। चेल । न [चेल] वस्त्र । कण्ण न | चेलय ) [°कणं] एक तरह का पंखा ।
| चोण्ण न [दे] झगड़ा । काष्ठानयन आदि
जघन्य कर्म। गोल न. वस्त्र का गेंद । हरन[ °गृह] तम्बू,
चोत्त । पुन [दे] प्राजन-दण्ड, चाबुक । पट-मण्डप ।
चोत्तम चेलय न [दे] तुला-पात्र ।
चोद [दे] देखो चोय । चेल्प न [दे] मुसल, मूषल ।
चोदग देखो चोअअ। चेल्ल । [दे] देखो चिल्ल ।
चोदणा स्त्री [चोदना] प्रेरणा, किसी प्रभावचेल्लअ ।
शाली व्यक्ति की ओर से कुछ कहने या करने चेल्लग । [दे] देखो चिल्लग ।
के लिए होनेवाला संकेत । चेव अ [एव, चैव] अवधारण-सूचक अव्यय, |
चोप्पड सक [म्रक्ष] स्निग्ध करना, घी तेल
वगैरह लगाना। निश्चयदर्शक शब्द । पाद-पूरक अव्यय ।
चोप्पड न [म्रक्षण] घी, तेल वगैरह स्निग्ध चेव अ [इव] सादृश्य-द्योतक अव्यय । चो देखो चउ । आला स्त्री [°चत्वारिंशत् ]
वस्तु । चौवालीस । वट्टि स्त्री [°षष्टि ] चौसठ ।। चोप्पाल पुं [चतुष्पाल] सूर्याभ देव की °वत्तरि स्त्री [°सप्तति] चौहत्तर ।
__ आयुध-शाला। चोअ सक [ चोदय् ] प्रेरणा करना । कहना।।
| चोप्पाल न [दे] मत्तवारण, वरण्डा । चोअअ वि [चोदक] प्रेरक, प्रश्नकर्ता, पूर्व
चोफुच्च वि [दे] स्निग्ध, प्रेम-युक्त । पक्षी।
चोय । न [दे] त्वचा, छाल। आम चोअण न [चोदन] प्रेरणा ।
चोयग ) वगैरह का रंछा। गन्ध द्रव्यचोइअ वि [चोदित] प्रेरित ।
विशेष । चोए सक [चोदय] प्रश्न करना। सीखना, | चोयग देखो चोअअ । शिक्षण देना।
चोयणा स्त्री [चोदना] प्रेरणा । चोक्क [दे] देखो चुक्क।
चोयय पुं[दे] फल-विशेष । चोक्ख वि [दे] चोखा, शुद्ध, पवित्र । चोयालीस स्त्रीन [चतुश्चत्वारिंशत्] चौवाचोक्खलि वि [दे] चोखाई करनेवाला, शुद्धता | लीस ।। वाला।
चोर पुं. तस्कर । कीड पुं [कोट] विष्ठा में चोक्खा स्त्री [चोक्षा] इस नाम की एक उत्पन्न होता कीट।
चेल्लय
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३२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चोरंकार-छ चोरंकार पुं [चौर्यकार] चोर ।
चोल पुं. देश-विशेष । चोरग वि [चोरक] चुरानेवाला। पुन. वन- चोलअ न [दे] कवच । स्पति-विशेष ।
चोलअ ) न [चौल, °क] संस्कार-विशेष, चोरण न. चुराना । वि. चोर ।
चोलग । मुण्डन । चोरली स्त्री [दे] श्रावण मास की कृष्ण चोलुक्क देखो चालुक्क । चतुर्दशी।
चोलोयणग न [चूलापनयन] चूलोपचोराग पुं [चोराक] सन्निवेश-विशेष । चोलोवणय नयन संस्कार। चूड़ाचोराव सक [चोरय] चोरी करना । चोलोवणयण ) धारण । चोरासी । देखो चउरासी।
चोल्लक [दे] देखो चोलग। चोरासीइ ।
चोल्लक । पुन [दे] भोजन । वि. क्षुद्रक, चोरिअ न [चौर्य] चोरी, अपहरण ।
चोल्लग ) छोटा। चोरिअ वि [चौरिक] चोरी करनेवाला । पं.
चोल्लय पुन [दे] थैला, बोरा । जासूस । चोरिआ स्त्री [चौर्य, चौरिका] चोरी,
चोवत्तरि स्त्री [चतुःसप्तति] चौहत्तर । अपहरण ।
चोवालय पुन [चतुर] चोवारा, ऊपर का चोरिक्क न [चौरिक्य] ऊपर देखो ।
शयन-गृह । चोरी स्त्री [चौरी] चोरी, अपहरण ।
चोव्वड देखो चोप्पड = म्रक्ष् । चोल वि दे] वामन, कुब्ज । पु. पुरुष
च्च अ [एव] अवधारण-सूचक अव्यय । चिह्न । न. गन्ध-द्रव्य-विशेष, मंजिष्ठा । °पट्ट
च्चिअ देखो चिअ = एव । पं. जैन मुनि का कटि-वस्त्र । 'य पु [ज] च्चेअ । देखो चेव = एव । मजीठ का रंग।
| चेव ।
छ पुं. तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष। आच्छा-1 °ण्णवइ [°णवति] छानबे । °त्तीस स्त्रीन दन ।
[°त्रिंशत्] छत्तीस । °त्तीसइम वि [त्रिंशछ त्रि. ब. [षष्] छः । °उत्तरसय वि त्तम] छत्तीसवाँ । दस त्रि. ब. [षोडशन्] [°उत्तरशततम] एक सौ और छठवाँ । सोलह । 'सहा अ [षोडशधा] सोलह
कम्म न [°कर्मन्] छः प्रकार के कर्म जो | प्रकार का। °द्दिसि न [°दिश्] छ: ब्राह्मणों के कर्तव्य हैं, यथा-यजन, याजन, | दिशाएँ-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह । । और अधोदिशा। °द्धा अ [°धा] छः प्रकार °क्काय न [°काय] छः प्रकार के जीव, | का। नवइ, 'नुवइ देखो °ण्णउइ । पृथिवी, अग्नि, पानी, वायु, वनस्पति और | °न्नउय वि [णवत] छानबेवाँ । °प्पण्ण त्रस जीव । °गुण, गुण वि [°गुण] छगुना । | स्त्रीन [°पञ्चाशत्] छप्पन । °प्पन्न वि °च्चरण पुं [°चरण] भ्रमर । जीवनिकाय | [°पञ्चाश] छप्पनवाँ । °ब्भाय पुं [ भाग] पं [जीवनिकाय] देखो क्काय । °ण्णउइ, । छठवाँ हिस्सा। भासा स्त्री [भाषा]
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छइ-छट्ठी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३२९ प्राकृत, संस्कृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाचिका । अनुसार बरतना । णुवत्तय वि [नुवर्तक]
और अपभ्रंश ये छः भाषाएँ। °मासिय, मरजी का अनुसरण करनेवाला । °म्मासिय वि [षाण्मासिक] छः मास में छंद पुंन [छन्दस्] स्वच्छन्दता । अभिलाष । होनेवाला, छः मास सम्बन्धी । वरिस वि आशय, अभिप्राय । छन्दः-शास्त्र । वृत्त ।
वार्षिक] छः वर्ष की उम्रवाला । वीस | °ण्णुय वि [°ज्ञ] छन्द का जानकार । देखो व्वीस। विवह वि [विध] छः | छंदण पुंन [छादन] ढकना, ढक्कन । प्रकार का। वीस स्त्रीन [विंशति] छंदण न [छन्दन] निमन्त्रण, प्रार्थना । छब्बीस । 'व्वीसइम वि [विंशतितम] छंदण न [वन्दन] प्रणाम । छब्बीसवाँ । लगातार बारह दिनों का उप- छंदा स्त्री. दीक्षा का एक भेद, अपने या दूसरे घास । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] छियासठ। के अभिप्राय विशेष से लिया हुआ संन्यास । °स्सयरि स्त्री [°सप्तति] छिहत्तर । हा
छंदो° देखो छंद = छन्दस् । देखो द्धा।
छक्क वि [षट्क] छक्का, छः का समूह । छइ देखो छवि = छवि ।
छग देखी छ = षष् । छइअ वि [स्थगित] आच्छादित, तिरोहित । । छग न [दे] पुरीष, विष्ठा । छइल । वि [दे] विदग्ध, चतुर ।
छग देखो छक्क । छइल्ल
छगण न [स्थगन] पिधान, ढकना । छउअ वि [दे] कृश ।
छगण न [दे] गोबर । छउम पुन [छद्मन्] कपट, माया । बहाना ।
छगणिया स्त्री [दे] गोइंठा, कण्डा । आच्छादन । न. ज्ञानावरणीय आदि चार घाती छगल पुस्त्री. बकरा । "पुर न. नगर-विशेष । कर्म।
छग्ग देखो छक्क । छउमत्थ वि [छद्मस्थ] असर्वज्ञ, सम्पूर्ण ज्ञान छग्गुरु पुं [षड्गुरु] एक सौ और अस्सी दिनों से वञ्चित । राग-सहित ।
का उपवास । तीन दिनों का उपवास । छउलूअ देखो छलूअ ।
छच्छंदर पुन [दे] मूसे या चूहे की एक जाति । छंकुई स्त्री [दे] कपिकच्छू, वृक्ष-विशेष, केवांच, छज्ज अक [ राज् ] शोभना, चमकना । कवाछ।
छजिआ स्त्री [दे] पुष्प-पात्र, चंगेरी । छंट पुं [दे] जल का छींटा, जलच्छटा । वि. छट्टा [दे] देखो छंटा। शीघ्र, जल्दी करनेवाला ।
छ? वि [षष्ठ] छठवाँ । न. लगातार दो दिनों छंट सक [सिच्] सींचना।
का उपवास । °क्खमण न[°क्षमण, क्षपण] छंड देखो छड्ड % मुच् ।
लगातार दो दिनों का उपवास । °क्खमय छंडिअ वि [दे] छन्न, गुप्त ।
पुं [क्षमक, °क्षपक]दो-दो दिनों का बराबर छंद सक [छन्द्] चाहना, अनुज्ञा देना, सम्मति उपवास करनेवाला तपस्वी। भत्त न देना । निमन्त्रण देना।
[°भक्त] लगातार दो दिनों का उपवास । छंद पुन [छन्द] इच्छा, अभिलाषा । अभिप्राय, भत्तिय वि [°भक्तिक] लगातार दो दिनों
आशय । वशता, अधीनता। चारि वि का उपवास करनेवाला। [चारिन् ] स्वच्छन्दी । इत्त वि [°वत्] छट्ठी स्त्री [षष्ठी] तिथि-विशेष । सम्बन्धस्वैरी । णुवत्तण न [°ानुवर्तन] मरजी के विभक्ति । जन्म के बाद किया जाता उत्सव
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३३०
विशेष | छड सक [ आ + रुह् ] आरूढ़ होना, चढ़ना । छडक्खर पुं [दे] कार्त्तिकेय । छडछडा स्त्री [छटच्छटा ] सूर्प (सूप) वगैरह से अन्न को झाड़ते समय होती एक प्रकार को अव्यक्त आवाज ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
छडा स्त्री [] विद्युत् |
छडा स्त्री [छटा ] समूह, परम्परा । छींटा, पानी की बूंद ।
छडाल वि[छटावत् ] छटावाला । छडिय वि [छटित ] सूप आदि से छँटा या फटका हुआ ।
छड्डु सक [छर्दय्, मुच् ] वमन करना । छोड़ना, त्याग करना । डालना, गिराना ।
छड्डय वि [छर्दक] छोड़नेवाला । पुं. एक सेठ छत्तंतिया स्त्री [छत्रान्तिका ] परिषद् - विशेष,
का नाम ।
सभा - विशेष ।
छडुवण न [छर्दन, मोचन ] छुड़वाना, मुक्त करवाना । वमन कराना । वि. वमन करानेवाला | छुड़ानेवाला ।
छडुव वि[छर्दक, मोचक ] त्याग करानेवाला । छड्डावण देखो छडुवण ।
छड्डाविय वि [छर्दित, मोचित ] वमन कराया
हुआ । छुड़वाया हुआ । छड्डि स्त्री [छदि] दमन का रोग । छडि स्त्री [छर्दिस्] छिद्र, दूपण ।
|
छण सक [ क्षण् ] हिंसा करना, छेदन करना । छण पुं [क्षण] उत्सव | हिंसा | चंद पुं [°चन्द्र] शरद् ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा । | 'ससि पुं [ " शशिन् ] वही पूर्वोक्त अर्थ । छणिदु पुं [क्षणेन्दु ] शरद् ऋतु की पूर्णिमा
का चन्द्र ।
छवि [छन्न] गुप्त, छिपाया हुआ । आच्छा दित । न माया, कपट । निर्जन, रहस् । छण्णालय न [ दे. षण्णालक] त्रिकाष्ठिक, तिपाई, संन्यासियों का एक उपकरण । छत्त न [ छत्र] छाता, आतपात्र । लगातार
छड - छप्पंती
तैंतीस दिनों का उपवास । पुंन. एक देवविमान । पुं. ज्योतिष प्रसिद्ध एक योग जिसमें चन्द्र आदि ग्रह छत्र के आकार से रहते हैं । 'इल व [वत् ] छातावाला । ° कार वि. छाता बनानेवाला शिल्पी । ग पुंन [क] वनस्पति- विशेष | धार पुं. छाता धारण करनेवाला नौकर | 'पडागा स्त्री ['पताका ] छत्रयुक्त ध्वज । छत्र के ऊपर की पताका । पलासयन [° पलाशक] कृतमंगला नगरी का एक चैत्य | भंग पुं' [ "भङ्ग ] राजनाश, नृपमरण । हार देखो धार | इच्छत्त न [तिच्छत्र ] छत्र के ऊपर का छाता । पुं. ज्योतिष शास्त्र - प्रसिद्ध योग - विशेष । छत्त पुं [ छात्र ] विद्यार्थी, अभ्यासी ।
छत्तच्छय (अप) पुं [ सप्तच्छद ] सतौना का पक्ष । छत्तधन न [ दे] घास ।
छत्तवण्ण देखो छत्तिवण्ण ।
छत्ता स्त्री [छत्रा ] नगरी - विशेष ।
छत्तार पुं [ छत्रकार ] छाता बनानेवाला कारीगर ।
छत्ताह पुं [छत्राभ] वृक्ष-विशेष | छत्तिवण्ण पुं [सप्तपर्णं ] छतिवन । छत्तोय पुं [छत्रौक] वनस्पति- विशेष, विशेष |
छत्तोव पुं [छत्रोप] वृक्ष- विशेष । छत्तोह पुं [छत्रौघ] वृक्ष - विशेष । छदमत्थ देखो छउमत्थ | छद्दवण देखो छड्डवण । छसम वि [ षड्दश] छः या दश । छद्दी स्त्री [दे] बिछौना ।
छन्न वि [क्षण] हिंसा प्रधान, हिंसा - जनक | छप्पइगिल्ल वि [षट्पदिकावत् ] यूका-युक्त । छप्पइया स्त्री [ षट्पदिका ] जूँ । छप्पती स्त्री [दे] नियम- विशेष, जिसमें पद्य
वृक्ष
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छप्पण्ण-छाई
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष लिखा जाता है ।
| छलसीअ स्त्रीन [षडशीति] छियासी । छप्पण्ण ) वि दे. षट्प्रज्ञक] विदग्ध, छलसीइ स्त्री. ऊपर देखो। छप्पण्णय चितुर ।
छलिअ वि [छलित] विप्रतारित, ठगा हुआ । छप्पत्तिआ स्त्री [दे] थप्पड़ । रोटी।
शृङ्गार-काव्य । तस्कर-संज्ञा । छप्पय पु [षट्पद] भौंरा। वि. छः स्थान- | छलिअ वि [दे] विदग्ध, चतुर । वाला । छः प्रकार का । छन्द-विशेष । छलिअ न [छलिक] नाट्य-विशेष । छब्ब पुन [दे] पात्र-विशेष ।
छलिअ वि [स्खलित] स्खलन-प्राप्त । छब्बग )
छलिया देखो छालिया। छब्बय न [दे] वंश-पिटक, घी वगैरह को
छलुअ | पु षडुलूक] वैशेषिक-मत-प्रवर्तक छानने का उपकरण-विशेष ।
छलग कणाद ऋषि । छन्भामरी स्त्री [षभ्रामरी] एक प्रकार की
छलअ । वीणा।
छल्लो स्त्री [दे] त्वचा, छाल । छमच्छम अक [छमच्छमाय] गरम चीज पर
छल्लुय देखो छलुअ। दी जाती पानी को आवाज ।
छव देखो छिव। छम देखो क्षमा। रुह पुं. पेड़, दरख्त । छवडी स्त्री [दे] चर्म । छमलय पुदि] सप्तच्छद का वृक्ष ।
छवि स्त्री. कान्ति, तेज । अंग । चमड़ी। अवछमा स्त्री [क्षमा, क्ष्मा] पृथिवी, भूमि । "हर यव । अंगी, शरीरी। अलङ्कार-विशेष । पु[धर] पर्वत, देखो छम ।
°च्छेअ पु [च्छेद] अङ्ग का विच्छेद । छमी स्त्री [शमी] अग्नि-गर्भ वृक्ष ।
°च्छेयण न [°च्छेदन] अंगच्छेद । °त्ताण छम्म देखो छउम।
न ["त्राण] चमड़ी का आच्छादन, कवच । छम्मुह पु [षण्मुख] कार्तिकेय । भगवान् | छविअ वि [स्पृष्ट] छूआ हुआ। विमलनाथ का अधिष्ठायक देव ।
छविपव्व न [छविपर्वन्] औदारिक शरीर । छय न [छद] पर्ण, पत्र, आवरण, आच्छादन ।। छवीइय वि [छविमत्] कान्तिवाला। घन, छय न [क्षत] घाव । पीड़ित, व्रणित ।
निबिड़। छयल्ल [दे] देखो छइल्ल।
छव्वग [दे देखो छब्बय। छरु पुत्सरु] खड्ग-मुष्टि, तलवार का हाथा । | छविअ वि [दे] आच्छादित । °प्पवाय न [°प्रवाद] खड्ग-शिक्षा-शास्त्र । छह (अप) देखो छ (षष्)। छल° देखो छ = षष् ।
छहत्तर वि [षट्सप्तत] छि हत्तरवाँ । छल सक [छलय] ठगना, वञ्चना। छहत्तरि स्त्री [षट्सप्तति] छिहत्तर । छल न. कपट, माया । बहाना। अर्थविघात, छाअ देखो छाव। वचन-विघात, एक तरह का वचन-युद्ध । छाइल्ल वि [छायावत् छायावाला, कान्तिययण न [यतन] छल ।
युक्त। छलंस वि [षडस्र] षट्कोण ।
छाइल्ल पु [दे] प्रदीप, वि. सदृश, तुल्य । छलंसिअ वि षडस्रिक] छः कोणवाला । ऊन, अधूरा । सुरूप, सुडौल । छलण न [छलन] फेंकना ।
छाई देखो छाया। छलत्थ वि [षडर्थ] छः अर्थवाला। छाई स्त्री [दे] माता, देवी, देवता।
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छाउमत्थ न [छाद्मस्थ्य ] छद्मस्थ अवस्था | छाउमत्थिय वि [छाद्मस्थिक] केवलज्ञान उत्पन्न होने के पहले की अवस्था में उत्पन्न, सर्वज्ञता की पूर्वावस्था से सम्बन्ध रखने
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
छाउमत्थ-छिंद
खारा । पुं. लवण । सज्जीखार। गुड़ । भस्म, भूति । मात्सर्य, असहिष्णुता । छार पुं [दे] अच्छभल्ल, भालूक । छारय देखो छार ।
छारयन [दे] ऊख की छाल । कली । छारियवि [छारिक ] क्षार-सम्बन्धी । छाल पुं [ छाग] अज । छालिया स्त्री [छागिका] अजा । छाव पुं [शाव ] बच्चा ।
अजा-पालक ।
का
मना । छावट्ठि स्त्री [ षट्षष्टि] छियासठ । छावण देखो छायण ।
वाला ।
छाओवग वि [छायोपग] छायावाला ( वृक्षादि ) | पु . सेवनीय पुरुष, माननीय पुरुष । छागल वि. अज - सम्बन्धी | बकरा |
[छागलिक ]
छागलिय पु छाण न [ दे] धान्य वगैरह गोबर । वस्त्र ।
छाणण न [ दे] छानना, गालन । छाणवई (अप) देखो छण्णवइ ।
छाणी स्त्री [दे] धान्य वगैरह का मलन । कपड़ा । गोमय ।
छाणी स्त्री [दे] गोबर का इन्धन । छायवि [छात] घाववाला । छाय सक [छादय् ] आच्छादन
ढकना ।
करना,
छायवि [दे. छात] बुभुक्षित | ढकना । छायंसि वि [ छायावत् ] कान्तिमान्, तेजस्वी । छायण न [छादन] घर की छत, छाजन
ढक्कन, आवरण | कपड़ा । छायणिया
छायणी
छाया स्त्री. छाँह । कान्ति, दीप्ति । शोभा । प्रतिबिम्ब, परछाईं । धूप-रहित स्थान । 'गइ स्त्री ['गति ] छाया के अवलम्बन से गति । °पास पुं [°पार्श्व] हिमाचल पर स्थित भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति । छाया स्त्री [दे] यश, ख्याति । भ्रमरी । छायाइत्तय वि [ छायावत् ] छाया-युक्त | छायाला स्त्री [षट्चत्वारिंशत् ] छियालीस । छायालीस स्त्रीन. ऊपर देखो । छायालीस वि [षट्चत्वारिंश ] छियालीसवाँ । छार वि [क्षार] पिघलनेवाला, झरनेवाला ।
स्त्री [दे] डेरा, पड़ाव, छावनी ।
छावत्तरि स्त्री [ षट्सप्तति] छिहत्तर । 'म वि [म] छिहत्तरवाँ ।
छावलिय वि [ षडावलिक ] छः आवलिकापरिमित समयवाला ।
छाट्ठ वि [ षट्षष्ट] छियासठवाँ । छासी स्त्री [दे] छाछ, तक्र ।
छासीइ स्त्री [ षडशीति] छियासी । म वि ['तम] छियासीवाँ |
छाहत्तर (अप) देखो छावतरि । छाहत्तर देखो छावत्तरि । छाहा स्त्री [छाया ] आतप का अभाव । छाया प्रतिबिम्ब, परछाई । छाही
छाही स्त्री [] गगन | 'मणि पुं. सूरज | छिअ देखो छी । छिछई स्त्री [] असती, कुलटा 1 छिछटरमण न [ दे] चक्षुस्थगन की क्रीड़ा । छिछय पुं [दे] शरीर । उपपति । न शलाटु
फल ।
छिछोली स्त्री [दे] छोटा जल-प्रवाह । छिड न [दे] चूड़ा, चोटी । छत्र, छाता । धूप
यन्त्र ।
छिडिआ स्त्री [] बाड़ का छिद्र । अपवाद | छिडी स्त्री [दे] बाड़ का छिद्र । छिंद सक [छिद्] छेदना, विच्छेद करना ।
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३
छिदावण-छिप्पालुअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष खण्डन करना।
छिण्णच्छोडण न [दे] शीघ्र । छिदावण न [छेदन] कटवाना, छेदन कराना। छिण्णयड वि [दे] टङ्क से छिन्न । छिपय पुं [छिम्पक] कपड़ा छापने का काम | छिण्णा स्त्री [दे] असती । __ करनेवाला ।
छिण्णाल पुंदे] उपपति । छिक्क न [दे] छींक ।
छिण्णालिआ । स्त्री [दे] कुलटा, पुंश्चली, छिक्क वि [दे. छुप्त] स्पृष्ट । °परोइया स्त्री छिण्णाली छिनारी ।
[प्ररोदिका] वनस्पति-विशेष । छिण्णोब्भवा स्त्री दे] दूब (घास), दाभ । छिक्क वि[छोत्कृत]छी-छी आवाज से आहत । छित्त देखो खित्त क्षेत्र । छिक्कंत वि [दे] छींक करता हुआ।
छित्त वि [A] छूआ हुआ । छिक्का जी [दे] छींक ।
छित्तर [दे] देखो छेत्तर। छिक्कारिअ वि [छीत्कारित छी छी आवाज | छित्ति स्त्री. विच्छेद, खण्डन ।
से आहूत, अव्यक्त आवाज से बुलाया हआ। छित्तु वि [छेतृ] छेदनेवाला । छिक्किय न [दे] छींकना।
छिद्द देखो छिड्ड। छिक्कोअण वि [दे] असहिष्णु ।
छिद्द पुं [दे] छोटी मछली। छिक्कोट्टली स्त्री [दे] पैर की आवाज । पाँव
छिन्न वि. खण्डित, छेद-युक्त । निर्धारित, से धान्य का मलना । गोबर-खण्ड ।
निश्चित । न. छेद, खण्डन । ग्गंथ वि छिक्कोलिअ वि दे] पतला ।
[°ग्रन्थ] स्नेह-रहित । पुं. त्यागी, मुनि, छिक्कोवण [दे] देखो छिक्कोअण ।
निर्ग्रन्थ । °च्छेय पुं [°च्छेद] नय-विशेष, छिग्ग (शौ) सक [ छुप् ] छूना ।।
प्रत्येक सूत्र को दूसरे सूत्र की अपेक्षा से रहित छिच्चोलय पुं [दे] देखो छिव्वोल्ल ।
माननेवाला मत । °द्धाणंतर वि [ध्वान्तर] छिच्छई देखो छिछई।
जहाँ गाँव, नगर वगैरह कुछ भी न हो ऐसा छिच्छय देखो छिछय।
रास्ता । मडंब वि [°मडम्ब] जिस गाँव छिच्छिकार पुं. निवारण-सूचक या घृणा-सूचक
या शहर के समीप में दूसरा गाँव वगैरह न शब्द, छिः, छि।
हो। रुह वि. काट कर बोने पर भी पैदा छिछि अ [ दे. धिकधिक् ] छि-छि, धिक्
होनेवाली वनस्पति । धिक्, अनेक धिक्कार ।
छिन्नाल वि [दे] हल की जात का बेल आदि । छिज्ज देखो छिद - छिद् ।
छिन्नालिंगा स्त्री [दे] स्थलचर पक्षि-विशेष । छिन्न वि [छेद्य] खण्डित किया जा सके । देखो छिण्णालिआ। छेदने-योग्य । न. छेद, विच्छेद ।
छिप्प न [क्षिप्र] जल्दी । तूर न [°तूर्य] छिजंत विक्षिीयमाण] क्षय पाता, दुर्बल होता। शीघ्र बजाया जाता एक बाजा, तुरही। छिड्ड न [छिद्र] विवर । अवकाश, अवसर । छिप्प न [दे] भिक्षा, भीख । पुच्छ । दूषण, दाष । °पाणि पुं. एक प्रकार का जैन | छिप्पंती स्त्री [दे] व्रत-विशेष । उत्सव-विशेष । साधु ।
छिप्पंदूर न [दे] गोमय-खण्ड । वि. विषम, छिड्डु पुन [छिद्र] आकाश ।
कठिन । छिण्ण देखो छिन्न ।
छिप्पाल पुं [दे] खाने में लगा हुआ बैल । छिण्ण पुं [दे] जार ।
छिप्पालुअ न [दे] पूंछ ।
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३३४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
छिप्पिअ-छुद्ध छिप्पिअ वि [दे] क्षरित, टपका हुआ। छीअ स्त्रीन [क्षुत] छींक । छिप्पिंडी स्त्री [दे]व्रत-विशेष । उत्सव-विशेष । छीण वि [क्षीण] क्षय-प्राप्त, कृश । पिष्ट, पिसान ।
छीर न [क्षीर] पानी । दूध । °बिराली स्त्री छिप्पीर न [दे] पलाल, तण ।
। [विडाली] वनस्पति-विशेष, भूमि-कूष्माण्ड । छिप्पोल्ली स्त्री [दे] अजादि की विष्ठा । । छीरल पुं क्षीरल] हाथ से चलनेवाला एक छिब्भ सक [ क्षिप् ] फेंकना।
तरह का जन्तु, साँप की एक जाति । छिमिछिमिछिम अक [छिमिछिमाय ] | छीवोल्लअ [दे] देखो छिव्वोल्ल । 'छिम-छिम' आवाज करना।
छु सक [क्षुद्] पीसना । पीलना । छिरा स्त्री [शिरा] नस, नाड़ी।
छुअ देखो छीअ। छिरि पुं [दे] भालू की आवाज ।
छुअ देखो छुव । छिल्ल न [दे] छिद्र । कुटिया, छोटा घर।। छुई स्त्री [दे] बकपंक्ति। बाड़ का छिद्र । पलाश का पेड़ ।
छंछुई स्त्री [दे] कपिकच्छु, केवाँच का पेड़ । छिल्लर न [दे] छोटा तलाव।
छुछुमुसय न [दे] रणरणक, उत्सुकता, छिल्लर वि [दे] असार, छिछरु, खालीं। उत्कण्ठा । छिल्ली स्त्री [दे] शिखा, चोटी।
छंद वि [ आ + क्रम् ] आक्रमण करना । छिव सक [ स्पृश् ] स्पर्श करना ।
छंद सक [दे] बहु, प्रभूत । छिवट्ठ [दे] देखो छेवट्ठ।
छुक्कारण न [धिक्कारण] धिक्कारना, छिवा स्त्री [दे] चिकना चाबुक ।
निन्दा । छिवाडिआ । स्त्री [दे] वल्लि वगैरह की छुच्छ वि [तुच्छ] क्षुद्र, हलका । छिवाडी ) फली, सीम या सेम । पतले छुच्छुक्कर सक [छुच्छु + कृ] श्वानादि को पन्नेवाली ऊँची पुस्तक, जिसके पन्ने विशेष बुलाने की आवाज करना । लम्बे और कम चौड़े हों ऐसी पुस्तक । छुट्ट अक [ छुट् ] छूटना, बन्धन-मुक्त होना । छिविअ न [दे] ईख का टुकड़ा।
छुट्ट वि [छुटित] छूटा हुआ, बन्धन-मुक्त । छिवोल्लअ [दे देखो छिन्योल्ल ।
छुट्ट वि [दे] छोटा, लघु । छिव्व वि [दे] कृत्रिम ।
छुटु वि [दे] लिप्त । क्षिप्त । छिन्वोल्ल न [दे] निन्दार्थक मुख-विकूणन, छुडु अ [दे] यदि । शीघ्र ।
अरुचि-प्रकाशक मुख-विकार-विशेष । विकू- छुड वि [क्षुद्र] तुच्छ, हलका, लघु । णित मुख ।
छुड्डिया स्त्री [क्षुद्रिका] आभरण-विशेष । छिह सक [स्पृश्] स्पर्श करना ।
छुण्ण वि [क्षुण्ण] चूर-चूर किया हुआ। छिहंड न [शिखण्ड] मयूर की शिखा ।
विहत, विनाशित । अभ्यस्त । छिहंडअ पु [दे] दही का बना हुआ मिष्टान्न ।। छत्त विछिप्त] स्पष्ट । छिहंडि पुं [शिखण्डिन् ] मोर । वि. छुत्ति स्त्री [दे] छूत, अशौच । मयूरपिच्छ को धारण करनेवाला ।
| छुद्दहीर पुं[दे] बालक । छिहली स्त्री [दे] चोटी।
छुद्दिया देखो छुड्डिया। छिहा स्त्री [स्पृहा] अभिलाप ।
छुद्ध देखो खुद्ध । छिहिंडिभिल्ल न [दे] दही ।
छुद्ध वि [दे] क्षिप्त, प्रेरित ।
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छध-छेद
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष छुध वि [क्षुध] भूखा।
| छेअ पुं [दे] अन्त, प्रान्त, पर्यन्त । देवर । छुन्न पुंन [क्षुण्ण] नपुंसक ।
एक देश, एक भाग । निविभाग अंश । छुप्पंत छुव का वकृ.।
छेअ वि [छेक निपुण । °ायरिय पुं[चार्य] छुब्भ अक [क्षुभ् क्षुब्ध होना, विचलित होना । शिल्पाचार्य, कलाचार्य। छुब्भत्थ [दे] देखो छोब्भत्थ ।
छेअ वि [दे. छेक] विशुद्ध, निर्मल । न. छुभ देखो छुह ।
कालोचित हित । छुमा देखो छमा।
छेअ पुं [छेद] विनाश । खण्ड, विभाग । छेदन, छुर सक [ छुर् ] लेप करना, लीपना । छेदन | कर्तन । छः जैन आगम-ग्रन्थ, वे ये हैंकरना । व्याप्त करना।
निशीथसूत्र, महानिशीथसूत्र, दशा-श्रुतस्कन्ध, छुर पु [क्षुर] छुरा, नापित का अस्त्र । पशु बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र, पञ्चकल्पसूत्र । अलग का नख, खुर । गोखरू का वृक्ष । बाण । न. किया हुआ अंश । कमी । प्रायश्चित्त-विशेष । तृण-विशेष । °घरय न [°गृहक] नापित के शुद्धि-परीक्षा का एक अंग, धर्म-शुद्धि जानने छुरा वगैरह रखने की थैली ।
का एक लक्षण, निर्दोष बाह्य आचरण । छुरमड्डि पु [दे] नापित ।
रिह न [ह] प्रायश्चित्त-विशेष। । छुरहत्थ पुं [दे. क्षुरहस्त] हजाम । | छेअअ , वि [छेदक] छेदन करनेवाला, छुरिआ स्त्री [दे]।
छेअग काटनेवाला। छुरिआ । स्त्री [क्षुरिका] छुरी, चाकू ।। छेअण न [छेदन] खण्डन, कर्तन, द्विधाकरण ।
न्यूनता, ह्रास । हथियार । निश्चायक वचन । छुरी स्त्री [क्षुरी] छुरी, चाकू ।
सूक्ष्म अवयव । जल-जीव-विशेष । छुल्ल देखो छुड्ड।
छेओवढावण । न [छेदोपस्थापनीय] छुल्लुच्छुल देखो चुल्लुच्छल ।
छेओवट्ठावणिय जैन संयम विशेष, बड़ी छुव सक [ छुप् ] स्पर्श करना।
दीक्षा। छुह सक [ क्षिप् ] फेंकना, डालना। छेछई [दे] देखो छिछई। छुहा स्त्री [सुधा] अमृत । खड़ी, चूना । °अर छेड [दे] देखो छिड। पुं[°कर] चन्द्र ।
जेंडा स्त्री [दे] शिखा । नवमालिका लता । छुहा स्त्री [क्षुध्] बुभुक्षा।
छेडी स्त्री [दे] छोटी गली, छोटा रास्ता ।
छेग देखो छेअ = छेक । छुहाइअ वि [क्षुधित] भूखा ।
छेन्ज देखो छिज्ज। छुहाउल - वि [क्षुधाकुल]
छेदन-क्रिया। छुहालुव [क्षुधालु]
छेण पुं [दे] चोर । छुहिअ ) वि [क्षुधित]
छेत्त देखो खेत्त। छुहिअ वि [दे] लिप्त, पोता हुआ ।
छेत्तर न [दे] सूप वगैरह पुराना गृहोपकरण । छूढ वि [क्षिप्त] क्षिप्त, प्रेरित ।
छेत्तसोवणय न [दे] खेत में जागना । छूहिअ न [दे] पार्श्व का परिवर्तन ।
छेत्तु वि [छेतृ] छेदनेवाला, काटनेवाला । छेअ सक [छेदय] छिन्न करना । तोड़वाना, | छेद देखो छेअ = छेदय । छेदवाना।
| छेद देखो छेअ = छेद ।
छुरिगा ।
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छेद वि[छेदक] छेदनेवाला । छेदण वि [छेदन] छेदन कर्ता । छेदोवद्वावणिय देखो छेओवट्ठावणिय । छेध पुं [दे] स्थासक, चन्दनादि सुगन्धि वस्तु का विलेपन | चोर |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
छेप्प न [दे. शेप] पुंछ । छेभय पुं [दे] चन्दन आदि का विलेपन, छोडिअ देखो फोडिअ ।
स्थासक ।
छेल
छेलग
छेलय
छेलावण न [ दे] उत्कृष्ट हर्ष - ध्वनि । बालक्रीडन | चीत्कार, ध्वनि विशेष | छेलियन [दे] सेण्टित, नाक छोंकने का शब्द, अव्यक्त ध्वनि विशेष ।
छेली स्त्री [दे] थोड़े फूलवाली माला । छेवग न [ दे] महामारी या मारी वगैरह फैली बीमारी |
छेदअ-जअल
छोड सक [छोटय् ] छोड़ना, बन्धन से मुक्त
करना ।
छोडय वि [दे] छोटा, लघु । ! छोडि स्त्री [दे] छोटी, लध्वी, क्षुद्र ।
पुंस्त्री [] बकरा | स्त्री. लिआ, छोढूण
'ली ।
छोडिअ वि [ छोटित ] छोड़ा हुआ, बन्धन
मुक्त किया हुआ । घट्टित, आहत ।
ज पुं. तालु स्थानीय व्यंजन वर्ण - विशेष । जस [ यत् ] जो, जो कोई । 'ज वि. उत्पन्न ।
छोढूण वि [] छोड़कर ।
छाणं छुह का संकृ. । छोप्प वि[स्पृश्य ] स्पर्श-योग्य | छोब्भ पुं [दे] पिशुन, दुर्जन | देखो छोभ । छोब्भवि [छोभ्य] क्षोभ - योग्य, क्षोभणीय । छोत्थवि [] अप्रिय, अनिष्ट ।
छो भाइती स्त्री [दे ] अस्पृश्या । द्वेष्या, अप्रीतिकर स्त्री ।
छेवट्टन [ दे. सेवार्त्त, छेदवृत्त] संहननछेवट्ट । विशेष, जिसमें मर्कट-बन्ध, बेठन और खीला न होकर यों ही हड्डियाँ आपस जुड़ी हों ऐसी शरीर रचना | कर्म - विशेष | छेवाड़ी [दे] देखो छिवाडी । छेह पुं [दे. क्षेप] प्रेरण, क्षेपण | छेहत्तर (अप) देखो छाहतरि । छोअ पुं [दे] छिलका । छोइअ पुं [दे] दास, नौकर 1
छोइआ स्त्री [] छिलका ईख वगैरह की छोह पुं [क्षेप ] फेंकना ।
छाल ।
छोक्करी स्त्री [] लड़की । छोट्टि स्त्री [दे] उच्छिष्टता, जूठाई ।
छोभ [दे] देखो छोब्भ । निस्सहाय, दीन । न. दोषारोप । दो खमासमण-रूप आघात ।
वन्दन ।
छोम देखो छउम ।
छोयर पुं [दे] छोरा, छोकरा । छोलिअ देखो छोडिअ = छोटित ।
छोल्ल सक [ तक्ष् ] छीलना, छाल उतारना । छोह पुं [दे] समूह, यूथ, जत्था | विक्षेप |
आघात ।
छोहर [दे] देखो छोयर ।
छोहिय व [क्षोभित] घबड़ाया हुआ, व्याकुल किया गया ।
ज
जअक्कार पुं [ जयकार ] जीत, अभ्युदय । जअड अक [ त्वर् ] त्वरा करना । जअल वि [दे] आच्छादित ।
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ना ।
जइ-जंत संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३३७ जइ पं [यति]जितेन्द्रिय, संन्यासी । छन्द-शास्त्र | जंगम वि. जो एक स्थान से दूसरे स्थान में जा में प्रसिद्ध विश्राम-स्थान । वि. जितना । सकता हो वह छन्द-विशेष । जइ अ [यदा] जिस समय ।
जंगल पुं [जङ्गल] सपादलक्ष देश । निर्जल जइ अ [यदि] यदि, जो । वि अ [°अपि] जो प्रदेश । न. माँस । भी।
जंगा स्त्री [दे] गोचर-भूमि । जइ अ [यत्र] जहाँ ।
जंगिअ वि [जाङ्गमिक] जंगम-सम्बन्धी। न. जइ वि [जयिन्] विजयी ।
जंगम जीवों के रोम का बना हुआ कपड़ा। जइआ अ [यदा] जिस समय ।
जंगुलि स्त्री [जाङ्गलि] विष उतारने का जइच्छा स्त्री [यदृच्छा] स्वतन्त्रता । स्वेच्छा
मन्त्र । चार ।
जंगुलिय पु [जाङ्गुलिक] गारुड़िक । जइण वि [जैन] जिनधर्मी। जिन देव से | जंगोल स्त्रीन [जाङ्गल] विष-विघातक तन्त्र, सम्बन्ध रखनेवाला।
आयुर्वेद का एक विभाग जिसमें विष की जइण वि [जयिन्] जीतनेवाला ।
चिकित्सा का प्रतिपादन है। जइण वि [जविन्] वेग-युक्त, त्वरा-युक्त। जंघा स्त्री [जना] जाँघ । °चर वि. पैर से जइत्त वि [जैत्र] विजयी । पुं. नृप विशेष ।
चलनेवाला । °चारण पुं. एक प्रकार के जैन जइय वि [जयिक] विजयी ।
मुनि, जो अपने तपोबल से आकाश में गमन जइय वि [यष्ट] याग करनेवाला ।
कर सकते है। °सन्तारिम वि [°संतार्य] जइवा अ [यदि वा] अथवा।
जाँघ तक पानीवाला जलाशय । जइस (अप) वि यादृश] जैसा ।
जंघाच्छेअ पुं [दे] चौक । जउ न [जतु] लाक्षा।
जंघामय । वि [दे] द्रुत-गामी । जउ पुं [यदु] स्वनाम-ख्यात एक राजा । जंघालुअS
सुप्रसिद्ध क्षत्रिय वंश । °णंदण पु [°नन्दन] जंघाल वि [जङ्घाल] द्रुत-गामी । यदुवंशीय । श्रीकृष्ण ।
जंत सक [ यन्त्र् ] वश करना। जकड़ना, जउ पुं [यजुष्] यजुर्वेद ।
बाँधना। जउण पुं [यमुन] स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा । जंत न [यन्त्र] कल, युक्ति-पूर्वक शिल्प आदि जउण
कर्म करने के लिए पदार्थ-विशेष, तिल-यन्त्र जउण । स्त्री [यमना] जमुना नदी ।
आदि । वशीकरण, रक्षा वगैरह के लिए किया
जाता लेख प्रयोग । संयमन, नियन्त्रण । जउणा
"पत्थर पुं [प्रस्तर] गोफण का पत्थर । जओ अ [यतः] क्योंकि, कारण कि । जिससे, °पिल्लणकम्म न [°पीडनकर्मन्] यन्त्र जहाँ से।
द्वारा तिल, ईख आदि पीलने या पेरने का जं अ [यत्] क्योंकि । वाक्यान्तर का सम्बन्ध- धंधा । पुरिस [°पुरुष] यन्त्र-निर्मित पुरुष, सूचक अव्यय । किचि अ [°किञ्चित्] जो यन्त्र से पुरुष की चेष्टा करनेवाला पुतला । कुछ, जो कोई । असम्बद्ध, अयुक्त, तुच्छ । । °वाडचुल्ली स्त्री [°पाटचुल्ली] इक्षु-रस जंकयसुकय वि [दे] थोड़े उपकार से अधीन | पकाने का चूल्हा । °हर न [°गृह] पानी का होनेवाला।
फवारावाला स्थान ।
अँउणा
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३३८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जंतु-जक्ख जंतु पुं [जन्तु] जीव, प्राणी।।
[°द्वीप ] भूखण्ड-विशेष, सब द्वीप और जंतुग न [जन्तुक] जलाशय में होनेवाला समुद्रों के बीच का द्वीप । दीवग वि तृण-विशेष ।
[°द्वीपक] जम्बूद्वीप-सम्बन्धी, जम्बूद्वीप में जंतुय वि [जान्तुक] जन्तुक नामक तृण । उत्पन्न । °दीवपण्णत्ति स्त्री [°द्वीपप्रज्ञप्ति] जंप सक [जल्प] बोलना, कहना।
जैन आगम-ग्रन्थ-विशेष । °पीढ, 'पेढ जंपण न [जल्पन] उक्ति, कथन ।
न [°पीठ]सुदर्शना-जम्बू का अधिष्ठान-प्रदेश । जंपण न [दे] अपयश । मुख ।
°पुर न. नगर-विशेष । मालि पुं[°मालिन्] जंपय वि [जल्पक] बोलनेवाला ।
रावण का एक पुत्र, रावण का एक सुभट । जंपाण न [जम्पान] वाहन-विशेष, सुखा- °मेघपुर न. विद्याधर-नगर-विशेष । °संड पुं सन, शिविका-विशेष । शव-यान ।
[°षण्ड] ग्राम-विशेष । °सामि पुं [स्वाजंपिच्छय वि [दे] जिसको देखे उसी को मिन्] सुप्रसिद्ध जैन मुनि-विशेष । चाहनेवाला।
जंबूअ पुं [जम्बूक] सियार । जंपेक्खिरमग्गिर : वि [दे] जिसको देखे । जंबूणय न [जाम्बूनद] सुवर्ण । पुं. स्वनामजंपेच्छिरमग्गिर । उसी की याचना करने- प्रसिद्ध एक राजा । वाला।
जंबूलय पुंन [जम्बूलक] उदक-भाजन-विशेष । जंबवई स्त्री [जाम्बवती] श्रीकृष्ण की एक
जंभ पुंदे] तुष, भूसा। पत्नी ।
| जंभग वि [जम्भक] जंभाई लेनेवाला। पुं. जंबवंत पुं [जाम्बवत्] एक विद्याधर राजा । व्यन्तर-देवों की एक जाति । जंबाल न [दे] सैवाल, जलमल |
जंभणंभण जंबाल पुंन. [जम्बाल] कर्दम । जरायु, गर्भ- जंभणभण विदे] स्वच्छन्द-भाषी। वेष्टन चर्म ।
जंभणय ) जंबीरिय (अप) न [जम्बीर] फल-विशेष । जंभणी स्त्री [जम्भणी] तन्त्र प्रसिद्ध विद्याजंबु पुं. सियार। सुधर्म-स्वामी के शिष्य, विशेष ।
अन्तिम केवली । पुन. जम्बू वृक्ष का फल, | जंभय देखो जंभग । जामुन ।
जंभल पुं [दे] जड़, सुस्त, मन्द । जंबु° देखो जंबू ।
जंभा स्त्री [जृम्भा] जंभाई । एक देवी का जंबुअ पुंदे] वेतस वृक्ष, बेंत । पश्चिम दिक्- नाम । पाल ।
जंभा । अक [जम्भ] जंभाई लेना। जंबुल पुं [दे] वानीर वृक्ष, बेंत । न. मद्य- |
जंभाअ ) भाजन ।
| जंभाइअ न [जृम्भित] जृम्भा । जंबुल्ल वि [दे] जल्पाक, बकवादी। जंभिय न [जम्भित] जंभाई। पुं. ग्राम-विशेष, जंबुवई देखो जंबवई।
जहाँ भगवान् महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न जंबू स्त्री.जामुन का पेड़ । जम्बू वक्ष के आकार | हुआ था।
का एक रत्नमय शाश्वत पदार्थ, सुदर्शना, जक्ख पुं [यक्ष] व्यन्तर देवों की एक जाति । जिसके कारण यह द्वीप जम्बूद्वीप कहलाता है। कुबेर, यक्षाधिपति । एक विद्याधर-राजा, पुं. सुधर्म-स्वामी का मुख्य शिष्य । दीव पुं जो रावण का मौसेरा भाई था । द्वीप-विशेष ।
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जंक्खरत्ति-जगुत्तम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष समुद्र-विशेष । श्वान । कद्दम पुं [कर्दम] जक्खी स्त्री [याक्षी] लिपि-विशेष । केसर, अगर, चन्दन, कपूर और कस्तूरी का जक्खुत्तम पुं [यक्षोत्तम] यक्ष-देवों को एक समभाग मिश्रण । द्वीप-विशेष । समुद्र-विशेष। अवान्तर जाति ।
गह पुं[ग्रह] यक्षावेश, यक्षकृत उपद्रव । जक्खेस पुं [यक्षेश] यक्षों का स्वामी । °णायग पु [°नायक] कुबेर । °दित्त न भगवान् अभिनन्दन का शासन-यक्ष । [°दीप्त] देखो नीचे °दित्तय। °दिन्ना जग न [यकृत्] पेट को दक्षिण-ग्रन्थि । स्त्री [°दत्ता] महर्षि स्थूलभद्र की बहिन, जग पुं [दे] जन्तु. जीव, प्राणी। एक जैन साध्वी । भद्दपु [°भद्र] यक्षद्वीप जग पुंन [जगत्] जीव । न. दुनिया । गुरु पुं. का अधिपति देव-विशेष । मंडलप-विभत्ति । जगत् में सर्वश्रेष्ठ पुरुष । जगत् का पूज्य । स्त्री [°मण्डलप्रविभक्ति] एक तरह का | जिन-देव, तीर्थकर । जीवण वि [°जीवन] नाट्य । °मह पुं. यक्ष के लिए किया जाता | जगत् को जिलानेवाला । पुं. जिन-देव । णाह महोत्सव । °महाभद्द पुं [°महाभद्र] यक्ष | पुं. [°नाथ] जगत् का पालक, परमेश्वर, द्वीप का अधिपति देव । °महावर पं. यक्ष | जिन-देव । °पियामह पुं. [ °पितामह ] समुद्र का अधिष्ठाता देव-विशेष । 'राय पुं| ब्रह्मा, विधाता। जिनदेव । °प्पगास वि [राज] यक्षों का राजा, कुबेर । प्रधान [प्रकाश] जगत् का प्रकाश करनेवाला, यक्ष । एक विद्याधर राजा। °वर पुं. यक्ष- | जगत्प्रकाशक । पहाण न [प्रधान] जगत् समुद्र का अधिपति देव-विशेष । °ाइट्ट वि | में श्रेष्ठ । [विष्ट] यक्षाधिष्ठित । दित्तय, | जगई स्त्री [जगतो] प्राकार, दुर्ग । पृथिवी । आलित्तय न [ दिप्तक] कभी-कभी किसी | जगईपव्वय पं [जगतीपर्वत] पर्वत-विशेष । दिशा में बिजली के समान जो प्रकाश होता | जगजग अक [चकास्] चमकना, दीपना। है वह, आकाश में व्यन्तर-कृत अग्नि-दीपन । जगड सक [दे] कलह करना । कदर्थन करना, आकाश में दीखता अग्नियुक्त पिशाच । वेस पीड़ना । उठाना, जागृत करना । पुं [°ावेश] यक्ष का मनुष्य-शरीर में प्रवेश । जगडण वि [दे] झगड़ा करानेवाला । कदहिव पुं [°ाधिप] वैश्रमण । एक विद्याधर र्थना करानेवा राजा। °हिवइ पुं [धिपति] देखो | | जगडणा स्त्री [दे] झगड़ा, कलह । कदर्थन, पूर्वोक्त अर्थ।
पीड़न । जक्खरत्ति स्त्री [ दे. यक्षरात्रि ] दीवाली,
जगडिअ वि [दे] विद्रावित, कथित । लड़ाया
हुआ। कात्तिक वदि अमावस का पर्व ।
जगर पुं. संनाह, कवच । जक्खा स्त्री [यक्षा] एक प्रसिद्ध जैन साध्वी,
| जगल न [दे] पङ्कवाली मदिरा, मदिरा का जो महर्षि स्थूलभद्र की बहिन थी।
नीचला भाग। ईख की मदिरा का नीचला जक्खिंद पुं [यक्षेन्द्र] यक्षों का स्वामी । भाग । भगवान् अरनाथ का शासनाधिष्ठायक देव । | जगार पुंदे] राब । जखिणी स्त्री [यक्षिणी] यक्ष-योनिक स्त्री, | जगार पुं [जकार] 'ज' वर्ण । देवियों की एक जाति । भगवान् श्रीनेमिनाथ | जगार पुं [यत्कार] 'यत्' शब्द । की प्रथम शिष्या।
जगारी स्त्री. एक प्रकार का क्षुद्र अन्न । जक्खिणी स्त्री [यक्षिणी] देखो जक्खा । जगुत्तम वि [जगदुत्तम] जगत्-श्रेष्ठ ।
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३४० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जग्ग-जड्ड जग्ग अक [जाग] जागना, सचेत होना। जट्ट पुं [जत] देश-विशेष । उस देश का जग्गविअ वि [जागरित]जगाया हुआ, नींद से | निवासी। उठाया हुआ।
जट्ठ वि [इष्ट] याग किया हुआ । न [इष्ट] जग्गह पुं यद्ग्रह] जो प्राप्त हो उसे ग्रहण यजन, यज्ञ । करने की राजाज्ञा ।
जट्टि स्त्री [यष्टि] लकड़ी। जग्गाविअ देखो जग्गविअ ।
जड वि. अचेतन पदार्थ । मूर्ख, आलसी, विवेकजग्गाह देखो जग्गह।
शून्य । शिशिर, जाड़े से ठंडा होकर चलने को जघण न [जघन] कमर के नीचे का भाग, अशक्त । ऊरुस्थल।
जड देखो जढ । जच्च पुं [दे] आदमी।
जड । स्त्री [जटा] सटे हुए बाल, मिले हुए जच्च वि [जात्य] कुलीन, श्रेष्ठ, सुन्दर । स्वा- | जडा) बाल । °धर वि. जटा को धारण भाविक । सजातीय, शुद्ध ।
करनेवाला । पुं. जटाधारी तापस । धारि पुं जच्चंजण न [जात्याञ्जन] सुन्दर आँजन । तैल [°धारिन्] देखो पूर्वोक्त अर्थ। वगैरह से मदित अञ्जन ।
जडहारि देखो जड-धारि। जच्चंदण न [दे] अगरु । कुंकुम, केसर । | जडाउ ।' [जटायु] स्वनाम-प्रसिद्ध गृद्ध जच्चंध वि [जात्यन्ध] जन्मान्ध ।
जडाउण , पक्षि-विशेष । जच्चण्णिय वि [जात्यन्वित] सुकुल में उत्पन्न । जडागि पुं [जटाकिन्] ऊपर देखो। जच्चास पुं [जात्यश्व, जात्याश्व] उत्तम जाति जडाल वि [जटावत्] जटाधारी । का घोड़ा।
जडासुर पुं [जटासुर] असुर-विशेष । जच्चिय (अप) वि [जातीय] समान जाति का। जडि वि [जटिन्] जटावाला। पुं. जटाधारी जच्चिर न [यच्चिर] जहाँ तक, जितने समय तक ।
जडिअ वि [जटित] ढका हुआ। जच्छ संक [यम्] विराम करना । देना, दान
जडिअ वि [दे. जटित] जड़ित, जड़ा हुआ, करना।
खचित, संलग्न । जच्छ पुं यक्ष्मन्] क्षयरोग ।
जडिम पुंस्त्री [जडिमन्] जड़ता। जच्छंद वि [दे] स्वच्छन्द ।
जडियाइलग । पुं [दे. जटिकादिलक] ग्रहजज देखो जय = यज ।
जडियाइलय विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देवजजु देखो जउ = यजुः ।
विशेष । जज्ज वि [जय्य] जीतने को शक्य ।
जडिल वि [ जटिल ] जटा-युक्त । व्याप्त, जजर वि [जर्जर जीर्ण, सच्छिद्र, खोखला । खचित, जटाधारी तापस। . जन्जर सक [जर्जरय] जीर्ण करना, खोखला जडिलय पुं[दे. जटिलक] राहु । करना।
जडिलिय । वि [जटिलित] जटिल किया जज्जिग पुं [जय्यिक] एक जैन आचार्य का जडिलिल्ल हुआ, जटा-युक्त किया हुआ। नाम ।
जडिल्ल वि [जटिन] जटावाला । जज्जिय। न [यावज्जीव] जीवन-पर्यन्त । जडुल देखो जडिल। जज्जीव
जड्ड वि [दे] अशक्त ।
तापस
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जडु -
-जण्णयत्ता
जडु न [जाड्य] जड़पन | देखो
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
|
डु पुं [] हाथी |
ड्ड स्त्री [] जाड़ा, शीत । जढ वि [ त्यक्त] परित्यक्त, वर्जित । जढर न [जठर ] पेट |
जदल
जण सक [जनय् ] उत्पन्न करना,
पैदा करना । पुं [न] मनुष्य | लोग, व्यक्ति । देहाती मनुष्य | समुदाय, वर्ग, लोक | वि. उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला | जत्ता स्त्री [यात्रा] जन-समागम । ट्ठाण न [स्थान ] दण्डकारण्य | नासिक नगर । व पुं [पति] लोगों का मुखिया । " वय पुं ['व्रज] मनुष्यसमूह | 'वाय पुं. [वाद] जन श्रुति, उड़ती खबर | मनुष्यों की आपस में चर्चा | लोकापवाद | इस्त्री ['श्रुति] किंवदन्ती । विवाय पुं [पवाद ] लोक में निन्दा | जrs स्त्री [ जनिका ] उत्पादिका । उत्पन्न
करनेवाली ।
जणइउ पुं [ जनयितृ ] जनक | वि. जणुक्कलिआ स्त्री [जनोत्कलिका] मनुष्यों का जणइत्तु उत्पादक । छोटा समूह
जणउत्त पुं [दे] ग्राम का प्रधान पुरुष, गाँव जणुम्मि स्त्री [जनोमि ] तरंग की तरह का मुखिया । विट, भाँड़, विदूषक ।
मनुष्यों की भीड़ ।
जणंगम पुं ं [जनङ्गम] चाण्डाल । जणग देखो जणय ।
जणेर (अप) वि [ जनक ] उत्पादक । पुं. बाप | जरि (अप) स्त्री [जननी] माता । जण पुं [ यज्ञ ] यज्ञ । देव पूजा । श्राद्ध | इ, ● जाइ वि [ याजन् ] यज्ञ करनेवाला | ' इज्जवि ['ज्ञीय ] यज्ञ-सम्बन्धी | न. 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक प्रकरण । ट्ठाण न [स्थान ] यज्ञ का स्थान । नगर- विशेष नासिक | मुह न [मुख ] यज्ञ का उपाय | 'वाड ['वाट ] यज्ञ-स्थान | सेपुं
जणण न [जनन] जन्म देना, पैदा करना । वि. उत्पादक, जनक |
जणणि
स्त्री [जननी, नी] माता । जणणी उत्पादिका ।
जणण पुं [जनार्दन] श्रीकृष्ण, विष्णु । जणप्पवाद' [ जनप्रवाद ] लोकोक्ति, अफ
वाह |
जण अअ [ जनमेजय ] स्वनाम - प्रसिद्ध नृप - विशेष |
जणमेजय देखो जणमेअअ ।
३४१
जणय वि [ जनक ] उत्पादक । पुं. पिता 1 | देखो जण = जन | मिथिला का राजा जनक, सीता का पिता । पुंन ब. माता-पिता । 'तणआ स्त्री ['तनया ] सीता । दुहिया, धूआ [दुहितृ] वही अर्थ । नदण पुं [" नन्दन] राजा जनक का पुत्र, भामण्डल | 'नंदणी स्त्री [नन्दनी] सीता, जानकी । दिणी स्त्री [नन्दिनी] वही अर्थ | 'निवतणया स्त्री ['नृपतनया ] राजा जनक की पुत्री । पुत्ती स्त्री [° पुत्री ] वही अर्थ | सुअ [सुत] जनक राजा का पुत्र, भामण्डल । "सुआ स्त्री [° सुता ] सीता । जणयंगया स्त्री | जनकाङ्गजा ] सीता । जणवय पुं [ जनपद ] देश, राष्ट्र, लोकालय | देश- निवासी । प्रजा ।
जणवय वि [ जानपद ] देश का निवासी । जणस्सु स्त्री [जनश्रुति ] किंवदन्ती । जणि (अप) अ [ इव] तरह, जैसा । जणी स्त्री [जनी] महिला । जणु देखो जणि ।
[श्रेष्ठ] उत्तम याग |
जण्णय देखो जणय ।
जयत्ता स्त्री | दे. यज्ञयात्रा ] बारात ।
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३४२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जण्णसेणी-जमय जण्णसेणी स्त्री [याज्ञसेनी] द्रौपदो। जन्तु देखो जाणु । जण्णहर ' [द] नर-राक्षस, दुष्ट-मनुष्य ।। जन्नोवइय देखो जण्णोवईय । जण्णिय पुं [याज्ञिक] यज्ञ करानेवाला । जप देखो जव = जप् । जण्णोवईय । न [यज्ञोपवीत] जनेऊ । - जप्प देखो जंप। जण्णोववीय
जप्प [जल्प] उक्ति। छल का उपालम्भ जण्णोहण पुं [दे] राक्षस, पिशाच ।
रूप भाषण । जण्ह नादे]छोटी स्थाली । वि. काले रंग का। जप्प वि [याप्य] गमन करने योग्य । जाण जण्हई स्त्री [जाह्नवी] गंगा नदी।
न [प्यान] शिविका । जण्हली स्त्री [दे] नीवी, इजारबन्द।
जप्पभिइ । अ [यत्प्रभृति] जब से, जहाँ जण्हवी स्त्री [जाह्नवी] सगर चक्रवर्ती की जप्पभिई से लेकर ।
एक पत्नी, भगीरथ की जननी । गङ्गा-नदी। जम सक [ यमय् ] नियन्त्रण करना । जमाना, जण्हु पुं [जह्न] भरत-वंशीय एक राजा।
स्थिर करना।
जम पुं [यम] अहिंसादि पाँच महाव्रत, साधु सुआ स्त्री [°सुता] भागीरथी।
का व्रत । दक्षिण दिशा का एक लोकपाल, जण्हुआ स्त्री [दे] घुटना।
देव-विशेष, जमराज । भरणी नक्षत्र का अधिजण्हुकन्ना स्त्री [जह्नकन्या ] गंगा-नदी।
पति देव । किष्किन्धा नगरी का एक राजा । जत्त देखो जय = यत् ।
तापस-विशेष । मृत्यु । संयमन । °काइय पुं जत्त पुं [यत्न] उद्योग, उद्यम, चेष्टा ।
[°कायिक] असुर-विशेष, परमाधार्मिक देव, जत्ता स्त्री [यात्रा] देशान्तर-गमन । गमन ।। जो नारकी के जीवों को दुःख देते हैं । °घोस
देव-पूजा के निमित्त किया जाता उत्सव- पुं [°घोष] ऐरवत वर्ष के एक भावी जिनविशेष, अष्टाहिका, रथ-यात्रा आदि । तीर्थ
देव । "पुरी स्त्री. जम की नगरो। 'पभ पुं गमन । शुभ-प्रवृत्ति।
[प्रभ] यमदेव का उत्पात-पर्वत । °भड पुं जत्ता स्त्री [यात्रा संयम-निर्वाह ।
[°भट] यमराज का सुभट । °मंदिर न जत्ति स्त्री [दे] चिन्ता । सेवा, शुश्रूषा ।
[°मन्दिर] यमराज का घर, मृत्यु-स्थान । जत्तिअ देखो यत्ति।
लय न. पूर्वोक्त ही अर्थ । जत्तिय वि [यावत्] जितना ।
| जमग पुं [यमक] पक्षि-विशेष । देव-विशेष । जत्तो देखो जओ।
पर्वत-विशेष । द्रह-विशेष । देखो जमय । जत्थ अ [यत्र] जहाँ, जिसमें ।
जमगं । अ [दे] एक साथ, एक ही जदि देखो जइ = यदि ।
जमगसमगं) समय में । जदिच्छा देखो जइच्छा।
जमणिया स्त्री [जमनिका] जैन साधु का जदु देखो जउ = यदु ।
उपकरण-विशेष । जद्दर पुन [दे] वस्त्र-विशेष ।
| जमदग्गि पुं [जमदग्नि] तापस-विशेष, परशुजधा देखो जहा।
राम का पिता। जन्न वि [जन्य] लोक-हितकर । उत्पन्न होने जमदग्गिजडा स्त्री [यमदग्निजटा] गन्धयोग्य ।
द्रव्य-विशेष, सुगन्धबाला। जन्नत्ता 1 स्त्री [दे] बारात ।
जमय देखो जमग । न. अलंकार-शास्त्र में जन्ना
| प्रसिद्ध अनुप्रास-विशेष । छन्द-विशेष ।
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जमल- जयंत
जमल न[ यमल ] युग्म । समान श्रेणि में स्थित । सहवर्त्ती । तुल्य । 'ज्जुणभंजग पुं [र्जुनभञ्जक ] श्रीकृष्ण वासुदेव । पद, पय न [पद] प्रायश्चित्त-विशेष । आठ अंकों की संख्या । पाणि पुं. मुष्टि । जलिय वि [मलित ] युग्म रूप से स्थित । सम-श्रेणि रूप से अवस्थित । जमलोइय वि[यमलौकिक ] यमलोक - सम्बन्धी परमाधार्मिक देव, असुरों की एक जाति । जमा स्त्री [ यामी] दक्षिण दिशा । जमालि पुं. एक राजकुमार, जो भगवान् महावीर का जामाता था, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी और पीछे से अपना अलग पन्थ निकाला था ।
जमावण न [ यमन ] नियन्त्रण करना । विषम वस्तु को सम करना ।
जमुना देखो जँउणा ।
जमू स्त्री. ईशानेन्द्र की एक अग्रमहिषी का नाम । जम्म अक [ जन् ] उत्पन्न होना । जम्म सक [जम् ] भक्षण करना । जम्म पुंन [ जन्मन् ] जन्म, उत्पत्ति, जम्मण उत्पाद |
जम्मा स्त्री [ याम्या ] दक्षिण दिशा ।
जम्हाअ
जम्हाह
जम्हाहा
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
देखो जंभाअ ।
जय सक [जि] जीतना । अकः उत्कृष्टपन से
बरतना ।
जय सक [ यज् ] पूजा करना । याग करना । जय अक [ यत् ] यत्न करना, चेष्टा करना ।
ख्याल करना ।
जय न [ जगत् ] संसार । ' तय न [य] स्वर्ग, मर्त्य और पाताल लोक । नाह पुं [नाथ] परमात्मा । ° पहु पुं [प्रभु ] परमेश्वर | णंद वि[[नन्द ] जगत् को आनन्द देनेवाला ।
३४३
जय वि [यत ] जितेन्द्रिय | उपयोग रखने वाला । न छठवाँ गुणस्थानक । उपयोग,
सावधानता ।
जय पुं. [ जव] वेग, दौड़ ।
जय पुं जीत । स्वनाम - प्रसिद्ध एक चक्रवर्ती राजा । [ ] नगर- विशेष । 'कम्मा स्त्री [कर्मा ] विद्या - विशेष | 'घोस पुं [घोष ] जयध्वनि | स्वनाम - प्रसिद्ध एक जैन मुनि | चंद पुं ['चन्द्र ] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का कन्नौज का एक अन्तिम राजा । पन्नरहवीं शताब्दी का एक जैनाचार्य । ' जत्ता स्त्री [यात्रा] शत्रु पर चढ़ाई | 'पाया स्त्री [पताका ] विजय का झण्डा । °पुर देखो 'उर | मंगला स्त्री ['मङ्गला ] एक राजकुमारी । लच्छी स्त्री विजयश्री । वत वि [ 'वत् ] विजयी | 'वल्लहपुं ['वल्लभ ] नृप - विशेष | ° संध पुं [सन्ध] पुण्डरीक नामक राजा का एक मन्त्री | संधि [° सन्धि ] वही पूर्वोक्त अर्थ | सद्द पुं[शब्द] विजय सूचक आवाज । सिंह पुं. सिंहल द्वीप का एक राजा । विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा, जिसका दूसरा नाम 'सिद्धराज' था | जैनाचार्य - विशेष । °सिरि स्त्री [श्री] जयलक्ष्मी | सेण पुं [ °सेन] एक राजा | वह वि. विजयी । विद्याधर नगर - विशेष ।
['लक्ष्मी]
हपुर न. एक विद्याधर नगर । वास न. विद्याधरों का एक नगर । जय पुं [य] प्रयत्न, चेष्टा ।
जय पुंस्त्री [जया ] तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि ।
जय° देखो जया = यदा । [प्रभृति] जिस समय से ।
भिइ अ
जयंत पुं [ जयन्त ] इन्द्र का पुत्र । एक भावी बलदेव | एक जैन मुनि । इस नाम के देवविमान में रहनेवाली एक उत्तम देव-जाति ।
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३४४
जम्बूद्वीप की जगती के पश्चिम द्वार का एक देव-विमान- विशेष | पश्चिम द्वार । रुचक
अधिष्ठाता देव । न. जम्बूद्वीप की जगती का पर्वत का एक शिखर । जयंती स्त्री [ जयन्ती ] पक्ष की नववों रात | भगवान् अरनाथ की दीक्षा शिविका । वल्लीविशेष, अरणी, वर्ष-गाँठ । सप्तम बलदेव की माता । विदेह वर्ष की एक नगरी । अंगारकनामक ग्रह की एक अग्र-महिषी । जम्बूद्वीप के मेरु से पश्चिम दिशा में स्थित रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । भगवान् महावीर की एक उपासिका । भगवान् महावीर के आठवें गणधर की माता । अञ्जनक पर्वत की एक वापी । नवमी तिथि । जैन मुनियों की एक शाखा ।
जयण न [ यजन ] याग, पूजा । अभयदान । जयण न [यतन ] यत्न, चेष्टा, उद्यम । प्राणी की रक्षा ।
जयण वि [जवन] वेग-युक्त |
जयण न [जयन] विजय । वि. जीतनेवाला । जयण न [दे] घोड़े का बख्तर । जयणा स्त्री [यतना ] चेष्टा, कोशिश । प्राणी
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
की रक्षा | उपयोग, किसी जीव को दुःख न हो इस तरह प्रवृत्ति करने का ख्याल । जयद्दह पुं [ जयद्रथ] सिन्धु देश का स्वनामप्रसिद्ध एक राजा जो दुर्योधन का वहनोई
था ।
जया अ [ यदा] जिस समय । जया स्त्री. विद्या विशेष । चतुर्थ चक्रवर्ती राजा की अग्रमहिषी । भगवान् वासुपूज्य की स्वनामख्यात माता । तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि । भगवान् पार्श्वनाथ को शासनदेवी । ओषधि-विशेष |
जयार पुं [जकार] 'ज' अक्षर । जकारादि अश्लील शब्द |
जयिण देखो जइण = जयिन् ।
जयंती - जल
जर अक [[ ] जीर्ण होना, बूढ़ा होना । जर पुं. [ज्वर] बुखार | जर पुं. रावण का एक सुभट । वि. जीर्ण, पुराना | गव पुं [गव] बूढ़ा बैल | गुपुं [° गु] बूढ़ा बैल | स्त्री. बूढ़ी गाय | जर देखो जरा ।
जरंड वि [दे] वृद्ध, बूढ़ा । जरग्गवि [जरत्क] जीर्ण, पुराना । जरठ वि. कठिन, पुरुष । जीर्ण, पुराना । देखो
जरढ ।
जरड वि [दे] वृद्ध |
जरढ देखो जरठ । प्रौढ, मजबूत । जरण न. जीर्णता, हाजमा ।
जरय पुं [जरक] रत्नप्रभा नामक नरक- पृथिवी का एक नरकावास | मज्झ पुं [ मध्य ] नरकावास - विशेष | वित्त पुं [°ावर्त] नरकावास - विशेष | | वसिट्ठपुं [वशिष्ट ] नरकावास - विशेष ।
जरलद्धिअ जलवि
}
वि [दे] ग्रामीण |
जरा स्त्री. बुढ़ापा । वसुदेव की एक पत्नी । " कुमार पुं. श्रीकृष्ण का एक भाई । 'संघ पुं [° सन्ध] राजगृह नगर का एक राजा, नववाँ प्रतिवासुदेव | सिध पुं [सिन्ध] वही पूर्वोक्त अर्थ । सिंधु [ सिन्धु ] वही पूर्वोक्त अर्थ |
जरा हिरण (अप) देखो जल-हरण । जरि वि [ज्वरिन्] ज्वर से पीड़ित । रवि [रिन्] जरा-युक्त, वृद्ध । रिअवि [ज्वरित] ज्वर-युक्त, बुखारवाला । जल अक [ ज्वल ] दग्ध होना | चमकना । जल देखो जड |
जल न [जाड्य ] जड़ता, मन्दता । जल पुं [ज्वल] देदीप्यमान |
जल न. वीर्यं । 'कंत पुंन [कान्त] एक देवविमान । कारि पुंस्त्री [कारिन्] चतु
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जल-जलण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रिन्द्रिय जन्तु-विशेष । °य वि [ज] पानी में रुह पुन. पानी में पैदा होनेवाली वनस्पति । उत्पन्न । °वारिअ पुं[°वारिक चतुरिन्द्रिय रूव पुं [रूप] जलकान्त-नामक इन्द्र का जन्तु की एक जाति ।
। एक लोकपाल । 'लिल्लिर न. पानी में उत्पन्न
होनेवाली वस्तु-विशेष । "वायस पुंस्त्री. जलजल न. पानी। पुं. जलकान्त-नामक इन्द्र का ।
कौआ। ‘वासि वि [ 'वासिन् ] पानी में एक लोकपाल । °कंत पुं [°कान्त] मणि
रहनेवाला । पुं. तापसों की एक जाति, जो विशेष, रत्न की एक जाति । उदधिकुमार
पानी में हो निमन्न रहते हैं । °वाह पु. मेघ । नामक देव-जाति का दक्षिण दिशा का इन्द्र ।
जन्तु विशेष । विच्छुय पुं[वृश्चिक पानी जलकान्त इन्द्र का एक लोकपाल ।
का बिच्छू, चतुरिन्द्रिय जन्तु विशेष । वीरिय करप्फाल पुं [°करास्फाल] हाथ से आहत .
पुं [वीर्य] इक्ष्वाकु वंश का एक राजा । पानो । °करि पुंस्त्री [°करिन्] पानी का
क्षुद्र कीट-विशेष, चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक हाथी, जल-जन्तु-विशेष। कलंब पुं
जाति । °सय न [°शय कमल । °साला [°कदम्ब] कदम्ब वृक्ष की एक जाति । कीडा, कोला स्त्री [°क्रीडा] पानी में की
स्त्री [°शाला] प्रपा, प्याऊ । 'सूग न
- [°शूक] शैवाल । जलकान्त-नामक इन्द्र का जाती क्रीड़ा। केलि स्त्री. जल-क्रीड़ा । °चर
एक लोकपाल । ‘सेल पुं [शैल] समुद्र के देखो यर। "चार पुं. पानी में चलना ।
भीतर का पर्वत । °हत्थि पुं [ हस्तिन् ] °चारण पुं. जिसके प्रभाव से पानी में भी भूमि की तरह चला जा सके ऐसी अलौकिक
जलहस्ती, पानी का एक जन्तु । °हर पुं शक्ति रखनेवाला मुनि । °चारि [°चारिन्]
[°धर] अभ्र । एक विद्याधर सुभट । हर पानी में रहनेवाला जन्तु । °चारिया स्त्री
पुं [°भर] जल समूह । हर न [°गृह] [°चारिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय
सागर । हरण न. पानी की क्यारी । छन्द
विशेष । °हि पुं [°धि] समुद्र । चार की जीव की एक जाति । °जंत न [यन्त्र]
संख्या । °सय पुंन[°ाशय] सरोवर, तलाव । पानी का यन्त्र, पानी का फवारा । °णाह पुं
जलइय पुं [जलकित] जलकान्त-नामक इन्द्र [°नाथ] समुद्र । °णिहि पुं[°निधि]सागर ।
का एक लोकपाल । °णीली स्त्री [°नीली] शैवाल । तुसार पुं [°तुषार] पानी का बिन्दु । थंभिणी स्त्री
। जलंजलि पुं [जलाञ्जलि] तर्पण, दोनों हाथों [°स्तम्भिनी] विद्या-विशेष । °द पुं. मेघ ।
में लिया हुआ जल । °द्दा स्त्री [TH] पानी से भींजाया हुआ जलग पुं [ज्वलक] अग्नि । पंखा । °प्पभ पुं [प्रभ] उदधिकुमार नामक जलजलिअ वि [जलजलित] 'जल-जल' शब्द देव-जाति का उत्तर दिशा का इन्द्र । जल- से युक्त । कान्त नामक इन्द्र का एक लोकपाल । °य जलजलिंत वि[जाज्वल्यमान] देदीप्यमान । न [ज] कमल । °य देखो °द । °यर पुंस्त्री जलण पुं [ज्वलन] वह्नि । अग्निकुमार-नामक [°चर] जल में रहनेवाला ग्राहादि जन्तु ।। देव-जाति । वि. जलता हुआ। चमकता । रंकु पुं [रङ्क] ढेक-पक्षी । "रक्खस पुं जलानेवाला । न. अग्नि सुलगाना । जलाना, [राक्षस] राक्षस की जाति । °रमण न.. भस्म करना । जडि पुं [ जटिन् ] विद्याजल-केलि । °रय पुं. जलप्रभ-नामक इन्द्र का धर वंश का एक राजा । °मित्त पुं[मित्र एक लोकपाल । °राशि पुं [ राशि] समुद्र ।। एक प्राचीन कवि ।
|
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जलावण न [ज्वालन] जलाना, दग्ध करना । अवि [ज्वलित ] जला हुआ, प्रदीप्त | उज्ज्वल, कान्ति-युक्त |
जलिर वि [ज्वलितृ] जलता, सुलगता । जलगा स्त्री [ जलौकस् ] जन्तु - विशेष, जोंक, जलिका, जल का कीड़ा ।
}
जलूया
पक्षि - विशेष |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जलूसग पुं [दे] रोग विशेष ।
जलोयर न[जलोदर ] जलन्धर रोग । जठराम । जोया देखो जलूया ।
जल्ल पुं [दे. जल्ल] शरीर का मैल । नट की एक जाति, रस्सी पर खेल करनेवाला नट । बन्दी, दिरुद पाठक । एक म्लेच्छ देश । उस देश में रहनेवाली म्लेच्छ जाति । जल्लार पुं. एक अनार्य देश । जल्लार देश का निवासी ।
जल्लिय न. [ दे. जल्लक] शरीर का मैल | जल्लोसहि स्त्री [दे. जल्लोषधि] एक तरह की आध्यात्मिक शक्ति, जिसके प्रभाव से शरीर के मैल से रोग का नाश होता है । जव सक [ यापय् ] गमन करवाना, भेजना ।
व्यवस्था करना ।
जव सक [ यापय् ] काल- यापन करना । जव सक [ जप् ] जाप करना, बार-बार मन ही मन देवता का नाम स्मरण करना, पुनः पुनः मन्त्रोच्चारण करना ।
जव पुं [व] अन्न- विशेष, जव या जौ । यूका की नाप । पुंन. एक देव - विमान । 'णाली स्त्री [नाली ] वह नाली जिसमें जौ बोये जाते हों । 'नालय पुं ['नालक] कन्या का कञ्चुक । नन [[न] यव- निष्पन्न परमान्न, जव की खीर, जाउर । मज्झ न [" मध्य ] तप - विशेष । आठ यूका की एक नाप | मज्झा स्त्री [° मध्या] व्रत- विशेष प्रतिमा विशेष | राय पुं[° राज] नृप - विशेष | ● सा स्त्री [° वंशा] वनस्पति- विशेष ।
जलावण-जस
जव पुं. वेग, दौड़, शीघ्र गति । जवजव पुं [यवयव ] एक तरह का यव-धान्य । जवण न [दे] हल की शिखा ।
जवण वि [जवन] वेग से जानेवाला । पुं. शीघ्र गति ।
जवण पुं [ यवन] म्लेच्छ देश - विशेष । उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति । यवन देश का
राजा ।
जवण न [ यापन ] निर्वाह । जवणा स्त्री [यापना] ऊपर देखो । जवणाणिया स्त्री [ यवनानिका ] लिपि विशेष । जवणालिया स्त्री [ यवनालिका ] कन्या का
कञ्चुक |
जवणि
स्त्री [ यवनिका ] परदा ।
जवणी स्त्री [यवनी] परदा । संचारिका दूती । जवणी स्त्री [यावनी] यवन की स्त्री । यवन की लिपि ।
जवपचमाण पुं [दे] जात्यश्व का वायु- विशेष, प्राण वायु ।
जवय
' [ दे] जव का अङ्कुर ।
जवरय
जवली स्त्री [दे] वेग |
जववारय [ दे] देखो जवरय । जवस न [ यवस] घास | गेहूँ वगैरह जवा स्त्री [जपा] वल्ली-विशेष,
धान्य ।
जवा - पुष्प
का वृक्ष | गुड़हल का फूल, अड़हुल का पुष्प । जवास [यवास] वृक्ष - विशेष, रक्त पुष्पवाला वृक्ष-विशेष |
वि [ जविन् ] वेग-युक्त । पुं.
अश्व ।
जवि
जविण
जवि वि [जपित] जिसका हो वह ( मन्त्र आदि) । न आदि ग्रन्थांश |
जविय वि [यापित ] गमित गुजरा हुआ । नाशित।
"
जस पुं [ यशस् ] कीर्ति, इज्जत । संयम,
जाप किया गया अध्ययन, प्रकरण
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जसंसि - जहा
त्याग | विनय । भगवान् अनन्तनाथ का प्रथम शिष्य । भगवान् पार्श्वनाथ का आठवाँ प्रधान शिष्य । कित्ति स्त्री [कीर्त्ति ] सुप्रसिद्धि । 'भद्द पु[°भद्र ] एक जैन आचार्य । 'म, मंत वि [ 'वत् ] यशस्वी, इज्जतदार | पु. एक कुलकर पुरुष । 'वई स्त्री [ती] द्वितीय चक्रवर्त्तीसगरराज की माता । तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी की रात्रि । वम्म पुं [ 'वर्मन् ] नृप-विशेष | 'वाय ' ['वाद] साधुवाद, प्रशंसा | विजय पुं. विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के न्यायाचार्य श्रीमान् यशोविजय उपाध्याय । हर पुं. ['धर ] भारतवर्ष का भूतकालिक अठारहवाँ जिनदेव । भारतवर्ष के एक भावी जिन देव । एक राजकुमार । पक्ष का पाँचवाँ दिन । वि. यशस्वी | देखो जसो' ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जसंसि पुं [ यशस्विन् ] भगवान् महावीर के पिता का नाम ।
जसद पुं. धातु- विशेष, जस्ता । जसदेव पुं [ यशोदेव] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य | भद्द पुं. [ यशोभद्र] पक्ष का चतुर्थ दिवस । एक राजर्षि । न. उड्डुवाटिक गण का एक कुल ।
दौहित्री का नाम ।
जसस्सि वि [ यशस्विन् ] कीर्तिमान् । जसहर पुन [ यशोधर] एक देव-विमान | जसा स्त्री [यशा ] कपिलमुनि की माता । जसो देखो जस । आ स्त्री ['दा] नन्द
नामक गोप की पत्नी । भगवान् महावीर की पत्नी । कामिवि [कामिन्] यश चाहनेवाला । कित्तिनाम न ['कीर्त्तिनामन् ] कर्म- विशेष, जिसके प्रभाव से सुयश फैलता है । 'धर पुं. धरणेन्द्र के अश्व- सैन्य का अधिपति देव | ग्रैवेयक देवलोक का प्रस्तर । 'हरा ['धरा ] दक्षिण रुचक पर्वत पर रहनेवाली
३४७
एक दिशाकुमारी देवी | जम्बू-वृक्ष - विशेष, सुदर्शना । पक्ष की चौथी रात्रि | जसोधर देखो जस-हर । जसोधरा देखो जसो-हरा | जसोया स्त्री [ यशोदा] भगवान् महावीर की पत्नी का नाम ।
जह सक [हा] छोड़ देना । जह अ [ यत्र ] जहाँ, जिसमें ।
जहणू सव
जसवई स्त्री [यशोमती ] भगवान् महावीर की जहणूसुअ
जह अ [ यथा] जिस तरह से । 'कमन [क्रम] क्रम के अनुसार । ' क्खाय देखो अह-खाय । द्वियवि [स्थित ] वास्तुfar | स्थवि [] वास्तविक । 'त्थनाम वि [°र्थनामन्] नाम के अनुसार गुणवाला ।
वाइवि [र्थवादिन् ] सत्य वक्ता । प [ याथात्म्य] वास्तविकता | 'रिह न [] उचितता के अनुसार | ° वट्टिय वि [ " वृत्त] यथार्थ | विहि पुंस्त्री [विधि ] विधि के अनुसार । संख न [° संख्य] संख्या के क्रम से । देखो जहा = यथा । जहण न [जघन] कमर के नीचे का भाग । जहणरोह पुं [दे] जाँघ ।
जहणा स्त्री [हान ] परित्याग |
न [दे] अर्धोरुक, जघनांशुक, स्त्री को पहनने का वस्त्र - विशेष ।
जण व [जघन्य ] निकृष्ट, नीच । जहा = देखो जह = हा | जहा देखो जह = यथा । जुत्त वि [ ° युक्त ] यथोचित, योग्य । ° जेटु न ['ज्येष्ठ] ज्येष्ठता क्रम से । णामयवि [' नामक ] जिसका नाम न कहा गया हो, कोई । तच्च न [तथ्य] वास्तविक । तह न [' तथ] वास्तविक | 'तह न [ याथातथ्य] वास्तविकता । 'सूत्रकृताङ्ग' सूत्र का एक अध्ययन । पट्टकरण न [प्रवृत्तकरण ] आत्मा का परिणाम- विशेष । भूय वि [भूत ] वास्त विक । 'राइणिया स्त्री [रानिकता ]
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जहि
जहिअं.
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जहाजाय-जाउ ज्येष्ठता के क्रम से, बड़प्पन के अनुसार ।। पुष्प-प्रधान वृक्ष, जाई का पेड़ । मद्य-विशेष ।
रुह देखो जहरिह । वित्त न [°वृत्त जैसा °आजीव पुं जाति की समानता बतला कर हुआ हो वैसा। °सत्ति स्त्रीन [शक्ति] भिक्षा प्राप्त करनेवाला साधु । थेर पुं शक्ति के अनुसार ।
[°स्थविर] साठ वर्ष की उम्र का मुनि । जहाजाय वि [दे. यथाजात] जड़, मूर्ख । °नाम न [°नामन्] कर्म-विशेष । 'प्पसण्णा
स्त्री [प्रसन्ना] जाति के पुष्पों से वासित जहिं देखो जह = यत्र ।
मदिरा । फल न. वृक्ष-विशेष । जायफल, एक
गर्म-मसाला । °मंत वि [°मत्] उच्च जाति जहिच्छ न [यथेच्छ] इच्छा के अनुसार ।।
का । °मय पुं['मद] जाति का अभिमान । जहिच्छिय न [यथेप्सित] इच्छानुसार । °वत्तिया स्त्री [°पत्रिका] सुगन्धित फलजहिच्छिया स्त्री [ यदृच्छा ] स्वेच्छा, वाला वृक्ष-विशेष । फल-विशेष, एक गर्म स्वच्छन्दता।
मसाला । °सर पुं [स्मर] पूर्व-जन्म की जहिट्ठिल पुं [युधिष्ठिर] पाण्डु-राजा का ज्येष्ठ | स्मृति । वि. पूर्व-जन्म का ज्ञानवाला । °सरण पुत्र, ज्येष्ठ पाण्डव ।
न [स्मरण] पूर्व-जन्म की स्मृति । °स्सर जहिमा स्त्री [दे] विदग्ध पुरुष की बनाई हुई । देखो °सर। गाथा ।
जाइ स्त्री [जाति] न्याय-शास्त्र-प्रसिद्ध दूषणाजहुट्ठिल्ल देखो जहिटिल्ल ।
भास-असत्य दूषण । माता का वंश । जहत्तु न [यथोक्त] कथनानुसार ।
जाइ देखो जाया। जहेअ अ [यथैव] जैसे ही।
जाइ स्त्री [दे] दारू । मदिरा विशेष । जहेच्छ देखो जहिच्छ।
जाइ वि [याजिन्] यज्ञ-कर्ता । जहोइय न [यथोदित] कथितानुसार । जाइ वि [यायिन] जानेवाला । जहोइय । न [यथोचित] योग्यता के | जाइअ वि [याचित] प्रार्थित, माँगा हुआ। जहोच्चिय ) अनुसार ।
जाइअ देखो जाय - जात । जा अक [जन्] उत्पन्न होना ।
जाइच्छि° ) वि [यादृच्छिक] यथेच्छ । जा सक [या] जाना । प्राप्त करना । जानना। जाइच्छिय । इच्छानुसारी । सकना, समर्थ होना।
जाइच्छिय वि यादृच्छिक] स्वेच्छा-निर्मित । जा देखो जाव - यावत् ।
जाइणी स्त्री [याकिनी] एक जैन साध्वी जाअ देखो जाव = जाप ।
जिसको सुप्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार श्री हरिभद्र जाअ देखो जा%या।
सूरि अपनी धर्म-माता समझते थे। जाअर देखो जागर ।
जाइयव्वय न [यातव्य गमन, गति । जाआ स्त्री [यात] देवर-भार्या, देवरानी।
जाईअ वि [जातोय] जाति-सम्बन्धी। जाइ स्त्री [जाति] मालती पुष्प । सामान्य जाउ न [जायु] क्षीरपेया, यवागू, मांड की नैयायिकों के मत से एक धर्म-विशेष, जो काँजी, लपसी। व्यापक हो, जैसे मनुष्य का मनुष्यत्व, गो का | जाउ अ [जातु] कदाचित् । किसी तरह । गोत्व । जात, कुल, गोत्र, वंश, ज्ञाति । कण्ण पुं [कर्ण] पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र का उत्पत्ति । क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य आदि जाति ।। गोत्र ।
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जाउ-जाय
जाउ स्त्री [यातृ] देवर-पत्नी | वि. जानेवाला 1 जाउया स्त्री [यातृका] देवर-पत्नी । जाउर पुं [दे] कपित्थवृक्ष, कैथ का फल | जाउल पुं [जातुल] वल्ली-विशेष | जाउहाण पुं [ यातुधान] राक्षस । जाग पुं [याग ] यज्ञ, होम, हवन | देव पूजा | जागर अक [ जागृ ] जागना, निद्रा त्याग
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
करना |
जागर वि. जागनेवाला, पुं. जागरण । जागरइत्तु वि [ जागरितृ] जागनेवाला । जागरिअवि [ जागृत ] जागा हुआ, निद्रा
रहित, प्रबुद्ध ।
जागर्या]
जागरिअवि [ जागरिक] निद्रा-रहित । जागरिया स्त्री [ जागरिका, जागरण, निद्रा त्याग । जागरुअवि [जागरुक ] जागता, जागने के
स्वभाववाला ।
जाजावर वि [ यायावर] गमनशील, विनश्वर । जाडी स्त्री [दें] गुल्म, लता-प्रतान |
जाण सक [ज्ञा] जानना, ज्ञान प्राप्त करना, समझना ।
जाण पुंन [ यान] रथादि वाहन, सवारी । यानपात्र, नौका, जहाज । गमन, गति । पत्त, वतन [पात्र ] जहाज, नौका | 'साला स्त्री ['शाला ] अस्तबल | वाहन बनाने का
कारखाना ।
जाण न [ज्ञान] बोध, समझ ।
जाण' वि [जानत् ] जानता हुआ । जाई स्त्री [ जानकी] सीता । जाणअ / वि [ज्ञायक ] जानकार, ज्ञानी ।
जाणग
जागी देखो जाई ।
जाणण न [ दे] बारात ।
जाणय देखो जाणग ।
जाय वि [ ज्ञापक] समझानेवाला । जाणया स्त्री [ज्ञान ] समझ, जानकारी |
जाणवय वि [जानपद] देश में उत्पन्न, सम्बन्धी |
जाणा व सक [ज्ञापय् ] ज्ञान कराना, जनाना । जाणावणा स्त्री [ज्ञापनी ] विद्या - विशेष |
}
जाणावणी
जाणाविय वि [ज्ञापित] जनाया, विज्ञापित,
मालूम कराया, निवेदित ।
जान [जा] घटना |
जाण जाणुअ जाणे अ [जाने] उत्प्रेक्षा-सूचक अव्यय, जाम सक [मृज्] मार्जन करना ।
वि [ज्ञायक ] जाननेवाला, ज्ञाता ।
३४९
देश
जाम पुं [याम ] प्रहर, तीन घण्टा का समय । यम, अहिंसा आदि पाँच व्रत । आठ से बत्तीस, बत्तीस से साठ और साठ से अधिक वर्ष की उम्र | वि. यम-सम्बन्धी । इल्ल वि [त्] प्रहरवाला | पुं. पहरेदार । दिसा स्त्री [° दिश्] दक्षिण दिशा । 'वई स्त्री [ती] रात्रि |
जाम देखो जाव = यावत् । जामग्रगहण न [ यामग्रहण ] पहरेदारी | जामाइ देखो जामाउ ।
जायक [याच्] माँगना । जाक [यात
कदर्थना करना ।
मानो ।
|
जामाउ पुं [जामातृ] दामाद | जामि स्त्री [जामि, यामि] बहिन | जामिअ देखो जामिंग ।
मग पुं [यामिक ] प्राहरिक, पहरेदार । जामिणी स्त्री [ यामिनी] रात्रि | जामिल्ल देखो जामिग । जामेअ पुं [याय ] भानजा ।
पीड़ना, यन्त्रणा करना ।
जाय देखो जाग ।
जाय वि. [जात] उत्पन्न । न संघात । भेद | वि. प्रवृत्त । पुं. पुत्र । न बच्चा, सन्तान । उत्पत्ति । 'कम्म न [ 'कर्मन् ] प्रसूति कर्म ।
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३५० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जाय-जाव संस्कार-विशेष । °तेय पुं [तेजस] अग्नि । , हरग देखो °घरग। °निया स्त्री [°निद्रुता] मृतवत्सा स्त्री। जाल पुं [ज्वाल] ज्वाला, आग की लपट । °मूअ वि [°मूक] जन्म से मूक । °रूव | जालंतर न [जालान्तर] सच्छिद्र गवाक्ष का न [°रूप] सुवर्ण। चाँदी । सुवर्णनिर्मित । मध्यभाग। °वेय पुं [°वेदस्] वह्नि ।
जालंधर पुं [जालन्धर] पंजाब का एक शहर । जाय वि [यात] गत । प्राप्त । न. गमन, न. गोत्र-विशेष । गति ।
जालंधरायण न [जालन्धरायण] गोत्रजाय पुं [जात] गीतार्थ, विद्वान् जैन मुनि। । विशेष । जायग वि [याचक] माँगनेवाला। पुं. जालग देखो जाल = जाल । भिक्षुक ।
जालग पुं [जालक] द्वीन्द्रिय जीव की एक जायग वि [याजक] यज्ञ करानेवाला । जाति, मकड़ी। जायणया स्त्री [याचना] याचना, प्रार्थना, | जालघडिआ स्त्री [दे] चन्द्रशाला, अट्टामाँगना।
लिका। जायणी स्त्री [याचनी] प्रार्थना की भाषा।
जालय देखो जाल = जाल । जायव पुंस्त्री [यादव] यदुवंशीय । जालवणी स्त्री [दे] संवाद, सम्हाल, खबर । जाया स्त्री [यात्रा] निर्वाह, वृत्ति । °माय वि | जाला स्त्री [ज्वाला] अग्नि की शिखा । [°मात्र] जितने से निर्वाह हो सके उतना। | नवम चक्रवर्ती की माता । भगवान् चन्द्रप्रभ जाया स्त्री. स्त्री, औरत ।
की शासनदेवी। जाया देखो जत्ता।
जाला अ [यदा] जिस समय, जिस काल में । जाया स्त्री [जाता] चमरेन्द्र आदि इन्द्रों की | जालाउ पुं [जालायुष्] द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष बाह्य परिषत् ।
मकड़ी। जायाइ पुं [यायाजिन्] यज्ञ करनेवाला ।। जालाव सक [ज्वालय] जलाना, दाह देना । जार पुं. उपपति । मणि का लक्षण-विशेष । जालि पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र । श्रीकृष्ण जारिच्छ वि [यादृक्ष] ऊपर देखो।
का एक पुत्र । जारिस वि [यादृश] जैसा ।
जालिय पुं [जालिक] जाल-जीवि, वागुरिक । जारेकण्ण न [जारेकृष्ण] वासिष्ठ गोत्र की | जालिय वि [ज्वालित] जलाया हुआ । एक शाखा ।
जालिया स्त्री [जालिका] कञ्चक । वृन्त । जाल सक [ज्वालय्] जलाना, दग्ध करना। | जालुग्गाल पुं [जालोद्गाल] मछली पकड़ने जाल न. संघात । माला का समूह । कारीगरी- ___ का साधन-विशेष । वाले छिद्रों से युक्त गृहांश, गवाक्ष-विशेष ।
जाव देखो जावइअ। मछली वगैरह पकड़ने का जाल, पाश-विशेष । जाव सक [यापय] गमन करना, गुजारना । पैर का आभूषण-विशेष, कड़ा। °कडग पुं बरतना । शरीर का प्रतिपालन करना । [°कटक] सच्छिद्र गवाक्षों का समूह । | जाव अ [यावत्] इन अर्थों का सूचक अव्ययसच्छिद्र गवाक्ष-समूह से अलंकृत प्रदेश । | परिमाण, मर्यादा। अवधारण, निश्चय । °घरग न [गृहक] सच्छिद्र गवाक्षवाला ज्जीव स्त्रीन. जीवनपर्यन्त । जीविय वि मकान । °पंजर न [पञ्जर] गवाक्ष ।। [ज्जीविक] यावज्जीव-सम्बन्धी। देखो
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जाव-जिहाणी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३५१ जावं।
जिअ न [जित] जय। गासि वि जाव पुं [जाप] मन ही मन बार-बार देवता [काशिन्] जीत से शोभनेवाला विजेता । का स्मरण, मन्त्र का उच्चारण ।
°सत्तु पुं[°शत्रु] अंग-विद्या का जानकार जावइ पुं [दे] वृक्ष-विशेष ।
दूसरा रुद्र -पुरुष । जावइअ वि [यावत्] जितना ।
जिअ वि [जित] पराभूत, अभिभूत । परिजावई स्त्री [जातिपत्री] कन्द-विशेष । गुच्छ
चित । 'प्प वि [°ात्मन्] जितेन्द्रिय । °भाणु वनस्पति की एक जाति । जावईय पुं [जातिपत्रीक] कन्द-विशेष ।
पुं [ भानु] राक्षस वंश का एक राजा, एक
लंका-पति । सत्तु पुं [°शत्रु] भगवान् जावं देखो जाव। 'ताव अ [°तावत्] अजितनाय का पिता । नृप-विशेष । °सेण पुं गणित-विशेष । गुणाकार ।
[°सेन] जैन आचार्य-विशेष । नृप-विशेष । जावंत देखो जावइअ ।
एक चक्रवर्ती राजा। स्वनामख्यात एक जावग देखो जावय = यापक ।
कुलकर । °रि पुं. भगवान् सम्भवनाथजी जावण न [यापन] बिताना । दूर करना ।
का पिता। जावणिज वि [यापनीय] जो बिताया जाय. | | जिअंती स्त्री [जीवन्ती] वल्ली-विशेष । गुजारने-योग्य । शक्ति-युक्त। °तंत न जिअव वि [जीववत्] जय-प्राप्त । [तन्त्र] ग्रन्थ-विशेष ।
जिइंदिय । वि [जितेन्द्रिय] इन्द्रियों को जावय वि [यापक] बितानेवाला । पुं. तर्क- जिएंदिय । वश में रखनेवाला, संयमी । शास्त्र प्रसिद्ध काल-क्षेपक हेतु ।
जिंघ सक [घ्रा] संघना । जावय वि [जापक] जीतनेवाला।
जिडह ) पुंदे] गेंद । जावय पुं यावक] अलक्तक ।
जिंडुह । जावसिय वि [यावसिक] धान्य से गुजारा जिंडुह पुं[दे] कन्दुक । करनेवाला । घास-वाहक ।
जिभ । देखो जंभाय । जास पुंजाष] पिशाच-विशेष ।
जिभाअ । जासुमण ) पुं [जपासुमनस्] जपा का | जिभिया स्त्री [जृम्भा] जृम्भण । जासुमिण वृक्ष, पुष्पप्रधान । न. जपा का | जिगीसा स्त्री [जिगीषा] जय की इच्छा । जासुयण ' फूल ।
जिग्घ देखो जिंघ। जाहग पुं [जाहक] जन्तु-विशेष, साही या | जिच्च देखो जिण - जि का कृ.। साहिल ।
जिट्ट वि [ज्येष्ठ] महान्, वृद्ध, बड़ा । श्रेष्ठ, जाहत्थ न [याथार्थ्य] वास्तविकता ।
उत्तम । पुं. बड़ा भाई । भूइ पुं [भूति] जाहासंख देखो जहा-संख ।
जैन साधु-विशेष । °मूली स्त्री. ज्येष्ठ मास की जाहे अ [यदा] जिस समय ।
पूर्णिमा । जि (अप) देखो एव = एव ।
जिट्ठ पुं [ज्येष्ठ] जेठ मास । जिअ अक [ जीव् ] जीना, प्राण-धारण | जिट्ठा स्त्री [ज्येष्ठा] भगवान् महावीर की करना।
पुत्री । भगवान् महावीर की भगिनी । नक्षत्रजिअ पं [जीव] आत्मा, प्राणी, चेतन । लोअ | विशेष । देखो जेट्टा। पुं [°लोक] दुनिया।
जिट्ठाणी स्त्री [ज्येष्ठा] बड़े भाई की पत्नी ।
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३५२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जिट्टिणी-जिणुत्तम जेठानी।
मण्डल, दुन्दुभि नाद, छत्र । °पालिय पुं जिट्रिणी स्त्री [ज्यैष्ठी] जेठ मास की अमावस ।
[पालित] चम्पा नगरी का निवासी एक जिण सक [जि] जीतना, वश करना ।
श्रेष्ठि-पुत्र । °बिंब न [बिम्ब] जिनदेव की
प्रतिमा । भड पुं[°भट] एक जैन आचार्य । जिण पुं [जिन] राग आदि अन्तरंग शत्रुओं को
भद्द पुं[भद्र] जैन आचार्य और ग्रन्थजीतनेवाला, अर्हन् देव । बुद्ध भगवान् । केवल- |
कार । °भवण न [°भवन] अर्हन् मन्दिर । ज्ञानी, सर्वज्ञ । चौदह पूर्व ग्रन्थों का जान- |
°मय न [°मत] जैन दर्शन । °माया स्त्री कार । जिनकल्पी मुनि । अवधि-ज्ञान आदि |
[°मात] जिनदेव की जननी । °मुद्दा स्त्री अतीन्द्रिय ज्ञानवाला। वि. जीतनेवाला ।
[°मुद्रा] जिनदेव जिस तरह से कायोत्सर्ग में इंद पुं [°इन्द्र] अर्हन् देव । 'कप्प पुं
रहते हैं उस तरह शरीर का विन्यास, आसन[°कल्प] एक प्रकार के जैन-मुनियों का
विशेष । 'यंद देखो °चंद । °रक्खिय पुं आचार, चारित्र-विशेष । कप्पिय पुं
[रक्षित] एक सार्थवाह-पुत्र । वइ पुं [कल्पिक] एक प्रकार का जैन मुनि ।
[°पति] जिन-देव । °वई स्त्री [°वाच्] °किरिया स्त्री [°क्रिया] जिनदेव का बत
जिन-देव की वाणी। वयण न [°वचन] लाया हुआ धर्मानुष्ठान । °घर न [गृह]
जिन देव की वाणी। °वयण न [°वदन] जिन-मन्दिर । °चंद पुं [°चन्द्र] जिनदेव,
जिनदेव का मुख । °वर पुं. अर्हन देव । अर्हन् देव । स्वनाम-ख्यात जैन आचार्य
"वरिंद पुं [°वरेन्द्र ] अर्हन् देव । वल्लह विशेष । °जत्ता स्त्री ["यात्रा] अर्हन देव की
पुं ['वल्लभ] एक जैन आचार्य और प्रसिद्ध पूजा के उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव
स्तोत्र-कार । "वसह पुं [वृषभ] अर्हन् विशेष, रथ-यात्रा । °णाम न [नामन]
देव । °सकहा स्त्री [°सक्थि] जिन-देव की कर्म-विशेष जिसके प्रभाव से जीव तीर्थकर
अस्थि । 'सासण न [°शासन] जैन दर्शन । होता है। दत्त पुं. जैनाचार्य-विशेष । एक
°हंस पुं. एक जैन आचार्य । हर देखो 'घर। जैन श्रेष्ठी। °दव्व न [°द्रव्य] जिन-मन्दिर
हरिस पुं [°हर्ष] एक जैन मुनि । °ाययण सम्बन्धी धनादि वस्तु । °दास पुं एक जैन
न [°ायतन] जिन-देव का मन्दिर । उपासक । एक जैन मुनि और ग्रन्थकार, निशीथ-सूत्र का चूर्णिकार । °देव पुं. अर्हन्
जिणंद देखो जिणिद। देव । जैनाचार्य । एक जैन उपासक । धम्म
जिणकप्पि पुं [जिनकल्पिन्] जैन मुनि का पुं [°धमं] जिनदेव उपदिष्ट जैन धर्म । 'नाह
एक भेद । पुं[°नाथ] अर्हन् देव । °पडिमा स्त्री
जिणण न [जयन] जीत । [प्रतिमा] अर्हन् देव की मूत्ति । °पवयण
जिणपह पुं [जिनप्रभ] एक जैन आचार्य । न [प्रवचन] जैन आगम । 'पसत्थ वि जिणिंद पुं [जिनेन्द्र] अर्हन् देव । “गिह न [ प्रशस्त ] तीर्थंकर-भाषित। °पहु [गृह] जिनमन्दिर । °चंद पुं [चन्द्र] पं [प्रभु] अर्हन देव । °पाडिहेर न जिन-देव । [प्रातिहार्य] जिन-देव की अर्हता-सूचक जिणिय वि [जित] पराभूत, वशीकृत । देव-कृत अशोक वृक्ष आदि आठ बाह्य जिणिसर देखो जिणेसर । विभूतियाँ, वे ये है-अशोक वृक्ष, सुर-कृत | जिणिस्सर देखो जिणेसर । पुष्प-वृष्टि, दिव्यध्वनि, चामर, सिंहासन, भा- | जिणुत्तम पुं [जिनोत्तम] जिन-देव ।
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जिणेंद-जीरण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३५३ जिणेंद देखो जिणिद।
| से प्रायः एक वर्ष तक जमीन में चिकनापन जिणेस पुं [जिनेश] जिन भगवान्, अर्हन् देव। रहता है । वि. कुटिल, कपटी। अलस । न. जिणेसर पुं [जिनेश्वर] अर्हन देव । विक्रम | कपट ।
की ग्यारहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध जैन | जिम्ह न [जैम्ह] कुटिलता, वक्रता, माया । आचार्य और ग्रन्थकार ।
जिव देखो जीव । जिण्ण वि[जीर्ण] पुराना, जर्जर । पचा हुआ। | जिव । (अप) देखो जिध । वृद्ध । सेट्ठि पुं[ श्रेष्ठिन्] पुराना सेठ । श्रेष्टि पद से च्युत ।
जिहा देखो जीहा। जिण्ण (अप) देखो जिअ = जित । जीअ देखो जीव = जीव् । जिण्णासा स्त्री [जिज्ञासा] जानने की इच्छा। जीअ देखो जीव == जीव, जल ।
जीअ देखो जीविअ । जिण्णीअ (अप) दखी जिाणय। जीअ न { जीत ] आचार, प्रथा, रूढ़ि। जिण्णोब्भवा स्त्री [दे] दूर्वा (घास)। प्रायश्चित से सम्बन्ध रखनेवाला एक तरह का जिण्हु वि [जिष्णु] विजयी। पु. अर्जुन । रिवाज, जन सूत्रों में उक्त रीति से भिन्न
विष्णु, श्रीकृष्ण । सूर्य । देव-नायक इन्द्र । तरह के प्रायश्चितों का परम्परागत आचार । जित्त देखो जिअ = जित ।
आचार-विशेष का प्रतिपादक ग्रन्थ । मर्यादा, जित्तिअ ) वि [ यावत् ] जितना । स्थिति, व्यवस्था। कप्प पुं [°कल्प ] जित्तिल
परम्परा से आगत आचार । परम्परागत जित्तुल (अप) ऊपर देखो।
आचार का प्रतिपादक ग्रन्थ । °कप्पिय वि जिध (अप) अ [यथा] जैसे, जिस तरह से । [°कल्पिक] जीत कल्पवाला । धर वि. जिन्नासिय वि [जिज्ञासित] जानने के लिए आचार-विशेष का जानकार । एक जैनाचार्य। चाहा हुआ।
°ववहार पुं[°व्यवहार] परम्परा के अनुसार जिन्नुद्धार पुं [जीर्णोद्धार] पुराने और टूटे- |
व्यवहार ।
जीअण देखो जीवण । फूटे मन्दिर आदि का सुधारना । जिब्भ पु[जिह्व] एक नरक स्थान । जीअब वि [जीवितवत्] जीवितवाला, श्रेष्ठ जिब्भा स्त्री [जिह्वा] जीभ ।
जीवनवाला। जिभिंदिय न [जिह्वेन्द्रिय] रसनेन्द्रिय । जीआ स्त्री [ज्या] धनुष की डोर । पृथिवी । जिब्भिया स्त्री [जिबिका] जीभ । जीभ के माता। आकारवाली चीज ।
जीण न [दे. अजिन] अश्व की पीठ पर जिम सक [ जिम्, भुज् ] भोजन करना।
बिछाया जाता चर्ममय आसन । जिम (अप) देखो जिध।
जीमूअ पुं [जीमूत] मेघ, वर्षा । मेघ-विशेष, जिमण न [जेमन] जिमाना ।
जिसके बरसने से जमीन दस वर्ष तक चिकनी जिमिअ वि [जिमित, भुक्त] जिसने भोजन | रहती है।
किया हुआ हो वह । जो खाया गया हो वह । | जीर' देखो जर = » । जिम्म देखो जिम = जिम्। . जीरण न [जीर्ण] अन्न पाक । वि. पुराना, जिम्ह पु[जिह्म मेघ-विशेष, जिसके बरसने पचा हुआ ।
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३५४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जीरय-जुअल जीरय न [जीरक] जीरा, मसाला-विशेष । जीवा स्त्री. धनुष की डोरी । जोवन । क्षेत्र का जीरव सक [जीरय] पचाना ।
विभाग-विशेष । जीव अक [ जीव ] प्राण धारण करना । सक.
जीवाउ पुं [जीवातु] जीवनौषध । आश्रय करना।
जीवाविय वि [जीवित] जिलाया हुआ । जीव पंन. आत्मा, चेतन, प्राणी । जीवन. | जीवि वि [जाविन्। जीनेवाला । प्राण-धारण । पुं. बृहस्पति । पराक्रम । देखो जीविअ वि [जीवित] जो जिन्दा हो । न. जीअ = जीव । 'काय पुं. जीव-समूह । ग्गाह | जीवन। “नाह पुं ।'नाथ] प्राण-पति । नाग्राह जिन्दे को पकडना । णिकाय पं रिसिका स्त्री. वनस्पति-विशेष । P निकाय ] जीव-राशि | त्थिकाय पं जीविआ स्त्री [जीविका] आजीविका, निर्वाह[°ास्तिकाय] जीव-समूह । °दय वि. जीवित देनेवाला । °दया स्त्री. प्राणि-दया। देव पं./ जीविओसविय वि [जीवितोत्सविक] जीवप्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रन्थकार। °पएस | नोत्सव के समान ।
[प्रदेशजीव] अन्तिम प्रदेश में ही जीव को | जीविओसासिय वि [जीवितोच्छ्वासिक] स्थिति को माननेवाला जैनाभास दार्शनिक । जीवन को बढ़ानेवाला । °पएसिय पुं [प्रादेशिक] देखो पूर्वोक्त | जीविगा देखो जीविआ। अर्थ । °लोग, लोय पुं [ °लोक ] प्राणि- | जीह अक [लस्ज्] शरमाना । लोक, जीव-समूह । °विजय न [ °विचय ] | जीहा स्त्री [जिह्वा] जीभ । °ल वि [°वत्] जीव के स्वरूप का चिन्तन । °विभत्ति स्त्री | लम्बी जीभवाला। [विभक्ति] जीव का भेद । °वुढिय न जीहाविअ वि [लज्जित] लजाया गया । [°वृद्धिक] सम्मति ।
जु देखो जुज । जीव न. सात दिन का लगातार उपवास । | जु° स्त्री [युध] लड़ाई।
विसिटू न [°विशिष्ट] वही अर्थ । जु अ [दे] निश्चय-सूचक अव्यय । जीवंजीव पुं [जीवजीव ] आत्म-पराक्रम । | जुअ देखो जुग । युग्म। चकोर-पक्षी।
जुअ वि [युत्] युक्त , संलग्न । जीवंत °मुक्क पुं[°मुक्त] जीवन्मुक्त, जीवन- | जुअ देखो जुव।।
दशा में ही संसार-बन्धन से मुक्त महात्मा । | जुअइ स्त्री [युवति] तरुणी । जीवग पुं [जीवक] पक्षि-विशेष । नृप-विशेष । जुअंजुअ (अप) अ [युतयुत] जुदा-जुदा । जीवजीवग पुं [जीवजीवक चकवा। जुअण [दे] देखो जुअल = (दे)। जीवण न [जीवन] जिन्दगी। आजीविका। जुअणद्ध पुं [युगनद्ध] ज्योतिष प्रसिद्ध योग, वि. जिलानेवाला । वित्ति स्त्री [वृत्ति] जिसमें बैल के कंधे पर रखे हुए युग-जुआ आजीविका ।
या जुआठ की तरह चन्द्र और सूर्य तथा जीवमजीव पुं [जीवाजीव] चेतन और जड़ नक्षत्र अवस्थित होते हैं वह योग। पदार्थ ।
जुअय न [युतक] पृथक् । जीवम्मुत्त देखो जीवंत-मुक्क ।
जुअरज न [यौवराज्य] युवराज का भाव जीवयमई स्त्री [दे] मृगों के आकर्षण के | या पद। साधन-भूत व्याध-मृगी।
। जुअल न [युगल] जोड़ा, उभय । परस्पर
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जुअल-जुज्झि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सापेक्ष या पद्य ।
राजा । मिथिला का एक राजा। वि. दीर्घजुअल पुं [दे] जवान ।
बाहु । मच्छ पुं [°मत्स्य] की एक जाति । जुअलिअ वि [दे] द्विगुणित ।
संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष विशेष । जुअलिय देखो जुगलिय ।
जुगंतर न [युगान्तर] यूप-परिमित भूमिभाग, जुअली स्त्री [युगली] युग्म, जोड़ा।
चार हाथ जमीन । °पलोयणा स्त्री [प्रलोजुआण देखो जुवाण।
कना] चलते समय चार हाथ जमीन तक जुआरि स्त्री [दे] जुआरि, अन्न-विशेष । दृष्टि रखना। जुइ स्त्री [द्युति] कान्ति, प्रकाश । °म, मंत जुगंधर न [युगन्धर] शकट का एक अवयव ।
वि [°मत्] तेजस्वी । प्रकाशशाली। पुं. विदेह वर्ष में उत्पन्न एक जिन-देव । एक जुइ स्त्री [युति] संयोग, युक्तता ।
जैन मुनि । एक जैन आचार्य । जुइ पुंयुगिन्] एक जैन मुनि ।
जुगल न [युगल] युग्म, उभय । जुईम वि [द्युतिमत्] तेजस्वी ।
जुगलि वि [युगलिन्] स्त्री-पुरुष के युग्म रूप जुउच्छ सक [जुगुप्स्] घृणा करना, निन्दा
से उत्पन्न होनेवाला। करना।
जुगलिय वि [युगलित] युग्म-युक्त, द्वन्द्वजुगिय वि [दे] जाति, कर्म या शरीर से हीन
सहित । युग्म रूप से स्थित । जिसको संन्यास देने का जैन शास्त्रों में निषेध | गुलवियुगवत्। समय के उपद्रव से वाजत । है । काटा हुआ । दुषित ।
जुगव । म [युगपत्] एक ही साथ, एक ही
जुगवं । समय में। झुंज सक [युज्] जोड़ना, युक्त करना । किसी कार्य में लगाना।
जुगुच्छ देखो जुउच्छ। जुजणया । स्त्री [योजना] ऊपर देखो । | जुगुच्छणया । स्त्री [जुगुप्सा] घृणा, जुंजणा , करण-विशेष-मन, वचन और शरीर का व्यापार ।
जुग्ग न [युग्य] वाहन, गाड़ी वगैरह यान । झुंजम [दे] देखो मुंजुमय।
शिविका, पुरुष-यान । गोल्ल देश में प्रसिद्ध दो जुंजिअ वि [दे] भूखा।
हाथ का लम्बा-चौड़ा यान-विशेष, शिविकाजुजुमय न [दे] एक प्रकार की हरी घास । विशेष । वि. यान-वाहक अश्व आदि । भारजुजुरूड वि [दे] परिग्रह-रहित ।
वाहक । °ायरिया, रिया स्त्री [चर्या] जुग पुं [युग] काल-विशेष-सत्य, त्रेता, द्वापर | वाहन की गति ।
और कलि ये चार युग । पाँच वर्ष का काल || जुग्ग वि [योग्य] उचित । न. चार हाथ का यूप। शकट का एक अंग, | जुग्ग न [युग्म] द्वन्द्व, उभय । धुर, गाड़ी या हल खींचने के समय जो बैलों | जुज्ज देखो जुंज । के कन्धे पर रक्खे जाते हैं। चार हाथ का | जुज्झ अक [युध्] लड़ाई करना। परिमाण । देखो जुअ = युग । °प्पवर वि | जुज्झ न [युद्ध] संग्राम । इजुद्ध न [प्रवर] युग-श्रेष्ठ । पहाण वि [ प्रधान] [तियुद्ध] महायुद्ध, पुरुषों की बहत्तर यग-श्रेष्ठ । पं. यग-श्रेष्ठ जैन आचार्य की एक कलाओं में एक कला। उपाधि । 'बाहु पुं. विदेह वर्ष में उत्पन्न एक | जुज्झण न [योधन] युद्ध । जिनदेव । विदेह वर्ष का एक त्रिखण्डाधिपति | जुज्झिअ वि [युद्ध लड़ा हुआ । संग्राम ।
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३५६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जुट्ठ-जूझ जुटु वि [जुष्ट] सेवित ।
जुवइ स्त्रो [युवति] जवान स्त्री। जुट्ठन [दे] असत्य ।
जुवंगव पुं [युवगव] तरुण बैल । जुडिअ वि [दे] आपस में जुटा हुआ, लड़ने के | जुवरज्ज न [यौवराज्य] युवराजपन । राजा लिए एक दुसरे से भीड़ा हुआ।
के मरने पर जब तक युवराज का जुण्ण वि [दे] निपुण, दक्ष ।
राज्याभिषेक न हुआ हो तबतक का राज्य । जुण्ण वि [जीर्ण] पुराना।
राजा के मरने पर और युवराज के राज्याजुण्णदुग्ग न [जीर्णदुर्ग] नगर-विशेष, भिषेक हो जाने पर भी जबतक दूसरे युवराज जूनागढ़।
की नियुक्ति न हुई हो तबतक का राज्य । जुण्ह देखो जोण्ह = ज्योत्स्न ।
जुवल देखो जुगल। गुण्हा स्त्री [ज्योत्स्ना] चाँदनी ।
जुवलिय देखो जुगलिय। जुत्त सक [युक्तय] जोतना।
जुवाण देखो जुव। जुत्त वि [युक्त] संगत, योग्य । जोड़ा हुआ,
जुवाणी देखो जुवई। मिला हुआ, सम्बद्ध । उद्युक्त । सहित,
जुव्वण । देखो जोव्वण । समन्वित । सिंखिज्ज न [Tसंख्येय] संख्या
जुव्वणत विशेष ।
जुसिअ वि [जुष्ट] सेवित । जुत्ताणतय पुंन [युक्तानन्तक] गणना-विशेष । | जुाहट्ठिर । जुत्तासंखेजय देखो जुत्तासंखिज्ज । जुहिट्ठिल / देखो जहिट्ठिल । जत्ति स्त्री [युक्ति] योग, योजन, जोड़. | जुम्हाल्ल' संयोग । उपपत्ति । साधन । °ण्ण विज्ञा जुहु सक हि] अर्पण करना । होम करना। युक्ति का जानकार । °सार वि. युक्त, न्याय- | जूअ न [द्यूत] जुआ। °कर वि. जुआरी । संगत, प्रमाण-युक्त । °सुवण्ण न [°सुवर्ण] | कार वि. वही पूर्वोक्त अर्थ । केलि स्त्री. बनावटी सोना । °सेण पुं [षेण] ऐरवत द्यूत-क्रीड़ा। °खलय न [°खलक] जुआ वर्ष के अष्टम जिन-देव।
खेलने का स्थान । केलि देखो °केलि । जुत्तिय वि [यौक्तिक] गाड़ी वगैरह में जो | जूअ पु [यूप] धुर, गाड़ी का अवयव-विशेष जो जोता जाय।
बैलों के कन्धों पर डाला जाता है, जुअड़ । जुद्ध देखो जुज्झ = युद्ध ।
स्तम्भ-विशेष । यज्ञ-स्तम्भ । एक महापातालजुप्प देखो जुंज ।
कलश। जुम्म न [युग्म] युगल, उभय । पुं. सम राशि। | जूअअ पु [दे] चातक पक्षी । °पएसिय वि [°प्रादेशिक सम-संख्य प्रदेशों जूअग पु [यूपक] सन्ध्या को प्रभा और चन्द्र से निष्पन्न ।
की प्रभा का मिश्रण। . जुम्म न [युग्म] परस्पर सापेक्ष दो पद्य ।।
जूआ स्त्री [यूका] जं, चीलड़, खटमल, क्षुद्र जुम्ह° स [युष्मत्] द्वितीय पुरुष का वाचक |
कीट-विशेष । आठ लिक्षा का 'एक नाप । सर्वनाम।
°सेज्जायर वि [°शय्यातर] यूकाओं को जुरुमिल्ल वि [दे] गहन, निबिड़ ।
स्थान देनेवाला। जुव पुं [युवन्] तरुण । °राअ पुं [°राज] | जूआर वि [द्यूतकार] जुए का खेलाड़ी। गद्दी का वारिस । राजकुमार ।
जूझ देखो जुज्झ = युध् ।
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जूड-जोअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३५७ जूड पु [जूट] केश-कलाप।
अव्यय । जूय न [यूप] लगातार छः दिनों का उपवास। जेअ वि [जेय] जीतने योग्य । जूयय । पु[यूपक] शुक्ल पक्ष की द्वितीया जेअ ) वि [जेतृ] विजेता । जवय | आदि तीन दिनों में होती चन्द्र की जेउ ।
कला और सन्ध्या के प्रकाश का मिश्रण ।। जेक्कार पु [जयकार] स्तुति । जूर सक [गह] निन्दा करना।
जे? देखो जि? - ज्येष्ठ । जूर अक [ क्रुध ] गुस्सा करना ।
जे? देखो जिट्ठ = ज्येष्ठ । जूर अक [खिद] अफसोस करना।
जेट्टा देखो जिट्ठा । मूल पुं. जेठ मास । जूर अक [ जूर् ] झुरना, सूखना । सक. हिंसा मूली स्त्री. जेठ मास की पूर्णिमा और करना।
अमावस्या। जूरव सक [ वश्च ] ठगना ।
जेण देखो जइण = जैन । जूरवण वि [ वञ्चन् ] ठगनेवाला । जेण अ [येन] लक्षण-सचक अव्यय । जूरावण न [जूरण] झुराना, शोषण । जेत्त वि [ यावत् ] जितना। जूराविअ वि [क्रोधित] कोपित ।
जेत्त देखो जइत्त। जूरुम्मिलय वि [दे] निबिड, सान्द्र । जेत्तिअ । वि [यावत्] जितना । जूल देखो जूर = क्रुध् ।
जेत्तिल जूव देखो जूअ = द्यूत।
जेत्तिक (शौ) ऊपर देखो। जूव । देखो जूअ = यूप।
जेत्तल्ल । (अप) ऊपर देखो। जूस देखो झूस।
जेद्दह देखो जेत्ति। जूस पुंन [यूष] जूस, मूंग वगैरह का क्वाथ, | जेम सक [ जिम्, भुज् ] भोजन करना । कढ़ी।
जेम (अप) अ [यथा] जैसे। जूसअ वि [दे] फेंका हुआ।
जेमणय न [दे] दक्षिण अंग । जूसणा स्त्री [जोषणा] सेवा ।
जेमावण न [जेमन] खिलाना । जूसिय वि [जुष्ट] सेवित । क्षपित, क्षीण। जेमाविय वि [जेमित] जिसको भोजन कराया जूह न [यूथ] समूह । °वइ पु [°पति] यूथ | गया हो वह । का नायक । °ाहिव पु [धिप] पूर्वोक्त ही | जेव (शौ) देखो एव = एव । अर्थ । °ाहिवइ पु[धिपति] यूथ-नायक । जे (अप) देखो जिवँ। जूह न [यूथ] युग्म ! °काम न. लगातार चार
जेवड (अप) देखो जेत्ति। दिनों का उपवास ।
जेव्व (शौ) देखो एव = एव । जूहिय वि [यूथिक] यूथ में उत्पन्न ।
जेह (अप) वि [ यादृश् ] जैसा । जूहियठाण न [यूथिकस्थान] विवाह-मण्डप
जेहिल पुं. एक जैन मुनि । वाली जगह।
जो । सक [ दृश् ] देखना। जूहिया स्त्री [यूथिका] जूही का पेड़ । जूही स्त्री [यूथी] माधवी लता ।
जोअ अक [द्युत् प्रकाशित होना। जे अ. पादपूरक अव्यय । अवधारण-सूचक जोअ सक [द्योतय] प्रकाशित करना ।
जेत्तुल ।
जूवय )
जोअ
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३५८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जोअ-जोग जोअ सक [योजय] समाप्त करना । करना। जोइणी स्त्री [योगिनी] संन्यासिनी । एक जोड़ना, युक्त करना।
प्रकार की देवी, ये चौंसठ हैं । जोअ पु [दे] चन्द्रमा । युग्भ ।
जोइर वि [दे] स्खलित। जोअ देखो जोग । वडय न [°वटक] पाचक
| जोइस न [दे] नक्षत्र । चूर्ण ।
जोइस देखो जोइ = ज्योतिस् । प्राय पु जोअंगण [दे] देखो जोइंगण।
[राज] सूर्य । चन्द्र । °ालय पुं. सूर्य आदि जोअग वि [द्योतक] प्रकाशनेवाला । न.
देव । व्याकरण-प्रसिद्ध निपात वगैरह पद ।
जोइस [ ज्यौतिष ] देवों की एक जाति, जोअड पु [दे] जुगनू ।
सूर्य, चन्द्र आदि ग्रह । न. सूर्य, आदि का जोअण न [दे] आँख ।
विमान । ज्योतिष शास्त्र । सूर्य आदि का
चक्र । सूर्य आदि का मार्ग, आकाश । जोअण न [योजन] परिमाण-विशेष, चार
जोइस पुं [ज्यौतिष] सूर्य, चन्द्र आदि देवों की कोश । संयोग, जोड़ना।
एक जाति । वि. ज्योतिष शास्त्र का जानजोअण न [यौवन] युवावस्था ।
कार। जोआ स्त्री [द्यो] स्वर्ग । आकाश । जोइसिअ वि [ज्योतिषिक] दैवज्ञ, ज्योतिषी । जोआवइत्तु वि [योजयितु] जोड़नेवाला ।। सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष्क देव । °राय पुं जोइ वि [योगिन्] युक्त, संयोगवाला । चित्त- [ राज] सूर्य । चन्द्रमा । निरोध करनेवाला। पु. मुनि, साधु । जोइसिंद पु [ज्योतिरिन्द्र] रवि। रामचन्द्र का एक सुभट।
जोइसिण पुं [ज्योत्स्न] शुक्ल पक्ष । जोइ पं[ ज्योतिस् ] प्रकाश । अग्नि । प्रदीप | जोइसिणा स्त्री [ज्योत्स्ना] चाँदनी । पक्ख
आदि प्रकाशक वस्तु । अग्नि का काम करने- [पक्ष] शुक्ल पक्ष । भा स्त्री. चन्द्र की एक वाला कल्पवृक्ष । ग्रह, नक्षत्र आदि प्रकाशक | अग्र-महिषी । पदार्थ । ज्ञान । ज्ञानयुक्त । प्रसिद्धि-युक्त । | जोइसिणी स्त्री [ज्यौतिषी] देवी-विशेष । सत्कर्म-कारक । स्वर्ग। ग्रह वगैरह का | जोई स्त्री [दे] बिजली । विमान । ज्योतिष शास्त्र । अंग पुं[अङ्ग] जोईरस देखो जोइ-रस । अग्नि का काम करनेवाला कल्पवृक्ष-विशेष । | जोईस पुं [योगीश] योगिराज । °रस न.रत्न की एक जाति । देखो जोइस = जोईसर पुं [योगीश्वर] ऊपर देखो। ज्योतिस् ।
जोउकण्ण न [योगकणं] गोत्र-विशेष । जोइअ पुं [दे] खद्योत, पटबीजना । जोउकण्णिय न [योगकर्णिक] गोत्र-विशेष । जोइअ वि [दृष्ट] विलोकित ।
जोक्कार देखो जेक्कार। जोइअ वि [योजित] जोड़ा हुआ।
जोक्ख वि [दे] अपवित्र । जोइअ देखो जोगिय ।
जोग देखो जुग्ग = युग्म । जोइंगण पुं [दे] कीट-विशेष, इन्द्र-गोप। जोग पु [योग] नक्षत्र-समूह का क्रम से चन्द्र जोइक्क पुन [ज्योतिष्क] प्रदीप आदि प्रकाशक | और सूर्य के साथ सम्बन्ध । मन, वचन और पदार्थ।
शरीर की चेष्टा । चित्तनिरोध, समाधि । वश जोइक्ख पुं [दे. ज्योतिष्क] प्रदीप। प्रदीप करने के लिए या पागल आदि बनाने के लिए आदि का प्रकाश।
फेंका जाता चूर्ण-विशेष । सम्बन्ध, संयोग ।
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जोग - जोहा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ईप्सित वस्तु का लाभ | शब्द का अवयवार्थ- | जोड (अप) स्त्री [ दे] युगल । सम्बन्ध । बल, पराक्रम । 'क्खेम न [ क्षेम ] जोडिअ पुं [दे] व्याध, चिड़ीमार | ईप्सित वस्तु का लाभ और उसका संरक्षण । [न, वन] म्लेच्छ देश । "त्थ वि [स्थ] योग-निष्ठ, ध्यान-लीन । त्थ जोणि स्त्री. [योनि] उत्पत्ति-स्थान । कारण, उपाय | जीव का उत्पत्ति-स्थान | स्त्रीचिह्न, भग । विहाण न [°विधान ] उत्पत्तिशास्त्र । °सूल न[°शूल] योनि का एक रोग । जोणिय वि [योनिक, यवनिक] अनायें देशविशेष से उत्पन्न ৷
[T] व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द का अर्थ | 'दिट्ठि स्त्री [' दृष्टि ] चित्तनिरोध से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान-विशेष । 'धर वि. समाधि में कुशल, योगी । ' परिव्वाइया स्त्री [परि व्राजिका ] समाधिप्रधान व्रतिनी विशेष । ● पंड पुं [° पिण्ड ] वशीकरण आदि के प्रयोग से प्राप्त की हुई भिक्षा | मुद्दा स्त्री [मुद्रा ] हाथ का विन्यास - विशेष | 'व वि [°वत् ] शुभ प्रवृत्तिवाला । योगी । वाहि वि [वाहिन्] शास्त्र - ज्ञान की आराधना के लिए शास्त्रोक्त तपश्चर्या को करनेवाला । समाधि में रहनेवाला । विहि पुंस्त्री [विधि ] शास्त्रों की आराधना के लिए शास्त्र निर्दिष्ट अनुष्ठान, तपश्चर्या - विशेष | सत्थ न [ शास्त्र ] चित्तनिरोध का प्रतिपादक शास्त्र । जोग देखो जोग्ग
जोगि देखो जोइ = योगिन् । जोगिंद पु [ योगीन्द्र ] महान् योगी । जोगिणी देखो जोइणी ।
गर्भ धारण में समर्थ योनि ।
जोज देखो जोअ = योजय् । जोड स [ योजय् ] जोड़ना । जोड न [] नक्षत्र । रोग विशेष ।
जोण्णलिआ स्त्री [दे] अन्न विशेष, जुआरि । जोण्ह वि [ ज्योत्स्न] श्वेत । पुं. शुक्ल पक्ष । जोण्हा स्त्री [ ज्योत्ना ] चन्द्र- प्रकाश | जोण्हाल वि [ ज्योत्स्नावत् ] चन्द्रिकायुक्त | जोत्त देखो जुत्त = युक्त |
जोत्त न [ योक्त्र] जोत, रस्सी या चमड़े का
३५९
तस्मा ।
जोव देखो जोअ = दृश् ।
जोव पुं [दे] बिन्दु | वि. थोड़ा ।
जोवण न [ दे] यन्त्र, कल । धान्य का मर्दन । जोवारि स्त्री [] अन्न- विशेष, जुआरि ।
जोव्वण न [ यौवन ] जवानी । मध्य भाग | जोव्वणणीर जौव्वणवेअ
वयः - परिणाम,
न [दे] बुढ़ापा ।
जोव्वणिया स्त्री [ यौवनिका ] जवानी | जोव्वणोवय न [ दे] वृद्धत्व | जोस देखो जुस == जुष् । जोस पुं [झोष ] अन्त ।
सिवि [जुष्ट] सेवित । जोसिआ स्त्री [ योषित् ] नारी । जोसिणी देखो जोण्हा ।
जो अ [ युध् ] लड़ना ।
}
जोगिय वि [ यौगिक ] दो पदों के सम्बन्ध से बना हुआ शब्द, जैसे - उप-करोति, अभि
षेणयति । यन्त्र- प्रयोग से बना हुआ । जोगीसर देखो जोईसर । जोगेसरी स्त्री [ योगेश्वरी] देव - विशेष । जोगेसी स्त्री [योगेशी] विद्या-विशेष | जोग्ग वि [ योग्य ] योग्य । समर्थ । जग्गा स्त्री [] खुशामद |
जग्गा स्त्री [ योग्या ] शास्त्र का अभ्यास । जोह पुं [ योध ] योद्धा । 'ट्ठाण न [ स्थान ]
सुभटों का युद्ध कालीन शरीर - विन्यास, अंगरचना - विशेष |
जोहा देखो जोहा |
हा स्त्री [ योधा | भुज- परिसर्प की एक जाति ।
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षि
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जोहार-झज्झरी जोहार सक [दे] प्रणाम करना । जिअ । (शौ) अ [दे] अवधारण सूचक जोहार पुं [दे] प्रणाम ।
ज्जेअ । अव्यय । जोहि वि [योधिन्] लड़नेवाला, सुभट ।
| जेव । (शौ) । देखो एव = एव । जोहिया स्त्री [योधिका] जन्तु-विशेष, हाथ | से चलने वाली एक प्रकार की सर्प-जानि। ज्झहराविअ वि [दे] निवासित ।
जेव्व
ज्झड देखो
1
झ पंझ ताल-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । झंटलिआ स्त्री [दे] चंक्रमण, कुटिल गमन । ध्यान ।
| झंटिअ वि [दे] जिस पर प्रहार किया गया झंकार पुं [झङ्कार] नूपुर वगैरह की आवाज । हो वह, प्रहृत । झंकारिअ न [दे] फूल वगैरह का आदान या झंटी स्त्री [दे] छोटा किन्तु ऊँचा केश-कलाप । चुनना।
झंडली स्त्री [दे] कुलटा। झंख सक [दे] स्वीकार करना ।
झंडुअ पु [दे] पीलु का पेड़ । झंख अक [ सं+ तप्] सन्ताप करना। झंडुली स्त्री [दे] असती । क्रीड़ा । झंख अक वि+लप विलाप करना. | झंदिय वि [दे] पलायित, भगाया हुआ । बकवाद करना।
झंप सक [भ्रम्] फिरना। झंख सक [ उपा+लभ् ] उपालम्भ देना । झंप सक [आ + च्छादय] झाँपना, आच्छादन झंख अक [ निर्+श्वस् ] निःश्वास लेना। करना। झंख वि [दे] सन्तुष्ट, खुश ।
झंप सक [आ - क्रामय] आक्रमण करवाना । झंखर पु[दे] सूखा पेड़ ।
झंपणी स्त्री [दे] पक्ष्म, आँख की बरौनी । झंखरिअ [दे] देखो झंकारिअ ।
झंपा स्त्री [झम्पा] एकदम कूदना । झंखावण वि सन्तापक] सन्ताप करनेवाला। झंपिअ वि [दे] त्रुटित, टूटा हुआ। घट्टित, झंझ पुं कलह । °कर वि. फूट करानेवाला । | आहत । पत्त वि [°प्राप्त] क्लेश-प्राप्त ।
झंपिअ वि [आच्छादित] झपा हुआ, बंद झंझण । अक [झंझणाय] 'झन-झन' शब्द | किया हुआ । झंझणक्क करना।
झक्किअ न [दे] लोक-निन्दा । झंझणा स्त्री [झञ्झना] 'झन-झन' शब्द । झख देखो झंख = वि + लप् । . झंझा स्त्री [झञ्झा]वाद्य-विशेष, झाँझ, झाल। झगड पु [दे] कलह । प्रचण्ड वायु-विशेष । क्लेष, झगड़ा । माया, झग्गुली स्त्री [दे] अभिसारिका । कपट । क्रोध । तृष्णा, लोभ । व्याकुलता, | झज्झर पु [झर्झर] वाद्य-विशेष, झाँझ । पटह, व्यग्रता ।
ढोल । कलि-युग । नन्द-विशेष । झंझिय वि [झञ्झित भूखा ।
झज्झिरिय वि [झर्झरित] वाद्य-विशेष के झंट सक [भ्रम्] घूमना ।
शब्द से युक्त। झंट अक [गुञ्ज] गुञ्जारव करना ।
झज्झरी स्त्री [दे] दूसरे के स्पर्श को रोकने के
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झड-झाण
लिए चांडाल लोग जो लकड़ी अपने पास रखते हैं वह ।
झड अक [शद् ] पत्रे फल आदि का गिरना, टपकना । हीन होना । सक. झपट मारना, गिराना ।
झडत्ति अ [झटिति ] शीघ्र ।
झडप अ [ दे] जल्दी |
झडप सक [ आ + छिद्] छीनना ।
झडप्पड न [ दे] झटपट ।
झड अ [झटिति] तुरन्त ।
झडिअ वि [दे] शिथिल, सुस्त । श्रान्त, झड़ा हुआ, गिरा हुआ ।
झडित्ति देखो झडत्ति ।
झडिल देखो जडिल ।
झडी स्त्री [दे] निरन्तर वृष्टि । झण सक [जुगुप्स् ] घृणा करना । झणझण) अक [ झणझणाय् ] 'झन-झन'
झणझण आवाज करना ।
झणझणारव पुं [झणझणारव] 'झन-झन'
आवाज !
झण देखो झुणि झत्ति देखो झडत्ति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
झत्थ वि [दे] गत । नष्ट | झपिअ वि [ दे] पर्यस्त । झप्प देखो झण |
झमाल न [ दे] माया जाल | झय पुंस्त्री [ ध्वज ] पताका । झर अक [ क्षर् ] झरना, गिरना । झर सक [स्मृ] याद करना । झरंक
पुं [दे] तृण का बनाया हुआ पुरुष, चञ्चा ।
झरंत
झरग वि[स्मारक ] चिन्तन करनेवाला, ध्यान करनेवाला |
झरझर पुं. निर्झर या झरना आदि की 'झरझर' आवाज ।
झरय पुं [दे] सुवर्णकार
४६
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झरुअ पुं [दे] मशक ।
झलक्किअ वि [दग्ध] जला हुआ, भस्मीभूत | झलझल अक [जाज्वल्] चमकना । झलझलिआ स्त्री [दे] कोथली । झलहल देखो झलझल । झलहलय वि [ दे] क्षुब्ध | झला स्त्री [दे] मृगतृष्णा | झलुंकिअ वि [दे] दग्ध |
झलुंसिअ
झल्लरी स्त्री. वलयाकार वाद्य विशेष । हुडुग
बाजा, झाल, झालर । झल्लरी स्त्री [दे] बकरी । झल्लोज्झल्लिअ वि [दे] परिपूर्ण, भरपूर | झवणा स्त्री [क्षपणा ] विनाश | अध्ययन | झस पुं [झष ] एक देवविमान । एक नरक स्थान | मछली | चिधय पुं [चिह्नक ] कामदेव |
इस पुं [] अपकीति | किनारा | वि. तटस्थ । लम्बा और गम्भीर, बहुत गहरा । टंक से छिन ।
झसय पुं [झषक ] छोटा मत्स्य । झसर पुंन [दे] आयुध - विशेष । झसि वि [] उत्क्षिप्त । झसिंध पुं [झषचिह्न] स्मर ।
झसुर न [ दे] ताम्बूल | अर्थ | झासक [ध्यै ] चिन्ता करना, ध्यान करना । झाउ वि [ ध्यातृ] ध्यान करनेवाला, चिन्तक । झाड न [दे. झाट] निकुञ्ज, झाड़ी । वृक्ष | झाडण न [झाटन ] झोष, क्षय । प्रस्फोटन । झाडल न [दे] कर्पास - फल, डोडों, कपास । झाडावण स्त्रीन [झाटन ] झड़वाना, मार्जन
कराना ।
झाण वि [ ध्यान ] ध्यानकर्ता । पुंन चिन्ता, विचार, उत्कण्ठा पूर्वक स्मरण । एक ही वस्तु में मन की स्थिरता, लौ लगाना । मन आदि की चेष्टा का निरोध । दृढ़ प्रयत्न से मन
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३६२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष झाणंतरिया-झुस वगैरह का व्यापार ।
झिरिड न [दे] जीर्ण कूप, पुराना इनारा । झाणंतरिया स्त्री [ध्यानान्तरिका] दो ध्यानों झिलिअ [दे] झीला हुआ, पकड़ी हुई वह का मध्य भाग । एक ध्यान समाप्त होने पर वस्तु जो ऊपर से गिरती हो। शेष ध्यानों में किसी एक को प्रथम प्रारम्भ झिल्ल अक [स्ना] झीलना, स्नान करना । करने का विमर्श।
झिल्लिआ स्त्री [झिल्लिका] कीट-विशेष, झाम सक [ दह, ] जलाना ।
श्रीन्द्रिय जीव की एक एक जाति, झिल्ली। झाम वि [दे] जला हुआ। °थंडिल न झिल्लिरिआ स्त्री [दे] चीही-नामक तृण । [°स्थण्डिल] दग्ध भूमि ।
मशक, मच्छर। झाम वि [ध्याम] अनुज्ज्वल ।
झिल्लिरी स्त्री [दे] मछली पकड़ने की एक झामण न [दे] जलाना ।
तरह की जाल। झामर वि [दे] वृद्ध ।
झिल्ली स्त्री [दे] लहरी। झामल न [दे] आँख का एक प्रकार का रोग। झिल्ली स्त्री [झिल्ली] वनस्पति-विशेष। कीटवि. झामर रोगवाला।
विशेष, झींगुर । झामल वि [ध्यामल] काला ।
झोण वि [क्षीण] दुर्बल । झामिअ वि [दे] प्रज्ज्वलित । श्यामलित । झीण न [दे] शरीर । कीट । कलंकित ।
झीरा स्त्री [दे] लज्जा। झाय वि [ध्मात] भस्मीकृत, दग्ध । झुंख पुं [दे] तुणय-नामक वाद्य । झारुआ स्त्री [दे] चीरी, क्षुद्र जन्तु-विशेष । झुझिय वि (दे] भूखा। झुरा हुआ, मुरझा झावण न [ध्मापन] देखो झामण ।
हुआ। झावणा न [ध्मापना] दाह, अग्नि-संस्कार। झुंझुमुसय न [दे] मन का दुःख । झावणा देखो अझावणा।
झुंटण न [दे] प्रवाह । पशु-विशेष । झिंखण न [दे] गुस्सा करना।
झुपडा स्त्री [दे] तृणनिर्मित घर । झिंखिअ न [दे] लोक-निन्दा ।।
झुंबणग न [दे] प्रालम्ब । झिंगिर ) पुं [दे] क्षुद्र कीट-विशेष, झुज्झ देखो जुज्झ = युध् । झिंगिरड ) त्रीन्द्रिय जीव की एक जाति, झुट्ठ वि [दे] झूठ । झींगुर या झिल्ली।
झुण सक [जुगुप्स्] घृणा करना, निन्दा झिझिअ वि [दे] बुभुक्षित।
करना। झिंझिणी । स्त्री [दे] एक प्रकार का पेड़, ' झुणि पुं [ध्वनि] शब्द, आवाज । झिंझिरी , लता-विशेष ।
. झुत्ती स्त्री [दे] छेद, विच्छेद । झिज्झ ) अक [क्षि] क्षीण होना । झुमुझुमुसय न [दे] मन का दुःख । झिज्ज ।
झुलुक्क पुं [दे] अकस्मात् प्रकाश । झिज्झिरी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । झुल्ल अक [अन्दोल्] झूलना, डोलना, झिण्ण देखो झीण ।
लटकना। झिमिय । न [दे] शरीर के अवयवों की झुल्लण स्त्रीन [दे] छन्द-विशेष । झिम्मिय , जड़ता।
झुल्लुरी स्त्री [दे] गुल्म, लता, गाछ । झिया देखो झा।
झुस देखो झूस।
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झुंसणा - टंगर
झुणा देखो झूसणा । झुसिर न [ शुषिर ] जगह । वि. पोला, छूछा ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
झूझ देखो जूझ
झूर सक [स्मृ] याद करना, चिन्तन करना । झूर सक [ जुगुप्स् ] निन्दा करना, घृणा
करना ।
रन्ध्र, पोल, खाली
झूर अक [क्षि] झुरना, क्षीण होना । झूर [] वक्र |
झेंडुअ पुं [दे] कन्दुक |
झेय झा का. कृ. ।
झूस सक [ जुष्] सेवा करना । प्रीति करना । क्षीण करना, खपाना | फेंकना, त्याग करना । झूसरिअ वि [दे] अत्यर्थ, अत्यन्त । स्वच्छ, निर्मल ।
ट पुं. मूर्द्ध- स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष | या स्त्री [दे] पुकारने की आवाज । टंक पुं [टङ्क] सिक्का पर का चित्र । तलवार आदि का अग्र भाग । एक प्रकार का सिक्का 1 एक दिशा में छिन्न पर्वत । पत्थर काटने का अस्त्र, टाँकी, छेनी | परिमाण - विशेष, चार मासे की तौल । पक्षि-विशेष | टंक पुं [दे] तलवार | खात, खुदा हुआ जलाशय । जाँघ । भोंत । किनारा । कुदाल | वि. छिन्न, काटा हुआ ।
टंकण पुं [टङ्कन] म्लेच्छ की एक जाति । टंकवत्थुल पुं [दे] कन्द- विशेष, तरकारी । टंका स्त्री [दे] जंघा । एक तीर्थ ।
टंकार पुं [टङ्कार ] धनुष का शब्द |
३६३
झोट्टी स्त्री [] अर्ध- महिषी, भैंस की एक जाति ।
झेर पुं [दे] पुराना घण्टा ।
झल स्त्री [] रास के समान एक झोस पुं [दे] झाड़ना, दूर करना ।
प्रकार की क्रीड़ा ।
झोटिंग पुं [दे] देव-विशेष |
झोड सक [शाटय् ] पेड़ आदि से पत्र वगैरह को गिराना ।
झोड न [ दे] पेड़ आदि से पत्र आदि का गिराना । जीर्ण वृक्ष 1
झोडप पुं [दे] चना । सूखे चने का शाक । झोडिअ पुं [दे] शिकारी, बहेलिया ।
स्त्री [दे. झोलिका] थैली ।
ट
झोलिआ
झोल्लिआ
झोस देखो झूस ।
झोस सक [गवेषय्] खोजना, अन्वेषण करना । झोस सक [झोषय् ] डालना, प्रक्षेप करना । झोस पुं [झोष ] जिसके डालने से समान भागाकार हो वह राशि ।
झोसणा स्त्री [जोषणा ] अन्त समय की आराधना, संलेखना ।
टंकार पुं [दे] तेज | टंकिअ वि [दे] फैला हुआ । टंकिअ वि [टङ्कित ] टाँकी से काटा हुआ । टंकिया स्त्री [का] पत्थर काटने का अस्त्र, टाँकी ।
टंबरय वि [दे] गुरू, भारी ।
टक्क पुं. देश - विशेष | वि. टक्क देशीय । पुं. भाट की एक जाति ।
टक्कर पुं [दे] ठोकर, अंग से अंग का आघात । टक्करा स्त्री [] टकोर, मुंड - सिर में उंगली
का आघात ।
टक्कारा स्त्री [दे] अरणिवृक्ष का फूल । टगर पुं [तगर] तगर का वृक्ष । सुगन्धित काष्ठ-विशेष |
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२६४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
टच्चक-ठभ टचक पुं [दे] लकड़ी आदि के आघात की टिप्पणय न [टिप्पनक] विवरण, छोटी टीका। आवाज।
टिप्पी स्त्री [दे] तिलक । टट्टइआ स्त्री [दे] जवनिका ।
टिरिटिल्ल सक [ भ्रम् ] घूमना । टप्पर वि [दे] भयंकर कानवाला । टिल्लिक्किय वि [दे] विभूषित । टमर पुं [दे] बाल-समूह ।
टिविडिक्क सक [ मण्डय् ] मण्डित करना । टयर देखो टगर।
टुंट वि [दे] छिन्न-हस्त । टलटल अक [ टलटलाय ] 'टल-टल' आवाज टुंटुण्ण अक [टुण्टुणाय] 'टुन-टुन' आवाज करना।
करना। टलवल अक [दे] तड़फड़ाना। घबराना। टुंबय पुं [दे] आघात-विशेष । टलिअ वि [दे] टला हुआ, हटा हुआ। ट्ट अक [ त्रुट् ] टूटना, कट जाना । टसर न [दे] विमोटन, मोड़ना ।
टुप्परग न [दे] जैन साधु का एक छोटा पात्र। टसर पुं [त्रसर] एक प्रकार का सूता। टूवर पुं [तूवर] जिसको दाढ़ी-मूंछ न हो ऐसा टसरोट्ट न [दे] शेखर ।
चपरासी या प्रतिहार । टहरिय वि [दे] ऊंचा किया हुआ । टेंट पुं दे] मध्य-स्थित मणि-विशेष । वि. टार पुं[दे] अधम अश्व, हठी घोड़ा । टटू ।। भीषण । टाल न [दे] कोमल फल, गुठली उत्पन्न होने टेंटा स्त्री [दे] जुआखाना। अक्षि-गोलक । के पहले की अवस्था वाला फल ।
छाती का शुष्क व्रण। टिंट° , [दे] देखो टेंटा। °साला स्त्री टेंबरूय न [दे] फल-विशेष । टिटा । [शाला] जुआ खेलने का अड्डा ।। टेक्कर न [दे] स्थल, प्रदेश। टिंबरु पुन [दे] तेन्दू का पेड़ ।।
टोक्कण । न[दे] दारू नापने का बरतन । टिबरुणी स्त्री दे] ऊपर देखो।
| टोक्कणखंड टिक्क न [दे] तिलक । मस्तक पर रक्खा जाता टोपिआ स्त्री [दे] टोपी। गुच्छा ।
टोप्प पुं [दे] श्रेष्ठि-विशेष । टिक्किद (शौ) वि [दे] तिलक-विभूषित । टोप्पर पुंन [दे] शिरस्त्राण-विशेष, टोपी । टिग्घर वि [दे] स्थविर, वृद्ध ।
टोल पुं [दे] शलभ, जन्तु-विशेष । पिशाच । टिटिभ पुं. पक्षि-विशेष, टिटिहरी, टिटिहा। गइ स्त्री [गति] गुरु-वन्दन का एक दोष । जल-जन्तु विशेष ।
गइ स्त्री [°कृति] प्रशस्त आकारवाला । टिट्रियाव सक [दे] बोलने की प्रेरणा करना, टोल पुं [दे] टिड्डी । यूथ । 'टि-टि' आवाज करने को सिखलाना। | टोलंब पुं [दे] महुआ का पेड़ ।
ठ पुं. मूर्ध-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष ।
। हुआ, रुका हुआ। ठइअ वि [दे] उत्क्षिप्त, ऊपर फेंका हुआ । पुं. ठइअ देखो ठविअ । अवकाश।
ठंडिल्ल देखो थंडिल्ल। ठइअ वि [स्थगित] आच्छादित । बन्द किया । ठंभ देखो थंभ = स्तम्भ् ।
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३६५
ठंभ-ठावय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ठंभ देखो थंभ = स्तम्भ ।
। रखा हुआ द्रव्य । °मोस पुं[°मोष] न्यास ठकुर । पुं [ठक्कुर] ठाकुर, क्षत्रिय, | की चोरी, न्यास का अपलाप । ठक्कुर राजपूत । ग्राम वगैरह का स्वामी।। ठविआ स्त्री [दे] प्रतिमा, मूर्ति, प्रतिकृप्ति । ठक्कार पुं [ठःकार] '8:' अक्षर ।
ठविर देखो थविर । ठग । सक [स्थग] बन्द करना, ढकना । ठा अक [स्था] बैठना, स्थिर होना, रहना,
गति का रुकाव करना। ठग पुं [ठक] धूर्त ।
ठाण पुं [दे] मान, अभिमान । ठगिय वि [दे] वञ्चित ।
ठाण पुंन [स्थान] स्थिति, अवस्थान । स्वरूपठगिय देखो ठइय = स्थगित ।
प्राप्ति । निवास, रहना । कारण । पयंक आदि ठट्ठार पुं [दे] धातु के बर्तन बनाकर जीविका आसन । भेद । पद, जगह । गुण, पर्याय, चलानेवाला, ठठेरा।
धर्म। आश्रय, आधार, वसति, मकान । ठड्ढ वि [स्तब्ध] हक्काबक्का, कुण्ठित, तृतीय जैन अंग ग्रन्थ; 'ठाणांग' सूत्र । जड़।
'ठाणांग' सूत्र का अध्ययन, परिच्छेद । ठप्प वि [स्थाप्य] स्थापनीय ।
कायोत्सर्ग। भट्ट वि [°भ्रष्ट] अपनी जगह ठय सक [ स्थग् ] बन्द करना, रोकना।
से च्युत । चारित्र से पतित । °ाइय वि ठयण [स्थगन] रुकाव, अटकाव । वि. रोकने
[°तिग] कायोत्सर्ग करनेवाला । °ायय न
[°ायत] ऊंचा स्थान । वाला। ठरिअ विदे] गौरवित । ऊर्ध्व-स्थित ।
ठाण न [स्थान] कुंकण (कोंकण) देश का एक ठलिय वि [दे] शून्य, रिक्त किया गया ।।
नगर । तेरह दिन का लगातार उपवास । ठल्ल वि [दे] दरिद्र ।
ठाणग न [स्थानक] शरीर की चेष्टा-विशेष । ठव सक [ स्थापय् ] स्थापन करना। ठाणि वि [स्थानिन्] स्थानयुक्त । ठवणा स्त्री स्थापना] प्रतिकृति, चित्र, मूत्ति,
ठाणिज्ज वि [दे] सम्मानित । न. गौरव । आकार । स्थापन, सांकेतिक वस्तु ।जैन साधुओं ठाणु देखो खाणु। खंड न [°खण्ड] स्थाणु की भिक्षा का एक दोष, साधु को भिक्षा में | का अवयव । वि. स्थाणु की तरह ऊँचा और देने के लिए रखी हुई वस्तु । सम्मति ।
__ स्थिर रहा हुआ, स्तम्भित शरीरवाला । पर्युषण, आठ दिनों का जैन पर्व-विशेष । ठाणुक्कडिय । वि [स्थानोत्कटुक] उत्कटुक °कुल पुन. भिक्षा के लिए प्रतिषिद्ध कुल । | ठाणुक्कुडय , आसनवाला। न. आसन°णय पुं [°नय] स्थापन को ही प्रधान | विशेष । माननेवाला मत । °पुरिस पुं [°पुरुष] पुरुष | ठाम ? (अप) । देखो ठाण । की मूर्ति या चित्र । यरिय पुं [°चार्य] जिस वस्तु में आचार्य का संकेत किया जाय ठाय पु [स्थाय] स्थान, आश्रय । वह । °सच्च न [°सत्थ] स्थापना-विषयक ठाव सक [स्थापय्] स्थापन करना, धारण सत्य, जिन भगवान् की मूर्ति को जिन कहना करना, रखना। यह स्थापना-सत्य है।
ठावणया) देखो ठवणा। ठवणा स्त्री [स्थापना] वासना ।
ठावणा । ठवणी स्त्री [स्थापनी] न्यास, न्यास रूप से ठावय [स्थापक] स्थापन करनेवाला।
। देखो।
ठाय
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ठावर-डड्ढाडी ठावर वि स्थावर रहनेवाला, स्थायी। मित । खड़ा । बैठा हुआ। ठावित्तु वि [स्थापयितु] देखो ठावय। ठिर देखो थिर । ठिअअ न [दे] ऊर्ध्व ऊँचा ।
ठिविअ न [दे] ऊर्ध्व, ऊँचा। समीप । हिक्का, ठिइ स्त्री [स्थिति] व्यवस्था, क्रम, मर्यादा, | हिचकी। नियम । स्थान, अवस्थान । अवस्था । उम्र, ठिव्व सक [वि + घुट] मोड़ना । काल-मर्यादा । क्खय पु [°क्षय] मरण । | ठोण वि [स्त्यान] जमा हुआ (घृत आदि)। °पडिया देखो °वडिया। 'बंध पु[°बन्ध] आवाज करनेवाला । न. जमाव । आलस्य । कर्म-बन्ध की काल-मर्यादा । °वडिया स्त्री | प्रतिध्वनि । [°पतिता] पुत्र-जन्म-सम्बन्धी उत्सव-विशेष । ठेठ पुंन [दे] ढूंठा, स्थाणु । ठिक्क न [दे] पुरुष चिह्न।
ठुक्क सक [हा] त्याग करना । ठिक्करिआ स्त्री [दे] घड़ा का टुकड़ा। ठेर पुंस्त्री [स्थविर] वृद्ध । ठिय वि [स्थित] अवस्थित । व्यवस्थित, निय- ठोड पु [दे] ज्योतिषी, देवज्ञ । पुरोहित ।
ड पु. मूर्द्ध-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । डंभिअ वि [दाम्भिक मायावी, कपटी । डओयर न [दकोदर] जलोदर का रोग। डंस सक [ दंश् ] डसना, काटना । डंक पु [दे] डंक, वृश्चिक (बिच्छू) आदि का | डंस पुं [दंश] क्षुद्र-जन्तु-विशेष, डाँस, मच्छर । काँटा । दंश-स्थान ।
दन्त-अत । सर्प आदि का काटा हुआ घाव । डंगा स्त्री [दे] डाँग, लाठी।
दोष । खण्डन । दाँत । कवच । मर्म-स्थान । डंड देखो दंड।
डंसण पुन [दंशन] वर्म । डंड न [दे] वस्त्र के सीये हुए टुकड़े। डक्क वि[दष्ट]डसा हुआ, दाँत से काटा हुआ । डंडगा स्त्री [दण्डका] दक्षिण देश का एक डक वि [दे दांत से उपात्त । प्रसिद्ध जंगल।
डक्क स्त्रीन, वाद्य-विशेष । डंडय पु [दे] रथ्या ।
डक्कुरिजंत वकृ [दे] पीडित होता हुआ । डंडारण्ण न [दण्डारण्य] दण्डकारण्य । डगण न [दे] यान-विशेष । डंडि । स्त्री [द] सिले हुए वस्त्र-खण्ड । डगमग अक [दे] हिलना, काँपना । डंडोज
डगल न [दे] फल का टुकड़ा । ईंट, पाषाण डंबर पुं [दे] गरमी, प्रस्वेद ।
वगैरह का टुकड़ा। डंबर पुं [डम्बर] आडम्बर ।
डग्गल पुं [दे] छत । डंभ देखो दंभ।
डज्झ डह का कृ.। डंभण न [दम्भन] दागने का शस्त्र-विशेष । डझंत डह का कवकृ. । ठगाई।
डज्झम डंभणया, स्त्री [दम्भना] दागना । माया, | डट्ट देखो डक्क = दष्ट । डंभणा । कपट, दम्भ, वञ्चना । डड्ढ वि [दग्ध] प्रज्ज्वलित । डंभिअ ' [दे] जुआरी।
डड्ढाडी स्त्री [दे] आग का रास्ता ।
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डप्फ-डिक्क
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३६७
डप्फ न [दे] सेल, कुन्त, भाला, बरछी। । मन्तर जाननेवाली स्त्री। डब्भ पुं [दर्भ] डाभ, कुश ।
डाउ पुं [दे] फलिहंसक वृक्ष, गणपति की एक डमडम अक [ डमडमाय् ] 'डम-डम' आवाज | तरह की प्रतिमा । करना, डमरू आदि की आवाज होना।
।, पत्राकार तरकारी । डमडामय वि डमडमाायत] जिसन डम-डम डाग न [८] शाखा । आवाज किया हो वह ।
डागिणी देखो डाइणी। डमर पुंन. राष्ट्र का भीतरी या बाह्य विप्लव, डामर वि. भयंकर । पुं. एक जैन मुनि ।
बाहरी या भीतरी उपद्रव । कलह, लड़ाई।। डामरिय वि [डामरिक] लड़ाई करनेवाला । डमरुअ । पुन [डमरुक] कापालिक योगियों डाय न [दे] देखो डाग। डमरुग ) के बजाने का बाजा, डमरू। डायाल न [दे] प्रासाद-भूमि, छत । डर अक [ त्रस् ] भय-भीत होना । डाल स्त्रीन [दे] शाखा, टहनी । शाखा का डर पुं[दर] डर ।
एक देश । डल पुं [दे] मिट्टी का ढेला ।
डाव पुं [दे] वाम हस्त । डल्ल सक [पा] पीना।
डाह देखो दाह । डल्ल । न [दे] पिटिका, डाला, डाली, | डाहर पुं [दे] देश-विशेष । डल्लग ) बाँस का बना हुआ फल-फूल
डाहाल पुं [दे] देश-विशेष । रखने का पात्र ।
डाहिण देखो दाहिण । डल्ला स्त्री [दे] डाला, डाली।
डिअली स्त्री [दे] स्थूण, खम्भा, खूटी । डव सक [आ+रभ] शुरू करना ।
डिंडव वि [दे] जल में पतित । डवडव अ [दे] ऊँचा मुंह कर के वेग से इधर- डिडि पुं [ दण्डिन् ] राजकर्मचारी विशिष्ट उधर गमन ।
अधिकार-सम्पन्न । डव्व पुं[दे] बायाँ हाथ ।
डिडिम न [डिण्डिम] डुगडुगी, वाद्य-विशेष । डस देखो डंस।
काँसे का पात्र । डसण न [दशन] दंश, दाँत से काटना । डिडिल्लिअ न दे] खलि-खचित वस्त्र, तैल दाँत । वि. काटनेवाला।
किट्ट से व्याप्त कपड़ा । स्खलित हस्त । डह सक [ दह ] जलाना ।
डिंडी स्त्री [दे] सिले हुए वस्त्र-खण्ड । °बंध डहण न [दहन] भस्म करना । पुं. अग्नि । वि. [°बन्ध] गर्भ-सम्भव । जलानेवाला।
डिंडीर पुन [डिण्डोर] समुद्र का फेन । डहर [दे] शिशु । वि. लघु, क्षुद्र । °ग्गाम पुं. डिंडुयाण न [डिण्डुयाण] नगर-विशेष । [ग्राम] छोटा गाँव ।
डिफिअ वि [दे] पानी में गिरा हुआ। डहरक पुं [दे] वृक्ष-विशेष । पुष्प-विशेष ।। डिंब पुन[डिम्ब]भय । विघ्न । विप्लव, डमर । डहरिया स्त्री [दे] जन्म से अठारह वर्ष तक डिंब पुं [डिम्ब] शत्रु-सैन्य का भय । की लड़की ।
डिभ अक [ संस् ] नीचे गिरना । नष्ट होना । डहरी स्त्री [दे] अलिअर, मिट्टी का घड़ा। डिंभ पुन [डिम्भ] बालक । डाअल न [दे] लोचन ।
डिभिया स्त्री [डिम्भिका] छोटी लड़की । हाइणी स्त्री डाकिनी] चुडैल, प्रेतिनी । जन्तर डिक्क अक [ गर्ज ] साँड़ का गरजना ।
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३६८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
डिड्डर-ढंक डिड्डर [दे] मेढ़ क, बेंग।
। डोअ पुं[दे] काष्ठ का हाथा, दाल, शाक डित्थ पु. काष्ठ का बना हुआ हाथी। जो | आदि परोसने का काष्ट पात्र-विशेष । श्याम, विद्वान, सुन्दर, युवा और देखने में | डोअण न [दे] आँख । प्रिय हो ऐसा पुरुष ।
डोंगर देखो डुंगर। डिप्प अक [ दीप् ] चमकना ।
डोंगिली स्त्री [दे] ताम्बूल रखने का भाजनडिप्प अक[वि + गलगल जाना, सड़ जाना । विशेष । पान बेचनेवाले की स्त्री। गिर पड़ना।
डोंगी स्त्री [दे] हस्तबिम्ब, स्थासक । पान डिमिल न [दे] वाद्य-विशेष ।
रखने का भाजन-विशेष । डिल्ली स्त्री [दे] जल-जन्तु-विशेष ।
| डोंब पु [दे] म्लेच्छ देश-विशेष । एक म्लेच्छडिव सक [ डीप् ] उल्लंघन करना । जाति, डोम । देखो डुंब । डोण वि [दे] अवतीर्ण ।
डोंबिलग । [दे] म्लेच्छ देश-विशेष । डीणोवय न [दे] उपरि, ऊपर ।
डोंबिलय । एक अनार्य जाति । चाण्डाल । डीर न [दे] नवीन अङ्कर ।
डोक्करी स्त्री [दे] बूढ़ी स्त्री। डुंगर पु [दे] पर्वत ।
डोड [दे] ब्राह्मण । डुंध दे] नारियल का बना हुआ पात्र- डोडिणी स्त्री [दे] ब्राह्मणी । विशेष ।
डोड्ड पुं [दे] ब्राह्मण जाति । डंडअपं [दे] पुराना घण्टा । बड़ा घण्टा । डोर पुंदे] रस्सी। डुडुक्का स्त्री [दे] वाद्य-विशेष ।
डोल अक [दोलय] हिलना, भूलना । संशयित डुंडुल्ल अक [ भ्रम् ] घूमना ।
होना। डुंब पुं [दे] डोम, चाण्डाल । देखो डोंब ।। डोल पुं दि] जन्तु-विशेष । फल-विशेष । डुजय न [दे] कपड़े का छोटा गट्टा, वस्त्र
डोल पं [दे] चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति । खण्ड-।
डोला स्त्री [दोला] हिंडोला । डुल अक[ दोलय् ] डोलना, काँपना, हिलना।
डोला स्त्री [दे] शिविका । डुलि पुं दे] कच्छप ।
| डोलिअ पुं [दे] काला हिरन । डुहुडुहुडुह अक[ डुहडुहाय ] 'डुह-डुह' आवाज | डोल्लणग पुं [दे] पानी में होनेवाला जन्तुकरना, नदी के वेग का खलखलाना ।
विशेष । डेकुण पु [दे] खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष । डोव [दे] देखो डोअ। डेड्डुर पु [दे] दर्दुर ।
डोसिणी स्त्री [दे] ज्योत्स्ना।। डेर वि [दे] केकटाक्ष, नीची-ऊँची आँखवाला । | डोहल पुं [दोहद] गभिणी स्त्री का अभिलाष । डेव सक[ डिप् ] उल्लंघन करना, कूद जाना।। मनोरथ ।
ढ पुं. व्यञ्जन वर्ण-विशेष ।
| एक तरह की भाजी या तरकारी । ढंक पुं [दे] कौआ। °वत्थुल न [वास्तुल] ढंक पुं [ढङ्क] कुम्भकार-जातीय एक जैन
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ढंक-ढुक्क
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३६९
उपासक ।
वगैरह पीने की आवाज । ढंक देखो ढक्क।
ढज्ज़त देखो डझंत। ढंकण न [दे. छादन] पिधान ।
ढड्ढ [दे] भेरी। ढंकण देखो ढिंकुण।
ढड्ढर पुं [दे] राहु । ढंकणी स्त्री [दे. छादनी] ढकने का पात्र- | ढड्ढर पुं [दे] बड़ी आवाज । न. गुरु-वन्दन का विशेष ।
एक दोष, बड़े स्वर से प्रणाम करना । वि. वृद्ध । ढंकुण पुं [दे] खटमल ।
ढणिय वि [ध्वनित] शब्दित । ढंकुण पुं [ढङ्कण] वाद्य-विशेष ।
ढमर न [दे] पिठर, स्थाली या थाली । गरम ढंख देखो ढंक = (दे)।
पानी। ढंखर पुंन [दे] फल-पत्र से रहित डाल । ढयर पुं[दे] पिशाच । ईर्ष्या । ढंखरअ [दे] ढेला।
ढल अक [दे] टपकना, गिरना। झुकना। ढंखरी स्त्री दे] वीणा-विशेष ।
स्खलित होना। ढंढ पुंदे] कीच । वि. निरर्थक ।
ढलहलय वि [दे] मृदु, कोमल । ढंढ पुं [ढण्ढण] ढण्ढण ऋषि ।
ढाल सक [दे] ढालना, नीचे गिराना । झुकाना, ढंढ वि [दे] दाम्भिक, कपटी ।
चामर वगैरह का वीजना। ढंढण पुं [ढण्ढन] एक जैन मुनि । ढालिअ वि [दे] नीचे गिराया हुआ । ढंढणी स्त्री [दे] केवांच, वृक्ष-विशेष । ढाव पुं दे] आग्रह, निर्बन्ध । ढंढर पुं [दे] पिशाच । ईर्ष्या ।
ढिंक पुं [ढिङ्क] पक्षि-विशेष । ढंढरिअ पुंदे] पंक।
ढिंकण । पुं [दे] क्षुद्र जन्तु विशेष, गौ आदि ढंढल्ल सक [भ्रम्] घूमना, भ्रमण करना । ढिकुण ) को लगनेवाला कीट-विशेष । ढंढसिअ पुं[दे] ग्राम का यक्ष । गाँव का वृक्ष । । ढिंकलीआ स्त्री [दे] पात्र विशेष । ढंढुल्ल देखो ढंढल्ल।
ढिंग देखो ढिंक। ढंढोल सक [गवेषय] खोजना।
ढिंढय वि [दे] जल में पतित । ढंढोल्ल देखो ढुंढुल्ल।
ढिक्क अक [ गर्ज ] साँड़ का गरजना । ढंस अक [वि + वृत्] धसना, गिर पड़ना। ढिक्कय न [दे] हमेशा। ढंसय न [दे] अपकीर्ति ।
ढिक्किय न [गर्जन] साँड़ की गर्जना। ढक्क सक [छादय] आच्छादन करना, बन्द ढिडिढस न [ढिड्ढिस] देव-विमान-विशेष । करना।
ढिल्ल वि [दे] शिथिल । ढक्क पुं. देश-विशेष । देश-विशेष में रहनेवाली ढिल्ली स्त्री. दिल्ली शहर । °नाह पुं [°नाथ] एक जाति । भाट की एक जाति ।
दिल्ली का राजा। ढक्कय न [दे] तिलक ।
ढुंढुल्ल सक [भ्रम् ] घूमना। ढक्करि वि [दे] अद्भुत ।
ढुंढुल्ल सक [गवेषय] ढूंढ़ना, अन्वेषण करना। ढक्कवत्थुल देखो ढंक-वत्थुल ।
ढुक्क सक [ढौक् ] भेंट करना, अर्पण करना । ढक्का स्त्री. वाद्य-विशेष, डंका, नगाड़ा, डमरू । उपस्थित करना। अक. लगना, प्रवृत्ति ढक्किअ न [दे] बैल की गर्जना ।
करना । मिलना। ढग्गढग्गा स्त्री [दे] 'ढग-ढग' आवाज, पानी । ढुक्क सक [प्र + विश] प्रवेश करना ।
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३७०
ढुक्क वि [ दे. ढौकित ] उपस्थित | मिलित ।
ढेणियालग ढेणियालय विशेष |
प्रवृत्त ।
ढुक्कलुक्क न [ दे] चमड़े से मढ़ा हुआ वाद्य ढेल्ल वि [दे] दरिद्र । विशेष |
ढोअ देखो ढुक्क = ढौक ।
सक [ भ्रम् ] भ्रमण
ढो वि [ ढौकित ] भेंट किया हुआ । उपस्थित
किया हुआ ।
ढोंघरवि [] घुमक्कड़ |
ढोयण देखो ढोवण ।
ढोणिया स्त्री [ढकनिका ] उपहार ।
ढोल्ल पुं [दे] प्रिय, पति ।
ढोल्ल पुं [दे] पह | देश - विशेष । ढोवण न [ ढोकन] अर्पण करना । भेंट | ढोfor a [ ढौकित] उपस्थापित ।
तुला । ढेंकय देखो ढिक्किय ।
दुम
दुस घूमना ।
दुरुढुल्ल देखो ढुंढुल्ल = भ्रम् । ढेंक पुं [ढेङ्क] एक जल-पक्षी । ढेंका स्त्री [दे] खुशी । ढेंकुवा, ढेंकली, कूप
की स्त्री [दे] बलाका ।
ढेंकु पुं [] मत्कुण 1 for a [ ] धूपित ।
संक्षिप्त प्राकृत - हिन्दी कोष
करना,
ण पुं [ण, न ] मूर्द्धा स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । अ. निषेधार्थक अव्यय । उण, उणा | उणाई, उणो अ [° पुनः ] नहीं कि । संति परलोगवाइ वि [शान्तिपरलोकवादिन् ] मोक्ष और परलोक नहीं है ऐसा माननेवाला । स [तत्] वह ।
बंगाल का एक विख्यात नगर |
णअंचर देखो णत्तंचर ।
ण तथा न
स [इदम् ] यह, इस 1
ण वि [ज्ञ] जानकार, पण्डित, विचक्षण ।
अ देखो णव - नव । 'दीअ पुं [ ° द्वीप ] णउ (अप) देखो इव ।
णइ स्त्री [नति] नमन, नम्रता । अन्त । इ अ. निश्चय-सूचक । निषेधार्थक । 'देखो ई ।
safa [नयिक ] नय-युक्त, अभिप्राय विशेष
वाला ।
इअ णी = नी का संकृ. ।
इमासय न [ दे] पानी में होनेवाला फलविशेष |
ढुक्क - णउली पुंस्त्री [ढेणिकालक] पक्षि
' कच्छ पुं. नदी के
गाम पुं
इराय न [नौरात्म्य ] आत्मा का अभाव । वाद पुं. बौद्ध तथा चार्वाक मत । णई स्त्री [ नदी] नदी । किनारे पर की झाड़ी । नदी के किनारे पर स्थित [नाथ] समुद्र | वइ पुं [पति ] 'संतार पुं. जहाज आदि से नदी पार जाना । 'सोत्त पुं. [ 'स्रोतस् ] नदी का प्रवाह ।
गाँव ।
[ग्राम ]
णाह पुं
सागर |
उअ न [नयुत ] 'नयुतांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । उअंग न [नयुताङ्ग ] 'प्रयुत' को चौरासी से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । उs स्त्री [नवति] नब्बे ।
उ वि [नवत] ९० वाँ ।
उल पुं. [ नकुल ] नेवला । पाँचवाँ पाण्डव । वाद्य-विशेष |
उली स्त्री [नकुली] एक महौषधि । सर्प - विद्या की प्रतिपक्ष विद्या ।
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ण-णंदा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ण अ [दे] इन अर्थों का सुचक अव्यय-प्रश्न । | रतिकर पर्वत पर स्थित एक देव-नगरी । उपमा ।
वण्ण न [°वर्ण] देव-विमान-विशेष । °सिंग णं वाक्यालंकार में प्रयुक्त किया जाता
न [°शृङ्ग] एक देवविमान । °सिट्ठ न अव्यय । स्वीकार-द्योतक अव्यय ।
[°सृष्ट] देव-विमान-विशेष । सिरी स्त्री णं (शौ) देखो णणु।
[°श्री] एक श्रेष्ठि-कन्या। °सेणिया स्त्री णं (अप) देखो इव।
[°सेनिका] एक जैन साध्वी । णंगअ वि दे] रोका हुआ।
णंद पुं नन्द] श्रीकृष्ण का पालक गोपाल । णंगर पुं [दे] लंगर ।
णंद पुंस्त्री [नन्दा] पक्ष की पहली (प्रतिपदा), णंगर ) न [लाङ्गल] हल ।
षष्ठी और एकादशी तिथि । णंगल णंगल पुंन [दे] चांच।
णंद न [दे] ऊख पीलने या पेरने का काण्ड । णंगल पुन [लाङ्गल] एक देव-विमान ।
- कुण्डा, पात्र-विशेष । णंगलि पुं [लाङ्गलिन्] बलभद्र ।
गंदग पुं [नन्दक वासुदेव का खड्ग । णंगलिय पुं [लाङ्गलिक हल के आकारवाले।। णदण पुं नन्दन] पुत्र । राम का एक सुभट । शस्त्र-विशेष को धारण करनेवाला सुभट ।
एक बलदेव । भरतक्षेत्र का भावी सातवाँ गंगूल न [लागूल] पुच्छ ।
वासुदेव । एक श्रेष्ठी । श्रेणिक राजा का एक णंगूलि वि [लाफ़लिन्] लम्बी पूंछवाला ।
पुत्र । मेरु पर्वत पर स्थित एक प्रसिद्ध वन । पुं. वानर ।
एक चैत्य । वृद्धि । नगर-विशेष । °कर वि णंगूलि देखो गंगोलि।
वृद्धि-कारक । कूड न [°कूट] नन्दन वन का णंगोल देखो गंगूल।
शिखर । भद्द पुं [भद्र] एक जैन मुनि । णंगोलि पुं [ लागलिन् ] अन्तद्वीप-विशेष ।
°वण न [°वन] एक वन जो मेरु पर्वत पर उसका निवासी मनुष्य ।
स्थित है । उद्यान-विशेष । णंतग न [दे] वस्त्र ।
णंदण पुं (दे] दास । णंद अक [नन्द्] खुश होना । समृद्ध होना। णंदण पुंन [नन्दन] एक देव-विमान । न. णंद पुं [नन्द] एक राजा । भरत-क्षेत्र के भावी | सन्तोष । प्रथम वासुदेव । भरत-क्षेत्र में होने वाले नववे | णंदणा स्त्री नन्दना] पुत्री। तीर्थकर का पूर्व-भवीय नाम । एक जैन | णंदणी स्त्री [नन्दनी] लड़की। मुनि । एक श्रेष्ठी । न. देव-विमान-विशेष । । णंदतणय पुं [नन्दतनय] श्रीकृष्ण । लोहे का एक प्रकार का वृत्त आसन । वि. | णंदमाणग पुं [नन्दमानक] पक्षी की एक समृद्ध होने वाला। कंत न [°कान्त] देव- | __ जाति । विमान-विशेष । 'कूड न [°कूट] एक देव- | गंदयावत्त । पुन [नन्दावर्त्त] एक देवविमान । ज्झय न [°ध्वज]एक देव-विमान । णंदावत्त । विमान । पुं. चतुरिन्द्रिय जीव प्पभ न [प्रभ] देव-विमान-विशेष । °मई | __ की एक जाति । न. लगातार इक्कीस दिनों स्त्री[°मती] एक अन्तकृत् साध्वी । °मित्त पुं | का उपवास । [°मित्र] भरतक्षेत्र में होनेवाला द्वितीय वासु- | णंदा स्त्री [नन्दा] भगवान् ऋषभदेव की एक देव । लेस न [°लेश्य] एक देव विमान ।। पत्नी। राजा श्रेणिक की एक पत्नी और °वई स्त्री [°वती] सातवें वासुदेव की माता। अभयकुमार की माता। भगवान् श्री शीतल
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३७२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णंदा-णंदुत्तर नाथ की माता । भगवान् महावीर के | विशेष । 'राय पुं [राज] पाण्डवों के समअचलभ्रातृ नामक गणधर की माता । रावण कालीन एक राजा । प्राय [राग] समृद्धि की एक पत्नी। पश्चिम रुचक-पर्वत पर में हर्ष । °रुक्ख पुं [°वृक्ष] वृक्ष-विशेष । रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । ईशानेन्द्र °वड्ढणा देखो °वद्धणा। °वद्धण पुं को एक अग्रमहिषो की राजधानी । एक | [°वर्धन] भगवान् महावीर का ज्येष्ठ भ्राता । पुष्करिणी। ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध प्रति- पक्ष-विशेष । एक राजकुमार । न. नगरपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि ।
विशेष। वद्धणा स्त्री [°वर्धना] एक णंदा स्त्री [दे] गैया।
दिक्कुमारी देवी । एक पुष्करिणी । "सेण पुं णंदावत्त पुं नन्दावर्त] एक प्रकार का | [°षेण] ऐरवत वर्ष में उत्पन्न चतुर्थ जिनदेव । स्वस्तिक । क्षुद्र जन्तु की एक जाति । न.. एक जैन कवि । एक राजकुमार । एक जैन देव-विमान-विशेष ।
मुनि । देव-विशेष । °सेणा स्त्री [षेणा] णंदि पुंस्त्री [नन्दि] बारह प्रकार के वाद्यों
पुष्करिणी-विशेष । एक दिक्कुमारी देवी । की एक ही साथ आवाज । हर्ष । मतिज्ञान
सेणिया स्त्री [°षेणिका] राजा श्रेणिक की आदि पाँचों ज्ञान । वाञ्छित अर्थ की प्राप्ति ।
एक पत्नी । °स्सर [°स्वर] देखो णंदीसर मंगल । समृद्धि । जैन आगम ग्रन्थ-विशेष ।
बारह प्रकार के वाद्यों की एक ही साथ अभिलाष । गान्धार ग्राम की एक मुर्छना ।
आवाज ।
णंदिअ न [दे] सिंह की चिल्लाहट, दहाड़ । पुं. एक राजकुमार । एक जैन मुनि जो अपने आगामी भव में द्वितीय बलदेव
णंदिअ वि [नन्दित] समृद्ध । जैन मुनि-विशेष। होगा । वृक्ष-विशेष । आवत्त देखो यावत्त ।
गंदिक्ख पुं [दे] सिंह। °उड्ढ पुं [°वृद्ध] एक प्राचीन कवि का
| णंदिघोस पुं [नन्दिघोष] वाद्य-विशेष । नाम । °कर, गर वि [°कर] मंगल
णंदिज न [नन्दीय] जैन मुनियों का एक कुल । कारक । गाम पुं [ग्राम] ग्राम-विशेष । णंदिणी स्त्री [नन्दिनी] पुत्री। °पिउ पुं °घोस पुं [°घोष] बारह प्रकार के वाद्यों। [°पितृ] भगवान् महावीर का एक गृहस्थ की आवाज । न. देवविमान-विशेष । 'चुण्णग | उपासक । न [°चूर्णक] होठ पर लगाने का एक प्रकार शंदिणी स्त्री [दे] गाय । का चूर्ण । 'तूर न [तूर्य] एक साथ बजाया | णंदिल पुं [नन्दिल] आर्यमंगु के शिष्य एक जाता बारह तरह का वाद्य । 'पुर न जैनमुनि । साण्डिल्य देश का एक नगर । °फल पुं. वृक्ष- | णंदिस्सर । [नन्दीश्वर] एक द्वीप । एक विशेष । भाण न [भाजन] उपकरण- | णंदीसर J समुद्र । एक देव-विमान । विशेष । मित्त पुं[°मित्र] देखा णंद-मित्त । णंदी देखो णंदि। एक राजकुमार, जिसने भगवान् मल्लिनाथ | णंदी स्त्री [दे] गाय । के साथ दीक्षा ली थी । ‘मुइंग पुं[ मृदङ्ग]| गंदीसर पुं [नन्दीश्वर] एक द्वीप । °वर पुं. एक प्रकार का मृदंग । °मुह न [°मुख ] नन्दीश्वर-द्वीप । °वरोद पुं. समुद्र-विशेष । पक्षि-विशेष । 'यर देखो कर । यावत्त णंदुत्तर पुं [नन्दोत्तर] नागकुमार के भूतानन्द पुं[ °आवर्त ] स्वस्तिक-विशेष । एक लोक- नामक इन्द्र के रथ-सैन्य का अधिपति देव । पाल देव । क्षुद्र जन्तु-विशेष । न. देवविमान- वडिसग न [°ावतंसक] एक देव-विमान ।
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णंदुत्तरा-गट्ट संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३७३ णंदुत्तरा स्त्री [नन्दोत्तरा] पश्चिम रुचक पर्वत । णगरी देखो णयरी। पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । कृष्णा णगाणिआ स्त्री [नगाणिका] छन्द-विशेष । नामक इन्द्राणी को एक राजधानी । पुष्करिणी- णगिद पुं [नगेन्द्र] श्रेष्ठ पर्वत । मेरु पर्वत । विशेष । राजा श्रेणिक की एक पत्नी । णगिण वि [नग्न] वस्त्ररहित । णकार [णकार, नकार]'ण' या 'न' अक्षर।। णग्ग देखो णग।। णक पुं [नक्र] जलजन्तु-विशेष, ग्राह, नाका। णग्ग वि [नग्न] नंगा । °इ पुं[°जित्] गन्धार रावण का एक सुभट ।
देश का एक राजा। णक्क पुं [दे] नासिका । वि. गूंगा । सिरा स्त्री. णग्गठ वि [दे] निर्गत । नाक का छिद्र ।
णग्गोह [न्यग्रोध] बड़ का पेड़ । परिमंडल णक्वंचर [नक्तञ्चर] राक्षस । चोर । बिडाल। न [°परिमण्डल] संस्थान-विशेष, शरीर का वि. रात्रि में चलने-फिरनेवाला ।
आकार-विशेष । णक्ख पुं [नख] नख । °अ वि [°ज नख से णघुस पुं [नघुप] एक राजा ।
उत्पन्न । °आउह पुं[°आयुध] सिंह। णचिरा = अचिरात् । णक्खत्त पुंन [नक्षत्र] कृत्तिका, अश्विनी, णच्च अक [नृत्] नृत्य करना। भरणी आदि ज्योतिष्क-विशेष । °दमण पुं णच्च न [ज्ञत्व] जानकारी, पण्डिताई । [°दमन] राक्षस-वंश का एक राजा, एक णच्च न [नृत्य] नृत्य । लंकेश । 'मास पुं. ज्योतिषशास्त्र में प्रसिद्ध णच्चग वि [नर्तक] नाचनेवाला। पुं. नट, समय-मान-विशेष । 'मुह न [°मुख] चन्द्र । नचवैया । "संवच्छर पुं [°संवत्सर] ज्योतिष शास्त्र- णच्चणी स्त्री [नर्तनी] नाचनेवाली स्त्री । प्रसिद्ध वर्ष-विशेष ।
णच्चा । णा - ज्ञा का संकृ. । णक्खत्त वि [नक्षत्र] क्षत्रिय-जाति के अयोग्य
णच्चाण, कार्य करनेवाला । पुन. एक देव-विमान ।।
णच्चासन्न न [नात्या सन्न]अति समीप में नहीं। णक्खत्त वि [नाक्षत्र नक्षत्र-सम्बन्धी ।
णच्चिर वि [दे] रमण-शील । णक्खत्तणेमि पुं [दे. नक्षत्रनेमि] विष्णु।।
णच्चुण्ह वि [नात्युष्ण] जो अति गरम न हो। णक्खन्नण न [दे] नख और कण्टक निकालने णज्ज सक [ज्ञा] जानना। का शस्त्र-विशेष ।
णज्ज वि [न्याय्य] न्याय-संगत, योग्य । णक्खि वि [नखिन् ] सुन्दर नखवाला । णज्जर वि [दे] मलिन । णख देखो णक्ख ।
णज्झर वि [दे] निर्मल । णग देखो णय = नग। °राय पुं [राज] | पट्ट अक [नट्] नाचना । सक. हिंसा करना । मेरु पर्वत । °वर पुं. श्रेष्ठ पर्वत । वरिंद
| णट्ट पुं [नट] नर्तकों की एक जाति । णट्ट न पुं["वरेन्द्र] मेरु-पर्वत ।
[नाट्य] नृत्य, गीत और वाद्य, नट-कर्म । णगर न [नकर, नगर] शहर । गुत्तिय, पाल पुं. नाट्य-स्वामी, सूत्रधार । °मालय पुं
गोत्तिय पुं [°गुप्तिक] नगर रक्षक । °घाय [°मालक] देव-विशेष, खण्डप्रपात गुहा का पुं[°घात] शहर में लूट-पाट । “णिद्धमण न अधिष्ठायक देव । °अरिअ पुं [°ाचार्य] [°निर्धमन] मोरी । रक्खिय पुं[°रक्षिक] सूत्रधार । देखो °गुत्तिय । °ावास पुं. राजधानी। । णट्ट [नृत्य] नाच, नृत्य ।
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३७४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पट्टअ-णद्धंबवय णट्टअ न [नाट्यक] देखो णट्ट = नाट्य । णणु अ [ननु] इन अर्थों का सूचक अव्ययणट्टअ ) वि [नर्तक] नाचनेवाला, नचवैया। निश्चय । आशंका । वितर्क । प्रश्न । णट्टग । स्त्री. °ई।
णण्ण पुं दे] कुआँ । दुर्जन । बड़ा भाई । णट्टार पुं नाट्यकार] नाट्य करनेवाला। णत्त न [नक्त] रात्रि। णट्टावअ वि [नर्तक] नचानेवाला । णत्त देखो णत्तु । णट्टिया स्त्री [नत्तिका] नटी, नर्तकी । | णत्तंचर देखो णक्वंचर । णटुमत्त पुं [नर्तुमत्त] एक विद्याधर । णत्तण न [नर्तन] नाच, नृत्य । णट्ठ पुंनिष्ट] एक नरक स्थान । न. पलायन। णत्ति स्त्री [ज्ञप्ति] ज्ञान । वि. अपगत, नाश-प्राप्त । पुन, अहोरात्र का | णत्तिअ पुं [नप्तृक] पौत्र । दौहित्र । सतरहवाँ मुहूर्त । °सुइअ वि [°श्रुतिक] जो । णत्तिआ । स्त्री [नप्त्री] पौत्री। पुत्री की बधिर-बहरा हुआ हो । शास्त्र के वास्तविक णत्ती पुत्री। ज्ञान से रहित ।
णत्तु [नप्तृ] देखो णत्ति। णव वि [नष्टवत्] नाश-प्राप्त । न. अहोरात्र णत्तआ देखो णत्तिआ। का एक मुहूर्त।
णत्तुइणी स्त्री [नप्तकिनी] पौत्र की स्त्री। णड अक [.गुप् ] व्याकुल होना । सक. खिन्न
दौहित्र की स्त्री। करना।
णत्तुई देखो णत्ती। णड देखो णट्ट = नट् ।
णतुणिअ पुं [नप्त पौत्र । प्रपौत्र । णड देखो णल = नड ।
णत्तुणिआ देखो णत्तिआ। णड पुं [नट] नर्तकों की एक जाति, नट। णत्थ वि [न्यस्त] स्थापित, निहित । °खाइया स्त्री [°खादिता] नट की तरह
णत्थण न [दे] नाक में छिद्र करना । कृत्रिम साधुपन ।
णत्था स्त्री [दे] नाथा या नाथ । णडाल न [ललाट] कपाल ।
पत्थि अ [नास्ति] अभाव-सूचक अव्यय । णडालिआ स्त्री [ललाटिका] ललाट-शोभा,
णत्थिअ वि [नास्तिक] परलोक आदि नहीं कपाल में चन्दन आदि का विलेपन ।
माननेवाला । पुं. नास्तिक मत का प्रवर्तक, णडाविअ वि [गोपित] व्याकुल किया हुआ। चार्वाक । °वाय पुं. [°वाद] नास्तिकखिन्न किया हुआ।
दर्शन । णडिअ वि [दे] वञ्चित, विप्रतारित । खेदित । णत्थियवाइ वि [नास्तिकवादिन] आत्मा णडी स्त्री [नटी] नट की स्त्री । लिपि-विशेष । ___ आदि के अस्तित्व को नहीं माननेवाला । नाचनेवाली स्त्री।
णद सक [नद्] नाद करना, आवाज करना । णडुली स्त्री [दे] कच्छप ।
णदी देखो गई। णडूल न [नड्डुल] नगर-विशेष । पं. देश
णद्दिअ वि [दे] दुःखित । विशेष ।
णद्दिअ न [नदित] आवाज । णड्डरी स्त्री [दे] मेढक ।
णद्ध वि [नद्ध] आच्छादित । नियन्त्रित, बँधा गड्डल न [दे] मैथुन । मेघाच्छन्न दिवस । हुआ। वर्मित । णड्डुली देखो णडुली।
णद्ध वि [दे] आरूढ़ । णणंदा स्त्री [ननान्दृ] ननद ।
| णद्धंबवय न दे] घृणा या घिन का अभाव ।
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णपहत्त-णर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३७५ निन्दा।
पत्नी । णपहुत्त वि [अप्रभूत] अपर्याप्त, यथेष्टरहित । | णय देखो णद = नद् । णपहुप्पंत वि [अप्रभवत् अपर्याप्त होता। णय पुं [नग] पर्वत । वृक्ष । देखो णग। णपुंस पुंन [नपुंसक क्लोब । 'वेय पुंणय अ [नच] नहीं। णपंसग [°वेद] कर्म-विशेष, जिसके उदय | णय [नत] झुका हुआ, नम्र । जिसको नमस्कार णपुंसय ) से स्त्री और पुरुष दोनों के स्पर्श किया गया हो वह । न. देवविमान-विशेष । की वाञ्छा होती है।
सच्च पुं[सत्य] श्रीकृष्ण । णप्प सक [ज्ञा] जानना ।
णय पुं [नय] न्याय, नीति । युक्ति । प्रकार, णभ देखो णह = नभस् ।
रीति । वस्तु के अनेक धर्मों में किसी एक को णभसूरय पुं [नभःशूरक] कृष्ण पुद्गल-विशेष,
मुख्य रूप से स्वीकार कर अन्य धर्मों की उपेक्षा
करनेवाला मत, एकांश-ग्राहक बोध । विधि। णम सक [नम्] प्रणाम करना ।
'चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन ग्रन्थकार । णमंस सक [नमस्य] नमन करना ।
°त्थि वि [°ार्थिन्] न्याय चाहनेवाला । °व,
°वत वि [°वत्] नीतिवाला । °विजय पुं. णमंसणया । स्त्री [नमस्यना] नमस्कार ।
एक जैन मुनि जो सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री णमंसणा ।
यशोविजयजी के गुरु थे। णमंसिय वि [नमस्यित] जिसको नमन किया
णयचक्क न [नयचक्र] जैन प्रमाण-ग्रन्थ । गया हो वह । णमक्कार देखो णमोक्कार ।
णयण न [नयन] ले जाना। जानना, ज्ञान । णमसिअ न [दे] उपयाचितक, मनौती।
निश्चय। वि. ले जानेवाला । पुन. आँख । णमि पुं [नमि] इक्कीस जिन-देव । राजर्षि । जल न. आँस् । भगवान् ऋषभदेव का एक पौत्र ।
णयय पुं [दे. नवत] ऊन का बना हुआ णमिअ वि [नमित] नमाया हुआ।
आस्तरण-विशेष । णमिआ स्त्री [नमिता] एक स्त्री। 'ज्ञाता- णयर देखो णगर। धर्मकथासूत्र' का एक अध्ययन ।
णयरंगणा स्त्री [नगराङ्गना] गणिका । णमिर वि [नम्र] नमन करनेवाला। णयरी स्त्री [नगरी] शहर । णमुइ पुं [नमुचि] एक मन्त्री ।
णर पुं [नर] मनुष्य, पुरुष । अर्जुन । °उसभ णमुदय पुं नमुदय] आजीविक मत का एक | पुं[वृषभ] श्रेष्ठ मनुष्य, अंगीकृत कार्य का उपासक ।
निर्वाहक पुरुष । °कंतप्पवाय पुं [°कान्तणमेरु पुं नमेरु] वृक्ष-विशेष ।
प्रपात] हृद-विशेष । °कंता स्त्री [°कान्ता] णमो अ[नमस्] नमस्कार ।
नदी-विशेष । °कंताकूड न [°कान्ताकूट] णमोक्कार पुं नमस्कार] प्रणाम । जैन-शास्त्र रुक्मि पर्वत का एक शिखर । °दत्ता स्त्री. में प्रसिद्ध मन्त्र-विशेष । °सहिय न | मुनि-सुव्रत भगवान् की शासनदेवी । विद्या[°सहित] प्रत्याख्यान-विशेष, व्रत-विशेष । । देवी-विशेष । °देव पुं. चक्रवर्ती राजा। णमोयार देखो णमोक्कार।
नायग पुं [°नायक] राजा । 'नाह पुं णम्म पुन [नर्मन] उपहास । क्रीड़ा । [°नाथ] राजा । °पहु पुं[प्रभु] राजा । णम्मया स्त्री [नर्मदा] एक नदी । एक राज- | °पौरुसि पुं [°पौरुषिन्] राज-विशेष ।
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३७६
'लोअ पुं [°लोक ] मनुष्य लोक | 'वइ पुं | [पति] राजा । ' वर पुं. राजा । उत्तम पुरुष । वरिंद पुं [वरेन्द्र ] भूमि-पति । 'वरीसर पुं ['वरेश्वर ] श्रेष्ठ राजा । 'वसभ, 'वसह पुं [वृषभ ] देखो 'उसभ । नृपति । पुं. हरिवंश का एक राजा । वाल पुं [पाल ] भूपाल | वाहण पुं [वाहन ] एक राजा । वेय पुं [वेद] पुरुष वेद, पुरुष को स्त्री के स्पर्श की अभिलाषा । सिंघ, सिंह, सीह पुं [सिंह ] श्रेष्ठ मनुष्य । अर्धभाग में पुरुष का और अर्धभाग सिंह का आकारवाला, श्रीकृष्ण । सुंदर [सुन्दर ] एक राजा विपुं [प] नरेश |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
इंदय पुं [नरकेन्द्रक] नरक-स्थान- विशेष । परकंठ पुं [ नरकण्ठ] रत्न की एक जाति
णरग
णरय
}
पुं [ नरक] नारक जीवों का स्थान । 'वाल, वालय पुं [पाल, क] परमाधार्मिक देव जो नरक के जीवों को यातना (पीड़ा) देते हैं । रसिंह पुं [ नरसिंह] बलदेव । एक राजकुमार ।
णराच
पुंन [ नाराच] लोहमय बाण ! णराअ संहनन - विशेष, शरीर की रचना का एक प्रकार । छन्द - विशेष ।
रायण पुं [ नारायण ] विष्णु । रिंद पुं [नरेन्द्र] राजा । गारुड़िक
[कान्त ] देव-विमान- विशेष | [पथ ] राज मार्ग । 'वसह पुं
श्रेष्ठ राजा ।
।
कंत न
[वृषभ ]
रीस पुं [ नरेश ] राजा ।
परीसर पुं [ नरेश्वर ] राजा ।
रुत्तम पुं [ नरोत्तम] श्रीकृष्ण । उत्तम पुरुष । नरेंद देखो रिंद |
णरेसर देखो णरीसर |
लन [न] भीतर से पोला शराकार तृण । ल न [ नल] ऊपर देखो । पुं. राजा रामचन्द्र का एक सुभट | वैश्रमण का एक पुत्र । "कुब्बर, कूवर पुं [कूबर] दुर्लधपुर का एक राजा । वैश्रमण का एक पुत्र । गिरि पं. चण्डप्रद्योत राजा का एक हाथी । णलय न [दे] उशीर, खस का तृण । लाड देखो णडाल ।
णलाडंतव वि [ ललाटन्तप] ललाट को तपाने
वाला ।
गलिअ न [ दे] मकान ।
इंदय - णव
लिण न [ नलिन] लगातार तेईस दिन का उपवास । पुंन. एक देव - विमान । रक्त कमल । महाविदेह वर्ष का एक प्रदेश - विशेष । 'नलिनांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । देव-विमान- विशेष । रुचक पर्वत का एक शिखर [° कूट ] वक्षस्कार- पर्वत- विशेष [गुल्म] देव-विमान- विशेष । नृप - विशेष | अध्ययन - विशेष । राजा श्रेणिक का एक पुत्र । वई स्त्री [ती] विदेह वर्ष का एक प्रदेश- विशेष |
|
कूड पुं
।
'गुम्म न
पह पुंलिणी
लिणंग न [ नलिनाङ्ग] संख्या- विशेष, पद्म को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह ।
णलिणि
}
स्त्री [ नलिनी] कमलिनी । गुम्म देखो णलिण-गुम्म । 'वण न [ वन] उद्यान - विशेष । लोग पुं [ नलिनोदक ] समुद्र - विशेष |
रित्तरवडग न [ नरेन्द्रोत्तरावतंसक ] णल्लय न [ दे] बाड़ का छिद्र । प्रयोजन | देव-विमान- विशेष |
निमित्त | वि. कोचवाला ।
व देखो णम |
व वि [नव ] नूतन । वहुया, 'वहू स्त्री [व] नवोढ़ा
णव त्रि. व. [नवन्] संख्या - विशेष, नव । इ
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णवकार-णह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३७७ स्त्री [ति] संख्या-विशेष नब्बे। ग न | णवरिअ न [दे] सहसा, जल्दी । [°क नव का समुदाय । जोयणिय वि णवरु देखो णवर । [योजनिक ] नव योजन का परिमाणवाला। णवलया स्त्री [दे] वह व्रत जिसमें पति का °णउइ, 'नउइ स्त्री [°नवति] निन्यानबे । | नाम पूछने पर उसे नहीं बतानेवाली स्त्री 'नउय वि [°नवत] ९९ वाँ । 'नवइ देखो | पलाश की लता से ताड़ित की जाती है । °णउइ । 'नमिया स्त्री [°नवमिका] णवसिअ न [दे] उपयाचितक, मनौती । जैन साधु का व्रत-विशेष । 'म वि. नववाँ । णवा स्त्री [नवा] दुलहिन । युवति । जिसको °मी स्त्री. पक्ष का नववाँ दिवस । °मीपक्ख | दीक्षा लिए तीन वर्ष हुए हों ऐसी साध्वी । पुं [°मीपक्ष] अष्टमी ।
अ. प्रश्नार्थक अव्यय, अथवा नहीं ? णवकार देखो णमोक्कार।
णवि अ. वैपरीत्य-सूचक अव्यय । निषेधार्थक णवकारसी स्त्री [नमस्कारसहित] प्रत्या
अव्यय । ख्यान-विशेष, व्रत-विशेष ।
णविअ वि [नव्य] नूतन । णवख (अप) वि [नव] अनोखा, नया । णवीण वि [नवीन] नया। णवणीअ पुन [नवनीत] मसका।
णवुत्तरसय वि [नवोत्तरशततम] एक सौ णवणीइया स्त्री [नवनीतिका] वनस्पति
नववाँ। विशेष ।
णवुल्लडय (अप) देखो णव = नव । णवपय न [नवपद] नमस्कार-मन्त्र ।
णवोढा स्त्री [नवोढा] नव-विवाहिता स्त्री। णवमालिया स्त्री [नवमालिका] पुष्प-प्रधान
णवोद्धरण न [दे] उच्छिष्ट । वनस्पति-विशेष, बसन्ती नेवारी, नेवार ।
णव्व पुं [दे] गाँव का मुखिया । णवमिया स्त्री [नवमिका] रुचक पर्वत पर
णव्व वि [नव्य] नवीन । रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । सत्पुरुष
णव्व देखो णा = ज्ञा। नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी । शक्रेन्द्र की
णव्वाउत्त पुं [दे] ईश्वर, धनाढ्य, भोगी। एक पटरानी।
नियोगी का पुत्र, सूबेदार का लड़का । णवय देखो णव-ग। णवय देखो णयय।
णस सक [नि +अस्] स्थापन करना । णवयार देखो णवकार।
णस अक [ नश् ] पलायन करना। णवर सक [कथ] कहना ।
णसण न [न्यसन] न्यास, स्थापन । णवर । अ. केवल, सिर्फ । अनन्तर ।
णसा स्त्री [दे] नाड़ी।
णसिअ वि [नष्ट] नाश-प्राप्त । णवरंग । पुं [नवरङ्ग, क] नूतन रंग ।
णस्स देखो नस = नश् । णवरंगय । छन्द-विशेष । कौसुम्भ रंग का
णस्सर वि [नश्वर] विनश्वर, भंगुर । वस्त्र ।
णस्सा स्त्री [नासा] नासिका। णवरत्ति स्त्री [नवरात्रि] नव दिनों का णह देखो णक्ख । आश्विन मास का एक पर्व ।
णह न [नभस्] आकाश । पुं. श्रावण मास । णवरि अ [दे] शीघ्र ।
°अर वि [°चर] आकाश में विचरनेवाला । णवरि । देखो णवर ।
पुं. विद्याधर। केउमंडिय न [°केतुणवरिअ
मण्डित] विद्याधरों का एक नगर । गमा ४८
णवरं ।
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३७८
स्त्री. आकाश-गामिनी विद्या । गामिणी. स्त्री [गामिनी] आकाशगामिनी विद्या । च्चर देखो 'अर । च्छेदणय न [च्छेदनक] नख उतारने का शस्त्र । तिलय न [तिलक ] नगर - विशेष । सुभट - विशेष | 'वाहण पुं [वाहन ] नृप विशेष । °सिर न [°शिरस्] नख का अग्र भाग । स्त्री [शिखा ] नख का अग्र भाग । पुं [°सेन] राजा उग्रसेन का एक पुत्र | 'हरणी स्त्री. नख उतारने का शस्त्र ।
सिहा
' सेण
हंसि वि [ नखवत् ] नखवाला | हमुह पुं [दे] घूक, उल्लू । हर [नखर] नख ।
हरण पुं [दे] नखी, नखवाला जन्तु, श्वापद । हरणी स्त्री [ नखहरणी] नख उतारने का
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
शस्त्र ।
णहराल पुं [ नखरिन् ] नखवाला जन्तु ।
हरी स्त्री [दे] छुरी । हवल्ली स्त्री [दे] बिजली |
हारुन [ स्नायु ] स्नायु, नाड़ी ।
हि पुं [ नखिन् ] नख- प्रधान जन्तु श्वापद
1
णाअअ
जन्तु ।
अ [हि] निषेधार्थक अव्यय, नहीं । हु अ [ न खलु ] ऊपर देखो । IT सक [ज्ञा] जानना, समझना ।
अ [न] निषेध सूचक अव्यय ।
देखो णायग ।
अक्क (अप) देखो णायग ।
पुं [ज्ञाति] इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न क्षत्रियविशेष | 'पुत्त पुं [° पुत्र ] भगवान् श्री महावीर । सुय पुं [सुत] भगवान् श्री महावीर । नाइ स्त्री [ज्ञाति] नात, समान जाति । माता पिता आदि स्वजन, सगा । ज्ञान, बोध |
णाअक्क
श्वापद
ाइ (अप) देखो इव । गाइ (अप) नीचे देखो । णाई देखो ण = न ।
हंसि - नाग
इणी (अप) स्त्री [नागी] नागिन । पुं [दे] जहाज द्वारा करनेवाला सौदागर ।
णाइत्त
णाइत्तग
णाइय वि [नादित] कथित, पुकारा हुआ । न. आवाज । प्रतिध्वनि ।
व्यापार
णाइल पुं [ नागिल ] एक जैन मुनि । जैन मुनियों का एक वंश । एक श्रेष्ठी ।
पाइला
स्त्री [नागिला ] जैन मुनियों को
एक शाखा ।
णाइली णाइल देखो णाइल |
ाइव वि [ ज्ञातिमत् ] स्वजन-युक्त |
उवि [ज्ञातृ] जानकार ।
उड्डु पुं [दे] सद्भाव, सन्निष्ठा । अभिप्राय । मनोरथ ।
पाउल वि [दे] गोमान् जिसके पास अनेक गया हों ।
नाग पुन [नाक] स्वर्ग ।
नाग पुं [ नाग] साँप । भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति, नाग कुमार देव | हाथी । वृक्ष - विशेष | एक गृहस्थ । एक प्रसिद्ध वंश | नाग वंश में उत्पन्न । एक जैन आचार्य । एक द्वीप । एक समुद्र । वक्षस्कार पर्वत - विशेष | न ज्योतिष - प्रसिद्ध एक स्थिर करण | 'कुमार पुं. भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति । ° केसर पुं. पुष्प-प्रधान वनस्पति- विशेष | 'गह पुं [ग्रह] नाग देवता के आवेश से उत्पन्न ज्वर आदि । ° जण पुं [ 'यज्ञ ] नाग पूजा का उत्सव । ' ज्जुण पुं [र्जुन] एक जैन आचार्य | दंत पुं 'दत्त पुं. एक राज - पुत्र | एक श्रेष्ठि- पुत्र | 'पइ पुं [पति] नाग कुमार देवों का राजा, नागेन्द्र । पुर न. नगर - विशेष । 'बाण पुं. दिव्य अस्त्र - विशेष | ° भद्द पुं [°भद्र ] नाग
['दन्त] खूंटी |
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णागणिय-णाम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३७९ द्वीप का अधिष्ठाता देव । भूय न [ भूत] | णाडग । न [नाटक] नाटक, अभिनय,
जैन मुनियों का एक कुल । महाभद्द पुं | णाडय , नाट्य क्रिया । रंगशाला में खेलने [°महाभद्र] नागद्वीप का एक अधिष्ठायक | में उपयुक्त काव्य । देव । °महावर पुं. नाग समुद का अधिपति | णाडाल देखो णडाल। देव । 'मित्त पुं[ मित्र] एक जैन मुनि । णाडि । स्त्री [नाडि] रज्जु, वरत्रा । नस, प्राय पुं[ राज] नागकुमार देवों का स्वामी, णाडी । सिरा। [नाडी] । इन्द्र-विशेष । रुक्ख पुं [°वृक्ष] वृक्ष-विशेष ।। णाडीअ पुं [नाडीक] वनस्पति विशेष । °लया स्त्री [°लता] ताम्बूली लता। °वर णाण न [ज्ञान] ज्ञान, बोध, चैतन्य, बुद्धि । पुं. श्रेष्ठ सर्प । उत्तम हाथी । नाग समुद्र का | °धर वि.ज्ञानी, विद्वान् । 'प्पवायन [प्रवाद] अधिपति देव । °वल्ली स्त्री. लता-विशेष । जैन ग्रन्थांश-विशेष, पाँचवाँ पूर्व । °मायार °सिरी स्त्री [श्री] द्रौपदी के पूर्व जन्म का | देखो यार । व.वंत विवत् विद्वान । नाम । °सुहुम न [°सूक्ष्म] एक जैनेतर | °वि वि [°वित्] ज्ञान-वेत्ता । यार पुं शास्त्र । °सेण पुं [°सेन] एक गृहस्थ । | [°ाचार] ज्ञान-विषयक शास्त्रोक्त विधि ।
हत्थि पु[ हस्तिन्]एक प्राचीन जैन ऋषि । | °ावरण न. ज्ञान का आच्छादक. कर्म । णागणिय न [नाग्न्य] नग्नता।
गवरणिज्ज न [°ावरणीय] अनन्तर उक्त
अर्थ । णागदत्ता स्त्री [नागदत्ता] चौदहवें जिनदेव की दीक्षा-शिविका ।
णाणक) न [दे] सिक्का, मुद्रा। णागपरियावणिया स्त्री[नागपरियापनिका
णाणत । न [नानात्व] विशेष, अन्तर । एक जैन शास्त्र । णागर नि [नागर] नगर-सम्बन्धी । नागरिक।
णाणता , स्त्री [नानाता] णागरिअ [नागरिक] नगर का रहनेवाला ।
णाणा अ [नाना अनेक । विह वि [विध] णागरी स्त्री [नागरी] नगर में रहनेवाली
विविध । स्त्री । हिन्दी लिपि ।
णाणि वि [ज्ञानिन्] विद्वान् । णागिद पुं [नागेन्द्र] नाग देवों का इन्द्र ।
णादिय देखो णाइय। शेषनाग ।
णाभि पुं [नाभि] एक कुलकर पुरुष, भगवान् णागिणी स्त्री [नागी] नागिन । एक वणिक्
ऋषभदेव का पिता। पेट का मध्य भाग । पुत्री।
गाड़ी का एक अवयव । नंदण पुं[°नन्दन] णागिल देखो णाइल।
भगवान् ऋषभदेव । णागी स्त्री [नागी] नागिन, सर्पिणी। णाम सक [नमय] नमाना, नीचा करना । णागेंद देखो णागिंद।
उपस्थित करना । अर्पण करना । णागोद पुं [नागोद] एक समुद्र ।
णाम पुं [नाम] परिणाम, भाव । नमन । णाड देखो णट्ट = नाट्य ।
णाम अ [नाम] इन अर्थों का सूचक अव्ययणाडइज वि [नाटकीय] नाटक सम्बन्धी, | सम्भावना । आमन्त्रण, सम्बोधन । प्रसिद्धि । नाटक में भाग लेनेवाला पात्र ।।
अनुज्ञा । वाक्यालंकार पाद-पूर्ति में भी इसका णाडइणी स्त्री [नाटकिनी] नर्तको, नाचने- | प्रयोग होता है। वाली स्त्री।
णाम न [नामन्] अभिधान । कम्म न
णाणग
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सुमेरु ।
३८०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णामण-णारायण [°कर्मन्] विचित्र परिणाम का कारण-भूत | पिता के द्वारा सम्बन्ध, सम्बन्धिपन । °संड कर्म । °धिज्ज, °धेज, °धेय न [°धेय] | न [°षण्ड] उद्यान-विशेष । सुय पुं[सुत] नाम । 'पुर न. एक विद्याधर-नगर । °मुद्दा | भगवान् श्री महावीर । °सुय न [°श्रुत] स्त्री [°मुद्रा] नाम से अंकित मुद्रा । सच्च 'ज्ञाताधर्मकथा' नामक जैन आगम-ग्रन्थ । वि [°सत्य] नाम-मात्र से सच्चा, नामधारी । °धिम्मकहा स्त्री [°धर्मकथा] जैन आगमहेअ देखो 'धेय।
ग्रन्थ-विशेष । णामण न [नमन] नीचा करना।
णायग पुं [नायक] हार के बीच की मणि, णाममंतक्ख पुं [दे] अपराध ।। णामागोत्त न [नामगोत्र यथार्थ नाम । नाम णायग पुं नायक] नेता, मुखिया । तथा गोत्र ।
णायत्त पुं [दे] समुद्र मार्ग से व्यापार करनेणामिय न [नामिक] वाचक-शब्द, पद । वाला वणिक् । णामुक्कसिअ ) न [दे] कार्य।
णायर देखो णागर। णामोक्कसि
णायरिय देखो णागरिय । णाय वि [दे] अभिमानी।
णायरी देखो णागरी। णाय देखो णाग।
णार पुं [नार] चतुर्थ नरक-पृथिवी का एक णाय पुं [नाद] ध्वनि ।
प्रस्तर। णाय पुं [न्याय] अक्षपाद-प्रणीत न्याय- |
| णारइअ वि [नारकिक] नरक पृथिवी में शास्त्र । सामयिक आदि षट्-कर्म ।
उत्पन्न, पुं. नरक का जीव । णाय पुं [नाद] अनुनासिक वर्ण, अर्धचन्द्राकार
णारंग पुं [नारङ्ग] सन्तरे का वृक्ष । न. अक्षर-विशेष ।
कमला नीबू, सन्तरा का फल ।
णारग देखो णारय = नारक । णाय वि न्याय्य] न्या य-युक्त ।
णारद देखो णारय। णाय पुं [न्याय] न्याय, नीति । उपपत्ति,
णारदीअ वि नारदीय] नारद-सम्बन्धी, प्रमाण । °कारि वि [°कारिन्] न्याय-कर्ता । °गर वि [°कर] न्याय-कर्ता। पुं. न्याया
नारद का । धीश । °ण वि [°ज्ञ] न्याय का जानकार ।
णारय पुं नारद] नारद ऋषि । गन्धर्व सैन्य
का अधिपति देव-विशेष । णाय पुं नाक] स्वर्ग । णाय पुं [ज्ञात] भगवान् महावीर । वि. णारय वि [नारक] नरक में उत्पन्न, नरकप्रसिद्ध । वि. विदित । ज्ञाति सम्बन्धी, सगा।। सम्बन्धी । पुं. नरक का जीव । वंश-विशेष में उत्पन्न । पुं. वंश-विशेष ।। णारसिंह वि [नारसिंह] नरसिंह-सम्बन्धी। क्षत्रिय-विशेष । न. उदाहरण । "कुमार पुं. णाराय पुं [नाराच] तौलने की छोटी तराजू, ज्ञातवंशीय राज-पुत्र । °कुल न. वंश-विशेष । काँटा । 'कुलचंद पुं[°कुलचन्द्र] भगवान् श्री महा- णाराय देखो पराअ । °वज न [वज्र] वीर । कुलनंदण पुं [कुलनन्दन] भगवान् संहनन-विशेष । श्री महावीर । 'पुत्त पुं [पुत्र] भगवान् श्री | णारायण पुं [नारायण] विष्णु, श्रीकृष्ण । महावीर । °मुणि पुं [मुनि] भगवान् श्री अर्ध-चक्रवर्ती राजा।। महावीर । °विहि पुंस्त्री [विधि] माता या । णारायण पुं नारायण] एक ऋषि ।
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णारायणी-णासा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३८१ णारायणी स्त्री [नारायणी] देवी-विशेष, अपने शरीर से चार अंगुल लम्बी लाठी। गौरी, दुर्गा ।
द्यूत-विशेष । खेड्ड न ['खेल] द्यूत-विशेष । णारि° देखो णारी। कंता स्त्री [°कान्ता] °खेड्डा स्त्री [°क्रीडा] एक तरह की द्यूतनदी-विशेष ।
क्रीड़ा। णारिएर , पुं [नारिकेल] नारियल का पेड़। णालिएर देखो णारिएर । णारिएल । न. नारियल या नरियर का फल । णालिएरी स्त्री [नारिकेली] नरियर का देखो णालिअर ।
गाछ। णारिंग न [नारिङ्ग] नारंगी का फल, मीठा णाली स्त्री [नाली] वनस्पति-विशेष, एक नीबू, कमला नीबू ।
लता । घड़ी। द्यूत-विशेष । तीन हाथ और णारी स्त्री [नारी] महिला । नदी-विशेष । सोलह अंगुल लम्बी लट्ठी या लग्गी (बाँस) ।
कंतप्पवायपुं [कान्ताप्रपात] द्रह-विशेष । णाली स्त्री [नाडी] नाड़ी, सिरा । देखो णारि।
णालीय वि [नालीय] नाल-सम्बन्धी । णारुट्ट पुं [दे] कूसार ।
णालीया देखो णालिआ। णारोट्र पुंदे] बिल, साँप आदि का रहने का
णावइ (अप) देखो इव । स्थान. विवर । गर्ताकार स्थान ।
णावण न [दे] दान, वितरण । णाल न [ नाल ] कमल-दण्ड । गर्भ का
णावा स्त्री [दे] प्रसृति, अंजली, परिमाणआवरण ।
विशेष । णालंदइज्ज वि [नालन्दीय] नालन्दा-सम्बन्धी।
णावा स्त्री [नौ] नौका, जहाज । °वाणिय न. नालन्दा के समीप में प्रतिपादित अध्ययन
पुं [°वाणिज] समुद्र मार्ग से व्यापार करने
वाला वणिक् । विशेष, 'सूत्रकृतांग' सूत्र का सातवाँ अध्ययन ।
णावापूरय पुं [दे] चुलुक, चुल्लू । णालंदा स्त्री [नालन्दा] राजगृह नगर का
णाविअ पुं [नापित] हजाम । °साला स्त्री एक मुहल्ला । णालंपिअ न [दे] आक्रन्दित, आक्रन्द-ध्वनि ।
[°शाला] नाइयों का अड्डा । णालंबि पुं[दे] केश-कलाप ।
णाविअ पुं [नाविक मल्लाह । णालय न [नालक] द्यूत-विशेष ।
णास देखो णस्स। णाला ! स्त्री [नाडि] नस, सिरा ।
णास सक [ नाशय ] नाश करना । णालि
णास पुं [नाश] नाश, ध्वंस । 'यर वि णालि स्त्री [नालि] परिमाण-विशेष, अंजली । | [°कर] नाश-कारक । णालि वि [दे] गिरा हुआ।
णास पुं [न्यास] स्थापन । धरोहर या अमाणालिअ वि [दे] मूर्ख, अज्ञान ।
नत, रखने योग्य धन आदि । णालिअर देखो णारिएर । दीव पुं [द्वीप] णासग वि [नाशक] नाश करनेवाला । द्वीप-विशेष ।
णासण न [नाशन] पलायन, अपक्रमण । वि. णालिआ । स्त्री [नालिका] नाल, कमल की नाश करनेवाला । णालिगा ) डण्डी। परिमाण-विशेष, दण्ड,धनुष । णासणा स्त्री [नासना] विनाश । अर्ध मुहूर्त का समय । नली। वल्ली-विशेष । णासव सक[ नाशय नाश करना । भगाना। घटिका, काल नापने का एक तरह का यन्त्र । ' णासा स्त्री [नासा] घ्राणेन्द्रिय ।
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३८२
णासि वि [ नाशिन् ] विनश्वर ।
णासिक णासिक्क
न [ नासिक्य ] दक्षिण भारत का एक नगर, पञ्चवटी ।
सिगा स्त्री [नासिका ] नाक | णासीय वि[न्यासीकृत ] धरोहर या अमानत रूप से रखा हुआ । सेक्क देखो णासिक्क ।
णाह पुं [नाथ ] स्वामी, मालिक । हड पुं [नाहट ] एक राजा । णाहल पुं [लाहल] एक म्लेच्छ जाति । हि देखो णाभि । रुह पुं. ब्रह्मा । (अ) अ [हि ] नहीं ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
हा [] वितान के बीच की रस्सी । ाहिय वि [ नास्तिक] परलोक आदि को नहीं माननेवाला । पुं. नास्तिक मत का प्रवत्र्तक । 'वाइ, 'वादिव [ 'वादिन् ] नास्तिक मत का अनुयायी । 'वाय [वाद] नास्तिक दर्शन | माहिविच्छेअ पुं [दे] जघन, कटि के णिअंतिय वि [नियन्त्रित ] संयमित, जकड़ा नाहीए - विच्छेअ । नीचे का भाग ।
}
णि अ [[न] इन अर्थों का सूचक अव्यय - निश्चय । नियतपन, नियम | अतिशय । अधोभाग । नित्यपन । संशय । आदर । विराम | समावेश | समीपता । निन्दा | बन्धन । निषेध | दान । समूह । मोक्ष । सम्मुखता । अल्पता, लघुता । णि अ [ निर् ] इन अर्थों का सूचक अव्यय ---- निश्चय । आधिक्य, अतिशय । निषेध । निर्गनिष्क्रमण |
मन,
अि सक [ दृश् ] देखना । for fव [निज ] आत्मीय, स्वकीय |
for वि [नीत ] ले जाया गया । for a [ नीच] जघन्य, निकृष्ट । अि देखो णिव |
णाति - णिअच्छ
नियमितता । अवश्यं भाविता । पव्वय पुं [° पर्वत ] पर्वत-विशेष | 'वाइ वि [ वादिन् ] भाग्यवादी या दैववादी । णिअंटिअ वि [नियन्त्रित] नियमित । न. प्रत्याख्यान - विशेष, हृष्ट से या रोगी से अमुक दिन में अमुक तप करने का किया हुआ नियम | बँधा हुआ । न अवश्य कर्तव्य नियम- विशेष । अिंठ व [निर्ग्रन्थ] धन रहित । पुं. जैनमुनि, संयत, यति । जिन भगवान्। पुं. भगवान् बुद्ध । णिअंठि देखो 'णिग्गंथी । पुत्त पुं [ पुत्र ] एक विद्याधर-पुत्र, जिसका दूसरा नाम सत्यकि था । एक जैनमुनि जो भगवान् महावीर का शिष्य था ।
णिअs स्त्री [निकृति ] माया, कपट | fras स्त्री [food] नियतपन, भवितव्यता,
णिअंठिय वि [नैर्ग्रन्थिक] निर्ग्रन्थ-सम्बन्धी । जिनदेव-सम्बन्धी |
णिअंठी देखो णिग्गंथी । णिअंत वि [नियत] स्थिर | णिअंत वि [निर्यत्] बाहर निकलता ।
हुआ, बँधा हुआ। णिअंधण न [ दे] वस्त्र ।
णिअंब पुं [ नितम्ब ] पर्वत का वसतिस्थान । स्त्री की कमर का पीछला भाग, कमर के नीचे का भाग, चूतड़ | मूलभाग । कटि प्रदेश । णिबिणी स्त्री [नितम्बिनी ] सुन्दर नितम्ब - वाली स्त्री । महिला । सिसक [नि + वस्] पहनना । णिअंसण न [ दे. निवसन] वस्त्र । सिणि स्त्री [ निवसनी] कपड़ा ।
अक्क सक [दृश्] देखना । अक्कल वि [] वर्तुल, गोलाकार पदार्थ । अिग वि [निजक] स्वकीय | अच्छक [दृश्] देखना |
णिअच्छ सक [नि + यम् ] नियन्त्रण करना । अवश्य प्राप्त करना । जोड़ना । णिअच्छ अक [नि + गम् ] संगत होना, युक्त
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णिअट्ट-णिआग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३८३ होना । सक. अवश्य प्राप्त करना। णिअद्धण न [दे] परिधान, पहनने का वस्त्र । णिअट्ट अक [नि+वृत्] निवृत्त होना, | णिअम सक [नि + यमय] नियन्त्रित करना, पीछे हटना, रुकना।
नियम में रखना । रोकना । वचन से कराना । णिअट्ट सक [निर् + वृत्] निर्माण करना। शरीर से कराना। णिअट्ट सक [नि + अर्द] अनुसरण करना। |णिअम पुं [नियम] निश्चय । ली हुई प्रतिज्ञा, णिअट्ट पुं [निवर्त] व्यावर्तन, निवृत्ति । व्रत। प्रायोपवेशन, संकल्प-पूर्वक अनशनणिअट्ट वि [निवृत्त] व्यावृत्त, पीछे हटा | मरण के लिए उद्यम । 'सा अ [°सात्] हुआ।
नियम से । सो अ [°शस्] निश्चय से। णिअट्रि स्त्री [निवृत्ति पीछे हटना । अध्यव-णिअय न [दे] मैथुन । शयनीय, शय्या । साय-विशेष । मोह-रहित अवस्था । °बायर | घड़ा । वि. नित्य । न [°बादर] गुण-स्थानक-विशेष । पुं. गुण- | णिअय वि [निजक ] स्वकीय, आत्मीय, स्थान क-विशेष में वर्तमान जीव ।
अपना। णिअड न [निकट] समीप । वि. पास का। णिअय वि [नियत] नियम-बद्ध, नियमानुणिअडि वि [निकृतिन्] कपटी ।
सारी । णिअडि स्त्री [निकृति] की हुई ठगाई को | णिअया स्त्री [नियता] जम्बू-वृक्ष-विशेष, छिपाना । माया, कपट ।
जिससे यह जम्बू-द्वीप कहलाता है । णिअडिअ वि [निगडित] नियन्त्रित, जकड़ा | णिअर पुं [निक र] समूह । हुआ।
णिअरण न [द] दण्ड। णिअडिअ वि [निकटिक] समीप-वर्ती।। णिअरिअ वि [दे] राशि रूप से स्थित । णिअडिल्ल वि निकृतिमत्] कपटी, णिअल न [दे] नूपुर, पैजनी । मायावी।
णिअल पुं [निगड] बेड़ी । देखो णिगल । णिअड्ढ सक [नि+ कृष्] खींचना । णिअलाइअ । वि [निगडित] सांकल से णिअण वि [नग्न] वस्त्र-रहित ।
णिअलाविअ नियन्त्रित, जकड़ा हुआ । णिअत्त वि [निकृत्त] काटा हुआ । णिअलिअ । णिअत्त वि [नित्य] शाश्वत ।
णिअल्ल पुं [दे. नियल्ल] ग्रहाधिष्ठायक देवणिअत्त देखो णिअट्ट = नि + वृत् ।
विशेष । णिअत्त देखों णिअट्ट- निवृत्त ।। णिअस देखो णिअंस। णिअत्तण न [निवर्त्तन] भूमि की एक नाप । | णिअह देखो णिवह । निवृत्ति, व्यावतन ।
णिआ स्त्री [निदा] प्राणि-हिंसा । णिअत्तणिय वि [निवर्तनिक] निवर्तन, | णिआ° देखो णिअय = (दे)। 'वाइ वि परिमाणवाला।
[°वादिन] पदार्थ को नित्य माननेवाला । णिअत्ति देखो णिअट्टि।
णिआइय देखो णिकाइय। णिअत्थ वि [दे] परिहित । वस्त्र आदि | णिआग पुं [नियाग] नियत योग । निश्चित पहनाया गया हो वह ।
पूजा । मोक्ष । न. आमन्त्रण देकर जो भिक्षा णिअद सक [नि+गद] बोलना ।
दी जाय वह । णिअद्दिय देखो णिअट्टिय = न्यदित । णिआग देखो णाय = न्याय ।
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३८४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिआण-णिओग णिआण न [निदान] आरम्भ, सावद्य | णिउक्कण पुं [दे] कौआ । वि: मूक, वाक्-शक्ति व्यापार । रोग-कारण, रोग की पहचान । से हीन ।। कारण, किसी व्रतानुष्ठान की फल-प्राप्ति का | णिउज्ज न [न्युब्ज] आसन-विशेष । अभिलाष संकल्प-विशेष । मूल कारण । कड | णिउज्जम वि [निरुद्यम] आलसी । वि [कृत्] जिसने अपने शुभानुष्ठान के फल | णिउड्ड अक [मस्ज्, नि + ब्रुड्] मज्जन का अभिलाष किया हो वह । °कारि वि |
| हा वह। कार विकरना, डूबना। [ 'कारिन् ] वही अनन्तर उक्त अर्थ । णिउण वि [निपुण] चतुर, कुशल । सूक्ष्म, जो णिआण न [निपान] कूप या तालाब के पास | सूक्ष्म बुद्धि से जाना जा सके । पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ | णिउण वि निपुण नियत गुणवाला। जल-कुण्ड, आहाव, हौदी, चरही।
सुनिश्चित, विनिर्णीत । णिआणिआ स्त्री [दे] खराब तृणों का
| णिउणिय वि [नैपुणिक] दक्ष । उन्मूलन ।
| णिउत्त वि [नियुक्त] कार्य में लगाया हुआ । णिआम देखो णिअम = नियमय ।
निबद्ध । . णिआम देखो णिकाम ।
णिउत्त वि [निवृत्त] उपरत, विमुख, विरक्त । णिआमग ) वि [नियामक] नियन्ता । णिउत्त वि [निर्वृत्त] निप्पन्न, सिद्ध । णिआमय । निश्चायक, विनिगमक ।।
णिउत्ति स्त्री [निवृत्ति] विराम । णिआय पुं [नियाग] प्रशस्त धर्म ।
णिउद्ध न [नियुद्ध] बाहु-युद्ध । णिआर सक [काणेक्षितकृ] कानी नजर से
णिउर पुं निकुर] वृक्ष-विशेष । देखना।
णिउर न [नूपुर] पैंजनी, पायल । णिआह पुं [निदाघ] ग्रीष्म ऋतु । उष्ण,
णिउर वि [दे] छिन्न । जीर्ण, पुराना । गरमी।
णिउरंब , न [निकुरम्ब] समूह [निकणिइअ वि [नैत्यिक] नित्य का।
णिउरुंब । रुम्ब] जत्था । णिइग, वि [दे. नित्य, नैत्यिक] शाश्वत,
णिउल पुं [दे] गाँठ, गठरी । णिइय अविनश्वर ।
णिऊढ वि [निगूढ] प्रच्छन्न । णिइव वि [निष्कृप] निर्दय, कठोर ।
णिएअ वि [नियत] नियम-युक्त, प्रतिबद्ध । णि उअ वि [निवृत] परिवेष्टित, परीक्षित । णिएल्ल = निज, स्वकीय । णिउअ वि [नियुत] सुसंगत, सुश्लिष्ट । णिओअ सक [नि+योजय] किसी कार्य में णिउंचिय वि [निकुञ्चित] संकुचित, सकुचा
लगाना। हुआ, थोड़ा मुड़ा हुआ।
णिओअ देखो णिओग । आज्ञा, आदेश । णिउंज सक [नि+युज्] जोड़ना, संयुक्त, णिओइअ वि [नैयोगिक] नियोग-सम्बन्धी ।
करना, किसी कार्य में लगाना । | णिओग पुं [नियोग] मुक्ति । णिउंज पुं [निकुञ्ज] गहन, लता आदि से | णिओग पुं [नियोग] नियम, आवश्यक निबिड़ स्थान । गह्वर ।।
कर्तव्य । सम्बन्ध, नियोजन। अनुयोग, सूत्र णिउंभ पुं [निकुम्भ] कुम्भकर्ण का एक पुत्र । की व्याख्या । व्यापार, कार्य । अधिकारणिउंभिला स्त्री [निकुम्भिला] यज्ञ-स्थान । प्रेरण। राजा, आज्ञा-विधाता। गाँव । णिउक्क वि [दे] तूष्णीक ।
क्षेत्र, भूमि । संयम, त्याग । देखो णिओअ ।
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णिओगि-णिक्कंति संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३८५ °पुर न. राजधानी । राष्ट्र । राज्य । । विशेष । °काय पुं. छहो प्रकार के जीवों का णिओगि वि [नियोगिन्] नियोग-विशिष्ट, | समूह । नियुक्त, आज्ञाप्राप्त, अधिकारी।
णिकाय पुं [निकाच] निमन्त्रण । णिओज देखो णिओअ।
णिकाय देखो णिकाइय। णिंद सक [निन्द्] निन्दा करना, बुराई करना, णिकायणा स्त्री [निकाचना] कारण-विशेष जुगुप्सा करना।
जिससे कर्मों का निबिड़ बन्ध होता है। णिंद वि [निन्ध] निन्दनीय ।
निबिड़ बन्धन । दिलाना। णिंद (अप) स्त्री [निद्रा] नींद ।
णिकिंत सक [नि+कृत्] छेदना । णिदय वि [निन्दक] निन्दा करनेवाला।
णितिय वि [निकर्तक] काट डालनेवाला । जिंदा स्त्री [निन्दा] घृणा, जुगुप्सा ।
णिकुट्ट सक [नि + कुट्] कूटना । काटना । णिदिणी स्त्री [दे] कुत्सित तृणों का उन्मूलन ।
णिकूणिय वि [निकूणित] वक्र किया हुआ । णिंदु स्त्री [निन्द] जिसके बच्चे जीवित न
णिकेय पुं[निकेत] आश्रय, निवास स्थान । रहते हों ऐसी स्त्री।
णिकेयण न [निकेतन] ऊपर देखो। णिब पुं [निम्ब] नीम का पेड़ ।
णिकोय [निकोच] संकोच, सिमट । । णिबोलिया स्त्री [निम्बगुलिका] नीम का
णिक्क वि [दे] सर्वथा मल-रहित । फल ।
णिक्क देखो णिक्ख = निष्क । णिकर पुं [निकर] समूह ।
णिक्कइअव वि [निष्कैतव] कपट-रहित । कपट णिकरण न [निकरण] निर्णय । निकार, का अभाव । दुःख-उत्पादन।
णिक्कंकड वि [निष्कङ्कट] आवरण-रहित । णिकरिय वि [निकरित] सारीकृत, सर्वथा | उपघात-रहित । संशोधित ।
णिक्कंखि वि [ निष्काङ्क्षिन् ] अभिलाषाणिकस देखो णिहस। णिकाइय वि [निकाचित] व्यवस्थापित, णिक्कंखिय न [निष्काङ्क्षित] आकांक्षा का नियमित। अत्यन्त निबिड़ रूप से हुआ | अभाव । दर्शनान्तर की अनिच्छा । वि. (कर्म) । न. कर्मों का निबिड़ रूप से बन्धन । आकांक्षा-रहित । दर्शनान्तर के पक्षपात से णिकाम सक [नि+कामय् ] अभिलाष रहित । करना।
णिक्चण वि [निष्काञ्चन] सुवर्ण-रहित, धनणिकाम न [निकाम]हमेशा परिमाण से ज्यादा | रहित ।
खाया जाता भोजन । निश्चय । अतिशय । णिक्कंटय वि [निष्कण्टक कण्टक-रहित, बाधाणिकाममीण वि [निकाममीण] अत्यन्त रहित, शत्रु-रहित । प्रार्थी।
णिक्कंड वि [निष्काण्ड] काण्ड-रहित, स्कन्धणिकाय सक [नि+काचय] नियमन करना, | वजित । अवसर-रहित । नियन्त्रण करना । निबिड़ रूप से बाँधना। णिवंत वि [निष्क्रान्त] बाहर निकला हुआ। निमन्त्रण देना।
जिसने दीक्षा ली हो वह ।। णिकाय पुं [निकाय] जत्था, यूथ, वर्ग। णिक्वंतार वि [निष्कान्तार] अरण्य से निर्गत । मोक्ष । आवश्यक, अवश्य करने योग्य अनुष्ठान- णिक्कंति स्त्री [निष्कान्ति] निष्क्रमण, बाहर
रहित ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिक्कंतु-णिक्खविअ निकलना।
|णिक्कारण वि [निष्कारण] कारण-रहित । णिक्कंतु वि [निष्क्रमित] बाहर निकलनेवाला। निरुपद्रव । णिक्कंद सक [नि + कन्द] उन्मूलन करना। णिक्कारणिय वि [निष्कारणिक हेतु-शन्य । णिक्कंप वि [निष्कम्प] कम्प-रहित, स्थिर। णिक्कारिम वि [निष्कारण] विना कारण । णिक्कज्ज वि [दे] अनवस्थित, चंचल ।। णिक्काल सक [निर् + कासय् ] बाहर णिक्कट्ठ वि [निष्कृष्ट] कृश, क्षीण।
निकालना। णिक्कड वि [दे] कठिन । पुं. निश्चय, निर्णय । । णिक्कास पुं [निष्कास] नीकास, बाहर णिक्कढिय वि [निष्कृष्ट, निष्कर्षित] बाहर | निकालना। खींचा हुआ, बाहर निकाला हुआ। णिक्किचण वि [निष्किञ्चन] निर्धन, धन
रहित । णिक्कण वि [निष्कण] धान्य-कण-रहित,
णिक्किट्ठ वि [निकृष्ट] अधम, हीन । अत्यन्त गरीब ।
णिक्किण सक [निर् + क्री] खरीदना । णिक्कम अक [निर् + क्रम्] बाहर निकलना । दीक्षा लेना, संन्यास लेना।
णिक्कित्तिम वि [निष्कृत्रिम] असली, स्वाणिक्कमण न [निष्क्रमण] बाहर निकलना ।
भाविक । संन्यास ।
णिक्किय वि [निष्क्रिय क्रिया-रहित । णिक्कम्म वि [निष्कर्मन्] कर्मरहित, मुक्त । णिक्किव वि [निष्कृिप] कृपा-रहित, निर्दय । निकम्मा । मोक्ष । संवर, कर्मों का निरोध ।
| णिक्कीलिय वि [निष्क्रीडित] गमन, गति । णिक्कय पुं [निष्क्रय] बदला, उऋणपन । वेतन,
णिक्कुड पुं [निष्क्रुट] तापन, तपाना । मजूरी।
णिक्कूइल स्त्री [दे] जीता हुआ, विनिजित । णिक्करण न [निकरण] तिरस्कार । परिभव । | णिक्कोडण न [निष्कोटन] बन्धन-विशेष । विनाश ।
णिक्कोर सक [निर् + कोरय] दूर करना । णिक्करुण वि [निष्करुण] करुणा-रहित । पात्र वगैरह के मुंह का बन्द करना। पात्र णिक्कल वि [निष्कल] कला-रहित ।
आदि का तक्षण करना । णिक्कल वि [दे] पोलापन से रहित ।। णिक्ख पुं [दे] चोर । सुवर्ण । णिक्कलंक वि [निष्कलङ्क] कलंक-रहित । णिक्ख पुन [निष्क] दीनार, मोहर, मुद्रा, णिक्कलुण देखो णिक्करुण ।
अशर्फी, रुपया। णिक्कलुस वि [निष्कलुष] निर्दोष, निर्मल । णिक्खंत देखो णिक्कत। उपद्रव-रहित ।
णिक्खंध वि [निःस्कन्ध] स्कन्ध-रहित, डालीणिक्कवड वि [निष्कपट कपट-रहित ।
रहित । णिक्कवय वि [निष्कवच] वर्मवजित ।।
णिक्खणण न [निखनन] गाड़ना। णिक्कस अक [निर + कस्] बाहर निकलना। णिक्खत्त वि [निःक्षत्र] क्षत्रिय-रहित ।
सक निकासना, बाहर निकालना। णिक्खम अक [निर्+क्रम्] बाहर निकलना। णिक्कसाय वि [निष्कपाय] कषाय-रहित । | दीक्षा लेना, संन्यास लेना।
पु. भरत-क्षेत्र के एक भावी तीर्थंकर-देव । णिक्खय वि [निखात] गाड़ा हुआ। णिक्का स्त्री [नीका] वाम-नासिका। णिक्खय वि [दे. निक्षत] निहत, मारा हुआ। णिक्काम वि [निष्काम] अभिलाषा-रहित । 'णिक्खविअ वि [निक्षपित] विनाशित ।
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णिक्खसरिअ-णिग्गंठिद संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३८७ णिक्खसरिअ वि [दे] जो लूट लिया गया हो, णिगम पुं [निगम]प्रकृष्ट बोध । व्यापार-प्रधान अपहृत-सार ।
स्थान, जहाँ व्यापारी विशेष संख्या में रहते णिक्खाविअ वि [दे] शान्त, उपशम-प्राप्त । हों ऐसा शहर आदि । व्यापारी-समूह । णिक्खित्त वि[निक्षिप्तन्यस्त, स्थापित । मुक्त, णिगमण न [निगमन] अनुमान प्रमाण का परित्यक्त । विच्छिन्न । पाक-भाजन में स्थित। एक अवयव, उपसंहार । °चर वि. पाक-भाजन में स्थित वस्तु को | णिगमिअ वि [दे] निवासित । भिक्षा के लिए खोजनेवाला।
णिगर पुं [निकर] समूह । णिक्खिव सक [नि + क्षिप्] स्थापन करना, णिगरण न [निकरण] हेतु ।
स्वस्थान में रखना । परित्याग करना। णिगरिय वि [निकरित] सर्वथा शोधित । णिक्खिव सक [नि + क्षिप्] नाम आदि भेदों | णिगल देखो णिअल। बेड़ी के आकार का से वस्तु का निरूपण करना ।
सौवर्ण आभूषण-विशेष । णिक्खिव पुं[निक्षेप] स्थापन । न्यास-स्थापन, ! णिगलिय देखो णि गरिय। धरोहर । डालना।
णिगाम देखो णिकाम = निकाम । णिक्खुड वि [दे] अकम्प, स्थिर । णिगाम न [निकाम] अत्यन्त । णिक्खुड पुंन [निष्कुट]कोटर, विवर । पृथिवी- णिगास पुं [निकर्ष] परस्पर संयोजन, मिलाना,
खण्ड । उपवन, घर के पास का बगीचा। जोड़ । णिक्खुत्त न [दे] निश्चित, चोक्कस । णिगिज्झिय णिगिण्ह का संकृ. । णिक्खुरिअ वि [दे] अदृढ़, अस्थिर ।
णिगिट्ठ देखो णिक्किट्ठ । णिक्खेड पुं [निष्खेट] अधमता, दुष्टता।
णिगिण वि [नग्न] नंगा। णिक्खेत्तव्व णिक्खिव = नि + क्षिप् का कृ.।
णिगिणिणन [नाग्न्य] नंगापन ।
णिगिण्ह सक [नि + ग्रह ]निग्रह करना, शिक्षा णिक्खेव पुं [निक्षेप] न्यास, स्थापन ।
करना । रोकना । अक. बैठना,स्थिति करना। परित्याग । धरोहर, धन आदि जमा रखना ।
णिगुंज अक [नि + गुञ्] गूजना, अव्यक्त व्यवस्थापन करना । नियमन करना।
शब्द करना । नीचे नमना। णिक्खेवय पुं [निक्षेपक निगमन, उपसंहार । णिक्खोभ , पुं [निःक्षोभ] क्षोभ-रहित,
णिगुंज देखो णिउञ्ज = निकुञ्ज।
णिगुण वि [निगुण] गुण-रहित । णिक्खोह निष्कम्प । णिखय देखो णिक्खय।
णिगुरंब देखो णिउरंब। णिखव्व न [निखर्व] सौ खर्व, सौ अरब ।
णिगूढ वि [निगूढ] प्रच्छन्न । मौन रहनेवाला । णिखिल वि [निखिल] सकल, सब । |णिगृह सक [नि + गुह ] छिपाना, गोपन णिगंठ देखो णिअंठ ।
करना । णिगड सक [निगडय] नियन्त्रित करना, णिगोअ पु [निगोद] अनन्त जीवों का एक बाँधना ।
साधारण शरीर-विशेष । जीव पुं. निगोद का णिगढ पुं [दे] घाम, गरमी ।
जीव । णिगण वि [नग्न, वस्त्र-रहित ।
णिग्ग देखो णिग्गम = निर् + गम् । णिगद सक [नि+गद् ] कहना। पढ़ना, णिग्गंठिद (शौ) वि [निग्रथित] गुम्फित, अभ्यास करना।
ग्रथित ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिग्गंथ-णिच्चय णिग्गंथ देखो णिअंठ।
। णिग्गोह पुंन्यग्रोध] बरगद, बड़ का पेड़ । णिग्गंथ वि [नैर्ग्रन्थ] निर्ग्रन्थ-सम्बन्धी।
। परिमंडल न [परिमण्डल] वटाकार णिग्गंथी स्त्री [निर्ग्रन्थी] जैन साध्वी ।
शरीर का आकार। णिग्गच्छ । अक [निर् + गम्] बाहर णिग्घंट , देखो णिघंटु । णिग्गम , निकलना।
णिग्घटु । णिग्गम पुं [निर्गम] उत्पत्ति । बाहर निकलना, णिग्घट्ट वि [दे] निपुण, चतुर । पसार करना। दरवाजा । बाहर जाने का णिग्घण देखो णिग्घिण। रास्ता । प्रस्थान ।
णिग्धत्तिअ वि [दे] फेंका हुआ । णिग्गमण न [निर्गमन] निःसरण, बाहर णिग्घाय पुं [निर्घात] राक्षस-वंश का एक निकलना । पलायन, भाग जाना । अपक्रमण । राजा। आघात । बिजली का गिरना। णिग्गय वि [निर्गत] निःसृत, जस वि | व्यन्तर-कृत गर्जना । विनाश । उच्छेदन । [यशस्] जिसका यश बाहर में फैला हो । | णिग्घिण वि [निघृण] निर्दय । °ामोअ वि [°मोद] जिसकी सुगन्ध खूब | णिग्घेउं णिगिण्ह का हेकृ. । फैली हो ।
णिग्घोर वि [दे] दया-हीन । णिग्गय वि [निर्गज] हाथी-रहित । णिग्घोस पुं [निर्घोष] महान् अव्यक्त शब्द । णिग्गह देखो णिगिण्ह ।
णिघंटु पुं [निघण्टु] शब्द-कोश । णिग्गह पुं [निग्रह] दण्ड, शिक्षा । निरोध, | णिघस पुं [निकष] कसौटी का पत्थर । रुकावट । काबू में रखना, नियमन । 'ट्ठाण न | कसौटी पर की जाती सुवर्ण की रेखा । [स्थान] न्याय-शास्त्र प्रसिद्ध प्रतिज्ञा-हानि | णिचय पुं [निचय] संग्रह । समूह । उपचय, आदि पराजय-स्थान ।
पुष्टि । णिग्गहिय। वि [निगृहीत] जिसका निग्रह | णिचिअ वि [निचित व्याप्त, भरपूर । निबिड़, णिग्गहीय , किया गया हो वह । पराजित, | पुष्ट । पराभूत ।
णिचुल वि [निचुल] वंजुल वृक्ष । णिग्गा स्त्री [दे] हरिद्रा ।
णिच्च वि [नित्य] शाश्वत । न. निरन्तर, णिग्गाल पुंन [निर्गाल] निचोड़, रस ।
सर्वदा । °च्छणिय वि [°क्षणिक] निरन्तर णिग्गालिय वि [निर्गालित] गलाया हुआ। ।
उत्सववाला । °मंडिया स्त्री [°मण्डिता] णिग्गाहि वि [निग्राहिन] निग्रह करनेवाला ।
जम्बू वृक्ष । °वाय पुं [°वाद] पदार्थों को णिग्गिण्ण वि [दे. निर्गीर्ण] निर्गत, बाहर | नित्य माननेवाला मत । °सो अ [°शस्] निकला हुआ । वमन किया हुआ । सदा। लोअ, लोग, लोव पुं णिग्गिण्ह देखो णिगिण्ह।
[लोक] एक विद्याधर-राजा । ग्रहाधिष्ठायक णिग्गिलिय वि [निर्गलित] वान्त । देव-विशेष । न. नगर-विशेष । वि. सर्वदा णिग्गुंडी स्त्री [नर्गुण्डी] औषधि-विशेष, वन- प्रकाशवाला । स्पति संभालू ।
णिच्च देखो णीय = नीच । णिग्गुण वि [निर्गुण] गुण-रहित, गुण-हीन । णिच्चक्खु वि [निश्चक्षुस्] अन्धा । णिग्गुण्ण न [नैर्गुण्य] निर्गुणत्व । | णिच्चट्ट (अप) वि [गाढ़] निबिड । णिग्गूढ वि [निर्गुढ] स्थिर रूप से स्थापित। । णिच्चय देखो णिच्छय ।
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णिच्चर-णिजुद्ध
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिञ्चर देखो णिब्बर।
कहा स्त्री [कथा] अपवाद । णिञ्चल सक [क्षर] झरना, टपकना। णिच्छल्ल सक [छिद्] छेदना, काटना । णिच्चल सक [मुच्] दुःख को छोड़ना । णिच्छाय वि [निश्छोय] कान्ति-रहित, शोभाणिञ्चल वि [निश्चल] स्थिर, दृढ़। °पय न | हीन । [°पद] मुक्ति ।
णिच्छारय वि [निस्सारक] सार-रहित । णिचित वि. [ निश्चिन्त ] चिन्ता-रहित, णिच्छिडु वि [निश्छिद्र] छिद्र-रहित । बेफिक्र ।
| णिच्छिण्ण वि [निच्छिन्न] पृथक्-कृत, काटा णिच्चिट्ट वि [निश्चेष्ट] चेष्टा-रहित । हुआ। णिच्चिद (शौ) देखो णिच्छिय । णिच्छिद्द देखो णिच्छिडु। णिच्चुज्जीव वि [नित्योद्योत] सदा प्रकाश | णिच्छिय वि [निश्चित] निश्चित, निर्णीत, णिच्चुजोअ युक्त । पुं. ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क | ___ असन्दिग्ध ।
देव-विशेष । न, एक विद्याधर-नगर । णिच्छीर वि [निःक्षीर] दुग्ध-वर्जित । णिच्चुज्जोअ पुं [नित्योद्योत] नन्दीश्वर णिच्छंड वि [दे] करुणा-रहित । द्वीप के मध्य की दक्षिण दिशा में स्थित एक णिच्छुट्ट वि [निश्छुटित] निर्मुक्त । अंजन गिरि।
णिच्छुभ सक [नि + क्षिप्] बाहर निकालना । णिच्चुड्डु वि [दे] उद्वृत्त, बाहर निकला फेंकना । हुआ । निर्दय ।
णिच्छुभ पुं [निक्षेप] निष्कासन । णिच्चुब्विग्ग वि [नित्योद्विग्न] सदा खिन्न । |
णिच्छुह सक [नि + क्षिप्] डालना । णिच्चे? देखो णिच्चिट्ठ।
णिच्छुहणा स्त्री [निक्षेपणा] बाहर निकलने णिच्चेयण वि [निश्चेतन] चेतना-रहित ।
की आज्ञा, निर्भर्त्सना । णिच्चोउया स्त्री [नित्यर्तुका] हमेशा रजस्वला णिच्छढ वि [निक्षिप्त] उद्वृत्त । निर्गत । __ रहनेवाली स्त्री।
फेंका हुआ। निष्कासित । णिच्चोय सक [दे] निचोड़ना।
णिच्छूढ न [निष्ठयूत] थूक, खखार । णिच्चोरिक्क न [निश्चौर्य] चोरी का अभाव ।
णिच्छोड सक [निर् + छोटय] बाहर निकलने णिच्छइय वि [नैश्चयिक] निश्चय-सम्बन्धी । के लिए धमकाना । निर्भर्त्सन करना । छुड़पुं. निश्चय नय, द्रव्याथिक नय, परिणाम- वाना। वाद।
णिच्छोडग न [निश्छोटन] निर्भर्त्सन, बाहर णिच्छउम वि [निश्छद्मन्] कपट-रहित, __ निकालने की धमकी। माया-वर्जित ।
णिच्छोडिअ वि [निश्छोटित] सफा किया णिच्छक्क वि [दे] निर्लज्ज, धष्ट । अवसर को हुआ। नहीं जाननेवाला ।
णिच्छोल सक [निर् + तक्ष् ] छीलना । णिच्छम्म देखो णिच्छउम।
णितिय वि [नियन्त्रित] नियमित, अंकुणिच्छय सक [निर् + चि] निश्चय करना। ।
शित । णिच्छय पुं [निश्चय] निर्णय । नियम, अवि- । णिजिण्ण देखो णिज्जिण्ण । नाभाव । द्रव्यार्थिक नय, वास्तविक पदार्थ | णिझुंज देखो णिउंज = नि + युज् । को ही माननेवाला मत परिणाम-वाद । ' णिजुद्ध देखो णिउद्ध।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिजोजण-णिजोमि णिजोजण न [नियोजन] नियुक्ति, कार्य में । णिज्जामिय वि [नियमित] पार पहुँचाया लगाना, भारअर्पण ।
हुआ, तारित । णिजोज देखो णिओअ।
णिज्जाय पुं दे] उपकार । णिज्ज वि [दे] सोया हुआ ।
णिज्जाय वि [निर्यात] निर्गत, निःसृत । णिज्जण वि [निर्जन] विजन, सुनसान । न. णिज्जायण न [निर्यातन] वैर-शुद्धि, बदला । एकान्त स्थान ।
णिज्जावय देखो णिज्जामय । णिज्जप्प वि [निर्याप्य] निर्वाह-कारक । | णिज्जास पुं [निर्यास] वृक्षों का रस, गोंद ।
निर्बल, बल को नहीं बढ़ानेवाला । णिज्जिअ वि [निर्जित] पराभूत । णिज्जर सक [निर् + ज] क्षय करना । | णिज्जण सक [निर् + जि] जीतना ।
कर्म-पुद्गलों को आत्मा से अलग करना। णिज्जिण्ण वि [निर्जीर्ण] नाश-प्राप्त, क्षीण । णिज्जरण न [निर्जरण] नीचे देखो। णिज्जीव वि [निर्जीव] चैतन्य-वजित । णिज्जरणा स्त्री [निर्जरणा नाश, क्षय । णिज्जूंज [ निर् + युज् ] उपकार करना। कर्म-क्षय । जिससे कर्मों का विनाश हो ऐसा | णिज्जुत्त वि [निर्युक्त]सम्बद्ध, संयुक्त । खचित, तप ।
जड़ित । प्रतिपादित । णिज्जरा स्त्री [निर्जरा] कर्म-विनाश । णिज्जुत्ति स्त्री [नियुक्ति] व्याख्या, विवरण, णिज्जरिय वि [निर्जीर्ण] विनाश-प्राप्त ।। टीका। णिज्जव वि [निर्याप] निर्वाह करानेवाला ।। णिज्जुद्ध देखो णिउद्ध। णिज्जवग वि [निर्यापक] निर्वाह करनेवाला । णिज्जूढ वि [निhढ] निस्सारित, निष्कासित । आराधक । पुं. जैनमुनि-विशेष जो शिष्य | असुन्दर । उद्धृत, ग्रन्थान्तर से अवतारित । के भारी प्रायश्चित्त का भी ऐसी तरह से
रहित । विभाग कर दे कि जिससे वह उसे निबाह | णिज्जूह सक [ निर् + यूह. ] परित्याग सके।
__ करना। रचना, निर्माण करना। बाहर णिज्जवणा स्त्री [निर्यापना] निगमन, दर्शित / निकालना। का प्रत्युच्चारण । हिंसा ।
णिज्जूह पुं [दे. निर्यह] नीव्र, छदि, गृहाच्छाणिज्जवय देखो णिज्जवग।
दन, गोख । द्वार के पास का काष्ठ-विशेष । णिज्जविउ वि [निर्यापयितु] ऊपर देखो।
दरवाजा। णिज्जा अक [निर् + या] बाहर निकालना । | णिज्जूहग वि [नि!हक] ग्रन्थान्तर से उद्धृत णिज्जाण न [निर्याण] बाहर निकलना, करनेवाला । निर्गम । आवत्ति-रहित गमन । मोक्ष णिज्जूहिअ वि [निर्य हित] रहित । णिज्जाणिय वि [नर्याणिक] निर्गम-सम्बन्धी। णिज्जोअ पुं [दे] प्रकार, राशि । पुष्पों का णिज्जामग। पुं [निर्यामक] कर्णधार, जहाज अवकर। णिज्जामय का नियन्ता ।
णिज्जोअ । पुं [नियोग] उपकरण, साधन । णिज्जामण न [निर्यापन] बदला चुकाना । णिज्जोग , उपकार । णिज्जामय पुं [नियमिक] बीमार की सेवा-णिज्जोअ । पुं दे. निर्योग] परिकर, शुश्रूषा करनेवाला मुनि । वि. आराधना- | णिज्जोग । सामग्रो । कारक।
| णिज्जोमि पुं [दे] रज्जु, रस्सी ।
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३९१
णिज्झ-णिड्डुह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिज्झ अक [ स्निह ] स्नेह करना। णिट्ठा स्त्री [निष्ठा] अन्त, अवसान, समाप्ति । णिज्झर अक [क्षि] क्षीण होना । | सद्भाव । भासि वि [°भाषिन्] निष्ठा-पूर्वक णिज्झर वि [दे जीर्ण, पुराना।
बोलनेवाला, निश्चय-पूर्वक भाषण करनेणिज्झर पुं[निर्झर] झरना ।
वाला। णिज्झरणी स्त्री [निर्झरणी] नदी । णिट्ठाण न [निष्ठान] सर्व-गुण-युक्त भोजन । णिज्झा सक [नि + ध्यै] देखना, निरीक्षण दही वगैरह व्यञ्जन । समाप्ति । °कहा स्त्री करना।
[कथा] भक्त-कथा-विशेष, दही वगैरह णिज्झा सक [निर् + ध्यै] विशेष चिन्तन व्यञ्जन की बात-चीत । करना।
णिट्ठिय वि [निष्ठित] समाप्त किया हुआ, पूर्ण णिज्झाइत्तु वि [निध्यातृ ] देखनेवाला, किया हुआ । नष्ट किया हुआ, बिनाशित । निरीक्षक ।
स्थिर । निष्पन्न, सिद्ध । पुं. मोक्ष । °ट्ठ वि णिज्झाइत्तु वि [निर्ध्यात] अतिशय चिन्तन [°ार्थ] कृतकृत्य । 'ट्टि वि ["थिन्] मुमुक्षु । करनेवाला ।
णि ट्ठिय वि [नैष्ठिक] निष्ठावाला। णिज्झाइय वि [निध्यात] दृष्ट, विलोकित । णिट्रीव पु [निष्ठीव] थूक। न. दर्शन, निरीक्षण ।
| णिट्ठीवण स्त्रीन [निष्ठीवन] थूक, खखार । णिज्झाडिय वि [निर्धाटित] विनाशित । थूकना। णिज्झाय वि [दे] दया-रहित ।
णिठुअ न [निष्ठयूत] थूक । णिज्झाय वि [निध्यात] दृष्ट, विलोकित । णिठुभय वि [निष्ठीवक] थूकनेवाला । णिज्झूर वि [दे] जीर्ण, पुराना । | णिठ्ठयण देखो निट्ठीवण । णिज्झोड सक [छिद्] छेदना, काटना।।
णिठुर । वि [निष्ठुर] निष्ठुर, परुष, कठिन । णिज्झोसइत्त वि [निर्दोषयितु] क्षय करने-णिठ्ठल ।
वाला, कर्मों का नाश करनेवाला। णिठ्ठवण न [निष्ठीवन] थूक खखार । वि. णिबँक थि [दे] टंक-च्छिन्न । विषम, असमान। थूकनेवाला। गिट्टंकिय वि [निष्टङ्कित] निश्चित, अव
णिछह अक [ नि+ स्तम्भ ] निष्टम्भ धारित।
___ करना, निश्चेष्ट होना, स्तब्ध होना । णिटुअ अक [ क्षर् ] टपकना, चूना। | निठुह अक [ नि+ष्ठीव ] थूकना । णिटुह अक [वि + गल्] गल जाना। नष्ट । णिठ्ठह वि [दे] स्तब्ध, निश्चेष्ट । होना ।
णिठ्ठहावण वि [निष्ठम्भक] निश्चेष्ट करनेणि? देखो पिट्ठा - नि + स्था।
। वाला, स्तब्ध करनेवाला। णिट्रय ) सक [ नि+ स्थापय् ] समाप्त णिहिअ न [दे] थूक, निष्ठीवन, खखार । णिव , करना, पूर्ण करना। अन्त
णिड पुं [दे] पिशाच, राक्षस । करना, नाश करना । विशेष रूप से स्थापन णिडल ) न [ललाट] भाल । करना, स्थिर करना।
णिडाल णि?वय वि [निष्ठापक] समाप्त करनेवाला ।
ड्डि न [नीड] पक्षि-गृह । णिट्टा अक [नि + स्था] खतम होना। समाप्त णिड्डहण न [निर्दहन] जला देना। होना।
णिड्डुह देखो णिटुअ।
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३९२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिणाय-णिदाह णिणाय पुं [निनाद] आवाज ।
णित्तल वि [दे] अनिवृत्त । णिण्ण वि [निम्न] नीचा, अधस्तन । णित्ति (अप) देखो णीइ । णिण्णक्खु कि [निस्सारयति] बाहर निक- णित्तिस वि [निस्त्रिंश] करुणा हीन । लता है।
णित्तिरडि वि [दे] निरन्तर, अव्यवहित । णिण्णगा स्त्री [निम्नगा] नदी । णित्तिरडिअ वि [दे] त्रुटित, टूटा हुआ । णिण्ण? वि [निर्नष्ट] नाश प्राप्त । णित्तुप्प वि [दे] स्नेह-रहित, घृत आदि से णिण्णय पुं [निर्णय] निश्चय, अवधारण । वर्जित । फैसला।
णित्तुल वि [निस्तुल] असाधारण । णिण्णया देखो णिण्णगा।
णित्तुस वि [निस्तुष] तुष-रहित, विशुद्ध । णिण्णार वि [निर्नगर] नगर से निर्गत ।
णित्तेय वि [निस्तेजस्] तेज-रहित । णिण्णाला स्त्री [दे] चञ्चु ।
णित्थणण न [निस्तनन] विजय-सूचक ध्वनि । णिण्णास सक [ निर् + नाशय् ] विनाश णित्थर सक [निर +तु ] पार करना, पार करना।
उतरना। णिण्णिद्द वि [निनिद्र] निद्रा-रहित ।
णित्थाण वि [निःस्थान] स्थान-रहित, स्थानणिण्णिमेस वि निनिमेष] निमेष-रहित, एक- भ्रष्ट ।।
टक । चेष्टा-रहित । अनुपयोगी। णित्थाम वि [ निःस्थामन् ] निर्बल, मन्द । णिण्णी सक [निर् + णी] निश्चय करना। णित्थार सक [ निर् = तारय् ] पार उताणिण्णुण्णअ वि [निम्नोन्नत] ऊँचा-नीचा, रना, तारना। बचाना, छुटकारा देना । विषम।
उद्धार करना। णिण्णेह वि [निःस्नेह] स्नेह-रहित । णित्थारग वि [निस्तारक] पार जानेवाला, णिण्हइया स्त्री [निह्नविका] लिपि-विशेष । पार उतरनेवाला। णिण्हग , पुं [निह्नव] सत्य का अपलाप णित्थिण्ण वि[निस्तीर्ण] उत्तीर्ण, पार-प्राप्त । णिण्हय करनेवाला, मिथ्यावादी। अप- जिसको पार किया हो वह । णिण्हव) लाप।
|णिदंस सक [ नि+ दर्शय ] उदाहरण । णिण्हव सक [नि + हनु] अपलाप करना।
बतलाना, दृष्टान्त दिखाना । दिखाना । णिण्हवग वि [निह्नावक]अपलाप करनेवाला ।
णिदसण न [निदर्शन] उदाहरण, दृष्टान्त । णिण्हवण वि [निह्नवन] अपलाप-कर्ता ।
दिखाना। णिण्हविद देखो णिण्हुविद।
णिदरिसण देखो णिदंसण । णिण्हुय वि [निहनुत] अपलपित ।
णिदरिसिम वि [निदर्शित] उपदर्शित, बतणिण्हुव देखो णिण्हव = नि+ ह्र ।
लाया हुआ। णिण्हविद (शौ) वि [नि + ह्नत] अपलपित । णिदा स्त्री [दे] ज्ञान-युक्त वेदना । जानते हुए णितिय देखो णिच्च।
भी की जाती प्राणि-हिंसा । णितुडिअ वि [नितुडित] टूटा हुआ, छिन्न । णिदाण देखो णिआण । णित्त देखो णेत्त।
णिदाया देखो णिदा। णित्तम वि [निस्तमस्] अन्धकार-रहित । णिदाह पुं [निदाघ] धाम, उष्ण । ग्रीष्मअज्ञान-रहित ।
__ काल । जेठ मास । तीसरे नरक का एक
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णिदाह - णिद्धमाय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
नरक - स्थान |
णिदाह पुं [ निदाह] असाधारण दाह । णिदेस पुं [ निदेश ] आज्ञा, हुकुम । णिदेसिअ वि [निदेशित ] प्रदर्शित । उक्त, कथित ।
fara a [ निर्दा] दावानल-रहित । जंगलरहित ।
पिट्ठि वि [निर्दिष्ट ] कथित, उक्त । प्रतिपादित, निरूपित |
णिदोच्च न [ दे] भय का अभाव | स्वास्थ्य, तन्दुरुस्ती ।
वि [निर्देष्टृ ] निर्देश करनेवाला ।
"
णिद्दंझाण न [निद्राध्यान] निद्रा में होता णिद्दिस सक [निर् + दिश् ] उच्चारण करना, दुर्ध्यान-विशेष । कथन करना । प्रतिपादन करना, निरूपण
ध्यान,
दिवि [निर्द्वन्द्व ] द्वन्द्व-रहित, क्लेश-रहित । णिद्दंभ वि [निर्दंम्भ] दम्भ-रहित, कपट रहित । गिद्दडी (अप) देखो णिद्दा = निद्रा । गिद्दड्ढ वि [निर्दग्ध] जलाया हुआ, भस्म किया हुआ । पुं. नृप - विशेष । रत्नप्रभा नामक नरक - पृथिवी का एक नरकावास | मज्झ पुं [ मध्य] नरकावास - विशेष, एक नरक- प्रदेश । °वत्त पुं [°ावर्त] नरकावास-विशेष । सिणिद्देसग [ वशिष्ट ] नरक- प्रदेश - विशेष ।
भस्म करना ।
णिद्दा अक [नि + द्रा ] निद्रा लेना ।
णिद्दा स्त्री [निद्रा ] नींद | वह निद्रा जिसमें एकाध आवाज देने पर ही आदमी जाग उठे । °अंत वि [°वत्] निद्रायुक्त, निद्रित । करी स्त्री. लता-विशेष | °णिद्दा स्त्री [ निद्रा ] वह निद्रा जिसमें बड़ी कठिनाई से आदमी उठाया लव [वत् ] निद्रावाला | अवि [द] निद्रा देनेवाला । णिद्दाअ वि [निद्रा ] जो नींद में हो । गिद्दा वि [निर्दा ] अग्नि-रहित ।
३९३
णिद्दारिअ वि [निर्दारित] खण्डित, विदारित ।
अवि [निर्दा] पैतृक धन से वर्जित । fraणी स्त्री [निद्राणी] विद्यादेवी विशेष | या देखो दा ।
५०
यि वि [निर्दय ] निष्ठुर । णि न [निर्दलन ] मर्दन, विदारण | वि.
मर्दन करनेवाला |
fate वि [निर्दोष ] दूषण वर्जित विशुद्ध ।
1
णिद्दह सक [ निर् + दह, ] जला देना, गिद्ध न [स्निग्ध | स्नेह, रस-विशेष । वि.
स्नेहयुक्त, चिकना । कान्ति-युक्त | द्धित व [निर्मात] अग्नि-संयोग धित, मल-रहित । धिस वि [दे] निर्दय । निर्लज्ज । णिङ्खण्ण वि [निर्धान्य] धान्य-रहित । द्विणवि [निर्धन] अकिंचन । द्धि व [] अविभिन्न गृह, एक ही घर में रहनेवाला ।
द्धिमण न [ दे] खाल, मोरी, पानी जाने का
करना ।
णिदुक्ख वि [निर्दुःख ] दुःख-रहित, सुखी । णिदुर पुं [दे. नेत्तर] देश-विशेष | सिणवि [निदूषण ] निर्दोष | णिस पुं [ निर्देश] लिंग या अर्थ- मात्र का कथन । विशेष का अभिधान । निश्चयपूर्वक कथन । प्रतिपादन, निरूपण । आज्ञा । वि. जिसको देश निकाले की आज्ञा हुई हो वह । वि [निर्देशक ] निर्देश करने
सिय
वाला ।
गिद्दोत्थ न [ निर्दोःस्थ्य] दुःस्थता का अभाव | वि. स्वस्थ |
विशो
रास्ता ।
द्धिमण न [ निर्मान ] तिरस्कार। पुं. यक्षविशेष |
द्धिमा वि [] अविभिन्न गृह, एक ही घर
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३९४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिद्धम्म-णिप्पलिवयण में रहनेवाला।
। सामने गिरनेवाला। णिद्धम्म वि [दे] एक ही तरफ जानेवाला। णिपूर पं [निपूर] नन्दीवृक्ष । णिद्धम्म वि [निर्धर्मन्] धर्म-रहित, अधर्मी। णिप्पअंप देखो णिप्पकंप । णिद्धय वि [दे] देखो णिद्धम।। णिप्पएस वि [निष्प्रदेश] प्रदेश रहित । पुं णिद्धाड सक [निर् + धाट्य ] बाहर निकाल परमाणु । देना।
णिप्पंक वि [निष्पङ्क] कर्दम-रहित । णिद्धारण न [निर्धारण] गुण या जाति आदि णिप्पंकिय वि [निष्पङ्किन] पंक-रहित ।
को लेकर समुदाय से एक भाग का पृथक्क- णिप्पंख सक [निर् + पक्षय] पक्ष-रहित रण । निश्चय, अवधारण ।
करना। णिद्धाव सक [निर् + धाव] दौड़ना। णिप्पंद वि [निष्पन्द] चलन-रहित स्थिर । णिद्धण सक [निर् +धू] विनाश करना। णिप्पकंप वि [निष्प्रकम्प कम्प-रहित, दूर करना।
स्थिर। णिद्धणिय , वि [निर्धत] विनाशित, नष्ट णिप्पक्ख वि [निष्पक्ष] पक्ष-रहित । णिद्धय किया हुआ। अपनीत । णिप्पगल वि [निष्प्रगल] चूनेवाला । णिद्धम वि [निर्धम] धूम रहित । एक तरह णिप्पच्चवाय वि [निष्प्रत्यवाय] प्रत्यवायका अपलक्षण ।
रहित, निर्विघ्न । निर्दोष, विशुद्ध, पवित्र । णिद्धय देखो णिद्धय ।
णिप्पच्छिम नि [निष्पश्चिम] अन्तिम, अन्त णिद्धोअ वि [निधौत] धोया हुआ । निर्मल । का। परिशिष्ट, अवशिष्ट । णिद्धोभास वि [स्निग्धावभास] चमकीला, णिप्पट्ट वि [दे] अधिक। स्निग्धपन से चमकता।
णिप्पट्ट वि [निःस्पष्ट] अस्पष्ट, अव्यक्त । णिधण न [निधन] विनाश, मौत । °पसिणवागरण वि [ प्रश्नव्याकरण] णिवत्त वि [निधत्त] निकाचित, निश्चित । न.
निरुत्तर किया हुआ। बँधे हुए कर्मों का तप्त सूची-समूह की तरह
णिप्पट्ट वि [निःस्पृष्ट] नहीं छूआ हुआ । अवस्थान । वि. निबिड़ भाव को प्राप्त कर्म- णिप्पडिकम्म वि [निष्प्रतिकर्मन्] संस्कारपुद्गल ।
रहित, परिष्कार-वजित, मलिन । णिधत्ति स्त्री निधत्ति] करण-विशेष जिससे णिप्पडियार वि [निष्प्रतिकार] निरुपाय । कर्म-पुद्गल निबिड़ रूप से व्यवस्थापित होता णिप्पणिअ वि [दे] पानी से धोया हुआ।
णिप्पण्ण देखो णिप्फण्ण । णिधम्म देखो णिद्धम्म - निर्धर्मन् । णिप्पण्ण वि [निष्प्रज्ञ] बुद्धि-रहित । णिधाण देखो णिहाण।
णिप्पत्त वि [निष्पत्र] पत्र-रहित । णिधूय देखो णि ण।
णिप्पत्ति , देखो णिप्फत्ति। णिन्नाम सक [निर् + नमय] झुकाना । |णिप्पट्टि । णिपट्ट न [दे] गाढ़ ।
णिप्पभ वि [निष्प्रभ] निस्तेज, फीका। णिपडिय वि [निपतित] नीचे गिरा हुआ। णिप्परिग्गह वि [निष्परिग्रह] परिग्रह-रहित । णिपा सक [नि + पा] पीना।
णिप्पलिवयण वि [निष्प्रतिवचन] निरुत्तर, णिपाइ वि [निपातिन्] नीचे गिरने-वाला। उत्तर देने में असमर्थ ।
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णिप्पसर - णिबुड
णिप्पसर वि [निष्प्रसर] जिसका फैलाव न
हो । free देखो free ।
णिप्पाइय देखो णिष्फाइय । णिप्पाणवि [निष्प्राण ] निर्जीव । णिप्पाल देखो णंपाल ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णिपाव पुं [ निष्पाप ] एक दिन का उपवास । णिप्पाव देखो णिप्फाव ।
णिपिच्छवि [] ऋजु, सरल । दृढ़, मजबूत । forfoug a [ निष्पिष्ट ] पीसा हुआ । न. पेषण की समाप्ति ।
णिप्पिवास वि [निष्पिपास] पिपासा - रहित,
निःस्पृह |
णिष्पिवासा स्त्री [निष्पिपासा ] स्पृहा का
अभाव ।
।
णिहि वि [निःस्पृह ] स्पृहा - रहित, निर्मम णिप्पीडिअ वि [निष्पीडित] दबाया हुआ । णिप्पीलण न [निष्पीडन ] दबाव, दबाना | णिपीलिय देखो णिप्पीडिअ निचोड़ा हुआ । णिप्पुंसण न [ निष्पुंसन] पोंछना, मार्जन | अभिमन ।
frogन्न वि [निष्पुण्य] पुण्य-रहित । णिप्पुन्नग वि [निष्पुण्यक] पुण्य-रहित ।
णिप्फज्ज अक [निर् + पद्] नीपजना, उपजना, सिद्ध होना ।
फिडि वि [निस्फटित] विशीर्ण। जिसका मिजाज ठिकाने पर न हो । अंकुश - रहित । णिप्फण्ण वि [निष्पन्न ] नीपजा हुआ, बना हुआ, सिद्ध ।
३९५
फित्ति व [निष्पत्ति ] निष्पादन, सिद्धि | णिप्फरिस वि [दे] निर्दय 1 णिष्फल वि [निष्फल ] फल-रहित, निरर्थक । णिष्फाअ देखो णिव्फाव ।
णिष्फाय सक [ निर् + पाय् ] नीपजाना, बनाना, सिद्ध करना ।
णिप्फायग वि [निष्पादक ] नीपजानेवाला,
बनानेवाला, सिद्ध करनेवाला ।
णिफाव पुं. [निष्पाव] धान्य- विशेष, वल्ल | एक माप, बाँट - विशेष । णिप्फिड अक [ नि + स्फिट् ] निकलना ।
णिप्फुर पुं. [निस्फुर] प्रभा, तेज । णिप्फेड पुं. [ निस्फेट] निर्गमन, बाहर निक
बाहर
लना ।
णिप्फेsय वि [निस्फेटक ] बाहर निकालने -
वाला |
णिप्फेडिय वि [निस्फेटित ] निस्सारित, निष्कासित | भगाया हुआ, नसाया हुआ । अपहृत छीना हुआ । णिप्फेडिया स्त्री [निस्फेटिका ] अपहरण, चोरी |
णिप्फेस पुं. [ दे] आवाज निकलना । णिप्फेस पुं. [ निष्पेष ] पीसना | संघर्ष |
पुं. एक कुलपुत्र ।
णिपुला पुं [froyota ] आगामी चौबीसी में णिबंध सक [नि + बन्धु ] बाँधना | करना । होने वाले एक जिन- देव ।
उपार्जन करना |
णिप्पुलाय वि [निष्पुलाक ] चारित्र दोष से णिबंध पुंन [ निबन्ध ] सम्बन्ध, संयोग । आग्रह, रहित ।
हठ 1
णिप्फंद देखो णिप्पंद |
णिप्फंस वि [दे] निस्त्रिश, निर्दय ।
णिबंधण न [ निबन्धन ] कारण, प्रयोजन, निमित्त ।
णिबद्ध वि [निबद्ध] बँधा हुआ । संयुक्त,
सम्बद्ध ।
निबिड वि [निबिड ] सान्द्र, गाढ़ | frets [] देखो णिब्बुक्क । णिबुडु अक [नि + मस्ज्] निमज्जन करना,
बना ।
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हुआ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिबुड्ड-णिमित्त णिबुड वि [निमग्न] डूबा हुआ, निमग्न । णिब्भीअ वि [निर्भीक]भय-रहित, निडर । णिबोल देखो णिबुड्डु = नि + मस्ज् । णिब्भुग्ग वि [दे] भग्न, खण्डित। णिबोह पुं. [निबोध] प्रकृष्ट बोध, उत्तम णिब्भुय देखो णिभूअ । ज्ञान । अनेक प्रकार का बोध ।
णिब्भेय पुं. [निर्भेद] भेदन, विदारण । णिब्बंध पुं. [निर्बन्ध] आग्रह ।
णिब्भेरिय वि [निर्भरित] प्रसारित, फैलाया णिब्बंधण न [निर्बन्धन] निबन्धन, हेतु, कारण ।
णिभ देखो णिह = निभ । णिब्बल देखो णिव्वल = निर्+पद् ।
णिभंग पुं. [निभङ्ग] भञ्जन, खण्डन, त्रोटन । णिब्बल वि [निर्बल] बल-रहित, दुर्बल। णिभच्छण देखो णिब्भच्छण। णिब्बहिं अ [निर्बहिस्] अत्यन्त बाहर।। णिभाल सक [नि + भालय] देखना, णिब्बाहिर वि [निर्बाह्य] बाहर का, बाहर निरीक्षण करना । गया हुआ।
णिभिअ । देखो णिहुअ । णिब्बुक्क वि [दे] मूल-रहित ।
णिभुअ । णिब्बुड्ड देखो णिब्बुड्डु = निमग्न । णिभेल सक[निर् +भेलय] बाहर करना । णिभंछ देखो णिब्भच्छ ।
णिभेलण न [दे] गृह, स्थान । णिभंजण न दे] पक्वान्न के पकाने पर जो | णिम सक [नि + अस्] स्थापन करना । शेष घृत रहता है वह ।
णिमंत सक [नि + मन्त्रय] निमन्त्रण देना । णिभंत वि [निन्ति ] संशय-रहित ।।
न्यौता देना। णिब्भग्ग न [दे] बगीचा ।
णिमग्ग वि [निमग्न] डूबा हुआ। जला स्त्री. णिब्भग्ग वि [निर्भाग्य] भाग्य-रहित, कम- | नदी-विशेष । नसीब, अभागा।
णिमज्ज अक [नि + मस्ज्] डूबना, निमज्जन णिब्भच्छ सक [ निर +भर्स ] तिरस्कार
करना। करना, अपमान करना, अवहेलना करना, णिमज्जग वि [निमज्जक] निमज्जन करनेआक्रोश-पूर्वक अपमान करना ।
वाला। पुं वानप्रस्थाश्रमी तापस-विशेष जो णिब्भय वि [निर्भय] भय-रहित, निडर ।
स्नान के लिए थोड़े समय तक जलाशय में णिब्भर सक [निर् +भृ]भरना, पूर्ण करना ।
निमग्न रहते हैं। णिब्भर वि [निर्भर] पूर्ण, भरपूर, व्यापक, णिमाणिअ देखो णिम्माणिअ = निर्मानित । फैलनेवाला।
णिमि सक [नि + युज्] जोड़ना । णिभिद सक [निर् +भिद्] तोड़ना, विदा- | णिमिअ वि [न्यस्त] स्थापित, निहित । रण करना।
णिमिञ वि [दे] सूंघा हुआ । णिब्भिच्च वि [निर्भीक] भय-रहित । णिमिण देखो णिम्माण = निर्माण । णिब्भिज्जत । देखो णिब्भिद । णिमित्त न [निमित्त] हेतु । सहकारि-कारण । णिभिज्जमाण ) का कवक ।
भविष्य आदि जानने का एक शास्त्र । अतीणिभिट्ट वि [दे] आक्रान्त ।
न्द्रिय ज्ञान में कारण-भूत पदार्थ । जैन णिब्भिण्ण वि [निभिन्न] विदारित, तोड़ा | साधुओं की शिक्षा का एक दोष । °पिंड पं हुआ। विद्व ।
[°पिण्ड] भविष्य आदि बतला कर प्राप्त की
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णिमित्ति-णिम्माय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
३९७ हुई भिक्षा ।
णिम्मज्जिय वि [निर्माजित उपलिप्त । णिमित्ति वि [निमित्तिन्] निमित्त-शास्त्र का णिम्मण वि [निर्मनस्] मन-रहित । जानकार ।
णिम्मणुय वि [निर्मनुज] मनुष्य-रहित । णिमित्तिअ देखो णेमित्तिअ ।
हिम्मद्दग वि [निर्मर्दक] निरन्तर मर्दन णिमिल्ल अक [नि+मील] आँख मींचना। करनेवाला । पुं. चोरों की एक जाति । णिमिल्ल वि [निमीलित] मुद्रित-नेत्र । णिम्मद्दिय वि [निदित] जिसका मर्दन किया णिमिल्लण देखो णिमीलण ।
___ गया हो। णिमिस अक [नि + मिष्] आँख मूंदना। णिम्मम वि [निर्मम] ममता-रहित, निःस्पृह । णिमिस पुं. [निमिष] नेत्र-संकोच, अक्षिमीलन, पुं भारतवर्ष के एक भावी जिनदेव । पलक मारने भर का समय ।
णिम्मय वि [दे] गत, गया हुआ। णिमीलण न [निमीलन] अक्षि-संकोच । णिम्मल वि [निर्मल] मल-रहित, विशुद्ध । पुं. णिमीलिअ वि [निमीलित] मुद्रित (नेत्र) । ब्रह्म-देवलोक का एक प्रस्तर । णिमीस न [निमिश्र] एक विद्याधर-नगर । णिम्मल्ल न [निर्माल्य] देव का उच्छिष्ट णिमे सक [नि + मा] स्थापन करना ।
द्रव्य । णिमेण न [दे] स्थान, जगह ।
णिम्मव सक [निर् + मा] बनाना, रचना, णिमेल स्त्रीन [दे] दन्त-मांस ।
करना। णिमेस पुं [निमेष] निमीलन, अक्षि-संकोच, |णिम्मव सक [ निर् + मापय् ] बनवाना, पलक का गिरना, पलक ।
कराना, रचना करना। णिमेसि देखो णिमे।
णिम्मवइत्तु वि [निर्मापयितु] बनवानेवाला । णिमेसि वि [निमेषिन्] आँख मूदनेवाला। णिम्मह सक [गम्] जाना, गमन करना । णिम्म सक [नि+मा] बनाना, निर्माण
अक. फैलना।
णिम्मह पुं [निर्मथ] विनाश । वि. विनाशक । करना । णिम्म पुंस्त्री [नैम] जमीन से ऊँचा निकलता णिम्मा देखो णिम्म। प्रदेश।
णिम्माण सक [नि+मा] बनाना, करना, णिम्मइअ वि [निर्मित] रचित, कृत । रचना। णिम्मंथण न [निर्मथन] विनाश । वि. णिम्माण न [निर्माण] रचना, बनावट, विनाशक ।
कृति । शरीर के अंगोपांग के निर्माण में णिम्मंस वि [निर्मांस] मांस-रहित, शुष्क । नियामक कर्म-विशेष । णिम्मंसा स्त्री [दे] चामुण्डा देवी । णिम्माण वि [निर्मान] मान-रहित । णिम्मंसु वि दे. निःश्मश्रु] तरुण । | णिम्माणअ वि [निर्मापक] बनानेवाला । णिम्मक्खिअ देखो णिम्मच्छिअ = निर्मक्षिक । | णिम्माणिअ वि [निर्मानित] अपमानित, णिम्मच्छ सक [नि + म्रक्ष] विलेपन करना । तिरस्कृत । णिम्मच्छर वि [निर्मात्सर्य] ईर्ष्या-रहित । णिम्माणुस वि [निर्मानुष] मनुष्य-रहित । णिम्मच्छिअ न [निर्मक्षिक] मक्षिका का णिम्माय वि [निर्मात] रचित, विहित, कृत । अभाव । निर्जनता।
निपुण, अभ्यस्त, कुशल । णिम्मज्जाय वि [निर्मर्याद] मर्यादा-रहित। । णिम्माय न [निर्माय] निर्विकृतिक तप ।
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३९८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिम्मालिअ-णिरभिराम णिम्मालिअ देखो णिम्मल्ल ।
निर्बाध । व्यवधान रहित, सतत । णिम्माव सक [निर् + मापय] बनवाना, णिरंतरिय वि [निरन्तरित] अन्तर-रहित, करवाना।
व्यवधान-रहित। णिम्मिअ वि [निर्मित] रचित, बनाया हुआ । णिरंध वि [नोरन्ध्र] छिद्र-रहित ।
वाइ वि [°वादिन] जगत् को ईश्वरादि- णिरंबर वि [निरम्बर] वस्त्र-रहित । कृत माननेवाला।
णिरंभा स्त्री [निरम्भा] वैरोचन इन्द्र की एक णिम्मिस्स वि [निर्मिश्र] मिला हुआ, मिश्रित । । अन-महिषी।
वल्ली स्त्री. अत्यन्त नजदीक का स्वजन । णिरंस वि [निरंश] अंश-रहित, अखण्ड, णिम्मीस वि [निर्मिश्र] मिश्रण-रहित । __ सम्पूर्ण । णिम्मीसुअ वि [दे] दाढ़ी-मछ-वजित । णिरंह वि [निरंहस्] निर्मल, पवित्र । णिम्मुक्त वि [निर्मुक्त] मुक्त किया गण। | णिरक्क पुं [दे] चोर । पृष्ठ, पीठ । वि. स्थित । णिम्मुक्ख पुं [निर्मोक्ष] मुक्ति, छुटकारा । णिरक्किय वि [निराकृत] अपाकृत, निरस्त । णिम्मूल वि [निर्मूल] मूल-रहित, जिसका मूल | णिरक्ख सक [निर + ईक्ष ] निरीक्षण काटा गया हो वह ।
करना. देखना। णिम्मेर वि [ निर्मर्याद ] मर्यादा-रहित, | णिरक्खर वि [निरक्षर] मुर्ख, ज्ञान-रहित । निर्लज्ज ।
गिरगार वि [निराकार आकार-रहित । हिम्मोअ ' [निर्मोक] कञ्चक, सर्प की त्वचा ।
णिरग्गल वि [निरर्गल] रुकावट से रहित । णिम्मोअणी स्त्री [निर्माचनी] कञ्चुक, स्वरी, निरंकुश । निर्मोक ।
णिरच्चण वि [निरर्चन] अर्चन-रहित । णिम्मोडण न [निर्मोटन] विनाश ।।
णिर? वि [निरर्थ] निष्प्रयोजन, निकम्मा । णिम्मोल्ल वि [निर्मूल्य] मूल्य-रहित ।
न. प्रयोजन का अभाव ।। णिम्मोह वि [निर्मोह] मोह-रहित ।
णिरण वि [निऋण] करज से मुक्त । णिरइ स्त्री [निऋति) मूल नक्षत्र का अधि-णिरणास देखो णिरिणास = नश् । ष्ठायक देव ।
णिरणुकंप वि [निरनुकम्प] अनुकम्पा-रहित । णिरइयार वि [निरतिचार] अतिचार-रहित, | णिरणुक्कोस वि [निरनुक्रोश निर्दय । दूषण-वजित ।
णिरणुताव वि [निरनुताप] पश्चात्ताप-रहित । णिरइसय वि [निरतिशय] अत्यन्त, सर्वाधिक । णिरत्थ वि [निरस्त] अपास्त, निराकृत । णिरईआर देखो णिरइयार ।
णिरत्थ वि [निरर्थ,°क ] अपार्थक, णिरंकुस वि [ निरङ्कश ] अंकुश रहित, | णिरत्थग निकम्मा, निष्प्रयोजन । स्वच्छन्दो।
णिरत्थय । णिरंगण वि [निरङ्गण] निर्लेप । णिरन्नय पुं [निरन्वय] अन्वय-रहित । णिरंगी स्त्री [दे] घूघट ।
णिरप्प अक स्था] बैठना । णिरंजण वि [निरञ्जन] निर्लेप ।। णिरप्प पुं [दे] पृष्ठ, पीठ । वि. उद्वेष्टित । णिरंतय वि [निरन्तक] अन्त- हित । णिरप्पण वि [निरात्मीय] परकीय । णिरंतर वि [निरन्तर] व्यवधान-रहित । णिरभिग्गह वि [निरभिग्रह] अभिग्रह-रहित । णिरंतराय वि [ निरन्तराय ] निर्विघ्न, णिरभिराम वि [निरभिराम ] असुन्दर ।
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णिरभिलप्प - णिराबाह
णिरभिलप्प वि [निरभिलाप्य ] अनिर्वचनीय । णिरभिस्संग वि [निरभिष्वङ्ग] आसक्ति
रहित, निःस्पृह ।
णिरय पुं [ निरय] नरक, पाप भोग-स्थान । नरक - स्थित जीव । पाल पुं. देव - विशेष । वलिया स्त्री [लिका ] जैन आगम ग्रन्थविशेष | नरक - विशेष |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णिरय वि [निरत] आसक्त । तत्पर, तल्लीन । रियवि [नीरजस् ] रजो-रहित, निर्मल । fra स [बुभुक्ष् ] खाने की इच्छा करना । रिव सक [ आ + क्षिप् ] आक्षेप करना । णिरवइक्ख वि [निरपेक्ष ] निरीह, निःस्पृह | णिरवकख वि [निरवकाङक्ष] स्पृहा - रहित । णिरवखिवि [निरवकाङ्क्षिन् ] निःस्पृह | णिरवगाह वि [निरवगाह ] अवगाहन - रहित । णिरवग्गह वि [निरवग्रह] निरंकुश, स्वच्छन्दी ।
णिरवच्च वि [निरपत्य ] निःसन्तान । णिरवज्ज वि [निरवद्य] निर्दोष, विशुद्ध । णिरवणाम देखो णिरोणाम ।
futarक्ख देखो णिरवइक्ख ।
वर्जित । निर्दोष, विशुद्ध ।
णिरविक्ख
रिवेक्ख
णिरवेच्छ
देखो रिवइक्ख ।
णिरस सक [निर् + अस् ] अपास्त करना । णिरमण वि[ निरशन ] आहार-रहित उपोषित । णिरसण न [निरसन] निराकरण हटा देना,
3
खण्डन ।
रिसि वि [निरसि] खड्ग-रहित । रिस्साय वि [निरास्वाद ] स्वाद रहित । रिस्सावि वि [निरास्राविन् ] नहीं टपकने - वाला, छिद्र - रहित । रिहंकार वि [निरहंकार ] गर्व - रहित । रिहारि वि [निराहारिन् ] आहार-रहित । णिरहिगरण वि [निरधिकरण] अधिकरणरहित, हिंसा-रहित, निर्दोष । णिरहिलास वि [निरभिलाष ] इच्छा-रहित ।
रहेउ वि [निर्हेतु] कारण रहित । निराइअ वि [निरायत ] लम्बा किया हुआ, विस्तारित |
णिराउस वि [निरायुष्] आयु-रहित । णिराउ वि [निरायुध] निःशस्त्र ।
णिरवयव वि [निरवयव] अवयव रहित, णिराकर
निरंश ।
णिरागर
णिरवयास वि [निरवकाश] अवकाश-रहित । णिरवराहवि [निरपराध] बेगुनाह । णिवराहि वि [निरपराधिन् ] ऊपर देखो । णिरवलंब वि [निरवलम्ब] असहाय । णिरवलाव वि [निरपलाप ] अपलाप - रहित गुप्त बात को प्रकट नही करनेवाला । णिरवसंक वि [निरपशङ्क] दुःशंका-वर्जित । णिरवसर वि [निरवसर] अवसर -रहित । णिरवसाण वि [निरवसान] अन्त-रहित । णिरवसेस वि [निरवशेष ] सकल | णिरवह सक [ निर् + वह ] निर्वाह करना,
३९९
सक [निरा + कृ] निषेध करना । दूर करना | विवाद का फैसला
करना ।
निरागस वि [निराकर्ष ] रंक |
णिरागार वि [निराकार] आकृति -रहित,
आनन्द-रहित,
अपवाद रहित ।
णिराणंद वि [निरानन्द ]
निबाहना | णिरवाय वि [निरपाय ] उपद्रव रहित, विघ्न- णिराबाह
शोकातुर ।
णिराणिउ (अप) अ. निश्चित । णिराणुकंप देखो णिरणुकंप | णिराणुवत्ति वि निरनुवर्तिन् ] नहीं करनेवाला । सेवा नहीं करनेवाला | णिरादवि [दे] नष्ट, विनाश प्राप्त । निराबाध
अनुसरण
वि [निराबाध] आबाधा रहित, हरकत - रहित ।
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४००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिरामगंध-णिरुज्जम णिरामगंध वि [निरामगन्ध] दूषण-रहित, णिरासव देखो [निराश्रव] आश्रव-रहित, निर्दोष चारित्रवाला।
कर्म-बन्धन के कारणों से रहित । णिरामय वि [निरामय] रोग-रहित । -णिरासस देखो णिरासस । णिरामिस वि निरामिष] आसक्तिहीन णिराह वि [दे] निर्दय । निरीह, निरभिष्वङ्ग।
णिरिअ वि [दे] बाकी रखा हुआ । णिराय वि [दे] ऋतु, सरल । प्रकट, खुला।
णिरिइ देखो णिरइ। पुं. शत्रु । वि. लम्बा किया हुआ। प्रचुर, ।
णिरिंक वि [दे] नत । अधिक ।
णिरिंगी [दे] देखो णीरंगी। णिरायंक वि [निरातङ्ग] आतङ्क-रहित, णिरिधण वि [निरिन्धन] इन्धन-रहित । नीरोग।
| णिरिक्ख सक [निर् + ईक्ष् देखना, अवलोकन णिरायर देखो णिरागर।
करना। णिरायव वि [निरातप] आतप-रहित । णिरिग्घ सक [नि + ली] आश्लेष करना । णिरायार देखो णिरागार।
___ अक छिपना । णिरायास वि [निरायास] परिश्रम-रहित । णिरिण वि [निऋण] ऋण-मुक्त । णिरारंभ वि [निरारम्भ] आरम्भ-वजित ।। णिरिणास सक [गम्] गमन करना । णिरालंब वि [निरालम्ब] आलम्ब-रहित । णिरिणास सक [पिष] पीसना । णिरालंबण वि [निरालम्बन] आशंसा-रहित, णिरिणास अक [नश्] पलायन करना। संशय-रहित, प्रार्थना-रहित, इच्छा-रहित, भागना । अनुमान रहित । आलम्बन-रहित । णिरिणिज्ज सक [पिष्] पीसना । णिरालय वि [निरालय] स्थान-रहित, एकत्र णिरित्ति स्त्री [निरिति] एक रात्रि का नाम । स्थिति नहीं करनेवाला।
णिरीह वि [निरीह] निष्काम । णिरालोय वि [निरालोक] प्रकाश-रहित ।
निश्चित । णिरावकखि वि [निरवकाङ्क्षिन् आकांक्षा-णिरुअ देखो णिरुज । रहित, निःस्पह ।
णिरुईकय [निरुईजीकृत] नीरोग किया गया । णिरावयक्ख वि [निरपेक्ष] अपेक्षा-रहित, णिरुंभ सक [नि+रुध] निरोध करना। निरीह ।
णिरुक्कंठ वि [निरुत्कण्ठ] उत्कण्ठा-रहित, णिरावरण वि [निरावरण] प्रतिबन्धक- निरुत्साह । रहित । नग्न ।
णिरुग्घ देखो णिरिग्घ। णिरावराह वि [निरपराध] अपराध-रहित । णिरुच्चार वि [निरुच्चार] उच्चार-पुरीणिराविक्ख । देखो णिरावयक्ख । षोत्सर्ग के लिए लोगों के निर्गमन से वजित । णिरावेक्ख ।
पाखाना जाने से जो रोका गया हो। णिरास वि [निराश] हताश । न. आशा का णिरुच्छव वि [निरुत्सव उत्सव-रहित । अभाव।
णिरुच्छाह वि [निरुत्साह] उत्साह-हीन । णिरास वि [दे] क्रूर ।
णिरुज वि [निरुज] रोग-रहित । सिख णिरासंस वि [निराशंस] आकांक्षा-रहित । न [°शिख] एक प्रकार की तपश्चर्या । णिरासय वि [निराश्रय] निराधार । ' णिरुज्जम वि [निरुद्यम] उद्यम-रहित,
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णिरुदाइ-णिरोणाम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४०१ आलसी।
नहीं माननेवाला, प्रत्युपकार नहीं करनेवाला । णिरुट्टाइ वि [निरुत्थायिन्] नहीं उठनेवाला। णिरुवग्गह वि [निरुपग्रह] उपकार नहीं निरुत्त वि[निरुक्त] कथित । न निश्चित उक्ति । करनेवाला। व्युत्पत्ति । वेदाङ्ग शास्त्र-विशेष जिसमें वैदिक | णिरुवट्ठाणि वि [निरुपस्थानिन्] निरुद्यमी, शब्दों की व्याख्या है। अकथित, दृष्टान्त ।
आलसी। व्युत्पत्ति-युक्त।
णिरुवद्दव वि [निरुपद्रव] उपद्रव-रहित, णिरुत्त वि [दे] निश्चित । चिन्ता-रहित । आबाधा-वर्जित । णिरुत्तत्त वि [निरुत्तप्त ] विशेष ताप-युक्त,
णिरुवम वि [निरुपम] असमान, असाधारण । सन्तप्त ।
णिरुवयरिय वि [निरुपचरित] वास्तविक, णिरुत्तम वि [निरुत्तम] अत्यन्त श्रेष्ठ । तथ्य । णिरुत्तर वि [निरुत्तर] उत्तर-रहित किया | णिरुवयार वि [निरुपकार] उपकार-रहित । हुआ, परास्त ।
णिरुवलेव वि [निरुपलेप] लेप-वर्जित,अलिप्त। णिरुत्ति स्त्री [निरुक्ति] व्युत्पत्ति । णिरुवसग्ग वि [निरुपसर्ग] उपद्रव-वजित । णिरुत्तिअ वि [नैरुक्तिक] व्युत्पत्ति के अनुसार
पुं. मोक्ष । न. उपसर्ग का अभाव । जिसका अर्थ किया जाय वह शब्द ।
णिरुवहय वि [निरुपहत] उपघात-रहित, णिरुत्तिय न [नैरुत्तिक] निरुक्ति, व्युत्पत्ति ।
__ अक्षय । अप्रतिहत । णिरुदर वि [निरुदर] छोटा पेटवाला,
णिरुवहि वि [निरुपधि] माया-रहित, अनुदर।
निष्कपट । णिरुद्ध वि [निरुद्ध] रोका हुआ। आवृत,
णिरुवार सफ [ ग्रह ] ग्रहण करना । आच्छादित । पुं. मत्स्य की एक जाति ।
णिरुवालंभ वि [निरुपालम्भ] उपालम्भशून्य । णिरुद्ध वि [निरुद्ध] थोड़ा, संक्षिप्त ।
णिरुबिग्ग वि [निरुद्विग्न] उद्वेग-रहित । णिरुद्धव्व । देखो णिरुंभ का कवक.।।
णिरुस्साह वि [निरुत्साह] उत्साह-हीन । णिरुब्भंत ।
णिरूव सक [नि + रूपय] विचार कर कहना। णिरुलि पुंस्त्री [दे] कुम्भीर–नक्र की आकृति
विवेचन करना । देखना । दिखलाना । तलाश वाला एक जन्तु ।
करना। णिरुवकिट्ट देखो णिरुवक्किट्ठ ।
णिरूवण न [निरूपण] विलोकन, निरीक्षण । णिरुवक्कम वि [निरुपक्रम] जो कम न किया
वि. दिखलानेवाला। जा सके वह (आयुष्य) । विघ्नरहित, अबाध ।
णिरूवणया स्त्री [निरूपणा] निरूपण । णिरुवक्कय वि [दे] अकृत, नहीं किया हुआ।
णिरूवाविअ वि [निरूपित] जिस की खोज णिरुवक्किट्ठ वि [निरुपल्किष्ट] क्लेश-वजित, |
कराई गई हो वह । दुःखरहित ।
णिरूसुअ वि [निरुत्सुक] उत्कण्ठा-रहित । णिरुवक्केस वि [निरुपक्लेश] शोक आदि | णिरूह पुं [निरूह] अनुवासना-विशेष, एक क्लेशों से रहित ।
तरह का विरेचन । णिरुवक्ख वि [निरुपाय] अनिर्वचनीय । णिरेय वि [निरेजस्] निष्कम्प, स्थिर । णिरुवग वि [निरुपक] प्रतिपादक । णिरेयण वि [निरेजन] निश्चल, स्थिर । णिरुवगारि वि [निरुपकारिन्] उपकार को णिरोणाम पुं [निरवनाम] नम्रता-रहित,
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णिरोय- णिवड
पिल्लुंछ सक [मुच् ] छोड़ना, त्याग करना । पिल्लुत्त वि [निर्लप्त ] विनाशित । पिल्लूर सक [छिद्] छेदन करना, काटना ।
गर्वित, उद्धत । णिय वि [नीरोग] रोग-रहित । णिरोव पुं [दे] आदेश, आज्ञा, रुक्का । णिरोवयार वि [निरुपकार] उपकार को णिल्लेव वि [निर्लेप ] लेप-रहित । णिल्लेवग पुं [निर्लेपक] धोबी । पिल्लेवण न [ निर्लेपन] मल को दूर करना । वि. निर्लेप, लेप - रहित । काल पुं. वह काल जिस समय नरक में एक भी नारक जीव न हो ।
पिल्लेविअ वि [निर्लेपित] लेप-रहित किया हुआ । बिलकुल खूट गया हुआ । पिल्लेहण न [ निर्लेखन] उद्वर्त्तन, पोंछना | वि [निर्लोभ ] लोभ-रहित ।
णिल्लोभ
}
णिल्लोह
४०२
नहीं माननेवाला । णिरोविअ देखो णिरूविअ । गिरोह पुं [निरोध] रुकावट, रोकना । गिरोहग वि [निरोधक ] रोकनेवाला । लिंक पुं [दे] पीकदान |
गिलय पुं [ निलय ] घर, स्थान, आश्रय । लियण न [निलयन] वसति, स्थान । णिलाड न [ ललाट ] भाल |
णिलिअ देखो णिलीअ ।
णिलिज्ज
णिलीअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सक [नी + ली]
आश्लेष
करना | दूर करना । अक.
}
छिप जाना ।
णिलीइर वि [निले] आश्लेष करनेवाला । णिलुक्क देखो णिलीअ ।
णिलुक्क सक[तुड् ] तोड़ना ।
णिलुक्क वि [ दे. निलीन ] निलीन, प्रच्छन्न, तिरोहित । लीन, आसक्त । णिलुक्कण न [निलयन ] छिपना । णिल्लंक [दे] देखो णिलंक |
raj [ नृप] राजा | aणय वि [° सम्बन्धिन् ] राजसम्बन्धी, राजकीय |
णिवइ पुं [ नृपति] ऊपर देखो । 'मग्ग पुं [° मागं] राजमार्ग, जाहिर रास्ता । णिवइअ वि [निपतित] नीचे गिरा हुआ । एक प्रकार का विष ।
विइत्तु वि [निपतितृ] नीचे गिरनेवाला । णिवच्छण न [ दे] अवतारण, उतारना । णिवज्ज अक [ निर् + पन्] निष्पन्न होना, नीपजना, बनना ।
पिल्लंछण न [निर्लाञ्छन] शरीर के किसी
अवयव का छेदन |
विज्ज अक [नि + सद्] बैठना । णिवज्ज अक [नि + सद्] सोना ।
पिल्लच्छ देखो गेल्लच्छ ।
पिल्लच्छण वि [निर्लक्षण] मूर्ख, बेवकूफ । विट्ट सक [नि + वर्तय् ] निवृत्त करना ।
णिवट्ट अक [नि + वृत्] निवृत्त होना, लौटना,
अपलक्षणवाला, खराब ।
हटना | रुकना ।
णिल्लज्ज वि [निर्लज्ज ] लज्जा-रहित । णिल्लज्जिम पुंस्त्री [निर्लज्जमन्] निर्लज्ज - णिवट्ट वि [निवृत्त] निवृत्त, हटा हुआ, प्रवृत्ति - विमुख | न. निवृत्ति ।
पन, बेशरमी ।
णिल्लस अक [उत् + लस् ] उल्लसना, निवट्टण न [ निवर्तन] निवृत्ति, प्रवृत्ति निरोध | विकसना | जहाँ रास्ता बन्द होता हो वह स्थान । लिसिअ वि [] निर्गत, निःसृत, नियत । णिवट्टिम वि [निर्वर्तित] पका हुआ, फलित, जिल्लालिअ वि [निललित ] निःसारित । सिद्ध । गिल्लिह सक [ निर् + लिख् ] घिसना । णिवड अक [नि + पत्] नीचे पड़ना,
नीचे
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निवडण - णिविद्ध
गिरना ।
णिवडण न [ निपतन] अधःपतन । fast fa [निपतितृ] नीचे गिरनेवाला | णिवण्ण वि [निषण्ण] बैठा हुआ । पुं. जिसमें धर्म आदि किसी प्रकार का ध्यान न किया जाता हो वह कायोत्सर्ग । 'णिवण्ण पुं ['निषण्ण] जिसमें आर्त और रौद्र ध्यान किया जाय वह कायोत्सर्ग | विस्य पुं [निषण्णोत्सृत] जिसमें धर्म sart और शुक्ल ध्यान किया जाता हो वह Sara |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वित्त देखो विट्ट = नि + वृत् । वित्त देखो णिवट्ट = निवृत्त ।
वित्तण देखो णिवट्टण । वित्तय वि [निवत्तंक ] लौटनेवाला | वापस करनेवाला |
णिवत्ति स्त्री [ निवृत्ति ] निवर्त्तन ।
वित्तिय वि [निर्वात्तत] रोका हुआ, प्रतिषिद्ध |
वित्तिय वि [निर्वत्तत] निष्पादित | raft देखो वित्त ।
णिवय अक [नि + पत्] समाना, अन्तर्भूत होना ।
णिवय देखो णिवड |
णिवय पुं [ निपात] नीचे गिरना, अधः- पतन | णिवरुण पुं [ निवरुण] वृक्ष-विशेष | णिवस अक [नि + वस्] निवास करना । णिवसण न [ निवसन] वस्त्र । विह सक [गम् ] जाना, गमन करना । णिवह अक [नश्] पलायन करना । नष्ट होना ।
विह क [पिष्] पीसना । णिवह पुंन [ निवह] समूह | विह पुंन [] समृद्धि, वैभव । णिवाइ वि [निपातिन् ] गिरनेवाला | णिवाड सक [नि + पातय् ] नीचे गिराना ।
४०३
णिवाण न [निपान] कूप या तालाब के पास पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ जल - कुण्ड, चरही । ° साला स्त्री ['शाला ] पशुओं का पानी पिलाने का स्थान । शिवाय देखो णिवाड । णिवाय पुं [दे] पसीना ।
शिवाय पुं [ निपात] अधः - पतन, गिरना । संयोग, सम्बन्ध । च प्र आदि व्याकरणप्रसिद्ध अव्यय | विनाश । णिवाय वि [ निवात] पवन - रहित, स्थिर । णिवायण न [ निपातन] गिराना, निपातन, ढाहना | व्याकरण - प्रसिद्ध शब्द- सिद्धि, प्रकृति आदि के बिना विभाग किये ही अखण्ड शब्द की निष्पत्ति |
णिवार सक [ft + वारय् ] निवारण करना, निषेध करना, रोकना ।
णिवारग वि [निवारक ] निषेध करनेवाला, रोकनेवाला ।
णिवारण न [ निवारण ] निषेध, रुकावट | शीत आदि को रोकनेवाला, गृह, वस्त्र आदि । वि. निवारण करनेवाला, रोकने
वाला ।
निवारय देखो णिवारग ।
णिवास पुं [ निवास ] निवसन, रहना । डेरा | णिविअ देखो णिमिअ = न्यस्त । णिविट्ट देखो विट्ट - निवृत्त ।
णिविट्ठ वि [निविष्ट] स्थित, बैठा हुआ । आसक्त, लीन ।
णिविट्टि वि [निर्विष्ट ] लब्ध, गृहीत | कपट्टिइ स्त्री [कल्पस्थिति ] जैन साधुओं का एक तरह का आचार । fufas देखो निबिड ।
विडिअ देखो णिबिडिय ।
णिवित्ति स्त्री [ निवृत्ति ] प्रवृत्ति का अभाव | वापस लौटना, प्रत्यावर्त्तन ।
विद्ध a [ ] सोकर उठा हुआ । हताश ।
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णिविन्न- णिव्वमिअ
ही दरवाजेवाले अनेक गृह । घर । णिव्व न [नीव्र ] छदि, पटल- प्रान्त । छप्पर के
ऊपर का खपरैल ।
विसिर व [निवेष्टृ ] बैटनेवाला । विज्झमाण वि [ न्युह्यमान ] जो ले जाया जाता हो वह ।
णिव्व न [ दे] ककुद, चिह्न । बहाना | व्विक्कर वि [] परिहास - रहित, सत्य । णिव्वक्कल वि [निर्वल्कल ] वल्कल-रहित । णिव्वट्ट देखो णिव्वत्त = निर् + वर्त्तय् । froaट्ट (अप) देखो णिच्चट्ट |
flag वि [निवृष्ट ] बरसा हुआ ।
णिवुड्ढ सक [नि + वर्धय् ] त्याग करना, णिव्वट्टग वि [निवर्तक] बनानेवाला, कर्ता । णिव्वट्टिम देखो विट्टिम ।
छोड़ना । हानि करना ।
४०४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उद्भट | निर्दय |
णिविन वि [निर्विज्ञ] विशिष्ट ज्ञान से रहित । णिविस अक [नि + विश्] बैठना । णिविस (अप) देखो णिमिस ।
णिवुड्ढि स्त्री [निवृद्धि] वृद्धि का अभाव । | णिव्वट्टिय वि [निर्वर्तित] निष्पादित, बनाया
दिन की छोटाई ।
far देखो
|
णिवृत्त देखो णिवट्ट = निवृत्त । fraदि स्त्री [ निवृति ] परिवेष्टन | णिवूढ देखो णिव्वूढ |
णिवेअ सक [नि + वेदय् ]
अर्ज करना ।
ज्ञापन करना, मालूम करना ।
णिवेअग वि [निवेदक ] सम्मान पूर्वक ज्ञापन
सम्मान पूर्वक अर्पण करना ।
करनेवाला, प्रार्थी । णिवेअण न [ निवेदन ] सम्मान - पूर्वक णिवेअD } ज्ञापन, विनय । नैवेद्य देवता
को अर्पित अन्न आदि ।
णिवेअणा स्त्री [निवेदना ] ऊपर देखो । 'पिंड पुं [पिण्ड ] देवता को अर्पित अत्र आदि, नैवेद्य ।
णिवेअय देखो णिवेअग ।
हुआ ।
णिव्वड सक [मुच् ] दुःख को छोड़ना । णिव्वड अक [भू] पृथक् होना । स्पष्ट होना । णिव्वड देखो णिव्वल = निर् + पद् । णिव्वडिअ वि [ भूत ] पृथग्-भूत । स्पष्टीभूत, जो व्यक्त हुआ हो ।
णिव्वडिअ वि [निष्पन्न ] सिद्ध, कृत, निर्वृत्त । णिव्वढ वि [ दे] नंगा | णिव्वण वि [निर्व्रण] व्रण-रहित ।
णिव्वण्ण सक [निर् + वर्णय् ] प्रशंसा करना । देखना |
णिव्वत्त सक
[निर् + वर्त्तय् ] बनाना,
करना, सिद्ध करना ।
णिव्वत्त सक [निर् + वृत्तय् ] वर्तुल करना । णिव्वत्त वि [निर्वृत्त] निष्पन्न, रचित,
निर्मित |
णिव्वत्त व [निर्वर्त्य ] बनाने- योग्य, साध्य |
णिवेदइत्तअ वि [निवेदयितृ] निवेदन करने- णिव्वत्तण न [ निर्वर्त्तन] निष्पत्ति, रचना, बनावट | धिकरणिया, हिगरणिया स्त्री [धिकरणकी ] शस्त्र बनाने की क्रिया । णिव्वत्तय वि [निर्वर्त्तक] निष्पन्न करनेवाला, बनानेवाला ।
वाला ।
णिवेस सक [नि + वेशय् ] स्थापना करना, बैठाना |
णिवेस पुं [निवेश] स्थापन, आधान । प्रवेश ।
आवास स्थान, डेरा |
णिवेस पुं [ नृपेश ] चक्रवर्ती राजा ।
णिवेसण न [ निवेशन] स्थान, बैठना । एक णिव्वमिअ वि [दे] परिभुक्त |
व्वित्ति स्त्री [निर्वृत्ति ] निष्पत्ति, विनिर्माण । देखो णिव्विति ।
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णिव्वय-णिब्विइगिच्छ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४०५ णिव्वय अक [निर् + वृ] शान्त होना, में होनेवाले एक जिन-देव का नाम । उपशान्त होना।
णिव्वाण न [दे] दुःख-कथन । णिव्वय वि [निर्वृत] उपशान्त, शम-प्राप्त । णिव्वाणि पुं [निर्वाणिन्] भारतवर्ष में अतीत परिणत, परिणामप्राप्त ।
उत्सर्पिणी-काल में संजात एक जिनदेव । णिव्वय वि [निर्वत] व्रत-रहित, नियम-रहित । णिव्वाणी स्त्री [निर्वाणी भगवान् श्री शान्तिणिव्वयण न [निर्वचन] निरुक्ति, शब्दार्थ- | नाथ की शासन-देवी । कथन । उत्तर । वि. निरुक्ति करनेवाला, णिव्वाय वि [निर्वाण] व्यतीत । निर्वाचक ।
णिव्वाय वि [विश्रान्त] जिसने विश्राम किया णिव्वर सक [कथय] दुःख कहना ।
हो वह । सुखित, निवृत । णिव्वर सक [छिद्] छेदन करना, काटना । णिव्वाय वि [निर्वात] वायु-रहित । णिव्वल सक [मुच् ] दुःख को छोड़ना। णिव्वालिय वि [भावित] पृथक् किया हुआ । णिव्वल अक [निर् + पद्] निष्पन्न होना, णिव्वाव देखो णिव्वव। सिद्ध होना, बनना।
| णिव्वाव पुं [निर्वाप] घी, शाक आदि का णिव्वल देखो णिच्चल =क्षर् ।
परिमाण । °कहा स्त्री [[कथा] एक तरह णिव्वल देखो णिव्वड = भू ।
की भोजन-कथा। णिव्वलिअ वि [दे] जल-धौत । प्रविगणित ।
णिव्वावइत्तअ(शौ) वि [निर्वापयितृक] ठण्ढा विघटित । वियुक्त ।
करनेवाला। णिव्वव सक [ निर् + वापय् ] ठण्ढा करना,
णिव्वावय वि [निर्वापक] आग बुझानेवाला ।
णिव्वासण न [निर्वासन] देश निकाला । बुझाना । शान्त करना। णिव्वह अक [निर + वह ] निभना, निर्वाह णिव्वाह ' [निर्वाह] निभाना, पार-प्राप्ति । करना, पार पड़ना । आजीविका चलाना।
आजीविका, जीवन-सामग्री। णिवह सक [ उद+वह ] धारण करना। णिव्वाहग वि [निर्वाहक] निर्वाह करनेवाला । ऊपर उठाना।
णिव्वाहण न [निर्वाहण] निर्वाह, निभाना । णिव्वहण न [निर्वहण] निर्वाह, अन्त, नाटक
निस्सार करना। की एक सन्धि ।
णिव्वाहिअ वि [निर्वाहित] अतिवाहित, णिव्वहण न [दे] विवाह, शादी।
बिताया हुआ, गुजारा हुआ। णिव्वा अक [वि+श्रम्] विश्राम करना। णिव्वाहिअ वि [निर्व्याधिक] व्याधि-रहित, णिव्वाघाइम वि [निर्व्याघातिम] व्याघात- | नीरोग। रहित, स्खलना-रहित ।
णिव्विअप्प देखो णिव्विगप्प। णिव्वाघाय वि [ निर्व्याघात ] व्याघात- णिव्विआर वि निर्विकार] विकार-रहित । वजित । न. व्याघात का अभाव ।
णिव्विइअ वि [निर्विकृतिक] घृत आदि णिव्वाघाया स्त्री [निर्व्याघाता] एक विद्या- विकृति-जनक पदार्थों से रहित । न. प्रत्यादेवी।
ख्यान-विशेष जिसमें घृत आदि विकृतियों का णिव्वाण न [निर्वाण] मुक्ति, निर्वृति । सुख, त्याग किया जाता है।
चैन, तृप्ति, शान्ति, दुःख-निवृत्ति । बुझाना, | णिव्विइगिच्छ वि [निर्विचिकित्स] फलप्राप्ति विध्यापन । वि. बुझा हुआ । पुं. ऐरवत वर्ष | मे शंका-रहित ।
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४०६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिब्विइगिच्छ-णिव्वुड्ड णिव्विइगिच्छ न [निर्विचिकित्स्य] फलप्राप्ति । णिविराम वि [निविराम] विराम-रहित । में सन्देह का अभाव ।
| णिव्विलंब क्रिवि [निविलम्ब] शीघ्र । णिव्विइगिच्छा स्त्री [निर्विचिकित्सा] फल णिव्विवेअ वि [निविवेक] विवेक शून्य । प्राप्ति में शंका का अभाव ।
णिव्विस सक [निर् + विश्] त्याग करना । णिव्विद सक [निर् + विन्द्] अच्छी तरह | उपभोग करना। विचारना।
णिव्विस वि [निविष] विष-रहित । णिव्विद सक [निर् + विद्] घृणा करना। णिव्विसंक वि [निर्विशङ्क] शंका-रहित, णिव्विकप्प ) वि [निर्विकल्प] सन्देह- | निर्भय । णिव्विगप्प रहित । भेद-रहित । णिव्विसमाण न [निर्विशमान चारित्रणिव्विगइय देखो णिव्विइय ।
विशेष । वि. उस चारित्र को पालनेवाला । णिव्विगप्पग न [निर्विकल्पक] बौद्ध-प्रसिद्ध कप्पट्टिइ स्त्री ['कल्पस्थिति] चारित्र. प्रत्यक्ष ज्ञान-विशेष ।
विशेष की मर्यादा। णिव्विग्गिअ देखो णिव्विइअ ।
णिव्विसय वि [निर्वेशक] उपभोग-कर्ता । णिव्विग्घ वि [निर्विघ्न] विघ्न-रहित, बाधा-णिव्विसय वि [निविषय] विषयों की अभिवर्जित ।
लाषा से रहित । निरर्थक । जिसको देशणिविचित वि [निर्विचिन्त] निश्चिन्त । ।
निकाले की सजा हुई हो वह । णिविज्ज अक [निर् + विद्] निर्वेद पाना, णिन्विसिट्र वि [निविशिष्ट] विशेष-रहित, विरक्त होना ।
समान, तुल्य । णिव्विज्ज वि [निविद्य] मूर्ख ।
णिव्विसी स्त्री [निर्विषी] एक महौषधि । णिविट्ठ वि [निर्वृष्ट] उपाजित ।
णिव्विसेस वि [निविशेष] विशेष-रहित, णिव्विट्ठ वि [दे] योग्य ।
समान, साधारण । अभिन्न । णिविट्ठ वि निविष्ट] उपमुक्त, आसेवित, | णिव्वी स्त्री [निर्विकृति] तप-विशेष । परिपालित । °काइय न [°कायिक] जैन णिव्वीय देखो णिव्विइअ । शास्त्र में प्रतिपादित एक तरह का चारित्र । णिव्वीरा स्त्री [निर्वीरा] पुत्र-रहित विधवा णिव्विण्ण वि [निर्विण्ण] निर्वेद-प्राप्त, | स्त्री। खिन्न ।
णिव्वुअ वि [निर्वृत] निर्वृति-प्राप्त । स्वस्थ । णिव्वित्त वि [दे] सो कर उठा हुआ। णिव्वुइ स्त्री [निर्वृति] मुक्ति । मन की णिवित्ति देखो णिव्वत्ति। इन्द्रिय का |
स्वस्थता, निश्चिन्तता। सुख, दुःख-निवृत्ति । आकार, द्रव्येन्द्रिय-विशेष ।
जैन साधुओं की एक शाखा । एक राजकन्या। णिव्विद देखो णिव्विद = निर् + विद् । _ 'कर वि. निर्वृतिजनक । जणय वि[°जनक] णिव्विदुगुंछ वि [निविजुगुप्य] घृणा-रहित । । निर्वृति का उत्पादक । णिविभाग वि [निविभाग विभाग रहित ।। णिव्वुइकरा स्त्री [निर्वृतिकरा] भगवान् णिव्विय देखो णिव्विइअ ।
सुमतिनाथ की दीक्षा-शिविका । णिव्वियण वि [निर्विजन] मनुष्य-रहित । न. | णिव्वुड देखो णिव्वुअ। एकान्त स्थल ।
णिव्वुड वि [निर्वृत] अचित्त किया हुआ । णिव्विर वि [दे] चिपट, बैठा हुआ। णिव्वुड्ड देखो णिबुड्डु = नि + मस्ज् ।
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४०७
णिव्वुड्ढ-णिसल्ल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिव्वुड्ढ देखो णिवुड्ढ ।
वहन करने योग्य । णिव्वुड्ढ वि [नियंढ] निर्वाहित, निभाया णिव्बोल सक [कृ] क्रोध से होठ को मलिन हुआ।
करना। णिव्वुत्त देखो णिवृत्त ।
णिस' देखो णिसा। णिव्वुत्त देखो णिव्वत्त = निर्वृत्त । णिस सक [नि + अस्] स्थापन करना । णिव्युत्ति देखो णिव्वत्ति।
णिसंत वि [निशान्त] सुना हुआ। अत्यन्त णिव्वुद देखो णिव्वुअ ।
ठण्ढा । प्रभात । णिव्वुदि देखो णिव्वुइ ।
णिसंस वि [नृशंस] क्रूर । णिव्वुब्भ' देखो णिव्वह = निर् + वह । णिसग्ग पुं [निसर्ग] स्वभाव, प्रकृति । णिव्वूढ वि [नियंढ] जिसका निर्वाह किया निसर्जन, त्याग।
गया हो वह । कृत, निर्मित । जिसने निवोह णिसग्ग वि [नैसर्ग] स्वाभाविक । न. जात्यन्ध किया हो वह, पार-प्राप्त । त्यक्त, परिमुक्त । की तरह स्वभाव से अज्ञता । बाहर निकाला हुआ, निस्सारित । किसी ग्रन्थ । णिसग्गिय वि नैसगिक] स्वाभाविक । से उद्धत कर बनाया हुआ ग्रन्थ ।
णिसज्ज पं. देखो णिसज्जा। णिव्वूढ वि [दे] स्तब्ध । न. घर का पश्चिम
णिसज्जा स्त्री [निषद्या] आसन । उपवेशन, आँगन ।
बैठना । देखो णिसिज्जा। णिव्वेअ पुं [निर्वेद] मुक्ति की इच्छा। खेद,
णिसटू वि [निसष्ट] निकाला हुआ । दिया विरक्ति । संसार को निर्गुणता का अवधारण-निश्चय (ज्ञान) करना।
हुआ।
णिसट्ट वि [दे] प्रचुर। णिव्वेअण न [निवेदन] खेद, वैराग्य । वि.
णिसटू (अप) वि [निषण्ण] बैठा हुआ। वैराग्यजनक ।
णिसढ पुं [निषध] हरिवर्ष क्षेत्र से उत्तर में णिव्वेट सक [निर् + वेष्टय] नाश करना, स्थित एक पर्वत । एक वानर, राम-सैनिक । क्षय करना । घेरना । बाँधना ।
बैल, साँढ़ । बलदेव का एक पुत्र । देशणिव्वेढ सक [निर् + वेष्टय] त्याग करना । विशेष । निषध देश का राजा । स्वर-विशेष । मजबूती से वेष्टन करना ।
कूड न [°कूट] निषध पर्वत का एक णिव्वेढ वि [दे] नग्न ।
शिखर । दह पुं [°द्रह] द्रह-विशेष । णिव्वेद देखो णिव्वेअ।
णिसण्ण वि [निषण्ण] उपविष्ट, स्थित । णिव्वेर वि [निर्वैर] वैर-रहित ।
कायोत्सर्ग का एक भेद । णिव्वेरिस वि [दे] निर्दय । अत्यन्त, अधिक । णिसण्ण वि [निःसंज्ञ] संज्ञा-रहित । णिव्वेल्ल अक [निर् + वेल्ल्] फुरना, सत्य णिसत्त वि [दे] सन्तुष्ट ।
ठहरना । स्फूर्ति पाना । साबित होना। णिसम सक [नि + समय] सुनना । णिव्वेस वि [निष] द्वेष-रहित । णिसमण न [निशमन] श्रवण, आकर्णन । णिव्वेस पुं [निर्वेश] लाभ, प्राप्ति । णिसम्म अक [नि+सद्] बैठना। शयन णिव्वेहणिया स्त्री [निर्वेधनिका] वनस्पति- करना। विशेष ।
|णिसर देखो णिसिर । णिव्वोढव्व वि [निर्वोढव्य] निर्वाह-योग्य, | णिसल्ल देखो णिस्सल्ल ।
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४०८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिसह-णिसुंभ णिसह देखो णिसढ।
णिसिक्क सक [नि + सिच्] प्रक्षेप करना, णिसह देखो णिस्सह।
डालना। णिसह सक [नि + सह ] महन करना। णिसिज्जा देखो णिसज्जा । उपाश्रय, साधुओं णिसा स्त्री [निशा] अन्धकारवाली नरक- का स्थान ।
भूमि । रात्रि । पीसने का पत्थर, शिलौट, ! णिसिट्ठ वि [निसृष्ट] बाहर निकाला हुआ । सिलवट । °अर [°कर] चन्द्र । °अर पुं दत्त, प्रदत्त । अनुज्ञात । बनाया हुआ। [चर] राक्षस | °अरेंद पुं [°चरेन्द्र] | णिसिद्ध वि [निषिद्ध] प्रतिषिद्ध, निवारित । राक्षसों का नायक । 'नाह पुं [नाथ] | णिसिय वि [न्यस्त] स्थापित । चन्द्रमा । लोढ न [°लोष्ट] शिला-पुत्रक, णिसियण न [निषदन] उपवेशन । पीसने का पत्थर, लोढ़ा । °वइ पुं [पति] णिसिर सक [नि + सृज्] बाहर निकालना । चन्द्रमा । देखो णिसि।
देना, त्याग करना । करना । णिसाण सक [नि+शाणय] शान पर णिसीअ अक [नि+षद्] बैठना । चढ़ाना । तीक्ष्ण करना ।
णिसीआवण न [निषादन] बैठाना । णिसाण न [निशाण] शान, एक प्रकार का
णिसीढ देखो णिसीह = निशीथ । पत्थर, जिस पर हथियार तेज किया जाता है।
णिसीदण [निषदन] उपवेशन, बैठाना । णिसाम देखो णिसम।
णिसीह पुन [निशीथ] मध्य रात्रि । प्रकाश णिसाम वि [निःश्याम] निर्मल ।
का अभाव । न. जैन आगम-ग्रन्थ-विशेष । णिसामण देखो णिसमण ।
णिसीह पुं [नृसिंह] श्रेष्ठ मनुष्य । णिसामिअ वि [दे. निशमित] श्रुत । उप
णिसीहिअ वि [नैशीथिक] निज के लिए शमित, दबाया हुआ। सिमटाया हुआ,
___ लाया गया है ऐसा नहीं जाना हुआ भोजनादि संकोचित ।
पदार्थ। णिसाय वि [दे] प्रसुप्त ।
णिसीहिआ स्त्री [नषेधिकी] शव-परिष्ठापनणिसाय वि [निशात] शान दिया हआ. भूमि, श्मशान-भूमि । बैठने की जगह । तीक्ष्ण ।
णिसीहिआ स्त्री [निशीथिका] स्वाध्यायणिसाय पुं [निषाद] चाण्डाल, एक प्राचीन भूमि । थोड़े समय के लिए उपात्त स्थान । जाति । स्वर-विशेष ।
__ आचाराङ्ग सूत्र का एक अध्ययन । णिसायंत वि [निशातान्त] तीक्ष्ण धारवाला। णिसीहिआ स्त्री नेषेधिकी] स्वाध्याय भूमि । णिसास सक [निर् + श्वासय] निःश्वास पाप-क्रिया का त्याग । व्यापारान्तर के निषेध डालना।
रूप आचार । देखो णिसेहिया। णिसास देखो णीसास।
णिसीहिणी स्त्री [निशीथिनी] रात्रि । °नाह णिसि देखो णिसा । पालअ पुं [पालक]। पुं[नाथ] चन्द्रमा । छन्द-विशेष । °भत न [°भक्त] रात्रि-भोजन। णिसुअ वि [दे. निश्रुत] श्रुत, आकणित ।
भुत्त न [°भुक्त] रात्रि-भोजन । णिसुंद पुं [निसुन्द] रावण का एक सुभट । णिसिअ देखो णिसी।
णिसंभ सक [नि + शुम्भ] मार डालना, णिसिअ वि [निशित] शान दिया हुआ, व्यापादन करना । तीक्ष्ण ।
| णिसुंभ पुं [ निशुम्भ ] एक राजा । एक
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निसुंभण- णिस्साण
प्रतिवासुदेव । दैत्य-विशेष । णिसुंभण न [ निशुम्भन ] मर्दन, विनाश ।
वि. मार डालनेवाला ।
णिसुंभा स्त्री [निशुम्भा ] एक इन्द्राणी । णिसुट्ट वि [] ऊपर देखो । णिसुट्ठिअ
णिसुड देखो णिसुढ = नम् । णिसुड्ढ देखो णिट्ट |
णिसुढ अक [नम् ] भार से आक्रान्त होकर
नीचे नमना, झुकना ।
णिसुढ सक [नि + शुम्भ् ] मारना, मार कर गिराना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णिसुदिर वि [ नम्र ] भार से नमा हुआ । णिसुण सक [नि + श्रु] सुनना, श्रवण करना । णिसुद्ध वि [दे] पातित, गिराया हुआ । सूिग देखो णिस्सू ।
णिसूड देखो णिसुढ = नि + शुम्भ् । णिसूढ देखो णिसह = नि + सह. । णिसेग देखो णिसेय ।
णिसेज्जा स्त्री [निषद्या] वस्त्र । णिसेज्जा देखो णिसज्जा ।
णिसेज्झ वि [निषेध्य ] निषेध-योग्य | णिसेणि देखो णिस्सेणि ।
णिसेय पुं. [ निषेक] कर्म - पुद्गलों की रचना - विशेष | सींचना |
४०९
निर्धन - कारक । कर्म को दूर करनेवाला । णिस्संक पुं [दे] निर्भर ।
णिस्संक वि [निःशङ्क] शङ्का-रहित । न.
शङ्का का अभाव । णिस्संकिअ वि [निःशङ्कित ] शङ्का - रहित ।
न. शङ्का का अभाव |
णिस्संग वि [निःसङ्ग ] सङ्ग-रहित । णिस्संचार वि [निःसंचार] संचार - रहित, गमनागमन - वर्जित ।
घटाना ।
णि सण पुं [ निःस्वन] शब्द, आवाज । णिस्सण्ण वि [निःसंज्ञ] संज्ञा-रहित । णिस्सत्त वि [निःसत्त्व] धैर्य - रहित, सत्त्वहीन | णिस्सम्म अक [निर् + श्रम् ] बैठना । णिस्सय पुं [ निश्चय ] देखो णिस्सा । णिस्सर अक [निर + सृ] बाहर निकलना । णिस्सरण वि [निःशरण] शरण-रहित ।
णिसेवक [नि + सेव् ] सेवा करना, भजना,
आदर करना । आश्रय करना । आचरना । णिसेवग देखो णिसेवय ।
णिसेवय वि [निषेवक] सेवा करनेवाला, णिस्सरिअ वि [दे] त्रस्त, खिसका हुआ ।
सेवक । आश्रय करनेवाला ।
णिसेह सक [नि + षिध्] निषेध करना, निवा
णिस्सल्ल वि [निःशल्य ] शल्य - रहित । णिस्सस अक [ निर् + श्वस्] निःश्वासे लेना । णिस्सह वि [निःसह ] मन्द, अशक्त । णिस्सा स्त्री [ निश्रा ] आलम्बन, सहारा । अधीनता | पक्षपात ।
रण करना ।
णिसेह पुं[ निषेध ] प्रतिषेध, निवारण | अपवाद । णिसेहिया देखो णिसीहिआ = नैषेधिकी ।
निस्संजम वि [निस्संयम ] संयम-रहित । निस्संत वि [निःशान्त ] अतिशय शान्त | णिस्संद देखो णीसंद |
निस्संदेह वि [निस्संदेह ] निश्चय, निःसंशय । सिंध व [निस्सन्धि ] सन्धि-रहित, से रहित ।
साँधा
णिस्संस वि [ नृशंस ] क्रूर | णिस्संस वि [निःशंस ] श्लाघा -रहित । णिस्संसय वि [निःसंशय ] संशय-रहित । सिक्क स [नि + ष्वष्क्] कम करना,
मुक्ति । श्मशान भूमि | बैठने का स्थान | नितम्ब, द्वार के समीप का भाग । णिस्स वि [निःस्व] निर्धन । 'यर वि [° कर] णिस्साण पुंन [ दे] वाद्य-विशेष, निशान |
णिस्साण न [ निश्राण] निश्रा, अवलम्बन । 'पयन [पद] अपवाद ।
५२
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४१०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिस्सार-णिहाय णिस्सार सक [निर्+सारय्] बाहर निका- णिहट्ठ वि [निघृष्ट] घिसा हुआ । लना । भ्रष्ट करना।
णिहण सक[नि+ हन्] निहत करना, मारना । णिस्सार । वि [निःसार] सार-हीन, फेंकना । णिस्सारग , निरर्थक । जीर्ण-पुराना। णिहण सक [नि+ खन्] गाड़ना । णिस्सारय वि [निःसारक] निकालनेवाला । णिहण न [दे] किनारा। णिस्सारिय वि [निःसारित] निकाला हुआ। णिहण न [निधन] मरण, विनाश । पुं. रावण च्यावित, भ्रष्ट किया हुआ।
का एक सुभट । णिस्सास निःश्वास]निःश्वास, नीचा श्वास । णिहत्त सक [निधत्तय ] कर्म को निबिड़ रूप
काल-मान-विशेष । प्राण-वायु, प्रश्वास । से बाँधना। णिस्साहार वि [निःस्वाधार निराधार । | णिहत्त देखो णिधत्त । पिस्सिग वि [निःशृङ्ग] शृङ्ग-रहित । णिहत्ति देखो णित्ति। पिस्सिघिय न [निःशिवित] अव्यक्त शब्द- णिहम्म सक [नि + हम्म्] जाना, गमन विशेष ।
करना। पिस्सिच अक [निर् + सिच्] प्रक्षेप करना,
णिहय वि [निहत] मारा हुआ। डालना, फेंकना।
णिहय वि [निखात] गाड़ा हुआ। णिस्सिणेह वि [निःस्नेह] स्नेह-रहित ।।
णिहर अक [नि+ह] पाखाना जाना । णिस्सिय वि [निश्रित] आश्रित, अवलम्बित ।
णिहर अक [आ + क्रन्द्] चिल्लाना । अनुरक्त, तल्लीन । आसक्ति । वि. निश्चय
णिहर अक [निर् + स] बाहर निकलना । से बद्ध । पक्षपाती । रागी।
णिहरण देखो णीहरण। पिस्सिय वि [निःसृत] निर्गत ।
णिहव देखो णिहुव । णिस्सील वि [निःशील] सदाचार-रहित, णिहव वि [दे] सुप्त, सोया हुआ । दुःशील।
णिहव पुं [निवह] समूह । णिस्तूंग वि [निःशूक] निष्करुण । णिहस सक [नि + घृष्] घिसना। णिस्सेज्जा देखो णिस्सेजा।
णिहस पुं [निकष] कसौटी का पत्थर । णिस्सेणि स्त्री [निःश्रेणि] सीढ़ी ।
कसौटी पर की जाती रेखा। णिस्सेयस न [निःश्रेयस] कल्याण, मङ्गल । णिहस पुं [निघर्ष] घर्षण, रगड़ । मुक्ति, निर्वाण । अभ्युदय, उन्नति ।
णिहस पुं [दे] सर्प आदि का बिल । णिस्सेयसिय न [नैःश्रेयसिक] मुमुक्षु । णिहा स्त्री [निहा] माया, कपट । णिस्सेस वि [निःशेष] सब, सकल ।
| णिहा सक [नि +धा] स्थापना करना । णिह वि [निभ] सदृश । न. बहाना । णिहा सक [नि + हा] त्याग करना । णिह वि [निह] मायावी, कपटी। पीड़ित । न.
णिहा । सक [दृश्] देखना। आघात स्थान । णिह वि [स्निह] रागो, रागयुक्त । णिहाण न [निधान] वह स्थान जहाँ पर धन णिहंस पुंनिघर्ष घर्षण ।
| आदि गाड़ा गया हो, खजाना, भण्डार । णिहंसण न [निघर्षण] घर्षण, रगड़ । | णिहाय [दे] स्वेद । समूह, जत्था । णिहटु अ. पृथक् करके । स्थापन कर। णिहाय पुं [निघात] आघात, आस्फालन ।
णिहाआ ।
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णिहाय-णीम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४११ णिहाय देखो णिहा = नि +धा, नि + हा का | णिहुत्थिभगा स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष । संकृ.।
णिहुव सक [ कामय् ] सम्भोग का अभिलाष णिहाय पुं [निहाद] अव्यक्त शब्द । करना। णिहार पुं निहार] निर्गम ।
णिहुवण न [निधुवन] सम्भोग । णिहारिम न निहरिम] जिसके मतक शरीर णिहूअ न [दे] मैथुन । वि. अकिश्चित्कर ।
को बाहर निकाल कर संस्कार किया जाय देखो णीय। उसका मरण । वि. दूर जानेवाला, दूर तक णिहेलण न [दे] गृह । जघन, स्त्री के कमर के फैलनेवाला।
नीचे का भाग। णिहाल देखो णिभाल।
णिहो अ [न्यग्] नीचे । णिहि वि [निधि] भण्डार । धन आदि से
णिहोड सक [नि + वारय ] निवारण करना,
निषेध करना। भरा हुआ पात्र । चक्रवर्ती राजा की सम्पत्तिविशेष, नैसर्प आदि नव निधि । पुंस्त्री. लगा
णिहोड सक [पातय ] गिराना। नाश
करना। तार नव दिन का उपवास । °नाह पुं
णी सक [ गम् ] जाना, गमन करना। [°नाथ] कुबेर । णिहिअ वि [निहित] स्थापित ।
णी सक [नी] ले जाना। जामना । ज्ञान णिहिण्ण वि [निभिन्न] विदारित ।
कराना, बतलाना। णिहित्त देखो णिहिअ ।
णीअअ वि [दे] समीचीन, सुन्दर । णिहिप्पंत देखो णिहा = नि+धा का कवकृ. ।।
णीआरण न [दे] बली रखने का छोटा हिल वि [निखिल] सब, सकल ।
कलश। णिहिल्लय देखो णिहि।
णीइ स्त्री [नीति] न्याय, उचित व्यवहार । णिही स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष ।
नय, वस्तु के एक धर्म को मुख्यतया माननेणिहीण वि [निहीन] न्यून ।
वाला मत । °सत्थ न [°शास्त्र] नीति-प्रतिणिहीण वि [निहीन] तुच्छ, खराब, हलका,
पादक शास्त्र ।
णीका स्त्री [नीका] कुल्या, नहर, सारणि । णिहु स्त्री [स्निहु] औषधि-विशेष । णीखय वि [निःक्षत] निखिल, सम्पूर्ण । णिहुअ वि [निभृत] प्रच्छन्न । विनीत । मन्द । | णीचअ न [नीचैस्] नीचे । वि. अधः-स्थित । निश्चल, स्थिर । संभ्रमरहित । धारण किया पीछूट देखो णिच्छृढ । हुआ । निर्जन, एकान्त । अस्त होने के लिए | जीजूह देखो णिज्जूह =दे. निह । उपस्थित । उपशान्त ।
णीड देखो णिड्ड। णिहुअ वि [दे] व्यापार-रहित, अनुधुक्त, । णीण सक [गम्] जाना, गमन करना । निश्चेष्ट । तूष्णीक । न. मैथुन ।
णीण सक [नी] ले जाना। बाहर ले जाना, णिहुअण देखो णिहुवण ।
बाहर निकालना। णिहुआ स्त्री [दे] सम्भोग के लिए प्रार्थित | णीणिआ स्त्री [नीनिका] चतुरिन्द्रिय जन्तु स्त्री।
की एक जाति । णिहुण न [दे] व्यापार, धन्धा ।
णीम पुं [नीप] कदम्ब का पेड़ । म. फलणिहुत्त वि [दे] निमग्न ।
विशेष ।
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४१२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णीमम-णीसंक णीमम वि [निर्मम] ममत्व रहित ।
महादेव । °कणवीर पुं [करवीर] हरे णीमी देखो णीवी।
रंग के फूलोंवाला कनेर का पेड़ । °गुफा स्त्री. णीय वि [नीच] अधम, जघन्य । वि. अध- उद्यान-विशेष । °मणि पुंस्त्री. रत्न-विशेष । स्तन । गोय न [गोत्र] क्षुद्र गोत्र । कर्म- नीलम, मरकत । °लेस वि [°लेश्य] नील विशेष जो क्षुद्र जाति में जन्म होने का कारण लेश्यावाला। °लेसा स्त्री [°लेश्या] अशुभ है। वि. नीच गोत्र में उत्पन्न ।
अध्यवसाय-विशेष । लेस्स देखो °लेस। णीय वि [नीत] ले जाया गया।
'लेस्सा देखो °लेसा। °वंत पुं [°वत्] णीय देखो णिच्च - नित्य ।।
पर्वत-विशेष । द्रह-विशेष । न. शिखरणीयंगम वि [नीचंगम] नीचे जानेवाला।
विशेष । णीयंगमा स्त्री [नीचंगमा] नदी।
णील वि नील] कच्चा, आई। 'केसी स्त्री णीर न [नीर] जल । निहि पुं ["निधि] समुद्र । रुह न. कमल । °वाह पुं. मेघ ।
णीलकंठी स्त्री [दे] बाण-वृक्ष । हर पुं [°गृह] सागर । हि पुं [धि]
णीला स्त्री [नीला] लेश्या-विशेष, आत्मा का समुद्र । कर पुं. समुद्र ।।
अशुभ परिणाम । नीलवर्णवाली स्त्री। णीरंगी स्त्री [दे. नीरङ्गी] शिरोवस्त्र, चूंघट ।
णीलिअ वि [निःसृत] निर्गत । णीरंज सक [भ ] तोड़ना, भांगना।
णीलिअ वि [नीलित] नील वर्ण का। णीरंध वि [नीरन्ध्र] निश्छिद्र ।
णीलिआ देखो णीला। णोरण न [दे] घास, चारा।
णीलिम पुंस्त्री [नीलिमन्] नीलापन, हरापन ।
णीली स्त्री [नीली] वनस्पति-विशेष, नील । णीरय वि [नीरजस] रजो-रहित, निर्मल,
नील वर्णवाली स्त्री । आँख का रोग । शुद्ध । पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक प्रस्तट । णीरव सक [आ+क्षिप्] आक्षेप करना ।
णीलुंछ सक [कृ] निष्पतन करना । आच्छोटन णीरव सक [बुभुक्ष] खाने को चाहना ।
करना। णीरव वि [आक्षेपक] आक्षेप करनेवाला ।
णोलुक्क सक [गम्] जाना, गमन करना। णीरस वि [नीरस] रस-रहित, शुष्क ।
| णीलुप्पल न [नीलोत्पल] नील रंग का णीरसजल न [नीरसजल] आयम्बिल तप ।
कमल। णीराग । वि [नीराग] वीतराग । णीलुय पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति । णीराय ,
णीलोभास पुं [नीलावभास] ग्रहाधिष्ठायक णीरेणु वि नीरेणु] धूल-रहित ।
देव-विशेष । वि. नीलच्छाय जो नीला मालूम णीरोग वि [नीरोग] रोग-रहित, तन्दुरुस्त । । देता हो । णील अक [निर् + सृ] बाहर निकलना। । णीव पुं [नीप] कदम्ब का पेड़ । णील पुं [नील] हरा वर्ण, नीला रंग । ग्रहा- णीवार पुं [नीवार] तिल्ली का पेड़ । व्रीहिधिष्ठायक-देव-विशेष । रामचन्द्र का एक सुभट, | विशेष । वानर-विशेष । छन्द-विशेष । पर्वत-विशेष । न. | णीवी स्त्री [नीवी] मूल-धन, पूंजी। इजारनीलम रत्न । वि. हरा वर्णवाला । कंठ पु बन्द । [कण्ठ] शक्रेन्द्र का एक सेनापति, शक्रन्द्र णीसंक देखो णिस्संक = निःशंक । के महिषसैन्य का अधिपति देव-विशेष । मोर। णीसंक पुंदे] वृषभ ।
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णीसंकिअ-णीहार संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४१३ णीसंकिअ देखो णिस्संकिअ।
णीसाण देखो णिस्साण = (दे)। णीसंख वि [निःसंख्य] असंख्य ।
णीसामण्ण वि [निःसामान्य] असाधारण । णीसंचार देखो णिस्संचार ।। णीसंद पुं [निःष्यन्द] रस का झरन । णीसार सक [निर्+सारय] बाहर निकाणीसंपाय वि [दे] जहाँ जनपद परिश्रान्त हुआ | लना। हो वह ।
णीसार पुं दे] मण्डप । णीसट वि [निःसृष्ट] विमुक्त । प्रदत्त । अति- | णीसार वि [निःसार] सार-रहित, फल्गु । शय, अत्यन्त ।
णीसारय वि [निःसारक] बाहर निकालने णीसण पुं [निःस्वन] आवाज, शब्द, ध्वनि । वाला। णीसणिआ। स्त्री [दे] सीढ़ी।
णीसास देखो णिस्सास। णीसणी
णीसास वि [निःश्वास,°क] निःश्वास णीसत्त वि [निःसत्त्व] सत्त्व-हीन, बल-रहित। | णीपासय लेनेवाला । णीसह वि [निःशब्द शब्द-रहित । णीसाहार देखो णिस्साहार । णीसर अक [रम्] क्रीड़ा करना, रमण णीसित्त वि [निष्षिक्त] अत्यन्त सिक्त । करना।
णीसोमिअ वि [दे] निर्वासित । णीसर अक [निर् + स] बाहर निकलना। णीसेयस देखो णिस्सेयस। णीसरण न [निःसरण] फिसलन, रपटन । | णीसेणि स्त्री [निःश्रेणि] सीढ़ी । निर्गमन ।
णीसेस देखो णिस्सेस। णीसल वि [निःशल] निश्चल, स्थिर । | णीहट्टु अ. निकाल कर । वक्रता-रहित, उत्तान, सपाट ।
णीहटु अ [नि + सृत्य] बाहर निकल कर । णीसल्ल वि [निःशल्य] शल्य-रहित । णीहड वि [निहत] निर्गत, निर्यात । णीसव सक [नि + श्रावय ] निर्जरा करना, णीहडिया स्त्री [निर्हतिका] अन्य स्थान में क्षय करना।
ले जाया जाता द्रव्य । णीसवग देखो णीसवय।
णीहम्म अक [निर् + हम्म्] निकलना । णीसवत्त वि [निःसपत्न] शत्रु-रहित, विपक्ष- | णीहर अक [निर् + स] बाहर निकलना । रहित।
णीहर अक [आ + क्रन्द्] आक्रन्द करना, णीसवय वि [निःश्रावक] निर्जरा करने
चिल्लाना। वाला।
णीहर अक [निर+हद] प्रतिध्वनि करना। णीसस अक [निर्+श्वस] नीसास लेना, णीहर सक[निर् + सारय] बाहर निकालना। श्वास को नीचा करना ।
। णीहर अक [ निर्+ह ] पाखाना जाना, णीससण न [निःश्वसन] निःश्वास ।
पुरीषोत्सर्ग करना। णीसह वि [निःसह] मन्द, अशक्त ।
| णीहरण न [निस्सरण, निर्हरण] निर्गमन, णीसह वि [निःशाख] शाखा-रहित । बाहर निकालना । परित्याग । अपनयन । णीसा स्त्री [दे] पीसने का पत्थर ।। णीहरिअ न [दे] शब्द, आवाज, ध्वनि । णीसा देखो णिस्सा।
| णीहार पुं [नीहार] हिम, तुषार । विष्ठा या णीसाइ वि [निःस्वादिन] स्वाद-रहित । । मूत्र का उत्सर्ग ।
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देखो णिहुअ ।
४१४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णीहारण-णेग णोहारण न [निस्सारण] निष्कासन। णूम सक [छादय ] ढकना, छिपाना । णीहारि वि [ निर्हारिन् ] निकलनेवाला । णूम न [दे] प्रच्छादन, छिपाना । असत्य । फैलनेवाला।
माया, कपट । प्रच्छन्न स्थान, गुफा वगैरह । णीहारि वि [नि दिन्] घोष करनेवाला, अन्धकार, गाढ़ अन्धकार । गूंजनेवाला।
। णूम न [दे] कर्म । °गिह न [गृह] भूमिणीहारिम देखो णिहारिम। णीहास वि [निर्हास] हास-रहित । णूमिअ वि [दे] पोला किया हुआ । णीहूय वि [दे] कुछ भी नहीं कर सकने वाला। णूला स्त्री [दे] शाखा, डाल ।
णे अ. पाद-पूत्ति में प्रयुक्त होता अव्यय ।
णेअ देखो णा % ज्ञा का कृ. । णु अ [नु] इन अर्थों का सूचक अव्यय-व्यंग्य ध्वनि । वक्रोक्ति । वितर्क । प्रश्न । विकल्प ।
णेअ देखो णी = नी का कृ. । अनुनय । हेतु, प्रयोजन । अपमान । अनुताप,
णेअ वि [नैक] अनेक, बहुत । °विह वि अनुशय । अपदेश, बहाना। निन्दा । विशेष ।
[विध] अनेक प्रकार का । °णुअ वि [ज्ञक] जानकर ।
णेअ अ [नैव] नहीं ही, कदापि नहीं, कभी णुक्कार पुं [नुक्कार] 'नुक' ऐसी आवाज । नहीं। णुज्जिय वि [दे] बन्द किया हुआ, मुद्रित । णेआइअ । वि [नैयायिक, न्याय्य न्यायोणुत्त वि [नुत्त] प्रेरित । क्षिप्त, फेंका हुआ। णेआउचित । णुम सक [नि + अस्] स्थापन करना । णेआउय। वि [ नेतृ] ले जानेवाला । णुम सक [छादय ] आच्छादन करना। णेउ , रचयिता। णुमज्ज अक [नि+सद्] बैठना । णेआवण न [ नायन ] अन्य-द्वारा नयन णुमज्ज अक [नि+मस्ज् ] डूबना। पहुँचाना । णुमज्ज अक [शी] सोना, सूतना ।
णेआविअ वि [नायित] अन्य द्वारा ले जाया णुमण्ण वि [निषण्ण] बैठा हुआ, उपविष्ट ।
गया, पहुँचाया हुआ। णुमण्ण वि [निमग्न] डूबा हुआ, लीन ।
णेउ वि [नेतृ] नेता, नायक । णुल्ल देखो णोल्ल।
णेउआण देखो णी - नी का संकृ. । णुवण्ण वि [दे] सोया हुआ।
णेउड्ढ पुं [दे] सद्भाव, शिष्टता। णुवण्ण वि [निषण्ण] बैठा हुआ, उपविष्ट । णेउण न [नैपुण] निपुणता, चतुराई । णुव्व सक [प्र = काशय] प्रकाशित करना। णेउणिअ वि [नैपूणिक] निपुण । न. अनुणुसा स्त्री [स्नुषा] पुत्र-वधू ।
प्रवाद-नामक पूर्व-ग्रन्थ की एक वस्तु । णूउर देखो णिउर = नूपुर ।
'णेउणिअ देखो णेउण्ण। णूण वि [न्यून] कम।
; णेउण्ण न [नैपुण्य] निपुणता । णूण , अ [नूनम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय- ' णेउर न [नूपुर] पायल । णूणं । निश्चय । तर्क, विचार । हेतु, प्रयोजन । णेउरिल्ल वि [नूपुरवत्] नूपुरवाला। उपमान । प्रश्न ।
णेऊण देखो णी- नी का संकृ. । णूतण वि [नूतन] नवीन ।
णेकंत देखो णिकंत। णूपुर देखो णूउर।
णेग देखो णे = नैक।
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णेगम-णेवाइय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
णेगम पुं[नैगम] वस्तु के एक अंश को स्वीका- कदाचित्क । निमित्तशात्र का जानकार । न. रनेवाला पक्ष-विशेष, नय-विशेष । वणिक् । निमित्तशास्त्र । न. व्यापार का स्थान ।
णेमी स्त्री [नेमी] चक्र-धारा । गुण्ण न [नैर्गुण्य] निर्गुणता, निःसारता । । | णेम्म वि [दे. निभ] सदृश । णेचइय पुं [नैचयिक] धान्य आदि का थोक- जेम्म देखो गेम = नेम । बन्द व्यापारी।
णेरइअ वि [नैरयिक] नरक-सम्बन्धी, नरक णेच्छड वि निश्चयिका निश्चयनयसम्मत. में उत्पन्न । पुं. नरक का जीव, नरक में निरुपचरित, शुद्ध ।
उत्पन्न प्राणी। णेच्छंत वि [नेच्छत्] नहीं चाहता हुआ।
णेरइअ वि [नैऋतिक] नैऋत कोण । णेच्छिय वि [नैच्छित] अनभिलषित । रई स्त्री [नैऋती] दक्षिण और पश्चिम के णेटिअ वि [नैष्ठिक] पर्यन्त-वर्ती ।
बीच की दिशा। णेड देखो णिड्ड।
णेरुत्त न [नैरुक्त] व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ णेडाली स्त्री [दे] सिर का भूषण-विशेष । का वाचक शब्द । वि. निरुक्त शास्त्र का णेड्ड देखो णिड्ड।
जानकार । णेड्ढरिआ स्त्री [दे] भाद्रपद मास की शुक्ल
णेरुत्तिय वि [नरुक्तिक] व्युत्पत्ति-निष्पन्न । दशमी का एक उत्सव ।
णेरुत्ती स्त्री [नरुक्ति] व्युत्पत्ति । णेत्त पुंन नेत्र] आँख ।
णेल वि [नैल] नील का विकार । णेत्त पुं नेत्र] वृक्ष-विशेष ।
णेलंछण देखो णिल्लंछण । णेद्दा देखो णिद्दा।
णेलच्छ पुं [दे] नपुंसक । बैल । णेपाल देखो णेवाल।
णेलय पुंदे. नेलन] रुपया। णेम स [नेम] आधा । न. मूल, जड़ ।
णेलिच्छी स्त्री [दे] कूपतुला, ढेकवा । णेम न [दे] कार्य।
णेल्लच्छ देखो णेलच्छ । णेम पुन [दे] काम ।
णेव देखो णेअ = नैव । णेम देखो णेम्म = दे।
णेवच्छ देखो णेवत्थ। णेमाल पुं. ब. [नेपाल] एक भारतीय देश,
णेवच्छण न [दे] अवतारण, नीचे उतारना । नेपाल।
वच्छिय देखो णेवत्थिय । णेमि पुं [नेमि] एक जिनदेव, बाईसवें तीर्थ- णवत्थ न [नेपथ्य] वस्त्र आदि की रचना, कर। चक्र की धारा । चक्र की परिधि । वेष की सजावट, नाटक आदि में परदे के आचार्य हेमचन्द्र के मातुल का नाम । °चंद
भीतर का स्थान जिसमें नट-नटी नाना प्रकार पुं[°चन्द्र] एक जैनाचार्य ।
का वेश सजाते हैं, नाट्यशाला । वेष । मित्त देखो णिमित्त।
णेवत्थण न [दे] निरुञ्छन, उत्तरीय वस्त्र का मित्ति वि [निमित्तिन्] निमित्त-शास्त्र का | अञ्चल। जानकार ।
| णेवत्थिय वि [नेपथ्यित] जिसने वेष-भूषा की णेमित्तिअ । वि [नैमित्तिक] निमित्तशास्त्र | हो वह । णेमित्तिग ) से सम्बन्ध रखनेवाला । कारणिक, | णेवाइय वि [नैपातिक] निपात-निष्पन्न नाम, निमित्त से होनेवाला, कारण से किया जाता, अव्यय आदि ।
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४१६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वाल-हव णेवाल पुं [नेपाल] एक भारतीय देश । वि.. रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुंवेद, नेपाल-देशीय, नेपाली।
स्त्रीवेद और नपुंसकवेद । केवलनाण न विज्ज । न [नैवेद्य] देवता के आगे धरा | [°केवलज्ञान] अवधि और मनःपर्यव ज्ञान । णेवेज्ज , हुआ अन्न आदि ।
गार पुं [ कार] 'नो' शब्द । 'गुण वि. णेव्वाण देखो णिव्वाण = निर्वाण । अवास्तविक । °जीव पुं. जीव और अजीव से णेव्वुअ देखो णिव्वुअ।
भिन्न पदार्थ, अवस्तु । अजीव, निर्जीव । णेव्वुइ देखो णिव्वुइ ।
जीव का प्रदेश । °तह वि [°तथ] जो वैसा णेसग्गिय देखो णिसग्गिय ।
ही न हो। णेसज्जि वि [नैषधिन्] आसन-विशेष से | णो अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय-खेद । उपविष्ट ।
आमन्त्रण । विचित्रता । वितर्क । प्रकोप । णेसज्जिअ वि [नैषधिक] ऊपर देखो। णो° पुं [न] पुरुष । णेसत्थि पुं [दे] वणिग् मन्त्री।
णोक्ख वि [दे] अनोखा, अपूर्व । णेसत्थिया । स्त्री [नैसृष्टिकी, नैशस्त्रिकी] | णोगोण्ण वि [नोगौण] अयथार्थ (नाम)। सत्थी । निसर्जन, निक्षेपण। निसर्जन | णोजुग न [नोयुग] न्यून युग । से होनेवाला कर्म-बन्ध ।
णोदिअ देखो णोल्लिअ । सप्प पुं [नैसर्प] निधि-विशेष, चक्रवर्ती राजा |
णोमल्लिआ स्त्री [नवमल्लिका] सुगन्धि वाला का एक देवाधिष्ठित निधान ।
वृक्ष-विशेष, नेवारी, वासन्ती (फूल)। णेसर पुंदे] सूर्य।
णोमालिआ स्त्री [नवमालिका] ऊपर देखो। णेसाय देखो णिसाय = निषाद ।
णोमि पुं [दे] रज्जु । णेसु पुंन. [दे] होंठ । पाँव ।
णोलइआ । स्त्री [दे] चोंच । णेह पुं [स्नेह] राग, अनुराग । तैल आदि णोलच्छा ) चिकना रस-पदार्थ । चिकनाई।।
णोल्ल सक [क्षिप् ,नुद्] फेंकना । प्रेरणा णेहर देखो णेहुर।
करना। णेहल पुं [स्नेहल] छन्द-विशेष । वि. स्नेही, । णोव्व पं दे] आयुक्त, सबा या सबेदार राजस्नेह-युक्त ।
प्रतिनिधि । णेहालु वि [स्नेहवत्] स्नेह-युक्त, स्निग्ध । णोहल पुं[लोहल] अव्यक्त शब्द-विशेष । णेहुर पुं [नेहुर] एक अनार्य देश । उसमें |
णोहलिआ स्त्री [नवफलिका] नवोत्पन्न वसनेवाली अनार्य जाति ।
फली। नूतन फलवाली। नूतन फल का णो अ [नो] इन अर्थों का सूचक अव्यय - उद्गम । निषेध, अभाव । मिश्रण । देश, भाग, अंश। णोहा स्त्री [स्नुषा] पुत्रवधू । निश्चय । आगम पुं. आगम का अभाव । | °ण्णअ वि [ज्ञक] जानकार । आगम के साथ मिश्रण । आगम का एक । | °ण्णास देखो णास = न्यास । अंश । पदार्थ का अपरिज्ञान । °इंदिय न | °ण्णुअ देखो °ण्णअ । [°इन्द्रिय] मन, अन्तःकरण, चित्त । | ण्हं अ. वाक्यालंकार और पादपूर्ति में प्रयुक्त °कसाय पुं [°कषाय] कषाय के उद्दीपक | किया जाता अव्यय । हास्य वगैरह नव पदार्थ, वे ये हैं-हास्य, | ण्हव सक [स्नपय] स्नान कराना ।
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ण्हाण
ण्हा-तंडव संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४१७ पहा ] अक [स्ना] स्नान करना । । में की एक श्रेणी, कुम्हार, पटेल आदि ।
ण्हाव देखो ण्हव । ण्हाण न [स्नान] नहाना, नहान । °पीढ पुंन ।
पुन | पहाविअ पुं [नापित] हजाम । °पसेवय पुं [°पीठ] स्नान करने का पट्टा ।
[प्रसेवक] नाई की अपने उपकरण रखने ण्हाणमल्लिया स्त्री [स्नानमल्लिका] स्नान
की थैली। योग्य, मालती-पुष्प । ण्हाणि स्त्री [स्नानिका] स्नान-क्रिया ।
| ण्हु अ [दे] निश्चय-सूचक अव्यय । हाय वि [स्नात] नहाया हुआ ।
ण्हुसा स्त्री [स्नुषा] पुत्र-वधू । ण्हारु न [स्नायु] नस, धमनी । अष्टादश श्रेणी । ण्हुहा देखो ण्हुसा।
त पुं. दन्त-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष ।। तई स्त्री [त्रयी] तीन का समुदाय ।। त स [तत्] वह ।
तईअ देखो त इअ = तृतीय । त° स [त्वत्"] तू । 'क्य वि [कृत] तेरा तउ । न [त्रपु] सीसा, राँगा। "वट्टिआ किया हुआ।
तउअ । स्त्री [°पट्टिका] कान का आभूषणत° देखो तया - त्वच् । दोसि वि [°दोषिन्] विशेष । चर्म-रोगी । कुष्ठी।
तउस न [त्रपुष] देखो तउसी। मिजिया तअ देखो तव = तपस् ।
स्त्री [°मिञ्जिका] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय तइ वि [तति] उतना ।
जन्तु की एक जाति । तइ (अप) अ [तत्र] वहाँ, उसमें ।
तउस न [त्रपुष] खीरा, ककड़ी। तइ अ [तदा] उस समय ।
तउसी स्त्री [त्रपुषी] खीरा का गाछ । तइअ वि [तृतीय] तीसरा ।
तए अ [ततस्] उससे, उस कारण से । बाद तइअ (अप) वि [त्वदीय] तुम्हारा । तइअ अ [तदा] उस समय ।
तएयारिस वि [त्वादृश] तुम जैसा । तइअहा (अप) अ [तदा] उस समय । तओ देखो तए। तइआ अ [तदा] उस समय ।
तं अ [तत्] इन अर्थों का सूचक अव्यय-कारण, तइआ स्त्री [तृतीया] तिथि-विशेष, तीज । हेतु । वाक्य-उपन्यास । °जहा अ [°यथा] तीसरी विभक्ति।
उदाहरण-प्रदर्शन अव्यय । तइल देखो तेल्ल।
तंआ देखो तया = तदा। तइलोई स्त्री [त्रिलोकी] तीन लोक-स्वर्ग, तंट न [दे] पृष्ठ, पीठ । मर्त्य और पाताल ।
तंड न [दे] लगाम में लगी हुई लार । वि. तइलोक्क । न [त्रैलोक्य] ऊपर देखो। | मस्तक-रहित । स्वर से अधिक । तइलोय ।
तंडव (अप) देखो तड्डव । तइस (अप) वि [तादृश] वैसा, उस तरह तंडव अक [ताण्डवय्] नृत्य करना । का।
तंडव न [ताण्डव नृत्य, उद्धत नाच । उद्ध५३
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४१८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तंडविय-तक्कर ताई।
°सिह पुं [शिख] मुर्गा । तंडविय (अप) देखो तड्डुविअ ।
तंबकरोडपुंन[दे] ताम्न वर्णवाला द्रव्य-विशेष । तंडुल पुं [तण्डुल] चावल । देखो तंदुल। तंबकिमि पुंदे] कीट-विशेष, इन्द्रगोप । तंत न [तन्त्र] देश, राष्ट्र । शास्त्र, सिद्धान्त । तंबकुसुम पुंन [दे] वृक्ष-विशेष, कुरुबक, कटदर्शन, मत । स्वदेश-चिन्ता । विष का औषध- | सरैया । विशेष । सूत्र, ग्रन्थांश-विशेष । विद्या-विशेष । | तंबक्क न [दे] वाद्य-विशेष । न्तु विज्ञ] तन्त्र का जानकार । °वाइ तंबच्छिवाडिया स्त्री [दे] ताम्र वर्ण का द्रव्य
वादिन] विद्या-विशेष से रोग आदि को विशेष । मिटानेवाला।
तंबटक्कारी स्त्री [दे] शेफालिका, पुष्प-प्रधान तंत वि [तान्त] क्लान्त ।
लता-विशेष । तंतडी स्त्री [दे] करम्ब, दही और चावल का
| तंबरत्ती स्त्री [दे] गेहूँ में कुंकुम की छाया । बना भोजन-विशेष ।
तंबा स्त्री दे] गया। तंतवग । पुं [तान्त्रवक] चतुरिन्द्रिय जन्तु
तंबाय पुं [तामाक] भारतीय ग्राम-विशेष । तंतवय , की एक जाति ।
तंबिम पुंस्त्री [ताम्रत्व] अरुणता । तंतिय पुं तान्त्रिक] वीणा बजानेवाला।
तंबिय न [ताम्रिक] परिव्राजक का पहनने का तंतिसम न [तन्त्रीसम] तन्त्री-शब्द के तुल्य
एक उपकरण । या उससे मिला हुआ गीत, गेय काव्य का एक |
तंबिर वि [दे] ताम्न वर्णवाला। भेद।
तंबिरा [दे] देखो तंबरती। तंती स्त्री [तन्त्री] वीणा। वीणा-विशेष ।
तंबुक्क न [दे] वाद्य-विशेष । ताँत, चमड़े की रस्सी।
तंबेरम पुं [स्तम्बेरम] हाथी । तंती स्त्री [दे] चिन्ता ।
तंबेही स्त्री [दे] पुष्प-प्रधान वृक्ष-विशेष, तंतु पुं [तन्तु] सूत, तागा, सूत्र, धागा । °अ, °ग पुं [क] जलजन्तु-विशेष । °ज, °य न | तंबोल न [ताम्बूल] पान । [°ज] सूती कपड़ा। °वाय पुं[°वाय] | तंबोलिअ ताम्बूलिक] तमोली। पान में जुलाहा । °साला स्त्री [°शाला] कपड़ा | होनेवाला तंबोलिया नाग । बुनने का घर।
तंबोली स्त्री [ताम्बूली] पान का गाछ । तंतुक्खोडी स्त्री [दे] तन्तुवाय का एक उप- | तंभ देखो थंभ। करण ।
तंस पुं [त्र्यंश] तीसरा हिस्सा । तंदुल देखो तंडुल । मत्स्य-विशेष । °वेयालिय
तंस वि [त्र्यस्र] त्रि-कोण । न [ वैचारिक] जैन ग्रन्थ-विशेष ।
तक्क सक [तर्क] तर्क करना, अनुमान करना, तंदुलेज्जग पुं [तन्दुलीयक] वनस्पति-विशेष । तक्क न [तक्र] मट्टा, छाछ । तंदूसय देखो तिंदूसय।
तक्क पुं [तर्क] विमर्श, विचार, अटकलज्ञान । तंब पुं स्तम्ब] तृणादि का गुच्छा।
न्याय-शास्त्र। तंब न [ताम्र] ताँबा । पुं. वर्ण-विशेष । वि. तक्कणा स्त्री [दे] इच्छा । लालवर्णवाला । 'चूल पुं [चूड] कुक्कुट । तक्कय वि [तर्कक] तर्क करनेवाला । °वण्णी स्त्री [°पर्णी] एक नदी का नाम । । तक्कर पुं [तस्कर] चोर ।
शेफालिका।
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तक्कलि-तडफडिअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तक्कलि स्त्री [दे] कदली-वृक्ष ।
तच्छ ) वि [तष्ट] छिला हुआ, तनूकृत । तक्कलि , स्त्री [दे] वलयाकार वृक्ष-विशेष । तच्छिअ । तक्कली ।
तच्छिड वि [दे] भयंकर । तक्का स्त्री [तक] देखो त - तर्क ।
तच्छिल वि [दे] तत्पर । तक्काल क्रिवि [तत्काल] उसी समय । तजा देखो तया = त्वच । तक्किम वि [ताकिक] तर्कशास्त्र का जानकार। | | तज्ज सक [तर्जय] तर्जन करना, भर्त्सन तक्कियाणं देखो तक्क = तर्क का संकृ.। करना । तक्कू तक चरखा ।
तज्जणी स्त्री [तर्जनी] अँगूठे के पासवाली तक्कुय पुंदे] स्वजन-वर्ग।
अंगुली, प्रदेशिनी। तक्ख सक [तक्ष्] छिलना, काटना। तज्जाय वि [तज्जात] समान जातिवाला। तक्ख पुं [ताय] गरुड़ पक्षी।
तज्जाविअ । वि [जित] तजित, भत्सित । तक्ख [तक्षन] बढ़ई । विश्वकर्मा । °सिला | तज्जिअ
स्त्री [°शिला] प्राचीन ऐतिहासिक नगर । | तट्टवट्ट न [दे] आभूषण । तक्खग पुं [तक्षक] ऊपर देखो। स्वनाम- | तट्टिगा स्त्री [दे. तट्टिका] दिगम्बर जैन साधु प्रसिद्ध सर्प-राज।
का एक उपकरण । तक्खण न [तत्क्षण] उसी समय । क्रिवि. तट्टी स्त्री [दे] वृति, बाड़। शीघ्र ।
तट्ठ वि [त्रस्त] डरा हुआ, भीत । न. मुहूर्ततक्खय देखो तक्खग।
विशेष । तक्खाण देखो तक्ख = तक्षन् ।
तट्ठ वि [तष्ट] छिला हुआ। तगर देखो टगर।
तट्ठव न [त्रस्तप] मुहूर्त-विशेष । तगरा स्त्री. संनिवेश-विशेष । एक नगरी का |
कृशतावाला। नाम ।
तट्ठि । पुं [त्वष्ट्र] तक्षक, विश्वकर्मा । नक्षत्रतग्ग न [दे] धागे का कंकण ।
तठु । विशेष का अधिष्ठायक देव । तग्गंधिय वि [तद्गन्धिक] उसके समान तठ्ठ पुं [त्वष्ट] अहोरात्र का बारहवाँ मुहूर्त । गन्धवाला।
तड सक [तन्] विस्तार करना । करना। तच्च वि [तृतीय] तीसरा।
तड पुंन [तट] किनारा । त्थ वि ["स्थ] तच्च न [तत्त्व] सार, परमार्थ । वाय | मध्यस्थ, पक्षपात-हीन । समीप । स्थित । [°वाद] तत्त्व-वाद, परमार्थ-चर्चा । दृष्टिवाद, | तडउडा [दे] देखो तडवडा। जैन अंग-ग्रंथ-विशेष ।
तडकडिअ वि [दे] अनवस्थित । तच्च न[तथ्य] सत्य, सचाई । वि. वास्तविक । | तडक्कार पुं [तटत्कार] चमकारा ।
त्थ पुं [°ार्थ] हकीकत । °वाय पुं[°वाद] तडतडा अक [ तडतडायू ] तड़-तड़ आवाज देखो ऊपर वाय।
होना। तच्चं अ [त्रिः] तीन बार ।
तडतडा स्त्री [तडतडा] तड़-तड़ आवाज । तच्चित्त वि [तच्चित्त] उसी में जिसका मन । तडप्फड ) अक [दे] छटपटाना, तड़फड़ाना, लगा हो वह, तल्लीन ।
तडफड व्याकुल होना। तच्छ सक [तक्ष्] छिलना, काटना । तडफडिअ वि [दे] सब तरफ से चलित, तड़
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४२०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष तडमड-तणुवीआ फड़ाया हुआ, व्याकुल।
तणवरंडी स्त्री [दे] उडुप, डोंगी, छोटी तडमड वि [दे] क्षुभित ।
नौका। तडयड वि [दे] क्रिया-शील, सदाचार-युक्त । तणसोल्लि । स्त्री [दे] मल्लिका, पुण्यतडयांत देखो तडतडा का वकृ. ।
तणसोल्लिया प्रधान वृक्ष-विशेष । वि. तृणतडवडा स्त्री [दे] आउली का पेड़ ।
शून्य । तडाअ । न तडाग] सरोवर ।
तणहार पुं [तृणहार] त्रीन्द्रिय जन्तु तडाग
तणहारय ) की एक जाति । वि. घास तडि स्त्री[तडित्] बिजली । °डंड पुं [°दण्ड] | काटकर बेचनेवाला, घसियारा। विद्युदंड । केस पुं [ केश] राक्षस-वंशीय तणु वि तनु] पतला। कृश, दुर्बल । अल्प । एक राजा, एक लंकापति । °वेअ ' [°वेग]
लघु, छोटा । सुक्ष्म । स्त्री. शरीर । 'तणुई, विद्याधर वंश का एक राजा ।
तणू स्त्री [ तन्वी] ईषत्प्राग्भारा-नामक तडिअ वि [तत] विस्तृत, फैला हुआ।
पृथ्वी । °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] उत्पन्न तडिआ स्त्री [तडित्] बिजली ।
होते समय जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गलों तडिण वि [दे] विरल, अत्यल्प ।
को शरीर रूप से परिणत करने की शक्ति । तडिणी स्त्री [तटिनी] नदी ।
ब्भव वि [ उद्भव] शरीर से उत्पन्न । तडिम न. भित्ति । कुट्टिम, पाषाण आदि से
पुं. लड़का। ब्भवा स्त्री [उद्भवा] बँधा हुआ भूमितल । द्वार के ऊपर का भाग ।
लड़की । “भू पुंस्त्री. लड़का । लड़की। °य तडी स्त्री तटी] तट।
वि [°ज] देखो भव । “रुह पुन. केश । तड्ड । सक [तन्] विस्तार करना ।
पुं. पुत्र । वाय पुं[वात] सूक्ष्म वायु-विशेष । तड्डव ।
तणुअ वि [तनुक] ऊपर देखो । तड्डविअ । वि [तत] विस्तीर्ण, फैला हुआ।
| तणुअ सक [ तनय ] पतला करना । दुर्बल
करना। तड्डु स्त्री [तर्दु] काठ की करछी ।
तणुआ । अक [ तनुकाय ] दुर्बल होना, तण सक [तन्] विस्तार करना । करना।
तणुआअ कृश होना। तण न [दे] कमल । तण न [तृण] घास । इल्ल वि [°वत्] तृण
तणुआअरअ वि [तनुत्वकारक] कृशता वाला । जीवि वि [°जीविन्] घास खाकर
उपजानेवाला, दौर्बल्य-जनक । जीनेवाला । °राय पुं [राज] ताड़ का तणुइअ वि [तनूकृत] दुर्बल किया हुआ। कृश पेड़ । विटय, वेंटय पुं [वृन्तक] एक
किया हुआ। क्षुद्र जन्तु-जाति, त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष । तणुई स्त्री [तन्वी] पृथ्वी-विशेष, सिद्धशिला । तणग वि [तृणक] तृण का बना हुआ। कृशांगी, कोमलांगी। तणय पुं [तनय] लड़का ।
तणुग देखो तणुअ। तणय वि [दे] सम्बन्धी।
तणुज देखो तणु-य। तणयमद्दिआ स्त्री [दे] अंगूठी।
तणुजम्म पुं [तनुजन्मन्] पुत्र । तणया स्त्री [तनया] पुत्री।
तणुभव देखो तणु-ब्भव। तणरासि । वि [दे]प्रसारित, फैलाया हुआ। तणुवी । देखो तणुई। तणरासिअ)
| तणुवीआ)
तड्डिअ ।
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तणू-तप्पणाडुआलिआ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४२१ तणू स्त्री [तनू] काया। ईषत्प्राग्भारा-नामक | तत्तो देखो तओ । °मुह वि ["मुख] जिसका पृथिवी । °अ वि [°ज] शरीर से उत्पन्न । __ मुंह उस तरफ हो वह । पुं. पुत्र । °अतरा स्त्री [°कतरा] | तत्तोहुत्त न [दे] तदाभिमुख, उसके सामने । ईषत्प्रारभारा-नामक पृथिवी, सिद्धशिला । रुह | तत्थ अ [तत्र] वहाँ, उसमें । भव वि पुन. रोम, बाल ।
[°भवत् पूज्य ऐसे आप । °य वि [°त्य] तणूइय देखो तणुइअ।
वहाँ का रहनेवाला । तणेण (अप) अ. लिए, वास्ते ।
तत्थ वि [त्रस्त] डरा हुआ। तणेसि पुं [दे] तृण-राशि ।
तत्थ देखो तच्च = तथ्य । तण्णय पुं [तर्णक] बछड़ा ।
तत्थरि पुं [त्रस्तरि नय-विशेष । तण्णाय वि [दे] आर्द्र ।
तदा देखो तया = तदा। तण्हा स्त्री [तृष्णा] पिपासा । स्पृहा, वाञ्छा। तदीय वि [त्वदीय] तुम्हारा । °लु, °लुअ वि [°वत्] तृष्णावाला, प्यासा । तदो देखो तओ। तण्हाइअ वि [तृष्णित] तृषातुर । तद्दिअस । तत देखो तय = तत ।
तत्तिअसिअ न [दे] प्रतिदिन, अनुदिन । तत्त न [तत्त्व] सत्य-स्वरूप, तथ्य, परमार्थ । तहिअह 'ओ अ ["तस्] वस्तुतः । °ण्णु वि [°ज्ञ] तद्दीअचय न [दे] नृत्य, नाच । तत्त्व का जानकार ।
तद्दोसि देखो त-द्दोसि = त्वग्दोषिन् । तत्त पुं [तप्त] तीसरी नरक-भूमि का एक तद्धिय पुं [द्धित] व्याकरण-प्रसिद्ध-प्रत्ययनरक-स्थान । प्रथम नरक-भमि का एक
विशेष । तद्धित प्रत्यय की प्राप्ति का कारणनरक स्थान । वि. गरम किया हुआ। जला भूत अर्थ। स्त्री. नदी-विशेष ।
तधा देखो तहा। तत्त अ [तत्र] वहाँ । °भव, होंत वि तप देखो तव = तपस् । [°भवत्] पूज्य ऐसे आप।
तप्प सक [तप्] तप करना । अक. गरम तत्तट्ठसुत्त न [तत्त्वार्थसूत्र] एक प्रसिद्ध जैन होना। दर्शन-ग्रन्थ ।
तप्प सक [ तपय ] तृप्त करना। तत्तडिअ न [दे] रंगा हुआ कपड़ा।
तप्प न [तल्प] शय्या। °अ वि [ग] सोने तत्ति स्त्री [तृप्ति] सन्तोष । 'ल्ल वि [°मत्]
वाला। तृप्त ।
तप्प पुन [तप्र] छोटी नौका। नदी में दूर से तत्ति स्त्री [दे] आदेश, हुकुम । तत्परता। बहकर आता हुआ काष्ठ समूह । चिन्ता-विचार । वार्ता, बात । कार्य-प्रयोजन। तप्पक्खिअ वि [तत्पाक्षिक] उस पक्ष का । तत्तिय वि तावत्] उतना ।
तप्पज्ज न [तात्पर्य] मतलब । तत्तिल । वि [दे] तत्पर ।
तप्पण न [तर्पण] सत्तू । स्त्रीन. तृप्ति-करण, तत्तिल्ल )
प्रीणन । स्निग्ध वस्तु से शरीर की मालिश । तत्तु (अप) देखो तत्थ - तत्र ।
तप्पणग न [दे] जैन-साधु का पात्र-विशेष, तत्तु डिल्ल न [दे] सम्भोग ।
तरपणी। तत्तरिअ वि [दे] रञ्जित ।
तप्पणाडुआलिआ स्त्री [दे] सक्तुमिश्रित
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४२२
भोजन ।
पभि अ [ तत्प्रभृति ] तबसे लेकर । तप्पर व [ तत्पर] आसक्त |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तप्पुरिस पुं [ तत्पुरुष ] व्याकरण- प्रसिद्ध
समास - विशेष |
तब्भत्तिय वि [ तद्भक्तिक ] उसका सेवक । तब्भव पुं [ तद्भव ] वही जन्म, इस जन्म के समान पर जन्म । 'मरण न वह मरण जिससे इस जन्म के समान ही परलोक में भी जन्म हो, यहाँ मनुष्य होने से आगामी जन्म में भी जिससे मनुष्य हो ऐसा मरण । तब्भारिय पुं [तद्भार्य ] दास,
नौकर, कर्म
चारी ।
भारिपुं [तद्भारिक ] ऊपर देखो । तब्भूमवि [ तद्भौम] उसी भूमि में उत्पन्न । तभत्ति अ [ दें] शीघ्र ।
तम अक [तम्] खेद करना । सक. इच्छा
करना ।
पुं [दे] अफसोस ।
'तम
तम पुंन [तमस् ] अन्धकार | अज्ञान । पुं. सातवीं नरक-पृथिवी का जीव । तमप्पभा स्त्री [तमप्रभा] सातवीं नरक पृथिवी । 'तमा स्त्री . सातवीं नरक - पृथिवी । तिमिर न अन्धकार | अज्ञान । अन्धकार - समूह । पभा स्त्री [प्रभा] छठवीं नरक- पृथिवी ।
तमंग पुं [तमङ्ग] मतवारण, घर का वरण्डा,
छज्जा ।
तमंधयार पुं [तमोन्धकार ] प्रबल अन्धकार | तमण न [ दे] चूल्हा |
तमणि पुंस्त्री [ दें] हाथ । भूर्ज, भोजपत्र 1 तमय पुं [तमक] चौथी या पाँचवीं नरक भूमि
का एक नरक स्थान ।
तमस न [तमस् ] अन्धकार |
तमस वि [ तामस ] अन्धकारवाला |
तमस देखो तम =
रात ।
तमा स्त्री. छठवीं नरक - पृथिवी । अधोदिशा । तमासक [ भ्रमय् ] घुमाना, फिराना । तमाल पुं. वृक्ष - विशेष । न तमाल वृक्ष का फूल ।
मिस पुं [तमिस्र ] पाँचवें नरक का एक नरक-स्थान | न. अन्धकार | 'गुहा स्त्री. गुफा - विशेष |
तप्पभि-तयाणि
तमिसंधयार पुं [ तमिस्रान्धकार ] घोर
अंधेरा ।
तमिस्स देखो तमिस ।
तमी स्त्रो. रात ।
तमुकाय देखो तमुक्काय ।
तमुक्काय पुं [तमस्काय] अन्धकार- प्रचय | तमुय वि [ तमस् ] जन्मान्ध । अत्यन्त अज्ञानी । तमोकसिवि [ तमः काषिक ] प्रच्छन्न क्रिया करनेवाला |
तम् अक [तम्] खेद करना । तम्म देखो तम = तम् । तम्मण व [ तन्मस् ] तल्लीन ।
तम्मय वि [ तन्मय ] तल्लीन, तत्पर । उसका विकार | तम्मिन [ दे] वस्त्र ।
तय वि [ तत] विस्तार युक्त | न. वाद्य विशेष । तय न [य] तीन का समूह । तय देखो तया = तदा । भिइ अ [प्रभृति] तब से |
तया अ [तदा] उस समय ।
तया स्त्री [त्वच् ] छाल, चमड़ी | दालचीनी | 'मंत वि [ मत्] त्वचा वाला । विस पुं [विष] सर्प की एक जाति ।
तयानंतर न [ तदनन्तर] उसके बाद ।
तयाणि
अ [तदानीम् ] उस समय ।
तमस् । तमस्सई स्त्री [तमस्वती ] घोर अन्धकारवाली | तयाणि
तय देखो तथा = त्वच् । 'क्खाय वि [' खाद ] त्वचा को खानेवाला ।
}
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तयाणुग-तलवोंट
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष तयाणुग वि [तदनुग] उसका अनुसरण करने- तरा स्त्री [त्वरा] जल्दी, शीघ्रता। वाला।
' तरिअव्व न [दे] उडुप, एक तरह की छोटी तर अक [त] कुशल रहना । सक. तैरना। नौका । तर अक [त्वर] त्वरा होना, तेज होना। तरिउ वि [तरीत] तैरनेवाला । तर अक [शक] समर्थ होना, सकना । ।तरिया स्त्री [दें] मलाई । तर न [तरस्] वेग । बल, पराक्रम । मल्लि । तरिहि अ [तहि] तो, तब । वि. वेगवाला । बलवाला । मल्लिहायण वि तरी स्त्री. नौका डोंगी। [ मल्लिहायन] तरुण, युवा।
रुपं.पेड़। तरंग पुं [तरङ्ग] कल्लोल, लहर । °णंदण तरुण वि. जवान । न [°नन्दन] नृप-विशेष । °मालि पुं तरुणग । वि [तरुणक] बालक, किशोर। [°मालिन्] समुद्र । 'वई स्त्री [°वती] एक | तरुणय , नवीन, नया । नायिका । कथा ग्रन्थ-विशेष ।
तरुणरहस पुंन [दे] बीमारी । तरंगलोला स्त्री [तरङ्गलोला] बप्पभट्टिसूरि- तरुणिम पुंस्त्री [तरुणिमन्] यौवन ।
कृत एक अद्भुत प्राकृतिक जैन कथा-ग्रन्थ । तल सक [तल्] तलना, तेल आदि में भूनना । तरंगिणी स्त्री [तरङ्गिणी] नदी । तल न [दे] बिछौना । गाँव का मुखिया । तरंगिणीनाह पुं तरङ्गिणीनाथ] समुद्र । तल पुं. ताड़ का पेड़ । न. स्वरूप । हथेली । तरंड पुंन तरण्ड] डोंगी, नौका ।
तला, भूमिका । अधोभाग, नीचे । हाथ । मध्य तरग वि [तर, °क] तैरनेवाला ।
खण्ड । तलवा, पानी के नीचे का भाग या तरच्छ पुंस्त्री [तरक्ष] श्वापद जन्तु-विशेष,
सतह । °ताल पुंन. हस्त-ताल । वाद्य-विशेष । व्याघ्र की एक जाति । °भल्ल पुंस्त्री. श्वापद
°प्पहार पुं [प्रहार] तमाचा, चपेटा । जन्तु-विशेष ।
भंगय न [°भङ्गक] हाथ का आभूषण
विशेष । वट्ट न [°पट्ट] बिछौने की चद्दर । तरट्ट वि [दे] प्रगल्भ, धृष्ट, समर्थ, चतुर,
वट्ट न [°पत्र] ताड़ का पत्ता। हाजिरजवाब ।
तल पुंन. वाद्य-विशेष । हथेली । ताल वृक्ष की तरट्टा ) स्त्री [दे] प्रगल्भ स्त्री, प्रौढा ।
पत्ती । वर पुं. राजा ने प्रसन्न होकर जिसको तरट्टी । नायिका, होशियार स्त्री।
रत्न-जटित सोने का पट्टा दिया हो वह । तरण न. तैरना । जहाज, नौका ।
तलअंट सक [भ्रम्] भ्रमण करना, फिरना । तरणि पुं. सूर्य । जहाज, नौका । घृतकुमारी
तलआगत्ति पुं [दे] कूप, इनारा । का पेड़, घीकुआर का पेड़ । अर्क-वृक्ष ।
तलओडा स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष । तरतम वि. न्यूनाधिक ।
तलप्प अक [तप्] तपना, गरम होना । तरल वि. चञ्चल, चपल ।
तलप्फल पुं [दे] शालि, व्रीहि, धान । तरल सक [तरलय] चञ्चल करना, चलित
तलवत्त पुं [दे] कान का आभूषण-विशेष । करना । हिलाना।
उत्तमांग। तरवट्ट पुं [दे] वृक्ष-विशेष, चकवड़, पमाड,
तलवर पुं [दे. तलवर] कोतवाल । पवार ।
तलविंट) तरस न [दे] मांस ।
तलवेंट न [तालवृन्त] पंखा । तरसा अ. जल्दी।
| तलवोंट)
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४२४
तलसारिअ वि [] गालित । मुग्ध, मूर्ख । तलहट्ट सक [सिच्] सींचना ।
हट्टिया स्त्री [] पर्वत का मूल, तराई । तलाई स्त्री [तड़ागिका] छोटा तालाब । तलाग न [तड़ाग] तालाब, सरोवर ।
तलाय
तलार पुं [दे] नगर-रक्षक |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तलाक्ख पुं [ दे. तलारक्ष ] ऊपर देखो । तलाव देखो तलाग ।
तलिआ
न [दे] जूता ।
तलिगा
तलिण वि [ तलिन] प्रतल, सूक्ष्म, बारीक । तुच्छ, क्षुद्र | दुर्बल |
तलिम पुंन [ दे] शय्या । कुट्टिम, फरस बन्द जमीन । घर के ऊपर की भूमि । वास भवन । भ्राष्ट्र, भूनने का बरतन । तलिमा स्त्री. वाद्य-विशेष |
तलु देखो तरुण |
तलेर [दे] देखो तला र ।
तल्ल न [ दे] पल्वल, छोटा तालाब । तृणविशेष, बरू | बिछौना ।
तव सक [ तापय् ] गरम करना । तव पुंन [ तपस् ] तपस्या । 'गच्छ पुं. जैन मुनियों की एक शाखा, गण-विशेष । गण पुं. पूर्वोक्त ही अर्थ । 'चरण, चरण न [ चरण] तपः करण । तप का फल, स्वर्ग का भोग | 'चरणि वि [ 'चरणिन् ] तपस्या
तलसारिअ - तव्वन्निग
करनेवाला | देखो तवो' ।
तव देखो थव ।
तव देखो थुण ।
तवग्ग पुं [तवर्ग ] 'त' से लेकर 'न' तक पाँच अक्षर । पविभत्ति न [ प्रविभक्ति ]
नाट्य- विशेष |
सूरज ।
तवण पुं [ तपन ] प्रधान सुभट । न. शिखर - विशेष ।
तवय वि [ दे] व्यापृत, किसी कार्य में लगा हुआ ।
तवय पुं [तपक] तवा, भूनने का भाजन । तवसि [ तपस्विन् ] तपस्या करनेवाला । पं. साधु, मुनि, ऋषि ।
तल्लक पुं. सुरा - विशेष ।
तवस्सि
तल्लड न [ दे] बिछौना ।
तविअ वि [ तापित ] गरम किया हुआ । संतापित ।
तलिच्छवि [दे] तत्पर, तल्लीन । तल्लेस वि [ तल्लेश्य ] तल्लीन, तदातल्लेस्स }
विअवि [तपित] तीसरी नरक-भूमि का एक
सक्त ।
नरक स्थान ।
तल्लोविल्लि स्त्री [दे] तड़फना, व्याकुल तविआ स्त्री [तापिका ] तवा का हाथा । होना ।
देखो त ।
तव अक [तप्] गरम होना । सक. तपश्चर्या तवो देखो तओ ।
करना ।
रावण का एक
तवण पुं [ तपन ] तीसरी नरक - भूमि का एक नरक -स्थान । 'तणया स्त्री ['तनया ] तापी नदी ।
तवणा स्त्री [ तपना ] आतापना । तवणिज्जन [ तपनीय] सुवर्ण । तवणिज्ज पुंन [ तपनीय] एक देव - विमान | तवणी स्त्री [ दे] भक्ष्य भक्षण योग्य कण आदि । धान्य को खेत से काटकर भक्षण- योग्य बनाने की क्रिया । तवा |
तवो° देखो तव = तवस् | 'कम्म न [कर्मन् ] तपः करण | धण पुं [°धन ] ऋषि, मुनि । धर पुं. तपस्वी, मुनि । 'वण न [ 'वन ] ऋषि का आश्रम । तव्वणिय वि [दे] बौद्ध, बुद्ध दर्शन का अनुयायो । तव्वन्निग वि [ दे. तृतीयवर्णिक ] तृतीय आश्रम
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तविह ताइअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४२५ ।
तहि ।
में स्थित ।
| तहं देखो तह = तथा । तव्विह वि [तद्विध] उसी प्रकार का । | तहरी स्त्री [दे] पङ्कवाली सुरा। तस अक [त्रस्] डरना, त्रास पाना। स्पर्श- | तहल्लिआ स्त्री [दे] गोशाला।। इन्द्रिय से अधिक इन्द्रियवाला जीव, द्वीन्द्रिय | तहा देखो तह = तथा । °गय पुं [°गत] आदि प्राणी। एक स्थान से दूसरे स्थान में | मुक्त आत्मा । सर्वज्ञ । 'भूय वि [°भूत] उस जाने-आने की शक्तिवाला प्राणी । 'काइय पुं| प्रकार का। प्रूव वि [°रूप] उस प्रकार [°कायिक] जंगम प्राणी, द्वीन्द्रियादि जीव । । का। वि वि [वित्] निपुण, पुं. सर्वज्ञ ।
काय पुं.त्रस-समूह । जङ्गम प्राणी । णाम न हि अ. वह इस प्रकार । [°नामन्] कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से जीव | तहि देखो तह = तथा । त्रसकाय में उत्पन्न होता है । रेणु पुं. बत्तीस | तहिं । [तत्र] वहाँ, उसमें । हजार सात सौ अड़सठ परमाणुओं का एक | परिमाण । वाइया स्त्री [°पादिका] तहिय वि [तथ्य] सत्य, वास्तविक । त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ।
तहियं अ [तत्र] वहाँ, उसमें । तसण न [त्रसन] स्पन्दन, चलन, हिलन ।
तहेय , अ [तथैव] उसी तरह, उसी प्रकार ।
तहेव । पलायन । तसनाडी स्त्री [त्रसनाडी] त्रस जीवों के रहने
ता अ [तद्] उससे, उस कारण से । का प्रदेश, जो ऊपर-नीचे मिलाकर चौदह
ता देखो ताव - तावत् । रज्जू परिमित है।
ता अतिदा] उस समय । तसर देखो टसर।
ता अ [तहि] तो, तब । तसिअ वि [दे] शुष्क, सूखा ।
ता स्त्री. लक्ष्मी। तसिअ वि [तषित] पिपासित ।
ता स [तद्] वह । °गंध पुं [°गन्ध] उसका तसेयर वि [त्रसेतर] एकेन्द्रिय जीव, स्थावर
गन्ध । उसके गन्ध के समान गन्ध । °फास पुं प्राणी।
[°स्पर्श] उसका स्पर्श । वैसा स्पर्श । रस तह अ [तथा] उसी तरह । और, तथा । पाद- |
पुं. वह स्पर्श । वैसा स्पर्श । °रूव न [रूप]
वैसा रूप । पूर्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय । °क्कार पुं
वो ताव:ताप । [°कार] 'तथा' शब्द उच्चारण । °णाण वि.
| पिता। पुत्र। [°ज्ञान] प्रश्न के उत्तर को जाननेवाला । न. सत्य ज्ञान । °त्ति अ [इति] स्वीकार- ताअ सक [२] रक्षण करना। द्योतक अव्यय । °य अ [°च] उक्त अर्थ की | ताअप्प न [तादात्म्य] तद्रूपता, अभेद, अभिदृढ़ता-सूचक अव्यय । वि अ [°पि] तो भी ।। न्नता । °विह वि [°विध] उस प्रकार का । देखो | ताइ वि [त्यागिन्] त्याग करनेवाला । तहा।
ताइ वि [तायिन्] रक्षक, परिपालक । तह वि [तथ्य] तथ्य, सत्य ।
ताइ वि [तापिन्] ताप-युक्त। तह पुं [तथ] आज्ञाकारक, दास ।
ताइ वि [त्रायिन्] रक्षक । मुनि, साधु । तह । न [तथ्य] स्वभाव, स्वरूप । सत्य | ताइ वि [तायिन्] उपकारी। तहीय , वचन ।
| ताइअ वि [त्रात] रक्षित ।
वह रूप
ताते
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४२६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ताउं-तारिस ताउं (अप) देखो ताव = तावत् ।
तायण न [त्राण] रक्षण । ताठा (चूपै) देखो दाढा।
तायत्तीसग [ त्रायस्त्रिशक ] गुरु-स्थानीय ताड सक [ताडय] ताड़न करना, पीटना। देव-जाति । प्रेरणा करना, आघात करना । गुणाकार तायत्तीसा स्त्री [ त्रयस्त्रिशत् ] तेत्तीः । करना।
तेत्तीस-संख्यावाला। ताड पुं [ताल] ताड़ का पेड़ ।
तार पं. चौथी नरक का एक स्थान । शुद्ध ताडंक पुं ताडङ्क] कुण्डल ।
___ मोती। प्रणव, ओंकार । मायाबीज, 'ह्रीं' ताडिअ वि [ताडित] जिसका ताडन किया अक्षर । तैरना । वि. निर्मल, देदीप्यमान । गया हो वह, पीटा हुआ। जिसका गुणाकार अति ऊंचा स्वर । न. चांदी । पुं. वानरकिया हो वह।
विशेष । °वई स्त्री[°वती] एक राज-कन्या । ताडिअय न दे] रोदन ।
तारंग न [तारङ्ग] तरङ्ग-समूह । ताडी स्त्री. वृक्ष-विशेष ।
तारग वि [तारक] तारनेवाला, पार उतारनेताण न [त्राण] शरण, रक्षणकर्ता ।
वाला । पुं. नृप-विशेष, द्वितीय प्रतिवासुदेव । ताण पुं [तान] संगीत-प्रसिद्ध स्वर-विशेष । सूर्य आदि नव ग्रह । देखो तारय । ताणव न [तानव] कृशता, दुर्बलता। तारगा स्त्री [तारका] नक्षत्र । पूर्णभद्र-नामक ताणिअ वि [तानित] ताना हुआ।
इन्द्र की एक पटरानी । देखो तारया। ताद देखो ताअ = तात ।
तारण न. पार उतारना । वि. तारनेवाला। तादत्थ न [तादर्थ्य] तदर्थभाव, उसके लिए । | तारत्तर पं दे] महतं ।। तादवत्थ न [तादवस्थ्य] स्वरूप का अपभ्रंश तारय देखो तारग । न. छन्द-विशेष । वही अवस्था, अभिन्नरूपता ।
तारया देखो तारगा। आँख का तारा । तादिस देखो तारिस ।
तारा स्त्री. आँख की पुतली। नक्षत्र । सुग्रीव की ताम देखो तम्म = तम् ।
स्त्री । सुभूम चक्रवर्ती की माता। नदी-विशेष । ताम (अप) देखो ताव = तावत् ।
बौद्धों की शासनदेवी। उर न [°पुर] तारंगातामर वि [दे] रम्य, सुन्दर ।
स्थान । °चंद पुं [°चन्द्र] एक राजकुमार । तामरस न. कमल ।
तणय पुं [तनय] वानर-विशेष, अङ्गद । तामरस न[दे]पानी में उत्पन्न होनेवाला पुष्प । | °पह पुं [°पथ] आकाश । पहु पुं [प्रभु] तामलि पुं. एक तापस ।
चन्द्रमा। °मेती स्त्री [°मैत्री] निःस्वार्थ तामलित्ति स्त्री [ ताम्रलिप्ति ] वंगदेश की। मित्रता । °यण न [यन] कनीनिका का प्राचीन राजधानी।
चलना, आँख की पुतली का हिलन । "वइ तामलित्तिया स्त्री [ताम्रलिप्तिका] जैनमुनि | पुं [ °पति ] चन्द्रमा । वंश की एक शाखा ।
तारि वि [तारिन्] तारनेवाला, तारक । तामस न. अन्धकार । अन्धकार-समूह । वि. तारिम वि. तरणीय, तैरने योग्य । तमोगुणवाला । °त्थ न [स्त्र] कृष्ण वर्ण तारिय वि [तारित] पार उतारा हुआ। का वस्त्र-विशेष ।
तारिया स्त्री [तारिका] तारा के आकार की तामहि ) (अप) देखो ताव = तावत् । एक प्रकार की विभूषा, टिकली, टिकिया। तामहि ।
तारिस वि [तादृश] उस तरह का ।
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तारी-तावस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४२७ तारो स्त्री. तारकजातीय देवो । | नर्तक आदि मनुष्य-जाति । तारुअ वि [तारक] तारनेवाला । तालिअंट सक [भ्रमय ] घुमाना, फिराना । तारुण्ण न [तारुण्य] यौवन ।
तालिअंट न [तालवृन्त] व्यजन । ताल देखो ताड = ताडय् ।
तालिअंटिर वि [भ्रमयितु] घुमानेवाला । ताल सक[तालयताला लगाना, बन्द करना । | तालिस देखो तारिस । ताल पुं. वृक्ष-विशेष । वाद्य-विशेष, कंसिका। | ताली स्त्री. वृक्ष-विशेष । छन्द-विशेष । °पत्त ताली। चपेटा,तमाचा । वाद्य-समूह। आजीवक | न [°पत्र ताल-वृक्ष के पत्ता का बना हुआ मत का एक उपासक । न. ताला, द्वार बन्द | पंखा। करने की कल । तालवृक्ष का फल । °उड न | तालु न [तालु] तालु, मुँह के अन्दर का ऊपरी [°पूट] तत्काल प्राण-नाशक विष-विशेष ।। भाग। जंघ पुं [जङ्क] नृप-विशेष । वि. ताल को | तालुग्घाडणी स्त्री [ तालोद्घाटनी] ताला तरह लम्बी जाँघवाला । ज्झय [ध्वजा खोलने की विद्या ।। बलदेव । नृप-विशेष । शत्रुञ्जय पहाड । | तालुर पुं [दे] फीण । कपित्थ वृक्ष, कैथ का “पलंब पुं [ °प्रलम्ब ] गोशालक का एक पेड़ । पानी का आवर्त । पुं. पुष्प का सत्व । उपासक । पिसाय पुं[पिशाच] दीर्घकाय | ताव सक [ तापय् ] तपाना, गरम करना । राक्षस । 'पुड देखो °उड। °यर पुं ["चर]| सन्ताप करना, दुःख उपजाना। चारण जाति । विट, विंत, वेंट, 'वोंट | ताव पुं [ताप] गरमी, ताप । सन्ताप, दुःख । न [°वृन्त]पंखा । °संवुड पुं[संपुट] ताल |
सूर्य । दिसा स्त्री दिश्] सूर्य-तापित दिशा। के पत्रों का संपुट, ताल-पत्र-संचय । °सम | ताव मातावद। इन अथा का सूचक अव्ययवि. ताल के अनुसार स्वर, स्वर-विशेष । |
तबतक । प्रस्तुत अर्थ । अवधारण, निश्चय । तालंक पुं [ताडङ्क] कुण्डल । छन्द-विशेष ।
अवधि । पक्षान्तर । प्रशंसा । वाक्य-भूषा । तालंकि पुंस्त्री [तालङ्किन छन्द-विशेष ।
मान । साकल्य, सम्पूर्णता । तब, उस समय । तालग न [ तालक ] ताला, द्वार बन्द करने
तावअ वि [तावक] तुम्हारा ।
तावइअ वि [तावत्] उतना । का यन्त्र ।
तावं देखो ताव = तावत् । तालणा स्त्री [ ताडना ] चपेटा आदि का
तावँ । (अप) देखो ताव = तावत् । प्रहार। तालप्फली स्त्री [दे] नौकरानी ।
ताहिं ।
तावण पुं तापन] चौथी नरकभूमि का एक तालय देखो तालग।
नरकस्थान। वि.तपानेवाला । न. गरम करना, तालसम न. गेय काव्य का एक भेद ।
तपाना । पुं. इक्ष्वाकु वंश का एक राजा । तालहल पुंदे] शालि, व्रीहि ।
तावत्तीस ) ताला अ [तदा] उस समय ।
तावत्तीसग देखो तायत्तीसय । ताला स्त्री [दे] खोई, धान का लावा । तालाचर पुं [तालचर] ताल (वाद्य) बजाने
तावत्तीसा देखो तायत्तीसा। वाला।
तावस पुं तापस] तपस्वी, योगी, संन्यासीतालाचर । पुं [ तालाचर ] प्रेक्षक-विशेष, |
__ विशेष । एक जैनमुनि । गेह न. तापसों का तालायर ताल देनेवाला प्रेक्षक । नट, । मठ ।
तावत्तीसय ,
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४२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तावसा-ति तावसा स्त्री [तापसा] जैन मुनियों की एक संयमी । गोण वि[°कोण] तीन कोनेवाला । शाखा।
°चत्ता स्त्री [ °चत्वारिंशत् ] तैंतालीस । तावसी स्त्री [तापसी] तपस्वनी, योगिनी।। जय न [°जगत्] स्वर्ग, मर्त्य और पाताल ताविआ स्त्री [ तापिका ] तवा, पूआ आदि लोक । °णयण पुं [°नयन] महादेव । °तुल
पकाने का पात्र । कड़ाही, छोटा कड़ाह । देखो °उल । 'त्तिस (अप) देखो °त्तीस । ताविच्छ पुन [तापिच्छ] तमाल का पेड़ ।। °त्तीस स्त्रीन [त्रयस्त्रिंशत् ] तावी स्त्रो [तापी] नदी-विशेष ।
संख्या-विशेष । तेतीस संख्यावाला, तेतीस । तास पूं [त्रास] भय । उद्वेग, सन्ताप । °दंड न [ दण्ड] हथियार रखने का उपतासण वि [त्रासन] त्रास उपजानेवाला। करण । तीन दण्ड । दंडि पुं [°दण्डिन्] तासि वि [त्रासिन्] त्रास-युक्त, त्रस्त । त्रास- संन्यासी, सांख्य मत का अनुयायी साधु । जनक ।
नवइ स्त्री [°नवति] तिरानबे । तिरानबे तासिअ वि [त्रासित] जिनको त्रास उपजाया संख्यावाला । पंच त्रि. ब. [°पञ्चन्] पन्द्रह । गया हो वह ।
°पंचासइम वि [पञ्चाश] त्रिपनवां । °पह ताहे अ [तदा ।
न [°पथ] जहाँ तीन रास्ते एकत्रित होते हों ति अ [त्रिः] तीन बार।
वह स्थान | °पायण न [°पातन] शरीर, ति देखो तइअ = तृतीय । भाग, भाय,
इन्द्रिय और प्राण इन तीनों का नाश । मन, हाअ पुं [ भाग] तीसरा हिस्सा ।
वचन और काया का विनाश । °पुंड न ति देखो थी।
[पुण्ड्र] तिलक-विशेष । 'पुर पुं. दानवति त्रि.ब. [त्रि] तीन । 'अणुअ न [°अणुक]
विशेष । न. तीन नगर । पुरा स्त्री. विद्या
विशेष । 'भंगी स्त्री [भङ्गी] छन्द-विशेष । तीन परमाणुओं से बना हुआ द्रव्य । °उण वि [गुण] तीनगुना । सत्त्व, रजस् और तमस्
°महुर न [°मधुर] घी, शक्कर और मधु । गुणवाला । उणिय वि[“गुणित] तीनगुना ।
°मासिआ स्त्री [त्रैमासिकी] जिसकी अवधि °उत्तरसय वि [ उत्तरशततम] १०३ वाँ ।
तीन मास की है ऐसी एक प्रतिमा, व्रत°उल वि ['तुल] तीन को जीतनेवाला।
विशेष । मुह वि [°मुख] तीन मुखवाला। तीन को तौलनेवाला । ओय न [°ओजस्]
पुं. भगवान् सम्भवनाथजी का शासन-देव । विषम राशि-विशेष । °कंड, कंडग वि
°रत्त न [ रात्र] तीन रात । रासि न [°काण्ड, °क] तीन काण्डवाला, तीन भाग
[राशि] जीव, अजीव और नोजीव रूप वाला । °कडुअ न [°कटुक] सोंठ, मरीच
तीन राशियाँ । 'लोअ न [°लोकी] स्वर्ग, और पीपल । °करण देखो °गरण । काल
मर्त्य और पाताल-लोक । लोअण पुं न. भूत, भविष्य और वर्तमान काल । 'क्काल
[°लोचन] शिव । 'लोअपुज्ज पुं [लोकपूज्य] देखो °काल। °खंड वि[°खण्ड] तीन खण्ड
धातकीषण्ड के विदेह में उत्पन्न एक जिनदेव । वाला । °खंडाहिवइ पुं [°खण्डाधिपति °लोई स्त्री [ °लोकी ] देखो °लोअ। अर्धचक्रवर्ती राजा, वासुदेव । गडु, गडुअ °लोग देखो °लोअ । °वई स्त्री [ °पदी] देखो °कडुअ । 'गरण न [°करण] मन, | तीन पदों का समूह । भूमि में तीन बार वचन और काया । गुण देखो °उण । °गुत्त पांव का न्यास । गति-विशेष । 'वग्ग वि [°गुप्त] मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तिवाला, | पुं[°वर्ग] धर्म, अर्थ और काम ये तीन
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ति-तिइक्ख
बनवाया
।
पुरुषार्थ । लोक, वेद और समय इन तीन का वर्ग । सूत्र, अर्थ और उन दोनों का समूह । 'वण पुं [पर्ण] पलाश वृक्ष | 'वरिस वि [ वर्ष] तीन वर्ष की अवस्थावाला । ' वलि स्त्री. चमड़ी की तीन रेखाएँ । 'वलिय वि ['वलिक] तीन रेखावाला । 'वली देखो 'वलि। 'वट्ठपुं [° पृष्ठ] भरतक्षेत्र के भावी नवम वासुदेव । 'वय न [[पद ] तीन पाँववाला | वह स्त्री [पथगा ] गंगा नदी । 'वायणा स्त्री [ 'पातना ] देखो 'पायण । 'वि, विट्ठपुं [पृष्ठ, विष्टु] भरत क्षेत्र में उत्पन्न प्रथम अर्ध चक्रवर्ती राजा का नाम । विह वि [ "विध ] तीन प्रकार का । विहार पुं. राजा कुमारपाल का हुआ पाटण का एक जैन मन्दिर [°शङ्कु] सूर्यवंशीय एक राजा । [ सन्ध्य ] प्रभात, मध्याह्न और सायंकाल का समय । °सट्ट वि [°षष्ट] ६३ वाँ | °सट्ठि [° षष्टि] तिरसठ । ° सत्त त्रि. ब. [ सप्तन्] एक्कीस । 'सत्तखुत्तो अ [ ° सप्तकृत्वस् ] एक्कीस बार । 'समइय वि ['सामयिक ] तीन समय में उत्पन्न होनेवाला, तीन समय की अवधि वाला | 'सरय न ['सरक] तीन सरा या लड़ीवाला हार । वाद्य विशेष । 'सरा स्त्री. मच्छली पकड़ने का जाल विशेष । 'सरियन [° सरिक ] तीन सरा या लड़ी वाला हार । वाद्य - विशेष । वि. वाद्यविशेष सम्बन्धी । 'सीस पुं [ " शीर्ष ] देवविशेष | 'सूल न [ 'शूल शस्त्र - विशेष | सूपाणि पुं [ शूलपाणि] महादेव । त्रिशूल को हाथ में रखनेवाला सुभट । ° सूलिया स्त्री [° शूलिका ] छोटा त्रिशूल । हत्तर वि[सप्तत] ७३वाँ । 'हा अ [धा] तीन प्रकार से । हुअण, हुण, हुवण न [भुवन ] तीन जगत्-स्वर्ग मर्त्य और पाताल लोक । पुं. राजा कुमारपाल के पिता का
]
|
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संकु पुं 'संझन
४२९
नाम | हुअणपाल पुं ['भुवनपाल] राजा कुमारपाल का पिता । 'हुअणालंकार पुं [भुवनालंकार ] रावण के पट्टहस्ती का नाम । हुणविहार पुं [भुवनविहार ] पाटण (गुजरात) में राजा कुमारपाल का बनवाया हुआ एक जैन मन्दिर | देखो ते' । °ति देखो इअ = इति ।
तिअ (अप) अक [तिम्, स्तिम् ] आर्द्र होना । सक. आर्द्र करना ।
तिअ न [त्रिक ] तीन का समुदाय । वह जगह जहाँ तीन रास्ते मिलते हों । 'संजअ पुं [ संयत ] एक राजर्षि । देखो तिग । तिअ वि [त्रिज] तीन से उत्पन्न होनेवाला | तिअंकर पुं [त्रिकंकर ] एक जैनमुनि । तिअग न [त्रिकक] तीन का समुदाय । तिअडा स्त्री [त्रिजटा ] एक राक्षसी । तिअय न [त्रितय ] तीन का समूह । तिअभंगी स्त्री [त्रिभङ्गी ] छन्द- विशेष । तिअलुक्क न [ त्रैलोक्य ] तीन जगत्तिअलोय / स्वर्ग, मर्त्य और पाताल लोक । तिअस पुं [त्रिदश ] देव | गअ पुं ['गज] ऐरावत या ऐरावण, इन्द्र का हाथी । नाह पुं [नाथ] इन्द्र |पहु पुं [प्रभु ] इन्द्र, देव-नायक | रिसि पुं [ऋषि] नारद मुनि | लोग पुं [लोक] स्वर्ग | विलया स्त्री ['वनिता] देवी । 'सरि स्त्री [°सरित् ] गंगा नदी । सेल पुं ['शैल] मेरु पर्वत । लय पुंन. स्वर्ग । हिव पुं [प] इन्द्र | हिवइ पुं [धिपति ]
इन्द्र |
तिअससूरि पुं [त्रिदशसूरि] बृहस्पति । तिअसिंद पुं [त्रिदशेन्द्र ] देव-पति । तिअसेंद
तिअसीस पुं [त्रिदशेश ] देव-नायक । तिआमा स्त्री [ त्रियामा] रात्रि । तिइक्ख सक [ तितिक्ष्] सहन करना ।
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४३०
तिक्खा स्त्री [तितिक्षा ] क्षमा, सहिष्णुता । तिइज्ज । वि [ तृतीय] तीसरा । तिइय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तिउक्खर न [त्रिपुष्कर ] वाद्य-विशेष । तिउट्ट सक [ त्रोटय् ] तोड़ना ।
परित्याग
करना ।
तिउट्ट अक [ त्रुट् ] टूटना | मुक्त होना । तिउट्ट वि [ त्रुट्ट, त्रुटित ] टूटा हुआ । अपसृत । तिउड पुं [दे] कलाप, मोर- पिच्छ । तिउडग पुंन [त्रिपुटक] धान्य- विशेष । तिउडय न [ दे] मालव देश में प्रसिद्ध धान्यविशेष | लवङ्ग ।
तिउर न [त्रिपुर ] एक विद्याधर नगर । पुं. असुर - विशेष । णाह पुं [नाथ] वही । तिउरी स्त्री [त्रिपुरी ] नगरी - विशेष |
तिमिच्छायण न [ चिकित्सायन ] नक्षत्र - गोत्र
विशेष |
तिगिच्छि स्त्री [ दे] पराग । तितवि [तीमित] भीजा हुआ । तितिण
तितिणिय
वि [दे] बड़बड़ करनेवाला, वाञ्छित लाभ न होने पर खेद से मन में जो आवे सो बोलनेवाला ।
तिइक्खा - तिमिच्छा
तिकूड पुं [ त्रिकूट ] लंका का समीपवर्ती सुवेल पर्वत । शीता महानदी के दक्षिण किनारे पर स्थित पर्वत- विशेष । 'सामिय पुं ['स्वामिन् ] सुवेल पर्वत का स्वामी, रावण । तिक्ख वि [ तीक्ष्ण] तेज, पैना । सूक्ष्म । चोखा, शुद्ध । पुरुष, निष्ठुर । वेग-युक्त, क्षिप्र-कारी । क्रोधी, गरम प्रकृतिवाला । तीता, कडुवा । उत्साही । आलस्य रहित । चतुर । न. जहर । लोहा । युद्ध । हथियार । समुद्रका नोन । यवक्षार । श्वेतकुष्ठ | ज्योतिष-प्रसिद्ध तीक्ष्ण गण, यथा अश्लेषा, आर्द्रा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र ।
तिक्खाल सक [तीक्ष्णय् ] तीक्ष्ण करना ।
तिउल वि [दे] मन, वचन और काया को तिक्खुत्तो अ [त्रिस्] तीन बार ।
पीड़ा पहुँचानेवाला; दुःख का हेतु । तिऊड देखो तिकूड |
तिंगिआ स्त्री [ दे] कमल-रज ।
तिंगिच्छ देखो तिगिच्छ ।
तिक्ख सक [ तीक्ष्णय् ] तीक्ष्ण करना । तेज करना । उत्तेजित करना ।
तिग देखो तिअ = त्रिक । 'वस्सि वि [° वशिन् ] मन, वचन और शरीर को काबू में रखनेवाला ।
तिगसंपुण्ण न [त्रिकसंपूर्ण ] लगातार तीस दिन का उपवास ।
तिगिछ पुं [तिगिञ्छ] द्रह-विशेष । तिगिंछायण न [तिगिञ्छायन] गोत्र - विशेष । तिगिछि पुं [तिगिञ्छि ] पर्वत- विशेष | निषेध पर्वत पर स्थित एक हद । तिगिच्छ सक [चिकित्स्] प्रतीकार करना,
इलाज करना ।
तितिणी स्त्री [तिन्त्रिणी] इमली का पेड़ । तिगिच्छ पुं [चिकित्स] वैद्य ।
तितिणी स्त्री [] बड़बड़ाना | तिदुइणी स्त्री [तिन्दुकिनी] वृक्ष- विशेष । तिदुग [तिन्दुक ] तेंदू का पेड़ । न. तिंदुयफल-विशेष | श्रावस्ती नगरी का एक उद्यान । त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति । तिंदूस पुंन [तिन्दूस क] वृक्ष-विशेष | तिंदूसग
} गेंद 1 क्रीड़ा-विशेष |
तिकल्लन [ त्रैकाल्य ] तीनों काल का विषय ।
तिगिच्छ पुं. निषेध पर्वत पर स्थित एक द्रह | न. देवविमान - विशेष ।
तिगिच्छ न [ चैकित्स] चिकित्सा शास्त्र । तिमिच्छा वि [चिकित्सक ] प्रतीकार तिमिच्छय करनेवाला । पुं. वैद्य । तिमिच्छय न [ चैकित्स्य ] चिकित्सा-कर्म | तिमिच्छा स्त्री [चिकित्सा ] प्रतीकार, दवा | सत्थन ['शास्त्र ] आयुर्वेद, वैद्यक
इलाज,
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तिगिच्छायण-तित्थ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४३१ शास्त्र।
तितय देखो तिअय। तिगिच्छायण न [तिगिच्छायन] गोत्र-विशेष । तितिक्ख देखो तिइक्ख । तिगिच्छि देखो तिगिछि।
तित्त वि [तृप्त] सन्तुष्ट, खुश । तिगिच्छिय पुं [चैकित्सिक] वैद्य । ! तित्त वि [तिक्त] कडुआ। पुं. तीता रस । तिग्ग वि [तिग्म] तीक्ष्ण, तेज ।
तित्ति देखो तत्ति = दे । तिग्घ वि [त्रिघ्न] तीन-गुना ।
तित्ति स्त्री [तृप्ति] सन्तोष । तिचूड पुं [त्रिचूड] विद्याधर वंश का एक तित्ति [दे] तात्पर्य, सार । राजा।
तित्तिअ वि [तावत्] उतना । तिजड पुं [त्रिजट] विद्याधर वंश का एक तित्तिअ पुं [तित्तिक] म्लेच्छ देश-विशेष । उस राजा । राक्षस वंश का एक राजा।
देश में रहनेवाली म्लेच्छ जाति । देखो तिजामा। स्त्री [त्रियामा] रात्रि । तिण्णिअ । तिजामी ।
तित्तिर । पुं [तित्तिरि] तीतर या तिज्ज वि [तार्य] तैरने-योग्य ।
तित्तिरि । तित्तिर। तिड्ड पुंस्त्री [दे] अन्न-नाश करनेवाला कीट । तित्तिरिअ वि [दे] स्नान से आई । तिड्डव सक [ताडय] ताड़न करना। तित्तिल वि [तावत्] उतना । तिण न [तृण] घास । °सूय न [°शूक] तृण तित्तिल्ल पुं [दे] प्रतीहार । का अग्र भाग । हत्थय पु[हस्तक] घास तित्तुअ वि [दे] भारी । का पूला।
तित्तुल (अप) देखो तित्तिल । तिणिस पुं [तिनिश] वृक्ष-विशेष, बेंत ।
तित्थ पुं [त्रिस्थ] साधु, साध्वी, श्रावक और तिणिस न [दे] मधपुड़ा।
श्राविका का समुदाय, जनसंघ । तिणिस वि [तैनिश] तिनिश-वृक्ष-सम्बन्धी,
तित्थ पुं [त्र्यर्थ] ऊपर देखो। बेंत का। तिणीकय वि [तृणीकृत] तृण-तुल्य माना
तित्थ न [तीर्थ प्रथम गणधर । दर्शन, मत । यात्रा-स्थान, पवित्र जगह । प्रवचन, शासन,
जिन-देव प्रणीत द्वादशाङ्गी। पुंन. अवतार, तिण्ण । अक [तिम्] आर्द्र होना । सक.
घाट, नदी वगैरह में उतरने का रास्ता । तिण्णाइअ ) आर्द्र करना।
°कर, °गर देखो °यर। °जत्ता स्त्री तिण्ण वि [तीर्ण] पार पहुँचा हुआ। समर्थ ।।
[ यात्रा] तीर्थ-गमन । °णाह पुं[°नाथ] तिण्ण न [स्तैन्य] चोरी।
जिन-देव । 'यर वि [°कर] तीर्थ का प्रवतिण्ण° देखो ति = त्रि । °भंग वि [भङ्ग]
तक । पुं. जिन-देव, जिन भगवान् । यरणाम त्रि-खण्ड, तीन खण्डवाला। °विह वि
न [°करनामन्] कर्म-विशेष जिसके उदय से [°विध] तीन प्रकार का ।
जीव तीर्थकर होता है। °राय पुं [ राज] तिण्णिअ पुं [तिन्निक] देखो तित्तिअ = जिन-देव । सिद्ध पुं. तीर्थ-प्रवृत्ति होने पर जो तित्तिक ।
मुक्ति प्राप्त करे वह जीव । °ाहिनायग पुं तिण्ह देखो तिक्ख ।
[धिनायक] जिनदेव । पहिव पुं [°ाधिप] तिण्हा देखो तोहा।
संघनायक, जिन-देव । हिवइ [धिपति] तितउ पुं. चालनी या चलनी।
जिनदेव, जिन भगवान् ।
हुआ।
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४३२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष तित्थंकर-तिरिच्छ तित्थंकर पुं तीर्थङ्कर] देखो तित्थ-यर । । तिमिरिच्छ पुं [दे] करंज का पेड़ । तिथि वि [तीथिन्] दार्शनिक, दर्शन-शास्त्र | तिमिरिस दे] वृक्ष-विशेष ।
का विद्वान् । किसी दर्शन का अनुयायी। तिमिल स्त्रीन. वाद्य-विशेष । तिथिअ वि [तीथिक] ऊपर देखो। तिमिस पुं [तिमिष] एक प्रकार का पौधा, तित्थीय वि [तीर्थीय] ऊपर देखो। | पेठा, कुम्हड़ा। तित्थेसर पुं तीर्थेश्वर] जिन भगवान् । तिमिसा । स्त्री [तिमिस्रा] वैताढ्य पर्वत तिदस देखो तिअस ।
तिमिस्सा ) की एक गुफा । तिदिव न [त्रिदिव] स्वर्ग ।
तिम्म अक [स्तीम्] भीजना, आर्द्र होना। तिध (अप) देखो तहा।
तिम्म सक [तिम्] आर्द्र करना। अक. गीला तिन्न वि [दे] स्तीमित, आर्द्र ।
होना। तिपन्न देखो ते-वण्ण ।
तिम्म देखो तिग्ग। तिप्प सक [तिप्] देना।
तिया स्त्री [स्रिका] महिला। तिप्प अक [तृप्] तृप्त होना।
तियाल देखो ते-आलीस । तिप्प सक [तर्पय] तृप्त करना ।
तिरक्कर सक[तिरस् + कृ] तिरस्कार करना, तिप्प अक [तिप्] झरना, चूना। अफसोस | अवधीरणा करना।
करना । रोना । सक. सुखच्युत करना। | तिरक्करिणी । स्त्री [तिरस्करिणी तिप्प पुन [प] अपान आदि धोने की क्रिया, | तिरक्खरिणी , परदा । शौच ।
तिरक्कार पुं तिरस्कार] तिरस्कार, अपमान तिप्प वि [तृप्त] सन्तुष्ट, खुश ।
अवहेलना। तिप्पण न [तेपन] पीड़न, हैरानी। तिरच्छ देखो तिरिच्छ। तिप्पणया स्त्री [तेपनता] रोदन । तिरि । अ [तिर्यक्] तिरछा, टेढ़ा । तिप्पाय न [त्रिपाद] तप-विशेष, नीवी ।
तिरिअं । तिम (अप) देखो तहा।
तिरिअ वि [तैरश्च] तियंच का । तिमि पुं. मत्स्य की एक जाति ।
तिरिअ । वि [तिर्यच्] वक्र, कुटिल, तिमिगिल [दे] मत्स्य, मछली, तिमि (मत्स्य)
| तिरिअंच । बाँका । पुं. पशु, पक्षी आदि को निगलने वाला मत्स्य ।
तिरिक्ख । प्राणी, देव, नारक और मनुष्य तिमिगिल पुं[तिमिङ्गिल] मत्स्य की एक | तिरिच्छ । से भिन्न योनि में उत्पन्न जन्तु ।
जाति । °गिल पुं. बड़ी भारी मछली। मर्त्यलोक, मध्य लोक। न. मध्य । °गइ स्त्री तिमिगिलि पुं [तिमिङ्गिल] मत्स्य की एक | [गति] तिर्यग-योनि । टेढ़ी चाल । जंभग जाति ।
पुं [°जृम्भक] देवों की एक जाति । जोणि तिमिगिल देखो तिमिगिल = तिमिङ्गिल। स्त्री [°योनि] पशु, पक्षी आदि का उत्पत्तितिमिच्छय । पुं[दे] मुसाफिर । स्थान । °जोणिअ वि [ योनिक] तिर्यग्तिमिच्छाह ,
योनि में उत्पन्न । °जोणिणी स्त्री [°योनिका तिमिण न [दे] गीला काष्ठ ।
तिर्यग्-योनि में उत्पन्न स्त्री जन्तु, तिर्यक् स्त्री। तिमिर न. अंधेरा । निकाचित कर्म । अल्प °दिसा दिसि स्त्री [°दिश्] पूर्व आदि ज्ञान । अज्ञान । पुं. वृक्ष-विशेष ।
दिशा । °पव्वय पुं [°पर्वत] बीच में पड़ता
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तिरिच्छ-तिब्ब
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पहाड़, मार्गावरोधक पर्वत । °भित्ति स्त्री. | तिलग । पुं[तिलक] वृक्ष-विशेष । पहला बीच की भीत । °लोग पुं [°लोक] मर्त्य | तिलय , प्रतिवासुदेव । द्वीप-विशेष । समुद्रलोक । °वसइ स्त्री [°वसति] तिर्यग्-योनि । विशेष । न. पुष्प-विशेष । टीका, ललाट में तिरिच्छ वि [तिरश्चीन]तिर्यग् गत, टेढ़ा गया किया जाता चन्दन आदि का चिह्न। एक हुआ। तिर्यग-सम्बन्धी ।।
विद्याधर-नगर। तिरिच्छि देखो तिरिअ।
| तिलगकरणी स्त्री तिलककरणी]तिलक करने तिरिच्छिय देखो तेरिच्छिय ।
की सलाई । गोरोचना, पीले रंग का एक तिरिच्छी स्त्री [तिरश्ची] तिर्यक्-स्त्री।
सुगन्धित द्रव्य जो गाय के पित्ताशय से निकतिरिड पुंदे] तिमिर वृक्ष ।
लता है। तिरिडिअ वि [दे] तिमिर-युक्त । विचित ।
तिलबट्टी स्त्री [तिलपर्पटी] तिल की बनी हुई तिरिडि पं दे] गरम पवन ।
एक खाद्य वस्तु तिलपट्टी। तिरिश्चि (मा) देखो तिरिच्छि।
तिलितिलय पुं [दे] जल-जन्तु-विशेष । तिरीड पुन [किरीट] मुकुट ।
तिलिम स्त्रोन [दे] वाद्य-विशेष । तिरीड पुं [तिरीट] वृक्ष-विशेष । 'पट्टय न
तिलुक न [त्रैलोक्य] स्वर्ग, मर्त्य और पाताल
लोक। [°पट्टक] वृक्ष-विशेष की छाल का बना हुआ कपड़ा।
तिलुत्तमा देखो तिलोत्तमा। तिरोभाव पुं. अन्तर्धान ।
तिलेल्ल न [तिलतैल] तिल का तेल । तिरोवइ वि [दे] वृति से अन्तहित, बाड़ से
तिलोक्क देखो तिलुक्क । व्यवहित ।
तिलोत्तमा स्त्री. एक स्वर्गीय अप्सरा । तिरोहा सक [तिरस् +धा] अन्तहित करना,
तिलोदग । न तिलोदक] तिल का धोवनलोप करना, अदृश्य करना ।
तिलोदय । जल । तिरोहिअ वि [तिरोहित] लुप्त, अन्तहित,
तिल्ल न तैल] तेल। अदृश्य, आच्छादित ।
तिल्ल न. छन्द-विशेष । तिल पुं.तिल । ज्योतिष्क देव-विशेष,ग्रह-विशेष।
| तिल्लग वि [तैलक] तेल बेचनेवाला । °कुट्टी स्त्री. तिल की बनी हुई एक भोज्य
तिल्लहडी स्त्री [दे] गिलहरी । वस्तु, तिलकुट । पप्पडिया स्त्री [°पर्पटिका]
तिल्लोदा स्त्री [तैलोदा] नदी-विशेष । तिल की बनी हुई एक खाद्य चीज, तिल
तिवँ (अप) देखो तहा। पापड़ । पुप्फवण्ण पुं [पुष्पवर्ण] ज्योतिष्क
तिवण्णी स्त्री [त्रिवर्णी] एक महौषधि । देव-विशेष, ग्रह-विशेष । मल्ली स्त्री. एक | तिवाय सक [त्रि+ पातय] मन, वचन और खाद्य वस्तु । संगलिया स्त्री [°संगलिका] काय से नष्ट करना, जान से मार डालना । तिल की फली। °सक्कुलिया स्त्री [°शष्कु
तिविक्कम पुं [त्रिविक्रम] जैनमुनि । लिका] तिल की बनी हुई खाद्य वस्तु-विशेष, |
| तिविडा स्त्री [दे] सूची, सूई । तिलखुजिया ।
तिविडी स्त्री [दे] छोटा पुड़वा । तिलइअ वि [तिलकित] तिलक की तरह तिव्व वि [तीव्र] प्रबल, प्रचण्ड, उत्कट । रौद्र, आचरित, विभूषित ।
भयानक । गाढ़ । तिक्तः । उत्तम, प्रकर्ष-युक्त। तिलंग पुं [तिलङ्ग] आन्ध्र प्रान्त । तिव्य वि [दे. तोब] दुःसह । अत्यन्त अधिक ।
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४३४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तिसंथ-तुंब तिसंथ वि [त्रिसंस्थ] तीन बार सुनने से अच्छी तीसगुत्त पुं [तिष्यगुप्त] एक प्राचीन आचार्य
तरह याद कर लेने की शक्तिवाला। विशेष जिसने अन्तिम प्रदेश में जीव की सत्ता तिसला स्त्री [त्रिशला] भगवान महावीर की | का पन्य चलाया था। माता । °सुअ [सुत] भगवान् महावीर ।
| तीसभद्द पुं [तिष्यभद्र] एक जैनमुनि । तिसा स्त्री [तृषा] पिपासा ।
तीसम वि [त्रिंश] तीसवाँ । तिसाइय । वि तृषित] प्यासा । तीसा स्त्री. देखो तीस। तिसिय
तीसिया स्त्री [त्रिंशिका] तीस वर्ष की उम्र तिसिर पु. ब. [त्रिशिरस्] देश-विशेष । पुं. | की स्त्री। नृप-विशेष । रावण का एक पुत्र ।
तु अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-भेद, तिस्सगुत्त देखो तीसगुत्त।
विशेषण । निश्चय । समुच्चय । कारण । तिह (अप) देखो तहा।
पाद-पूरक अव्यय । तिहि पुंस्त्री [तिथि] पञ्चदश चन्द्र-कला से युक्त तुअ सक [तुद्] व्यथा करना, पीड़ा करना । काल, दिन, तारीख ।
तुअर पुं [तुवर] धान्य-विशेष, रहर । तीअ वि तृतीय] तीसरा ।
तुअर अक [त्वर्] जल्दी होना । तीअ नि [अतीत] बीता हुआ । पुं. भूतकाल । | तुंग वि [तुङ्ग] ऊँचा, उच्च । छन्द-विशेष । तीइल पुं [तैतिल] ज्योतिष-प्रसिद्ध करण- | तुंगार पुं [तुङ्गार] अग्निकोण का पवन । विशेष ।
तुंगिम पुंस्त्री [तुङ्गिमन्] ऊंचाई, उच्चत्व । तीमण न [तीमन] कढ़ी।
तुंगिय पुं [तुङ्गिक] ग्राम-विशेष । पर्वततीमिअ वि [तीमित] आर्द्र ।
विशेष । पुंस्त्री. गोत्र-विशेष में उत्पन्न । तीय वि [तैत] तीन ।
तुंगिया स्त्री [तुङ्गिका नगरी-विशेष । तीर अक [शक्] समर्थ होना ।
तुंगियायण न [तुङ्गिकायन] एक गोत्र का तीर सक [तीरय] समाप्त करना, परिपूर्ण नाम । करना।
तुंगी स्त्री [दे] रात्रि । आयुध-विशेष । तीर पुन, किनारा, तट ।
तुंगीय पुं [तुङ्गीय] पर्वत-विशेष । तीरंगम वि. पार-गामी।
तुंड स्त्रीन [तुण्ड] मुख । अग्र-भाग । तीरट्र पुं तीरस्थ, तीरार्थ] साधु, मुनि, | तुंडीर न [दे] मधुर-बिम्बी-फल । श्रवण ।
तुंडूअ पुं [दे] जीर्ण घट, पुराना घड़ा । तीरिया स्त्री [दे] शर या तीर रखने का थैला, | | तुतुक्खुडिअ वि [दे] त्वरा-युक्त । तरकस, तूणीर ।
तुंद न [तुन्द] उदर। तीस न [त्रिंशत् तीस । तीस-संख्यावाला। तुंदिल । वि [तुन्दिल] बड़ा पेटवाला । तीसआ , स्त्री [त्रिंशत्] ऊपर देखो। तुंदिल्ल , तीसइ °वरिस वि [ वर्ष] तीस वर्ष की तुंब न [तुम्ब] तुम्बी, लौकी। गाड़ी की उम्र का।
नाभि । ज्ञाताधर्मकथा सूत्र का एक अध्ययन । तीसइम वि[त्रिंश]तीसवाँ । न. लगातार चौदह पहिये के बीच का गोल अवयव । °वण न दिनों का उपवास ।
[°वन] सन्निवेश-विशेष, एक गाँव का नाम । तीसग वि [त्रिंशक] तीस वर्ष की उम्रवाला।। °वीण वि. वीणा-विशेष को बजानेवाला।
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तुंबरु-तुप्प
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वीणा स्त्री. वाद्य-विशेष । °वीणिय वि तुडिअ न [दे. त्रुटित] वाद्य । बाहु-रक्षक, [°वीणिक वही पूर्वोक्त अर्थ।
हाथ का आभरण-विशेष । संख्या-विशेष तुंबरु देखो तुंबुरु।
'तुडिअंग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो तुंबा स्त्री [तुम्बा] लोकपाल देवों की एक संख्या लब्ध हो वह । सांधा, फटे हुए वस्त्र अभ्यन्तर परिषद् ।
आदि में लगायी जाती पट्टी, पेवन । तुंबाग पुंन [तुम्बक] कद्दू, लौकी । | तुडिअंग न [दे. त्रुटिताङ्ग] संख्या-विशेष, तुंबिणी स्त्री [तुम्बिनी] वल्ली-विशेष । __ 'पूर्व' को चौरासी लाख से गुणने पर जो तुंबिल्ली स्त्री [दे] मधु-पटल । उदूखल । __ संख्या लब्ध हो वह । पुं. वाद्य देनेवाला कल्पतुंबी स्त्री [तुम्बी] अलाबू, लौकी । जैन-साधुओं वृक्ष । का एक पात्र, तपरनी।
तुडिआ स्त्री [तुडिता] लोकपाल देवों के अग्रतुंबुरु पुं [तुम्बुरु] टिंबरू का पेड़ । गन्धर्व | महिषियों की मध्यम परिषद् । देवों की एक जाति । भगवान् सुमतिनाथ का | तुडिआ स्त्री [दे. तुटिका] बाहु-रक्षिका, हाथ शासनाधिष्ठायक देव । शक्रेन्द्र के गन्धर्व-सैन्य | __का आभरण-विशेष । का भधिपति देव-विशेष ।
तुणय पुं [दे] वाद्य-विशेष । तुक्खार पुं [दे] एक उत्तम जाति का अश्व ।
तुण्णग देखो तुण्णाग। देखो तोक्खार।
तुण्णण न [तुन्नन] फटे हुए वस्त्र का सन्धान। तुच्छ पुंस्त्रो [तुच्छा] रिक्ता तिथि, चतुर्थी,
तुण्णाग पुं [तुन्नवाय] वस्त्र को साँधनेनवमी तथा चतुर्दशी तिथि ।
तुण्णाय । वाला, रफू करनेवाला, शिल्पी । तुच्छ वि [दे] सूखा, नीरस ।
| तुण्णिय वि [तुन्नित] रफू किया हुआ, साँधा
हुआ। तुच्छ वि. हलका,जघन्य, निकृष्ट, हीन । अल्प।
तुण्हि अ [तूष्णीम्] मौन, चुपचाप, चुपके से । शून्य, रिक्त । निःसार । अपूर्ण । तुच्छइअ । वि [दे] अनुराग-प्राप्त ।
तुण्हि पुं [दे] सूअर । तुच्छय ।
तुण्हिअ । वि [तूष्णीक] मौन रहा हुआ, चुप तुच्छिम पुंस्त्री [तुच्छत्व] तुच्छता ।
तुण्हिक्क रहनेवाला। तुज्ज न तूर्य] बाजा।
तुम्हि देखो तुण्हि = तूष्णीम् । तुट्ट अक [त्रुट, तुड्] टूटना, छिन्न होना, तुण्हिक्क वि [दे] मृदु-निश्चल । खण्डित होना । घटना, बीतना ।
तुण्हीअ देखो तुण्हि। तुट्र वि [त्रुटित] टूटा हुआ, छिन्न, खण्डित ।
तुत्त देखो तोत्त। तुट्टण न [त्रोटन] विच्छेद, पृथक्करण ।
तुद देखो तुअ। तुट्ठ वि [तुष्ट] सन्तुष्ट, खुश ।
तुद पुं [तोद] अरदार डंडा, चाबुक । तुट्ठि स्त्री [तुष्टि] खुशी, आनन्द, सन्तोष ।
| तुन्नण न [तुन्नन] रफू करना। कृपा, मेहरबानी।
तुन्नार पुं [तुन्नकार] रफू करनेवाला शिल्पी। तुड अक [तुड्] टूटना, अलग होना। तुप्प पुं [दे] कौतुक । विवाह । सरसों । कुतुप, तुडि स्त्री [त्रुटि] न्यूनता, कमी । दोष, दूषण । घी आदि भरने का चर्म-पात्र । वि. चुपड़ा सन्देह ।
हुआ, घी आदि से लिप्त । स्निग्ध । न. घी । तुभि न [तुटिक] अन्तःपुर।
तुप्प वि [दे] वेष्टित ।
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४३६
तुप्पइअ तुप्पलिअ तुप्पविअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[दे] घी से लिप्त ।
तुमंतु पुं [दे] क्रोध-कृत मनो-विकार - विशेष । तिरस्कार-वचन, तू-तू । वाक्- कलह | वि. तुकारे से बात कहनेवाला ।
|
तुरी स्त्री [दे] पीन, पुष्ट । शय्या का उप
करण ।
तुमुल पुं. लोमहर्षण युद्ध, भयानक संग्राम | म. शोरगुल ।
तुम्ह स [ युष्मत् ] तुम, आप । तुम्हर वि [ त्वदीय] तुम्हारा । तुम्हर वि [ युष्मदीय] आपका, तुम्हारा । तुम्हार (अप) ऊपर देखो ।
तुम्हारिस वि [ युष्मादृश] आपके जैसा, तुम्हारे जैसा ।
तुम्हे वि [ष्माक] आपका, तुम्हारा । तुट्ट अ [त्वग् + वृत्] पार्श्व को घुमाना, करवट फिराना ।
तुरंग पुं [तुरङ्गम] घोड़ा । तुरंगिआ स्त्री [तुरङ्गिका ] घोड़ी । तुरक्क पुं [दे. तुरुष्क] तुर्किस्तान । तुर्क जाति । तुरंग देखो तुरय । "मुह पुं [मुख] अनार्य देश-विशेष । ° मेढ़ग पुं ['मेढ्रक] अनार्य देश - विशेष |
तुप्पइअ - तुवरा
तुरिअ वि [तुर्य ] चतुर्थ । निद्दा स्त्री [नद्रा ] मरणदशा |
तुरमणो देखो तुरुमणी ।
|
तुरय पुं [तुरग] अश्व | छन्द-विशेष | देह - पिंजरण न [ देहपिञ्जरण] अश्व को सिंगारना, सँवारना, शृंगार करना । देखो तुरग । तुरयमुह देखो तुरग-मुह । त्वरावाला । तुरिअवि [ त्वरित] उतावला । " गइ वि [गति ] शीघ्र गतिवाला । पुं. अमितगति नामक इन्द्र का एक लोकपाल ।
तुरिअन [ तूर्य] बाजा । तुरिमिणी देखो तुरुमणी ।
तुल° देखो तुला । तुलंगा देखो तुलग्गा । तुलग्ग न [ दे] काकतालीय न्याय । लग्गा स्त्री [दे] स्वैरिता, स्वेच्छा । तुलण न [तुलन ] सौलना, वोलन । तुलणा न [तुलना ] तौलना, तोलन । तौल,
तुर अक [त्वर्] त्वरा होना, जल्दी होना । तुर° स्त्री [त्वरा ] शीघ्रता । 'वंत तुरा [°वत्] त्वरा युक्तः ।
वजन ।
तुरंग पुं [तुरङ्ग] अश्व, रामचन्द्र का एक तुलय वि [तोलक] तोलनेवाला ।
सुभट ।
रुन [] वाद्य-विशेष |
तुरुक्क न [ तुरुष्क ] लोबान, सिल्हक । पुं. तुर्किस्तान | वि. तुर्किस्तान का । तुरुक्की स्त्री [तुरुष्की] लिपि-विशेष | तुरुमणी स्त्री [] नगरी - विशेष ।
तुल स [तोलय् ] तौलना । उठाना । ठीकठीक निश्चय करना ।
तुलसि स्त्री [तुलसिका ] नीचे देखो । तुलसी स्त्री [दे. तुलसी ] लता-विशेष, तुलसी । तुला स्त्री राशि -विशेष । तराजू । उपमा, सादृश्य । १०५ या ५०० पल का एक नाप । 'सम वि. राग-द्वेष से रहित, मध्यस्थ । तुलिअ वि [तुलित ] उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ । तौला हुआ | गुना हुआ ।
तुल्ल वि [ तुल्य ] समान ।
तुवट्ट देखो तुयट्ट |
तुवट्ट पुं [त्वग्वर्त ] शयन, लेटना । तुवर अक [त्वर् ] त्वरा होना, शीघ्र होना, तेज होना ।
तुवर पुंन. कषाय रस । वि. कषाय रसवाला, कसैला । तुवरा देखो तुरा ।
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तुवरी-ते संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४३७ तुवरी स्त्री. अन्न-विशेष, अरहर । तूरविअ वि [त्वरित] जिसको शीघ्रता कराई तुस पुं [तुष] कोदव या कोदो आदि तुच्छ गई हो वह । धान्य । भूसी।
तूरिय पुं [तौयिक] वाद्य बजानेवाला, बजतुसणीअ वि [तूष्णीक] मौनी ।
नियाँ। तुसली स्त्री [दे] धान्य-विशेष ।। तूरी स्त्री [दे] एक प्रकार की मिट्टी। तुसार न [तुषार] हिम । °कर पुं. चन्द्र। तूल न. रुई, बीज-रहित कपास । तुसारअर देखो तुसार-कर।।
तूलिअ न. नीचे देखो। तुसिण देखो तुसणीअ।
| तुलिआ स्त्री [तूलिका] रुई से भरा मोटा तुसिणिय । वि [तूष्णीक] मौनी, वचन- - बिछौना, गहा, तोशक । तसवीर-चित्र तुसिणीय , रहित ।
बनाने की कलम । तुसिणी अ [तूष्णीम्] मौन, चुप्पी।
तुलिणी स्त्री [दे] शाल्मली का पेड़ । तुसिय [तुषित] लोकान्तिक देवों की एक
तूलिल्ल वि [तूलिकावत्] तसवीर बनाने की जाति ।
कलमवाला, कूचिका-युक्त। तुसेअजंभ न [दे] काष्ठ ।
तूली स्त्री. देखो तूलिआ। तुसोदग । न [तुषोदक] ब्रोहि आदि का ।
तूवर देखो तुवर । तुसोदय धौत-जल -- धोवन ।
तूस अक [तुष्] खुश होना । तुस्स देखो तूस = तुषु ।
तूह देखो तित्थ। तुह स [त्वत्] तुम । °तणय वि [°सम्बधिन] तुम्हारा, तुमसे सम्बन्ध रखनेवाला। तूहण पुद] आदना ।
ते' देखो ति - त्रि। तुहग पुं. कन्द की एक जाति ।
आलीस स्त्रीन तुहार (अप) वि [त्वदीय] तुम्हारा ।
["चत्वारिंशत् ] चालीस और तीन
की संख्या। तेआलीस की संख्यातुहिण न [तुहिन] तुषार, बर्फ । °इरि पुं
वाला । "आलीसइम वि ["चत्वारिंश] [°गिरि हिमाचल पर्वत । कर पुं. चन्द्रमा ।
तेआलीसवाँ । 'आसी स्त्री [°अशीति] °गिरि देखो इरि । लय पुं. हिमालय पर्वत ।
तीरासी की संख्या । तिरासी की संख्यावाला । तुहिणायल पुं [तुहिनाचल] हिमालय पर्वत ।
आसीइम वि ['अशीतितम] तिरासीवाँ । तूअ पुंदे] ईख का काम करनेवाला। ।
°इंदिय पुं [इन्द्रिय] स्पर्श, जीभ और नाक तूण पुन. भाथा, तरकस।
इन तीन इन्द्रियवाला प्राणी । ओय पुं तूणइल्ल पुन [तूणावत्। तूणा नामक वाद्य ["ओजस्] विषम राशि-विशेष । °णउइ स्त्री बजानेवाला।
[°नवति] तिरानबे । °णउय वि [ नवत] तूणय पुं [तूणक वाद्य-विशेष ।
तिरानबेवाँ । वड देखो °णउइ । तीस, तूणा ) स्त्री. वाद्य-विशेष । इषुधि, भाथा । । त्तोस स्त्रीन[त्रयस्त्रिंशत् तेतीस । °त्तीसतूणि° ।
इम वि [त्रयस्त्रिंश] तेतीसवाँ । °वट्टि स्त्री तूयरी स्त्री [तूवरी] रहर, अरहर । [षष्टि] तिरसठ । °वण्ण स्त्रीन [°पञ्चातूर देखो तुरव ।
शत्] वेपन । वत्तरि स्त्री [°सप्तति] तुर पुन [तूर्य] वाद्य, बाजा, तुरही। वइ पुं तिहत्तर । °वीस स्त्रीन[त्रयोविंशति] तेइस । [°पति] नटों का मुखिया।
वीस, वीसइम वि [त्रयोविंश] तेईसवाँ ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तेज-तेगिच्छग संझ न [सन्ध्य] प्रातः, मध्याह्न और । तेआलि पुं [दे] वृक्ष-विशेष । सायंकाल का समय । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] तेइच्छ न [चैकित्स्य] चिकित्सा-कर्म, प्रतीदेखो °वट्रि। सीइ स्त्री[ अशीति]तिरासी। कार ।
सीइम वि ['अशीत] तिरासीवाँ । तेइच्छा स्त्रो[चिकित्सा]प्रतीकार, इलाज, दवा । तेअ सक [तेजय] तेज करना, पैनाना, धार तेइच्छिय देखो तेगिच्छिय । तेज करना, तीक्ष्ण करना ।
तेइच्छी स्त्री [चिकित्सा, चैकित्सी] प्रतीकार, तेअ देखो तइअ = तृतीय ।
इलाज । तेअ पुं [तेजस्] कान्ति, प्रकाश । ताप, अभि- तेइज्जग वि [तार्तीयीक] तोसरा । जाड़ा ताप । प्रताप । माहात्म्य, प्रभाव । बल, | देकर तीसरे-तीसरे दिन पर आनेवाला ज्वर, पराक्रम । °मंत वि [विन्] प्रभा-युक्त। तिजारा। °वीरिय पुं [°वीर्य भरत चक्रवर्ती के प्रपौत्र । तेइल्ल देखो तेअंसि । का पौत्र ।
तेउ पुं [तेजस्] अग्नि । तेजो-लेश्या । अग्नितेअ न [स्तेय] चोरी।
शिख नामक इन्द्र का एक लोकपाल । ताप, तेअ देखो तेअय।
अभिताप । प्रकाश, उद्योद । °आय देखो तेअ ' [?] टेक, स्तम्भ ।
°काय । कंत पुं [°कान्त] लोकपाल देवतेअंसि वि तेजस्विन्] तेज-युक्त।
विशेष । °काइय पुं [कायिक] अग्नि का तेअग देखो तेअय।
जीव । °काय पुं. अग्नि का जीव । °क्काइय तेअण न [तेजन] तेज करना । उत्तेजन । वि. देखो °काइय । 'प्पभ पुं[प्रभ] अग्निशिख उत्तेजित करनेवाला।
नामक इन्द्र का एक लोकपाल । 'प्फास पुं तेअय न [तैजस] शरीर-सहचारी सूक्ष्म शरीर
[°स्पर्श] उष्ण-स्पर्श । °लेस वि [°लेश्य] विशेष ।
तेजो-लेश्यावाला । °लेसा स्त्री [°लेश्या] तेअलि पुं [तेतलिन्] मनुष्य जाति-विशेष ।
तप-विशेष के प्रभाव से होनेवाली शक्तिएक मन्त्री के पिता का नाम । °पुत्त पुं
विशेष से उत्पन्न होती तेज को ज्वाला। [°पुत्र] राजा कनकरथ का एक मन्त्री । °पुर °लेस्स देखो °लेस । °लेस्सा देखो °लेसा। न. नगर-विशेष । °सुय पु [°सुत] देखो °सिंह पुं [शिख] एक लोकपाल । °सोय न - "पुत्त । देखो तेतलि।
[°शौच] भस्म आदि से किया जाता शौच । तेअव अक [प्र + दीप्] दीपना, चमकना। तेउ देखो तेअय । जलना।
तेंडुअ न [दे] टीबरू का पेड़ । तेअवाल देखो तेजपाल । तेअविय वि [तेजित] तेज किया हुआ। तेंदुअ [तिन्दुक] तेंदु का पेड़ । कन्दुक । तेअस्सि पुं [तेजस्विन्] इक्ष्वाकु वंश के एक |
तेंदुग राजा का नाम ।
तेंदुसय पुं [दे] गेंद । तेआ स्त्री [तेजा] पक्ष की तेरहवीं रात ।। तेंबरु पुं [दे] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु तेआ स्त्री [तेजस्] त्रयोदशी तिथि ।
की एक जाति । तेआ स्त्री [त्रेता] दूसरा युग ।
तेगिच्छ देखो तेइच्छ। तेआ° देखो तेअय।
तेगिच्छग वि [चिकित्सक चिकित्सा करने
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तेगिच्छा-तेरिच्छ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४३९ वाला । पुं. वैद्य, हकीम।
तेतिल देखो तीइल। तेगिच्छा देखो तेइच्छा।
तेत्तिअ वि [तावत् उतना । तेगिच्छायण देखो तिगिच्छायण । तेत्तिक (शौ) देखो तेत्ति। तेगिच्छि देखो तिगिछि ।
तेत्तिर देखो तित्तिर। तेगिच्छिय वि [चैकित्सिक] चिकित्सा करने- तेत्तिल वि [तावत् उतना । वाला। पुं. वैद्य, हकीम । न. चिकित्सा-कर्म, तेत्तिल न [तैतिल] ज्योतिष-प्रसिद्ध करणप्रतीकार-करण । °साला स्त्री [°शाला] विशेष । दवाखाना।
तेत्तुल , (अप) ऊपर देखो। तेचत्तारीस देखो ते-आलीस।
तेत्तल्ल तेज देखो तेज = तेजय ।
तेत्थु (अप) देखो तत्थ = तत्र । तेज पुं. देश-विशेष ।
तेदह देखो तेत्तिल । तेजसि देखो तेअंसि।
तेम (अप) देखो तह = तथा । तेजपाल पुं. राजा वीरधवल का एक यशस्वी | तेमासिअ वि [त्रैमासिक] तीन महीने में होनेमन्त्री ।
वाला । तीन मास-सम्बन्धी। तेजलपुर न. एक नगर ।
तेम्व देखो तेम। तेजस्सि देखो तेअंसि।
तेर वि [त्रयोदश] तेरहवां । तेन्ज (अप) देखो चय = स्यज् ।
तेर (अप) वि [त्वदीय] तेरा, तुम्हारा । तेड सक [दे] बुलाना।
तेर । त्रयोदशन्] तेरह । तेड्ड पुं [दे] शलभ, अन्न-नाशक कीट, टिड्डी ।
तेरस । पिशाच, राक्षस ।
तेरच्छ देखो तिरिच्छ = तिर्यच् ।
तेरस देखो तेरसम। तेण अ [तेन] लक्षण-सूचक अव्यय । उस
तेरसम वि [त्रयोदश] तेरहवा । तरफ । तेण । पुं[स्तेन ] तस्कर । °प्पओग पुं
तेरसया स्त्री [दे] जैन मुनियों की एक तेणग [प्रयोग] चोर को चोरी करने के शाखा । तेणय लिए प्रेरणा करना । चोरी के साधनों
तेरसी स्त्री [त्रयोदशी] तेरहवाँ । का दान या विक्रय ।
तेरस । तेणिअ ) न [स्तैन्य] चोरी, अदत्त वस्तु का | तेरसुत्तरसय वि [त्रयोदशोत्तरशततम] एक तेणिक्क । ग्रहण ।
सौ तेरहवाँ। तेणिस वि [तैनिश] तिनिशवृक्ष-सम्बन्धी, बेंत | का।
तेरासि पुं [त्रैराशिक] नपुंसक । तेणी स्त्री [स्तेना] चोर-स्त्री।
तेरासिअ वि [त्रैराशिक] त्रैराशिक मततेण्ण न [स्तैन्य] चोरी, पर-द्रव्य का अप- | जीव, अजीव और नोजीव इन तीन राशियों हरण ।
को मानने वाला । न. मत-विशेष । तेण्हाइअ वि [तृष्णित] प्यासा ।
तेरिच्छ देखो तिरिच्छ = तिर्यच् । तेतलि पुं [तेतलिन्] धरणेन्द्र की गन्धर्वसेना | तेरिच्छ देखो तिरिच्छ = तिरश्चीन । का नायक । देखो तेअलि। -
तेरिच्छ न [तिर्यक्त्व] तियंचपन ।
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४४० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तेल-तोरण तेल न [तैल] गोत्र-विशेष । तेल ।
हुई एक खाद्य वस्तु । तेलंग पुं. ब. [तैलङ्ग] देश-विशेष । पुंस्त्री. तोक्कय वि [दे] बिना ही कारण तत्पर होने
देश-विशेष का निवासी मनुष्य, तैलंगी। वाला। तेलाडी स्त्री [तैलाटी] कीट-विशेष, गंधोली। | तोक्खार देखो तुक्खार । तेलक्क न [त्रैलोक्क] तीन जगत्-स्वर्ग, | तोटअ न [त्रोटक] छन्द-विशेष । तेलोअमर्त्य और पाताल लोक । दंसि वि तोड सक [तुड्] तोड़ना, भेदन करना । अक. तेलोक[दर्शिन्] सर्वज्ञ. सर्वदर्शी। °णाह। टूटना । पुं[°नाथ] तीनों जगत् का स्वामी, परमे- | तोड पुं [त्रोड]त्रुटि । श्वर । °मंडण न [°मण्डन] तीनों जगत् का | तोडण वि [दे] असहिष्णु । भूषण । पुं. रावण का पट्ट हस्ती । तोडण न [तोदन] व्यथा, पीड़ा-करण । तेल्ल न [तैल] तेल, तिल का विकार, स्निग्ध | तोडर न [दे] टोडर, माल्य-विशेष । द्रव्य विशेष । °केला स्त्री. मिट्टी का भाजन- तोडहिआ स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । विशेष । °पल्ल न [°पल्य] तैल रखने का तोडिअ वि [त्रोटित] तोड़ा हुआ । मिट्टी का भाजन-विशेष । °पाइया स्त्री तोडु पं [दे] क्षुद्र कीट-विशेष, चतुरिन्द्रिय जीव [पायिका] क्षुद्र जन्तु विशेष ।
की एक जाति । तेल्लग न [तैलक] सुरा-विशेष ।
| तोण पुंन [तुण] तरकस, तूणीर । तेल्लिअ पुं तैलिक] तेल बेचनेवाला ।
तोणीर पुंन [तूणीर शरधि, भाथा । तेल्लोअ ) देखो तेलुक्क ।
| तोत्त न [तोत्र] प्रतोद, बैल को मारने या तेल्लोक्क
हाँकने का बाँस का आयुध-विशेष, पैना, तेवें । (अप) देखो तह = तथा ।
सोंटा। तेवइ
तोत्तडि [दे] देखो तोंतडि । तेव? वि [वैषष्ट] तिरसठ की संख्यावाला, | तोदग वि तोदक] व्यथा उपजानेवाला, जिसमें तिरसठ अधिक हो ऐसी संख्या ।
पीड़ा-कारक । तेवड (अप) वि [तावत् उतना ।
तोमर पुंन [दे. तोमर] मत्रपुडा । तेवण्णासा स्त्री [त्रिपञ्चाशत् त्रेपन ।
तोमर पुं. बाण-विशेष । न. छन्द-विशेष । तेवीसइ स्त्री [त्रतोविंशति तेईस ।
तोमरिअ पुं [दे] शस्त्र का प्रमार्जन करनेतेवुत्तरि देखो ते-वत्तरि।
वाला । शस्त्र-मार्जन। तेह (अप) वि [तादृश् ] उसके जैसा, वैसा ।
तोमरिगुंडी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । तेहिं (अप) अ. वास्ते, लिए।
तोमरी स्त्री [दे] लता। तेहिय वि [त्र्यादिक] तीन दिन का ।
तोम्हार (अप) देखो तुम्हार । तेहुत्तरि देखो ते-वत्तरि।।
तोय न [तोय] जल । धरा, धारा स्त्री तो देखो तओ।
[ धारा] एक दिक्कुमारी देवी । °पटु, पिट्ठ तो अ [तदा] तब ।
न [पृष्ठ] पानी का उपरिभाग । तोअय पुं [दे] चातक पक्षी ।
तोय पुं [तोद] व्यथा, पीड़ा । तोंड देखो तुंड।
तोरण न [तोरण] द्वार का अवयव-विशेष, तोंतडि स्त्री [दे] करम्ब, दही-भात की बनी । बहिर । बन्दनवार, फूल या पत्तों की
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तोरविअ-थउडिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४४१ माला (झालर) जो उत्सव में लटकाई जाती | तोहार (अप) देखो तुहार । है। °उर न [°पुर] नगर-विशेष । °त्त वि [°त्र] त्राण-कर्ता। तोरविअ वि [दे] उत्तेजित ।
°त्तण देखो तण। तोरामदा स्त्री [दे] नेत्र का रोग-विशेष । °त्ति अ [इति] उपालम्भ-सूचक अव्यय । तोल देखो तुल = तोलय ।
°त्ति देखो इअ = इति । तोल पुंन [दे] मगध-देश प्रसिद्ध पल, परिमाण- 'त्थ देखो एत्थ । विशेष ।
त्थ वि [°स्थ] स्थित, रहा हुआ। तोलण पुंदे] पुरुष ।
त्थ देखो अत्थ । तोलण न [तोलन] तोल करना, तौलना, नाप | स्थअ देखो थय - स्तृत । करना।
°त्थउड देखो थउड । तोल्ल न [तौल्य, तौल] तौल, वजन । त्थंब देखो थंब। तोवट्ट पुं [दे] कान का आभूषण-विशेष । | °त्थंभ देखो थंभ । कमल की कणिका।
त्थंभण देखो थंभण। तोस सक[तोषय]खुशी करना, सन्तुष्ट करना ।
त्थरु देखो थरु। तोस पुं [तोष] खुशी, आनन्द, सन्तोष । °यर
त्थल देखो थल। वि [°कर] सन्तोष-कारक ।
त्थली देखो थली। तोस न [दे] धन, दौलत ।
त्थव देखो थव = स्तु। तोसलि पुं [तोसलिन] ग्राम-विशेष । देश- | त्थवअ देखो थवय । विशेष । एक जैन आचार्य । °पुत्त [पुत्र] | 'त्थाण देखो थाण । एक जैन आचार्य ।
त्थाल देखो थाल। तोसलिय पुं [तोसलिक] तोसलि-ग्राम का
°त्थिअ देखो थिअ। अधीश क्षत्रिय । तोसविअ । वि [तोषित] खुश किया हुआ, |
| त्थिर देखो थिर। तोसिअ , सन्तोषित।
| थोअ देखो थोअ ।
थ पुं. दन्त-स्थानीय व्यञ्जन-विशेष ।
नौकर । °वाहक पुं. पानदानी का वाहक थ अ. वाक्यालंकार और पाद-पूर्ति में प्रयुक्त नौकर । देखो थगिय । किया जाता अव्यय ।
थइआ स्त्री[दे] थैली, कोथली, कमर में बाँधने 'थ देखो एत्थ।
की रुपयों की थैली। थइअ वि [स्थगित] आच्छादित ।
थउड न [स्थपुट] विषम और उन्नत प्रदेश । थइअ° । स्त्री [स्थगिका] पानदानी । इत्त । वि. नीचा-ऊँचा । थइआ , पुं[ °वत् ] ताम्बूल-पात्र-वाहक थउडिअ वि [स्थपुटित] विषम और उन्नत नौकर। °धर पुं. ताम्बूल-पात्र का वाहक प्रदेशवाला । नीचा-ऊँचा प्रदेशवाला ।
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४४२
थउड्डु न [ दे] भल्लातक, भिलावा ।
थंग सक [ उद् + नामय् ] ऊँचा करना, उन्नत
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वृक्ष - विशेष,
करना ।
जन्तु
थंडिल } न [स्थण्डिल] शुद्ध भूमि, थंडिल्ल रहित प्रदेश | गुस्सा | थंडिल पुं [स्थण्डिल] क्रोत्र । थंडिल्ल न [ दे] मण्डल, वृत्त प्रदेश । थं वि [] विषम, असम । थंब पुं [ स्तम्ब] तृण आदि का गुच्छ । थंभ अक [स्तम्भ्] रुकना, स्तब्ध होना, स्थिर होना । सक. क्रिया निरोध करना । निश्चल
करना ।
थंभ पुं [ स्तम्भ ] घेरा । स्तम्भ, खम्भा । अहंकार । तत्थ न [° तीर्थ] एक जैन तीर्थं । विज्जा स्त्री [विद्या] स्तब्ध - बेहोश या निश्चेष्ट करने की विद्या । थंभण न [स्तम्भन] स्तब्ध करण, थभना । स्तब्ध करने का मन्त्र । गुजरात का एक नगर । पुर न. नगर- विशेष, खम्भात । थंभणया स्त्री [स्तम्भना ] स्तब्ध करण | भणिया स्त्री [स्तम्भनिका ] विद्या - विशेष । भणी स्त्री [ स्तम्भनी] स्तम्भन करनेवाली विद्या - विशेष | थंभय देखो थंभ थक्क अक [स्था] रहना, बैठना, स्थिर होना । थक्क अक [फक्क् ] नीचे जाना ।
स्तम्भ |
थक्क अक [श्रम् ] थकना, श्रान्त होना । थक्क व[स्थित] रहा हुआ । थक्क पुं [दे] अवसर, प्रस्ताव, समय । वि. थका हुआ, श्रान्त |
ज
थक्कव सक [स्थापय् ] स्थापन करना, रखना | थग देखो थय = स्थगय् |
थगथग अक [थगथगाय् ] धड़कना, काँपना | थगिय° देखो थइअ' । ग्गाहि पुं [ग्राहिन् ] ताम्बूल वाहक नौकर ।
थउड्डु - थणिल्ल
थग्गया स्त्री [दे] चञ्चु ।
ग् सक [स्ताघ्] जल की गहराई को
नापना ।
ग् पुं [] थाह, तला पानी के नीचे को भूमि, गहराई का अन्त, सीमा । थग्घा स्त्री [दे] ऊपर देखो ।
थट्ट पुंन [दे] ठठ भीड़, झुण्ड, समूह, यूथ, जत्था । ठाठ, ठाट तड़क-भड़क, सजधज, आडम्बर |
स्त्री [] जानवर | थड पुंन [ दे] समूह |
थड्ढ वि [ स्तब्ध ] निश्चल | अभिमानी ।
अवि [ स्तम्भित] स्तब्ध किया हुआ । स्तब्ध, निश्चल । न गुरु-वन्दन का एक दोष, अकड़ कर गुरु को किया जाता प्रणाम । थण अक [स्तत्] गरजना | चिल्लाना । आक्रोश करना। जोर से नीसास लेना ।
पुं [ स्तन ] थन, पयोधर, चूची । 'जीवि वि ['जीविन् ] स्तन-पान पर निभानेवाला बालक | 'वई स्त्री [ "वती ] बड़े स्तनवाली । विसारि वि[विसारित्] फैलनेवाला | 'सुत न [°सूत्र] उरः-सूत्र | 'हर पुं [भर ] स्तन का भार या बोझ ।
स्तन पर
गंध पुं [ स्तनन्धय ] स्तन-पान करनेवाला बालक, छोटा बच्चा ।
थणण न [ स्तनन] गर्जन | चिल्लाहट । आक्रोश, अभिशाप | आवाजवाला नीसास । थणय पुं [ स्तनक] दूसरी नरक-भूमि का एक
नरक -स्थान |
थणलोलुअ पुं [स्तनलोलुप ] दूसरी नरक भूमि
का एक नरक-स्थान |
[स्तनित] एक नरक-स्थान । न मेघ का गर्जन । आक्रन्द । पुं. भवनपति देवों की एक जाति । कुमार पुं. भवनपति देवों की एक जाति ।
थणिल्ल सक [चोरय्] चोरी करना ।
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थणिल्ल - थाणिज्ज
थपिल्ल वि [ स्तनवत् ] स्तनवाला । गुल्ल पुं [ स्तनक] छोटा स्तन । देखो था ।
थत्तिअ न [दे] विश्राम | थद्ध देखो थड्ढ ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
थन्न न [ स्तन्य ] स्तन का दूध । जिवि वि [जीविन् ] छोटा बच्चा ।
थप सक [स्थापय् ] रखना, थप्पी करना ।
न्यास करना ।
थब्भ अक [स्तभ्] अहंकार करना । थब्भर पुं [दे] अयोध्या के समीप का एक द्रह । थम वि [] विस्मृत ।
थय सक [स्थगय्] आच्छादन करना, आवृत करना ।
यवि [स्तृत ] व्याप्त, भरपूर ।
पुं [स्तव ] स्तुति, गुण-कीर्तन | थयण न [ स्तवन ] ऊपर देखो । थर पुं [दे] दही की तर ।
थरत्थ र
थरथर
अक [दें] थरथराना, काँपना ।
थरहर
थरु पुं [ दे. त्सरु ] तलवार की मूठ ।
थरुगिण पुं [ थरुकिन] देश-विशेष । पुंस्त्री. उस देश का निवासी ।
थल न [स्थल ] भूमि, जगह, सुखी जमीन । ग्रास लेते समय खुले हुए मुँह की फाँक, खुले | हुए मुँह की खाली जगह । इल्ल वि ['वत् ] स्थल-युक्त | कुक्कुडियंड न [ कुक्कुटयण्ड ] कवल - प्रक्षेप के लिए खुला हुआ मुख । 'चार पुं. जमीन में चलना । 'नलिणी स्त्री [° नलिनी] जमीन में होनेवाला कमल का गाछ । 'य वि [ज] जमीन में उत्पन्न होनेवाला । यर वि [' चर] जमीन पर चलनेवाला । जमीन पर चलनेवाला पञ्चेन्द्रिय तियंच प्राणी |
थलय पुं [दे] मण्डप, तृणादि - निर्मित गृह ।
थलहिगा
थलहिया
४४३
स्त्री [दे] मृतक - स्मारक, शव को गाड़कर उस पर किया
जाता एक प्रकार का चबूतरा । थली स्त्री [स्थली ] जल- शून्य भू-भाग । ऊँची जमीन । 'वोडय पुं [ घोटक] पशुविशेष |
थल्लिया स्त्री [दे. स्थालिका ] छोटा थाल, भोजन करने का वरतन ।
[स्तु ] स्तुति करना ।
थव देखो थय = स्तव |
वपुं [दे] पशु |
थव पुं [ स्थपति] बढई । थवइय वि [स्तबकित ] स्तबकवाला | थवइल्ल वि [दे] जाँघ फैलाकर बैठा हुआ । थवक्क पुं [दें] थोक, समूह | थवण देखो थयण |
वणिया स्त्री. [स्थापनिका ] न्यास, जमा रखी हुई वस्तु ।
थवय पुं[ स्तबक ] फूल आदि का गुच्छ । थविआ स्त्री. प्रसेविका, वीणा के अन्त में लगाया जाता छोटा काष्ठ- विशेष । for a [ स्थापित ] न्यस्त, निहित । थविर वि [ स्थविर ] वृद्ध | थवी [] देखो थविआ ।
fa [] विस्तीर्ण |
थस
यसल
यह पुं [दें] निलय, आश्रयस्थान | था देखो ठा ।
थाइ वि [ स्थायिन् ] रहनेवाला । णी स्त्री [" नी] वर्ष वर्ष पर प्रसव करनेवाली घोड़ी । थागत्त न [ दे] जहाज के भीतर घुसा हुआ पानी ।
थाण देखो ठाण ।
थाणय न [स्थानक ] आलवाल, कियारी । थाय न [दे] चौकी, पहरा । पुं. चौकीदार । थाणिज्ज व [दे] सम्मानित |
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४४४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष थाणीय-थिरण्णेस थाणीय वि [स्थानीय] स्थानापन्न । विशेष । अश्व का आभरण-विशेष । थाणु पुं [स्थाणु] शिव । ठूठा वृक्ष । खीला। थाह पुं [दे] स्थान, जगह । वि. गम्भीर जलस्तम्भ ।
वाला । विस्तीर्ण । दीर्घ । थाणेसर न [स्थानेश्वर] समुद्र के किनारे पर थाह पुं [स्थाघ] तला, गहराई का अन्त, का एक शहर ।
सीमा । थाम वि [दे] विस्तीर्ण।
थाहिअ पुं [दे] आलाप, स्वर-विशेष । थाम न [स्थामन्] बल, वीर्य, पराक्रम । वि. | थिअ वि [स्थित] रहा हुआ । बलयुक्त । पुन. प्राण । °व वि [°वत्] थिइ देखो ठिइ। बलवान् ।
थिंदिणी स्त्री [दे] छन्द-विशेष । थाम न [दे. स्थान] स्थान, जगह । थिप अक [तृप्] तृप्त होना, सन्तुष्ट होना । थार पुं[दे] मेघ ।
थिग्गल न [दे] भीत में किया हुआ दरवाजा । थारुणय वि[थारु किन]देश-विशेष में उत्पन्न । फटे-फुटे वस्त्र में किया जाता सन्धान । पुंन. थाल पुंन [स्थाल] बड़ी थलिया, भोजन करने छिद्र । गिरने के बाद दुरुस्त (ठीक) किया का पात्र ।
हुआ गृह-भाग। थालइ वि [स्थालकिन्] थालवाला । पुं. वान- थिज्ज देखो थेज = स्थैर्य । प्रस्थ का एक भेद ।
थिण्ण वि [स्त्यान] कठिन, जमा हुआ। थाला स्त्री [दे] धारा।
देखो थीण। थाली स्त्री [स्थाली] पाक-पात्र, हाँड़ी। थिण्ण विदे] स्नेह-रहित दयावाला । अभि°पाग वि [°पाक] हाँड़ी में पकाया हुआ ।
मानी। थाव सक [स्थापय] स्थिर करना । रखना।
थिन्न वि [दे] गर्वित । न्यास करना ।
थिप्प देखो थिंप। थावच्चा स्त्री [स्थापत्या] द्वारका निवासी थिप्प अक [वि + गल्] गल जाना। एक गृहस्थ स्त्री । पुत्त पुं [°पुत्र] स्थापत्या | थिबुक पुं [स्तिबुक] कन्द-विशेष । का पुत्र, एक जैन मुनि ।
थिम सक [स्तिम्] गीला करना । थावय पुं [स्थापक] समर्थ हेतु, स्वपक्ष-साधक |
| थिमिअ वि [दे. स्तिमित] स्थिर, निश्चल ।
थिमिअ ' [स्तिमित] राजा अन्धकवृष्णि के थावर वि [स्थावर स्थिर रहनेवाला। पुं.. एक पुत्र का नाम । एकेन्द्रिय प्राणी, केवल स्पर्शेन्द्रियवाला-| थिम्म सक [स्तिम्] आई करना । अक. आद्रं पृथिवी, पानी और वनस्पति आदि का जीव । होना। एक विशेष-नाम, एक नौकर का नाम । थिर वि [स्थिर] निश्चल, निष्कम्प । निष्पन्न, काय पुं. एकेन्द्रिय जीव । °णाम न
सम्पन्न । णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष [°नामन्] स्थावरत्व-प्राप्ति का कारण भूत | जिसके उदय से दन्त, हड्डी आदि अवयवों कर्म ।
की स्थिरता होती है। वलिया स्त्री थासग [दे] कुदाल ।
[शवलिका]जन्तु-विशेष, सर्प की एक जाति । थासग , पुं [स्थासक] दर्पण, शीशा। थिरणाम वि [दे] चञ्चल-मनस्क । थासय । दर्पण के आकार का पात्र थिरण्णेस वि [दे] अस्थिर, चञ्चल ।
हेतु।
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थिरसीस-ज्ज
थिरसीस वि [] निर्भीक, निडर । निर्भर | जिसने सिर पर कवच बाँधा हो वह ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
करना ।
fron पुंस्त्र [ स्थैर्य ] स्थिरता ।
gora [] अभिमानी । थुत्त न [ स्तोत्र ] स्तुति, स्तुति- पाठ ।
थिरीकण न [स्थिरीकरण] स्थिर करना, थुत्थुकारिय वि [ थुथुत्कारित ] थुतकारा
हुआ, अपमानित |
दृढ़ करना, जमाना ।
थिल्लव [] गुप्त थिल्लि स्त्री [] यान- विशेष, दो घोड़े की बग्घी । दो खच्चर आदि से वाह्य यान । थिविथिव अक [थिवथिवाय् ] 'थिव-थिव'
आवाज करना ।
थिवुग }
थिवुय
पुं [स्तिबुक ] जल- विन्दु । 'संकम पुं [संक्रम] कर्म-प्रकृतियों का आपस में संक्रमण - विशेष |
थीहु पुंस्त्री [दे] कन्द-विशेष ।
पुं [स्तिभु] वनस्पति- विशेष । थी स्त्री [स्त्री] नारी । थीण देखो थिण | 'गिद्धि स्त्री ['मृद्धि] निकृष्ट निद्रा-विशेष | °द्धि स्त्री [°द्धि] अधम निद्रा - विशेष | द्धिय वि[द्धिक] स्त्यानद्धि निद्रावाला ।
थु अ. तिरस्कार सूचक अव्यय । अवि [स्तुत ] प्रशंसित । देखो
| थुइ स्त्री [स्तुति ] स्तव, गुण-कीर्तन | थुइवाय पुं [ स्तुतिवाद ] प्रशंसा-वचन |
थुक्क अक [थूत् + कृ] थूकना । सक. तिरस्कार करना, अनादर के साथ निकालना ।
थुक्क न [थूत्कृत] थूक, कफ, खखार । थुक्कार सक [थूत्कारय् ] तिरस्कार करना । थुक्किअ वि [दे] उन्नत, ऊँचा ।
थुन [. थुड] वृक्ष का स्कन्ध थुकिअयन [दे] रोष युक्त वचन ।
थुकिअ न [ दे] थोड़ा गुस्सा होने से होता मुँह का संकोच | मौन, चुपकी ।
थुड्डुहोर न [ दे] चामर ।
थुथूकार पुं [थुथूत्कार ] तिरस्कार | थुरुणुल्लणय न [ दे] बिछौना । थुम पुं [दें] पट-कुटी, तम्बू, खेमा । थुल्ल वि [दे] परिवर्तित, बदला हुआ । थुल्ल वि [ स्थूल ] मोटा, तगड़ा । थुव देखो थुण ।
थुवअ वि [स्तावक ] स्तुति करनेवाला । थुवण न [स्तवन ] स्तुति ।
थू अ. निन्दा - सूचक अव्यय ।
थूण पुं [] अश्व |
थूण देखो तेण = स्तेन । थूणा स्त्री [ स्थूणा] खम्भा, खूंटी । थूणाग पुं [स्थूणाक] सन्निवेश-विशेष, विशेष |
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थू अ [] घृणा - सूचक अव्यय ।
भ पुं [ स्तूप] थूहा, टीला, स्मृति-स्तम्भ । थुभिया स्त्री [स्तूपिका ] छोटा स्तूप । छोटा शिखर ।
घोण पुं [दे] वराह । देखो थूभ ।
भियागा
थूरी स्त्री [दे] तन्तुवाय का एक उपकरण । थूल देखो थुल्ल । 'भद्द पुं [°भद्र] एक जैन महर्षि ।
ग्राम
थुण सक [स्तु ] स्तुति करना, गुण वर्णन थेज्ज देखो थेअ ।
थूव
थूह
थूह पुं [दे] प्रासाद का शिखर । चातक पक्षी । दीमक |
अवि [स्थेय] रहने योग्य । जो रह सकता हो । पुं. फैसला करनेवाला |
थेग पुं [दे] कन्द-विशेष ।
थेज्जन [स्थैर्य ] स्थिरता ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
थेण-दंठा
थेण पुं [स्तेन] चोर ।
। अल्प काल तक रहनेवाला। थेणिल्लिअ वि [दे] हृत । भीत। । थेवरिअन [दे] जन्म-समय में बजाया जाता थेप्प देखो थिप्प।
__ वाद्य। थेर वि [स्थविर] बूढ़ा। पुं. जैन साधु । थोअ देखो थोव । °कप्प पुं [°कल्प] जैन-मुनियों का आचार- थोअ पं [दे] धोबी। मलक, मूला, कन्दविशेष, गच्छ में रहनेवाले जैन मुनियों का विशेष । अनुष्ठान । आचार-विशेष का प्रतिपादक थोक । ग्रन्थ । 'कप्पिय पुं [कल्पिक] आचार थोक । देखो थोव । विशेष का आश्रय करनेवाला, गच्छ में रहने वाला जैन मुनि । भूमि स्त्री. स्थविर का थोडेरुय देखो घाडेरुय । पद । वलि वि. जैन मुनियों का समूह । क्रम थोणा देखो थूणा । से जैन मुनि-गण के चरित्र का प्रतिपादक ' थोत्त न [स्तोत्र] स्तुति । ग्रन्थ-विशेष ।
थोभ । पुं [स्तोभ, क] 'च', 'वे' थेर पुं दे. स्थविर] ब्रह्मा, विधाता ।
थोभय ) आदि निरर्थक अव्यय का प्रयोग । थेरासण न [दे. स्थविरासन] पद्म, कमल ।
थोर देखो थुल्ल । थेरिअ न [स्थैर्य] स्थिरता।
थोर वि [दे] क्रम से विस्तीर्ण अथ च गोल । थेरिया । स्त्री [स्थविरा] बुढ़िया । जैन थोल पंदे] वस्त्र का एक देश । थेरी । साध्वी।
थोव । वि [स्तोक] अल्प, थोड़ा। पुं. थेरोसण न [दे. स्थविरासन] कमल । थोवाग । समय का एक परिमाण । थेव पुं[दे] बिन्दु ।
| थोह न [दे] बल, पराक्रम । थेव देखो थोव । कालिय वि [°कालिक] | थोहर पुंस्त्री [दे] थूहर का पेड़ ।
द पुं. दन्त-स्थानीय व्यञ्जन-वर्ण-विशेष । | °ण्णु पुं[ज्ञ] ज्योतिषी । देखो देव = देव । दअच्छर पुं [दे] गाँव का अधिपति । दइवय न [दैवत देव । दअरी स्त्री [दे] मदिरा ।
दइविग वि [दैविक] देव-सम्बन्धी, दिव्य, दइ स्त्री [दृति मशक ।
उत्तम। दइअ वि [दे] रक्षित ।
दइव्व देखो दइव । दइअ पुंस्त्री [दृतिका] मशक ।
दउत्ति (शौ) अ [द्राग्] शीघ्र । दइअ वि [दयित] प्रिय । वाञ्छित । पुं.पति । | दउदर ) न [दकोदर] जलोदर का रोग ।
°यम वि [°तम] अत्यन्त प्रिय । पुं. भर्ता ।। दओदर । दइआ स्त्री [दयिता] प्रिया, पत्नी। दओभास पुं [दकावभास] लवण-समुद्र में दइच्च पुं दैत्य असुर । 'गुरु मुं. शुक्राचार्य । स्थित वेलन्धर-नागराज का एक आवासदइन्न न [दैन्य] दीनता, गरीबी।
पर्वत । दइव पुंन [दैव] भाग्य, अदृष्ट, प्रारब्ध । ज, दंठा देखो दाढा।
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दंठि-दत
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दंठि वि [दंष्ट्रिन्] बड़े दाँतवाला, हिंसक देखो दंड। जन्तु ।
दंडपासिंग पुं दाण्डपाशिक] कोतवाल । दंड सक [दण्डय्] सजा करना, निग्रह करना। दंडलइअ वि [दण्डलातिक] दण्ड लेनेवाला, दंड पुं [दण्ड] जीव-हिंसा । शारीरिक या अपराधी ।
आर्थिक दण्ड, दमन । लाठी। दुःख-जनक। दडावण न दण्डन सजा कराना, निग्रह कराना। मन, वचन और शरीर का अशभ व्यापार । दडाविअ वि [दाण्डत जिसको दण्ड दिलाया छन्द-विशेष । एक जैन उपासक । पन. १९२ गया हो वह । अंगुल का एक नाप । आज्ञा । पन. सैन्य। दौड वि [दण्डिन् दण्ड-युक्त । पुं. दण्डधारी उबाल, उफान । पुं. सेनापति । 'अल पं प्रतीहार, दरवान । [°कल] छन्द-विशेष । 'जुज्झ न [युद्ध]
दंडि° देखो दंडी। यष्टि-युद्ध । °णायग पुं [°नायक] दण्ड-दाता,
दंडिअ ' [दण्डिक] सामन्त राजा । राज अपराधविचारकर्ता। सेनापति, सेनानी,
कुलानुगत पुरुष । कोतवाल । प्रतिनियत सैन्य का नायक । °णीइ स्त्री
दंडिअ वि [दण्डित] कैदी। [नीति] नीति-विशेष, अनुशासन । °पह
दंडिअ वि [दण्डिक] दण्डवाला। पुं. राजा । पुं ["पथ] सीधा मार्ग। पासि पुं
दण्ड-दाता, अपराध विचार-कर्ता । [°पाश्चिन्, °पाशिन्] दण्डदाता। कोत
दंडिआ स्त्री [दे] लेख पर लगाई जाती राजवाल । °पुंछणय न [प्रोञ्छनक] दण्डाकार .
मुद्रा। झाडू । °भी वि. दण्ड से डरनेवाला।
दंडिक्किअ वि [दे] अपमानित । °लत्तिय वि [°लात] दण्ड लेनेवाला। वइ
दंडिणी स्त्री [दे. दण्डिनी] राज-पत्नी । पुं [°पति] सेनानी, सेनापति । 'वासिग, दंडिम वि [दण्डिम] दण्ड से निवृत्त । न. सजा °वासिय पुं [दाण्डपाशिक] कोतवाल। करके वसूल किया हुआ द्रव्य ।
वीरिय पं [वीर्य] राजा भरत के वंश का दंडी स्त्री[दे] सूत्र-कनक । साँवा हुआ वस्त्र-युग्म । एक राजा जिसको आदर्श-गृह में केवलज्ञान , साँधा हुआ जीर्ण वस्त्र । उत्पन्न हुआ था। °रास पुं. एक प्रकार का दंत वि [ददत्] दाता। नाच । इय वि [यित]दण्ड की तरह लम्बा। दंत पं [दान्त] बेला। वि. दो उपवास ।
आयइय वि [°ायतिक] पैर को दण्ड की जिसका दमन किया गया हो वह, वश में तरह लम्बा फैलानेवाला। रक्खिग पुं किया हुआ। जितेन्द्रिय। [रक्षिक] दण्डधारी प्रतीहार । रण्ण न दंत पुं [दे] पर्वत का एक देश । [rरण्य] दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध जंगल । दंत पुं [दन्त] दाँत । °कुडी स्त्री [°कुटी] °ासणिय वि [°ासनिक] दण्ड की तरह पैर दाढ । °च्छअ पुं [°च्छद] होठ । धावण न । फैला कर बैठनेवाला । देखो दंडग, दंडय। [ धावन] दाँत साफ करना। दतवन । दंडग । पुं [दण्डक] कर्ण-कुण्डल नगर का
‘पक्खालण न [°प्रक्षालन] वही पूर्वोक्त दंडय ) एक राजा । दण्डाकार वाक्य-पद्धति, अर्थ । ‘पाय न [ पात्र] दाँत का बना हुआ ग्रन्थांश-विशेष । भवनपति आदि चौबीस पात्र । °पुर न. नगर-विशेष । °पहोयण न दण्डक, पद-विशेष । न. दक्षिण भारत का [प्रधावन] देखो धावण। °माल पुं. एक प्रसिद्ध जंगल । गिरि पुं. पर्वत-विशेष। वृक्ष-विशेष । °वक्क पुं [°वक्र] दन्तपुर नगर
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४४८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दंतकार-दक्खण का एक राजा। वलहिया स्त्री । दंभग वि [दम्भक] दम्भी, धूर्त । [°वलभिका] उद्यान-विशेष । वाणिज्ज न दंभोलि पु [दम्भोलि] वज्र । [°वाणिज्य] हाथी-दांत वगैरह दाँत का | दंस सक [ दर्शय ] दिखलाना। व्यापार । °ार पुं [°कार] दाँत का काम | दंश सक [ दंश् ] काटना, दाँत से काटना । करनेवाला शिल्पी।
दंस पुं [दंश] डाँस, बड़ा मच्छड़ । दन्त-क्षत, दंतकार पुं [दन्तकार] दाँत बनानेवाला | सर्प या अन्य किसी विषेले कीड़े से काटा हुआ शिल्पी।
घाव। दंतकुंडी स्त्री [दन्तकुण्डी] दंष्ट्रा ।
दंस पुं [दर्श] सम्यक्त्व, तत्त्व-श्रद्धा । दंतवक्क पुं [दान्तवाक्य] चक्रवर्ती राजा।। दंसग वि [दर्शक] दिखलानेवाला । दंतवण न [दे. दन्तपवन] दन्त-शुद्धि । दाँत | दंसण पुंन [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण । साफ करने का काष्ठ ।
आँख । सम्यक्त्व, तत्त्व-श्रद्धा । सामान्य दंतवण्ण पुंन [ दे. दन्तपवन ] दतवन ।
ज्ञान । मत, धर्म । शास्त्र विशेष । °मोह न. दंतसोहण न [दन्तशोधन] दतवन ।
तत्त्व-श्रद्धा का प्रतिबन्धक कर्म-विशेष । दंताल पुंस्त्री [दे] घास काटने का हथियार ।
मोहणिज्ज न [°मोहनीय] कर्म-विशेष । दंति [दन्तिन्] हाथी । पर्वत-विशेष । वरण न. सामान्य-ज्ञान का आवरक कर्म । दंतिअ पुं [दे] शशक, खरगोश, खरहा ।
गवरणिज्ज न [°वरणीय] पूर्वोक्त ही दंतिदिअ वि [दान्तेन्द्रिय] इन्द्रिय-निग्रही ।
अर्थ । देखो दरिसण। दंतिक्क न [दे] चावल का आटा। दंसण न [दंशन] दाँत से काटना । दंतिक्कग न [दे] माँस ।
दंसणि वि [दर्शनिन्] किसी धर्म का अनुदंतिया स्त्री [दन्तिका] एक वृक्ष-विशेष, बड़ी | | यायी । दार्शनिक, दर्शन-शास्त्र का जानकार । सतावर ।
तत्त्व-श्रद्धालु। दंती स्त्री [दन्ती] स्वनाम-ख्यात वृक्ष । | दंसणिआ स्त्री [दर्शनिका] दर्शन, अवलोकन । दंतुक्खलिय पुं [दन्तोलखलिक] तापस-दसाव सक [ दर्शय् ] दिखलाना। विशेष जो दांतों से ही व्रीहि या धान वगैरह | दंसि वि [ दर्शिन् ] देखनेवाला। को निस्तुष कर खाते हैं।
दक्क वि [दष्ट] जो दाँत से काटा गया हो दंतुर वि [दन्तुर] उन्नत दाँतवाला, जिसके वह। दाँत उभड़-खाबड़ हों। नीचा स्थान, विषम | दक्ख सक [ दृश् ] देखना, अवलोकन स्थान । आगे आया हुआ, आगे निकल आया | करना। हुआ।
दक्ख सक [ दर्शय् ] दिखलाना । दंतुरिय वि [दन्तुरित] ऊपर देखो। दक्ख वि [दक्ष] निपुण, चतुर । पुं. भूतानन्द दंद पुं[द्वन्द्व] व्याकरण-प्रसिद्ध उभयपद-प्रधान नामक इन्द्र के पदाति-सैन्य का अधिपति समास । न. परस्पर-विरुद्ध शीत-उष्ण, सुख- देव । भगवान् मुनिसुव्रत-स्वामी का एक दुःख आदि युग्म । कलह, क्लेश । युद्ध। । पौत्र। दंपइ पुं. ब. [दम्पति] पति-पत्नी।
दक्ख देखो दक्खा। दंभ पुं [दम्भ] माया, कपट । छन्द-विशेष । | दक्खज्ज पुं [दे] गीध । ठगाई।
दक्खण न [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण ।
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दक्खव - दडवड
वि. देखनेवाला, निरीक्षक | दक्खव संक [ दर्शय् ] दिखलाना, बतलाना । दक्खा स्त्री [द्राक्षा] दाख, अंगूर । दक्खायणी स्त्री [ दाक्षायणी] शिव - पत्नी । दक्खिण वि [दक्षिण] दक्षिण दिशा में स्थिति । निपुण, चतुर । हितकर, अनुकूल । दाहिना । 'पच्छिमा स्त्री [° पश्चिमा] दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा, नैर्ऋत कोण । 'पुव्वा स्त्री [° पूर्वा ] अग्नि कोण | देखो दाहिण ।
दक्खिणत्त वि [ दाक्षिणात्य ] दक्षिण दिशा में
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उत्पन्न ।
दक्खिणा स्त्री [दक्षिणा ] दक्षिण दिशा । दक्षिण देश । धर्म-कर्म का पारितोषिक, दान, भेंट | कंखि व [काङ्क्षिन् ] दक्षिणा का अभिलाषी । 'यण न [न] सूर्य का दक्षिण दिशा में गमन । कर्क की संक्रान्ति से धन की संक्रान्ति तक के छः मास का काल । 'वध, वह पुं [पथ] दक्षिण देश । दक्खिणापुव्वा देखो दक्खिण-पुव्वा । दक्खिणिल्ल वि [दाक्षिणात्य ] दक्षिण में उत्पन्न या स्थित । दक्खिय वि [ दाक्षिणेय ] जिसको दक्षिणा
दिशा
दी जाती हो वह |
दक्खिण्ण न [ दाक्षिण्य ] मुलाहजा, मुरव्वत 1 उदारता । सरलता, मार्दव | अनुकूलता । दक्खु देखो दक्ख = दृश् । दक्खु देखो दक्ख = दक्ष ।
दक्खुवि [पश्य, द्रष्टृ] देखनेवाला । पुं. सर्वज्ञ, जिन देव |
दक्खु वि [दृष्ट] विलोकित । पुं. सर्वज्ञ, जिनदेव |
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पुं [पञ्चवर्णं] ज्योतिष्क देव - विशेष, एक ग्रह का नाम | 'पासाय पुं [प्रासाद] स्फटिक रत्न का बना हुआ महल | पिप्पली स्त्री. वनस्पति- विशेष । “भास पुं वेलन्धर नागराज का एक आवास पर्वत | मंचग पुं [ मञ्चक] स्फटिक रत्न का मञ्च | 'मंडव पुं [ मण्डप ] मण्डप - विशेष जिसमें पानी टपकता हो । स्फटिक रत्न का बनाया हुआ मण्डप । मट्टिया 'भट्टी स्त्री [ मृत्तिका ] पानीवाली मिट्टी | कला - विशेष । रक्खस पुं [° राक्षस ] जल- मानुष के आकार का जन्तुविशेष | य पुंन [° रजस्] उदक-बिन्दु, जल - कणिका । "वण्ण पुं [वर्ण] ज्योतिष्क ग्रह-विशेष | 'वारग, वारय पुं ['वारक] पानी का छोटा घड़ा | 'सीम पुं [ 'सीमन् ] वेलन्धर नागराज का एक आवास पर्वत । दग न [दक ] स्फटिक रत्न | सोयरिअ वि [ शौकरिr] सांख्य मत का अनुयायी । दच्चा देखो दा का संकृ. । |दच्छ देखो दक्ख =
दृश् । दच्छ देखो दक्ख = दक्ष | दच्छवि [] तीक्ष्ण, तेज ।
दझंत
दज्झमाण
दट्ठ वि [दष्ट] जिसको दाँत से काटा गया हो वह ।
दह = दह का कवकृ. ।
[दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित । दतिय वि [दान्तिक ] जिसपर दृष्टान्त दिया गया हो वह अर्थ |
दट्टु देखो दक्ख = दृश् का संकृ. । दट्ठ वि [द्रष्टृ] दर्शक |
दट्टुआण
दग न [दक] पानी । पुं. ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष । लवण-समुद्र में स्थित एक आवास पर्वत । 'गब्भ पुं [ 'गर्भ] बादल | 'तुंड पुं [' तुण्ड ] पक्षि - विशेष | ° पचवन्न | दडवड पुं [दे] घाटी, दर्रा, अवस्कन्द । जल्दी |
दट्ठूणं
५७
दट्ठ
दण
दक्ख = दृश् का संकृ. ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दडि-दप्प दडि स्त्री [दे] वाद्य-विशेष ।
°इंद। दड्ढ वि [दग्ध] जला हुआ।
दत्त वि. दिया हुआ, दान किया हुआ, वितीर्ण। दड्ढालि स्त्री [दे] देव-मार्ग ।
न्यस्त, स्थापित । पुं. एक श्रेष्ठि-पुत्र । भरतदढ वि [दृढ] मजबूत, बलवान्, पोढ़ । निश्चल, वर्ष के एक भावी कुलकर पुरुष । चतुर्थ निष्कम्प । समर्थ । अति-निबिड, प्रगाढ़ । बलदेव के पूर्व-जन्म का नाम । भरत-क्षेत्र में कठोर, कठिन । क्रिवि. अतिशय, अत्यन्त । उत्पन्न एक अर्ध-चक्रवर्ती राजा, एक वासुदेव ।
केउ [केतु] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी भरत-क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न जिन-देव का नाम । °णेमि देखो °नेमि । । एक जिन-देव। एक जैनमुनि । नृप-विशेष । 'धणु [ °धनुष ] ऐरवत क्षेत्र के एक एक जैन आचार्य । न. दान, उत्सर्ग । भावी कुलकर का नाम । भरत क्षेत्र के एक दत्त न [दात्र] दांती, घास काटने का हँसिया। भावी कुलकर का नाम । धम्म वि[°धर्मन्] दत्ति स्त्री. एक बार में जितना दान दिया जाय जो धर्म में निश्चल हो । देव-विशेष का नाम। वह, अविछिन्न रूप से जितनी भिक्षा दी जाय °धिईय वि [धृतिक] अतिशय धैर्यवाला। वह । 'नेमि पुं. राजा समुद्रविजय का एक पुत्र दत्तिय पुंस्त्री [दत्तिका] ऊपर देखो। जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा ली| दत्तिय पुं [दत्रिक वायु-पूर्ण चर्म । थी और सिद्धाचल पर्वत पर मुक्ति पाई थी। दत्तिया स्त्री [दात्रिका] छोटी दाँती, घास °पइण्ण वि [प्रतिज्ञ] स्थिर-प्रतिज्ञ, सत्य- काटने का शस्त्र-विशेष । दान करनेवाली स्त्री। प्रतिज्ञ । पुं. सूर्याभ देव का आगामी जन्म में | दत्थर पुं [दे] हस्त-शाटक । होनेवाला नाम । °प्पहारि वि [प्रहारिन्] | दद्दर पुं [दे. दर्दर] कुतुप आदि के मुंह पर मजबूत प्रहार करने वाला। पुं. जैनमुनि-विशेष बाँधा जाता कपड़ा। वि. घना, प्रचुर, अत्यन्त। जो पहले चोरों का नायक था और पीछे से पुं. चपेटा, हस्त-तल का आघात । प्रहार । दीक्षा लेकर मुक्त हुआ था। भूमि स्त्री. एक | वचनाटोप । सीढ़ी । वाद्य-विशेष । गाँव का नाम । 'मूढ वि. नितान्त मूर्ख। 'रह | दद्दरिगा देखो दद्दरिया। पुं[रथ] एक कुलकर पुरुष का नाम । भग- दद्दरिया स्त्री [दे. दर्दरिका] प्रहार, आघात । वान् श्री शीतलनाथजी के पिता का नाम । वाद्य-विशेष । °रहा स्त्री [°रथा] लोकपाल आदि देवों के | ददु पुं [दद्रु] दाद, क्षुद्र कुष्ठ-रोग । अग्र-महिषियों की बाह्य परिषद् । उ पुं ददर दर्दर] प्रहार, आघात । मेढ़क । [आयुष्] भगवान् महावीर के समय में तीर्थ
चमड़े से अवनद्ध मुंहवाला कलश । देव-विशेष । कर-नामकर्म उपार्जन करनेवाला एक मनुष्य ।
राहु, ग्रह-विशेष । पर्वत-विशेष । वाद्य-विशेष । भरत-क्षेत्र के एक भावी कुलकर पुरुष का
न. दर्दुर देव का सिंहासन । वडिसय न नाम।
[वतंसक] देव-विशेष, सौधर्म देवलोक का दढगालि स्त्री [दे] धोया हुआ सदश वस्त्र । एक विमान । देखो दाढगालि ।
ददुल वि [दद्रुमत् दाद-रोगवाला । दणु । पुं[दनुज] दैत्य । "इंद, °एंद पुं दद्ध देखो दड्ढ । दणुअ । [°इन्द्र] दानवों का अधिपति । दधि देखो दहि ।
रावण, लंकापति । °वइ पुं [ पति] देखो | दप्प पुं [दर्प] अहंकार । पराक्रम, जोर ।
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दप्पण-दरिद्दीहूय
धृष्टता । अरुचि से काम का आसेवन । दप्पण पुं [दर्पण] कांच | वि. दर्पजनक | दप्पणिज्जवि [दर्पणीय] बल-जनक, पुष्टि -
चाहना | देना ।
दय न [दे. दक] जल । 'सीम पुं [ 'सीमन् ] लवण समुद्र में स्थित एक आवास पर्वत । दय न [] अफसोस ।
दय देखो दव = दव | 'दय वि. देनेवाला । दया स्त्री. करुणा,
दयालु ।
दब्भ पुं [दर्भ] तृण-विशेष । पुप्फ पं [° पुष्प ] दयाइअ वि [दे] रक्षित |
साँप की एक जाति ।
दयालु वि. दयावाला, करुण । दयावण वि [दे] दीन | दयावन्न
कारक ।
दप्प वि [दर्पिक] दर्प-जनित | for a [ दर्पित] अभिमानी, गर्वित । for a [ दर्पिष्ठ] अत्यन्त अहंकारी । दप्पुल्ल वि [दर्पवत् ] अहंकारवाला |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दब्भायण
दब्भियायण भय न [ दार्भिक ] गोत्र - विशेष ।
दमक [दमय् ] दमन करना, रोकना ।
दम पुं. दमन । इन्द्रिय-निग्रह, बाह्य वृत्ति का निरोध । 'घोस पुं [घोष] चेदि देश के एक राजा का नाम | °दंत [°दन्त] हस्तिशीर्षक नगर का एक राजा । एक जैन मुनि ।
धर पुं. एक जैन मुनि ।
न [दार्भायन, दार्भ्यायन]
चित्रा नक्षत्र का गोत्र ।
दमग देखो दमय ।
दमग वि [दमक ] दमन करनेवाला | दमण देखो दमणक ।
दमण न [ दमन ] निग्रह, दान्ति । वश में करना । उपताप, पीड़ा । पशुओं को दी जाती शिक्षा |
दमणक
दमणग
}
पुंन [ दमनक] दौना, सुगन्धित पत्रवाली वनस्पति- विशेष । छन्दविशेष | गन्ध- द्रव्य - विशेष ।
४५१
दरस (शौ) देखो दरिस । दरि न [द] कन्दरा |
दमणय
दरि देखो दरी ।' अर पुं [°चर] किनर । दरअवि [दृप्त ] गर्विष्ठ ।
दमदमा अक [दमदमाय् ] आडम्बर करना । दमय व [दे. द्रमक ] गरीब |
दरिअवि [दीर्ण] भीत । विदारित ।
दमयंती स्त्री [दमयन्ती ] राजा नल की पत्नी । दरिअ (अप) पुं [ दरिद्र ] छन्द - विशेष । मिवि [दमिन्] जितेन्द्रिय । दरिआ स्त्री [दरिका ] कन्दरा |
दमिल पुं [द्रविड] एक भारतीय देश । पुंस्त्री. दरिद्द वि [दरिद्र] निःस्व, धन-रहित । द्राविड़ | दरिद्दिय वि [ दरिद्रित ] दुःस्थित, जो धन
रहित हुआ हो ।
कृपा । वरवि [पर]
दरसक [दृ] आदर करना ।
दर पुंन. डर । गुफा । गर्त, गड्ढा, दरार । अ. अल्प ।
दर न [दे] आधा |
दरंदर पुं [दे] उल्लास । दरमत्ता स्त्री [दे] जबरदस्ती ।
दरमल सक [मर्दय् ] चूर्ण करना, विदारना ।
आघात करना ।
दरवलिअ वि [दें] उपभुक्त ।
दरवल्ल पुं [दे] गाँव का मुखिया । णिहेल्लण न] [] खाली घर | वल्लह पुं ['वल्लभ ] प्रिय । डरपोक | °विंदर वि [ दे] दीर्घ विरल |
दम्म पुं [द्रम्म] सोने का सिक्का । दय सक [दय्] रक्षण करना । कृपा करना । दरिद्दीहूय वि[ दरिद्रीभूत] जो निर्धन हुआ हो ।
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४५२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दरिस-दविल दरिस सक [दर्शय] दिखलाना, बतलाना। | दलिद्दा अक [दरिद्रा] दुर्गत होना, दरिद्र होना । दरिसण देखो दंसण = दर्शन । °पुर न. नगर- दलिल्ल वि [दलवत्] दलवाला। विशेष । °आवरणी स्त्री [°ावरणी] विद्या- | दव सक [P] गति करना । छोड़ना। विशेष।
दव पुं. जंगल की अग्नि । वन । °ग्गि पुं. दरिसणिज्ज न [दर्शनीय] आकृति, रूप । [°ग्नि] जंगल की अग्नि । अवलोकन ।
दव पुं [द्रव] परिहास । जल । पनीली वस्तु, दरिसणिज्ज । न. उपहार ।
रसीली चीज । वेग । संयम, विरति । °कर दरिसणीय
वि. परिहासकारक । °कारी, गारी स्त्री दरिसाव देखो दरिस।
[°कारी] एक प्रकार की दासी जिसका काम दरिसाव पुं [दर्शन] दर्शन, साक्षात्कार ।
परिहासजनक बातें कर जी बहलाना होता है। दिखावा।
दवण न [दवन] यान, वाहन । दरिसावण न [दर्शन]दर्शन, साक्षात्कार । वि.
दवणय देखो दमणय। दर्शक, दिखलानेवाला।
दवदव । अ [द्रवद्रवम्] शीघ्र । दरी स्त्री. गुफा ।
दवदवस्स दरुम्मिल्ल वि [दे] निबिड ।
दवदवा स्त्री [द्रवद्रवा] वेगवाली गति । दल सक [दा] देना, दान करना, अर्पण करना।
दवर पुं [दे] तन्तु, धागा । दल अक [दल्] विकसना । फटना, खण्डित
दवरिया स्त्री [दे] छोटी रस्सी। होना, द्विधा होना।
दवहुत्त न [दे] ग्रीष्म काल का प्रारम्भ । दल सक [दलय] चूर्ण करना, टुकड़े-टुकड़े
दवाव सक [दापय] दिलाना । करना, विदारना।
दविअ पुंन [द्रव्य] अन्वयी वस्तु, जीव आदि दल न. सैन्य । पत्ता, पंखुड़ी। सम्पत्ति ।
मौलिक पदार्थ, मूल वस्तु । वस्तु, गुणाधार समुदाय । खण्ड, भाग, अंश ।
पदार्थ । वि. भव्य, मुक्ति के योग्य । भव्य, दलण न [दलन] पीसना, चूर्णन । वि. चूर्ण
सुन्दर, शुद्ध । राग-द्वेष से विरहित । गणुकरनेवाला ।
ओग पुं [°ानुयोग] पदार्थ-विचार, वस्तु की दलमल देखो दरमल ।
मीमांसा । देखो दव्व। दलय देखो दल = दा।
दविअ वि [द्रविक] संयमी। दलय सक [दापय] दिलाना ।
दविअ वि [द्रवित] द्रव-युक्त, पनीली वस्तु । दलवट्ट देखो दरमल।
दविड देखो दविल। दलवट्टिय देखो दलमलिय ।
दविडी स्त्री [द्राविडी] लिपि-विशेष, तमिल दलाव सक [दापय्] दिलाना ।
भाषा। दलिअ वि [दलित] विकसित, खिला हुआ। | दविण न [द्रविण] सम्पत्ति । पीसा हुआ । विदारित, खण्डित ।
दविय न [द्रव्य] घास का जंगल, वन में घास दलिअ न [दलिक] वस्तु, द्रव्य । पण्डित । के लिए सरकार से अवरुद्ध भूमि । तृण आदि दलिअ वि [दे] जिसने टेढ़ी नजर की हो वह। द्रव्य-समुदाय । न. उंगली । काष्ठ ।
दविल पुं [द्रविड] मद्रास प्रान्त । पुंस्त्री. दलिद्द देखो दरिद्द ।
| द्रविड़ देश का निवासी मनुष्य, द्राविड़ ।
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दव्व-दसा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४५३
दव्व देखो दविअ = द्रव्य । धन । भूत या का लगातार उपवास । °मभत्तिय वि [°मभभविष्य पदार्थ का कारण । गौण । बाह्य, क्तिक] चार दिनों का लगातार उपवास अतथ्य । °ट्ठिय पुं [आर्थिक, °स्थित, करनेवाला । °मासिअ वि [°माषिक] दस "आस्तिक] द्रव्य को ही प्रधान माननेवाला मासे की तौलवाला, दस मासे का परिमाणपक्ष, नय-विशेष । लिंग न [ लिङ्ग] बाह्य वाला । °मी स्त्री. दसवीं । तिथि-विशेष । वेष । लिंगि वि [लिङ्गिन्] भेषधारी | °मुद्दियाणंतग न [°मुद्रिकानन्तक] हाथ साधु । 'लेस्सा स्त्री [°लेश्या] शरीर आदि | की उँगलियों को दस अंगूठियाँ । °मुह पुं पौद्गलिक वस्तु का रंग, रूप। °वेय पुं [°मुख] रावण, राक्षस-पति । °मुहसुअ पुं [ वेद] पुरुष आदि का बाह्य आकार । [°मुखसुत] रावण का पुत्र, मेघनाद आदि । "ायरिय पुं. [°ाचार्य] अप्रधान आचार्य, °य देखो °ग । रत्त न [°रात्र] दस रात । आचार्य के गुणों से रहित आचार्य ।
रह पुं[°रथ] रामचन्द्रजी के पिता का दव्व न [द्रव्य] योग्यता।
नाम । अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न एक दव्वहलिया स्त्री [द्रव्यहलिका] वनस्पति- कुलकर पुरुष । रहसुय पुं[°रथसुत] राजा विशेष ।
दशरथ के पुत्र-राम, लक्ष्मण, भरत और दव्वि देखो दव्यो।
शत्रुघ्न । °वअण पुं [°वदन] राजा रावण । ददिवदिअ न [द्रव्येन्द्रिय] स्थूल इन्द्रिय । °वल देखो °बल। "विह वि [विध] दस दव्वी स्त्री [दर्वी] की, कलछी, चमची,
प्रकार का। "वेआलिअ न [वैकालिक] डोई । साँप का फन । °अर, कर पुं [कर]
जैन आगम-ग्रन्थ-विशेष । 'हा अ [°धा] दस
प्रकार से । आणण ' [°नन] राक्षसेश्वर दव्वी स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष ।
रावण । °ाहिया स्त्री [°ाहिका] पुत्र-जन्म दस त्रि. ब. [ दशन् ] दस की संख्या ।
के उपलक्ष्य में किया जाता दस दिनों का
एक उत्सव । °उर न [°पुर ] नगर-विशेष । °कंठ | पुं [°कण्ठ] रावण, एक लंका-पति । °कंधर |
दसग वि [दशक] दस वर्ष की उम्र का । पुं[ कन्धर] राजा रावण । कालियन | दसण पुं [दशन] दाँत । न. दंश, काटना । [कालिक] एक जैन आगम-ग्रन्थ । ग न | ‘च्छय पुं [°च्छद] होठ । [क] दश का समह । 'गुण वि. दसगुना । | दसण्ण पुं [दशार्ण] देश-विशेष । कूड न °गुणिअ वि [°गुणित] दस-गुना । °ग्गीव पुं| [°कूट] शिखर-विशेष । पुर न. नगर-विशेष। [°ग्रीव रावण । दसमिया स्त्री[°दशमिका] भद्द पुं [भद्र] दशार्णपुर का एक विख्यात
जैनसाधु का एक धार्मिक अनुष्ठान, प्रतिमा- राजा जी अद्वितीय आडम्बर से भगवान् विशेष । °दिवसिय वि ['दिवसिक] दस | __ महावीर को वन्दन करने गया था और जिसने दिन का। "द्ध पुंन ["पर्ध] पाँच । धणु पं भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी। [°धनुष्] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी कुलकर | "वइ पुं [°पति दशार्ण देश का राजा। पुरुष । “पएसिय वि [ प्रादेशिक] दस अव- | दसतीण न दे] धान्य-विशेष । यववाला। °पुर देखो "उर। पुव्वि विदसा स्त्री [दशा] स्थिति। सौ वर्ष के प्राणी [°पूर्विन] दस पूर्व-ग्रन्थों का अभ्यासी । °बल | की दस-दस वर्ष की अवस्था । सूत या ऊन पुं. भगवान् बुद्ध । म वि. दसवाँ । चार दिनों का छोटा और पतला धागा। जैन आगम
सर्प।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दसार-दाढिगालि ग्रन्थ-विशेष ।
दहित्थर , पुं [दे] दही पर की मलाई, दसार पुं [दशाह] समुद्र विजय आदि दस दहित्थार । खाद्य-विशेष । यादव । श्रीकृष्ण । बलदेव । वासुदेव की दहिमुह पुं [दे] वानर । सन्तति । °णेउ पुं [°नेतृ] श्रीकृष्ण । 'नाह दहिय पुं [दे] पक्षि-विशेष । पं[°नाथ] श्रीकृष्ण । °वइ पुं [°पति] दा सक. देना, उत्सर्ग करना । श्रीकृष्ण ।
दा देखो ता = तावत् । दसिया देखो दसा।
! दा देखो दग। °थालग न [°स्थालक] जल दसु पुंदे] शोक, दिलगीरी ।
। से गीला थाल । कलस पुं [°कलश] पानी दसूत्तरसय न [दशोत्तरशत] एक सौ दस।: का छोटा घड़ा । °कुंभ [ कुम्भ] जल का वि. ११० वाँ।
घड़ा। °वरग पुं [°वरक] जल का पात्रदसुय पुं दस्यु] लुटेरा, चोर ।
विशेष । दसेर पुं [दे] सूत्र-कनक ।
दाअ देखो दाव = दर्शय । दस्स देखो दस = दर्शय ।
दाअ पुं [दे] प्रतिभू, जामिनदार । दस्सण देखो दसण।
दाअ पुं [दाय] दान, उत्सर्ग। दस्सु पुं [दस्यु] तस्कर।
दाइ वि [दायिन्] दाता । दह सक [दह ] जलना, भस्म करना ।
दाइअ वि [दर्शित] दिखलाया हुआ। दह पुं [द्रह] ह्रद, सरोवर । 'फुल्लिया स्त्री दाइअ पुं [दायिक] पैतृक सम्पत्ति का हिस्से[°फुल्लिका] वल्ली-विशेष । °वई, गवई दार । समान-गोत्रीय। स्त्री [°वती] नदी-विशेष ।
दाइज्जय न [देयक] पाणिग्रहण के समय वरदह देखो दस ।
वधू को दिया जाता द्रव्य । दहण न [दहन] दाह, भस्मीकरण । पुं.अग्नि । दाउ वि [दातृ] दाता। दहणी स्त्री [दहनी] विद्या-विशेष । दाओयरिय वि [दाकोदरिक] जलोदर रोगदहबोल्ली स्त्री [दे] स्थाली, थलिया। वाला । दहावण वि [दाहक] जलानेवाला । दाक्खव (अप) देखो दक्खव । दहि न [दधि] दही । °घण पुं [°घन]अतिशय दाघ देखो दाह ।
जमा हुआ दही । °मुह पुं ["मुख] द्वीप- दाडिम न. अनार का फल । विशेष । एक नगर । पर्वत-विशेष । °वण्ण पुं दाडिमी स्त्री. अनार का पेड़ । [पर्ण] एक राजा। वृक्ष-विशेष । वासूया दाढगालि देखो दढगालि। स्त्री [°वासुका] वनस्पति-विशेष । °वाहण । दाढा स्त्री [दंष्ट्रा] बड़ा दाँत, दन्त-विशेष, पुं [°वाहन] नप-विशेष । सर पुं. खाद्य-द्रव्य- ___ चौभड़, चहू, दाढ़ । विशेष, मलाई।
दाढि वि [दंष्ट्रिन्] दाढ़वाला । पुं. हिंसक दहि त्रि [दधि] दही । तेला, लगातार तीन पशु । सूअर, वराह । दिन का उपवास ।
दाढिआ स्त्री [दे] दाढ़ी, मुख के नीचे का भाग, दहिउप्फ न [दे] मक्खन ।
श्मश्रु । दहिट्ठ पुं [दे] कपित्थ ।
दाढिआलि ) स्त्री [दंष्ट्रिकावलि] दाढ़ा दहिण देखो दाहिण।
दाढिगालि ) की पंक्ति । वस्त्र-विशेष ।
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दाणी
दाण-दारु
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दाण पुंन [दान] दान, उत्सर्ग, त्याग । हाथी में निबद्ध एक मन्त्र-विद्या । का मद । जो दिया जाय वह । °विरय पुं ! दामी स्त्री. लिपि-विशेष । [विरत]एक राजा । साला स्त्री [°शाला] | दामोअर पुं [दामोदर] श्रीकृष्ण वासुदेव । सत्रागार।
अतीत उत्सर्पिणी काल में भरत-क्षेत्र में उत्पन्न दाणंतराय न [दानान्तराय ] कर्म-विशेष नववाँ जिनदेव । जिसके उदय से दान देने की इच्छा नहीं दायग वि [दायक] दाता । होती है।
दायण न [दान] देना। दाणपारमिया स्त्री [ दानपारमिता ] दान, | दायणा स्त्री [दापना] पृष्ट अर्थ की व्याख्या । उत्सर्ग समर्पण ।
दायय देखो दायग। दाणव पुं [दानव] असुर ।
दायाद पुं [दायाद] पैतृक सम्पत्ति का भागीदाणविंद पुं [दानवेन्द्र] असुरों का स्वामी । दार, पुत्र, सपिंड कुटुम्बी। दाणि स्त्री [दे] चुंगी।
दायार वि [दायार] याचक, प्रार्थी । दाणि )
दार सक [दारय्] विदारना, तोड़ना, चूर्ण दाणि अ [इदानीम्] इस समय, अभी।
करना ।
दार पुं [दे] कटी-सूत्र, काँची । दाथ वि [द्वाःस्थ] द्वार पर स्थित । पुं.
| दार पुन. महिला। प्रतीहार, द्वारपाल, चपरासी ।
दार न [द्वार] दरवाजा, निकलने का मार्ग । दादलिआ स्त्री [दे] अंगुली ।
ग्गला स्त्री [°ार्गला] दरवाजे का आगल । दापण न [दापन] दिलाना।
टू, 'त्थ वि [°स्थ] द्वार पर स्थित । पुं. दाम न [दामन्] माला । रस्सी । पुं. वेलन्धर |
दरवान । °पाल, °वाल पुं [°पाल] द्वारनागराज का एक आवास-पर्वत । °वंत वि रक्षक । °वालय, वालिय पुं. [°पालक, [वत्] मालावाला।
पालिक] प्रतीहार । दामट्टि पु [दामस्थि] सौधर्म देवलोक के इन्द्र | दार । [दारक] बच्चा । देखो दारय । के वृषभ-सैन्य का अधिपति देव ।
दारग ) दामड्ढि पुं [दाद्धि] ऊपर देखो ।
दारद्धता स्त्री दे] पेटी । दामण न [दामन] बन्धन, पशुओं का रस्सी | दारय वि [दारक] करनेवाला, विध्वंसक । से नियन्त्रण ।
देखो दारग। दामण स्त्रीन [दामनी] पशु को बांधने की | दारिअ वि [दारित] विदारित, फाड़ा हुआ । डोरी- रस्सी, पगहा।
दारिआ स्त्री [दारिका] लड़की । दामणा स्त्री [दे] प्रसूति । आँख ।
दारिआ स्त्री [दे] वेश्या । दामणी स्त्री [दामनी] पशुओं को बांधने की | दारिद्द न [दारिद्र्य] निर्धनता । दीनता। रस्सी । भगवान् कुन्थुनाथ की मुख्य शिष्या। आलस्य । स्त्री और पुरुष का रज्जु के आकारवाला एक दारु न. काष्ठ । 'ग्गाम पु [ग्राम] ग्रामशुभ-लक्षण ।
विशेष । °दंडय पुंन [दण्डक] काष्ठ-दण्ड, दामिय वि [दामित] संयमित, नियन्त्रित । साधुओं का एक उपकरण । °पव्वय पुं दामिली स्त्री [द्राविडी] द्रविड़ देश की लिपि । [°पर्वत] पर्वत-विशेष । °पाय न [पात्र]
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४५६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दारुअ-दि
काष्ठ का बना हुआ भाजन । °पुत्तय पुंदावणया स्त्री [दापना] दिलाना। [पुत्रक] कठपुतला । °मड पुं. भरत-क्षेत्र के दावद्दव पुंदावद्रव] वृक्ष-विशेष । एक भावी जिन-देव के पूर्वजन्म का नाम । दावर पुं [द्वापर] तीसरा युग । न. द्विक, दो। संकम पुं [संक्रम] काष्ठ का बना हुआ | जुम्म पुं [°युग्म] राशि-विशेष । पुल सेतु ।
दावाव सक [दापय] दिलाना । दारुअ पुं [दारुक] श्रीकृष्ण वासुदेव का एक दाविअ वि [द्रावित] झराया हुआ, टपकाया पुत्र जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा हुआ । नरम किया हुआ। लेकर उत्तम गति प्राप्त की थी। श्रीकृष्ण का दास पुं. [दर्श] दर्शन, अवलोकन । एक सारथि । न. लकड़ी।
दास पुं. नौकर । धीवर । °चेड, °चेटग पुं दारुइज्ज वि दारुकीय] काष्ठ-निर्मित, लकड़ी [°चेट] छोटी उम्र का नौकर । नौकर का का बना हुआ । °पव्वय पं [पर्वत] काष्ठ __ लड़का । सच्च पुं [°सत्य] श्रीकृष्ण । का बना हुआ मालूम पड़ता पर्वत । दासरहि पुं [दाशरथि] राजा दशरथ का दारुण वि. विषम, भयंकर, भीषण । क्रोध-युक्त, पुत्र, रामचन्द्र । रौद्र । न. कष्ट, दुःख । दुर्भिक्ष ।
दासीखब्बडिया स्त्री [दासीकर्वटिका] जैन दारुणी स्त्री. विद्यादेवी-विशेष ।
मुनियों की एक शाखा। दालण न [दारण] विदारण, खण्डन ।
दाह पुं. ताप, जलन । दहन, भस्मीकरण । दालि स्त्री [दे, दालि] दाल, दला हुआ चना, रोग-विशेष । जर पुं [°ज्वर ज्वर-विशेष । अरहर, मंग आदि अन्न । राजि, रेखा,
°वक्कंतिय वि [ व्युत्क्रान्तिक] जिसको लकीर।
दाह उत्पन्न हुआ हो वह । दालिअ न [दे] नेत्र ।
दाहग वि [दाहक] जलानेवाला । दालिद्द देखो दारिद्द ।
दाहण न [दाहन] जलाना, भस्म कराना। दालिद्दिय देखो दारिदिय ।
दाहविय वि [दाहित] जलवाया हुआ। आग दालिम देखो दाडिम।
लगवाया हुआ। दालियंब न [दालिकाम्ल] दाल का बना | दाहिण देखो दक्खिण। °दारिय वि हुआ खाद्य-विशेष ।
[°द्वारिक] दक्षिण दिशा में जिसका द्वार हो दालिया स्त्री [दालिका] देखो दालि । वह । न. अश्विनी-प्रमुख सात नक्षत्र । दाली देखो दालि।
°पच्चत्थिम वि [°पश्चिमीय] दक्षिण और दाव सक [दर्शय] दिखलाना, बतलाना। पश्चिम दिशा के बीच का भाग, नैऋत कोण । दाव सक [दापय] दिलाना, दान करवाना। °पह पुं [पथ] दक्षिण देश की ओर का दाव देखो ताव = तावत् ।
रास्ता। दक्षिण देश । °पुरस्थिम वि दाव पुं. जंगल । देव । जंगल की अग्नि । ग्गि [पूर्वीय] दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच पुं [°ग्नि] जंगल की आग । गणल पुं का भाग, अग्नि-कोण । वित्त वि [वर्त] ["नल] जंगल की आग।
दक्षिण में आवर्तवाला (शंख आदि)। दावण न [दामन] छान, पशुओं के पैर में | दाहिणी स्त्री [दक्षिणा] दक्षिण-दिशा । बाँधने की रस्सी।
दि वि. [द्वि] दो, दो की संख्यावाला। दावण न [दापन] दिलाना ।
| दि° देखो दिसा। °क्करि पुं [करिन्] दिग्
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दिअ-दिटुंति संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४५७ हस्ती । ग्गइंद पुं [गजेन्द्र] दिग्-हस्ती । | दिइ स्त्री [दृति] मशक, चमड़े का जल-पात्र । ग्गय पुं [°गज] दिग्-हस्ती। °चक्कसार | दिउण वि [द्विगुण] दूना, दुगुना । न [°चक्रसार] विद्याधरों का एक नगर । | दिक्काण पुं [द्रेष्काण] मेष आदि लग्नों का °म्मोह पुं [°मोह] दिशा-भ्रम । देखो | दसवां हिस्सा । दिसा।
दिक्ख सक [दीक्ष्] दीक्षा देना, प्रव्रज्या देना, दिअ पुंन [दे] दिवस, दिन ।
संन्यास देना, शिष्य करना । दिअ पुं द्विज] ब्राह्मण । दाँत । ब्राह्मण आदि | दिक्ख देखो देक्ख । तीन वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य । | दिक्खा स्त्री [दीक्षा] प्रवज्या देना, दीक्षण । अण्डज । पक्षी। टिंबरू का पेड़ । प्राय पुं | प्रव्रज्या, संन्यास । [राज] उत्तम द्विज । चन्द्रमा।
दिक्खिअ वि [दीक्षित] जिसको प्रव्रज्या दी दिअ पुं[द्विक कौआ ।
गई हो वह, जो साधु बनाया गया हो वह । दिअ पुं[द्विप] हाथी ।
दिगंछा देखो दिगिंछा। दिअ न [दिव] स्वर्ग । °लोअ, लोग पुं | दिगंबर देखो दिअंबर।। [°लोक देवलोक ।
दिगिछा स्त्री [जिघत्सा] भूख । दिअ वि [दित] छिन्न, काटा हुआ । दिगिच्छ सक [जिघत्स्] खाने को चाहना । दिअ वि [दृत] हत, मार डाला हुआ।
| दिगु पुं [द्विगु] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास । दिअंत पुं [दिगन्त] दिशा का प्रान्त भाग ।।
दिग्गु देखो दिगु। दिअंबर वि [दिगम्बर] वस्त्र-रहित । पुं. एक
दिग्ध देखो दीह । °णंगूल, लंगूल वि जैन सम्प्रदाय ।
[°लागूल] लम्बी पूंछवाला । पुं. वानर । दिअज्झ पुं [दे] सुवर्णकार ।
दिग्घिआ स्त्री [दीर्घिका] वापी, सीढ़ीवाला दिअधुत्त पुंदे] काक।
कूप-विशेष । दिअर पुं [देवर] पति का छोटा भाई ।
दिच्छा स्त्री [दित्सा] देने इच्छा । दिअलिअ वि [दे] मूर्ख, अज्ञानी ।
दिज देखो दिअ = द्विज । दिअली स्त्री [दे] स्थूणा, खम्भा, खूटी।
| दिज वि [देय] देने योग्य । जो दिया जा
सके । पुन. कर-विशेष । दिअस पुंन [दिवस] दिन । °कर पुं. सूर्य ।। नाह पुं [नाथ] सरज। °यर देखो
दिट्ठ वि [दिष्ट] कथित, प्रतिपादित । कर । देखो दिवस ।
दिटु वि [दृष्ट] विलोकित । अभिमत । ज्ञात, दिअसिअ न [दे] सदा-भोजन । प्रतिदिन । प्रमाण से जाना हुआ। न. दर्शन, विलोदिअह देखो दिअस।
कन । पाढि वि [°पाठिन्] चरक-सुश्रुतादि दिअहुत्त न [दे] पूर्वाह्न का भोजन, दुपहर का ___ का जानकार । °लाभिय पुं [°लाभिक] दृष्ट भोजन ।
वस्तु को ही ग्रहण करनेवाला जैन साधु । दिआ अ [दिवा] दिवस । °णिस न [°निश] | दिट्ट न [दृष्ट] प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाण से दिन-रात । 'राअ न [रात्र] सर्वदा।। __ जानने-योग्य वस्तु । साहम्मव न[°साधर्म्यदेखो दिवा।
वत्] अनुमान का एक भेद । दिआइ देखो दुआइ।
दिटुंत पुं [दृष्टान्त] उदाहरण । दिआहम पुं [दे] भास पक्षी।
| दिलृतिअ वि [द्रान्तिक] जिस पर उदा
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४५८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दिट्ठि-दिप्प हरण दिया गया हो वह। न. अभिनय- देखो कर। रयणिकरि स्त्री [ रजनिविशेष ।
करी] विद्या-विशेष । °वइ पुं [पति] सूर्य । दिट्ठि स्त्री [दष्टि] आँख, नजर । दर्शन, मत । दिणिंद पुं[दिनेन्द्र] रवि ।। दर्शन, अवलोकन, निरीक्षण। बुद्धि, मति। दिणेस पुं [दिनेश] सूरज । बारह की संख्या । विवेक, विचार। कीव पुं [क्लीब] दिण्ण वि [दत्त]दिया हुआ, वितीर्ण । निवेशित, नपुंसक-विशेष । जुद्ध न [युद्ध] युद्ध-विशेष, स्थापित । पुं. भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम आँख की स्थिरता की लड़ाई । °बंध पुं गणधर । भगवान् श्रेयांसनाथ का पूर्वजन्मीय [°बन्ध] नजर बाँधना । °म, °मंत वि: नाम । भगवान् चन्द्रप्रभ का प्रथम गणधर । [°मत्] प्रशस्त दृष्टिवाला, सम्यग्-दर्शी। भगवान् नमिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाला °राय पुं[राग] दर्शन-राग, अपने धर्म पर एक गृहस्थ । देखो दिन्न । अनुराग। चाक्षुष-स्नेह । 'ल्ल वि [°मत्] दिण्ण देखो दइन्न । प्रशस्त दृष्टिवाला । वाय पुं[पात] नजर दिण्णेल्लय वि [दत्त] दिया हुआ। डालना । बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । °वाय दित्त वि [दीप्त] ज्वलित, प्रकाशित । कान्तिपुं[°वाद] बारहवाँ जन अंग-ग्रन्थ । °विप- युक्त । तीक्ष्णभूत, निशित । उज्ज्वल, चमरिआसिआ स्त्री [विपर्यासिका, सिता] कीला । पुष्ट, परिवृद्ध । प्रसिद्ध । मारनेवाला । मति-भ्रम । 'विस पुं [विष] जिसकी दृष्टि चित्त वि. हर्ष के अतिरेक से जिसको चित्तमें विष हो ऐसा सर्प । °सूल न [°शूल] भ्रम हो गया हो वह । नेत्र का रोग-विशेष ।
दित्त वि [दप्त] गर्वित । मारनेवाला। हानिदिट्ठि स्त्री [दृष्टि] तारा, मित्रा आदि योग- कारक 1 °इत्त वि [°चित्त] जिसके मन में दृष्टि ।
गर्व हो । हर्ष के अतिरेक से जो पागल हो दिट्ठिआ अ [दिष्ट्या] इन अर्थों का सूचक - वह।
अव्यय-मंगल । हर्ष । भाग्य से। दित्ति स्त्री [दीप्ति] कान्ति, तेज, प्रकाश । म दिद्विआ स्त्री [दृष्टिका, °जा क्रिया-विशेष - वि [°मत्] कान्ति-युक्त । दर्शन के लिए गमन । दर्शन से कर्म का दित्ति स्त्री [दीप्ति] उद्दीपन । °ल्ल वि [°मत्] उदय होना।
प्रकाशवाला। दिट्ठीआ स्त्री [दृष्टीया] ऊपर देखो। दिदिवखा । स्त्री [दिदृक्षा] देखने को दिट्ठीवाओबएसिआ स्त्री [दृष्टिवादो. दिदिच्छा , इच्छा। पदेशिकी] संज्ञा-विशेष ।
दिद्ध वि [दिग्ध] लिप्त । दिटेल्लय वि [दृष्ट] देखा हुआ, निरीक्षित । दिन्न देखो दिण्ण । श्री गौतम स्वामी के पास दिड्ढ । देखो दढ ।
पाँच सौ तापसों के साथ जैन-दीक्षा लेनेवाला दिढ ।
एक तापस । एक जैन आचार्य । दिण पुंन [दिन] दिवस । "इंद पुं ["इन्द्र] | दिन्नय पुं [दत्तक] गोद लिया हुआ पुत्र । सर्य । °कय पुं [कृत् ] रवि । कर दिप्प अक [दीप्] चमकना। तेज होना । पुं. सूरज । °नाह पुं [ "नाथ ] सर्य । जलना। °बंधु पुं [°बन्धु] रवि । °मणि पुं. सूर्य । दिप्प अक [तृप्] तृप्त होना, सन्तुष्ट होना । °मुह न [ °मुख ] प्रातःकाल । °यर दिप्प वि [रीप्र] चमकनेवाला, तेजस्वी।
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दिप्प-दिसी
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दिप्प (अप) पुं [दीप] दीपक । छन्द-विशेष । । के लिए किया जाता अग्नि-प्रवेश आदि । दिपंत पुं [दे] अनर्थ ।
प्राचीन काल में अपुत्रक राजा की मृत्यु हो दिप्पिर देखो दिप्प = दीप्त ।
जाने पर जिस चमत्कार-जनक घटना से राजदियाव सक [दा] देना ।
गद्दी के लिए किसी मनुष्य का निर्वाचन होता दिरय पुं [द्विरद हस्ती।
था वह हस्ति-गर्जन, अश्व-हेषा आदि अलौदिलंदिलिअ [दे] देखो दिल्लिदिलिअ । किक प्रमाण । 'माणुस न [°मानुष] देव दिलिदिल अक [दिलदिलाय] 'दिल दिल्' और मनुष्य सम्बन्धी हकीकतों का जिसमें आवाज करना।
वर्णन हो ऐसी कथा-वस्तु । दिलिवेढय पुं [दिलिवेष्टक] एक प्रकार का | दिव्व न [दिव्य] तेला, तीन दिन का लगातार ग्राह, जल-जन्तु की एक जाति ।
उपवास । वि. देव-सम्बन्धी । दिल्लिदिलिअ पुं [दे] बालक, लड़का। । दिव्व देखो दइव। दिव उभ [दिव्] क्रीड़ा करना। जीतने की | दिव्व देखो देव ।
इच्छा करना । लेन-देन करना। चाहना, दिव्वाग पुं [दिव्याक] सर्प की एक जाति । वांछना । आज्ञा करना ।
दिव्वासा स्त्री [दे] चामुण्डा देवी। दिव न [दिव] स्वर्ग ।
दिस सक [दिश्] कहना । प्रतिपादन करना। दिवड्ढ वि [यपार्ध] डेढ़ ।
दिस पुं [दिश] एक देव-विमान । दिवस । देखो दिअस । °पुहुत्त न ["पृथक- दिस वि [दिश्य] दिशा में उत्पन्न । दिवह ' त्व] दो से लेकर नव दिन तक का | दिसआ स्त्री [दृषद्] पत्थर । समय ।
दिसा । स्त्री [दिश्] दिशा, पूर्व आदि दस दिवा देखो दिआ। इत्ति पुं [°कीत्ति] | दिसि दिशाए । प्रौढ़ा स्त्री। °अक्क चाण्डाल, भंगी। °कर पुं. सूर्य । 'किति पुं दिसी , न [° चक्र] दिशाओं का समूह । [कीत्ति] हजाम । °गर देखो "कर। "मुह कुमरी स्त्री ["कुमारी] देवी-विशेष । न [°मुख] प्रभात । °यर देखो कर । °कुमार पुं. भवनपति देवों की एक जाति । "यरत्थ न [करास्त्र] प्रकाश-कारक अस्त्र- 'कुमारी देखो "कुमरी। °गअ पुं [गज] विशेष ।
दिग्-हस्ती । °गइंद पुं [गजेन्द्र] दिग्दिवायर पुं [दिवाकर]सिद्धसेन नामक विख्यात हस्ती । चक्क देखो °अक्क । °चक्कवाल न
जैन कवि और तार्किक । पूर्वधर मुनि । [°चक्रवाल]दिशाओं का शमूह । तप-विशेष । दिवि देखो देव।
'चर पुं. देशाटन करनेवाला भक्त । °जत्ता दिविज पुं [द्विविद] वानर-विशेष ।
देखो यत्ता। जत्तिय देखो यत्तिय । दिविज वि [दिविज] स्वर्ग में उत्पन्न । पुं. °डाह पुं [ दाह दिशाओं में होनेवाला एक देवता ।
तरह का प्रकाश जिसमें नीचे अन्धकार और दिविट्ठ देखो दुविट्ठ।
ऊपर प्रकाश दीखता है यह भावी उपद्रवों दिवे (अप) देखो दिवा।
का सूचक है । °णुवाय पुं [°अनुपात] दिशा दिव्व वि [दिव्य] स्वर्ग-सम्बन्धी, स्वर्गीय । का अनुसरण । 'दंति पुं [°दन्तिन्] दिग्उत्तम, सुन्दर, मनोहर । मुख्य । देव- हस्ती। दाह देखो °डाह। 'दि पुं सम्बन्धी । न. शपथ-विशेष, आरोप की शुद्धि [ आदि] मेरु-पर्वत । 'देवया स्त्री [°देवता]
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४६०
दिशा की अधिष्ठात्री देवी । पोक्खि पुं | दीपक [प्रोक्षिन् ] एक प्रकार का वानप्रस्थ | दीपक भाअ पुं [भाग ] दिग्भाग । मत्त न [°मात्र] अत्यल्प, संक्षिप्त । ° मोह पुं. दिशा का भ्रम | 'यत्ता स्त्री [यात्रा] देशाटन, मुसाफिरी । 'यत्तिय वि [ यात्रिक] दिशाओं में फिरने वाला । 'लोय पुं [ 'आलोक] दिशा का प्रकाश | वह पुं [पथ ] दिशारूप मार्ग । वाल पुं [पाल ] दिक्पाल, दिशा का अधिपति । 'वेरमण न [ "विर - मण] जैन गृहस्थ को पालने का एक नियमदिशा में जाने-आने का परिमाण करना । 'व्वय न ['व्रत] देखो 'वेरमण | 'सोत्थिय पुं [ 'स्वस्तिक ] स्वस्तिक - विशेष | 'सोवत्थिय पुं ['सौवस्तिक ] स्वस्तिकविशेष, दक्षिणावर्त्त स्वस्तिक । न. एक देवविमान । रुचक पर्वत का एक शिखर । हथि पुं ['हस्तिन् ] दिग्गज, दिशाओं में स्थित ऐरवत आदि आठ हस्ती । हत्यिकूड पुंन [' हस्तिकूट] दिशा में स्थित हस्ती के आकारवाला शिखर- विशेष, वे आठ हैंपद्मोत्तर, नीलवन्त, सुहस्ती, अञ्जनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस और रोचनगिरि । दिसाइ देखो दिसा - दि ।
दिसेभ पुं [दगिभ ] दिग्गज ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दिस्स वि [दृश्य ] देखने योग्य, प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय ।
दिस्सा देखो दक्ख = दृश् ।
दिहा अ [द्विधा ] दो प्रकार ।
न्यून | शोकातुर ।
दोणार पुं [दीनार ] सोने का एक सिक्का ।
दिसाइ-दीविआ
(अप) पुंन [ दीपक] छन्द-विशेष |
दीव देखो दिव = दिव् | दीव सक [ दीपय् ] दीपाना, शोभाना । जलाना । तेज करना । प्रकट करना । निवेदन करना ।
दीव पुं [ दो ] प्रदीप, आलोक | कल्पवृक्ष की एक जाति, प्रदीप का कार्य करनेवाला कल्पवृक्ष | 'चंपय न [ चम्पक] दिया का ढकना, दीप - पिधान ।ली स्त्री, दीप-पंक्ति । दीवाली, पर्व - विशेष, कार्तिक वदी अमावस |
दिहि स्त्री [धृति] धैर्य । म वि [ मत्] दीवायण पुं [द्वीपायन, द्वैपायन] एक प्राचीन
धीर ।
ऋषि
दीअ देखों दीव = दीप |
दीअअ देखो दीवय ।
वली स्त्री. पूर्वोक्त ही अर्थ । दीव पुं [द्वीप ] जिसके चारों ओर जल भरा हो ऐसा भूमि भाग | भवनपति देवों की एक जाति, द्वीपकुमार देव । व्याघ्र | कुमार पुं. एक देव-जाति । 'ज्ञ ] द्वीप के मार्ग का जानकार । ' सागरपन्नत्ति स्त्री ['सागरप्रज्ञप्ति ] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें द्वीपों और समुद्रों का वर्णन है । दीव पुं [ द्वीप ] सौराष्ट्र का एक नगर । दीवअ पुं [दे] कृकलास, गिरगिट । दीवअ पुं [ दीपक ] प्रदीप | आलोक | वि. प्रकाशक, शोभा - कारक । न, छन्द - विशेष | दीवंग पुं [दीपाङ्ग ] प्रदीप का काम देनेवाले कल्पवृक्ष की एक जाति ।
दीवग देखो दोवअ = दीपक । दीवड पुं [दे] जलजन्तु - विशेष |
दीवणिज्ज वि [ दीपनीय] जठराग्नि को बढ़ानेवाला । शोभायमान देदीप्यमान |
दीवि
दीविअ
दीण वि [दीन] गरीब । दुःखित । हीन, दीविअंग पुं [दीपिकाङ्ग] कल्प वृक्ष की एक जाति जो अन्धकार को दूर करता है।
दीविआ स्त्री [दे] उपदेहिका, क्षुद्र कोट
[द्वीप ] व्याघ्र की एक जाति,
चीता ।
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दीविआ-दुअक्खर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४६१ विशेष । व्याध की हरिणी जो दूसरे हरिणों । काल । प्राय पुं[राज] एक राजा । लोग के आकर्षण करने के लिए रखी जाती है। | पुं [°लोक] वनस्पति का जीव । °लोगसत्थ व्याध-सम्बन्धी पिंजड़े में रखा हुआ तितिर | न [°लोकशस्त्र] अग्नि । °वेयड्ढ पुं पक्षी ।
[°वैताठ्य] स्वनाम-ख्यात पर्वत । "सुत्त न दीविआ स्त्री [दीपिका] लघु प्रदीप । [सूत्र] बड़ा सूता। आलस्य । सेण पुं दीविच्चग वि [द्वैप्य] द्वीप में पैदा हुआ। [°सेन] अनुत्तर-देवलोक-गामी मुनि-विशेष । दीवी (अप) देखो देवी।
इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न ऐरवत क्षेत्र के दीवी स्त्री [दीपिका] छोटा दिया।
आठवें जिन-देव । उ, °ाउय वि [°आयुष्, दीवूसव पुं [दीपोत्सव कार्तिक वदी अमावस, आयुष्क] लम्बी उम्रवाला, चिरंजीवी । दीपावली।
सण न [सन] शय्या । दीह वि [दीर्घ] लम्बा। पुं. दो मात्रावाला
दीह देखो दिअह। स्वर । कोशल देश का एक राजा । °काय
दीहंध वि [दिवसान्ध] दिन को देखने में अग्निकाय । कालिगी स्त्री ['कालिकी]
असमर्थ । संज्ञा-विशेष, बुद्धि-विशेष जिससे सुदीर्घ भूत- |
दीहजीह पुं [दे] शंख। काल की बातों का स्मरण और सुदीर्घ भविष्य |
दीहपिट्ठ देखो दीह-पट्ट। का विचार किया जा सकता है। कालिय | दीहर देखो दीह = दीर्घ । °च्छ वि क्ष ]
मासिकाकारमा जना| लम्बी आँखवाला। दीर्घकाल-सम्बन्धी। "जत्ता स्त्री [यात्रा] दोहरिय वि [दीधित] लम्बा किया हुआ। लम्बा सफर । मौत । °डक्क वि [°दष्ट] | दाहिया स्त्री [दोघिका] वापी, जलाशयजिसको साँप ने काटा हो वह । °णिद्दा स्त्री
विशेष । [°निद्रा] मरण । दंत पुं [°दन्त] भारत | दीहीकर सक [दी/ + कृ] लम्बा करना। वर्ष का एक भावी चक्रवर्ती राजा। एक | दु देखा तु । जैनमुनि । दंसि वि [दर्शिन] दूरदर्शी, | दु देखो दव = द्रु।। दूरन्देशी। °दसा स्त्री. ब. [दशा] जैन | दु वि. ब. [द्वि] दो, संख्या-विशेषवाला। ग्रन्थ-विशेष । दिट्ठि वि [दृष्टि] दूरदर्शी, | दु ' [] वृक्ष । सत्ता, सामान्य । दूरन्देशी। स्त्री. दीर्घ-दर्शिता। पट पं | द अ [द्विस्! दो दफा । [पृष्ठ] साँप । यवराज का एक मन्त्री । | दु अ [दुर्] इन अर्थों का सूचक अव्यय°पास पुं [°पार्श्व] ऐरवत क्षेत्र के सोलहवें | अभाव । दुष्टता, खराबी । मुश्किल । निन्दा । भावी जिनदेव । पेहि वि [°प्रेक्षिन्] दूर- | दुअ न [द्रुत] अभिनय-विशेष । वि. पीड़ित, दर्शी । 'बाहु पु. भरत क्षेत्र में होनेवाला हैरान किया हुआ। वेग-युक्त । "विलंबिअ तीसरा वासुदेव । भगवान् चन्द्रप्रभ का पूर्व | न [विलम्बित] छन्द-विशेष । अभिनयजन्मीय नाम । भद्द पुं [°भद्र ] एक जैन | विशेष । मुनि । °मद्ध वि [ध्वि] लम्बा रास्तावाला । दुअ न [द्विक] युग्म ।
मद्ध वि [T] दीर्घकाल से गम्य । °माउ दुअक्खर पुं [दे] नपुंसक । न [आयुष्] लम्बा आयुष्य । प्रत्त, राय पुन दुअक्खर वि [द्वयक्षर] अज्ञान, मूर्ख, अल्पज्ञ । ["रात्र] लम्बी रात । बहु रात्रिवाला, चिर- | पुस्त्री. दास, नौकर ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दुअणुअ-दुक्ख दुअणुअ पुं [व्यणुक] दो परमाणुओं का। दुकाल पुं [दुष्काल] दुर्भिक्ष । स्कन्ध ।
दुकिय देखो दुक्कय । दुअर वि [दुष्कर] मुश्किल ।
दुकूल पुं. वृक्ष-विशेष । वि. दुकूल वृक्ष की छाल दुअल्ल न [दुकूल ] वस्त्र । सूक्ष्मवस्त्र । देखो । से बना हुआ वस्त्र आदि । दुकूल।
दुक्कंदिर वि [दुष्कन्दिन] अत्यन्त आक्रन्द दुआइ पुं [द्विजाति] ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य करनेवाला । -ये तीन वर्ण ।
दुक्कड न [दुष्कृत] पाप कर्म, निन्द्य आचरण । दुआइक्ख वि [दुराख्येय] दुःख से कहने |
दुक्कप्प पुं [दुष्कल्प] शिथिल साधु का योग्य ।
आचरण, पतित साधु का आचार । दुआर न [द्वार] दरवाजा, प्रवेश-मार्ग ।
दुक्कम्म न [दुष्कर्मन्] दुष्ट कर्म, असदाचरण । दुआराह वि [दुराराध] जिसका आराधन | दुक्कय न [दष्कृत] पाप-कर्म । कठिनाई से हो सके वह ।
दुक्कर वि [दुष्कर] कष्ट-साध्य । "आरअ दुआरिआ स्त्री [द्वारिका] छोटा द्वारा । गुप्त वि [°कारक] मुश्किल कार्य को करनेवाला। द्वार, अपद्वार।
°करण न. कठिन कार्य को करना । °कारि दुआवत्त न [व्यावर्त] दृष्टिवाद का एक सूत्र ।। वि [°कारिन्] देखो °आरअ । दुइअ
दुक्कर न [दे] माघ मास में रात्रि के चारों दुइज वि [द्वितीय] दूसरा ।
प्रहर में किया जाता स्नान ।
दुक्करकरण न [दुष्करकरण] पाँच दिन का दुइल्ल (अप) वि [द्विचतुर] दो चार, दो या
लगातार उपवास । चार
दुक्कह वि [दे] अरुचिवाला । दुउंछ । सक [जुगुप्स्] निन्दा करना, घृणा |
दुक्काल पुं [दुष्काल] अकाल । दुउच्छ । करना।
दुक्किय देखो दुक्कय। दुउण वि [द्विगुण] दुगुना । °अर वि [°तर] | दुक्कुक्कणिआ स्त्री [दे] पीकदानी । दूने से भी विशेष, अत्यन्त ।
दुक्कुल न [दुष्कुल] निन्दित कुल । दुऊल देखो दुअल्ल।
दुक्कुह वि [दे] असहिष्णु, चिड़चिड़ा । रुचिदुडुह , पुं [दुन्दुभ] सर्प की एक जाति ।
रहित । दुंदुभ । ज्योतिष्क-विशेष, एक महाग्रह ।
दुक्ख पुंन [दुःख] असुख, कष्ट, पीड़ा, क्लेश, दुंदुभि देखो दुंदुहि ।
मन का क्षोभ । वि. दुःखयुक्त। कर' वि. दुंदुमिअ न [दे] गले की आवाज ।
दुःख -जनक । त्त वि [°ार्त]दुःख से पीड़ित । दुंदुमिणी स्त्री [दे] रूपवालो स्त्री। "त्तगवेसण न [°ार्तगवेषण] आर्त्त शुश्रूषा । दुंदुहि पुंस्त्री [दुन्दुभि] वाद्य-विशेष । °मज्जिय वि [अजितदुःख] जिसने दुःख दुंबवती स्त्री [दे] नदी।
उपार्जन किया हो वह । राह वि [°ाराध्य] दुकड देखो दुक्कड।
दुःख से आराधन-योग्य । वह वि.दुःख-प्रद । दुकप्प देखो दुक्कप्प।
°ासिया स्त्री ["सिका]वेदना, पीड़ा । देखो दुकम्म न [दुष्कर्मन्] पाप, निन्दित काज या दुह = दुःख । काम ।
दुक्ख न [दे] जघन, स्त्री के कमर के पीछे का
दुई
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दुक्ख - दुग्गाएव
भाग चूतड़ ।
दुक्ख क [दुःखाय् ] दुखना, दर्द होना ।
सक. दुःखी करना । दुक्खड देखो दुक्कर |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दुक्ख वि[दु:क्षम ] असमर्थ । अशक्य । दुक्खर देखो दुक्कर | दुक्खरिपुं [दुष्करि] नौकर । दुक्खरिया स्त्री [दुष्करिका]
वाराङ्गना ।
दुक्खल्लि (अप) वि [दुःखित] दुःख-युक्त | दुक्खवि वि [दुःखित] दुःखी किया हुआ । दुखाव क [दुःखय् ] दुःख उपजाना । दुःखी
करना ।
दुगु [द्विगुण] दुगुना करना । दासी । दुगुणिअ देखो दुउणिअ । देखो दुअल्ल |
दुक्ख व [दुःखित] दुःख-युक्त, दुखिया । दुक्खुत्तर वि [दुःखोत्तार ] जिसको पार करने में कठिनाई हो ।
देखो पीछे का अर्थ | 'मोहणीय न नी] कर्म-विशेष जिसके उदय से अशुभ वस्तु पर घृणा होती है । दुगंदुग पुं [दोगुन्दुक] एक समृद्धिशाली देव । दुगुच्छ देखो दुगंछ । गुण देखो दुरण |
४६३
[° मोहजीव को
दुगुल्ल
दुगूल
दुगोत्ता स्त्री [द्विगोत्रा ] वल्ली - विशेष । दुग्ग न [ दे] दुःख | कमर । दुग्गवि [दुर्ग ] जहाँ दुःख से प्रवेश किया जा सके वह, दुर्गम स्थान । जो दुःख से जाना जा सके । पुंन किला, गढ़, कोट । 'नायग पुं [नायक ] किले का मालिक ।
अ [] दो बार ।
दुक्खर देखो दुखु । दुक्खु देखो दुक्कुल । दुक्खोह पुं [दुःखौघ] दुःख - राशि | दुक्खोह वि [दुःक्षोभ] कष्ट क्षोभ्य सुस्थिर । खंड [ खण्ड ] दो टुकड़ेवाला । दुखुत्तो देखो दुक्खुत्तो ।
दुखुर पुं [द्विखुर] दो खुरवाला प्राणी, गौ, भैंस आदि ।
दुग न [द्विक ] युग्म, युगल, जोड़ा ।
दुगंछ देखो दुगंछ |
दुगंछा स्त्री [जुगुप्सा] घृणा, निन्दा | देखो दुग्गय वि [ दुर्गत ] धन-हीन । दुःखी, विपत्ति
दुगंछा ।
ग्रस्त |
दुग्गय न [ दुर्गत] दरिद्रता । दुःख ।
दुग्गह वि [दुर्ग्रह] जिनका ग्रहण दुःख से हो सके वह ।
दुग्गइ स्त्री [दुर्गति] कुगति, नरक आदि कुत्सित योनि । विपत्ति, दुःख | दुर्दशा, बुरी अवस्था । दरिद्रता ।
grifo स्त्री [fr] दुष्टग्रन्थि, गिरह, कठिन गाँठ |
दुग्गंध पुं [ दुर्गन्ध] खराब गन्ध । वि. दुर्गान्धि । दुग्गमवि [दुर्गम ] जो कठिनाई से जाना जा सके वह
दुग्गम
दुग्गम
मुश्किल
वि [दुर्गम ] जहाँ दुःख से प्रवेश किया जा सके वह । न कठिनाई,
दुगंध देखो दुग्गंध ।
दुगच्छ सक [जुगुप्स् ] घृणा करना, दुगंछ नफरत करना । निन्दा करना । दुगसंपुण्ण न [द्विगसंपूर्ण ] लगातार बीस दिन
का उपवास ।
दुगंग व [जुगुप्सक ] घृणा करनेवाला ।
दुग्गाई
दुगंछा देखो दुगंछा । 'कम्म न ['कर्मन् ] | दुग्गाएवी ) स्त्री [ दुर्गादेवी ] शिव-पत्नी ।
}
दुग्गा स्त्री [दुर्गा ] पार्वती । देवी- विशेष । पक्षि-विशेष |
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दुग्गावी ।
दुग्यो
।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दुग्गादेई-दुज्झोसय दुग्गादेई । देवी-विशेष । रमण पुं. महादेव । । दुच्चितिय वि [दुश्चिन्तित] दुष्ट चिन्तित ।
न. खराब चिन्तन । दुग्गास न [दुर्गास] अकाल ।
दुच्चिगिच्छ वि [दुश्चिकित्स] जिसका प्रतीदुग्गिज्झ वि [दुर्गाह्य, दर्ग्रह] जिसका ग्रहण | कार मुश्किल से हो वह । दुःख से हो सके वह ।
दुच्चिण्ण न [दुश्चीर्ण] दुष्ट आचरण, दुश्चरित । दुग्गूढ वि [दुर्गढ] अत्यन्त गुप्त ।
दुष्ट कर्म--हिंसा आदि । वि. दुष्ट संचित, दुग्गेज्झ देखो दुग्गिज्झ ।
एकत्रित की हुई दुष्ट वस्तु । दुग्घट्ट वि [दुर्घट्ट] जिसका आच्छादन दुःख से
| दुच्चेट्टिय न [दुश्चेष्टित] खराब चेष्टा, शारीहो सके वह ।
रिक दुष्ट आचरण । दुग्घट्ट । पुं [दे] हाथी।
दुच्छक्क वि [द्विषट्क] बारह प्रकार का ।
दुच्छड्ड वि [दुश्छद] दुस्त्यज । दुग्घड वि [दुर्घट] कष्ट-साध्य ।
दुच्छेज्ज वि [दुश्छेद] जिसका छेदन दुःख से दुग्घड वि [दुर्घट] असंगत ।
हो सके वह । दुग्घडिअ वि [दुर्घटित] दुःख से संयुक्त । | दुछक्क देखो दुच्छक्क । खराब रीति से बना हुआ।
दुजडि पुं [द्विजटिन्] ज्योतिष्क देव-विशेष, दुग्घर न [दुर्गृह] दुष्ट घर ।
एक महाग्रह । दुग्घास पुं [दुर्गास] दुभिक्ष ।
दुजय देखो दुज्जय। दुघण पुं. एक प्रकार का मुद्गर, मोंगरी। दुजीह पुं [द्विजिहव] साँप । खल पुरुष । दुचक्क न [द्विचक्र] शकट । “वइ पुं [पति] दुज्जत देखो दुज्जित । गाड़ी का अधिपति या मालिक ।
दुज्जण पुं [दुर्जन] खल, दुष्ट मनुष्य । दुचिण्ण देखो दुच्चिण्ण।
दुज्जय वि [दुर्जय] जो कष्ट से जीता जा दुच्च न [दौत्य] दूत-कर्म ।
सके। दुच्च देखो दोच्च = द्वितीय, द्विस् ।
दुज्जाय न [दे] व्यसन, कष्ट, दुःख, उपद्रव । दुचंडिअ वि [दे] दुर्ललित । दुर्विदग्ध, | दुज्जाय वि [दुर्जात] दुःख से निकलने-योग्य । दुःशिक्षित ।
दुज्जाय न [दुर्यात] दुष्ट गमन, कुत्सित गति। दुच्चंबाल वि [दे] झगड़ाखोर । दुश्चरित । दुज्जित पुं [दुर्यन्त] एक प्राचीन जैनमुनि । परुष-भाषी।
दुज्जीव न [दुर्जीव] आजीविका का भय । दुच्चज्ज । वि [दुस्त्यज] दुःख से त्यागने- | | दुज्जीह देखो दुजीह। दुच्चय योग्य ।
| दुज्जेअ वि [दुजय] दुःख से जीतने योग्य । दुच्चर । वि [दुश्चर] जिसमें दुःख से जाया | दुज्जोहण पुं [दुर्योधन धृतराष्ट्र का पहला दुच्चरिअ , जाय वह । दुःख से जो किया जाय वह । लाढ पुं. ऐसा ग्राम या देश जिसमें
दुज्झ वि [दोह्य] दोहने-योग्य । दुःख से जाया जा सके।
दुज्झाण न [दुर्ध्यान] दुष्ट चिन्तन । दुच्च रिअ न दुश्चरित] खराब आचरण, दुष्ट दुज्झाय वि [दुर्ध्यात] जिसके विषय में दुष्ट वर्तन । वि. दुराचारी।
चिन्तन किया गया हो वह । दुच्चार वि [दुश्चार] दुराचारी । दुज्झोसय वि [दुर्जोष] जिसकी सेवा कष्ट से
पुत्र ।
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दुज्झोस-दुद्धट्ठी
हो सके ऐसा । दुज्झोस वि [दुःक्षप ] जिसका नाश साध्य हो वह । दुज्झोसिवि [दुर्जोषित ] दुःख से सेवित । दुज्झोसिअ वि [दुःक्षपित ] कष्ट से नाशित। दुवि [दु ] दोष युक्त, दूषित । ध्प पुं [त्मन्] दुष्ट जीव, पापी प्राणी । दुवि [. द्विष्ट ] द्वेषयुक्त । दुट्ठाण न [ दुःस्थान ] दुष्ट जगह । ट्टु अ [दुष्ठु ] असुन्दर ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दुष्णाम न [दुर्नामन् ] अपकीर्ति । दुष्ट नाम | एक प्रकार का गर्व ।
दुणि वि [न] पीड़ित, दुःखित । दुणिअत्थ न [ दे] जघन पर स्थित वस्त्र |
जघन ।
दुणिक व [] दुराचारी । दुष्णिक्कम वि [दुर्निष्क्रम] जहाँ से निकलना कष्ट - साध्य हो वह । दुणिक्खित्त व [] दुराचारी । कष्ट से जो
देखा जा सके |
कष्ट
दुष्णखेव व [दुर्निक्षेप ] दुःख से स्थापन करने योग्य |
दुण्णिमिअ वि [दुनियोजित] दुःख से
दुत्तर वि [दुस्तर ] दुस्तरणीय ।
दुत्तव वि [दुस्तप] कष्ट से तपने- योग्य, करने योग्य ( प ) ।
५९
जोड़ा
वह ।
दुतितिक्ख व [दुस्तितिक्ष ] दुस्सह ।
दुत्ती स्त्री [दुस्ती ] नदी । खराब किनारा वाली नदी ।
४६५
दुत्तार वि [दुस्तार ] दुःख से पार करने -
योग्य ।
दुःख
दुति [] शीघ्र |
दुखि दुत्तितिक्ख
हुआ ।
दुणिमत्त न [दुर्निमित्त] अपशकुन | दुष्णवि वि [दुर्निविष्ट] दुराग्रही । दुणिसीहिया स्त्री [दुर्निषद्या ] कष्ट-जनक
स्वाध्याय स्थान |
दुवि [दुर्ज्ञेय] जिसका ज्ञान कष्ट साध्य हो दुद्ध न [दुग्ध] दूध । जाइ स्त्री [जाति]
मदिरा - विशेष जिसका स्वाद दूध के जैसा होता है । समुद्द पुं [समुद्र ] क्षीर-समुद्र |
}
दुत्तुंड पुं [दुस्तुण्ड] दुर्मुख, दुर्जन ।
दुत्तो वि [दुस्तोष ] जिसको सन्तुष्ट करना कठिन हो वह ।
दुत्थ न [दे] जघन ।
दुत्व [दुःस्थ] दुर्गत, दुःस्थित |
दुत्थ न [दौःस्थ्य] दुर्गति ।
दुअवि [दुःस्थित] विपत्ति-ग्रस्त । निर्धन | दुत्थुरुहंड पुंस्त्री [दे] कलह-शील । दुत्थोअ पुं [दे] अभागा । दुत [दुर्दान्त] उद्धत, दुर्दम । दुद्दस व [ दुर्दश] जो कठिनाई से देखा जा सके ।
दुद्दंसण वि [दुर्दर्शन] जिसका दर्शन दुर्लभ हो वह
दुद्दमवि [दुर्दम] दुर्जय, दुर्निवार। पुं. राजा अश्वग्रीव का एक दूत |
दुद्द पुं [] देवर |
देखो दुतितिक्ख ।
दुद्दिट्ठ वि [दुर्दृष्ट] बुरी तरह से देखा हुआ । वि. दुष्ट दर्शनवाला |
दुद्दिण न [दुर्दिन] बादलों से व्याप्त दिवस । दुद्देय व [दुर्देय] दुःख से देने योग्य | दुद्दोलना स्त्री [दे] गौ ।
दुद्दोली स्त्री [दे] वृक्ष-पंक्ति ।
दुद्ध स वि [दुध्वंस ] जिसका नाश मुश्किल से हो ।
दुद्धट्टी
दुद्धट्ठी
दुगंधिअमुह [] शिशु, छोटा लड़का ।
स्त्री [] प्रसूति के बाद तीन दिन तक का गो दुग्ध ।
खट्टी छाछ से
}
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४६६
मिश्रित दूध 1 दुद्धरवि [दुर्धर] जिसका निर्वाह मुश्किल से हो सके वह । गहन, विषम । दुर्जय । पुं. रावण का एक सुभट । दुद्धरिस वि[दुर्धर्ष ] जिसका सामना कठिनता से हो सके, जीतने को अशक्य ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पकाया जाता दूध |
दुद्धसाडी स्त्री [दे] द्राक्षा मिलाकर पकाया
जाता दूध ।
दुद्धिअ न [] कद्दू ।
दुद्धवलेही स्त्री [दे] चावल का आटा डालकर दुपक्ख पुं [दुष्पक्ष ] दुष्ट पक्ष ।
दुद्धिणि } दुद्धिणी भाजन | तुम्बी । दुद्धोअहि } ं [दुग्धोदधि] क्षीरसमुद्र ।
दुद्ध
दुद्धोणी स्त्री [] कामधेनु ।
दुधा देखो दुहा ।
दुन्नय पुं [दुर्नय] कुनीति । अनेक धर्मवाली वस्तु में किसी एक ही धर्म को मानकर अन्य धर्म का प्रतिवाद करनेवाला पक्ष | वि. दुष्टनीति, अन्यायकारी । कारि वि [कारिन्] अन्याय करनेवाला | दुन्निकम देखो दोनिक्कम । दुन्निग्गह वि [दुर्निग्रह] अनिवार्य | दुन्निबोह वि[दुर्निबोध ] दुःख से जाननेयोग्य । दुर्लभ ।
दुन्निय न [ दुर्नीत ] दुष्ट कर्म ।
दुन्नियत्थ वि [] विटका भेषवाला, निन्दनीय वेष को धारण करनेवाला, केवल जघन
पर ही वस्त्र पहिना हुआ ।
दुद्धर - दुप्पजीवि
दुन्निसा वि [ दुर्निषण्ण] खराब रीति से बैठा हुआ 1 दुप देखो दिअ = द्विप |
दुपएस वि [ द्विप्रदेश ] दो अवयववाला, पुं.
क
सूत्र ।
स्त्री [दे] तेल आदि रखने का दुपडोआर वि [ द्विपदावतार ] दो स्थानों में जिसका समावेश हो सके वह ।
दुपsोआर वि [द्वित्यवतार ] ऊपर देखो दुपमज्जिय देखो दुप्पमज्जिय । दुपय वि [द्विपद ] दो पैरवाला । पुं. मनुष्य । न. गाड़ी |
दुपसिय वि[ द्विदेशिक] दो प्रदेशवाला ।
दुन्निवार वि[दुर्निवार] रोकने के लिए अशक्य, जिसका निवारण मुश्किल से हो सके वह । दुन्निवारणी वि [दुर्निवारणीय, दुर्निवार] ऊपर देखो ।
दुपक्खन [द्विपक्ष] दो पक्ष । वि. दो पक्ष -
वाला ।
दुपsिह न [ द्विप्रतिग्रह ] दृष्टिवाद का एक
दुपय पुं [ द्रुपद ] कांपिल्यपुर का एक राजा । दुपरिच्चय वि [ दुष्परित्यज ] दुस्त्यज । दुपरिचयणीय वि [ दुष्परित्यजनीय, दुष्परित्यज ] ऊपर देखो । दुपस्स देखो दुप्पस्स | दुपुत्त पुं [दुष्पुत्र] कुपुत्र । दुपेच्छवि [दुष्प्रेक्ष] दुर्दर्श, अदर्शनीय । दुप्पइ पुं [ दुष्पति] दुष्ट स्वामी ।
दुन्निरिक्ख वि [दुर्निरीक्ष्य ] जो कठिनाई से दुप्पक्क वि [दुष्पक्व ] देखो दुप्पउल्ल । देखा जा सके वह ।
दुपत्त व [दुष्प्रयुक्त] दुरुपयोग करनेवाला | जिसका दुरुपयोग किया गया हो वह । दुप्पउलिय दुप्पउल्ल
वि [दुष्प्रज्वलित ] अधपका ।
दुप्पओग पुं [दुष्प्रयोग] दुरुपयोग ।
दुप्पखाल वि [दुष्प्रक्षाल ] जिसका प्रक्षालन कष्टसाध्य हो वह ।
दुपचुप्पे क्aिra [दुष्प्रत्युत्प्रेक्षित] ठीकठीक नहीं देखा हुआ 1 दुप्पजीवि वि [दुष्प्रजीविन् ] दुःख से जीने
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दुप्पडिक्वंत-दुप्पेक्खणिज्ज संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४६७ वाला।
दुप्परिइअ वि [दुष्परिचित] अपरिचित । दुप्पडिक्कंत वि [दुष्प्रतिकान्त] जिसका प्राय- दुप्परिचय देखो दुपरिच्चय। श्चित्त ठीक-ठीक न किया गया हो वह । दुप्परिणाम वि [दुष्परिणाम] जिसका परिदुप्पडिगर वि [दुष्प्रतिकर] जिसका प्रतीकार णाम खराब हो, दुर्विपाक । दुःख से किया जा सके।
दुप्परिमास वि [दुष्परिमर्ष] कष्ट-साध्य दुप्पडिपूर वि [दुष्प्रतिपूर] पूरने के लिए | स्पर्शवाला। अशक्य ।
दुप्परियत्तण देखो दुप्परिवत्तण । दुप्पडियाणंद वि [दुष्प्रत्यानन्द] जो किसी| दुप्परिल्ल वि [दे] दुराकर्ष । तरह सन्तुष्ट न किया जा सके । अति कष्ट से | दुप्परिवत्तण वि [दुष्परिवर्तन] जिसका तोषणीय ।
परिवर्तन दुःख से हो सके वह । न. दुःख दुप्पडियार वि [दुष्प्रतिकार] जिसका प्रतो- से पीछे लौटना। कार दुःख से हो सके वह ।
दुप्पवंच पुं [दुष्प्रपञ्च] दुष्ट प्रपञ्च । दुप्पडिलेह वि [दुष्प्रतिलेख] जो ठीक-ठीक न | दुप्पवणु पुं [दुष्पवन] दुष्ट वायु । देखा जा सके वह ।
दुप्पवेस वि [दुष्प्रवेश] जहाँ कष्ट से प्रवेश हो दुप्पडिवूह वि [दुष्प्रतिबृह] बढ़ाने को सके वह । तर वि. प्रवेश करने को अशक्य । अशक्य । पालने को अशक्य ।
दुप्पसह पुं [दुष्प्रसह] पंचम आरे के अन्त में दुप्पणिहाण न [दुष्प्रणिधान] अशुभ प्रयोग, होनेवाला एक जैन आचार्य, एक भावी जैन दुरुपयोग ।
सूरि । दुप्पणिहिय वि [दुष्प्रणिहित] दुष्प्रयुक्त। दुप्पस्स वि [दुर्दर्श जो मुश्किल से दिखलाया दुप्पणीहाण देखो दुप्पणिहाण ।
जा सके वह। दुप्पणोल्लिय वि [दुष्प्रणोद्य] दुस्त्यज ।।
दुप्पह वि [दुष्प्रभ] जो दुःख से सूझ सके वह, दुप्पण्णवणिज्ज वि [दुष्प्रज्ञापनीय] कष्ट से
दुर्गम । प्रबोधनीय ।
दुप्पहंस वि [दुष्प्रध्वंस्य] जिसका नाश कठिदुप्पतर वि [दुष्प्रतर] दुस्तर ।
नाई से हो सके वह । दुप्पधंस वि [दुष्प्रधर्ष] दुर्धर्ष, दुर्जय ।
दुप्पहंस वि [दुष्प्रधृष्य] अजेय, दुर्जय । दुप्पमज्जण न [दुष्प्रमार्जन] ठीक-ठीक साफ
दुप्पाय न [दुष्प्राप] आयंबिल तप । नहीं करना।
दुप्पिउ पुं [दुष्पित] दुष्ट पिता । दुप्पमज्जिय वि [दुष्प्रमाजित] अच्छी तरह से दुप्पिच्छ देखो दुपेच्छ । साफ नहीं किया हुआ।
दुप्पिय वि [दुष्प्रिय] अप्रिय । "ब्भासि वि दुप्पय देखो दुपय - द्विपद ।
[°भाषिन्] अप्रिय-वक्ता । दुप्पयार वि [दुष्प्रचार] जिसका प्रचार दुष्ट दुप्पुत्त देखो दुपुत्त। माना जाता है वह, अन्याय-युक्त । दुप्पूर वि [दुष्पूर] जो कठिनाई से पूरा किया दुप्परक्कंत वि [दुष्पराक्रान्त] बुरी तरह से | __ जा सके। आक्रान्त ।
दुप्पेक्ख देखो दुपेच्छ । दुप्परिअल्ल वि [दे] अशक्य । दुगुना । अन- दुप्पेक्खणिज्ज वि [दुष्प्रेक्षणीय] कष्ट से म्यस्त।
दर्शनीय ।
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४६८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दुप्पेच्छ-दुमिल दुप्पेच्छ देखो दुपेच्छ।
पूर्वोक्त अर्थ । °सद्द पुन [शब्द] खराब दुप्पोलिय देखों दुप्पउलिअ।
शब्द। दुप्फड वि [दुष्फट] मुश्किल से फटने-योग्य । दभिक्ख पुंन [दुभिक्ष] अकाल । भिक्षा का दुप्फरिस वि [दुःस्पर्श] जिसका स्पर्श अभाव । वि. जहाँ पर भिक्षा न मिल सके दुप्फास खराब हो वह ।
वह देश आदि । दुफास ,
दुभिज देखो दुब्भेज । दुफास वि [द्विस्पर्श] स्निग्ध और शीत आदि | दुब्भूइ स्त्री [दुर्भूति] अमंगल । अविरुद्ध दो स्पर्शों से युक्त ।
दुब्भूय पुन [ दुर्भूत ] नुकसान करनेवाला दुब्बद्ध वि [दुर्बद्ध] खराब रीति से बँधा | जन्तु-टिड्डी वगैरह । न. अशिव । हुआ।
दुब्भूय वि [दुर्भूत] दुराचारी । दुब्बल वि [दुर्बल] निर्बल । पच्चवमित्त दुब्भेज वि [दुर्भेद्य] तोड़ने को अशक्य ।
पुन [प्रत्यवमित्र] दुर्बल की मदद करने- । दुब्भेय वि [दुर्भद] ऊपर देखो। वाला।
दुभग देखो दुब्भग। दुब्बलिय वि [दुर्बलिक निर्बल । पूसमित्त |
दुभव न [द्विभव] वर्तमान और आगामी जन्म । पुं[°पुष्यमित्र] एक जैन आचार्य ।
दुभाग [द्विभाग] आधा । दुब्बलिय न [दौर्बल्य] श्रम, थाक । दुम सक [धवलय] सफेद करना । चूना आदि
से पोतना। दुन्बुद्धि वि [दुर्बुद्धि] दुष्ट बुद्धिवाला, खराब नियतवाला । स्त्री. खराब बुद्धि, दुष्ट नियत । दुम पुं [द्रुम] वृक्ष । चमरेन्द्र के पदातिसैन्य दब्बोल्ल पुंदे] उपालम्भ ।
का एक अधिपति । राजा श्रेणिक का एक दुब्भ वि [दुग्ध] दोहा हुआ । न. दोहन । पुत्र । न. एक देव-विमान । °कत न["कान्त] दुभ देखो दुह = दुह, का कर्म ।
एक विद्याधरनगर । °पत्त न [°पत्र] वृक्ष दुभग वि [दुर्भग] कमनसीब । अप्रिय, | का पत्ता। 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक अनिष्ट । °णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष
अध्ययन । °पुफिया स्त्री [ °पुष्पिका ] जिसके उदय से उपकार करनेवाला भी लोगों
'दशवैकालिक' सूत्र का पहला अध्ययन । को अप्रिय होता है । °करा स्त्री. दुर्भग
°राय पुं [°राज] उत्तम वृक्ष । °सेण पुं बनानेवाली विद्या-विशेष ।
[सेन] राजा श्रेणिक का एक पुत्र । नववें दुब्भग्ग न [दौर्भाग्य] दुर्भगता, लोक में |
बलदेव और वासुदेव के पूर्व-जन्म के धर्म-गुरु । अप्रियता।
दुमंतय पुं [दे] केश-बन्ध, धम्मिल्ल-बंधी दुब्भरणि स्त्रो [दुर्भरणि] दुःख से निर्वाह । चोटी, जूड़ा। दुब्भाव पुं [दुर्भाव हेय पदार्थ । असद्-भाव, दुमण न [धवलन] चूना आदि से लेपन, सफेद खराब-असर। दुब्भाव पुं[द्विभाव विभाग, जुदाई । दुमणी स्त्री [दे] सुधा । चूना । दुब्भाव ' [द्विर्भाव द्वित्व, दुगुनापन । दुमत्त वि [द्विमात्र] दो मात्रावाला स्वरवर्ण । दुन्भासिय न [दुर्भाषित] खराब वचन । दुमासिय वि [द्वैमासिक] दो मास का, दो दुब्भि पुन [दुरभि] खराब गन्ध । वि. अशुभ, । मास-सम्बन्धी । असुन्दर । वि. दुर्गन्धि । °गंध [°गन्ध] ' दुमिल देखो दुम्मिल ।
करना।
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दुमुह - दुरारोह
दुमुह पुं [द्विमुख] एक राजर्षि । दुमुह देखो दुम्मुह = दुर्मुख | दुमुहुत्त पुंन [दुर्मुहूर्त ] खराब मुहूर्त । दुक्ख वि [दुर्मोक्ष] जो दुःख से छोड़ा जा
सके।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दुम्म देखो दूम = दावय् । दुइ वि [दुर्मति] दुष्ट बुद्धिवाला । दुम्मणी स्त्री [] झगड़ाखोर स्त्री । दुम्मणवि [दुर्मनस्] खिन्नमनस्क, उद्विग्नचित्त, उदास । दीनतायुक्त । द्वेष-युक्त । दुम्मण अक [दुर्मनाय् ] उद्विग्न होना, उदास
होना ।
४६९
खराब हो वह । जिसका विनाश कष्ट साध्य हो वह ।
दुरंदर वि[दे] दुःख से उत्तीर्ण ।
दुक्ख वि [दुरक्ष] जिसकी रक्षा करना कठिन हो वह
दुरक्खर वि [दुरक्षर ] परुष, कठोर, कड़ा (वचन) |
दुरग्गह पुं [दुराग्रह] कदाग्रह | दुरज्झवसिय न [ दुरध्यवसित] दुष्ट चिन्तन । दुरणुचर वि [दुरनुचर] दुष्कर ।
दुरणुपाल वि [ दुरनुपाल ] जिसका पालन कष्टसाध्य हो ।
दुम्मणिअ न [दौर्मनस्य ] उदासी, उद्वेग, दुरप्प पुं [दुरात्मन्] दुर्जन । चिन्ता, बेचनी ।
दुरब्भास पुं [दुरभ्यास ] खराब आदत |
दुम्मणिअन [ दौर्मनस्य ] दुष्ट मनो-भाव, मन दुरभि देखो दुब्भि |
का दुष्ट विकार, दुर्जनता ।
दुम्म पुं [द्रमक ] भिखारी । दुम्महिला स्त्री [दुर्महिला ] दुष्ट स्त्री । दुम्माण पुं [दुर्मान ] झूठा अभिमान, निन्दित गर्व
दुरभिगम वि. कष्ट - गम्य । दुर्बोध | दुरमच पुं [दुरमात्य] दुष्ट मन्त्री । दुरवगम वि. दुर्बोध | दुरवगम्म देखो दुरवगम |
दुम्मार पुं [दुर्मार] भयंकर ताड़न । दुम्मारि स्त्री [दुर्मारि] उत्कट मारी-रोग । दुम्मारुय पुं [दुर्मारुत] दुष्ट पवन । दुम्मि वि [न] उपतापित, पीड़ित ।
दुरवगाह वि. जहाँ प्रवेश करना कठिन हो वह । दुरस वि [दूरस] खराब स्वादवाला । दुरसण पुं [ द्विरसन ] सर्प । दुर्जन । दुरहि देखो दुरभि । दुरहिगम देखो दुरभिगम ।
दुम्मिल स्त्रीन [दुर्मिल] छन्द - विशेष । दुम्मुह देखो [दुमुह ] = द्विमुख |
दुरहिगम्म वि [दुरभिगम्य] दुर्बोध | दुरहियास वि [दुरध्यास, दुरधिसह] दुस्सह ।
दुम्मुह पुं [दुर्मुख] बलदेव का धारणी- देवी से दुराणण पुं [दुरानन] विद्याधर वंश का एक
राजा ।
दुराणुवत्त वि[ दुरनुवर्त] जिसका अनुवर्तन कष्ट - साध्य हो वह ।
दुराय न [ द्विरात्र ] दो रात ।
दुरायार वि[दुराचार] दुराचारी । पुं. दुष्ट
उत्पन्न एक पुत्र ।
दुम्मुह पुं [दे] वानर |
दुमेह [दुर्मेधस्] दुर्बुद्धि ।
दुम्मो वि [दुर्मोक] दुःख से छोड़ाने योग्य | देखो दुअणु ।
आचरण ।
दुरइक्कम व [दुरतिक्रम] दुर्लघ्य । दुरइक्कमणिज्ज वि [दुरतिक्रमणीय] ऊपर दुराराह वि [दुराराध ] दुःख से आराध्य । दुरारोह वि. जिस पर दुःख से चढ़ा जा सके
देखो ।
दुरंत वि [दुरन्त] जिसका परिणाम - विपाक
वह, दुरध्यास |
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४७०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दुरालोअ-दुल्लह दुरालोअपुं [दे] अन्धकार ।।
| दुरुव्वा स्त्री [दूर्वा] तृण-विशेष, दूब । दुरालोअ वि [दुरालोक] जो दुःख से देखा | दुरुह सक [आ + रुह ] आरूढ़ होना, जा सके, देखने को अशक्य ।
चढ़ना। दुरालोयण वि [दुरालोकन] ऊपर देखो। दुरुढ वि [आरूढ] अधिरूढ़ । दुरावह वि. दुर्धर, दुर्वह।
दरूव वि [दुरूप] कुरूप । मलमूत्र का कर्दम । दुरास वि [दुराश] दुष्ट आशावाला । खराब अशुचि आदि खराब वस्तु । इच्छावाला ।
दुरूह देखो दुरुह । दुरासय वि [दुराशय] दुष्ट आशयवाला । दुरेह पुं [द्विरेफ] भौंरा। दुरासय वि [दुराश्रय] दुःख से जिसका | दुरोअर न [दुरोदर] द्यूत ।
आश्रय किया जा सके वह आश्रय करने को | दुरोदर देखो दुरोअर । अशक्य ।
दुलंघ देखो दुल्लंघ। दुरासय विदुरासद] दुर्लभ । दुर्जय । दुःसह । दुलंभ देखो दुल्लंभ। दुरिअ न [दुरित] पाप ।
दुलह वि [दुर्लभ] जिसकी प्राप्ति दुःख से हो दुरिअ न [दे] शीघ्र ।
सके वह । पुं. एक वणिक्-पुत्र । देखो दुरिआरि स्त्री [दुरितारि]भगवान् सम्भवनाथ
दुल्लह । की शासनदेवी।
दुलि पुंस्त्री [दे] कच्छप । दुरिक्ख वि [दुरीक्ष] देखने को अशक्य ।
दुल्ल न [दे] वस्त्र । दुरिट्ठ न [दुरिष्ट] खराब नक्षत्र । खराब | | दुल्लंघ वि [दुर्लङ्घ] जिसका उल्लंघन कठियजन-याग।
नाई से हो सके वह, अलंघनीय । दुरुक्क वि [दे] थोड़ा पीसा हुआ, ठीक-ठीक
| दुल्लंभ वि [दुर्लभ] दुष्प्राप्य । नहीं पीसा हुआ।
दुल्लक्ख वि [दुर्लक्ष] दुविज्ञेय, अलक्ष्य । जो दुरुढुल्ल सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना ।
कठिनाई से देखा जा सके । गॅवाई हुई चीज की खोज में घूमना।
दुल्लग्ग वि [दे] अघटमान, अयुक्त । दुरुत्त न [दुरुक्त] दुष्ट वचन ।
दुल्लग्ग न [दुर्लग्न] दुष्ट लग्न, दुष्ट मुहूर्त । दुरुत्त वि [द्विरुक्त] पुनरुक्त । दो बार कहने- | दुल्लब्भ । देखो दुल्लह ।
योग्य । दुरुत्तर वि. दुस्तर, दुलंघ्य । न. दुष्ट उत्तर, दुल्ललिअ वि [दुर्ललित] दुष्ट आदतवाला । अयोग्य जवाब।
दुष्ट इच्छावाला । व्यसनी, आदतवाला। दुरुत्तर वि [द्वि-उत्तर] दो से अधिक । °सय | दुर्विदग्ध, दुःशिक्षित । न. दुराशा, दुर्लभ वस्तु वि [°शततम] एक सौ दो वाँ ।
की अभिलाषा । दुरुत्तार वि. दुःख से पार करने योग्य । । दुल्लसिआ स्त्री [दे] दासी, नौकरानी। दुरुद्धर वि. जिसका उद्धार कठिनाई से हो वह । ।
दुल्लह वि [दुर्लभ] दुराप, जिसकी प्राप्ति दुरुवणीय वि [दुरुपनीत] जिसका उपनय कठिनाई से हो वह । गुजरात का एक प्रसिद्ध दूषित हो ऐसा (उदाहरण)।
राजा । °राय पुं [राज] वही अर्थ । °लंभ दुरुवयार वि [दुरुपचार] जिसका उपचार वि [°लम्भ] जिसकी प्राप्ति दुःख से हो सके कष्ट-साध्य हो वह ।
वह ।
दुल्लभ ।
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दुवई-दुविण्णाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४७१ दुवई स्त्री [द्रुपदी] छन्द-विशेष । दुवियड्ढ वि [दुर्विदग्ध] दुशिक्षित, जानकारी दुवण न [दावन] उपताप, पीड़न । ___ का झूठा अभिमान करनेवाला । दुवण्ण वि [दुर्वर्ण] खराब रूपवाला। दुवियप्प पुं [दुर्विकल्प] दुष्ट वितर्क । दुवय पुं [द्रुपद] एक राजा, द्रौपदी का पिता। दुविलय पुं [दुविलक] एक अनार्य देश ।
सुया स्त्री [°सुता] पाण्डव-पत्नी द्रौपदी। दुविह वि [द्विविध] दो प्रकार का। दुवयंगया । स्त्री [द्रुपदाङ्गजा] द्रौपदी । दुवीस स्त्रीन [द्वाविंशति] बाईस । दुवयंगरुहा ।
दुव्वण्ण देखो दुवण्ण। दुवयण न [दुर्वचन] खराब वचन, दुष्ट दुव्वय न [दुर्वत] दुष्ट नियम । वि. दुष्ट व्रत उक्ति ।
करनेवाला । व्रत-रहित। दुवयण न [द्विवचन] दो का बोधक व्याकरण- दुव्वयण न [दुर्वचन] खराब वचन । प्रसिद्ध प्रत्यय, दो संख्या को वाचक विभक्ति । दुव्वल देखो दुब्बल। दुवार । देखो दुआर। °पाल पुं. दर- दुव्वसण न [दुर्व्यसन] बुरी आदत । दुवाराय ) वान । °वाहा स्त्री [°बाहा] दुव्वसु वि [दुर्वसु] अभव्य, खराब द्रव्य । द्वार-भाग ।
मुणि पुं [मुनि] मुक्ति के लिए अयोग्य दुवारि वि [द्वारिन्] द्वारवाला । पुं. प्रतीहार । साधु । दुवारिअ वि [द्वारिक] दरवाजावाला । दुबह वि [दुर्वह] दुर्धर । दुवारिअ पुं [दौवारिक] द्वारपाल । दुव्वा देखो दुरुव्वा। दुवालस त्रि.ब. [द्वादशन्] बाहर । महित्तम | दुव्वाइ वि [दुर्वादिन] अप्रियवक्ता । वि [ मौहर्तिक] बारह मुहूर्तों का परिमाण- दुव्वाय पुं [दुर्वाक्] दुर्वचन, दुष्ट उक्ति । वाला । °विह वि [°विध] बारह प्रकार | दुव्वाय पुं [दुर्वात] दुष्ट पवन । का । हा अ ['धा] बारह प्रकार । वित्त दुव्वार वि [दुर्वार] दुःख से रोकने-योग्य, न [वर्त] बारह आवर्तवाला वन्दन, प्रणाम- अवार्य । विशेष।
दुव्वारिअ देखो दुवारिअ = दौवारिक । दुवालसंग स्त्रीन [द्वादशाङ्गी] 'आचारांग' | दुव्वाली स्त्री [दे] वृक्ष-पंक्ति ।
आदि बारह जैन आगम सूत्र ग्रन्थ । दुबास पुं [दुर्वासस्] एक ऋषि । दुवालसंगि वि [द्वादशाङ्गिन्] बारह अंगग्रन्थों | दुव्विअड वि [दुर्विवृत] नग्न । का जानकार ।
दुव्विअड्ढ । वि [दुर्विदग्ध] ज्ञान का झूठा दुवालसम वि [द्वादश] बारहवां । न. लगा- | दुन्विअद्ध ) अभिमान करनेवाला, तार पांच दिनों का उपवास ।
| दुशिक्षित । दुविट्ट । पुं [द्विपृष्ठ, द्विविष्टप] भरत- दुविजाणय वि [दुर्विज्ञेय] दुःख से जाननेदुविठ्ठ । क्षेत्र का द्वितीय अर्ध-चक्री राजा। योग्य, जानने को अशक्य । भरत-क्षेत्र में उत्पन्न होनेवाला आठवां अर्ध- दुविढप्प वि [दुरर्ज] कठिनाई से कमानेचक्री राजा, एक वासुदेव ।
योग्य । दुविभज्ज वि [दुर्विभाज्य] जिसका विभाग | दुविणीअ वि [दुविनीत] उद्धत । करना कठिन हो वह-परमाणु ।
दुविण्णाय वि [दुर्विज्ञात] असत्य रीति से दुविभव्व देखो दुविभव्व।
जाना हुआ।
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४७२
दुव्विभज देखो दुविभज्ज । दुव्विभव्व वि [दुविभाव्य] दुर्लक्ष्य, दुःख जिसकी आलोचना हो सके वह । दुव्विभाव व [दुर्विभाव ] ऊपर देखो । दुव्विलसियन [दुर्विलसित] स्वच्छन्दी
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विलास | जघन्य काम । दुव्विसह वि [दुर्विसह्य ] असह्य । दुव्विसोज्झ वि [दुर्विशोध्य ) शुद्ध करने को
अशक्य ।
दुव्विहिअन [दुर्विहित] दुष्ट अनुष्ठान । वि खराब रीति से किया हुआ । असुविहित, अयशस्वी |
दुव्वोज्झ वि [ दुर्वाह्य] दुर्वह, दुःख से ढोनेयोग्य ।
दुव्वोज्झवि [दे] दुःख से मारने- योग्य । दुसंक न [दुस्संकट] विषम विपत्ति ।
दुसंचर देखो दुस्संचर ।
दुसंथ व [ द्विसंस्थ] दो बार सुनने से ही उसे अच्छी तरह याद कर लेने की शक्तिवाला । दुसन्नप्प वि [दुस्संज्ञाप्य] दुर्बोध्य | दुसमदुसमा देखो दुस्समदुस्समा । दुसमसमा देखो दुस्सम सुसमा । दुसमा देखो दुस्समा | दुसह देखो दुस्सह ।
दुसाह व [दुस्साध] कष्ट साध्य । दुसिक्ख वि [दुशिक्षित ] दुर्विदग्ध । दुसुमिण देखो दुस्सुमिण ।
दुरसंचार वि [ दुरसंचार ] ऊपर देखो । दुस्संत पुं [दुष्यन्त ] चन्द्रवंशीय एक राजा, शकुन्तला का पति । दुस्संबोह वि [दुस्संबोध] दुर्बोध्य ।
दुव्विभज- दुस्सिज्जा
दुस्सझ वि [दुस्साध्य ] दुष्कर | दुस्सण्णप्प देखो दुसन्नप्प दुस्सत वि [दुस्सत्त्व] दुरात्मा, दुष्ट जीव । दुस्समदुस्समा स्त्री [दुष्षमदुष्षमा ] कालविशेष, सर्वाधम काल, अवसर्पिणी काल का छठवाँ और उत्सर्पिणी काल का पहला आरा, इसमें सब पदार्थों के गुणों की सर्वोत्कृष्ट हानि होती है, इसका परिणाम एक्कीस हजार वर्षों का है।
दुस्समसुसमा स्त्री [ दुष्षमसुषमा ] बेयालीस हजार कम एक कोटाकोटि सागरोपम का परिमाणवाला काल - विशेष अवसर्पिणी काल का चतुर्थ और उत्सर्पिणी काल का तीसरा आरा ।
दुसुरुल्लय न [ दे] गले का आभूषण - विशेष । दुस्स सक [द्विष्] द्वेष करना ।
दुस्साहड वि [दुस्संहृत] दुःख से एकत्रित किया हुआ ।
दुस्सउण न [दुश्शकुन अपशकुन ।
दुस्संचरवि [दुस्संचर ] जहाँ दुःख से जाया दुस्साहिअ वि [ दौस्साधिक] दुस्साध्य कार्य को जा सके, दुर्गम ।
करनेवाला ।
दुस्समा स्त्री [दुष्षमा ] दुष्ट काल । एक्कीस हजार वर्षों के परिमाणवाला काल-विशेष, अवसर्पिणी-काल का पाँचवाँ और उत्सर्पिणी काल का दूसरा आरा ।
दुस्सर पुं [दुःस्वर] खराब आबाज, कुत्सित कण्ठ । कर्म- विशेष जिसके उदय से स्वर कर्ण - कटु होता है । °णाम न ['नामन् ] दुःस्वर का कारण-भूत कर्म ।
दुस्सल वि. [ दुश्शल] अविनीत । दुस्सह वि. असह्य |
दुस्साहय वि [दुस्सोढ़] दुःख से सहन किया हुआ ।
दुस्सासण पुं [ दुश्शासन] दुर्योधन का एक छोटा भाई, कौरव - विशेष ।
दुसिक्ख वि [दुश्शिक्ष ] दुष्ट शिक्षावाला, दुर्विदग्ध |
दुस्सिक्खि वि [दुशिक्षित ] ऊपर देखो । दुस्सिज्जा स्त्री [दुश्शय्या] खराब शय्या ।
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दुखाना।
दुस्सिलिट्ठ-दूणावेढ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४७३ दुस्सिलिट्र वि [दुश्श्लिष्ट] कुत्सित श्लेषवाला । | दुहा अ [द्विधा] दो तरफ, उभयथा । °इअ वि दुस्सील वि [दुश्शील] दुष्ट स्वभाववाला ।। [कृत] जिसको दो खण्ड किये गये हों वह । व्यभिचारी।
| दुहाकर सक [द्विधा + कृ] दो खण्ड करना । दुस्सुमिण पुंन [दुस्स्वप्न] खराब स्वप्न । | दुहाव सक [छिद्] छेदना, खण्डित करना । दुस्सुय न [दुश्श्रुत] दुष्ट शास्त्र । वि. श्रुति- | दुहाव सक [दुःखय] दुःखी करना, दुभाना, कटु । दुस्सेज्जा देखो दुस्सिज्जा।
दुहावण वि [दुःखन] दुःखी करनेवाला । दुह सक [दुह] दूहना, दूध निकालना।
दुहि वि [दुःखिन्] दुःखी, व्यथित, पीड़ित । दुह सक [द्रुह ] द्रोह करना, द्वेष करना, वैर | दुहिअ वि [दुःखित] पीड़ित, दुःखयुक्त । करना।
दुहिअ वि [दुग्ध] जिसका दोहन किया गया हो दुह देखो दोह = दोह।
वह । दुज्झ वि [°दोह्य] फिर-फिर दोहने
योग्य । दुह देखो दुक्ख = दुःख । °अ वि [°द] दुःखजनक । "ट्ट वि [त] दुःख से पीड़ित ।
| दुहिआ [दुहित] पुत्री । °दइअ ' [°दयित]
जामाता। ट्टिय वि [पतित] दुःख से पीड़ित । 'ट्ठ पुं
दुहिण पुं [मुहिण] ब्रह्मा, चतुर्मुख । [°ार्थ] नरक-स्थान । °त्त देखो ट्ट। °फास
दहित्त पुं [दौहित्र] लड़की का लड़का, नाती। पुं[स्पर्श] दुःख-जनक स्पर्श । °भागि वि
दुहित्तिया स्त्री[दौहित्रिका]लड़की की लड़की, [भागिन्] दुःख में भागीदार । °मच्चु पुं
नतिनी । [मृत्यु] अपमृत्यु, अकाल मौत । विवाग
दुहित्ती स्त्री [ दौहित्री ] लड़की की लड़की, पुं[विपाक] दुःखरूप कर्म-फल । °सिज्जा, |
नतिनी या नातिन । °सेज्जा स्त्री [ शय्या] दुःख-जनक शय्या ।
दुहिदिआ (शौ) स्त्री [दुहित] कन्या । वह वि. दुःख-जनक ।
दुहिल वि [द्रुहिल] द्रोही। दुह" देखो दुहा।
दू सक. उपताप करना । काटना । दुहअ वि [दे] चूर-चूर किया हुआ ।
दूअ पं [दूत] सन्देश-हारक । दुहअ वि [दुर्हत] खराब रीति से मारा हुआ।
दुआ देखो धूआ। दुहअ वि द्विहत] दो से मारा हुआ। दूइ° देखो दुई। °पलासय न [°पलाशक] दुहअ देखो दुब्भग।
एक चैत्य । दुहओ अ [द्विधातस] दोनों तरफ से, उभय | दूइज्ज सक [द्रु]गमन करना, विहरना, जाना । प्रकार से।
दूइत्त न [दूतीत्व] दूती का कार्य, दूतीपन । दुहंड वि [द्विखण्ड] दो टुकड़ेवाला । दुई स्त्री [दूती] दूत के काम में नियुक्त की दुहग देखो दुब्भग।
हुई स्त्री, कुटनी । जैन साधुओं के लिये भिक्षा दुहट्ट वि [दुर्घट्ट] दुर्वार।
का एक दोष । °पिंड पुं[°पिण्ड] समाचार दुहण देखो दुघण।
पहुँचाने से मिली हुई भिक्षा । देखो दूइ । दुहण पुं [द्रुहण] प्रहरण-विशेष ।।
दूण वि [दून] हैरान किया हुआ । दुहण न [दोहन] दोहना।
दूण पु [दे] हाथी। दुहदुहग पुं [दुहदुहक] 'दुह-दुह' आवाज । दूण (अप) देखो दुउण। दुहव देखो दूहव।
दूणावेढ वि [दे] अशक्य । तालाब ।
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दूमग )
४७४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष दूभ अक [दुःखय्] दूभना, दुःखित होना। दूस न [दूष्य] वस्त्र । तम्बू । गणि पुं दूभग देखो दुब्भग।
[°गणिन्] एक जैन आचार्य । °मित्त पुं दूभग्ग न [दौर्भाग्य]दुष्ट भाग्य । [मित्र] मौर्यवंश के नाश होने पर पाटलीपुत्र दुम सक [द, दावय] परिताप करना, सन्ताप में अभिषिक्त एक राजा । °हर न [गृह] करना।
पट-कुटी। दूम देखो दुम = धवलय् ।
दूसअ वि [दूषक] दोष प्रकट करनेवाला । दूमक । वि [दावक] पीड़ा-जनक ।
दूसग वि [दूषक दूषित करनेवाला । दोष
देखनेवाला। दूमण वि [दावक] उपताप करनेवाला । । दूसण न [दूषण] दोष, अपराध । कलंक, दूमण न [दवन, दावन] परिताप, पीड़न । दाग । पुं. रावण की मौसी का लड़का । वि. दूमण देखो दुम्मण = दुर्मनस् ।
दूषित करनेवाला। दूमणाइअ वि [दुर्मनायित] उद्विग्न-मनस्क । | दूसम वि [दुष्षम] खराब, दुष्ट । पुं. कालदूयाकार न [दे] कला-विशेष ।
विशेष, पांचवां आरा। 'दूसमा देखो दूर न. असमीप । अतिशय, अत्यन्त । वि.. दुस्समदुस्समा । सुसमा देखो दूरस्थित । व्यवहित, अन्तरित । °ग वि. | दूरवर्ती । °गइ, °गइअ वि [°गतिक] दूर दूसमा देखो दुस्समा। जानेवाला । सौधर्म आदि देवलोक में उत्पन्न दूसर देखो दुस्सर। होनेवाला । तराग वि [तर] अत्यन्त दूर। दूसल वि [दे] अभागा ।
त्थ वि [°स्थ] दूरस्थित, दूरवर्ती । 'भविय दूसह देखो दुस्सह । पुं [°भव्य] दीर्घ काल में मुक्ति को प्राप्त दूसहणीअ वि [दुस्सहनीय] दुस्सह, असह्य । करने की योग्यतावाला जीव । °य देखो °ग। दूसासण देखो दुस्सासण। 'वत्ति वि [वतिन्] दूर में रहनेवाला । दूसाहिअ वि [दौस्साधिक] दुसाध जाति में लिइय वि [°ालयिक] मुक्ति-गामी । °ालय
उत्पन्न, अस्पृश्य जाति का । पुं. दूर-स्थित आश्रय । मोक्ष । मुक्ति का दूसि पुं[दूषिन्] नपुंसक का एक भेद । मार्ग।
दूसिअ वि दूषित] दूषण-युक्त , कलङ्कयुक्त । दूरंगइअ देखो दूर-गइ।
पुं. एक प्रकार का नपुंसक । दूरंतरिअ वि [दूरान्तरित] अत्यन्त-व्यवहित ।
दुसिआ स्त्री [दूषिका] आँख का मैल । दूरचर वि. दूर रहनेवाला।
दूसुमिण देखो दुस्सुमिण । दूराय सक [दूराय] दूर स्थित की तरह मालूम
दूहअ वि [दुःखक] दुःख-जनक । होना, दूरवर्ती मालूम पड़ना ।
दूहट्ट वि [दे] लज्जा से उद्विग्न । दूरीकय वि [दूरीकृत] दूर किया हुआ । दूहय देखो दोध। दूरोहूअ वि [दूरीभूत] जो दूर हुआ हो । | दूहल वि [दे] मन्दभाग्य। दूरुल्ल वि [दूरवत्] दुरस्थित, दूरवर्ती ।। दूहव देखो दुब्भग। दूलह देखो दुल्लह ।
दुहव सक [दुःखय्] दुभाना, दुःखी करना । दूस अक [दुष्] दूषित होना, विकृत होना ।
दूहिअ वि [दुःखित] दुःख-युक्त । दूस सक [दूषय] दोषित करना ।
दे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-सम्मुख
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दे-देव संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४७५ करण । सखी को आमन्त्रण ।
पुं [किल्बिषिक] एक अधम देव-जाति । दे अ. पाद-पूरक अव्यय ।
किब्बिसीया स्त्री [°किल्बिषीया] देखो देअ देखो देव।
देवकिब्बिसिया। 'कुरा स्त्री. क्षेत्र-विशेष, देअर देखो दिअर।
वर्ष-विशेष । 'कुरु पुं. वही अर्थ । 'कुल देखो देअराणी स्त्री [देवरपत्नी] देवरानी । °उल । °कुलिय पुं [°कुलिक] पुजारी। देई देखो देवी।
'कुलिया देखो उलिआ । गइ स्त्री देउल न [देवकुल] देव-मन्दिर । °णाह पुं [°गति] देवयोनि । गणिया स्त्री [°नाथ] मन्दिर का स्वामी। °वाडय पुन
[गणिका] देव-वेश्या, अप्सरा । °गिह न [°पाटक] मेवाड़ का एक गाँव ।
["गृह] देव-मन्दिर । 'गुत्त पुं [°गुप्त] एक देउलिअ वि [दैवकुलिक] देव-स्थान का
परिव्राजक का नाम । एक भावी जिनदेव ।
चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन उपासक का नाम । परिपालक ।
सुप्रसिद्ध श्री हेमचन्द्राचार्य के गुरू का नाम । देउलिया स्त्री [देवकुलिका]छोटा देव-स्थान ।
°च्चय वि [°ार्चक] देव की पूजा करनेवाला । देक्ख सक [दृश्] देखना, अवलोकन करना ।
पुं. मन्दिर का पुजारी । °च्छंदग न देक्खालिअ वि [दर्शित] दिखाया हुआ,
[°च्छन्दक] जिनदेव का आसन । °जस पुं बतलाया हुआ।
[°यशस्] एक जैन मुनि । जाण न [°यान देख (अप) देखो देक्ख ।
देव का वाहन । °जिण पुं [°जिन] एक दे? देखो दिट्ठ - दृष्ट ।
भावी जिनदेव का नाम। ड्ढि देखो देविड्ढि । देण्ण देखो दइण्ण।
°णाअअ पु[°नायक] नीचे देखो । °णाह पुं देपाल पुं [देवपाल] एक मन्त्री का नाम ।।
[°नाथ] इन्द्र । परमेश्वर, परमात्मा । °तम देप्प देखो दिप्प = दीप् ।
न ["तमस्] एक प्रकार का अन्धकार । देर देखो दार = द्वार।
'त्थुइ, थुइ स्त्री [°स्तुति] देव का गुणानुदेव उभ [दिव्] जीतने की इच्छा करना । पण वाद । °दत्त पुं. व्यक्तिवाचक नाम । दत्ता करना । व्यवहार करना। चाहना । आज्ञा स्त्री. व्यक्ति-वाचक नाम । °दव्व न [°द्रव्य] करना । अव्यक्त शब्द करना । हिंसा करना। देव-सम्बन्धी द्रव्य । दार न [द्वार] देव-गृहदेव पुंन.अमर, देवता । मेघ । आकाश । राजा। विशेष का पूर्वीय द्वार, सिद्धायतन का एक पुं. परमेश्वर, देवाधिदेव । साधु, मुनि, ऋषि । | द्वार । दारु पुं. देवदार का पेड़ । द्वीप-विशेष । समुद्र -विशेष । स्वामी, नायक । । °दाली स्त्री. वनस्पति-विशेष, रोहिणी । पूज्य । "उत्त वि [°उप्त] देव से बोया हुआ। दिण्ण पुं [°दत्त] व्यक्ति-वाचक नाम, एक देव-कृत । °उत्त वि [°गुप्त] देव से रक्षित। सार्थवाह पुत्र । °दीव पुं [°द्वीप] द्वीपएरवत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव । °उत्त पुं विशेष । दूस न [°दूष्य] देवता का वस्त्र, ["पुत्र] देव-पुत्र । °उल न [“कुल] देव- दिव्य वस्त्र । देव पुं. परमेश्वर, परमात्मा । मन्दिर । °उलिया स्त्री [कुलिका] छोटा इन्द्र, देवों का स्वामी । नट्टिया स्त्री देव-मन्दिर । कन्ना स्त्री [ कन्या] देव- | [°नतिका] नाचनेवाली देवी, देव-नटी । पुत्री । कहकहय पुं [°कहकहक] देवताओं | 'नयरी स्त्री [°नगरी] अमरावती, स्वर्गका कोलाहल । 'किब्बिस ' [किल्बिष] | पुरी। पडिक्खोभ पुं [°प्रतिक्षोभ] तमचाण्डाल-स्थानीय देव-जाति । °किब्बिसिय । स्काय । 'पलिक्खोभ पुं [परिक्षोभ]
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कृष्ण-राजि । पव्वय पुं [पर्वत ] पर्वतविशेष | 'पसाय पुं [' प्रसाद] राजा कुमारपाल के पितामह का नाम । फलिह पुं [परिघ] अन्धकार | भद्द पुं [°भद्र] देवद्वीप का अधिष्ठाता देव । एक प्रसिद्ध जैनाचार्य । भूमि स्त्री. स्वर्ग | मरण | 'महाभद्द
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
देव-देवब्बिस
ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न होनेवाले चौबीसवें जिनदेव । णंदा स्त्री [नन्दा] भगवान् महावीर की प्रथम माता । पक्ष की पनरहवीं रात्रि का नाम ।
पिय [प्रिय
सरल - प्रकृति
भद्र, महाशय, महानुभाव, यरिअ पुं [चार्य] एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्यं । रन्न देखो रण । देवों का क्रीड़ास्थान । लिय पुंन. स्वर्ग | हिदेव पुं [°धिदेव] परमेश्वर, जिनदेव | हिवइ पुं [धिपति] इन्द्र, देव-नायक ।
]
|
° दिन्ना स्त्री
[महाभद्र] देवद्वीप का अधिष्ठाता देव । ● महावर पुं. देव-नामक समुद्र का अधिष्ठायक देव-विशेष । रइ पुं [°रति] एक राजा । 'रक्ख पुं [° रक्ष] राक्षस- वंशीय एक राजकुमार | रण्ण न [रण्य] अन्धकार | ° रमण न. सौभाञ्जनी नगरी का एक उद्यान । रावण का एक उद्यान । राय पुं [° राज] इन्द्र । रिसि पुं [ " ऋषि ] नारद मुनि । 'लोअ, 'लोग पुं [लोक ] स्वर्ग | देव-जाति । 'लोगगमण न [° लोकगमन] स्वर्ग में उत्पत्ति । वर पुं. देव-नामक समुद्र का अधिष्ठायक एक देव | 'वहू स्त्री ['वधू ] देवांगना, देवी | संपत्ती स्त्री [संज्ञप्ति ] देव-कृत प्रतिबोध । देवता के प्रतिबोध से ली हुई दीक्षा । संणिवाय पुं [सन्निपात] देव-समागम | देव- समूह । देवों की भीड़ | °सम्म पुं [°शर्मन्] इस नाम का एक ब्राह्मण । ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव | 'साल न ['शाल ] एक नगर का नाम । 'सुंदरी स्त्री [° सुन्दरी ] देवांगना, देवी । सुय देखो 'स्य । तेण पुं [°सेन] शतद्वार नगर का एक राजा जिसका दूसरा नाम महापद्म था । ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव | भरत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव के पूर्वभव का नाम । भगवान् नेमिनाथ का एक शिष्य, एक अन्तकृद् मुनि । स्स न [°स्व] जिन-मन्दिर-सम्बन्धी धन । 'स्य पुं [श्रुत] भरत क्षेत्र के छठवें भावी जिन देव । 'हर न [गृह] देव मन्दिर । इदेव पुं [देव] अर्हन् देव । पुं [नन्द ]
देव पुंन. एक देव विमान । कुरु स्त्री. भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी की दीक्षा शिविका का नाम । च्छेदय पुंन [च्छन्दक ] कमानदार घूमटवाला दिव्य आसन -स्थान । तमिस्स पुंन: [ तमिस्र ] अन्धकार - राशि | ['दत्ता ] भगवान् वासुपूज्य की दीक्षाशिविका । 'पलिक्खोभ पुं [परिक्षोभ ] कृष्णराज, कृष्णवर्ण पुद्गलों की रेखा । 'रमण पुं. नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में पूर्व दिशा- स्थित एक अञ्जनगिरि । वह पुं ["व्यूह ] तमस्काय |
|
।
देव देखो दइव | 'न्नु वि ['ज्ञ] ज्योतिषशास्त्र का जानकार पर वि. भाग्य पर ही श्रद्धा रखनेवाला |
देवइ स्त्री [देवकी] श्रीकृष्ण की माता, आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाले एक तीर्थंकर देव का पूर्व भव । देखो देवकी । देवउप्फ न [दे] पक्व पुष्प, पका हुआ फल । देवं देखो दा = दा का हेकृ: । देवंग न [ दे. दिव्याङ्ग ] देवदृष्य वस्त्र । देवगण न [देवाङ्गण] स्वर्ग 1 देवंधकार
पुं [देवान्धकार] अन्धकार का समूह |
देवंधगार
देवकिब्बिस पुं [देवकिल्बिष] एक अधम देव
जाति ।
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४७७
देवकिबिसिया-देसय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष देवकिब्बिसिया स्त्री [ दैवकिल्बिषिकी ] | ज्योतिष शास्त्र को जाननेवाला । भावना-विशेष जो अधम देव-योनि में उत्पत्ति | देव्वजाणुअ । देखो देव्व-ज्ज । का कारण है।
देवण्णुअ । देवकी देखो देवइ । °णंदण पुं [नन्दन]
देस पुं [देश] एक सौ हाथ परिमित जमीन । श्रीकृष्ण ।
°देस पुं [°देश] सौ हाथ से कम जमीन । देवय वि [दैव्य] देव-सम्बन्धी ।
राग पुं. देश-विशेष । देवय न [दैवत] देव, देवता ।
देस सक [देशय] कहना, उपदेश देना । देवय देखो देव = देव ।
बतलाना। देवया स्त्री [देवता] देव, अमर । परमात्मा ।
देस पुं [देश] अंश, भाग । देश, जनपद । देवर देखो दिअर।
अवसर । स्थान । °कहा स्त्री [कथा] देवराणी देखो देअराणी।
जनपद-वार्ता । "काल देखो °याल । °जइ देवसिअ वि [दैवसिक] दिवस-सम्बन्धी ।।
पुं [°यति] श्रावक, उपासक, जैन गृहस्थ । देवसिआ स्त्री [देवसिका] एक पतिव्रता स्त्री | ण्णु वि [°ज्ञ] देश की स्थिति को जाननेजिसका दूसरा नाम देवसेना था।
वाला। °भासा स्त्री [ भाषा] देश की देविंद पुं [देवेन्द्र] इन्द्र । एक प्रसिद्ध जैनाचार्य
बोली । भूसण पुं [भूषण] एक केवलज्ञानी और ग्रन्थकार । 'सूरि पुं. एक प्रसिद्ध जैना- महर्षि । °याल पुं [°काल] प्रसंग, योग्य चार्य और ग्रन्थकार ।
समय । प्राय वि [°राज] देश का राजा। देविंदय पुं[देवेन्द्रक] देवविमान-विशेष ।।
°वगासिय देखो वगासिय । विरइ स्त्री देविड्ढि स्त्री [देवद्धि] देव का वैभव । पुं.एक
[विरति] श्रावक धर्म, जैन गृहस्थ का व्रत, सुप्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रन्थकार ।
अणुव्रत, हिंसा आदि का आंशिक त्याग । देविय वि [दैविक] देव-सम्बन्धी।
°विरय वि [°विरत] श्रावक, उपासक । देविल पुं. एक प्राचीन ऋषि ।
न. पांचवां गुण-स्थानक । विराहय वि देवी स्त्री. देव-स्त्री। राज-पत्नी। दुर्गा, |
[विराधक] व्रत आदि में आंशिक दूषण पार्वती । सातवें चक्रवर्ती और अठारहवें जिन
लगानेवाला। विराहि वि [विराधिन्] देव की माता । दशवें चक्रवर्ती की अग्र
वही अर्थ । विगास न [Tवकाश] श्रावक महिषी । एक विद्याधर कन्या ।
का एक व्रत । विगासिय न [°वकाशिक] देवीकय वि [देवोकृत] देवी से बनाया हुआ।
वही अर्थ । हिव पुं [°ाधिप] राजा। देवुक्कलिआ स्त्री [देवोत्कलिका] देवों की |
°हिवइ पुं [°ाधिपति] राजा । भीड़।
देश देखो वेस = द्वेष । देवेसर पुं [देवेश्वर] इन्द्र ।
देसंतरिअ वि [देशान्तरिक] भिन्न देश का, देवोद पुं. समुद्र-विशेष ।
विदेशी। देवोववाय पुं [देवोपपात] भरतक्षेत्र में | देसग देखो देसय ।
आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाले तेईसवें | देसण न [देशन] कथन, उपदेश, प्ररूपण । वि. जिन देव ।
उपदेशक, प्ररूपक । देव्व देखो दिव्य = दिव्य ।
देसणा स्त्री [देशना] उपदेश, प्ररूपण । देव्व देखो दइव । न, °ण, °ाणु वि [ज्ञ] | देसय वि [देशक] उपदेशक, प्ररूपक ।
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४७८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
देसराग-दोण दिखलानेवाला।
1 दोइ देखो दो = विधा। देसराग वि [देशराग] 'देशराग' देश में बना दोबुर [दे] देखो दोबुर । हुआ।
__दोकिरिय वि [द्विक्रिय] एक ही समय में दो देसि , वि [देशिन] अंशी, आंशिक, भाग- क्रियाओं के अनुभव को माननेवाला। देसिअ वाला । दिखलानेवाला । उपदेशक। दोक्कर देखो दुक्कर। देसिअ वि [देश्य, दैशिक] देश में उत्पन्न, दोक्खर पुं [द्वि-अक्षर] नपुंसक । देश-सम्बन्धी । सद्द पुं [°शब्द] देशीभाषा दोखंड देखो दुखंड ।। का शब्द।
दोखंडिअ वि [द्विखण्डित] जिसके दो टुकड़े देसिअ वि [देशिक] बृहत्क्षेत्र-व्यापी, विस्तीर्ण। किए गए हों वह । मुसाफिर। उपदेष्टा, गुरु । प्रवास | दोगंछि वि [जुगुप्सिन्] घृणा करनेवाला । मैं गया हुआ। सहा स्त्री [°सभा] धर्म- दोगच्च न [दौर्गत्य] दुर्दशा । दारिद्रय । शाला।
दोगुंछि देखो दोगंछि। देसिअ देखो देवसि।
दोगुंदय पुंन [दोगुन्दक] एक देव विमान । देसिअव वि [देशितवत] जिसने उपदेश दिया दागुदुय पुं [दौगुन्दक] उत्तम-जातीय देव
विशेष । हो वह। देसिल्लग देखो देसिअ = देश्य ।
दोग्ग न [दे] युग्म, युगल । देसी स्त्री [देशी] भाषाविशेष, अत्यन्त प्राचीन । दाग दखा दुग्गइ ।
दोग्गइ देखो दुग्गइ । कर वि. दुर्गति-जनक । प्राकृत भाषा का एक भेद । °भासा स्त्री दोग्गच्च देखो दोगच्च । [°भाषा] वही अर्थ । देसूण वि [देशोन] कुछ कम ।
दोग्घोट्ट पुं दे] हाथी । दस्स वि [दश्य] देखने-योग्य । देखने को ! पट शक्य ।
दोचूड पुं [द्विचूड]विद्याधर वंश के एक राजा देह देखो देख।
का नाम । देह पुन. शरीर। पुं. पिशाच-विशेष । 'रय न दोच्च वि [द्वितीय] दूसरा। [°रत] मैथुन ।
दोच्च न दौत्य दूत-कर्म । देहंबलिया स्त्री [देहबलिका] भिक्षा-वृत्ति ।
दोच्च अ [द्विस्] दो बार । देहणी स्त्री [दे] कर्दम ।
दोच्चंग न [द्वितीयाङ्ग] दूसरा अंग । पकाया देहरय (अप) न [देवगृहक] देव-मन्दिर । । हुआ शाक । कढ़ी। देहली स्त्री. चौखट ।
। दोजीह पुं [द्विजिह्व] दुर्जन । साँप । देहि पुं [देहिन्] आत्मा, जीव ।
दोज्झ वि [दोह्य] दोहने योग्य । देहुर (अप) न [देवकुल] मन्दिर । दोण पुं [द्रोण] धनुर्वेद के एक सुप्रसिद्ध दो अ (द्विधा] दो प्रकार से।
आचार्य । एक प्रकार का परिमाण । "मुह न दो [द्वि] दो, उभय ।
[°मुख] नगर, जल और स्थल के मार्गवाला दो दोस्] हाथ, बाहु ।
शहर । 'मेह [ मेघ मेघ-विशेष, जिसकी दोअई स्त्री [द्विपदी] छन्द-विशेष ।
धारा से बड़ी कलशी भर जाय वह वर्षा । दोआल पुं [दे] वृषभ ।
°मुया स्त्री [ मुता] लक्ष्मण की स्त्री का
दोग्घट्ट ।
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दोणअ-दोसीण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष नाम, विशल्या ।
दोलया, स्त्री [दोला] हिंडोला। दोण [दे] आयुक्त । हल जोतनेवाला ।
दोला । दोणक्का स्त्री [दे] मधुमक्खी ।।
दोलिया देखो दोला। दोणी स्त्री [द्रोणी] नौका, छोटा जहाज । दोव पुं. एक भनार्य जाति । पानी का बड़ा कुण्डा।
दोवई स्त्री [द्रौपदी] राजा द्रुपद की कन्या, दोत्तडी स्त्री [दुस्तटी] दुष्ट नदी।
पाण्डव-पत्नी। दोत्थ न [दौस्स्थ्य ] दुर्गति ।
दोवयण देखो दुवयण = द्विवचन । दोद्दाण वि [दुर्दान] दुःख से देने योग्य। दोवार (अप) देखो दुवार। दोद्दिअ पुं [दे] धर्म-कूप, चमड़े का बना हुआ | दोवारिज ! पुं[दौवारिक] द्वारपाल । भाजन विशेष ।
दोवारिय) दोद्ध वि [दोग्धृ] दोहन कर्ता।
दोविह देखो दुविह। दोधअ) न [दोधक] छन्द-विशेष ।
यंकाल का भोजन । दोधक
| दोव्वल देखो दोब्बल। दोधार पं [द्विधाकार] दो भाग करना। दोस देखो दूस = दूष्य । दोनिक्कम वि [निक्रम] अत्यन्त कष्ट से चलने- दोस पुं [दोष] दूषण, दुर्गुण, ऐब । °न्नु वि योग्य ।
[ज्ञ] दोष का जानकार, विद्वान् । °ह वि दोबुर पुं [दे] तुम्बुरु, स्वर्ग गायक ।
[°घ] दोष नाशक । दोब्बलिय देखो दुब्बलिय।
दोस पुं [दे] अर्ध । द्वेष । द्रोह । दोब्बल्ल न [दौर्बल्य] दुर्बलता। | दोस पुं. हाथ । दोभाय वि [द्विभाग] दो भागवाला, दो |
| दोसणिज्जत पुं [दे] चाँद ।
दोसा स्त्री [दोषा] रात्रि । खण्डवाला। दोमणंसिय वि [दौर्मनस्यिक] खिन्न, शोक
दोसाकरण न [दे] कोप। ग्रस्त ।
दोसाणिअ वि [दे] निर्मल किया हुआ । दोमणस्स न [दौर्मनस्य] वैमनस्य, द्वेष, मन
दोसायर पुं [दोषाकर] चाँद । दोषों की की दुष्टता।
खान । दुष्ट । दोमासिअ वि [द्वैमासिक] दो मास का।।
दोसारअण पुं [दे. दोषारत्न] चन्द्र । दोमिय (अप) देखो दूमिअ = दावित ।
दोसासय पुं दोषाश्रय] दोष-युक्त, दुष्ट । दोमिली स्त्री. लिपि-विशेष ।
| दोसिअ पुं दौष्यिक] वस्त्र का व्यापारी । दोमुह वि [द्विमुख] दो मुंहवाला। पुं. भूप
दोसिण [दे] देखो दोसीण। विशेष । दुर्जन ।
दोसिणा दे] नीचे देखो। °भा स्त्री. चन्द्र दोर पुं[दे] धागा । छोटी रस्सी । कटि-सूत्र । की एक पटरानी। दोरिया देखो दोरी।
दोसिणी स्त्री [दे. दोषिणी] ज्योत्स्ना । दोरी स्त्री [दे] छोटी रस्सी ।
दोसियण्ण न [दोषिकान्न बासी अन्न । दोल अक [दोलय] हिलना। झूलना । संशय | दोसिल्ल वि [दोषवत्] दोष-युक्त । करना।
। दोसिल्ल वि [दे] द्वेषी। दोलणय न [दोलनक] झूलन, अन्दोलन । दोसीण न [दे] रात का बासी अन्न ।
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४८०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दोहा [द्विधा ] दो प्रकार ।
दोसील व [दुश्शील ] दुष्ट स्वभाववाला । दोसोलह त्रि. ब. [ द्विषोडशन् ] बत्तीस । दोह सक [ह] द्रोह करन । दोह पुं [दोह] दोहन |
दोहा अवि [ द्विधाकृत] जिसका दो खण्ड किया गया हो वह ।
दोहासन [ ] कटी-तट, कमर ।
दोह व [ दो ] दोहने योग्य | दोह पुं [द्रोह ] ईर्ष्या, द्वेष ।
दोहि वि [दोहित्] झरनेवाला, टपकनेवाला । दोहि [द्रोहिन्] द्रोह करनेवाला ।
दोहग्गन [ दौर्भाग्य ] दुष्ट भाग्य, दुरदृष्ट, दोहिण्ण वि [ द्विभिन्न] द्विखण्ड, जिसका टुकड़ा किया गया हो वह ।
कमनसीबी ।
दोहण न [दोहन] दोहना, दूध निकालना । दोहित्त पुं [दौहित्र ] लड़की का लड़का, 'वाडण न [ 'पाटन ] दोहन-स्थान । नाती ।
दोहणहारी स्त्री [दे] दोहनेवाली स्त्री । दोहूअ पुं [ दे] मुरदा ।
पनिहारी ।
'द्दोस देखो दोस = (दे) ।
द्रवक्क (अप) न [ दे. भय ] डर, भीति । पुं [द] बड़ा जलाशय, झील ।
दोहणी स्त्री [] कर्दम ।
दो वि [दोहr] दोहनेवाला ।
दोह व [द्रोह ] द्रोह करनेवाला, ईर्ष्यालु । दोहल पुं [दोहद] गर्भिणी स्त्री का मनोरथ ।
ध पुं. दन्त - स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष | धअ देखो धव ।
धं पुं [ध्वाङ्क्ष ] कौआ ।
धंग पुं [दे] भ्रमर |
धंत न [ ध्वान्त ] अँधेरा । अज्ञान ।
नगर ।
धंधोलिय (अप) वि [भ्रमित ] घुमाया हुआ । धंस अक [ध्वंस्] नष्ट होना ।
द्रेहि (अप) स्त्री [दृष्टि ] नजर । द्रोह देखो दोह = द्रोह |
ध
धंस सक [ध्वंसय् ] नाश करना | दूर करना | धंसाड सक [मुच्] त्याग करना, छोड़ना ।
साडि वि [] व्यपगत, नष्ट । धगधग अक [धगधगाय् ] 'धग्-धग्' आवाज
धंत न [ दे] अतिशय ।
धंत वि [ ध्मात] अग्नि में तपाया हुआ । शब्दयुक्त, शब्दित ।
धंधा स्त्री [दे] लज्जा ।
धुक्क न [ धधुक्य ] गुजरात का एक धडहडिय न [ दे] गर्जना |
करना । जलना, अतिशय जलना । धगधग्ग देखो धगधग |
धग्गीकय वि [ दे] जलाया हुआ, अत्यन्त
प्रदीपित ।
धज देखो धय = ध्वज |
देखो
|
दोसील-वण
धट्ठज्जुण
[ धृष्टद्युम्न] राजा द्रुपद का
धट्टज्जुण्ण
एक पुत्र ।
धण न [ दे] गले से नीचे का शरीर ।
}
धण न [धन] विभव, स्थावर-जंगम सम्पत्ति । गणिम, घरिम, मेय या परिच्छेद्य द्रव्य - गिनती से और नाप आदि से क्रय-विक्रययोग्य पदार्थ । पुं. कुबेर | एक श्रेष्ठी । धन्य सार्थवाह का एक पुत्र । इत्त, इल्ल वि [वत् ] धनी । गिरि पुं. एक जैन महर्षि जो वज्रस्वामी के पिता थे । 'गुत्त पुं [गुप्त ]
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धणंजय-धण्णाउस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४८१ एक जैन मुनि । गोव पुं [°गोप] धन्य | पुरुष-विशेष । सार्थवाह का एक पुत्र । °ड्ढ पं [Tठ्य] एक | धणिअ वि [धनिक] पैसादार। पुं. मालिक, जैनमुनि । °णंदि पुंस्त्री [ नन्दि] दुगुना देव- स्वामी । द्रव्य । णिहि पुं[निधि] खजाना । त्थि वि | धणिअ न [दे] अत्यन्त, गाढ़, अतिशय । [आर्थिन्] धन का अभिलाषी । °दत्त पुं. एक धणिअ वि [धन्य] धन्यवाद के योग्य, सार्थवाह । तृतीय वासुदेव के पूर्व-जन्म का | प्रशंसनीय, स्तुतिपात्र । नाम । °देव पुं. एक सार्थवाह, मण्डिक-गणधर धणिआ स्त्री [दे] प्रिया, पली । धन्या, स्तुतिका पिता । धन्य सार्थवाह का एक पुत्र । पइ पात्र स्त्री। देखो °वइ । पवर पुं [प्रवर] एक श्रेष्ठी । धणिट्ठा स्त्री [धनिष्ठा] नक्षत्र-विशेष । °पाल पुं. धन्य सार्थवाह का एक पुत्र । देखो | धणी स्त्री [दे] भार्या । पर्याप्ति । जो बंधा हुआ °वाल । 'प्पभा स्त्री [°प्रभा] कुण्डलधर द्वीप | होने पर भी भय-रहित हो वह । की राजधानी । °मंत, °मण वि [°वत्]
| धणु पुन [धनुष्] कार्मुक । चार हाथ का परिधनवान् । °मित्त पुं [मित्र] एक जैनमुनि
माण । पुं. परमाधार्मिक देवों की एक जाति । । °य पुं [°द] एक सार्थवाह । एक विद्याधर
°कुडिल न [कुटिलधनुष्] वक्र धनुष । 'ग्गह राजा जो राजा रावण की मौसी का लड़का
पुं [°ग्रह] वायु-विशेष । द्धय पुं [ध्वज] था। कुबेर । वि. धन देनेवाला । रक्खिय
नृप-विशेष । "द्धर वि [ °धर ] धनुर्विद्या पुं["रक्षित] धन्य सार्थवाह का एक पुत्र ।
में निपुण । °पिट्ठ न [पृष्ठ ] धनुष °वइ पुं [°पति] कुबेर । एक राजकुमार ।
का पुष्ठ भाग, धनुष के पीठ के आकारवाला °वई स्त्री [°वती]एक सार्थवाह-पुत्री । वंत,
क्षेत्र । 'पुत्तिया स्त्री [ °पृथक्त्विका ] °वत्त देखो °मंत । वह पुं. एक श्रेष्ठी । एक
दो कोस । °वेअ, °व्वेअ पुं [°वेद ] राजा । °वाल देखो °पाल। राजा भोज के
धनुर्विद्या-बोधक शास्त्र । हर देखो धर । समकालिक एक जैन महाकवि । °संचया स्त्री. एक वणिग्-महिला । °सम्म पुं[°शर्मन्]
धणु पुन [धनुस्] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि । एक वणिक् । °सिरी स्त्री [°श्री] एक वणिग्
ल्ल वि [°मत्] धनुषवाला । महिला । °सेण पुं [°सेन] एक राजा । गल
धणुक्क ) ऊपर देखो। वि [°वत् धनी । वह वि. धनी । पुं. एक
धणुह ।
| धणुही स्त्री [धनुष] कार्मुक । श्रेष्ठी । एक राजा।
धणेसर पुं [धनेश्वर] एक प्रसिद्ध जैनमुनि और धणंजय पुं [धनञ्जय] अर्जुन । अग्नि । सर्प
ग्रन्थकार । विशेष । वायु-विशेष, शरीर-व्यापी पवन ।
धण्ण पुं [धन्य] एक जैनमुनि । 'अनुत्तरोपपावृक्ष-विशेष । उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र ।
तिकदसा' सूत्र का एक अध्ययन । यक्ष-विशेष । पक्ष का नववाँ दिन । श्रेष्ठि-विशेष । एक
वि. कृतार्थ । धन-लाभ के योग्य । स्तुति-पात्र, राजा।
प्रशंसनीय । भाग्यशाली। धणि पुं [ध्वनि] शब्द, आवाज ।
धण्ण देखो धन्न - धान्य । धणि स्त्री [ध्राणि] सन्तोष । अतृप्ति उत्पन्न | धण्णंतरि पुं [धन्वन्तरि] राजा कनकरथ का करने की शक्ति ।
एक स्वनामख्यात वैद्य । देव-वैद्य । धणि पुं [धनिक] यवन-मत का प्रवर्तक ( धण्णाउस वि [दे] जिसको आशीर्वाद दिया
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भत्त-धम्म
जाता हो वह । पुं. आशीर्वाद ।
करना। धत्त वि [दे] निहित, स्थापित । पुं. वनस्पति
धमास पुं. वृक्ष-विशेष । विशेष । धत्त वि [धात्त] निहित, स्थापित ।
धमिअ वि [ध्मात] जिसमें वायु भर दिया धत्तरट्ठग पुं [धार्तराष्ट्रक] हंस की एक जाति गया हो वह । आग में तपाया हुआ। जिसके मुंह और पाँव काले होते हैं। धम्म पुं [धर्म] एक देव-विमान । एक दिन का धत्ती स्त्री [धात्री] उपमाता, दाई । पृथिवी, उपवास । पुन. शुभ कर्म, कुशल जनक-अनुष्ठान, भूमि । आमलकी-वृक्ष, आँवले का पेड़ । देखो
सदाचार । पुण्य । स्वभाव । गुण, पर्याय । धाई।
एक अरूपी पदार्थ जो जोव को गति-क्रिया में धत्तूर पुं [धत्तूर धतूरा का वृक्ष । न. धतूरा
सहायता पहुंचाता है। वर्तमान अवसर्पिणी
काल में उत्पन्न पनरहवें जिन-देव । एक का पुष्प । धत्तरिअ वि [धात्तूरिक] जिसने धतूरा का
वणिक् । स्थिति, मर्यादा । धनुष । एक जैन
मुनि । 'सूत्रकृताङ्ग' सूत्र का एक अध्ययन । नशा किया हो वह।
आचार, रीति, व्यवहार । उत्त पुं[ पुत्र ] धत्थ वि [ध्वस्त ध्वंस-प्राप्त, नष्ट ।
शिष्य । उर न[°पुर]नगर-विशेष । कंखिअ धन्न न [धान्य] अनाज । धान्य-विशेष ।
वि[काक्षित] धर्म को चाहवाला । कहा धनिया । कीड पुं[°कीट] अनाज में होने
स्त्री [कथा] धर्म-सम्बन्धी बात । कहि वि वाला कोट । णिहि पुंस्त्री [निधि]
[कथिन्] धर्म का उपदेशक । कामय वि कोष्ठागार । °पत्थय पुं [प्रस्थक] धान का
[कामक] धर्म की चाहवाला । "काय पुं. एक नाप । °पिडग न [पिटक] अनाज का
धर्म का साधन-भूत शरीर । °क्खाइ वि एक नाप । °पुंजिय न [पुञ्जितधान्य] इकट्ठा
[°ाख्यायिन्] धर्म-प्रतिपादक । °क्खाइ वि किया हुआ अनाज । विक्खित्त न
[ख्याति] धर्म से ख्यातिवाला, धर्मात्मा । [विक्षिप्तधान्य] विकीर्ण अनाज । °विरल्लिय
- गुरु पुं. धर्माचार्य । °गुव वि [°गुप्] धर्मन [विरल्लितधान्य] वायु से इकट्ठा किया
रक्षक । °घोस पुं [°घोष] कई एक जैन मुनि अनाज । °संकड्ढिय न [°संकर्षितधान्य]
और आचार्य का नाम । °चक्क न [चक्र] खेत से काटकर खले-खलिहान में लाया गया जिनदेव का धर्म-प्रकाशक चक्र । °चक्कवट्टि धान्य । °गार न. धान रखने का गृह ।
पुं [चक्रवत्तिन्] जिन-देव । °चक्कि पुं धन्ना स्त्री [धान्य] अन्न ।
[°चक्रिन्] जिन भगवान् । °जणणी स्त्री धन्ना स्त्री [धन्या] एक स्त्री का नाम । [°जननी] धर्म की प्राप्ति करानेवाली स्त्री, धम सक [ध्मा] आग में तपाना । शन्द धर्म-देशिका । °जस पुं [°यशस्] जैन मुनिकरना । वायु पूरना।
विशेष का नाम । जागरिया स्त्री धमग वि [ध्मायक] घमनेवाला।
[जागर्या] धर्म-चिन्तन के लिए किया जाता धमण न [धमन] आग में तपाना । वायु- जागरण । जन्म से छठवें दिन में किया जाता पूरण । वि. भस्त्रा, धमनी, भाथी।
एक उत्सव । °ज्झय पुं [ध्वज] धर्म-द्योतक धमणि । स्त्री [धमनि, नी] धौंकनी।
ध्वज, इन्द्र-ध्वज । ऐरवत क्षेत्र के पांचवें भावी धमणी , नाड़ी।
जिन-देव । ज्झाण न [°ध्यान] धर्म-चिन्तन, धमधम अक [धमधमाय] 'धम्-धम्' आवाज । शुभ ध्यान-विशेष । ज्झाणि वि [ ध्यानिन्]
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धम्म-धम्मिट्ठ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४८३ धर्म ध्यान से युक्त । 'ट्टि वि [गर्थिन्] धर्म लाभ-रूप आशीर्वाद देना। °लाहिअ देखों का अभिलाषी । °णायग वि [°नायक] धर्म | °लाभिअ । "वंत वि [°वत्] धर्मवाला । का नेता । °ण्णु वि [ज्ञ] धर्म का ज्ञाता। °वय पुं [°व्यय] धर्मार्थ दान, धर्मादा । °तित्थयर पुं [तीर्थकर] जिन भगवान् । °वि, विउ वि [वित्] धर्म का जानकार । °त्थ न [स्त्र] एक प्रकार का हथियार । विज्ज पुं [°वैद्य] धर्माचार्य । व्वय देखो 'त्थि देखो टि। त्थिकाय पुं [°ास्ति- 'वय। °सद्धा स्त्री ["श्रद्धा] धर्म-विश्वास । काय] गति-क्रिया में सहायता पहुँचानेवाला | सत्य न [ शास्त्र] धर्म प्रतिपादक शास्त्र । एक अरूपी पदार्थ । °दय वि. धर्म की प्राप्ति °सन्ना स्त्री [संज्ञा] धर्म-विश्वास । धर्मकरानेवाला, धर्म-देशक । °दार न [ द्वार] बुद्धि । °सारहि पुं [°सारथि] धर्मरथ का धर्म का उपाय । °दार पुं. ब. धर्म-पत्नी । | प्रवर्तक, धर्म-देशक । °साला स्त्री [°शाला] °दास पुं. भगवान् महावीर का एक शिष्य | धर्म-स्थान । °सील वि [°शील] धार्मिक । और उपदेशमाला का कर्ता । °देव पुं. एक
°सीह पुं [सिंह] भगवान् अभिनन्दन का प्रसिद्ध जैन । °देसग, °देसय वि [ देशक]
पूर्व-भवीय नाम । एक जैन मुनि । °सेण पुं धर्म का उपदेश करनेवाला । धुरा स्त्री.
[°सेन] एक बलदेव का पूर्वभवीय नाम । धमरूप धुरा । °पडिमा स्त्री [ प्रतिमा] धर्म
°ाइगर वि [°ादिकर] धर्म का प्रथम की प्रतिज्ञा । धर्म का साधन-भूत शरीर ।
प्रवर्तक । पुं. जिन-देव । णुट्ठाण न °पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] धर्म की प्ररूपणा ।
[°नुष्ठान धर्म का आचरण । °णुण्ण वि 'पदिणी (शौ) स्त्री [°पत्नी] धर्म-पत्नी।
[°नुज्ञ] धर्म का अनुमोदन करनेवाला । पिवासय वि [°पिपासक धर्म के लिए
गणुय वि [°ानुग] धर्म का अनुसरण करनेप्यासा । "पिवासिय वि [पिपासित ] वाला । °गयरिय पुं [चार्य] धर्म-दाता धर्म की प्यासवाला । 'पुरिस पुं [°पुरुष] | गुरु । °वाय पुं [°वाद] धर्म चर्चा । बारहवाँ धर्म-प्रवर्तक पुरुष । °पलजण वि [°प्ररञ्जन] जैन अंग-ग्रन्थ, दृष्टिवाद । °हिगरणिय पुं धर्म में आसक्त । °प्पवाइ वि [प्रवादिन] [°ाधिकरणिक] न्यायाधीश, न्यायकर्ता । धर्मोपदेशक । °प्पह पुं [प्रभ] एक जैन | °ाहिगारि वि [°ाधिकारिन्] धर्म-ग्रहण के आचार्य । °प्पावाउय वि [°प्रावादुक] धर्म- योग्य । प्रवादी, धर्मोपदेशक । °बुद्धि वि. धार्मिक, |
धम्म वि [धर्म्य] धर्म-युक्त, धर्म-संगत । धर्म-मति । पुं. एक राजा का नाम । मित्त | धम्ममण पु [] वृक्ष-विशेष । पुं [°मित्र] भगवान् पद्मप्रभ का पूर्वभवीय | धम्मय पु [द] चार अंगुल का हस्त-व्रण । नाम । °य वि [द] धर्म-दाता, धर्म-देशक ।
चण्डी देवी की नर-बलि । रुइ स्त्री [रुचि] धर्म-प्रीति । वि. धर्म में | धाम्म वि [र्धामन्] धर्म-युक्त, द्रव्य, पदार्थ ।
धर्म-परायण । रुचिवाला। पुं. एक जैन मुनि । वाराणसी | धम-पराय का एक राजा । 'लाभ पुं. धर्म की प्राप्ति । धम्मि वि [र्मिन्] तर्कशास्त्र-प्रसिद्ध पक्ष । जैन साधु द्वारा दिया जाता आशीर्वाद । धम्मिअ । वि [धार्मिक] धर्म-तत्पर । धर्मलाभिअ वि. [°लाभित] जिसको 'धर्मलाभ' | धम्मिग ) सम्बन्धी । रूप आशीर्वाद दिया गया हो वह । °लाह | धम्मिट्ठ वि [धर्मिष्ठ] अतिशय धार्मिक । देखो °लाभ । 'लाहण न [°लाभन] धर्म- | धम्मिट्ठ वि [धर्मेष्ट] धर्म-प्रिय ।
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४८४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
धम्मिट्ठ-धवण धम्मिट्ट वि [धर्मीष्ट] धार्मिक जन को प्रिय।। °खील पुं [°कील] मेरु पर्वत । °चर पुं. धम्मिल्ल । पुन [धम्मिल्ल] संयत केश, मनुष्य । °धर पुं. पहाड़ । अयोध्या नगरी का धम्मेल्ल । बँधा हुआ केश, स्त्रियों के बाँधे एक सूर्य-वंशीय राजा। धरप्पवर पुं हुए बाल की 'पटिया या जूड़ा', बीच में फल । [°धरप्रवर] मेरु पर्वत । °धरवइ पुं रखकर ऊपर से मोतियों की या अन्य किसी [धरपति] मेरु पर्वत । धरा स्त्री. भगवान् रत्न की लड़ियों से बँधा हुआ केश-कलाप । विमलनाथ की प्रथम शिष्या। °यल न पुं. एक जैन मुनि ।
[°तल] भू-तल । वइ पुं [°पति] राजा। धम्मीसर पुं [धर्मेश्वर] अतीत उत्सर्पिणीकाल | वट्ठ न [°पृष्ठ] भूमि-तल । हर देखो धर।
में भरतवर्ष में उत्पन्न एक जिन-देव । | धरणिंद पुं [धरणेन्द्र] नाग-कुमारों को दक्षिण धम्मुत्तर वि [धर्मोत्तर गुणी, गुणों से श्रेष्ठ । दिशा का इन्द्र । न. धर्म का प्राधान्य ।
धरणिसिंग पुं [धरणिशृङ्ग] मेरु पर्वत । धम्मोवएसग । वि [धर्मोपदेशक] धर्म का | धरणी देखो धरणि । धम्मोवएसय , उपदेश देनेवाला। धरा स्त्री. पृथिवी । °धर, °हर पुं [°धर] धय सक [धे] पान करना, स्तन-पान करना । पर्वत । धय पुंस्त्री [ध्वजध्वजा, पताका । स्त्री. या।। धराधीस पुं [धराधीश] राजा।
°वड पुं[°पट] ध्वजा का वस्त्र । धराविअ वि [धारित] पकड़ा हुआ । धय पुं [दे] पुरुष ।
स्थापित । धयण न [दे] घर।
धरिअ वि [धृत] धारणा किया हुआ । रोका धयरट्ठ पुं धृतराष्ट्र] हंस पक्षी ।
हुआ। धर सक [५] धारण करना । पकड़ना।
धरिणी स्त्री[धरिणी] भूमि । धर सक [धरय] पृथिवी का पालन करना ।
धरित्ती स्त्री [धरित्री] पृथिवी। धर न [दे] रूई।
धरिम न. जो तराजू में तौल कर बेचा जाय धर पुं. भगवान् पद्मप्रभ का पिता । मथुरा | वह । करजा । एक तरह का नाप, तौल ।। नगरी का एक राजा । पर्वत ।
धरिस अक [धृष्] संहत होना, एकत्रित होना। °धर वि. धारण करनेवाला।
प्रगल्भता करना, ढीठाई करना। मिलना, धरग्ग पुं [दे] कपास ।
संबद्ध होना । सक. हिंसा करना, मारना। धरण पुं. नाग-कुमार देवों का दक्षिण-दिशा का | अमर्ष करना, सहन नहीं करना । इन्द्र । यदुवंशीय राजा अन्धक-वृष्णि का एक | धरिस सक [धर्षय] क्षुब्ध करना, विचलित पुत्र । श्रेष्ठि-विशेष । न. धारण करना । | करना। सोलह तोले का एक परिमाण । धरना देना, | धरिसण न [धर्षण] परिभव, अभिभव । लंघन-पूर्वक उपवेशन । तोलने का साधन । | संहति । असहिष्णुता । हिंसा, बन्धन, योजन । वि. धारण करनेवाला । °प्पभ पुं [प्रभ] प्रगल्भता, धृष्टता, ढीठाई । धरणेन्द्र का उत्पात-पर्वत ।
धव पुं. पति । वृक्ष-विशेष । धरणा स्त्री. देखो धारणा।
धवक्क अक [दे] धड़कना, भय से व्याकुल धरणि स्त्री.पृथिवी । भगवान् अरनाथ की शासन- होना, धुकधुकाना। देवी । भगवान् वासुपूज्य की प्रथम शिष्या। धवण न [धावन] चावल भादि का धावन
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धवल-धाणूरिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४८५ जल ।
राँगा, सीसा और जस्ता-ये सात वस्तु । गेरु, धवल पुं [दे] स्व-जाति में उत्तम ।
मनसिल आदि पदार्थ । शरीर-धारक वस्तुधवल न लगातार सोलह दिन का उपवास। कफ, वात, पित्त, रस, रक्त, मांस, मेद, श्वेत । पुं. उत्तम बैल । पुन. छन्द-विशेष । अस्थि, मज्जा और शुक्र । पृथिवी, जल तेज °गिरि पुं. कैलास पर्वत । गेह न. महल । और वायु-ये चार महाभूत । व्याकरण-प्रसिद्ध चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन मुनि । °रव पुं. शब्द-योनि,'भू', 'पच्' आदि। स्वभाव, प्रकृति । मंगल गीत । °हर न [°गृह] प्रासाद ।। नाट्य-शास्त्र प्रसिद्ध आलत्तिका-विशेष । 'य धवल सक [धवलय] सफेद करना ।
वि [°ज] धातु से उत्पन्न । वस्त्र-विशेष । धवलक्क न [धवलार्क] ग्राम-विशेष ।
नाम, शब्द । वाइअ वि [°वादिक] औषधि धवलण न [धवलन] सफेद करना ।
आदि के योग से ताम्र आदि को सोना वगैरह धवलसउण पुं [दे] हंस ।
बनानेवाला, किमियागर । धवला स्त्री. गैया ।
धाउ पुं [धातृ] पणपन्नि नामक व्यन्तर देवों धवलाअ अक [धवलाय्] सफेद होना। का एक इन्द्र । धवलाइअ वि [धवलायित] उत्तम बैल की | धाउसोसण न [धातुशोषण] आयंबिल तप । तरह जिसने कार्य किया हो वह । न. उत्तम | धाड अक [निर् + सृ] बाहर निकलना । वृषभ की तरह आचरण ।।
धाड सक [निर् + सारय्] बाहर निकालना । धवलिम पुंस्त्री [धवलिमन्] सफेदपन ।
धाड सक [ध्राट] प्रेरणा करना । नाश धवली स्त्री [धवली] श्रेष्ठ गया ।
करना। धव्व पुं [दे] वेग ।
धाडय न [ध्राटन] बाहर निकलना । प्रेरणा । धस अक [धस्] धसना । नीचे जाना। प्रवेश नाश ।
धाडय वि [दे. ध्राटक] डाका डालनेवाला। करना । पुं. 'धस्' ऐसी आवाज, गिरने की
धाडाविअ वि [निस्सारित] बाहर निकाला आवाज ।
हुआ, निर्वासित । धसक्क पुं [दे] हृदय की घबराहट की आवाज ।
धाडि वि [दे] निरस्त, निराकृत । धसल वि [दे] विस्तीर्ण ।
धाडिअ वि [निःसृत] बाहर निकला हुआ । धसिअ वि [धसित धसा हुआ।
धाडिअ पुं [दे] बगीचा। धा सक [धा धारण करना ।
धाडिअ वि [निस्सारित] निर्वासित, बाहर धा सक [ध्यै] ध्यान करना, चिन्तन करना । धा सक [धाव्] दौड़ना । शुद्ध करना, धोना। |
निकाला हुआ। धाइअ वि [धावित] दौड़ा हुआ।
धाडी स्त्री [धाटी] डाकुओं का दल । हमला, धाइअसंड देखो धायइ-संड।
आक्रमण, धावा। धाई देखो धत्ती । धाई का काम करने से प्राप्त | धाण देखो धण्ण = धन्य । की हुई भिक्षा। छन्द-विशेष । पिंड पुं| धाणा स्त्री [धाना] धनिया, एक प्रकार का [°पिण्ड] धाई का काम कर प्राप्त की हुई
मसाला। भिक्षा।
धाणुक्क वि [धानुष्क] धणुर्धर, धनुर्विद्या में धाई देखो धायई।
निपुण । धाउ पुं [धातु] सोना, चाँदी, तांबा, लोहा, धारिअ न [दे] फल-भेद ।
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४८६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
धाम-धिक्कार धाम पुन [धामन्] अहंकार, गई । रस आदि । °धर पुं. मेघ । वारि न. धारा से गिरता में लम्पटता। वि. गर्व-युक्त । रस आदि में जल । 'वारिय वि [°वारिक] जहाँ धारा लम्पट ।
से पानी गिरता हो वह । हय वि [°हत] धाम न [धामन्] बल, पराक्रम ।
वर्षा से सिक्त । हर देखो धर । धामइ° । स्त्री [धातकी] धाय का पेड़। धारावास पुं [दे] मेढ़क । मेघ । धायई ) °खंड पुं [°खण्ड] स्वनाम-ख्यात धारि वि [धारिन्] धारण करनेवाला। एक द्वीप । °संड पुं [ षण्ड] स्वनाम-ख्यात धारिट्ट न [धाष्टर्य] धृष्टता, उद्दण्डता, गर्व, एक द्वीप।
साहस । धाय वि [ध्रात] सन्तुष्ट । न. सुकाल ।
धारिणी देखो धारणी। धार सक [धारय] धारण करना । करजा धारी देखो धत्ती। रखना।
धारी देखो धारा। धार न. धारा-सम्बन्धी जल । वि.धारण करने- धाव सक. दौड़ना । शुद्ध करना, धोना। वाला।
धावणय पुं [धावनक] दौड़ते हुए समाचार धार वि [दे] लघु, छोटा ।
पहुँचाने का काम करनेवाला । धारग वि [धारक] धारण करनेवाला । धावणया स्त्री [धान] स्तन-पान करना। धारण न [धारण] धारने की अवस्था। धाविर वि [धावितृ] दौड़नेवाला । ग्रहण । रक्षण, रखना। परिधान करना। धावी देखो धाई = धात्री। अवलम्बन ।
धाहा स्त्री [दे] पुकार, चिल्लाहट । धारणा स्त्री. मर्यादा, स्थिति । विषय-ग्रहण | धाहाविय न [दे] पुकार, चिल्लाहट । करनेवाली बुद्धि । ज्ञात विषय का अवि-धाहिय वि [दे] पलायित, भागा हुआ । स्मरण । अवधारण, निश्चय । मन की धि अ [धिक्] धिक्कार, छीः । स्थिरता । घर का एक अवयव, धरनी या धिइ स्त्री [धृति] धीरज । धारण । धारणा, धरन । मकान का खम्भा । °ववहार पुं । ज्ञात विषय का अविस्मरण । धरण, अवस्थान । [व्यवहार] व्यवहार-विशेष ।
अहिंसा । धैर्य की अधिष्ठायिका देवी। देवी धारणी स्त्री [धारणी] धारण करनेवाली ।
की प्रतिमा-विशेष । तिगिच्छिद्रह की अधिग्यारहवें जिनदेव की प्रथम शिष्या । वसुदेव ठायिका देवी । कूड न [°कूट] धृति-देवी आदि अनेक राजाओं की रानी का नाम ।
का अधिष्ठित शिखर-विशेष । °धर पुं. एक धारणीय देखो धार धारय ।
अन्तकृद् महर्षि । 'अंतगड-दसा' सूत्र का एक धारय देखो धारग।
अध्ययन । म, °मंत वि[°मत्] धीरज-वाला । धारा स्त्री [दे] रण-भूमि का अग्रभाग। धिइ स्त्री [धृति] तेला, लगातार तीन दिन धारा स्त्री. अस्त्र के आगे का भाग, धार ।। का उपवास । प्रवाह, णाली । अश्व की गति-विशेष । जल- धिक्कय वि [धिक्कृत] धिक्कारा हुआ। न. धारा । वृष्टि । द्रव पदार्थों का प्रवाह तिरस्कार । रूप से पतन। एक राज-पत्नी। मालव देश धिक्करण न [धिक्करण] तिरस्कार, धिक्कार । की एक नगरी । कयंब पुं [कदम्ब] कदम्ब धिक्करिय वि [धिक्कृत] धिक्कारा हुआ। की एक जाति जो वर्षा से फलती-फूलती है। । धिक्कार पुं[धिक्कार धिक्कार, तिरस्कार ।
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धिक्कार-धुण्ण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४८७ युगलिक मनुष्यों के समय की एक दण्ड-नीति ।। धीर न [धैर्य] धीरज । धिक्कार सक [धिक् + कारय] धिक्कारना, | धीरव सक [धीरय] सान्त्वना देना । तिरस्कार करना।
धीराअ अक [धीराय] धीर होना, धीरज धिज्ज न [धैर्य] धीरज ।
धरना। धिज्ज वि [धेय] धारण करने योग्य ।
धीरिअ देखो धीर = धैर्य । धिज्ज वि [ध्येय] ध्यान-योग्य, चिन्तनीय । | धीरिम पुंस्त्री [धीरत्व] धैर्य । धिज्जाइ पुंस्त्री. [ द्विजाति, धिग्जाति ] | धीवर पुं. मछलीमार । वि. उत्तम बुद्धिवाला । ब्राह्मण ।
धुअ देखो धुव = धान् । धिज्जाइय । स्त्री [द्विजातिक, धिग्जातीय] | धअ सक [ध] कंपाना। फेंकना । त्याग धिज्जाईय ) ब्राह्मण ।
करना। धिज्जीविय न [धिगजीवित ] निन्दनीय | धुअ वि धुव = ध्रुव । छन्द विशेष । जीवन ।
धुअ वि [धूत] कम्पित । न. कम्प । धिट्ट वि [धृष्ट] ढीठ, प्रगल्भ । निर्लज्ज । धुअ वि [धुत] कम्पित । त्यक्त । उच्छलित । धिट्ठज्जुण्ण देखो धट्ठज्जुण्ण ।
न कर्म । मोक्ष, मुक्ति। त्याग, संगत्याग, धिट्ठिम पुंस्त्री [धृष्टत्व] ढीठाई।
संयम । °वाय पुं [°वाद] कर्म-नाश का धिद्धी । अ [धिक् धिक्] छीः छीः ।
उपदेश । धिधी)
धुअगाय पुं [दे] भौंरा । धिप्प अक [दीप्] दीपना, चमकना ।
धुअण देखो धुवण। धिय अ [धिक्] धिक्कार, छीः ।
धुअराय पुं [दे] ऊपर देखो। धिरत्थु अ [धिगस्तु] धिक्कार हो ।
धुंधुमार पुं [धुन्धुमार] नृप-विशेष । धिसण पुं [धिषण] बृहस्पति ।
धुंधुमारा स्त्री [दे] इन्द्राणी। धिसि अ [धिक्] धिक्कार, छीः ।
धुक्क अक [ क्षुध् ] भूख लगना । धी देखो धोआ।
धुक्काधुक्क अक [कम्प्] काँपना, 'धुक्-धुक्' धी स्त्री. बुद्धि । °धण वि [ धन] बुद्धिमान्, विद्वान् । पुं. एक मन्त्री का नाम । म, °मंत | | धुक्कुडुअ । वि [दे] उल्लासयुक्त । वि [°मत्] विद्वान् ।
धुक्कुडुगिअ , धी अ [धिक्] धिक्कार, छीः ।। धुक्कुधुअ देखो धुक्काधुक्क । धीआ स्त्री [दुहित] पुत्री।।
धुक्कोडिअ न [दे] संशय । धीइ देखो धिइ।
धुगुधुग अक [धुगधुगाय] 'धुग्-धुग' आवाज धीउल्लिया स्त्री [दे] पुतली।
करना। धीमल न [धिङ्मल] निन्दनीय मैल । धुळुअ देखो धुडुअ। धीर अक [धीरय] धीरज धरना । सक. | धुण सक [५] कॅपाना, हिलाना । दूर करना, धीरज देना, आश्वासन देना।
हटाना । नाश करना । परित्याग करना । धीर वि. धैर्यवाला, सुस्थिर, अचञ्चल । बुद्धि- | धुणाव सक [धूनय] कंपाना, हिलाना। मान्, विद्धान् । विवेकी, शिष्ट, सहिष्णु । धुणि देखो झुणि । पुं. परमेश्वर, जिन देव । गणधर-देव । धुण्ण वि [धाव्य] दूर करने योग्य । न. पाप ।
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४८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
धुत्त-धूमपलियाम कर्म।
___ "वण्ण पुं [°वणं] संयम । मोक्ष । शाश्वत धुत्त वि [धूत] ठग । जुआ खेलनेवाला । पुं. यश । देखो धुअ = ध्रुव । धतूरे का पेड़ । लोहे की काट-मैल । लवण- धुवण न [धावन] प्रक्षालन । वि. कॅपानेवाला। विशेष ।
धुवण पुंन [धूपन] धूप देना । धूम-पान । धुत्त वि [दे] विस्तीर्ण । आक्रान्त । धुविया स्त्री [ध्रुविता] कर्म-विशेष, ध्रुवधुत्त सक [धूर्तय] ठगना।
बन्धिनो कर्म-प्रकृति । धुत्तार ,
धुव्व देखो धुअ = धाव् । धुत्ति स्त्री [धूति] बुढ़ापा ।
धुहअ वि [दे] पुरस्कृत। धुत्तिम पुंस्त्री [धूर्तत्व] ठगाई।
धूअ वि [धूत] देखो धुअ = धुत । धुत्तीरय न [धत्तूरक धतूरे का पुष्प ।।
धूअ देखो धूव = धूप । धुडुअ (अप) अक [शब्दाय] आवाज करना । |
धूअ न [धूत] पहले बंधा हुआ कर्म । धुप्प देखो धिप्प।
धूआ स्त्री [दुहित] पुत्री। धुम्म पुं [धूम्र] धुआँ । कपोत-वर्ण । वि. कपोत | धूण पुं [दे] हाथी।
वर्णवाला । क्ख पुं [Tक्ष] एक राक्षस।। | धूणिय वि धूनित] कम्पित । धुर न. देखो धुरा।
धम पुं. हींग आदि बघार । क्रोध । वि. क्रोधी । धुर पुं. ज्योतिष्क ग्रह-विशेष ! ऋणी ।
धूम, अग्नि-चिह्न । अप्रीति । °इंगाल पुंब. धुरंधर वि [धुरन्धर भार को वहन करने | [ङ्गार] द्वेष और राग । 'केउ पुं [°केतु] में समर्थ, किसी कार्य को पार पहुँचाने में |
ज्योतिष्क ग्रह-विशेष । अग्नि । अशुभ उत्पात शक्तिमान्, भार-वाहक । नेता, मुखिया । पुं..
का सूचक तारा-पुञ्ज । 'चारण पुं. धूम के गाड़ी, हल आदि खींचनेवाला बैल । अवलम्बन से आकाश में गमन करने की धुरा स्त्री [धुर ] गाड़ी वगैरह का अग्र भाग, | शक्ति वाला मुनि-विशेष । 'जोणि पुं[°योनि] धुरी। भार । चिन्ता । °धार वि. धुरा को बादल । ज्झय देखो °द्धय । °दोस पुं वहन करनेवाला।
[°दोष] भिक्षा का एक दोष, द्वेष से भोजन धुरी स्त्री. अक्ष, गाड़ी का जूआ ।
करना । द्धय पुं [°ध्वज] वह्नि । °प्पभा, धुरीण वि. धुरन्धर, मुखिया ।
°cपहा स्त्री ["प्रभा] पाँचवीं नरक-पृथिवी । धुव सक [धाव] धोना, शुद्ध करना । "ल वि. धुआँवाला । 'वडल पुन ["पटल] धुव सक [धू] कॅपाना, हिलाना ।
धूम-समूह । °वण्ण वि [°वर्ण] पाण्डुर धुव वि [ध्रुव] निश्चल, स्थिर । शाश्वत । वर्णवाला । 'सिहा स्त्री [शिखा] धुएं का अवश्यम्भावी । निश्चित, नियत । पुं. अश्व के | अग्रभाग। शरीर का आवर्त । मोक्ष । इन्द्रियादि-निग्रह । | धूमंग पुं [दे] भमरा । संसार । न. मुक्ति का कारण, मोक्ष मार्ग । धूमण न [धूमन] धूम-पान । कर्म। अतिशय । कम्मिय पुं [कर्मिक धूमदार न [दे] झरोखा। लोहार आदि शिल्पी । °चारि वि [°चारिन्] | धुमद्धय पुं [दे] तालाब । महिष । मुमुक्षु । °णिग्गह पुं [°निग्रह] आवश्यक, धूमद्धयमहिसी स्त्री. ब [दे] कृत्तिका नक्षत्र । अवश्य करने योग्य अनुष्ठान-विशेष । °मग्ग पुं धूमपलियाम वि [दे] गर्त में डालकर आग [मार्ग] मोक्ष-मार्ग। राहु पुं. राहु-विशेष । लगाने पर भी जो कच्चा रह जाय वह ।
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धूमा
धूममहिसी-ध्रुवु संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४८९ धूममहिसी स्त्री [दे] नीहार, कुहरा । स्त्री ["वत्ति] अगरबत्ती। धूमरी स्त्री [दे] नीहार । हिम । | धूविअ वि [धूपित] तापित । हींग आदि से धूमसिहा । स्त्री [दे] कुहासा ।
छौंका हुआ । धूप दिया हुआ ।
धूसर पुं. हलका पीला रंग । वि, धूसर धूमा । अक [धूमाय] धुआँ करना । | रंगवाला। धूमाअ । जलाना । धूम की तरह आचरना। धूसरिअ वि [धूसरित] धूसर वर्णवाला । धूमाभा स्त्री. पाँचवीं नरक-पृथिवी। धे सक [धा] धारण करना । धूमिअ वि [धूमित] धूमयुक्त। छौंका हुआ | धेअ । वि [ध्येय] ध्यान-योग्य । (शाक आदि)।
धेज्ज) धूमिआ स्त्री [दे] नीहार ।
धेउल्लिया देखो धीउल्लिया। धयरा देखो धआ।
धेज वि [धेय] धारण करने योग्य । धूरिअ वि [दे] लम्बा ।
धेज न [धैर्य] धीरता। धूरिअवट्ट पुं [दे] अश्व ।
धेणु स्त्री [धेनु] नव-प्रसूता गौ। सवत्सा गौ । धूलडिआ (अप) देखो धूलि।
दूधार गाय । धूलि । स्त्री. धूल, रज । कंब, कलंब पं धेर देखो धीर = धैर्य । धूली [कदम्ब] ग्रीष्म ऋतु में विकसने | धेवय पुं [धैवत] स्वर-विशेष । वाला कदम्ब-वृक्ष । जंघ वि [जङ्ग धोअ सक [ धाव् ] धोना, शुद्ध करना । जिसके पाँव में धूल लगी हो वह । 'धसर वि. धोल वि [धौत] धोया हुआ। धूल से लिप्त । °धोउ वि [धोत] धूल को धोअग वि [धावक] धोनेवाला । पुं. धोबी । साफ करनेवाला । °पंथ [°पथ] धूलि- धोज्ज वि [धुर्य] धुरीण, भारवाहक । बहुल मार्ग । वरिस पुं[°वर्ष] धूल की वर्षा। अगुआ, नेता । °हर न [°गृह] वर्षा ऋतु में लड़के लोग जो धोरण न [दे] गति-चातुर्य । धूल का घर बनाते हैं वह ।
धोरणि । स्त्री. पंक्ति । धूलिहडी स्त्री [दे] होली का पर्व । धोरणी । धूलीवट्ट पुंदे] घोड़ा।
धोरिय देखो धोज। धूव सक [धूपय] धूप करना।
धोरुगिणी स्त्री [धोरुकिनिका] देश-विशेष धव पुंधूप] सुगन्धि द्रव्य से उत्पन्न धूम। में उत्पन्न स्त्री। सुगन्धि द्रव्य-विशेष । °घडी स्त्री [ घटी] धोरेय वि [धौरेय] देखो धोज्ज। धूप-पात्र । °जंत' न [यन्त्र] धूप-पात्र । धोव देखो धोअ = धाव् । धूवण न [धूपन] धूप देना । रोग की निवृत्ति धोवय देखो धोअग । के लिए किया जाता धूम का पान । °वट्टि ध्रुवु (अप) अ [ध्रुवम्] अटल, स्थिर ।
न देखो ण
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४९०
प
प पुं. ओष्ठ - स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष । पाप | पट्टु वि [दे] प्रेषित |
त्याग ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अ [] इन अर्थों का सूचक अव्यय - प्रकर्ष । प्रारम्भ । उत्पत्ति । प्रसिद्धि । व्यवहार । चारों ओर से । प्रस्रवण, मूत्र । फिर-फिर । गुजरा हुआ, विनष्ट |
पवि [प्राच् ] पूर्वं तरफ स्थित । पअंगम पुं [प्लवङ्गम] छन्द - विशेष । अंघ पुं [ प्रजङ्घ] राक्षस-विशेष | पअब्भ देखो पगब्भ = प्रगल्भ । पइ अ [ प्रति] अपेक्षा-सूचक । लक्ष्य, तरफ, ओर ।
पइ पुं [पति ] भर्ता । मालिक | रक्षक । श्रेष्ठ, उत्तम । 'घर न [गृह] ससुराल | वया, 'व्या स्त्री ['व्रता ] पति सेवा परायणा स्त्री, कुलवती स्त्री, सती । 'हर देखो 'घर | पर देखो पsि |
अवि [] भत्सित, तिरस्कृत । न पहिया । पइइ देखो पगइ = प्रकृति ।
पइऊल देखो पडिकूल |
पवया देखो पइ-वया । पइक (अप) देखो पाइक्क । पइकिदि देखो पडिकिदि ।
पइक्क देखो पाइक्क । इगिइ देखो पsिकिदि । पइच्छन्नपुं [ प्रतिच्छन्न ] भूत- विशेष । पइज्ज (अप) वि [ पतित] गिरा हुआ । पइज्ज (अप) वि [ प्राप्त ] मिला हुआ । लब्ध | पइज्जा देखो पइण्णा ।
पइउं पय = पच् का हेकृ. 1
स्थापन |
पइउवचरण न [ प्रत्युपचरण] प्रत्युपचार, पइट्ठावय वि [ प्रतिष्ठापक] प्रतिष्ठा करनेप्रति-सेवा ।
पट्ट वि[] जिसने रस को जाना हो वह । विरल । पुं. रास्ता । पट्ट देखो पट्टि |
पट्ट पुं [ प्रतिष्ठ] भगवान् सुपार्श्वनाथ के पिता का नाम ।
प-पइण्णग
[प्रविष्ट] जिसने प्रवेश किया हो वह | पट्ठव सक [ प्रति स्थापय् ] मूर्ति आदि की विधिपूर्वक स्थापना करना ।
पण देखो पट्टावण । पट्टा स्त्री [प्रतिष्ठा ] आदर, सम्मान । कीर्त्ति । व्यवस्था । स्थापना । अवस्थान, स्थिति । मूर्ति में ईश्वर के गुणों का आरोपण । आश्रय, आधार । धारणा, वासना | समाधान शंका निरास - पूर्वक स्वपक्ष-स्थापन ।
पइट्ठाण पुं [ प्रतिष्ठान] मूल प्रदेश | न. स्थिति, अवस्थान | आधार, आश्रय । महल आदि की नींव | नगर - विशेष |
पट्टा न [ दे] नगर ।
पइट्ठावक } देखो पइट्ठावय ।
पइट्ठावग
पट्टावण न [ प्रतिष्ठापन ] संस्थापन | व्यव
वाला ।
पट्टि व [ प्रतिष्ठित ] प्रतिबद्ध, रुका हुआ । स्थित, अवस्थित | आश्रित । व्यवस्थित । गौरवान्वित । प्रतिष्ठा प्राप्त ।
पइणियय वि [ प्रतिनियत ] नियम संगत, नियमित ।
पण वि [] विपुल, विस्तृत । पण
पइण्ण
[तीर्ण] प्रकर्ष से तीर्ण ।
पइण्णग
fa [ प्रकीर्ण, क] विक्षिप्त फेंका हुआ । अनेक प्रकार से मिश्रित । बिखरा हुआ । विस्तारित । न तीर्थकर - देव के सामान्य शिष्य द्वारा बनाया हुआ ग्रन्थ । कहा स्त्री [कथा] उत्सर्ग, सामान्य नियम | तव पुं [ 'तपस् ] तपश्चर्या विशेष |
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पइण्णा - परंजित्तु
पण स्त्री [प्रतिज्ञा ] शपथ | नियम | तर्क शास्त्र - प्रसिद्ध अनुमान प्रमाण का एक अवयव, साध्य वचन का निर्देश ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पइण्णाद (शौ) वि [ प्रतिज्ञात] प्रतिज्ञा की गई हो वह । पण वि [ प्रतिज्ञावत् ] प्रतिज्ञावाला । पइत्त देखो पउत्त = प्रवृत्त |
पत्त वि [ प्रदीप्त ] जला हुआ, प्रज्ज्वलित । पड़त्त देखो पवित्त = पवित्र ।
पइदि (शौ) देखो पगइ । पइदिण न [ प्रतिदिन ] हर रोज । पइदियह न [ प्रतिदिवस ] हर रोज । पइद्धिय वि [ प्रदिग्ध ] विलिप्त ।
जिसकी पइस देखो पविस ।
पइनियय वि [ प्रतिनियत ] मुकर्रर किया हुआ, नियुक्त किया हुआ ।
पइन्नग
देखो पइण्ण ।
पइन्नय
पइप्प देखो पलिप्प |
पइप्पईयन [ प्रतिप्रतीक ] हर अंग ।
पइभयवि [ प्रतिभय] प्रत्येक प्राणी को भय उपजानेवाला |
इभा स्त्री [प्रतिभा ] प्रत्युत्पन्न -मति । पइभाणाण न [ प्रतिभाज्ञान] प्रातिभ प्रत्यक्ष । पइमुह वि [प्रतिमुख] सम्मुख | पइरसक [वप्] बोना, वपन करना । परिक्क [. प्रतिरिक्त ] शून्य रहित । विशाल, विस्तीर्ण । तुच्छ । प्रचुर । नितान्त | न. एकान्त स्थान |
पइल (अप) देखो पढम ।
पइलाइया स्त्री [प्रतिलादिका ] हाथ के बल चलनेवाली सर्प की एक जाति ।
पइल्ल पुं. [दे. पदिक ] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव - विशेष । रोग विशेष, श्लीपद | पइव पुं [ प्रतिव] एक यादव का नाम । पइरिसन [ प्रतिवर्ष ] हर एक वर्षं । पइवाइ वि [प्रतिवादिन् ] प्रतिपक्षी ।
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पइविसिट्ठ वि [ प्रतिविशिष्ट ] विशेष-युक्त | पइविसेस पुं [ प्रतिविशेष ] विशेष, मेद, भिन्नता ।
पइसमय न [ प्रतिसमय ] प्रतिक्षण | पइसर देखो पविस । पइसार सक [प्र + वेशय् ] प्रवेश कराना । पहंत पुं [दे] इन्द्र का पुत्र जयन्त । पहा सक [ प्रति + हा ] त्याग करना । पई देखो पइ = पति ।
पईअवि [ प्रतीत ] विज्ञात । विश्वस्त । विख्यात |
पअन [ प्रतीक ] अंग, अवयव । पईइ स्त्री [प्रतीति] विश्वास | प्रसिद्धि । पईव देखो लीव |
पईव पुं [ प्रदीप ] दीपक ।
पई वि [ प्रतीप ] प्रतिकूल । पुं. दुश्मन । पईस (अप) देखो इस ।
उ (अप) वि [ पतित ] गिरा हुआ । पउअ देखो पागय = प्राकृत । पअ पुं [दे] दिवस ।
पअन [ प्रयुत ] 'प्रयुताङ्ग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । पउअंग न [ प्रयुताङ्ग] 'अयुत' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । परंज सक [ प्र + युज् ] जोड़ना, युक्त करना । उच्चारण करना । प्रवृत्त करना । प्रेरणा करना । व्यवहार करना । करना । प्रयोग करना ।
परंजग वि [ प्रयोजक ] प्रेरणा करनेवाला | परंजण वि [ प्रयोजन ] प्रयोग करनेवाला । देखो ओअण |
स्त्री [ प्रयोजना] प्रयोग ।
पजणया
परंजणा
परंजित्तु वि [ प्रयोक्तृ] प्रवृत्ति करनेवाला । जित्तु वि [ प्रयोजयितृ] प्रवृत्ति करनेवाला |
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पउज्ज-पउम
पउज्ज देखो पउंज।
। गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । गन्धपउट्ट अ [परिवृत्य] मार कर । °परिहार पुं. द्रव्य-विशेष । सुधर्मा सभा का एक सिंहासन । मर कर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होकर उस | दिन का नववाँ मुहूर्त । दक्षिण-रुचक-पर्वत का शरीर का परिभोग करना।
एक शिखर । पुं. रामचन्द्र । आठवाँ बलदेव, पउट्ट वि [परिवर्त] परिवर्त, मर कर फिर श्रीकृष्ण के बड़े भाई । इस अवसर्पिणीकाल में
उसी शरीर में उत्पन्न होना । परिवर्तवाद ।। उत्पन्न नवा चक्रवर्ती राजा राजा पद्मोत्तर पउट्ठ वि [प्रवृष्ट] बरसा हुआ।
का पुत्र । एक राजा का नाम । माल्यव नामक पउट्ठ पुं [प्रकोष्ठ] हाथ का पहुँचा, कलाई पर्वत का अधिष्ठाता देव । भरतक्षेत्र में और केहुनी के बीच का भाग।
आगामी उत्सर्पिणी में उत्पन्न होनेवाला पउदृ वि [प्रजुष्ट] विशेष सेवित । न. अति आठवाँ चक्रवर्ती राजा । भरत क्षेत्र का भावी उच्छिष्ट ।
आठवाँ बलदेव । चक्रवर्ती राजा का निधि पउट्ठ वि [प्रद्विष्ट] द्वेष-युक्त ।
जो रोग-नाशक सुन्दर वस्त्रों की पूर्ति पउढ न [दे] गृह । पुं. घर का पश्चिम प्रदेश ।
करता है। राजा श्रेणिक का एक पौत्र । पउण अक [प्रगुणय] तन्दुरुस्त होना, नीरोग
एक जैन मुनि का नाम । एक ह्रद । होना।
पद्मवृक्ष का अधिष्ठाता देव । महापद्म नामक पउण पुं [दे] व्रण-प्ररोह । नियम-विशेष ।
जिनदेव के पास दीक्षा लेनेवाला एक पउण वि [प्रगुण] पटु, निर्दोष ।
राजा, एक भावी राजर्षि । गुम्म न पउणाड पुं [प्रपुनाट] पमाड का पेड़, चकवड़ ।। [°गुल्म] आठवें देव-लोक में स्थित एक देवपउत्त अक [प्र + वृत्] प्रवृत्ति करना। विमान का नाम । प्रथम देवलोक में स्थित पउत्त वि [प्रयुक्त] जिसका प्रयोग किया गया एक देव-विमान का नाम । पुं. राजा श्रेणिक हो वह । न. प्रयोग।
का एक पौत्र । एक भावी राजर्षि, महापद्म पउत्त पुं [पौत्र] लड़के का लड़का, पोता। नामक जिनदेव के पास दीक्षा लेनेवाला एक पउत्त न [प्रतोत्र] प्राजन, चाबुक, पैना। राजा । °चरिय न [°चरित] राजा रामचन्द्र पउत्त वि [प्रवृत्त] जिसने प्रवृत्ति की हो वह । । की जीवनी -- चरित्र । प्राकृत भाषा का एक पउत्ति स्त्री [प्रवृत्ति] प्रवर्तन । वृत्तान्त । कार्य । प्राचीन ग्रन्थ, जैन रामायण। णाभ [°नाभ]
वाउय वि [°व्यापृत] कार्य में लगा हुआ। वासुदेव, विष्णु । आगामी उत्सर्पिणीकाल में पउत्ति स्त्री [प्रयुक्ति] बात, हकीकत । भरतक्षेत्र में होनेवाला प्रथम जिन-देव का पउत्तु [प्रयोक्तृ] प्रयोग-कर्ता। प्रेरणाकर्ता । नाम । कपिल-वासुदेव के एक माण्डलिक राजा कर्ता, निर्माता।
का नाम । “दल न. कमल-पत्र । 'दह पुं पउत्थ न [दे] घर । वि. प्रवास में गया [°द्रह] विविध प्रकार के कमलों से परिपूर्ण हुआ । °वइया स्त्री [°पतिका] जिसका पति एक महान् ह्रद का नाम । °द्धय पुं [ध्वज] देशान्तर गया हो वह स्त्री।
एक भावी राजर्षि जो महापद्म नामक जिनपउद्दव्व पउंज का कृ. ।
देव के पास दीक्षा लेगा । 'नाह देखो °णाभ। पउप्पय देखो पओप्पय।
°पुर न. एक दक्षिणात्य नगर जो आजकल पउम न [पद्म] सूर्य-विकासी कमल । देव- 'नासिक' नाम से प्रसिद्ध है। °प्पभ पुं विमान-विशेष । 'पद्मांग' को चौरासी लाख से | [प्रभ] इस अवसर्पिणीकाल में उत्पन्न षष्ठ
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पउमग-पउमिणी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जिन देव का नाम । °प्पभा स्त्री [प्रभा] | देवलोक के इन्द्र की एक पटरानी का नाम । एक पुष्करिणी का नाम । 'प्पह देखो। भीम नामक राक्षसेन्द्र की एक पटरानी । °प्पभ । भद्द पुं [°भद्र] राजा श्रेणिक का एक विद्याधर कन्या का नाम । रावण की एक पौत्र । °मालि पुं [°मालिन्] विद्याधर- एक पत्नी। वनस्पति-विशेष । चौदहवें तीर्थंकर वंश के एक राजा का नाम । °मुह देखो श्रीअनन्तनाथ की मुख्य शिष्या का नाम । पउमाणण । °रह पुं [प्रथ] विद्याधर-वंश सुदर्शना-जम्बू की उत्तर दिशा में स्थित एक का एक राजा । मथुरा नगरी के राजा जय- पुष्करिणी। दूसरे बलदेव और वासुदेव की सेन का पुत्र । 'राय पुं [राग] रक्त-वर्ण माता का लेश्या-विशेष । मणि-विशेष । प्राय पुं [राज] धातकीखण्ड पउमाड j [दे] पभाड़ का पेड़, चकवड़। की अपरकंका नगरी का एक राजा जिसने । पउमाणण पुं [पद्मानन] एक राजा का द्रौपदी का अपहरण किया था। °रुक्ख पुं| नाम । [°वृक्ष] उत्तर-कुरुक्षेत्र में स्थित एक वृक्ष । पउमाभ पुं [पद्माभ] षष्ठ तीर्थंकर का नाम । वृक्ष-सदृश बड़ा कमल । °लया स्त्री [°लता] |
पउमार [दे] देखो पउमाड। कमलिनी। कमल के आकारवाली वल्ली। पउमावई स्त्री [पद्मावती] जम्बूद्वीप के सुमेरु
डिसय, वडेंसय न [°ावतंसक पद्मावती- पर्वत के पूर्व तरफ के रुचक पर्वत पर रहनेदेवी का सौधर्म नामक देवलोक में स्थित एक वाली एक दिक्कुमारी-देवी। भगवान् विमान । °वरवेइया स्त्री ["वरवेदिका]
पार्श्वनाथ की शासन-देवी जो नागराज कमलों की श्रेष्ठ वेदिका । जम्बू द्वीप की
धरणेन्द्र की पटरानी है। श्रीकृष्ण की एक जगती के ऊपर रही हुई देवों की एक भोग
पत्नी का नाम । भीम-नामक राक्षसेन्द्र की भूमि । 'वूह पुं ["व्यूह] सैन्य को पद्माकार |
एक पटरानी। शक्रेन्द्र की एक रचना । 'सर पुं [°सरस्] कमलों से युक्त
पटरानी। चम्पेश्वर राजा दधिवाहन की एक सरोवर । °सिरी स्त्री [ श्री] अष्टम चक्र
स्त्री का नाम । राजा कूणिक की एक पत्नी । वर्ती सुभूमराज की पटरानी । एक स्त्री का
अयोध्या के राजा हरिसिंह को एक पत्नी । नाम । °सेण पुं [ सेन] राजा श्रेणिक के
तेतलिपुर के राजा कनककेतु की पत्नी । एक पौत्र का नाम जिसने भगवान् महावीर के कौशाम्बी नगरी के राजा शतानीक के पुत्र पास दीक्षा ली थी। नागकुमार-जातीय एक उदयन की पत्नी। शैलकपुर के राजा शैलक देव का नाम । °सेहर पुं ['शेखर] पृथ्वीपुर की पत्नी। राजा कूणिक के पुत्र कालकुमार नगर के एक राजा का नाम । °गर पुं की भार्या का नाम । राजा महाबल की भार्या [°कर] कमलों का समूह । सरोवर । °ासण का नाम । बीसवें तीर्थंकर श्रीमुनिसुव्रतस्वामी न [°ासन] पद्माकार आसन ।
की माता का नाम । पुण्डरीकिणी नगरी के पउमग पुन [पद्मक] केसर ।
राजा महापद्म की पटरानी। रम्यनामक पउमप्पह पुं [पद्मप्रभ] विक्रम की तेरहवीं | विजय की राजधानी । शताब्दी का एक जैन आचार्य ।
पउमावत्ती (अप) स्त्री [पद्मावती] छन्दपउमा स्त्री [पद्मा] लक्ष्मी देवी-विशेष । विशेष । लवंग। कुसुम्भ-पुष्प । बीसवें तीर्थंकर श्री | पउमिणी स्त्री पद्मिनी] कमल-लता। एक मुनिसुव्रतस्वामी की माता का नाम । सौधर्म ] श्रेष्ठी की स्त्री का नाम ।
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पउमुत्तरपुं [ पद्मोत्तर ] नववें चक्रवर्ती श्रीमहापद्मराज के पिता का नाम । मन्दर पर्वत के भद्रशाल वन का एक दिग्हस्ती पर्वत । पउमुत्तरा स्त्री [ पद्मोत्तरा ] एक प्रकार की
शक्कर ।
उरवि [प्रचुर ] बहुत ।
पउर वि [पौर] पुर-सम्बन्धी । नगर में रहने
वाला ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पउरव पुं [पौरव ] पुरुनामक चन्द्र वंशीय नृप का पुत्र ।
पउराण (अप) देखो पुराण । परिस वि [ पौरुषेय ] पुरुष कृत । परिस
पुंन [ पौरुष ] पुरुषत्व, पुरुषार्थ, वीरता ।
पउरुस
पउल सक [पच्] पकाना |
उलिअ वि [ प्रज्ज्वलित ] दग्ध । पउल्ल देखी पउल | पउल्ल वि [पक्क] पका हुआ । पउल्लग न [पचनक] रसोई का पात्र । उवि वि [ प्रकुपित ] विशेष कुपित । पउस सक [प्र + द्विष्] द्वेष करना । उस वि [दे] देश-विशेष में उत्पन्न । पउस्स देखो पउस ।
परहण (अप) देखो पवहण । पऊढ न [दे] गृह |
ए अ [] पहले, पूर्व
पणियार पुं [प्रैणीचार ] व्याध की एक जाति जो हरिणों को पकड़ने के लिए हरिणी समूह को चराते एवं पालते हैं । पएर पुं [दे] बाड़ का छिद्र । मार्ग । कंठदीनार नामक भूषण - विशेष | गले का छिद्र । आर्त्तस्वर । वि. दुश्शील, दुराचारी ।
एस पुं [दे] पड़ोसी ।
एस पुं [ प्रदेश ] जिसका ऐसा सूक्ष्म अवयव । स्थान, जगह । देश का
विभाग न कर्म दल का
हो सके
संचय |
एक भाग,
पंजमुत्तर - पओग
कर्म- द्रव्यों का
प्रान्त । परिमाण - विशेष, निरंश - अवयव - परिमित माप । छोटा भाग । परमाणु । णुक | | 'कम्म न ['कर्मन् ] कर्मविशेष, प्रदेश - रूप कर्म । ग्गन [] कर्मों के दलिकों का परिमाण | 'घण वि ['घन ] निबिड प्रदेश | णाम न [ नामन् ] कर्मविशेष | णाम पुं [नाम] परिणाम | 'बंध पुं [° बन्ध] कर्म - दलों का आत्म- प्रदेशों के साथ सम्बन्धन । संकम पुं [° संक्रम] कर्म- द्रव्यों को भिन्न स्वभाव वाले कर्मों के रूप में परिणत करना । पसण न [ प्रदेशन] उपदेश | एस वि [ प्रदेशक] उपदेशक, प्रदर्शक । एसि पुं [ प्रदेशिन्] एक राजा जो श्रीपाश्वनाथ भगवान् के केशि नामक गणधर से प्रबुद्ध हुआ था ।
एसिणी स्त्री [] पड़ोस में रहनेवाली स्त्री । पए सिणी स्त्री [ प्रदेशिनी] अंगुष्ठ के पास की उँगली, तर्जनी |
पएसिय देखी पदेसिय । पओअ पुं [ पयोद ] मेघ । पओअ देखो पओग ।
पओअण न [ प्रयोजन ] निमित्त कारण । कार्य | मतलब |
ओइद (शौ) वि [ प्रयोजित ] जिसका प्रयोग कराया गया हो वह |
ओग पुं [ प्रयोग] प्रयोजन | शब्द-योजना | जीव का व्यापार, वेतन का प्रयत्न । प्रेरणा । उपाय | जीव के प्रयत्न में कारण-भूत मन आदि । वाद-विवाद, शास्त्रार्थ । 'कम्म न [कर्मन् ] मन आदि की चेष्टा से आत्मप्रदेशों के साथ बँधनेवाला कर्म । 'करण न. जीव के व्यापार द्वारा होनेवाला किसी वस्तु का निर्माण । किरिया स्त्री [°क्रिया ] मन आदि की चेष्टा । 'फड्डयन [° स्पर्धक ] मन आदि के व्यापार-स्थान की वृद्धि-द्वारा कर्म-पर
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पंखुडी ।
पओज-पंच
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष माणुओं में बढ़नेवाला रस । °बंध पुं [°बन्ध] [°ज] कमल । °वई स्त्री [°वती] नदीजीव-प्रयत्न द्वारा होनेवाला बन्धन । °मइ विशेष । स्त्री [°मति] वादविषयक-परिज्ञान । °संपया पंकज देखो पंक-य । स्त्री [संपत्] आचार्य का वाद-विषयक पंका स्त्री [पङ्का] चौथी नरक भूमि । सामर्थ्य । °सा अ [प्रयोगेण] जीव-प्रयत्न से। पंकाभा स्त्री [पनाभा] चौथी नरक-पृथिवी । पओज देखो पउंज प्र+युज् ।
पंकावई स्त्री [पङ्कावती] पुष्कल नामक पओजग वि [प्रयोजक] विनिश्चायक, निर्णा- विजय के पश्चिम तरफ की एक नदी। यक, गमक ।
पकिय वि [पङ्कित] कीचवाला। पओट्ठ देखो पउट्ठ = प्रकोष्ठ ।
पंकिल वि [पङ्किल] कर्दमवाला । पओत्त न [प्रतोत्र] प्रतोद, पैना। धर पुं. पंकेरुह न [पकेरुह] कमल । बैलगाड़ी हांकनेवाला।
पंख पुंस्त्री [पक्ष] पंख । पखवाड़ा । सिण न पओद पुं [प्रतोद] ऊपर देखो।
[सन] आसन-विशेष । पओप्पय पुं [प्रपौत्रक] प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र । | पंखि पुंस्त्री [पक्षिन्] पंखी, चिड़िया । प्रशिष्य का शिष्य ।
पंखुडिआ। स्त्री [दे] पंख, पत्र । पओप्पिय पुंदे. प्रपौत्रिक] वंश-परम्परा । शिष्य-सन्तान ।
पंग सक [ग्रह ] ग्रहण करना। पओरासि [पयोराशि] समुद्र ।
पंगण न [प्राङ्गण] आंगन । पओल पुं[पटोल] परवर, परोरा। | पंगु वि [पङ्गु] लंगड़ा, लूला । पओली स्त्री [प्रतोली] नगर के भीतर का
पंगुर सक [प्रा + वृ] ढकना, आच्छादन रास्ता । नगर का दरवाजा ।
करना। पओवट्ठाव देखो पज्जवत्थाव।
पंगुरण न [प्रावरण] वस्त्र । पओवाह पुं [पयोवाह] मेघ ।
पंगुल वि[पङ्गुल] देखो पंगु । पओस सक [प्र + द्विष् ] द्वेष करना, वैर
पंच त्रि. ब. [पञ्चन्] पाँच । °उल न [°कुल] करना।
पंचायत । °उलिय पुं [°कुलिक] पंचायत पओस पुं [दे. प्रद्वेष] प्रद्वेष, प्रकृष्ट द्वेष ।
में बैठ कर विचार करनेवाला । कत्तिय पुं पओस पुंन [प्रदोष] सन्ध्याकाल । वि. प्रभूत
[कृत्तिक] भगवान् कुन्थुनाथ जिनके पाँचों दोषों से युक्त ।
कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए थे। कप्प पओहण (अप) देखो पवहण । -
पुं [°कल्प] श्रीभद्रबाहुस्वामि-कृत प्राचीन पओहर पुं [पयोधर] स्तन । बादल । छन्द
प्रन्थ का नाम । कल्लाणय न [ कल्याणक] विशेष ।
तीर्थङ्कर का च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान पंक पुन [पङ्क] कीचड़ । पाप । असंयम, |
और निर्वाण । काम्पिल्यपुर,जहाँ तेरहवें जिनइन्द्रिय वगैरह का अनिग्रह । °आवलिआ देव श्रीविमलनाथ के पाँचों कल्याणक हुए थे। स्त्री [°ावलिका] छन्द-विशेष । 'प्पभा स्त्री तप-विशेष । °कोढग वि [°कोष्ठक] पांच [प्रभा] चौथी नरक-भूमि । 'बहुल वि. कोष्ठों से युक्त । पुं. पुरुष । °गव्व न [°गव्य] कर्दम-प्रचुर। पाप-प्रचुर । पुन. रत्नप्रभा पंचगव्य-दूध, दही, घृत, गोमय और मूत्र । नामक नरक-भूमि का प्रथम काण्ड । य न । 'गाह न [°गाथ] गाथा छन्दवाले पांच
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E
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पद्य । 'गुण वि. पाँचगुना। °चित्त पुंसिंह, पंचानन । यसी देखो °दसी। रत्त, [°चित्र] षष्ठ जिनदेव श्रीपद्मप्रभ जिनके राय पुं ["रात्र] पाँच रात । 'रासिय न पाँचों कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए थे। [राशिक] गणित-विशेष । °रूविय वि °जाम न [°याम] अहिंसा, सत्य, अचौर्य, [रूपिक] पाँच प्रकार के वर्णवाला। ब्रह्मचर्य और त्याग-ये पाँच महाव्रत । वि. वत्थग न [°वस्तुका आचार्य हरिभद्रसूरिजिसमें इन पाँच महाव्रतों का निरूपण हो रचित ग्रन्थ-विशेष । वरिस वि [°वर्ष] वह । °णउइ स्त्री [नवति] पंचानबे । .
पाँच वर्ष की अवस्था-वाला । °विह वि °णउय वि [°नवत] ९५ वाँ । 'तालीस ।
[विध] पाँच प्रकार का । °वीसइम वि (अप) स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] पैंतालीस ।
[विंशतितम] पचीसवाँ । °तित्थी स्त्री [तीर्थी] पाँच तीर्थों का
संगह पुं समुदाय । तीसइम वि [त्रिंशत्तम] पैंती- |
[°संग्रह] आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि-कृत एक जैन सर्वां। दस त्रि. ब. [दशन्] पनरह ।
ग्रन्थ । संवच्छरिय वि [°सांवत्सरिक] °दसम वि [°दशम] पन 'हवाँ । दसी स्त्री
पाँच वर्ष परिमाण-वाला, पाँच वर्ष की आयु[दशी] पनरहवीं । पूर्णिमा । अमावास्या ।
वाला । सट्ट वि [°षष्ट] पैंसठवाँ । °सट्रि °दसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशततम] एक सौ
स्त्री [°षष्टि] पैंसठ । °समिय वि [°समित]
पाँच समितियों का पालन करनेवाला । °सर पनरहवाँ । नाणि वि [ज्ञानिन्] मति, श्रुत,
पुं [°शर] कामदेव । °सीस पुं [शीर्ष] अवधि, मनःपर्यव और केवल -इन पांचों
देव-विशेष । °सुण्ण न [°शून्य] पाँच ज्ञानों से युक्त, सर्वज्ञ । 'पन्वी स्त्री [°पर्वी]
प्राणिवध-स्थान । 'सुत्तग न [°सूत्रक] मास की दो अष्टमी, दो चतुर्दशी और शुक्ल
आचार्य-श्रीहरिभद्रसूरि-निर्मित एक जैन ग्रन्थ । पंचमी-ये पाँच तिथियाँ । °पुव्वासाढ पुं °सेल, °सेलग, सेलय पुं [शैल, 'क] [पूर्वाषाढ] दसवें जिनदेव श्रीशीतलनाथ
लवणोदधि में स्थित और पाँच पर्वतों जिनके पाँचों कल्याणक पूर्वाषाढा नक्षत्र में
से विभूषित एक छोटा द्वीप । 'सोगंधिअ वि हुए थे । पूस पुं [पुष्य] पनरहवें जिनदेव [°सौगन्धिक]इलायची, लवंग, कपूर, कंक्कोल श्रीधर्मनाथ । °बाण पुं. कामदेव । भूय न और जातीफल-जायफल इन पाँच सुगन्धित [भूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वस्तुओं से संस्कृत । °हत्तर वि [°सप्तत] आकाश-ये पाँच पदार्थ । भूयवाइ वि | पचहत्तरवाँ । हत्तरि स्त्री [°सप्तति] संख्या[भूतवादिन्] आत्मा आदि पदार्थों को न । विशेष, ७५ । जिनकी संख्या पचहत्तर हो मानकर केवल पाँच भूतों को ही माननेवाला, वे । हत्थत्तर पुं [हस्तोत्तर] भगवान् नास्तिक । °महब्वइय वि [°महाव्रतिक] महावीर जिनके पांचों कल्याणक उत्तरापाँच महाव्रतोंवाला । °महव्यय न [°महा- फाल्गुनी नक्षत्र में हुए थे । °उह पुं [°ायुध] व्रत] हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और कामदेव । °णाउइ स्त्री [°नवति] पंचानबे। परिग्रह का सर्वथा परित्याग । महाभूय न । जिनकी संख्या पंचानबे हो वे । गणउय वि [°महाभूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और [°नवत] पंचानवाँ । °ाणाण पुं ["निन] आकाश-ये पांच पदार्थ । मुट्ठिय वि सिंह । गणुव्वइय वि [°Tणुवतिक] हिसा, [मुष्टिक] पाँच मुष्टियों का, पाँच मुष्टियों से । असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का आंशिक पूर्ण किया जाता (लोच)। 'मुह पुं [°मुख] | त्यागवाला। आयाम देखी जाम। °ास
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पंचंअण्ण-पंजल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
४९७ स्त्रीन [°शत्] पचास । जिनको संख्या । वाले सर्प-जातीय प्राणी की एक जाति । पचीस हो वे । °सग न [°शिक] आचार्य पंचवडी स्त्री [पञ्चवटी] पाँच वट-वृक्षवाला श्रीहरिभद्रसूरिकृत एक जैन ग्रन्थ । सीइ एक स्थान, जहाँ श्रीरामचन्द्रजी ने अपने स्त्री [°ाशीति ] अस्सी और पांच । जिनकी | वनवास के समय आवास किया था। संख्या पचासी हो वे। सीइम वि | पंचवयण पुं [पञ्चवदन] सिंह। [°ाशीतितम ] पचासीवाँ ।
पंचामय न [पञ्चामृत] ये पाँच वस्तु-दही, पंचअण्ण देखो पंचजण्ण ।
दूध, घी, मधु तथा शक्कर । पंचंग न [पञ्चाङ्ग] दो हाथ, दो जानु और पंचाल पुं [पाञ्चाल] कामशास्त्र-प्रणेता एक मस्तक-ये पाँच शरीरावयव । वि. पूर्वोक्त ऋषि । पाँच अंगवाला (प्रणाम आदि)।
पंचाल पुं.ब. [पञ्चाल, पाञ्चाल] पञ्जाब देश । पंचंगुलि पुं [दे] एरण्ड-वृक्ष ।
पुं. पञ्जाब देश का राजा । छन्द-विशेष । पंचंगुलि मुं [पञ्चागुलि] हाथ ।
पंचालिआ स्त्री [पञ्चालिका] पुतली, काष्ठादिपंचंगुलिआ स्त्री [पञ्चाङ्गुलिका] वल्ली
निर्मित छोटी प्रतिमा । विशेष ।
| पंचालिआ स्त्री [पाञ्चालिका] द्रौपदी । गान पंचग वि [पञ्चक] पांच (रुपया आदि) की
का एक भेद । कीमत । न. पाँच का समूह ।।
पंचावण्ण स्त्रीन [ दे. पञ्चपञ्चाशत्] पचपन । पंचजण्ण पुं [पाञ्चजन्य] श्रीकृष्ण का शंख ।
जिनकी संख्या पचपन हो वे । पंचत्त । न [पञ्चत्व] पाँचपन, पञ्चरूपता ।
पंचावन्न वि [दे. पञ्चपञ्चाश] पचपनवाँ । पंचत्तण ) मौत।
पंचिंदिय ) वि [पञ्चेन्द्रिय] वह जीव पंचपुंड वि [पञ्चपुण्ड्र] पाँच स्थानों में पुण्ड्र- पंचिद्रिय । जिसको त्वचा, जीभ, नाक, आँख चिह्न (सफेदी) वाला।
और कान-ये पाँचों इन्द्रियाँ हों । न. त्वचा पंचपुल पुन [दे] मत्स्य-बन्धन-विशेष, मछली आदि पाँच इन्द्रियाँ । पकड़ने का जाल-विशेष ।।
पंचिया स्त्री [पञ्चिका] पाँच की संख्यापंचम वि [पञ्चम] पाँचवाँ । पुं. स्वर-विशेष। वाला । पाँच दिन का।
°धारा स्त्री. अश्व को एक तरह की गति। पंचुंबर स्त्रीन [पञ्चोदुम्बर] वट, पीपल, पंचमहब्भूइअ वि [पाञ्चमहाभूतिक] पाँच उदुम्बर, प्लक्ष और काकोदुम्बरी का फल । महाभूतों को माननेवाला, सांख्यमत का पंचुत्तरसय वि [पञ्चोत्तरशततम] एक सौ अनुयायी ।
पाँचवाँ। पंचमासिअ वि [पाश्चमासिक] पाँच मास की पंचेडिय वि [दे] विनाशित । उम्र का । पाँच मास में पूर्ण होनेवाला पंचेसु पुं [पञ्चेषु] कामदेव । (अभिग्रह आदि)।
पंछि पुं [पक्षिन्] पक्षी, चिड़िया । पंचमिय वि [पाञ्चमिक] पाँचवाँ । पंजर पुंन[पञ्जर] आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक पंचमी स्त्री [पञ्चमी] पाँचवीं । पंचमी तिथि । आदि मुनि-गण । उन्मार्ग-गमन-निषेध, सन्मार्ग
व्याकरण-प्रसिद्ध अपादान विभक्ति । प्रवर्तन । स्वच्छन्दता-प्रतिषेध । न. पिंजरा । पंचयन्न देखो पंचजण्ण ।
पंजरिअ पुं [दे] जहाज का कर्मचारी-विशेष । पंचलोइया स्त्रो [पञ्चलौकिका] हाथ से चलने पंजल वि [प्राञ्जल] सीधा, ऋजु ।
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४९८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पंजलि-पंत पंजलि पुंस्त्री [प्राञ्जलि] प्रणाम करने के लिए। पंडु पुं [पाण्डु] नृप-विशेष, पाण्डवों का पिता।
जोड़ा हुआ कर-सम्पुट, संयुक्त कर-द्वय । उड पाण्डु-रोग। शुक्ल और पीत वर्ण । पुं॰पूट] अञ्जलि-पुट । °उड, कड वि | श्वेत वर्ण । वि. शुक्ल और पीत वर्णवाला। [कृतप्राञ्जलि] जिसने प्रणाम के लिए हाथ | सफेद । पाण्डुकम्बला नामक शिला। कंबलजोड़ा हो वह।
सिला स्त्री [°कम्बलशिला] मेरु पर्वत के पंजिअ न [दे] मुह-माँगा दान ।
पाण्डक वन के दक्षिण छोर पर स्थित एक पंड वि [पाण्ड्य] देश-विशेष में उत्पन्न । शिला जिस पर जिन देवों का जन्माभिषेक पंड [पण्ड,°क] नपुंसक । न. मेरु | किया जाता है। कंबला स्त्री [°कम्बला] पंडग पर्वत का एक वन ।
वही पूर्वोक्त अर्थ। °तणय पुं [°तनय] पंडय
पाण्डव । भद्द पुं[°भद्र] एक जैन मुनि जो पंडय देखो पंडव।
आर्य सम्भूति-विजय के शिष्य थे। °मट्टिया, पंडर पुं पाण्डर] क्षीरवर नामक द्वीप का 'मत्तिया स्त्री [मृत्तिका] एक प्रकार को
अधिष्ठाता देव । सफेद रंग । वि. श्वेतवर्ण- सफेद मिट्टी। महरा स्त्री [ मथुरा] दक्षिण वाला । °भिक्खु पुं[भिक्षु] श्वेताम्बर जैन तरफ की एक नगरी। राय पुं [राज] सम्प्रदाय का मुनि ।
राजा पाण्डु । सुय पुं [°सुत]पाण्डव । °सेण पंडर देखो पंडुर।
पुं [°सेन] पाण्डवों का द्रौपदी से उत्पन्न पंडरंग पुं [दे] महादेव ।
एक पुत्र । पंडरंगु पुं [दे] गाँव का अधिपति ।
पंडुइय वि [पाण्डुकित] श्वेत रंग का किया पंडरिय देखो पंडुरिअ।।
हुआ। पंडव पुं [पाण्डव] राजा पाण्डु के पुत्र- पंडुग । पु पाण्डक] चक्रवर्ती का धान्यों
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, सहदेव और नकुल । | पंड्य ) की पूत्ति करनेवाला एक निधि । पंडव पुं [दे] अश्व-रक्षक (?) ।
सर्प की एक जाति । न. मेरु पर्वत पर स्थित पंडविअ वि दे] जलाई।
एक वन, पाण्डक वन । पंडिअ वि [पण्डित] शास्त्रों के मर्म को | पंडुर [पाण्डुर] सफेद रंग । पीत-मिश्रित जाननेवाला, बुद्धिमान्, तत्वज्ञ । संयत, साधु।। श्वेत वर्ण। वि. सफेद वर्णवाला। श्वेत'मरण न. साधु का मरण, शुभमरण-विशेष । मिश्रित पीत वर्णवाला । °ज्जा स्त्री [°ार्या] °माण वि [°म्मन्य] विद्याभिमानी, निज को | एक जैन साध्वी का नाम । त्थिय पण्डित माननेवाला, दुर्विदग्ध, अधपका, मूर्ख । [स्थिक] एक गाँव का नाम । °माणि वि [°मानिन्] देखो पूर्वोक्त अर्थ । | पंडुरंग पुं पाण्डुराङ्ग] संन्यासी की एक
वीरिअ न [°वीर्यं] संयत का आत्म-बल । | जाति, भस्म लगानेवाला संन्यासी । पंडिच्च । न [पाण्डित्य] पण्डिताई, पंडुरग । पुं[पाण्डुरक] शिव-भक्त संन्यापंडित्त । विद्वत्ता।
पंडुरय सियों की एक जाति । देखो पंडुर। पंडिच्चमाणि वि [पाण्डित्यमानिन्] विद्वत्ता | पंडुरिअ । वि [पाण्डुरित] पाण्डुर वर्णका घमण्ड ।
पंडुल्लइय ) वाला बना हुआ। पंडी देखो पंड = पाण्ड्य ।
पंडुल पुं. [पाण्डुर] देखो पंडुर । पंडीअ (अप) देखो पंडिअ ।
| पंत वि [प्रान्त] अन्तवर्ती, अन्तिम । अशोभन ।
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पंताव-पकप्पणा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष इन्द्रिय-प्रतिकूल । असभ्य, अशिष्ट । अपसद, | पंसु पुं [पशु] कुठार, फरसा । नीच, दुष्ट । दरिद्र । जीर्ण, फटा टूटा। पंसु देखो पसु। विनष्ट । नीरस, सूखा । भुक्तावशिष्ट । पर्यु- पंसुखार पुं [पांशुक्षार] ऊषर लवण । षित, बासी । °कुल न. नीच कुल । °चर | पंसुल पुं [दे] कोयल । जार । वि. रुद्ध । वि. नीरस आहार की खोज करनेवाला | पंसुल पुं [पांसुल] परस्त्री-लम्पट । वि. धूलितपस्वी । °जीवि वि [ जीविन्] नीरस युक्त । आहार से शरीर निर्वाह करनेवाला। हार | पंसुला स्त्री [पांसुला] व्यभिचारिणी स्त्री। वि. रूखा-सूखा आहार करनेवाला। पंसुलिआ स्त्री [दे. पांशुलिका] पार्श्व की पंताव सक [दे] मारना ।
हड्डी। पंति स्त्री [पङ्क्ति] कतार । जिसमें एक पंसुली स्त्री [पांसुली] कुलटा ।
हाथी, एक रथ, तीन घोड़े और पांच पदाती पकंथ देखो पगंथ । हों-ऐसी सेना।
पकंथग पुं [प्रकन्थक] अश्व-विशेष । पंति स्त्री [दे] केश-रचना ।
पकंप पुं [प्रकम्प] काँपना। पंतिय स्त्रीन [पङ्क्ति] श्रेणी।
पकड वि [प्रकृत] प्रस्तुत, प्रक्रान्त, उपस्थित, पंथ पुं [पन्थ, पथिन्] मार्ग ।
असली, सच्चा । निर्मित । पंथ पुं [पान्थ] . मुसाफिर । 'कुट्टण न |
| पकड देखो पगड प्रकट । [°कुट्टन] मार-पीटकर मुसाफिरों को लूटना। पकड्ढ देखो पगड्ढ । °कोट्ट पुं ["कुट्ट] वही अर्थ । °कोट्टि स्त्री
पकड्ढ वि [प्रकृष्ट] प्रकर्ष-युक्त । खींचा हुआ । [°कुट्टि] वही अर्थ ।
पकड्ढण न [प्रकर्षण] आकर्षण, खींचाव । पंथग पुं [पान्थक] एक जैन मुनि ।
पकत्थ सक [ प्र + कत्थ् ] प्रशंसा करना । पंथाण देखो पंथ = पन्थ, पथिन् ।
पकप्प अक [प्र+क्लृप्] उपयोग में आना । पंथिअ पुं [पन्थिक, पथिक] मुसाफिर ।
काटना, छेदना। पंथुच्छुहणी स्त्री [दे] श्वशुर-गृह से पहली
| पकप्प सक [प्र+कल्पय] करना, बनाना । बार आनीत स्त्री।
संकल्प करना। पंपुअ वि [दे दीर्घ, लम्बा।
पकप्प पुं [प्रकल्प] उत्तम आचरण । बाधक पंफुल्ल वि [प्रफुल्ल] विकसित ।
नियम । 'आचारांग' सूत्र का एक अध्ययन । पंफुल्लिअ वि [दे] गवेषित ।
व्यवस्थापन । कल्पना । प्ररूपणा । विच्छेद, पंस सक [पांसय्] मलिन करना।
प्रकृष्ट छेदन । जैन साधुओं का एक प्रकार का पंसण वि [पांसन] कलंकित करनेवाला, दूषण आचार, स्थविरकल्प । एक महाग्रह, ज्यौतिष लगानेवाला ।
देव-विशेष । गंथ पुं [°ग्रन्थ] एक प्राचीन पंसु पुं[पांसु, पांशु धूली, रज । कीलिय, | जैन ग्रन्थ, 'निशोथ' सूत्र । °जइ पुं [यति] "क्कीलिय वि [°क्रीडित] बचपन का दोस्त । 'निशीथ' अध्ययन का जानकार साधु । °धर
वि. 'निशीथ' अध्ययन का जानकार। देखो के कारण पिशाच के तुल्य मालूम पड़ता हो | पगप्प %प्रकल्प। वह । "मूलिय पुं [°मूलिक] विद्याधर, | पकप्पणा स्त्री [प्रकल्पना] प्ररूपणा, मनुष्य-विशेष ।
व्याख्या। कल्पना ।
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५००
पकप्पधारि वि [ प्रकल्पधारिन्] 'निशीथ'
सूत्र का जानकार
पकप्पि वि [ प्रकल्पिन्] ऊपर देखो । पकप्पिय वि [ प्रकल्पित] संकल्पित । निर्मित । न. पूर्वोपार्जित द्रव्य । काटा हुआ । पकय वि [ प्रकृत] कार्य में लगा हुआ । पकर सक [प्र + कृ] करने का प्रारम्भ करना । प्रकर्ष से करना । करना । पकर देखो पयर = प्रकर । पकरणया स्त्री [ प्रकरणता] करण, कृति | पकहिअ वि [ प्रकथित ] जिसने कहने का प्रारम्भ किया हो वह ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पकाम न [ प्रकाम ]अत्यर्थ, अत्यन्त । पुं. प्रकृष्ट अभिलाष ।
पकाव (अप) सक [पच्] पकाना | पकास देखो पयास = प्रकाश ।
पट्टि देखो पट्टि |
पकिरण वि [ प्रकीर्ण] उप्त, बोया हुआ । दत्त | पइण्ण = प्रकीर्ण । पकित्ति वि [ प्रकीर्तित] वर्णित, कथित । पकिदि देखो पगइ = प्रकृति । पकिदि (शौ) देखो पइइ = प्रकृति । पकिरण न [ प्रकिरण] देने के लिए फेंकना । पकुण देखो पकर = प्र + कृ । पकुप्प अक [ प्र + कुप् ] गुस्सा करना । पकुप्पित (चूप ) वि [ प्रकुपित ] क्रुद्ध, कुपित । पकुविअ ऊपर देखो ।
पकुव्व सक [ प्र + कृ, प्र + कुर्वं ] करने का प्रारम्भ करना । प्रकर्ष से करना । करना ।
पकुव्वि वि [प्रकारिन, प्रकुविन्] करनेवाला, कर्ता । पुं. प्रायश्चित्त देकर शुद्धि कराने में समर्थ गुरु । पकूविअ वि [ प्रकूजित ] ऊँचे स्वर से चिल्लाया हुआ ।
को देखो ओ |
पकप्पधारि-पक्ख
पकोव पुं [ प्रकोप ] गुस्सा ।
पक्क वि [पक] पका हुआ ।
पक्क वि [दे] तृप्त, गर्वित । समर्थ, पक्का, पहुँचा हुआ ।
पक्कं वि [ प्रक्रान्त] प्रस्तुत ।
पक्कग्गाह पुं [दे] मगरमच्छ । पानी में बसनेवाला सिंहाकार जल-जन्तु ।
पक्कण वि[दे] असहिष्णु । समर्थ । पुं. चाण्डाल | एक अनार्य देश । पुंस्त्री. अनार्य देश-विशेष में रहनेवाली एक मनुष्य जाति । पुं. एक नीच जाति का घर, शबर-गृह | ° उल न [° कुल] चाण्डाल का घर । एक गर्हित कुल ।
पक्कणि वि [दे] अतिशय शोभमान । भग्न, भ हुआ । प्रियभाषी ।
पक्कणिय पुंस्त्री. [ दे] एक अनार्य देश में रहनेवाली मनुष्य जाति ।
पक्कन्न न [पक्कान्न] केवल घी में बनी हुई वस्तु, मिठाई आदि ।
पक्कम सक [प्र + कम् ] प्रकर्ष से समर्थ होना । पक्कम सक [प्र + क्रम् ] प्रकर्ष से जाना, चला जाना । अक प्रयत्न होना । प्रवृत्ति होना । पक्कम पुं [ प्रक्रम] प्रस्ताव, प्रसंग | पक्कमणी स्त्री [ प्रक्रमणी ] विद्या - विशेष | पक्कल वि [दे] शक्त ।
दर्प- युक्त, गर्वित ।
प्रौढ |
पक्कस देखो वक्कस |
पक्कसावअ पुं [दे] शरभ । व्याघ्र । पक्काइय वि [पकीकृत ] पकाया हुआ । पक्किर सक [ प्र + कृ] फेंकना । पक्कीलिय वि [ प्रक्रीडित] जिसने क्रीड़ा का प्रारम्भ किया हो वह ।
पक्ख पुं [ पक्ष] वेदिका का एक भाग । पखवारा । शुक्ल और कृष्ण पक्ष । पार्श्व, पाँजर, कन्धा के नीचे का भाग । पक्षियों का अवयवविशेष, पंख । तर्कशास्त्र - प्रसिद्ध अनुमान -
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पक्खंत-पक्खोड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५०१ प्रमाण का एक अवयव, साध्यवाली वस्तु । । पक्खारिण पुं [प्रक्षारिण] अनार्य देश-विशेष । तरफ, ओर । जत्था, दल, टोली । मित्र ।। पुंस्त्री. उस देश का निवासी मनुष्य । शरीर का आधा भाग। तरफदार । तीर | पक्खाल सक [प्र + क्षालय] शुद्ध करना, का पंख । तरफदारी। °ग वि. पक्ष-गामी, | धोना । पक्ष-पर्यन्त स्थायी। °पिंड पुंन [°पिण्ड] पक्खासण न [पक्ष्यासन] जिसके नीचे अनेक आसन-विशेष-जानु और जाँघपर वस्त्र बाँध | प्रकार के पक्षियों का चित्र हो ऐसा आसन । कर बैठना । य पुं [क]पंख, तालवृन्त । वंत | पक्खि पुंस्त्री [पक्षिन्] पक्षी । 'बिराल पुंस्त्री. वि [°वत्] तरफदारीवाला। 'वाइल्ल वि। पक्षि-विशेष । 'राय पुं [ राज] गरुड । नीचे [पातिन्] पक्षपात करनेवाला, तरफदारी | देखो। करनेवाला । °वाद पुं.[°पात] तरफदारी। पक्खिअ पुंस्त्री [पक्षिक] ऊपर देखो । वि. °वादि (शौ) देखो वाइल्ल । °वाय देखो | पक्षपाती, तरफदारी करनेवाला। °वाद । वाय पुं [°वाद] पक्ष-सम्बन्धी | पक्खिअ वि [पाक्षिक] स्वजन, ज्ञाति का । विवाद । °वाह पुं. वेदिका का एक देश- | पाख में होनेवाला । अर्धमास-सम्बन्धी । न. विशेष । विडिअ वि [°ापतित] पक्षपाती। पर्व-विशेष, चतुर्दशी । पक्खिअ पुं
वाइया स्त्री [वापिका] होम-विशेष । [पक्षिक] जिसको एक पाख में तीव्र विषयापक्खंत न [पक्षान्त] अन्यतर। इन्द्रिय-जात । भिलाष होता हो और एक पक्ष में अल्पपक्खंतर न [पक्षान्तर] दूसरा पक्ष । ऐसा नपुंसक। पक्खंद सक [प्र+स्कन्द्] आक्रमण करना। | पक्खिकायण न [पाक्षिकायन] गोत्र-विशेष दौड़कर गिरना। अध्यवसाय करना।
जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है । पक्खंदोलग पुं [पक्ष्यन्दोलक] पक्षी का पक्खिण देखो पक्खि । हिंडोला।
पक्खित्त वि [प्रक्षिप्त] फेंका हुआ । पक्खज्जमाण वि [प्रखाद्यमान] जो खाया | पक्खिनाह पुं पक्षिनाथ] गरुड पक्षी । जाता हो वह ।
पक्खिव वि [प्र + क्षिप्] फेंक देना । त्यागना । पक्खडिअ वि [दे] प्रस्फुरित, विजृम्भित, डालना। समुत्पन्न ।
पक्खीण वि [प्रक्षीण] अत्यन्त क्षीण । पक्खर सक [सं+नाहय्] सन्नद्ध करना, अश्व पक्खुडिअ वि [प्रखण्डित] खण्डित, असम्पूर्ण । को कवच से सज्जित करना।
पक्खुब्भ अक [प्र + क्षुभ्] क्षोभ पाना । वृद्ध पक्खर पुं [प्रक्षर] क्षरण, टपकना।
| होना, बढ़ना। पक्खर पुं [दे] जहाज की रक्षा का एक उप- | पक्खेव प्रक्षेप] शास्त्र में पीछे से किसी के करण, सामग्री । पाखर, घोड़े का कवच । ।
द्वारा डाला या मिलाया हुआ वाक्य । °ाहार पक्खरा स्त्री [दे] अश्व-संनाह ।
पुं. कवलाहार । पक्खल अक [प्र + स्खल] गिरना, पड़ना, पक्खेव । पुं [प्रक्षेप, क] क्षेपण, फेंकना । स्खलित होना।
पक्खेवग ) पूर्ति करनेवाला द्रव्य, पूर्ति के पक्खाउज्ज न [पक्षातोद्य] पखावज, एक
लिए पीछे से डाली जाती वस्तु । प्रकार का बाजा, मृदंग।
| पक्खोड सक [वि + कोशय ] खोलना । पक्खाय वि [प्रख्यात] प्रसिद, विश्रुत । ] फैलाना।
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५०२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पक्खोड-पगार पक्खोड सक [शद्] कॅपाना। झाड़कर | पकप्प = प्रकल्प । गिराना।
पगप्पिअ वि [प्रकल्पित] प्ररूपित, कथित । पक्खोड सक [प्र+छादय] ढकना, आच्छादन | पगप्पित्तु वि [प्रकल्पयितृ, प्रकर्तयितु] करना।
काटनेवाला। पक्खोड सक [प्र+स्फोटय] खूब झाड़ना। पगब्भ अक [प्र + गल्भ्] धृष्टता करना । बारम्बार झाड़ना । कँपाना।
समर्थ होना। पक्खोड पुं [प्रस्फोट] प्रमार्जन, प्रतिलेखन की पगब्भ वि [प्रगल्भ] धृष्ट, ढीठ । समर्थ । क्रिया-विशेष ।
| पगब्भ न [प्रागल्भ्य] धृष्टता, ढीठाई। पक्खोभ सक [प्र + क्षोभय] क्षुब्ध करना,
| पगब्भणा स्त्री [प्रगल्भना] प्रगल्भता, धृष्टता। क्षोभ उत्पन्न कर हिला देना।
पगब्भा स्त्री [प्रगल्भा] भगवान् पार्श्वनाथ की पक्खोलण न [शदन] स्खलित होनेवाला । वि.
एक शिष्या।
पगम्भिअ वि [प्रगल्भित] धृष्टता-युक्त । रुष्ट होनेवाला। पखल वि [प्रखर] प्रचण्ड, तीव्र, तेज ।
पगभित्तु वि [प्रगल्भित] काटनेवाला । पखोड देखो पक्खोड = प्रस्फोट ।
पगय न [प्रकृत] प्रस्ताव, प्रसंग । पुं. गाँव का पगइ स्त्री [प्रकृति स्वभाव । प्रस्तुत अर्थ ।
अधिकारी। साधारण जन-समूह । कुम्भकार आदि अठारह
पगय वि [प्रकृत] प्रस्तुत । मनुष्य-जातियाँ। कर्मों का भेद । सत्व, रज और
पगय वि [प्रगत] प्राप्त । जिसने गमन करने
का प्रारम्भ किया हो वह, संगत । न. प्रस्ताव, तम को साम्यावस्था । बलदेव के एक पुत्र का
अधिकार । नाम । °बंध पुं [°बन्ध] कर्म-पुद्गलों में भिन्न-शक्तियों का पैदा होना । देखो पगडि ।
पगय न [दे] पाँव । पगंठ पुं [प्रकण्ठ] पाठ-विशेष । अन्त का
पगर पुं [प्रकर] समूह । अवनत प्रदेश ।
पगरण न [प्रकरण] अधिकार, प्रस्ताव । पगंथ सक [प्र+कथय] निन्दा करना ।
ग्रन्थ-खण्ड-विशेष । किसी एक विषय को लेकर पगड वि [प्रकट] व्यक्त, खुला, स्पष्ट, प्रत्यक्ष । बनाया हुआ छोटा ग्रन्थ । पगड वि [प्रकृत] विनिर्मित ।
पगरिअ वि [प्रगलित] कुष्ठ-विशेष की बीमारीपगड पुं [प्रगत] बड़ा गड्ढा या गड़हा ।
वाला। पगडण न [प्रकटन] प्रकाश करना, खुला | पगारस पुं [प्रकर्ष] उत्कर्ष, श्रेष्ठता । आधिक्य, करना।
अतिशय । पगडि स्त्री [प्रकृति] भेद, प्रकार । देखो | पगल अक [प्र+गल्] झरना, टपकना । पगइ।
पगहिय वि [प्रगृहीत] ग्रहण किया हुआ। पगडीकय वि [प्रकटीकृत] व्यक्त किया हुआ, पगाइय वि [प्रगीत] जिसने गाने का प्रारम्भ स्पष्ट किया हुआ।
किया हो वह । पगड्ढ सक [प्र + कृष्] खींचना । पगाढ वि [प्रगाढ] अत्यन्त गाढ़ । पगप्प देखो पकप्प प्र+कल्पम् ।
पगाम देखो पकाम। पगप्प देखो पकप्प-प्र+क्लुप् । पगामसो अ [प्रकामम] अतिशय । पगप्प वि. [प्रकल्प] उत्पन्न होनेवाला। देखो | पगार पुं [प्रकार] भेद । रीति । वगैरह ।
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५०३
पगास-पच्चंतिग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पगास देखो पयास = प्र+काशय । पग्गेज्ज पुं [दे] समूह । पगास पुं[प्रकाश ] प्रभा, चमक । ख्याति । पघंस सक [प्र+घृष्] फिर-फिर घिसना।
आविर्भाव, प्रादुर्भाव । उद्योत, आतप । पघोल अक [प्र + घूर्णय] मिलना, संगत क्रोध । वि. प्रकट, व्यक्त ।
होना। पगासग देखो पगासय।
पघोस पुं[प्रघोष] उद्घोषणा । पगासण देखो पयासण।
पच सक [पच्] पकाना। पगासणया स्त्री [प्रकाशनता] आलोक । | पच (अप) देखो पंच। °आलीस, तालीस पगाराणा स्त्री [प्रकाशना] प्रकटीकरण । स्त्रीन [°चत्वारिंशत् पैतालीस । पैतालिस पगासय वि [प्रकाशक प्रकाश करनेवाला।। संख्या जिनकी हो वे। पगिइ देखो पगइ ।
पचंकमणग न [प्रचक्रमण, °क] पाँव से पगिज्झ अक [प्र + गृध्] आसक्ति का प्रारम्भ चलना। होना।
पचंकमावण न [प्रचङ्क्रमण]पाँव से संचारण, पगिज्झिय देखो पगिण्ह ।
पाँव से चलाना । पगिट्ठ वि [प्रकृष्ट] मुख्य । उत्तम । पचंड देखो पयंड। पगिण्ह सक [प्र + ग्रह]ग्रहण करना । उठाना। पचलिय देखो पयलिय = प्रचलित । धारण करना । करना।
पचार सक [प्र+चारय] चलाना । पगीअ वि [प्रगीत] गाया हुआ । जिसकी गीत | पचार पुं [प्रचार] विस्तार, फैलाव। देखो गाई गई हो वह ।
पयार = प्रचार । पगीय वि प्रगीत] जिसने गाने का प्रारम्भ | पचाल सक [प्र + चालय] खूब चलाना । किया हो वह ।
पचिय वि [प्रचित] समृद्ध । पगुण देखो पउण ।
पचीस (अप) स्त्रीन [पञ्चविंशति] पचीस की पगुणीकर सक [प्रगुणी + कृ] प्रगुण करना ।
संख्या । जिसकी संख्या पचीस हो वे । सज्ज करना।
पचुन्निय वि [प्रचूर्णित] चूर-चूर किया हुआ । पगे अ [प्रगे] सुबह ।
पचेलिम वि [पचेलिम] पक्व, पका हुआ। पग्ग सक [ग्रह ] ग्रहण करना ।
पचोइअ वि [प्रचोदित प्रेरित । पग्गल वि [दे] पागल, उन्मत्त ।
पच्चइग देखो पच्चइय = प्रत्ययिक । पग्गह पुं [प्रग्रह] खाने के लिए उठाया हुआ पच्चइय वि [प्रत्यायक] विश्वासी। ज्ञानवाला, भोजन-पान । उपधि, उपकरण। लगाम । प्रत्ययवाला । न. श्रुत-ज्ञान, आगम-ज्ञान । पशुओं को नाक में लगाई जाती डोरी, नाथ । । पच्चइय वि [प्रत्ययित] विश्वस्त । पशुओं को बाँधने की डोरी, रस्सी । मुखिया। पच्चइय वि [प्रात्ययिक] प्रत्यय से उत्पन्न, ग्रहण, उपादान । योजन, जोड़ना ।
प्रतीति से संजात । पग्गहिअ वि [प्रगृहीत] अभ्युपगत, सम्यक् पञ्चंग न [प्रत्यङ्ग] हर एक अवयव ।
स्वीकृत । प्रकर्ष से गृहीत । उठाया हुआ। पच्चंगिरा स्त्री [प्रत्यङ्गिरा] विद्यादेवी-विशेष । पग्गहिय वि [प्रग्रहिक] ऊपर देखो । | पच्चंत पुं [प्रत्यन्त] अनार्यदेश । वि. समीपस्थ पग्गिम 1 (अप) अ (प्रायस्] बहुधा । देश । भाग। पग्गिव ।
| पच्चंतिग देखो पच्चंतिय = प्रत्यन्तिक ।
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५०४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पच्चतिय-पच्चबलोक्क पच्चंतिय वि [प्रत्यन्तिक] समीप-देश में | पञ्चच्छिमिल्ल वि [पाश्चात्य] पश्चिम दिशा स्थित ।
में उत्पन्न, पश्चिम दिशा-सम्बन्धी। पच्चंतिय वि [प्रात्यन्तिक] प्रत्यन्त देश से | पञ्चच्छिमुत्तरा देखो पच्चत्थिमुत्तरा। आया हुआ।
पच्चड अक [क्षर् ] झरना, टपकना । पच्चक्ख न [प्रत्यक्ष] इन्द्रिय आदि की सहा- पच्चड्ड सक [गम्] जाना, गमन करना । यता के बिना ही उत्पन्न होनेवाला ज्ञान । पच्चड्डिया स्त्री [दे. प्रत्यड्डिका] मल्लों का इन्द्रियों से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान । वि. एक प्रकार का करण । प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय ।
पच्चणीय वि [प्रत्यनीक] विरोधी, दुश्मन । पच्चक्ख । सक [प्रत्या + ख्या] त्याग करना, पच्चणुभव सक [प्रत्यनु + भू] अनुभव पच्चक्खा ) त्याग करने का नियम करना। । करना। पच्चक्खाण न [प्रत्याख्यान] परित्याग करने | पच्चणुहो देखो पच्चणभव । की प्रतिज्ञा। जैन ग्रन्थांश-विशेष, नववाँ पूर्व- पच्चत्त वि [प्रत्यक्त] जिसका त्याग करने का ग्रन्थ । निंद्य कर्मों से निवृत्ति । विरण पुं. | प्रारम्भ किया गया हो वह । सावध-विरति का प्रतिबन्धक क्रोध-आदि | पच्चत्तर न दे] खुशामद । कषाय।
पच्चत्थरण न [प्रत्यास्तरण] बिछौना । पच्चक्खाणी स्त्री [प्रत्यख्यानी] भाषा-विशेष, देखो पल्हत्थरण। प्रतिषेधवचन ।
पच्चत्थि वि [प्रत्यर्थिन्] प्रतिपक्षी, दुश्मन । पच्चक्खाय वि [प्रत्याख्यात] त्यक्त ।
पच्चत्थिम वि [पाश्चात्य, पश्चिम] पश्चिम पच्चक्खायय वि [प्रत्याख्यायक] त्याग करने- |
दिशा तरफ का, पश्चिम का । न. पश्चिम वाला ।
दिशा । पच्चक्खाव सक [प्रत्या + ख्यापय् ] त्याग
पच्चत्थिमा स्त्री [पश्चिमा] पश्चिम दिशा । कराना, किसी विषय का त्याग करने की
पच्चथिमिल्ल वि पाश्चात्य] पश्चिम प्रतिज्ञा कराना।
दिशा का। पच्चक्खि वि [प्रत्यक्षिन्] प्रत्यक्ष ज्ञानवाला ।
पच्चत्थिमुत्तरा स्त्री [पश्चिमोत्तरा] पश्चिपच्चक्खिय देखो पच्चक्खाय । पच्चक्खीकर सक [प्रत्यक्षी + कृ] प्रत्यक्ष
मोत्तर दिशा, वायव्य कोण । करना, साक्षात् करना।
पच्चत्थय वि [ प्रत्यास्तृत ] आच्छादित ।
बिछाया हुआ। पच्चक्खीकिद (शो) वि [प्रत्यक्षीकृत] प्रत्यक्ष |
पच्चद्ध न [पश्चाध] उत्तरार्ध । किया हुआ, साक्षात् जाना हुआ।
पच्चद्धचक्कवट्टि पुं [प्रत्यर्धचक्रवतिन्] वासुपच्चक्खीभू अक [प्रत्यक्षी + भू] प्रत्यक्ष होना, | देव का प्रतिपक्षी राजा, प्रतिवासुदेव । साक्षात् होना।
पच्चप्पण न [प्रत्यर्पण] लौटा देना । पच्चक्खेय देखो पच्चक्खा का कृ. । पच्चप्पिण सक [प्रति + अर्पय् ] वापस पञ्चग्ग वि [प्रत्यग्र] प्रधान, मुख्य । श्रेष्ठ, | देना। सौंपे हुए कार्य को करके निवेदन सुन्दर । नया ।
करना। पञ्चच्छिम देखो पच्चत्थिम।
| पच्चबलोक्क वि [दे] आसक्त-चित्त, तल्लीनपच्चच्छिमा देखो पच्चत्थिमा।
मनस्क ।
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पच्चब्भास-पच्चाया
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पच्चभास पुं [ प्रत्याभास ] निगमन, प्रत्यु
च्चारण ।
पच्चभिआण देखो पच्चभिजाण । पच्चभिजाण सक [ प्रत्यभि + ज्ञा] पहिचानना, पहिचान लेना 1
पच्चभिजाणि वि [ प्रत्यभिज्ञात] पहिचाना हुआ ।
पच्चभिणाण न [ प्रत्यभिज्ञान] पहिचान | पच्चभिन्नाय देखो पच्चभिजाणिअ । पच्चय पुं [ प्रत्यय ] प्रतीति, ज्ञान । निर्णय, निश्चय । हेतु । शपथ, विश्वास उत्पन्न करने के लिए किया या कराया जाता तप्त - माष आदि का चर्वण वगैरह । ज्ञान का कारण । ज्ञान का विषय, ज्ञेय पदार्थ । प्रत्यय-जनक | विश्वास, श्रद्धा | शब्द, आवाज । छिद्र । आधार, आश्रय । व्याकरण- प्रसिद्ध प्रकृति में लगता शब्द - विशेष |
पच्चवत्थाण न [ प्रत्यवस्थान ] शङ्कापरिहार, समाधान । प्रतिवचन, खण्डन । पच्चवर न [ दे] मुसल ।
पच्चाअच्छ
आना ।
पच्चाअद (शौ) देखो पच्चागय । पच्चाइक्ख देखो पच्चक्ख = प्रत्या + ख्या । पच्चाउदृणया स्त्री [प्रत्यावर्त्तनता] अवायसंशय- रहित निश्चयात्मक मति- ज्ञान । पच्चास पुंन [ प्रत्यादेश ] दृष्टान्त | देखो पच्चादेस |
पच्चागय वि [ प्रत्यागत ] वापस आया हुआ ।
न. प्रत्यागमन ।
पच्चाचक्ख सक [ प्रत्या + चक्ष् ] परित्याग
करना ।
पच्चाणयण न [ प्रत्यानयन] वापस ले आना । पच्चल वि[ दे] पक्का, समर्थ, पहुँचा हुआ । पच्चाणि सक [ प्रत्या + णी] वापस ले अणु
आना ।
पच्चलिउ (अप) अ [ प्रत्युत ] वैपरीत्य, पच्चल्लिउ वरञ्च, वरन् ।
पच्चाणी पच्चाणीद (शौ ) वि [ प्रत्यानीत ] वापस
पच्चवणद (शौ) वि [ प्रत्यवनत] नमा हुआ । पच्चवत्थय वि [प्रत्यवस्तृत ] बिछाया हुआ । आच्छादित |
पच्चवाय पुं [ प्रत्यवाय ] विघ्न, व्याघात । दोष, दूषण | पाप । दुःख, पीड़ा । नाश का कारण | अनर्थं ।
पच्चहन [ प्रत्यह] हररोज ।
पच्चहिजाण) देखो पच्चभिजाण ।
पच्चहियाण
पच्चा
५०५
'पिच्चिययन [ दे] बल्वज तृण की कूटी हुई छाल का बना हुआ रजोहरण - जैन साधु का एक उपकरण ।
पच्चा देखो पच्छा ।
सक [ प्रत्या + गम् ] वापस
पच्चामित्त पुंन [ प्रत्यमित्र ] दुश्मन । मित्र
शत्रु ।
पच्चवेक्खिद (शौ ) वि [ प्रत्यवेक्षित ] पच्चाय सक [ति + आयय् ] प्रतीति कराना । निरीक्षित |
विश्वास कराना । ज्ञान कराना ।
लाया हुआ । पच्चाथरण न [ प्रत्यास्तरण] सामने होकर
लड़ना ।
पच्चादिवि [ प्रत्यादिष्ट] निरस्त, निराकृत | पच्चादेस पुं [प्रत्यादेश ] निराकरण | देखो
पच्चाएस |
पच्चापड अक [प्रत्या + पत्] लौटकर आ
पड़ना ।
पच्चाय देखो पच्चाया ।
पच्चायय वि [ प्रत्यायक ] निर्णय - जनक |
विश्वास - जनक |
स्त्री [दें] तृण- विशेष, बल्वज ।। पच्चाया अक [ प्रत्या + जन्] उत्पन्न होना,
६४
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पच्चाया-पच्चूह जन्म लेना।
पच्चुज्जीविअ वि [प्रत्युज्जीवित] पुनर्जीवित । पच्चाया अक [प्रत्या + या] ऊपर देखो।। पच्चुट्ठिअ वि [प्रत्युत्थित] जो सामने खड़ा पच्चायाइ स्त्री [प्रत्याजाति, प्रत्यायाति] | हुआ हो वह । उत्पत्ति, जन्म-ग्रहण ।
पच्चुण्णम अक [प्रत्युद् + नम्] थोड़ा ऊँचा पच्चायाय वि [प्रत्यायात] उत्पन्न ।
होना। पच्चार सक [उपा+लम्भ्] उलाहना देना। पच्चुत्त वि [प्रत्युप्त] फिर से बोया हुआ । पच्चारण न [उपालम्भन] प्रतिभेद । पच्चुत्तर सक [प्रत्यव + तृ] नीचे आना । पच्चारिअ वि [प्रचारित] चलाया हुआ। पच्चुत्तर न [प्रत्युत्तर] जवाब । पच्चालिय वि [दे. प्रत्यादित] आर्द्र किया | पच्चुत्थ वि [दे] फिर से बोया हुआ । हुआ।
पच्चुत्थय । वि [प्रत्यवस्तृत] आच्छाधित । पच्चालीढ न [प्रत्यालीढ] वाम पाद को पीछे | पच्चुत्थय । हटा कर और दक्षिण पाँव को आगे रखकर | पच्चुद्धरिअ वि [दे] सम्मुखागत । खड़े रहनेवाले धानुष्क की स्थिति, धनुषधारियों पच्चद्धार पुं [दे] सम्मुख आगमन । का पैतरा।
| पच्चुप्पण्ण वि [प्रत्युत्पन्न] वर्तमान काल. पच्चावड पुं [प्रत्यावर्त] आवर्त के सामने | सम्बन्धी। पुं. वर्तमान काल । 'नय पुं. का आवर्त्त, पानी का भँवर ।
वर्तमान वस्तु को ही सत्य माननेवाला पक्ष, पच्चावरण्ह पुं [प्रत्यापराल] तीसरा पहर । | निश्चय नय । पच्चासण्ण वि [प्रत्यासन्न] समीप में स्थित, | पच्चुप्फलिअ वि [प्रत्युत्फलित] वापस आया सन्निकट ।
हुआ। पच्चासत्ति स्त्री [प्रत्यासत्ति] सामीप्य । पच्चुब्भड वि [प्रत्युद्भट] अतिशय प्रबल । पच्चासा स्त्री [प्रत्याशा] अभिलाषा । पच्चुरस न [प्रत्युरस] हृदय के सामने । निराशा के बाद की आशा । लोभ, लालच । पच्चुल्लं अ [दे. प्रत्युत] उलटा । पच्चासि वि [प्रत्याशिन्] वान्त या कय किया | पच्चुवकार देखो पच्चुवयार । हुआ वस्तु का भक्षण करनेवाला । | पच्चुवगच्छ सक [प्रत्युप + गम्] सामने पच्चाह सक [प्रति + बू] उत्तर देना। जाना । पच्चाहर सक [प्रत्या + ह] उपदेश देना। पच्चुवगार ) पुं [प्रत्युपकार] उपकार के पच्चाहुत्त क्रिवि [पश्चान्मुख] पीछे, पीछे की | पच्चुवयार बदले उपकार । तरफ ।
पच्चुवेक्ख सक [प्रत्युप+ ईक्ष] निरीक्षण पच्चिम देखो पच्छिम ।
करना। अवलोकन करना। पच्चुअ (दे) देखो पच्चुहिअ ।
पच्चुहिअ वि [दे] प्रस्तुत, प्रक्षरित, अच्छी पच्चुअआर देखो पच्चुवयार ।
तरह चूने या टपकनेवाला । पच्चुग्गच्छणया स्त्री [प्रत्युद्गमनता] अभिः | पच्चूढ न [दे] भोजन करने का पात्र, बड़ी मुख गमन ।
थाली। पच्चुच्चार पुं [प्रत्युच्चार] अनुवाद, अनु- | पच्चूस [दे] देखो पच्चूह = (दे)। भाषण ।
पच्चूस | पुं [प्रत्यूष] प्रभात काल । पच्चुच्छ्हणी स्त्री [दे] ताजी दारू ।। । पच्चूह ।
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पच्चह-पच्छा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी के ष
५०७ पच्चूह पुन [प्रत्यूह] विघ्न ।
देखो पच्छा = पश्चात् । पच्चह पं [दे] सूर्य ।
| पच्छइ ? (अप) अ [पश्चात्] ऊपर देखो। पंच्चेअ न [प्रत्येक] हर एक ।
पच्छए J °ताव पुं [°ताप] अनुताप । पञ्चेड न [दे] मुसल।
पच्छंद सक [गम्] जाना, गमन करना। पच्चेल्लिउ (अप) देखो पच्चल्लिउ । पच्छंभाग पुं [पश्चाद्भाग] दिवस का पिछला पच्चोगिल सक [प्रत्यव + गिल्] आस्वादन | । भाग । पुंन. चन्द्र पृष्ठ देकर जिसका भोग करना ।
करता है वह नक्षत्र । पच्चोणामिणी स्त्री [प्रत्यवनामिनी] विद्या- | पच्छण स्त्रीन [प्रतक्षण] त्वक् का बारीक विशेष जिसके प्रभाव से वृक्ष आदि फल देने | विदारण, चाकू आदि से पतली छाल के लिए स्वयं नीचे नमते हैं।
निकालना। पच्चोणियत्त वि [प्रत्यवनिवृत्त] ऊँचा उछल पच्छण्ण वि [प्रच्छन्न] गुप्त, अप्रकट । °पइ कर नीचे गिरा हुआ।
पुं [°पति] जार । पच्चोणिवय अक [प्रत्यवनि + पत्] उछल | पच्छद देखो पच्छय । कर नीचे गिरना।
पच्छदण न [प्रच्छदन] आस्तरण, चादरपच्चोणी [दे] देखो पच्चोवणी ।
शय्या के ऊपर का आच्छादन वस्त्र । पच्चोयड न [दे] तट के समीप का ऊंचा
पच्छय पुं [प्रच्छद] दुपट्टा, पिछौरी । प्रदेश । वि. आच्छादित ।
पच्छ्यण देखो पत्थयण । पच्चोयर सक [प्रत्यव + तृ] नीचे उतरना ।
पच्छलिउ (अप) देखो पच्चलिउ । पच्चोरुभ , सक [प्रत्यव + रुह ] नीचे पच्चोरुह । उतरना।
पच्छा अ [पश्चात्] अनन्तर । परलोक । परपच्चोवणिअ वि [दे] सम्मुख आया हुआ ।
जन्म । पिछला भाग, पृष्ठ । चरम, शेष । पच्चोवणी स्त्री [दे] सम्मुख आगमन ।
पश्चिम दिशा । °उत्त वि [ आयुक्त] जिसका
आयोजन पीछे से किया गया हो वह । °कड पच्चोसक्क अक [प्रत्यव + ष्वक् ] नीचे
पुं [कृत] साधुपन को छोड़कर फिर गृहस्थ उतरना । पीछे हटना ।
बना हुआ। कम्म देखो °पच्छकम्म । पच्छ सक [प्र+अर्थय] प्रार्थना करना।
णुताव पुं [ अनुताप] पश्चात्ताप । पच्छ वि [पथ्य] रोगी का हितकारी आहार। °णुपुव्वी स्त्री [°आनुपूर्वी] उलटा क्रम । हितकारक ।
°ताव पुं [°ताप] अनुताप । °ताविय वि पच्छ न [पश्चात् चरम, शेष । पीछे, पृष्ठ [°तापिक] पश्चात्तापवाला । °निवाइ वि भाग । पश्चिम दिशा । °ओ अ [°तस्]
[निपातिन्] पीछे से गिर जानेवाला । चारित्र पीछे, पीठ की ओर । कम्म न [°कर्मन्] बाद ग्रहण कर बाद में उससे च्युत होनेवाला । की क्रिया । यसियों की भिक्षा का एक दोष,
°भाग पुं पिछला भाग । °मुह वि [°मुख दातृ कर्तृक दान देने के बाद की पात्र को | पराङ्मुख, जिसने मुंह पीछे की तरफ फेर साफ करना आदि क्रिया । °त्ता पुं[ताप] | लिया हो वह। °यव, याव देखो ताव । अनुताप। °द्ध न [अर्ध] उत्तरार्ध ।। यावि वि [°तापिन्] पश्चात्ताप करनेवाला । वत्थुक्क न [°वास्तुक] घर का पिछला °वाय पुं[°वात] पश्चिम दिशा का पवन । हिस्सा । “याव पुं । ताप ] पश्चात्ताप ।। पीछे का पवन । °संखडि स्त्री [दे. संस्कृति]
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५०८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पच्छा-पज्जण्ण पिछला संस्कार । मरण के उपलक्ष्य में | का। अन्तिम । °द्ध न [T] उत्तरार्ध । ज्ञाति-कुटुम्बी वगैरह प्रभूत मनुष्यों के लिए सेल पुं [°शैल] अस्ताचल पर्वत । पकायी जाती रसोई । °संथव पुं [ संस्तव] पच्छिमा स्त्री [पश्चिमा पश्चिम दिशा। पिछला सम्बन्ध, स्त्री, पुत्री वगैरह का पच्छियापिडय देखो पच्छि-पिडय । सम्बन्ध । जैन मुनियों के लिए भिक्षा का एक पच्छिल (अप) देखो पच्छिम । दोष, श्वशुर आदि पक्ष में अच्छी भिक्षा पच्छुत्ताव पुं [पश्चादुत्ताप] पछतावा । मिलने की लालच से पहले भिक्षार्थ जाना। पच्छुत्ताविअ (अप)वि [पश्चात्तापित] जिसको
संथुय वि [°संस्तुत] पिछले सम्बन्ध से पश्चात्ताप हुआ हो वह । परिचित । हुत्त वि [°दे] पीछे की तरफ | पच्छेकम्म देखो पच्छ-कम्म। का ।
| पच्छेणय न [दे] पाथेय, रास्ते में निर्वाह पच्छा स्त्री [पथ्या] हरीतकी ।
करने की भोजन-सामग्री, कलेवा । पच्छाअ' सक [ प्र+छदय ] ढकना । पच्छोववण्णग । वि [पश्चादुपपन्न] पीछे से छिपाना।
पच्छोववन्नक ) उत्पन्न । पच्छाअ वि [प्रच्छाय] प्रचुर छायावाला। पजप सक [प्र+जल्प्] बोलना । पच्छाग पुं [प्रच्छादक] पात्र बाँधने का
पजंपावण न [प्रजल्पन] बोलाना, कथन कपड़ा।
कराना। पच्छाडिद (शौ) वि [प्रक्षालित] धोया हुआ।
पजणण वि [प्रजनन] उत्पादक । न. लिंग, पच्छाणिअ [दे] देखो पच्चोवणिअ।
पुरुष-चिह्न । पच्छाणुताविअ वि [पश्चादनुतापिक] पश्चा
पजल अक [प्र+ज्वल ] अतिशय दग्ध त्ताप-युक्त, पछतावा करनेवाला ।
होना । चमकना । पच्छायण न [पथ्यदन] पाथेय, रास्ते में खाने |
पजह सक [प्र+हा] त्याग करना । का भोजन ।
पजाला स्त्री [प्रज्वाला] अग्नि-शिखा । पच्छायण न [प्रच्छादन] आच्छादन, ढकना । पजीवण न [प्रजीवन] आजीविका । वि. आच्छादन करनेवाला । या स्त्री [°ता] |
पजुत्त देखो पउत्त = प्रयुक्त । आच्छादन ।
पजूहिअ वि [प्रयूथिक] यूथ या समूह को पच्छाल देखो पक्खाल ।
दिया हुआ, याचक-गण को अर्पित । पच्छि स्त्री [दे] पिटिका, पिटारी, वेत्रादि- पजेमण न [प्रजेमन] भोजन लेना। रचित भाजन-विशेष । °पिडय न [°पिटक] पज्ज सक [पायय] पिलाना, पान कराना । 'पच्छो' रूप पिटारी ।
पज्ज न [पद्य] छन्दोबद्ध वाक्य । पच्छि (अप) देखो पच्छइ ।
पज्ज न [पाद्य] पाद-प्रक्षालन जल । पच्छित्त न [प्रायश्चित] पाप की शुद्धि करने पज्ज देखो पज्जत्त। वाला कर्म । मन को शुद्ध करनेवाला कर्म । पज्जंत पुं [पर्यन्त] सीमा, प्रान्त भाग। पच्छित्ति वि [प्रायश्चित्तिन्] प्रायश्चित्त का | पज्जण न दे] पान, पीना । भागी, दोषी।
पज्जणुओग । पुं [पर्यनुयोग] प्रश्न । पच्छिम न [पश्चिम] पश्चिम दिशा । वि. पज्जणुजोग , पश्चिम दिशा का, पाश्चात्य । पिछला, बाद | पज्जण्ण देखो पजणण ।
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पज्जण्ण-पज्जाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५०९ पज्जण्ण पुं [पर्जन्य] बादल।
पज्जलण वि [प्रज्ज्वलन] जलानेवाला । पज्जत वि [पर्याप्त] 'पर्याप्ति' वाला । समर्थ । | पज्जलिअ पुं [प्रज्ज्वलित] तीसरी नरक भूमि लब्ध । यथेष्ट, उतना जितने से काम चल | का एक नरक-स्थान । जाय। न. तृप्ति । सामर्थ्य । निवारण । पज्जलिय वि [प्रज्ज्वलित] जलाया हुआ । योग्यता । जिसके उदय से जीव अपनी अपनी | देवोप्यमान । ‘पर्याप्तियों' से युक्त होता है वह कर्म । °णाम | पज्जलीढ वि [प्रर्यवलोढ] भक्षित । न ['नामन्] अनन्तर उक्त कर्म-विशेष । पज्जव पुं [पर्यव] परिच्छेद, निर्णय । देखो पज्जतर वि [दे] दलित, विदारित।
पज्जाय । कलिण न [कृत्स्न] चतुर्दश पज्जत्त न [पर्याप्त] लगातार चौतीस दिन का पूर्व-ग्रन्थ तक का ज्ञान, श्रुतज्ञान-विशेष । जाय उपवास ।
वि [°जात] भिन्न अवस्था को प्राप्त । ज्ञान पज्जत्तर [दे] देखो पज्जतर ।
आदि गुणोंवाला । न. विषयोपभोग का अनुपज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] सामर्थ्य । जीव की | ष्ठान । °जाय वि [°यात] ज्ञान प्राप्त । वह शक्ति जिनके द्वारा पुद्गलों को ग्रहण | ट्ठिय पुं [स्थित, आर्थिक, °ास्तिक] नयकरने तथा उनको आहार, शरीर आदि के | विशेष, द्रव्य को छोड़कर केवल पर्यायों को रूप में बदल देने का काम होता है, जीव की ही मुख्य माननेवाला पक्ष । °णय, पुं[°नय] पुद्गलों को ग्रहण करने तथा परिणमाने या | वही अनन्तर उक्त अर्थ । पचाने की शक्ति । पूर्ण प्राप्ति । तृप्ति । पूर्ति, | पज्जवत्थाव सक [पर्यव + स्थापय] अच्छी पूर्णता । अन्त, अवसान ।
अवस्था में रखना । विरोध करना। प्रतिपक्ष पज्जन्न पं. [पर्जन्य] मेघ-विशेष जिसके एक |
के साथ वादक बार बरसने से भूमि में एक हजार वर्ष तक | पज्जवसाण न [पर्यवसान] अन्त, अवसान । चिकनाहट रहती है।
पज्जवसिअ न [पर्यवसित] अवसान, अन्त । पज्जय पुं [दे. प्रार्यक] प्रपितामह ।
पज्जा देखो पण्णा। पज्जय [पर्यय] उत्पत्ति के प्रथम समय में
पज्जा स्त्री [पद्या] रास्ता । सक्षम-निगोद के लब्धिअपर्याप्त जीव को जो पज्जा स्त्री [द सीढ़ी । कुश्रुत का अंश होता है उससे दूसरे समय में
| पज्जा स्त्री [पर्याय] अधिकार, प्रबन्ध-भेद । ज्ञान का जितना अंश बढ़ता है वह श्रुतज्ञान ।
पज्जा देखो पया। देखो पज्जाय । समास पु. श्रुतज्ञान का एक
पज्जाअर पुं [प्रजागर] जागरण, निद्रा का भंद, अनन्तर उक्त पर्यय-श्रुत का समुदाय । ।
अभाव । पज्जयण न [पर्ययन] निश्चय, अवधारण । | पज्जाउल वि [पर्याकुल] व्याकुल । पज्जर सक [कथय] कहना, बोलना । पज्जाभाय सक [पर्या + भाजय] भाग पज्जरय पुं प्रजरक] रत्नप्रभा नामक नरक
करना। पृथिवी का एक नरकावास। मज्झ पुं पज्जाय पुं [पयाय] समान अर्थ का वाचक [°मध्य] एक नरकावास । विट्ट पुं [वर्त] शब्द । पूर्ण प्राप्ति । पदार्थ धर्म, वस्तु-गुण । नरकावास-विशेष । सिट्ठ पुं [वशिष्ट] पदार्थ का सक्षम या स्थूल रूपान्तर । क्रम । नरक-स्थान-विशेष ।
प्रकार, भेद । अवसर । निर्माण । तात्पर्य, पज्जल देखो पजल।
भावार्थ, रहस्य । देखो पज्जय तथा
saTV
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५१०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पज्जव ।
पज्जाल सक [ प्र + ज्वालय् ] जलाना । सुलगाना ।
पज्जिआ स्त्री [दे प्रार्थिका ] परनानी । परदादी ।
पज्जुच्छुअवि [पर्युत्सुक] अति उत्सुक । पज्जु वि [पर्युष्ट ] फड़फड़ाया हुआ । पज्जुणसर न [ दे] ऊख के तुल्य एक प्रकार
का तृण ।
पज्जुण्ण पुं [ प्रद्युम्न ] श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम । कामदेव । वैष्णव शास्त्र में प्रति पादित चतुर्व्यूह रूप विष्णु का एक अंश । एक जैनमुनि । वि. श्रीमंत ।
|
पज्जुत वि [ प्रयुक्त ] जटित, खचित | देखो झुत्त 1
पज्जुदास पुं [पर्युदास] निषेध | पज्जुवट्ठा सक [पर्युप + स्था] उपस्थित होना । पज्जुवट्ठिय वि [पर्युपस्थित ] मौजूद, हाजिर,
तत्पर ।
पज्जुवास सक [पर्युप + आस् ] सेवा करना । उपासना करना, भक्ति करना । पज्जुवास व [ पर्युपासक ] सेवा करनेवाला । पज्जुसण
पज्जुसवण पज्जु सवण )
पज्जूसण
पज्जुसणा स्त्री [पर्युषणा ] देखो पज्जोसवणा । पज्जुस्सुअ वि [पर्युत्सुक] अति उत्सुक ।
पज्जूसुअ
पज्जअ पुं [ प्रद्योत ] प्रकाश, उद्योत । उज्जयिनी नगरी का एक राजा । 'गर वि [कर ] प्रकाश - कर्त्ता |
न. देखो पज्जुसणा ।
पज्जोय सक [प्र + द्योतय् ] प्रकाशित करना । पज्जोयण पुं [ प्रद्योतन ] एक जैन आचार्य | पज्जोसव अक [ परि + वस्] वास करना, रहना । जैनागम प्रोक्त पर्युषणा - पर्व मनाना |
पज्जाल-पट्ट
पज्जोसवण न. देखो पज्जोसवणा । पज्जोसवणा स्त्री [पर्युषणा ] एक ही स्थान करना । वर्षा काल । आठ दिनों का एक पुं ['कल्प ] पर्युषणा में करने योग्य शास्त्र - विहित आचार, वर्षा -
में वर्षा - काल व्यतीत पर्व - विशेष, भाद्रपद के प्रसिद्ध जैन पर्व | कप्प
कल्प ।
पज्जोसवणा स्त्री [पर्योसवना,
पर्युपशमना ]
ऊपर देखो ।
पज्जोसविय वि [ पर्युषित] स्थित, रहा हुआ । पज्झंझ अक [ प्र + झञ्झ् ] आवाज करना । पज्झट्टिआ स्त्री [पज्झट्टिका ] छन्द- विशेष । पज्झर अक [ क्षर्, प्र+क्षर् ] झरना,
टपकना ।
पज्झर पुं [ प्रक्षर ] प्रवाह विशेष | पज्झल देखो पज्झर = पज्झलिआ देखो पज्झट्टिआ ।
क्षर् ।
पज्झाय न [ प्रध्यात] अतिशय चिन्तन | वि. चिन्तित, सोचा हुआ ।
पज्झत्त वि[दे] खचित, जड़ित । देखोपज्जुत । पझुंझ देखो पज्झुंझ ।
पटउडी स्त्री [पटकुटी] तम्बू, वस्त्र-गृह | पटल देखो पडल = पटल । पटह देखो पडह ।
पटिमा (पै. चूप) देखो पडिमा । पटोला स्त्री. कोशतकी, क्षारवल्ली । पट्ट सक [पा] पीना, पान करना । पट्ट पुं. पहनने का कपड़ा । रथ्या, मुहल्ला | पाषाण आदि का तख्ता, फलक । ललाट पर से बाँधी जाती एक प्रकार की पगड़ी | पट्टा, किसी प्रकार का अधिकार पत्र । रेशम । पाट, सन । रेशमी कपड़ा । सन का कपड़ा । सिंहासन, गद्दी, पाट | कलाबत्तू पट्टी, फोड़ा आदि पर बाँधा जाता लम्बा वस्त्रांश, शाक- विशेष । 'इल्ल पुं[ वत् ] पटेल, गाँव का मुखिया । 'उडी स्त्री [ 'कुटी] तम्बू,
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पट्टइल-पडंसुआ
वस्त्र-गृह । करिपुं [करिन्] प्रधान हस्ती । कार पुं. तन्तुवाय, जुलाहा । "वासिआ स्त्री [वासिता] एक शिरोभूषण । 'साला स्त्री [शाला ] उपाश्रय । 'सुत न [सूत्र] रेशमी सूता । 'हस्थि पुं ['हस्तिन् ] प्रधान हाथी ।
पट्टइल पुं [दे] पटेल, गाँव का मुखिया ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पट्टसुअ न [पट्टांशुक] रेशमी वस्त्र । सन का
वस्त्र |
पट्ट देखो पट्ट ।
पट्टण न [पत्तन ] नगर, शहर ।
पट्टदेवी स्त्री [पट्टदेवी] पटरानी । पट्ट देखो पट्ट ।
पट्टसूत्त न [पट्टसूत्र] रेशमी वस्त्र | पट्टाढा स्त्री [दे] पट्टा, घोड़े की पेटी, कसन । पट्टिय वि [पट्टिक] पट्टे पर दिया जाता गाँव वगैरह |
पट्टवग देखो पटूवय ।
पट्ठवय वि [ प्रस्थापक ] प्रवर्त्तक । प्रारम्भ करनेवाला |
पट्ठविइया) स्त्री [ प्रस्थापिता ] प्रायश्चित - पट्टविया विशेष, अनेक प्रायश्चित्तों में जिसका पहले प्रारम्भ किया जाय वह । देखो पट्ठाव |
न [ प्रस्थान ] प्रयाण ।
पट्टा
पट्टा
पट्टा देखो पट्ठव ।
पट्टि स्त्री. देखो पट्ठ = पृष्ठ | मंस न [° मांस]
पीठ का मांस ।
पट्टि
हो वह, प्रयात ।
[प्रस्थित] जिसमे प्रस्थान किया
अव [] विभूषित ।
पट्टिउकाम वि [ प्रस्थातुकाम ] प्रयाण का
इच्छुक । पट्टिसंग न [] ककुद,
पट्टिया स्त्री [पट्टिका ] छोटा तख्ता, पाटी । पट्टी देखो पट्टि ।
देखो पट्टी ।
पट्टिस पुं [दे. पट्टिश] एक प्रकार का हथियार । पट्टी स्त्री. धनुर्यष्टि । हाथ पर की पट्टी । पट्टु पुंन. देखो पट्ट्या । पट्ट्या स्त्री [दे] पादप्रहार | देखो पड्डुआ । पटुहिअन [ दे] कलुषित जल ।
पट्ठ वि [ पृष्ठ ] अग्रगामी । कुशल, निपुण । प्रधान, मुखिया ।
पट्ट वि[स्पृष्ट] जिसका स्पर्श किया गया हो वह । पटु न [ पृष्ठ ] पीठ, शरीर के पीछे का भाग । तल, ऊपर का भाग । 'चर वि. अनुयायी, अनुगामी ।
पटू वि [ पृष्ट] जिसको पूछा गया हो वह । न.
प्रश्न ।
५११
पठग देखो पाढग |
डिल्ला |
पट्टीस पुं [पृष्ठवंश ] घर के मूल दो खम्भों पर तिरछा रखा जाता बड़ा खम्भा । पठ देखो पढ ।
अ [ पत्] पड़ना, गिरना ।
पड पुं [पट ] वस्त्र | कार देखो गार । 'कुडी स्त्री [कुटी] तम्बू । 'गार पुं ['कार] तन्तुवाय । बुद्धिवि. प्रभूत सूत्रार्थों को ग्रहण करने समर्थ बुद्धिवाला | मंडव पुं [' मण्डप ] तम्बू, वस्त्र - मण्डप । मा वि [ 'वत् ] पटवाला, वस्त्रवाला | 'वास पुं. वस्त्र में डाला जाता कुंकुम चूर्ण आदि सुगन्धित पदार्थ | ● साय पुं [ 'शाटक] कपड़ा । धोती पहनने का लम्बा वस्त्र । घोती और दुपट्टा । पहुंचा स्त्री [दे. प्रत्यञ्चा ] धनुष की डोरी । | पडंसुअ देखो पडसुद |
पट्ठव सक [ प्र + स्थापय् ] प्रस्थान कराना, भेजना । प्रवृत्ति कराना । प्रारम्भ करना । प्रकर्ष से स्थापना करना । प्रायश्चित्त देना । | पडंसुआ स्त्री [ प्रतिश्रुत्] प्रतिध्वनि । प्रतिज्ञा ।
स्थिर करना । व्यवस्था करना ।
पडंसुआ स्त्री [] धनुष की डोरी ।
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५१२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पडंसुत्त-पडिअर पडंसुत्त देखो पडिसुद।
पडाली स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणी। घर के ऊपर पडच्चर पुं [दे] साला जैसा विदूषक आदि । की चटाई आदि की कच्ची छत । पडच्चर पुं [पटच्चर चोर ।
पडास देखो पलास। पडज्झमाण देखो पडह - प्र+दह का कवकृ. । पडि वि [पटिन्] वस्त्रवाला। पडण न [पतन] पात, गिना।
पडि अ [प्रति] इन अर्थों का सूचक अव्ययपडणीअ वि [प्रत्यनीक] प्रतिपक्षी।
प्रकर्ष । सम्पूर्णता । विरोध । विशेष, पडपुत्तिया स्त्री [पटपुत्रिका] छोटा वस्त्र, विशिष्टता । वीप्सा, व्याप्ति । वापस, पीछे । रुमाल ।
सम्मुखता। प्रतिदान, बदला | फिर से । पडम देखो पढम।
प्रतिनिधिपन । निषेध । प्रतिकूलता, विपरीपडल न [पटल] समूह । जैन साधुओं का एक | तता । स्वभाव । सामीप्य । आधिक्य, अतिउपकरण, भिक्षा के समय पत्र पर ढका जाता | शय । सादृश्य । लघुता, छोटाई। श्लाघा । वस्त्र-खण्ड ।
साम्प्रतिकता, वर्तमानता । निरर्थक भी इसका पडल न [दे] नीव्र, नरिश, मिट्टी का बना | प्रयोग होता हुआ एक प्रकार का खपड़ा जिससे मकान छाए | पडि देखो परि। जाते हैं।
पडिअ वि [दे] विघटित, वियुक्त । पडलग
पडिअ वि [पतित] गिरा हुआ। जिसने चलने पडलय , स्त्रीन [दे. पटलक] गठरी।
को प्रारम्भ किया हो वह। पडवा स्त्री [दे] पट-कुटी, पर-मण्डप, तम्बू । | पडिअंकिअ वि [प्रत्यङ्कित] विभूषित । पडह सक [प्र + दह] जलानः ।
उपलिप्त । पडह पुं [पटह] नगाड़ा, ढोल ।
पडिअंतअ पुंदे] नौकर । पडहत्थ वि [दे] पूर्ण भरा हुआ। पडिअग्ग सक [अनु +व्रज्] अनुसरण करना, पडहिय पुं [पाटहिक] ढोली।
पीछे जाना। पडहिया स्त्री [पटहिका] छोटा ढोल । पडिअग्ग सक [प्रति + जाग] सम्हालना । पडाअ देखो पलाय = परा+ अय् ।
भक्ति करना । शुश्रूषा करना। पडाइअ वि [पलायित] भागा हुआ। पडिअग्गिअ वि [दे] परिभुक्त । जिसको बधाई पडाइया स्त्री [पताकिका] छोटी पताका, | दो गयो हो वह । पालित, रक्षित । अन्तर-पताका।
| पडिअज्झअ पुं [दे] उपाध्याय, विद्या-दाता पडाग पुं [पटाक, पताक] ध्वजा।
गुरु । पडागा । स्त्री [पताका] ध्वज। "इपडाग पडिअलिअ वि [दे] घिसा हुआ। पडाया ) [°ातिपताक] मत्स्य की एक पडिअत्त देखो परि + वत्त = परि + वृत् । जाति । पताका के ऊपर की पताका : हरण पडिअत्तण न परिवर्तन] फेरफार, हेरफेर । न. विजय-प्राप्ति ।
पडिअमित्त पुं [प्रत्यमित्र] मित्र-शत्रु, मित्र पडागार न. नौका में लगनेवाला वस्त्र । होकर पीछे से जो शत्रु हुआ हो वह । पडायाण देखो पल्लाण।
| पडिअम्मिय वि [प्रतिकर्मित] विभूषित । पडायाणिय वि [पर्याणित] जिस पर पर्याण पडिअर सक [प्रति + चर] बीमार की सेवा बांधा गया हो वह ।
करना । आदर करना । निरीक्षण करना।
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पडिअर -पडिय
परिहार करना । डिअर सक [ प्रति + कृ] बदला चुकाना । इलाज करना | स्वीकार करना । पडिअर पुं [दे] चुल्हे का मूल भाग । पडिअर पुं [परिकर ] परिवार । पडिअरग वि [ प्रतिचारक ] सेवा - शुश्रूषा करनेवाला |
पडिअरणा स्त्री [ प्रतिचरणा] बीमार की सेवा शुश्रूषा । भक्ति, आदर, सत्कार । आलोचना, निरीक्षण | प्रतिक्रमण, पाप-कर्म से निवृत्ति । सत्-कार्य में प्रवृत्ति ।
पडिअलि वि [दे] त्वरित, वेग-युक्त । पडिआइय सक [ प्रत्या + पा] फिर से पान
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आना ।
पsिs स्त्री [ पतिति] पतन, पात ।
इंद पुं [प्रतीन्द्र ] देव राज इन्द्र । इन्द्र के तुल्य वैभववाला देव । वानर-वंश के एक राजा
का नाम ।
पडिइंधण न [ प्रतीन्धन ] इन्धनास्त्र का
प्रतिपक्षी अस्त्र । पक्कि देखो पक्कि ६५
पडिउंचण न [ दे] अपकार का बदला । पडिउंबण न [ परिचुम्बन] संगम, संयोग | पडिउच्चार सक [ प्रत्युत् + चारय् ] उच्चारण करना, बोलना । पडिउज्जम अक [ प्रत्युद् + यम् ] सम्पूर्ण प्रयत्न
५१३
करना ।
डिउ
वि [ प्रत्युत्थित] जो फिर
हुआ हो वह । पडिउष्ण देखो परिपुण्ण । पडिउत्तर न [ प्रत्युत्तर ] जवाब | पडिउत्तरण न [ प्रत्युत्तरण] पार उतरना । पडिउत्ति स्त्री [दे] खबर, समाचार । पडिउत्थ वि [ पर्युषित] सम्पूर्ण रूप से अवस्थित |
करना ।
पडिआइय सक [प्रत्या + दा] फिर से ग्रहण पडिउद्ध वि [ प्रतिबुद्ध] जागृत | प्रकाश-युक्त | पडिउवयार पुं [ प्रत्युपकार] उपकार का बदला, प्रतिफल |
करना ।
पडिआगय वि [ प्रत्यागत ] वापस आया हुआ, लौटा हुआ । न प्रत्यागमन, वापस
पडिउस्सस अक [ प्रत्युत् + श्वस् ] पुनर्जीवित होना ।
आना ।
पडिआयण न [ प्रत्यापन ] फिर से पान | पडिआयण न [ प्रत्यादान ] फिर से ग्रहण | पडिआर पुं [प्रतिकार] चिकित्सा ।
पडिऊल देखो पडिकूल । पडिएत्तए देखो पsिs का हेकृ. 1 पडिएलिअ वि [] कृतार्थ |
बदला,
पडिओसह न [ प्रत्यौषध ] एक औषध का प्रतिपक्षी औषध |
शोध पूर्वाचरित कर्म का अनुभव । पडिआर पुं [ प्रत्याकार ] तलवार की म्यान । पडिआर पुं [ प्रतिचार ] सेवा-शुश्रूषा । पडिआर वि [ प्रतिचारक ] सेवा-शुश्रूषा करनेवाला |
पsिs क [ प्रति + इ] पीछे लौटना, वापस
पडसुआ देखो पडंसुआ = प्रतिश्रुत् । पडद वि [ प्रतिश्रुत] स्वीकृत | पडिकं वि [ प्रतिकण्टक ] प्रतिस्पर्धी । पडित देखो पडिक्कंत ।
खड़ा
sa [ प्रतिकर्तृ] इलाज करनेवाला । पडिकप सक [ प्रति + कृप्] सजावट करना । पडिकम देखो पडिक्कम । पडिकमय न देखो पडिक्कमय ।
पक्किम न [ प्रतिकर्मन्, परिकर्मन् ] देखो परिक्रम्म |
पकिय वि [ प्रतिकृत] जिसका बदला चुकाया गया हो वह । न प्रतीकार, बदला ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पडिकाउं-पडिगमण पडिकाउं ) पडिअर - प्रति + कृ के मिथ्या-दुष्कृत-प्रदान किए हुए पाप का पडिकाऊण | कृदन्त ।
पश्चात्ताप । जैन साधु और गृहस्थों का सुबह पडिकामणा देखो पडिक्कामणा।
और शाम को करने का एक आवश्यक पडिकाय पुं [प्रतिकाय] प्रतिबिम्ब, प्रतिमा । | अनुष्ठान । पडिकिदि स्त्री [प्रतिकृति] इलाज । बदला । पडिक्कमय वि [प्रतिक्रामक] प्रतिक्रमण प्रतिबिम्ब, मूत्ति ।
करनेवाला। पडिकिय न [प्रतिकृत] ऊपर देखो।
पडिक्कमिउं देखो पडिक्कम । °काम वि. पडिकिरिया स्त्री [प्रतिक्रिया] प्रतीकार, प्रतिक्रमण करने की इच्छावाला । बदला।
पडिक्कय पुं [दे] प्रतिक्रिया, प्रतीकार । पडिकुट्ठ । वि [प्रतिक्रुष्ट] निषिद्ध ।
पडिक्कामणा स्त्री [प्रतिक्रमणा] देखो पडिकुट्ठिल्लग प्रतिकूल ।
पडिक्कमण।
पडिक्कूल देखो पडिकूल। पडिकुटेल्लग देखो पडिकुटिल्लग।
| पडिक्ख सक [प्रति + ईक्ष्] प्रतीक्षा करना । पडिकूड देखो पडिकूल = प्रतिकूल ।
अक. स्थिति करना। पडिकूल सक [ प्रतिकूलय ] प्रतिकूल आच- | पडिक्खअ वि [प्रतीक्षक] बाट जोहनेवाला। रण करना।
पडिक्खंभ पुं [प्रतिस्तम्भ] आगल । पडिकूल वि [प्रतिकूल] विपरीत । अनभिमत । | पडिक्खण न [प्रतीक्षण] प्रतीक्षा । विपक्ष ।
पडिक्खर वि [दे] क्रूर । प्रतिकूल । पडिकवग प्रतिकपक] कप के समीप का | पडिक्खल अक [प्रति + स्खल्] हटना । छोटा कूप ।
गिरना । रुकना । सक. रोकना। पडिकेसव पुं[प्रतिकेशव वासुदेव का प्रति- पडिक्खलण न [प्रतिस्खलन] पतन । पक्षी राजा, प्रतिवासुदेव ।
अवरोध । पडिकोस सक [प्रति + क्रुश् ] आक्रोश | पडिक्खलिअ वि [प्रतिस्खलित] परावृत्त,
करना, कोसना, शाप या गाली देना। पीछे हटा हुआ । रुका हुआ । देखो पडिपडिकोह पुं [प्रतिक्रोध] गुस्सा ।
खलिअ । पडिक्क न [प्रत्येक] हर एक ।
पडिक्खाविअ वि [प्रतीक्षित] स्थापित । पडिक्कंत वि [प्रतिक्रान्त] पीछे हटा हुआ।
पडिक्खित्त वि [परिक्षिप्त] विस्तारित । निवृत्त ।
पडिखंध न [दे] जल-वहन, जल भरने का पडिक्कम अक [प्रति + क्रम्] निवृत्त होना, _दृति आदि पात्र । पीछे हटना।
पडिखंधी स्त्री [दे] ऊपर देखो। पडिक्कम पुं [प्रतिक्रम] देखो पडिक्कमण। | पडिखद्ध वि [दे] हत, मारा हुआ। पडिक्कमण न [प्रतिक्रमण] निवृत्ति,
पडिखल देखो पडिक्खल। व्यावर्त्तन । प्रमाद-वश शुभ योग से गिर कर पडिखिज्ज अक [परि + खिद्] खिन्न होना, अशुभ योग को प्राप्त करने के बाद फिर से | क्लान्त होना। शुभ योग को प्राप्त करना । अशुभ व्यापार से पडिगमण न [प्रतिगमन] व्यावर्तन, पीछे निवृत्त होकर उत्तरोत्तर शुद्ध योग में वर्तन ।। लौटना ।
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पडिगय-पडिच्छिा संक्षिप्त प्रोकृत-हिन्दी कोष पडिगय पुं[प्रतिगज] प्रतिपक्षी हाथी। पडिचरणा देखो पडिअरणा। पडिगय पुं [प्रतिगत] पीछे लौटा हुआ। पडिचार पुं [प्रतिचार] कला-विशेष । ग्रह पडिगह देखो पडिग्गह।
| आदि की गति का परिज्ञान । रोगी की सेवापडिगाह सक [प्रति + ग्रह ] ग्रहण करना, शुश्रूषा का ज्ञान ।। स्वीकार करना।
पडिचारय पुंस्त्री [प्रतिचारक] नौकर । पडिगाहग वि [प्रतिग्राहक] ग्रहण करने- पडिचोइय वि [प्रतिचोदित] प्रेरित । प्रतिवाला।
भणित, जिसको उत्तर दिया गया हो वह । पडिग्गह पुं [पतद्ग्रह, प्रतिग्रह] पात्र, पडिचोएत्तु वि [प्रतिचोदयित] प्रेरक । भाजन । वह प्रकृति जिसमें दूसरी प्रकृति का प्रतिचोय सक [प्रति + चोदय] प्रेरणा कर्म-दल परिणत होता है। धारि वि करना । [ धारिन्] पात्र रखनेवाला।
पडिचोयणा स्त्री [प्रतिचोदना] प्रेरणा । पडिग्गहिअ वि [प्रतिग्रहिन्, पतद्ग्रहिन्] निर्भर्त्सना, निष्ठुरता से प्रेरणा । पात्रवाला।
पडिच्चारग देखो पडिचारय । पडिग्गहिद (शौ) वि [प्रतिगृहित्, परिगृहीत] पडिच्छ देखो पडिक्ख । स्वीकृत ।
पडिच्छ सक [प्रति + इष्] ग्रहण करना । पडिग्गाह देखो पडिगाह।
| पडिच्छंद पुंन [प्रतिच्छन्द] मूत्ति, प्रतिबिम्ब । पडिग्गाह सक [प्रति + ग्राहय्] ग्रहण तुल्य, सम
तुल्य, समान । कय वि [ीकृत] समान कराना।
किया हुआ। पडिग्गाहय वि [प्रतिग्राहक] वापस लेने
पडिच्छंद पुं [दे] मुख ।
पडिच्छग वि [प्रत्येषक] ग्रहण करनेवाला। वाला। पडिग्धाय पुं [प्रतिघात] निरोध, अटकाव ।
पडिच्छण न [प्रतीक्षण] प्रतीक्षा, बाट । विनाश ।
पडिच्छण न [प्रत्येषण] आदान । उत्सारण, पडिघाय पुं [प्रतिघात] नाश, विनाश ।
विनिवारण । निराकरण, निरसन ।
पडिच्छण्ण वि [प्रतिच्छन्न] आच्छादित, ढका पडिघायग वि [प्रतिघातक] प्रतिघात करने- हुआ। वाला ।
पडिच्छय पुं [दे] समय, काल । पडिघोलिर वि [प्रतिपूणित] डोलनेवाला, | पडिच्छय देखो पडिच्छग। हिलनेवाला।
पडिच्छयण न [प्रतिच्छदन] देखो पडिपडिचंत पुं [प्रतिचन्द्र ] द्वितीय चन्द्र जो च्छायण । उत्पात आदि का सूचक है।
पडिच्छा स्त्री [प्रतीच्छा] ग्रहण, अंगीकार । पडिचक्क न [प्रतिचक्र] अनुरूप चक्र-समु- पडिच्छायण न [प्रतिच्छादन] आच्छादनदाय । देखो पडियक्क-प्रतिचक्र ।
वस्त्र । आच्छादन, आवरण । पडिचर देखो पडिअर = प्रति = चर्। पडिच्छाया स्त्री [प्रतिच्छाया] परछाई । पडिचर सक [प्रति + चर् ] परिभ्रमण | पडिच्छिअ वि [प्रतीष्ट, प्रतीप्सित] गृहीत, करना।
स्वीकृत । विशेष रूप से वाञ्छित । पडिचरग पं [प्रतिचरक जासूस । । पडिच्छिआ स्त्री [दे] प्रतिहारी । चिरकाल से
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ब्यायी हुई भैंस | पडिच्छिर वि [ प्रतीक्षितृ] बाट देखनेवाला । पडिच्छिय वि [प्रातीच्छिक ] अपने दीक्षा गुरु को आज्ञा लेकर दूसरे गच्छ के आचार्य के पास उनकी अनुमति से शास्त्र पढ़नेवाला मुनि
|
पडिच्छिर व [दे] सदृश ।
पडिछंद देखो पडिच्छंद ।
पछि स्त्री [प्रतीक्षा] प्रतीक्षण, बाट । पडछाया देखो पडिच्छाया ।
डिजंप सक [ प्रति + जल्प्] उत्तर देना । पडिजग्ग देखो पडिजागर = प्रति + जागृ । पडिजग्गय वि [ प्रतिजागरक] सेवा-शुश्रूषा करनेवाला ।
पडिग्गिय वि [ प्रतिजागृत ] जिसकी सेवाशुश्रूषा की गई हो वह । पडिजागर सक [ प्रति + जागृ] सेवा-शुश्रूषा करना, निर्वाह करना, निभाना । गवेषणा करना । चिकित्सा करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पडिजागर पुं [ प्रतिजागर ] सेवा-शुश्रूषा | चिकित्सा | पडिजायणा स्त्री [प्रतियातना] प्रतिबिम्ब,
प्रतिमा ।
डिवs स्त्री [ प्रतियुवति ] स्व-समान अन्य युवति |
पडिजोग पुं [प्रतियोग] कार्मण आदि योग का
प्रतिघातक योग, चूर्ण- विशेष ।
पट्ठि वि [पटिष्ठ ] अत्यन्त निपुण | पडिवि वि [ परिस्थापित ] संस्थापित । पडिवि वि [ प्रतिष्ठापित ] जिसकी प्रतिष्ठा की गई हो वह ।
डिट्ठा देखों पट्ठा ।
पडिट्ठाव सक [ प्रति + स्थापय् ] प्रतिष्ठित
करना ।
पडिट्ठावअ देखो पइट्ठावय । पट्ठिाविद (शौ) देखो पट्ठाविय ।
पडिच्छिर-पडिण्णाद
पडिट्ठि देखो पइट्ठिय | पडिठाण न [ प्रतिस्थान ] हर जगह । पडिण देखो पडीण |
पडिणव वि [ प्रतिनव] नया, नूतन । पडिणिअंसण न [ दे] रात में पहनने का वस्त्र | पडिणिअत्त अक [प्रतिनि + वृत्] पीछे लौटना । पडिणिअत्त वि [ प्रतिनिवृत्त] पीछे लौटा पडिणिउत्त
हुआ। पडिणिकास व [ प्रतिनिकाश] तुल्य । पडिणिक्खम अक [ प्रतिनिर् + क्रम् ] बाहर निकलना । पडिणिग्गच्छ अक [ प्रतिनिर् + गम् ] बाहर निकलना । पडिणिज्जाय सक [ प्रतिनिर् + यापय् ] अर्पण
करना ।
पडिणिभ वि [ प्रतिनिभ] सदृश, बराबर | वादी की प्रतिज्ञा का खण्डन करने के लिये प्रतिवादी की तरफ से प्रयुक्त समान हेतुयुक्ति पडिणिवत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + वृत् ।
पडिणिवत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनिवृत्त । पडिणिवि वि [ प्रतिनिविष्ट] द्विष्ट, द्वेष-युक्त पडिणिवृत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि +
वृत् ।
पडिणिवृत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनिवृत्त । पडिणिव्वत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि +
वृत् ।
पडिणिसंत वि [ प्रतिनिश्रान्त ] विश्रान्त | निलीन ।
पडिणीय न [ प्रत्यनीक] प्रतिपक्ष की सेना | वि. प्रतिकूल, विपक्षी, विपरीत करनेवाला |
आचरण
पडिण्णत्त वि [ प्रतिज्ञप्त ] उक्त, कथित । पडिण्णा देखो पइण्णा । पडिण्णाद देखो पइण्णाद ।
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पडितंत-पडिपूयय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५१७ पडितंतविप्रतितन्त्र] स्व-शास्त्र में प्रसिद्ध अर्थ पडिन्नव सक [ प्रति + ज्ञापय् ] प्रतिज्ञा पडितणु स्त्री [प्रतितनु] प्रतिमा, प्रतिबिम्ब । कराना । नियम दिलाना। पडितप्प सक [प्रतितर्पय] भोजनादि से तृप्त पडिपंथ[प्रतिपथ] विपरीत मार्ग । प्रतिकूलता। करना।
पडिपंथि वि [प्रतिपन्थिन्] प्रतिकूल, विरोधी। पडितप्प अक [प्रति + तप्] चिन्ता करना ।
पडिपक्ख देखो पडिवक्ख । खबर रखना।
पडिपडिय वि[प्रतिपतित]फिर से गिरा हुआ। पडितुट्ठ देखो परितुट्ठ।
पडिपत्ति , देखो पडि वत्ति । पडितुल्ल वि [प्रतितुल्य] समान ।
पडिपद्दि । पडित्त देखो पलित्त = प्रदीप्त ।
पडिपह पुं [प्रतिपथ] उन्मार्ग, विपरीत पडित्ताण देखो परित्ताण ।
रास्ता । न. अभिमुख, सम्मुख । पडित्थिर वि [दे] सदृश ।
पडिपाअ सक [ प्रति + पादय ] प्रतिपादन पडित्थिर वि [परिस्थिर] स्थिर ।
करना, कथन करना। पडिथद्ध वि [प्रतिस्तब्ध] गर्वित । पडिपाय पुं [प्रतिपाद] मुख्य पाद को सहापडिदंड पुं [प्रतिदण्ड] मुख्य दण्ड के समान
यता पहुँचानेवाला पाद। दूसरा दण्ड ।
पडिपाहुड न [प्रतिप्राभृत] बदले की भेंट । पडिदंस सक [ प्रति + दर्शय् ] दिखलाना।
पडिपिडिअ वि [दे] बढ़ा हुआ। पडिदा सक [प्रति+दा] पीछे देना, दान का
पडिपिल्ल सक [प्रति + क्षिप,प्रतिप्र + ईरय] बदला देना। पडिदासिया स्त्री [प्रतिदासिका] दासी।।
प्रेरणा करना। पडिदिसा । स्त्री [प्रतिदिश् ] विदिशा
पडिपिल्लण न [प्रतिप्रेरण] प्रेरणा । ढक्कन, पडिदिसि , विदिक् ।
पिधान । वि. प्रेरणा करनेवाला । पडिदुगंछि वि [प्रतिजुगुप्सिन्] निन्दा करने
पडिपिहा देखो पडिपेहा। वाला । परिहार करनेवाला ।
पडिपीलण न [प्रतिपीडन] विशेष पीडन, पडिदुवार न [प्रतिद्वार] हर एक द्वार । छोटा अधिक दबाव । द्वार।
पडिपुच्छ सक [प्रति +प्रच्छ्] पृच्छा करना । पडिधि देखो परिहि।
फिर से पूछना । प्रश्न का जवाब देना । पडिनमुक्कार पुं [प्रतिनमस्कार] नमस्कार | पडिपुच्छण न [प्रतिप्रच्छन] नीचे देखो। के बदले में नमस्कार-प्रणाम ।
पडिपुच्छिअ वि [प्रतिपृष्ट] जिससे प्रश्न किया पडिनिक्खंत वि [प्रतिनिष्क्रान्त] बाहर | गया हो वह । निकला हुआ।
| पडिपुज्जिय वि [प्रतिपूजित] पूजित, अचित । पडिनियत्ति स्त्री [प्रतिनिवृत्ति] वापस लौटना, पडिपुत्त पुं. [प्रतिपुत्र] पोता। देखो प्रत्यावर्तन ।
| पडिपोत्तय । पडिनिवेस पुं [प्रतिनिवेश] आग्रह, कदाग्रह। पडिपुन्न वि [प्रतिपूर्ण] परिपूर्ण, सम्पूर्ण । गाढ़ अनुशय, पश्चात्ताप ।
पडिपूइय देखो पडिपुज्जिय। पडिनिसिद्ध वि [प्रतिनिषिद्ध] निवारित, पडिपूयग । वि [प्रतिपूजक] पूजा करनेहटाया हुआ।
पडिपूयय । वाला। पडिन्नव सक [प्रति + ज्ञपय] कहना । | पडिपूयय वि [प्रतिपूजक] प्रत्युपकार-कर्ता ।
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५१८
परिपूरिय वि [ प्रतिपूरित ] पूर्ण किया हुआ । पडिपेल्लण देखो पडिपिल्लण । पडिपेल्लण न [परिप्रेरण] देखो पडिपिल्लण | पडिपेल्लिय वि [ प्रतिप्रेरित] जिसको प्रेरणा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
को गई हो वह ।
पsिहा स [ प्रतिपि + धा] ढकना, आच्छा पडिबोहग वि [ प्रतिबोधक ] बोध देनेवाला ।
जगानेवाला ।
दन करना ।
पडिपोत्तय पुं [प्रतिपुत्रक ] नप्ता, नाती । देखो पडिभंग पुं [ प्रतिभंग] भंग, विनाश । पडित । पडिभंज अक [ प्रति + भञ्ज्] भाँगना, टूटना । भिंड न [ प्रतिभाण्ड ] एक वस्तु को बेचकर उसके बदले खरीदी जाती चीज । डिस सक [प्रति + भ्रंशय् ] भ्रष्ट करना । च्युत करना ।
पडिभग्ग वि [ प्रतिभग्न] पलायित ।
पडिप्फलणा स्त्री [ प्रतिफलना ] स्खलना । संक्रमण । पडिप्फलिअ वि [ प्रतिफलित ] प्रति- पडिभड पुं [ प्रतिभट ] प्रतिपक्षी योद्धा । पडिफलिअ बिम्बित, संक्रान्त | डिभण सक [ प्रति + भण्] उत्तर देना । पडिभणिय वि [ प्रतिभणित] निराकृत । न. प्रत्युत्तर, निराकरण ।
पडिबंध सक [ प्रति + बन्ध् ] रोकना, अटकाना । वेष्टन करना । सेकना ।
पडिभम सक [ प्रति, परि + भ्रम् ] घूमना, पर्यटन करना ।
पडिभय न [ प्रतिभय ] भय, डर ।
पडिबंधअ वि [ प्रतिबन्धक ] रोकने- पडिभा अक [ प्रतिभा ] मालूम होना । पडिभाग पुं [ प्रतिभाग ] अंश, भाग । प्रतिबिम्ब ।
वाला ।
पडिबंधग पडिबद्ध वि [ प्रतिबद्ध] संरुद्ध । उपजनित, उत्पादित | संसक्त, संबद्ध, संलग्न, आसक्त । सामने बँधा हुआ । व्यवस्थित । वेष्टित । समीप में स्थित । नियत, व्याप्त ।
पडिभास अक [ प्रति + भास्] मालूम होना । पडिभास सक [ प्रति + भाष्] उत्तर देना । बोलना, कहना |
बाहक [ प्रति + बाध्] रोकना । पडिबाहिर न [ प्रतिबाह्य ] अनधिकारी, अयोग्य |
पडिभिण्ण वि [ प्रतिभिन्न] सम्बद्ध, संलग्न | पडिभिन्न वि [ प्रतिभिन्न] भेद-प्राप्त
अंग पुं [ प्रतिभुजङ्ग ] प्रतिपक्षी भुजंगवेश्या लम्पट |
डिबिंब न [ प्रतिबिम्ब] परछाँही । प्रतिमा, प्रतिमूर्ति ।
पडिभू पुं [ प्रतिभू] जामिनदार | पडिअ पुं [दे. प्रतिभेद ] उपालम्भ, निन्दा | पडिभोइ वि [ प्रतिभोगिन् ] परिभोग करने
वाला ।
पडिम वि [प्रतिम] समान, तुल्य ।
पsिह देखो पsिह ।
डिद्धिवि [ प्रतिस्पर्धिन् ] स्पर्धा करने
वाला ।
परिपूरिय-पडिम
पडिब्रूहणया स्त्री [प्रतिबृंहणा] उपचय, पुष्टि । पडिबोध देखो पडिबोह = प्रतिबोध | पडिबोह सक [ प्रति + बोधय् ] जगाना | बोध देना, समझाना, ज्ञान प्राप्त कराना ।
पडिबंध पुं [ प्रतिबन्ध ] व्याप्ति, नियम | रुकावट | विघ्न, अन्तराय । बहुमान । स्नेह, प्रीति । आसक्ति । वेष्टन ।
पडिबुज्झ अक [ प्रति बुध् ] बोध पाना । जागृत होना ।
परिबुद्ध वि[ प्रतिबुद्ध] बोध प्राप्त | जागृत | न. प्रतिबोध । पुं. एक राजा का नाम ।
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डिम- पडिलिहि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
|
डिम देखो पडिमा । 'ट्ठाइ वि [स्थायिन् ] कायोत्सर्ग में रहनेवाला । नियम- विशेष में स्थित |
पडिमंत सक [ प्रति + मन्त्रय् ] उत्तर देना । पडिमल्ल पुं [प्रतिमल्ल प्रतिपक्षी मल्ल | पडिमा स्त्री [ प्रतिमा ] मूर्ति, प्रतिबिम्ब । कायोत्सर्ग | जैन- शास्त्रोक्त नियम- विशेष | गिन [गृह] मन्दिर | देखो पडिम° । परिमाण न [ प्रतिमान] जिससे सुवर्ण आदि का तौल किया जाता है वह रत्ती, मासा आदि परिमाण ।
डिमाण न [ प्रतिमान] प्रतिमा, प्रतिबिम्ब । पडिमि सक [ प्रति + मा] तौल करना, पडिमि } माप करना । गिनती करना । पडिमुंच सक [ प्रति + मुच्] छोड़ना । sis स्त्री [प्रतिमुण्डना ] निषेध, निवारण ।
मुक्त व [ प्रतिमुक्त ] छोड़ा हुआ । पडिमोअणा स्त्री [प्रतिमोचना ] छुटकारा | पडिमोक्खण न [ प्रतिमोचन ] छुटकारा | डिमोयग व प्रतिमोचक ] छुटकाराकरनेवाला । पडिमोयण देखो पडिमोक्खण ।
पडियक्क देखो पक्कि ।
पडियक्क न [ प्रतिचक्र] युद्धकला - विशेष । पडियग्गण न [ प्रतिजागरण] सम्हाल, खबर । पडियच्च देखो पत्तिअ = प्रति + इ । पडियरण न [ प्रतिकरण] प्रतीकार, इलाज । पडियरिअ वि [ प्रतिचरित ] सेवित, सेवा । किया हुआ ।
पडिया स्त्री [प्रतिज्ञा] उद्देश्य | अभिप्राय | पडिया स्त्री [पटिका ] वस्त्र - विशेष | पडियाइक्ख सक [ प्रत्या + ख्या ] त्याग करना । पडियानंद पुं [ प्रत्यानन्द ] बहुत आनन्द | पडियाय न [ दे. पर्याणक] पर्याण के नीचे दिया जाता चर्म आदि का एक उपकरण । पडियाय न [ दे. पटतानक, पर्याणक] पर्याण के नीचे रखा जाता वस्त्र आदि का एक घुड़सवारी का उपकरण ।
५१९
पडियारणा स्त्री [ प्रतिवारणा ] निषेध । पडियासूर अक [ दे] चिड़ना, गुस्सा होना । परिअ देखो पडिरव । पडिरंजिअ वि [दे] भग्न, टूटा हुआ । परिक्खिय व [ प्रतिरक्षित ] जिसकी रक्षा की गयी हो वह ।
पडिरव पुं [ प्रतिरव] प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द । पडिराय पुं [ प्रतिराग] रक्तपन । पडिरिग्गअ [ दे] देखो पडिरंजिअ । पडिरु अक [ प्रति + रु] प्रतिध्वनि करना । पडिरुध सक [ प्रति + रुध्] रोकना । पडिरंभ व्याप्त करना । पडरुद्ध वि [प्रतिरुद्ध ] अटकाया हुआ !
पडिरूअ ) वि [ प्रतिरूप ] मनोहर । प्रशस्त पsिa रूपवाला, श्रेष्ठ आकृतिवाला ।
नूतन रूपवाला | योग्य । सदृश, समान । समान रूपवाला । न. प्रतिबिम्ब, प्रतिमूर्ति । समान आकृति । पुं. भूतनिकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र | विनय का एक भेद । परूिवंसि वि [ प्रतिरूपिन् ] रमणीय | पडिरूवग पुंन [ प्रतिरूपक] प्रतिबिम्ब, प्रतिमा ।
परूवणया स्त्री [प्रतिरूपणता ] सादृश्य | समान वेष धारण 1
पडिरूवा स्त्री [प्रतिरूपा ] एक कुलकर पुरुष की पत्नी का नाम 1 पडिरोव ं [ प्रतिरोप ] पुनरारोपण | पडिरोह पुं [ प्रतिरोध ] रुकावट, रोकना । पडिलंभ सक [ प्रति + लभ् ] प्राप्त करना, लाभ होना ।
पडिलग्ग वि [ प्रतिलग्न ] लगा हुआ, सम्बद्ध पडिलग्गल न [ दे] वल्मीक । पडिलभ क [ प्रति + लभ् ] प्राप्त करना । पडिलाभ [प्रति + लाभ लम्भय् ] पडिलाह साधु आदि को दान देना । पडिलिहिअ वि [ प्रतिलिखित ] लिखा हुआ ।
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५२०
पडिलीण वि[ प्रतिलीन ] अत्यन्त लीन । पडिलेह तक [ प्रति + लेखय् ] निरीक्षण करना, देखना | विचार करना । निरूपण करना । अवलोकन करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पडिलेहरा देखो पडिलेहय ।
पडिलेही स्त्री [प्रतिलेखनी] साधु का एक
उपकरण ।
वाला ।
पडिवज्जावण न[प्रतिपादन ] स्वीकार कराना । पडिवट्टअ न [ प्रतिपट्टक] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा ।
विड्ढा अवि [ प्रतिवर्धापक] बधाई देने पर उसे स्वीकार कर धन्यवाद देनेवाला । बधाई के बदले में बधाई देनेवाला ।
ज्ञान ।
प्राप्ति ।
भक्ति,
पडिले वि [ प्रतिलेखक ] निरीक्षक, देखने- पडिवण्ण वि [ प्रतिपन्न ] प्राप्त । अंगीकृत | आश्रित । जिसने स्वीकार किया हो वह पडिवत्त पुं [ परिवर्त्त ] परिवर्तन | पडिवत्तण देखो पडिअत्तण । पडिवत्ति स्त्री [ प्रतिपत्ति ] परिच्छित्ति । प्रकृति, प्रकार | प्रवृत्ति, खबर । आदर, गौरव | स्वीकार | मतान्तर । अभिग्रह - विशेष | सेवा | परिपाटी क्रम । श्रुत विशेष, गति, इन्द्रिय आदि द्वारों में से किसी एक द्वार के जरिये समस्त संसार के जीवों को जानना । समास पुं. श्रुत ज्ञान - विशेष - गति आदि दो चार द्वारों के जरिये जीवों का ज्ञान । वित्तुं पडिवज्जका कृ. 1 soft देखो पडिवत्ति । पविद्धाव देखो पडिवड्ढावअ । पडिवन्निय (अप) देखो पडिवण्ण । पडिवय अक [ प्रति + पत्] ऊँचे
गिरना ।
वाला ।
पडिलोम वि [ प्रतिलोम ] प्रतिकूल । विपरीत । न. पश्चादानुपूर्वी, उलटा क्रम । उदाहरण का एक दोष । अपवाद । पडिलोमइत्ता अ [ प्रतिलोमयित्वा ] वादविशेष, वादसभा के सदस्य या प्रतिवादी को प्रतिकूल बनाकर किया जाता वादशास्त्रार्थ ।
पडिल्ली स्त्री [] वृति, बाड़ । यवनिका । पडिव देखो पलीव = प्र = दीपय् । पडिवइर न [ प्रतिवैर ] वैर का बदला । पfsos देखो पडिवया ।
पडिवचण न [ प्रतिवञ्चन] बदला । पडिवंथ देखो पडिपंथ ।
पडिवंध देखो पडिबंध |
पडिवंस पुं [ प्रतिवंश ] छोटा बाँस । पक्कि स [ प्रति + वच्] प्रत्युत्तर देना ।
पडिली - पडिवह
पडिवक्ख पुं [ प्रतिपक्ष ] दुश्मन; विरोधी |
छन्द - विशेष । विपर्यय, वैपरीत्य ।
पडिवय सक[ प्रति + वच् ] उत्तर देना ।
पडिवक्खिय वि [ प्रतिपक्षिक ] विरुद्ध पक्ष- पडिवयण न [ प्रतिवचन ] प्रत्युत्तर, जवाब । वाला, विरोधी ।
आदेश, आज्ञा । पं. हरिवंश के एक
पडिवच्च सक [ प्रति + व्रज् ] वापस जाना । पडिवच्छ देखो पडिवक्ख ।
पडिवज्ज सक [प्रति + पद्] स्वीकार करना । प्रतिपादन करना । पडिवज्जण न [ प्रतिपादन] स्वीकार
राजा का नाम ।
पडिवया स्त्री [ प्रतिपत्] पक्ष की पहली तिथि । पडिवविय वि [ प्रत्युप्त ] फिर से बोया हुआ । पडिवस अक [ प्रति + वस्] निवास करना । पडिवसभ पुं [ प्रतिवृषभ ] मूल स्थान से दो कोस की दूरी पर स्थित गाँव ।
करवाना ।
पडिवज्जय वि [प्रतिपादक ] स्वीकार करने - पडिवह सक [ प्रति + वह ] वहन करना,
जाकर
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पडिवह-पडिसंधया संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५२१ ढोना।
पडिविद्धंसण न [प्रतिविध्वंसन] विनाश । पडिवह देखो पडिपह।
पडिविप्पिय न [प्रतिविप्रिय] अपकार का पडिवह पुं [प्रतिवध, परिवध] वध, हत्या । | बदला, बदले के रूप में किया जाता अनिष्ट । पडिवा देखो पडिवया।
पडिविरइ स्त्री [प्रतिविरति] निवृत्ति ।। पडिवाइ वि [प्रतिवादिन्] प्रतिवाद करने- पडिविरय वि [प्रतिविरत]निवृत्त । वाला, वादी का विपक्षी ।
पडिविसज्ज सक [प्रतिवि + सर्जय] विसर्जन पडिवाइ वि [प्रतिपादिन्] प्रतिपादन करने
करना, विदा करना। वाला। पडिवाइ वि [प्रतिपातिन्] विनश्वर । फूंक से
पडिविहाण न [प्रतिविधान] प्रतीकार । दीपक के प्रकाश के समान एकाएक नष्ट होने
पडिवुज्झमाण पडिवह = प्रति + वह, का वाला अवधिज्ञान ।
कवकृ.। पडिवाइय देखो पडिवाइ - प्रतिपातिन् ।
पडिवुत्त वि [प्रत्युक्त] न. प्रत्युत्तर । पडिवाडि देखो परिवाडि।
पडिवुद (शौ) वि [परिवृत्त परिकरित । पडिवाद (शौ) सक [प्रति + पादय] प्रति
पडिवूद पुं [प्रतिव्यूह] व्यूह का प्रतिपक्षी व्यूह, पादन करना, निरूपण करना ।
सैन्य-रचना-विशेष । पडिवादय वि [प्रतिपादक प्रतिपादन करने- पाडवूहण वि [ प्रतिबृंहण ] बढ़नेवाला । न. वाला।
वृद्धि, पुष्टि । पडिवाय सक [प्रति + वाचय] लिखने के पडिवेस पुं [दे] विक्षेप, फेंकना । बाद उसे पढ़ लेना । फिर से पढ़ लेना। पडिवेसिअ वि [प्रतिवेश्मिक] पड़ोसी । पडिवाय सक [प्रति + पादय] प्रतिपादन पडिवोह देखो पडिबोह । करना, निरूपण करना।
पडिसंका स्त्री [प्रतिशङ्का] भय, शंका । पडिवाय पुं. [प्रतिपात] पुनः-पतन, फिर से पडिसंखा सक [प्रतिसं + ख्या] व्यवहार गिरना । नाश ।
करना, व्यपदेश करना। पडिवाय पुं [प्रतिवाद] विरोध ।
५डिसंखिव सक [प्रतिसं + क्षिप्] संक्षेप पडिवाय पुं [प्रतिवात] प्रतिकूल पवन ।
करना। पडिवारय देखो परिवार ।
पडिसंखेव सक [ प्रतिसं + क्षेपय् ] सकेलना, पडिवाल सक [प्रति + पालय] प्रतीक्षा |
समेटना । करना । रक्षण करना ।
पडिसंचिक्ख सक [प्रतिसम् + ईश्] चिन्तन पडिवास पुं [प्रतिवास] औषध आदि को | करना। विशेष उत्कष्ट बनानेवाला चूर्ण आदि । पडिसंजल सक [प्रतिसं + ज्वालय्] उद्दीपित पडिवासर न [प्रतिवासर] हर रोज ।। करना। पडिवासुदेव पुं [प्रतिवासुदेव] वासुदेव का पडिसंत वि [परिशान्त] शान्त, उपशान्त । प्रतिपक्षी राजा।
पडिसंत वि [प्रतिश्रान्त] विश्रान्त । पडिविक्किण सक [प्रतिवि + क्री] बेचना। पडिसंत वि [दे] प्रतिकूल । अस्तमित । पडिविज्जा स्त्री [प्रतिविद्या विरोधी विद्या। पडिसंध । सक [प्रतिसं + धा ] फिर से पडिवित्थर पुं [प्रतिविस्तर] परिकर, पडिसंधया । साँधना । उत्तर देना । अनुकूल विस्तार।
करना।
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५२२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पडिसंध-पडिसिलोग पडिसंध , सक [प्रतिसं +धा] आदर , में शाप देना । पडिसंधा करना । स्वीकार करना। पडिसव सक [ प्रति+श्रु] प्रतिज्ञा करना। पडिसंमुह न [प्रतिसम्मख] सम्मुख । स्वीकार करना । आदर करना । पडिसलाव पुं [प्रतिसंलाप] प्रत्युत्तर, जवाब । पडिसवत्त वि [प्रतिसपत्न] विरोधी शत्रु । पडिसंलीण वि [प्रतिसंलीन] सम्यक् लीन, पडिसा अक [ शम् ] शान्त होना।
अच्छी तरह लीन । निरोध करनेवाला संयत । पडिसा अक [ नश् ] भागना, पलायन °पडिया स्त्री [°प्रतिमा] क्रोध आदि का होना। निरोध करने की प्रतिज्ञा।
पडिसाइल्ल वि [दे] जिसका गला बैठ गया पडिसंविक्ख सक [प्रतिसंवि + ईक्ष्] विचार हो, घर्घर कण्ठवाला । करना।
पडिसाड सक [प्रति + शादय्, परिशाटय] पडिसंवेद । सक [प्रतिसं + वेदय्] अनुभव सड़ाना । पलटाना । नाश करना । पडिसंवेय करना।
पडिसाडणा स्त्री [परिशाटना] च्युत करना, पडिसंसाहणया स्त्री [प्रतिसंसाधना] अनु- भ्रष्ट करना। गमन ।
पडिसाम अक [शम्] शान्त होना । पडिसंहर सक [प्रतिसं + ह] निवृत्त करना । पडिसाय वि [शान्त] शम-प्राप्त । निरोध करना।
पडिसाय पुं [दे] घर्घर कण्ठ । पडिसक्क देखो परिसक्क ।
पडिसार सक [प्रतिस्मारय] याद दिलाना । पडिसडण न [प्रतिशदन,परिशदन] सड़
पडिसार सक [ प्रति + सारय् ] सजाना । जाना । विनाश ।
पडिसार सक [प्रति + सारय्] खिसकाना, पडिसडिय वि [परिशटित] जो सड़ गया हो, हटाना, अन्य स्थान में ले जाना। जो विशेष जीर्ण हुआ हो वह ।
पडिमार पुं [दे] पटुता । वि. निपुण, चतुर । पडिसत्त पुं [प्रतिशत्रु] प्रतिपक्षी, दुश्मन । पडिसार पं [प्रतिसार सजावट । अपसरण । पडिसत्थ पुं [प्रतिसार्थ] प्रतिकूल यूथ । विनाश । पराङ्मुखता । अपसारण । पडिसद्द पुं [प्रतिशब्द] प्रतिध्वनि । प्रत्युत्तर । पडिसारी स्त्री [दे] परदा । पडिसद्दिय वि [प्रतिशब्दित] प्रतिध्वनियुक्त। पडिसाह सक [प्रति + कथय] उत्तर देना। पडिसम अक [प्रति + शम्, विरत होना । पडिसाहर सक प्रतिसं+ह] निवृत्त करना । पडिसमाहर सक[प्रतिसमा + ह] पोछे खींच विनाश करना । सकेलना, समेटना । वापस लेना।
ले लेना । ऊँचे ले जाना। पडिसय पुं [प्रतिश्रय] उपाश्रय, साधु का पडिसिद्ध वि [दे] डरा हुआ । मग्न, त्रुटित । निवास स्थान ।
पडिसिद्ध वि [प्रतिषिद्ध] निषिद्ध, निवारित । पडिसर पुं [प्रतिसर] संन्य का पश्चाद्भाग। पडिसिद्धि स्त्री [दे] प्रतिस्पर्धा । हस्त-सूत्र, वह धागा जो विवाह से पहले वर- पडिसिद्धि स्त्री [प्रतिसिद्धि] अनुरूप सिद्धि । वधू के हाथ में रक्षार्थ बांधते हैं, कंकण । प्रतिकूल सिद्धि ।। पडिसरीर न [प्रतिशरीर] प्रतिमति। पडिसिद्धि देखो पडिप्फद्धि । पडिसलागा स्त्री [प्रतिशलाका] पल्य विशेष । पडिसिलोग पुं [प्रतिश्लोक] श्लोक के उत्तर पडिसव सक [प्रति + शप् ] शाप के बदले । में कहा गया श्लोक ।
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पडिसिविणअ-पडिहत्थ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५२३ पडिसिविणअपुं [प्रतिस्वप्नक] स्वप्न का पडिसेवग देखो पडिसेवय । प्रतिकूल स्वप्न ।
पडिसेवय वि [प्रतिषेवक] प्रतिकूल सेवा पडिसीसअ ) न [प्रतिशीर्षक] शिरोवेष्टन । करनेवाला, निषिद्ध वस्तु का सेवन करनेवाला । पडिसीसक , सिर के प्रतिरूप सिर, पिसान पडिसेवि वि [प्रतिषेविन्] शास्त्र-प्रतिषिद्ध (आटा) आदि का बनाया हुआ सिर । वस्तु का सेवन करनेवाला । पडिसुइ { [प्रतिश्रुति] ऐरवत वर्ष के एक पडिसेवेत्तु वि [प्रतिषेवित] प्रतिषिद्ध वस्तु भावी कुलकर । भरतक्षेत्र में उत्पन्न एक कुल- की सेवा करनेवाला । कर पुरुष का नाम ।
पडिसेह सक [प्रति + सिध्] निषेध करना, पडिसुण सक [प्रति +] प्रतिज्ञा करना। निवारण करना। स्वीकार करना ।
पडिसेह [प्रतिषेध] निषेध, निवारण । पडिसुणण स्त्रीन [प्रतिश्रवण] सुनाना, | पडिसेहग वि [प्रतिषेधक] निषेध-कर्ता ।
सुनकर उसका जवाब देना, प्रत्युत्तर । श्रवण । पडिसोअ । पुं [प्रतिस्रोतस्] उलटा प्रवाह । पडिसुणणा स्त्री [प्रतिश्रवण] अंगीकार, | पडिसोत्त स्वीकार । मुनि-भिक्षा का एक दोष, आधा- | पडिसोत्त वि [दे] प्रतिकूल । कर्म-दोषवाली भिक्षा लाने पर उसका स्वीकार | पहिस्संत देखो परिस्संत। . और अनुमोदन ।
पडिस्संति स्त्री [परिश्रान्ति परिश्रम । पडिसुण्ण वि [प्रतिशून्य] खाली । पडिस्सय पुं [प्रतिश्रय] जैन साधुओं को रहने पडिसुत्ति वि [दे] प्रतिकूल ।
का स्थान, उपाश्रय । पडिसुद्ध वि [परिशुद्ध] अत्यन्त शुद्ध । पडिस्सर देखो पडिसर । पडिसुय वि[प्रतिश्रुत] अंगीकृत । न. स्वीकार । | पडिस्साव सक [प्रति +श्रावय] प्रतिज्ञा देखो पडिस्स्य ।
कराना । स्वीकार कराना। पडिसुया देखो पडंसुआ = प्रतिश्रुत ।
पडिस्सावि वि [प्रतिस्राविन्] झरनेवाला, पडिसुया स्त्री [प्रतिश्रुता] प्रवज्या-विशेष, | टपकनेवाला । एक प्रकार की दीक्षा।
| पडिस्सुण सक [प्रति + श्रु] सुनना । अंगीकार पडिसुहड पुं [प्रतिसुभट] प्रतिपक्षी योद्धा। करना। पडिसूयग पुं [प्रतिसूचक नगर-द्वार पर पडिस्सुय वि [प्रतिश्रुत] प्रतिज्ञात । स्वीकृत । रहनेवाला जासूस ।
देखो पडिसुय । पडिसूर वि [दे] प्रतिकूल ।
पडिस्सुया देखो पडंसुआ। पडिसूर पुं [प्रतिसूर्य] सूर्य के सामने देखा पडिस्सुया देखो पडिसुया = प्रतिश्रुता । जाता उत्पातादि-सूचक द्वितीय सर्य। इन्द्र- पडिहच्छ वि [दे पूर्ण । देखो पडिहत्थ । धनुष ।
पडिहटु अ [प्रतिहृत्य] अर्पण करके । पडिसेग पुं [प्रतिषेक] नख के नीचे का भाग । पडिहड पुं [प्रतिभट] प्रतिपक्षी योद्धा । पडिसेज्जा स्त्री [प्रतिशय्या] उत्तर-शय्या । पडिहण सक [प्रति + हन्] प्रतिघात करना, पडिसेव सक [प्रति + सेव] प्रतिकूल सेवा प्रतिहिंसा करना। करना, निषिद्ध वस्तु की सेवा करना । सहन | पडिहणिय देखो पडिभणिय । करना । सेवा करना ।
। पडिहत्थ वि [दे] पूर्ण, भरा हुआ । प्रतिक्रिया,
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५२४
प्रतिकार, बदला । वचन, वाणी । अतिप्रभूत । अपूर्व, अद्वितीय ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पsिहत्थ स [दे] प्रत्युपकार करना । पत्थिवि [ प्रतिहस्त ] तिरस्कृत । पsिहत्थी स्त्री [] वृद्धि । पsिहम्म देखो पsिहण ।
sa [ प्रतिहत] प्रतिघात-प्राप्त । पsिहर सक [प्रति + हृ] फिर से पूर्ण करना । पडिहा अक [ प्रति + भा] मालूम होना,
लगना ।
पड़िहा स्त्री [ प्रतिभा ] नूतन-नूतन उल्लेख करने में समर्थ बुद्धि ।
पsिहा देखो पडिहाय = प्रतिघात । पsिहाण देखो पणिहाण |
पsिहाण न [ प्रतिभान] प्रतिभा, बुद्धि-विशेष । 'व वि ['वत् ] प्रतिभावाला ।
पsिहाय देखो पsिहा = प्रति + भा ।
पडिहाय पुं [ प्रतिघात ] घात का बदला ।
निरोध |
परिहारिय वि [ प्रतिहारित] अवरुद्ध | पsिहास अक [ प्रति + भास् ] मालूम होना,
लगना ।
पडुच्च अ [ प्रतीत्य ] आश्रय करके । अपेक्षा ? पचा करके । अधिकार करके । 'करण न. किसी की अपेक्षा से जो कुछ करना, आपेक्षिक कृति । भाव पुं. प्रतियोगिक पदार्थ, आयेक्षिक वस्तु । ' वयण न [' वचन] आपेक्षिक वचन | सच्चा स्त्री [ 'सत्या ] सत्य भाषा का एक भेद, अपेक्षा - कृत सत्य वचन | पडुजुवइ स्त्री [] युवति ।
पडिहार पुं [प्रतिहार] इन्द्र-नियुक्त देव | पडुत्तिया स्त्री [ प्रत्युक्ति ] प्रत्युत्तर, जवाब । पुंस्त्री. दरवान ।
पsिहारिय देखो पाsिहारिय ।
पडुप्पण्ण पुं [ प्रत्युत्पन्न ] वर्त्तमान काल | वि. वर्त्तमान काल में विद्यमान । प्राप्त । उत्पन्न ।
परिहास पुं [प्रतिभास] प्रतिभास, प्रतिभान । पsिहुअ [प्रतिभू] जामीन, जामीन
पडिहू
दार ।
पsिहू अक [ परि + भू] पराभव करना । पडी स्त्री [टी] वस्त्र । पडीआर [ प्रतीकार] देखो पडिआर | पडीकर क [प्रति + कृ ] प्रतिकार करना । पडीकार देखो पडिआर ।
पडीछ देखो पडिच्छ = प्रति = इष् । पडीण वि[प्रतीचीन ] पश्चिम दिशा से सम्बन्ध रखनेवाला । 'वाय पुं [°वात] पश्चिम की
वायु ।
पsिहत्थ - पयार
पडीणा स्त्री [प्रतीची ] पश्चिम दिशा । पडीर पुं [दे] चोर-समूह | पडीव व [ प्रतीप] प्रतिकूल, प्रतिपक्षी । पडुवि [प] निपुण, कुशल । पडु (अप) देखो पडिअ = पतित । पडुआलिअ वि [दे] निपुण बनाया हुआ । ताड़ित, पिटा हुआ । धारित । डुक्पुं [ प्रत्युत्क्षेप] वाद्य ध्वनि । उत्थापन,
उठान ।
पडुक्खेव पुं [ प्रत्युत्थेप, प्रतिक्षेप] वाद्यध्वनि । क्षेपण, फेंकना ।
पडुल्ल न [दे] छोटी थालो । वि. चिरप्रसूत । पडुवइअ वि [दे] तीक्ष्ण, तेज । पडुवती स्त्री [ दे] जवनिका । पडुह देखो पड्डुह । पडोअ वि [दे] बाल, लघु, छोटा । पडोच्छन्न वि [प्रत्यवच्छन्न ] आच्छादित | पडोयार सक [ प्रत्युप + चारय् ] प्रतिकूल
उपचार करना ।
पडोयार पुं [दे] उपकरण ।
पडोयार पुं [प्रत्युपचार] प्रतिकूल उपचार । पडोयार पुं [ प्रत्यवतार ] अवतरण | आवि र्भाव | पडोयार पुं [ पदावतार ] किसी वस्तु का पदों में विचार के लिए अवतरण ।
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पडीयार - पण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पडोयार पुं [ प्रत्युपकार ] उपकार का । पढाइद [शौ] नीचे देखों ।
उपकार ।
पडोयार पुं [दें] सामग्री । परिकर । पडोल पुंस्त्री [पटोल ] लता - विशेष, परवल का
गाछ ।
पडोहर न [] घर का पीछला आँगन । पड्डु वि [दे] धवल, सफेद ।
पहुं पुं [] पहाड़ की गुफा । पडुच्छी स्त्री [] भैंस |
पडुत्थी स्त्री [] बहुत दूधवाली । दोहनेवाली । पड्डय पुं [दे] भैंसा, पाड़ा । पडुला स्त्री [दे] पाद- प्रहार | [] सुमित । पड्डावि वि [] समापित । पड्डिया स्त्री [] छोटी भैंस, पाड़ी । छोटी गौ, बछिया । प्रथमप्रसूता गौ । नव-प्रसूता ही । पड्डी स्त्री [] प्रथम-प्रसूता । पड्डुआ स्त्री [दे] चरण- घात । पड्डुह अक [क्षुभ्] क्षुब्ध होना । पढ सक [ पठ् ] बोलना, कहना |
पढ़ना, अभ्यास करना ।
पढ पुं. भारतीय देश - विशेष | पढग वि [पाठक] पढ़नेवाला | पढमवि [ प्रथम ] पहला, आद्य । नूतन । प्रधान, मुख्य । "करण न. आत्मा का परिनाम- विशेष | कसाय पुं [ 'कषाय ] अनन्तानुबन्धी कषाय । द्वाणि, 'ठाणि वि [स्थानिन्] अव्युत्पन्न-बुद्धि, अनिष्णात | °पाउस पुं [°प्रावृष् ] आषाढ़ मास । 'समोसरण न [' समवसरण ] वर्षा काल । °सरय पुं [°शरत्] मार्गशीर्ष मास । 'सुरा स्त्री. नयी दारू, शराब ।
पढमा स्त्री [ प्रथमा] प्रतिपदा तिथि, पड़वा । व्याकरण प्रसिद्ध पहली विभक्ति । पढमालिआ स्त्री (दे. प्रथमालिका ] प्रथम
भाजन ।
पढाव सक [ पाठ्य् ] पढ़ाना । पढाव वि [पाठक] अध्यापक । पढाविअवंत वि [पाठितवत् ] जिसने पढ़ाया हो वह
पढावि वि [पाठयितृ] अध्यापक ।
५२५
[प्रढौकित] भेंट के लिए उपस्थापित ।
पढुम देखो पढ ।
पढे देखो पढाव |
पण देखो पंच । उइ स्त्री ['नवति] पंचान | 'तीस स्त्रीन [त्रिंशत् ] पैंतीस | 'नुवइ देखो उइ । 'रस त्रि. ब. [' दशन् ] पनरह | 'वन्नियवि [' वणिक ] पाँच रंग का । वीस स्त्रीन [विंशति] पचीस | 'वीसइ स्त्री [विंशति ] वही अर्थ |
स्त्री [] पैंसठ | ° सय न [ 'शत ] पाँच सौ | सीइ स्त्री [शीति] पचासी | सुन्न न [न] पाँच हिंसा-स्थान ।
पण पुं. शर्त, होड़ । प्रतिज्ञा । धन । विक्रेय वस्तु ।
पण पुं [ प्रण] प्रतिज्ञा ।
पण न [पञ्चक] पाँच का समूह । नीवी पणग तप
पण अत्तिअ वि [ दे] प्रकटित, व्यक्त किया हुआ ।
पणअन्न देखो पणपन्न | पणइ स्त्री [ प्रणति ] प्रणाम ।
पणइ वि [ प्रणयिन् ] प्रणयवाला, स्नेही, प्रेमी । पुं. पति । याचक, प्रार्थी । भृत्य, दास । पण इणी स्त्री [प्रणयिनी ] पत्नी, प्रिया । पणइय वि [ प्रणयिक, प्रणयिन् ] देखो पणइ = प्रणयिन् ।
पगणा स्त्री [पणाङ्गना ] वेश्या, वारांगना | पणग न [पञ्चक] पाँच का समूह । पण पुं [दे. पनक] शैवाल | काई, वर्षा - काल में भूमि, काष्ठ आदि में उत्पन्न होनेवाला
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५२६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पणच-पणि
एक प्रकार का जल-मैल । सूक्ष्म पंक । देखो पणवणिय देखो पणवन्निय । पणय (दे)। °मट्टिया, °मत्तिया स्त्री | पणवण्ण देखो पणपन्न ।। [°मृत्तिका] नदी आदि के पूर के खतम होने | पणवन्निय पुं [पणपन्निक] व्यन्तर देवों की पर रह जाती कोमल चिकनी मिट्टी। | एक जाति । पणच्च अक [प्र + नृत्] नृत्य करना । पणविय देखो पणमिअ- प्रणत । पणच्चिअ वि [अनत्तित] नाचा हुआ, जिसका पणवीसी स्त्री [पञ्चविंशतिका] पचीस कासमूह। नाच हुआ हो वह ।
पणस पुं [पनस] वृक्ष-विशेष, कटहल या पणच्चिअ वि [प्रतित] नचाया हुआ। कटहर। पणट्ट वि [प्रनष्ट] प्रकर्ष से नाश को प्राप्त । पणसुंदरी स्त्री [पणसुन्दरी] वेश्या । पणद्ध वि [प्रणद्ध] परिगत ।
पणाम सक [ अर्पय् ] अर्पण करना, देने के पणपन्न स्त्रीन [दे. पञ्चपञ्चाशत्] पचपन । लिए उपस्थित करना । पणपन्नइम वि [दे. पञ्चपञ्चाश] पचपना । पणाम सक [प्र+नमय ] नमाना । पणपन्निय देखो पणवन्निय ।।
पणाम सक [उप+नी] उपस्थित करना । पणपन्निय पुं [पंचप्रज्ञप्तिक] व्यन्तर देवों की | पणाम पुं [प्रणाम] नमस्कार । एक जाति ।
पणामणिआ स्त्री [दे] स्त्री विषयक प्रणय । पणम सक [प्र + नम्। प्रणाम करना, | पणामय वि [अर्पक] देनेवाला । नमन करना ।
पणामय वि [प्रणामक] नमानेवाला । शब्द पणमिअ वि [प्रणत नमा हआ। जिसने नमने | आदि विषय । का प्रारम्भ किया हो वह । जिसको नमन किया पणायक । वि [प्रणायक] ले जानेवाला । गया हो वह । [प्रणमित नमाया हुआ।
पणायग , पणय सक [प्र + णी] स्नेह करना, प्रेम | | पणाल पुं [प्रणाल] मोरी । करना । प्रार्थना करना।।
|पणालिआ स्त्री [प्रणालिका] परम्परा । पानी पणय - वि [प्रणत] जिसको प्रणाम किया जाने का रास्ता। गया हो वह । जिसने नमस्कार किया हो पणाली स्त्री प्रणाली]पानी जाने का रास्ता । वह । प्राप्त । निम्न, नीचा।
पणाली स्त्री [प्रनाली] शरीर-प्रमाण लम्बी पणय पुं [प्रणय] स्नेह, प्रेम । प्रार्थना । °वंत
लाठी। वि [°वत् स्नेहवाला, प्रेमी ।
पणास सक [प्र+नाशय ] विनाश करना। पणय पुं [दे] पंक।
पणासण वि [प्रणाशन] विनाशकारक । पणय पुं [दे. पनक] सेवार, तृण-विशेष । पणिअ वि [दे] प्रकट, व्यक्त । काई, जल-मैल । सूक्ष्म कर्दम ।
पणिअ वि [प्रणीत) रचित । पणयाल वि [दे. पञ्चचत्वारिंश] पैंतालीसवाँ । पणिअ न [पणित] बेचने-योग्य वस्तु । व्यवपणयाल । स्त्रीन [दे. पञ्चचत्वारिंशत्] हार । क्रय-विक्रय । शर्त, एक तरह का पणयालीस ) पैंतालीस ।
जुआ। भूमि, "भूमी स्त्री. अनार्य देशपणव देखो पणम ।
विशेष । विक्रेय वस्तु रखने का स्थान । पणव पुं[प्रणव ओंकार ।
साला स्त्री [°शाला] हाट । पणव पुं. पटह, ढोल, वाद्य-विशेष । । पणिअ न [पण्य] विक्रेय वस्तु । °गिह,
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पणिअ-पण्णत्ति संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५२७ °घर न [गह] दूकान । °साला स्त्री. । पणुल्ल देखो पणोल्ल । [शाला] °हाट। °ावण पुं [पण] | पणुवीस स्त्रीन [पञ्चविंशति] पचीस की दूकान ।
संख्या । जिनकी संख्या पचीस हो वे । पणिअ वि [प्रणीत] सुन्दर । भूमि स्त्री. पणुवीसइम वि [पञ्चविंशतितम] पच्चीसवां । मनोज्ञ भूमि ।
पणोल्ल सक [प्र+णुद्] प्रेरणा करना। पणिअट्ठ वि [पणितार्थ चोर ।
- फेंकना । नाश करना। पणिअसाला स्त्री [पण्यशाला] गोदाम । पणोल्लय वि [प्रणोदक] प्रेरक । पणिआ स्त्री [दे] करोटिका । खोपड़ी। पणोल्लि वि [प्रणोदिन्] प्रेरणा करनेवाला । पणिदि । वि [पञ्चेन्द्रिय ] त्वक्, जीभ, पुं. प्राजन दण्ड, बैल इत्यादि हाँकने की पणिदिय , नाक, आँख और कान-इन पाँचों लकड़ी। इन्द्रियों वाला प्राणी।
| पण्ण वि [प्रज्ञ] जानकार, दक्ष, निपुण । पणिद्ध वि [प्रस्निग्ध विशेष स्निग्ध । पण्ण वि [प्राज्ञ] प्रज्ञावाला, बुद्धिमान्, दक्ष । पणिधाण देखो पडिहाण।
वि. प्राज्ञ-सम्बन्धी। पणिधि पुंस्त्री [प्रणिधि] माया, छल । देखो | पण्ण न [पर्ण] पत्ता, पत्ती । पणिहि।
पण्ण देखो पणिअ = पण्य । पणियत्थ वि [प्रणिवसित] पहना हुआ। पण्ण स्त्रीन [दे] पचास । पणिलिअ वि [दे] हत, मारा हुआ। पण्ण देखो पंच, पण °र । रस त्रि. ब. पणिवइअ वि [प्रणिपतित] नत, नमा हुआ। [°दशन्] पनरह। रसम वि [°दश] जिसको नमस्कार किया गया हो वह । पनरहवाँ । °रसी स्त्री [°दशी] पनरहवीं । पणिवय सक [प्रण + पत्] नमन करना, | तिथि-विशेष । °रह देखो रस। °रह वि वन्दन करना।
[°दश] पनरहवाँ । देखो पन्न = पंच । पणिवाय पुं [प्रणिपात] वन्दन, नमस्कार । । पण्ण वि [पार्ण] पर्ण-सम्बन्धी, पत्ते का । पणिहा सक [प्रणि + धा] एकाग्र चिन्तन पण्ण" देखो पण्णा । "व वि [°वत्] प्रज्ञाकरना ध्यान करना। अपेक्षा करना। वाला। अवधान करना। अभिलाषा करना । चेष्टा पण्णई [पन्नगा] भगवान् धर्मनाथ की शासनकरना, प्रयत्न करना । प्रयोग करना। देवी। पणिहि पुंस्त्री [प्रणिधि] एकाग्रता, अवधान । पण्णग [पन्नग] सर्प । °ासन पुं [शन] कामना । पुं. चरपुरुष, दूत । चेष्टा, व्यापार । गरुड़ पक्षी। रिउ पुं [°रिपू] गरुड माया, कपट । व्यवस्थापन । बड़ा निधि ।। पक्षी। पणिहिय वि [प्रणिहित] प्रयुक्त व्याप्त । | पण्णग वि [दे. पन्नक] दुर्गन्धी। तिल पुं. व्यवस्थित ।
दुर्गन्धी तिल । पणीय वि [प्रणीत] निर्मित, कृत । स्निग्ध, | पण्णाट्ठ स्त्री [पञ्चषष्टि] पंसठ । घृत आदि स्नेह की प्रचुरतावाला । निरूपित, | पण्णत्त वि [प्रज्ञप्त] निरूपित, उपदिष्ट, प्ररूपित, आख्यात । सुन्दर। सम्यग् | कथित । प्रणीत, रचित । आसेवित । आचरित ।
पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] विद्यादेवी-विशेष । पणीहाण देखो पणिहाण।
प्रकृष्ट ज्ञान । जिससे प्ररूपण किया जाय वह ।
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५२८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पण्णपण्णिय-पत्त
पाँचवाँ अंग-ग्रन्थ, भगवती सूत्र । सूर्य- पण्णासग वि [पञ्चाशक] पचास वर्ष को उम्र प्रज्ञप्ति आदि उपांग ग्रन्थ । विद्या-विशेष। का। प्ररूपण, प्रतिपादन । °खेवणी स्त्री पण्णुवीस देखो पणुवीस। [°क्षेपणी] कथा का एक भेद । °पक्खेवणी पण्ह पुंस्त्री [प्रश्न] पृच्छा। वाहण न स्त्री [प्रक्षेपणी] कथा का एक भेद । [°वाहन] जैन मुनि-गण का एक कुल । पण्णपण्णिय पं [पण्णपणि] व्यन्तर देवों की। वागरण न [ व्याकरण] ग्यारहवां जैन एक जाति ।
अंग-ग्रन्थ । देखो पसिण। पण्णय देखो पण्णग।
पण्हअ अक [प्र+स्तु] झरना, टपकना । पण्णव सक [प्र+ज्ञापय] प्ररूपण करना, पण्हअ । [दे. प्रस्नव] स्तन से दूध का उपदेश करना, प्रतिपादन करना ।
पण्हव , झरना । झरना, टपकना। पण्णवग वि [प्रज्ञापक] प्ररूपक, प्रतिपादक ।
पण्हव पुं [पह्नव] अनार्य देश-विशेष । वि. पण्णवण न [प्रज्ञापन] प्ररूपण, प्रतिपादन ।।
उस देश का निवासी। शास्त्र, सिद्धान्त । वि. ज्ञापक, निरूपक ।।
पण्हविअ देखो पण्डअ। पण्णवणा स्त्री [प्रज्ञापना] प्ररूपणा, प्रति
| पण्हि पुंस्त्री [पाष्णि] फोली का अधोभाग, पादन । एक जैन आगम ग्रन्थ 'प्रज्ञापना' ।
गुल्फ का नीचला हिस्सा, एड़ी। सूत्र ।
पण्हिया स्त्री [प्रश्निका] एड़ी, गुल्फ का अधोपण्णवणी स्त्री [प्रज्ञापनी] अर्थबोधक भाषा ।
भाग। पण्णवण्ण स्त्रीन [दे. पञ्चपञ्चाशत्] पचपन ।
पण्हुअ वि [प्रस्तुत] क्षरित, झरा हुआ। पण्णवय देखो पण्णवग।
जिसने झरने का प्रारम्भ किया हो वह । पण्णवेत्तु वि [प्रज्ञापयितु] प्रतिपादक, प्ररूपण
पण्हुइर वि [प्रश्नोतृ] झरनेवाला । करनेवाला।
पण्होत्तर न [प्रश्नोत्तर] सवाल-जवाब । पण्णा .सक [प्र+ज्ञा] प्रकर्ष से जानना।
पतणु देखो पयणु । अच्छी तरह जानना।
पतार सक [प्र + तारय] ठगना । पण्णा स्त्री [प्रज्ञा] मनुष्य की दस अव- पतारग वि [प्रतारक] वञ्चक । स्थाओं में पांचवीं अवस्था । बुद्धि । ज्ञान ।। पतिण्ण वि [प्रतीर्ण] पार पहुँचा हुआ, परिसह, परीसह [°परिषह, 'परीषह] | निस्तीर्ण। बुद्धि का गर्व न करना । बुद्धि के अभाव में पतुण्ण न [प्रतुन्न] वल्कल का बना हुआ खेद न करना । °मय पुं [°मद] बुद्धि का वस्त्र । अभिमान । °वंत वि [°वत् ज्ञानवान् । पतेरस ) वि [प्रत्रयोदश] प्रकृष्ट तेरहवां । पण्णाग वि [प्रज्ञ] विद्वान् ।
पतेलस , °वास न [°वर्ष] प्रकृत तेरहवा पण्णाण न [प्रज्ञान] प्रकृष्ट ज्ञान । सम्यम् । वर्ष । प्रकृत तेरहवां वर्ष । प्रस्थित तेरहवाँ ज्ञान । आगम । °व वि [°वत्] ज्ञानवान् ।। वर्ष। शास्त्रज्ञ ।
पत्त वि [प्राप्त] मिला हुआ, पाया हुआ । पण्णाराह (अप) त्रि. ब. [पञ्चदशन्] पनरह। °काल, °याल न [°काल] चैत्य-विशेष । वि. पण्णावीसा स्त्री [पञ्चविंशति पचीस ।
अवसरोचित । पण्णास स्त्रीन [दे. पञ्चाशत्] पचास । पत्त न [पत्र] पत्ती, पत्ता, दल । पाँख ।
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पत्त-पत्तिसमिद्ध
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कागज । °च्छेन्ज न [°च्छेद्य] कला-विशेष । } में की जाती रचना-विशेष ।
मंत वि [°वत्] पत्रवाला । °रह पुं| पत्तणा स्त्री प्रापणा] प्राप्ति । [°रथ] पक्षी । लेहा स्त्री[°लेखा] चन्दनादि | पत्तपसाइआ स्त्री [दे] पत्तियों की एक तरह से पत्र के आकृतिवाली रचना-विशेष, भूषा का | की पगड़ी, जिसे भील लोग पहनते हैं। एक प्रकार । °वल्ली स्त्री. पत्रवाली लता। | पत्तपिसालस न [दे] ऊपर देखो। मुंह पर चन्दन आदि से की जाती पत्र श्रेणी- पत्तय न [पत्रक] एक प्रकार का गेय । तुल्य रचना । विंटन [°वन्त] पत्र का | पत्तरक न [दे. प्रतरक] आभूषण-विशेष । बन्धन । विटिय वि [वृन्तक, वृन्तीय] | पत्तल वि [दे] तीक्ष्ण, तेज । पतला । पत्र वृन्त में उत्पन्न होता एक प्रकार का | पत्तल वि[पत्रल]बहुत पत्तीवाला । पक्ष्मवाला । श्रीन्द्रिय जन्तु । विच्छ्य [वृश्चिक]एक तरह | पत्तल न [पत्र] पर्ण । का वृश्चिक, चतुरिन्द्रिय जीवों की एक जाति । पत्तली स्त्री [दे] एक प्रकार का राज-देय । °वेंट देखो विट । °सगडिआ स्त्रीशक- पत्तहारय वि [पत्रहारक] पत्तों को बेचने का टिका] पत्तों से भरी हई गाडी । °समिद्ध वि | काम करनेवाला । [समृद्ध] प्रभूत पत्तेवाला ।हार पुं. त्रीन्द्रिय | पत्ताण सक [दे। पताना, मिटाना । जन्तु-विशेष । हार पं. पत्ती पर निर्वाह पत्तामोड पुंन [आमोटपत्र] तोड़ा हुआ पत्र । करनेवाला वानप्रस्थ ।
पत्ति स्त्री [प्राप्ति लाभ । पत्त न [पात्र] भाजन । आधार, आश्रय, | पत्ति पुं. सेना-विशेष, जिसमें एक रथ, एक स्थान । दान देने योग्य गुणी लोक । लगातार हाथी, तीन घोड़े और पांच पैदल हों । पैदल बत्तीस उपवास । °बंध [°बन्ध] पात्रों चलनेवाली सेना । को बाँधने का कपड़ा । देखो पाय = पात्र । पत्ति । सक [प्रति + इ जानना । पत्त वि [प्रात्त] प्रसारित ।
पत्तिअ । विश्वास करना । आश्रय करना । पत्तइअ वि प्रत्ययित] विश्वस्त । | पत्तिअ वि [पत्रित] जिसमें पत्र उत्पन्न हुए हों पत्तइअ वि [पत्रकित] अल्प पत्रवाला । कुत्सित | वह। पत्रवाला।
पत्तिअ वि [प्रतीति, प्रत्ययित] प्रतीतिवाला, पत्तउर पुं [दे] वनस्पति-विशेष, एक प्रकार का विश्वस्त । गाछ ।
पत्तिअ न [प्रीतिक] प्रोति, स्नेह । पत्तच्छेज न [पत्रच्छेद्य] बाण से पत्ती बेधने | पत्तिअ पुन [प्रत्यय] विश्वास । की कला। नक्काशी का काम, खोदने का | पत्तिअ न [पत्रिक] म कत-पत्र । काम ।
पत्तिआ स्त्री [पत्रिका] पर्ण । पत्तट्ट वि [दे. प्राप्तार्थ] बहु-शिक्षित, विद्वान्, | | पत्तिआअ देखो पत्तिअ = प्रति + इ । अति कुशल ।
पत्तिआव सक [प्रति + आयय ] विश्वास पत्तट्ठ वि [दे] मनोहर ।
कराना, प्रतीति कराना। पत्तण देखो पट्टण।
पत्तिग देखो पत्तिअ = प्रीतिक । पत्तण न [दे. पत्त्रण] बाण का फलक । पुंख, पत्तिज देखो पत्तिअ = प्रति + इ । बाण का मूल भाग ।
| पत्तिज्जाव देखो पत्तिआव । पत्तणा स्त्री [दे. पत्त्रणा] ऊपर देखो। पुंख | पत्तिसमिद्ध वि [दे] तीक्ष्ण ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पत्ती-पत्थिद पत्ती स्त्री [दे] देखो पत्तपसाइआ। पत्थड वि [प्रस्तृत]बिछाया हुआ, फैला हुआ । पत्ती स्त्री [पत्नी] भार्या ।
पत्थणया । स्त्री [प्रार्थना ] वाञ्छा। पत्ती स्त्री [पात्री] भाजन ।
पत्थणा याचना । विज्ञप्ति, निवेदन । पत्तुं पाव = प्र + आप का हेकृ. ।
पत्थय वि [प्रार्थक] अभिलाषा करनेवाला । पत्तवगद (शौ) वि [प्रत्यपगत] सामने गया पत्थयण न[पथ्यदन] शम्बल, पाथेय, कलेवा। हुआ। वापस गया हुआ।
पत्थर सक [प्र+ स्तु] बिछाना । फैलाना । पत्तेअ ) न [प्रत्येक हर एक । एक के | पत्थर पुं [प्रस्तर] पत्थर । पत्तेग ) सामने । न. कर्म-विशेष, जिसके पत्थर न [दे] पाद-ताडन, लात । उदय से एक जीव का एक अलग शरीर पत्थर देखो पत्थार। होता है । पृथक-पृथक् । पुं. वह जीव जिसका पत्थरण न [प्रस्तरण] बिछौना । शरीर अलग हो । °णाम न [नामन्] देखो | पत्थरभल्लिअ न [दे] कोलाहल करना । ऊपर का तीसरा अर्थ । निगोयय पं |
पत्थरा स्त्री [दे] चरण-घात, लात । [ °निगोदक ] जीव-विशेष । °बद्ध पं. पत्थरिअ [दे] पल्लव, कोपल । अनित्यतादि भावना के कारणभूत किसी एक |
पत्थव देखो पत्थाव। वस्तु से परमार्थ का ज्ञान जिसको उत्पन्न हआ | पत्था अक [प्र + स्था] प्रस्थान करना, प्रवास हो ऐसा जैन मुनि । "बुद्धसिद्ध पुं. प्रत्येकबुद्ध | करना। होकर मुक्ति को प्राप्त जीव । °रस वि. | पत्थार पुं [प्रस्तार] विस्तार । तृणवन । विभिन्न रसवाला। सरीर वि ['शरीर] पल्लवादि-निर्मित शय्या । पिंगल-प्रसिद्ध विभिन्न शरीरवाला । न. कर्म-विशेष, जिसके प्रक्रिया-विशेष । प्रायश्चित्त को रचना-विशेष । उदय से एक जीव का एक विभिः शरीर | विनाश । होता है । °सरीरनाम न [°शरीरनामन्] | पत्थारी स्त्री [दे] समूह । शय्या । वही पूर्वोक्त अर्थ ।
पत्थाव सक [
प्रस्तावय् ] प्रारम्भ करना । पत्तेय वि [प्रत्येक] बाह्य कारण । पत्थाव पुं [प्रस्ताव ] अवसर । प्रसंग, पत्थ सक [प्र + अर्थय् ] प्रार्थना करना । प्रकरण । अभिलाषा करना । रोकना ।
पत्थिअ वि [प्रस्थित] जिसने प्रयाण किया हो पत्थ पुं [पार्थ] मध्यम पाण्डव अर्जुन । पाञ्चाल वह । न. प्रस्थान, गति, चाल । देश के एक राजा का नाम । भद्दिलपुर नगर | पत्थिअ वि [प्रार्थित] जिसके पास प्रार्थना की का एक राजा।
गई हो वह । जिस चीज की प्रार्थना की गई पत्थ पुं [प्रार्थ] प्रार्थन, प्रार्थना । दो दिनों हो वह । का उपवास ।
पत्थिअ वि [दे] शीघ्र, जल्दी करनेवाला । पत्थ देखो पच्छ = पथ्य ।
पत्थिअ वि [प्रार्थिक] प्रार्थी । पत्थ पुं [प्रस्थ] कुडव का एक परिमाण ।
पत्थिअ वि [प्रास्थित] प्रकृष्ट श्रद्धावाला । सेतिका, एक कुडव का परिमाण । पत्थिअ° । स्त्री [दे] बाँस का बना हुआ पत्थग देखो पत्थय।
पत्थिआ , भाजन-विशेष । पिडग, पिडय पत्थड पुं [प्रस्तर] रचना-विशेषवाला समूह । न [°पिटक] वही अर्थ ।। भवनों के बीच का अन्तगल भाग। पत्थिद देखो पत्थिअ = प्रस्थित, प्रार्थित ।
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पत्थिव-पाव संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५३१ पत्थिव पुं [पार्थिव] राजा । वि. पृथिवी का | पदीव सक [प्र+दीपय] जलाना । प्रकाश विकार ।
करना। पत्थी स्त्री [दे. पात्री] पात्र, भाजन । पदीव देखो पईव + प्रदीप । पत्थीण न [दे] मोटा कपड़ा। वि. स्थूल । पदीविआ स्त्री [प्रदीपिका] छोटा दिया । पत्थय वि[प्रस्तुत] प्रकरण-प्राप्त, प्राकरणिक । पदुग्ग पुंन [प्रदुर्ग] कोट, किला । प्राप्त, लब्ध ।
पदुटु वि [प्रद्विष्ट, प्रदुष्ट ] विशेष द्वेष को पत्थुर देखो पत्थर = प्र+स्तु ।
प्राप्त । पत्थे = देखो पत्थ = प्र+अर्थय ।
पदुब्भेइय न [पदोद्भेदक] पद-विभाग और
शब्दार्थ मात्र का पारायण । पत्थोउ वि [प्रस्तोत] प्रस्ताव करनेवाला ।
पदूमिय वि [प्रदावित, प्रदून] अत्यन्त प्रवर्तक ।
पीड़ित । पथम (प) देखो पढम।
पदूस सक [प्र + द्विष् ] द्वेष करना। पदअ सक [गम्] जाना, गमन करना । पदसिअ वि [प्रदर्शित दिखलाया हुआ।
पदूसणया स्त्री [प्रद्वेषणा, प्रदूषणा] द्वेष,
मात्सर्य । पदक्खिण वि [प्रदक्षिण] जिसने दक्षिण की
पदेक्ख सक [प्र + दृश् ] प्रकर्ष से देखना। तरफ से लेकर मण्डलाकार भ्रमण किया हो
पदेस देखो पएस = प्रदेश । वह । न. दक्षिणावर्त भ्रमण । पदक्षिण सक [ प्रदक्षिणय ] प्रदक्षिणा
पदेस पुं [प्रद्वेष] द्वेष ।
पदेसिअ वि [प्रदेशित] प्ररूपित, प्रतिपादित । करना।
पदोस देखो पओस - दे, प्रद्वेष । पदण न [पदन] प्रतीति कराना।
पदोस देखो पओस = प्रदोष । पदण (शौ) न [पतन] गिरना ।
पद्द न [दे] ग्राम-स्थान । छोटा गाँव । पदम (शौ) देखो पउम ।
पद्द न [पद्य] श्लोक, वृत्त, काव्य । पदय देखो पयय = पतंग।
पद्देस देखो पदेस प्रद्वेष। पदरिसिय देखो पदंसि ।
पद्धइ स्त्री [पद्धति] रास्ता। पंक्ति, श्रेणी । पदहण न [प्रदहन] संताप, गरमी। पदाइ वि [प्रदायिन्] देनेवाला ।
परिपाटी । प्रक्रिया, प्रकरण । पदाण न [प्रदान] दान, वितरण ।
पद्धंस पुं [प्रध्वंस] ध्वंस, नाश । 'Tभाव पुं. पदादि (शौ) [पदाति] पैदल सैनिक । अभाव विशेष, वस्तु के नाश होने पर उसका पदायग वि [प्रदायक] देनेवाला ।
जो अभाव होता है वह। पदाव देखो पयाव।
पद्धर वि [दे] ऋजु, सीधा । शीघ्र । पदाहिण वि [प्रदक्षिण] प्रकृष्ट दक्षिण, प्रकर्ष , पद्धल वि [द] दोनों पावों में अप्रवृत्त । से दक्षिण दिशा में स्थित ।
पद्धार वि [दे] जिसका पूंछ कट गया हो पदिकिदि (शौ) देखो पडिकिदि ।
वह। पदित्त देखो पलित्त।
पधाइय देखो पधाविय। पदिस॰ स्त्री [प्रदिश् ] विदिशा, ईशान पधाण देखो पहाण । आदि ।
पधार देखो पहार = प्र+धारय । पदिस्सा देखो पदेक्ख ।
पधाव सक [ प्र+धात् ] दौड़ना, अधिक वेग
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५३२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
से जाना ।
पधावण न [ प्रधावन] दौड़, वेग से गमन । कार्य की शीघ्र सिद्धि । प्रक्षालन ।
पधूवण न [ प्रधूपन ] धूप देना | एक प्रकार का आलेपन द्रव्य |
वस्तु ।
पधूविय वि [ प्रधूपित ! जिसको धूप दिया पप्पाडिया स्त्री [ पर्पटिका ] तिल आदि की
गया हो वह ।
बनी हुई एक प्रकार की खाद्य वस्तु । पप्पल देखो पप्पड |
पधोअ सक [प्र + धाव् ] धोना । पधोअ वि [ प्रधौत] धोया हुआ । पधोव सक [प्र + धाव् ] धोना ।
पन देखो पंच । र, रस त्रि. ब. [ "दशन् ] पनरह |
पन्नगणा स्त्री [पण्याङ्गना ] वेश्या । पन्नतर स्त्री [पञ्चसप्तति] पचहत्तर | पन्नत्तु वि [ प्रज्ञापयितु] आख्याता, प्रतिपादक । पत्रपत्तिया स्त्री [ प्रज्ञप्रत्यया ] देखो पुन पत्तिया ।
पप्फुट्ट अक [प्र + स्फुट् ] खिलना । फूटना । पप्फुडिअ पुं [ प्रस्फुटित ] नरकावास - विशेष । पप्फुय देखो पप्पु ।
पनपन्नइम देखो पणपन्न
I
पन्नया स्त्री [ पन्नगा] भगवान् धर्मनाथजी की पप्फुर अक [प्र + स्फुर् ] फरकना, हिलना | शासन - देवी |
काँपना |
पनवग वि [ प्रज्ञापक] प्रतिपादक, प्ररूपक । पन्नास [ मृद् ] मर्दन करना । पन्नारस ( अप ) त्रिव [ पञ्चदशन् ]
पन्हु (अप) देखो पहअ = दे. प्रस्नव । पपंच देखो पवंच |
पपलीण वि [ प्रपलायित ] भागा हुआ । पमिह पुं [ प्रपितामह] ब्रह्मा, विधाता ।
परदादा |
पपुत्त पुं [ प्रपुत्र] पौत्र ।
पपुत्त पुं [प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र । पपोत्त
}
पधावण-पबंधण
पप्पड
पप्पाडग
पुंस्त्री [पर्पट] पापड़ | पापड़ के आकारवाला शुष्क मृत्खण्ड । पाय पुं [पाचक ] नरकावास - विशेष । 'मोदय पुं [ मोदक ] एक प्रकार की मिष्ट
पनरह ।
पन्नास देखो पण्णास । °इम वि [ तम] पप्फोड देखो
पचासव ।
पप्प सक [ प्र + आप् ] प्राप्त करना । पप्पा न [ दे. पर्पक] वनस्पति- विशेष |
पप्पीअ पुं [दे] चातक पक्षी, पपीहा ।
पप्पुअ वि [प्रप्लुत] जलार्द्र | व्याप्त । न. कूदना, लाँघना |
पफंदण न [ प्रस्पन्दन] प्रचलन, फरकना । पफाड पुं [] अग्नि-विशेष | पफिडिअ वि [] प्रतिफलित । पफुअवि [] दीर्घ । उड़ता ।
पप्फुल्ल अक [प्र + फुल्ल् ] विकसना । पप्फुल्ल वि [ प्रफुल्ल ] विकसित, खिला हुआ । पप्फुल्लिआ स्त्री [ प्रफुल्लिका ] देखो उफुल्लिआ । पप्फुसिय न [ प्रस्पृष्ट] उत्तम स्पर्श |
।
पप्फोड सक [प्र + स्फोटय् ] झाड़ना । झाड़
कर गिराना । आस्फालन करना । प्रक्षेपण करना । प्रकृष्ट धूनन करना । तोड़ना । पफुल्ल देखो पप्फुल्ल ।
पबंध सक [प्र + बन्ध् ] प्रबन्ध रूप से कहना | विस्तार से कहना ।
पबंध पुं [ प्रबन्ध] सन्दर्भ ग्रन्थ, परस्पर अन्वित वाक्य-समूह । निरन्तरता !
पबंध न [ प्रबन्धन] प्रबन्ध, सन्दर्भ, अन्वित वाक्य- समूह की रचना |
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पबल-पभावग
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पबल वि [प्रबल] बलिष्ठ, प्रचण्ड, प्रखर । । नगरी का नाम । चन्द्र की एक अग्रमहिषी का पबाहा स्त्री प्रबाधा] विशेष पीड़ा । नाम । सूर्य की एक अनमहिषी का नाम । पबुद्ध वि [प्रवुद्ध] प्रवीण, निपुण । जागा पभंकरावई स्त्री [प्रभङ्करावती] विदेह वर्ष हुआ। जिसने अच्छी तरह जानकारी प्राप्त की एक नगरी । की हो वह ।
पभंगुर वि [प्रभङ्गर] अति विनश्वर । पबोध सक [प्र + बोधय] जागृत करना ।। | पभंजण पुं [प्रभञ्जन] वायुकुमार-निकाय के ज्ञान कराना।
उत्तर दिशा का इन्द्र । लवण-समुद्र के एक पबोहय देखो पबोध ।
पाताल-कलश का अधिष्ठायक देव । मानुषोत्तर पबोहय वि [प्रबोधक] प्रबोध-कर्ता । पर्वत के एक शिखर का अधिपति देव । पब्बल देखो पबल।
"तणअ ' [ तनय] हनूमान् । पब्बाल देखो पव्वाल = छादय् ।
पभंसण न [प्रभ्रंशन] स्खलना। पब्बाल देखो पव्वाल = प्लावय् ।
पभकत पुं [प्रभकान्त] विद्युत्कुमार देवों के पब्बुद्ध देखो पबुद्ध ।
हरिकान्त और हरिस्सह नामक दोनों इन्द्रों पब्भ वि [प्रह व] नम्र ।
के लोकपालों के नाम। पन्भट्ठ । वि [प्रभ्रष्ट] परिभ्रष्ट, प्रस्खलित, पभण सक [प्र+भण्] कहना, बोलना । पब्भसिअ ) चूका हुआ। विस्मृत । पं. | पभम सक [प्र+भ्रम् ] भ्रमण करना, नरकावास-विशेष ।
भटकना । पन्भार पुं [दे. प्रागभार संघात, समूह । । | पभव अक [ प्र+भू ] समर्थ होना, पहुँचना । पन्भार पुं[दे] पर्वत-कन्दरा।
होना, उत्पन्न होना। पब्भार पुं [प्राग्भार] प्रकृष्ट भार । ऊपर का | पभव मु [प्रभव] उत्पत्ति, जन्म, प्रसति, भाग । थोड़ा नमा हुआ पर्वत का भाग । एक | प्रसव । प्रथम उत्पत्ति का कारण । एक जैनदेश, एक भाग । उत्कर्ष, परभाग । पुन. पर्वत | मुनि, जम्बु-स्वामी का शिष्य । के ऊपर का भाग । वि. थोड़ा नमा हुआ। |पभवा स्त्री [प्रभवा] ततीय वासुदेव की पब्भारा स्त्री [प्राग्भारा] दशा-विशेष, पुरुष | पटरानी।
की सत्तर से अस्सी वर्ष तक की अवस्था । | पभा स्त्री [प्रभा] कान्ति, तेज । प्रभाव । पभूअ वि [प्रभूत] उत्पन्न ।
पभाइअ । पुंन [प्रभात] सुबह । वि. प्रकापभोअ पुं [दे. प्रभोग] भोग, विलास । पभाय ) शित । 'तणय वि [°संबन्धिन्] पभ पुं [प्रभ] हरिकान्त नामक इन्द्र का एक प्रभात-सम्बन्धी। लोकपाल । द्वीप-विशेष और समुद्र-विशेष का | पभार पुं [प्रभार] प्रकृष्ट भार । अधिपति देव ।
पभाव देखो पहाव = प्र + भावय् । °पभ वि [प्रभ] सदृश, तुल्य ।
पभावई स्त्री [प्रभावती] उन्नीसवें जिनदेव की °पभइ देखो °पभिइ।
माता का नाम । रावण को एक पत्नी का पभंकर पुं [प्रभङ्कर] ग्रह-विशेष, ज्योतिष
नाम । उदायन राजर्षि की पटरानी और चेड़ा देव-विशेष । पुन. देव-विमान ।
नरेश की पुत्री का नाम । बलदेव के पुत्र पभंकर वि [प्रभाकर] प्रकाशक ।
निषध की भार्या । राजा बल की पत्नी । पभंकरा स्त्री [प्रभङ्करा] विदेह-वर्ष की एक | पभावग वि [प्रभावक] प्रभाव बढ़ानेवाला,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पभावय-पमाण शोभा की वृद्धि करनेवाला। उन्नति-कारक । . विवाह के समय किया जाता एक तरह का गौरव जनक ।
उबटन । पभावय वि [प्रभावक गौरव बढ़ानेवाला। | पमक्खिअ वि [प्रम्रक्षित] विलिप्त । विवाह पभावाल पुं [प्रभावाल] वृक्ष-विशेष । के समय जिसको उबटन किया गया हो वह । पभास सक [प्र+ भाष] बोलना, भाषण | पमज्ज सक [प्र+मृज्, मार्ज ] मार्जन करना।
करना, साफ-सुथरा करना, झाडू आदि से पभास अक [प्र+भास] प्रकाशित होना। धूलि वगैरह को दूर करना । पभास सक [प्र + भासय] प्रकाशित करना। पमज्जणिया । स्त्री [प्रमार्जनी] झाडू । पभास पुं[ भास] भगवान् महावीर के एक | पमजणी । गणधर का नाम । एक विकटापाती पर्वत का | पमजय वि [प्रमार्जक] प्रमार्जन करनेवाला । अधिष्ठाता देव । एक जैन मुनि का नाम । एक | पमत्त वि [प्रमत्त] असावधान, प्रमादी । न. चित्रकार का नाम । न. तीर्थ-विशेष । देव- छठवाँ गुण-स्थानक । प्रमाद । जोग पुं विमान-विशेष । °तित्थ न ["तीर्थ] तीर्थ- [°योग] प्रमाद-युक्त चेष्टा । °संजय पुं विशेष, भारतवर्ष की पश्चिम दशा में स्थित | [°संयत] प्रमादी साधु । एक तीर्थ ।
पमद देखो पमय। पभासा स्त्री [प्रभासा] अहिंसा, दया। पमदा देखो पमया। पभिइ देखो पभिई।
पमद्द सक [प्र + मृद्] मर्दन करना। विनाश पभिइ वि. ब. [प्रभृति] इत्यादि, वगैरह ।
करना । कम करना । चूर्ण करना । रुई की
पूणी-पूनी बनाना। पभिई (अ[प्रभृति] प्रारम्भ कर, (वहाँ से)| पमद्द ५ [प्रमर्द] ज्योतिष शास्त्र में प्रसिद्ध पभीइ शुरू कर लेकर ।
एक योग । संघर्ष, संमर्द । वि. मदन करने
वाला । विनाशक । पभीय वि [प्रभीत] अत्यन्त डरा हुआ।
पमद्दय वि [प्रमर्दक] प्रमर्दन-कर्ता । पभु प्रभ] इक्ष्वाकुवंश के एक राजा का पमय पुं [प्रमद] आनन्द । न. धतूरे का नाम । स्वामी, मालिक । राजा । वि. समर्थ ।। फल । 'च्छी स्त्री [क्षी] महिला । °वण योग्य, लायक ।
न [°वन] राजा का अन्तःपुर-स्थित वह वन पभुंज सक [प्र + भुज्] भोग करना। जहाँ राजा रानियों के साथ क्रीड़ा करे । पभुति (पै) देखो पभिई।
पमया स्त्री [प्रमदा] उत्तम स्त्री । पभुत्त वि [प्रभुक्त] जिसने खाने का प्रारम्भ पमह पुं [प्रमथ] शिव का अनुचर । °णाह पुं किया हो वह । जिसने भोजन किया हो वह । [°नाथ] महादेव । °ाहिव पुं [धिप] पभूइ , देखो पभिई।
शिव ।
पमा सक [प्र + मा] सत्य-सत्य ज्ञान करना । पभूय वि [प्रभूत] प्रचुर, बहुत ।
पमा स्त्री [प्रमा] प्रमाण, परिमाण, न्याय । पभोय (अप) देखो उवभोग ।
पमा देखो पमाय %प्रमाद । पमइल वि [प्रमलिन] अति मलिन । पमाइ वि [प्रमादिन्] प्रमादी, बेदरकार। पमक्खण न [प्रम्रक्षण] अभ्यञ्जन, विलेपन । । पमाण सक [प्र+मानय] विशेष रीति से
पभिज्ञ
पभीइं।
पभूई
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पमाण-पम्ह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५३५ मानना, आदर करना।
ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क देव-विशेष । न. प्रकृष्ट पमाण न [प्रमाण] यथार्थ ज्ञान । सत्य ज्ञान | आरम्भ, आदि, आपात । का साधन । जिससे नाप किया जाय वह । | °पमुह वि. ब. [प्रमुख] वगैरह, आदि । परिमाण । संख्या। न्याय-शास्त्र । पुंन. सत्य | प्रधान, श्रेष्ठ मुख्य । रूप से जिसका स्वीकार किया जाय वह । | पमुहर वि [प्रमुखर] वाचाल । माननीय, आदरणीय । सच्चा, ठीक-ठीक । पमेइल वि [प्रमेदस्विन्] जिसके शरीर में °वाय पुं [वाद] न्याय-शास्त्र, तर्क-शास्त्र । | चर्बी बहुत हो वह । °संवच्छर पुं[संवत्सर] वर्ष-विशेष । पमेय वि [प्रमेय] प्रमाण-विषय, सत्य-पदार्थ । पमाण सक [प्रमाणय] प्रमाण रूप से स्वीकार | पमेह पुं [प्रमेह] मेह रोग, मूत्र-दोष, बहुकरना।
मत्रता। पमाणिआ । स्त्री [प्रमाणिका, प्रमाणी] | पमोअ पुं [प्रमोद] आनन्द । राक्षस-वंश के पमाणी ) छन्द-विशेष ।
एक राजा का नाम, एक लंका-पति । पमाणीकर अक [प्रमाणी+कृ] प्रमाण करना, | पमोक्ख देखो पमुंच।
सत्य रूप से स्वीकार करना । | पमोक्ख पुंन [प्रमोक्ष] मुक्ति, निर्वाण । पमाद देखो पमाय प्र+मद् ।
प्रत्युत्तर । पमाद देखो पमाय = प्रमाद ।
पम्मलाअ अक [प्र+म्लै] अधिक म्लान पमाय अक [प्र + मद्] प्रमाद करना । होना। पमार पुं [प्रमार] मरण का प्रारम्भ । बुरी
पम्माअ । वि [प्रम्लान] विशेष म्लान, तरह मारना।
पम्माइअ ) अत्यन्त मुरझाया हुआ । पमिय वि [प्रमित] परिमित, नापा हुआ ।
शुष्क । पमिलाण वि [प्रम्लान] अतिशय मुरझाया
पम्माण वि [प्रम्लान] निस्तेज, मुरझाया हुआ।
हुआ । न. फीकापन, मुरझाना। पमिलाय अक [प्र + म्ल] मुरझाना।
पम्मि पुं [दे] हाथ । पमिल्ल अक [प्र+मील] विशेष संकोच | पम्मुक्क देखो पमुक्क । करना , सकुचना।
पम्मुह वि [प्राङ्मुख] पूर्व की ओर जिसका पमीय देखो पमा प्र + मा का कर्म. ।
मुंह हो वह । पमील देखो पमिल्ल।
पम्ह पुंन [पक्ष्मन्] आँख के बाल । पद्म पमुइअ वि [प्रमुदित] हर्ष-प्राप्त ।
आदि का केसर। सूत्र आदि का अत्यल्प पमुंच सक [प्र + मुच्] परित्याग करना । भाग । पाँख । केश का अन-भाग । अग्र-भाग । पमुक्त वि [प्रमुक्त] परित्यक्त।
महाविदेह वर्ष का एक विजय-प्रदेश । न. °पमुक्ख देखो °पमुह।
एक देव-विमान । °कंत न [°कान्त] एक पमुच्छिय पुं [प्रमूच्छित] नरकावास । देव-विमान का नाम । कूड पुं [°कूट] पमुत्त देखो पमुक्क।
पर्वत-विशेष । न. ब्रह्मलोक नामक देवलोक पमुदिय देखो पमुइअ।
का एक देव-विमान । पर्वत-विशेष का एक पमुद्ध वि [प्रमुग्ध] अत्यन्त मुग्ध ।
शिखर । °ज्झय न [°ध्वज] देव-विमानपमुह वि [प्रमुख] तल्लीन दृष्टिवाला । पुं. ' विशेष । 'प्पभ न [°प्रभ] ब्रह्मलोक का एक
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५३६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पम्ह-पयंग देवविमान । °लेस, 'लेस्स न [°लेश्य] पम्हुस सक [प्र+मुष्] चोरी करना। ब्रह्मलोक-स्थित एक देव-विमान । °वण्ण न । पम्हुह सक [स्म] स्मरण करना । [°वर्ण] वही पूर्वोक्त अर्थ। °सिंग न | पम्हण वि [स्मर्तृ] स्मरण करनेवाला । [शृङ्ग] वही अर्थ । °सिट्ठ न [°सृष्ट] | पय सक [पच्] पकाना, पाक करना । वही पूर्वोक्त अर्थ । वित्त न [वर्त] वही | पय सक [पद्] जाना । जानना । विचारना । अर्थ ।
पय पुंन [पयस्] दूध । जल । हर देखो पम्ह देखो पउम। गंध वि [गन्ध] कमल |
पओहर। की गन्ध । वि. कमल के समान गन्धवाला। पय पुं [प्रज] प्राणी, जन्तु । °लेस वि [°लेश्य] पद्मा नामक लेश्या- पय पुंन [पद] विभक्ति के साथ का शब्द । वाला । लेसा स्त्री[°लेश्या पांचवीं लेश्या,
शब्द-समूह, वाक्य । पैर । पाद-चिह्न । पद्य आत्मा का शुभतर परिणाम-विशेष । "लेस्स |
का चौथा हिस्सा । निमित्त, कारण । स्थान । देखो 'लेस।
पदवी,अधिकार । शरण । प्रदेश । व्यवसाय । पम्हअ सक [प्र + स्मृ] विस्मरण होना ।
कूट, जाल-विशेष । खेम न [°क्षेम] शिव, पम्हगावई स्त्री [पक्ष्मकावती] महाविदेह
कल्याण । 'त्थ पुं [°स्थ] पदाति, पैदल । वर्ष का एक विजय. प्रदेश-विशेष ।
°पास पुं [°पाश] वागुरा, जाल आदि पम्हट्ट वि [प्रस्मृत] विस्मृत । जिसको
बन्धन । रक्ख पुं[°रक्ष] प्यादा । विग्गह विस्मरण हुआ हो।
पुं [विग्रह] पदविच्छेद । विभाग पुं. उत्सर्ग पम्हट्ठ वि [दे] प्रभ्रष्ट, विलुप्त । प्रक्षिप्त ।।
और अपवाद का यथा-स्थान निवेश, सामा. पम्हय वि [पक्ष्मज] पक्ष्म से उत्पन्न । न. एक
चारी-विशेष । वीढ देखो पायवीढ । प्रकार का सूता।
°समास पुं. पदों का समुदाय । Tणुसारि वि पम्हर पुं [दे] अपमृत्यु, अकाल मरण ।
[नुसारिन्] एक पद से अनेक अनुक्त पदों पम्हल वि [पक्ष्मल] सुन्दर पक्ष्म युक्त।
का भी अनुसन्धान करने की शक्तिवाला । पम्हल पुं [दे] किंजल्क, पद्म आदि का °ाणुसारिणी स्त्री [°अनुसारिणी] एक पद के केसर ।
श्रवण से दूसरे अश्रुत पदों का स्वयं पता पम्हलिय वि [दे. पक्ष्मलित] धवलित ।। लगानेवाली बुद्धि । पम्हस सक [वि + स्मृ भूल जाना। पय (अप) देखो पत्त = प्राप्त । पम्हा स्त्री [पद्मा] पद्म लेश्या, आत्मा का
पय देखो पया-प्रजा । °पाल वि. प्रजा का शुभतर परिणाम-विशेष । विजय क्षेत्र-विशेष ।
पालक । पुं. तूप-विशेप । पम्हार पुंदे] बेमौत मरण ।
°पय वि[प्रद] देनेवाला। पम्हावई स्त्री [पक्ष्मावती] विजय-विशेष को
पयइ स्त्री [प्रकृति] संधि का अभाव । एक नगरी । पर्वत-विशेष ।
पयइ देखो पगइ। पम्हुट्ट वि [दे] नाश-प्राप्त । विस्मृत ।
पयइंद पुं [पतगेन्द्र, पदकेन्द्र] वानव्यन्तरपम्हत्तरवडिसग न [पक्ष्मोत्तरावतंसक] जातीय देवों का इन्द्र। ब्रह्मलोक में स्थित एक देव-विमान । पयई देखो पयवी। पम्हुस सक [वि + स्मृ] भूलना ।
पयंग पुं [पतङ्ग] सूर्य । रंग-विशेष, रञ्जनपम्हुस सक [प्र + मृश्] स्पर्श करना । । द्रव्य-विशेष । शलभ, फतिंगा । पयय = पतग,
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पयंचुल-पयर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५३७ पदक, पदग। °वीहिया स्त्री [वीथिका] | पयडीकर सक [प्रकटी + कृ] प्रकट करना। शलभ का उड़ना। भिक्षा के लिए पतंग की | पयडीभूअ । वि [प्रकटीभूत] जो प्रकट तरह चलना, बीच में दो चार घरों को छोड़ते | पयडीहअ , हुआ हो । हुए भिक्षा लेना । °वीही स्त्री [°वीथी] | पयड्ढणी स्त्री [दे] प्रतीहारी। आकर्षण । वही पूर्वोक्त अर्थ ।
महिषी। पयंचुल पुन [प्रपञ्चुल] मत्स्यबन्धन-विशेष, | पयण देखो पवण ।
मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल ।। पयण देखो पडण। पयंड वि [प्रचण्ड] अत्युग्र, तीव्र, प्रखर । | पयण । न [पचन, °क] पाक, पकाना । भयानक, भयंकर।
पयणग , पकाने का पात्र । साला स्त्री पयंड वि [प्रकाण्ड] अत्युग्र, उत्कट । [°शाला] एक-स्थान । पयंप अक [प्र + कम्प्] अतिशय कांपना। | पयणु । वि [प्रतनु] कृश । सूक्ष्म । अल्प । पयंप सक [प्र + जल्प] कहना, बोलना । | पयणुअ बकवाद करना।
पयण्णय देखो पइण्णग। पयंस सक [प्र + दर्शय] दिखलाना । पयत्त अक [प्र + यत्] प्रयत्न करना । पयक्क देखो पाइक्क ।
पयत्त देखो पयट्ट = प्र+वृत । पयक्ख सक [प्रत्या+ख्या] प्रत्याख्यान पयत्त पुं प्रयत्न] चेष्टा, उद्यम, उद्योग । करना, प्रतिज्ञा करना।
पयत्त वि [प्रदत्त, प्रत्त] दिया हुआ । अनुज्ञात, पयक्खिण देखो पदक्खिण ।
सम्मत । पयक्खिणा देखो पदक्खिणा।
पयत्त देखो पयट्ट = प्रवृत्त । पयग देखो पयय = पतग, पदक, पदग । पयत्ताविअ वि [प्रवत्तित] प्रवृत्त किया हुआ। पयच्छ सक [प्र + यम्] देना, अर्पण करना । | पयत्थ पं [पदार्थ] शब्द का प्रतिपाद्य, पद का पयट्ट अक [प्र + वृत्] प्रवृत्ति करना । अर्थ । तत्त्व । वस्तु, चीज । पयट्ट वि [प्रवृत्त] जिसने प्रवृत्ति की हो वह । | पयन्न देखो पइण्ण = प्रकीर्ण । चलित ।
पयन्ना देखो पइण्णा। पयट्टय वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति करनेवाला । पयप्पण न [प्रकल्पन] कल्पना, विचार । पयट्टावअ वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति कराने- | पयय देखो पायय = प्राकृत । वाला।
पयय वि [प्रयत] प्रयत्न-शील । पयट्टाविअ वि [प्रवत्तित] प्रवृत्त किया हुआ। | पयय पुं [पतग, पदक, पदग] वानव्यन्तर पयट्टिअ वि [दे] किसी कार्य में लगाया हुआ। देवों की एक जाति । पतग देवों का दक्षिण पयट्ठाण देखो पइट्ठाण ।
दिशा का इन्द्र । 'वइ पुं [ पति] पतग देवों पयड सक [प्र + कटय] प्रकट करना, व्यक्त का उत्तर दिशा का इन्द्र । करना । विख्यात होना ।
पयय न [दे] अनिश, निरन्तर । पयडि देखो पगइ।
पयर सक [स्मृ] स्मरण करना । पयडि स्त्री [दे] मार्ग।
पयर अक [प्र + चर्] प्रचार होना। फैलना पयडिय वि [प्रपतित] गिरा हुआ।
व्याप्त होना, काम में लगना । पयडीकय वि [प्रकटीकृत] प्रकट किया हुआ । ' पयर पुं [प्रकर] समूह, सार्थ, जत्था ।
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५३८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पयर-पया पयर पुं [प्रदर] योनि का रोग-विशेष । विदा- | पयलाइया स्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले जन्तु रण, भंग । शर, बाण ।
की एक जाति । पयर देखो पइर = वप् ।
पयलाय देखो पयला = प्रचलाय् । पयर देखो पयार = प्रकार ।
पयलाय पुं [दे] महादेव । साँप । पयर देखो पयार प्रचार ।
पयलायण न [प्रचलायन] देखो पयलाइअ । पयर पुंन [प्रतर] पत्रक, पत्रा, पतरा। वृत्त पयलायभत्त पुं [दे] मोर । पत्राकार आभूषण-विशेष। गणित-विशेष, पयलिअ देखो पयडिअ। सूची से गुणी हुई सूची। भेद-विशेष, बाँस पयलिय वि [प्रदलित] तोड़ा हुआ। आदि की तरह पदार्थ का पृथग्भाव । °तप पयले सक [प्र = चालय] चलायमान करना । पुन [तपस्] तप-विशेष । °वट्ट न [°वृत्त] | पयल्ल अक [प्र+स] पसरना, फैलना । संस्थान-विशेष ।
पयल्ल अक [कृ] शिथिल करना, ढीला होना । पयर न [प्रतर] गणित-वशेष, श्रेणी से गुनी । | लटकना। हुई श्रेणी।
पयल्ल वि [प्रसृत] फैला हुआ। पयरण न [प्रकरण] प्रस्ताव, प्रसंग । एकार्थ- पयल्ल पुं [प्रकल्य] महाग्रह-विशेष ।
प्रतिपादक ग्रन्थ । एकार्थ-प्रतिपादक ग्रन्थांश । पयव सक [प्र + तप, तापय्] तपाना । पयरण न [प्रतरण] प्रथम दातव्य भिक्षा । पयव सक [पा] पीना, पान करना । पयरिस देखो पयंस।
पयवई स्त्री [दे] सेना, लश्कर । पयरिस देखो पगरिस।
पयवि स्त्री [पदवि] देखो पयवी। पयल अक [प्र + चल] चलना। स्खलित
पयवी स्त्री [पदवी] रास्ता । बिरुद, होना ।
पदवी। पयल देखो पयड - प्र + कटय् ।
पयह सक [प्र + हा] त्याग करना, छोड़ना । पयल देखो पयड प्रकट ।
पयहिण देखो पदक्षिण = प्रदक्षिण । पयल (अप) सक [प्र + चालय] चना । | पया सक [प्र+ जनय] प्रसव करना, जन्म गिराना।
देना। पयल वि [प्रचल] चलायमान, चलनेवाला। पया सक [प्र+या] प्रस्थान करना । पयल पुं [दे] नीड़।
| पया स्त्री [दे] चुल्ली, चुल्हा । पयल° ) स्त्री [दे. प्रचला] नींद । बैठे-बैठे | पया स्त्री. ब. [प्रजा] वशवर्ती मनुष्य, रैयत । पयला और खड़े-खड़े जो नींद आती है जन-समूह । जन्तु-समूह । सन्तान वाली स्त्री। वह । जिसके उदय से बैठे-बैठे और खड़े खड़े सन्तान । °णंद पुं [°नन्द] एक कुलकर नींद आती है वह कर्म । °पयला स्त्री पुरुष का नाम । °नाह पुं [°नाथ] राजा । [दे. प्रचला] जिसके उदय से चलते चलते "पाल पुं. एक जैन मुनि जो पाँचवें बलदेव के निद्रा आती है वह कर्म । चलते-चलते आने- पूर्वजन्म में गुरु थे। वइ पुं [°पति] वाली नोद ।
विधाता। प्रथम वासुदेव के पिता का नाम । पयला अक [प्रचलाय] निता लेना।
रोहिणी-नक्षत्र का अधिष्ठायक देव । दक्ष, पयलाइअ न [प्रचलायित] नींद के कारण | कश्यप आदि ऋषि । नरेश । रवि । अग्नि । बैठे-बैठे सिर का डोलना।
त्वष्टा। पिता। कीट-विशेष । जामाता।
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पयाइ- पर
अहोरात्र का उन्नीसवाँ मुहूर्त्त । पयाइ पुं [ पदाति] पाँव से ( पैदल चलनेवाला पयास (अप) नीचे देखो ।
सैनिक |
पयाग पुंन [ प्रयाग ] तीर्थ-विशेष, जहाँ गंगा और यमुना का संगम है ।
पयाण न [ प्रदान ] दान, वितरण । पयाण न [ प्रतान] विस्तार |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पयाण न [ प्रयाण] प्रस्थान, गमन । पयाम देखो पकाम ।
पयाम न [दे] अनुपूर्व, क्रमानुसार 1
पयाय देखो पयाग ।
वह |
पयाय वि [ प्रजात] उत्पन्न, संजात |
पायवि [ प्रजात, प्रजनित] प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह |
पयाय देखो पयाव = प्रताप ।
पयार सक [ प्र + चारय् ] प्रचार करना । पयार सक [प्र + तारय् ] ठगना ।
पयार पुं [ प्रकार ] भेद, किस्म । ढंग, रीति, तरह ।
पयारपुं [प्राकार] दुर्ग ।
पयार पुं [प्रचार संचार, संचरण । प्रसार । प्रकर्ष - प्राप्ति । आचरण, आचार ।
पयाल पुं [पाताल] भगवान् अनन्तनाथजी का
शासन-यक्ष ।
पयाव सक [ प्र + तापय् ] गरम करना । पयाव पुं [ प्रताप ] तेज, प्रखरता । प्रकृष्ट
ताप, प्रखर ऊष्मा |
पयावण न [ पाचन ] पकवाना, पाक करना । पयावण न [ प्रतापन ] तपाना । अग्नि । पयावि वि [ प्रतापिन् ] प्रताप - शाली । पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम । पयास सक [ प्र + काशय् ] व्यक्त करना । चमकाना । प्रसिद्ध करना ।
पयास देखो पगास - प्रकाश ।
पयास पुं [प्रयास] प्रयत्न, उद्यम ।
पय्यवत्थाण (शौ) न [पर्यवस्थान] प्रकृति में
अवस्थान |
पयाय वि [ प्रयात] जिसने प्रयाण किया हो | पर सक [ भ्रम् ] भ्रमण करना, घूमना ।
पर देखो प = प्र ।
५३९
पयासग वि [ प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला । पयासण न [ प्रकाशन ] प्रकाश-करण | वि. प्रकाशक, प्रकाश करनेवाला |
पयासय देखो पयासग । पयाहिण देखो पदक्खिण = प्रदक्षिण । पयाहिण देखो पदक्खिण = प्रदक्षिणय् । पयाहिणा देखो पदक्खिणा ।
पर विभिन्न, इतर । तत्पर, तल्लीन । श्रेष्ठ,
दूरवर्ती ।
प्रधान । प्रकृष्ट । उत्तरवर्ती । अनात्मीय । पुं. शत्रु । न. फक्त
।
"उट्ठ वि
पुं. कोकिल
[तीर्थिक ] पुं [देश] ['तस्] बाद में,
[पुष्ट ] अन्य से पालित । पक्षी । 'उत्थिय वि भिन्न दर्शनवाला | एस विदेश | 'ओ अ परली — दूसरी तरफ | इतर में । अन्य से । fara [ गणय ] भिन्न गण से सम्बन्ध रखनेवाला । गरिहंझाण न [° गर्हाध्यान] इतर की निन्दा का विचार । धाय पुं [घात] दूसरे को आघात पहुँचाना । पुंन: जिसके उदय से जीव अन्य बलवानों की दृष्टि में भी अजेय समझा जाता है वह कर्म । 'चित्तणु व [चित्तज्ञ ] अन्य के मन के भाव को जाननेवाला । च्छंद, छंद पुं [च्छन्द ] अन्य का आशय । पराधीन । जाणुअवि [' ज्ञ] पर को जाननेवाला । प्रकृष्ट जानकार | [] परोपकार | 'ट्ठा स्त्री [T] दूसरे के लिए । णिदंझाण न [निन्दाध्यान] अन्य की निन्दा का चिन्तन | णुअ देखो 'जाणुअ । 'तंत वि [°तन्त्र] पराधीन | 'तित्थि देखो
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष °उत्थिय । तीर न. सामनेवाला किनारा ।। खूब पान करनेवाला । खूब सूखनेवाला । पुं. °त्त न [°त्व] पार्थक्य । वैशेषिक दर्शन में | प्रावृट् काल का यवास वृक्ष । मद्य-व्यसनी । प्रसिद्ध गुण-विशेष । त्त अ[°त्र] परलोक में । | °वाय वि [°वाद] सुस्थिर । °वाय वि न. जन्मान्तर । 'त्थ अ [१] जन्मान्तर | [°व्यातृ] श्रेष्ठ आच्छादक । पुं. वस्त्र । में । °त्थ देखो 'ट्ठ। 'त्थी स्त्री [स्त्री] °वाय वि [°वात] प्रकृष्ट वहन करनेवाला। परकीय स्त्री । दार पुन. परकीय स्त्री । दारि। पुं. उत्तम जुलाहा । महान् पवन । °वाय वि वि [ दारिन्] परस्त्री-लम्पट । °पक्ख वि | [°व्यागस्] गुरुतर अपराधी । °वाय वि [°पक्ष] भिन्न धर्म का अनुयायी । परिवाइय। [°व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला । °वाय वि वि [°परिवादिक] पर-निन्दक । परिवाय
[°वाक] जहाँ पर प्रकृष्ट बक-समूह हो वह पुं[°परिवाद] पर के गुण-दोषों का विप्रकीर्ण स्थान । न. मत्स्यपरिपूर्ण सरोवर । °वाय वि वचन । इतर के दोषों का परिकीर्तन । अन्य [°व्याय] श्रेष्ठ वायुवाला। जहाँ पर पक्षियों के सद्गुणों का अपलाप । परिवाय पुं
का विशेष आगमन होता हो वह । पुं. अनुकूल [°परिपात] अन्य का पातन, दोषोद्घाटन- ।
पवन से चलता जहाज। सुन्दर घर । वनद्वारा दूसरे को गिराना । पुटु देखो °उटु । प्रदेश । “वाय वि [°ाबाय] जहाँ पानी का °भव पुं. आगामी जन्म। भविअ वि प्रकृष्ट आगमन हो वह । न. समुद्र का मुंह । [भविक आगामी जन्म से सम्बन्ध रखने- पुं. महासागर । °वाय वि [°व्याज] अन्य के वाला । °भाग पुं. श्रेष्ठ अंश । अन्य का पास-विशेष गमन करनेवाला। प्रार्थनाहिस्सा । अत्यन्त उत्कर्ष । महेला स्त्री.उत्तम परायण । °वाय वि [°पाय] अत्यन्त हीनस्त्री। परकीय स्त्री। यत्त देखो °ायत्त । भाग्य । नित्य-दरिद्र । °वाय वि [°वाप] लोअ, °लोग पुं[लोक] इतर जन, स्वजन
प्रकृष्ट वपनवाला । पुं. कृषक । “वाय वि से भिन्न । जन्मान्तर । °वस वि [°वश] ["पाप] महापापी । हत्या करनेवाला । परतन्त्र । °वाइ पुं[वादिन] इतर दार्श- "वाय पुं [°ापाक] कुम्भकार । मुक्त जीव । निक । °वाय पुं [°वाद] इतर दर्शन, भिन्न पहली तीन नरक-भूमि । °वाय वि [°ापाग] मत । श्रेष्ठ वादी । °वाय पुं [°वाच] सज्जन ।
वृक्ष-रहित । °वाय वि [°वाज्] शत्रु नाशक । वि. श्रेष्ठ वाणीवाला। °वाय वि [ वाज] °वाय पुं [°पाद] महान् वृक्ष, बड़ा पेड़ । श्रेष्ठ गतिवाला । पुं. श्रेष्ठ अश्व । °वाय वि °वाय वि [ पात्] प्रकृष्ट पैरवाला । 'वाय [°ावाय] जानकार, ज्ञानी । °वाय वि वि [°वाच] फलित शालि । °वाय वि [पाक]सुन्दर रसोई बनानेवाला। पुं. रसो- [°ावाप] विशेष भाव से शत्रु की चिन्ता इया । °वाय पुं [°पात] जुआड़ी। अशुभ करनेवाला । पुं. अमात्य । योद्धा । °वाय वि समय । °वाय पुं [°व्याद] ब्राह्मण । वाय
[पात] जो प्रारम्भ में ही सुन्दर हो वह । पुं ["वाय] धनाढ्य तन्तुवाय । °वाय वि 'वाय वि [°वाय] श्रेष्ठ विवाहवाला । °वाय [°वात] प्रकृष्ट समूहवाला । न. सुभिक्ष समय वि [°पाय] जिसकी रक्षा का उत्तम प्रबन्ध हो का धान्य । °वाय [वात] ग्रीष्म समय वह । अत्यन्त प्यासा । पुं. राजा। °वाय का जलधि-तट । °वाय पुं [°व्याच] धूर्त । वि [°व्यात] इतर के पास विशेष वमन करने °वाय वि [°पाय] भनीतिवाला । °वाय वि वाला। पुं. भिक्षुक, याचक । °वाय वि [°वाक] वेदज्ञ । °वाय वि [°पात] दयाल । [°पायस्] दूसरे की रक्षा के लिए हथियार
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पर-परम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रखनेवाला। पुं. सुभट । वाया स्त्री वाला । [°व्याजा] वेश्या । °वाया स्त्री [°व्यागस्] परंमुह वि [पराङ्मुख] विमुख । कुलटा । °वाया स्त्री [°व्यापा] अन्तिम | परकीअ समुद्र की स्थिति । °वाया स्त्री [पाता] परकेर । वि [परकीय] अन्य-सम्बन्धी । धूर्त-मैत्री । °वाया स्त्री[°वाया] नृप-कन्या। परक्क ) °वाया स्त्री [°ापागा] मरु-भूमि । °वाया | परक्क न [दे] छोटा प्रवाह । स्त्री [°वाच] कश्मीर-भूमि । वाया स्त्री | परक्त वि [पराक्रान्त] जिसने पराक्रम किया [°वाज्] नृप-स्थिति । °वाया स्त्री [°पात्] | हो वह । अन्य से आक्रान्त । न. पराक्रम, शतपदी, जन्तु-विशेष । °वाया स्त्री [°व्यावा] बल । उद्यम, प्रयत्न । भेरी, वाद्य-विशेष । °विएस पुं [°विदेश] | परक्कम अक [परा+क्रम्] पराक्रम करना । परदेश । °व्वस देखो °वस । °संतिग वि | सक. जाना। आसेवन करना । अक. प्रवृत्ति ["सत्क] परकीय । समय पं. इतर दर्शन । करना। का सिद्धान्त । हुअ वि [°भृत] अन्य से परकम पापराक्रम] गर्त आदि से भिन्न मार्ग । पालित । पुंस्त्री.कोयल । घाय देखो 'घाय। |
पुन. वीर्य, बल, सामर्थ्य । उत्साह । चेष्टा, °धीण देखो "हीण । यत्त वि ["यत्त]
प्रयत्न । शत्रु का नाश करने की शक्ति । परपराधीन । 'हीण वि [°ाधीन] परतन्त्र । आक्रमण, पर-पराजय । गमन, गति । मार्ग । पर° देखो परा = अ ।
परग न [दे. परक] तृण-विशेष, जिससे फूल परं अ [परम्] किन्तु । उपरान्त । केवल । गूंथे जाते हैं । धान्य-विशेष । परं अ [परुत्] आगामी वर्ष ।
परग वि [पारग] परग तृण का बना हुआ । परंग सक [ परि + अङ्ग ] गति करना।।
परगासय वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला । परंगमण न [पर्यङ्गन] पाँव से चलना।
परग्घ वि [परार्घ] बहुमूल्य । परंगामण न [पर्यङ्गन] चलाना । परज्ज (अप) सक [परा+जि] हराना । परंतम वि [परतम] अन्य का हैरान-कर्ता । परज्झ वि [दे] पर-वश । परंतम वि [परतमस्] अन्य पर क्रोध करने- परट्ट देखो परिअट्ट = परिवर्त । वाला । अन्य-विषयक अज्ञानी ।
परडा स्त्री [दे] सर्प-विशेष । परंतु अ [परन्तु] किन्तु ।
परदारिअ पुं पारदारिक] परस्त्री-लम्पट । परंदम वि [परन्दम] अन्यपीड़क । अन्य को परद्ध वि [दे] पीड़ित, दुःखित । पतित । शान्त करनेवाला । अश्व आदि को सिखाने- | भीरु । व्याप्त । वाला।
परप्पर देखो परोप्पर । परंपर । वि [परम्पर] भिन्न-भिन्न ।। परब्भवमाण देखो पराभव का वकृ. । परंपरग व्यवहित । पुंन. परम्परा, अवि- | परभत्त वि [दे] डरपोक । परंपरय , च्छिन्न धारा ।
परभाअ ' [दे] मैथुन । परंपरा स्त्री [परम्परा] अनुक्रम, परिपाटी। परम वि. उत्कृष्ट, सर्वाधिक । सर्वोत्तम । अविच्छिन्न धारा, प्रवाह । निरन्तरता । व्यव- अत्यन्त । मुख्य । पुं. मोक्ष । संयम, चारित्र । धान ।
न. सुख । लगातार पाँच दिनों का उपवास । परंभरि वि [परम्भरि] दूसरे का पेट भरने- 8 [°Tर्थ] सत्य पदार्थ, वास्तविक चीज ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परमाहम्मिय-पराण मुक्ति । संयम, चारित्र । पुन. देखो नीचे 'त्थ | परवाय वि [प्रारवाय] श्रेष्ठ गाना गाने= °ार्थ । त्थ न [Tर्थ] तत्त्व, सत्य । देखो वाला । पुं. उत्तम गवैया । "ट्ट। 'त्थ न स्त्र] सर्वोत्तम हथियार, परवाय पुं [प्ररपाज] वह घर जहाँ अनाज अमोघ अस्त्र । ° 'सि वि [°दर्शिन्] । मोक्ष- संगृहीत किया जाता है, कोठार, बखार । मार्ग का जानकार । न्न न. खीर, दुग्ध-प्रधान परवाया स्त्री [प्ररवाप्] पहाड़ी नदी। मिष्ट भोजन । एक दिन का उपवास | °पय परस (अप) देखो फास = स्पर्श । 'मणि पुं. न [ °पद ] मोक्ष । °प्प पुं [ °ात्मन् ] रत्न-विशेष जिसके स्पर्श से लोहा सुवर्ण होता सर्वोत्तम आत्मा, परमेश्वर । °प्पय देखो है । °पय। 'प्पय देखो °प। 'प्पया परसण्ण (अप) देखो पसण्ण । स्त्री [°ात्मता] मुक्ति । °बोधिसत्त पुं परसु पुं [परशु] अस्त्र-विशेष, कुठार, [°बोधिसत्त्व] अर्हन् देव का परम भक्त । कुल्हाड़ी । राम पु. जमदग्नि ऋषि का पुत्र °संखिज्ज न [°संख्येय] संख्या-विशेष । जिसने इक्कीस बार निःक्षत्रिय पृथिवी °सोमणस्सिय वि [°सौमनस्थित] सर्वोत्तम | की थी। मनवाला, सन्तुष्ट मनवाला । "सोमणस्सिय | परसुहत्त पुं [दे] वृक्ष, दरख्त । वि [°सौमनस्यिक] वही अर्थ । हेला स्त्री परस्सर पुंस्त्री [दे. पराशर] गेंडा, पशुउत्कृष्ट तिरस्कार । उ न [°ायुस्] लम्बा विशेष । आयुष्य । जीवित काल । ‘णु पुं. सर्व-सूक्ष्म | परहुत्त वि [पराभूत पराजित । वस्तु । °ाहम्मिय [°आधार्मिक] असुर-विशेष,
परा अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-सम्मुखता । नारक जीवों को दुःख देनेवाले देवों की एक
त्याग । धर्षण । प्राधान्य । विक्रम । गति । जाति । होहिअ वि [°धिोवधिक] अवधि
भङ्ग । अनादर । तिरस्कार । प्रत्यावर्तन । ज्ञान-विशेषवाला।
अत्यन्त । परमाहम्मिय वि [परमधार्मिक] सुख का
परा स्त्री [दे. परा] तृण-विशेष । अभिलाषी।
पराइ सक [परा + जि] हराना। परमिट्ठि पुं [परमेष्ठिन्] ब्रह्मा । अर्हन्, सिद्ध,
पराइअ वि [पराजित] पराभव-प्राप्त । आचार्य, उपाध्याय और मुनि ।
पराइअ (अप) वि [परागत] गया हुआ । परमुक्क वि [परामुक्त] परित्यक्त ।
पराइण देखो पराजिण । परमुवगारि ! वि [परमोपकारिन्] बड़ा
पराई स्त्री [परकीया] वह नायिका जो परपरमुवयारि , उपकार करनेवाला।
पुरुष से प्रेम करे । देखो पराय = परकीय । परमुह देखो परम्मुह। परमेट्टि देखो परमिटि।
पराकम देखो परक्कम । परमेसर पुं [परमेश्वर] सर्वेश्वर्य-सम्पन्न ।
पराकय वि [पराकृत] निरस्त । परम्मुह पुं [पराङ्मुख] विमुख, उदासीन । ।
| परोकर सक [परा + कृ] निराकरण करना । परय न [परक] आधिक्य, अतिशय । पराजय पुं [पराजय] अभिभव । परलोइअ वि [पारलौकिक] जन्मान्तर- पराजय | सक [परा +जि] पराजय सम्बन्धी।
पराजिण ) करना, हराना। परवाय वि [प्ररवाज] प्रकृष्ट शब्द से प्रेरणा | पराजिय देखो पराइअ = पराजित । करनेवाला । पुं. सारथि ।
| पराण देखो पाण - प्राण ।
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पराणग-परिअट्टिय क्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पराणग वि [परकीय] दूसरे का।
समीपता। विनिमय । अतिशय, विशेष । पराणिय वि [पराणीत] पहुँचा हुआ । सम्पूर्णता । बाहरपन । ऊपर । बाकी । पूजा । पराणी सक [परा + णी] पहुँचाना । व्यापकता । निवृत्ति । शोक । किसी प्रकार परानयण न [पराणयन] पहुँचाना। की प्राप्ति । आख्यान । सन्तोष-भाषण । अलंपराभव सक [परा + भू] हराना ।
करण। आलिंगन । नियम । प्रतिषेध । पराम? देखो परामुट्ठ।
निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है । परामरिस सक [परा + मृश्] विचार करना, परि देखो पडि = प्रति । विवेचन करना । स्पर्श करना । आच्छादित परि स्त्री [दे] गीति, गीत । करना । पोंछना । लोप करना ।
परि सक [क्षिप्] फेंकना । परामरिस पुं. [परामर्श] विवेचन, विचार ।
परिअंज सक [परि + भञ्ज्] तोड़ना । युक्ति, उपपत्ति । स्पर्श । न्यायशास्त्रोक्त
परिअंत सक [श्लिष्] आलिंगन करना । संसर्ग व्याप्ति-विशिष्ट रूप से पक्ष का ज्ञान ।
करना। परामिट्ठ। वि [परामष्ट] विचारित, विवे- परिअंत देखो पज्जंत । परामुट्ठ । चित । छुआ हुआ ।
परिअंतणा स्त्री [परियन्त्रणा] अतिशय परामुस देखो परामरिस ।
यन्त्रणा। पराय अक [प्र + राज्] विशेष शोभना ।
परिअंभिअ वि [परिजृम्भित] विकसित । पराय पुं[पराग] धूली । पुष्प-रज।
परिअट्ट अक [परि + वृत्त] पलटना, बदलना। पराय ) वि [परकीय] पर-सम्बन्धी ।
फिर-फिर होना । परायग
परिअट्ट सक [परि + वर्तय] पलटाना, परायण वि. तत्पर ।
बदलाना । आवृत्ति करना, पठित पाठ को परारि अ. आगमी तीसरा वर्ष ।
याद करना । फिराना, धुमाना। पराल देखो पलाल।
परिअट्ट सक [परि + अट्] संचरण करना । पराव (अप) सक [प्र+आप्] प्राप्त करना ।
परिभ्रमण करना, घूमना। परावत्त अक [परा+वृत्] बदलना, पलटना ।
परिअट्ट पुं [दे] धोबी। पीछे लौटना।
परिअट्ट पुं [परिवर्त] पलटाव, बदला। समय परावत्त सक [परा+वर्तय ] फिराना । ___ का परिणाम-विशेष, अनन्त उत्सपिणी और आवृत्ति करना।
अवसर्पिणी काल। परासर पुं [पराशर] पशु-विशेष । ऋषि- परिअट्टग वि [परिवर्तक] परिवर्तन करनेविशेष ।
वाला। परासु वि. मृत।
परिअट्टण न [परिवर्तन] पलटाव, बदला पराहव देखो पराभव = पराभव ।
करना । द्विगुण, त्रिगुण आदि उपकरण । पराहुत्त वि [दे. पराङ्मुख] विमुख । परिअट्टय वि [पर्यटक] परिभ्रमण करनेवाला । पराहुत्त । वि [पराभूत] हराया हुआ । परिअलिअ वि [दे] परिच्छिन्न ।
परिअट्टविअ वि [दे] परिच्छिन्न । परि अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-सर्वतो- परिअट्टिय वि [परिवर्तित] बदलाया हुआ। भाव, चारों ओर । परिपाटी । पुनः-पुनः । देखो परिअत्तिअ ।
पराहू
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परिअड-परिकड्ढ परिअड सक [परि +अट]परिभ्रमण करना । | परिआरअ वि [परिचारक] सेवक, भृत्य । परिअडि स्त्री [दे] वृति, बाड़ । वि. मूर्ख । परिआल सक [वेष्टय] वेष्ट न करना, लपेटना । परिअड्डिअ वि [दे] प्रकटित ।
परिआल वि [दे] परिवृत, परिवेष्टित । परिअड्ढ अक [परि + वृध्] बढ़ना । परिआल देखो परिवार। परिअड्ढ सक [परि + वर्धय] बढ़ाना। परिआव देखो परिताव। परिअड्ढिअ वि [परिवधिन्, 'क] बढ़ाने- | परिआविअ सक [पर्या + पा] पीना। वाला।
परिआसमंत (अप) अ [पर्यासमन्तात् चारों परिअड्ढिअ वि [पर्याढ्यक] परिपूर्ण । ओर से। परिअड्ढिअ वि [परिकर्षिन्, °क] खींचने- परिइ सक [परि + इ] पर्यटन करना । वाला, आकर्षक ।
परिइण्ण वि [परिकीर्ण] व्याप्त । परिअड्ढिअ वि[परिकृष्ट] खींचा हुआ। परिइद (शौ) वि[परिचित] परिचय-विशिष्ट, परिअण पं परिजन परिवार । अनुचर। __ ज्ञात, पहचाना हुआ। परिअत्त देखो परिअंत - श्लिष् । परिउंब सक [परि +चुम्ब्] सर्वतः चुम्बन परिअत्त देखो परिअट्ट = परि + वृत् । करना। परिअत्त देखो परिअट्ट = परि + वर्तम् । परिउट्ठ वि [परितुष्ट] विशेष तुष्ट । परिअत्त देखो परिअद्र परिवर्त । परिउत्थ वि [दे] प्रोषित, प्रवास-गत । परिअत्त वि दे] प्रसृत, फैला हुआ। परिउसिअ वि [पर्युषित] बासी, ठण्ढा, भाफ परिअत्त वि [परिवृत्त] पलटा हुआ। निकला हुआ (भोजन)। परिअत्तण देखो परिअट्टण ।
परिऊढ विदे. परिगढ] क्षाम, कूश । परिअत्तमाणी स्त्री [परिवर्तमाना] वह कर्म- | परिऊरण न [परिपूरण] परिपूत्ति । प्रकृति जो अन्य प्रकृति के बन्ध या उदय को | परिएस देखो परिवेस = परि + विष् । रोक कर स्वयं बन्ध या उदय को प्राप्त | परिएस देखो परिवेस = परिवेश । होती है।
परिओस सक [परि +तोषय्] सन्तुष्ट करना, परिअत्ता स्त्री [परिवर्ता] ऊपर देखो। खुशी करना। परिअत्तिअ वि [परिवर्तित] मोड़ा हुआ। परिओस पुं [परितोष]आनन्द, सन्तोष । देखो परिअद्रिय।
| परिओस पुं दे. परिद्वेष] विशेष द्वेष । परिअर सक [परि + चर्] सेवा करना । परित देखो परी = परि + इ का वकृ. । परिअर वि [दे] निमग्न ।
| परिकंख सक [परि+काङ्क्ष] विशेष अभिपरिअर पुं [परिकर] कटि-बन्धन ।
लाषा करना । प्रतीक्षा करना। परिअर पुं [परिचर] भृत्य ।
परिकंद पुं [परिक्रन्द] आक्रन्द, चिल्लाहट । परिअरिय वि [परिकरित, परिवृत] परि- परिकंपि वि [परिकम्पिन्] अतिशय कॅपानेवार-युक्त । परिवेष्टित ।
वाला। परिअल सक [गम्] जाना, गमन करना। परिकच्छिय वि [परिकक्षित] परिगृहीत । परिअल ) पुंस्त्री [दे] थाल, थलिया, परिकट्टलिअ वि [दे] एकत्र पिण्डीकृत । परिअलि भोजन-पात्र ।
| परिकड्ढ सक [परि + कृष्] पार्श्व भाग में परिअल्ल देखो परिअल ।
खींचना । प्रारम्भ करना ।
गट बन्धन ।
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परिकप्प-परिगह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५४५ परिकप्प सक [परि + कल्पय्] निष्पादन | परिक्षण न [परीक्षण] परीक्षा । करना। कल्पना करना।
परिक्खल अक[परि + स्खल] स्खलित होना । परिकप्पिय वि [परिकल्पित] छिन्न, काटा | परिक्खा स्त्री [परीक्षा] परख, जांच । हुआ । देखो परिगप्पिय ।
परिक्खाइअअ वि [दे] परिक्षीण । परिकब्बुर न [परिकर्बुर] चितकबरा। । परिक्खाम वि [परिक्षाम] अतिशय कृश । परिकम्म । न [परिकर्मन्] गुण-विशेष | परिक्खित्त वि [परिक्षिप्त] वेष्टित, घेरा परिकम्मण का आधान, संस्कार-करण । हुआ । सर्वथा क्षिप्त । चारों ओर से व्याप्त । संस्कार का कारण-भूत शास्त्र । गणित- | परिक्खिव सक [परि + क्षिप्] वेष्टन करना । विशेष । एक तरह की गणना । निष्पादन । तिरस्कार करना। व्याप्त करना । फेंकना । परिकर देखो परिअर = परिकर ।
परिक्खेव वि [परिक्षेप] घेरा, परिधि । परिकलण न [परिकलन] उपभोग । परिखंध पुं [दे] कहार, जलादि-वाहक, नौकर। परिकलिअ वि [परिकलित] युक्त, सहित । | परिखज्ज सक [परि + खर्ज] खुजाना । व्याप्त । प्राप्त ।
परिखण न [परीक्षण] परीक्षा-करण । परिकवलणा स्त्री [परिकवलना] भक्षण । परिखविय वि [परिक्षपित] परिक्षीण । परिकसण न [परिकर्षण] खींचाव।। परिखित्त देखो परिक्खित्त । परिकह सक [परि + कथय] प्ररूपण करना, | परिखिव देखो परिक्खिव । कहना । आख्यान करना ।
परिखेइय वि [परिखेदित] विशेष खिन्न परिकहा स्त्री [परिकथा] बातचीत । वर्णन । | किया हुआ। परिकित्तिअ वि [परिकीर्तित] श्लाषित ।। परिगण सक [परि ! गणय्] गणना करना । परिकिन्न वि [परिकीर्ण] वेष्टित । । चिन्तन करना, विचार करना । परिकिलेस सक [परि + क्लेशय] दुःखी | परिगप्पण न [परिकल्पन] कल्पना ।
करना, हैरान करना । बाधा करना। | परिगप्पिय वि [परिकल्पित] जिसकी कल्पना परिकीलिर वि [परिक्रीडितु] अतिशय क्रीड़ा | की गई हो वह । देखो परिकप्पिय । करनेवाला।
परिगम सक [परि + गम्] जाना, गमन परिकुंठिय वि [परिकुण्ठित] जड़ीभूत । करना । चारों ओर से वेष्टन करना । व्याप्त परिक्वंत वि [पराक्रान्त] पराक्रम-युक्त। करना । परिक्कम सक [परि + क्रम्] पांव से चलना । | परिगमण न [परिगमन] गुण. पर्याय । समीप में जाना। पराभव करना। अक. | समन्ताद् गमन । पराक्रम करना।
परिगमिर वि [परिगन्त] जानेवाला। परिक्वहि देखो परिकहि।
| परिगय वि [परिगत] परिवेष्टित । व्याप्त । परिक्काम देखो परिक्कम = परि + कम् ।। परिगर पुं [परिकर] परिवार । परिक्ख सक [परि + ईक्ष्] परखना । परिगरिय वि [परिकरित] देखो परिअरिय। परिक्खअ वि [परीक्षक परीक्षा करनेवाला। परिगल अक [परि + गल्] गल जाना, क्षीण परिक्खअ वि [परिक्षत] आहत ।
होना । झरना, टपकना । परिक्खअ पुं [परिक्षय] क्रमशः हानि । परिगह देखो परिगेण्ह । नाश ।
| परिगह देखो परिग्गह।
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५४६
परिगा सक [ परि + गै] गान करना । परिगालण न [परिगालन] गालन, छानन । परिगिज्जमाण देखो परिगा का कृ. । परिगिज्झ परिगिज्झिय
परिगेह का कृ. 1
परिगिह देखो परिगेह । परिगिला अक [ परि + ग्लै] ग्लान होना । परिगुणक [ परि + गुणय् ] परिगणन करना, गिनती करना | स्वाध्याय करना । परिगुव अक [परि + गुप्] व्याकुल होना ।
सक. सतत भ्रमण करना ।
परिक [परि + गु] शब्द करना ! परिगुव्व अक [ परि + गुज्] व्याकुल होना
सक. सतत भ्रमण करना ।
परि क [परि + ] शब्द करना । परिगेण्ह [परि + ग्र] ग्रहण करना, 7 परिग्गह स्वीकार करना । परिग्गय देखो परिगय ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
(आवाज) ।
परिघट्टक [परि + घट्ट आघात करना । परिघट्टण न [ परिघटन] निर्माण, रचना | परिघट्ट व [परिघृष्ट] घिसा हुआ । परिघाय देखो परीघाय परिघास सक [ परि + घासय् ] जिमाना । परिघासिय वि[ परिघर्षित ] परिघर्ष युक्त । परिघुम्मिर वि [परिघूर्णितु] शनैः-शनैः
काँपता, हिलता, डोलता । परिघेत्तुं देखो परिगेण्ड का हेकृ. ।
परिगा - परिच्छित्ति
परिघोल सक [परि + घूर्णं ] डोलना । परि
भ्रमण करना ।
परिघोलण न [ दे. परिघोलन] विचार | परिचअ देखो परियय - परिचय | परिचअ देखो परिचअ । परिचत्त देखो परिचत्त ।
परिचरणा स्त्री. [परिचरणा] सेवा, भक्ति । परिचारअवि [ परिचारक ] सेवक । परिचारणा स्त्री. मैथुन प्रवृत्ति । परिचिट्ठ अक [परि + स्था] रहना,
स्थिति
1
परिग्गह पुं [परिग्रह] ग्रहण, स्वीकार । धन आदि का संग्रह | ममल, मूर्च्छा। ममत्वपूर्वक जिसका संग्रह किया जाय वह । 'वेरमण न [ "विरमण ] परिग्रह से निवृत्ति |
सम्बन्धी क्रिया ।
परिघग्घर वि [परिघर्घर ] बैठी हुई
वंत व [व] परिग्रह-युक्त | परिग्गहिया स्त्री [पारिग्रहिकी ] परिग्रह- परिचिअ वि [दे] उत्क्षिप्त, ऊपर फेंका हुआ । परिचि देखो परिचिय । परिच्छ देखो परिक्ख । परिच्छग वि [परीक्षक] परीक्षा- कर्त्ता । परिच्छण्ण वि [परिच्छन्न] आच्छादित | परिच्छद युक्त, परिवार सहित । परिच्छय वि [ परीक्षक] परीक्षा करनेवाला । परिच्छिद क [ परि + छिद्] निश्चय करना, निर्णय करना । काटना |
करना ।
परिचिय वि [परिचित ] ज्ञात, जाना हुआ, चिह्ना हुआ, पहिचाना हुआ । परिचुंब देखो परिडंब |
परि क [ परि + त्यज् ] छोड़ देना । परिचत वि [ परित्यक्त] जिसका परित्याग किया गया हो वह ।
परिचाइ वि [परित्यागिन् ] परित्याग करने
वाला ।
परिचाग
पुं [ परित्याग ] त्याग, मोचन !
परिचाय परिचाय वि [ परित्याज्य ] त्याग करने
लायक ।
परिच्छिण्ण वि [परिच्छिन्न ] काटा हुआ । निर्णीत निश्चित ।
परिच्छित्ति स्त्री [परिच्छित्ति ] परिच्छद, निर्णय | परीक्षा, जाँच |
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परिच्छूट-परिणाम संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५४७ परिच्छूढ वि [दे. परिक्षिप्त] उत्क्षिप्त, फेंका | परिदृव सक [परि + स्थापय्] परित्याग हुआ। परित्यक्त ।
करना । संस्थापन करना । परिच्छेअ पुं [परिच्छेद] निर्णय, निश्चय । परिवण न [प्रतिष्ठापन] प्रतिष्ठा कराना । परिच्छेअ वि [दे. परिच्छेक] लघु, छोटा। परिठ्ठा देखो पइट्टः ।। परिच्छेअग वि [परिच्छेदक] निश्चय-कर्ता। परिहाइ वि [परिठापिन्] परित्यागी। परिच्छेज्ज वि [परिच्छेद्य] वह वस्तु जिसका परिहाण न [परिस्थान] परित्याग । क्रय-विक्रय परिच्छेद पर निर्भर रहता है- परिट्ठाव देखो परिव। रत्न, वस्त्र आदि द्रव्य ।
परिट्टावअ वि [परिस्थापक] परित्याग करनेपरिच्छेद देखो परिच्छेअ = परिच्छेद । वाला। परिच्छेदग देखो परिच्छेअग।
परिटिअ वि [परिस्थित] सम्पूर्ण रूप से परिच्छोय वि [परिस्तोक] अल्प ।
स्थित । परिछेज्ज देखो परिच्छेज्ज ।
परिटिअ देखो पइट्टिय। परिजडिल वि [परिजटिल] अतिशय जटिल । परिठव देखो परिव । परिजण देखो परिअण।
परिठवण देखो परिवण = परिष्ठापन । परिजव सक [परि + विच्] पृथक् करना। परिण देखो परिणी। परिजव सक [परि+जप्] जाप करना । परिणाइ स्त्री परिणति] परिणाम । बहुत बोलना, बकवाद करना।
परिणतु वि [परिणन्तृ] परिणत होनेवाला । परिजाइय वि [परियाचित] माँगा हुआ। परिणद सक [पार + नन्द्] वर्णन करना, परिजिअ वि [परिजित] सर्वथा जीत, जिस |
श्लाघा करना। पर पूरा काबू किया गया हो वह ।
परिणद्ध वि [परिणद्ध] परिगत, वेष्टित । न. परिजुण्ण वि [परिजीर्ण] फटा-टूटा, अत्यन्त
वेष्टन । जीर्ण । दुर्बल । निर्धन ।
परिणम सक[परि परिजुत्त वि [परियुक्त] सहित ।
णम्] प्राप्त करना । अक. परिजुन्ना स्त्री [परिजीर्णा, परिघुना] दरि
रूपान्तर को प्राप्त होना । पूर्ण होना, पूरा द्रता के कारण ली हुई दीक्षा ।
होना। परिजुसिय देखो परिझुसिय।
परिणमण न [परिणमन] परिणाम । परिजुसिय न [पर्युषित] रात्रि-परिवसन, रात
परिणमिअ) वि [परिणत] परिपक्व । का बासी रहना, बासी। देखो परिउसिअ ।
परिणय । वृद्ध-प्राप्त । अवस्थान्तर को परिजूर अक [परि + ज] सर्वथा जीर्ण होना । प्राप्त । "वय वि |°वयस्] वृद्ध ।
परिणयण न [परिणयन] विवाह । परिजूरिय वि [परिजीर्ण] अतिजीर्ण ।
परिणव देखो परिणम । परिज्जय पुं [दे] कृष्ण पुद्गल-विशेष ।
परिणाइ पुं [परिज्ञाति] परिचय । परिज्जुन्न देखो परिजूरिय। परिज्झामिय वि [परिध्यामित] श्याम
परिणाम सक [परि + णमय] परिणत (काला) किया हुआ।
करना। परिज्झुसिय)वि [परिजुष्ट] सेवित । प्रीत। | परिणाम पुं. अवस्थान्तर-प्राप्ति, रूपान्तरलाभ । परिझुसिय परीक्षण।
दीर्घ काल के अनुभव से उत्पन्न होनेवाला परिझूसिय
| आत्म-धर्म-विशेष । स्वभाव, धर्म । अध्यवसाय,
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५४८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
परिणामणया-परिताण
मनो-भाव । वि. परिणत करनेवाला ।
होना । मोक्ष को प्राप्त करना। परिणामणया । स्त्री [परिणामना] परि- परिणिव्वाण न [परिनिर्वाण] मुक्ति, मोक्ष । परिणामणा । णमाना, रूपान्तरकरण । परिणिव्वुइ स्त्री [परिनिर्वृति] ऊपर देखो। परिणामय वि [परिणामक] परिणत करने- परिणिव्य देखो परिनिव्वुअ । वाला।
परिणी सक [परि +णी] विवाह करना । ले परिणामि वि [परिणामिन्] परिणत होने- जाना । वाला । °कारण न. कार्य-रूप में परिणत होने- परिणी अक [परि + गम्] बाहर निक ठना। वाला कारण, उपादान कारण ।
परिणीअ वि [परिणीत] जिसका विवाह किया परिणामिअ वि [पारिणामिक] परिणाम से | गया हो वह । उत्पन्न । परिणाम-सम्बन्धी। पुं. परिणाम । परिणील वि [परिनील] सर्वथा हरा रंग का। भाव-विशेष ।
परिणे देखो परिणी। परिणामिआ स्त्री [पारिणामिकी] दीर्घ काल परिणेविय (अप) वि [परिणायित] जिसका
के अनुभव से उत्पन्न होनेवाली बुद्धि । विवाह कराया गया हो वह । परिणाय वि [परिज्ञात] जाना हुआ, परि
परिणेव्वुय देखो परिनिव्वुअ ।
परिण्ण वि परिज्ञ] ज्ञाता, जानकार । चित। परिणाव सक[परि + णायय विवाह कराना।
परिण्ण' देखो परिणा' । परिणाह पुं. लम्बाई, विस्तार । परिधि ।
परिण्णा सक [परि + ज्ञा] जानना । परिणिज्जरा स्त्री [परिनिर्जरा] विनाश ।।
परिण्णा स्त्री [परिज्ञा] ज्ञान, जानकारी । परिणिज्जिय वि [परिनिजित] पराभूत ।।
| विवेक । पर्यालोचन, विचार । ज्ञान-पूर्वक परिणिट्ठा स्त्री [परिनिष्ठा] सम्पूर्णता, |
प्रत्याख्यान । समाप्ति ।
| परिणाय देखो परिण्णा = परि + ज्ञा का परिणिट्ठाण न [परिनिष्ठान] अन्त । परिणिट्ठिअ वि [परिनिष्ठित] पूर्ण किया हुआ, | परिण्णि वि [परिज्ञिन्] परिज्ञा-युक्त । समाप्त किया हुआ । पार-प्राप्त, निपुण । परि- परितंबिर वि [परिताम्र] विशेष ताम्र
अरुण वर्णवाला। परिणिट्ठिया स्त्री [परिनिष्ठिता] कृषि-विशेष, परितज्ज सक [परि + तर्जय] तिरस्कार जिसमें दो या तीन बार तृण-शोधन किया | करना । गया हो वह कृषि अर्थात् दो या तीन बार | परितड्डविय वि [परितत] खूब फैलाया हुआ। की सोहनी (निराई) की हुई खेत । दोक्षा- | परितप्प अक [परि + तप] सन्तप्त होना, विशेष, जिसमें बारम्बार अतिचारों की आलो- गरम होना। पश्चात्ताप करना। दुःखी चना की जाती हो वह दीक्षा।
होना। परिणिय वि [परिणीत] जिसका विवाह हुआ | परितप्प सक [परि +तापय] परिताप उपहो वह।
जाना। परिणिव्वव सक [परिनिर् + वापय] सर्व | परितलिअ वि [परितलित] तला हुआ ।
प्रकार से अतिशय परिणत करना । परितविय वि [परितप्त परिताप युक्त । परिणिव्वा अक [परिनिर् + वा] शान्त | परिताण न [परित्राण] रक्षण । वागुरादि
ज्ञात ।
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हुआ।
परिताव-परिपिडिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बन्धन।
परित्तीकर सक [परीती + कृ] लघु करना, पारताव देखो पारतप्प = परि+तापय् । छोटा करना । परिताव पुं [परिताप] सन्ताप, दाह । पश्चा-परित्थोम न [परिस्तोम मस्तक । वि. वक्र । त्ताप । पीड़ा। यर वि [°कर] दुःखो- परिथंभिअ वि परिस्तम्भित] स्तब्ध । त्पादक।
परिथु सक [परि + स्तु] स्तुति करना । परिताविअ वि [परितापित]सन्तापित । तला | परिदा सक [परि + दा] देना ।
परिदाह पं सन्ताप। परितास पुं [परित्रास] अकस्मात् भय ।
परिदिण्ण वि [परित्त] दिया हुआ । परितुट्टिर वि [परित्रुटित] टूटनेवाला ।
परिदिद्ध वि [परिदिग्ध] उपलिप्त । परितु? वि [परितुष्ट] सन्तुष्ट ।
परिदेव अक [परि + देव] विलाप करना । परितुलिय वि [परितुलित] तौला हुआ ।
परिदो अ [परितस्] चारों ओर से । परितेज्जि परित्तज का. सं. कृ. ।
परिधम्म पुं परिधर्म] छन्द-विशेष । परितोल सक [परि + तोलय] उठाना।
परिधाम पुंन [परिधामन्] स्थान । परितोस सक[परि + तोषय] खुश करना । परिनट्ठ वि [परिनष्ट] विनष्ट । सन्तुष्ट करना ।
परिनिक्खम देखो पडिनिक्खम । परित्त वि [परीत] व्याप्त । प्रभ्रष्ट । संख्येय, | परिनिय सक [परि + दृश्] देखना, अवलोकन जिसकी गिनती हो सके ऐसा । अन्तवाला, करना। परिमित, नियत परिमाणवाला । लघु, छोटा। परिनिवि वि [परिनिविष्ट] ऊपर बैठा तुच्छ, हलका । एक से लेकर असंख्येय जीवों |
हआ । का आश्रय, एक से लेकर असंख्येय जीव- | परिनिव्वअ , वि [परिनिवत] मोक्ष को वाला । एक जीववाला। करण न. लघुकरण। परिनिव्वड ) प्राप्त । शान्त, ठण्ढा । जीव पुं. एक शरीर में एकाकी रहनेवाला | स्वस्थ । जीव । °णंत न [नन्त] संख्या-विशेष । परिन्नाय वि [प्रतिज्ञात] जिसकी प्रतिज्ञा की °संसारिअ वि [ संसारिक] परिमित संसार- | गई हो वह । वाला। संख न [°संख्यात] संख्या- |
परिपंथग वि [प्रतिपंथक] दुश्मन, विरोधी । विशेष ।
परिपंथिअ वि [ परिपन्थिक ] प्रतिकूल । परित्तज देखो परिचय ।
परिपंथिग परित्ता । सक [परि +त्रै] रक्षण करना। | परिपाग पुं [परिपाक] विपाक, फल । परित्ताअ
परिपाडल वि [परिपाटल] सामान्य लाल परित्ताणतय पुन [परीतानन्तक] संख्या
रंगवाला, गुलाबी रंग का। विशेष ।
परिपाल सक [परि + पालय] रक्षण करना । परित्तास देखो परितास।
| परिपासय [दे] देखो परिवास। परित्तासंखेज्जय पुंन [परीतासंख्येयक] | ( रिपिअ सक [परि + पा] पीना, पान संख्या-विशेष ।
करना। परित्तीकय वि [परीतीकृत] संक्षिप्त किया परिपिडिय वि [परिपिण्डित] एकत्र समुदित, हुआ, लघूकृत ।
। इकट्ठा किया हुआ । न. गुरु-वन्दन का एक
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५५०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
दोष ।
परिपरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष | परिपिल्ल सक [परिप्र + ईरय् ] प्रेरणा । परिपीडिय वि [परिपीडित] जिसको पीड़ा पहुँचाई गई हो वह | परिपुंगल वि [] श्रेष्ठ, उत्तम । परिपुच्छिअ परिपुट्ट
वि [ परिपृष्ट ] पूछा हुआ ।
परिपुस सक [परि + स्पृश्] संस्पर्श करना । परिपूणग पुं [ दे. परिपूर्णांक] सुघरी नामक पक्षी का घोंसला | घी-दूध गालने का कपड़ा, छानना ।
परिपूर सक [ परि + पूरय् ] पूर्ण करना, भरपूर करना ।
परिपेच्छ सक [परि + ईक्ष ] देखना । परिपेलव वि. सुकर, सहज, आसान । अदृढ़ । निःसार । वराक, दीन । परिप्पमाण न [ परिप्रमाण ] परिमाण । परिप्पव सक [ परि + प्लु] तैरना,
गोता
लगाना ।
परिप्यवि [परिप्लुत] आप्लुत, व्याप्त । परिप्या स्त्री [ परिप्लुता ] दीक्षा - विशेष । परिष्कंद पुं [परिस्पन्द ] रचना - विशेष | सम
न्तात् चलन । चेष्टा, प्रयत्न । परिप्ड वि [परिस्फुट ] अत्यन्त स्पष्ट । परफुड [ परिस्फोट ] प्रस्फोटन, भेदन | वि. फोड़नेवाला, विभेदक ।
परिप्फुर अक [परि + स्फुर्] चलना । परिष्फुरिअ वि [ परिस्फुरित] स्फूर्ति-युक्त । परिफासिय वि[ परिस्पृष्ट] व्याप्त । परिफुड देखो परिप्फुड = परिस्फुट । परिवहण न [ परिबृंहण] वृद्धि, उपनय । परिब्भत वि [दे] निषिद्ध, निवारित । भीरु । परिब्भंसिद (शौ) नीचे देखो । परिब्भट्ठ वि [परिभ्रष्ट ] पतित, स्खलित । परिब्भम सक [ परि + भ्रम् ] पर्यटन करना,
परिपिरिया - परिभोग
भटकना ।
परिब्भीअ वि [ परिभीत ] भय-प्राप्त । परिब्भूअवि [ परिभूत] पराभव प्राप्त । परिभट्ट देखो परिब्भट्ठ | परिभम देखो परिब्भम ।
परिभव सक [ परि + भू] पराजय करना, तिरस्कारना ।
परिभवंत पुं [परिभवत् ] शिथिलाचारी मुनि ।
परिभाअ सक [ परि + भाजय् ] बाँटना, विभाग करना ।
परिभाइय वि [परिभाजित ] विभक्त किया हुआ ।
परिभायण न [ परिभाजन ] बँटवा देना । परिभाव सक [ परि + भावय् ] पर्यालोचन
करना । उन्नत करना ।
पार्श्वस्थ साधु,
परिभावइत्तु वि [ परिभावयितृ] प्रभावक, उन्नति कर्ता ।
परिभावि वि [परिभाविन् ] परिभव करने
वाला ।
संकेत |
परिभास सक [ परि + भाष्] प्रतिपादन करना, कहना । निन्दा करना । परिभासा स्त्रो [परिभाषा ] तिरस्कार | चूर्णि, टीका-विशेष | परिभासि वि [परिभाषिन् ] परिभव-कर्त्ता । परिभुंज सक [परि + भुञ्ज्] खाना, भोजन करना | सेवन करना, सेवना । उपभोग में लेना ।
बारबार
परिभुंजण न [ परिभोजन | परिभोग । परिभुत वि [ परिभुक्त] जिसका परिभोग किया गया हो वह |
परिभुत्त वि [परिवृत] वेष्टित, परिकरित परिभुय लपेटा हुआ, घेरा हुआ । परिभूअवि [ परिभूत] अभिभूत, तिरस्कृत । परिभोअ देखो परिभोग ।
परिभोग पुं. बारबार भोग । जिसका बारबार भोग किया जाय वह वस्त्र आदि । जिसका
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परिभोत्तु-परियादि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५५१ एक ही बार भोग किया जाय-जो एक ही | छना। बार काम में लाया जाय वह आहार, पान | परिमेय देखो परिमिण । आदि । बाह्य वस्तुओं का भोग । आसेवन ।। परिमोक्कल वि [ दे. परिमुक्त ] स्वैर । परिभोत्तु देखो परिभुंज का हेकृ. । परियंच सक [परि+अञ्च्] पास में जाना । परिमइल सक [परि + मृज] मार्जन करना। स्पर्श करना । विभूषित करना।। परिमउअ वि [परिमृदुक] विशेष कोमल । | परियंच सक [परि +अच्] पूजना । अत्यन्त सुकर, सरल।
परियंचण न [पर्यञ्चन] स्पर्श करना । देखो परिमउलिअ वि [परिमुकुलित] चारों ओर | पलियंचण । से संकुचित ।
परियंद सक [परि + वन्द्] स्तुति करना । परिमंडण न [परिमण्डन] अलंकरण, विभूषा। परियच्छ सक [दृश्] देखना । जानना । परिमंडल वि [परिमण्डल] वृत्त, गोलाकार ।
| परियच्छिय देखो परिकच्छिय। परिमंडिय वि [परिमण्डित] विभूषित, परियच्छी देखो [परिकक्षी] परदा । सुशोभित ।
परियत्थि स्त्री [पर्यस्ति] देखो पल्हत्थिया । परिमंद वि [परिमन्द मन्द, अशक्त । परियप्प सक [परि + कल्पय] कल्पना करना, परिमग्ग सक [परि + मार्गय] अन्वेषण
चिन्तन करना। करना । माँगना, प्रार्थना करना।
परियय पुं [परिचय] जान-पहचान, विशेष परिमट्ट वि [परिमृष्ट] घिसा हुआ । आस्फा
रूप से ज्ञान । लित । माजित, शोधित ।।
परियय वि [परिगत] अन्वित, युक्त । परिमह सक [परि + मर्दय] मर्दन करना। परियाइ सक [पर्या+दा] समन्ताद् ग्रहण मालिश करना । पैर दबाना ।
करना । विभाग से ग्रहण करना । परिमन्न सक [परि + मन्] आदर करना ।
परियाइअ देखो परियाईय । परिमल सक [परि + मल, मृद्] घिसना ।
परियाइत्त वि [पर्याप्त] काफी । मर्दन करना।
परियाईय वि [पर्यायातीत] पर्याय को अतिपरिमल पुं. कुंकुम-चन्दनादि का मर्दन ।
क्रान्त । सुगन्ध ।
परियाग देखो पज्जाय। परिमलण न [परिमलन] परिमर्दन । परियागय वि [पर्यागत] पर्याय से आगत । विचार ।
सर्वथा निष्पन्न । परिमा (अप) देखो पडिमा ।
परियाण सक [परि + ज्ञा] जानना । परिमाइ स्त्री [परिमाति] परिमाण ।
परियाण न [परित्राण] रक्षण । परिमाण न. मान, नाप ।
परियाण न [परिदान] विनिमय, बदला, परिमास पुं [परिमर्श] स्पर्श ।
लेनदेन । समन्ताद् दान । परिमास पुं [दे] नौका का काष्ठ-विशेष ।। परियाण न [परियान] गमन । वाहन, यान । परिमिज्ज परिमिण का कृ.।
अवतरण । परिमिला अक[ परि + म्लै ] म्लान होना। | परियाणिअ पुंन [परियानिक] यान, परिमुट्ठ वि [परिमृष्ट] स्पृष्ट ।
वाहन । विमान-विशेष । परिमुस सक [परि + मृश्] स्पर्श करना, | परियादि देखो परियाइ ।
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५५२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परियाय-परिवट्ट परियाय देखो पज्जाय अभिप्राय । प्रव्रज्या। परिरंभ सक [परि + रभ्] आलिंगन करना । ब्रह्मचर्य । जिन-देव के केवल-ज्ञान को उत्पत्ति परिरक्ख सक [परि + रक्ष्] परिपालन का समय । थेर पुं [°स्थविर] दीक्षा की करना । अपेक्षा से वृद्ध ।
परिरद्ध वि[परिरब्ध] आलिङ्गित । परियायतकरभूमि स्त्री [पर्यायान्तकृभूमि] परिरय पुं. परिधि, परिक्षेप । समानार्थक शब्द । जिन-देव के केवल ज्ञान की उत्पत्ति के समय | परिभ्रमण, फिर कर जाना। से लेकर तदनन्तर सर्व प्रथम मुक्ति पानेवाले परिरिख सक [परि+रिङ्ख्] चलना, फरके बीच के समय का आन्तर ।
कना, हिलना। परियार सक [परि+चारय] सेवा-शुश्रषा परिलग्ग वि [परिलग्न] लगा हुआ, व्याप्त । करना । सम्भोग करना।
परिलिअ वि [दे] लीन, तन्मय । परियार पुं[परिचार] मैथुन ।
परिली अक [परि + ली] लीन होना । परियारग वि [परिचारक] विषय सेवन परिली स्त्री [दे] आतोद्य-विशेष, एक तरह का
करनेवाला । सेवाशुश्रूषा करनेवाला । बाजा । परियारणया , स्त्री [परिचारणा] ऊपर परिलीण वि [परिलीन] निलीन । परियारणा । देखो। °सद्द पुं [शब्द] परिलेंत देखो परिली = परि + ली का वकृ. । विषय-सेवन के समय का स्त्री का शब्द । परिलोयण न परिलोचन, परिलोकन] परियाल देखो परिवार ।
अवलोकन, निरीक्षण । वि. देखनेवाला । परियालोयण न [पर्यालोचन] विचार, परिल्ल देखों पर :: पर । चिन्तन ।
परिल्लवास वि [दे] अज्ञात-गति । परियाव देखो परिताव = परिताप । परिल्ली देखो परिली = दे। परियावज्ज अक [ पर्या + पद् ] पीडित परिल्ली देखो परिली। होना । रूपान्तर में परिणत होना । सक. परिल्हस अक [परि + संस] गिर पड़ना। सेवना।
सरक जाना। परियावणा स्त्री [परितापना] परिताप, परिवइत्त वि [परिवजित] गमन करने में सन्ताप ।
समर्थ । परियावणिया स्त्री [परियापनिका] काला- परिवंकड (अप) वि [परिवक्र] सर्वथा टेढ़ा । न्तर तक अवस्थान, स्थिति ।
परिवंथि वि [परिपन्थिन्] विरोधी दुश्मन । परियावण्ण वि [पर्यापन्न] स्थित, अवस्थित । परिवंदण न [परिवन्दन] स्तुति, प्रशंसा । लब्ध, प्राप्त ।
परिवक्खिय देखो परिवच्छिय । परियावस सक [पर्या + वासय्] आवास परिवग्ग पुं [परिवर्ग] परिजन-वर्ग । कराना।
परिवच्छ न [दे] अवधारण । परियावसह पुं [पर्यावसथ] मठ, संन्यासी का परिवच्छिय देखो परिकच्छिय । स्थान ।
परिवज्ज सक [प्रति+पद्] स्वीकार करना । परियासिय वि [परिवासित] बासी रखा परिवज्ज सक [परि + वर्जय] परिहार हुआ।
करना, परित्याग करना। परिरंज सक [भञ्ज्] भांगना, तोड़ना। परिवट्ट देखो परिवत्त = परि + वर्तम् ।
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परिवट्टि-परिवीढ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५५३ परिवट्टि देखो परिवत्ति ।
। कुटुम्ब करना। परिवटुल वि [परिवर्तुल] गोलाकार । परिवार पुं. घर के मनुष्य । न. म्यान । परिवड अक [परि + पत् ] पड़ना। गिरना । परिवारण न. निराकरण । आच्छादन । परिवत्त देखो परिअट्ट ।
परिवारिअ वि [दे] घटित, रचित । परिवत्तण देखो पडिअत्तण ।
परिवाल देखो परिआल । परिवत्तर (अप) वि (परिपवित्रम] पकाया परिवाल सक [परि +पालय] पालन करना । गया, गरम किया गया।
परिवाल देखो परिवार = परिवार । परिवत्थिय वि [परिवस्त्रित] आच्छादित ।। परिवाविय वि [परिवापित] उखाड़ कर . परिवन्न देखो पडिवन्न ।
फिर से बोया हुआ। परिवय अक [परि + वत] तिर्यक् गिरना ।। । परिवाविया स्त्री [परिवापिता] दीक्षापरिवय सक [परि + वद्] निन्दा करना। विशेष । फिर से महाव्रतों का आरोपण । परिवरिअ वि [परिवृत] परिकरित, वेष्टित । परिवास पुं [दे] खेत में सोनेवाला पुरुष । परिवसण न [परिवसन] आवास ।
परिवास न [परिवासस्] कपड़ा। परिवसणा स्त्री [परिवसना] पर्युषण-पर्व ।। परिवासि वि [परिवासिन्] बसनेवाला । परिवह सक [परि + वह,] वहन करना,
परिवाह सक [परि +वाहय्] वहन कराना । ढोना । अक. चालू रहना।
__ अश्वादि खेलाना, अश्वादि-क्रीड़ा करना। परिवा अक [परि + वा] सूखना ।
परिवाह पुं. जल का उछाल, दहाव । परिवाइ वि [परिवादिन] निन्दा करनेवाला ।
| परिवाह पुं [दे] दुविनय, अविनय । परिवाइय वि [परिवाचित] पढ़ा हुआ।
| परिविआल सक [परि + विश्] वेष्टन परिवाई स्त्री [परिवाद] कलंक-वार्ता ।।
करना ।
परिविचिट्ट अक [परिवि+स्था] उत्पन्न परिवाड सक [घटय] संगत करना । रचना,
होना । रहना। निर्माण करना।
परिविट्ठ वि [परिविष्ट] परोसा हुआ। परिवाडल देखो परिपाडल।
परिवित्तस अक परिवि + त्रस्] डरना । परिवाडि स्त्री [परिपाटि] पद्धति, रीति ।
परिवित्ति स्त्री [परिवृत्ति परिवर्तन । पंक्ति, श्रोणि । क्रम, परम्परा। सूत्रार्थवाचना, अध्यापन ।
परिविद्ध वि [परिविद्ध] जो बिंधा गया हो परिवाडी देखो परिवाडि ।
वह । परिवाद पुं. निन्दा, दोष-कीर्तन ।। परिविद्धंस सक [परिवि + ध्वंसय्] विनाश परिवादिणी स्त्री [परिवादिनी] वीणा- करना । परिताप उपजाना।। विशेष ।
| परिविद्वत्थ वि [परिविध्वस्त] विनष्ट । परिपरिवाय देखो परिवाद।
तापित । परिवायग , पुं परिव्राजक] संन्यासी, | परिविप्फुरिय वि [परिविस्फुरित] स्फूर्तिपरिवायय । बाबा । परिवायणी स्त्री [परिवादनी] सात ताँतवाली | परिविस सक [परि + विश्] वेष्ठन करना । वीणा।
परिविस सक [परि + विष्] परोसना । परिवार सक [परि+वारय] वेष्टन करना । । परिवीढ न [परिपीठ] आसन-विशेष ।
युक्त ।
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५५४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परिवोल-परिसामल परिवील सक [परि + पीडय] दबाना। करना । परिवुड वि [परिवृत] परिकरित, वेष्टित । परिसंठिय वि [परिसंस्थित] स्थित, रहा परिवुत्थ वि [पर्युषित] रहा हुआ। निवास । हुआ। देखो परिवुसि।
परिसंत वि [परिश्रान्त] थका हुआ । परिवुद देखो परिवुड।
परिसंथविय वि [परिसंस्थापित]आश्वासित । परिवुदि स्त्री [परिवृति] वेष्टन ।
परिसक्क सक [परि + ष्वष्क] चलना, गमन परिवुसिअ वि [पर्युषित] स्थित, रहा हुआ। करना, इधर-उधर घूमना । गत, गुजरा हुआ।
परिसजिअ (अप) वि [परिष्वक्त] आलिंगित । परिवूढ वि [परिवृढ] समर्थ ।।
परिसड अक [परि + शट] उपयुक्त होना । परिवूढ वि [परिवृद्ध] स्थूल । बलिष्ठ । मांसल, परिसडिय वि [परिशटित] सड़ा हुआ, पुष्ट ।
विनष्ट । परिवहण देखों परिबहण।
परिसन्न वि [परिषण्ण] जो हैरान हुआ हो, परिवेय अक [परि + वेप्] काँपना ।
पीडित । परिवेस सक [परि + विष] परोसना।
परिसप्पि वि [परिसर्पिन्] चलनेवाला। परिवेस पुं [परिवेश, °ष] वेष्टन। मंडल, |
पुंस्त्री. हाथ और पैर से चलनेवाला जन्तुमेघादि से सूर्य-चन्द्र का वेष्टनाकार । मंडल। ।
नकुल, सर्प आदि प्राणिगण । परिवेसि [परिवेशिन्] समीप में रहनेवाला । परिसम देखो परिस्सम। परिव्वअ सक [परि + व्रज् ] समंताद् गमन परिसमापिय वि परिसमापित] पूरा किया
करना । दीक्षा लेना। परिव्वअ वि परिवत] परिवेष्टित ।
| परिसर पुं. नगर आदि के समीप का स्थान । परिव्वअ वि [परिव्यय] विशेष व्यय । परिसल्लिय वि परिशल्यित] शल्य-युक्त । परिव्वय पुं परिव्यय] खर्च करने का धन। परिसह पुं [परिषह] देखो परीसह । परिवह सक [परि + वह ] वहन करना, |
। परिवार । धारण करना ।
परिसाइ देखो परिस्साइ। परिव्वाइया स्त्री [परिवाजिका] संन्यासिनी। परिसाइयाण देखो परिसाव । परिव्वाज (शौ) पुं [परि + व्राज] संन्यासी ।
परिसाड सक [परि + शाटय] त्याग करना । परिव्वाजअ (शौ) पुं [परिव्राजक] संन्यासी।
अलग करना । परिव्वाजिआ (शौ) देखो परिव्वाइया।
परिसाड सक [परि +शाटय] इधर-उधर परिव्वाय देखो परिव्वाज ।
फेंकना । भरना । रखना। परिव्वायग ) पुं [पारिवाजक] संन्यासी, परिव्वायय । साधु ।
परिसाडणा स्त्री [परिशाटना] वपन, बोना । परिव्वायय वि [परिव्राजक] परिव्राजक
पृथक्करण । सम्बन्धी।
परिसाडि वि [परिशाटिन्] परिशाटन-युक्त । परिस देखो फरिस = स्पर्श ।
परिसाडि वि[परिशाटि]परिशाटन, पृथक्करण । परिसंग पुं [परिष्वङ्ग] आलिङ्गन । परिसाडि वि [परिशातित] गिराया हुआ। परिसंगय वि [परिसंगत] युक्त, सहित। परिसाम अक [शम्] शान्त होना । परिसंठव सक [परिसं + स्थापय्] संस्थापन | परिसामल वि[परिश्यामल] काला ।
हुआ।
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परिसाव - परिहार
परिसाव सक [ परि + स्रावय् ] निचोड़ना ।
गालना ।
परिसावि देखो परिस्सावि ।
परिसाहिय वि [परिकथित ] प्रतिपादित,
करना ।
परिस्संत देखो परिसंत । परिस्सज (शौ) देखो परिस्सअ । परिस्सम पुं [ परिश्रम ] मेहनत |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
उक्त
परिसिट्ठ वि [परिशिष्ट] भवशिष्ट ।
परिसित वि [परिषिक्त] सींचा हुआ । न परिच्छ देखो पहिच्छ ।
परिषेक, सेचन ।
परिसिल्ल वि [ पर्षद्वत्] परिषद् वाला । परिसीसग देखो पडिसीसअ ।
परिसुस (अप) सक [ परि + शोषय् ] सुखाना ।
परिसूअणा स्त्री [ परिसूचना ] सूचना | परिसेय पुं [परिषेक] सेचन । परिसेस पुं [परिशेष] अवशिष्ट । पारिशेषानु
मान ।
बचा
परिसेसिअ वि [परिशेषित] बाकी हुआ । परिच्छिन्न, निर्णीत | परिसेह पुं [परिषेध ] प्रतिषेध, निवारण । परिस्सअ सक [ परि + स्व ] आलिंगन
परिस्सम्म अक [ परि + श्रम् ] मेहनत करना ।
विश्राम लेना ।
५५५
परिस्सावि वि [ परिश्राविन् ] सुनानेवाला । परिह सक [ परि + धा] पहिरना, पहनना । परिह पुं [दे] रोष | परिह पुं [परिध] अर्गला ।
परिच्छवि [दे] दक्ष, निपुण । पुं. रोष | देखो परिहत्थ ।
कारण ।
परिस्सह देखो परीसह ।
परिस्साइ देखो परिस्सावि = परिस्राविन् । परिस्साव देखो परिसाव ।
परिस्सावि वि [परिस्राविन्] कर्म - बन्ध करनेवाला | चुनेवाला, टपकनेवाला । गुह्य बात को प्रकट कर देनेवाला ।
|
परिहट्ट सक [मृद्, परि + घट्टय् ] मर्दन
करना, चूर करना, कचरना, कुचलना । परिहट्ट सक [वि + लुल्] मारना । मार कर गिरा देना | सामना करना । लट लेना । अक जमीन पर लोटना ।
अभिघात,
परिहट्टण न [ परिघट्टन ] आघात | घर्षण, घिसना | परिहट्टि स्त्री[दे] आकृष्टि, आकर्षण, खींचाव । परिहण न [ दे. परिधान] वस्त्र ।
परिहत्थ पुं [ दे] जलजन्तु-विशेष | निपुण । देखो परिच्छ, पsिहत्थ ।
परिहर सक [परि + धृ] धारण करना । परिहर सक [ परि + ह् ] त्याग छोड़ना | करना । परिभोग करना,
परिहस सक [परि + हस्] उपहास करना । परिस्सव सक [ परि + स्रु ] चूना, झरना, परिहा अक [ परि + हा ] हीन होना, कम होना ।
टपकना ।
परिस्वपुं [परिस्रव] आसव, कर्म-बन्ध का परिहासक [परि + धा] पहिरना ।
परिहास्त्री [परिखा] खाई । परिहाइअवि [दे] परिक्षीण |
परिहाण न [ परिधान ] कपड़ा | वि. पहनने
करना,
आसेवन
करना ।
परिहाविअं [ ] जल-निर्गम, मोरी । परिहव सक [परि + भू] पराभव करना । तिरस्कृत करना ।
वाला ।
परिहाय वि [ दे] क्षीण, दुर्बल
परिहार पुं. करण, कृति । परित्याग, वर्जन । परिभोग, आसेवन । परिहार- विशुद्धि नामक
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परिहारिअ-परोप्फर संयम-विशेष । विषय । तप-विशेष । विशु- परीय देखो परित्त । द्धिअ, विसुद्धीअ न [°विशुद्धिक चारित्र- परीयल्ल पुं [दे. परिवर्त] वेष्टन । विशेष, संयम-विशेष ।
परीरंभ पुं [परीरम्भ] आलिंगन । परिहारिअ वि [पारिहारिक] आचारवान् परीवज्ज वि [परिवयं] वर्जनीय ।
मुनि, उद्युक्त विहारी जैन साधु । परीवाय देखो परिवाय = परिवाद । परिहारिणी स्त्री [दे] देर से व्याई हुई भैंस। परीवार देखो परीवार = परिवार । परिहारिय वि [पारिहारिक] परित्याग के परीसण न [परिवेषण] परोसना । योग्य । परिहार नामक तप का पालक ।
परीसम देखो परिस्सम। परिहाल पुं [दे] जल-निर्गम, मोरी । परीसह पुं [परीषह] भूत आदि से होनेवाली परिहाव सक [परि + धापय] पहिराना । । पीड़ा। परिहास पुं. उपहास, हंसी।
| परुइय वि [प्ररुदित जो रोने लगा हो वह । परिहासणा स्त्री [परिभाषणा ] उपालम्भ ।
परुक्ख देखो परोक्ख । परिहि पुंस्त्री [परिधि] परिवेष । परिणाह, | परुण्ण देखो परुइय। विस्तार ।
परुप्पर देखो परोप्पर । परिहिअ वि [परिहित] पहिरा हुआ। परुब्भासिद (शौ) वि [प्रोद्भासित] परिहिंडिय वि [परिहिण्डित] परिभ्रान्त प्रकाशित । भटका हुआ।
| परुस वि [परुष] कठोर । परिहत्ता परिहा = परि +धा का संकृ.। परूढ वि [प्ररूढ] उत्पन्न । बढ़ा हुआ । परिहीण वि [परिहीन]न्यून । विनष्ट । रहित। परूव सक [प्र+रूपय] प्रतिपादन करना । न. ह्रास ।
परूवग वि [प्ररूपक] प्रतिपादक । परिहत्त वि [परिभुक्त] जिसका भोग किया | परूविअ वि [प्ररूपित] प्रतिपादित, निरूपित । गया हो वह।
प्रकाशित । परिहूअ वि [परिभूत] पराजित । परेअ [दे] पिशाच । परिहेरग न [दे. परिहार्यक] आभूषण- परेण अ. अनन्तर । विशेष ।
| परेयम्मण देखो परिकम्मण । परिहो सक [परि + भू] पराभव करना। परेवय न [दे] पाद-पतन । परिहोअ देखों परिभोग।
परेव्व वि [परेधुस्तन] परसों का, परसों परिह्लस (अप) अक [परि + ह्रस्] कम | __होनेवाला। होना।
परो° अ [पर] उत्कृष्ट । परी सक [परि + इ] जाना, गमन करना । | परोइय देखो परुइय। परी सक [क्षिप्] फेंकना।
परोक्ख न परोक्ष] प्रत्यक्ष-भिन्न प्रमाण । वि. परी सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना । परोक्ष-प्रमाण का विषय । न. पीछे, आँखों परीघाय पुं [परिघात] निर्घात, विनाश ।। की ओट में। परीणम देखो परिणम = परि + णम् । | परोट्ट देखो पलोट्ट = पर्यस्त । परीभोग देखो परिभोग।
| परोप्पर । वि [परस्पर] आपस में । परीमाण देखो परिमाण ।
परोप्फर ।
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परोवआर-पलाव संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष परोवआर पुं [परोपकार] दूसरे की भलाई।। काल का सूर्य । °घण पुं [°धन] प्रलय का परोवर देखो परोप्पर।
मेघ । लण [नल]प्रलय काल की आग । परोविय देखो परुइय।
पलल न. तिल-चूर्ण। परोह अक [प्र+रुह ] उत्पन्न होना । बढ़ना। पललिअ न. [प्रललित] प्रक्रीडित । अंगपरोह पुं [प्ररोह] उत्पत्ति । वृद्धि । अंकुर, । विन्यास । बीजोद्भेद ।
पलव अक [प्र + लप्] बकवाद करना । परोहड न [दे] घर का पिछला आँगन, घर के | पलवण न [प्लवन] उछलना, उच्छलन । पीछे का भाग।
पलविअ । वि [प्रलपित]अनर्थक कहा हुआ। पल अक [पल] जीना । खाना । देखो बल = पलवित , न. अनर्थक भाषण । बल।
पलस न [दे] कार्पास-फल । पसीना । पल (अप) अक [पत्] पड़ना, गिरना।
पलस (अप) न [पलाश] पत्र, पत्ती । पल (अप) सक [प्र+कटय] प्रकट करना। पलसु स्त्री [दे] सेवा, पूजा, भक्ति । पल अक [परा+अय्] भागना ।
पलहि पुंस्त्री [दे] कपास । पल न [दे] पसीना ।
पलहिअ वि [दे] विषम, असम । पुन. आवृत पल न. एक बहुत छोटी तोल, चार तोला । जमीन का वास्तु। मांस ।
पलहिअअ वि [दे. उपलहृदय] मूर्ख, पाषाणपलंघ सक [प्र+लङ्घ] अतिक्रमण करना ।
हृदय । पलंड पुं [पलगण्ड] राज, चूना पोतने का
पलहुअ वि [प्रलघुक] स्वल्प, थोड़ा । छोटा। काम करनेवाला कारीगर ।
पला देखो पलाय = परा + अय् । पलंडु पुं [पलाण्डु] प्याज।
पलाइअ । वि [पलायित] भागा हुआ, पलंब अक [प्र + लम्ब्] लटकना।
पलाण ) नष्ट । पलंब वि [प्रलम्ब] लटकनेवाला, लटकता।
पलाण न [पलायन] भागना । लम्बा, दीर्घ । पुं. एक महाग्रह । अहोरात्र का आठवाँ मुहूर्त । पुन.आभरण-विशेष । एक तरह
पलाणिअ वि [पलायनित] जिसने पलायन का धान का कोठा । मूल । रुचक पर्वत का
किया हो वह, भागा हुआ। एक शिखर । पुंन. फल । देव-विमान-विशेष ।
पलात वि [प्रलात] गृहीत । पलक्क वि [दे] लम्पट ।
पलाय अक[परा + अय्]भाग जाना, नासना । पलक्ख पुं [प्लक्ष] बड़ का पेड़ ।
पलाय पुं [दे] चोर। पलग न [पलक] फल-विशेष ।
पलाय देखो पलाइअ = पलायित । पलज्जण वि [प्ररञ्जन] रागी, अनुराग वाला।
पलाल वि [प्रलाल] प्रकृत लालवाला । पलट्ट अक [परि + अस्] पलटना, बदलना ।
पलाल न. तृण-विशेष, पुआल । °पीढय न सक. पलटाना, बदलाना ।
[°पीठक] पलाल का आसन । पलत्त वि [प्रलपित] उक्त, प्रलाप-युक्त । न. पलालग वि [पलालक] पलाल-पुआल का प्रलाप, कथन ।
बना हुआ। पलय पुं [प्रलय] युगान्त, कल्पान्त-काल । | पलाव सक [नाशय्] भगाना, नष्ट करना । जगत् का अपने कारण में लय। विनाश । | | पलाव पुं प्लाव] पानी की बाढ़ । चेष्टा-क्षय । क्षिपना । 'क्क पं [क] प्रलय- पलाव पुं [प्रलाप] अनर्थक भाषण, बकवाद ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पलावण-पलिमद्द पलावण न [नाशन] नष्ट करना, भगाना। । पलिउज्जिय वि [परियोगिक] जानकार । पलाविअ वि [प्लावित] डुबाया हुआ, भिगाया | पलिऊल देखो पडिऊल। हुआ।
| पलिओच्छन्न वि [पलितावच्छन्न] कर्मावष्टब्ध, पलाविअ वि [प्रलापित] अनर्थक घोषित करवाया हुआ।
पलिओच्छिन्न विपर्यवच्छिन्न] ऊपर देखो। पलाविर वि [प्रलपित] बकवाद करनेवाला। | पलिओछ्ढ वि [पर्यवक्षिप्त] प्रसारित। पलास पुं [पलाश] किंशुक का वृक्ष, ढाक । । पलिओवम पुन [पल्योपम] काल का एक राक्षस । पुंन. पत्र, पत्ता। भद्रशाल वन का | दोर्घ परिमाण । एक दिग्हस्ती कूट।
पलिचा (शौ) देखो पडिण्णा। पलासि स्त्री [दे] भल्ली, शस्त्र-विशेष । पलिकुंचणया देखो पलिउंचणा। पलासिया स्त्री [दे. पलाशिका] छाल की पलिक्खीण वि [परिक्षीण] क्षय-प्राप्त । बनी हुई लकड़ी।
पलिगोव पुं [परिगोप]काँदो । आसक्ति । पलाह देखो पलास।
पलिच्छण्ण वि [परिच्छिन्न समन्ताद् व्याप्त । पलि देखो परि।
| निरुद्ध, रोका हुआ। पलिअ न [पलित] वृद्ध अवस्था के कारण | पलिच्छाअ सक [परि+छादय] ढकना । बालों का पकना, केशों की श्वेतता । बदन की | पलिच्छिद सक [परि + छिद्] छेदन करना, झुर्रियाँ । कर्म, कर्म-पुद्गल । घृणित अनुष्ठान ।
काटना। कर्म, काम । ताप । पंक । वि.शिथिल । वृद्ध । | पलिच्छिन्न वि [परिच्छिन्न] विच्छिन्न, काटा पक्व । जरा-ग्रस्त । 'ट्ठाण, ठाण न |
हुआ। [°स्थान] कर्म-स्थान, कारखाना।
| पलित्त वि [प्रदीप्त] ज्वलित । पलिअ न [पल] चार कर्ष या तीन सौ बीस पलिपाग देखो परिपाग। गुञ्जा की नाप ।
पलिप्प अक [प्र+दीप्] जलना । पलिअ देखो पल्ल = पल्य ।
पलिबाहर । [परिबाह्य] हमेशा बाहर पलिअंक पुं [पर्यङ्क] पलंग, खाट । °आसण पलिबाहिर । होनेवाला । न [°आसन] आसन-विशेष ।
पलिभाग पुं [परिभाग, प्रतिभाग] निविभागी पलिअंका स्त्री [पर्यङ्का] पद्मासन ।
__ अंश । प्रतिनियत अंश । सादृश्य, समानता। पलिउंच सक [परि + कुञ्च] अपलाप करना । पलिभिंद सक [परि +भिद्] जानना । ठगना । छिपाना, गोपन करना।
बोलना । भेदन करना, तोड़ना। पलिउंचणा स्त्री [परिकुञ्चना] सच्ची बात पर
| पलिभेय पुं [परिभेद] चूरना । को छिपाना। माया कपट । प्रायश्चित्त
| पलिमंथ सक [परि + मन्थ्] बाँधना । विशेष । पलिउंचिय वि [परिकुञ्चित] वञ्चित । न. | पलिमंथ पुं [परिमन्थ] विनाश । स्वाध्यायमाया, कुटिलता। गुरु-वन्दन का एक दोष, | व्याघात । विघ्न, बाधा । व्यर्थ क्रिया। पूरा वन्दन न करके ही गुरु के साथ बातें पलिमंथग पुं [परिमन्थक] धान्य-विशेष, करने लग जाना।
काला चना । गोल चना । विलम्ब । पलिउच्छन्न देखो पलिओच्छन्न । पलिमंथु वि [परिमन्थ] सर्वथा घातक । पलिउच्छूढ देखो पलिओछूढ । | पलिमद्द देखो परिमद्द।
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पलिमद्द - पल्लथि
पमिद्दवि [परिमर्द ] मालिश करनेवाला | पलियंचण न [ पर्यञ्चन] परिभ्रमण | देखो परियंचण ।
पलोइ वि [ प्रलोकिन् ] प्रेक्षक ।
पलियंत पुं [पर्यन्त ] अन्त भाग । वि. अब पलोइर वि [ प्रलोकित ] प्रेक्षक 1 पलोअ का वकृ. ।
सानवाला, अन्तवाला ।
पलोएंत पलो एमाण पलोघर [दे] देखो परोहड ।
}
पलोट्ट सक [ प्रत्या + गम् ] वापस आना । पलोट्ट सक [ परि + अस् ] फेंकना । मार गिराना । अक पलटना । प्रवृत्ति करना । गिरना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पलियंत न [पल्यान्तर् ] पल्योपम के भीतर ।
पलियस्स न [ परिपार्श्व ] समीप । पलिल देखो पलिअ = पलित ।
पलिव देखो पलीव ।
पलिवग देखो पलीवग ।
पलिविवि [ प्रदीपित] जलाया हुआ । पलिविस अक [ परिवि + ध्वंस् ] नष्ट होना । पलिसय
1
[परि + स्व] आलिंगन पलिस्सय करना, स्पर्श करना, छूना पलिह देखो परिह = परिघ । अवि [] मूर्ख, बेवकूफ पलिहइ स्त्री [] क्षेत्र, खेत । पहिस्स न [ दे] ऊर्ध्व दारु, काष्ठ-विशेष | पलिहाय पुं [दे] देखो पलिहअ । पली सक [ परि + इ] पर्यटन करना । पली अक [ प्र + ली] लीन होना, आसक्ति
करना ।
पलीण वि [ प्रलीन] अति लीन । सम्बद्ध | प्रलय- प्राप्त, नष्ट | छिपा हुआ । पलीमंथ देखो पलिमंथ । पलीव अक [ + दीप् ] जलना । पलीव सक [ प्र + दीपय् ] जलाना । पलीव पुं [ प्रदीप ] दीपक ।
पलीवग वि [ प्रदीपक] आग लगानेवाला । पलुंपण न [ प्रलोपन ] प्रलोप । पलुट्ट वि [प्रलुठित] लेटा हुआ । पलुट्ट देखो पलोट्ट = पर्यस्त | पलुट्ठ वि [प्लुष्ट ] दग्ध, जला हुआ । पलेमाण पली = प्र + ली का वकृ । पलेव पुं [प्रलेप ] पाषाण- विशेष ।
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पलोअ सक [ प्र + लोक्, लोकय् ] देखना, निरीक्षण करना ।
पलोट्ट अक [प्र + लुठ्] जमीन पर लोटना । पलोट्ट वि [ पर्यस्त ] फेंका हुआ । हत । विक्षिप्त । पतित । प्रवृत्त 1 पोट्टजीह वि [दे] रहस्य- भेदी |
पलोट्टण न [ प्रलोठन] ढुलकाना, लुढ़काना, गिराना ।
पलोभ सक [प्र + लोभय् ] लालच देना पलोव (अप) देखो पलोअ । पलोह (शौ) देखो पलो । पलोहर [दे] देखो परोहड ।
पल्ल पुंन [ पल्य] गोल आकार का एक धान्य रखने का पात्र । काल-परिमाण - विशेष, पल्योपम । संस्थान - विशेष, पल्यंक संस्थान | पल्ल पुं [ पल्ल] धान्य भरने का बड़ा कोठा । पल्लंक देखो पलिअंक ।
पल्लंक पुं [ पल्यङ्क] शाक- विशेष, विशेष |
पल्लंघण न [प्रलङ्घन] अतिक्रमण | गति । पल्लट्ट देखो पलट्ट = परि + अस् । पल्लट्ट पुं [दे] पर्वत - विशेष ।
पल्लट्ट पुं [दे. परिवर्त] अनन्त काल चक्रों
का समय ।
देखो पलोट्ट = पर्यस्त ।
कन्द
पल्लट्ट
पल्लत्थ
पल्लत्थि स्त्री [पर्यस्ति ] आसन - विशेष, पलथी ।
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५६० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पल्लल-पवट्ट पल्लल न [पल्वल] छोटा तलाव । | पल्हाय पुं [प्रह्लाद] आनन्द, खुशी। हिरण्यपल्लव पुं. अंकुर । पत्र, पत्ता । देश-विशेष । कशिपु नामक दैत्य का पुत्र । आठवां प्रतिविस्तार ।
वासुदेव राजा । एक विद्याधर नरेश । पल्लव देखो पज्जव।
पल्हायण न [प्रह्लादन] चित्त-प्रसन्नता, पल्लवाय न [दे] क्षेत्र, खेत ।
खुशी । वि. आनन्ददायक । पुं. रावण का एक पल्लविअ वि [दे] लाक्षा-रक्त ।
सुभट। पल्लविअ वि [पल्लवित] पल्लवाकार । | पल्हीय पुं.ब. [प्रह लीक] देश-विशेष । अंकुरित, प्रादुभूत, उत्पन्न । पल्लव-युक्त ।।
पव सक [पा] पीना। पल्लविल्ल वि [पल्लववत्] पल्लव-युक्त ।।
पव अक [प्लु] फरकना। सक. उछल कर पल्लस्स देखो पलोट्ट = परि + अस् ।
जाना । तैरना। पल्लाण न [पर्याण] अश्व आदि का साज ।। पव पुं [प्लव]पूर । उच्छलन, कूदना । तैरना । पल्लाण सक [पर्याणय] अश्व आदि को | मेढ़क । वानर । चाण्डाल, डोम । जल-काक । सजाना।
पाकुड़ का पेड़ । कारण्डव पक्षी । शब्द, पल्लि स्त्री. छोटा गांव । चोरों के निवास का आवाज । दुश्मन । मेंढा । जल-कुक्कुट । गहन स्थान । 'नाह पुं [°नाथ] पल्ली का जल । जलचर पक्षी । नौका । स्वामी । °वइ पुं [पति] वही अर्थ ।। पव स्त्रीन [प्रपा] पानीयशाला, प्याऊ । पल्लिअ वि [दे] आक्रान्त । ग्रस्त । प्रेरित । | पवंग पुं [प्लवङ्ग] वानर । वानर-वंशीय पल्लित्त वि [दे] पर्यस्त ।
मनुष्य । °नाह पुं [°नाथ] वानर-वंशीय पल्ली देखो पल्लि।
राजा, बाली । 'वइ पु [°पति] वानरराज। पल्लीण वि [प्रलीन विशेष लीन । पवंगम पुं [प्लवंगम] वानर । छन्द-विशेष । पल्लोट्टजीह [दे] देखो पलोट्टजीह । पवंच पुं [प्रपञ्च] विस्तार । संसार । ठगाई । पल्हत्थ देखो पलोट्ट = परि + अस् । पवंचा स्त्री [प्रपञ्चा] मनुष्य की दश दशाओं पल्हत्थ सक [ वि + रेचय ] बाहर निका- में सातवीं दशा-६० से ७० वर्ष की लना।
अवस्था। पल्हत्थ देखो पलोट्ट = पर्यस्त।
पवंछ सक [प्र+वाच्छ] वाञ्छना। पल्हत्थरण देखो पच्चत्थरण ।
पवंपुल पुंन [दे] मच्छी पकड़ने का जाल । पल्हत्थिया स्त्री [पर्यस्तिका] आसन-विशेष- पवक वि [प्लवक] उछल-कूद करनेवाला । दोनों जानु खड़ा कर पीठ के साथ चादर __ तैरनेवाला । पुं. पक्षी । सुपर्णकुमार नामक लपेटकर बैठना । जंघा पर वस्त्र लपेटकर देव-जाति । बैठना। पट्ट पुं. योग-पट्ट ।।
पवक्खमाण पवय =प्र+ वच् का वकृ. । पल्हय । पुं [पह लव] अनार्य देश । पुंस्त्री. | पवग देखो पवक। पल्हव । पह्लव देश का निवासी। पवज्ज सक [प्र+पद्] स्वीकार करना । पल्हवि पुंस्त्री. [ दे. पह्रवि ] हाथी की पीठ | पवज्जा देखो पव्वज्जा।
पर बिछाया जाता एक तरह का कपड़ा। पवज्जिय वि [प्रवादित] जो बजने लगा हो । पल्हाय सक [प्र + ह्लाद्] आनन्दित करना, पवट्ट अक [प+वृत्] प्रवृत्ति करना । खुशी करना।
पवट्ट वि [प्रवृत्त] जिसने प्रवृत्ति की हो वह ।
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५६१
पवट्टय-पवह
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष । पवट्टय वि [प्रवर्तक] प्रवत्ति करानेवाला। करण। पवट्टि स्त्री [प्रवृत्ति] प्रवर्तन ।
पवद देखो पवय = प्र+वद् । पवट्ठ देखो पउट्ठ = प्रकोष्ठ ।
पवदि स्त्री [प्रवृति] ढकना, आच्छादन । पवड अक [प्र+पत्] पड़ना, गिरना । पवद्ध देखो पवड्ढ = प्र + वृध् । पवडण न [प्रपतन] अधःपात ।
पवद्ध पुं [दे] धन, हथौड़ा। पवड्ढ अक [दे] पोढ़ना, सोना ।
पवन्न वि [प्रपन्न] अंगीकृत । पवड्ढ अक [प्र+वृध्] बढ़ना ।
पवमाण पुं [पवमान] पवन । पवड्ढ वि [प्रवृद्ध] बढ़ा हुआ ।
पवय सक [प्र+वद्] बकवाद करना । वादपवण वि [प्रवण] तत्पर ।
विवाद करना। पवण न [प्लवन] उछल कर गमन । तरण । | पवय सक [प्र + वच्] बोलना, कहना। °किच्च पुं[कृत्य] नाव, डोंगी।
पवय देखों पवक = प्लवक । पवण पुं [पवन] वायु । भवनपति देवों की
| पवय पुं [प्लवग] वानर । वइ पुं [°पति] एक अवान्तर जाति, पवनकुमार । हनूमान् का
वानरों का राजा सुग्रीव । °ाहिव पुं[धिप] पिता । °गइ पु[गति] हनूमान् का पिता ।
वही पूर्वोक्त अर्थ । वानरद्वीप के राजा मन्दर का पुत्र । °चंड
पवयण पुं [प्राजन] कोड़ा, चाबुक । पुं[°चण्ड] व्यक्ति-वाचक नाम । °तणअ पुं
पवयण न [प्रवचन] जिनदेव-प्रणीत सिद्धान्त,
जैन शास्त्र । जैन संघ । आगम-ज्ञान । माया [तनय] हनूमान् । °नंदण पुं [नन्दन]
स्त्री [°माता] पाँच समिति और तीन गुप्ति हनूमान् । 'पुत्त पुं[पुत्र हनूमान् । °वेग
रूप धर्म। पुं. हनूमान् का पिता । एक जैन मुनि । 'सुअ
पवर वि [प्रवर] श्रेष्ठ, उत्तम । पुं [°सुत] हनूमान् । °गणंद पुं [°नन्द]
पवरंग न[दे. प्रवराङ्ग] मस्तक । हनूमान् ।
पवरपुंडरीय पुंन [प्रवरपुण्डरीक] एक देवपवणंजअ पुं [पवनञ्जय] हनूमान् का पिता।
विमान। एक श्रेष्ठि-पुत्र ।
पवरा स्त्री [प्रवरा] भगवान् वासुपूज्य की पवत्त देखो पवट्ट = प्र+वत् ।
शासनदेवी। पवत्त सक [प्र+वर्त्तय] प्रवृत्त करना। प्रवत्त देखो पवट्ट = प्रवृत्त ।
पवरिस सक [प्र + वृष्] बरसना ।
पवल देखो पबल। पवत्तग वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति करानेवाला ।। पवत्तण न [प्रवर्तन] प्रवृत्ति । वि. प्रवृत्ति
पवस अक [प्र+वस्] प्रयाण करना, विदेश करानेवाला।
जाना। पवत्तय वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति करनेवाला। पवह अक [प्र+वह ] बहना । सक. टपकना, वि. प्रवृत्त करानेवाला।
झरना। पवत्ति स्त्री [प्रवृत्ति प्रवर्तन । 'वाउय वि पवह सक [प्र + हन्] मार डालना।
[°व्याप्त] प्रवृत्ति में लगा हुआ । पवह वि [प्रवह] बहनेवाला । टपकनेवाला, पवत्तिणी स्त्री [प्रत्तिनी] साध्वियों की | चूनेवाला । अध्यक्षा, मुख्य जैन साध्वी।
| पवह पुं [प्रवाह] स्रोत, बहाव, जल-धारा । पवत्तिया स्त्री [दे] संन्यासी का एक उप- प्रवृत्ति । व्यवहार । उत्तम अश्व । प्रभाव ।
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५६२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पवहण-पविद्धंस पवहण पुन [प्रवहण] नौका, जहाज । गाड़ी | पवाहण न [प्रवाहन] जल । बहाना । आदि वाहन ।
पवि पुं पवि वज्र। पवहाइअ वि [दे] प्रवृत्त ।
पविभिअ वि [प्रविजृम्भित] प्रोल्लसित, पवा स्त्री [प्रपा] प्याऊ ।
समुत्पन्न । पवाइ वि [प्रवादिन] वादी । दार्शनिक । पविआ स्त्री [दे] पक्षी का पान-पात्र । पवाइअ वि [प्रवात] बहा हुआ । पविइण्ण वि [प्रवितीर्ण] दिया हुआ । पवाइअ वि [प्रवादित] बजाया हुआ । पविइण्ण वि [प्रविकीर्ण] व्याप्त । विक्षिप्त, पवाड सक [प्र + पातय्] गिराना ।
निरस्त । पवाण (अप) देखो पमाण = प्रमाण । पविकत्थ सक [प्रवि+कत्थ्] आत्म-श्लाघा पवादि देखो पवाइ।
करना। पवाय अक [प्र + वा] सुख पाना। बहना
पविकसिय वि [प्रविकसित ] प्रकर्ष से (हवा का)। सक. गमन करना । हिंसा करना ।
विकसित । पवाय पुं [प्रवाद] जनश्रुति । परम्परा-प्राप्त
। पविकिर सक [प्रवि + कृ] फेंकना ।
पविक्खिअ वि [प्रवीक्षित] निरीक्षित, अवउपदेश । मत, दर्शन ।
लोकित । पवाय पुं [प्रपात] गर्त, गड्ढा । ऊँचे स्थान
पविक्खिर देखो पविकिर । से गिरता जल-समूह । तट-रहित निराधार
पविग्ध वि [दे] विस्मृत। पर्वत-स्थान । रात में पड़नेवाली धाड़, धारा।
पविचरिय वि [प्रविचरित] गमन-द्वारा सर्वत्र पतन । दह पुं [°द्रह] वह कुण्ड जहाँ पर्वत
व्याप्त। पर से नदी गिरती हो।
पविज्जल वि [प्रविज्वल] प्रज्वलित । रुधिपवाय पुं प्रवात] प्रकृष्ट पवन । वि. बहा
। राधि से व्याप्त । हुआ (पवन)। पवन-रहित ।
| पविट्ठ वि [प्रविष्ट] घुसा हुआ । पवायग वि [प्रवाचक पाठक, अध्यापक।
पविणी सक [प्रवि + णी] दूर करना। पवायण न [प्रवाचन] प्रपठन, अध्ययन ।
पवित्त [पवित्र] दर्भ, कुशा । वि. निर्दोष, पवायय देखो पवायग।
शुद्ध, स्वच्छ। पवाल पुन [प्रवाल] नवांकुर, किसलय । मंगा, पवित्त देखो पवट्ट = प्रवृत्त । विद्रुम । °मंत, °वंत वि [°वत्] प्रवाल- पवित्त सक [पवित्रय] पवित्र करना। वाला ।
पवित्तय न [पवित्रक] अंगूठी । पवालिअ वि [प्रपालित] जो पालने लगा पवित्ताविय वि [प्रवत्तित] प्रवृत्त किया हुआ । हो।
पवित्ति देखो पवत्ति = प्रवृत्ति । पवास पुं [प्रवास] विदेश गमन ।
पवित्तिणी देखो पवत्तिणी। पवासि । वि [प्रवासिन्] मुसाफिर । पवित्थर अक [प्रवि + स्तु] फैलाना। पवासु ।
पवित्थरिल्ल वि [प्रविस्तरिन्] विस्तारवाला । पवाह सक [प्र+वाहय] बहाना, चलाना । देखो पविरल्लिय। पवाह देखो पवह = प्रवाह ।
पविद्ध देखो पव्विद्ध। पवाह पुं [प्रबाध] प्रकृष्ट पीड़ा ।
पविद्धंस अक [प्रवि + ध्वंस्] विनाशाभिमुख
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पविद्धत्थ-पवेसणय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५६३ होना । विनष्ट होना।
पविहर सक [प्रवि+ह] विहार करना । पविद्धत्थ वि [प्रविध्वस्त] विनष्ट । पविहस अक [प्रवि + हस्] हसना । पविभत्ति स्त्री [प्रविभक्ति] पृथक्-पृथक् पवीइय वि [प्रवीजित] हवा के लिए चलाया विभाग।
हुआ। पविभाग पुं [प्रविभाग] ऊपर देखो । पवीण वि [प्रवीण] निपुण, दक्ष । पविमुक्क वि [प्रविमुक्त] परित्यक्त ।। पवीणी देखो पविणी। पविमोयण न [प्रविमोचन] परित्याग । पवील सक [प्र+पीडय] दमन करना । पविय वि [प्राप्त प्राप्त ।।
पवुच्च देखो पवय = प्र + वच् । पवियंभिर वि [प्रविम्भित] उल्लसित पवुट्ठ वि [प्रवृष्ट] खूब बरसा हुआ, जिसने प्रभूत होनेवाला । उत्पन्न होनेवाला ।
__ वृष्टि की हो वह । पवियक्किय न [प्रवितकित] विकल्प, वितर्क । | पवुड्ढ वि [प्रवृद्ध] बढ़ा हुआ, विशेष वृद्ध । पवियक्खण वि [प्रविचक्षण] विशेष प्रवीण । | पवुड्ढि स्त्री [प्रवृद्धि] बढ़ाव । पवियार पुं [प्रवीचार] काया और वचन की | पवुत्त वि [प्रोक्त] जिसने बोलना आरम्भ किया चेष्टा-विशेष । काम-क्रीड़ा।
_हो वह। पवियारण न [प्रविचारण] संचार । पवुत्थ [दे] देखो पउत्थ । पवियास सक [प्रवि + काशय] फाड़ना, पवुद वि [प्रवृत] प्रकर्ष से आच्छादित । खोलना।
पवूढ वि [प्रव्यूढ] धारण किया हुआ । पवियासिय वि [प्रविकासित] विकसित किया | निर्गत ।
पवेइय वि [प्रवेदित] निवेदित, प्रतिपादित । पविरइअ वि [दे] त्वरित, शीघ्रता-युक्त ।। विज्ञात । भेंट किया हुआ। पविरंज सक [भ] भांगना, तोड़ना।
पवेइय वि [प्रवेपित] कम्पित । पविरंजव वि [दे] स्निग्ध, स्नेह-युक्त । पवेज्ज सक [प्र+वेदय] विदित करना । पविरंजिअ वि [दे] स्निग्ध, स्नेह-युक्त । कृत- भेंट करना । अनुभव करना । निषेध, निवारित।
पवेढिय वि [प्रवेष्टित] घिरा हुआ, बेढ़ा हुआ। पविरल वि [प्रविरल] अनिबिड । विच्छिन्न । |
| पवेय देखो पवेज अत्यन्त थोड़ा।
पवेयण न [प्रवेदन] प्ररूपण, प्रतिपादन । पविरल्लिय वि [दे] विस्तारवाला। देखो ज्ञान, निर्णय । अनुभावन । पवित्थरिल्ल।
पवेविय वि [प्रवेपित] प्रकम्पित । पविरिक्क वि [प्रविरिक्त] एकदम शून्य । पवेविर वि [प्रवेपितृ] कांपनेवाला। पविरेल्लिय [दे देखो पविरल्लिय । पवेस सक [प्र + वेशय] घुसाना। पविलुप सक [प्रवि+लुप्] बिलकुल नष्ट | पवेस पुं [प्रवेश] भीत की स्थूलता। पैठ, करना ।
| घुसना । नाटक का एक हिस्सा । पविलुत्त वि [प्रविलुप्त] बिलकुल नष्ट । पवेस पुं प्रद्वेष] अधिक द्वेष । पविस सक [प्र+विश्] प्रवेश करना, घुसना । | पवेसण पुंन [प्रवेशन,°क] प्रवेश, पैठ। पविसू सक [प्रवि + सू] उत्पन्न करना। पवेसणग विजातीय जन्मान्तर में उत्पत्ति, पविस्स देखो पविस।
पवेसणय - विजातीय योनि में प्रवेश ।
हुआ।
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५६४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पवोत्त-पसंग पवोत्त पुं प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र ।
पव्वय देखो पव्वइअ। पव्व पुंन [पर्वन्] ग्रन्थि, गाँठ। उत्सव । पव्वय । पुन [पर्वत, °क] पहाड़ । पुं. पूर्णिमा और अमावास्या तिथि। पूर्णिमा पव्वयय , द्वितीय वासुदेव का पूर्व-भवीय
और अमावास्यावाला पक्ष । अष्टमी, नाम । एक ब्राह्मण-पुत्र का नाम । एक चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावास्या का दिन । राजा । एक राज-कुमार । राय पुं [°राज] मेखला, गिरिमेखला। दंष्ट्रा-पर्वत । संख्या- | मेरु पर्वत । “विदुग्ग पुंन [°विदुर्ग] पहाड़विशेष । °बीय पुं[°वीज] इक्षु-आदि वृक्ष, | वाला प्रदेश । जिसका पर्व-प्रन्थि-ही उत्पत्ति का कारण पव्वयगिह न [पर्वतगृह] पर्वत की गुफा । होता है । °राहु पुं. राहु-विशेष, जो पूर्णिमा | | पव्वह सक [प्र+व्यथ्] पीड़ना, दुःख देना । और अमावास्या में क्रमशः चन्द्र और सूर्य का पव्वा स्त्री [पर्वा] लोकपालों की एक बाह्य ग्रहण करता है।
परिषद् । पव्वइ न [पर्वतिन्] गोत्र-विशेष, काश्यप गोत्र पव्वाइअ वि [प्रवाजित] जिसको दीक्षा दी की एक शाखा । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न ।
गई हो वह । न. दीक्षा देना। देखो पव्वपेच्छइ।
पव्वाइअ वि [म्लान] विच्छाय, शुष्क । पव्वइ देखो पव्वई।
पव्वाइआ स्त्री [प्रवाजिका] संन्यासिनी । पव्वइअ वि [प्रवजित] दीक्षित, संन्यस्त ।
पव्वाडि देखो पव्वालि। गत, प्राप्त ।
पव्वाण वि [म्लान] सूखा । पव्वइंद पुं [पर्वतेन्द्र] मेरु पर्वत ।
पव्वाय देखो पवाय = प्र+वा । पव्वइग देखो पव्वइअ।
पव्वाय सक [प्र+वाजय] दीक्षित करना । पव्वइसेल्ल न [दे] बाल-मय कंडक- पव्वाय अक [म्लै सूखना । तावीज।
पव्वाय वि [म्लान, प्रवाण] शुष्क, सूखा । पव्वई स्त्री [पार्वती] शिव-पत्नी।
पव्वाय पुं [प्रवात प्रकृष्ट पवन । पव्वंग पुंन [पर्वाङ्ग] संख्या-विशेष ।
पव्वाल सक [छादय्] ढकना । पव्वक । पुन [पर्वक] वाद्य-विशेष । ईख |
ख | पव्वाल सक [प्लावय] खूब भिजाना । पव्वग , जसा ग्रन्थिवाला वनस्पात । तृण- | पव्वाव सक [प्र+व्राजय] दीक्षित करना । विशेष ।
पव्वावण न [दे] प्रयोजन । पव्वग वि [पार्वक] पर्व--ग्रन्थि-गाँठ का
पव्वाह सक [प्र+वाहय्] बहाना । बना हुआ।
पव्विद्ध वि [दे] प्रेरित । पव्वज्ज पुं [दे] नख । बाण । बाल-मृग ।।
पव्विद्ध वि [प्रवृद्ध] महान्, बड़ा । पव्वज्जा स्त्री [प्रव्रज्या] गमन, गति । दीक्षा, संन्यास ।
पव्विद्ध न [प्रविद्ध] गुरु-वन्दन का एक दोष, पव्वणी स्त्री [पर्वणी] कार्तिकी आदि पर्व- |
वन्दन को समाप्त किये बिना ही भागना । तिथि ।
पव्वीसग न [दे.पव्वीसग] वाद्य-विशेष । पव्वपेच्छइ न [पर्वप्रेक्षकिन्] देखो पव्वइ।। पसइ स्त्री [प्रसूति] दो प्रसृति-पसर का पव्वय सक [प्र+व्रज्] जाना, गति करना।
एक परिमाण । पूर्ण अञ्जलि, दो हस्त-तलदीक्षा लेना, संन्यास लेना।
अंजुरी मिला कर भरी हुई चीज । पव्वय देखो पव्वग।
| पसंग पुंन [प्रसङ्ग] परिचय, उपलक्ष । संगति,
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पसंज-पसाम __ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५६५ सम्बन्ध । आपत्ति, अनिष्ट-प्राप्ति । मथुन ।। करनेवाला । आसक्ति । प्रस्ताव, अधिकार ।
पसम अक [प्र + शम्] अच्छी तरह शान्त पसंज अक [प्र + सञ्] आसक्ति करना ।। होना।
आपत्ति होना अनिष्ट-प्राप्ति होना । पसम पुं [प्रशम] प्रशान्ति, शान्ति । लगातार पसंडि न [दे] सुवर्ण ।
दो उपवास । पसंत वि [प्रशान्त] शम-प्राप्त । साहित्य- पसम पुं [प्रश्रग] विशेष मेहनत- खेद । शास्त्र-प्रसिद्ध शान्त रस ।
पसमण न [प्रशमन] प्रकृष्ट शमन । वि. पसंति स्त्री [प्रशान्ति] नाश, विनाश । प्रशान्त करनेवाला । पसंधण न [प्रसन्धान] सतत प्रवर्तन । पसमिक्ख सक [प्रसम् + ईक्ष्] प्रकर्ष से पसंस सक [प्रशंस्] श्लाघा करना।
देखना। पसंस वि [प्रशस्य] प्रशंसा-योग्य । पुं. लोभ । पसमिण वि [प्रशमिन्] प्रशान्त करनेवाला, पसंसय वि [प्रशंसक] प्रशंसा करनेवाला । । नाश करनेवाला। पसंसा स्त्री [प्रशंसा] श्लाघा, स्तुति, वर्णन । | पसम्म देखो पसम = प्र+शम् । पसज्ज' देखो पसंज।
पसय पुं [दे] मृग-विशेष । मृग-शिशु । पसज्झ । अ [प्रसह्य] खुले तौर से, प्रकट | पसय वि [प्रसृत] फैला हुआ । पसज्झं । रीति से । बलात्कार । पसर अक [प्र+स] फैलना । पसज्झचेय न [प्रसह्यचेतस् ] धर्म-निरपेक्ष | | पसर पुं [प्रसर विस्तार, फैलाव । चित्त, कदाग्रही मन ।
पसरेह पुं [दे] किंजल्क। पसढ वि [प्रसह्य अनेक दिन रखकर खुला | पसल्लिअ वि [दे] प्रेरित । किया हुआ।
पसव सक [प्र + सू] जन्म देना, पसढ वि [प्रशठ] अत्यन्त शठ ।
पसव : अप) सक [प्र + विश्] प्रवेश करना । पसढं देखो पसज्झ ।
न. फूल । पसढिल वि [प्रशिथिल] विशेष ढीला। पसव [दे] देखो पसय । °नाह पुं [°नाथ] पसण्ण वि [प्रसन्न] खुश, स्वस्थ । निर्मल । सिंह । °राय { [राज] सिंह। °चंद पुं [°चन्द्र] भगवान् महावीर के समय
पसवडक्क न [दे] विलोकन । का एक राजर्षि ।
पसवण न [प्रसवन] प्रसूति । पसण्णा स्त्री [प्रसन्ना] मदिरा।
पसविय वि [प्रसूत] जिसने जन्म दिया हो पसत्त वि [प्रसक्त] चिपका हुआ । आसक्त ।
वह । देखो पसूअ = प्रसूत । आपत्ति ग्रस्त, अनिष्ट-प्राप्ति के दोष से युक्त। पसीवर वि [प्रसवित] जन्म देनेवाला । पसत्थ वि [प्रशस्त] प्रशंसनीय । श्रेष्ठ । पसस्स देखो पसंस। पसत्थि स्त्री [प्रशस्ति] वंशवर्णन । पसस्स वि [प्रशस्य] प्रभूत शस्यवाला । पसत्थु पुं [प्रशास्त] लेखाचार्य, गणित का | पसाइअ वि [प्रसादित] प्रसन्न किया हुआ।
अध्यापक । धर्म-शास्त्र का पाठक । मन्त्री। प्रसन्न होने के कारण दिया हुआ । पसप्प पुं [प्रसर्प] विस्तार, फैलाव ।। पसाइआ स्त्री [दे] भिल्ल के सिर पर का पर्णपसप्पग वि [प्रसर्पक] प्रकर्ष से जानेवाला, | पुट, भिल्लों की पगड़ी । मुसाफिरी करनेवाला । विस्तार को प्राप्त | पसाम वि [प्रशाम्] शान्त होनेवाला ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पसाय-पसेविआ पसाय सक [प्र+सादय् ] प्रसन्न करना। । समाधान. आक्षेप का परिहार । पसाय पुं [प्रसाद] प्रसन्नता, खुशी। कृपा, | पसिस्स देखो पसीस।। मेहरबानी । प्रणय ।
पसीअ देखो पसिअ = प्र + सद् । पसार सक [प्र + सारय] पसारना, फैलाना । | पसीस पुं [प्रशिप्य] शिष्य का शिष्य । पसास सक [प्र + शासय् ] शासन करना। पसु पुं [पशु] जन्तु-विशेष, सींग पूछवाला शिक्षा देना । पालन करना।
प्राणी, चतुष्पाद प्राणि-मात्र । बकरा । भूय पसाह सक [प्र + साधय्] बस में करना । वि[भूत] पशु-तुल्य । 'मेह पुं[°मेध] जिसमें सिद्ध करना।
पशु का भोग दिया जाता हो वह यज्ञ । °वइ पसाहग वि [प्रसाधक] साधक, सिद्ध करने- | पुं [°पति] महादेव ।। वाला । °तम वि. उत्कृष्ट साधक । न. करण- | पसुत्त वि [प्रसुप्त] सोया हुआ । कारक । देखो पसाय।
पसुत्ति स्त्री [प्रसुप्ति] कुष्ठ रोग । नखादिपसाहण न [प्रसाधन] सिद्ध करना, साधना । | विदारण होने पर भी अचेतनता । उत्कृष्ट साधन । अलंकार । भूषण आदि की | पसुव (अप) देखो पसु ।। सजावट ।
पसुहत्त पुं [दे] वृक्ष । पसाहय देखो पसाहग । सजानेवाला । | पसू सक [प्र + सू] जन्म देना, प्रसव करना। पसाहा स्त्री [प्रशाखा] शाखा की शाखा, | पसू वि [प्रसू] प्रसव-कर्ता, जन्म-दाता । छोटी शाखा।
पसूअ न [दे] फूल । पसाहिल्ल वि [प्रशाखिन्] प्रशाखा-युक्त । पसूअ वि [प्रसूत] उत्पन्न । पसिअ अक [प्र + सद्] प्रसन्न होना । | पसूअण न [प्रसवन] जन्म-दान । पसिअ अक [प्र + सद्] प्रसन्न होना । पसूइ स्त्री [प्रसूति] प्रसव, उत्पत्ति । एक कुष्ठ पसिअ वि [प्रसृत] फैला हुआ, विस्तीर्ण ।
रोग, नखादि से विदारण करने पर भी दुःख पसिअ न [दे] पूग-फल, सुपारी ।
का असंवेदन, चमड़ी का मर जाना । रोग पसिंच सक [प्र + सिच्] सेचन करना ।
पुं. रोग-विशेष । पसिडि (दे) देखो पसंडि।
पसूइय पुं [प्रसूतिक] वातरोग-विशेष । पसिक्खअ वि [प्रशिक्षक] सीखनेवाला ।
पसूण न [प्रसून] पुष्प । पसिज्जण न [प्रसदन] प्रसन्न होना ।
पसेअ ' [प्रस्वेद] पसीना । पसिढिल देखो पसढिल।
| पसेढि स्त्री [प्रश्रेणि] श्रवान्तर श्रेणि-पंक्ति । पसिण पुंन [प्रश्न] पृच्छा। दर्पण आदि में देवता का आह्वान, मन्त्रविद्या-विशेष । । पसण पु[प्रसेन] भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम °विज्जा स्त्री [विद्या] मन्त्रविद्या-विशेष । । श्रावक का नाम ।
पसिण न [प्रश्न] मन्त्रविद्या के बल से | पसेणइ पं [प्रसेनजित्] कुलकर-पुरुष । यदुवंश स्वप्न आदि में देवता के आह्वान द्वारा जाना |
के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । हुआ शुभाशुभ फल का कथन ।
पसेणि स्त्री [प्रश्रेणि] अवान्तर जाति । पसिणिय वि [प्रश्नित] पूछा हुआ।
पसेयग देखो पसेवय। पसिद्ध वि [प्रसिद्ध] विख्यात, विश्रुत । प्रकर्ष | पसेव सक [प्र+ सेव्] विशेष सेवा करना । से मुक्ति को प्राप्त, मुक्त ।
पसेवय पं [प्रसेवक] कोथला, थैला । पसिद्धि स्त्री [प्रसिद्धि] ख्याति । शंका का ' पसेविआ स्त्री [प्रसेविका] थेली, कोषली ।
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पस्स-पहाण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५६७ पस्स सक [दृश्] देखना।
| पहरण न [प्रहरण] आयुध । प्रहार-क्रिया । पस्स (शौ) देखो पास = पार्श्व ।
पहराइया देखो पहाराइया । पस्सओहर वि [पश्यतोहर] देखते हुए चोरी | पहराय पुं [प्रभराज] भरतक्षेत्र का छठवां करनेवाला, सुनार, उचक्का ।
प्रतिवासुदेव। पस्सेय देखो पसे।
पहरिअ वि [प्रहृत] प्रहार करने के लिए पह वि [प्रह] नम्र । विनीत । आसक्त । उद्यत । जिस पर प्रहार किया गया हो वह । पह पुं [पथिन्] मार्ग । °देसय वि [ देशक] पहरिस पु [प्रहर्ष] आनन्द, खुशी । मार्ग-दर्शक ।
पहलादिद (शौ) [प्रह्लादित] आनन्दित । पहएल्ल पुं [दे] अपूप, पुआ, खाद्य-विशेष । पहल्ल अक [घूर्ण ] घूमना, फाँपना, डोलना । पहंकर देखो पभंकर ।
पहल्लिर वि [प्रपूर्णित] घूमनेवाला, डोलता । पहंकरा देखो पभंकरा।
पहव अक [प्र + भू]उत्पन्न होना । समर्थ होना। पहंजण पुं [प्रभञ्जन] वायु । देव-जाति-विशेष, पहव पुं [प्रभव उत्पत्ति-स्थान । भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति । एक पहव देखो पहाव = प्रभाव । राजा।
पहव देखो पह = प्रत। पहकर [दे] देखो पहयर ।
पहव पुं [प्रभव] एक जैन महर्षि । पहट्ट वि [दे] दृप्त, उद्धत । थोड़े हो समय के पहस अक [ प्र+हस् ] हँसना । उपहास पूर्व देखा हुआ।
करना। पहट्ट वि [प्रहृष्ट] आनन्दित, हर्ष-प्राप्त । पहसण न [प्रहसन] उपहास, परिहास । पहण सक [प्र+हन्] मार डालना ।
नाटक का एक भेद, हास्य-रस प्रधान नाटक, पहण न [दे] कुल, वंश।
रूपक-विशेष । पहणि स्त्री देसामने आए हए का अटकाव । पहसिय वि [प्रहसित जो हंसने लगा हो । पहत्थ पुं [प्रहस्त] रावण का मामा ।
जिसका उपहास किया हो वह । न. हास्य । पहद वि [दे] सदा दृष्ट ।
प. पवनञ्जय का एक विद्याधर-मित्र । पहम्म सक [प्र + हम्म्] प्रकर्ष से गति |
पहा सक [प्र + हा] त्याग करना । अक. कम
होना, क्षीण होना। करना । पहम्म न दे देव-कण्ड । खात-जल, कण्ड । पहा स्त्री [प्रथा] रीति, व्यवहार। ख्याति, छिद्र ।
प्रसिद्धि । पहम्मत ) देखो पहण =प्र+हन् का | पहा स्त्री [प्रभा] कान्ति, तेज, आलोक, पहम्ममाण , कवकृ.।
दीप्ति । 'मंडल देखो भामंडल। °यर पुं पहय वि [प्रहत] घिसा हुआ। मार डाला |
[°कर] सूर्य। रामचन्द्र के भाई भरत के गया, निहत ।
साथ दीक्षा लेने वाला एक राजर्षि । °वई स्त्री पहयर पुं [दे] समूह ।
[°वती आठवें वासुदेव की पटरानी । पहर सक [प्र+ह] प्रहार करना ।
पहाड सक [प्र+ध्राटय् ] इधर-उधर पहर पुं [प्रहार] मार, प्रहार । जहाँ पर भमाना, घुमाना। प्रहार किया हो वह स्थान ।
पहाण वि [प्रधान] नायक, मुखिया, मुख्य । पहर पुं [प्रहर] तीन घंटे का समय।।
उत्तम, प्रशस्त, श्रेष्ठ, शोभन । स्त्रीन,
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प्रकृति - सत्त्व, रज और तमोगुण की साम्यावस्था । पुं. सचिव, मन्त्री ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पहाण पुं [ पाषाण ] पत्थर । पहाण न [ प्रहाण] अपगम, विनाश । पहाम सक [ प्र + भ्रमय् ] फिराना, घुमाना । पहाय देखो पहा = प्र + हा का संकृ. । पहाय न [ प्रभात ] सबेरा । वि. प्रभायुक्त । पहाय देखो पहाव = प्रभाव | पहाया देखो वाहाया ।
पहार सक [ प्र + धारय् ] चिन्तन करना, विचार करना । निश्चय करना । पहार देखो पहर = प्रहार | पहाराइया स्त्री [प्रहारातिगा ] लिपि - विशेष । पहारेत्तु वि [प्रधारयितृ] चिन्तन करनेवाला | पहाव सक [प्र + भावय् ] प्रभाव-युक्त करना, गौरवित करना । प्रसिद्धि करना । पहाव (अप) अक [ प्र + भू] समर्थ होना । पहाव पुं [ प्रभाव ] शक्ति, सामर्थ्यं । कोष और दण्ड का तेज । माहात्म्य । पहाविअवि [ प्रधावित] दौड़ा हुआ । पहाविर वि [ प्रधावितृ] दौड़नेवाला । पहास सक [ प्र + भाष् ] बोलना । पहास अक [ प्र + भास् ] चमकना, प्रकाशना । पहास पुं [प्रहास] अट्टहास आदि हास्य । पहासा स्त्री [ प्रहासा] देवी- विशेष ।
अवि [पान्थ, पथिक ] मुसाफिर । 'साला स्त्री ['शाला ] धर्मशाला ।
पहिअ व [ प्रथित] विस्तृत । प्रसिद्ध | राक्षस वंश का एक लंका पति ।
पहिअ वि [ प्रहित] भेजा हुआ, प्रेषित । पहिअ वि [दे] मथित, विलोडित । सिवि [हिंसक ] हिंसा करनेवाला । पहिज्जमाण पहा = प्र + हा का वकृ. । पट्टि देखो पहट्ट = प्रहृष्ट । पहिर सक [परि + धा] पहनना । पहिरावण न [ परिधापन ] पहिराना । पहि
पहाण -पहोव
रावन, भेंट में - इनाम में दिया जाता वस्त्रादि । पहिल व [] प्रथम |
पहिल्ल अक [दे] पहल करना, आगे करना । पहिल्लिर वि [ प्रघूर्णित] खूब हिलनेवाला । पहिवी देखो पुहबी = पृथिवी ।
पण वि [ प्रहीण] परिक्षीण । भ्रष्ट, स्खलित । पहु [प्रभु] परमेश्वर । जयपुर के विन्ध्यराज का एक पुत्र | स्वामी । वि. समर्थ । अधिपति,
नायक ।
पहुइ देखो भइ । हुई देखो पहुवी ।
पहुंक पुं [पृथुक] खाद्य पदार्थ विशेष, चिउड़ा । पहुच क [प्र + भू] पहुँचना । पहुट्ट देखो पप्फुट्ट । देखो भइ ।
पण पुं [प्राण] अतिथि ।
पहुणाइयन [प्राघुण्य] आतिथ्य, । पहुत्त वि [ प्रभूत] पर्याप्त, काफी । समर्थ | पहुँचा हुआ ।
हुदि देखो भइ |
पहुप्प | अक [ प्र + भू] समर्थ होना, सकना । f पहुँचना । पहुव
पहुवी स्त्री [पृथिवी ] भूमि |पहु पुं [प्रभु ] | [ पति ] वही अर्थ | पहुव्वंत देखो पहुव का कवकृ. ।
पहूअ वि [ प्रभूत] बहुत प्रचुर । उद्गत । भूत । उन्नत ।
पहेज्जमाण देखो पहा = प्र + हा का वकृ. । पण न [] वधू को ले जाने पर पिता के घर दी जाती जमीन ।
पण न [ दे] खाद्य वस्तु को भेंट | उत्सव | पहेरक न [ हेरक ] आभरण- विशेष । पहेलिया स्त्री [ प्रहेलिका ] गूढ़ आशयवाली कविता |
पोअ क [प्र + धाव् ] प्रक्षालन करना ।
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पहोइ-पाउस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५६९ पहोइ वि [प्रधाविन्] धोनेवाला । । पाउंछण न [प्रादप्रोञ्छन] जैन मुनि का एक पहोइअ वि [दे] प्रवत्तित । प्रभुत्व । उपकरण, रजोहरण । पहोड सक [वि + लुल्] अन्दोलना। पाउकर सक [प्रादुस् + कृ] प्रकट करना । पहोलिर वि [प्रघूर्णित] हिलनेवाला, डोलता। | पाउकर वि [प्रादुष्कर] प्रादुर्भावक । पहोव देखो पधोव।
पाउकरण न [प्रादुष्करण]प्रादुर्भाव । वि. जो पा सक. पीना, पान करना । रक्षण करना । प्रकाशित किया जाय वह । जैन मुनि के लिए पा सक [घ्रा] संघना।
एक भिक्षा-दोष, प्रकाश कर दी हुई भिक्षा । पाइ वि [पातिन्] गिरनेवाला ।
पाउक्क वि [दे] मार्गीकृत, मागित । पाइ वि [पायिन्] पीनेवाला ।
पाउक्करण देखो पाउकरण । पाइअ न [दे] मुंह का फैलाव ।
पाउक्खालय न [दे. पायुक्षालक] पाखाना । पाइअ देखो पागय = प्रकृत ।
मलोत्सर्ग-क्रिया। पाइत पाए = पायय का वकृ. ।
पाउग्ग वि दे] सभासद । पाइक्क पुं [पदाति] प्यादा, पैर से चलनेवाला | पाउग्ग वि [प्रायोग्य] उचित, लायक । सैनिक ।
पाउग्गह पुं[पतद्ग्रह] पात्र । पाइडि स्त्री [प्रावृति] प्रावरण, वस्त्र । पाउग्गिा वि [दे] जुआ खेलनेवाला। सहन पाइण देखो पाईण।
किया हुआ। पाइत्ता (अप) स्त्री [पवित्रा] छन्द-विशेष । पाउड देखो पागय। पाइद (शौ) वि [पाचित] पकवाया हुआ। पाउड वि [प्रावृत] आच्छादित । वस्त्र । पाइन्न देखो पाईण।
पाउण सक [प्रा+] पहिरना । पाइभ न [प्रातिभ] प्रतिभा, बुद्धि-विशेष ।। पाउण सक [प्र+आप्] प्राप्त करना । पाइम वि [पाक्य] पकाने-योग्य । काल-प्राप्त,
पाउण (अप) देखो पावण = पावन ।
पाउत्त देखो पउत्त = प्रयुक्त । पाइम वि [पात्य] गिराने-योग्य । . पाउप्पभाय वि [प्रादुष्प्रभात] प्रभा-युक्त, पाई स्त्री [पात्री] भाजन-विशेष । छोटा पात्र। | प्रकाश-युक्त । पाईण वि [प्राचीन] पूर्वदिशा-सम्बन्धी । न. पाउब्भव अक [प्रादुस्+भू] प्रकट होना ।
गोत्र-विशेष । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न । | पाउब्भव वि [पापोद्भव] पाप से उत्पन्न । पाईणा स्त्री [प्राचीना] पूर्व दिशा । पाउब्भुय । वि [प्रादुर्भूत] उत्पन्न, संजात । पाउ देखो पाउं = प्रादुस् ।
पाउब्भूय ) प्रकटित । पाउ पुं [पायु] गुदा।
पाउरण न [प्रावरण] वस्त्र । पाउ पुंस्त्री [दे] भात, भोजन । इक्षु ।
पाउरण न [दे] कवच, वर्म। पाउअ न [दे] हिम । भक्त । इक्षु । पाउरिअ देखो पाउड = प्रावृत । पाउअ देखो पाउड = प्रावत ।
पाउल वि [पापकुल] जघन्य कुल में उत्पन्न । पाउअ देखो पागय।
पाउल्ल न. देखो पाउआ। पाउआ स्त्री [पादुका] खड़ाऊँ, काष्ठ का पाउव न [पादोद] पाद-प्रक्षालन-जल । जूता । पगरखी।
पाउस पुं [प्रावृष्] वर्षा ऋतु । °कीड पुं पाउं अ [प्रादुस्] प्रकट, व्यक्त । | [°कीट] वर्षा ऋतु में उत्पन्न होनेवाला कीट
मृत।
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५७०
विशेष | गम पुं. वर्षा - प्रारम्भ । पाउसिअ वि [ प्रावृषिक ] वर्षा सम्बन्धी | पाउसिअ वि [ प्रोषित, प्रवासिन् ] प्रवास में
गया हुआ ।
पाउसिआ स्त्री [प्राद्वे बिकी] द्वेष - मत्सर से होने वाला कर्म-बन्ध |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पाउहारी स्त्री [दे. पाकहारी] भात - पानी ले आनेवाली ।
अ [] प्रभृति, ( वहां से ) शुरू करके । पाए सक [पायय् ] पिलाना । पाए सक [पादय् ] गति कराना । पाए सक [पाचय् ] पकवाना | पाओ अ [प्रातस्] प्रभात । पाओकरण देखो पाउकरण । पाओग देखो पाउग्ग ।
पाओगिय वि [प्रायोगिक ] प्रयत्न-जनित, अस्वाभाविक |
पाओग्ग देखो पाउग्ग । पाओपगम न [ पादपोपगम] देखो पाओ
वगमण ।
पाओयर पुं [प्रादुष्कार] देखो पाउकरण । पाओवगमण न [ पादपोपगमन] अनशन - विशेष, मरण- विशेष ।
पाकम्म न [ प्राकाम्य ] योग की आठ सिद्धियों में एक सिद्धि ।
पाकार पुं [प्राकार] दुर्ग । पाकिद (शौ) देखो पागय ।
पाउसिअ - पाडल
पाखंड देखो पाखंड |
पाग पुं [ पाक] पचन क्रिया । दैत्य विशेष । विपाक । बलवान् दुश्मन । " सासण पुं [शासन] इन्द्र, देव पति । सासणी स्त्री [° शासनी ] इन्द्रजाल-विद्या |
पाइअ वि [ प्राकृतिक ] स्वाभाविक । पुं. साधारण मनुष्य, प्राकृत लोक ।
पागड सक [प्र + कटय् ] प्रकट करना, व्यक्त
करना ।
पागड वि [ प्रकट] व्यक्त, खुला । पागढि
पागढिक
पाटप (चूपै) देखो वाडव । पाठी देखो पाढीण ।
पाओवगय वि [ पादपोपगत ] अनशन - विशेष
पाड देखो फाड = पाट्य । पाड सक [पातय् ] गिराना ।
से मृत
पाओस पुं [दे. प्रद्वेष ] मत्सर, द्वेष | पाओसिय देखो पादोसिय ।
पाड देखो पाडय = पाटक । पाडच्चर वि [दे] आसक्त चित्तवाला । पाडचर पुं [पाटच्चर ] चोर |
पाओसिया देखो पाउसिआ ।
पांडव व [ ] जलार्द्र ।
पाडण न [पाटन ] विदारण ।
पांडु देखो पंडु |°सुअ पुं [° सुत] अभिनय पाडण न [ पातन] गिराना । परिभ्रमण ।
का एक भेद ।
पाडय पुं [पाटक] मुहल्ला ।
पाक देखो पाग |
पाsय वि [ पातक ] गिरानेवाला । पाडल पुं [ पाटल] गुलाबी रंग । वि
श्वेत और रक्त वर्ण, श्वेत रक्त वर्णवाला । न. पाटलिका - पुष्प, गुलाब का फूल । पाढल
का फूल |
वि [प्राकर्षिन्, 'क] अग्र गामी । प्रवर्त्तक ।
पाब्भ न [ प्रागल्भ्य ] घृष्ठता ।
पागय वि [ प्राकृत] स्वाभाविक । आर्यावर्त्त की प्राचीन लोक भाषा । पुं. साधारण बुद्धिवाला मनुष्य, सामान्य लोग । ' भासा स्त्री [भाषा] प्राकृत भाषा | 'वागरण न [ व्याकरण] प्राकृत भाषा का व्याकरण | पागार पुं [प्राकार] दुर्ग ।
पाजावच्च पुं [ प्राजापत्य] वनस्पति का अधिठाता देव । वनस्पति ।
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पाडल-पाढव
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पाडल पुं [दे] हंस । बैल । कमल । पाडिसार पुं [दे] निपुणता । वि. पटु । पाडलसउण पुं [दे] हंस ।
पाडिसिद्धि देखो पडिसिद्धि = प्रतिसिद्धि । पाडला स्त्री [पाटला] पाढल का पेड़, पाडिसिद्धि स्त्री (दे] स्पर्धा । समुदाचार । पाडरि।
वि सदृश । पाडलि स्त्री [पाटलि] ऊपर देखो । °उत्त, पाडिसिरा स्त्री [दे] खलीन-युक्ता ।
पत्त न [पुत्र] पटना नगर । "पुत्त पाडिस्सुइय न [प्रातिश्रुतिक] अभिनय का वि [पुत्र] पाटलिपुत्र-सम्बन्धी । °संड न | एक भेद । [°षण्ड] नगर-विशेष ।
पाडिहच्छी । स्त्री [दे] शिरो-माल्य । पाडली देखो पालि। °पुर न., वुत्त पाडिहत्थी , [पुत्र] पटना नगर ।
पाडिहारिय वि [प्रातिहारिक] वापस देने पाडव न [पाटव] पटुता।
योग्य वस्तु । पाडवण न [दे] पाद-पतन, प्रणाम-विशेष । । पाडिहेर न [प्रातिहार्य] देवता-कृत प्रतीहारपाडहिग वि [पाटहिक] ढोल बजानेवाला । कर्म, देवकृत पूजा-विशेष । देव-सान्निध्य । पाडहुक वि [दे] प्रतिभू, मनौतिया, जामिन- पाडी स्त्री [दे] भैंस की बछिया । दार ।
पाडुकी स्त्री [दे] जखमवाले की पालकी । पाडिअग्ग पुं[दे] विश्राम ।
पाड्गोरि वि [दे] गुण-रहित । मद्य में पाडिअज्झ पं [दे] पिता के घर से वधू को आसक्त । स्त्री. मजबूत वेष्टन-वाली बाड़ । पति के घर ले जानेवाला ।
पाडुक्क पुं [दे] समालम्भन, चन्दन आदि का पाडिआ देखो पाडय = पातक ।
शरीर में उपलेप । वि. पटु, निपुण । पाडिएक्क ) न [प्रत्येक] हर एक । पाडुच्चिय वि [प्रातीतिक] किसी के आश्रय से पाडिक ।
होनेवाला, आपेक्षिकः । पाडितिय न [प्रात्यन्तिक] अभिनय-विशेष ।। पाडुच्ची स्त्री [दे] घोड़े का सिंगार । पाडिच्चरण न [प्रतिचरण] सेवा, उपासना। | पाडुहुअ वि [दे] मनौतिया, जामिनदार । पाडिच्छय वि [प्रतीप्सक] ग्रहण करनेवाला। पाडेक्क देखो पाडिक्क । पाडिपह न [प्रतिपथ] अभिमुख ।
पाडोस पुंदे] पड़ोस । पाडिपहिअ देखो पडिपहिल।
पाडोसिअ वि [दे] पड़ोसी । पाडिपिद्धि स्त्री [दे] प्रतिस्पर्धा ।। पाढ सक [पाठय] पढ़ाना, अध्ययन कराना । पाडिप्पवग पुं [पारिप्लवक पक्षि-विशेष। पाढ पुं [पाठ] अध्ययन, पठन । शास्त्र, पाडिप्फद्धि वि [प्रतिस्पर्धिन्] स्पर्धा-कर्ता। आगम । शास्त्र का उल्लेख । अध्यापन. पाडियंतिय न [प्रात्यन्तिक] अभिनय-विशेष । शिक्षा । पाडियक्क देखो पाडिएक्क।
पाढ देखो पाडय = पाटक । पाडिवय वि [प्रातिपद] पडवा तिथि का । पं. पाढंतर न [पाठान्तर] भिन्न पाठ । एक भावी जैन आचार्य ।
पाढग वि [पाठक] उच्चारण करनेवाला । पाडिवया स्त्री [प्रतिपत्] पक्ष की पहली __ अभ्यासी, अध्ययन करनेवाला । अध्यापक । तिथि ।
पाढय देखो पाढग। पाडिवेसिय वि [प्रातिवेश्मिक] पड़ोसी। पाढव वि [पार्थिव] पृथिवी का विकार,
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५७२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पांढा-पाणु पृथिवी का।
विशेष, हिंसा से होनेवाला कर्म-बन्ध । पाढा स्त्री [पाठा] पाढ, पाठ का गाछ । °ाइवाय पुं [°ातिपात] हिंसा । 'उ पुंन पाढाव सक [पाठय्] पढ़ाना ।
[°ायुस्] बारहवाँ पूर्व ग्रन्थ । पाण, पाढावअ वि [पाठक] अध्यापक ।
°ापाणु पुन [पान] उच्छ्वास और निः पाढाविउ वि [पाठयित] पढ़ानेवाला। श्वास । याम पुं. योगाङ्ग, रेचक, कुम्भक पाढिआ स्त्री [पाठिका पढ़नेवाली स्त्री। और पूरक नामक प्राणों को दमने का पाढिउ वि [पाठयितु] अध्यापक, पढ़ानेवाला । उपाय। पाढीण पुं [पाठीन] 'पोठिया' मछली। पाणंतकर वि [प्राणान्तकर] प्राण-नाशक । पाढोआमास पुं [पथगामर्श] बारहवें अंगग्रन्थ | पाणंतिय वि [प्राणान्तिक] प्राण-नाशवाला। का एक भाग।
पाणग पुन [पानक] पेय-द्रव्य-विशेष । वि. पाण सक [प्र+ आनय] जिलाना।
पान करनेवाला। पाण पुंस्त्री [दे] चाण्डाल । "उडी स्त्री |
| प्राणद्धि स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला । [कुटी] चाण्डाल की झोंपड़ी। “विलया
पाणम अक [प्र+ अण्] निःश्वास लेना । स्त्री [°वनिता] चाण्डाली। °ाडंबर पुं
| पाणय पुं [प्राणत] दसवां देव-लोक । विमाने
न्द्रक, देवविमान-विशेष । प्राणत स्वर्ग का [°डम्बर] यक्ष-विशेष । °ाहिवइ पुं [धिपति] चाण्डाल नायक ।
इन्द्र । प्राणत देवलोक में रहनेवाला देव । पाण न [पान] पीने की क्रिया । पीने की चीज,
पाणहा स्त्री [उपानह ] जूता । पानी आदि । पुं. गुच्छ-विशेष । °पत्त न
पाणाअअ पुंदे] चाण्डाल । [°पात्र] पीने का भाजन, प्याला। गार
पाणाम पुं [प्राण] निःश्वास ।
पाणामा स्त्री [प्राणामी] दीक्षा-विशेष । न [°गार] मद्य-गृह । हार पुं. एकाशन
| पाणाली स्त्री [दे] दो हाथों का प्रहार । पाण पुंन [प्राण] जीवन के आधार-भूत ये दश
पाणि पुं [प्राणिन्] जीव, आत्मा, चेतन । पदार्थ-पाँच इन्द्रियाँ, मन, वचन और शरीर | पाणि पुं. हस्त । गहण देखो 'ग्गहण । ग्गह का बल, उच्छ्वास तथा निःश्वास । समय
| पुं [°ग्रह] विवाह । °ग्गहण न [°ग्रहण] परिमाण-विशेष, उच्छवास-निःश्वास-परिमित | विवाह । काल । जन्तु, जीव । जीवन । इत्त वि | पाणिअ न [पानीय] पानी। धारिया स्त्री ["वत्] प्राणवाला । °च्चय पुं ["ात्यय] | [°धरिका] ['धरी]। हारी पनिहारी। प्राण-नाश । °च्चाय पुं [°त्याग] मौत । | पाणिणि पुं [पाणिनि] एक प्रसिद्ध व्याकरण°जाइय वि [°जातिक] प्राणी, जन्तु । °नाह | कार ऋषि । पुं [°नाथ] पति, स्वामी । °प्पिया स्त्री | पाणिणीअ वि [पाणिनीय] पाणिनि-सम्बन्धी, [°प्रिया] पत्नी। वह पुं [°वध] हिंसा। पाणिनि का । वित्ति स्त्री ["वृत्ति] जीवन-निर्वाह । °सम पाणी देखो पाण = (दे)। पुं [ °सम ] पति, स्वामी । °सुहुम न पाणी स्त्री [पानी] वल्ली-विशेष । [सूक्ष्म] सूक्ष्म जन्तु । हिय वि [हृत्] | पाणीअ देखो पाणि । प्राण-नाशक । °इंत वि [°वत्] प्राणी। पाणु पुंन [प्राण] प्राण-वायु । श्वासोच्छ्वास । डिवाइया स्त्री [तिपातिको] क्रिया- समय-परिमाण-विशेष ।
तप।
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पात-पाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५७३ पात! देखो पाय = पात्र । 'बंधण न तप । छ: अंगुलों का एक नाप । 'कंचणिया पाद ) [°बन्धन] पात्र बाँधने का वस्त्र-खण्ड, स्त्री [ काञ्चनिका] पैर प्रक्षालन का एक जैनमुनि का एक उपकरण ।
सुवर्ण-पात्र । °कंबल पुंन [°कम्बल] पैर पाद देखो पाय = पाद । °सम वि. गेय- पोंछने का वस्त्रखण्ड । °कुक्कुड पुं[°कुक्कुट] विशेष । °ो?पय न [°ष्ठपद] बारहवें जैन | कुक्कुट-विशेष । °घाय पुं [°घात] चरणआगम-ग्रन्थ का एक प्रतिपाद्य विषय । प्रहार । °चार . पैर से गमन । [°जाल] पादव देखो पायव ।
न [°जाल] पैर का आभूषण-विशेष । °त्ताण पादु देखो पाउं - प्रादुस् ।
न [°त्राण] जूता । °पलंब पुं [प्रलम्ब] पादो देखो पाओ = प्रातस् ।
पैर तक लटकनेवाला एक आभूषण । °पीढ पादोसिय वि [प्रादोषिक] प्रदोष-काल का।
देखो °वीढ । पुंछण न [प्रोञ्छन] रजीपाधन्न देखो पाहण्ण ।।
हरण, जैन साधु का एक उपकरण । °प्पडण पाधार सक [पाद + धारय् ] पधारना । न [°पतन] प्रणाम-विशेष । 'मूल न. देखो पाबद्ध वि [प्राबद्ध] विशेष बँधा हुआ । पामूल । मनुष्यों की एक साधारण जाति, पाभाइय । वि[प्राभातिक] प्रभात-सम्बन्धी ।
नर्तकों को एक जाति । °लेहणिआ स्त्री पाभातिय,
['लेखनिका] पैर पोंछने का जैन साधु का पाम सक [प्र + आप ] प्राप्त करना।
एक काष्ठमय उपकरण । °वंदय वि[वन्दक] पामण्ण न [प्रामाण्य] प्रमाणता ।
पैर पर गिरकर प्रणाम करनेवाला । °वडण पामद्दा स्त्री [दे] दोनों पैर से धान्य-मर्दन ।
न [°पतन] प्रणाम-विशेष । 'वडिया स्त्री पामर पुं. खेती करनेवाला। हलकी जाति का |
['वृत्ति] पैर छूना, प्रणाम-विशेष । विहार
पुं. पैर से गति । वीढ न [°पीठ] पैर रखने मनुष्य । मुर्ख, अज्ञानी।
का आसन । °सीसग न [ शीर्षक] पर के पामा स्त्री. खुजली ।
ऊपर का भाग । उलअ न [°कुलक] पामाड पुं [पद्माट] पमाड़, पमार, पवाड,
छन्द विशेष । चकवड़ वृक्ष । पामिच्च न [दे. अपमित्य] उधार लेना।
पाय देखो पत्त = पात्र । केसरिआ स्त्री पामुक्त वि [प्रमुक्त] परित्यक्त ।
[ केसरिका] जैन साधुओं का एक उपकरण, पामूल न [पादमूल] पैर का मूल भाग। पात्रप्रमार्जन का कपड़ा । 'ट्ठवण, °ठवण न पामोक्ख देखो पमुह = प्रमुख ।
[स्थापन] जैन मुनियों का एक उपकरण, पामोक्ख पुं [प्रमोक्ष] मुक्ति ।
पात्र रखने का वस्त्र-खण्ड । °णिज्जोग, पाय पुं [दे] रथ का पहिया । साँप ।
°निज्जोग पुं ["निर्योग] जैन साधु का यह पाय पुं [पाक] पाचन-क्रिया । रसोई । उपकरण-समूह-पात्र, पात्रबन्ध, पात्रपाय वि [पाक्य] पाक-योग्य ।
स्थापन, पात्रकेशरिका, पटल, रजस्त्राण और पाय देखो पाव ।
गुच्छक । °पडिमा स्त्री [ प्रतिमा] पात्रपाय पुं [पात] पतन । सम्बन्ध ।
सम्बन्धी अभिग्रह-प्रतिज्ञा-विशेष । देखो पाय पुं. पान, पीने की क्रिया ।
पाद = पात्र । पाय पुं[पाद]गमन, गति । पैर । पद्य का चौथा | पाय (अप) देखो पत्त-प्राप्त । हिस्सा । किरण । पर्वत का कटक । एकाशन | पाय अ [प्रायस्] प्रायः, बहुत करके ।
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५७४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पाय-पारंपर °पाय पुं. ब. [°पाद] पूज्य ।
पायस पुंन. दूध का मिष्टान्न, खीर। पायए पा = पा का हेकृ. ।
पायार पुं प्राकार] कोट । पायं° देखो पाय।
पायाल न [पाताल] रसा तल, अघी भुवन । पायं अ{ प्रातस् ] प्रभात ।
°कलश पुं. समुद्र के मध्य में स्थित कलशाकार पायंगुटु पुं [पादाङ्गष्ठ] पैर का अंगूठा ।। वस्तु । °पुर न. नगर-विशेष । °मंदिर न पायंजलि पुं [पातञ्जल] पातञ्जल योग सूत्र । | [°मन्दिर] । हर न [°गृह] पाताल-स्थित पायंत न [पादान्त] गीत का एक भेद, पाद- गृह । वृद्धगीत ।
पायाल न [पाददल] पादात्य, पैदल सैन्य । पायंदुय पुं [पादान्दुक] पैर बाँधने का काष्ठ- | पायालंकारपुर न [पाताललङ्कापुर] पातालमय उपकरण ।
लंका, रावण की राजधानी। पायक देखो पायय = पातक ।
पायावच्च न [प्राजापत्य] अहोरात्र का पायक्क देखो पाइक्क।
चौदहवाँ मुहूर्त । पायक्खिण्ण न [प्रादक्षिण्य] प्रदक्षिणा। | पायाविय वि [पायित] पिलाया हुआ। पायग न [पातक] पाप।
पायाहिण न [प्रादक्षिण्य] वेष्टन, दक्षिण की पायच्छित्त पुन [प्रायश्चित्त] पाप-नाशन
ओर। कर्म।
पायाहिणा देखो पयाहिणा । पायड देखो पागड प्र+कटय ।
पार अक [शक्] करने में समर्थ होना । पायड न [दे] आँगन ।
पार सक [पारय] पार पहुँचना । पायड देखो पागड -प्रकट ।
पार पुंन [पार] तट, पर्ला, किनारा । परलोक, पायड देखो पागड = प्राकृत ।
आगामी जन्म । मनुष्य-लोकभिन्न नरक आदि । पायड वि [प्रावृत] आच्छादित ।
मोक्ष । "ग वि. पार जानेवाला । °गय वि पायण न [पायन] पिलाना, पान कराना। [गत] पार-प्राप्त । पुं. जिन-देव, भगवान् पायत्त न [पादात] पदाति-समूह । °ाणिय न अर्हन् । 'गामि वि [ गामिन् ] पार [°ानीक] पदाति सैन्य ।
पहुँचनेवाला ।"पाणग न[°पानक] पेय द्रव्य । पायपुंछण न [पादपुञ्छन] सकोरा । °विउ वि [विद्] पार को जाननेवाला। पायप्पहण पुं [दे] कुक्कुट ।
°भोय वि [°Tभोग] पार-प्रापक । पायय न [पातक] पाप ।
| पार देखो पायार। पायय देखो पाव-पाप ।
पारंक न [दे] मदिरा नापने का पात्र । पायय देखो पागय ।
पारंगम वि [पारगम] पार जानेवाला । पायय देखो पायव ।
पारंगय वि [पारंगत] पार-प्राप्त । पायय देखो पावय = पावक ।
पारंचि । वि [पाराञ्चि] । न [पाराञ्चिक] पायय देखो पाय = पाद ।
पारंचिय) सर्वोत्कृष्ट प्रायश्चित्त, तप-विशेष पायरास पुं [प्रातराश ] प्रातःकाल का से अतिचारों की पारप्राप्ति । वि. सर्वोत्कृष्ट भोजन।
प्रायश्चित्त करनेवाला । पायल न [दे] आँख ।
पारंपज्ज । न [पारम्पर्य] परम्परा । पायव पं [पादप] वृक्ष ।
पारंपर ।
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पारंपर-पारितावणिया
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५७५
पारंपर पुं [दे] राक्षस ।
पारवस्स न [पारवश्य] परवशता । पारंभ सक [प्रा+रभ्]आरम्भ करना । हिंसा पारस पुं. अनार्य, फारस देश, ईरान । मणिकरना, मारना । पीड़ा करना ।
विशेष, जिसके स्पर्श से लोहा सुवर्ण हो जाता पारंभ पुं [प्रारम्भ] शुरू, उपक्रम । है। पारस देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति । पारकेर । वि [परकीय] पर का, अन्यदीय । °उल न [°कुल] ईरान देश । वि. पारस पारक्क
देश का, ईरान का निवासी । कूल न. ईरान पारज्झमाण देखो पारंभ = प्रा+ रभ का | का किनारा या सीमा। कवकृ.।
पारसिय वि [पारसिक] फारस देश का । पारण ) न [पारण] व्रत या तप की पारसी स्त्री. पारस देश की स्त्री। फारसी पारणग ) समाप्ति के अनन्तर का भोजन । लिपि । पारणा स्त्री. ऊपर देखो। °इत्त वि [°वत् पारसीअ वि [पारसीक] फारस-निवासी। पारणावाला।
पाराई स्त्री [दे] लोह-कुशी-विशेष, लोहे की पारतंत न [पारतन्त्र्य] पराधीनता।
दंडाकार छोटी वस्तु । पारत्त अ[परत्र]परलोक या आगामी जन्म में । पाराय देखो पारावय । पारत्त वि [पारत्र, पारत्रिक] पारलौकिक, | पारायण न. पार-प्राप्ति । पुराण-पाठ-विशेष ।
आगामी जन्म से सम्बन्ध रखनेवाला । पारावय देखो पारेवय । पारत्ति स्त्री [दे] कुसुम-विशेष ।
पारावर पुं [दे] गवाक्ष। पारदारिय वि [पारदारिक] परस्त्री-लम्पट । । पारावार पुं. सागर । पारद्ध वि [प्रारब्ध] जिसका प्रारम्भ किया | पाराविअ वि [पारित] जिसको पारण कराया।
गया हो । जो प्रारम्भ करने लगा हो। पारासर पुं [पाराशर] ऋषि-विशेष । न. पारद्ध न [दे] पूर्व-कृत कर्म का परिणाम, गोत्र, वशिष्ठ गोत्र की शाखा। वि. उस गोत्र प्रारब्ध । वि. शिकारी । पीडित ।
में उत्पन्न । पुं.भिक्षुक । कर्म-त्यागी संन्यासी । पारद्धि स्त्री [पापद्धि] शिकार। " पारिओसिय वि [पारितोषिक] पुरस्कार । पारद्धिअ वि [पापद्धिक] शिकारी । पारिच्छा देखो परिच्छा। पारमिया स्त्री [पारमिता] बौद्ध-शास्त्र-परि
| पारिच्छेज देखो परिच्छेज्ज । भाषित प्राणातिपात-विरमणादि शिक्षा-व्रत ।
पारिजाय देखो पारिय = पारिजात । पारम्म न [पारम्य] परमता, उत्कृष्टता। पारिद्वावणिया स्त्री [पारिष्ठापनिकी] समितिपारय वि [पारग] समर्थ ।
विशेष, मल आदि के उत्सर्ग में सम्यक् पारय पुं [पारद] पारा। °मद्दण न प्रवृत्ति । [°मर्दन] आयुर्वेद विहित रीति से पारा का |
पारिडि स्त्री [प्रावृति] प्रावरण, कपड़ा। मारण, रसायन-विशेष । वि. पार-प्रापक । पारिणामिअ देखो परिणामिअ = पारिपारय न [दे] दारू रखने का पात्र ।
णामिक । पारय देखो पार-ग।
पारिणामिआ , देखो पारिणामिआ। पारय पुं [प्रावारक] पट । वि. आच्छादक। | पारिणामिगी । पारलोइअ वि [पारलौकिक]परलोक-सम्बन्धी, | पारितावणिया स्त्री [पारितापनिकी] दूसरे आगामी जन्म से सम्बन्ध रखनेवाला। । को दुःख उपजाने से होनेवाला कर्म-बन्ध ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पारितावणी-पालित्ताण पारितावणी स्त्री [पारितापनी] ऊपर देखो। पारुहल्ल वि [दे] मालीकृत, श्रेणी रूप से पारितोसिअ देखो पारिओसिय ।
स्थापित । पारित्त देखो पारत्त = परत्र ।
पारेवय पुं [पारापत] कबूतर । वृक्ष-विशेष । पारिप्पव पुं [पारिप्लव पक्षि-विशेष । न. फल-विशेष । पारिभद्द पुं[पारिभद्र] फरहद का पेड़ । पारोक्ख वि [पारोक्ष] परोक्ष-सम्बन्धी । पारिय वि [पारित] पूर्ण किया हुआ । पारोह देखो परोह। पारिय पुं [पारिजात] देव-वृक्ष, कल्पतरु। पाल सक [पालय्] पालन-रक्षण करना । फरहद का पेड़ । न. फरहद का फूल जो रक्त | पाल देखो पार = पारय । वर्ण का और अत्यन्त शोभायमान होता है। पाल पुं [दे] कलवार, शराब बेचनेवाला । वि. पारियत्त पुं [पारियात्र] देश-विशेष । जीर्ण, फटा-टूटा। पारियल्ल न [दे. परिवर्त] पहिए के पृष्ठ | पाल पुन. आभूषण-विशेष, वि. पालन-कर्ता । भाग की बाह्य परिधि ।
पालंक न [पालक्य] पालक का शाक । पारियाय देखो पारिय = पारिजात । पालंगा स्त्री [पालक्या ] ऊपर देखो । पारियावणिया देखो पारितावणिया। पालंब पुं[प्रालम्ब] अवलम्बन, सहारा । गले पारियावणिया देखो परियावणिया। का आभूषण-विशेष । दीर्घ । पुन. ध्वजा के पारियासिय वि [पारिवासित] बासी रखा |
नीचे लटकता वस्त्राञ्चल । हुआ।
पालक्का स्त्री [पालक्या] देखो पालंगा। पारिव्वज न [पारिवाज्य] संन्यास । पालग देखो पालय । पारिव्वाई स्त्री [पारिव्राजी] संन्यासिनी।। पालण न [पालन] रक्षण । वि. रक्षक । पारिव्वाय वि [पारिवाज] संन्यासी-सम्बन्धी । | पालदुह पं [दे] वृक्ष-विशेष । पारिसज्ज वि [पारिषद्य] सभासद। पालप्प पुं [दे] प्रतिसार । वि. विप्लुत । पारिसाडणिया स्त्री [पारिशाटनिकी] परि- पालय वि [पालक] रक्षक । पुं सौधर्मेन्द्र का शाटन--परित्याग से होनेवाला कर्म-बन्ध। ।
एक आभियौगिक देव । श्रीकृष्ण का पारिहच्छी स्त्री [दे] माला ।
एक पुत्र । भगवान् महावीर के निर्वाण के पारिहट्टी स्त्री [दे] प्रतिहारी। आकर्षण । |
दिन अभिषिक्त अवन्ती का एक राजा। देवबहुत देर से ब्यायी हुई भैंस ।
विमान-विशेष । पारिहत्थिय सि [पारिहस्तिक] निपुण । । पालास पुं पालाश] पलाश-सम्बन्धी । न. पारिहारिय वि [पारिहारिक] परिहार | किंशुक-फल। नामक व्रत करनेवाला तपस्वी ।
पालि स्त्री. तालाव आदि का बन्ध । प्रान्त पारिहासय न [पारिहासक] जैन मुनियों के भाग । देखो पाली = पाली । एक कुल का नाम ।
पालि स्त्री [दे] धान्य मापने की नाप । पल्योपारी स्त्री [दे] दोहन-भाण्ड ।
पम, समय का सुदीर्घ परिमाण-विशेष । पारीण वि. पार-प्राप्त ।
पालिआ स्त्री [दे] तलवार की मूठ । पारुअग्ग पुं [दे] विश्राम ।
पालिआ देखो पाली = पाली । पारुअल्ल पुं[दे] पृथुक, चिउड़ा । पालित्त पुं [पादलिप्त] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य । पारुसिय देखो फारुसिय। .
(पालित्ताण न [पादलिप्तीय] सौराष्ट्र देश का
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पालित्तिआ-पास संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष प्राचीन नगर पालिताणा।
एक सिद्धि। पालित्तिआ स्त्री [दे] राजधानी। मूलनीवी । पावद्धि देखो पारद्धि। भण्डार । भंगी, प्रकार ।
पावय देखो पाव = पाप । पालियाय देखो पारिय = पारिजात । पावय वि [प्रावृत] आच्छादित । पाली स्त्री. श्रेणि । देखो पालि ।
पावय पुंन [दे] वाद्य-विशेष । पाली स्त्री [दे] दिशा।
पावय देखो पावग - पावक । पालीबंध पूं[दे] तालाव, सरोवर ।
पावयण देखो पवयण । पालीहम्म न [दे] वृति, बाड़ ।
पावरअ देखो पावारय । पालेव पुं [पादलेप] पैर में किया हुआ लेप । | पावरण पुं [प्रावरण] एक म्लेच्छ जाति । न. पाव सक [प्र+आप्] प्राप्त करना।
वस्त्र । पाव देखो पव्वाल = प्लावय ।
पावरिय वि प्रोवृत] आच्छादित । पाव पुंन [पाप] अशुभ कर्म-पुद्गल, कुकर्म । पावस देखो पाउस। पापी, अधर्मी । कम्म न [°कर्मन्] अशुभ | पावा स्त्री [पापा] नगरी-विशेष । कर्म । 'कम्मि वि [ कमिन्] कुकर्म करने- पावाइ वि [प्रवादिन] वाचाट, दार्शनिक । वाला । दंड पुं[°दण्ड] नरकावास-विशेष । ।
| पावाइअ वि [प्रावाजिक] संन्यासी । °पगइ स्त्री [प्रकृति] अशुभ कर्म-प्रकृति । पावाइअ वि [प्रावादिक] देखो पावाइ।
यारि वि [°कारिन्] दुराचारी। °समण | पावाइअ ) वि [प्रावादुक] वाचाट, दार्शपुं [श्रमण] दुष्ट साधु । °सुमिण पुंन | पावादुय । निक । [°स्वप्न] दुष्ट स्वप्न । सुय न [ श्रुत]
पावार पुं [प्रावार] रुछावाला। मोटा दुष्ट शास्त्र ।
कम्बल । पाव पुं [दे] सर्प ।
पावारय देखो पारय = प्रावारक । पाव (अप) देखो पत्त = प्राप्त । पावंस वि [पापीयस् ] पापी, कुकर्मी।।
पावालिआ स्त्री [प्रपापालिका] प्याऊ पर
नियुक्त स्त्री। पावक्खालय न [दे. पापक्षालक] देखो |
| पावासु वि [प्रवासिन्] प्रवास करनेवाला । पाउक्खालय।
पाविअ वि [प्राप्त] लब्ध, मिला हुआ। पावग वि [पावक] पवित्र करनेवाला । पुं. पाविअ वि [प्रापित] प्राप्त करवाया हुआ। अग्नि ।
पाविअ वि [प्लावित] सराबोर किया हुआ । पावग वि [प्रापक] पहुँचानेवाला । पाविट्ठ वि [पापिष्ठ] अत्यन्त पापी । पावग देखो पाव = पाप ।
पावीढ देखो पाय-वीढ । पावज्जा (अप) देखो पव्वजा ।
पावीयंस देखो पावंस। पावडण देखो पाय-वडण = पाद-पतन । पावुअ वि [प्रावृत] आच्छादित । पावड्ढि देखो पारद्धि।
पावेस वि [प्रावेश्य] प्रवेश के लायक । पावण वि [पावन] पवित्र करनेवाला । | पावेस पुं [प्रावेश] वस्त्र के दोनों तरफ लटपावण न [प्लावन] पानी का प्रवाह । सरा- | कता रुंछा। बोर करना।
पास सक [ दृश् ] देखना । जानना । पावण न [प्रापण] प्राप्ति, लाभ । योग की | पास पुं [पार्श्व] वर्तमान अवसर्पिणी-काल के
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५७८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पास-पाहुड तेईसवें जित-देव । भगवान् पार्श्वनाथ का पासादीय वि [प्रासादित] महलवाला । अधिष्ठायक यक्ष । न. कन्धे के नीचे का भाग, | पासाय पुन [प्रासाद] महल । वडिसय पुं पांजर । निकट । वञ्चिज्ज वि [°पित्यीय] | [वतंसक] श्रेष्ठ महल । भगवान् पाश्वनाथ की परम्परा में संजात । पासायवडेंसग पुं [प्रासादावतंसक] श्रेष्ठतम पास पुं [पाश] फाँसा ।
महल, प्रासाद-विशेष । पास न [दे] आँख । दांत । कुन्त, प्रास । वि. | पासाव पुं[दे] गवाक्ष । झरोखा । विशोभ, कुडौल । पुन, अन्य वस्तु का अल्प- पासासा स्त्री [दे] छोटा भाला। मिश्रण।
पासि वि [पाश्विन्] पार्श्वस्थ, शिथिलाचारी °पास वि [पाश] निकृष्ट; जघन्य, कुत्सित ।
साधु । पासंगिअ वि [प्रासङ्गिक] आनुषंगिक ।
पासिद्धि देखो पसिद्धि। पासंड न [पासण्ड]पाखण्ड, असत्य धर्म । व्रत ।
पासिम वि [दृश्य] दर्शनीय, ज्ञेय । पासंदण न [प्रस्यन्दन] झरन, टपकना ।।
पासिय वि [पाशिक] फांसे में फंसानेवाला । पासग वि [दर्शक] देखनेवाला ।
पासिय वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ। पासग पुं पाशक] फाँसा । पासा, जुआ खेलने
पासिय वि [पाशित] पाश-युक्त । का उपकरण-विशेष ।
पासिया स्त्री [पाशिका] छोटा पाश । पासग न [प्राशक] कला-विशेष ।
पासिया देखो पास = दृश् । पासणिअ वि [दे] साक्षी।
पासिल्ल वि [पाश्विक] पास में रहनेवाला । पासणिअ वि [प्राश्निक] प्रश्न-कर्ता ।
पार्श्वशायी। पासत्थ वि [पार्श्वस्थ] निकट-स्थित । शिथिलाचारी साधु ।
पासी स्त्री [दे] चूड़ा, चोटी । पासत्थ वि [पाशस्थ] पाश में फंसा हुआ।
पासु देखो पंसु । पासल्ल न [दे] द्वार । वि. तिर्यक् , वक्र ।।
पासुत्त देखो पसुत्त। पासल्ल अक [तिर्यञ्च्, पार्थाय् ] वक्र । पार्श्व
पासेइय वि [प्रस्वेदित] प्रस्वेद-युक्त । घुमाना ।
पासेल्लिय वि पाश्र्ववत्] पार्श्व-शायी । पासल्लइअ देखो पासल्लिअ ।
पासोअल्ल देखो पासल्ल - तिर्यञ्च । पासल्लि वि [पाश्विन] पार्श्व-शयित । पाह (अप) सक [प्र+अर्थय् ] प्रार्थना पासल्लिअ वि [पाश्वित, तिर्यक्त] पार्श्व में करना। किया हुआ । टेढ़ा किया हुआ।
पाहंड देखो पासंड। पासवण न [प्रस्रवण] मूत्र ।
पाहण देखो पाहाण। पासाईय देखो पासादीय ।
पाहणा देखो पाणहा। पासाकुसुम न [पाशाकुसुम] पुष्प-विशेष । पाहण्ण न [प्राधान्य] प्रधानता । पासाण पुं[पाषाण] पत्थर ।
पाहर सक [पा + ह] प्रकर्ष से लाना । पासाणिअ वि [दे] साक्षी।
पाहरिय वि [प्राहरिक] पहरेदार । पासाद देखो पासाय।
पाहाउय देखो पाभाइय। पासादिय वि [प्रसादित] प्रसन्न किया हुआ। पाहाण पुं[पाषाण] पत्थर। . न. प्रसन्न करना।
पाहिज देखो पाहेज। पासादीय वि [प्रासादीय] प्रसन्नता-जनक। । पाहुड न [प्राभृत] उपहार । जैन प्रन्थांश
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पाहुड-पिअमा
संक्षिप्त प्रोकृत-हिन्दी कोष विशेष, परिच्छेद, अध्ययन । प्राभृत का का एक शिष्य । जाअ वि [°जाय] जिसको ज्ञान । पाहुड न [प्राभृत] ग्रन्थांश-विशेष, पत्नी प्रिय हो वह । 'जाआ स्त्री [°जाया] प्राभृत का भी एक अंश। प्राभृत-प्राभृत का प्रेम-पात्र पत्नी। दंसण वि [°दर्शन] ज्ञान । पाहुडसमास पुंन [°प्राभृतसमास] | जिसका दर्शन प्रीतिकर हो । पुं. देव-विशेष । अनेक प्राभृ त-प्राभृतों का ज्ञान । °समास °दसणा स्त्री [°दर्शना] भगवान् महावीर पुंन. अनेक प्राभृतों का ज्ञान ।
की पुत्री। धम्म वि [°धर्मन्] धर्म की पाहुड न [प्राभृत] कलह । दृष्टिवाद के पूर्वो श्रद्धावाला। पुं. श्री रामचन्द्र के साथ जैन
का अध्याय-विशेष । सावध कर्म । °छेय पुं दीक्षा लेनेवाला राजा । भाउग पुं [भ्रात] ["च्छेद]बारहवें अंग-ग्रन्थ के पूर्वो का प्रकरण
पति का भाई । °भासि वि [°भाषिन् प्रियविशेष । 'पाहुडिआ स्त्री [प्राभृतिका]
वक्ता । 'मित्त पुं [°मित्र] एक जैन मुनि, दृष्टिवाद का प्रकरण-विशेष ।
जो अपने पीछले भव में पाँचवाँ वासुदेव हुआ पाहुडिआ स्त्री [प्राभृतिका] दृष्टिवाद का छोटा
था । मेलय वि [°मेलक] प्रिय का मेलअध्याय । अर्चनिका, विलेपन आदि।
संयोग करानेवाला । न. एक तीर्थ । उय पाहुडिआ स्त्री [प्राभृतिका भेंट । जैन मुनि |
वि [°ायुष्क] जीवित-प्रिय । यग वि की भिक्षा का एक दोष, विवक्षित समय से
[यत, "त्मक] आत्म-प्रिय । पहले-मन में संकल्पित भिक्षा, उपहार रूप | पिअ देखो पीअ। से दी जातो भिक्षा ।
पिअ° देखो पिउ। हर न [°गृह] पिता का पाहुण वि [दे] बेचने की वस्तु ।
घर, पीहर। पाहुण पुं [प्राघुण] अतिथि ।
पिअआ देखो पिआ। पाहुणिअ पुं [प्राघुणिक] मेहमान ।
पिअइउ (अप) वि [प्रीणयितु] प्रीतिकर । पाहुणिअ पुं [प्राधुनिक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधि
पिअउल्लिय (अप) देखो पिआ।
पिअंकर वि [प्रियंकर] अभीष्ट-कर्ता । पुं. ष्ठायक देव-विशेष । पाहुणिज्ज वि प्राहवनीय] प्रकृष्ट संप्रदान,
एक चक्रवर्ती राजा। रामचन्द्र के पुत्र लव जिसको दान दिया जाय वह ।
का पूर्व जन्म का नाम । पाहुण्ण न [प्राघुण्य] आतिथ्य ।
पिअंगु पुं [प्रियङ्ग] प्रियंगु का वृक्ष । ककुंदनी पाहेअ । न [पाथेय] रास्ते में व्यय करने का पेड़ । कंगु, मालकाँगनी का पेड़ । स्त्री. पाहेज्ज की सामग्री या भोजन ।
एक स्त्री का नाम । 'लइया स्त्री [°लतिका] पाहेणग (दे) देखो पहेण।
एक स्त्री का नाम । पि देखो अवि।
पिअंवय । वि [ प्रियंवद ] मधुर-भाषी । पिअ सक [पा] पीना।
पिअंबाइ ) [प्रियवादिन् । पिअ ' [प्रिय] पति । वि. इष्ट । °अम | पिअण न [दे] दूध । [°तम] कान्त । °अमा स्त्री [°तमा] पत्नी। पिअण न [पान] पीना । °अर वि [°कर] प्रीति-जनक । °कारिणी | पिअणा स्त्री [पृतना] जिसमें २४३ हाथी, स्त्री. भगवान् महावीर की माता का नाम, | २४३ रथ, ७२९ घोड़े और १२१५ प्यादें त्रिशला देवी.। 'गंथ पुं [°ग्रन्थ] एक प्राचीन | हों वह लश्कर । जैन मुनि, आचार्य सुस्थित और सुप्रतिबद्ध | पिअमा स्त्री [दे] प्रियंगु वृक्ष ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पिअमाहवी-पिछोली पिअमाहवी स्त्री [दे] कोकिला। | पिउच्चा स्त्री [दे. पितृष्वस] फूफी। पिअय पुं [प्रियक] विजयसार का पेड़ । पिउच्चा । स्त्री [दे] सखी। पिअर पुन [पित] माता-पिता । पुं. पिता। पिउच्छा । पिअरंज सक [ भञ्ज ] भाँगना, तोड़ना ।। पिउली स्त्री [दे] कपास । रूई की पूनी । पिअल अप) देखो पिअ = प्रिय । | पिंकार पुं [अपिकार] 'अपि' शब्द । अपि पिआ स्त्री [प्रिया] पत्नी ।
शब्द की व्याख्या। पिआमह पुं [पितामह] ब्रह्मा । दादा। तणअ | पिंखा स्त्री [प्रेङ्खा] हिंडोला । पुं[°तनय] जाम्बवान्, वानर-विशेष । 'त्थ | पिखोल सक [प्रेङ्खोलय] झूलना । न [स्त्र] ब्रह्मास्त्र ।
पिंग देखो पंग = ग्रह, । पिआमही स्त्री [पितामही] दादी । पिंग पुं [पिङ्ग] कपिश वर्ण । वि. पीला । पिआर (अप) वि [प्रियतर] प्यारा।
पुंस्त्री. कपिजल पक्षी। पिआरी (अप) स्त्री [प्रियतरा] प्रिया, पत्नी। | पिंगंग पुं [दे] मर्कट । पिआल ' [प्रियाल] पियाल, चिरौंजी।
पिंगल पुं पिङ्गल] नील-पीत वर्ण । वि. नीलपिआलु पुं [प्रियालु] खिरनी का गाछ ।
मिश्रित पीत-वर्णवाला । पुं. ग्रह-विशेष । एक पिआसा देखो पिवासा।
यक्ष । चक्रवर्ती का एक निधि, आभूषणों की पिइ देखो इ।
पूर्ति करने वाला एक निधान । कृष्ण पुद्गलपिइ पुं [पितृ] पिता। मघा नक्षत्र का अधि- विशेष । प्राकृत-पिंगल का कवि । जैन उपाष्ठायक देव । °मेह पुं [ मेध] जिसमें बाप | सक । न. प्राकृत का छन्द-ग्रन्थ । 'कुमार का होम किया जाय वह यज्ञ । °वण न पुं. राजकुमार, जिसने भगवान् सुपार्श्वनाथ से [°वन] श्मशान । °हर न [गृह] पिता का दीक्षा ली थी । °क्ख वि [क्ष] नीली-पीली घर ।
आँखवाला । पुं. पक्षि-विशेष । पिइज्ज पुं [पितृव्य] चाचा ।
| पिंगलायण न [पिङ्गलायन] कौत्स गोत्र की पिइय वि [पैतृक] पिता का, पितृ-सम्बन्धी। ।
शाखा। पुंस्त्री. उस में उत्पन्न । पिउ पुं [पित ] पिता । पुन. माँ बाप । | पिंगलिअ वि पैङ्गलिक पिंगल-सम्बन्धी ।
कम्म पुं ["क्रम] पितृ-कुल । °कुल न. | पिंगा देखो पिंग। पिता का वंश । °धर न [°गृह] पीहर । | पिंगायण न [पिङ्गयन] मघा-नक्षत्र का गोत्र । °च्छा, °च्छी स्त्री [°ष्वसृ पिता की | पिंगिअ वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ । बहिन । पिंड पुं [°पिण्ड] मृतक-भोजन, | पिगिम पुंस्त्री. [पिङ्गिमन्] पीलापन । श्राद्ध में दिया जाता भोजन । °भगिणी स्त्री | पिंगीकय वि [पिङ्गीकृत] पीला किया हुआ । [ भगिनी ] फूफी । "वइ पुं [ “पति] | पिंगुल पुंपिङ्गल] पक्षि-विशेष । यमराज । 'वण न [°वन ] श्मशान । पिंचु पुंस्त्री [दे] पक्व करीर । 'सिआ स्त्री [ °ष्वसृ ] फूफी। °सेण- | पिंछ । देखो पिच्छ। कण्हा स्त्री [°सेनकृष्णा] राजा श्रेणिक | पिंछड , की एक पत्नी । °स्सिया देखो °सिआ। पिछी स्त्री [पिच्छी] साधु का एक उपकरण । हर देखो घर।
| पिछोली स्त्री [दे] मुंह के पवन से बजाया पिउअ देखो पिइय।
। जाता तृण-मय वाद्य-विशेष ।
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FFI
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पिंज-पिच्चा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५८१ पिंज सक [पिन्] पीजना, रूई का धुनना। पिंडलग न [दे] पटलक, पुष्प का भाजन । पिंजर पुं [पिञ्जर] पीत-रक्त वर्ण । वि. रक्त- पिंडवाइअ वि [पिण्डपातिक, पैण्डपातिक] पीत वर्णवाला।
भक्त-लाभवाला, जिसको भिक्षा में आहार पिंजर सक [पिञ्जरय] रक्त-मिश्रित पीतवर्ण- | की प्राप्ति हो वह। युक्त करना।
| पिंडार पुं [पिण्डार] गोप । पिंजरुड पुं [दे] भारुण्ड पक्षी ।
पिंडालु पुं [पिण्डालु] कन्द-विशेष । पिंजिअ वि [पिञ्जित] पीजा हुआ । पिंडि° देखो पिंडी। पिजिअ वि [दे] विधुत ।
पिडिम वि [पिण्डिम] पिण्ड से बना हुआ, पिंड सक [पिण्डय] एकत्रित करना, संश्लिष्ट बहल । पुद्गल-समूहरूप, संघाताकार । करना । अक. मिलना।
पिडिय वि [पिण्डित] एकत्रित । गुणित ।। पिंड पुं [पिण्ड] कठिन द्रव्यों का संश्लेष ।
पिंडिया स्त्री [पिण्डिका] पिंडली, जानू के
नीचे का अवयव । वर्तुलाकार वस्तु । संघात । गुड़ वगैरह की बनी हुई गोल वस्तु,
पिंडी स्त्री [पिण्डी] लुम्बी, गुच्छा। घर का वर्तुलाकार पदार्थ । भिक्षा में मिलता।
। आधारभूत काठ-विशेष, पीढ़ा । वर्तुलाकार आहार । देह का एक देश । देह । घर का
वस्तु, गोला । खजूर-विशेष । एक देश । अन्न का गोला जो पितरों के उद्देश
पिंडी स्त्री [दे] मञ्जरो। से दिया जाता है । गन्ध-द्रव्य, सिलक । जपा
पिंडीर न [दे. पिण्डीर] अनार । पुष्प । कवल । गज-कुम्भ । मदनक वृक्ष,
पिंडेसणा स्त्री [पिण्डैषणा] भिक्षा ग्रहण करने दमनक का पेड़ । न. आजीविका । लोहा । श्राद्ध । वि. संहत । निबिड़ । 'कप्पिअ वि
की रीति । [कल्पिक] सर्वथा निर्दोष भिक्षा लेनेवाला ।
पिंडेसिय वि [पिण्डैषिक] भिक्षा-गवेषक । गला स्त्री. गड-विशेष, इक्षरस का विकार- | पिंडोलगय । वि [पिण्डावलगक] भिक्षा से विशेष । °घर न [°गृह] कर्दम से बना हुआ | पिंडोलय , निर्वाह करनेवाला, भिक्षु । घर । त्थ पुं [°स्थ] जिन भगवान् की | पिंध (अप) सक [पि +धा] ढकना । अवस्था-विशेष । “त्थ पुं [°Tर्थ] समुदायार्थ । पिसुली स्त्री [दे मुंह से पवन भरकर बजाया °दाण न [°दान] पिण्ड देने की क्रिया, जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य । श्राद्ध । °पयडि स्त्री [प्रकृति] अवान्तर | पिक पुंस्त्री. कोकिल पक्षी। भेदवाली प्रकृति । °वद्धण न [°वर्धन] | पिक्क देखो पक्क = पक्व । कवल-वृद्धि, अन्नप्राशन । °वद्धावण न पिक्ख सक [प्र + ईक्ष] देखना । [°वर्धन] आहार बढ़ाना । वाय पुं [°पात] पिक्खग वि [प्रेक्षक] निरीक्षक, द्रष्टा । भिक्षा-लाभ । वास पुं. सुहृज्जन । °विसुद्धि, | पिग देखो पिक । 'विसोहि स्त्री [°विशुद्धि] भिक्षा की | पिचु पुं [पिचु] रूई । °लया स्त्री [°लता] निर्दोषता ।
रूई की पूनी। पिंडण न [पिण्डन] द्रव्यों का एकत्र संश्लेष । पिचुमंद पुं [पिचुमन्द] नीम का पेड़ । ज्ञानावरणीयादि कर्म ।
| पिच्च ) अ [प्रेत्य] पर-लोक, आगामी जन्म । पिंडरय न [दे] दाडिम ।
पिच्चा देखो पेच्च । पिंडलइय वि [दे] पिण्डाकार किया हुआ। | पिच्चा पिअ = पा का संकृ. ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पिच्चिय-पिणिद्ध पिच्चिय वि [दे. पिच्चित] कूटी हुई छाल। । पिट्टि स्त्री [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का पिच्छ सक [दृश् , प्र + ईक्ष] देखना । भाग । °ग वि. पीछे चलनेवाला । °चम्पा पिच्छ न. पंख का हिस्सा । मयूरपिच्छ । स्त्री. चम्पा नगरी के पास की एक नगरी । पाँख । पूंछ ।
°मंस न [°मांस] परोक्ष में अन्य के दोष का पिच्छण । न [प्रेक्षण] तमाशा । कीर्तन । मंसिय वि [°मांसिक पीछे निन्दा पिच्छणय ।
करनेवाला । °माइया स्त्री [°मातृका] एक पिच्छल वि. स्निग्ध, स्नेहयुक्त । मसृण ।। अनुत्तर-गामिनी स्त्री। पिच्छा स्त्री [प्रेक्षा] निरीक्षण । °भूमि स्त्री. पिट्ठी स्त्री [पैष्टी] आटा की बनी हुई मदिरा । रंग-मण्डप, रंगमंच ।
पिड पुं [पिट] वंश-पत्र आदि का बना हुआ पिच्छिल वि [पिच्छिल] स्नेह-युक्त, स्निग्ध ।
पात्र-विशेष । कब्जा, अधीनता । मसृण, चिकना।
पिडग देखो पिडय = पिटक । पिच्छिली स्त्री [दे] लज्जा, शरम ।
पिडच्छा स्त्री [दे] सखी। पिच्छी स्त्री [दे] चूड़ा, चोटी।
पिडय न [पिटक] वंशमय पात्र-विशेष । दो पिच्छी स्त्री [पिच्छिका] पीछी ।
चन्द्र और दो सूर्यों का समूह । पिच्छी स्त्री [पृथ्वी] धरती । बड़ी इलायची ।
| पिडय वि [दे] आविन्न ।
''| पिडव सक [ अर्ज ] पैदा-उपार्जन करना । पुनर्नवा । कृष्ण जीरक । हिंगुपत्री।
| पिडिआ स्त्री [पिटिका] वंश-मय भाजन । पिच्छोला स्त्री [दे] बीन बजाने की
| छोटी मंजूषा, पेटी, पिटारी ।
जा कम्बिका।
पिड्ड सक [पीडय] पीड़ना। पिज्ज सक [पा] पीना।
पिड्ड अक [भ्रंश] नीचे गिरना । पिज्ज पुन [प्रेमन्] प्रेम ।
पिड्डइअ वि [दे] प्रशान्त । पिज्जा स्त्री [पेया] यवागू ।
पिढं अ [पृथक्] अलग। पिट्ट सक [पीडय] पीड़ा करना ।
पिढर पुन [पिठर] स्थाली । गृह-विशेष । पिट्ट अक [भ्रंश्] नीचे गिरना । पिट्ट सक [पिट्टय] पीटना, ताड़न करना ।
मुस्ता । मन्थान-दण्ड, मथनिया । पिट्ट न [दे] पेट।
पिणद्ध सक [पि + नह., पिनि+धा ] पिट्टावणया स्त्री [पिट्टना] ताड़न कराना। ढकना । पहिनना । पहिराना । बाँधना । पिट्ठ न [पिष्ट] तण्डुल का आटा, चूर्ण ।
| पिणद्ध वि [पिनद्ध] पहना हुआ। बद्ध, पिटु न [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का । यन्त्रित । पहनाया हुआ । हिस्सा । °करंडग न [°करण्डक] पृष्ठ-वंश, | पिणाइ पुं [पिनाकिन्] महादेव । पीठ की बड़ी हड्डी । 'चर वि. अनुयायी । पिणाई स्त्री [दे] आज्ञा, आदेश । पिट्ठ वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ । न. स्पर्श । पिणाग पुंन [पिनाक] शिव-धनुष । महादेव पिट्ठ वि [पृष्ट] पूछा हुआ । न. प्रश्न । का शूलास्त्र । पिटुंत न [दे. पृष्ठान्त] गुदा ।
पिणाय देखो पिणाग। पिट्टखउरा स्त्री [दे] कलुष मदिरा। पिणाय पुं [दे] बलात्कार । पिट्टखउरिआ स्त्री [दे] मदिरा। | पिणिद्ध वि [ पिनद्ध, पिनिहित ] देखो पिट्टायय पुन [पिष्टातक] केसर आदि द्रव्य । पिणद्ध = पिनद्ध ।
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पिणिधा-पिवासा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पिणिधा सक [पिनि +धा] देखो पिणद्ध = | पिब्ब न [दे] पानी। पि+नह।
पिम्म पुं [प्रेमन्] प्रीति । पिण्णिया स्त्री [दे. पिण्यिका] गन्ध द्रव्य
पियाल पुं [प्रियाल] खिरनी का पेड़ । न. विशेष, ध्यामक, गन्ध-तृण ।
फल-विशेष, खिरनी, खिन्नी । पिण्ही स्त्री [दे] क्षामा, कृश स्त्री। पियास (अप) स्त्री [पिपासा] प्यास । पित्त पुंन, शरीर-स्थित तिक्त धातु-विशेष । | पिरिडी स्त्री [दे] शकुनिका, चिड़िया ।
ज्जर पुं [ज्वर] पित्त से होता बुखार । पिरिपिरिया देखो परिपिरिया। °मुच्छा स्त्री [°मूर्छा] पित्त की प्रबलता
पिरिली स्त्री. गुच्छ-विशेष, वनस्पति-विशेष । से होनेवाली बेहोशी।
वाद्य-विशेष । पित्तल न, धातु-विशेष, पीतल ।
पिल देखो पील। पित्तिज्ज। पुं [पितृव्य] चाचा, पिता का पित्तिय ) भाई।
पिलखु । पुं [प्लक्ष] पिलखन का पेड़ ।
पिलक्खु ) एक तरह का पीपल का वृक्ष । पित्तिय वि [पैत्तिक] पित्त-सम्बन्धी ।
पिलण न [दे] पिच्छिल देश, चिकनी जगह । पिधं अ [पृथक्] जुदा।
पिला देखो पीला। पिधाण देखो पिहाण।
पिलाग न [पिटक] फोड़ा, फुनसी । पिन्नाग , पुं [पिण्याक] तिल आदि का पिलिखु देखो पिलंखु । पिन्नाय । तेल निकालने पर बची हुई | पिलिहा स्त्री [प्लीहा] अंग-विशेष । खली।
पिलुअन [दे] छोंक। पिपीलिअ पुं [पिपीलक] चीऊँटा ।
पिलुक । देखो पिलखु । पिप्पड सक [दे] जो मन में आवे सो बकना । | पिलक्ख , पिप्पडा स्त्री [दे] ऊर्णा-पिपीलिका।
पिलुंखु देखो पिलखु । पिप्पडिअ वि [दे] न. बड़बड़ाना, निरर्थक पिलुटु वि [प्लुष्ट] दग्ध । उल्लाप, बकवाद ।
पिलोस पुं [प्लोष] दाह, दहन । पिप्पय पुं [दे] मशक । पिशाच, भूत । वि. | पिल्ल देखो पेल्ल = क्षिप् । उन्मत्त।
पिल्ल सक [प्र । ईरय] प्रेरणा करना। पिप्पर पुं [दे] हंस । वृषभ ।
पिल्लग न [दे] पक्षी का बच्चा। पिप्परी स्त्री [पिप्पली] पीपर का गाछ। पिल्लि स्त्री [दे] यान-विशेष । पिप्पल पुंन [पिप्पल] पीपल वृक्ष, अश्वत्थ
पिल्लिअ वि [क्षिप्त] फेंका हुआ । वृक्ष । छुरा।
पिल्लिरी स्त्री [दे] गण्ड्डत् तृण । चीरी, पिप्पलग वि [पैष्पलक] पीपल के पान का ___ कीट-विशेष । धर्म, पसीना । बना हुआ।
पिल्लुग (दे) देखो पिलुअ। पिप्पलि । स्त्री [पिप्पलि, °ली] ओषधि- पिल्ह न [दे] छोटे पक्षी के तुल्य । पिप्पली । विशेष, पीपर ।
पिव देखो इव। पिप्पिडिअ देखो पिप्पडिअ ।
पिव सक [पा] पीना। पिप्पिया स्त्री [दे] दाँत का मैल ।
पिवासय वि [विपासक] पीने का इच्छुक । पिब देखो पिअ = पा।
| पिवासा स्त्री [पिपासा] प्यास ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पिवासिय-पीड पिवासिय वि [पिपासित] तृषित । ( पिहु देखो पिह = पृथक् । पिवीलिआ देखो पिपीलिआ।
पिहु° देखो पिहुय। पिव्व देखो पिब्ब।
पिहुंड न [पिहुण्ड] नगर-विशेष । पिस सक [पिष्] पीसना ।
पिहुण [दे] देखो पेहुण । हत्थ पुं[ हस्त] पिसंग पुं [पिशङ्ग] पिङ्गल वर्ण, मठियारा | मयूर-पिच्छ का पंखा। रंग । वि. पिंगल वर्णवाला ।
पिहुत्त देखो पुहुत्त। पिसंडि [दे] देखो पसंडि।
पिहुय पुंन [पृथुक] खाद्य-विशेष, चिउड़ा । पिसल्ल पुं[पिशाच] पिशाच, व्यन्तर-योनिक | पिहुल वि [पृथुल] विस्तीर्ण । देवों की एक जाति ।
पिहुल न [दे] मुंह से बजाया जाता तृणपिसाजि वि [पिशाचिन्] भूताविष्ट ।
वाद्य । पिसाय देखो पिसल्ल ।
पिहे देखो पिहा। पिसिअ न [पिशित] मांस ।
पिहो अ [पृथक ] अलग। पिसुअ पुंस्त्री [पिशुक] क्षुद्र कीट-विशेष ।
पिहोअर वि [दे] तनु, कृश, दुर्बल । पिसुण सक [कथय] कहना ।
पी सक. पान करना। पिसुण पुं [पिशुन] खल, दुर्जन, चुगुलखोर ।
पीअ पुं [पीत] पीला रंग । वि. पीत वर्णपिसुमय (प) पुं [विस्मय] आश्चर्य ।
वाला । जिसका पान किया गया हो वह । पिह सक [स्पृह ] इच्छा करना, चाहना ।
जिसने पान किया हो वह । पिह वि [पृथक्] भिन्न ।
पीअ वि [प्रीत] प्रीति-युक्त । संतुष्ट । पिहं अ [पृथक् ] अलग ।
पीअर (अप) नीचे देखो। पिहंड पुंदे] वाद्य-विशेष । वि. विवर्ण ।
पीअल देखो पीअ = पीत । पिहड देखो पिढर।
पीअसी स्त्री [प्रेयसी] प्रेम-पात्र स्त्री । पिहण न [पिधान] ढक्कन । आच्छादन ।
पीइ पुं [दे] अश्व । पिहय देखो पिह - पृथक् ।
पीइ । स्त्री [प्रीति] अनुराग । रावण की पिहा सक [पि + धा] ढकना, आच्छादन
पीई । एक पत्नी। °कर पुन. आठवाँ करना । बन्द करना।
ग्रेवेयक-विमान । °गम न. महाशुक्र देवेन्द्र पिहाण देखो पिहण ।
का एक यान-विमान । °दाण न [°दान] हर्ष पिहाणिआ स्त्री [पिधानिका] ढकनी ।
के कारण दिया जाता दान । धम्मिय पिहिअ वि [पिहित] ढका हुआ। बन्द किया न [°धार्मिक ] जैन मुनियों का एक कुल । हुआ । सव वि [स्रव] जिसने आस्रव °मण वि [°मनस् ] प्रोति-युक्त चित्तवाला ।
को रोका हो । पुं. एक जैन मुनि का नाम । पुं. महाशुक्र देवलोक का एक यान-विमान । पिहिण देखो पिहण ।
°वद्धण पुं [°वर्धन] कार्तिक मास का पिहिमि (अप) स्त्री [पृथिवी] भूमि, धरती । लोकोत्तर नाम । °पाल पुं. राजा।
पीईय पुं [दे] वृक्ष-विशेष, एक गुल्म । पिहीकय वि [पृथक्कृत] अलग किया हुआ। । | पीऊस न [पीयूष] अमृत । पिहु वि [पृथु] विस्तीर्ण । पुं. एक राजा का | पीड सक [पीडय ] हैरान करना । अभिभूत नाम । °रोम पुं. मत्स्य ।
करना, व्याकुल करना । दबाना ।
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पीडयर-पुंछण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५८५ पीडयर वि [पीडकर] पीडाकारक । पीलावय वि [पीडक] पेरनेवाला। पुं. तेली, पीडरइ स्त्री [दे] चोर की स्त्री ।
यन्त्र से तेल निकालनेवाला । पीडा स्त्री. पीड़न, हैरानी, वेदना । °कर वि. पीलिम वि [पीडावत्] दाबवाला, दाबने से पीड़ा-कारक।
बना हुआ (वस्त्र आदि की आकृति)। पीढ पुंन [पीठ] आसन, पीढ़ा। व्रती का पीलु पुं. पीलु का पेड़ । हाथी । न. दूध । आसन । तल । पुं. एक जैन महर्षि । °बंध पुं पीलुअ ' [दे. पीलुक] शावक, बच्चा। ['बन्ध] ग्रन्थ की अवतरणिका, भूमिका। पीलुट्ठ वि [दे. प्लुष्ट] देखो पिलुट्ठ।। 'मद, °मइअ पुंस्त्री [°मर्दक] काम-पुरुषार्थ पीवर वि. उपचित, पुष्ट । गम्भा स्त्री में सहायक नायक का समीपवर्ती पुरुष, राजा [°गर्भा] भविष्य में प्रसव करनेवाली स्त्री। आदि का वयस्य-विशेष । 'सप्पि वि पीवल देखो पीअ = पीत । [°सपिन्] पंगु-विशेष ।
पीस सक [पिष्] पीसना। पीढ न [दे] ईख पेरने का यन्त्र । समूह, यथ । पीसण न [पेषण] दलना । वि. पीसनेवाला। पीठ ।
पीसय वि [पेषक पीसनेवाला । पीढरखंड न [पीठरखण्ड] नर्मदा तोर पर पीह सक [ स्पृह , प्र + ईह ] चाहना । स्थित एक प्राचीन जैन तीर्थ ।।
पीहग पुं [पीठक] नवजात शिशु को पिलाई पीढाणिय न [पीठानीक] अश्व-सेना। जाती एक वस्तु । पीढिआ स्त्री [पीठिका] आसन-विशेष मञ्च ।। पु स्त्री [पुर्] शरीर । देखो पेढिया।
पुअ न [प्लुत] तिर्यग् गति । झाँपना, झम्पपीढी स्त्री दे. पीठिका] काष्ठ-विशेष, घर
गति । °जुद्ध न ["युद्ध] अधम युद्ध का एक का एक आधार-काष्ठ ।
प्रकार । पीण सक [पीनय] पुष्ट करना।
पुअंड पुं [दे] तरुण । पोण सक [प्रीणय] खुश करना ।
पुआइ वि. [दे] युवा । उन्मत्त । पुं. पिशाच । पीण वि [दे] चतुरस्र, चतुष्कोण ।
पुआइणी वि. [दे] पिशाच-गृहीत स्त्री, उन्मत्त पीण वि [पीन] पुष्ट, मांसल, उपचित ।
स्त्री । कुलटा । पीणाइय वि [दे. पैनायिक] गर्व से निर्वृत्त । पुआव सक [प्लावय] ले जाना । पीणाया स्त्री [दे. पीनाया] अहंकार । पुं० पुं पुंस्| पुरुष, मर्द । पीणिअ वि [प्रीणित] तोषित । उपचित पुख पुं [पुङ्ख] बाण का अग्र भाग । न. देवपरिवृद्ध । पुं. ज्योतिष-प्रसिद्ध योग-विशेष जो
विमान-विशेष । पहले सूर्य या चन्द्र का किसी ग्रह या नक्षत्र
| पुखणग न [दे प्रोडणक] चुमाना, विवाह के साथ होकर बाद में दूसरे सूर्य आदि के
__की एक रीति । साथ उपचय को प्राप्त ।
पुंगल पुं[A] श्रेष्ठ । पीणिम पुंस्त्री [पीनता] पुष्टता, मांसलता।
पुगव वि [पुङ्गव] उत्तम । पीरिपीरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । पुंछ सक [प्र+उञ्छ्] पोंछना । पील सक [पीडय] पीलना, पेरना, दबाना । | पुंछ पुन [पुच्छ] पूछ । पीड़ा करना, हैरान करना ।
पुंछण न [प्रोञ्छन] मार्जन । रजोहरण, जैन पीला देखो पीडा।
मुनि का एक उपकरण । ७४
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५८६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुंछणी-पुक्खल पुंछणी स्त्री [प्रोञ्छनी] पोंछने का एक छोटा पुंवउ पुंन [पुंवचस्] पुंलिंग शब्द । तृणमय उपकरण ।
पुंवेय पुं [पुंवेद] पुरुष को स्त्री-स्पर्श का पुंज सक [पुञ्ज, पुञ्जय] इकट्ठा करना। अभिलाष । उसका कारण-भूत कर्म।। फैलाना, विस्तार करना।
पुंस सक [पुस्, मृज्] मार्जन करना, पोंछना । पुंज पुन [पुञ्ज] ढेर, राशि ।
पुंस° देखो पुं० । °कोइल, कोइलग पुं पुंजय पुंन [दे] कतवार ।
[°कोकिल] मरदाना कोयल, पिक । पुंजाय वि [दे] पिण्डाकार किया हुआ। पुंसद्द पुं [पुंशब्द] 'पुरुष' ऐसा नाम । पुंड पुं [पुण्ड्र ] विन्ध्याचल के समीप का भू- पुंसली स्त्री [पुंश्चली] कुलटा, व्यभिचारिणी । भाग। इक्षु-विशेष । वि. पुण्ड्र-देशीय । पुसिअ वि [पुसित] पोंछा हुआ। घवल । पुन. तिलक । देव-विमान-विशेष । पुक्क । सक [पूत् + कृ] पुकारना, डॉकना, °वद्धण न [°वर्धन] नगर-विशेष । देखो पुक्कर ) आह्वान करना। पोंड।
पुक्कल देखो पुक्खल। पुंडइअ वि [दे] पिण्डाकार किया हुआ । पुक्का स्त्री. देखो पुक्कार = पूत्कार । पुंडरिक देखो पुंडरीअ।
पुक्कार देखो पुक्कर । पुंडरिगिणी स्त्री [पुण्डरीकिणी] पुष्कलावती पुक्खर देखो पोक्खर = पुष्कर । 'कण्णिया विजय की एक नगरी।
स्त्री [°कर्णिका] पद्म का बीज-कोश, कमल पुंडरिय देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक, पौण्डरीक । । का मध्य भाग । °क्ख पुं [क्ष] विष्णु, पुंडरीअ पुं[पुण्डरीक] ग्यारह रुद्र पुरुषों में श्रीकृष्ण । काश्मीर का एक राजा । गय सातवाँ रुद्र । एक राजा, महापद्म राजा का न [°गत] वाद्य-विशेष का ज्ञान, कला. एक पुत्र । व्याघ्र, शार्दूल । पुन. तप-विशेष । विशेष । °द्ध न [°अर्ध] पुष्करवर नामक द्वीप श्वेत पद्म । कमल । देव-विमान । वि. सफेद ।। का आधा हिस्सा । °वर पुं. द्वीप-विशेष । °गुम्म न [°गुल्म] देव-विमान । °दह, °ह संवट्टग देखो पुक्खल-संवट्टय। वित्त पुं [°द्रह] शिखरी पर्वत पर एक महाह्रद।। देखो पुक्खलावट्टय। पुंडरीअ वि [पौण्डरीक] श्वेत-पद्म-सम्बन्धी। पुक्खरिणी देखो पोक्खरिणी। प्रधान । कान्त, श्रेष्ठ । न. सूत्रकृतांग सूत्र के
पुक्खरोअ। पुं [पुष्करोद] समुद्र-विशेष । द्वितीय श्रुतस्कन्ध का पहला अध्ययन । देखो
पुक्खरोद पोंडरीग ।
| पुक्खल पुं [पुष्कर] एक विजय, प्रान्त-विशेष, पुंडरीया स्त्री [पुण्डरीका] देखो पोंडरी।।
जिसकी मुख्य नगरी का नाम ओषधि है । पुंडे अ [दे] जाओ।
पद्य, कमल । पम-केसर। विभंग न पुंढ देखो पुंड।
[विभङ्ग] पद्म-कन्द । °संवट्ट पुं[संवर्त] पुंढ पुं[दे] गर्त, गड़हा, गढा।
मेघ-विशेष, जिसके बरसने से दस हजार नाग पुं [पुन्नाग] वृक्ष-विशेष, पुष्प-प्रधान वर्ष तक पृथिवी वासित रहती है। देखो एक वृक्ष-जाति, पुलाक, सुलतान चम्पक, पाटल | पुक्खर । का गाछ । श्रेष्ठ पुरुष । देखो पुन्नाम । | पुक्खल पुं [पुष्कल] एक विजय, प्रदेश । पुंपुअ पुं [दे] संगम ।
अनार्य देश । पुंस्त्री. उस देश में उत्पन्न, रहनेपुंभ पुंन [दे] नीरस, दाडिम का छिलका। वाला । वि. अत्यन्त । सम्पूर्ण ।
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पुक्खलच्छिभग-पुड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५८७ पुक्खलच्छिभग । पुन [दे] जल में होने- | शिष्य, जो भविष्य में तीर्थकर होनेवाला है । पुच्छलच्छिभय । वाली वनस्पति । देखो अनुत्तर-देवलोकगामी जैन महर्षि । पोक्खलच्छिलय।
| पुट्ट वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ । न. स्पर्श । पुक्खलावई स्त्री पुष्करावती, पुष्कलावती] | पुट्ठ वि [पृष्ट] पूछा हुआ। न. प्रश्न । महाविदेह वर्ष का विजय-प्रान्त । कूड पुन °लाभिय वि [°लाभिक] अभिग्रह-विशेष[ कूट] एक शैल पर्वत का शिखर । वाला (मुनि)। °सेणियापरिकम्म पुन पुक्खलावट्टय पुं [पुष्करावर्तक, पुष्कला- | [°श्रेणिकापरिकर्मन्] दृष्टिवाद का एक वर्तक] मेघ-विशेष ।
विषय । पुक्खलावत्त पुं [पुष्करावर्त, पुष्कलावर्त] | पुट्ठ वि [पुष्ट] उपचित । महाविदेह का एक विजय-प्रान्त । °कूड पुं| पुट्ठ देखो पिट्ठ - पृष्ठ । ["कूट] एकशैल पर्वत का शिखर । पुटव वि [स्पृष्टवत्] जिसने स्पर्श किया हो पुगारिया स्त्री [दे] वस्त्रादि खादक जन्तुविशेष ।
पुट्ठवई देखो पोट्ठवई। पुग्ग पुन [दे] वाद्य-विशेष ।
पुटुवया स्त्री [प्रोष्ठपदा] नक्षत्र-विशेष । पुग्गल पुं [पुद्गल] एक वृक्ष । न. एक फल ।
पुट्ठि स्त्री [पुत्र] पोषण, उपचय । अहिंसा, मांस ।
दया । °म वि [°मत्] पुष्टिवाला। पुं. भगवान् पुग्गल देखो पोग्गल । °परट्ट , परावत्त पुं
महावीर का एक शिष्य । [°परावर्त] देखो पोग्गल° परिअट्ट ।
| पुट्टि देखो पिट्टि = पृष्ठ । पुच्चड देखो पोच्चड ।
पुट्ठि स्त्री [पृष्टि] पृच्छा, प्रश्न । °य वि [°ज] पुच्छ सक [प्रच्छ्] पूछना, प्रश्न करना।
प्रश्न-जनित । पुच्छ देखो पुंछ = प्र + उञ्छ ।
पुट्ठि स्त्री [स्पृष्टि] स्पर्श । 'य वि [°ज]
स्पर्श-जनित । पुच्छ देखो पुंछ = पुच्छ । पुच्छअ) वि [प्रच्छक] पूछनेवाला, प्रश्न.
पुट्टिया स्त्री [पृष्टिका] प्रश्न से होनेवाली
__ क्रिया - कर्मबन्ध । पुच्छग , कर्ता । पुच्छणी स्त्री [प्रच्छनो] प्रश्न की भाषा ।।
पुट्टिया स्त्री [स्पृष्टिका] स्पर्श से होनेवाली पुच्छल (अप) देखो पु? = पृष्ट ।
क्रिया-कर्मबन्ध । पुच्छा स्त्री [पृच्छा] प्रश्न ।
पुट्ठिल देखो पोटिल। पुछल देखो पुच्छल ।
पुट्ठीया स्त्री [स्पृष्टीया] देखो पुट्ठिया = पुज्ज सक [पूजय] पूजना, आदर करना ।
स्पृष्टिका। पुज्ज देखो पूज = पूजय ।
पुट्ठीया स्त्री [पृष्टीया] पृच्छा से होनेवाली पुज्जा स्त्री [पूजा] पूजा, अर्चा ।
क्रिया--कर्मबन्ध । पुट्ट सक [प्र+उञ्छ्] पोंछना ।
पुड पुं [पुट] परिमाण-विशेष। पुटपरिमित पुट्ट न [दे] पेट ।
वस्तु । पुट्टल पुन [दे] गट्ठर, गाँठ।
पुड पुन [पुट] मिथः सम्बन्ध, परस्पर जोड़ान । पुट्टलिया स्त्री [दे] छोटी गठरी, पोटली। खाल, ढोल आदि का चमड़ा । सम्बद्ध दलपुट्टिल पुं [पोट्टिल] भगवान् महावीर का द्वय । ओषधि पकाने का पात्र । दोना ।
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५८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुड-पुणोत्त आच्छादन । कमल । भेयण न [°भेदन] पुढोजग वि [दे. पृथग्जक] पृथग्भूत, भिन्न नगर । °वाय पुं [°पाक] पुट-पात्रों से ओषधि । व्यस्थित । का पाक-विशेष । पाक-निष्पन्न ओषध । पुढोवम वि [पृथिव्युपम] पृथिवी की तरह पुड (शौ) देखो पुत्त = पुत्र ।
सब सहन करनेवाला। पुडइअ वि [दे] पिण्डीकृत, एकत्रित । | पुढोसिय वि [पृथिवीश्रित] पृथिवी से आश्रित । पुडइणी स्त्री (दे. पुटकिनी] कमलिनी । पुण सक [ पू] पवित्र करना। धान्य आदि पुडग पुन [पुटक] देखो पुट : पुट । __ को तुषरहित करना, साफ करना । पुडपुडी स्त्री [दे] मुंह से सीटी बजाना, एक पुण अ [पुनर् ] इन अर्थों का सूचक अव्ययप्रकार की अव्यक्त आवाज ।
भेद, विशेष । अवधारण, निश्चय । अधिकार, पुडम देखो पुढम।
प्रस्ताव । द्वितीय बार, बारान्तर । पक्षान्तर । पुडय देखो पुडग।
समुच्चय । पादपूत्ति में प्रयोग । °करण न. पुडिंग न [दे] मुह । बिन्दु ।
फिर से बनाना । वि. जिसको फिर से बनावट पुडिया स्त्री [पुटिका] पुड़ी, पुड़िया । की जाय । °ण्णव वि [°नव] फिर से नया पुड्ड (शौ) देखो पुत्त = पुत्र ।
बना, ताजा । °पुण अ [°पुनर् ] फिरपुढं देखो पिहं।
फिर । 'पुणक्करण न [ पुनःकरण ] पुढम वि [प्रथम] पहला ।
बारम्बार निर्माण । ब्भव पुं [°भव] फिर पुढवि' देखो पुढवी । वाइय, "क्काइय वि | से उत्पत्ति, जन्म । °ब्भू स्त्री [°भू ] फिर से ['कायिक] पृथिवी शरीरवाला। "क्काय | विवाहित स्त्री । °रवि, रावि अ [ अपि] देखो पुढवी-काय ।
फिर भी । प्रावित्ति स्त्री [°आवृत्ति] पुनः पुढवी स्त्री [पृथिवी] धरती। काठिन्यादि | आवर्तन । °रुत्त वि [°उक्त] फिर से कहा गुणवाला पदार्थ, द्रव्य-विशेष - मत्तिका, हुआ । °वि अ ["अपि] फिर भी। "व्वसु पाषाण, धातु आदि । पृथिवीकाय का जीव । पुं [°वसु] नक्षत्र-विशेष । आठवें वासुदेव के ईशानेन्द्र के एक लोकपाल को अग्र-महिपी। पूर्व जन्म का नाम । एक दिक्कुमारी देवी । भगवान् सुपार्श्वनाथ पुण (अप) देखो पुण्ण = पुण्य । "मंत वि की माता । °काइय देख। पुढवि-काइय। [°मत्] पुण्यशाली । °काय वि. पृथिवी शरीरवाला (जीव)। पुणअ सक [ दृश् ] देखना । °वइ पुं[°पति] राजा । सत्थ न [°शस्त्र] पुणइ पुं [दे] चाण्डाल । पृथिवी रूप शस्त्र । पृथिवी का शस्त्र, हल, पुणण वि [पवन] पवित्र करनेवाला। कुद्दाल आदि । देखो पुहई, पुहवी। पुणरुत्त । अ. कृत-करण, बारम्बार, फिर-फिर । पुढीभूय वि [पृथग्भूत] जो अलग हुआ हो । पुढुम वि [प्रथम] पहला, आद्य ।।
पूणा पुढो अ [पृथग् ] अलग, भिन्न । 'छंद वि पुणाइ अ. देखो पुण = पुनर् । [°छन्द] विभिन्न अभिप्रायवाला । °जण पुं। पुणाई । [°जन] साधारण लोक । 'जिय पुं [जीव| पुणु (अप) देखो पुण = पुनर् । विभिन्न प्राणी। विमाय, 'वेमाय वि पुणो देखो पुण = पुनर् । [विमात्र] बहुविध ।
पुणोत्त देखो पुण-रुत्त, पुणरुत्त ।
पुणरुत्तं ।
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५८२
पुणोल्ल-पुन्न
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पुणोल्ल सक [ प्र+नोदय ] प्रेरणा करना। पुण्णिमासिणी देखो पुण्णमासिणी। अत्यन्त दूर करना ।
पुत्त पुं [पुत्र] लड़का । °वई स्त्री [°वती] पुण्ण पुंन [पुण्य] शुभ कर्म, सुकृत । दो | लड़कावाली स्त्री।
उपवास, बेला । वि. पवित्र । °कलसा स्त्री पुत्तंजीवय पुं [पत्रंजीवक] पुतजीया, जिया. [°कलशा] लाट देश का एक गाँव । °घण पोता का पेड़ । न. जियापोता का बीज । पुं[°घन] विद्याधरों का एक राजा । °मंत, पुत्तरे पुंस्त्री [दे] योनि, उत्पति-स्थान । "मत्त वि ["वत्| पुण्यवाला, भाग्यवान् । पुत्तलय पुं[पुत्रक] पूतला । पुण्ण वि [पूर्ण] सम्पूर्ण, भरपूर, पूरा । पुं. पुत्तलिया) स्त्री [ पुत्रिका ] शालभलिका, द्वीपकुमार देवों का दाक्षिणात्य इन्द्र । इक्षुवर पुत्तली पूतली । समुद्र का अधिष्ठायक देव । पक्ष की पांचवीं, |
पुत्तह देखो पुत्त। दसवीं और पनरहवीं तिथि । पुन. शिखर- पत्ताणुपुत्तिय वि [पौत्रानुपुत्रिक] पुत्र-पौत्रादि विशेष । कलस पुं[°कलश] सम्पूर्ण घट । के योग्य । °घोस पुं[°घोष] ऐरवत वर्ष का भावी जिन- पुत्तिआ स्त्री [पुत्रिका] पुत्री । पूतली। देव । °चंद पुं["चन्द्र] सम्पूर्ण चन्द्रमा । पुत्ती स्त्री [पुत्री] लड़की। विद्याधर वंश का एक राजा। ‘प्पभ पुं
पुत्ती स्त्री [पोती वस्त्र-खण्ड, मुख-वस्त्रिका । [°प्रभ] इक्षुवर द्वीप का अधिपति । °भद्द
साड़ी, कटी-वस्त्र । देखो पोत्ती। पुं[°भद्र] एक गृह-पति, जिसने भगवान्
| पुत्थ वि [दे] मृदु, कोमल । महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी।
पुत्थ । पुन [पुस्त, °क] लेप्यादि कर्म । यक्ष-निकाय का एक इन्द्र । पुंन. अनेक कूट
पुत्थय , पोथी, किताब । देखो पोत्थ। शिखरों का नाम । यक्ष का चैत्य-विशेष ।
पुथवी देखो पुढवी। 'मासी स्त्री. पूर्णिमा तिथि । 'सेण पुं [°सेन]
पुथुणी । (पै) देखो पुढवी । 'नाथ (4) पुं. राजा श्रेणिक का पुत्र, जिसने भगवान् महावीर
पुथु वी , राजा। के पास दीक्षा ली थी।
पुध देखो पिद = पृथक् । पुण्णमासिणी स्त्री [पौर्णमासी] तिथि-विशेष ।
पुधं देखो पिधं । पुण्णवत्त न [दे] आनन्द से हृत वस्त्र ।
| पुधम । (पै) देखो पुढम, पुढुम । पुण्णा स्त्री [पूर्णा] पक्ष की ५, १० और १५वीं तिथि । पूर्णभद्र और मणिभद्र इन्द्र की एक
पुन्न देखो पुण्ण = पुन्य । कंखिअ वि अग्र-महिषी।
['काङ्क्षित, °काङ्क्षिन्] पुण्य की चाहपुण्णाग ) देखो पुन्नाग।
वाला । 'कलस पुं [°कलश] एक राजा । पुण्णाम
°जसा स्त्री [ यशस्] एक स्त्री । °पत्तिया पुण्णाली स्त्री [दे] असती, कुलटा ।
स्त्री [°प्रत्यया] जैन मुनि-शाखा । °पिवापुण्णाह पुंन [पुण्याह] पुण्य दिन, शुभ दिवस । ।
सय वि [°पिपासक] पुण्य की चाहवाला । वाद्य-विशेष ।
°भागि वि [°भागिन्] पुण्य-शाली । °सम्म पुण्णिमसी स्त्री [पूर्णमासी] पूर्णिमा । पुं [शर्मन्] एक ब्राह्मण । °सार पुं. एक पुण्णिमा स्त्री [पूर्णिमा] तिथि-विशेष । °यंद | श्रेष्ठी। पुं [°चन्द्र] पूर्णिमा चन्द्र ।
पुन्न देखो पुण्ण = पूर्ण । 'तल्ल पुं [°तल]
पुधुम ।
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५९० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुन्नयण-पुमं जैन मुनि-गच्छ । °पाय वि [°प्राय] करीब-। बाण पुं. कामदेव । भद्द स्त्रीन [भद्र] करीब सम्पूर्ण । भद्द [ भद्र] यक्ष-विशेष ।। पटना शहर । °मंत वि [°वत्] पुष्पवाला। यक्ष-निकाय एक इन्द्र । अन्तकृद् मुनि । जैन | °माल न. वैताट्य की उत्तर श्रेणि का नगर । मुनि, आर्य श्री सम्भूतविजय का शिष्य ।। °माला स्त्री [°माल] ऊर्ध्व लोक में रहनेपुन्नयण पुं [पुण्यजन] यक्ष, देव-जाति । वाली दिक्कुमारी देवी । य पुं [°क] फेन ।
न. ईशानेन्द्र का पारियानिक विमान, देवपुन्नाग
विमान । फूल । ललाट का एक पुष्पाकार पुन्नाम , देखो पुनाग । न. पुन्नाग का फूल ।
आभूषण । देखो ऊपर °ग। °लाई, °लावी पुन्नाय) पुन्नालिया [दे] देखो पुण्णाली।।
स्त्री. फूल बिननेवाली । °लेस न [°लेश्य]
देव-विमान । वई स्त्री[°वती]ऋतुमती स्त्री। पुप्पुअ वि [दे] पीन, पुष्ट, उपचित ।
सत्पुरुष नामक किंपुरुषेन्द्रि य की अन-महिषी । पुष्फ न [पुष्प] कुसुम । एक विमानावास, देव
बीसवेंजिनदेव की प्रमुख साध्वी । चैत्य-विशेष । विमान । स्त्री का रज । विकास । आँख का
°वण्ण न [°वर्ण] देव-विमान । °सिंग न रोग । कुबेर का विमान । इरि पुं [°गिरि]
[शृङ्ग] देव-विमान । 'सिद्ध न. देवएक पर्वत । °कंत न [°कान्त] देव-विमान ।
विमान । °सुय पुं [ °शुक ] व्यक्तिवाचक °करंडय पुं [°करण्डक ] हस्तिशीर्ष
नाम । वित्त न [वित्तं] देव-विमान । नगर का उद्यान । केउ पुं [ ‘केतु]
पुप्फस न [दे] फेफसा । ऐरवत क्षेत्र का सातवाँ भावी तीर्थकर ।
पुप्फा स्त्री [दे] फूफी। ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष । °ग न
पुप्फिआ स्त्री [दे] देखो पुप्फा । [क] मूल भाग । पुष्प । देखो नीचे य ।
पुप्फिआ स्त्री [पुष्पिता] जैन आगमग्रन्थ । °चूला स्त्री. भगवान् पार्श्वनाथ की मुख्य
पुप्फिम पुंस्त्री [पुष्पत्व] पुष्पपन । शिष्या । महासती, अनिकाचार्य की शिष्या। सुबाहुकुमार की मुख्य पत्नी। चूलिया स्त्री
पुप्फी [दे] देखो पुप्फा। [°चूलिका] जैन ग्रन्थ । चणिया स्त्री पुप्फुआ स्त्री [दे] करीष (गोयठा) का अग्नि । [°ार्चनिका] पुष्पों से पूजा । चिणिया स्त्री पुप्फुत्तर न [पुष्पोत्तर] विमान । °वडिसग
चापिनी लिननेवाली छजिया न [°ावतंसक] देव-विमान । स्त्री [°छादिका] पुष्प-पात्र । °ज्झय न पुप्फुत्तरा । स्त्री [पुष्पोत्तरा] शक्कर को [°ध्वज] देन-विमान । ०णंदि पुं["नन्दिन] पुष्फोत्तरा , एक जाति । एक राजा । दंत [°दन्त] नवां जिनदेव, पुप्फोदय न [पुष्पोदक] पुष्प-रस से मिश्रित श्री सुविधिनाथ । ईशानेन्द्र के हस्ति-सैन्य का | जल । अधिपति देव । देव-विशेष । दंती स्त्री | पुप्फोवय । वि [पुष्पोपग] पुष्प प्राप्त [°दन्ती] दमयन्ती की माता, एक रानी। पुप्फोवा ) करनेवाला, फूलनेवाला (वृक्ष)।
नालिया स्त्री [°नालिका] पुष्प का बेंट- पुम पुं [पुंस्] नर । पुरुष-वेद । आणमणी स्त्री डंठल । °निज्जास पुं ["निर्यास] पुष्प-रस । | [°आज्ञापनी] पुरुष को आज्ञा देनेवाली "पुर न. पाटलिपुत्र । 'पूरय पुं [पूरक] / भाषा । °पन्नावणी स्त्री प्रज्ञापनी] पुरुष के पुष्प की रचना-विशेष । 'प्पभ न [प्रभ] । लक्षणों का प्रतिपादन करनेवाली भाषा । देव-विमान । 'बलि पुं. उपचार, पुष्प-पूजा। °वयण न [°वचन] पुंलिंग शब्द का उच्चा
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पुम्म-पुरिल्लपहाणा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५९१ रण ।
पुरत्थ . अ [पुरस्तात्] पहले, काल या पुम्म (अप) सक [दृश्] देखना ।
पुरत्थओ देश की अपेक्षा से आगे। पुयली स्त्री [दे] कमर के नीचे का भाग।। पुरत्था पूर्वदिशा। पुर (अप) देखो पूर = पूरय ।
पुरथिम वि [पौरस्त्य, पूर्व] पूर्व की तरफ पुर न. नगर । शरीर । °चंद पुं ["चन्द्र] ___ का । न. पूर्व दिशा। विद्याधर वंश का राजा। °भेयण वि
पुरत्थिमा स्त्री [पूर्वा] पूर्व दिशा । [°भेदन] नगर का भेदक । °वइ पुं [°पति]
पुरदेव पुं [पुरादेव] भगवान् आदिनाथ । नगर का अधिपति । °वर न श्रेष्ठ नगर ।
पुरव देखो पुव्व। °वाल पुं [°पाल] नगर-रक्षक, राजा ।
पुरस्सर वि. अग्रगामी। पुर देखो पुरं ।
पुरा स्त्री [पुर्] नगरी। पुरएअ ) देखो पुरदेव।
पुरा देखो पुरिल्ला = पुरा । °इय, कय वि पुरएव ।
[कृत] पूर्व काल में किया हुआ । °भव पु. पुरओ अ [पुरतस्] आगे । पहले, पूर्व में। । पूर्व जन्म । पुरं अ [पुरस्] पहले पूर्व में । समक्ष । गम | पुराअण वि [पुरातन] प्राचीन । वि. अग्रगामी, पुरोवर्ती। देखो पुरे, पुराकर सक [पुरा+कृ] आगे करना। पुरो।
पुराण वि. पुराना । न. व्यासादि मुनि-प्रणीत पुरंजय पुं [पुरञ्जय] विद्याधर राजा । °पुर __ ग्रन्थ-विशेष, पुरातन इतिहास के द्वारा जिसमें न एक विद्याधर-नगर ।
धर्म-तत्त्व निरूपित किया जाता हो वह पुरंदर पुं [पुरन्दर] देवराज इन्द्र । गन्ध- | शास्त्र । पुरिस पुं [पुरुष] श्रीकृष्ण । द्रव्य । चव्य का पेड़ । एक राजर्षि । मन्दर- | पुरिकोबेर पुं. ब. [पुरीकौबेर] देश-विशेष । कुञ्ज नगर का विद्याधर राजा । °जसा स्त्री पुरित्थिमा देखो पुरत्थिमा। ['यशस्] राज-कन्या। °दिसि स्त्री [°दिश्] पुरिम देखो पुव्व = पूर्व । डढ पुन ["] पूर्व दिशा।
पूर्वार्ध । प्रत्याख्यान-विशेष । निविकृतिक तप । पुरंधि । स्त्री [पुरन्ध्री] बहु कुटुम्बवाली
ड्ढिय वि [°ाधिक] 'पुरिमड्ढ' प्रत्याख्यान
करनेवाला। पुरंधी । स्त्री। पति और पुत्रवाली स्त्री।
पुरिम वि [पौरस्त्य] अग्न-भव, अग्रेतन । अनेक काल पहले व्याही हुई स्त्री।
पुरिम पुं [दे] प्रस्फोटन, प्रतिलेखन की क्रिया । पुरक्कड देखो पुरक्खड ।
पुरिमताल न. नगर-विशेष । पुरक्कार पुं [पुरस्कार] आगे करना, अग्रतः
पुरिल पुं [दे] दैत्य, दानव । स्थापन । सम्मान ।
पुरिल्ल वि [पुरातन] पुरा-भव, पूर्ववर्ती । पुरक्खड वि [पुरस्कृत] आगे किया हुआ।
पुरिल्ल वि [पौरस्त्य] पुरो-भव, पुरो-वर्ती, पुरोवर्ती, आगामी ।
अग्र-गामी। पुरच्छा देखो पुरत्था।
पुरिल्ल वि [पौर] पुर-भव, नागरिक । पुरच्छिम देखो पुरत्थिम । 'दाहिणा स्त्री | परिल्ल वि [दे] श्रेष्ठ ।
[°दक्षिणा] पूर्व-दक्षिण दिशा, अग्निकोण । | पुरिल्ल देखो पुरिल्ला = पुरा । पुरच्छिमा देखो पुरत्थिमा।
पुरिल्लदेव पुं [दे] असुर । पुरत्थ वि [पुरःस्थ] अग्रवर्ती, पुरस्सर । पुरिल्लपहाणा स्त्री [दे] सांप की दाढ ।
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५९२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुरिल्ला-पुरे पुरिल्ला अ [पुरा] निरन्तर क्रिया-करण । । एक अन्तकृद् महर्षि, जो वासुदेव के अन्यतम प्राचीन । पुराने समय में । भावी । निकट, पुत्र थे । भगवान् महावीर के पास दीक्षा सन्निहित । इतिहास, पुरावृत्त ।
लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न होनेवाले एक पुरिल्ला अ [पुरस्] आगे, अग्रतः ।
मुनि, जो राजा श्रोणिक के पुत्र थे ।
'दाणिअ, दाणीय पुं [°ादानीय] उपापरिस पूनापुरुष]मर्द । जीव । ईश्वर । शकु, देय पुरुष, आप्त पुरुष । छाया नापने का काष्ठादि-निर्मित कीलक । |
| पुरिसकारिआ स्त्री [पुरुषकारिका, ता] पुरुष-शरारा कार, कार, गार पु पुरुषार्थ, प्रयत्न । [°कार] पुरुषपन, पुरुष-चेष्टा, पुरुष-प्रयत्न । पुरिसाअ अक [पुरुषाय] विपरीत मैथुन पुरुषत्व का अभिमान । °जाय पुं [°जात]
करना। पुरुष । पुरुष-जातीय । °जुग न [ युग] क्रम
पुरिसुत्तम । पुं [पुरुषोत्तम] उत्तम पुरुष । स्थित पुरुष । °जेट पं [ज्येष्ठ] प्रशस्त
पुरिसोत्तम । जिन-देव । चतुर्थ वासुदेव । पुरुष । °त्त, °त्तण न ["त्व] पौरुष । 'त्थ
भगवान् अनन्तनाथ का प्रथम श्रावक । पुं [°ार्थ] धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप
श्रीकृष्ण । प्रयोजन । °पुंडरीअ पुं [°पुण्डरीक] इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न षष्ठ वासुदेव ।।
| पुरी स्त्री. नगरी । 'नाह पं [°नाथ] नगरी प्पणीय वि [प्रणीत] ईश्वर-निर्मित ।
___ का अधिपति, राजा। जोव-रचित । °मेह पुं |°मेध] जिसमें पुरुष | पुरीस पुंन [पुरोष] विष्ठा । का होम किया जाय वह यज्ञ । °यार देखो | पुरु पुं. एक राजा । वि. प्रचुर । कार । लक्खण न [ लक्षण] पुरुष के | पुरुपुरिआ स्त्री [दे] उत्कण्ठा । शुभाशुभ चिह्न पहचानने की एक सामुद्रिक | पुरुम देखो पुरिम। कला । °लिंग न [°लिङ्ग] पुरुष-चिह्न । | पुरुव । देखो पुव्व = पूर्व । लिंगसिद्ध पुं [°लिङ्गसिद्ध] पुरुष-शरीर से | पुरुव्व । जो मुक्त हुआ हो । वयण न [वचन] पुरुस (शौ) देखो पुरिस । पुंलिग शब्द । °वर पुं.श्रेष्ठ पुरुष । °वरगंध- पुरुसोत्तम (शौ) देखो पुरिसोत्तम । हत्थि पुं [°वरगन्धहस्तिन्] पुरुषों में श्रेष्ठ | पुरुहूअ पुं [दे] घूक, उल्लू । गन्धहस्ती के तुल्य । जिन-देव । वरपुंडरीय | पुरुहूअ पुं [पुरुहूत] इन्द्र । पुं [°वरपुण्डरीक] पुरुषों में श्रेष्ठ पद्म के | पुरुरव पुं [पुरूरवस्] चन्द्र-वंशीय राजा। समान । जिन-देव । °विजय पुं [°विचय, | पुरे देखो परं। कड वि [कृत] आगे या विजय] ज्ञान-विशेष । °वेय पुं [ वेद] | पूर्व में किया हुआ। "कम्म न [कर्मन्] स्त्री-सम्भोग की इच्छा होती है वह कर्म ।। पहले करने का काम या क्रिया। क्कार पुं स्त्री-भोग की अभिलाषा । सिंह, °सीह पुं [°कार] सम्मान । °क्खड देखो कड। [सिंह] पुरुषों में सिंह के समान, श्रेष्ठ °वाय पुं [°वात] सस्नेह वायु । पूर्व दिशा पुरुष । पुं. जिनदेव । भगवान् धर्मनाथ का का पवन : संखडि स्त्री [दे. संस्कृति] प्रथम श्रावक । इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न | पहले ही किया जाता भोजनोत्सव । °संथुय पाँचवाँ वासुदेव । 'सेण पुं [°सेन] भगवान् | वि [°संस्तुत] पूर्व-परिचित । स्व-पक्ष का नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर मोक्ष पानेवाला । सगा।
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पुरेस-पुव्व संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५९३ पूरेस पुरेश] नगर-स्वामी।
दुर्गन्ध द्रव्य । दुष्ट रसवाला द्रव्य । पुं. शिथिपुरो देखो पुरं। °अ, ग वि [ग] अग्र- लाचारी साधुओं का एक भेद । गामी । गम वि. वही अर्थ । भाइ वि | पुलासिअ पुं [दे] अग्नि-कण । [ भागिन्] दोष को छोड़ कर गुण-मात्र को पुलिंद पुं [पुलिन्द] अनार्य देश-विशेष । ग्रहण करने वाला।
पुंस्त्री. उस देश में रहनेवाला मनुष्य ।। पुरोकर सक [पुरस् + कृ] आगे करना। पुलिण न [पुलिन] तट, किनारा । लगातार स्वीकार करना । सम्मान करना।
बाईस दिनों का उपवास । पुरोत्तमपुर न. एक विद्याधर नगर का नाम । | पुलिय न [पुलित] गति-विशेष । पुरोवग पुं [पुरोपक] वृक्ष-विशेष । पुलट्ठ वि [प्लुष्ट] दग्ध । पुरोह पुं [पुरोधस्] पुरोहित ।
पुलोअ सक [दृश , प्र+लोक ] देखना । पुरोहड वि [दे] विषम, असम । पुन आवृत पुलोम पुं [पुलोमन्] दैत्य-विशेष । °तणया
भूमि का वास्तु । अग्रद्वार, दरवाजा का अग्र- | स्त्री [°तनया] शची।। भाग । बाड़ा।
पुलोमी स्त्री [पौलोमी] इन्ाणी। पुरोहिअ पुं[पुरोहित] होम आदि से शान्ति- | पुलोव देखो पुलोअ। कर्म करनेवाला ब्राह्मण ।
पुलोअ पुं [प्लोष] दाह दहन । पुल पुं [दे पुल] छोटा फोड़ा, फुनसी । पुल्ल [दे] देखो पोल्ल। पुल वि. समुच्छ्रित, उन्नत ।
पुल्लि पुंस्त्री [दे] व्याघ्र । सिंह । पुल अक [पुल्] उन्नत होना ।
पुव । सक [प्लु] गति करना, चलना । पुल सक [ दृश् ] देखना । पुलअ)
पुव्व देखो पुण = पू। पुलअ पुं [पुलक] रोमाञ्च । रत्न-विशेष । पुव्व वि [पूर्व] दिशा, अपेक्षा से पहले का, मणि की एक जाति । ग्राह का एक भेद । आद्य । पुरातन । समस्त । ज्येष्ठ भ्राता। कंड पुंन [°काण्ड] रत्नप्रभा नरक-पृथिवी पुन. चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणने का एक काण्ड ।
पर जो संख्या लब्ध हो उतने वर्ष । बारहवें पुलअण वि [दर्शन] देखनेवाला प्रेक्षक । अंग-ग्रन्थ का एक विशाल विभाग, परिच्छेद । पुलआअ अक [ उत् + लस् ] उल्लसित होना, द्वन्द्व, वधू-वर आदि युग्म । पूर्व-ग्रन्थ का उल्लास पाना।
ज्ञान । हेतु । °कालिय वि [°कालिक] पूर्व पुलइज्ज अक [ पुलकाय ] रोमाश्चित होना । काल का, पूर्व काल से सम्बन्ध रखनेवाला । पुलइल्ल वि [पुलकिन्] रोमाञ्च-युक्त । गय न [°गत] बारहवें अंग का विभागपुलंधअ पुं [दे] भौंरा।
विशेष । °ण्ह [हण] सुबह से दो पहर पुलंपुल न [दे] निरन्तर ।
तक का समय । 'पुरिमड्ढ' तप । तव पुन पुलक ) देखो पुलअ = पुलक ।
[°तपस्] वीतराग अवस्था के पहले का तप ।
दारिअ वि [°द्वारिक] पूर्व दिशा में गमन पुलय पुंन [पुलक] कीट-विशेष ।
करने में कल्याण-कारी (नक्षत्र)। °द्ध पुन पुलाग । पुंन [पुलाक] असार अन्न । चना [°ार्ध] पहला आधा । °धर वि. पूर्व-ग्रन्थ पुलाय ) आदि शुष्क अन्न । लहसुन आदि | का ज्ञान । °पय न [पद] उत्सर्ग-स्थान ।
७५
पुव्व।
पुलग ।
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५९४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पुव्वंग-पू °पुटुवया स्त्री [प्रोष्ठपदा] नक्षत्र : °पुरिस । पुसिअ पुं [पृषत] मृग-विशेष ।।
पुरुष] पूर्वज । "प्पओग पुं [प्रयोग] पुस्स पुं पुष्य] कृत्तिका से आठवां नक्षत्र । पहले की क्रिया, पूर्व काल का प्रयत्न । रेवती नक्षत्र का अधिपति देव । ऋषि-विशेष । °फग्गुणी स्त्री ["फाल्गुनी] नक्षत्र । भद्द- °माणअ, °माणव पुं [°मानव] मागध, वया स्त्री [°भाद्रपदा] नक्षत्र । °भव पं. भाट-चारण आदि । देखो पूस = पुष्य । अतीत जन्म । 'भविय वि [भविक] पूर्व- पुस्सदेवय न [पुष्यदेवत] जैनेतर शास्त्र । जन्म-सम्बन्धी । °य पुं [ज] पूर्व पुरुष । पुस्सायण न [पुष्यायण] गोत्र-विशेष ।
रत्त ५ [रात्र] रात्रि का पूर्व भाग । °व पुह ) देखो पिह = पृथक् । भूय वि न [°वत्] अनुमान प्रमाण का एक भेद । पुहं । [भूत] अलग, जो जुदा हो । 'विदेह पुं. महाविदेह वर्ष का पूर्वीय हिस्सा | पुहइ° , स्त्री [पृथिवी] तृतीय वासुदेव की °समास पुन. एक से ज्यादा पूर्व-शास्त्रों का पहई । माता । एक नगरी। भगवान् ज्ञान । सुय न [श्रुत] पूर्व का ज्ञान ।। सुपार्श्वनाथ की माता । देखो पुढवी, पुहवी। °सूरि पुं. पूर्वाचार्य । हर देखो 'धर। धर पुं., नाह पुं [नाथ], पह पुं "Tणुपुव्वी स्त्री [°नुपूर्वी] परिपाटी । °णह [प्रभु], °पाल पुं. राजा । राय पुं [राज] देखो °ण्ह । °फग्गुणी देखो °फग्गुणी। विक्रम की बारहवीं शताब्दी का शाकम्भरी भिद्दवया देखो भद्दवया। °साढा स्त्री देश का राजा। 'वइ पुं [पति] । 'वाल [°ाषाढा नक्षत्र ।
[°पाल] राजा। पुव्वंग पुंन [पूर्वाङ्ग] चौरासी लाख वर्ष । पुहईसर पुं [पृथिवीश्वर] राजा । पक्ष का पहला दिन ।
पुहत्त न [पृथक्त्व] पार्थक्य । विस्तार । पुव्वंग वि [दे] मुण्डित ।
बहुत्व । वि भिन्न । “वियक्क न [वितर्क] पुव्वा स्त्री पूर्वा] पूर्व दिशा।
शुक्ल ध्यान का भेद । देखो पुहुत्त, पोहत्त । पुव्वाड वि [दे] मांसल, पुष्ट ।
पुहत्तिय देखो पोहत्तिय । पुवामेव अ [पूर्वमेव] पहले ही ।
पुहय देखा पिह - पृथक् । पुव्वावईणय न [पूर्वावकीर्णक] नगर-विशेष। पुहवि । देखो पुढवी, पुहई। भगवान पुव्वि वि (पूविन्] पूर्व-शास्त्र का जानकार। | पुहवी , श्रेयांसनाथ की दीक्षा-शिविका । पूव्वि । क्रिवि [पूर्वम्] पहिले, पूर्व में । संथव छन्द का नाम । °चंद पुं [°चन्द्र] राजा । पुदिव ) पुं [ संस्तव] पूर्व में की जाती | °पाल पुं. राजकुमार । देखो पुहई-पाल । इलाघा, जैन मुनि की भिक्षा का दोष, भिक्षा- 'पुर न. एक नगर । प्राप्ति के पहले दायक की स्तुति करना। पुहवीस पुं [पृथिवीश] राजा । पुव्विम पुंस्त्री [पूर्वत्व पहिलापन, प्रथमता। | पुहु वि [पृथु] विशाल, विस्तीर्ण । पुव्वुत्त वि [पूर्वोक्त] पहले कहा हुआ। पुहुत्त न [पृथक्त्व]दो से नव तक की संख्या । पुव्वुत्तरा स्त्री [पूर्वोत्तरा] ईशान कोण । देखो पुहत्त। पुस सक [प्र + उञ्छ्, मृज्] शुद्ध करना, पुहुवी देखो पुहु-ई। पोंछना।
पू° देखो पु° । °सुअ पुं [°शुक] तोता । पुस देखो पुस्स।
पूअ सक [पूजय] पूजा करना। पुस पुं पौष] पौष मास ।
पूअ न [दे] दही।
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पूअ-पूल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५९५ पूअ पुं [पूग] सुपारी का गाछ । न. सुपारी । | पूइय वि [पूतिक] अपवित्र, दूषित । दुर्गन्धी । देखो पूग । 'प्फली, °फली स्त्री ['फली] | पूति नामक भिक्षा-दोष से युक्त । सुपारी का पेड़।
पूइय देखो पोइय = (दे)। पूअ न [पूर्त] तालाब, कुआँ आदि खुदवाना, । पंडरिअ न [दे] कार्य, काम, प्रयोजन । अन्न-दान करना, देव मन्दिर बनाना आदि | पूग पुं. समूह । देखो पूअ = पूग । जन-समूह के हित का कार्य ।
पूगी स्त्री. सुपारी का पेड़ । °फल न. सुपारी, पूअ वि [पूत] पवित्र । न. लगातार छः दिनों कसैली।
का उपवास । वि. सूप आदि से साफ किया | पूज देखो पूअ = पूजय । हुआ । छाना हुआ।
पूजग देखो पूअय। पूअ न [पूय] पीब, दुर्गन्ध रक्त ।
पूजा देखो पूआ = पूजा । पूअणा । स्त्री [पूतना] दुष्ट व्यन्तरी, पूण पुं [दे] हाथी। पूअणी J डाकिनी । भेड़ी।
पूणिआ ) स्त्री [दे] रुई की पूणी । पूअय वि [पूजक] पूजा करनेवाला ।
पूणी । पूअर देखो पोर = पूतर ।
पूप देखो पूअल। पूअल । पुं [पूप] पूआ, खाद्य-विशेष । पूयइ पुं [पूपकिन्] हलवाई। पूअलिया । स्त्री [पूपिका] ।
पूयली स्त्री [दे] रोटी। पूआ स्त्री [दे] पिशाच-गृहीता, भूताविष्ट | पूयावणा स्त्री [पूजना] पूजा करना। स्त्री।
पूर सक [पूरय] पूर्ति करना, भरना । पूआ स्त्री [पूजा] पूजन, सेवा । °भत्त न | पूर पुं. जल-समूह जल-धारा । खाद्य विशेष । [°भक्त] पूज्य के लिए निष्पादित भोजन ।। वि. पूर्ण ।।
मह पुं. पूजोत्सव । °रह पुं [ रथ] राक्षस- पूरइत्तअ (शौ) वि [पूरयितु] पूर्ण करनेवंश में उत्पन्न एक राजा, लंका-पति । 'रिह, | वाला। रुह वि [ह] पूजा-योग्य ।
पूरंतिया स्त्री [पूरयन्तिका] राजा की एक पूआहिज्ज वि [पूजाहार्य] पूजित-पूजक । परिषत्-परिवार । पूइ वि [पूति] दुर्गन्धी । अपवित्र । भिक्षा का | पूरग वि [पूरक] पूत्ति करनेवाला। दोष, पूति-कर्म । नासिका-रोग, नासा-कोथ । | | पूरण न [पूरण] शूर्प, सूप । पीब । एकास्थिक वृक्ष की एक जाति । पूरण न. पूर्ति । पालन । पुं. यदुवंश के राजा °कम्म पुन ["कर्मन्] मुनि-भिक्षा का दोष, अन्धकवृष्णि का पुत्र । एक गृह-पति । वि. पवित्र वस्तु में अपवित्र वस्तु मिलाकर दी | पूर्ति करनेवाला । जाती भिक्षा का ग्रहण । “म वि [°मत्] | पूरय देखो पूरग । दुर्गन्धी । अपवित्र ।
पूरिगा स्त्री [पूरिका] मोटा कपड़ा। पूइ वि [पूति] सड़ा हुआ। °पिन्नाग पुन | पूरिम वि [पूरिम भरने से होनेवाला । [°पिण्याक] सरसों की खली।
पूरिमा स्त्री. गान्धार ग्राम की एक मूर्च्छना । पूइआलुग न [दे. पूत्यालुक] जल में होनेवाली पूरी स्त्री. तन्तुवाय का उपकरण ।। वनस्पति-विशेष ।
पूरोट्टी स्त्री [दे] अवकर, कतवार, कूड़ा। पूइम वि [पूज्य] पूजा-योग्य, सम्माननीय । | पूल पुंन. पूला, घास की अँटिया ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पूव-पेच्छय पूर्व । देखो पूअल।
पेइअ वि [पैतृक] पिता से आया हुआ। न. पूवल ।
पीहर । पूवलिआ , देखो पूअलिया।
पेईहर न [पितृगृह, पैतृकगृह] पीहर । पूविगा ।
पेऊस न [पीयूष] अमृत । °ासण पुं [शन] पूस अक [पुष्] पुष्ट होना।
देव। पुस देखो पस्स = पृष्य । गिरि पं. जैन मनि । पेंखिअ वि [प्रेखित] कम्पित । 'फली स्त्री. वल्ली विशेष । 'माण, °माणग
पेंखोल अक [प्रेजोलय] झूलना, हिलना । पुं [°माण, मानवमङ्गल-पाठक । माणग पुं
पेंड देखो पिंड = पिण्ड । ['मानक] ज्योतिर्देवता, ग्रहाधिष्ठायक देव ।
पेंड न [दे] खण्ड टुकड़ा । वलय । °माणय देखो °माण । °मित्त पुं [मित्र] |
पेंडधव पुं [दे] खड्ग, तलवार । जैन मुनि-त्रय-घृतपुष्यमित्र, वस्त्रपुष्यमित्र,
पेंडबाल वि (दे] देखो पेंडलिअ । दुर्बलिकापुष्यमित्र, आर्य रक्षितसूरि के
पेंडय पुंदे] तरुण । नपुंसक । शिष्य । एक राजा । मित्तिय न [मित्रीय] पडल पुंदे] रस । जैन मुनि-कुल।
पेंडलिअ वि [दे] पिण्डीकृत । पूस पुं [दे] राजा सातवाहन । तोता।
पेंडव सक [प्र + स्थापय्] रखना। प्रस्थान पूस पुं [पूषन्] सूर्य । मणि-विशेष ।
कराना। पूसा स्त्री [पुष्या] कुण्ड-कोलिक की पत्नी ।
पेंडार पुं [दे] ग्वाला । महिषी-पाल । पूसाण देखो पूस = पूषन् ।
पेंडोली स्त्री [दे] क्रीड़ा। 'पूह पुं [अपोह] मीमांसा । देखो अपोह ।
पेंढा स्त्री [दे] पंकवाली मदिरा । पृथुम (पै) देखो पढम।
पेंत देखो पा = पा का वकृ. । पेअ पुं [प्रेत] व्यन्तर देव-जाति । मृतक ।
पेक्ख सक [प्र + ईक्ष्] देखना, अवलोकन कम्म न [°कर्मन्] अन्त्येष्टि क्रिया।
करना। °करणिज न [°करणीय] अन्त्येष्टि क्रिया।
पेक्खअ , वि [प्रेक्षक] देखनेवाला, निरीक्षक, काइय वि [°कायिक] प्रेत-योनि में उत्पन्न,
| पेक्खग । द्रष्टा। व्यन्तर-विशेष । "देवयकाइय वि [ देवता
पेक्खणग । न [प्रेक्षणक] खेल, तमाशा, कायिक] प्रेत-देवता का । °नाह पुं [°नाथ]
पेक्खणय , नाटक । यमराज । भूमि, भूमी स्त्री. श्मशान । पेखिल (अप) वि [प्रेक्षित] दृष्ट । °लोय पुं [°लोक] श्मशान । 'वइ [°पति] पेच्च } अ [प्रेत्य] परलोक, आगामी जन्म । यम । °वण न ['वन] श्मशान । हिव पेच्चा भव पुं. आगामी जन्म, परलोक । पुं[धिप] जमराज ।
। भाविअ वि [ भाविक] जन्मान्तरपेअ वि [प्रेयस) अतिशय प्रिय ।
सम्बन्धी । पेआ स्त्री [पेया] यवागू, पीने की वस्तु। पेच्चा देखो पिअ = पा का संकृ । पेआल न [दे] प्रमाण । विचार । सार, पेच्छ सक [दृश, प्र+ ईक्ष्] देखना । रहस्य । प्रधान ।
पेच्छ वि [प्रेक्ष] द्रष्टा, दर्शक । पेआलणा स्त्री [दे] प्रमाण-करण ।
पेच्छ देखो पेक्ख। पेआलुय वि [दे] विचारित ।
पेच्छय वि [दे] जो देखे उसी को चाहनेवाला।
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५९७
पेट्ट
पेच्छा-पेल्लय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पेच्छा स्त्री [प्रक्षा] तमाशा, नाटक । °घर न भगवान पार्श्वनाथ की सन्तान में उत्पन्न जैन [°गृह] देखो °हर । °मंडव पुं [°मण्डप] | मुनि । भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर नाट्य-गृह, प्रेक्षकों के बैठने का स्थान । हर अनुत्तर विमान में उत्पन्न जैन मुनि । न. [गृह] खेल तमाशा का स्थान । पेढिया देखो पीढिआ प्रस्तावना । पेज्ज देखो पा = पा का कृ. ।
पेढी देखो पीढी। पेज्ज पुन [प्रेमन्] अनुराग। °दंसि वि | पेणी स्त्री [प्रैणी] हरिणी का एक भेद । [दर्शिन्] अनुरागी।
पेदंड वि [दे] जुए में हार गया हो वह । पेज्ज वि [प्रेयस् ] अत्यन्त प्रिय ।
पेम पुन [प्रेमन्] प्रेम, स्नेह । पेज्ज वि [प्रेज्य] पूज्य ।
पेमालुअ वि [प्रेमिन्] प्रेमी। पेज्ज देखो पेर - प्र + ईरय ।
पेम्म देखो पेम। पेज्जल न [दे] प्रमाण ।
पेम्मा स्त्री प्रेमा छन्द-विशेष । पेज्जलिअ वि [दे] संघटित ।
पेया स्त्री. वाद्य-विशेष, बड़ी काहला । पेज्जा देखो पेआ।
पेर सक [प्र+ ईरय] पठाना, भेजना। धक्का पेज्जाल वि [दे] विपुल, विशाल ।
लगाना, आघात करना। आदेश करना । पेट , न [दे] उदर ।
किसी कार्य में जोड़ना। पूर्वपक्ष करना, प्रश्न
करना, सिद्धान्त का विरोध करना । प्रेरणा पेट देखो पिट्ठ = पिष्ट।
करना । गिराना । पेड देखो पेडय।
पेरंत देखो पज्जंत । °चक्कवाल न ['चक्रपेडइअ पुं [दे] धान्य आदि बेचनेवाला ।
वाल] बाह्य परिधि । वच्च न [°वर्चस् ] पेडक । न [पेटक] यूथ ।
मण्डप, तृणादि-निर्मित गृह । पेडय।
पेरग वि [प्रेरक] प्रेरणा करनेवाला, पेडा स्त्री [पेटा] मञ्जूषा । पेटाकार चतुष्कोण पूर्वपक्षी । गृह-पंक्ति में भिक्षार्थ-भ्रमण ।
पेरण न [दे] ऊर्ध्व स्थान । खेल, तमाशा । पेडाल पुं [दे. पेटाल] बड़ी पेटी ।
पेरिज्ज न दे] साहाय्य, सहायता, मदद । पेडावइ पं [पेटकपति] यूथ का नायक । | पेरुल्लि वि [दे] पिण्डीकृत । पेडिआ स्त्री [पेटिका] मञ्जूषा । पेलव वि. सुकुमार, मृदु । पतला, कुश । सूक्ष्म, पेड़ स्त्री पुं [दे] महिष ।
लघु । पेड्डा स्त्री [दे] भीत । दरवाजा । भैंस । पेलु स्त्री. रुई की पूणी । करण न. पूणी बनाने पेढ देखो पीढ = पीठ।
का उपकरण, शलाका आदि । पेढाल वि [दे] विपुल । वर्तुल, गोलाकार । | पेल्ल सक [क्षिप्] फेंकना । पेढाल वि [पोठवत्] पीठ-युक्त ।
पेल्ल देखो पेर =प्र+ईरय । पेढाल पुं. भारतवर्ष का आठवाँ भावी जिन- पेल्ल सक [पीडय] पीलना, दबाना, पीड़ना । देव । ग्यारह रुद्र पुरुषों में दसवां । एक ग्राम, | पेल्ल सक [पूरय] पूरना, भरना । जहाँ भगवान् महावीर का विचरण हुआ | पेल्ल पुन [दे] बालक । था । न. एक उद्यान । °पुत्त पुं [पुत्र] पेल्लय पुं [पेल्लक] महावीर के पास दीक्षा भारतवर्ष का आठवां भावी जिन-देव । ले अनुत्तर विमान में उत्पन्न जैन मुनि ।
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५९८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पेल्लव-पोंगिल्ल पेल्लव । देखो पेर।
| पेहा स्त्री [प्रेक्षण] निरीक्षण । कायोत्सर्ग का पेल्लाव ।
एक दोष, कायोत्सर्ग में बन्दर की तरह ओष्ठपेव्वे अ. आमन्त्रण सूचक अव्यय ।
पुट को हिलाते रहना । पर्यालोचन, चिन्तन । पेस सक [प्र+ एषय] भेजना, पठाना ।
बुद्धि । पेस देखो पीस ।
पेहण न [दे] पिच्छ । मयूर-पिच्छ । देखो पेस पुंस्त्री [ प्रेष्य ] कर्मकर । वि. भेजने- पिहण । योग्य ।
पोअ सक [प्र + वे] पिरोना, गूंथना। पेस पुं [दे. पेश] सिन्ध देश में होनेवाली एक | पोअ वि [प्रोत] पिराया हुआ । पशु-जाति ।
पोअ पुं [पोत] जहाज, नौका । शिशु । न. पेस वि [दे. पैश] पेश नामक जानवर के चमड़े वस्त्र । का बना हुआ (वस्त्र)।
पोअ पुं दे] धव-वृक्ष । छोटा साँप । पेसण न [दे] कार्य, प्रयोजन ।
पोअइया स्त्री [दे] निद्राकारी लता। पेसण न [प्रेषण] पठाना, भेजना । नियोजन, | पोअंड वि [दे] भय-रहित । नामर्द । व्यापारण । आज्ञा, आदेश ।
पोअंत पुं [दे] शपथ। पेसणआरो । स्त्री [दे] दूती ।
पोअण न [प्रवयन, प्रोतन] पिरोना, गथना । पेसणआली.
पोअणपुर न [पोतनपुर] नगर-विशेष । पेसणा स्त्री [पेषण] पीसना, पेषण । पोअणा स्त्री [प्रवयना, प्रोतना] पिरोना । पेसल वि [पेशल] सुन्दर, मधुर, कोमल। पोअय वि [पोतज] पोत से उत्पन्न होनेवाला पेसल न [दे] सिन्ध देश के पेश नामक प्राणी-हस्ती आदि । पेसलेस पशु के चर्म के सक्षम पक्ष्म से निष्पन्न | पोअलय पुं दि] आश्विन मास का एक उत्सव, वस्त्र।
खाद्य-विशेष, पूआ । बाल वसन्त । पेसव सक [प्र + एषय् ] भेजवाना। | पोआई स्त्री [पोताकी] शकुनि को उत्पन्न पेसविअ वि [प्रेषित] भेजवाया, प्रस्थापित । |
___ करनेवाली विद्या । पक्षि-विशेष । पेसाय वि [पैशाच] पिशाच-सम्बन्धी ।
पोआउय वि [पोतायुज] देखो पोअय । पेसि स्त्री [पेशि] देखो पेसी ।
पोआय पुंदे] गाँव का मुखिया । पेसिआ स्त्री (पेशिका] खण्ड, टुकड़ा।
पोआल [दे] बलीवर्द ।। पेसिआर पुं [प्रेषितकार] नौकर ।
पोआल [दे. पोतक] बच्चा, शिशु । पेसिदवंत (शौ) वि [प्रेषितवत्] जिसने भेजा पोइअ ' [दे] हलवाई। खद्योत । निमग्न । हो वह।
स्पन्दित । पेसी स्त्री पेशी] मांस-पिण्ड । देखो पेसिआ। पोइअ वि [प्रोत] पिरोया हुआ। पेसुण्ण न [पैशुन्य] चुगली ।
। पोइअल्लय देखो पोइअ = प्रोत । पेस्सिदवंत देखो पेसिदवंत ।
पोइआ। स्त्री [दे] निद्राकारी लता, वल्लीपेह सक [प्र+ ईक्ष् ] निरीक्षण करना, ध्यान- | पोई विशेष । पूर्वक देखना । चिन्तन करना ।
पोउआ स्त्री [दे] सूखे गोबर की अग्नि । पेह सक [प्र+ईह ] इच्छा करना, चाहना । पोंग पुं [दे] पाक, पकना । प्रार्थना करना।
| पोंगिल्ल वि [दे] परिपक्व, परिपाक-युक्त ।
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पोंड-पोट्टिल
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पोंड न [दे] फूल ।
पोक्खलच्छिलय , देखो पुक्खलच्छिभय । पोंड देखो पुंड । "वद्धण न [°वर्धन] नगर- | पोक्खलच्छिल्लय । विशेष । 'बद्धणिया स्त्री [वर्धनिका] जैन | पोक्खलि पुन [पुष्कलिन्] एक जैन उपासक, मुनि-गण की एक शाखा ।
जिसका दूसरा नाम शतक था। पोंड पुं (दे] यूथ का अधिपति । फल । अविक- | पोग्गर ) पुन [पुद्गल] रूपादि-विशिष्ट सित कमल । कपास का सता।
पोग्गल । द्रव्य, मूर्त द्रव्य, रूपवाला पदार्थ । पोंडरिगिणी देखो पुंडरिगिणी।
न. मांस। त्थिआय पुं [°ास्तिकाय] पोंडरिय देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक । पुद्गल-स्कन्ध, पुद्गल-राशि । परट्ट, पोंडरो स्त्री [पौण्ड्री, पुण्डरीका] जम्बूद्वीप के परियट्ट पुं[°परिवर्त] समस्त पुद्गल-द्रव्यों
मेरु के उत्तर रुचक की एक दिक्कुमारी। के साथ एक-एक परमाणु का संयोग-वियोग । पोंडरीअ देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक । समय का उत्कृष्टतम परिमाण-विशेष, अनन्त पोंडरीअ ) न [पौण्डरीक] रज्जु-गणित । कालचक्र-परिमित समय । पोंडरीग । देखो पुंडरीअ = पौण्डरीक । | पोग्गलिय वि [पौद्गलिक] पुद्गल-मय, पोक्क सक [ व्या + हृ, पूत + कृ ] पुकारना, । पुद्गल-सम्बन्धी, पुद्गल का।। आह्वान करना।
पोच्च वि [दे] सुकुमार, कोमल । पोक्क वि [दे] आगे स्थूल और उन्नत तथा बीच | पोच्चड वि [दे] निस्सार । अतिनिबिड । में निम्न (नासिका)।
मलिन । पोक्कण पुं [पोक्कण] अनार्य देश, उसमें बसने- | पोच्छल अक [प्रोत् + शल्] उछलना, ऊँचा वाली म्लेच्छ जाति ।
जाना। पोक्कर देखो पुक्कर।
पोच्छाहण न [प्रं त्साहन] उत्तेजन । पोक्कार देखो पुक्कार - पूत्कार ।
पोच्छाहिअ वि [प्रोत्साहित] उत्तेजित । पोक्खर न [पुष्कर] जल । पद्म । पद्म-कोष । | पोट्ट पुं [पुत्र] लड़का। अजमेर नगर के पास का जलाशय-तीर्थ । | पोट्ट न [दे] पेट : ‘साल पुं [°शाल] एक हाथी की सढ का अग्र-भाग। वाद्य-भाण्ड । परिव्राजक । सारणी स्त्री. अतीसार रोग । दूकान । तलवार की म्यान । मुख । कुष्ठ रोग | पोट्ट न [दे] पोटला, गठरी । की ओषधि । द्वीप-विशेष । युद्ध । बाण । | पोट्टल । आकाश । पं. नाग-विशेष । रोग-विशेष । | पोट्टलिगा स्त्री [द] पोटली, गठरी । सारस पक्षी। एक राजा । पर्वत-विशेष । | पोलिय वि [दे] गठरी-वाहक । वरुण-पुत्र । देखो पुक्खर ।
| पोट्टलिया [दे] देखो पोट्टलिगा। पोक्खर वि [पौष्कर] पुष्कर-सम्बन्धी । | पोट्टि स्त्री [दे] उदर-पेशी। पद्माकार रचनावाला ।
पोट्टिल पुं [पोट्टि ल] भारतवर्ष का भावी पोक्खरिणी स्त्री [ पुष्करिणी] जलाशय- नौवाँ तीर्थंकर । भारतवर्ष के चौथे भावी विशेष, वर्तुल वापी। कमलिनी। पद्म- जिन-देव का पूर्वभवीय नाम । भगवान् महासमूह । पुष्कर-मूल । चौकोना जलाशय, वीर का व्युत्क्रम से छठवें भव का नाम । पोखरी।
जैन मुनि, जिसने भगवान् महावीर के समय पोक्खल देखो पुक्खल।
__ में तीर्थकर-नाम-कर्म बंधा था। जैन मुनि ।
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६००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पोट्टिला-पोराणिय देव-विशेष । देखो पोटिल ।
पोत्था स्त्री [प्रोत्था] प्रोत्थान, मलोत्पत्ति । पोट्टिला स्त्री [पोट्टिला] एक स्त्री का नाम । | पोत्थार पुं [पुस्तककार] पोथी लिखनेवाला, पोटिस ' [पोट्टिस] एक कवि ।
पोथी बनानेवाला शिल्पी, जिल्दसाज । पोट्टवई स्त्री [प्रौष्ठपदी] भाद्रपद मास को पोत्थिया स्त्री [पुस्तिका] पोथी, पुस्तक । पूर्णिमा या अमावस्या ।
पोप्पय पुंन [दे] हस्त-परिमर्षण, हाथ पोटिल पुं [पुष्टिल] भगवान् महावीर से दीक्षा फिराना।
ले अनुत्तर-विमान में उत्पन्न जैन मुनि । पोप्फल न [पूगफल] सुपारी। पोडइल न [दे] तृण-विशेष ।
पोप्फली स्त्री [पूगफली] सुपारी का पेड़ । पोढ वि प्रौढ] समर्थ । निपुण । प्रगल्भ । पोम देखो पउम।। यौवन के बाद की अवस्थावाला । °वाय पुं पोमर न [दे] कुसुम्भ-रक्त वस्त्र । [°वाद] प्रतिज्ञा-पूर्वक प्रत्याख्यान । पोमाड पुं [दे. पद्माट] पमाड, पमार, चकवड़ पोढा स्त्री [प्रौढा] तीस से पचपन वर्ष तक की __ का पेड़ । देखो पउमाड। स्त्री । नायिका का एक भेद ।
पोमावई स्त्री [पद्मावती] छन्द-विशेष । पोढिम पुंस्त्री [प्रौढमन्] प्रौढता।
पोमिणी देखों पउमिणी। पोणिअ वि [दे] पूर्ण ।
पोम्म देखो पउम। पोणिआ स्त्री [दे] सूते से भरा हुआ तकुवा ।
| पोम्मा देखो पउमा। पोत देखो पोअ = पोत ।
पोम्ह देखो पम्ह = पक्ष्मन् । पोतणया देखो पोअणा।
पोर पुं [पूतर] जल में होनेवाला क्षुद्र जन्तु । पोत्त पौत्र] पोता ।
पोर वि [पौर] पुर में उत्पन्न, नागरिक । पोत्त न [पोत्र] प्रवहण, नौका ।
पोर देखो पुर = पुरस्। 'कव्व न [°काव्य] पोत्त न [पोत] कपड़ा। धोती, कटो-वस्त्र ।
शीघ्रकवित्व । वस्त्र-खण्ड । पोत्तय पुं [दे] फोता, अण्डकोश ।
पोर पुन [दे. पर्वन्] गाँठ। 'बीय वि पोत्तिअ न [पौतिक] वस्त्र, सूती कपड़ा।
| [°बीज] पर्व-बीज से उगनेवाली वनस्पति,
इक्षु आदि। पोत्तिअ वि[पोतिक]वस्त्र-धारी । पुं. वानप्रस्थों पोरग पंन पर्वका पर्ववाली वनस्पति । का एक भेद ।
पोरच्छ पुं[दे] दुर्जन । पोत्तिआ स्त्री [पौत्रिका] पुत्र की लड़की।।
पोरच्छिम देखो पुरच्छिम । पोत्तिआ स्त्री [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक | पोरत्थ वि [दे] ईर्ष्यालु । जाति ।
| पोरय न [दे] क्षेत्र । पोत्तिआ स्त्री [पोतिका, पोती] धोती. पोरव पुं [पौरव] राजा पुरु की सन्तान । पोत्ती साड़ी। छोटा वस्त्र, वस्त्रखण्ड । पोरवाड पुं [पोरवाट] जैन श्रावककुल । पोत्ती स्त्री [दे] काच ।
पोराण देखो पुराण। पोत्तुल्लया देखो पोत्तिआ।
पोराण वि [पौराण] पुराण-सम्बन्धी। पुराण
शास्त्र का ज्ञाता। पोत्थग पुन [ पुस्त, °क ] वस्त्र । देखो पोराणिय वि [पौराणिक] पुराण-शास्त्रपोत्थय , पुत्थ।
। सम्बन्धी।
पोत्थ है
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पोरिस-प्पडिहा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६०१ पोरिस न [पौरुष] पुरुषत्व, पराक्रम। पोसण न [पोसन] अपान, गुदा । पोरिस वि [पौरुषेय] पुरुष-जन्य । | पोसय देखो पोस = पोस । पोरिसिमंडल न [पौरुषीमण्डल] एक जैन | पोसय देखो पोसग । शास्त्र।
पोसह पुं पोषध, पौषध] अष्टमी, चतुर्दशी पोरिसिय देखो पोरिसीय ।
आदि पर्वतिथि में जैन श्रावक का व्रत-विशेष, पोरिसी स्त्री [पौरुषी] पुरुष-शरीर प्रमाण आहार-आदि के त्यागवाला अनुष्ठान । अष्टमी, छाया । प्रथम प्रहर । प्रथम प्रहर तक भोजन | चतुर्दशी आदि पर्वतिथि । पडिमा स्त्री आदि का त्याग, प्रत्याख्यान-विशेष । [प्रतिमा] जैन श्रावक का अनुष्ठान-विशेष, पोरिसीय वि [पौरुषिक] पुरुष-प्रमाण । व्रत-विशेष । °वय न [व्रत] वही अर्थ । पोरुस पुं[पुरुष] अत्यन्त वृद्ध पुरुष ।
°साला स्त्री [°शाला] पौषध-व्रत करने का पोरुस देखो पोरिस।
स्थान । शैववास पुं [पवास] पर्वदिन में पोरेकच्च । न [पौरस्कृत्य] पुरस्कार, कला- उपवास-पूर्वक जैन श्रावक का अनुष्ठान, जैन पोरेगच्च । विशेष ।
श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत । पोरेवच्चन [पौरोवृत्य] पुरोवर्तित्व, अग्रेसरता। पोसहिय वि [पौषधिक] पोषध-कर्ता । पोलंड सक [प्रोत - लघ] विशेष उल्लंघन पोसिअ वि [दे] दरिद्र, दुःखी। करना ।
पोसिअ वि [पुष्ट] पोषण-युक्त । पोलच्चा स्त्रो [दे] खेटित भूमि, कृष्ट जमोन । पोसिद (शौ) वि प्रोषित] प्रवास-विदेश में पोलास न. पोलासपुर । उद्यान-विशेष । | गया हुआ। भत्तुआ स्त्री [°भर्तृका] °पुर न. नगर-विशेष ।
जिसका पति प्रवास-परदेश में गया हो वह पोलासाढ न [पोलाषाढ] श्वेतविका नगरी का
स्त्री । एक चैत्य ।
पोसी देखो [पौषी] पौषमास की पूर्णिमा । पोलिअ पुं [दे] सौनिक, कसाई।
पौष मास की अमावस । पोलिआ स्त्री [दे. पौलिका] खाद्य-विशेष, | पोह पुं [दे] बैल आदि की विष्ठा का ढेर । पूरी।
पोह पुं[प्रोथ] अश्व के मुख का प्रान्त भाग । पोली देखो पओली।
पोहण पुं [दे] छोटी मछली। पोल्ल । वि [दे] पोला, खाली, रिक्त। पोहत्त न [पुथुत्व चौड़ाई । पोल्लड ।
पोहत्त देखो पुहत्त। पोल्लर न [दे] निर्विकृतिक तप ।
पोहत्तिय वि [पार्थक्त्विक] पृथक्त्व-सम्बन्धी। पोस अक [पुष] पुष्ट होना ।
पोहल देखो पोप्फल। पोस सक [पोषय्] पुष्ट करना। पालन "प्प देखो प =प्र। करना।
°प्पआस देखो पयास = प्रयास । पोस वि [पोष] पोषक, पुष्टि-कारक । पुं प्पउत्त देखो पउत्त = प्रवृत्त । पोषण, पुष्टि ।
°प्पच्चअ देखो पच्चय। पोस पुं. अपान-देश, गुदा । योनि । लिंग।। प्पडव (मा) अक [प्र+तप्] गरम होना । पोस पुं [पौष] पौष मास ।
प्पडिआर देखो पडिआर = प्रतिकार । पोसग वि [पोषक] पोषक, पालक । | °प्पडिहा देखो पडिहा = प्रतिभा ।
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६०२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
प्पणइ-फंफाइ
प्पणइ देखो पणइ - प्रणयिन् । °प्पणाम देखो पणाम = प्रणाम । प्पणास देखो पणास । 'प्पण्णा देखो पण्णा = प्रज्ञा । प्पत्था देखो पत्था । प्पदेस देखो पदेस। 'प्पफुर (शौ) देखो पप्फुर। °प्पबंध देखो पबंध। °प्पभिदि देखो °पभिइ । °प्पभूद (शौ) देखो पभूय ।
प्पमत्त देखो पमत्त । °पमाण देखो पमाण। प्पमुक्क देखो पमुक्क । प्पमह देखो पमुह । प्पयर देखो पयर। °प्पयाव देखो पयाव । प्पयास देखो पयास = प्रकाश । °प्पलाव देखो पलाव । °प्पवत्तण देखो पवत्तण । प्पवह देखो पवह। °प्पवेस देखो पवेस। प्पसर देखो पसर = प्र + सृ । °प्पसर देखो पसर = प्रसर । °प्पसव देखो पसव। प्पसाय देखो पसाय = प्रसाद । प्पसुत्त देखो पसुत्त। प्पसूद (शौ) देखो पसूअ = प्रसूत । प्पहर देखो पहर = प्रहार । °प्पहा देखो पहा ।
°प्पहाण देखों पहाण। प्पहाय देखो पहाय = प्रभाव । प्पहार देखो पहार। प्पहाव देखो पहाव। प्पहु देखो पहु। °प्पारंभ देखो पारंभ। °प्पिअ देखो पिअ = प्रिय । °प्पिआ देखो पिआ। °प्पिव देखो इव । प्पेम देखो पेम। प्पेम्म देखो पेम्म। °प्पोढ देखो पोढ । °प्फंस देखो फंस = स्पर्श । प्फणा देखो फणा। °प्फद्धा देखो फद्ध । °प्फल देखो फल । प्फाल सक [स्फालय] आघात करना । पछाड़ना। प्फालण न [स्फालन] आघात । °प्फुड देखो फुड । °फोड देखो फोड। प्रस्स (अप) देखो पस्स- दृश् । प्राइम्व प्राइव ४(अप) देखो पाय = प्रायस् ।
प्राउ
प्रिय (अप) देखो पिअ = प्रिय । प्रेक्किअ न [दे] वृष-रटित, बैल की चिल्लाहट । प्रेयंड वि [दे] धूर्त ।
फ पुं. ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । फंफ (अप) अक [उद् + गम्] उछलना। फंद अक [स्पन्द्] थोड़ा हिलना, फरकना। फंफसय पुं[दे] वल्ली-विशेष । फंदिअ वि [स्पन्दित] कुछ हिला हुआ, फरका फंफाइ (अप) वि [कम्पायित, कम्पित] हुआ । ईषत् चालित ।
कॅपाया हुआ, कम्प-प्राप्त ।
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फंस-फरिहा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष फंस अक [विसम् + वद्] असत्य प्रमाणित छोटा छिद्र, विवर । अवधिज्ञान का निर्गमहोना, प्रमाण-विरुद्ध होना ।
स्थान । समुदाय । वर्गणा-समदाय । °वइ पुं फंस सक [ स्पृश् ] छूना, स्पर्श करना ।
[°पति गण के अवान्तर विभाग का नायक । फंसण वि [पांसन] अपसद, अधम ।
फण पुं साँप की फणा। फंपण वि [दे] युक्त, संयत । मलिन । फणग पुं[दे. फनक] कंघा । फंसुल वि [दे] मुक्त, त्यक्त ।
फणज्जय पुं [दे] वनस्पति-विशेष । फंसुली स्त्री [दे] नवमालिका, पुष्प वृक्ष । फणस पुं [पनस] कटहर का पेड़ । फक्किया स्त्री [फक्किका] ग्रन्थ का विषम | फणा स्त्री फन । स्थान, कठिन स्थान ।
| फणि पुं फणिन्] साँप, नाग । दो कला या फग्गु वि [फल्गु] असार, तुच्छ । स्त्री. भगवान् एक गुरु अक्षर की संज्ञा । पिंगलाचार्य । अजितनाथ की प्रथम शिष्या। °मित्त पुं
चिंध पुं [[चिह्न] भगवान् पार्श्वनाथ । °पहु [°मित्र] जैन मुनि । रक्खिय पुं [रक्षित]
पुं [प्रभु] धरणेन्द्र। शेषनाग । 'राय पुं जैन मुनि । °सिरी स्त्री [श्री] इस अव
[°राज]शेषनाग । पिंगल-कर्ता । °लआ स्त्री सर्पिणी के पंचम आरे में होनेवाली अन्तिम |
[°लता] नागलता। वइ पुं [°पति] जैन साध्वी।
धरणेन्द्र । नाग-राज। पिंगलकार । 'सेहर फग्गु पुं [दे. फल्गु] वसन्त का उत्सव ।
["शेखर] प्राकृत-पिंगल का कर्ता । फग्गुण पुं [फाल्गुन] फागुन महिना । मध्यम
फणिंद पुं [फणीन्द्र शेषनाग । पिंगलकार । पण्डुपुत्र अर्जुन ।
फणिल्ल सक [ चोरय् ] चोरी करना । फग्गुणी स्त्री [फाल्गुनी] फागुन मास की
फणिह पुं [दे. फणिह] कंघा । पूर्णिमा या अमावस्या। एक गृहपति की स्त्री।
फणीसर पुं [फणीश्वर] देखो फणि-वइ । फग्गुणी स्त्री [फल्गुनी] नक्षत्र-विशेष ।
फणुज्जय देखो फणज्जुय । फट्ट अक [स्फट् ] फटना, टूटना ।
फद्ध पुं [स्पर्ध] स्पर्धा । फड सक [स्फट् ] खोदना । शोधना ।
फर । [दे. फल, °क] काष्ठ आदि का फड न [दे] साँप का सर्व शरीर ।
फरअ ) तख्ता । ढाल । देखो फल । फड पुन [दे. फट] साँप की फणा ।
फरअ पुन [दे. स्फरक] अस्त्र-विशेष । फडही [दे] देखो फलही।
फरक्किद वि [दे] फरका हुआ, हिला हुआ, फडा स्त्रो [फटा] सांप की फन । °ल वि | कम्पित । [°वत्] फनवाला।
फरस देखो फरिस = स्पर्श । फडिअ ) देखो फलिह = स्फटिक । फरसु पुं [परशु] फरसा । 'राम पुं. जमदग्नि फडिग
ऋषि का पुत्र । फडिल्ल देखो फडा-ल ।
फरहर अक [फरफराय] फरफर आवाज फडिह पुं [परिघ] अर्गला । कुठार ।
करना। फडिहा देखो फलिहा = परिखा ।
फरित देखो फलिह = स्फटिक । फड्ड । पुन [दे. स्पर्ध] अंश, भाग, हिस्सा । | फरिस सक [स्पृश्] छ्ना । फड्डु ) सम्पूर्ण गण के अधिष्ठाता के वशवर्ती | फरिसण न [स्पर्शन] त्वगिन्द्रिय । गण का एक लघुतर हिस्सा । द्वार आदि का फरिहा देखो फलिहा = परिखा।
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६०४
फरुस वि[परुष] कर्कश, कठिन । न. कुवचन, निष्ठुर वाक्य |
फरुस पुं [दे. परुष] कुम्भकार | 'साला स्त्री [शाला] कुम्भकार-गृह ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
फरुसिया स्त्री [परुषता, पारुष्य ] कर्कशता, निष्ठुरता ।
फल अक [फल्] फलना, फलान्वित होना । फल पुंन. वृक्षादि का शस्य । लाभ । कार्य । इष्टानिष्टकर्म का शुभ या अशुभ परिणाम | उद्देश्य | त्रिफला | जायफल | बाण का अग्रभाग । फाल । दान । मुष्क, अण्डकोष । ढाल । कक्कोल, गन्ध-द्रव्य- विशेष । अग्रभाग । °मंत, ॰व वि [°वत्] फलवाला । “वड्ढिय, "वद्धिय न[°वर्द्धिक] फलोधि - नामक मरुदेशीय
नगर । वहाँ का जैन मन्दिर । फलअ) पुंन [ फलक] काष्ठ आदि का तख्ता । फलग । जुए का एक उपकरण । ढाल | देखो फल । " सज्जा स्त्री [ शय्या ] काष्ठ का तख्ता जिस पर सोया जाय ।
फलण न [ फलन] फलना ।
फलह पुंन [ फलह] फलक, काठ आदि का
तख्ता ।
फलहिआ स्त्री [फलहिका, फलही ] काठ फलही आदि का तख्ता फलही स्त्री [दे] कपास । कपास की लता । फलाव सक [फलाय् ] सफल करना । फलावह वि [ फलावह] फलप्रद । फलासव पुं. मद्य-विशेष |
फलिआरी स्त्री [दे] दूर्वा, कुश तृण । फलिणी स्त्री [फलिनी ] प्रियंगु-वृक्ष | फलिह पुं [परिघ] अर्गला । लोहे का मुद्गर आदि अस्त्र । घर । काच घट | ज्योतिषशास्त्र प्रसिद्ध एक योग ।
फरुस - फारक्क
फलिह पुं [ स्फटिक ] स्फटिक मणि । देव - विमान- विशेष । रत्नप्रभा पृथिवी का एक स्फटिकमय काण्ड | गन्धमादन पर्वत का कूट 1 कुण्डल पर्वत का कूट । रुचक पर्वत का शिखर । गिरि पुं. कैलास पर्वत । फलिह पुं. काठ आदि का तख्ता | फलिह पुंन [स्फटिक ] आकाश । फलहन [] कपास का टेंटा । फलिहंस पुं [फलिहंसक ] वृक्ष - विशेष । फलिहा स्त्री [ परिखा] खाई, किले या नगर के चारों ओर की नहर ।
फलिहि देखो परिहि । फलिही देखो फलही = दे । फली स्त्री. छोटी तख्ती ।
फलोव फलोवा
फल्ल वि [फल्य ] सूती कपड़ा । फव्वीह सक [ लभ् ] यथेष्ट लाभ होना । फसल वि [दे] सार, चितकबरा |
स्थासक ।
फसलाणिअ फसलिअ
वि [ फलोपग ] फल प्राप्त, फल - सहित ।
वि [ दे] जिसने विभूषा की हो
}
फागुण देखो फग्गुण ।
फागुणी देखो फग्गुणी ।
फाड सक [पाटय्, स्फाटय् ] फाड़ना ।
फलि पुं [दे] लिंग, चिह्न | वृषभ । फलिअ न [दे] वायन, बायन, भोजन आदि फाणिअ न [ फाणित ] गुड़ | गुड़ का विकार
का बाँटा जाता उपहार ।
विशेष, पानी से द्रावित गुड़ । क्वाथ । फाय वि[स्फीत ] वृद्ध | विस्तीर्ण । ख्यात | फार वि[स्फार] बहुत । विशाल, विपुल । विस्तृत |
फारक्क वि [ दे. स्फारक ] स्फरकास्त्र को धारण करनेवाला ।
वह ।
फल वि [दे] मुक्त ।
फाइ स्त्री [स्फाति] वृद्धि ।
फाईकय वि [ स्फीतीकृत] फैलाया हुआ । प्रसिद्ध किया हुआ ।
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फारुसिय-फुक्क संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष फारुसिय न [पारुष्य] कठोरता, कर्कशता। फिज न [दे. स्फिच] नितम्ब, चूतर । फाल देखो °फाल।
फिट्ट अक [भ्रंश्] नीचे गिरना । टूटना । फाल देखो फाड।
ध्वस्त होना । पलायन करना । फाल पुंन. लोहे को लम्बी कोल । फाल से की फिट्ट वि [भ्रष्ट] विनष्ट ।
जाती दिव्य-परीक्षा, शपथ-विशेष । फलांग। फिट्टा स्त्री [दे] मार्ग । मार्ग में किया जाता फाला स्त्री. फलाङ्ग लाफ ।
प्रणाम । मित्त पुंन ["मित्र मार्ग में मिलने फालि स्त्री [दे. फालि] फली। शाखा। पर प्रणाम करने तक की अवधिवाली मित्रताफांक, टुकड़ा।
वाला। फालिअ न [दे. फालिक] वस्त्र-विशेष । फिड देखो फिट्ट । फालिअ . पुं [स्फाटिक] रत्न-विशेष । वि. फिडिअ वि [भ्रष्ट, स्फिटित] भ्रंश-प्राप्त । फालिग स्फटिक-रत्न का।
नष्ट, उल्लंधित । फालिह,
फिड्ड वि [दे] वामन । फालिहद्द पुं [पारिभद्र] फरहद का पेड़ । फिप्प वि [दे] कृत्रिम ।
देवदारु का पेड़ । निम्ब का पेड़ । फिप्फिस न [दे] अन्त्र-आँत स्थित मांसफास सक [स्पृश्, स्पर्शय] स्पर्श करना । विशेष, फेफड़ा। पालन करना।
फिर सक [गम्] फिरना, चलना । फास पुंन [स्पर्श] छूना । ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क | फिरक्क पुंन [दे] भार वाहक गाड़ी। देव-विशेष । दुःख-विशेष । शब्द आदि | फिलिअ देखो फिडिअ । विषय । स्पर्श इन्द्रिय, त्वचा । रोग । ग्रहण । | फिल्लुस अक [दे] खिसकना, गिरना । युद्ध । जासस । वायु । दान । 'क' से लेकर फीअ देखो फाय । 'म' तक के अक्षर । वि. स्पर्श करनेवाला । | फोणिया स्त्री (दे] एक मिठाई ‘फेणी' ।
कीव पुं [°क्लीब] क्लीब का एक भेद । फुका स्त्री [दे] फूंक । °णाम न [°नामन्] कर्कश आदि स्पर्श का | फुकार पुं [फुकार] फुफकार । कारणभूत कर्म। ‘मंत वि [°मत्] स्पर्श- फुटा स्त्री [दे] केश-बन्ध । वाला । गमय वि ["मय] स्पर्श-मय, स्पर्श | फुद देखो फंद = स्पन्द । से निवृत्त ।
फुफमा फासग वि [स्पर्शक] स्पर्श करनेवाला। फंफूआ। स्त्री [दे] वनकण्डे की आग । फासणया । स्त्री [स्पर्शना] स्पर्श-क्रिया । | फुफुगा (करीषाग्नि । कचवर-वह्नि । फासणा । प्राप्ति ।
फुफुमा फासिअ वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ । प्राप्त । फुफुल । सक [दे] उत्पाटन करना । फासिअ वि [स्पर्शिक] स्पर्श करनेवाला ।
फुफुल्ल ) कहना। फासिदिय न [स्पर्शेन्द्रिय] त्वगिन्द्रिय ।
| फंस सक [मृज, प्र + उञ्छ्] पोंछना, साफ फासु । वि [प्रासु, °क] अचेतन जीव । करना। फासुअ।
फुस देखो फास। फिक्कर अक [फित् + कृ] प्रेत का चिल्लाना। | फुक्क अक [फूत् + कृ] फ़-फूं आवाज करना । फिक्कि पुंस्त्री [दे] हर्ष ।
J सक, मुंह से हवा निकालना, फूंकना।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष फुक्का-फेडावणिय फुक्का स्त्री [दे] मिथ्या । फूंक ।
फुरिअ वि [दे] निन्दित । फुक्कार पुं [फूत्कार] फुफकार ।
फुरुफुर देखो फुरफुर। फुक्की स्त्री [दे] धोबिन ।
फुल देखो फुड = स्फुट् । फुग्ग स्त्रीन [दे. स्फिच्] कटि-प्रोथ ।। फुल (अप) देखो फुर = स्फुर् । फुग्गफुग्ग वि [दे] विकीर्ण रोमवाला, परस्पर फुल (अप) देखो फुड = स्फुट ।
असम्बद्ध-बिखरे हुए केशवाला । फुल (अप) देखो फुल्ल = फुल्ल । फुट ) अक [स्फुट, भ्रंश] विकसना, प्रकट | फुलिंग पुं [स्फुलिङ्ग] अग्नि-कण । फुट्ट होना । फूटना, फटना । नष्ट होना। फुल्ल अक [ फुल्ल ] फूलना, पुष्प-युक्त फुट्ट वि [स्फुटित, भ्रष्ट] टूटा हुआ, विदीर्ण ।
होना। भ्रष्ट, पतित । विनष्ट ।
फुल्ल देखो कम = क्रम् । फु? देखो पुट्ठ = स्पृष्ट ।
| फुल्ल न. पुष्प । पुष्पित । °मालिया स्त्री फुड देखो फुट्ट - स्फुट, भ्रंश् ।
[°मालिका मालिन । °वल्लि स्त्री. पुष्पफुड देखो पुट्ठ = स्पृष्ट ।
प्रधान लता। फुड वि [स्फुट] स्पष्ट, विशद ।
फुल्लंधय पुं [पुष्पन्धय] भंवरा । फुडा स्त्री [स्फुटा] अतिकाय-नामक महोर
फुल्लंधुअ पुं [दे] भौंरा। गेन्द्र की एक पटरानी, इन्द्राणी-विशेष।
फुल्लग न [फुल्लक] ललाट का आभूषण । फुडा स्त्री [फटा] साँप की फन ।
फुल्लया स्त्री [फुल्ला, पुष्पा] वल्ली-विशेष, फुडिअ वि [स्फुटित] विकसित । फूटा हुआ,
पुष्पाह्वा, शतपुष्पा, सोया का गाछ। विदीर्ण । विकृत ।
फुल्लवड न [दे] मदिरा-वामक फूल । फुडिअ (अप) देखो फुरिअ।
फुल्लिम पुंस्त्री [फुल्लता] विकास, फूलन । फुडिआ स्त्री [स्फोटिका] फुनसी।
फुस सक [भ्रम्] भ्रमण करना । घूमाना । फुड्ड देखो फुट्ट।
फुस सक [मृज्] मार्जन करना, पोंछना। फुन्न वि [दे. स्पृष्ट] छूआ हुआ।
फुस सक [स्पृश्] स्पर्श करना, छूना। फुप्फुस न [दे] फेफड़ा।
फुसिअ पुंन [पृषत] बिन्दु. बिन्दु-पात । फुम सक [भ्रम्] भ्रमण करना ।
फुसिआ स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । फुम सक [दे. फूत् + कृ] फूंक मारना।
फुस्स देखो फुस = स्पृश् । फुर अक[स्फुर]फरकना, हिलना । तड़फड़ना ।
फूअ पुं [दे] लोहार।
| फूम देखो फुम। विकसना, खिलना। प्रकाशित होना, प्रकट होना, स्फूर्तियुक्त होना ।
फूल देखो फुल्ल = फुल्ल । फुर सक [अ + ह] अपहरण करना।
फेक्कार पुं [फेत्कार] शृगाल की आवाज । फुर पुं [स्फुर] शस्त्र-विशेष ।
चिल्लाहट । फुर (अप) देखो फुड = स्फुट ।
फेड सक [स्फेटय] विनाश करना। दूर फुरफुर अक [पोस्फुराय] खूब काँपना, । हटाना। परित्याग करना । उद्घाटन थरथराना, तड़फड़ाना ।
करना। फुरिअ वि [स्फुरित] कम्पित, हिला हुआ, फेडावणिय न [दे]विवाह-समय की एक रीति, फरका हुआ, चलित । दोप्त ।
। वधू को प्रथम बार लजा-परिहार के वक्त
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फेणवड । पुं [दे] वरुण ।
फेण-बउस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६०७ दिया जाता उपहार ।
विशेष, शब्द-भेद । वि. भक्षक । फेण पुं [फेण, फेन] फेण झाग, जल-मल । फोडव देखो फोडअ ।
°मालिणी स्त्री [°मालिनी] नदी-विशेष । फोडाव सक [स्फोटय] फोड़वाना । तोड़फेणबंध ।
वाना । खुलवाना।
फोडि स्त्री [स्फोटि] विदारण, भेदन । फेणाय अक [फेणाय्, फेनाय] फेण-फेन । ___°कम्मन [°कर्मन्] हल आदि से भूमिका वमन करना, झाग निकालना।
दारण, कूप, तड़ाग आदि खोदने का काम । फेप्फस । न [दे] देखो फिप्फिस, फुप्फुस । उक्त काम कर आजीविका चलाना । फेफस ।
फोडिअय वि [दे. स्फोटित, °क] राई से फेरण न [दे] फेरना, घुमाना ।
बघारा हुआ शाकादि। फेल सक [छिप्] फेंकना । दूर करना । फोडअय न [दे] रात के समय जंगल में फेला स्त्री [दे] जूठन ।
सिंहादि से रक्षा का एक प्रकार । फेलाया स्त्री [दे] मामी ।
फोडिया स्त्री [स्फोटिका] छोटा फोड़ा। फेल्ल पुं [दे] दरिद्र ।
फोडी स्त्री [स्फोटी, स्फौटी] देखो फोडि । फेल्लुस सक [दे] फिसलना, खिसकना ।। फोप्फस न [दे] शरीर का अवयव-विशेष । फेल्लुसण । न [दे] फिसलन, पतन । पिच्छिल फोफल न [दे] गन्ध-द्र व्य-विशेष, एक फेल्हसण ' जमीन ।
औषधि । फेस पुं दे] त्रास, डर । सद्भाव ।
फोफस देखो फोप्फस । फोअ पुंदे] उद्गम ।
फोरण न [स्फोरण] निरन्तर प्रवर्तन । फोइअय वि [दे] मुक्त । विस्तारित । फोरविअ वि [स्फोरित] निरन्तर प्रवृत्त । फोंफा स्त्री [दे] डराने की आवाज । फोस देखो फुस = स्पृश् । फोड सक [स्फोटय् ] फोड़ना, विदारण फोस पुं [दे] उद्गम ।
करना । राई आदि से शाक बघारना। | फोस पुं [दे. पोस] अपान-देश, गुदा । फोड पुं [स्फोट] फोड़ा, व्रण-विशेष । वर्ण
ब पुं. ओष्ठ स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । बइस्स देखो वइस्स। बअर (शौ) न [बदर] बेर का फल । कपास | बईस (अप) देखो बइस । का बीज।
बईस (अप) न [उपवेश] बैठ, बैठन बैठना । बइट्ट (अप) वि [उपविष्ट] बैठा हुआ। बउणी स्त्री [दे] कर्पास-वल्ली। बइल्ल पुंदे] बैल, वृषभ ।
बउल पुं [ बकुल ] मौलसरी का पेड़ या बइस (अप) अक [उप + विश्] बैठना। __ पुष्प । 'सिरी स्त्री [ 'श्री ] बकुल का पेड़ बइसणय (अप) न [उपवेशनक] आसन । या पुष्प । बइसार (अप) सक [उप + वेशय्] बैठाना । । बउस पुं [बकुश] अनार्य देश। पुंस्त्री. उस
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६०८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बउहारी-बंभ देश का निवासी। वि चितकबरा। मलिन बंधय देखो बंधग ! चरित्रवाला, संयम को मलिन करनेवाला । | बंधव पुं[बान्धव] भ्राता । दोस्त । नातेदार, बउहारी स्त्री [दे] बुहारी, झाड़ ।
सम्बन्धी । माता । पिता। मामा, चाचा बंग पुं [बङ्ग] भगवान् आदिनाथ का एक | आदि ।
पुत्र । बंगाल देश । बंग देश का राजा। | बंधाप (अशो) सक [बन्धय] बंधाना । बंगल (अप) पुं [बङ्ग] बंग देश का राजा । | बंधु पुं[बन्धु] भाई । माता । पिता। मित्र । बंगाल पुं[बङ्गाल] बंगाल देश ।
स्वजन । छन्द-विशेष । जीव . दुपहरिया का बंझ देखो वंझ ।
पेड़ । 'दत्त पुं. एक श्रेष्ठी। एक जैन मुनि । बंडि पुंदे] देखो बंदि = बन्दिन् ।
°मई, °वई स्त्री [°मती] भगवान् मल्लिनाथ बंद न [दे] कैदी । °गह पुं [ग्रह] कैदी रूप | की मुख्य साध्वी । स्त्री-विशेष । सिरी स्त्री से पकड़ना।
[°श्री] श्रीदाम राजा की पत्नी। बंदि स्त्री [बन्दि] देखो बंदी।
बंधुर वि [बन्धुर] सुन्दर । नम्र, अवनत । बंदि । पुं [बन्दिन्] स्तुति-पाठक, मंगल
बंधुरिय वि [बन्धुरित] पिंडीकृत । नमा बंदिण ) पाठक, मागध ।
हुआ। मुकुटित । विभूषित । बंदिर न [दे] समुद्री बन्दर । बंदी स्त्री [बन्दी] बाँदी। कैदी। कय वि बंधुल पुं[बन्धुल] वेश्या-पुत्र , असती-पुत्र । [°कृत] बाँध कर आनीत ।।
बंधूय पुं [बन्धूक] दुपहरिया का पेड़ । बंदुरा स्त्री [बन्दुरा] अश्व-शाला ।
बंधोल्ल पुं[दे] मेलक, संगति । बंध सक [बन्ध] बाँधना, नियन्त्रण करना। बंभ पुं [ब्रह्मन्] ब्रह्मा। भगवान् शान्तिनाथ कर्मों का जीव-प्रदेशों के साथ संयोग करना ।
का शासनाधिष्ठायक यक्ष। अप्काय का बंध पुंदे] नौकर।
अधिष्ठायक देव । पाँचवें देवलोक का इन्द्र । बंध पुं[बन्ध] कर्म-पुद्गलों का जीव-प्रदेशों के बारहवें चक्रवर्ती का पिता । द्वितीय बलदेव साथ दूध-पानी की तरह मिलना । बन्धन, और वासुदेव का पिता । ज्योतिष-शास्त्र संयमन । छन्द-विशेष । सामि वि प्रसिद्ध योग । ब्राह्मण । चक्रवर्ती राजा का [°स्वामिन्] कर्म-बन्ध करनेवाला।
देव-कृत प्रासाद । दिन का नवा मुहूर्त । बंधई स्त्री [बन्धकी] पुंश्चली, असती स्त्री।
छन्द-विशेष । ईषत्प्राग्भारा पृथिवी । एक जैन बंधग वि [बन्धक] बाँधनेवाला। कर्म-बन्ध
मनि । पुंन.देवविमान-विशेष । मोक्ष । ब्रह्मचर्य । करनेवाला, आत्म-प्रदेश के साथ कर्म-पुद्गलों
सत्य अनुष्ठान । निर्विकल्प सुख । योगशास्त्रका संयोग करनेवाला।
प्रसिद्ध दशम द्वार । "कंत न [°कान्त] देवबंधण न [बन्धन] संश्लेष का साधन, जिससे विमान । कूड पुं [ कूट] महाविदेह वर्ष का बाँधा जाय वह स्निग्धतादि गुण । जो बाँधा वक्षस्कार पर्वत । न. देवविमान । °चरण न. जाय । कर्म, कर्म-पुद्गल । कर्म-बन्ध-कारण । ब्रह्मचर्य । °चारि वि [चारिन्] ब्रह्मचर्य संयमन, नियन्त्रण । नियन्त्रण का साधन, पालन करनेवाला । पुं भगवान् पार्श्वनाथ का रज्जु आदि । जिस कर्म के उदय से पूर्व-गृहीत एक गणधर । "चेर, °च्चेर न [°चर्य] कर्म-पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कर्म-पुद्गलों मैथुन-विरति । जिनेन्द्र-शासन, जिन-प्रवचन । का आपस में सम्बन्ध हो वह कर्म ।।
ज्झय न [ध्वज] देव-विमान । दत्त बंधणी स्त्री [बन्धनी] विद्या-विशेष । पुं. भारतवर्ष का बारहवाँ चक्रवर्ती राजा ।
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बंभंड-बत्तीसइम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६०९
'दीविया
बंभि°
स्त्री [ब्राह्मी]
ऋषभदेव की
शाखा |
बंभी पुत्री । लिपि-विशेष । कल्प विशेष । सरस्वती देवी |
'भूइ पुं
यारि
बंभुत्तर पुं [ब्रह्मोत्तर ] देव- विमान । 'वर्डसकन[वतंसक ] देव - विमान ।
|
दीव पुं [द्वीप ] द्वीप - विशेष । स्त्री [°द्वीपिका ] जैन मुनि गण की "पभ न [प्रभ] देव-विमान । [ भूति] द्वितीय वासुदेव का पिता । देखो 'चारि । रुइ पुं [रुचि] एक ब्राह्मण, नारद का पिता । ° लेस न [°लेश्य] देवविमान | लोअ, लोग पुं [ लोक] पाँचवाँ देवलोक । 'लोगवडिसय न [ लोकावतंसक ] देव-विमान । "व, "वंत वि [वत् ] ब्रह्मचर्य - वाला । ' वडिसय पुं [वतंसक ] सिद्ध- | शिला । 'वण्ण न [' वर्ण] देव विमान । 'वय | न [व्रत] ब्रह्मचर्य । "वि वि [वित्] ब्रह्म ज्ञानी ।' व्वय देखो 'वय "संति पुं ['शान्ति] भगवान् महावीर का शास्न-यक्ष । 'सिंग न [शृङ्ग]देव विमान | °सिट्ठ न [° सृष्ट] देवविमान । "सुत्त न [ सूत्र] यज्ञोपवीत । हिअ पुं [हित] एक विमानावास, देवविमान | वित्त न [वर्त] देव- विमान । देखो बंभाण, बम्ह |
भंड न [ब्रह्माण्ड ] जगत्, संसार ।
'भण पुं [ब्राह्मण] |
भणि जन्तु - विशेष ।
भणिआ
स्त्री [ब्राह्मणिका ] पञ्चेन्द्रिय
स्त्री [दे. ब्राह्मणिका ] कीटविशेष |
बंभणी
बंभण्ण
स्त्री [ब्रह्मण्य, ब्राह्मण्य, क] भण्णय ब्राह्मण का हित । ब्राह्मणसम्बन्धी । न. ब्राह्मण-समूह । ब्राह्मण-धर्म | बंभद्दीविग वि [ ब्रह्मद्वीपिक] ब्रह्मदीपिका
शाखा में उत्पन्न |
७७
}
बंहि पुं [ बर्हिन्] मयूर | बहिण (अप) ऊपर देखो ।
बक देखो बय ।
बक्कर न [ दे. बर्कर ] परिहास | बक्स न [ दे] अन्न विशेष । बग देखो बय | बगदादि पुं [ बगदादि ] बगदाद देश । बग्गड पुं [दे] देश-विशेष |
बज्झवि [बाह्य ] बाहर का बहिरङ्ग । बज्झ न [बन्ध] बन्धन, बाँधने का साधन । बज्झ वि [बद्ध ] बन्धनाकार व्यवस्थित | बँधा हुआ ।
बठर पुं. मूर्ख छात्र ।
बड (अप) वि [ दे] बड़ा, महान् । ases to [वि + प्] विलाप करना, बड़
बड़ाना |
हिला स्त्री [] धुरा के मूल में दी जाती कील, कीलक - विशेष ।
बसि देखो बलिस ।
बडु
बडुअ
बड्डुवास [दे] देखो वड्डुवास । बतीस (अप) स्त्रीन [द्वात्रिंशत् ] बत्तीस । बत्तिस जिनकी संख्या बत्तीस हों वे । बत्तीस
पुं [ बटु, क] लड़का, छोकड़ा ।
}
भद्दविगा स्त्री [ब्रह्मद्वीपिका ] एक जैन बत्तीसइ° स्त्री . ऊपर देखो । बद्धय न[°बद्धक]
-शाखा ।
बत्तीस प्रकार की रचनाओं से युक्त । बत्तीस
भलिज्जन [ ब्रह्मलीय] जैन मुनि कुल ।
पात्रों से निबद्ध (नाटक) | विह वि [विध ] बत्तीस प्रकार का ।
बंभहर न [दे] कमल ।
बंभाण देखो बंभ | 'गच्छ पुं. एक जैन मुनि बत्तीसइम वि [द्वात्रिंशत्तम ] बत्तीसवाँ । न.
गच्छ ।
पन्द्रह दिनों का लगातार उपवास ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बत्तीसिया-बल बत्तीसिया स्त्री [द्वात्रिंशिका] बत्तीस पद्यों वृक्ष-विशेष, मल्लिका का गाछ । राक्षसका निबन्ध-ग्रन्थ । एक नाप ।
विशेष । बकासुर । बद्ध वि. बंधा हुआ, नियन्त्रित । संश्लिष्ट, | बयाला देखो बा-याला । संयुक्त । निबद्ध, रचित । °Cफल, फल पूं बरठ पुं [दे] धान्य-विशेष । [°फल] करञ्ज का पेड़ । वि. फल-युक्त । बरह न [बह] मयूर-पिच्छ । पत्र । परिवार । बद्धग पुं [बद्धक] तूण-वाद्य-विशेष । देखो बरिह। बद्धय पुं[दे] कान का एक आभूषण । बरहि । पुं[बहिन्] मोर । बद्धेल्लग | देखो बद्ध।
बरहिण , बद्धेल्लय
बरिह देखो बरह । हर [धर] मयूर । बप्प पुंदे] योद्धा । पिता ।
बरिहि । देखो बरहि। बप्पहट्टि पुं [बप्पभट्टि] एक जैन आचार्य ।
बरिहिण । बप्पीह पुं [दे] पपीहा ।
बरुअ न [दे] इक्षु-सदृश तृण । बप्पुड वि [दे] बेचारा, अनुकम्पनीय ।
बरुड पुं दे] चटाई बनानेवाला शिल्पी । बप्फ पुंन [बाष्प] भाफ, ऊष्मा ।
बल अक [ज्वल्] जलना। बाप्फाउल वि [दे. बाष्पाकुल] अतिउष्ण ।
बल अक [बल्] जीना । सक. खाना । बब्बर पुं[बर्बर] अनार्य देश । वि. उसका
बल सक [ग्रह ] ग्रहण करना। देखो वल = निवासी । कुल न. उसका किनारा । बब्बरी स्त्री [दे] केश-रचना ।
ग्रह ।
बल पुं. बलदेव, हलधर । छन्द-विशेष । एक बब्बूल पुं. बबूल का पेड़ ।
क्षत्रिय परिव्राजक । न. सामथ्र्य, पराक्रम । बब्भ पुं [दे] चर्म, चमड़े की रज्जु ।
सैन्य । खाद्य-विशेष । अष्टम तप। एक बब्भागम वि [बह्वागम] शास्त्रों का अच्छा |
शिखर । °च्छि वि [°च्छित्] बल का जानकार ।
नाशक । न. जहर । °ण्णु देखो °न्न । °देव बब्भासा स्त्री [दे] जिसके पूर से भावित पानी
पुं. वासुदेव का बड़ा भाई, राम । °न्न वि में धान्य आदि बोया जाता हो वह नदी ।
[°ज्ञ] बल को जाननेवाला। भद्द पुं बब्भिआयण न [बाभ्रव्यायन] गोत्र-विशेष ।
[°भद्र] भरतक्षेत्र का भावी सातवां वासुबमाल पुं [दे] कलकल, कोलाहल ।
देव । राजा भरत का प्रपौत्र । देवविमानबम्ह पुं [ब्रह्मन्] ज्योतिष्क देव-विशेष । देखो |
विशेष । देखो °हद्द । भाणु पुं [°भानु] बंभ । चरिअ देखो बंभ-चेर । 'तरु पुं. राजा बलमित्र का भागिनेय । महणा स्त्री पलाश का पेड़ । °धमणी स्त्री [°धमनी] [ मथनी] विद्या-विशेष। मित्त पुं ब्रह्मनाड़ी।
[°मित्र] एक राजा । °व वि [°वत्] बम्हज्ज (शौ) देखो बंभण्ण ।
बलिष्ठ । प्रभूत सैन्यवाला। पुं. अहोरात्र का बम्हण देखो बंभण।
आठवाँ मुहूर्त । °वइ पुं[°पति] सेनाध्यक्ष । बम्हण्णय देखो बंभण्णय ।
°वंत, °वग देखो °व । °वत्त न [°वत्त्व बम्हहर [दे] देखो बंभहर ।
बलिष्ठता । °वाउय वि [°व्यापृत] सैन्य में बम्हाल पुं [दे] अपस्मार, मृगी रोग। लगाया हुआ। हद्द पुं [भद्र] बलदेव । बय पुं[बक] बगुला । कुबेर । महादेव । पुष्प- । छन्द-विशेष । देखो °भद्द ।
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बलकार-बहरिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बलकार ! पुं [बलात्कार] जबरदस्ती।। न [°कर्मन्] पूजा की क्रिया । नैवेद्य की बलक्कार।
क्रिया । °चंचा स्त्री [°चञ्चा] बलीन्द्र की बलद्द पुं [दे] बैल ।
राजधानी । 'मुह पुं [°मुख] कपि । 'यम्म बलमडा स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती।
देखो कम्म । बलमोडि देखो बलामोडि।
बलि वि [बलिन्] बलवान् । पुं. रामचन्द्र का बलय पुं [दे] बैल।
एक सुभट । बलया देखो बलाया।
बलिअ वि [दे] पीन, मांसल, स्थूल, मोटा। बलवट्टि स्त्री [दे] सखी। व्यायाम को सहन ।
क्रिवि. गाढ़, बाढ़, अतिशय, अत्यर्थ । करनेवाली स्त्री।
बलिअ वि [बलिन्, बलिक] बलवान्, सबल, बलहट्ट्या स्त्री [दे] चने की रोटी।
पराक्रमी । प्राणवाला। बला अ. स्त्री [बलात्] जबरदस्ती, बलिअ वि [बलित] जिसको बल उत्पन्न हुआ बलात्कार ।
हो, सबल । पुं. छन्द-विशेष । बला स्त्री[बला]मनुष्य की दस दशाओं में चौथी | बलि
बलिअंक पुं [बलिताङ्क छन्द-विशेष । अवस्था, तीस से चालीस वर्ष तक को अवस्था ।
बलिआ स्त्री [दे. बलिका] सूर्प, सूप । योग की एक दृष्टि । भगवान् कुन्थुनाथ की
बलिट्ठ वि [बलिष्ठ] बलवान् । शासन-देवी, अच्युता।
बलिद्द पुं [दे. बलीवर्द] वृषभ । बलाका देखो बलाया।
बलिमड्डा स्त्री [दे] बलात्कार । बलाणय न [दे] उद्यान में बैठने के लिए
बलिवद्द देखो बलीवद्द। बनाया जाता बेंच आदि । दरवाजा ।
बलिस न [वडिश] मछली पकड़ने का काँटा । बलामोडि स्त्री [दे. बलामोटि] बलात्कार ।
बलिस्सह पुं [बलिस्सह] आर्य महागिरि का बलामोडिअ अ [दे. बलादामोट्य] बलात्कार एक शिष्य । से, जबरदस्ती से।
बलीअ वि [ बलीयस् ] अधिक बलवाला । बलामोलि देखो बलामोडि ।
बलीवद्द पुं [बलीवर्द] बैल । बलाया स्त्री [बलाका] बक की एक जाति ।
बलुल्लड (अप) देखो बल = बल । बलाहग पुं [बलाहक] मेघ ।
बले अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-निश्चय, बलाहगा देखो बलाहया।
निर्णय । निर्धारण । बलाहय देखो बलाहग।
बल्ल न [बाल्य शिशुता। बलाहया स्त्री [बलाहका] बक-विशेष । अनेक बव सक [बू] बोलना, कहना । देखो बुव, बू । दिक्कुमारी देवियों का नाम ।
बव न. ज्योतिष प्रसिद्ध एक करण । बलि पुं. असुर कुमारों का उत्तर दिशा का बव्वाड पुं [दे] दक्षिण हस्त । इन्द्र । एक राजा । सातवाँ प्रतिवासुदेव । बहड वि [बृहत्] बड़ा, महान् । °इच्च न एक दानव । पुंस्त्री. उपहार। पूजोपहार, [°ादित्य] नगर-विशेष । नैवेद्य । भूत आदि को दिया जाता भोग । बहत्तरी देखो बाहत्तरि। बलिदान । पूजा, अर्चा, सपर्या । राज-पाह्य
बहप्पइ । देखो बहस्सइ । भाग । चामर का दण्ड । उपप्लव । छन्द- बहप्फइ। विशेष । °उट्ठ पुं [ पुष्ट] कौआ । °कम्म | बहरिय देखो बहिरिय।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बहल-बहुआरी बहल न [दे] पंक। सुरा स्त्री. पंकवाली , बहुत । 'नड पुं ['नट] नट की तरह अनेक मदिरा।
भेष धारण करनेवाला । °पडिपुण्ण वि बहल वि [बहल] निरन्तर, गाढ । स्थूल [°परिपूर्ण] पूरा-पूरा। पढिय वि मोटा । पुष्कल, अत्यन्त ।
[°पठित] अतिशय शिक्षित । पलावि वि बहलिम पुंस्त्री [बहलता] स्थूलता, मोटाई । [प्रला पन्] बकवादी। पुत्तिअ न सातत्य ।
[पुत्रिक] बहुपुत्रिका देवी का सिंहासन । बहली स्त्री. भारतवर्ष का एक उत्तरीय देश । पुत्तिआ स्त्री ["पुत्रिका] पूर्णभद्र नामक बहली देश की स्त्री।
यक्षेन्द्र की अग्र-महिषी । सौधर्म देवलोक की बहलीय वि [बहलीक] बहली-निवासी । देवी । 'प्पएस वि [°प्रदेश] प्रचुर प्रदेशबहव देखो बहु।
कर्म दल वाला। °फोड वि [°स्फोट] बहुबहस्सइ पुं [बृहस्पति] ज्योतिष्क देव-विशेष, भक्षक । भंगिय न [°भङ्गिक] दृष्टिवाद एक महाग्रह । देव-गुरु । पुष्य नक्षत्र का का सूत्र-विशेष । °मय वि [°मत्] अत्यन्त अधिष्ठाता देव । राजनीति-प्रणेता एक अभीष्ट । अनुमोदित, संमत । °माइ वि ऋषि । नास्तिक मत का प्रवर्तक । एक [ मायिन्] अति कपटी । °माण पुं ['मान] पुरोहित-पुत्र । विपासूत्र का अध्ययन । अतिशय आदर । 'माय वि [°माय] अति °दत्त पुं. देखो अंत के दो अर्थ ।
कपटी। °मुल्ल, °मोल्ल वि [ मूल्य] बहि अ [बहिस् ] बाहर । "हुत्त वि [ दे] मूल्यवान् । 'रय वि ['रत] अत्यन्त बहिर्मुख ।
आसक्त । जमालि का अनुयायी । न. जमालि बहिअ वि [दे] विलोडित ।
का चलाया हुआ मत-क्रिया की निष्पत्ति बहिं देखो बहि।
अनेक समयों में ही माननेवाला मत । प्रय बहिणिआ । स्त्री [भगिनी] बहिन । न [ °रजस् ] चिउड़ा की तरह का एक बहिणी ) सखी । 'तणअ पुं [°तनय]
प्रकार का खाद्य । °रव वि. यशस्वी । न. भगिनीपुत्र । °वइ पुं [°पति] बहनोई ।
विद्याधर-नगर । °रूवा स्त्री [°रूपा] सुरूप बहित्ता अ [बहिस्तात् ] बाहर ।
नामक भूतेन्द्र की अग्रमहिषी। °लेव पुं बहिद्धा अ [दे] बाहर । मैथुन ।
["लेप] चावल आदि के चिकने माँड़ का बहिद्धा अ [बहिर्धा] बाहर की तरफ ।
लेप । °वयण न [°वचन] बहुत्व-बोधक बहिया अ [बहिस् , बहिस्तात्] बाहर ।
प्रत्यय । विह वि [विध] नानाविध । बहिर वि [बाह्य] बहिर्भूत, बाहर का। विहिय वि [विधिक] अनेक तरह का। बहिर वि [बधिर] बहरा।
°संपत्त वि [°संप्राप्त] कुछ कम संप्राप्त । बहु वि [बह]प्रचुर, अनेक । स्त्री. 'ई । क्रिवि. । °सच्च पुं [°सत्य] अहोरात्र का दशवाँ अत्यन्त, अतिशय । 'उदग पुं [°उदक] मुहूर्त । °सो अ ['शस् ] अनेक बार । वानप्रस्थ का एक भेद । °चूड पुं. विद्याधर
°स्सुय वि [ श्रुत] शास्त्रज्ञ, पण्डित । वंश का राजा । जंपिर वि [°जल्पित] °हा अ [°धा] अनेकधा । वाचाट । °जण पुं [°जन] अनेक लोग । न. बहुअ वि [बहु, °क] ऊपर देखो। आलोचना का प्रकार । 'णाय न [°नाद] बहुआरिआ। स्त्री (दे] बुहारी, झाड़ । नगर-विशेष । 'देसिअ वि [देश्य] थोड़ा | बहुआरी ।
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बहुखज्ज-बाण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बहुखज्ज वि [बहुखाद्य] बहु-भक्ष्य । पृथुक- हवा । रसमासिय वि [दशमासिक] चिवड़ा बनाने-योग्य ।
बारह मास का, बारह-मास-सम्बन्धी । बहुग देखो बहुअ ।
°रसय न [°दशक] बारह का समूह । बहुजाण पुं [दे] तस्कर । ठग । जार । प्रसवरिसिय वि [°दशवार्षिक] बारह वर्ष बहुण पुं [दे] चोर धूर्त ।
का । °रसविह वि [°दशविध] बारह बहुणाय वि [बाहुनाद] बहुनाद-नगर का । प्रकार का । °रसाह न [°दशाह, दशाख्य] बहुत्त वि [प्रभूत] बहुत, प्रचुर ।
बारहवां दिन । जन्म के बारहवें दिन किया बहुमुह पुं [दे. बहुमुख] दुर्जन ।
जाता उत्सव । रसी स्त्री [°दशी] द्वादशी । बहुराणा स्त्री [दे] तलवार की धार । 'रसुत्तरसय वि ["दशोत्तरशत] एक सौ बहुरावा स्त्री [दे] शृगाली ।
बारहवां । °रह देखो °रस = दशन् । 'वट्ठि बहुरिया स्त्री [दे] झाड़ ।
स्त्री [°षष्टि] बासठ । "वण (अप) बहुल वि. प्रचुर । बहुविध । व्याप्त । पुं. कृष्ण- देखो °वन्न । °वत्तर वि [सप्तत] पक्ष । एक ब्राह्मण ।
बहत्तरवाँ । 'वत्तरि स्त्री["सप्तति]बहत्तर । बहुल पुं. आचार्य महागिरि के शिष्य । 'वन्न स्त्रीन ["पञ्चाशत्] बावन । वन्न वि बहुला स्त्री. गौ । एक स्त्री । वण न [°वन] ["पञ्चाश] बावनवाँ । वीस स्त्रीन मथुरा नगरी का प्राचीन वन ।
[विंशति] बाईस । वीस वि [विंश] बहुलि : [बहुलिन्] एक राज-पुत्र ।
बाईसवाँ । वीसई देखो वीस = विंशति । बहुली स्त्री [दे] माया, कपट, दम्भ । 'वीसइम वि [विंशतितम] बाईसवाँ । बहुल्लिआ स्त्री [दे] बड़े भाई की स्त्री। दस दिन का उपवास । वीसविह वि[ विंशबहुल्ली स्त्री [दे] खेलने की पुतली । तिविध] बाईस प्रकार का । सट्ठ वि [°षष्ट] बहुवी देखो बहुई।
बासठवाँ । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] बासठ । बहुव्वीहि पुं[बहुव्रीहि] एक समास । °सी, °सीइ स्त्री [°अशीति] बयासी । बहूअ वि [प्रभूत] बहुत, प्रचुर ।
सीइम वि [°अशीतितम] बयासीवाँ । बहेडय पुं [बिभीतक] बहेड़ा का पेड़। न.
हत्तर (अप) देखो 'हत्तरि । °हत्तरि स्त्री बहेड़ा का फल ।
[°सप्तति] बहत्तर । बा वि. ब. [द्वा, द्वि] दो, दो की संख्या
| बाअ पुं [दे] शिशु । वाला । °इस देखो वीस । °ईस देखो
बाइया स्त्री [दे] माता। °वीस । °णउइ स्त्री [नवति] बानबे ।
बाउल्लया । 'णउय वि [°नवत] ९२ वाँ । °णवइ बाउल्लिआ स्त्री [दे] । देखो °णउइ। °याल, 'यालीस स्त्रीन. | बाउल्ली . [°चत्वारिंशत्] बयालीस । स्त्री. "याला, | बाउस देखो बउस ।
यालीसा। °यालीसइम वि [°चत्वा- | बाउसिय वि [बाकुशिक] 'बकुश' चारित्री । रिंशत्तम] बयालीसवाँ । °र, रस त्रि. बाढ क्रिवि. अतिशय, अत्यन्त, घना । °क्कार ब. ['दशन्] बारह । °रस वि [°दश] पुं [°कार] स्वीकार-सूचक उक्ति । बारहवाँ । प्रसंग स्त्रीन [°दशाङ्ग] बारह बाण पुं [दे] पनस-वृक्ष । वि. सुभग । जैन अंग-ग्रन्थ । रसम वि [°दश] बार- | बाण पुंस्त्री. कटसरैया का गाछ । पुं. शर ।
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६१४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बाध-बाहु पाँच की संख्या । वत्त न [ पात्र] तूणीर ।। की अवस्था । एक छन्द । बाध देखो बाह = बाध् ।
बालालंबी स्त्री [दे] तिरस्कार, अवहेलना। बाधा स्त्री. विरोध ।
बालि वि [बालिन्] बाल या सुन्दर केशबाधिय वि [बाधित] विरोधवाला, प्रमाण- वाला। विरुद्ध ।
बालिआ स्त्री [बालिका] बाला । बाम्हण देखो बम्हण ।
बालिआ स्त्री [बालता] शिशुता । मूर्खता । बाय न [बाक] बक-समूह ।
बालिस वि [बालिश] मूर्ख, बेवकूफ । बायर न [बादर] स्थूल, मोटा। नवाँ | बाह सक (बाध्] विरोध करना। रोकना । गुण-स्थानक । नाम न ['नामन्] स्थूलता- पीड़ा करना । विनाश करना । हेतु कर्म ।
बाह पुं [बाष्प] आँसू । बार न [द्वार] दरवाजा।
बाह पुं [बाध] विरोध । बारगा स्त्री [द्वारका] एक प्रसिद्ध नगरी। बाह देखो बाढ । बारवई स्त्री [द्वारवती] ऊपर देखो। बाह पुं [बाहु] हाथ, भुजा।
भगवान् नेमिनाथ की दीक्षा शिविका । बाहग वि [बाधक] रोकनेवाला । विरोधी । बाल पुं. केश । शिशु । वि. मूर्ख । नया । बाहड पुं [वाग्भट] राजा कुमारपाल का पुं. एक विद्याधर राजा । वि. असंयत । °कइ स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री। पुं [कवि] तरुण या नया कवि । "क्क पुं| बाहण न [बाधन] विरोध । विराधन । [ °ार्क ] उदित होता सूर्य । ग्गाह पुं| बाहर देखो बाहिर । [°ग्राह] । 'ग्गाहि पुं [°ग्राहिन्] बालक की बाहल पुं. देश-विशेष । सार-सम्हाल करनेवाला नौकर । °घाय वि | बाहल्ल न [बाहल्य] स्थूलता, मोटाई। [°घात] बाल-हत्यारा । तव पुंन[°तपस्] | बाहा स्त्री [बाधा] हरकत । विरोध । पीड़ा । अज्ञानी की तपश्चर्या । वि. अज्ञानपूर्वक तप | बाहा स्त्री [बाहु] हाथ, भुजा । करनेवाला । "तवस्सि वि [°तपस्विन्] बाहा स्त्री [दे. बाहा] नरकावास-श्रेणी । मूर्ख तपस्वी। पंडिअ वि [°पण्डित] |
बाहि । अ [बहिस्] बाहर । कुछ अंशों में त्यागी और कुछ में अत्यागी।
बाहिं °बुद्धि वि. अनभिज्ञ । मरण न. असंयमी की
बाहिज्ज न [बाधिर्य] बधिरता । मौत । °वियण, 'वीयण पुंस्त्री ['व्यजन] |
वियण, वायण पुस्त्रा [व्यजन] । बाहिर अ [बहिस्] बाहर । चामर । °हार पुं [°धार] बालक का सार
बाहिर वि[बाह्य] बाहर का । °उद्धि पुं सम्हाल करनेवाला नौकर ।
[°ऊध्विन्] कायोत्सर्ग का एक दोष, दोनों बाल देखो बल।
पाष्णि मिलाकर और पैर को फैलाकर किया बाल न [बाल्य] बचपन, मूर्खता ।
जाता कायोत्सर्ग । बालअ देखो बाल = बाल ।
बाहिरंग वि [बहिरङ्ग] बाहर का । बालअ पुं [दे] वणिक्-पुत्र ।
बाहिरिय वि [बाहिरिक, बाह्य] बाहर का । बालग्गपोइआ स्त्री [दे] जल-मन्दिर । वलभी, | बाहिरिया स्त्री [बाहिरिका] किले के बाहर अट्टालिका।
की गृह-पंक्ति, नगर के बाहर का मुहल्ला । बाला स्त्री. कुमारी। मनुष्य की दस वर्ष तक | बाहु पुंस्त्री. हाथ, भुजा। 'बलि पुं.
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बाहुअ-बिब्बोअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष भगवान् आदिनाथ का पुत्र, तक्षशिला का | बिंदु पुन [बिन्दु] अल्प अंश । बिन्दी, शून्य, राजा । बाहुबलि के प्रपौत्र का पुत्र । "मूल | अनुस्वार । दोनों भ्र का मध्य भाग । रेखान. बगल ।
गणित का एक चिह्न । कला स्त्री. अनुस्वार, बाहुअ पुं [बाहुक] एक ऋषि ।
बिन्दी । °सार न. चौदहवां पूर्व, जैन ग्रन्थांशबाहुडिअ वि [दे] लज्जित । गत, चलित ।
विशेष । पुं. मौर्य वंश के राजा चन्द्र गुप्त का बाहुया स्त्री [बाहुका] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष । बाहुलग देखो बाहु।
बिंद्रावण न [वृन्दावन] वैष्णव-तीर्थ । बाहुलेय पुं [बाहुलेय] गो-वत्स, बैल ।
बिंब सक [बिम्ब ] प्रतिबिम्बित करना । बाहुलेर पुं [बाहुलेय] काली गाय का | बिब न [बिम्ब प्रतिमा । छन्दविशेष । न. बछड़ा।
| कुन्दरुन का फल । प्रतिच्छाया । अर्थ-शून्य बाहुल्ल न [बाहुल्य] बहुलता, प्रचुरता ।
__ आकार । सूर्य तथा चन्द्र का मण्डल । बाहुल्ल वि [बाष्पवत्] अश्रुवाला।
बिंबवय न [दे] फल-विशेष, भिलावाँ । बि वि. ब. [द्वि] दो। °जडि पुं [°जटिन्] | बिंबिसार देखो भिभिसार । एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष । °दल न. | बिबी स्त्री [बिम्बी] लता-विशेष, कुन्दरुन का चना आदि दो टुकड़े वाला धान्य । °याल | । गाछ । °फल न. कुन्दरुन का फल । देखो बा-याल । °यालसय पुंन [°चत्वा- | बिबोवणय न दे] क्षोभ । विकार । रिंशच्छत] एक सौ बेआलीस । °विह वि | ओसीसा ।
विध] दो प्रकार का। "सट्ठि स्त्री | बिह सक [बंह ] पोषण करना । [°षष्टि] बासठ । सत्तरि, °सयरि स्त्री |
बिग्गाइआ । स्त्री [दे] कीट-विशेष, [°सप्तति] बहत्तर ।
बिग्गाई ) संलग्न रहता कीट-युग्म । बि° । वि [द्वितीय] दूसरा । 'कसाय पुं | बिज देखो बीज। बिअ , [°कषाय] अप्रत्याख्यानावरण बिजउर न [बीजपूर] एक तरह का नीबू । कषाय ।
बिजय (अप) देखो बिइज्ज । बिअ न [द्विक] दो का समुदाय, युग्म, युगल ।
बिट्ट पुं [दे] लड़का, पुत्र । बिआया स्त्री [दे] संलग्न कीट-द्वय ।
बिट्टी स्त्री [दे] पुत्री, लड़की । बिइअ देखो बिइज्ज ।
बिट्ठ वि [दे. विष्ट] बैठा हुआ, उपविष्ट । बिइआ देखो बीआ।
बिडाल बिडाल] स्त्री [बिडालिका, बिइज्ज वि [द्वितीय] दूसरा। सहाय, मदद |
बिडालिआ ली] बिल्ली । करनेवाला।
बिडाली , बिउण वि [द्विगुण] दुगुना । °ारय वि | बिडिस देखो बडिस । [°कारक] दुगुना करनेवाला ।
बिदिय देखो बिइअ। बिउण सक [द्विगुणय] दुगुना करना । बिन्ना स्त्री [बेन्ना] भारत की एक नदी । बिंट न [वृन्त] फलादि का बन्धन । °सुरा | बिब्बोअ ' [विव्वोक स्त्री की शृंगार-चेष्टास्त्री. दारू ।
विशेष, इष्ट अर्थ की प्राप्ति होने पर गर्व से बिंदिय वि [द्वीन्द्रिय] जिसको त्वचा और जीभ | उत्पन्न अनादर-क्रिया । लीला । काम-विकार । ये दो ही इन्द्रियाँ हों वह ।
न. उपधान, तकिया।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बिब्बोइअ-बुदिणी बिब्बोइअ न [विव्वोकित] स्त्री की शृंगार- । बीअ न [बीज] बीज । मूल कारण । वीर्य । चेष्टा का एक भेद ।
शुक्र । 'ह्रीं' अक्षर । °बुद्धि वि. मूल अर्थ को बिब्बोयण न [दे] तकिया, ओसीसा। जानने से शेष अर्थों का निज बुद्धि से स्वयं बिभेलय देखो बहेडय।
जाननेवाला । °मंत वि [वत्] बीजवाला । बिराड पुं [बिडाल] मध्यलघुक पाँच मात्रा- | °रुइ स्त्री [°रुचि] एक ही पद से अनेक पद वाला अक्षर-समूह । छन्द-विशेष ।
और अर्थों का अनुसन्धान द्वारा फैलनेवाली बिराल देखो बिडाल।
रुचि । वि. उक्त रुचिवाला । रुह वि. बीज बिरालिआ । देखो बिडालिआ। भुज- | से उत्पन्न होनेवाली वनस्पति । °वाय पुं बिराली परिसर्प-विशेष ।
[°वाप] क्षुद्र जन्तु-विशेष । 'सुहम न बिरालिया स्त्री [बिरालिका] स्थल-कन्द ।। [°सूक्ष्म] छिलके का अग्र भाग । बिरुद न [विरुद] इल्काब, पदवी । बीअऊरय न [बीजपूरक] नीबू-विशेष । बिल न. रन्ध्र, विवर, साँप आदि जन्तुओं के | बीअजमण न [दे] खलिहान । रहने का स्थान । कुआँ । °कोलीकारक वि| बीअण । पुन [दे. बीजक] असन वृक्ष, [दे. °कोलीकारक] दूसरे को व्यामुग्ध करने बीअय , विजयसार का गाछ । के लिए विस्वर वचन बोलनेवाला । °पंतिया | बीअवावय पं बीजवापक] विकलेन्द्रिय जन्तु स्त्री [°पङ्क्तिका] खान की पद्धति ।
की एक जाति । बिलाड । देखो बिडाल।
| बीआ स्त्री [द्वितीया] दूज । द्वितीय विभक्ति । बिलाल ।
बीज देखो बीअ - बीज। बिल्ल पुं [बिल्व] बेल का पेड़ न. बेल का | बीडग छन[बीटक] बीड़ा, पान का बीड़ा । फल ।
बीडि स्त्री [बीटि, °टी] । बिल्लल पुं [बिल्वल] अनार्य देश । उसकी मनुष्य-जाति ।
बीभच्छ पुं[बीभत्स] एक साहित्यिक । बिस न. मृणाल । °कंठी स्त्री [ °कण्ठी ] बीभच्छ । वि [बीभत्स] घृणोत्पादक । बलाका ।
बीभत्थ ) भयंकर । पुं. रावण का एक बिसि देखो बिसी।
सुभट । बिसिणी स्त्री [बिसिनी] कमलिनी । बीयत्तिय वि [दे. बीजयितु] बीज बोनेवाला, बिसी स्त्री [बृषी] ऋषि का आसन ।
वपन करनेवाला । पुं. पिता । बिह अक [भी] डरना।
बीलय पुं [दे] ताडंक, कर्णभूषण-विशेष । बिह वि [बृहत्] बड़ा, महान् । °ण्णर पुं बीह अक [भी] डरना। [°नल] छन्द-विशेष ।
बीहच्छ देखो बीभच्छ ।
बीहण वि [भीषण, °क] भय जनक । बिहप्फइ देखो बहस्सइ ।
बुआव सक [वाचय ] बुलवाना । बिहस्सइ)
बुइअ वि [उक्त] कथित । बिहि देखो बिहि।
बुदि पुंस्त्रो [दे] चुम्बन । मअर ।। बिहेलग देखो बिभेलय।
बुदि स्त्री [दे] शरीर । देखो बोंदि । बीअ देखो बिइअ।
| बुदिणी स्त्री [दे] कुमारी-समूह ।
स्त्री बी
| बीडी
बिहप्पइ ।
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बुंदीर-बुहस्सइ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बुंदीर पुं [दे] भैंसा । वि. महान्, बड़ा। बुद्धत पुंन [बुध्नान्त] अधो-भाग । बंध न [बुध्न] वृक्ष का मूल । मूलमात्र । बुद्धि स्त्री. मति, मेधा, मनीषा, प्रज्ञा । देवबुबा । स्त्री [दे] चिल्लाहट, पुकार । प्रतिमा-विशेष । महापुण्डरीक ह्रद की बुबु ।
अधिष्ठात्री देवी । छन्द-विशेष । तीर्थकरी । बंबुअ न [दे] समूह ।
साध्वी । अहिंसा, दया । पुं. एक मन्त्री । बुक्क वि [दे] विस्मृत ।
कूड न [°कूट] एक शिखर । °बोहिय वि बुक्क अक [गर्ज, बुक्क्] गरजना । [°बोधित] स्त्री. तीर्थकर से प्रतिबोधित । बुक्क अक [भष्, बुक्क ] कुत्ता का भूकना । । सामान्य साध्वी से बोधित । °मंत वि [°मत्] बुक्क पुंन [दे] तुष, छिलका । वाद-विशेष । बुद्धिवाला । °ल पुं. एक श्रेष्ठी । देखो ल्ल । बुक्कण पुं [दे] कौआ।
°ल्ल वि [°ल] बुद्ध, दूसरे की बुद्धि पर जीनेबुक्कस देखो बोक्कस ।
वाला। °वंत देखो °मंत। °सागर, बुक्का स्त्री [दे] मुष्टि । व्रीहिमुष्टि। एक | °सायर पुं [°सागर] ग्यारहवीं शताब्दी वाद्य ।
का एक जैनाचार्य ग्रन्थकार । "सिद्ध पुं. बुद्धि बुक्कार पुं[दे. बूङ्कार गर्जन, गर्जना । में सिद्धहस्त । सुन्दरी स्त्री [°सुन्दरी] एक बुक्कास पुं [दे] तन्तुवाय, जुलाहा ।
मन्त्री-कन्या। बुक्कासार वि [दे] भीरु, डरपोक ।
बुध देखो बुह । बुज्झ सक [बुध्] जानना, समझना । जागना । | बुब्बुअ अक [बुबूय] 'बु' 'बु' आवाज करना, जगाया गया।
छाग-बकरा का बोलना। बुडबुड अक [बुडबुडय] बुडबुड आवाज
बुब्बुअ ' [बुबुद] पानी का बुलबुला ।
बुभुक्खा स्त्री [बुभुक्षा] भूख । करना।
बुय वि [ब्रुव] बोलनेवाला । बुड्ड अक [बुड्, मस्ज् ] डूबना । बुड्ड वि [ब्रुडित, मग्न] डूबा हुआ, निमग्न ।
बुयाण देखो बुव का वकृ. । बुड्डिर पुं [दे] महिष, भैंसा ।
बुल वि [दे] बोड, भदन्त, धर्मिष्ठ । बुड्ढ वि [वृद्ध] बूढ़ा।
बुलंबुला ) स्त्री [दे] बुलबुला, बुद्बुद । बुण्ण वि [दे] भीत, उद्विग्न ।
बुलबुल पुं.। बुत्ती स्त्री [दे] ऋतुमती स्त्री।
बुल्ल देखो बोल्ल। बद्ध वि. विद्वान्, ज्ञाततत्व । जागृत । त्रिकाल
बुव सक [ब्रू] बोलना।
बुस न. भूसा, यव आदि का कडंगर । तुच्छ का जानकार । विज्ञात । पुं. जिन-देव । भग
धान्य, फल-रहित धान्य । वान् बुद्ध । आचार्य, सूरि । °पुत्त पुं [°पुत्र] |
| बुसि स्त्री [वृषि, °सि] मुनि का आसन । आचार्य-शिष्य । बोहिय वि [बोधित]
| °म, “मंत वि [°मत्] संयमी, व्रती, मुनि । आचार्य-बोधित । माणि वि [ मानिन्]
बुसिआ स्त्री [बुसिका] भूसा। निज को पण्डित माननेवाला । गलय पुन
बुह पुं [बुध] ग्रह-विशेष । एक ज्योतिष्क बुद्ध-मन्दिर।
देव । वि. पण्डित । बुद्ध वि [बौद्ध] बुद्ध-भक्त । बुद्ध-सम्बन्धी । बुहप्पइ । बुद्ध देखो बुज्झ।
बुहप्फइ देखो बहस्सइ। बुद्ध देखो बुंध । ७८
बुहस्सइ)
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६१८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बुहुक्ख-बोलग बुहक्ख सक [बुभुक्ष] भूख लगना। । बोंदिया स्त्री [दे] शाखा । बू सक [बू] बोलना, कहना । देखो बव, बुव । बोकड । पुं [दे] बकरा । बूर पुं. वनस्पति-विशेष । °णालिया स्त्री | बोक्कड , [नालिका] बूर भरी नली।
बोक्कस पुं. अनार्य देश-विशेष । वर्णसंकर जातिबूल वि [दे] मक, वाचा-शक्ति से रहित ।
विशेष, निषाद से अंबष्ठी की कुक्षि में उत्पन्न ।
बोक्कसालिय पुं[दे] तन्तुवाय । बूह सक [ बृंह, ] पुष्ट करना।
बोक्कार देखो बुक्कार। बे देखो बि । °आसी (अप) स्त्री [°अशीति]
बोक्किय न [बूत्कृत] गर्जन, गर्जना । बयासी । इंदिय वि [इन्द्रिय] त्वचा
बोगिल्ल वि [दे] चितकबरा । और जीभ ये दो ही इन्द्रियवाला प्राणी ।
बोट्ट सक [दे] उच्छिष्ट करना, जूठा करना । °हिय [द्वयाहिक] दो दिन का ।
बोड वि [दे]धार्मिक, धर्मिष्ठ । तरुण, मुण्डित । बेंट देखो बिंट।
बोडधेर न [दे] गुल्म-विशेष । बेंत देखो बू का वकृ.। बेंदि देखो बे-इंदिय।
बोडिय पुं [बोटिक] दिगम्बर जैन संप्रदाय । बे? देखो बिट्ठ।
वि. उसका अनुयायी।
बोडिय वि [दे] मुण्डित-मस्तक । बेड बेडा (पदे।
बोडर न [दे] दाढ़ी-मूंछ । बेडिया | स्त्री [दे] नौका, जहाज ।
बोड्डिआ स्त्री [दे] कपर्दिका, कौड़ी। बेडी
बोदर विदे] विशाल । बेड्डा स्त्री दे] दाढ़ी-मूछ के बाल ।
बोदि देखो बोंदि। बेदोणिय वि [वैद्रोणिक] दो द्रोण का।
बोद्दह [दे] देखो बोद्रह । बेभेल पुं.विन्ध्याचल के नीचे का एक संनिवेश । |
बोद्ध वि [बौद्ध] बुद्ध भक्त । बेमासिय वि [द्वैमासिक दो मास का ।
बोद्धव्व बुज्झ का कृ. । बेलि स्त्री [दे] स्थूणा, खूटा ।
बोद्रह वि [दे] जवान । बेल्ल देखो बिल्ल ।
बोधण न [बोधन] बोध, शिक्षा, उपदेश । बेल्लग पुं[दे] बलीवर्द ।
बोधि देखो बोहि । सत्त पुं[°सत्त्व] सम्यग् बेस अक [विश्, स्था] बैठना ।
दर्शन को प्राप्त प्राणी, अर्हन् देव का भक्त बेसक्खिज्ज न [दे] द्वेष्यत्व, रिपुता ।
जीव। बेसण न [दे] लोकनिन्दा ।
बोब्बड वि [दे] मूक । बेहिम वि [दे. द्वैधिक] दो टुकड़े करने-योग्य, बोर न [बदर] फल-विशेष, बेर । खण्डनीय ।
बोरी स्त्री [बदरी] बेर का गाछ । बोंगिल्ल वि [दे] अलंकृत । पुं. आडम्बर । बोल सक [बोडय् ] डुबाना । बोंटण न [दे] चूचुक, स्तन का अन भाग। बोल अक [व्यति + क्रम्] पसार होना, बोंड न [दे] चचुक, स्तन-वृन्त । कपास का | गुजरना। सक. उल्लंघन करना। देखो फल । °य न [°ज] सूती कपड़ा।
वोल = गम् । बोंद न [दे] मुख ।
बोल पुं [दे] कलकल, कोलाहल । बोंदि स्त्री [दे] रूप । मुंह । देह । | बोलग पुन [दे. ब्रोड] डूबना । खोंचाव ।
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बोलिंदी-भंगी
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष बोलिंदी स्त्री दे] ब्राह्मी लिपि का एक भेद । । बोहारी स्त्री [दे] झाड़ । बोल्ल सक [कथय ] बोलना, कहना। बोहि स्त्री [बोधि] शुद्ध धर्म का लाभ। अहिंसा, बोल्लअ कथन] बोल, वचन ।
अनुकम्पा, दया । बोल्लणअ वि [कथयितु] बोलने का स्वभाव- | बोहिअ वि [बोधित] ज्ञापित, समझाया हुआ। वाला।
विकासित, विबोधित । बोल्ला स्त्री [कथा] वार्ता, बात । बोहिअ पुं [बोधिक] मनुष्य-चोर । बोल्लिअ वि [कथित] उक्त । न. उक्ति ।
बोहिग देखो बोहिअ = बोधिक । बोव्व न [दे] क्षेत्र, खेत ।
बोहित्थ पुंन [दे] जहाज, नौका । बोह सक [बोधय् ] समझाना, ज्ञान कराना। बोहित्थिय वि [दे] प्रवहण-स्थित । जगाना।
भंस देखो भंस। बोह पुं[बोध] ज्ञान, समझ । जागरण ।
भमर देखो भमर। बोहग देखो बोहय।
भास देखो अब्भास । बोहय वि [बोधक] बोध देनेवाला, ज्ञानदाता। | °ब्भि वि [भित] भेदन या नाशकर्ता । बोहहर पुं [दे] मागध, स्तुति-पाठक । ब्रो (अप) देखो बू ।
भ पुं. ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन । आदि-गुरु और । भउहा (अप) देखो भमुहा।
और दो ह्रस्व अक्षरों का भगण । न. नक्षत्र । | भंकार पुं[भकार] भनकार, अव्यक्त आवाज । °आर पुं [°कार] 'भ' अक्षर । भगण।। | भंग पुं [भङ्ग] भाँगना, खण्ड, प्रकार, भइ स्त्री [भृति] वेतन, तनखाह ।
विकल्प । विनाश । रचना-विशेष । पराजय । भइअ वि [भक्त] विभक्त । खण्डित । | पलायन । °रय न [°रत] मैथुन-विशेष । विकल्पित । न. भागाकार ।
भंग पुं [भृङ्ग] आर्य देश-विशेष । भइग वि [भृतिक] नौकर, चाकर।
भंग (अध) देखो भग्ग = भग्न । भइगि स्त्री [भगिनी] बहिन । वह पं| भंगरय पुं [भृङ्गरज, भृङ्गारक] भृङ्गराज । भइणिआ [°पति] बहनोई। °सुअ पुं|
न. भंगरा का फूल। भइणी ) ['सुत] भानजा।
भंगा स्त्री [भङ्गा] पाट, कुष्टा । वाद्य-विशेष । भइरव वि [भैरव] भयंकर । पं. नाट्यादि- | भंगि स्त्री [भङ्गि]प्रकार । बहाना । विच्छित्ति, प्रसिद्ध भयानक रस । महादेव । महादेव का विच्छेद । पुंस्त्री. देश-विशेष । एक अवतार । भैरव राग। नद-विशेष । भंगिअ न [भङ्गिक, भाङ्गिक] भंगा-मय, भइरवी स्त्री [भैरवी] पार्वती ।
पाट का बना हुआ कपड़ा । शास्त्र-विशेष । भइरहि पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्ती का एक | भंगिल्ल वि [भङ्गवत्] प्रकारवाला, भेदपुत्र, भगीरथ ।
पतित । भइल वि [दे] भया, जात ।
भंगी स्त्री [भङ्गी| देखो भंगि। भउम्हा (शौ) देखो भमुहा।
भंगी स्त्री [भृङ्गी] भांग, विजया । अतिविषा,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भंगुर-भग अतिस का गाछ ।
| °वडेंसय न [वतंसक] मथुरा नगरी का भंगुर वि [भङ्गर] विनश्वर । कुटिल, वक्र । । उद्यान । °वण न [°वन] मथुरा का वन । भंछा देखो भत्था।
मथुरा का चैत्य । भंज सक [भन् ] भांगना, तोड़ना । भगाना। भंडु न [दे] मुण्डन । पराजय करना । विनाश करना ।
भंत वि [भ्रान्त] घुमा हुआ। भ्रान्ति-युक्त, भंजअ) वि [भञ्जक] भाँगनेवाला । भंग
| भूला हुआ। अपेत, अनवस्थित । पु. प्रथम भंजग ) करने वाला । पं. वृक्ष ।
नरक का तीसरा नरकेन्द्रक । भंजाविअ ) वि [भञ्जित] तुड़वाया हुआ। भंत वि [भगवत् भगवान्, ऐश्वर्य शाली । भंजिअ भगाया हुआ । आक्रान्त । भंत वि [भदन्त] कल्याण-कारक । पूज्य । भंड सक [भाण्डय् ] भंडारा करना । इकट्ठा | भंत वि [भजत्] सेवा करता। करना।
भंत वि [भात्, भ्राजत्] चमकता । भंड सक [भण्ड् ] भाँड़ना, गाली देना।
भंत वि [भवान्त] मुक्ति का कारण । भंड पुं [भण्ड] विट, भाँड़, बहुरूपिया, | भंत वि [भयान्त] भय-नाशक । निर्लज्ज ।
भंति स्त्री [भ्रान्ति] भ्रम, मिथ्या-ज्ञान । भंड न [दे] बैंगन । पुं. स्तुति-पाठक । मित्र । भंति (अप) स्त्री [भक्ति] भक्ति , प्रकार । दौहित्र । पुन. मण्डन, आभूषण । वि. छिन्न, | भंभल वि [दे] अप्रिय । मूर्ख, पागल । मूर्धा, सिर-कटा । न. क्षुर, छुरा । छुरे से भभसार पुं [भम्भसार] भगवान् महावीर के मुण्डन ।
परम भक्त मगधाधिपति श्रेणिक बिम्बसार । भंड । पुन [भाण्ड] बरतन, पात्र । बेचने
भंभा स्त्री |दे. भम्भा] वाद्य-विशेष, भेरी । भंडग की वस्तु । गृह, स्थान । घर का 'भाँ' 'भाँ' की आवाज । उपकरण ।
भंभी स्त्री [दे] असती, नीति-विशेष । भंडण न [दे. भण्डन] करह, गुस्सा।
भंस अक [भ्रंश ] नीचे गिरना । नष्ट होना। भंडवेआलिअ वि [भाण्डवैचारिक] करियाना
स्खलित होना। बेचनेवाला।
भंसग वि [भ्रंशक] विनाशक । भंडा स्त्री [दे] सम्बोधन-सूचक शब्द ।
भक्ख सक [भक्षय ] भक्षण करना, खाना । भंडाआर । ' [भाण्डागार] भंडार, कोठा, | भक्ख पुं [भक्ष्] भक्षण, भोजन । भंडागार ) बखार ।
भक्ख पुन [भक्ष्य] खण्ड-खाद्य, मिठाई । भंडागारि पुंस्त्री [भाण्डागारिन्] भंडारी, | भक्खग वि [भक्षक] भक्षण करनेवाला । भंडार का अध्यक्ष ।
भक्खर पुं [भास्कर सूर्य । अग्नि । अर्कभंडार देखो भंडागार ।
वृक्ष। भंडार पुं [भाण्डकार] बर्तन बनानेवाला । । भक्खराभ न. [भास्कराभ] गौतम गोत्र की भंडिअ पुं [भाण्डिक] भंडार का अध्यक्ष ।। शाखा । पुंस्त्री. उसमें उत्पन्न । भंडिआ स्त्री [भाण्डिका] स्थाली, थलिया। भग पुन. ऐश्वयं । रूप। श्री। यश । धर्म । भंडिआ। स्त्री [दे] गाड़ी। शिरीष वृक्ष । प्रयत्न । सूर्य । माहात्म्य । वैराग्य । मुक्ति। भंडी जंगल । असती, कुलटा । वीर्य । इच्छा । ज्ञान । पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र । भंडीर पुं [भण्डीर] शिरीष वृक्ष । °वडिंसय, स्त्री. योनि । पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठाता
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भगंदर-भत्ति संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६२१ देव, ज्योतिष्क देव-विशेष । गुदा और अण्ड- । भट्टिणी स्त्री [भट्टिनी] नाटक की भाषा में कोश के बीच का स्थान । °दत्त पुं. नप- | वह रानी जिसका अभिषेक न किया गया हो। विशेष । °व देखो °वंत । °वई स्त्री [°वती] | भटु (शौ) देखो भट्टारय। ऐश्वर्यादि-सम्पन्ना, पूज्या । पाँचवाँ जैन अंग- | भट्ट वि [भ्रष्ट] च्युत, स्खलित । नष्ट । अन्य भगवती-सूत्र । °वंत वि ["वत्] | भटू पुंन [भ्राष्ट्र ] भुनने का बर्तन । ऐश्वर्यादिगुण-सम्पन्न । पुं. परमेश्वर ।
भट्ठि । स्त्री [दे] धूलि-रहित मार्ग । भगंदर पु [भगन्दर] गुदा के भीतर का | भट्टी फोड़ा।
भड पुं [भट] योद्धा। वीर। म्लेच्छों की भगंदल देखो भगन्दर ।
जाति । वर्ण-संकर जाति । राक्षस । °खइआ भगिणी देखो बहिणी।
स्त्री [°खादिता] दीक्षा-विशेष । भगिरहि ) पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्ती
भडक्क पुंस्त्री [दे] आडम्बर, ठाठमाठ । भगीरहि ) का एक पुत्र, भगीरथ ।
भडग पुं [भटक] अनार्य देश-विशेष । उस देश भग्ग वि [भग्न] खण्डित । पराजित । भागा की म्लेच्छ जाति । देखो भड। हुआ। °इ पुं[°जित्] क्षत्रिय परिव्राजक-विशेष । भडारय (अप) देखो भट्टारय । भग्ग वि [दे] लिप्त, पोता हुआ ।
भडित्त न [भटित्र] शूल-पक्व मांसादि । भग्ग न [भाग्य] नसीब ।
भडिल वि [दे] सम्बोधन-सूचक शब्द । भग्गव पु [भार्गव] शुक्र ग्रह । ऋषि-विशेष । भण सक [भण्] कहना, बोलना, प्रतिपादन भग्गवेस न [भार्गवेश] गोत्र विशेष ।
करना। भच्च पुं [दे] भानजा।
भणग वि [भण, °क] प्रतिपादन करनेवाला । भच्छिअ वि [भत्सित] तिरस्कृत ।
भणिइ स्त्री [भणिति] उक्ति, वचन । भज देखो भय = भज् ।
भण्ण सक [भण्] कहना, बोलना। भज्ज सक [भ्रस्ज्] पकाना, भुनना ।
भत्त पुंन [भक्त] आहार । अन्न । ओदन । भज्ज देखो भंज।
सात दिनों का उपवास । वि. भक्ति-युक्त । भज्ज देखो भय = भज् ।
°कहा स्त्री [कथा] आहार-कथा । °च्छंद भज्जण न [भ्रज्जन] भुनन । भुनने का पात्र ।
'छंद पुं [च्छन्द] भोजन की अरुचि , भज्जा स्त्री [भार्या] पत्नी ।
°पच्चक्खाण न [प्रत्याख्यान] आहारभज्जि । स्त्री[भजिका भाजी, पत्राकार
त्याग । मरण का एक प्रकार। परिण्णा भन्जिआ । तरकारी । मार्ग-भोजन ।
स्त्री [°परिज्ञा] ग्रन्थ-विशेष । °पाणय न भजिम वि [भ्रजिम] भुनने-योग्य ।
[पानक] खान-पान । °वेला स्त्री. भोजनभट्ट पुं. एक मनुष्य-जाति । भाट । वेदाभिज्ञ
समय। पण्डित, ब्राह्मण, मालिकपन ।
भत्त वि [भूत] उत्पन्न, संजात । भट्टारग । पुं [भट्टारक] पूजनीय । नाटक भत्ति देखो भत्तु । भट्टारय , की भाषा में राजा । भत्ति स्त्री [भक्ति] सेवा, विनय, आदर । भट्टि देखो भत्तु = भर्तृ ।
रचना । एकाग्र-वृत्ति-विशेष । कल्पना, उपभट्टिअ पं [दे] विष्णु, श्रीकृष्ण ।
चार । प्रकार । विच्छित्ति-विशेष । अनुराग । भट्टिणी स्त्री [भर्ती] मालिकिन ।
विभाग । अवयव । श्रद्धा । मंत, °वंत वि
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६२२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भत्तिज्ज-भमर [°मत्] भक्त।
भद्ददारु न [भद्रदारु] देवदारु, उसकी लकड़ी। भत्तिज पुं [भ्रातृव्य] भतीजा ।
भद्दव । पुं [भाद्रपद] भादों का महीना । भत्ती । पुं[भर्तृ] स्वामी, पति । अधिपति,
भद्दवय । भत्तु ) अध्यक्ष । राजा । वि. पोषक । धारण भद्दसिरी स्त्री [दे] श्रीखण्ड, चन्दन । करनेवाला ।
भद्दा स्त्री [भद्रा] रावण की पत्नी । प्रथम भत्तोस न [ भक्तोष ] भुना हुआ अन्न । बलदेव की माता । तीसरे चक्रवर्ती की जननी। सुखादिका, खाद्य-विशेष ।
द्वितीय चक्रवर्ती की स्त्री। मेरु के पूर्व रुचक भत्थ पुंस्त्री [दे] भाथा, तूणीर ।
पर्वत की एक दिक्कुमारी देवी। एक प्रतिमा भत्था स्त्री [भस्त्रा] चमड़े की धौंकनी, भाथी।
या व्रत । श्रेणिक की पत्नी । द्वितीया, सप्तमी भत्थिअ वि [भत्सित] तिरस्कृत ।
और द्वादशी तिथि । छन्द-विशेष । कामदेव भत्थी स्त्री [भस्त्री] चमड़े की धौंकनी । धावक की भार्या । चुलनीपिता नामक उपाभद सक [भद्] सुख या कल्याण करना। सक की माता । एक सार्थवाहक स्त्री । गोशाभदंत वि [भदन्त] कल्याण-कारक। सुख- |
लक की माता । अहिंसा, दया । एक वापी । कारक । पूज्य ।
एक नगरी । अनेक स्त्रियों का नाम । भद्द न [दे] आमलक ।
भद्दाकरि वि [दे] अति लम्बा । भद्द । न [भद्र] मंगल, कल्याण । सुवर्ण । | भद्दिा स्त्री [भद्रिका] शोभना। सुन्दर भद्दअमुस्तक, नागरमोथा। दो उपवास । (स्त्री) । नगरी-विशेष । देव-विमान । शरासन | भद्रासन । वि. साधु, भद्दिज्जिया स्त्री [भद्रीया, भद्रीयिका] एक सरल, सज्जन । उत्तम । सुख-जनक, कल्याण- जैन मुनि-शाखा । कारक । पुं. हाथी की उत्तम जाति । भारत- भद्दिलपुर न[भद्दिलपुर] एक प्राचीन नगर । वर्ष का तीसरा भावी बलदेव । चौबीसवाँ | भदुत्तरवर्डिसग न [भद्रोत्तरावतंसक] एक भावी जिनदेव । अंगविद्या का जानकार देव-विमान । द्वितीय रुद्र पुरुष । द्वितीया, सप्तमी और भद्दुत्तर , स्त्री [भद्रोत्तरा] प्रतिमाद्वादशी तिथि । छन्द-विशेष । एक जैन भद्दोत्तर° विशेष, प्रतिज्ञा का एक भेद, आचार्य । 'गुत्त पुं [°गुप्त] एक जैनाचार्य । | भद्दोत्तरा , एक तरह का व्रत । °गुत्तिय न [°गुप्तिक] जैन-मुनि-कुल। भद्र देखो भद्द। °जस पुं[यशस्] भगवान् पार्श्वनाथ का | भप्प देखो भस्स = भस्मन् । गणधर । एक जैन मुनि । °जसिय न | भम सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना । ['यशस्क] जैन मुनि-कुल। नंदि पुं भम पुं [भ्रम] भ्रमण । मोह, मिथ्या-ज्ञान । [°नन्दिन्] राज-कुमार । बाहु पुं. ग्रन्थकार भमग न [भ्रमक] लगातार एकतीस दिनो का जैनाचार्य । °मुत्था स्त्री [°मुस्ता]भद्रमोथा । उपवास । वया स्त्री [°पदा] नक्षत्र-विशेष । °साल | भमड देखो भम = भ्रम् । न [°शाल] मेरु पर्वत का वन । °सेण पुं भममुह पुं [दे] आवर्त । [°सेन] धरणेन्द्र के पदाति-सैन्य का अधिपति भमया स्त्री [८] भौंह । देव । एक श्रेष्ठी। °स न [व] नगर- भमर पुं [भ्रमर] भौंरा । पु. छन्द-विशेष । विशेष । सण न [°ासन] सिंहासन । । विट, रंडीबाज । रुम पु [रुच] अनार्य
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भमरटेंटा - भरहेसर
देश-विशेष | वलि स्त्री. छन्द - विशेष । भ्रमर-पंक्ति ।
भमरटेंटा स्त्री [ दे] भ्रमर जैसी अक्षिगोलकवाली या अस्थिर आचरणवाली । शुष्क व्रण के दागवाली ।
भरिया स्त्री [भ्रमरिका ] जन्तु- विशेष । बर्रे । भमलिया स्त्री [भ्रमरीका, 'री] पित्त से भमली होनेवाला रोग |
भमाड
भमस पुं [दे] ईख की तरह का घास । [भ्रमय् ] घुमाना, फिराना | देखो भमाव } भम =
भ्रम् ।
भमाड पुं [ भ्रम] भ्रमण, घूमना, चक्कर | भमास [दे] देखो भमस ।
भमि स्त्री [भ्रमि] आवर्त्त । चित्त-भ्रम करने की शक्ति | रोग विशेष, चक्कर ।
भमुह
भमुहा
भम्म
न. [भ्रू] ।
स्त्री. भौं ।
देखो भम - भ्रम् ।
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भम्मड
भम्मर (अप) देखो भमर ।
भय देखो भद ।
भय न डर, त्रास । 'अर वि [° कर ] भयजनक | 'जणणी स्त्री ['जननी] त्रास उत्पन्न करनेवाली । विद्या- विशेष | वाह पुं. राक्षस- वंश का एक लंका पति । भय देखो भव ।
भय देखो भग ।
भयंकर वि. भय जनक । हिंसा । भयंत देखो भंत, भदंत ।
भयंत ) वि [भयत्र ] भय से रक्षा करनेवाला | भयंतु [भयत्रातृ ] ।
}
भयंतु वि [भक्तृ] सेवक ।
भयक
भयग
} वृं [भृतक] नौकर । वि॰ पोषित ।
६२३
भयण न [भजन ] सेवा । विकल्प | विभाग । भयण देखो भवण ।
भयप्पइ
भयप्फइ
भयवग्गाम पुं [दे] मोढेरक गाँव । भयाणय वि [ भयानक ] भय-जनक | भयालि पुं. भारतवर्ष के भावी अठारहवें जिनदेव का पूर्व भवीय नाम ।
भयालु वि [भीरु ] भीरु ।
देखो बहस्सइ ।
}
भय अक [ भज् ] सेवा करना । विकल्प से भरणी स्त्री. नक्षत्र - विशेष । करना | विभाग करना । ग्रहण करना ।
भयावण) (अप) [ भयानक ] भय कारक । भयावह
}
भरसक [भृ] भरना । धारण करना । पोषण
करना ।
भरसक [स्मृ] स्मरण करना ।
भर पुंन. समूह | बोझ । गुरुतर कार्य । प्रचुरता । कर की प्रचुरता । पूर्णता, सम्पूर्णता ।
मध्य भाग । जमावट ।
भरअ देखो भरह |
भरड पुं [भरट] व्रती विशेष |
भरण न. पूरना । पोषण । वस्त्र में बेल-बूटा बनाने का शिल्प |
}
भरध ( (शौ) पुं [भरत] आदिनाथ का ज्येष्ठ भरह पुत्र प्रथम चक्रवर्ती राजा । राजा रामचन्द्र का छोटा भाई । नाट्य शास्त्र का कर्त्ता मुनि । भारतवर्ष । भारत वर्ष का प्रथम भावी चक्रवर्ती | शबर । तन्तुवाय । नृपविशेष, राजा दुष्यन्त का पुत्र । भरत के वंशज राजा । नट । देव- विशेष
।
कूट- विशेष, पर्वतविशेष का शिखर । खित्त न [ " क्षेत्र ] भारतवर्षं । 'वास न [ वर्ष ] भारतवर्ष, आर्यावर्त्त । सत्थन [ 'शास्त्र] भरतमुनि का नाट्यशास्त्र | हिव पुं [प] हिवर [धिपति] भारतवर्ष का राजा, चक्रवर्त्ती । भरत चक्रवर्त्ती ।
भर हेसरपुं [भरतेश्वर ] संपूर्ण भारतवर्ष का
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६२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भरिअ-भवीस राजा, चक्रवर्ती । चक्रवर्ती भरत । वि [°स्थकेवलिन्] जीवन्मुक्त । °धारणिज्ज भरिअ वि [भूत, भरित] पूर्ण, व्याप्त । न [°धारणीय] जीवन-पर्यन्त धारण करने भरिउल्लट्ट वि [दे. भृतोल्लुठित] भर कर | योग्य शरीर । °पच्चइय वि [ प्रत्ययिक] खाली किया हुआ ।
नरकादि-योनि-हेतुक । न. अवधिज्ञान का भरिम वि. भर कर बनाया हुआ ।
भेद । भूइ पु [भूति] संस्कृत का एक भरिया (अप) देखो भारिया।
कवि । 'सिद्धिय, सिद्धीय वि [°सिद्धिक भरिली स्त्री. चतुरिन्द्रिय जन्तु-विशेष । उसी जन्म में या बाद में मुक्ति-गामी । भरु पुं. अनार्य देश । अनार्य-जाति ।।
भिणंदि, हिनंदि वि [भिनन्दिन] भरुअच्छ पुं. [भृगुकच्छ] गुजरात का एक | संसार को पसंद करनेवाला । गाहि न प्रसिद्ध शहर ।
[पग्राहिन्] कर्म-विशेष । भरोच्छय न [दे] ताल का फल ।
भव देखो भव्व। भल देखो भर = स्मृ ।
भव पुं [भवत्] तुम, आप । भल सक [ भल ] सम्हालना ।
भवंत भलंत वि [दे] स्खलित होता, गिरता । भवं (अप) भम = भ्रम् । भलि पुंस्त्री [दे] कदाग्रह ।
भवण न [भवन] उत्पत्ति, जन्म । गृह, वसति । भल्ल पुं [भल्ल] रीछ । पुन. भाला। असुरकुमार आदि देवों का विमान । सत्ता। भल्ल वि [भद्र] भला, उत्तम, अच्छा । °त्तण, वइ पुं [ पति], वासि पु [°वासिन्] प्पण न [°त्व] भलाई।
एक देव-जाति । °वासिणी स्त्री [°वासिनी]
देवी-विशेष । भल्लाअय
हिव पुं [ °धिप] एक [भल्लात, 'क] भिलावा का |
देव-जाति । भल्लातक पेड़ । न. भिलावा का फल ।।
भवर देखो भमर। भल्लाय
भवाणी स्त्री [भवानी] पार्वती। °कंत पुं भल्लि स्त्री. देखो भल्ली।
[°कान्त] महादेव । भल्लिम पुंस्त्री [भद्रत्व] भलाई, भद्रता। भवारिस वि [भवादश] तुम्हारे जैसा । भल्ली स्त्री. भाला, अस्त्र-विशेष ।
भवि पुं [भविन्] भव्य जीव, मुक्ति-गामी । भल्लु पुंस्त्री [दे] भालू ।
भविअ वि [भव्य] सुन्दर । श्रेष्ठ, उत्तम । भल्लंकी स्त्री [दे] शृगाली ।
मुक्ति-योग्य, मुक्ति-गामी । भावो । भल्लोड पुन [दे] शर का अग्न भाग ।
| भविअ वि [भविक] मुक्ति-योग्य । संसारी । भव अक [ भू ] होना । सक. प्राप्त करना । | भविअ वि [°भविक] भव-सम्बन्धी । देखो भव्व।
भवित्ती स्त्री [भवित्री] होनेवाली। . भव पुं. संसार । संसार का कारण । उत्पत्ति । भवियव्वया स्त्री [भवितव्यता] नियति । नरकादि योनि, जन्म-स्थान । वि. भावी।। भविल वि. निष्ठुर । उत्पन्न । न. देव-विमान-विशेष । जिण | भविस (अप)। °त्त, यत्त पुं [°दत्त] एक वि [ जिन] रागादि जीतनेवाला । टिइ | कथा-नायक ।। स्त्री [स्थिति] देव आदि योनि में उत्पत्ति भविस्स पुं [भविष्य] भविष्य काल । वि. की काल-मर्यादा । संसार में अवस्थान । 'त्थ | भविष्य काल में होनेवाला । वि [°स्थ] संसार में स्थित । °त्थकेवलि | भवीस (अप) ऊपर देखो।
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भव्व-भागीरही संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६२५ भव्व वि [भव्य] सुन्दर । उचित । उत्तम । भाअ देखो भाव । वर्तमान । भावी । मुक्ति-योग्य । °सिद्धीय भाइ देखो भागि । देखो भव-सिद्धीय ।
भाइ पुं [भ्रातृ] भाई, बन्धु । 'बीया स्त्री भव्य पुं [दे] भागिनेय ।
[°द्वितीया] कार्तिक शुक्ल की भैयादूज । भस सक [भष् ] भूकना । श्वान का बोलना। °सुअ पुं[सुत] भतीजा। देखो भाउ । भसग पं [भसक] एक राज-कुमार श्रीकृष्ण भाइअ वि [भाजित] विभक्त किया हुआ,
के बड़े भाई जरत्कुमार का एक पौत्र । बाँटा हुआ । खण्डित । भसण देखो भिसण।
भाइअ वि [भीत] डरा हुआ । न. भय । भसण पंभिषण] कुत्ता । न. उसका शब्द । भाइणिज्ज भसणअ (अप) वि [भषित] भूकनेवाला। भाइणेअ पुंस्त्री [भागिनेय] भानजा । भसम पुं [भस्मन्] । देखो भास = भस्मन् । भाइणेज्ज भसल देखो भमर।
भाइयव्य भा = भी का कृ.। भसुआ स्त्री [दे] सियारिन ।
भाइर वि [भीरु] डरपोक । भसुम देखो भसम।
भाइल्ल पुंदे] किसान ।। भसेल्ल पुन [दे] धान्य आदि का तीक्ष्ण अग्र |
भाइहंड न [दे. भ्रातृभाण्ड] भाई, बहिन भाग ।
आदि स्वजन। भसोल न [दे. भसोल] एक नाट्य-विधि ।
भाईरही स्त्री [भागीरथी] गंगा नदी । भस्थ (मा) देखो भट्ट ।
भाउ पुं [भ्रातृ] भाई, बन्धु । जाया, भस्थालय (मा) देखो भट्टारय ।
ज्जाइया स्त्री ["जाया] भौजाई । भस्स देखो भंस = भ्रंश् ।
भाउअ देखो भाअ - (दे)। भस्स पुं [भस्मन्] ग्रह-विशेष । राख । भाउअ न [दे] आषाढ़ मास में मनाया जाता भस्सिअ वि [भस्मित] भस्म किया हुआ। गौरी-पार्वती का एक उत्सव । भा अक. चमकना, दीपना, प्रकाशना । भाउज्जा स्त्री [दे] भाई की पत्नी । भा स्त्री. दीप्ति, कान्ति, तेज । °मंडल पुं भाउराअण पुं [भागुरायण] व्यक्ति-वाचक [°मण्डल] राजा जनक का पुत्र । °वलय न.
नाम । जिन-देव का एक महाप्रातिहार्य, पीठ पीछे
भाग पुं. अंश। अचिन्त्य शक्ति, प्रभाव, का दीप्ति-मण्डल ।
माहात्म्य । पूजा, भजन । भाग्य । प्रकार, भा । अक [भी] डरना ।
भंगी। अवकाश । °धेअ, धेज्ज, °हेअ भाअ )
देखो भाअहेअ । देखो भाअ = भाग । भाअ सक [भायय] डराना ।
| भागवय वि [भागवत] भगवान्-सम्बन्धी । भाअ देखो भाव = भावय ।
भगवान् का भक्त । न. एक ग्रन्थ । भाअ पुं [भाग] योग्य-स्थान । एक देश । भागि वि [भागिन्] भजनेवाला, सेवन करनेअंश, विभाग । भाग्य । °धेअ, हेअ पुन | वाला । भागीदार । [°धेय] नसीब । राज-देय । दायाद, भागी- भागिणेज्ज । देखो भाइणेज्ज। दार । देखो भाग।
भागिणेय । भाअ पुं[दे] ज्येष्ठ भगिनी का पति । | भागीरही देखो भाईरही।
७९
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६२६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भाज-भाव भाज अक [भ्राज] चमकना ।
वृक्ष की एक जाति। भाड पुन [दे] भट्ठी।
भायणिज देखो भाइणिज्ज। भाडय न [भाटक] किराया ।
भायर देखो भाउ । भाडिय वि भाटकित] भाड़े पर लिया। भायल पुं[दे] उत्तम जाति का घोड़ा। भाडिया । स्त्री [भाटिका, °टीभाड़ा।
भार पुं. बोझा, गुरुत्व । भारवाली वस्तु । भाडी । कम्म न [°कर्मन्] बैल, गाड़ी
काम सम्पादन करने का अधिकार । परिमाणआदि भाड़े पर देने का काम-धन्धा ।
विशेष । परिग्रह, धन-धान्य आदि का संग्रह । भाण देखो भण = भण् ।
ग्गसो अ [°ग्रशस्] भार-भार के परिभाण देखो भायण।
माण से। वह वि. वह वि. बोझा भाणिअ वि [भाणित] पढ़ाया हुआ, पाठित । ढोनेवाला। कहलाया हुआ।
भारई स्त्री [भारती] भाषा, वाणी, वाक्य, भाणु पुं [भानु] सूर्य । किरण । भगवान् । वचन । सरस्वती । देखो भारही।। धर्मनाथ का पिता, एक राजा । स्त्री. शक्र | भारदाय , न भारद्वाज गोतम गोत्र की की एक अग्र-महिषा। कण्ण पु । कण भारद्दाय ) एक शाखा । पुं. उसमें उत्पन्न । रावण का एक अनुज । °मई स्त्री [°मती] |
पक्षि-विशेष । मुनिविशेष । रावण की एक पत्नी। मालिणी |
भारय देखो भा मालिनी] विद्या-विशेष । °मित्त न | भारह न भारत भारतवर्ष । पाण्डव कौरवों [°मित्र] उज्जयिनी के राजा बलमित्र का |
का युद्ध । महाभारत । महाभारत ग्रन्थ । एक छोटा भाई । °वेग पुं. एक विद्याधर । सिरी
नाट्य-शास्त्र । वि. भारतवर्ष-सम्बन्धी । स्त्री [°श्री] राजा बलमित्र की बहिन ।
°खेत्त न [ क्षेत्र] भारतवर्ष । भाम देखो भमाड = भ्रमय ।।
भारहिय वि [भारतीय] भारत-सम्बन्धी । भामर न [भ्रामर] भ्रमरी का बनाया हुआ
भारही स्त्री [भारती] । देखो भारई। मधु । पुं. दोधक छन्द का एक भेद ।
भारिअ वि [भारिक]भारी, भारवाला, गुरु । भामरी स्त्री [भ्रामरी] वीणा-विशेष । प्रद- भारिअ वि [भारित] भारवाला, भारी । क्षिणा ।
जिसपर भार लादा गया हो वह । भामिअ वि [भ्रमित] घुमाया हुआ। भ्रान्त भारिआ देखो भन्जा। किया हुआ, भ्रान्तचित्त किया हुआ । भारिल्ल वि [भारवत्] भारी, बोझवाला । भामिणी स्त्री [भागिनी] भाग्यवाली। भारुड पुं [भारुण्ड]दो मुंह वाला पक्षी । भामिणी स्त्री [भामिनी] कोप-शीला स्त्री। भाल न. ललाट । महिला।
भालुंकी [दे] देखो भल्लंकी। भाय देखो भाउ।
भाल्ल पुंन [दे] काम-पीड़ा । भायंत भा का वकृ.।
| भाव सक [भावय्] वासित करना, गुणाधान भायण पुन [भाजन] पात्र। आधार । करना । चिन्तन करना । योग्य ।
भाव अक [भास्] दिखाना, लगना। पसन्द भायण न [भाजन] आकाश ।
होना, उचित मालूम होना। भायणंग पुं [भाजनाङ्ग] पात्र देनेवाले कल्प- | भाव पुं. पदार्थ, वस्तु । अभिप्राय, आशय ।
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भाव-भासिल्ल
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६२७
चित्त-विकार, मानस - विकृति । जन्म । पर्याय । भाविर वि [भाविन्, भवितृ ] अवश्यंभावी । धर्म, वस्तु का परिणाम । धात्वर्थ-युक्त पदार्थ | भाविल्ल वि [भाववत् ] भाव-युक्त ।
भाविस्स देखो भविस्स ।
विवक्षित क्रिया का अनुभव करनेवाली वस्तु, पारमार्थिक पदार्थ । परमार्थ । स्वभाव, स्वरूप | सत्ता । ज्ञान, उपयोग । चेष्टा । क्रिया, धात्वर्थ । विधि, कर्तव्योपदेश । मन का परिणाम | अन्तरंग बहुमान, प्रेम । भावना, चिन्तन । नाटक की भाषा में विविध पदार्थों का चिन्तक पण्डित | आत्मा । अवस्था । केउ पुं [° केतु] ज्योतिष्क देव- विशेष, महाग्रहविशेष | "त्थ पुं [°ार्थ ] तात्पर्य, रहस्य | 'न्न, 'न्नुय वि ['ज्ञ ] अभिप्राय को जाननेवाला | पाण पुं [प्राण] ज्ञान आदि आत्मा का अन्तरंग गुण | संजय पुं ['संयत ] । 'साहु [साधु ] सच्चा साधु | सव पुं [व] वह आत्म-परिणाम, जिससे कर्म का आगमन हो ।
भाव पुं. महान् वादी, समर्थ विद्वान् । भावअवि [भावक ] देखो भावग । भावइया स्त्री [दे] धार्मिक- गृहिणी ।
भावग वि [भावक] वासक पदार्थ, गुणाधायक वस्तु होनेवाला | देखो भावअ ।
भावड पुं [भावक ] एक जैन गृहस्थ । भावण पुं [ भावन] एक वणिक् । नीचे देखो । भावणा स्त्री [ भावना] वासना, गुणाधान, संस्कार करण | अनुप्रेक्षा, चिन्तन । पर्यालोचन ।
भावि वि [ भाविन्] भविष्य में होनेवाला । भावि वि [दे] गृहीत, उपात्त । भाविअ न [भाविक ] एक देव- विमान | भाविअवि [भावित ] वासित । भाव युक्त । निर्दोष । पवि [Tत्मन्] वासित अन्त:करणवाला । पुं. अहोरात्र का तेरहवाँ मुहूर्त |
स्त्री [त्मा] भगवान् धर्मनाथ की मुख्य शिष्या ।
भाविदिअ न [भावेन्द्रिय] उपयोग, ज्ञान ।
भावुक वि [ दे] वयस्य ।
भावुग वि [ भावुक ] अन्य के संसर्ग की भावुय जिस पर असर हो वह वस्तु । भास सक [भाष्] कहना, बोलना । भास अक [भास्] शोभना । लगना, मालूम होना । प्रकाशना, चमकना । भास सक [ भीषय् ] डराना । भास पुं पक्षि-विशेष । दीप्ति ।
भास पुं [भस्मन्] ग्रह - विशेष, विशेष | भस्म । रासि पुं
विशेष |
भास न [ भाष्य ] पद्य - बद्ध टीका ।
भास देखो भासा । पणु वि ['ज्ञ], 'व वि [व] भाषा के गुण-दोष का जानकार |
भासग वि [ भाषक ] प्रकाशक, वक्ता, प्रति
पादक ।
भासण न [भाषण ] कथन, प्रतिपादन | भासय देखो भासग ।
ज्योतिष्क देव[राशि ] ग्रह
भासय वि[भासक ] प्रकाशक । भासल वि [दे] दीप्त, प्रज्वलित ।
भासा स्त्री [भाषा ] बोली | वाक्य, वाणी, वचन | जड्डु वि ['जड ] मूक । पज्जत्ति स्त्री ['पर्याप्ति ] पुद्गलों को भाषा के रूप में परिणत करने की शक्ति | विजय पुं [ विचय] भाषा का निर्णय | दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । 'विजय पुं. दृष्टिवाद | समिअवि [ समित] वाणी का संयमी । समिइ स्त्री [ समिति] वाणी का संयम | देखो भास ।
भासा स्त्री [भास] प्रकाश, आलोक, दीप्ति | भासिअ वि [भाषिन्, 'क] वक्ता । भासि वि [] दत्त, अर्पित । भासिल्ल वि [ भाषावत् ] भाषा-युक्त, वाणी
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६२८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भासीकय भिच्छंड
युक्त
भिंद सक [भिद्] तोड़ना । विभाग करना । भासीक वि[भस्मीकृत ] जलाकर राख किया भिदिवाल (शो) देखो भिडिवाल । हुआ । भिंभल देखो भिब्भल ।
भासुंड अक [दे] बाहर निकलना ।
भिभसार पुं [भिम्भसार ] देखो भंभसार । भिंभा स्त्री [भिम्भा ] देखो भंभा । भिभिसार पुं [भिम्भिसार] देखो भंभसार । भभी स्त्री [भिम्भी] वाद्य -विशेष, ढक्का । भिक्ख as [भिक्षू ] भीख माँगना । भिक्खन [भैक्ष] भीख । भिक्षा - पमूह | 'जीवि वि [ 'जीविक] भिखमंगा । भिक्ख देखो भिक्खा |
भासुर वि. भास्वर, चमकता । घोर । भीषण | एक देव- विमान | छन्द - विशेष |
भि देखो भ ।
भिअप्पइ भिअप्फइ भिअस्सइ
}
देखो बहस्सइ ।
भिइ देखो भइ = भृति | भिउ पुं [भृगु] ऋषि-विशेष | पर्वत - सानु | शुक्र ग्रह | महादेव | जमदग्नि । प्रदेश | भृगु का वंशज । रेखा, राजि । कच्छ न. भड़ौच नगर ।
ऊंचा
भिउड न [दे] शरीर का एक अंग ।
भिउडि स्त्री [भृकुटि] भौं-भंग । पुं. भिउडी भगवान् नेमिनाथ का शासनदेव | भिउर वि [भिदुर] विनश्वर । भिउव्व पुं [ भार्गव ] भृगु मुनि का वंशज, परि
व्राजक - विशेष |
भिंग व [] काला । नील, हरा । स्वीकृत | भिंग पुं [भृङ्ग] भ्रमर | पक्षि-विशेष । कीटविशेष | अंगार, कोयला । कल्पवृक्ष की एक जाति । छन्द- विशेष । उपपति । भाँगरा का पेड़ । झारी । °णिभा स्त्री [°निभा] ● पभा स्त्री [ 'प्रभा ] पुष्करिणी-विशेष | भिंगा स्त्री [भृङ्गा] एक पुष्करिणी ।
भिंगारी स्त्री [ दे. भृङ्गारी ] कीट - विशेष,
चिरी, झिल्ली । मशक, डाँस । भिजा स्त्री [] मालिश ।
भिटिया स्त्री [दे. वृन्ताकी ] भंग का गाछ । भिडिमाल
पुं
[ भिन्दिपाल ]
शस्त्र
भिडवाल
विशेष |
भिक्खा स्त्री [भिक्षा ] भीख, याचना । यर वि [चर] भिक्षुक । 'यरिया स्त्री ['चर्या ] भिक्षा के लिए पर्यटन । 'लाभिय पं [लाभिक] भिक्षुक - विशेष ।
भिखारी ।
भि देखो भिउ ।
भिंगार पुं [भृङ्गार] झारी । पक्षि- विशेष । भिगुडि देखो भिउडि |
स्वर्ण मय । जल-पात्र |
भिक्खाग
भिक्खाय भिक्खु पुंस्त्री [भिक्षु ] भिखारी | मुनि, संन्यासी, ऋषि । बौद्ध संन्यासी । स्त्री. 'णी ।
०
● पडिमा स्त्री [ प्रतिमा] साधु का अभिग्रहविशेष | व्रत- विशेष | 'पडिया स्त्री [प्रतिज्ञा ] साधु का उद्देश्य, साधु के निमित्त ।
भिक्खुंड देखो भिच्छंड | भिक्खोंड देखो भिच्छंड भिखारि
(अप)
वि
वि [ भिक्षाक] भिक्षा से शरीरनिर्वाह करनेवाला ।
[[भिक्षाकारिन्]
भिच्च पुं [ भृत्य ] नौकर | वि. अच्छी तरह पोषण करनेवाला । वि भरणीय, पोषणीय । 'भाव पुं. नौकरी ।
भिच्छ देखो भिक्ख ।
भिच्छा देखो भिक्खा ।
भिच्छंड वि [दे. भिक्षोण्ड ] भिखारी । पुं. बौद्ध साधु ।
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भिज्ज-भिसिणी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६२९ भिज्ज न [भेद्य] कर-विशेष, दण्ड-विशेष । भिब्भिस अक [भास् + यङ् = बाभास्य] भिज्जा देखो भिज्झा।
अत्यन्त दीपना। भिज्जिय देखो भिज्झिय ।
भिमोर पुं (दे. हिमोर] हिम का मध्य भाग । भिज्झा स्त्री [अभिध्या] लोभ ।
भियग देखो भयग। भिज्झिय वि [अभिध्यित] लोभ का विषय, | भिलंग पुं [दे] म्रक्षण । देखो भिलिंज । सुन्दर ।
भिलगा देखो भिलुगा। भिट्ट सक [दे] भेंटना ।
भिलिंग सक [दे] मालिश करना । भिट्टण । न [दे] भेंट, उपहार । भिलिंग । पु [दे] धान्य-विशेष, मसूर । भिट्ठा ) स्त्री.।
भिलिंगु ) भिड सक [दे] भिड़ना । मिलना, सटना। भिलिंज पुं [दे] आपाद-मस्तक-तैल-मर्दन । भिणासि पुं [दे] पक्षि-विशेष ।
भिलुंग पुं [दे. भिलुङ्क] हिंसक पक्षी। भिण्ण देखो भिन्न । मर? (अप) पुं. भिलुगा स्त्री [दे] फटी जमीन, भूमि की [°महाराष्ट्र] एक छन्द ।
फाट । भित्त देखो भिच्च ।
भिल्ल पुं. अनार्य देश या जाति । भित्तग । न [दे. भित्तक] खण्ड, टुकड़ा। भिल्लमाल पुं. क्षत्रिय-वंश । भित्तय । आधा हिस्सा।
भिल्लायई स्त्री [भल्लातको] भिलावाँ का भित्तर न दे] दरवाजा।
पेड़ । भित्ति स्त्री. भीत । “संध न[°सन्ध] भीत- भिल्लिअ स्त्री [भिलित]खण्डित, तोड़ा हुआ । दीवार का संधान ।
भिस देखो भास = भास् । भित्तिरूव वि [दे] टंक से छिन्न । भिस सक [प्लुष्] जलाना । भित्तिल न. एक देव-विमान ।
भिस सक [भायय] डराना । भित्त वि [भत्त] भेदन करनेवाला ।
भिस न [भृश] अत्यन्त, अतिशय । भित्तुं भिंद का हेकृ ।
भिस देखो बिस । °कंदय पुं [°कन्दक] एक भित्तूण भिंद का संकृ. ।
प्रकार की खाने की मिष्ट वस्तु । "मुणाली भिद देखो भिद।
स्त्री [ मृणाली] कमलिनी। भिन्न वि. विदारित, खण्डित । प्रस्फुटित । स्फो- भिसअ ' [भिषज्] वैद्य । भगवान् मल्लिनाथ टित । विलक्षण । परित्यक्त । न्यून । 'कहा | का प्रथम गणधर । स्त्री [°कथा] मैथुन-सम्बद्ध बात, रहस्या- | भिसंत न [दे] अनर्थ । लाप। °पडवाइय वि [°पिण्डपातिक] भिसग देखो भिसअ । स्फोटित अन्न आदि लेने की प्रतिज्ञावाला । | भिसण सक [दे] फेंकना, डालना । °मास पुं. पचीस दिन का महीना । मुहुत्त न भिसरा स्त्री [दे] मत्स्य पकड़ने का जाल । ["मुहूर्त] अन्तर्मुहूर्त ।
भिसाव सक [भायय] डराना। भिप्फ पुं [भीष्म] एक कुरुवंशीय क्षत्रिय, | भिसिआ । स्त्री [दे. बृषिका] आसनगांगेय, भीष्म पितामह। भयानक रस । वि. भिसिगा , विशेष, ऋषि का आसन । भय-जनक ।
भिसिण देखो भिसण। भिब्भल वि [विह वल] व्याकुल । भिसिणी स्त्री [बिसिनी] कमलिनी।
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भी
।
६३०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष भिसी-भुअस्सइ भिसी स्त्री [बुषी] देखो भिसिआ। भुअ पुंस्त्री [भुज] हाथ । गणित-प्रसिद्ध रेखाभिसोल न [दे] नृत्य-विशेष ।
विशेष । परिसप्प पुंस्त्री [°परिसर्प] हाथ भिह । अक [भी] डरना।
से चलनेवाला प्राणी, सर्पजाति । °मूल न.
काँख । 'मोयग पुं [°मोचक] रत्न की एक भी स्त्री. भय । वि. डरनेवाला ।
जाति । सप्प पुं [°सपं] देखो °परिसप्प । भीअ वि [भीत] डरा हुआ। भीय वि | °ल वि [°वत्] बलवान् हाथवाला । [°भीत] अत्यन्त डरा हुआ।
भुअअ देखो भुअग। भोइ स्त्री [भीति]भय ।
भुअइंद पुं [भुजगेन्द्र श्रेष्ठ सर्प । शेषनाग, भीड [दे] देखो भिड।
वासुकि । °वुरेस पुं[°पुरेश] श्रीकृष्ण। भीतर [दे] देखो भित्तर।
भुअईसर । पुं [भुजगेश्वर] ऊपर देखो। भीम वि [ भीम ] भयंकर । पुं. पाण्डव
भुअएसर । "णअरणाह पुं [°नगरनाथ]
श्रीकृष्ण । भीमसेन । राक्षस-निकाय का दक्षिण दिशा का इन्द्र । भारतवर्ष का भावी सातवाँ
भुअंग पुं [भुजंग] साँप । विट, वेश्या-गामी । प्रतिवासुदेव । लंकापति, राक्षसवंश का
उपपति । जुआड़ी। चोर । बदमाश, ठग ।
कित्ति स्त्री [°कृत्ति] कंचुक । °पआत राजा । सगर चक्रवर्ती का पुत्र । दमयंती का पिता। एक कुल-पुत्र। गुजरात का
(अप)। °प्पजाय न [प्रयात] सर्प-गति । चालुक्य-वंशीय राजा भीमदेव । हस्तिनापुर
छन्द-विशेष । °राअ पुं [°राज], "वइ पुं नगर का कूटग्राह राजपुरुष । °एव पुं [ देव]
[°पति] शेषनाग । 'पिआअ (अप) देखो गुजरात का चालुक्य राजा। कुमार पुं.
°प्पजाय। एक राज-पुत्र । 'प्पभ पुं [प्रभ] राक्षस-वंश |
भुअंगम पुं [भुजंगम] सर्प । एक चोर । का राजा, लंका-पति । °रह पुं [प्रथ] | भुअंगिणी । स्त्री [भुजङ्गी] विद्या-विशेष । राजा, दमयंती का पिता । °सेण पुं [°सेन] | भुअंगी , नागिन । पाण्डव भीम । कुलकर पुरुष । °ावलि पुं. | भुअग पुं [भुजग] साँप । नाग-कुमार देवअंग-विद्या का जानकार पहला रुद्र पुरुष । जाति । वानव्यंतर, महोरग-जाति । रंडीबाज । °ासुर न. शास्त्र-विशेष ।
वि. विलासी। परिरिंगिअ न [°परिरिङ्गत] भीमासुरक्क न [भीमासुरोक्त, "रीय] एक छन्द-विशेष । °वई स्त्री [°वती] इन्द्राणी, जैनेतर प्राचीन शास्त्र ।
अतिकाय नामक महोरगेन्द्र की अग्र-महिषी । भीरु वि [भीरु] डरपोक ।
°वर पुं. द्वीप-विशेष । भीस सक [भीषय्] डराना ।
भुअग वि [भोजक] पूजक, सेवा कारक । भीसण वि [भीषण] भयंकर ।
भुअगा स्त्री [भुजगा] एक इन्द्राणी, अतिभीसय देखो भेसग।
काय इन्द्र की अग्र-महिषी। भीसाव देखो भीस।
भुअगोसर देखो भुअईसर। भीह अक [भी] डरना ।
भुअण देखो भुवण । भुअ देखो भुंज ।
भुअप्पइ , भुअ न [दे] भूर्ज-पत्र । रुक्ख पुं [°वृक्ष] | भुअप्फइ देखो बहस्सइ । भूर्जपत्र का पेड़ । °वत्त न [°पत्र] भोजपत्र । । भुअस्सइ)
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भुमा ,
भुआ-भुश्का संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६३१ भुआ देखो भुअ = भुज ।
| हो । सेवित । अनुभूत । न. भक्षण, भोजन । भुइ स्त्री [भृति] पोषण । वेतन । मूल्य । विष-विशेष । भोगि वि [°भोगिन्] जिसने भुउडि देखो भिउडि ।
भोगों का सेवन किया हो । भुगल न [दे] वाद्य-विशेष ।
भुत्तव्व देखो भुंज का कृ.। भुज सक [भुज्] भोजन करना। पालन भुत्ति स्त्री [भुक्ति] भोजन । भोग । आजीविका
करना । भोग करना । अनुभव करना। के लिए दिया जाता गाँव, क्षेत्र आदि भुजग । वि [भोजक] भोजन करनेवाला । __ गिरास । °वाल पुं [पाल] गिरासदार । भुंजय ।
भुत्तु वि [भोक्तृ] भोगनेवाला । भुंजाव सक [भोजय ] भोजन कराना । भुत्तूण पुं [दे] भृत्य । पालन कराना । भोग कराना।
। भुत्थल पुं [दे] बिल्ली को फेंका जाता भोजन । भुंजावय वि [भोजक] भोजन करानेवाला । भुम देखो भम = भ्रम् । भुंड । पुंस्त्री [दे] सूकर, वराह । भुम° भुंडीर,
भुमया स्त्री [८] भौं । भुंभल न [दे] मद्य-पात्र । भुंहडि (अप) देखो भूमि ।
भुम्मि (अप) देखो भूमि। भुक्क अक [ बुक्क ] श्वान का भूकना । भुरुंडिआ स्त्री [दे] शृगाली। भुक्कण [दे] कुत्ता। मद्य आदि का मान। | भुरुंडिय । भुक्खा स्त्री [दे. बुभुक्षा] क्षुधा। °लु वि | भुरुकुंडिअ वि [दे] उद्धूलित, धूलि-लिप्त । [°वत् ] भूखा। भुक्खिअ वि [दे. बुभुक्षित] भूखा । भुल्ल अक [भ्रंश्] गिरना । भूलना । भुगुभुग अक [ भुगभुगाय ] 'भुग' 'भुग' | भुल्ल वि [भ्रष्ट] भूला हुआ । आवाज करना ।
भुल्लविअ वि [भ्रंशित] भ्रष्ट किया हुआ । भुग्ग वि [भुग्न] मोड़ा हुआ, वक्र, कुटिल । भुल्लुकी [दे] देखो भल्लुकी। वि. भग्न । दग्ध । भूना हुआ।
भव देखो हव - भू । भुज (अप) देखो भुज।
भुव देखो भुअ = भुज । भुजंग देखो भुअंग।
भुवइंद देखो भुअइद । भुजग देखो भुअग = भुजग ।
भुवण न [भुवन] जगत् । जीव, प्राणी । भुज्ज देखो भुज।
आकाश । °क्खोहणी स्त्री[क्षोभनी] विद्याभुज्ज पुं [भूर्ज] वृक्ष-विशेष । न. उस की विशेष । °गुरु पुं. जगत् का गुरु । "नाह पुं छाल । 'पत्त, °वत्त न [पत्र] वही अर्थ । [°नाथ] जगत् का त्राता। °पाल पुं. बारभुज्ज देखो भुंज।
हवीं शताब्दी का गोपगिरि का राजा । °बंधु भुज्ज वि [भूयस् ] प्रभूत ।
पुं [°बन्धु] जगत् का बन्धु । जिनदेव । 'सोह भुज्जिय वि [दे. भुग्न] भूना हुआ धान्य ।
पुं [°शोभ] सातवें बलदेव के दीक्षक जैन भुज्जो अक [ भूयस् ] फिर ।
मुनि । °ालंकार पुं. रावण का पट्ट-हस्ती । भुण्ण पुं [भ्रूण] स्त्री का गर्भ । शिशु । भुवणा स्त्री [भुवना] विद्या-विशेष । भुत्त वि [भुक्त] भक्षित । जिसने भोजन किया भुश्का (मा) देखो भुक्खा।
भुरुहंडिअ )
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६३२
भुस देखो बुस । भुसुंढि स्त्री [ दे. भुशुण्डि ] शस्त्र - विशेष । भू देखो भुव = भू ।
भू स्त्री [] भौं ।
भू स्त्री पृथिवी । पृथ्वीकाय, पार्थिव शरीरवाला जीव | 'आर पुं [दार] सूअर । 'कंत पुं [कान्त ] राजा । " गोल पं. गोलाकार भुमण्डल | चंद पुं [ चन्द्र ] पृथिवी का चन्द्र । 'चर वि. भूमि पर चलने-फिरनेवाला मनुष्य आदि । च्छत्त पुंन [च्छत्र ] वनस्पति- विशेष | 'तणग देखो 'यणय | धण पुं [धन] राजा । धर पुं नरपति । पर्वत । "नाह पुं ["नाथ ] राजा । मह पुं अहोरात्र का सत्ताईसवाँ मुहूर्त | पुंन [तृणक] वनस्पति- विशेष । वृक्ष। 'व पुं [° ]। वइ पुं राजा । 'वाल पुं [°पाल ] राजा । व्यक्तिवाचक नाम । 'वित्त पुं [वित्त ] राजा | वीढ न [पीठ ] भूमि तल | 'हर देखो 'धर ।
'यणय
रुह पुं.
[पति]
भू
भूअ गार ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[भूयस् ] । 'गार पुं [कार] कर्मबन्ध का एक प्रकार | देखो भूओ -
भूअ पुं [दे] यन्त्रवाह, यन्त्र-वाहक पुरुष । भूअवि [भूत] वृत्त, संजात, बना हुआ । अतीत । प्राप्त । समान, सदृश । वास्तविक, सत्य | विद्यमान । उपमा, औपम्य । तदर्थभाव । न प्रकृत्यर्थ । पुं. एक देव-जाति । पिशाच । समुद्र - विशेष । द्वीप - विशेष । पुंन. जन्तु, प्राणी । पृथिवी आदि पाँच महाभूत । पेड़, वनस्पति | इंद पुं [° इन्द्र ] भूत-देवों का इन्द्र | गह पुं [ग्रह ] भूत का आवेश |
गाम पुं [ग्राम ] जीव-समूह । त्थ वि [°र्थं] यथार्थं । °दिन्न पुं [°दिन्न] एक जैन आचार्य । एक चाण्डाल नायक । दिन्ना स्त्री. एक अन्तकृत् स्त्री । महर्षि स्थूलभद्र की
भुसभूओवधाइय
भगिनी । जैन साध्वी । 'मंडलपविभति न [ मण्डलप्रविभक्ति ] नाट्य-विधि का भेद । °लिवि स्त्री ['लिपि] लिपि - विशेष 1 'वडसा स्त्री [वतंसा ] एक इन्द्राणी । एक राजधानी । 'वाइ, वाइय, वादिय पुं [वादिन्, 'वादिक] एक देव-जाति । वि. भूत ग्रह का उपचार करनेवाला, मन्त्र - तन्त्रादि का जानकार | 'वाय पुं [ "वाद ] यथार्थवाद । दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । 'विज्जा, "वेज्जा स्त्री [विद्या ] आयुर्वेद की भूत-निग्रह - विद्यानंद पुं [[नन्द ] नागकुमार देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र | राजा कूणिक का पट्ट - हस्ती । दिप्पह पुं [ नन्दप्रभ ] भूतानन्द इन्द्र का एक उत्पात - पर्वत । वाय देखो 'वाय । भूअण्ण पुं [दे ] जोती हुई खल-भूमि में किया
जाता यज्ञ ।
भूआ स्त्री [भूता] महर्षि स्थूलभद्र की भगिनी, जैन साध्वी । इन्द्राणी की एक राजधानी | भूइ स्त्री [भूति] सम्पत्ति । भस्म, राख । महादेव के अंग की भस्म | वृद्धि । जीव रक्षा | कम्म पुंन [कर्मन् ] शरीर आदि की रक्षा के लिए किया जाता भस्मलेपन - सूत्रबंधनादि । पण्ण वि [ प्रज्ञ] जीव-रक्षा की बुद्धिवाला । ज्ञान की वृद्धिवाला, अनन्तज्ञानी । देखो 'भूई । भूइंद पुं [भूतेन्द्र ] भूतों का इन्द्र । भूइट्ठ वि [ भूयिष्ठ ] अत्यन्त | भूइट्ठा स्त्री [भूतेष्टा] चतुर्दशी तिथि । भूई देखो भूइ । 'कम्मिय वि [ " कर्मिक ] भूति कर्म करनेवाला ।
भूओ अ [ भूयस् ] पुन: । फिर-फिर । गार पुं [कार] थोड़ी कर्म-प्रकृति के बन्ध के बाद होनेवाला अधिक प्रकृति-बन्ध | भूओद पुं [भूतोद] समुद्र विशेष । भूओवघाइय वि [भूतोपघातिन्, 'क] जीवो की हिंसा करनेवाला ।
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भंहडी-भेरुंड
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष भंहडी (अप) देखो भूमि।
| भे अ [भोस्] आमन्त्रण-सूचक अव्यय । भूज देखो भुज्ज = भूर्ज।
भेअ पुंन [भेद] प्रकार । विशेष, पार्थक्य । एक भूण देखो भुण्ण ।
राजनीति, फूट । घाव, आघात । मण्डल का भूप देखो भू-व।
अवान्तराल, बीच का भाग। विच्छेद, भूमआ देखो भुमया।
विदारण, विनाश । °कर वि. विच्छेद-कर्ता । भूमणया स्त्री [दे] स्थगन, आच्छादन । °घाय पुं ["घात] मंडल के बीच में गमन । भूमि स्त्री. पृथिवी, क्षेत्र । स्थल, जमीन । °समावन्न वि [°समापन्न भेद-प्राप्त । काल । मंजिला । °कंप पुं [°कम्प]भू-कम्प । भेअग वि [भेदक] भेद-कारक । °गिह, °घर न [°गृह] भुइघरा, तहखाना । | भेअय देखो भेअग। °गोयरिय वि [°गोचरिक] स्थलचर, मनुष्य | भेइल्ल वि [भेदवत्] भेद वाला । आदि । °च्छत्त न [°च्छत्र] वनस्पति- भेउर देखो भिउर। विशेष । तल न. धरा-पृष्ठ । देव पुं. | भेंडी स्त्री [भिण्डा, °ण्डी] एक वनस्पति । ब्राह्मण । °फोड पुं [ °स्फोट ] वनस्पति- भेंभल देखो भिंभल। विशेष । °फोडी स्त्री [°स्फोटी] एक प्रकार | भेक देखो भेग। का जहरीला जन्तु । °भाग पुं. भूमि-प्रदेश । | भेक्खस पुं दे] राक्षस का प्रतिपक्षो । "रुह पुन, भूमिस्फोट, वनस्पति-विशेष । °वई | भेग पुं [भेक] मेंढवः । पं पति] । °वाल पुं [°पाल] राजा । | भेच्छ° देखो भिंद ।
सुअ पुं [°सुत] मंगल-ग्रह । हर देखो भेज्ज देखो भिज्ज । °घर । देखो भूमी।
भेज्ज भूमिआ स्त्री [भूमिका] मंजिल, माल । नाटक भेज्जलय वि दे] भीरु । में पात्र का वेशान्तर-ग्रहण ।
भेज्जल्ल , भूमिंद पुं [भूमीन्द्र] राजा।
भेड वि [दे. भेर भीरु । भूमिपिसाय पुं [ दे. भूमिपिशाच] ताड़ का | | भेडक देखो भेलय। पेड़ ।
भेत्तु वि [भेत्तृ] भेदन-कर्ता। भूमी देखो भूमि। [°तुडयकूड] न [°तुडग- भेत्तुआण । भिद का संकृ. । कूट] एक विद्याधर-नगर । भुयंग पुं | भेत्तूण [°भुजङ्ग] राजा।
भेद देखो भिंद। भूमीस पुं [भूमीश] राजा ।
भेद देखो भेअ। भूमीसर पुं [भूमीश्वर] राजा ।
भेदिअ वि [भेदित] भिन्न किया हुआ । भूयिट्ट देखो भूइट्ठ ।
भेरंड पुं [भेरण्ड] देश-विशेष । भूरि वि. प्रचुर, अत्यन्त । न. स्वर्ण । धन । | भेरव न [भैरव] भय । पुं. राक्षस आदि
"स्सव श्रवस]चन्द्रवंशीय राजा भरिश्रवा। भयंकर प्राणी । देखो भइरव । °णंद पुं भूस सक [ भूषय् ] शोभाना।
[°ानन्द] एक योगी। भूसण । न [भूषण] अलंकार, सजावट । । भेरि स्त्री. वाद्य-विशेष, ढक्का । भूसा । स्त्री [भूषा] ।
भेरी। भूहरी स्त्री [दे] तिलक-विशेष ।
भेरुंड पुं [भेरुण्ड] भारुड पक्षी ।
८०
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६३४
भेरुंड पुं [दे] चीता, श्वापद । निर्विष सर्प 1
भेरुताल पुं. वृक्ष- विशेष 1 भेल सक [भेलय् ] मिश्रण करना, भेलय पुं [दे. भेलक] बेड़ा, नौका । भेलविवि [भेलित ] मिश्रित, युक्त । भेली स्त्री [दे] आज्ञा । बेड़ा । दासी ।
भेस सक [भेषय् ] डराना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष भेरुंड - भोच्चा भोइअवि [भोजित ] जिसे भोजन कराया हो ।
भोइणी स्त्री [ दे. भोगिनी] ग्रामाध्यक्ष की पत्नी ।
}
मिलाना ।
भेसग पुं [ भीष्मक ] रुक्मिणी का पिता,
कौण्डिन्य- नगर का एक राजा ।
भेसज
न [भैषज ] ।
भेसज्ज [भैषज्य ] औषध, दवाई ।
भेसण देखो भीसण ।
नौका |
भो देखो भुंज ।
भो अ [भोस् ] आमन्त्रण - द्योतक अव्यय । भोस [भवत् ] तुम, आप । भोअ सक [ भोजय् ] खिलाना, भोजन
कराना ।
भोअ पुं [दे. भोग] भाड़ा, किराया । भो देखो भोग |
भोअ पुं [भोज], राय पुं [राज] उज्जयिनी नगरी का सुप्रसिद्ध राजा ।
भोअ वि [ भौत] भस्म से उपलिप्त । भोग व [भोजक] खानेवाला, पालक । भोअडा स्त्री [दे] कच्छ, लंगोट । भोअण न [भोजन ] भक्षण | भात आदि खाद्य वस्तु । सतरह दिनों का उपवास । उपभोग । 'रुक्ख पुं ['वृक्ष ] भोजन देनेवाली एक कल्पवृक्ष- जाति ।
भोअल (अप) पुं [दे. भोल] छन्द- विशेष ।
भोइया स्त्री [भोग्या ] भार्या । वेश्या । भोई
भोग-युक्त, भोगासक्त,
भोई देखों भो° = भवत् ।
भोंड देखो भुंड |
भोक्ख देखो भुंज |
।
।
सर्प की फणा ।
भोग पुंन स्पर्श, रस आदि विषय, उपभोग्य पदार्थ | विषय - सेवा । विषयाभिलाष | विषय - सुख स्थानीय । एक क्षत्रिय कुल गुरु वंश में उत्पन्न | शरीर । सर्प का शरीर | करा देखो 'भोगंकरा । कुल न पूज्य - स्थानीय कुल - विशेष । 'पुर न. नगर - विशेष | 'पुरिस पुं [पुरुष] भोगतत्पर पुरुष । 'भागि वि [भागिन् ] भोगशाली । 'भूम वि. भोग-भूमि में उत्पन्न | 'भूमि स्त्री. देवकुरु आदि अकर्म-भूमि । 'भाग पुंन [भोग] भोगार्ह शब्दादि विषय, मनोज्ञ शब्दादि । मालिणी स्त्री [मालिनी ] अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवो । राय पुं [राज ] भोग-कुल का राजा । 'वया स्त्री [' वतिका] लिपि - विशेष । 'वई स्त्री ['वती] अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । पक्ष की दूसरी, सातवीं और बारहवीं रात्रि तिथि | 'विस पुं [ विष] सर्प की एक जाति |
भइ वि [भोजिन्] भोजन करनेवाला । भोइ देखो भोगि ।
भोइ ) पुं [दे. भोगिन्, °क] ग्राम का | भोगि पुं [भोगिन्] सर्पं । पुंन. शरीर । वि
भोइअ मुखिया । महेश । f भोइअ वि [भोगिक ] विलासी । भोग- वंश में उत्पन्न ।
भोग-युक्त, भोगासक्त, विलासी । भोग्ग भुंज का कृ. । भोच्चा भुंज का संकृ. ।
मदन- व्यापार ।
भोजन । गुरु
अमात्य आदि
भोगंकरा स्त्री [भोगंकरा ] अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी ।
भोगा स्त्री [भोगा] देवी विशेष |
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भौच्छ-मइल
भोच्छ भंज का भवि. ।
भोज भुंज का कृ. ।
भोट्टंत पुं [भोटान्त ] भोटान देश । वहाँ का - रहनेवाला |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भोण देखो भोअण ।
भोत्त देखो भुत्त । भोत्त भुंज का कृ. ।
भोत्तव्व भुंज का कृ. ।
भोत्ता भू = भुव = भू का संकृ. । भवि [भोक्तृ] भोगनेवाला । भोत्तुं भुंज का कृ. । भुंज का संकृ. ।
भोत्तूण देखो भुत्तूण । भोदूण भू = भुव = भू का संकृ. 1 भोमवि [ भौम ] भूमि - सम्बन्धी । भूमि में उत्पन्न । भूमि का विकार । पुं. मंगल ग्रह | पुं. नगराकार विशिष्ट स्थान | नगर । भूमि
म
म पुं. ओष्ठ - स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष | म अ [मा] मत, नहीं ।
अस्त्र [ मृगया ] शिकार । इस्त्री [मृति] मौत |
मइ स्त्री [मति] बुद्धि । इन्द्रिय और मन से होनेवाला ज्ञान। °अन्नाण न [ अज्ञान] विपरीत या मिथ्यादर्शन-युक्त मति- ज्ञान । णाण, ण्णाण न [ज्ञान] ज्ञान-विशेष । 'नाणावरण न [ 'ज्ञानावरण] मति-ज्ञान का आवरक कर्म । 'नाणि वि ['ज्ञानिन् ] मति - ज्ञानवाला । पत्तिया स्त्री ['पात्रिका] एक जैन मुनि - शाखा | भंस पुं [भ्रंश ] बुद्धि-विनाश | 'म, मंत, 'वंत वि [ मत्] बुद्धिमान् ।
मइ° देखो मई = मृगी ।
मइअवि [मत्त ] मद-युक्त, उन्मत्त ।
६३५
कम्पादि से शुभाशुभ फल बतलानेवाला शास्त्र | अहोरात्र का सत्ताईसवां मुहूर्त्त । लियन [क] भूमि सम्बन्धी मृषावाद । भोमिज्ज देखो भोमेज्ज ।
भोमिर देखो भमिर ।
भोमेज्जवि [ भौमेय ] भूमि का विकार | भोमेयग पार्थिव । पुं. भवनपति देवजाति । भोरुड पुं [दे] भारुंड पक्षी । भोल सक [दे] ठगना ।
भोल वि [दे] भद्र, सरल चित्तवाला । भोलग पुं [भोलक] यक्ष- विशेष | भोलव सक [दे] ठगना । भोल्लय न [ दे] प्रबन्ध प्रवृत्त पाथेय । भोवाल (अप) देखो भू-वाल । भोहा (अप) देखो भू = भ्रू त्रि (अप) भंति
मइरा
मइरेय
• भ्रान्ति ।
मइअ देखो मा = मा मइअ वि [ दे. मतिक ] भत्सित । न बोये हुए बीजों के आच्छादन का काष्ठमय खेती का एक औजार । मइअ वि [य] तद्धितप्रत्यय, निवृत्त, बना हुआ । मइआ स्त्री [ मृगया ] शिकार ।
मइंद पुं [मैन्द] राम का एक सैनिक वानर । इंद पुं [ मृगेन्द्र ] सिंह । एक छन्द । मइज्ज देखो मईअ = मदीय । मइमोहणी स्त्री
I
1
मदिरा | स्त्री [मदिरा] । न [मैरेय] ।
मइल वि [मलिन] मैला, मल, अस्वच्छ । मइल पुं [दे] कलकल, कोलाहल । मइल वि[दे. मलिन] तेज-रहित, फीका । मइल सक [ मलिनय् ] मलिन बनाना ।
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[दे. मतिमोहनी ]
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मइल-मंखलि कलंकित करना।
| मउलि पुंस्त्री [मौलि] मुकुट । मस्तक । शिरोमइल अक [दे. मलिनाय] फीका लगना। वेष्टन, पगड़ी। चूड़ा, चोटी । संयत केश । पुं मइलपुत्ती स्त्री [दे] पुष्पवती, रजस्वला स्त्री। अशोक वृक्ष । स्त्री. भूमि । मइल्ल वि [मृत] मरा हुआ।
मउलिअ वि [मुकुलित] संकुचित । मुकुलामइहर पुं[दे] ग्राम-प्रधान । देखो मयहर।।
कार किया हुआ। एकत्र स्थित । कलिका मई स्त्री [दे] दारू ।
सहित । मई स्त्री [मृगी] हिरनी ।
मउवी देखो मउई। मई देखो मइ - मति ।
मऊर पुंस्त्री [मयूर] मोर पक्षी । °माल न. मईअ वि [मदीय] मेरा, अपना ।
एक नगर । मउ पुं [दे] पर्वत ।
मऊरा स्त्री [मयूरा] एक रानी, महापद्म चक्रमउ वि [°मृदु] कोमल, सुकुमार ।
वर्ती की माता । मउअ वि [दे] गरीब ।
मऊह पुं [मयूख] किरण । कान्ति, तेज । मउइअ वि [मदुकित] जो मृदु बना हो ।
शिखा । शोभा । राक्षस वंश एक राजा लंकामउई देखो मउ - मृदु ।
पति । मउंद पुं [मुकुन्द] विष्णु, श्रीकृष्ण । वाद्य
| मए सक [मदय्] उन्मत्त बनाना । विशेष ।
मएजारिस वि [मादृश] मेरे जैसा । मउक्क देखो माउक्क = मृदुत्व ।
| मं (अप) देखो म । °कार पुं. 'मा' अव्यय । मउड पुंन [मुकुट] शिरा-भूषण, किरीट ।।
मंकड देखो मक्कड। मउड पुं [दे] धम्मिल्ल, कबरी, जूट, जूड़ा।
मंकण पुं [मत्कुण] क्षुद्र कीट, खटमल । मउडि ।
मंकण पुंस्त्री [दे. मर्कट] वानर ।। मउण देखो मोण ।
मंकाइ पुं [मङ्काति] एक अन्तकृद् महर्षि । मउर पुन [मुकुर] फूल की कली, बौर ।
मंकार पुं [मकार] 'म' अक्षर । दर्पण । कुलाल-दण्ड । बकुल । मल्लिका, कोली मंकिअ न [मङ्कित] कूद कर जाना । या ग्रंथि पर्ण-वृक्ष, चोरक ।
मंकुण देखो मंकण = मत्कुण । हत्थि पुं मउर पुं [दे] वृक्ष-विशेष, अपामार्ग, | "हस्तिन] गण्डीपद प्राणि-विशेष । मउरद ) ओंगा, लटजीरा, चिरचिरा।।
मंकुस [दे] देखो मंगुस। मउल देखो मउड = मुकुट ।
मंख देखो मक्ख = म्रक्ष् । माउल पुंन [मुकुल] थोड़ी विकसित कली, | मंख पुं [दे] अण्ड, वृषण । कलिका, बौर । देह, आत्मा ।
मंख पुं [मङ्ख] एक भिक्षुक-जाति जो चित्रपट मउल अक [मुकुलय्] संकुचित होना। दिखाकर जीवन निर्वाह करता है । 'फलय न मउलाअ अक [मुकुलय] सकुचना । सक. , [फलक] मंख का तख्ता । निर्वाह हेतुक संकुचित करना।
चैत्य । मउलाव देखो मउला ।
मंखण न [म्रक्षण] मक्खन, मालिश । मउलावअ वि [मुकुलायक] संकुचित कर्ता । । मंखलि पुं [मङ्खलि] एक मंख-भिक्षु, गोशालक मउलि पुंस्त्री [दे] हृदय-रस का उच्छलन। का पिता । "पुत्त पुं [°पुत्र] गोशालक, मउलि पुं [मुकुलिन्] सर्प-विशेष ।
आजीवक मत का प्रवर्तक एक भिक्षु जो पहले
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मंग-मंड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६३७ भगवान् महावीर का शिष्य था। मंगल्ल वि [मङ्गल्य, माङ्गल्य] मंगलकारी। मंग सक [मङग ] जाना । साधना । जानना। मंगी स्त्री [ मङ्गी ] षडज ग्राम की एक मंग पुं [ मङ्ग] धर्म | रंग के काम में आता मूर्च्छना। एक द्रव्य ।
मंगु पुं [मङगु] जैन आचार्य आर्यमगु । मंगइय देखो मगइय ।
मंगुल न [दे] अनिष्ट । पाप । पुं. चोर । वि मंगरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष ।
असुन्दर । मंगल पुं [मङ्गल] अंगारक ग्रह । न. कल्याण, | मंगुस पुं [दे] नकुल, भुजपरिसर्प-विशेष । शुभ,क्षेम,श्रेय । विवाह सूत्र-बन्धन । विघ्न-क्षय। | मंच पुं [दे] बन्ध । विघ्नक्षय के लिए इष्टदेव-नमस्कार आदि शुभ | मंच पं[ मञ्च ] मचान, उच्चासन । गणितकार्य । विघ्न-क्षय का कारण । प्रशंसावाक्य ।। ___ शास्त्र का तीसरा योग, जिसमें चन्द्रादि इष्टार्थ-सिद्धि । आयंबिल तप । आठ दिनों का
मंचाकार से रहते हैं । °ाइमंच {[°ातिमञ्च उपवास । वि. इष्टार्थ-साधक । °ज्झय पुं
मचान के ऊपर का मंच । गणित-प्रसिद्ध एक ["ध्वज] मांगलिक ध्वज । "तूर न ["तूर्य] | योग जिसमें चन्द्र, सूर्य आदि नक्षत्र एक दूसरे मंगल-वाद्य । °दीव पुं [ °दीप ] मन्दिर में
के ऊपर रक्खे हुए मंचों के आकार से अवआरती के बाद किया जाता दीपक । पाढय |
स्थित होते हैं। पुं [ °पाठक ] मागध । पाढिया स्त्री |
मंची स्त्री [मञ्चा] खटिया, खाट । [°पाठिका] देवता के आगे सुबह और सन्ध्या
मंछुडु (अप) अ [मक्षु] शीघ्र । में बजाई जाती वीणा।
मंजर पुं [मार्जार] मंजार, बिल्ला, बिलाव । मंगल वि [दे] समान । न. अग्नि । डोरा
मंजरि स्त्री [मनरि] देखो मंजरी। बुनने का एक साधन । वन्दनमाला । मंजरिअ वि [मञ्जरित] मञ्जरी-युक्त । मंगलग पुन [मङ्गलक] स्वस्तिक आदि आठ
मंजरिआ । स्त्री [मञ्जरिका, °री] नवोत्पन्न मागलिक पदार्थ ।
मंजरी सुकुमार पल्लवाकार लता, बौर । मंगलसज्झ न [दे] वह खेत जिसमें बीज बोना
गुंडी स्त्री [गुण्डी] वल्ली-विशेष । बाकी हो।
मंजार देखो मंजर। मंगला स्त्री [मङ्गला] भगवान् श्रीसुमतिनाथ | मंजिआ स्त्री [दे] तुलसी । की माता ।
मंजिट्ट वि [माञ्जिष्ठ] मजीठ रंगवाला । मगलालया स्त्रा [मङ्गलालया। एक नगरा। मंजिट्ठा स्त्री [मञ्जिष्ठा] मजीठ, रंग-विशेष । मंगलावइ पुं [मङ्गलापातिन्] सौमनस पर्वत मंजीर न [मञ्जीर] नूपुर । छन्द-विशेष । का एक कूट।
मंजीर न [दे] साँकल, जंजोर, सिकड़ । मंगलावई स्त्री [मङ्गलावती] महाविदेह वर्ष मंजु वि [मञ्ज] सुन्दर । कोमल । इष्ट । का एक विजय, प्रान्त विशेष ।
मंजुआ स्त्री [दे] तुलसी। मंगलावत्त पुं [मङ्गलावर्त] महाविदेह वर्ष का मंजुल वि [मञ्जुल] रमणीय, मधुर । कोमल ।
एक विजय, प्रान्त-विशेष । देव-विशेष । न. मंजुसा । स्त्री [मञ्जूषा] विदेह वर्ष की एक एक देव-विमान । एक शिखर ।
मंजूसा ) नगरी । छोटी संदूक । मंगलिअ । वि [माङ्गलिक] मंगल-जनक । मंठ वि [दे] लुच्चा, बदमाश । पुं. बन्ध । मंगलीअ ) प्रशंसा-वाक्य बोलनेवाला। मंड सक [मण्ड] भूषित करना, सजाना ।
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६३८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मंड-मंत मंड सक [दे] आगे धरना। प्रारम्भ करना। मंडव पुं [मण्डप] विश्राम-स्थान । वल्ली मंड पुंन [मण्ड] रस ।
आदि से वेष्टित स्थान । स्नान आदि करने मंडअ देखो मंडव = मण्डप ।
! का गृह । मंडअ , पुं [मण्डक] खाद्य-विशेष, मांडा, मंडव न [माण्डव्य] एक गोत्र, उसमें उत्पन्न । मंडग । एक प्रकार की रोटी ।
मंडविआ स्त्री [मण्डपिका] छोटा मण्डप । मंडग वि [मण्डक] शोभा बढ़ानेवाला । मंडव्वायण न [माण्डव्यायन] गोत्र-विशेष । मंडण न [मण्डन] भूषण । वि. शोभा बढ़ाने- मंडावण न [मण्डन] विभूषित कराना । वाला । °धाई स्त्री [°धात्री] आभूषण | °धाई स्त्री [ धात्री] सजानेवाली दासी । पहनानेवाली दासी।
मंडावय वि [मण्डक] सजानेवाला। मंडल पुं [दे. मण्डल] श्वान ।
मंडि° । वि [मण्डित] भूषित । पुं. भ० मंडल न [मण्डल] समूह । देश । वृत्ताकार मंडिअ , महावीर का षष्ठ गणधर । एक पदार्थ । गोल आकार से वेष्टन। चन्द्र-सूर्य आदि चोर । कुच्छि पुन [°कुक्षि] चैत्य-विशेष । आदि का चार-क्षेत्र । संसार । एक कुष्ठ रोग। पुत्त पुं [ “पुत्र ] ग्वीर का छठवाँ एक वृत्ताकार दाद-दद्रु । बिम्ब । सुभटों का गणधर । स्थान-विशेष । मण्डलाकार परिभ्रमण । इंगित मंडिअ वि [दे] रचि ।, बनाया हुआ। बिछाया क्षेत्र । पं. नरकावास-विशेष । °व वि [°वत्] | हुआ । आगे धमआ। आरब्ध । मण्डल में परिभ्रमण करनेवाला । हिव पुं मंडिल्ल पुं [दे) दुआ, पक्वान्न-विशेष । [धिप]। °ाहिवइ पुं [°ाधिपति] मंडी स्त्री!! ढकनी। अन्न का अग्र रस । मण्डलाधीश।
माँड़ी, कलप, लेई । पाहुडिया स्त्री मंडल पुंन [मण्डल] योद्धा का युद्ध समय का [प्राभूतिका] अन्न के मांड़ को दूसरे पात्र आसन । °पवेस पुं [प्रवेश] एक प्राचीन |
__ में रखकर दी जाती भिक्षा-ग्रहण का दोष । जैन शास्त्र ।
मंडुक । देखो मंडूअ। मंडलग्ग पुन [मण्डलान] तलवार, खड्ग । मंडलय पुं [मण्डलक] एक माप, बारह कर्म- मंडुक्कलिया । स्त्री [मण्डूकिका] भेकी। माषकों का एक बाँट ।
मंडुक्किया Jशाक या वनस्पति-विशेष । मंडलि पुं [मण्डलिन्] चक्र-वात, बवंडर ।। मंजुग पुं [मण्डूक]मेंढक । श्योनाक । वृक्ष । माण्डलिक राजा। सर्प की एक जाति । न. मंडूअ । सोनापाठा । बन्ध-विशेष । छन्दकौत्स गोत्र की एक शाखा । पुंस्त्री. उस गोत्र मंडूक विशेष । °प्पुअ न ["प्लुत] भेक में उत्पन्न । °पुरी स्त्री. गुजरात का एक | मंडूर की चाल । पुं. भेक की गति वाला नगर ।
ज्योतिष का योग । मंडलिअ वि [मण्डलिक, माण्डलिक] मंडोवर न [मण्डोवर] नगर-विशेष । मण्डलाकारवाला। पुं. मंडल रूप से स्थित | | मंत सक [मन्त्रय] गुप्त परामर्श या मसलहत पर्वत-विशेष । मण्डलाधीश, सामान्य राजा। करना । आमन्त्रण या जाप करना। मंडली स्त्री [मण्डली] पंक्ति, समूह । अश्व मंत पुंन [मन्त्र] गुप्त बात या आलोचना ।
की एक गति । वृत्ताकार मंडल-समह । जाप करने योग्य प्रणवादिक अक्षर-पद्धति । मंडलीअ देखो मंडलिअ = मण्डलिक। जंभग पुं [°जृम्भक] एक देव-जाति ।
मंडक्क ।
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मंत-मंभीस
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६३९
°देवया स्त्री [°देवता] मन्त्राधिष्ठायक देव ।। अवस्था । °न्नु वि [°ज्ञ] मन्त्र का जानकार । °वाइ मंद पुं [मन्द] शनिश्चर ग्रह । हाथी की एक वि [°वादिन्] मान्त्रिक । °सिद्ध वि. सब जाति । वि. अलस, धीमा, मृदु । अल्प, मूर्ख । मन्त्र जिसके स्वाधीन हों। बहु-मन्त्र । प्रधान : नीच, खल । रोगी। °उण्णिया स्त्री मन्त्रवाला।
[°पुण्यिका] देवी-विशेष । भग्ग वि[ भाग्य], मंत वि [मान्त्र] मन्त्र-सम्बन्धी, मान्त्रिक । __°भाअ वि [ भाग °भाग्य], भाइ वि मंतक्ख न [दे] लज्जा । दुःख । अपराध ।। [ भागिन्]कमनसीब । °भाग देखो °भाअ । मंतर देखो वंतर।
मंद न [मान्द्य ] रोग । बेवकूफी । मंता अ [मत्वा] जानकर ।
मंदक्ख न [मन्दाक्ष] लज्जा । मंति पुं [मन्त्रिन्] मन्त्री, अमात्य, दीवान । मंदग न [मन्दक] एक प्रकार का गान । वि. मन्त्रों का जानकार ।
मंदर पुं [मन्दर] मेरु पर्वत । भगवान् विमलमंति पुं [दे] विवाह-गणक, जोशी, ज्योतिर्विद् । नाथ का प्रथम गणधर । वानरद्वीप का राजा । मंतिअ वि [मान्त्रिक मन्त्र का ज्ञाता । मरुयकुमार का पुत्र । छन्द-भेद । मन्दरमंतिण देखो मंति = मन्त्रिन् ।
पर्वत का अधिष्ठायक देव । “पुर न. नगरमंतु वि [मन्तु ज्ञाता। पंजीव, प्राणी। विशेष । मंतु देखो मण्णु । °म वि [°मत्] क्रोधी । मंदा स्त्री [मन्दा] मन्द-स्त्री। मनुष्य की दश मंतु पुन [°मन्तु] अपराध ।
अवस्थाओं में तीसरी अवस्था । मंतुआ स्त्री [दे] लज्जा, शरम ।
मंदाइणी स्त्री [मन्दाकिनी] गंगा नदी । मंतेल्लि स्त्री [दे] मैना ।
रामचन्द्र के पुत्र लद की स्त्री। मंथ सक [मन्थ] विलोडन करना। मारना, मंदाय क्रिवि [मन्द] धीमे से । हिंसा करना । अक. क्लेश पाना। घर्षण मंदाय न [मन्दाय] गेय-विशेष । करना।
मंदार पुं [मन्दार] एक कल्पवृक्ष । पारिभद्र मंथ पुं [मन्थ] दही विलोने की मथनी। वृक्ष । न. एक फूल । केवलि-समुद्धात के समय मन्थाकार किया
मंदिअ वि [मान्दिक] मन्दता वाला, मन्द । जाता जीव-प्रदेश-समूह ।
मंदिर न [मन्दिर] गृह । नगर-विशेष । मंथ (अप) देखो मत्थ = मस्त ।
मंदिर वि [मान्दिर] मन्दिर-नगर का । मंथणिआ। स्त्री [ मन्थनिका ] मंथनी । ।
मंदीर न [दे] सांकल । मन्थान-दण्ड । मंथणी , दही महने की इंडिया । स्त्री मदुय पुं [दे. मन्दुक] जलजन्तु-विशेष । [मन्थनी] ।
| मंदुरा स्त्री [मन्दुरा] अश्व-शाला । मंथर वि [मन्थर] मन्द । पुं. मन्थन-दण्ड ।
| मंदोदरी । स्त्री [मन्दोदरी] रावण-पत्नी । मंथर वि [दे. मन्थर] वक्र । स्त्रीन. कुसुम्भ
मंदोयरी , एक वणिक् पत्नी । या कुसुम का पेड़।
मंदोशण (मा)। वि [मन्दोष्ण] अल्प गरम । मंथर वि [दे] बहु, प्रचुर, प्रभूत । मंधाउ पुं [मान्धातृ] हरिवंश का एक राजा । मंथाण पुं [मन्थान] विलोडन-दण्ड । मंधादण पुं [मन्धादन] मेष, गाडर । मंथु पुन [दे] बदरादि-चूर्ण । चूर, बुकनी । मंधाय पुं [दे] श्रीमन्त ।। दूध के मट्ठा और माखन के बीच की । मंभीस (अप) सक [मा+भी] डरने का निषेध
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६४०
करना, अभय देना ।
मंस पुंन [मांस] मांस, गोश्त, पिशित । इत्त वि ['वत् ] मांस-लोलुप । 'खल न मांस सुखाने का स्थान | चक्खु पुंन [ 'चक्षुस् ] मांस-मय चक्षु | वि. ज्ञान चक्षु रहित । सण वि[शन]। सि, सिण वि [शिन् ]
मांस भक्षक |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
का फूल
मगदंतिआ स्त्री [दे. मगदन्तिका ] मेंहदी का गाछ । मेंहदी की पत्ती ।
मगर पुं [ मकर] देखो मयर | मगरिया स्त्री [मकरिका ] वाद्य-विशेष | मगसिर स्त्रीन [ मृगशिरस् ] नक्षत्र - विशेष । मगह देखो माग | °तित्थ न ['तीर्थ] तीर्थ - विशेष |
मंस न [ मांस] फल का गर्भ ।
मंसल वि [ मांसल ] पोन, पुष्ट, उपचित । मंसी स्त्री
[मांसी]
जटामांसी ।
मंसु पुंन [म] दाढ़ी-मूंछ । देख मंस |
गन्ध - द्रव्य - विशेष,
मंसुडग न [दे. मांसोन्दुक ] मांस-खण्ड । मंसुल्ल वि [मांसवत्] मांसवाला । मक्कंडे पुं [ मार्कण्डेय ] [ऋषि- विशेष । मक्कड पुं [मर्कट] वानर । मकड़ा । कोड़ा एक छन्द | 'बंध पुं [° बन्ध] नाराच बन्ध ।
संताण पुं [संतान ] मकड़ा का जाल । मक्कडबंध न [दे] श्रृंखलाकार ग्रीवा-भूषण | मक्कल (अप) देखो मक्कड ।
मक्कार पुं. [माकार ] 'मा' वर्ण । निषेध-सूचक एक प्राचीन दण्ड-नीति |
मक्खण न [ प्रक्षण ] नवनीत । मालिश | मक्खर पुं [ मस्कर ] गति । ज्ञान । बाँस । छिद्रवाला बाँस |
मक्खन [माक्षिक] मक्षिका संचित मधु | मक्खि स्त्री [मक्षिका ] मक्खी ।
मंस - मग्गसिरी
मगह पुं. ब. [ मगध ] देश - विशेष । 'वरच्छ [' वराक्ष ] आभरण-विशेष | Tपुर न [ पुर] नगर- विशेष | देखो मयह ।
मक्कुण देखो मंकुण ।
मग्गअ
मक्कोड पुं [दे] यन्त्र- गुम्फनार्थ राशि । पुंस्त्री. मग्ग चींटा । मक्खसक [क्ष ] चुपड़ना । स्निग्ध द्रव्य से मग्गअ वि [मार्गक] माँगनेवाला | मालिश करना ।
मगा अ [ दे] पश्चात्, पीछे । मगुंद देखो मउंद = मुकुन्द । मग्ग सक [मार्गय् ] माँगना । खोजना । मग अक [मग्] गमन करना, चलना । मग्ग पुं [मार्ग ] रास्ता । " णु वि [ 'ज्ञ ] मार्ग का जानकार । 'त्थ वि ['स्थ] मार्ग में स्थित । सोलह से ज्यादा वर्ष की उम्रवाला । 'दय वि. मार्ग-दर्शक | विउ वि [वित्] मार्ग का जानकार | 'हवि [घ] मार्गनाशक । णुसार [िानुसारिन्] मार्ग का अनुयायी ।
मग्ग पुं [ मार्ग ] आकाश । आवश्यक कर्म, सामयिक आदि षट् कर्म ।
पुं [दे] पश्चात, पीछे ।
मग्गण पुं [ मार्गण] याचक | बाण | न. अन्वेषण | मार्गणा, विचारणा, पर्यालोचन । मग्गणया स्त्री [मार्गणा] हा ज्ञान,
ह
मग्गणिरवि [] अनुगमन करने की आदत
वाला ।
मग्गसिर पुं [ मार्गशिर ] मगसिरमास, अग
मग अवि [दे] हाथ में बाँधा हुआ ।
मगण पुं. तीन गुरु अक्षरों की संज्ञा ।
हन ।
मगति स्त्री [] मालती का फूल । मोगरा | मग्गसिरी स्त्री [मार्गशिरी] मगसिर मास की
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मग्गिल्ल-मज्झ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६४१ पूर्णिमा । मगसिर की अमावस । । मच्छिका (मा) देखो माउ = मातृ । मग्गिल्ल वि [दे] पाश्चात्य, पीछे का । मच्छिगा। मग्गु पुं [मद्गु] पक्षि-विशेष, जल काक । मच्छिया स्त्री [मक्षिका] मक्खी । मघ पुं [मघ] मेघ ।
मच्छी मघमघ अक [
प्रस] फैलना, गन्ध का मज्ज सक [मद्] अभिमान करना । पसरना ।
मज्ज अक [मस्ज् स्नान करना । डूबना । मघव पुं [मघवन्] इन्द्र , देवराज। तृतीय | मज्ज सक [मृज्] साफ करना । चक्रवर्ती राजा।
मज्ज न [मद्य] दारू। 'इत्त वि [°वत्] मघवा स्त्री. छठवीं नरक-भूमि ।
मदिरा-लोलुप । °व वि [प] मद्य-पान । मघा स्त्री. ऊपर देखो । महा = मघा । वीअ वि [°पीन] जिसने मद्य-पान किया . मघोण [दे मघवन्] देखो मघव ।
हो। मच्च अफ [मद्] गर्व करना ।
मज्जग वि [माद्यक] मद्य-सम्बन्धी । मच्च (अप) देखो मंच।
मज्जण न [मज्जन] स्नान । डूबना । °घर मच्च न [३] मल, मैल ।
न [°गृह] स्नान-गृह । 'धाई स्त्री [ धात्री] मच्च ) पुं [मर्त्य] मनुष्य । °लोअ पुं पाली स्त्री. स्नान कराने-वाली दासी । मच्चिअ ) [°लोक] मनुष्यलोक । °लोईय मज्जण न [मार्जन] साफ करना, शुद्धि । वि.
वि [°लोकीय] मनुष्य-लोक-सम्बन्धी । मार्जन करनेवाला । °घर न [°गृह] शुद्धिमच्चिअ वि [दे] मल-युक्त ।
गृह । मच्चु पुं [मृत्यु] मौत । यम, यमराज । रावण
मज्जर देखो मंजर। का एक सैनिक ।
मज्जा स्त्री [दे. मर्या] मर्यादा । मच्छ पुं [मत्स्य] मछली । राहु । देश- मज्जा स्त्री मज्जा धातु-विशेष, चर्बी, हड्डी विशेष । एक छन्द । °खल न. मत्स्यों को
के भीतर का गूदा। सुखान का स्थान । बध पु । बन्ध] मज्जाइल्ल वि [मर्यादिन] मर्यादावाला । मच्छीमार ।
मज्जाया स्त्री [मर्यादा] न्याय्य-पथ-स्थिति, मच्छ पुन [मत्स्य] मत्स्य के आकार की एक व्यवस्था । सीमा, अवधि । किनारा । वनस्पति ।
मज्जार पुंस्त्री [मार्जार] बिलाव । वनस्पतिमच्छंडिआ स्त्री [मत्स्यण्डिका] खण्डशर्करा । विशेष । मच्छंडी स्त्री [मत्स्यण्डी] शक्कर ।
मज्जार पुं [मार्जार] वायु-विशेष । मच्छंत मंथ = मन्थ् का कवकृ. ।
मजिअ वि [दे] अवलोकित, निरीक्षित । मच्छंध देखो मच्छ-बंध।
पीत । मच्छर पुं [ मत्सर ] ईर्ष्या । कोप। वि मज्जिआ स्त्री [मार्जिता] रसाला, भक्ष्यईर्ष्यालु । क्रोधी । कृपण ।
विशेष-दही, शक्कर का श्रीखण्ड । मच्छर न [मात्सर्य] द्वेष ।
मज्जोक्क वि [दे] अभिनव, नूतन ।। मच्छल देखो मच्छर = मत्सर ।
मज्झ न [मध्य] अन्तराल, बीच । शरीर का मच्छिअ देखो मक्खिअ = माक्षिक । अवराव-विशेष । अन्त्य और परार्घ्य के बीच मच्छिअ वि [मात्स्यिक] मच्छीमार । की गंख्या । वि. मध्यवर्ती । ‘एस पुं [°देश]
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07
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मज्झअ-मड्डुअ गंगा और यमुना के बीच का प्रदेश, मध्य | मटुहिअ न [दे] परिणीत स्त्री का कोप । प्रान्त । °गय वि [°गत] बीच का, मध्य में वि. कलुष । अशुचि, मैला। स्थित । पुं. अवधिज्ञान का एक भेद। मट्ठ वि [दे] आलसी, मन्द, जड़।
गेवेज्जय न [°ग्रेवेयक] देवलोक-विशेष । मट्ठ वि [मृष्ट] मार्जित, शुद्ध । मसृण, चिकना । °टिअ वि [°स्थित] तटस्थ । °ण्ण, °ह घिसा हुआ । न. मिरच । पुं [ह्न] दोपहर । न. पूर्वार्ध तप । ण्हतर मड वि [दे. मृत] मरा हुआ, निर्जीव । पुं[ह्नतरु] मध्याह्न में फूलनेवाला लाल °ाइ वि [°दिन्] निर्जीव वस्तु को खानेफूलवाला वृक्ष । 'त्थ वि [°स्थ] तटस्थ । वाला । सय पुं [°ाश्रय] श्मशान । बीच में रहा हुआ। 'देस देखो एस। °म | मड पुं [दे] कंठ, गला । वि. मझला । रत्त पुं [रात्र] निशीथ । मडंब पुंन [दे. मडम्ब] जिसके चारों ओर एक प्रयणि स्त्री [°रजनि मध्य रात्रि । 'लोग
योजन तक कोई गांव न हो ऐसा गांव । पु। लाक। मरु पवत । वात्त वि । वतिन् | मडक्क पुं [दे] गर्व । कलश । अन्तर्गत । विलिअ वि ["वलित] बीच में
मडक्किया स्त्री [दे] छोटा मटका । मुड़ा हुआ । चित्त में कुटिल ।
मडप्प मज्झअ ' [दे] नाई।
मडप्पर पु [दे] अहंकार । मज्झआर न [दे] मध्य ।
मडप्फर मज्झंतिअ न [दे] मध्याह्न । मज्झंदिण न [मध्यन्दिन] मध्याह्न ।
मडभ वि. कुब्ज, वामन ।
मडमड अक [मडमडाय] मड-मड मज्झंमज्झ न [मध्यमध्य] ठीक बीच ।
मडमडमड , आवाज करना । सक. मड-मड मज्झगार देखो मज्झआर ।
आवाज हो उस तरह मारना । मज्झण्हिय वि माध्याह्निक] मध्याह्न
मडय न [मृतक] मुड़दा। °गिह न [°गृह] सम्बन्धी।
कब्र । °चेइअ न [°चैत्य] मृतक चत्यमज्झत्थ न [माध्यस्थ्य] तटस्थता, मध्य- स्मारक-मन्दिर । °डाह पुं ['दाह] चिता । स्थता ।
°थूभिया स्त्री [°स्तूपिका] मृतक का छोटा मज्झिम वि [मध्यम] मध्य-वर्ती। पुं. स्वर- | स्मारक-स्तूप । विशेष । रत्त पुं [ रात्र] निशीथ, मध्य- | मडय पुं [दे] बगीचा । रात्रि।
मडवोज्झा स्त्री [दे] शिबिका । मज्झिमगंड न [दे] उदर ।
मडह वि [दे] लघु, छोटा । स्वल्प । मज्झिमा स्त्री [मध्यमा] बीच की उंगली। मडहर पुं [दे] अभिमान । एक जैन मुनि-शाखा।
मडिआ स्त्री [दे] समाहत स्त्री, आहत मज्झिमिल्ल वि [मध्यम] बीच का । महिला। मज्झिमिल्ला देखो मज्झिमा ।
मडुवइअ वि [दे] हत, विध्वस्त । तीक्ष्ण । मज्झिल्ल वि [माध्यिक, मध्यम] मझला । मड्ड सक [मृद्] मर्दन करना। मट्ट वि [दे] शृङ्ग-रहित ।
मड्डय पुं [दे. मड्डक] वाद्य-विशेष । मट्टिआ) स्त्री [मृत्तिका] मिट्टी । मड्डा स्त्री [दे] बलात्कार, हठ । आज्ञा । मट्टी । स्त्री [मृत्, मृत्तिका] । । मड्डुअ देखो मदुअ।
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मढ-मणि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मढ देखो मड्ड।
मणंसि वि [मनस्विन्] प्रशस्त मनवाला । मढ पुंन [मठ] व्रतियों-संन्यासियों का आश्रम । मणंसिल° । स्त्री [मनःशिला] लाल वर्ण मढिअ वि [दे] खचित । परिवेष्टित । मणंसिला ) की एक उपधातु, मैनशिल । मढी स्त्री [मठिका] छोटा मठ ।
मणग पुं [मनक] शय्यंभवसूरि का पुत्र और मण सक [मन्] मानना । जानना। चिन्तन
बाल शिष्य । देखो मणय । करना।
मणगुलिया स्त्री [दे] पीठिका ।
मणय पुं [मनक] द्वितीय नरक-भूमि का मण पुन [ मनस् ] मन, अन्तःकरण, चित्त ।।
तीसरा नरकेन्द्रक । देखो मणग। °अगुत्ति स्त्री ["अगुप्ति] मन का असंयम ।
मणयं अ [मनाग्] अल्प, थोड़ा । °करण न. चिन्तन, पर्यालोचन । 'गुत्त वि |
मणस देखो मण = मनस् । [°गुप्त] मन का संयमी। गुत्ति स्त्री
मणसिल ) देखो मणंसिला। [°गुप्ति] मन का संयम । जाणुअ वि [ज्ञ] |
| मणसिला । मन का ज्ञाता। मनोहर । °जीविअ वि [°जीविक] मन को आत्मा माननेवाला । |
मणसीकर सक [मनसि + कृ] चिन्तन करना, जोअ पुं [°योग] मन की चेष्टा । °ज्ज, मन में रखना। °ण्णु, °ण्णुअ देखो °जाणुअ । 'थंभणी स्त्री
मणस्सि देखो मणंसि।
मणा ["स्तम्भनी] मन को स्तब्ध करनेवाली विद्या । नाण न [°ज्ञान] मनःपर्यव ज्ञान ।
मणाउ
देखो मणयं।
मणाउं °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] पुद्गलों को मन के रूप में परिणत करने की शक्ति । °पज्जव
मणागं पुं [°पर्यव] दूसरे के मन की अवस्था को
मणाल देखो मुणाल । जाननेवाला ज्ञान । पसिणविज्जा स्त्री मणालिया स्त्री [मृणालिका] । देखो मुणा[°प्रश्नविद्या] मन के प्रश्नों का उत्तर देने- | लिआ। वाली विद्या । बलिअ वि [बलिन्, 'क] मणासिला देखो मणंसिला। मनो-बलवाला । "मोहण वि [°मोहन] मन मणि पुंस्त्री. मुक्ता आदि रत्न । अंग पुं को मुग्ध करनेवाला । योगि वि [°योगिन्] ! [°अङ्ग] कल्प-वृक्ष की एक जाति जो आभूमन की चेष्टावाला। °वग्गणा स्त्री | षण देती है । आर पुं [°कार] जौहरी । [°वर्गणा] मन के रूप में परिणत होनेवाला | कंचण न [°काञ्चन] रुक्मि-पर्वत का एक पुद्गल-समूह। °वज्ज न [ वज्र] एक | शिखर । कूड न [°कूट] रुचक पर्वत का विद्याधर-नगर । °समिइ स्त्री [°समिति] एक शिखर । °क्खइअ वि [°खचित] रत्नमन का संयम । “समिय वि ["समित] मन | जटित । 'चइया स्त्री ["चयिता] नगरीको संयम में रखनेवाला । "हंस पुं. छन्द- विशेष । "चूड पुं. एक विद्या-धर नृप । विशेष । °हर विसुन्दर । °हरण पुन. एक जाल न. मणि-माला । तोरण न. नगरमात्रा-पद्धति । "भिराम वि [°अभिराम] विशेष । °प देखो °व। पेढिया स्त्री मनोहर । म वि [°आप] सुन्दर । देखो [°पीठिका] मणि-मय पीठिका । 'प्पभ पुं मणो ।
[प्रभ] एक विद्याधर । °भद्द पुं [°भद्र] मणं देखो मणयं ।
एक जैन मुनि । भूमि स्त्री. मणि-खचित
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६४४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मणि-मत्तंड जमीन । मइय, °मय वि [°मय] मणि- मणो देखो मण - मनस् । गम न. देवमय । °रह पुं [°रथ] एक राजा । °व पुं विमान-विशेष । ज्ज वि [ज्ञ] सुन्दर । [प] यक्ष । सर्प, नाग। समुद्र । °वई स्त्री पु. गुल्म-विशेष । °ण्ण वि [ज्ञ] मनोहर । [°मती] नगरी-विशेष । °वंध पुं [°बन्ध] °भव पुं. कामदेव । 'भिरमणिज्ज वि हाथ और प्रकोष्ठ के बीच का अवयव । [°भिरमणीय] सुन्दर, चित्ताकर्षक । भू' पुं.
वालय पुं [ पालक, वालक] समुद्र । | कन्द । °मय वि. मानसिक । °माणसिय वि °सलागा स्त्री [शलाका] मद्य-विशेष । [ मानसिक]वचनसे अप्रकटित-मानसिक दुःख °हियय पुं [ हृदय] देव-विशेष ।
आदि । °रम वि रमणीय । पुं. एक विमामणिअ न [मणित] संभोग-समय का स्त्री का
नेन्द्रक । मेरु पर्वत । राक्षस-वंशका एक लंकाअव्यक्त शब्द ।
पति । किन्नर-देवों की एक जाति । रुचक द्वीप मणिअं देखो मणयं ।
का अधिष्ठायक देव । तृतीय ग्रैवेयक-विमान । मणिअड (अप) पुं [मणि] माला का सुमेर ।
आठवें देवलोक के इन्द्र का पारियानिक मणिच्छिअ वि [मनईप्सित] मनोऽभीष्ट । विमान । एक देव-विमान । मिथिला का एक मणि? वि [मनइष्ट] मन को प्रिय ।
चैत्य । उपवन-विशेष । °रमा स्त्री. चतुर्थ मणिणायहर न [दे. मणिनागगृह] समुद्र ।
वासुदेव की पटरानी। भगवान् सुपार्श्वनाथ मणिरइआ स्त्री [दे] कटीसूत्र ।
की दीक्षा-शिविका। शक्र की अञ्जुका मणीसा स्त्री [मनीषा बुद्धि, मेधा, प्रज्ञा । नामक इन्द्राणी की एक राजधानी । °रह पुं मणीसि वि [मनीषिन्। बुद्धिमान्, पण्डित । [°रथ] मन का अभिलाष । पक्ष का तृतीय मणीसिद वि [मनीषित] वाञ्छित । दिवस । °हंस पुं. छन्द-विशेष । °हर पुं. पक्ष मणु पुं मनु स्मृति कर्ता मुनि-विशेष । प्रजा- | का तृतीय दिवस । छन्द-विशेष । वि. सुन्दर । पति-विशेष । न. एक देव-विमान ।
हरा स्त्री. भगवान् पद्मप्रभ की दीक्षामणुअ ' [मनुज] मनुष्य । भगवान् श्रेयांसनाथ |
शिविका । हव देखो भव । हिराम वि का शासन-यक्ष । वि. मनुष्य-सम्बन्धी ।
[°भिराम] सुन्दर । मणुइंद पुं [मनुजेन्द्र] राजा ।
मणोसिला देखो मणंसिला। मणुई स्त्री [मनुजी] नारी।
मण्ण देखो मण = मन् । मणुएसर पुं [मनुजेश्वर] राजा ।
मण्णण न [मानन] मानना, आदर । मणुज्ज । वि [मनोज्ञ] सुन्दर ।
मण्णे देखो मणे। मणुण्ण ।
मत्त वि. मद-युक्त । न. दारू । नशा । °जला मणुस । पुंस्त्री [मनुष्य] मानव, मर्त्य । स्त्री. नदी-विशेष । मणुस्स । खेत्त न [ क्षेत्र] मनुष्यलोक । मत्त देखो मत्त = '
मत्त देखो मेत्त = मात्र । . सेणियापरिकम्म पुं [श्रेणिकापरि- | मत्त न [अमत्र, मात्र] भाजन । देखो कर्मन्] दृष्टिवाद का एक सूत्र ।।
मत्तय। मणुस्स वि [मानुष्य] मनुष्य-सम्बन्धी । मत्त (अप) देखो मच्च = मयं । मणुस्सिद पुं [मनुष्येन्द्र] राजा, नर-पति। मत्तंगय पुं [मत्ताङ्गक, °द] मद्य देनेवाला मणूस देखो मणुस्स।
कल्पतरु । मणे अ [मन्ये विमर्श-सूचक अव्यय । । मत्तंड [मार्तण्ड] सूर्य ।
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मत्तंग-ममाय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मत्तग न [दे] पेशाब।
मसलना, मलना । मर्दन करना । मत्तग । पुन [अमत्र, मात्रक] भाजन । मद्दण न [मर्दन] अंग-चप्पी, मालिश । हिंसा मत्तय । छोटा पात्र ।
करना । वि. मर्दन करनेवाला। मत्तय देखो मत्तग = दे ।
मद्दल पुं [मर्दल] वाद्य विशेष, मुरज, मृदंग । मत्तल्ली स्त्री [दे] बलात्कार ।
मद्दलिअ वि [मार्दलिक] मृदंग बजानेवाला । मत्तवारण पुन [मत्तवारण] बरामदा, | मद्दव न [मार्दव] मृदुता, नम्रता, विनय । दालान ।
मद्दी स्त्री [माद्री] राजा शिशुपाल की माँ । मत्तवाल पुं [दे] मदोन्मत्त ।
राजा पाण्डु की एक स्त्री। मत्ता स्त्री [मात्रा] परिमाण । अंश, हिस्सा। मदुअ पुं [मदुक] भगवान् महावीर का
समय का सूक्ष्म नाप । सूक्ष्म उच्चारण- राजगृह-निवासी एक उपासक । कालवाला वर्णावयव । अल्प, लेश । मदुग पुं [मद्गु,'क] देखो मग्गु । मत्ता अ (मत्वा] जानकर ।
मदुग देखो मुदुग। मत्तालंब पुं [दे. मत्तालम्ब] बरामदा ।
| मधु देखो महु। मत्तिया स्त्री [मत्तिका] मिट्टी। "वई स्त्री मधुधाद पुं [मधुघात] एक म्लेच्छ-जाति । [°वती] नारी-विशेष, दशार्णदेश की राज
मधुर देखो महुर। धानी।
मधुसित्थ देखो महुसित्थ । मत्थ । पुंन [मस्त, "क] सिर । त्थ
मधूला स्त्री [दे. मधूला] पाद-गण्ड । मत्थय । वि [स्थ] सिर में स्थित । °मणि
मन अ [दे] निषेधार्थक अव्यय, मत, नहीं । पं. शिरोमणि, प्रधान, मुख्य ।
मन्न देखो माण = मानय् । मत्थय पुंन [मस्तक] गर्भ, फल आदि का।।
| मन्ना स्त्री [मनन] मति, बुद्धि । आलोचन,
चिन्तन । मत्थयधोय वि [दे. धौतमस्तक] दासत्व से
मन्ना स्त्री [मान्या] अभ्युपगम, स्वीकार । मुक्त, गुलामी से मुक्त किया हुआ।
मन्नाय देखो माण = मानय् । मत्थुलुंग । न [मस्तुलुङ्ग] मस्तक-स्नेह, मत्थुलुय । सिर में से निकलता चिकना
मन्नु पुं [मन्यु] क्रोध, दैन्य । अहंकार ।
शोक । यज्ञ । पदार्थ । मेद का फिप्फिस आदि । मथ देखो मह।
मन्नुइय वि [मन्यवित] मन्यु-युक्त, कुपित ।
मन्नुसिय वि [दे] उद्विग्न । मद देखो मय। मदण देखो मयण।
मप्प न [दे] माप, बाँट । मदणसला(गा) देखो मयणसलागा।
मब्भीसडी, (अप) स्त्री [माभैषीः] अभयमदणा देखो मयणा - मदना।
मब्भीसा वचन । मदणिज्ज वि [मदनीय] कामोद्दीपक ।
| ममकार पुं [ममकार] ममत्व, मोह, प्रेम । मदि देखों मइ = मति ।
ममच्चय वि [मदीय] मेरा । मदीअ देखो मई।
ममत्त । न [ममत्व] मोह, स्नेह । स्त्री मदुवी देखो मउई।
ममया ) [ममता] । मदोली स्त्री [दे] दूती।
ममा सक [ममाय] ममता करना । मद्द सक [मृद्] चूर्ण करना । मालिश करना, | ममाय [दे] ग्रहण करना ।
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मयंग ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ममाय-मयण ममाय वि [ममाय] ममत्व करनेवाला। °च्छी स्त्री [°Tक्षी] हरिण के समान-नेत्रममि वि [मामक] मेरा, मदीय ।
वाली । °णाह पुं ["नाथ] सिंह । °णाहि ममूर सक [चूर्णय] चूरना ।
पुंस्त्री [°नाभि] कस्तूरी। 'तण्हा स्त्री मम्म पुन [मर्मन्] जीवन स्थान । सन्धि
["तृष्णा] । तण्हिआ स्त्री ["तृष्णिका] । स्थान । मरण का कारण-भत वचन आदि। °तिहा। तिण्हिआ धूप में जल भ्रान्ति । गुप्त बात । तात्पर्य । °य वि [ग] मर्म- धुत्त पुं[°धूर्त सियार । प्राय पुं [राज] वाचक (शब्द)।
सिंह । °लंछण पुं [°लाञ्छन] चन्द्रमा । मम्मक्क पुं [दे] गर्व, अहंकार ।
"लोअणा स्त्री [°रोचना] गोरोचन, पीतमम्मक्का स्त्री [दे] उत्कण्ठा ।
वर्ण द्र व्य-विशेष । रि पुं. सिंह । °ारिदमण मम्मण न [मन्मन] अव्यक्त वचन । वि.
पं [°ारिदमन] राक्षस-वंश का एक लंकाअव्यक्त वचन बोलनेवाला ।
पति । °ाहिव पुं [°ाधिप] सिंह । देखो मिअ, मम्मण पुं [दे] मदन । रोष ।
मिग = मृग। मम्मणिआ स्त्री [दे] नील मक्षिका । मयंक । देखो मिअंक। मम्मर पुं [मर्मर] शुष्क पत्तों की आवाज । मम्मह पुं [मन्मथ] कामदेव ।
मयंग देखो मायंग = मातंग । मम्मी स्त्री [दे] मामी।
| मयंग पुं [मृदङ्ग] वाद्य-विशेष । मय न [मत] मनन, ज्ञान । अभिप्राय । दर्शन, मयंगय पुं [मतङ्गज] हाथी । धर्म । वि. माना हुआ। अभीष्ट । 'न्नु वि |
मयंगा स्त्री [मृतगङ्गा] जहाँ पर गंगा का [°ज्ञ] दार्शनिक ।
प्रवाह रुक गया हो। मय पुं. ऊँट, खच्चर । एक विद्याधर-नरेश । | मयंतर न [मतान्तर] अन्य मत । °हर पुं [°धर] ऊँटवाला।
मयंद देखो मईद = मृगेन्द्र । मय वि [मत] मरा हुआ, जीव-रहित । किच्च मयंध वि [मदान्ध] मद से अन्धा बना हुआ। न [°कृत्य] मरण के उपलक्ष में किया जाता |
मयग वि [मृतक] मरा हुआ। न. मुर्दा । श्राद्ध आदि कर्म।
°किच्च न [°कृत्य] श्राद्ध आदि कर्म ।। मय पुंन [मद] अभिमान । हाथी के गण्ड- मयड पंदे बगीचा। स्थल से झरता प्रवाही। आमोद । कस्तूरी। मयण पुं [मदन] कन्दर्प । लक्ष्मण का एक मत्तता । नद । शुक्र । करि पुं [करिन्]
पुत्र । एक वणिक्-पुत्र । छन्द का एक भेद । मदवाला हाथी । °गल वि [°कल] मद से वि. मादक । न. मोम । घरिणी स्त्री उत्कट । पुं. हाथी । छन्द-विशेष । 'णासणी [गृहिणी] रति । 'तालंक पुं [°तालङ्क] स्त्री["नाशनी] विद्या-विशेष । धम्म [°धर्म] छन्द-विशेष । तेरसी स्त्री [त्रयोदशी] विद्याधर-वंश का एक राजा । °मंजरी स्त्री
चैत्र मास की शुक्ल त्रयोदशी। °दुम पुं [°मञ्जरी] एक स्त्री। 'वारण पुं. मदवाला [°द्रुम]वृक्ष-विशेष । फल न. मैनफल। मंजरी हाथी।
स्त्री[°मञ्जरी] राजा चण्डप्रद्योत की एक स्त्री। मय पुं [मृग] हरिण । पशु । हाथी की एक | एक श्रेष्ठि-कन्या। रेहा स्त्री [°रेखा] एक जाति । नक्षत्र-विशेष । कस्तूरी । मकर- युवराज की पत्नी। °वेय पुं [°वेग] पुरुषराशि । अन्वेषण । याचन । यज्ञ-विशेष । । विशेष । °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] राजा
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मयणंकुस-मरुअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६४७ श्रीपाल की पत्नी । हरा स्त्री [गृह] छन्द- मरअद । पुन [मरकत] नील वर्णवाला विशेष । हल देखो °फल।
मरगय ) रत्न-विशेष, पन्ना। मयणंकुस पुं [मदनाङ्कश] श्रीरामचन्द्र का एक मरजीवय पुं [दे. मरजीवक] समुद्र के भीतर पुत्र, कुश।
जो वस्तु निकालने का काम करता है वह । मयणसलागा , स्त्री [दे. मदनशलाका] मरट्ट पुं [दे] अहंकार । मयणसलाया सारिका । स्त्री [दे. मदन- मरट्टा स्त्री [दे] उत्कर्ष । मयणसाला ) शाला] ।
मरट (अप) देखो मरहट्ठ । मयणा स्त्री [दे. मदना] मैना।
मरढ देखो मरहट्ट । मयणा स्त्री [मदना] वैरोचन बलीन्द्र को मरण पुन. मौत ।
पटरानी । शक के लोकपाल की स्त्री। मरल सक. मराल = मराल, हंस । मयणाय पुं [मैनाक] एक द्वीप, एक पर्वत । मरह सक [मृष् ] क्षमा करना । मयणिज्ज देखो मदणिज्ज ।
| मरहट्ठ पुंन [महाराष्ट्र] बड़ा देश । एक देश, मयणिवास पुंदे] कामदेव ।
मराठा । सुराष्ट्र । पुं. महाराष्ट्र देशवासी । मयर पुं [मकर] राहु । मगर-मच्छ । मकर |
मगरमच्छ । मकर छन्द-विशेष । राशि । रावण का एक सुभट । छन्द विशेष । मरहट्ठी स्त्री [महाराष्ट्री] महाराष्ट्र की रहनेकेउ पुं [केतु] । द्धय पुं [ध्वज] । वाली स्त्री । प्राकृत भाषा का एक भेद । °लंछण पुं [°लाञ्छन] । हर पुन [गह] मराल वि [दे] मन्द, आलसी । कंदर्प।
मराल पुं. हंस पक्षी । छन्द-विशेष । मयरंद पुं [दे. मकरन्द] पुष्प-पराग ।। मराली स्त्री [दे] सारसी । दूती । सखी । मयरंद पुं [मकरन्द] पुष्प-मधु ।
मरिअ वि [दे] त्रुटित, टूटा हुआ। विस्तीर्ण । मयल देखो मइल=मलिन ।।
मरिअ देखो मिरिअ। मयल्लिगा स्त्री [मतल्लिका] प्रधान, श्रेष्ठ । मरिइ देखो मरीइ। मयह देखो मगह । °सामिय पुं [°स्वामिन्] मरिस सक [ मृष् ] सहन या क्षमा करना । मगध देश का राजा । आपुर न [°पुर] मरिसावणा स्त्री [मर्षणा] क्षमा । राज-गृह नगर । °ाहिवइ पुं[°ाधिपति] मगध मरीइ पुं [मरीचि] भगवान् ऋषभदेव का देश का राजा । .
पौत्र और भरत चक्रवर्ती का पुत्र, जो भगवान मयहर पुं [दे] ग्राम-प्रवर, गाँव का मुखिया । । महावीर का जीव था । पुंस्त्री. किरण । वि. वडील, नायक ।
मरीइया स्त्री [मरीचिका] किरण-समूह । मयाई स्त्री [दे] शिरों-माला ।
मृग-तृष्णा। मयार पुं [मकार] 'म' अक्षर । मकारादि मरीचि देखो मरीइ। अश्लील-अवाच्य शब्द ।
मरीचिया देखो मरीइया। मयाल (अप) देखो मराल ।
मरु पुं [मरुत् पवन, देवता। सुगन्धी वृक्ष, मयालि पुं. एक अन्तकृद् मुनि । एक अनुत्तर- मरुवा। हनूमान् का पिता । °णंदण पुं गामी मुनि ।
["नन्दन] । °स्सुय पुं [°सुत] हनूमान् । मयाली स्त्री [दे] निद्राकारी लता । मरु ) पुं[ मरु, क] निर्जल देश । मर अक [मृ] मरना।
| मरुअ । मारवाड़। पर्वत, ऊंचा पहाड़ । मर पुं [दे] मशक । उल्ल, घूक ।
ब्राह्मण । एक नृप-वंश । मरु-वंशीय राजा ।
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६४८
मरु - निवासी | कंतार न [ कान्तार] निर्जल जंगल | 'थली स्त्री [स्थली] । 'भू स्त्री. मरुभूमि | 'य वि [' ज ] मरु देश में उत्पन्न मरुअ देखो मरु = मरुत् । एक देव-जाति । ° कुमार पुं. वानरद्वीप का एक राजा । 'वसभ पुं [वृषभ ] इन्द्र |
मरुआ स्त्री [ मरुता ] श्रेणिक की एक पत्नी । मरुणी स्त्री [ मरुकिणी] ब्राह्मणी । मरुंड देखो मुरुंड ।
मरुकुंद पुं [दे. मरुकुन्द ] मरुआ ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मरुदेव पुं [मरुदेव ] ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव । एक कुलकर पुरुष । मरुदेवास्त्री [मरुदेवा, 'वी] भ. ऋषभदेव मरुदेवी की माता । श्रेणिक की पत्नी, ज मद्देवाभ. महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी ।
मरुल पुं [दे] भूत-पिशाच । मरुव देखो मरुअ ।
मरुस देखो मरिस ।
मल सक मल | धारण करना । मल देखो मद्द |
मल [] पसीना ।
मल पुंन. मैल | पाप । कर्म ।
मलपि वि [ दे] अहंकारी । मलय पुं [दे. मलक] आस्तरण-विशेष | मलय पुं [ दे. मलय ] पहाड़ का एक भाग ।
उद्यान ।
मलय पुं [ मलय ] दक्षिण का एक पर्वत । देश-विशेष | छन्द-विशेष | देवविमान विशेष | न. श्रीखण्ड, चन्दन । पुंस्त्री मलय का निवासी । °के पुं [°केतु] एक राजा । गिरि पुं. एक जैन आचार्य और ग्रन्थकार । 'चंद पुं [ चन्द्र ] एक जैन उपासक । हि पुं [द्र] पर्वत- विशेष । 'भव वि. मलय देश में उत्पन्न । न चन्दन | मई स्त्री [ती] राजा मलयकेतु की स्त्री । °य [ज]
मरुअ-मल्लो
देखो भव । रुह पुं. चन्दन का पेड़ । न. चन्दन - काष्ठ । चिल पुं. मलय पर्वत । णिल पुं [निल] मलयाचल से बहता शीतल पवन । यल देखो चल ।
मलय वि [मालय ] मलय देश में उत्पन्न | न. चन्दन |
मलवट्टी स्त्री [] तरुणी, युवति । मलहर पुं [दे] तुमुल-ध्वनि । मलिअन [ दे] लघु-क्षेत्र । कुण्ड । मणि वि [मलिन] मैला, मल-युक्त । मलीमसवि [ मलीमस ] मलिन, मैला । मलेच्छ देखो मिलिच्छ ।
मल्ल सक [मल्लू ] देखो मल = मल् | मल्ल पुं. पहलवान । बाहु-योद्धा । पात्र । भीत का अवष्टम्भन - स्तम्भ । छप्पर का आधार
भूत काष्ठ । 'जुद्ध न ['युद्ध] कुश्ती | ° दिन्न पुंन [दत्त ] एक राजकुमार । वाइ पुं ['वादिन्] जैन आचार्य और ग्रन्थकार ।
मल्ल न [ माल्य ] पुष्प । फूल की माला । मस्तकस्थित पुष्पमाला । एक देव - विमान । बलि । मल्लइ पुं [ मल्लकि, किन्] नृप - विशेष ।
मल्लग
न [ दे. मल्लक]
पात्र विशेष, ।
मल्लय
शराव । चषक |
मल्लय न [ दे] एक तरह का पूआ । वि. कुसुम्भ से रक्त ।
मल्लाणी स्त्री [दे] मातुलानी । मामी । मल्लि स्त्री. उन्नीसवें जिन देव का नाम । मोतिया का गाछ । णाह पुं [नाथ] उन्नीसर्वे जिन देव |
मल्लि स्त्री पुष्प - विशेष । मल्लिअज्जुण पुं [ मल्लिकार्जुन] एक राजा । मल्लिआ स्त्री [मल्लिका ] पुष्प वृक्ष - विशेष | पुष्प विशेष | छन्द- विशेष ।
मल्लिहाण न [ माल्याधान ] पुष्प-बन्धनस्थान | केश-कलाप | मल्ली देखो मल्लि |
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मल्ह - मह
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लीला करना ।
मल्ह अक [दे] मौज मानना, मव सक [मापय् ] मापना, नापना । विवि [मापित ] मापा हुआ । मवली (मा) स्त्री [ मत्स्य ] मछली । मस पुं [मश, क] शरीर पर का तिलामसअ कार काला दाग, तिल मच्छड़ । मसक्कसार न [मसक्कसार] इन्द्रों का एक स्वयं आभाव्य विमान ।
मसग देखो मसअ 1
मसण वि [ मसृण] स्निग्ध | अकर्कश | मन्द, घीमा ।
मसरक्क सक [दे] सकुचना, समेटना । मसाण न [ श्मशान] मसान | मसार पुं [दे. मसार] मसृणता - संपादक पाषाणविशेष, कसौटी का पत्थर ।
मसारगल्ल पुं. एक रत्न-जाति ।
मसि स्त्री काजल । स्याही । मसिंहार पुं [मसिंहार] क्षत्रिय-परिव्राजक | मसिण देखो मसण ।
सुकुमार,
मणि वि [ दे] रम्य । सिणिअवि [मसृणित ] शुद्ध किया हुआ, मार्जित | स्निग्ध किया हुआ । विलुलित, विमदत
मसी देखो मसि ।
मसूर पुंन [ मसूर, क] धान्य- विशेष, मसूरय मसूरि । ओसीसा । वस्त्र या चर्म
का वृत्ताकार आसन | मस्सु देखो मंसु ।
मस्सूरग देखो मसूर |
मह स [काङ्क्ष ] चाहना, वाञ्छना । मह सक [ मथ् ] मथना, विलोड़न करना । मारना । घर्षण करना ।
मह स [म] पूजना । मह पुंन. उत्सव ।
मह पुं [ख] यज्ञ |
[महत्] बड़ा वृद्ध । विपुल, विस्तीर्ण । ८२
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उत्तम । स्त्री. 'ई । 'एवी स्त्री [° देवी] पटरानी । 'कंतजस पुं['कान्तयशस् ] राक्षस वंश का एक लंका-पति | 'कमलंग न [°कमलाङ्ग] ८४ लाख कमल की संख्या । 'कव्व [ काव्य ] सर्ग-बद्ध उत्तम काव्य ग्रंथ | 'काल देखो महा-काल | गइ पुं [गति ] राक्षस वंश का एक लंकेश । ग्गह देखो महा-गह | ग्घवि [° अर्घ] महा-मूल्य । for a [ अ ] महंगा, दुर्लभ । विभूषित । सम्मानित | ग्घिम (अप) वि [ अधित ] बहू- मूल्य 1° चंद पुं ['चंद्र ] राजकुमार - विशेष | एक राजा । 'च्च वि [ 'अर्च] बड़ा ऐश्वर्यंवाला | बड़ी पूजा - सत्कारवाला | 'च्च वि ['अर्च्य]अति पूज्य । च्छरिय न ['आश्चर्य ] बड़ा आश्चर्यं । 'जक्ख पुं [यक्ष ]भ. अजित - नाथ का शासन देव । 'जाला स्त्री [ ज्वाला ] विद्यादेवी-विशेष । “ज्जुइय वि [द्युतिक ] महान् तेजवाला । °ड्ढि स्त्री [ऋद्धि] महान् वैभव । °ड्ढीअ वि [°ऋद्धिक ] विपुल वैभव वाला । णव पुं [अर्णव ] महा सागर । 'णवा स्त्री [ अर्णवा ] बड़ी नदी । 'तुडियंग न [ त्रुटिताङ्ग ] ८४ लाख त्रुटित की संख्या । तण न [व] बड़ाई, महत्ता ! तर वि [तर] बहुत बड़ा । मुखिया, प्रधान । अन्तःपुर का रक्षक । 'त्थव ['अर्थ ] महान् अर्थवाला | 'त्थन [अ] बड़ा हथियार । °त्थिम पुंस्त्री [व] महार्थता | 'दलिल्ल वि[दलिल ] बड़ा दलवाला । 'द्दह पुं [द्रह] बड़ा ह्रद |
स्त्री [अद्रि ] बड़ी याचना | परिग्रह | दुमपुं [°द्रुम] महान् वृक्ष । वैरोचन इन्द्र के एक पदाति-सैन्य का अधिपति । द्धिवि [ऋद्धि] बड़ी ऋद्धिवाला । 'धूम पुं. बड़ा धुआँ । पाण न [ प्राण ] ध्यान - विशेष । 'पुंडरीअ पुं [ "पुंडरीक ] वपुं ['आत्मन् ] महा-पुरुष |
ग्रह-विशेष | फल वि
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६५० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
महअर-महा [°फल] महान् फलवाला । 'बाहु पुं. राक्षस- | महति देखो महइ । वंशी एक लंका-पति । °बोह पुं [°अबोध] | महती स्त्री. सौ तांत वाली वीणा । महा-सागर । °ब्बल पुं [°बल ] एक | महत्थार न [दे] भाण्ड, भाजन । भोजन । राज-कुमार । वि. विपुल बलवाला। देखो | महप्पुर पुं [दे] माहात्म्य, प्रभाव । महाबल । °ब्भय वि [ °भय ] महाभय- | महमह देखो मघमघ । जनक । ब्भूय न [ °भूत ] पृथिवी आदि | महम्मह देखो महमह । पाँच द्रव्य । 'मरुय पुं [°मरुत ] एक | महया देखो महा। अन्तकृद् मुनि-विशेष । 'मास पुं[ °अश्व ] | महर वि [दे] असमर्थ । महान् अश्व । यर देखो °त्तर । रव पुं. | महलयपक्ख देखो महालवक्ख । राक्षसवंशी एक लंका-पति । °रिसि पुं | महल्ल वि [दे. महत्] वृद्ध, बड़ा। पृथुल, [°ऋषि] महर्षि, महामुनि । °रिह वि | विशाल, विस्तीर्ण । [°अर्ह] बड़े के योग्य, बहु-मूल्य । °वाय पुं
| महल्ल वि [दे] मुखर, वाचाट । पुं. समुद्र । [°वात] महान् पवन । 'व्वश्य वि [°व्रतिक]
समूह । महाव्रतवाला। व्वय पुंन [°व्रत] महान् व्रत । °व्वय पुं [°व्यय] विपुल खर्च ।
महव देखो मघव। °सलाग स्त्री [°शलाका] पल्य-विशेष, एक
महा स्त्री [मघा नक्षत्र-विशेष । प्रकार की नाप । °सिव पुं [°शिव] एक
महा° देखो मह = महत् । अडड न राजा, षष्ठ बलदेव और वासुदेव का पिता ।
[°अटट] ८४ लाख महाअटटांग की संख्या । सुक्क देखो महासुक्क। °सेण पुं [सेन]
अडडंग न [ अटटाङ्ग] ८४ लाख अटट । आठवें जिनदेव का पिता । एक राजा । एक
°आल देखो °काल । °ऊह न. ८४ लाख यादव । न. वन-विशेष । देर
महाऊहांग की संख्या। कइ पुं [कवि] देखो महा।
श्रेष्ठ कवि। कंदिय पुं [क्रन्दित] व्यन्तर महअर पुं [दे] गह्वर-पति, निकुञ्ज का
देवों की एक जाति । °कच्छ पुं. महाविदेह
वर्ष का एक विजयक्षेत्र--प्रान्त । देव-विशेष । मालिक।
'कच्छा स्त्री. इन्द्र अतिकाय की अग्र-महिषी। महइ° अ [महाति] अति बड़ा । अत्यन्त
°कण्ह [कृष्ण] श्रेणिक का पुत्र । °कण्हा विपुल । °जड वि [°जट] अति बड़ी जटा
स्त्री [कृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्नी। वाला। °महाईदइ पुं [°महेन्द्रजित्]
°कप्प पुं[°कल्प] जैन ग्रन्थ-विशेष । काल इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा । °महापुरिस पुं
का एक परिमाण । °कमल न.चौरासी लाख [°महापुरुष] सर्वोत्तम पुरुष । जिनदेव ।
महाकमलांग की संख्या। कव्व देखो °मह°महालय वि [°महत्] अत्यन्त ।
कव्व । °काय पुं. महोरग देवों का उत्तर महई देखो मह = महत् ।
दिशा का इन्द्र । वि. महान् शरीरवाला । महंग पुं [दे] ऊँट ।
°काल पुं. महाग्रह-विशेष, एक ग्रह-देवता । महंत देखो मह = महत् ।
दक्षिणलवण-समुद्र के पाताल-कलश का अधिमहच्च न [माहत्य] महत्त्व । महत्त्ववाला। ष्ठायक देव । पिशाच-निकाय का उत्तर दिशा महण न [दे] पिता का घर।
का इन्द्र । परमाधार्मिक देवों की एक जाति । महण पुं[महन] राक्षस वंश का एक लंका-पति ।। वायु-कुमार देवों का एक लोकपाल । वेलम्ब
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष इन्द्र का एक लोकपाल । एक निधि, जो पाल। न. एक देवविमान । °णील न धातुओं की पूत्ति करता है। सातवीं नरक- [नील] रत्न-विशेष । वि. अति नील भूमि का नरकावास । पिशाच देवों की एक | वर्णवाला । °णुभाअ, °णुभाग वि [°अनुजाति । उज्जयिनी नगरी का जैन मन्दिर । भाग] । °णुभाव वि[°अनुभाव] महानुभाव, शिव । उज्जयिनी का एक श्मशान । श्रेणिक महाशय । 'तमपहा स्त्री [°तमःप्रभा] । का पुत्र । न. एक देवविमान । °काली स्त्री. °तमा स्त्री. सप्तम नरक-पृथिवी। तीरा एक विद्या-देवी । भ. सुमतिनाथ की शासन- स्त्री. नदी-विशेष । °तुडिय न [त्रुटित] देवी । श्रेणिक की एक पत्नी । °किण्हा स्त्री महात्रुटितांग को चौरासी लाख से गुणने पर [°कृष्णा ] एक महा-नदी । 'कुमुद, कुमुय जो संख्या हो । °दामट्टि पुं [°दामास्थि] । न [°कुमुद] एक देव-विमान । चौरासी लाख °दामड्ढि पुं [°दाद्धि ] ईशानेन्द्र के महाकुमुदांग की संख्या। कुमुयअंग न | वृषभ-सैन्य का अधिपति । दुम देखो [°कुमुदाङ्ग] कुमुद को चौरासी लाख से मह-दुम । न. एक देव-विमान । दुमसेण. गुणने पर जो संख्या हो । 'कूम्म पुं[°कूर्म] पुं [°द्रुमसेन] श्रेणिक का पुत्र जिसने महावीर कूर्मावतार । कुल न. श्रेष्ठ कुल । वि. उसमें के पास दीक्षा ली थी। °देव पु. श्रेष्ठ देव, उत्पन्न । गंगा स्त्री [°गङ्गा] परिमाण- जिन-देव । गौरी-पति । देवी स्त्री. पटरानी । विशेष । 'गह पुं [ग्रह] सूर्य आदि ज्यो- धण पुं [°धन] एक वणिक् । °धणु पुं तिष्क । 'गह वि [ आग्रह] हठी । °गिरि | [°धनुष्] बलदेव का एक पुत्र । 'नई स्त्री पुं. एक जैन महर्षि । बड़ा पर्वत । गोव पुं [°नदी] बड़ी नदी। नंदिआवत्त देखो ["गोप] महान् रक्षक । जिन भगवान् । °णंदियावत्त । नगर न. बड़ा शहर । 'नय °घोस पुं ['घोष] ऐरवत क्षेत्र के भावी पुं [°नद] ब्रह्मपुत्र आदि बड़ी नदी । जिनदेव । स्तनित कुमार देवों का उत्तर दिशा नलिण न [ नलिन] महानलिनांग को का इन्द्र । कुलकर पुरुष । परमाधार्मिक देव- चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या हो । जाति । न. देवविमान-विशेष । °चंद पुं एक देव-विमान । 'नलिणंग न [°नलि[°चन्द्र] ऐरवत वर्ष के भावी तीर्थकर । नाङ्ग] नलिन को चौरासी लाख से गुणने
जणि पुं [जनिक] सार्थवाह आदि नगर पर जो संख्या हो । निज्जामय पुं के गण्य-मान्य लोग । °जलहि पुं [जलधि]
[निर्यामक] श्रेष्ठ कर्णधार । निद्दा स्त्री महा-सागर । °जस पुं [ यशस्] भरत चक्र
[°निद्रा] मृत्यु । निनाद, निनाय वि वर्ती का पौत्र । ऐरवत क्षेत्र के चतुर्थ भावी [निनाद] प्रख्यात । निसीह न तीर्थकर-देव । वि. महान् यशस्वी । जाइ ['निशीथ] एक जैन आगम-ग्रन्थ । स्त्री [जाति] गुल्म-विशेष। जाण न °नीला स्त्री [°नीला] एक महानदी । [प्यान] बड़ा यान। चारित्र, संयम । एक "पउम पुं [°पद्म] भरतक्षेत्र का भावी प्रथम विद्याधर नगर । पुं. मोक्ष । जुद्ध न[°युद्ध] तीर्थकर । पुंडरीकिणी नगरी का राजा और बड़ी लड़ाई । जुम्म पुंन ['युग्म] महान् पीछे राजर्षि । भारतवर्ष का नवा चक्रवर्ती राशि । °ण देखो °यण। °णई स्त्री राजा । भरतक्षेत्र का भावी नववाँ चक्रवर्ती ["नदी] बड़ी नदी। °णंदियावत्त पुं राजा। एक राजा । एक निधि । एक द्रह । [°नन्द्यावर्त] घोष नामक इन्द्र का लोक- । श्रेणिक का एक पौत्र । देव-विशेष। वृक्ष
HTTER
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पायाल
पालि
विशेष | न. महापद्मांग को चौरासी लाख गुणने पर जो संख्या हो । एक देव -विमान । 'पउमअंग न [° पद्माङ्ग] पद्म को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या हो । 'पउमा स्त्री [द्मा] श्रेणिक की पुत्रवधू | पंडिय वि [ 'पण्डित] श्रेष्ठ विद्वान् । 'पट्टण न [पत्तन ] बड़ा शहर । पण्ण वि [ प्रज्ञ ] श्रेष्ठ बुद्धि वाला । पभ न [ 'प्रभ] एक देवविमान | पभा स्त्री [" प्रभा] एक राज्ञी । 'म्ह पुं [ पक्ष्म] महाविदेह वर्ष का एक प्रान्त । परिणा स्त्री ['परिज्ञा ] आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का सातवाँ अध्ययन | ● पसु पुं [ 'पशु ] मनुष्य |पह पुं [पथ ] बड़ा रास्ता, राज- मार्ग | पाण न [प्राण ] ब्रह्मलोक स्थित एक देव - विमान | पुं [ पाताल] बड़ा पाताल-कलश | स्त्री. बड़ा पल्य । सागरोपम - परिमित आयु । 'पिउ पुं [पितृ] पिता का बड़ा भाई | 'पीढ पुं [पीठ ] एक जैन महर्षि । पुंख न [पुङ्ख] एक देव - विमान । 'पुंड न [ पुण्ड्र ] एक देव- विमान | 'पुंडरीय न [ 'पुण्डरीक ] विशाल श्वेत कमल । पुं. ग्रह-विशेष । देवविशेष | देखो पुंडरीअ । “पुर न. एक विद्याधर नगर । नगर- विशेष । पुरा स्त्री [ पुरी] महापक्ष्म-विजय की राजधानी । पुरिस पुं [पुरुष] श्रेष्ठ पुरुष । किंपुरुषनिकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र | " पुरी देखो [°पुरा]। 'पोंडरीअ न [ ° पुण्डरीक ] एक देव - विमान | देखो 'पुंडरीय | फल देखो मह-प्फल | फलिह न [ स्फटिक ] शिखरी पर्वत का एक उत्तर-दिशा स्थित कूट | 'बल वि. महान् बलवाला । पुं. ऐरवत क्षेत्र का भावी तीर्थंकर । चक्रवर्ती भरत के वंश में उत्पन्न राजा । सोमवंशीय नर-पति । पाँचवें बलदेव का पूर्वजन्मीय नाम । भारतवर्ष का भावी छठवाँ वासुदेव ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कौष
'बाहु पुं. भारतवर्ष का भावी चतुर्थ वासुदेव । रावण का सुभट । अपर विदेह वर्ष में उत्पन्न वासुदेव । भद्द न [भद्र ] तप- विशेष | 'पडिमा स्त्री [भद्र- प्रतिमा ] । 'भद्दा स्त्री [भद्रा ] कायोत्सर्ग-ध्यान का एक व्रत । भय देखो मह भय । भाअ, भाग वि [भाग ] महानुभाव, महाशय । ● भीम पुं. राक्षसों का उत्तर दिशा का इन्द्र | भारतवर्ष का भावी आठवाँ प्रतिवासुदेव । वि. बड़ा भयानक । भीमसेण पुं [भीमसेन] एक कुलकर पुरुष | भुअ पुं [भुज ] देव-विशेष । भुअंग पुं [°भुजङ्ग] शेषनाग । 'भोया स्त्री ["भोगा] एक महानदी | मउंद पुंन ['मुकुन्द ] वाद्य-विशेष | 'मंति पुं [ 'मन्त्रिन्] प्रधान मन्त्री । हस्तिसैन्य का अध्यक्ष | मंस न [ मांस] मनुष्य का मांस | 'मच्च पुं [अमात्य ] प्रधानमंत्री | 'मत्त पुं [ मात्र ] हस्तिपक
मरुया स्त्री [ मरुता ] श्रेणिक की एक पत्नी । 'मह पुं ['मह ] महोत्सव | महंत वि [महत्] अति बड़ा । माई (अप) स्त्री [माया ] छन्द - विशेष । 'माउया स्त्री [मातृका] माता की बड़ी बहन । माढर पुं [ माठर] ईशानेन्द्र के रथ सैन्य का अधिपति | माणसिआ स्त्री ['मानसिका ] एक विद्यादेवी । 'माहण पुं [ब्राह्मण] श्रेष्ठ ब्राह्मण | मुण [मुनि ] श्रेष्ठ साधु |
[घ] बड़ा मेघ । 'मेह वि [ 'मेध ] बुद्धिमान् । 'मोक्ख वि [° मूर्ख] बड़ा बेवकू | पुं [न] श्रेष्ठ लोग । 'यस देखो 'जस । ● रक्खस पुं [ राक्षस ] धनवाहन का पुत्र, लंका नगरी का राजारह पुं [ रथ ] बड़ा रथ । वि. बड़ा रथ-वाला । बड़ा योद्धा, दस हजार योद्धाओं से अकेला जूझनेवाला । 'रहि वि [रथिन् ] देखो पूर्व का २रा और
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६५३ ३रा अर्थ । राय पुं [राज] बड़ा राजा, । एक राजा । °वीहि, °वीही स्त्री [°वीथि, राजाधिराज । समान ऋद्धिवाला सामानिक | °थी] बड़ा बाजार । श्रेष्ठ-मार्ग । °वेग देव । लोकपाल देव । °रिट्ठ पुं [°रिष्ठ] | पुं. भूतों की एक प्रकार की देवबलि नामक इन्द्र का एक सेनापति । °रिसि | जाति । वेजयंती स्त्री [°वैजयन्ती] पुं[ ऋषि] बड़ा मुनि, श्रेष्ठ साधु । °रिह, बड़ी पताका, विजय-पताका। °सई °रुह देखो मह-रिद । °रोरु पुं. अप्रतिष्ठान स्त्री [°सती] उत्तम पतिव्रता स्त्री। नरकेन्द्रक की उत्तर दिशा में स्थित नरका- | °सउणि स्त्री [°शकुनि] एक विद्याधर-स्त्री। वास। रोरुअ ' [रोरुक, रौरव] | °सड्ढि वि [ श्रद्धिन्] बड़ा श्रद्धावाला । सातवीं नरक भूमि का नरकावास । 'रोहिणी °सत्त वि [°सत्त्व] पराक्रमी । °समुद्द पुं स्त्री ["रोहिणी] एक महा-विद्या । लंजर [°समुद्र] महासागर । 'सयग, °सयय पुं पुं [°अलञ्जर] बड़ा जल-कुम्भ । °लच्छी | [°शतक] भगवान् महावीर का एक स्त्री । लक्ष्मी] एक श्रेष्ठि-भार्या । छन्द- | उपासक । °सामाण न [°सामान] एक विशेष । श्रेष्ठ लक्ष्मी । लक्ष्मी-विशेष । 'लयंग देव-विमान । 'साल पुं [°शाल] एक न [°लताङ्ग] लता नामक संख्या युवराज । °सिलाकंटय पुं [°शिलाकण्टक] को चौरासी लाख से गुणने पर जो राजा कूणिक और चेटकराज की लड़ाई । संख्या हो । 'लया स्त्री ["लता] महालतांग | सीह पुं [°सिंह] एक राजा, षष्ठ बलदेव को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या और वासुदेव का पिता। °सीहणिक्कीलिय, हो । °लोहिअक्ख पुं. [लोहिताक्ष] °सीहनिकीलिय न [सिंहनिक्रीडित] बलीन्द्र के महिष-सन्य का अधिपति । °वक्क तप-विशेष । °सीहसेण पुं ["सिंहसेन] महान['वाक्य] परस्पर-सम्बद्ध अर्थ वाले वाक्यों | वीर के पास दीक्षा ले अनुत्तर देवलोक में का समुदाय । °वच्छ पुं ["वत्स] विदेह | उत्पन्न राजा श्रेणिक का पुत्र । °सुक्क वर्ष का एक प्रान्त । 'वच्छा स्त्री [°वत्सा] | पुं [शुक्र] सातवाँ देवलोक। सातवें वही । 'वण न ["वन] मथुरा के पास एक | देवलोक का इन्द्र। न. एक देववन । °वण पुन [°आपण] बड़ी दूकान । | विमान । °सुमिण पुं [ स्वप्न] उत्तम °वप्प पुं [°वप्र] विजयक्षेत्र-विशेष । °वय फलसूचक स्वप्न । °सुर पुं [°असुर] बड़ा देखो मह-व्वय । °वराह पुं. विष्णु का एक दानव । दानवों का राजा हिरण्यकशिपु । अवतार । बड़ा सूअर । वह देखो °पह । 'सुव्वय, °सुव्वया स्त्री [°सुव्रता] भगवान् 'वाउ [ [°वायु] ईशानेन्द्र के अश्व-सैन्य का नेमिनाथ की मुख्य श्राविका । °सूला स्त्री अधिपति । 'वाड पुं [°वाट] बड़ा बाड़ा, [°शूला] फांसी । °सेअ पुं[°श्वेत] कूष्माण्ड महान् गोष्ठ । विगइ स्त्री [°विकृति] अति | नामक वानव्यन्तर देवों का उत्तर दिशा का विकार जनक । मधु, मांस, मद्य और माखन । इन्द्र । 'सेण पुं [°सेन] ऐरवत क्षेत्र के एक विजय वि. बड़ा विजयवाला । “विदेह पुं. भावी जिन-देव । श्रेणिक का पुत्र जिसने वर्ष-विशेष, क्षेत्र विशेष । विमाण न भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी। [विमान श्रेष्ठ देव-गृह । विल न ["बिल] | ___ एक राजा । एक यादव । न. एक वन । देखो कन्दरा आदि बड़ा विवर । °वीर पुं. वर्तमान | मह-सेण। °सेणकण्ह पुं [°सेनकृष्ण] समय के अन्तिम तीर्थकर । वि. महान् परा- | श्रेणिक का पुत्र । °सेणकण्हा स्त्री [°सेनक्रमी। °वीरिअ पुं [°वीर्य] इक्ष्वाकुवंश के } कृष्णा] श्रेणिक की पत्नी । °सेल पुं[°शैल]
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बड़ा पर्वत । न नगर - विशेष । सोआम, 'सोदाम पुं [ ° सौदाम] वैरोचन बलीन्द्र के अश्व-सैन्य का अधिपति । हरि पुं. एक नर-पति, दसवें चक्रवर्ती का पिता । हिमव, हिमवंत पुं [ हिमवत् ] पर्वत- विशेष | देवविशेष |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
स्थान | बड़ा
महाअत वि [] आढ्य श्रीमन्त । महाइय पुं [दे] महात्मा । महाड पुं [ दे. महानट ] रुद्र, महादेव । महाणस न [ महानस ] रसोई-घर । महाणसिय वि[महानसिक ] रसोइया । महाबिल न [ दे. महाबिल ] आकाश । महामंति पुं [महामन्त्रिन्] महावत । महारिय (अप) वि [ मदीय] मेरा । महाल पूं [दे] जार | महालक्ख वि [दे] तरुण । महालय देखो मह = महत् । महालय पुंन उत्सवों का आलय | बड़ा शरीरवाला | महालवक्ख पुं [ दे. महालय पक्ष ] श्राद्ध पक्ष, आश्विन मास का कृष्णपक्ष । महावल्ली स्त्री [दे] कमलिनी । महाविजय पुं. एक देवविमान । महासउण पुं [दे] उल्लू, घूक- पक्षी । महासद्दा स्त्री [दे] शृगाली | महासेल वि [माहाशैल] महाशैल नगर का । 'महि देखो मही । 'अल न[° तल] भूमि-पृष्ठ | °गोयर पुं [गोचर] मनुष्य | पट्ट न [पृष्ठ ] भूमितल । पालपुं. राजा । 'मंडलन [ मण्डल ] भू-मण्डल | रमण पुं [ "रमण ] राजा । वइ पुं [पति ] राजा । वट्ठ देखो' | 'वल्लह पुं [ वल्लभ ] राजा । 'वाल पुं [ 'पाल ] राजा । एक व्यक्ति । °वेढ पुं ['वेष्ट, पीठ ] मही-तल । 'सामि पुं ['स्वामिन् ] राजा । 'हर पुं [र] पर्वत । राजा ।
देव - विमान । पूजा, सत्कार । महिअ वि [ महीयस् ] बड़ा, गुरु । महिअदुअ न [ दे] घी का किट्ट । महिआ स्त्री [ महिका ] अल्प मेघ, सूक्ष्म वर्षा । धुन्ध, कुहरा, मेघ- समूह | देखो मिहिआ ।
महाअत-महिद
हिंद पुं [महेन्द्र ] बड़ा इन्द्र । पर्वत- विशेष । अति महान् । एक राजा । ऐरवत वर्ष का भावी १५वाँ तीर्थंकर । पुंन. एक देव विमान । 'कंत न [कान्त ] एक देव विमान । केउ पुं [केतु] हनुमान के मातामह । 'ज्झय पुं ['ध्वज ] बड़ा ध्वज । इन्द्र के ध्वज के समान ध्वज । बड़ा इन्द्र-ध्वज । न. एक देवविमान । 'दुहिया स्त्री [° दुहिता ] अञ्जना - सुन्दरी, हनुमान की माता | विक्कम पुं [विक्रम] इक्ष्वाकुवंश का राजा । 'सीह पुं [सिंह ] कुरु देश का राजा । सनत्कुमार चक्रवर्ती का मित्र ।
हिंद व [माहेन्द्र ] महेन्द्र-सम्बन्धी । उत्पातविशेष |
महिदुत्तरवडिसय न [ महेन्द्रोत्तरावतंसक ] एक देव विमान |
महिगा देखो महिआ ।
महिच्छ स्त्री [महेच्छा ] महत्वाकांक्षी । [] तक्र-संस्कारित ।
महिड्दि महिढी
वि [ महद्धि, क] बड़ी ऋद्धिमहिम पुंस्त्री [महिमन् ] महत्त्व माहात्म्य, वाला, महान् वैभववाला । योगी का एक ऐश्वर्य ।
महिला देखो मिहिला ।
महिला स्त्री [महिला ] नारी । महिलिया स्त्री [ महिलिका, महिला ] । थूभ पुं [ स्तूप] कूप आदि का किनारा । महिलिया स्त्री [ मिथिलिका] देखो मिहिला । महिस पुं [महिष] भैंसा । सुर पुं. एक दानव ।
महिअ वि [महित] पूजित, सत्कृत | न. एक महिसंद पुं [दे] शिग्रु का पेड़ ।
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महिसिअ-महेसि . संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष महिसिअ वि [महिषिक] भैसवाला, भैंस | उपचार। °वार पुं. मद्य। °सिंगी स्त्री चराने वाला।
[°शृंगी] वनस्पति-विशेष । सूयण पुं महिसिक्क न [दे] महिषी-समूह ।
[°सूदन] विष्णु । महिसी स्त्री [महिषी] राज-पत्नी ।
महुअ पुं [मधूक] महुआ वृक्ष (न. फल)। महिस्सर पुं [महेश्वर] भूतवादि-देवों का
महुअ पुं [दे] श्रीवद पक्षी । स्तुति-पाठक । उत्तर दिशा का इन्द्र । देखो महेसर।
महुण सक [मथ्] देखो मह। मही स्त्री. पृथिवी । एक नदी । छन्द-विशेष ।
महुत्त (अप) देखो मुहुत्त ।। नाह पुं [°नाथ] । 'पहु पुं [प्रभु] । पाल
महुप्पल न [महोत्पल] कमल । पुं. राजा । रुह पुं. वृक्ष । 'व ' [°पति]
महुमुह पुं [दे.मधुमुख] पिशुन, दुर्जन। राजा । °वीढ न [°पीठ] भूमि-तल । °स
| महुर पुं. अनार्य देश-विशेष । उस देश में रहने पुं [°श] । “सक्क पुं [°शक्र] राजा । देखो
वाली अनार्य मनुष्य-जाति । महि।
| महुर वि [मधुर] मीठा । कोमल । °भासि वि
[°भाषिन् प्रिय-भाषी। महु पुं [मधु] एक दैत्य । वसन्त ऋतु । चैत्र
महुरा स्त्री [मथुरा] भारत की एक नगरी। मास । पाँचवाँ प्रति-वासुदेव राजा। एक राजा।
°मंगु पुं[°मङ्ग] एक जैनाचार्य । हिव पुं मथुरा का एक राज-कुमार । चक्रवर्ती का एक [धिप] मथुरा का राजा । देव-कृत महल । महुआ का गाछ । अशोक
महुरालिअ वि [दे] परिचित । वृक्ष । न. दारू । शहद । पुष्प-रस । मधुररस । जल । छन्द-विशेष । मधुर, मिष्ट वस्तु ।
महुरिम पुंस्त्री [मधुरिमन्] माधुर्य । °अर पुंस्त्री [°कर] भ्रमर । अरवित्ति स्त्री
महुरेस पुं [मथुरेश] मथुरा का राजा । [°करवृत्ति] भिक्षा-वृत्ति । [°अरीगीय] न महुला स्त्री [दे] रोग-विशेष, पाद-गण्ड ।
करीगीत] नाट्य विधि-विशेष । आसव | महुसित्थ न [महुसिक्थ] मदन, मोम । पंकवि [°आश्रव] जिसके प्रभाव से वचन मधुर | विशेष, स्त्री के पैर में लगा हुआ अलता तक लगे ऐसी लब्धिवाला। गुलिया स्त्री | लगनेवाला कादा । कला-विशेष । ['गुटिका] शहद की गोली। पडल न | महुस्सव देखो महूसव । [पटल] मधुपुडा । °भार पुं. छन्द-विशेष । | महूअ देखो महुअ = मधूक । °मक्खिया, मच्छिआ स्त्री [°मक्षिका] | महूसव पु [महोत्सव बड़ा उत्सव । शहद की मक्खी । 'मय वि. मधु से भरा।। महेद देखो महिद । °मह पुं. [°मथ] विष्णु, वासुदेव, उपेन्द्र । महेड्ड पुं [दे] पंक । भ्रमर । °मह पुं. वसन्त का उत्सव । 'महण |
। सेठ । पुं[°मथन] विष्णु । समुद्र । सेतु । 'मास पं. | महेभ पु [महेभ] बड़ा हाथी । चैत मास । °मित्त पुंन [°मित्र] कामदेव । | महेला स्त्री [महेला] स्त्री। मेहण न [ मेहन] मधु-प्रमेह । मेहि पुं | महेस । महेश] । [°मेहिन्] मधु-प्रमेह रोगवाला । प्राय पुं महेसर [महेश्वर] महादेव । जिनदेव । [राज] एक राजा । लट्ठि स्त्री [°यष्टि] श्रीमन्त । भूतवादी देवों के उत्तर दिशा का जेठी मधु । ओषधि । इक्षु । °वक्क पुं[पर्क] | इन्द्र । 'दत्त पुं एक पुरोहित । दधियुक्त मधु । षोडशोपचार पूजा का छठवाँ । महेसि देखो मह-रिसि ।
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महोअर पुं [ महोदर ] रावण का एक भाई । वि. बहु-भक्षी । अहि
मा
माअ
वानर- वंश का एक राजा ।
महोच्छव देखो महूसव । महोदहि देखो महोअहि ।
|
महोरग पुं [ महोरग] व्यन्तर देवों की एक जाति | बड़ा साँप । महा-काय सर्प की एक जाति । त्थ न [स्त्र ] अस्त्र - विशेष | महोरगकंठ पुं [ महोरगकण्ठ ] रत्न- विशेष । महोसव देखो महूसव । महोसहि स्त्री [महौषधि ] श्रेष्ठ औषधि । मा अ. नहीं ।
मा स्त्री. लक्ष्मी, दौलत । शोभा ।
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[महोदधि] महासागर । रव पुं. माई देखो माइ = मा । माइंगण न [ दे] वृन्ताक । माइंद] [दे] देखो मायंद ।
जानना ।
अडि पुं [ मातलि ] इन्द्र का सारथि । माअरा देखो माइ = मातृ । माअलि देखो माअडि ।
माइ माइअ
अक [मा] समाना, अटना । सक. माप करना । निश्चय करना,
माअलिआ स्त्री [] मातृष्वसा ।
माही स्त्री [ मागधी] काव्य की एक रीति ।
देखो माहिआ ।
}
माआरा
स्त्री [मातृ] जननी । देवता,
माइ
} देवी । नारी | माया । भूमि । विभूति । लक्ष्मी । रेवती । आखुकर्णी | जटामांसी | इन्द्रवारुणी, इन्द्रायण । घर न [गृह] देवी मन्दिर । 'ट्ठाण, ठाण न [स्थान ] माया स्थान । माया, कपट- दोष । मेह पुं [मेध] जिसमें माता का वध किया जाय वह यज्ञ । 'हर देखो घर । देखो माउ, माया = मातृ । माइ वि [मायिन् ] माया युक्त, मायावी । माइ अ [मा] मत, नहीं ।
वि [दे] रोमवाला, प्रभूत बालों से युक्त । मयूरित, पुष्प -विशेषवाला ।
महोअर - माउक्क
safa [H] मायावी । माइअवि [ मात्रिक] मात्रा युक्त, परिमित ।
माइंद पुं [ मृगेन्द्र ] सिंह |
माइंदजाल न [ मायेन्द्रजाल ] माइंदयाल कर्म, बनावटी प्रपञ्च ।
माया
माइंदा स्त्री [दे] आमलकी, आमला का
गाछ ।
माइहिआ स्त्री [ मृगतृष्णिका ] धूप में जल की भ्रान्ति ।
माइलि वि [] मृदु, कोमल ।
माइल्ल देखो माइ = मायिन् ।
पुंस्त्री [ दे. मातृवाह ] द्वीन्द्रिय जन्तु - विशेष, क्षुद्र कीट - विशेष ।
माइवाह माईवाह
}
माउ देखो
माइ = मातृ । ग्गाम पुं [ग्राम ] स्त्री वर्ग । 'च्छा देखो 'सिआ । 'पिपुं [पितृ] मां-बाप | मही स्त्री [ही] नानी । सिआ, सी, सिआ स्त्री [°ष्वसृ] मौसी ।
वि [मातृ, क] प्रमाण-कर्ता, सत्य ज्ञानवाला । परिमाण-कर्ता,
माउ
माउअ नापनेवाला । पुं. जीव । आकाश । माउअवि [मातृक] माता-सम्बन्धी ।
माउअ पुंन [मातृक, का] अकार आदि छयालीस अक्षर | स्वर । करण । नीचे देखो । माउआ स्त्री [मातृका] माता । ऊपर देखो ।
पय पुंन [द] शास्त्रों के सार-भूत शब्द - उत्पाद, व्यय और प्रोव्य । माउआ स्त्री [ दे. मातृका] दुर्गा, पार्वती,
उमा ।
माउआ स्त्री [दे] सहेली । मूंछ । माउआपय न [मातृकापद् ] मूलाक्षर, 'अ' से 'ह' तक के अक्षर ।
कवि [ मृदु, क] कोमल ।
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६५७
माढी स्त्री [माठी] कवच, वर्म, बख्तर | माणक [मानय् ] सम्मान करना । अनुभव
करना ।
माण पुंन [मान] अहंकार । माप, परिमाण । नापने का साधन, बाट- बटखरा आदि । प्रमाण । आदर । पुं. एक श्रेष्ठि- पुत्र । इंत, 'इत्त, इल्ल वि [वत् ] मानवाला । तुंग पुं [° तुङ्ग] एक प्राचीन जैन कवि । स्त्री [ती] मानवाली स्त्री । रावण की एक पत्नी । 'संघ न. एक विद्याधर नगर । वाइवि ['वादिन्] अहंकारी ।
वई
माउलुंग देखो माहुलिंग ।
माण वि [मान] मान-सम्बन्धी | माण न [दे] दस सेर की नाप ।
मागंदिअ पुं [माकन्दिक] °त [पुत्र ] माणंस व [दे] मायावी । स्त्री. चन्द्र-वधूं ।
माणंसि देखो मणंसि ।
मान्दिकपुत्र जैन मुनि । मागसीसी स्त्री [मार्गशीर्षी] अगहन मास की पूर्णिमा । अगहन की अमावस्या |
मागह
}
मागहय
वि [ मागध, क] मगध देश में उत्पन्न, मगध देश का । पं. स्तुति पाठक, चारण । भासा स्त्री [भाषा ] देखो मागहिआ का पहला अर्थ | मागहिआ स्त्री [ मागधिका ] मगध देश की प्राकृत भाषा | कला - विशेष । छन्द-विशेष |
माघवई
माउक्क - माणिण
माउक्क न [ मृदुत्व ] कोमलता । माउच्चा स्त्री माउ-च्छा ।
माउच्चा स्त्री [दे] सखी ।
उच्छवि [] मृदु, कोमल ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[ दे. मातृष्वसृ ] देखो
माउत्त देखो माउक्क = मृदुत्व । माउल पुं [ मातुल] माँ का भाई, मामा । माउलिअ देखो मउलिअ । माउलिंग देखो माहुलिंग ।
}
माउलिंगा | स्त्री [मातुलिङ्गा, 'ङ्गी] माउलिंगी बीजौरे का गाछ ।
स्त्री [माघवती ] सातवीं नरकभूमि । [ माघवा, वी] |
माघवा
माघवी
माज्जार देखो मन्नार ।
माबि पुं [माम्बिक ] 'मडंब' का अधिपति । सीमा- प्रान्त का राजा । माडंबिय वि [ माडम्बिक ] चित्र-मंडप का
अध्यक्ष ।
माडिअन [ दे] गृह |
माढर पुं [माठर] सौधर्मेन्द्र के रथ- सैन्य का अधिपति । न. गोत्र - विशेष । शास्त्र - विशेष | माढर पुंस्त्री [माठर] माठर - गोत्र में उत्पन्न माढरी स्त्री [माठरी] वनस्पति- विशेष | माढ वि [ माठित] सन्नाह-युक्त, वर्मित ।
८३
माणण न [मानन] आदर, सत्कार । मानना । अनुभव । सुख का अनुभव । माणय देखो माण= (दे) |
माणव पुं [मानव] मनुष्य, मर्त्य । भगवान् महावीर का एक गण ।
माणवग
माणवय
पुं [ मानवक] अस्त्र-शस्त्रों की पूर्ति करनेवाली निधि | ज्योतिष्क महाग्रह | सौधर्म देवलोक का एक चैत्य-स्तम्भ |
मानवी स्त्री [मानवी ] एक विद्या देवी । माणस न [ मानस ] सरोवर - विशेष । मन । वि. मन का । पुं. भूतानन्द के गन्धर्व - सैन्य का
नायक ।
मासिअ वि [ मानसिक ] मन- सम्बन्धी | माणसिआ स्त्री [मानसिका ] एक विद्यादेवी ।
माणि वि [ मानिन्] मानवाला । पुं. रावण का एक सुभट । पर्वत विशेष । कूट- विशेष । मणिवि [. मानित] अनुभूत । माणिक्क न [माणिक्य ] रत्न - विशेष । माणिण देखो माणि ।
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६५८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
माणिभद्द-माया माणिभद्द पुं [माणिभद्र] यक्ष-निकाय के उत्तर , मामास पुं [मामाष] अनार्य देश-विशेष । दिशा का इन्द्र । यक्षदेवों की एक जाति । अनार्य देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति । देव-विशेष । शिखर-विशेष । एक देव- | मामि अ. सखी आमन्त्रण का अव्यय । विमान ।
मामिया) स्त्री [दे] मामा की बहू । माणिम देखो माण = मानय् ।
मामी । माणी स्त्री [मानिका] २५६ पलों का माप । माय वि [मात] समाया हुआ। माणुस पुंन [मानुष] मनुष्य । वि. मनुष्य- माय वि [मायावत्] कपटवाला । सम्बन्धी।
माय देखो मेत्त = मात्र । माणुसी स्त्री [मानुषी] स्त्री-मनुष्य । मनुष्य | माय° देखो माया = माया। से सम्बन्ध रखनेवाली।
माय° देखो मत्ता = मात्रा। °न्न वि [ज्ञ] माणुसुत्तर | पुं [मानुषोत्तर] मनुष्यलोक परिमाण का जानकार । माणुसोत्तर का सीमाकारक पर्वत । न. | मायइ स्त्री दे] वक्ष-विशेष । एक देव-विमान ।
मायंग पुं [मातङ्गभ. सुपार्श्वनाथ का शासनमाणुस्स देखो माणुस।
यक्ष । म महावीर का शासन-यक्ष । हाथी । माणुस्स , न मानुष्य, °क] मनुष्यत्व ।
चाण्डाल,डोम । माणुस्सय ।
मायंगी स्त्री [मातङ्गी] चाण्डालिन । एक माणुस्सी देखो माणुसी।
विद्या। माणूस देखो माणुस ।
मायंजण पुं [मातञ्जन] पर्वत-विशेष । माणेसर पुं [माणेश्वर, माणिभद्र यक्ष ।
मायंड पुं [मार्तण्ड] सूर्य । माणोरामा (अप) स्त्री [मनोरामा] छन्द- मायंद पुं [दे. माकन्द] आम का पेड़ । विशेष ।
मायंदिअ देखो मागंदिअ। मातंग देखो मायंग।
मायंदी स्त्री [माकन्दी] नगरी-विशेष । मातंजण देखो मायंजण।
मायंदी स्त्री [दे] श्वेताम्बर साध्वी । मातुलिंग देखो माहुलिंग।
मायण्हिया स्त्री [मृगतृष्णका] किरण में मादलिआ स्त्री [दे] माता ।
जल की भ्रान्ति, मरु-मरीचिका । मादु देखो माउ = स्त्री।
मायहिय (अप) देखों मागहिया। माधवी देखो माहवी = माधवी ।
माया = देखो माइ = मातृ । °पिइ, पिति माभाइ । पुंस्त्री [दे] अभय-दान, अभय ।
पुन [ °पितृ ] माँ-बाप । 'मह पुं. माँ का माभीसिअ न [दे] ।
बाप । वित्त देखो °पिइ । माम अ. कोमल आमन्त्रण का सूचक अव्यय ।। माया देखो मत्ता = मात्रा। माम पुं [दे] माँ का भाई।
माया स्त्री [माया] कपट, धोखा । इन्द्रजाल । मामग । वि [मामक] मदीय, मेरा ।। मन्त्राक्षर 'ह्रीं'। छन्द-विशेष । °णर पुं. मामय , ममतावाला ।
[°नर] पुरुष-वेश-धारी स्त्री-आदि । °बीय मामा स्त्री [दे] मामी।
न [°बीज] 'ह्रीं' अक्षर । °मोस पुन मामाय वि [मामाक] 'मा' 'मा' बोलनेवाला, | [मृषा] कपट-पूर्वक असत्य वचन । °वत्तिअ, निवारक।
°वत्तीय वि [°प्रत्ययिक छल-मूलक । वि
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मार-मावि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६५९ वि [°विन्] मायायुक्त।
। माली। मार सक [मारय] ताड़न या हिंसा करना। मालइ° ) स्त्री [मालती] लता-विशेष । पुष्पमार पुं ताड़न । मरण, मौत । यम । काम- | मालई विशेष । छन्द-विशेष । देव । चौथा नरक का एक नरकावास । वि. | मालंकार पुं [मालङ्कार] वैरोचन बलीन्द्र के मारनेवाला । वहू स्त्री [°वधू] रति । हस्ति-सैन्य का अधिपति ।। मार पुं. मणि का एक लक्षण ।
मालव पुं. देश-विशेष । उसका निवासी । मारग वि [मारक] मारनेवाला ।
म्लेच्छ-विशेष, आदमी को उठा ले जानेमारणअ (अप) वि [मारयितु] मारनेवाला। वाली एक चोर जाति ।। मारणंतिअ वि [मारणान्तिक] मरण के अन्त मालवंत पुं [माल्यवत्] पर्वत-विशेष । एक समय का ।
राजकुमार । परियाग, परियाय पुं मारय देखो मारग।
[°पर्याय] पर्वत-विशेष । मारा स्त्री. प्राणि-वध का स्थान, सूना। मालविणी स्त्री [मालविनी] लिपि-विशेष । मारि स्त्री. मृत्यु-दायक रोग। मारण । मौत । माला स्त्री. फूल आदि का हार । पंक्ति। समूह । मारि मार = मारय् का संकृ.।
छन्द-विशेष । °इल्ल वि [°वत्] माला मारिज ' [मारीच] रावण का एक सुभट । | वाला । कारि वि [°कारिन् । °गार वि ऋषि-विशेष ।
[°कार] माली । धर पुं. प्रतिमा के ऊपर की मारिज्जि देखो मरिइ।
रचना-विशेष । 'यार, °र देखो °कार । मारिलग्गा स्त्री [दे] कुत्सित स्त्री ।
हरा स्त्री [°धरा] छन्द-विशेष । मारिव पुंन [दे] गौरव ।।
माला स्त्री [दे] ज्योत्सना । मारिस वि [मादृश] मेरे जैसा ।
मालाकुंकुम न [दे] प्रधान कुकुम । मारी स्त्री. देखो मारि।
मालि पुंस्त्री. वृक्ष-विशेष । मारीअ पुं [मारीच] देखो मारिज ।
मालि । [मालिन्]पाताल-लंका का राजा । मारीइ । पुं [मारीचि] एक विद्याधर | मालिअ [मालिक]। देश-विशेष। वि. मारीजि सामन्त राजा । रावण का एक | माली । शोभनेवाला । सुभट ।
मालिआ स्त्री [मालिका,माला] देखो माला। मारुअ पुं [मारुत] पवन । हनूमान का पिता । | मालिज्ज न [मालीय] एक जैन मुनि-कुल । 'तणय पुं ["तनय] हनूमान । 'त्थ न | मालिणी स्त्री [मालिनी] माली की स्त्री । [°ास्त्र] वातास्त्र ।
शोभनेवाली। छन्द-विशेष । मालावाली । मारुअ वि [मारुक] मरु देश का।
मालिण्ण न [मालिन्य] मलिनता। मारुइ पुं [मारुति हनूमान ।
मालुग । पुं [मालुक] श्रीन्द्रिय जन्तुमाल अक [माल शोभना । वेष्टित होना। । मालुय । विशेष । वृक्ष-विशेष । माल पुंदे] बगीचा। मञ्च, आसन-विशेष । । मालया स्त्री [मालुका]वल्ली । वल्ली-विशेष । वि. मञ्जु ।
मालुहाणी स्त्री [मालधानी] लता-विशेष । माल पुं [दे. माल] देश-विशेष। तला, | मालूर ' [दे. मालर] कपित्थ । मंजिल । वनस्पति-विशेष ।
मालूर पुं. बेल का गाछ । न. बेल का फल । माल° देखो माला। °गार वि [°कार] | माविअ वि [मापित] मापा हुआ।
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६६० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मास-मित्र मास देखो मंस = मांस ।
स्वामी । ज्वर-विशेष । दिन का एक मुहूर्त । मास पुं. महीना । काल । पर्व-वनस्पति-विशेष। । वि. महेन्द्र-सम्बन्धी । °उस देखो 'तुस । °कप्प पुं [°कल्प] एक | माहिंदफल न [माहेन्द्रफल] इन्द्रयव । स्थान में महीना तक रहने का आचार । माहिल पुंदे] भैस चरानेवाला । °खमण न [°क्षपण] एक मास का उपवास । माहिवाय पुं [दे] शिशिर या माघ का पवन । °गुरु न. एकाशन तप । 'तुस पुं [तुष] | माहिसी देखो महिसी। एक जैन मुनि । °पुरी स्त्री. भंगी या वर्त देश | माही स्त्री [माघी] माघ मास की पूर्णिमा । की राजधानी । पूरिया स्त्री ['पूरिका] | माघ की अमावस्या । जैन मुनि-शाखा। लहु न [लघु] 'पुरि- माहुर वि [माथुर मथुरा का । मड्ढ' तप ।
| माहुर न [दे] शाक। मास पुं [माष] अनार्य-देश । उसकी मनुष्य- | माहुर वि [माधुर] मधुर रसवाला । जाति । उड़द । परिमाण-विशेष, मासा । | माहुरिअ न [माधुर्य मधुरता । °पण्णी स्त्री [°पर्णी वनस्पति-विशेष ।
| माहुलिंग पुं [मातुलिङ्ग] बीजपूर वृक्ष । न. मासल देखो मंसल।
बीजौरे का फल । मासाहस [मासाहस] पक्षि-विशेष । माहेसर वि [माहेश्वर] महेश्वर-भक्त । न. मासिअ पुं [दे] पिशुन, दुर्जन ।।
नगर-विशेष । मासिअ वि [मासिक] मास-सम्बन्धी । माहेसरी स्त्री [माहेश्वरी] लिपि-विशेष । मासिआ स्त्री [मातृष्वसृ] माँ की बहिन । नगरी-विशेष । मासु देखो मंसु = श्मश्रु ।
मि (अप) देखो अवि-अपि । मासुरो स्त्री [दे] दाढी-मूछ ।।
मि° स्त्री [मृत्] मिट्टी। प्पिड [पिण्ड] माह ' [माघ] माघ महीना । संस्कृत का एक | मिट्टी का पिंडा । °म्मय वि [°मय] मिट्टी कवि । शिशुपालवध काव्य ।
का बना । माह न [दे] कुन्द का फल ।
मिअ देखो मय = मृग । °चक्क न [°चक्र] माहण पुस्त्री [माहन, ब्राह्मण] अहिंसक--- ग्राम-प्रवेश आदि में मृगों के दर्शन से शुभाशुभ
मुनि, साधु, ऋषि । श्रावक, जैन-उपासक । | फल जानने को विद्या । °णअणी, नयणा ब्राह्मण । कुंड न [कुण्ड]मगध देश का ग्राम ।
स्त्री [°नयना] देखो मय-च्छी। °मय पुं माहप्प । पुन [माहात्म्य] महत्त्व, गौरव । [°मद] कस्तूरी । रिउ पुं[°रिपु] सिंह । माहप्पया प्रभाव । स्त्री. ।
वाहण पुं [ वाहन] भरतक्षेत्र के एक भावी माहय पु [दे] चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष । तीर्थकर । माहव पुं [माधव] श्रीकृष्ण, नारायण । वसन्त | मिअ पुं [मृग] हरिण के जैसा पशु जो हरिण ऋतु । वैशाख मास । °पणइणी स्त्री | से छोटा और जिसका पुच्छ लम्बा होता है । [प्रणयिनी] लक्ष्मी।
°लोमिअ वि [°लोमिक] उसके बालों से माहविआ) स्त्री [माधविका] [माधवी] बना । माहवी । लता-विशेष। एक राज-पत्नी। मिअ देखो मित्त = मित्र । माहारयण न [दे] कपड़ा । वस्त्र-विशेष । मिअ वि [दे] विभूषित । माहिंद पुं [माहेन्द्र] एक-देवलोक । उसका मिअ वि [मित] परिमित । थोड़ा । 'वाइ वि
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मिअ-मित्त
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [°वादिन्] आत्मा आदि पदार्थों को परिमित , पुं. । हिव पुं [धिप] सिंह । माननेवाला।
मिगया । स्त्री [मृगया] शिकार । न. मिअ देखो मिव = इव ।
मिगव्व । [मृगव्य] । मिअ° देखो मिआ। ग्गाम पुं [ग्राम] मिगसिर देखो मगसिर। ग्राम-विशेष ।
मिगावई देखो मिआ-वई। मिअआ स्त्री [मृगया] शिकार ।
मिगी स्त्री [मृगी] हरिणी। विद्या-विशेष । मिअंक पुं [मृगाङ्क] चाँद । चन्द्र-विमान । पद न. स्त्री-योनि । इक्ष्वाकुवंश का राजा । °मणि पुं. चन्द्रकान्त | मिच्चु देखो मच्चु । मणि ।
| मिच्छ (अप) देखो इच्छ = इष् । मिअंग देखो मयंग - मृदंग ।
मिच्छ पुं [म्लेच्छ] यवन, अनार्य मनुष्य । मिअसिर देखो मगसिर ।
°पहु पुं [प्रभु] म्लेच्छों का राजा। °पिय मिआ स्त्री [मृगा] राजा विजय या बलभद्र की | न [प्रिय]प्याज, लशुन । हिव ' [धिप] पत्नी । उत्त, पुत्त पुं [पुत्र] राजा विजय | यवनों का राजा। का पुत्र । राजा बलभद्र का पुत्र, बलश्री। मिच्छ न [मिथ्य] असत्य वचन । वि. झूठा । °वई स्त्री [°वती] प्रथम वासुदेव की माता। । मिथ्यादृष्टि, तत्त्व का अश्रद्धालु। राजा शतानीक की पटरानी।
| मिच्छ देखो मिच्छा। "कार पुं. मिथ्या मिइ स्त्री [मिति] मान, परिमाण ।
करण । °त्त न [ °त्व ] सत्य धर्म का मिइ देखो मिउ = मृत् ।
अविश्वास । °द्दिट्ठि, “दिट्ठीय, द्दिट्ठि, मिइंग देखो मयंग = मृदंग ।
°द्दिट्टिय वि [°दृष्टि, क°] सत्य धर्म पर मिइंद देखो मइंद = मृगेन्द्र ।
श्रद्धा नहीं रखनेवाला, जिन-धर्म से भिन्न मिउ स्त्री [मृद्] मिट्टी।
धर्म माननेवाला। मिउ वि [मृदु] कोमल । मनोज्ञ ।
मिच्छा अ [मिथ्या असत्य । मिथ्यात्व-मोहमिचण न [दे] मीचना।
नीय कर्म । प्रथम गुण-स्थानक । °दंसण न मिज° स्त्री [मज्जा] हाड़ के बीच का
[°दर्शन] सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा । असत्य मिजा अवयव-विशेष । मध्यवर्ती अवयव ।
धर्म । नाण न [°ज्ञान] विपरीत ज्ञान, मिजिय
अज्ञान । °सुअ न [°श्रुत] असत्य-मिथ्यामिठ , पुं [दे] हाथी का महावत । देखो दृष्टि-प्रणीत शास्त्र । मिठिल ) में।
मिज्ज अक [मृ] मरना। मिंढ पुंस्त्री [मेढ़] मेंढा, भेड़ । न. पुरुष-लिंग । मिज्झ वि [मेध्य] शुचि । "मुह पुं [°मुख] अनार्यदेश । न. एक नगर । मिट सक [दे] मिटाना, लोप करना। देखो मेंढ।
मिट्ठ वि [मिष्ट, मृष्ट] मीठा, मधुर । मिढिय पुं [मेण्ढिक] ग्राम-विशेष । मिण सक [मा, मी] परिमाण करना । नापना, मिग देखो मय = मृग । 'गंध पुं [°गन्ध] __ तोलना । जानना, निश्चय करना ।
युगलिक मनुष्य की जाति । 'नाह पुं मिणाय न. बलात्कार, जबरदस्ती । [नाथ] । °वइ पुं[°पति] सिंह । °वालुंकी | मिणाल देखो मुणाल। स्त्री [°वालुनी] वनस्पति-विशेष । °ारि | मित्त [मित्र] सूर्य। अनुराधा नक्षत्र का
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६६२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मित्त-मौत अधिष्ठायक देव । अहोरात्र का मुहूर्त । एक | मिलिच्छ देखो मिच्छ = म्लेच्छ । राजा । पुन. दोस्त । °केसी स्त्री [केशी] | मिलिट्र वि [म्लिष्ट] अस्पष्ट वाक्यवाला । रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी | म्लान । न. अस्पष्ट वाक्य । देवी । °गा स्त्री. वैरोचन बलीन्द्र की अग्र.
मिलिमिलिमिल अक [दे] चमकना । महिषी, एक इन्द्राणी। णंदि पुं [°नन्दिन] मिलीण देखो मिलिअ। एक राजा । °दाम पुं. एक कुलकर पुरुष ।
मिल्ल सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना । "देवा स्त्री. अनुराधा नक्षत्र । °व वि[°वत् |
| मिल्लाविअ वि [मोचित] छुड़ाया हुआ । मित्रवाला। °सेण पं [°सेन] एक पुरोहित- मिल्लिअ (अप) देखो मिलिअ । पुत्र ।
मिल्ह देखो मिल्ल । मित्त देखो मेत्त = मात्र ।
मिव देखो इव। मित्तल पुं [दे] कन्दर्प।
मिस सक [मिस्] शब्द करना । मित्ति स्त्री [मति] मान, परिमाण । सापेक्षता।
| मिस न [मिष] बहाना, छल, व्याज । मित्तिआ स्त्री [मृत्तिका] मिट्टी। °वई स्त्री
| मिसमिस अक [दे] खूब जलना या चमकना । ["वती] दशार्ण देश की राजधानी ।
मिसल (अप) सक [मिश्रय] मिश्रण करना । मित्तिज अक [मित्रीय] मित्र को चाहना । मिसल (अप) देखो मीस, मीसालिअ । मित्तिय न [मैत्रेय] वत्स गोत्र की एक शाखा। | मिसिमिस देखो मिसमिस । पुंस्त्री. उसमें उत्पन्न ।
मिसिमिसिय वि [दे] उद्दीप्त, उत्तेजित । मित्तिवय पुंदे] पति का बड़ा भाई । मिस्स सक [मिश्रय] मिश्रण करना । मित्ती स्त्री [मैत्री] दोस्ती ।
मिस्स देखो मीस = मिश्र । मिथुण देखो मिहुण।
'मिस्स पुं [°मिश्र] पूज्य । मिदु देखो मिउ।
मिस्साकूर पुंन [मिश्राकूर] खाद्य-विशेष । मिरिअ पुंन [मिरिच] मिरच, मिर्चा ।
मिह अक [मिध्] स्नेह करना । मिरिआ स्त्री [दे] झोंपड़ी।
मिह देखो मिस = मिष ।
मिह देखो मिहो। मिरी । - पुंस्त्री [मरीचि] किरण, प्रभा।
मिहिआ स्त्री [दे] मेघ-समूह ।
मिहिआ स्त्री [मेधिका]) देखो महिआ। मिरीय
मिहिर पुं. सूर्य । मिल अक [मिल्] मिलना । एकत्रित होना । | मिहिला स्त्री [मिथिला नगरी-विशेष । मिलक्खु पुन. देखो मिच्छ = म्लेच्छ ।
११ देखो मिहो। मिला । अक [म्ल] म्लान होना, निस्तेज मिहुँ । खा। मिला होना।
मिहुण न [मिथुन] स्त्री-पुरुष का युग्म । मिलाण वि [म्लान] निस्तेज, विच्छाय । ___ ज्योतिष प्रसिद्ध एक राशि । मिलाण न [दे] पर्याण (?)।
मिहो अ [मिथस्] आपस में। मिलाणि स्त्री [म्लानि] विच्छायता।
मीअ न [दे] समकाल, उसी समय । मिलिअ वि [मिलित] मिला हुआ। मेलित] | मीण पुं [मीन] मछली । राशि-विशेष । मिलाया हुआ।
। मीत देखो मित्त- मित्र ।
मिरिइ ।
मिरी
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मीमंस - मुक्कय
मीमंसक [मीमांस्] विचार करना । मीमंसा स्त्री [मीमांसा ] जैमिनीय दर्शन । मीरा स्त्री [] दीर्घ चुल्ली, बड़ा चुल्हा । मील अक [मील् ] मीचाना, सकुचाना । मील देखो मिल |
मीलच्छीकार पुं [मीलच्छ्रीकार] यवन देशविशेष | एक यवन राजा ।
मी सक [मिश्रय् ] मिश्रण करना ।
I
मीस व [ मिश्र ] संयुक्त, मिला हुआ । न. लगातार तीन दिनों का उपवास ।
मीसालिअ वि[मिश्र ] संयुक्त, मिला हुआ । मुअ क [मो] खुश करना । अ क [मुच्] छोड़ना ।
मुअ वि [मृत ] मरा हुआ । 'वहण न [ वहन] शव यान, ठठरी, अरथी ।
अवि [स्मृत] याद किया हुआ । मुअंक देखो मिअंक |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मुअण न [मोचन ] छुटकारा, छोड़ना ।
मुअल (अप) देखो मुअ = मृत । मुआ स्त्री [मृत्] मिट्टी | मुआ स्त्री [मुद्] हर्ष, आनन्द । आणी स्त्री [] डोमिन, चाण्डालिन । इवि [मोचिन् ] छोड़नेवाला । मुअवि [ मुदित] हर्षित । पुं. रावण का सुभट ।
मुअवि [] योनि-शुद्ध, निर्दोष मातावाला | अंगा देखो अंगी ।
}
मुइंद देखो मइंद = मृगेन्द्र | मुइज्जत मुअ = मोदय् का कवकृ. 1 मुइरवि [मो] छोड़नेवाला । मुउ देखो मिउ ।
अंग देखो अंग |
अंगी स्त्री [] कीटका, चींटी ।
मुंजायण पुं [ मौञ्जायन ] ऋषि - विशेष |
अग्ग पुं [दे] बाह्य और अभ्यन्तर पुद्गलों से मुंजि पुं [ मौञ्जिन् ] ऊपर देखो ।
ना आत्मा ऐसा मिथ्या ज्ञान ।
मुं वि [दे] हीन शरीरवाला ।
मुंडक [मुण्ड ] मूंडना । दीक्षा देना ।
स्त्री [दे] कीटिका, चींटी ।
मुगा
मुइंग व [ मृदङ्गन् ] मृदंग बजानेवाला ।
मुउउ ंद पुं [मुचुकुन्द] नृप-विशेष । पुष्पवृक्षविशेष |
उद [ मुकुन्द] विष्णु, नारायण । मुउर देखो मउर = मुकुर । मुउल देखो मउल = मुकुल । गायण न [ मृङ्गायण ] विशाखा नक्षत्र का गोत्र ।
६६३
मुंच देखो मुअ = मुच ।
I
मुंज पुंन [मुञ्ज ] मूंज तृण । मेहला स्त्री [मेखला ] मूंज का कटिसूत्र ।
मुंजन [ मौञ्जकिन्] गोत्र - विशेष । पुंस्त्री. गोत्र में उत्पन्न ।
मुंजकार पुं [ मुञ्जकार ] मूंज की रस्सी बनानेवाला शिल्पी ।
मुइंग देखो मिअंग । ‘पुक्खर पुंन [° पुष्कर ] मुक्क वि [मूक] गूँगा ।
मृदंग का ऊपरवाला भाग ।
मुक्क देखो मुक्कल ।
मुगलिया
मुक्त वि [मुक्त] व्यक्त । मोक्षप्राप्त । पाँच दिन उपवास । देखो मुत्त = मुक्त | मुक्कय न [ दे] दुलहिन के अतिरिक्त अन्य निम
मुंडन [मुण्ड] सिर । वि दीक्षित । परसु पुं ['परशु] नंगा या तीक्ष्ण कुठार । मुंडा स्त्री [] मृगी |
मंडी स्त्री [] नीरङ्गी, शिरो-वस्त्र, घूँघट । पुं [ मूर्धन् ] मस्तक | देखो मुद्ध = मूर्धन् ।
मुकलाव सक [ दे] भेजवाना |
मुकुर पुं. दर्पण, आईना ।
मुक्क (अप) सक [ मुच् ] छोड़ना ।
मुंढ
मुंढ
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६६४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मुक्कल-मुणि त्रित कन्याओं का विवाह ।
। मुग्घुरुड देखो मुक्करुड। मुक्कल वि [दे] उचित । स्वैर, बन्धन-मुक्त । मुचकुंद देखो मुउउंद । मुक्कलिअ वि [दे] बन्धन-मुक्त । अनियन्त्रित । मुच्छ अक [मूर्छ ] मूर्छित होना। आसक्त मुक्कुंडी स्त्री [दे] जूट ।
होना । बढ़ना। मुक्कुरुड [दे] राशि, ढेर ।
मुच्छणा स्त्री [मूर्च्छना] गान का एक अंग । मुक्केलय देखो मुक्क = मुक्त ।
मुच्छा स्त्री [मूर्छा] मोह । बेहोशी। गृद्धि, मुक्ख पुं [मोक्ष] निर्वाण । छुटकारा।
आसक्ति । मर्च्छना, गीत का एक अंग ।। मुक्ख वि [मूर्ख] अज्ञानी, बेवकूफ । मुच्छिअ वि [मूच्छित] मूर्छा-युक्त । पुं. मुक्ख वि [मुख्य] प्रधान, नायक ।
नरकावास-विशेष । मुक्ख पुंन [मुष्क] अण्डकोष । वृक्ष-विशेष । मुच्छिम पुं [मूच्छिम] मत्स्य-विशेष । चोर । वि. मांसल, पुष्ट ।
मुज्झ अक [मुह ] मोह करना । घबड़ाना । मुक्खणी स्त्री [मोक्षणी] स्तम्भन से छुटकारा मुट्टिम पुंस्त्री [दे] गवं । देखो मोट्टिम । करनेवाली विद्या-विशेष ।
मुट्ठ वि [मुष्ट] जिसकी चोरी हुई हो। मुख देखो मुह - मुख ।
मुट्ठि पुंस्त्री [मुष्टि] मूठी, मुक्का । °जुज्झ न मुख पुं. एक म्लेच्छ-जाति । गाड़ी के ऊपर का । [युद्ध] मुष्टि की लड़ाई, मृका-मकी । ढक्कन ।
पुत्थय न [पुस्तक] चार अंगुल वृत्तामुग देखो मुग्ग।
कार या चतुष्कोण पुस्तक । मुगुंद देखो मउंद = मुकुन्द ।
मुट्ठिअ ' [मौष्टिक] अनार्य-देश या मनुष्यमगंस पुंस्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले जन्तु को जाति । मुट्ठी-मल्ल । वि. मष्टि सम्बन्धी । एक जाति । देखो मंगुस, मुग्गस।
मट्रिअ पुं [मष्टिक] मल्ल-विशेष, जिसको मुग्ग पुं [मुद्ग] मूंग। रोग-विशेष । जल- बलदेव ने मारा था। अनार्य देश या मनुष्यकाक । °पण्णी स्त्री [°पर्णी] वनस्पति- जाति । विशेष । °सेल पुं[शैल] कभी नहीं भीगने- मुठ्ठिका स्त्री [दे] हिक्का, हिचकी। वाला एक पर्वत ।
मुड्ढ देखो मुंढ । मुग्गड पुं[दे] मोगल, म्लेच्छ-जाति-विशेष ।। मुड्ढ वि [मुग्ध, मूढ] मूर्ख, बेवकूफ । व्यन्तर-विशेष । देखो मोग्गड ।
मुण सक [ज्ञा, मुण्] जानना । मुग्गर न [मुद्गरं] देखो मोग्गर। मुणमुण सक [मुणमुणाय] बड़बड़ाना । मुग्गरय न [दे. मुग्धारत] मुग्धा के साथ मुणाल पुंन [मृणाल] पद्मकन्द के ऊपर की रमण।
लता । पद्मनाल । पद्म आदि के नाल का मुग्गल देखो मुग्गड।
तन्तु । वीरण का मूल । कमल । मुग्गस पुं [दे] नकुल।
मुणालि पुं[मृणालिन्] पद्म-समूह । कमलमुग्गाह अक [प्र+स] फैलना।
वाला स्थान । मुग्गिल । पुं [दे] पर्वत-विशेष । मुणालिआ । स्त्री [मृणालिका, ली] मुग्गिल्ल ।
मुणाली , बिस-तन्तु, बिस का अंकुर । मुग्गुसु देखो मुग्गस।
__ कमलिनी । देखो मणालिया।। मुग्घड देखो मुग्गड ।
मुणि पुं [मुनि] राग-द्वेष-रहित मनुष्य, संत,
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मुणि-मुमुक्खु
साधु, ऋषि यति । अगस्त्य ऋषि । सात की संख्या । छन्द-विशेष । 'चंद [ चन्द्र ] जैन आचार्य और ग्रंथकार, वादी देवसूरि के गुरु | एक राज - पुत्र | नाह पुं [नाथ ] साधुओं का नायक । पुंगव पुं [ पुङ्गव ] श्रेष्ठ-मुनि । राय पुं [° राज] । 'वइ पुं [पति ] मुनि-नायक । 'वर पुं. । 'वैजयंत पुं [वैजयन्त ] | 'सीह पुं [°सिंह]श्रेष्ठ मुनि । सुव्वय पुं [सुव्रत ] | वर्तमान काल के भारतवर्ष के बीसवें तीर्थंकर । भारतवर्ष के भावी तीर्थंकर । णि पुं [दे. मुनि] अगस्ति-दुम |
|
संकीर्ण और मध्य में विशाल | छोटा कोठा । मुत्थ त्रि [ मुस्त ] मोथा, नागरमोथा । मुदग्ग देखो मुअग्ग |
मुदा स्त्री [मुद्] खुशी | °गर वि [°कर ] हर्षजनक |
मुणिअवि [दे. मुणिक] ग्रह-गृहीत, पागल । दिपुं [ मुनीन्द्र ] श्रेष्ठ मुनि । मुणीस पुं [ मुनीश ] मुनि-नायक । मुणीसर) [मुनीश्वर ] |
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मुत्त सक [ मूत्रय् ] पेशाब करना ।
मुत्त देखो मुक्क = मुक्त | ालय पुंस्त्री. मुक्त जीवों की ईषत्प्राग्भारा पृथिवी ।
मुक्तास्त्र [ मुक्ता ] मोती । 'जाल न. मुक्तासमूह या माला | दाम न[ दामन] मोतियों की माला । वलि, वली स्त्री. मोती का हार । तप, द्वीप या समुद्र - विशेष । सुत्ति स्त्री [शुक्ति ] मोती की सीप । मुद्रा - विशेष । 'हल न [° फल] मोती । 'हलिल्ल वि [°फलवत्] मोतीवाला ।
मुद्दंग पुं [दे] उत्सव | सम्मान |
मुद्दग पुं [मुद्रिका] अँगूठी ।
मुणीसिम (अप) पुंन [ मनुष्यत्व ] मनुष्यपन । मुद्दा स्त्री [मुद्रा ] मोहर, छाप । अँगूठी | अंगपुरुषार्थ ।
विन्यास - विशेष |
मुत्ति स्त्री [ मूर्ति ] रूप, आकार । प्रतिबिम्ब, प्रतिमा, शरीर । काठिन्य । 'मंत वि[ मत्] मूर्तिवाला, मूर्त रूपी । मुत्ति स्त्री [ मुक्ति ] मोक्ष ! निर्लोभता, संतोष ।
८४
ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी । निस्संगता | मुत्ति वि [ मूत्रिन्] बहु-मूत्र रोगवाला । मुत्तिवि [मौक्तिन्] मोती पिरोने या गूंथने
६६५
वाला ।
मुत्तिअ न [ मौक्तिक ] देखो मोत्तिअ । मुत्तोली स्त्री [दे] मूत्राशय । ऊपर नीचे
मुद्दि
मुवि [मूर्त ] मूर्तिवाला, रूपवाला, आकार
स्त्री 'बंध पुं
मुद्दआ
वाला । कठिन । मूढ़ । मूर्च्छा युक्त | एक मुद्दिआ स्त्री [ मृद्वीका ] दाख,
उपवास । एक प्राण ।
मुत्त° देखो मुत्ता ।
दुग [] ग्राह-विशेष | जल-जन्तु-जाति । मुद्द क [मुद्रय् ] मोहर लगाना । बन्द करना । अंकन करना ।
मुद्दिअ वि [मुद्रित] जिस पर मोहर लगाई गई हो वह । बंद किया हुआ ।
[ मुद्रिका ] अँगूठी |
[' बन्ध] ग्रन्थि - बन्ध ।
उसकी लता ।
मुद्दी स्त्री [दे] चुम्बन । मुय देखो मुदुग ।
मुद्ध देखो मुंढ । न वि [°न्य] मस्तक में उत्पन्न । मस्तक-स्थ, अग्रेसर | मूर्धस्थानीय रकार आदि वर्ण । पुं [ज] केश | 'सूल न ['शूल ] मस्तक- पीड़ा | [] मूढ़ | सुन्दर, मोह-जनक | मुद्धा स्त्री [ मुग्धा ] नायिका का एक भेद, काम - चेष्टा-रहित अंकुरित यौवना । मुद्धा (अप) देखो मुहा | मुद्राण देखो मुंढ ।
1
मुब्भपुं [दे] घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ । मुमुक्खुवि [ मुमुक्षु ] मुक्ति की चाह वाला |
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६६६
देव ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मुम्मुइ-मुह मुम्मुइ । वि [मूकमूक] अत्यन्त मूक। मुसंढि देखो मुसुंढि। मुम्मय , अव्यक्तभाषी।
| मुसल पुंन. मूसल या मूसर । मान-विशेष । मम्मर सक [चूर्णय] चूरना, चूर्ण करना। धर पुं. बलदेव । उह पुं [°ायुध] बलमुम्मुर पुं [ दे.मुर्मुर ] करीष, गोइंठा । उसकी आग। तुषाग्नि । भस्म-च्छन्न अग्नि,
मुसल वि [दे] मांसल, पुष्ट । भस्म-मिश्रित अग्नि-कण ।
मुसलि पुं [मुसलिन्] बलदेव । मम्मुही स्त्री [मुन्मुखी] मनुष्य की ८०से९०
मुसली देखो मोसली। वर्ष तक नववी अवस्था ।
मुसह न [दे] मन की आकुलता। मुर अक [लड्] विलास करना । सक. उत्पीड़न
मुसा अ. स्त्री [मृषा] मिथ्या, असत्य भाषण । करना । जीभ चलाना। उपक्षेप करना ।
°वाद देखो °वाय । °वादि वि [°वादिन] व्याप्त करना । बोलना । फेंकना।
झूठ बोलनेवाला । °वाय पं [°वाद] असत्य मुर अक [स्फुट] खिलना ।
भाषण । मुर पुं [मुर] दैत्य-विशेष । रिउ पुं[°रिपु]।
मुसुंढि पुंस्त्री [दे] एक शस्त्र-विशेष । एक वनवेरिय [वैरिन् । °रि पुं. श्रीकृष्ण ।
स्पति। मुरई स्त्री [दे] असती, कुलटा। मुसुमूर सक [भञ्ज] भांगना, तोड़ना । मुरय पुं [मुरज] मृदंग । देखो मुरव । मुह देखो मुज्झ। मुरल पुं. ब. दक्षिण, केरल देश ।
मुह न [मुख] वदन । अग्र-भाग। उपाय । मुरव देखो मुरय । गल-घण्टिका ।
द्वार । आरम्भ । नाटक आदि का सन्धिमुरवि स्त्री [दे. मुरजिन्] आभरण-विशेष ।। विशेष । नाटक आदि का शब्द-विशेष । मुरिअ वि [दे] त्रुटित । वक्र बना हुआ। आद्य । मुख्य । शब्द, आवाज । नाटक । वेदमुरिअ पुं [ मौर्य ] क्षत्रिय-वंश । उसमें शास्त्र । प्रवेश । पुं. बड़हल का गाछ । उत्पन्न ।
°णंतग, °णंतय न [°ानन्तक] मुखमुरुंड मुिरुण्ड]अनार्य-देश । पादलिप्तसूरि के | वस्त्रिका । 'तूरय न [तूर्य] मुंह से बजाया समय का राजा । पुंस्त्री. मुरुण्ड देश का जाता वाद्य । धोवणिया स्त्री [ धावनिवासी।
निका] मुंह धोने की सामग्री, दतवन आदि । मुरुक्कि स्त्री [दे] पक्वान्न-विशेष ।
पत्ती स्त्री [°पत्री] । पुत्तिया, पोत्तिया, मुरुक्ख देखो मुक्ख = मूर्ख ।
°पोत्ती स्त्री [°पोतिका] मुखवस्त्रिका । मुरुमुंड पुं [दे] जूट, केशों की लट ।
°फुल्ल न. बड़हल का फूल । चित्रा-नक्षत्र का मुरुमुरिअ न [दे] रणरणक, उत्सुकता । संस्थान । °भंडग न [भाण्डक] मुखामुरुह देखो मुरुक्ख।
भरण । मंगलिय, मंगलीअ वि [°माङ्गमुलासिअ पुं [दे] स्फुलिंग, अग्नि-कण । लिक] खुशामदी। "मक्कडा, मक्कडिया मुल्ल (अप) देखो मुंच।
स्त्री [°मर्कटा, टिका] गला पकड़ कर मुल्ल पुंन [मूल्य] कीमत ।
मुख का वक्रीकरण । °वंत वि [°वत्] मुंहमुव (अप) देखो मुअ = मुच ।
वाला । °वड पुं [°पट] मुंह के आगे रखने मुबह देखो उव्वह = उद् + वह ।
का वस्त्र । 'वडण न [ पतन] मुंह से मुस सक [मुष्] चोरी करना ।
गिरना । °वण्ण पुं[°वर्ण] प्रशंसा। 'वास
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मुहत्थडी - मूसा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६६७
वाला पदार्थ । वीणिया स्त्री [° वीणिका ] मुँह से विकृत शब्द या वाद्य का शब्द करना । मुहड देखों मुहल । सय न [य] एक नगर | मुहत्थs स्त्री [] मुँह से गिरना ।
पुं. पान, चूर्ण आदि मुँह को सुगन्धी बनाने- | मूयग पुं [ दे. मूयक] मेवाड़ का एक तृण । मूर सक [भ] भाँगना, तोड़ना । मूग वि [भञ्जक ] भाँगनेवाला, चूरनेवाला । मूल न. जड़ । निबन्धन, कारण | आदि । आद्यकारण । समीप । नक्षत्र - विशेष | व्रतों का पुनः स्थापन | पिप्पली - मूल | वशीकरण के लिए ओषधि प्रयोग । आद्य । मुख्य । मूलधन । पैर | सूरण-कन्द | व्याख्येय ग्रन्थ । प्रायश्चित - विशेष । पुंन. मूली । 'छेज्ज वि [ 'छेद्य ] मूल नामक प्रायश्चित्त से नाशयोग्य । 'दत्ता स्त्री. शाम्ब की एक पत्नी । देव पुं. एक व्यक्ति । देवी स्त्री. लिपि - विशेष । 'नायग पुं [' नायक ] मन्दिर की मुख्य प्रतिमा । पाडि वि [ उत्पाटिन् ] मुल उखाड़नेवाला । ● बबन [बिम्ब ] मुख्य प्रतिमा । 'राय पुं [राज] गुजरात का चौलुक्य वंशीय राजा । "वंत वि ['वत् ] मूलवाला । सिरि स्त्री [श्री] शाम्बकुमार की पत्नी ।
मुहर देखो मुहल - मुखर ।
J
हरियवि [ मुखरित] वाचाल बना हुआ । मुहरोमराइ स्त्री [दे] भौं । मुलन [दे] मुख ।
मुल वि [ मुखर ] वाचाट, बकवादी । पुं. कौआ । शंख । रव पुं. कोलाहल ।
मुहा अ. स्त्री [मुधा ] व्यर्थ । 'जोवि वि [जीविन् ] भिक्षा पर निर्वाह करनेवाला । मुहिअ न] [] बिना मूल्य, मुफत में } मुहिआ स्त्री [ दे. मुधिका ] |
मुहु अ [मुहुस्] बार-बार ।
मुहुं
मुहुत्त मुहुत्ताग मुमुह देखो महुमुह ।
मुहुल देखो मुहल = मुखर । मूअ देखो मुक्क
= मूक |
अ देखो अ
मृत ।
}
पुंन [ मुहूर्त्त ] दो घड़ी का काल, अड़तालीस मिनट का समय ।
}
=
मूअल मुअल्ल
मूइंगलिया | देखो मुइंगलिया । मुइंगा
मूइल्लअ
मूल्लिअ
वि [मृत ] मरा हुआ ।
[] अन्न का एक दीर्घ परिमाण ।
मूड
मूढ
मूढ़ वि[मूढ ] मूर्ख, मुग्ध । 'नइय न [नयिक ] शास्त्र - विशेष । स्त्री [°विसूचिका] रोग-विशेष । सुण न [ मौन ] चुप्पी ।
विसूइया
मुलग मूलय
}
वि [दे. मूक] मूक, वाक् शक्ति से मूलिगा स्त्री [ मूलिका ] ओषधि - विशेष । हीन । मूलिय न [ मौलिक ] मूलधन, पूँजी ।
मूलिल्ल वि [ मूल, मौलिक ] प्रधान, मुख्य । मुलिल्ल वि [ मूलवत् ] मूलघनवाला । मुली स्त्री वशीकरण की एक ओषधि । मूस देखो मुस = मुष् ।
न [ मूलक] कन्द-विशेष, मूली, मुरई । शाक- विशेष ।
मूलगत्ति स्त्री [ मुलगतिका ] मूले—मूली की पतली फाँक |
मूलवेलि स्त्री [दे. मूलवेलि] घर के छप्पर का आधारभूत स्तम्भ - विशेष ।
मुसग पुं [ मूषक, मूषिक ] चूहा । मूसय
मूसरि वि [ दे] भग्न, भाँगा हुआ । मूसल वि [दे] उपचित | मूसल देखो मुसल = मुसल | मुसा देखो मुसा ।
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६६८
मूसा स्त्री [ मूषा ] मूस, धातु गलाने का पात्र । मूसा ) स्त्री [दे] छोटा दरवाजा | मूसाअ
}
मूस देखो मूसय । रिपुं. मार्जार । अ. मेरा । मुझसे ।
न. ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मेअ पुं [मेद] अनार्य देश-विशेष या जाति । पुंस्त्री. चाण्डाल । स्त्री. मेंई ।
अवि [य] जानने योग्य, प्रमेय पदार्थ | नापने योग्य । न वि [' ज्ञ] पदार्थ- ज्ञाता । मेअ पुंन [मेदस्] शरीर स्थित चर्बी । मेअज्ज न [दे] अन्न ৷
अज्ज पुं [मेदार्य ] मैदार्य गोत्र में उत्पन्न | अज्ज पुं [मेतार्य ] भगवान् महावीर का दसवाँ गणधर । एक जैन महर्षि । अय वि [मेचक ] कृष्ण-वर्ण । अरवि[] असहिष्णु । मेअल पुं [मेकल ] पर्वत- विशेष | स्त्री [कन्या ] नर्मदा नदी । मेअवाडय पुंन [मेदपाटक] मेवाड़ |
सामि
मेइणि स्त्री [मेदिनी] पृथिवी । चाण्डामेइणी लिन । 'नाह पुं [नाथ ] राजा । °पइ ं [°पति] राजा । चाण्डाल | पुं [°स्वामिन्] । °सर पुं. [श्वर] मेंठ पुं [दे] महावत | देखो मिठ । मेंठी स्त्री [दे] मेषी, गड़रिया ।
राजा ।
मेंढ पुंस्त्री [मेढू] भेड़, गाड़र । मुह [° मुख] एक अन्तद्वप | उसकी मनुष्य जाति । विसाणा स्त्री ['विषाणा] मेढाशिंगी वनस्पति | देखो मिढ । मेखला देखो मेहला ।
मेघ देखो मेह | 'मालिणी स्त्री [मालिनी] नन्दन वन के शिखर की एक दिक्कुमारी देवी । 'वई स्त्री [ती] एक दिक्कुमारी देवी | वाहण पुं [वाहन] एक विद्याधर राजकुमार ।
मेघंकरा स्त्री [मेघङ्करा ] एक दिक्कुमारी
देवी |
मेच्छ देखो मिच्छ = म्लेच्छ ।
मेज्जन [य] मान- तौल, जिससे मापा जाय ।
| मेज्ज देखों मेअ = मेय |
मेज्झ देखो मिज्झ ।
मेट देखो मिट |
मेडंभ पुं [दे] मृग-तन्तु । मेडय पुं [दे] मजला, तला । मेड्ढ देखो मेंढ |
मेढ पुं [] वणिक् को मदद करनेवाला । मेढक पुं [दे] काष्ठ का छोटा डंडा । मेढि पुं [मेथि] खले के बीच का काष्ठ, जहाँ पशु बाँध कर धान्य-मर्दन किया जाता है । आधार स्तम्भ । भूअ वि [भूत] आधार
मध्य में स्थित ।
सदृश । नाभि भूत, मेणआ
कन्ना | मेणक्का
मूसा - मेलाय
स्त्री
[मेनका ]
हिमालय की
पत्नी । स्वर्ग की एक वेश्या । मेत्त न [ मात्र ] संपूर्णता । अवधारण । मत्तल [ दे] देखो मित्तल । ती स्त्री [मैत्री] दोस्ती ।
या देखो मेहुण । मेर (अप) वि [ मदीय] मेरा ।
मेरग पुं [मेरक, मैरेयक ] तृतीय प्रतिवासुदेव राजा । पुंन. मद्य-विशेष । वनस्पति का त्वचा - रहित टुकड़ा।
मेरा स्त्री [दे. मिरा] मर्यादा ।
मेरा स्त्री. तृण-विशेष, मुञ्ज की सलाई । दशवें चक्रवर्ती की माता ।
मेरु पुं. पर्वत - विशेष । छन्द - विशेष । कोई भी पहाड़ ।
मेल सक [मेलय् ] मिलाना | इकट्ठा करना । मेल पुं. मिलाप, संयोग, मिलन । मेलय पुं [मेलक] सम्बन्ध, संयोग । मेला । मेलव क [मेलय्, मिश्रय् ] मिलाना, मिश्रण
करना ।
मेला अक [मिल्] एकत्रित होना ।
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मेलाव - मोअग
मेलाव देखो मेलव |
मेलाव पुंन [मेल ] मिलाप, संगम । मेलावग देखो मेलय ।
मेलावड (अप) देखो मेलय । मेलावय देखो मेलावग । मेली स्त्री [दे] संहति, मेला । मेलीण देखो मिलीण । मेल्ल देखो मिल्ल |
मेल्लावयवि [मोचित] छुड़वाया हुआ ।
मेव देखो एव ।
मेवाड देखो मेअवाडय | मेवाढ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मेस पुं [मेष] मेंढा, भेड़ । राशि- विशेष | मेह पुं [मेघ] जलघर । कालागुरु सुगन्धी धूप- द्रव्य । भ. सुमतिनाथ का पिता । एक जैन-महर्षि । राजा श्रेणिक का एक पुत्र 1 एक देव-विमान । छन्द-विशेष । एक वणिक्-पुत्र । एक जैनमुनि | देव- विशेष । मुस्तक, ओषधि । एक राक्षस । राग-विशेष । एक विद्याधरनगर । 'कुमार पुं. श्रेणिक का पुत्र । °ज्झाण पुं [°ध्यान]राक्षसवंशीय लंकापति । 'अ पुं [नाद] रावण पुत्र । पुर न. वैताढ्य के दक्षिण का एक नगर । मुह पुं [°मुख] देव-विशेष । एक अन्तद्विप । उसका निवासी । रव नं. विन्ध्य-स्थली का जैन तीर्थ । वाण [ वाहन ] लंका का राजा । राक्षस वंश का आदिपुरुष । रावण का पुत्र | 'सीह पुं [°सिंह] विद्याधर- वंश का राजा । देखो मेघ ।
मेह पुं. सेचन । प्रमेह रोग | मेरा देखो मेघंकरा ।
मेहच्छीर न [दे] जल ।
मेहण न [ मेहन] झरन । मूत्र । पुरुष लिंग । मेहर पुं [दे] गाँव का मुखिया । मेहरि पुंस्त्री [] काष्ठ-कीट, घुन । मेहरिया | स्त्री [दे] गानेवाली स्त्री । मेहरी
६६९
मेहलय पुंब. [ मेखलक ] देश-विशेष । मेहला स्त्री [मेखला ] काञ्ची, करधनी । मेहलिज्जिया स्त्री [ मेखलिया ] एक जैन मुनि शाखा ।
मेहा स्त्री [ मेघा ] चमरेन्द्र की महिषी इन्द्राणी |
मेहा स्त्री [ मेधा ] बुद्धि, मनीषा, प्रज्ञा । "अरवि[°कर ] बुद्धि-वर्धक । पुं. छन्दविशेष |
हा स्त्री [मेधा] अवग्रह- ज्ञान । महावई देखो मेघ - aई ।
महावण न [ मेघवर्ण] विद्याधर नगर । मेहविवि [मेधाविन्] बुद्धिमान्, प्राज्ञ । मेहि देखो मेढि ।
मेहि वि [मेहिन्] प्रस्रवण करनेवाला । मेहिय न [मेधिक ] एक जैन मुनि कुल । मेहिल पुं [मेधिल ] भगवान् पार्श्वनाथ के वंश का एक जैन मुनि । मेहुण न [ मैथुन ] रति क्रिया । मेहुणय पुं [ दे] फूफा का लड़का । मेहुणिअ पुं [दे] मामा का लड़का । मेहुणिया स्त्री [ दे] साली । मामा मेहुन्न देखो मेहुण । मेरेअ न [ मैरेय ] मद्य-विशेष ।
पुत्री ।
मो अ इन अर्थों का सूचक अव्यय - अवधारण, निश्चय । पाद-पूर्ति |
मोअ सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना । मोअ सक [मोचय्] छुड़वाना । मोअ पुं [मोद] हर्ष, खुशी ।
मोअ वि [] अधिगत । पुं. चिर्भट आदि का बीजकोश | पेशाब | 'पडिमा स्त्री [प्रतिमा ] प्रस्रवण का नियम । मोअइ पुं [मोचक] वृक्ष-विशेष | मोअग वि [मोचक ] मुक्त करनेवाला । मोअग पुं [ मोदक ] लड्डू, मिष्टान्न विशेष | न. एक छन्द | देखो मोदअ ।
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६७०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
मोअणा स्त्री [मोचना ] परित्याग | छुटकारा । मोट्टाय अक [रम् ] क्रीड़ा करना ।
मुक्त कराना ।
मोअय देखो मोअग ।
मोआ स्त्री [मोचा] कदली वृक्ष । मोआव सक [मोचय्] छुड़वाना । मोइल पुं [दे] मत्स्य-विशेष ।
मोंड देखो मुंड = मुण्ड । मोक पुं [मो] सर्प-कंचुक | मोकल्ल सक [दे] भेजना । मोक्क देखो मुक्क - मुक्त मोक्कणिआ
मोक्क}
स्त्री [दे] कृष्ण कणिका, कमल का काला मध्य भाग ।
मोक्कल देखो मोकल्ल ।
मोक्कल देखो मुक्कल ।
मोक्कलय व [] प्रेषित । विसृष्ट ।
मोक्ख देखो मक्ख = मोक्ष | मोक्ख देखो मुक्ख = मूर्ख | मोक्ख न [ दे] वनस्पति- विशेष । मोग्गड पुं [दे] देखो मुग्गड मोग्गर पुं [दे] मुकुल, कलिका, बौर । मोग्गर पुं [मुद्गर] मुगरा, मोगरी । कमरख का पेड़ | मोगरा पुष्प का गाछ । मुग्गर । पाणि पुं. एक जैन महर्षि । मोग्गरिवि [] संकुचित, मुकुलित ।
देखो
मोग्गलायण } न [ मौद्गलायन, 'ल्या° ]
मोग्गल्लायण गोत्र - विशेष । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न ।
मोग्गाह देखो मुग्गाह । मोघ देखो मोह
मोघ । मोच देखो मोअ = मोचय् ।
मोचन [ दे] अर्धजंघी, एक प्रकार का जूता । मोच देखो मोअ = (दे) 1
मोचग देखो मोअग = मोचक । मोट्टाइअ न [र] रति-क्रीड़ा | मोट्टाइअ न [ मोट्टायित] प्रियकथा आदि में भावना से उत्पन्न चेष्टा ।
मोट्टिन [] बलात्कार | देखो मुट्टिम । मोड सक [ मोटय् ] मोड़ना, टेढ़ा करना । भाँगना ।
मोड पुं [दे] जूट, लट 1 मोडग व [मोटक] मोड़नेवाला । मोढ पुं. एक वणिक् कुल । मोढेरयन [ मोढेरक ] नगर - विशेष । मोण न [ मौन] मुनिपन, चुप्पी । 'चर वि. मौन व्रतवाला । पय न [[पद] संयम, चारित्र ।
मोणावणा स्त्री [दे] प्रथम प्रसूति के समय पिता की ओर से उत्सव पूर्वक निमन्त्रण | मोत्त देखो मुत्त = मुक्त | मोत्ता देखो मुत्ता ।
मोत्ति देखो मुत्ति = मुक्ति ।
मोत्ति देखो मुत्तिअ मोती । दाम न. छन्दविशेष |
मोत्तुं मुंच = मुच् का संकृ. ।
मत्त मुंच का . ।
मोत्थ देखो मुत्थ ।
मोदअ देखो मोअग = मोदक | मोब्भ [दे] देखो मुब्भ । मोर पुं [दे] चाण्डाल ।
मोअणा-मोरी
मोर पुं. मयूर, छन्द - विशेष | 'बंध j['बन्ध] एक प्रकार का बन्धन ।° सिहा स्त्री ['शिखा ] एक महौषधि ।
मोरउल्ला मोरकुल्ला
मोरंड पुं [दे] तिल आदि का मोदक खाद्य । मोरग वि [ मायूरक] मयूर के पिच्छों से निष्पन्न |
}
अ. व्यर्थ |
मोरत्तय पुं [दे] श्वपच ।
मोरिय पुं [ मौर्य ] क्षत्रिय वंश । उसमें उत्पन्न । '' [पुत्र] महावीर का एक गणधर । मोरी स्त्री. मोरनी । विद्या - विशेष ।
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मोलग-याव
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मोलग पु [दे.मोलक] बाँधने का खूटा। से वश करना । वशीकरण मंत्र । काम का मोलि देखो मउलि।
एक बाण । प्रेम । मैथुन । वि. व्याकुल बनाने मोल्ल देखो मुल्ल।
वाला । मोहक । मोस पु [मोष]चोरी । चोरी का माल । मोहणिज्ज वि [मोहनीय] मोहजनक । न. मोस पुन [मृषा] झूठ, असत्य भाषण । मोह का कारण-भूत कर्म। मोसण वि [मोषण] चोरी करनेवाला। मोहणी स्त्री [मोहनी] एक महौषधि । मोसलि । स्त्री [दे. मुशली, मौशली] मोहर न [मौखर्य] वाचाटता, बकवाद । मोसली , वस्त्रादि निरीक्षण करते समय
मोहर । वि [मौखर] बकवादी । मूसल की तरह ऊँचे या नीचे भीत आदि स्पर्श करने का एक दोष ।
मोहरिअ ) वि [मौखरिक]। मोसा देखो मुसा।
मोहरिअ न [मौखर्य] वाचालता । मोह सक [मोहय] भ्रम में डालना। मुग्ध | मोहिणी स्त्री [मोहिनी] छन्द-विशेष । करना।
मोहिय वि [मोहित] मुग्ध किया हुआ । न. मोह देखो मऊह ।
| निधुवन, मैथुन । मोह वि [मोघ] निष्फल, निरर्थक । मिथ्या। मोहुत्तिय वि [मौतिक] ज्योतिष का ज्ञाता। मोह पु. मूढता । विपरीत ज्ञान । चित्त की | मौलिअ देखो मोरिय । व्याकुलता। राग । काम-क्रीड़ा। मूर्छा। म्मि अ. पाद-पूर्ति में प्रयुक्त अव्यय । मोहनीय कर्म।
म्मिव देखो इव । मोहण न [मोहन] मुग्ध करना । मन्त्र आदि । म्हस देखो भंस = भ्रंश् ।
य पुं. तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष, | °यण्ण देखो कण्ण = कर्ण । अन्तस्थ यकार।
यत्तिअ वि [यात्रिक] यात्रा करनेवाला । य अ [च] हेतु-सूचक अव्यय । देखो च = अ यदावि अ [यद्यपि] अभ्युपगम-सूचक अव्यय, य देखो 'ज।
स्वीकार द्योतक निपात । °य वि [°द] देनेवाला ।
यन्नोवइय देखो जण्णोवईय । यउणा देखो जउणा।
यम देखो जम = यम । यंच सक [अञ्च] गमन या पूजा करना। °यर देखो कर = कर । यंत वि [यत] उद्योगी।
यल देखो तल = तल । यंद देखो चंद।
या देखो जा = या । °यक्क देखो चक्क ।
याण सक [ज्ञा] जानना । यड देखो तड = तट ।
याण देखो जाण = यान । यण देखो जण = जन ।
याल देखो काल। यणद्दण (अप) देखो जणद्दण।
याव (अप) देखो जाव = यावत् ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष यावदट्ठ-रंगण यावदट्ठ वि [यावदर्थ] यथेष्ट ।
चिश (मा) , देखो चिट्ठ = स्था। युत्त देखो जुत्त = युक्त ।
चिश्त (4) , चि-शदि(शाकारी भाषा) यव । (पै. मा) देखो एव।
य्येव (शौ) देखो एव। येव ।
य्येव्व देखो येव ।
र पुं. मूर्ध-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण । गण पुं. रइआव सक [रचय] बनवाना ।
मध्यलघु अक्षरवाले तीन स्वरों का समुदाय । रइगेल्ल वि [दे] अभिलषित । र अ. पाद-पूरक अव्यय।।
रइगेल्ली स्त्री [दे] रति-तृष्णा । र अ[दे] निश्चय-सूचक अव्यय ।
रइज्जत रय = रचय का कवकृ. । रइ स्त्री [रति] काम-क्रीड़ा । कामदेव की रइलक्ख न [दे] जघन, नितम्ब ।
स्त्री । प्रेम । कर्म-विशेष । पद्मप्रभ की मुख्य रइलक्ख न [दे. रतिलक्ष] मैथुन । शिष्या। पुं.भूतानन्द इन्द्र का एक सेनापति । रइल्लिय वि [रजस्वल] रज से युक्त, रज
अर, °कर वि. रति-जनक । पुं. पर्वत- वाला। विशेष । °कीला स्त्री [°क्रीडा] । केलि रइवाडिया देखो राय-वाडिआ। स्त्री. काम-क्रीडा। घर न [°गृह] विलास- रईसर पुं [रतीश्वर] कामदेव । गृह । °णाह, 'नाह पुं[°नाथ] । °पहु पुं रउताणिया स्त्री [दे] पामा, खुजली । [प्रभु] कामदेव । °प्पभा स्त्री [प्रभा] रउद्द देखो रोद्द = रौद्र । किन्नर इन्द्र की अग्रमहिषी। °प्पिय पुं. रउरव वि [रौरव]भयंकर । °काल पुं. माता [°प्रिय] कामदेव । एक इन्द्र । किन्नर देवों के उदर में पसार किया जाता समय-विशेष । की एक जाति । °प्पिया स्त्री [°प्रिया] रउस्सल वि [रजस्वल] रजो-युक्त, धूलिवानव्यन्तरों के इन्द्र-विशेष की अग्र-महिषी। युक्त। °भवण न [°भवन] कामक्रीडा-गृह । °मंत रओ देखो रय = रजस् । वि [°मत्] राग-जनक । पुं. कन्दर्प । मंदिर रंक वि [रङ्क] गरीब, दीन । न [°मन्दिर] शयन-गृह । °रमण पुं. काम- रंखोल अक [दोलय] झूलना। हिलना, देव । लंभ पुं[°लम्भ] सुरत की प्राप्ति । चलना, काँपना। कामदेव । 'वइ पुं [पति] कामदेव । विद्धि | रंग अक [रङग] इधर-उधर चलना स्त्री [वृद्धि] विद्या-विशेष । °सुंदरी स्त्री रंग सक [रङ्गय्] रंगना। [°सुन्दरी] एक राजकन्या। °सुहव पुं रंग वि [राङ्ग] रंगा हुआ। [सुभग] कामदेव । °सेणा स्त्री [°सेना] | रंग न [दे] राँगा, धातु-विशेष, सीसा । किन्नरेन्द्र की अग्र-महिषी। हर न [गृह] | रंग पं [रङ्ग] राग। नाट्यशाला । युद्धशयन-गृह, सुरतमन्दिर ।
मण्डप । संग्राम । लाली । वर्ण । रंगना, रइ पुं[रवि सूर्य ।
रंजन । °अ वि [°द] कुतूहल-जनक । विलि रइअ वि [रचित] बनाया हुआ, निर्मित। स्त्री [°आवलि] रंगोली। रइअ वि [रचित] महल की पीठ-भित्ति । । रंगण न [रङ्गन] राग, रंगना । पुं. जीव ।
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रंगिल्ल-रज्जु
रंगिल्ल वि [रङ्गवत्] रंगवाला ।
रंज सक [रञ्जय्] रँग लगाना । खुशी करना । रागयुक्त करना ।
रंजग वि [रञ्जक] रञ्जन करनेवाला । रंजण न [रञ्जन] रँगना । खुशी करना । पुं. छन्द - विशेष | वि. खुशी करनेवाला, राग
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जनक ।
रंजण पुं [दे] घड़ा | कुण्डा, पात्र विशेष । रंडा स्त्री [रण्डा ] राँड़, विधवा ।
अन [] रज्जु, रस्सी ।
रंध सक [रध्, राधय् ] राँधना, पकाना । रंधन [ रन्ध्र ] छिद्र, विवर ।
रंधण न [ रन्धन, राधन] राँवना । पचन | रसोइघर । 'घर न [गृह] पाकगृह । रंप सक [तक्ष्] छिलना, पतला करना । रंफ देखो रंप
रंभ अक [गम्] जाना ।
रंभ देखो रंफ |
रंभ सक [आ + रभ्] आरम्भ करना । रंभ पुं [] आन्दोलन, हिंडोले का तख्ता 1 रंभा स्त्री [ रम्भा ] कदली । एक अप्सरा । वैरोचन बलीन्द्र की अग्र-महिषी । रावण की पत्नी |
रक्ख सक [रक्ष्] रक्षण या पालन करना । रक्ख पुंन [रक्षस्] राक्षस ।
रक्ख वि [रक्ष] रक्षक । पुं. एक जैन मुनि । रक्खअ वि [ रक्षक ] रक्षण कर्ता ।
रक्खग
रक्खणिया स्त्री [दे] रखात । रक्खवाल वि [दे] रखवाला ।
रक्खस पुं [ राक्षस ] देवों की एक जाति । विद्याधर- मनुष्यों का एक वंश । उसमें उत्पन्न मनुष्य, एक विद्याधर जाति । निशाचर, क्रव्याद | अहोरात्र का तीसवाँ मुहूर्त्त । 'उरी स्त्री ["पुरी ] | 'णअरी स्त्री | ['नगरी] लंका नगरा । णाह पुं [ 'नाथ ]
८५
६७३
राक्षसों का राजा । त्थ न [स्त्र] अस्त्रविशेष | दीव पुं [° द्वीप ] सिंहल द्वीप | नाह देखो णा । वइ पुं [पति ] | वपुं [प] राक्षसों का मुखिया । रक्खसिंद पुं [ राक्षसेन्द्र ] राक्षसों का राजा । रक्खसी स्त्री [राक्षसी ] राक्षस की स्त्री । लिपि - विशेष |
रक्खसेंद देखो रक्खसिंद |
रक्खा स्त्री [रक्षा] रक्षण, पालन । राख । रक्खअ वि [रक्षित ] पालित । पुं. एक प्रसिद्ध जैन महर्षि । रक्ख देखो रक्खसी ।
रक्खी स्त्री [रक्षी ] भ० अरनाथ की मुख्य साध्वी । Raatar a [ रक्षोपग] रक्षण में तत्पर । रगिल्ल [दे] देख रइगेल्ल । रग्ग देखो रत्त = रक्त |
रग्गय न [दे] कुसुम्भ-वस्त्र ।
रघु पुं [ रघुष] हरिवंश का एक राजा । रच्च अक [दे. रज्] राचना, आसक्त होना ।
रच्छा देखो रक्खा ।
रच्छा स्त्री [रथ्या] मुहल्ला । रच्छामय पुं [दे. रथ्यामृग ] श्वान | रज देखो रय = रजस् ।
रजग पुंस्त्री. धोबी । स्त्री की । रजय देखो रयय = रजत ।
रज्ज अक [रन् ] अनुराग करना । रंगाना । रज्ज न[राज्य]राज । शासन । पालिया स्त्री [पालिका ] एक जैन मुनि शाखा । वइ पुं [ पति ] राजा । 'सिरी स्त्री [ श्री ] राज्यलक्ष्मी । हिसे [Tभिषेक ] राजगद्दी
पर बैठाने का उत्सव | रज्जव पुंन. नीचे देखो ।
रज्जु स्त्री रस्सी । एक प्रकार का नाप । रज्जु वि [ दे] लेखक | सभा स्त्री. लेखकगृह । शुल्क-गृह ।
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६७४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रज्झिय-रद्ध रज्झिय देखो रहिअ = रहित ।
स्त्री °च्छी। पुं. महिष । 'ट्र पुं [°ार्थ] रट्ट न [राष्ट्र] देश, जनपद । °उड, कूड पुं | विद्याधरवंशी राजा । °धाउ [ धातु]कुण्डल
[°कूट] राज-नियुक्त प्रतिनिधि, सूबेदार । पर्वत का शिखर । °पड पुं[°पट]परिव्राजक । रट्रिअ वि [राष्ट्रिय] देश-सम्बन्धी । पुं. नाटक प्पवाय पुं [प्रपात] द्रह-विशेष । 'प्पह में राजा का साला।
पुं[प्रभ] कुण्डल-पर्वत का एक शिखर । रटिअ पुं [राष्ट्रिक] देश की चिन्ता के लिए °रयण न [°रत्न] पद्म-राग मणि रत्न । नियुक्त राज-प्रतिनिधि, सूबेदार ।
°वई स्त्री [°वती] एक नदी । °वड देखो रड अक [रट] रोना । चिल्लाना।
°पड। °सुभद्दा स्त्री [°सुभद्रा] श्रीकृष्ण की रडरडिय न [रटरटित] वाद्य-विशेष की भगिनी । °सोग, सोय पुं [शोक] आवाज ।
लाल अशोक का पेड़। रडिय न [रटित] रोना । आवाज करना, | रत्त [रात्र] रात । शब्द-करण । चीख । वि. झगड़ालू ।
रत्तंदण न [रक्तचन्दन] लाल चन्दन । रड्डु वि [दे] खिसक कर गिरा हुआ ।
रत्तक्खर न [दे] सीधु, मद्य-विशेष । रड्डा स्त्री [रड्डा] छन्द-विशेष ।
| रत्तच्छ पुं [दे] हंस । व्याघ्र । रण पुंन. संग्राम । पुं. आवाज । °खंभउर न रत्तडि (अप) देखो रत्ति - रात्रि । [°स्तम्भपुर] अजमेर के समीप का प्राचीन | रत्तय न [दे. रक्तक] बन्धूक वृक्ष का फूल । नगर।
रत्ता स्त्री [रक्ता] एक नदी । °वइप्पवाय पुं रणक्कार पुं [रणत्कार] शब्द-विशेष ।
[°वतीप्रपात] द्रह-विशेष । रणझण अक [रणझणाम्] 'रन्-झन्' आवाज |
| रत्ति स्त्री [दे] आज्ञा । करना।
रत्ति स्त्री [रात्रि] रात । अंधय वि रणरण अक [रणरणाय] 'रन्-रन्' आवाज | [अन्धक] रात को नहीं देख सकने वाला । करना।
°अर वि [°चर] रात में विहरनेवाला । पुं. रणरण । [. रणरणक] निःश्वास ।
राक्षस । °दिवह न [°दिवस] रात-दिन । रणरणय ) उद्वेग, अधृति । उत्कण्ठा । देखो राइ = रात्रि। रणिअ न [रणित] शब्द, आवाज ।
रत्तिचर देखो रत्ति = अर । रणिर वि [रणित] आवाज करनेवाला।।
रतिदिअह । न [रात्रिदिवस] रात-दिन । रण्ण न [अरण्य] जंगल ।
रतिदिय निरन्तर । न [रात्रिन्दिव] । रत्त पुं [रक्त] लाल रंग । कुसुंभ । हिज्जल का | रत्तिदिव पेड़ । न. कुंकुम । ताम्र । सिंदूर । हिंगुल । | रतिध वि [रात्र्यन्ध] जो रात में न देख खून । राग । वि. रंगा हुआ । लाल रंग- सकता हो वह । वाला। अनुराग-युक्त । °कंबला स्त्री | रत्तीअ पुंदे] नापित, हजाम । [°कम्बला]मेरु पर्वत के पण्डक वन की शिला, रत्तप्पल न [रक्तोत्पल] लाल कमल । जिसपर जिनदेवों का अभिषेक किया जाता | रत्तोआ स्त्री [रक्तोदा] एक नदी। है। °कूड न [कूट] शिखर-विशेष । | | रत्तोप्पल देखो रत्तुप्पल। °कोरिटय पुं [°कुरण्टक] वृक्ष-विशेष । | रत्था देखो रच्छा।
क्ख, °च्छ वि [°क्ष] लाल आँखवाला। रद्ध वि [रद्ध, राद्ध] राँचा हुआ, पक्व ।
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रद्धि-रयण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६७५
रद्धि वि [दे] प्रधान, श्रेष्ठ ।
| रयग देखो रयय = रजक । रप्प सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना। रयण न [रजन] रंगना। रप्फ पुं [दे] वल्मीक । रोग-विशेष ।
रयण वि [रचन] करनेवाला, निर्माता । रप्फडिआ स्त्री [दे] गोधा, गोह ।
रयण पुं [रदन] दाँत । रब्बा वि [दे] राब, यवागू । रभस देखो रहस- रभस ।
रयण पुन [रत्न] माणिक्य, मणि आदि । रम अक [रम्] क्रीड़ा या संभोग करना ।
स्वजाति में श्रेष्ठ । छन्द-विशेष । द्वीप-विशेष । रमण न. क्रीड़ा । संभोग । स्मर-कूपिका । पुं.
पर्वत-विशेष का एक कूट । पुं. ब. रत्न-द्वीप जघन । पति । छन्द-विशेष ।
का निवासी । °उर न [°पुर] नगर-विशेष । रमणिज्ज वि [रमणीय] सुन्दर । न. एक
'चित्त पुं [°चित्र विद्याधर वंश का राजा । देव-विमान । पुं. नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में
°दीव पुं [ द्वीप] द्वीप-विशेष । निहि पुं उत्तर दिशा की ओर स्थित एक अञ्जन
[°निधि] समुद्र । 'पुढवी स्त्री [°पृथ्वी]
रत्नप्रभा नामक पहली नरक-पृथिवी । पुर गिरि। रमणी स्त्री. नारी । एक पुष्करिणी ।
देखो °उर । °प्पभा, 'प्पहा स्त्री [°प्रभा] रमणीअ वि रमणीय] मनोरम ।
पहली नरक-भूमि । भीम राक्षसेन्द्र की पट
रानी । रत्न का तेज । °मय वि. रत्नों का रमा स्त्री. लक्ष्मी ।
बना हुआ। °माला स्त्री. छन्द-विशेष । रमिअ वि [रमित रमाया हुआ ।
°मालि पुं [°मालिन्] विद्याधर-वंश में रम्म वि [रम्य] मनोरम । पुं. एक प्रान्त ।
उत्पन्न नमिराज का पुत्र । °मुस वि [°मुष्] चम्पक का गाछ । न. एक देव-विमान !
रत्न चुरानेवाला । °रह पूं [°रथ] विद्यारम्मग । पुं [रम्यक] प्रान्त-विशेष । एक
धर वंश का राजा। रासि पुं [राशि] रम्मय , युगलिक-क्षेत्र, जम्बू-द्वीप का वर्ष
समुद्र । 'वई पुं [ पति] रत्नों का मालिक, विशेष । न. एक देव-विमान । पर्वत-विशेष
धनी । °वई स्त्री [°वती] एक रानी । वज्ज का एक कूट ।
पुं [°वन] विद्याधर-वंशीय राजा । वह वि. रम्ह देखो रंफ।
रत्नधारक । °संचय न. रुचक पर्वत का कूट । रय सक [रज्] रँगना।
एक नगर । °संचया स्त्री. मंगलावती नामक रय सक [रचय] बनाना । निर्माण करना। विजय की राजधानी । ईशानेन्द्र की वसुन्धरा रय पुन [रजस्] धूल । पुष्प-रज । सांख्य- इन्द्राणी की राजधानी । समया स्त्री. मंगलादर्शन में प्रकृति का एक गुण । बध्यमान वती विजय की राजधानी। °सार पुं. एक कर्म । °त्ताण न [°त्राण] जैन मुनि का राजा । एक सेठ। °सिंह पुं. संवेगचूलिकाउपकरण । "स्सला स्त्री [°स्वला] ऋतुमती | कुलक के कर्ता जैन आचार्य । सिंह पुं[°शिख] स्त्री। हर पुन. । हरण न जैन मुनि का | एक राजा । °सेहर पुं[शेखर] एक राजा। एक उपकरण ।
पनरहवीं शताब्दी के जैन आचार्य और ग्रंथरय वि [रत] आसक्त । स्थित । न. रति- कार । °अर, °गर [कर] रत्न की कर्म।
खान । समुद्र । भिा स्त्रो [°भा] देखो रय पुं. वेग।
°प्पभा। °मय देखो 'मय, “यरसुअ पुं रय देखो रव।
[°करसुत] चन्द्रमा । एक वणिक्-पुत्र ।
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६७६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रयणप्पभिय-रस विलि, °ावली स्त्री. रत्नों का हार । तप. [°पात्र]चाँदी का बरतन ITमय वि [°मय] विशेष । ग्रन्थ-विशेष । एक विद्याधर-राज- चांदी का बना हुआ । कन्या। "वह न. नगर-विशेष । सव पुं। रयय पुं [रजक] धोबी। [स्रव रावण का पिता । "सवराअ पुं रयवली स्त्री [दे] बाल्य । [स्रवसुत] रावण । °हिय वि [°ाधिक] रयवाडी देखो राय-वाडिआ। ज्येष्ठ ।
रयाव सक [रचय्] बनवाना । रयणप्पभिय वि [रात्नप्रभिक] रत्नप्रभा- रल्ला स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकांगनी । सम्बन्धी।
। रल्लि पुंस्त्री [दे] लम्बा मधुर शब्द । रयणा स्त्री [रचना निर्माण, कृति । रव सक [रु] कहना, बोलना। वध करना । रयणा स्त्री [रत्ना] रत्नप्रभा नरक-भूमि । गति करना । अक रोना । शब्द करना। रयणि पुंस्त्री [रत्नि] एक हाथ का नाप, रव सक [रावय्] बुलवाना। बद्धमुष्टि हाथ का परिमाण ।
रव सक [दे] आद्र करना । रयणि स्त्री [रजनि देखो रयणी = रजनी। रव पुं. शब्द, आवाज । वि. मधुर शब्दवाला । "अर पु[°चर] राक्षस । °अर, कर पुं. रव (अप) देखो रय = रजस् । चन्द्रमा। °णाह [°नाथ]चन्द्रमा । भत्त न रवण } (अप) देखो रमण । [' भक्त] रात्रि में खाना । रमण पुं. । वल्लह । रवण , पुं [°वल्लभ] चन्द्रमा । "विराम पं. सूबह । रवण्ण (अप) देखो रम्म = रम्य । रयणिंद पुं रजनीन्द्र] चन्द्रमा ।
रवय पुं [दे] मन्थान-दण्ड । रयणिद्धय न [दे] कुमुद, कमल ।
रवरव अक [रोख्य] खूब आवाज करना । रयणी स्त्री [रत्नी] देखो रयणि = रत्नि। बारंबार आवाज करना । रयणी स्त्री [रजनी] रात्रि। ईशानेन्द्र के रवि वि रविन आवाज करनेवाला । लोकपाल की पटरानी। चमरेन्द्र की अग्र- रवि न. सूर्य । राक्षस-वंश का एक राजा । आक महिषी । मध्यम ग्राम या षड्ज ग्राम की एक का पेड़ । "तेअ पं [तेजस] इक्ष्वाक-वंश का मूर्च्छना। भोअण न [°भोजन] रात में । राज
राजा । राक्षस वंश का एक लंकेश । तेयास्त्री खाना । °सार न. मैथुन । देखो रयणि = [°तेजा एक विद्या । °नंदण पुं [°नन्दन] रजनि ।
शनि-ग्रह । °प्पभ पुं [प्रभ] वानरद्वीप का रयणी स्त्री [रजनी] औषधि-विशेष-पिंडदारु ।।
राजा । भत्ता स्त्री [°भक्ता] एक महौषधि । हलदी।
"भास पुं. सूर्यहास खड्ग-विशेष । °वार पुं. रयणच्यय । पुं [रत्नोच्चय] मेरु-पर्वत ।। रविवार । "सुअ पुं [°सुत शनिश्चर ग्रह । रयणोच्चय । कूट-विशेष ।
रामचन्द्र का सेनापति सुग्रीव । °हास पुं. रयणोच्चया स्त्री [रत्नोच्चया] वसुगुप्ता सूर्यहास खड्ग ।
नामक इन्द्राणी की एक राजधानी। रविगय न [रविगत] जिस पर सूर्य हो वह रयत न [रजत] चाँदी । एक देव-विमान। नक्षत्र । रयद हाथी का दाँत । हार । सुवर्ण । खून। रव्वारिअ पुं [दे] दूत, सन्देश-हारक । रयय) पर्वत । धवल वर्ण । शिखर विशेष। रस सक [रस्] चिल्लाना, आवाज करना । वि. श्वेत । °गिरि पुं. पर्वत-विशेष । °वत्त न रस पुंन. जिह्वा का विषय । प्रकृति । साहित्य
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रस-रहाविअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६७७ शास्त्र प्रसिद्ध शृंगार आदि नव रस । पानी। रह सक [रह ] छोड़ना। सुख । आसक्ति, दिलचस्पी । प्रेम । मद्य रह पुं [रभस] उत्साह । देखो रहस = रभस । आदि द्रव पदार्थ । पारा । भुक्त अन्न का प्रथम रह पुन [रहस्] एकान्त, निर्जन । प्रच्छन्न । परिणाम, शरीरस्थ धातु-विशेष । कर्म-विशेष । रह पुन [रथ] यान-विशेष, स्यन्दन । पुं. एक छन्दःशास्त्र-प्रसिद्ध प्रस्तार- विशेष । माधुर्य जैन महर्षि । कार पुं. बढ़ई। °चरिया आदि रसवाला पदार्थ । नाम न [°नामन्] स्त्री [°चर्या] रथ को हाँकना । °जत्ता स्त्री कर्म-विशेष । °न्न वि ["ज्ञ] रस का जानकार। ["यात्रा] उत्सव-विशेष । °णेउर न
भेइ वि [भेदिन्] रसवाली चीजों का भेल- [°नूपुर नगर-विशेष । णेउरचक्कवाल न सेल करनेवाला । "मंत वि [°वत्] रस-युक्त। [नूपुरचक्रवाल वैताढ्य पर्वत पर स्थित
वई स्त्री [वती] रसोई । ल, °ालु वि एक नगर । 'नेमि पुं. भगवान् नेमिनाथ का [°वत् रसवाला । °वण पुं [पण]मद्य की भाई । नेमिज्ज न [°नेमीय] उत्तरादूकान ।
ध्ययन सूत्र का बाईसवाँ अध्ययन । मुसल पुं. रस पुन. सार, निचोड़।
राजा कोणिक और राजा चेटक का संग्राम । रसण न [रसन जोभ ।
प्यार देखो "कार। रेणु पुं. आठ त्रसरेणु रसणा स्त्री [रसना] मेखला, कांची । जीभ ।
का एक परिमाण । 'वीरउर, °वीरपुर न. "ल वि [°वत्] रसनावाला।
एक नगर । रसद्द न [दे] चूल्हे का मूल भाग ।
रहई अ [रभसा] वेग से। रसा स्त्री. पृथिवी।
रहंग पुंस्त्री [रथाङ्ग] चक्रवाक पक्षी । स्त्री. रसाउ। पुं [दे.रसायुष् ] भ्रमर ।
°गी : न. पहिया । रसाय, पुं [दे] ।
रहट्ट देखो अरहट्ट । रसायण न [रसायन] औषध-विशेष ।
रहण न [दे रहना, स्थिति, निवास । रसाल पुं. आम्र-वृक्ष ।
रहण न [रहन] त्याग । विराम । रसाला स्त्री [दे. माजिता, पेय-विशेष । रहमाण पुं [दे] यवन मत का एक तत्त्वरसालु पं [दे.] मज्जिका, राज-योग्य पाक
वेत्ता । खुदा, परमेश्वर । विशेष दो पल घी, एक पल मध, आधा रहस पुं [रभस] औत्सुक्य । वेग। हर्ष । आढक दही, बीस मिरचा तथा दस पल पूर्वापर का अविचार । चीनी या गुड़ से बनता पाक ।
रहस देखो रहस्स = रहस्य । रसि देखो रस्सि।
रहसा अ [रभसा] वेग से । रसिअ विरिसिकारसज्ञ, शौकीन । रस-यक्त। रहस्स वि [रहस्य] गुह्य । एकान्त में रसिआ स्त्री [दे. रसिका] पीब, व्रण से उत्पन्न । न. तत्त्व, तात्पर्य । अपवाद-स्थान । निकलता गंदा सफेद खून । छन्द-विशेष ।। रहस्स वि [ ह्रस्व ] लघु । एकमात्रिक रसिंद पुं [रसेन्द्र] पारा।
स्वर । रसिग देखो रसिअ = रसिक ।
रहस्स न [ह्रास्व] लाघव । °मंत वि [°वत्] रसोइ (अप) देखो रस-वई।
लघु । रस्सि पुंस्त्री [रश्मि] किरण । रज्जु । रहस्सिय वि [राहसिक] प्रच्छन्न, गुप्त । रह अक [दे] रहना।
रहाविअ वि [दे] स्थापित, रखवाया हुआ ।
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૭૮ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रहि-राढा रहि । वि [रथिन्]रथ से लड़नेवाला योद्धा। संयमी। साधुत्व-प्राप्ति के पर्याय से ज्येष्ठ । रहिअ ) रथ को हाँकनेवाला । वि [रथिक । | राइणिअ वि [राजकल्प] राजा के समान रहिअ वि [रहित] परित्यक्त , शून्य, एकाकी । । वैभववाला, श्रीमन्त । रहिअ वि [दे] स्थित ।
राइण्ण पुं [राजन्य] राजवंशीय, क्षत्रिय । रहु पुं [रघु] सूर्य वंश का राजा। पुं. ब. रघु- राइलेऊण संकृ. चीरकर । वंश में उत्पन्न क्षत्रिय । पुं. श्रीरामचन्द्र । |
राइल्ल वि [रागिन्] राग-युक्त । कालिदास-प्रणीत संस्कृत काव्य-ग्रन्थ । °आर | राई स्त्री [राजी] देखो राइ राजि । पुं [°कार] रघुवंश संस्कृत काव्य-ग्रन्थ का | राई स्त्री [रात्रि] देखो राइ - रात्रि । कर्ता, कवि कालिदास । °णाह पुं[नाथ]। दिवस न. रात्रिदिवस ।
तणय पुं [तनय] श्रीरामचन्द्र, लक्ष्मण ।। | राईमई स्त्री [राजीमती राजा उग्रसेन की °तिलय पुं [°तिलक] । त्तम पुं[°उत्तम]।
पुत्री और भगवान् नेमिनाथ की पत्नी । °पुंगव पुं [°पुङ्गव] । °सुअ पुं["सुत]
राईव न [राजीव] पद्म। श्रीरामचन्द्र ।
राईसर पुं [राजेश्वर] राजाओं के मालिक, रहो देखो रह = रहस् । °कम्म न [कर्मन्]
महाराज । युवराज ।
राउत्त पुं [राजपुत्र राजपूत, क्षत्रिय । एकान्त-व्यापार । रा सक. देना, दान करना ।
| राउल पुं [राजकुल] राज-समूह । राजा का रा अक [रै] शब्द करना।
वंश । राज-गृह, दरबार । देखो राओल । रा अक [ली] श्लेष करना, विपकना।
राउलिय वि [राजकुलिक] राजकुलराअला स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकांगनी ।
सम्बन्धी। राइ देखो रत्ति । चमरेन्द्र की अन महिषी ।
राउल्ल देखो राइक्क। ईशानेन्द्र के सोम लोकपाल की पटरानी । राएसि पुं [राजर्षि] श्रेष्ठ राजा। ऋषि-तुल्य
भत्त न [ भक्त] । भोअण न [°भोजन] राजा । रात्रि-भोजन । देखो राई = रात्रि । राओ अ [रात्रौ] रात में। राइ स्त्रो [राजि] पंक्ति । रेखा । राई । एक राओल देखो राउल। मसाला।
राग देखो राय% राग । राइ वि (रागिन् । राग-युक्त । स्त्री. °णी। राघव देखो राहव । घरिणी स्त्री [गृहिणी] राइ वि [राजिन्] शोभनेवाला।
सीता । राइ देखो राय = राजन् ।
राच । [चूपै. पै] देखो राय = राजन् । राइअ वि [रात्रिक] रात्रि-सम्बन्धी।
राचि राइआ स्त्री [राजिका] राई का गाछ । देखो
राज देखो राय = राजन् । राइगा।
राजस वि. रजो-गुण-प्रधान । राइंद पुं [राजेन्द्र] बड़ा राजा।
राडि स्त्री [राटि] बूम, चिल्लाहट । राइंदिअ पुं [रात्रिन्दिव] अहोरात्र । राडि स्त्री [दे. राटि] संग्राम । राइक्क वि [राजकीय] राज-सम्बन्धी । राढा स्त्री. विभूषा । भव्यता। बंगाल का एक राइगा स्त्री [राजिका] राई ।
प्रान्त । उसकी एक नगरी। इत्त वि [°वत्] राइणिअ वि [रानिक] चारित्रवाला, | भव्य आत्मा । 'मणि पुं. काच-मणि ।
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राण-रायंबु संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६७९ राण सक [वि + नम्] विशेष नमना। धाणी स्त्री ['धानी] राजनगर, जहाँ राजा राण पुं [राजन्] राणा, राजा ।
रहता हो । °पत्ती स्त्री ["पत्नी] रानी । राणय पुं [राजक] राणा । छोटा राजा।। "पसेणीय वि [°प्रश्नीय] एक जैन आगमराणिआ। स्त्री [राज्ञिका, °ज्ञी] रानी । ग्रन्थ । °पह पुं [°पथ] राज-मार्ग । °पिंड राणी "
पुं[°पिण्ड] राजा के घर की भिक्षा । पुत्त राम सक [ रमय् ] रमण कराना। देखो °उत्त। पुर न. नगर-विशेष । 'पुरिस राम पुं. श्रीरामचन्द्र । परशुराम । क्षत्रिय
पुं [ 'पुरुष ] राज-कर्मचारी। मग्ग पुं पारिव्राजक-विशेष । बलदेव, वासुदेव का बड़ा |
[°मार्ग] राजपथ । °मास पुं [°माष] धान्यभाई । वि. रमनेवाला । °कण्ह पुं [कृष्ण] |
विशेष, बरबटी। प्राय पुं [राज] श्रेणिक का पुत्र । कण्हा स्त्री [कृष्णा]
राजेश्वर । रिसि देखो राएसि । रुक्ख पं श्रेणिक की पत्नी । °गिरि पुं. पर्वत-विशेष ।
["वृक्ष] वृक्ष-विशेष । लच्छी स्त्री °गुत्त पुं [°गुप्त] एक राजर्षि । °देव पुं.
[°लक्ष्मी] राज-वैभव । ललिय पुं श्री रामचन्द्र । 'पुत्त [°पुत्र]एक जैन मुनि ।
[°ललित] आठवें बलदेव के पूर्व जन्म का °पुरी स्त्री. अयोध्या नगरी। रक्खिआ स्त्री नाम । °वट्टय न [°वार्तक] राज-सम्बन्धी [रक्षिता] ईशानेन्द्र की पटरानी। वार्ता-समूह । वल्ली स्त्री. लता-विशेष ।
°वाडिआ, वाडी, स्त्री [°पाटिका, रामणिजअ न [रामणीयक] रमणीयता । रामा स्त्री. स्त्री। नववे जिनदेव की माता ।
°पाटी] राजा की चतुर्विध सेना के साथ ईशानेन्द्र की पटरानी । छन्द-विशेष ।
सवारी । °सद्ल पुं [°शार्दूल] चक्रवर्ती
राजा। सिट्ठि पुं [°श्रेष्ठिन्] नगर-सेठ । रामायण न. वाल्मीकि कृत संस्कृत काव्यग्रन्थ ।
°सिरी स्त्री ["श्री] राज-लक्ष्मी । 'सुअ पुं रामचन्द्र तथा रावण की लड़ाई । रामेसर पुं [रामेश्वर] दक्षिण का हिन्दू-तीर्थ ।
[°सुत] राजकुमार । °सुअ पुं ["शुक] राय अक [ राज् ] चमकना, शोभना ।
उत्तम तोता। °सुअ पुं [°सूय] यज्ञ-विशेष ।
°सेण पुं [°सेन] छन्द-विशेष । °सेहर पुं राय देखो रा= रै। राय पु [राग] प्रेम । द्वेष । रंगना । वर्णन ।
[ शेखर] शिव । एक राजा। एक कवि,
कर्पूरमंजरी का कर्ता । हंस पुंस्त्री. उत्तम राजा। चाँद । लाल वर्ण । लाल वस्तु ।
हंस पक्षी । श्रेष्ठ राजा । स्त्री. °सी। हर वसन्त आदि स्वर । राय पुं [राजन्] नरेश । एक महाग्रह । इन्द्र ।
न [°गृह] राजा का महल । 'हाणी देखो
'धाणी। हिराय, °ाहिराय पु [°अधिक्षत्रिय । यक्ष । शुचि । श्रेष्ठ । इच्छा । छन्दविशेष । °ईअ वि [°कीय] राज-सम्बन्धी ।
राज] । हिव पु [धिप] चक्रवर्ती
राजा । उत्त पुं [पुत्र] राजपूत । °उल देखो राउल। °कीअ देखो °ईअ । कुल देखो
राय देखो राव = राव । °उल। °केर, 'क्क वि [°कीय] राज- राय पु[दे] चटक, गौरैया पक्षी। सम्बन्धी । °गिह न [°गृह] । °गिहि स्त्री | राय पु [रात्र] रात्रि । [गृही] मगध देश की राजधानी। 'राज- | राय देखो राय = राज् । गीर' । °चंपय पुं["चम्पक] उत्तम चम्पक- रायंछुअ । पुन [दे] वेतस या बेंत का वृक्ष । धम्म पुं[°धर्म] राजा का कर्तव्य । ' रायंबु । पेड़ । पु. शरभ ।
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६८० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रायंस-रिछोली रायस पु [राजास] क्षय की व्याधि । राहा स्त्री [ राधा ] वृन्दावन की रायगइ स्त्री [दे] जलौका, जोंक ।
राहिआ प्रधान गोपी, श्रीकृष्ण की रायग्गल पु[राजार्गल]ज्योतिष्क ग्रह-विशेष । । | राही ) पत्नी। राधावेध में रखी जाता रायणिअ देखो राइणिअ = रात्मिक । पुतली । शक्ति विशेष । कर्ण की पालक माता। रायणी स्त्री [राजादनी] खिरनी का पेड़। °मंडव पुं["मण्डप] जहाँ पर राधावेध किया रायण्ण देखो राइण्ण।
जाय । °वेह पुं [ वेध] एक वेध-क्रिया, रायनीइ स्त्री [राजनीति शासन की रीति । | जिसमें चक्राकार घूमती पुतली की वाम चक्षु रायमइया स्त्री[राजीमतिका]देखो राईमई ।। बींधी जाती है । स्त्री [राधिका] । रायस देखो राजस।
| राहु . ग्रह-विशेष। कृष्ण पुद्गल-विशेष । रायाण देखो राय = राजन् ।
पहली शताब्दी के एक जैन आचार्य । राल । पुन [°क] धान्य-विशेष, एक राहहय न [राहहत] जिसमें सूर्य और चन्द्र रालग ) प्रकार की कंगु ।
का ग्रहण हो वह नक्षत्र । राला स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकांगनी । | राहेअ पुं [राधेय] राधा पुत्र, कर्ण । राव सक [दे] आर्द्र करना ।
रि अ [रे] संभाषण-सूचक अव्यय । राव देखो रंज = रञ्जय ।
रि सक [ऋ] गमन करना । राव सक [रावय]पुकारना, आह्वान करना । | रिअ सक [री] गमन करना। राव पं. कलकल । पुकार, आवाज ।
रिअ सक [प्र + विश्] प्रवेश करना। रावण पुं. एक लंकापति । गुल्म-विशेष । रिअ न [ऋत] गमन । सत्य । राविअ वि [दे] आस्वादित ।
रिअ वि [दे] काटा हुआ। रास पुं. एक नृत्य, जिसमें एक दूसरे का हाथ | रिउ देखो उउ । पकड़ कर नाचते गाते मंडलाकार फिरना रिउ वि [ऋज] सरल । न. विशेष पदार्थ । होता है।
"सुत्त पुं [ सूत्र ] नय-विशेष । देखो रासभ देखो रासह।
उज्जु । रासह पुंस्त्री [रासभ) गभ । स्त्री. ही।
| रिउ पुं [रिपु] शत्रु । °महण पुं [°मथन रासाणंदिअय न [रासानन्दितक] छन्द- राक्षस-वंश का राजा। विशेष ।
रिउ स्त्री [ऋच्] वेद का नियत अक्षरवाला रासालुद्धय पुं [रासालुब्धक] छन्द-विशेष । अंश । °व्वेय पुं [ वेद] एक वेद-ग्रन्थ । रासि देखो रस्सि।
रिख अक [रिङ्ख] सर्पण या गति करना । रासि पुंस्त्री [राशि] समूह । ज्योतिष्क की । रिंग देखो रिग । बारह राशि । गणित-विशेष ।
रिंगणी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, कण्टकारिका । राह पुं [राध] वैशाख मास । वसन्त ऋतु ।। रिंगिअ न [दे] भ्रमण । एक जैन आचार्य।
रिंगिअ न [रिङ्गित] कच्छप की तरह हाथ राह पुं [दे] दयित, प्रिय । वि. निरन्तर। के बल रेंगना । गुरु-वन्दन का एक दोष । शोभित । सनाथ । पलित । रुचिर। रिंगिसिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । राहअ । पुं [राघव] रघुवंश में उत्पन्न । रिछ (अप) देखो रिच्छ = ऋक्ष । राहव ) श्रीरामचन्द्र ।
| रिछोली स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणी।
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रिंडी-रीम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रिडी स्त्री [दे] कन्थाप्राया, कन्था की तरह । न्तिक देवों का एक विमान । का फटा-टूटा आच्छादन-वस्त्र ।
रिट्टि स्त्री[रिष्टि]तलवार । अशुभ । पुं. रन्ध्र । रिक्क वि [दे] थोड़ा।
रिड सक [मण्डय] विभूषित करना । रिक्क देखो रित्त = रिक्त ।
रिण न[ऋण] करजा या कर्ज । जल । दुर्ग । रिक्किम वि [दे] सड़ा हुआ।
दुर्ग-भूमि । फरज । देखो अण = ऋण । रिक्ख अक [रिङ्ख्] चलना ।
रिणिअ वि [ऋणित] करजदार । रिक्ख वि [दे] वृद्ध । पुं. वृद्धता । रिते अ [ऋते] सिवाय ।। रिक्ख पुं [ऋक्ष] भालू, श्वापद । न. नक्षत्र ।
रित्त वि [रिक्त] खाली । न. अभाव । पहपथ] आकाश । राय पराज] | रित्तूडिअ वि [दे] शातित, झड़वाया हुआ। वानर वंश का राजा।
रित्थ न [रिक्थ] धन । रिक्खण न [दे] उपलम्भ, अधिगम । कथन ।
रिद्ध वि [ऋद्ध] ऋद्धि-संपन्न । रिक्खा देखो रेहा = रेखा।
रिद्ध वि [दे] पक्व, पक्का ।
रिद्धि पुंस्त्री [दे] समूह, राशि । रिग । अक [रिङग्] धीरे-धीरे जमीन से रिग्ग , रगड़ खाते चलना । प्रवेश करना ।
रिद्धि स्त्री [ऋद्धि] संपत्ति, वैभव । वृद्धि । रिच स्त्रीन. देखो रिउ = ऋच् । स्त्री 'चा।
देव-विशेष । ओषधि-विशेष । छन्द-विशेष । रिच्छ वि [दे] वृद्ध ।
°म, ल्ल वि ["मत्] समृद्ध । °सुंदरी स्त्री
[°सुन्दरी] एक वणिक् कन्या । रिच्छ देखो रिक्ख = ऋक्ष। °ाहिव पु
रिपु देखो रितु । [°ाधिप] राम का सेनापति जाम्बवान् ।
रिप्प न [दे] पृष्ठ । रिच्छभल्ल पुं[दे] भालू । रिजु देखो रिउ = ऋच् ।
रिभिय न [रिभित] एक प्रकार का नाट्य । रिजु देखो रिउ = ऋजु ।
स्वर का घोलन । रिज्ज देखो रिअ = री।
रिमिण वि [दे] रोने की आदतवाला । रिज्जु देखो रिउ = ऋजु ।
रिम्सा स्त्री. मैथुनेच्छा। रिज्झ अक [ऋध्] बढ़ना । खुशी होना।
रिरिअ वि [दे] लीन । रिट्ठ पुं [दे. अरिष्ट] दुरित । दैत्य-विशेष ।
| रिल्ल अक [दे] शोभना । काक । नेमि पुं. बाईसवें जिनदेव ।
रिवु देखो रिउ = रिपु । रिट्र पुं [रिष्ट रिष्ट नामक विमान का निवासी रिसभ । पु[ऋषभ] स्वर-विशेष । अहोदेव-विशेष । वेलम्ब और प्रभजन नामक रिसह ) रात्र का अठाईसा मुहूर्त । इन्द्रों के लोकपाल । एक दप्त साँढ, जिसको संहत अस्थि-द्वय के ऊपर का वलायकार श्रीकृष्ण ने मारा था । पक्षि-विशेष । न. रत्न- | वेष्टन-पट्ट । देखो उसभ । विशेष । एक देव-विमान । पुन. रीठा-फल । | °रिसह पु [ ऋषभ] श्रेष्ठ । °पुरी स्त्री. कच्छावती-विजय की राजधानी। रिसि पु[ऋषि] मुनि, संत । घाय पु[°घात] मणि पुं. श्याम रत्न-विशेष।
__ मुनि-हत्या। रिट्ठा स्त्री [रिष्टा] महाकच्छ विजय की राज- रिह सक [प्र+विश्] प्रवेश करना ।
धानी। पांचवी नरक-भूमि । दारू । री । अक. जाना, चलना। रिटाभ न [रिष्टाभ] एक देव-विमान । लोका- | रीअ,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रोइ-रूप रीइ स्त्री [रीति] प्रकार । पद्धति । रुअरुइआ स्त्री [दे] उत्कण्ठा । रीड सक [मण्डय ] अलंकृत करना। रुआ स्त्री [रुज् ] रोग। रीढ स्त्रीन [दे] अनादर । स्त्री. °ढा । रुइ स्त्री [रुचि] तेज । प्रेम । आसक्ति । रीण वि क्षरित, स्नुत । पीडित ।।
स्पृहा । शोभा । बुभुक्षा । गोरोचना । रीर अक [राज ] शोभना, चमकना । रुइअ वि [रुचित] पसन्द । पुन. एक देवरीरी स्त्री. धातु-विशेष, पीतल ।
विमान । रु स्त्री [रुज्] रोग।
रुइअ देखो रुण्ण - रुदित । रुअ अक [रुद्] रोना ।
रुइर वि [रुचिर] सुन्दर । कान्ति-युक्त । पुंन. रुअ न [रुत] शब्द, आवाज ।
देवविमान-विशेष । रुअ देखो रूअ।
रुइल वि [रुचिर, °ल] शोभन, सुन्दर । रुअंती स्त्री [रुदती] वल्ली-विशेष ।
दीप्त । पुन. एक देव-विमान । रुअंस देखो रूअंस।
रुइल्ल न [रुचिर, रुचिमत्] । "कत न
[°कान्त] । कूड न [°कूट] । ज्झय न रुअग पुं [रुचक] कान्ति । पर्वत-विशेष । द्वीप-विशेष । एक समुद्र । एक देव-विमान ।
[ध्वज] । °प्पभ न [प्रभ] । 'लेस न
[°लेश्य] । °वण्ण न [°वर्ण] । °सिंग न न. इन्द्रों का एक आभाव्य विमान । रत्नविशेष । रुचक पर्वत का पाँचवाँ कूट । निषध
[°शृङ्ग] । °सिटुन [°सृष्ट] । वत्त न पर्वत का आठवाँ कूट । 'प्पभ न [°प्रभ]
[व]ि सभी देवविमान-विशेषों के नाम है। महाहिमवन्त पर्वत का एक कूट । °वर पुं. रुइल्लुत्तरवडिसग न [रुचिरोत्तरावतंसक द्वीप-विशेष। पर्वत-विशेष । समुद्र-विशेष । । एक देवविमान । रुचकवर समुद्र का अधिष्ठाता देव । °वरभद्दपु | रुंच सक [रुञ्च् ] रुई से उसके बीज को [°वरभद्र] । °वरमहाभद्दपुं[°वरमहाभद्र] | अलग करने की क्रिया करना । रुचकवर द्वीप का अधिष्ठायक देव । °वर- | रुंचणी स्त्री [दे] घरट्टी।। महावरपुं रुचकवर समुद्र का अधिष्ठाता देव । रुंज अक [रु]आवाज, शब्द या गर्जना करना ।
वरावभास पुं. द्वीप-विशेष । समुद्र-विशेष । | रुंजग पुंदे.रुञ्चक] वृक्ष, गाछ । °वरावभासभद्द पुं [°वरावभासभद्र] । | रुंट देखो रुंज। °वरावभासमहाभद्द पुं [°वरावभास- | रुंटणया स्त्री [दे] अवज्ञा । महाभद्र] रुचकवरावभास द्वीप का अधि- | | रुंटणिया स्त्री [दे. रवणिका रोदन-क्रिया । ष्ठाता देव । वरावभासमहावर पुं.। रुटिअ न [रुत] गुजारव, आवाज । वरावभासवर पुं. रुचकवरावभास समुद्र का | रुंड पुंन [रुण्ड] बिना सिर का धड़, कबन्ध । एक अधिष्ठाता देव । °वरोद पुं. समुद्र- | रुंढ पुं [दे] कितव, जुआड़ी। विशेष । °वरोभास देखो °वरावभास। रुढिअ वि [दे] सफल ।
वई स्त्री [वती] एक इन्द्राणी । °ोद | रुंद वि [दे] विपुल । विशाल, विस्तीर्ण । पुं. समुद्र-विशेष ।
__ स्थूल । वाचाल । रुअगिंद पुं [रुचकेन्द्र] पर्वत-विशेष । रुंदी [दे] विस्तीर्णता, लम्बाई । रुअगुत्तम न [रुचकोत्तम] कूट-विशेष । रुंध सक [रुध्] रोकना, अटकाना । रुअय देखो रुअग।
| रुंप पुन [दे] त्वचा । उल्लिखन ।
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रुंपण-रुम्हं
पण न [ रोपण ] रोपाना, वापन । रुंफ देखो रुंप |
रुंभ देखो रूंध |
संभवि [रोधक] रोकनेवाला । संभावि वि [रोधित] रुकवाया हुआ, बन्द किया हुआ ।
रुक्क न [दे] बैल आदि की तरह शब्द
करना ।
रुक्किणी देखी रुप्पिणी ।
रुक्ख पुंन [वृक्ष] पेड़ । संयम, विरति । मूल न. पेड़ की जड़ । मूलिय पुं [°मूलिक ] वृक्ष के मूल में रहनेवाला वानप्रस्थ । सत्थ न ['शास्त्र]।
उवेद
[युर्वेद ]
वनस्पति शास्त्र |
रुक्मि पुंस्त्री [वृक्षत्व ] वृक्षपन । रुग्ण वि [ रुग्ण ] भग्न । [दे] पीसना |
रुच
रुच्च
रुचिर देखो रुइर ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रुच्चि देखो रुइ = रुचि ।
रुच्छ देखो रुक्ख ।
रुच्मि देखो रुप्पि | रुज्जन [ रोदन] रुदन । रुज्झ देखो रूंध |
रुज्झ देखो रूह = रुह, 1
रुट्टिया स्त्री [दे] रोटी |
वि [रुष्ट] रोष युक्त । पुं. एक नरकावास । अक [दे] करुण क्रन्दन करना ।
रुणरुण
रुच्च अक [रुच् ] पसन्द पड़ना । रुच्च सक [दे] व्रीहि आदि को यन्त्र में निस्तुष रुप्पय देखो रुप्प
करना ।
रुणु रुण
रुण्ण न [ रुदित] रोना । रुते देख रिते ।
रुत्थिणी देखो रुप्पिणी । रुदिअ देखो रुण्ण |
६८३
रुद्द पुं [ रुद्र ] शिव | शिव मूर्ति विशेष । जिन देव | परमाधार्मिक देवों की एक जाति । नृप - विशेष, एक वासुदेव का पिता । ज्योतिष्क देव - विशेष | अंग-विद्या का जानकार पुरुष । वि भयंकर | देखो रोद्द = रुद्र । रुद्द देखो रोद्द = रौद्र । रुक्ख पुं [ रुद्राक्ष ] वृक्ष - विशेष | रुद्राणी स्त्री [रुद्राणी] शिव-पत्नी, दुर्गा | रुद्ध वि [रुद्ध] रोका हुआ ।
रुद्र देखो रुद्द । |रुप्प सक [रोपय्] रोपना ।
रूप्प न [ रुक्म] सोना । लोहा । धतूरा । नागकेसर | चाँदी |
रुप्प न [रूप्य ] चाँदी । 'कूड पुं [ ° कूट ] रुक्मि पर्वत का एक कूट । कूलप्पवाय पुं [ कूलप्रपात] द्रह-विशेष | 'कूला स्त्री. एक महानदी । एक देवी । रुक्मि पर्वत का एक कूट । मय वि. चाँदी का बना हुआ । भास पुं. एक ज्योतिष्क महा ग्रह ।
रूप्प वि [ रौप्य ] रूपा का, चांदी का ।
= रूप्य ।
रुप्पि पुं [ रुक्मिन् ] कौण्डिन्य नगर का राजा, रुक्मिणी का भाई । कुणाल देश का राजा । एक वर्षघर - पर्वत । एक ज्योतिष्क महा ग्रह | देव - विशेष । रुक्मि पर्वत का एक कूट । वि. सुवर्णवाला | चाँदीवाला । 'कूड पुंन [' कूट ] रुक्मि पर्वत का एक कूट ।
रुप्पिणी स्त्री [ रुक्मिणी] द्वितीय वासुदेव की पटरानी | श्रीकृष्ण वासुदेव की अग्र महिषी । एक श्रेष्ठ-पत्नी |
रूप्पोभास पुं [रूप्यावभास ] एक महाग्रह । वि. रजत की तरह चमकता ।
रुब्भंत
{ संघ के कवकृ. ।
रुब्भमाण
रुम्मिणी देखो रूपिणी ।
म्हसक [म्लापय् ] म्लान या मलिन करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रुरु-रूवि रुरु पुं. मृग-विशेष । वनस्पति-विशेष । एक , वडिसय न [वतंसक] रूपा देवी का
अनार्य देश । एक अनार्य मनुष्य-जाति । । भवन । °सिरी स्त्री ["श्री] एक गृहस्थ रुरुव अक [रोख्य्] खूब आवाज करना ।
स्त्री । °वई स्त्री [°वती] भूतानन्द इन्द्र की बारम्बार चिल्लाना ।
अग्र-महिषी । देखो रूवय % रूपक । रुल अक [लुठ] लेटना ।
रूअरूइआ [दे] देखो रुअरुइआ। रुलुघुल अक [दे] निःश्वास डालना।
रूआ स्त्री [रूपा] भूतानन्द इन्द्र की एक अग्ररुव देखों रुअ = रुद् ।
महिषी । एक दिक्कुमारी देवी। रुवणा स्त्री [रोवणा] आरोपणा, प्रायश्चित्त
रूआमाला स्त्री [रूपमाला] छन्द-विशेष । का एक भेद ।
रूआर वि [रूपकार] मूत्ति बनानेवाला। रुविल देखो रुइल।
रूआवई स्त्री [रूपवती] एक दिक्कुमारी
देवी। रुव्व देखो रुअ- रुद् ।
रूढ वि. परम्परागत, सिद्ध । प्रसिद्ध । प्रगुण, रुस देखो रूस। रुसा स्त्री [रोष] रोष।
तंदुरुस्त ।
| रूढ वि. उगा हुआ, उत्पन्न । रुह अक [रुह ] उत्पन्न होना । सक. घाव
रूढि स्त्री. परम्परागत से प्रसिद्धि । को सुखाना । रुह वि. उत्पन्न होनेवाला ।
रूप पु. पशु । रुहण न [रोधन] निवारण ।
रूअ देखो = रूप ।
रूपि पु [रूपिन्] सौनिक, कसाई । रुहरुह अक [दे] मन्द मन्द बहना ।
रूरुइय न [दे] उत्सुकता, रणरणक । रुहुरुहय पुंदे] उत्कण्ठा । रूअ न [दे. रूत] रुई, तूल ।
रूव पुंन [रूप] आकृति । सौन्दर्य । वर्ण । रूअ पुं [रूप] पूर्णभद्र और विशिष्ट नामक |
मूर्ति । स्वभाव । शब्द, नाम । श्लोक । इन्द्र का एक लोकपाल । आकृति । वि. |
नाटक । एक । रूपवाला । देखो रूअ = सदृश । °कंत पुं [ कान्त] पूर्णभद्र और
रूप । कता देखो रूअ-कंता। °जक्ख ! विशिष्ट इन्द्र का लोकपाल । °कता स्त्री
[यक्ष] धर्मपाठक । °धार वि. रूप-धारी । [°कान्ता] भूतानन्द इन्द्र की अग्र-महिषी ।
प्पभा देखो रूअ-प्पभा। मंत देखो °वंत । एक दिक्कुमारी-महत्तरिका । 'प्पभ पुं
°वई स्त्री [°वती] भूतानन्द इन्द्र की अग्र[प्रभ] पूर्णभद्र और विशिष्ट नाम का लोक
महिषी । सुरूप भूतेन्द्र की अग्र-महिषी । एक पाल । °प्पभा स्त्री [°प्रभा] भूतानन्द इन्द्र
दिक्कुमारी महत्तरिका । °वंत, स्सि वि की अग्र-महिषो। एक दिक्कुमारी देवी ।
[°वत्] रूपवाला। देखो रूव = रूप ।
रूवग पुंन [रूपक] रुपया। साहित्य-प्रसिद्ध रूअंस पुं [रूपांश] पूर्णभद्र और विशिष्ट इन्द्र । एक अलंकार । देखो रूअग = रूपक । का एक लोकपाल ।
रूवमिणी स्त्री [दे] रूपवती स्त्री। रूअंसा स्त्री [रूपांशा] भूतानन्द इन्द्र की अग्र- रूवय देखो रूवग। महिषी । एक दिक्कुमारी देवी ।
रूवसिणी देखो रूवमिणी। रूअग) पुंन [रूपक] रुपया। पु. एक | रूवा देखो रूआ। रूअय । गृहस्थ । रूपा देवी का सिंहासन । ) रूवि पुंस्त्री [दे] अर्क-वृक्ष ।
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रूस-रोंकण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रूस अक [रुष्] गुस्सा करना ।
रेवलिआ स्त्री [दे] धूल का आवर्त । रे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-परिहास । रेवा स्त्री. नर्मदा नदी।
अधिक्षेप । सम्भाषण । आक्षेप। तिरस्कार । रेसणिआ । स्त्री [दे] करोटिका, एक रेअ पु [रेतस्] वीर्य ।
रेसणी कांस्य-भाजन । अक्षि-निकोच । रेअव सक [मुच्] छोड़ना।
रेसम्मि देखो रेसिम्मि। रेअविअ वि दे. रेचित] क्षणीकृत, शन्य | रेसि (अप) देखो रेसि । किया हुआ।
रेसिअ वि [दे] छिन्न, काटा हुआ। रेआ स्त्री [रै] धन । सोना ।
रेसिं (अप) नीचे देखो। रेइअ वि [रेचित] रिक्त किया हुआ ।
रेसिम्मि अ. निमित्त, लिए, वास्ते । रेंकिअ वि [दे] आक्षिप्त । लीन । लज्जित । रेह अक [राज्] दीपना, चमकना। रेकार पु 'रे' शब्द, 'रे' शब्द की आवाज ।
रेहा स्त्री [रेखा]चिह्न-विशेष, लकीर । श्रेणि । रेटि देखो रिट्ठि।
छन्द-विशेष । रेणा स्त्री. महर्षि स्थलभद्र की एक भगिनी,
रेहा स्त्री [राजना] शोभा, दीप्ति । एक जैन साध्वी।
रेहिअ न [दे] कटी हुई पूछ। रेणि पुंस्त्री [दे] पङ्क।
रेहिर वि [रेखावत्] रेखावाला । रेणु पुंस्त्री रज । पराग ।
| रेहिर । वि [राजितृ] शोभनेवाला । रेणुया स्त्री. [रेणुका] ओषधि-विशेष ।।
रेहिल्ल
रेहिल्ल देखो रेहिर = रेखावत् । रेभ पु[रेफ] रकार । वि. दुष्ट । नीच ।
रोअ देखो रुअ = रुद् । क्रूर । कृपण । रेरिज्ज अक [राराज्य] अतिशय शोभना ।
रोअ देखो रुच्च = रुच् ।
रोअ सक [रोचय] रुचि करना। पसन्द रेल्ल सक [प्लावय] सराबोर करना । रेल्लि स्त्री [दे] रेल, स्रोत, प्रवाह ।
करना, चाहना । निर्णय करना ।
रोअ पुं[रोच] रुचि । रेवइनक्खत्त पु [रेवतीनक्षत्र] आर्य नाग
रोअ पुं [रोग] बीमारी। हस्ती के शिष्य एक जैन मुनि । रेवइय पु [रैवतिक] रैवत स्वर ।
रोअग वि [रोचक] रुचि-जनक । न. सम्यक्त्व रेवइय न [रेवतिक] एक उद्यान ।
का एक भेद । रेवइया स्त्री रेवतिका] भत-ग्रह-विशेष । । रोअण पुं [रोचन] एक दिग्रहस्ति-कूट । न. रेवई स्त्री [रेवती] बलदेव की स्त्री। एक गोरोचन । श्राविका । एक नक्षत्र ।
रोअणा स्त्री [रोचना] गोरोचन । रेवई स्त्री [दे. रेवती] मातृका, देवी। रोअणिआ स्त्री [दे] डाकिनी । रेवंत पुरेवन्त] सूर्य का पुत्र । एक देव ।
रोअत्तअ देखो रोअ = रुद् का कृ. । रेवज्जिअ वि [दे] उपालब्ध ।
रोइ वि [रोगिन्] रोगवाला, बीमार । रेवण पु. एक काव्य-ग्रन्थ का कर्ता ।
रोइ देखो रुइ = रुचि । रेवय न [दे] प्रणाम ।
रोइअ वि [रोचित] पसंद आया हुआ । रेवय पु [रैवत] गिरनार पर्वत ।
चिकीर्षित । रेवय पु [रैवत] स्वर-विशेष । | रोंकण वि [दे] रंक।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रोंच-रोहगुत्त रोंच सक [पिष्] पीसना ।
| रोमस वि [रोमश] रोमवाला । रोक्कम वि [दे] प्रोक्षित ।
रोमूसल न [दे] जघन, नितम्ब । रोक्कणि ) वि [दे] शृंगी। नृशंस, रोर पु. चौथे नरक का एक आवास । रोक्कणिअ निर्दय ।
रोर वि [दे] रंक। रोग .बीमारी । एक ब्राह्मण-जातीय श्रावक । रोरु पु. सातवें नरक का एक नरका वास । रोगिणिआ स्त्री रोगिणिका] रोग के कारण रोरुअ पुं [रोरुक, रौरव रत्नप्रभा नरक का ली जाती दीक्षा।
दूसरा नरकेन्द्रक । रत्नप्रभा का तेरहवाँ रोघस वि [दे] रंक ।
नरकेन्द्रक । सातवें नरक का एक नरकावास । रोच्च देखो रोंच ।
चौथे नरक का एक नरकावास । रोज्झ पुं [दे] ऋश्य, पशु-विशेष ।
रोल पु[दे] कलह । रव, कोलाहल , कलकल रोट्ट पुन. [दे] चावल आदि का आटा ।
आवाज । रोट्टग पु[दे] रोटी।
रोलंब पु [दे. रोलम्ब] भ्रमर ।
रोला स्त्री. छन्द-विशेष । रोड सक [दे] रोकना । अनादर करना ।
रोव देखो रुअ = रुद् । हैरान करना।
रोव पु [दे. रोप] पौधा । रोड न [दे] गृह-प्रमाण । रोडी स्त्री [दे] इच्छा। व्रणी की शिबिका ।
रोवण न [रोपण] वपन ।
रोविअ वि [रोपित] बोया हुआ । स्थापित । रोत्तव्व देखो रुअ = रुद् का कृ.।
| रोविंदय न [दे] गेय-विशेष, एक गान । रोद्द [रौद्र] अहोरात्र का पहला मुहूर्त । ।
रोविर वि [रोपयितु] बोनेवाला । एक नृपति, तृतीय बलदेव और वासुदेव का रोस देखो रूस।। पिता, अलंकार-शास्त्र का एक रस । वि.
रोस पुं [रोष] गुस्सा । इत्त, °इंत वि दारुण । न. ध्यान-विशेष, हिंसा आदि क्रूर
[°वत्] रोषवाला। कर्म का चिन्तन । रोद्द पु [रुद्र] । देखो रुद्द = रुद्र ।
रोसविअ वि [रोषित] कोपित । रोद्ध वि [दे] कूणिताक्ष । न. मल ।
| रोसाण सक [मृज् ] मार्जन करना ।
रोह अक [रुह.] उत्पन्न होना । रोम पुन [रोमन्] बाल । 'कूव पु [°कूप]
रोह देखो रुंध। लोम का छिद्र ।
रोह पु [रोध] घेरा, नगर आदि का सैन्य से रोम न. खान में होता लवण । रोमंच पु [रोमाञ्च] भय या हर्ष से रोओं का
वेष्टन । रुकावट । कैद । उठ जाना, पुलक ।
रोह पु [रोधस्] तट । रोमंथ । अक [रोमन्थय] पगुराना, रोह पु. एक जैन मुनि । प्ररोह, व्रण आदि का रोमंथाअ , जुगाली करना।
। सूख जाना । वि. रोहक । रोमग । पुं [रोमक] अनार्य देश-विशेष,
| रोह [दे] प्रमाण । नमन । मार्गण ।
राह ! [द] प्रमाण रोमय । रोम देश । उसकी मनुष्य-जाति । रोहग वि [रोधक] घेरा डालनेवाला, अटरोमय पु [रोमज] रोम की पाँखवाला पक्षी । रोमराइ स्त्री [दे] जघन, नितम्ब । रोहग [रोहक] एक नट-कुमार । रोमलयासय न [दे] पेट, उदर । | रोहगुत्त [ रोहगुप्त ] एक जैन मुनि ।
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रोहण-लंछ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष त्रैराशिक मत का प्रवर्तक एक आचार्य । . विशेष । रोहण वि. चढ़ना । उत्पत्ति । पुं. पर्वत- रोहिआ स्त्री [रोहित्, रोहिता] एक नदी । विशेष । एक दिग्हस्ति-कूट ।
रोहिंसा स्त्री [रोहिदंशा] एक नदी। रोहिअ [दे] देखो रोज्झ।
रोहिणि पु [रौहिणेय] एक प्रसिद्ध चोर । रोहिअ वि [रोहित] सुखाया हुआ । पु.| रोहिणी स्त्री. नक्षत्र-विशेष । चन्द्र की पत्नी । द्वीप-विशेष । पु मत्स्य-विशेष । न. तृण- ओषधि-विशेष । भविष्य में भारतवर्ष में विशेष । कूट-विशेष ।
तीर्थकर होनेवाली एक श्राविका । नववें बलरोहिअंस पु [रोहितांश] एक द्वीप। देव की माता । एक विद्या देवी । शक्रन्द्र की रोहिअंस' । स्त्री [रोहितांशा] एक नदी। पटरानी । सत्पुरुष किंपुरुषेन्द्र की अग्र-महिषी । रोहिअंसा ) पवाय पु [प्रपात] द्रह- | शक्रन्द्र के एक लोकपाल की पटरानी। तपविशेष ।
विशेष । रमण पु. चन्द्रमा । रोहिअप्पवाय पु [रोहिताप्रपात] द्रह- | रोहीडग न [रोहीतक] नगर-विशेष ।
लइणी
ल पु. मूर्ध-स्थानीय अन्तस्थ व्यञ्जन वर्ण- | राजा। विशेष।
लंका स्त्री [दे] शाखा । लइ अ. ले, अच्छा, ठीक ।
लंख । पुंस्त्री [लङ्ख] बड़े बांस के ऊपर लइ देखो लय-ला।
लंखग । खेल करनेवाली नट-जाति । स्त्री. लइअ वि [दे. लगित] पहना हुआ।
°खिगा। लइअल्ल पु[दे] वृषभ ।
लंगल न [लाङ्गल] हल। लइआ स्त्री [लतिका, लता] देखो लया। लंगलि पु [लाङ्गलिन्] बलभद्र, बलदेव । लइणा । स्त्री [दे] लता, वल्ली।
लंगलि° , स्त्री [लाङ्गली] शारदी लता।
लंगली । लउअ पुलकुच] बड़हल का गाछ । लंगिम पुंस्त्री [दे] जवानी । ताजापन, लउड । पु. [लकुट] लकड़ी, लाठी, डंडा । नवीनता। लउल ।
लंगूल न [लागूल] पुच्छ । लउस । पु [लकूश] एक अनार्य-देश । | लंगलि वि लाङगलिना पच्छवाला लउसय , पुंस्त्री. उस देश का निवासी । | लंगोल देखो लंगूल । स्त्री. °सिया।
लंघ सक [ल, लङ्घय्] लांघना। भोजन लंका स्त्री [लङ्का] सिंहलद्वीप को राजधानी।। नहीं करना। °लय वि. लंका-निवासी। °संदरी स्त्री | लंच [दे] मुर्गा । [सुन्दरी] हनूमान की पत्नी। °सोग पु लंचा स्त्री [लञ्चा] रिश्वत । [°शोक] राक्षस वंश का राजा । 'हिव पु लंचिल्ल वि [लाञ्चिक] घूसखोर । [°धिप] । हिवइ पु[धिपति] लंका का ) लंछ सक [लञ्छ] भाँगना । कलंकित करना।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लंछ-लगुड लंछ पु [लञ्छ] चोरों की एक जाति । । लक्कुड न [दे. लकुट] लकड़ी, यष्टि, लाठी । लंछण न [लाञ्छन] चिह्न । नाम । अंकन । लक्ख सक [लक्षय] जानना। पहचानना । लंडुअवि [दे.लण्डित] उत्क्षिप्त ।। देखना । देखो लक्ख = लक्ष्य । लंतक पु [लान्तक] छठवां देवलोक । लक्ख पुन [दे] काय । लंतग उसके निवासी देव । उसका इन्द्र ।
लक्ख पुन [लक्ष्] लाख की संख्या । °पाग पु लंतय ) एक देवविमान ।।
[°पाक] लाख रुपयों के व्यय से बनता एक लंद पुन [लन्द] समय ।
पाक । लंदय पुन [दे] गो आदि का खादन-पात्र । |
| लक्ख वि [लक्ष्य] पहचानने-योग्य । जिससे लंपड वि [लम्पट] लोलुप, लालची । जाना जाय वह, लक्षण, प्रकाशक, वेध्य । लंपाग पुं[लम्पाक] देश-विशेष ।
लक्ख देखो लक्खा। . लंपिक्ख पु [दे] चोर।
लक्खग वि [लक्षक] पहचाननेवाला । लंब सक [लम्ब] सहारा लेना । अक लटकना। | लक्खण पुंन [लक्षण] भेद-बोधक चिह्न । लंब विलम्ब] लम्बा, दीर्घ ।
वस्तु-स्वरूप। चिह्न। व्याकरण-शास्त्र । लंब पु[दे] गोवाट ।
व्याकरण आदि का सूत्र । प्रतिपाद्य, विषय । लंबअ न [लम्बक] नाभि-पर्यन्त लटकती
पु. लक्ष्मण । सारस पक्षी। °संवच्छर पु
[संवत्सर] वर्ष-विशेष । माला । लंबणा स्त्री [लम्बना] रज्जु, रस्सी ।
लक्खण पु[लक्ष्मण] । देखो लखमण ।
लक्खण न [लक्षण] कारण, हेतु । लंबा स्त्री [दे] वल्लरी, लता । केश ।
लक्खणा स्त्री लक्षणा] शब्द की एक शक्ति, लंबाली स्त्री [दे] पुष्प-विशेष ।
जिससे मुख्य अर्थ के बाध होने पर भिन्न अर्थ लंबिअ । वि [लम्बित] लटकता हुआ ।
को प्रतीति होती है । एक महौषधि । लंबिअय । पु. वानप्रस्थ का एक भेद ।
लक्खणा स्त्री लक्ष्मणा] आठवें जिन देव की लंबुअ वि [लम्बुक] लम्बी लकड़ी के अन्त
माता । उसी जन्म में मुक्ति पानेवाली श्रीकृष्ण भाग में बंधा हुआ मिट्टी का ढेला। भीत में
की पत्नी । एक अमात्य-स्त्री। लगा हुआ ईटों का समूह ।
लक्खणिय वि [लाक्षणिक, लाक्षण्य] लक्षणों लंबुत्तर पुन [लम्बोत्तर] कायोत्सर्ग का एक
का जानकार । लक्षण-युक्त । दोष, चोलपट्टे को नाभि-मंडल से ऊपर रखकर और जानु को चोलपट्ट से नीचे रखकर
लक्खमण | पु [लक्ष्मण] श्रीराम का छोटा कायोत्सर्ग करना।
लखमण ) भाई। बारहवीं शताब्दी का
एक जैन मुनि ग्रंथकार ।। लंबूस पुन [दे.लम्बूष] कन्दुक के आकार का एक आभरण ।
लक्खा स्त्री [लाक्षा] लाख, चवड़ा। रुणिय लंबोदर । वि [लम्बोदर] बड़ा पेटवाला । वि [ रुणित] लाख से रंगा हुआ। लंबोयर ) पु. गणेश ।
लग न [दे] निकट, वास । लंभ सक [लभ प्राप्त करना ।
लगंड [ लगण्ड ] वक्र काष्ठ । °साइ वि लंभ सक [लम्भय] प्राप्त कराना।
[ शायिन्] वक्र काष्ठ की तरह सोनेवाला । लंभ पु[लाभ] प्राप्ति । देखो लाह = लाभ । सण न [सिन] आसन-विशेष । लंभण पु लम्भन] मत्स्य की एक जाति । लगुड देखो लउड़।
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लग्ग-लत्तिआ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६८९
लग्ग सक [लग्] लगना, सम्बन्ध करना । । वाला । लग्ग न [दे] चिह्न। वि. अघटमान, लज्जालु वि. लज्जावान्, शरमिंदा। असम्बद्ध ।
लज्जालु स्त्री [लज्जालु] लता-विशेष, लग्ग न [लग्न] मेष आदि राशि का उदय ।
लज्जालुआ छईमुई । लज्जावाली स्त्री । वि. सम्बद्ध । पुं. स्तुति-पाठक ।
लज्जालुइणी ) लग्गणय पुंलग्नक] प्रतिभू करनेवाला। लज्जालुइणी स्त्री [दे] कलह-कारिणी स्त्री। लग्गूण लग्ग = लग् का संकृ.।
लज्जालुइर । वि [लज्जालु] लज्जाशील । लघिम पुंस्त्री [लघिमन्] लघुता । एक योग- लज्जालुर । सिद्धि, जिससे मनुष्य छोटा बन सकता है । लज्जु स्त्री [रज्जु] रस्सी, सरल । वि. सीधा । विद्या-विशेष ।
लज्जु वि [लज्जावत्] लज्जावाला । लचय न [दे] गण्डुत् तृण ।
लज्जु देखो रिज्जु = ऋजु । लच्छ देखो लक्ख = लक्ष्य ।
लज्झ° लभ का कर्म. का रूप । लच्छ लभ का भवि. का रूप ।
लट्ट । न [दे] खसखस आदि का तेल । लच्छण देखो लक्खण - लक्षण ।
लट्टय ) कुसुम्भ। लच्छि° 1 स्त्री [लक्ष्मी] सम्पत्ति । धन । लट्रा स्त्री [दे] कुसुम्भ धान्य-विशेष । लच्छी । कान्ति । औषध विशेष । फलिनी लट्टा स्त्री [लट्वा] वृक्ष-विशेष । कुसुम्भ । वृक्ष । स्थल-पद्मिनी । हरिद्रा । मोती । शटी | ___ गौरैया पक्षी । भ्रमर । वाद्य-विशेष । नामक ओषधि । शोभा । विष्णु-पत्नी। लट्ठ वि [दे] अन्यासक्त । मनोहर । प्रियंवद । रावण की पत्नी । षष्ठ वासुदेव की माता । प्रधान, मुख्य । दंत पुं [°दन्त] जैन मुनि । पुंडरीक द्रह की अधिष्ठात्री देवी । देव-प्रतिमा- एक अन्तर्वीप । उसमें रहनेवाला मनुष्य । विशेष । छन्द-विशेष । एक वणिक्-पत्नी। लट्टरी स्त्री [दे] सुन्दर, रमणीय । शिखरी पर्वत का एक कूट । निलय पुं. लट्रि स्त्री [यष्टि] लाठी, छड़ी। वासुदेव । °मई स्त्री [°मती] छठवें वासुदेव लट्रिअ न [दे] खाद्य-विशेष । की माता । ग्यारहवें चक्रवर्ती का स्त्री-रत्न। लडह वि [दे]रम्य । सुकुमार । चतुर । प्रधान, मंदिर न [°मन्दिर] नगर-विशेष । 'वइ ।
__ मुख्य । [पति] श्रीकृष्ण । °वई स्त्री [°वती] लडहक्खमिअ वि [दे] विघटित, वियुक्त । दक्षिण रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी
लडहा स्त्रो [दे] विलासवतो स्त्री । देवी। हर पुं [°धर] वासुदेव । छन्द
लडाल देखो णडाल। विशेष । न. नगर-विशेष ।
लड्डिय न [दे] लाड़, प्यार। लजुक (अशो) देखो रज्जु - (दे)।
लड्डुग पुं लड्डुक] लड्डू, मोदक । लज्ज अक [लज्ज्] शरमाना ।
लड्डुयार वि [लड्ड्डककार] हलवाई। लज्जण । न [लज्जन] शरम । वि. | लढ सक [स्मृ] याद करना । लज्जणय , लज्जाकारक ।
लण्ह वि[श्लक्ष्ण]चिकना । अल्प । न: लोहा । लज्जा स्त्री. लाज, शरम । छन्द-विशेष । लत्त वि [लप्त, लपित] उक्त । संयम ।
| लत्ता । स्त्री [दे] लात-प्रहार । आतोद्यलज्जापइत्तअ (शौ) वि [लज्जयितु] लजाने- 'लत्तिआ , विशेष ।
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६९० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लदण-लवम लदण (मा) देखो रयण = रस्न ।
लया स्त्री [लता] वल्ली । भेद । तप-विशेष । लद्द सक [दे] भार भरना, बोझ डालना। चौरासी लाख लतांग-परिमित संख्या । यष्टि । लद्दी स्त्री [दे] हाथी आदि की विष्ठा। । °जुद्ध न [°युद्ध] एक तरह का युद्ध । लद्ध वि [लब्ध] प्राप्त ।
लयापुरिस पुं [दे] वह स्थान, जहाँ पद्म-हस्त लद्धि स्त्री [लब्धि] क्षयोपशम, ज्ञान आदि के स्त्री का चित्रण किया जाय ।
आवारक कर्मों का विनाश और उपशान्ति। लल अक [ल्ल, लड्] विलास करना, मौज सामर्थ्य-विशेष, योग आदि से प्राप्त होती करना। झूलना। विशिष्ट शक्ति । अहिंसा। प्राप्ति । इन्द्रिय ललणा स्त्री [ललना] स्त्री, महिला, नारी ।
और मन से होनेवाला विज्ञान, श्रुत ज्ञान का ललाड देखो णडाल। उपयोग । योग्यता । 'पुलाअ पुं [पुलाक] ललाम न [ललामन्] प्रधान, नायक । लब्धि-विशेष-सम्पन्न मुनि ।
ललिअ न [ललित] विलास, लीला । अंगलद्धिअ वि [लब्ध] प्राप्त ।
विन्यास-विशेष । प्रसन्नता । वि. क्रीडा-प्रधान, लद्धिल्ल वि [लब्धिमत्] लब्धि-युक्त । मौजी । शोभा-युक्त , सुन्दर । मधुर । अभिलढुं लभ का हेकृ ।
लषित । °मित्त पुं [°मित्र] सातवें वासुदेव लद्धण लभ का संकृ. ।
का पूर्वजन्मीय नाम। वित्थरा स्त्री लप्पसिया स्त्री [दे] लपसी, एक पक्वान्न । [विस्तरा] आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि का एक लब्भ लभ का कृ.।
जैन ग्रन्थ । लभ सक [लभ प्राप्त करना ।
ललिअंग पुं [ललिताङ्ग] एक राज-कुमार । लय सफ [ला] ग्रहण करना । देखो ले = ललिअय न [ललितक] छन्द-विशेष । ला।
ललिआ स्त्री [ललिता] एक पुरोहित-स्त्री। लय म [दे] नव-दम्पति का आपस में नाम लल्ल वि [दे] सस्पृह । न्यून । लेने का उत्सव ।
लल्ल वि. अव्यक्त आवाजवाला । लय देखो लव लव।
लल्लक्क पुं. छठवीं नरक-पृथिवी का एक नरकलय पुं. श्लेष । मन की साम्यावस्था ।
स्थान । लीनता । तिरोभाव । संगीत का एक अंग,
लल्लक्क वि [A] भयंकर । पुं. ललकार । स्वर-विशेष ।
लल्लि स्त्री [दे] खुशामद । लय पुं. तन्त्री का स्वर--ध्वनि-विशेष । °सम
लल्लिरी स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल । न. गेय काव्य का एक भेद ।
लव सक [ल] काटना । लय देखो लया। हरय न [गृहक] लता- लव सक [लप्] बोलना, कहना । गृह ।
लव सक [प्र+वर्तय] प्रवृत्ति कराना । लयंग न [लताङ्ग] संख्या-विशेष, चौरासी लव वि. वाचाट । लाख पूर्व ।
लव पुं. सात स्तोक, मुहूर्त का सतरहवाँ अंश । लयण वि [दे] कृश, क्षाम । मृदु । न. लता। थोड़ा। न. कर्म । सत्तम पुं [°सप्तम] लयण न [लयन] तिरोभाव, छिपना । अव- अनुत्तर-विमान निवासी देव, सर्वोत्तम देवस्थान । देखो लेण।
जाति । लयणी स्त्री [दे] लता, वल्ली।
लवअ पुं [ दे. लवक ] गोंव, लासा, घेप,
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लवइअ-लाभंतराइय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष निर्यास।
लहुअ सक [ लघय, लघु + कृ] लघु लवइअ वि [दे. लवकितअंकुरित, पल्लवित । | करना। लवंग पुन [लवङ्ग]लौंग, उसका पेड़ या फूल । लहुअवड पुं [दे] न्यग्रोध-बरगद का पेड़ । लवण न [लवन] छेदन ।
लहुआइअ ) वि [लघूकृत] लघु किया हुआ । लवण न. नमक । पुं. क्षार रस । समद्र-विशेष । । लहुइ सीता का पुत्र लव । मधुराज का पुत्र । °जल
लाइअ वि [लागित] लगाया हुआ। पुं. । ीय पुं [ोद] लवण समुद्र । देखो
लाइअ वि [दे] गृहीत, स्वीकृत । घृष्ट । न. लोण ।
भूषा, मण्डन । भूमि को गोबर आदि से लवणिम पुंस्त्री [लवणिमन्] लावण्य । लीपना । चर्धि । लवल न. पुष्प-विशेष ।
लाइअव्व लाय - लावय का कृ.। . लवली स्त्री. लता-विशेष ।
लाइम वि [लव्य] काटने-योग्य । लवव वि [दे] सोया हुआ।
लाइम वि [दे] लाजा या रोपण के योग्य । लवित्त न [लवित्र] हंसुआ या हँसिया।
लाइल्ल पुंदे] वृषभ । लस अक [लस्] श्लेष करना । चमकना । क्रीडा
लाउ देखो अलाउ।
लाउल्लोइय न [दे] गोमय से भूमि का लेपन करना। लसइ पुं [दे] कन्दर्प ।
और खड़ी से भीत आदि का पोतना । लसक न [दे] पेड़ का दूध ।
लाऊ देखो अलाऊ। लसण देखो लसुण ।
लाख (अप) देखो लक्ख = लक्ष । लसुअ न [दे] तेल ।
लाग पुं [दे] चुंगी। लसुण न [लशुन] लहसुन ।
लाघव. न लघुता।
लावि वि [लाघविन्] लघुता-युक्त, लाघवलह देखो लभ । लहग पुंदे] बासी अन्नज द्वीन्द्रिय कीट ।
__वाला। लहण न [लभन] लाभ । ग्रहण ।
लाघविअ न [लाघविक] लघुता, छोटापन । लहर पुं. एक वणिक-पुत्र ।
लाज देखो लाय = लाज । लहरि । स्त्री. तरंग, कल्लोल ।
लाड पुं [लाट] देश-विशेष । लहरी
लाडी स्त्री [लाटी] लिपि-विशेष । लहिम देखो लघिम।
लाढ पुं. एक आर्य देश । लहु । वि [लघु] छोटा । हलका । तुच्छ, ।
लाढ वि [दे] निर्दोष आहार से आत्मा का लहुअ , श्लाघनीय । थोड़ा। मनोहर । |
निर्वाह करनेवाला, आत्म-निग्रही। प्रधान । स्त्री. °ई, °वी । न. कृष्णागुरु, सुगन्धि धूप- पुं. एक जैन आचार्य । द्रव्य । वीरण-मल । शीघ्र । स्पर्श-विशेष । लाढ वि [दे] उत्तम । लघुस्पर्श नामक एक कर्मभेद । पुं. एक मात्रिक लाण न [लान] ग्रहण, आदान । अक्षर । °कम्म वि [कर्मन्] अल्प कर्म अव- लाबू देखो लाऊ। शिष्टवाला । करण न. दक्षता । परक्कम | लाभ पुं. नफा । प्राप्ति । ब्याज । पुं[पराक्रम] ईशानेन्द्र का पदाति-सेनापति । लाभंतराइय न [लाभान्तरायिक] लाभ का संखिज्ज न [°संख्येय] जघन्य संख्यात । । प्रतिबन्धक कर्म ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष लाभिय-लिंगिय लाभिय । वि [लाभिक]लाभ-युक्त , लाभ- | लावण्ण देखो लायण्ण । लाभिल्ल ) वाला।
लाविय (अप) वि [लात] लाया हुआ । लाम वि [दे] रम्य ।
लाविया स्त्री [दे] उपलोभन । लामंजय न [दे] उशीर तृण, खस-गाँडर लास सक [लासय] नाचना । घास की जड़।
लास न [लास्य] भरतशास्त्र प्रसिद्ध गेयपद लामा स्त्री [दे] डाकिनी ।
आदि । नृत्य । स्त्री का नाच । वाद्य, नृत्य लाय सक [लागय] लगाना ।
और गीत का समुदाय । लाय सक [लावय] कटवाना । काटना ।
लासक ) पुं. रास गानेवाला। जय शब्द लाय देखो लाइअ = (दे)।
लासग । बोलनेवाला। लाय वि [लात] गृहीत । न्यस्त, स्थाफ्ति ।
लासय पुं [लासक, लासक] अनार्य देशन. लग्न का एक दोष ।
विशेष । पुंस्त्री. वहाँ का रहनेवाला । स्त्री. लाय पुंस्त्री [लाज] आर्द्र तण्डुल । ब. भृष्ट "सिया । देखो ल्हासिय। धान्य ।
लासयविहय पुं [दे. लासकविहग] मयूर । लायण्ण न [लावण्य] शरीरकान्ति । लवणत्व । लाह सक [श्लाघ्] प्रशंसा करना । लाल सक [लालय] स्नेह पूर्वक पालना । लाह देखो लाभ। लालंप अक [वि + लप्] विलाप करना। लाहण न [दे] भोज्य-भेद, खाद्य-वस्तु की लालंपिअ न [दे] प्रवाल । खलीन ।
भेंट । लालंभ देखो लालंप।
लाहल देखो णाहल। लालप्प देखो लालंप।
लाहव देखो लाघव । लालप्प सक [लालप्य] खूब बकना । बारबार लिअ सक [लिप्] लीपना। बोलना । गहित बोलना।
लिअ वि [लिप्त] लीपा हुआ । न. लेप । लालब्भ । देखो लालप।
लिआर पुं [लकार] 'ल' वर्ण । लालम्ह
लिंक पुंदे] बाल, लड़का । लालय न [लालक] लाला।
लिंकिअ वि [दे] आक्षिप्त । लीन । लालस वि [दे] मृदु । स्त्रीन. इच्छा।
लिंखय देखो लंख। लालस वि. लम्पट ।
लिंग सक [लिङ्ग] जानना । गति करना । लाला स्त्री. लार।
आलिंगन करना । - लालिअ देखो ललिअ।
लिंग न [लिङ्ग] चिह्न । दार्शनिक और साधु लालिच (अप) पुं[नालिच] वृक्ष-विशेष ।
का अपने धर्म के अनुसार वेष । अनुमान लालिल्ल वि [लालावत् लारवाला ।
प्रमाण का साधक हेतु । पुंश्चिह्न । पुंलिंग लाव सक [लापय्] बुलवाना, कहलाना ।
आदि शब्द । °द्धय पुं [ध्वज] । जीव लाव देखो लावग।
पुं. वेषधारी साधु । लावंज न [दे] सुगन्धी तृण, उशीर, खस । लिंगि वि [लिङ्गिन्] साध्य हेतु से जानी जाती लावक । पुं. पक्षि-विशेष । वि. काटनेवाला ।। वस्तु । किसी धर्म के वेष को धारण करने लावग
वाला साधु । लावणि वि [लावणिक] लवण से संस्कृत । | लिंगिय वि लैंगिक] अनुमान प्रमाण ।
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लिंछ-लुंछ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष लिंछ न [दे] चुल्ली-स्थान । अग्नि-विशेष । । लिस अक [स्वप] सोना। देखो लिच्छ।
| लिस सक [श्लिष्] आलिंगन करना । लिंड न [दे] हाथी आदि की विष्ठा । शैवल- लिसय वि [दे] क्षीण । रहित पुराना पानी।
लिस्स देखो लिस = श्लिष् । लिडिया स्त्री [दे] बकरा आदि की विष्ठा ।
लिह सक [लिख.] लिखना । रेखा करना । लित ले = ला का, वकृ. ।
लिह सक [लिह] चाटना । लिंप सक [लिप्] लीपना।
लिहण न [लेखन] लेख लिखवाना । लिंपाविय वि [लेपित] लेप कराया हुआ। लिहा स्त्री [लेखा] देखो रेहा = रेखा । लिंब पुं[निम्ब] नीम का पेड़ ।
लिहिअ वि[लिखित]लिखा हुआ । उल्लिखित । लिंब वि [दे] कोमल । नम्र ।
चित्रित। लिंब पुं [दे. लिम्ब] आस्तरण-विशेष । लिहअ (अप) वि [लात] लिया हुआ । लिंबड (अप) देखो लिंब = निम्ब ।
लीढ वि. चाटा हुआ । स्पृष्ट । युक्त । लिंबोहली स्त्री [दे] निम्ब-फल ।
लीण वि [लीन] लय-युक्त । लिकार देखो लिआर।
लील दे] यज्ञ । लिक्क अक [नि+ली] छिपाना।
लीला स्त्री विलास । क्रीड़ा। छन्द-विशेष । लिक्ख न लेख्य] हिसाब । देखो लेक्ख । वई स्त्री [°वती] विलासवती स्त्री। छन्दलिक्ख स्त्रीन [दे] छोटा स्रोत । स्त्री. क्खा। विशेष । वह वि. लीला-वाहक । लिक्खा स्त्री [लिक्षा] लघु यूका। परिणाम- लीलाइअ न [लीलायित] क्रीड़ा । प्रभाव । विशेष ।
लीलाय सक [लीलाय] लीला करना। लिखाप (अशो) सक [लेखय ] लिखवाना। लीव पुं [दे] बाल । लिच्छ सक [लिप्स] प्राप्त करने को चाहना । लीहा देखो लिहा। लिच्छ देखो लिंछ।
लुअ सक [लू] छेदना, काटना । लिच्छवि देखो लेच्छइ = लेच्छफि ।
लुअ देखो लंप। लिच्छु वि [लिप्सु] लाभ की चाहवाला । लुअ वि [लून] काटा हुआ, छिन्न । लिजिअ (अप) वि [लात] गृहीत । लुअ वि [लुप्त] जिसका लोप किया गया हो लिट्टिअ न [दे] चाटु, खुशामद । वि. लम्पट ।
वह । न. लोप। लिठ्ठ देखो लेछु।
लुअंत वि [लूनवत्] जिसने छेदन किया लित्त वि [लिप्त] लेप-युक्त । संवेष्टित । हो वह । लित्ति पुंस्त्री [दे] खड्ग आदि का दोष । लुंक वि [दे] सुप्त । लिप्प देखो लित्त।
लुंकणी स्त्री [दे] छिपना । लिप्प देखो लेप्प।
लुंख पुं [दे] नियम । लिप्पासण न [लिप्यासन] मसी-भाजन । लुखाय पुं [दे] निर्णय । लिब्मत लिह = लिह, का कवकृ.। लुखिअ वि [दे] कलुष, मलिन । लिल्लिर वि [दे] आर्द्र । हरा ग्वाला । लुंच सक [ल ञ्च] बाल उखाड़ना । अपनयन लिवि । स्त्री [लिपि, पी] अक्षर-लेखन- करना। लिवी । प्रक्रिया।
लुंछ सक [मृज्, प्र+ उञ्छ] मार्जन करना।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लुट-लेक्स पोंछना।
लुब्भ । अक [लुभ्] लोभ करना । आसक्ति लुट सक [लुण्ट्] लूटना।
लुभ करना। लुटाक वि [लुण्टाक] लुटेरा ।
लुभ देखो लुह = मृज् । लँठग वि [लुण्ठक] खल।
लुरणी स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । लुंठिअ वि [लुण्ठित] बलाद् गृहीत । लुल देखो लुढ। लुप सक [लुप्] लोप करना, विनाश करना, |
| लुलिअ वि [लुलित] घूणित, चलित । उत्पीड़न करना । अदृष्ट करना ।
लुव देखो लुअ = लू । लंपइत्तु वि [लोपयितु] लोप करनेवाला । लुव्व लुण का कर्मणि प्रयोग । लुंपणा स्त्री [लोपना] विनाश ।
लुह सक [मृज्] मार्जन करना, पोंछना । लुपित्तु वि [लोप्तृ] लोप करनेवाला। . लूअ देखो लुअ = लून। लंबी स्त्री [ दे. लुम्बी ] फलों का गुच्छा। लूआ स्त्री [दे] मृग-तृष्णा । लता।
लूआ स्त्री [लूता] एक वात-रोग मकड़ी। लुक्क अक [नि + लो] छिपना।
लूड [लुण्ट्] लूटना, चोरी करना । लुक्क अक [तुड्] टूटना।
लूड वि [लुण्ट] लूटनेवाला । स्त्री, °डी। लुक्क वि [दे] सुप्त ।
लूण देखो लूअ - लून । लुक्क वि [निलीन] छिपा हुआ ।
लूण न [लवण] नमक । पुं. वनस्पति-विशेष । लुक्क वि [रुग्ण] भग्न । रोगी ।
देखो लवण। लुक्क वि [लुञ्चित] मुण्डित ।
लूण न [लवण] लावण्य, सुन्दरता । लुक्ख पुं [रुक्ष] सूखा स्पर्श । वि. रुक्ष स्पर्श
| लूर सक [छिद्] काटना। वाला, स्नेह-रहित । देखो लूह = रूक्ष । लूस सक [लूषय] वध करना । पीड़ना । लुग्ग वि [दे. रुग्ण] भग्न, रोगी ।
दूषित करना। चोरी करना । विनाश लुच्छ देखो लुंछ = मृज् ।
करना । अनादर करना । तोड़ना। छोटे को लुट्ट संक [लुण्ट] लूटना ।
बड़ा और बड़े को छोटा करना । लुट्ट देखो लोट्ट = स्वप् ।
लूसअ । वि [लूषक] हिंसक । विनाशक । लुट्ट वि [लुण्टित] लूटा गया।
लूसग । प्रकृति-क्रूर । भक्षक । दूषित करनेलुट्ठ पुं [लोष्ट] रोड़ा, ईंट आदि का टुकड़ा ।
वाला । विराधक । हेतु-विशेष ।। लुड्ढ देखो लुद्ध ।
लूसण वि [लूषण] ऊपर देखो। लुढ अक [लुठू] लुढ़कना, लेटना ।
लूसय वि [लषक] परिताप-कर्ता । चोर । लुण देखो लुअ = लू ।
लूह सक [मृज, रूक्षय] पोंछना। लुत्त वि [लुप्त] लोप-प्राप्त ।
लूह पुं [रूक्ष] मुनि, साधु, श्रमण । लुत्त न [लोप्त्र] चोरी का माल ।
लूह वि [रूक्ष] सूखा, स्नेह-रहित । पुं. संयम, लुद्ध पुं [लुब्ध] व्याध । वि. लोलुप । न. चारित्र । न. निर्विकृतिक तप। देखो लोभ ।
लुक्ख । लुद्ध न [लोध्र] गन्ध-द्रव्य-विशेष । देखो लोद्ध | ले सक [ला] लेना । ग्रहण करना। = लोध्र।
| लेक्ख न [लेख्य] व्यवहार, व्यापार । लुद्ध पुन [लोध्र] क्षार-विशेष । | हिसाब ।
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लेक्खा-लोअडी
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष लेक्खा देखो लिहा।
लेस्सा देखो लेसा। लेख देखो लेह = लेख।
लेह देखो लिह = लिख् । लेच्छइ पुं [लेच्छकि] क्षत्रिय-विशेष । एक लेह देखो लिह = लिह । प्रसिद्ध राज-वंश ।
लेह (अप) देखो लह = लभ् । लेच्छइ पुंलिप्सुक, लेच्छकि] वणिक् । एक लेह लेख] लिखना । पत्र । देव । लिपि । वणिग्-जाति ।
वि. लेख्य । लेखक । °वाह वि. । वाहग, लेच्छारिय वि [दे] खरण्टित, लिप्त ।। °वाहय वि [°वाहक] पत्र-वाहक । °साला लेज्झ लिह = लिह का कृ.।
स्त्री [°शाला ] पाठशाला । °ारिय पुं लेछ । पुन [लेष्टु] रोड़ा, इंट, पत्थर | [°ाचार्य] उपाध्याय । लेडु आदि का टुकड़ा।
लेहड वि [दे] लम्पट । लेडुअ .
लेहणी स्त्री [लेखनी] कलम । लेडुक्क पुं[दे] रोड़ा। वि. लम्पट । लेहल देखो लेहड। लेढिअ न [दे] स्मरण ।
लेहा देखो लिहा। लेढुक्क पुं [दे] रोड़ा।
लेहुड पुं [दे] लोष्ठ, रोड़ा, ढेला। लेण न [लयन] गिरि-वर्ती पाषाण-गृह । बिल, | लोअ देखो रोअ = रोचय ।। जन्तुगृह । °विहि पुंस्त्री [विधि] कला. लोअ सक [लोक्, लोकय] देखना। विशेष । देखो लयण = लयन ।
लोअ पुं [लोक] धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का लेप्प न [लेप्य] भित्ति ।
आधार-भूत आकाश-क्षेत्र, जगत्, भुवन । लेप्पकार पुं [लेप्यकार] राजगीर, शिल्पी।
जीव, अजीव आदि द्रव्य । समय, आवलिका लेप्पा स्त्री [लेप्या] लेपन-क्रिया ।
आदि काल । गुण, पर्याय, धर्म । प्राणिवर्ग । लेलु देखो लेडु ।
आलोक, प्रकाश । ग्ग° न [ग्र] लेव पुं[लेप] लेपन । नाभि-प्रमाण जल। पुं.
ईषत्प्राग्भारा पृथिवी, मुक्त-स्थान । मुक्ति । भ० महावीर के समय का नालंदानिवासी ग्गथूभिआ स्त्री [°ग्रस्तूपिका] ईषत्प्रारगृहस्थ । °कड, ड वि [कृत लेप-मिश्रित । भारा । ग्गपडिबुज्झणा स्त्री [ग्रप्रतिलेवाड वि [लेपकृत्] लेपकारक ।
बोधना] ईषत्प्राग्भारा पृथिवी । °णाभि पुं लेस पुंलेश] अल्प । संक्षेप ।
[°नाभि] मेरु पर्वत । 'प्पवाय पुं [प्रवाद] लेस वि [दे] लिखित । आश्वस्त । निःशब्द । |
जन-श्रुति । मज्झ पुं [°मध्य] मेरु पर्वत । पुं. निद्रा।
वाय पुं [°वाद] जन-श्रुति । °गास पुं लेस पुं [श्लेष] संश्लेष, सम्बन्ध । मिलान ।
[°काश] लोक-क्षेत्र, अलोक-भिन्न आकाश । लेसणी स्त्री [श्लेषणी] विद्या-विशेष ।
हाणय न [°भाणक] कहावत । देखो लेसा स्त्री [लेश्या] तेज, ज्वाला। मंडल । | लोग। किरण । देहसौन्दर्य । आत्मा का परिणाम- | लोअ पुं [लोच] केशों का उत्पाटन । विशेष, कृष्णादि द्रव्यों के सान्निध्य से उत्पन्न लोअ पुं [लोप] अदर्शन, विध्वंस । होने वाला आत्मा का शुभ या अशुभ परि- लोअंतिय [लोकान्तिक] एक देव-जाति । णाम । उसकी उत्पत्ति का निमित्त द्रव्य । । लोअग न [दे. लोचक] खराब अन्न । लेसुरुडयतरु ' [दे] लसोड़ा।
लोअडी (अप) स्त्री [लोमपटी] कम्बल ।
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६९६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
लोअण-लोभ लोअण पुन [लोचन] आँख । °वत्त न [°पत्र] | लोगंतिय देखो लोअंतिय । अक्षि लोम।
लोगिग देखो लोइअ = लौकिक । लोअणिल्ल वि [लोचनवत् आँखवाला । लोगुत्तर देखो लोउत्तर। वडिसय न लोआणी स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष । [वतंसक] एक देव-विमान ।। लोइअ वि [लोकित] निरीक्षित, दृष्ट । लोगुत्तर पुं [लोकोत्तर] मुनि । जिन-शासन, लोइअ वि [लौकिक लोक-सम्बन्धी। जैन-सिद्धान्त । लोउत्तर वि [लोकोत्तर] लोक-प्रधान । लोगुत्तरिअ वि [लोकोत्तरिक] साधु का । लोउत्तरिय देखो लोगत्तर । वि [लोको- | जिन शासन का।। त्तरिक] ।
लोगुत्तरिय देखो लोउत्तरिय । लोक वि [दे] सुप्त ।
लोट अक [स्वप] लोटना, सोना । लोग पुं लोक] मान-विशेष, श्रेणी से गुणित
लोट्ट अक [लुठ्] लेटना । प्रवृत्त होना । प्रतर । यत देखो गयय ।
लोट्ट । पुं [दे] कच्चा चावल । पुंस्त्री. लोग देखो लोअ = लोक । न. एक
लोट्य ) हाथी का छोटा बच्चा । स्त्री.
देवविमान। °कत न [°कान्त] एक देव
___°ट्टिया । विमान । कूड न [°कूट] एक देव-विमान ।
लोट्टिअ वि [दे] उपविष्ट । ग्गचूलिआ स्त्री [°ग्रचूलिका] सिद्धि
लोट्ट वि [दे] स्मृत । शिला । °जत्ता स्त्री [ यात्रा] लोक-व्यव
लोट पुं [लोष्ट] रोड़ा, ढेला । हार, रोजी। °ट्रिइ स्त्री [ स्थिति] लोक
लोडाविअ वि [लोटित] घुमाया हुआ। व्यवस्था । दव्व न[°द्रव्य जीव, अजीव आदि
लोढ सक [दे] कपास निकालना । पदार्थ-समूह । 'नाभि पुं. मेरु पर्वत । 'नाह
लोढ पुंदे] लोढ़ा, शिलापुत्रक, पीसने का पुं [नाथ] परमेश्वर । परिपूरणा स्त्री.
पत्थर । औषधि-विशेष, पद्मिनीकन्द । वि. ईषत्प्राग्भारा पृथिवी । °पाल पुं. इन्द्रों के |
| स्मृत । शयित । दिक्पाल । °प्पभ पुं [प्रभ] एक देव- लोढय पुं [दे. लोठक] कपास के बीज निकाविमान । बिंदुसार पुन [बिन्दुसार] चौदहवाँ | लने का यन्त्र । पूर्व-ग्रन्थ । °मज्झावसिअ पुंन [मध्याव
सिपंन मध्याव- | लोढिअ वि [लोठित] सुलाया हुआ। सित] । मज्जावसाणिअ पुन [°मध्या- लोण्ण न [लवण] नमक । लावण्य । पुं. वृक्षवसानिक] अभिनय-विशेष । रूव न
विशेष । देखो लवण। [ रूप]। लेस न [°लेश्य ] || लोणिय वि [लावणिक] लवण-युक्त, लवण°वण्ण न [°वर्ण ] देव-विमान-विशेष । __ सम्बन्धी। °वाल देखो पाल। °वीर पुं. भगवान् लोण्ण न लावण्य] शरीर-कान्ति । महावीर । °सिंग न [शृङ्ग] । °सिटु न | लोत्त न [लोप्त्र] चोरी का माल । [सृष्ट] । हिअ न [हित] देव-विमान- | लोद्ध पुं[लोध्र] वृक्ष-विशेष । देखो लुद्ध = विशेष । 'यय न [°ायत] चार्वाक दर्शन ।। लोध्र ।
लोग पुन [°लोक] परिपूर्ण आकाश-क्षेत्र, लोद्ध देखो लुद्ध = लुब्ध । सम्पूर्ण जगत् । वत्त न [वत] एक देव- लोप्प देखो लंप । विमान । पहाण न [ख्यान] लोकोक्ति । । लोभ सक [लोभय] लालच देना।
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लोहिअ.
लोभ-लहसुण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
६९७ लोभ पुं. लालच, तृष्णा । वि. लोभयुक्त। | लोहार । जंघ [जङ्घ] भारत का द्वितीय लोभणय वि [लोभनक] लोभी। वि |
प्रतिवासुदेव । राजा चण्डप्रद्योत का दूत । लोभि लोभिन्] लोभवाला।
"जंघवण न [°जङ्घवन] मथुरो के समीप लोभिल्ल
का एक वन। लोम पुन. रोम । 'पक्खि पुं [पक्षिन्] रोम के | लोह वि [लौह] लोहे का, लोह-निर्मित । पखवाला पक्षी । °स वि [°श] लोम-युक्त । लोहंगिणी स्त्री [लोहाङ्गिनी ] छन्दहत्थ पुं[हस्त] पीछी, लोम का झाड़ । विशेष । हरिस पुं हर्ष] नरकावास-विशेष । | लोहल पुं. अव्यक्त शब्द । रोमाञ्च । "हार पुं. मार कर धन लूटनेवाला | लोहार पुं[लोहकार] लोहार । चोर। हार पुं. रूंगटों से लिया जाता | लोहि । देखो लोही।
आहार । लोमंथिअ ' [दे] नट ।
लोहिअ ' [लोहित लाल । वि. रक्त वर्णलोमसी स्त्री [दे] खीरा । ककड़ी का गाछ। वाला । न. रुधिर । कौशिक गोत्र को एक लोय न [दे] सुन्दर भोजन, मिष्टान्न ।
शाखा। लोर पुंन [दे] नेत्र । अश्रु ।
लोहिअंक पुं [लोहित्यक, लोहिताङ्क] लोल अक [लुठ] लेटना । सक. विलोडन अठासी महाग्रहों में तीसरा महाग्रह । करना ।
लोहिअक्ख पुं [लोहिताक्ष] एक महाग्रह । लोल सक [लोठय] लेटाना।
चमरेन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति । रत्नलोल वि. लम्पट, आसक्त । पुं. रत्न-प्रभा का
जाति । एक देव-विमान । रत्नप्रभा पृथिवी नरकावास । शर्कराप्रभा का नवा नरकेन्द्रका का एक काण्ड । एक पर्वत-कुट । °मज्झ पुं [मध्य] । 'सिटू पुं[शिष्ट] । लोहिआ । अक [लोहिताय] लाल
वित्त वर्त] नरकावास-विशेष । लोहिआअ , होना । लोलंठिअ न [दे] चाटु, खुशामद । | लोहिआमुह पुं लोहितामुख] रत्नप्रभा का लोलपच्छ पुं [लोलपाक्ष] नरक-स्थान- एक नरकावास । विशेष ।
लोहिच्च पुं [लोहित्य] आचार्य भूतदिन्न के लोलिक्क । न [लोल्य] लम्पटता। पुंस्त्री शिष्य एक जैन मुनि । लोलिम ) [लोलत्व ।
| लोहिच्च न [लौहित्यायन] गोत्र-विशेष । लोलुअ वि [लोलुप] लम्पट । पुं. रत्नप्रभा का लोहिच्चायण नरकावास । °च्चुअ पुं [°ाच्युत] रत्नप्रभा | लोहिणी स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, का नरकस्थान ।
लोहिणीहू कन्द-विशेष । लोलुचाविअ वि [दे] जिसने तृष्णा की हो। लोहिल्ल वि [दे. लोभिन्] लम्पट । लोलुव देखो लोलुअ।
लोही स्त्री [लौही] कराह, लोहे का भाजन । लोव सक [लोपय] लोप, विध्वंस या विनाश ल्हस देखो लस = लस् । करना।
ल्हस अक [स्रस्] खिसकना, गिर पड़ना । लोह देखो लोभ = लोभ ।
ल्हसिअ वि [दे] हर्षित । लोह पुंन. लोहा । कोई भी धातु । °कार पुं. । ल्हसुण देखो लसुण ।
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६९८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ल्हादि-वइत्ता ल्हादि । स्त्री [ह्लादि] आह्लाद, खुशी । ल्हिक्क अक [नि + ली] छिपना । ल्हाय , पुं [ह्लाद] ऊपर देखो। ल्हिक्क वि [दे] नष्ट । गत । ल्हासिय पुं [ल्हासिक] एक अनार्य जाति ।
व पुं. अन्तस्थ व्यञ्जन वर्ण-विशेष, जिसका वइअर पुं [व्यतिकर] प्रसङ्ग, प्रस्ताव । उच्चारणस्थान दन्त और ओष्ठ है। पुन. वइअव्व वय = व्रज का कृ.।। वरुण ।
वइआ स्त्री [वजिका] छोटा गोकुल । व अ. देखो इव ।
वइआलिअ वि [वैतालिक] मंगल-स्तुति आदि व देखो वा% अ।
से राजा को जगानेवाला मागध आदि । व° देखो वाया = वाच । क्खेवअ वि वइआलीअ पन [वैतालीय छन्द-विशेष । [°क्षेपक] वचन का निरसन । °प्पइराय पुं वइएस वि [वैदेश] परदेशी।। [°पतिराज] 'गउडवहो' काव्य का कर्ता । वइएह [वैदेह] वणिक । शूद्र पुरुष और वअणीआ स्त्री [दे] उन्मत्त या दुःशील स्त्री। वैश्य स्त्री से उत्पन्न जाति-विशेष । राजा वअल अक [प्र + स] फैलना।
जनक । वि. देह-रहित से सम्बन्ध रखनेवआड देखो वायाड = वाचाट ।
वाला । मिथिला देश का । वइ अ [वै] इन अर्थों का सूचक अव्यय-- वइंगण न [दे] बैगन, वृन्ताक, भंटा । निश्चय । अनुनय । सम्बोधन । पादपूर्ति। वइकच्छ पुं [वैकक्ष] उत्तरासंग । वइ अ [दे] वदी, कृष्ण पक्ष ।।
वइकलिअ न [वैकल्य] विकलता। वइ वि [वतिन्] व्रती, संयमी । स्त्री. °णी। | वइकुंठ पुं [वैकुण्ठ] विष्णु । विष्णु का धाम । वइ स्त्री[वाच्]वाणी । 'गुत्त वि [°गुप्त]वाणी वइक्त वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत ।। का संयमी । °गुत्ति स्त्री [°गुप्ति] वाणी का वइक्कम पुं [व्यतिक्रम] विशेष उल्लंघन, व्रतसंयम । °जोअ, °जोग पुं [°योग] वचन- दोष-विशेष । व्यापार । °मंत वि [°मत्] वचनवाला । वइगरणिय पुं [वैकरणिक] राज-कर्मचारी°मेत्त न [ मात्र] निरर्थक वचन । देखो विशेष । वई।
वइगा देखो वइआ। वइ स्त्री [वृति] बाड़, घेरा ।
वइगुण्ण न [वैगुण्य] वैकल्य, अपरिपूर्णता । वइ देखो पइ = पति ।
विपरीतपन, विपर्यय । वइ देखो वय = वद् ।
वइचित्त न [वैचित्र्य] विचित्रता । वइ° देखो वय = व्रज ।
वइजवण वि [वैजवन] गोत्र-विशेष में वइअ वि [दे] जिसका पान किया गया हो। । उत्पन्न । आच्छादित ।
वइणी वइ = वतिन् का स्त्री। वइअ वि [व्ययित] व्यय किया हुआ। वइतुलिय वि [वैतुलिक] तुल्यता-रहित । वइअब्भ पुं [वैदर्भ] विदर्भ देश का राजा। वइत्तए वय = वद् का हेकृ. । वि. विदर्भ देश में उत्पन्न ।
। वइत्ता वय = वद् का संकृ.।
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वइत्ता-वइसम्म
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वइत्ता वय = वच् का संकृ. ।
हर पुं [°धर] इन्द्र । °मय वि [°मय] वइत्तु वि [वदित] बोलनेवाला ।
वज्र रत्नों का बना हुआ। स्त्री. मई, वइदब्भ देखो वइअब्भ ।
°मती। वित्त न [वर्त] एक देववइदि स पुं [वैदिश अवन्ती-मालव देश । वि. विमान । °सभनाराय न [ऋषभनाराच] विदिशा-सम्बन्धी।
संहनन-विशेष । देखो वज्ज - वज्र । वइदेस देखो वइएस।
वइरा स्त्री [वज्रा] एक जैन मुनि-शाखा । वइदेसिअ वि वैदेशिक विदेशीय, परदेशी। वइराग न [वैराग्य विरक्ति, उदासीनता। वइदेह देखो वइएह।
वइराड पुं [वैराट] एक आर्य देश । न. वइदेही स्त्री [वैदेही] राजा जनक की स्त्री. प्राचीन मत्स्य देश की राजधानी । सीता को माता । सीता। हल्दी। पीपल। वइराय देखो वइराग। वणिक्-स्त्री।
वइरि वि [वैरिन्] दुश्मन, रिपु । वइधम्म न [वैधर्म्य] विरुद्धधर्मता ।
वइरिअ । वइमिस्स वि [व्यतिमिश्र] संमिलित । वरिक्क न [दे] विजन, एकान्त । देखो वइर देखो वेर - वैर ।
पइरिक्क । वइर पुंन [वज्र] रत्न-विशेष, हीरा । इन्द्र का
वइरित्त वि [व्यतिरिक्त] भिन्न, अलग । अस्त्र । एक देव-विमान । बिजली । पुं. एक
वइरी स्त्री [वज्रा] एक जैन मुनि-शाखा । जैन महर्षि । कोकिलाक्ष वृक्ष । श्वेत कुशा ।
वइरुट्टा स्त्री [वैरोट्या] एक विद्या-देवी । श्रीकृष्ण का प्रपौत्र । न. बालक । धात्री।
मल्लिनाथ को शासन-देवी । कांजी । वज्रपुष्प । एक प्रकार का लोहा ।
| वइरुत्तरवडिंसग न [वज्रोत्तरावतंसक एक अभ्र-विशेष । ज्योतिष का एक योग ।
देव-विमान । कीलिका । °कंड न [काण्ड] रत्नप्रभा का | वइरेअ ) पुं [व्यतिरेक] अभाव । साध्य के एक वज्ररत्न-मय काण्ड । कंत न[°कान्त ।। वइरेग अभाव में हेतु का नितान्त अभाव । कड न [°कूट]देव-विमान । देवी-विशेष का | वइरोअण पुं [वैरोचन] अग्नि । बलि नामक आवासभूत एक शिखर । जंघ पुं [°जय] । इन्द्र । उत्तर दिशा में रहनेवाले असुर-निकाय भरतक्षेत्र में उत्पन्न तृतीय प्रतिवासुदेव ।। के देव । पुंन. एक लोकान्तिक देव-विमान । पुष्कलावती विजय के लोहार्गल नगर का एक | वइरोअण पुंदे] बुद्ध देव । राजा । °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान । | वइरोड पुं दे] जार, उपपति । °मज्झा स्त्री [°मध्या] प्रतिमा-विशेष, एक | वइवलय पुं[दे] दुन्दुभ सर्प, उसकी जाति । प्रकार का व्रत । रूव न [°रूप] । °लेस न | वइवाय पुं [व्यतीपात] ज्योतिष का एक [°लेश्य] । °वण्ण न [°वर्ण] । सिंग न | योग । [शृङ्ग] सब देव-विमान । °सिंह पुं. एक | वइवेला स्त्री [दे] सोमा । राजा । सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देव-विमान । | वइस देखो वइस्स = वैश्य । °सीह देखो सिंह । °सेण पुं [°सेन] एक | वइसइअ वि [वैषयिक] विषय-सम्बन्धी। जैन महषि, वज्रस्वामी के शिष्य । °सेणा | वइसंपायण पुं [वैशम्पायन] एक ऋषि, जो स्त्री [°सेना] इन्द्राणी, दाक्षिणत्य वानव्यत- | व्यास का शिष्य था । रेन्द्र की अग्र-महिषी । एक दिक्कुमारी देवी। | वइसम्म पुंन [वैषम्य] विषमता ।
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७००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वइसवण-वंजण वइसवण पं [वैश्रवण] कुबेर ।
वंक पुं [दे] कलंक, दाग। वइसस न [वैशस] रोमाञ्चकारी पाप-कृत्य । °वंक देखो पंक। वइसानर देखो वइस्साणर।
वंकचूल । पुं [वङ्कचूल] एक प्रसिद्ध वइसाल देखो [वैशाल] विशाला में उत्पन्न । वकचूलि ) राज-कुमार । पुं [वंकचूलि] । वइसाह पुं [वैशाख मास-विशेष । मन्थन
वंकण न [वङ्कन, वक्रण] वक्रीकरण, कुटिल दण्ड । पुन. योद्धा का स्थान-विशेष ।
बनाना। वइसाही देखो वेसाही।
वंकिअ वि [वक्रित] बांका किया हुआ । वइसिअ वि [वैशिक] वेष से जीविका उपा- वंकिअ वि [पङ्कित] पंक-युक्त । र्जन करनेवाला।
वंकिम पुंस्त्री [वक्रिमन्] वक्रता, कुटिलता। वइसिट्ट न [वैशिष्टय] विशिष्टता, भेद । वइसेसिअ न [वैशेषिक] कणाद-दर्शन । वंकण ,
वंकुड , देखो वंक = वंक । विशेष ।
वंकुभ (शौ) ऊपर देखो। वइस्स पुंस्त्री [वैश्य] वर्ण-विशेष, वणिक् । वंग न दे] वन्ताक । महाजन ।
वंग वि [व्यङ्ग] विकृत अंग । वइस्स वि [द्वेष्य] अप्रीतिकर ।
वंगच्छ पुं [दे] प्रथम, शिव का अनुचर-विशेष । वइस्सदेव पुं [वैश्वदेव] अग्नि ।
वंगण न [व्यङ्गन] क्षत। वइस्साणर पुं [ वैश्वानर ] अग्नि । चित्रक वंगिय वि [व्यङ्गित] विकृत शरीरवाला । वृक्ष । सामदेव का अवयव-विशेष ।
वंगेवडु पुं [दे] सूकर । वई देखो वइ = वाच् । "मय वि. वचनात्मक। वंच सक [वञ्च] ठगना । वईअ वि [व्यतीत]अतीत । सोग पुं [°शोक] वंच (अप) देखो वच्च = व्रज् । एक जैन मुनि ।
वंच सक [उद्+नमय] ऊँचा उठाना । वईवय सक [व्यति + व्रज ] जाना । वंच वि [वञ्च] धूर्त । वईवाय देखो वइवाय ।
वंचण न [वञ्चनप्रतारण । वि. ठग । °चण वउ पुंस्त्री [दे] लावण्य ।
वि. ठगने में चतुर । वउ न [वपुष] शरीर।
वंचिअ वि [वञ्चित] प्रतारित । रहित । वउलिअ वि [दे] शुल-प्रोत ।
वंछा स्त्री [वाञ्छा] इच्छा, चाह । वएमाण वय = वद् का कवकृ. ।
वंज सक [वि + अञ्ज ] व्यक्त करना । वओ° देखो वय = वचस् । °मय न. वाङ्मय, वंज देखो वंच = उद् + नमय । शास्त्र।
वंज देखो वंद = वन्द । वओ वय = वयस् ।
वंजग देखो वंजय। वओवउप्फ । पुंन [दे] विषुवत् । समान वंजण न [व्य ञ्जन] वर्ण, अक्षर । क से ह वओवत्थ ) रात और दिन वाला काल । तक वर्ण। शब्द । तरकारी, कढ़ी आदि रसव देखो वाया - वाच । नियम पुं. वाणी व्यञ्जक वस्तु । वीर्य । शरीर का मसा आदि की मर्यादा।
चिह्न। उनके फल का उपदेशक शास्त्र । वंक वि [वङ्क, वक्र] बाँका, कुटिल । नदी | कक्षा आदि के बाल । प्रकाशन । श्रोत्रादि का बाँक।
| इन्द्रिय । शब्द आदि द्रव्य । द्रव्य और इंद्रिय
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बजय-वंसि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७०१ का सम्बन्ध । °वग्गह, °ोगह पुं[विग्रह] वंदण न [वन्दन] प्रणाम । स्तवन । कलस चक्षु और मन को छोड़ कर अन्य इन्द्रियों से पुं [°कलश] । °घड पुं [°घट]मांगलिकघट । होनेवाला ज्ञान-विशेष ।
___°माला, 'मालिआ स्त्री. घर के द्वार पर वंजय वि [व्यञ्जक] व्यक्त करनेवाला। मंगल के लिए जाती पत्र-माला । °वडिआ, वंजर पुं [मार्जार] बिल्ला ।
वत्तिआ स्त्री [°प्रत्यय] वन्दन-हेतु । वंजर न [दे] नीवी, कटी-वस्त्र ।
वंदणिया स्त्री [दे] मोरी, नाला । वंजुल पुं [वजुल] अशोक वृक्ष । वेतस वृक्ष । वंदर देखो वंद = वृन्द । पक्षि-विशेष ।
वंदाप (अशो) देखो वंदाव। वंजुलि वि [वजुलिन्] वेतस वृक्ष वाला। वंदारय पुं [वृन्दारक] देव । वि. मनोहर । स्त्री. °णी।
मुख्य । वंझ वि [वन्ध्य] शून्य, वजित ।
वंदारु वि [वन्दारु] वन्दन करनेवाला । वंझा स्त्री [वन्ध्या] अपुत्रवती स्त्री। वंदाव सक [वन्दय् वन्दन करवाना । वंट न [वृन्त] फल या पत्तों का बन्धन ।। वंदावणग न [वन्दन] वन्दन । वंटग पुं [वण्टक बाँट, विभाग।
वंदिम वंद = वन्द् का कृ.। वंठ पुंदे] अविवाहित । खण्ड, टुकड़ा । गण्ड । वंदुरा स्त्री [मन्दुरा] वाजिशाला, घुड़साल । भृत्य । वि. निःस्नेह । धूर्त ।
वंद्र न [वन्द्र] समूह, यूथ । वंठ वि [वण्ठ] खर्व, वामन, बीना । वंध पुं [वन्ध्य] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव । वंठण (अप) न [वण्टन] बाँटना, विभाजन । वंफ सक [काङ्क्ष] चाहना । वंडइअ वि [दे] पीडित ।
वंफ अक [वल्] लौटना । °वंडु देखो पंडु ।
वंफि वि [ वलिन् ] लौटनेवाला । नीचे वंडुअ न [दे] राज्य ।
गिरनेवाला। वंडुर देखो पंडुर।
वंफिअ वि [दे] भुक्त। वंढ पुं [दे] बन्ध ।
वंस पुं [दे] कलंक, दाग। वंत वि [वान्त] पतित, गिरा हुआ ।
| वंस पुं [वंश] बाँस । वाद्य -विशेष । कुल । वंत पुं [वान्त] जिसका वमन किया गया हो ।
सन्तान । पृष्ठावयव । वर्ग । इक्षु । सालवृक्ष । पुंन. वमन ।
°इरि पुं. [°गिरि] पर्वत-विशेष । करिल्ल, वंतर पुं [व्यन्तर] एक देव-जाति । गरिल्ल पुंन [°करील] वंशांकुर । °जाली, वंतरिणी J स्त्री [व्यन्तरी] व्यन्तर-जातीय याली स्त्री. बाँसों की गहन घटा । रोअणा देवी।
स्त्री [°रोचना] वंशलोचन । वंता वम का संकृ. ।
वंसकवेल्लुय पुंन [दे. वंशकवेल्लुक] छत के °वंति देखो पन्ति ।
नीचे दोनों तरफ तिरछा रखा जाता बाँस । °वंथ देखो पन्थ ।
वंसग देखो वंसय । वंद सक [वन्द्] प्रणाम करना । स्तवन करना। वंसप्फाल वि [दे] व्यक्त। ऋजु, सरल । वंद न [वृन्द] समूह।
वंसथ वि [व्यंसक]धूर्त । पुं. दुष्ट हेतु-विशेष । वंदअ । वि [वन्दक] वन्दन करनेवाला। वंसा स्त्री [वंशा] द्वितीय नरक-पृथिवी ।
। वंसि देखो वंसी = वंश ।
वंदग।
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७०२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वंसिअ-वग्ग वंसिअ वि [वांशिक] वंश-वाद्य बजानेवाला। | वक्किद (शौ) देखो वंकिअ। वंसिअ वि [व्यंसित] छलित ।
वक्ख देखो वच्छ = वृक्ष । वंसी स्त्री [वांशी] सुरा-विशेष । बाँस की वक्ख देखो वच्छ = वक्षस् । जाली । °कलंका स्त्री [°कलङ्का) बाँस की °वक्ख देखो पक्ख। जाली की बनी हुई बाड़ । पत्तिया स्त्री वक्खमाण वय = वच् का वकृ. । [°पत्रिका] वंशजाली के पत्र के आकार की वक्खल वि [दे] आच्छादित । योनि ।
वक्खा सक [व्या+ख्या] विवरण करना । वंसी स्त्री [वंशीमुरली । °णहिया स्त्री | कहना। [°नखिका] वनस्पति-विशेष । °मुह पुं| वक्खा । स्त्री [व्याख्या] विवरण, विशद [°मुख] द्वीन्द्रिय जीव-विशेष ।
वक्खाण रूप से अर्थ-प्ररूपण । न वंसी स्त्री [वंश बाँस । °मूल न. बाँस की व्याख्यान] ।
वक्खाण सक [व्याख्यानम्] विवरण करना । वंसी स्त्री [दे] मस्तक पर स्थित माला । कहना। वक्क न [वाक्य] पद-समुदाय ।
वक्खाय वि [व्याख्यात] वर्णित । पुं. मोक्ष । वक्क न [वल्क] त्वचा, छाल । °बंध पुं
वक्खार पुंदे] बखार । गोदाम । [°बन्ध] वल्क-बन्धन ।
वक्खार पुं [वक्षार, वक्षस्कार] गज-दन्त के वक्क देखो वंक = वंक ।
आकार का पर्वत । भू-भाग । वक्क न [वक्त्र] मुख ।
वक्खारय न [दे] रति-गृह । अन्तःपुर ।
वक्खाव सक [व्या+ख्यापय] व्याख्यान वक्क न [दे] पिसान, आटा ।
कराना। वक्कंत पुन [वक्रान्त] प्रथम नरक-भूमि का दसर्वां नरकेन्द्रक-नरकावास-विशेष ।
वक्खित्त वि व्याक्षिप्त] व्यग्र । किसी कार्य वक्त वि [अवक्रान्त] उत्पन्न ।
में व्याप्त । वक्कंति स्त्री [अवक्रान्ति] उत्पत्ति ।
वक्खेव पुं [व्याक्षेप] व्यग्रता । कार्यबाहुल्य । वक्कड न [दे] दुर्दिन । निरन्तर वृष्टि ।
वक्खेव पुं [अवक्षेप] प्रतिषेध । वक्कडबंध न [दे] कर्णाभरण ।
वक्खो देखो वच्छ = वक्षस् । रुह पुं. वक्कम अक [अव+क्रम्] उत्पन्न होना ।
स्तन । वक्कर (अप) देखो वक्क = वंक ।
वक्नु (शौ) देखो वंक = वङ्क । वक्कल न [वल्कल] वृक्ष की छाल । चीरि
वखाण (अप) देखो वक्खाण बखाण । पुं["चीरिन्] एक महर्षि, राजा प्रसन्नचन्द्र के
वगडा स्त्री [दे] बाड़, परिक्षेप । छोटे भाई।
वग्ग अक [वल्ग] जाना, गति करना। वक्कलि । वि [वल्कलिन्] वृक्ष की छाल कूदना । बहु-भाषण करना । अभिमान-सूचक वक्कलिण ) पहननेवाला (तापस)।
शब्द करना। वक्कल्लय वि [दे] पुरस्कृत ।
वग्ग पुं [वर्ग] सजातीय समूह । दो समान वक्कस न [दे] पुराना धान का चावल । संख्या का परस्पर गुणन । अध्ययन, सर्ग । पुरातन सक्तु-पिण्ड । बहुत दिनों का बासी | "मूल न.गणित-विशेष, जैसे १६ का वर्गमूल गोरस । गेहूँ का मांड।
४। वग्ग पुं[°वर्ग] गणित-विशेष, वर्ग से
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वग्ग-वच्छ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७०३ वर्ग का गुणन ।
करज वृक्ष । °मुह पुं [°मुख] एक अन्तवग्ग सक [वर्गय समान अंक से गुणना। द्वीप । उसकी मनुष्य-जाति । वग्ग वि [व्यग्र] व्याकुल ।
वग्घाअ पुं [दे] मदद । वि. विकसित । वग्ग देखो वक्क = वल्क ।
वग्घाडी स्त्री [दे] उपहास की आवाज । वग्ग देखो वक्क = वाक्य ।
वग्धारिअ वि [व्याघारित] बघारा हुआ। वग्ग वि [वाल्क] वृक्ष-त्वचा ।
व्याप्त । पिघला हुआ। वग्गंसिअ न [दे] युद्ध ।
वग्घारिअ वि [दे] प्रलम्बित । वग्गचूलिआ स्त्री [वर्गचूलिका] जैन ग्रन्थ । । वग्घावच्च न [व्याघ्रापत्य] एक गोत्र, वग्गण न [वल्गन] कूदना ।
वाशिष्ठ गोत्र की एक शाखा । वग्गण न [वल्गन] बकवाद ।
वग्घी स्त्री [व्याघ्री] बाघ की मादा । एक वग्गणा स्त्री [वर्गणा] सजातीय समूह । विद्या। वग्गय न [दे] वार्ता।
वधाय देखो वाघाय । वग्गा स्त्री [वल्गा] लगाम ।
वचा स्त्री. पृथिवी । ओषधि विशेष, बच । वग्गावरिंग अ. वर्ग रूप से ।
मैना । देखो वया - वचा। वग्गि वि [वाग्मिन्] प्रशस्त वाक्य बोलने- | वच्च अक [व्रज्] जाना, गमन करना । वाला । पुं. बृहस्पति ।
वच्च सक [काझ्] चाहना । वग्गिअ न [वल्गित] बकवाद । बड़ाई की वच्च पुंन [वर्चस्] पुरीष, विष्ठा । कूड़ाआवाज, गति, चाल ।
करकट । चौथा नरक का चौथा नरकेन्द्रक । वग्गिर वि [वल्गित] खूखार आवाज करने- तेज, प्रभाव। 'घर, हर न [ °गृह ] वाला । गति-विशेषवाला।
पाखाना। वग्गु देखो वाया = वाच ।
वच्च देखो वय = वचस् । वग्गु देखो वग्ग = वर्ग।
वच्चंसि वि [वचस्विन] प्रशस्त वचनवाला। वग्गु वि[वल्गु]सुन्दर । पुं. विजय-क्षेत्र-विशेष । वच्चंसि वि [वर्चस्विन्] तेजस्वी । पुंन. वैश्रमण लोकपाल का विमान ।
वच्चय [व्यत्यय] विपर्यास । देखो वत्त । वग्गुरा न [वागुरा] मृग-बन्धन, पशु फँसाने वच्चरा (अप) देखो वचा। __ का जाल । समूह ।
वच्चा वय = वच् का संकृ. । वग्गुरिय वि [वागुरिक] पारधि, पं. नर्तक- वच्चामेलिय देखो विच्चामेलिय । विशेष ।
वच्चास पुं व्यत्यास] विपर्यास, विपर्यय । वग्गुलि पुंस्त्री [वल्गुलि] पक्षि-विशेष । रोग
वच्चासिय वि [व्यत्यासित] उलटा किया विशेष ।
हुआ। वग्गेज्ज वि [दे] प्रचुर।
वच्चीसग पुं [वच्चीसक] वाद्य-विशेष । वग्गोअ [दे] नकुल ।
वच्चो देखो वच्च = वर्चस् । वग्गोरमय वि [दे] रूक्ष ।
वच्छ पुन [वक्षस्] छाती। थल न वग्गोल सक [रोमन्थय] पगुराना । [स्थल] उरःस्थल । °सुत्त न [°सूत्र] वग्घ वि [वैयाघ्र] व्याघ्र-चर्म का बना हुआ। । वक्षःस्थल में पहनने की सँकली। वग्घ पुं [व्याघ्र शेर । रक्त एरण्ड का पेड़। वच्छ पुं [वृक्ष] पेड़, शाखी, द्रुम ।
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वच्छ पुं [ वत्स ] बछड़ा । शिशु । वर्ष । छाती । ज्योतिष का एक चक्र । देश विशेष विजय- क्षेत्र विशेष । न. गोत्र विशेष । वि. उसमें उत्पन्न । 'दर पुंस्त्री [तर] क्षुद्र वत्स । दमनीय बछड़ा आदि । स्त्री री । ● मत्ता स्त्री [मित्रा ] अधोलोक या ऊर्ध्वलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । 'यर देखो 'दर | ['राय] पुं [राज ] एक राजा । वाल पुंस्त्री [पाल] गोप । स्त्री. ●ली ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
होना ।
वज्ज न [ वाद्य] बाजा, वादित्र । वज्जवि [व] श्रेष्ठ । प्रधान । वज्ज वि [वर्ज] रहित । वर्जित । न छोड़कर, सिवाय । पुं. हिंसा । प्राणिवध |
वज्ज देखो अवज्ज ।
वच्छवि [ वात्स्य ] वात्स्य गोत्र का । वच्छगावई स्त्री [वत्सकावती ] एक विजयक्षेत्र ।
वच्छर पुंन [वत्सर ] वर्ष । वच्छल वि [ वत्सल] स्नेही ।
वच्छल्ल न [ वात्सल्य ] स्नेह, अनुराग । वच्छा स्त्री [ वत्सा] विजय क्षेत्र विशेष । एक नगरी । लड़की ।
वच्छाण पुं [उक्षन्] बैल |
वच्छावई स्त्री [ वत्सावती ] विजय-क्षेत्र
विशेष |
वच्छि° देखो वय = वच् । वच्छिउड पुं [दे] गर्भाश्रय । वच्छिम पुंस्त्री [वृक्षत्व ] वृक्षपन । वच्छिमय पुं [दे] गर्भशय्या | वच्छीउत्त पुं [दे] नापित, हजाम । वच्छीव पुं [दे] गोप | वच्छुद्धलिअ वि [दे] प्रत्युद्भुत । वच्छोम न [ वत्सगुल्म] कुन्तल देश की प्राचीन राजधानी ।
वच्छोमी स्त्री [वात्सगुल्मी ] काव्य की एक
रीति ।
वज्ज अक [स्] डरना ।
वज्ज देखो वच्च = व्रज् । वज्ज सक [वर्जय् ] त्याग करना । वज्ज अक [वद्] वाद्य आदि की आवाज
वच्छ- वज्ज
वज्ज देखो वइर = वज्र | हिंसा, प्राणिवध । कन्द - विशेष । न. बंधाता हुआ कर्म । पाप । कंठ पुं [कण्ठ ] वानर द्वीप का राजा । 'कंत न ['कान्त ] एक देव विमान । कंद
[कन्द] एक प्रकार का कन्द । 'कूड न [° कूट] एक देव विमान । क्ख पुं [T] | चूड पुं. जंघ पुं [जङ्घ] सभी विद्याधरवंशीय नरेश । णाभ पुं [ नाभ ] भ० अभिनन्दन स्वामी के प्रथम गणधर । देखो 'नाभ | दत्त पुं. एक विद्याधर राजा । एक जैन मुनि । द्धय पुं [ध्वज ] एक विद्याधर राजा । 'धर देखो 'हर । 'नागरी स्त्री. एक जैन मुनि - शाखा । नाभ पुं. एक जैन | देखा । पाणि पुं. इन्द्र । एक विद्याधर - नरपति । प्पभ न [ प्रभ] एक देव - विमान । बाहु पुं. एक विद्याधर राजा । 'भूमि स्त्री. लाट देश का एक प्रदेश । 'म (अप) देखो 'मय । मज्झ पुं [ मध्य ] एक लंकेश । रावणाधीन एक सामन्त राजा । 'मज्झा स्त्री [ मध्या] एक प्रतिमा, व्रतविशेष | मय वि. वज्र का बना । स्त्री. मई | रसहनारायन [ ऋषभनाराच] संहनन - विशेष, शरीर का एक तरह का सर्वोत्तम बन्ध । 'रूव न [रूप] । 'लेस न [लेश्य] सभी देव - विमान । 'वं (अप) देखो 'म । वण्ण न [ 'वर्ण] एक देव विमान । "वेग पुं. एक विद्याधर । सिंखला स्त्री [श्रृङ्खला ] एक विद्या - देवी । °सिंग न [ "शृङ्ग ] । 'सिट्ठ न [ 'सृष्ट ] सभी देवविमान | सुन्दर पुं [ सुन्दर ] |
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वज्जंक-वट्टाव
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुजणहु पुं [°सुजह नु] विद्याधर-वंश के । जाती माला, कनेर के फूलों की माला । राजा । सेण [°सेन]जैन मुनि, भ० ऋषभ- वज्झ वि [वाह्य] वहन करने योग्य । न. अश्व देव के पूर्व जन्म में गुरु । चौदहवीं शताब्दी | आदि यान । °खेड्ड न [°खेल] कला-विशेष, के जैन आचार्य । हर पुं [धर] इन्द्र । वि. यान की सवारी का इल्म । वज्र-धारक । उह पुं [°ायुध] इन्द्र । एक | वज्झा स्त्री [हत्या] वध, घात । विद्याधर राजा । भ पुं. विद्याधर-वंशीय वज्झियायण न [वध्यायन] गोत्र-विशेष । राजा । "वत्त न [°वर्त] एक देव-विमान । | वत्र (अप) देखो वच्च = व्रज् ।
स पुं[°श] एक विद्याधर-राजा। वट्ट अक [वृत्] वर्तना, होना। आचरण वज्जंक पुं [वज्राङ्क] एक विद्याधर राजा ।। करना। वज्जंकुसी स्त्री [वज्राङ्कशी] एक विद्या | वट्ट सक [वर्तम्] बरतना। पिंड रूप से देवी।
बाँधना । परोसना । ढकना। वज्जधर पुं [वज्रन्धर] विद्याधर राजा।। वट्ट वि [वृत्त] गोलाकार। अतीत । मृत । वज्जघट्टिता स्त्री [दे] मन्द-भाग्य स्त्री । संजात । अधीत । दृढ़ । पुं. कूर्म । न. वर्तन, वज्जणअ (अप) वि [वदित] बजनेवाला । वृत्ति, प्रवृत्ति । °क्खुर, खुर पुं. श्रेष्ठ अश्व । वज्जय वि [वर्जक] त्यागनेवाला ।
°खेड, खेड्ड स्त्रीन [खेल] कला-विशेष । वज्जर सक [कथय] कहना ।
देखो वत्थखेड्ड । देखो वत्त, वित्त = वृत्त । वज्जर देखो वंजर = मार्जार ।
°वेयड्ढ पुं [वैताठ्य] पर्वत-विशेष । वज्जर पुं [वर्जर] एक देश । वि. उसमें | वट्ट पुं [ वर्मन् ] बाट, रास्ता । °वाडण न उत्पन्न ।
[°पातन] मुसाफिरों को रास्ते में लूटना । वज्जरा स्त्री दे] नदी ।
वट्ट पुन [दे] प्याला । पुं. हानि । शिला-पुत्रक, वज्जा स्त्री [दे] अधिकार, प्रस्ताव ।
लोढ़ा । खाद्य-विशेष, गाढ़ी कढ़ी । वज्जाव (अप) सक [वाचय] पढ़ाना । वट्ट पुं [वर्त] देश-विशेष । वज्जाव सक [वादय्] बजाना ।
वट्ट पुं [पट्ट] प्रवाह । देखो पट्ट । वज्जि पुं [वज्रिन्] इन्द्र ।
वट्टक , देखो वट्टय = वर्तक । वजिअ वि [दे] इष्ट । वजिअ वि [वादित] बजाया हुआ ।
वट्टण देखो वत्तण । वज्जिअ वि [वजित रहित ।
वट्टमग न [वर्मक] मार्ग, रास्ता। वज्जियाव पुं [दे] शेलडी, ईख ।
वट्टमाण न [दे] शरीर । गन्ध-द्रव्य का एक वज्जियावग पुं [दे] इक्षु ।
तरह का अधिवास । वज्जिर वि [वदितृ] बजनेवाला ।
वट्टय देखो वट्ट = दे। वज्जुत्तरवडिसग न [वज्रोत्तरावतंसक] वट्टय पुं [वर्तक] बटेर पक्षी । बालकों के एक देव-विमान ।
| लिए चपड़े का बना गोल खिलौना । वज्जोयरी स्त्री [वज्रोदरी] विद्या-विशेष । | वट्टय देखो पट्ट। वज्झ वि [वध्य] वध के योग्य । °नेवत्थिय वट्टा स्त्री [दे. वमन्] देखो वट्ट = वर्मन् । वि ["नेपथ्यिक] मृत्यु-दण्ड-प्राप्त को पहनाया | वट्टा स्त्री [वार्ता] बात, कथा । जाता वेष । °माला स्त्रो. वध्य को पहनाई ' वट्टाव सक [वर्तय] बरताना, काम में
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वट्टग ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वट्टावय-वडेंसिया
लगाना।
जिसका टेढ़ा हो। पीछे या आगे का वट्टावय वि [वर्तक] बरतानेवाला, प्रवर्तक । __ अंग जिसका बाहर निकला हो। जिसका पेट वट्टावय वि [वर्तक] प्रतिजागरूक, शुश्रूषा- बड़ा होकर आगे निकला हो । स्त्री. °भी। कर्ता ।
वडय देखो वडग = वटक ।। वट्टि स्त्री [वति] बत्ती। सलाई। शरीर पर °वडल देखो पडल। किया जाता एक लेप । लेख, लिखना। वडवग्गि पुं[वडवाग्नि वडवानल । कलम, पीछी । देखो वत्ति, वित्ति। वडवड अक [वि+लप्] विलाप करना । वट्रिअ वि वित्तित] परिवर्तित । बलित । | वडवा स्त्री. घोड़ी। °णल, नल पुं. आग । वतुल । प्रवर्तित ।
°मुह न [°मुख] वही अर्थ । एक महावट्टिआ स्त्री [वर्तिका] देखो वट्टि । । पताल । 'हुआस पुं [°हुताश] वडवानल । वट्टिम वि [दे] अतिरिक्त ।
वडह देखो वडभ। वट्टिय वि [दे] चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ। वडह पुं [दे] पक्षि-विशेष । वट्टिव न [दे] पर-कार्य ।
वडह देखो पडह। वट्टी स्त्री. देखो वट्टि।
वडही देखो वलही। वट्टी स्त्री [पट्टी] पट्टा ।
°वडाआ देखो पडाया। वटु न [दे] पात्र-विशेष । कर पुं. यक्ष- | वडालि स्त्री [दे] श्रेणि।
विशेष । °करी स्त्री. विद्या-विशेष । वडाहा देखो पडाया। वटुल वि [वर्तुल] गोल । पुन. पलाण्डु
वडिअ वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ । प्याज के समान एक कन्दमूल ।
°वडिअ पडिअ पड का कमूकृ.। वट्ठ देखो पट्ट = पृष्ठ ।
वडिंस पुं [वतंस] मेरु पर्वत । भूषण । एक °वट्ठि देखो सट्ठि ।
दिग्हस्ति-कूट । प्रधान । श्रेष्ठ । कर्णपूर । देखो वड पुं[दे] दरवाजे का एक भाग । क्षेत्र।।
वडेंस, अवयंस। मत्स्य की एक जाति । विभाग । देखो वड़। वडिणाय पुंदे] घर्घर कण्ठ, बैठा हुआ गला । वड पुं [वट] बरगद का पेड़। न. वस्त्र- | वाडया स्त्री [वृत्तिता] वर्तन । विशेष । °नयर न [°नगर] नगर-विशेष ।
वडिया देखो पडिया -प्रतिज्ञा । °वद्द न[°पद्र] गुजरात का 'बड़ौदा' नगर । वडिवस्सअ वि [वरिवस्यक] पूजक । एक गोकुल । °सावित्ती स्त्री [°सावित्री] वडिसर न [दे] चूल्हे का मूल । एक देवी।
वडिसाअ वि दे] टपका हुआ। वड देखो पड - पत्।
वडी स्त्री [दे] बड़ी, एक प्रकार का खाद्य । °वड देखो पड = पट ।
वडुमग । देखो वट्टमग। वडग न [वटक] खाद्य-विशेष, बड़ा । | वडूमग । वडग देखो वड = वट ।
| वडेंस पुं[वतंस] शेखर, मुकुट । देखो वडिस । वडण देखो पडण ।
वडेंसा स्त्री [वतंसा] किन्नर नामक किन्नरेन्द्र वडप्प न [दे] लता-गहन । निरन्तर वृष्टि । । __ की एक अग्रमहिषी। वडम वि. वामन, ह्रस्व । जिसका पृष्ठ-भाग वडेंसिया स्त्री [वतंसिका] अवतंस को तरह बाहर निकला हो। नाभि के ऊपर का भाग करना, मुकुटस्थानापन्न करना ।
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वड्डु-वण
वड्डु वि [दे] महान् । [आस्तरक] ऊँट की पीठ आसन । 'त्तण न ['त्व ] न [°त्व] महत्ता | °यर वि [तर] विशेष
|
बड़ा |
वडवास पुं [दे] मेघ, अभ्र । वहुलि पुं [दे] माली ।
वडार (अप) देखो वड्ड-यर ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७०७
'अत्थरग पुं | वड्ढि वि [वर्धित ] बढ़ाया हुआ । खण्डित पर रखा जाता किया हुआ, °प्पण (अप)
काटा हुआ ।
वड्ढिआ स्त्री [ दे] कूपतुला, ढेंकुवा । वड्ढिम पुंस्त्री [वृद्धिमन् ] वृद्धि ।
वढ देखो वड = वट ।
वढ वि [] वाक् शक्ति से रहित ।
डुमवि [] टपका हुआ । वड्डुअर देखो वड्ड-यर । वड्ढ अक [वृध्] बढ़ना ।
वड्ढ सक [वर्धय्] बढ़ाना, विस्तारना | बधाई देना | देखो वद्ध = वर्धय् । वड्ढ पुं [वर्धक ] सुतार | वड्ढइअ पुं [दे] मोची । वड्ढणमिर वि [] पुष्ट |
वड्ढणसाल वि [दे] जिसकी पूँछ कटी हो । वड्ढमाण न [ वर्धमान, 'क] गुजरात का वड्ढमाणय 'वढवाण' नगर । अवधिज्ञान का एक भेद, उत्तरोत्तर बढ़ता जाता एक प्रकार का परोक्ष रूपी द्रव्यों का ज्ञान । पुं. भ. महावीर | देखो वद्धमाण । वड्ढय देखो वट्ट = दे।
वड्ढव सक [वर्धय्, वर्धापय् ] वृद्धि करना ।
बधाई देना ।
वड्ढव वि [वर्धक ] बढ़ानेवाला । बधाई देनेवाला |
वड्ढवण न [दे] वस्त्र का आहरण ।
वड्ढवण न [दे. वर्धापन ] बधाई | अभ्युदय | निवेदन |
वड्ढार (अप) सक [वर्धय् ] बढ़ाना | वड्ढाव देखो वड्ढव ।
वड्ढावअ देखो वड्ढवअ । वड्ढावि वि [] समापित । वड्ढि वि [वर्धिन्] बढ़नेवाला । afs स्त्री [वृद्धि] बढ़ती ।
पुं [ बठर] मूर्ख छात्र | ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न
सन्तान, अम्बष्ठ | वि. शठ, धूर्त्त । मन्द, अलस ।
वण क [व] माँगना ।
वण पुं [] अधिकार | चांडाल |
वढर
वढल
वण पुंन [ व्रण] घाव | प्रहार, क्षत । वट्ट पुं [पट्ट] घाव पर बाँधी जाती पट्टी
।
निवास |
काम |
वण न [वन] जंगल । पानी । आलय । वनस्पति । उद्यान । पुं. वानव्यंतर देव । वृक्ष - विशेष । 'कम्म पुंन ['कर्मत्] जंगल को काटने या बेचने का 'कम्मत न ['कर्मान्त ] वनस्पति का कारखाना गयपुं [गज] जंगली हाथी । पुं [न] दावानल । 'चर वि. वन में रहनेवाला । जंगली । स्त्री. 'री देखो 'यर | छंद वि [च्छिद् ] जंगल काटनेवाला | 'थली स्त्री [स्थली ] अरण्य भूमि | दव पुं. दावानल | पव्वय पुंन [पर्वत ] वनस्पति से व्याप्त पर्वत । 'बिराल पुं [बिडाल ] जंगली बिल्ला । 'माल न. एक देवविमान | माला स्त्री. पैर तक लटकनेवाली माला । एक राज पत्नी । °य वि [ज] वन में उत्पन्न । जंगली । 'यर वि [°चर] बनैला । पुंस्त्री. व्यन्तर देव । स्त्री. 'री | 'राइ स्त्री [° राजि] वृक्ष -समूह | 'राज, राय पुं. आठवीं शताब्दी का गुजरात का एक राजा । सिंह | 'लइया, लया स्त्री ['लता] एक स्त्री । एक शाखावाला वृक्ष | वाल वि [पाल] उद्यान- पालक,
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वणीमग
माली । 'वास पुं. अरण्य में रहना । 'वासी | वणिम स्त्री. नगरी विशेष | 'विदुग्ग न [विदुर्ग ] नानाविध बृक्षों का समूह । विरोहि पुं [विरोहिन्] आषाढ मास । डन [षण्ड] अनेकविध वृक्षों की घटा । हत्थि पुं [ हस्तिन् ] जंगल का हाथी । लि, शैलि स्त्री. वन- पंक्ति |
भिन्न दूसरी गाय से लगाना ।
वणण न [ दे. व्यान] बुनना । साला स्त्री [शाला ] बुनने का कारखाना । वर्णाद्धि स्त्री [] गो-वृन्द । वनड व [] पुरस्कृत | वणपक्कसावअ पुं [दे] शरभ, श्वापद विशेष । arts पुं [ वनस्पति ] फूल के बिना जिसमें फल लगता हो वह वृक्ष । लता, गुल्म, वृक्ष आदि कोई भी गाछ । न. फल । 'काइअ वि [° कायिक] वनस्पति का जीव ।
वणय पुं [वनक] दूसरी नरक-पृथिवी का एक
नरक-स्थान |
वणरसि (अप) देखो वाणारसी । वणव पुं [दे] दावानल | वणसवाई स्त्री [दे] कोयल | वणस्स देखो वणप्फइ । वणाय वि [दे] व्याध से व्याप्त ।
वणार पुं [दे] दमनीय बछड़ा ।
वणि पुं [ वणिज् ] बनिया | व्यापारी |
}
वणिअ
aff [णित] व्रण-युक्त, घाववाला | [वनीपक] भिक्षुक ।
वणिअन [ वणिज] ज्योतिष का एक करण । वणि स्त्री [निका ] वाटिका, बगीचा । वणि स्त्री [ वनिता ] स्त्री, महिला । वणिज देखो वणिअ = वणिज् । वणिज न [ वाणिज्य ] व्यापार । रय वणिज्ज | वि [कारक ] व्यापारी ।
}
ans स्त्री [दे] वन-राजि ।
वणण न [वनन] बछड़े को उसकी माता से वणेचर देखो वण-यर ।
देखो वणीमय | दरिद्र ।
as - हि
वणी स्त्री [वनी] भीख से प्राप्त धन । फलीविशेष, जिससे कपास निकलता है । वणीमग पुं [वनीपक] याचक | भिक्षुक, 1 वणीमय | भिखारी ।
वणे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - निश्चय । विकल्प | अनुकम्पनीय | संभावना ।
वण सक [वर्णय् ] वर्णन करना । प्रशंसा करना । रंगना ।
aण पुं[ वर्ण] प्रशंसा | यश । शुक्ल आदि रंग । अकार आदि अक्षर । ब्राह्मण, वैश्य आदि जाति । गुण । अंगराग । सुवर्ण । विलेपन की वस्तु । व्रत- विशेष | वर्णन । विलेपन क्रिया । गीत का क्रम । चित्र । शुक्ल आदि वर्णं का कारण-भूत कर्म । संयम । मोक्ष । न. कुंकुम । 'णाम, नाम पुंन ['नामन्] कर्म-विशेष | 'मंत वि [वत्] प्रशस्त वर्णवाला । 'वाइ वि [' वादिन् ] श्लाघा - कर्ता, प्रशंसक | 'वाय पुं [वाद ] प्रशंसा, श्लाघा । वास पुं. वर्णनपद्धति । वास पुं ['व्यास] वर्णन विस्तार । वण पुं [वर्ण] पंचम आदि स्वर । 'सम न. गेय काव्य का एक भेद ।
वण्ण वि [दे] स्वच्छ । रक्त ।
'वण्ण देखो पण्ण ।
वण्णग देखो वण्णय |
श्रीखण्ड ।
aurण न [ वर्णन् ] श्लाघा | विवेचन । वय पुंन [ दे. वर्णक ] चन्दन, पिष्टातक-चूर्ण, अंगराग । are पुं [वर्ण] वर्णन ग्रन्थ । वर्णन प्रकरण | वणिआ देखो वनिआ ।
वह पुं [वृष्णि] राजा अन्धक - वृष्णि । एक अन्तकृद् महर्षि । अन्धकवृष्णि - वंश में उत्पन्न, यादव । 'दसा स्त्री. ब. [ दशा] एक जैन आगम-ग्रन्थ । पुंगव पुं. यादव- श्रेष्ठ ।
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वहि-वत्थि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७०९ वण्हि पुं [वह्नि] अग्नि। लोकान्तिक देवों की । वत्ति स्त्री [दे] सीमा । एक जाति । चित्रक वृक्ष । भिलावाँ का पेड़ । | वत्ति देखो वट्टि। नीबू का गाछ ।
वत्ति स्त्री [वृत्ति] प्रवृत्ति । देखो वित्ति। वत देखो वय = व्रत।
वत्ति स्त्री [व्यक्ति] एकाकी वस्तु । °पइट्ठा वति देखो वइ = वतिन् ।
स्त्री [ प्रतिष्ठा] विद्यमान तीर्थंकर के बिम्ब वति देखो वइ = वृति ।
को प्रतिष्ठा । वतु पुं [दे] निवह, समूह ।
वत्तिअ वि [वात्तिक] कथाकार । पुन. टीका वत्त देखो वट्ट = वृत् ।
की टीका । ग्रन्थ की टीका । वत्त देखो वट्ट = वर्तम् ।
वत्तिअ वि [वत्तित] गोल किया हुआ। वत्त न [वार्ता] आरोग्य ।
आच्छादित । वत्त वि [व्याप्त] फैला हुआ, भरपूर । °वत्तिअ देखो पच्चय = प्रत्यय । वत्त देखो वट्ट = वृत्त।
वत्तिआ देखो वट्टिआ। वत्त वि [व्यक्त] प्रकट ।
वत्तिणी स्त्री [वत्तिनी] मार्ग । वत्त न [वक्त्र] मुख ।
°वत्ती देखो पत्ती = पत्नी। °वत्त देखो पत्त = पत्र।
वत्तु वय = वच् का हेकृ. । वत्त देखो पत्त = पात्र । वत्त° देखो वत्ता (भवि) । °यार वि [°कार]
वत्तुकाम वि [वक्तुकाम] बोलने की चाह
वाला। वार्ता कहनेवाला।
वत्तुल देखो वटुल। वत्त पुं [व्यत्यय] विपर्यय । उल्लंघन ।।
वत्थ पुंन [वस्त्र] कपड़ा। खेड्ड न [°खेल] वत्तडिआ । (अप) देखो वत्ता। ___ कला-विशेष । 'धोव वि [°धाव] वस्त्र वत्तडी ।
धोनेवाला । पूस पुं [पुष्य]एक जैन मुनि । वत्तण न वर्त्तन]जीविका, निर्वाह । आवृत्ति । | पूसमित्त पुं [पुष्यमित्र] एक जैन मुनि । स्थिति । स्थापन । वर्तन, होना। वि. वृत्ति- विज्जा स्त्री [विद्या] वस्त्र स्पर्श कराने से वाला। रहनेवाला।
ही बीमार अच्छा हो जाय वह विद्या। वत्तणी स्त्री [वर्तनी] मार्ग ।
°सोहग वि [°शोधक] वस्त्र धोनेवाला। वत्तद्ध वि [दे] सुन्दर । बहु-शिक्षित ।
वत्थ वि [व्यस्त] पृथग्, भिन्न, जुदा । वत्तमाण पुं. [वर्तमान] चलता काल । वि. वत्थउड पुं.[दे. वस्त्रपुट] तंबू । कपड़-कोट । विद्यमान । पुं. विद्यमानता ।
वत्थंग पुं [वस्त्राङ्ग] वस्त्रदायी कल्पवृक्ष । °वत्तरि देखो सत्तरि।
°वत्थर देखों पत्थर = प्रस्तर । वत्ता स्त्री [दे] सूत्र-वेष्टन-यन्त्र । देखो | वत्थलिज्ज न [वस्त्रलिय] दो जैन मुनिचत्ता = (दे)।
कुल। वत्ता स्त्री [वार्ता] कथा । वृत्तान्त । वृत्ति ।। वत्थव्व वि [वास्तव्य] निवासी। दुर्गा । खेती । जनश्रुति । गन्ध का अनुभव। वत्थाणी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष । काल-कर्तृक भूतनाश । 'लाव पुं [°लाप] | वत्थाणीअ पुन [दे] खाद्य-विशेष । बातचीत ।
| वत्थि पुं [वस्ति]दृति, मसक । गुदा । छाते में वत्तार वि [दे] गर्वित ।
शलाका बैठने का स्थान । 'कम्म न[°कर्मन्]
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७१०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वत्थिय-वप्पा
सिर आदि में चर्म-वेष्टन द्वारा किया जाता | वद्धमाणग । पुं [वर्धमानक] अठासी महातैल आदि का पूरण । मल साफ करने के लिए वद्धमाणय ग्रहों में एक महाग्रह, ज्योतिष्क गुदा में बत्ती आदि का किया जाता प्रक्षेप। देव-विशेष । एक देव-विमान । न. शराव ।
पुडग पुन [°पुटक] पेट का भीतरी प्रदेश। पुं. पुरुष पर आरूढ़ पुरुष । स्वस्तिक-पश्चक । वत्थिय पुं [वास्त्रिक] वस्त्र बनानेवाला एक तरह का महल । अस्थिक ग्राम । वि. शिल्पी।
अभिमानी। वत्थी स्त्री [दे] तापसों की पर्ण-कुटी। वद्धय वि [दे] मुख्य । वत्थु न [वस्तु] पदार्थ, चीज । पुन. पूर्व-ग्रन्थों वद्धार सक [वर्धय ] बढ़ाना । का अध्ययन-प्रकरण, परिच्छेद । °पाल, वद्धाव सक [वर्धय, वर्धापय् ] बधाई देना । °वाल पुं. राजा वीरधवल का जैन मन्त्री।। वद्धावय वि [वर्धापक] बधाई देनेवाला । वत्थु न [वास्तु] गृह । गृहादि-निर्माण-शास्त्र । वद्धिअ पुं [दे] नपुंसक । छोटी उम्र में ही छेद शाक-विशेष । °पाढग वि [°पाठक] वास्तु
देकर जिसका अण्डकोष गलाया गया हो वह, शास्त्र का अभ्यासी । विज्जा स्त्री["विद्या]
बधिया । गृह-निर्माण-कला।
वद्धिअ देखो वढिअ = वृद्ध । वत्थुल , पुं [ वस्तुल ] गुच्छ और हरित वद्धी स्त्री [दे] आवश्यक कर्तव्य । वत्थूल । वनस्पति-विशेष, शाक-विशेष । पुं
वद्धीसक । पुन [दे. वद्धीसक] एक प्रकार [वस्तूल] ।
वद्धीसग ) का बाजा। वद देखो वय = वद् ।
वध देखो वह = वध । वद देखो वय = व्रत ।
वधय देखो वहय। वदिसा देखो वडेंसा।
वधू देखो वहू। वदिकलिअ वि [दे] वलित, लौटा हुआ।
वन्नग देखो वण्णय । वदूमग देखो वडुमग ।
वनिआ स्त्रो [वर्णिका] वानगी, नमूना । वद्दल न [दे. वार्दल] बादल, घटा, दुर्दिन ।
लाल रंग की मिट्टी। पं. छठवीं नरक का दूसरा नरकेन्द्रक । वपु देखो वउ = वपुस् । वलिया स्त्री [दे. वालिका]बदली, दुर्दिन ।
वप्प सक [त्वच?] ढकना । वद्ध देखो वड्ढ = वर्धय ।
वप्प पुं [व] जंबूद्वीप का एक प्रान्त, जिसकी वद्ध पुंन [व] चर्म-रज्जु ।
राजधानी विजया है। पुंन. दुर्ग। केदार, वद्ध देखो विद्ध = वृद्ध ।
खेत । किनारा । ऊँची-जमीन । वद्धण न [वर्धन] वृद्धि । वि. बढ़ानेवाला ।
वप्प वि [दे] कृश । बलवान् । भूताविष्ट । वद्धणिआ) स्त्री [वर्धनिका, नी]संमार्जनी,
वप्पइराय देखो व-प्पइराय । वद्धणो । झाड़ ।
वप्पगा देखो वप्पा। वद्धमाण पुं [ वर्धमान ] भगवान् महावीर ।
वप्पगावई स्त्री [वप्रकावती] जंबूद्वीप का एक जैनाचार्य । स्कन्धारोपित पुरुष । एक
विजय-क्षेत्र, जिसकी राजधानी अपराजिता है । शाश्वत जिन-देव। एक शाश्वती जिन- वप्पा स्त्री [वप्र] ऊँची जमीन । प्रतिमा । न. गृह-विशेष । राजा रामचन्द्र का | वप्पा स्त्री [वप्रा] भ० नमिनाथ की माता । एक प्रेक्षा-गृह । देखो वड्ढमाण । । दशवें चक्रवर्ती राजा हरिषेण की माता ।
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युक्त।
वप्पिअ-वयंतरिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७११ वप्पिअ पुं [दे] खेत । नपुंसक-विशेष । राग- | वम्मा देखो वामा ।
| वम्मिअ वि [वमित] कवचित, संनाह-युक्त । वप्पिण पुन [दे] केदार, खेत । वि. उषित । वम्मिअ ) पुं [वल्मीक] कीट-विशेषकृत वप्पिण पुंन [दे]केदारवाला या तटवाला देश । | वम्मीअ ) मिट्टी का स्तूप । ठूह या भीटा, वप्पी देखो वप्पा = वप्र ।
दीमकों के रहने की बाँबी। वप्पीअ पुं [दे] चातक पक्षी ।
वम्मीइ पुं [वाल्मीकि रामायण-कर्ता मुनि । वप्पीडिअ न [दे] खेत ।
वम्मीसर पुंदे] कन्दर्प । वप्पीह पुं [दे] स्तूप आदि का कूट । वम्ह न [दे] वल्मीक। वप्पु देखो वउ = वपुस् ।
वम्ह पुं [ब्रह्मन्] पलाश का पेड़ । देखो वप्पे अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय- बंभ। उपहास-युक्त उल्लापन । विस्मय । आश्चर्य ।
वम्हल न [दे] केसर, किंजल्क । वप्फाउल देखो बप्फाउल ।
वम्हाण देखो बंभण। वफर न दे] शस्त्र-विशेष ।
वय सक [वच्] बोलना, कहना। देखो वब्भ पुं [वभ्र] पशु-विशेष ।
वयणिज्ज। वब्भ देखो वह = वह ।
वय अक [वद्] बोलना, कहना । वब्भय न [दे] कमल का मध्य भाग । वय अक [ब्रज्] जाना, गमन करना। वभिचरिअ वि [व्यभिचरित] व्यभिचार | वय पुं [वृक] पशु-विशेष, भेड़िया । दोष से दूषित ।
वय पुं [दे] गृध्र पक्षी। वभिचार देखो वहिचार।
वय पुं [वज] संस्कार करण । गमन । वभिचारि वि [व्यभिचारिन्] न्यायशास्त्रोक्त | वय पुं [व्रज] देश विशेष । गोकुल, दस हजार दोष-विशेष से दूषित, ऐकान्तिक । परस्त्री- गौओं का समूह । मार्ग। संस्कार-करण । लम्पट ।
गमन, गति । समह । वभियार देखो वहिचार।
वय पुं [व्यय] खर्च । हानि । देखो विअ = वम सक [वम्] उलटी करना ।
व्यय । वमग वि [वामक] उलटी करनेवाला। वय न [वचस्] वचन । °समिअ वि वमाल सक [पुञ्जय] इकट्ठा करना ।
- [°समित] वचन का संयमी। विस्तारना।
वय पुं [वद] कथन, उक्ति । वमाल पुंदे] कलकल, कोलाहल । वय पुंन [व्रत धार्मिक प्रतिज्ञा । °मंत वि वमाल पुं [पुञ्ज] राशि, ढंग, ढेर।। [°वत्] व्रती । वमालण न [पुञ्जन] इकट्ठा करना। | वय पुन [वयस्] उन । पक्षी। 'त्थ वि विस्तार । वि. इकट्ठा करनेवाला । विस्तारने-] [स्थ] तरुण । 'परिणाम पुं. वृद्धता । वाला।
वय पुं [पच पचन, पाक । वम्म पुंन [वर्मन् कवच ।
°वय देखो पय = पद। धम्म देखो वम का कृ.।
'वय देखो पय = पयस् । वम्मथ । पुं [मन्मथ] कामदेव ।
वयंग न [दे] फल-विशेष । वम्मह
वयंतरिअ वि [वृत्यन्तरित] बाड़ से तिरो
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७१२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वयंस-वरला हित।
स्त्री [°वरिका] अभीष्ट वस्तु मांगने या दान वयंस पुं [वयस्य] समान उमरवाला मित्र । देने की घोषणा। सरक न. खाद्य-विशेष । वयंसि देखो वच्चंसि - वचस्विन् ।
'सिट्ठ पुंन [°शिष्ट] यम लोकपाल का एक वयड पं[दे] वाटिका।
विमान । वयण न [दे] मन्दिर, गृह । शय्या। वर देखो वार । विलया स्त्री [°वनिता] वयण पुन [वदन] मुख । न. कथन ।
वेश्या । °वर देखो पर। वयण पुंन [वचन] उक्ति । संख्या-बोधक | वरइअ वि [दे] धान्य-विशेष । व्याकरण । प्रत्यय ।
वरइत्त पुं[दे. वरयितु] दुलहा । वयणिज्ज वि [वचनीय] वाच्य । निन्दनीय । | वरई देखो वरय = वराक ।
उपालम्भीय । न. वचन, शब्द । निन्दा । वरउप्फ विदे] मत । वयर वि [दे] चूर्णित ।
वरं देखो परं = परम् । वयर देखो वइर = वज्र ।
वरंड पुं [वरण्ड] दीर्घ काष्ठ । भीत । 'वयर देखो पयर = प्रकर ।
वरंड पुं [दे] तृण पुज। प्राकार । गाल पर वयराड देखो वइराड ।
लगाई जाती कस्तूरी आदि की छटा । समूह । वयल वि [दे] विकसता । पुं. कलकल, कोला- | वरंडिया स्त्री [दे] बरामदा । हल ।
वरक्ख न [वराख्य] सिल्हक गन्ध-द्रव्य । वयली स्त्री [दे] एक निद्राकरी लता।
वरक्ख पुं [वराक्ष] योगी। यक्ष । वि. श्रेष्ठ वयस देखो वय = वयस् ।
इन्द्रियवाला। वयस्स देखो वयंस ।
वरक्खा स्त्री [वराख्या] त्रिफला । । वया स्त्री [वपा] विवर, छिद्र । मेद ।
वरग न [वरक] महामूल्य पात्र । वया स्त्री [वचा] देखो वचा ।
वरट्ट पुं [दे] धान्य-विशेष । वया स्त्री [व्यजा] ऊष खींचने के लिए रज्जु
वरडा । स्त्री [दे.वरटा] तैलाटी कीटबद्ध घट आदि डालने का मार्ग । प्रेरण-दण्ड । वरडी , गंधोली । दंश-भ्रमर । वर सक [व] सगाई करना । ढकना । याचना वरण पुं. सगाई । तट । पूल । प्राकार । करना । सेवा करना ।
स्वीकार । देखो वीर-वरण । पुं. एक आर्यवर सक [वरय्] प्राप्त करने की इच्छा | देश । देखो वरुण। करना । संसृष्ट करना ।
वरणय न [वरणक] तृण-विशेष । वर पुं. पति । वरदान । वि. श्रेष्ठ । अभीष्ट । न. । वरणसि (अप) देखो वाराणसी। अच्छा । दत्त पुं. भ० नेमिनाथजी का प्रथम वरणा स्त्री. काशी की वरुणा नदी। अच्छ शिष्य । एक राजकुमार । दाम न [°दामन्] देश की प्राचीन राजधानी। देखो वरुणा । एक तीर्थ । °धुण पुं [°धनुष्] एक मन्त्रि- वरत्त वि [दे] पीत । पतित । पेटित, संहत । कुमार, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का बाल-मित्र । वरत्ता स्त्री [वरत्रा] रज्जु । °पुरिस पुं [पुरुष]वासुदेव । °माल पुं. एक वरय पुं [वरक] सगाई करने वाला। देव-विमान । °माला स्त्री. वर को पहनायी | वरय पुं [दे] एक तरह की शक्ति । जाती माला । रुइ पुं [°रुचि] राजा नन्द वरय वि [वराक]दीन । बेचारा । स्त्री. रई। के समय का एक विद्वान् ब्राह्मण । °वरिया ! वरला स्त्री. हंसपक्षी की मादा ।
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वरसि - वलअंगी
वरसि देखो वरिसि । वरहाड अक [ निर् + सृ] बाहर निकलना । वराग देखो वराय ।
वराड पुं [वराट] दक्षिण का 'बरार' देश । कपर्दक | न. कौड़ियों का जूआ जिसे बालक खेलते हैं । वराडिया स्त्री [वराटिका ] कपर्दका । वराय देखो वरय = वराक । स्त्री. 'राइआ, 'राई ।
वरावड पुं. ब. [वरावट ] देश-विशेष | वराह पुं. शूकर । भगवान् सुविधिनाथ का प्रथम शिष्य ।
वराही स्त्री. विद्या-विशेष ।
वरि अ [वरम् ] अच्छा, ठीक । वरिअ देखो वज्ज = वर्य । वरिअवि [वृत] स्वीकृत । सेवित । जिसकी सगाई की गई हो । न. सगाई करना । वरिपुं [वरिष्ठ ] भरत क्षेत्र का भावी बारहवाँ चक्रवर्ती राजा । अति श्रेष्ठ । वरिल्ल न [ दे] वस्त्र - विशेष । वरिस सक [वृष्] बरसना, वृष्टि करना । वरिस पुंन [ वर्ष] वृष्टि, संवत्सर । जंबूद्वीप का अंश - विशेष, भारत आदि क्षेत्र । मेघ । 'अ वि [°ज] वर्षा में उत्पन्न | °कण्ह न ['कृष्ण] एक गोत्र । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न । 'धर पुं. अन्तःपुर-रक्षक षण्ड - विशेष पुं. वही अनन्तरोक्त अर्थ । देखो वास = वर्ष । रिसविअवि [वर्षित] बरसाया हुआ । वरिसा स्त्री [वर्षा] वृष्टि, वर्षा काल । काल पुं।°रत्त पुं [°रात्र] वर्षा ऋतु । 'ल देखो 'काल | देखो वासा | वरिसिणी स्त्री [ वर्षिणी ] विद्या - विशेष । वरिसोलक पुं [दे वर्षोलक] पक्वान्न विशेष । 'वरिहरिअ देखो परिहरिअ ।
।
वर
[] देखो बरु |
वरु
वरुअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
९०
वट पुं [ वरुण्ट] एक शिल्पि जाति । वरुड पुं. एक अन्त्यज-जाति ।
वरुण पुं. चमर आदि इन्द्रों का पश्चिम दिशा का लोकपाल । बलि आदि इन्द्रों का उत्तर दिशा का लोकपाल । लोकान्तिक देवों की एक जाति । भगवान् मुनिसुव्रत का शासनाधिष्ठायक यक्ष । शतभिषक नक्षत्र का अधिष्ठाता देव । एक देव विमान । वृक्ष की एक जाति । अहोरात्र का पनरहवाँ मुहूर्त | एक विद्याधरनरपति । एक श्रेष्ठि पुत्र । छन्दविशेष | वरुणवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव । पुं.ब. एक आर्य- देश |काइय पुं[ कायिक ] | 'देवकाइ पुं [देवकायिक] वरुण लोकपाल के भृत्य - स्थानीय देवों की एक जाति ।
भ पुं [भ] वरुणवर द्वीप का एक अधिष्ठायक देव | वरुण लोकपाल का उत्पात पर्वत । पभा स्त्री ['प्रभा] वरुणप्रभ पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित वरुण लोकपाल की एक राजधानी । 'वर पुं. एक द्वीप । वरुणा स्त्री. अच्छ देश की प्राचीन राजधानी । वरुणप्रभ पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित वरुण नामक लोकपाल की एक राजधानी । एक राजपत्नी ।
वरुणी स्त्री. विद्या - विशेष ।
वरुणोअ
वरुणोद
७१३
वरुल पुं. ब. देश-विशेष | वरूहिणी स्त्री [वरूथिनी] सेना | वरेइत्थ न [दे] फल ।
पुं [वरुणोद] एक समुद्र ।
वल अक [ वल्] लौटना | मुड़ना । उत्पन्न होना । सक. ढकना । जाना | साधना । वल सक [आ + रोपय् ] ऊपर चढ़ाना । वल सक [ग्रह ] ग्रहण करना ।
वल पुं. रस्सी आदि को मजबूत करने के लिए दिया जाता बल ।
वलअंगी स्त्री [] वृतिवाली, बाड़वाली ।
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७१४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वलइय-वल्लकी वलइय वि [वलयित] वलय-कंगन की तरह गोल हुआ हो वह ।
तरह गोलाकार किया हुआ । वेष्टित । | वलवट्टि [दे] देखो बलवट्टि । वलंगणिआ स्त्री [दे] बाड़वाली।
वलवा देखो वडवा। पलक्किम वि दे] उत्संगित, उत्संग-स्थित । | वलवाडी स्त्री [दे] वृति, बाड़ । वलक्ख वि [वलक्ष] श्वेत ।
वलविअ न [दे] शीघ्र । वलक्ख न [वलाक्ष] एक तरह का गले में वलहि स्त्री [दे] कपास । पहनने का गहना।
वलहि । स्त्री [वलभि, भी] गृह-चड़ा। वलग्ग अक [आ+ रुह ] आरोहण करना। वलही छज्जा, बरामदा । महल का अग्रस्थ वलग्ग वि [आरूढ] चढ़ा हुआ।
भाग । कठियावाड़ का प्राचीन नगर, आजकल वलग्गंगणी स्त्री [दे] वृति, बाड ।
का 'वळा' । वलण न[वलन] मोड़ना । प्रत्यावर्तन । वक्रता । | वलाअ देखो पलाय = परा + अय् । वलण (शौ. मा) देखो वरण ।
वलाअ देखो पलाव = प्रलाप । वलणा स्त्री [वलना] देखो वलण = वलन ।।
°वलाअ देखो वल = वल् । °मरण देखो
वलय-मरण। वलत्थ वि [दे] पर्यस्त ।
वलि स्त्री. पेट का अवयव-विशेष । नाभि के वलमय न [दे] शीघ्र ।
ऊपर पेट की त्रिवलि । जरा आदि से होती वलय पुंन. कंकण । पृथिवी-वेष्टन, घनवास |
शिथिल चमडी। आदि । वेष्टन । वतुल । नदी आदि के बांक |
वलिअ वि [दे] भुक्त। से वेष्टित भू-भाग । माया। झूठ । बलयकार
वलिअ वि [वलित] मुड़ा हुआ । जिसको बल वृक्ष , नारिकेल । °आर, रअ पुं[°कार,
चढ़ाया गया हो वह (रस्सी आदि)। °कारक] कंकण बनानेवाला शिल्पी।
वलिअ देखो विलिअ = व्यलोक । वलय वि [वलक] मोड़नेवाला ।
वलिआ स्त्री [दे] धनुष की डोरी। वलय न [दे] खेत । गृह ।
वलिच्छत्त देखो परिच्छन्न । वलय देखो वल = वल् । °मयग वि [ मृतक] | "वलित्त देखो पलित। संयम से भ्रष्ट होकर मृत । भूख आदि से |
वलिमोडय पुं [वलिमोटक] वनस्पति में ग्रन्थि तड़फता हुआ मरा हो । मरण न. संयम से
का चक्राकार वेष्टन । च्युत का मरण ।
वली स्त्री. देखो वलि । वलयणी स्त्री [दे] वृति, बाड़।
वलुण देखो वरुण। वलयबाहा ) स्त्री [दे] दीर्घ काष्ठ, जिसपर
वले अ. संबोधन-सूचक अव्यय । देखो बले । वलयबाहु ) ध्वजा आदि बांधा जाता है।
वल्ल देखो वल = वल् ।। हाथ का एक आभूषण, चूड़ा, कड़ा।
वल्ल अक [वल्ल] चलना, हिलना । वलया देखो वडवा । °णल पुं [°नल] वड
वल्ल पुंदे] शिशु, बालक । वाग्नि । °मुह न [ मुख] बडवानल । पुं. एक
वल्ल पुं [दे] अन्न-विशेष, निष्पाव ।' बड़ा पाताल-कलश।
वल्लई स्त्री [वल्लवी] गोपी । वलया स्त्री [दे] समुद्र-कूल । °मुह न [°मुख] | वल्लई स्त्री दे] गो। वेला का अग्रभाग।
वल्लई । स्त्री [वल्लकी] वीणा । वलयाइअ वि [वलयायित] जो वलय की | वल्लकी ।
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वल्लट्ट-ववहार संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७१५ वल्लट्ट वि [दे] पुनरुक्त ।
ववट्ठावण देखो ववत्थावण । वल्लभ देखो वल्लह ।
ववट्ठिअ वि [व्यवस्थित] व्यवस्था प्राप्त । वल्लर न [दे] वन, गहन । क्षेत्र, खेत ।
ववण स्त्रीन [दे] कासि । स्त्री. °णी। अरण्य-क्षेत्र । वालुका-युक्त क्षेत्र ।
ववत्थंभ पुं [दे] बल, पराक्रम । वल्लर न [दे] अरण्य, अटवी । मिर्जन देश । ववत्था स्त्री [व्यवस्था] मर्यादा, स्थिति । पुं. महिष । पवन । वि. युवा। वेष्टनशील । प्रक्रिया । प्रबन्ध । निर्णय। °पत्तय न वेष्टित नामक आलिंगन-विशेष करने की [°पत्रक] दस्तावेज । आदत वाला । स्त्री. °री।
ववत्थावण न[व्यवस्थापन]व्यवस्था करना । वल्लरी स्त्री. वल्ली, लता ।
ववत्थिअ वि [व्यवस्थित व्यवस्था-युक्त, जिसने वल्लरी स्त्री [दे] केश ।
व्यवस्था की हो। वल्लव पुंस्त्री. गोप, अहीर । स्त्री. °वी। ववदेस देखो ववएस। वल्लवाय न [दे] क्षेत्र, खेत ।
ववधाण न [व्यवधान] अन्तर । वल्लविअ वि [दे] लाक्षा से रंगा हुआ । ववरोव सक [व्यप+रोपय्] विनाश करना, वल्लह पुं [वल्लभ] पति । वि. प्रिय । प्राय | मार डालना। पुं[राज] गुजरात का एक चौलुक्य-वंशीय ववस सक [व्यव + सो] करने की इच्छा राजा। दक्षिण के कुन्तल-देश का एक
___ करना । प्रयत्न करना । निर्णय करना । राजा ।
ववसाय पुं [व्यवसाय] निर्णय । अनुष्ठान । वल्लहा स्त्री [वल्लभा] दयिता, पत्नी ।
उद्यम । व्यापार, कार्य। वल्लादय न [दे] आच्छादन, ढकने का वस्त्र ।
ववसायसभा स्त्री [व्यवसायसभा] कार्यावल्लाय पुं [दे] श्येन पक्षो । नकुल ।
लय। वल्लि स्त्री. लता ।
ववसिअ न [दे] बलात्कार । वल्लिर वि [वल्लित] हिलनेवाला।
ववसिअ । वि [व्यवसित] उद्यत । त्यक्त । वल्ली स्त्री. लता।
ववस्सिअ । निश्चयवाला । पराक्रमी। न. वल्ली स्त्री [दे] केश।
व्यवसाय, कर्म । चेष्टित । प्रयत्न । वल्ली पं वाहीकी देश-विशेष। वि ववहर सक [व्यव+ह] व्यापार करना । वाह्लीक देश का।
अक. वर्तना, आचरण करना । वव सक [वप्] बो ना।
ववहरग वि [व्यवहारक] व्यापार करनेवव सक [वप्] देना।
वाला, व्यापारी। ववइस सक [व्यप + दिश् ] कहना, प्रतिपादन ववहार पुं [व्यवहार] वर्तन । व्यापार । करना । व्यवहार करना ।
नय-विशेष । मुमुक्षु की प्रवृत्ति-निवृत्ति का ववएस पुं [व्यपदेश] कथन, प्रतिपादन । कारण-भूत ज्ञान-विशेष । जैन आगम-ग्रन्थव्यवहार । कपट ।
विशेष । दोष के नाशार्थ किया जाता प्रायववगम पुं [व्यपगम] नाश ।
श्चित्त । विवाद । फैसला । व्यवस्था । काम, ववगय वि [व्यपगत] दूर किया हुआ । मृत । काज । जीवराशि-विशेष । °व वि [°वत्] नाश-प्राप्त ।
व्यवहार-युक्त। रासिय वि [राशिक] ववटुंभ पुं व्यवष्टम्भ] अवलम्बन ।
जीवराशि-विशेष में स्थित ।
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७१६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ववहार-चसाहा ववहार पुं [व्यवहार] पूर्व-ग्रन्थ । जीतकल्प । [°तिलक] हरिवंश में उत्पन्न एक राजा । सूत्र । कल्पसूत्र । मार्ग । आचरण । ईप्सि- न. एक उद्यान, जहाँ भगवान ऋषभदेव ने तव्य ।
दीक्षा ली थी। °तिलआ स्त्री [°तिलका] ववहारि पु [व्यवहारिन्] ऐरवत क्षेत्र में | छन्द-विशेष। उत्पन्न एक जिन-देव । वि. व्यापारी । वसंवय वि [वशंवद] निज को अधीन कहनेव्यवहार-क्रिया-प्रवर्तक ।
वाला । ववहारिअ वि [व्यावहारिक] व्यवहार
वसण न [वसन] वस्त्र । निवास । सम्बन्धी।
वसण पुं [वृषण] अण्ड-कोष । ववहिअ वि [व्यवहित] व्यवधान-युक्त । वसण न [व्यसन] कष्ट, विपत्ति । राजादिववहिअ वि [दे] उन्मत्त ।
कृत उपद्रव । द्यूत, मद्य-पान आदि खोटी ववाँल देखो वमाल।
आदत । ववेअ वि [व्यपेत] व्यपगत ।
वसभ पुं [वृषभ] वृष राशि । ऋषभदेव । एक ववेक्खा स्त्री [व्यपेक्षा] विशेष अपेक्षा। जैन मुनि, चतुर्थ बलदेव के पूर्व जन्म के गुरु । वव्वय पुं[वल्वज] तृण-विशेष ।
ज्ञानी साधु । बैल । उत्तम । °करण न. वह वव्वर वि [वर्वर] पामर । मूर्ख।
स्थान जहाँ बैल बांधे जाते हों। क्खेत्त न. वव्वा देखो वव्वय।
[ क्षेत्र]वर्षा-काल में आचार्य आदि जहाँ रहते वव्वाड पुंदे] अर्थ । धन ।
हों वह स्थान । ग्गाम पुं[°ग्राम] कुत्सित देश वव्वीस देखो वच्चीसग, वद्धीसक ।
में नगर-तुल्य गाँव । °ाणुजाय पुं [°नुजात] वशधि (मा) देखो वसहि = वसति ।
ज्योतिषशास्त्र का प्रथम योग, जिसमें चन्द्र, वश्च (म) देखो वच्छ = वृक्ष ।
सूर्य और नक्षत्र बल के आकार से स्थित वस अक [ वस् ] वास करना, रहना । सक. होते हैं । देखो उसभ, रिसभ, वसह । बांधना।
वसभुद्ध पुं [दे] कौआ । वस वि [वश] अधीन । पुन. परतन्त्रता। वसम देखो वसिम। प्रभुत्व । स्वामित्व । आज्ञा । बल, सामर्थ्य । वसल वि [दे] दीर्घ । °अ, °ग वि. वशीभूत, पराधीन । "ट्ट वि | वसह पुं [वृषभ] वैयावृत्त्य करनेवाला मुनि । [त] पराधीनता या इन्द्रिय आदि की लक्ष्मण का पुत्र । बैल । कान का छिद्र । परवशता से दुःखित । "ट्टमरण न [र्तम- औषध-विशेष । 'इंध पुं [°चिह न] शंकर । रण] इन्द्रियादि-परवश की मौत । वत्ति वि °केउ पुं [ केतु] इक्ष्वाकु-वंश का राजा । [वर्तिन्] । °इत्त वि [°यित्त] । °णुग वि °वाहण पुं [°वाहन] ईशान देवलोक का [°नुग] वशीभूत, अधीन ।
इन्द्र । महादेव । °वीही स्त्री [°वीथी] शुक्र वस पुं [वृष] धर्म । बैल । देखो विस = वृष ।।
ग्रह का एक क्षेत्रभाग। वसइ स्त्री [वसति] स्थान, आश्रय। रात्रि । वसहि देखो वसइ । गृह । निवास।
वसा स्त्री. शरीरस्थ धातु-विशेष । वसंत पुं [वसन्त] ऋतु-विशेष, चैत्र और °वसारअ वि [प्रसारक] फैलानेवाला । वैशाख मास का समय । चैत्र मास । °उर | वसाहअ देखो पसाहय । म [°पुर] नगर-विशेष । तिलअ पुं| वसाहा स्त्री [प्रसाधा] अलंकार, आभूषण ।
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वसि-वहइअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७१७ वसि देखो वसइ।
वसुंधर पुं [वसुन्धर] एक जैन मुनि । वसिअ वि [उषित] रहा हुआ, जिसने वास | वसुंधरा स्त्री [वसुन्धरा] पृथिवी । ईशानेन्द्र किया हो वह । बासी।
की अग्र-महिषी । चमरेन्द्र के सोम आदि वसिट्ठ पुं [वशिष्ठ] भगवान् पार्श्वनाथ का एक | चारों लोकपालों की पटरानी । एक दिक्कूमारी गणधर । एक ऋषि ।
देवी। नववें चक्रवर्ती राजा की पटरानी। वसिटू पुं [वशिष्ट] द्वीपकुमार देवों का उत्तर रावण की पत्नी। एक श्रेष्ठि-पत्नी। वइ दिशा का इन्द्र ।
पुं [°पति] राजा। वसित्त न [वशित्व] योग की एक सिद्धि । वसुधा (शौ) देखो वसुहा। वसिम न [दे] वसतिवाला स्थान । | वसुपुज्ज देखो वासुपुज्ज । वसीकय वि [वशीकृत] वश में किया हुआ। वसुमइ° , स्त्री [वसुमती] पृथिवी । भीम वसीकरण न [वशीकरण] वश में करने के वसुमई ) नामक राक्षसेन्द्र की अग्र-महिषी, लिए किया जाता मन्त्र आदि का प्रयोग। एक इन्द्राणी । °णाह, °नाह पुं [°नाथ] वसीयरणी स्त्री वशीकरणी] वशीकरण
राजा । भवण न [°भवन भूमि-गृह । विद्या ।
°वइ पुं [°पति राजा। वसीहअ वि [वशीभूत] जो अधीन हुआ हो। | वसुल पुंस्त्री [दे. वृषल] निष्ठुरता-बोधक वसु न. धन । संयम, चारित्र । पुं. जिनदेव । आमन्त्रण शब्द । गौरव और कुत्सा-बोधक वीतराग । संयत-साधु । आठ की संख्या। आमन्त्रण शब्द । स्त्री. °ली। धनिष्ठा नक्षत्र का अधिपति देव । एक राजा । | वसुहा स्त्री [ वसुधा ] पृथिवी । हिव पुं एक चतुर्दश-पूर्वी जैन महर्षि । एक छन्द ।। [धिप] राजा। स्त्री. ईशानेन्द्र की पटरानी। न. लोकान्तिक | वसू स्त्री. ईशानेन्द्र की एक पटरानी । देवों का विमान । सुवर्ण । 'गुत्ता स्त्री | वसेरी स्त्री [दे] खोज । ['गुप्ता] ईशानेन्द्र की पटरानी । °देव पुं. | वस्स (शौ) देखो वरिस । श्रीकृष्ण और बलदेव का पिता। नंदय | वस्स वि [वश्य] अधीन, आयत्त । पुं [°नन्दक] एक उत्तम तलवार । पुज्ज | वस्सोक न [दे] एक प्रकार की क्रीड़ा ।
[पूज्य] एक राजा, वासुपूज्य का पिता। वह सक [ वह ] पहुँचना । धारण करना। °बल पुं. इक्ष्वाकु-वंश में उत्पन्न राजा । ले जाना । अक. चलना । °भाग पुं. एक नाम । °भागा स्त्री. ईशा- | वह सक [वध् , हन] मार डालना। नेन्द्र की पटरानी । 'भूइ पुं [भूति] एक | वह सक [व्यथ् ] पीड़ा करना । प्रहार करना। जैन मुनि । °म, "मंत वि [°मत्] श्रीमंत । वह (अप) देखो वरिस = वृष । संयमी, साधु । °मित्ता स्त्री [°मित्रा] | वह पुंस्त्री [वध] हत्या । स्त्री. °हा । °कारी ईशानेन्द्र की अन महिषी । °सद्द [शब्द] | स्त्री [°करी] विद्या-विशेष । छन्द-विशेष । °हारा स्त्री [°धारा] आकाश | वह पं [दे] कन्धे पर का व्रण । व्रण । से देव-कृत सुवर्णवृष्टि । एक श्रेष्ठिनी । वह पुं. वृष-स्कन्ध । पानी का प्रवाह । वसुआ ) अक [ उद + वा ] शुष्क होना। वह पुं [व्यथ] लकुट आदि का प्रहार । वसुआअ ) सूखना।
| वह देखो पह = पथिन् । वसुआअ वि [उद्वात] शुष्क ।
वहइअ बि [दे] पर्याप्त ।
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संक्षिप्त प्राकृत - हिन्दी कोष
७१८
हिंसक ।
वहग वि [वधक ] घातक, वह वि [ व्यथक] ताड़ना करनेवाला । वह पुं [दे] दमनीय बछड़ा । वहढोल पुं [दे] वात्या, वात- समूह | वहण न [ वहन ] ढोना । पोत, जहाज । शकट आदि वाहन । वि. वहन करनेवाला । वहण (शौ) देखो पगय = प्रकृत । वहण (अप) देखो वसण
= वसन ।
वहणया स्त्री [ वहना] निर्वाह । वहणा स्त्री [वधना ] वध, घात, हिसा । वहणु पुं [व्यधज्ञ ] एक नरक-स्थान । वह देखो वहग = वधक | वहलीअ देखो बहलीय । वहा देखो वह = वध | वहाव सक [वाय् ] वहन कराना । वहाविअवि [धित ] मरवाया हुआ । 'हाविअ देखो पहाविअ । हि [] अवलोकित । वहिइअ देखो वहइअ ।
वहिचर अक [ व्यभि + चर् ] पर-पुरुष या पर-स्त्री से संभोग करना । सक. नियम भंग करना ।
वहिचार पुं [ व्यभिचार ] पर-स्त्री या परपुरुष से संभोग । न्यायशास्त्र - प्रसिद्ध एक हेतु-दोष ।
हिया स्त्री [] हिसाब लिखने की बही । वहियाली देखो वाहियाली ।
लिग पुं [दे. हलक] ऊँट, बैल आदि पशु
वहिल व [] शीघ्र ।
पुंस्त्र [] चिवडा, गन्ध-द्रव्य- विशेष । 'देखो वहू |
वहुधारिणी स्त्री [दे] नवोढा । वहुण्णी स्त्री [दे] ज्येष्ठ भार्या । वहुमास पुं [दे] रमण-विशेष, क्रीड़ा- विशेष, जिसमें खेलता हुआ पति नवोढा के घर से
बाहर नहीं निकलता है ।
वहुरा स्त्री [दे] शिवा, सियारिन । वहुलिआ (अप) स्त्री [ वधूटिका ] अल्पवय वाली स्त्री, बहुरिया ।
बहुव्वा स्त्री [] छोटी सास ।
वहग - वाइत्त
डिणी स्त्री [] एक स्त्री के रहते हुए
ब्याही जाती दूसरी स्त्री ।
वहू स्त्री [ वधू] भार्या, नारी । वहोल पुं [दे] छोटा जल प्रवाह । हौलिया स्त्री [] |
वा अक गति करना, चलना । CT अक [वै, म्लै] सूखना । वाक [व्ये] बुनना ।
वा अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - विकल्प, अथवा, या । समुच्चय, और, तथा । अपि, भी । अवधारण । सादृश्य । उपमा । पाद-पूर्ति । वाअड पुं [दे] शुक ।
वाअड देखो वावड = व्यापूत ।
वाइ वि [वादिन्] वक्ता । शास्त्रार्थ में पूर्वपक्ष का प्रतिपादन करनेवाला । दार्शनिक, तीर्थिक । वाइ वि [वाचिन् ] वाचक, अभिधायक, कहने
वाला ।
वाइ देखो वाजि ।
वाइअ व [वाचिक ] वचन-सम्बन्धी । वाइअ वि [वाचित ] पाठित | पढ़ा हुआ । वाइअ वि [ वातिक] वायु-जन्य । वात-रोगवाला | उत्कर्षवाला । पुं. नपुंसक का एक भेद ।
वाइअवि [वादित ] बजाया हुआ । वन्दित । वाइअ न [ वाद्य ] बाजा, वादित्र | बाजा बजाने की कला ।
वाइअ वि [वात] बहा हुआ, चला हुआ । वाइंगण न [दे] बैंगन । वाइंगणी स्त्री [दे] बैंगन का गाछ, वाइंगिणी } वृन्ताकी ।
वाइगा [दे] देखो बाइया । वाइत न [वादित्र] बाद्य, बाजा ।
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वाइद्ध - वागिल्ल
वाइद्ध वि [ व्याविद्ध] विपर्यय से उपन्यस्त ।
उलट-पुलट कर रखा हुआ । वाइद्ध वि [व्यादिग्ध ] उपलिस । वक्र । वाईकरण देखो वाजीकरण ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वाउ भाम पुं [वातोद्भ्राम ] अनवस्थित पवन । वाउय वि [ व्यापृत] किसी कार्य में लग्न । वाउरा स्त्री [ वागुरा ] पशु फँसाने का जाल । देखो वग्गुरा ।
वारिय वि [ वागुरिक] व्याघ । वाउल वि [ व्याकुल] घबड़ाया हुआ । पुं. क्षोभ अवि [भूत] व्याकुल बना हुआ ।
वाउल वि [वातूल ] वात रोगी, उन्मत्त । पुं. वातसमूह |
वाउ लग्ग न [ दे] सेवा, भक्ति ।
वाउ पुं [वायु] पवन । वायु-शरीरवाला जीव | मुहुर्त - विशेष । सौधर्मेन्द्र के अश्व सैन्य का अधिपति देव । स्वातिनक्षत्र का अघिपति देवता । 'आय पुं [काय] प्रचण्ड पवन । वायु शरीरवाला जीव । काइय पुं [° कायिक ] वायु शरीरवाला जीव । 'काय देखो 'आय । कुमार पुं. भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति । हनूमान का पिता । 'कलिया स्त्री [' उत्कलिका ] नीचे बहने - वाला वायु | क्वाइय देखो 'काइय । 'क्काय देखो 'आय । 'तरवाडसग पुंन [°उत्तरावतंसक] एक देव - विमान । 'पवेस पुं [°प्रवेश] गवाक्ष, वातायन । व्यइट्ठाण वि [ प्रतिष्ठान] वायु के आधार से रहनेवाला । 'भूइ पुं [भूति] महावीर का एक
गणधर ।
वाउ पुं [] इक्षु |
वाक
'वाउड वि [प्रावृत] आच्छादित । न. कपड़ा ।
वाग
वाउत्त पुं [दे] विट । जार ।
वागड पुं. गुजरात का 'वागड ' प्रान्त |
वाउप्पइया स्त्री [दे. वातोत्पतिका ] भुज- वागडि वि [ व्याकृत] प्रकट किया हुआ । परिसर्प की एक जाति ।
नास्तिक |
वाउलणेन[व्यापरण] व्यावृत-क्रिया, व्यापार । वाउलणा स्त्री [व्याकुलना ] व्याकुल करना । वाउलिअ वि [ व्याकुलित ] व्याकुल बनाहुआ । विलोलित, क्षोभ प्राप्त । वाउलिआ स्त्री [दे] छोटी खाई । वाउल्ल देखो वाउल
व्याकुल । वाउल्ल वि [दे. वातूल ] वाचाट | वाउल्लअ पुंन[दे] पूतला । वाउलआ
वाउली
७१९
=
स्त्री [दे] देखो बाउल्लया, बाउली ।
वाऊल देखो वाउल = वातूल । वाऊल देखो वाउल = व्याकुल । वाऊलिअ वि [ वातूलित ] वातूल बना हुआ । नास्तिक |
वाए सक [वादय् ] बजाना । वाए सक [ वाचय् ] पढ़ाना | पढ़ना । वारिअ वि [ वातेरित ] पवन- प्रेरित कम्पित । वाएसरी स्त्री [ वागीश्वरी] सरस्वती देवी । वाओलि
}स्त्री [वाताल, °ली] वन
वाओली
देखो वक्क = वल्क ।
वागर सक [ व्या + कृ] प्रतिपादन करना, कहना |
वागरण न [ व्याकरण] कथन, प्रतिपादन, उपदेश । निर्वचन, उत्तर । शब्दशास्त्र । वागरणी स्त्री [ व्याकरणी] भाषा का एक भेद, प्रश्न के उत्तर की भाषा । वारिय वि [ व्याकृत] । देखो वायड =
व्याकृत ।
वागल न [ वल्कल ] वृक्ष की छाल । वागल व [ वाल्कल ] वृक्ष की छाल से बना । वागली स्त्री [दे] वल्ली - विशेष | वागिल्ल वि [वाग्मिन्] बहु-भाषी, वाचाल ।
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७२०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वागुर पुं [वागुरा ] मृग-बन्धन, जाल, फन्दा । वागुरि वि [ वागुरिन्, 'रिक] देखो वारिय वारिय |
वाघाइय वि [ व्याघातिक ] व्याघात से
उत्पन्न ।
वाघाइम वि [ व्याघातिम] व्याघात से होनेवाला | न. सिंह, दावानल आदि से होने वाली मौत |
वाघाय पुं [ व्याघात] स्खलना | विनाश |
प्रतिबन्ध | सिंह, दावानल आदि से अभिभव । वाघारिय वि [ व्याधारित] प्रलम्ब, लम्बा | वाघुण्णिय वि [ व्याघूर्णित ] दोलायमान । वाघेल पुं [दे] एक क्षत्रिय वंश । वाच देखो वाय = वाचय् । वाचय देखो वायग = वाचक |
वाज देखो वाय = व्याज ।
वाजि पुं [ वाजिन्] अश्व ।
वाणवाल पुं [दे] इन्द्र
औषध | आयुर्वेद का एक अंग ।
वाजीकरण न [ वाजीकरण] वीर्य वर्धक वाणहा देखो पाणहा, वाहणा = उपानह 1 वाणा देखो वायणा = वाचना । 'यरिअ पुं [चार्य ] अध्यापन करनेवाला शिक्षक । वाणारसी स्त्री [वाराणसी ] प्राचीन नगरी, 'बनारस' ।
वाड पुं [बाट] बाड । बाडवाली जगह । वृति आदि से परिवेष्टित गृह-समूह, रथ्या । वाडंतरा स्त्री [दे] कुटीर, झोपड़ा या झोपड़ी । 'वाडण देखो पाडण ।
वाडव पुं. वडवानल |
वाडम पुं [दे] पशु - विशेष, गण्डक, गेंड़ा । वाडिल्ल पुं [दे] कृमि, कीट | वाडी स्त्री [दे] बाड़ । वाडी स्त्री [वाटी] बगीचा !
वाढि पुं [दे] वणिक् सहाय, वैश्य - मित्र । वाण सक [वि + नम् ] नत होना ।
वागुर-वाणीर
तापस, तृतीय आश्रम में स्थित पुरुष | 'मंत, 'मंतर, 'वंतर पुंस्त्री [व्यन्तर ] देवों की एक जाति । स्त्री. 'री । 'वासिआ स्त्री [वासिका ] छन्द - विशेष ।
' वाण देखो पाण = पान । 'वत्त न [ ° पात्र ] पीने का प्याला ।
वाणय पुं [ दे] कंकण बनानेवाला शिल्पी । वाणर पुंन [वानर] बन्दर । विद्याधर मनुष्यों का वंश | वानर - वंश में उत्पन्न मनुष्य ।
उरी स्त्री [°पुरी] किष्किन्धा नामक नगरी | ° केउ पुं [° केतु] वानर-वंश का कोई भी राजा । 'दीव पुं [ द्वीप ] एक द्वीप |
वाडहाणग पुंन [वाटधानक] एक छोटा वाणि स्त्री देखो वाणी ।
गाँव | वि. उस गाँव का निवासी । वाडि° देखो वाडी = वाटी । वाडआ स्त्री [वाटिका ] बगीचा |
वाण वि [वान] वन में उत्पन्न, वन सम्बन्धी 'पत्थ, पत्थपुं [ प्रस्थ ]
वनवासी
द्वय पुं [ध्वज ] हनूमान । 'वइ पुं[ पति ] सुग्रीव, रामचन्द्र का एक सेनापति । वारद पुं [ वानरेन्द्र ] वानर-वंशीय पुरुषों का राजा, वाली ।
वाणि देखो वणि= वणिज् । उत्त, पुत्त पुं [° पुत्र] वैश्य कुमार |
वाणिअं [ वाणिज] बनिया । एक गाँव | वाणि (अप) देखो वाणिज्ज । 'वाणि देखो पाणिअ = पानीय । वाणिज्जन [ वाणिज्य ] व्यापार । एक जैन मुनि - कुल |
वाणिज्जा स्त्री [ वणिज्या] व्यापार । वाणिज्जिय वि [वाणिजिक] व्यापारी ।
वाणी स्त्री. वचन, वाक्य । वाग्देवता, सरस्वती
देवी । छन्द - विशेष ।
'वाणी देखो पाणीअ । वाणीर पुं [दे] जम्बू वृक्ष ।
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वाणीर-वाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७२१ वाणीर पुं [वानीर] वेतस-वृक्ष ।
वामा स्त्री. पाश्र्वनाथ को माता । वाणुजुअ पुं[दे] वणिक् ।
वामिस्स देखो वामीस। वात देखो वाय % वात ।
वामी स्त्री [दे] स्त्री। वातिक । देखो वाइअ = वातिक ।
वामीस वि व्यामिश्र] मिश्रित, युक्त। वातिय )
वामीसिय वि [व्यामिश्रित] । वाद देखो वाय = वाद ।
वामुत्तय वि [व्यामुक्तक] परिहित । प्रलवादि देखो वाइ- वादिन् ।
म्बित। वापंफ देखो वावंफ।
वामूढ वि [व्यामूढ] विमूढ़, भ्रान्त । वापिद (शो) देखो वावड व्याप्त ।
वामोह पुं [व्यामोह] मूढ़ता, भ्रान्ति । वाबाहा स्त्री [व्याबाधा] विशेष पीड़ा। वामोहण वि [व्यामोहन] भ्रान्ति-जनक । वाम सक [वमय्] वमन कराना ।
वाय सक [वाचय] पढ़ना । पढ़ाना । वाम वि [दे] मृत । आक्रान्त ।
वाय अक [वा] बहना, गति करना, चलना। वाम वि. सव्य, बाँया। प्रतिकूल । सुन्दर । | वाय अक [वै, म्लै] सूखना। न. सव्य पक्ष । बाँया शरीर । 'लोअणा | वाय सक [वादय] बजाना । स्त्री [°लोचना] सुन्दर नेत्रवाली स्त्री। | वाय वि [वान] शुष्क, म्लान । °लोकवादि,°लोगवादि पुं [°लोकवादिन्] | वाय पुं दे] वनस्पति-विशेष । न. गन्ध । जगत् को असत् माननेवाला दार्शनिक । वाय पुं [वात] समूह, संघ । वट्ट वि [°वर्त] । वित्त वि [वर्त] वाय वि [व्यातृ] संवरण करनेवाला । प्रतिकूल आचरण करनेवाला।
| वाय वि [व्यागस्] प्रकृष्ट अपराधी । वाम [व्याम] परिमाण-विशेष, नीचे फैलाए | वाय पुं [वात] पवन । जुलाहा ।
हुए दोनों हाथों के बीच का अन्तराल । वाय वि [व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला। वामण पुन [वामन] संस्थान-विशेष, जिसमें वाय पुं [वाक] ऋग्वेद आदि वाक्य । हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों और छाती, वाय पुं [व्याय] गति, चाल । पक्षी का पेट आदि पूर्ण या उन्नत हों। वि. उक्त आगमन । विशिष्ट लाभ । आकार के शरीरवाला, ह्रस्व । स्त्री. °णी। वाय पुं [व्याच] ठगाई। पं. श्रीकृष्ण का एक अवतार । एक यक्ष- वाय पंवाज] पंख । ऋषि । आवाज.| वेग । देवता । न. जिसके उदय से वामन शरीर की
न. घी । पानी । यज्ञ का धान्य । प्राप्ति हो वह कर्म । °थली स्त्री [°स्थलो] वाय न [वाच] शुक-समूह । देश-विशेष ।
वाय वि [वाज्] फेंकनेवाला । नाशक । वामणिअ वि [दे] नष्ट वस्तु-पलायित को
वाय पुं व्याज] कपट, माया। बहाना, छल । फिर से ग्रहण करनेवाला।
विशिष्ट गति । वामणिआ स्त्री [दे] दीर्घ काष्ठ की बाड।
वाय देखो वाग = वल्क । वामद्दण न [व्यामर्दन] एक व्यायाम, हाथ |
वाय पुं [वाय शादी। आदि अंगों का एक दूसरे से मोड़ना । वाय पुं [व्यात] विशिष्ट गमन । वामरि पुं [दे] सिंह।
वाय पुं वाप] बोना । खेत । वामलूर पुं. वल्मीक, दीमक ।
वाय पुं. गमन, गति । सूंघना । जानना। ९१
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७२२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
नियमित ।
वायग पुं [वाचक ] अभिषायक । उपाध्याय । पूर्व-ग्रन्थों का जानकार मुनि । तत्त्वार्थसूत्र का कर्ता श्री उमास्वातिजी । वि. कथक । पढ़ानेवाला |
इच्छा । खाना ।
वाय वि [ व्याद] विशेष ग्रहण करनेवाला । वाय वि [वाच्] वक्ता ।
वाय पुं [वात] पवन । उत्कर्ष । पुंन. एक देवविमान | कंत पुंन [कान्त ] एक देवविमान | कम्म न [कर्मन्] अपान वायु का सरना । 'कूड पुंन [कूट ] एक देव - विमान | खंध [स्कन्ध] घनवात आदि वायु । झय पुंन [ ध्वज ] एक देव-विमान । ●णिसग्ग पुं [ निसर्ग ] अपान वायु का सरना । 'पलिक्खोभ पुं ['परिक्षोभ ] कृष्णराजि । प्भ पुंन [° प्रभ] देव-विमान विशेष | 'फलिह पुं [° परिघ] कृष्णराज । रुह पुं. वनस्पति - विशेष । लेस्स पुंन [लेश्य ] | वण्ण पुंन [वर्ण] । °सिंग पुंन [शृङ्ग ] | °सिट्ठपुंन ['सृष्ट]। [] सभी देव विमान ।
वत्त
'वाय पुं [पाद] पर्यन्त । पर्वत । पूजा । मूल । किरण । पैर । चौथा भाग । देखो
पाय = पाद ।
'वाय देखो पाव = पाप ।
'वाय पुं [पाय ] रक्षा | वि. पीनेवाला । 'वाय देखो अवाय = अपाय ।
वाय पुं [वाद] शास्त्रार्थं । उक्ति । नाम । बजाना । स्थैर्यं । 'त्थ पुं [T] तत्त्व- चर्चा | °त्थि वि [र्थिन् ] शास्त्रार्थं की चाहवाला । 'वाय पुं [पाक] रसोई । बालक । दैत्य | देखों पाग ।
'वाय पुं [पात] पतन । गमन । उत्पतन । पक्षी । न पक्षि- समूह |
वायव वि. वातरोगी ।
'वाय वि [पातृ] रक्षा करनेवाला । पीनेवाला, वायव देखो पायव |
सूखनेवाला ।
'वाय देखो 'बाय ।
वायगवि [वादक ] बजानेवाला । वायग पुं [वायक] तन्तुवाय, जुलाहा । वायगवंस पुं [ वाचकवंश ] एक जैन मुनि - वंश ।
वाय-वायाड
वायड पुं [दे] एक श्रेष्ठि-वंश । वायड वि [ व्याकृत] स्पष्ट, उक्त वायडघड पुं [दे] दर्दुर नामक बाजा । वायडाग पुं [दे] सर्प की एक जाति । वायण न [वाचन] देखो वायणा । वायण न [ वादन] बजाना | बजानेवाला । वायण न [ दे] खाद्य पदार्थ का बांटा जाता उपहार |
वायणया स्त्री [ वाचना ] पठन, गुरु के } वायणा समीप अध्ययन । अध्यापन । व्याख्यान | सूत्र पाठ । वायणिअ वि [वाचनिक] वचन- सम्बन्धी । वायय देखो वायग = वायक । वायरण देखो वागरण |
वायव्व वि [ वायव्य ] वायव्य कोण का । वायव्व पुं [ वायव्य ] वायुदेवता - सम्बन्धी । न. गौ के खुर से उड़ी हुई धूलि । वायव्वा स्त्री [वायव्या] वायव्य कोण । वायस पुं. काक । कायोत्सर्ग में कौए की तरह दृष्टि को इधर-उधर घुमाना । 'परिमंडल न [परिमण्डल ] कौए के स्वर और स्थान आदि से शुभाशुभ फल बतलानेवाली विद्या । वाया स्त्री [वाच्] वाचन, वाणी । सरस्वती । व्याकरणशास्त्र । देखो वइ = वाच् ।
वाय उत्त पुं [दे] विट, भँडुआ । जार । वायंगण न [दे] बैंगन ।
वायंतिय वि [ वागन्तिक ] वचन- मात्र में वायाड पुं [दे. वाचाट] शुक ।
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वायाड-वारी
वायाड वि [वाचाट] वाचाल ।
वारसय देखो वारिसिय ।
वारा स्त्री. विलम्ब । वेला, दफा ।
वायाम सक [ व्यायामय् ] कसरत करना । वायायण पुंन [ वातायन ] गवाक्ष, झरोखा | वाराणसी देखो वाणारसी ।
पुं. राम का एक सैनिक
वायार पुं [दे] शिशिर-वात ।
वायाल वि [ वाचाल ] बकवादी ।
'वायाल देखो पायाल । वायाविअवि [वादित] बजवाया हुआ । वायु देखो वाउ = वायु ।
वार सक [वारय् ] रोकना । वार पुं [दे] चषक, पान- पात्र ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वार पुं. समूह । अवसर । सूर्य आदि ग्रह से अधिकृत दिन, जैसे रविवार, सोमवार आदि । चौथे नरक का एक नरक -स्थान । बारी । परिपाटी । कुम्भ | वृक्ष - विशेष । न. फलविशेष | 'जुवइ स्त्री [" युवति ] | 'जोव्वणी स्त्री ['यौवना ] | ° तरुणी स्त्री । 'वहू स्त्री ['वधू ] | विलया स्त्री ['वनिता ] | विलासिणी स्त्री [° विलासिनी] | सुंदरी स्त्री [° सुन्दरी] वेश्या ।
वार न [° द्वार] दरवाजा | 'वई स्त्री ['वती ] द्वारका नगरी । 'वाल पुं [ पाल] दरबान | वारंवार न. फिर-फिर 1
वारग पुं [वारक] बारी, क्रम । छोटा घड़ा । वि. निवारक, निषेधक ।
वारडियन [दे] रक्त वस्त्र । वाड व [] अभिपीडित ।
वारण न निषेध | निवारण | छत्र । वि. रोकनेवाला, निवारक । पुं. हाथी । छन्द का एक भेद ।
वारण देखो वागरण ।
वारत पुं. एक अन्तकृद् मुनि । एक ऋषि ।
एक अमात्य । न. एक नगर ।
वारबाण पुं. कञ्चुक, चोली ।
वारय देखो वारग ।
वारसिआ स्त्री [दे] मल्लिका, पुष्प विशेष ।
वाराविय वि [वारित] जिसका निवारण कराया गया हो वह ।
वाराह पुं. पाँचवें बलदेव का पूर्वभवीय नाम । वि. शूकर के सदृश ।
वाराही स्त्री. विद्या विशेष । वराहमिहिर का ज्योतिष - ग्रन्थ, वराह-संहिता |
वारि न पानी। स्त्री हाथी को फँसाने का
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स्थान | भद्दग भिक्षुक | मय वि. स्त्री. °ई।
[भद्रक] शैवलाशी पानी का बना हुआ । मुअ [°मुच् ] मेघ । 'य
पुं [द] पानी देनेवाला भृत्य । रासि पुं [ राशि ] समुद्र | वाह पुं. अभ्र | सेण पुं ['षेण] एक अन्तकृद् महर्षि, राजा वसुदेव के पुत्र जिन्होंने अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली थी । एक अनुत्तरगामी मुनि, राजा श्रेणिक के पुत्र । ऐरवत वर्ष में उत्पन्न चौबी - सर्वे जिनदेव | एक शाश्वती जिन प्रतिमा । °सेणा स्त्री [°षेणा] एक शाश्वती जिनप्रतिमा । अधोलोक में रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी | एक महानदी । ऊर्ध्वलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । 'हर पुं [°धर] मेघ ।
वारिअ पुं [दे] हजाम, नापित । वारिअ वि [ वारित] प्रतिषिद्ध । वेष्टित । वारिआ स्त्री [ द्वारिका ] छोटा दरवाजा, बारी । वारिज्ज पुंन [ दे] शादी |
वारिसा देखो वरिसा ।
वारिसिय वि [ वार्षिक ] वर्ष सम्बन्धी । वर्षासम्बन्धी ।
वारी स्त्री [द्वारिका ] बारी, छोटा दरवाजा | वारी स्त्री. हाथी फँसाने का स्थान । वारी° न [वारि] जल ।
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७२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वारुअ-वावड वारुअ न [दे] शीघ्र । वि. शीघ्रता-युक्त । पर्व के देह-मानवाले थे । देखो वालिखिल्ल । वारुण न. जल । वि. वरुण-सम्बन्धी । 'त्थ न | वाला पुंस्त्री कंगू, अन्न-विशेष । [स्त्र] वरुणाधिष्ठित अस्त्र । °पुर न. वालि पुं. एक विद्याधर-राजा, कपिराज । नगर-विशेष ।
°तणअ पुं [तनय] । 'सुअ ' [°सुत] वारुणी स्त्री. मदिरा । लता-विशेष, इन्द्र- राजा वालि का पुत्र, अंगद । वारुणी। पश्चिम दिशा। सुविधिनाथ की | वालि वि [वालिन्] वक्र ।। प्रथम शिष्या। एक दिक्कुमारी देवी । कायो- वालि वि [वालिन्] केशवाला । पुं. कपिराज । त्सर्ग का एक दोष-निष्पन्न होती मदिरा | वालिआफोस न दे] सुवर्ण। की तरह कायोत्सर्ग में 'बुड-बुड' आवाज वालिंद पुं [वालीन्द्र] एक विद्याधर राजा। करना। कायोत्सर्ग में मतवाला की तरह वालिखिल्ल पुं [वालिखिल्य] एक राजर्षि । डोलते रहना।
देखो वालिहिल्ल। वारुया । स्त्री [दे] हस्तिनी ।
वालिहाण न [वालधान] पुच्छ । वाख्या
वालिहिल्ल देखो वालहिल्ल। वारेज्ज देखो वारिज्ज।
वाली स्त्री [दे] मुंह से बजाया जाता तृणबाल सक [वालय् ] मोड़ना। वापस | वाद्य । लौटाना ।
°वालो स्त्री [पाली] गाल आदि पर की जाती वाल पुं [व्याल] दुष्ट । सर्प । दुष्ट हाथी । कस्तूरी आदि की छटा । देखो पाली। हिंसक पशु । देखो विआल = व्याल ।
वालुअ पुं [वालुक] परमाधार्मिक देवों की वाल न. कश्यप-गोत्र की एक शाखा । पुंस्त्री.] एक जाति, जो नरक-जीवों को तप्त वालुका उस गोत्र में उत्पन्न ।
में चने की तरह भनते हैं । धूलि-सम्बन्धी । वाल देखो बाल = बाल । °य वि [°ज] | वालुअ° । स्त्री [वालुका] धूलि, रेत, रज । केशों से बना हुआ। °वीयणी स्त्री वालुआ , पुढवी स्त्री [पृथिवी ]। [वीजनी] चामर । °हि पुं [°धि] छोटा ___°प्पभा, °प्पहा स्त्री [°प्रभा] । °भा स्त्री. पंखा।
तीसरी नरक-भूमि। °वाल देखो पाल = पाल ।
वालुंक न [दे] एक तरह का पक्वान्न । वालंफोस न [दे] सोना।
वालुंक न [वालुङ्क] ककड़ी, खीरा । वालग न [वालक] गौ आदि के बालों का | वालंकी । स्त्री [वालुङ्गी] ककड़ी का गाछ । बना हुआ पात्र-विशेष।
वालुक्की वालगपोतिया) स्त्री [दे] देखो बालग्ग- वालुग देखो वालुअ° । वालग्गपोइया । पोइआ।
वाव सक [वि+आप् ] व्याप्त करना । वालप्प न [दे] पुच्छ ।
वाव अ. अथवा । वालय पुं[वालक] गन्ध-द्रव्य-विशेष ।
वाव पुं [वाप] बोना। वालवास पुं[दे] मस्तक का आभूषण । वावइज्ज देखो वावज्ज। वालवि पुं[व्यालपिन्] मदारी । सपेरा। वावंफ अक [कृ] श्रम करना। वालहिल्ल पुं [वालखिल्य] ऋतु से उत्पन्न | वावज्ज अक [व्या + पद्] मर जाना। पुलस्त्य कन्या के साठ हजार पुत्र, जो अंगुष्ठ- | वावड पुं[दे] कुटुम्बी, किसान ।
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७२५
वावड-वासय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वावड वि [व्याप्त] व्याकुल । किसी कार्य में | वावोणय न [दे] विकीर्ण । लगा हुआ।
वाशू (मा) स्त्री [वासू] नाटक में बाला । वावड वि [व्यावृत्त] लौटाया हुआ। वास देखो वरिस = वृष । वावडय स्त्रीन [दे] विपरीत मैथुन ।
वास अक [वाश्] तियंचों का-पशु-पक्षियों वावणग वि [वामनक] बौना ।
का बोलना । आह्वान करना । वावणी स्त्री [दे] छिद्र, विवर ।
वास सक [वासय्] संस्कार डालना । सुगन्धित वावण्ण वि [व्यापन्न] विनाश-प्राप्त ।
करना। वास करवाना। वावत्ति स्त्री [व्यापत्ति विनाश, मरण ।। वास देखो वरिस = वर्ष । °त्ताण न ['त्राण] वावत्ति स्त्री [व्यापृत्ति] व्यापार ।
छत्र, छाता । °धर, हर पुं. पर्वत-विशेष । वावत्ति स्त्री [व्यावृत्ति] निवृत्ति । वास पुं. निवास । सुगन्ध । सुगन्धी द्रव्य-विशेष वावय पुं [दे] आयुक्त , गाँव का मुखिया। या चूर्ण-विशेष । द्वीन्द्रिय जन्तु की एक वावर अक [व्या+५] काम में लगना । | जाति । °घर न [गृह] । °भवण न सक. काम में लगाना ।
[भवन]शयन-गृह । रेणु पुं. सुगन्धी रज । वावल्ल देखो वावड = व्याप्त ।
हर न [°गृह] शयन-गृह । वावल्ल पुन [दे] शस्त्र विशेष ।
वास पुं [व्यास] पुराण-कर्ता एक मुनि । वावहारिअ वि [व्यावहारिक] व्यवहार से | विस्तार । सम्बन्ध रखनेवाला।
वास न [वासस्] वस्त्र । वावाअ (?) अक [अव + काश्] जगह प्राप्त | °वास देखो पास = पाश । करना।
°वास देखो पास = पार्श्व । वावाअ सक [व्या + पादय्] मार डालना, वासंग पुं [व्यासङ्ग] आसक्ति, तत्परता। विनाश करना । विनाशित ।
वासंठ । (अप) K [वसन्त] छन्द का एक वावायग वि [व्यापादक] हिंसक ।
वासंत , भेद । वावायय देखो वावायग ।
वासंत पुं [वर्षान्त] वर्षा-काल का अन्तभाग। वावार सक [व्या+पारय] काम में लगाना।
वासंतिअ वि [वासन्तिक] वसन्त-सम्बन्धी । वावार पुं [व्यापार व्यवसाय । वावि अ [वापि] अथवा । स्त्री. देखो वावी।
वासंतिम । स्त्री [वासन्तिका, न्ती] लतावावि वि [व्यापिन्] व्यापक ।
वासंती विशेष । वाविअ वि [दे] विस्तारित ।
वासंदी स्त्री [दे] कुन्द का पुष्प । वाविअ वि [वापित] प्रापित । बोया हुआ। । वासग वि [वासक] रहनेवाला। वासनावाविअ वि [व्याप्त] भरा हुआ ।
कर्ता, संस्काराधायक । शब्द करनेवाला । वावित्त वि [व्यावृत्त] व्यावृत्तिवाला, निवृत्त ।
पुं. द्वीन्द्रिय आदि जन्तु । वावित्ति स्त्री [व्यावृत्ति] व्यावर्तन, निवृत्ति ।
वासण न [दे] बरतन । वाविद्ध देखो वाइद्ध = व्यादिग्ध, व्याविद्ध । वासणा स्त्री [वासना] संस्कार । वाविर देखो वावर।
°वासणा स्त्री [दर्शन] अवलोकन । देखो वावी स्त्री [वापी] चतुष्कोण जलाशय-विशेष ।। पासणया। वावुड । (शौ) देखो वावड = व्याप्त । वासय देखो वासग। °सज्जा स्त्री. नायक की वार्वाद ।
प्रतीक्षा में सज-धज कर बैठी नायिका।
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७२६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वासर-वाहि वासर पुंन. दिवस।
। वासुदेव पुं. श्रीकृष्ण, नारायण । अर्ध-चक्रवासव पुं. इन्द्र । एक राजकुमार। केउ पुं। वर्ती । त्रिखण्ड भूमि का अधीश । [केतु] हरिवंश का राजा, जनक का पिता । वासुपुज्ज पुं [वासुपूज्य] भारतवर्ष में उत्पन्न °दत्त पुं. विजयपुर नगर का राजा । °दत्ता बारहवें जिन भगवान् । स्त्री. एक आख्यायिका । °धणु पुन [°धनुष्] | वासुली स्त्री [दे] कुन्द का फूल । इन्द्रधनुष । 'नयर न [°नगर]। °पुरी वाह सक [वाहय्] वहन कराना, चलाना। स्त्री. इन्द्र-नगरी । "सुअ पुं [°सुत] इन्द्र का वाह पुंस्त्री [व्याध] लुब्धक, बहेलिया । स्त्री. पुत्र, जयन्त ।
°ही। वासवदत्ता स्त्री. राजा चंड-प्रद्योत की पुत्री °वाह पुं. अश्व । जहाज । नौका । भारवहन । और वत्सराज उदयन की पत्नी ।
परिमाण-विशेष । आठ सौ आढ़क का एक वासवार पुं [दे] तुरग । श्वान।
मान । शाकटिक । °वाहिया स्त्री[°वाहिका] वासवाल पुंदे] श्वान ।
घुड़सवारी। वासस न [वासस्] वस्त्र ।
वाहगण पुं [दे] मन्त्री, अमात्य, प्रधान । वासा देखो वरिसा। रत्ति स्त्री. देखो | वाहड वि [दे] भूत, भरा हुआ। वरिसा-रत्त। °वास पुं. चतुर्मास में एक | वाहडिया स्त्री [दे] काँवर, बहँगी। स्थान में किया जाता निवास । °वासिय वि |
वाहण पुंन [वाहन] रथ आदि यान । जहाज, [°वार्षिक] वर्षाकाल-सम्बन्धी । हू पुं[°भू]
नौका । न. चलाना । शकट । भार लाद कर मेढक । वासाणिया स्त्री [दे. वासनिका] वनस्पति
चलाना । °साला स्त्री [°शाला] यान रखने
का घर । विशेष । वासाणी स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला ।
वाणा स्त्री [दे] ग्रीवा । वासि स्त्री. देखो वासी।
वाहणा स्त्री [उपानह] जूता । वासिक । वि [वार्षिक] वर्षाकाल-भावी ।।
वाहणिय वि [वाहनिक] वाहन-सम्बन्धी । वासिक्क,
वाहणिया स्त्री [वाहनिका] वहन कराना, वासि? न [वाशिष्ठ] गोत्र-विशेष । पुंस्त्री. चलाना ।
उसमें उत्पन्न । स्त्री. 'ट्ठा, 'ट्ठी। वाहत्तुं देखो वाहर का हेकृ. । वासिट्ठिया स्त्री [वाशिष्ठिका] एक जैन मुनि- | वाहय वि [वाहक] चलानेवाला । शाखा।
वाहय वि [व्याहत] व्याघात-प्राप्त । वासित्तु वि [वर्षितृ] बरसनेवाला । | वाहर सक [व्या + ह] बोलना, कहना । वासिद । वि [वासित] निवासित । रखा | आह्वान करना। वासिय ) हुआ (अन्न आदि)बासी । सुगन्धित | वाहलार वि [दे. वात्सल्यकार] स्नेही । किया हुआ । भावित, संस्कारित ।।
सगा। वासी स्त्री. बसूला, बढ़ई का एक अस्त्र । मुह | वाहलिया । स्त्री [दे] क्षुद्र नदी, छोटा पुं [°मुख] बसूले के तुल्य मुंहवाला कीट, वाहली , जल-प्रवाह । द्वीन्द्रिय जन्तु ।
वाहा स्त्री [दे] वालुका । वासुइ । पुं [वासुकि] एक महा-नाग। वाहाया स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष ।
वाहि देखो वाहर।
वासुगि।
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वाहि-विअट्टि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७२७ वाहि पुंस्त्री [व्याधि] रोग ।
विभइ स्त्री [विगति] विगम, विनाश । वाहिअ देखो वाहित्त = व्याहृत ।
विअइ देखो विगइ = विकृति । वाहिअ वि [व्याधित] रोगी, बीमार । । | विअइत्ता विअत्त = वि + वर्त्तय का संकृ. । वाहिणी स्त्री [वाहिनी] नदी। सेना, जिसमें | विअइल्ल पुं [विचकिल] पुष्प-वृक्ष-विशेष । ८१ हाथी, ८१ रथ, २४३ घोड़े और ४०५ | न. पुष्प-विशेष । वि. विकसित । प्यादे हों वह सैन्य-विशेष । °णाह पुं | विअओलिअ वि [दे] मलिन । [°नाथ] सेना-पति । °स पुं[श] वही। विअंग सक [व्यङ्गय] अंग से हीन करनावाहित्त वि [व्याहृत] उक्त । कथित । आहूत ।। हाथ, कान आदि को काटना । वाहित्ति स्त्री [व्याहृति] उक्ति, आह्वान । विअंगिअ वि [दे] निन्दित । वाहिप्प देखो वाहर का कर्म. । विअंजण देखो वंजण = व्यञ्जन । वाहिम देखो वाह = वाहय् का कृ.। विअंजिअ वि [व्यजित] व्यक्त किया हुआ । वाहियाली स्त्री [वाह्याली] अश्व खेलने की विअंटूत वि [दे] अवरोपित । मुक्त । जगह ।
विअंति स्त्री [व्यन्ति] अन्त क्रिया । °कारय वाहिल्ल वि [व्याधिमत्] रोगी ।
वि [°कारक] अन्त-क्रिया करनेवाला, कर्मों वाहुडिअ वि [दे] देखो बाहुडिअ ।
का अन्त करनेवाला । वाहुय देखो वाहित्त = व्याहृत । विअंभ अक [वि + जृम्भ] उत्पन्न होना । वि देखो अवि = अपि ।
विकसना । जंभाई खाना । प्रकाश करना। वि अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-विरोध, |
विअंभ वि [विदम्भ] निष्कपट, सत्य । प्रतिपक्षता । विशेष । विविधता । खराबी ।
विसण वि [विवसन] वस्त्र-रहित । अभाव । महत्त्व । भिन्नता । ऊँचाई । पाद
| विअंसय पुं [दे] व्याध, बहेलिया । पूर्ति । पुं. पक्षी । वि उद्दीपक । ज्ञापक।।
विअक्क सक [वि + तर्कय] विचारना, विमर्श वि देखो बि-द्वि ।
करना। वि वि [विद्] जानकार। °उच्छा स्त्री
विअक्ख सक [वि+ ईक्ष् ] देखना ।
विअक्खण वि [विचक्षण] विद्वान् । पण्डित । [°जुगुप्सा] विद्वान् या साधु की निन्दा । वि॰ स्त्री [विष्] पुरीष, विष्ठा ।
विअग्ग वि [व्यग्र] व्याकुल । विअ सक [विद्] जानना।
विअग्ध देखो वग्ध = व्याघ्र । विअ न [वियत्] आकाश । 'चर वि. आकाश
विअग्घ पुं [वैयाघ्र व्याघ्र-शिशु । विहारी । °च्चरपुर न. एक विद्याधर-नगर ।
विअज्जास देखो विवज्जास । विअ वि [विद्] जानकार । विज्ञान ।
विअट्ट सक [विसं+वद्] अप्रमाणित करना, विअ देखो इव ।
असत्य साबित करना। विअ पुं [वृक] श्वापद-जन्तु-विशेष, भेड़िया। | विअट्ट अक [वि+वृत्] विचरना । विअ पुं [व्यय] विगम, विनाश। विअट्ट वि [विवृत्त] निवृत्त, व्यावृत्त । भोइ विअ वि [विगत] विनष्ट, मृत । °च्चा स्त्री | वि [°भोजिन्] प्रतिदिन भोजन करनेवाला । [ ] मृत आत्मा का शरीर ।
विअट्ट पुं [विवर्त] प्रपञ्च । विअ देखो अविअ = अपिच ।
विअट्ट । वि [विसंवदित] संवाद-रहित, विअइ वि [विजयिन्] जो जीत गया हो। । विअट्टिअ ) अप्रमाणित ।
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७२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विअट्ठ-विअलिअ विअट्ट वि [विकृष्ट] दूर-स्थित ।
विवेकी । वृद्ध । पुं. महावीर का चतुर्थ गणविअड सक [वि+कटय] प्रकट करना। घर । गीतार्थ मुनि । किच्च न [कृत्य] आलोचना करना।
गीतार्थ का अनुष्ठान । विअड वि [व्यर्द] लज्जित, लज्जा-युक्त। | विअत्त वि [विदत्त] विशेष रूप से दत्त । विअड वि [विवृत] खुला हुआ । °गिह न | विअत्त पुं [विवर्त] एक ज्योतिष्क महाग्रह । [गृह]चारों तरफ खुला घर, स्थान-मण्डपिका। | विअद्द वि [वितर्द] हिंसक ।
जाण न [प्यान] ऊपर से खुला यान । विअद्ध देखो विअड्ढ = विदग्ध । विअड न [दे] जीव-रहित पानी। मद्य । विअन्नु देखो विन्नु । निर्दोष आहार ।
विअप्प सक [वि + कल्पय] विचार करना । विअड वि [विकृत] विकार प्राप्त ।
संशय करना । विअड वि [विकट] प्रकट । विशाल, विस्तीर्ण । विअप्प पुं [विकल्प] विविध तरह की
सुन्दर । प्रचुर । पुं. एक ज्योतिष्क महा- कल्पना । वितर्क, विचार, संशय । भेद । देखो ग्रह । एक विद्याधर-राजा। भोइ वि | विगप्प = विकल्प। भोजिना दिन में ही भोजन करनेवाला। विअब्भ देखो विदब्भ ।
वइ, °ावाइ पुं. [°Tपातिन्] पर्वत-विशेष । । विअम्ह देखो विअंभ - वि + जृम्भ् । विअड अक [विकटय] विस्तीर्ण होना। विअय देखो विजय = विजय । विअडण स्त्रीन [विकटन] अतिचारों की | विअय वि [वितत] विशाल । प्रसारित । आलोचना । स्वाभिप्राय-निवेदन ।
पक्खि पुं [पक्षिन्] मनुष्य-लोक से बाहर विअडी स्त्री [वितटी] खराब किनारा। की एक पक्षी जाति । देखो वितत = वितत । जंगल ।
विअर अक [वि + चर्] विहरना । विअड्डि स्त्री (विदि] हवन-स्थान । चौतरा । विअर सक [वि +तृ] अर्पण करना । विअड्ढ वि [विदग्ध] निपुण । पण्डित । . विअर पुं[दे] नदी आदि जलाशय सूख जाने विअड्ढक वि [विकर्षक खींचनेवाला। पर पानी निकालने के लिए उसमें किया विअड्ढा स्त्री [विदग्धा] नायिका-भेद ।। जाता गर्त । खड्ढा। वियड्ढिम पुंस्त्री [विदग्धता] निपुणता ।।
विअल सक [भुज्] मोड़ना, वक्र करना। पाण्डित्य ।
विअल अक [वि+गल] गल जाना। क्षीण विअण पुंन [व्यजन] बेना, पंखा।
होना । टपकना। विअण वि [विजन] निर्जन ।
विअल अक [ओजय] मजबूत होना । विअणा स्त्री [वेदना] ज्ञान । सुख-दुःख का | विअल वि [विकल] हीन, असंपूर्ण । रहित, अनुभव । विवाह । पीड़ा । संताप ।
वन्ध्य । विह्वल । देखो विगल % विकल । विअणिय वि [वितनित, वितत] विस्तीर्ण । | विअल सक [विकलय] विकल बनाना । विअणिय वि [विगणित] तिरस्कृत । विअल देखो विअड - विकट । विअण्ण वि [विपन्न] मृत ।
विअल देखो विदल = द्विदल । बिअण्ह वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित । विअलंबल वि [दे] दीर्घ । विअत्त अक [वि + वर्त्तय] घूम कर जाना। विअलिअ वि [विगलित] माश-प्राप्त । पतित, विअत्त वि [व्यक्त ] परिस्फुट, स्पष्ट । अमुग्ध, । टपक कर गिरा हुआ ।
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विअल्ल-विआह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७२९ विअल्ल अक [वि+चल] क्षुब्ध होना। विआरिल्ल) वि [विकारवत्] विकारवाला, अव्यवस्थित होना।
विआरुल्ल , विकारयुक्त । स्त्री. °ल्ला। विअस अक [वि + कस्] खिलना। विआल देखो विआल = वि + चारय् । विअसावय वि [विकासक] विकसित करने- | विआल देखो विआर = वि + दारय । वाला।
विआल पुं [विकाल] सन्ध्या । °चारि वि विअह देखो विजह = वि+हा ।
[°चारिन्] विकाल में घूमनेवाला । विआउआ स्त्री [विपादिका] बिवाई-रोग । विआल पुं[दे] चोर, तस्कर । विआउरी स्त्री [विजनयित्री] ब्यानेवाली। विआल वि [व्याल] । देखो वाल % व्याल । विआगर देखो वागर।
विआल देखो विआर, विचाल । विआघाय देखो वाघाय।
विआलग देखो विआलय = विकालक । विआण सक [वि+ज्ञा ] जानना, मालूम विआलणा देखो विआरणा = विचारणा । करना।
विआलय वि [विदारक] विदारण-कर्ता। विआण न [विज्ञान] । देखो विन्नाण। विआलय पुं [विकालक ] एक महाग्रह, विआण न [वितान] विस्तार । वृत्ति-विशेष ।
___ ज्योतिष्क देव-विशेष । अवसर । यज्ञ । पुन. चन्द्रातप, आच्छादन- विआलिउ न [दे] सायंकाल का भोजन । विशेष।
विआलुअ वि [दे] असहिष्णु । विआणग वि [विज्ञायक] जानकार, विज्ञ ।
विआव सक [वि + आप् ] व्याप्त करना । विआय सक [वि+जनय] जन्म देना। विआवड देखो वावड = व्याप्त । विआर सक [वि+कारय] विकृत करना। विआवत्त पुं [व्यावर्त] घोष और महाघोष विआर सक [वि+ चारय] विचारना, विमर्श
इन्द्रों के दक्षिण दिशा के लोकपाल । ऋजुकरना।
वालिका नदी के तीर पर स्थित एक प्राचीन विआर सक [वि + दारय] फाड़ना ।
चैत्य । पुन. एक देव-विमान । विआर पुं[विकार] विकृत, प्रकृतिभिन्न ।। विआवाय पुं [व्यापात] भ्रंश, नाश ।
विआविअ देखो वावढ = व्याप्त । विआर पुं [विचार] तत्त्व-निर्णय । तत्त्वनिर्णय के अनुकूल शब्द-रचना । ख्याल ।
विआस पुं [विकाश] मुंह आदि की फाड़।
खुलापन । अवकाश । दिशा-फरागत के लिए बाहर जाना। गमन |
विआस पुं [विकास] प्रफुल्लता। की अनुकूलता । विचरण । अवकाश । विमर्श,
विआस देखो वास = व्यास । मीमांसा । मत । °धवल पुं. एक राजा । भूमि स्त्री. दिशा-फरागत का स्थान । ..
विआसइत्त) (शौ) वि [विकासयितृक] विधारण देखो वागरण।
विआसग । विकसित करनेवाला। वि विआरण वि [वैदारण] विदारण-सम्बन्धी ।
[विकासक]। विआरणा स्त्री [वितारणा] ठगाई।
विआसर । वि [विकस्वर] विकसनेवाला, विआरय वि [विचारक] विचार करनेवाला। | विआसिल्ल ) प्रफुल्ल । वि [विकासिन्] । विआरिअ वि [वितारित] दिया गया । ठगा | विआह सक [व्या + ख्या] व्याख्या करना। हुआ, विप्रतारित।
कहना । वर्णन करना। विआरिआ स्त्री [दे] पूर्वाह्न का भोजन। विआह पुं [विवाह] शादी। विविध प्रवाह ।
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७३०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विआह-विउण विशिष्ट प्रवाह । वि. विशिष्ट संतानवाला। हुआ। °पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंग- विउअ वि [वियुत] वियुक्त, रहित । ग्रन्थ ।
विउअ वि [विवृत] विस्तृत । व्याख्यात । विआह वि [विबाध] बाध-रहित । °पण्णत्ति विउअ (अप) देखो विओअ = वियोग ।
स्त्री [प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । विउंचिआ स्त्री [दे. विचर्चिका] रोग-विशेष, विआह स्त्री [व्याख्या विशद् रूप से अर्थ पामा रोग का एक भेद ।
का प्रतिपादन । वृत्ति, विवरण । °पण्णत्ति विउंज सक [वि+युज् ] विशेष रूप से स्त्री [प्रज्ञप्ति] पांचवां जैन अंग-ग्रन्थ । ।
जोड़ना। विइ स्त्री [वृति] रज्जु-बन्धन । देखो वइ =
विउक्कंति स्त्री [व्युत्क्रान्ति] उत्पत्ति ।
विउक्वंति स्त्री [व्युत्क्रान्ति, व्यवक्रान्ति] वृति । विइअ वि [विदित] ज्ञात ।
मरण । विइइन्न देखो विइकिण्ण ।
| विउक्कम सक [व्युत् + क्रम्] परित्याग करना । विइंचिअ वि [विविक्त] विनाशित ।
उल्लंघन करना । अक. च्युत होना, नष्ट होना, विइंत सक [वि + कृत् ] काटना, छेदना ।
मरना । उत्पन्न होना। विइंत देखो विचित।
विउक्कस सक [व्युत्+कर्षय ] गर्व करना, विइकिण्ण वि [व्यतिकीर्ण] व्याप्त ।
बड़ाई करना। विइक्वंत वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत ।
विउच्छा देखो वि-उच्छा = विद्-जुगुप्सा । विइगिंछा । देखो वितिगिछा । विउच्छेअ पुं [व्यवच्छेद] विनाश । विइगिच्छा।
विउज्जम अक [व्युद् + यम्] विशेष उद्यम विइगिट्ट वि [व्यतिकृष्ट] दुर-स्थित, विप्रकृष्ट ।
करना। विइगिण्ण देखो विइकिण्ण।।
विउज्झ अक [वि+बुध् ] जागना । विइज्जत देखो वीअ = वीजय का कवकृ. ।
विउट्ट सक [वि + कुट्टय ] विच्छेद करना, विइज्जंत देखो विकिर का कवकृ. ।
विनाश करना। विइण्ण वि [विकीर्ण] बिखरा हआ । विक्षिप्त । विउट्ट सक [ वि + त्रोटय् ] तोड़ डालना। देखो विकिण्ण ।
विउट्ट अक [वि+वृत्] उत्पन्न होना । निवृत्त विइण्ण वि [वितीर्ण] दिया हुआ, अर्पित ।
होना। विइण्ह वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित, निःस्पृह ।
| विउट्ट सक [वि+वर्तय ] विच्छेद करना । विइत्त देखो विचित्त ।
अक. घूमकर जाना। विइत्त देखो विवित्त।
विउट्ट देखो विअट्ट - विवृत्त । विइत्ता विअ = विद् का संकृ.।
विउट्टण न [विकुट्टन] विच्छेद । आलोचना, विइत्ताणं
अतिचार-विच्छेद। विइत्तिद (शौ) देखो विचित्तिय । विउट्टणा स्त्री [विकुट्टना] विविध कुट्टन । विइत्तु देखो विअ = विद् का संकृ. । पीड़ा, संताप । विइमिस्स वि [व्यतिमिश्र] मिश्रित । विउट्रिअ वि [व्युत्थित] विरोधी बना हुआ। विउ वि [विद् , विद्वस् ] विद्वान्, पण्डित । विउड सक [वि + नाशय ] विनाश करमा । °प्पकड स्त्री [प्रकृत] विद्वान् द्वारा किया ! विउण वि [विगुण] गुण-रहित ।
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विउत्त-विएस संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७३१ विउत्त वि [वियुक्त] विरहित, वियोग-प्राप्त । विउस सक [ व्युत् + सृज् ] फेंकना। विउत्ता देखो विअत्त = वि + वर्तय का संकृ । विउस वि [विद्वस] विज्ञ । विउत्थिअ देखो विउट्ठिअ ।
| विउसग्ग देखो विओसग्ग । विउद देखो विउअ = विवृत ।
विउसमण न व्युपशमन, व्यवशमन विउद्ध वि [विबुद्ध] जागृत । विकसित । उपशम, उपक्षय । सुरत का अवसान । वि. विउप्पकड वि [व्युत्प्रकट] अति प्रकट । विनाशक । वि उब्भाअ अक [व्युद् + भ्राज् ] शोभना, विउसमणया स्त्री [व्यवशमना] उपशम, चमकना।
क्रोध-परित्याग। विउब्भाअ [ व्युद् + भ्राजय ] शोभित
विउसमिय देखो विओसमिय ।
विउसरण न [व्युत्सर्जन] परित्याग । करना। विउम वि [ विद्वस् ] विद्वान् ।
विउसरणया स्त्री [व्युत्सर्जना] । विउर देखो विदुर।
विउसव देखो विओसव। विउल वि [विपुल] प्रभूत, प्रचुर । विस्तीर्ण ।
विउसवण देखो विउसमण । उत्तम । अगाध, गम्भीर । पुं. राजगिर के
विउसविय देखो विओसविय।। समीप का एक पर्वत । °जस पुं [यशस् ]
विउसिज्जा देखो विओसिज्जा।
विउसिरणया देखो विउसरणया । एक जिनदेव । °मइ स्त्री [°मति] मनःपर्यव ज्ञान का एक भेद । वि. उक्त ज्ञानवाला ।
विउस्स सक [वि + उश्] विशेष बोलना । °अरी स्त्री [°करी] विद्या-विशेष । देखो
विउस्स अक [विद्वस्य् ] विद्वान् की तरह विपुल।
आचरण करना। विउव देखो विउव्व = वैक्रिय ।
विउस्सग्ग देखो विओसग्ग। विउवसिय देखो विओसिय = व्यवशमित ।
विउस्सित्त वि [व्युत्सित, व्युत्सिक्त] अभिविउवाय पुं [व्युत्पात] हिंसा, प्राणि-वध ।
निविष्ट, कदाग्रह-युक्त। विउव्व सक [वि + कृ,वि + कुर्व ] बनाना
| विउस्सिय वि [व्युषित] विशेष रूप से रहा दिव्य सामर्थ्य से उत्पन्न करना। अलंकृत
हुआ। करना।
विउस्सिय वि [व्युच्छित] विविध तरह से विउव्व न [वैक्रिय] अनेक स्वरूपों और
आश्रित । क्रियाओं को करने में समर्थ शरीर-विशेष ।
| विउह वि [विबुध] प्रेरणा करना । वैक्रिय शरीर की प्राप्ति का कारण-भूत
| विउह वि [विबुध] पण्डित । पुं. देव । देखो कर्म-विशेष । वि. वैक्रिय शरीर से सम्बन्ध
विबुह। रखनेवाला ।
विऊरिअ वि [दे] नष्ट । विउव्वणया) स्त्री [विक्रिया, विकूर्वणा] विऊसिर सक व्युत् + सृज्] परित्याग विउव्वणा ) शक्ति-विशेष से किया जाता करना।
वस्तु-निर्माण । वैक्रिय-करण की शक्ति। विऊह पुं [व्यूह रचना-विशेष । विउव्वाढ वि [दे] विस्तीर्ण । दुःख-रहित । विएअ वि [वितेजस्] महान् प्रकाश । विउव्विा वि [वैक्रियिक] वैक्रिय शरीर से विएऊण अ [दे] चुनकर । सम्बन्ध रखनेवाला । देखो वेउन्वि। विएस पुं [विदेश] परदेश । खराब गांव ।
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बन्धन स्थान ।
विओअ पुं [वियोग ] जुदाई, बिछोह । वियोग देखो विओअ ।
विओज सक [वि + योजय् ] अलग करना । विओजय वि [वियोजक ] वियोग-कारक । विओदर पुं [वृकोदर] भीमसेन, एक पाण्डव । विओरमण न [ व्युपरमण ] विराधना | विनाश |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विओल वि [दे] उद्वेग-युक्त ।
विओवाय पुं [ व्यवपात] भ्रंश नाश । विओसग्ग पुं [ व्युत्सर्ग] परित्याग । तपविशेष, निरीहपन से शरीर आदि का त्याग । विओसमण देखो विउसमण ।
हुआ ।
विओसरणया देखो विउसरणया ।
विओसव सक [ व्यव + शमय् ] उपशान्त करना | ठण्डा करना, दबा देना । विओसिज्जा अ [ व्युत्सृज्य ] परित्याग कर । विओसिय देखो विओसमिय ।
विओसिय वि [ व्यवसित] समाप्त किया हुआ । विओसिय वि[विकोशित ] कोश-रहित,
निरावरण |
विओसिर देखो विऊसिर ।
विओह पुं [विबोध ] जागरण, जागृति । विख न [ दे] वाद्य - विशेष । विचिणि वि [ ] विदारित । धारा । विचुअ पुं [वृश्चिक ] जन्तु - विशेष, बिच्छू । विछ अक [वि + घट् ] अलग होना । देखो विचुअ ।
विछिअ }
विछुअ
विजण देखो वंजण ।
विजण देखो विअण व्यजन ।
विझ पुं [विन्ध्य ] विन्ध्याचल पर्वत । व्याध, बहेलिया । एक जैन मुनि । एक श्रेष्ठि-पुत्र | विंट सक [वेष्टय् ] लपेटना ।
विओअ - विकत्थ
}
विट न [वृन्त ] फल- पत्र आदि का बन्धन । विटल न [दे] वशीकरण-विद्या । विलिअ निमित्त आदि का प्रयोग । विलिआ स्त्री [दे] पोटली । विटिया स्त्री [दे] पोटली । मुद्रिका । वितर पुं [ व्यन्तर] बिच्छू आदि दुष्ट जन्तु ।
देव-जाति ।
विदावण पुंन [वृन्दावन] मथुरा का एक वन । विओसमिय वि [ व्यवशमित ] उपशान्त किया विदुरिल्ल वि [दे] उज्ज्वल । मंजुल घोष
वाला । म्लान | विस्तृत ।
विंद्र देखो वंद्र | विद्रावण देखो विदावण ।
3
विती स्त्री [वृन्ताकी बैंगन का गाछ । विंद सक [विद्] जानना । प्राप्त करना । विद देखो वंद = वृन्द ।
विदारग विदारय
देखो वंदारय । 'वर पुं० इन्द्र ।
विंध सक [व्यध्] बोंधना, छेदना, बेधना । विभय देखो विम्य = विस्मय | विभर देखो विम्हर | विभल वि[विहवल ] व्याकुल । विभिअ वि [ विस्मित ] आश्चर्य चकित । विभिr देखो विभिअ । विसदि (शौ) स्त्री [विंशति] बीस । विकंथ सक [वि + कत्थ्] प्रशंसा करना । विकंप अक [वि + कम्प्] हिल जाना ।
विकंप सक | वि + कम्पय् ] हिलाना, चलाना | छोड़ना । अपने मंडल से बाहर निकलना । भीतर प्रवेश करना ।
विकच वि [विकच ] विकसित ।
विकट्ट सक [वि + कृत् ] काटना । विकट्ठ देखो विट्ठ ।
विकड्ढ सक [ वि + कृष् ] खींचना । विकत देखो विकट्ट |
विकत्तु वि [ विकरितृ] विक्षेपक, विनाशक । विकत्थ देखो विकंथ ।
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विकप्प-विक्किय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७३३ विकप्प देखो विअप्प।
विकूड सक [वि + कूटय] प्रतिघात करना । विकप्पण न [विकल्पन] छेदना, काटना। विकूण सक [ वि+कूणय ] घृणा से मुंह विकप्पिय देखो विगप्पिअ ।
मोड़ना । विकय देखो विगय = विकृत ।
विकोअ ' [विकोच] विस्तार । विकय देखो विकच ।
विकोव देखो विगोव। विकर सक [वि+कृ] विकार पाना । |विकोवण न [विकोपन] विकास, प्रसार । विकरण न [विकरण] विक्षेपण, विनाश । विकोवणया स्त्री [विकोपना] विपाक । विकराल देखो विगराल।
विकोविय वि [विकोविद] कुशल । विकल देखो विअल = विकल ।देखो विगल = विकोस वि [विकोश] कोश-रहित । विकल ।
विकोस । अक [विकोशय] कोश-रहित विकस देखो विअस।
विकोसाय होना, विकसना । नंगा होना। विकहा देखो विगहा।
फैलना। विकारिण वि [विकारिन्] विकार-युक्त। विक्क सक [वि+क्री] बेचना । विकासर देखो विआसर।
विक्कम पुंविक्रय] बेचना। विकिइ देखो विगइ = विकृति ।
विक्कम देखो विक्कव। विकिंचण देखो विगिचण ।
विक्कइ वि [विक्रयिन्] बेचनेवाला । विकिंचणया देखो विगिचणया ।
विक्कंत वि [विक्रान्त] पराक्रमी। पुं. पहली विकिट्ट वि [विकृष्ट] उत्कृष्ट । न. लगातार
नरक-भूमि का बारहवाँ नरकेन्द्रक । चार दिनों का उपवास । देखो विगिट्ठ ।।
विक्कंति स्त्री [विक्रान्ति] विक्रम, पराक्रम । विकिण सक [वि+क्री] बेचना ।
विक्कंभ देखो विक्खंभ = विष्कम्भ । विकिण्ण वि [विकीर्ण] व्याप्त, भरा हुआ। विक्कणण न [वक्रयण] बेचना ।
आकृष्ट । देखो विइण्ण, विकीर्ण । विक्कम अक [वि+क्रम्] पराक्रम करना । विकिदि देखो विगइ = विकृति ।
विक्कम पुं [विक्रम] पराक्रम । सामर्थ्य । एक विकिय देखो विगिय ।
राजा। राजा विक्रमादित्य । °जस पुं विकिर अक [वि + कृ] बिखरना । सक. [ यशस्] एक राजा । °पुर न. एक नगर । फेंकना । हिलाना।
राय पुं [°राज] एक राजा। °सेण पुं विकिरण देखो विकरण ।
[°सेन] एक राज-कुमार । इच, इत्त पुं विकिरिया स्त्री [विक्रिया] विविध क्रिया । [°ादित्य] एक राजा ।।
विशिष्ट क्रिया । देखो विक्किरिया। विक्कमण पुं[दे] चतुर चालवाला घोड़ा । विकीण देखो विकिण।
विक्कव वि [विक्लव] व्याकुल । विकुच्छिअ वि [विकुत्सित] खराब, दुष्ट ।। विक्कि देखो विक्कइ। विकुन्ज सक [विकुब्जय ] कुब्ज करना । विक्किा वि [दे] सुधारा हुआ। दबाना।
विक्कित वि [विकृत्त] छिन्न, काटा हुआ। विकुप्प अक [वि + कुप्] कोप करना। विक्किट्ठ देखो विकिट्ठ। विकुव्व देखो विउव्व = वि + फ, कुर्ब । विक्किण सक [वि + क्री] बेचना । विकुस पुं [विकुश] बल्बज आवि तृण । विक्किय देखो विउव्व = वैक्रिय ।
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७३४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विक्किर-विगय विक्किर सक [वि+कृ] बिखेरना, छितराना ।। विलंब । सैन्य ।। विक्किरिया स्त्री [विक्रिया] विकार । देखो विक्खेवणी स्त्री [विक्षेपणी] कथा का एक विकिरिया।
भेद । विक्कीय देखो विक्किय = विक्रीत । विक्खेविया स्त्री [विक्षेपिका ] व्याक्षेप । विक्के सक [वि + क्री] बेचना ।
विक्खोड सक [दे] निन्दा करना । विक्केणुअ वि [दे] बेचने-योग्य ।
विखंडिय वि [विखण्डित] खण्डितकृत । विक्कोण पुं [विकोण] घृणा से मुंह सिकुड़ना। विग देखो विअ = वृक । विक्कोस अक [वि + क्रुश् चिल्लाना। विगइ स्त्री [विकृति] विकार-जनक घृत आदि विक्खंभ पुं [दे] जगह । बीच का भाग। वस्तु । विकार । विवर, छिद्र ।
विगइ स्त्री [विगति] विनाश । विक्खंभ पुं [विष्कम्भ] विस्तार । चौड़ाई। विगइंगाल वि [विगताङ्गार] राग-रहित । बाहुल्य, स्थूलता, मोटाई । प्रतिबन्ध । नाटक | विगइच्छ वि [विगतेच्छ] निःस्पृह । का एक अंग । द्वार के दोनों तरफ के बीच विगंच देखो विगिच । का अंतर ।
विगच्छ अक [वि + गम्] नष्ट होना । विक्खंभिअ वि [विष्कम्भित] निरुद्ध, रोका | विगज्झ देखो विगह = वि + ग्रह । हुआ।
विगड देखो विअड = विकट । विक्खण न [दे] कार्य ।
विगड देखो विअड = विवृत । विक्खय वि [विक्षत] व्रण-युक्त ।
विगण सक [वि+गणय] निन्दा करना । विक्खर सक [वि+क] छितराना । फैलाना। घृणा करना । इधर-उधर फेंकना।
विगत्त सक [वि + कृत्] काटना, छेदना । विक्खवण न [विक्षपण] विनाश । वि.
विगत्त वि [विकृत्त] काटा हुआ, छिन्न । विनाशक ।
विगत्तग वि [विकर्तक] काटने वाला । विक्खाइ स्त्री [विख्याति प्रसिद्धि ।
विगत्थय वि [विकत्थक] प्रशंसा करनेवाला । विक्खाय वि [विख्यात] प्रसिद्ध ।
आत्मश्लाघा करनेवाला । विक्खास वि [दे] विरूप । खराब ।
विगप्प देखो विअप्प = वि + कल्पम् । विक्खिण्ण वि [दे] आयत । लम्बा । अवतीर्ण। विगप्प पुं [विकल्प] एक पक्ष में प्राप्ति । न. जघन ।
देखो विअप्प - विकल्प । विक्खिण्ण देखो विकिण्ण ।
विगप्पिअवि [विकल्पित] उत्प्रेक्षित,कल्पित । विक्खित्त वि [विक्षिप्त] फेंका हुआ । भ्रान्त,
चिन्तित, विचारित । काटा हुआ, छिन्न । पागल।
विगम पुं. विनाश । विक्खिर देखो विक्खर ।
विगय वि [विकृत] विकार-प्राप्त । विक्खिव सक [वि + क्षिप्] दूर करना। विगय वि. [विगत] नाश-प्राप्त । पुं. एक प्रेरणा । फेंकना।
नरक-स्थान । 'धूम वि. द्वेष-रहित । °सोग विक्खेव पुं [विक्षेप] क्षोभ । उचाट, ग्लानि । पुं [°शोक ] एक महा-ग्रह । ज्योतिष्क ऊँचा फेंकना। फेंकना। शृंगार-विशेष । देव-विशेष । देखो वीअ-सोग। °सोगा स्त्री अवज्ञा से किया हुआ मण्डन । चित्त-भ्रम। [°शोका] विजय-विशेष की एक नगरी।
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७३५
विगरण-विघत्थ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विगरण न [विकरण] परिष्ठापन, परित्याग । | विगिला ।अक [वि + ग्लै] खिन्न होना । विगरह सक [वि + गर्ह ] निन्दा करना। विगिलाअ । विगराल वि [विकराल] भीषण । विगुण वि. गुण-रहित । प्रतिकूल । विगल अक [वि + गल] टपकना । चूना । | विगुत्त वि [विगुप्त] तिरस्कृप्त, अवधीरित । विगल पुं [विकल] विकलेन्द्रिय-दो, तीन या | जो खुला पड़ गया हो वह । चार ज्ञानेन्द्रियवाला जन्तु । देखो विअल = | विगुप्प' देखो विगोव। . विकल । देस पुं [°देश] नय-वाक्य । विगुव्व देखो विउव्व - विकुर्व । विगलिंदिय पुं [विकलेन्द्रिय] दो, तीन या | विगोइय वि [विगोपित] जिसका दोष प्रकट चार इन्द्रियवाला जन्तु ।
किया गया हो वह । विगस अक [वि + कस्] खिलना, फूलना। विगोव सक [ वि + गोपय् ] प्रकाशित विगह सक [वि+ग्रह ] लड़ाई करना । वर्ग- | करना । तिरस्कार करना । फजीहत करना। मूल निकालना । समास आदि का समानार्थक विगोवण न [विकोपन] विकास । वाक्य बनाना।
विग्गह पं [विग्रह] वक्रता। शरीर । युद्ध । विगह देखो विग्गह।
समास आदि के समान अर्थवाला कक्य । विगहा स्त्री [विकथा] शास्त्र-विरुद्ध वार्ता। विभाग । आकृति । गइ स्त्री [गति] गति, स्त्री आदि की अनुपयोगी बात।
वक्र गति । विगाढ वि. विशेष गाढ़ । चारों ओर से विग्गहिय वि [वैग्रहिक] शरीर के अनुरूप । व्याप्त ।
विग्गहीअ वि [विग्रहिक] युद्ध-प्रिय । विगाण न [विगान] । लोकापवाद। विरोध ।। विग्गाहा (अप) स्त्री [विगाथा] छन्द-विशेष । विगार पुं [विकार] विकृति ।
विग्गुत्त वि [दे] व्याकुल किया हुआ । विगाल देखो विआल = विकाल । विरगुत्त देखो विगत्त। विगालिय वि [विगालित] विलम्बित, प्रती- | विग्गोव देखो विगोव । क्षित ।
विग्गोव पुं [दे] आकुलता। विगाह अक [वि + गाह ] अवगाहन करना। | विग्घ पुन [विघ्न] अन्तराय । प्रतिबन्ध । प्रवेश करना।
आत्मा के वीर्य, दान आदि शक्तियों विगिंच सक [वि+विच्] पृथक् करना । ___ का घातक कर्म । °कर वि. प्रतिबन्धकर्ता । परित्याग करना । विनाश करना ।
°ह वि [°घ] विन-नाशक । वह वि. विगिचण । न [विवेचन ] परिष्ठापन,
विघ्नवाला। विगिचणया परित्याग । स्त्री [विवेचना]
विग्घर वि [विगृह] गृहरहित । निर्जरा, विनाश ।
विग्घुटु वि [विघुष्ट] चिल्लाया हुआ। देखो विगिच्छा स्त्री [विचिकित्सा] संदेह, बहम । विगिट्ट देखो विकिट्ठ । °खमग पुं [क्षपक]
विघट्ट सक [वि + घट्टय] वियुक्त करना । तपस्वी साधु । भत्तिय वि [°भक्तिक]
विनाश करना। लगातार चार या उससे अधिक दिनों का
विघड देखो विहड = वि + घट् । उपवास करनेवाला।
विघत्थ वि [विघस्त, विग्रस्त] विशेष रूप विगिय देखो विगय = विकृत ।
| से भक्षित । व्याप्त ।
विघुट्ठ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विघर-विच्छिद विघर देखो विग्घर ।
__ टुकड़ा-टुकड़ा करना। विघाय पुं[विघात] विनाश ।
विचेयण वि [विचेतन] चैतन्य-रहित । विधायग वि [विघातक] विनाशकर्ता। विचेल वि. वस्त्र-वर्जित । विघुटु न [विघुष्ट] विरूप आवाज करना । विच्च सक [वि + अय्] व्यय करना। देखो देखो विग्घुट्ट।
विव्व । विघुम्म अक [वि + घूर्णय ] डोलना । विच्च पुंन [दे] व्यूत, बुनने की क्रिया। विचक्खु वि [विचक्षुष्क] चक्षु-रहित । विच्च न [दे. वमन्] बीच । मार्ग । विचच्चिया स्त्री [विचिका] रोग-विशेष । विच्च अक [दे] समीप में आना । पामा ।
विच्चवण न [विच्यवन] भ्रंश, विनाश । विचलिर वि विचलित] चलायमान होने- विच्चामेलिय वि [व्यत्यानेडित] भिन्न-भिन्न वाला।
अंशों से मिश्रित । तोड़ कर साँधा हुआ। विचल्लिय वि [विचलित] चंचल बना हुआ। विच्चाय पुं [वित्याग] परित्याग । विचार देखो विआर : वि + चारय । विच्चि स्त्री [वीचि] तरंग। विचारग वि [विचारक] विचार-कर्ता ।। विच्चु । देखो विचुअ। विचाल न. अन्तराल ।
विच्चअ , विचिअ वि [विचित] चुना हुआ। विच्चुइ स्त्री [विच्युति] भ्रंश, विनाश । विचित सक [वि +चिन्तय] विचार करना । | विच्चोअय न [दे] उपधान, मोसीसा । विचिक्की स्त्री [दे] वाद्य-विशेष। विच्छ देखो विअ = विद् । विचिगिच्छा स्त्री [विचिकित्सा संशय, धर्म- | विच्छड्ड सक [वि + छर्दय] परित्याग करना । कार्य के फल की तरफ संदेह ।
फेंकना । आच्छादित करना । विचिट्टिअ वि [विचेष्टित] जिसकी कोशिश | विच्छड्ड पुं [विच्छर्द] वैभव । विस्तार ।
की गई हो । न. चेष्टा, प्रयत्न । विच्छड्डु पुं [द] निवह, समूह । ठाटबाट, विचिण । सफ [वि + चि] खोज करना। धूमधाम । विचिण्ण , फूल आदि चुनना । विच्छड्डि स्त्री [विच्छदि] विशेष वमन । विचित्त वि[विचित्र] विविध । अद्धत, आश्चर्य- | परित्याग । विस्तार । परित्यक्त । विक्षिप्त । कारक अनेक रंगवाला, शबल । अनेक चित्रों
आच्छादित। से युक्त । पुं. पर्वत-विशेष । वेणुदेव और वेणु- विच्छय वि [विक्षत] विविध तरह से पीड़ित । दारि नामक इन्द्रों का एक लोकपाल । कूड | छिन्न, हत । देखो विक्खय। पुं [ कूट] शीतोदा नदी के किनारे पर्वत- विच्छल देखो विन्भल । विशेष । पक्ख पुं [°पक्ष] वेणुदेव और | विच्छवि वि. विरूप आकृतिवाला। पुं. एक वेणुवारि नामक इन्द्रों का एक लोकपाल । | नरक-स्थान । चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति ।
विच्छाय सक [विच्छायय] निस्तेज करना । विचित्ता स्त्री [विचित्रा] ऊर्ध्व लोक या अधो- | विच्छिअ वि [दे] पाटित, विदारित । विचित,
लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी। चुना हुआ । विरल । विचुणिद (शौ) देखो विचिअ ।
विच्छिअ देखो विछिअ। विचुन्नण न [विचूर्णन] चूर-चूर करना, | विच्छिद सक [वि + छिद्] तोड़ना, अलग
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विच्छिण्ण-विजय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७३७ करना।
विच्छोह [विक्षोभ] विक्षेप । चंचलता । विच्छिण्ण वि [विच्छिन्न] अलग किया हुआ । | विछल सक [वि + छलय् ] छलित करना । विच्छित्ति स्त्री. विन्यास, रचना । प्रान्त | विछोय देखो विच्छोव । भाग । अंगराग।
विजइ वि [विजयिन्] विजेता । विच्छिव सक [वि + स्पश] विशेष रूप से | विजंभ देखो विअभ = वि + जम्भू । स्पर्श करना।
विजढ वि [वित्यक्त] परित्यक्त । विच्छिव सक [वि + क्षिप् ] फेंकना।
विजण देखो विअण - विजन । विच्छु । देखो विंचुअ ।
विजय सक [वि+ जि ] जीतमा। अक. विच्छुअ)
उत्कर्ष-युक्त होना। विच्छडिअ वि [विच्छुटित] विरहित । मुक्त । |
विजय पुं. निर्णय, शास्त्र के अर्थ का ज्ञाम- . विच्छरिअ वि [दे] अपूर्व ।
पूर्वक निश्चय । अनुचिन्तन । आश्रय, स्थान । विच्छुरिअ वि [विच्छुरित] जड़ा हुआ। | जीत । एक देव-विमान । उसके निवासी संबद्ध । व्याप्त ।
देवता। अहोरात्र का बारहवाँ या सप्तरहवा विच्छ्ह सक [वि + क्षिप् ] फेंकना, दूर मुहूर्त । भ. नेमिनाथजी के पिता । भारतवर्ष करना।
के बीसवें भावी जिनदेव । तृतीय चक्रवर्ती विच्छुह अक [वि + क्षुभ् ] विक्षोभ करना, के पिता। आश्विन मास । भारतवर्ष में चंचल हो उठना ।
उत्पन्न द्वितीय बलदेव । भारतवर्ष का भावी विच्छूढ वि [विक्षिप्त] फेंका हुआ, दूर किया दूसरा बलदेव । ग्यारहवें चक्रवर्ती राजा का हुआ । प्रेरित ।
पिता । एक राजा। एक क्षत्रिय । भगवान् विच्छूढ वि [दे] विरहित, विघटित । चन्द्रप्रभ का शासन-देव । जंबूद्वीप का पूर्व विच्छूढव्व देखो विच्छुह = वि + क्षिप् का द्वार। उस का अधिष्ठाता देव । लवण समुद्र कृ.।
का पूर्व द्वार। उस का अधिपति देव । महाविच्छेअ [दे] विलास । जघन ।
विदेह वर्ष का प्रान्त-तुल्य प्रदेश । उत्कर्ष । विच्छेअ ' [विच्छेद] विभाग । वियोग । पराभव करके ग्रहण करना। प्रथम शताब्दी अनुबन्ध-विनाश, प्रवाह-निरोध ।
के एक जैन आचार्य । अभ्युदय । समृद्धि । विच्छेअय वि [विच्छेदक] विच्छेद-कर्ता। धातकी खण्ड का पूर्व द्वार । कालोद समुद्र, विच्छेइअ वि [विच्छेदित] विच्छिन्न किया पुष्कर-वरद्वीप तथा पुष्करोद समुद्र का पूर्व
द्वार । रुचक पर्वत का एक कूट । एक राजविच्छोइय वि [दे] विरहित ।
कुमार । छन्द-विशेष । वि जीतनेवाला । विच्छोड देखो विच्छोल।
°चरपुर न. एक विद्याधर-नगर । °जत्ता विच्छोम पुं [दे. विदर्भ] नगर-विशेष । स्त्री [ यात्रा] विजय के लिए किया जाता विच्छोय पुं [दे] विरह । देखो विच्छोह । प्रयाण । °ढक्का स्त्री. विजय-सूचक भेरी । विच्छोल सक [कम्पय] कपाना।
°देव पुं. अठारहवीं शताब्दी का एक जैन विच्छोलिअ वि [विच्छोलित] धोया हुआ । आचार्य । °पुर न. नगर-विशेष । 'पुरा, विच्छोव सक [दे] विरहित करना। 'पुरी स्त्री. पक्ष्मकावती नामक विजय-क्षेत्र की विच्छोह पुं [दे] विरह ।
राजधानी । °माण पुं [°मान] एक जैन
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विजयंता-विज्जा आचार्य । °वंत वि [°वत्] विजयी । वित्त विजोज सक [वि+योजय ] वियोग करना, न [वर्त] चैत्य-विशेष । °वद्धमाण पुन | अलग करना । [°वर्धमान] ग्राम-विशेष । °वेजयंती स्त्री विजोयावइत्त वि [वियोजयितु] वियोजक । [ वैजयन्ती] विजय-मचक पताका । °सायर | विजोहा स्त्री [विज्जोहा] छन्द-विशेष । पुं[सागर] एक सूर्यवंशी राजा। °सिंह, | विज अक [विद्] होना । सीह पुं. सुप्रसिद्ध जैनाचार्य । एक विद्याधर | विज सक [वीजय ] पंखा चलाना। राजकुमार । °सूरि पुं. चन्द्रगुप्त के समय का | विज्ज पंवेद्य चिकित्सक, हकीम । एक जैन आचार्य । सेण पुं [ सेन] जैन | विज पं. ब. [दे] देश-विशेष ।
आचार्य जो आम्रदेव सूरि के शिष्य थे। विज पुं [विद्वस् , विज्ञ] पण्डित, जानकार । विजयंता। स्त्री वैजयन्ती] पक्ष की आठवीं | विज देखो वीरिअ। . विजयंती) रात । एक रानी।
| विज्ज° देखो विजा। ज्झर (अप) देखो विजया स्त्री. भ .ान्तिनाथ की दीक्षा- | विजा-हर । °त्थि वि [°ाथिन्] अभ्यासी । शिविका । भ. अजितनाथजी को माता का | विज्ज° देखो विज्जु । नाम । पाँचवें बलदेव की माता । अंगारक | °विज्ज देखो पिज्ज । आदि ग्रहों की एक पट रानी । विद्या विशेष । | विज्जय न (वैद्यक] चिकित्सा । पूर्व-रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी | विज्जल [विजल] एक नरक-स्थान । वि. देवी । पांचवें चक्रवर्ती राजा को पटरानी- जलरहित । स्त्री-रत्न । विजय नामक देव की राजधानी । | विज्जल । न [दे. विजल] पंक, काँदो। वप्रा नामक विजय की राजधानी। पक्ष की | विज्जल ) सातवीं रात । एक श्रेष्ठिनी । भ. विमलनाथ- | विज्जलिया स्त्री [विद्यत् बिजली । जी की शासन-देवी। भ सुमतिनाथजी की।
विज्जा स्त्री विद्या] शास्त्र-ज्ञान | सम्यग् दीक्षा-शिविका । एक पुष्करिणी ।
ज्ञान । मन्त्र । साधनावाला मंत्र । अणुप्पवाय विजल वि. जल-रहित : न. जल-रहित पंक । |
न [°अनुप्रवाद] जैन अंग ग्रन्थ । दसवाँ देखो विज्जल।
पूर्व । °चारण पुं. शक्ति-विशेष-संपन्न मुनि । विजह सक [वि+हा) परित्याग करना ।
°चारणलद्धि स्त्री [चारणलब्धि] शक्तिविजाइय बि [विजातीय] भिन्न जाति का ।
विशेष । °णुप्पवाय देखो °अणुप्पवाय । विजाण देखो विआण = वि + ज्ञा ।
°णुवाय न [°नुवाद] दसा पूर्व । °पिंड j विजाणग, वि [विज्ञायक] जाननेवाला,
[पिण्ड] विद्या के बल से अजित भिक्षा । विजाणय विज्ञ । [विज्ञ, विज्ञायक] ऊपर
°मंत वि [°वत्] विद्या सम्पन्न । °लय पुन. विजाणुअ देखो।
पाठशाला। °सिद्ध वि. सभी विद्याओं से विजादीअ (शौ) देखो विजाइय ।
सम्पन्न । जिसको कम से कम एक महाविद्या विजाय न [२] लक्ष्य, निशाना ।
सिद्ध हो वह । हर पुं [धर] क्षत्रियों का विजिअ वि [विजित] पराभूत ।
एक वंश । पुंस्त्री. उस वंश में उत्पन्न । स्त्री. विजुत्त वि [वियुक्त] वि हित ।
°री। वि. शक्ति-विशेष-सम्पन्न । 'हरविजुरि (अप) स्त्री [विद्युत्] बिजली । गोवाल पुं [धरगोपाल] सुस्थित और विजे? वि [विज्येष्ठ] मध्यम ।
सुप्रतिबुद्ध आचार्य के शिष्य । °हरी स्त्री
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विज्जावच्च-विट्ठ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [°धरी] एक जैन मुनि-शाखा । °हार (अप), छन्द-विशेष । बिजली का विलास । सिहा न [°धर] छन्द-विशेष ।।
स्त्री [°शिखा] एक रानी। विज्जावच्च (अप) देखो वेयावच्च। विज्जुआ स्त्री [विद्युत्] बिजली। बलि विज्जाहर वि [वैद्याधर] विद्याधर-सम्बन्धी । नामक इन्द्र के सोम आदि चारों लोकपालों विज्जिडिय देखो विज्झिडिय।
की एक -एक पटरानी। धरणेन्द्र की अग्र
महिषी। विज्जु पुं [विद्युत्] विद्याधर-वंश का राजा । विज्जआइत्त वि [विद्युत्कर्तृ] बिजली करनेभवनपति देवों का एक भेद । आमलकप्पा
वाला । नगरी का एक गृहस्थ । एक नरक-स्थान ।
विज्जुला । देखो विज्जु = विद्युत् । स्त्री. ईशानेन्द्र के सोम आदि लोकपालों को विज्जली । एक-एक अग्रमहिषी। चमर नामक इन्द्र की
विज्जू' देखो विज्जु । °माला स्त्री. छन्दएक पटरानी । सन्ध्या। वि. विशेष रूप से
विशेष । चमकनेवाला । °कार देखो °यार। कुमार
| विज्जे अ [दे] मार्ग से । लिए। पुं. एक देव-जाति । कुमारी स्त्री. विदिग्रुचक
विज्जोअ ' [विद्योत] प्रकाश । पर रहनेवाली दिक्कुमारी देवी । °जिज्झ
विज्जाइय । वि [विद्योतित] प्रकाशित । ( ? ), °जिब्भ पुं [°जिह्व] अनुवेलंधर
विज्जोविय , नागराज का एक आवास-पर्वत । तेअ पुं [°तेजस्] विद्याधरवंश का राजा।
| विज्झ सक [व्यध्] वेध करना।
| विज्झ अक [वि + घट] अलग होना । °दंत पुं [°दन्त] एक अन्तर्वीप । उसमें रहने
विज्झ न [दे] बीझ, धक्का । ठेला । वाली मनुष्य-जाति । °दत्त पुं. विद्याधरवंश
विज्झ वि [विद्ध] बिधा हुआ। का राजा । °दाढ पुं[°दंष्ट्र] विद्याधर-वंश में
विज्झडिय वि [दे] मिश्रित, व्याप्त । उत्पन्न राजा । "पह, °प्पभ, 'प्पह पुं
विज्झल देखो विब्भल=विह्वल । [प्रभ] एक वक्षस्कार पर्वत । विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत का अधिष्ठाता देव । अनवेलंधर | विज्झव सक [वि+ध्यापय] बुझाना. ठंढा नागराज का एक आवास-पर्वत । उस पर्वत
करना। का निवासी देव । देवकुरुवर्ष में स्थित महा
विज्झा । अक [वि + ध्यै] बुझना, ठंढा द्रह । न. एक विद्याधर-नगर । °मई स्त्री
विज्झाअ । होना । [°मती] एक स्त्री। °मालि पु ["मालिन] विज्झाअ ) वि [विध्यात] बुझा हुआ, पंचशैल द्वीप का अधिपति यक्ष । रावण का । विज्झाण , उपशान्त । संक्रम-विशेष । सुभट । ब्रह्मदेवलोक का इन्द्र । 'मुह पुं।
| विज्झाव देखो विज्झव। ["मुख विद्याधर-वंश का राजा। एक | विज्झिडिय पुं (दे] मत्स्य की एक जाति । अन्तर्वीप । उसका निवासी मनुष्य । 'मेह पुं विटक देखो विडंक । [ मेघ] विद्युत्प्रधान मेघ । बिजली गिरानेवाला | विट्टाल सक [दे] अस्पृश्य करना, उच्छिष्ट मेघ । 'यार पुं [°कार] विद्युद्-रचना। __ करना । दूषित करना। 'लआ, ल्लया स्त्री [°लता] विद्युत् । विट्टी स्त्री [दे] गठरी । देखो विटिया । °ल्लेहाइद न [°लेखायित] बिजली की विट्ठ वि [वृष्ट] बरसा हुआ । तरह आचरण । विलसिअ न [विलसित[ । विट्ठ वि [विष्ट] प्रविष्ट । बैठा हुआ ।
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७४० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विट्ठ-विणइ विट्ठ वि [दे] सो कर उठा हुआ । विडवि पुं [विटपिन्] वृक्ष । दरख्त । विट्ठअ न [विष्टप] जगत् ।
विडविड । सक [रचय] बनाना । विटुंभ सक [वि + ष्टम्भय] रोकना । स्थापित
विडविड्ड । करना, रखना।
विडिअ वि [वीडित] लज्जित । विटुंभणया स्त्री [विष्टम्भना] स्थापना।
विडिचिअ । वि [दे] विकराल । भीषण,
विडिच्चिर । भयंकर । विट्ठर पुंन [विष्टर] आसन ।
विडिम पुं[दे]बाल-मृग । गेंडा । वृक्ष । शाखा । विट्ठा स्त्री [विष्ठा] बीट, पुरीष, मल । हर
विडिमा स्त्री [दे] शाखा । न [°गृह] मलोत्सर्ग-स्थान।
विडुच्छअ वि [दे] निषिद्ध । विट्ठि स्त्री [विष्टि] कर्म । ज्योतिष-प्रसिद्ध एक |
विडुविल्ल वि [दे] भीषण । करण, अर्घ तिथि । बेगार । भद्रा नक्षत्र ।
विडूर पुं [विदूर] पर्वत-विशेष । देश-विशेष, विट्ठि स्त्री [वृष्टि] वर्षा । देखो वृद्धि ।
जहाँ वैदूर्य रत्न पैदा होता है । विद्वित वि [दे] अजित ।
विडोमिअ ' (दे] गण्डक । मृग । गेंडा। विट्टिय न [विस्थित] विशिष्ट स्थिति ।
विड्ड वि [दे] दीर्घ । प्रपंच । विस्तार । विड पुं [विट] भंडआ।
विड्ड वि [व्रीड, वीडित] लज्जित । विड न. एक तरह का नमक ।
विड्डर देखो विड्डिर। विडंक पुंन [विटङ्क]कपोतपाली, प्रासाद आदि | विड्डा स्त्री [ब्रीडा] लज्जा । शरम । के आगे की ओर काठ का बना हुआ पक्षियों
विड्डार न [विद्वार] देखो विड्डेर । के रहने का स्थान, छतरी।
विड्डिर न [दे] आभोग। आटोप । वि. रौद्र । विडंकिआ स्त्री [दे] वेदिका, चौतरा । भयंकर । विडंग देखो विडंक।
विड्डिरिल्ला स्त्री [दे] रात्रि । विडंग पुंन [विडङ्ग] औषध-विशेष । वि. विदग्ध ।
विड्डुरिल्ल वि [वैडूर्यवत्] वैदूर्य रत्नवाला । विडंब सक [वि + डम्बय् ] तिरस्कार विड्डुरी स्त्री [दे] आटोप ।
करना । दुःख देना । नकल करना। विड्डेर न दे. विड्डेर] नक्षत्र-विशेष, पूर्व विडंब सक [वि + डम्बय] विवृत करना। | द्वारवाले नक्षत्रों में पूर्व दिशा से जाने के विडंब पंन [विडम्ब तिरस्कार । मायाजाल । | बदले पश्चिम दिशा से जाने पर पड़ता नक्षत्र । विडंबग वि [विडम्बक] विडंबना-जनक । देखो विड्डार । विडंबणा स्त्री [विडम्बना] तिरस्कार । दुःख । | विढज (शौ) सक [वि + दह.] जलाना। नकल । उपहास । कपट-बेष।
| विढणा स्त्री[दे] पाणि, फीली का नीचलाभाग। विडज्झमाण वि [विदह्यमान] जो जलाया विढत्त वि [अजित] उपाजित । जाता हो वह, जलता हुआ ।
विढत्ति स्त्री [अर्जिति] उपार्जन । विडड्ढ देखो विदड्ढ ।
विढप्प अक [व्युत् + पद्] व्युत्पन्न होना । विडप्प , पुं [दे] राहु ।
विढप्प नीचे देखो। विडय
विढव सक [ अर्ज ] उपार्जन करना । विडव पुं [विटप] पल्लव । शाखा। पल्लव- विढिअ वि [वेष्टित] लपेटा हुआ । विस्तार । स्तम्ब गुच्छा ।
विणइ वि [विनयिन्] दूर करनेवाला ।
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विणइत्त-विणिज्जरा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७४१ विणइत्त वि [विनयवत] विनयवाला । । विणास पुं विनाश] विध्वंस । विणइत्तु वि [विनेतृ] विनीत बनानेवाला । विणासग वि [विनाशक] विनाश-कर्ता । विणइय वि [विनयित] शिक्षित किया हुआ। विणि° देखो विणी। विणइल्ल देखो विणइत्त।।
विणिअंसण न [विनिदर्शन] खास उदाहरण । विट्ठ वि [विनष्ट] विनाश-प्राप्त । विणिअंसण वि [विनिवसन] वस्त्र-रहित । विणड सक [वि+नटय, वि + गुप्] विणिइत्त देखो विणइत्तु ।
व्याकुल करना । विडम्बना करना। विणिउत्त वि [विनियुक्त] कार्य में प्रवर्तित । विणण न [वान] बुनना ।
विणिओग पुं [विनियोग] उपयोग, ज्ञान । विणभ सक [खेदय्] खिन्न करना ।। कार्य में लगाना । लेन-देन । विणम सक [वि+ नम्] विशेष नमना । |
विणिओय सक [विनि + योजय] जोड़ना । विणमि देखो विनमि।
| विणिकुट्टिय वि [विनिकुट्टित] कूट कर बैठाया विणय पुं [विनय] अभ्युत्थान । प्रणाम आदि
हुआ।
विणिक्कम देखो विणिक्खम । भक्ति, शुश्रूषा, शिष्टता, नम्रता । संयम,
विणिक्कस सक विनि + कृष्] खींच कर चारित्र । एक नरक-स्थान । अपनयन ।
निकालना। शिक्षा । अनुनय । वि. विनय-युक्त। निभृत,
विणिक्खंत वि [विनिष्क्रान्त] बाहर निकला शान्त । क्षिप्त । जितेन्द्रिय । पुं. शास्त्रानुसार प्रजा का पालन । °मंत वि [°वत्] विनय
__ हुआ। जिसने गृह-त्याग किया हो ।
विणिक्खम अक [विनिस् + क्रम्] बाहर विणय वि [विनत] विशेष रूप से नमा हुआ।
निकालना । संन्यास लेना।
विणिक्खित्त वि [विनिक्षिप्त] फेंका हुआ। पुन. एक देव-विमान । विणय देखो विणया । °तणय पुं [तनय],
विणिगिण्ह सक [विनि + ग्रह] निग्रह करना,
दंड देना। सुअ पुं [°सुत] गरुड पक्षी ।
विणिगृह सक [विनि + गूहय्] गुप्त रखना। विणयंधर पुं [विनयन्धर] एक सेठ का नाम । विणयण न [विनयन] विनय-शिक्षा ।
विणिग्गम पुं [विनिर्गम] निःसरण ।
विणिग्गय वि [विनिर्गत] बाहर निकला विणया स्त्री [विनता] गरुड की माता ।
हुआ, बाहर गया हुआ। °तणय पुं [तनय] गरुड पक्षी ।
विणिघाय पुं[विनिघात] मरण । भव-भ्रमण । विणस देखो विणस्स। विणसिर वि [विनश्वर] नश्वर ।
| विणिच्छ सक [विनिस् + चि] निश्चय
करना। विणस्स अक [वि+नश्] नष्ट होना । विणस्सर देखो विणसिर ।
विणिच्छय पुं [विनिश्चय] निश्चय । परिज्ञान । विणा अ [विना] सिवाय ।
विणिजूंज सक [विनि + युज्] जोड़ना, प्रवृत्त विणामिद (शौ)बि. [विनामित]नमाया हुआ ।
करना। विणायग पुं [विनायक यक्ष, एक देव-जाति । | विणिज्जतण वि [विनियन्त्रण] नियन्त्रण
गणपति । गरुड । 'त्थ न [°ास्त्र] गरुडास्त्र । रहित । प्रकटित । कपट-रहित । विणास देखो विणस्स।
विणिज्जरण । न [विनिर्जरण] निर्जरा, विणास सक [वि + नाशय] ध्वंस करना । । विणिजरा । विनाश । स्त्री [विनिर्जरा] ।
युक्त।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विणिज्जिअ-विणी विणिज्जिअ विविििजत पराभत ।
नाटक । विणिद्द वि [विनिद्र] विकसित ।
विणिवाइय वि [विनिपातित] मार गिराया विणिलिय वि [विनिर्दलित] विदारित, तोड़ा हुआ, व्यापादित । हुआ ।
विणिवाए सक [विनि+पातम्] मार विणिधुण सक [विनिर् +धू] कॅपाना । गिराना । विणिप्फन्न वि [विनिष्पत्र] संसिद्ध, सम्पन्न । विणिवाडिअ देखो विणिवाइय । विणिप्फिडिअ वि [विनिस्फिटित] विनिर्गत । विणिवाद ) पुं [विनिपात] निपात, विणिबुड्ड देखो विणिवुड्ड ।
विणिवाय विनाश । मरण । संसार । विणिब्भिन्न वि [विनिभिन्न] विदारित । विणिवायण न [विनिपातन] मार गिराना । विणिमीलिअ वि [विनिमीलित] मीचा विणिवार सक [विन+वारय] रोकना । हुआ।
विणिविट्ट वि [विनिविष्ट] उपविष्ट । आसक्त। विणिमुक्क देखो विणिम्मुक्क ।
विणिवित्त देखो विणियट्ट । विणिमय देखो विणिम्मुय ।
विणिवित्ति देखो विणियत्ति। विणिम्मविअ वि [विनिर्मित विरचित ।। विणिवुड्ड वि [विनिमग्न] निमग्न । विणिम्माण न [विनिर्माण] रचना । विणिवेइअ वि [विनिवेदित] ज्ञापित । विणिम्मिअ देखो विणिम्मविअ।
विणिवेस पुं [विनिवेश] स्थिति । रचना । विणिम्मुक्क वि [विनिर्मुक्त] परित्यक्त। विणिवेसिअ वि [विनिवेशित] स्थापित, रखा विणिम्मय वि [विनिर् + मुच्] छोड़ना ।
हुआ । विणिय देखो विणीअ ।
विणिव्वर न [दे] पश्चात्ताप, अनुशय । विणियट्ट देखो विणिवट्ट।
विणिव्ववण न [विनिर्वपन] शान्ति, दाहोविणियट्ट वि [विनिवृत्त पीछे हटा हुआ । पशम । प्रणष्ट ।
विणिस्सरिय वि [विनिःसृत] बाहर निकला विणियट्टणया स्त्री [विनिवर्तना] निवृत्ति ।
हुआ। विणियत्त देखो विणियट्ट।
विणिस्सह वि विनिस्सह] थका हुआ। विणियत्ति स्त्री [विनिवृत्ति ] निवृत्ति ।
विणिह° देखो विणिहण। विणिरोह पु [विनिरोध] प्रतिबन्ध ।
विणिहटु देखो विणिहा का संकृ. । विणिवट्ट अक [विनि + वृत्] निवृत्त होना, विणिहण सक [विनि + हन्] मार डालना। पीछे हटना ।
विणिहय वि [विनिहत] जो मारा गया हो । विणिवणया स्त्री [विनिवर्तना] निवर्तन, विणिहा सक [विनि+धा] व्यवस्था करना । विराम।
__ स्थापन करना। विणिवडिअ वि [विनिपतित] नीचे गिरा विणिहाय देखो विणिघाय । हुआ।
विणिहिअ ) वि [विनिहित] स्थापित । विणिवत्ति देखो विणियत्ति ।
विणिहित्त । विणिवाइ वि [विनिपातिन्] मार गिराने- विणिहित्तु देखो विणिहा का संकृ. । वाला।
| विणी अक [विनि इ] बाहर निकलना। विणिवाइय न [विनिपातिक] एक तरह का | विणी सक [वि + नी] दूर करना । विनय
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विणीअ-वितिगिछ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
ग्रहण कराना।
| विष्णु । वि [विज्ञ] विद्वान् । विणीअ वि [विनीत] दूर किया हुआ । विनय- |
विष्ण युक्त । शिक्षित ।
विण्हावणक न [विस्नापनक] मन्त्र आदि विणीआ स्त्री [विनीता] अयोध्या नगरी । ___ द्वारा संस्कृत जल से कराया जाता स्नान । विणील वि [विनील] विशेष हरा रंग का।
विण्हि देखो वण्हि = वृष्णि । विणु (अप) देखो विणा।
विण्हु ' [विष्णु] श्रेयांसनाथ के पिता । विणेअ वि [विनेय] शिक्षणीय, शिष्य । श्रवण नक्षत्र का अधिपति देव । राजा अन्धकविणोअ सक [वि + नोदय] खण्डित करना । वष्णि का नवां पुत्र। जैन मुनि विष्णुकुमार। हटाना । खेल करना । कुतूहल करना।
एक श्रेष्ठी । वासुदेव, नारायण श्रीकृष्ण । विणोअ ' [विनोद] क्रीड़ा। व्यापक । अग्नि । शुद्ध । एक स्मृति-कर्ता कौतुक ।
मुनि । आर्य जेहिल के शिष्य एक जैन मुनि । विणोइअ वि [विनोदित] विनोद-युक्त कृत । स्त्री. ग्यारहवें जिनदेव की माता । 'कुमार विणोयक । वि [विनोदक] कुतूहल-जनक । पुं. एक जैन मुनि । 'सिरी स्त्री [°श्री] एक विणोयग ।
सार्थवाह-पत्नी । देखो विन्हु । विण्ण देखो विष्णु।
वितंड देखो वितद्द । विण्णत्त वि [विज्ञप्त] निवेदित ।
वितण्ह वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित । विण्णत्ति स्त्री [विज्ञप्ति निवेदन। विनिर्णय ।।
| वितत पुं. वाद्य का एक प्रकार का शब्द । ज्ञान । विज्ञान ।
एक महाग्रह । देखो विअत्त। देखो विअय विण्णय देखो विणइय।
= वितत । विण्णय देखो विण्ण।
वितत न [दे] कार्य । विण्णव सक [वि + ज्ञपय] प्रार्थना करना । वितत्त वि [वितृप्त] विशेष तृप्त । मालूम करना । कहना ।
वितत्थ पुं [वित्रस्त] एक महाग्रह, ज्योतिष्क विण्णवणा स्त्री [विज्ञापना] विज्ञापन, निवे- देव-विशेष । वि. भयभीत । दन ।
वितत्था स्त्री [वितस्ता] एक महा-नदी। विण्णा सक [वि+ज्ञा] जानना।
वितद्द वि [वितर्द हिंसक । प्रतिकूल । विण्णाउ वि [विज्ञातृ] जाननेवाला । वितर देखो विअर = वि + त । विण्णाण देखो विन्नाण ।
वितर (अप) सक [वि+स्तारय् ] विस्तार विण्णाण न [विज्ञान] अवाय-ज्ञान, निश्च- करना। यात्मक ज्ञान ।
वितरण देखो विअरण = वितरण । विण्णाणि वि [विज्ञानिन्] निपुण, विचक्षण । वितल वि. शबल, चितकबरा । विण्णाय वि [विज्ञात] जाना हुआ। न. वितह वि [वितथ] मिथ्या, असत्य । विज्ञान ।
वितिकिच्छिअ वि [विचिकित्सित] फल की विण्णाव देखो विण्णव ।
तरफ संदेह वाला। विण्णास वि [वि+ न्यासय] स्थापना वितिकिण्ण देखो विइकिण्ण। करना, रखना।
वितिक्कंत देखो विइक्वंत। विण्णास देखो [विन्यास] रचना, स्थापना। ( वितिगिंछ सक वि + चिकित्स् ] विचार
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वितिगिछा-विदद्ध करना । संशय करना । निन्दा करना। वित्ती° देखो वित्ति = वृत्ति । 'संखेव पुं वितिगिछा देखो वितिगिच्छा।
[°संक्षेप] बाह्य तप का एक भेद-खाने, वितिगिच्छ देखो वितिगिछ ।
पीने और भोगने की चीजों को कम करना । वितिगिच्छा स्त्री [विचिकित्सा] संशय । वित्तेस वि [वित्तेश] धनी, श्रीमन्त । चित्त-भ्रम । निन्दा ।
वित्थ पुंन [विस्त] सुवर्ण। वितिगिट्ठ देखो विइगिट्ठ ।
वित्थक अक [वि + स्था] स्थिर होना । वितिमिर वि. अन्धकार-रहित, विशुद्ध । विलम्ब करना । विरोध करना ।
अज्ञान-रहित । पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक | वित्थक्क देखो विथक्क । विमान-प्रस्तट ।
वित्थड । वि [विस्तृत] विस्तार-युक्त । वितिरिच्छ वि [वितिर्यञ्च् ] वक्र । वित्थय संबद्ध । वित्त विदे] दीर्घ।
वित्थर अक [वि + स्तु] फैलना । बढ़ना । वित्त न द्रव्य । धन । वि. प्रसिद्ध । म वि | वित्थर पुंन [विस्तर] विस्तार । शब्द-समूह । [°वत् धनी।
| वित्थर देखो वित्थड। वित्त न [वृत्त] छन्द, पद्य । आचरण । वि. | वित्थरण वि [विस्तरण] फैलानेवाला ।
उत्पन्न । अतीत । दृढ़ । वर्तुल । अधीत । वुद्धिजरेक । संसिद्ध । पूर्ण । 'प्पाय वि [प्राय] पूर्ण- | वित्थार सक [वि + स्तारय] फैलाना। प्राय । देखो वट्ट = वृत्त ।
वित्थार पुं [विस्तार] फैलाव । प्रपञ्च । वित्त देखो वेत्त = वेत्र ।
रुइ वि [°रुचि] सब पदार्थों को विस्तार से °वित्त देखो पित्त ।
जानने की चाहवाला सम्यक्त्वी । वित्तइ वि [दे] गर्वित । पुं.विलसित, विलास । |
वित्थारइत्तअ (शौ) वि [विस्तारयितु] गर्व । वित्तंत पुं[वृत्तान्त] समाचार ।
फैलानेवाला।
| वित्थारग वि [विस्तारक] फैलानेवाला । वित्तत्थ देखो वितत्थ । वित्तविय देखो वट्टिअ, वत्तिअ = वर्तित ।
वित्थिण्ण वि [विस्तीर्ण] विस्तार-युक्त । वित्तास सक [वि + त्रासय् ] डराना ।
वित्थिय देखो वित्थड। वित्तास पुं [वित्रास] भय, त्रास ।
वित्थिर न [दे] विस्तार । वित्ति पुं [वेत्रिन्] दरबान ।
वित्थुय देखो वित्थड। वित्ति स्त्री [वृत्ति] जीविका । टीका । आच
विथक्क वि [विष्ठित] विरोधी बना हुआ ।
विद देखो विअ = विद् । रण, बर्तन । स्थिति । कौशिकी आदि रचना
विदंड पुं [विदण्ड] कक्ष तक लम्बी लट्ठी। विशेषः । अन्तःकरण आदि का एक तरह का
| विदंसग देखो विदंसय । परिणाम । °अ वि [ द] वृत्ति देनेवाला । °आर वि [°कार] टीकाकार । "च्छेय,
विदसण न [विदर्शन] अन्धकार-स्थित वस्तु °छेय [च्छेद] जीविका-विनाश। देखो का प्रकाशन । देखो विदरिसण । वित्ती° = वृत्ति ।
विदंसय वि [विदंशक] श्येन आदि हिंसक वित्तिअ वि [वित्तिक] धनवाला, वैभवशाली।। पक्षी । वित्ती' देखो वित्त = वृत्त। कप्प वि | विदड्ढ । वि [विदग्ध] पण्डित । विशेष [°कल्प] सिद्धप्राय, पूर्णप्राय ।
। विदद्ध , दग्ध । अजीर्ण का एक भेद ।
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विदब्भ-विदुम
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष देखो विद्दड्ढ ।
विदूसग । पुं [विदूषक] राजा के साथ विदब्भ पुंस्त्री [विदर्भ] देश-विशेष । सुपार्श्व- विदूसय , रहने वाला मुसाहब । नाथ के गणघर । पुंस्त्री. विदर्भ की प्राचीन विदेस देखो विएस = विदेश ।
राजधानी, कुण्डिनपुर, आजकल 'नागपुर'। विदेसिअ वि [वैदेशिक] परदेशी। विदरिसण वि [विदर्शन] भय उत्पन्न हो विदेह पुं. राजा जनक । पुं. ब. बिहार का बह वस्तु, विरूप आकारवाली विभीषिका
उत्तरीय प्रदेश 'तिरहुत'। पूंन. वर्ष-विशेष, आदि । देखो विदंसण ।
महाविदेह-क्षेत्र । वि. विशिष्ट शरीरवाला । विदल न. वंश, बाँस।
निर्लेप । पुं. अनंग । गृह-वास । निषध पर्वत विदल न [द्विदल] चना आदि वह शुष्क धान्य का एक कूट । नीलवंत पर्वत का एक कूट । जिसके दो टुकड़े समान होते हैं । वि. जिसके
°जंबू स्त्री [°जम्बू] जम्बू वृक्ष-विशेष । दो टुकड़े किए गए हों वह ।
जच्च पुं [जार्च, °यात्य] भगवान् महाविदलिद (शौ) वि [विदलित] खण्डित, वीर । °दिन्ना स्त्री [°दत्ता] भगवान् महाचूर्णित ।
वीर की माता, रानी त्रिशला । °दुहिआ विदाअ देखो विद्दाय = विद्रुत ।
स्त्री [°दुहित] सीता। °पुत्त पुं [पुत्र] विदारग 1 वि [विदारक] विदारण-कर्ता। राजा कूणिक । विदारय )
विदेहदिन्न पुं [वैदेहदत्त] भगवान् महावीर । विदालण न [विदारण] विविध प्रकार से विदेहा स्त्री. भगवान् महावीर की माता। चीरना।
त्रिशला देवी । जानकी । विदिअ देखो विइअ।
विदेहि पुं [वैदेहिन्] विदेह देश का अधिपति, विदिण्ण देखो विइण्ण = वितीर्ण ।।
तिरहुत का राजा। विदिण्ण वि [विदीर्ण] फाड़ा हुआ। विदेही स्त्री [विदेही] राजा जनक की पत्नी, विदित्ता । विद = विद् का संकृ.। सीता की माता। विदित्ताणं ।
विइंडिअ वि [दे] नाशित । विदिस (अप) स्त्री [विदिशा] एक नगरी। विद्दड्ढ पुं [विदग्ध] एक नरक-स्थान । विदिसा । स्त्री [विदिश] उपदिशा, कोण । विद्दव सक [वि + द्रावय] विनाश करना । विदिसी , विपरीत दिशा, असंयम । हैरान करना । दूर करना । झरना । विदु देखो विउ ।
विद्दव पुं [विद्रव] उपद्रव । विनाश । विदुगुंछा देखो विउच्छा।
विद्दा अक [वि+द्रा] खराब होना। विदुग्ग न [विदुर्ग] समुदाय ।
विद्दाण वि [विद्राण] म्लान, निस्तेज । विदुर वि. धीर । नागर । पुं. कौरवों के एक प्रख्यात मन्त्री।
विद्दाय वि [विद्रुत] विनष्ट । पलायित । द्रवविदुलतंग न [विद्युल्लताङ्ग] हाहाहूहू की चौरासी लाख गुनी संख्या ।
विद्दाय अक [विद्वस्य]खुद को विद्वान् मानना। विदुलता स्त्री [विद्युल्लता] विद्युल्लतांग की | विद्दार देखो विड्डार। चौरासी लाख गुनी संख्या।
विद्दारण (अप) वि [विदारण] चीरनेवाला। विदुस देखो विदु।
विदुम पुं [विद्रुम] प्रवाल । उत्तम वृक्ष ।
। युक्त।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विदुय-विपडिसेह °भ पुं. नववें बलदेव के पूर्व-जन्म के गुरु । | विनिमय पुं [विनिमय व्यत्यय । विदुय वि [विद्रुत] अभिभूत । पीड़ित । विनियट्ट देखो विणिवट्ट। विदूणा स्त्री [दे] लज्जा, शरम । विनिरय वि [विनिरत] लीन, आसक्त । विद्देस पुं [विद्वेष] द्वेष । मत्सर।
विनिहन्न सक [विनि+हन्] मार डालना । विद्देस वि [विद्वष्य] द्वेष्य-योग्य, अप्रिय । विनिहाय देखो विणिघाय। विद्देसण न [विद्वेषण] एक अभिचार-कर्म,
विन्नप्प देखो विण्णव । जिससे परस्पर में शत्रुता होती है।
विन्नवणा स्त्री [विज्ञापना] प्रार्थना, विनती । विद्देसिअ देखो विदेसिअ।
महिला, नारी । देखो विण्णवणा। विदेसिअ वि [विद्वेषित] द्वेष-युक्त । विन्नविय वि [विज्ञापित] निवेदित । विद्ध सक [व्यध्] वींधना।
विन्ना देखो विण्णा = वि + ज्ञा। विद्ध वि [विद्ध] वींधा हुआ।
विन्ना देखो बिन्ना। यड न [°तट] एक विद्ध देखो वुड्ढ = वृद्ध ।
नगर का नाम । विद्धंस अक [वि + ध्वंस्] विनष्ट होना । | विन्नाउ वि [विज्ञातृ] जाननेवाला । विद्धंस सक [वि + ध्वंसय] विनष्ट करना। विन्नाण न [विज्ञान] सद्बोध, ज्ञान । कला, विद्धत्थ वि [विध्वस्त] विनष्ट ।
शिल्प। विद्धि स्त्री [वृद्धि] बढ़ती । समृद्धि । अभ्युदय । विनाणिय देखो विण्णाय । सम्पत्ति । अहिंसा । कलान्तर, सूद । व्याकरण- विन्नाविय देखो विन्नविय ।
प्रसिद्ध स्वर का विकार । ओषधि-विशेष ।। विन्नासिअ (अप) [विनाशित] विनाश प्राप्त । विधुण विद्ध = व्यध् का संकृ. ।
विणासिअ। विधम्म देखो विहम्म।
विन्नेय देखो विना = वि +ज्ञा । विधम्मिय वि [विधर्मित] तिरस्कृत ।
विन्ह पुं [विष्ण] जैन मुनि, आर्य-जेहिल के विधवा देखो विहवा।
शिष्य । देखो विण्हु । °पअ न [°पद] विधा अ [वृथा] मुधा, निरर्थक ।
आकाश । पदी स्त्री. गंगा नदी । विधाण देखो विहाण = विधान । विपंची स्त्री विपञ्ची] वाद्य-विशेष, वीणा । विधाय देखो विहाय = विधातृ ।
विपक्क वि [विपक्व] । देखो विवक्क । विधार सक [वि+धारय] निवारण करना ।
| विपक्ख देखो विवक्ख । विधि (शौ) देखो विहि।
विपक्खिय वि [विपक्षिक] विरोधी, दुश्मन । विधुर वि. देखो विहुर।
विपच्चइय न [विप्रत्ययिक] बारहवें जैन अंग विधुव (शौ) देखो विहुण = वि + धू ।। ग्रन्थ का सूत्र-विशेष । विधूण देखो विहुण = वि +धू ।
विपच्चमाण वि [विपच्यमान] जो पकाया विधूम पुं. अग्नि ।
जाता हो वह । जलता । विध्य वि [विधूत] क्षुण्ण, सम्यक् स्पृष्ट । देखो | विपज्जय देखो विवजय । विह।
विपज्जास देखो विवजास। विनमि पुं भ० ऋषभदेव का पौत्र ।। विपडिवत्ति देखो विप्पडिवत्ति । विनिज्झा सक [विनि । ध्यै] देखना। | विपडिसेह सक [विप्रति+सिध्] निषेध विनिबद्ध वि [विनिबद्ध] सम्बद्ध, बंधा हुआ। करना ।
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राजा।
विपणोल्ल-विप्पजहन्ना संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विपणोल्ल सक [विप्र + नोदय ] प्रेरणा | विपिण देखो विविण । करना।
विपित्त वि [दे] विकसित । विपण्ण देखो विवण्ण = विपन्न ।
विपुल देखो विउल । °वाहण पुं ["वाहन विपत्ति देखो विवत्ति = विपत्ति ।
भारतवर्ष में होनेवाला बारहवां चक्रवर्ती विपत्थाविद (शौ) वि [विप्रस्तावित] जिसका प्रारम्भ किया गया हो वह ।
विप्प न [दे] पुच्छ । विपरामुस सक [विपरा+मृश्] समारम्भ | विप्प पुं [विप्र] ब्राह्मण । करना, हिंसा करना । पीड़ा उपजाना । हैरान | विप्प पु [विपुष, विप्र] मूत्र और विष्ठा के करना । अक. उत्पन्न होना । देखो विप्परा- |
क उत्पन्न द्रोना । देखो विप्परा- | बिन्दु । विष्ठा और मत्र । मस।
विप्पइट्ट देखो विप्पगिट्ट। विपराहुत्त वि [विपराङमुक्ष] अतिशय उदा- | विप्पइण्ण वि [विप्रकीर्ण] बिखरा हुआ। सोन ।
विप्पइर सक [विप्र+क] बिखेरना। विपरिकम्म न [विपरिकर्मन्] शरीर की | विप्पउंज सक [विप्र + युज्] विरुद्ध प्रयोग आकुञ्चन-प्रसारण आदि क्रिया।
करना । विशेष रूप से जोड़ना । विपरिकुंचि वि [विपरिकुञ्चिन्] विपरिकचित विप्पओअ । पुं [विप्रयोग] अलग, विरह । नामक वन्दन-दोषवाला ।
विप्पओग , विपरिकुंचिय देखो विप्पलिउंचिय। विप्पकड वि [विप्रकट] विशेष रूप से प्रकट । विपरिखल अक [विपरि + स्खल] स्खलित
विप्पकिर देखो विप्पइर। होना । भूल करना।
विप्पक्ख देखो विपक्ख । विपरिणम अक [विपरि + णम्] बदलना।
विप्पगब्भिय वि [विप्रगल्भित] अत्यन्त विपरीत होना।
धृष्ट । विपरिणय वि [विपरिणत] रूपान्तर-प्राप्त ।
विप्पगरिस पुं [विप्र कर्ष] दूरी, आसन्नता का विपरिणाम सक [विपरि + णमय] विपरीत
अभाव । करना । बदलवाना ।
विप्पगाल सक [नाशय, विप्र +गालय ] विपरिणाम [विपरिणाम] रूपान्तर प्राप्ति ।
नाश करना। उलटा परिणाम, विपरीत अध्यवसाय ।।
विप्पगिट्ठ वि [विप्रकृष्ट] दूरवर्ती । दीर्घ । विपरिधाव अक [विपरि +धाव] इधर-उधर
विप्पचय सक [विप्र + त्यज्] छोड़ना । दौड़ना।
विप्पच्चय पृ [विप्रत्यय] संदेह । वि. विपरियास देखो विप्परियास।
अविश्वसनीय । विपरिवसाव सक [विपरि+वासय] रखना।
विप्पजढ वि [विप्रहीण] परित्यक्त । विपरीअ देखो विवरीअ ।
विप्पजह सक [विप्र + हा] छोड़ देना । विपलाअ अक [विपरा+अय्] दूर भागना । विप्पजह न [विप्रहाण] परित्याग । °सेणिया विपल्हत्थ देखो विवल्हत्थ ।
स्त्री [श्रेणिका बारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का विपस्सि वि [विदर्शिन्] देखनेवाला । एक परिकर्म-अंश-विशेष । विपाग देखो विवाग।
विप्पजहणा । स्त्री [विप्रहाणि] प्रकृष्ट विपिक्ख देखो विप्रोक्ख ।
विप्पजहन्ना , त्याग, परित्याग ।
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विजोग देखो विप्पओअ । विप्पsिs अक [विपरि + इ] विपरीत होना । विप्पडिघाय पुं [ विप्रतिघात] प्रतिबन्ध | विप्पsिह पुं [ विप्रतिपथ ] विपरीत मार्ग | विप्पडवण्ण वि [विप्रतिपन्न ] जिसने विशेष
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
रूप से स्वीकार किया हो वह । विरोध प्राप्त । विप्पडिवत्ति स्त्री [विप्रतिपत्ति ] विरोध ।
प्रतिज्ञा-भंग |
विप्पडिवेअ विप्पsिवेद विप्पडिसिद्ध वि [विप्रतिषिद्ध] आपस में
सक [ विप्रति + वेदय् ] जानना । विचारना ।
असंमत । विप्पडीव वि [विप्रतीप ] प्रतिकूल । विप्पण वि [ विप्रनष्ट ] पलायित, नाश
प्राप्त । विप्पणम
विप्पणव
क [ विप्र + णम् ] नमना । अक तत्पर होना ।
विप्पणस्स अक [ विप्र + नश् ] नष्ट होना । विप्पणास पुं [ विप्रणाश] विनाश । विप्पतार सक [ विप्र + तारय् ] ठगना । विप्पदीअ (शौ) देखो विप्पडीव । विप्पदीव
वापित। पुं. वैद्य ।
विप्पयार सक [विप्र + तारय् ] ठगना । विप्रद्धवि [ दे] विशेष पीड़ित ।
विप्पजोग - विप्पय
विप्परियास सक [विपरि + आसय् ] व्यत्यय
करना उलटा करना ।
विप्रयास [विपर्यास ] व्यत्यय । विपरीतता, परिभ्रमण |
देखो
विप्परुद्ध वि [ विप्ररुद्ध ] तिरस्कृत । विप्पल देखो विप्प = विप्र । विप्पलंभ सक [ विप्र + लभ् ] ठगना । विप्पलंभ पुं [विप्रलम्भ ] वञ्चना । शृङ्गार की एक अवस्था — जिसमें उत्कृष्ट अनुराग होने पर भी प्रिय समागम नहीं होता । विपर्यास | विरह |
विप्पलंभअ वि [विप्रलम्भक ] प्रतारक, ठगनेवाला ।
विप्पमाय पुं [ विप्रमाद] विविध प्रमाद | विप्पमुंच सक | विप्र + मुच् ] छोड़ना । विमुक्s a [ विप्रमुक्त] विमुक्त |
विप्पय न [ दे] खल- भिक्षा । दान । वि. विप्पव पुं [ विप्लव ] क्रान्ति । दूसरे राजा के
विप्पलद्ध वि [ विप्रलब्ध] वञ्चित | विप्पलय पुंन [ ] विविधता । विचित्रता । विप्पलविद (शौ ) न [विप्रलपित ] बकवाद | विप्पलाअ देखो विपलाअ । विप्पलाअ विप्पलाव
पुं [विप्रलाप ] परिवेदन, रोना । बकवाद । विरहा
लाप ।
विप्पलिउंचिअ न [विपरिकुचित ] गुरु को सम्पूर्ण वन्दन न करके बीच में बातचीत करने का एक दोष ।
विप्लुंग वि [विप्रलोपक] लुटेरा । विप्पलोहण वि [विप्रलोभन] लुभानेवाला ।
राज्य आदि से भय । अस्वस्थता | विप्पवर न [ दे] भल्लातक, भिलवा |
विप्पवस अक [ विप्र + वस्] प्रवास में जाना, देशान्तर जाना ।
परद्ध ।
विप्रास देखो विपरामुस । विपरिणम देखो विपरिणम । विप्परिणय देखो विपरिणय ।
विप्पसन्न वि [ विप्रसन्न ] विशेष प्रसन्न । प्रसन्न - चित्त का मरण |
विप्पसर अक [विप्र + सृ] फैलना ।
विप्परिणाम देखो विपरिणाम = विपरि- विप्पसाय सक [विप्र + सादय् ] प्रसन्न करना । णमय् । विप्पसीअ अक [ विप्र + सद्] प्रसन्न होना । विप्परिणाम देखो विपरिणाम = विपरिणाम । विप्पहय वि [ विप्रहत] आहत, जखमी |
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विप्पहाइय-विभंग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७४९ विप्पहाइय वि [विप्रभाजित] विभक्त । | विफुट्ट अक [वि + स्फुट] फटना । विप्पहीण । वि [विप्रहीण] रहित । । विफर देखो विप्फुर। विप्पहण ।
विबंधक वि [विबन्धक] विशेष रूप से बांधनेविप्पावग वि [दे] हास्य-कर्ता ।
वाला। विप्पिअ पुंन [विप्रिय] अप्रिय। अपराध । विबद्ध वि. विशेष बद्ध । माहित । °आरय वि [°कारक] अप्रिय-कर्ता । अप- विबाहग वि [वि बाधक] विरोधी, बाधक । राध-कर्ता।
विबुद्ध वि. जागृत। विप्पिडिअ वि [दे] नाशित ।
विबुध । (शौ) पुं [विबुध] देव । पण्डित । विप्पीइ स्त्री [विप्रीति] अप्रीति । विबुह °चंद पुं [°चन्द्र] एक जैनाचार्य । विप्पु स्त्री [विपुष्] बिन्दु, अवयव । °पहु पुं [प्रभु] इन्द्र । °पुर न. स्वर्ग । विप्पुअ वि [विप्लुत] उपद्रव-युक्त । विबुहेसर पुं [विबुधेश्वर] इन्द्र । विप्पुस पुंन. देखो विप्पु।
विबोह पुं [विबोध] जागरण । विप्पेक्ख सक [विप्र + ईक्ष् ] निरीक्षण | विबोहग देखो विबोहय । करना।
विबोहण न [विबोधन] ज्ञान कराना। विप्पोसहि स्त्री [विप्रौषधि] आध्यात्मिक- विबोहय वि [विबोधक] विकासक । ज्ञानशक्ति-विशेष, जिसके प्रभाव से योगी के विष्ठा | जनक। और मूत्र का बिन्दु ओषधि का काम | विब्बोअ पुं [विव्वोक] । देखो बिब्बोअ । करता है।
विभंग देखो विभंग। विप्फंद अक [वि + स्पन्द्] इधर-उधर
विन्भंत वि [विभ्रान्त] विशेष भ्रान्त । पुं. चलना, तड़फना।
प्रथम नरक का सातवाँ नरकेन्द्रक । विप्फरिस पुं[विस्पर्श] विरुद्ध स्पर्श । विब्भंस पुं [विभ्रंश] अतिपात, हिंसा । विप्फाडग वि [विपाटक] चीरनेवाला।
विन्भट वि [विभ्रष्ट] विशेष भ्रष्ट । विप्फाडिअ वि [दे. विपाटित] नाशित ।
विब्भम पुं [विभ्रम] विलास । स्त्री की शृंगार विप्फारिय वि [विस्फारित] विस्तारित ।
के अंग-भूत चेष्टा-विशेष। चित्त-भ्रम । विकासित।
श्रृंगार-सम्बन्धी मानसिक अशान्ति । विशेष विप्फाल सक पुं[दे] पूछना । प्रश्न ।
भ्रान्ति । संदेह । आश्चर्य । शोभा। भूषणों विप्फाल देखो विफाल।
का स्थान-विपर्यय । रावण का एक सुभट । विप्फालिय देखो विप्फारिय।
मैथुन, अब्रह्म । काम-विकार । विप्फुड वि [विस्फुट] स्पष्ट ।
विन्भल वि [विह्वल] व्याकुल । व्यासक्त । विप्फुर अक [वि + स्फुर्] होना । विकसना। पुं. विष्णु, नारायण ।
तड़फड़ना । फरकना, हिलना । विजृम्भना। | विब्भवण न [दे] ओसीसा । विप्फुल्ल वि [विफुल्ल] विकसित । विब्भाडिय वि [दे] नाशित । विप्फोडअ पुं [विस्फोटक] फोड़ा। विब्भार देखो वेभार। विफद देखो विप्फंद।
विभिडि [दे] मत्स्य को एक जाति । विफाल सक [वि + पाटय] विदारण करना । | विब्भेइअ वि [दे] सूई से विद्ध । उखाड़ना ।
| विभंग पुं [विभङ्ग] विपरीत अवधिज्ञान ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विभंगु-विमज्झ मिथ्यात्व-युक्त अवधिज्ञान । ज्ञान-विशेष ।। व्याख्या करना । विकल्प से विधान करना । विराधना । मैथुन, अब्रह्म । देखो विहंग = विभासय न [विभाषक] व्याख्याता, व्याख्याविभंग ।
कर्ता। विभंगु पुंस्त्री [दे] तृण-विशेष ।
विभासा स्त्री [विभाषा] विकल्प-विधि, विभंगुर वि [विभङ्गुर] विनश्वर । पाक्षिक प्राप्ति, भजना, विधि और निषेध का विभंज सक [वि + भन्] तोड़ना ।
विधान । स्पष्टीकरण । निवेदन । विविध विभंतडो (अप) स्त्री [विभ्रान्ति] विशिष्ट भाषण । विशेषोक्ति । परिभाषा, संकेत । एक भ्रम ।
महानदी। विभग्ग वि [विभग्न] भांगा हुआ, खण्डित । | विभासिय वि [विभासित] प्रकाशित । विभज सक [वि + भज्] बाँटना । पक्षतः
विभिण्ण देखो विहिण्ण = विभिन्न । प्राप्ति करना-विधान और निषेध करना। विभीसण पुं [विभीषण] रावण का एक छोटा विभज्ज देखो विभज । विभज्ज ।
भाई । विदेह वर्ष का एक वासुदेव । विभज्जवाद । पुं [विभज्यवाद] स्याद्वाद,
विभीसावण वि [विभीषण] भय-जनक । विभज्जवाय , अनेकान्तवाद, जैन दर्शन ।
विभीसिया स्त्री [विभिषिका] भय-प्रदर्शन । विभत्त वि [विभक्त] विभाग-युक्त। न.
विभु पुं. प्रभु । स्वामी । इक्ष्वाकु वंश का एक विभाग।
राजा । वि. व्यापक । विभत्ति स्त्री [विभक्ति] विभाग, भेद ।
विभूइ स्त्री [विभूति] ऐश्वर्य । धूमधाम ।
अहिंसा। व्याकरण-प्रसिद्ध प्रत्यय-विशेष । विभमण न [दे] ओसीसा।
विभूसण न [विभूषण] अलंकार । शोभा। विभय देखो विभज।
विभूसा स्त्री [विभूषा] सिंगार की सजावट । विभर सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, भूल
शरीर-शोभा । जाना।
विभूसिय वि [विभूषित] अलंकृत । विभव देखो विहव।
विभेद । पुं. भेदन, विदारण । भेद, प्रकार । विभवण न [विभवन] खराब करना।
विभेय । विभाइम वि [विभाज्य] विभाग-योग्य ।
विभेयग वि [विभेदक] भेदनकर्ता । विभाइम वि [विभागिम] विभाग से बना।
विमइ स्त्री [विमति छन्द-विशेष । विभाग पुं. अंश ।
विमइअ वि [दे] भत्सित, तिरस्कृत । विभागिम देखो विभाइम = विभागिम ।
विमउल वि [विमुकुल] विकसित । विभाय देखो विभाग।
विमंतिय वि [विमन्त्रित] जिसके बारे में विभाय न [विभात] प्रकाश, कान्ति, तेज । __ मसलहत-गुप्त युक्ति की गई हो वह । विभाय पुं [विभाव) परिचय ।
विमंसिअ वि [विमृष्ट, विमर्शित] विचारित । विभाव सक [वि+भावय] विचार करना । विमग देखो विमय ।
विवेक से ग्रहण करना । समझना । विमग्ग सक [वि+मार्गय] विचार करना । विभाव देखो विभव।
खोजना। प्रार्थना करना। इच्छा करना, विभावसु पं. देखो विहावसु ।
चाहना । मांगना । विभास सक [वि+भाष] स्पष्ट कहना। विमझ न [विमध्य] अन्तराल ।
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विमण- विमुक्क
विमण वि [ विमनस् ] शोक सन्तप्त । शून्यचित्त । निराश | जिसका मन अन्यत्र गया हो वह ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पर घिसना ।
विमलहर पुं [दे] कोलाहल ।
विमला स्त्री. ऊर्ध्व दिशा । धरणेन्द्र के लोकपालों की अग्र-महिषियों के नाम । गीतरति और गीतयश नाम के गन्धर्वेन्द्रों की अग्र महिषियों के नाम । चौदहवें जिनदेव की दीक्षाशिविका ।
विमद्द तक [वि + मर्दय् ] संघर्ष करना । मर्दन
करना ।
विमद्द पुं [विमर्द] विनाश । संघर्ष । विमन्न सक [वि + मत्] मानना, गिनना । विमय पुं [दे] पर्व-वनस्पति- विशेष । विमर (अप) नीचे देखो । विमरिपुं [वि + मृश् ] विचारना । विमरिस पुं [विमर्श ] विकल्प, विचार । विमल वि. विशुद्ध । पुं. इस अवसर्पिणी- काल में उत्पन्न तेरहवें जिनदेव । भारतवर्ष में होनेवाले बाईसवें जिन भगवान् । एक प्राचीन जैन आचार्य और कवि, 'पउमचरिअ' नामक जैन रामायण के कर्ता । एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव - विशेष | अजितनाथ का पूर्वजन्मीय नाम । पुंन. सहस्रार देवलोक के इन्द्र का एक पारि यानिक विमान । ब्रह्म देवलोक में स्थित एक देव - विमान | एक ग्रैवेयक देव - विमान | छः दिनों का उपवास । सात दिनों का उपवास । पुं. अहिंसा, दया । 'घोस पुं [ घोष] एक कुलकर पुरुष । 'चंद पुं [' चन्द्र ] एक जैन आचार्य | पहा स्त्री [प्रभा] शीतलनाथजी की दीक्षा शिविका । 'वर पुं. आनत - प्राणत देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान | वाहण पुं [ वाहन] भारतवर्ष के भावी प्रथम जिनदेव, जिनके दूसरे नाम देवसेन तथा महापद्म होंगे । कुलकर पुरुष - विशेष । भारतवर्ष का एक भावी चक्रवर्ती राजा । भगवान् अभिनन्दन के पूर्व जन्म के गुरु । भ० सम्भवनाथ का पूर्व - जन्मीय नाम | 'सामि पुं [स्वामिन् ] सिद्धचक्रजी का अधिष्ठायक देव | "सुंदरी स्त्री [सुन्दरी ] षष्ठ वासुदेव की पटरानी ।
विमाण पुंन [विमान ] देव का निवास भवन । देव-यान, आकाश यान । अपमान । वि. मानरहित प्रमाण शून्य । 'पविभत्ति स्त्री [' प्रविभक्ति ] जैन ग्रन्थ - विशेष । भवण न [भवन ] विमानाकार गृह । वासि पुं [ वासिन्] देवों की एक उत्तम जाति, वैमानिक देव | विमिस्स अ [विमृश्य ] विचार करके । गरि वि [कारिन्] विचार -पूर्वक करनेवाला । विमिस्स वि [ विमिश्र ] मिश्रित । विमिस्सण न [विमिश्रिण] मिश्रण, मिलावट | विमीसिय वि[विमिश्रित ] विमिश्र, मिश्रित । विम्उल देखो विमउल ।
विमुंच सक [वि + मुच् ] बन्धन - मुक्त करना । परित्याग करना | विमुकुल देखो विमउल |
विमलणन [विमर्दन] मणि आदि को शाण विमुक्क वि [ विमुक्त ] बन्धन-रहित । परि
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विमलिअ वि [विमर्दित] जिसका मर्दन किया गया हो ।
विमलिअ वि [ दे] मत्सर से उक्त । शब्दवाला । विमलेसर [विमलेश्वर ] सिद्धचक्रजी का
अधिष्ठायक देव |
विमलोत्तर पं. ऐरवत वर्ष का एक भावी जिनदेव |
विमहिद (ii) वि [विमथित] जिसका मथन किया गया हो वह । विमाउ स्त्री [विमातृ] सौतेली माँ ।
विमाण सक [वि + मानय् ] अपमान करना, तिरस्कार करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
त्यक्त । निःसंग |
विमुक्ख पुं [विमोक्ष ] मुक्ति । विमुच्छिवि [विमूच्छित] मूर्छा - प्राप्त । fara fara | विमुत्ति स्त्री [विमुक्ति ] मुक्ति । आचारांग सूत्र का अन्तिम अध्ययन | अहिंसा । विमुयण न [विमोचन ] परित्याग | विमुह वि [विमुख ] पराङ्मुख, उदासीन । पुं. एक नरक-स्थान । पुंन. आकाश । विमुह [वि + मुह ] व्याकुल होना । विमूढ वि. घबराया हुआ । अस्पष्ट । विमूरण व [ विभञ्जक ] खण्डनकर्ता विमोsय वि [विमोचित ] छुड़ाया हुआ । विमोक्ख देखो विमुक्ख ।
।
वाला ।
विमोडण न [विमोटन ] मोड़ना ।
विमोय सक [ वि + मोचय् ] छुड़ाना । विमो [विमोचक ] छोड़नेवाला, दूर करनेवाला |
विमोह सक [ वि + मोहय् ] मुग्ध करना । विमोह देखो विमोक्ख ।
विमोह वि. मोह - रहित । पुं. विशेष मोह,
विमोक्यवि [ विमोक्षक ] छुटकारा पाने विर (अप) देखो वीर ।
घबराहट । आचारांग सूत्र का एक अध्ययन । विमोहण न [विमोहन ] मोह उपजाना । वि.
मोह उपजानेवाला । विम्ह न [ वेश्मन् ] गृह | विम्हइअ वि [ विस्मित ] आश्चर्य चकित |
चमत्कृत |
विम्हय अक [ वि + स्मि ] चमत्कृत होना, विस्मित होना ।
विम् पुं [ विस्मय ] आश्चर्य, चमत्कार । विम्हर सक [स्मृ] याद करना । विम्हर सक [वि + स्मृ] भूल जाना । विहराइअवि [] मूर्च्छित । विस्मापि । विम्हरावण वि [स्मरण] स्मरण करानेवाला ।
विमुक्ख-विरय
विम्ल देखो विभल । विहारि वि [ विस्मारित] भुलाया हुआ । विहाव क [वि + स्मापय् ] आश्चर्य चकित
करना ।
विम्हावय वि [ विस्मापक] विस्मय-जनक | विम्हि वि[ विस्मित ] बिस्मय प्राप्त, चमत्कृत | विहिय (अप) देखो विम्हय । विम्हिर वि [ विस्मेर ] विस्मय पानेवाला, चमत्कृत होनेवाला |
वियच्चा देखो विअ-च्चा ।
विट्ट अक [वि + वृत् ] बरतना, होना । वियद्द पुं [ व्यर्द, व्य]] आकाश । विर सक [भ] भाँगना, तोड़ना । विर अक [ गुप्] व्याकुल होना ।
विरइ स्त्री [विरति ] विराम | सावध - पाप कर्म से निवृत्ति, संयम, त्याग । छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध विश्राम स्थान |
विरइअ वि[विरचित] निर्मित । सजाया हुआ । विरइअ देखो विराइअ । विरंचि पुं [विरञ्चि] ब्रह्मा |
विरच्च विरज्ज
अक [ वि + र ] रिक्त होना, उदासीन होना । रंग-रहित होना । विरत वि [विरक्त ] उदासीन, विराग प्राप्त । विविध रंगवाला ।
विरत्ति स्त्री [विरक्ति] वैराग्य, उदासीनता । विरम अक [ वि = रम् ] निवृत्त होना,
अटकना ।
विरमाण सक [ प्रति + पालय् ] पालन करना, रक्षण करना ।
विरमा सक [ प्रति + ईक्ष् ] राह देखना । विरय सक [वि + रचय् ] करना, बनाना ।
सजाना ।
विरयवि [विरत ] निवृत्त, रुका हुआ । पापकार्य से निवृत्त, संयमी, त्यागी । न विरति । संयम ।
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विरय-विरिक्क संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७५३ त्याग । विरय वि [विरत] आंशिक | विराइअ वि [विराजित] सुशोभित । संयम रखनेवाला, जैन उपासक ।
विराग पुं. वैराग्य । वि. राग-रहित । विरय [दे] छोटा जल-प्रवाह, छोटी नदी । विराड पुं [विराट] देश-विशेष । 'नयर न. विरय पुं[विरजस्] महाग्रह, ज्योतिष्क देव- [°नगर] नगर-विशेष । विशेष । एक देव-विमान ।
विराध (अप) पुं. एक राक्षस । विरया स्त्री [विरजा] गो-लोक में स्थित राधा | विराम पुं. निवृत्ति, अवसान । की एक सखी। उसके शाप से बनी हुई एक विरामण न [विरमण] निवर्तन, विरमाना । नदी।
विराय अक [वि + राज्] शोभना, चमकना । विरल वि. अल्प | अनिबिड । विच्छिन्न ।। विराय वि [विलीन] विगलित, नष्ट । पिघला विरलि स्त्री [दे] डोरी-वाला कपड़ा। हुआ। विरली देखो विराली।
विराय देखो विराग । विरल्ल सक [तन्] विस्तारना ।
विराल देखो बिराल। विरल्ल पुं [तान] विस्तार ।
विरालिआ स्त्री [विरालिका] पलाश-कन्द । विरल्लिअ देखो विरलिअ ।
पर्ववाला कन्द । देखो बिरालिआ । विरल्लिअ वि [दे] भीजा हुआ ।
विराली स्त्री. वल्ली-विशेष । चतुरिन्द्रिय जंतु विरस अक [वि + रस्] क्रन्दन करना।
की एक जाति । देखो बिराली। विरस वि. रस-सहित, शुष्क । विरुद्ध रसवाला ।
विराव पुं. शब्द, आवाज । पुं. राम-भ्राता भरत के साथ जैन दीक्षा लेने
विराह सक [वि+ राधय्] खण्डन करना । वाला एक राजा । निर्विकृतिक तप-विशेष ।
तोड़ना। विरस न [दे] बारह मास ।
विराहअ । वि [विराधक] खण्डन करनेविरसमुह पुं [दे] कौआ ।
विराहग , वाला तोड़नेवाला, भंजक । विरह सक [वि+रह.] परित्याग करना ।
विराहिअ वि [विराधित] खण्डित । अपराद्ध । अलग करना।
पुं. एक विद्याधर-नरेश । विरह पुं. वियोग । व्यवधान । पुं. वृक्ष-विशेष ।
विरिअ वि [भग्न] पाँगा हुआ, तोड़ा हुआ। अभाव । विनाश । हरिवंश का एक राजा।
विरिअ देखो वीरिअ। विरह वि [विरथ] रथ-रहित ।
विरिंच सक [वि + अज] भाग लेना, बाँटविरह पुंन [दे] एकान्त । विजन । कुसुंभ से | लेना । रंगा हुआ कपड़ा।
विरिंच पुं [विरिञ्च] ब्रह्मा । विरहाल न [दे] कुसुम्भ से रंगा हुआ वस्त्र । विरिंचि पुं [विरिञ्चि] ऊपर देखो । विरा अक [वि+ली] नष्ट होना। द्रवित | | विरिचिअ वि [दे] विमल । विरक्त । होना। अटकना, निवृत्त होना।
विरिंचर पुं [दे] अश्व । वि. विरल । विराइ वि [विरागिन्] विरागवाला। स्त्री. | विरिचिरा स्त्री [दे] धारा, प्रवाह । °णी (नाट) ।
विरिक्क वि [दे] विदारित ! विराइ वि [विराजिन्]शोभनेवाला, चमकता। विरिक्क वि [विरिक्त] जो खाली हुआ हो । विराइ वि [विराविन्] आवाजवाला। विरिक वि [विभक्त बाँटा हुआ। जिसने विराइअ देखो विराय = विलीन ।
भाग वाँट लिया हो वह ।
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७५४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विरिक्का-विलद्ध विरिक्का स्त्री [दे] विन्दु, लव । । विलइअ वि [दे] धनुष की डोरी पर चढ़ाया विरिचिर वि [दे] धारा से विरेचन कर्ता । हुआ। गरीब । आरोपित । विरिज्जय वि [दे] अनुचर, अनुगत । | विलओलग पुं [दे] लुटेरा।। विरिल्ल सक [वि+स्तु] विस्तारना। विलओली स्त्री [दे] विस्वर वचन । विलोकना, विरीअ (अप) देखो विवरीअ ।
तलाशी । देखो बिलकोली । विरीह सक [प्रति + पालय] पालन करना । | विलंघ सक [वि + ल] उल्लंघन करना । रक्षण करना।
विलंघल (अप) देखो विहलंघल। विरु । अक [वि+रु] रोना, चिल्लाना। विलंघलिअ (अप) वि [विह वलाङ्गित] विरुष ।
व्याकुल शरीरवाला। विरुअन [विरुत] ध्वनि, पक्षी की आवाज । विलंब देखो विडंब - वि + डम्बय् । विरुअ वि [दे.विरूप] खराब । दुष्ट रूपवाला।
विलंब अक [वि + लम्ब्] देरी करना । सक. विरुद्ध । देखो विरूअ ।
लटकाना, धारण करना। विरु? [विरुष्ट] नरक-स्थान-विशेष ।।
विलंब पुं [विलम्ब] देरी। पूर्वाधं तपविरुद्ध वि. विरोधवाला। यारि वि[°चारिन्]
विशेष । न. सूर्य के द्वारा परिभोग कर विपरीत आचरण करनेवाला ।
छोड़ा हश्रा नक्षत्र । विरुव देखो विरूव ।
विलंबग वि [विलम्बक] धारण करनेवाला । विरुह अक [वि + रुह] विशेष रूप से विलंबणा देखो विडंबणा। उगना।
विलंबणा स्त्री [विडम्बना] निर्वर्तना, विरुह देखो विरूह ।
बनावट। विरूअ । वि [विरूप] कुरूप, भौंड़ा। विलंबि न विलम्बिन्] सूर्य के द्वारा भोगकर विरूव विरुद्ध । बहुविध ।
छोड़ा हुआ नक्षत्र । सूर्य जिसपर हो उसके विरूह पुन [विरूढ] अंकुरित द्विदल-धान्य । पीछे का तीसरा नक्षत्र ।। विरेअ सक [वि + रेचय] मल को नीचे से | विलंबिअ वि [विलम्बित] विलम्ब-युक्त । न. निकालना । बाहर निकालना।
नक्षत्र-विशेष । नाट्य-विशेष । विरेअण न [विरेचन] जुलाब । वि. भेदक, विलक्ख वि [विलक्ष] लज्जित । मूढ । विनाशक ।
विलक्ख । न [वैलक्ष्य] विलक्षता, विरेल्लिअ देखो विरिल्लिअ ।
विलक्खिम , लज्जा। पुंस्त्री. । विरोयण पुं [विरोचन] अग्नि ।
विलग्ग सक [वि+लग्] अवलम्बन करना । विरोल सक [मन्थ्] विलोड़न करना । चढ़ना । पकड़ना । चिपटना । विरोल सक [वि + लग] अवलम्बन करना। विलग्ग वि [विलग्न] चिपटा हुआ। चढ़ना।
अवलम्बित । आरूढ । विरोह सक [वि + रोधय] विरोध करना। | विलज्ज अक [वि+ लस्ज् ] शरमाना। विरोह पुं[विरोध] विरुद्धता, वैर । विलट्ठि पुंस्त्री [वियष्टि] साढ़े तीन हाथ में विरोहय वि [विरोधक] विरोधकर्ता । चार अंगुल कम लट्ठी, जैन साधुओं का उपविल अक [वीड] लज्जा करना।
करण-दंड । विल न. नमक-विशेष ।
| विलद्ध वि [विलब्ध] सुलब्ध ।
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विलप्प-विलूण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७५५ विलप्प पुं [विलात्ममन्] एक नरक-स्थान । विलिंप सक [वि + लिप्] लेप करना । विलभ सक [खेदय्] खिन्न करना । विलिज्ज अक [वि + ली] नष्ट होना । विलमा स्त्री [दे] धनुष की डोरी ।
पिघलना। विलय पुं [दे] सूर्य का अस्त होना । विलित देखो विलिअ - वीडित । विलय पुं. विनाश । तल्लीनता। पुं.एक नरक- विलित्त वि [विलिप्त] लिपा हुआ। स्थान ।
विलिव्विली स्त्री [दे] नाजुक बदनवाली विलया स्त्री [वनिता] स्त्री, महिला, नारी।। नारी । विलव अक [वि + लप्] रोना, चिल्लाना। | विलिह सक [वि+लिख्] रेखा करना । विलवण वि [विलपन] रोनेवाला, चिल्लाने- चित्र बनाना । खोदना ।
वाला । °या स्त्री [°ता] विलाप, क्रन्दन । | विलिह सक [ वि + लिह, ] चाटना । चुम्बन . विलस अक [वि + लस्] विलास करना । मौज
करना। करना । चमकना ।
विलीअ देखो विलिअ = वीडित । विलसिय न [विलसित] चेष्टा-विशेष । विलीअ देखो विलिअ = व्यलीक । दीप्ति ।
विलीइर वि [विलेतृ] पिघलनेवाला । विला देखो विरा।
विलीण वि [विलीन] पिघला हुआ । विनष्ट । विलाल देखो बिराल।
जुगुप्सित । विलाव पुं [विलाप] बिलख-बिलख कर विलुंगयाम वि [दे] निर्ग्रन्थ, अकिंचन, साधु । रोना ।
विलुंचण न [विलुञ्चन] जड़ से उखाड़ना । विलास पुं. स्त्री का नेत्र-विकार । अंग और विलुप सक [वि + लुप्] लूटना । काटना । क्रिया सम्बन्धी स्त्री की चेष्टा-विशेष । दीप्ति । विनाश करना । मौज । 'पुर न. नगर-विशेष । °वई स्त्री विलंप सक [काङ्क्ष] अभिलाष करना । [°वती] स्त्री, नारी ।
विलुपइत्तु वि विलोप्तृ] विलोप-कर्ता, विलासिअ वि [विलासिक, सित] विलास
काटनेवाला। युक्त।
विलुपय पुं [दे] कीड़ा। विलासिणी स्त्री. नारी, वेश्या ।
विलुपिअ ' [दे. विलुप्त] खाया हुआ। देखो विलिअ न [व्यलीक] वह अपराध जो काम के विलुत्त । आवेग के कारण किया जाय। अकार्य। | विलुपित्तु देखो विलुपइत्त । अप्रिय । अनृत । प्रतारणा। गति-विपर्यय । विलुक्क [दे] छिपा हुआ। वि. अपराधी । अकार्य-कर्ता । विप्रिय-कर्ता । | विलुक्क वि [विलुञ्चित] सर्वथा केश-रहित झूठ बोलनेवाला।
किया हुआ। विलिअ वि [वीडित] लज्जित ।
विलुत्त वि [विलुप्त ] काटा हुआ, छिन्न । विलिअ न [ दे. व्रीडित] लज्जा।
लुटा हुआ। विनष्ट । विलिइअ वि [व्यलीकित] व्यलीक-युक्त। विलुत्तहिअअ वि [दे] जो समय पर काम विलिंग सक [वि + लिङ्ग् ] आलिङ्गन करने को न जानता हो वह । करना, स्पर्श करना।
विलुलिअ वि [विलुलित] उपमर्दित । विलिंजरा स्त्री [दे] धाना, भुने हुए जौ। विलूण वि [विलून] काटा हुआ, छिन्न ।
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७५६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विलेवण-विवणीय विलेवण न [विलेपन शरीर पर लगाने का विल्ह वि [दे] सफेद ।
चन्दन, कुंकुम आदि पिष्ट द्रव्य । लेपन- विव देखो इव । क्रिया।
। विवइ स्त्री [विपद्] विपत्ति, दुःख । °गर वि विलेविअ वि [विलेपित] विलेपन-युक्त। [°कर] दुःख-जनक। विलेविआ स्त्री [विलेपिका] पान-विशेष । विवइ स्त्री [विवृति] व्याख्या, विवरण, विलेहिअ वि [विलेखित] चित्रित, कृत। . टीका । विस्तार । विलोअ सक [वि + लोक देखना। निरीक्षण विवइण्ण वि [विप्रकीर्ण] बिखरा हुआ। करना।
विवंक वि [विवक्र विशेष बाँका । विलोअ ' [विलोक] आलोक, प्रकाश । विवंचिआ स्त्री [विपश्चिका] वीणा । विलोअ देखो विलोव।
विवक्क वि [विपक्व] अच्छी तरह पूर्ण किया विलोअण पुंन [विलोचन] आँख ।
हुआ । प्रकर्ष को प्राप्त, अत्यन्त पका हुआ। विलोट्ट अक [ विसं + वद् ] अप्रमाणित उदय में आगत, पलाभिमुख । होना । उलटा होना।
विवक्ख पुं विपक्ष] दुश्मन । न्याय-शास्त्रविलोट्ट । वि [विसंवदित] जो झूठा । प्रसिद्ध विरुद्ध पक्ष, वह वस्तु जहाँ साध्य आदि विलोट्टिअ J साबित हुआ हो । प्रतिज्ञा- का अभाव हो । विपरीत धर्म । विसदृशता । च्युत । विरुद्ध बना हुआ।
विवक्खा स्त्री [विवक्षा] कहने की इच्छा । विलोड सक [वि + लोड्य] मंथन करना। विवग्घ वि [विव्याघ्र] व्याघ्र-चर्म-युक्त । विलोभ सक [वि + लोभय] लुब्ध करना।
विवच्चास पुं [विपर्यास] विपरीतता । लालच देना । विस्मय उपजाना ।
विवच्छा स्त्री [विवत्सा] एक महानदी । वत्सविलोल देखो विलोड।
रहित स्त्री। विलोल अक [वि+लुठ ] लेटना । विवज्ज अक [वि+ पद्] मरना, नष्ट होना। विलोल वि. अस्थिर ।
विवज्ज सक [वि + वर्जय] परित्याग विलोव पुं [विलोप] लूट, डकैती ।
करना । विलोवय वि [विलोपक] लूटनेवाला । विवज्ज वि [विवर्ज] रहित । परित्याग, विलोह देखा विलोभ ।
परिहार। विल्ल अक [वेल्ल्] चलना, हिलना । विवज्जग वि [विवर्जक] वर्जन करनेवाला । विल्ल देखो बिल्ल।
विवज्जत्थ वि [विपर्यस्त] विपरीत । विल्ल वि [दे] स्वच्छ । विलसित । पन. विवज्जय पुं[विपर्यय] विपर्यास, वैपरीत्य । सुगंधी द्रव्य-विशेष, जो धूप के काम में विवज्जास पुं [विपर्यास] विपर्यय, व्यत्यय । आता है।
भ्रम, मिथ्याज्ञान । विल्लय देखो चिल्लअ ।
विवट्ट अक [ वि + वृत् ] बरतना, रहना । विल्लय देखो वेल्लग।
विवडिय वि [विपतित] गिरा हुआ। विल्लरी स्त्री [दे] बाल ।
विवड्ढ अक [वि + वृध्] बढ़ना । विल्लल देखो बिल्लल ।
विवड्ढि स्त्री [विवृद्धि] बढ़ाव । विल्लहल देखो वेल्लहल। ।
विवणि पुंस्त्री [विपणि] बाजार । दूकान । विल्ली स्त्री [विल्वी] गुच्छ-वनस्पति-विशेष । विवणीय वि [व्यपनीत] दूर किया हुआ ।
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विवण - विविह
७५७
विवरण वि [ विपन्न ] नाशप्राप्त, मृत । विवण्ण वि [ विवर्ण] कुरूप | निस्तेज | विवरण वि[द्विपर्ण] दो पत्रवाला । पुं. वृक्ष । विवत्त पुं [ विवर्त्त] एक महाग्रह, ज्योतिष्क
विवहक [ वि + वह ] विवाह करना । विवहण न [विव्यधन] विनाश | विवाइअ व [ विपादित ] जो जान से मार डाला गया हो वह ।
देव - विशेष |
विवाउग वि [ विवादक] विवाद - कर्ता ।
विवत्ति स्त्री [विपत्ति ] विनाश | मरण । विवाग पुं [ विपाक ] सुख-दुःखादि भोग रूप कर्मफल | प्रकर्ष | पाककाल | विजय पुंन. ['विचय] धर्मध्यान का एक भेद, कर्म फल का अनुचिन्तन । 'सुन [श्रुत] ग्यारहवाँ जैन अङ्ग-ग्रन्थ ।
विवाद । पुं. झगड़ा, कलह, जबानी लड़ाई । विवाय
कार्य की असिद्धि | आपदा । विवत्तिय वि [विवर्त्तित] फिराया हुआ । विवत्थ पुं [ विवस्त्र ] एक महाग्रह | विवदि स्त्री [ विवृति ] देखो विवइ । विवद्धण न [विवर्धन] वृद्धि | विवद्धि पुं [विवध ] देव - विशेष |
विवय अक [वि + वद्] झगड़ा करना, विवाद विवाय सक [ वि + पादय् ] मार डालना ।
विवाय देखो विवाग ।
करना ।
विवयवि [दे] विस्तीर्ण । विवया स्त्री [विपद् ] कष्ट । विवर सक [वि + वृ]
विस्तारना | व्याख्या या टीका करना । विवर न छिद्र । गुहा । एकान्त ।
विवरिअ
विवरीअ
विवरीर
विवरेर
आकाश ।
विवरंमुह वि [विपराङ्मुख ] विमुख ।
विवरामुह
विवराहुत्त
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विवाविड न [] अतिशय गौरव ।
विवाह क [वि + वाहय् ] लग्न करना ।
बाल सँवारना । विवाह देखो विआह = विवाह | 'गणय पुं [° गणक] ज्योतिषी । 'जन्न पुं [ 'यज्ञ ] विवाह उत्सव |
देखो विवरंमुह |
(अप) वि [ विपरीत ] प्रतिकूल |
●णु वि ['ज्ञ] उलटा जानने
वाला । (अप) 1
fara
वि [विपरोक्ष ] परोक्ष ।
विवरोक्ख अभाव । परोक्षता । विवल अक [ वि + वल् ] मुड़ना,
होना । विवला
पुंन.
विवलाअ
विवलीअ देखो विवरीअ ।
विवल्हत्थ वि [ विपर्यस्त ] विपरीत । विवस वि [विवश ] अधीन । लाचार ।
न.
टेढ़ा
अक [ विपरा + अय् ] पलायन
करना, भाग जाना ।
विवाह देखो विआह = विबाध । विवाह देखो विआह = व्याख्या | विवाहाविय वि [ विवाहित ] जिसकी शादी कराई गई हो वह ।
विविइसा स्त्री [विविदिषा ] जिज्ञासा । विविक्क देखो विवित् ।
विविच सक [वि + विच् ] पृथक् करना । विविण न [विपिन ] जंगल ।
विवित्तवि[ विविक्त ] रहित । पृथग्भूत । विविध | न. एकान्त ।
वित्ति [ विविक्त] विवेक-युक्त | संविग्न,
भव भीरु ।
विविदिअ वि [ विविदित ] विशेषरूप से ज्ञात । विविदिसा देखो विविइसा ।
विविद्धि पुं [विवृद्धि] उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव ।
विवि वि [ विविध ] अनेक प्रकार का ।
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७५८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विवुअ-विसंवय विवअ वि [विवृत] विस्तृत । व्याख्यात ।। विस पुं [वृष] बैल । ज्योतिष-प्रसिद्ध एक विवुज्झ अक [वि + बुध्] जागना । राशि । चूहा। धर्म । बल-युक्त । ऋषभ विवुड्ढि देखो विवड्ढि ।
नामक औषध । पुरुष-विशेष । कन्दर्प । वीर्यविवुद देखो विवुअ।
युक्त । शृङ्गवाला कोई भी जानवर । विवुदि देखो विवदि।
विसइ वि [विषयिन] विषयवाला। विवुह देखो विबुह ।
विसंक वि [विशङ्क] निःशंक । विवेअ देखो विवेग । न्तु वि [ज्ञ] विवेक- विसंखल वि [विशृङ्खल] स्वच्छन्द, उद्धत । ज्ञाता।
विसंखल सक [विशृङ्खलय] निरंकुश करना। विवेअ पुं [विवेप] विशेष कंप ।
अव्यवस्थित कर डालना। विवेइ वि [विवेकिन्] विवेकवाला ।
विसंघट्टिय वि[विसंघट्टित] वियुक्त, विघटित । विवेग पुं [विवेक] परित्याग । ठीक-ठीक वस्तु
विसंघड अक [ विसं+घट ] अलग होना ।
विसंघाइय वि [विसंघातित] संहत किया स्वरूप का निर्णय । प्रायश्चित्त । पृथक्करण
हुआ। (औप)। विवेच सक [वि+वेचय] ठीक-ठीक निर्णय
विसंघाय सक [विसं+घातय] संहत करना।
विसंजुत्त वि [विसंयुक्त] जो अलग हुआ हो । करना । विवेक करना । विवेयण न [विवेचन] विवेक, निर्णय ।
| विसंजोअ सक [विसं + योजय् ] वियुक्त
करना। विवोल पुं. [दे] विशेष कोलाहल । विवोलिअ वि. [दे] गुजरा हुआ।
विसंजोअ । पु [विसंयोग] वियोग, विघटन,
विसंजोग ! पृथग्भाव, जुदाई । विवोह देखो विबोह।
विसंठुल वि [विसंस्थल] विह्वल । अव्यवस्थित । विव्व सक [वि + अय] व्यय करना। देखो
विसंतव पुं [द्विषन्तप] शत्रु को तपानेवाला । विच्च = वि = अय् ।
विसंथुल देखो विसंठुल। विव्वाय वि. [दे] अवलोकित । विश्रान्त ।
विसंधि पुं [विसन्धि] एक महाग्रह ज्योतिष्क विव्वोअ देखो बिब्बोअ ।
देव-विशेष । वि. बन्धन-रहित । कप्प, विव्वोयण [दे] देखो बिब्बोयण ।
"कप्पेल्लय पुं. [कल्प] एक महाग्रह । विस अक [विश्] प्रवेश करना ।
विसंनिविट्ठ न [विसंनिविष्ट] विविध रथ्या । विस सक [वि+श ] हिंसा करना । नष्ट
विसंभ देखो वीसंभ। करना ।
विसंभणया देखो विस्संभणया । विस पुंन [विष] जहर । पानी । नंदि पुं
विसंभोइय वि [विसंभोगिक] जिसके साथ [°नन्दिन्] प्रथम बलदेव का पूर्वभवीय नाम । न्न ["Tन्न] विष-मिश्रित अन्न । °मइअ,
भोजन आदि का व्यवहार न किया जाय वह, °मय वि. विष का बना हुआ। °व वि [°वत्]
मंडली-बाह्य, समाज बाह्य । विषवाला । पुं. सर्प । हर पुं [°धर] सांप। विसंभोग पुं. [विसंभोग] साथ बैठकर भोजन
हरवइ पुं [धरपति]। हरिंद | आदि का अव्यवहार । [°धरेन्द्र] शेषनाग । हारिणी स्त्री. पनी-विसंवइय वि. [ विसंवदित ] सबूत-रहित । हारी।
अप्रमाणित । विषटित, वियुक्त । विस देखो बिस।
विसंवय अक [विसं+वद्] अप्रमाणित होना।
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विसंवयण-विसमिर संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७५९ विघटित होना, अलग होना । विपरीत होना।। विसढ वि [दे] राग-रहित । नीरोग । सहन विसंवयण न [विसंवदन] विसंवाद, सबूत का किया हुआ । विशीर्ण । आकुल । अभाव।
विसढ वि [विशठ] अत्यंत दंभी, अतिशय विसंवाइ वि [विसंवादिन] विघटित होनेवाला, | मायावी । पुं. एक श्रेष्ठि-पुत्र ।।
विच्छन्न होनेवाला । अप्रमाणित होनेवाला । विसण देखो वसण = वृषण । विसंवाइअ वि [विसंवादित] विसंवाद-युक्त । विसण न [वेशन] प्रवेश । विसंवाद देखो विसंवाय = विसंवाद । विसण्ण वि [विसंज्ञ] संज्ञा-रहित, चैतम्यविसंवादण देखो विसंवायण।
वजित। विसंवादणा देखो विसंवायणा।
विसण्ण वि [विषण्ण] खिन्न । आसक्त । विसंवाय वि. [दे] मैला ।
निमग्न । पुं. अपंयम । विसंवाय पुं [विसंवाद] सबूत का अभाव ।
विसत्त वि [विसत्त्व सत्त्व-रहित ।
विसत्थ देखो वीसत्थ । विरुद्ध, सबूत । व्याघात । विचलता । विसंवायग वि [विसंवादक] सबूत-रहित ।
विसद देखो विसय = विशद । ठगनेवाला।
विसद्द पुं विशब्द] विशिष्ट शब्द । वि. विसंवायण न [विसंवादन] नीचे देखो। विशिष्ट शब्दवाला। विसंवायणा स्त्री [विसंवादना] असत्य कथन । | विसन्न देखो विस-न्न । वंचना।
विसन्ना स्त्री [विसंज्ञा] विद्या-विशेष । विसंसरिय वि [विसंसृत] उठा हुआ।
विसप्प अक [वि + सृप्] फैलना। विसंहणा देखो विस्संभणया।
विसप्प [विसर्प] एक नरक-स्थान । विसकल । वि [विशकल] । वि [विश- विसम देखो वीसम - वि + श्रम् । विसकलिय , कलित] टकड़ा-टुकड़ा किया | विसम वि [विषम] ऊँचा-नीचा। असमान, हुआ, खण्डित ।
अतुल्य । एकी संख्या, जैसे-एक, तीम, विसग्ग पुं [विसर्ग] निसर्ग, त्याग। विसर्जन, पाँच, सात आदि । दारुण, कठिन । संकट ।
छुटकारा । अक्षर-विशेष, विसर्जनीय वर्ण ।। संकीर्ण । पुन. आकाश । °क्खर वि [°ाक्षर विसज्ज सक [ वि + सृज, सर्जय ] बिदा | अपसिद्धान्तवाला, असत्य निर्णय-वाला । करना । त्यागना।
°लोअण पुं [°लोचन] महादेव । °वाण पुं विसट्ट अक [दल्] फटना, टूटना, टुकड़े-टुकड़े | ["बाण] । °सर पुं[शर] कामदेव । होना।
विसमय न [दे] भल्लातक, भिलावा । विसट्ट अक [वि + कस्] विकसना। विसमय देखो विस-मय। विसट्ट सक [वि + कासय] विकसित करना । विसमिअ वि [विषमित] बीच-बीच में विसट्ट अक [पत्] गिरना, स्खलित होना । | विच्छेदित । विषम बना हुआ । विसट्ट वि [दे] विघटित, विश्लिष्ट । विकसित । | विसमिअ वि [विस्मृत] भूला हुआ। दलित, खण्डित, जिसका टुकड़ा-टुकड़ा हुआ विसमिअ [विश्रमित] विश्रान्त किया हुआ । हो । उत्थित ।
विसमिअ वि [दे] निर्मल । उत्थित । विसड । देखो विसम।
विसमिर वि [विश्रमित] विश्राम करनेवाला । विसढ ।
स्त्री. री।
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७६०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विसम्म-विसाहिम विसम्म अक [वि + श्रम्] विश्राम करना। , विसाय सक [वि + स्वादय] विशेष चखना, विसय वि [विशद] स्वच्छ । व्यक्त । धवल। खाना। विसय पुंन [विशय] गृह । सम्भव । | विसाय पुं [विषाद] शोक, दिलगीरी। °वंत विसय पुं [विषय] इन्द्रिय आदि से जाना | वि [°वत्] शोकग्रस्त ।
जाता पदार्थ । जनपद । काम-भोग, विलास । विसाय वि [विसात सुख-रहित । पुन. एक बाबत, प्रस्ताव । विहइ पुं [°ाधिपति], देव-विमान । देश का मालिक ।
विसाय वि [विस्वाद] स्वाद-रहित । विसर सक [वि+सृज्] त्याग करना। बिदा विसार सक [वि + सारय् ] फैलाना। करना।
विसार पुं [दे] सैन्य । . विसर अक [वि + सृ] सरकना, धसना, नीचे विसार वि. सार-रहित । गिरना।
विसारण न [विशारण] खण्डन । विसर सक [वि + स्मृ] भूल जाना। विसारणिय वि [विस्मारणिक] जिसको याद विसर पुं [दे] सैन्य ।
न दिलाया गया हो वह । विसर पुं. समूह।
विसारय वि [दे] धृष्ट, ढीठ, साहसी । विसरण न [विशरण] विनाश ।
विसारय वि [विशारद] विद्वान्, पण्डित । विसरय पुंन [दे] वाद्य-विशेष ।
विसारि पुं [दे] कमलासन, ब्रह्मा । विसरा स्त्री. मच्छी पकड़ने का जाल । विसाल वि [विशाल] बड़ा, विस्तीर्ण । पुं. विसरिया स्त्री [दे] सरट, कृकलास, गिरगिट। एक ग्रह-देवता, अठासी महाग्रहों में एक विसरिस वि [विसदृश] असमान, विजातीय । महाग्रह । क्रन्दित-निकाय का उत्तर दिशा का विसलेस पुं [विश्लेष] जुदाई ।
इन्द्र । पुन. देव-विमान-विशेष । न. एक विसल्ल वि [विशल्य] शल्य-रहित । करणी विद्याधर-नगर । स्त्री. विद्या-विशेष ।
विसालय पुंदे] समुद्र । विसल्ला स्त्री [विशल्या] एक महौषधि ।
विसाला स्त्री [विशाला] एक नगरी, उज्जलक्ष्मण की एक स्त्री।
यिनी । भ० पार्श्वनाथ की दीक्षाशिबिका । विसस सक [वि + शस्] वध करना ।
जम्बूवृक्ष-विशेष, जिससे यह जम्बूद्वीप कहलाता विसस देखो विस्सस = वि + श्वस् ।
है। राजधानी विशेष । भ० महावीर की विसह सक [वि+षह.] सहन करना ।
माता । एक पुष्करिणी। विसह देखो वसभ।
विसालिस देखो विसरिस। विसाअ (अप) स्त्री [विश्वा] छन्द-विशेष ।
विसासण वि [विशासन] विनाशक । विसाइ वि [विषादिन] विषाद युक्त ।
विसासिअ वि [विशासित] मारित । विशेष विसाण न [विषाण] हाथी का दाँत । सींग । रूप से धषित । विश्लेषित । मार भगाया सूअर का दाँत । पुं. ब. देश-विशेष ।
हुआ। विसाण सक [विशाणय] घिसना, शाण पर | विसाह पुं [विशाख] कार्तिकेय । चढ़ाना।
विसाहा स्त्री [विशाखा] नक्षत्र-विशेष । एक विसाणि वि [विषाणिन्] सींगवाला। पुं. | स्त्री। एक विद्याधर-कन्या । हाथी । सिंघाड़ा । ऋषभ नामक औषध । विसाहिअ वि [विसाधित] सिद्ध किया गया।
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विसाही-विसोहि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७६१ न. संसिद्धि।
विसूइया स्त्री [विसूचिका] रोग-विशेष, विसाही स्त्री [वैशाखी] वैशाख मास की हैजा । पूर्णिमा या अमावस ।
विसूणिय वि [विशूनित] फूला हुआ। सूजा विसि स्त्री [दे] करि-शारी, गज-पर्याण ।। हुआ । काटा हुआ। विसि देखो बिसि।
विसूर देखो विसुमर । विसिट्ठ वि [विशिष्ट] प्रधान । विशेष-युक्त । विसूर अक [खिद्] खेद करना। सुसभ्य । युक्त । व्यतिरिक्त । पुं. द्वीपकुमार- विसूहिय पुंन [विष्णग्हित] एक देव-विमान । देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र । न. छः | विसेढि स्त्री [विश्रेणि] विदिशा सम्बन्धी दिनों का उपवास । दिट्ठि स्त्री [दृष्टि श्रेणि, वक्र रेखा । वि. विश्रेणि में स्थित । अहिंसा।
विसेस सक [वि+शेषय] गुण आदि द्वारा विसिटि स्त्री [विसृष्टि] विपरीत क्रम । दूसरे से भिन्न करना, विशेषण से अन्वित विसिण विदे] प्रचुर रोमवाला।
करना। विसिस सक [वि + शिष् ] विशेषण-युक्त । विसेस पुन. [विशेष] प्रभेद । भिन्नता । भेद । करना।
असाधारण, अमुक, व्यक्ति, खास । पर्याय, विसिह पुं [विशिख] बाण, तीर । वि. शिखा- धर्म, गुण । अधिक । तिलक । साहित्यशास्त्ररहित ।
प्रसिद्ध अलंकार-विशेष । वैशेषिक-प्रसिद्ध विसी देखो बिसी।
अन्त्य पदार्थ । “न्नु [ज्ञ] विशेष जानने विसी स्त्री [विंशति] बीस, बीस का समूह ।
वाला । °ओ अ [ 'तस् ] खास करके । विसीअ अक [वि + सद्] खेद करना ।
विसेस पुं [विश्लेष पृथक्करण ।
विसेसण न [विशेषण] दूसरे से भिन्नता निमग्न होना।
बतानेवाला गुण आदि । विसीइय वि [विशीर्ण] जीर्ण, त्रुटित । न. जर्जरित होना।
| विसेसय पुंन [विशेषक] तिलक । विसील वि [विशील] व्यभिचारी। खराब
विसेसिअ वि [विशेषित] विशेषण-युक्त किया स्वभाववाला, विरूप आचरणवाला ।
हुआ, भेदित । अतिशयित । विसुज्झ सक [वि + शुध्] शुद्धि करना।
| विसेस्स देखो विसेरा। विसुणिय वि [विश्रुत] विज्ञात । विसोग वि [विशोक] शोक-रहित । विसुत्त वि [विस्रोतस्] प्रतिकूल । खराब, | विसोत्तिया स्त्री विस्रोतसिका] विमार्ग
गमन । दुष्ट चिन्तन । शंका । विसुत्तिया देखो विसोत्तिया ।
विसोपग । पुन [ दे. विंशोपक] कौड़ी का विसुद्ध वि [विशुद्ध] निर्मल, निर्दोष । विशद, | विसोवग । बीसवाँ हिस्सा ।
उज्ज्वल । पुं. ब्रह्मदेवलोक का एक प्रतर।। विसोह सक [वि + शोधय्] शुद्ध करना । विसुद्धि स्त्री [विशुद्धि] निर्दोषता, निर्मलता। निर्दोष बनाना । त्याग करना । विसुमर सक [वि + स्मृ] भूल जाना। विसोह वि [विशोभ] शोभा-रहित । विसुराविय वि [खेदित] खिन्न किया हुआ। विसोहय वि [विशोधक] शुद्धि-कर्ता । विसुव न [विषुवत्] रात और दिन की | विसोहि स्त्री [विशोधि] विशुद्धता । अपराध - समानतावाला काल ।
के योग्य प्रायश्चित्त । आवश्यक, सामयिक
दुष्ट ।
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७६२ ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विसोहिय-विहंग आदि षट कर्म । भिक्षा का एक दोष, जिस विस्सम अक [ वि +श्रम् ] थाक लेना । दोषवाले आहार का त्याग करने पर शेष विस्सम पुं [विश्रम] विश्राम । भिक्षा या भिक्षा-पात्र विशुद्ध हो वह दोष । | विस्सर सक [वि + स्म भूलना।
कोडि स्त्री ['कोटि] पूर्वोक्त विशोधि-दोष | विस्सर वि [विस्वर] खराब आवाजवाला। का प्रकार।
विस्सस सक [वि + श्वस्] विश्वास करना । विसोहिय वि [विशोधित] शुद्ध किया हुआ। विस्साणिय वि [विश्राणित] दिया हुआ । पुं. मोक्ष-मार्ग।
विस्साम देखो वीसाम। विस्स देखो विस = विश् ।
विस्सामण न [विश्रामण] अंग-मर्दन आदि विस्स न [विस्र] अपक्व मांस आदि की बू ।। भक्ति, वैयावृत्य । वि. कच्ची गन्धवाला । गंधि वि[°गन्धिन्] | विस्सार सक [वि+ स्म] भूल जाना। आमगन्धि, अपक्व मांस के समान गंधवाला। विस्सार सक [वि + स्मारय् ] विस्मरण विस्स [विश्व] उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का अधिष्ठाता | करवाना।
देव । स. सर्व । पन. जगत् । °इ [जित् विस्सारण न [विसारण] विस्तारण । यज्ञ-विशेष । कम्म पुं [°कर्मन्] शिल्पी- | विस्साव देखो विसाय = वि + स्वादय् । विशेष, देव-वर्ध कि । °पुर न. नगर विशेष । | विस्सावसु पुं [विश्वावसु ] एक गन्धर्व, देव
भूइ पुं [भूति] प्रथम वासुदेव का पूर्व | विशेष। भवीय नाम । यम्म देखो कम्म । °वाइअ | विस्सास पुं [विश्वास] प्रतीति, श्रद्धा । पं| वादिक ] भ० महावीर का एक गण । | विस्माहल पुं [विश्वाहल] अंग-विद्या का °सेण पुं [°सेन भ० शान्तिनाथजी का पिता, | जानकार चतुर्थ रुद्र-पुरुष । एक राजा । अहोरात्र का एक महतं । देखो | विस्सुअ वि [विश्रुत] प्रसिद्ध । वीस = विश्व ।
विस्मरि देखो विसुमरि। विस्सअ (मा) देखो विम्हय = विस्मय । विस्सेणि । स्त्री विश्रेणि, °णी] विस्संत देखो वीसंत ।
विस्सेणी ) निःश्रेणि, सीढ़ी । विस्संतिअ न [विश्रान्तिक] मथुरा का एक | विस्सेसर पुं [विश्वेश्वर] काशी में स्थित तीर्थ ।
महादेव की एक मूत्ति । विस्संद अक [वि + स्यन्द्] टपकना, झरना। | विस्सोअसिआ देखो विसोत्तिआ । चुना।
विह सक [व्यध्] ताड़न करना । विस्संभ सक [वि+श्रम्भ] विश्वास करना ।
| विह देखो विस = विष । विस्संभ पुं [विश्रम्भ] विश्वास, श्रद्धा । °घाइ | विह पुन [दे] मार्ग । अनेक दिनों में उल्लंघवि ['घातिन्] विश्वास-घातक ।
नीय मार्ग । अटवी-प्राय मार्ग । विस्संभर पं विश्वम्भर भुजपरिसर्प की एक | विह पुन [विहायस्] आकाश। . जाति । मूषक । इन्द्र । विष्णु, नारायण ।
विह पुंस्त्री [विध] भेद । पुन. आकाश । विस्संभरा स्त्री [विश्वम्भरा] पृथिवी । विहई स्त्री [दे] बैंगन का गाछ । विस्संभिय वि [विश्वभृत् जगत्-पूरक । विहंग पुं [विहङ्ग] पक्षी । णाह पुं[°नाथ] विसत्थ देखो वीसत्थ ।
गरुड़ पक्षी। विस्सद्ध देखो वीसद्ध।
विहंग पुं [विभङ्ग] विभाग, टुकड़ा, अंश ।
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विहंगम-विहवा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७६३ देखो विभंग।
विहत्थि पुंस्त्री [वितस्ति] बारह अंगुल का विहंगम पुं. पक्षी।
परिमाण-विशेष । विहंज सक [वि+भञ्ज ] भांगना, विनाश | विहदि स्त्री [विधति] विशेष धैर्य । वि. धैर्यकरना।
रहित। विहंजिअ वि [विभक्त] बाँटा हुआ। विहन्न । सक [वि+ हन्] मारना । नाश विहंड सक [वि+खण्डय] विच्छेद करना, | विहम्म करना । अतिक्रमण करना । विनाश करना ।
विहम्म वि [विधर्मन्] भिन्न धर्मवाला, विहंडण वि [विभण्डन] भाँड़नेवाला, गालि- विभिन्न, विलक्षण । सूचक ।
विहम्म सक [विधर्मय] धर्म-रहित करना । विहग पुं. पक्षी । हिव पुं ।°ाधिप] गरुड़
विहम्म न [वैधर्म्य] विधर्मता । तर्कशास्त्रपक्षी।
प्रसिद्ध, वैधर्म्य-दृष्टान्त । विहग पुंन [विहायस्] आकाश । गइ स्त्री
| विहम्माणा स्त्री [विधर्मणा, विहनन] पीड़ा। [गति] आकाश में गमन । आकाश में गति
विहय [दे] पिंजित । कर सकने में कारण-भूत कर्म ।
विहय वि [विहत] मारा हुआ । विनाशित । विहट्ट देखो विघट्ट ।
विहय देखो विहग = विहग ।। विहट्टिअ वि [विघट्टित] खण्डित, द्विधाभूत । |
विहय देखो विहव - विभव । विहड अक [वि+ घट] नियुक्त होना । विहर अक [वि + ह] क्रीड़ा करना । रहना । अलग होना । टूट जाना ।
सक. गमन करना। विहड सक [वि + घटय] तोड़ना, खोलना। विहर सक [प्रति + ईक्ष् ] प्रतीक्षा करना । विहड देखो विहल = विह्वल ।
विहर देखो विहार । विहडण न [विघटन] अलग होना। अलग विहरण न [विहरण] विहार । करना । खोलना।
विहरिअ न [दे] सुरत, संभोग । विहडण पुं [दे] अनर्थ ।
विहल अक [वि + हवल् ] व्याकुल होना । विहडप्फड वि [दे] व्याकुल । त्वरित ।
विहल देखो विहड = वि + घट । विहडा स्त्री [विघटा] विभेद। फाट-फुट ।
विहल वि [विह बल] व्याकुल, व्यन । विहडाव सक [वि + घटय] वियुक्त करना ।
विहल देखो विअल = विकल ।
विहल वि [विफल] निष्फल, असत्य । अलग करना। विहण देखो विहन्न ।
विहल सक [विफलय् ] निष्फल बनाना । विहणु वि [दे] संपूर्ण ।
विहलेखल , वि [विह वलाङ्ग] व्याकुल विहण्ण न [दे] पीजना ।
विहलंघल , शरीरवाला । विहत्त देखो विभत्त।
विहल्ल अक [वि + रु, वि + स्तृ ? ] आवाज विहत्ति देखो विभत्ति।
करना । सक. विस्तार करना। विहत्तु देखो विहण का संकृ. ।
विहल्ल पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र । विहत्थ वि [विहस्त] व्याकुल । कुशल । | विहव पुं [विभव] समृद्धि, सम्पत्ति, ऐश्वर्य । विशिष्ट हाथ, किसी वस्तु से युक्त हाथ । विहवण न [विधवन] विनाश । क्लीब।
| विहवा स्त्री [विधवा] जिसका पति मर गया
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७६४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विहव्व-विहिम हो वह स्त्री।
विशेष रूप से धारण करना। विहव्व देखो विहव = विभव ।
विहार पुं. विचरण, गति । क्रीड़ा-स्थान । विहस अक [वि + हस् ] विकसना, खिलना, देव मन्दिर । अवस्थिति । क्रीड़ा । मुनि चर्या, प्रफुल्ल होना । हास्य करना ।
साध्वाचार । भूमि स्त्री. स्वाध्याय-स्थान । विहसाव सक [वि । हासय् ] हँसाना।। विचरण-भूमि । क्रीड़ा-स्थान । चैत्य की विकसित करना।
जगह । विहसिव्विअ वि [दे] विकसित ।
विहाल देखो विहाडि। विहस्सइ देखो बिहस्सइ ।
विहाव देखो विभाव = वि + भावय । विहा अक [वि+भा] शोभना, चमकना । विहावण न [विधापन] करवाना। विहा सक [वि+हा] परित्याग करना । विहावण न [विभावन] आलोचना । विहा अ [वृथा] निरर्थक, व्यर्थ मुधा। विहावरी स्त्री [विभावरी] रात्रि । विहा स्त्री [विधा] प्रकार, भेद । | विहावसु पुं [विभावसु] सूर्य । आग । रविविहा° देखो विहग = विहायस् ।
वार । देखो विभावसु । विहाइ वि [विधायिन्] कर्ता ।
विहाविअ वि [विभावित] दृष्ट, निरीक्षित । विहाउ वि [विधात] कर्ता, निर्माता । पं. विहाविअ वि [विधावित] उल्लसित, प्रस्फु
पणपन्नि-देवों के उत्तर दिशा का इन्द्र ।। रित। विहाड सक [वि + घटय् ] वियुक्त करना । विहास पुं. उपहास । विनाश करना । खोलना ।
विहास । देखो विहसाव । विहाड वि [विघाट] विकट ।
विहासाव विहाड वि [विहाट] प्रकाश-कर्ता। विहि पुं [विधि] ब्रह्मा। पुंस्त्रो. प्रकार । विहाडण न [दे] अनर्थ ।
शास्त्रोक्त विधान । क्रम । रीति । आज्ञा । विहाण पुं [दे] विधि, विधाता, दैव, भाग्य ।। आज्ञा-सूचक वाक्य । व्याकरण का सूत्रप्रभात । पूजन ।
विशेष । कर्म। हाथी को खाने का अन्न । विहाण न [विधान शास्त्रोक्त रोति ।
दैव । नीति । स्थिति, मर्यादा । कृति, निर्माण । प्रकार । व्याकरणोक्त विधि
करण । °न्नु विज्ञ] विधि का जानकार । विशेष । अवस्था-विशेष । रीति । क्रम ।।
°वयण न. [°वचन] । °वाय पुं [°वाद] विहाण न [विहाव] परित्याग ।
विधि-वाक्य, विध्युपदेश । विहाणिय (अप) वि [विधायिन] कर्ता ।। विहिअ वि [विहित] कृत । अनुष्ठित । चेष्टित । विहाय अक [वि + भा] शोभना । प्रकाशना । शास्त्रोक्त । विहाय पुं [विघात] अंत । विरोधी। विहिंस सक [वि + हिंस् ] विविध उपायों से विहाय देखो विभाग।
मारना, वध करना । विहाय वि [विभात] प्रकाशित । न. प्रभात । विहिस वि. हिंसा करनेवाला । विहाय देखो विहग = विहायस् ।
विहिंसग वि [विहिंसक] वध करनेवाला । विहाय विहा = वि + हा का संकृ. । | विहिंसा स्त्री. विशेष हिंसा । विविध हिंसा । विहाय (अप) देखो विहिअ ।
विहिण्ण वि [विभिन्न] जुदा । खण्डित । विहार सक [वि+धारय् ] अपेक्षा करना । | विहिम न [दे] जंगल ।
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विहिमिहिय-वीइंगाल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७६५ विहिमिहिय वि [दे] विकसित ।
से शरीर की सजावट । विहियव्व देखो विहे = वि + धा का कृ. । विहूसिअ वि [विभूषित] विभूषा-युक्त । विहिविल्ल सक [वि+रचय् ] बनाना ।।
विहे सक [वि + धा] करना । बनाना । विहीण वि [विहीन] वजित । त्यक्त । विहेड सक [वि + हेटय] मारना । हिंसा विहीर सक [प्रति + ईक्ष ] प्रतीक्षा करना। करना । पीड़ा करना। विहीर वि [प्रतीक्ष] प्रतीक्षा करनेवाला। विहेडय वि [विहेटक] अनादर-कर्ता । विहीसण देखो विभीसण।
विहेढणा स्त्री [विहेठना] पीड़ा। विहीसिया देखो विभीसिया।
विहोड सक [ताडय] ताड़न करना । विहु पुं [विधु] चन्द्र । विष्णु । ब्रह्मा । शंकर, | विहोय (अप) देखो विहव । महादेव । वायु । कपूर ।
वी देखो वि = अपि, वि । विहुअ वि [विधुत] कम्पित । उन्मूलित। | वीअ सक [वीजय] हवा डालना, पंखा त्यक्त ।
करना। विहुडुअ पुं [दे] राहु, ग्रह-विशेष । वीअ वि [दे] विधुर, व्याकुल । तत्काल उसी विहुण सक [वि + धू] कॅपाना । दूर करना। समय का। त्याग करना । पृथग् करना ।
वीअ देखो बीअ = द्वितीय । विहुणण न [विधूनन] दूरीकरण । पंखा ।
वीअ वि [वीत] विगत, नष्ट । °कम्ह न विहुणिय वि [विधूत] देखो विहुअ ।
[°कश्म ?] गोत्र-विशेष । पुंस्त्री. उस गोत्र विहुर वि [विधुर] विकल, व्याकुल, पीडित ।
में उत्पन्न । 'धूम वि. द्वेष-रहित । °ब्भय, क्षीण । विसदृश, विलक्षण, विषम, विश्लिष्ट,
"भय न. सिन्धुसौवीर देश की प्राचीन राजवियुक्त । न. विह्वलता।
धानी । वि. भय रहित । °मोह वि, मोहविहुराइअ वि [विधुरायित] व्याकुल बना | रहित । "राग, राय वि. राग-रहित । हुआ।
°सोग पुं [°शोक] एक महाग्रह । °सोगा विहुरिज्जमाण वि [विधुरायमाण] व्याकुल |
स्त्री [°शोका] सलिलावती नामक विजय. बनता।
प्रान्त की राजधानी। विहुरीकय वि [विधुरीकृत] व्याकुल किया
वीअजमण देखो बीअजमण ।
वीअण न [वीजन] पंखा से हवा करना । हुआ। विहुल देखो विहुर।
स्त्रीन. पंखा । स्त्री. °णी। विहल्ल विविफल्ला खिला हुआ। उत्साही । | वीआविय वि [वीजित] जिसको पंखा से विहूअ वि [विधूत] कम्पित । वर्जित । देखो | हवा कराई गई हो वह । विधूय, विहुअ ।
वीइ पुंस्त्री [वीचि] तरंग । आकाश । संप्रयोग, विहूइ देखो विभूइ।
सम्बन्ध । पृथग्-भाव, जुदाई । °दव्व न विहूण देखो विहुण।
[°द्रव्य] प्रदेश से न्यून द्रव्य, अवयव-हीनविहूण देखो विहीण।
वस्तु । विहूणय न [विधूनक] पंखा ।
वीइ स्त्री [विकृति विरूप कृति, दुष्ट क्रिया। विहूसण देखो विभूसण।
वि. दुष्ट क्रियावाला । देखो विगइ। विहूसा स्त्री [विभूषा] शोभा । अलंकार आदि वीइंगाल वि [वीताङ्गार] राग-रहित ।
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७६६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वीइक्वंत-वीरण वीइक्त वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत । जिसने वीमंस सक [ वि + मृश्, मीमांस् ] विचार उल्लंघन किया हो वह ।
करना, पर्यालोचन करना। वीइक्कम सक [व्यति + क्रम्] उल्लंघन | वीमंसय वि [विमर्शक] विचारकर्ता । करना।
वीर पुं. भगवान् महावीर । छन्द-विशेष । वीइमिस्स वि [व्यतिमिश्र] मिश्रित ।
साहित्य-प्रसिद्ध एक रस । वि. पराक्रमी । वीइय वि [वीजित] जिसको हवा की गई हो | पुन. एक देव-विमान । न. वैताढ्य पर्वत की वह।
उत्तर श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर । वीइवय अक [व्यति + व्रज् ] परिभ्रमण °कंत पुं. [°कान्त] एक देव-विमान । °कण्ह
करना । गमन करना । सक. उल्लंघन करना। पुं [कृष्ण] राजा श्रेणिक का एक पुत्र । वीई स्त्री. देखो वीइ = वीचि ।
°कण्हा स्त्री [कृष्णा राजा श्रेणिक की एक वीई अ [विविच्य] पृथग् होकर ।
पत्नी । "कूड पुन ['कूट] एक देव-विमान । वीई अ [विचिन्त्य] चिन्तन करके ।
गत पुंन. एक देव-विमान। "जस पुं. वीईवय देखो वीइवय।
["यशस्] भ० महावीर के पास दीक्षा लेनेवाला वीचि देखो वीइ = वीचि ।
एक राजा । ज्झय पुंन [ध्वज] एक देववीचि स्त्री [दे] लघु रथ्या, छोटा मुहल्ला ।
विमान । धवल पुं. गुजरात का एक राजा । वीज देखो वीअ = वीजय ।
°निहाण न ["निधान] स्थान-विशेष । वीजण देखो वीअण।
प्पभ न [प्रभ] एक देव-विमान । भद्द पुं वीजिय देखो वीइय।
[°भद्र] भ० पार्श्वनाथ का एक गणधर । मई वीडग
स्त्री [°मती] एक चोर-भगिनी। °लेस पुन
[°लेश्य] एक देवविमान । “वण्ण पुन वीडय पुं [वीडक] लज्जा।
[°वर्ण एक देव-विमान । °वरण न. प्रतिवीडिअ वि [वीडित] लज्जित ।
सुभट से युद्ध का स्वीकार । "वरणी स्त्री. वीडिआ स्त्री [वीटिका] सजाया हुआ पान । | प्रतिसुभट से प्रथम शस्त्र-प्रहार की देखो बीडी।
याचना । °वलय न. वीरत्व-सूचक कड़ा। वीढ देखो पीढ।
°विराली स्त्री [°बिराली] वल्ली-विशेष । वीण सक [वि + चारय] विचार करना। °सिंग पुंन ["शृङ्ग] । °सिट पुंन [°सृष्ट] °वीण देखो पीण।
दोनों देव-विभान । °सेण पुं [°सेन] एक वीणण न [दे] प्रकट करना । विदित करना।। वीर यादव । 'सेणिय पुन [°सैनिक, वीणा स्त्री. वाद्य-विशेष । 'यरिणी स्त्री "श्रेणिक] । वित्त पुंन [°ावर्त] देवविमान[°करी] वीणा नियुक्त दासी । वायग वि विशेष । सण न ["ासन] नीचे पैर रखकर [°वादक] वीणा बजानेवाला ।
सिंहासन पर बैठने के जैसा अवस्थान । वीत देखो वीअ = वीत।
°ासणिय वि [°Tसनिक] वीरासन से बैठने वीतिकंत, देखो वीइक्वंत ।
वाला। वीतिक्वंत
वीरंगय पुं [वीराङ्गद] भ० महावीर के पास वीतिवय ) देखो वीइवय।
दीक्षित एक राजा । एक राजकुमार । वीतीवय ।
| वीरण स्त्रीन. खस तृण, उशीर ।
वीडय
देखो बीडग।
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वीरल्ल - बुंद
वीरल्ल पुं. श्येन पक्षी । वीरिअ पुं [वीर्य ] भ० पार्श्वनाथ का एक मुनि संघ । भ० पार्श्वनाथ का एक गणधर । पुंन. शक्ति | आत्म-बल । पराक्रम । एक देव | विमान । शरीर स्थित एक धातु । तेज । वीरुणी स्त्री. पर्व - वनस्पति- विशेष ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वीरुत्तर वडिसग पुंन [वीरोत्तरावतंसक ] एक देव - विमान |
areer स्त्री [वीरुधा] विस्तृत लता । वीलण वि [दे] पिच्छिल, स्निग्ध । वीलय देखो बीलय |
वीली स्त्री [दे] तरंग । वीथी, श्रेणी । वीवाह देखो विवाह = विवाह ।
वाहि वि [वैवाहिक ] विवाह-सम्बन्धी | वीवी स्त्री [दे] तरंग |
वीस देखो विस्स = विस्र | वीस देखो विस्स = विश्व | उरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष | °सअ वि [°सृज्] जगत्कर्ता । °सेण पुं[°सेन] चक्रवर्ती राजा । पुं. अहोरात्र का १८ वाँ मुहूर्त ।
७६७
| वीस रणालु वि [ विस्मर्तृ] भूल जानेवाला । वीसव (अप) सक [ वि + श्रमय् ] विश्राम
करवाना |
वीसस देखो विस्सस ।
वीसा [विस्रसा] स्वभाव, प्रकृति । वीससिय वि [वैत्रसिक] स्वाभाविक | वीमा देखो वीसइ ।
वीसा स्त्री [विश्वा ] पृथिवी, धरती । वीसाण पुं [ विष्वाण ] आहार, भोजन ।
वीस स्त्री [विंशति ] बीस । 'म वि. वीसइ बीसवाँ । न. नव दिनों का उपवास | 'हा अ ["धा] बीस प्रकार से | वीसंत वि [विश्रान्त ] विश्राम प्राप्त ।
वीसंदण न [विस्यन्दन] दही की तर और आटे से बनता एक प्रकार का खाद्य ।
वीसंभ देखो विस्संभ | वीसज्ज देखो वीसज्ज = विसज्ज । ater fa [विश्वस्त ] विश्वास-युक्त । वीसद्ध [विश्रब्ध] विश्वास-युक्त । वीसम देखो विस्सम = वि + श्रम् । वीसम देखो विस्सम = विश्रम | वीसम देखो वीस-म | वीसर देखो विस्सर = वि + स्मृ । वीसर देखो विस्सर = विस्वर ।
वीसाम पुं [ विश्राम ] विराम | चालू क्रिया
का अंत |
वीसाय देखी विसाय = वि + स्वादय् । वीसार देखो विस्सार = वि + स्मृ । वीसाल सक [मिश्रय् ] मिलाना । वीसावँ (अप) देखो वीसाम । वीसास देखो विस्सास । वीसिया स्त्री. [विशिका ] बीस संख्यावाला । वीसु न [ दे] युतक, पृथग् । वीसुं अ [विष्वक् ] सब ओर से । समस्तपन । वीसंभ देखो वीसंभ = वि + श्रम्भ् । वसुंभ अ [] पृथग होना । Maa art |
देखो विसेदि ।
वीसेढ वीण
वीहि पुंन [हि ] धान्य- विशेष | वीहि स्त्री [ वीथिका, थी ] मार्ग | वीहिया श्रेणी । क्षेत्र भाग । बाजार । वोही
वुअ
अवि [] बुना हुआ । बुनवाया हुआ । वि [वृत] प्रार्थित । प्रार्थना आदि नियुक्त | वेष्ट |
वुइय
वुइय वि [ उक्त ] कथित ।
वुंज (?) सक [ उद् + नमय् ] ऊँचा करना । jarat स्त्री [वृन्ता] बैंगन का गाछ । वृंद देखो वंद = वृन्द ।
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७६८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बुंदारय-वुद्ध वृंदारय देखो वंदारय ।
| वुट्ट अक [व्युत् + स्था] खड़ा होना। वृंदावण देखो विदवण।
वुट्ठ वि [वृष्ट] बरसा हुआ। न. वृष्टि । बुंद्र देखो वंद्र ।
वुट्ठि देखो विट्ठि = वृष्टि । 'काय पुं. बरसता वुक्क देखो बुक्क = दे।
जल-समूह । वुक्कंत वि [व्युत्क्रान्त] अतिक्रान्त, गुजरा | °वुड देखो पुड = पुट ।
हुआ। विध्वस्त । निष्क्रान्त । देखो वोक्कंत। वुड्ढ अक [वृध] बढ़ना । वुक्कंति स्त्री [व्युत्क्रान्ति] उत्पत्ति । वुड्ढ सक [वर्धय] बढ़ाना । वुक्कम पुं व्युत्क्रम] वृद्धि । उत्पत्ति ।।
वुड ढ वि [वृद्ध] बूढ़ा । बड़ा, महान् । वृद्धि. . वुक्कस सक [व्युत् + कृष्] पीछे खींचना,
प्राप्त । अनुभवी, कुशल । पंडित । निभृत, वापस लौटाना।
शान्त, निर्विकार । पुं. तापस । एक जैन वुक्कार देखो बुक्कार।
मुनि । त्त, °त्तण न [°त्व] बुढ़ापा । वुक्कार सक (दे. बङ्कारय] गर्जन करना। वाइ पुं[°वादिन्] सिद्धसेन दिवाकर के वुग्गह पुं [व्युद्ग्रह] कलह । लड़ाई । डाका । गुरु । °वाय पुं[°वाद] किंवदन्ती । सावग बहकाव । मिथ्याभिनिवेश ।
पुं [°श्रावक] ब्राह्मण । णुग वि [ानुग] बुग्गहअ वि [व्युग्राहक] कलह-कारक ।। वृद्ध का अनुयायी। वुग्गहिअ वि [व्युद्ग्रहिक] कलह-सम्बन्धी। वुड्ढ वि [दे] विनष्ट । बुग्गाह सक [व्युद् + ग्राहय्] बहकाना । वुढि स्त्री. [वृद्धि] । बढ़ाव । अभ्युदय । वुच्च देखो वय = वच् ।
समृद्धि । व्याकरण-प्रसिद्ध ऐकार आदि वर्गों वच्चमाण वि [उच्यमान] जो कहा जाता हो। की एक संज्ञा। समूह । कलान्तर, सूद । बुच्चा अ [उक्त्वा ] कह कर ।
ओषधि-विशेष । पुं. गन्धद्रव्य-विशेष । 'कर बुच्छ देखो वच्छ = वृक्ष ।
वि. वृद्धि-कर्ता । °धम्मय वि [धर्मक] वुच्छ देखो वोच्छ ।
बढ़नेवाला । °म वि [°मत्] वृद्धिवाला । वच्छ देखो वोच्छिंद।
वुणण न [दे] बुनना। वृच्छिण्ण देखो वुच्छिन्न ।
वुणिय वि [दे] बुना हुआ। वुच्छित्ति देखो वोच्छित्ति ।
वुण्ण वि [दे] भीत, त्रस्त । उद्विग्न । वच्छिन्न वि[व्युच्छिन्न, व्यवच्छिन्न] अपगत, वुत्त वि [उक्त] कथित ।। हटा हुआ । विनष्ट । न. लगातार चौदह | वुत्त वि [उप्त] बोया हुआ। दिनों का उपवास ।
वुत्त न [वृत्त] छन्द, पद्य । देखो वट्ट = वृत्त । वुच्छेअ देखो वोच्छेअ।
°वुत्त देखो पुत्त। वुच्छेयण देखो वोच्छेयण ।
वुत्तंत पुं [वृत्तान्त] हकीकत । वुज अक [त्रस्] डरना । देखो वोज । वुत्ति देखो वत्ति = वृत्ति । वजण न [दे] स्थगन, आच्छादन ।
वुत्थ वि [उषित] बसा हुआ । रहा हुआ। वुझंत वि [उह्यमान] पानी के वेग से खोंचा | वुद देखो वुअ = वृत ।
जाता । बह जाता । देखो वह = वह । वुदास पुं [व्युदास] निरास । वुज्झण देखो वुजण।
वुदि देखो वइ = वृति। वुन (अप) देखो वच्च = व्रज् ।
वुद्ध देखो वुड्ढ़ = वृद्ध ।
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बुद्धि-वेअरणी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७६९ वुद्धि देखो वुड्ढि ।
मैथुन की इच्छा होती है। आचारांग आदि वुप्पंत वि [उप्यमान] बोया जाता। जैन-ग्रन्थ । विज्ञ । 'व वि [°वत्] । °वि, वुप्पाय सक [ व्युत् + पादय् ]व्युत्पन्न करना, °विउ वि [°विद्] वेदों का जानकार । होशियार करना।
°वत्त न [°व्यक्त] चैत्य-विशेष । वित्त न वुप्फ न [दे] शेखर, शिरःस्थित ।
[वर्त] देखो °वत्त। वुब्भ वह = वह. का कर्मणि रूप । वेअ न [वेद्य] सुख तथा दुःख का कारण-भूत वुब्भमाण देखो वुज्झमाण ।
कर्म । 'वुर देखो पुर।
वेअ पुं [वेग] शीघ्र गति, दौड़, तेजी। 'वुरिस देखो पुरिस = पुरुष ।
प्रवाह । रेतस् । मूत्र आदि निःसारण-यन्त्र । वुल्लाह पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति । संस्कार-विशेष । वुसह देखो वसभ।
वेअंत पुं [वेदान्त] उपनिषद् का विचार वुसि स्त्री [वृषि] मुनि का आसन । राइ,
__करनेवाला दर्शन-विशेष । राइअ वि [°राजिन्] संयमी, साधु । देखो
वेअग वि [वेदक] भोगनेवाला । न. सम्यक्त्व बुसि, वुसी।
का एक भेद । वि. सम्यक्त्व-विशेषवाला सि वि [वृषिन्] संविग्न, साध, संयमी। जीव । °छहिय वि [छिन्नवेदक] जिसका वुसिम वि [वश्य] अधीन होनेवाला।
पुरुष-चिह्न आदि काटा गया हो वह । वुसी स्त्री [वषी] मुनि का आसन । °म वि | वेअच्छ न [वैकक्ष] छाती में यज्ञोपवीत की
[°मत्] संयमी, साधु । देखो बुसि । तरह पहना जाता वस्त्र, माला आदि । बन्धवुस्सग्ग देखों विओसग्ग।
विशेष, मर्कट-बन्ध । कन्धे के नीचे लटकना। वूढ देखो वुड्ढ = वृद्ध
वेअड सक [खच] जड़ना। बूढ वि [व्यूढ] धारण किया हुआ । ढोया
वेअडिअ वि [दे] फिर से बोया हुआ। हुआ । बहा हुआ। उपचित, पुष्ट । निःसृत । वेअडिअ पुं [दे. वैकटिक] मोती वेघनेवाला वूणक पुंन [दे] बालक ।
शिल्पी, जौहरी। वूय वि [दे] बुना हुआ । देखो वअ = (दे)। | वेअड्डि देखो विअड्डि। वह पुन [व्यह] युद्ध के लिए की जातो सैन्य वेअड्ढ न [दे] भिलावाँ । की रचना-विशेष । समूह ।
वेअड्ढ पुं [वैताठ्य] पर्वत-विशेष । वे देखो वइ = वै ।
वेअड्ढ न [वैदग्ध्य] विदग्धता । वे अक [वि + इ] नष्ट होना ।
वेअण न [वेतन] मजूरी का मूल्य, तनखाह । वे । सक [व्ये] संवरण करना । वेअणा देखो विअणा।
वेअणिज्ज । वि [वेदनीय] भोगने योग्य । वेअ सक [वेदय् ] अनुभव करना । भोगना । वेअणिय J न. सुख-दुःख आदि कारण-भूत जानना।
कर्म । वेअ अक [वि + एज विशेष काँपना । वेअय देखो वेअग। वेअ अक [वेप् ] कांपना ।
वेअरणी स्त्री [वैतरणी] नरक-नदी। परमावेअ [वेद] ऋग्वेद आदि शास्त्र-ग्रन्थ । धार्मिक देवों की एक जाति, जो वैतरणी की मोहनीय कर्म का एक भेद, जिसके उदय से विकुर्वणा करके उसमें नरक-जीवों को डालता
वेअ।
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७७०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वेअल्ल-वेंटली है। विद्या-विशेष ।
वेइअ देखो वेविअ = वेपित । वेअल्ल देखो वेइल्ल = विचकिल ।। वेइअ वि [वैदिक] वेद-संबन्धी। वेदों का वेअल्ल वि [दे] मृदु । न. असामर्थ्य ।
जानकार। वेअल्ल न [वैकल्य] व्याकुलता।
वेइअ वि [वेगित] वेग-युक्त। वेअस पुं [वेतस] बेंत का पेड़ ।
वेइअ वि [व्येजित] कम्पित । कपाया हुआ । वेआगरण वि [वैयाकरण] व्याकरण-सम्बन्धी, | वेइआ स्त्री [दे] पनीहारी ।
संदेह-निराकरण से सम्बन्ध रखनेवाला। वेइआ स्त्री वेिदिका] परिष्कृत भूमि-विशेष, वेआर सक [दे] ठगना।
चौतरा । अंगूठी । वर्जनीय प्रतिलेखन का एक वेआरणिय वि [वैदारणिक] विदारण से | भेद, प्रत्युपेक्षणा का एक दोष । उत्पन्न ।
वेइज अक [वि+ एज] काँपना । वेआरणिय वि [दे] प्रतारण-सम्बन्धी, ठगने
| वेइद्ध वि दे] ऊँचा किया हुआ । विसंस्थुल । से उत्पन्न ।
आविद्ध । शिथिल । वेआरणिय वि [वैचारणिक] विचार-संबंधी ।
वेइल्ल देखो विअइल्ल । वेआरिअ वि [दे] ठगा हुआ । पुं. केश।
वे उंठ देखो वेकुंठ। वेआल पं वेताल] विकृत पिशाच, प्रेत ।
वेउट्टिया स्त्री [दे] पुनः पुनः । छन्द-विशेष ।
वेउव्व देखो विउव्व = वि+कृ, कुर्व । वेआल वि [दे] अन्धा ! पुं. अंधकार ।
वेउव्व वि [वैक्रिय] विकृत । देखो विउव्व =
वैक्रिय । 'लद्धि स्त्री [लब्धि] वैक्रिय शरीर वेआलग वि [विदारक विदारण कर्त्ता :
उत्पन्न करने का सामर्थ्य । वेआलग न [विदारण चीरना।
वेउव्विअ वि [वैक्रिय, वैक्रियिक, वैकुर्विक] वेआलि पुं [वैतालिन् ] स्तुति-पाठक ।
अनेक स्वरूपों और क्रियाओं को करने में समर्थ वेआलिअ देखो वइआलिअ।
शरीर । वैक्रिय शरीर बनाने की शक्तिवाला । वेआलिय वि वैक्रिय] विक्रिया से उत्पन्न ।
विकूर्वणा से बनाया हुआ । वैक्रिय शरीरवाला, वेआलिय वि (वैकालिक] विकाल-सम्बन्धी, वैक्रिय शरीर से संबंध रखनेवाला । विभूषित । अपराह्न में बना हुआ।
लद्धिअ वि [°लब्धिक] वैक्रिय शरीर. वेआलिय न [विदारक विदारण-क्रिया । उत्पन्न करने की शक्तिवाला । समुग्धाय वेआलिय देखो वइआलिअ ।
पुं[समुद्घात] वैक्रिय शरीर बनाने के लिए वेआलिया स्त्री (तालिकी] वीणा-विशेष । | आत्म-प्रदेशों को बाहर निकालना। वेआली स्त्री [वैताली] विद्या-विशेष, जिसके | वेउव्विया स्त्री [दे] पुनः पुनः । प्रभाव से अचेतन काठ भी उठ खड़ा होता | वेंकड पुं [वेङ्कट] दक्षिण देश में स्थित एक है-चेतन की तरह क्रिया करता है । नगरी- | पर्वत । 'णाह ["नाथ] विष्णु की वेंकटाद्रि विशेष ।
पर स्थित मूर्ति । वेइ स्त्री (वेदि] परिष्कृत भूमि-विशेष, | वेंगी स्त्री. [दे] बाड़वाली । चौतरा।
वेंजण देखो वंजण । वेइ वि [वेदिन] जाननेवाला। अनुभव वेंट देखो विंट - वृन्त । करनेवाला ।
वेंटल देखो विंटल। चेइअ वि (वेदित] अजुभूत । ज्ञात । | वेंटली देखो विटलिआ।
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वेंटिआ-वेडुरिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७७१ वेंटिआ देखो विटिया।
के अधिष्ठाता देव । एक अनुत्तर देवविमान वेंड पुं [वेतण्ड] हाथी । देखो वेयंड । का निवासी देव । जंबू-मन्दर के उत्तर वेंढसुरा स्त्री [दे] कलुष मदिरा ।
रुचक पर्वत का एक शिखर । वि. प्रधान । वेंढि पुं [दे] पशु ।
वेजयंती स्त्री [वैजयन्ती] ध्वजा । षष्ठ बलदेव वेंढिअ वि [दे] वेष्टित, लपेटा हुआ । की माता । अंगारक आदि महाग्रहों की एकवेंभल देखो विभल।
एक अग्रमहिषी। पूर्व रुचक पर रहनेवाली वेकक्ख देखो वेअच्छ।
एक दिक्कुमारी देवी । विजय-विशेष की वेकच्छिया । देखो वेगच्छिया ।
राजधानी । एक विद्याधर-नगरी । रामचन्द्र जी वेकच्छी ।
की एक सभा । भगवान् पद्मप्रभ की दीक्षावेकिल्लिअ न [दे] चबी हुई चीज को फिर . शिबिका : उत्तर अंजनगिरि की दक्षिण दिशा से चबाना।
में स्थित एक पुष्करिणी। पक्ष की आठवीं वेकंठ पुं [वैकुण्ठ] विष्णु, नारायण । देवा- . रात्रि । भ० कुन्थुनाथ की दीक्षा-शिबिका। धीश । गरुड पक्षी । अर्जक वृक्ष, सफेद बर्बरी वेज्ज वि[वेद्य]भोगने या अनुभव करने योग्य । का गाछ । विष्णु का धाम । पुन. मथुरा का । वेज्ज पुं विद्य] चिकित्सक । वृक्ष-विशेष । वि. एक वैष्णव तीर्थ ।
पण्डित । °सत्थ न [°शास्त्र] चिकित्सावेग देखो वेअ = वेग । °वई स्त्री [°वती] | शास्त्र ।
एक नदी । "वंत वि ["वत्] वेगवाला। वेज्जग । न [बंद्यक] चिकित्सा-शास्त्र । वेगच्छ देखो वेअच्छ।
वेज्जय । वैद्य-कर्म । वेगच्छिया ) स्त्री [ वैकक्षिका, क्षा] वेज्झ वि वेध्य] गोधने-योग्य । वेगच्छी उत्तरासंग ।
वे? देखो वेढ। वेगड स्त्रीन [दे] एक तरह का जहाज। वेटणग [वेष्टनक] सिर पर बाँधी जाती वेगर पुं (दे] द्राक्षा, लोंग आदि से मिश्रित
एक पगड़ी । कान का एक आभूषण । चीनी आदि ।
वेट्ठया देखो विट्ठा। वेगुन्न देखो वइगुण्ण ।
वेट्टि देखो विट्ठि । वेग्ग देखा विअग्ग।
वेट्ठिद (शौ) वेढ का भूकृ. । वेग्ग देखो वेग।
वेड दे] देखो बेड। वेग्गल वि [दे] दूर-वर्ती ।
वेडइअ पुं [दे] व्यापारी । वेचित्त देखो वइचित्त।
वेडंबग देखो विडंबग। वेच्च देखो विच्च = वि + अय् ।
वेडस पुं [वेतस] बेंत का गाछ । वेच्छ' देखो विअ = विद् ।
वेडिअ पं दे] मणिकार, जौहरी। वेच्छा देखो वेगच्छिया। °सुत्त न [°सूत्र] वेडिकिल्ल वि [दे संकट, कमचौड़ा ।
उपवीत की तरह पहनी जाती साँकली। वेडिस देखो वेडस । वेजयंत पुन (वैजयन्त] एक अनुत्तर देव- वेडुबक , वि [दे| नृपादि कुल में उत्पन्न । विमान । जंबू-द्वीप, लवण समुद्र, धातकीखण्ड, वेडबग । कालोद समुद्र, पुष्करवर द्वीप तथा पुष्करोद वेडुज्ज । देखो वेरुलिअ । समुद्र का दक्षिण द्वार । पुं. उपयुक्त द्वारों | वेडरिअ ,
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७७२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वेडुल्ल-वेम वेडुल्ल वि [दे] गर्वित ।
| वेण्णा स्त्री [वेन्ना] नदी-विशेष । 'यड न वेड्ढ देखो वेढ = वेष्ट ।
[°तट] नगर-विशेष । वेड्ढय पुं [वेष्टक छन्द-विशेष ।
वेण्हु देखो विण्ड। वेढ सक [वेष्ट्] लपेटना।
वेताली स्त्री [दे] तट, किनारा । गली। वेढ पुं [वेष्ट] छन्द-विशेष । लपेटन । एक | वेत्त न [दे] स्वच्छ वस्त्र । वस्तु-विषयक वाक्य-समूह, वर्णन-ग्रन्थ । वेत्त पुं [वेत्र] बेंत का गाछ । 'सण न वेढ देखो पीढ ।
[°ासन] बेंत का बना हुआ आसन । वेढिम वि [वेष्टिम] वेष्टन से बना हुआ।
वेत्तव्व वि [वेत्तव्य] जानने-योग्य । पुंस्त्री. खाद्य-विशेष ।
वेत्तिअ पुं [वैत्रिक] द्वारपाल, चपरासी। वेण पुं [दे] नदी का विषम घाट ।
वेद देखो वेअ = वेदय । वेण (अप) देखो वयण = वचन ।
वेद देखो वेअ% वेद । वेणइअ न [वैनयिक] विनय, नम्रता । मिथ्या- | वेदंत देखो वेअंत । त्व-विशेष, सभी देवों और धर्मों को सत्य | वेदक । देखो वेअग । मानना । वि. विनय-संबन्धी। विनय-वादी । । °वाद पुं. विनय को ही मुख्य माननेवाला वेदणा देखो विअणा। दर्शन ।
वेदब्भी स्त्री [वैदर्भी] प्रद्युम्न की एक स्त्री। वेणइगी । स्त्री [वैनयिकी] विनय से प्राप्त वेदस (शौ) देखो वेडिस। वेणइया ) होनेवाली बुद्धि ।।
वेदि देखो वेइ = वेदि। वेणइया स्त्री [वैणकिया] लिपि-विशेष ।। वेदिग पुं [वैदिक] एक इभ्य मनुष्य-जाति । वेणा स्त्री. स्थूलभद्र का एक भगिनी। वेदिस न [वैदिश] विदिशा की तरफ का वेणि स्त्री [वेणी] बालों की गूंथी हुई चोटी। नगर । वाद्य-विशेष । गंगा और यमुना का संगम- | वेदुलिय देखा वेरुलिय । स्थान । "वच्छराय पुं [°वत्सराज] एक | वेदूणा स्त्री [दे] लज्जा । राजा।
वेदेसिय देखो वइदेसिअ। वेणिअ न दे] वचनीय, लोकापवाद । वेदेह पुं [वैदेह] एक इभ्य मनुष्य-जाति । वेणी स्त्री. देखो वेणि।
देखो वइदेह । वेणु पुं. बाँस । एक राजा । बंसी । °दालि पुं. | वेदेहि पुं [विदेहिन्] विदेह देश का राजा ।
सुपर्णकुमार देवों का उत्तरदिशा का इन्द्र । | वेधम्म देखो वइधम्म । °देव पुं. सुपर्णकुमारनामक देव-जाति का | वेधव्व देखो वेहव्व। दक्षिण दिशा का इन्द्र । देव-विशेष । गरुड- | वेप्प वि [दे] भूत आदि से गृहीत, पागल । पक्षी । °याणुजाय पुं [ कानुजात] गणित- | वेप्पुअ न [दे] बचपन । वि. भूताविष्ट । शास्त्र का द्वितीय योग, जिसमें चन्द्र, सूर्य वेफल्ल न [वैफल्य] निष्फलता।
और नक्षत्र वंशाकार से अवस्थान करते हैं । वेब्भल वि [विह वल] व्याकुल । वेणुणास । पुं [दे] भ्रमर ।
वेब्भार । पुं [वैभार] राजगृही के समीप वेणुसाअ ।
वेभार ) का एक पहाड़ । वेण्ण वि [दे] आक्रान्त।
J वेम देखो वेमय ।
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वेम-वेलुक संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७७३ वेम [वेमन्] तन्तुवाय का एक उपकरण। वैडूर्य रत्नवाला । °मय वि [°मय] वैडूर्य वेमणस्स न [वैमनस्य] भीतरी द्वेष, दीनता। रत्नों का बना हुआ। वेमय सक [भञ्ज ] भांगना, तोड़ना। वेरोयण देखो वइरोअण = वैरोचन । वेमाउअ ) वि [वैमातृक] विमाता की वेल न [दे] दाँत के मूल का मांस । वेमाउग । संतान ।
वेलंधर पुं [वेलन्धर] एक देव-जाति, नागवेमाणि पुंस्त्री [विमानिन्] विमान-वासी राज-विशेष । पर्वत-विशेष । न. नगर-विशेष ।
देवता, उत्तम देव-जाति । °णिणी। । वेलंधर पुं [वैलन्धर] वेलन्धर-सम्बन्धी । वेमाणिअ पुं [वैमानिक] एक उत्तम देव- वेलंब पुं [वेलम्ब] वायुकुमार नामक देवों के जाति, विमानवासी देवता ।
दक्षिण दिशा का इन्द्र । पाताल-कलश का वेमाया स्त्री [विमात्रा] अनियत परिमाण ।। अधिष्ठाता देव-विशेष । वेम्मि क्रि [वच्मि] मैं कहता हूँ। वेलंब ' [दे. विडम्ब] विडम्बना । वि. विडवेयंड पुं [वेतण्ड] हस्ती । देखो वेंड। म्बना-कारक। वेयावच्च । न [वैयावृत्त्य, वैयापत्य] | वेलंबग पुं [विडम्बक्र] विदूषक । वि. विडवेयावडिय । सेवा, शुश्रूषा ।
म्बना करनेवाला। वेर न [वैर] शत्रुता ।
वेलक्ख न [वेलक्ष्य] लज्जा। वेर न [द्वार] दरवाजा।
वेलणय न [दे. वीडनक] लज्जा । पुं. लज्जावेरग्ग न [वैराग्य] विरागता, उदासीनता । |
जनक वस्तु के दर्शन आदि से उत्पन्न होनेवेरग्गिअ वि [वैराग्यिक] वैराग्य-युक्त ।।
वाला एक रस। वेरन्ज न [वैराज्य] वैरि-राज्य । राजा
वेलव सक [उपा+लभ् ] उपालम्भ देना। विद्यमान न हो वह राज्य । प्रधान आदि
कंपाना । व्याकुल करना । व्यावृत्त करना । राजा से रिक्त रहते हों वह राज्य । वेलव सक [वश्च ] ठगना । पीड़ा करना । वेरत्तिय वि [वैरात्रिक रात्रि के तृतीय पहर वेला स्त्री. [दे] दाँत के मूल का मांस । का समय।
वेला स्त्री. समय । ज्वार, समुद्र के पानी वेरमण न [विरमण] विराम, निवृत्ति । की वृद्धि । समुद्र का किनारा । मर्यादा । वार । वेराड पुं [वैराट] अलवर तथा उसके 'उल न [°कुल] जहाजों के ठहरने का चारों ओर का प्रदेश ।
स्थान । °वासि पुं [°वासिन्] समुद्र-तट के वेराय (अप) पुं [विराग] वैराग्य, उदा
समीप रहनेवाला वानप्रस्थ । सीनता।
वेलाइअ वि [दे] मृदु । गरीब । वेरि । देखो वइरि।
वेलाव ( अप ) सक [वि + लम्बय ] देरी वेरिअ
करना। वेरिज वि [दे] असहाय, एकाकी। न. | वेलिल्ल वि [वेलावत् वेला-युक्त । सहायता।
वेली स्त्री [दे] निद्राकरी लता। घर के चार वेरुलिअ पुन [वेडूर्य] रत्न की एक जाति । कोणों में रखा जाता छोटा स्तम्भ । विमानावास-विशेष । शक्र आदि इन्द्रों का | वेल देखो वेणु। एक आभाव्य विमान । महाहिमवन्त पर्वत | वेलु [दे] चोर । मुसल । या रुचक पर्वत का एक शिखर । वि. । वेलंक वि [दे] विरूप, खराब, कुत्सित ।
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७७४
वेलुग
न [ वेणुक] बेल का गाछ या वेलुय फल । बाँस बाँसकरिला, वनस्पति
}
विशेष |
वेलुरिअ देखो वेरुलिअ । वेलुलिअ
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वेलूणा स्त्री [दे] लज्जा ।
वेल्ल अक [वेल्ल्] काँपना । लेटना । सक. कंपाना । प्रेरना ।
वेल्ल अक [रम् ] क्रीड़ा करना ।
वेल्ल पुं [दे] केश । पल्लव | विलास । कामपड़ा | वि. मूर्ख | न. देखो वेल्लग | वेल्लग न [दे] ऊपर से ढकी हुई एक तरह की गाड़ी । गाड़ी के ऊपर का तला । वेल्लण न [ वेल्लन] प्रेरणा । वेल्लय देखो वेल्लग | वेल्लरिअ पुं [दे] केश, बाल । वेल्लरिआ स्त्री [दे] वल्लो, लता । वेल्लरी स्त्री [ दे] वेश्या, वारांगना । वेल्लविr देखो वेल्लिअ
वेल्लविवि [दे ] विलिए, पोता हुआ ।
वल्लो I
वेल्लहल वि [दे] कोमल । विलासी । वेल्लहल्ल सुन्दर । वेल्ला स्त्री [दे. वल्ली ] लता, वेल्लालअ वि [दे] संकुचित | वेल्लि देखो वल्लि । वेल्लिअ वि [ वेल्लित ] प्रेरित ।
कँपाया हुआ ।
वेल्ली देखो वेल्लि ।
aar [a] काँपना । वज्झन [ वैवाह्य ] शादी | daण्णन [वैवर्ण्य ] फीकापन | वेव पुंन [वेक] रोग-विशेष, कम्प । वेवाइअ वि [दे] उल्लास-प्राप्त | वाहिवि [वैवाहिक ] सम्बन्धी, विवाह
सम्बन्धवाला ।
वेविअवि [ वेपित ] कम्पित । पुं. एक नरक
वेलुग- वेस वाडिय
स्थान |
वेव्व अ [ दे] आमन्त्रण सूचक अव्यय । वेव्व अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय -
Pag
भय । वारण, रुकावट । विषाद । आमन्त्रण । वेस पुं [वेष ] शरीर पर वस्त्र आदि की सजा
वट ।
वेस वि [ व्येष्य ] विशेष रूप से वांछनीय | वेस पुं [वेष ] विरोध, वैर, घृणा । defa [ac] वेषोचित ।
वेस व [द्वेष्य ] अप्रीतिकर । विरोधी । वेस देखो वइस्स = वैश्य ।
वेसंपायण देखो वइसंपारण । des वि [वैषयिक ] विषय से सम्बन्धी । diभ पुं [विश्रम्भ] विश्वास | वेसंभरा स्त्री [] छिपकली । वेसक्खिज्जन [दे] द्वेष्यत्व, विरोध, दुश्मनाई । वेसण न [ दे] वचनीय, लोकापवाद । वेसण न [वेषण ] जीरा आदि मसाला । वेसण न [वेसन] चना आदि का आटा । समण पुं [वैश्रमण ] यक्षराज, कुबेर । इन्द्र का उत्तर दिशा का लोकपाल | एक विद्याधरनरेश । एक राजकुमार । एक सेट । अहोरात्र का चौदहवाँ मुहूर्त | एक देव-विमान । क्षुद्र हिमवान् आदि पर्वतों के शिखरों का नाम । 'काइय पुं [ " कायिक] वैश्रमण की आज्ञा में रहनेवाली एक देव-जाति । "दत्त पुं. एक राजा । देवकाइय पुं [ देवकायिक ] वैश्रमण के अधीनस्थ एक देव-जाति । पभ पुं [भ] श्रमण का उत्पात पर्वत । भद्द पु [ "भद्र ] एक जैन मुनि ।
वेसम्म न [वैषम्य ] विषमता, असमानता । वेसर पुंस्त्री पक्षि-विशेष । अश्वतर, खच्चर । वेसलग पु [वृषल ] शूद्र, अधम- जातीय मनुष्य । वेसवण पुं [वैश्रवण] देखो वेसमण | वेसवाडिय पुं [वेशवाटिक] एक जैन मुनि -
गण |
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७७५
वेसवार-वोक्कत संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वेसवार पुं. धनिया आदि मसाला ।
वेह सक [प्र+ ईक्ष] देखना । वेसा देखो वेस्सा।
वेह सक [व्यध्] बींधना,छेदना । वेसाणिय पुं [वैषाणिक] एक अन्तर्वीप। वेह पं [वेध] वेधन, छेद । अनुबोध, अनुगम, अन्तर्वीप-विशेष में रहनेवाली मनुष्य- मिश्रण । धुत-विशेष । अनुशय, अत्यन्त द्वेष । जाति ।
वेह पुं [वेधस्] विधि, विधाता। वेसानर देखो वइसानर ।
वेहम्म देखो वइधम्म। वेसायण देखो वेसियायण ।
वेहल्ल पुं [विहल्ल] श्रेणिक का एक पुत्र । वेसालिअ वि [वैशालिक] समुद्र में उत्पन्न । | वेहव सक [वश्च] ठगना । विशालाख्य जाति में उत्पन्न । विशाल । पुं. वेहव न [वैभव] विभूति, ऐश्वर्य । भ० ऋषभदेव । भ० महावीर ।
वेहविअ पुं [दे] अनादर । वि क्रोधी । वेसाली स्त्री [वैशाली] एक नगरी । वेहविअ वि वञ्चित] प्रतारित । वेसास देखो वीसास।
वेहव्व न [वैधव्य विधवापन । वेसासिअ वि [वैश्वासिक, विश्वास्य] विश्व- वेहाणस देखो वेहायस । सनीय, विश्वास-पात्र।
वेहाणसिय वि (बैहायसिक फाँसी आदि से वेसाह देखो वइसाह।
लटक कर मरनेवाला। वेसाही स्त्री वैिशाखी] वैशाख मास की वहायस वि [वहायस] आकाश में होनेवाला। पूर्णिमा या अमावस ।
फांसी लगा कर मरना । पुं राजा श्रेणिक वेसि वि [द्वेषिन्] द्वेष करनेवाला।
का एक पुत्र । वेसिअ देखा वइसिअ ।
वेहारिय वि [_हारिक] विहार-सम्बन्धी । वेसिअ पुंस्त्री [वैशिक] वैश्य । न जनेतर |
वेहाल न [विहायस्] आकाश । अन्तराल ।
वेहाल देखो वेहायप। शास्त्र-विशेष, काम शास्त्र । वेसिअ वि [वैषिक वेष सम्बन्धी ।
वहिम वि (वैधिक, वैध्य] तोड़ने-योग्य, दो वेसिअ वि [व्येषित] विशेष रूप या विविध |
टुकड़े करने योग्य ।
वैउंठ देखो वेकंठ। प्रकार से अभिलषित । वेसिटु देखो वइसिट्ट।
वैभव देखो वेहव :
वोअस देखो वोक्कस। वेसिणी स्त्री [दे] वेश्या, गणिका । वेसिया देखो वेस्सा ।
वोइय वि [व्यपेत वजित, रहित । वैसियायण पुं वैश्यायन] एक बाल तापस ।
वोट देखो विंट = वृन्त । वेसी स्त्री [वैश्या] वैश्य जाति की स्त्री।
वोकिल्ल वि [दे] गृह-शूर । झूठा-शूर । वेसुम पुं [वेश्मन् ] गृह ।
वोविल्लिअ न [दे] चबी हुई चीज को पुनः वेस्स देखो वइस्स = वैश्य ।
चबाना। वेस्स देखो वेस = द्वेष्य ।
वोक्क सक [वि +ज्ञपय] विज्ञप्ति करना । वेस्स देखो वेस - वेष्य ।
वोक्क सक [व्या + हृ, उद् + नद्] पुकारना, वेस्सा स्त्री [वेश्या] गणिका । ओषधि-विशेष, | आह्वान करना। पाढ़ का गाछ ।
वोक्क सक [उद् + नट्] अभिनय करना । वेस्सासिअ देखो वेसासि।
वोक्कंत वि [व्युत्क्रान्त] विपरीत क्रम से
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७७६
ह्रास
स्थित । अतिक्रान्त । देखो वुक्कंत । वोक्कस सक [व्यप + कृष् ] करना, वोक्कस देखो बोक्स |
कमी करना ।
वोक्कस देखो वुक्कस = व्युत् + कृष् । वोक्का स्त्री [दे ] वाद्य - विशेष | देखो बुक्का | वोक्का स्त्री [व्याहृति] पुकार । वोक्कार देखो बोक्कार ।
वोक्ख देखो वोक्क = उद् + नद् । वोक्खंदय पुं [ अवस्कन्द] आक्रमण | वोक्खारयवि [] विभूषित |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वोगड वि [ व्याकृत] कहा हुआ, प्रतिपादित । परिस्फुट ।
वोगडा स्त्री [ व्याकृता] प्रकट अर्थवाली भाषा । वोसिअ वि [ व्युत्कर्षित ] निष्कासित | वोच सक [व] बोलना, कहना । वोच्च
वोच्चत्थ वि [ व्यत्यस्त] विपरीत | वोच्चत्थ न [ दे] विपरीत रत । वोच्छ° वय = वच् का भवि. रूप । वोच्छिद सक [ व्युत्, व्यव + छिद्] तोड़ना । खण्डित करना । विनाश करना | परित्याग
प्राप्त
करना । वोच्छिण्ण देखो वोच्छिन्न । वोच्छित्ति स्त्री [व्यवच्छित्ति ] विनाश । णय पुं [य] पर्याय-नय । वोच्छिन्न देखो वुच्छिन्न ।
वोच्छेअ
वोच्छेद
पुं [ व्युच्छेद, व्यवच्छेद ] उच्छेद | अभाव, व्यावृत्ति । प्रतिFE | विभाग |
}
त्याग ।
वोज्ज देखो वुज्ज |
वोज सक [वीजय् ] हवा करना । वोज्जिर व [ त्रसितृ] डरनेवाला | वोज्झ देखो वह का कवकृ. का रूप ।
वोज्झ वोज्झमल्ल
पुं [] बोझ ।
वोज्झर वि [] अतीत । भीत, त्रस्त । [] क् लीन ।
वोड व [] दुष्ट । छिन्न-कर्णं । देखो बोड | वोडही स्त्री [ दे] तरुणी । कुमारी । देखो वोद्रह |
वोक्स - वोरविअ
[] मूर्ख |
वोढ वि [ऊढ] वहन किया हुआ । वोढ व [दे] देखो वोड । वोढव्व वह = वह, का कृ. 1 afa [ac] वहन कर्ता । वोढुं वह = वह, का कृ. । वो अ [ उड्वा ] वहन कर । वोत्तव्व वय = वच् का कृ. । वोत्तआण अ [ उक्त्वा ] कह कर । वोत्तुं वय का हेकृ. । वोत्तूण वय वोदाण न [ व्यवदान ] कर्मों का विनाश | शुद्धि, विशेष रूप से कर्म - विशोधन । तप । वनस्पति- विशेष |
=
वच् का संकृ. ।
वोच्छेयण न [व्युच्छेदन] विनाश । परि वोरच्छ वि [ दे] तरुण ।
वोद्रह वि [ दे] तरुण स्त्री. ही । वोभीसण वि [ दे] वराक । गरीब ।
वोम न [व्योमन् ] आकाश | बिन्दु पुं. एक
राजा का नाम ।
वोमज्झं [दे] अनुचित वेष । वोमिल पुं [व्योमिल] एक जैन मुनि । वोमिला स्त्रो [ व्योमिला ] एक जैन मुनि -
शाखा ।
वोय पुं [वोक] एक देश का नाम ।
वोरमण न [ व्युपरमण] हिंसा, प्राणि वध | वोरल्ली स्त्री [दे] श्रावण मास की शुक्ला चतुर्दशी । उसमें होनेवाला एक उत्सव । वोरविअवि [व्यपरोपित ] जो मारा गया
हो ।
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७७७
वोरुढी-स
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वोरुट्ठी स्त्री [दे] रुई से भरा हुआ वस्त्र। वोसिर वि [व्युत्सर्जन] छोड़नेवाला। वोल अक [गम्] गति करना । गुजारना । सक.. वोसेअ वि [दे] उन्मुख-गत । अतिक्रमण करना। अक. गुजरना । देखो | वोहार न [दे] जल-वहन । बोल = व्यति + क्रम् ।
वोहित्त न [वहित] जहाज, नौका । देखो वोल देखो बोल = दे।
बोहित्थ। वोलट्ट अक [व्युप + लुट] छलकना ।
व्युड पुं [दे] विट, भडुआ। वोलाविअ वि [गमित] अतिक्रामित ।
वंद देखो वंद = वृन्द । वोलिअ । वि [गत] गया हुआ। व्यतीत ।
व्रत्त (अप) वय = व्रत । वोलीण , अतिक्रान्त । वोल्ल सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना ।
ब्राक्रोस (अप) पुं [व्याक्रोश] शाप । निन्दा । वोल्लाह पुं. देश-विशेष। देश-विशेष में
विरुद्ध चिन्तन । उत्पन्न ।
वागरण (अप) देखो वागरण । वोवाल पु [दे] वृषभ ।
वाडि (अप) पुं [व्याडि] संस्कृत व्याकरण वोसग्ग पुं [व्युत्सर्ग] परित्याग ।
और कोष का कर्ता एक मुनि । वोसग्ग । अक [ वि + कस ] विकसना ।। व्रास देखो वास = व्यास । वोसट्ट । बढ़ना।
व्व देखो इव । वोसट्ट सक [वि + कासय्] विकास करना ।
व्व देखो वा = अ। बढ़ाना।
"व्वअ देखो वय = व्रत । वोसट्ट वि [विकसित] विकास-प्राप्त । व्ववसिअ देखो ववसिय = व्यवसित । वोसट्ट वि [दे] भर कर खाली किया हुआ। °व्वाज देखो वाय = व्याज । वोसट्ट वि [व्युत्सृष्ट] परित्यक्त । परिष्कार- व्वावार देखो वावार = व्यापार । रहित । कायोत्सर्ग में स्थित ।
व्वावुड देखो वावुड । वोसमिय वि [व्यवशमित] उपशमित। °व्वाहि देखो वाहि। वोसर । सक [व्युत् + सृज्] परित्याग | व्विव देखो इव । वोसिर ) करना।
व्वे अ [दे] संबोधन सूचक अव्यय ।
शिआल (मा) [श्याल] बहू का भाई।
श्चिट (मा) देखो चिट्ठ स्था।
स पुं. व्यञ्जन वर्ण-विशेष, इसका उच्चारण- | जिसमें प्रथम दो ह्रस्व और तीसरा गुरु स्थान दाँत होने से यह दन्त्य कहा जाता है। अक्षर होता है। गार° पुं [°कार] 'स' °अण, गण पुं. पिंगल-प्रसिद्ध एक गण, | अक्षर ।
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७७८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
स-स स देखो सं = सम् ।
सगा। आत्मीय लोग । 'तंत वि ["तन्त्र] स पुं [श्वन्]श्वान । पाग पु[ पाक चाण्डाल । स्वाधीन । न. स्वकीय सिद्धान्त । त्थ घि "मुहि पुंस्त्री [मुखि] कुत्ते की तरह | [स्थ] तंदुरुस्त । सुख से अवस्थित । आचरण । 'वच पुं[°पच]चाण्डाल । वाग, __°पक्ख पुं [°पक्ष] साधर्मिक । तरफदार । 'वाय देखो °पाग।
अपना पक्ष । °पाय न [°पात्र ] निज का स अ [स्वर्] स्वर्ग।
नाम । °प्पभ वि [ प्रभ ] निज से ही स वि [सत् श्रेष्ठ । विद्यमान । "उरिस पुं शोभनेवाला । ब्भाव, °भाव पुं. प्रकृति, [°पुरुष] श्रेष्ठ पुरुष, सज्जन । °क्कय वि | निसर्ग । °भावन्न वि [ भावज्ञ] स्वभाव का [कृत] सम्मानित । देखो क्किअ । कह जानकार । °यण देखो जण । रूय, रूव वि [कथ] सत्य-वक्ता । "क्किअ न [कृत] न [°रूप] स्वभाव । 'संवेयण न [संवेदन] सत्कार, सम्मान । देखो °क्कय । गइ स्त्री स्वप्रत्यक्षज्ञान ! °हाअ, हाव देखो °भाव । [°गति] उत्तम गति- स्वर्ग । मुक्ति । °जण हाववाद [ भाववाद] स्वभाव से ही पंज्जन] सत्परुष । त्तम वि. सज्जनों में सब कुछ होता है ऐसा माननेवाला मत ।
अतिश्रेष्ठ । 'त्थाम न [°स्थामन्] प्रशस्त हिअ न [°हित] निज का भला। वि. बल । धम्मिअ वि ['धार्मिक] श्रेष्ठ
स्वहितकर । धार्मिक । °न्नाण न [°ज्ज्ञान] उत्तम ज्ञान । प्पभ वि [°प्रभ ] सुन्दर प्रभावाला ।
स वि. सहित । समान । °अण्ह वि [तृष्ण] प्पुरिस पुं [पुरुष] सज्जन, किंपुरुष-निकाय
उत्कण्ठित । °अर वि [°कर] कर-सहित । के दक्षिण दिशा का इन्द्र । श्रीकृष्ण । °Cफल
अर वि [°गर] विष-युक्त । इण्ह देखो वि [°फल] श्रेष्ठ फलवाला । भाव पुं
अण्ह। °उण वि [°गुण] गुण-युक्त । [°भाव] सम्भव, उत्पत्ति । सत्व, अस्तित्व ।
°उण्ण वि [ पुण्य] पुण्य-शाली। °ओस चित्त का अच्छा अभिप्राय । भावार्थ । विद्य
वि ["तोष सन्तुष्ट । °ओस वि [°दोष]
दोष-यक्त । काम वि. मनोरथ-युक्त । मान पदार्थ । °ब्भावदायणा स्त्री [°भाव
°कामणिज्जरा स्त्री ["कामनिर्जरा] कर्मदर्शन] प्रायश्चित्त के लिए निज दोष का
निर्जरा का एक भेद । काममरण न. पण्डितगुर्वादि के समक्ष प्रकटीकरण । 'ब्भाविअ
मरण । °केय वि [°केत] गृहस्थ । प्रत्यावि [°भावित] सद्भाव-युक्त । भूअ वि
ख्यान-विशेष । 'क्खर वि [°ाक्षर] विद्वान् । [°भूत] सत्य, वास्तविक । विद्यमान । याचार
°गार वि [°गार] गृहस्थ । 'गार वि पुं [°आचार] प्रशस्त आचरण । °रूव वि
[°कार] आकार-युक्त । °गुण वि. गुणी । [ रूप] प्रशस्त रूपवाला । ल्लग पुं [°लग]
ग्ग वि [°ग्र] श्रेष्ठ । 'ग्गह वि [°ग्रह] प्रशस्त संवरण, इन्द्रिय-संयम । °वाय पुं
उपरक्त, ग्रहण-युक्त, दुष्ट ग्रह से आक्रान्त । [°वाद] प्रशस्त वाद । °वाया स्त्री [°वाच्]
°घिण वि [°घृण] दयालु । °चक्खु, प्रशस्त वाणी।
°चक्कुअ वि [°चक्षुष, °चक्षुष्क] नेत्रवाला, स पुं [स्व] आत्मा, खुद । ज्ञाति । वि. देखता । °चित्त, °चेयण वि ["चेतन] आत्मीय। न. धन । कर्म । कडब्भि, चेतनावाला, सजीव । चित्त देखो चित्त ।
गडब्भि वि [°कृतभिद्] निज के किये हुए | जिय देखो °जीअ । जोइ वि[ज्योतिष] कर्मों का विनाशक : जण पुं [°जन] ज्ञाति, । प्रकाश-युक्त । जोणिय वि [ योनिक]
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सअ-सअढ
उत्पत्ति स्थानवाला, संसारी । 'ज्जीअ, 'जीव व [ 'जीव] धनुष की डोरीवाला | सचेतन । न. कला-विशेष, मृत धातु वगैरह को सजीवन करने का ज्ञान । ड्ढ वि [T] डेढ़ | "ड्ढकाल पुं [°र्धकाल ] पुरिमड्ढ तप । णप्पय, 'णप्फद, णप्फय वि [ नखपद] नख युक्त पैरवाला, सिंह आदि श्वापद जन्तु । णाह वि [नाथ ] स्वामीवाला । तहवि ['तृष्ण] तृष्णा-युक्त, उत्कण्ठित । तर वि [" त्वर] त्वरा युक्त, वेगवाला | न. शीघ्र । 'द्धवि [T] डेढ़ | 'धवा स्त्री. सौभाग्यवती स्त्री । 'नय वि. न्याययुक्त | पक्ख वि [ पक्ष ] पाँखवाला । सहायक, मित्र । समान पार्श्ववाला, दक्षिण आदि तरफ से जो समान हो वह । पुन्न वि [ पुण्य] पुण्यशाली | भवि [भ] प्रभायुक्त । परिआव, प्रताव वि [परिताप] सन्ताप से युक्त । पिसल्लग वि [ "पिशाचक ] पिशाच गृहीत, पागल | 'प्पिवास वि [पिपास ] तृषातुर । प्पिह fa [ 'स्पृह ] स्पृहावाला | फंद वि[ स्पन्द ] चलायमान | प्फल, फल वि. सार्थक | 'ब्बल वि[°बल] बलवान् । 'भल देखो फल | 'मण वि [ 'मनस्] | मणक्ख वि [ मनस्क ] मनवाला, विवेक-बुद्धिवाला | समान मनवाला, राग-द्वेष आदि से रहित । 'मवि [मद] मद युक्त | महिड्डिअ वि [महद्धिक] महान् वैभववाला । मिरि ईअ, मिरीय वि [° मरीचिक] किरणयुक्त | 'मेर वि [' मर्याद] मर्यादा युक्त |
● यह वि [ तृष्ण ] तृष्णा-युक्त | "याण समज्झिअ } पड़ोसी ।
वि [ 'ज्ञान] सयाना, जानकार । 'योगि वि [ 'योगिन् ] व्यापार-युक्त, योगवाला । न. तेरहवाँ गुण-स्थानक | रय वि [रत ] कामी । रहस वि [भस] वेग-युक्त, उतावला । 'राग वि. राग सहित ।
इज्झि । अडिआ देखो सगडिआ । सअढ पुं [दे] लम्बा केश
सअढ पुं [ शकट] दैत्य-विशेष । पुंन. गाड़ी । रिपुं [र] नरसिंह, श्रीकृष्ण । देखो
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'रागसंजत, रागसंजय वि [' रागसंयत ] वह साधु जिसका राग क्षीण न हुआ हो । रूव वि[रूप] समान रूपवाला । 'लूण वि [लवण] लावण्य-युक्त लोग वि [लोक ] समान | लोण देखो 'लूण | स्त्री. लोणी । 'वक्ख देखो 'पक्ख । 'वण वि ['व्रण] घाववाला । वयवि ['वयस् ] समान उम्रवाला | वय वि [ व्रत] व्रती । वायवि [पाद] सवा | 'वाय वि ['वाद ] वाद सहित । वास वि. समान वासवाला, एक देश का रहनेवाला । "विज्ज वि [विद्य] विद्यावान् । व्वण देखो 'वण । व्ववेक्ख वि [ व्यपेक्ष] दूसरे की परवाह रखनेवाला, सापेक्ष | 'व्वाव वि [ व्याप] व्याप्ति-युक्त | व्यापक । 'व्विवर वि [ "विवर] विवरणयुक्त, सविस्तर । संक वि ['शङ्क]। ● संकिअ वि [ शङ्कित ] शंका- युक्त | सत्ता स्त्री [सत्त्वा ] सगर्भा । सिरिय, सिरीय वि [श्रीक] शोभा-युक्त | सिंह वि [स्पृह] स्पृहावाला | "सिह वि [शिख] शिखा युक्त । "सूग वि [ "शूक ] सेस व [शेष ] सावशेष | सहित | सोग, सोगिल्ल वि [ 'शोक ] दिलगीर, शोक-युक्त । सिरिअ, सिरीअ देखो 'सिरिय |
दयालु |
शेषनाग -
अस [स्वद्] प्रीति करना । चखना । सअ न [सदस्] सभा |
सअअ न [ दे] शिला । वि . घूर्णित | अक्खगत्त पुं [दे] कितव, जुआरी । सअज्जिअ पुंस्त्री [दे] प्रातिवेश्मिक,
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सउ
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सअर-सउणि सगड।
सइरिणी स्त्री [स्वैरिणी] व्यभिचारिणी सअर देखो स-अर = स-कर, स-गर ।
स्त्री। सअर देखो सगर।
सइल देखो सेल। सआ अ [संदा] हमेशा । °चार पुं. निरन्तर सइलभ वि [दे. स्मृतिलम्भ] देखो सइगति ।
दंसण। सआ स्त्री [स्रज्] माला।
| सइलासअ , पुं [दे] मयूर । सइ देखो सआ = सदा ।
सइलासिअ । सइ अ [सकृत्] एक बार ।
सइव पुं [ सचिव ] प्रधान, मन्त्री । सहाय । सइ स्त्री [स्मृति] स्मरण, चिन्तन । °काल मददकर्ता । काला धतूरा । पुं. भिक्षा मिलने का समय ।
सइसिलिंब पुं [दे] कार्तिकेय । सइ देखो स = स्व ।
सइसुह वि [दे.स्मृतिसुख] देखो सइदंसण । सइ देखो सय = शत । °कोडि स्त्री [°कोटि] | सई स्त्री [शची] इन्द्राणी । स° पुं [°श] एक अरब ।
इन्द्र । देखो सची। सइ देखो सई = स्वयम् ।
सई स्त्री [सती] पतिव्रता स्त्री। सइ° देखो सई = सती।
°सई स्त्री [°शती] सौ। सइअ वि [शतिक] सौ का परिमाणवाला । सईणा स्त्री [दे] अन्न-विशेष, तुवरी ।
देखो सइग। सइअ वि [शयित] सुप्त ।
स । ( अप ) देखो सहु। सइएल्लय देखो स- स्व ।
सउत पुं [शकुन्त] पक्षो। भास-पक्षी । सई देखो सइ = सकृत् ।
सउंतला । स्त्री [शकुन्तला] विश्वामित्र सई देखो सयं = स्वयम् ।
सउंदला । ऋषि की पुत्री और राजा दुष्यन्त सइग वि [शतिक] सौ ( रुपया आदि ) को की पत्नी । (शौ)। कीमत का।
सउण वि [दे] रूढ़, प्रसिद्ध । सइज्झ । पुंस्त्री [दे] पड़ोसी। स्त्री. सउण पुन [शकुन] शुभाशुभ-सूचक बाहु सइज्झिअ 5 °आ।
स्पन्दन, काक-दर्शन आदि निमित्त । पुं. सइज्झिअ न [दे] पड़ोसीपन ।
पक्षी । पक्षि-विशेष । विउ वि [विद्] सइण्ण न [सैन्य] सेना ।
सगुन का जानकार । °रुअ न [रुत ] सइत्तए सय = शी का हेकृ. ।
पक्षी की आवाज । सगुन के परिज्ञान की सइदंसण । वि [दे. स्मृतिदर्शन] मनो-दृष्ट, कला। सइदिट्ट । विचार में प्रतिभासित । वि | सउण देखो स-उण = स-गुण । [वे. स्मृतिदृष्ट ] ऊपर देखो।
सउणि पुं [शकुनि] पक्षी। चील पक्षी । सइम वि [शततम] १०० वाँ ।
ज्योतिष-प्रसिद्ध एक स्थिरकरण जो कृष्ण सइर न [स्वैर] स्वेच्छा, स्वच्छन्दता। वि. चतुर्दशी की रात में सदा अवस्थित रहता मन्द, अलस । स्वरी ।
है । नपुंसक-विशेष, चटक की तरह बारबार सइरवसह पुं [दे. स्वैरवृषभ] स्वच्छन्दी मैथुन-प्रसक्त क्लीब । दुर्योधन का मामा । सांड़, धर्म के लिए छोड़ा जाता बैल। सउणिअ देखो साउणिअ ।
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सउणिआ-संकला संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७८१ सउणिआ , स्त्री [शकुनिका, नी] पक्षी | संकट्टिअ वि [संकर्तित] काटा हुआ। सउणिगा की मादा । पक्षि-विशेष की संकट वि [संकष्ट] व्याप्त । सउणी मादा ।
संकट्ठ देखो संकिट्ठ। सउण्ण देखो स-उण्ण = सपुण्य । | संकड वि [संकट] संकीर्ण, कम चौड़ा, अल्प सउत्ती स्त्री [सपत्नी] सौत ।
अवकाशवाला । विषम, गहन । न. दुःख । सउम पुं. सिद्मन्] गृह । जल ।
संकडिल्ल वि [दे] निश्छिद्र । सउमार वि [सुकुमार] कोमल ।
सकड्ढिय वि [संकर्षित] आकर्षित । सउर पुं [ सौर ] शनैश्चर । यम । उदुम्बर संकप्प पुं [संकल्प] अध्यवसाय, मनःपरिणाम । का पेड़ । वि. सूर्य का उपासक । सूर्य- संगत आचार, सदाचार । अभिलाष । जोणि सम्बन्धी।
पुं[°योनि कामदेव । सउरि पुं [शौरि] विष्णु, श्रीकृष्ण । संकम अक [सं+क्रम्] प्रवेश करना । गति सउरिस देखो स-उरिस = सत्पुरुष ।
करना। सउल पुं [शकुल] मत्स्य ।
संकम पुं [संक्रम] सेतु । संचार । जीव जिस सउलिअ वि [दे] प्रेरित ।
कर्म-प्रकृति को बाँधता हो उसी रूप से अन्य सउलिआ) स्त्री [ दे. शकुनिका, नी] | प्रकृति के दल को प्रयत्न द्वारा परिणमाना । सउली चील पक्षी की मादा । एक | संकमग वि [संक्रामक] संक्रमण-कर्ता । महौषधि । 'विहार पुं. गुजरात के भरौच | संकमण न [संक्रमण] प्रवेश । संचार । शहर का एक प्राचीन जैन मन्दिर ।
चारित्र, संयम । देखो संकम का तीसरा सउह पुं[सौध] राज-महल । न. चाँदी । पुं. |
मोधी राज-मटल। न चाँदी । पं | अर्थ । प्रतिबिम्बन । पाषाण-विशेष । वि. सुधा-सम्बन्धी, अमृत |
संकर पुं [दे] रथ्या, मुहल्ला ।
संकर पुं शङ्कर] शिव । वि. सुख करनेसएज्झिअ देखो सइज्झि ।
वाला। सओस देखो स-ओस = स-तोष, सदोष । संकर पुं. मिलावट । न्यायशास्त्र-प्रसिद्ध एक सं अ [शम्] सुख, शर्म ।
दोष । शुभाशुभ-रूप मिश्र भाव । अशुचिसं अ [सम्] इन अर्थों का सूचक अव्ययप्रकर्ष । संगति । सुन्दरता, शोभनता । | संकरण न. अच्छी कृति । समुच्चय । योग्यता।
संकरिसण पुं [संकर्षण] भारतवर्ष का भावी संक सक [शङ्क्] संशय करना । अक. | नवा बलदेव । डरना ।
संकरी स्त्री [शङ्करी] विद्या-विशेष । देवीसंकंत वि [संक्रान्त] प्रतिबिम्बित । प्रविष्ट । विशेष । सुख करनेवाली । प्राप्त । संक्रमणकर्ता । संक्रांति-युक्त । पिता | संकल सक [सं+ कलय] संकलन करना,
आदि से दाय रूप से प्राप्त स्त्री का धन । । जोड़ना। संकति स्त्री [संक्रान्ति] संक्रमण, प्रवेश । सूर्य संकल पुंन [शृङ्खल] सांकल, निगड़ । बेड़ी। आदि का एक राशि से दूसरी राशि में | सिकड़ी, आभूषण-विशेष । जाना।
संकलण न [संकलन] मित्रता, मिलावट । संकंदण पुं [संक्रन्दन] इन्द्र ।
संकला स्त्री [शृङ्खल] देखो संकल =
का ।
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७८२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संकलिअ-संख
संकिलिट्ट वि [संक्लिष्ट] संक्लेश-युक्त । संकलिअ वि [संकलित] एकत्र-किया हुआ । संकिलिस्स अक [ सं + क्लिश ] क्लेश पाना, युक्त । योजित, जोड़ा हुआ। संगृहीत। न. दुःखी होना । मलिन होना । संकलन, कुल जोड़।
| संकिलेस पुं [संक्लेश] असमाधि, दुख, कष्ट, संकलिआ स्त्री [ संकलिका ] परम्परा ।। । हैरानी । मलिनता। संकलन । सूत्रकृतांग सूत्र का पनरहवा | संकीलिअ वि [संकीलित] कील लगाकर अध्ययन ।
जोड़ा हुआ। संकलिआ ) स्त्री [शृङ्खलिका, °ली] संकु पुं [शङ्क] शल्य अस्त्र । कोलक । °कण्ण संकली । सांकल, सिकड़ी, जंजीर, | न [°कर्ण] एक विद्याधर-नगर । निगड़ ।
संकुइय वि [संकुचित] सकुचा हुआ, संकोचसंकहा स्त्री [संकथा] संभाषण, वार्तालाप । __ प्राप्त । न. संकोच । संका स्त्री [शङ्का] संशय । भय । "लुअ वि | संकुक पुं शङ्कक] वैताढ्य पर्वत की उत्तर [°वत्] शंकावाला।
श्रेणी का एक विद्याधर-निकाय । संकाम देखो संकम = सं + क्रम् ।। संकुका स्त्री [शङ्कका] विद्या-विशेष । संकाम सक [सं + क्रमय] संक्रम करना, बंधी संकुच अक [सं + कुच्] सकुचना, संकोच जाती कर्म-प्रकृति में अन्य प्रकृति के कर्म-दलों | करना। को प्रक्षिप्त कर उस रूप से परिणत करना ।
संकुड वि (संकुट] सकरा, संकुचित । संकामण न [संक्रमण] संक्रम-करण। प्रवेश | संकुद्ध वि [संक्रुद्ध] क्रोध-युक्त । कराना। एक स्थान से दूसरे स्थान में ले | संकुय देखो संकुच ।। जाना।
| संकुल वि. व्याप्त, पूर्ण भरा हुआ । संकामणा स्त्री [संक्रमणा] संक्रमण, पैठ । संकुलि । देखो सक्कुलि। संकामणी स्त्री [संक्रमणी] जिससे एक से | संकुली' ।
दूसरे में प्रवेश किया जा सके वह विद्या। । संकुसुमिअ वि [संकुसुमित] सुपुष्पित । संकामिय वि [संक्रमित] एक स्थान से दूसरे | संकेअ सक [सं + केतय ] इशारा करना । स्थान में नीत।
मसलहत करना । संकार देखो सक्कार = संस्कार ।
संकेअj [संकेतइशारा, इंगित । प्रियसंकास वि [संकाश]समान । पुं. एक श्रावक । समागम का गुप्त स्थान । वि. चिह्न-युक्त । संकासिया स्त्री [संकाशिका] एक जैन मुनि- न, प्रत्याख्यान-विशेष । शाखा।
संकेअ वि [साङ्केत] संकेत-सम्बन्धी। न. संकिट्ठ वि [संकृष्ट] विलिखित, जोता हुआ ।
प्रत्याख्यापन-विशेष । खेती किया हुआ।
संकेल्लिअ वि [दे] सकेला हुआ । संकि? देखो संकिलिटू।
संकेस देखो संकिलेस। संकिण्ण वि [संकीर्ण] सँकरा, तंग, अल्पा- | संकोअ सक [सं + कोचय ] समेटना, संकुवकाशवाला । व्याप्त । मिश्रित । पुं. हाथी की | चित करना। एक जाति ।
| संकोड पुं[संकोट] सकोड़ना, संकोच । । संकित्तण न [संकीर्तन] उच्चारण । | संख पुंन [शङ्ख] शंख । पुं. ज्योतिष्क प्रह
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संख-संखाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७८३ विशेष । महाविदेह वर्ष का प्रान्त-विशेष, । [वती] नगरी-विशेष । विजय क्षेत्र-विशेष । नव निधि में एक निधि, संख वि [संख्य] संख्यात । जिसमें विविध तरह के बाजों की उत्पत्ति होती संख न [सांख्य] कपिलमुनि-प्रणीत दर्शन । है । लवण समुद्र में स्थित वेलन्धर-नागराज वि. सांख्य मत का अनुयायी। का एक आवास-पर्वत । उसका अधिष्ठाता देव। संख पुं [दे] मागध, स्तुति-पाठक । भ० मल्लिनाथ के समय काशी का राजा। संखइम वि [संख्येय] जिसकी संख्या हो सके भ० महावीर के पास दीक्षित एक काशी-नरेश।। वह । तीर्थकर-नामकर्म उपाजित करनेवाला भ० | संखड न [दे] कलह, झगड़ा। महावीर का एक श्रावक । नववें बलदेव का | संखडि स्त्री [दे] विवाह आदि में नातेदार पूर्वजन्मीय नाम । एक राजा । एक राज-पुत्र । आदि को दिया जाता भोज, जेवनार । रावण का एक सुभट । छन्द-विशेष । एक | संखडि स्त्री [संस्कृति] ओदन-पाक । द्वीप। एक समुद्र । शंखवर द्वीप का एक | संखणग पुं शङ्कनक] छोटा शंख । अधिष्ठायक देव । पुन. ललाट की हड्डी । नखी | संखद्रह पुं [दे] गोदावरी ह्रद । नाम का एक गन्ध-द्रव्य । कान के समीप की संखबइल्ल पुं [दे] कृषक के इच्छानुसार एक हड्डी । एक नाग-जाति । हाथी के दाँत उठ कर खड़ा होनेवाला बैल । का मध्य भाग । दस निखर्व को संख्यावाला । | संखम वि [संक्षम] समर्थ । आँख के समीप का अवयव । °उर देखो | संखय पुं [संक्षय] क्षय, विनाश । पुर। °णाभ पुं [°नाभ ] ज्योतिष्क संखय वि [संस्कृत] संस्कार-युक्त । महाग्रह-विशेष । °णारी स्त्री [°नारी] छन्द- संखलय पं [देशम्बूक, शुक्ति के आकारवाला विशेष । धमग पुं [ध्मायक] वानप्रस्थ जल-जन्तु-विशेष । की एक जाति । °धर पुं. श्रीकृष्ण, विष्णु । संखला देखो संकला। °पाल देखो °वाल । °पुर न. एक विद्या- संखलि पुंस्त्री [दे] कर्णभूषण-विशेष, शंख-पत्र धर-नगर। गुजरात का संखेश्वर नगर। का बना हुआ ताडंक । °पुरी स्त्री. कुरुजंगल देश की प्राचीन राज- संखव सक [सं + क्षपय] विनाश करना । घानी, अहिच्छत्रा । °माल पुं. वृक्ष की एक | संखा सक [सं+ ख्या] गिनती करना । जाति । °वण न [°वन] एक उद्यान । जानना। °वण्णाभ पुं [°वर्णाभ] ज्योतिष्क महाग्रह- संखा अक [सं + स्त्यै] आवाज करना । विशेष । वन्न पुं [°वर्ण] ज्योतिष्क महाग्रह- संहत होना, सान्द्र होना, निबिड़ बनना । विशेष । वन्नाभ देखो °वण्णाभ। वर | संखा स्त्री. [संख्या] प्रज्ञा । ज्ञान। निर्णय । पुं. एक द्वीप । एक समुद्र । 'वरोभास पुं गिनती । व्यवस्था । ईअ वि[°तीत] असंख्य । ["वरावभास]एक द्वीप । एक समुद्र। °वाल | दत्तिय वि [°दत्तिक] उतनी ही भिक्षा पुं[ °पाल ] नाग-कुमार-देवों के धरण और लेने का व्रतवाला संयमी, जितनी कि अमुक भूतानन्द नामक इन्द्रों के एक लोकपाल । गिने हुए प्रक्षेपों से प्राप्त हो जाय । °वालय पुं[पालक] जैनेतर दर्शन का एक संखाण न [संख्यान] गिनती, संख्या । गणितअनुयायी । आजीविक मत का एक उपासक। शास्त्र । गलग वि [°वत्] शंखडाला । गवई स्त्री ' संखाय वि [संस्त्यान] सान्द्र, निबिड़ ।
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७८४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संखाय-संगह आवाज करनेवाला । संहत करनेवाला । न. | संग न [शृङ्ग] सोंग । उत्कर्ष । शिखर । स्नेह । निबिड़पन । संहति, संघात । आलस्य । प्रधानता। वाद्य-विशेष । काम का उद्रेक । प्रतिशब्द ।
देखो सिंग = शृङ्ग। संखाय संखा = सं+ ख्या का संकृ. । | संग न [शाङ्ग] शृङ्ग-सम्बन्धी । संखाय वि. संख्या-युक्त ।
संग पुंन [सङ्ग] सम्पर्क, सम्बन्ध । सोहबत । संखायण न [शालायन] गोत्र-विशेष । __ आसक्ति । कर्म, कर्म-बन्ध । बन्धन । संखाल पुं [दे]हरिण की एक जाति । साँवर । | संगइ स्त्री [संगति] औचित्य । मेल । संखाविय वि [संख्यापित] जिसकी गिनती नियति । कराई गई हो वह ।
संगइअ वि [साङ्गतिक] नियति-कृत, नियतिसंखिग देखो संखिय = शाङ्खिक ।
सम्बन्धी । परिचित । . संखिज्ज देखो संखा = सं+ख्या का कृ.। संगंथ पुं [संग्रन्थ] स्वजन का स्वजन । संखिज्जइ वि [संख्येयतम] संख्यातां । । __ सम्बन्धी, श्वशुर-कुल से जिसका सम्बन्ध हो संखित्त वि [संक्षिप्त] संक्षेप युक्त ।
वह। संखिय वि [शाङ्खिक] मंगल के लिए चन्दन- संगच्छ सक [सं+ गम्] स्वीकार करना । गर्भित शंख को हाथ में धारण करनेवाला । अक. संगत होना, मेल रखना। शंख बजानेवाला ।
संगम पुं. मेल, मिलाप । प्राप्ति । नदियों का संखिय देखो संख = संख्य ।
आपस में मिलान । एक देव । सम्भोग । एक संखिया स्त्री [शङ्घिका, छोटा शंख । जैन मुनि । संखुड्डु अक [रम्] क्रीड़ा करना, संभोग | संगमय पुं [संगमक] भ० महावीर को उपसर्ग करना ।
करनेवाला एक देव । संखुत्त
संगमी स्त्री. एक दूती। संखुद्ध । (अप)। वि [संक्षुब्ध] क्षोभ- संगय वि [दे] मसृण, चिकना । संखुभिअ । प्राप्त । [संक्षुब्ध, संक्षुभित] । | संगय न [संगत मैत्री । संग। पुं. एक जैन संखुहिम
मुनि । वि. युक्त । मिलित । संखेज्ज देखो संखा - सं+ख्या का कृ.।। संगयय न [संगतक] छन्द-विशेष । संखेज्जइ । देखो संखिज्जइ । संगर देखो संकर = संकर । संखेज्जइम )
संगर न. युद्ध, रण। संखेत्त देखो संखित्त ।
संगरिगा स्त्री [दे] फली-विशेष, साँगरी । संखेव पुं [संक्षेप] अल्प | पिंड, संहति । |
संगल सक [ सं + घटय ] मिलना, संघटित स्थान । सामायिक, सम-भाव से अवस्थान ।
करना। संखेवण न [संक्षेपण] अल्प करना, न्यून संगल अक [ सं +गल् ] गल जाना, हीन करना।
होना। संखेविय वि [संक्षेपिक] संक्षेप-युक्त। °दसा संगलिया स्त्री [दे] फली, छीमी ।
स्त्री. ब. [°दशा] जैन ग्रन्थ-विशेष । संगह सक [ सं+ग्रह ] संचय करना । संखोभ । सक [सं+क्षोभय] क्षुब्ध | __ स्वीकार करना । आश्रय देना । पकड़ना । संखोह ) करना । भय से व्यग्न करना। संगह पुं [दे] घर के ऊपर का तिरछा काठ ।
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संगह-संघदि
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संगह पुं [संग्रह] संचय । संक्षेप, समास । । संगुण वि. गुणित । उपधि, वस्त्र आदि का परिग्रह । नय-विशेष, संगुत्त वि [संगुप्त] छिपाया हुआ। गुप्तिवस्तु-परीक्षा का एक दृष्टिकोण, सामान्य रूप | युक्त, अकुशल प्रवृत्ति से रहित । से वस्तु को देखना । स्वीकार । कष्ट आदि संगेल्ल पुं [दे] समूह । में सहायता करना। वि. संग्रह करनेवाला । | संगेल्लो स्त्री [दे] परस्पर अवलम्बन । समूह । न. दुष्ट ग्रह से आक्रान्त नक्षत्र ।
संगोढण वि [दे] व्रणित । संगहण न [संग्रहण] संग्रह । गाहा स्त्री संगोप्फ , पुं [संगोफ] मर्कटबन्ध रूप [°गाथा] संग्रह-गाथा ।
संगोफ , गुम्फन । संगहणि स्त्री [संग्रहणि] संक्षिप्त रूप से | संगोल्ल न दे] संघात, समूह ।
पदार्थ-प्रतिपादक ग्रन्थ, सार-संग्राहक ग्रन्थ ।। संगोव सक [ सं+गोपय् ] छिपाना । रक्षण . संगहिअ वि [संग्रहिक] संग्रहवाला, संग्रह- करना । नय को माननेवाला।
संगोवग वि [संगोपक] रक्षण-कर्ता । संगा सक [सं+गै] गान करना।
संगोवाव देखो संगोव। संगा स्त्री [दे] घोड़े की लगाम ।
संगोवित्तु । वि [संगोपयितु] संरक्षणसंगाम सक [ सङ्ग्रामय् ] लड़ाई करना । संगोवेत्तु । कर्ता। संगाम पुं [सङ्ग्राम] युद्ध । °सूर पुं [°शुर]
| संघ सक [कथ्] कहना। एक राजा।
संघ पुं. साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं संगामिय वि [साङ्ग्रामिक] संग्राम-सम्बन्धी ।
का समुदाय । समान धर्मवालों का समूह । संगामिया स्त्री [साझामिकी] श्रीकृष्ण
समूह । प्राणि-समूह । °दास पुं. एक जैन मुनि वासुदेव की लड़ाई की खबर देने की
और ग्रन्थ-कर्ता । °पालिय, °वालिय पुं
[°पालित] आर्यवृद्ध मुनि के शिष्य । भेरी।
संघअ वि [संहत] निबिड़, सान्द्र । संगामुड्डामरी स्त्री [सङ्ग्रामोड्डामरी] विद्या
संघंस पुं [संघर्ष] घिसाव, रगड़ । आघात । विशेष, जिसके प्रभाव से लड़ाई में आसानी से विजय मिलती है।
संघट्ट सक [सं + घट्ट] छूना। . अक. संगार पुंदे] संकेत ।
आघात लगाना । संमर्दन करना । संगाहि वि [संग्राहिन्] संग्रह-कर्ता । संघट्ट पुं[संघट्ट] आघात, संघर्ष । अर्ध जंघा संगिण्ह देखो संगह = सं + ग्रह ।
तक का पानी। दूसरा नरक का छठवाँ नरसंगिण्हण न [संग्रहण] आश्रय-दान । देखो __ केन्द्रक । भीड़ । स्पर्श । संगहण ।
संघट्ट वि [संघट्टित] संलग्न । संगिल्ल वि [सङ्गवत् बद्ध, संग-युक्त ।। संघट्टणा स्त्री [संघटना] संचलन । संगिल्ल देखो संगेल।
संघट्टा स्त्री [संघट्टा] वल्ली-विशेष । संगिल्ली देखो संगेल्ली।
संघड अक [सं+घट] प्रयत्न करना । सम्बद्ध संगिह देखो संगह = सं-ग्रह ।
होना । सक. निर्माण करना । गढ़ना । संगीअ न [संगीत] गाना । वि. जिसका गान | संघड वि [संघट] निरन्तर । किया गया हो वह ।
संघडण देखो संघयण। संगुण सक [ सं+गुणय् ] गुणकार करना । | संघदि (शौ) स्त्री [संहति] समूह ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संघयण-संचोइय संघयण न [दे.संहनन] शरीर । अस्थि-रचना, । संघिल्ल वि [संघवत्] संघ-युक्त, समुदित । शरीर का बांध । अस्थिरचना का कारण- | संघोडी स्त्री [दे] व्यतिकर, सम्बन्ध । भूत कर्म।
संच (अप) देखो संचिण। संघयणि वि [दे.संहननिन्] संहननवाला। संच (अप) पुं[संचय] परिचय । संघरिस देखो संघस ।
संचइ । वि [संचयिन्] संचयवाला । संघस । सक [सं + घृष] संघर्ष करना ।
संचइग संघस्स ।
संचक्कार पुं [दे] अवकाश । संघाइ । [संघातित] संघात रूप से
संचत्त वि [संत्यक्त] परित्यक्त । संघाइम , [संघातम] निष्पन्न । जोड़ा
संचय पुं. संग्रह । समूह । संकलन, जोड़ । हुमा । इकट्ठा किया हुआ।
°मास पुं. प्रायश्चित-सम्बन्धी मास-विशेष । संघाड देखो संघाय = संघात ।
संचर अक[ सं+चर् ] चलना । सम्यग् गति संघाड पुंदे.संघाट] युग्म । प्रकार ।
करना । धीरे-धीरे चलना। संघाडग , ज्ञाताधर्म-कथा का दूसरा |
संचलण न [संचलन] संचार, गति ।
संचलिअ वि [संचलित] चला हुआ । अध्ययन । संघाडग देखो सिंघाडग।
संचल्ल सक [सं + चल] चलना, गति करना। संघाडणा स्त्री [संघटना] संबन्ध । रचना ।
| संचल्ल (अप) देखो संचलिय। संघाडी स्त्री [ दे. संघाटी ] युग्म । उत्तरीय
संचाय अक [सं+शक्] समर्थ होना । वस्त्र-विशेष ।
संचाय पुं[संत्याग] परित्याग । संघाणय पुं [शिजानक] श्लेष्मा । संचार सक [सं+ चारय] संचार या गति संघातिम देखो संघाइम ।
कराना। संघाय सक [सं+घातय] संहत करना, | संचारिम वि [संचारिम] संचार-योग्य । इकट्ठा करना, मिलाना । हिंसा करना। संचारी स्त्री. [दे] दूत-कर्म करनेवाली स्त्री। संघाय पुं [संघात] संहति, निबिड़ता। समूह,
संचाल सक [सं+चालय] चलाना । जत्था । वज्रऋषभ-नाराच नामक शरीर-बन्ध ।
संचिअ वि [संचित] संगृहीत । श्रुतज्ञान का एक भेद । संकोच । न. नामकर्म
संचिंतण न [संचिन्तन] चिन्तन, विचार । विशेष, जिसके उदय से शरीरयोग्य पुद्गल
संचिक्ख अक [सं+ स्था] रहना, ठहरना, पूर्व-गृहीत पुद्गलों पर व्यवस्थित रूप से अच्छी तरह रहना, समाधि से रहना । स्थापित होते हैं। °समास पुं. श्रुतज्ञान | सचिट्ठ देखो सीचक्ख । का एक भेद ।
संचिट्ठण न [संस्थान] अवस्थान । संघायणा स्त्री.[ संघातना ] संहति । °करण | संचिण सक [सं+चि] संग्रह करना । उपचय न. प्रदेशों को परस्पर संहत रूप से रखना। __ करना। संघार पुं[संहार] प्रलय । नाश । संक्षेप । | संचिन्न वि [संचीर्ण] आचरित । विसर्जन । नरक विशेष । भैरव-विशेष । संचुण्ण सक [सं+चूर्णय] चूर-चूर करना। संघार (अप) देखो संहर = सं + ह । खंड-खंड करना, टुकड़ा-टुकड़ा करना । संघासय पुं[दे] स्पर्धा, बराबरी। | संचेयणा स्त्री [संचेतना] भान । संघिअ देखो संधिअ = संहित । । संचोइय वि [संचोदित] प्रेरित ।
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संछइय-संजुद्ध
संछइय संछण्ण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वि [ संछन्न ] ढका हुआ ।
संछाय सक [ सं + छादय् ] ढकना ।
[सं+क्षिप् ] एकत्रित कर छोड़ना,
इकट्ठा करना ।
संछोभ पुं [संक्षेप] अच्छी तरह फेंकना । संछोभग वि[संक्षेप] प्रक्षेपक ।
छोभण न [ संक्षेपण ] परावर्तन | संजइ पुंस्त्री [संयति] उत्तम साधु । संजई स्त्री [संयती] साध्वी । संजणग वि [संजनक ] उत्पन्न करनेवाला । संजणण न [संजनन] उत्पत्ति । वि. उत्पन्न करनेवाला । स्त्री. "णी ।
संजणय देखो संजणग ।
संजय वि[संजनित] उत्पादित ।
संजत्त सक [दे] तैयार करना । संजत्ता स्त्री [यात्रा] जहाज की मुसाफिरी । जत्ति स्त्री [] तैयारी | देखो संजुत्ति । संजत्तिअ वि [दे] तैयार किया हुआ । संजत्तिअ वि [ सांयात्रिक] जहाज से संजत्तिग यात्रा करनेवाला, समुद्र-मार्ग का मुसाफिर ।
संजत्थवि [] कुपित । पुं. क्रोध । संजद देखो संजय = संयत ।
संजम अक [सं + यम् ] निवृत्त होना । प्रयत्न करना | व्रत - नियम करना । सक. बांधना । काबू में करना ।
संजम सक [दे] छिपाना ।
संजम पुं [संयम] चारित्र, व्रत, विरति, हिंसादि पाप कर्मों से निवृत्ति । शुभ अनुष्ठान । रक्षा, अहिंसा । इन्द्रिय-निग्रह | बन्धन । काबू | संजम पुं[Tसंयम ] श्रावक - व्रत | संजय अक [सं + यत्] सम्यक् प्रयत्न करना । सक. अच्छी तरह प्रवृत्त करना । संजय वि [संयत ] साधु, व्रती । पंता स्त्री [° प्रान्ता] साधु को उपद्रव करनेवाली देवी
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आदि । भद्दिगास्त्री [भद्रिका] साधु के अनुकूल रहनेवाली देवी आदि । संजय वि [संयत ] किसी अंश में व्रती और किसी अंश में अव्रती, श्रावक ।
संजय पुं. भ० महावीर के पास दीक्षित एक
राजा ।
संजयंत पुं [संजयन्त] एक जैन मुनि । पुर न. नगर - विशेष |
संजर पुं [संज्वर] ज्वर ।
संजल अक [सं+ज्वल्] जलना । आक्रोश करना | क्रुद्ध होना ।
संजलण वि [संज्वलन ] प्रतिक्षण क्रोध करनेवाला । पुं. कषाय - विशेष | संजलि
[संज्वलित ] तीसरी नरक भूमि
का एक नरक स्थान ।
संजल्ल (अप) देखो संजल ।
संजव देखो संजम = सं + यम् । संजव देखो संजम = (दे ) | संजा देखो संणा ।
संजाय वि[संज्ञायक] विज्ञ, जानकार
संजात
संजाद
संजाय
}
वि [संजात] उत्पन्न ।
संजाय अक [ सं + जन्] उत्पन्न होना । संजीवणी स्त्री [संजीवनी] मरते हुए को जीवित करनेवाली औषधि । जीवित-दात्री -भूमि |
संजीवि वि [ संजिविन् ] जीवित करनेवाला । अवि [संयुत ] सहित, संयुक्त ।
संजु न [ संयुग] लड़ाई | नगर - विशेष | संजुंज सक [ सं + युज् ] जोड़ना । संजुतन [ संयुत ] छन्द - विशेष | संजुअ संयुत ।
संजुता स्त्री [ संयुता ] छन्द- विशेष । संवि[संयुक्त] संयोगवाला | संजुत्ति स्त्री [दे] तैयारी । देखो संजत्ति । संजुद्ध वि [दे] स्पन्द-युक्त, फरकनेवाला ।
=
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७८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संजूह-संडेल्ल संजूह पुं[संयूथ] उचित समूह । सामान्य। संझाअ सक [सं+ध्यै] ख्याल करना, संक्षेप, समास । ग्रन्थरचना । दृष्टिवाद के चिन्तन करना, ध्यान करना। अठासी सूत्रों में एक सूत्र ।
संझाअ अक [ संध्याय ] संध्या की तरह संजोअ सक [सं + योजय] संयुक्त करना, आचरण करना। सम्बर करना, मिश्रण करना ।
संटंक पुं [संटङ्क] अन्वय, सम्बन्ध । संजोअ सक [सं+दृश] निरीक्षण करना। संठ वि [शठधूर्त, मायावी । संजोअ पुं [संयोग] सम्बन्ध, मेल-मिलाप, | । संठ (चूपै) देखो संढ। मिश्रण।
संठप्प ) सक [ सं + स्थापय् ] रखना, संजोअण न [संयोजन] जोड़ना। वि. | संठव ) स्थापना करना । आश्वासन देना। जोड़नेवाला। कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धि उद्वेग-रहित करना। नामक क्रोधादि-चतुष्क । °धिकरणिया स्त्री | संठा अक [सं + स्था] रहना, अवस्थान [°ाधिकरणिकी] खड्ग आदि को उसकी | करना । स्थिति करना । मूठ आदि से जोड़ने की क्रिया।
संठाण न [संस्थान] आकृति । जिसके उदय संजोअणा स्त्री [संयोजना] मिलान । भिक्षा से शरीर का शुभ या अशुभ आकार होता है का एक दोष, स्वाद के लिए भिक्षा-प्राप्त वह कर्म । संनिवेश, रचना । चीजों को आपस में मिलाना ।
संठाव देखो संठव। संजोग देखो संजोअ = संयोग ।
संठिअ वि [संस्थित] रहा हुआ, सम्यक् संजोगेत्तु वि [संयोजयितु] जोड़नेवाला।
स्थित । न. आकार। संजोत्त (अप) देखो संजोअ = सं+ योजय ।। | संठिइ स्त्री [संस्थिति] व्यवस्था । अवस्था । संझ° नीचे देखो। °च्छेयावरण वि स्थिति । [°च्छेदावरण] सन्ध्याविभाग का आवारक। संड पुं [शण्ड, षण्ड] वृषभ । पुन. पद्म आदि पुं. चन्द्र । °प्पभ पुन [प्रभ] शक्र के सोम
का समूह, वृक्ष आदि को निबिड़ता। पुं. लोकपाल का विमान ।
नपुंसक । संझा स्त्री [सन्ध्या ] साँझ । दिन और रात्रि संडास पुन, [संदंश] यन्त्र-विशेष, सँड़सी,
का संधि-काल । नदी-विशेष । ब्रह्मा की एक चिमटा । जाँघ और ऊरु के बीच का भाग । पत्नी। मध्याह्नकाल । °गय न [गत] तोंड पुं [°तुण्ड] सँड़सी की तरह मुखवाला जिस नक्षत्र में सूर्य अनन्तर काल में रहने- | | पाँखी। वाला हो वह नक्षत्र । सूर्य जिसमें हो उससे संडिज्झ । न [दे] बालकों का क्रीड़ा-स्थान । चौदहवां या पनरहवां नक्षत्र । जिसके उदय | संडिब्भ । होने पर सूर्य उदित हो वह नक्षत्र । सूर्य के | संडिल्ल पुं [शाण्डिल्य] देश-विशेष । एक पीछे के या आगे के नक्षत्र के बाद का नक्षत्र । जैन मुनि । एक ब्राह्मण का नाम । देखो °छेयावरण देखो संझ-च्छेयावरण । संडेल्ल। °णुराग पुं [°नुराग] सांझ के बादल का संडी स्त्री [दे] वल्गा, लगाम । रंग । °वली स्त्री. एक विद्याधर-कन्या। संडेय पुं [षाण्डेय] षंढ-पुत्र, षंढ, नपुंसक । 'विगम पुं. रात्रि । विराग पुं. साँझ का | संडेल्ल न [शाण्डिल्य] गोत्र-विशेष । पुंस्त्री. समय ।
उस गोत्र में उत्पन्न । देखो संडिल्ल।
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संडेव-संतइ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७८९ संडेव पुं [दे] पानी में पैर रखने के लिए रखा | गोत्र की शाखा । पुंस्त्री. उस गोत्रमें उत्पन्न । जाता पाषाण आदि ।
संणिक्खित्त देखो संनिक्खित्त । संडेवय (अप) देखो संडेय।
संणिगास देखो संणियास । संडोलिअ वि [दे] अनुगत, अनुयात । संणिगास देखो संनिगास = संनिकर्ष । संढ पुं षण्ढ] नपुंसक ।
संणिचय देखो संनिचय । संढो स्त्री [दे] साढ़नी, ऊंटनी ।
संणिचिय देखो संनिचिय । संढोइय वि [संढीकित] उपस्थापित । संणिज्झ देखो संनिज्झ। संण वि [संज्ञ] जानकार ।
संणिणाय देखो संनिनाय । संणक्खर देखो संनक्खर ।
संणिधाइ देखो संणिहाइ । संणज्ज न [सांनाय्य] मन्त्र आदि से संस्कारा संणिधाण देखो संनिहाण । जाता घी वगैरह ।
संणिपडिअ वि [संनिपतित] गिरा हुआ। संणज्झ अक [ सं+ नह ] कवच धारण संणिभ देखो संनिभ। करना । अक. तैयार होना।
संणिय वि [संज्ञित] जिसको इशारा किया संणडिअ वि [संनटित] व्याकुल किया हुआ, | गया हो वह। विडम्बित ।
संणियास पुं[संनिकाश] देखो संनियास । संणद्ध वि [संनद्ध] संनाह-युक्त, कवचित ।
संणिरुद्ध वि [संनिरुद्ध] रुका हुआ । संणय देखो संनय ।
नियन्त्रित । संणवणा स्त्री. [संज्ञापना] संज्ञप्ति, विज्ञापन ।
संणिरोह पुं [संनिरोध] रुकावट । संणा स्त्री. [संज्ञा] आहार आदि का अभिलाष ।
संणिवय अक [संनि + पत्] पड़ना । मति । संकेत । आख्या, नाम । सूर्य की
संणिवाय पुं [संनिपात] सम्बन्ध । संयोग । पत्नी। गायत्री। विष्ठा, पुरोष । सम्यग्
संणिविट्ठ देखो संनिविट्ठ। दर्शन । सम्यग् ज्ञान । °इअ वि [कृत]
संणिवेस देखो संनिवेस। फरागत गया हुआ । भूमि स्त्री. पुरीषोत्सर्जन
संणिसिज्जा । देखो संनिसिज्जा। की जगह ।
संणिसेज्जा संणामिय वि [संनामित] अवनत-कृत।
संणिह देखो संनिह । संणाय बि [संज्ञात] ज्ञात, नात का आदमो । | संणिहाइ वि संनिधायिन] समीप-स्थायी। स्वजन, सगा । पहिचाना हुआ।
संणिहाण देखो संनिहाण । संणास पुं [संन्यास] संसार-त्याग, चतुर्थ | संणिहि देखो संनिहि। आश्रम ।
संणिहिअ वि [संनिहित] सहायता के लिए संणाह सक [सं+नाहय्] युद्ध-सज्ज करना । समीप-स्थित, निकट-वर्ती । पुं. अणपनि देवों संणाह पुं[संनाह] युद्ध की तैयारी । कवच । के दक्षिण दिशा का इन्द्र । ° पट्टपुं. शरीर पर बाँधने का वस्त्र-विशेष । संणेज्झ देखो संनेज्झ। संणाहिय वि [सांनाहिक] युद्ध की तैयारी से संत देखो स = सत् । सम्बन्ध रखनेवाला।
संत वि [शान्त] क्रोध-रहित । पुं. रस-विशेष । संणि वि [संज्ञिन्] संज्ञावाला। मनवाला | संत वि [श्रान्त थका हुआ। प्राणी । श्रावक । सम्यक्त्वी, जैन । न. वासिष्ठ | संतइ स्त्री [संतति] संतान, अपत्य । अवि.
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७९०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संतच्छण-संथडिय च्छिन्न धारा, प्रवाह ।
लिए मस्तक में दिया जाता मन्त्रित पानी। संतच्छण न [संतक्षण] छिलना ।
°कम्म न [°कर्मन्] उपद्रव-निवारण के संतच्छिअ वि [संतक्षित] छिला हुआ। लिए किया जाता होम आदि कर्म । 'कम्मत संत? वि [संत्रस्त] डरा हुआ।
न [°कर्मान्त] जहाँ शान्ति-कर्म किया जाता संतति देखो संतइ।
हो वह स्थान । °गिह न [°गृह] शान्ति-कर्म संतत्त वि [संतत] निरन्तर । बिस्तीर्ण । करने का स्थान । °जल न. देखो °उदअ । संतत्त वि [संतप्त] संताप-युक्त ।
°जिण पुं [°जिन] सोलहवें जिन-देव । संतत्थ देखो संत?।
°मई स्त्री [°मती] एक श्राविका । °य वि संतप्प अक [सं+तप्] तपना । पीड़ित होना। [°द] शान्ति-प्रदाता । °सूरि पुं. एक जैनासंतप्पिअ वि [संतप्त] संताप-युक्त । न. | चार्य और ग्रन्थकार । °सेणिय पुं[श्रेणिक] सन्ताप।
एक प्राचीन जैन मुनि । °हर न [गृह] संतमस न. अन्धेरा । अन्ध-कूप ।
भगवान् शान्तिनाथजी का मन्दिर । होम संतय देखो संतत्त = संतत ।
पुं. शान्ति के लिए किया जाता हवन । संतर सक [सं+त] तैर कर पार करना। संतिअ) वि [दे. सत्क] सम्बन्धी ।
संतिग । संतस अक [ सं + त्रस् ] भय-भीत होना।
संतिज्जाघर देखो संति-गिह । उद्विग्न होना। संता स्त्री [शान्ता] सातवें जिन-भगवान् का
संतिण्ण वि [संतीर्ण] पार-प्राप्त ।
संतुट्ठ वि [संतुष्ट] सन्तोष-प्राप्त । शासन-देवता।
संतुयट्ट वि [संत्वग्वृत्त] जिसने पार्श्व धुमाया संताण पुं [संतान] वंश । अविच्छिन्न धारा ।
हो वह, लेटा हुआ। तन्त-जाल. मकडी आदि का जाल ।
| संतुलणा स्त्री [संतुलना] तुलना, तुल्यता । संताण न [संत्राण] परित्राण ।
संतुस्स अक [सं + तुष्] प्रसन्न होना। तृप्त संतार वि. तारनेवाला । पुं. संतरण ।
होना। संतारिअ वि [संतारित] पार उतारा हुआ।
संतेज्जाधर देखो संतिज्जाघर । संतारिम वि. तैरने-योग्य ।
संतो अ [अन्तर् ] मध्य, बीच । संताव सक [सं + तापय्] गरम करना ।
संतोस सक [सं+ तोषय ] प्रसन्न करना । हैरान करना।
तृप्त करना। संताव पुं. मन का खेद । ताप ।
संतोस पुं [संतोष] तृप्ति, लोभ का अभाव । संतावय वि [संतापक] संताप-जनक ।
| संतोसि स्त्री [संतोषि] सन्तोष, तुष्टि, तृप्ति । संतास सक [सं+ त्रासय् ] डराना। संतास पुं [संत्रास] भय ।
संतोसि वि [संतोषिन्] सन्तोष-युक्त, लोभसंतासि वि [संत्रासिन्] त्रास-जनक ।
रहित, निर्लोभी, तृप्त । संति स्त्री [शान्ति क्रोध आदि का उपशम । | संतोसिअ पुं[संतोषिक] संतोष, तृप्ति । मुक्ति । अहिंसा । उपद्रव-निवारण। विषयों | संथ वि [संस्थ] संस्थित । से मन को रोकना । चैन, आराम । स्थिरता। | संथड । वि [संस्तृत] परस्पर के संश्लेष दाहोपशम, ठंढाई । देवी-विशेष । पुं. सोलहवें | संथडिय 5 से आच्छादित । घन । व्याप्त । जिनदेव । °उदअ न [°उदक] शान्ति के , समर्थ । तृप्त । एकत्रित ।
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संथण-संदोह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७९१ संथण अक [सं + स्तन्] आक्रन्द करना। उत्सपिणी-काल में उत्पन्न तेइसौं जिनदेव । संथर सक [सं । स्तु] बिछौना करना, न. क्षरण, प्रस्रव । बहना । जल । बिछाना । निस्तार पाना, पार जाना। संदभ पुं[संदर्भ] रचना, ग्रंथन । निर्वाह करना। अक. समर्थ होना। तृप्त संदमाणिया । स्त्री [स्यन्दमानिका, °नी] होना । होना, विद्यमान होना ।
संदमाणी एक प्रकार का वाहन, एक संथर देखो संथार।
तरह की पालकी। संथव सक [सं+ स्तु] स्तुति करना, इलाषा संदाण सक [कृ] अवलम्बन करना। करना । परिचय करना।
संदाणिअ [संदानित] बद्ध, नियन्त्रित । संथव पु [संस्तव] स्तुति, श्लाघा । परिचय, संदामिय । [संदामित] संसर्ग । वि. स्तुति-कर्ता ।
संदाव देखो संताव = सन्ताप । संथव - देखो संठव ।
संदाव पुं[संद्राव] समूह, समुदाय । संथवय वि [संस्तावक] स्तुति-कर्ता। संदिट्र वि [संदिष्ट] जिसका या जिसको संथार । पुं [संस्तार] दर्भ-कुश आदि सन्देशा दिया गया हो, उपदिष्ट, कथित । संथारग 5 की शय्या, बिछौना। कमरा । जिसको आज्ञा दी गई हो। छंटा हुआ, उपाश्रय । संस्तार-कर्ता।
छिलका निकाला हुआ (चावल आदि)। संथाव देखो संठाव।
संदिद्ध वि [संदिग्भ] संशय-युक्त । संथिद (शौ) देखो संठिअ ।
संदिन्न न [संदत्त] उनतीस दिनों का लगातार संथुअ वि [संस्तुत]सम्बद्ध, संगत । परिचित । उपवास।
जिसकी स्तुति की गई हो वह, श्लाधित। संदिस सक [सं + दिश्] सन्देशा देना, समासंथुइ स्त्री [संस्तुति] स्तुति, श्लाघा । चार पहुँचाना । आज्ञा देना। अनुज्ञा देना । संथुण सक [सं+स्तु] स्तुति या श्लाघा
दान के लिए संकल्प करना । उपदेश देना। करना ।
संदीण पुं[संदीन] पक्ष या मास आदि में संथुल वि [संस्थुल] रमणीय ।
पानी से सराबोर होता द्वीप । अल्पकाल तक संथुव्वत देखो संथुण का कवकृ. ।
रहनेवाला दीपक । श्रुतज्ञान । क्षोभणीय । संद अक [स्यन्द्] झरना, टपकना ।
संदीवग वि [संदीपक] उत्तेजक । संद पुं [स्यन्द] झरन, प्रस्रव । रथ ।
| संदीवण न [संदीपन] उत्तेजना, उद्दीपक । संद वि [सान्द्र] घन, निबिड़ ।
वि. उत्तेजन का कारण । संदंस पुं [संदंश] दक्षिण हस्त ।
संदीविय वि [संदीपित] उत्तेजित, उद्दीपित । संदसण न [संदर्शन] दर्शन, देखना, साक्षा
संदुक्ख अक [प्र+दीप्] जलना। त्कार।
संदुट्ठ वि [संदुष्ट] अतिशय दुष्ट । संद वि [संदष्ट] जो काटा गया हो वह, | संदुम अक [प्र+दीप्] जलना, सुलगना । जिसको दंश लगा हो वह ।
संदेव पुं [दे] सीमा, मर्यादा। नदी-मेलक, संदट्ट । वि [दे] संलग्न, संयुक्त । सम्बद्ध । नदी-संगम । संदट्टय ) न. संघट्ट, संघर्ष ।
संदेस पुं[संदेश] संदेशा। संदड्ढ वि [संदग्ध] अति जला हुआ। संदेह पुं. संशय, शंका। संदण पुं [स्यन्दन] रथ । भारतवर्ष में अतीत / संदोह पुं. समूह, जत्था ।
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७९२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संध-संनिभ संध सक [सं+धा] साँधना, जोड़ना। अनु- | संधीरविय वि [संधीरित] आश्वासित । सन्धान करना, खोज करना। वांछना। | संधुक्क अक [प्र + दीप, सं+- धुक्ष्] जलना। वृद्धि करना । करना।
सक. जलाना । उत्तेजित करना । संध° देखो संझ°।
संधुक्कण न [संधुक्षण] सुलगानेवाला । संधय वि. [संधक] सन्धान-कर्ता ।
संधुच्छिद (शौ) प्रज्ज्वलित, उत्तेजित । संधया देखो संध % सं+घा । संघयाती। संधुम देखो संदुम। संधा स्त्री. प्रतिज्ञा, नियम ।
संधे देखो संध = सं +धा । संधाण न [संधान] दो हाड़ों का संयोग-स्थान । संनक्खर न [संज्ञाक्षर] अकार आदि अक्षरों सन्धि । मद्य । संयोग। नींबू आदि का की आकृति । अचार ।
संनण न[संज्ञान] इशारा करना, संज्ञा करना । संधारण न [संधारण] सान्त्वना ।
| संनय । वि [संनत] नमा हुआ । अवनत । संधारिअ वि [दे] योग्य ।
संनत । संधारिअ वि [संधारित] रखा हुआ,
संनव सक [सं+ज्ञापय्] संभाषण से संतुष्ट स्थापित ।
करना। संधाव सक [सं+धाव] दौड़ना ।
संनह देखो संणज्झ। संधि पुंस्त्री. छिद्र, विवर। संहान, उत्तरोत्तर |
संनहण न [संनहन] संनाह । पदार्थ-परिज्ञान । व्याकरण-प्रसिद्ध दो अक्षरों।
संनहिय देखो संणद्ध । के संयोग से होनेवाला वर्ण-विकार । सेंध, | साटिय वि संताहित तयार किया हा चोरी के लिए भीत में किया जाता छेद ।
सजाया हुआ। दो हाड़ों का संयोग-स्थान । मत । कर्म, कर्म
संनिकास देखो संनिगास । सन्तति । सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति । चारित्र- संनिकिट्ट वि [संन्निकृष्ट] आसन्न । मोहनीय कर्म का क्षयोपशम । अवसर, समय । संनिक्खित्त वि [संनिक्षिप्त] डाला हुआ, मिलन। दो पदार्थों का संयोग-स्थान । |
रखा हुआ। सुलह । ग्रंथ का प्रकरण, अध्याय, परिच्छेद । संनिगास वि [संनिकाश] समान, तुल्य, °गिह न [°गृह] दो भीतों के बीच का |
सदृश । पुं. अपवाद । 'न. समीप । प्रच्छन्न स्थान । च्छेयग, छेयग वि | संनिगास [संनिकर्ष] संयोग । [°च्छेदक] सेंध लगा कर चोरी करनेवाला । | संनिचय पं. समह । संग्रह । °पाल, वाल वि. दो राज्यों की सुलह का संनिचिय वि [सनिचित] निबिड़ किया रक्षक।
हुआ। संधिअ वि [दे] दुर्गन्धि, दुर्गन्धवाला । संनिजुज सक [संनि+ युज्] अच्छी तरह संधि वि [संधित प्रसारित ।
जोड़ना। संधिआ देखो संहिया।
संनिज्झ न [सांनिध्य] सहायता करने के संधिविग्गहिअ पुं [सान्धिविग्रहिक] राजा लिए समीप में आगमन, निकटता। की सन्धि और लड़ाई के कार्य में नियुक्त | संनिनाय पुं [संनिनाद] प्रतिध्वनि, प्रतिमन्त्री ।
शब्द । संधीर सक [ सं + धीरय् ] आश्वासन देना। । संनिभ देखो संनिह ।
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७९३
संपह
संनिमहिअ-संपडिवज्ज संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संनिमहिअ वि [संनिमहित] व्याप्त, पूर्ण, संनेज्झ देखो संनिज्झ । भरा हुआ । पूजित ।
संपअ । (अप) देखो संपया। संनियट्ट वि [संनिवृत्त] रुका हुआ, विरत ।।
यारि वि [°चारिन्] प्रतिषिद्ध का वर्जन संपइ अ [संप्रति] इस समय, अधुना, अब । पुं. करनेवाला।
जैन राजा, सम्राट अशोक का पौत्र । काल संनिलयण न [संनिलयन] आश्रय । आधार ।
पुं. वर्तमान काल । संनिवाइ वि [संनिवादिन] संगत बोलनेवाला, | संपइण्ण वि संप्रकीर्ण] व्याप्त । व्याजबी कहनेवाला।
संपउत्त वि [संप्रयुक्त] सम्बद्ध, जोड़ा हुआ। संनिवाइय वि [सांनिपातिक] संनिपात रोग | संपओग संप्रयोग] संयोग, सम्बन्ध । से सम्बन्ध रखनेवाला । अनेक भावों के संयोग
संपकर देखो संपगर। से बना हुआ भाव । पुं. संनिपात, मेल, संपक्क पुं[संपर्क] सम्बन्ध । संयोग ।
संपक्खाल पुं [संप्रक्षाल] तापस का एक भेद संनिवाइय वि [संनिपातिक] देखो संनि
__ जो मिट्टी वगैरह घिस कर शरीर का प्रक्षालन वाइ।
करते हैं। संनिवाडिय वि [संनिपातित] विध्वस्त किया | संपक्खालिय वि [संप्रक्षालित] धोया हुआ । हुआ ।
संपक्खित्त वि [संप्रक्षिप्त] फेंका हुआ, डाला संनिविट्ट न [संनिविष्ट] मोहल्ला । वि.
हुआ। जिसने पड़ाव डाला हो वह । संहत और
संपगर सक [संप्र+कृ] करना । स्थिर आसन से बैठा हुआ।
संपगाढ वि [संप्रगाढ] अत्यन्त आसक्त । संनिवेस पं संनिवेश] नगर के बाहर का | व्याप्त । स्थित, व्यवस्थित । प्रदेश । गाँव, नगर आदि स्थान । यात्री | संपगिद्ध वि [संप्रगद्ध] अति आसक्त । आदि का डेरा, मार्ग का वास-स्थान, पड़ाव ।
संपग्गहिअ वि[संप्रगृहीत] खूब प्रकर्ष से गृहीत, ग्राम । रचना।
विशेष अभिमान-युक्त। संनिवेसणया स्त्री [संनिवेशना] संस्थापन ।
| संपज्ज अक [ सं+पद् ] सम्पन्न होना । संनिवेसिल्ल वि [संनिवेशिन्] रचनावाला ।
मिलना। संनिसन्न वि [संनिषण्ण] बैठा हुआ, सम्यक् ।
संपज्जलिअ ' [संप्रज्वलित] तीसरा मरक संनिसिज्जा । स्त्री [संनिषद्या] आसन- का नवा नरकेन्द्रक, नरकावास-विशेष । संनिसेज्जा । विशेष, पीठ आदि आसन । संपढिअ देखो संपत्थिअ = संप्रस्थित । संनिह वि [संनिभ] समान, सदृश । संपड अक [ सं+पद् ] प्राप्त होना, सिद्ध संनिहाण न [संनिधान] ज्ञानावरणीय आदि होना, निष्पन्न होना । कर्म । अधिकरण कारक, आधार । सान्निध्य । | | संपडिबूह सक [संप्रति + बुंह] प्रशंसा
सत्थ न [°शस्त्र] संयम, त्याग । °सत्थ न | [शास्त्र] कर्म-शास्त्र।
| संपडिलेह सक [ संप्रति + लेखय] प्रतिसंनिहि पुंस्त्री [संनिधि] उपभोग के लिए जागरण करना, प्रत्युपेक्षण करना, अच्छी स्थापित वस्तु । संस्थापन । सुन्दर निधि । तरह निरीक्षण करना। समीपता । संचय।
संपड़िवज्ज सक [ संप्रति+पद् ] स्वीकार
ahiT 1
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७९४
करना, प्राप्त करना ।
संपणदिय देखो संपणाइय |
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
विशेष |
संपदि देखो संपइ = सम्प्रति । संपदि देखो संपत्ति = संपत्ति ।
करना ।
संवित्ति स्त्री [ संप्रतिपत्ति ] स्वीकार । संपडिवाइअ वि [ संप्रतिपादित] स्थित |
स्थापित ।
संपधार देखो संपहार = संप्र+धारय् ।
संपडिवायस [ संप्रति + पादय् ] संपादन संपधारणा स्त्री [ संप्रधारणा ] व्यवहारविशेष, धारणा व्यवहार ।
संप
संपणा देखो संपण्णा ।
संपणाइय वि [ संप्रणादित] समीचीन संपप्प देखो संपाव । संपणादिय शब्दवाला |
संपणाम सक[संप्र + नामय् ] अर्पण करना । संपणिपा पुं [सप्रणिपात] प्रणाम, संपणिवाय
समीचीन नमस्कार ।
संपण वि [ संप्रतुन्न] प्रेरित, उत्तेजित । संपणुल्ल सक [ संप्र + नुद् ] प्रेरणा संपणोल्ल
}
करना ।
संपण्ण देखो संपन्न ।
संपण्णा स्त्री [दे] घेबर या घीवर ( मिष्टान्नविशेष ) बनाने का गेहूँ का आटा ।
संपत्तवि [ संप्राप्त ] सम्यक् प्राप्त । समागत । संपत्त पुंन [संपात्र ] सुपात्र ।
संपत्ति स्त्री [ संपत्ति ] समृद्धि । संसिद्धि | पूर्ति ।
संपत्ति स्त्री [ संप्राप्ति ] लाभ, प्राप्ति । संपत्ति स्त्री [] बाला | पिप्पली -पत्र | संपत्थिअ न [ दे] शीघ्र ।
संपत्थिय वि [ संप्रस्थित] जिसने प्रयाण संपत्थित किया हो वह, प्रयात, प्रस्थित | उपस्थित |
संपदं अ [ सांप्रतम् ] युक्त, उचित । अब । संपदत्त वि [ संप्रदत्त ] दिया हुआ, अर्पित । संपदाण देखो संपयाण ।
संपदाय पुं [ संप्रदाय ] गुरु-परंपरागत उपदेश,
आम्नाय ।
संपदावण न [ संप्रदापन, संप्रदान ] कारक
संपधारिय वि[संप्रधारित ] निश्रित, निर्णीत | संधूमि वि[संप्रधूमित ] धूप-वासित । संपन्न वि. सम्पत्ति-युक्त । संसिद्ध ।
संपडिवत्ति - संपरिखित्त
संपबुज्झ अक [ संप्र + बुध् ] सत्य ज्ञान को
प्राप्त करना
संपमज्ज सक [ संप्र + मृज् ] मार्जन करना । संपमार सक [ संप्र + मारय् ] मूच्छित
करना ।
संपय वि[सांप्रत ] विद्यमान वर्तमान | संपयं देखो संपदं ।
संपयट्ट अक [ संप्र + वृत् ] सम्यक् प्रवृत्ति
करना ।
संपवि[संप्रवृत्त] सम्यक् प्रवृत्त । संपया स्त्री[संपद्] संमृद्धि, सम्पत्ति, लक्ष्मी । वाक्यों का विश्राम स्थान । प्राप्ति । एक वणिक् - स्त्री ।
संपयाण न [ संप्रदान ] सम्यक् प्रदान, समर्पण | चतुर्थी - कारक, जिसको दान दिया जाय वह । संपयावण देखो संपदावण । संपराइग संपराइय
वि [सांपरायिक ] सम्पराय - सम्बन्धी, सम्पराय में उत्पन्न । संपराय पुं. संसार, जगत् । 1 क्रोध आदि कषाय । स्थूल कषाय । कषाय का उदय ।
युद्ध ।
संपरिकित्ति पुं [ संपरिकीत्ति ] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंका - पति । संपक्खि स [ संपरि + ईक्ष् ] सम्यक् परीक्षा करना ।
}
[परिक्षिप्त ] वेष्टित ।
संपरिक्खित्त संपरिखित्त
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संपरिफुड-संपिंडिअ
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८९५
संपरिफुड वि [संपरिस्फुट] सुस्पष्ट । आदि उड़नेवाला जन्तु । गति-कर्ता ।। संपरिवुड वि [संपरिवृत] सम्यक् परिवृत, | संपाइय वि [संपातित] आगत । मिलित । परिवार-युक्त । वेष्टित ।
संपाइय वि [संपादित] साधित । संपरी अक [संपरी + इ] पर्यटन करना। संपाऊण सक [संप्र + आप्] अच्छी तरह संपल (अप) अक [ सं + पत् ] आ गिरना। प्राप्त करना । संपलग्ग वि [संप्रलग्न] संयुक्त । जो लड़ाई | संपाओ अ [संप्रातर] प्रातःकाल । हर के लिए भिड़ गया हो।
प्रभात । संपलत्त वि [संप्रलपित] उक्त, प्रतिपादित । । संपागड वि [संप्रकट] प्रकट । खुला। संपललिय वि [संप्रललित] जिसका अच्छी | संपाड सक [संपादय् ] सिद्ध करना, तरह लालन हुआ हो वह ।
| निष्पन्न करना। प्रार्थित वस्तु देना, दान संपलिअ पुं[संपलित] एक जैन महर्षि । करना । प्राप्त करना । अर्पण करना। संपलिअंक पुं[संपर्यङ्ग] पद्मासन ।। संपाडग वि [संपादक] कर्ता, निर्माता। संपलित्त वि [संप्रदीप्त] प्रज्ज्वलित ।। संपाडण न [संपादन] निष्पादन । करण, संपलिमज सक [संपरि + मृज्] प्रमार्जन | __ निर्माण । करना ।
संपातो देखो संपाओ। संपली अक [संपरि + इ] गति करना । संपाद (शौ) देखो संपाड = सं+पादय् । संपवेय । अक [संप्र + वेप्] काँपना । संपादइत्तअ (शौ) वि [ संपपादवितृ ] संपवेव ।
संपादन-कर्ता । संपादक । संपवेस पुं [संप्रवेश] प्रवेश, पैठ । संपादिअवद (शौ) देखो संपाइअव । संपव्वय अक [संप्र+व्रज्] गमन करना। संपाय पुं [संपात] सम्यक्पतन । सम्बन्ध, संपसार पुं[संप्रसार] इकट्ठा होना । विस्तार ।
संयोग । निरर्थक असत्य-भाषण । संग ।
आगमन । चलन, हिलन । संपसारग । वि [संप्रसारक] विस्तारक ।
संपाय देखो संपाओ। संपसारय । पर्यालोचनकर्ता ।
संपायग वि [संपादक सम्पादन-कर्ता । संपसिद्ध वि [संप्रसिद्ध] अत्यन्त प्रसिद्ध । संपस्स सक [सं + दृश्] अच्छी तरह देखना ।
| संपायग वि [संप्रापक] प्राप्त करनेवाला। विचार करना।
प्राप्त करानेवाला। संपहार सक [संप्र +धारय्] चिन्तन करना ।
संपायण देखो संपाडण ।
संपाल सक [सं+पालय] पालन करना। निर्णय करना। संपहार पुं [संप्रधार] निश्चय, निर्णय ।
संपाव सक [संप्र + आप्] प्राप्त करना ।
संपाव सक [संप्र+आपय] प्राप्त करवाना । संपहार पुं [संप्रहार] युद्ध ।
संपाविअ वि [संप्रापित] जो ले जाया गया । संपहाव अक [संप्र+धात्] दौड़ना। संपहिट्ट वि [संप्रहृष्ट] हर्षित, प्रमुदित ।
संपासंग वि [दे] दीर्घ, लम्बा । संपा स्त्री [दे] काँची, मेखला, करधनी।।
संपिंडण न [संपिण्डन] द्रव्यों का परस्पर संपाइअव वि [संपादितवत्] जिसने सम्पादन
संयोजन । समूह । किया हो वह ।
संपिंडिअ वि [संपिण्डित] पिण्डाकार किया संपाइम वि [संपातिम] भ्रमर, कीट, पतग | हुआ, एकत्र किया हुआ।
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७९६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संपिक्ख-संभंति संपिक्ख देखो संपेह = संप्र + ईक्ष् । संब पुं [शाम्ब] श्रीकृष्ण का एक पुत्र । राजा संपिठ्ठ वि [संपिष्ट] पिसा हुआ।
कुमारपाल के समय का एक सेठ । संपिणद्ध वि [संपिनद्ध] नियन्त्रित । बंधा | संब पुंन [शम्ब] वज्र, इन्द्र का आयुध । हुआ।
संबंध सक [सं+बन्ध] जोड़ना। संसर्ग संपिहा सक [समपि+धा] ढकना ।
करना, मेल करना । नाता करना । संपीड पुं. संपीडन, दबाना । देखो संपील। संबर पुं [शम्बर] हरिण की एक जाति । संपीणिअ वि [संप्रीणित] खुश किया हुआ। संबल पुंन [शम्बल] पाथेय, रास्ते में खाने संपील पुं [संपीड] संघात, समूह ।
का भोजन । एक नागकुमार देव । संपीला स्त्री [संपीडा] पीड़ा, दुःखानुभव । संबलि देखो सिंबलि = शिम्बलि । संपुच्छ सक [सं+प्रच्छ्] प्रश्न करना । संबलि पुंस्त्री [शाल्मलि] सेमल का पेड़ । स्त्री. °णी।
संबाधा देखो संबाहा। संपुच्छणी स्त्री [संपुच्छनी] झाडू । संबाह सक [सं + बाध्] पीड़ा करना। संपुज्ज वि [संपूज्य] संमाननीय, आदरणीय । | दबाना, चप्पी करना। संपुड पुं [संपुट] जुड़े हुए दो समान अंश | | संबाह पुं [संबाध] नगर-विशेष, जहां ब्राह्मण वाली वस्तु, दो समान अंशों का एक दूसरे आदि चारों वर्गों की प्रभूत बस्ती हो। से जुड़ना । संचय । °फलग पुं. [°फलक] | पीड़ा । वि. संकीर्ण, सकरा । देखो संवाह । दोनों तरफ जिल्द बंधी पुस्तक ।
संबाहणी स्त्री [संबाधनी] विद्या-विशेष । संपुड सक [संपुटय] जोड़ना, दोनों हिस्सों को संबाहा स्त्री [संबाधा] पीड़ा । अंग-मर्दन । मिलाना।
संबुक्क पुं [शम्बूक] शंख । रावण का भागिसंपुण्ण वि [संपूर्ण] पूर्ण । न. दस दिनों का | नेय-खरदूषण का पुत्र । एक गाँव । विट्टा लगातार उपवास।
स्त्री [°वर्ता] शंख के आवर्त के समान संघूअ सक [सं+ पूजय] सम्मान करना।
भिक्षाचर्या । देखो संबूअ।। अभ्यर्चना करना । पूजन करना।
संबुज्झ सक [सं + बुध्] समझना, ज्ञान संपूरिय वि [संपूरित] पूर्ण किया हुआ।
पाना। संपेल्ल पुं [संपीड] दबाव ।
संबुद्ध वि [संबुद्ध] ज्ञान-प्राप्त । संपेस सक [संप्र + इष] भेजना ।
संबुद्धि स्त्री [संबुद्धि] ज्ञान, बोध । संपेह सक [संप्र+ ईक्ष्] निरीक्षण करना ।
संबूअ पुं [शम्बूक] जल-शुक्ति । शुक्ति के संपेहा स्त्री [संप्रेक्षा] पर्यालोचन ।
आकार का जल जन्तु विशेष । संफ न [दे] कुमुद, चन्द्र-कमल ।
संबोधि स्त्री. सत्य धर्म की प्राप्ति । संफाल सक [सं+पाटय] फाड़ना। संबोह सक [सं + बोधय्] समझाना, बुझाना । संफाली स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणि ।
आमन्त्रण करना । विज्ञप्ति करना । संफास सक [ सं + स्पृश् ] स्पर्श करना । संबोह पुं[संबोध] ज्ञान, बोध, समझ । संफास पुं [संस्पर्श] स्पर्श ।
संबोहि देखो संबोधि। संफिट्ट पुं[दे] संयोग, मेलन ।
संभंत वि [संभ्रान्त भीत । त्रस्त । पुन. प्रथम संफुल्ल वि. विकसित ।
नरक का पांचवां नरकेन्द्रक । संफुसिय वि [संमृष्ट] प्रमाजित ।
संभंति स्त्री [संभ्रान्ति] संभ्रम, उत्सुकता ।
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संभंतिय-संमन्न
संभंतिय वि [ सांभ्रान्तिक] संभ्रम - निर्मित । संभग्ग वि[संभग्न] चूर्णित | संभण सक [सं + भण् ] कहना । संभम अक [ सं + भ्रम् ] करना । अक भय-भीत होना ।
अतिशय
भ्रमण
संभम पुं [संभ्रम] आदर । भय, घबराहट,
क्षोभ । उत्सुकता । संभर सक [सं + करना । संक्षेप या संकोच करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संभर सक [सं + स्मृ] स्मरण करना । संभराविअ वि [संस्मारित] याद कराया
संभाव सक[सं+ भावय् ] संभावना करना । प्रसन्न नजर से देखना |
संभाव अक [ लुभ् ] लोभ करना, आसक्ति
करना ।
संभास सक [ सं + भाष्] बातचीत करना । संभासि वि[संभाष] संभाषण । संभिडण न [संभेदन] आघात |
भृ] धारण करना | पोषण संभिण्ण वि [ संभिन्न ] परिपूर्ण | किंचिद्
न्यून | व्याप्त | बिलकुल भिन्न । खंडित । सोअ वि [श्रोतस्, श्रोतृ] शरीर के कोई भी अंग से शब्द को स्पष्ट रूप से सुनने की लब्धिवाला |
अक.
हुआ । संभल सक [सं + स्मृ] याद करना । संभल सक [ सं + भल् ] सुनना । सम्भलना | सावधान होना । संभली स्त्री [] दूती । कुट्टनी । स्त्री । संभव अक [सं + भू] उत्पन्न होना । संभावना होना, उत्कट संशय होना ।
संभव पुं. उत्पत्ति | संभावना | वर्तमान अवसर्पिणी काल में उत्पन्न तीसरे जिनदेव । एक जैन मुनि, दूसरे वासुदेव के पूर्व जन्म के गुरु । कला-विशेष |
संभव पुं [दे] प्रसूति-जन्य बुढ़ापा । संभव (अप) देखो संभम = संभ्रम | संभव्व देखो संभव = सं + भू ।
८९७
संभार पुं. समूह, जत्था । शाक आदि में ऊपर डाला जाता मसाला । परिग्रह, द्रव्य-संचय | अवश्यतया कर्म का वेदन | संभारिअवि [संस्मृत] याद किया हुआ । संभारि वि[संस्मारित]याद कराया हुआ । संभाल सक [ सं + भालय् ] संभालना । खोज
करना ।
संभिन्नन [ दे] आघात ।
संभिय वि[संभृत] पुष्ट । संस्कार-युक्त | संभु पुं. [शम्भु ] शिव । रावण का एक सुभट । छन्द-विशेष । 'घरिणी स्त्री [गृहिणी ] गौरी ।
संभूअ वि [संभूत] उत्पन्न । पुं. एक जैन मुनि, प्रथम वासुदेव के पूर्वजन्म के गुरु । एक जैन महर्षि, स्थूलभद्र मुनि के गुरु । व्यक्ति-वाचक नाम | 'विजय पुं. एक जैन महर्षि । संभूइ स्त्री [संभूति] उत्पत्ति । श्रेष्ठ विभूति । संभाणय न [ संभाणक ] गुजरात का एक संभूस सक [ सं + भूष्] अलंकृत करना । संभोअ पुं. देखो संभोग ।
प्राचीन नगर ।
[सं+भुज् ] साथ भोजन करना । एक मण्डली में बैठकर भोजन करना । संभुल्ल वि [दे] दुर्जन ।
संभार सक [सं + भारय् ] मसाला से संस्कृत संभोइअ वि [ सांभोगिक ] समान सामाचारीकरना, वासित करना । क्रियानुष्ठान होने के कारण जिसके साथ खान-पान आदि का व्यवहार हो सके ऐसा साधु ।
संभोग पुं. समान सामाचारीवाले साधुओं का एकत्र भोजनादि - व्यवहार । सुन्दर भोग ।
इस्त्री [संमति] अनुमति । पुं. वायुकाय, पवन । वायुकाय का अधिष्ठाता देव । संमज्ज पुं. [संमार्ज] संमार्जन, साफ करना ।
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७९८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संमज्जग-संलोणया संमज्जग पुं [संमज्जक] वानप्रस्थ तापसों की संमूढ वि. जड़, विमूढ । एक जाति ।
संमेअ पुं [संमेत] आजकल का 'पारसनाथ संमज्जणी स्त्री [संमार्जनी] झाड़।
पहाड़' । राम का एक सुभट । संमट्ठ वि [संमृष्ट] प्रमाजित । पूर्ण भरा हुआ। संमेल पुं. परिजन या मित्रों का जिमनवार । संमडु पुं [संमर्द] युद्ध । परस्पर संघर्ष । संमोह पुं. मूढता, मोह । मूर्छा । दुःख, कष्ट । संमद्द सक [सं+मृद्] मर्दना करना।
संनिपात रोग। संमद्द देखो संमड्ड।
संमोह न [सांमोह] मिथ्यात्व का एक भेदसंमद्दा स्त्री [संमर्दा] प्रत्युपेक्षणा-विशेष, वस्त्र रागी को देव, संगी-परिग्रही को गुरु और के कोनों को मध्य भाग में रखकर अथवा | हिंसा को धर्म मानना । वि. संमोह-संबन्धी । उपधि पर बैठकर जो प्रत्यपेक्षणा-निरीक्षण | संमोहा स्त्री. छन्द-विशेष । की जाय वह ।
संरंभ पुं[संरम्भ] हिंसा करने का संकल्प । संमय वि [संमत] अनुमत । अभीष्ट ।
आटोप । उद्यम । क्रोध ।। संमविय वि [संमापित] नापा हुआ ।
संरक्खग वि [संरक्षक] सुरक्षा करनेवाला । संमा अक [सं+ मा] समाना, अटना ।
संरक्खण न [संरक्षण] समीचीन रक्षण । संमाण सक [सं + मानय] आदर करना, संरक्खय देखो संरक्खग। गौरव करना ।
संरद्ध सक [सं+राध्] पकाना । संमिद (शौ) वि [संमित] तुल्य । समान
संरुंध सक [सं + रुध्] रोकना । परिमाणवाला।
संरोह पुं [संरोध] अटकाव । संमिल अक [सं + मिल] मिलना।
संरोहणी स्त्री [संरोहणी] घाव को रुझानेसंमिल्ल अक [सं + मील] सकुचाना । संकोच
वाली औषधि-विशेष ।
संलक्ख सक [सं + लक्षय] पहिचानना । करना। संमिस्स वि [संमिश्र] मिला हुआ, युक्त ।
संलग्ग वि [संलग्न] लगा हुआ । संयुक्त । उखड़ी हुई छालवाला।
संलत्त वि [संलपित] संभाषित, उक्त। कथित । संमील देखो संमिल्ल।
संलप्प । सक [सं + लप्] वार्तालाप या संमीस देखो संमिस्स।
संलव । संभाषण करना । संमुइ पुं [संमुचि भारतवर्ष में भविष्य में |
संलाव सक [सं+लापय] बातचीत करना ।
| संलाविअ वि [संलापित] उक्त। कहलवाया होनेवाला एक कुलकर पुरुष । संमुच्छ अक [सं + मूर्च्छ] स्त्री-पुरुष के
हुआ। संयोग के बिना ही यूकादि की तरह जीवों
संलिद्ध वि [संश्लिष्ट] संयुक्त । का उत्पन्न होना।
| संलिह सक [सं + लिख] निर्लेप करना। समुच्छिम वि [संमूच्छिम] स्त्री-पुरुष के तप से शरीर आदि का शोषण करना ।
समागम के बिना उत्पन्न होनेवाला प्राणी। घिसना । रेखा करना। संमुज्झ अक [सं + मुह] मोह करना, मुग्ध | संलोढ वि. संलेखना-युक्त। होना।
संलीण वि [संलीन] इन्द्रिय तथा कषाय आदि संमुस सक [सं + मृश्] पूर्ण स्पर्श करना। को काब में किया हो वह, संवृत । संमुह वि [संमुख] सामने आया हुआ । संलीणया स्त्री [संलीनता] तप-विशेष,
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संलुंच-संवाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७९९ शरीर आदि का संगोपन ।
पेड़ । एक स्मृतिकार मुनि । देखो संवट्ट = संलुंच सक [सं + लुञ्च ] काटना।
संवर्त । संलेहणा । स्त्री [संलेखना] शरीर, कषाय संवत्तण देर संलेहा . [संलेखा] आदि का संवत्तय वि [संवर्तक] अपवर्तन-कर्ता । पुं. शोषण, अनशन-व्रत से शरीर-त्याग का बलदेव । वडवानल । अनुष्ठान । °सुअ न [श्रुत] ग्रन्थ विशेष । संवत्तवत्त पुं [संवर्तोद्वर्त] उलट-पुलट । संलोअ पुं[संलोक] दर्शन, अवलोकन । दृष्टि- संवद्धण न संवर्धन] वृद्धि । वि. वृद्धि करनेपात। जगत् । प्रकाश । वि. दृष्टि-प्रचार- वाला। वाला।
संवय सक [सं+वद्] बोलना, कहना। संलोक सक [सं+लोक्] देखना।
प्रमाणित करना। संवइयर पुं[संव्यतिकर] व्यतिसंबन्ध, विप
संवय वि [संवत] आवृत्त, आच्छादित । रीत प्रसंग।
संवर सक [सं +] निरोध करना । कर्म को संवग्ग पुं [संवर्ग] गुणाकार । गुणित ।
रोकना । बन्द करना । ढकना । गोपन करना। संवच्छर पुं [संवत्सर] वर्ष । पडिलेहणग
संवर पुं. नतन कर्मबन्ध का अटकाव । भारतन [प्रतिलेखनक] वर्षगांठ।
वर्ष में होनेवाले अठारहवें जिनदेव । चौथे संवच्छरिय पुं [सांवत्सरिक] ज्योतिषी । वि.
जिनदेव के पिता । एक जैन-मुनि । पशुसंवत्सर-संबन्धी।
विशेष । दैत्य-विशेष । मत्स्य की एक जाति । संवच्छल देखो संवच्छर।
संवरण न. निरोध । गोपन। संकोचन । संवट्ट सकसं + वर्तय] एक स्थान में रखना।
प्रत्याख्यान, परित्याग । श्रावक के बारह व्रतों
का अंगीकार । अनशन । विवाह । वि. संकुचित करना।
रोकनेवाला। संवट्ट पुं [संवर्त] पीड़ा। भयभीत लोगों का
संवरिअ वि [संवृत] आसेवित आराधित । समवाय । तृण को उखाड़ने वाला वायु ।
संकोचित । आच्छादित । अपवर्तन । घेरा । बहुत गाँवों के लोग एकत्रित
संवलण न [संवलन] मिलन । हो कर रहें वह स्थान, दुर्ग आदि । देखो
संवलिअ वि [संवलित] व्याप्त । युक्त, संवत्त।
मिलित । मिश्रित । संवट्टइअ वि [संवर्तकित] तूफान में फंसा ।
संववहार पुं [संव्यवहार] व्यवहार । संवट्टग पुं [संवर्तक] वायु-विशेष । अपवर्तन ।
संवस अक [सं+ वस] साथ में रहना । वास संवट्टण न [संवर्तन] अनेक मार्ग मिलते हों
करना । संभोग करना। वह स्थान । अपवर्तन । संवट्टय पुं[संवर्तक] । देखो संवट्टग।
संवह सक [ सं + वह ] वहन करना । अक. संवट्टिअ वि [दे. संवर्तित] संवृत, संकोचित ।
सज्ज होना। संवट्टिअ वि [संवर्तित] पिंडीभूत, एकत्रित । | संवहणिय वि [संवाहनिक] देखो संवाहसंवर्त-युक्त ।
णिय। संवड्ढ अक [सं + वृध्] बढ़ना।
संवहिअ वि [संव्यूढ] जो सज्ज हुआ हो । संवत्त पुं [संवर्त] प्रलय काल । वायु-विशेष । | संवाद । पुं. पूर्वज्ञान को सत्य साबित करनेमेघ । मेध का अधिपति-विशेष । बहेड़ा का ) संवाय ) वाला ज्ञान । सबूत । विवाद ।
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८००
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संवाय-संवेल्ल संवाय सक [ सं + वादय् ] खबर देना । | संविद्ध वि [संविद्ध] संयुक्त । अभ्यस्त । दृष्ट । प्रमाणित करना।
संविधा स्त्रो. संविधान, रचना । संवायय पुं [दे] नकुल । श्येन पक्षी । संविधुण सक [संवि+धू] दूर करना। परिसंवास सक [सं+वासय्] साथ में रहने देना। त्याग करना । अवगणना। मैथुन के लिए स्त्री के साथ रहना । संविभत्त वि [संविभक्त] बाँटा हुआ । संवासिय (अप) वि [समाश्वासित] जिसको संविभाअ ) [संविभाग] विभाग करना, आश्वासन दिया गया हो वह ।
संविभाग ) बाँट । आदर, सत्कार । संवाह सक [सं+वाहय] वहन करना। संविभागि वि [संविभागिन्] दूसरे को देकर , तैयारी करना । अंग-मर्दन करना ।
भोजन करनेवाला। संवाह पुं. दुर्ग-विशेष, जहाँ कृषक-लोग धान्य संविभाव सक [संवि+ भावय] पर्यालोचन
आदि को रक्षा के लिए ले जाकर रखते हैं। करना, चिन्तन करना। विवाह । गिरिशिखरस्थ ग्राम ।
संविराय अक[संवि + राज] शोभना । संवाहण न [संवाहन] अंग-मर्दन । सम्बाधन, संविल्ल देखो संवेल्ल । विनाश । पुं. एक राजा । वि. वहन करने संविह पुं सिंविध] गोशाल का एक उपासक । वाला।
संविहाण न [संविधान] रचना । संवाहणिय वि [सांवाहनिक] भार-वहन करने संवीअ वि [संवीत] व्याप्त । पहना हुआ । के काम में आता वाहन (उवा) ।
संवुअ देखो संवुड । संवाहय वि [संवाहक] चप्पी करनेवाला। संवुट्ट देखो संवृत्त । संविकिण्ण वि [संविकीर्ण] अच्छी तरह संवुड वि [संवृत] संकट, सकड़ा, अविवृत्त । व्याप्त ।
संवर-युक्त, सावध प्रवृत्ति से रहित । निरुद्ध । संविक्ख सक [संवि + ईक्ष्] सम भाव से आवृत । संगोपित । न. कषाय और इन्द्रियों देखना।
का नियन्त्रण । संविग्ग वि [संविग्न] संवेग-युक्त, भव भीरु, | संवुड्ढ वि [संवृद्ध] बढ़ा हुआ । मुक्ति का अभिलाषी, उत्तम साधु ।
संवुत्त वि [संवृत्त] संजात । बना हुआ । संविचिण्ण वि [संविचीर्ण] संविचरित,
संवुद देखो संवुड। आसेवित ।
संवुदि स्त्री [संवृति] संवरण । संविज अक [सं + विद्] विद्यमान होना ।
संवूढ वि [संव्यूढ] सज्जित । बह कर किनारे
लगा हुआ। संविट सक [सं + वेष्टय] वेष्टन करना।
संवेअ वि [संवेद्य] अनुभव-योग्य । पोषण करना।
संवेअ । पुं[संवेग] भय आदि के कारण संविढत्त वि [संमजित] उपार्जित ।
संवेग से त्वरा । भव-वैराग्य । मुमुक्षा । संविणीय वि [संविनीत] विनय-युक्त।
संवेयण न [संवेदन] ज्ञान। वि. बोधसंवित्त देखो संवीअ।
जनक । संवित्त वि [संवृत्त] संजात । वि. अच्छा संवेयण । वि [संवेजन] संवेग-जनक । आचरणवाला । बिलकूल गोल।
संवेयण [संवेगन] । संवित्ति स्त्री [संवित्ति] संवेदन, ज्ञान ।। संवेल्ल सक [ सं + वेल्ल ] चालित करना, संविद सक [सं + विद्] जानना ।
कॅपाना।
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संवेल्ल - संसेस
संवेल्ल सक [संवेष्ट्] लपेटना । संवेल्ल सक [दे] संकेलना । संकुचित करना । संवृत करना ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
स्थित जीव ।
संसारयवि [ संसारिक ] संसार से सम्बन्ध रखनेवाला ।
संसारयवि [संसारित ] एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थापित |
संवेह पुं [संवेध] संयोग ।
संस [स्] खिसकना, गिरना । संस सक [शंस्] कहना । प्रशंसा करना | आस्वाद लेना ।
संस वि[सांश ] अंश-युक्त, सावयव । संसइअ न [ सांसयिक ] मिथ्यात्व - विशेष । संसग्ग पुंस्त्री [संसर्ग ] संबन्ध, संग । संसज्ज अक [सं + सञ्जु ] संबन्ध करना, संसर्ग
करना ।
संसजिम वि[संसक्तिमत्] बीच में गिरे हुए जीवों से युक्त ।
संसदृ वि [ संसृष्ट] खरण्टित, विलिप्त । न. खरष्टित हाथ से दी जाती भिक्षा आदि । देखो संसि ।
संसाहण स्त्रीन [दे] अनुगमन | संसाण न [ संकथन] कथन |
साहिय वि[संसाधित ] सिद्ध किया हुआ । संसि वि[संश्रित] आश्रित ।
८०१
संसिच सक [ सं + सिच् ] पूरना, भरना । बढ़ाना | सिंचन करना ।
देखो संस | कप्पिअ वि [कल्पिक ] खरण्टित हाथ अथवा भाजन से दी जाती भिक्षा को हो ग्रहण करने के नियमवाला मुनि ।
संसत्त वि [ संसक्त ] संसर्ग-युक्त, सम्बद्ध | पद-जन्तु विशेष ।
संसित वि[संसिक्त ] सींचा हुआ । संसिद्धि वि[सांसिद्धिक] स्वभाव सिद्ध । संसिलेस देखो संसेस ।
संसत्ति स्त्री [ संसक्ति ] संसर्ग ।
संसद्द पुं [संशब्द] शब्द, आवाज ।
संसीव सक[सं+सिव् ] सीना ।
संसप्पग वि[संसर्पक] चलने-फिरनेवाला । संसुद्ध वि [ संशुद्ध ] विशुद्ध । न . लगातार उन्नीस दिन का उपवास । संसूवि [संसूचक ] सूचना- कर्ता । संसेइम वि[संसेकिम] संसेक से बना हुआ । उबाली हुई भाजी जिस ठंढे जल से सिची जाय वह पानी । तिल की धोवन । पिष्टोदक |
पुं. चींटी आदि प्राणी । संसपिअ 'न [दे. संसर्पित] कूद कर चलना । संसमण न [ संशमन] उपशम, शान्ति । संसय पुं [संशय ] संदेह, शंका | संसया स्त्री [संसत्] परिषत्, सभा । संसर अक[सं+सृ] परिभ्रमण करना । संसरण न [संस्मरण] स्मृति, याद । संसवण न [ संश्रवण ] श्रवण, सुनना । संसह सक [ सं + सह ] सहन करना । संसा स्त्री [शंसा] प्रशंसा, श्लाघा । संसाअवि [दे] आरूढ | चूर्णित । उद्विग्न । संसार पुं. एक जन्म से जन्मान्तर में गमन । जगत् । °वंत वि [°वत्] संसारवाला, संसार
संसेइम वि [ संस्वेदिम ] पसीने से उत्पन्न होनेवाला ।
संसेय अक [ सं + स्विद् ] बरसना । संसेय पुं [संस्वेद] पसीना । °य वि [ज] पसीने से उत्पन्न ।
पीत |
१०१
संसिज्झ अक [सं+सिध्] अच्छी तरह सिद्ध होना ।
संसेय पुं [ संसेक] सिंचन । संसेविय वि[संसेवित] आसेवित । संसेस पुं [ संश्लेष ] सम्बन्ध,
संयोग ।
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८०२
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संसेसिय-सक्कार
संसेसिय वि [संश्लेषिक] संश्लेषवाला। सक्क अक [ शक् ] सकना, समर्थ होना। संसोधण न [संशोधन] शुद्धि-करण, जुलाब । सक्क अक [ सूप् ] जाना, गति करना। संसोधित वि [संशोधित] सुशुद्ध किया हुआ । | सक्क अक [ष्वक् ] गति करना, जाना। संसोय सक [ सं+शोचय ] शोक करना । सक्क न [शल्क] छाल । संसोहण न. देखो संसोधण ।
सक्क वि [शक्त] समर्थ, शक्ति-युक्त । संसोहा स्त्री [संशोभा] शोभा।
सक्क पुं [शक्र] सौधर्म नामक प्रथम देवलोक संसोहि वि [ संशोभिन् ] शोभनेवाला । का इन्द्र । कोई भी देवेन्द्र । एक विद्याधरसंसोहिय देखो संसोधित।
राजा। छन्द-विशेष । गुरु पुं. बृहस्पति । संह देखो संघ, संध।
प्पभ पुं [प्रभ] शक्र का एक उत्पातसंहडण देखो संघयण ।
पर्वत । °सार न. एक विद्याधर-नगर । संहदि स्त्री [संहति] संहार ।
°वदार (शौ) न [°ावतार] तीर्थ-विशेष । संहय वि [संहत] मिला हुआ ।
वयार न [°ावतार] चैत्य-विशेष । संहर सक [सं+ह] अपहरण करना । विनाश | सक्क पुं [शाक्य] बुद्ध देव । वि. बौद्ध । करना। मारना, संवरण करना, संकेलना। सक्क (अप) देखो सग = स्वक । ले जाना।
सक्कंदण पुं [संक्रन्दन] इन्द्र । संहर पुं [संभार] समुदाय । संघात । सक्कणो (शौ) देखो सकुण । संहार देखो संभार = सं+ भारय । सक्कय देखो स-क्कय = सस्कृत । संहार देखो संघार ।
सक्कय वि [संस्कृत] संस्कार-युक्त । स्त्रीन. संहारण न [संधारण] धारण, टिकाना। संस्कृत भाषा। संहाव देखो संभाव = सं + भावय । सक्कर न [शर्कर] खण्ड, टुकड़ा। संहिच्च अ [संहत्य] साथ में मिलकर । सक्कर देखो सक्करा। पुढवी स्त्री संहिदि देखो संहदि।
[पृथिवी] । °प्पभा स्त्री [ प्रभा] दूसरी संहिया स्त्री [संहिता] चिकित्सा आधि |
नरक-भूमि । शास्त्र । अस्खलित रूप से सूत्र का उच्चारण ।
सक्करा स्त्री [शर्करा] चीनी । उपलखण्ड । संहुदि स्त्री [संभृति] अच्छी तरह पोषण ।।
कंकड़ । बालु । °भ न. गोतम गोत्र की एक सक देखो सग = शक ।
शाखा । पुंस्त्री. उस में उत्पन्न । °भा स्त्री. सकण्ण वि [सकर्ण] विद्वान्, जानकार । दूसरी नरक-पृथिवी। सकथन. तापसों का एक उपकरण । सक्कार [ [सत्कार] सम्मान, आदर, पूजा । सकधा देखो सकहा।
सक्कार पुं [संस्कार] गुणान्तर का आधान । सकयं अ [ सकृत् ] एक बार ।
स्मृति का कारण-भूत एक गुण । वेग । सकल देखो सयल - सकल ।
शास्त्राभ्यास से उत्पन्न होती व्युत्पत्ति । गुणसकहा स्त्री [ सक्थिन् ] अस्थि, हाड़। विशेष, स्थिति-स्थापन । व्याकरण के अनुसार सकाम देखो स-काम- सकाम ।
शब्द-सिद्धि का प्रकार । गर्भाधान आदि के सकुंत [शकुन्त] पक्षी।
समय की जाती धार्मिक क्रिया। पाक, सकुण देखो सक्क = शक् ।
पकाना। सकेय देखो स-केय = सकेत ।
सक्कार सक [ सत्कारय् ] सम्मान करना ।
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सक्कारिय-सग्गोकस
सक्कारिय वि [ संस्कारित ] संस्कार-युक्त
कृत |
सक्काल देखो सक्कार = संस्कार | सक्किअ देखो सक्क = शाक्य | सक्किवि [ स्वकीय] निज का, आत्मीय । सक्किअ देखो सक्किअ = सत्कृत | सक्किरिआ स्त्री [संस्क्रिया ] संस्कार, संस्कृति | सक्कुण देखो सकुण । सक्कुलि स्त्री [शष्कुलि] कर्ण-विवर । तिलपापड़ी | कण्ण पुं [कर्ण] एक अन्तद्वीप | उसकी मनुष्य जाति ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सक्ख न [ सख्य] मैत्री, दोस्ती । सक्ख न [ साक्ष्य ] साक्षिपन, गवाही । सक्ख देखो सक्क = शक् ।
सक्खं अ [ साक्षात् ] प्रत्यक्ष, प्रकट | सक्खय देखो सक्कय = संस्कृत । सक्खर देखो सक्खर = साक्षर । सक्खा देखो सक्खं ।
सक्खिवि [ साक्षिन् ] साक्षी, साखी । सक्खि देखो सक्ख = सख्य । सक्खिज्जन [ साक्षित्व ] गवाही, साख । सक्खिण देखो सक्खि ।
सग [स्वक] देखोस = स्व |
सग देखो सत्त = सप्तन् । 'वण्ण स्त्रीन [पञ्चाशत् ] सत्तावन । 'वीस स्त्रीन [विशति ] सत्ताईस | सरि स्त्री [सप्तति] सतहत्तर | सीइ स्त्री [शीति] सतासी । सग देखो सत्तम ।
सग पुं [शक] अफगानिस्तान के उत्तर का एक म्लेच्छ देश | उस देश का निवासी । एक सुप्रसिद्ध राजा जिसका शक सम्वत् चलता है । "कूल न. एक म्लेच्छ देश का किनारा ।
सग° स्त्री [ स्रज् ] माला ।
सगड न [शकट] गाड़ी । पुं. एक सार्थवाह - पुत्र । भद्दि स्त्री [भद्रिका]
८०३
ग्रन्थ-विशेष | मुहं न [° मुख] पुरिमताल नगर का एक प्राचीन उद्यान । वह पुं [व्यूह ] कला-विशेष, गाड़ी के आकार से सैन्य की रचना | देखो सअढ । सगडब्भि देखो स-गडब्भि = स्वकृतभिद् । सगडाल पुं [ शकटाल] राजा मन्द का सुप्रसिद्ध मंत्री और महर्षि स्थूलभद्र का पिता । सगड़िया स्त्री [शकटिका ] छोटी गाड़ी । सगडी स्त्री [ शकटी] गाड़ी । सगण देखो स-गण = स-गण । सगन्न देखो सकण्ण । समय न [दे] श्रद्धा, विश्वास । सगर पुं. एक चक्रवर्ती राजा । सगल्ल देखो सयल : सकल ।
सगसग अक [ सगसगाय् ] 'सग-सग' आवाज
करना ।
सगार देखो स-गार - सागार, साकार | सगार देखो सन्गार = स-कार । सगास न [सकाश] पास, निकट, समीप । सगुण देखो स-गुण = स-गुण । देखोस
।
सगुत्त वि [ सगोत्र ] समान गोत्रवाला | सगे न [] निकट समीप । सगोत्त देखो सगुत्त ।
सग्ग पुंन [स्वर्ग] देवों का आवास-स्थान । 'तरु पुं. कल्पवृक्ष | सामि पुं ['स्वामिन् ] इन्द्र । 'वहू स्त्री ['वधू ] देवांगना, देवी । सग्ग पुं [सर्ग] मुक्ति, ब्रह्म । सृष्टि रचना | सग्ग देखो सग्ग = साग्र । सग्ग देखो सग = स्वक |
सग्गइ देखो स-ग्गइ = सद्गति । सग्गहवि [] मुक्त | मुक्ति प्राप्त । सग्गह देखो स-ग्गह = स- ग्रह । गीय वि[स्वर्गीय] स्वर्ग-सम्बन्धी । सग्गु देखो सिग्गु ।
जैनेतर | सग्गोकस पुं [ स्वर्गौकस् ] देव, देवता ।
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८०४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सग्घ-सज्जण सग्ध सक [कथ् ] कहना।
। सच्चा स्त्री [सत्या] सत्य वचन । श्री कृष्ण की सग्घ वि [श्लाध्य । प्रशंसनीय ।
पत्नी, सत्यभामा। इन्द्राणी। °मोस वि सघिण देखो स-घिण = स-घृण ।
[मृषा] सत्य से मिला हुआ झूठ वचन । सचवखु देखो स-चक्खु = स-चक्षुष् । सच्चित्त देखो स-च्चित्त = स-चित्त। सचित्त देखो स-चित्त = स-चित्त । सच्चीसय पुं [दे. सच्चीसक] वाद्य-विशेष । सचिव देखो सइव।
सच्चेविअ वि [दे] रचित, निर्मित । सची देखो सई = शची। °वर पुं. इन्द्र ।। सच्छ वि [स्वच्छ] अति निर्मल । . सचेयण देखो स-चेयण = स-चेतन । सच्छंद वि [स्वच्छन्द] स्वाधीन । न. स्वेच्छासच्च न [सत्य] यथार्थ भाषण, अमृषा-कथन । नुसार । °गामि वि [°गामिन] स्वैरी । स्त्री. शपथ । सत्य युग । सिद्धान्त । वि. यथार्थ, °णी । °चारि, प्यारि वि [°चारिन्] सच्चा । पुं. संयम, चारित्र । जिनागम, जैन
स्वच्छन्दी । स्त्री. °णी। सिद्धान्त । अहोरात्र का दसवाँ मुहूर्त । एक सच्छर सक [दृश्] देखना । वणिक-पुत्र । °उर न [°पुर] एक प्राचीन सच्छह वि (दे.सच्छाय] सदृश, समान । नगर, आजकल का 'साचोर'। °उरी स्त्री सच्छाय वि. समान छायावाला, तुल्य । अच्छी [पुरी] वही अर्थ । °णेमि, नेमि पुं. भ. कान्तिवाला । सुन्दर छायावाला। अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ले मक्ति पानेवाला सच्छाह वि [सच्छाय] जिसकी छाँही सुन्दर राजा समुद्र विजय का पुत्र । °प्पवाय न हो । छाँहीवाला । समान छायावाला, तुल्य । [प्रवाद] छठवाँ पूर्व ग्रन्थ । °भामा स्त्री. सछत्ता स्त्री [सच्छत्रा] वनस्पति-विशेष । श्रीकृष्ण की एक पत्नी। 'वाइ विवादिन] सजण देखो स-जण = स्व-जन । सत्य-वक्ता । °संध वि[सन्ध] प्रतिज्ञा-निर्वा- सजिय देखो सज्जीव । हक । 'सिरी स्त्री [ श्री] पांचवें आरे की सजुत्त देखो संजुत्त। अन्तिम श्राविका । °सेण पुं [°सेन] ऐरवत सजोइ देखो स-जोइ = स-ज्योतिष । वर्ष में होनेवाला एक जिनदेव । 'हामा देखो |
एक जिनदेव नामा देखो सजोगि वि [सयोगिन्] मन आदि का व्याभामा । "वाइ देखो 'वाइ।
पारवाला । पुन. तेरहवां गुण-स्थानक ।
सजोणिय देखो स-जोणिय = स-योनिक । सच्चइ पुं [सत्यकि] आगामी काल में बारहवाँ तीर्थकर होनेवाला एक साध्वी-पुत्र । विषय
सज्ज अक [सञ्ज] आसक्ति करना । सक. लम्पट एक विद्याधर । श्रीकृष्ण का एक
आलिंगन करना। सम्बन्धी। सुय पुं [सुत] ग्यारह रुद्रों में | सज्ज अक [सस्ज्] तय्यार होना । सक. अन्तिम रुद्र ।
तय्यार करना, सजाना। सच्चंकार वि [सत्यंकार] सत्य साबित करने- सज्ज पुं[सर्ज] वृक्ष-विशेष । वाला, लेन-देन की सच्चाई के लिए दिया सज्ज पुं षड्ज] स्वर-विशेष । जाता बहाना।
सज्ज वि. तय्यार, प्रगुण । सच्चव सक [दृश्] देखना । निरीक्षण करना।
सज्ज ! अ [सद्यस्] तुरन्त, जल्दी । सच्चव सक [सत्यापय् ] सत्य साबित करना । सच्चवय वि [दर्शक] द्रष्टा ।
सज्जंभव पुं [शय्यम्भव] एक जैन महर्षि । सच्चविअ वि [दे] अभिप्रेत, इष्ट ।
सज्जण देखो स-उजण = सज्जन ।
सज्जं
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सज्जा-सढय
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सज्जा देखो सेज्जा ।
सट्ट
सज्ज वि[सर्जित ] बनाया हुआ । सज्ज पुं [] नापित, नाई । रजक । वि सट्ठ न [ शाठ्य ] शठता, धूर्तता ।
सट्टय
सट्ठ (शौ) देखो छट्ठ ।
पुरस्कृत, आगे किया हुआ । दीर्घ । सज्जिआ स्त्री [सर्जिका ] साजी खार । सज्जीअ देखो स-ज्जीअ = स-जीव | सज्जीव
स्त्री [ षष्टि ] साठ । साठ संख्यावाला | ' तंत, यंत न ['तन्त्र ] सांख्य-शास्त्र | म वि ['तम] साठवाँ |
वि [ षष्टिक] साठ वर्ष की वयवाला । पुंन एक प्रकार का
चावल |
सज्जीव अक [सज्जी + भू] सज्ज होना ।
सज्जो देखो सज्ज = सद्यस् । सज्जोक्कवि [दे] प्रत्यग्र, नूतन, ताजा । सज्झ वि [ साध्य ] साधनीय । वश में करने योग्य । तर्कशास्त्र - प्रसिद्ध अनुमेय पदार्थ, जैसे धूम से ज्ञातव्य वह्नि । पुं. साध्यवाला, पक्ष । देवगण- विशेष | योग-विशेष । मन्त्र - विशेष | सज्झ पुं [सह्य] पर्वत- विशेष । वि. सहनयोग्य ।
सज्झतिय पुं [दे] ब्रह्मचारी | सज्झतिया स्त्री [दे] भगिनी । सज्झतेवासि पुं [स्वाध्यायान्तेवासिन् ] विद्या
शिष्य ।
सज्झमाण वि [ साध्यमान ] जिसकी साधना की जाती हो वह
सज्झव सक [दे] तन्दुरुस्त करना ।
सज्झस न [साध्वस] भय ।
सज्झाइय वि [ स्वाध्यायिक ] जिसमें पठन आदि स्वाध्याय हो सके ऐसा शास्त्रोक्त देश, काल आदि । न शास्त्र-पठन आदि । सज्झाय पुं [ स्वाध्याय ] शोभन अध्ययन, शास्त्रका पठन, आवर्तन आदि ।
सज्झाराय वि [साह्यराज ] सह्याचल के राजा से सम्बन्ध रखनेवाला, सह्याद्रि के
राजा का ।
सज्झिलग सज्झिल्लग
}
पुं [] भ्राता ।
सट्ट पुंस्त्री [दे] सट्टा, विनिमय । वि. सटा हुआ ।
सक्कि
सट्टिय
पुंन [सट्टक] एक तरह का नाटक । खाद्य-विशेष |
सड अक [सद्] सड़ना । विषाद करना । अक गति
८०५
विशोर्ण होना । करना, जाना ।
सड अ [राट् ] सड़ना । खेद करना । रोगी होना । अक जाना ।
सडंग न [ षडङ्ग ] शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । वि वि [विद् ] छः अंगों का जानकार । सडा देखो सढा |
सडिअग्गिअ वि [दे] वर्धित | प्रेरित | सड्ढ सक [शद्] विनाश करना | कृश करना । सड्ढ पुंस्त्री [ श्राद्ध] श्रावक । वि श्रद्धेय वचनवाला | देखो सद्ध = श्राद्ध | सड्ढ देखो सड्ढ = सार्ध |
सड्ढइ पुं [श्राद्धकिन्] वानप्रस्थ तापस की एक जाति ।
सड्ढा स्त्री [श्रद्धा ] स्पृहा, अभिलाष । धर्म आदि में विश्वास, प्रतीति । आदर । शुद्धि । चित्त की प्रसन्नता । देखो सद्धा । सड्ढि वि [श्रद्धिन् ] श्रद्धालु, श्रद्धावान् । सढिअवि [ श्राद्धि] देखो सड्ढ = श्राद्ध | सड्ढी देखो सड्ढ = श्राद्ध |
सढ वि [ शठ] धूर्त, मायावी, कपटी । कुटिल, वक्र । पुं. धतूरा । मध्यस्थ पुरुष ।
सढ पुं [दे] पाल, जहाज का बादवान । केश । स्तम्ब, गुच्छा । वि. विषम । सढयन [] कुसुम |
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सढा-सतत सढा स्त्री [सटा] सिंह आदि की केसरा । सण्ण वि [सन्न] क्लान्त । अवसन्न, मग्न ।
जटा । व्रती का केश-समूह । शिखा । खिन्न । सढाल पुं [सटाल] सटावाला, सिंह । सण्णजन [ सान्न्याय्य ] मन्त्र आदि से सढि पुं [दे.सटिन्] सिंह।
संस्कारा जाता घृत आदि । सढिल वि [शिथिल] ढीला ।
सण्णत्तिअ वि [दे] परितापित । सण पुंन [शण] धान्य-विशेष । तृण-विशेष, सण्णविअ वि [दे] चिन्तित । न. सांनिध्य, पाट, जिसके तंतु रस्सी आदि बनाने के काम मदद के लिए समीप-गमन । में लाए जाते हैं । °बंधण न [°बन्धन] सन सण्णिअ वि [दे] आर्द्र । का पुष्प-वृन्त । °वाडिआ स्त्री [°वाटिका] | सण्णिर देखो सन्निर । सन का बगीचा ।
सण्णुम देखो सन्नुम।। सण पुं [स्वन] शब्द, आवाज ।
सण्णुमिअ वि [दे] संनिहित । मापित । अनुसणंकुमार पुं [सनत्कुमार] एक-चक्रवर्ती नय-युक्त । राजा। तीसरा देवलोक । उसका इन्द्र । सण्णेज्झ पुंदे] यक्ष-देवता ।
वडिंसय पुंन [°ावतंसक] एक देव-विमान । सह वि [श्लक्ष्ण] मसृण, चिकना । छोटा, सणप्पय
बारीक । न. लोहा। पुं. वृक्ष-विशेष । सणप्फद , देखो स-णप्पय = स-नखपद ।
'करणी स्त्री. पीसने की शिला । °मच्छ पुं सणप्फय
[°मत्स्य] मछली की एक जाति । °सण्हिआ सणा अ [सना] सदा । °तण, यण वि |
स्त्री [ श्लक्ष्णिका] आठ उच्छ्लक्ष्णश्लक्षिणका [°तन] शाश्वत ।
का एक नाप । सणाण न [स्नान] नहान, अवगाहन ।
सण्ह वि [सूक्ष्म] छोटा, बारीक । न. कैतव । सणाह देखो स-णाह - स-नाथ ।
अध्यात्म। अलंकार-विशेष । देखो सुहम, सणाहि पुं [सनाभि] स्वजन, ज्ञाति । समान ।
सुहुम। सणि पुं [शनि] शनैश्चर-ग्रह । शनिवार ।
सण्हाई स्त्री [दे] दूती। सणिअ पुं [दे] साक्षी । ग्राम्य ।
सत देखो सय = शत । °क्कतु पुं [°क्रतु] सणिअं अ [शनैस्] धीरे ।
इन्द्र । ग्घी स्त्री [°घ्नी] अस्म-विशेष । सणिचर पुं [शनैश्चर] शनिग्रह । °संवच्छर दु स्त्री [°द्र] एक महानदी । 'भिसया [संवत्सर] वर्ष-विशेष ।
स्त्री [भिषज् ] नक्षत्र-विशेष । रिसभ पुं सणिचरि । ' [शनैश्वारिन्] युगलिक | [ऋषभ] अहोरात्र का इक्कीसर्वां मुहर्त । सणिचारि , मनुष्यों की एक जाति । वच्छ पुं [°वत्स] पक्षि-विशेष । °वाइया सणिच्चर । देखो सर्णिचर।
स्त्री [°पादिका] त्रीन्द्रिय जन्तु को एक सणिच्छर ।
जाति । सणिद्ध देखो सिणिद्ध ।
सत देखो सत्त = सप्तन् । °र त्रि [°दशन्] सणिप्पवाय पुं [शनैःप्रपात] जीवों से भरी सतरह । °रसय न [°दशशत] एक सौ हुई पौद्गलिक वस्तु-विशेष ।
सतरह। सणेह पुं[स्नेह] प्रेम । घृत, तैल आदि स्निग्ध सतत देखो स-तंत = स्व-तन्त्र । रस । चिकनाई।
| सतत देखो सयय = सतत ।
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सतय-सत्तंग संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८०७ सतय देखो सयय = शतक ।
साधु-प्रतिज्ञा । मिया, 'मी स्त्री [मिका, सतर न. दधि ।
°मी] सातवों। सातवीं विभक्ति । °य देखो सति देखो सइ = स्मृति ।
ग। र वि [°त] ७० वाँ । °र त्रि सती देखो सई = सती।
[दशन्] सतरह । °रत्त पुं [ रात्र] सात सतीणा देखो सईणा।
रातदिन का समय । °रस त्रि [°दशन्] सतेरा स्त्री [शतेरा] विदिग् रुचक पर रहने सतरह। रस, °रसम वि [°दश] सतरहवाँ । वाली एक विद्युत्कुमारी देवी ।
रह देखो °रस - °दशन् । 'रि स्त्री सत्त वि [शक्त] समर्थ ।
[°ति] सत्तर । रिसि पुं [°ऋषि] सात सत्त वि [शप्त] शाप-ग्रस्त, आक्रोश-प्राप्त ।।
नक्षत्रों का मंडल-विशेष । °वण्ण पुं[°पर्ण] सत्त देखो सच्च = सत्य ।
वृक्ष-विशेष, सतौना । देव-विशेष । °वन्नवसत्त वि [सक्त] आसक्त, गृढ ।
डिसय पुं [पर्णावतंसक] सौधर्म देवलोक सत्त पुंन [सत्र] सदाव्रत । यज्ञ । °साला स्त्री का एक विमान । विह वि [विध] सात [°शाला] सदाव्रत-स्थान, दान-क्षेत्र । °गार प्रकार का। वीसइ, वीसा स्त्री न [°ागार] वही अर्थ ।
[विंशति] सताईस । °सइय वि [ शतिक] सत्त वि [दे] गत ।
सात सौ की संख्यावाला। °सट्ठ वि [°षष्ट] सत्त पुन [सत्त्व] प्राणी, जीव, चेतन । अहो
सड़सठवाँ । सट्ठि देखो ट्ठि । सत्तमिया स्त्री रात्र का दूसरा मुहूर्त । न. बल, पराक्रम । ["सप्तमिका] प्रतिज्ञा-विशेष, नियम-विशेष । मानसिक उत्साह । विद्यमानता। सात दिनों |
°सिक्खावइय वि [ °शिक्षावतिक ] सात का उपवास ।
शिक्षाव्रतवाला । हत्तर वि[°सप्तत]७७वाँ । सत्त वि [सप्तन्] सात । °खित्ती, खेत्ती |
हत्तरि स्त्री[°सप्तति]७७ । सतहत्तर संख्यास्त्री [°क्षेत्री] जिन-चैत्य, जिन-बिम्ब, जैन |
वाला । हा अ [°धा] सप्तविध । हुत्तरि आगम, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका
देखो °हत्तरि । ईस (अप) देखो वीसा । -ये सात धन-व्यय-स्थान । °ग न [क] सात
°णउइ स्त्री ['नवति] ९७ । गणउय वि का समुदाय । °चत्ताल वि ['चत्वारिंश
["नवत] ९७वा । जिसमें सत्तानबे अधिक हो ४७ वा । °चत्तालीस स्त्रीन [°चत्वारिंशत्]
वह । रह(अप)देखो °रह । गवण्ण, वन्न ४७ । °च्छय पुं[°च्छद] सतवन का पेड़ ।
स्त्रीन [ °पञ्चाशत् ] ५७ । सतावन संख्या ट्ठि स्त्री [°षष्टि] सड़सठ । सड़सठ संख्या
वाला । स्त्री. 'पणा । वन्न वि [°पञ्चाश] वाला । °द्विधा अ [°षष्टिधा] सड़सठ प्रकार
सतावनवा । वीस न[विंशति] । वीसइ का। °णउइ देखो गणउइ। तीसइम वि
स्त्री [°विंशति] सताईस । सताईस की [त्रिंशत्तम] ३७ वा । तंतु पुं [°तन्तु]
संख्यावाला । वीसइम वि [विंशतितम] यज्ञ । दस त्रि [°दशन्] १७ । °पण्ण
सताईसवाँ । वीसइविह वि [विंशतिदेखो वण्ण। °भूम वि. । 'भूमिय वि
विध] सताईस प्रकार का। वीसा स्त्री. [भूमिक] सात तलावाला प्रासाद । °म वि.
देखो वीस । सीइ स्त्री [°ाशीति]८७ । ७ वा। स्त्री. "मा। मासिअ वि
°ासीइम वि [°ाशीतितम] ८७ वाँ । [°मासिक] सात मास का। 'मासिआ स्त्री सत्तंग वि [सप्ताङ्ग] राजा, मन्त्री, मित्र, [ मासिकी] सात मास में पूर्ण होनेवाली एक । कोश-भंडार, देश, किला तथा सैन्य-ये सात
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८०८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
राज्याङ्गवाला । न हस्ति-शरीर के चार पैर, सूढ पुच्छ और लिंग । सत्तरह देखो सतह = स-तृष्ण । सत्तत्थ वि [] अभिजात, कुलीन । सत्तम देखो सत्तम = सत्-तम । सत्तर देखो सत्तर = सप्त-दशन्, दश । सत्तल न [ सप्तल] पुष्प- विशेष । सत्तला सत्तली
स्त्री [सप्तला ] नवमालिका का
गाछ ।
सत्तल्ली स्त्री [दे. सप्तला ] लता-विशेष,
शेफालिका का गाछ । सत्तावीसंजोयण देखों सत्तावीसंजोअण | सत्ता स्त्री. सद्भाव, अस्तित्व । आत्मा के साथ लगे हुए कर्मों का अस्तित्व, कर्मों का स्वरूप से अप्रच्यव - अवस्थान |
सत्तावरी स्त्री [ शतावरी ] कन्द-विशेष | सत्तावीसंजोअण पुं [दे] चन्द्र |
सत्ति स्त्री [ दे] तिपाई । घड़ा रखने का पलंग की तरह ऊँचा काष्ठ-विशेष |
सत्ति स्त्री [शक्ति] अस्त्र - विशेष । त्रिशूल । सामर्थ्य | विद्या विशेष | म, 'मंत वि [ मत्] शक्तिवाला ।
सत्ति पुं [सप्ति ] अश्व । सत्ति वि[सात्त्विक ] सत्त्व-युक्त | सत्तिअणा स्त्री [ दे] आभिजात्य, कुलीनता । सत्तिवण्ण देखो सत्त-वण्ण ।
[शत्रु ] रिपु ।' इवि [°जित्] शत्रु को जीतनेवाला । पुं. एक राजा । ग्घ वि [न] रिपु को मारनेवाला । निहण [निघ्न] पुं. रामचन्द्र का एक छोटा भाई | ● मद्दण वि ['मर्दन] शत्रु का मर्दन करने - वाला | सेण पुं [ सेन ] एक अन्तकृद् मुनि | 'देखो 'घ ।
तत्व
सत्थ पुंन [शास्त्र] हितोपदेशक ग्रन्थ, ग्रंथ | णुवि [ज्ञ ] शास्त्र का जानकार | 'गार वि [° कार] शास्त्र - प्रणेता । त्थ पुं [T] शास्त्र - रहस्य | "यार देखो 'गार | ° वि वि ['विद्] शास्त्र - ज्ञाता । सत्थइअ वि [ दे] उत्तेजित । सत्थर पुं [दे] निकर, समूह |
सत्थर पुंन [स्रस्तर] शय्या, बिछौना । सत्थव देखो संथव = संस्ताव | सत्थाम देखो सत्थाम = स-स्थामन् । सत्थाव देखो संथव = संस्तव |
पुं [ सक्तु] सत्तू, भूजे हुए यव सत्थि अ. स्त्री [ स्वस्ति ] आशीर्वाद | कल्याण, आदि का चूर्ण । मंगल | पुण्य आदि का स्वीकार । 'मई स्त्री [मती] वित्र क्षीरकदम्बक उपाध्याय की
सत्तु
सत्तुअ
सत्तुंजन [ शत्रुञ्ज] एक विद्याधर नगर |
सह-सि
एक छोटा भाई,
पुं. रामचन्द्रजी का शत्रुघ्न । सत्तुंजय पुं [शत्रुञ्जय] पालीताना के पास का पर्वत, जैनों का सर्वश्रेष्ठ तीर्थं । एक
राजा ।
सत्तुंदम पुं [शत्रुन्दम] एक राजा । सत्तु देखो सत्तु । सत्तत्तरि स्त्री [ सप्तसप्तति] सतहत्तर । सत्य वि [शस्त ] प्रशस्त, श्लाघनीय | सत्थ न [ शस्त्र] हथियार, प्रहरण । कोस पुं [° कोश ] शस्त्र - औजार रखने का थैला | "वज्झ वि [वध्य] हथियार से मारने- योग्य | वाडण न [वपाटन ] शस्त्र से चीरना । सत्व [] गत
स्वस्थ |
सत्थ देखो स-त्थ सत्थ न [स्वास्थ्य ] स्वस्थता |
सत्य पुं [सार्थ] व्यापारी मुसाफिरों का समूह । प्राणि-समूह | वि. अन्वर्थ, यथार्थनामा | 'वह वाह पुंस्त्री ['वाह ] । 'वाहिक पुं [वाहिन्] । ह देखो वाह । वि पुं [प] । सार्थ का मुखिया संघ नायक ।
हिवइ पुं [धिपति ]
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सत्थि - सन्नाम
स्त्री । एक नगरी । संनिवेश - विशेष | देखो सोत्थि ।
सत्थि पुं [ स्वस्तिक ] मंगल के लिए की जाती एक प्रकार की चावल आदि की रचना विशेष | स्वस्तिक के आकार का आसन बन्ध । एक देव - विमान । 'पुर न. एक नगर । देखो सोत्थि ।
सत्थि वि [ सार्थिक] सार्थ सम्बन्धी, सार्थ का मनुष्य आदि । पुं. सार्थ का मुखिया । सत्थि न [सक्थिक] ऊरु, जाँच । सत्थ स्त्री [शस्त्रिका ] छुरी । सत्थग देखो सत्थिअ = स्वस्तिक | सत्थल देखो सत्थिअ = सार्थिक । सत्थु वि [शास्तृ] सीख देने वाला | सत्थु देखों संथु ।
सदा देखो सआ = सदा । सदावरी देखों सयावरी = सदावरी | सदिस (शौ) देखो सरिस = सदृश । सद्द अक [शब्दय् ] आवाज करना । सक. आह्वान करना, बुलाना 1
सद्द पुंन [शब्द] ध्वनि । पुं. नय - विशेष । छन्द - विशेष । नाम । प्रसिद्धि | 'वेहि वि [ 'वेधिन् ] शब्द के अनुसार निशाना मारनेवाला | वाइ पुं [पातिन् ] एक वृत्त वैताढ्य पर्वत ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जैन उपासक ।
सद्दाव सक [शब्दय्, शब्दायय् ] आह्वान
करना, बुलाना |
आहूत |
सहिअ वि [ शब्दित ] प्रसिद्ध वार्तित, जिसको बात कही गई हो वह । सद्दिअ वि [शाब्दिक ] शब्द-शास्त्र का ज्ञाता । सद्दल पुं [शार्दुल ] श्वापद पशु की एक जाति, बाघ । छन्द - विशेष | विक्की डिअ
सद्दल न [शाद्वल] हरित, हरा घास । सद्दलिय वि [ शादलित ] हरा घासवाला प्रदेश |
सह सक [श्रद् + धा] श्रद्धा करना, विश्वास करना, प्रतीति करना ।
सद्दहा देखो सड्ढा = श्रद्धा ।
सहाण देखो सद्दह ।
सद्दाइद (शौ) वि [शब्दायित] आहूत | सद्दाण देखो संदाण ।
सद्दाल वि [शब्दवत् ] शब्दवाला । सद्दालन [] नूपुर | पुत
१०२
[पुत्र ] एक
८०९
[विक्रीडित] उन्नीस अक्षरों के पादवाल एक छन्द। सट्ठपुंन [साटक] छन्द विशेष |
सद्ध देखो सद्ध = सार्धं ।
सद्ध न [ श्राद्ध] पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिण्ड दानादि । वि. श्रद्धालु । देखो सड्ढ :
=
श्राद्ध ।
क्ख पुं [ पक्ष ] आश्विन मास का कृष्ण
पक्ष ।
सद्ध देखो सज्झ = साध्य ।
सद्धड पुं [ श्राद्ध ] व्यक्ति-वाचक नाम । सद्धरा स्त्री [स्रग्धरा ] एक्कीस अक्षरों के चरणवाला एक छन्द ।
सद्धल पुं. एक प्रकार का हथियार, कुन्त, बर्छा | देखो सव्वल । सद्धस देखो सज्झस ।
सद्धा देखो सड्ढा | °ल वि [°वत् ] । 'लु वि [°लु] श्रद्धावाला । स्त्री. 'लुणी । सद्धिवि [श्रद्धि] श्रद्धावाला । सद्धि अ [सार्धम् ] सहित, सार्थ । सद्धेय वि [ श्रद्धेय ] श्रद्धास्पद ।
धम्म वि[सधर्मन् ] समान धर्मवाला | सम्मिr देखो सम्मिअ = सद्-धार्मिक |
मणी स्त्री [सर्धामणी ] पत्नी । सधवा देखो स-धवा - सधवा । सनय देखो स-नय = स-नय । सन्नाण देखो सन्नाण = सज्ज्ञान | सन्नाम सक [ आ + दृ] आदर करना ।
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८१० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सनिअस्थ-सभल सन्निअत्थ वि [दे] परिहित, पहना हुआ। सप्पुरिस देखो स-प्पुरिस = सत्-पुरुष । सन्निउ (अप) देखो सणिों ।
सप्फ न शष्प] बाल-तृण, नया घास । सन्निर न [दे] पत्र-शाक, भाजी।
सप्फ न [दे] कुमुद, कैरव । सन्नुम सक [छादय] आच्छादन करना। | सप्फंद देखो स-प्फंद = स-स्पन्द । सप देखो सव = शप् ।
सप्फल देखो स-प्फल = स-फल । सत्-फल । सपक्ख देखो स-पक्ख = स-पक्ष । स्व-पक्ष । सफर देखो सभर = शफर।। सपक्खिं अ [सपक्षम्] अभिमुख, सामने । सफर पुंन [दे] मुसाफिरी। सपक्खी स्त्री [सपक्षी] एक महोषधि । सफल देखो स-फल = स-फल । सपज्जा स्त्री [सपर्या] पूजा ।
सफल सक [ सफलय ] सार्थक करना। सपडिदिसिं अ [सप्रतिदिक ] अत्यन्त संमुख । सफल करना। सपत्तिअ वि [सपत्रित] बाण से अतिव्यथित ।। सब (अप) देखो सव्व = सर्व । सपह देखो सवह।
सबर पुं[शबर] एक अनार्य देश । उस देश सपाग देखो स-पाग = श्व-पाक ।
की अनार्य जाति, किरात, भील । °णिवसण सपिसल्लग देखो सप्पिसल्लग ।
न [°निवसन] तमालपत्र । सप्प अक [सृप्] जाना, गमन करना, चलना, | सबरी स्त्री [शबरी] भिल्ल जाति की स्त्री। आक्रमण करना ।
कायोत्सर्ग का एक दोष, हाथ से गुह्य-प्रदेश सप्प पुंस्त्री [सर्प] साँप । स्त्री. °प्पी। पुं. | को ढककर कायोत्सर्ग करना। अश्लेषा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव । एक नरक- सबल पुं [शबल] परमाधार्मिक देवों की एक स्थान । छन्द-विशेष । fपर [शिरस] जाति । वि. कर्बुर, चितकबरा । न. दूषित वह हाथ जिसकी उँगलियाँ और अंगूठा मिला |
चारित्र । वि. दूषित चारित्रवाला मुनि ।। हुआ हो और तला नीचा हो। 'सुगंधा स्त्री सबलीकरण न [शबलीकरण] सदोष करना, [°सुगन्धा] वनस्पति-विशेष ।
। चारित्र को दूषित बनाना। सप्प देखो सव = शप् ।
सब्ब (अप) देखो सव्व = सर्व । सप्पभ देखो स-प्पभ = स्व-प्रभ, सत्-प्रभ,
सब्बल पुंन [दे] शस्त्र-विशेष । स-प्रभ ।
सब्बल देखो सब्बल - स-बल । सप्परिआव , देखो स-प्परिआव = सपरि
सब्भ वि [सभ्य] सभासद । सभोचित, शिष्ट । सप्परिताव ताप।
सब्भाव देखो स-ब्भाव = सद्-भाव । सप्पि न [सर्पिस ] घृत । आसव, ग्यासव सब्भाव देखो स-ब्भाव = स्व-भाव । वि [°आस्रव] लब्धि-विशेषवाला, जिसका सम्भाविय वि [साभाविक] पारमार्थिक, वचन घी की तरह मधुर होता है ।
वास्तविक । सप्पि वि [सपिन] जानेवाला, गति करनेवाला। सभ न. देखो सभा। हाथ में लकड़ी के सहारे चल सकनेवाला सभर पुंस्त्री [शफर] मत्स्य । स्त्री. °री। रोगी-विशेष ।
सभर दे] गृध्र पक्षी। सप्पिसल्लग देखो स-प्पिसल्लग = स-पिशा- सभराइअ न [शफरायित] जिसने मत्स्य की चक।
तरह आचरण किया हो वह । सप्पी देखो सप्प - सर्प ।
सभल देखो स-भल : स-फल ।
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८११
संभा-समण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सभा स्त्री. परिषद् । गाड़ी के ऊपर की छत- । समईअ वि [ममतीत] गुजरा हुआ । पुं. भूत ढक्कन ।
काल । सभाज सक [ सभाजय् ] पूजन करना । समईअ देखो समइअ = समयिक । सभाव देखो स-भाव = स्व-भाव ।
समउ । (अप) अ [समम्] साथ, सह । सम अक [शम्] शान्त होना, उपशान्त होना । समं नष्ट होना । आसक्त होना ।
समंजस वि [समञ्जस] उचित । योग्य । सम सक [शमय ] उपशान्त करना, दबाना। समंत देखो समंता। नाश करना।
समंत देखो सामन्त । सम पुं [श्रम] परिश्रम, आयास । खेद, थका
समंत (अप) देखो समत्थ = समस्त । वट । जल न. पसीना ।
समंतओ ) अ [ समन्ततस ] सर्वतः । सम पुं [शम] शान्ति, क्रोध आदि का निग्रह ।। समंता चारों तरफ । अ [समन्तात् । सम वि. समान । तटस्थ, राग-द्वेष से रहित । समतेण स. सब । पुंन. एक देव-विमान । सामायिक । समक्कंत वि [समाक्रान्त] जिसपर आक्रमण आकाश । °चउरंस न [°चतुरस्र] संस्थान- किया गया हो वह । अवरुद्ध । विशेष, चारों कोणों के समान शरीर की
समक्ख न [समक्ष] देखो समच्छ । आकृति-विशेष । °चक्कवाल न [°चक्रवाल]
समक्खाय । वि [समाख्यात] उक्त । गोलाकार । °ताल न. कला-विशेष । वि. समक्खिअ । समान तालवाला । धम्मिअ वि [°र्मिक] समगं देखो समयं - समकम् । समान धर्मवाला । °पादपुत पुंन. आसन
समग्ग वि [समग्र] सकल । युक्त । विशेष, जिसमें दोनों पैर मिलाकर जमीन में समग्गल वि [समर्गल] अत्यधिक । लगाए जाते हैं । "पासि वि [ दर्शिन्] सम- समग्ग
समग्ग। दर्शी । 'प्पभ पुंन [प्रभ] एक देव-विमान ।
समग्ध वि [स] सस्ता । °भाव पुं. समता । °या स्त्री [°ता] राग-द्वेष समच्चण न [र मर्चन] पूजन । का अभाव, मध्यस्थता । 'वत्ति पुं [वर्तिन्] समच्चिअ वि सचित] पूजित । यमराज । °सरिस वि [°सदृश] अत्यन्त
समच्छ अक [ लम् + आस ] बैठना । सक. तुल्य, सदृश । °सहिय वि [°सहित] युक्त ।
अवलम्बन करना । अधीन रखना । सुद्ध पुं [°शुद्ध] एक राजा, छठवें केशव का
समच्छ वि [समक्ष] प्रत्यक्ष का विषय । न. पिता।
नजर के सामने । समइअ वि [सामयिक] समय-सम्बन्धी।
समच्छायग वि [समाच्छादक] ढकनेवाला । समइअ वि [समयित] संकेतित ।
समज्ज । सक [ सम् + अर्ज ] पैदा समइअ न [समयिक] सामायिक नामक संयम- | | समज्जिण करना, उपार्जन करना । विशेष ।
समज्झासिय वि [समध्यासित] अधिष्ठित । समइंछिअ देखो समइच्छि।
समट्ठ वि [समर्थ] संगत अर्थ, व्याजबी । शक्त, समइक्कंत वि [समतिक्रान्त] व्यतीत ।।
शक्तिमान् । समइच्छ सक [ समति +क्रम् ] उल्लंघन | समण न [शमन] उपशमन, शान्त करना । करना । अक. गुजरना।
पथ्यानुष्ठान । एक दिन का उपवास । वि.
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८१२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समण-समब्भस उपशमन करनेवाला।
। समणुवत्त वि [समनुवृत्त] संवृत्त, संजात । समण देखो स-मण = स-मनस् ।
समणुवास सक [समनु + वासय्] वासनासमण देखो सवण-श्रवण ।
युक्त करना । सिद्ध करना। परिपालन समण पुं. सर्वत्र समान प्रवृत्तिवाला, मुनि ।।
करना। समण पुं [श्रमण] भगवान् महावीर । पुंस्त्री. समणसट्र वि [समनुशिष्ट] अनुज्ञात, अनुमत । निर्ग्रन्थ मुनि, साधु, यति, भिक्षु, संन्यासी, |
, भिक्षु, सन्यासी, समणुसास सक [समनु + शासय्] सम्यग् तापस। साह पुरा सिहा एक जन मुनि जा सीख देना, अच्छी तरह सिखाना । दूसरे बलदेव के पूर्वभवीय गुरु थे । श्रेष्ठ मुनि । समणसिट वि समनुशिष्ट] अच्छी तरह वासग, वासय पुंस्त्री [पासक] |
शिक्षित । देखो समणुसट्ठ। श्रावक । स्त्री ‘सिया।
समणुहो सक [समनु + भू] अनुभव करना। समणंतरु (अप) न [समनन्तरम्] अनन्तर ।।
समण्णागय वि [समन्वागत] समन्वित, समणक्ख देखो स-मणक्ख = स-मनस्क ।
सहित । संप्राप्त । समणुगच्छ । सक [समनु + गम्] अनुसरण समण्णाहार पुं [समन्वाहार] समागमन । समणुगम ) करना । अच्छी तरह व्याख्या समण्णिय वि [समन्वित] युक्त, सहित । करना । अक. सम्बद्ध होना।
समतिक्कंत देखो समइक्त । समणुगय वि [समनुगत] अनुसृत । अनुविद्ध, समतुरंग सक [समतुरंगाय] समान अश्व की जुड़ा हुआ।
तरह आपस में आरोहण करना, आश्लेष समणुचिण्ण वि [समनुचीर्ण] आचरित, | करना। विहित ।
समत्त वि [समस्त] सम्पूर्ण । सकल । समाससमणुजाण सक [समनु + ज्ञा] अनुमोदन | युक्त । मिलित । करना । अधिकार प्रदान करना।
समत्त वि [समाप्त] पूर्ण, सिद्ध, हो चुका । समणुजाय वि [समनुजात] उत्पन्न, संजात । | समत्ति स्त्री [समाप्ति] पूर्णता। समणुनाय वि [समनुज्ञात अनुमत, अनुमो- समत्थ सक [सम् + अर्थय] साबित करना । दित ।
पुष्ट करना । पूर्ण करना। समणुन्न वि [समनुज्ञ] अनुमोदन-कर्ता । समत्थ देखो समत्त = समस्त । समणुन्न वि [समनोज्ञ] सुन्दर, मनोहर ।
समत्थ वि [समर्थ] देखो समट्ठ । सुन्दर वेष आदिवाला । संविग्न, संवेग-युक्त
समस्थि वि [समर्थिन्] प्रार्थक, चाहनेवाला । मुनि । समान समाचारीवाला-सांभोगिक
समद्धासिय वि [समाध्यासित] अधिष्ठित । मुनि ।
समद्धि देखो समिद्धि। समणुन्ना स्त्री [समनुज्ञा] अनुमति, अधिकार- समन्नि सक [समनु + इ] अनुसरण करना । प्रदान ।
अक. एकत्रित होना। समणुन्नाय देखो समणुनाय ।
समन्ने देखो समन्नि । समणुपत्त वि [समनुप्राप्त] सम्प्राप्त । समप्प सक [सम् + अर्पय्] अर्पण करना । समणुबद्ध वि [समनुबद्ध] निरन्तर व्याप्त ।
__दान करना, देना। समणुभूअ वि [समनुभूत] अच्छी तरह जिसका समप्प देखो समाव = सम् + आप् । अनुभव किया गया हो वह ।
। समब्भस सक [ समभि + अस् ] अभ्यास
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समभहिअ-समस्सअ
संक्षिप्त प्राकृत हिन्दी कोष
८१३
करना ।
| समर पुन. युद्ध । छन्द-विशेष । लोहकारसमभहिअ वि [समभ्यधिक] अत्यन्त । शाला । इच्च पुं [°ादित्य] अवन्ती-देश अधिक ।
का एक राजा । समन्भास पुं [समभ्यास] निकट, पास । समर वि [स्मार] कामदेव-सम्बन्धी । समन्भिडिय वि [दे] भिड़ा हुआ, लड़ा हुआ। | | समरइत्तु वि [ मर्तृ] स्मरण-कर्ता । समभिआवण्ण वि [समभ्यापन्न] संमुख | समरसद्दहय पुंदे] समान उम्रवाला । आया हुआ।
समराइअ वि (दे] पिष्ट, पिसा हुआ । समभिजाण सक [ समभि + ज्ञा] निर्णय | | समरेत्तु देखो मरइत्तु। करना। प्रतिज्ञा-निर्वाह करना ।
समलंकर । सक [समलम् + कृ] । सक समभिद्दव सक [समभि = द्र] हैरान करना। | समलंकार , [समलम् + कारय] विभूषित समभिधंस सक [ समभि + ध्वंसय ] नष्ट ___ करना। करना।
समलद्ध (अप) वि [समालब्ध] विलिप्त । समभिपड सक [समभि + पत्] आक्रमण समल्लिअ अक [समा + ली] संबद्ध होना । करना।
लोन होना । सक. आश्रय करना। समभिभूअ वि [समभिभूत] अत्यन्त परा- समल्लीण वि [समालीन] अच्छी तरह लीन । भूत ।
समवइण्ण वि [समवतीर्ण] अवतीर्ण । समभिरूढ पुं. नय-विशेष ।
समवट्ठाण न [ समवस्थान ] सम्यग् अवसमभिलोअ सक [समभि+लोक्] देखना, समवट्टिइ स्थिति । स्त्री [समवस्थिति] । निरीक्षण करना।
समवत्ति देखो सम-वत्ति = सम-वतिन् । समय अक [सम् + अय्] समुदित होना, समवय° देखो समवे। एकत्रित होना।
समवसर देखो समोसर = समव + सृ । समय पुं. वक्त, अवसर। दूसरा हिस्सा न हो समवसेअ वि [समवसेय] जानने-योग्य । सके ऐसा सूक्ष्म काल । मत, दर्शन । सिद्धान्त, समवाय पुं. गुण-गुणी आदि का सम्बन्ध । शास्त्र, आगम । पदार्थ, चीज । संकेत ।
सम्बन्ध । समूह । एकत्र करना । जैन अंगसमीचीन परिणति, सुन्दर परिणाम । आचार,
ग्रन्थ-विशेष, चौथा अंग-ग्रन्थ । रिवाज । एकवाक्यता। सामायिक, संयम
समवे अक [समव + इ] शामिल होना। विशेष । 'क्खेत्त, °खेत्त न [ क्षेत्र] कालोप
सम्बद्ध होना। लक्षित भूमि, मनुष्य लोक । ज्ज, °ण वि समवेद (शौ) वि [समवेत एकत्रित । [ज्ञ] समय का जानकार ।
समसम अक [नमसमाय] 'सम्' 'सम्' आवाज समय देखो स-मय = स-मद ।
करना। समय । अ [समकम्] युगपत्, एक साथ ।। | समसरिस देखो सम-सरिस । समयं ) सह ।
समसाण देखो मसाण। समया देखो सम-या।
समसीस वि [दे] सदृश । निर्भर । न. स्पर्धा । समया अ. पास, नजदीक ।
समसीसिआ । स्त्री [दे] स्पर्धा । समर सक [स्मृ] याद करना ।
| समसीसी समर देखो सबर । स्त्री. °री।
समस्सअ सक [समा+श्रि] आश्रय करना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ___ समस्सस-समाणु समस्सस अक [ समा + श्वस् ] सान्त्वना । समाएस ' [समादेश] आज्ञा । विवाह आदि मिलना।
के उपलक्ष्य में किए हुए जीमन में बचा हुआ समस्ससिद (शौ) देखो समासत्थ ।
वह खाद्य जिसको निम्रन्थों में बांटने का समस्सा स्त्री [समस्या] बाकी का भाग जोड़ने | संकल्प किया गया हो।
के लिए दिया जाता श्लोक चरण । | समाओग पुं[समायोग] स्थिरता । समस्सास सक [समा + श्वासय्] सान्त्वना समाओसिय वि [समातोषित] सन्तुष्टीकृत । करना। आश्वासन देना।
समाकरिस सक [समा + कृष्] खींचना । समस्सिअ वि [समाश्रित] आश्रित ।
समाकार सक [ समा+ कारय् ] आह्वान समहिअ वि [समधिक] विशेष ज्यादा।
करना, बुलाना। समहिगय वि [समधिगत] प्राप्त । ज्ञात । । समागच्छ° देखो समागम = समा + गम् । समहिट्ठ सक [समधि + स्था] काबू में रखना, | समागत देखो समागय । अधीन रखना।
समागम अक [समा+गम्] सामने आना। समहिढाउ वि [समधिष्ठात] अध्यक्ष, | आगमन करना । सक. जानना । मुखिया ।
समागम पुं[समा+गम] संयोग, सम्बन्ध । समहिट्ठिअ वि [समधिष्ठित] आश्रित । प्राप्ति । समहिड्ढिय देखो स-महिड्ढिय = स- | समागय वि [समागत] आया हुआ।
समागूढ वि. समाश्लिष्ट, आलिंगित । समहिणंदिय वि [समभिनन्दित] आनन्दित | समाज पुं. समूह । देखो समाय = समाज । किया हुआ ।
समाजुत्त न [समायुक्त] संयोजन, जोड़ना । समहिल वि [समखिल] सबल, समस्त ।
समाढत्त वि [समारब्ध] आरब्ध । जिसने समहुत्त वि [दे] सम्मुख, अभिमुख ।
आरम्भ किया हो वह । समा स्त्री. वर्ष । समय ।
समाण सक [ भुज् ] भोजन करना । समाअम देखो समागम ।
समाण सक [ सम् + आप् ] समाप्त करना । समाइच्छ सक [समा :- गम् ] सामने |
पूरा करना । आना । समादर करना, सत्कार करना ।
समाण वि [समान] सदृश । मान-सहित, समाइट्र वि [समादिष्ट] फरमाया हुआ।
अहंकारी । पुन. एक देव-विमान । समाइड्ढ वि [समाविद्ध] वेध किया हुआ ।
| समाण वि सत्] विद्यमान । स्त्री. °णी। समाइण्ण वि [समाकीर्ण] व्याप्त ।
समाण देखो संमाण = सम्मान । समाइण्ण वि [समाचीर्ण, अच्छी तरह समाणअ वि [समापक] समाप्त करनेवाला । आचरित।
समाणत्त वि [समाज्ञप्त] जिसको हुकुम दिया समाउट्ट अक [समा + वृत् । होना, नम्र गया हो वह । नमना, अधीन होना।
समाणिअ वि [समानीत] आनीत । समाउट्ट वि [ समावृत् ] विनम्र । समाणिअ वि [दे] म्यान किया हुआ । समाउत्त वि [समायुक्त] युक्त । सहित । समाणिआ स्त्री [समानिका] छन्द-विशेष । समाउल वि [समाकुल] संमिश्र, मिश्रित । | समाणी सक [समा + नी] ले आना। व्याप्त । आकुल, व्याकुल ।
समाणु (अप) देखो समं ।
महद्धिक ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समादह- समास
करना ।
समादह सक [समा+दह ] जलाना । समादा सक [समा + दा] ग्रहण समादिवि [समादिष्ट] फरमाया हुआ । समादिस सक [ समा+दिश् ] आज्ञा करना । समादेस देखो समाएस ।
समाधारणया स्त्री [समाधारणा ] समान भाव से स्थापन |
समाधि देखो समाहि ।
समापणा स्त्री [समापना ] समाप्ति । समाभरिअ वि [समाभरित] आभरण-युक्त | समाय पुं [समाज] सभा, परिषत् । पशु-भिन्न अन्यों का समूह, संघात । हाथी । समाय पुं. सामायिक, संयम - विशेष ।
समाय देखो समवाय ।
समायं देखो समयं ।
समायण्ण सक [समा + कर्णय् ] सुनना ।
समायय सक [समा + दद् ] ग्रहण करना । समायय देखो समागय ।
समायर सक [समा + चर्] आचरण करना । समाया देखो समादा ।
समायाय वि [समायात] समागत । समायार पुं [समाचार] आचरण । सदाचार । वि. आचरण करनेवाला ।
समार सक [समा + रचय्] दुरुस्त करना । करना, बनाना ।
समार सक [समा + रभ्] प्रारंभ करना । समार वि[समारचित ] बनाया हुआ । समारंभ सक [समा + रभ्] प्रारम्भ करना । हिंसा करना । पर-परिताप देना । हिंसा । प्रारंभ |
समारचण न [समारचन ] दुरुस्त समारण करना । वि. विधायक, कर्ता । समारद्ध देखो समाढत्त ।
समारभ देखो समारंभ = समा + रभ् । समारह समारिय वि[समारचित] | देखो समार ।
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समारुह् अक [समा + रुह ] आरोहण करना । समारूढ वि [समारूढ ] चढ़ा हुआ । समारोव सक [समा + रोपय् ] चढ़ाना | समालंकार देखो समलंकार = समलं + सम} कारय् ।
समालंब पुं [समालम्ब] आलम्बन, सहारा । समालंभण न [समालम्भन] अलंकरण, विभूषा करना । देखो समालभण । समालत्त वि [ समालपित] उक्त, कथित । समालभण न [समालभन] विलेपन | देखो समालंभण |
समालव सक [समा + लप् ] विस्तार से कहना |
समालवणी स्त्री [समालपनी] वाद्य विशेष । समालह सक [समा + लभ् ] विलेपन करना । विभूषा करना, अलंकार पहनना । समालाव धुं [समालाप ] बातचीत, संभाषण । समालिंगिय } वि [समालिङ्गित ] आलंसमालीढ गित । वि [ समाश्लिष्ट ] । समालोच पुं. विचार विमर्श ।
समालोयण न [समालोचन ] सामान्य अर्थ का दर्शन ।
समाव सक [सम् + आप् ] पूरा करना । समावज्जिय वि [ समावर्जित ] प्रसन्न किया हुआ ।
समावड अक [समा + पत्] संमुख आकर पड़ना । लगना । सम्बन्ध करना । समावडिय वि[समापतित] संमुख आकर गिरा हुआ । बद्ध । जो होने लगा हो वह । समावण्ण वि [समापन्न ] संप्राप्त । समावत्ति स्त्री [ समावाप्ति ] समाप्ति, पूर्णता । समावद सक [समा + वद् ] बोलना, कहना | समावय देखो समावद ।
समावय देखो समावड ।
समास अक [सम् +आस ] बैठना । रहना । बैठाना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समास-समिआ समास सक [समा+अस ] अच्छी तरह | समाहि पुंस्त्री [समाधि] चित्त की स्वस्थता, फेंकना।
मनोदुःख का अभाव । स्वस्थता। धर्म । समास पुं. संक्षेप, संकोच । सामायिक, संयम- शुभ ध्यान, चित्त की एकाग्रता-रूप ध्यानाविशेष । व्याकरण-प्रसिद्ध अनेक पदों के मेल वस्था । समता, राग आदि का अभाव । करने की रीति । समीप ।
श्रुतज्ञान । चारित्र, संयमानुष्ठान । पुं. भरतसमासंग पुं [समासङ्ग] संयोग ।
क्षेत्र के सतरहवें भावी तीर्थकर । °पडिमा समासंगय वि [समासंगत] संगत, सम्बद्ध ।। स्त्री [°प्रतिमा] समाधि-विषयक व्रत-विशेष । समासज्ज देखो समासाद का संकृ.।
पाण न [°पान] शक्कर आदि का पानी । समासत्थ वि [समाश्वस्त] आश्वासन-प्राप्त । °मरण न. समाधि-युक्त मौत । स्वस्थ बना हुआ।
समाहिअ वि [समाहित] समाधि-युक्त । समासय पुं [समाश्रय] आश्रय, स्थान । अच्छी तरह व्यवस्थापित । उपशमित । समासव सक [समा+स्र] आना ।
समापित । शोभन, सुन्दर। अबीभत्स । समासस देखो समस्सस ।
निर्दोष । समासाद (शौ) सक [समा + सादय् ] प्राप्त
| समाहिअ वि [समाहृत] गृहीत ।
समाहिअ वि [समाख्यात] सम्यग्-कथित । करना। समासासिय वि [समाश्वासित] जिसको समाहुत्त । (अप) । वि [समाहूत] बुलाया आश्वासन दिया गया हो वह ।
समाहूअ । हुआ, आकारित । समासि सक [समा + श्रि] सम्यग् आश्रय
समाहे सक [समा + धा] स्वस्थ करना ।
समि स्त्री [शमि] देखो समी।। करना। समासिज्ज देखो समासाद का संकृ. ।
समि । वि [शमिन्, °क] शम-युक्त । पुं. समासिय वि [समाश्रित] आश्रय-प्राप्त ।।
समिअ साधु, मुनि । समासीण वि [समासीन] बैठा हुआ। समिअ देखो संत=शान्त । समाहटु = समाहर का पंकृ. ।
समिअ वि [समित] सम्यक् प्रवृत्ति करनेसमाहड वि [समाहृत] विशुद्ध । निर्मल । वाला। राग-आदि से रहित । उपपन्न । स्वीकृत ।
सम्यग्-गत । सन्तत । सम्यग-व्यवस्थित । समाहय वि [समाहत] आधात-प्राप्त, आहत । समिअ वि [सम्यञ्च्] सम्यक् प्रवृत्तिवाला। समाहर सक [समा +ह] ग्रहण करना । __ अच्छा । शोभन, समीचीन । एकत्रित करना ।
समिअ वि [श्रमित] श्रम-युक्त। समाहविअ वि [समाहूत] बुलाया हुआ। समिअ वि [समिक] सम, रांग-द्वेष-रहित । समाहाण न [समाधान] समाधि । औत्सुक्य- समिअ न [साम्य] समता, रागादि का निवृत्ति रूप स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति । अभाव । समाहार पुं. समूह । °दंद पुं [°द्वन्द्व] व्याक- समिअ वि [संमित] प्रमाणोपेत । रण-प्रसिद्ध समास-विशेष ।
समिअ वि [सामित] गेहूँ के आटा का बना समाहारा स्त्री. दक्षिण रुचक पर रहनेवाली हुमा पक्वान्न-विशेष, मण्डक । एक दिक्कुमारी देवी । पक्ष की बारहवीं | समिअ अ [सम्यग्] अच्छी तरह । रात्रि।
| समिआ स्त्री [समिता] गेहूँ का आटा ।
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समिक्षा - समुग्गिर
समिआ स्त्री [ समिका, शमिका, शमिता ] चमर आदि इन्द्रों की अभ्यन्तर परिषद् । समिइ स्त्री [ समिति] उपयोग- पूर्वक गमनभाषण आदि क्रिया । सभा, परिषद् । युद्ध । निरन्तर मिलन |
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समीकय वि [समीकृत ] समान किया हुआ । समीचीण वि[समीचीन ] साधु, सुन्दर । समीर अक [ सम् + ईरय् ] प्रेरणा करना । समीर पुं. पवन, वायु ।
समील देखो संमील ।
समिइ स्त्री [स्मृति] स्मरण । शास्त्र विशेष, समीव वि [ समीप ] निकट | मनुस्मृति आदि ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समिइम वि[समितिम] गेहूँ के आटे की बनी समीहा स्त्री. इच्छा ।
समीहि देखो समिक्खिअ ।
हुई मंड आदि वस्तु ।
समिजग पुं [समिक ] त्रीन्द्रियजन्तु की समुआचार पुं[समुदाचार ] समीचीन आचरण । एक जाति ।
मु[समुचित ] योग्य |
समिक्ख स [सम + ईश्] आलोचना करना, गुणदोष-विचार करना । चिन्तन करना । निरीक्षण करना ।
समिच्च देखो समे ।
समुअवि [समुदित] परिवृत । एकत्रित । समुन्नवि [समुदीर्ण] उदय प्राप्त । समुईर देखो समुदीर । समुक्कस देखो समुक्करिस | समुक्कत्तिय वि[समुत्कर्तित ] काटा हुआ । समुक्करिस [ समुत्कर्ष] अतिशय उत्कर्ष ।
समिज्झा अक [सम् +इन्ध् ] चारों तरफ से समुक्कस सक [ समुत् + कृष्] उत्कृष्ट बनाना ।
अ. गर्व करना ।
समिच्छण न [समीक्षण ] समीक्षा | समिच्छि देखो समिक्खिअ ।
चमकना ।
समिता देखों समिआ = समिका ।
समुट्ठि वि [समुत्कृष्ट] उत्कृष्ट ।
समिद्ध वि [समृद्ध] अतिशत सम्पत्तिवाला । समुक्कित्तण न [समुत्कीर्तन ] उच्चारण । समुक्खअवि [समुत्खात ] उखाड़ा हुआ । समुक्खण सक [स्रमुत् + खन्] उखाड़ना । समुक्त्ति वि [ समुत्क्षिप्त ] उठा कर फेंका हुआ ।
समिरिअ समिरीय
समीह सक[सम + ईह, ] वांछा करना ।
बढ़ा हुआ ।
समिद्धि स्त्री [ समृद्धि] अतिशय सम्पत्ति | वृद्धि | ल वि. समृद्धिवाला ।
समिर पुं. पवन, वायु ।
}
देखो स-मिरिईअ = समरी- समुक्खिव सक [ समुत् + क्षिप्] उठा कर चिक |
फेंकना ।
समिला स्त्री [ शमिला सम्या ] युग- कीलक, गाड़ी को घोंसरी में दोनों ओर डाला जाता लकड़ी का खोल ।
समिल्ल देखो संमिल्ल ।
महास्त्र [ समिध् ] काष्ठ, लकड़ी । समी स्त्री [शमी] छोंकर का पेड़ । शिबा, छिमी, फली । 'खल्लय न [ दे] पत्ती, शमी वृक्ष का पत्र - पुट । समीअ देखो समीव ।
छोंकर की
१०३
समुग्ग पुं [ समुद्ग ] डिब्बा, संपुट | पक्षिविशेष |
समुग्गद (शौ) वि [ समुद्गत ] समुद्भूत । समुग्गम पुं [समुद्गम ] समुद्भव | समुग्गिr a [ ] प्रतीक्षित | समुग्गिण वि [ समुद्गीर्ण] उगामा हुआ । उत्तोलित, ऊपर उठाया हुआ । समुग्गिर सक [ समुद् + गृ] ऊपर उठाना |
उगाना ।
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समुग्घडि वि [ समुद्घाटित ] खुला हुआ । समुग्धाइअ वि [ समुद्घातित ] विनाशित । समुग्धाय पुं [समुद्घात ] कर्म-निर्जरा - विशेष जिस समय आत्मा वेदना, कषाय आदि से परिणत होता है उस समय वह अपने प्रदेशों से वेदनीय, कषाय आदि कर्मों के प्रदेशों की जो निर्जरा - विनाश करता है वह;
|
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिक । समुग्धायण न [समुद्घातन] विनाश | [समुद्घोषित् ] उद्घोषित ।
समु
गया हुआ ।
द्घात सात हैं - वेदना, कषाय, मरण, समुज्जोअ अक [ समुद् + द्युत् ] चमकना,
समुधाय देखो समुग्धाय । समुच्चय पुं. विशिष्ट राशि, ढग, समूह | समुच्चर सक [समुत् + चर् ] उच्चारण करना, बोलना ।
समुच्चलिअ वि [समुच्चलित ] चला हुआ । समुच्चि क [ समुत् + चि] इकट्ठा करना । समुच्चि वि[समुचित] एक क्रिया आदि में अन्वित |
समुच्छ क [ सत् + छिद्] उन्मूलन करना, उखाड़ना | दूर करना । समुच्छइ वि[समवच्छादित] सतत अच्छादिव ।
समुच्छणी स्त्री [दे] संमार्जनी |
समुच्छल अक [समुत् + शल्] उछलना, ऊपर उठना । विस्तीर्ण होना ।
समुग्घडिअ - समुत्तास
को प्रतिक्षण सर्वथा विनश्वर माननेवाला । समुज्जम अक [समुद + यम् ] प्रयत्न करना । समुज्जम पुं [ समुद्यम] समीचीन उद्यम | वि. समीचीन उद्यमवाला ।
समुच्छारण न [समुत्सारण ] दूर करना । समुच्छिवि [ दे] तोषित | समारचित ।
न. अंजलि करण, नमन ।
समुच्छिद (शौ) वि [ समुच्छ्रित] अतिउन्नत । समुच्छिन्न वि. क्षीण, विष्ट । समुच्छंगिय वि [ समुच्छ्रङ्गित ] टोच पर चढ़ा हुआ । समुच्छुगवि [समुत्सुक ] अति उत्कण्ठित । समुच्छेद पुं [समुच्छेद] सर्वथा विनाश । समुच्छेय वाइ वि [वादिन्] पदार्थ
समुज्जल वि [ समुज्ज्वल] अत्यन्त उज्ज्वल । समुज्जाय वि [ समुद्यात ] निर्गत । ऊँचा
प्रकाशना ।
समुज्जअ पुं [समुद्योत ] प्रकाश, दीप्ति | समुज्जवय सक[समुद् + द्योतय् ] प्रकाशित
करना ।
समुज्झ सक [ सम् + उज्झ् ] त्याग करना | समुट्ठा अक [समुत् + स्था] उठना । प्रयत्न करना । उत्पन्न होना । सक. ग्रहण करना । समुट्ठाइ वि [ समुत्थायिन् ] सम्यग् यत्न करनेवाला |
समुट्ठाइअ देखो समुट्ठिअ ।
समुट्ठाण न [ समुपस्थान ] फिर से वास करना । सुयन [° श्रुत] जैन शास्त्र - विशेष । समुट्ठाण न [ समुत्थान ] सम्यग उत्थान । निमित्त कारण | देखो समुत्थाण ।
1
मुवि [समुत्थित] सम्यक् प्रयत्न-शील । उपस्थित | प्राप्त । जो खड़ा हुआ हो वह । अनुष्ठित, विहित | उत्पन्न । आश्रित । समुड्डी व [समुड्डीन] उड़ा हुआ समुण्णइय देखो समुत्तइय । समुत्त न [मुक्त] गोत्र - विशेष । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न | देखो संमुत्त । समुत्तइय वि [] गर्वित ।
समुत्तर सक [समुत् + तृ] पार जाना । अक. नीचे उतरना । अवतीर्ण होना । समुत्ताराविय वि[समुत्तारित ] पार पहुँचाया हुआ । कूप आदि से बाहर निकाला हुआ । समुत्तास सक [ समुत् + त्रासय् ] अतिशय
भय उपजाना ।
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समुत्तिष्ण-समुद्र
समुत्तिण वि [समवतीर्ण] अवतीर्ण । मुत्तुंग वि[समुङ्ग] अति ऊँचा । समुत्तु वि [] गर्वित । समुत्थवि उत्पन्न ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८१९
वासुदेव का पूर्वजन्मीय नाम । एक मच्छीमार । [ दत्ता ] स्त्री. हरिषेण वासुदेव की एक पत्नी । समुद्रदत्तमच्छीमार की भार्या । °लिक्खा स्त्री [लक्षा] द्वीन्द्रिय जंतु की एक जाति । 'विजयी पुं. चौथे चक्रवर्ती राजा का पिता । भगवान् अरिष्टनेमि का पिता । सुआ स्त्री ['सुता] लक्ष्मी । देखो समुद्र । समुद्दणवणीअ न [ दे. समुद्रनवनीत ] अमृत,
सुधा | चन्द्रमा |
समुदय पुं. समुदाय, संहति । समुन्नति, समुद्दव सक [ समुद् = द्रावय् ] भयंकर
अभ्युदय ।
उपद्रव करना | मार डालना ।
समुदाआर देखो समुआचार |
समुदाचार
समुदाण न [समुदान ] भिक्षा | भिक्षा-समूह | प्रयोग- गृहोत कर्मों को प्रकृति- स्थित्यादि-रूप से व्यवस्थित करनेवाली क्रिया विशेष । समुदाय | चर वि. भिक्षा की खोज करने
वाला ।
समुदाण सक [ समुदानय् ] भिक्षा के लिए
भ्रमण करना ।
समुदाणि देखो सामुदाणिय । समुदाणिया स्त्री [ सामुदानिकी ] क्रिया- समुद्देस वि [सामुद्देश] देखो समुद्देसिय ।
विशेष | समुदान- क्रिया । समुदाय पुं. समूह |
समुदाय वि [ समुदाहृत] प्रतिपादित, कथित ।
समुत्थय सक [समुत् + स्थगय् ] ढकना । समुत्थय वि[समवस्तृत ] आच्छादित | समुत्थल्ल वि [समुच्छलित ] उछला हुआ । समुत्थाण न [समुत्थान] देखो समुट्ठाण । समुत्थिय देखो समुट्ठिअ ।
समुदिअ देखो समुइअ = समुदित । समुदिण देखो समुइन्न । समुदीर सक [ समुद् + ईरय् ] प्रेरणा करना । कर्मों को खींच कर उदय में लाना, उदीरणा करना ।
समुद्द पुं [समुद्र ] सागर । अन्धकवृष्णि का ज्येष्ठ पुत्र । आठवें बलदेव और वासुदेव के पूर्वजन्म के धर्म गुरु । वेलन्धर नगर का एक राजा । शाण्डिल्य मुनि के शिष्य एक जैन मुनि | वि. मुद्रा सहित । दत्त पुं. चौथे
समुद्दहर न [ दे] पानीय- गृह, पानी घर । समुद्दाम वि. अतिउद्दाम, प्रखर । समुद्दिस सक [ समुद् + दिश् ] पाठ को स्थिर-परिचित करने के लिए उपदेश देना । व्याख्या करना । प्रतिज्ञा करना । आश्रय लेना । अधिकार करना ।
समुद्देस पुं [समुद्देश] पाठ को स्थिर-परिचित करने का उपदेश । व्याख्या, सूत्र के अर्थ का अध्यापन | ग्रन्थ का एक विभाग, अध्ययन, प्रकरण परिच्छेद । भोजन ।
समुद्देसिय वि[समुद्देशिक] समुद्देश-सम्बन्धी । विवाह आदि के उपलक्ष्य में किये गये जीमन में बचे हुए वे खाद्य पदार्थ जिनको सब साधुसंन्यासियों में बाँट देने का संकल्प किया गया हो ।
समुद्धर सक [समुद् + ह् ] मुक्त करना । जीर्ण मन्दिर आदि को ठीक करना । उद्धार
करना ।
समुद्धाइअ वि [ समुद्धावित] समुत्थित । समुद्धाय अक [ समुद् + धाव् ] उठना । समुद्ध देखो समुद्धरिअ । समुधुर वि. दृढ़, मजबूत ।
समुद्धुसिअ वि[समुद्धुषित ] पुलकित । समुद्र पुं [ समुद्र ] एक देव -विमान | देखो
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८२० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समुन्नइ-समुसरण समुद्द।
होना, विकसना। समुन्नइ स्त्री [समुन्नति] अभ्युदय ।
समुल्लालिय वि [समुल्लालित] उछाला समुन्नद्ध वि [समुन्नद्ध] संनद्ध, सज्ज । हुआ। समुन्नय वि [समुन्नत] अति ऊँचा।
समुल्लाव पुं [समुल्लाप] आलाप, संभाषण । समुपेह सक [ समुत्प्र + ईक्ष् ] अच्छी तरह समुल्लास पुं. विकास । देखना, निरीक्षण करना। पर्यालोचन करना, ।
समुवइट्ठ वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ । विचार करना।
समुवउत्त वि [समुपयुक्त] उपयोग-युक्त, समुप्पज्ज अक [ सपुत् +पद् ] उत्पन्न
सावधान । होना।
समुवगय वि [समुपगत] समीप आया हुआ। समुप्पण्ण वि [समुत्पन्न] उत्पन्न ।
समुवज्जिय वि [समुपाजित] उपार्जित, समुप्पयण न [समुत्पतन] ऊँचा जाना,
पैदा किया हुआ। उड्डयन ।
समुवत्थिय वि [समुपस्थित] हाजिर । समुप्पाअअ वि [समुत्पादक] उत्पत्तिकर्ता ।
समुवयंत देखो समुवे। समुप्पाड सक [ समुत् + पादय् ] उत्पन्न समुवविट्ठ वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ । करना।
समुवसंपन्न वि [समुपसंवन्न] समीप में समुप्पाय पुं [समुत्पाद] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव । समागत । समुप्पिजल न [दे] अयश । रज, धूलि । समुवहसिअ वि [समुपहसित] जिसका खूब समप्पित्थ वि [दे] उत्त्रस्त, भयभीत ।। उपहास किया गया हो। समप्पेक्ख, समपेह । देखो समुवेक्ख । समुवागय वि [समपागत] समीप में आगत समप्पेह ।
समुवे अक [समुपा+इ] पास में आना । समुप्फालय वि [समुत्पाटक] उठाकर लाने- | सक. प्राप्त करना । वाला।
समुवेक्ख । सक [ समुत्प्र + ईक्ष् ] निरीसमुप्फालिय वि [समुत्फालित] आस्फालित ।
समुवेह , क्षण करना। व्यवहार करना, समुप्फुद सक [ समा + क्रम् ] आक्रमण काम में लाना। करना।
समुव्वत्त वि [समुवृत्त] ऊँचा किया हुआ । समुप्फोडण न [समुत्स्फोटन] आस्फालन । समुव्वत्तिय वि [समुर्तित] घुमाया हुआ, समुन्भड वि [समुद्भट] प्रचंड ।
फिराया हुआ। समुन्भव अक [समुद् + भू] उत्पन्न होना। समुव्वह सक [ समुद् + वह ] धारण समुब्भिय वि [समूवित] ऊंचा किया हुआ । करना । ढोना । समुन्भुय । (अप) वि [समुद्भूत] उत्पन्न । समुव्विग्ग वि [समुद्विग्न] अत्यन्त उद्वेग
वाला। समुयाण देखो समुदाण।
समुव्बूढ वि [समुद्व्यूढ] विवाहित । उत्तासमुयाय देखो समुदाय।
नित, ऊँचा किया हुआ । समुल्लव सक [ समुत् + लप्] बोलना, | समुन्वेल्ल वि [समुद्वेल्लित] अत्यन्त कँपाया कहना।
| हुआ, संचालित । समुल्लस अक [ समुत् + लस् ] उल्लसित समुसरण देखो समोसरण ।
समुभूअ )
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समुस्सय-समोहण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८२१ समुस्सय पुं [समुच्छय] ऊँचाई। उन्नति, । समोगाढ वि [समवगाढ] सम्यग् अवगाढ । उत्तमता । कर्मों का उपचय । संघात, समूह, | समोच्छइअ वि [समवच्छादित] आच्छाराशि, ढग।
दित । अतिशय ढका हुआ । समुस्सविय वि [समुच्छयित] ऊंचा किया | समोणम अक [ समव+नम् ] सम्यग् हुआ।
नमना-नीचा होना। समुस्सस वि [ समुच्छ्व स् ] देखो समू- समोणय वि [समवनत] अति नमा हुआ। सस।
समोत्थइअ ) वि [समवस्थगित] आच्छासमुस्सिअ वि [समुच्छ्रित] ऊर्ध्व-स्थित । समोत्थय । दित । [समवस्तृत] । समुस्सिणा सक [समुत् + श्रु] निर्माण करना, | समोत्थर सक [समव + स्तु] आच्छादन बनाना । संस्कार करना, सँवारना, जीर्ण
करना, ढकना । आक्रमण करना । मन्दिर आदि को ठीक करना।
| समोयार पुं [समवतार] अन्तर्भाव, समावेश । समुस्सुग । देखो समसुअ ।
समोलइय वि [दे] समुत्क्षिप्त । . समुस्सुय ।
समोलुग्ग वि [समवरुग्ण] रोगी । समुह देखो संमुह।
समोवअ अक [समव+पत्] सामने आना। समुहय वि [समुद्धत] समुद्घात-प्राप्त ।
| नीचे उतरना। समुहि देखो स-मुहि = श्व-मुखि । समोसड्ढ । वि [समवसृत] समागत, समूसण न [समूषण] त्रिकटुक- सूंठ, पीपल | समोसढ पधारा हुआ । तथा मरिच ।
समोसर अक [समव + सृ] पधारना, आगसमूसवय देखो समुस्सविय।
मन करना । नीचे गिरना। समूसस अक [ समुत् + श्वस ] ऊँचा समोसर अक [समप + स] पीछे हटना । जाना । उल्लसित होना । ऊर्ध्व श्वास लेना।
करना। समूससिअ न [समुच्छ्वसित] निःश्वास । । समोसरण पुन [समवसरण] एकत्र मिलन, समूसिअ देखो समुस्सि।
मेला । समुदाय, समवाय । साधु-समुदाय । समूसुअ वि [समुत्सुक] अति उत्कंठित । जहाँ पर उत्सव आदि के प्रसंग में अनेक साधु समूह पुन. समुदाय, राशि, संघात । लोग इकट्ठे होते हों वह स्थान । परतीथिकों समूह (अप) देखो समुह ।
या जैनेतर दार्शनिकों का समवाय । धर्म या समे सक [समा + इ] जानना । प्राप्त करना । आगम-विचार । 'सूत्रकृताङ्ग सूत्र' के प्रथम अक. संहत होना, इकट्ठा होना। आगमन श्रुतस्कन्ध का बारहवां अध्ययन । पधारना, करना, सम्मुख आना।
आगमन । जिन-भगवान् उपदेश देते हैं वह समेअ ) वि [समेत] समागत, समायात । स्थान । तव पुं [°तपस्] तप-विशेष । समेत । युक्त ।
समोसव सक [दे] टुकड़ा-टुकड़ा करना । समेर देखो स-मेर स मर्याद ।
समोसिअ अक [समव + सद्] क्षीण होना, समोअर अक [समव+तृ] समाना, अन्तर्भाव | नाश पाना।
होना । नीचे उतरना । जन्म-ग्रहण करना। | समोसिअ पुंदे] पड़ोसी । प्रदोष । वि. वध्य । समोआर पं [समवतार] अन्तर्भाव । समोहण सक [समुद् + हन्] समुद्घात करना, समोइन्न वि [समवतीर्ण] नीचे उतरा हुआ। आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाल कर उनसे
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८२२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
समोहय-सय कर्म-निर्जरा करना।
[°सप्तति] सतहत्तर। समोहय वि [समुद्धत] जिसने समुद्घात किया
सय अ [सदा] हमेशा । °काल न. हमेशा । हो वह । समोहय वि [समवहत] आघात-प्राप्त ।
सय पुंन [शत] संख्या-विशेष, १०० । सौ की
संख्यावाला। बहुत । अध्ययन, ग्रन्थसम्म अक [श्रम्] खेद पाना । थकना ।
प्रकरण, ग्रन्थांश-विशेष । कंत न [°कान्त] सम्म अक [शम्] शान्त या ठण्ढा होना।
रत्न-विशेष । वि. शतकान्त रत्नों से बना सम्म न [शर्मन्] सुख ।
हुआ। 'कित्ति पुं [ कीर्ति] एक भावी जिनसम्म वि [सम्यश्च] सत्य । अविपरीत । प्रशंस- |
देव । °गुणिअ वि[°गुणित] सौगुना । ग्धी नीय । शोभन । संगत, उचित । न. सम्यग्
स्त्री [°नी] यन्त्र-विशेष, पाषाण-शिलादर्शन । °त्त न [°त्व] समकित, सत्य तत्त्व
विशेष । चक्की, जाँता। °ज्जल न [°ज्वल] पर श्रद्धा। सत्य, परमार्थ। °दिट्टय,
वरुण का विमान । देखो सयंजल । रत्न की °दिट्ठीय वि [°दृष्टिक] सत्य तत्त्व पर श्रद्धा
एक जाति । वि. शतज्वल-रत्नों का बना रखनेवाला । °इंसण न [°दर्शन] सत्य तत्त्व
हुआ। पुन. विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत पर श्रद्धा । 'दिट्ठि वि [ दृष्टि] देखो
का एक शिखर । 'दुवार न [ द्वार] एक °दिट्ठिय । °न्नाण न ['ज्ञान] सत्य ज्ञान ।
नगर । °धणु पुं [°धनुष्] ऐरवत वर्ष में °सुय न [°श्रुत] सत्य शास्त्र । सत्य शास्त्र
होनेवाला एक कुलकर पुरुष । भारतवर्ष में ज्ञान । °मिच्छदिट्टि वि [°मिथ्यादृष्टि]
होनेवाला दसवाँ कुलकर पुरुष । °पई स्त्री मिश्र दृष्टिवाला, सत्य और असत्य तत्त्व पर
[°पदी] क्षुद्र जन्तु की एक जाति । पत्त श्रद्धा रखनेवाला । °वाय पुं [°वाद]अविरुद्ध देखो °वत्त । °पाग न [°पाक] एक सौ वाद । दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ ।
औषधिओं से बनता उत्तम तेल । पुप्फा सामायिक ।
स्त्री ["पुष्पा] सोया का गाछ । 'पोर न सम्मइ देखो सम्मुइ = सन्मति, स्वमति । [°पर्वन्] इक्षु । 'बाहु पुं. एक राजर्षि । सम्मइग देखो सामाइय।
°भिसया, 'भिसा स्त्री [भिषज] नक्षत्रसम्म अ [सम्यग्] अच्छी तरह ।
विशेष । 'यम वि [°तम सौवां । °रह पं सम्मुइ स्त्री [सन्मति] संगत मति । विशद [रथ] एक कुलकर पुरुष । °रिसह पुं बुद्धि । पुं. एक कुलकर पुरुष ।
[वृषभ] अहोरात्र का तेईसवाँ मुहूर्त । वई सम्मुइ स्त्री [स्वमति] स्वकीय बुद्धि । देखो °पई। "वत्त न [°पत्र] पद्म, कमल । सम्हरिअ वि [संस्मत] अच्छी तरह याद सौ पत्तीवाला कमल । पुं. पक्षि-विशेष, जिसका किया हुआ।
दक्षिण दिशा में बोलना अपशुकन माना जाता सय अफ [शी, स्वप्] सोना ।
है । "सहस्स पुन [°सहस्र] लाख । सय अक [स्वद्] पचना, माफिक आना। सहस्सइम वि [°सहस्रतम] लाखवां । सय अक [स्र] झरना, टपकना ।
"साहस्स वि [°साहस्र] लाख-संख्या का सय सक [श्रि] सेवा करना ।
परिमाणवाला । लाख रुपया मूल्यवाला । सय देखो स= सत् ।
°साहस्सि वि [°सहस्रिन्] लखपति । सय देखो स = स्व ।
°साहस्सिय वि[°साहस्रिक]देखो साहस्स। सय देखो सग = सप्तन् । हत्तरि स्त्री साहस्सी स्त्री[°सहस्री] लाख । सिक्कर वि
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सय-सयर सक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८२३ [°शर्कर] शत खंडवाला । हा अ ['धा] | भूरमणमहावर पुं. । भूरमणवर पुं स्वयंसौ प्रकार से, सौ टुकड़ा हो ऐसा । हुत्तं अ. भूरमण-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव । °वर [कृत्वस्] सौ बार । °ाउ पुं [°ायुष्] | पुं. कन्या का स्वेच्छानुसार वरण । निमन्त्रित एक कुलकर पुरुष । मदिरा-विशेष । °ाणिय, विवाहार्थियों में से इच्छानुसार वरण करने°णीअ पुं [°ानीक] एक राजा ।
वाली । °संबुद्ध वि. स्वयं ज्ञात-तत्त्व । सय देखो सयं = स्वयं ।
सयंजय पुं [शतञ्जय] पक्ष का तेरहवा सयं देखो सई = सकृत् ।
दिवस । सयं अ [स्वयम्] खुद । °कड वि [कृत]
सयंजल पुं [शतञ्जल] एक कुलकर पुरुष ।
वरुण लोकपाल का विमान । देखो सय-जल । खुद किया हुआ। ‘गाह पुं [ ग्राह° ]
ऐरवत वर्ष में उत्पन्न चौदहवें जिनदेव । जबरदस्ती ग्रहण करना । विवाह-विशेष । वि. स्वयं ग्रहण करनेवाला। °पभ पुं
सर्यभरी स्त्री [शाकम्भरी] देश-विशेष । [प्रभ] ज्योतिष्क ग्रह-विशेष । भारतवर्ष में
| सयग देखो सयय।
| सयग्घी स्त्री [दे] जाँता, चक्की । अतीत उत्सर्पिणी या आगामी उत्सर्पिणी का चौथा कुलकर पुरुष । आगामी उत्सर्पिणी के
सयड पुन [शकट] गाड़ी । न. नगर-विशेष ।
___°मुह न [°मुखउद्यान-विशेष, जहाँ भारतवर्ष के चौथे जिन-देव । एक जैन मुनि, भ० संभवनाथ के पूर्वजन्म के गुरु । एक हार ।
ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ था।
सयडाल देखो मगडाल। मेरु पर्वत । नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में पश्चिमदिशा-स्थित एक अंजन गिरि । न. राजा
सयण देखो स-यण = स्व-जन । रावण के लिए कुबेर द्वारा बनाया हुआ एक
सयण न [सदन] गृह.। अंग-ग्लानि । नगर । वि. आप से प्रकाश करनेवाला ।
सयण न [शयन] वसति, स्थान । शय्या, °पभा स्त्री [प्रभा] प्रथम वासुदेव की
बिछौना । निद्रा। स्वाप । पटरानी। एक रानी । °पह देखो °पभ ।
सयणिज्ज न [शयनीय शय्या, बिछौना । 'बुद्ध वि. अन्य के उपदेश के बिना जिसको |
सयणिज्जग देखो स-यण = स्व-जन । तत्त्व-ज्ञान हुआ हो । भु पुं.ब्रह्मा । भारत में
सयणीअ देखो यणिज्ज । उत्पन्न तीसरा वासुदेव । सतरहवें जिनदेव का
सयण्ण देखो सकण्ण । गणघर । जीव, आत्मा, चेतन । स्वयंभूरमण
सयण्ह देखो स-यण्ह = स-तृष्ण । समुद्र । पुन. एक देव विमान । देखो भू ।
सयत्त वि [दे] मुदित । भुरोहिणी स्त्री [°भुगेहिनी] सरस्वती
सयन्न देखो सकण्ण। देवी । °भुरमण पुं. देखो भूरमण । भुव,
सयय वि [सतत] निरन्तर । °भू पुं. अनादि-सिद्ध सर्वज्ञ । ब्रह्मा। तीसरा सयय पुं [शतक] वर्तमान अवसर्पिणीकाल में वासुदेव । रावण का एक योद्धा । भ० विमल- उत्पन्न ऐरवत वर्ष के एक जिन-देव । नाथ का प्रथम श्रावक । स्तन । देखो °भु। आगामी उत्सर्पिणी में भारतवर्ष में होनेवाले °भूरमण पुं. समुद्र-विशेष । द्वीप-विशेष । एक | एक जिनदेव के पूर्वजन्म का नाम, जो देवविमान । °भूरमणभद्द [ भूरमणभद्र]। भगवान् महावीर का श्रावक था । न. सौ का भूरमणमहाभद्द पुं [भूरमणमहाभद्र] | समुदाय । स्वयंभूरमण । द्वीप का एक अधिष्ठाता देव । । सयर देखो सायर = सागर ।
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८२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सयरहं-सरड सयरहं देखो सयराहं।
सर पुन शिर] बाण । तृण-विशेष । छन्दसयरा देखो सक्करा।
विशेष । पाँच की संख्या । पण्णी स्त्री सयराहं । अ [दे] शीघ्र । युगपत् । | [पर्णी] मुञ्ज का घास । °पत्त न [पत्र सयराहा । अकस्मात् ।
अस्त्र-विशेष । °पाय न [°पात] । °सण पुन सयरि देखो सत्त-रि = सप्तति ।
[सन] धनुष । °ासणपट्टी, सणवट्टिया सयरी स्त्री [शतावरी] शतावर का गाछ । स्त्री [°ासनपट्टी, °ासनपट्टिका] धनुर्यष्टि । सयल न [शकल] खंड, टुकड़ा।
धनुष खींचने के समय हाथ की रक्षा के लिए सयल न [सकल] संपूर्ण । सब । °चंद पुं| बाँधा जाता चर्मपट्ट । °सरि न ["शरि] ['चन्द्र] 'श्रुतास्वाद' का कर्ता एक जैन | बाण-युद्ध । मुनि । °भूसण पुं [भूषण] एक केवलज्ञानी सर [स्मर] कामदेव । मुनि । देश पुं [°ादेश] सर्वापेक्षी वाक्य, सर वि. गमन-कर्ता । प्रमाणवाक्य ।
सर पुं स्वर] 'अ' से 'औ' तक के अक्षर । सयलि पुं [शकलिन्] मछली ।
गीत आदि की ध्वनि, आवाज, नाद । स्वर सयहत्थिय वि [सौवहस्तिक] स्व-हस्त से | के अनुरूप फलाफल को बतानेवाला शास्त्र । उत्पन्न । न. शस्त्र-विशेष ।
सर पुन [सरस्] तड़ाग। पंति स्त्री सयाचार देखो स-याचार = सदाचार । [°पङ्क्ति ] तड़ाग-पद्धति । रुह न. कमल । सयाचार देखो सआ-चार = सदा-चार । °सरपंतिया स्त्री ['सरःपङ्क्ति] श्रेणि-बद्ध सयाण देखो स-याण = स-ज्ञान ।
अनेक तालाब। सयालि पुं [ शतालि ] भारतवर्ष के भावी | सर देखो सरय = शरद् । °दिंदु पुं [°इन्दु] अठारहवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम । देखो
शरद् ऋतु का चन्द्र । भयालि।
सरऊ स्त्री [सरयू] नदी-विशेष । सयालु वि [शयालु] सोने की आदतवाला, सरंग (अप) पुं [सारङ्ग] छन्द-विशेष । आलसी ।
सरंब पुं शरम्ब] हाथ से चलनेवाली सर्पसयावरी स्त्री [सदावरी] त्रीन्द्रिय जन्तु की जाति । एक जाति ।
सरक्ख सक [ सं+ रक्ष् ] अच्छी तरह रक्षण सयावरी देखो सयरी- शतावरी ।
करना। सयास देखो सगास = सकाश ।
सरक्ख वि [सरजस्क, सरक्ष] शैव-धर्मीसयासव वि [शताश्रव, सदाश्रव] सूक्ष्म - शिव-भक्त, भौत । वि. रजो-युक्त । छिद्रवाला।
सरक्ख पुंन [ सद्रजस् ] धूलि, रज । सय्यं देखो सज्ज = सद्यस् ।
भस्म । सय्यंभव देखो सज्जंभव ।
सरग देखो सरय = शरक । सय्ह देखो सज्झ = सह्य ।
सरग वि [शारक] शर-तृण से बना हुआ सर सक [स] सरना, खिसकना । अवलम्बन ( शूर्प आदि)। करना । अनुसरण करना ।
सरग्गिका (अप) स्त्री [सारङ्गिका] छन्दसर सक [स्म] याद करना ।
विशेष । सर सक [ स्वर् ] आवाज करना । सरड पुं [सरट] कृकलास, गिरगिट ।
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सरडु-सरिसाहुल
सरडु न [ शलाटु, क] वह फल जिसमें सरडुअ अस्थि - गुठली न बँधी हो । सरण पुंन [शरण] त्राण । त्राणस्थान । गृह, आश्रय, स्थान । 'दय वि. त्राण कर्ता । गय वि [गत ] शरणापन्न । सरणि पुंस्त्री. मार्ग । क्यारी । सरण्ण वि [शरण्य] शरण-योग्य । सरति अ [ दे] शीघ्र, सहसा । सरद देखो सरय
शरत् ।
सरभ देखो सरह = शरभ |
=
सरअवि [दे] स्मृत | सरमय पुं. ब. [ शर्मक ] देश-विशेष । सरय पुंन [शरद् ] आश्विन तथा कार्तिक का महीना | चंद पुं ['चन्द्र ] शरद् ऋतु का चाँद | देखो सर = शरद् । सरय पुं [शरक] अग्नि उत्पन्न करने के लिए अरणि का काष्ठ जिससे घिसा जाता है वह । सरय पुंन [सरक] गुड़ तथा घातकी का बना
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
हुआ दारू । मद्य-पान ।
सरय देखो स-रय = स-रत ।
सरय (अप) पुं [ सरस ] छन्द - विशेष ।
सरल पुं. वृक्ष- विशेष । ऋतु, माया-रहित । सीधा, अवक्र ।
सरली स्त्री [] चीरिका, क्षुद्र कीट, झींगुर । सरल स्त्री [दे] साही, जिसके शरीर में काँटे होते हैं । एक जाति का कीड़ा । सरव पुं [शरप] भुजपरिसर्प का एक प्रकार । सरस वि. रस युक्त | रण्ण पुं [रण्य] समुद्र ।
सरसिज
सरसिय
न [सरसिज ] कमल, पद्म ।
८२५
एक जैन साध्वी, कालकाचार्य की बहिन । सरह पुं [शरभ] शिकारी पशु की एक जाति । हरिवंश का एक राजा । लक्ष्मण का एक पुत्र । एक सामन्त नरेश । एक वानर । छन्दविशेष |
सरसिरुह
न [सरसिरुह ] ।
सरसी स्त्री. बड़ा तालाब । 'रुह न. कमल । सरस्सई स्त्री [सरस्वती] वाणी, भाषा । वाणी की अधिष्ठात्री देवी । गोतरति नामक इन्द्र की एक पटरानी । एक राज-पत्नी ।
१०४
सरह पुं [दे] वेतस या बेंत का पेड़ । सिंह | सरह (अप) वि [ श्लाघ्य ] प्रशंसनीय । सरहस देखो स-रहस = सरभस । सरहा स्त्री [सरघा] मधु मक्षिका । सरहि पुंस्त्री [शरधि] वीर रखने का भाथा | सरा स्त्री [दे] माला |
सराग देखो सराग = स-राग ।
सराड स्त्री [शराटि ] पक्षी की एक जाति । सराव पुं [शराव ] मिट्टी का सकोरा । सरासण देखो सर-सण = शरासन | सराह वि [ दे] दर्पोक्षुर । सराहय पुं [दे] सर्प ।
सरि वि [ सदृश् ] सदृश, तुल्य ।
सरि स्त्री [सरित् ] नदी । नाह पुं [नाथ ] समुद्र ।
I
सरिअ देखो सरि = सदृश् | सरिअं न [सृतम् ] अलं, पर्याप्त ।
सरिआ स्त्री [सरित् ] नदी । वइ पुं [°पति ] समुद्र ।
सरिआ स्त्री [ दे] माला, हार ।
सरिक्ख सरिच्छ
}
वि [सदृक्ष ] सदृश, समान ।
सरितु वि [ स्मर्तृ] स्मरण कर्ता ।
सरिभरी स्त्री [दे] समानता, सरीखाई । सरिर देखो सरीर ।
सरिवाय पुं [दे] आसार, वेगवाली वृष्टि । सरिस वि [सदृश ] समान, तुल्य । सरिस पुंन [दे] सह, साथ । सरिसरी देखो सरिभरी । सरिसव पुं [सर्षप ] सरसों । सरिसाहुल वि [] समान, सदृश ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सरिस्सव-सव सरिस्सव देखो सरीसव।
पुं। हर पुं धर] मेघ । वई, गवती सरी स्त्री [दे] माला, हार ।
स्त्री [°वती] विजय-क्षेत्र-विशेष । वित्त न सरीर पुंन [शरीर देह । °णाम, 'नाम पुनः [°ावर्त] वैताढ्य पर्वत पर उत्तर दिशा[°नामन्] शरीर का कारण-भूत कर्म-विशेष ।। स्थित एक विद्याधर-नगर । °बंधण न [°बन्धन] कर्म-विशेष । °संघा- सलिला स्त्री, महानदी।
यण न [°संघातन] नाम कर्म का एक भेद । सलिलुच्छय वि [सलिलोच्छय] प्लावित, सरीरि पुं [शरीरिन्] जीव, आत्मा। डुबोया हुआ। सरीसव । [सरीसप] सर्प । सर्प की | सलिस अक [ स्वप् ] सोना । सरीसिव तरह पेट से चलनेवाला प्राणी। सलूण देखो स-लूण = स-लवण । सरूय । देखो स-रूय - स्व-रूप ।
| सलोग पुं श्लोक] । देखो सिलोग । सरूव ।
सलोग देखो स-लोग = स-लोक । सरूव देखो स-रूव = सद् रूप, स-रूप ।
सलोण देखो स-लोण = स-लवण । सरूवि पुं [स्वरूपिन्] जीव, प्राणी ।
सलोय देखो सलोग = श्लोक । सरेअव्व देखो सर = सृ. स्मृ का कृ.। सल्ल पुन [शल्य] अस्त्र-विशेष, तोमर, सांग । सरेवय पुं [दे] हस । घर का जलप्रवाह, शरीर में घुसा हुआ काँटा, तीर आदि । मोरी।
पापानुष्ठान । पापानुष्ठान से लगनेवाला कर्म । सरोअ । न [सरोज] कमल ।
पु. भरत के साथ दीक्षा लेनेवाले एक राजा । सरोरुह ।
न. छन्द-विशेष । °ग वि [क] शल्यवाला, सरोवर न. बड़ा तालाब ।
शूल आदि शल्य से पीडित । °ग न. सलभ देखो सलह = शलभ ।
परिज्ञान । सलली स्त्री [दे] सेवा ।
सल्ल पुंस्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले सर्पसलह.सक [श्लाघ् ] प्रशंसा करना।
जातीय जन्तु की एक जाति । सलह पुं [शलभ] पतङ्ग । एक वणिक-पुत्र । | सल्लई स्त्री [सल्लकी] वृक्ष-विशेष । सलहत्थ पुं [दे] कुड़छी आदि का हाथा। सल्लग देखो सल्ल-ग = शल्य-क, शल्य-ग । सलाग न [शालाक्य आयुर्वेद का एक अंग, | सल्लग देखो स-ल्लग = सत-लग । जिसमें श्रवण आदि शरीर के ऊर्ध्व भाग के | सल्लहत्त न [शाल्यहत्य] आयुर्वेद का एक सम्बन्ध में चिकित्सा का प्रतिपादन हो।
अंग, जिसमें शल्य निकालने का प्रतिपादन सलागा । स्त्री [शलाका] सली, सलाई ।।
साराला सला, सलाई। किया गया हो। सलाया । पल्य-विशेष, एक प्रकार की | सल्ला स्त्री [शल्या] एक महौषधि । नाप । पुरिस पुं [पुरुष] २४ जिनदेव, | | सल्लिह देखो संलिह = सं + लिख् । १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव
सल्लुद्धरण न [शल्योद्धरण] शल्य को बाहर तथा ९ बलदेव ये ६३ महापुरुष । निकालना । आलोचना, प्रायश्चित्त के लिए सलाह देखो सलह = श्ला ।
गुरु के पास दूषण-निवेदन । सलिल पुंन. पानी । णिहि पुं[निधि] || सल्लेहणा देखो संलेहणा। 'नाह पुं [°नाथ] सागर । °बिल न. भूमि- | सल्लेहिय वि [संलेखित] क्षीण । निर्झर । रासि पुं[राशि] समुद्र । 'वाह ' सव सक [शप्] शाप देना, आक्रोश करना,
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संव-सव्व संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८२७ गाली देना । आह्वान करना।
सौगन्ध । दिव्य, दोषारोप की शुद्धि के लिए सव सक [सू] उत्पन्न करना, जन्म देना। किया जाता अग्नि-प्रवेश आदि । सव देखो सो = सु ।
सवाग सव अक [स्त्र] झरना, चूना।
सवाय देखो स-वाग = श्व-पाक । सव पुं [श्रवस्] कान । ख्याति ।
सवाय पुं [दे] श्येन पक्षी। सव न [शव] मुरदा, मृत शरीर ।
सवाय पुं [दे] स-वाय = स-पाद, स-वाद, सद्सवंती स्त्री [स्रवन्ती] नदी।
वाच । सवक्की देखो सवत्ती।
सवार न [दे] सुबह । सवक्ख देखो स-वक्ख %D स-पक्ष ।
सवास पुं दें। ब्राह्मण । सवग्गीय वि [सवर्गीय] सवर्ग-संबन्धी । सवास देखो स-वास = स-वास । सवच देखो स-पच = श्व-पच ।
सविअ वि [शप्त] शाप-ग्रस्त, आक्रुष्ट । सवजा देखो सपज्जा।
सविउ [सवित] सूर्य । हस्त-नक्षत्र का सवडंमुह ) वि (दे] अभिमुख, संमुख । अधिपति देव । हस्त नक्षत्र । सवडहुत्त ।
सविक्ख वि [सापेक्ष] अपेक्षा रखनेवाला । सवण देखो समण = श्रमण ।
सविज्ज देखो स-विज्ज = स-विद्य । सवण [श्रवण] कर्ण । नक्षत्र-विशेष । एक सविद्रा स्त्री [श्रविष्ठा] घनिष्ठा नक्षत्र । ऋषि । न. सुनना।
सविण देखो सुमिण = स्वप्न । सवण देखो स-वण = स-व्रण ।
सवितु देखो सविउ । सवण न [सवन] कर्मों में प्रेरणा ।
सविस न [दे] सुरा। सवणता । स्त्री [श्रवणता] सुनना। अव- सविह न [सविध] पास । सवणया , ग्रह-ज्ञान ।
सव्व वि [सव्य वाम । सवण्ण वि [सवर्ण] समान वर्णवाला। सव्व वि [श्रव्य] श्रवण-योग्य । सवण्ण न [सावर्ण्य] समान-वर्णता ।
सव्व स [सर्व] समस्त । सम्पूर्ण । °ओ अ सवत्त पुं [सपत्न] दुश्मन । वि. विरुद्ध । [तस्] सबसे । सब ओर से । °ओभद्द वि समान।
[°तोभद्र] सब प्रकार से सुखी। न. सब सवत्तिणी देखो सवत्ती।
प्रकार से सुख । शुभाशुभ के ज्ञान का साधनसवत्तिया । स्त्री [सपत्निका] । स्त्री | भूत एक चक्र । महाशुक्र देवलोक में स्थित सवत्ती , [सपत्नी] पति की दूसरी एक विमान । पाँचवाँ वेयक विमान । स्त्री।
एक नगर । अच्युतेन्द्र का एक पारियानिक सवय देखो स-वय = स-वयस्, स-व्रत । विमान । दृष्टिवाद का एक सूत्र । पुं. यक्ष की सवर देखो सबर।
एक जाति । देव-विमान-विशेष । °ओभद्दा सवरिआ देखो सपज्जा।
स्त्री ['तोभद्रा प्रतिमा-विशेष, एक व्रत । सवल देखो सबल।
°कामसमिद्ध पुं[°कामसमृद्ध] षष्ठी तिथि । सवलिआ स्त्री [दे] भरोच का एक प्राचीन °कामा स्त्री. विद्या-विशेष, जिसकी साधना जैन मन्दिर ।
से सर्व इच्छाएं पूर्ण होती हैं। °गय वि सवह पुं [शपथ] आक्रोश-वचन, गाली। ["गत] व्यापक। *गा स्त्री. उत्तर रुचक
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पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । गुत्त पुं [गुप्त ] एक जैन मुनि । 'ज्ज वि [ज्ञ] सर्व पदार्थों का जानकार। पुं. जिन भगवान् । बुद्धदेव । महादेव । परमेश्वर । [T] अहोरात्र का उनतीसवाँ मुहूर्त । पुंन. सहस्रार देवलोक का एक विमान । अनुतर देवलोक का सर्वार्थसिद्ध नामक एक विमान । पुं. सब अर्थ | सिद्ध पुंन [र्थसिद्ध] अहोरात्र का उनतीसवाँ मुहूर्त | अनुत्तर देवलोक का पाँचवाँ और सर्वश्रेष्ठ विमान । पुं. ऐरवत वर्ष में उत्पन्न होनेवाले छठवें जिनदेव | 'ट्ठसिद्धा स्त्री [ार्थसिद्धा ] भ० धर्मनाथजी की दीक्षा शिविका | सिद्धि स्त्री [र्थसिद्धि] एक देव-विमान | देखो 'ज्ज । 'त्त देखो 'त्थ । तो देखो 'ओ । 'त्थ अ [ ] सब स्थान में, सब में । 'दंसि, 'दरिसि वि [ दर्शिन् ] सब वस्तुओं को देखनेवाला । पुंन. जिन भगवान् | देव पुं. एक प्रसिद्ध जैन आचार्य । राजा कुमारपाल के समय का एक सेठ | 'द्दंसि देखो 'दसि । °द्धा स्त्री [Tद्धा] सब काल, अतीत आदि सर्व समय । धत्ता स्त्री. व्यापक, सर्व ग्राहक । °न्नु देखो “ज्ज | °८पग वि [त्मक ] व्यापक । पुं. लोभ । पभा स्त्री [प्रभा ] उत्तर रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कु मारी देवी । 'भक्ख वि [' भक्ष] सर्व-भोजी ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
भद्दा स्त्री [भद्रा ] प्रतिज्ञा-विशेष, व्रतविशेष | 'भावविउ पुं [" भावविद् ] आगामी काल में भारत वर्ष में होनेवाले बारहवें जिनदेव । य वि [द] सब देनेवाला । ' या अ [दा] हमेशा । रयण पुं ['रत्न] एक महानिधि । पुंन. पर्वत- विशेष का एक शिखर । ° रयणा स्त्री [° रत्ना ] ईशानेन्द्र की वसुमित्रा नामक इन्द्राणी की एक राजधानी । रयणामय वि [° रत्नमय ] सब रत्नों का हुआ । चक्रवर्ती का एक निधि ।
बना
सव्यंकस - सबोसहि
[
विग्गहिअ वि [विग्रहिक ] सर्व-संक्षिप्त । विरइ स्त्री [विरति ] पाप कर्म से सर्वथा निवृत्ति | संग सङ्गत ] मृत्यु | ° संजम पुं [संयम ] पूर्ण संयम । सह वि. सब सहन करनेवाला | सिद्धा स्त्री पक्ष की चौथी, नववीं और चौदहवीं रात्रि - तिथि । °सो अ [°शस्] सब ओर से, सब प्रकार से । 'सन [व] सकल द्रव्य । 'हा अ [' था ] [° सब प्रकार से । णंद पुं [नन्द ] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिन- देव | Tणुभूइ पुं [Tनुभूति] भारत वर्ष में होनेवाले पाँचवें जिन भगवान् । भ० महावीर का एक शिष्य ।
हा स्त्री [हा] विद्या-विशेष | विवि [प] संपूर्ण | सण पुं [शन] अग्नि । सव्वंकस वि [सर्वकष ] सर्वातिशायी । न
पाप ।
सव्वंग वि व्यापी |
[सर्वाङ्ग ] संपूर्ण । सर्व-शरीरसुंदर वि [सुन्दर ] सर्व अंगों में श्रेष्ठ । पुंन. तप - विशेष ।
सव्वंगिअ । वि [सर्वाङ्गीण ] सर्व अवयवों सव्वंगीण में व्याप्त ।
सव्वण देखो सव्वण = स व्रण |
सव्वराइअ वि [ सार्वत्रिक ] संपूर्ण रात्रि से सम्बन्ध रखनेवाला, सारी रात का । सव्वरी स्त्री [शर्वरी] रात्रि | सव्वल पुं [दे. शर्वल ] कुन्त, बर्छा | देखो सद्धल ।
सव्वला स्त्री [दे. शवला] कुशी, लोहे का एक हथियार ।
सव्ववेक्ख देखो स-व्ववेक्ख = स व्यपेक्ष | सव्वाव देखो सव्व-नव सर्वाप । सव्वाव देखो सव्वाव = स व्याप । सव्वावंति अ [ दे] सर्व, संपूर्ण । सव्विड्ढि स्त्री [सर्वद्ध] संपूर्ण वैभव । सव्विवर देखो स-व्विवर = स-विवर | सव्वोसहि स्त्री [सर्वौषधि ] लब्धि-विशेष,
=
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सस-सह
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जिसके प्रभाव से शरीर की कफ आदि सब | ससिणिद्ध वि [सस्निग्ध] स्नेहयुक्त । चीज औषधि का काम करती है । वि. लब्धि- ससित्थ न [ससिक्थ] आटा आदि से लिप्त विशेष को प्राप्त ।
हाथ या बरतन आदि का घोवन । सस अक [श्वस् ] श्वास लेना।
ससिरिय । देखो स-सिरिय = स-धीक । सस पुं [शश] खरगोश । °इंध पुं ["चिह्न । | ससिरीय । हर पुं [धर] चन्द्रमा ।
ससिह देखो स-सिह = स-स्पृह, स-शिख । ससंक पुं [शशाङ्क] चन्द्र मा। नृप-विशेष । ससुर पुं [श्वसुर] ससुर।।
धम्म पुं [°धर्म] विद्याधर-वंश का एक ससूग देखो स-सूग = स-शूक । राजा।
ससेस देखो स-सेस = स-शेष । ससंक देखो स-संक = स-शङ्क।
ससोग । देखो स-सोग = स-शोक । ससंग देखो ससंक = शशाङ्क ।
ससोगिल्ल, ससंवेयण देखो स-संवेयण = स्व-संवेदन । सस्स न [शस्य] देखो सास = शस्य । ससक्ख वि [ससाक्ष्य] साक्षीवाला। सस्सवण वि [सश्रवण] सकर्ण, निपुण । ससग पुं [शशक] देखो सस = शश । सस्सिय पुं [शस्यिक] कृषीवल । ससण पुं [श्वसन] शुण्डा-दण्ड, हाथी की | सस्सिरिअ देखो स-स्सिरिअ = स-श्रीक । सूंड । वायु, पवन । न. निःश्वास ।
सस्सिरिली देखो सिस्सिरिली। ससत्ता देखो स-सत्ता = स-सत्त्वा ।
सस्सिरीअ देखो स-स्सिरीअ = स-श्रीक । ससरक्ख वि [सरजस्क, सरक्ष] रजोयुक्त, सस्सू स्त्री [श्वश्रू] सास । धूलिवाला । पुं. बौद्ध मत का साधु ।
सह अक [राज्] शोभना, विराजना। ससराइअ वि [दे] निष्पिष्ट, पिसा हुआ।
सह सक [सह ] सहन करना । ससा स्त्री [स्वसृ] बहन ।
सह सक [आ + ज्ञा] हुकुम करना । ससि पुं [शशिन्] चन्द्रमा। एक विद्यार्थी ।
सह वि [दे] योग्य । सहाय । मदद कर्ता । चन्द्र नाड़ी, वाम नाड़ी । एक देव-विमान । | सह वि [स्वक] देखो स = स्व । 'देस पुं छन्द-विशेष । एक राजा। दक्षिण रुचक | [ देश] स्वदेश । °संबुद्ध वि. निज से ही पर्वत का एक कूट । °अंत' पुं [कान्त] | ज्ञान को प्राप्त । पुं. जिन-देव । चन्द्रकान्त मणि । 'अला स्त्री [°कला] | सह वि. समर्थ । सहिष्णु । पुं. युगलिक मनुष्य चन्द्र की कला, सोलहवां भाग। "कंत देखो की एक जाति । अ. साथ । युगपत् । °कार
अंत । °पभ, °पह पुं ['प्रभ] आठवें | पुं. आम का पेड़ । साथ मिलकर काम करना । जिनदेव, चन्द्रप्रभ । इक्ष्वाकु वंश का एक | मदद । °कारि वि [°कारिन्] साहाय्यकर्ता । राजा । °प्पहा स्त्री [प्रभा] एक रानी, कारण-विशेष । गत, गय वि. संयुक्त । कर्पूरमंजरी की माता । °मणि पुंस्त्री. चन्द्र- | °गारि, °गारिअ देखो °कारि । °चर देखो कान्त मणि । लेहा स्त्री [°लेखा] चन्द्र की °यर । °चरण न. सहचर, मेलाप । °ज पुं. कला । °वक्कय न [°वक्रक] आभूषण- स्वभाव । वि. स्वाभाविक । 'जाय वि विशेष । °वेग पुं. एक राज कुमार । °सेहर [°जात] एक साथ उत्पन्न । °देव पुं. एक पुं ["शेखर] महादेव ।
पाण्डव, माद्री-पुत्र । राजगृह नगर का एक ससिण देखो ससि।
राजा। °देवा स्त्री. ओषधि-विशेष । °देवी
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८३० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सह-सहिआ स्त्री. चतुर्थ चक्रवर्ती की माता। एक मही-। [°लोचन] इन्द्र । °सिर वि ["शिरस्] षधि । 'धम्मआरिणी स्त्री [ धर्मचारिणी] प्रभूत मस्तकवाला । पुं. विष्णु । °वत्त देखो पत्नी। पंसुकीलिअ वि [°पांशुक्रीडित] °पत्त । सो अ [°शस्] अनेक हजार । 'हा बाल-मित्र । °य देखो °ज। 'यर वि । अ [°धा] सहस्र प्रकार से । °हुत्तं अ [°चर] सहाय, साहाय्य-कर्ता । वयस्य, [कृत्वस्] हजार बार। देखो सहस, दोस्त । अनुचर । °यरी स्त्री [°चरी] ।। सहास । प्यार देखो °कार । राग वि. राग-सहित । सहस्संबवण न [सहस्राम्रवण] एक उद्यान, पर देखो °कार।
आम के प्रभूत पेड़ोंवाला वन । सह देखो सहा = सभा।
सहस्सार पुं [सहस्रार] आठवाँ देवलोक । सहउत्थिया स्त्री [दे] दूती ।
आठवें देवलोक का इन्द्र । एक देव-विमान । सहगुह पुदे] धूक, उल्लू, पक्षि-विशेष ।।
"वडिंसय पुन. [वतंसक] एक देवसहडामह न [शकटामुख] वैताढ्य की उत्तर ।
विमान । श्रेणि में स्थित एक-विद्याधर-नगर ।
सहा स्त्री [सभा] समिति, परिषत् । °सय सहण अ [दे| सह, साथ में।
वि [°सद] सभ्य, सदस्य । सहण न [सहन] तितिक्षा । वि. सहिष्णु ।
सहा देखो साहा = शाखा । सहर पुस्त्री शफर) मत्स्य ।
सहाअ देखो स-हाअ = स्व-भाव । सहर वि [दे] साहाय्य-कर्ता, सहाय ।
सहाअ । पृ [सहाय] सहाय्य-कर्ता । वि सहल वि [सफल सार्थक ।
सहाइ , [साहाय्यिन् । सहस देखो सहस्स । °किरण पुं. सूर्य । °क्ख | सहाइया स्त्री [सहायिका] मदद करनेवाली । पुं [°क्ष) इन्द्र | रावण का एक योद्धा । |
सहार देखो सहार - सह-कार । छन्द-विशेष ।
सहाव देखो स-हाव = स्वभाव । सहसक्कार पुंसहसाकार] विचार किये बिना
सहास देखो सहस्स । हुत्तो अ [°कृत्वस् करना । आकस्मिक क्रिया । वि. विचार किये
__ हजार बार। बिना करनेवाला।
सहासय देखो सहा-सय = सभा-सद । सहसत्ति अ. अकस्मात्, शीघ्र ।
सहि वि [सखि] मित्र । देखो सही । सहसा अ. अकस्मात्, शीघ्र। वित्तासिय न | सहि देखो सही। [वित्रासित] अकस्मात् स्त्री के नेत्र-स्थगन सहिअ वि [सोढ] सहन किया हुआ । आदि क्रीड़ा।
सहिअ वि [सहित] युक्त । हित-युक्त । पुं. सहस्स पुन [सहस्र] संख्या-विशेष, १००० ।। ज्योतिष्क ग्रह-विशेष । . वि. हजार की संख्यावाला। °किरण पुं. | सहिअ पुं [सभिक] द्यूत-कारक, जुआ खेलनेसूर्य । एक राजा । क्ख पुं [°क्ष] । °णयण, | "नयण पुं [°नयन] इन्द्र । एक विद्याधर | सहिअ देखो स-हिअ = स्व-हित । राज-कुमार । °पत्त अ ["पत्र] हजार दल- सहिअ देखो सह - सह । वाला कमल । 'पाग पुंन [°पाक] हजार सहिअ वि [सहृदय] सुन्दर चित्तवाला ।
ओषधि से बनता एक प्रकार का तेल । सहिअय । परिपक्व बुद्धिवाला । °रस्सि पुं [रश्मि] सूर्य । °लोयण पुं ! मदिआ देखो सही।
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सहिज्ज-साउल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८३१ सहिज्ज वि. देखो सहाअ = सहाय । स्त्री. । जन्मीय नाम । एक जैन मुनि । हैमवत-वर्ष ज्जी।
के शब्दापाती पर्वत का अधिष्ठायक देव ।। सहिण देखो सह + श्लक्ष्ण ।
साइ पुं [सादिन] घुड़सवार । सहिण्हु । वि [ सहिष्णु ] सहन करने की साइ पुंस्त्री [साति] उत्तम वस्तु के साथ हीन सहिर ) आदतवाला ।
वस्तु की मिलावट । अविश्वास । असत्य सही स्त्री [सखी सहेली।
वचन । अपेक्षा-कृत अच्छी चीज । जोग सही देखो सहि। 'वाय पं [°वाद मित्रता- | पुं[ योग] । °संपओग [ संप्रयोग] सचक वचन ।
मोहनीय कर्म । अच्छी चीज से हीन चीज सहीण वि [स्वाधीन] स्वायत्त, स्व-वश ।
की मिलावट । सह वि [सह] समर्थ, शक्तिमान् ।
साइ पुंस्त्री [दे] केसर । सहु (अप) देखो संघ ।
साइज्ज सक [स्वाद्, सात्मी+कृ] स्वाद सहं (अप) अ [सह] साथ, संग ।
लेना, खाना । अभिलाष करना। स्वीकार सहेज्ज देखो सहिज्ज।
करना । आसक्ति करना । अनुमोदन करना । सहेर (अप) पुं [शेखर] षट्पद छन्द का एक | साइज्जण न [स्वादन] अभिष्वङ्ग, आसक्ति । भेद ।
साइज्जणया स्त्री [स्वादना ] उपभोग, सहेल वि. हेला-युक्त, अनायास होनेवाला, | सेवा । सरल ।
साइज्जिअ वि [दे] अवलम्बित । सहोअर वि [सहोदर] तुल्य । पं. सगा भाई ।
साइज्जिअ वि [ स्वादित ] उपभुक्त । उपसहोअरी स्त्री [सहोदरी] सगी बहिन ।
भुक्त-सम्बन्धी । स्त्री. °या। सहोढ वि [सहोड] चोरी के माल से युक्त,
: माल से युक्त, | साइम वि [स्वादिम] पान, सुपारी आदि । स-मोष ।
साइय वि [सादिक] आदिवाला । सहोदर देखो सहोअर ।
साइय देखो सागय = स्वागत । सहोसिअ वि [सहोषित] एक-स्थान-वासी।
साइय न [दे] संस्कार। साअड्ढ सक [कृष् ] चाष करना, कृषि साइयंकार वि [दे] स-प्रत्यय, विश्वस्त । करना, खींचना ।
साइरेग वि [सातिरेक] साधिक, सविशेष । साअद (शौ) देखो सागद ।।
साइसय वि [सातिशय] अतिशयवाला। साइ वि [शायिन्] सोनेवाला ।
साई देखो सई = शची। साइ वि [सादि] आदि-सहित । न. संस्थान- | साउ वि [स्वादु] स्वादवाला, मधुर । विशेष, जिस शरीर में नाभि से नीचे के साउग वि [स्वादुक स्वादिष्ट भोजनवाला । अवयव पूर्ण और नाभि के ऊपर के अवयव साउज्ज न [सायुज्य] सहयोग, साहाय्य । हीन हों ऐसी शरीराकृति । सादिसंस्थान साउणिअ वि [ शाकुनिक ] पक्षियों का की प्राप्ति का कारण-भूत कर्म ।
शिकारी। शकुन-शास्त्र का जानकार । श्येन साइ न [साचि] सेमल का पेड़ । संस्थान- | पक्षी द्वारा शिकार करनेवाला । विशेष । देखो साइ।
साउय देखो साउग। साइ पुंस्त्री [स्वाति] नक्षत्र-विशेष । पुं. | साउय वि [सायुष् ] आयुवाला, प्राणी। भारतवर्ष में होनेवाले एक जिनदेव का पूर्व- साउल वि [संकुल] व्याप्त, भरपूर ।
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८३२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
साउलय-साण साउलय वि [साकुलत] आकुलता-युक्त । । सागरोवम पुन [सागरोपम] दस-कोटाकोटिसाउली स्त्री [दे] । देखो साहुली।
पल्योपम-परिमित काल । साउल्ल पुं[दे] अनुराग।
सागार वि [साकार] आकार-सहित । विशेसाएज्ज देखो साइज्ज ।
षांश को ग्रहण करने की शक्ति, विशेष-ग्रहण, साएय न [साकेत] । °पुर न. । 'पुरी स्त्री. |
ज्ञान । अपवाद-युक्त । °पस्सि वि [°दर्शिन्] अयोध्या नगरी।
ज्ञानवाला। साएया स्त्री [साकेता] अयोध्या नगरी ।
सागार वि. गृह-युक्त, गृहस्थ । सांतवण न [सान्तपन] व्रत-विशेष ।
सागारि । वि [सागारिन्, °रिक] गृह साक देखो साग।
सागारिय , का मालिक, उपाश्रय का साकेय न [साकेत] नगर-विशेष, अयोध्या।। वि. गृहस्थ-सम्बन्धी । न. प्रत्याख्यान-विशेष ।
मालिक, साधु को स्थान देनेवाला गृहस्थ, साकेय वि [ साङ्केत ] संकेत-सम्बन्धी । न.
शय्यातर। सूतक, प्रसव और मरण की
अशुद्धि, अशौच । गृहस्थ से युक्त । न. प्रत्याख्यान का एक भेद ।
मैथुन । वि. मैथुन । वि. शय्यातर गृहस्थ का, साग पुं [शाक] वृक्ष-विशेष । तक्र-सिद्ध बड़ा |
उपाश्रय के मालिक से सम्बन्ध रखनेवाला । आदि खाद्य । शाक।
सागेय देखो साकेय = साकेत । सागडिअ वि [शाकटिक] गाड़ीवान् ।
साड सक [शाटय, शातय ] सड़ाना, विनाश सागय न [स्वागत] प्रशस्त आगमन । अतिथि
करना । छेदन करना। सत्कार, बहु-मान । कुशल ।
साड पुं [ शाट, शात ] शाटन, विनाश । सागर पुं. समुद्र । एक राज-पुत्र । राजा
शाटक, उत्तरीय वस्त्र, चद्दर । वस्त्र । अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । एक वणिक्व्यापारी। सातवें बलदेव तथा वासुदेव के
साडअ | पुंन [शाटक] वस्त्र, कपड़ा।
साडग पूर्व भव के धर्म-गुरु । पुन. कूट-विशेष ।
साडणा स्त्री [ शाटना, शातना ] खण्ड-खण्ड समय-परिमाण-विशेष, दश-कोटाकोटि-पल्यो
होकर गिराने का कारण, विनाश-कारण । पम-परिमित काल । एक देव-विमान । कत पुन [°कान्त] एक देव-विमान । °चंद पुं
साडिअ वि [ शाटित, शातित ] सड़ाकर [°चन्द्र] एक जैन आचार्य । एक व्यक्ति ।
गिराया हुआ, विनाशित। °चित्त पुन [°चित्र] कूट-विशेष । दत्त पुं.
| साडिआ स्त्री [शाटिका] वस्त्र । एक जैन मुनि । तीसरे बलदेव का पूर्वजन्मीय
साडिल्ल देखो साड = शाट । नाम । एक श्रेष्ठि-पुत्र । एक सार्थवाह। साडी स्त्री [शाटी
| साडी स्त्री [शाटी] वस्त्र । हरिषेण चक्रवर्ती का एक पुत्र । °दत्ता स्त्री. साडी स्त्री [शकटी] गाड़ी। °कम्म पुंन भधर्मनाथजी की दीक्षा-शिविका । भविमल- [°कर्मन्] गाड़ी बनाना, बेचना, चलाना नाथजी की दीक्षा-शिविका । °देव पुं. हरिषेण | आदि शकट-जीविका । चक्रवर्ती का एक पुत्र । वह पुं [व्यह] | साडीया देखो साडिआ। सैन्य की रचना-विशेष । देखो सायर - साडोल्लय देखो साडअ। सागर।
साण सक [शाणय] शाण पर चढ़ाना, तीक्ष्ण सागरिअ देखो सागारिय।
करना।
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साण - सामइग
साण पुंस्त्री [ श्वान] कुत्ता । स्त्री. पुं. छन्द
विशेष |
सा वि [ श्यान] निबिड, घनीभूत । साण पुं [शाण, शान] शस्त्र को घिस कर तीक्ष्ण करने का यन्त्र ।
साण वि [शाण] सन या पाट का ।
साण देखो सासायण ।
साणइअ वि [ दे. शाणित] उत्तेजित ।
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सांनिध्य ।
सालसटु (अप) देखो सद्दूल-सट्ट ।
साध देखो साह = साधय् । साधग देखो साहग ।
न [शाणक] सन का बना वस्त्र । स्त्री [शाणि] ।
साणय
साणि
साणि वि [ दे] शान्त ।
साणी स्त्री [शाणी] देखो साणि ।
लट्ठिया
सान [सानु ] पर्वत का समान भूमि वाला प्रदेश | °मंत पुं [°मत्] पर्वत । स्त्री [यष्टिका ] ग्राम- विशेष । साणुक्कोस वि [ सानुक्रोश] दयालु | साणुप्पग न [सानुप्रग] प्रातःकाल, प्रभात । सबंध वि [ सानुबन्ध] निरन्तर, अविच्छिन्न
प्रवाहवाला ।
साणुबीय वि [ सानुबीज] जिसमें उत्पादनशक्ति नष्ट न हुई हो वह बीज ।
साणुवाय वि [ सानुवात] अनुकूल पवनवाला । साणुस वि [ सानुशय] अनुतापयुक्त | सारन [दे] देव-गृह ।
सात न. सुख । वि. सुखवाला । स्त्री. 'ता | वेणज्जन [वेदनीय] सुख का कारणभूत कर्म ।
साति देखो साइ = स्वाति, सादि, साचि, साति ।
सातिज्जणया देखो साइज्जणया । साद पुं. अवसाद, खेद ।
सादिव्व वि [ सदैव ] देवता - प्रयुक्त, देव कृत । सादिव्व देखो सादेव्व ।
साधम्म देखो साहम्म । साधम्मिr देखो साहम्मिअ ।
साधारण देखो साहारण = साधारण । साधारणा स्त्री [संधारणा] वासना, धारणा, स्मरणशक्ति ।
साधी देखो साहीण ।
सापद (शौ) देखो सावय = श्वापद ।
साफल्ल देखो साहल्ल | साफल्या
}
साबाह वि [साबाध] आबाधा सहित । साभरग पुं [दे. साभरक] रुपया, सोलह आने का सिक्का ।
साभव्व देखो साहव्व । साभाविक देखो साहाविअ । साभाविय
}
८३३
साम पुंन [ सामन् ] शत्रु को वश करने का उपाय - विशेष, एक राजनीति । प्रिय वाक्य | एक वेद-शास्त्र | मैत्री, शर्करा आदि मिष्ट वस्तु । सामायिक | "कोट्ट पुं [ 'कोष्ठ ] ऐरवत वर्ष में उत्पन्न एक्कीसवें जिनदेव | देखो सामि कुट्ठ |
सादीअ देखो साइय = सादिक ।
सादी गंगा स्त्री [ सादीनगङ्गा ] आजीविक सामइअ देखो सामाइअ ।
सामइअ
साम पुं [ श्याम ] कृष्ण वर्ण । हरा वर्ण । नीला रंग । वि. काला वर्णवाला । हरा वर्णवाला । पुं. परमाघमी देवों की एक जाति । एक जैन मुनि, श्यामार्य । न. गन्धतृण । पुंन. आकाश । हत्थि पुं ['हस्तिन् ] भ० महावीर का शिष्य एक मुनि । सामइव [प्रतीक्षित | जिसकी प्रतीक्षा की गई हो वह ।
मत में उक्त एक परिमाण ।
सादेव्व न [ सादिव्य ] देव का अनुग्रह - सामइग
१०५
पुं [ सामयिक ] एक गृहस्थ 1 वि. समय - सम्बन्धी । सिद्धान्त
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सामंतोवणिवाइया सामंतोवणीआ
८३४
सामत्थ देखो सामच्छ ।
का जानकार | आगम-आश्रित सिद्धान्तआश्रित । बौद्ध विद्वान् ।
सामय तक [प्रति + ईक्ष्] प्रतीक्षा करना । सामय पुं [ श्यामाक] धान्य- विशेष, साँवा ।
सामइग देखो सामाइअ ।
सामंत पुंन [ सामन्त ] निकट । पुं. अधीन सामरि पुंस्त्री [दे. शाल्मलि ] शाल्मली वृक्ष । सामरिस वि[सामर्ष ] ईर्ष्यालु, असहिष्णु ।
राजा । समीप देश का राजा ।
सामंती स्त्री [दे] सम-भूमि ।
सामल वि [ श्यामल] काला । पुं. एक वणिक् । सामंतोवणिवाइयन [ सामन्तोपनिपातिक ] सामलय वि [ श्यामलक ] काला । काला पानीवाला । पुं. वनस्पति- विशेष ।
अभिनय का एक भेद ।
सामला स्त्री [ श्यामला ] कृष्ण वर्णवाली स्त्री । सोलह वर्ष की स्त्री ।
स्त्री [ सामन्तोपनि पातिकी] क्रिया
विशेष, चारों तरफ से इकट्ठे हुए जन-समुदाय में होनेवाली क्रिया - कर्म-बन्ध का कारण । सामंतोवायणिय पुंन [सामन्तोपपातनिक ]
अभिनय - विशेष |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सामक्ख देखो समक्ख ।
सामग देखो सामय = श्यामाक | सामग्ग सक [श्लिष् ] आलिङ्गन करना । सामग्ग न] [ सामग्र्य ] सामग्री, संपूसामग्गिअ ता सकलता । सामग्गिअ वि [ दे] चलित | अवलम्बित | पालित, रक्षित ।
सामग्गी स्त्री [सामग्री] समस्तता । कारणसमूह |
सामच्छ सक [दे] मन्त्रणा करना, पर्यालोचन
करना ।
सामच्छ न [सामर्थ्य ] समर्थता, शक्ति । सामज्ज न [साम्राज्य ] सार्वभौम राज्य |
सामण
सामणिय
}
वि [ श्रामण 'णिक ] श्रमणसंबन्धी ।
सामणिय देखो सामण्ण = श्रामण्य | सामणेर पुं [ श्रामणि] साधु की संतान । सामण्ण न [ श्रामण्य] श्रमणता, साधुपन । सामण्ण पुं [सामान्य ] अणपन्नी देवों का एक इन्द्र । न वैशेषिक दर्शन में प्रसिद्ध सत्ता पदार्थ | वि. साधारण ।
सामइग - सामाजिअ
सामलि पुंस्त्री [शाल्मलि ] सेमल का गाछ । सामली देखो सामला ।
सामलेर पुं [शाबलेय] काबरचित गौ-चितकबरी गाय का वत्स ।
1
सामा स्त्री [ श्यामा] तेरहवें जिनदेव की माता । तृतीय जिनदेव की प्रथम शिष्या । रात्रि । शक्र की एक अग्र महिषी । प्रियंगु वृक्ष । एक महौषधि । साम- लता । सोम-लता । मारी । श्याम वर्णवाली स्त्री । सोलह वर्ष की स्त्री । सुन्दर स्त्री । यमुना नदी । नील या गुग्गुल का गाछ । गुडूची, गला । गुन्द्रा । कृष्णा । अम्बिका । कस्तूरी । वटपत्री । वन्दा की लता । हरी पुनर्नवा । पिप्पली का गाछ । हरिद्रा । नील दूर्वा । तुलसी । पद्मबीज । गौ । छाया । सीसम का पेड़ । पक्षि-विशेष ।
° स पुं [] रात्रि भोजन ।
सामाइअ न [ सामायिक ] संयम - विशेष, सम-भाव । राग-द्वेष-रहित अवस्थान । सामाइअ वि [ सामाजिक ] समाज का, समूह से संबन्ध रखनेवाला, सभ्य । सामाइअवि [ श्यामायित ] रात्रि-सदृश । सामाग पुं [ श्यामाक] भ० महावीर के समय का एक गृहस्थ, जिसके ऋजुवालिका नदी के किनारे पर स्थित क्षेत्र में महावीर को केवल ज्ञान हुआ था । सामाजिअ देखो सामाइअ = सामाजिक ।
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सामाण-सायत्त संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८३५ सामाण देखो समाण = समान । - समुदाय से संबन्ध रखनेवाला। सामाण पुन [सामान] एक देव-विमान । सामुदाणिय वि [सामुदानिक] भिक्षा-संबन्धी, सामाणिअ वि [सामानिक] संनिहित, निकट- भिक्षा से लब्ध । भिक्षा, भैक्ष । वर्ती । पुं. इन्द्र के समान ऋद्धिवाले देवों सामुद्द पुं [दे इक्षु-समान तृण-विशेष । की एक जाति ।
। सामुद्द ) व [सामुद्र, क] समुद्र-सम्बन्धी, सामाय अक [श्यामाय] काला होना। सामुद्दय । सागर का । न. छन्द-विशेष । सामाय देखो सामय = श्यामाक ।
सामुद्दिअ न सामुद्रिक] शरीर पर के चिह्नों सामाय पुं. संयम-विशेष, सामायिक ।
का शुभा-शुभ फल बतलानेवाला शास्त्र । सामायारि वि [सामाचारिन्] आचरण | शरीर की रेखा आदि चिह्न । वि. सामुद्रिक करनेवाला।
शास्त्र का ज्ञाता । सामायारो स्त्री [सामाचारी] साधु का सामुयाणिय खो सामुदाणिय । आचार ।
साय देखो साइज्ज = स्वाद्, सात्मी + कु । सामास देखो सामा-स = श्यामा-श । साय देखो साग = शाक। सामासिय वि [सामासिक] समास-संबन्धी। साय न [सात] सुख । सुख का कारण-भूत सामि , वि [स्वामिन्] नायक, अधिपति ।
कर्म । एक देव-विमान । वाइ वि [°वादिन] सामिअ । ईश्वर, मालिक । स्त्री. णी। सुख-सेवन से ही सुख की उत्पत्ति माननेपु. प्रभु । राजा । भर्ता । °कुट्ठ पुं [°कुष्ठ]
वाला। °वाहण पुं [°वाहन] एक प्रसिद्ध ऐरवत वर्ष में उत्पन्न एक्कीसवें जिन-देव ।
राजा । °गारव पुंन [°गौरव] सुखदेखो साम-कोट्ठ। °त्त न [°त्व] मालकियत,
शीलता। सुख का गर्व। सुक्ख न आधिपत्य । न. नगर-विशेष ।
[°सौख्य] आतशय सुख। देखो सात = सामिअ वि [दे] दग्ध ।
सात। सामिअ वि [शमित] शान्त किया हुआ।
साय पुं [स्वाद] रस का अनुभव । सामिद्धि स्त्री [समृद्धि] अति संपत्ति । वृद्धि ।
साय न [दे] महाराष्ट्र देश का एक नगर । दूर । सामिधेय न [सामिधेय] काष्ठ-समूह ।
सायं अ [ सायम् । सन्ध्या-समय । सत्य । सामिली न [स्वामिलिन्] वत्स गोत्र की एक
"कार पुं. सत्य । सत्य-करण । 'तण वि
[°तन] सन्ध्या शाखा । पुंस्त्री. उस में उत्पन्न ।
-समय का । सामिसाल देखो सामि।
सायंदूर न [दे नगर-विशेष । सामिहेय देखो सामिधेय।
सायंदूला स्त्री दे] केतकी, केवड़े का गाछ । सामोर वि समीर-संबन्धी ।
सायकुंभ न [शातकुम्भ] सुवर्ण । वि. सुवर्ण सामुंडुअ ' [दे] बरु तृण, जिसकी कलम की |
__ का बना हुआ।
सायग पुं[सायक] बाण, तीर । सामुग्ग वि [सामुद्ग] संपुटाकारवाला। सायग वि [स्वादक] स्वाद लेनेवाला । सामुच्छेइय वि [सामुच्छेदिक] वस्तु को सायणा स्त्री [शातना] खण्डन, छेदन । एकान्त क्षणिक माननेवाला एक मत और सायणी स्त्री [शायनी, स्वापनी] मनुष्य की उसका अनुयायी।
दसवीं ९० से १०० वर्ष की दशा । सामुदाइय वि [सामुदायिक] समुदाय का, ' सायत्त वि [स्वायत्त] स्वाधीन, स्वतन्त्र ।
जाती है।
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८३६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सायय-सारय सायय देखो सायग।
कपूर । फूल । कोयल । मेघ । रूअक्क, सायर पुं [सागर] समुद्र । ऐरवत वर्ष में | रूपक (अप) पुन छन्द-विशेष । होनेवाले चौथे जिन-देव । मृग-विशेष । संख्या सारंग न [साराङ्ग] प्रधान दल, श्रेष्ठ विशेष । एक सेठ । 'घोस पुं [°घोष] एक | अवयव । जैन मुनि जो आठवें बलदेव के पूर्वजन्म में | सारंगि पुं [शाङ्गिन्] विष्णु, श्रीकृष्ण । गुरु थे। भद्द पुं [भद्र] इक्ष्वाकुवंश का | सारंगिका । स्त्री [सारङ्गिका] छन्दएक राजा । देखो सागर - सागर । सारंगिक्का , विशेष । सायर वि [सादर] आदर-युक्त ।
सारंगी स्त्री [सारङ्गी] हरिणी। वाद्यसायार देखो सागार = साकार ।
विशेष । सार सक [प्र + ह] प्रहार करना।
सारंभ देखो संरंभ। सार सक [स्मारय् ] याद दिलाना ।
सारकल्लाण पुं [सारकल्याण] वलयाकार सार सक [सारय् ] दुरुस्त करना। प्रख्यात | वनस्पति-विशेष । देखो सालकल्लाण । करना। प्रेरणा करना । उन्नत करना, | सारक्ख सक [सं + रक्ष ] परिपालन करना, उत्कृष्ट बनाना। सिद्ध करना । खोजना।। अच्छी तरह रक्षण करना । सरकाना, खिसकाना, अन्य स्थान में ले | सारक्खेत्तु वि [संरक्षित] संरक्षण-कर्ता । जाना ।
सारग देखो सारय = स्मारक । सार सक [ स्वरय् ] बुलवाना । उच्चारण- सारज्ज न [स्वाराज्य] स्वर्ग का राज्य । योग्य करना।
सारण पुं. एक यादव-कुमार। रावणाधीन सार वि [शार] चितकबरा। पुं. सार, | एक सामन्त राजा । रावण का मन्त्री । पासा।
रावण का एक सुभट । न. ले जाना, सार पुंन. धन । न्याययुक्त । बल, पराक्रम । |
प्रापण । परमार्थ । प्रकर्ष । फल । परिणाम । रस, सारण न [स्मारण] याद कराना। वि. याद निचोड़ । एक देव-विमान । स्थिर अंश । पुं. दिलानेवाला । स्त्री. °णिया, °णी। वृक्ष-विशेष । छन्द-विशेष । वि. श्रेष्ठ । °कंता | सारणा न [स्मारणा] याद दिलाना । स्त्री [कान्ता] षड्ज ग्राम की एक मूर्छना । | सारणि । स्त्री [सारणि, °णी] आलवाल, 'य वि [°द] सार देनेवाला । °वई स्त्री | सारणी । नीक, कियारो । परम्परा । [°वती] छन्द-विशेष । °वंत वि [°वत्] | सारत्थ न [सारथ्य] सारथिपन । सार-युक्त । °वंती देखो °वई ।
सारदा देखो सारया। सारइय वि [शारदिक] शरद् ऋतु का। सारदिअ देखो सारइय । सारंग वि [शाङ्ग] सींग का बना हुआ । न. सारमिअ वि [दे] याद कराया हुआ। धनुष । आर्द्रक, आदी। विष्णु का धनुष । | सारमेअ [सारमेय] श्वान । पाणि पुं. विष्णु।
सारय वि [शारद] शरद् ऋतु का । सारंग पुं. सिंह । चातक पक्षी। हरिण । | सारय वि [सारक] श्रेष्ठ कर्ता । साधक । हाथी । भ्रमर । छत्र । राजहंस । चित्र-मृग । | सारय वि [स्मारक याद करनेवाला । याद वाद्य-विशेष । शंख । मयूर । धनुष । केश ।। दिलानेवाला। आभरण, अलंकार । वस्त्र । पद्म । चन्दन । सारय वि [स्वारत] आसक्त, खूब लीन ।
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सारय-सालग
सारय देखो सार-य ।
शारि ।
सारया स्त्री [शारदा] सरस्वती देवी |
वि [शारीर ] शरीर का, शरीरसम्बन्धी । वि [शारीरिक ] ।
सारव देखो सार = सारय् ।
सारव सक [ समा + रच ] साफ करना, दुरुस्त करना ।
पुं [सारूपिन्, 'क] जैन साधुसारूविअ के समान वेष को धारण करनेवाला रजोहरण- वर्जित स्त्री-रहित गृहस्थ, साधु और गृहस्थ के बीच की अवस्थावाला जैन पुरुष ।
सारव सक [समा + रभ् ] शुरूआत करना । सारवण न [समारचन ] सम्मार्जन | सारस पुं. पक्षि-विशेष । छन्द - विशेष । सारसी स्त्री. षड्ज ग्राम की एक मूर्छना । मादा सारसपक्षी । छन्द - विशेष । सारस्सय पुं [सारस्वत] लोकान्तिक देवों की सारोहि वि [संरोहिन् ] संरोहण कर्ता । एक जाति ।
सारूविअ न [ सारूप्य ] समान रूपता । सारेच्छ देखो सारिच्छ = सादृक्ष्य ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सारह न [सारघ] मधु, शहद सारहि पुं [सारथि] रथ हाँकनेवाला । साराडि पुत्री [] शरारि पक्षी । साराय अक [ साराय् ] सार रूप होना । साराव सक [ सारय् ] चिपकवाना, लगवाना, सील कराना ।
सारि स्त्री [शारि] मैना । पासा खेलने का रंग-बिरंगा साँचा | युद्ध के लिए गजपर्याण |
सारि देखो सारी (दे) 1
सारिअ वि[सारिक] सारवाला ।
सारिअ वि[सारित] चिपकाया हुआ, सील
किया हुआ । सारिआ
सारिआ
स्त्री [सारिका ] मैना, पक्षि} विशेष | सारिक्ख न [सादृक्ष्य ] समानता, सरीखाई । वि [सदृक्ष ] समान, सरीखा ।
सारिक्ख }
सारिच्छ देखो सारिक्ख = सादृक्ष्य । सारिच्छिआ स्त्री [] दूर्वा, दूब । सारिस देखो सरिस - सदृश । सारिस
सारिस्स
सारी स्त्री [दे] ऋषि का आसन । मिट्टी ।
न [सादृश्य ] समानता, सरीखाई ।
सारी स्त्री [शारी] देखो सारि
=
सारीर
सारीरिय
सारूवि
८३७
साल पुं [शाल ] ज्योतिष्क महाग्रह - विशेष । साखू का पेड़ | वृक्ष | किला, प्राकार । एक राजा । पक्षि-विशेष । पुंन. एक देव विमान । "कोट्ट्य न [ कोष्ठक ] चैत्य-विशेष | वाण, हण [ वाहन ] एक सुप्रसिद्ध
राजा ।
साल देखो सार = सार | 'इय वि [°चित] सार-युक्त ।
साल न [शाला ] घर ।
साल पुं [श्याल] साला, बहू का भाई । साल पुं. देखो साला = (दे) । 'मंत वि [°वत्] शाखावाला ।
साल° देखो साला = शाला । °गिह, 'घर न [गृह] भित्ति-रहित या
बरामदावाला
घर ।
सालइय देखो सारइय = शारदिक । सालंकायण न [शालङ्कायन] कौशिक की एक शाखा - गोत्र । पुंस्त्री. उस गोत्रवाला | सालंकी स्त्री [दे] सारिका, मैना । सालंगणी स्त्री [दे] सोढ़ो, निःश्रेणी । सालंब वि [सालम्ब] अवलम्बन युक्त | सालकल्लाण पुं [शालकल्याण ] वृक्ष - विशेष । देखो सारकल्लाण ।
सालक्कि स्त्री [दे] सारिका, मैना । सालग न [दे] वृक्ष को बाहरी छाल । लम्बी
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८३८
शाखा । रस ।
सालणय न [सारणक] कढ़ी के समान एक
तरह का खाद्य ।
सालभंजी देखो सालहंजी ।
सालस वि. आलसी ।
सालहंजिया स्त्री [शालभञ्जिका, ञ्जी] सालहंजी काष्ठ आदि की बनाई हुई
}
पुतली ।
सालहिआ
सालही
}
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सालिहीपिउ
गृहस्थ ।
साली स्त्री [श्याली ] पत्नी - भगिनी । सालुअ पुंन [शालूक] कमल-कन्द | सालुअ न [ दे] शम्बूक, शंख । सूखे यव आदि धान्य का अग्र भाग ।
स्त्री [दे] सारिका, मैना |
साला स्त्री [शाला ] गृह । भित्ति-रहित घर | छन्द- विशेष ।
साला स्त्री [दे] शाखा ।
सालाइय देखो सलाग ।
]
सालाणय वि [दे] स्तुत । स्तुत्य । सालाहण देखो साल-हण = शाल वाहन | सालि पुंन [शालि ] व्रीहि । वलयाकार वनस्पति-विशेष, वृक्ष-विशेष । 'भद्द पुं ['भद्र एक श्रेष्ठ पुत्र, जिसने भ० महावीर के पास दीक्षा ली थी । भसेल, भसेल्ल पुं [दे] धान के कणिश - बाल का तीक्ष्ण अप्रभाग । 'रक्खि स्त्री [' रक्षिका ] धान का रक्षण करनेवाली स्त्री, कलम- गोपी । "वाहण पुं देखों ['वाहन ] एक सुप्रसिद्ध राजा । सालवाहण । सच्छिय पुं [ 'साक्षिक ] मत्स्य की एक जाति । सित्थ पुं [°सिक्थ] मत्स्य - विशेष |
'सालि वि ['शालिन् ] शोभनेवाला । सालिआ स्त्री [शालिका ] घर का कमरा । सालिआ देखो साडिआ । सालिणिआ
स्त्री [शालिनिका, 'नी] सालिणी शोभनेवाली । छन्द-विशेष | सालिभंजिया स्त्री [शालिभञ्जिका ] पुतली । सालिय पुं [शालिक ] जुलाहा । सालिय वि [ शाल्मलिक] सेमल के गाछ का । सालिस देखो सारिस = सदृश ।
सालणय - सावत्थी
[शालिहीपितृ] एक जैन
सालूर पुंस्त्री [शालूर] मेंढक । न. छन्दविशेष |
साव सक [श्रावय् ] सुनाना ।
वपुं [शाप] सराप, आक्रोश । शपथ । साव पुं [शाव] बालक, बच्चा । सावपुं [स्वाप] स्वपन, शयन, सोना । साव (अप) देखो सव्व = सर्वं । सावइज्ज देखो सावएज्ज । सावत्तु वि [श्रावयितु] सुनानेवाला । सावएज्जन [स्वापतेय ] धन, द्रव्य । सावक्कवि [सापन्य] सपत्नीपन, सौतिनपन | सावक्कवि [ सापत्न ] सौतेली माँ की सन्तान । सावक्का स्त्री [सपत्नी] सौतेली माँ, विमाता । सावग पुंन [ श्रावक ] जैन उपासक, अर्द्वद्-भक्तगृहस्थ । ब्राह्मण । वृद्ध श्रावक । वि. सुननेवाला । सुनानेवाला | धम्म पुं. [ "धर्मं ] प्राणातिपात विरमण आदि बारह व्रत, जैन गृहस्थ का धर्म । सावज्जवि [सावद्य ] पाप-युक्त
सावण न [ श्रावण] सुनना । पुं. सावन का महीना । वि. श्रवणेन्द्रिय सम्बन्धी । जो कान सुना जाय वह ।
से
सावणा स्त्री [ श्रावणा] सुनाना । सावणी स्त्री [स्वापनी] देखो सायणी | सावतेज्ज देखो सावएज्ज |
}
सावत्त देखो सावक्क ।
सावत्थिगा स्त्री [ श्रावस्तिका ] जैन मुनि
शाखा ।
सावत्थी स्त्री [ श्रावस्ती ] कुणाल देश की
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सावन्न-साहट्ठ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८३९ प्राचीन राजधानी ।
सासण देखो सासायण। सावन्न (अप) देखो सामण्ण = सामान्य ।। सासणा स्त्री [शासना] शिक्षा । सावय देखो सावग।
सासणावण न [शासन] आज्ञापन । सावय पुं [श्वापद] शिकारी पशु ।
सासय वि [शाश्वत] नित्य । सावय पुं[दे] शरभ, श्वापद पशु । बालों की सासय पुं [स्वाश्रय] निज का आधार । जड़ में होनेवाला एक क्षुद्र कोट ।
सासव पु [सर्षप] सरसों। "नालिया स्त्री सावय पुं [शावक] बालक, बच्चा, शिशु ।। [°नालिका] कन्द-विशेष । सावरी स्त्री [शावरी] विद्या-विशेष । सासवूल पुं [दे] एक पेड़, कौंछ, कवाछ । सावसेस वि [सावशेष] अवशिष्ट ।
सासाण ) न [सास्वादन] द्वितीय गुणसावहाण वि [सावधान] सचेत ।
सासायण । स्थान । वि. उस में वर्तमान साविअ वि [शापित] जिसको शाप या सौगन्ध
जीव । दिया गया हो वह ।
सासि वि [श्वासिन्] श्वास-रोगवाला। साविआ स्त्री [श्राविका] जैन गृहस्थ-धर्म पालनेवाली स्त्री।
सासिदु (शौ) वि [शासित] शासन-कर्ता, साविक्ख वि [सापेक्ष] अपेक्षा-युक्त ।
शिक्षा-कर्ता। साविगा देखो साविआ।
सासुया देखो सासू। साविट्ठी स्त्री [श्राविष्ठी] श्रावण मास की सासुर न [श्वाशुर] श्वशुर-गृह । पूर्णिमा । श्रावण की अमावस ।
| सासुर (अप) देखो ससुर = श्वशुर । सावित्ती स्त्री [सावित्री] ब्रह्मा की पत्नी ।
| सासू स्त्री [श्वर्] सासू । साविह पुं [श्वाविध] श्वापद पशु, साही।
सासूय वि [सासूय] असूया युक्त, मत्सरी । सावेक्ख देखो साविक्ख ।।
| सासेरा स्त्री [दे] यन्त्र की बनी नर्तकी । सास सक [शास्] सजा करना। सीख देना।
साह सक [कथय्, शास्] कहना । हुकुम करना।
साह देखो सलाह = श्लाघ् । सास सक [कथय] कहना।
साह सक [साध] सिद्ध करना, बनाना। सास पुंश्वास ] साँस । श्वास-रोग। हरा साह पुं. [दे] बालू । उलूक । दही की स्त्री [°धरा] जीवन धारण करनेवाली।
मलाई। प्रिय, पति । सास पुन [शस्य, सस्य] क्षेत्र-गत धान्य । । साह (अप) देखो सव्व - सर्व । वृक्ष आदि का फल । वि. वध-योग्य ।। साहजण , पुं [दे] गोक्षुर, गोखरू । प्रशंसनीय । देखो सस्स = शस्य ।। साहंजय " सासग पुन [सस्यक] रत्न की एक जाति । साहंजणी स्त्री [साभाञ्जनी] नगरी-विशेष । सासग पुं. [सासक] बीयक नाम का पेड़। साहग वि [साधक] सिद्धि करनेवाला । सासण न [शासन] द्वादशांगी, बारह जैन साहग वि [शासक, कथक] कहनेवाला । अंग-ग्रन्थ, आगम, सिद्धान्त, शास्त्र । प्रति- साहज्ज न [साहाय्य] सहायता । पादन । शिक्षा। आज्ञा। ग्रास, निर्वाह- साहट सक [सं+वृ] संवरण करना, साधन । वि. प्रतिपादक । प्रतिपाद्य । °देवी समेटना । पिडीभूत करना। स्त्री. । °सुरा स्त्री [°सुरी ] शासन की साहटु अ [संहृत्य] समेट या संकुचित कर । अधिष्ठात्री देवी।
साहट्ठ वि [संहृष्ट] पुलकित ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
साहण-साहारण
रुपया आदि) हो । हजार का परिमाणवाला । न हजार । मल्ल पुं. व्यक्तिवाचक नाम । साहण न [साधन] उपाय, कारण । सैन्य । साहस्सिय वि [ साहस्रिक ] हजार का वि. सिद्ध करनेवाला । परिमाणवाला । हजार आदमी के साथ लड़नेवाला मल्ल |
साहस्सी स्त्री [साहस्री] हजार । साहा स्त्री [ श्लाघा] प्रशंसा | साहा [स्वाहा ] देवता के उद्देश से द्रव्यत्याग का सूचक अव्यय, आहुति-सूचक शब्द । साहा स्त्री [ शाखा ] एक ही आचार्य की
संतति में उत्पन्न अमुक मुनि की सन्तानपरम्परा । वृक्ष की डाल । वेद का एक देश । 'भंग पुं [भङ्ग ] शाखा का टुकड़ा, पल्लव | 'मय, मिअ, मिग पुं [ मृग ] वानर | °र, लवि ['वत्] शाखावाला । पुं. वृक्ष साहासाहि पुं [दे] शक देश का सम्राट | साहार सक [ सं + धारय् ] अच्छी तरह
धारण करना ।
८४०
साहण सक [ सं + न् संघात करना, संहत करना, चिपकाना।
साहणण न [ संहनन] संघात, अवयवों का आपस में चिपकाना ।
साहणि पुं [साधनिक] सेना-पति । साहत्थिं अ [ स्वहस्तेन ] अपने हाथ से | साक्षात् ।
साहत्थिया } स्त्री [स्वाहस्तिकी] क्रियासाथी विशेष, अपने हाथ से गृहीत जीव आदि द्वारा हिंसा करने से होनेवाला कर्म-बन्ध |
साहम्म न [ साधर्म्य ] समान धर्मं । सादृश्य | साहम्मि वि [ सधर्मिन्, साधर्मन् ] साहम्मिअ समान धर्मवाला | एक धर्मी । साहम्मिग स्त्री. 'णी । वि [ साधर्मिक ] |
}
साहय देखो साग ।
साहय वि [ संहृत] संक्षिप्त, समेटा हुआ । साहर सक [ सं + वृ] संवरण करना । साहर सक [ सं + हृ] संकोच करना । संक्षेप करना । स्थानान्तर में ले जाना । अन्यत्र फेंकना । प्रवेश कराना । छिपाना । व्यापाररहित करना ।
साहय वि [] गत-मोह |
साहल्ल न [साफल्य ] सफलता । साहव देखो साहु = साधु |
साहव न [साधव ] साधुता । साहव्व न [ स्वाभाव्य ] स्वभावता । साहस न. बिना विचार किया जाता काम | पुं. विद्याधर नरेन्द्र, साहस गति । गइ पुं [हि] वह अर्थ |
साहस देखो साहस्स = साहस्र | साहसिअ वि [ साहसिक ] साहस कर्म करने
वाला ।
साहस्स वि[साहस्र ] जिसका मूल्य ह्जार ( मुद्रा,
साहार पुं [सहकार] आम का गाछ । साहार पुं [दे. साधुकार ] साहुकार । साहार पुं [ सदाधार, सहकार ] अच्छा
आधार, अवलम्बन, मदद, उपकार ।
साहार वि[साहकार] आम के गाछ से उत्पन्न, आम्रवृक्ष - सम्बन्धी ।
साहार पुंन [साधारण] जहाँ एक शरीर साहारण में अनन्त जीव हों वह वनस्पति, कन्द आदि । जिसके उदय से साधारणवनस्पति में जन्म हो वह कर्म । कारण । पुं. साधारण वनस्पति-काय का जीव । वि. सामान्य । समान । पुंन उपकार सहायता । 'सरीरनाम न [ 'शरीरनामन् ] ऊपर का दूसरा अर्थ |
साहारण न [संधारण ] ठीक तरह से धारण करना, टिकाना |
साहारण न [स्वाधारण ] सहारा करना,
उपकार करना ।
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साहारण-सिआलो संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८४१ साहारण न [संहरण] संकोचन, समेटन । । मयूर-पिच्छ । साहाविअ वि [स्वाभाविक] स्वभाव-सिद्ध, साहेज्ज देखो साहज्ज । नैसर्गिक ।
साहेज्ज वि [दे] अनुगृहीत । साहि पुं [शाखिन्] वृक्ष ।
सिअ देखो सिव = शिव । साहि पं[दे] शक देश का सामन्त राजा ।
| सिअ वि [श्रित] आश्रित । देखो साहि।
सिअ देखो सिआ = स्यात् । साहि (अप) सामि = स्वामिन् ।
सिअ वि [शित] तीक्ष्ण धारवाला । साहिअ वि [साधिक] सविशेष ।
सिअ वि [स्वित] अच्छी तरह प्राप्त । साहिअ वि [स्वाहित] स्वहित से विरुद्ध । सिअ ' [सित] शुक्ल वर्ण । वि. श्वेत । न. साहिकरण वि [साधिकरण] अधिकरणयुक्त, एक श्वेत-वणं का कारण-भूत नाम-कर्म । झगड़ता।
"किरण पुं. चन्द्र । °गिरि पुं. वैताढ्य पर्वत साहिकरणि वि [साधिकरणिन्] अधिकरण- को उत्तर श्रेणि में स्थित एक विद्याधरयुक्त, शरीर आदि अधिकरणवाला ।
नगर । °ज्झाण न [°ध्यान] सर्व श्रेष्ठ या साहिगरण देखो साहिकरण ।
शुक्ल ध्यान । 'पक्ख पुं[°पक्ष शुक्ल पक्ष । साहिगरणि देखो साहिकरणि ।
"यर पुं [°कर] चन्द्रमा । 'वड पुं [°पट] साहिज देखो साहज्ज।
पाल, जहाज का बादवान । 'वास पुं साहिण (अप) वि [कथिन्] कहनेवाला।
['वासस्] श्वेताम्बर जैन । साहित्त न [साहित्य] अलंकार-शास्त्र ।
सिअ (अप) देखो सिरी= श्री। °वंत वि साहिप्पंत ।
[°मत् लक्ष्मी-सम्पन्न । साहियमाण : साह = कथय का कवकृ. ।
सिअअ देखो सि चय। साहिय्यंत ।
सिअंग पुं[दे] वरुण देवता । साहिलय न [दे] मधु ।
सिअंबर पुं [श्वेताम्बर] जैनों का एक सम्प्र. साही स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला । मार्ग । राज- दाय, श्वेताम्बर जैन । मार्ग । खिड़की, छोटा दरवाजा । | सिअल्लि पुंस्त्री | दे] देखो सीअल्लि । साहीण वि स्वाधीन] स्वायत्त ।
सिआ देखो सिवा = शिवा । साहीय देखो साहिअ = साधिक ।
सिआ अ [स्यात्] इन अर्थों का सूचक साहु पुं [साधु] मुनि, यति । सज्जन । वि.
अव्यय-प्रशंसा । सत्ता। संशय । प्रश्न ।
अवधारण, निश्चय । विवाद । विचारणा । सुन्दर, शोभन । °कम्म न [°कर्मन्] निविकृतिक तप । °कार, "क्कार पुं. धन्यवाद,
अनेकान्त, अनिश्चय, कदाचित् । °वाइ पुं प्रशंसा। 'नाह पुं
["वादिन] जिनदेव । °वाय पुं [°वाद] नाथ] श्रेष्ठ मुनि, आचार्य । °वाय पुन [°वाद] प्रशंसा ।
अनेकान्त-जैन दर्शन । साहुई । स्त्री [सोध्वी] स्त्री-साधु, श्रमणी,
सिआ स्त्री [सिता] शुक्ल-लेश्या । द्राक्षा आदि साहुणी ) यतिनी । सती स्त्री। अच्छी।
का संग्रह। साहुलिआ । स्त्री [दे] वस्त्र, वस्त्राञ्चल । सिआल पुं [शृगाल, सृगाल] सियार । दैत्यसाहुली ' शिरोवस्त्र-खण्ड । डाली । भ्रू। विशेष । वासुदेव । निष्ठुर । दुर्जन । भुज । कोयल । सदृश । सखी, सहचरी । सिआली स्त्री [दे| डमर, देश का भीतरी या
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सिआलीस-सिंदूर बाहरी उपद्रव ।
| सिंगिणी स्त्री दे] गौ। सिआलीस स्त्रीन [षट्चत्वारिंशत्] छेआ- | सिंगिया स्त्री [शृङ्गिका] पिचकारी । लोस ।
सिंगिरीडी स्त्री [शृङ्गिरीटी] चतुरिन्द्रिय सिआसिअ पुं [सितासित] बलभद्र । वि.
जन्तु की एक जाति । श्वेत और कृष्ण ।
सिंगी स्त्री [शृङ्गी] देखो सिंगिया । सिइ पुं [शिति] हरा वर्ण । वि. हरा वर्ण
सिंगेरिवम्म न दे] वल्मीक । वाला। °पावरण पुं. प्रावरण] बलराम ।
सिंघ सक [शिङ्] सूंघना। सिइ पुं [दे. शिति] सीढ़ी, निःश्रेणि ।
सिंघ देखो सिंह। सिउं (अप) देखो समं।
सिंघल देखो सिंहल । सिउंठा स्त्री [ दे. असिकुण्ठा ] साधारण
सिंघाडग पुंन [शृङ्गाटक] सिंघाड़ा, वनस्पति-विशेष ।
सिंघाडय ' पानी-फल । त्रिकोण मार्ग । पुं सिएअर वि [सितेतर] काला । सिकला देखो संकला।
| सिंघाण पुन [शिक्षाण] नासिका-मल, सिखल न दे] नूपुर।
श्लेष्मा । पुं. काला पुद्गल-विशेष । सिंखला देखो संकला।
सिंघासण देखो सिंहासण । सिंग न [ शृङ्ग] छब्बीस दिनों के उपवास ।
सिंघुअ पुं [दे] राहु । देखो संग = शृङ्ग। °णाइय न [°नादित) | सिंच सक [सिच] सींचना, छिड़कना । प्रधान काज । पाय न['पात्र] सींग का बना सिंचाण पुं [दे] श्येन पक्षी । पात्र । °माल पुं. वृक्ष-विशेष । °वंदण न | सिंज अक [शिज] अस्फुट आवाज करना । [°वन्दन] ललाट से नमन । °वेर न.
सिंजण न [शिञ्जन] अस्पष्ट शब्द, भूषण की आर्द्रक । शुण्ठी।
आवाज । वि. अस्पष्ट आवाज करनेवाला । सिंग वि [दे] कृश ।
सिंजा स्त्री [शिजा] भूषण का शब्द । सिंगय वि [दे] तरुण ।
सिंजिणी स्त्री [शिञ्जिनी] धनुष की डोरी । सिंगरीडी देखो सिंगिरीडो ।
| सिंझ पुंन [सिध्मन्] कुष्ठ रोग-विशेष । सिंगा स्त्री [दे] फली।
सिंड वि [दे] मोड़ा हुआ। सिंगार पुं [शृङ्गार] नाट्यशास्त्र प्रसिद्ध । | सिंढ पुं [दे] मयूर । रस विशेष । वेष भूषण आदि की सजावट । | सिंढा स्त्री [दे] नाक की आवाज । लवङ्ग। सिन्दूर । चूर्ण। काला अगरु । | सिंदाण न [दे] विमान । आर्द्रक । हाथी का भूष । अलंकार । वि. सिंदी स्त्री [दे] खजूरी, खजूर का गाछ । अतिशय शोभावाला।
सिंदीर न [दे] नूपुर । सिंगार सक [शृङ्गारय] सिंगार करना, | सिंदु स्त्री [दे] रज्जु । सजावट करना।
सिंदुरय न [दे] रज्जु । राज्य । सिंगारिअ वि [शृङ्गारिक] शृङ्गार-युक्त । | सिंदुवण पुं [दे] अग्नि । सिंगि वि [शृङ्गिन्] सीगवाला। पुं. मेष, | सिंदुवार पुं [सिन्दुवार] वृक्ष-विशेष, निर्गुण्डी, भेड़ । पर्वत । भारतवर्ष का एक सीमा-पर्वत ।। सम्हालु का गाछ । मुनि-विशेष । वृक्ष।
। सिंदूर न [दे] राज्य ।
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सिंदूर-सिक्ख
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सिंदूर न [सिन्दूर] रक्त-वर्ण, चूर्ण-विशेष । सिंह पुं. मृगराज, केसरी । एक राज-कुमार । पुं. वृक्ष-विशेष ।
एक राजा। भ० महावीर का एक शिष्य, सिंदोल न [दे] खजूर ।
मुनि-विशेष । व्रत-विशेष, त्रिविधाहार की सिंदोला स्त्री [दे] खजूरी, खजूर का पेड़ ।। संलेखना-परित्याग । °अलोअण (अप) न सिंधव न [सैन्धव] सिंध देश का लवण । पुं.
[वलोकन] सिंह की तरह पीछे देखना । घोड़ा।
छन्द-विशेष । °उर न [°पुर] पंजाब देश सिंधविया स्त्री [सैन्धविका] लिपि-विशेष ।
का एक प्राचीन नगर। कण्णी स्त्री सिंधु स्त्री [सिन्धु] सिन्धु नदी । नदी । सिन्धु
[कर्णी] वनस्पति-विशेष । °केसर पुं. एक नदी की अधिष्ठायिका देवी। पुं. समुद्र ।
प्रकार का उत्तम मोदक । °दत्त पुं. एक
व्यक्ति । वि. सिंह से दिया हुआ। "दुवार सिन्धदेश । द्वीप-विशेष । पम-विशेष । णद न
न [°द्वार] राज-द्वार । वलोक पुं. सिंह [°नद]नगर-विशेष । णाह [नाथ]समुद्र ।
की तरह पीछे की तरफ देखना । छन्द°देवी स्त्री. सिन्धु नदी की अधिष्ठायिका देवी। 'देवीकूड पुं ['देवीकूट] क्षुद्र
विशेष । °सण न [°ासन] राज-गद्दी । हिमवंत पर्वत का एक शिखर । °प्पवाय |
देखो सीह । पुन [°प्रपात] कुण्ड-विशेष, जहाँ पर्वत से | सिहल पुं. सिंहल-द्वीप । पुंस्त्री. उस का सिन्धु नदी गिरती है । प्राय पुं [°राज]
निवासी। सिन्ध देश का राजा। °वइ पुं [ पति
सिंहलिआ स्त्री [दे] शिखा। समुद्र । सिन्ध देश का राजा। °सोवीर पुं
| सिंहिणी स्त्री [मिहिनी] छन्द-विशेष । [°सौवीर सिन्धु नदी के समीप का देश ।
सिंहीभूय न [सिंहीभूत] व्रत-विशेप, चतुर्विध सिंधुर पुं [सिन्धुर] हाथी।
आहार की संलेखना-परित्याग । सिंप देखो सिंच।
सिकता । स्त्रो. रेत ।
सिकया) सिंपुअ वि [दे] पागल, भूताविष्ट । सिंबल पुं [शाल्मल] सेमल का गाछ ।
सिक्क पुं [सृक्क] होठ का अन्त भाग । सिंबलि देखो संबलि = शाल्मलि।
सिक्कग पुंन [शिक्यक] सिकहर, सीका, छींका।
सिक्कड पुन [दे] खटिया, मचिया । सिंबलि स्त्री [शिम्बलि, शिम्बा] कलाय
सिक्कय देखो सिक्कग। आदि की फली, छीमी, फलियाँ । °थालग |
सिक्करा स्त्री [शर्करा] खंड, टुकड़ा । पुंन ["स्थालक] फली की थाली । फली का
सिक्करिअ न [सीत्कृत] अनुराग की आवाज । पाक । देखो संबलि।
सिक्करिआ स्त्री [दे श्रीकरी] जहाज का सिबलिका स्त्री [सिम्बलिका] टोकरी ।
आभरण-विशेष । सिबा स्त्री [शिम्बा] फली, छीमी ।
सिक्कार ' [सीत्कार] अनुराग की आवाज । सिंबाडी स्त्री [दे] नाक की आवाज ।
हाथी की चिल्लाहट । सिंबीर न [दे] पलाल, घास । सिंभ पुंश्लेष्मन्] श्लेष्मा, कफ ।
सिक्किआ स्त्री [शिक्या, शिक्यिका] चढ़ने के सिंभलि देखो सिंबलि = शाल्मलि ।
लिए रस्सी की बनी हुई एक चीज । सिभि वि [श्लेष्मिन्] श्लेष्म-रोगी । | सिक्ख सक [शिक्ष् सीखना, पढ़ना । अभ्यास, सिभिय वि [श्लैष्मिक] श्लेष्म-सम्बन्धी। करना।
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८४४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सिक्ख-सिढिलावि
सिक्ख देखो सिक्खाव।
| सिज्ज° देखो सिज्जा। सिक्खग वि [शिक्षक] शिक्षा-कर्ता । सिज्जभण पुं [शय्यंभण] एक सुप्रसिद्ध प्राचीन सिक्खग पं [शैक्षक] नूतन शिष्य ।
जैन महर्षि । सिक्खण न [शिक्षण] अभ्यास, पाठ । सीख, सिज्जंस देखो सेज्जंस - श्रेयांस । उपदेश । अध्यापन, पाटन ।
| सिज्जा स्त्री [शय्या] बिछौना। उपाश्रय, सिक्खव देखो सिक्खाव।
वसति । 'तरी, यरी स्त्री. उपाश्रय की सिक्खवअ वि [शिक्षक] शिक्षा देनेवाला ।
मालकिन । 'वाली स्त्री ["पाली] बिछौना पढ़ानेवाला।
का काम करनेवाली दासी । देखो सेजा।
सिजिअ (अप) वि [सृष्ट] उत्पन्न किया हुआ, सिक्खा स्त्री [शिक्षा] सजा । वेद का एक
बनाया हुआ। अङ्ग, वर्णों के उच्चारण -सम्बन्धी ग्रंथ-विशेष,
सिज्जिर वि [स्वेत्त] पसीनावाला । अक्षरों के स्वरूप को बतलानेवाला शास्त्र ।
सिज्जूर न [दे] राज्य । शास्त्र और आचार-सम्बन्धी शिक्षण, अभ्यास, उपदेश । °वय न ["व्रत] जैन गृहस्थ के
सिज्झ अक [सिध् ] निष्पन्न होना । पकना । सामायिक आदि चार वा । वय न [°पद]
मुक्त होना । “मंगल होना। गति करना, शिक्षा-स्थान ।
जाना । सक. शासन करना। सिक्खा (अप) स्त्रो [शिया] छन्द-विशेष ।। सिज्झ देखो सिंझ। सिक्खाण न [शिक्षाण] आचार-सम्बन्धी
सिज्झणया । स्त्री [सेधना] सिद्धि, मुक्ति, उपदेश देनेवाला शास्त्र ।
सिज्झणा । निर्वाण । निष्पत्ति, साधना । सिक्खाव सक [शिक्षय | सिखाना, पढ़ाना,
सिट्ठ वि [श्रेष्ठ] अति उत्तम । अभ्यास कराना।
सिट्ठ वि [सृष्ट] रचित, निर्मित । युक्त । सिक्खावअ देखो सिक्खवअ ।
निश्चित । भूषित । बहुल । त्यक्त । सिक्खावण न [शिक्षण] सिखाना, सीख, सिट्ठ वि [शिष्ट] कथित, उपदिष्ट । सज्जन, हितोपदेश ।
प्रतिष्ठित । °गयार पुं [चार] भलमनसी, सिक्खिअ वि [शिक्षित] सीखा हुआ, जान
सदाचार । कार, विद्वान् ।
सिट्ठ वि [दे] सो कर उठा हुआ। सिखा स्त्री [शिखा] छन्द-विशेष । | सिट्रि स्त्री [सृष्टि] विश्व-निर्माण । निर्माण । सिखि देखो सिहि = शिखिन् ।
स्वभाव । जिसका निर्माण होता हो वह । सिगया देखो सिकया।
सीधा क्रम । सिगाल देखो सिआल।
सिट्टि पुं [दे. श्रेष्ठिन्] नगर-सेठ । पय न सिग्ग वि [ दे ] श्रान्त । पुन. परिश्रम, [°पद] नगर-सेठ की पदवी । देखो सेट्रि। थकावट ।
सिट्टिणी स्त्री [श्रेष्ठिनी] श्रेष्ठि-पत्नी, सेठानी । सिग्गु पुं [शिन] सहिजना का पेड़ । सिड्ढी स्त्री [दे] सीढ़ी, निःश्रेणि । सिग्घ न [शीघ्र] जल्दी । वि. शीघ्रता-यक्त ।। सिढिल वि [शिथिर, शिथिल] श्लथ, ढीला । सिचय पुं. वस्त्र, कपड़ा।
अदृढ़ । मन्द । सिच्छा स्त्री स्वेच्छा] स्वच्छन्द ।
सिढिल सक [शिथिलय ] शिथिल करना । सिज्ज अक [स्विद्] पसीना होना ।
सिढिलाविअ वि [शिथिलित] शिथिल
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सिढिलोकय-सिद्धत्थ
कराया हुआ । सिढिलीकय वि [शिथिलीकृत ] शिथिल किया हुआ ।
सिढिलीभूय वि [ शिथिलीभूत ] शिथिल बना
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
हुआ
सिण देखो सण = शण । सिणगार देखो सिंगार = शृङ्गार | सिणा अक [ स्ना] नहाना । अवगाहन करना । सिणाउ पुंस्त्री [ स्नायु ] वायु वहन करनेवाली
नाड़ी |
सिणात देखो सिणाय = स्नात । सिणाय देखो सिणा ।
सिणाय
सिणायग
वि [ स्नात, 'क] प्रधान, श्रेष्ठ । केवलज्ञान प्राप्त मुनि, केवली सिणायय भगवान् । बुद्ध शिष्य, बोधि सत्त्व । सिणाव सक [स्नपय् ] स्नान करना । सिणि स्त्री [सृणि] अंकुश । सिणिज्झ सक [स्निह ] प्रीति करना । सिद्धि व [ स्निग्ध] प्रीति-युक्त । आर्द्र, रसयुक्त | मसृण, कोमल । चिकना । न. भात कामाँड़ ।
सिणेह देखो सह । सिणेहालु वि [स्नेहवत् ] स्नेहवाला । सिण व [स्विन्न] स्वेद-युक्त । सिण्ण [शीर्ण] जीर्ण, गला हुआ । सिन्ह पुंन [ शिश्न ] पुरुष लिंग । सिन्हा स्त्री [दे] हिम । अवश्याय, कुहरा । सिहालय पुंन [दे] फल-विशेष | सिति देखो सिइ = (दे) |
सित्त वि [ सिक्त ] सींचा हुआ । सित्तुंज देखो सेत्तुं । सित्थ न [ दे] धनुष की डोरी । सित्थ न [ सिक्थ] धान्य-कण | मोम । ओषधि विशेष, नीली, नील । पुंन कवल, ग्रास । सित्था स्त्री [दे] लाला । धनुष को डोरी । सित्थि पुं [दे] मत्स्य |
८४५
सिद्ध व [दे] परिपाटित, विदारित । सिद्धवि [ सिद्ध] मुक्त, निर्वाण प्राप्त । निष्पन्न बना हुआ । पका हुआ । शाश्वत । प्रतिष्ठित, लब्ध- प्रतिष्ठ । निश्चित निर्णीत । विख्यात, साध्य - विलक्षण शब्द - विशेष । साबित किया हुआ । प्रतीत, ज्ञात । पुं. विद्या, मंत्र, कर्म, शिल्प आदि में जिसने पूर्णता प्राप्त की हो वह पुरुष । समय परिमाण - विशेष, स्तोक-विशेष | न. लगातार पनरह दिनों के उपवास । पुंन. महाहिमवंत आदि अनेक पर्वतों के शिखरों का नाम | 'क्खर पुंन[क्षर ] 'नमो अरिहंताणं' यह वाक्य | गंडिया स्त्री [गण्डिका ] सिद्ध-संबन्धी एक ग्रन्थ- प्रकरण | "चक्क न [" चक्र ] अर्हन् आदि नव पद । न्न न [न] पकाया हुआ अन्न । [[पुत्त ] पुं [° पुत्र ] जैन साधु और गृहस्थ के बीच की अवस्थावाला पुरुष | 'मणोरम [ मनोरम | पक्ष का दूसरा दिन । राय पुं [राज] बारहवीं शताब्दी का गुजरात का सिद्धराज जयसिंह वाल पुं [पाल ] । बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक जैन कवि | सेण पुं [°सेन] एक प्राचीन जैन महाकवि और तार्किक आचार्य । सेणिया स्त्री [श्रेणिया] बारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक अंश | [°सेल] पुं [°शैल] शत्रुञ्जय पर्वत, जैन महातीर्थ । हेम न [म] आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण-ग्रन्थ । सिद्धंत पुं [ सिद्धान्त ] आगम, शास्त्र । निश्चय । सिद्धत्थ पुं [दे] रुद्र, देव-विशेष |
सिद्धत्थ वि[सिद्धार्थ ] कृतार्थ । पुं. भ० महावीर के पिता । ऐरवत वर्ष के भावी दूसरे जिनदेव | एक जैन मुनि, नववें बलदेव के दीक्षा गुरु । वृक्ष - विशेष । सरसों । भ० महावीर के कान से कील निकालनेवाला वणिक् । एकदेव विमान । यक्ष - विशेष । पाटलिसंड नगर का एक राजा । एक गाँव । पुरन. अंग देश का एक
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सिद्धत्था-सिरि प्राचीन नगर । °वण न वन] वन-विशेष । । सिप्पि स्त्री [शक्ति] सीप, घोंघा । सिद्धत्था स्त्री सिद्धार्था]भ अभिनन्दन-स्वामी | सिप्पिअ वि [शिल्पिक] शिल्पी, कारीगर । की माता । एक विद्या : भ० संभवनाथ जी सिप्पिर न [दे] तृण-विशेष, पलाल, पुआल । की दीक्षा-शिविका।
सिप्पी स्त्री [दे] सूची, सूई । सिद्धत्थिआ स्त्री [सिद्धाथिका] मिष्ट-वस्तु- सिप्पीर देखो सिप्पिर ।
विशेष । रण-विशेष, सोने की कंठी। | सिबिर देखो सिविर। सिद्धय पुं [सिद्धक) सिंदूवार या शाल वृक्ष । सिब्भ देखो सिभ । सिद्धा स्त्री [सिद्धा] भ. महावीर की शासन- सिभा स्त्री [शिफा] वृक्ष का जटाकार मूल ।
देवी,सिद्धायिका । मुक्ति पान, सिद्ध-शि। | सिम स. सर्व । सिद्धाइया स्त्री [सिद्धायिका] भ० महावीर | सिम देखो सीमा। की शासन-देवी।
सिमसिम ) अक [सिमसिमाय] 'सिम सिद्धाययण पुंन [सिद्धायत शाश्वत मन्दिर । सिमसिमाय । सिम' आवाज करना। जिन-मन्दिर । अमुक पर्वतां के शिखरों का सिमिण देखो सुमिण । नाम ।
सिमिर (अप) देखो सिविर । सिद्धालय स्त्रीन [सिद्धालय] मुक्त-स्थान । सिमिसिम देखो सिमसिम । सिद्ध-शिला । स्त्री.या।
सिमिसिमा सिद्धि स्त्री [सिद्धि] सिद्ध-मिला, जहाँ मुक्त | सिमिसिमिय वि [सिमिसिमित] 'सिम-सिम' जीव रहते हैं ।मुक्ति, निकण | कर्म-क्षय । |
आवाज करनेवाला। अणिमा आदि योग की शक्ति । कृतार्था ।
सिर सक [सज्] बनाना, छोड़ना। निष्पत्ति । छन्द-विशेष : गइ स्त्री
सिर न [शिरस्] मस्तक । प्रधान, श्रेष्ठ । [°गति ] मुक्तिस्थान में गमन । गंडिया
अग्र भाग । क न [क] । 'ताण, "त्ताण स्त्री [ 'गण्डिका ] ग्रन् प्रकरण-विशेष ।
न [°त्राण] शिरस्त्राण । 'बत्थि स्त्री "पुर न. नगर-विशेष ।
[°बस्ति ] सिर में चर्म-कोश देकर उसमें सिन्न स्त्रीन [सैन्य] हाथी घोड़ा की सेना संस्कृत तैल आदि पूरने का उपचार । आदि ।
°मणि देखो सिरो-मणि । °य पुं [°ज] सिप्प देखो सिंप।
केश । 'हर न ["गृह] मकान के ऊपर की सिप्प न [दे] पलाल, तृण-विशेष ।
छत । देखो सिरो। सिप्प न [शिल्प] कारु-कार्य, कारीगरी, | सिर° देखो सिरा। चित्रादि-विज्ञान, कला, क्रिया-कुशलता। सिरय । देखो सिर = शिरस् । तेजस्काय, अग्नि-संघात । अग्नि का जीन । | °सिरस ) पं. तेजस्काय का अधिष्ठाता देव । सिद्ध पुं. सिरसावत्त वि [ शिरसावर्त, शिरस्यावत ] कला में अतिकुशल । जीव वि. कारीगर, मस्तक पर प्रदक्षिणा करनेवाला । कलाकार।
सिरा स्त्री [शिरा] नस, धारा । सिप्पा स्त्री [सिप्रा]उज्जैन के पास की नदी । सिरि° देखो सिरी। उत्त पुं[°पुत्र] भारतसिप्पि वि [शिल्पिन्] कारीगर, कलाकार । वर्ष का भावी चक्रवर्ती राजा। "उर न चित्र आदि कला में कुशल ।
J [°पुर] नगर-विशेष । °कंठ पुं [कण्ठ]
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
[ग्रीव]
शिव । वानरद्वीप का एक राजा । कंत पुंन ['कान्त ] एक देव - विमान | कंता स्त्री ["कान्ता ] एक राज-पत्नी । एक कुलकरपत्नी । एक राजकन्या । एक पुष्करिणी । कंदलग पुं [कन्दलक] एक-खुरा जानवर की एक जाति । करण न न्यायालय । फैसला | करणीय वि. श्री करण-संबन्धी । कूड पुंन [कूट] हिमवंत पर्वत का एक शिखर । 'खंड न [खण्ड ] चन्दन | 'रण देखो 'करण । गीव पुं राक्षस-वंशीय । एक लंका पति । गुत्त पुं [" गुप्त ] एक जैन महर्षि । 'घर न [गृह] भंडार । 'घरिअवि [गृहिक ] भंडारी, खजानची । 'चंद पुं [ चन्द्र] एक जैनाचार्य और ग्रन्थ- कार । ऐरवत क्षेत्र के भावी जिनदेव | आठवें बलदेव का पूर्वभवीय नाम । 'चंदा स्त्री [' चन्द्रा ] एक पुष्करिणी । एक राज-पत्नी । ड्ढ पुं [आढ्य ] एक जैन मुनि, 'णयर न [ 'नगर] वैताढ्य की दक्षिण- श्रेणी का एक विद्याधरनगर | देखो 'नयर । 'णिकेतण न [ निकेतन] वैताढ्य की उत्तर-श्रेणी का एक विद्याधर नगर । " णिलय न [निलय ] वैताढ्य पर्वत को दक्षिण-श्रेणि में स्थित एक नगर । देखो निलय । णिलया स्त्री [निलया] एक पुष्करिणी । “विपुं [° कामक] विष्णु, श्रीकृष्ण । ताली स्त्री. वृक्ष - विशेष । 'दत्त पुं. ऐरवत वर्ष में उत्पन्न पाँचवें जिन - देव | दामन [ दामन् ] शोभावाली माला | आभरण-विशेष । पुं. एक राजा । 'दामकंड,
दामगंड पुंन [ "दामकाण्ड ] शोभावाली मालाओं का समूह । एक देव विमान | 'दामगंड पुंन [ दामगण्ड ] शोभावाली मालाओं का दण्डाकार समूह । देवी स्त्री. देवी विशेष | लक्ष्मी । 'देवीनंदण पुं ['देवीनन्दन] | नंदणं [ नन्दन] कामदेव |
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वि. श्री से समृद्ध । 'नयर न [ "नगर ] दक्षिण देश का एक शहर । देखो 'णयर् । निलय पु. वासुदेव । देखो 'णिलय | पट्ट पुं [पट्ट] नगर सेठाई का सूचक एक राजचिह्न | व्वय पुं [पर्वत ] पर्वत- विशेष | पह पुं [भ] एक जैन आचार्य और ग्रन्थकार | पाल देखो वाल । फल पुं बिल्व वृक्ष | देखो 'हल | भूइ [भूति] भारतवर्ष के भावी छठवें चक्रवर्ती राजा । 'म देखो। मई स्त्री [मती ] इन्द्रनामक विद्याधर- राज की एक पत्नी, एक राजपत्नी । एक सार्थवाह - कन्या । मंगल पुं [ मङ्गल] दक्षिण भारत का एक देश । 'मंत वि [ मत्] शोभावाला । पुं. तिलक वृक्ष । अश्वत्थ वृक्ष । विष्णु । शिव । श्वान । मलय न वैताढ्य की दक्षिण-श्रेणी का एक विद्याधर नगर | महिअ पुंन [ 'महिक ] एक देव - विमान | महिआ स्त्री [महिता ] एक पुष्करिणी । 'माल पुं. एक प्रसिद्ध वंश । 'मालपुर ने एक नगर । यंठ देखो 'कंठ | 'दल देखो 'कंदलग। वइ पुं. [ पति ] श्रीकृष्ण । वासुदेव | 'वच्छ पुं ['वत्स ] जिनदेव आदि महापुरुषों के हृदय का एक ऊँचा अवयव कार चिह्न | महेन्द्र देवलोक के इन्द्र का एक पारियोनिक विमान । एक देवविमान । वच्छा स्त्री [ 'वत्सा]भ० श्रेयांसनाथ की शासन देवी । वडिसय न [' अवतंसक] सौधर्म देवलोक का एक विमान । 'वण न [व] एक उद्यान । वण्णी स्त्री [पर्णी] वृक्ष विशेष । 'वत्त (अप) देखो "मंत । वरुण पुं [ 'वर्धन ] एक राजा । वय पुं [द] पक्षि-विशेष । 'वारिसेण पं वारिषेण] ऐरवत वर्ष के भावी चौबीगवें जिनदेव | 'वाल पुं [पाल] एक जैन राजा । राजा सिद्धराज के समय का एक जैन महाकवि | संभुआ स्त्री [° संभूता] पक्ष की
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सिरिअ-सिलिवइ छठवीं रात । सिचय पं. ऐरवत वर्ष में | ओषधि-विशेष । पद्म । देखो सिअ, सिरि', उत्पन्न दूसरे जिनदेव । °सेण पुं [षेण] सी = श्री।। एक राजा । °सेल पुं [शैल] हनुमान । सिरीस देखो सिरिस ।
सोम पुं. भारतवर्ष के भावी सातवाँ चक्र- सिरीसिव पुं [सरीसृप] सर्प । वर्ती राजा। सोमणस पुंन [°सौमनस] सिरो देखो सिर = शिरस् । °धरा (शौ) एक देव-विमान । हर न[ गृह] भंडार । हर देखो °हरा। मणि पुं ["मणि] प्रधान, पुं ['धर] भ० पार्श्वनाथ का एक मुनिगण । अग्रणी। रुह पुं. केश । °विअणा स्त्री भ० पार्श्वनाथ का एक गणधर । भारतवर्ष [°वेदना] सिर की पीड़ा। °वत्थि देखो में अतीत उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न सातवें सिर-वत्थि । हरा स्त्री [धरा] ग्रीवा । जिनदेव । ऐरवत वर्ष में वर्तमान अवसर्पिणी सिल° देखो सिला । °प्पवाल न [प्रवाल] काल में उत्पन्न बीसवें जिनदेव । वासुदेव । विद्रम । हर वि. श्री को हरण करनेवाला । हल सिलंब देखो सिलिंब । न [°फल] बिल्व फल । देखो °फल। सिलय पुं दे] गिरे हुए अन्न-कणों का ग्रहण । सिरिअ पुं [श्रीक, श्रीयक] स्थूलभद्र का | सिला स्त्री [शिला] सिल, चट्टान, पत्थर ।
छोटा भाई और नन्द राजा का एक मन्त्री। | ओला । °जउ पुंन [°जतु] शिलाजित । सिरिअ न [स्वैर्य] स्वच्छन्दता ।
सिलाइच्च पु [शिलादित्य] वलभीपुर का सिरिंग पुं [दे] विट, लम्पट, कामुक ।
एक प्रसिद्ध राजा। सिरिद्दह पुंस्त्री [दे] पक्षियों का पान-पात्र । | सिलागा देखो सलागा। सिरिमह वि [दे] जिसके मह में मद हो ।
| सिलाघ । (शौ) नीचे देखो। सक सिरिया देखो सिरी।
सिलाह ) [श्लाघ् ] प्रशंसा करना । सिरिली स्त्री [दे श्रीली] कन्द-विशेष ।।
सिलिंद पुं [शिलिन्द] धान्य-विशेष । सिरिवच्छीव पुं [दे] गोपाल, ग्वाला । सिलिंध पुंन [शिलीन्ध्र] छत्रक वृक्ष, भूमिसिरिवय पुं [दे] हंस पक्षी ।
स्फोट वृक्ष । पुं. पर्वत-विशेष । °ानलय पुं सिरिवय देखो सिरि-वय !
पर्वत-विशेष । सिरिस पुं [शिरीष] सिरसा का पेड़ । न
सिलिंब पुं [दे] शिशु । सिरसा का फूल ।
| सिलिट्ठ वि [श्लिष्ट] मनोज्ञ, सुन्दर । संगत, सिरी स्त्री [श्री] लक्ष्मी, कमला। सम्पत्ति । सुयुक्त। आलिङ्गित। संसृष्ट । संबद्ध । शोभा । पद्म ह्रद की अधिष्ठात्री देवी।। श्लेषालकार-युक्त । उत्तर सचक पर रहनेवाली एक दिक्कमारी | सिलिपइ देखो सिलिवइ। देवी । देव-प्रतिमा-विशेष । भ. कुन्थुनाथ जी | सिलिम्ह पुंस्त्री [श्लेष्मन्] श्लेष्मा, कफ । की माता । एक श्रेष्ठि-पत्नी । देव, गुरु आदि | देखो सेम्ह । के नाम के पूर्व में लगा पा जाता आदर- | सिलिया स्त्री [शिलिका] चिरैता आदि तृण, सूचक शब्द । वाणो। वेष-रचना। धर्म | ओषधि-विशेष । शस्त्र को तीक्षण करने का आदि पुरुषार्थ । प्रकार। साधन । बुद्धि । | पाषाण । अधिकार। प्रभा । कीर्ति । सिद्धि । वृद्धि । | सिलिवइ वि [श्लीपदिन्] श्लीपद रोगी। विभूति । लवंग । सरल वृक्ष । बिल्व-वृक्ष । ' जिसका पैर फूला हुआ और कठिन होता है ।
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पिता।
सिलिसिअ-सिस्स संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८४९ सिलिसिअ देखो सिलिछु ।
| फाल्गुन माप को कृष्ण चतुर्दशी । °सेण सिलीमुह पुं [शिलीमुख) बाण । रावण का | पुं [°सेन] ऐरवत वर्ष में उत्पन्न एक अर्हन । एक योद्धा ।
सिवंकर पुं [शिवङ्कर] पाँचवें केशव का सिलीस देखो सिलेस = श्लिष् । सिलुच्चय पुं [शिलोच्चय] मेरु पर्वत । सिवक । पुं [शिवक] घड़ा तैयार होने के पर्वत ।
सिवय । पूर्व की एक अवस्था । वेलन्धर सिलेच्छिय पुं [शिलैक्षिक] मत्स्य-विशेष । नागराज का एक आवास-पर्वत । सिलेम्ह देखो सिलिम्ह ( षड् )। सिवा स्त्री[शिवा]भ० नेमिनाथ जी की माता । सिलेस सक [ श्लिष् ] आलिङ्गन करना। सौधर्म देवलोक के इन्द्र की एक अग्र-महिषी । सिलेस पुं [श्लेष] वज्रलेप आदि संधान । पनरहवें जिनदेव की प्रवर्तिनी। शृगाली । आलिङ्गन, भेंट। संसर्ग। दाह । एक पार्वती। शब्दालंकार।
सिवाणंदा देखो सिव-नंदा। सिलेस देखो सिलिम्ह।
गिवासि पुं [शिवाशिन्] भरतक्षेत्र में अतीत सिलोअ । पुं [श्लोक] कविता। यश ।
उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न बारहवें जिनदेव । सिलोग | काव्य बनाने की कला । प्रशंसा ।
सिविण देखो सुमिण । सिलोच्चय देखो सिलुच्चय ।
सिविया स्त्री [शिविका] सुखासन, पालकी । सिल्ल पुं [दे] कुन्त, बरछा । एक जहाज ।
सिविर न [शिविरछावनी । सैन्य । सिल्ला देखो सिला। °र पुं [°कार] शिला
सिव्व सक [सी] सीना, साँधना ।
सिव्व देखो सिव - शिव । पट, पत्थर गढ़नेवाला।
सिव्विणी । स्त्री [दे] सूई । सिल्हग न [सिह लक] गन्ध-द्रव्य-विशेष ।
सिव्वी सिल्हा स्त्री [दे] शीत, जाड़ा ।
सिम देखो सिलेस - श्लिष । सिव न [शिव] मङ्गल । सुख । अहिंसा । पुं.
सिसिर न [दे] दधि । मुक्ति । वि. मङ्गल-युक्त, उपद्रव-रहित ।
सिसिर पुं [शिशिर] ऋतु-विशेष, माघ तथा पुं. महादेव । जिनदेव । भ० महावीर के पास दीक्षित एक राजर्षि । पाँचवें वासुदेव तथा
फागुन का महीना । माघ मास का लोकोत्तर
फागुन मास । वि. जड़, ठंढा । हलका । न. बलदेव का पिता । देव-विशेष । पौष मास
हिम। किरण पुं. चन्द्रमा । °महीहर पुं का लोकोत्तर नाम । एक देव-विमान ।
[°महीधर] हिमालय पर्वत । छन्द-विशेष । कर न. शैलेशी अवस्था की प्राप्ति । मुक्ति-मार्ग । गइ स्त्री[गति]
सिसिरली देखो सिस्सिरिली। मुक्ति। वि. मुक्त। पं. भारतवर्ष में | सिसु पुन [शिशु] बालक । आल पुं अतीत उत्सपिणी-काल में उत्पन्न चौदहवें [काल] बाल काल । नाग पुं. क्षुद्र कोट, जिन-देव । °तित्थ न [°तीर्थ] काशी। अलस । °पाल पुं ["पाल] एक राजा । यव °नंदा स्त्री [°नन्दा] आनन्द-श्रावक की पुन. तृण-विशेष । °वाल देखो °पाल । पत्नी। 'भूइ पुं [°भूति] एक जैन महर्षि । सिस्स पुंस्त्री [शिष्य] चेला, छात्र । स्त्री. बोटिक मत-दिगंबर जैन सम्प्रदाय का "स्सिणी। स्थापक एक मुनि । रत्ति स्त्री [रात्रि] | सिस्स देखो सीस = शीर्ष ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सिस्सिरिली-सीआ सिस्सिरिली स्त्री [दे] कन्द-विशेष । शीत-काल । ठंढ । शीत स्पर्श का कारणसिह सक [स्पृह ] इच्छा करना, चाहना। भूत कर्म-विशेष । वि. शीतल । पुं. प्रथम सिह पुंदे] भुजपरिसर्प की एक जाति । नरक का एक नरक-स्थान ! न. आयंबिल सिहंड पुं [शिखण्ड] शिखा, चूल, चोटी। तप । वि. अनुकूल । न. सुख । °घर न सिहंडइल्ल पुं [दे] बालक । दधिसर । मोर । [°गृह] चक्रवर्ती का वर्धकि-निर्मित वह घर सिहंडहिल्ल पुं [दे] बालक ।
जहाँ सर्व ऋतु में स्पर्श की अनुकूलता होती सिहंडि वि [शिखण्डिन्] शिखाधारी। पुं. है। °च्छाय वि. शीतल छायावाला । मयूर-पक्षी । विष्णु ।
°परीसह पुं [परीषह] शीत को सहना । सिहण देखो सिहिण।
°फास पुं [°स्पर्श] ठंढ । सर्दी । °सोआ सिहर न [शिखर] पर्वत के ऊपर का भाग स्त्री [°श्रोता, स्रोता ] नदी-विशेष । शृङ्ग । अग्रभाग। अठाईस दिनों का उप
लोअअ [°ालोकक] चन्द्रमा । शीतकाल, वास । °अण वि [°चण] शिखरों से प्रसिद्ध ।
हिम-ऋतु । सिहरि पुं [शिखरिन्] पहाड़। वर्षधर पर्वत
सीअ° देखो सीआ = शीता । 'प्पसाय पुं विशेष । पुन. कूट-विशेष । वइ पुं॰पति]
[°प्रपात] द्रह-विशेष, जहाँ शीता नदी
पहाड़ पर से गिरती है। हिमालय।
सोअ° देखो सीआ = सीता। सिहरिणी । स्त्री[दे. शिखरिणी] दही चीनी सिहरिल्ला ) आदि का एक मिष्ट खाद्य ।।
सीअउरय पुंदे. शीतोरस्क] गुल्म-विशेष । सिहली , स्त्री [शिखा] मस्तक के बालों
सीअण न [सदन] हैरानी। सिहा की चोटी । अग्नि-ज्वाला ।
सीअणय न [दे] दुग्ध-पारी । श्मशान । सिहाल वि [शिखावत् शिखावाला ।
सीअर पुं [शीकर] पवन से क्षिप्त जल, सिहि पुं [शिखिन्] अग्नि । मयूर । रावण का |
__फुहार, जल-कण । वायु. पवन । एक सुभट । पर्वत । ब्राह्मण । मुर्गा । केतु ।
| सीअल पुं (शीतल] वर्तमान अवसर्पिणी काल
के दसवें जिन-देव । कृष्ण पुद्गल-विशेष । ग्रह । वृक्ष । अश्व । चित्रक-वृक्ष । मयूरशिखा
वि. ठंढा । वृक्ष । बकरे का रोम । वि. शिखा-युक्त।। सिहि पुं [दे] मुर्गा।
सीअलिया स्त्री [शीतलिका] ठंढी, शीतला । सिहिअ वि [स्पृहित] अभिलषित ।
लता-विशेष । सिहिण पुन [दे] स्तन ।
सीअल्लि पुंस्त्री [दे] हिमकाल का दुर्दिन । सिहिणी स्त्री [शिखिनी] छन्द-विशेष । वृक्ष-विशेष । सिही (अप) स्त्री [सिंही छन्द-विशेष । सीआ स्त्री[शीता]एक महा-नदी। ईषत्प्रारभारा सी (अप) स्त्री[श्री]छन्द-विशेष । देखो सिरी।। नामक पृथिवी, सिद्ध-शिला। शीताप्रपात सीअ अक [सद्] विषाद करना। थकना । | द्रह की अधिष्ठात्री देवी । नील पर्वत का एक पीड़ित होना । फलना, फल लगना।
शिखर । माल्यवत् पर्वत का एक कूट । सीअ न [दे] सिक्थक, मोम ।
पश्चिम रुचक पर रहनेवाली दिक्कुमारी सीअ वि [स्वीय] स्वकीय, निज ।
देवी । °मुह न [°मुख] एक वन । सीअ देखो सिअ = सित ।
सीआ स्त्री [सीता] जनक-सुता, राम-पत्नी । सीअ पुंन [शीत] ठंढा स्पर्श । हिम । तुहिन ।। चतुर्थ वासुदेव की माता । लाङ्गल-पद्धति,
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सीआ-सीरि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८५१ खेत में हल चलाने से होती भूमि-रेखा ।। सीमा । नील तथा माल्यवत् पर्वतों के शिखर-विशेष । सीमंकर पुंसीमङ्कर] इस अवसर्पिणी में एक दिक्कुमारी देवी।
उत्पन्न एक कुलकर । ऐरवत क्षेत्र के भावी सीआ देखो सिविया।
द्वितीय कुलकर । वि. मर्यादाकर्ता। सीआण देखो मसाण = श्मशान ।
सीमंत पुं [सीमन्त] बालों में बनाई हुई रेखासीआर देखो सिक्कार।
विशेष । अपर काय । सीआला स्त्री [सप्तचत्वारिंशत्] सैंतालीस । सीमंत पुं[सीमान्त] सीमा का अन्त भाग, सीआलीस स्त्रीन; ऊपर देखो । स्त्री. °सा। | गाँव का पर्यन्त भाग । हद्द । सीआव सक [सादय] शिथिल करना । | सीमंत सक [दे. सीमान्तय] बेचना । सीइआ स्त्री [दे] झड़ी, वृष्टि ।
| सीमंतग । पुं [सीमन्तक] प्रथम नरक-भूमि सीइय वि [सन्न] खिन्न, परिश्रान्त । सीमंतय | का एक नरकावास । 'प्पभ पुं सीई स्त्री [दे] सीढ़ी।
[प्रभ] सीमन्तक नरकावास की पूर्व तरफ सीउग्गय वि [दे] सुजात ।
स्थित एक नरकावास । °मज्झिम पुं सीउट्ट न [दे] हिम-काल का दुर्दिन । [°मध्यम] सीमन्तक की उत्तर तरफ स्थित सीउण्ह न [शीतोष्ण] ठंढा तथा गरम । अनु
एक नरकावास । °वसिट्ठ पुं [वशिष्ट] कूल तथा प्रतिकूल।
सीमन्तक की दक्षिण दिशा में स्थित एक सीउल्ल देखो सीउट्ट।
नरकावास । वित्त पुं [वर्त] सीमन्तक सीओअ° देखो सीओआ। 'प्पवाय पुं
की पश्चिम तरफ का एक नरकावास । [प्रपात] कुण्ड-विशेष, जहाँ शीतोदा नदी
सीमंतय न [दे] सीमंत-बालों की रेखापहाड़ से गिरती है। °दीव पुं [°द्वीप]
विशेष में पहना जाता अलंकार-विशेष । द्वीप-विशेष ।
सीमंतिअ वि [सोमन्तित] खण्डित, छिन्न । सीओआ स्त्री [शीतोदा] एक महा-नदी ।
सीमंतिणी स्त्री [सीमन्तिनी] स्त्री, नारी । निषध पर्वत का एक कूट ।
सीमंधर पुं [सीमन्धर] भारतवर्ष में उत्पन्न सीकोत्तरी स्त्री [दे] नारी, स्त्री, महिला ।
एक कुलकर । ऐरवत वर्ष का एक भावी सीत देखो शीअ = शीत ।
कुलकर । पूर्व-विदेह में वर्तमान एक अर्हन् सीता देखो सीआ = शीता, सीता ।
देव । जैन मुनि, भ० सुमतिनाथ के पूर्वजन्म सीतालीस देखो सीआलीस ।
के गुरु । भ० शीतलनाथ का मुख्य श्रावक । सीतोद° देखो सीओअ।
वि. मर्यादा-धारक । सीतोदा , देखो सीओआ।
सीमा स्त्री. देखो सीमआ। गार पुं[°कार]
जलजन्तु, ग्राह का एक भेद । °धर वि. सीदण न [सदन] शैथिल्य, प्रमत्तता ।
मर्यादा-धारक । °ल वि. सीमा के पास का । सीधु देखो सीहु।
सीर पुन. हल । धारि पुं [धारिन् । सीभर देखो सीअर ।
°पाणि पुं. बलदेव, बलभद्र, राम । °सीमंत सीभर वि [दे] समान ।
पुं [°सीमन्त] हल से फाड़ी हुई जमीन की सीमा स्त्री [सीमन्] मर्यादा । अवधि । रेखा । स्थिति । क्षेत्र । वेला। अण्डकोष । देखो | सीरि पु [सीरिन्] बलभद्र, बलदेव ।
सीतोया ,
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८५२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सीरिअ-सौह सीरिअ वि [दे] भिन्न ।
| सीसक्क न [दे. शीर्षक शिरस्त्राण । सील सक [शीलय] अभ्यास करना, आदत सीसम पुंन [दे] सीसम का गाछ, शिशपा । डालना । पालन करना । देखो सीलाव। सीसय वि [दे] प्रवर, श्रेष्ठ । सील न [शील]चित्त का समाधान । ब्रह्माचर्य । | सीसय न [सीसक] देखो सीस = सीस । प्रकृति । सदाचार, चारित्र । चरित्र, वर्तन । सीसवा स्त्री [शिंशपा] सोसम का गाछ । अहिंसा । °इ पुं[जित्] क्षत्रिय परिव्राजक
सीह देखो सिग्घ : शीघ्र । का एक भेद । 'ड्ढ वि [ ढ्य] शील-पूर्ण ।।
सीह पुं [सिंह] सहिजने का पेड़ । मेष से परिघर पुन [°परिगृह] चारित्र-स्थान ।
पाँचवीं राशि । एक अनुत्तर देवलोक-गामी अहिंसा । °मंत्. व वि [°वत्] शील-युक्त ।
जैन मुनि । एक जैन मुनि, आर्य धर्म के °व्वय न [वत] अणुव्रत, जैन श्रावक के
शिष्य । भ० महावीर का शिष्य एक मुनि । पाँच व्रत । °सालि वि शालिन्] शील से
एक विद्याधर सामन्त राजा । एक श्रेष्ठि-पुत्र । शोभनेवाला।
एक देव-विमान । एक जैन आचार्य, रेवतीसीलाव सक [शीलय] तंदुरुस्त करना।
नक्षत्र आचार्य के शिष्य । छन्द-विशेष । 'उर सीलुट न [दे] त्रपुस, खीरा, ककड़ी।
न [°पुर] नगर-विशेष । °कंत पुन [°कान्त] सीव सक [सी] सीना । साँधना ।।
एक देव-विमान । °कडि पुं [कटि] रावण सीवणी स्त्री [दे] सूची। देखो सिव्विणी।
का एक योद्धा । "कण्ण पुं [कर्ण] एक सीवण्णी । स्त्री [श्रीपर्णी] वृक्ष-विशेष ।
अन्तर्वीप । कण्णी स्त्री [कर्णी] कन्दसीवन्नी ।
विशेष । 'केसर पुं. आस्तरण-विशेष, सीस सक [शिष्] वध करना । शेष करना
जटिल कम्बल । मोदक-विशेष । °गइ पुं विशेष करना।
[°गति] अमितगति तथा अमितवाहन नामक सीस सक [कथय] कहना ।
इन्द्र का एक-एक लोकपाल । °गिरि पुं. एक सीस न. धातु-विशेष, सीसा ।
जैन महर्षि । °गुहा स्त्री. एक चोर-पल्ली । सीस देखो सिस्स = शिष्य ।
'चूड पुं. विद्याधर-वंशीय राजा । 'जस पुं सोस पुंन [शीर्ष] मस्तक । स्तबक, गुच्छा । [°यशस्] भरत चक्रवर्ती का एक पौत्र । णाय
छन्द-विशेष । °अ न [क] शिरस्त्राण । ["नाद] सिंहगर्जन, उसके तुल्य आवाज । °घडी स्त्री [°घटी] गिर की हड्डी । °पकं- °णिक्कीलिय न [°निक्रीडित] सिंह की पिअ न [प्रकम्पित] महालता की चौरासी गति । तप विशेष । णिसाइ देखो °निसाइ। लाख गुनी संख्या। °पहेलिअ स्त्रीन [प्रहे. °दुवार न [°द्वार] राजद्वार । °द्धय पुं लिक] शीर्षप्रहेलिकांग की चौरासी लाख [ध्वज] विद्याधरवंशीय राजा । हरिषेण गुनी संख्या। स्त्री. °आ। °पहेलियंग न चक्रवर्ती के पिता । नाय देखो °णाय । [प्रहेलिकाङ्ग] चूलिका की चौरासी लाख निकोलिय, निक्कोलिय देखो °णिक्कीगुनी संख्या । पूरग, पूरय पुं ["पूरक लिय । निसाइ वि [°निषादिन] सिंह की मस्तक का आभरण । रूपक, °ारूअ (अप) तरह बैठनेवाला । णिसिज्जा स्त्री [°निषद्या] पुंन [°रूपक]छन्द-विशेष । °गवेढ पुं [ 'वेष्ट] भरत चक्रवर्ती द्वारा अष्टापद पर्वत पर गीले चमड़े आदि से मस्तक को लपेटना । बनवाया हुआ जैन मन्दिर । °पुच्छ न. पीठ सीस देखो सास = शास् ।
की चमड़ी। "पुच्छण न [°पुच्छन] पुरुष
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सोह-सुअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८५३ लिंगत्रोटन । °पुच्छिय वि ["पुच्छित]जिसका | सीहलिपासग पुंन [दे] ऊन का बना कंकण, पुरुष-चिह्न तोड़ दिया गया हो वह । जिसकी जो वेणी बांधने के काम आता है। कृकाटिका से लेकर पुत-प्रदेश-नितम्ब तक | सीही स्त्री [सिंही] स्त्री-सिंह। की चमड़ी उखाड़ कर सिंह के पुच्छ के तुल्य | सीह पुन [सी] मद्य । मद्य-विशेष । की जाय वह । °पुरा, पुरी स्त्री. विजय
सु अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-प्रशंसा, क्षेत्र की एक राजधानी । “मुख पुं [°मुख]
श्लाघा । अतिशय । समीचीनता । अतिशयअन्तर्वीप-विशेष । उसकी मनुष्य-जाति ।
योग्यता । पूजा । कष्ट । अनुमति । समृद्धि । रव पुं. सिंह-गर्जना । °रह पुं [प्रथ]
अनायास । निम्न अर्थों का बोध करानेवाला गन्धार देश के पुंड्रवर्धन नगर का एक राजा।
उपसर्ग-उत्तम, सुन्दर, अच्छा, भला, वाह पुं. विद्याधर-वंशीय राजा । °वाहण पुं
अच्छी तरह, सुख से, शुभ, प्रशस्त, अति, [°वाहन] राक्षस-वंशीय राजा । वाहणा स्त्री
बहुत, अत्यन्त, दृढ़, बिलकुल । [°वाहना] अम्बिका देवी । °विक्कमगइ पुं|
विक्कमगइ पु | सुअ अक [स्वप्] सोना । [विक्रमगति] अमितगति तथा अमितवाहन |
सुअ सक [श्रु] सुनना। इन्द्र का एक-एक लोकपाल । वीअ [°वीत]
सुअ पुं [सुत] पुत्र । एक देव-विमान । °सेण पुं [°सेन] चौदहवें
सुअ पुं [शुक| तोता। रावण का मन्त्री । जिनदेव का पिता, एक राजा । भ० अजितनाथ
रावणाधीन एक सामंत राजा। एक परिका एक गणधर । राजा श्रेणिक का एक
व्राजक । एक अनार्य देश । पुत्र। राजा महासेन का एक पुत्र । ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव ।
सुअ वि [श्रुत] सुना हुआ । न. ज्ञान-विशेष,
शब्द-ज्ञान, शास्त्र-ज्ञान । शब्द, ध्वनि । °सोआ स्त्री. [स्रोता] एक नदी ।
क्षयोपशम, श्रुतज्ञान के आवरक कर्मों का °वलोइअ न [°ावलोकित] सिंहावलोकन,
नाश-विशेष । आत्मा। आगम, शास्त्र, सिंह की तरह चलते हुए पीछे की तरफ
सिद्धान्त । अध्ययन, स्वाध्याय । श्रवण । देखना । सण न [°ासन] सिंहाकार
°केवलि पुं [ केवलिन्] चौदह पूर्व-ग्रन्थों का आसन, सिंहाङ्कित आसन, राजासन । देखो सिंह।
जानकार मुनि । °क्खंध, खंध पुं[°स्कन्ध] सीह वि सैंह] सिंह-संबन्धी । स्त्री. °हा ।
अंगग्रन्थ का अव्ययन-समूहात्मक महान् अंश । °सीह पुं [ सिंह] श्रेष्ठ ।
बारह अंग-ग्रन्थों का समूह । बारहवाँ अंगसीहंडय पुं [दे] मछली।
ग्रन्थ, दृष्टिवाद। णाण देखो °नाण । सीहणही स्त्री [दे] करौंदी का गाछ । °णाणि वि [°ज्ञानिन्] शास्त्र-ज्ञान-संपन्न । सीहपुर वि [सैंहपुर] सिहपुर-संबन्धी । ‘णिस्सिय न "निश्रित] मति-ज्ञान का एक सीहर देखो सीअर।
भेद । °तिहि स्त्री [तिथि] शुक्ल पंचमी सीहरय पुं [दे] आसार, जोर की वृष्टि ।
तिथि । 'थेर पु [स्थविर] तृतीय और सीहल देखो सिंहल।
चतुर्थ अंग-ग्रन्थ का जानकार मुनि । °देवया सीहलय [दे] वस्त्र आदि को धूप देने का | स्त्री [°देवता] । °देवी स्त्री. जैनशास्त्रों की यन्त्र ।
अधिष्ठात्री देवी । 'धम्म पुं [°धर्म] जैनसीहलिआ स्त्री[दे]शिखा, चोटी । नवमालिका, | अंग-ग्रंथ । शास्त्र-ज्ञान । आगमों का अध्ययन । नवारी का गाछ।
°धर वि. शास्त्रज्ञ । 'नाण पुंन [ज्ञान
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हुआ।
८५४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सुअ-सुंठय शास्त्रज्ञान । नाणि देखो °णाणि ।। कर्म । निस्सिय देखो °णिस्सिय । °पंचमी स्त्री | सुइयाणिया स्त्री [दे. सूतिकारिणी] सूति[°पञ्चमी] कार्तिक मास की शुक्ल पाँचवीं कर्म करनेवाली स्त्री । तिथि । °पुव्व वि [ पूर्व] पहले सुना हुआ। सुइर न [सुचिर] अत्यन्त दीर्घ काल । °सागर पुं. ऐरवत क्षेत्र के एक भावी | सुइल देखो सुक्क = शुक्ल । जिनदेव ।
सुइव्व वि [श्वस्तन] आगामी कल से सुअ वि [स्मृत] याद किया हुआ।
सम्बन्धी। सुअंध पुं [सुगन्ध] खुशबू । वि. सुगन्धी। सुई स्त्री [दे] बुद्धि, मति । सुअंधि वि [सुगन्धि] सुन्दर गन्धवाला । देखो सुई स्त्री [शुकी] मैना। सुगंधि।
सुउज्जुयार वि [सुऋजुकार] सुसंयमी । सुअक्खाय वि [स्वाख्यात] अच्छी तरह कहा सुउज्जुयार वि [सुऋजुचार] अतिशय
सरल आचरणवाला । सुअच्छ वि [स्वच्छ] निर्मल, विशुद्ध । सुउमार । देखो सुकुमाल । सुअण पुं [सुजन] सज्जन, भला । सुउमाल । सुअणा स्त्री [दे] अतिमुक्तक, वृक्ष-विशेष । सुउरिस पुं [सुपुरुष] सज्जन । सुअणु वि [सुतनु] सुन्दर शरीरवाला । स्त्री. | सुए अ [श्वस् ] आगामी कल । नारी।
सुंक न [शुल्क] मूल्य । चुंगी । वर-पक्ष के पास सुअण्ण देखो सुवण्ण ।
से कन्या पक्षवालों को लेने-योग्य धन । सुअम वि [सुगम] सुबोध ।
ठाण न [ स्थान] चुंगी-घर । °पालय वि सुअर वि [सुकर] सरल ।
[पालक] चुंगी पर नियुक्त राज-पुरुष । सुअर पुं [शूकर] वराह ।
देखो सुक्क = शुल्क । सुअरिअ न [सुचरित] सदाचार । सुंकअ ) पंन [दे] किंशारु, धान्य आदि का सुआ (शौ) अक [शी] सोना ।
सुंकल । अग्र भाग। सआ स्त्री [स्रच ] यज्ञ का उपकरण-विशेष, | संकलि पंन [दे] तण-विशेष । घी आदि डालने को कड़छी ।
सुंकविय वि [शुल्कित] जिसकी चुंगो दी गई सुआइक्ख वि [स्वाख्येय] सुख से-अनायास हो वह । से कहने-योग्य ।
सुंकाणि पुं [दे] नाव का डांड़ खेनेवाला । सइ पुं शुचिपवित्रता, निर्मलता । वि. श्वेत। सुंकार पुं [सूत्कार अव्यक्त शब्द-विशेष । पवित्र, निर्मल । स्त्री शक्र को एक अग्र- | सुकिअ वि [शौक्लिक] शुल्क लेनेवाला। महिषी ।
सुख देखो सुक्ख = शुष्क । सुइ स्त्री [श्रुति] श्रवण । कर्ण । वेद-शास्त्र । | सुंग देखो सुक्क = शुल्क । शास्त्र, सिद्धान्त।
सुंगायण न [शौकायन] गोत्र-विशेष । सुइ स्त्री [स्मृति] स्मरण।
सुंघ सक [दे सूचना । सुइअ देखो सूइअ = सूचिक ।
सुचल न [दे] काला नमक । सुइण देखो सुमिण।
सुंठ पुन [शुण्ठ] पर्व-वनस्पति-विशेष । सुइदि स्त्री [सुकृति] पुण्य । मङ्गल । सत्- ' सुंठय पुंन [शुण्ठक] भाजन-विशेष ।
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सुंठी-सुकोसला संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८५५ सुंठी स्त्री [शण्ठी] सूठ या सोंठ। । सुक देखो सुअ = शुक । °प्पहा स्त्री [°प्रभा] सुंड वि [शौण्ड] मत्त, मद्यप । दक्ष । देखो भ० सुविधिनाथ की दीक्षा-शिविका । सोंड।
| सुकंठ वि [सुकण्ठ] सुन्दर कण्ठवाला। पुं. सुंडा देखो सोंडा।
___ एक वणिक्-पुत्र । एक चोर-सेनापति ।। सुंडिअ ' [शौण्डिक] दारू बेचनेवाला। सूकच्छ पुं. विजय-क्षेत्र-विशेष । कूड पुन सुंडिआ स्त्री [शौण्डिका] मदिरा-पान में | [ कूट] शिखर-विशेष । आसक्ति ।
सुकड देखो सुकय। सुंडिक देखो सुंडिअ।
सुकण्ह पुं [सुकृष्ण] एक राज-पुत्र । सुंडिकिणी स्त्री [सौण्डिकी] कलवार की | सुकण्हा स्त्री (सुकृष्णा] राजा श्रेणिक की स्त्री।
एक पत्नी। सुंडीर देखो सोंडीर।
सुकद देखो सुकय। सुंद पुं[सुन्द] खरदूषण का पुत्र ।
सूकम्माण वि सुकर्मन् ] अच्छा कर्म करनेसुंदर वि [सुन्दर] मनोहर । पुं. एक सेठ । | वाला। तेरहवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम । न. तीन | सुकय न [सुकृत] पुण्य । उपकार । वि. अच्छी दिनों का उपवास । °बाहु पुं. सातवें जिनदेव | तरह निर्मित । जाणुअ, °ण्णु, °णुअ वि का पूर्वजन्मीय नाम ।
[°ज्ञ] सुकृत का जानकार या कदर करनेसुंदरिअ देखो सुंदेर।
वाला। सुंदरिम पुंस्त्री. देखो सुंदेर ।
| सुकयत्थ वि [सुकृतार्थ] अत्यन्त कृतकृत्य । सुंदरी स्त्री [सुन्दरी] उत्तम स्त्री। भ. सुकर देखो सुगर । ऋषभदेव की एक पुत्री । रावण की एक | सुकाल पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र । पत्नी । छन्द-विशेष । मनोहरा, शोभना । सुकाली स्त्री. राजा श्रेणिक की एक पत्नी । सुंदेर । न [सौन्दर्य] सुन्दरता, शरीर | सुकिअ देखो सुकय। सुंदेरिम ) का मनोहरपन ।
सुकिट्टि पुं [सुकृष्टि] एक देव-विमान । सुंब न [ शुम्ब ] तृण-विशेष। उसकी | सुकिदि वि [सुकृतिन् ] पुण्य-शाली। सत्कर्मडोरी-रस्सी।
कारी। सुंभ पुं [शुम्भ] शुम्भा नामक इन्द्राणी का | सुकिल । देखो सुक्क = शुक्ल । पूर्व-जन्म का गृहस्थ पिता। दानव-विशेष । | सुकिल्ल °वडेंसय न [वितंसक] शुम्भा देवी का | सुकुमार । वि. अति कोमल । सुन्दर कुमार एक भवन । सिरी स्त्री [ श्री] शुम्भा सुकुमाल , अवस्थावाला । देवी की पूर्व-जन्मीय माता ।
सुकुमालिअ वि [दे] सुघटित, सुन्दर बना सुंभा स्त्री [शुम्भा] बलि इन्द्र की पटरानी । सुंसुमा स्त्री [सुंसुमा] धन सार्थवाह की सुकुसुम न. सुन्दर फूल | वि. सुन्दर फूलकन्या ।
वाला। संसमार पुं [शिशुमार] जलचर प्राणी की | सुकोसल पुं[सुकोशल] ऐरवत-वर्ष के एक एक जाति । द्रह-विशेष । पर्वत-विशेष । न. भावी जिनदेव । एक जैन मुनि ।। एक अरण्य । देखो सुसु-मार।
सुकोसला स्त्री [सुकोशला] एक राज-कन्या।
हुआ।
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८५६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सुक्क-सुग्गीव सुक्क अक [शुष् ] सूखना।
सुक्ख देखो सुक्क = शुष्क । सुक्क वि [शुष्क] सूखा हुआ।
सुक्ख न [सौख्य] सुख । सुक्क न [शुक्ल] चुंगी । स्त्री-धन-विशेष । वर | सुक्खव देखो सुक्कव । पक्ष से कन्या-पक्षवालों को लेने-योग्य धन । सुक्खिय वि [स्वाख्यात] अच्छी तरह कहा स्त्री को सम्भोग के लिए दिया जाता धन । | हुआ, प्रतिज्ञात । मूल्य । देखो संक।
सुखम (पै) देखो सह = सूक्ष्म । सुक्क पुं [शुक्र] ग्रह-विशेष । पुन एक देव- | सुग देखो सुअ = शुक । विमान । न वीर्य, शरीरस्थ धातु-विशेष । सुगइ स्त्री [सुगति] अच्छी गति । सन्मार्ग । सुक्क पुं [शुक्ल] सफेद रंग । सफेद वर्णमाला। वि. अच्छी गति को प्राप्त । न. शुभ ध्यान-विशेष । वि. जिसका संसार | सुगंध देखो सुअंध । अर्ध पुद्गल-परावर्त काल से कम रह गया | सुगंधा स्त्री [सुगन्धा] पश्चिम विदेह का एक हो वह । ज्झाण, झाण न [°ध्यान] शुभ | विजयक्षेत्र । ध्यान-विशेष । °पक्ख { [°पक्ष] जिसमें | सुगंधि देखो सुअंधि । 'पुर न. वैताढ्य की चन्द्र की कला क्रमशः बढ़ती है वह आधा | उत्तर श्रेणि का एक विद्याधर-नगर । महीना। हंस पक्षी। काक । बगुला । | सुगण वि [सुगण] अच्छी तरह गिननेवाला ।
पक्खिय वि [°पाक्षिक] वह आत्मा जिसका | सुगम वि. सुख-गम्य । सुबोध । संसार अर्ध पुद्गल-परावर्त से कम रह गया | सुगय वि [सुगत] अच्छी गतिवाला । सुस्थ । हो । °लेस देखो प्लेस। °लेसा देखो | धनी । गुणी । पुं. बुद्धदेव । 'लेस्सा। °लेस्स दि [°लेश्या] शुक्ल | सुगय वि [सौगत] बौद्ध । लेश्यावाला। लेस्सा स्त्री [°लेश्या] सुगर वि [सुकर सुख-साध्य । शुभतम आत्म-परिणाम ।
सुगिम्ह पुं [सुग्रीष्म] चैत्र मास की पूर्णिमा । सुक्कड । देखो सूक्य ।
फाल्गुन का उत्सव ।
सगिर वि. अच्छी वाणीवाला । सुक्कव सक [शोषय ] सुखाना ।
सगिहिय । वि [सगृहीत] विख्यात । सुक्काणय न [दे] जहाज के आगे का ऊँचा | सगिहीय' काष्ठ ।
सुगुत्त पुं [सुगुप्त] एक मंत्री। सुक्काभ न [शुक्राभ] एक लोकान्तिक देव- सुग्ग न [दे] आत्म-कुशल । वि. निर्विघ्न । विमान । वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणि में विसर्जित । स्थित एक विद्याधर-नगर ।
सुग्गइ देखो सुगइ। सुक्किय देखो सुकय।
सुग्गय देखो सुगय = सुगत । सुक्किय देखो सुक्की।
सुग्गाह अक [प्र+सृ] फैलना। सुक्किल । देखो सुक्क = शुक्ल ।
सुग्गीव पुं [सुग्रीव] नागकुमार देवों के इन्द्र सुकिल्ला
भूतानन्द के अश्व-सैन्य का अधिपति । भारतसुक्कीअ वि [सुक्रीत] अच्छी तरह खरीदा वर्ष का भावी नववाँ प्रतिवासुदेव । राक्षसहुआ।
__वंश का एक लङ्कापति । नववे जिनदेव के सुक्ख देखो सुक्क % शुष् ।
पिता । राजा बालि का छोटा भाई। एक
सुक्कय
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८५७
सुघ-सुर्छ
सक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष राजा । न. नगर-विशेष ।
| कुमारी, जो चेटकराज की पुत्री थी। सुघ (अप) देखो सुह = सुख ।
सुजेट्टा देखो सजिट्टा। सघटू वि [संघष्ट] अच्छी तरह घिसा हुआ। सुजोसिअ वि [सुजोषित] सुष्ट क्षपित, सम्यग् सुघरा स्त्री [सुगृहा] मादा-पक्षी को एक जाति विनाशित ।
जो खूब सुन्दर घोंसला बनाती है । सुज्ज पुं [सूर्य] सूरज । आक का पेड़ । दैत्यसुघोस [सुघोष]एक कुलकर । एक पुरोहित । विशेष । पुन. एक देव-विमान । °कंत पुन पुन. सनत्कुमार देवलोक का एक विमान । । [कान्त] एक देव-विमान । °ज्झय पुन लान्तक नामक देवलोक का एक विमान ।
[ध्वज] देव-विमान-विशेष । °प्पभ पुन वि. सुन्दर आवाजवाला । एक नगर । [प्रभ] एक देव-विमान । °लेस पुन [°लेश्य] सुघोसा स्त्री [सुघोषा] गोतरति नामक गन्ध
एक देव विमान । °वण्ण पुन ["वर्ण] देवर्वेन्द्र की एक पटरानी । गीतयश नामक गन्धर्व |
विमान-विशेष । °सिंग पुन [°शृङ्ग] एक की एक पटरानी । सुधर्मेन्द्र का प्रसिद्ध घंटा । देव-विमान । 'सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] एक देववाद्य-विशेष ।
विमान । °सिरी स्त्री [°श्री एक ब्राह्मण
कन्या । °सिव पुं [शिव] एक ब्राह्मण । सुचंद पुं [सचन्द्र ऐरवत वर्ष में उत्पन्न दूसरे जिन-देव ।
हास पुं. तलवार की एक उत्तम जाति । सुचिण्ण वि [सुचीर्ण] सम्यग् आचरित ।
°भ न. वैताढय की उत्तर-श्रेणि का एक सुचोइअ वि [सुचोदित] प्रेरित ।
विद्याधर-नगर । वित्त पुंन [वर्त] एक सुच्च वि [शोच्य] अफसोस करने योग्य ।
देव-विमान । देखो °सूर, सूरिअ = सूर, सुच्चा देखो सुण = श्रु।
सूर्य। सुजंपिय न [सुजल्पित] आशीर्वाद ।
| सुज्जाण वि [सुज्ञान] सयाना ।
सुज्जुत्तरवडिसग पुंन [सूर्योत्तरावतंसक] एक सजड पुं[सुजट] एक विद्याधर-नरेश ।
। देव-विमान । सुजस पुं [सुयशस्] एक जिनदेव का नाम ।
| सुज्झ अक [शुध् ] होना । वि. यशस्वी। सुजसा स्त्री [सयशस् ] चौदहवें जिनदेव की |
सुज्झंत वि [दृश्यमान] सूझता, दीख पड़ता, माता । एक राजपत्नी ।
मालूम होता। सुजह वि [सुहान] सुख से जिसका त्याग हो ।
सुज्झय न [दे] चाँदी । पुं. धोबी । सुजाइ वि [सुजाति] प्रशस्त जातिवाला।
| सुज्झरय पुं दे] धोबी। सुजाण वि [सुज्ञ सयाना, अच्छा जानकार ।
सुज्झवण न [शोधन] शुद्धि, प्रक्षालन । सुजाय वि [सुजात] सुन्दर जाति में उत्पन्न,
सुज्झाइ वि [सुध्यायिन्] शुभ ध्यानी । कुलीन, खानदानी। अच्छी तरह उत्पन्न, | सुज्झाइय वि [ सुध्यात ] अच्छी तरह सुन्दर रूप से उत्पन्न । न. सुन्दर जन्म । पुं.. एक राज कुमार । पुंन. एक देव-विमान । सुठ्ठिअ वि [सुस्थित] सम्यक् स्थित । पुं. लवण सजाया स्त्री [सजाता] कालवाल आदि लोक- समुद्र का अधिष्ठायक देव । आर्यसुहस्ति पालों की पटरानियों के नाम । राजा श्रेणिक | आचार्य का शिष्य एक जैन महर्षि । की एक पत्नी।
सुट् ठु) अ [ सुष्ठु ] अच्छा, शोभन । सुजिट्टा स्त्री [सुज्येष्ठा] एक महासती राज-सुळु ) अतिशय ।
१०८
चिन्तित ।
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८५८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सुठिअ-सुत्तिय सठिअ देखो सढिअ।
सुण्हा स्त्री [सास्ना] गौ का गल-कम्बल । सुढ सक [स्मृ] याद करना ।
°ल पुं. बैल । 'लचिंध पुं [°लचिह्न] भ० सुहिअ वि [दे] श्रान्त । संकुचित अंगवाला। ऋषभदेव । महादेव । सुण सक [श्रु] सुनना।
सुण्हा स्त्री [स्नुषा] पुत्र-वधू । सणंद पुं[सुनन्द] एक राजर्षि । भ० वासुपूज्य | सुतणु स्त्री [सुतनु] नारी, स्त्री।
को प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ । पुन. एक देव- | सुतरं अ [सुतराम्] निश्चित अर्थ के अतिशय विमान । देखो सुनंद।
का सूचक अव्यय । सुणंदा स्त्री [सुनन्दा] भ० पार्श्वनाथ की मुख्य
सुतवसिय न [सुतपसित] तपश्चर्या का श्राविका। तृतीय चक्रवर्ती को पटरानी
सुन्दर अनुष्ठान । तीसरा स्त्री-रत्न । भूतानन्द आदि इन्द्रों के
सुतार वि. अत्यन्त निर्मल । अतिशय ऊँचा । लोकपालों की अग्रमहिपियाँ ।
अच्छा तैरनेवाला । अत्युच्च आवाजवाला ।
सुतारया स्त्री. भ० सुविधिनाथ की शासनसुणक्खत्त पुं [सुनक्षत्र] एक जैन मुनि । भ० महावीर का शिष्य एक मुनि ।
सुतारा ( देवी । सुग्रीव की पत्नी । आभूषण
विशेष । सुणक्खत्ता स्त्री [सनक्षत्रा] पक्ष की दूसरी
सुतोसअ वि [स्तोष्य] सुख से तुष्ट करने रात।
योग्य। सुणग देखो सुणय।
सुत्त सक [सूत्रय ] बनाना। सुणण न [श्रवण] सुनना।
सुत्त देखो सुअ = श्रुत । सुणय, पुंस्त्री [शुनक] कुत्ता। पुं. छन्द
| सुत्त देखो सोत्त = स्रोतस् । श्रोत्र । सुणह । विशेष ।
सुत्त वि [सुप्त] सोया, शयित । सुणहिल्लया स्त्री [शुनकी] कुत्ती ।
सुत्त वि [सूक्त] सुचारु रूप से कहा हुआ । न. सुणावण न [श्रावण] सुनाना ।
सुभाषित। सुणाविअ वि [श्रावित] सुनाया हुआ।
सुत्त न [सूत्र] धागा, वस्त्र-तन्तु । नाटक का सुणासीर पुं [सुनासीर] इन्द्र , देव-राज ।
प्रस्ताव । शास्त्र-विशेष । °आर पुं [°कार] सुणाह देखो सुनाभ ।
ग्रन्थकार । °कंठ ' [°कण्ठ] विप्र । °कड सुणिअ पुं [शौनिक] कसाई ।
न [कृत] द्वितीय जैन आगम-ग्रन्थ । °ग न सुणुसुणाय अक [ सुननाय ] 'सुन्'-'सुन्'
[क] यज्ञोपवीत । °धार पुं. देखो हार । आवाज करना।
°फासियणिज्जुत्ति स्त्री [°स्पर्शिकनियुक्ति सुण्ण न [शून्य] निर्जन स्थान । वि. रिक्त।
सूत्र की व्याख्या । °रुइ स्त्री ["रुचि] निष्फल, निष्प्रयोजन । न. एकाशन-व्रत ।
शास्त्र-श्रद्धा । °हार पुं [°धार] प्रधान नट, देखो सुन्न ।
बढ़ई। सुण्णआर देखो सुण्णार। सुण्णइअ ) वि [ शून्यित ] शून्य किया |
| सुत्ति स्त्री [शुक्ति] सीप, घोंघा । °मई स्त्री सुण्णविअ हुआ।
[°मती] चेदि देश की प्राचीन राजधानी । सुण्णार पुं[सुवर्णकार] सोनी ।
सुत्ति स्त्री [सूक्ति] सुन्दर वचन । °वत्तिया सुण्ह देखो सण्ह = सूक्ष्म ।
स्त्री [°प्रत्यया] एक जैन मुनि-शाखा । सुण्हसिअ वि [दे] सोने की आदतवाला । । सुत्तिय देखो सोत्तिअ = सौत्रिक ।
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८५५
सुत्तिय-सुनयण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुत्तिय वि [सूत्रित] सूत्र-निबद्ध । निर्मल । केवल । न. सेंधा नून । मरिच । सुत्थ वि [सुस्थ] स्वस्थ । सुखी ।।
१८ दिनों के उपवास | पुं. छन्द-विशेष । सुत्थ न [सौस्थ्य] स्वस्थता। सुखिपन । °गंधारा स्त्री [°गन्धारा] गन्धार-ग्राम की सुत्थिय देखो सुटिअ।
एक मूर्च्छना । °दंत पुं ['दन्त] भारतवर्ष सुत्थिर वि [सुस्थिर] अतिशय स्थिर । के भावी चोथे जिनदेव । एक अनुत्तरसुदंती स्त्री. सुन्दर दाँतवाली।
गामी जैन मुनि । एक अन्तर्वीप । उसकी एक सुदंसण पुं [सुदर्शन] भ० अरनाथ के पिता। मनुष्य-जाति । 'पक्ख पुं [°पक्ष] शुक्ल तोसरे वासुदेव तथा बलदेव के धर्म-गुरु । | पक्ष । °प्प पुं [°ात्मन्] पवित्र आत्मा । भारतवर्ष का भावी पाँचवाँ बलदेव । धरणेन्द्र "प्पवेस वि [ प्रवेश्य पवित्र और प्रवेश के के हस्ति-सैन्य का अधिपति । एक अन्तकृद् लिए उचित । 'प्पवेस वि ["त्मवेश्य] मुनि । मेरु पर्वत । एक विख्यात श्रेष्ठी । देव- पवित्र तथा वेशोचित । °वाय पुं [°वात] विशेष । विष्णु का चक्र । भ० अरनाथ एवं मन्द पवन । वियड न [°विकट] उष्ण पार्श्वनाथ का पूर्वजन्मीय नाम । पुन. एक | जल । °सज्जा स्त्री [°षड्जा] षड्ज ग्राम देव-विमान । वि. जिसका दर्शन सुन्दर हो | की एक मूर्च्छना । वह । न. पश्चिम रुचक पर्वत का एक शिखर । | सुद्धत पुं [सुद्धान्त] अन्तःपुर । सुदंसणा स्त्री [सुदर्शना] जम्बू नामक वृक्ष, सुद्धवाल वि [दे] शुद्ध और पवित्र । जिससे यह जम्बूद्वीप कहलाता है । भ० महावीर सुद्धि स्त्री [शुद्धि] शुद्धता, निर्दोषता। पता, की ज्येष्ठ बहिन । धरण आदि इन्द्रों के काल- खोई हुई चोज की प्राप्ति । वाल आदि लोकपालों की और काल तथा सुद्धेसणिअ वि [शुद्धषणिक] निर्दोष आहार महाकाल-नामक पिशाचेन्द्रों की अग्रमहिषियों __ की खोज करनेवाला। के नाम । भ० ऋषभदेव की दीक्षा-शिविका । सुद्धोअण पुं [शुद्धोदन] बुद्धदेव के पिता । चतुर्थ बलदेव की माता।
°तणय पुं [तनय] । 'पुत्त [ पुत्र] बुद्ध सुदरिसण देखो सुदंसण।
देव । सुदाम पुं. अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न | सुद्धोअणि पुं [शौद्धोदनि] बुद्धदेव ।
भारतवर्ष का दूसरा कुलकर पुरुष । सुद्धोदण देखो सुद्धोअण। सुदारुण पुं [दे] चंडाल ।
सुधम्म पुं [सुधर्मन्] भ० महावीर का पट्टधर सुदीह । वि [सुदीर्घ] अत्यन्त लम्बा।
शिष्य । एक जैन मुनि । तीसरे बलदेव के सदीहर J °कालीय वि [°कालिक]
गुरु । एक जैन मुनि, सातवें बलदेव के पूर्वसुदीर्घ-काल-सम्बन्धी । दंसि वि [°दर्शिन्]
जन्म के गुरु । एक जैनाचार्य । देखो सुहम्म । परिणाम का विचार कर कार्य करनेवाला।
सुधा देखो छुहा - सुधा । सुदुम्मणिआ स्त्री [दे] रूपवती स्त्री ।
सुनंद पुं [सुनन्द] भारतवर्ष के भावी दसवें सुद्द पुं [शूद्र] मनुष्य की अधम जाति । चतुर्थ ।
जिनदेव के पूर्वभव का नाम । एक जैन मुनि । सुद्दय पुं [शूद्रक] एक राजा का नाम । देखो सुणंद। सद्दिणी (अप) स्त्री [शूद्रा] शूद्रजातीय स्त्री। सुनयण पुं [सुनयन] राजा रावण के अधीनस्थ सुद्ध पुं [दे] ग्वाला।
एक विद्याधर सामन्त राजा। वि. सुन्दर सुद्ध वि [शुद्ध] शुक्ल । पवित्र । निर्दोष ।। लोचनवाला ।
वर्ण।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुनाभ-सुप्पबुद्धा सुनाभ पं. अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ : सुपसिद्ध वि [सुप्रसिद्ध] अति विख्यात । का पुत्र ।
सुपस्स वि [सुदर्श] सुख से देखने-योग्य । सनिउण वि सनिगण] अतिशय निश्चित | सुपास पुं [सुपार्श्व] भारत में उत्पन्न सातवें गुणवाला।
जिन भगवान् । भ० महावीर के पिता का सुनिग्गल वि [सुनिर्गल] चिर-स्थायी । भाई । एक कुलकर पुरुष । भारतवर्ष के भावी सुनीविआ स्त्री [सुनीविका] सुन्दर नीवी
तोसरे जिनदेव । ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक वस्त्र ग्रन्थिवाली स्त्री।
जिनदेव एवं आगामी उत्सर्पिणो-काल में होनेसुनेत्ता स्त्री [सुनेत्रा] पाँचवें वासुदेव की |
वाले अठारहवें जिनदेव । भारतवर्ष के भावी पटरानी।
दूसरे जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम । सुन्न न [शून्य) बिन्दी । देखो सुण्ण ।
सुपासा स्त्री [सुपा]ि एक जैन साध्वी । पत्तिया स्त्री ['प्रत्ययिका, °पत्रिका] एक
सुपीअ पुं [सुपीत] पाँचवाँ मुहूर्त । जैन मुनिशाखा ।
सुपुंख पुं [सुपुङ्ख] एक देव-विमान । सुप सक [मृज्] मार्जन या शोधन करना।
सुपुंड पुंन सुपुण्ड्र] एक देव-विमान ।
| सुपुप्फ पुंन [सुपुष्प] एक देव-विमान । सुपइट्ठ वि [सप्रतिष्ठ] न्याय-मार्ग में स्थित । प्रतिज्ञा-शर । अतिशय प्रसिद्ध । जिसकी
सुपुरिस पुं [सुपुरुष] सज्जन, साधु पुरुष । स्थापना विधिपूर्वक की गई हो। पुं. भ०
सुप्प अक [स्वप्] सोना। महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला
सुप्प पुन [सूर्प] सूप, छाज । °णह वि [ नख] एक गृहस्थ । अंग विद्या का जानकार पाँचवा
सूप के जैसे नखवाला । °णहा, °णही स्त्री
[°नखा] रावण की बहिन । रुद्र । भ० सुपार्श्वनाथ के पिता । भाद्रपद मास का लोकोत्तर नाम । पात्र-विशेष । न.
सुप्पइट्ट देखो सुपइट्ठ। एक नगर । °भ पुंन. एक देव-विमान ।
सुप्पट्ठिय देखो सुपइट्ठिय । सुपइट्ठिय वि [सुप्रतिष्ठित] अच्छी तरह | सुप्पइण्णा स्त्री [सुप्रतिज्ञा] दक्षिण रुचक पर प्रतिष्ठा-प्राप्त ।
रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । सुपडाय वि [सुपताक] सुन्दर ध्वजावाला। । सप्पइत्तिय न. शीतहारक वस्त्र-विशेष । सुपडिबुद्ध वि [सुप्रतिबुद्ध] सुन्दर रीति से सुप्पंजल वि [सुप्राञ्जल] अत्यन्त ऋजु ।
प्रतिबोध को प्राप्त । पुं. एक जैन महर्षि । सुप्पडिआणंद वि [सुप्रत्यानन्द] उपकृत सुपडिवत्त वि [सुपरिवृत्त जो अच्छी तरह पुरुष के किये हुए उपकार को माननेवाला । हुआ हो वह।
सुप्पडिआर न [सुप्रतिकार प्रत्युपकार । सुपणिहिय वि [सुप्रणिहित] सुन्दर प्रणिधान
सुप्पडिबुद्ध देखो [सुपडिबुद्ध] । वाला ।
सुप्पडिलग्ग वि [सुप्रतिलग्न] अच्छी तरह सुपण्ण वि [सुप्रज्ञ] सुन्दर बुद्धिवाला।
लगा हुआ, अवलम्बित । सुपण्ण पुं [सुवर्ण] गरुड पक्षी ।
सुप्पणिहाण न [सुप्रणिधान] शुभ ध्यान । सुपभ देखो सुप्पभ ।
सुप्पणिहिय देखो सुपणिहिय । सुपम्ह पुं [सुपक्ष्मन्] एक विजय-क्षेत्र । पुन, सुप्पन्न वि [सुप्रज्ञ] सुन्दर बुद्धिवाला । एक देव-विमान ।
सुप्पबुद्ध पुन [सुप्रबुद्ध] एक अवेयक-विमान । सुपव्व पु [सुपर्वन्] देव । न. सुन्दर पर्व । । सुप्पबुद्धा स्त्री [सुप्रबुद्धा] दक्षिण रुचक पर
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सुप्पभ-सुभद्दा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८६१ रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी। । भरत के साथ दीक्षा लेनेवाला एक राजा । सुप्पभ पुं [सुप्रभ] वर्तमान अवसर्पिणी-काल में एक मन्त्री। उत्पन्न एवं आगामी उत्सर्पिणी में होनेवाला| सुब्भ वि शुभ्र] सफेद । न. एक प्रकार की चौथा बलदेव । भारतवर्ष का भावी तीसरा |
चाँदी । कुलकर पुरुष। हरिकान्त तथा हरिसह ।
सफेदी। नामक इन्द्रों के एक-एक लोकपाल । पॅन. एक | सुब्भि पुं [सुरभि] सुगन्ध । वि. सुगन्धी। देव-विमान । °कंत पुं [°कान्त] हरिकान्त
__ मनोहर, मनोज्ञ । तथा हरिसह नामक इन्द्रों के एक-एक लोक- सुब्भिक्ख न [सुभिक्ष] सुकाल । पाल ।
सुब्भु स्त्री [सुभ्र] नारी । सुप्पभा स्त्री [सुप्रभा] तीसरे बलदेव की
सुभ पुं [शुभ] भ० पाश्र्वनाथ का प्रथम गणमाता । धरण आदि दक्षिण श्रेणी के कई
धर। भ० नमिनाथ का प्रथम गणधर । इन्द्रों के लोकपालों की एक-एक अग्रमहिषी ।
एक मुहूर्त । न. नाम-कर्म का एक भेद । घनवाहन नामक विद्याधर-नरेश की पत्नी ।
मंगल । वि. मांगलिक । °घोस पुं [°घोष] भ० अजितनाथ की दीक्षा-शिविका ।
भ० पार्श्वनाथ का द्वितीय गणधर । "गणुधम्म सुप्पभूय वि [सुप्रभूत अति प्रचुर ।
पुं [°नुधुर्मन्] राक्षस-वंश का एक राजा । सुप्पसण्ण वि [सुप्रसन्न] अत्यन्त प्रसादयुक्त।
देखो सुह = शुभ । सुप्पसार वि [सुप्रसारित] सुख से पसारने | सुभंकर न [शुभंकर] वरुण नामक लोकान्तिक योग्य।
देवों का विमान । देखो सुहकर।
सभग वि. आनन्द-जनक । सौभाग्य-युक्त, सुप्पसारिय वि [सुप्रसारित] अच्छी तरह
वल्लभ, जन-प्रिय । न. पद्म-विशेष । कर्मपसारा हुआ (औप)।
विशेष । सुप्पसिद्ध देखो सुपसिद्ध । सुप्पसूय वि [सुप्रसूत] सम्यग् उत्पन्न ।
सुभगा स्त्री. लता-विशेष । सुरूप नामक भूतेन्द्र सुप्पहूव (अप) देखो सुप्पभूय ।
की एक पटरानी। सुप्पाडोस पुंदे] अच्छा पड़ोस ।
सुभग्ग वि [सुभाग्य] भाग्यशाली । सुप्पिय वि [सुप्रिय] अत्यन्त प्रिय । सुभणिय वि [सुभणित] वचन-कुशल । सुप्पुरिस देखो सुपुरिस।
सुभद्द [सुभद्र] इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा । सुफणि स्त्रीन. जिसमें तक्र आदि उबाला जाय
दूसरे वासुदेव तथा बलदेव के धर्म-गुरु । पुन. ऐसा बटुवा आदि पात्र।
एक देव-विमान । नगर-विशेष । सुबंधु पुं [सुबन्धु] दूसरे बलदेव का पूर्वजन्मीय सुभद्दा स्त्री [सुभद्रा] दूसरे बलदेव की माता । नाम । भावी सातवाँ कुलकर ।
प्रथम स्त्री-रत्न, भरत चक्रवर्ती की अग्रसुबंभ पुन [सुब्रह्मन्] एक देव-विमान । महिषी। बलि नामक इन्द्र के सोम आदि सुबल पुं. सोम-वंश का एक राजा । पहले चारों लोकपालों की एक-एक अग्रमहिषी। बलदेव का पूर्वजन्मीय नाम ।
भूतानन्द आदि इन्द्रों के कालवाल नामक सुबाहु पुं. एक राज-कुमार । स्त्री. रुक्मिराज | लोकपाल की एक-एक अग्र-महिषी। प्रतिमाकी एक कन्या ।
विशेष, एक व्रत । राम के भाई भरत की सुबुद्धि स्त्री. सुन्दर प्रज्ञा। पं. राम-भ्राता | पत्नी । राजा कोणिक की स्त्री। राजा श्रेणिक
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की एक स्त्री । एक सती स्त्री । एक सार्थवाहपत्नी । जम्बूवृक्ष - विशेष, जिससे यह द्वीप जंबूद्वीप कहलाता है ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सुभय देखो सुभग ।
सुभा स्त्री [शुभा] वैरोचन बलीन्द्र की एक अग्र-महिषी । एक विजय क्षेत्र । रावण की एक पत्नी |
सुभिक्ख देखो सुभिक्ख ।
सुभीसण पुं [सुभीषण ] रावण का एक
सुभट ।
सुभूम पुं. भारतवर्ष में उत्पन्न आठवाँ चक्रवर्ती राजा । भारतवर्ष का भावी दूसरा कुलकर ।
भ० अरनाथ का प्रथम श्रावक ।
सुभूसण पुं [सुभूषण] विभोषण का एक पुत्र | सुभोगा स्त्री. अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी |
सुभोयण न [सुभोजन ] व्रत विशेष, एकाशन । सुमन फूल | सर पुं [र] कामदेव | सुमइ पुं [सुमति] पाँचवाँ जिन भगवान् । ऐरवत क्षेत्र में होनेवाला दसवाँ कुलकर । एक जैन उपासक | वि. शुभ बुद्धिवाला । पुं. एक नैमित्तिक विद्वान् ।
सुमंगल पुं [सुमङ्गल] ऐरवत वर्ष में होने वाले प्रथम जिनदेव |
सुमंगला स्त्री [सुमङ्गला ] ऋषभदेव की एक पत्नी । सूर्यवंशीय राजा विजयसागर की पत्नी ।
सुमण न [सुमनस्] पुष्प । पुं. देव || सुमणस वि सुन्दर मनवाला, सज्जन । हर्षवान्, सुखी । पुंन. एक देव- विमान | भद्द पुं [भद्र ] महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला एक गृहस्थ । आर्य संभूतिविजय के एक शिष्य मुनि ।
सुमणसा स्त्री [सुमनस्] वल्ली - विशेष । सुमणा स्त्री [सुमनस्] भ० चन्द्रप्रभ की प्रथम शिष्या । भूतानन्द आदि इन्द्रों के लोकपालों
सुभय- सुमेहा
की एक-एक अग्र महिषी । राजा श्रेणिक की एक पत्नी । एक जम्बू वृक्ष । शक्र की पद्मा नामक इन्द्राणी की एक राजधानी। मालती का फूल |
सुमणो देखो सुमन | सुमर सक [स्मृ] याद करना ।
सुमर पुं [स्मर] कामदेव |
सुमराव सक [स्मारय् ] याद दिलाना । सुमरुया स्त्री [सुमरुत् ] भ० महावीर के पास दीक्षित मुक्तिप्राप्त राजा श्रेणिक की एक पत्नी ।
सुमाणस वि [सुमानस] प्रशस्त मनवाला,
सज्जन ।
सुमालि पुं [ सुमालिन् ] एक राज कुमार | सुमिण पुंन [ स्वप्न ] स्वप्न स्वप्न का फल बतानेवाला शास्त्र । पाढय वि [ " पाठक ] स्वप्न का फल बतानेवाला | देखो सुविण । सुमित पुं [सुमित्र ] भ० मुनिसुव्रत स्वामी का पिता - एक राजा । द्वितीय चक्रवर्ती का पिता । चतुर्थ बलदेव का पूर्व जन्म | छठवें बलदेव के धर्मगुरु । एक वणिक् । अच्छा मित्र । भ० शान्तिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाला एक गृहस्थ ।
सुमित्ता स्त्री [सुमित्रा ] लक्ष्मण की माता और राजा दशरथ की एक पत्नी । 'तणय पुं [तनय] लक्ष्मण ।
सुमित्ति पुं [ सौमित्रि ] सुमित्रा - पुत्र लक्ष्मण । सुमुखी देखो सुमुही ।
सुमुह पुं [सुमुख]भ० नेमिनाथ के पास दीक्षित मुक्तिप्राप्त एक राज कुमार । राक्षस वंश का एक लंका पति । न छन्द - विशेष । सुमुही स्त्री [सुमुखी] छन्द - विशेष । सुमेघा स्त्री. ऊर्ध्वं लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी ।
सुमेरु पुं. मेरु पर्वत । सुमेहा देखो सुमेधा ।
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सुम्मत-सुरस
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुम्मत सुण = श्रु का कवकृ।
घुनाग वृक्ष । °वर पुं. उत्तम देव । वरिंद सुम्ह पुं. ब. [सुह्म] देश-विशेष ।
पुं ["वरेन्द्र] इन्द्र । वह स्त्री [°वधू] सुर पुं. देव । एक राजा । °अण न [°वन] |
देवाङ्गना । °वारण पु. ऐरावण हस्ती । नन्दन-वन । °अरु [°तरु] कल्प वृक्ष ।
°संगीय न [ संगीत] नगर-विशेष । °सरि °करडि पुं [°करटिन् । करि पुं
स्त्री [°सरित्] गङ्गा नदी। °सिहरि पुं [°करिन्] । °कुंभि पुं [कुम्भिन्] ऐरावण
[°शिखरिन्] मेरु पर्वत । °सुंदर पुं हाथी । °कुमर पुं [°कुमार] भ० वासु
[°सुन्दर] रथचक्रवाल-नगर का एक विद्यापूज्य का शासन-यक्ष । कुसुम न. लवंग ।
धर-नरेश । 'सुंदरी स्त्री [सुन्दरी] देव-वधू । गय पुं [गज] इन्द्र-हस्ती । गिरि पुं.
एक राजकुमारी। 'सुरहि स्त्री [सुरभि] मेरु पर्वत । °गिह देखो °घर। °गुरु पुं.
कामधेनु । रोल [°शैल]मेरु-पर्वत । °हत्थि बृहस्पति । नास्तिक मत का प्रवर्तक एक
पुं [हस्तिन् । ऐरावण हाथी! उह न आचार्य । 'गोव पुं [°गोप] कीट-विशेष,
[युध] वजा । देव पुं. एक श्रावक । इन्द्रगोप । °घर न [°गह] देव-मन्दिर ।
देवी स्त्री. पश्चिम रुचक पर रहनेवाली देव-विमान । 'चमू स्त्री. देव-सेना। °चाव
एक दिशा-कुमारी देवी । °ारि पुं. राक्षसपुं[°चाप] इन्द्र-धनुष । °जाल न. इन्द्र
वंश का एक लंका-पति । °ालय पुंन [°ालय] जाल । °णई स्त्री [°नदी] गंगा नदी ।
स्वर्ग । [°ाहिराय] [°ाधिराज] । हिव °णाह पुं [नाथ] इन्द्र । 'तरंगिणि
पुं. [°ाधिप] । हिवइ पुं [°ाधिपति] स्त्री [°तरङ्गिणी] गंगा नदी । 'तरु देखो | वही इन्द्र । °अरु। 'ताण पुं [त्राण] यवननृप, सुरइ स्त्री [°सुरति] सुख । सुल्तान । °दारु न. देवदार की लकड़ी।
सरंगणा स्त्री सराङ्गना] देव-वधू । °धंसी स्त्री [ध्वंसिनी] विद्या-विशेष ।
सुरंगा स्त्री [ सरङ्गा] जमीन का भीतरी °धणु, °धणुह न [°धनुष्] इन्द्र-धनुष ।
मार्ग। 'नई देखो °णई। °नाह देखो °णाह।
सरंगि पुंस्त्री [दे] सहिजना का गाछ । °पहु पुं ["प्रभु] इन्द्र । 'पुर न. । परी सुरजेट्ठ पुं [दे] वरुण देवता । स्त्री. स्वर्ग । °प्पिअ [प्रिय] एक यक्ष । | सुरट्ठ पुं. ब. [सुराष्ट्र] आजकल का काठिया°बंदी स्त्री [°बन्दी] देवी । 'भवण न वाड़। [°भवन] देव-प्रासाद । °मंति पुं[°मन्त्रिन्] सुरणुचर वि [स्वनुचर] सुख से करने योग्य । बृहस्पति । मंदिर न [°मन्दिर] मन्दिर ।
सुरत । देखो सुरय। देव-विमान । मुणि पुं ["मुनि] नारद-मुनि। सुरद ) °रमण न. रावण का एक बगीचा। राय सरभि पुंस्त्री. वसन्त ऋतु । स्त्री. गौ। वि. पुं [ राज] इन्द्र । रिउ पुं["रिपु] दैत्य ।
सुगन्ध-युक्त । पुंन.एक देव-विमान । °गंध वि °लोअ पुं [लोक] स्वर्ग । °लोइय वि [गन्ध] सुगन्धी । °पुर न. नगर-विशेष । [°लौकिक] स्वर्गीय । °लोग देखो "लोअ । देखो सुरहि।
वइ पुं [°पति] इन्द्र । इन्द्र नामक एक | सुरय न [सुरत] मैथुन, स्त्री-सम्भोग । विद्याधर-नरेश । °वण्ण पुंन [°वर्ण]एक देव- सुरस वि. सुन्दर रसवाला । न. तृण-विशेष । विमान । वधू देखो वहू । वन्नी स्त्री[°पर्णी] - °लया स्त्री [°लना] तुलसी-लता।
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सुरसुर पुं. 'सुर-सुर' आवाज । सुरह सक [सुरभय् ] सुगन्धित करना । सुरह पुंन [ सौरभ ] सुन्दर गन्ध, सुरह पुं [सुरथ] साकेतपुर का एक सुरहि पुंस्त्री [सुरभि ] वसंत ऋतु
मास । शतद्रु वृक्ष कर्म का एक भेद । सुरभि ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
खुशबू |
राजा ।
। चैत्र
| स्त्री गौ । न नामवि. सुगन्ध युक्त | देखो
सुरा स्त्री. दारू | रस पुं. समुद्र - विशेष | सुरिंदj[सुरेन्द्र ] इन्द्र । एक विद्याधर नरेश । 'दत्त पुं. एक राज कुमार । सुरिपुं [सुरेन्द्रक] देव-विमान- विशेष । स्त्री. देवी ।
सुरुंगा देखो सुरंगा ।
सुरुग्घ पुं [स्रुघ्न] देश - विशेष । 'ज वि. देशविशेष में उत्पन्न ।
सुरूया स्त्री [सुरूपा ] | देखो सुरूवा । सुरूव पुं [सुरूप] भूत- निकाय के दक्षिण दिशा का इन्द्र । न. सुन्दर रूप । वि. सुन्दर रूप
वाला ।
सुरूवा स्त्री [ सुरूपा ] एक इन्द्राणी । सुरूप तथा प्रतिरूप भूतेन्द्रों की एवं भूतानन्द इन्द्र की एक-एक अग्र महिषी । एक दिशा कुमारी देवी । एक कुलकर - पत्नी । सुन्दर रूपवाली । सुरेस पुं [सुरेश] इन्द्र | उत्तम देव । सुरेसर पुं [सुरेश्वर] इन्द्र | सुलद्ध वि [सुलब्ध ] सम्यक् प्राप्त । सुलस पुं. पर्वत - विशेष !
सुलसन [ दे] कुसुम्भ-रक्त वस्त्र ! सुलसमंजरी
स्त्री [] तुलसी ।
सुलसा
सुलसा स्त्री. नववें जिनदेव की प्रथम शिष्या । भ० महावीर की एक श्राविका, आगामी तीर्थंकर | नाग गृहपति की स्त्री । शक्र की अग्रमहिषी, एक इन्द्राणी । शंखपुर के राजा सुन्दर की पत्नी ।
सुली स्त्री [दे] उल्का 1
सुलुसुल सुलुसुलाय
सुलोअ देखो सिलोअ = श्लोक |
सुलोयण पुं [ सुलोचन ] एक विद्याधर
नरेश ।
}
सुरसुर - सुवण
अक [सुलसुलाय् ] 'सुल' 'सुल' आवाज करना ।
सुलोल वि. अति चपल ।
सुल्ल न [ शुल्य ] शूला-प्रोत मांस । सुव अक [ स्वप्] सोना । सुव देखोस = स्व |
सुव (अप) देखो सुअ - श्रुत, सुत । सुग्गु [सुवल्गु ] एक विजय क्षेत्र, जिसकी राजधानी खड्गपुरी है ।
सुवच्छ पुं [सुवत्स] व्यन्तर- देवों का एक इन्द्र | एक विजय क्षेत्र, प्रान्त-विशेष, जिसको राजधानी कुंडला नगरी है ।
सुवच्छा स्त्री [ सुवत्सा] अधोलोक में रहनेवाली एक दिशा- कुमारी देवी । सौमनस पर्वत पर रहनेवाली एक देवी ।
सुवज्ज पुं [सुवज्र ] एक विद्याधर-वंशीय राजा । पुंन. एक देव - विमान | सुवण न [ स्वपन ] शयन ।
सुवण पुं [सुपर्ण] गरुड़ पक्षी । भवनपति देवों की एक जाति । सूर्य । " कुमार पुं. भवनपति देवों की एक जाति ।
सुवण पुं [] अर्जुन वृक्ष ।
सुवण न [सुवर्ण] सोना । पुं. भवनपति देवों की एक जाति | सोलह कर्म-माषक का एक बाँट | सुन्दर वर्ण । वि. सुन्दर वर्णवाला । 'आर, 'कार पुं. सोनी । 'कुंभ पुं [° कुम्भ ] प्रथम बलदेव के धर्म-गुरु । कुसुम न. सुवर्ण-यूथिका लता का फूल । 'कूला स्त्री. नदी- विशेष । 'गुलिया स्त्री ['गुलिका ] एक दासी । सिला स्त्री [शिला] एक महौषधि
नगर पुं [कर ] सोने की खान । पुं[कार] सोनी। देखो सुवन्न = सुवर्ण ।
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सुवँर ।
सुवण्णविदु-सुसंपरिग्गहिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुवण्णविंदु पुं [दे] विष्णु।
सुविसाय पुंन [सुविसात] एक देव-विमान । सुवण्णिअ वि [सौवणिक] सुवर्ण-मय, सोने सुविहाणा स्त्री [सुविधाना] विद्या-विशेष । का बना हुआ ।
सुविहि पुं [सुविधि] नववाँ जिन भगवान् । सुवत्त देखो सुव्वत्त ।
पुंस्त्री. सुन्दर अनुष्ठान । न. रामचन्द्र तथा सुवन्न न [सुवर्ण] सोना । वि. सुन्दर अक्षर
लक्ष्मण का एक यान । वाला । °कुमार पुं. भवनपति देवों की एक
सुविहिअ वि [सविहित] सदाचारी। जाति । कलप्पवाय पं [कलप्रपात सुवार पु. यदुराज का एक पौत्र । पंन, एक ह्रद जहाँ से सुवर्णकूला नदी बहती है ।
देव-विमान । 'गार पुं [°कार] सोनी । 'जूहिया स्त्री
सुवुण्णा स्त्री [दे] संकेत । [ यूथिका) लता विशेष । 'यार देखो
सुवुरिस देखो सुपुरिस। गार । सवण्ण % सूवर्ण।।
सुवे अ [श्वस्] आगामी कल । सवन्न वि [सौवर्ण] सोने का बना हुआ।
सुवेल पुं. पर्वत-विशेष । न. नगर-विशेष । सुवन्नालुगा स्त्री [दे] दतवन करने का पात्र
सुवो देखो सुवे। लोटा आदि ।
सुव्व न [शुल्व] ताँबा । रज्जु । जल-समीप । सुवप्प पुं[सुवप्र] एक विजय-क्षेत्र ।
आचार । यज्ञ का कार्य । सुवर ) (अप) देखो सुमर ।
सुव्बंत सण का कवकृ. ।
सुव्वत देखो सुव्बय। सुवहु देखो सुबहु ।
सुव्वत्त वि [सुव्यक्त] स्फुट । सवाय पुंन [सुवात] एक देव-विमान ।
सुव्वमाण सुण का कवकृ. । सुवास पुं[सवर्ष] सुन्दर वृष्टि । छन्द-विशेष । | सुव्वय पुं सुव्रत] भारतवर्ष में उत्पन्न बीसवें सुवासणी देखो सुवासिणी।
जिनदेव, मुनिसुव्रत स्वामी । ऐरवत वर्ष के सुवासव पुं एक राज-कुमार ।
एक भावी जिनदेव । छठवें जिनदेव के सुवासिणी स्त्री [दे. सुवासिनी] जिसका पति गणधर । तीसरे बलदेव के पूर्व जन्म के धर्म जीवित हो वह स्त्री।
गुरु । आठवें बलदेव के धर्म-गुरु । भ० सुवाहा अ [स्वाहा] देवता को हविष आदि
पार्श्वनाथ का मुख्य श्रावक । एक ज्योतिष्क अर्पण का सूचक अव्यय ।
महा-ग्रह । एक दिवस का नाम । न. एक सुविअज्जिअ वि [सुजित] विशेष रूप से |
गोत्र । वि. सुन्दर व्रतवाला। °ग्गि पु उपार्जित ।
[°ाग्नि] एक दिवस का नाम । सुविक्कम पुं [सुविक्रम] भूतानन्द नामक इन्द्र सुव्वया स्त्री [सुव्रता]भ० धर्मनाथ की माता। के हस्ति-सैन्य का अधिपति ।
एक जैन साध्वी । सुविगा स्त्री [सुकिका, शुकी] मैना। | सुव्विआ स्त्री [दे] माता । सुविण देखो सुमिण । °न्नु वि [ज्ञ] स्वप्न- | सुस देखो सूस। शास्त्र का जानकार।
सुसंगद वि [सुसंगत] अति-सम्बद्ध । सुविधि देखो सुविहि।
सुसंढिआ स्त्री दे| शूला-प्रोत मांस । सुविवेइय वि [सुविवेचित] सम्यग् विवेचित । सुसंतय वि [सुसक्त] अति सुन्दर । सुविसत्थ पुं [दे] व्यभिचारी पुरुष । । सुसंपरिग्गहिय थि [सुसंपरिगृहीत] खूब
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सुसंमिअ-सुह अच्छी तरह ग्रहण किया हुआ ।
क्षेत्र की एक राजधानी। ससंमिअ वि [ससंभृत] अच्छी तरह संस्कृत । सुसील न [सुशील] उत्तम स्वभाव । वि. ससंवअ ) वि (ससंवत] परिगत, व्याप्त । उत्तम स्वभाववाला, सदाचारी । °वंत वि सुसंवुड , अच्छी तरह पहना हआ। [°वत्] सदाचारी। जितेन्द्रिय । रुका हुआ।
| सुसु पुं [शिशु] बच्चा । °मार पुं. जलचर सुसंहय वि [सुसंहत] अतिशय संश्लिए । प्राणी की एक जाति, महिषाकार मत्स्य. सुसण्णप्प वि [सुसंज्ञाप्य] सुख-बोध्य ।
विशेष । 'मारिया स्त्री [°मारिका] वाद्यसुसद्द वि [सुशब्द] सुन्दर आवाजवाला ।
विशेष । देखो सुंसुमार। प्रसिद्ध ।
सुसुज्ज पुंन [सुर्य] एक देव-विमान । सुसमदुस्समा । स्त्री [सुषमदुष्षगा] अव
सुसमार पुं. जलचर जन्तु की एक जाति । सुसमदूसमा सर्पिणी-काल का तीसरा
देखो सुसु-मार। और उत्सर्पिणी का चौथा आरा।।
सुसुर देखो ससुर सुसमससमा स्त्री [सुष मसुषमा] अवसर्पिणी
सुसहंकर पुं [सुशुभकर छन्द का एक भेद । का पहला और उत्सर्पिणी का छठवां आरा।
| सुसूर न. एक देव-विमान । सुसमा स्त्री [सुषमा] अवसर्पिणी का दूसरा
सुसेण पुं [सुषेण] सुग्रीव का श्वसुर । एक और उत्सर्पिणी का पचवाँ आरा । छन्द
मंत्री। भरत चक्रवर्ती का मन्त्री ।
सुसेणा स्त्री [सुषेणा] एक बड़ी नदी । विशेष ।
ससोह वि सिशोभ] अच्छी शोभावाला । सुसर पुन सुस्वर) क देव-विमान । न. नामकर्म का एक भेद। देखो सुस्सर, सुसूर ।
सुस्स अक [शुष् ] सूखना । सुसा स्त्री [स्वसृ] बहिन ।
| सुस्समण पुं [सश्रमण] उत्तम साधु ।
सुस्सर वि [सुस्वर] सुन्दर आवाजवाला। सुसा देखो सुण्हा = स्नु ।
देखो सुसर। सुसागर पुन. एक देव- मान । सुसाण न [श्मशान मुर्दाघाट ।
सुस्सरा स्त्री [सुस्वरा] गीतरति तथा गीतयश सुसाय वि [सुस्वाद] सादिष्ठ ।
नाम के गन्धर्वेन्द्रों की एक-एक अग्रमहिषी। सुसाल पुंन [सुशाल] एक देव-विमान । सुस्सार वि [सुसार] सार-युक्त । सुसावग ) पुं [सुश्रावक] अच्छा श्रावक- सुस्सावग) देखो सुसावग। सुसावय , जैन गृहस्थ ।
सुस्सावय) सुसाहय देखो सुसंहय।
सुस्सील देखो सुसील। सुसिअ वि [शुष्क] सूखा हुआ ।
सुस्सुय देखो सूसुअ। सुसिअ वि [शोषित] सुखाया हुआ। सुस्सुयाय अक [सुसुकाय, सूत्कारय् ] सु-सु सुसित्थ देखो सुत्थ = रास्थ्य ।
आवाज करना, सूत्कार करना । सुसिर वि [शुषिर] पोला, खाली। एन. एक | सुस्सू स्त्री [श्वथू] सासू । देव-विमान ।
सुस्सूस सक [शुश्रूष् ] सेवा करना । सुसीम न. नगर-विशेष ।
सुस्सूमअ वि [शुश्रुषक] सेवा करनेवाला । सुसीमा स्त्री. भ० पद्मप्रभ की माता । कृष्ण सुह देखो सोह = शुभ् ।। वासुदेव की एक पत्नी। वत्स नामक विजय- | सुह सक [सुखय्] सुखी करना ।
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सुह- सुहिरीमण
देखो सुभ । 'अपि [६] मंगलकारी | | [मिक] पुण्यशाली । काम वि. मङ्गल की चाहवाला । गर वि [° कर ] मङ्गल-जनक । °णामा स्त्री ['नामा ] पक्ष को पाँचवीं, दसवीं तथा पनरहवीं रात्रि | थिवि [न्]ि शुभेच्छक । शुभ अर्थवाला | 'द देखो "अ ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
गुह न [सुख ] आनन्द, चंन । आराम, शान्ति । निर्वाण । विजितेन्द्रिय । सुखप्रद । अनुकूल | सुखी । 'अवि [द] सुखदायक | 'इत्तअवि ['वत् ] सुखी । 'कर वि. सुखजनक । "कामिवि [कामिन् ] । त्थिवि [थिन् | सुखाभिलाषी । 'द वि., 'दाय वि. सुख- दाता । " फंस वि [स्फर्श ] कोमल । 'वर देखो कर | संज्ञा स्त्री ['सन्ध्या ] सुख-जनक सायंकाल | वह वि. सुखजनक । पुंन. एक पर्वत शिखर । [सन] आसन विशेष, पालकी । [का] सुख से बैठना ।
सण न सिया
सुहउत्थि स्त्री [दे) दुती । सुहंकर वि [सुखकर ] सुख-कारक ।
सुहकर वि [ शुभकर | शुभकारक । पुं. एक
afra का नाम ।
सुहंभर वि [सुखम्भर | सुखी ।
सुहग देखा सुभग ।
सुपुं [सुभट] योद्धा ।
वि
सुहत्य [सुहस्त] अच्छा हाथवाला, हाथ से शीघ्र शीघ्र काम करनेवाला । दाता ।
सुहत्थि पुं ( हस्तिन् ] गन्ध-हस्ती एक जैन
1
म
सुहद्द न [सौहार्द ] स्नेह । मित्रता ।
सुमन [सूक्ष्म] फूल | देखो सह, सुहुम
=
सूक्ष्म ।
सुहम्म पुं [सुधर्मन् ] भ० महावीर का पट्टधर शिष्य । बारहवें जिनदेव का प्रथम शिष्य । एक यक्ष । सामि पुं ['स्वामिन् ] भ०
८६७
महावीर का पट्टधर शिष्य । देखो सुधम्म । सुहम्म° देखो सुहम्मा । वइ पुं [पति ]
इन्द्र |
सुहम्ममाण वि [सुहन्यमान ] जो अच्छी तरह मारा जाता हो वह । सुहम्मा स्त्री [सुधर्मा] इन्द्रों की देव सभा | सहय देखो सुह-अ = सुख-द, शुभ-द । सुह देखो सुभग ।
सुहर वि [सुभर] सुख से भरने - योग्य । सुरअ देखो सुहराय ।
सुहरा स्त्री [ दे. सुगृहा] पक्षि-विशेष, सुघरी । सुहराय पुं [दे । वेश्या का घर । गौरैया पक्षी ।
सुहल्ली स्त्री [दे] सुख, आनन्द । सुहव देखो सुभव |
सुहा अक [सु + भा] अच्छा लगना । सुहा देखो छुहा = सुधा | 'कम्मत न [ 'कर्मान्त ] चूप का कारखाना । 'हार पुं. देव |
सुहा
सुहाअ
सुहाव
सुहाव देखो सहाव = स्वभाव |
[ख] सुख पाना । सक.
सुखी करना ।
सुहावण
वि [ सुखायन] सुख जनक | वि [सुनायक] ।
सुहावय
सुहासिय वि[सुभाषित ] सम्यग् उक्त । न.
सुहि सुहिअ
}
सुन्दर वचन, सूक्त ।
सुहि वि[सुखिन् ] सुख-युक्त ।
पुं [सुहृद्] मित्र ।
सुहि वि [सुहित ] तृप्त । सुन्दर हितवाला ।
सुहिर देखो सुसिर ।
हिरणा सुहिरणिया वृक्ष - विशेष |
सुहिरीमण वि [ सुह्रीमनस् ] अत्यन्त
स्त्री [सुहिरण्या, पियका ] वनस्पति- विशेष, पुष्प-प्रधान
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८६८
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुहिल्लिया-सूमाले लज्जालु।
। [गृह] प्रसूतिगृह । सुहिल्लिया देखो सुहेल्लि ।
सूइ स्त्री [सचि] देखो सई। सुही वि [सुधी] पंडित।
सूइअ वि [सूचित] जिसकी सूचना की गई हो सुहुम वि [सूक्ष्म] बारीक । तीक्ष्ण । पुं. भारत वह । उक्त । व्यञ्जनादि-युक्त । वर्ष के एक भावी कुलकर । एकेन्द्रिय जीव- सूइअ वि [सूत] प्रसूत, ब्यायी हो वह । विशेष । न. कर्म-विशेष । °संपराग,
सूइअ पुं[सूचिक] दरजी । °संपराय पुन. चारित्र-विशेष । दशौं गुण- सूइअ पुं [दे] चण्डाल । स्थानक । देखो सण्ह, सहम = सूक्ष्म । सूइय न [सुप्त] निद्रा। सुहेल्लि स्त्री [दे. सुखकेलि] सुख, आनन्द । सूइय वि [दे सूप्य, सूपिक] भीजा हुआ सुहेसि वि [सुखैषिन् ] सुखाभिलाषी ।
(खाद्य)। सू अ. निन्दा सूचक अव्यय ।
सूइया स्त्री [सूतिका] प्रसूति-कर्म करनेवाली। सूअ सक [सूचय ] सूचना करना। जानना । सूई स्त्री [सूची] कपड़ा सीने की सलाई, लक्ष करना।
सूई । परिमाण-विशेष, एक अंगुल लम्बी एक सूअ पुं [सूद] रसोइया ।
प्रदेशवाली श्रेणी। दो तस्तों को जोड़ने के सूअ पुं[सूत] सारथि । वि. प्रसूत । °गड पुन
काम में आती एक तरह की पतली कोल । [°कृत] दूसरा जैन अंग-ग्रन्थ ।।
"फलय न [°फलक] तख्ते का वह हिस्सा, सूअ पुं [शूक] धान्य का तीक्ष्ण अग्र भाग ।
जहाँ सूची कोलक लगाया गया हो । °मुह पुं सूअ वि [शून] फूला हुआ, सूजनवाला । [°मुख पक्षि-विशेष । द्वीन्द्रिय जन्तु की एक सूअ पुं [सूप] दाल । 'गार, "यार, पर पुं
जाति । न. जहाँ सूची-कीलक तख्ते का छेद [°कार] रसोइया । आरिणी स्त्री
कर भीतर घुसता है उसके समीप की जगह । [कारिणी] रसोई बनानेवाली स्त्री।
सूई स्त्री [दे] मंजरी। सूअ देखो सुत्त = सूत्र । °गड पुंन [°कृत]
सूई देखो सूइ = सूति । दूसरा जैन अंग-ग्रन्थ ।
सूड सक [भञ्ज, सूद्] भांगना, तोड़ना, सूअअ । वि [सूचक] सूचना करनेवाला ।
विनाश करना। सूअग , पुं. पिशुन, खल, दुर्जन । जासूस ।
सूण वि [शून] सूजा हुआ, सूजन से फूला सूअग । न [सूतक] जनन और मरण की
हुआ। सूअय । अशुद्धि।
सूण' । स्त्री [सूना] वध-स्थान । 'वइ पुं सूअर पुं शूकर] वराह । °वल्ल पुं. अनन्तकाय वनस्पति-विशेष ।
सूणा , [°पति] कसाई । सूअरिअ वि [दे] यन्त्र-पीड़ित ।
सूणिय वि [शनिक] सूजन का रोगवाला । न. सूअरिया । स्त्री [दे] यन्त्र-पीड़ना । सूजन । सूअरी ।
सूणु [सूनु] पुत्र । सूअल न [दे] किशारु, धान्य का तीक्ष्ण अग्र- सूतक देखो सूअय = सूतक । भाग।
सूप देखो सूअ = सूप । सूआ स्त्री [सूचा] सूचना । °कर वि. सूचक । सूभग देखो सुभग। सूआ , स्त्री [सूति] प्रसव, जन्म । °कम्म सूभग देखो सोभग्ग । सूइ । न [°कर्मन्] प्रसव-क्रिया । °हर न सूमाल देखो सुउमाल ।
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सूर-सूलि
__ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सूर सक [भञ्ज ] तोड़ना, भांगना। ग्रह। °भि पुंन. वित्त पुंन [वर्त] एक सूर वि [शूर] पराक्रमी। पुं. एक राजा। एक देव-विमान । देखो सुन्न । पुन. एक देव-विमान । °सेण पुं [°सेन] एक | सूरंग पुं [दे] दीपक । भारतीय देश, जिसकी प्राचीन राजधानी | सूरंगय पुं [सुराङ्गज] एक राजा । मथुरा थी । ऐरवत वर्ष के एक भावी जिन- | सूरण पुंदे] कन्द-विशेष, सुरन । देव । एक जैनाचार्य । भ० आदिनाथ का एक | सूरद्धय पुं [दे] दिवस । पुत्र ।
सूरल्लि पुंस्त्री [दे] मध्याह्न। मशक के
समान एक कोट । ग्रामणी नामक तृण-विशेष । सूर पुं [सूर्य] सूर्य । सतरहवें जिन-देव का
सूरि पुं. आचार्य। पिता । इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा । एक लंकापति । एक द्वीप । एक राजा । छन्द का
सूरिअ देखो सुज्ज। कंत पुं [कान्त] एक भेद । पुन. एक देव-विमान । °अंत,
प्रदेशि-नामक राजा का पुत्र । °कंता स्त्री 'कंत पुं [°कान्त] मणि-विशेष । पुन. एक |
["कान्ता] प्रदेशी राजा की पत्नी। °पाग देव-विमान । “कूड पुन [°कूट] एक देव
पुंस्त्री [°पाक] सूर्य के ताप से होनेवाली विमान-देव-भवन । "ज्झय पुन [°ध्वज]
रसोई । °लेस्सा स्त्री [°लेश्या] सूर्य की एक देव-विमान । °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप
प्रभा । °भि पुं. प्रथम देवलोक का एक देव । विशेष । देव पुं. आगामी उत्सपिणी के
पुन. एक देव-विमान । न. सूर्याभ देव का भारतवर्ष के दूसरे जिनदेव । °पन्नत्ति स्त्री
सिंहासन । °वित्त पुं [वर्त] । गवरण पुं. [प्रज्ञप्ति]एक जैन उपाङ्ग ग्रन्थ । परिवेस
मेरु पर्वत । पुं [परिवेष] मेघ आदि से होता सूर्य का
सूरिल पुं [दे] श्वशुर पक्ष । वलयाकार मण्डल । °पव्वय पुं ['पर्वत]
सूरिस देखो सुउरिस। पर्वत-विशेष । °पाया स्त्री ["पाका] सूर्य के सूरुत्तरवडिसग पुन [सूरोत्तरावतंसक] एक किरण से होनेवाली रसोई। °प्पभ पुन । देव-विमान । [प्रभ] एक देव-विमान । °प्पभा, "पहा सूरुल्लि देखो सूरल्लि । स्त्री [°प्रभा] सूर्य की एक अग्र-महिषी । सूरोद पुं. एक समुद्र । ग्यारहवें और आठवें जिनदेव की दीक्षा- सूरोदय न. नगर-विशेष । शिविका। मल्लिया स्त्री [ मल्लिका] | सूरोवराग पुं [सूरोपराग] सूर्य-ग्रहण ।। वनस्पति-विशेष । °मालिया स्त्री[°मालिका] सूल पुन [शूल] लोहे का सुतीक्ष्ण काँटा । आभरण-विशेष। °लेस पुन [°लेश्य ] | त्रिशूल । रोग-विशेष । बबूल आदि का तीक्ष्ण एक देव-विमान। °वक्कय न [°वक्रण] काँटा । पुं. ब. देश-विशेष । "पाणि पुं. यक्षआभूषण-विशेष । °वर पं. एक द्वीप । एक विशेष । °धर पुं. शिव । समुद्र । °वरोभास पुं[°वरावभास] द्वीप- सूलच्छ न [दे] पल्वल, छोटा तालाब । विशेष । समुद्र-विशेष । 'वल्ली स्त्री. लता- सूलत्थारी स्त्री [दे] चण्डी, पार्वती । विशेष । °वेग पुं. एक राज-कुमार । °सिंग सूला स्त्री [शूला] सुतीक्ष्ण लोह-कंटक । °इय पुन [शृङ्ग] । °सिट्ठ पुंन [सृष्ट] एक-एक वि [°चित, "तिग] शूली पर चढ़ाया हुआ। देव-विमान । "सिरी स्त्री [श्री] सातवें | सूला स्त्री [दे] वेश्या, वारांगना।। चक्रवर्ती की स्त्री। सुअ पुं [°सुत] शनैश्चर- सूलि वि [शूलिन्] शूल-रोगवाला । पुं. शिव ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुलिया-सेउ सूलिया स्त्री [शूलिक] शूली ( वध्य के | जैन, एक संप्रदाय । लिए )।
सेअ वि [एष्यत्] आगामी, भविष्य । °ाल पुं सूव पुं [सूप] दाल । °ार, °ार पुं | कार | [°काल] भविष्यकाल । रसोइया ।
सेअंकर पुं[श्रेयस्कर] ज्योतिष्क ग्रह-विशेष । सूस अक [शुष् ] सूखना
सेअंकार पुं [श्रेयस्कार] श्रेयःकरण, 'श्रेयस्' सूसर वि [सुस्वर] सुन्दः आवाजवार । न. का उच्चारण । नामकर्म का एक भेद । 'परिवादिर्ण स्त्री सेअंबर पुं [श्वेताम्बर] एक जैन संप्रदाय । ['परिवादिनी] एक त ह की वीणा
न. सफेद वस्त्र । स्सास वि [सोच्छ्वास] वं श्वासवा ।। सेअंस {श्रेयांस] एक राज-कुमार । चतुर्थ सूसिय वि [शोषित] सुरु या हुआ। वासुदेव तथा बलदेव के पूर्व जन्म के धर्मसूसुअ वि [सुश्रुत] अच्छ तरह सुना हुआ। गुरु । देखो सेज्जंस।
मच्छी तरह ज्ञात । पुं. द्यक ग्रन्थ-विशेष । सेअंस देखो सेअ = श्रेयस् । सूहअ । देखो सुभग।
सेअण न [सेचन] सेक, सीचना । वह पु सहव ।
["पथ] नीक । से अ [दे] इन अर्थों क सूचक अाय ----
सेअणग , पुं [सेचनक] राजा श्रेणिक का वाक्य का उपन्यास । प्रन । प्रस्तुत वस्तु | सेअणय ) एक हाथी । वि. सींचनेवाला । का परामर्श । अनन्तरता ।
देखो सेचणय। से । अक [शी] सोनः ।
सेअविय वि [सेवनीय] सेवा-याग्य । सेअ ।
सेअविया स्त्री [श्वेतविका] केकया देश को से देखो सेअ = श्वेत । वड पुं [ 'पट ]
प्राचीन राजधानी। श्वेताम्बर जैन।
सेआ स्त्री [श्वेतता सफेदपन । सेअ सक [सिच्] सोंचना
सेआ देखो सेवा। सेअ पुं दे] गणपति ।
सेआल देखो सेवाल = शैवाल ।
सेआल देखो सेअल = एष्यत् काल । सेअ ' [सेय] कर्दम, काँद , पंक। एक अधम मनुष्य-जाति ।
सेआल पुं [दे] गाँव का मुखिया । सांनिध्य सेअ पुं [स्वेद] पसीना।
करनेवाला यक्ष आदि । कृषक । सेअ सेक] सेचन, सोंचना ।
सेआली स्त्री [दे] दूर्वा, दूब, दूभ । सेअ न [श्रेयस्] शुभ ।। म । मुक्ति । वि. |
सेआलुअ पुं [दे] मनौती की सिद्धि के लिए अति प्रशस्त । पुं. अहोराः का दूसरा गहूर्त ।
उत्सृष्ट बैल । सेअ वि [सैज] सकम्प, का प-युक्त ।
| सेइअ न [स्वेदित] पसीना । सेअ वि [श्वेत] सफेद ।। कुभंड-निकाय के | सेइआ ) स्त्री [सेतिका] परिणाम-विशेष. दक्षिण दिशा का इन्द्र । क्र की नट सेना का | सेइगा । दो प्रसृति की एक नाप । अधिपति । भ० महावीर के पास दाक्षित सेउ पुन सेतु] पुल। कियारी, थांवला । आमलकल्पा नगरी का राजा। °कंठ पं| कियारी के पानी सींचने-योग्य खेत । मार्ग । [°कण्ठ] भूतानन्द इन्द्र के महिष-सैन्य का बंध पुं [°बन्ध] पुल बाँधना। वह पुं अधिपति । °पड, °वड : [पट] श्वेताम्बर | [ पथ] पुलवाला मार्ग ।
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से उ-सेमुही
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सेउ वि [सेक्त सेचक ।
। रोढी स्त्री [श्रेणी] पंक्ति । राशि। असंख्य सेउय वि (सेवक] सेवा-कर्ता।
योजन-कोटाकोटी । देखो सेणि । सेंदूर देखो सिंदूर ।
क्षि-विशेष । विद्याधर-वंश सेंधव देखो सिंधव ।
का एक राज। सेभ देखो सिंभ।
सेण देखो से । मेंवाडय [दे] चुटकी की आवाज ।
रेणा स्त्री [से ता] भ० संभवनाथ की माता । सेचणय न [सेचनक] सिंचन, छिड़काव । लश्कर : जै: साध्वी, महर्षि स्थूलभद्र की देखो सेअणय ।
बहिन । ३ माथी, ३ रथ, ९ घोड़े और सेचाण (अप) पुं श्येन] छन्द-विशेष ।। १५ प्यादों गला लश्कर । °णिय, °णी, देखो सेण - श्येन ।
°णीय पुं [1] सेनापति । °मुह न ["मुख सेच्च न [शैत्य] शीतपन ।
९ हाथी ९ थ, २७ घोड़े और ४५ प्यादों मेज्ज देखो सेज्जा। °वइ पुं॰पति) बाली सेना। वइ पु["पति] | "हिवइ j वसतिस्वामी गृहस्थ ।
['धिपति] सेनानायक । सेज्जभव देखो सिज्जंभव।
संणावच्च न [जापत्य] सेनापतिपन । सेज्जंस पु [श्रेयांस] ग्यारहवें जिनदेव । । रेणि स्त्री [श्रेण] । पंक्ति । समूह । कुम्भकार एक राज-पुत्र, जिसने भ० आदिनाथ को | आदि मनुष्य-जाति । इक्षु-रस से प्रथम पारणा कराया था। मार्ग- | णि पुं णिक] मगध देश का एक शीर्ष मास का लोकोत्तर नाम । भ• महावीर प्रख्यात राजा । एक जैन मुनि । का पिता, राजा सिद्धार्थ । देखो सिज्जंस, रेणिआ स्त्री मेणिका एक जैन मुनिशाखा । सेअंस - श्रेयांस ।
सेणिआ वी [सेनिका] छन्द का एक सेज्जंस देखो सेअंस = श्रेयांस । । सेणिका ।द। सेज्जा स्त्री [शय्या] सेज। घर वसति । रेणिग देखो रेणिअ। उपाश्रय । यर पुं [तर] गृह-स्वामी,
रेणिग पुं [सै िक लश्करी सिपाही ! उपाश्रय का मालिक, साधु को रहने के लिए
से णी स्त्री [श्रेणी] । देखो सेणि । स्थान देनेवाला गृहस्थ । °वाल पुं [°पाल]
से ण देखो सि = सैन्य ।
सेत देखो सिर = सिक्त । शय्या का काम करनेवाला चाकर। देखो
सेत्त (अप) देह सेअ = श्वेत । सिज्जा।
सेतुंज पुं [शः जय] एक प्रसिद्ध पर्वत । मेज्जारिअ न [दे] अन्दोलन, हिंडोले में
सेद देखो सेअ - स्वेद । झूलना।
सेध देखो सेह - सेह। सेट्ठि पुं [दे.श्रेष्ठिन्] गाँव का मुखिया, सेठ,
सेन्न देखो सिह = सैन्य । महाजन ।
सेप्फ । देखो सेम्ह। सेडिय न [दे] तृण-विशेष ।
सेक सेडिया स्त्री [दे.सेटिका] सफेद मिट्टी, खड़ी। | सेफ पुंन [शेफ पुरुष-चिह्न, लिंग । सेढि स्त्री [श्रेणि] देखो सेढी = श्रेणी। से भालिआ स्त्र [शेफालिका] लता-विशेष । सेढिया । देखो सेडिया।
से मुसी । स्त्र [शेमुषी] मेधा, बुद्धि । | से मुही ।
सेढी ।
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८७२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सेम्ह-सेस सेम्ह पुंस्त्री [श्लेष्मन्] कफ।
साम्यावस्था, योगी की सर्वोत्कृष्ट अवस्था । सेर वि [स्वैर] स्वच्छन्दी, स्वतन्त्र । सेलोदाइ पुं [शैलोदायिन्] एक जनेतर सेर वि [स्मेर] विकस्वर ।
धर्मावलम्बी गृहस्थ । सेर पुदे] सेर, परिमाण-विशेष । सेल्ल देखो सेल = शैल । सेरंधी स्त्री [सैरन्ध्री] अन्य के घर में रहकर |
सेल्ल पुंदे] मृग-शिशु । बाण । कुन्त, बर्छ । शिल्पकार्य करनेवाली स्वतन्त्र स्त्री । सेल्ल पुं [शैल्य] एक राजा । सेराह पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति ।
सेल्लग पुं [शैल्यक] भुजपरिसर्प की एक सेरिभ पुं [दे] धुर्य वृषभ ।
जाति, जन्तु-विशेष । सेरिभ देखो सेरिह।
सेल्लि स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी ।
| सेव सक [सेव्] आराधन करना। आश्रय सेरिय पुंस्त्री [दे] वाद्य-विशेष । सेरियय पु[दे] गुल्म-विशेष ।
करना । उपभोग करना। सेरिह पुंस्त्री [सैरिभ] महिष । स्त्री. ही।
सेवग देखो सेवय। सेरी स्त्री [दे] लम्बी आकृति । भद्र आकृति ।
सेवड देखो °से = श्वेत ।
सेवण न [सेवन] सिलाई करना । सेवा । रथ्या । यन्त्र-निर्मित नर्तकी। सेरीस पुन [सेरीशएक गाँव ।
सेवय वि [सेवक] सेवा-कर्ता । पुं. नौकर ।
सेवल न [शैवल] नदियों में लगती घास । सेल पु [शैल] पर्वत । पाषाण । न. पत्थरों
सेवा स्त्री. भजन, पर्युपासना, भक्ति । उपभोग । का समूह । °कार पु. पत्थर घड़नेवाला
___ आश्रय । आराधन । शिल्पी । °गिह न [गृह] पर्वत में बना
सेवाड । न [शैवाल] सेवाल घास-विशेष । घर । जाया स्त्री. पार्वती । त्थंभ
सेवाल । पुं. एक तापस, जिसको गौतम पुं[ °स्तम्भ ] पाषाण का खम्भा । पाल,
स्वामी ने प्रतिबोध किया था । दाइ पुं प्वाल पुं. धरण तथा भूतानन्द इन्द्रों का
[दायिन्] भ० महावीर के समय का एक एक-एक लोकपाल । एक जैनेतर धर्मावलम्बी।
अजैन । °स न. वज्र । °सिहर न [ °शिखर ]
सेवाल पुं [दे] पङ्क, कादा । पर्वत का शिखर । °सुआ स्त्री [ °सुता ] पार्वती।
सेवालि पुं [शैवालिन्] एक तापस, जिसको सेलग ) पुं [शैलक] एक राजर्षि । एक गौतम स्वामी ने प्रतिबोध किया था। सेलय ) यक्ष । °पुर न. एक नगर ।
सेवालिय वि [शैवालिक, त] सेवालवाला । सेलयय न [शैलकज] एक गोत्र ।
सेवित्त वि [सेवित] सेवा-कर्ता । सेला स्त्री [शैला] तीसरी नरक-पृथिवी।
सेव्वा देखो सेवा। सेलाइच्च पुं [शैलादित्य) वलभीपुर का एक | सेस पुं [शेष] शेष-नाग । छन्द का एक भेद । प्रसिद्ध राजा ।
वि. अवशिष्ट । मई, °वई स्त्री [°वती] सेल पुं [शैलु] श्लेष्म-नाशक वृक्ष-विशेष । सातवें वसुदेव की माता। दक्षिण रुचक पर सेलूस पुं[दे] कितव, जुआड़ी।
रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी। घल्लीसेलेय वि [शैलेय] पर्वत में उत्पन्न, पर्वतीय । विशेष । भ० महावीर की दौहित्री। °व न सेलेस पुं [शैलेश] मेरु पर्वत ।
[°वत्] अनुमान का एक भेद । °ाराअ पुं सेलेसी स्त्री [शैलेशी] मेरु की तरह निश्चल | [राज] छन्द-विशेष ।
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सेसव-सोगंधिअ - संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सेसव न [शैशव] बाल्यावस्था ।
सोअ न [श्रोत्र] कान । मय वि [°मय] सेसा स्त्री [शेषा] निर्माल्य ।
श्रोत्रेन्द्रिय-जन्य । सेसिअ वि [शेषित] बाकी बचाया हुआ। सोअ पुंन [स्रोतस्) प्रवाह । छिद्र । वेग।
अल्प किया हुआ, खतम किया हुआ। सोअण न [स्वपन] शयन । सेसिअ वि [श्लेषित] संबद्ध किया हुआ, | सोअण न [शोचन] शोक । शुद्धि, प्रक्षालन । चिपकाया हुआ।
सोअमल्ल न सौकुमार्य] सुकुमारता । सेह अक [नश्] पलायन करना, भागना । । लोअर पुं [सोदर] सगा भाई । सेह सक [शिक्षय] सिखाना, सीख देना। | सोअरिअ वि [शौकरिक] शूकरों का शिकार सजा करना।
करनेवाला । शिकारी । कसाई । सेह पुं [दे.] भुजपरिसर्प को एक जाति, साही, सोअरिअ वि [सोदर्य] सहोदर । जिसके शरीर में कांटे होते हैं ।
सोअल्ल देखो सोअमल्ल। सेह पुं [शैक्ष] नव-दीक्षित साधु । जिसको सोअविय स्त्री [शौच] शुद्धि, पवित्रता । दीक्षा दी जानेवाली हो । शिष्य ।
सोअव्व का कृ.। सेह सेध] सिद्धि ।
सोआमणी , स्त्री [सौदामनी, 'मिनी] सेहंब वि [सेधाम्ल] वह खाद्य जिसमें पकने
सोआमिणी विद्युत् । एक दिक्कुमारी देवी । पर खटाई का संस्कार किया जाय ।
सोइअ न [शोचित] । देखो सोचिय । सेहणा स्त्री [शिक्षणा] शिक्षा, सजा । सोइंदिय न [श्रोत्रेन्द्रिय] कान । सेहर पुं [ शेखर ] शिखा । छन्द-विशेष ।
सोइंधिअ देखो सोगंधि। मस्तक-स्थित माला।
सोउ वि [श्रोत सुननेवाला । सेहरय पुं [दे] चक्रवाक पक्षी।
सोउणिअ देखो सोवणिअ । सेहालिआ देखो सेभालिआ।
सोउमल्ल देखो सोअमल्ल । सेहाली स्त्री [शेफाली] लता-विशेष ।
| सोंड देखो सुंड । 'मगर पुं [°मकर] मगर सेहाव देखो सेह = शिक्षय् ।।
की एक जाति । सेहि देखो सिद्धि।
सोंडा स्त्री [शुण्डा] सुरा । तूंढ । सेहिअ वि [सैद्धिक] मुक्ति या निष्पत्ति- सोडिअ ' [शौण्डिक] दारू बेचनेवाला । संबन्धी।
सोंडिया स्त्री [शुण्डिका] दारू का पात्र । सेहिऊ वि [दे] गत ।
सोंडीर वि [शौण्डीर] शूर, वीर । गर्वित । सो सक [सु] दारू बनाना। पीड़ा करना। सोंडीर न [शौण्डीर्य] पराक्रम । गर्व ।
मन्थन करना । अक. स्नान करना । सोंडीरिम पुंस्त्री [शौण्डीरिमन्] ऊपर देखो। सो । अक [स्वप्] सोना, सूतना । सोंदज्ज (शौ) देखो सुंदेर । सोअ,
सोक्क देखो सुक्क = शुष्क । सोअ सक [शुच्] शोक या शुद्धि करना । | सोक्ख देखो सुवख = सौख्य । देखो सोच ।
सोक्ख देखो सुक्ख = शुष्क । सोअ न [शौच] शुद्धि, पवित्रता, निर्मलता। सोग देखो सोअ = शोक । चोरी का अभाव ।
सोगंध । न [सौगन्ध्य] चौबीस दिनों सोअ पुं [शोक अफसोस, दिलगीरी। । सोगंधिअ ) के उपवास । सुगन्ध ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सोगंधिअ-सोभा . सोगंधिअ न [सौगन्धिक] रत्न-विशेष । रत्न- सोणिअ न [शोणित रुधिर ।। प्रभा नरक का एक सौगन्धिक-रत्न-मय | सोणिम पुंस्त्री [शोणिमन्] रक्तता। काण्ड । कलार, पानी में होनेवाला श्वेत | सोणी स्त्री [श्रोणी] देखो सोणि । कमल । पुं. अपने लिंग को सूंघनेवाला सोणीअ देखो सोणिअ = शोणित । नपुंसक । पुन. एक देव-विमान । वि.सुगन्धो । सोण्ण न [स्वर्ण] सुवर्ण। सोगंधिया स्त्री [सौगन्धिका] नगरी विशेष । सोण्ह देखो सुण्ह = सूक्ष्म । सोगमल्ल देखो सोअमल्ल ।
सोण्हा देखो सुण्हा = स्नुषा । सोग्गइ देखो सुग्गइ।
सोत्त न [श्रोत्र] कान । सोग्गाह (?) अक [प्र+ सृ] पसरना । सोत्त देखो सोअ = स्रोतस् । सोच देखो सोअ - शुन् ।
सोत्ति देखो सुत्ति = शुक्ति । सोचिय वि [शोचित] शुद्ध किया हुआ, सोत्तिअ पुं [श्रोत्रिय, वेदाभ्यासी ब्राह्मण । प्रक्षालित । न. चिन्ता, विचार।
सोत्तिअ वि [सोत्रिक] सूत्र-निर्मित, सूत का सोच्च देखो सोच ।
बना हुआ। सूत का व्यापारी । सोच्चं , सुण का संकृ.।
सोत्तिअ ' [शौक्तिक] द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष । सोच्चा
सोत्तिअमई । स्त्री [शुक्तिकावती] केकय सोच्छ° सुण का भवि. रूप ।
सोत्तिअवई , देश की प्राचीन राजधानी । सोच्छिअ देखो सोत्थिअ।
सोत्ती स्त्री [दे] नदी। सोजण्ण न [सौजन्य] सुजनता । भलमनसी ।
सोत्थि पुंन [स्वस्ति] एक देव-विमान । देखो
सत्थि । सोज्ज देखो सोरिअ = शौर्य । सोज्जि (अप) अ [स एव] वही ।
सोत्थिअ पुं[स्वस्तिक] एक हरित वनस्पति । सोज्झ वि [शोध्य] शुद्धि योग्य, शोधनीय ।
देखो सत्थिअ, सोवत्थिअ = स्वस्तिक । सोज्झय [दे] रजक । देखो सुज्झय ।
सोदाम पुं सौदाम] देखो सोदामि। सोडिअ देखो सोंडिअ।
सोदामणी देखो सोआमणी। सोडीर वि[शौटोर]देखो सोंडीर = शौण्डीर ।
| सोदामि पु [सौदामिन्] चमरेन्द्र के अश्वसैन्य
का अधिपति । सोडोर वि[शौटीर्य]देखो सोंडीर = शौण्डीयं ।
सोदामिणी देखो सोआमिणो। सोढ वि. सहन किया हुआ।
| सोदास [सोदास] एक राजा । सोढव्व सह का कृ.।
| सोध (शौ) देखो सउह = सोध । सोढुं सह का हे ।
सोपार । पुं. ब. [सोपार, क] देश-विशेष । सोण वि [शोण] लाल, रक्त वर्णवाला।
सोपारय । न. नगर-विशेष । सोणंद न [दे. सौनन्द] त्रिकाष्ठिका, तिपाई। सोबंधव वि [सौबन्धव] सुबन्धुकृत ग्रन्थ । सोणहिअ वि [शौनकिक] श्वान-पालक । सोभ अक [शुभ्] शोभना, चमकना । कुत्तों से शिकार करनेवाला ।
सोभ सक [शोभय्] शोभाना । सोणार देखो सुण्णार।
सोभग वि [शोभक] शोभनेवाला । शोभानेसोणि स्त्री [श्रोणि] कटी, कमर । सुत्तग न वाला। [सूत्रक] कटी-सूत्र, करधनी ।
सोभग्ग देखो सोहग्ग। सोणिअ पुं [शौनिक] कसाई ।
सोभा देखो सोहा = शोभा।
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सोम - सोमाल
सोम पुं. चन्द्र । भ० पार्श्वनाथ का पांचवां गणधर । एक प्रसिद्ध क्षत्रिय वंश | चतुर्थ | बलदेव और वासुदेव का पिता । एक विद्या धर नर- पति, ज्योतिःपुर का स्वामी । एक सेठ । एक ब्राह्मण । चमरेन्द्र, बलीन्द्र, सौधर्मेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के एक-एक लोकपाल । अमृत । आर्यसुहस्ति
।
सोमलता । उसका रस सूरि का एक शिष्य ।
पुंन. देव-विमान
विशेष | वि. कीर्तिमान् । काइय पुं [ कायिक] सोम लोकपाल का आज्ञाकारी देव । 'ग्गहण न [° ग्रहण ] चन्द्र ग्रहण | 'चंद पुं ['चन्द्र ] ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न सातवें जिन देव | आचार्य हेमचन्द्र का दीक्षा समय का नाम । 'जस पुं ['यशस् ] एक राजा । "णाह देखो 'नाह । 'दत्त पुं. एक सोमणस न [ सौमनस्य ] सुन्दर मन, संतुष्ट
वन |
मन । प्रशस्त मन ।
सोमणसा स्त्री [ सौमनसा ] जम्बू - वृक्ष - विशेष, जिससे यह द्वीप जम्बूद्वीप कहलाता है । एक राजधानी । सौमनस वन की एक वापी । पक्ष की पाँचवीं रात्रि ।
सोमणसिय वि [ सौमनस्थित] संतुष्ट मन
ब्राह्मण । एक जैन मुनि भद्रबाहु स्वामी का शिष्य । भ० चन्द्रप्रभ स्वामी को प्रथम भिक्षादाता | राजा शतानीक का एक पुरोहित । "देव पुं. सोम लोकपाल का सामानिक देव । भ० पद्मप्रभ को प्रथम भिक्षा दाता । नाह पुं [°नाथ] सौराष्ट्र देश को सुप्रसिद्ध महादेवमूर्ति । प्भ, प्ह पुं [भ] क्षत्रियों के सोमवंश का आदि पुरुष, बाहुबलि का एक पुत्र । तेरहवीं शताब्दी का एक जैन आचार्य और ग्रन्थकार । चमरेन्द्र के सोम - लोकपाल का उत्पात-पर्वत । 'भूइ पुं [भूति] एक ब्राह्मण । भूइयन [भूतिक] एक कुल । 'यन [क] कौत्स गोत्र की शाखा । 'व, 'वा वि [प, पा] सोमरस पीनेवाला । सिरी स्त्री [ श्री] एक ब्राह्मणी । सुंदर पुं [सुन्दर ] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य तथा ग्रन्थकार । 'सूरि पुं. आराधना - प्रकरण का कर्ता एक जैनाचार्य |
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८७५
देखी सौम्म ।
सोमइअ वि [ दे] सोने की आदतवाला । सोमंगल पुं [ सौमङ्गल] द्वीन्द्रियजन्तु की एक जाति ।
सोमणंतिय वि [ स्वापनान्तिक, स्वाप्नान्तिक] सोने के बाद या स्वप्न विशेष में किया जाता प्रतिक्रमण |
सोमणस पुं [ सौमनस ] महाविदेह वर्ष का एक वक्षस्कार पर्वत | उस पर रहनेवाला एक महर्द्धिक देव पक्ष का आठवाँ दिन । पुंन. सनत्कुमार नामक इन्द्र का एक पारियानिक विमान | छठवाँ ग्रैवेयक- विमान | सौमनसपर्वत का एक शिखर । न मेरु पर्वत का एक
वाला । प्रशस्त मनवाला ।
सोमणस्स देखो सोमणस = सौमनस्य । सोमणस्सिय देखो सोमणसिय । सोमल्ल देखो सोअमल्ल | सोमहिंद न [दे] उदर । सोमहिड्ड पुं [दे] पंक, कादा । सोमा स्त्री. शक्र के सोम आदि चारों लोकपालों की एक-एक पटरानी | सातवें जिनदेव की प्रथम शिष्या । सोम लोकपाल की राजधानी । सोमा स्त्री [सौम्या ] उत्तर दिशा । सोमाण न [ श्मशान] मशान, मरघट । सोमाणस पुं [ सौमानस ] सातव ग्रैवेयक सोम वि[सौम्य ] अरौद्र । नीरोग । प्रशस्त, विमान श्लाघ्य । प्रिय दर्शन | मनोहर । शान्त सोमार आकृतिवाला | शोभा-युक्त, दीप्तिमान् । सोमाल
देखो सुकुमार ।
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८७६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सोमाल-सोवत्थि सोमाल न [दे] माँस ।
सोलसिआ स्त्री [षोडशिका] रस-मान-विशेष, सोमित्ति पुं[सौमित्रि] राम-भ्राता लक्ष्मण । | सोलह पलों की एक नाप । सोमित्ति स्त्री [सुमित्रा] लक्ष्मण की माता । | सोलह देखो सोलस ।
पुत्त पुं [पुत्र] । 'सुय पुं [°सुत] | सोलहावत्तय पुं [दे] शंख । लक्ष्मण।
सोल्ल सक [पच्] पकाना । सोमिल पुं. एक ब्राह्मण ।
सोल्ल सक [क्षिप] फेंकना । सोमेत्ति देखो सोमित्ति = सौमित्रि । सोल्ल सक [ ईर्, सम् + ईर् ] प्रेरणा सोमेसर पुं [सोमेश्वर] सौराष्ट्र का सोमनाथ __ करना। महादेव ।
सोल्ल न [दे] मांस । देखो सुल्ल = शूल्य । सोम्म वि [सौम्य] रमणीय । ठंढा । शान्त
सोल्ल वि [पक्व] पकाया हुआ । स्वभाववाला । प्रिय-दर्शन । जिसका अधिष्ठाता
सोल्लिय वि [पक्क] पकाया हुआ। न. पुष्पसोम-देवता हो । भास्वर । पुं. बुध ग्रह । शुभ
विशेष । ग्रह । वृष आदि सम राशि । उदुम्बर वृक्ष ।
सोव देखो सुव = स्वप् । द्वीप-विशेष । सोम-रस पीनेवाला ब्राह्मण ।
सोवकम । वि [सोपक्रम] निमित्त-कारण देखो सोम = सौम्य ।
सोवक्कम) से जो नष्ट या कम हो सके वह सोरटु पुं [सौराष्ट्र] काठियावाड़। वि. सोरठ।
कर्म, आयु, आपदा आदि ।
| सोवचिय वि [सोपचित] उपचय-युक्त, स्फीत, देश का निवासी । न. छन्द-विशेष ।
पुष्ट। सोरट्ठिया स्त्री [सौराष्ट्रिका] एक प्रकार की
सोवच्चल पुन [सौवर्चल] काला नमक । मिट्टी, फिटकिरी । एक जैन मुनि-शाखा।
सोवण न [दे] वास-गृह, शय्या-गृह, रतिसोरब्भ सोरंभ इन [सौरभ] सुगन्ध ।
मन्दिर । स्वप्न । पुं. मल्ल । सोरभ ।
सोवण (अप) देखो सोवण्ण । सोरसेणी स्त्री [शौरसेनी शूरसेन देश की |
| सोवणिअ वि [शौवनिक] श्वान-पालक । प्राचीन भाषा, प्राकृत भाषा का एक भेद ।।
कुत्तों से शिकार करनेवाला । सोरह देखो सोरभ ।
सोवणी स्त्री [स्वापनी] विद्या विशेष । सोरिअ न [शौर्य] शूरता, पराक्रम ।
सोवण्ण वि [सौवर्ण] स्वर्ण-निर्मित । सोरिअ न [शौरिक] कुशावर्त देश की प्राचीन सोवण्णमक्खिआ स्त्री [दे] एक तरह की राजधानी । एक यक्ष । °दत्त पुं [°दत्त] एक | शहद की मक्खी । मच्छीमार का पुत्र । एक राजा। °पुर न. सोवण्णिअ । वि [सौवणिक] सोने का । एक नगर । वडिंसग न [°ावतंसक एक सोवण्णिग , पव्वय पुं [पर्वत] मेरु उद्यान ।
पर्वत । सोलस त्रि. ब. [षोडशन्] सोलह । सोलह | सोवण्णेअ पुंस्त्री [सौपर्णय] गरुडपक्षी । संख्यावाला । वि. १६ वा । °म वि [°श] | सोवत्थ न [दे] उपकार । वि. उपभोग्य । १६ वाँ। सात दिनों के उपवास । य न सोवत्थि । वि [सौवस्तिक] माङ गलिक [क] सोलह का समूह । "विह वि [विध] | सोवत्थिअ , वचन बोलनेवाला, मागध । पुं. सोलह प्रकार का।
| ज्योतिष्क महाग्रह-विशेष । त्रीन्द्रिय जन्तु की
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सोवत्थिअ-सोहय
संक्षिप्त प्राकृत हिन्दी कोष
८७७
एक जाति ।
करना । संशोधन करना। सोवत्थिअ पुं [स्वस्तिक] साथिया । पुंन. सोह देखो सउह = सौध । विद्युत्भ नामक वक्षस्कार पर्वत या रुचक- सोहंजण पु[दे शोभाञ्जन ] सहिजने का पर्वत का एक शिखर । एक देव-विमान । | पेड़। देखो सत्थिअ, सोत्थिअ = स्वस्तिक । सोहग देखो सोभग। सोवरिअ देखो सोअरिअ = शौकरिक । सोहग पु [शोधक] धोबी। देखो सोहय = सोवरी स्त्री [शाम्बरी] विद्या-विशेष । शोधक । सोववत्तिअ वि [सोपपत्तिक] सयुक्तिक । सोहग्ग न [सौभाग्य] सुभगता, लोकप्रियता । सोवाअ वि [सोपाय] उपाय-साध्य ।
पति-प्रियता। सुन्दर भाग्य । कप्परुक्ख सोवाग पुं [श्वपाक] चाण्डाल । डोम । पु [°कल्पवृक्ष] तप-विशेष । गुलिया स्त्री सोवागी स्त्री [श्वापाकी] विद्या-विशेष । [°गुटिका] सौभाग्य-जनक मन्त्र-विशेष से सोवाण न [सोपान] सीढ़ी । पैड़ी।
संस्कृत गोली। सोवासिणी देखो सुवासिणी।
सोहग्गंजण न [सौभाग्याञ्जन] सौभाग्यसोविअ वि [स्वापित] सुलाया हुआ । जनक अंजन । सोवियल्ल पुंस्त्री [सौविदल्ल] अन्तःपुर का | सोहग्गिअ वि [सौभागित] भाग्य-शाली । रक्षक । स्त्री. 'ल्ली।
सोहण पु [शोभन] एक प्रसिद्ध जैन-मुनि । सोवीर पुंब. [सौवीर]देश-विशेष । न. कांजी।
वि. शोभा-युक्त, सुन्दर । °वर न. वैताढ्य
की उत्तर श्रेणि का एक विद्याधर-नगर । सौवीर देश में होता सुरमा । मद्य-विशेष । सोवीरा स्त्री [सौवीरा] मध्यम ग्राम की एक
सोहण न [शोधन) शुद्धि । वि. शुद्धि-जनक ।
सोहणी स्त्री [दे] झाड़ । मूर्च्छना। सोव्व वि [दे] पतित-दन्त ।
सोहद न [सौहृद] मित्रता । बन्धुता । सोस सक [शौषय] सुखाना, शोषण करना।
सोहम्म देखो सुधम्म, सुहम्म = सुधर्मन् । सोस देखो सुस्स।
सोहम्म पु [सौधर्म] प्रथम देवलोक । कप्प सोस पु [शोष] शोषण । दाह-रोग । पु[°कल्प] वही अर्थ। °वइ पु [पति] सोसण [दे] पवन, वायु ।
प्रथम देवलोक का स्वामी, शक्रन्द्र । सोसण न [शोषण] सुखाना । कामदेव का
वडिंसय पुन [°ावतंसक] एक देव-विमान । एक बाण । वि. शोषण-कर्ता, सुखानेवाला ।
°सामि पु [°स्वामिन्] प्रथम देवलोक का सोसणी स्त्री [दे] कटी।। सोसविअ वि [शोषित] सुखाया हुआ।
सोहम्म° देखो सुहम्मा। सोसाव देखो सोस = शोषय ।
सोहम्मण देखो सोहण = शोधन । सोसास वि [सोच्छ्वास] ऊर्व श्वास-युक्त। सोहम्मिद पु [सौधर्मेन्द्र] शक्र, प्रथम देवसोसिअ वि [सोच्छित] ऊंचा किया हुआ । लोक का स्वामी । सोसिल्ल वि [शोफवत्] सूजन रोगवाला। सोहम्मिय वि [सौर्मिक]सौधर्म-देवलोक का । सोह अक [शुभ्] शोभना, चमकना । सोहय वि [शोधक] शुद्धि-कर्ता । देखो सोह सक [शोभय] शोभा-युक्त करना। सोहग = शोधक। सोह सक [शोधय] शुद्धि करना। खोज । सोहय देखो सोहग = शोभक ।
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८७८
सोहल वि [ शोभावत् ] शोभा-युक्त । सोहा स्त्री [शोभा ] दीप्ति | छन्द - विशेष | सोहाव सक [शोधय् ] सफा कराना । सोहि स्त्री [ शुद्धि शोध ] निर्मलता । आलो
चना, प्रायश्चित्त ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
सोहि वि [ शोधिन् ] शुद्धि-कर्त्ता । सोहि वि [शोभिन्] शोभनेवाला । सोहि पुंस्त्री [] भूतकाल | भविष्यकाल | सोहिअ न [ दे] पिष्ट, आटा ।
ह पुं. कंठ स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष । अ इन अर्थों का सूचक अव्यय - सम्बोधन | नियोग । क्षेप, निन्दा | निग्रह | प्रसिद्धि । पदपूर्ति
ह देखो हा = अ ।
इस्त्री [हृति] वध, मारण ।
हं अ. [हम् ] इन अर्थों का सूचक अव्यय - क्रोध । असम्मति ।
हंजय पुं [दे] शरीर-स्पर्श-पूर्वक किया जाता शपथ - सौगंध ।
हंजे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - - दासी का आह्वान | सखी का आमन्त्रण । हंड देख खंड |
'हंडण देखो भंडण |
हंत देखो हंता ।
हंता हण का संकृ. 1
हंता अ [ हन्त ] इन अर्थों का सूचक अव्यय - अभ्युपगम, स्वीकार । कोमल आमन्त्रण । वाक्य का आरम्भ । प्रत्यववारण | संप्रेषण । खेद । निर्देश । हर्ष । अनुकम्पा । सत्य | तु वि [ह] मारनेवाला ।
हंदि अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - विषाद | विकल्प | पश्चात्ताप । निश्चय । सत्य । 'ग्रहण करो' | आमन्त्रण, सम्बोधन । उपदर्शन ।
!
|
सोहिद देखो सोहद | सोहिल्ल वि [शोभावत् ] शोभा-युक्त । सौंअरिअ न [सौन्दर्य ] सुन्दरता । सौअरिअ देखो सोअरिअ = सौन्दर्य | सौह देखो सउह = सौध | 'स्स देखो स = स्व | "स्सास देखो सास = श्वास | "स्सिरी देखो सिरी = श्री | "स्सेअ देखो सेअ = स्वेद |
ह
सोहल-हक्क
हंभो देखो हो ।
हंस देखो हस्स = ह्रस्व |
मेरु
हंस पुं. पक्षि-विशेष । धोवी । संन्यासि - विशेष | सूर्य । मणि-विशेष । छन्द का एक भेद । निर्लोभी राजा । विष्णु । परमेश्वर 1 मत्सर । मन्त्र - विशेष | शरीर स्थित वायु की चेष्टा विशेष । पर्वत । शिव | अश्व की एक जाति । श्रेष्ठ । अगुआ । विशुद्ध | मन्त्र-वर्ण- विशेष | पतंग, चतुरिन्द्रिय जन्तु - विशेष । 'गब्भ पुं [] रत्न की एक जाति । 'तली स्त्री. बिछौने की गद्दी । द्दीव पुं [द्वीप ] द्वीप - विशेष । 'लक्खण वि [लक्षण] सफेद । विशद, निर्मल ।
हंसय पुंन [हंसक ] नूपुर । हंसल पुं [दे] आभूषण - विशेष । हंसी स्त्री. छन्द का एक भेद । हंसुलय पुं [हंस ] अश्व की एक उत्तम जाति । हो अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय - संबोधन, आमन्त्रण | तिरस्कार । दर्प । दंभ, कपट । प्रश्न ।
हकुव न. फल- विशेष ।
हक्क सक [नि + षिध् ] निषेध करना, निवारण करना |
हक्क सक [दे] हाँकना - पुकारना, आह्वान
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हक्कार-हत्थ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष
८७९ करना । प्रेरणा करना । खदेड़ना। हण वि [दे] दूर । हक्कार सक [आ +कारय ] पुकारना, हण देखो हणण । आह्वान करना।
"हण देखो धण = धन । हक्कार सक [दे] ऊँचे फैलाना ।
हणण न [हनन] मारण, वध । विनाश । वि. हक्कार पुं [हाकार] युगलिकों के समय की एक
वध-कर्ता । स्त्री. °णी। दण्डनीति । हाँकने की आवाज ।
हणिद देखो हिणिद। हक्किअ वि [A] हाँका हुआ-खदेड़ा हुआ।
हणिहणि ) अ [ अहन्यहनि ] प्रतिदिन । आहूत । प्रेरित । उन्नत । हक्कोद्ध वि [दे] अभिलषित ।
हणिहणि । सर्वथा। हक्खुत्त वि [दे] उत्पाटित, उत्क्षिप्त ।
हणु वि [दे] सावशेष । हक्खुव सक [ उत् + क्षिप् ] ऊँचा करना ।
हणु पुंस्त्री [हनु] चिबुक । °अ, °म, मंत,
यंत पु[°मत्] हनुमान, रामचन्द्रजी का फेंकना । उखाड़ना। हच्चा स्त्रो [हत्या] वध, घात ।
एक प्रख्यात अनुचर, पवन तथा अञ्जनासुन्दरी हट्ट पुं. बाजार । दूकान । °गाई, °गावी स्त्री
का पुत्र । रुह, रूह न. नगर-विशेष । °व,
°वंत देखो भ। ["गवी] कुलटा।
हणुया स्त्री [हनुका] ठुड्डी, दाढ़ी। दंष्ट्राहट्टिगा । स्त्री [हट्टिका] छोटी दूकान ।
विशेष । हटी । हद वि [हृष्ट] हर्ष-युक्त । विस्मित । नीरोग ।
हणू स्त्री [हनू] देखो हणु । शक्तिशाली । जवान, दृढ़ ।
हण्णु हण- हन् का कवकृ. ।
हत्त देखो हय - हत । हट्ट देखो भट्ट ।
हत्तरि देखो सत्तरि। हटमहट्ट वि [दे] नीरोग । दक्ष । स्वस्थ युवा ।
| हत्तु वि [हर्तृ] हरण-कर्ता । हड वि [दे. हत] जिसका हरण किया हो ।
हत्तूण हण = हन् का संकृ. । हडक । (मा) देखो हिअय = हृदय ।
हत्थ वि [दे] शीघ्र । क्रिवि. जल्दी। हडक्क )
हत्थ पुंन [हस्त] हाथ । पु. नक्षत्र-विशेष । हडप्प । पु[दे] ताम्बूल आदि का पात्र ।
चौबीस अंगुल का एक परिमाण । हाथी की हडप्फ ) आभरण का करण्डक ।
सूढ । एक जैन मुनि । °कप्प न [°कल्प] हडहड [दे] प्रेम । ताप ।
नगर-विशेष । 'कम्म न [°कर्मन्] हस्तहडहड पुं. 'हड-हड' आवाज ।
क्रिया, दुश्चेष्टा-विशेष । 'ताड, °ताल पु. हडाहड वि [दे] अत्यर्थ, अत्यन्त ।
हाथ से ताड़न । °पहेलिअ स्त्रीन [ 'प्रहे. हडि पु [हडि] काठ की बेड़ी।
लिक] शीर्षप्रकम्पित का चौरासी लाख गुणा । हड्ड न [दे] अस्थि ।
'प्पाहुड न [प्राभृत] हाथ से दिया हुआ हढ पु [हठ] बलात्कार। जल में होनेवाली | उपहार । °मालय न [°मालक] आभरण
वनस्पति-विशेष, कुम्भी, जलकुम्भी, काई। विशेष । लहुत्तण न [°लघुत्व] हस्त-लाघव । हण सक हिन्] वध करना। अक. जाना, । चोरी । °सीस न [शीर्ष] नगर-विशेष । गति करना ।
भरण न [°ाभरण] हाथ का गहना। हण सक [श्रु] सुनना।
| °ायाल पु [ताड] देखो °ताड । लंब
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८८०
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष हत्थंकर-हम्मि पु [°ालम्ब मदद।
महावत । °वाल देखो °पाल । °विजय न. हत्थंकर पु [हस्तङ्कर] वनस्पति-विशेष । वैताढ्य की उत्तर श्रेणि का एक विद्याधरहत्थंदु । पुन [हस्तान्दुक] हाथ बाँधने । नगर । °सीस न [°शीर्ष] एक नगर, राजा हत्थंदुय ) का काठ आदि का बन्धन- दमदन्त की राजधानी। 'सुंडिया देखो विशेष ।
°सोंडिगा। °सोंड पु [°शौण्ड] त्रीन्द्रिय हत्थच्छुहणी स्त्री [दे] नवोढ़ा ।
जन्तु-विशेष । °सोंडिगा स्त्री [°शुण्डिका हत्थड (अप) देखो हत्थ।
आसन-विशेष। हत्थय न [हस्तक] कलाप-समूह ।
हत्थिअचक्खु न [दे] वक्र अवलोकन । हत्थल पु [दे] क्रीड़ा के लिए हाथ में ली हुई हत्थिच्चग वि [हस्तीय,हस्त्य] हाथ का । चीज । वि चञ्चल हाथवाला ।
हत्थिणउर । न [हस्तिनापुर नगर-विशेष । हत्थल वि [हस्तल] खराब हाथवाला। पुं. हत्थिणाउर , चोर ।
हत्थिणी देखो हत्थि। हत्थलिज देखो हत्थिलिज ।।
हत्थिमल्ल पुं [दे] इन्द्र-हस्ती, ऐरावण हाथी । हत्थल्ल वि [दे] क्रीड़ा से हाथ में लिया हुआ। हथियार नहथियार । हत्थल्लिअ वि [दे] हाथ से हटाया हुआ। हत्थिलिज्ज न [हस्तिलीय] एक जैन-मुनिहत्थल्ली स्त्री [दे] हस्त-बृसी, हाथ में स्थित
कुल । आसन-विशेष ।
हत्थिवय पु [दे] ग्रह-भेद । हत्थार न [दे] मदद।
हत्थिहरिल्ल [दे] वेष । हत्थारोह पु [हस्त्यारोह] हस्तिपक । हत्थावार न [दे] मदद।
हत्थुत्तरा स्त्री [हस्तोत्तरा] उत्तराफाल्गुनी
नक्षत्र । हत्थाहत्थि स्त्री [हस्ताहस्तिका] हाथोहाथ ।
हत्थोडी स्त्री [दे] हस्ताभरण। हस्त-प्राभृत । हत्थि पुस्त्री [हस्तिन्] हाथी । स्त्री. °णी। पु. नृप-विशेष ।
हथलेव पु [दे] हस्त-ग्रहण, पाणिग्रहण । आरोह पु. हाथी का
हद देखो हय = हत । महावत । कण्ण, 'कन्न पु [°कर्ण] एक अन्तर्वीप । वि. उसका निवासी। कप्प न हद । पु[दे] बालक का मल-मूत्रादि । [°कल्प] देखो हत्थ-कप्प । °गुलगुलाइय | न [ गुलगलायित ] हाथी का शब्द- हद्धय पु [द] हास, विकास । विशेष । °णागपुर न [°नागपुर] हद्धि । अ [हा-धिक्] खेद । अनुताप । हस्तिनापुर । °तावस पु [°तापस ] हद्धी । बौद्ध साधु-विशेष, हाथी को मारकर उसके हमार (अप) वि [अस्मदीय] हमारा । मांस से जीवन-निर्वाह करने के सिद्धान्तवाला हमिर देखो भमिर । संन्यासी । नायपुर देखो नागपुर । पाल पुं. हम्म सक [हन्] वध करना । भ० महावीर के समय का पावापुरी का राजा। हम्म अक [हम्म्] जाना । पिप्पली स्त्री. वनस्पति-विशेष । °मुह पुं हम्म न हियं] क्रीड़ा-गृह । [°मुख]एक अन्तर्वीप । वि. उसका निवासी। हम्म हण = हन् का कर्मणि रूप ।
रयण न [°रत्न] । प्राय पुं [राज] हम्मार देखो हमार। उत्तम हाथी । °वाउय पु [°व्यापृत] ' हम्मिअ न [दे.हH] गृह, प्रासाद ।
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हम्मीर-हरि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८८१ हम्मीर पुं. एक मुसलमान राजा। | हरपच्चुअ वि [दे] स्मृत । नाम के उद्देश्य से हय वि [हत] जो मारा गया हो। °माकोड | दिया हुआ। पु[°मत्कोट] एक विद्याधर-नरेश । °ास हरय पु [ह्रद] बड़ा जलाशय, द्रह । वि [°श] निराश ।
हरहरा स्त्री [दे] युक्त प्रसंग, उचित प्रस्ताव । हथ पुं. अश्व । कंठ पु [°कण्ठ] अश्व के | हरहराइय न [हरहरायित] 'हर-हर' कंठ जितना बड़ा रत्न । कण्ण, °कन्न पु आवाज । [°कणं]एक अन्तर्वीप । वि. उसका निवासी।। हराविअ वि [हारित] हराया हुआ । एक अनायं देश । °मुह पु [°मुख] एक हरि पु [दे] शुक । अनार्य देश ।
हरि पुं. विद्युत्कुमार-देवों की दक्षिण दिशा का हय देखो हिअ = हत ।
इन्द्र । एक महाग्रह । इन्द्र । विष्णु, श्रीकृष्ण । हय देखो हर = द्रह । °पोंडरीय पु [पण्ड- रामचन्द्र । सिंह । वानर । अश्व । भरत के रीक] पक्षि-विशेष ।
साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक राजा । °हय देखो भय ।
ज्योतिषशास्त्र का एक योग । एक छन्द । हयमार पु[दे.हतमार] कणेर का गाछ । । सर्प । मण्डूक । चन्द्र । सूर्य । वायु । यम । हर सक [ह] हरण करना, छीनना । प्रसन्न
महादेव । ब्रह्मा । किरण । वर्ष-विशेष । करना।
मयूर । कोकिल । भर्तृहरि । पीला । पिंगल । हर सक [ग्रह,] ग्रहण करना, लेना। हरा रंग । वि. पीत या पिंगल । हरा वर्ण हर अक [ह्रद्] आवाज करना ।
वाला । पुन. महाहिमवंत पर्वत या विद्युत्प्रभ हर पुं. महादेव । छन्द-विशेष । °मेहल न |
पर्वत या निषध पर्वत का एक शिखर । हरि[मेखल] कला-विशेष । 'वल्लहा स्त्री
वर्ष-क्षेत्र का मनुष्य-विशेष । °अंद [°वल्लभा] गौरी ।
["श्चन्द्र] एक राजा । अंदण न [°चन्दन] हर पुह्रद] द्रह, बड़ा जलाशय ।
चन्दन की एक जाति । पुं. एक कल्प-वृक्ष । हर देखो घर = गृह ।
देखो °चंदण। अण्ण देखो अंद । आल हर देखो धर =धृ।
पुंन [°ताल] पीत वर्णवाली उपधातु-विशेष, हर देखो भर = भर ।
हरताल । पुं. पक्षि-विशेष । देखो ताल । हर वि. हरण-कर्ता।
°एस पुं [केश चंडाल । एक चण्डाल मुनि । हर विधर] धारण करनेवाला। °एसबल पु [केशबल] चण्डालकुलोत्पन्न हरअई । स्त्री [हरीतकी] हरे का गाछ । । एक मुनि । °एसिज्ज वि [°केशीय] हरड़ई ) फल-विशेष, हरें ।
चण्डाल-संबन्धी। हरिकेशबल मुनि का। हरण न. छीनना । वि. छीननेवाला । कखि न [काङ्क्षिन्] नगर-विशेष । हरण न [ग्रहण] स्वीकार ।
कंत पु[कान्त] विद्युत्कुमार देवों की हरण न [स्मरण] स्मृति
दक्षिण दिशा का इन्द्र । कंतपवाय, कंतहरण देखो भरण।
प्पवाय पु [‘कान्ताप्रपात] एक द्रह । हरतणु पु [हरतनु] खेत में बोये हुए गेहूँ, कंता स्त्री ! कान्ता ] एक महानदी ।
जौ आदि की बालों पर होता जल-बिन्दु । महाहिमवान् पर्वत का एक शिखर । केलि हरद देखो हरय ।
पु. भारतीय देश-विशेष । 'केसबल देखो
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८८२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
हरि-हरे °एसबल । केसि पु [°केशिन्] एक जन हरिआ देखो हिरि। मुनि । गीअ न [°गीत] एक छन्द । ग्गीव हरिआल देखो हरि-आल। पु[ग्रीव] एक राक्षस राजा । °चंद पु हरिआली स्त्री [दे. हरिताली] दूर्वा, दूब । [°चन्द्र] एक विद्याधर राजा । एक विद्या- हरिएस देखो हरि-एस । धर कुमार । °चंदण पु [चन्दन] एक हरिचंदण देखो हरि-चंदण। अन्तकृद् जैन मुनि । देखो °अंदण । °णयर हरिचंदण न [दे. हरिचन्दन] कुंकुम, केसर । न [°नगर] वैताढ्य की दक्षिण श्रेणि का हरिडय [हरितक] कोंकण देश-प्रसिद्ध एक विद्याधर नगर । °ताल पुं. द्वीप-विशेष। वृक्ष-विशेष । देखो आल । °दास पुं. एक वणिक् । °धणु हरिण पुं. हिरन । एक छन्द । °च्छी स्त्री न [धनुष्] इन्द्र-धनुष । °पुरी स्त्री. इन्द्र- [Tक्षी] सुन्दर नेत्रवाली स्त्री। °ारि पु पुरी । भद्द [ भद्र] एक जैन आचार्य तथा [°ारि] । हिव पु [°ाधिप] सिंह । ग्रन्थकार । °मंथ पु [°मन्थ] काला चना । हरिणंक पु [हरिणाङ्क] चन्द्र । °मेला स्त्री. वृक्ष-विशेष । वइ पु [°पति] हरिणंकुस पु हरिणाश] चौथे बलदेव के वानरपति, सुग्रीव । °वंस पु [°वंश] एक गुरु । एक जैन मुनि । क्षत्रिय-कुल । °वस्स, 'वास पु [वर्ष] हरिणगवेसि देखो हरिणेगमेसि । क्षेत्र-विशेष । पुन. महाहिमवान् या निषध हरिणी स्त्री. हिरनी । छन्द-विशेष । पर्वत का एक शिखर । वाहण । हरिणेगमेसि पु [हरिनैगमैषिन्] शक्र के [°वाहन ] मथुरा का एक राजा। पदाति-सैन्य का अधिपति देव । नन्दीश्वर द्वीप के अपराध का अधिष्ठाता हरिहा देखो हलिहा । देव । °सह देखो °स्सह । °सेण पुं| हरिमंथ पु [दे] काला चना, अन्न-विशेष । [षेण] दसवाँ चक्रवर्ती राजा। भ० नमि- | हरिमिग्ग पुणदे] लगुड, लाठी, डण्डा । नाथजी का प्रथम श्रावक । °स्सह पुं[°सह] हरियंदपूर न [हरिश्चन्द्रपुर] गंधर्वनगर । विद्युत्कुमार-देवों की दक्षिण दिशा का इन्द्र ।
हरिली देखो हिरिली। माल्यवन्त पर्वत का एक शिखर ।
हरिल्ल वि [भरवत्] भारवाला । हरि पु [हरित्] हरा रंग । वि. हरा रंग- हरिस अक [हष् ] खुशी होना। वाला । स्त्री. एक महा-नदी । षड्ज ग्राम की हरिस सक [हर्ष] हर्ष से रोम खड़ा करना। एक मूर्च्छना। °पवात, °प्पवाय पुं
हरिस पु [हर्ष] सुख । आनन्द, प्रमोद । [प्रपात] एक द्रह, जहाँ से हरित् नदी
आभूषण-विशेष । °उर पु [पुर] एक जैन निकलती है।
गच्छ । °ाल वि [°वत्] हर्ष-युक्त । हरि° देखो हिरि।
हरिसण पु [हर्षण] एक ज्योतिष योग । हरिअ पं [हरित] हरा । वि. हरा वर्ण- हरिसाइय वि हर्षित हर्ष-प्राप्त । वाला। पुं. एक आयं मनुष्यजाति । पुन. हरिसाल देखो सरिस-ल = हर्ष-वत् । हरा तृण, सब्जी।
हरी देखो हिरी। हरिअग। न [हरितक] जीरा आदि के | हरीडई देखो हरडई । हरिअय पत्तों से बना हुआ भोज्य-विशेष । | हरे अ [अरे] इन अर्थों का सूचक अव्ययहरिआ स्त्री [हरिता] दूर्वा, दूब, तृण-विशेष ।' आक्षेप, निन्दा । संभाषण । रति-कलह ।
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हरेडगी - हसहस
हरेडगी देखो हरीडई | हरेणुया स्त्री [हरेणुका ] प्रियंगु, मालकांगनी । हरेस अक [हेषु ] गति करना ।
हल न. हर, जिससे खेत जोतते हैं । उत्तय पुंन [°युक्तक ] हल जोतना । कुड्डाल, ° कुद्दाल पुं. हल के ऊपर का भाग । 'धर पुं । 'धारण पुं. बलभद्र, राम । ' वाहग fa [' वाहक ] हल जोतनेवाला । 'हर देखो धर । [युध] बलभद्र, राम ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोप
'हल देखो फल = फल 1 हलअ (मा) देखो हिअय = हृदय ।
हलउत्तय देखो हल-उत्तय । हलद्दा | देखो हलिद्दा | हद्दी
हलप्प वि [दे] बहु-भाषी, वाचाल ।
हलबोल पुं [दे] कलकल, शोरगुल, कोलाहल ।
हलहर देखो हल-हर = हल-धर । हलहल देखो हडहड = (दे ) । हलहल पुंन [दे] तुमुल, कोलाहल | हलहलअ कौतुक | त्वरा । औत्सुक्य । हलिअ वि [] कम्पित ।
हला अ. सखी का आमन्त्रण, हे सखि । हलाहल न. एक उम्र जहर । हलाहला स्त्री [दे] बाम्हनी, एक जन्तु । हलि पुं' [ हलिन् ] बलराम, बलभद्र । हलिअ वि [हालिक ] हल जोतनेवाला । 'हलिअ देखो फलि । हलिआ स्त्री [हलका ] छिपकली । हलिआर देखो हरि-आल = हरि-ताल | हलिद्द पुं [हरिद्र, हारिद्र ] वृक्ष - विशेष | पीला रंग । न. नाम-कर्म का एक भेद, जिसके उदय से जीव का शरीर हल्दी के समान पीला होता है । पत्त' चतुरिन्द्रियजन्तु की एक जाति । पुं [ मत्स्य ] मछली की एक जाति । हलिद्दा | स्त्री [ हरिद्रा ] औषधि-विशेष, हलद्दी हल्दी |
[ 'पत्र ] मच्छ
८८३
हलीसागर पुं [ हलिसागर ] मत्स्य की एक
जाति ।
हलुअवि [लघुक] हलका | हर वि [दे] सतृष्ण, सस्पृह । हले अ. हे सखि, सखी का संबोधन । हल्ल अक [ दे] हिलना, चलना । हल्ल पुं. एक अनुत्तर- गामी जैन मुनि । हल्लअ न [ हल्लक] पद्म-विशेष, रक्त कह्लार । हल्लपfor a [] शीघ्र ।
हल्लप्फल न [ दे] हड़बड़ी, औत्सुक्य, त्वरा । आकुलता । वि. कम्पनशील, चञ्चल |
व्याकुलपन
हल्लफल देखो हल्लप्फल । हल्लाविवि [] हिलाया हुआ ।
हल्लीस पुं [दे] रासक, मण्डलाकार होकर
स्त्रियों का नाच |
हल्लुत्ताल
हल्लुत्तावल
हल्लुप्फल देखी हल्लप्फल । हल्लोहल देखो हल्लप्फल । हल्लोहलिय पुंस्त्री [दे] सरट, गिरगिट | हव अक [ भू ] होना । सक. प्राप्त करना । 'हव देखो भव = भव ।
न] [] शीघ्रता ।
हवण न [हवन ] होम |
हवि पुंन [ हविस् ] घी । हवनीय वस्तु । हविअवि [] क्षित, चुपड़ा हुआ ।
हव्व वि [ हव्य] हवनीय पदार्थ । 'वह पुं. वाह पुं. अग्नि ।
हव्त्र वि [अर्वाच् ] अवर । न शीघ्र । नः गृहवास ।
'हव्व देखो भव्य = भव्य |
हस अ हस अ
[स्] हँसना । सक. उपहास करना । [ह्रस् ] हीन होना, कम होना ।
हस ' [हास] हास्य | स्त्री. णा । हसहस अक [ हसहसाय् ] उत्तेजित होना ।
सुलगना ।
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष , हसिरिआ-हारि हसिरिआ स्त्री [दे] हंसी।
| हायण पु [हायन] वर्ष, संवत्सर । हस्स अक [ह्रस् ] कम होना । क्षीण होना। | हायणी स्त्री [हायनी] मनुष्य की दस दशाओं हस्स देखो हस हस् ।
में छठवीं अवस्था । हस्स न हास्य हँसी । पुं. महाक्रन्दित नामक | हार सक हारय 1 नाश करना । हारना । देवों का दक्षिण दिशा का न्द्र । °गय न
हार पुं. माला, अठारह सर की मोती आदि [°गत] कला-विशेष । 'रइ पु [रति]
की माला । अपहरण । द्वीप-विशेष । समुद्रमहाक्रन्दित-निकाय का उत्तर दिशा का विशेष । हरण-कर्ता । "पुड पुंन [°पुट] इन्द्र ।
लोहा । भद्द पु [°भद्र] हार-द्वीप का हस्स वि [ह्रस्व] लघु । वामन, खर्व । अल्प ।
अधिष्ठाता एक देव। महाभद्द पु पुं. एक मात्रावाला स्वर ।
["महाभद्र] हारद्वीप का एक अधिष्ठाता देव । हस्सण वि [हर्षण] हर्ष-कारक ।
महावर पुं. हार-समुद्र का एक अधिष्ठायक हहह । अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय- देव । °वर पुं. हार-समुद्र का एक अधिष्ठाता हहहा आश्चर्य ।
देव । द्वीप-विशेष । समुद्र-विशेष । हारवरहहा पुं. गन्धर्व देवों की एक जाति । अ. खेद- समुद्र का एक अधिष्ठाता देव । °वरभद्द पु सूचक अव्यय ।
["वरभद्र] हारवर-द्वीप का एक अधिष्ठायक हा अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-विषाद ।
देव । °वरमहाभद्द पु [°वरमहाभद्र] हारशोक, दिलगीरी। पीड़ा। कुत्सा, निन्दा ।
वरद्वीप का अधिष्ठाता देव । °वरमहावर पुं. °कंद पुं [°क्रन्द]। °रव पुं. हाहाकार ।
हारवर-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव । हा सक [हा] क्षीण करना, कम करना, त्याग
वरावभास पुं. एक द्वीप। एक समुद्र । करना । अक. गति करना।
°वरावभासभद्द पु [ °वरावभासभद्र ] हा देखो भा-स्त्री।
हारवराभासद्वीप का एक अधिष्ठाता देव । हाअ देखो हा-सक ।
°वरावभासमहाभद्द पु [°वरावभासहाअ सक [हादय् ] अतिसार रोग को उत्पन्न महभद्र] हारवरावभास-द्वीप का एक अधिष्ठाकरना।
यक देव । °वरावभासमहावर पुं. हारवरा°हाअ देखो भाअ- भाग ।
भास-समुद्र का एक अधिष्ठाता देव । °वरावहाअ देखो घाय = घात ।
भासवर पुं. हारवरावभास-समुद्र का एक हाअ देखो भाव = भाव ।
अधिष्ठायक देव । हाउ देखो भाउ।
हार देखो भार । हांसल देखो हंसल।
हारअ वि [हारक] नाश-कर्ता । हाकंद देखो हा-कंद।
हारण वि. ऊपर देखो। हाकलि स्त्री. छन्द का एक भेद ।
हारव देखो हार = हारय् । हाडहड न [दे] तत्काल ।
हारा स्त्री [दे] लिक्षा, जन्तु-विशेष । हाडहडा स्त्री [दे] आरोपणा का एक भेद, हारा देखो धारा। प्रायश्चित-विशेष ।
हारि स्त्री. पराजय । पंक्ति । छन्द-विशेष । हाणि स्त्री [हानि] क्षति, अपचय, ह्रास। | हारि वि [हारिन्] हरण-कर्ता । मनोहर, हाम अ [दे] इस तरह, इस प्रकार, एवं । । चित्ताकर्षक ।
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हारिअ-हिम __ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८८५ हारिअ न [हारीत] कौत्स गोत्र की एक | हाव देखो भाव - भाव । शाखा । पुंस्त्री. उसमें उत्पन्न । °मालागारी | हाविर वि [दे] जंघाल, द्रुतगामी । दीर्घ । स्त्री [°मालाकारो] एक जैन मुनि-शाखा। | मन्थर । विरत । हारिअ वि [हारित] हारा हुआ, द्यूत आदि | हास देखो हस = हस् । में पराजित । खोया हुआ।
हास सक [हास] हंसाना । हारियंद विहारिचन्द्र]हरिचन्द्र का, हरिचन्द्र- हाभ पुं. हास्य । कर्म-विशेष, जिसके उदय से कवि का बनाया हुआ।
हँसी आवे । अलंकार-शास्त्रोक्त रस-विशेष । हारिया स्त्री [हारीता] एक जैन मुनि- कर वि. । “कारि वि [ कारिन्] हास्यशाखा । देखो हारिअ-मालागारी।।
कारक । हारियायण न [हारितायन] एक गोत्र । ।
हास पु [हास] क्षय, हानि । हारी स्त्री. देखो हारि = हारि।
हास देखो हरिस = हर्ष । हारीय पु [हारीत] मुनि-विशेष । न. गोत्र
हासंकर देखो हास-कर। विशेष । °बंध पु [°बन्ध] छन्द-विशेष ।।
हाराकुहय वि [हास्यकुहक] हास्य-जनक हारोस पु [हारोष] अनार्य देश-विशेष । वि.
__ कौतुक-कर्ता । उस देश का निवासी।
हासण वि [हासन] हास्य करानेवाला । हाल पु[दे] राजा सातवाहन, गाथासप्तशती हासा स्त्री. एक देवी । का कर्ता ।
हासाविअ । वि [हासित] हँसाया हुआ। हाला स्त्री. मदिरा।
हासि हालाहल पु [दे] मालाकार, माली।
हामि वि हासिन्] हास्य-कर्ता । हालाहल पुंस्त्री. जन्तु-विशेष, ब्रह्मसर्प, | हासिअ वि [हास्य] हँसने-योग्य । बाम्हनी। स्त्री. °ला। त्रीन्द्रिय जन्तु
हासिअ देखो भासिअ = भाषित । विशेष । पुन. स्थावर विष-विशेष । पुं.
हासीअ न [दे. हास्य] हँसी । रावण का एक सुभट ।
हाहकार देखो हाहाकार। हालाहला स्त्री. एक आजीविक-मतानुयायिनी
हाहा पुं. गन्धर्व देवों को एक जाति । अ. कुम्हारिन ।
विलाप, हाहाकार । °कय न[°कृत] । °कार हालिअ देखो हलिअ = हालिक ।
पुं. हाहाकार, शोक-शब्द । भूअ वि [°भूत] हालिज न [हालोय] एक जैन मुनि-कुल । हाहाकार को प्राप्त । "रव पुं. हाहाकार । हालिद्द पु [हारिद्र] हल्दी के तुल्य रंग । वि.
हूहू 'हाहाहूहूअंग' की चौरासी लाख गुनी पीला । पुंन. एक देव-विमान ।
संख्या । हूहूअंग न [°हूहूअङ्ग] 'अमम' की हालिया स्त्री [हालिका] देखो हलिआ।
चौरासी लाख गुनी संख्या । हालुअ वि [दे] क्षीब, मत्त ।
हि अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-अवहाव सक [ हापय् ] हानि करना । त्याग | धारण । हेतु । एवम्, इस तरह । विशेष । करना । परिभव करना । लोप करना। कम | प्रश्न । संभ्रम । शाक । असूया । पाद-पूरण । करना, हीन करना।
हिअ वि [हत] अपहृत । नीत । विनष्ट, हाव पुं. मुख का विकार-विशेष ।
स्फोटित । आकृष्ट । हाव वि [दे] जंघाल, द्रुतगामी।
Jहिअ न [हित] मङ्गल । उपकार । वि. हित
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८८६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष हिअ-हिक्किम कारक । स्थापित, निहित । "कर वि. हित- । हिंड अक [हिण्ड] भ्रमण करना । जाना, कारक । पुं. दो उपवास । एक वणिक् । | चलना । पर्यटन करना । °कार वि. हित-कारक । °यर देखो °कर । हिंडग वि [हिण्डक] भ्रमण करनेवाला। हिअ देखो हिअय = हृदय । इट्ठ वि [°इष्ट] | चलनेवाला। मनःप्रिय । "उड्डावण वि [°उड्डायन] | हिडि स्त्री [हिण्डि] परिभ्रमण, पर्यटन । चित्ताकर्षण का साधन । चित्त को शून्य | हिंडि पु[हिण्डिन्] रावण का एक सुभट । बनानेवाला।
हिंडुअ पु [दे.हिण्डुक] आत्मा, जीव, जन्माहिअ न [घृत] घी।
न्तर माननेवाला आत्मा, हिन्दु । हिअंकर पु [हितंकर] राम-पुत्र कुश के पूर्व- हिंडोल न [दे] खेत में पशुओं को रोकने की जन्म का नाम ।
आवाज । क्षेत्र की रक्षा का यन्त्र । हिअड (अप) देखो हिअय = हृदय । हिंडोल देखो हिंदोल। हिअय न [हृदय] अन्तःकरण, मन । वक्षस् । | हिंडोलण न [दे] रत्नावली। क्षेत्र की रक्षा
पर ब्रह्म । °गमणीअ वि [°गमनीय] हृदयं- | की आवाज । गम । °हारि वि [ हारिन्] चित्ताकर्षक । हिताल पु [हिन्ताल] वृक्ष-विशेष । हिअय देखो हिअ = हित ।
| हिंद सक [ग्रह ] स्वीकार या ग्रहण करना । हिअयंगम वि [हृदयंगम] मनोहर, चित्ता- | हिंदोल अक [हिन्दोलय ] झूलना। कर्षक ।
हिंदोल पु[हिन्दोल] हिंडोला, झूला । हिआली स्त्री [हृदयाली] काव्य-समस्या- हिबिअ न[दे]एक पैर से चलने को बालक्रीडा । विशेष, गूढार्थक काव्य-विशेष ।
हिंस सक [हिंस् ] वध करना । पीड़ा करना । हिइ स्त्री [हृति) अपहरण । न. स्थानान्तर
हिंस वि [हिंस्र] हिंसक । 'प्पदाण, पयाण में ले जाना।
न ['प्रदान] हिंसा के साधन-भूत खड्ग आदि हिएसय । वि [हितैषक] हितेच्छु । वि
का दान । हिएसि ) [हितैषिन् । हिओ अ [ह्यस्] गत कल ।
हिंस° देखो हिंसा । °प्पेहि वि ["प्रेक्षिन्]
हिंसा को देखनेवाला। हिंग पु [दे] जार। हिंगु पुन [हिगु] हींग का गाछ । हींग ।
हिंसा वि [हिंसक हिंसा करनेवाला ।
| हिंसग । °सिव पु [°शिव] व्यन्तर देव-विशेष ।। हिंगुल । पुंन [हिङ्गल] पार्थिव धातु
हिंसा स्त्री [हिंसा] वध, घात । वध, बन्धन हिंगुलु विशेष, हिंगुल, सिंगरफ । पुन
आदि से जीव को की जाती पीड़ा। __ [हिङ्गलु]।
हिंसा स्त्री [हेषा] अश्व का शब्द । हिंगोल पुन [दे] मृतक भोजन, किसी के मरण
हिसिय न [हेषित् अश्व-शब्द । के उपलक्ष्य में दिया जाता जीमन, श्राद्ध । यक्ष
हिंसी स्त्री [हिंसी] लता-विशेष । आदि की यात्रा के उपलक्ष्य में किया जाता
हिंह पुं [दे] हिन्दू, हिन्दुस्तान का निवासी । जीमनवार ।
हिक्का स्त्री [दे] धोबिन । हिंचिअ न [दे] एक पैर से चलने की बाल- हिक्का स्त्री. रोग-विशेष, हिचकी । क्रीड़ा।
हिक्कास पु [दे] पङ्क । हिंजीर न [हिजीर] सिकरी, साँकल। (हिक्किअ न [दे] अश्व-शब्द ।
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हिज्जा-हिल्लोडण
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
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हिज्जा हर =ह का कृ.।
°वाय पुं [°पात] तुषार-पतन । °सीयल पुं हिज' हा का कर्मणि रूप ।
[°शीतल] कृष्ण पुद्गल-विशेष । °सेल पुं हिज्जा । अ [दे. ह्यस् ] गत कल । ['शैल] हिमालय पर्वत । °गम पुं [गम] हिज्जो ।
हेमन्त ऋतु । °ाणी स्त्री [°ानी] हिमहिज्जो अ [दे] आगामी कल।
समूह । °ायल पुं [°चल] । °ालय पुं. हिट्ठ वि [दे] आकुल।
हिमालय पर्वत । हिट्ठ देखो हेट।
हिर देखो किर = किल। हिट्ठ देखो हट्ठ - हृष्ट ।
हिरडी स्त्री [दे] चील पक्षी की मादा । हिट्ठाहिड वि [दे] आकुल ।
हिरण्ण न [हिरण्य] चाँदी। सोना। द्रव्य, हिट्ठिम देखो हेट्ठिम।
धन । °क्ख पं [Tक्ष] एक दैत्य । गब्भ पुं हिटिल्ल देखो हेढिल्ल ।
गर्भ] ब्रह्मा । प्रथम जिन भगवान् ।
हिरि अक [ह्री लज्जित होना । हिडिंब स्त्री [हिडिम्ब] एक विद्याधर राजा।
हिरि पुं. भालूक, भालू का शब्द । एक राक्षस । देश-विशेष ।
हिरि देखो हिरी । म वि [मत्लज्जालु । हिडिंबा स्त्री[हिडिम्बा]एक राक्षसी, हिडिम्ब
°बेर पुं. तृण-विशेष, सुगन्धवाला । राक्षस की बहिन ।
हिरिअ वि [ह्रीत लज्जित । हिडोलणय देखो हिंडोलण।
हिरिआ स्त्री [हीका] लज्जा, शरम । हिड् विदे] वामन, खर्व ।
हिरिब न [दे] क्षद्र तलाव । हिणिद वि [भणित] उक्त, कथित ।
हिरिमंथ पु[दे चना । हिण्ण सक [ग्रह 1 ग्रहण करना ।
हिरिली स्त्री दे! कन्द-विशेष । हिण्ण (अप) देखो हीण।
हिरिवंग पुाद लगुड, लट्टी। हिण्ण देखो भिण्ण ।
हिरि स्त्री [ह्री] लज्जा । महापद्म-ह्रद की हितअ । (प) देखो हिअअ = हृदय ।
अधिष्ठात्री देवी। उत्तर रुचक पर्वत पर
रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । सत्पुरुष हित्थ वि [दे] लज्जित । त्रस्त । हिसित ।
नामक किंपुरुषेन्द्र की एक अग्र-महिषी । हित्था स्त्री [दे] लज्जा।
महाहिमवान् पर्वत का एक कूट । देवप्रतिमाहिदि अहदि हदय में।
विशेष । हिद्ध वि (दे] स्रस्त, खिसका हुआ, खिसक कर हिरीअ देखो हिरिअ। गिरा हुआ।
हिरे देखो हरे। हिम न, तुषार । चन्दन, श्रीखण्ड | शीत । | हिला स्त्री द] भजा। बर्फ । पुं. छठवीं नरकपृथिवी का पहला नर- | हिला । स्त्री [दे] रेती । केन्द्रक । मार्गशीर्ष तथा पौष का महीना। हिल्ला ) कर पुं. चन्द्रमा । °गिरि पुं. । °धाम पु हिल्लिय पुंस्त्री [दे] कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय [धामन्] । 'नग पुं. हिमाचल पर्वत । °यर | जन्तु की एक जाति । देखो कर । °व, °वंत पुं [°वत्] वर्षधर हिल्लिरी स्त्री [दे मछली पकड़ने का जाल । पर्वत-विशेष । हिमाचल पर्वत । राजा अन्धक- | हिल्लूरी स्त्री [दे] लहरी, तरङ्ग । वृष्णि का एक पुत्र । स्कन्दिलाचार्य के शिष्य। | हिल्लोडण न [दे] खेत में पशुओं को रोकने
हितप ।
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८८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
हिव-हुड्ड की आवाज।
विस्मय । किन्तु । अपि । वाक्य की शोभा । हिव देखो हव% भू।
पादपूर्ति । हिसोहिसा स्त्री [दे] स्पर्धा ।
हु । देखो हव = भू। ही अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-विस्मय ।
| हअज दुःख । विषाद । शोक, दिलगीरी। वितर्क ।
हुअ देखो हुण-हु । कन्दपं का अतिरेक । प्रशान्त-भाव का हुअ वि [हुत] होमा हुआ। न. हवन । वह अतिशय ।
पुं। °स पु [°ाश] । °ासन पुं [°ाशन] ही देखो हिरी। म वि [°मत्] लज्जाशील ।
अग्नि । ही अ [हीं] मंत्राक्ष र-विशेष, मायाबीज ।
हुअ देखो हुअ-भूत । हीण वि [हीन] न्यून । रहित । अधम ।
हुअंग देखो भुअंग। निन्द्य । पुं. प्रतिवादि-विशेष । जाइल्ल वि
हुअग देखो भुअग। [°जातिक] अधम जाति का। ‘वाइ पु
हुँ अ [हुम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय[°वादिन] वादि-विशेष ।
दान। पृच्छा। निवारण । निर्धारण । हीण वि [ह्रीण] भीत ।
स्वीकार । हङ्कार । अनादर । हीमाणहे । (शौ) अ. विस्मय । निर्वेद ।
हुंकय पु [दे] अंजलि, प्रणाम । हीमादिके ।
हुंकार पु [हुङ्कार] अनुमति-प्रकाशक-शब्द, हीयमाण देखो हा का कवकृ. ।
हाँ । 'हुँ' ऐसा शब्द । हीयमाणग । न [हीयमानक] अवधिज्ञान | हंकूरव दे] अंजलि, प्रणाम । हीयमाणय ) का एक भेद, क्रमशः कम हंड न [हण्ड] शरीर की आकृति-विशेष, होता जाता अवधिज्ञान ।
शरीर का बेढब अवयव । कर्म-विशेष, जिसके हीर हर = हर का कर्मणि रूप ।
उदय से शरीर का अवयव असंपूर्ण बेढबहीर पुं. विषम भंग, असमान छेद । बारीक प्रमाण-शून्य अव्यवस्थित हो। वि. बेढब कुत्सित तृण, कन्द आदि में होती बारीक | अंगवाला। °वसप्पिणी स्त्री ["विसर्पिणी] रेखा । पुन. हीरा । छन्द-विशेष । दाढा का वर्तमानहीन समय । अग्रभाग ।
हुंडी स्त्री [दे] घटा। हीर पुन [दे] सूई की तरह तीक्ष्ण मुँहवाला हुंबउट्ठ पु [दे] वानप्रस्थ तापस की एक काष्ठ आदि पदार्थ । भस्म । प्रान्त, अन्त जाति । भाग।
हुंहुय अक [हुंडं + कृ] 'हुँ'-'हुँ' आवाज हीरणा स्त्री [दे] लाज ।
करना। होल सक [हेलय] अवज्ञा करना। निन्दा हुच्च देखो पहुच - प्र + भू । करना । पोड़ना।
हुट्ट देखो होट्ठ। हीसमण न [दे. हेषित] घोड़े का शब्द । हुड पु[दे] मेष, मेढ़ा । श्वान । हीही ) (शौ) अ. विदूषक का हर्ष-सूचक | हुडुअ पु [दे] प्रवाह । हीहीभो । अव्यय ।
हुडुक्क पुंस्त्री [दे. हुडुक्क] वाद्य-विशेष । हु अ [खलु] इन अर्थों का द्योतक अव्यय- हुडुम पुं [दे] पताका । निश्चय । ऊह, वितर्क । संशय । संभावना ।। हुड्ड पुंस्त्री [दे] होड़, पण, शर्त। स्त्री.
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
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हूसण देखो भूसण। हुण सक हु] होम करना ।
हूहू पुं. गन्धर्व देवों की जाति । हुत्त वि दे] अभिमुख, सम्मुख ।
हूहूअ पुंन [हुर्क] 'हूहूअंग' की चौरासी हुत्त देखो हूअ = हूत ।
लाख गुनी संख्या। हुत्त देखो हुअ = भूत ।
हूहूअंग पुंन [हूहूकाङ्ग] 'अवव' की चौरासी 'हुमआ देखो भुमआ।
लाख गुनी संख्या। हुर देखो फुर = स्फुर् ।
हे अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-संबोधन । हुरड पुंस्त्री [दे] तृण आदि से कुछ-कुछ
आह्वान । असूया । पकाया हुआ चना आदि धान्य, होला
हेअ देखो हा = हा का कृ. । होरहा।
°हेअ देखो भेअ = भेद । हुरत्था अ [दे] बाहर।
हेअंगवीण न [हैयङ्गवीन] नवनीत । ताजा हरुडी स्त्री [दे] विपादिका, रोग-विशेष ।
धी। हुल सक [क्षिप् ] फेंकना ।।
हेआल पुं [दे] साँप के फण की तरह किए हुल सक [मृज् ] मार्जन-करना ।
हुए हाथ से निवारण ।। हुलण वि [मार्जन] सफा करनेवाला । हेउ पुं [हेतु] कारण, निमित्त । अनुमानहुलिअ वि [दे] शीघ्र, वेग-युक्त ।
वाक्य । अनुमान का साधन । प्रमाण । वाय हुलुभुलि स्त्री [दे] कपट, दम्भ ।
पुं [°वाद] बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ हुलुव्वी स्त्री [दे] प्रसव-परा।
दृष्टिवाद । तर्कवाद । हुल्ल देखो फुल्ल = फुल्ल ।
हेउअ वि [हैतुक] हेतुवादी, तर्कवादी । हेतु से हुव देखो हुण = हु।
सम्बन्ध रखनेवाला । स्त्री. °उई। हुव देखो हव = भू ।
| हेच्च । हा = हा का संकृ. । हुव (अप) देखो हूअ = भूत ।
हेच्चाणं । हुव (अप) देखो हुअ =हुत ।
हेज हर = ह का कृ.। हुव्व °देखो हुण% हु।
हेट्ठ स्त्री [अधस् ] नीचे । स्त्री. "टा । मुह हुव्व देखो धुव्व - धुव = धाव् ।
वि [°मुख] अवाङ्मुख । वणि वि हुस्स देखो हस्स = ह्रस्व ।
[अवनी] महाराष्ट्र देश का निवासी । हुहुअ पुंन [हुहुक] देखो हूहूअ ।
हेट्ठिम । वि [अधस्तन] नीचे का। हुहुअंग पुन [हुहुकाङ्ग] देखो हूहूअंग । हुहुरु अ. अनुकरण-शब्द-विशेष ।
हेडा स्त्री [दे] घटा, समूह। द्यूत आदि हूअ देखों भूअ = भूत ।
खेलने का स्थान, अखाड़ा। हूअ वि [हूत] आहूत, आकारित ।
हेडिस । (अशो) देखो एरिस । हूअ देखो हुअ%D हुत ।
हेदिस हूण पुं. एक अनार्य देश । वि. उसका निवासी | हेपिअ वि [दे] उन्नत । मनुष्य ।
हेम न. सोना । धतूरा । मासे का परिमाण । हूण देखो हीण = हीन ।
__पुं. काला घोड़ा। वि. पंडित । पुं. हूम पुं [दे] लोहार।
एक विद्याधर राजा। °चंद पुं
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हेमंत-ह्रास [°चन्द्र] बारहवीं शताब्दी के दो | हेवं (अशो) देखो एवं ।। जैन आचार्य तथा ग्रन्थकार। पनरहवी हेवाग पुं [हेवाक] स्वभाव, आदत । शताब्दी का एक जैन मुनि। °जाल न. हेसमण वि [दे] उन्नत । सुवर्ण की माला। °तिलय पुं [ तिलक] | हेसा स्त्री [हेषा] अश्व-शब्द । चौदहवीं शताब्दी का एक जैनाचार्य । °पुर हेसिअ न [हेषित] ऊपर देखो। न. एक विद्याधर नगर । °मय वि. सोने का हेसिअ न [दे. हेषित] रसित, चीत्कार । बना हुआ। °महिहर पुं [°महिधर] मेरु हेहंभूअ वि [दे] गुण-दोष के ज्ञान से रहित पर्वत । °मालिणी स्त्री [°मालिनी] एक और निर्दम्भ, अज्ञ किन्तु निखालस । दिक्कुमारी देवी। °व पुं [°वत्] फाल्गुन | हेहय पुं [हैहय] एक राजा । °डिंब पं मास । विमल पुं. एक जैन आचार्य । °भि | [°डिम्ब] एक विद्याधर राजा। पुं. चौथी नरक-पृथिवी का एक नरक-स्थान । हेमंत पुं [हेमन्त] ऋतु-विशेष, मगसिर या | हो अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-विस्मय ।
अगहन तथा पोस या पूस महिना । शीतकाल। संबोधन, आमन्त्रण । हेमंत । वि [ हैमन्त ] हेमन्त ऋतु में | होउ वि [होत] होम-कर्ता । हेमंतिअ उत्पन्न । वि. [हैमन्तिक]। होंड देखो हुंड। हेमग वि [हैमक] हिम का, हिम-संबन्धी। होट्ठ पुं[ओष्ठ] होंठ। हेमवइ) पुंन [हैमवत] वर्ष-विशेष, क्षेत्र- होड्ड देखो हुड्ड । हेमवय विशेष । हिमवंत पर्वत का एक | होढ पुं [होड] मोष, चोरी की वस्तु । शिखर । कूट-विशेष । वि. हिमवंत पर्वत का। होण देखो हूण = हूण । पु. हैमवत क्षेत्र का अधिष्ठाता देव । होत्तिय पुं होत्रिक] अग्निहोत्रिक वानप्रस्थ । हेम्म देखो हेम ।
न. तृण-विशेष । हेर सक [३] निरीक्षण करना। खोजना। होम पुं. हवन । हेरंब पुं [दे] महिष । डिण्डिम वाद्य । होम सक [होमय् ] होम करना। हेरण्णवय पुंन [हैरण्यवत] वर्ष-विशेष, एक होरंभा स्त्री [होरम्भा] महाढक्का वाद्य । युगलिकक्षेत्र । रुक्मि पर्वत या शिखरी पर्वत होरण न [दे] वस्त्र । का एक शिखर ।
होरा स्त्री. खड़ी या खली से की हुई रेखा । हेरण्णिअ पुं [हैरण्यिक] सुवर्णकार । ज्योतिष शास्त्र में उक्त लग्न । हीराज्ञापक हेरिअ पुं [हेरिक] जासूस ।
शास्त्र । हेरिब पुं [दे. हेरम्ब गणेश ।
होल पुंस्त्री [दे] वाद्य-विशेष । पक्षि-विशेष । हेरुयाल सक [दे] क्रुद्ध करना ।
एक तरह की गाली, मूर्ख । °वाय पुं [°वाद] हेला स्त्री. स्त्री की शृङ्गार-सम्बन्धी चेष्टा- दुर्वचन बोलना, गाली-प्रदान । विशेष । अनादर । अनायास ।
होलिया स्त्री [होलिका] होली । फागुन मास हेला स्त्री [दे] वेग, शीघ्रता ।
का पर्व-विशेष । हेलिय पुं हैलिक] एक तरह की मछली । होस हो = भू का भवि. रूप । हेलुअ न [दे] क्षुत, छींक ।
ह्रद देखो दह। हेलुक्का स्त्री [दे] हिक्का, हिचकी।
हस्स देखो रहस्स = ह्रस्व । हेल्लि (अप) अ [हले] सखी का आमन्त्रण । ह्रास देखो हास = ह्रास ।
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