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॥अथ प्रक्रणमाला प्रारंना
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॥ सर्व साधर्मीक नाइनने वास्तेना ED
॥ छपावी प्रसिद्ध करनार ॥ ॥अमदावादमां मोसीवामानी पोळमां शा.रवचंद जेएचंदनी वीद्याशाला तरफथी शा, म
गनलाल मनसुखराम॥
अमदावामां घीकांटे शेठ मोतीलाल अमरतलालना मेहेलामा युनियन प्रिन्टिंग प्रेसमां शा.घेलाजाइ नरसीदासे बापी.
संवत १९४४ सने १006
॥श्रा ग्रंथकर्ताए सर्व हक स्वाधीन राख्या ः ॥
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॥अथ विद्याशाला वर्ग ॥
॥ काव्य॥ विद्याशाला विशाला प्रबलतरसुतैर्बुद्धि जाम्या पहारि । विद्वद्भिर्माननीया जिनपद विनबैर्धर्म संपादनाय ॥ सद्धर्मोत्र प्रणा प्रतिदिन मनिशंदर्शनं वंदनंये । कुर्वत्युच्चैः समाजं स्वविनव कुशलथोमिथः श्रावकेया॥१॥ था प्रकणो पदअर्थे लषतां घणो हर्ष वैराग थयो ले पण ते घणोकाल थीरनावी रहेतो महाफल थापे॥
॥श्लोक ॥ धर्माख्याने श्मशानेच रोगिणां या मतिर्नवेत् ॥ यदि सानिश्चला बुधिः को नमुच्येत बंधनात्॥१॥
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॥ विद्याशालामा चोपमीन मले ते॥ रू० ॥ चोपमिन नांम॥ रू० ॥ चोपमिनु नाम ॥ २ शास्त्री प्रतिक्रमण ॥ ॥ रूपविजय तथा पद्म २॥ गुजराती प्रतिक्रमण विजयजी कृत पूजा २॥ प्रक्रणमालानी ॥ १॥ देववंदनमालानी । २॥ पजुसपना व्याख्या १॥ वीरविजेजीकृत पूजा
ननी सशायनी बाळा १ सनात्रपंचासीका गुज बोधनी ग्यानवीमळ ॥ शत्रुजा म्हात्मनी गुण
सूरिजी कृत ॥ ॥ सीरप्रकरणनी टीका ॥ देवसि राइनी ॥ d अमदावाद मोशीवामानी पोळमा
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॥अथ अनुक्रमणिका ॥
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॥सूत्रांनां नाम गाथा ॥ पानु ॥सूत्रांनां नाम गाथा॥ पांनु १ जीववीचार गाथा ५१ ॥ ११५ सीलकुवक गाथाश्॥१६३ २ नवतत्व गाथा ७५ ॥ १३||१६ तपकुलक गाथाश्० ॥ १६७ ३ चनवोसझमक गाथा ॥३२||१७ जावकुलक गाथा२१॥१७३ ४ संघयणी गाथा ३० ॥ ४५१७ उपदेशरत्न कोस२५॥ १७॥ ५ चैतवंदनानाष्य गा.६३॥५३१ ए शास्वता जिननामादी ६ गुरुवंदनानाष्य गा.३१॥ण संख्या स्तवन गाश्५॥१७५ ७ प्रत्याख्याननाष्यगाधन॥७०||२० त्रीलोक चैतबींबसंख्या १ एश G इंद्रिसतक गाथा ॥ ए३||२१ शत्रुजय लघुकल्प२५॥ १ ए६ ए वैराग्यसतक गा१०॥ ११७||२२ रमाकरपचीसी २५॥ २०२ १० धनव्यकुलक गाथाए॥१४||२३ श्री वीरजिनस्तवन१२१२ ११ पुण्यकुलक ५५ बोल ॥२४ श्री मधरस्वामीनु स्तव
गाथा १०॥ १४४|न गाथा १२॥ १४ १२ पुण्यपापकुलकगार ६॥१४७||२५ श्री गुरु प्रदक्षणा ॥ १६ १३ गौतमकुलक गा २०॥ १५२२६ जीवानुसास्ति कुलक॥१७ १४ दानकुलक गाथाश्०॥ १५०
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॥अथ प्रक्रणमाला॥ ॥अर्थ सूत्र सहीत॥
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॥ अथ जीववीचार सूत्र अर्थ ॥ त्रण नवनमां दीवा समान श्री वीरजिनने। .
___नमिने कहुंचं अजाणने जाणवाने अर्थे । नुवण पश्वं वीरं । नमिकण नणामि अबुह बोहवं॥ जीव स्वरूप कांइंक । जेम कह्युले पुर्वना आचार्योइं तीम ॥१॥
जीव सरूवं किंचिवि।जह नणिग्रं पुव्ब सूरिहं॥२॥ जीवे ते जीव मुक्तीना ने संसारी ए बे नेद । त्रस हालता चाल
ता थावर थीर ए बे नेद संसारीना । जीवा मुत्ता संसारिणोय । तस थावराय संसारी॥ थावरना ५ जेद प्रथवी १ पाणीश् अग्नी वायरोध । वनस्पती ५ ए
___ पांच नेद थावरना जाणवा ॥२॥ पुढविर जलजलण३वाकधावणस्सईयथावरानेया।श |फटिक मणि रत्न परवाला । हिंगलोक हाताल मणसील पारो॥
फलिह मणि रयण विहुम । हिंगुलहरियाल मणसिल ||सोना आदि धातु खमी । रमची अरणेटो पाषाण पारे [रसिंदा॥
वो ते कुणो पाषाण॥३॥ कणगाइ धान सेढी । वन्नी अरणेय पलेवा ॥३॥
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अबरख वस्त्र रंगवा योग तथा तेजंतुरी खारी माटी ।
इंम माटी पथ्थरनी जात्यो अनेक वे ॥ अनय तूरी ऊसं । मट्टी पाहाण जाईच णेगा॥ सरमो कालो रातो आदि सिंधव साजी समुद्र लवणादी। इंम प्रथवी
कायना नेद ए आदे देइने ॥ ४ ॥ सोवीरंजण लोणाई। पुढवि नेयाई ईच्चाई ॥४॥ | जुमी ते कुप आदिनां आकाश ते मेघनां पाणी। नेसनां हिमनां
करानां लिलि घासनां धुअरनां ॥ नोमंतरिक मुदगं। नसा हिम करग हरितणू महिया॥ होय थीज्या घी जेवां वैमान आधार जल आदे देइने।
नेद अनेक अपकायना ॥५॥ हुँति घणोदहि माई । नेया णेगान प्रानस्स॥५॥ म अंगारानो झालानो नरसामयनो। नल्कापातनो वजनो क
पीयानो वीजली आदेनो ए॥॥ इंगाल जाल मुम्मुर। नका सणि कणग विजु माईया॥ अग्नीकायना जीवना नेद । जाणवा नीपुणपणानी बुद्दीए करीने॥६॥ __ अगणि जियाणं नेया । नायव्वा निनण बुद्धीए॥६॥ उद्लट वा उंचो वायरो नकली पमे ते वायरो। मंगलवायरो वंतो
लीयो महावात थोमो थोमो वाइं ते वात गुंज्य वात || नभ्यामग नक्कलिआ । मंझलि मह सुघ गुंजवायाय॥ घनवात थीज्या घी समान तनवात ताव्या घी समान ए यादी।
जेद निश्चे वायुकायना ॥॥ घण तणु वाया श्या । नेया खलु वायुकायस्स ॥॥
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हवे वनस्पतीना बे नेद साधारण १ प्रत्येक । वनस्पतीना जीव
बे प्रकारे सूत्रे कह्या ॥ साहारण पत्तेप्रावणसई जीवा दुहा सुए नणिया। जेमने अनंता जीव ने शरीर । एक होय साधारण तेने कहीइं॥॥
जेसि मणंताण तणू । एगा साहारणा तेक॥७॥ सुरणादी कंद उगता सणगा नवा फालनी कुपलो पत्र । पंचवरणी|
फुलण सेवाल बीलामीना टोप ॥ कंदा अंकुर किसलय। पणगा सेवाल नूमि फोमाय॥ श्रादु कचुरो लीली हलदर गाजर मोथ। बाथलो थेग वा हरीयांमुल
पलंकानी जाजी ॥ ए॥ अल्लतिय गजरमोड । वबुला थेग पल्लंका ॥५॥ कुणां फल वली सर्व नथी बंधाणां काष्ट जेहमां तेवां । न देखाय
नस जेहनी रक्षा पीनु वा सिणादीकनां पानमां॥ कोमल फलंच सव्वं । गूढ सिराइं सिपाइं पत्ताई ॥ थुहर कुअरनां पानं गुगली व्रक्ष । गलोवेली ए आदे बेद्यां उगे|
वृक्ष ते ॥ १० ॥ थोहरि कुवारि गुग्गलि।गलोइ पमुहाय बिनहा। इत्यादीक अनेक वंसकारेला प्रमुख । होय नेद अनंतकायना ॥
चाइणो अणेगे। हवंति नेया अणंतकायाणं ।।। | तेमने समस्त जाणवाने अर्थे । लक्षण वा चीन ए सुत्रे कह्यां ॥११॥
तेसिं परि जाणण। लकण मेयं सुए नणिअं॥१॥ गुप्त नसा सांध्यो गांठ्यो वा कातली वा पर्व । समनागे प्रथ्वी मांहीनां
- वृक्ष बेद्यां उगे वक्ष गमुची आदे॥ गूढ सिर संधि पव्वं । सम नंग महीरुहंच बिन्नरुहं॥
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४ ते सघलांसाधारण घणाने नोग योग्य सरीर । तेथी जे उलटां ते
वली प्रत्येक एकने जोग योग्य ॥१२॥ साहारणं सरीरं । त व्विरीयं च पत्तेयं ॥१॥ एक सरीरमा एकज।जीव जे जे च समुच्चय तेज प्रत्येक वनस्पती॥
एग सरीरे एगो। जीवो जेसिं च तेय पत्तेया॥ फलनो? फुलनोर बालिनो३ लाकमानोध । मुलनोए पानमानो८
बीजनोउ ए॥१३॥ फलफुलरबल्लिकन।मुलगपत्ताणिबीयाणि ॥१३॥ प्रत्येक वक्षने मुकीने । पांचनेदे प्रथवि आदे समस्त लोके ॥
पत्तेय तरु मुत्तं । पंचवि पुढवाश्णो सयल लोए॥ सुक्ष्म होय नीश्चे तेनुं ।अंतरमुर्हत आयु चर्मचक्षुथी अदृश्य ॥१४॥
सुहमा हवंति नियमा। अंतमुहुत्ता न अहिस्सा ॥१४॥ शंख १ दक्षणा व्रतादी कोमा कोमीयोश् पेटमां पमे ते जीव । जलो थापना थाय ते अलसीयां लघु शंखला वा लाल मुके ते॥ | संकर कवड्यश्गंमोल।जलोय चंदणग अलस लह मेर काष्टना कीमा पेटना करमीया पाणीना पुरा । ए बेरंगाई॥
द्रीय चूमेल वा कोद्रवाकार आदी ॥१५॥ मेहर किमि पूयरगा। बेइंदिय माश्वाहाई ॥१५॥ कानखजुरा मांकण जूश्रा धूलमां रहेते। कीमीयो उधेही माटिनां
शिखर करे ते मंकोमा || गोमी मंकण जूत्रा। पिपीलि नद्देहिआय मंकोमा ॥ इथलो घयमेलो। सवा पापणमा पमे ते गींगोमा जातीयो॥१६॥
इल्लिय घयमल्लीन । सावय गोगीम जाईन ॥१६॥
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||गदहीयां वा उत्तींगा घुणादीक वा विष्टाना काला कीमा। बांगना
कीमा घानमां पमे ते कीमा ॥ गदहय चोरकीमा । गोमयकीमाय धन्नकीमाय॥ कंथा जुयो वस्त्रादीकनी वा गाय कहे गामरी वा लट कातरी। ए तेरंद्री जेद लालवरणी ममोला इंद्र गोप ते आदे॥ १७॥ __कुंथु गोवालिय इल्लिया। तेइंदिय इंदगोवाई ॥१७॥ हवे चउरंद्रीना नेद कहे वींडी । ढींकण वा बगाई नमरा नमरी
वरण नेदे तीम॥ चरिंदियाय विह। ढिंकण नमराय नमरित्रा तिमा॥ मांरखीयो मांस मसा वा मच्छर।सकारी करोलीया खममांकमी॥१॥
मबिय मंसा मसगा। कंसारी कविल मोलाय॥१७॥ हवे पंचिंद्रीयना नेद चार ले ते। नारकी १ तीर्यंच मनुष ३देवता ॥
पंचिंदियाय चनहा। नारयतिरीयश्मणुस्स३देवाय॥ नारकी सात वीधे ले ते जाणवा रत्नप्रनादिक प्रथवी नेदे करीने॥१॥
नेरश्या सत्तविहा । नायव्वा पुढवि नेएणं ॥१॥ जलचारी? थलचारीश् श्राकाशचारी३। ए त्रण नेदे पंचेंद्री तीर्यंच॥
जलयरर थलयरए खयरा३ । तिविहा पंचिंदिया तिरि हवे जलचर सुसमार पामा जेवा मन काबबो। तंतु मगर [काय॥
मन ए जलचारी जीव ॥ २० ॥ सुसमार मन कचप। गाहा मगराय जलचारी ॥३॥ हवे थलचर चोपद? पेटे चाले ते सर्प । हाथे चाले ते साप३ ते
थलचारी त्रीवीधे ॥ चनपय नरपरी सप्पा।नुयपरि सप्पाय थलयरा तिविहा
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गाय आदे१ साप आदेश नोलीया आदे३ । जाणवा जेम कह्या
तीम संक्षप थकी ॥१॥ गो सप्प ननल पमुहा।बोधव्वा ते समासेणं ॥२१॥ हवे आकाशचारी ते रोमजपंखी हंसादिक । चांममानी पारखोवाला
वागोलादि ते बेतो प्रसीद्ध के नीचे ॥ .. खयरा रोमयपस्की । चम्मय पकी पायमा चेव ॥ मनुषलोकने वा अढीन्द्वीपने बाहीर । पांखो संकोची रहे ते तथा
पांखो वीस्तारी रहे ते ॥ २२॥ नरलोगान बाहिं । समग्गपकी वियपकी ॥२२॥ सघला जलचर थलचर आकाशचर । माटी प्रमुखे उपजे ते।
माताना गर्ने उपजे तेश बे प्रकारे होय ॥ सव्वे जल थल खयरा। समुचिमा गप्नया दुहा हुंति॥ असी मसी कसी १५ कर्मयुक्त प्रथवीना ३० अकर्म प्रथवीना।
५६ अंतरद्वीपना ए एकसो एक थानकना मनुष ॥ २३॥ कम्मा कम्मग महीा । अंतरदीवा मणुस्साय ॥३॥ || दस जेदना नूवनपती होय असुरकुमारादि । आठ नेदना वाणव्यंतर
होय पिशाचादि। दसहा नुवणाहिवई । अविहा वाणमंतरा हुँति ॥ ज्योतिषिय पांचनेदना चंद्र सुर्यादी होय । बे नेदना वैमानीक देव
___ कल्प कल्पातित ॥२४॥ जोसिया पंचविहा । दुविहा विमाणिया देवा ॥४॥ हवे सिद्धनगवान आठ कर्म रहीत ते मना पन्नर नेद । तिर्थसिद्ध
__ अतिर्थसिद्धादी नेदे करीने ॥ सिघा पन्नरस नेत्रा। तिबा तिबाइ सिघ नेएणं ॥
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ए पुर्वे कह्या ते संक्षेपे करीने । जीवना वीकल्प वा नेद समस्त
कह्या ॥ २५ ॥
एए संखेवेां । जीव विगप्पा समकाया ॥ २५ ॥ एते पुर्वोक्त जीवोने जेजे द्वार बे तेते कहे। शरीर आउखु तथा स्थीती सकायमा रहेवानी ॥ एएसिं जीवाणं । सरीर१ मानं विई सकायंमि३ ॥ प्राण जीवाज्योनी तेनुं प्रमाण । जेने जेम डे तेम हुं शांतिसूर कहीस ॥ २६ ॥ पाणा४ जोणिपमाणं । जेसिं जं चि तं मणिमो॥ २६ ॥ एक अंगुलने संख्यातमे जागे । शरीर एकेंद्रि सर्व सुक्ष्म तथा बादर जीवोने होय || गुल संख जागो। सरीर मेगिंदियाण सव्वेसिं ॥ जोजन एकहजार अधीक एटलुं वीशेष ते प्रत्येक वनस्पतीनुं ॥२७॥ जोयण सहस्स महियं । नवरं पत्तेय रुकाएं ॥ २७ ॥ बार जोजन त्रज गाउनुं । एक जोजननुं समुच्चय ए अनुक्रमे जाए वुं ॥ बारस जोयण तिन्नेव गानई । जोणं च अणुकमसो बेरंद्री ते शंख्यादिकनुं तेरंद्री ते कानखजुरादिकनुं । चौरिंद्री ते जमरादिकनुं देहनुं उंचत्वपपुं ॥ २८ ॥
दिय इंदिय । चनरिंदिय देह नच्चतं ॥ २८ ॥ नवधारणी धनुष पांचसेंनुं प्रमाण । नारकी जीव सातमी प्रथवी
श्रादेनानुं ॥
धणु सयपंच पमाणा । नेरईया सत्तमाइ पुढवी ॥
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ते थकी अमयां अमयां धनुषनुं । जाणजो जावत् रत्नप्रना सुधी
प्रथम नरके धनुष ॥ अंगुल ६ ॥२५॥ तत्तो अघ धूणा। नेत्रा रयणप्पहा जाव ॥३॥ ||जोजन एकहजारनुं मान । मच्छर्नु उरपरिसर्पनुं ते पण गर्नज-होय॥
जोयण सहस्स माणा । महा नरगाय गप्नया हुंति ॥ धनुष बेथी नव सुधी पक्षीजीवोनुं गर्नजनुं । नुजाइं चालनारनुं बे
गउथी नव गउनुं शरीर गर्नजनुं ॥३०॥ धणुह पहुत्तं पकी। नुयचारी गाग्य पहुत्तं ॥३०॥ आकाशचारीनुं बे धनुषथी नव धनुषनुं शरीर उमुर्बिमनुं । साप उरपरिनुं तथा जुजाचारीनुं बे जोजनी नव जोजननुं बमुर्जिमनुं ॥
खयरा धणुह पहुत्तं । नरगा नुअगाय जोयण पहुत्तं॥ बे गउथी नव गउ शरीर मान। उमुर्बिम चोपदने कां बे ॥३१॥
गान्य पहुत्तं मित्ता। समुचिमा चनप्पया नणिया॥३१॥ उनीश्चे गउनुं शरीर । चोपद गर्नजने जाणवू देवकुरु आदेना
गजादिकनुं॥ बच्चेव गाग्याई । चनप्पया गप्नया मणेयव्वा ॥ गउ त्रण वली मनुषने शरीर गर्नजने ए पण देवकुरु आदेनानुं । ए
उत्कृष्ट शरीरनुं मान कयुं ॥ ३२॥ कोस तिगंच मणुस्सा । नकोस सरीर माणेणं ॥३॥ नुवनपती व्यंतर ज्योतषी बीजारदेवलोक सुधी देवर्नु ।
हाथ सात होय देहर्नु उंचपगुं॥ ईसाणंतु सुरांणं । रयणीन सत्ता हृत्ति उच्चतं ॥
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ताजु३ चोथुध पांचमुंए तु सा नववेक ने अनुत्तर सुधी एके तमु आठमुंज ए नव १० माथी क हाथ घटामवं ए सर्व उच्छेद |११वारमा१२सुधी चारेनें। अंगुले जाणवू ॥३३॥
दुगढ़ दुगपदुग चनरो । गेविजर गेसु१ क्विक परिहा हवे आयुद्वार बावीसह सातहजार अपकाय, त्रण[णि।३३। जार प्रथवीकायर्नु। हजारनुं वानकायर्नु ।
बावीसा पुढवीए। सत्तय आनस्स तिन्नि वानस्स ॥ वरष हजार दसनुं वनस्पतीनुं वर गणनुं तेतरुगणनुं ने अग्रीमुंत्रण ष पद हजारपद सघले जोमज्यो। अहोरात्री, ए बादरनुं ॥३४॥
वास सहस्सा दसतरु। गणाण तेक तिरता॥३४॥ वरस बारनुं आयु। बेरंद्रीतुं तेरंद्रीन वली॥ वासाणी बारसाक। बेदियाणं तेदियाणंत ॥
चौरंद्री, वली 3 महीनानु ए सर्वनुं गणपचास दोवसनु। नत्कृष्ट ॥३५॥ ___ अनणा पन दिखाई। चरिंदिणंतु उ म्मासा ॥३॥ हवे देवताने नारकीने वायु नत्कृष्टी वा मोटी सागरोपम ते वा थीती।
तरीसनी॥ सुर नेरश्याण विई। नकोसा सागराण तित्तीसं॥ चोपद तीर्यच मनुष ए बे जुग त्रज पल्योपम आयु होय प लीया आश्रीने। ल्योपम कुवाने द्रष्टांते ॥३६॥
चनपय तिरिय मणुस्सा। तिन्निय पलिन्वमा हुँति।३६॥ जलचरजीव नरपुरी सर्प नुज नत्कष्टु बायु होय पुर्वकोम वर्षन पुरी सर्पने।
पुर्व ते ७०५६००० कोम वर्षमुं॥ जलयर नर नुअगाणं। परमान हुंति पुव्व कोमीन॥
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रोमज तथा चर्मज पक्षीननं असंख्यातमो जाग पल्योपमनो वली कडुं ।
॥३७॥ पकीणं पुण नणिन। असंख नागोअपलियस्स ३७
वली बमुर्बिम चन्द कुबीत थां|| सघला सुक्ष्म साधारण। नकना मनुष एटलां ॥ • सव्वे सुहमा साहारणाय। समुछिमा मणुस्साय ॥ नत्कृष्टु तथा झघन्यपणे। अंतरमुहुर्त नीश्चे जीवंति ॥३०॥
नकोस जहन्नेणं। अंत मुहुत्तं चिय जियंति॥३०॥ एमदेहनी अवगाहनानुं प्रमाण। एज रीते संखेपथी समस्त कह्यु॥
नगाहणाने पमाणं । एवं संखेवन समकायं ॥ जे वली इहां वीशेषपणे वीशेष जगवती सुत्रादीकथी जाण इच्छो तो ते।
ज्यो॥३५॥ जे पुण इन विसेसा। विसेस सुत्तान तेनेया ॥३॥ हवे कायस्थीती ३द्वार एकें असंख्याती नुसरपीणी काल पोतानी द्री सर्वे।
कायमां॥ । एगिंदियाय सव्वे। असंख नस्सप्पिणी सकायंमि॥ नपजे तीमज मरे पण ए अनंत काय वा साधारणतो अनंतो टखें वीशेष के।
काल ॥४०॥ नववङति मरंतिय। अणंत काया अणंता ॥४॥ संरख्यातो काल आप आपणा सात वा आठ जव पंचेंद्री तीयंच आयुथी वीगलेंद्रिने विषे। तथा मनुष गर्नज पर्जाप्ता जीव ॥ संकिङ समा विगला। सत्तधनवान पणिदितिरि मणु
कायमा ॥
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नारकी देवता एबेनेतो पोतानी नपजे पोतानी कायमां। कायमां नपजq नश्चेि नथी॥४१॥
ग्ववऊंति स काए। नारय देवाय नो चेव ॥४१॥ हवे प्राणद्वार इसनेदे जीवो पांचइंद्रीय सासोसासर आयु? मन, ने प्राण होय ते॥ वचन काय?ए त्रण बलरूप दशप्राण
दसहा जिाण पाणा। इंदिय ऊसास पान बलरूवा॥ हवे तेहमां एकंद्राने वीषे विगलेंद्रीने वीषे बर सात३ आग्ध च्यार प्राण।
॥४ ॥ एगिदिएसु चनरो। विगलेसुब सत्त अव्व ॥४॥ असंनी मन विनाना सनी मन स नव प्राण दस प्राण अनुक्रमे हीत ए बे पंचिंद्रीयने विषे। जाणवा ॥ | असन्नि सन्नि पंचिंदिए। नव दस कमेण विनेश्रा॥ ते प्राण साथे जुदापणुं थाय जीवोने कहीई मरण प्रत्ये पांम्या ते वारे।
॥४३॥ तेहिं सह विप्पगो। जीवाणं नन्नए मरणं ॥४३॥ || ए पूर्वे कडं ते रीते अ च्यार गतीरूप समुद्र महा दुःख नयं पार एहवो।
कर ते॥ एवं अणोरपारे। संसारे सायरंमि नीमंमि॥ पांम्यो अनंतीवार साथी जीव जे. तेणे अण पाम्यो धर्म ते थकी ते कहे।
॥४४॥ पत्तं अणंत खुत्तो। जीवहिं अपत्त धम्मेहिं ॥४४॥ हवे तारक योनी द्वार५ गणतीए नपजवानां गंम होय जी तीमज चोरासी लाखनी। वोनां ॥
तह चपरासी लका। संखा जोगीणं होई जीवाणं॥
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मर
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प्रथवी पापी अनी वा प्रत्येकेश सात सातज लाखपद जो यु ए ज्यार कायने। मधं ॥४५॥
पुढवाश्णं चन्एहं। पत्तेनं सत्त सत्तेव ॥ ५॥ दसलाख १० प्रत्येक वन चनवलाख १४ होय साधारण वतस्प स्पतीकायमां।
तीने॥ दस पत्तेय तरूणं। चन्दस लका हवंति श्यरेसु॥ बी०२ ती०५ चौ०२ तेमने प्रत्येके बेबे लाख। च्यारलाखध पंचेंद्री तीर्यचने॥६॥
विगलिंदियाण दोदो। चनरो पंचिंदि तिरियाण॥४॥ च्यार च्यार लाख नारकी४ देवताने मनुषनेतो चन्दलाख १४ तथा।
होय॥ चनरो चनरो नारय। सुराण मणुाण चन्दस हवंति। ए सर्वनो सरवालो मेलवी चोरासी लाख जोनी थाय जोनी श
ब्द नपजवानुं गंम॥४७॥ __ संपिंमिश्रा-सव्वे। चुलसी लकान जोगीणं॥४॥ हवे सिद्धनगवाननेतो नथी नथी आयु नथी कर्म नथी प्राण देह।
नथी योनी॥ सिधाणं नचि देहो। नपान कम्मं नपांण जोपीन॥ बाद अंत नथी ए नांगे थीती तीर्थंकरना आगममां कहीले तेमनी।
॥४ ॥ साइ अणंता तेसिं। लिई जिणंदा गमे नणिया॥४॥ कालथी आद्य रहीतपणे मर जोनी ग्रहण करी बीहांमणी या णे करी।
___ संसारमां॥ काले अणा निहणे। जोणी गहणमि नीसणे इछ।
एतो।
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नम्या वली नमसे घणो काल जीव कीया जिनवचन अण पांम कोण।
ता॥४॥ नमिया नमिहिंति चिरं। जीवा जिणवयण मलहंताभए ते कारण माटे हवणां पां मनुषपणुं तेमां दुर्लन यथार्थ मीने सुं।
श्रद्धा तत्वने वीषे ॥ ता संपई संपत्ते। मणुअत्ते दुलहेय समत्ते॥ आचाररूप लक्षमी सहीत शां करो हे नव्य जीवो उद्यम धर्मने तिसूरि नत्तम कहेडे॥ वीषे ॥५०॥ | सिरि संतिसूरि सिके। करेह जो नऊमं धम्मे ॥॥ ए पुर्वे कह्यो ते जीवनो जे अल्पमात्र रुचीवंतने वा मतिवंतने || वीच्यार।
जांणवाने हेते॥ एसो जीव वियारो। संखेव रूईण जाणणा हेक ॥ संखेपमात्र वा अल्पमात्र निधस्यो।
महागंजीर सुत्ररूप समुद्र थकी॥५१॥ संखित्तो नचरि। रूद्दा सुय समुद्दा ॥५॥
॥ इति श्री जीवविचार सूत्र टबार्थ संपूर्ण ॥
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॥हवे श्री जिनागमे नवतत्व स्वरूप ले ते संक्षेपमात्र लखीइं बीए॥ ॥अथ नवतत्व लिष्षते॥
अशुजफलदाइकर्म कर्मयावेते? प्राणधारीचेतनश्जमअचेतन? कर्म रोके ते? प्राचीनकर्म अतांश शुनफलदाइ कर्म। यपणे नाश करे ते १ ॥ [रणा॥ जीवार जीवाश् पुणं३। पावा सव५ संवरोय निक
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१४ कर्मबांधेतेकर्मथीमुकावेते। तीमज।
नवतत्व होय जाणवा ॥१॥ बंधो मुकाया तहा। नवतत्ता हुंति नायव्वा॥२॥ १जीवना१४चनद श्अजीवना१४ पापनाश्व्यासी होय चनद ३पुन्यनाश्वेतालीस। एमाश्रवनाथ श्वेतालीस॥ चन्दस चन्दस बायालीसा। बासीय हुंति बायाला॥
बंधनाच्यार एमोक्षनाएनव ए ने उनीर्जरातपना र श्बार। दअनुक्रमे नवेना २७६ थया ॥२॥||
सत्तावनं बारस। चन नव नेत्रा कमेणसिं ॥२॥ इहां जिनशासने एक प्रकारे च्यार प्रकारे पांच प्रकारे ब प्रकारे बे प्रकारे त्रण प्रकारे। जीव कह्या बे॥
एगविह दुविह तिविहा। चनविहा पंच उ विहा जीवा॥ ज्ञानादि चेतना सहीत ते ए त्रण वेदवाला३ च्यारगतीना पां क नेदे त्रस थावर एबे नेदे। चइंद्रीनाए बकायना६ ॥३॥ ___ चेत्रण तस ईयरेहिं। वे गई करण काएहि॥३॥ हवे जीवना १४नेद ते एकंद्री सु संनीयो? असंनीयो? पंचेंद्री स क्ष्म ने वादर।
हीत बेरंद्री? तेरंद्री? चोरंद्री? ॥ एगिदिश सुहृमि अरा। सन्निअर पणिंदिाय स बि ए सात अपर्याप्ता तथा अनुक्रमे चनद जीवनां [ति चक॥ पर्याप्ता मलीने। तेकांणां वा नेद ॥४॥
अपऊत्ता पऊत्ता। कमेण चन्दस जिमणा ॥४॥ हवे जीवनुं लक्षण कहे ज्ञान द र्शन नीश्चे।
चारीत्र वली तप तीमज ॥ नाणंच' दंसणं। चेव। चरितं३ च तवोध तहा॥
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वीरित्र्ग्रंथ नवनगोय६ ।
३
वीर्य नृपयोग एड सहीत माटे चेतन । ए जीवनुं लक्षण वा० चेतनाए एवं जीवस्स लरकणं ॥ ५॥ पर्याती सासोसास १ नाखा १ मन एवं ॥ [मणे६ ॥ । पद्धती आणपाण४नासथ एकंद्रीने च्यार वीगजेंद्रीने पांच सनीने पांच सनीने ॥ ६ ॥ इग विगला सन्नि सन्नि॥६॥ सासोसास १ आयु ? ए दस प्रां ण तेमां च्यार४ ६ सात७ या
उ८ ॥
हवे पर्याप्ती वा शक्ती श्राहार १ सरीर इंद्री १ । प्रहार १ सरीरदि च्यार पांच पांच व कोने ते
कहेते ।
चन पंच पंच बप्पय ।
हवे दस प्राण कीया ते पांच इंद्री ५ त्रण बल ३ मनबल व
चनबल कायबल ।
पणिदिति बलूसा ।
एकंद्रीने ४ बेरंद्रीने ६ तेरंद्री ने चोरंद्रीने । इग दुति चरिंदि । ए प्रथम जीवतत्व? उत्तर भेद १४ थया । इति जीवतव्व ॥ १ ॥
हवे जीव तत्वना १४नेद धर्मास्तीका य धर्मास्तोकाय याकासास्तोकाय ।
सा न दस पाण चन व सग असंनीयाने एसंनीयाने १० [ | नव दनुक्रमे ॥ ७ ॥
ते त्रण कीया खंध ते या खो देश ते थोमो प्रदेश ते हथी थोमो नीवभाग ॥ खंधा देस पसा ॥
सन्नि सन्नि नव दसय ॥७॥
ना प्रत्येके त्रण त्रण
नेद तीमज एक कालनो स मयादीक ॥
धम्मा३ धम्मा३ गासा३ । तिति ने तहेव
[ श्रधाय २ ॥ परमाणु ते एक प्रदेश निर्विभाग नो ए अजीवना चन्द नेद ॥ ८ ॥ परमाणु अजीव चन्दसहा ॥८॥
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धर्मास्तीकाय अर्धास्तीकाय आकासास्तीकाय काल ए पांच पुद्गलास्तीकाय।
होय अजीवद्रव्य। धम्मा धम्मा पुग्गल। नह कालो पंच हुंति अजीवा॥ चालताने साझ देवानो स्वना थीर संतांण स्वनाव अधर्मास्ती व धर्मास्तीकायनो। कायनो॥ ए॥
चलण सहावो धम्मो। थीर संघणो अहम्मोत्रणा अवकाश आपवानो स्वना कोने पुद्गल जीव बनेने हवे पद्दल व आकासास्तीकायनो। च्यार नेदे ते केहे ॥
अवगाहो अागासं। पुग्गल जीवाण पुग्गला चव्हा॥ खंधर देश प्रदेश १ एत्रण परमाणु सर्वथा नांहांनो नश्चेि जाण तथा।
वा ए च्यार नेद ॥ १०॥ खंधा देस पएसा। परमाणुर चेव नायव्वा ॥१०॥ हवे कालनेद समय आवली रातने दिघस पन्नर अहोरत्री ते पक्ष बेघमी।
बे पक्षे मास बारमासे वर्ष ॥ समया वलि मुहुत्ता। दीहा पकाय मास वरीसाय॥ कह्यो पल्योपम काल साग दस दस कोमाकोमी सागरे म्हार रोपम काल।
पीणी अवसरपीणी काल ॥११॥ जणिन पलिया सागर। नसप्पिणी सप्पिणी कालो हवे पुद्गलनुलक्षण कहे शब्द प्रना चंद्रकांतादीनी बांयमो ता अंधकार नद्योत रत्नादिकनो। प सुर्यादीकनो॥
सहं धयार नकोय। पना गया तवेश्या॥ वर्ण कमादी गंध सुर्नियादि ए पुद्गल, नीचे लक्षण जाणवू रस तीखादी फर्स शीतादी। ॥१२॥
वन्न गंध रस फास। पुग्गलाणं तु लकणं ॥१२॥
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हवे मुहुर्तमान एककोम समसग्लाख। सित्योतेरहजार॥ एगाकोमी सतसही लका। सत्तहत्तरी सहस्साय॥
. एटली यावलीकाले एक मुहु बसेंने सोल अधीक १६७७७५१६। काल ॥१३॥
दोसया सोल हिआ। आवलिया एग मुहत्तंमि१३ अथवा बीजी रीते मुहुर्तमान त्रण तीहतर ए समग्र सासो हजार सातसेंने।
सासे ३७७३॥ तिन्निसहस्सा सत्तयसयाणि। तेहुत्तरं च नस्सासा॥ एम एकमुहुर्त्तकाल कह्यो केणे।समस्त वा सघला केवलज्ञानीयोए१४
एस मुहुत्तो नपि। सव्वहिं अणंतनाणीहिं॥१४॥ ए केहेवे करी अजीवतत्व २ भेद १४चनद उत्तर॥
॥इति श्री अजीवतत्व ॥२॥ हवे पुन्यतत्वना नेद४ श्सातारनंच देवगती अनुपुर्वी पंचेंद्रीजा गोत्रमनुषगतीअनुपुर्वी ए दुग। ति? पांचसरीर५॥
सारनच्चगोअरमणुदुगर सुरदुगपंचिंदिजारपण पहेलां नदारीक वैक्रीय आहा प्रथम संघयण' प्र रक ए त्रण सरीरनां श्नपांग। संस्थान ॥१५॥
आइ ति तणुणुवंगा३। आश्म संघयणसंगणाः॥१॥ वर्णचोक शुजय अगुरुलधुर पराघातर सासोसास? आताप? हलवं नहीं नारे नहीं ते। न्योत? ॥ ..
वनचनकाधगुरुलहु१। परघा?कसासश्त्र वृषन हंस गज जेवी चाल्य निर्माण देवतार्नु? मनुषनु? तीर्यचनुर | ते शरिरनो सुघाटश्त्रसनोदसको२०। आयु तीर्थंकरनांमए४।१६।।
सुनखगनिमिणरतस सुरश्नर तिरिश्ान तिबय
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हवे त्रसदसक नाम दस१०। प्रत्येक १ थीर? शुनर [२१ ॥१६॥ त्रसरबादर१ पर्याप्त। वली शुनगर वली॥
तस बायर पऊत्तं। पत्तेत्र थिरं सुनं च सुनगं च ॥ सुस्वरादेयजसकीर्ती एवं। त्रसादेनो दसको एंम होय।१७
सुसरा ऊ जसं। तसा दसगं श्मं हो॥१॥ एवं पुन्यतत्वना नेद बेतालीस ॥ ३ ॥
॥इति पुन्यतल ॥३॥ हवे पापतत्वना भेद ज्ञानाव नवप्रक्रतिएबीजादर्शनावर्णिकर्मनी ॥र्णिपांचएअंतरायपांचएएदसा नीचगोत्र असातावेदनी मिथ्यात्व
नाणं तराय दसगं। नव बीए नी असाय मिचितं॥ थावरनोदसकोर नरकगती, कषाय पचीसश्य तिर्यंचगतीर अनु अनुपुर्विर आयुर एत्रीक। पुर्विर ए दुग ॥१७॥
थावर दस नरय तिगं। कसाय पणवीस तिरिय दुगं।१७ हवे बीजाकर्मनीए चक्षुए दे कान नाक रसनाने फर्सवमे करीने अघ ||खे ते१ चक्षु वीना देखे ते१। धीदर्शने देखतेश्केवलदर्शनेदेखतेश्वली
चकु दिछि अचरकु। सेसिंदिअ नहि केवलेहिं च ॥ दर्शन ते इहां सामान्य अव ते ज्यार गुणने रोके ते तेज च्यारने बोध।
देवावर्ण ॥ १॥ दंसण मिह सामन्नं। तस्सा वरणं तयं चव्हा ॥१॥ पांचनेदेनीद्रा सुखेजागेते नीदा। नीद्रा नीद्रा ते दुखे जागे ते१॥ सुह पमिबोहा निहा। निदा निदाय दुक पमिबोहा॥
प्रचलाप्रचला ते चालता नंघे ते घो प्रबला ते ननां बेठां नंघे ते। मानी परें? ॥२०॥
पयलाहिनव विघ्स्स। पयल पयला चंकम॥३०॥
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दीवशे चिंतव्यां कार्यनी करणी थीणंदी नांमे नीद्रा तेनुं अर्धचक्री करे नंघमां रात्रे। वासुदेव तेथीअर्ध बलदेव समबल । दिण चिंति अब करणी। थीणही अघचक्कि अधबला॥ ए रीते तिर्थंकरदेवे कह्युले उमीदार तुल्य दर्शनावी कर्म ते स्युं ते कहे।
नी नव प्रक्रति ॥१॥ एवं जिणेहिं नणिय। वित्ति समं दंसणावरणं ॥२॥ हवे थावरनो दसको थावर सूक्ष्म अपर्याप्त। साधारण अथिर अशुजर दुनर्ग१॥
थावर सुहुम अपऊ। साहारण अथिर असुन दुनगाणी दुस्वर अनादेयरअजस । एथारनो दसको वीवर्यो जेम तीम
दुसर पाश्जा जसं। थावर दसगं विवऊ ॥२२॥ हवे कषायश्थीती जीवतां सुधीय एक पक्ष संजलनी स्युं फ नंतानुबंधिनी एक वर्ष अप्रत्यारख्या लगती नरकर तिर्यंच नीनी च्यार मास प्रत्याख्यानीनी। नर३ देवतानी।
जावजीव वरस चन्मास। पकग्ग निरय तिरिय नर स्युं रोके समकिती अनुव्र यथाख्यातचारीत्रधए च्या अमरा॥ तर सर्वविरती३। र गुणने रोके ॥ २३ ॥ | सम्मा णु सव्वविर। अहकाय चरित्त घायकरा॥२३॥ संजलनोजलनी प्रत्याख्यानीनों रजनी? अप्रत्याख्यानीनो प्रथवी रेखा सरीखो चार नेदे क्रोध नीर अनंतानुबंधिनो पर्वतनी। होय॥
जल रेणु पुढवी पव्वय। राई सरिसो चम विहो कोहो॥ तरणानी सली वा नेत्रनी वेल पथरना थांनानी पमा तुल्य! नीरलाकमानार हामकाना। मान च्यार दे॥२४॥ तिण सलया की। सेल बंनो वमो माणो॥४॥
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हवे माया वांक वांसनी बाल्य बोकमार्नु सिंघ' नीवम वासना मु व्रषन मुत्रधारे पमेली। ल समान ॥ __ माया वलेहि गोमुत्ति। मिंढ सिंग घण वंसि मूल समा॥ हवे लोन रंग हलदर? गामा नगरनाकर्दमना कर्मजना रंग जेवो नी मलीर तेना। ‘ए सोल कषाय ॥२५॥
लोहो हलिह खंजण। कदम किमि राग सारिबो॥३॥ हवे जे कर्मना नदय होय जी हासी रति १ अरति ? शोग? नयर वने।
दुगंडा॥ जस्सुदया होइ जिए। हास र अरई सोग नय कुछ। ते इं नीमीत्तथी थाय वा अ थवा स्वनावे थाय अन्यथा ते। तेइहां हास्यादीक मोहनीय॥२६॥ स निमित्त मन्त्रहा वा। तंह हासाई मोहणि॥६॥
अनिलाष जे कर्मने वसे करीने होय पुरुषनो स्त्रिनो ते बेनो पण। ते अनुक्रमे ॥
पुरिसि बी तदुनयंप। अहिलासो जच्चसा हवइ सोन॥ |स्त्रिी पुरुष नपुंसकर वेद वीषय बकरीनी लीमीनो ताप तरणा
नो नदय जांणवो। नो ताप नगरनो दाह ते समान॥२॥ । थी नर नपुं वे न्दन। फुफुम तण नगर दाह समो॥॥
एकंद्री बेरंद्री तेरंद्री गर्दन नंट जेवी चाल र नपघात |चोरंद्रीर ए जाती चोक। होय पापथी ॥२॥
इंग बि ति चनजाइन। कुकग व्वघाय हुंति पावस्स॥ अमनोज्ञ वर्णर गंधर रस नही पेहेलुं संघयणए तथा संस्थान फर्स१ ए च्यार। बाकी दसे होय ॥२७॥
अपसब वनचक। अ पढम संघयण संगणा॥॥
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२१
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हवे संघयण कहेले संघयण ते सु हामकांनो समुह। तेन प्रकारे वरिषननाराच१॥
संघयण मछि निचन। तंबघा वऊरिसहनारायं॥ तीमज रिषजनाराच। नाराच३ अर्धनाराच ॥२॥
तह रिसहनारायं। नारायं अपनारायं ॥२॥ कीलीकाएदेवतु इहां। रीषनते पाटोकीलीका वा खोलीते वजनी॥
कीलिअवठंह। रिसहो पहो कीलिया वऊं ॥ बे बाजु मांहोमांही बंध ते ते नाराच ए प्रकारे नदारीक स मर्कट बंध।
रीरे होय तिरि नरने ॥३०॥ नन मकम बंधो। नारायं श्म मुरालंगे॥३०॥ हवे संस्थांन नांम समचोरस नियोध।
सादी३ वामणध कुन हुंमक६ ॥ समचरंसर निग्गोह। साश्३वामणयखुऊपहुंमेअद॥ ए जीवना सरीरना उ नेदे सर्वथा जला लक्षण सहीत प्रथम आकार।
जाणवू ॥ || जीवाण व संगणा। सव्वन सुलकणं पढमं॥३१॥ नानी नपरनो नाग सुलक्षण तीजुं मुख पीठ पेट रदय तेने वर्जीने ते बीजूं।
बाकी नलां॥ नाहिन्वरि बीअं। तश्अंमहो पिठिनअर नर वऊं॥ माथु कोट हाथ पग ए अंग। सुलक्षण ते चोथु वली तेथी ॥३॥
सीर गीव पाणी पाए। सुलकणं तं चन् तु॥३॥ वीपरीत वा नलटु ते पांचमुंअंग। सर्वप्रकारे अशोजन होय तुं॥
विवरीयं पंचमंगं। सव्वब लकणं नवे ॥
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ए रीते सरीरनाकारनी वी श्री जिनेंद्र प्रधान वीतराग अनुइं धी कही।
संगण विहा नणिश्रा। जिणंद वर वीयरागेहिं॥३३॥ ए केहवे करी पापतत्व । नेद ७५ कह्या ॥
ति पापतत्व ॥४॥
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हवे आश्रव नेद ४२ इंद्रीय जोग३ पांच च्यार पांच त्रण अनु कषाय अव्रत।
क्रमे नेद ॥ इंदिर कसाय अव्वय। जोगा पंच चन पंच तिनि कमा॥ पापकीरीयाश्यपचीस। एम समस्त कही अनुक्रमे करीने ॥३॥
किरियान पणवीसं। इमा नता अणुकमसो॥३४॥ हवे कीरीयानां नाम कायाइं अ पर नपर द्वेष करे ते? पानसीय कार्य करे ते कायकीर खमग आ की स्वपरने परीताप नपजावे ते ये शस्त्रथी ते अहिगर्णका। परितापकी कीरीया ॥
काश्नर अहिगरणिपाए। पानसिप्रा३पारितावणी जीवहींसा करे ते प्राणाति धनधान्यादी परिग्रह घरनीर्वा किरिया पातकी वारंनकी ते घर हथी अधिक इच्छे वा मेलवे ते परियकी? घरांणा कृषि आदे करेते। कपटकरी ठगे ते मायावत्तीयकी१॥३॥
पाणाश्वायाधरंनिश्रद। परिग्गहियामायवत्तीय॥३॥ मिथ्यात्वदर्शन प्रत्ययकी कांइ व्रत नीयम न धरे ते अपञ्चरखाण ते खोटाने खरू खराने की कांइ वस्तु माता कामरागथी जुए खोटु माने जिनवचनथी ते दृष्टीरागकी' फर्ष प्रत्ययकी ते कांइव वीपरीत ते। स्तु माता कामरागे फर्से ते॥ मिबादंसण वत्तीए। अपच्चकाणीयर दिी११पुषीय१२॥
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पर वखाणे राजीथाय ते सामंतोपनिय मातुचीतवे मनमां स्वपरने की यंत्रादीके करि बापे करे ते नेस|| दुःखदाइ ते पामुचीयकीर बिकी? पोताने हाथे दुष्ट कृत्य करे ते
आप रिद्वीअवादि देखी। स्वहाबीकी ॥३६॥ __पामुच्चिय१३सामंतो।वणीअ१४नेसबि१५साहबी१६ ॥३६॥ मंगावे कांइ पर पासे ते आणव शुन्यचीत्ते लेवा मुकवादि करे तेथ एगीकी वीदार, वा नागवं फल गानोगकी आलोक परलोक धर्म आदे ते वीदारणकी। वीरुद्ध करे ते अणवखप्रत्ययकी? आणवणि१७वियारणीया१। अपनोगा?एप्रणवकंखर०
त्रिकणे मनोज्ञथीरा पञ्चश्त्रा॥ पोताना कार्य नपरांत घटादि क गेराचीने करे ते पीजकी? द्वेषे को रावे वा माता योगे लागे ते अना इने माठे नावे खीजq ते दोषकी? पयोगकीर घणा मली करे ते वा हवे गुणगाणे १३ मे केवलीने सु करावाथी सर्व कर्म बंधाये ते स धरीते चालतां पण काययोगी मुदाणकी।
लागे ते इरियावहीकी१॥३७॥ अन्नापयोग?समुदाणय२२। पिजा२३ दोस२४ रियावहि ए प्रकारे पाप आवे ते आश्रवतत्व ॥५॥न०४२[प्रा२५॥३॥
ति आश्रवतत्व ॥५॥
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हवे संवर नेद ५७ समति५ मुनीनो धर्म? " नावना१२चारीत्र गुप्ती परीसह । तेना नेद॥ ॥ समई गुत्ति परीसहा। जश्धम्मो नावणा चरित्ताणि।।
पांच दे करी सत्तावन सर्वना पांच त्रण बावीस दस बार। थया समती आदेना ॥ ३० ॥
पण ती दुवीस दस बार। पंच नेएहिं सगवन्ना ॥३॥
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२४ हवे सुमति पांच चालवानीरबोलवा मलमुत्र पठवणनीर सुमति नीर गवेषणानी लेवामुकवानी। ते तेने वीषे नली मती॥ ॥ रिश्राश्नासेरसणादाणे।। नचारे सामईसुत्र॥ ||मन गोपवयूँ? वचन गोपवर काया गोपववी? तीमज ए त्र माता कामथी।
ण गुप्ती॥३५॥ __ मणगुत्तीर वयगुत्ती। कायगुत्ती३ तहेवय ॥ ३०॥ हवे परीसहश्र नुख सहे? तरस मांस सहे? वस्त्र जुने न सहे? अ सहे? सीत सहे? नाम सहे।। सातासहे? स्त्रीनेरागे लेवायनही?
खुहारपिवासाशसिक्नएहं । दसायचेलाइरईबिन॥ चालवाथी समवीषम जग्योइं दुर्वाक्य सहे? मारपरीसह१ मा बेसवाथीरसज्यापरीसह सहे। गवानो परीस१॥४०॥
चरिआएनिसीहियार० अक्कोसर श्वह१३जायणार अणपांमे रोगया सिझारदेह वस्त्र मेले? बहु माने[॥४॥ वे? मान प्रमुख फर्से सहे। लेवाय नही? सर्व प्रकारे सहे॥ __ अलोनर रोगरतणु मल र सकाररएपरिसहा ॥ विद्याबुद्दीअज्ञान [फासार। ए प्रकारे बावीस नेदे त्रीवीध्ये नपसर्गे धर्मे अमग? श्रद्धाघंत। चले नही सर्व सहे ॥४१॥
पन्नाशण्अन्नाणसम्म अबावीस परिसहा॥४॥ हवे जतीधर्म दशनेदे तंशश नीलॊनता र इच्छारोधी आश्रव त्या ते क्षमा? सरलता? नमृता। गपगुं१ जाणवं॥
खंत्तिरअऊवश्मदव३ । मुत्ती तवएसंजमेप्रबोधव्व।। सत्यवादी? पवीत्र वा निरतिचार१ ब्रह्मचर्य? ए दस नेदे जतीनो|| परीग्रह ममता रहीत? वली। धर्म जाणवो ॥४॥
सच्चं सोयंअकिंचणण्च। बंनंचर जईधम्मो॥४॥
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हवे जावना बार प्रथम संसारी संबंध अनीत्य बे१ कोइ कोइ ने शरण नथी १ ।
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पढम मणिच्च १ मसरणं शरीर शुचीमय ते १ कर्म यावे श्राश्रव१ कर्म रोके ते संवर१ ।
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च्यारगती योनी ८४ लाष तेन दुषचि तवन? जीव एकलो आव्यो एकलो जासे १ कोइ कोइनुं संबंधी नथी १ ॥ संसारो ३ एगयाइ ४ अन्नतं ॥
तीमज प्राचीन कर्म खपावे ते नवमी ॥ ४३ ॥
। तह निकरानवमी ॥ ४३ ॥ दुर्लन धर्म साधक अरिहंत क थीत ए जावना १ ॥ दुन्नहा धम्मस्स साहगा अ नाववी जीवे यथार्थ [रिहा १ २ || नद्यमे करीने ॥ ४४ ॥ भावेश्रव्वा पयत्तेणं ॥ ४४ ॥
सुइत्तं ६ सव संवरो
ब द्रव्ये पुरीत लोक स्वरूप चीं तन १ समकीत जावना १ । लोगसहावो १० बोही ११।
ए यादी नावनानु प्रत्येके चींतवन करी ।
एयान नावणा । हवे चारीत्रपांच समजावे सर्व सावद्य बेदोपस्थापन होय बीजु चार त्यागरूप सामायकचारीत्र १ इहांप्रथम त्र ते वमीदिक्षा देवारूप १ ॥ बेवावणं नवे बी२ ॥
सामाइन पढमं १ । परीहारवीशुधी तप विशेष | चारीत्र नवजणे होय १ । परिहारविसुधीयं३ । तीवारपढे यथाख्यात चारीत्र १ तत्तो हखायं ।
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जे श्रादरी पाली जला हीतका
सुक्ष्म संपराय तीम दसमे गुला ऐ १ वली ॥ ४५ ॥
सुहुमं तह संपरायं च४ ॥४८॥ वीख्यात बे सर्व जीवलोक मध्ये ॥ खायं सव्वंमी जीवलोगंमि ॥
रक ।
पोहोचे अजर अमर स्थानक जे मोक्षस्थानके ॥ ४६ ॥ जं चरिन सुविहिया । वच्चति श्रयरामरंधणं ॥ ४६ ॥
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|ए रीते संवरतत्व उतुं ॥ ६॥ नेद ५७
इशि संवरतत्व ॥६॥
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हवे नीर्जराजेदरश्नही असन वा अनीयहे वार निमादि संजारे आहार?अणोदरी एककवलादीनि? बतिसंखेप १ रसवीगेनुं तजवू॥
अणसणरमुणोशरिया। वित्तिसंखेवणं३रसच्चान॥ लोचादीके करीने? अंगोपांग सं एड बाझतापना नेद होय कोचवे करी।
लोक प्रसीद्ध ते बाझ॥४॥ कायकिलेसोथसंलीयाय। बसोतवो होई ॥४॥ पाप लागु ते गुरु पासे कही प्रायदि आचार्यादीकनी सेवादीक तीम तले गुणी वमेरानो वीनय करे।। ज पांचनेदे? जणवादी सझाय? | पायचित्र विणन। वेयावच्चं तहेव सज्जान४॥ पदस्थादी च्यार दे धर्म शुक्लध्या ए बनेदे अभ्यंतर तप होयचं न करे? कानसग्ग पिण करे। तरंग मोक्ष हेतु माटे ॥४॥
जाणंए नस्सग्गोविअद। अप्रिंतर तवो होइ॥४॥ जे दुषण लागे ते दंन रहीत ननयते बालोयण पमिकमण एबे गुरु आगे केहेवू ॥१॥पमिकम करि गुरु आगे मिथ्या दुक्रत देवो णु करतुं वा पाप दुषण न ल ॥३॥अकल्प जात पांणीनो त्याग गावें ॥२॥
करवो॥॥कानुसग्ग करवो काय
व्यापार त्याग लक्षण ॥५॥ आलोयणर पमिक्कमणो। नय३ विवेगध मुसग्गोए। गुरुदत्स वीगयत्यागधी जाव नमासी तप परांचीत जे गच्छबाहीरली नुं करवू ॥६॥कांइक व्रत पर्जायनुं यथा गबाहीर यावत् योग काल योग बेदq॥॥सर्वथा व्रत पर्जायनुं ले क्षेत्र बाहीर सिद्धसेनदिवा
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दवू ॥॥ सर्व व्रत पर्यायन बेदq ने व करनी परे ते निश्चे ॥१०॥ ली यथायोग तपनुं देवं ॥॥ ॥४॥
तव यामूलप्रणवघ्याया। पारंचिय चेवराणा सेवनादी नक्ति रदयप्रेम।। नपजावई वा बोलवू? अवर्णवादनुं गुणस्तुतीनुं॥ गोपवQ१ ॥ .
नत्तीरबहुमाणोश्वन्न । जणंणं नासण३मवन्न वायस्सा तेत्रीस आसातना वा अवज्ञा वीनय ए पांच नेदे संक्षेपमात्र नो परीहार वा त्याग। ए प्रकारे कह्यो ॥ ५० ॥
आसायण परिहाणोय। विणन संखेवन एसो॥५॥ आचार्यनी पंचाचार पाले ते बन अमादी तपसी? नवदिक्षी नपाध्याय सुत्र नणावनारनी। तशीष्य र रोगी? साधु तेमनी१॥
आयरियरवन्शाय। तवस्सिसेहे गिलाणएसाहु समानधर्मी? चतुर्वीधसंघ र एक साधुनो एम वैयावच होय [सु॥ परीवार घणा मुनीनो परीवार र तेमनी दस प्रकारे ॥५१॥
समणुन्नसंघाकुलागणार वेयावच्चं हवई दसहा ५१ ध्यानजे एकाग्रता चारनेदे नीचे। वार्तरूद्ररतीमज धर्मध्यान वली
साणं चनव्विहं खलु। अतंररूदंश्तहेव धम्मं च३॥ शुक्लध्यानध वली ते च्यार च्यार नेदे नीचे जाणवां एटले च्या |पण प्रत्येके प्रत्येके। रेना १६ नेद वे ॥५॥
सुकं पुण पत्तेयं। चव्विहं चेव नायव्वं ॥५२॥ बार नेदे तप ते नीर्जरातत्व। हवे बंधतत्वना दबंधते कर्म|| ए प्रकारे नीर्जरातत्व॥॥नेद१२ नुं बांधवू च्यार दे ते कहे॥|| बारसविहं तवो निऊराय। बंधोय चनवि गप्पोय ॥
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प्रकृतीबंधश्थीतीबंधअनुनागबंध। प्रदेशबंध?एनेदेकरीजांणवा९३
पयरीईश्अणुनाग३ । पएसध्नेएहिं नायव्वा॥५३॥ प्रकृती ते स्वनाव कह्यो जे थीती ते कालमान अथवा म सुंर तीखी लींब कटुक। काल हरण समयादि ने॥
पयई सहाव वुत्ता। शि कालोवहारणं॥ अनुनाग ते रसबंध जाणवो प्रदेश ते कर्मनां दलीयानो संच|| एक दि गुणादि।
य वा मेलवयूँ ॥५४॥ __ अणुनागो रसो नेन। पएसो दल संचन ॥५४॥ हवे प्रकृति मुल नत्तर १५७ इहां वेदनीर मोहनी आयुरनांम? ज्ञानावर्णि१ दर्शनावर्णि। गोत्रर कर्म ॥ इह नाणदंसणाश्वरण। वेअश्मोहाधमयनामहंगो
आयुध नामर ०३ गो याणि॥ अंतरायकर्म?ए मुल थाd वली र अंतरायकर्मनीए एवं नुत्तर उत्तर ज्ञा० पद एवं मो०२७ जेदे आवेनी १५७ ॥ ५५ ॥
विग्घंच पण नव दुअ चनतिसय दु पण नेय॥५॥ हवे मुलकर्मनीस्थीती अध्वीसा वेदनीकर्म? नीचे वली अंतराय ज्ञानावर्णि१ दर्शनावर्णिकर्म। कर्म१॥
नाणेर दंसणाश् वरणे। वेयणीए३ चेव अंतराएअ॥ ए ब्यारे घातीकर्मनी त्रीस सागरोपमनी थीती नत्कृष्टी ले कोमा कोम।
॥५६॥ तीसं कोमाकोमी। अयराणं हि नकोसा॥५६॥ ||सितेर कोमा कोम सागरो मोहनी कर्मनी ने वीस कोमाकोमनी | पनी थीती।
नाम गोत्रनी ॥ सित्तरी कोमा कोमी। मोहणीएरवीस नामश्गोएसु३॥
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|तेत्रीस सागरोपमनी थीती। आयुकर्मनी डे ए रीते स्थीतीबंध नत्
कृष्टो कह्यो ॥ ५ ॥ तित्तीसं अयराइं। आन लिई बंध मुक्कोसा ॥५॥ हवे बार मुहुर्त वा चोवीस वेदनी कर्मनो आठ मुहुर्त्तनो नाम घमीनो झघन्य वा थोमो। कर्म गोत्र कर्मनो॥
बारस मुहुत्त जहन्ना। वेअणिए अनाम गोएसु॥ बीजा पांच कर्मनो झघन्य थी ए रीते घाती अघातीनी बंध स्थि ती बंध अंतर मुहुर्तनो । तीनुं प्रमाण कद्यं ॥ ५ ॥
सेसा पंतमुहत्तं। एयं बंधठिई माणं ॥५॥ इति बंधतत्व ॥ ७ ॥ नुत्तर नेद ।
ति बंधतत्व ॥७॥
हवे मोक्षतत्व नव नेदे कहेले जीवद्रव्यनुं प्रमाण वली क्षेत्रनुं बता पदनी परूपणा। मांन' फरसना ॥
संतं पय परूवणया। दव्व पमाणंश्च कित्त३फुसणा कालमांन? सिद्धनो अंतरर रहे नावमांनर थोमा घणानुं [या वानो नाग।
मान नीचे एवं नव ॥ ५॥ कालोयएअंतरंदनागो । नावअप्पाबहाण्चेवाणा बतापणे वे नीर्मल मोक्षपद वर्ततुं आकास फुलवत् नथी थ ते जगतमां।
तुं॥ संतं सुध पयत्ता। विशंतं ख कुसुमंव न असंतं॥ मोक्ष इति पद तेहतणी। परूपणा गति मार्गणादीके करीने
कहींइंडे ॥६॥ मुकत्ति पयं तस्स। परूवणा मग्गणाहिं ॥६॥
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३० गति च्यार। इंद्री पांच५ काय जोग त्रण वेदत्रण३ कषाय च्या|| बद।
र ज्ञान पाठ ॥ गइर इंदिअ काए । जोए वेएएकसायनाणेसु॥ संजम सात दर्शन च्यार लेस्या नव्य बेर सम्यक्त ड६ संनि बेश बद।
थाहारि बेश्ए मार्गणा कही।८१|| __ संजमदंसंणाण्लेसार। नवसम्मे१२सन्नि?३ाहा हवे केटली मार्गणाए सिद्धि मनुष्य नव्यत्व र संनिर[रे१४॥६॥ गतिर पंचेंद्रीजाति त्रसकाय'। यथारख्यात चारीत्रर॥
नरगरपणिदिश्तस। नवसन्निएअहवायः॥ क्षायक सम्यक्ते मोक्ष पांमे केवलदर्शन केवलज्ञानर ए दशे|| अणहारी मार्गणा। मोक्ष पांमे नही बाकी मार्गणाए
मोक्ष द्वार? ॥६॥ खश्यसम्मत्ते मुकोण केवल दंसणाण्नाणेरन सेसे हवे द्रव्यप्रमाणमा [हार। जीवद्रव्य होय अनंत[सु॥६॥ सिद्धनगवान् तेमना। संख्याये द्वार॥
दव्वपमाणे सिघाणं। जीवदव्वाणि हंति णंताणि ॥ चन्दराजलोकना असंख्यात जाग एकमां एक सिद्ध डे वा सर्व
सिद्ध डे दार३ ॥३॥ लोगस्स असंखि। नागे एकोय सव्वेसिं ॥६३॥ सिद्धनी स्पर्शना अधीकीले द्वार एक सिद्ध आश्री सादिअनंतले स हवे कालद्वार कहे। आश्री अनादिअनंत ले द्वारा
फुसणा अहिया कालो। इग सिघ पमुच्च साइनणंतो॥ तीहांथी पमवाना अनावथी। सिद्धोने अंतर नथी द्वार६॥६॥
पमिवाया नावान। सिघाणं अंतरं ननि ॥६॥
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सर्व संसारी जीवोने अनंतमे। जागे सिद्ध द्वार ७ ते सिद्ध तेम||
ने दर्शन ज्ञान ॥ सव्व जीयाण मणंते। नागे तेतेसिं दंसणं नापं ॥ क्षायकनावे जे परिणामीकनावे। वली होय जीवत्वपणुं द्वार |
हवे सिद्धना १५ नेद ॥६५॥ खइएनावे परिणामिएय। पुण होइ जीवत्तं ॥६५॥ जिनसिद्ध अरिहार सामान्य के घरवासे सिद्धा ते तापसादीक वली तिर्थ थाप्या पले सिद्धाते? लींगे ते? जिनलींगे? स्त्री नर तिर्थ थाप्या विना सिद्धा ते। पुरुष क्रतनपुंसक॥ जिण?अजिणशतिबा३ गिहिअन्नसलिंगीन्नरए"
तिबं। प्रतीबोधे सिद्धा ते? [नपुंसा१०॥ बाझ प्रत्यय देखीने सिद्धा ते एक समे एक सिद्धा ते एक स पोतानी मेले सिद्धा ते। मय अनेक सिद्धा ते१ ॥६६॥
पत्तेय?१सयंबुघा१२। बुधबोहि१३२१४णिकाय१॥६६॥ हवे अल्पा बहुत्व द्वार ५ स्त्रि सिद्ध पुरुष सिद्ध अनुक्रमे संख्या थोमा नपुंसक सिद्ध थया। त गुणा द्वार ए॥
थोवा नपुंससिघा। थी नर सिघा कमेण संखगुणा॥ एम मोक्षतत्व नवद्वारे एकमुहै। एम नवेतत्व लेषमात्र कह्यां॥६॥
श्य मुकतत्त मेयं। नवतत्ता लेसन नणिया॥६॥ जीवादी नवपदार्थ प्रत्ये।जे जीव जाणे तेहने होय सम्यक्त दर्शन गुण
जीवाश् नव पयजे। जो जाण तस्स होइ सम्मत्तं ॥ अथवा नपयोगपणे सर्द नवतवत्व प्रत्ये अजाणताने पण|| हेतो तेहने होय।
सम्यक्त ॥ ६ ॥ नावेण सहहंतो। अयाणमाणेवि सम्मत्तं॥६॥
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सपलाइं श्री जिनेश्वरनां कहेलां। जे वचन ते नहीं वीपरीत होय॥
सव्वाइं जिणेसर नासिआई। वयणाईन अन्नहा हुंति॥ एहवीवुद्धि जे जीवना मनमां। सम्यक्त निश्चल ते जीवने आणक्षिण ॥ अबुधि जस्स मणे। सम्मत्तं निचलं तस्स ॥६॥ हहे सम्यक्तनो महीमा कहेडे फरस्युं होय जे जीवे सम्यक्त प्रत्ये॥ अंतरमुहुर्त काल मात्र पण।
अंतोमुहत्तं मित्तंपि। फासियं हुऊ जेहिं सम्मत्तं॥ ते जीवने अर्द्ध पुद्गल मांहि फरवु होय नीचे संसारमा पण काल प्रमाण।
नपरांत नहीं ॥ ७० ॥ तेसिं अवह पुग्गल। परियहो चेव संसारो॥७॥ हवे पुदल परावर्त प्रकारे कहे नावथी' च्यार जेद बे प्रकारे बे द्रव्यथी खेत्रथी? कालथी। बादर सुक्ष्म ५ ए ७॥
दव्वेर कित्ते काले। नावेधचन्ह दुह बायरो सुह होय अनंती नदारपिणि अव परीमाण पुद्गल परावर्त [मो॥ सरपिणी।
एकनो कालमांन ॥१॥ होइ अणंतु स्सप्पिणि। परिमाणो पुग्गलपरटो॥७॥ नदारीकादीक सातेनीवर्गणा। एकजीव मुके फरसीने सर्वप्रमाणुप्रत्ये|
नरलाइ सत्तगेणं। एग जिन मुअर फुसि सव्व जेटले काले ते थुल द्रव्य पुद्गल द्रव्यथी सुक्ष्म सात थने [अणु। परावर्त काल थाय। रीवा बीजी वर्गणा ॥७॥
जित्तिकालि स थूलो। दव्वे सुहुमो सग नयरा॥७॥ लोकाकाशना सर्व प्रदेश नत्स समय अणुनाग बंधनां सर्व स्था रपिणिना सर्व।
नक॥ लोग पएसो सप्पिणि। समया अणुनागबंध घणेय॥
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तेम तेम अनुक्रमे मरणे क फरस्या ते क्षेत्रादी थुल सुक्ष्म प रीने।
ल्योपम थाय ॥ ३॥ तह तह कम मरणेणं। पुम खित्ता थुलि यरा ॥३॥ नदारपिणी अनंतिइं मली। एक पुद्गल परावर्त काल जाणवो॥
नसप्पिणी अपंता। पुग्गलपरियन मुणेयव्वो॥ तेवां अनंतां पुद्गलपरावर्तगतका तेथी आवतो काल अनंत गुणां ले करयां तेवो अनंतोकाल गयो। पुद्गल परावर्त काल ॥४॥
तेणंता तीप्रधा। अणागयचा अपंतगुणा॥४॥ हवे न द्रव्य दश द्वारे कहे प स प्रदेशी? एकर क्षेत्र सक्रीय रीणांमी जीव मुर्ती। पएं।
परिणामिरजीवश्मुत्तं३। सपएसाध एगए खित्तद किरि नीत्य? कारण कर्ता। सर्वगत् इति वीच्यार थाय॥
मीलपणे अप्रवेषपणे रह्याने ॥५॥ णिचंकारणाएकत्तार । सव्वग दमिदिरहि अपवेसे ज्य ए प्रकारे मोक्षतत्व नवमुंए ए प्रकारे नवतत्व प्रक्रण समाप्त उत्तर नेद ए॥
थयुं उत्तर नेद सर्व २७६ ॥ इति मोदतत्व ॥॥ इति नवतत्व समाप्तं ॥२॥|| हवे चोवीस पाठे करी मकप्रकण वा वीच्यार पटत्रींसीका प्रारंना||
__ अथ चन्वीस मक॥ नमस्कार करीने क्षनादिक तेमने कह्यो जे सिद्धांत तेनो वीचा चोवीस तिर्थकर प्रत्ये। र तेनो लेषमात्र तेनुं देखामवु ते॥
नमिमं चनवीस जिणे। तस्सुत्त वियार लेस देसणन॥ धम्मक पदे करीने तेज नीश्चे। स्तवीस सुजो हे नव्य जीवो॥१॥ दंग पएहिं ते चित्र। थोसामि सुणेह नोनव्वा ॥२॥
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हवे झमकसंख्या कहेले सातनर प्रथवीकायादी पांचनांए बेरंद्री कर्नु असुर देवादीक दसनां१०॥ आदीत्रणनां नीचे वा समुच्चे॥
नेरश्या असुराई। पुढवाई बंदियादन चेव॥ गर्नज तीयेच पंचेंद्री? मनुष? व्यंतर देव सोलर ज्योतिषि देव पां ए बेनां।
च वैमानीक देव बे? एत्रणन॥२॥|| गप्पय तिरिय मणुस्सा। विंतर जोसिय वेमाणी॥॥ संखेपमात्र सरलपणे आप्र अथ द्वारसंघह सरीरए सरीरमाप३ कण कही।
हामबंधनी रचना ते संघयण६॥ संखित्तय रीन इमा। सरीररमोगाहणायश्संघयणा३॥ संज्ञास्थान ते ॥१० आक्रती६ लेस्या६ इंद्रीय बे नेदे समुद्घा कषायध।
त ॥३॥ सन्नाथसंगणएकसायद। लेस इंदियन्दुए समुग्घा द्रष्टीइदर्शनधज्ञानएएज्ञान अ जोग? पनुपयोग एकसमे या?०॥३॥ धीकारे अज्ञान पण३ ग्रह्यांजे। नुपजवू?एकसमे मरवुथीतीतेश्रायु
दिछिदंसण?२ना जोगु१४वनगो? ५ववाय?६चवण१७ पर्जाप्ती ते शक्ती के[णे१३॥ संज्ञा३ गती ते नवांतरे गम लिई१॥ टली दीशीनो आहार ले १ । नागती नवांतरथी श्राव:वेदः।४।
पऊत्ति किमाहारे। सन्नि गइ आगई वेए ॥४॥ ए द्वार चोवीसनी गाथा बे झमक रुक प्रत्ये द्वार २४ केहेवां ॥
द्वार संग्रह गाथा ॥२॥ द्वार च्यार सरीर गर्नज तीर्यच मनुपने पांचे बाकी २१ भमके वानकायने होय।
त्रण सरीर द्वार १॥ चन गप्नतिरिय वाकसु। मणुप्राणं पंच सेस ति सरीरा दार थावर च्यारने झघन्य आंगुलने असंख्यातमे
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नत्कृष्ट ए बे अवगाहना। जागे होय सरीरनी ॥६॥ ___ थावर चन्गे दुहन। अंगुल असंख नाग तणूं॥५॥ बाकी वीस झमके झघन्य स्वनावीक अंगुलनो असंख्यातमो वा सर्वथी लघु सरीर। अंस वा नाग।
सव्वेसिपि जहन्ना। साहाविय अंगुलस्स असंखं सो॥ हवे नत्कृष्टथीतो पांचसे ध नारकीने हवे सात हाथर्नु नुष सरीर घे।
देवतानां तेर मंझके॥६॥ नकोस पणसय धणू। नेरश्या सत्तहब सुरा ॥६॥ गर्नज तीर्यंचने एक हजार जो वनस्पतीने झाझे जोजन एक जननुं मच्छादिकनुं। हजार- होय ॥
गत तिरि सहस्स जोश्रण। वणस्सई अहिय जोअण स मनुषने तेरंद्री कानखजुरादि बेरंद्रीने सरीर जोजन [हस्सं॥ क ए बेने त्रण गान्नु। बारनुं शंखादिकनुं ॥७॥
नर तेइंदि ति गाऊ। बैंदिअ जोयण बार ॥ ७॥ जोजनएकनुं चोरंद्रीने सरीर जमरादिकर्नु।देहनंचत्वपणे सुत्रे का ॥ जोयण मेगं चनरिंदि। देह मुच्चत्तणेण सुए नणियं॥ ||वैक्रियदेहर्नु वली नुत्तरवैकी अंगुलनो संख्यातमो नाग प्रारंन य आश्री।
तां ॥७॥ वेळव्विय देहं पुण। अंगुल संखंस पारंने ॥७॥ देवताने मनुषने अधीक ला तिर्यंचने नवसें जोजन वैक्रीय ख जोजन वैक्रीय। देह मांन ।
देव नर अहिश्र लकं । तिरियाणं नवजोयण सयाउँ॥ बमणुं वली नारकीर्नु स्वदेहथी। कह्युजे वैक्रीय सरीरनुं मांन नुतुकृष्टु ए
दुगुणं तु नारयाणं। नणियं वेनव्विय सरिरं ॥५॥
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वैक्रीयनी थीती अंतरमुहु नारकीने रहे । अंतमुत्तं निरये ।
| देवताने वीषे दीन पन्नर वा अर्धमास रहे । देवे
मासो ।
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मुहुर्त्त च्यार तीर्थच मनुषने वीषे
रहे ॥
नांना प्रकारे १ धज ते पता का सुइननो समुह १ । नागाविह धय सुई पृथवीकायने अर्द्धमसूर तथा चंद्रमाने ।
।
पुढवि मसूरचंदा |
मुहुत्त चत्तारी तीरीय मसु ॥
नत्कृष्ट उत्तरवैक्रीय रहेवानो काल मांन ॥ १० ॥ द्वार २
नक्कोस वेव्वा कालो ॥१०॥
द्वार३ थावर ५ देवता १३ ना रकी १ ए नगलिस मक । थावर सुर नेरा | संघयण बये गनर्ज | मनुषने तीर्थे चने वीषे जांणवां ॥ ११ ॥ द्वार ३ नर तिरिएस मुणे अव्वं ॥ १२ ॥
संघयण बगं गनय ।
द्वार४ सर्व चोवीसे मंमके च्यार वा दस संज्ञा बे । द्वार ४ सव्वेसिं चन दह वा सणा
द्वार देवता १३ सर्व [द्वार३ ने समचोरस संस्थांन बे ॥ सव्वेसुराय चनरंसा० ॥ हुंमक संस्थांन विगलेंद्रीने३ नारकी ने १ बे ॥ १२ ॥
मनुषने १ तिर्यचने १ [द्वार || ये संस्थांन दें ।
•
संघया वीना बे बीगजेंद्री [द्वार २ ने व संघ एक बे ॥ अस्संघयणाय विगल बेवा ॥
नर तिरिय व संगणा
।
हुंमा विगलिंदि नेरई
॥१२॥
परपोटो १ वनस्पति वायु अग्री अ पकायने ॥
बुब्बुय व वान तेन पकाया ॥ याकारे संस्थांन कह्युंडे ॥ १३ ॥ द्वार ५
कारा संगणन मणिया ॥ १३ ॥
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३७ दार सर्व चोवीसे झमके ज्या द्वार लेस्या बये गर्नज [द्वार ५ ||रे कषाय ने। द्वार ६ तिर्यंच मनुपने वीषे ॥
सव्वेवि चन कसाया लेस गंगन तिरिय मणुएसु॥ पेहेली३ नारकीर [द्वार ६ वीगलेंद्रीने३ वैमानीकने? हेली३ ए तेनुकाय? वानकाय। सात मके त्रण लेस्या ॥१४॥
नारय तेक वाऊ। विगला वेमाणियति लेसा॥१॥ ज्योतषीने एक तेजुलेस्याज । बाकी झमक सर्व चनदेने होय
च्यार लेस्या ॥ द्वार ७ जोसिय तेन लेसा। सेसा सव्वेवि हृत्ति चक लेसा द्वार सर्व झमके इंद्रीद्वारतो द्वारए मनुषने वीषे साते द्वार ७ सुगम । द्वार G
समुद्घात जे ते कहे ॥१५॥ इंदिय दारं सुगमंडारण। मणुाणं सत्त समुग्घाया १५ वेदना? कपाकर मरण? समु वैक्रीय? तेजस? थाहारकर स रात।
मुद्घात ॥ वेयण र कसायश्मरणे। वेनव्वियवतेयएययाहारे६॥ केवली? समुद्घात। सात ए समुद्घात होय संनीने ॥१६॥ __ केवलिया समुग्घाए। सत्त श्मे हुंति सन्नीणं ॥१६॥ एकंद्रीने सामान्ये केवली तेजस' आहारकर ए त्रण समुद् समुद्घात।
घात वीना च्यार ॥ एगिदियाण केवलि। तेया हारग विणान चत्तारि ॥ ते पुर्वोक्त त्रण तथा वैक्रीय ए वीगलेंद्रीने तथा असंनीने तेज नी च्यार वर्जीने त्रण समुद्घात । श्वे ने संनीने पुर्वे कह्याडे॥१७॥
ते वेनव्विय वजा। विगला सन्नीण ते चेव ॥१७॥
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यांच ले गर्नज तिर्यंच देवताने वी नारकी वायुने वीषे च्यार बेत्र बे केवलीयाहारक एबे वर्जिने। ए बाकी के ॥ द्वार ए
पण गप्न तिरि सुरेसु। नारय वाकसु चारतिय सेसे।। द्वार १० विगलेंद्रीने बे द्रष्टीले एक मिथ्याद्रष्टी ले बाकी [द्वार ए थावरने।
मके त्रण द्रष्टी डे ॥१॥ द्वार १० विगले दु दीछी थावर। मिन्नत्ती सेस तिय दिवी॥॥ द्वार? १ थावर पांचएबेरंद्री तेरं चोरंद्री ने वीषे ते बेच[द्वार१० द्री: एसातने वीषे अचक्षुदर्शन। क्षु अचक्षु आगमे काळे ॥
थावर बितिसु अचकु। चनरिंदिसू तहुगं सूए नणिय।। मनुषने? चक्षु अचक्षु अवधी बाकी पनर झमकने वीषे प्रत्येके त्र केवल ए च्यार दर्शन । एत्रण कह्यां ॥१॥ द्वार ११
मणुा चक दंसणिणो। सेसेसु तिगं तिगं नणिश्रण द्वार र अज्ञान ज्ञान प्रत्ये देवता१३मां तिर्यच?मां नरकी हार १२ के त्रण त्रण। मां होय थावर५पांचमां अज्ञान बे ॥
अंनाण नाण तिअं। सुर तिरि निरए थिरे अन्नाण दुगं॥ ज्ञान अज्ञान बेबे विगलेंद्री मनुषमां पांच ज्ञान त्रण अज्ञान त्रणश्मां ।
॥२०॥ द्वार १२ नाणा नाण दु विगले।मणुए पणनाण ति अंनाणा। द्वार१३ अगीबार जोग देव तिर्यंचर ने वीषे तेर जे प [द्वार १२ ता१३ने नारकीर ने डे। नर योग मनुषर ने वीषे ३॥
इक्कारस सुर निरए। तिरिएसु तेर पन्नर मणुएमु॥ विगलेंद्रीश्ने च्यार ने पांच वा जोग त्रण शेष थावरने होय युकायरमां।
॥१॥ द्वार १३ विगले चन पण वाए। जोग तिग्रंथावरे होई॥२१॥
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३॥
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हवे जोगनांनाम सत्यश्असत्य, मुषा ए च्यार मन मीश्रते? सत्यामुषा असत्या।। चनने वैक्रिय आहारक? ॥
सच्चे अर मीस असच्च। मोसमण वय वेनव्वि श्राहारे॥ नदारीक ए त्रण मीश्रसहीत एकह्या ते जोग १५ नपदिश्या कार्मण:एसात जोग कायना। समयमा वा आग्यममां ॥२॥
नरलं मीसा कम्मण। श्य जोगा देसिआ समए॥३॥ द्वार१४ हवे नपयोग १२त्रण च्यार दर्शन ए बार जीवनां लक्ष अज्ञान ज्ञान पांच।
एनपयोग नाम॥ ति अन्नाण नाण पण। चन दंसण बार जिअलका |ए बार जे नपयोग। कह्या त्रण लोक दर्शी पर वनगा।
मात्मा तेमने॥२३॥ अबारस नवनगा। नणिश्रा तिलुक्क दंसीहिं॥३॥ हवे ते झमके कहेले नपयो बार होय नव नुपयोग नारकी? ति ग मनुष' ने वीषे। येच देवता१३मां ॥
नवगा मणुएसु। बारस नव निरय तिरिय देवेसु॥ वीगलेंद्री बेमांश पांच ब नप चोरंद्री१ मां थावर ५पांचमां त्रण योग ।
नपयोग ॥२४॥ द्वार १४ विगल दुगे पण बकं । चरिंदिसु थावरे तिअगं॥॥ द्वारर एसंख्याता असंख्या गर्नज तिर्यंचर मां वीगलेंद्री द्वार ता जीव एक समयमां। मां नारकीर मां देवतार३मां नपजे॥
संख मसंखा समए। गप्पय तिरि विगल नारय सुराय॥ मनुषर मां तो नीचे संख्याता वनस्पतीर मां अनंता बाकी थावरण ज एक समयमा नपजे। मां असंख्याता ॥२५॥
मणुा नियमा संखा। वण ताथावर असंखा॥श्य॥
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असन्नि मनुष पाश्री तो द्वार१६ जेम नत्पती द्वारे संख्या कही|| थसंख्याता द्वार १५। तीम चवन द्वारे पण ॥ द्वार १६ असन्नि नर असंखा। जह नववा तहेव चवणेवि द्वार१६
[द्वार२५ हजार नतकृष्ट प्रथवीकायादी द्वार१ बावीस सात त्रण दस वर्ष। चारनुं ॥२६॥ | बावीस सगति दस वास। सहस्स किठपुढवाशाश्६॥ त्रण दीवस अग्नी?हवे त्रण नररनु तिर्यंच नुं वली देवता |पल्योपम आयु।
नारकीनु सागर तेत्रीसवें ॥ ति दिण ग्गि ति पल्लाक। नर तिरि सुर निरय सागर वितररनुं पल्योपमनुं ज्यो
तित्तीसा॥ तीषीर तो आगल कहेजे। वर्ष लाष अधीक पल्योपमनुं॥२७॥
वंतर पन्नं जोइस। वरिस लका हिअंपलिअं॥॥ हवे असुरकुमार? ने अधिक देसेनणा बे पल्योपम नवनीका सागरोपम एकनुं।
यमार ॥ असुराण अहिय अयरं। देसूण दु पन्नयं नवनिकाए। बारवर्ष नगणपचास दीवसनु। उमासर्नु नत्कृष्टु विगलेंद्रीश्ने
वायु ॥२॥ बारसवासु णपण दिण। बम्मास नक्किछ विगलामाश्ता हवे झवन्य प्रथवीकाय या अंतरमुहुर्त झघन्य बानपानी ये दस ० पदोने। स्थिती ॥
पुढवाई दस पयाणं। अंतमुहत्तं जहन्न आन दिई॥ दसहजार वर्षनी स्थितिवाला। नवनपती१०नादकीश्वीतर।। दस सहस वरिस विश्रा। नवणाहिव निरय वंतरयाश
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वैमानीक देवताने ज्योतीषी पल्योपम एक ने तेनो पाठमो ना देवताने
ग आयु होय अनुक्रमे ॥ द्वार १७ वेमाणिअ जोसित्रा। पन तय स ाका हुँति॥ ॥ द्वार देवता१३ मनुष। तिर्य इंपर्जाप्ती होय वली पांद्वार१७ च१ नारकी? ए सोलने वीषे। चरथावरमांच्यार पर्जाप्ती ॥३०॥
सूर नर तिरि निरएस। उपऊत्ती थावरे चनगं॥३॥ विगलेंद्रीश्ने पांच पजाप्ती द्वार ए बइं दीसानो याहार होय । द्वार १८
सर्व झमके पण ॥ | विगले पंच पऊत्ती। दिसि आहार होई सव्वेसिं॥ |पांच सुक्ष्म थावर द्वार१७ द्वारा अथ संज्ञा त्रण कहीस ॥३१॥ |पदे नजना जाणवी। द्वार ए
पणगाइपए नयणा। अह सन्नि तियं जणिस्सामि॥३॥ च्यारे नीकायना दे द्वारए नारकीर ने वीषे दीर्घकालकी वा वता१३ने वीषे तीर्यचरने वीषे। त्रीकालकी संज्ञा ॥
चनविह सुर तिरिएसु। निरएसुय दीहकालगी सणा॥ विगलेंद्रीश्ने हेतुपदेसकी संज्ञाई करी रहीत थावर५ सर्व वा वा वर्तमानकालनी । पांचे ले ॥३२॥ | विगले हेन्वएसा। सन्ना रहिआ थिरा सव्व॥३॥ मनुषने दीर्घकालनी वा त्रीकाल द्रष्टीवादोपदेसिकी सम्यक्त स नी संज्ञा ।
हीते कोइने पण ॥ द्वार २०. मणुाण दीहकालि। दिग्विानुवएसिया केवि॥ द्वार२१ पर्जाप्ता पंचेंद्री तिर्यय ने च्यार नेदे देवतामां [हार २० मनुष निश्चे।
जाय ॥३३॥ | पऊ पणतिरिमणुय च्चिय। चन विह देवेसु गछति॥३३॥
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संख्याता आयुवाला पर्याप्ता पंचेंद्री। तिर्यंच मनुषमा तीमज पर्जाप्ता
संखान पऊत्त पणिंदि। तिरिय नरेसु तहेव पऊत्ते॥ प्रयवीकाय अपकाय प्रत्ये ए पांच झमकमां नीचे देवतार्नु क बनस्पतीकाय।
आव २ ॥३०॥ नू दग पत्तेयवणे। एएसु च्चिय सुरागमणं ॥३॥ पर्याप्तासंख्यातायायुना गर्नजातिथंच मनुष एबे नरकसातेमां जाय
पऊत्त संख गप्नय। तिरीय नरा नरय सत्तगे जंति॥ नारकीमांथी नीकल्या ए नपजे नथी बाकी बावीस मंग जबे मकने वीषे। कमां नपजवू ॥३५॥
निर नवहा एएम। नप्पङति न सेसेसु ॥३५॥ प्रथवीकाय अपकाय वनस्पतीकाय। तेमां नारकी वर्जीने जीव ॥
पुढवी पाक वणस्स। म नारय विवङिया जीवा॥ सर्व त्रेवीस झमकना था पोत पोताना कर्मनाप्रमाणना प्रजावे वी उपजे।
॥३६॥ __ सव्वे नववऊंति। निनिय कम्माणु माणेणं ॥३६॥ प्रथबीकायादी थावर५ वीगलः प्रथवीकाय अपकाय वनस्पतीकाय तिरी? नर ए दस पदमां। ए जाय ॥
पुढवाई दस पएसु। पुढवी पाक वणस्सई जंति ।। प्रथवीकायादी दसपद थकी । तेनुकाय वानकायमांनत्पात वा निकल्या।
नपजे॥३॥ पुढवाइ दसपएहिय। तेक वासु नववाक॥३॥ तेनुकाय वानकायमांथी प्रथवीकाय प्रमुखमां होय पद नवमां
मनुष वर्जी ॥ तेक वाक गमणं। पुढवी पमुहंमी होइ पय नवगे।
जव।
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४३
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प्रथवीकायादी स्थानक दस ते वीगलेंद्री थाय वीगलंद्रीमाथी नि मांधी निकल्का। कली ते दसमां जाय ॥३॥
पुढवाई गण दसगा। विगलाई तितहिं जंति ॥३॥ जबुं आवई गर्नज जे तिर्यंचने चोवीसे झमके जीवस्थानकने वीषे॥
गमणा गमणं गप्नय। तिरित्राणं सयल जीव गणेसु॥ समस्त चोवीसे झमके जाय तेनुकाय वानकाय ए बेमांथी मनुष मनुर हवे मनुष थाय बावी न थाय ॥३५॥ दार २१ समकमांथी निकल्या।
सव्वब जति मणुा। तेक वाकसुनजंति॥३णाद्वार२१ द्वारश्अंतरद्वीपनां जुगलीयां। तेमने गमन होय अगीयार झमके।
अंतरदीवा जुअला। तेसिं गई हवंति इक्कारा॥ दस जुवनपतीमां एक व्यंत आगती मनुष तिर्थच मध्येथी वे रमां ए अगोयारमां। ४।। । दह नवणा इक्क रणे। आगइन मणुअतिरिएसु॥४०॥ हवे असंनी तीर्यचनी गती ते बावीस झमकमां ने ज्योतिषि वैमां जवं।
नीक ए बे वीना।। | असन्नि तिरिए गईन। बावीसा जोइस विमाण विणा॥|| यागती थावर पांचमां तथा। वीगलेंद्री पंचेंद्रितीर्यच मनुष ए दस
मांडे ॥४१॥ आगश्न थावर पंचए। विगलपंचिंदितिरिय? नरा॥४॥ उमुर्चीम मनुष। दस थानके जाय पांच थावर वीगलेंद्रीत्रण। | समुचिम मणुश्राणं । दह गईन पंचपथावरा विगला३॥
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४४ पंचेंद्रीतीर्यच मनुष ए दस में भागती तेनुकाय वानुकाय वीना मकमां।
थाठमांथी ॥४२॥ द्वार २५ पंचिंदियतिरियरनरा। आगश्च ते वाचविणा॥४॥ हार ५३ वेद त्रण तिथंच१ स्त्री पुरुष एबे वेद च्यारे द्वारश्श मनुष१ मां होय। नेदे देवता१३मध्ये होय ॥
वेअतिअतिरिनरेसु। इबी पुरिसोय चनविह सुरेसु॥ पांचपथावर त्रणेश्वीगलेंद्री नपुंसकवेद होय एकज ॥४३॥ नारकी मां।
दार २३ थिर विगल नारएसु। नपुंस वेग हवई एगो।४३।द्वार५३ हार२५ अल्पाबहुत पर्जाप्त तेथी वैमानीक तेथी नुवनपती मनुष तेथी बादर अग्निकाय। तेथी नारकी तेथी व्यंतर ॥
पऊमणु बायरग्गी। वेमाणिअनवण निरय वितरित्रा॥ तेथी ज्योतिषि तेथी चौरंद्री ते तेथी बेरंद्री तेथी तेरंद्री तेथी प्रथ थी पंचेंद्रीतीर्यच।
वीकाय तेथी अपकाय ॥४४॥ जोइस चन पणतिरिा । बेदि तेऽदि नू आक॥॥ तेथी वायुकाय तेथी वनस्प अधीका अधीका अनुक्रमे ए होय ॥ तीकाय नीश्चे।
वाक वणस्स चिय। अहिश्रा अहिश्रा कमेण मेहंति॥ सर्वपण ए नाव। हेजिनेश्वर में अनंतीवार पांम्या ॥४५॥
सव्वेवि श्मे नावा। जिणा मए णंतसो पत्ता॥४५॥ हे जिन थानवमां तुमारी नरकादी मकपद भ्रमण थकी नीर त्रक्रिण शुद्ध नक्तीवंतने। त मन हेवो॥ संपर तुम्ह नत्तस्स। दंगपय नमण नग्ग हिययस्स॥
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४५ ते मंत्रण मन वचन कायम सीघ्रकाले मुजने आपो मोक्षपद | एथी वीरम्ये सुखे पांमे हेते। ॥४६॥ ॥ दंम तिय विरय सुलहं। लहुं मम दिंतु मुरूपयं॥४६॥ ज्ञान आचार लक्ष्मीयुक्त जिनहं राज्ये चारीत्र लक्ष्मीवान् धवलचं स आचार्यने।
द्रना शीष्य ॥ सिरि जिणहंस मुणिसर। रऊ सिरि धवलचंद सीसेण॥ गजसारमुनी तेणे पदबंधे र ए ते श्री वीरप्रनुने विनती आत्म ची वा लखी।
हेते ॥४॥ | गजसारेण लिहिया। एसा विन्नत्ति अप्पहिआ॥४॥ एप्रकारे श्री वीच्यारउत्रीसीका वा चौवीस झमक समाप्तः ॥३॥
इतिश्री चनविस झमक समाप्तौ ॥३॥
नमस्कार करीने जिनेश्वर स जगत् पुज्य जगत् गुरु श्री माहा वज्ञ प्रत्ये।
वीरस्वामी प्रत्ये॥ नमिय जिणं सव्वन्नु। जयपूऊ जयगुरू माहावीरं॥ श्रा जंबुद्धीपमा जे शास्वता कहु सुत्रथकी पोताने परने हेतुई पदार्थ बेते।
जंबूद्दीव पयजे। वुद्धं सुत्ता स पर हे ॥१॥ खांमार जोजन र क्षेत्र वा वर्ष। पर्वत?कूटरवा शीखर तीर्थ श्रेण्यो? | खंमारजोयणश्वासा३ । पव्वयस्कूमायतिबदसेढीन वीजयोर द्रही नदीयो? ए दस समुदाइंथाय संघयणी नांमे प्र पदे वा द्वारे।
कण ॥॥ | विजयपहासलिलानर। पिमेसिं हो संघयणी॥२॥
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४६ द्वार? नेनए सो१०० खांमवा जरतक्षेत्रना ५२६जोजन कला प्र एटले १ एकसंख्याइंडे खमवां। माणे नागाकार करीई एकलाखने॥
नग्अ सयं खंमाणं। जरह पमाणेण नाईए लके॥ अथवा एकसोने नेनई गुणो जरतक्षेत्रना प्रमाण साथे तो होय ५१६--६ । १०गुणो। एकलाख ॥३॥
अहवा नन्स य गुणं। जरह पमाणं हवई लकं ॥३॥ अथ एक खांमूवानुं १जरतक्षे बेर खांमुश्रानो हीमवंत पर्वत ने त्र ५२६जोजन ६कला। हेमवंत क्षेत्र च्यारवें॥
अह विग खेमे नरहे। दो हिमवंतेश्र हेमवई चनरो॥ बाउ खांद्यां महाहीम सोलर पखांझवानुं हरीवर्ष क्षेत्र॥anji वंत पर्वतनां। __ अहमहाहिमवंते। सोलस खंमाई हरिवासे ॥॥ बत्रीस३२ खांसवां वली नै ए मेलवतां सह ६३ थयां बीजे षध पर्वतनां।
पासे पण स६३ थाय ॥ बत्तिसं पुण निसढे। मिलिया तेसछि बीयपासेवि॥ चोस६४ खांवां महा एत्रण रासि नेलवीइं तो एकसो नेन वीदेह क्षेत्रना। १ए थाय ॥६॥ द्वार १
चन्सनि विदेहे। ति रासि पिंमेश्नन्सयाद्वार। द्वारश्जोजन एकनुं परीमा समचोरस इहां खांमूवां करवां एग एहवां।
ते करवानी रीती॥ जोयण परिमाणाई। समचन्रंसाइंच खंमाइं॥ लाखजोजननी परीधीना . ते लाखना चोथे नागे गुणाकार यांकने।
कर्ये होय ते गणीतपद थाय॥६॥ लकस्सय परिहीए। ' त पाय गुणेणय हुँतेव॥६॥
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४७ जंबुनुं वीन एकलाखनुं तेने तद्गुणा ते थांकनुं वर्गमुल काढीइं तो करी तेने दसगुणा कर्ये आंक आवे। गोलक्षेत्रनी परीधी होय ॥
विरून वग्ग दहगुण। करणी वहस्स परिरन हो॥ पने ते जंबुद्वीप, वीखेन ला परीधीना आंकने तो तेनुं गणीत खनुंडे माटे चोथेनागे गणवं। पद वा क्षेत्रफल होय ॥७॥
विख्न पाय गुणिन। परिर तस्स गणियययं॥॥ पराधीनो आंक कहेडे त्रण हजार बसेंने सतावीस अधीक ॥ साख सोल।
परिही तिलक सोलस। सहस्स दोयसय सत्तवीस हिया॥ कोस वा गान त्रण ने अठ्ठा धनुष एकसोने तथा तेरांगल थ वीस।
ईयांगलने अधीक ३१६२२७यो.
गा० १ २ध० १३॥ण्य. कोस तिगं अघवीसं। धणु सय तेरंगुल चहियं ॥७॥ हवे क्षेत्रफलनो क क नेनकोम ने उपनलाख सोने हजारे हे सातसें७०० कोमने। गुणे लाख थाय ॥ | सत्तेवयकोमिसया। नकाबप्पन्न सय सहस्साई॥ चोरांणुंएव वली हजार। मोढसो१५०वली समग्र साधीक॥॥
चकणग्यं च सहस्सा। सयंदिवढं च साहियं ॥५॥ एक गान पन्नरसें १ ५००। धनुष तीमज धनुष पन्नर? एसहीत ॥
गानअमेगं पन्नरस। धणुसया तह धणूणि पन्नरस्स॥ साठ वली आंगुल जंबुद्दीपनुं गणीतपद जांणजो ॥ १० ॥ ए०५६९४१५०।१गा० १५१५० ६०।
द्वार २ सहिं च अंगुलाई। जंबुद्दीवस्स गणियपयं॥२॥द्वार |
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មិច द्वार३हवे जंबुद्धीपमा नरत द्वारध हवे पर्वतसंख्या वैताढ्य च्यार। श्राद्ये सात क्षेत्र द्वार ३। वाटला ने चोत्रीस३४ लांबा ॥ नरहाई सत्त वासा। वियढ चन्च नरतिस३४वहि यरे॥
[द्वार३ बे चीत्र। वीचीत्र? बे जमग१ स सोल१६ तो वखारा पर्वत । मग१ ॥११॥
सोलसर वकार गिरि। दो चित्तर विचित्तरदोजमगाश बसें २०० कंचनगीरी। चारध गजदंता पर्वत तीम [॥२२॥
सुमेरुपर्वत॥ दोसय२००कणय गिरीणं । चन्धगयदंताय तह सुमेरूयर बद क्षेत्रमर्यादा धारकपर्व एकेनुंणा सीतर बसेंने थाय २६ए त ते सर्व जेगा गणतां। ॥१॥ द्वार ।
व्वासहरा पिंमे। एगुण सत्तरि सयादुन्नि॥२॥द्वार | द्वारए हवे सीखरसंख्या सो च्यार च्यार सीखर होय प्रत्येके ॥ ल वखारा पर्वतने वीषे।
सोलस वकारेसु। चन चन कुमाय हुंति पत्तेयं॥ सोमनस गंधमादन ए बे सात सात कुट डे ने बाउ बाठ रूपी गजदंता नपर। महाहिमवंत ए बे पर ॥१३॥
सोमणस गंधमायण। सत्त ध्यरूप्पि महाहिमवे॥१३॥ |चोत्रीस वैताढ्य पर्वतने विद्युत्प्रनगजदंतो नैषध नीलवंतने वीषे।
वीषे॥ चन्तीस वियद्वेसु। विद्युप्पह निसढ़ निलवंतेसु॥ तीमज मालवंतगजदंतो मेरू नव नव कुट प्रत्येके प्रत्येके ले पर्वत एटला नपर। ॥१४॥
तह मालवंत सुरगिरि। नव नब कुमाई पत्तेयं ॥१०॥
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हिमवंतगीरी सिखरीपर्वतने इंम एकसठ पर्वतने वीषे जे कुट || वीपे प्रत्येके अगीयार कुट। तेने॥
हिम सिहरिसु इक्कारस। इय गसी गिरिसु कुमाणं॥ एकता मेलवतां सर्वसंख्या थाय। चारसेंने समसत ६७कुटथाय।१५।
एगत्ते सव्वधणं। सयचनरो सत्तसहीय ॥१५॥ ||घ्यार सात आठ नव। अगीयार? १ कुटे करीने गुणवा पुर्वे प
र्वत६१ कह्याते जेम संख्या अनुक्रमे॥ चनसत्त अपनवगी। गारस कुमेहिं गुणह जह संख॥ एकसठ पर्वतनो मेल सोल बे ए एकसठ पर्वतना कुट समसठ बेबे नेगणच्यालीस। सहीत च्यारसें वे ॥१६॥
सोलसर दुश्दुश्गुण दुवेयश्सगसम्सयचनरो॥१६॥ |चोत्रीस वीजयने यालंण रूपनकुट चोत्रीस३४ श्रावण |वीषे जे कुट ले ते कहे जे॥ मेरूनपर आउ जंबु वृक्षे डे॥ | चन्तीसं विजएसु। सुकुमा अमेरू जंवूम्मि॥ आउण्कुट देवकुरूने वी हरीकुट हरीसकुट ए सहीत साठ नूमी ॥
कुट ॥१७॥ द्वार ५ | अव्य देवकुराई। हरीकुमहरिस्सहे सही॥२॥द्वारय द्वार ६ हवे तीर्थ केहेले माग तीर्थ बत्रीसवीजयमां ऐरव्रतमां नर ध वरदांम प्रनास ए नांमे। तमां ॥ | मागह वरदाम पनासं। तिब विजएसु३२ऐरवय नरहे। एकनामे चोत्रीस ने तेहने त्रण बेइंअधीक एकसो१०२ तीर्थ जां गुण करता।
गवां ॥१॥ द्वार ६ चनतीसा तिहिंगुणिया। दुरुत्तर सयंतु तिवाणं ॥१७॥||
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द्वार ७ श्रेण्यो कहे वीद्याधरनी श्रेण्यो एकेकनी अनीयोगीक देवनी ते पण। वैताढ्य वैताढ्य प्रते ॥
विजाहर अनिन्गीय। सेढीन दुन्नि दुन्नि वेअढे ॥ ए चारगुणा चोत्रीसने करतां। बत्रीस३६ सो१०० सेढीन ते १३६
थई ॥१॥ द्वार 3 श्य चनगण चनतीसा। बत्तीस सयंतु सेढीणोण द्वार द्वार विजयो कहेले चक्र बीजय३२ श्रादीपदे जरत ऐरव्रत इहां वर्ती जे क्षेत्रने वीये झीती होय ए चोत्रीस ॥ द्वार ७ राज करे ।
चक्की जेयव्वाई। विजयाइंश्च हुंति चन्तीसा॥ द्वारज द्वार ए हवे द्रहसंख्या मोहो कुरुक्षेत्रने वीषे दस द्रह ए वे मली टा द्रह बने पद्मादि। सोल द्रह ने ॥२०॥ द्वार ए
मह दह बप्पनमाई। कुरूसु दसगंति सोलसग॥३०॥ द्वार१० हवे नदीयो संख्या रक्तवतीर ए चार नदीयो द्वार |गंगा सिंधुर रक्ता। प्रत्येक प्रत्यके ॥
गंगा सिंधु रत्ता। रत्तवई चन नश्न पत्तेयं । चनद हजारने परीवारे
ले ते समय मलेले वा जायडे समुद्र ५६०००।
मांही ॥१॥ चन्दसहिं सहस्सेहिं। समगं वच्चंति जलहिमि॥२१॥ एमज अभ्यंतर नदीयो चार वळी प्रत्येके अगवीस हजार स हीमवंतादीकनी। हित एटले ११२०००॥
एवं अनंतरिया। चरो पुण अवविस सहस्सेहिं ॥ चली पण हविर्ष क्षेत्र र हजारे जाय चारे नदीयो २२४००० म्यक क्षेत्रनी बप्पन्न॥ ॥॥
पुणराव चप्पन्नेहिं । सहस्सेहिं जंति चन सलिला॥॥
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देवकुरू नुत्तरकुरूक्षेत्रमांही ब नदीयोनो परिवार चोरासी ।
५१
हजार नदीयो तीमज वीजय सोलने वीषे ॥
| बत्रीस नदीयोने | बत्तीसाण नई |
कुरूमज्जे चकरासी । सहस्सा तहय विजय सोलसेसु ॥ चन्दहजार प्रत्येके नदीयोनो परीवार | २३ | चन्दस सहस्साइं पत्तेयं ॥७३॥ मत्रीस नदीयो विजय मांहेली ||
ते चन्दहजारथी गुणवी एटले चारलाख श्रमतालीस हजार
नदीयो ।
चन्दस सहस्स गुणिया । श्रमतीस नइन विजय मज्जिना
ए मत्रीस नदीयो ५३२००० थी सीतोदामां जले बे। सीन्या निवति । सीता सीतोदा ए बे नदीयो पी प्रत्येके ।
सीया सीन्यादिय ।
ए सर्व मली चन्द लाख ने ।
तेथी दस गुणो वीस्तार बेह मेले ६२ ॥ जोजन 1
दसगुणिन पते ।
तीमज सीतानदामां एमज ५३२००० मीले ॥२४॥
तहय सीयाइ एमेव ॥ २४॥ वत्रीस हजार पांचलाख सहीत ॥
बत्तीस सहस्स पंचल के हिं ॥
प्पन्न हजार मेलवतां थाय
१४५६००० ॥२५॥
सव्वे च दस लरका | उप्पन्न सहस्स मेलविया ॥२५॥
ब जोजन सहीत एक गान एटले सवा व जोजन ६ । । जोया स कोसे ।
गंगानो सिंधूनो वीस्तार मुलमां
बे ॥
गंगा सिंधू विचरो मूले ॥ इंम बे बे गुणो बीजी नदीयोनो वस्तार ॥ २६ ॥ द्वार १० इय दुदु गुणणे सेसा ॥२६॥
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जोजन एकसो उंचपणे ।
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सोनामय सीखरी लघु हीम [द्वार १० वंत एबे ॥
रूपीपर्वत महाहिमवंत पर्व
जोया सय मुच्चिद्धा । कणयमया सिहरि चुल्ल्न्नहिमवंता॥ बसें जोजन नुंचा रूपी रूपानो महा हीमवंत सोनानो ॥ २७ ॥
त ए बे ।
चारसें जोजनना ।
रूप्पि महाहिमवंता । दुसु नच्चा रुप्प काय मया ॥ २७॥ नंचपणे नैषध नीलवंत ए बे ॥ नच्चिद्धो निसढ नीलवंतोय ॥
चत्तारि जोयण सए । नैषध तपाव्या सुवर्णमय बे | लीला रत्नवर्णो नीलवंत पर्वत बे॥ २८ ॥ निसढो तवणिद्यम | वेरुलिन नीलवतोय ॥१८॥
सर्वे पण शास्वता पर्वत । काल क्षेत्र वा श्रढीद्वपमाना मेरु वीना ॥
सव्वेवि पव्वयरा ।
प्रथवीतलमां नंमा । धरणीतले मुवगाढा ।
प्रथम खांnaiदीक गाथायें ।
खंमाई गाहाहिं ।
संग्रहणी समाप्त थइ |
समयखीत्तंमि मंदर विहुला ॥ नंचपणाना चोथा नागमय बे ॥ १|| नस्सेय चच नायंमि ॥२९॥ दस द्वारे करी जंबूद्धीपनी ॥ सहिं दारेहिं जंबूद्दिवस्स ॥ या संग्रहणीनी श्रीयाक्यनी मह त्रीका प्रतीबोधीत श्री हरीन्द्रसू रिजीये रचना करी ॥३०॥ रइया हरिन सूरिहिं ॥३०॥
संघयणी सम्मत्ता । ए प्रकारे श्री संग्रहणी नामे प्रकरण संपूर्ण ॥ ४ ॥ ॥ इति श्री संघयणी समाप्तं ॥ ४ ॥
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५३ वांदीने वांदवा योग। सर्व अरिहंत प्रते चैत्यवंदन आये
नला वीचार प्रते॥ वंदित्तु वंदणिके। सव्वे चिश् वंदणाई सुवियारं ॥ घणी वृत्ती घणी नाष्य घणी चुरणी। सिद्धांत सुत्रने अनुसारे कहीस्य? | बहु वित्ती नास चुन्नी। सुश्राणु सारेण वुहामि ॥१॥ श्रथ द्वार दस त्रीकनुर अनीगम बेदीस्या रेहेवानु र त्रण अवग्रह वा पेसवानी वीधी पांचनु। नु त्रण प्रकारे वांदवानु१॥
दह तिग?अहिगम पणगंश दुदिसितिहुग्रह तिहाग्य |पंचांग नमवानुनमस्कारनुर। अक्षर? सोलसेंने सुम [वंदणया।
तालीसनु १६५७ वर्ण? ॥२॥ पणिवायनमुक्कारा। वन्ना सोलसय सीयालाणाशा एकसो एकासी वली पद सतांणु संपदा वा बीसांमानु? पांचए नु १७१ पद । मंगनु १ ॥
गसी पयंतु पयाण सगननई संपया पणदंमार बार अधिकारनु? च्यार वांदवा सरण करवा जोग्यनु? चार निक्षे जोग्यतुं।
पे जिननु ॥३॥ बार अहिगारश्चन वंद सरणिऊर४चनहिंजिणा?५ च्यार थोयोनुर [णिज २३। बार हेतु वा कारणनु? सोल [॥३॥ नीमीत आउनु। आगारk१॥ .
चनरोथुई१६निमित्त बार हेकयरसोल आगारा॥ नगणीस दोष कान [४२। कानुसगना प्रमाणनु? स्तवननु स्सगना तेनु।
वली? चैत्यवंदन सातनु? ॥॥ गुण वीस दोस नसग्गश्माण?थुत्तंचश्श्सगवेला२३
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५४ दस आसातना वा अवज्ञा त सघला चैत्यवंदनादीक [neml जवानु।
स्थानके ॥ दस पासायण चान२४॥ सव्वे चिश्वंदणाइंगणाइं॥ ए चोवीस द्वारे करीने। बेहजारने होय चुनत्तरानुत्तर द्वारगाथा
चवीस दुवारेहि। दुसहस्सा हुति चन सयरा ॥५॥ द्वार त्रण निसीही त्रण प्रदक्षणा। त्रण नीचे प्रणाम ॥
तिनि निसीहिरतिनिउपयाहिणाशतिनिचेवय पगमार वीवीध्य पूजार तीमज। अवस्था त्रण प्रकारे नाव: नोश्चे१।६। । तिविद्या पाय४ तहा। अवनतिअनावणंचेवा त्रण दिसि जोवानी वीरती वा पगनमी पमार्जन वलीत्रणवार॥ नीम।
तिदिसि निरकण विरई। पयनूमि पमऊणंचतिकुत्तो वरण वा अक्षरादी बालंबन त्रीवोध वली प्रणिध्यांनर एमत्री त्रण मुद्रा त्रीकर वली। क दस॥॥ एहना उत्तर द्वार ३०
वन्नाश तियंणमुद्दा तियंचा। तिविहंच पणिहाणं१० ॥७॥ प्रथम त्रीकर घरनोर देहराना व्यापार वा ते समंदी काम तज द्रव्य जिनपूजानोजे। बु ते नसीही त्रीक१॥ । घरजिणहर जिणपूआ। वावार चा निसीहि तिगं॥ कीहां ते थांनक देहराने मुल त्रीजी चैत्यवंदन जावपुजा करवाने द्वारे ग्रन घर ते गनारे। अवसरे॥॥ ___ अग्गदारे मने। तश्या चिश्वंदणा समए जा बीजंत्रीक बे हाथ मस्तके लगा खमासमण देता पांचे अंग नमे |वे ते अर्ध अंग नमावे ते। ते त्रण प्रणांम ॥
अंजलिबघो अहोणकय। पंचगन्य तिपणामा ॥
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सघले अथवा त्रणवार। मस्तकादी नमामचे प्रणाम त्रीक
बीजुश्॥॥ सव्वद वा तिवारं। सिराइ नमणे पणाम तिअं॥॥ हवे पुजा त्रीक३ अंगनी पागल जल चंदन फुल हारादी अक्षतादी मुकवानी नावनी एनेदे। स्तवनादी पुजा त्रीक ॥
अंग ग्ग नाव नेया। पुप्फाहार थुइहिं पूय तिगं॥ ते पंच प्रकारी अष्ट। प्रकारी सर्व प्रकारी अथवा पुजात्री
क३ ॥१०॥ पंचो वयारा अघो। वयार सव्वो वयारा वा ॥१॥ अवस्था त्रीक नाववी अव पीयस्थ पदस्थ रूपरहीतथ॥ स्था त्रीक ते।
नाविऊ अवन तिनं। पिंमब पयन रूव रहियत्तं॥ ते केइ बदमस्थ केवलीत्व सिद्धपणानी नीचे अवस्था त्रीकनो पणानी।
अर्थ ते ॥११॥ नमब केवलीतं। सिद्धत्तं चेव तस्स बो ॥११॥ नवण करवाने थांनके केवलज्ञान न श्रष्ट प्रातीहार सहीत थांनके थाय तीहांसुधी बदमस्थ अवस्था। केवली अवस्था॥ __ न्हवणच्चगेहिं बनमब वह। पमिहारगेहिं केवलिअं॥ पद्मासने वा कानुसगे रहा जिननी नाववी सिद्ध अवस्था त्री थानके।
कः ॥१२॥ | पलिअंकस्स गेहिय। जिणम्स नाविऊ सिद्धत्त॥१॥ दिसित्रीक ५ नर्थ वा तुंचु अत्रण दीसा नणी जोवु तजव बांझबु धो वा नीचुं त्रीतुं वा बांकुंए। अथवा॥ ॥ नहा हो तिरिमाणं। तिदिसाण निरकणं चइजह वा॥
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पाउल जमगुं माबु ए त्रण दी एक श्री जिनेश्वरनां मुख सनमुख सी जोवु तजे।
थापे द्रष्टी बे द्वार ५ ॥१३॥ ॥ पत्रिम दाहिण वामाण। जिणमुह नब दिग्जूिन॥१३॥ वरणत्रीक६ जे सूत्र बोले बीजु जे सुत्र अर्थमां चीत राखे तीनुं तेना अक्षरमा चीत राखें। आलंबन वली पमीमानु ॥६
वन्नति वन्नबा। लंबण मालंबणंतु पमिमाई॥ हवे मुद्रात्रीकण्जोग जिन मुक्ता ए मुद्रा नेदे करी मुद्रात्रीक ते की शुक्ती ।
म॥१॥ जोग जिण मुत्तासुत्ती। मुद्दा नेएण मुद्द तियं ॥१४॥|| माहो मांदी एक एकने अंत कमलना मोमानी परे बे हाये रे बांगलीयो राखे। करीने॥ __ अन्नुन्नंतरी अंगुली। कोसागारेहिं दोहिं हजेहिं॥ पेट नपरे बे हाथनी कुंणीयो थापी तेहने प्रथम जोगमुद्रा एहवू ने।
कहीइं॥१॥ पिहोवरि कुप्पर संठिएहि। तह जोगमुद्दति ॥१५॥ हवे जिनमुद्रा कहे चार आगल पग पोहोला तेथी कांइ यो अांगल।
बी पाउलनी पांनीयो॥ चत्तारि अंगुलाई। पुरन कणाइं जब पछिमन॥ पग राखी तेरीते कानसग करे ते। एते वली होय जिनमुद्रा॥१६॥
पायाणं नस्सग्गो। एसा पुण हो जिणमुद्दा॥१६॥ हवे मुक्ता सुक्ती मुद्रा ते कहेले जीहां बरोबर बे पण गनित कर्या मुक्ता सुक्ती मुद्रा ते। हाथ॥
मुत्तासुत्ती मुद्दा। जब समा दोवि गनिया हा॥
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॥ते वली नाल स्थनने वीषे। अमामे कोइ आचार्य नलगामवा
कहे ॥१॥ ते पुण निलामदेसे। लग्गा अन्ने अलग्गत्ति॥२७॥ ||हवे जोगमुद्रा पांच अंग सास्तव वा नमुथ्थुणं आये स्तुतीइं| नमावा ते खमासमण। होय जोगमुद्रा॥
पंचंगो पणिवान। थयपाढो होइ जोगमुद्दाए । |वंदण ते अरिहंतचेइयाणं प्रणीध्यांनत्रीक मुक्ता सुक्ती मुद्रा
आये ते जिनमुद्राए। इं कहे ॥१॥ | वंदण जिणमहाए। पणिहाण मत्ता सत्तीए ॥१॥ हवे प्रणीध्यान त्रीक जावंती जावंत केवी साहु ए मुनी वंदण ज ये चैत्यवंदन।
यवीयराय प्रार्थना सरुप अथवा ॥ | पणिहाण तिगं चेश्य। मुणि वंदण पत्रणा सरूवं वा। मन वचन काय ए जोग बाकी त्रीकोनो अर्थतो प्रगट डे इती त्रण एकाय ते।
॥१ ॥ मण वय काएगत्तं। सेस तिअबोध पयमुत्ति॥२॥ हवे अनीगम द्वार सचीत व अचित वस्तनु अणतजवु? मन स्तुनु तजवु वा मुकवु। एकाय करवु ॥
सचित्त दव्य मुलण। मचित्त मणुसणंश मणेगत्तं३॥ एक सामी वा वस्त्र अखंमनु बेहाथ जोमी मस्तक नमाववु जिन नत्तरासण करवु। दिवेथी॥२०॥
ग सामि उत्तरासंगछ । अंजली सिरसिजिणदिव्याण इंम पंच वीध अनीगम वा स अथवा मुके राजा होयतो राजनां नमुख जq।
चीन्ह ते। इअ पंचविहा निगमो। अहवा मुच्चंत्ति रायचिन्हाई॥
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एन खमगर उत्रर पगनो पगर मुगट? चांमर? ए पांचे मुके द्वार खार यादी।
॥२१॥ खग्गं उत्तं वाणह। ममं चमरेत्र पंचमए ॥२१॥ हवे दिसि द्वार३ वांदे जि दिसि रहीने पुरुष ने मानी दिसि रहीने नेस्वरने जमणी। स्त्री।
वंदंति जिणे दाहिण। दिसि हिश्रा पुरिस वामदिसि नारि हवे अवग्रह द्वार ४ नवहाथ नत्कृष्ट नव नपर साठ माही म झघन्य साठ हाथ। ध्यम अवग्रह सेष ॥२॥
नवकर जहन्न सहि कर। जिमशु ग्गहो सेसो॥२॥ हवे नमस्कार द्वारय एक चैत्यवंदन मध्यम अरीहंत चेइयाणं नवकार वा नमवे झघन्य। च्यार थोय जुगल ॥
नमुक्कारेण जहन्ना। चिश्वंदण मस दंम थु जुयला ॥ पांचवार नमुथ्थुणारुप झमके स्तवन जयवीयराइं करी नत्कृष्ट थुइ था करी। चैत्य वंदन॥३॥
पणदंम थुश् चनकग्ग। थय पणिहाणेहिं नकोसा॥२३॥ अन्य वा बीजा आचार्य नमुथ्थुणे करीने झपन्य चैत्यवं इंम कहे एकज।
दन॥ __ अन्ने बिंति इगेणं। सक्कबएणं जहन्न वंदणया॥ ते बेत्रण नमुथ्थुणे करी म नत्कृष्टु चैत्यवंदन च्यार अथवा पां ध्य चैत्यवंदन। च नमुथ्थुणे करा ॥४॥
त दुग तिगेण मशा। नकोसा चनहिं पंचहिंवा॥४॥ हवे पंचांग प्रणाम द्वारपां बे ढींचण हाथ बे उत्तम अंग म च अंग नमाववां ते। स्तक एक॥
पंचंगो पणिवान। दो जाणु करदुगु त्तमंगंच ॥
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Ավ हवे नमस्कार द्वार अनलामो एक बेत्रण जावत एकसो घाउ होटा अर्थडे जेहना नवकार। ॥२५॥
सु महब नमुक्कारा। इग दुग तिग जाव अघ्सयं ॥३॥ हवे अक्षर १६४७ नु द्वार नव नेन सो ए एकसो नवाणुर एए अमसत ६७ अठ्ठावीसश। वली बसेने सतांणुशए। | अमसरिअध्वीसाशनव नकसयंश्च दुसय सगन
बसेने नगणत्रीस२२ए बसे बसेने सोल२१६एकसोने कया॥ ||ने साठ २६०। अठाणुर एएकसोनेबावन र ५।२६।
दोगुणतीसपदु सनदा दुसोलअमनन्य सयदुवन्न |ए अक्षरनां सुत्रांनां नाम नवकार इरियावही नमु[सयंण२६॥ खमासमण।
थ्थुणं धादी पांच मंमकमां॥ अ नवकार रखमासमणशरिय३सकबयाश्चदंमसु॥ अरिहंतचेइयाणंमां लोगसया एम अनुक्रमे अक्षर सोलसे सुम दीमां नही बीजीवार गणवा। तालीस ॥२७॥
पणिहाणेसुश्र अदुरुत्त। वन्ना सोलसय सीयाला॥२॥ हवे पद १७१ नु दार ए नवए तेंतालीस अठावीसशसोल१६ बत्रीस३२ तेतरीस३३। वीस२० अनुक्रमे पद कोना॥
नवरबत्तीसश्तीत्तीसा३ । तिचत्तधश्रमवीसएसोलहवी नवकार इरियावही नमुथ्थुणं था एकसोने एकासी [सपया। देने विषे।
सर्व पद थाय पद द्वार ए॥२॥ मंगल रिया सकलयाईसु। इगसीश्सयंतु पया॥३॥ हवे संपदाएअनु द्वार१० आठ सोलर ६संपदा वीस संपदा आपनवएबाअठावीसश। संपदाशब्दे वीसामानां स्थानक॥|| अरश्नव३घ्यधश्रध्वी सोलसयक्ष्वीसवीसामा।|
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अनुक्रमे नवकार इरि [सए। नमुथ्थुणं आदेने वीषे सतांणु यावही।
संपदा ॥२॥ __कमसो मंगल इरिया। सक्कबयाईसु सगनई॥रणा हवे नवकारना अक्षर अफ नवकारने वीषे आव संपदा तेह सठ पद नव।
मां॥ वन सहि नव पय। नवकारे अहसंपया तब॥ सात संपदातो पद तुल्य । सत्तर अक्षरनी आठमी संपदा बेला
बे पदनी ॥३०॥ सग संपय पय तुन्ना। सतरकर अध्मी दुपया॥३॥ हवे खमासमणना अक्षरा। अठावीस तीमज इरियावहीमां॥
पणिवाय अकराई। अनवीसं तहाय इरिआए॥ एकसो नवांगुं अक्षर डे। बत्रीसतो पद ले संपदा आठ ॥३१॥
नव नग्य मकर सयं। दुतीस पय संपया अ॥३२॥ संपदामां पद बेश्पदनी बेश्पदनी अगीयार११ पदनी बपदनीए| एक १ पदनी चारधपदनी एक रप इरीयावहीनी संपदानां पद॥ दनी पांचएपदनी।
दुगदुगगश्चनपगए गारगरिय संपया संपदा आदी पद इच्छा पण। जेमेजीवार एगिदियार[पया॥ मिर इरिया गमणागमणे? पा अनिहयार तस्सनतरी ॥ एक्कमणे।
चार रिश्गम पाणाध। जेमेएएगेंदिअनि तस्स सपदानांम अंगीकार संपदार सामान्यहेतुर विसेषहेतुर [॥३२॥ नीमीत संपदार। संग्रहहेतुर पांचमी ॥
अनुवगमोर निमित्तं। नहे३ अरव्हेक संगहेएपंच ॥
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जीवसंपदार वीराधना संपदार प ए जेद त्रण पाडलनी संपदा || मिक्कमण संपदार।
चुलिका जाणवी ॥३३॥ जीवविराहणपमिकमण।नेअक तिनि चुलाए।३३|| नमुथ्थुणंनी संपदा प्रते पद बेश्पदनी त्रणश्नी चार नी पांचएनी|| पांचएनी पांचएनी बेश्नी चारधनी।
दुर तिश् चन३ पण पण पण दु चनन। त्रणश्पदनी नमुथ्थुणंनी संपदामां पदसंख्या॥
तिपया सकल संपयाश् पया॥ संपदा आदीपद नमुथ्थुणं था अनयदयाणंए धम्मदयाणं६ अ|| ईगराणं पुरिसुत्तमाणं लोगुत्त प्पमिहय जिणाएंज सव्वनुगए। मांग।
॥३०॥ नमु आईग पुरिसो लोग। अनय धम्म प्प जिण सव्वं संपदानांम स्तोतव्य संपदा विसेष हेतु३ नपयोग [॥३४॥ सामान्य हेतु संपदा। हेतु तदहेतु उपयोग संपदाए॥
थोअव्व संपया नह। इयर हेक वनग तक॥ विसेष हेतु नपयोग६ स्वरू हेतु संपदा नीज समतुल्य फलदाय प।
क मोक्षसंपदाए ॥३५॥ सविसेसु वन्ग सरूव। हेक निय सम फलय मुके॥३॥ नमुथ्थुणंमां अक्षरादि संख्या नवएसंपदा ले पद तेतरीस३३ ले बसेंने सतांणुशएअक्षर । नमुथ्थुगंमां॥
दोसग नका वन्ना। नव संपय पय तित्तीस सकाए॥ चैतस्तव अरिहंतचेच्या तेंतालीस पद ले अक्षर बसेंने गणत्री एमां आठ संपदा । स ॥३६॥ ॥ चेश्य थय संपय। ति चत्त पय वन्न दुसय गुणतीसा३६
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ROBERT
संपदामां पद बेश्पद बहपद सा बपद चैत्यस्तवनी संपदामां पद तपद नवएपद त्रण३पद ब६ प्रथम केहे। पद चारधपद।
दुरसगश्नवतिय उप्पयचिअसंपया पया प अरिहंतचेइयाणं र [बक्ष्चक। अन्नथनससिएणं सहुमेहिं[ढमा। बंदणवत्तियाएर सद्धाए। अंगए एवमाइ एहिं ६ जाव अरिहं
ताणं तावकायं॥३७॥ अरिहं वंदण सघा। अन्न सुहुम एव जा ताव॥३॥ संपदानांम अंगीकार संप हेतु संपदा३ एकवचनांत आगार सं दार निमित संपदा। पदाध बहुवचनांत आगार संपदाए॥
अनुवगमो निमित्तं। हेक ग बहुवयंत आगारा॥ अग्नी स्पर्शनादीक बाझका कानुस्सग मर्यादानी संपदा सरुप रणागार संपदा। संपदा ए आठ संपदा ॥३॥
आगंतुग आगारा। उस्सग्गा विहि सरूव॥३॥ लोगस्स यादीने वीषे सं जेटलां पद ते समान अगवीस सोल पदातो।
वीस अनुक्रमे। नामथयाश्सु संपया। पय सम अमवीस सोल वीस कमा एक वारना जण्या अक्षर ग बसेंने सोल एकसो अठाणु अक्षर लोग गतां अनुक्रमे बसे साठ। स्स पुरवरवरदी सिद्धाणंबुद्धाणंनाइए
अदुरुत्त वन्न दुस। दुसय सोल नग्अ सयं ॥३॥ बे जावंती जयवियरायना अनुक्रमे सर्वना गुरु अक्षर सातत्र अक्षर एकसो बावन। ए३ चोवीस२४ तेत्रीस३३।
पणिहाण दुवन्न सयं। कमेण सगरतिश्चन्वीसइतित्ती गणत्रीसएअठावीस। चोत्रीस३४ एकत्रीस३
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गुणतीस हवे पांच मंमकनुं द्वार ११ पांच पाठ नमुथ्थु
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पणदंमा सक्कचय | अधीकार बे ते बेश एक १ बे२
पांच |
वीसा६ । चनतीसि प्रगतीस बार गुरुवन्ना अरिहंतचैयाांश लोगस्स [॥४०॥ पुख्खरवरदी सिद्धाणंबुद्धा५ इहां पांच रुकने वीषे १२ ॥
चेश्य नाम सुय सिचय इच्च ॥ ए अधीकार बारे नमुथ्थुणादीक
मां अनुक्रमे ॥४१॥
हिगारा बारस कमेण ४१ सव्वलोए पुख्खरवरदि६ तमति मीर७ सिद्धा जोदेवा ॥
।
दो १इगर दो ३ दो४ पंचय५ नमुथ्थुरां १ जेायइथा श्प्ररि इंतचैयाणं३ लोगस्स४ ।
नज्जित सेलसिहरे १० च तारिश्रह ११ वेया ।
न िचत्ता वेया । धाकार अर्थ प्रथम अधी
कारे वांदुबु |
नमु जेई अरिहं लोग । सव्व पुरक तम सिद्ध जोदेवा ॥ वञ्चगरा १२ ए बारे अधीकारनां श्रा दी पद वे ॥ ४२ ॥
वच
हिगार पढम पया ॥ ४२ ॥
६३
१२ सर्वांक गुरु अक्षरना ॥ ४० ॥
बे
पढमहिगारे १ वंदे ।
नावजिणे बीय एन दव्व जिणे ॥
एक चैत्यनी थापना जिन प्रते त्री चोथा अधीकारमां नांमजिन
जे अधीकारे वांदे |
प्रते ॥ ४३ ॥
। चनचंमि नामजिणे ॥ ४३ ॥ पांचमे हवे बट्टे अधीकारे श्री मंध रादी वेहेरमान जिन बठ्ठे ॥
तिहुप्रणव्वणजिणे पुण । पंचमए विहरमाण जिए बहे।
नावजिन प्रते बीजे अधीकारे द्रव्य जिन प्रते ।
इगचेश्य व्वण जिणे तइ
पांचमे अधीकारे त्रण जुवनना थापनाजिन वली ।
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सातमे अधीकारे श्रुतज्ञान प्रते सत्तमए सुनाएं।
| हवे नवमे अधीकारे तिर्था द्विप श्री वीरजिन स्तुती । तित्थाहिव वीर थुइ |
कयंत थुइ ॥
सम्यग् द्रष्टी देवनु समरण बेले वा बारमे अधीकारे ॥४५॥
धावया इगदिसि । सुदिठि सुर समरणा चरिमे ॥४५॥
एबार अधीकारमां नव अधीकार वीस्तरा नांमे श्री हरिनद्रसुरि क्र इहां चैत्यवंदननी व्रती ललीत । त श्रादेना अनुसारथी ॥
नव हिगारा इह ललि
| अष्टापदजीनी स्तुती अगीया
रमे ।
त्रण अधीकार श्रुतनी परंपरा थी ।
|
तिन्नि सुत्र परंपरया श्रावस्यकनी चूर्णिने वीषे ।
वस्य चुन्नी | ते कारण माटे नज्जिता दीक पिए । ते नर्जिताइव । बीजो अधीकार श्रुत स्तवादि ।
६४
ठमे अधीकारे सर्व सिद्ध स्तुती ४४ हम ए सव्व सिध थुई ॥ ४४ ॥ नवमे दस श्री गीरनार वा रेव ताचल स्तुती ॥ नवमे दस मे
चयाई ।
बीन सुत्र ते माटे नमुने ते
। विचरा वित्ति माई पुसारा ते त्रण कीया बीजी दसमो इगीया रमो ॥४६॥
बीन दसमो इगार समो ॥ ४६ ॥ सधीकार पुर्वाचार्य
जेक नी जेम इबा ॥
जंनणि सेसया जहिचाए ॥
अधीकार श्रुतमय नीचे जांणवा
॥४७॥
हिगारा
मया चैव ॥ ४७॥
करी वरणव्यो तेज याव सक चुर्णिमां नीचे ॥
Eat aन्न तहिं चैव ॥ द्रव्य अरिहंत वांदवाने अवसरे प्रग
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कह्यो ।
टार्थ जांगवो॥४॥ सक्कलयं ते पढिन। दव्वा रिह वसर पयमबो॥॥ असत पुरुषे आचरूं नहीं बीजा गीतारथे अणवारीत एटला पापसहीत पापरहीत। माटे मध्यस्थपणानी॥
असढाइ नणवऊं। गीय अवारियंति मऊ बा॥ यावरणा पण नीचे श्राज्ञा जा एहवा सास्त्रनां वचनथी जलान गवी इति।
र सहु माने ॥४॥ आयरणा विहु प्राणंति। वयणन सु बहु मन्नति॥४॥ हवे चार वांदवा योगनु द्वार १३ सुत्र सिद्धांत३ सिद्धनगवान इहां चार वांदवा योग जिनेस्वरर समरवायोगनु द्वार प्रसासनाधीष्ट मुनीराज।
देवतादी समरवा वा संजारवा ॥ | चन वंदणि जिण मुणि। सुय सिघाइह सुराश्सरणिका हवे चार जिननु द्वार १५ चार द्रव्य३ जावजिन ए चारे जेदे जिन नांम' थापना। करीने ॥५०॥ | चन्हजिणा नाम व्वण। दव्व नावजिण नेएणं॥ नामजिन ते श्री रूपनादी थापनाजिन ते वली श्रीरूपनादी जिननां नांम।
जिननी प्रतीमान॥ नामजिणा जिण नामा। ग्वणजिणा पुण जिणंद पमिमान द्रव्यजिन ते जिननामबंधी जावजिनतो समोसरणमां बीराजी जीव ते द्रव्यजिन। देसना दीये तीवारे ॥५१॥
दव्वजिणा जिण जीवा। नावजिणा समवसरण बा।। चार थोयोनु द्वार १६ आदरया बीजी सर्व तीर्थकरनी स्तुती तीजी जे जिन रूपनादीनी प्रधम थुइ। श्रुतज्ञाननी स्तुती ॥ अहिगय जिण पढमथुई। बीया सव्वाण तश्य नाणस्स॥
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|वैयावच करता सासन नपयोग अर्थे चोथी थुई ॥ ५ ॥ रक्षक देवा देवीयोनी।
वेयावच्च गराण। नवन्ग 5 चन्च थुई ॥५॥ पाठ निमीतनु द्वार १७ पाप वंदणवत्तिया आदे बनीमीत खपावाने अर्थे इरियावहीया। बं? पुर सर सर बोर नि।
पाव खवणन रिया। वंदणवत्तिया निमित्ता॥ जिनप्रवचन अधीष्टायक देव कानस्सग्गर एम नीमीत पाठ चै समरवा अर्थे ।
तवंदन वीषे ॥५३॥ पवयण सुर सरण । नस्सग्गो श्य निमित्त ॥५३॥ बार हेतुन द्वार१७ चारहेतु तस्स प्रमुख सद्धाए इत्यादीक पांचए न०१पायबित्तावीसोही विसाल्ल? । हेतु ॥
चन तस्सत्तरी करण। पमुह सघाश्त्राय पणहेक॥ वेयावञ्चगराणं इत्यादीक। त्रण३एम हेतु ए समग्र बार हेतु थयां।५।।
वेयावच्चगर ताइ। तिन्निश्अहेक बारसगं॥॥ सोल धागारनु द्वार एअन्नथ्था आगार एवमाइएहिं इत्यादी चा दीबार १२ आगार कानसगना। रच ते॥
अन्नबयाइ बारस। आगारा एवमाश्या चनरो॥ दिवादो अगनीजयथी थापना वीचे सादीक जयथी पुंजी आयो पंचंद्रीनी आमे चोरादीक नयथी। खसेतो कानसग न नागे॥५५॥
अगणि पणिंदि बिंदण। बोहिखोनाई मक्कोअ॥५॥ हवे कानसगना दोषनु द्वार२० मालदोष र नधीर नीननदोष जी|| थोटक? वेलमीर थंनदोष। लमीर खलीणदोष१॥ घोमग?लयश्Mनाई।मालुधघीयनियलक्ष्सबरि खलि
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६७ |वधुदोष? लांबु पेरणु पेरे ते१ जांपण बांगली हलावे ते? [णा स्तनदोष संजतीदोष। कागमापरे अमुअवलु जुइं ते?
कोनीपरे दीलसंकोचे ॥५६॥ वहुल्लंबुत्तर? थण११संज नमुहं गुलि१३वायस कवि |माधुं धुणावे ते? मुकदो[३१२। प्रेक्षदोष? ए नगणी[२५॥५६॥ परमदीरा परे बमबम करे ते । स दोष तजजे कानस्सगे॥
सिरिकंप१६मूत्र वारू पेहत्ति?एचश्ऊ दोस नस्सग्गो तेमांधीर मो [णि २७। न होय दोष साधवीजीने ए त्रण सही ११मो १२ एत्रण। तनवमो चार नही श्रावीकाने॥५॥
लंबुत्तर थण संजई। न दोस समणीण सबहु सट्ठीणं कानुस्सगमां सासोसासनी पचीस सासोसासनु बाकी कान संख्या द्वार २१ इरियावही सगे आठ सासोसास ॥ ना कानस्सगनु प्रमाण। । शरि नस्सग्ग पमाणं। पणवीसु स्सास असेसेसु॥ हवे स्तवन द्वार २२ गंजीर मोहोटे अर्थे युक्त होय स्तवना सब्दे मधुर मीठे सब्दे। जिनगुणनुं वरणव ॥५॥ ___ गंभीर महुर सह। महब जुत्तं हवई थुत्तं ॥५॥ सात चैत्यवंदन द्वार २३ प्रतीक्रम पाबले दीवसे प्रतीक्रमण देवसी गराइ? ने देहरे जमतो वा पञ्च मांर संथारे सुतार पडली राते॥ खाण पारतां।
पमिकमणेश्चेश्यजिमण। चरिमध्पमिकमणयसूयण चैत्यवंदन ए साते मुनीराजने। साते वेला एक दी[पमिबोहेश॥
वस रात्री मलीने करवांगणा चिश् वंदण इअ जश्णो। सत्तन वेला अहोरते॥णा
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बेवार प्रतीक्रमण कारक ग्रह स्तने पीण नीचे । पक्किमन गिहिणो विहु
पुजीदीकमां त्रणे संध्या वी पये प्रजात मध्यान सांझे ।
पूयासु तिसंज्ञासुय |
दस श्रासातनानु द्वार २४ पनि सोपारी यादे १ पांणी पीतां १ जोजन करवे १ ।
मुतर वा लघुनीत्य ? वीष्टा वा वमीनीत्य १ जुवटुं ? | मुत्तुच्चारजूयं १० ।
| हवे देव वांदवानी वीधी इरि यावही चैत्यवंदन नमथ्थुणं । इरि नमुकार नमुछु धोयर सिद्धां बुद्धाणं वेया वच्च थोय४ ।
तंबोल? पाणश्नोयणः। वाणह४ मेहुणा सुवन्न ६ निव्व
ए दसे
सातना तजजे जिनेश्व
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र देवघरनी हद्यमां ॥ ६१ ॥ व जिणनाह जगइए ॥ ६१ ॥ अरिहंत चैयाणं थोय? लोगस्स स व्वलोय थोय पुख्खरवरदी ॥ रिहंत थुइ लोग सव्व थुइपुरक ॥ नमुथ्थुणं जावंति स्तोत्र वा स्तवन जयवीयरा० ॥ ६२ ॥ नमुच जावंति थय जयवी ॥ ६२ ॥ ए रीते जे नृत्यम प्राणी श्री जी नदेव प्रते वांदे सदा ॥ एवं जो वंदए सया देवे ॥ ए रीते श्री परमात्माने वांदसे ते प्रां परमपद जे मोक्षपद पांमसे थो
६८
साते वेला एक पीकमले पांच वेला तेथी बाकीनाने ॥ । सगवेला पंचवेल इयरस्स ॥ होय ण वेला झघन्यपणे चैत्य वंदन ॥ ६० ॥
होइति वेला जहन्नेां ॥ ६० ॥
थुइ सिधा वेया थुइ । | सर्व नृपाधी धरमोथि वीसु ध पणे ।
सव्वो वाहि विसुधं ।
ते देवतानी इंद्रना व्रंदने पुज वा योग थाय वा प्रक्रय कर
खासमां श्रादे? स्त्रीवीलासर सुइ रेहेवुं १ थुकवुं १ ॥
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६॥
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ता श्री देवेंद्रसूरिजीइं आप मा कालमां॥३॥ नु नाम सोचव्यु।
देविंद विंद महियं। परम पयं पावई लहुसो॥३॥|| इति चैत्यवंदन नांमे नाष्य प्रक्रण समाप्तं ॥
॥इति चैत्यवंदना नाप्य संपुर्ण ॥
हवे बीजी गुरु वंदन वीधी नाष्य लखिए बीए ॥
॥अथ गुरुवंदना नाष्य लिप्य ते॥ गुरु वंदन मोहोटु त्रण प्रकारे। ते फेटावंदन? थोनवंदन' द्ववाद
साव्रत वंदन गुरुवंदण मह तिविहं। तं फिदार बोनश्बारसावत्तं३॥ मस्तक नमामवादीके करी प्र वली खमासमण बे देइ वांदे ते थम वंदन।
बीजु वंदन ॥१॥ सिर नमणासु पढमं। पुन खमासमण दुग बीय॥१॥ जेम दुत राजा प्रते प्रथम। नमीने कार्य प्रते कहीने पडे राजये। जह दून राया।
नमिकं कऊं निवेश्क पछा। रजा आप्ये पण वांदीने। स्वस्थानके जाय एमज इहां ख
मासमण बीजुं ॥२॥ विसळीनवि वंदिय। गनर एमेव च दुगं ॥२॥ सम्यक्त आचारनु मुल ते। वीनय ते गुणवंतनी सेवना नक्ती॥
आयारस्स मूलं। विण सो गुणवन्थ पमिवत्ति॥ ते सेवा जगती वीधाई करी तेनी वीधी इम द्वादसाव्रते करी वंदवा थकी होई।
॥३॥ साय विही वंदणा। विहि इमो बारसावत्ते ॥३॥
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| तीजुतो गुरु वचन केहे तव ते त्रणमां इहां प्रथम फेटावंदनतो बंदे बे वार।
समस्त संघने वीषे॥ तईअंतु बंदण दुगे। तब मिहो आश्मं सयल संघे॥ बीजं थोनवंदनतो मुनीद आचार्यादी पदस्थने वली तीजु र्शन नपगरणवंतने होय। वंदन होय ॥४॥
बीयंतु दंसणीणय। पयघ्यिाणं च तश्यंतु ॥४॥ | वंदनकर्म चितीकर्म कृतिकर्मा पूजाकर्मी वली वीनयकर्म? एपांचे
वंदणचिईशकिई कम्मंश पूया कम्मच विणयकम्मएच करवू वंदनकर्म कोने केने करवू पण। केइ वखते केटलीवार वंद
न कर्म करवं ॥५॥ कायव्वं कस्सवि केणवावि। काहेव कइखुत्तो ॥५॥ केटलीवार मस्तक नमावबुं। केटला प्रकारना आवस्यक करी वी
सेस शुध थर्बु ॥ कश्नणयं कसिरं। कशविहि आवस्सएहिं परिसुद्ध। केटला दोष वीषेष मुकीने। वांदणा देवां ते सा कारण माटे देवां वा।।
कई दोस विप्प मुकं। किश् कम्मं कीस कीरश्वा ॥३॥ वांदणाना पांचएनाम पांचए वांदवा प्रयोग पांचवांदवा योग पां|| नदाहरण।
चर चार पासे वांदणा न देवराववां॥ पणनामरपणाहरणा। अजुग्ग पण३ जुग्ग पण चन चारपासे वांदणा देवराववां चारधनांमे नही नी अदाया५॥ पांच५ वांमे वांदणानुं नीषेध। षेध आत कारण जाणवां ॥७॥
चन दाय पण निसेहा। चन अणिसेह कारणया॥७॥ वांदणामां अवसक २५ मुहपती सरीरनी पमीलेहण प्रतेके पची
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७१ नी।
स२५ दोषण बत्रीस३२॥ श्रावस्सयर मुहणंतय ११॥ तणु पेह पणीस१२ दोस ब बगुण थाय गुरुनी थापना? बसेंने बवीस२२६[त्तीसार३॥ बेश्व ग्रह।
अक्षर तेमांनारे अक्षर पचीसाण बगुण १४गुरुग्वण २५दु दु वीस कर१७गुरु पणवी वांदणानां सूत्रपद अ[ग्गहर। ब६ गुरुनां वचन आ[सा॥॥ छावन५७ ब६ थानक वांदणा। सातना तेतरीस३३ टालवी॥ पय अमवन्नर बहाणारा। गुरु वयणा श्रासायण
[तित्तीसं॥ बेश्वीधी ए बावीस द्वारे करीने। चारसेंने बाणु ठेकाणां थयां ॥९॥
दुविही दुवीसएदारोहिं। चन्सया बाणुई गणा ॥५॥ वांदणा पांच नाम द्वार? कीर्तीकर्मर वीनयकर्मी पुजाकर्म १ । वंदनकर्म चितीकर्म ।
वंदणयं चिश्कम्मंश किश्कम्मविणयकम्मं पूयकम्मए ए गुरुने वांदवानां पांच ना द्रव्य ते नपचारे जावते अंतरंगथी म ते वली।
ते बेनां नदाहरणनु द्वार॥१०॥ गुरुवंदण पणनामा। दव्वे नावे दुहाहरणा ॥२॥ एकतो सीतलाचार्यनो लघु कनसेवक बेनो पालक कृश्नपु सीसनो? वीरासालवीनो। त्रसंब कश्नपुत्र ए बेनो१॥
सीयलय खहुए वीर। कन्ह सेवग दु पालए संबे॥ पांचे ए द्रष्टांत। कीर्तिकर्ममां द्रव्य नावने वीषे॥११॥ ____ पंचे ए दिघ्ता। किश्कम्मे दव्व नावेहिं ॥११॥ वांदवा अवंदनीकनु द्वार३ कुसीलीयोर संसतो? यथाबंदो ॥
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२ पार्श्वस्थर अवसनो। ___पासबोर नसन्नो। कुसील३संसत्तन अहाउँदोय॥ |ए पांचना प्रतेके नेद बेश् बेश् ए अवंदनीक श्री जिनेश्वरना मत त्रण बेश् अनेक प्रकारे। ने वीषये ॥१२॥
दुगद्गतिगदुरणेग अवंदणिका जिणमयंमि।१ पांच वांदवा योगनु द्वार विहा? गनि सारकारक? संजमे थीर क पांच श्राचारवंत नपध्याय।। रे ते? तीमज गुणरत्ने अधीक१॥ __ आयरियर नवज्ञाए। पवत्ति३थेरेधतहेव रायणिए॥ तेमने वांदणां देवां कर्म र करवां ए पांच नत्तम गुणवंत प्रते हीत थवा अर्थे।
॥१३॥ किश्कम्मं निऊरहा। कायव्व मिमेसि पंचएहं ॥१३॥ चार पासे वांदणा न देवरावे पर्याये मोटार तीमज समस्त द्वारणमातार पीता वमोनाइ। रत्नाधीक पासे॥
मायर पियजिघ्नाया।नमाविधतहेव सव्वरायणिए। वांदणा कर्म न देवराववां। चार वांदवा योगनु द्वार६ चार मुनी
आदे आदीपदी साधु साधवी श्राव
क श्रावीका ए चार वांदे वली॥१॥ किश्कम्मं नकारिजा। चन्समणाश् कुएंति पुणो॥१४॥ वांदणां देतां पांच नीसेधनु दार उध नीद्रादीकहुते नही कोइवार मकथादीके व्यघ्रहुते परानमुखहुते। वांदीस कहे हुते॥
वकित्त। पराहुत्ते। पमत्ते३ माकया वंदिला। आहार करतेहुते नीहार क एटलु करता गुरु प्रते नहीं वांदणा रतेहुते।
देवां कारे वांदवानु द्वार ॥१५॥|| आहारं४ नीहारं। कुणमाणे कान कामेय॥१५॥
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प्रसन होय रुमेासने बेठा होय। क्रोधादीके रहीत बेठा होय ॥
पसंतेर आसण बेय। ग्वसते नवछिए३॥ गुरुनी आणा मागीने बुधीमान तीवारे वांदणां कर्म प्रजुंजे वा पंमीत।
वांदे॥१६॥ __ अणुनवित्तु। मेहावी। किश्कम्मं पञ्जय ॥१६॥ वांदणा देवानां यात कारणनु कान्सग करते? पोतानो अपराध || द्वारए पमिकमणे? सजाय प्र खमावते? परुणा मुनी यावे वां उवण।
दे॥ पमिकमणेर सशाए। काग्सग्गा३वराह पानणए||| देवसीराइ अतीचार आलो प्रयांत अगसण वा संथारो करते? यण लेतार पचखांण करते। ए वांदणानां आठ कारण ॥१७॥
बालोयण संवरणे। नत्तमव्या वंदण्यं ॥१७॥ पचीस आवस्यकनु द्वार १० आव्रत बार१२ चारधवार मस्तक बेवार नमवुश् मस्तके हाथ नमाझवु त्रण गुपती॥ जनमतां राषे तीम वस्त्रादी नपगरण यथायोग राखे।
दोवणयरमहाजायं। आवत्ता बार१२चन सिर तिगु अवग्रहमां बेश्वार पेसवु ए ए पचीस आवस्यक वा अव [तं३॥ कर वार नीकलवं। स्य करवा वांदणा करता ॥१७॥
दुपवेसिग निकमणं॥पणवीसा वस्सय किश्कम्मे।१३ वांदणा कर्म पण करतो हुतो। न होय वांदणां कर्म कर्म नीजरावा
नो नोगी॥ किश्कम्म पि कुणंतो। नहोइ किश्कम्म निऊरा नागी॥ पुर्वोक्त पचीसमांथी हरेक साधु आदे ठाम विराधे तो नीज
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७४ ॥ कोइ आवस्यकनु। रानणी न थाय ॥१॥ | पणवीसा मन्नयरं। साहुगणं विराहंतु ॥ २०॥ महपती पमीलेहण पचीसनु बद पमीलेहण मुहपती नंची करी द्वार ११ नजरे मुहपती जो परखोमा त्रण त्रणने आंतरे ॥ वी ते एक।
दिष्पमिलेह एगा। उन पलोम तिग तिगंतरिया॥ अखोमा प्रमार्जवु प्रथम ज एम नव नव ए समग्र मली मुहपती मणे हाथे झाली मावे हाथे। नी पमीलेषणा पचीस ॥२०॥ ___ अकोम पमऊगया। नव नव महपत्ती पणवीसा॥२०॥ प्रदक्षिणाई करी त्रण त्रण मानी जमणी३ जुजाई मस्तके त्र कीहां ते कहे। प३ मुखे त्रण३ हायाने वीषे३ ॥
पाया हणण तिप्रति वामे अर वाह सीस मुह हियए। बेखने गंची नीची अ। चार ब पमीलेहण बे पगे ए देहनी एक एक पिठे।
पचीस ॥१॥ ___ अंसु हाहो पिछे। चनबप्पय देह पणवीसा॥२१॥ श्रावस्यक पमीलेहणमां जी करे नद्यमे करी पुर्वे कह्याथी नहीं म जीम।
हीण नही अधीक ॥ । श्रावस्सएस जह जह। कुणापयत्तं अहीण मरित्तं॥ जीवीध मन वचन कायाइंन तीम तीम तेहने कर्मनी नीजरा पयोग सहीत।
सकांम थाय ॥२॥ तिविह करणो वनत्तो। तहसे निकरा हो ॥॥ बत्रीस दोषनु द्वार १३ बादर र वांदणां देतो नासेर समग्रने नेगा हीत वांदे ते? जत्यादी मदे। वांदे तीमनी परे ठेकमा देते॥ दोस प्रणाढिअरथद्विय पवि३ परपिंमियंच टोलग
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gu रजोहरण वांको राखेर काबा एकने वांदतो बीजाने वां यंग नी परे रीगतो वांदे ते। देर मनमें खेदातो वांदे ते ॥३॥ __ अंकुसक्ष्कन्चन रिंगिय मनवत्तंज मणपन्छ ।२३॥ बे हाथे पग बांधी वांदे ते? मुने नजे वा आपे ते बुधीई वांदे ॥
वेश्य बघ२० नयंत्र। नयथी वांदे। गरवे वांदे मीत्र जांणी वांदे। मुने वस्त्रादि कांइ देसे एम जाणि वांदेर चोरनी परे वांदे ॥
नयर गारव१३ मित्तर४ कारणा१५ तिएहं१६॥ थाहारादी करते वांदे? क्रोधे वांदे तर्जना करतो वांदे । ___ पमिणीय रुर तङियए। कपटे वांदे तेश्अपमान करतो वांदेश्वीकथा करतो वांदेश्नीश्चय।।।
सढ२० हिलीय विपलिन चिययं ॥२४॥ लाजथी बंधारे दीगे न दीगो वांदे मस्तकने एक देसे वांदे ।
दि मदि।३ सिंगंश् । राजवेठ तुल्य वांदे वांद्या वीना नही बुटीइं जांणि वांदे मस्त के हाथ न लगामतो लगामतो ॥ __ करश्य तमोप्रणश्६ अलिषणालिछ५॥ अक्षरमात्रा नबो कहे? वांदी नतावढं बोले।
कणं नत्तर चूलीयशए। मुगानी परे वांदे वंचे स्वरे वांदेर रजोहरण नमामतो वांदे१॥२५॥
मूअं३० ढहर३१ चूमलियंच३२ ॥२॥ ए बत्रीस दोष टाली वीशेष वंदनकर्म जे प्रखंजे वा करे जला पणे सुध थइने।
गुरु प्रते॥
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७६ बत्तीस दोस परिसुछ। किश्कम्मं जोपजगुरूणं॥ ते प्राणी पांमे मोक्षना सुख थोमा कालमा वीमानीकपणुं अथवा प्रते।
पांमे॥२६॥ सो पाव निव्वाणं। अचिरेण विमाण वासंवा ॥२६॥ ब गुणनु द्वार १४ इहां उ वली नपचार मांनादीकनो नंग गुरुनी गुण वीनय।
पुजा होय३॥ इह बच्च गुणा विपनर । वयार माणाय नंगश्गुरुपूया३॥ तीर्थकरनी आज्ञानो आराध श्रुत जे जिनवचन धर्मनी आराध क होय।
नाए नली कीरीया पांमे६॥२॥ तिजयराणय प्राणा। सुप्रधम्मा राहणाएकिरियाद गुरु थापना द्वार १५ गुरु जे थापीये अथवा गुरुने गंमे ॥२॥ गुणे करी जुक्त वली गुरु। थापनाचार्यादीक॥
गुरु गुणजुत्तं तु गुरु। गविजा अहव तब अकाइ॥ अथवा ज्ञानादी जे ज्ञान दर्शन थापे साक्षात गुरुने अनावे ॥२॥ चारीत्र ए त्रणनां नपगरण।
अहवा नाणा तियं। विज सर्वं गुरु अनावे॥२॥ चंदनग कवमा अथवा। काष्टममादी पुस्तक गुरुमुर्ति चीत्रकर्म ते॥
अके वरामए वा। कठे पूडेय चित्तकम्मेय॥ थापना बे नेदे सदनाव ते वली गुरु थापना बे नेदे थोमा काल मुर्ति बादे असनाव ते नी पुस्तकादिर जावजीवनीमुर्ति आ थापना पुस्तकादि। देश ॥२॥
सनाव मसनावं। गुरु ठवणा इत्तरा वकहा ॥राणा साक्षात गुरुने वीरहे गुरुनी थापना। जाणेजे गुरुज बेठा श्रादेस दीयेने
गुरुविरहमि उवणा। गुरुवएसो व दंसणबंच॥
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जिनेश्वरने वीरहे जिनेश्वरनी मु सेवना हे प्रनु तुमो संसार दुख तीनी।
थी मुकाणा मुजने मुकावानु सु
ध नीमीत थया ते सफल ॥३०॥ जिण विरहमि जिणबिंब। सेवणा मंतण सहलं ॥३॥ श्रवग्रह द्वार १६ चारे दिसीइं साढात्रण हाथ? तेर हाथ नरे गुरुनो अवग्रह वांदणामां। नर नरे नारी॥
चदिसि गुरुग्गहो ह। अहुरतेरस कर२स परपके॥ गुरुनी आज्ञा माग्या वीना पो न कल्पे ते गुरुनी समीप जग्याई ते सदैव वा नीत प्रते। पेसवाने ॥३१॥ ___ अपणुन्नायस्स सया। नकप्पए तब पविसेन॥३२॥ बताण अक्षरनु द्वार १ ७ पांचए चार ए मे पद अनुक्रमे प्रण३ बार१२ बेश् त्रण। गणत्रीस जाणवां ॥
पण रतिगश्बारसदुग चनरोबाण पय गुणती नगणत्रीसशए बीजांआ[तिग॥ सर्व मली पद अगवन [सं॥ वसकोने वीषे।
थयां ॥३॥ गुणतीस सेस अवस्सया। सव्व पय अम्वन्ना॥३॥ वांदनारनुंब वचननु द्वार१७ नीसीहीयादीमां१२ समुचय जत्ता इच्छामियादीमांपअणुजाण मांश् जवणिजंचने०३ ॥ हादीमां।
श्वायरअणुणवणारा अव्वाबाहं३च जत्तजवणायाम अपराधनुं खमाव, पण खामे वांदणां देनारनां ए गंम जांण|| मी खमासमणो आदीमां। वां ॥३३॥
अवराह खामणा वियदा वंदण दायस्स बणा ॥३३॥|| गुरु वचन बनु द्वार १ए बंदे तहती ए त्रीजुंस्तुपीण व्रते वे ए ग' अणुजाणामी। चोथुध एवं गुरु वचन५॥
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IG बंदणरअणुजाणामि। तहत्ति३तुप्रंपिवहए एवंए। हु पीण खांमुबु तुज प्रते। वचन जाणवां वांदवा योग श्रा
चार्यादीकनां ॥३॥ अहमवि खामेमितुमंद। वयणा वंदण रिहस्स॥३४॥ यासातना तेतरीसनु द्वार २० एत्रण३ जातां मना रहेतां३ बेस| बागल बे पासे पाल नजीक। तां३ तमीले प्रथम पांणी ले ते१॥
पुरन परका सन्ने। गंताइचिणइनिसीयणायाम गमणागमण पेहेला आलोवेश्बोलाव्यो सांजलतां न बोले [२॥ ___ आलोयण पमिसुणणे१२। गुरु पेलां बोले ते? गुरु बते विजा पासे बालोवे ते? ॥३५॥
पुव्वालवणेअर३ अालोए१४ ॥३॥ तीमज आहारादी बीजाने देखामेर बीजाने नीमंत्रे पडे गुरुनेर ॥
तह नवदंस १५ निमंतण१६। बीजाने आपे? मीतो पोते खाय? तीमज गुरु बोलावे वार लगावी बो
खघायर यणेर तहाथ पमिसूणणे ॥ १ ॥ गुरुने कठीण वचन बोलेर संथारे बेठो नतर आपे।
खपत्तिय० तबगए। ||सुंकहोबो? तुमे करो? गुरुने टुकारो करे१ मातु मन ले जेनुर ॥३६॥
किंशश्तुम२३ तळायश्४ नोसुमणेश्५॥३६॥ तुमने नथी सांजरतुर गुरुकथा वीचे पोते कथा करे।
नोसरसिश६ कहं बित्ताए। सनानो नंग करे। गुरु कह्या पने पोते कहे ॥
परिसंनित्ता अणुध्यिाश् कहेश्॥
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गुरुने संथारे पग लगामे।
संथारपाय घडण३० । गुरुने आसने बेसे? नंचे आसने बेसे? तुल्य आसने बेसेर ॥३॥
चि३१ ३२ समासणेप्रावि३३ ॥३॥ राइप्रतीक्रमण वीधी इरियावहि चैत्यवंदन मोहपती पमिलेहवी |कुसुमीण दुसुमीणनो कानसग। बे वांदणां राइथं बालोवू॥ | रिया कुसुमिणु स्सग्गे। चिअवंदण पुत्ति वंदणा लो। |बे वांदणां राइन खामवंबे पचखांण चार खमासमणां जगवन् वांदणां।
आदी बे खमासमण सझाय ॥३०॥|| वंदण खामण वंदण । संवर चनत्थोन दु सप्नाना३॥ देवसी प्रतीक्रमण वीधी मुहपती पमिलेहवी बे वांदणा पच इरियावही चैत्यवंदन। खांण बे वांदणा देवसीय बालोवू॥
रिया चिश्वंदणं। वंदण चरिम वंदणा लोयं॥ बेवांदणा देवसीय खामु चा देवसीय प्रायबित्त चार लोगस्सनो र जगवन् आदी। कानसग बेखमासमण सझाय।३।।
वंदण खामण चनगेन। दिवसु सग्गो दुसशान॥३॥ एरीते वांदणानी वीधी प्रते। जे प्रजूंजता चरणसीतरी करण
सीतरी संजुक्त जो॥ एयं किश्कम्म विहं। जंजुत्ता चरण करण मानत्ता। साधु खपावे कर्म जे ज्ञा अनेक वा घणा नवनां संचेला वा नावरणादी प्रते।
मेलवेला अंत नहीं हेवां ॥४०॥ साहु खवंति कम्म। अणेगनव संचिय मणं॥४०॥ प्रक्रण करता कहे अल्पमती कर्वा होय वीपरीतपणे जे कांइ में॥ वंत जोग जीवोने बोधने अर्थे ।
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GO
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अप्पम नव बोहब। नासियं विवरियंच जमह मए।। ते सोधजो गीतार्थ होय नथी जेहने अनीमान हलवाद मडर ते केहवा।
रहीतो ॥४१॥ तं सोहंतु गीयबा। अणनिनिवेसि अमरिणो॥४॥ |एम जला गुरुने वांदवानी वीधीनारख्य समाप्तः ॥
॥तिश्री गुरुवंदन वीधी नाप्य संपूर्ण ॥
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हवे पञ्चरखाण वीधी जारण्य लिख्य ते ।
॥अथ प्रत्याख्यान जाय॥ दस प्रत्यारख्यान द्वार चारवीधी आहार द्वार १ बावीसागार द्वार ।
द्वार १ एकवारना कह्या ॥ दस पच्चरकाणरचनविहे२। आहार३ दुवीसिगार, अदु दस वीकती द्वारर तीस नीवीगय बेजांगा द्वारा द्वार।
द्वार पचखाण फलदार ॥१॥ दस विगईयतीसविगई गया दुह नंगान सुधिष्फलाए प्रथम द्वार कारणे पागलथी तप करे तेरे श्रावते काले करे? [॥२॥
अणागयर मश्कंतं। एकनी अंत्य बीजानी पाद्यपधारे दीन अवस्य करेआगार रहीतर॥ __ कोमिसहिअं३ निश्रटि४ अणगार५॥ आगार सहीतर चारे वस्तुनु प्रमाण करी करे ते१संकेत मुत्सी हार आदे पचखाण। आदेर कालमान पोरसी यादे ॥२॥
सागारनिरवसेसं। परमाणकमसको अधार ॥२॥ काल पचखाण दस नेदे नोकार बे पोर वा पुरीमढ १ एकासगनु १ ए
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G सहीयं बेघमीर एक पोहोरनुर। कलठाणानु पग न हलावे ते१॥
नवकारसहियरपोरसी। पुरिमढे ३गासणेगगणेय५॥ आंबीलनु नपवास वा अ दीवसचरीमनु१ मुठसही आदे अ नक्तार्थ।
नीग्रह १ वीगइनु ॥३॥ आयंबिलअनत्त । चरिमेनिग्गहेविगई१॥३॥ पञ्चरखांण करण वीधी नग्गएसूरे पोरसहीनं पञ्चखाइ नग्गएसूरे नमोक्कारसहिथं पञ्चखाइ। चनविहंपिहारं ॥
नग्गएसूरे नमो। पोरसि पञ्चक नग्गएसूरे२॥ सुरेनग्गे पुरिमट्ठ पञ्चखाइ __ सूरेनग्गे अभ्यतडं पचखाइ ए चनविहंपिहारं।
रीते? ॥३॥ सुरेनग्गेपुरिमं। अनत्तई पच्चकात्ति ॥४॥ पञ्चखाण करावतां कहे गुरु करावनार पञ्चखाइ कहे इति एम कहे सीस वा पञ्चरखाण कर करनार पञ्चखामी कहे गुरु वोसी नार वली।
रे कहे सीस योसरांमी॥ नण गुरु सीसो पुण। पच्चका भित्ति एव वोसिर॥ नपयोग इहां करनारनो नथी प्रमाण करावनारना अक्षर प्रमाण जाणवो।
जूलथी ॥५॥ नवगिच पमाणं। नपमाणं वंजण हलणा॥५॥ काल पञ्चखाणमां प्रथम था बीजे थानके त्रण वीगय आदि प्रका नके नवकारसहि आदे तेर र त्रीजे स्थाने त्रण प्रकार एकासपा प्रकार।
दी॥ पढमे गणे तेरस। बीए तिन्निन तिगाइ तश्यंमि॥ पाणस्स लेवेणवादि चोथे देसावगासादी पांचमा स्थानक स्थांनकने वीपे।
मां ॥६॥
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पाणस्स चम्बंमि। देसावगासा पंचमए॥६॥ हवे प्रथम स्थानकमां नेद१३ पुरीमढ? अवढी अंगुष्टसि आ नमुक्कारसहियं पोरसहियं १ दी बाठ ए तेर नेद ॥ साढपोरसहियं।
नमुर पोरसि सढा३। पुरिम वढ५ अंगुठमाश् अम बीजे नेदश्नीवीनु? वीगीयनुरां बेसणुर एकासणु१ ए[तेर॥ बेलनुर एत्रण त्रीजामां नेद। कलठाणुर एत्रण॥७॥
निविर विगयंबिल३ दुरएगासणेशएगगणाई३।। नपवास वीधी [तिअतिथ। तेर बोल पूर्वोक्त बीजे पाणहार प्रथम स्थानकमां चोथ आदि। नमुक्कारसहियं त्रीजे पाणस॥ । पढमंमि चम्बाई। तेरस बीयमितिश्य पाणस्स३॥ देसावगासीयं चोथे स्थानके। चरीमे ते दिवसचरिमादी दुविहार
तिवीहार चनवीहार जेम संनवे ते
म जाणवू ॥७॥ देसावगासं तुरिए। चरिमे जह संनवं नेयं ॥॥ तीमज मध्य पञ्चखाणमांतो नही वार वार सूरेनग्गए इत्यादीक निवि विगइ आंबिल वीषए। वोसीरे ए मध्य पच्चखाणे ॥
तह मक्ष पञ्चकाणेसु। नपिहु सुरुग्गयाइ वोसिर॥ करवानी वीधी ते माटे न कही। जेम आवसीयाए ए पाठ बीजा
वांदणामां न कहेवो ॥॥ करण विहीन न नण। जहा वसिया विय बंदे॥णा तीम तीवीहार एकासणादीप कहीइं पांणस्सना ब आगार लेवे चखाणमां सचीत त्यागीने। दादी ॥
तह तिविह पच्चकाणे। नन्नति अपाणगागारा॥
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दुवीहार पञ्चखाण वीषये नोजी श्रावकने वीषे तीमज फासु अचीत आहार। पाणी वावरनारने ते व्यागार॥१०॥ __ दुविहाहारे अचित्त। नोश्णोतहय फासु जले॥२॥ एटला माटे ज्योग्य नपवास नीवी प्रमुखने वीषे तथा सचीत प यांबील कारक फासु जल पीइं। रीहारी ने फासु नीचे जल वली॥
इत्तु च्चिअखवण बिलोनिव्वियाइसु फासुयं चिजलंतु श्रावक पीण पाणी पीइंतीमज । पञ्चखांण करे तीवीध थाहारं॥११॥
सहवि पीअंति तहा। पच्चकंतित्र तिविहा हार॥११॥ चनवीध आहारनु वली नमु राते नीचे मुनीने बाकी पञ्चखाणे कारसहीनु।
तीवीहार चनवीहार होय। चव्हाहारं तु नमो। रत्तं पिमणीण सेस तिह चन्हा॥ राते पोरसि पुरीमढ एकासणा श्रावकने दुवीहार तीवीहार चन दीक पञ्चखाणमां। वीहार ए त्रणे नेदे होय ॥१२॥
निसि पोरसि पुरिमे गासणा।सढाण दुति चव्हा।रश चार थाहारनु द्वार र भुख न थाहारने वीषे लवणादि अथवा ल पसमावाने समरथ होय एका वणादि आवे दीइं अथवा स्वाद प्र की आहार।
ते यापे॥ खुहे पसम खमे गागी। आहारि व ए देश वा सायं॥ नुख्यो हुतोअथवा खेपवे वा जे कादव सरीखो ते सर्व आहार नांखे कोगने वीषे वा पेटमां। कहीइं ॥१३॥
खुहिन व ख्रिव कुछे। जं पंकु वमं त माहारो॥१३॥ असनने वीषे मग आदे कठोल स मांमा रोटली प्रमुख सुरणादी
कुर बाजरादी सातवो वा चुण। जमीनकंद ॥ __ असणे मुग्गो अण सत्तु। मंझ पय कऊ रब्ब कंदा॥
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हवे पाणिने वीषे कांजी वा ा कपासीया वा काकीनु धोयण बण पांणी जव केर धोयण जल। जल मदीराजल आदी सब्दथी
बीजां पण जल जांगवां ॥१५॥ पाणे कंजिय जव कयर। कक्कमो दग सुराश् जलं॥१४॥ हवे खादीमने वीषे सेक्यां धान हवे स्वादीमने वीषेध सुंठ जीरु फल केला आदे।
अजमादी॥ __ खाश्म नत्तो स फला। साश्मेसुंग जीर अजमा॥ मध गोल तंबोल पान सो हवे अणाहार वीषे मात्रु लींबमा पारी लवंग एलची आदे। प्रमुख ॥१५॥ ___ महु गुल तंबोला। अणहारे मोअ निंबाई॥२५॥ हवे पच्चरवाणनाथागारनु द्वार सात पुरमिढमां एकासणामां बेश्यागार नोकारसहिमांड६ आठ यागार॥ पोरसिमां।
दो नवकार पोरसि।सग पुरिमढे३एगासणे अध्॥ सातण्यागार एकलणामां आठ पांचपागार चोथ नपवासा आंबीलमां श्रागार। दिकमां बागार पांणसमां॥१६॥
सत्ते गगणे|अंबिल। अपण चन्नप्पाणे २६ चारागार दीवसचरीममां चार पांच आगार वस्त्रादि लेवानवे श्रागार मुउसही आदी अनीग्रहमां। तेमां नव अथवा आत नीवीमां
चन चरिमे चनिग्गहि। पण पावरणे नव निव्विए। आगार जे नवित्त बीवेगेणंने। मुकीने एकली द्रव्य वीगयनो नी
यम करे तो आठ ॥१७॥ अागारु खित्त विवेग। मुत्तु दवविगइ नियमि॥१७॥ नमुकारसीमां आ० अनथ्थ पोरसी साढपोरसीमां अनथ्यणानो
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णा जोगेणं१ सहसागारेणंर गेणंर सहसागारेणंर पच्चनकालेणंर |ए वे नमुकारसमिां। दिसामोहेणं साहुवयणेणं? सव्वस
माहीवत्तियागारेणं१॥ अन्न सह दु नमुक्कारे। अन्न सह पह दिसय साहु सव्व॥ पोरसीना ब आगार साढपो पुरीमढमां सात आगार ब सहीत रसीना पण एज।
महतरागारेणं वध्यो अवढमां पण
एज ॥१॥ पोरसि ब सहपोरसि। पुरिमढे सत्त स महत्तरा ॥२॥ एकासणा बेसणाना अन्नथ आनटण पसारेणं गुरु अभ्युगणेणं? णार सहसार सागारि आ पारितावणीयागारेणं? महत्तरागारे गारणं।
एं? सव्वसमाहि वत्तियागारेणं? ॥ अन्नसहस्साश्गारिय३ । अाउंटणगुरुअयपारिश्मह एकासणे बियासणे आठ। सात आगार एकलठाणे [सव्वन॥
आनंटणपसारेणं वीना ॥१॥ एग बियासणि अनसगश्गगणे प्रागंटण विणार वीगी नीवीने वीषे अन्नथ्थ०१ सहस्सा लेवालेवेणंर गीहथ्थर। __ अन्न' सहर लेवा३ गिह। नखित्त विवेगेणं१ पमुच मखिएणं १ पारि० महत्ता सव्वसमाही? __ नरिकत्तए पफुच्चद पारि मह सव्वाए॥ वीगीने वीषये नीवीने वीपये पमुच्चमखिएणं वीना आंबीलमां ए नव आगार।
आठ आगार ॥२०॥ ___ विग निव्विग नव । पमुच्चविणु अंबिले अध्॥णा नपवासमां अन्नथ्थणा०१ सह ए पांच नपवासमां बागार पां स्सा०१ पारितावणियागारेणं समां पांणस लेवेणवादीक॥ महत्त०१ सवस०१।
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अन्नरसहपारिश्महधस पंच खवणे उपाणलेवाई॥ चार आगार दिवस/व्व। अनीग्रहमां अन्नथ्थणा सहस्सा चरीममां अंगुठसहि आदी। महत्तरा सव्वसमाहि ।
चन चरिमं गुपई। निगाहि अन्नरसहश्मह३ सव्वध दुध वीगय मद वीगय मदीरा ए चार ढीली वीगय वली ॥२२॥ वीगय तेल वीगय।
चार कठण ने ढीली ते कहे॥ दुवामहुश्मरतिनं । चनरो दव विगइ चनर पिंमदवा घी वीगय गुल वीगय दही वीगय मांखण वीगय पकवान वीगय मांस वीगय।
ए वे कठण वीगय ॥॥ घयरगुलश्दहियंपिसियं।। मकणएपकन्नदोपिंमा पोरसि पच्चखाण साढपोर बेसणानु पच्चखाण नीवीनु । सि पञ्चखाण तुल्य अवढ पच्चखाण एकासणा तुल्य पोरसी पच्चखाण पुरिमढ तुल्य। यादी तुल्य अागार ॥
पोरसि सढ अवडं। दुनत्त निविगई पोरिसाइ समा॥ अंगुतसही पञ्चखाण मुठसही सचीत द्रव्य नीमादी पच्चखाण पञ्चखाण गंठसही पञ्चखाण। अनीग्रह पच्चरखांण ॥२३॥
अंगुठ मुछि गंगि। सचित्त दव्वाश निग्गहिय॥२३॥ प्रागारना अर्थ वीसर्याथी मु सहसात् अजाणे पोतानी मेले मु खमां घाले ते अनाजोग। खमां पाणी प्रमुख प्रवेस थाय ते ॥
विस्सरण मणा नोगोर। सह सागारो सयं मुह पवेसो॥ गुप्त जे दीवस मेघ वादला दीगमुढ दीसीनी भ्रांतीथी पोरसी पारे। दीकथी अपुरे पुरोकाल ते दिसिमोह ॥२४॥ जांणी पारेतो। | पनन्नकाल मेहा३३ । दिसिविवजासु दिसिमोहो॥४॥
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जे।
|साधुनु वचन पोरसी नणा पोरसी थइ जांणि पारे ते सरीर रु|| व्यानु सानली इम जाणे मुस्वस्त होय ते सर्व समाधी तेथी|
विपरीत असमाधिमां पारे ते ॥ साहु वयण नघामा। पोरसि तणु सुबया समाहित्तिद॥ संघादी गाढ कारणे पच्चरखाण ग्रहस्थ वांदवादीके आवे साधु थाहा पारतो न नागे ते महत्तरागारेणं । र अन्यत्र करवा नवे ते सागारी।।५।।
संघाश्कङ महत्तर। गीय वंदा सागारीजाश्य॥ हाथ पगादीनु खेंचवू पसा गुरु वमेरा पाहुणा मुनी यावे नना रवु अंग सरीरनु। थातां श्रागार॥
अाउंटण मंगाणां। गुरु पाहुण साहु गुरु अनुमणं १ ॥ परग्ववा योग आहार वधेलो मुनी जो वस्त्र लेवा नवे तो चोल वध वचने वावरे तो आगार। पटागार पच्चरखांण न नांगे॥२६॥
पारिवण विहिगहिए११॥जश्ण पावरणि कमिपट्टो१२।२६।। न लेवाने आहारे खरमेली लुहीने लेवालेव आगार देनारने हाथे कमडी मोइ आदीके आपे तो। वीगय साक मांझादि फरसे दे ते॥
खरमिय लूहियमोवाई। लेवर३संसर ४मुच्च मंमाई॥ नपामी लेइ पीम वीगयादि वीगये बांगली प्रमुख चोपड़ी ते नपरथी लेइने आपे ते कल्पे। थी याहार दे ते लगारेक॥
वित्त पिंम विगइण१॥ मखियं अंगुलीहिंमणा१६॥२७॥ हवे पांणसना आगार अर्थ ले बीजुश् अलेपकत आबण प्रमुख पळत नसामणादी पांगीथी। नीतस्याथी बाबु नस्न पाणी३॥
लेवामं पायामा१॥ इअररसोवीर मर एनसिण तंदुलादी धोयण मोलाएनु दां पीतानु धोंयणादीए बीजु[जलं॥ गो नातादी सहीत। दाणादी वरजीत गलेलुं६॥२॥||
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ចុច
धोयण२०बहुल ससिए । नस्सेश्मं अरसिबविणा२२ वीगयनेद अधीकार पांच चार चार एबए नक्षवीगय दु[॥श्न॥ चार बेबे प्रकारे।
धादी नुत्तरनेदे वीगय एकवीस॥|| पणरचनश्चन३ चन्दुरादु बनरक दुघा विगग त्रण बेत्रण चार नेदे अनक्ष विहु। चारनां मधु आदे [वीसं॥ वीगय।
वीगय नेद नत्तर बार ॥२॥ तिरदुतिश्चन विह चन् महु माई विगई बारशणा नक्षवीगय नाम [अनला। गोल पकवान ए आए नक्षवीग दुध घृत दही तेल। जाणवी ॥
खीरघयश्दहियतिनं। गुलएपक्कन्नहब नक विगई दुध दही घी वीगेनेद गायनु नेसनु पांच नेदे दुध हवे चार प्रकारे॥ नंटमी, बालीनु गामरीनु। | गोरमहिसीश्नहिअय४ पण दुछ अह चनरो ॥३॥ घृत तथा दही [एलगाणय। तेलना चार नेद तिलनु सरसव नटी वीना सेसनु। नु अलसीनु लाटनु॥
घय दहिया नहि विणा। तिलरसरिसवश्यसि लहति गोलना बे नेद ढीलो गोल पकवानना बे नेद तेलनु [लचन कठीण गोल ए बे। घृतनु तलेलुं ॥३१॥ | दव गुम पिंक गुमा हो। पक्कन्नं तिन्न घय तलि॥३॥ हवे नीवीआतां३०तेमां दुधनां आटो घाली रांधु तेध खटाइ घा पांच द्राखादीकथी रांधु ते? घ ली रांधेए वा बलीए दुध वीगय णा चोखाथी रांधु तेश् थोमो रहीत ॥ चोखाथी रांधु ते। पयसामी रखीरश्पेपा३ । वलेहि दुघहिएदुपविगई गया
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नए द्राख सहीत बहु थोमा चोखा तेज चोखानो बाटो खटास सही सहीत।
त ए पांचे रांध्यु दुध ॥३॥ दक बहु अप्प तंदुल। त चुन्नबिलसहिअदुधे॥३॥ हवे घृतनां नीवीघातां पांच दाझेनु? दहीनीतरमांबाटो नांखी करे निघ्नंजण र विसंदण।
[ते। नखदी पकव्ये नपरनी तरी३ घीनु कीटुध पाकुं घृत अांबलादीकथीय ___पकोसहि तरिअ३ किहिन पकघयं॥ हवे दहीनां पांच जातसहीत दही ते? सीखरण । ___ दहिए करंबर सिहरणि। लुणसहीत मथ्यु दही वस्त्रे गलेलुध घोलमां वां घाले ते॥३३॥
सलवण दहि३ घोल घोलवमाय ॥३३॥ हवे तेलनां पांच गोलादीकथी कुट्या तल' दाझेनु तल्या पनी वध्यु तिलकहीर निम्नंजण।
[ते। लाख प्रमुखथी पाक्यु तेल३ उषधी पाक्या नपरनी तरीध तेलनी __ पक्कतिल३ पक्कोसहि तरिअतिनमलीय॥ [मली५॥ हवे गोलनां पांच साकर१ गोलनु पांणी गुलपायो३ खांझ४ । ___ सकर' गुलवाणय पाय३ खंम् । अम्धो नकल्यो सेलमीनो रसए ए पांच गोलनां ॥३॥ .. अपकढि इकु रसोय ॥३४॥ एक तावमी पुराय एवमो पुम्लो पुमलो पुरीयो प्रमुख त्रण घाण तल्या पडी बीजो तलाय ते१। पड़ी चोथा घाणादीकनु ॥ || परिश्रतव पत्रा बीघापत्र तन्नेह तरिअघाणाई॥ गुलधाणीजल लापसी वा वीगय स पांचमु नीवीयातु पोतु दे
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ए माहीत नाजने पांणाथी पाक्यो थाहार। इ करेलो पुम्लो५ ॥३॥
गुलहाणी३जल लप्पसिअछ। पंचमो पूत्ति कय पून दुध दही जात नपरे चार पांगु ढीलो गोल घृत तेल एक[॥३५॥ लसुधी नीवीधातु ते पले नही। आंगुल नात नपरे सुधी॥
दुध दही चकरंगुल। दव गुल घय तिन्न एग नत्तु वरि।। कवण गोल मांखए एबे लीलां पीलु सानां बीज जेवमो खंम वीगयमांथी।
नीवीनेपचखाणे कल्पेतेनपरनहीं॥३६॥ पिंगुल मकणाणं। अदा मलयंच संसठं ॥३६॥ चोखादी द्रव्यथी हणाणी जे वी रहीत थाई वली ते माटे ते हया गय ते वीगयथी।
णी वीगय ते द्रव्य कहीइं॥ ___दव्व हया विगई विग। गयं पुणोतेण तंहयंदव्वं॥
धरीत घृतादीक नुस्न उ नत्कष्ट द्रव्य कहे इम बीजा ते तेज।
थाचार्य ॥३॥ नघरिए तत्तं मिय। नक्कि दव्व इमंचन्ने ॥३॥ तीलसांकली वरसोलादीक। तथा रायण अांबादी द्राख प्र
___मुख पांणी आदे॥ तिलसंकुली वरसोलाई। रायणं बार दरक वाणाई॥ मोलिया प्रमुखनां तेल एरं सरस नत्तम द्रव्य कहीइं तथा लेप मी टोपरादीकनां। कत् ॥३॥ ____ मोलिय तिन्नाईय। सरसु तम दव्व लेवकमा॥३॥ एरीते वीगय गत तेरहीत नीवी नत्तम जे द्रव्य ते नीवीगयमां॥ यातां करंबादी समृथ द्रव्य ।
विगई गया संसन। नत्तम दव्वाय निव्विगश्यमि॥ कारण याचे कल्पे पण कल्पे नही खावं ने नीसी
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कारण वीना।
थ नारखे ॥३॥ | कारण जायं मुत्तं। कप्पंति न नुत्तु जं वुत्तं ॥३॥ वीकतीथी माठी गतीनां वीगय सहीत जीवारे नोजन करे दुख पांमे माटे जय पामे। जे साधु तो॥ - विगई विगई नीन। विग गयं जोन मुंजए साहु॥|| वीगय ने ते वीक्रतीकरण स विगयथी माती गतीपणाने बले क| नावपंत ते।
री पमामे ॥४०॥ .... विगई विगय सहावा। विगई विगई बलानेई ॥४॥ हवे अनक्ष वीगयना नेद मद मध त्रण नेदे जे हवे काष्टनी पी कुतीनु१ मांखीनुश्नमरीनु। गनीश मदीरा बे जेदे॥
कुत्तीय?मछियश्नामर३। महु तिहा कपिधश्मऊ दुहा हवे जलचरर थलचर याकासच घृतनी परे मांखण चार नेदे रश्नुं मंस त्रण नेदे।
अनक्ष ॥४॥ जलथलरखगश्मंस तिहा।घय व्व मकण चनअनका हवे पचखांणना नांगाधएमन वचनश्कायइमनवचनः । [॥४१॥
मगर वयण काय३ मणवय। मनकायए वचनकाय मनवचनकायपत्रीकयोगी ए सात सात जे॥ ___मण तणु५ वयतणु६ तिजोगिसगिसत्त७॥ करण करावण अनुमोदन ध्वीक अतीत अनागत व्रतमानका त्रीक संज्योग सहीत। ले एकसो समतालीस॥
कररकारश्णुमई३दु ति जु।तिकाल सियाल नंग स ए जे नांगा कह्यो जे का लेनार धगिए पोते मन व ल पोरसि आदेमां। चन कायाइं करी पालवा॥
एयंच नत्त काले। सयंच मण वय तणूहिं पालणियं॥
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करनार जण जाण कराव तेना नांगा चार थाय जांण जांगर नार पासे पच्चखांण करे।। जांण अजाणश्यजांण जांणअजांण
अजाणतेमांप्रथमत्रणनीयाज्ञाले४३ जाणगजाणग पासत्ति।नंग चनगे तिसु अणुन्ना॥४३॥ पञ्चरखांण पारतां बोल फरस्युं? पाल्युंर सोध्युर ।
फासिअर पालिश् सोहिअ। तरथुर कीयु आराध्यु? ए ब नेदे सुध जाणवू ॥
तिरीअ कीहिअर पाराहि सुद्धं ॥ वञ्चरखांण फरस्युं ते। वीधी सहीत जेटला कालनु लीधु ते
काल थये पारे ते? ॥४॥ पञ्चकाणं फासि। विहिणो चित्रकाल जंपत्तं॥४॥ पालीचं ते वारंवार करयु पञ्च सोधीत ते गुरुने आपीने रमु ते खांण संजारे ते। पोते वावरे वा जीमे३॥
पालिअपुण पुण सरि। सोहिअगुरु दत्त सेस नोश्र तरीत ते करया काल सुधी अ कीर्तीत ते जोजन करतां [पन॥ थवा अधीक काले पारे तेथ। अवसरे पञ्चरखांण संनारे ते५।। __ तिरीअसमहिय काले। किहिअनोपण समय सरणा इणे प्रकारे आचरथु वा आदस्यु अथवा ब नेदे सुधी [॥४५॥ बाराध्यु वली ते६॥ जेम लीधु तेम सहहणा१॥
श्य पमिअरिअंधाराहिअंतु।अहवा सुधि सद्दहणा? करवू तेम ज्ञाने जाणे? गुरुनो कष्टे पण नांगे नही ते? संकादी वीनय करवो? गुरु नाखे तीम दोष रहीत ते जावसुधी? इति॥ पाठ नणे मनमा। जाणणशविणयणुश्नासण । अणुपालण' नावशुधति
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३ पञ्चरव्रखांणनु जे फल। एहलोके परलोके थाय बेनेदे वली॥[॥४६॥|
पञ्चखाणस्स फलं। इह परलोएअहो दुविहं तु॥ बालोके फल धमोलकुमारा दामनकादीकने परलोके फल थयुं दीकने थयुं।
ते कथा वसुदेव हेमे ॥॥ इहलोए धम्मिला। दामनगमा परलोए॥४॥ पञ्चरुखांण एणीपरे सेवीने। नावे करी जेम श्री जिनेश्वरे दे ||
खाम्यु तीम। पञ्चकाण मिणं सेविकण। नावण जिणवरु दिई॥ पाम्या अनंता जीव। सास्वत सुख बाधा जे पीमा तेणे र
हीत हेदूं ॥४॥ पत्ता अणंत जीवा। सासय सुखं प्रणा बाहं ॥४॥ ए रीते श्री पञ्चरखाण नामे तीजी नारख्य समाप्तः
इतिश्री पच्चरकाण नाख्य समाप्तं॥
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हवे इंद्रिसतक टबार्थ कहे ॥ __ अथ इंद्रिसतक प्रारंज ते॥ तेज नीचे सूरो तेज नीश्चे। पंमित वा तत्वनो जांण तेहनेज
हुँ प्रसंसु तुं नीत्य वा सदा। सुच्चिय सूरो सोचेव। पंमिन्तं पसंसिमो निच्चं॥ इंद्रिरुपीया चोरोएं सदा वा नथी लुट्यु जे मनुष्यनु चारीत्ररूप
धन ते ॥१॥ इंदिय चोरोहिं सया। नलुहिअं जस्स चरण धणं॥२॥ इंद्रिरूपीया चंचल घोमा। दुर्गति पंथे दोमी रह्या नीत्य वा
अहनीस॥
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४ इंदिय चवल तुरंगे। दुग्ग मग्गाणु धाविरे निचं|| तेहने नावि वा विचारी न रोके वीतरागना वचनरूप रासमी वर्नु वा संसारनुं सरूपने। इं करीने ॥२॥
नाविध नव सरूवो। नई जिणवयण रसीहिं ॥२॥ इंद्रिरूप धुतारा वा उग मो तलना फोतरा मात्र पण देइस न होटा।
ही वीस्तरवा। इंदिय धुत्ताण महो। तिल तुस मित्तंपि देसु मा पसर। ने जो पसरवा दीधातो जीहां एक क्षण ते पण वर्ष कोम स नीश्चे।
मांन दुःख थसे ॥३॥ जई दिन्नोतो नी। जब खणो वरिस कोमिसमो॥३॥ नही झीती इंद्रियो जेणे ते काष्ट वा लाकमानी परे घुण वा काष्ट हनुं चारीत्र।
ना कीमाइं कस्युं असार तेहबुं बे। अजि इंदिएहिं चरणं। क व घुणहिं कीरई असारं॥ ते कारण माटे हे धर्म अर्थि झीतवी इंद्रियो नद्यम करीने ॥४॥ साहासीकथी थीरपणे।।
तो धम्मबीहि दढं। जश्अव्वं इंदिय जयंम्मि जेम मूरखपणे कोमीने अर्थे। कोम रत्न हारे वा उगाय कोई नर ॥
जह कागिणी हे। कोमि रयणाण हारए कोई॥ तेम अल्प सुख भ्रांतीथी विष जीव गमावे ने मोक्षनां सुख प्रते यमां रक्त थया।
॥५॥ - तह तुब विसय गिधा। जीवा हारंति सिघिसुहं ॥५॥ |तीलमात्र प्रमाणे विषयनां ते नोगव्याथी दुःख वली मेरुपरवत सुखने।
ना सीवरथी पण मोहोटां अती॥
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ए तिलमित्तं विसय सुहं । दुहंच गिरि राय सिंग तुगयर।। ते नोगवतां कोज्यो नवे पि माटे हवे जीम जांणे तीम करजे ण नही खुटे।
॥६॥ नवकोमिहि न निधई । जं जाणसु तं करिजासु॥६॥ नोग जोगवतां मीठा पण कर्म न कीपाकनां फल तुल्य खातां दय आवे कमुवा।
मीगं ए खसर्नु॥ नुजंता महुरा विवाग विरसा। किंपागतुन्ना श्मे कछत्र॥ खण सदाइं दुःख नपजावणहा आपे नीजमतीइं मानेला सु
खवालाने ॥७॥ कंमुअ अणंव दुक जणया। दाविंति बुद्धिं सुहे ॥७॥ मध्याने रणमां मृग पाणीनी सततं वा हमेस खोटा अनीप्राय भ्रांतीइं आतुर थयो थको। संधीपद।।
मभन्ने मयतिन्नअव्व। सययं मिछानिसंधि प्पया॥ नोगव्या थका आपे माती जो गहन दुःखे पार पामीई एहवा नीमां जन्म।
जोग मोहोटा वैरी ॥७॥ नत्ता दिति कुजम्मजोणि।गहणं नोगा महावैरिणो॥ समरथ थइइं अग्नि वारवाने। पांणीइं करीने बलतो पीण निश्चे। । सक्का अग्गी निवारे। वारिणा जलिगवि हु॥ सर्व समुद्रोना पाणीइं करी। कामरूप अग्नि दुःखे नीवारी स ने पिण।
कीड़ा ___ सव्वोदहि जलेणावि। कामग्गी दुन्निवार ॥५॥ विषनीपरे मुखे प्रथम मी पण परीणामे अतीसय दारुण एह ठा अती।
वा वीषय॥ विसमिव मुहंमि महुरा।परिणाम निकाम दारुणा विसया
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हे जीव अनंतोकाल तें नोगव्या।आज पीण मुकवा नथी संजुक्त १०॥
काल मपंतं नुत्ता। अङ्गवि मुतुं न किं जुत्ता ॥२॥ वीषयरस रूप मदीराइं नन्मत जुक्त अजुक्त प्रते नथी जाणतो थयो थको।
रे जीव॥ विसय रसासव मत्तो। जुत्ता जुत्तं नयाणई जीवो॥ झुरीस दिनपणे करी पो। पांमे थके नरकनां दुःख मोहोटां
जयंकर ॥११॥ शुर कलुणं पड़ा। पत्तो नरयं महा घोरं ॥११॥ जेम लिंबना वृक्षे नपन्यो कीमो ते लिंबनो रस कटुके पण जे।
मांने मीठो। जह निंबदुमुप्पन्नो। कीमो कमुश्रपि मन्नए महुरं॥ तिम मोक्षना सुखथी नपरांवां संसारना जन्म जरा रोगादिक वा उलटा।
दुःखने सुख कहेले ॥१२॥ __ तह सिधिसुह परुका। संसार दुहं सुहं बिंति॥॥ |रे अजाण जीव अथीर चंच क्षणमात्र सुखकारक एहवां पाप ल वा चपल।
ने॥ . अथिराण चंचलाणय। खणमित्त सुहंकराण पावाणं॥ दुःखकारी गतीनुनां कार वीरम्य वा पालो सर एहवा लोगो ण प्रत्येथी।
थी॥१३॥ दुग्ग निबंधणाणं । विरमसु एप्राण नोगाणं॥२३॥ पांम्या वा जोगव्या अांख कां वैमानिक देवताने वीषे नुवनपती न योगवीषय ते काम काया यादी देवने वीषे तीमज मनुष्यने मुख नासिकायोग ते नोग। वीषे॥
पत्ताय काम नोगा। सुरेसु असुरेसु तहय मणुएसु॥
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तोहे पिया न थइ हे जीव तु जने त्रपती वा संतोस ।
नय जीव तुझ तित्ती । जलए स्सव कठ नियरे ॥ १४ ॥ मधुर रसे करी जला वरले क री खातां वा जोगवतां थकां ॥
जहाय किंपाग फला मणोरमा । रसेण वन्नेाय भुजमाणा
एहवी खोपमा काम गुपनी बे हृदय थावे थके ॥१५॥
नेम अग्नि सघलां लाकमां नांव वाथी तेम ॥१४॥
जीम किंपाकवृक्षनां फल दर्शना | विके मनोहर ।
ते फल खुटामे जीवत प्रतें पेट मां पचतां थकां ।
ते खुडुए जीवि पचमाणा । ए नवमा कामगुणा विवागे
सर्व नाटक ते पण [॥ १५॥ जीवने दुःखदाइ ॥ बे सव्वं नहं विमंबणा ॥
ते असातादाय
सर्व गीत बे ते केवल वीला प बे|
सव्वं विलवियं गीयं ।
समस्त खानुषण वा घराणां नाररूप बे|
सव्वे आरणा नारा ।
देवताना स्वांमी मनुष्यना स्वा मीत्व पशुं ।
देविंद चक्कवहि तपाई । रजाई उत्तमा जोगा ॥
तखुत्तो ।
१३
सां काम क बे ॥ १६ ॥
सव्वे कामा दुहावहा ॥ १६ ॥ राज यादे पुगलीक जोग पण ॥
पांम्यो जीव ते पण घणी
वार वा अनंतिवार ।
पत्ता
या चारगति संसार चक्र भ्रमणे । समस्त पुद्गल में घणीवार ॥
संसार चक्कवाले |
सव्वेवि
पुग्गला मए बहुसो ॥
तोपण नही हुं त्रपती पांम्यो ते
थी ॥ १७ ॥
नयहं तत्तिंग तेहिं ॥ १७ ॥
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एन थाहारचा सरीरादिकपणे प्रणमा तोहे पीण न पांम्यो ते नो|| व्या।
गव्याथी त्रपती हुं ॥१॥ !! श्राहारिआय परिणामिप्राय।नय तेसु त्तित्तो हं॥१॥ लेपावापणु होय नोग वीषये। पण अनोगी जीव न लेपाइं सर्व कर्मे।।
नवलेवो होइ नोगेसु। अनोगी नो विलिप्पई॥ जे जोगी नर ते फरे संसार जे अनोगी नर ते मुकाय सर्व क|| दुःखमा।
मथी ॥१॥ | नोगी नम संसारे। अनोगी विप्पमुच्चई ॥१५॥|| लीलो तथा सुको ए बे बापस एहवा गोला माटीमयना॥ मां अथमाया। ___ अन्नो सुक्कोय दो बूढा। गोलया महिा मया ॥ ते बे नांख्या वा पटक्या नि तेहमां जे लीलो हतो तेतो तीहां तीइं।
चोटी रह्यो ॥२०॥ दोवि आवमिश्रा कूमे। जो अन्ना सो तब लग्गामा ए रीते चोटे वा वलगे माती एहवा जे नर कामनी लालसा मती वा बुद्धीना धणी। वा इच्छावाला॥ ___ एवं लग्गति दुम्मेहा। जेनरा काम लालसा॥ ने जे विरतीवंतोते काम जोगमांन लागे। जेम सुकागोलानीपरे२१
विरत्ता नलग्गति। जहा सुक्केत्र गोलए॥२१॥ घास तथा काष्टथी अग्नि न लवणसमुद्र हजारो नदियोथी न त्रपती पांमे।
त्रपती पांमे॥ तण कहिच अग्गी। लवणसमुद्दो नई सहस्सेहि। तेम न था जीवने सकीइं। त्रपती करवाने काम जोगथी॥॥
न इमोजीवो सका। तिप्पे काम नोगेहिं ॥२२॥
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जोगीने पण नोगनां सु देवतानां मनुष्य जुमीचर तथा वि ख प्रते।
द्याधरमा वली प्रमादे करी॥ ॥ नुतुणवि नोगसुहं। सुर नर खयरेसु पुण पमाए। पीमाई नरकने वीषे महा नकलतुं महा नुस्न त्रांबु पीता थकां बीहांमणां।
॥२३॥ - पिऊ नरएसुनेरव । कलकलतन तंब पाणा॥२३॥ कोण तेहवो बे के लोने क कोनु न रमणीइं नोलव्युं रदय ते री न हणायो।
को लोनेण न निहनाकस्स न रमणीहिं नोलिअंहिअयं कोने मरणे नथी ग्रहण करयो। कोण लीन न थयो वीषय थकी॥२४॥
को मन्चुणा नगहिन। को गिघोनेव विसएहिं ॥४॥ हवे वीषयनां सुख केवां अल्पका अतीकामनाथी दुःख थ ल सुख बहुकाल दुःख। कामनाथी सुख॥
खणमित्त सुका बहुकालदुका। पगाम दुका अनिकाम ||संसारमा सुखधी मुकावq तेहथी खाण अनरथनी [सुका॥ वीपरीत थया।
ए काम नोग संसार सुरकस्स विपकनूत्रा।खाणी अपडणन काम नो समस्त ग्रहने नपजावणहा मोहोटो ग्रह सघला दु[गा।श्या र एहवो।
खणने प्रगट करणहार एहवो॥ सव्व गहाणं पनवो। महागहो सव्वदोस पायही॥ कामरूपीन ग्रह दुरात्मा वा जेणे करी व्याप्त थयु डे समस्त ज मागे।
गत॥२६॥ | कामग्गहो दुरप्पा। जेणनिनूनं जगसव्वं ॥२६॥ जेम खसवालो खसप्रते। खणतो थको दुःखने पण माने जे सुख प्रते॥
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जह कछुनो कईं। कंमुअमाणो दुहं मुण सुखं ॥ मोहे मुझाया थातुर थका तिम काम जे दुःख तेहने सुख क जे मनुष्य।
री कहे ॥२॥ मोहनरा मणुस्सा। तह कामदुहं सुहं बिंति ॥॥ साल समान ए काम बे वीष काम तेज सर्प जे नय वीखवं समान पण ए काम । त तेहवी नपमाइं ॥ । सन्नं कामा विसं कामा। कामा आसीविसोवमा॥ ते कामनी प्रार्थना कर अपनोगवे पण अती कामवंबाथी तां थकां।
जाइं दुर्गती ॥२॥ __ कामे पडे माणा। अकामा जति दुग्गई॥श्ना वीषयनि वांबा जोतो वाथ पमे संसाररूप समुद्र घोर वा पेक्षा राखतो जे जीव ते। बीहामणामां ॥
विसए अवश्वंता। पमंति संसार सायरे घोरे॥ ने जे जीव वीषय थकी नी तरे वा पार पामे संसाररूप के क्ष वा श्रवंबक ते। तार थकी॥२॥
विसएसु निराविस्का। तरंति संसार कंतारे॥॥ बताया वा उगाया वीषय ने जेणे वीषयनी अपेक्षा न करी ते नी अपेक्षावंत। गया अविघ्नपणे॥
लिमा अवश्खंता। निरावश्खा गया अविग्घेणं || ते कारण माटे प्रवचन वा कामथी नीरापक्षपणे थर्बु कामवं सीदांतनु एज सारके। बा न करवी ॥३०॥
तम्मा पवयण सारे। निरावश्केण होअव्वं ॥३॥ वीषयनी अपेक्षा राखेतो जी वीषयनी अपेक्षा न राखेतो तरे व पमे संसार समुद्रमां। दुस्तर नव योघ समुद्र ॥
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विसया विको निवम । नरविरको तर दुत्तर नवोह। जेम देवीना धीपमा गएला ए नाइ बेनुं द्रष्टांत वीचारवं॥३१॥ जिनरक्षीत तथा जिनपाल।
देवी दीव समागय । जान्थ झुअलेण दिघ्तो॥३१॥ जे थती आकरां दुःख। जे वली सुख नत्तम वा श्रेष्ट त्रण लोकमां॥
जं अश् तिकं दुखं। जंच सुहं उत्तमं तिलोअंमि॥ ते आणजे हे नव्य वीषयनी। बद्धी ते दुःख हेतुं ने खय ते सुख
हेतु सर्व ॥३॥ तं जाणसु विसयाणं। वुढि कय हेन्रं सव्वं ॥३॥ इंद्रियोना वीषयमा जे आ पमे वे संसाररूप समुद्रमा जीव सक्त वा तीन लेते। वा प्राणी ॥ | इंदिअ विसय पसत्ता। पति संसार सायरे जीवा॥ जेम परवीनी बेदाइ पांखो तेम मनुष पण नलाशील आचार ने हेठो पमे।
गुणरूप पांख रहीत ॥३॥ परिकव्व छिन्न पका।सुसील गुण पेहुण विहूणा ॥३३॥ न जाणे जेम चाटतो थको। मोहोटु हामकुं जेम सुनक वा कुतरो॥ । नलहर जहा लिहंतो। मुहल्लिअं अअिंजहा सुगन॥ पोताना सोसे तानुबानी रसी वीसेष चाटतो थको माने सु
ख प्रते ॥३॥ सोस तालुअ रसिअं। विलिहंतो मन्नए सुखं॥३४॥ स्त्रीनी कायानो सेवनार न पांमे कांइ पण सुख तीम पुरुष तो वा जोगवनार। पण ॥ महिलाण काय सेवी। नलह किंचिवि सुहं तहा पुरिसो॥
प्रते।
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२०३ तेमाने रांक वा बापमो। थापणी कायाने परीश्रम वा खेद
करी सुख प्रते ॥३॥ सो मन्नए वरान। सय काय परिस्समं सुखं ॥३॥ अतीसय सम्यग् प्रकारे कीहांई केप्तीमा वा क्रीमामां नथी जोतां थकां।
जेम सार॥ सुघुवि मग्गिळंतो। कबवि कयली नछि जह सारो॥ इंद्रीना वीषयमा तीम। नथी सुख ननु पण वा अतीस
यपणे जोजे तुं ॥३६॥ इंदिय विसएसु तहा। नबिसुहं सुचव गविठं॥३६॥ स्त्रीना शृंगाररूपीया त वीलासरूप थेला वा वेहेवानी ताण रंग वा कल्लोल। जोवनरूप जले ॥ ____सिंगार तरंगाए। विलास वेला जुव्वण जलाए। कीया कीया जगमां पुरुष नारीरूप नदीमां न मुबे एटले जे एहवी।
काकोक्तीइं मुबेज ॥३॥ । के के जयंमि पुरिसा। नारि नईए न बुडंति ॥३॥ शोकरूपतो नदी दुरीत वा कपटनी कुंमी वा नाजन एहवी पापरूप गुफा ॥
स्त्री कलेसनी करणहारी। सोसरी दुरिअ दरी। कवमकुमी महिलिया किलेस |वैररूप अग्नि प्रगट करवा दुःखनी खाण सुखनी प्रती [करी॥ ने अरणीना काष्ट समान। पक्षी वा नपरांठी ॥३॥
वर विरोयण अरणी। दुकखणी सुख पमिवरका॥३॥ अजाएयुं मननु जे पराक्रम वा साथे साचो कुण जे नत्तम ना सामर्थ।
. सी पार पामे ॥ अमणीश्रमण परिकम्मो।सम्म कोनाम नासिनंतर॥
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१०३ कंद्रप वा मनमथनां बाणनु द्रष्टी क्षोने मृगाक्षी वा मृगलो प्रसर तेहनो समोह एहव।। चनानां ॥३॥
वम्मह सर पसरो हे। दिछि बोहे मयबीणं ॥३॥ परीहर वा तज ते कारण माटे तेहनी। द्रष्टी जेम द्रष्टीवीष सर्प तीम॥
परिहरसु तन तासिं। दिहिं दिछीविस स्सव ॥ सर्पणी समान रमणी वा स्त्री तेह हेयात्मा ताहरा चारीत्र गुणरू नां नयणबांग।
पजे प्राण तेहने नासपमामसे४० अहिस्सरमणि नयणबाणा। चरित्तपाणे विणासंतिधा सिद्धांतरूप जे समुद्र तेहनो पार विसेषे इंदिन झीतेलो पण सू गामी होय तोपण।
रो होय तोपण ॥ सिवंत जलहि पारंगवि। विजई दिनवि सूरोवि॥ मन थीर होय तोपण एहवा जुवती वा स्त्रीरूपणी पीसाचणी निर पण बनाई।
क्षुद्र वा माठीथी ॥४१॥ . दढचित्तोवि लिऊ। जुवा पिसाईहि खुड्डाहिं॥४॥ मीण मांखण वीद्रवे वा ढी जेम ते मीण मांखण जाय अग्नि लां थाय।
ना समीपमां ॥ मयण नवणीय विलन।जह जाय जलण संनिहाणंमि।। तीम स्त्रीना समीप जवाथी। ढीलु थाय मन मुनिनु पण तो
बीजानुं सुं कहेवू ॥१॥ तह रमणि संनिहाणे। विदव मणो मुणीणंपि॥४॥ नीची गती ने जेहनी पाणी सही जोवा योग्य मंथरगतिई स त ।
हीत एहवी ॥ नीअंगमाहिं सुपनहराहिं। नप्पिड मंथर गईहिं॥ स्त्री अने नीम्नगा वा नदि परवत मोहोटा पण नेदे वा नांगी|
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१०४ तेहनी परे।
नांखे ॥४३॥ महिलाहिं निम्मगाहिव। गिरिवर गुरुप्रावि निऊंति५३ वीषयरूप जल जे जेहमां मु वीलास वा नोग हावनाव रूप ज|| झाबु ते रूपकलण। लचर तेणे आकीरण नरेलु ॥
विसय जलं मोहकलं। विलास बिन्नोअजलयरा इन्न। मद वा अहंकाररूप मगर एहवा।तरीया समुद्रप्रतेधीर पुरुषा॥४॥ , मय मयरं नत्तिन्न। तारुन्न महन्न बंधीरा ॥४॥ यद्यपी वा जोपीण घरवास वली तपे करी दुरबल थयु डे अंग नो सर्व तज्यो बे संग जेणे। तथापी संसारमा पमे॥
जवि परिचत्त संगो। तव तणुअंगो तहावि परिवम॥ स्याथी स्त्रीना संसर्ग वा कोनीपरे पके जेम नपकोशाने नुव|| मेलाप परीचयथी। ने सिंहगुफावासी साधुनी परे॥४५॥
महिला संसग्गीए। कोसा नवणू सियमूणिव्व॥४॥ समस्त ग्रंथी मुक्यो जे जेणे।सीतलनुत थयो जे प्रसांत मन जेहनु ___ सव्व ग्गंथ विमुक्को। सीई नून पसंत चित्तो॥ एहवो जे पांमे मुक्तीनां सुख ए न पांमे चक्रवृतीपणु पांमे थके हवा नीर्लोनीपणाना गुणने। पण ॥४६॥
जं पावर मुत्तिसुहं। न चकवडीवि तंलह ॥४६॥ श्लेष्म वा बलखामा पमेली जेम न धरी सके मांखी पण मुका जे आपणा सरीरने पण। वाने ॥
खेलमि पमित्र मप्पं। जहन तर महिपाविमोएन। तीम वीषयरूप श्लेष्ममां प न मुकावी सके आपणा आत्माने म्या जे मांखी जेवा। कांमेअंध नर ॥४७॥ तह विसय खेल पमिश्रानतरश्अप्पंपिकामंघो॥४॥
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२०५ जे लहे वा पांमे वीतराग जे सुख ते तेज जांणे नीचे न जाणे केवली।
ते सुख बीजो कोइ॥ जं लहर वीरा। सुखं तं मुणई सुच्चिअन अन्नो॥ जेम न ग्रताशुकर वा जुमसुर। जांणे देवलोकनां सुख प्रते ॥४॥
नहि गता सूअर। जाण सुरलोअं सुकं ॥४॥ जे आजपिण जीवने। वीषयने वीषे दुःखना आश्रमने वीषेप्रतीबंध
जं अऊवि जीवाणं। विसएसु दुहासु वेसु पमिबंधो॥ ते नजांगीइं गुरुवाइने पण। अकंपनीक वा नही ओलंघवा यो
ग्ये बे मोहोटो मोह ॥४॥ तं नऊ गुरुवाणवि। अलंघणीको महा मोहो॥४॥ जे कामे करी आंधला जी रमे वीषयने वीषे ते जीव संकारही व ।
तपणे॥ | जे कामंधा जीवा। रमंति विसएस ते विगयसंका॥ जे वली जिनवचने राता वा ते जीव बीहीकण थइ तेहथी वी लीन ।
रमे वा पाढा हवे ॥५०॥ जे पुण जिणवयण रया। तेनीरू तेसु विरमंति ॥५॥ असुची मूत्र विष्टाना प्रवाहरूप। वमन पीत्त नसो मेझानू फोफसं॥ | असुइ मुत्त मल पवाहरूवयं। वंत पित्त वस मऊ फोफसं मेदा मांस घणा हामनो करं चांबमीइं करी ते सर्व प्रबादीत वा मीन।
ढांकनु एहवें स्त्रीनु अंग ॥५१॥ मेष मंस बहु हड्ड करंमयं। चम्म मि तं पाश्यं जुवश् अं मांसे मूत्रे वीष्टाइं करी मीश्री नाकनो मेल श्लेष्म गयं त वली।
आदे असुची झरतुं ॥ मंसंमं मुत्त पुरीस मीसं। सिंघाण खेलाइअ निसरंत।
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१०६ एहवु ए अनीत्य क्रमीयानु घर ए। पासला समान नरने कीया
नरने जे बुद्धीहीन तेहनो५॥ एअंअणिचं किमिश्राण वासं। पासं नराणं म बाहिरा पासले करीने पांजरे करीने।बंधायले चोपद तथा पंखी॥[णं॥५॥
पासेण पंजरेणय । बशंति चनपयाय पकी॥ एम स्त्रीरूप पांजराइं करीने। बंधाया पुरुस कलेसने पांमे वा सहे ५३
इस अवई पंजरेण। बघा पुरिसा किलिस्संति॥५३॥ अहो लोको मोहरूपी मोहो जे कारण माटे हमारा जेहवा प टो मल्ल ले।
। नीश्च ॥ अहो मोहो महामन्नो। जेणं अम्मारिसावि हु॥ जाणता बुझता पीण अनी तोहे पीण वीरमता नथी एक क्षीण त्य संसारीक संबंध। वा दश पल काल मात्र नीश्च॥५३॥
जाणंतावि अणिञ्चत्तं । विरमंति न खणंपि हु॥५४॥ जुवती वा स्त्री संघाचे संसर्ग जाणे संसर्ग करेले समस्त दुःखनी वा मेलाप करतो थको। साथे ॥ ___ जुवहिं सह कुणंतो। संसगिंग कुणइ सयल दुखेहिं॥ नथी नंदरने संसर्ग वा मेलाप करवो।थाय सुख संघाथे बीलामानी६५ ___ नहि मूसगाण संगो। हो सुहो सह बिलामेहिं॥५॥ वासदेव महादेव ब्रह्मा। चंद्र सूर्य स्वामी कार्तकादिक पण जे देव ॥
हरि हर चनराणण। चंद सूर खंदाश्णो विजे देवा॥ स्त्रीनु दास वा चाकरपणु। करे ते माटे धीकार धीकार वीषयनी
त्रस्नाने ॥६॥ नारीण किंकरत्तं। कुणंति धिधी विसय तिणा॥५६॥
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२०७ सीत वा ताढ्य नस्न वा ताप स्त्रीने वीषये यासक्त थया थका ते सहन करडे मूर्ख नर। अवीवेकवंत। | सियंच नणंच सहति मूढा। श्चीसु सत्ता अविवेअवंता॥ जे इलाची नामे सेठपुत्रनी परे जीवीत वली नास पांमे रावण तजीने स्वजाती प्रते। प्रतीवासुदेव वत् ॥५॥
इलाइ पुत्तं व्व चयति जाई। जीअंच नासंति रावणुव बोली न सके जीवनां। घणां वा नलां दुक्कर एहवां[॥५॥
पापकारी चरीत्र प्रते। वुत्तू पावि जीवाणं। सुदुक्कराति पाव चरियाई॥ एक नीले समस्या करी पुग्युं हे प्रनु ते वचन सांजली वैरागे चारीत्र जे ते तेहनो नत्तर दिधो के सातेज। लीधु ते मुनिने नमो॥५॥
जयवं जासा सासा। पव्वाए सोइ णमोते॥५॥ जलना बींदुवत् चपल एहवु अथीर वा चपल एहवी लक्ष्मी जीवीतव्य अल्पकाल रहे। वीनासी सरीर ।
जललव तरलं जीध। अथिरा लठीवि ते तुब वा थोमा सुख भ्रमे कारण वा हेतु बे दुःख लखो ग वा तुब कामनोग सवेडे ते। मेना ॥५॥
तुबाय काम नोगा। निबंधणं दुक लकाणं ॥५॥ हाथी जेम पंकील वा कीचमवा देखतो थको थल वा कीनारानी|| ला जलमां खुंची रहेलो ते। नूमी पण नावी सके कीनारे॥ | नागो जहा पंक जला वसन्नो। दहुंथलं नानिसमे तीरं। एम जीव कामगुणमां ग्रध्र वा ली जला धर्म मारगे नथी रक्त न थया ते।
वा लीन थता हवा ॥६॥ एवं जीया कामगुणेसु गिधा। सुधम्ममगे न रया हवंती
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२०० जेम वीष्टाना पुज्य वा ढ क्रमी वा कीमो सुख प्र[॥६॥ गलामा खुल्यो जे। ते माने सदाकाल। -
जह विछ पुंज खुत्तो। किमी सुहं मन्नए सयाकालं। तीम वीषयरूप असुचीमां जी ते पण जाणे सुख मूर्ख ॥६१॥ रक्त वा लीन जे। __ तह विसया सुश् रत्तो। जीवोवि मुण सुहं मूढो॥६॥ जेम समुद्र जले करी न पुरा तीम नीश्चे दुःखे करी पुराय श्रा य वा दोहीलो पुराय। जीव।। | मथरहरोव जलहि। तहवि हु दुप्पूरन इमे आया॥ वीषयरूप अांमीस वा मांस नवो नव थाये नही त्रपती॥६॥|| मां ग्रध्र थयो थको। __ विसया मिसंमि गियो। नवे नवे वच्चश् न तत्ति॥६॥ वीषयने वीषये आर्तवंत जे नद्भटरूप आदेमां वीवधि वा ना जीव ते।
ना प्रकारमां॥ विसय विसहा जीवा। ननमरूवाइएसु विविहेसु॥ नव सत्त सहश्र दुर्लनं। नथी जाणता गया पीण आपणा जन्म॥३॥
नव सयसहस्स दुलहं। नमुणंति गयपि निजम्मं ६३ चेष्टा करे वा रहे वीषयथी पर मुकी लाजने पण केटलाएक सं| वस थएला।
का रहीत ॥ चिति विसय विवसा। मुत्तू लङपि केवि गयसंका॥ नथी गणता केटलाएक म वीषयरूप अंकूश साल्या जीव वा रण प्रते।
प्राणी ॥६॥ नगणंति केवि मरणं । विसयं कुस सल्लिया जीवा॥६॥ वीषयरूप वीष थकी जीव। श्री वीतराग कथीत धर्म प्रते हारी
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ने खेदनी वात के नरके ॥ विसय विसेणं जीवा। जिणधम्म हारिनण हा नरयं॥ जायजे जेम चीत्रमुनिइं। घणु वारयो नाइ भ्रमदत्त चक्रवृतीनृपा६॥
वच्चंति जहा चित्तय। निवारिन बंनदत्तनिवो॥६॥ धीकार धीकार हो तेहवा जे जिनेश्वरना वचनरूप अमृत पण नरोने।
मुकीने ॥ सीधी ताणनराणं। जे जिणवयणा मयंपि मुतूणं॥ चारगतीमां भ्रमणरूप वीटं पीएने वीषयरूप मदिरा आकरी बणानु कारण।
॥६६॥ चन्ग विझवण करं। पियंति विसया सवं घोरं॥३६॥ मरणांत कष्ट आवे थके प मान वा अहंकार धारी जे पुरुष ए दीन वचन।
न बोले ॥ मरणेवि दीपवयणं। मागधरा जेनरा न जंपंति॥ ते नर पण नीचे करे वा बो स्याथी स्त्रीना स्नेहरूप ग्रह थकी घे ले ललीत वा दीनवचन। हेला नर ते ॥६॥
तेविहु कुणति लग्नि। बालाणं नेह गह गहिला॥६॥ सक वा इंद्र पण नहीं सा माहात्म्य वा महीमा आमंबर मर्थ थाय।
वीस्तरयो जेहनो॥ सक्कोवि नेव संक। माहप्प ममुप्फरंजएजेसिं ॥ तेहवा पण नरने नारी वा स्त्रीइं। कराव्यु आपणु दासपणु ॥ ६॥
तेवि नरा नारीहिं। कराविश्रा नियय दासत्तं॥६॥ जादवनो पुत्र मोहोटा आ नेमनाथ प्रनुनो नाइ वली व्रतधा त्मानो धणी।
री वली ते नवमां मोक्षगांमी ॥ जन नंदणो महप्पा। जिणनाया वयधरो चरमदेहो।
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एहवो रेहेनेमी गफामां रहे राजेमती संघाथे वा नपर वीषयबु लो तेणे राजमती साधवीने। द्वि करी ॥६॥ __रहनेमी रायमई। रायमई कासिहि विसया॥६॥ मदनरूप पवने करीने जो पण ते मेरुपरवत जेहवा अचल पु हवा।
रुष चल्या ॥ | मयण पवणेण जश् तारिसावि। सुरसेल निच्चला चलीया तो पाका पांदमा जेवा प्राणीनुनी। बीजा जीवोनी सी वात केहेवी७० ___ता पकपत्त सत्ताणं। इअर सत्ताण कावत्ता ॥७॥ झीते सुखे करीने नीचे। सिंह हाथी सर्प आदे मोहोटा॥
जिप्पंति सुहेणं चित्र।हरि करि सप्पाइणो महाकूरा॥ पण एक नीचे दुःखे झी एक कंदर्प ते केहवो ने करनार ने मो तवा योग । क्षसुखथी वीपरीत ॥७१॥
इकुच्चिय दुके। कामो कय सिवसुह विरामो॥७॥ वीखमी वा वांकी वीषयनी अनादीकालनी नबनावना जीव तरस।
ने ॥ विसमा विसय पिवासा। प्रणा नवनावणा जीवाणं अती दुर्जय बे इंद्रियो। तीमज चपल एहवु चीत्त मन ॥७॥
अश् दुलेआणि इंदिआणि। तह चंचलंचित्तं ॥॥ मागे मल नपजे अरती नपजे रोग थाय दाघज्वरादिक घणा प्र यसुख वा नही सुख नपजे। कारनां दुःख थाय ॥
कलमल अर असुका। वाही दाहा विविह दुका। जावत् मरण पण नीचे था संपजे वा थाय कोने जे प्राणीने य वीजोग आदे। कामे तपाव्या बे तेहने ॥७३॥
मरणंपि हु विरहाइसु। संपऊ काम तविाणं॥७३॥
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पांच इंद्रिना वीषय प्रसंगने अर्थे । मन वचन काया एत्रण नहीं
संवरीस्यतो॥ पंचिंदिय विसय पसंगरेसि। मण वयण काय नविसंवरे ते वाहेजे काती वा बरी गलानी जग्याइं । [सि॥ __तं वाहिसि कत्ति गलपएसि। जो आठ कर्म नही नीजरे वा नही घटामे तो ॥७॥
जं अकम्म नवि निऊरेसि ॥४॥ स्युं हे जीव तुं अंध ने स्युं अथवा धंतूरो खाधेल ।
किं तमंघोसि किंवासि धत्तरिम अथवा स्युं संनीपातवंते करी वेंटाएलो वे ॥ ___ अहवकिं संनिवाएण आनरिन॥ तुं अमृत समान धर्म जे वीषनीपरे अवगणे । । अमयसम धम्म जं विसव अवमन्नसे । वीषयरूप वीस वीषम वा आकरूं ते अमृतपरे बहुमाने ले ॥७॥
विसय विस विसम अमियं व बहु मन्नसे ॥७॥ तेहज ताहारु ज्ञान वीज्ञान गुणनो आमंबर ।
तुऊि तुह नाण विन्नाण गुणमंबरो। अनिनी झालाने वीषे पमतो जेह जीव नीरजर ॥
जलण जालासु निवमंतु जीयनितरो॥ प्रक्रती वीपरीत कामने वीषे जे राचेले। __ पयश् वामेसु कामसुं जं रजसे। जेणे करी वली वली पण नरकना दुःखनी अग्निनी झालमां पचीस
जेहिं पुण पुण वि नरया नले पच्चसे ॥६॥ [॥७॥
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बालीने बावनाचंदन राखने अर्थे ।
दहश् गोसीस सिरिकम बारक्कए। बोकमो लेवाने अर्थे अरावण हाथी वेचे।
बगल गहण मेरावणं विक्कए॥ इबीतदाइ कल्पवृक्ष तोमीने एरंमो ते वावे ।
कप्पतरु तोमि एरंग सो वावए। जुज वा थोमा वीषयने अर्थे मनुषपणुं हारे ॥७॥
जुजि विसएहिं मणुअत्तणं हारए ॥७॥ असास्वतुं जीवीतव्य जागी। मोक्षमारग जाणता थका ॥ __ अधुवं जीवनं मच्चा। सिधिमग्गं विप्राणिश्रा॥ नीवरतज्यो वा पाला नसरज्यो जोगथी। आयु थोफु आपणु ॥७॥
विणिअहिऊ नोगेसु। आपरमि अप्पणो ॥७॥ मोक्षमार्गमा रह्याने तोहे पण । जेम दुर्जय ने जीवने पांच वीषय॥
सिवमग्ग संठिाणवि।जह दुॐा जिप्राण पण विस |ते बीजं कांइ पण जगतमां। दुर्जय नथी समस्त एटले स या॥
र्व जगतमां वीषय समान ॥७॥ तह अन्नं किंपि जए। दुळेअं नबि सयलेवि॥७॥ सवीटक नद्भट रूप जेह। दीपाथी मोह पामे जेह मन स्त्रीनु॥
सविमं नतम रूवा। दिन मोहे जा मणं बी॥ हे आत्महीत चिंतवनार नर। अती दूर परीहरे वा अती वेगलो
रेहेजे ॥७॥ आयहिअं चिंतता। दूरयरेणं परिहरंति ॥ ॥ सत्य श्रुत पण सिल। वीज्ञान तथा तप पण वैराग्य ऐ॥
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११३ सच्चं सुअंपि सीलं। विनाणं तह तवंपि वेरग्गं ॥ जाय क्षणमां सर्व। वीषयरूप वीषे करीने साधुनु पण ॥१॥ । वच्च खणेण सव्वं। विसय विसेण जईपि॥७॥ अरे जीव मती वीकल्पीत। अांख मेंची घामे एटला काल स
बंधी सुख लालसीइं कीम हे मूर्ख। रेजीव म विगप्पिय। निमेस सुह लालसो कहंमूढ ॥ सास्वतां सुख एह समान हारीस चंद्रमाना सहोदर जेहवो नी बीजु सुख नथी ते। रमल जस ॥७॥
सासय सुह मसमतमं। हारिसि ससि सोअरंच जसोश बल्यो वीषयरूप अग्नि जीहां चारीत्रनु सार बाले सघनु पण तेहथी।
वा तथा पऊलिन विसयअग्गी। चरित्तसारं महिऊ कसिणंपि॥ समकितने पण वीराधे वा अनंत संसार वधारवापणु करे।३।। नांगे खंगे।
सम्मत्तंपि विराहिल। अणंत संसारअं कुजा ॥३॥ बीहांमणा नव कंतार वा वीखम वा याकरी जीवने वीषयनी वनने वीषे।
त्रस्ना ॥ नीसण नव कंतारे। विसमा जीवाण विसय तिपयना जे त्रस्नाइं नम्या चनद। पुरवी सरीखा ते पण रूले वा रझले
नीचे नीगोद्यमां ॥॥ जीए नमिया चन्दस। पुव्वीवि रुलंतिहु निगोए॥४॥ खेदे वीषम अती खेदे अती वीषय जीवने जेहथी प्रतीबंध थइने॥ वीषम एहवा। हा विसमा हा विसमा। विसया जीवाण जेहिं पमिबघा॥
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२१४ जाय जवरूप समुद्रमां अनंतां दुःख पांमे एटले दुःखनो ते समुद्र केहवो । पार नहीं ॥५॥ ___ हिंमंति नवसमुद्दे। अणंत दुकाई पावंता॥५॥ हे जीव नही पादरीस इंद्र वीषय जीवने वीजलीना तेज समा जाल समान चपल एहवा। न॥
मा इंदजाल चवला। विसया जीवाण विऊ तेअसमा॥ क्षीण वा अल्पकालमां दिवेला ते कारण माटे ते वीषयथी स्यो थोमा कालमां नास पांमे । नीश्चे प्रतीबंध करे ॥६॥
खणदिश खणनन। ता तेसं कोहु पमिबयो ॥६॥ सत्रू वीष पीसाच। वैताल हुतनुग् वा अग्नि पण बलेलो॥
सत्तू विसं पिसान। वेत्रालो हुअवहो व पऊलिन॥ ते सत्रुादे न करी सके ते जे कोपेलो। करे राग आदे देहने वीषे ७७
तं न कुण जे कुवित्रा। कुणंति रागाश्णो देहे॥७॥ जे जीव रागादिकने वस वस थया ते जीव समस्त दुःख ला थया तो।
खने समीपे ने ॥ ___ जो रागाईण वसे। वसंमि सो सयल दुकलखाणं ॥ जे जीवने वस रागादि थया। तेह जीवने वसथाय सघलांसुरखा
जस्स वसे रागाई। तस्स वसे सयल सुकाइं॥GGI नीःकेवल दुःख निर्मित वा पमयो संसाररूप समुद्रमां जीव ॥ नीपजावीने। __ केवल दुह निम्मविए। पमिन संसार सायरे जीवो॥ जे अनुनवे वा नोगवे कले ते दुःखनु कर्म आश्रवज हेतु वा स।
कारण सर्व जाणवु ॥७॥ जं अणुहवई किलेसं । तं प्रास्सव हेननं सव्वंगपणा
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अहो आ संसारमाही वीधी स्त्रीरूपे करीने मांझी ने जाल वा| इं वा कर्मे वा वीध्यात्राई। स्कंद ॥
ही संसारे विहिणा। महिलारूवेण मंमीअंजालं॥ बंधाय ने जीहां वा जेह मनुष्य तीर्यच वैमानीक देव नुवनवा मां मूर्ख।
सी देव ॥ए॥ बसंति जब मूढा ।मणुषा तिरिा सुरा असुरा॥॥ वीषम वीषयरूप सर्प। जेणे मस्या वा करमया एहवा जीव
जवरूप वनमां॥ विसमा विसय नुअंगा।जेहिं मसिया जिवा नव वर्णमि क्लेश पांमे दुःखरूप अग्निई चोरासीलाख जीवाजोनीने वीषे करी।
॥१॥ ___ कीसंति दुहग्गीहिं। चुलसीई जोणि लखेसु ॥१॥ संसार मारग वा पंथ तेरूप तेहमां वीषयरूप मावे पवने लुक्या ग्रीस्म वा नस्नरुतु। जे जीव तेथी॥ ___ संसार चार गिम्हे । विसय कुवाएण लुकिया जीवा॥|| हीतकारी कार्य तथा अहीत अनुनवे वा जोगवे अनंता दुःख कारी कार्य नहीं जाता। प्रते ॥ए॥
हिय महिअंअमुणंता।अणुहवंति अणंत दुकाईएश हा हा इतीखेदे के दुःखे अंत वीषयरूप घोमा वीपरीत वा नलटा पामवा योग एहवा दुष्ट। सीक्षीत लोकमां ॥
हा हा दुरंत दुध। विसय तुरंगा कुसिखिया लोए॥॥ नयंकर नवरूप अटवीमा। पामे वा नांखे जीवो जे मूढ वा जो
ला लोकने ॥३॥ नीसण नवामविए। पाति जिप्राण मुघाणं ॥३॥
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वीसयरूप पीपासा वा तरसा इं तपाव्या ते ।
विसय पिवासा तत्ता । दुःखीया दीन खीन थइने ।
दुहिया दीपा खीणा । गुणकारी बे तीहिं वा घणु
गुणकारि आपणी इंद्रिय प्रते ।
धणि
नियाई इंदिया | मनजोग वचनजोग कायजोग
प्रते ।
११६
रक्त वा लीन थया स्त्रीने वीषये कर्दमवाला सरोवरमां ॥ रत्ता नारीसु पंकिलसरंमि ॥ रूले वा रझले एहवा जीव संसार रूप वनमां ॥४॥
रूलंति जीवा नववरांमि ॥४॥ धृति वा संतोसरूप रजु वा दोर मे बांध ते हे जीव ।
। धिइ र नित्र्यंतियाई तुह जी जेम बलवंत नीजंत्रा वा बां [वा ॥ धेला घोमानी परे ॥ ए५॥ वह्नि नित्ता तुरंगुव्व ॥ ५ ॥ नले प्रकारे बांध्या थका पण गुण करता थशे ॥ सुनित्तावि गुणकरा हुंति ॥ मदनमत्त हाथीनीपरे सिलवन प्रते ॥६॥
मण वयण काय जोगा ।
ते जो नही बांध्या होय तो फ री जांगे वा खं ।
अनिता पुरा नर्जति । मत्तकरिपुव्व सीलव॥६॥
जेम जेम दोष वीरमीस वा जेम जेम वीसयथी थइस वैराग्य तजीस ने ।
वत ॥
जह जह दोसा विरमइ । जह जह विसएहिं होइ वेरग्गं ॥ तीम तीम नीचे जालजे । ढुंक थाय तेहने मोक्षपद ॥७॥ तह तहवि न्नायव्वं । आसन्नं से परम पयं ॥ ७ ॥ दुःकर ते करीने । जेणे करीने समर्थे करी ज्योवन व्रतते थके ॥
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दुकर मेएहिं कयं। जेहिं समबेहिं जुव्वणबेहिं ॥ नाग्यु वा नसामर्थ्य इंदिन धृती वा संतोसरूप प्राकार वा को रूपीयु सैन्य जेणे। टे वलगे थके एन॥
जग्गं इंदिअ सिन्नं। धि पायारं विलग्गेहिए॥ ते पुरुषने धन्य तथा ते ने दास तुं हुं ते संजमधर जीवो पुरुषने नमो।
नो॥ तेधन्ना ताणनमो। दासोहं ताण संजम धराणं ॥ अर्धी आंखे वा वक ध्रष्टीइं जे पुरुषना नथी रदयमां खटकंती जोनारी एहवी जे स्त्री। एए॥ __ अघटि पिचरी। जाण न हिअए खमुकंति॥ण्णा किं वा स्युं घणु केहेवे जो हे जीव तुं सास्वता सुख रोग रही वा जदी इच्छे।
त प्रते॥ किं बहुणा जश् वंसि । जीव तुंमं सासयं सुहं अरु॥ तो पीई पुर्वे कह्या जे आ वी ने संवेग वा संसार दुःखनी खाण षय तेथी वीमुख थई। ते रूप रसायण नीत्य॥१०॥
तापि अमु विसय विमुहो। संवेग रसायणं निच्च॥१०॥ एम समाप्ती थयु इंद्रिसतक टबार्थ जाणवो॥
इति इंदिसतक संपूर्णम् ॥ हवे वैराग्य नामा सतक टबार्थ कहे ते जाणवो॥ __ अथ वैराग्यसतक सूत्र शब्दार्थ प्रारंन ॥ चारगतिमां संचरर्बु ते हे जीव नथी सातासुख केवल व्या
धी देहसमंदि वेदना मन समंदि पी
मा प्रचूर वा घणी ॥ संसारंमि असारे। नबि सुहं वाहि वेयणा परे॥
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चारगति र असारमा
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११७ एम जाणतो थको पण किंम नथी करतो श्री जिनेश्वरे नपदे या जीव।
शो धर्म ॥१॥ जाणंतो इह जीवो। न कुणइ जिण देसिअं धम्म॥२॥ आज दिवसे आवते दिवसे आव मूढनर चिंतवे हे धन्यादिकनी ते वर्षे आवता वर्षने आवते वर्षे। प्राप्ती॥
अऊं कन्नं परं पुरारि। पुरिसा चिंतंति अच संपत्तिं॥ पण हाथमां आवेलु झरतु जे गलतु जे आपणु थायु ते नथी जल तेम।
जोता ॥२॥ __ अंजलि गयं व तोयं। गलंत मान न पिछंति ॥ हे आत्मा जे धर्मकार्य आव ते धर्मकार्य आज नीश्चे कर सीघ्रप ते दिवसे करवु धारे। णे ॥
जं कन्ने कायव्वं। तं अजं चित्र करेह तुरमाणा स्या माटे जे घणां बीघ्न नीचे न सांझनो वा पालना दिवसे एक मुहुर्त वा बे घमीमां। करवानो वीलंब करीस ॥३॥ __ बहु विघ्घोहु मुहुत्तो। मा अवरणं पमिकेह ॥३॥ धीकार वा विषादे के संसार चरीत्र तेहमां स्नेहरागे लीन थया ना वीनासी सनावनां। पण ॥ __ ही संसार सहावं। चरिअं नेहाणुराय रत्तावि ॥ जे पुर्वे बे प्रहरमां दिवा ते पाबलना बे प्रहरमां नथी दे जे संसार पदार्थ।
खाता ॥८॥ जे पुव्वणे दिन। ते अवरणे न दिसंति ॥४॥ हे जीव ते माटे न प्रमाद नीद्रा नासवान वस्तुनो कीस्यो वीस | मां सुइस अप्रमादरूप जाग। वास राखवो॥
मा सुबह जगिअव्वे। पला अव्वंमि कीस वीसमह।।
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२१॥ हे आत्मा त्रए जणा पुते लाग्या एकतो रोग बीजो जरा वा वय
हाणी त्रीजो मृत्यु ॥५॥ _ तिन्नि जणा अणुलग्गा। रोगोत्र जराय मञ्चूअ॥५॥ दिवस रात्री ए बे रूपतो घ घायुषारूप पाणी जीवनु ब्रहण क मीनी माला ।
रे॥ दिवस निसा घमिमालं। पाक सलिलं जीाण धितूणं चंद्र सूर्य एबे धोरी वृषन । काल रूपीयो हांकनार ले ते अर|
हट प्रते नमामे ॥ चंदा श्च्च बन्ना। काल रहदं नमामंति ॥६॥ तेहवी नथी जगतमां कला ते योषध तेह, नथी कांई पण वी हवु नथी जगतमां। ज्ञान ॥ । सा नबि कला तं नबि। नेसहं तं नबि किंपि विन्ना। जेहने करी राखीजीइं या खाती थकी कालरूपीथा वीष काया वा देह।
धरे ॥७॥ जेण धरिऊ काया। खऊंती काल सप्पणं॥७॥ दीर्घ वा लांबी सेषनागरूप महीधर वा परवतरूप केसरा दस तो कमलनी नाल्य। दिस्यारूप मोहोटां पत्र। । दीहर फर्णिद नाले।महिअर केसर दिसामह दलिले ॥ व ते पश्चातापे पीइंजे काल लोकना गणरूप कमलनीसुगंधी वा रूपीयो नमारो। मकरंद प्रथवीरूप पद्म वा कमलनीए ___ , पिअ काल नमरो। जण मयरंदं पुहवी पनमा सरीरनी बायाने मसले करी समस्त जीवोनां बीद्र जोव वा काल व्रतनां लक्षण। खोलेडे ॥
गया मिसेण कालो। सयल जिवाणं बलं गवसंतो॥
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पास वा समीपपणु कीमही तसमात् कारणात् हे जीव धर्मे पण नथी मुकतो।
नद्यम कर ॥॥ पासं कहवि नमुंच। ता धम्मे नऊमं कुणह॥॥ कालमां अनादीकालथी रह्यो।जीव वीवीध प्रकारना कर्मना वसथी|| __ कालंमि अणाईए। जीवाणं विविह कम्म वसगाणं॥ तेहवु नथी संवीधान वा नेद। संसारमांनमतां जेह न संजवे॥१०॥
तं नबि संविहाणं। संसारे जं न संनव॥१०॥ बंधव वा जाइसजन सुहृद वा मीत्र।पीता माता पुत्र नार्या वा स्त्री॥ ___ बंधवा सुहिणो सव्वै। पिय माया पुत्त नारिया ॥ पीत्रवन वा मसाणे पोचामे। देइने पाणीनी अंजली एम स्वार्थी ११
पेवणान निअतंति। दाकणं सलिलंजलिं ॥१२॥ वीडमे सुत वा पुत्र वीमे। नाइ वीबमे नलो संचीत अर्थ वा धन॥
विहमति सुत्राविहमति । बंधवा विहम सुसांचा अबो एक कोइ दिवस न वीबोधर्म यरे जीव श्री जिनेश्वर कह्यो ते।श
को कहवि न विहम।धम्मोरेजीव जिनपिनार॥ थापकर्मना पासथी बंधायो। जीव संसाररूप बंधीखानामां रहे ॥i
अमकम्म पास बघो। जीवो संसार चारए ग॥l |ने तेज आवकर्मरूप पासलो यात्मा सिव वा मोक्षरूप घरमा मुक्याथी।
रहे ॥१३॥ श्रमकम्म पास मुक्को। आया सिव मंदिरे ग॥१३॥ वैनव धन्यादिक सजन मा तथा वीषयनां सुर ता पीतादिकनो समागम। नोज्ञ ॥ विहवो सङण संगो। विसय सुहाई विलास ललिआई॥
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कमलनीना पत्रना अग्रे हाल जेम पाणीनो बींदु न ठरे तीम ते।
चंचल बे सर्व ॥१॥ नलिणी दलग्ग घोलिर।जल लव परि चंचलं सबंर४ ते कीहां कायानु बल ते कीहां। योवनपणु तथा सरीरनी मनो
हरता कीहां॥ तं कब बलं तं कब। जुव्वणं अंगचंगिमा कब॥ ए सर्व अनीत्य जो वा प्रीन। देखतां नष्ट थाय स्युं ते वस्तुइं करी।१५||
सव्व मणिचं पिठह। दिलं नठं कयं तेण ॥ २५ ॥ घणा वा बहु कर्मरूप पास संसाररूप नगर तेहमां चारगतीरू ले बंधायो।
प मारगमां नाना प्रकारनी॥ घण कम्म पास बहो। नव नयर चनप्पहेसु विविहान॥ पामे वीटंबना ते माटे हे जीव कोण ने इहां ताहरे सरण पुगइंबीइंजे।
ते ॥१६॥ - पाव विकंबणा। जीवो को श्च सरणंसे ॥१६॥ हे जीव घोर वा नयंकर मागे मल तथा करदम असुची दुगं माताना नदरमां। बनीक एहवामां ॥
घोरंमि गप्नवासे। कलमल जंबाल असुश् बीनछे॥ वस्यो पूर्वे अनंतीवार। जीव आपकत कर्मना प्रनावथी॥१७॥
वसी अणंत खुत्तो। जीवो कम्माणु नावेण ॥२॥ चोरासी नीचे लोकने वीषये। जीवोने नपजवानां स्थानक प्रमुख
लाख ॥ चनलसीई किर लोए। जोगीणं पमुह सयसहस्साशं॥ ते चोरासीलाख योनीमांनी अनंतीवार नपन्यो हवे कीम सम अकेकी योनीमा जीव। झतो नथी ॥१॥
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१२३ इकिकमित्र जीवो। अणंत खुत्तो समुप्पन्नो॥१॥|| माता वा जनेता पीता वा संसारमा रहे थके पुरीत एहवो जी| जनक बंधु वा सहोदर। वलोक ॥
माया पिय बंधूहिं। संसारबेहिं पूरिन लोग्गो॥ घणी ज्योनी समस्त निवासी नथी ते जीव प्रते रक्षण अर्थे कोई वा वसावी।
सरण वली ॥१॥ बहु जोणि निवासीहिं। नय ते ताणंच सरणंच॥॥ जीव जे ते व्याधी वा रोगे मनीपरे पाणी रहीत थलमां था व्याप्त थयो थको। कुल व्याकुल थाय ॥
जीवो वाहि विलुत्तो। सफरोश्व निङले तमफमः॥ सर्व सजन सबंधी पण जन कोण समर्थ वेदना दुर करवा अ जुई।
र्थात् कोई नहीं ॥२०॥ सयलो वि जणो पिछा को सको वेत्रणा विगम॥३॥ न जाणीस हे जीव तुं। पुत्र स्त्रीयादे परीवार मुजने सुखना हेतु ॥ __ मा जाणसु जीव तुमं। पुतं कलत्ता मस सुह हेक॥ तो स्युं नीचे तुजने बंधन कीहां संसारमा फरतां थकां ले एहवा ते।
निनण बंधण मेअं। संसारे संसरंताणं ॥१॥ माता होय ते जवांतरे थाय वली स्त्री होय ते माता थाय पी स्त्रीपणे।
ता होय ते पुत्र थाय ॥ जणणी जाय जाया। जाया माया पिप्राय पुत्तो॥ अनवस्तीत वा अनीम स्याथी कर्मना वसथी संसारी सर्व संसारमा।
जीवने ॥॥ अणवबा संसारे। कम्मवसा सव्व जीवाणं ॥२२॥
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॥३१॥
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२२३ नथी तेहवी जाती नथी तेहवी नी तेहर्बु क्षेत्र लोकमां नथी|| योनी।
तेह कुल जे ॥ नसा जाई नसा जोणी। नतं गणं नतं कुलं ॥ नथी जम्या नथी मुवा जीहां। सर्व जीव आश्री अनंतीवार ते||
सर्व परंपराये पांम्या ॥२३॥ | न जाया न मुश्रा जब। सव्वे जीवा अणंतसो॥३३॥ तेहवं कांइ पण नथी स्था चन्द राजलोकने वीषे वालना अ नक।
ग्र नाग बेहेमा मात्र पण ॥ __ तं किंपि नबि गणं। लोए वालग्ग कोमि मित्तंपि॥ जीहां नथी जीव घणीवार। सुख दुःखनी परंपरा पांम्या ॥४॥
जब न जीवा बहुसो। सुह दुक परंपरं पत्ता ॥४॥ समस्त रूद्वि।
पाम्यो बली समस्त पीण स्वजना
दिक संबंध पाम्यो॥ सव्वान रिघी। पत्ता सव्वेवि सयण संबंधा। संसार थकी ते कारण मा तेथकी जो जाणेतो यात्मान॥२५॥ टे वीरम्य राग तज।
संसारे तो विरमसु। तत्तो जश् मुणसि अप्पाणं॥श्या एक जे जीव बांधेजे कर्म एक जीव मार बंधण मरण व्यसन प्रते।
वा कष्टादि प्रते ॥ एगो बंध कम्म। एगो वह बंध मरण वसणा॥ समस्त सहे इंम संसारमा एक वली नीचे कमें ठग्यो वा वं जीव जमे।
च्यो ॥२६॥ विसह नवंमि नमम। एगुच्चित्र कम्म वेलविनाश॥ हे आत्मा बीजो कोइ नथी क हीत पीण आपणो आत्मा करेन
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११४ रतो तुजने अहीत वा मातु। नीचे बीजो कोइ करे॥
अन्नो न कुणइ अहिअं। हिअंपि अप्पा करेइ नहु अन्नो तो हवे आपणु करेनुं सुख जोगवेडे तीवारे स्या माटे दिनमुख स्याता वा दुःख अस्याता। थाय ॥२॥
अप्प कयं सुह दुख्। नूंजसि ता कीस दीणमुहो॥२॥ घणा खेती आदि प्रारंने जे धन ते धन जोगवे हे जीव सज करी वृद्धी पमामयु नादिकना समोह ॥
बहु आरंन विढत्तं। वित्तं विलसंति जीव सयण गणा॥ |पण ते नपावतां थयु जे पा तेतो अनुनवीस वा जोगवीस फ प कर्म।
री तुज नीचे ॥२॥ तऊणिय पावकम्म। अणुहवसि पुणो तुमंचेव॥श्न॥ जेम दुःखीयां ने तीम वली जुरख्यां जेम तुं चीतवेडे आपणां
बालकने देखीने ॥ अह दुकिआईतह नुकिआई। जह चिंतियाइं मिनाई तीम हे आत्मा थोम् पण वीचारतो तो हवे हे जीव तुजने सुं नथी आपणुं हीत। केहे ॥२॥
तह थोवंपि न अप्पा। विचिंतिजीव किं नाणमोशण अल्पकालमा नासवान ने जीवतो तेथी बीजो डे सास्वता एह जे सरीर । स्वरूपवंत ॥
खण नंगुरं सरीरं। जीवो अन्नो सासय सरूवो॥ पण अनादि कर्मसंततीना ते माटे हे जीव वीसेपे संबंध इहां संबंधवंत ।
स्यो तारे तेहथी ॥३०॥ . कम्मवसा संबंछो।... निबंछो श्ब को तुम ॥३०॥ कीहांथी आव्यां कीहां जासे तुंपीण कीहांथी आव्यो बे कीहां
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१२५ संबंधी जन।
जाइस। कह पायं कह चलिश्रो तुमंपि कह ओगर्न कहि गमिहीं। माहोमांही पीण नथी जाणतो तो।हे जीव कुटंब कीहांथी ताहारु३१
अन्नुन्नपि न याणह। जीव कुमुबं को तुझ ॥३१॥ अल्पकालमां वीनश्वर ए मनुषनो नव वादलांनां पमल सरी हवं सरीर।
खो ॥ | खण नंगरे सरीरे। मश्रनवे अनपमल सारिने॥ तेहमां सारतो एटलोज मात्र। जे करीस सोजनकारीधर्म तेज ३२
सारं इत्ति मित्तं। जं कीरइ सोहणो धम्मो॥३॥ जन्मतां दुःख जरा वा वय रोग जे कास स्वासादिकनां दुःख हाणी वा बद्धपणानु दुःख। मरण प्राणत्याग लक्षणनां दुःख ॥
जम्म दुखं जरा दुख्। रोगाणी मरणाणिय ॥ अहो इति आर्थय के दुःखनो जीहां कष्ट वा केस पांम ने जंतु || समुह नीचे संसारमा। वा प्राणी ॥३३॥
अहो दरको हु संसारे। जल कीसंति जंतणो ॥३३॥ जीहां सुधी न इंद्रिनां व जीहां सुधी नही जरा वा वृद्धपणा लहाणी थयां होय। रूप राक्षणी घणु व्यापी।
जाव न इंदिहाणी। जाव न जर रकसी परिफुर॥ जीहां सुधी नथी थयो रोग जीहां सुधी नथी मृत्यु समस्त प्र नो प्रचार।
कारे नल्लस्युं ॥३॥ जाव न रोग विश्रारा। जाव न मच्चू समुन्निअ॥३४॥ जेम घर बलवा मांझे थके कुश्रो खोदी पाणी काढी न सके ते अवसरे।
कोइ॥ जह गेहमि पलिते। कूवं खणीचं न सकए कोई॥
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१२६ तेम जीवने प्राप्त थये मरण पठे।धर्म कीम करीसके हे जीववीचार३५
तह संपत्ते मरणे। धमो कह कीरए जीव ॥३॥ रूप जे ते असास्वतु बे ए जे। वीजलीना चमकारानी परे चपल
जगमां जीवीत ॥ रूव मसासय मेअं। विजुलया चंचलं जए जीअं॥ संध्यानां वादलांदिकना रं अल्पकाल रमणीक वली योवन || ग समान।
॥३६॥ संशाणराग सरिसं। खण रमणीअं च तारुनं॥३६॥ हाथीना काननी परे चपल लक्ष्मी त्रीदश वा देवताना चाप एहवी।
वा इंद्रधनुष सरीखां॥ गय कन्न चंचलान। लबी तिस चाव सारिखं ॥ वीषयनां सुख जीवने एह माटे प्रतीबोध पांम रे बापमा वां ।
जीव नमुझ ॥३॥ विसय सुहं जीवाणं। बुनसु रेजीव मा मुश ॥३॥ जेम संध्याकाले पक्षीगणनो। संगम वा मेलाप तथा जेम मारगे
रस्तागीरनो मेलाप ।। जह संशाए सनणाण। संगमो जह पहेब पहीआणं॥ तेम स्वजनादिकनो संजो तेमज अल्पकालमां नासवान ने हे ग वीनस्वर ।
जीव ॥३॥ सयणाणं संजोगो। तहेव खण नंगुरो जीव ॥३॥ रात्री वीरामते पाबली राते नगी घर बलते थके कीम हुँ सुइ नाव,।
निसा विरामे परिनावयामि।गेहे पलिते किम ह सुश्रामि तीम बलेने देहरूप आपणु घर ते जे हुँ धर्म कस्या वीना दिव
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कीम वेखुदु ।
सगमाबुबुं ॥ ३८॥
मसंत मप्पाण मुविखयामि । जं धम्मरहिन दिहे गमा नही ते पाठी यावे [मि ||३|| युग नही खावे ॥ न सा पमिनित्तई ।
एटले
हे श्रात्मा जे जे जायते रात्री पद एक देशथी दिवस ।
जाजा वच्च रयणी ।
धर्म करतां थकां ।
अहम्मं कुणमाणस्स । जेहने बे मृत्यु वा मरण साथे मीत्राइ । जेहने जेम बे नासवानी जग्या जस्सवचि पलायां ॥ ते नीचे वांबे सुखनी इबाई राच्यो ॥ ४१ ॥
जस्स
मासकं ।
जे जीव एम जांबे जे माहारे मरवु नथी ।
सो हु कंखे सुएसिया॥ ४१ ॥
तथा दिवस
जो जांइ न मरिस्सामि ।
करित्ता ।
मन वचन कायाना योग में जाइंबे नीचे रात्री काय वे कलेस करतां ।
पण ||
दिवसाय ॥
दंग कलि आयुखं वीलय वा नास
वच्चंतिहु राइ गएलुं नही फरी नीवर्ते वा पाबु वले
थायबे ते |
॥४२॥
एल्ये वा फोगट धर्म वीना जा इं रात्री तथा दिश ॥४०॥
हला जंति राईन ॥४०॥
संविता |
जेम सिंहनीपरे मृगने ग्रहण करे
बे|
गयाय न पुराणे नितंति ॥४२॥ तीम मरणरूप सिंह मृगरूप न रने नीचे लेबे बेलेकाले ॥ मच्छू नरं नेइ हु अंतकाले ॥ काल ते दुःखमां तेना अंशनो ना गीथाय वा दुःख ले तेम नथी ४३
जव सीहो व मिनं गहाइ
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नथी ते जीवनां दुख माता पी ता जाइ वा कोइ ।
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१२० नतस्स मायाव पियाव नाया।कालंमि तं मंस हरानवंति जीवीतव्य जलना बिंदु स धन धानादि संपत्ती ते [॥४३॥ मान जाणजे ने।
पाणीना कल्लोल समान ॥ जिअं जलबिंदु समं। संपत्ति तरंग लोला॥ सुप्न समानतो वली प्रेम वा ते माटे हे यात्मा हवे जेम जाणे स्नेह ।
तीम कर ननु ॥४॥ सुमिणय समंच पिम्म। जं जाणसु तं करिकासु॥४४॥ संध्याकालनो जे रंग तथा जल आ जीवोतव्य जलना बींदुनी ना प्रपोटीनी नपमाइं। परे चंचल ॥ __संझराग जलबुब्बु नवमे। जीविएअ जलबिंदु चंचले॥ ज्योवन ते पण नदीना पुर हे पापी जीव कीम नथी बोध पा|| समान वे ते माटे। मतो॥
जुव्वणे नश्वेग सन्निने। पावजीव किमिअंन बुझ्नसे।४॥ अन्यत्र जासे पुत्र अन्यत्र जासे स्त्री। चाकरादिक परीजन पीण
अन्यत्र जासे ।। अन्नब सूत्रा अन्नब गेहिणी। परिश्रणो वि अन्नब॥ जेम नूतने बल बाकुला दिधां देखतांज हणे वा मारे तांत जाय तेम कुटंब पण। वा काले ॥६॥
नूत्र बलिव्व कुमुंबं । परिकतं हय कयंतेणं ॥४॥ जीवे नवोनवे मुक्यां जे। देह वा सरीर जेटलां संसारे जमतां॥
जीवेण नवेनवे मिल्हिआई। देहाई जाइ संसारे। ते सरीरनी न थाय सागरोपमे। करी गणत्री वा संख्या अनंते पण
ताणं न सागरेहि। कीर संखा अणंतेहिं ॥४॥
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नयन वा आरव्योनां बांसुनु प्रमाण समुद्रोनां पाणीथी पण पाणी पण तेहखें। अतीघणु थाय ।
नयणोदयंपि तासिं। सागर सलिलान बहुरं हो॥ गल्युं वा झरघु नवोनवे रो मातायो अनेरी अनेरी वा अन्य ती थकी।
अन्यनुं ॥४॥ | गलियं रुयमापीणं। माकणं अन्न मन्नाणं ॥४॥ जे नरकने वीपये नारकीले दुःख पांमे अती श्राकरां रौद्र अंत|| ते।
रहीत॥ जं नरए नेरश्त्रा। दुहाई पावंति घोरणंताई॥ ते दुःख थकी अनंतगुणु। नीगोदमांही दुःख होय ॥४॥
तत्तो अणंतगुणिग्रं। निगोत्र मसे दुहं हो॥४॥ ते पण नीगोदमांही वा म वस्यो वा रह्यो अरे जीव नाना प्र ध्ये।
कारनां कर्मने वसथी ॥ तमि वि निगोश्रमझे। वसिन रे जीव विविह कम्म वसा घणां सहन करतो याकरां अनंतां पद्गल परावरतन करयां जा दुःख प्रते।
वत् अनंतो काल ॥५०॥ विसहंतो तिक दुहं। अणंत पुग्गल परावते ॥५॥ हे आत्म नीकल्यो कीमहीके पाम्यो मनुषपणु अरे जीव ॥ करी तीहां थकी। ॥ नीहरिश्र कहवि तत्तो। पत्तो मणुअत्तणं परिजीव॥ तीहां पीण जिनस्वरे शुद्ध पांम्यो चिंतामणि रत्न सरीखो धर्म कह्यो ते।
॥५१॥ तबवि जिणवर धम्मो। पत्तो चिंतामणि सरिबो॥५१॥ पांम्यो पण ते धर्म अरे जीव हवे। करेले प्रमाद तेहमां तुं नीश्वे वली॥
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२३० पत्तेवि तंमिरे जी। कुणसि पमायं तयंतुमं चेव॥ जे प्रमादथी नवरूप बांध फरीने पण पम्यो थको दुःख पांमी ला कुवामा।
स ॥५॥ जेणं नवंध कूवे। पुणोवि पनि दुहं लहसि ॥५॥ समीप पांम्यो श्री जिनधर्म। ते धर्म न समाचरयो प्रमाद दोस
ना वसथी॥ न्वलघो जिणधम्मो। नय अणुविन्नो पमायदोसुणं॥ हा इति खेदनी वात हे जीव सुघणु आगल पण सोचीस॥५३॥ आपे थापणो वैरी।
हा जीव अप्पवेरिन। सुबहुं पर विसूरहिसि ॥५३॥ ॥सोच वा पश्चाताप करसे ते प न थके मरण वा मरण श्रा रांक बापमा।
वे थके ॥ सोयंतिते वराया। पहा समुवठिमि मरणंमि॥ पाप तथा प्रमादना वसथी। न संच्यो वा न मेलव्यो जे जीवे
जिनधर्म ॥५॥ पाव पमाय वसेणं। न संचिनजंहिंजिणधम्मोपा धीकार धीकार धीकार सं देवता मरण पामीने जे तिर्थच था सारना अथीरपणाने। य॥
धी धी धी संसारे। देवोमरिकण जं तिरिहोई॥ वली मरीने राजानो राजा पचे नरकनां दुःखरूप अग्निनी झा चक्रवर्ती श्रादे।
लमां ॥५॥ मरिकण रायराया। परिपच्च नरयजालाए ॥ जाइं अनाथ जीव। जेम वक्षनु फुल पवनथी कीहांई जा
य तीम कर्मरूप पवने हणायो थको॥|| जाइ प्रणाहो जीवो। दुमस्स पुप्फ व कम्मवाय हन॥
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२३१ धन धान बानुषण श्रादे नला स्वजन कुटंब मुकीने पण जीव सर्व लक्ष्मी।
जाय ॥५६॥ धन धन्नाहरणाई। वर सयण कुमंब मिल्हेवि॥५६॥ हे जीव वस्यो पर्वतने वीषे त गुफाने वीषे तथा वस्यो समुद्रमा था वस्यो। । वसिअंगिरीसु वसिअं। दरीसु वसिधे समुहमतंमि॥ व्रक्षना अपने वीषे वस्यो। संसारमा फरतां वा भ्रमण करतां॥५॥ | रुक ग्गेसुअ वसिअं। संसारे संसरंताणं ॥५॥ हे जीव ते केहवा केहवा नव कीमो थयो पतंगीयो थयो मनुष करया देवता थयो नारकीथयो। वेष थयो ।।
देवो नेरश्नत्तित्र। कीम पयंगुत्ति माणसो वेसो॥ नला रूपवंत थयो वीरूप स्याता सुखनो नोगी थयो अस्याता वंत थयो।
दुःखनो जोगी थयो ॥५॥ ___ रूवस्सी विरूवो। सुह नागी दुक नागीश्रा राजा थयो द्रुमक वा नीखा वली एज जीव माल थयो एज री थयो।
वेदनो जाण ब्राह्मण थयो। रानत्ति दुमगुत्तित्र। एस सपागुत्ति एस वेब विक स्वामी थयो दास थयो पु खल वा दुर्जन थयो नार्धन थयो धन जनीक थयो। वंत थयो इत्यादिक प्रजाय पाम्यो।
सामी दासो पुऊो । खलुत्ति अधणो धणवत्तिपणा नवी वा नथी वरततो कोइ नी आपणां कर्म ज्ञानावर्णिादे जेह यम वा नीचे।
वांरच्यां बांध्यां ते सरखी करी चेष्टा॥ नवि अनि कोश नियमो। सकम्म विणिविसरिस कय अन्य अन्य वा जुदां जुदां नट वा नाटकीयानी परे [चिन॥
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१३० रूप तथा वेष करीने। परावर्त करे जीव ॥६॥ __ अनुन्न रूव वेसो। नमुव्व परित्तएजीवो ॥६॥ नरकने वीषे दश प्रकारे ए वेदनानी अोपमा नही अस्याता क्षेत्रवेदनादिक। घणीज ॥
नरएसु वेयणा। अणोवमान असाय बहुला॥ रेबापमा जीव तें पामी वा नोगवी। अनंतीवार घणा प्रकारनी॥१॥
रेजीव तएपत्ता। अणंत खुत्तो बहुविहाना॥ देवतापणे मनुषपणे। परना अजीयोगपणे प्राप्त थइने॥
देवत्ते मणुप्रते। परानिगत्तणं वगएणं॥ धाकरां बीहामणां दुःख घ अनंतीवार समस्त अनुनव्यां वा या प्रकारनां।
नोगव्यां ॥६॥ नीसणं दुहं बहुविहं। अणंत खुत्तो स मणनूअं॥६॥ तिर्यंचगतीने वीपे पांम्यो। बीहामणी घणी मोटी वेदना अनेक
प्रकारनी॥ . तिरिअगर अणुपत्तो। नीम महा वेत्रणा अणेगविहा॥ जन्म मरणरूपीआ रहट कुवे। अनंतीवार नम्यो वा फस्यो ॥३॥
जम्मण मरण रहहे। अणंत खुत्तो परिमि॥३३॥ जेटलां केटलांक दुःख। सरीरसंबंधी मनसंबंधी वा संसारमा
जावंति के दुका। सारीरा माणसाव संसारे॥ पांम्यो तें अनंतीवार कीहां। जीव संसाररूप कतार वा अटवीमा ६४
पत्तो अणंत खुत्तो। जीवो संसार कंतारे॥६॥ तरशा अनंतीवार । संसारमा तेवा प्रकारनी हे जीव तुजने होती हवी तण्णा अणंत खुत्तो। संसारे तारिसी तुमं अासी॥
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१३३ |जे तरस नपसमावाने अ समुद्रोनां पाणीथी पण न थाय वा थे समस्त। __ न सके ॥६॥
जं पसमे सव्वो। दहीण मुदयं न तीरिजा ॥५॥ होय वा वरते अनंतीवार। संसारे नमतां तेवी क्षुधा वा नु
ख पण तेहवा प्रकारनी॥ अासी अणंत खुत्तो। संसारे तेनुहावि तारिसीया॥ जे नुपसमावाने समस्त पुद्गलना समोहे करी पण न सकीइं वा सघला।
वा न सके ॥६६॥ जं पसमे सव्वो। पुग्गल कानवि न तरिका ॥६६॥ करीने अनंताई। जन्म मरण परावर्तन सदाय॥
काऊण अणंताई। जम्मण मरण परिग्रहण सयाज्ञा दुःखे करीने मनुष्यपणु। जदी वाजेवारे पांमे जथा इबाइंजीव ६७||
दुखण माणुसत्तं । जश् लहर जहि चिअंजीवो॥६॥ ते तीम दुःखे पांमवा यो वीजलीनीपरे चपल वली मनुष्य ग पांम्यो।
पां॥ । तं तह दुनह लंनं। विऊलया चंचलंच मणुअत्तं ॥ धर्ममां जो वा जे सीदाय। ते कापुरूष्य वा कायरपुरूष्य नही
ते सुपुरूष्य ॥६॥ धम्ममि जोवि सी।सो कानरिसो न सुपुरिसो॥६॥ मनुष्यनव वा जन्म रूप कीनारो जिनेश्वरनो धर्म न करयो जे पांमे थके।
णे जीवे ॥ माणुस्स जंम्मे तमि लघएणं । जिणंद धम्मो न कनजे टुटेली पणउनु जेम धनुष धनुष हाथ घसवा जेवू अवस्य [॥ धरने।
थाय तेणे ॥६॥
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१३४ तुटेगुणे जह धणु करणं। हबामले वाय अवस्स तेणं हए अरे जीव सांनल चपल स्वनाव। मुक समस्त स्वजन सरीरादि
क बाझ पदार्थ नाव ॥ रेजीव निसुणि चंचल सहाव। मिल्हेविणु सयलवि बस मुक नवनेदे धनादिक परीग्रह वीवीध समोह ।
नव नेत्र परिग्गह विवह जाल। संसारीक जे अर्थ ते सहु दे इंद्रजाल तंत्रप्रयोगी ॥३०॥
संसार अनि सहु इंदिवाल ॥७०॥ पीता पुत्र मीत्र घर स्त्री ए सर्व थयां जे कुटंब । | पिय पुत्त मित्त घर घरणि जाय । ते आ लोक संबंधी सर्व आपणा सुखने अर्थे जे स्वनावे ॥
इहलोअ सव्व निय सुह सुहाव ॥ पण नथी कोइ तुजने सरण वा रक्षक हे मूर्ख। । नवि अनि कोइ तह सरणि मुरक। एकलो सहीस तिर्यंच तथा नारकीनां दुःख प्रते ॥ ७१ ॥
इक्कनु सहसि तिरि नरय दुक ॥७॥ माननी अणी नपर जेम सना अल्पकाल रहे बालंब्यो थ पाणीनो बींदुन।
को॥ ___ कुसग्गे जह नस बिंदुए। थोवं चिप लंब माणए॥ एम मनुष्यनु जीवीतव्य वा ते माटे समयमात्र प्रनु कहे जे हे यायुषु थोमु रहे।
गौतम न करीस प्रमाद ॥७॥ एवं मणुाण जीविअं। समयं गोअम मापमायए। |समस्त पण बुझो समझो कीम बुझवु नीचे पण वली दुर्लन ॥
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१३५ नथी बुझता वा समझता। __ संबुशह किं नबुझह। संबोही खलु पिच दुनहा॥ नही नीचे पाबायावे रात दिवसा नही सुलन वली जीवीतव्यपणु७३ | नोहु वणमंति राईनानो सुलहं पुणरावि जीवी॥७३॥ बोकरां तथा वृध वा वमेरा तथा गर्नमा रहेला पीण चवे जो वा देख।
वा मरे मनुष्य ॥ | महरा वुढाथ पासह। गतबावि चयंति माणवा॥ सीचाणो पक्षी जेम बटेरु एम आयुखु क्षय थये तुटी जाय पक्षीने ग्रहण करे। ॥७ ॥
सेणे जह बहियं हरे। एवं आन्खयंमि तु॥४॥ त्रणनुवनमा संसारीप्राणी म देखीने रोके वा यंत्रे जे नर न रता।
थापणा अात्माने॥ तिहुण जण मरंतं। दण निअंतिजे न अप्पाणं॥ तथा पाडो न वीरमे प्रमा धीकार धीकार धीठाइपणवाला ते दथी तो।
जीवोने ॥७॥ विरमंतिन पावा धि घी धितणं ताणं ॥७॥ नही नहीं बोलो वा कहो जे जीव बंधाया ओ नीवम वा
चीकणां कमें॥ मामा जंपह बहुअं। जे बघा चिक्कणेहिं कम्मेहिं॥ सर्वे ते जीवने थाय सुं। हीतकारी नपदेश पण घणा दोष नणी७६
सव्वेसि तेसि जाय। हिन्वएसो महा दोसो॥७॥ करीस ममता धन स्वजन। वैनव प्रमुखने वीषये अनंता दुः
खने वीषे तो॥ कुणसि ममत्तं धण सयण। विहव पमुहेसु णंत दुकेसु॥
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२३६ सीथल वा ढोलो करीस आदर वली। अनंत सुख मोक्ष वीषइं॥७॥
सिढिलेसि आयरंपुण। अणंत सुकमि मुकंमि॥७॥ संसार दुःखनो हेतु वा दुःखनु फल ले दुःखे सहवा योग्य कारण बे तथा।
दुःख स्वरूप ॥ संसारो दुह हेक। दुकफलो दुस्सह दुकरूवोत्र॥ नथी तजता तथापी जीव अती वा नीवम बंधाया बे स्नेहरा स्याथी।
गरूप बेमीइं करी ॥७॥ न चयंति तंपि जीवा । अश् बघा नेह निअलेहिना थापणां कर्मरूप पवननो चला जीव संसाररूप अटवीमां घोर व्यो ।
आकरी मांही ॥ निकम्म पवण चलिन। जीवो संसार काणणे घोरे॥ सी सी वीटंबनान वा दुःख न पामे दुःखे सहवा योग्य दुःख ना समवायो।
प्रते अर्थात् पामे ॥३॥ का का विमंबणा। न. पावए दुसह दुकानपणा सीतकालमांताढा वायरानी।लहेरचो हजारोथी नेदातु घणु सरीर॥
सिसिमि सीपला निल।लहरि सहस्सहिं निन्न घण तिर्यंचपणामां रणने वीषे अनंतीवार नीधन एम सीत दुःखे। पांम्यो ॥७॥
तिरित्र तणमि रन्ने। अणंतसो निहुण मणुपत्तो॥ ग्रीष्म वानस्न वा नन्हालानाआ रणने वीषे नूरव्यो तरस्यो तप वा तापथी तप्यो वा पीमायो। घणीवार ॥
गिम्हाय वसंतत्तो। रन्ने बुहिन पिवासिन बहुसो॥ पांम्यो तिर्यंचना नवने वीषे। मरणनां दुःख घणु सोचतो थको॥१॥
संपत्तो तिरिअ नवे। मरणदुहं बहुवि सूरंतो ॥७॥
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१३७
पर्वतनां नीझरणानां पाणीइं बाधीतो पीमातो तातो ॥ गिरि निशरणो दगेहिं वसंतो ॥ मरण पाम्यो बे तिर्यचपणे घणीवा
वर्षारुतुने वीपे रणमां रह्यो थको । वासासु रन्नमझे । सीतना पवनथी होमे बाल्यो
थको ।
सीनिल मझविन । एम तिर्यचना नवने वीपे । एवं तिरि नवेसुं ।
वसांत खुत्तो।
वस्यो अनंतीवार । जीव बीहामणां जवरूप धरन्यने वीषे ॥ ८३ ॥ जीवो जीसण नवान्ने ॥ ८३ ॥ पवननी प्रेर्णाथी जयंकर नव वर मां ॥ निल पेरिन जीसमि नवारन्ने ॥ अनंतीवार हे जीव आत्मा एहवां दुख तु पाम्यो बे ॥८४॥
तसो जीव पत्तोसि ॥८४॥ वज्र अग्निनो दाह तथा सीत वा टाढ वेदना मांही ॥
मागं श्राव ज्ञानावर्यादिक
कर्मरूप प्रलयकालना ।
दु कम्म पलया । हेंम्यो वा चाल्यो गयो नरक
ने वीषे पण ।
हिंमतो नरपसुवि ।
| रत्नप्रनादिक साते नरक प्रथ्वीने वीसे ।
र ॥ ८२ ॥
मनसि तिरित्त बहुसो ॥ ८२॥ क्लेस पामतो दुःख लाखो गमेथी ॥ कीसंतो दुक सयसहस्सेहिं ॥
सत्तसु नरय महीसु । वजा नल दाहं सी विश्रणासु ॥ वशो वा रह्यो हे जीव अनंतीवार। विलाप करतो दिस्वरे करीनेन् वसित खुत्तो । विलवंतो करुण सद्देहि ॥ ८५ ॥
पीता माता स्वजन रहीत ।
दुःखे यंत यावे एहवी व्याधीइं करी पीमा घणीवार ॥
पिय माय सयण रहिन । दुरंत वाहीहिं पीमीन बहुसो ॥
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१३७ मनुष्यना नवमां सार रही वीलाप करया शुं नथी ते सांजरतु तपणे।
हे जीव तुजने ॥७॥ मणअनवे निस्सारो। विलविन किं न तं सरसि॥७॥ पवननीपरे गगन वा ा अणदेखायो वा अणनखायो फरे काशने मारगे। जवरूप वनमां जीव ॥
पवणुव्व गयण मग्गे। अलकिनमश्नव वणे जीवो। मम गमे तजीने वा बमीने। धनना तथा स्वजनना समुह प्रते ७
गणनणंमि समुझिकण। धण सयण संघाए॥॥ बंधातो थको सदा नीरं जन्म जरा मरणरूप तीखा वा अणी तर।
याला नाला थकी॥ विधिऊंतोत्र सयं । जम्म जरा मरण तिक कुंतेहिं॥ दुःख जोगवतो अती आकरां। संसारे नमतां थकां जीव ॥७॥
दुह मणुहवंति घोरं। संसारे संसरंत जीआ ॥ तोहे पीण क्षणमात्र पीण को अज्ञानरूप सर्प मशा जीव तेथी। इदिवसे नीचे।
तह वि खणंपि कयाविहु। अन्नाण नुअंग किया जीवा संसाररूप बंधीखाना थकी। नथीननगता मूर्ख मनना जीव॥७॥
संसार चारगा। नया विऊंति मूढमणा ॥जए॥ क्रीमा करेले केटली वेला। सरीर वा देहरूप वाव्य जीहां डे
तेहमांथी समय समय प्रते।। कीलसि किमंत वेलं। सरीर वावी जन पश्समयं॥ कालरूप अरहटनी घमी सोसे वा खुटामे बे जीवीतव्यरूप योइं करी।
पाणीने ए॥ कालरहह घमीहिं। सोसिऊ३ जीविअंनोहं ॥॥
Isaiatum
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name
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१३ अरे जीव प्रतीबोध पाम न मुझाइश। न परमाद करीश अरे पापी॥
रे जीव बुझि मामुश। मा पमाय करेसि रे पाव ॥ कीम परलोक गुरु वा मोहो नाजन वा वासण थाइश अजाणे टां दुःखनु।
॥१॥ किं परलोए गुरु दुक। नायणं होहिसि अयाण॥१॥ बुझ वा समझ रे जीव तुं। मा मुजीश जिनमत पण जाणीने ॥ ___ बुझसुरेजीव तुमं। मामुशसु जिणमयपि नाकणं ॥ जे कारण माटे फरीने ए जे सामग्री वा जोगवाइ दुर्लन जी जिनधर्म पांमवानी। वने ॥५॥ __ जरा पुणरवि एसा। सामग्गी दुलहा जीव ॥५॥ दुलर्न पांमवो डे वली श्री जिन हे जीव तु प्रमादनो आदर करे धर्म।
जे सुखनी इबाई करी॥ दुलहो पुणजिणधम्मो। तुम पमायायरो सुहे सीय॥ पण ते प्रमादथीतो दुःखे सहेवा तीवारे ताहरूं शुं थशे तेतो न योग्य वली नरकनां दुःख पामीश। जाणु हुँ॥५३॥
दुसहंच नरय दुवं। कह होहिसि तं नयाणामो॥३॥ अथीर जे सरीर ने थीर धर्म ने नीर्मल धर्म परवश देह स्वा मलसहीत सरीर। धीन धर्म ॥
अथिरेण थिरो समलेण।निम्मलो परवसेण साहीणो॥ एहवा सरीरे करी जीवारे धर्म तो शुं नही समाप्त वा परीपुर्ण ब्रही पांमे वा पमामे। थाय ॥ए॥
देहेण जश् विढप्प। धम्मो ता किं न पऊत्तं ॥४॥ जेम चिंतामणी जे रत्न पाम सुर्लन नहोय कोने थोमा वैनव
वालाने॥
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१४०
जह चिंतामणि रयणं । सुलहं नहुहोई तुच विहवाएंणं ॥
जीवने तीम धर्म चिंतामणी रत्न पीए जांएवं ॥५॥ जीण तह धम्न रयणंपिण्य
गुण विश्व वी
|
जेम द्रष्टीनो संजोग । न होय जन्मथी ग्रंथ होय जे जीव तेहने ॥
जह दिधी संजोगो ।
तेम श्री जिनमतनो संजोग वा
गुणरूप वैजवे करी वर्जीत वा
रहीतने ।
समागम ।
तह जिमय संजोगो
प्रतक्ष अनंता ज्ञानादिक
गुण
जुश्रो मिथ्यात्वमां अनंता दोष अज्ञान हठ यादे |
मि त दोसा । तोहे पण तेज नीचे जीव ।
नहोइ जच्चंधयाण जीवाणं ॥
न होय मिथ्यात्वे करी अंध जे जीव तेहने ॥ ९६ ॥
। नहोइ मिध जीवाणं॥ ए६ ॥ श्री जिनधर्मने वीपे नथी दोषतो लेशमात्र पण ॥ जिणंदधम्मे न दोस लेसोवि ॥ धर्मे न रमे कोइ काले पण तेहमां जीव ॥ ५७ ॥
बे| पच्चरक मांतगुणा । तोहे पीए नीचे ज्ञाने
करी यांधला ।
तहविहु अन्नाचा । नरमंति कयावि तंमि जी ॥७॥
प्रतक्षपणे देखाय वे नथी गुणनो ले
श पण ॥
ते माटे धीक्कार धक्कार हो ते नर वा पुरुष प्रते । धिवी तानराणं ।
पयमा दीसंति नवि गुणलेसो॥
कटनी वातके मोहे करी थ था थका सेवे बे ॥८॥
तहवि तं चैव जीया । हा मोहंदा निसेवंति ॥८॥
तेम धीग धीग तेहना वीज्ञानने त था गुणने तथा माहापणने ॥ विन्नाणे तह गुणेसु कुसलते ॥
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१४१ शुन सत्य एहवा धर्मरूप र नली परीक्षा जे जीव नथी जा ननी।
ता ॥ सुह सच्च धम्मरयणे। सु परिवं जे नयाणंतिपणा श्री जिनधर्म तेज जीवोने। अपुर्व नाव कल्पवृक्ष ॥
जिणधम्मो जीवाणं। अप्पुव्वो कप्प पायव्वो॥ स्वर्ग वा देवलोक अपवर्ग वा फलनो दायक वा दानेस्वरी ए | मोक्षसुखनां।
॥१०॥ __ सग्गा पवग्ग सुकाणं। फलाणं दायगो इमो॥१०॥ धर्मले ते बंधव समान तथा धर्मले ते नत्कष्टो गुरुले ॥ नला मीत्र समान।
धम्मो बंधू सुमित्तोत्र। धम्मोन परमो गुरू ॥ ||जे जीव मोक्षमारगे प्रवर्त्या धर्म ले ते नत्कष्टो वा उत्तम र तेहने।
थवाहन समान । मुक मग्गे पयहाणं। धम्मो परम संदणो ॥१०॥ चारगती भ्रमण अनंत दुःख बलतो नवरूप अटवीनो अग्नि रूप अग्निई।
महा जयंकर बे॥ ___ चन्गइ एंत दुहा नल। पलित नव काणणे महानीम।। माटे सेव नले प्रकारे हे श्री जिनवचन अमृत रसना कुंम स! जीव तुं।
मान प्रते ॥१०॥ सेविसुरे जीव तुमं। जिणक्यणं अमिय कुंमसमर वीपम नवरूप मारवाम दे अनंत दुःख नालारूप तापे त शमां।
विसमे नव मरुदेसे। अणंत गिम्हमि ताव संतत्ते॥ श्री जिनधर्मरूप कल्पवृक्ष ले आश्रय कर वा समर तुं हे जीव
पाव्या तेहने॥
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२४२ ते प्रते।
ते धर्म सिवसुखदायक बे॥१०३॥ | जिणधम्म कप्परुळं। सरसु तुमंजीव सिवसुहयं १०३ शुं घणु कहीई पुर्वे कझुंज घ यत्न वा नद्यम कर जेम नवरूप गुळे तीमज धर्मने विषे। समुद्र नयंकर ॥
किं बहुणा तह धम्मे। जश्अव्वं जह नवोदहिं घोरं॥ सीघ्रपणे पार पांमीने श्र सुख पामे जीव सास्वतु स्थानक इति
लहु तरिय मणंत। सुहं लहश् जीन सासयंगणं १०४ ए रीते वैराग सतक टबार्थ पुरो थयो ।
इति वैराग सतक समाप्त॥
नंत।
॥१०॥
अथ अनव्यकुलक लिख्यते॥ जेम अजव्य जीवोइं। नथी फरशा नीचे वा ए श्रादीनाव ॥
जह अनविय जीवहिं। न फासिया एव माझ्या नावा॥ इंद्रपणु अनुत्तर सुर ते पांचे त्रेसठ सलाका नरनी पदवी नव वीमानना देवपणु न पांमे। नारदपणु न पांमे वली ॥१॥
इंदत्त मनुत्तरसुर। . सिलायनर नारयत्तं च ॥२॥ केवलीनगवंत तथा गणधर दीक्षा न पांमे तीर्थकर वरसीदान जीने हाथे।
दे ते न पांमे॥ केवलि गणहर हजे। पव्वळा तिबवचरंदाणं॥ शासनना वा प्रवचनना अधी नवलोकांतीक देवपणु न पांमे टायक हेवा देवी देव न थाय। देवस्वामी न थाय ॥२॥
पवयण सुरी सुरतं। लोगंतिय देवसामित्तं ॥२॥
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१४३ तेत्रीस गुरुस्थानकीया पंनर जातीना परमाधामी न थाय देवपद न पांमे।
जुगलीक मनुष न थाय ॥ तायत्तीससुरत्तं। परमाहम्मिय जुयलमणुयत्तं॥ संनीनश्रोत लब्धी तथा। पुर्वधरनी लब्धी न पांमे आहारक
लब्धी पुलाक लब्धीपणु न पांमे ॥३॥ संनिन्नसोय तह। पुव्वघरा हारय पुलायत्तं ॥३॥ मतीज्ञान श्रुतज्ञानादिकनी सुपात्रे दान नावे न दे समाधी लब्धी न पांमे।
पणे मरण न थाय ॥ मश्नाणाश्सुलघी। सुपत्तदाणं समाहिमरणतं ॥ वीद्याचारण झंघाचारण ए बेल खीराव लब्धी न पांमे अक्षी ब्धी मधुसरपालब्धी न पांमे। मागसी लब्धी न पांमे ॥४॥
चारण दुग महुसिप्पय। खीरासव खीणठाणत्तं ॥४॥ तीर्थंकर तीर्थंकरनी प्रतीमा। सरीरना नोगादी कारणमां पण
नावे वली॥ तिबयर तिवपमिमा।तणु परिनोगाइ कारणेवि पुणो॥ प्रथवीकायादीपणाना नाव अनव्य जीव जे ते न पांम्यो वा पांमे पण।
नोगमां नाव्यो ॥५॥ पुढवाश्य नामिवि। अनव्वजीवहिं नोपत्तं ॥५॥ चक्रवर्तीनां चन्दरत्नमां पिण पांमे नही वली वीमानना स्वां नावे।
मीपणाने॥ चन्दस रयणतंपि। पत्तंन पुणो विमाणसामित्तं ॥ समकीत सम्यक्ज्ञान चारी तपादी गुणना बाझ अभ्यंतर जा त्र न पांमे।
व प्रते न पांमे नाव बे न पांमे॥६॥ सम्मत्त नाण संयम। तवाइ नावा न नावदुगे॥६॥
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१४४ गुणी गुणनी नाव सहीत जिनांणाए समान धर्मीनी तथा नक्ति न पांमे ॥ संघनी सेवाजक्ति साझ ॥ __ अणुनवजुत्ता नती। जिणाण साहम्मियाण वचनं ॥ न साधि सके अनव्यनो जी संसार दुःखनी खांण वे एहवो
नाव न थाय शुक्लपक्ष न थाय॥७॥ नय साहेश् अनव्वो। संविग्गत्तं न सुप्पकं ॥ ७ ॥ तीथकरना पीता माता स्त्री न तीर्थकरना जक्ष जक्षणी तथा थाय ॥
जुगप्रधान न थाय ॥ जिजणय जणणि जाया। जिजका जकणी जुगपहा आचार्यपदादि दसनो वीनय न परमार्थ नत्कृष्ट गुणे अधी[णा॥ करे आ०१०१ सा०१ संघ कपणु न पांमे ॥ ७ ॥ थिविर र कुलर गण? ए दसनो। ___ अायरियपया दसगं। परमब गुणढ़ मप्पत्तं ॥७॥ अनुबंधहिंसा हेतुहिंसा स्वरू तेज अहिंसा त्रण श्री तीर्थकरे क| पहिंसा।
ही ते। अणुबंध हे सरूवा। तब अहिंसा तिहा जिणुदिन॥ द्रव्यथकी नावथकी। एबे प्रकारे पिण ते अनव्य जीव न पांमे॥॥||
दव्वेणय नावणय। दुहावि तेसिं नसंपत्ता ॥५॥ इति अनव्यकुलक समाप्तं ॥
इति अनव्यकुलक समाप्तौ ॥
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अथ श्री पुण्यकुलक ५५ बोल ॥ संपुर्ण पांचे इंद्रि अखंमीत मनुषपणुश वली धर्मयोग कुल पणु।
आर्यदेश २५॥मां नपजवापणुः ॥
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२४५ संपुन्नइंदियत्तं। माणुसत्तं च आयरिय खित्तं ॥ मातापक्ष संपुर्णए पीतापक्ष एसर्व पांमे घणा पुन्यना शुननदये संपुर्ण जिनेश्वर नाखीत ध करीने हवे प्रनुतपुन्यनुं स्वरूप कहे मे ।
अगणोतेर कोमाकोम सागरोपमनी झाझेरी थीती क्षय थाय देशेनणी एक कोमाकोमनी स्थीती रहेथी प्र
नुतपुन्यनो नदय होय ॥१॥ जाइ कुल जिणधम्मो। लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥१॥ श्री जिनेश्वर १७ दोष रहीत दे सुधपालक परूपक गुरूना चरण वना पदकमलनी सेवानक्ति। नी सेवानक्तिनु करवु निश्चेए॥
जिण चलणकमल सेवा। सुगुरु पाय पशुवासणं चेव॥ वाचनादी पांचनेदे सझायनु कर ए पांमवु प्रनुतपुन्ये करी जी १० माठामतनु वादे जीत०११ वने ॥ ३॥ मोहोटाइपणु पांमवु१२॥
सशाय वाय वझतं। लनंति पनूय पुन्नहिं ॥२॥ सुखे वीना प्रीयासे बोधीनुं संगम पांमवो१४ कषायनु तजवु१५ पांमबुं१३ नलागुरुनो। सर्व जीवनी दयानु करवु१६॥
सुघो बुहो सुगुरुहिं। संगमो न्वसमं दयालुत्तं ॥ |वमानु दाक्षएय ते लज्यानु करवू१७ ए पांमीई घणा पुन्यने पसा एकेंद्रीयादे जीवनी करुणारज॥ ये करी ॥३॥
दाखिन्नं करणंजो। लप्रंति पनूय पुन्नेहिं ॥३॥ यथार्थ वस्तुधर्मनु सर्धवु प्रतीत ग्रह्मांजे जलां व्रत तेनुं यथार्थ पा वु ते समकीतगुणे अचलपणुए। लq२० कपट रहीत थवु२१॥
समत्तं निचलंतं। वयाण परिपालणं अमायत्तं ॥
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२४६ धर्मशास्त्रनु नणदुंश् श्नणेनु गणवुश्३ एटलां पांमीइं घणा पुन्ये गुरुवादीकनो वीनय करवोश्ध। करीने ॥४॥
पढणं गुणणं विण। लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥४॥ नत्सर्ग मार्ग जे झपन्य नीचे ते बालंबनरहीत मार्गश्व्य वहार ७ वांनां तजवां नत्कृष्ट ते आलंबन सहीत तेहमां नीपुणशजी सुत्रे कह्यांतीम२५ अ नकल्पश्ए थीवीरकल्प३० जिनमार्गनो पवाद ते नसर्गथी यो जाण३१ शिवदर्शननो जाण३२ नीश्चमा लु पालवंश६। गनो जाण३३ व्यवहारमार्गनोजाण३४॥
ग्सग्गे ग्ववाय। निछह विवहारंमि निनणत्तं ॥ मनसुद्धी३५ वचनसुद्धी३६ एटलां वानां पांमे घणा पुन्येक कायसुन्द्वीनुधरवु३७। रीने ॥५॥ __मण वयण काय सुधी। लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥५॥ अवीकारपणु करवु तरुणपणामां श्री जिनाणाइं रक्तपणुए पर अइमत्ता मेघकुमारनीपरे३। ने नपगारनु करवुध०॥ ___ अवियारं तारुनं। जिणाणं रा परोवियारतं॥ अमोल चीत जे जेहनु ध ए पांमवु घणा पुन्ये करी जीव मध्यानने वीषेध।
ने ॥६॥ निकंपयाय नाणे। लनंति पन परनी नींद्या करणनो परी आपणी प्रसंसा न करवी५३ आप हार वा त्यागध। ना गुण न वखाणवाध ॥
पर निंदा परिहारो। अप्पसंसा अत्तणो गुणाणं च ॥ चारेगतीमांजीवने दुख जेध एते ए पांमवू नय पुन्ये करी जीव ज दुखथी नीकलवू इच्ने तेथ६। ॥७॥
संवेगो निवेगो। लनंति पनूय पुग्नेहिं ॥७॥
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१४७
दांत देवानो नल्लास वांच्छा रही तहीता हीतनु समीपपणु४९॥ दाणु ल्हासो विवेग संवासो ॥ ए पांम प्रत पुन्ये करी जीव ने ॥ ८ ॥
तीचारे रहीत सुद्ध सील वा
श्राचारनु पालवु४ ७ ।
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निम्मल सीला प्रासो चारगतीना दुखथी जय पां वा ते दुखने जय पमामे५० । चनगई दुह संत्तासो |
लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ ८ ॥ अनुमोदवु५२ गुरु पासे माठा क त्यनु प्राच्छीत लेबुं५३ बार नेदे
माता कर्मनु नींदवु नीजसाखे ग्रहा वा प्रसीद्ध करवुं गुरुसाखे | माठारुत्यनु५१ ने जलाकृत्यतु । तपनु करवु५४ ॥ दुक्कम गरिहा सुकमा । मोयणं पायचित्त तव चरणं ॥ ए पांमवुं वीशेष पुन्ययोगे
| स्वपरने ननु इच्छक ध्याननु ध्यावु५५ वा परमेष्टी नमस्कारादी ध्यान करतुं । जीवने ॥ || सुह झाप नमक्कारो |
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ए प्रथमे कह्या बोल तेरूप गु रामणी नरवाने जंमाररूप । श्य गुणमणि जंमारो ते जीव समस्त प्रकारे तोमी ने मोहना पास बंधने । विचन्न मोहपासा । ए प्रकारे पुन्यनो समुदाय बोल समाप्तः ॥ इति पुन्यकुलक समाप्तं ॥
लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ था सांमग्रीने पांमीने जेणे ते बोल
आदर करया ॥
सामग्गी पावीनण जेहं कन ॥ पांमे तेज जीव शास्वतां सुख प्रते कर्म रहत ने सिद्धि सुख ॥१०॥ लहंति ते सासयं सुखं ॥१॥
अथ पुन्यपापकुलक लिख्यते ॥
बीस हजार दीवस । वरस एकसोना थाई श्रायु परीमाण पुरुषना
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१४त बत्तीस दिन सहस्सा। वास सए हो भान पुरिमाणं ॥ तेहमांधी नवं थायले सम इम जांणीने शुद्ध धरममां नुद्यम य समय प्रते।
करवो ॥१॥ फिनंतं पई समयं। पिन धम्मंमि जश्अव्वं ॥२॥ हवे पोसह फल जीवारे जे तप नीयम गुणे करीने गमावे एक जीव पोषधवृत सहीत। दीबस ॥
ज पोसह सही तव नियम गुणहिंगम एगदिणं॥ तो ते जीव बांधे देवग एटला संख्याये पल्योपमनी स्थिती तिनु आयुखु। ___ता बंधश् देवान। इतिश्र मित्ताइं पलियाई ॥२॥ सत्तावीस कोम सहीकम सित्योतेर कोम सित्योतेर लाख सि एटले २७०० कोम। त्योतेर हजार ॥
सगवीसं कोमी सया। सतहत्तरी कोमिलक सहसाय॥|| सातसेहेने सित्योतेर एटलां नवनागमांना सातनाग एकपल्योप पल्योपम।
मना २७ ७७७७७७७७७ ना० ७
एक पोसहथी ॥३॥ सत्तसया सतहुत्तरि। नवनागा सत पलियस ॥३॥ हवे एक पोहोर फल अठा वरस एकसोना बे लाखने एटला सी हजार।
पोहोर 1000० ॥ अनसीई सहस्सा। वाससए दुन्नि लक पहराणं॥ तेहमांनो एकज जीवारे पो धर्मे करी जुक्त जे जीव तेने एट होर ।
लो लान थाय ॥३॥ एगोविश्र जश् पहरो। धम्मजुन ता श्मो लाहो॥४॥
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२४०
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त्रणसें समतालीस कोम३४ने। बावीस लाख ने बावीस हजार ने॥
तिसय सगं चत्त कोमिालका बावीस सहस बावीसा॥ बसें ने बावीस ने नपर बे देवतानु आयु बांधे एक पोहोरना धर जाग एटला पल्योपमनु। मनु३४७ २१ २२ २२२ जा०॥५॥
दुसय दुवीस दुनागा। सुरान बंधोय गपहरे॥५॥ हवे सामायक फल दसलाखने मुहुर्त वा बेघमीनी गणती था एसीहजार एटलां।
य एकसो वर्षनी ॥ । दसलक असीय सहसा। महुत्त संखाय होइ वास सए॥ तेमां जीवारे सामायक सही एक पण महुर्त तेह जीवने एटलो त धर्ममां बेघमी रहे वा। लान थाय ॥६॥
जश् सामाश्य सहिन। एगोवित्रता इमो लाहो॥६॥ बाणुकोम पल्योपम ने। ओगणसाठ लाख ने पचीस हजार ने॥
बांणवय कोमी। लरका गुणसठिसहस पणवीसं॥ नवसेने पचीसे सहीत ने। एक पल्योपमनाबानागमांना सा
तनाग देवगतीनु आयु बांधे ॥७॥
एएएएए२५ जा नवसय पणवीस जूत्रा। सतिहा अमनाग पलिअस्स ७ हवे घमीफल एकसो वर्षनी एकवीसलाखने तीमज सातहजार॥ घटीयो कहे।
वाससए घमित्राणं। लरिकगवीसंसहस्स तह सही॥ तेहमांनी जो एक पण घमी ध जीवारे तीवारे ते जीवने एटलो मसाधन सहीत।
लान थाय ॥॥ एगाविध धम्म जूत्रा। जश् ता लाहो श्मो हो॥॥ बेतालीस कोम ने प्रोगत्रीस लाख। बासठ हजार नवसेने।
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२५० गयाल कोमी गुणतीस लक। सही सहस्स सय नवगं सठ एटला पल्योपममा पल्योपमन देवतानु श्रायु बांधे कांइक नंगां।
एकघमीना धर्मनु॥॥ तेसही किंचूणा। सुरा बंधोई गघमिए ॥॥ साउने प्रमाणे एक दिवस रातनी। धमीयो जे जाय पुरषनी॥
सही अहोरतेणं। घमीत्रानजस्स जंति पुरिसस्स॥ व्रत नीम तेणे करी पीण ते दिवस नीफलो ते जीवना जीवी रहीत आयुखु।
तमांथी ॥१०॥ निअमेण विरहीत्रान। सो दिअहन निष्फलो तस्सर हवे सासोसासनु फल एकसो कोम सातने लाख अमतालीसने॥ वर्षना नसास चारसे कोमने।
चत्तारी कोमिसया। कोमी सतलक अमयाला॥ चालीस वली हजार वर्ष एकसोना थाय सासोसास ते 10७४0 10000। हमांथी ॥११॥
चालीसंच सहस्सा। वास सय हुंती ऊसासा॥२२॥ एक पीण सासोसास। नही रही न्य पापे करीने ने॥
को विश्र ऊसासो। नय रहिन होई पुण्य पावहिं॥ जीवारे पुन्ये करी सहीत एक पीण सासोसास तो एटलो ला होय ।
न थाय ॥१२॥ __ जश् पुणेणं सहिन। एगोविश्र ता इमो लाहो॥१॥ लाख बे हजार पीस्तालीस ने। चारसेंने आठ नीचे पल्योपम॥
२३५४०७॥ लक दुग सहस पण चत्तं। चनसया अठचेव पलियाई॥||
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टनु।
कांइक णा चारजाग ए देवतानु वानखु बांधे एक सासो
सासना धर्म करचाथी ॥१३॥ किंचूणा चन्नागा। सुरा बंधो ई गुसासे ॥१३॥ हवे नवकारफल गणीसलाख ने नपर। तेसठहजार बसेंने समसठ॥
एगुणवीसं लका। तेसही सहस्स दुसय सत्तही॥ |एटला पल्योपमन देवश्रायु। बांधे जीव एक नवकार गणे वाज
सासोसास धर्म सेवेतो ॥१४॥ पलियाई देवा। बंध नवकार नस्सगो ॥१४॥ हवे लोगस्सफल लाख एकसठ पां बसेंने दस पल्योपम देवतान त्रीस हजार।
आयु॥ लकिग सघी पणतीस सहस। दुसय दस पलिअ देवानं बांधे कांइक अधीकु जीव। हवे ए रीते धर्म सेवेतो देवगतीनु
आनखु बांधे पचीस सासोसास वा
एक लोगस्सने कानुसग्गे॥१५॥ बंधई अहिश्र जीवो। पणवीसुसास नस्सगो॥१५॥ हवे जो एज प्रमाणे पापकर्म होय तेज रीते नरकगतीना आयु करवामां तत्पर जे जीव। नो बंध पीण करे ॥
एवं पावई परायाणं। हवे निरयान अस्स बंधोवि॥ इम जांणीने लक्ष्मीवान श्री जिनेश्व धर्ममां नद्यम करवो हे न रे कह्या।
व्य वा जोगजीवो॥ अना सिरि जिण कित्तिश्रमि। धम्ममि नसमं कुणह ए रीते पुन्य तथा पाप कुलक समाप्तः॥ [॥२६॥
इति श्री पुन्यपापकुलक समाप्तं॥
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अथ गौतमकुलक लिख्यते ॥ लोनीयापुरुष लक्ष्मी मेलववाने मूढपुरुष नर कांमनोगने विषे तत्पर हुई।
तत्पर हूइं॥ __ तुघानरा अनपरा हवंति। मूढानरा कामपरा हवंति॥ पंमितपुरुष क्षमा ते जे क्रोध मिश्रपुरुष पूर्वोक्त त्रणेवानां पिण जीतवाने तत्पर हुई। आचरे ते ॥१॥
बुघानरा पंतिपरा हवंति। मिस्सानरा तिन्निवि श्रायरंति तेज पंमित जे नर निवरत्या वि तेज साधू जे नर आग [॥२॥ रोधथी।
म आधारे आदरे चाले॥ ते पंमिया जे विरया विरोहे। ते साहुणोजे समयं चरंति॥ तेज शक्तिवंत जे नर नही तजे तेज बंधव मित्र जे नर कष्ट वा धर्म प्रते।
व्यसनमा पमेयापणा थाय।। ते सत्तिणो जे नचयंति धम्माते बंधवा जे वसणे हवंतिश क्रोधे करी अनीनूत आकुल ते अनीमानी नर सोकना परा नर न सुख पांमे।
नवने पांमे॥ कोहानिनूया न सुहं लहंति। माणंसीणो सोय पराहवंति कपटिनर थाय परना दास जेनर लोजीया मोहोटी इच्छावंत ते र वा चाकर। . तिजे स्याता न पांमे वा नर्के नपजे।।
मायाविणोडंति परस्स लुघा महिबा नरयं विंति॥३॥ क्रोधसमान कोइ विष न पेसा। अनीमान नपरांत कोइ वैरी न थी अमृत जीवदया नपरांत नथी। थी हीतकारीअप्रमादि जेवो नथी
कोहोविसं किं अमयं अहिंसा।माणो अरी किं हिय मप्प मायासमांन कोइ नय नथी सर लोनसमान कोई दुख [मा॥ ण संत्य समान नथी। नथी सुख संतोषसमांन नथी ।
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२५३
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मायानयं किंसरणंतु सच्चं।लोहो दुहो किंसुहमाह तुरी बुद्धि अती सेवे विनयवंत प्राणीने। क्रोधी कुशीलीयाने सेवेअकीति
बुधिअचमं नयए वीणीयं। कुछ कुशीलं नयए अकित्ति॥ नग्नचितवंतने सेवे अलब वा नी सत्येस्थितने समस्तपणे सेवे रधनपगुं।
लक्ष्मी ॥५॥ संनिन्नचितं नयए अलबी। सच्चेपीयं संनयए सिरियर तजे वा बांके मित्र सजन पीण तजे बांके पाप जे दुःकर्म मुनि नर जे करया गुणने हणे तेने। जितेंद्री प्रते॥
चयंति मित्ताणी नरकयघं। चयंति पावा मुणिं जयंतं॥ तजे बांझे सुका सरोवर प्रते हंस तजे मे बुद्धि कोपीत रीसा
ल मनुष्य प्रते ॥६॥ चयंति सुक्काणि सराणि हंसा। चएइ बुधी कुवियंमणुस्संद जेहने हैए धारणा नही तेहने धरम गइवातनुं वा अर्थ- केहेतुं ते वचनादी कहे, ते विलाप ते फोगट वीलाप ॥
असंपहारे कहिए विलावो।अईयअडे कहिए विलावो॥ विन्निचितवंतने हितवचन- के घणा माठा सिष्य तेहने हित हेवं ते विलाप।
वचन केहेवं ते विलाप॥७॥ विकित्तचित्ते कहिए विलावो।बहु कुसीसे कहिए विलावो दुष्ट राजा प्रजाने झमवामां त वीद्याधर नर मंत्र साधन [॥॥ त्पर हुई।
मां तत्पर हुई। दुहीवा दंम परा हवंति। विजाहरा मंत परा हवंति॥ मूर्ख नर ते कोपमांज तत्पर हू नलामुनिसर तत्वग्रहणमां तत्प
र हुई॥॥ मुखानरा कोव परा हवंति।सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ।
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१५४ सोना होय नत्कृष्टा तपवंतने क्ष थिर योग तेज नपसमवंतनी|| मा थकी।
शोना ॥ | सोहानवे नग्ग तवस्स खंती।समाहिजोगो पसमस्स सो ज्ञानगुण जतु ध्यान ए बे ते चा सिष्यनी शोना जे विहा॥ रित्रवंतनी शोना।
नय गुणमा प्रवरती॥॥ नाणं सुकाणं चरणस्स सोहा। सीसस्स सोहा विणए पवि आनरण विना शोने सिलवत परिग्रह रहित ते शोनेति॥णा नो धरणहार।
दीक्षाधारी जे साधू ॥ अनूसणो सोहश्बंनयारी।अकिंचिणो सोहइ दिकधारी बुद्धिइं करी सहित होय ते शो लाजे करी सहित पुरुष्य ते शो ना पांमे राजानो परनान। ना पांमे एक स्त्रीथी ॥१॥
बुधिजुन सोहरायमंती। लज़ाजुन सोहर एगपत्ति १० आत्मा पोतानो वैरी समान होय जेना जोग नाम नही ते।
अप्पा अरीहोर अणवकीयस्स। यात्मा जस पांमे सीलवंत जे मनुष्य ते॥
अप्पा जसो सील मन नरस्स॥ आत्माज दुरात्मा ज्ञानादीगुणे नथी अवस्थित जेनो ते । __ अप्पा दुरप्पा अणवध्यिस्स। आत्माज आत्माने वस राखे तो तेज सरण करवा योग ॥११॥
अप्पाजी अप्पा सरणं गश्य ॥१२॥ नथी धर्मकारज समान बीजु नथी प्राणनी हिंसा समान मोटु कार्य ॥
अकार्य ॥ नधम्मकऊं परमबी कऊं। न पाणिहिंसा परमं अकऊं।
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२५५ नथी स्नेहराग समान नत्कृष्टु नथी समकितना लान समान बंधन।
नत्कृष्टो लान॥१॥ नपेमरागा मरमनि बंधो। नबोहिलाना परमबि लानो न सेववी वा न नोगववी प्रेम न सेववा वा न आदर[॥१॥ दा वा स्त्री परनी। वा पुरष जे अजाण वा मूढने॥
नसेवियव्वा पमया परक्का। नसेवियव्वा पुरिसा अविद्या न सेववा अधम अनिमानी हीणा नरने । | नसेवियव्वा अहमानि हिणा। न सेववा चामीकरणहार मनुषने ॥१३॥
नसेवियव्वा पिसुणा मणुस्सा ॥१३॥ जे धरमी नर तेहने निश्चे सेववा आदरवा।
जेधम्मियाते खलु सेवियव्वा । जे पंमित नर तेहने निश्चे पुनर्बु ॥
जेमियाते खलु पुछियव्वा ॥ जे साधु वा जला नर तेहने समस्त रीते वांदवा।
जे साहुणो ते अनि वंदियव्वा । ||जे निरलोनी ममतारहीत नर तेहने आहारादी दान देवू ॥१४॥
जे निम्ममाते पमिलानियव्वा ॥१४॥ पुत्र तथा शिष ए बेने तुल्य विचारवा विनय माटे।
पुत्ताय सीसाय समं विनत्ता। रूषीस्वर तथा देवता ए बेने तुल्य विचारवा ।
रिसीय देवाय समं विनत्ता ॥ अज्ञानी नर तथा पशु जीनावर ए बेने तुल्य विचारवा।
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२५६ मुका तिरिकाय समं विनत्ता। मृतक तथा नीरधन ए बेने तुल्य विचारवा ॥१५॥
मुत्रा दरिदाय समं विनत्ता॥१॥ समस्त कला थकी धर्म आराधवानी कला जीते।
सव्वाकला धम्मकला जिणाई। समस्त कथा थकी धरमअर्थे कथा जीते ॥
सव्वा कहा धम्म कहा जिणाई॥ समस्त बलथकी धरमनु बल जीते।
सव्वंबलं धम्मबलं जिणाई। समस्त जे संसारीक सुखथी धर्म सुख जीते ॥१६॥
सव्वंसुहं धम्मसुहं जिणा ॥१६॥ जवटु रम्यामां जे आसक्त डे तेहने लक्ष्मीनो नास थाय ।
जूए पसत्तस्स धस्स नासो। मांसनक्षमा जे यासक्त ने तेहने दयाबुधीनो नास थाय ॥ ____ मंसं पसत्तस्स दया नासो॥ मदीरा पीवामां जे आसक्त ले तेहनो जस नास थाय ॥
मऊं पसत्तस्स जसरस नासो। वेस्याजोगमा जे आसक्त ले तेहना कुलनो नास थाय ॥१७॥
वेसा पसत्तस्स कुलस्स नासो॥१७॥ जीवनी हिंसामा जे आसक्त ले तेहनो नलो धर्म नाश थाय।
हिंसा पसत्तस्स सुधम्मनासो । चोरी करवामां जे आसक्त ले तेहना शरीरनो नाश थाय ॥
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१५७ चोरी पसत्तस्स सरीर नासो॥ तिमज परनारीथी जे आसक्त बे तेहने ।
तहा परबीसु पसत्त यस्स। |सर्व पूर्वोक्त जला गुणनो नाश थाय वली अधमगती पांमे॥१॥
सव्वस्स नासो अहमा गईय ॥१॥ दांन देवू निर्धनपणामां ने वली ठकुराई पांमे षिमा गुण ते।
दाणं दरीदस्स पहुस्स खंती। तथा इच्छा वा अनिलाषनो रोधक ननो होय जेहने ते ॥
इचा निरोहो सुहोइ यस्स ॥ जवानीमा जे इंद्रियोने वश राखे ते। - तारुन्नए इंदिय निग्गहोय । चारे ए जे प्रथम कह्या ते नर नला दुकरकारी जांणवा ॥१९॥
चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणी ॥४॥ अशास्वतूं जीवीत कां ने संसारी जीवलोकने विषे। __ असासयं जीविय माहुलोए। तेमाटे हे नला प्राणीयोधर्म बादरो श्रुत चारित्ररूप धर्म नत्तम साधू
धम्मंचरे साहजिणो व॥ जिनेश्वरनो कह्यो। ते धर्म जीवने रखोपानो करणहार ने सरण ले नंचगती देणहार। | धम्मोय ताणं सरणं गईय। धर्म समस्त सेवी आदरी पाली अव्याबाध सुख पांमे ॥२०॥
धम्मं निसेवितुं सुहं लहंति ॥३॥ ए रीते धर्मोपदेश लक्ष्मीवंत गनुतमकुलक समाप्तम् संपूर्ण ॥
इति श्री गौतमकुलक संपूणम्॥
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पूज्य श्री देवेंद्रसूरिजीकृत दांन सील तप जावकुलक पदार्थ बालो पकार अर्थे जीख्या बे तेमां प्रथम दांन कुलक ॥ अथ दांनकुलक लिख्यते ॥
तजीने राजनुं सार वा रहस सप्तांग लक्षमी यादे । परिहरिय र सारो
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आपणा खनाथी देवदुस्य व स्त्र दीधुं भ्रामण प्रते हेवा । खंधानदेवदूतं ।
धर्मदांन१ अर्थदांन कांम दांम३ ए नेद । धम्म काम नेया
नृपामयो बे संजमरूप एक ि तीय मोटो चार ते जेणे ॥ नृप्पामिय संजमिक्क गुरुनारो॥ संजमयोगे विचरता जयवंता वर्तो वीरनामे चोवीसमा तिर्थकर ॥ १ ॥ वियरंतो जयन वीरजिणो ॥ १ ॥
त्रिविध दांन जगतमां विख्यात वा प्रसीद्ध बे ॥ । तिविहं दाएं जयीमं विरकायं ॥ तेमने श्राहारादिक धर्मीक दांन ते प्रसंसेले वा वषांले वे ॥ २ ॥
| तोहे पिए जिनेश्वरने ने तेमना शासनने याश्रा जे मुनियो ।
तहविय जिणंद मुणिणो । धम्मियदाएं पसंसंति ॥२॥
ते दांन केहवुं वे सोनाग्य पणानुकरणहार
दाणं सोहग्ग करं ।
ते दांन उत्तम जोगनुं निधांन दाणं जोग निहाणं ।
| दांनथकी पसरे वा विस्तरे किर्ती ।
दाणे फुर कित्ती ।
दांन ते रोगरहितपणानुं कारण
उत्कृष्टुं बे ॥ दाणं
रुग्गकारणं परमं ॥
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ते दांन स्थानक बे गुणना समुहनुं ३ दाणं ठाणं गुण गाणं ॥ ३ ॥ दांन देवे करी थाय मज रहित स रिरनी शोना ॥ दाणेणय होइ निम्मला कंती ॥
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२पाए दांने करी बावज्यु ले रिदय वैरी पण निश्चे दायकने घेर पाणी एहवं के।
वहे दासपणुं करे ॥४॥ दाणा वङिय हिय वयरी वि हु पाणियं वह ॥४॥ धनासार्थवाहने नवे श्री रूष जे घीनुं दांन करघु जला श्रीधर्म नदेवजीनो जीव। घोषसूरी प्रमुष साधूने ॥
धणसबवाह जम्मे। जं घयदाणं कयं सु साहूणं ॥ ते महा पुण्यना कारण थकी त्रीणलोकना पीतामह वा दादा श्री रूपनदेव जिन।
थया ॥५॥ तकारण मुसन जिणो। तेलुक पियामहो जान॥५॥ रूपाइं करी दीधुं अनयदां पालना नवमां तेथी ग्रयुं पुन्यरूप न पारेवा प्रते। किरियापुं॥
करुणा दिन्न दाणं । जम्मंतर गहिय पुन्न किरियाणं। तेथी तिर्थकरपद तथा चक्रव पांम्यो सांतिनाथ सोलमो तीर्थ ीपद एबेरिद्वी एकनवमां। कर पिण ॥६॥
तिबयर चक्क रिधि। संपत्तो सतिनाहो वि॥६॥ पांचसे साधु मुनिप्रते आहारा दांने करी नपार्यो नत्तम पुन्यनो |दि जोजन।
प्राग्जार एहवू ॥ __पंचसय साहु नोअण। दाणावङिय सु पुन्न पप्नारो॥ पार्श्वयकारी जे चरित्र तेणे जरतचक्रवर्ती श्री रूपनदेवनो पु जरयो एहवो।
त्र जरतक्षेत्रनो स्वामी थयो॥७॥ अबरिय चरिय नरिन । नरहो नरहाहिवो जाना॥ मूल लिधां विनां पिण गीलाण वा रोगी मुनिने याचरवा यो दिधी।
ग्य वस्तु तेथी॥ मुन्नं विणावि दानं । गिलाण पमिअरण जोग वणि॥
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२६० सिद्धि पांम्यो रत्नकंबल देण बावनाचंदन देणहार सेतीयो पिण हार।
तेज नवमां ॥७॥ __ सिघोष रयणकंबल। चंदणविपिनवि तंमिनवे ॥ देइने खीरनुं दांन। तपे करी सोषव्यु सरीर ले जेणे एहवा
साधुने धन्यकारी॥ दाकण खीर दाणं । तवेण सुसिअंग साहुणो धणिअं॥ लोकमां नपार्यो चमत्कार जे समस्तपणे थयो गोनद्रसेष्टीपुत्र णे एहवो।
सालीनद्र पिण नोगनु नाजन ए| __ जण जणिय चमकारो। संजान सालिनदोवि ॥५॥ पूर्वजन्मांतरना सुपात्र नल्लास पांम्युं अपूर्व शुनध्यांन तेना दांन थकी।
प्रनावे॥ जम्मंतर दाणा। नन्नसिया पुव्व कुसल साणा कयवन्नो सेठ कतपुन्यनो धणी। जोगनुंजाजन वा स्थानक थयो १०
कयनन्नो कय पुनो। नोगाणं नायणं जान॥२॥ घृतपूष्प साधू तथा वस्त्र मोटा मुनि दोषना लेलथी समस्त पूष्प साधू ए बे। रहित ॥
घयपूस वबपूसा। महरिसिणो दोस लेस परिहीणा॥ आपणी तपलब्धीए करी घृतनुं तथा वस्त्रनुं पुरवापणुं करीने समस्त साधूमंमलीने वा वा साधूनि नक्ती करीने नत्तमगति समूहने।
पांम्या॥११॥ लघीई सयल गहो। वग्गहगा सुग्गइं पत्ता ॥११॥ जीवंतस्वामी श्री महावीरनी वीरस्वामीना शासनमां वीचरीने प्रतिमाने।
नक्कीइं करी॥ जीवंतसामि पमिमाइं। सासणं वियरिकण नत्तीए॥
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चारित्र लेइने सिद्धिपद पांम्यो।नदायननांमे बेहलो राजरूपी॥१॥
पवईकण सिघो। नदाश्णो चरम रायरिसी॥१॥ जिनघर वा जिनप्रासादे करी देइने अनुकंपा दांन तथा नक्ती सोनावी जूमीममलने। दांन ॥
जिणहर मंमिय वसुहा। दावं अणुकंप नत्ति दाणाई॥ तिर्थप्रनावक पुरुषोमां रेखा समस्त पांम्यो संप्रतीनांमे राजा समांनपणु।
श्रीआर्यसुहस्तीसूरि वचने॥१३॥ तिब पनावग रेहि। संपत्तो संपश् राया ॥१३॥ देइने श्रद्धा सुद्धवमे करीने। सुधमान अमदना वाकला मोटा
मुनिश्वरने॥ दानं सघा सुधे। सुघे कुम्मासए महा मुणिणो॥ श्री मुलदेव नामे कुमर। राज्यनी लक्ष्मी प्रते पांम्यो मोटीर ४ | सिरि मूलदेव कुमरो। रऊ सिरिं पाविन गुरुइं॥१४॥ अतिवणुं दांन तेणे करी मुखर हे रच्यां सहीकमांनी संख्याए का वा जे कविजन वा पंमित तेणे। व्य तेथी विस्तरयुं॥ । अश्दा मुहर कविश्रण। विरश्नसय संख कव्व विब विक्रमादित्य राजानुं चरित्र वाजपिण लोकमां समस्त रि ते।
पणे विस्तरे ॥१५॥ विक्कम नरिंद चरिअं। अवि लोए परिप्फुर॥१॥ त्रणलोक वा समस्त जीवलो तेज नवमां सिद्धिगांमी बेलाज सा|| कना बंधव वा नाई एहवा। मान्य केवलीमां इंद्र ते तीर्थंकर ॥||
तियलो बंधवहिं। तनव चरिमहिं जिणवरिंदोहिं॥ ऋत्यकत्य तेमने पण दी, हेदूं। वरषप्रमाण मोहोटुं दांन ॥१६॥
कय किच्चेहि वि दिन्नं । संवचरिअं महा दाणं ॥१६॥
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१६२ लक्ष्मीवंत श्रीश्रेयांसकुमार मोक्षपदनो स्वामी किम न थाय रूपनदेवनो पोत्रो। अर्थात् थायज ॥
सिरि सेयंस कुमारो। निस्सेयस सामि कह नहोई॥ या चोवीसीमां प्रथम फासु प्रगट कीधी जेणे आ नरतक्षेत्रने क दांननो प्रवाह। विषे ॥१॥
फासूत्र दाण पवाहो। पयासि जेणनरहमि ॥१७॥ किम ते न वखांणीए अर्थात् चंदनबाला कुमरी श्री माहावीरने वरखांणीएज।
दांन देवे करीने॥ कह सा नपसंसिऊ। चंदणबाला जिणंद दाणेणं॥ ते माहावीर उमासीक तप पारयो वा संतोषो जेणे श्री माहा तप्या तेमने देइने। वीर जिनेश्वरने ॥१॥
बम्मासिय तव तविनिव्वविजेहिं वीरजिणो॥१॥ दिक्षा लीधा पड़े प्रथम कस्यां हतां करे तिमज करशे त्रणे यादे पारणां। काले ॥ ___ पढमाइं पारणाई। अकरिंसु करंति तह करिस्संति॥ श्रीअरिहंत ज्ञानादिगुणे जे गृहस्थने घेर तेहने निश्चे सिद्धि त्र सहित एहवा पुजनीको। गजवमा तथा आगे ॥१॥ __ अरिहंता जगवंतो। जस्सघरे तेसिं धुव सिधि॥२॥ श्रीजिनप्रासादक्षेत्र श्रीजिनबिंब चतुर्विधसंघसाधुधसाधवीएश्राव वा प्रतिमाक्षेत्रजिनपुस्तकक्षेत्र। कश्रावीकारूपजे सातक्षेत्रमा
जिणनवण बिंब पुवय। संघ सरूवेसु सत्त खित्तेसु॥ नवं न्यायविधि योगे वाव्यु मोक्षरूप फलनणी आश्चर्यकारी अनं जे द्रव्य ते थाय। तगुणु ॥२०॥ वावअंधणंपि जायई। सिवफलय महो अणंतगुणं ।।।
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१६३ ए प्रकारे दांनसमूह फल समाप्तम् ॥
इति दानकुलक समाप्तम् ॥
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हवे संमंदे श्राव्युं ब्रह्मचर्य कुलक ते लखीएडीए॥
अथ सीलकुलक लिख्यते ॥ सोनाग्य गुणन मोहोटुं ए चरणे प्रणाम करूं श्री नेमिनाथ बा हवं निधान एहवाने। वीसमा जिनपतीने॥ | सोहग्ग महा निहिणो। पाए पणमामि नेमिजिण वणो। बालपणामां नुजाबले करी जनार्दन जे कमवासुदेव प्रते जेणे ने।
सहजमां जीत्यो॥१॥ बालेण नुअ बलेण। जणादणो जेण निऊिणिना॥ जीवोने सीलगुण तेज सील तेज जीवोने मंगलीक न नत्तम वा पवित्र धन । त्कृष्टुं ३ ॥
सीलं नत्तम वित्तं । सीलं जीवाण मंगलं परमं॥ सील २ ते दोजागीपणानुं सील डे ते सुखनुं पीहर घर वा सु हरणहार ।
ख समस्तनुं स्थानक ले ॥२॥ सीलं दोहग्ग हरं। सीलं सुकाण कुलनवणं ॥३॥ सील ते धर्मनो निघांन । सील ते पापनो खमणहार कह्यो
श्री तिर्थकर गणधरे॥ सीलं धम्म निहाणं। सीलं पावाण खंमणं नणियं॥ सील ते प्रांणीयोने जगने अक्रतीम अलंकार वा घरेणु श्रेष्ठ विषे जयतुं करणहार । बे ॥३॥
सीलं जंतूण जए। अकित्तिमं ममणं पवरं ॥३॥
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हि रखा।
१६४ नरकरूप नगरना बारणाने रुं कमामना जोमाना नाइ सरी धवाने।
डे हेवु ने॥ नरय दुवार निरंजण। कवाम संपुम सहोअर हायं॥ देवलोकरूपी नजल घर तिहां। चमवाने सारी निसरणी समान
सील २ ॥४॥ सुरलोअ धवल मंदिर। पारुहणे पवर निस्सेणि॥४॥ श्री नग्रसेन राजानी पुत्री। राजेमती पांमी सीलवंतीसतीमां
हि रेखा समांन॥ सिरि नग्गसेण धूत्रा। रायमई लहन सीलवर रोहिं।। गिरी गुफा विवरमा रह्यो हेवो श्री नेमनाथनो नाई रहनेमी प्रते जेणीइं।
थाप्यो संजम सील मार्गमां॥५॥|| गिरि विवर गन जीए। रहनेमी ठाविन मग्गे ॥५॥ प्रज्वलितो पिण निश्चे अग्नीनो सीलना महिमाए करी पांणीनो समूह ते।
प्रवाह थयो॥ पऊलि विहु जलगो। सील पनावेण पाणियं हव॥ ते जयवंती वर्तो जगमां सी जेहनी प्रगट वा प्रसिद्ध बे जसनी ता श्री रामचंद्रनी स्त्री। पताका वा धजा ॥६॥ | सा जयजए सीा । जीसे पयमा जस पमाया॥६॥ चालणी व काढy पांणी ते जेणे नपामयां दरवाजानां बारणां णे करी चंपानगरीमा। त्रण ॥ | चालणि जलेण चंपाए। जी नग्घामियं दुवार तियं॥ ते वातथी केहनां न हरे चित ते चरित्र वा अवदात सती सुन प्रते अर्थात् हरे।
द्रानुं ॥७॥ कस्स नहरेश चित्तं। तीय चरियं सुनहाए ॥७॥
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२६५ समृद्धी प्रते पांमो नर्मदा. ते नखं घणो काल जेपीई पाल्यु सुंदरी।
सुध सील ॥ नंदन नमया सुंदरि। सा सुचिरं जीइं पालियं सीलं॥ कष्ट पमे गहिलापणुं पीण सहन करी विटंबना घणा घणा प्रका करीने।
रनी ॥७॥ गहिलत्तणंपि काळं। सहिआय विमंबणा विविहाना कल्याण होवो कलावती बीहामणा रणमां राजाए तजी सतीने।
वा मी॥ नई कलावईए। नीसण रन्नंमि राय चत्ताए॥ जे ते सतीना सीलगुणे क देलां अंग हस्तादी फरी नवां रीने।
थयां ॥॥ जं सा सीलगुणेणं। जिनंग पुण नवा जाया ॥५॥ |सीलवतीना सील प्रते। समर्थ सुधर्माइंद्र पण वर्णववाने नही॥ __ सीलवश्ए सीलं। सक्कर सक्कोवि वनि नेव॥ राजाना मोकल्या प्रधान चारेने पिण सील राखवा प्रकसे व वा मेहेता।
ग्या जेणे॥१०॥ | रायनिनत्ता सचिवा। चनरोवि पवंचित्रा जीए॥१॥ ज्ञान अतिसय लक्ष्मी सहि जलो धर्मलान जेहने मोकलाव्यो। त माहावीर परमेश्वरे।
सिरि वघमाण पहुणा। सुधम्मलानुत्ति जी परविन ते जयवंती जगमाहे वर्तो सु शरदरूतुना चंद्रमानीपरे निर्मल लसा श्रावीका।
सीलगुरणे ॥११॥ सा जयन जए सुलसा। सारय ससि विमल सीलगुणा कम महादेव ब्रह्मा इंद्र ए मद वा अहंकारने जाग
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२६६ हवाना जे।
एहवो कंदर्प तेहना बलनो अहंकार || हरि हर बंन पुरंदर। मय नंजण पंचबाण बल दप्पो॥ अप्रीयासे जेणे मरद्यो वा ते श्री थूलीनद्रजी आपो कल्याण दली नांख्यो।
प्रते ॥१॥ लीलाइ जेण दलिन । स थूलनदो दिस न॥२॥ मनोहर योवनना समो प्रार्थना करते थके पिण स्त्रीरूप हे वर्तते।
पाणीपुरे करी॥ मणहरतारुननरे। पबिऊंतोवि तरुणि नियरेणं॥ मेरुपर्वत परे अचल ने मन ते श्री वयरस्वामी मोटा रिषी जय जेहनु हेवा।
वंता वर्तो ॥१३॥ सुरगिरि निच्चल चित्तो।सो वयर महारिसी जय॥१३॥ स्तवना करवाने तेहनी न श्रावक जे सुदर्शनना सीलगुणना सकीये।
समूह प्रते॥ __ थुणियं तस्स नसका। सढस्स सुदंसणस्स गुणनिवह॥ जे विषम संकटमां निश्चे। पमे थके पिए अखंम सीलरूप
धन रारब्युं ॥१॥ जो विसम संकमेसु वि। पमिळवि अखंम सील धणो १४ सुंदरीजी रूपनदेवनी पुत्री सु मणोरमा सुदर्शनसेठनी स्त्री अंज नंदा वैरस्वामीनी माता चेल ना हनुमाननी माता मृगावती चं
णा श्रेणीकनी स्त्री। दनबालानी चेली ॥ ___ सुंदरि सुनंद चिन्नणा। मणोरमा अंजणा मिगावश्॥ ए जिनशासनमां प्रसिद्ध वा मोटी सतीन हे नव्यो तुमने विख्यात हेवी नली।
सुख प्रते द्यो॥१॥ | जिणसासण सु पसिघा। महासईन सुहं दितु ॥२५॥
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अचंकारी नट्टानु चरित्र सांजलीने कोनुं न धुणे निश्चे मस्तक वा कथा प्रते। अर्थात् धुणेज॥
अञ्चंकारिअ चरिअं। सुणिकणं को न धुणई किर सीस॥ जेणे अखंमपणे सील पाल्युं। नीलनो पती जे पल्लीपती तेणे करी
कष्टनी कोम पण धीर्य न मुक्यु॥१६॥ जा अकंमिश्रसीला निन्नवश्कयबिश्रावि दढं॥१६॥ आपणो मित्र आपणो ना आपणो जनक जे बाप आपणा बा इ सगो।
पनो बाप अथवा पिण ॥ | नियमित्तं निय नाया।निय जपाननिय पियामहो वा वि बापणो पुत्र पिण एटलामांजे न वाहालो होय लोकोने सील सीलरहित कुसीलीयो होय ते। विना माटे ॥१॥
निय पुत्तोवि कुसीलो। न वन्नहो होश लोाण॥१७॥ सघलाये पिण व्रत प्रते। नागे थके अस्ती वा डे कोइ पीण
आलोयणादी नपाय ॥ सव्वेसिपि वयाणं। जग्गाणं अनि कोइ पमिश्रारो॥ पिण पाका घमा प्रते कांना न होई सील फेर नागे कोइ नपा न चोटे तिम।
य॥१ ॥ पक्क घमस्स व कन्ना। नहोइ सीलं पुणो नग्गं॥२०॥ वैताल वा पिसाच नूत रा केसरीसींह चितला हस्ती सर्प ए स क्षस।
घलांना॥ वेपाल नूत्र रकस। केसरि चित्तय गइंद सप्पाणं ॥ लीलाये करी नागे अहंकार पालतो जे होय निर्मल सील प्रते वा मद प्रते।
ते धणी ॥१॥ लीलाई दल दप्पं। पालंतो निम्मलं सीलं ॥रणा
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१६८
जे कोइ पूर्वे कर्मथी मुका गतकाले सिद्धा वर्तमानकाले सिद्धेढे लावा कर्मने मुकीने । आगामीकाले सिद्धसे तीमज ॥ जेकेर कम्मंमुक्का । सिवा सिशंति सिझिहिंति तहा ॥ ते सर्व प्रांणीने एहज बल । वीस्तीर्ण था जन्म परिपालीत सीलनु
ज माहात्म्य ॥ २० ॥
सव्वेसिंतेसिं बलं । विसाल सीलस्स माहप्पं ॥२॥ ए रीते सीलकुलक संपूर्ण थयुं ॥ इति सीलकुलक समाप्तं ॥
हवे संबंधे व्युं तपकुलक ते लखीएबीए || अथ तपकुलक लिख्यते ॥
ते जयवंता वर्तों या व्यवसर्पणीने यादे थया श्री आदिनाथ जिनेश्व र ते माटे जुगादीजिन । सो जयन जुगाइ जिणो । तेमणे तपध्यांनरूप अग्नि बा ल्यां हेवां ।
तवाणग्गि पलिविय
गट ॥
जस्संसे सोहए जमा मनमो ॥ करमरूपीच्यां लाकमां तेथी थयो धूमाको तेनी पंक्ती तुल्य ॥ १ ॥ । कम्मिंधण धूम पंत्तिव्व ॥ १ ॥ कानुसग्गमां जे एकस्थांनके रह्यो पुज्यपदयुक्त जगवंत ॥ कानसग्गमि जो विन नयवं ॥ दुरी करो पाप वा माठां कर्म प्रते श्री बाहुबलजी श्रीरूपनदेवजीना पुत्र श् पूरिय नियय पन्नो । हरन दुरिआई बाहुबली ॥ २ ॥
| वच्बरी वा वरसीतप
करी ।
संवरि तवे |
दरी आपणी
जेमना खना नपर सोने बे मस्तकना केस जटारूप मु
पूरण करी प्रतिज्ञा ते जेणे ते |
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२६ए अधिर चलप्रते पिण थिर अच रूजु सरलप्रते करे दुःखे पामवायोग्य ल करे वांकां कार्य ते पिण। कार्यने पिण तिम सुखे पामवायोग करे
अथिरंपि थिरं वंकंपि। गजुअं दुनहंपि तह सुलहं॥ दुःखे साधवा योग होय ते तपना महिमाये करी प्राप्त थाय काम सुखे साधवा योग। समस्त कार्य ॥३॥ । दुस्सशंपि सुसशं। तवेण संपऊए कऊं ॥३॥ बछ बछ एटले बेबे करतो थको श्री माहावीरस्वामीनो नपवासनो तप। प्रथम गणधर जगवंत ॥
बछेण तवं। कुणमाणो पढम गणहरो जयवं॥ अक्षीणमहाणसी महालब्धी गणधरपद लक्ष्मीसहित इंद्रनूती आदे घणी लब्धीनवंत। गौतमस्वामी जयवंता व”॥॥ ___ अकीणमहाणसीन । सिरि गोश्रमसामि जय॥४॥ सोने वा गजे चोथो चक्रव तपना बले करी खेलोसही आदे |र्ति सनतकुमार नामे। लब्धीयो पांम्यो॥
उज सणंकुमारो। तवबल खेलाइ लघि संपन्नो॥ आपणु जे थूक तेणे करी खरमी सोना सरिखी दीप्ती प्रकासतो बांगुली तेथी।
हूवो ॥५॥ | निछुन खवलि अंगुलि। सुवन्न कंति पयासंतो ॥५॥ गाय ब्राह्मण पेटर्नु बालक ग ब्राह्मणी ए चारने मारीने मोहोर्दै नवती।
पापकर्म ॥ गो बन गप्न गतिणि। बनणि घायाश् गुरुअपावाइं॥ करीने पिण सोनानी परेज । तप तपवे करी सुधथयो हेवो दृढप्रहारी || काकण वि कणयंपिव। तवेण सुघो दढ पहारी ॥६॥
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२०० पाबलने जन्मे आकरो तप। तप्यो वा करयो तेथी जे नंदीषण
नांमे मोहोटा रिषी ते ॥ पुव्वनवे तिव्व तवो। तविनजं नंदिसेण महरिसिणा॥ वसुदेवजी श्रीकृमनो पि थयो विद्याधरी हजारो गमेनो॥७॥ ता ते कारणथी प्रीतम।
वसुदेवो तेण पिन। जान खयरी सहस्साणं ॥७॥ देवता जे ते पिण चाकर करे केर्नु नत्तम कुल ते पीतानुं जाती वा दासपणुं। ते मातानी तेथी रहितनुं पीण ॥
देवावि किंकरतं। कुएंति कुल जाइ विरहिआणंपि॥ तपस्यारूप जे मंत्र तेहना हरिकेसी चंमालकुले जन्म्या महामु महीमा थकी। नि थया तेमनुं ॥॥
तव मंत पनावेणं। हरिकेसबलस्स वरिसिस्स ॥॥ ॥ वस्त्र सहीकमोगमे एकवस्त्रेकरी। एकज घमाइ करी घमा हजारोगमे
पमसय मेग पमेणं। एगेण घमेण घम सहस्साई॥ जे निश्चे करे मुनियो ते। तपरूपी कल्पवृक्षनुं तेमने निश्चे
फल जाणवू ॥॥ जं किर कुणति मुणियो। तव कप्पतरुस्सतं कू फलं ए नीआंणे करी रहित करयो तप जे तेने तप करनारनी सुं प्रसं वीधीइं एहवो ॥ सा प्रते हूं ॥
अनिश्राणस्स विहीए। तवस्स तवियस्स किं पसंसामो॥ करूं जेणे तपे करी समस्त निकाचीत पिण वा निश्चे कर्मने नास कस्यां।
॥१०॥ किऊ जेण विणासो। निकाश्याणं पि कम्माणं ॥१॥ अती दुःखे कराय हेवा तप जगतगुरु श्री नेमिनाथ प्रते कृमे
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१७१ नो कारक।
पूच्याथी ते प्रनूए ते प्रस्तावे॥ __अश्दुकर तव कारी। जगगुरुणा कह पुछिएप तया॥ कह्यो ते मोहोटा यात्मानो समरु चितमां श्री नेमिनाथजीनो धरणी।
शीष्य ढंढणकुमार मुनि प्रते ॥११॥ वाहरिन स महप्पा। समरिऊन ढंढण कुमारो॥१२॥ प्रतिदिवसे सातजण प्रते वध करीने वा मारीने लीधी श्री वी तेमां ब पुरुष एक नारी। रजिन पासे दीक्षा ॥
पदिवसं सत्तजणे। वहिकणं गहिय वीरजिण दिखा॥ दुक्कर अनिग्रहमां निरतो वा अर्जुनमाली मुनि सिद्धीपद पांम्यो समस्त रक्त एहवो। ॥१॥
दुग्गा निग्गह निरन। अङ्गुणन मालिन सिघो॥१२॥ नंदीसरनांमे आठमो द्वीप तथा मेरूपर्वतना सिखरने विषे एक तथा रुचकनांमे तेरमो द्वी फाले करी ॥ प तेने विषे निश्चे।
नंदीसर रुअगेसु वि।सुरगिरि सिहरेसु एग फालाए। जंघाचारण विद्याचारण जाय तपना प्रजावे करीने श्री जिनपमि मुनियो लब्धीवंत। मा वंदनार्थे ए अधीकार नगवतीसूत्रे
२०मा सतकना एमा नदेसामा ।१३। जंघाचारण मुणियो। गचंति तव प्पनावेण ॥ १३ ॥ मगधदेशनोराजा जे श्रेणीक वरणव्यु वा वरखाप्युं स्वमुखे श्री तेना आगल जेहन। माहावीरस्वामीइं तपनु रूप॥
सेणिय पुर जेसिं। पसंसिगं सामिणा तवोरूवं॥ ते श्री धनाजी सालिनद्रना ब ते बेहूं पिण पांचमे अनुत्तरे पो | नेवी तथा धनाकाकंदीमुनिनुं। होता ॥१॥
ते धन्ना धन्नमणि। दुन्नवि पंचुत्तरे पत्ता ॥१४॥
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तव सुंदरि
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सांजलीने तप सुंदरीनां मे श्री रूपनदेवनी | सुणिक साठ वर्षपद हजारपदसहि त एटले सातहजार वर्ष सुधी सध्विास सहस्सा | बीलनो तप जं
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जे कीधो बुने पालनवे ।
बार वरष सुधी सिवकुमार तेोनवे मुनिपणे ॥
ते देखी श्री जंबुस्वामी ना रूप प्रते ।
जं विहित्र मंबिल तवं । बारस वरिसाई सिवकुमारेण ॥ विस्मय पांम्यो हियामां कुरणीक नांमे राजा ॥ १६ ॥ विम्हन कोणि राया ॥ १६ ॥
तपवंत साधु ।
१७२
पुत्री जे तेनो यांबिलतप निरंतर वा श्रांतरा रहित ॥
कुंमरीए अंबिलाणि प्रणवरयं ॥ कहो केहनुं न कंपे वा न धुजे हैयुं धुजेज ॥१५॥
नए कस्स नकंपए हिययं ॥ १५ ॥
तं दहु जंबुरूवं । जिनकल्पी मुनि परिहारविसुधी
सांजलीने तपनुं सरूप वा
कथानक ।
सोकण तव सरूवं । मासखमा पासखमा एटले महीनाना नृपवास पन्नरदिन
ना उपवास करनारो ।
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मास मास खवनं ते जयवंतो वरतो रणमां वसणहारो ।
जिणकप्पिय परिहारि
प्रतिमा अंगीकारवंत साधु यथा नंदी तपवंत साधुनुं ॥ । पमिमा पमिवन्न लंदयाई॥ कोण बीजो धारण करे तप करवा नो गर्व ॥ १७ ॥ को अन्नो वहन तव गव्वं ॥ १७ ॥ बलभद्र मुनि कमवासुदेवनो नाइ रूपवंत पिण निश्वे वीरम्यो ॥
बलनद्दो रूववंपि हु विरतो ॥ प्रतीबोध करतो स्वापद जे वनचर सिंह मृगादी हजारोने ॥ १८ ॥
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२७३ सो जय रन्नवासी। पमिबोहित्र सावय सहस्सो॥२॥ थरहरी वा कंपी प्रथवी जलहल्या समुद्र हाल्या समस्त कुलगि वा हालकल्लोल थया।
री हीमवंतादी॥ थरहरिअधरं कलहलिय।सायरं चलिय सयल कुलसेलं जे करतो हुन जयवंतो वर संघनु कष्ट निवारण अर्थे कस्युं लाख तो श्री विमुकुमार मुनिस्वर। जोजननुं रूप ते तप, फल जणवू १५ | जमकासि जयं विरह। संघकए तं तवस्स फलं ॥२॥ शुं घणु वा बहूधा केहेबाथी जे कोइने पिण किहांइ कांई सुख वा जणवाथी।
प्रते॥ __किं बहुणा नणिएणं । जंकस्सवि कहवि कबवि सुहाई॥ दिसे जुवन वा लोक ते तिहां तप तेज कारण निश्चे एटले सम मध्ये।
स्त सुरखनु मुख्य हेतु तप तेज ॥२०॥ दीसंति नवणमझे। तब तवो कारणं चेव ॥३॥
इति तपसमुदाय संपूर्ण ॥ इति तपकुलक समाप्तं ॥
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हवे ते तपमां नाव मले तो निजराहेतु तप थाय माटे लगतुज
नावकुलक लखीएबीए ॥
अथ नावकुलक लिख्यते॥ कमग्नांमे अज्ञान तप करीब बीहांमणु प्रलयकाल वा कल्पांत सुरदेव थयो तेथी कमठ असुर कालना सरी मेघन पांणी तेमां देव तेणे पुरववैरे रच्युं । बोलवा माटे॥
कमगसुरेण रश्यमि। नीसणे पलय तुल्न जल बोले॥
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२७४ तोहेपीण काय जीवन हित परण्यो एहवो जयवंतो वरतो श्री चिंतवता नावथी केवलज्ञा पार्श्वजिन त्रेवीसमो तीर्थकर ॥१॥ नादि गुणलक्ष्मी।
नावेण केवल लछि। विवाहित जयन पासजिणो॥२॥ चुना वीनान तंबोल सोना पास विना वा खटव्या वीना वस्त्रा न पांमे रंग न आपे। दीके न थाय जिम रंग ॥
निचुन्नो तंबोलो। पासेण विणा नहोइ जह रंगो॥ तिम दांन शील तप नावना ए चा निफल जांणवा अंतःकरण रेपीण।
- शुधनाव विना इति तत्वं ५ तह दाण सील तव नावणाअहला नाव विणा॥॥ मणीरत्न मंत्र ओषधी वा यंत्र तंत्र तथा देवतानी नपास जमीबुट्टी।
ना पिण वा निश्चे ॥ मणि मंत सहीणं। जंतय तंताण देवयाणं पि॥ एटलांवानां नाव विना सि नहीं निश्चे कोइने देखाय वा श्रा द्धपणाने।
पे लोकमां ॥३॥ | नावेण विणा सिघी। न ह कस्स दीसई लोए॥३॥ नली नावनाने वसे करीने। प्रसन्नचंदराजरूषी बेघमी मात्रे करी॥
सुह नावणा वसेणं। पसन्नचंदो मुहुत्त मित्तेण॥ खपावीने कर्म जे घनघाती पांम्यो केवलज्ञान ते नावे करी रूप गांठ प्रते।
ने माटे नाव तेज मुख्य ॥४॥ खविकण कम्म गंगि। संपत्तो केवलं नाणं ॥४॥ श्रुश्रूषंति वा सेवना कर आपणी गुरुपी चंदनबालाने में निं ता चरणे वा पगे। द्या करती पोताना दुपण प्रते॥
सुस्सूसंती पाए। गुरुणीणं गरहिकण निय दोसे॥
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उपन्युं वा थयुं सर्वोपरी ज्ञान केवलज्ञान इत्यर्थः ।
नप्पन्न दिव्वनाणा |
जगवंत वा पूज्य इलाची पुत्र मुनि ।
जयवं इलाइ पुत्तो ।
१७५
एहवी मृगावती साधवी जयवंती वर्तों शुद्धनवे करीने ॥५॥ मिगावई जयनं सुह जावा ॥ ५॥ मोहोटा वांस नृपर जे समस्त नीमोहे चमचो ॥
तिहां रहे देखीने मुनिराज कोइ | ग्रहस्थना घरमां गौचरिए गएला दहू मुणि वरिंदे |
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कपिलनांमे ब्राह्मण ते मुनि ।
गुरुए वंसंमि जो समारूढो ॥ तेथी श्राव्य शुद्धभाव तेथी केवल ज्ञानी थयो ॥ ६ ॥
सुहनावा केवली जान ॥ ६ ॥ अशोकवनीका नांमे वामीमांही आपणा मनथी जे ॥ सोगवणिया मशयारंमि ॥ ध्यातो थको थयो जातीसम रणवंत अनुक्रमे केवली थयो
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जायंतो जाय जाइसरो ॥७॥ वासीनुदन वा करंबादीक जक्त वा आहार जे ते शुद्धनावथी ॥ वासिय नतेण सुध नावे ॥ पांम्यो श्री कूरगमूनामा मुनि ॥ ८ ॥ संपत्तो कूरगड्डु ॥ ८ ॥ ज्ञाननी श्राशातना वा अवज्ञा ना प्रजावे दुर्मेध वा मूर्ख ॥
| पालना नवमां आचार्यपद हूते पण कधी ।
पुव्वनव सूरि वि रई । नाणा सायण पभाव दुम्मेहो॥
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कविलो बंनण मुणी जहा लाहो तहा लोहो लाहालोहो पवई दोमासा काय कजं कोमी एन नीवइ १ ए गाथानो अर्थ । लाहा लोहति पयं । तपसी मासखमणादीक सा धुने निमंत्रणा पूर्वक । खवग निमंतण पुव्वं खातो थको केवलज्ञान प्रते । झुंजतो वरनाणं ।
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१७६ आपणुं नांम ध्यातो थको। मासतुस मुनि केवलज्ञानी थयो ॥णा
नियनाम कायंतो। मासतुसो केवली जान॥ ए॥ हाथी नपर चमी श्रावती रूद्वी देखीने कोनी श्री रूपनदेव हवी ते।
स्वामीना अतिसयादिकनी॥ हबिंमि समारूढा। रिविं दखूण नसन सामिस्स॥ तेज वखते शुध ध्यान ध्या मरुदेवी स्वामीनी श्रीआदिनाथनी ती थकी।
माता सिद्धी पांमी ॥१०॥ तकण सुहकाणेणं। मरुदेवी सामिपी सिधा ॥२॥ प्रती जागरण वा वेयाव झंघानुं बल हीण थएनु एहवा श्रीथ च करती थकी। नीकापुत्र आचार्य नपरे नक्तिवंतने।
पमिजागरमांणीए। जंघा बल खीण मन्निापुत्तं ॥ संप्राप्त वा पांमी केवल नमो नमो श्री पुष्पचूला नांमे केव ज्ञान प्रते हेवी।
ली साधवी प्रते ॥११॥ संपत्त केवलाए। नमो नमो पुप्फचूलाए ॥२२॥ कोमीनदिन्न सेवालादी पन्नर गौतमस्वामीइं दिधी दिक्षा प्रते॥ से तापस अष्टापदे रहेलाने।
पनरसय तावसाणं। गोमनामेण दिन्न दिखाणं ॥ तेमने नपन्युं केवलज्ञान शुद्धनावे करी तेथी नमुटुं ते केवली शाथी ते केहेजे।
जगवंतोने ॥१२॥ नप्पन्न केवलाणं। सुह नावाणं नमो ताणं ॥१॥ जीव जे तेने सरीर जे देह नेद जे जुदापणु जांणीने समा ते थकी।
धीपणाने पांम्या हेवाने ॥ जीवस्स सरीराम नेअंना समाहि पत्ताणं। घाणीमां पीलतां प्राणंत कष्ट खंधकसूरिना शिष्य तेमने नमस्का
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२७७ मांनुपजाव्युं केवलज्ञान हेवा। र हो ॥१३॥
नप्पामिय नाणाणं। खंदग सीसाण तेसि नमो॥१३॥ श्री वर्धमान प्रनुना चरण पूजवानी वांडा सहित श्रावती कमल प्रते।
हूई नगोमना फूले करी॥ सिरि वघमाण पाए। पूबी सिंदुवार कुसुमहिं ।। नत्तम नावे करीने देवलोके। दुर्गतानांमे स्त्री सुखने पांमी॥१४॥
नावेणं सुरलोए। दुग्गश्नारी सुहं पत्ता ॥१४॥ नावे सहित जुवनस्वामी वांदवाने मेमको पिण वाव्य श्री महावीरने।
थी नीकली चाल्यो । नावेण लवणना। वंदेचं दद्दरोवि संचलि|| जतां श्रेणीकना घोमाने प पोतानेज नांमे बोलखायो तेवो द गे मरण पांमीने विचमां। दुरनामे देव थयो सुधर्मे ॥१५॥
मरिकण अंतराले। निय नामंको सुरो जान॥१५॥ एक नाइए साधुव्रत लीधुं बीजे पांणीना पुरे करी नरेली एहवी नाइए राज लीधुंएक नदरना। नदीए ॥ | विरया विरय सहोअर नदगस्स नरेण नरिअसरिया पोताना स्वामीइं तथा मुनिइं तिवारे दीधो नदीए मारग [ए॥ कहे हूते श्रावीकाने ॥६॥ ते नावना वशथी ॥१६॥
नणिप्राश् साविआए। दिन्नो मग्गुत्ति नाववसा॥२६॥ श्री चंद्ररुद्रनामे बाचार्य गुरूइं।मास्यो थको पीण मनाप्रहारे करी
सिरि चमरुद्द गुरुणा। तामिऊंतोवि दंम घाएहिं॥ तेज अवसरे तेमनो नवदी शुध लेशाइं ते केवलज्ञांनी थयो क्षित साधू शीष्य। ॥१७॥
तकालं तस्सीसो। सुहलेसो केवली जा ॥२॥
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१७८
जे नही निश्वे नएयो वा क जीवने वधे वा हये पीण समती
ह्यो कर्मनो बंध |
गुप्तीवंतने ॥ जीवस्स वहेवि समिइ गुत्ताणं ॥ पिe नथी प्रमाण नाव वीना एक लो कायव्यापार ॥ १८॥
नावो तपमाणं ।
| जाव तेज निश्वे परमार्थ वा उत्कृष्टो अर्थ ।
न पमाणं काय वावारो ॥ १८ ॥ नाव तेज यात्मधर्मनो साधक वा सखाइ को बे ॥
नाव चि परमो । नावो धम्मस्स साहन ननि ॥
समकितनुं पीए बीजनूत ।
जं नहु भनि बंघो
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ते नाव तीहां प्रमाण बे ।
सम्मत्तस्स वि बी ते माटे शुं धणुं केहेवे करी
ने ।
एकलो नावज निश्चे कहेबे जगतगुरु तीर्थंकर गणधरादी ॥ १८॥
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नाव च्चि बिंति जगगुरुणो ११ एक तत्वनी वात सांगलो हे महा सत्व प्राणीगण |
किं बहुणा मणिए ।
तत्तं निसुणेह जो महा सत्ता ॥ | मोक्षसुखना बीजरूप वा नूत । जीवोने सुखनो धरणहारो नावजढे २० मुरक सुह बीय नून |
जीवाण सुहावहो जावो ॥ २० ॥
ए रीते दांन सील तप जावना प्रते ।
जे करे शक्ती नक्किइं तत्पर हुतो नर पुरुष ते ॥
इय दाण सील तव नावानं । जो कुइ सत्ति नत्ति परो | देवताना इंद्रना समुह तेणे पूज्य अचीरात् वा थोमाकालमां ते एहवो वा ए चार कुलक करताए पांमे मोक्षना सुख प्रते ॥ २१ ॥ यापनांम सोचव्युं देवेंद्रसूरि एहवं ।
देविंद विंद महि | अइरा सो लहइ सिधि सुहं११
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२७ए ए प्रकारे नाव कुलक टवार्थ संपूर्ण ॥
इति नावकुलक समाप्तं ॥
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हवे नपदेसरूप रत्ननखानो नंमार ते समान कुलक लखीइंबीए॥
अथ उपदेशरत्न कोश लिख्यते॥ नपदेसरूप रत्ननो नंमार । नाश पमाभ्यां ने समस्त लोकनां
. दारीद्र जेणे। नवएस रयण कोसं। नासिब नीसेस लोग दोगच्चं॥ उपदेसरूप रत्ननी माला ने कहुं वांदी नमीने वर्तमान शास वा श्रेणी के जेहमां एहएं। नपती श्री वीरजिन प्रते॥१॥ । नवएस रयण मालं। वर्ल नमिकण वीरजिणं ॥२॥ जीवदयाने विषे रमण क इंद्रीयोना समुह जे श्रोतादीने दम | रीइं चालीइं सदा। वी वश राखवी सदाय पण ॥
जीवदयाई रमिऊ। इंदिय वग्गो दमिऊ सयावि॥ सत्य मीतुं मव्युं वचन नीश्वे बो धर्मनु सार वा तत्व एगीपरे नी लीइं अवसर नचीत। श्चे॥२॥
सच्चं चेव चविऊ। धम्मस्स रहस्स मिणमेव॥२॥ ब्रह्मचर्य वा शुध आचार न न संवास वसीजे माता याचारी नीचे नागीजीई। साथे ॥
सील नहु खंमिऊ। नसं वसिऊइ समं कुसीलेहिं॥ जला गुरुनु हीतवचन न नलं श्री जिनेश्वरना मुनिधर्मनो एज
नत्कृष्टो अर्थ ॥३॥ गुरुवयणं नखलिऊ। जश्न ऊर धम्म परमडो॥३॥
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घीइं।
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२७०
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चपल वा अजतनाइं न चा कुलधर्म मर्याद नपरांत न नदन|| लीइं पंथे जोइ चालवू ट वेस धरीइं॥
चवलं न चंकमिऊ। विरऊ नेव ननमो वेसो॥ वांकी दृष्टीई न जोईइंस रीसाणा पण बोले शुं चामीया नर मदृष्टीथी जोवु । तेवा पुरुषने ॥३॥
वंकं न पलोश्ऊ। रुम वि नणंति किं पिसुणा ॥४॥ वश करीइं आपणी जीन वा विणा विचारधुं नहीज करीइं को रसना इंद्रीने।
इ कार्य प्रते॥ निअमिऊश् नीअजीह। अविभारिअनेव किऊए कऊं न आपणो नलो जे कुला तो ते नर प्रते माठो कोपेलो शं करे चार तेने लोपीइं॥ पांचमोआरो वा कलीकाल ॥५॥
न कुलकमोश्रलुप्प। कुविन किं कुण कलिकालो॥५॥ कोइने मर्मवचन न बोलीजे कोइने पण कुमुकलंक न दीजीई दुखहेतु।
कोइ काले। ___ मम्मं नन नविऊ। कस्सवि भालं नदिइ कया। कोइने पण न आक्रोस दु ए संत स्वजननो मारग एम दुर्ल रवचन बोलीइं॥ न जाणवो ॥६॥ __ कोवि न नक्कोसिऊ। सऊण मग्गो श्मो दुग्गो॥६॥ सर्वने वा सर्व प्रकारे नप न विसार्वो परजने नपगार करयो ते गार करवो।
प्रते॥ सव्वस्स न्वयरि ऊर। न पम्हसिक परस्स व्वयारो॥ दुखीत दीनप्रते यथाशक्ती नपदेस हीतवचन एज जांण मा आधार दीजीइं।
ह्या पुरुषोनो ॥७॥ विहलं अवलंबिऊ। ग्वएसो एस विन्साणं ॥७॥
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२१ कोइने पण न प्रार्थना की कोइइं कांई पण प्रार्थना करी होय जीइं।
तो न जंग करीइं॥ कोविन अनबिऊ। किऊ कस्सवि न पत्रणा नंगो॥ दीन दयामणु वचन न बो जीवीजीइं जीहां सुधी या जीवलो लीजीइं।
कमां तीहां सुधी ॥७॥ दीणं नय जंपिऊ। जीविऊ जाव जिअलोए। आपणी न करीये प्रसंसा गु नंदीजे दुर्जनने पीण निश्चे न कोइ प्रवर्णव ।
काले पण ॥ अप्पा न पसंसिऊ३ । निंदिऊश् दुऊणोवि न कयावि॥ घणु घणु न हसीइं दुखनु मूल पामीजीइं मोटाइपणु तेम चा हासमोहनी ।
लतां ॥॥ ___ बहु बहुसो न हसिऊ। लन गुरुअत्तणं तेण।॥ वैरीनो न विश्वास वा जरूंसो कोइकाले पण ठगीइं नहीं विस करीइं।
वास राखे तेने ॥ रिनणो न वीससिऊ। कयावि वंचिजए न वीसबो॥ न करयागुणना लोपक थईइं। एप्रकारे न्यायमार्गनी रचना जा
एवी ॥१०॥ न कयग्घहिं हविऊ। एसो नायस्स नीसंदो॥१॥ राजी थईई नला गुण वा बांधीइं राग नही साचा सनेह नला गुणीने देखीने। रहीत नर साथे॥ __ रच्चिऊ सुगुणेसु। बस रागन नेह बनेसु॥ करीइं पात्रनी परीक्षा। दक्ष माह्याने एमज कसवटी हीम
परीक्षा पाषाण तुल्य डे ॥११॥ किऊ पत्त परिरका । दरकाण श्मोत्र कसवहो॥११॥
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२७३ न अकार्यने आदरीइं वा अं आपणो यात्मा पामीजे नही नंद गीकरीइं।
नीक वचनमां ॥ ना कऊ मायरिङ। अप्पा पामिजए न वयणिडो॥ न साहासीक प्रते तजीइं वा नना राखीइं ते गुणे जगतमां हाथ बोमाई कष्ट आवे तोपण। ॥१२॥
नय साहसं चश्ऊ। ननिऊ तेण जग हबो॥१॥ कष्ट आवे पीण न मुझाईइं। न मुकीजे आदरया मारगनु मा
___ न नाम मरणांते पण॥ . वसणे वि न मुनिऊ। मुच्चश्माणो न नाम मरणे वि॥ लक्ष्मीनो क्षय वा नाश थई वृत तरवारनी धार समान होय पीण दांन दीजे योग्य। निश्चे धीर पुरषने ॥१३॥
विहव कएवि दिऊ। वय मसिधारं षु धीराणं॥१३॥ घणो स्नेह न धरीजीइं वा रीसावु नही सनेही नपर पीण नी|| वहीइं कोइथी।
रंतर ॥ अश् नेहो न वहिऊ। रूसिऊ नय पिएवि पयदिह। वधारीजे नहीं कलह वा व जलांजली आपीई दुःखने इंम दुः ढवाम कोइथी। खमार्ग तजीइं॥१४॥
वहारिऊर न कली। जलंजली दिऊर दुहाणं ॥१४॥ न माठा साथे वसीइं मा बालकथी पिण ग्रहण करीई आपणा|| तो संघ न कीजे। हीतनु वचन॥
न कुसंगेण वसिऊ। बालस्स वि घिप्पए हिअं वयणं॥ अन्याय मार्गथी नीवृतीजे न थाय मातु बोल कोइने आप वा पाला भोसरीजे। ए॒ ए रिते ॥१५॥
अनयान निवहिऊ। नहोइ वयणिऊया एवं ॥१॥
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२७३
वइनव लक्ष्मीए नीचे न थ न खेद करीइं निर्धनपणामां पिण॥|| |हंकार वा माचवु करीइं।
विहवेवि न मच्चिऊ। न विसीऊ असंपयाए वि॥ प्रव्रतीजे शत्रु मीत्रइं सुख दुखे नहोय सारे माते योगे तो आपण समनावे राग द्वेष रहीतपणे। ने संताप ॥१६॥
वहिजार समनावे। नहोइ रण रण संतावो॥१६॥ वरणवीजे सेवकना गुण ते पाबल न कहीए दीकराना गुण न हने समक्ष।
प्रतक्ष पाउल कहीए॥ वन्निऊ निच्चगुणो। न परुखं नय सुअस्स पच्चखं॥ स्त्री नारीनातो न प्रतक्ष न न नाश पांमे जेणे करी थापणु पाउल गुण कहीए। मोहोटापणु ॥१॥
महिलान नो नयाविहु। न नस्सए जेण माहप्पं॥१॥ बोलीए हीतकारी वचन। करीए वीनय देइए दांन ॥
जंपिऊ पित्र वयणं । किऊ विण दिए दाएं। कोइमां गुण जांणीए तो ते ए अमूल मंत्र सर्वने वश वा बाय गुण ग्रहण करीए। त करवानो डे ॥१॥
परगुण गहणं किऊ। अमूल मंतं वसीकरणं ॥१॥ प्रस्ताव वा नचीत अ सनमांन दीजे दुर्जन नीस्नेही नरने वसर आवे बोलतुं । पिण घणामां॥
पहावे जंपिऊ। सम्माणिऊ खलोवि बहुमशे॥ न तजीए नीजनु परनु विशे समस्त अर्थ तेम चाले तेना सिद्ध षपणु।
थाय ॥१॥ नऊ स पर विसेसो। सयलबा तस्स सिशंति॥॥
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मंत्र तंत्र विद्या न जोइस ।
१८४
जइस नही परना घरमा एकलो बी जादीक वीना ॥ गम्मइ नइ परग्गहे अबीएहिं ॥
ननु कुलीप तेहने होय ए रीते
॥२०॥
मंतंताण न पासे ।
आपणी पादरी प्रतीज्ञा वा वृत पालीए । पमिवन्नं पालिका ।
मीत्रने घेर जमीए मीत्र ने जमामीए ।
सुकुलीत्तं हवइ एवं ॥२०॥ पुढीए मनमां वीचार नपजे ते पुढे तेहने कहीए श्राप ॥ मुंजइ मुंजाविकइ । पुचिक मणोगयं कहिऊ सयं ॥ सार वस्तु मीत्रने दीजे मीत्र जो वांबीए जीवारे नीश्वल स्नेह श्रापे ते लीजीए जोग वस्तु । मीत्रथी तो ॥ २१ ॥ दिकइ लिऊइ नचियं । इचिकर ज थिरं पिम्मं ॥ ११२ ॥ कोइने पिए न अपमान दी न गर्व करीए दांनादीक बते गुणे जीए । पोताने ॥
कोवि न श्रवमन्निजइ । नय गव्विक गुणेहिं नि एहि न वीस्मय वा यचरीज चीतमां घणां रत्ने करी जे माटे ए प्र लावीए जगमां कांड अचरीज नथी । थवी जरी बे ॥ २२ ॥
नय विम्हन वहिज्जइ । बहु रयणा जेणिमा पुहवी ॥ २२॥ प्रारंभ वा प्रथम कार्य हल करीए काम मोहोटु पए पढेथी | वो वा थोमो कीजे । आरंभिज्जइ लहु ।
न आपण नत्कृष्टपणु ते की
जीए ।
नय नक्करिसो किज्जइ ।
किज्जइ कज्ज महंत मवि पच्चा ॥ पांमीए मोहोटाइप जेणे करीने
॥२३॥
लन गुरुत्तणं जेए ॥ २३ ॥
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२न्य ध्याइजीए श्री परमात्मा थापणा समांन गणीए बीजा जी वीतराग देव प्रते। वोने॥
काज परमप्पा। अप्पसमाणो गणिज्ज परो॥ करीए नही राग द्वेष कोइने बेदीजे इंम चालतां संसारनां दुःख कीवारे।
प्रते॥२॥ किज न राग दोसो। गिनिज तेण संसारो ॥४॥ ए रीते जला नपदेशरूप र जे प्रांणी ए रीते थापे जली बाप ननी माला।
णे रदये वा कंठे ॥ उवएस रयण मालं। जो एवं व्व सुछु नि कं॥ ते प्रांणीने नीरूपद्रव जे मोक्षनां वक्षस्थले भावी रमे पोतानी इ सुखनी लक्ष्मी।
छाए ॥२५॥ सो नर सिव सुह लही। वलयले रम सहाई॥श्या
ए रीते थयो उपदेशरत्ननो नंमार संपुर्ण ॥ इति नपदेसरत्न कोस समाप्तं ॥
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अथ शास्वता जिननामादी संख्या स्तवन॥ प्रथम शास्वताजिन चारनामे श्री चंद्रानन३ श्री वारिषेणध सां ते केहे ज्ञान अतिशय लक्ष्मी मान्य केवलीरूप तारागणमां चं वंत रूषनाननर श्रीवर्धमान। द्रमा समान ते प्रते॥ | सिरिन्सहरवघमाणं। चंदाणण३वारिसेणजिणचंदं नमीने शास्वता जिन नवन वा संख्या वा गणतिनु समस्त व प्रासादनी।
रणव करूंढुं हुं ॥१॥ नमिसासय जिण नवण। संख परिकित्तणं काह॥२॥ जोतिषीदेव व्यंतरदेवने वी सातकोम बहोतेरलाख नूयनपतिदेवता
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२०६ पे असंख्यात जिन नूवन । ने वीषे जिनघरले ७७२००० देहरां॥
जोवणेसु असंखा। सग कोमि बिसयरि लक नवणेसु चोरासीलाख सत्ताएं। हजार त्रेवीस नर्बलोके जिनप्रासा
द ४७०२३ देहरां ॥॥ चुलसी लका सगनव। सहस तेवीसु वरि लोए ॥२॥ हवे चार बारणानां देहरां गणा चार चार जिन नूवन कुंमलद्वीप वे बावनप्रासाद नंदीश्वर या रूचकद्धीपनां एटले बेबीपनां म ठमा दीपनां।
ली थात जिनघर ॥ बावन्नाथश्नंदीसर वरंमि। चन४ चन, कुंमले रूअगे॥ एत्रण स्थानकनांमली सात त्रणदारनां बाकी रह्यां ते सर्व जि जिन नूवन चारद्वारनां । ननूवन ॥३॥
अ सही चम्बारा। तिदुवारा सेस जिण नवणा॥३॥ प्रत्येकद्वारे एटले बारणा मुखमंगप रंगमंझप तीवार पड़े। बारणाने वीषे।
पत्तेअं बारेसु। मुहमम्व रंगमंमवे तत्तो॥ मणीमय पीठ वा चोतरो थूज ते पर चारे दिसिने वीषे चार तेह मणीपीठना नपर। पमिमा वा जिनबींब ॥४॥
मणिमय पीढं तदुवरि। यूने चनदिसिसु चन पमिमा तीवार पुते मणीपीउनु यु तीवार पुंठे अशोकवृक्ष तीवार पडे धर्म गल वा जोम। द्वज तीवार पढे पुरवखरणी वा वाव्य ले।
तत्तोमणीपीढ जुगे। असोग धम्मस पुखरणी॥ नूवन नूवन प्रते प्रतीमा मू मध्ये एकसो आठ १० प्रती ल गनारा।
दीसीए सतावीस ॥५॥ पर जवणं पमिमाएं। मझे अछुत्तर सयंच॥५॥
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२०० हवे ते शास्वती प्रतीमा के पांचवें धनुषनी डे लघु वा नाहांनी|| वमी तेहनु मान कहे प्र सात हाथनी ॥ तीमा वली मोहोटी।
पमिमा पुण गुरुआना पण धणुसय लहुअसतहबाना ते कीहां बे मणीमय पीठीका सिंहासन पर बेठी एहवी नपर देवबंदामां।
जे ॥६॥ मणिपीढे देवछंदयंमि। सीहासणनिसन्ना ॥६॥ ते जिनप्रतीमाने पुंठे एक प्रतीमा जिनेश्वरने सहामी बे प्रती|| बत्रधर।
मा चांमर धारक । जिणपिठे उत्तधराशपमिमा जिण निमुह दुन्निश्चमरधरा नागदेव नूतदेव जक्षदेवनी कुंमधारी श्राज्ञाधारी जिनेश्वरना सन प्रतीमा।
मुख बेबे प्रतीमा जे एम एक एक जि नप्रतीमा प्रते अगीबार अगीयार प्र||
तीमा उत्रधर आदेनी डे ॥७॥ नागाश्नूआश्जका।कुंमधराश् जिणमुहा दोदो॥७॥ हवे ते जिनप्रतीमानां अंगो पगनी हाथनी वालनी जूमी जीन|| पंगादीकनी वर्णसोना केहेडे तालq एटलां रातेवणे ॥
श्री वच्छ नानि चुंचुक। | सिरिवछ नानि चुच्चुत्रापयकर केसमहि जीह तालुरुणा अंकरत्नसमान नख तथा यां अंते नेहमे रातेवणे बे तीमज ना ख जाणवी।
सीका ॥6॥ __ अंकमया नह अही। अंतो रत्ता तहा नासा ॥७॥ थांखिनी कीकी तथा यांखिनी दल जे पापण तथा अमुह जे नांप रोमराइ वा रोमश्रेणी। ण तथा सर्व केश एटलां श्यामरत्नमइ ॥ तारा रोमरा। अहि दला नमुहि केस रिष्मया।
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स्फटिकमय एटले जसवर्णमय मस्तक डे परवालाना वर्णस दंत जाणवा हवे वजमय। मान होठ ॥
फलिह मय दसण वयरमय। सीस विहूममया नजराणा सोनावर्णमय ढींचण तथा शरीरयष्टी नासिका कांन नाल वा|| झंघा ।
कपाल साथल ते सर्वे सोनावर्णिबे॥ कणगमय जाणु जंघा।तणुजी नास सवण नालोरू॥ ते प्रतीमा पल्यंकासने वा एणे प्रकारे ते शास्वती चार नांमनी पद्मासने बेठी । प्रतीमानु वर्ण हुए ॥१०॥ .
पलीयंक निसन्नाणं। इन पमिमाणं नवे वन्नो॥१॥ नवनपतीदेव व्यंतरदेव क पांच सना तेहनां नाम केहेलेन ल्प जे अचूत सुधी देव जो त्पात सना अनिषेक सनाश तीम |तिषी देव तेहमां। ज अलंकार सना३॥
नवणवण कप्पजोश्साग्ववायनिसेअरतह अलंकारा व्यवसाय सनाधसुधर्मसनाए।मुखमंझप आदे बए करी सहीतले ११
ववसायसुहम्मसनाए।मुहमंव माश् बक्कजुआ।१॥ हवे एक एक जिननवने जिन तीवार पजे एकेके बारणे पांच पांच बींब संख्या केहेत्रणद्वारनां सना डे ए सना थुनना ६० जिन जे नवन ते प्रतेके त्रए चोमु बीब डे ते सहीत॥ खनी १२ जिनप्रतीमा ।
तिदुवारा पत्तेअं। तोपुण सन थून समिबिबेहिं॥ ते चैत्य मूलनी १००प्र नूवन नूवन प्रते जिनबींब वा जिनप्र तीमा साथे।
तीमा १०० एकसो एंसी डे ए नाव
१२ ॥ ६ ॥ १७ ॥१॥ चेअ बिंबहिं समं। पश्नवणं बिंब असीइ सय॥१॥
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हवे ते जिनघर वा जिननूवननु बोहोतेर अनुक्रमे दीर्घ वा लांबप प्रमाण वा माप केहेडे एकसो णे १०० जोजन पोहोलपणे ५० जोजन पचासजोजन वली। जोजन चपणे ७२ जोजन ॥
जोयण सयंच पन्ना। बिसयरि दहित्तं पिहल उच्चत्तं॥ वैमानीकनांनंदिस्वरद्वीपनां। कुंमलद्वीपनां रुचकद्वीपना एटला
जिननूवननु प्रमाण ॥१३॥ वेमाणिअनंदीसर५२।कुंमलधरुअगेधनवण माणं १३ हवे त्रीस नूवन ने हिमवंतादीक त्रीस कुलगिरी वा वर्षधर पर्वत a पर दश नूवन ले देवकुरु नत्तरकुरु क्षेत्रने वीषे।
तीस३० कुंमलगिरिसु दस१० कुरु। ||पांच मेरुपर्वतना वनोमां ० एंसी प्रासाद ने वीस प्रासाद गजदंताप __ मेरु वणि असी वीसश० गयदंते ॥ र्वत पर डे॥ वरख्वारा पर्वते एंसी प्रा चार चार प्रासाद इखुकार पर्वते तथा साद ।
मानुष्यो तर पर्वते ॥१॥.. | वकारेसु असीईन्च नचन-सुपार मणुष नगे१४ ए आदे असुरकुमारमांहिं रह्या जे प्रासाद तेनु ।
एआई असुर नवण आिई। पुर्वे जे प्रमाण प्रासाद लांबा पोहोला चानु ने तेथी अनुक्रमे थ धमांन एटले दीर्घ ५० प्रथुल २५ चपणे ३६ जोजन जाणवां ॥
पुव्वुत्त माण अचाई॥ तेहथी अर्धप्रमाण नागकुमारादीक तेथी व्यंतरमां नवन ले ते || नवनीकायने वीषे प्रासादनु प्रमाण र्धप्रमाण लांबांर पोहोला बेलां० २५पो१२०१ जोजन। ६ नंचाए जोजन ॥१५॥
दल मित्तो नागाई नवसु। वणेसुं न अधं ॥१५॥
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१० || दिग्गज पर्वतने वीषे ४० चालीस प्रासाद ले । __ दिग्गय गिरिसु चत्ताभ। द्रहे एंसी जिनप्रासाद ने कंचनगिरीने वीषे एकहजार जिनप्रासादले।
दहे असी कचणेसु गसहसो १०००॥ सितेर प्रासाद मोहोटी न एकसोने सितेर प्रासाद लांबा वैताढे दीयोने वीषे । ॥१६॥
सत्तरि७० महानईसु। सतरि सयंरण्दीह वेअद्वे॥१६॥ कुंमने वीषे त्रणसें एंसि जिनप्रासाद ले।
कुंमेसु तिसय असीआ३७०। वीसप्रासाद यमग पर्वतने वीषे ने पांचप्रासाद मेरूनी चूलीका नपरले
वीसंश्० जमगेसु पंच५ चूलासु॥ गीबारसे सितेर प्रासाद। जंबू प्रमुख दस वृक्षने वीषे ने १७
श्कारस सय सत्तरि११७०जंबू पमुहे दसतरूसु॥२७॥ वृत वैताढ पर्वत पर वीस २९५५ प्रासाद एक कोस लांबा ने प्रसाद एम दीग्गजादीक थर्धकोस पोहोला बे एटले २००० दस स्थानकना मली। नुष लांबा १०००धनुष पोहोला ने॥
वटवेअड्ढे वीसा। कोस तयच दीह विचारा॥ चन्दसेने चालीस धनुष। अधिक चपणे वे सघला ॥१॥
चन्दस धणुसय चालीस। अहिअनचत्तणे सव्वे॥१॥ थाठमे द्विपे विदिसीइं सोलमा साद ।
अम दीवि विदिसि सोलस । सुधर्मइंद्र ईसानइंद्र एबेनी १६ देवीनी सोल नगरीनने वीषे॥॥
सोहम्मी साणग्ग देवि नयरीसु ॥ १६॥
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एम बत्रीसे गणसात। सर्वसहीत प्रासाद त्रीच्डालोकमां १ || । एवं बत्तीससया गुणसहि। जुआ तिरिअलोए॥१०॥ एम पूर्वेकह्यां ते त्रण लोक जे आउकोमा सत्तावन्नलाख५७॥ नई यधोत्रीच्छे एत्रणलोकमां।। __एवं तिहुअणमने। अम कोमी सत्तवन्न लकाई॥ बसेंने ब्यासी २० एटले ते शास्वतां जिननवन प्रते वांदुनु ७५७००२८। ॥२०॥
दोअसया बासीया। सासय जिणनवण वंदामि॥३॥ हवे त्रलोकमां जिनप्रतीमा ले तेरसेंकोमएटले१३७५६०००००० ते प्रतेके केहेडे साठलाख नव्या जिनबिंब नूवनपतिमां ॥ सीकोम ने।
सही लरका गुणनवर कोमि। तेरकोमि सय बिंबनवणेसु त्रणसे वीस एकांणु। हजारपद एकाणुने जोमज्यो ने
त्रणलाख एटले ३५१३२०एटला
जिनबिंब त्रीच्छेलोके ॥१॥ तिसय वीसा गनव। सहस लक तिगं तिरिअंश हवे वैमानीकमां जिनबिंब नपर बावनकोम चोराणु लाखने॥ केहे एकसोकोम नीधे। __ एगं कोमि सय खलु। बावन्ना कोमि चनणवश्लका॥ चुंधालीस हजार सातसेंने। साठ वैमानीक वा न लोकमां जिन
बिंबडे एटले १५२ए४४४७६०॥२॥ चन चत्त सहस सगसय। सन वेमाणि बिंबाणि ॥३॥ हवेत्रणनूवननां बिंबनी संख्या बेहेतालीसकोम ने अहावनला समुदाये केहेडे पन्नरसेकोमने। ख ने ॥ .
पनरस कोमि सया। दुचत्त कोमि अमवन्न लकाइं॥
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बत्रीस हजार ने एंसी। त्रणनूवनमां जिनबिंबने हुं प्रणमुढे
एटले कुलर ५४२५७३६०७०॥२३॥ बत्तीससहस असीआ।तिहण बिंबाणि पणमामि २३ चक्रवर्तिपदवीरूप लक्ष्मीबंत न जे अनेरां इहां एटले अढीद्धी रतराजा आदे राजायो तेमने। पमां नीपजाव्यां ॥ ॥ सिरि नरह निवः पमुहेहिं । जाइं अन्नाइंश्च विहिआई। श्री देवेंद्र मुनिश्वरे स्तव्यां ने आपो नव्यजिवने सिद्धि सुख प्रते हेवा त्रीजग जिनबिंब ते। ॥४॥
देविंद मुणिंद थुप्राइंदितु नवीयाण सिधि सुह॥॥ नच्छेद अंगुलना मापे करी। अधोलोके नलोके सात हाथ॥
नस्सेह मंगुलेणं। अह नहमसेस सत्त रयणी ॥ त्रीच्लोके पांचसें धनुष एहवी। शास्वति प्रतीमा प्रणमुद्धं ॥२५॥ तिरिलोए पण धणु सय। सासय पमिमा पणिवयामिश्य इति शास्वता श्री जिननूवन तथा जिनबिंब स्तवन समाप्तः ॥ था प्रक्रणमां संज्ञामात्र देहरां प्रतीमा संख्या बे ते वीस्तारे
यंत्रथी जांणजो नली बुद्धीथी वंदना करज्यो॥
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नाम सं ख्या
॥ अथ त्रीलोक चैत बींब संख्या ॥ ॥अधोलोकमां जिननूवन बींब संख्या॥ वामनां नाम नूवन संख्या जिनींब संख्या असुरकुंमारमां॥ |६४००००० ११५२०००००० नागकुंमारमा ॥ ४००००० १५१२००००००
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२५३ सुवन्नकुमारमां॥ . | ७२ लाप |१२ए६०००००० विद्यूतकुंमारमा॥ ७६ साष । १३६७०००००० अग्निकुंमारमा ॥ ७६ लाष | १३६७०००००० द्विपकुंमारमां ॥ ७६ लाष । १३६७०००००० नदद्धिकुंमारमां॥ ७६ लाष ।१३६७०००००० दिगकुंमारमां ॥ ७६ लाष । १३६७०००००० वायुकुंमारमां ॥ ए६ लाष | १७२७००००००
स्तनीतकुमारमां॥ ७६ लाष | १३६७०००००० प्रतेक | चैते प्रतीमा १७० ले
कुल कुत ७७२०००००१३नए६००००००
aeaase
॥नर्धलोकमां जिननूवन बींब संख्या॥
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ठांम सं| रख्या
नूवन संख्या जिनबींब संख्या
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ग्मनां नाम सौधर्मादेवलोके ॥ इशांनदेवलोके ॥ सनतकुंमारमां ॥ माहेंद्रदेवलोके ॥ भ्रमदेवलोके ॥ लांतकदेवलोके ॥ महाशुक्रदेवलोक। सहसारदेवलोके ॥ यानंतदेवलोके ॥ प्राणतदेवलोके ॥
आरणदेवलोके ॥ अचूतदेवलोके ॥
३२ लाष | ५७६०००००० २७ लाष ५०४०००००० १३लाष २१६००००००
साष | १४४०००००० ४ लाष ५०००० ए०००००० १०००० ७२००००० ६००० १०००००० २०० ३६००० २०० ३६००० १५० २७०००
२७०००
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SAJAR
प्रथमत्रीके n बीजेत्रीके. 11 त्रीनेत्रीके 11 अनुत्तरांचे ॥
गंम सं
गंमनां नांम
ख्या
१ व्यंतर असख्यनये ॥ जोतपीचरथरमां ॥
३ नंदीश्वरद्धिपमां प्र० १२४ ॥
४ कुंमलद्विपमां ॥ ५ रुचकद्धिपमां ॥
६ कुंमलगिरीमां प्र० १२० ॥
੪
प्रथमदेवलोकथी १२ मा सुद्धी प्रतेक चैते १०० प्रतीमा बे ॥ पांच सनानी ६० प्रतीमा त्रण बारणाना चोमुखनी १२ प्रतीमा मध्य चैतनी १०८ प्रतीमा सर्व मली १८० जांगवी ॥ यैवेक अ नुत्तरे १२० बे कल्पातीत बे माटे सना नथी ॥
॥ त्रीच्छालोकमां चैत बींब संख्या ॥
9 देव नत्तरकुरुमां ॥
८ मेरुवनने वीषे ॥
ए गजदंता पर्वते ॥
१११
209
१००
ա
१०
वखार गिरीइं ॥ ११ इख्खुकार गिरीइं ॥
कुल
कुल ८४७०२३ | १५२९४४४७६०
१३३२०
१२८४०
११०००
६००
जिनबींब संख्या
जिनचैत संख्या असंख्यनूवन असंख्य बींब असंख्यनूवन असंख्य बींब
५२
४
४
३०
१०
८०
२०
Go
४
६४४८
४९६
४०६
३६००
१२००
६००
२४००
६००
४८०
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D
ܘܘ ܘ ܨ
.
१७०
३७०
६००
कुल
१२ मानुषोत्तर गिइिं॥ . .
४८.. १३ दिग्गजे ॥
४८००
ए६०० कंचनगिरीइं॥
१२०००० महानदीयोइं॥
G४०० दिर्घ वैताढ गिरीइं॥
४५६०० १ए यमकगिइिं॥
२४०० मेरुपर्वतनी चूलीकाइं॥ २१ जंबु प्रमुख वृक्षे ॥ ११७० १४०४०० वृतवैताढगिरीइं॥
२४०० २३ नग्रीयो वीजयादिके ॥ |
कुल
३२५५ । ३७१ ३२० एहमा ६० प्रासाद तिहां प्रतेके १२४ पमिमा बाकी ३१ए।|| प्रासाद त्रीदुवारा तीहां प्रतेके १२० पमीमा ॥
॥त्रीजगसंख्या ॥ अधोलोके॥ । ७७२००००० १३न्ए६०००००० नर्धलोके ॥ ८४७०२३ । १५२५४४४७६० त्रिलोके॥
३७१३२० ॥एम त्रलोकमां ॥ सास्वता प्रासाद ॥ | सास्वता जिनबींब ॥ ८५७००२८
१५४२५८३६०८० ॥ तेहने माहरी त्रीकाल वंदना होज्यो॥ .. ॥ ॥इति सास्वतां जिननूवन तथा जिनबींब संख्यायंत्र समाप्तं॥
३२५०
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२०६
॥अथ शत्रुजय लघुकल्प। श्री अइमुत्ता वा अतीमुक्त कह्यु बे श्री शत्रुजय तीर्थनु माहा केवली जगवंते।
त्म्य ॥ __ अश्मुत्तय केवलिणा। कहिश्र सेत्तुंऊ तिच माहप्पं॥ श्री नारदनांमे रिषी आगल। तेसांनलो नाव धरीने हे नव्यजीवो?
नारयरिसिस्स पुरन्। तं निसुणह नाव नविश्रा॥१॥ ते शत्रुजयतीर्थ पर श्रीरूपनदेव सिद्ध थयो मुनि पांचकोमने जीनो प्रथमगणधर पुंमरीकनामे। परिवारे ॥
सेत्तुंजे पुमरीन। सिघो मुणि कोमीपंच संजुत्तो॥ चैत्रमासनी पुनमने दिवसे। तेकारणमाटे तेहने कोठे पुमरिकगिरीश चित्तस्स पुषिणमाए। सो नन्नर तेण पुमरिन ॥२॥ नमि विनमि बेनाइ विद्याध ते सिद्ध थया वे कोम मुनि सही रना राजा।
नमि विनमि रायाणो। सिघा कोमिहि दोहीं साहुणं॥ तीमज द्राविम वालीखिल्ल बे निवृत्या वा सिद्ध थया दसकोम नाइ मुनि।
साधु साथे ॥३॥ ॥ तह दविम वालीखिन्ना। निव्वुश्रा दसय कोमिन॥३॥ प्रद्युम्न कुमार शांब कुमार साढाबाट कोम क्रमपुत्र कुमर प्रमुख।
सहीत सिध्या ॥ पन्नि संब पमुहा। अघु धान कुमार कोमिन ॥ तीमज पांमव पण पांच वीस सिद्धिपद पांम्या नारदरिषि एकां कोम साथे सिद्धी वस्या। णु लाखथी॥४॥
तह पंझवावि पंचय। सिधिगया नारयरिसिय॥४॥
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थावच्चाकुमर एकहजारथी शकमुनि एक मुनियो पण सिद्ध थया हजारथी पांचसेंथी सेलगमुनि एप्रमुख। तीम रामचंद्र मुनि ॥
थावच्चा सुय सेलंगाय। मुणिणोवि तह राममुणि। नरतजी ए बे दशरथ रा त्रणकोम साधु सहीत सिद्धि वस्या जाना पूत्र।
तेमने हुं वांदु शत्रुजा नपर ॥५॥ नरहो दसरहपुत्तो। सिघा वंदामि सेत्तुंजे ॥५॥ ए वादे बीजा पण घणा मु रूपनादिकना मोहोटा वंसमांहे निराज मोहने क्षय करीने। नपन्या ॥
अन्नेवि खवियमोहा । उसना विसाल वंस संनुश्रा॥ जे सिद्धपद पाम्या शत्रुजय नपर। ते मुनि असंख्याता प्रते हुं नमुनु ६
जेसिधा सेत्तुजे। तं नमह मुणि असंखिका ॥६॥ पचास जोजन प्रमाण। होतो हवो श्री शेव॒जो वीस्तारे मूले॥
पंनास जोयणाई। आसी सेतुंज विचमो मूले ॥ दश जोजन प्रमाणे सीखर तले। चत्वपणे आठ जोजननो ॥७॥
दसजोयण सिहरतले। उच्चत्तं जोयणा अ॥७॥ |जे पांमीइं फल अन्यतीर्थे । आकरा तपे तथा नत्कृष्ट शिलव्रते॥ । जं लहर अन्नति। नग्गेण तवेण बंनचरेण ॥ ते फल पांमीइं न्यमे क श्री विमलगिरिमां वसतां वा रेहेतां|| रीने तत्काल।
थकां ॥७॥ तं लहश् पयत्तेणं। सेत्तुंजगिरिम्मी निवसंते ॥७॥ जे कोमजणने जमामे पुंन्य। कांमीत वा वंडीत नोजने जमाने जे नर
जं कोमिएपुग्नं । कामिय आहार नोश्श्रा जेन॥ जे लहे वा पांमे तीहां ते एक नपवास करतां थकां फल पां
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सर्व पुंन्य।
मे शेजे ॥५॥ | जं लहई तब पुन्नं। एगो वासेण सेत्तुंजे ॥५॥ |जे कोई पण नाममात्र तीर्थ। स्वर्गलोके पाताललोके मनुष्यलोके। | जं किंची नामतीबं। सग्गे पायाले माणुसेलोए॥ ते सर्व तीर्थ नीचे दिगं। एक पुंमरीक तीर्थ वांदे थके ॥१०॥
तं सव्व मेव दिई। घुमरिए वंदिएसंत्ते ॥१०॥ प्रतीलाजतां वा नक्ती क शत्रुजय सनमुख चालतां दिठे थण रतां थकां चतुर्विध संघनी दिवे ते शत्रुजय पर्वत नीश्चे फल था विमलाचल।
य ते कहे ॥ पमिलानंते संघं। दिछ मदिव्य साहू सेत्तुंजे ॥ कोमगुणु फल अणदिवे ध्या दिवे थके तो अनंतगुणु फल थाय ने होय वली।
॥११॥ ___ कोमिगुणंच अदिछे। दिव्य अणंतये होई ॥१॥ केवलज्ञांननी नत्पती थइ नीर्वांण वा मोक्षप्राप्ती ने जीहां मु जीहां।
नियोने॥ केवलनाणु प्पत्ती। निव्वाणं आसि जब साहूणं ॥ ते श्री पुंमरीकतीर्थ वांदेथके। ते सर्व वांद्यां पूर्वोक्त सर्व मुनि तीहां१२
पुमरिए वंदित्ता। सव्वे ते वंदिया तब ॥१२॥ अष्टापदतीर्थ रूपनदेव मोक्षक्षे पावापुरी वीर मोक्षांम चंपांनग त्र तथा समेतसीखरतीर्थ २० री वासुपूज्य सिद्धक्षेत्र गिरनारती जिन सिद्धक्षेत्र। . र्थ नेमनाथजीनु मोक्षम ॥ _ अनवयं समेए। पावा चंपाइं नहंत नगेय ॥ ए तीर्थ वांदे जे पुन्य फ सोगुणु फल तेथी पण पुंमरीकतीर्थ लथाय।
बेटे ॥१३॥
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वंदिता पुन्न फलं। सयगुणं तंपि पुमरीए ॥ १३ ॥ पूजा कीधे थके जे पुन्य एकगुणु तेहथी एकसोगुणु पुन्य प्र थाय ते।
तीमा नरावे पूजे थाय वली॥ पूा करणे पुन्नं। एगगुणं सयगुणंच पमिमाए॥ तेथी श्री जिननूवन करावे तेथी अनंतगुणु पुन्य फल शत्रुज हजारगुणु पुन्य।
य तीर्थ पासण करवे होय ॥१४॥ जिणनवणेण सहस्सं। पंतगुणं पालणे होई ॥१४॥ अनुनी प्रतिमा अथवा दे श्री शत्रुजयगिरी तीर्थ मस्तके वा न हरासर।
पर करे करावे ते ॥ पमिमं चेश्हरं वा। सित्तुंजगिरीस्स मबए कुण ॥ जोगवीने नर्तक्षेत्रनु राज्य वसे स्वर्गलोके तथा मोक्षे ॥१५॥ एटले चक्रवर्ति पद जोगवी।।
नूतूण नरहवासं। वस सग्गेण निरुवसग्गे॥२॥ नोकारसहिनो पञ्चखांण पो पुरीमढनो पञ्चरखांण एकासणानोप रसहिनो पञ्चखांण। . चखांण वली आंबलनो पञ्चरखांण।
नवकार? पोरिसीए।पुरिमद्वेगासणंचआयामंय॥ एटलां पञ्चखांण करे ने श्री फलनो वंढक करे नपवास तप हवे| पुंगरकितीर्थ वली संनारे। ए बनु प्रतेके फल कहे ॥१६॥
पुमरीयंच सरंतो। फलंकंखी कुंण अनत्तछंद ॥२६॥ न त ते बेनपवासनु पो अपम यां० अर्धमास ते पन्नर न ते त्रण नपवासनुश्पु० दशम ते चा पवासनु ५ न मासखमण र नपवासनु३ एक दुवालस ते पांच ते एक मासना उपवासनु ६ अपवासनुध। बहमश्दसमदुवालसाणंमास घमासएखवणाणं
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२०० त्रीकण ते मन वचन काया जे शेजानु ध्यान समरण करे शुद्धे जे आराधे ते पांमे फल। ते ॥१७॥ __ तिगरणसुघो लहर। सित्तुळं संनरंतोत्र ॥१७॥ बनने पञ्चखाणे प्रक्षेप गाथा चोवीहार करीने नीचे सात यात्रा। जणाई ।
बछेणं नत्तणं। अपाणेणं तु सत्त जताई॥ जे नव्य प्राणी एक मने ते जव्य जीव त्रीजे नवे मोक्ष सुख करे शत्रुजे तीर्थे। लहे ॥१७॥
जो कुण सेत्तुंजे। तश्य नवे लहर सो मुकं ॥१॥ आज पण देखाई जे लोकमां। जोजन तजीने पुंमरीक पर्वते
_ अगसण करे॥ अवि दीस लोए। नत्तं चईनण पुमरीय नगे॥ स्वर्गे सुखे करीने जाय। शिलव्रत वा आचार वर्जीत होय तो
पण ॥१॥ सग्गे सुहेण वच्च। सील विहूणोवि होकणं ॥१॥ त्रदांने धजादांने पताका चांमर वींझे कलस चढावे थालदां वा झलरी चमावे। ने करी ॥
उत्तं सय पमागं। चामर भिंगार थाल दाणेण ॥ विद्याधरनीपदवी पांमे। तीमज चक्रवर्तिनी पदवी पांमे रथदांने
करी ॥२०॥ विजाहरोअहवः। तह चक्की होइ रहदाणा ॥२०॥ दशलाख वीसलाख त्रीस पचासलाखए एटलां फुलनीमाला लाख३ चालीसलाख। चमावे वा आपे फल कहे॥
दस वीस तीस चत्ता।लरकपन्नासा पुप्फदाम दाणे
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पांमे चोथ जे मुपवासनु १ ब तनुश् श्रवमनु | लहर चब हम ।
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दशमनुध दुवालसनु५ एटला तप करानं फल अनुक्रमे पांमे ॥ २१ ॥ दसम दुवालस फलाई ॥ २२ ॥
जेतीर्थे क्रमागर यादी उत्तम धुप एक मासक्षमण तपनु फल कपूर | दे तेने पन्नर नृपवासनु फल थाय । जे बरास धूप देवे करी होय || धूवे परकु ववासो । मासस्कमणं कपूरधूवंमि ॥ मुनिने श्राहारादिक शुद्ध पमिलान तो वा देतो थको पांगे लहे ॥ २२ ॥ साहूपमिलानिए लहइ ॥२॥
केटलांएक मासखमा तपनु
फल ।
षदांन देवे करी बीजा तीर्थ
कित्तिय मासकमणं । न थाय तेटलुंज सोनानु दांन भूमीनु दांन । नवितं सुवन्न भूमी |
जेटलु पांमे पुन्य फल प्रते ।
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जं पावर पुन्न फलं अटवीनो जय१ चोरनोज यश सिंहादिकनो जयश्।
नेवी ॥
सण दाणेण श्रन्न तिचेसु ॥ पूजा न्हवण करवे करी शेत्रुंजय तीर्थे तीर्थपतीने तेटलु ॥ २३॥
पुत्रा न्हवणेण सितुंजे ॥ २३ ॥ समुद्रनो जय दारीद्रपणानो जयप रोगनो नय६ वैरीनो जय रुद्र य ग्निप्रादिकनो जय० ॥ समुह ४ दारिद्द रोग ६ रिन रुद्दा जे प्रांणी शेत्रुंजयतीर्थनुं ध्यान धरे मनमां तेह प्राणी ॥२४॥
कंतारः चोरः सावयः । एश्राव जयथी मुकाय वा ए जय मुके वीघनपणे । मुचंति विग्घेणं । | सारा वली नांमे पयंनाने वीषे । गाथाओ बे ते पूर्वधरे कही ते ॥ गाहान सुत्रहरेण मणीश्रान ॥
जे सेतुं
धरंति मणे ॥ २४ ॥
सारावली पयन्नग ।
२६
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२०३ जे जणसे तथा गणसे तथा ते प्रांणी पांमसे शत्रुजयनी जात्रा जे सांजनसे।
कस्यानु फल ॥२५॥ जो पढ गुण निसुणई। सोलह सित्तुंऊ जत्तफलं२५
॥ इति श्री शत्रुजय लघुकल्प टबार्थ संपूर्ण ॥
॥इति शत्रुजय लघुकल्प समाप्तः॥ ॥अथ नपगारी श्री रत्नागरसूरिजी क्रत॥
॥ श्री रत्नाकर पचीसी॥ . मोक्षरूप लक्ष्मीवंत कल्याणने की नरना इंद्र ते चक्रवर्ती यादे देव मा करवानु घर।
ना इंद्र ते चमरादोक तेमणे न
म्याने चरणकमल जेहना हेवा।। श्रेयःश्रियां मंगल केलिसद्मः। नरेंद्र देवेंद्र नतां ध्रीपद्म॥ हे सर्व जाण हे सर्व जे चोत्री हे स्वामी घणोकाल जयवंता वर्तो स अतीशय ते नत्कृष्ट करी प्र हे ज्ञानकला नीधान ते केवलज्ञान धान ।
लीपनादी श्कला तेहनोनमार? सर्वज्ञ सर्वातिशय प्रधान। चिरंजय ज्ञानकला निधान हे जगत्रयाधार नर्व अधोत्री दुःखे वारवायोग संसार जन्म जरा च्चो तेत्रण लोकवासी जीवोने मरणरूप रोग वा वीकार ते वारवा || आधार हेक्रपावतार एटले दयावंत। हे वीतराग नाव वैद्य ॥
जगत्रयाधार क्रपावतार। दुर्वार संसार विकार वैद्य। हे बीतराग रागद्वेष रहीत नीजगुण लक्ष्मीवंत तुमारा वीषये वा तुम||
श्री वीतराग त्वयि मुग्धनावा। [यागे नोलेनावे।|| हे वीशेष जाम हे प्रजो वा ठाकोर वीनती करुंतुं कींचीत् वा लगार |
द्विज्ञ प्रनो विज्ञपयामि किंचित् ॥२॥
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बालकनी लीला वा कीमाए सहीत हेवो बालक जे ते शुंन । किं बाललीला कलितो न बालः ।
| मातापीताने श्रागे बोले बोलेज वीकलप रहीतपणे एटले जेम तेम पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः ॥ [ बोले ॥
ते प्रकारे वा तीमज साचे सानु कहीस हे नाथ वा ठाकोर । तथा यथार्थ कथयामि नाथ ।
निज वा पोसानो श्राशय वा अभीप्राय पश्चाताप करतो थको हे नाथ निजाशयं सानुशय स्तवाये ॥३॥ [तुमारा थागल ॥३॥ हवे रत्नाकरसूरि श्राप दुःकृत केहेबे सुपात्रे दान दीधु नही तथा दत्तं न दानं परिशीलितं च । [पाल्युं । नही उत्तम वा मनोज्ञ शील तथा में तप बाझ अभ्यंतर बारनेदे न न शालि शीलं न तपोभितप्तं ॥ [तप्यो ॥ शुन वा प्रसस्त वा नजो नाव पण न जाव्यो या मनुष जवने वीषे । शुनो न जावो प्य जव वे स्मिन् ।
हे प्रनु हुं जम्यो हो वा खेदे फोगटज संसार चक्रमां ॥ ४ ॥ विनो मया भ्रांत महो मुधैव ॥ ४ ॥
क्रोधरूप यग्निए करी हुं बल्यो वली मुजने मशो । दग्धो ग्निना क्रोधमयेन दृष्टो ।
दुष्ट वा जयंकर लोज नामा मोहोटा सर्पे ॥ दुष्टेन लोनाख्य महोरगेल ॥
वली मुजने गल्यो अनीमानरूप अजगरे वली मायारूपली । ग्रस्तो निमाना जगरेण माया ।
जालमां हुं बंधायो हुं एहवो कीम करी तुमने नजु एटले कषाय
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३०४ सहीतपणे नजेनुं काम नाव्युं ॥ ५ ॥
जालेन बघो स्मि कथं नजेत्वां ॥५॥ वली केहे न करथु में परलोके सुखदायक कार्य वली इहनो अर्थ || | कृतं मया मत्र हितं न चेह। [थावते पदे केहेजे। हे लोकेश लोक जे बकायजीव तेहना रक्षक माटे लोकेश या लो के वा वर्तमान जन्मे पण मुजने सुख न थयु माटे ॥
लोके पि लोकेश सुखं न मे नूत् ॥ मुज सरीखानो जन्म वा नव केवलज । । अस्मादृशां केवल मेव जन्म । हे जिनेश थयो जव पुरवा वा योनी पूरवाने ॥ ६ ॥
जिनेश जज्ञे नव पुरणाय ॥ ६॥ वली केहेले हे मनोज्ञवृत हुँ इंम मानुढं वा जाणुढे जे कारण माटे चित्त
मन्ये मनो य न मनोज्ञटत्तं । [जे ते न। तुमारा मुखरूप चंद्र अमृत रूप कीरण पांमे थके ॥
त्वदास्य पीयूष मयूख लानात् ॥ ग्रहण करतु हवु माहानंद रसने माटे कठोर ।
तं महानंद रसं कगेर। हे देव माहरा सरीखा मनुषनु मन पथरथी पण ॥ ७ ॥
मस्मादृशां देव त दश्मतो पि ॥ ७ ॥ तुमारा थकी घणु दुःखे पामवा योग्य ते या वेगे हुं पाम्यो शुं ते केहेजे।
त्वनः सुदुःप्राप्य मिदं मयाप्तं । रत्नत्रई जे ज्ञान दर्शन चारीत्र एत्रण रत्न घणा नव भ्रमण करतेथके।
रत्नत्रयं नूरि नव भ्रमेण ॥
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२०५ ते रत्नत्री प्रमादरूप निद्राना वशथकी येले वा फोगट गमाव्यां एटले ॥ प्रमाद निद्रावशतो गतं तत् । [जन्म प्रमादे गमाव्यो। माटे माहारीज जुल तो हवे कोनापागल हे नायक हुं पोकार करूं। ॥ कस्या ग्रतो नायक पूत्करोमि ॥७॥ वैराग्य रंग लोकने उगवाने अर्थे थयो।
वैराग्य रंगो पर वंचनाय । धर्मनो नपदेश कह्यो जे तेतो लोकने राजी करवाने काजे थयो॥ | धर्मोपदेशो जन रंजनाय॥ वली विद्यानण्यो ते वादकरवा अर्थे मुजने थइ एटले थात्महेते नथई ___ वादाय विद्या ध्ययनंच मे नूत् । हे ईश वा हे स्वामी माहारु कृत्य हास्यकारक केटयूँ कहुं एटले में घणु
किय दुवे हास्यकरं स्वमीश ॥ ए॥ [अजुक्त कस्युं॥ए। परनाथपवाद वा अबतादोषादी बोलवे करी मुख दुःषण सहीत करघु
परा पवादेन मुखं सदोषं । नेत्र जे आंख्यो परनारीनां रूप यादे माठी बुद्धीथी जोवेकरी सदोष नेत्रं परस्त्रीजन वीक्षणेन॥
[करी॥ चीत वा मन परने अपाय जे कष्ट थवानु चीतववे करी सदोष करथु। __चेतःपरापाय विचिंतनेन। हे प्रनु एहवां कर्म करयां माटे माहारी वागल शी गती थशे॥१०॥
कृतं भविष्यामि कथं विनोहं ॥ १० ॥ वीमब्यु वीगोव्यु जे कंदर्परुपि खानुकमनी वेदनानी।
विमंबितं य स्मरघस्मरार्ति । दशाना वशथी शब्दादीक वीषयमा थंधपणे थयो
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२०६ एटले वीषयवशथी वीवेकहीण थयो तेथी माहारुं ॥
दशा वशा स्वं विषयांधलेन ॥ प्रकाश्युं प्रगट करयुं कर्तुं ते तमारा आगल वा समीप चरीत्र लज्या - प्रकाशितं तद्भवतो जियैव ।। [ई करीनेज। हे सर्वज्ञ सघलं पापणी मेले नीचे जाणोडो एटले मारूं चरीत्र केटलुं कहुं बाप सर्व जागने ॥ ११ ॥
सर्वज्ञ सर्व स्वय मेव वेसि ॥ ११ ॥ वली में आम कस्युं ते कहे अनादर करयो अन्यमंत्र जे मारण मोह नन्चाटनादिथी परम इष्टपदवंते नजरखाव्यो जे परमेष्टीमंत्र तेहनो।
ध्वस्तो न्यमंत्रैः परमेष्टि मंत्रः। कुशास्त्र जे कामक्रोधादीक दीपावकनां वाक्य ते जएयो सांजल्यां ने सिद्धांत न जएयो अर्थात् यर्थाथ न आदरयां पागम वचन ॥
कुशास्त्रवाक्यै निहिता गमोक्तिः॥ करवाने फोगट पापकर्म कुदेव जे रागद्वेष सहीत तेमना संघथी। __ कर्तुं तथा कर्म कुदेव संगात् । वांबा करी हे नाथ ए माहारी मतीनो वीभ्रम नदय थयो ॥१२॥
अवांगिहि नाथ मति भ्रमो मे ॥ १२॥ नेत्रमारगे धावेला एहवा तमोने मुकीने ।
विमुच्य दृक् लक्ष्य गतं नवंतं । ध्याया वा चिंतव्या में मूढबुद्धीइं अंतःकरणने वीषे ॥
ध्याता मया मूढधिया दंतः॥ कटाक्ष जे नेत्रवीकार वक्ष्योज स्तन गंजीरनानी।
कटाद वदोजगनीर नानी।
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२०७ कमर वा केहेमनोनाग एहसंबंधी इत्यादीक स्त्रीयोना अवयवना वी लास मनोहर वा सुंदर देखी चीतव्या एटले तेमां रागीथयो पण थाप __ कटी तटीयः सुदृशां विलासाः॥१३॥ [ने न ध्याया।१३। लोल वा चंचल इक्षण वा नेत्र जे जेहनां एहवी स्त्री तेह नु मुख जोवे करीने वा चपल नेत्रपणे मुख जोवे करीने। | लोलेदाणा वक्र निरीदणेन । जे मनने वीषे रागनो लव एटले मोहना अंसनो रंग बेठो वाला , यो मानसो राग लवो विलग्नः ॥ [ग्यो ते॥ न गयो शुध वा पवीत्र सिद्धांतरूप समुद्रने वीषे । | न शुध सिघांत पयोधि मध्ये । हे संसारतारक धोयु मन तोपण ते रंग न गयो तेहनु शुं कारण ए टले सिद्धांत वांचे नणे पण मोहराग न गयो ते शा माटे ॥१४॥ | धौतोप्यगा तारक कारणं किं ॥१४॥ वली रत्नाकरसूरि केहेले सरीर नथी मनोहर तथा नथी वीनय नदार्या| | अंगं न चंगं नगणो गुणानां। [दीक गुणनो समोह।। |नथी नीर्मल वा नली कलानो वीलास कोइ पण ॥
न निर्मलः कोपि कला विलासः॥ प्रधान वा नली कांती तथा प्रजुता नथी कोइ पण ।
स्फुर प्रना न प्रनुता च कापि । तोहेपण अनीमान वा गर्वे करीने कदर्थना पांम्यो हुँ एटले ते गुण वी
तथाप्य हंकार कदर्थितो हं॥२॥ [ना पण गर्वकरयो।१५। बायु गले वा जाय शीघ्र पण पापबुद्धी नथी जती।
श्रायु गलत्याशु न पाप बुधिः। ..
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១០០ || गइ वय बाल बादे पण वीषयनी वांडा गइ नही ॥
गतं वयो नो विषया निलाषः ॥ वली प्रयत्न वा नद्यम कस्यो ओषध करी देह पुष्टहेते पण आत्माने धर्मने वीषे पुष्ट करवा यत्न करयो नहीं।
यत्नश्च नैषज्य विधौ न धर्मे । हे स्वामी मोहोटा मोहे वीटंब्यो वा पीमयो मुजने ॥१६॥
स्वामि न्महामोह विम्बनामे ॥ १६ ॥ नथी आत्मा वा जीव नथी तथा पुन्य वा सुक्रत नथी तथा नव वा अवतार नथी पाप वा दुरीत ।
ना त्मा न पुण्यं न नवो न पापं । हुँ जे तेणे नास्तिकादीक दुष्टाचारीनी माती वाणी वा कटुक वाणी मया विटानां कटु गीर पीयं ॥
[पीधी। धारण करी कानने वीषे केवलज्ञानरूप नास्कर वा सुर्य तमे । __ आधारि कर्णे त्वयि केवलार्के । हे देव अती प्रगटपणे वर्त्तते बते पण धीकार हो मुजने एटले श्राप ज्ञानी ते मागना वचनमां राच्यो॥१७॥
परि स्फुटे सत्यपि देव धिग्मां ॥१७॥ वली हुं केहवो ढुं ते केहे अरीहंतदेव न पूज्या वली पात्रपूजा ते | न देवपजा नच पात्रपूजा। [सुसाधुने दांन नदीधुं।। न पाल्यो श्रावकनो धर्म वली ननो मुनिनो धर्म न पाल्यो।
नश्राप धर्मश्च न साधुधर्मः॥ |पामे थके पण था मनुष जन्म सघलो ने।
लब्ध्वापि मानुष्य मिदं समस्तं ।
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ए करस्युं में केम जेम रणमां वीलाप वा रुदन करे तेम मारो जव वृथा |
कृतं मया रण्य विलाप तुल्यं ॥ १७ ॥ [कस्यो॥१॥ करी में असत्य वा खोटाने वीषे पण कामधेनुनी इच्छा।
चक्रे मया सत्स्वपि कामधेनुः। वली कल्पद्रुम् वा कल्पवृक्षनी इच्छा करी चिंतामणी रत्ननी इच्छा करी एटले वीनाशी वस्तुनी वंडा करी पीमा पांमुटुं॥
कल्पद चिंतामणिषु स्टहा तिः॥ तेवी रीते न जिनेश्वरना बताव्या धर्मने वीषे लीन थयो केहवो ए धर्म प्रगटपणे सुखने देनार निश्चे ।
न जैनधर्म स्फुट शर्मदे पि। हे जिनेश्वर माहारो जुवो मूढ वा मूर्ख नाव वा नुपयोग अर्थात् हुँ मूढ | जिनेश मे पश्य विमूढ नावं ॥२॥ [शीरोमणी ॥१॥ वली हुँ केहवो मूढळ ते केहेले नला शब्दादिक नोगनी लीला चितवी पण रोगरूपी लोहखीलो दूर करवो विचारयो नही ।
सद्भोग लीला न च रोग कीला।। धननो थागम जे थाववापणु चिंतव्युं यतः ॥गाथा॥ अऊं कन्नं|| पुरं पुरारि । पुरिसा चिंतंति अब संपति॥ अंजलिगयं वतोयं ।।। गलत माकन पिछंति ॥१॥ वैराग्यसतके पण समय समय अवी ची मरणे आयुधन खुटे ते वीषे वीचार करयो नही वली ॥
धनागमो नो निधनागमश्च ॥ दारा वा स्त्री चीतमां चिंतवी पण ते संयोगथी नरकरूप काराग्रह वा बंधीखानु पांमीस ते मनमां न ।
दारा न कारा नरकस्य चित्ते ।
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चिंतव्युं नीरंतर अधम हेवो हुं तेणे ॥२०॥ || विचिंति नित्यं मयका धमेन ॥ २० ॥ रह्यो नही नली व्रतीइं वा रुमेश्राचारे एटले नत्तम साधुव्रती रदयमां
स्थितं न साधो रहदी साधु वृत्तात्। [न रही वृतथी पण। परने नपगार करवे करी न पेंदाश कस्यो वा न अयॊ यश वली॥
परोपकारा न्न यशो र्जितं च ॥ नथी करयुं करवा योग्य कार्य तीर्थ जे जिनघरादिकनु नरवादिक।
कृतं न तीर्थोघरणादि कृत्यं । मे वृथा वा फोगट हास्यो वा गमाव्यो नीचेज जन्म वा नव॥१॥
मया मुघा हारित मेव जन्म ॥१॥ वैराग्य वा संसार जोगादीकथी वीरक्तनाब तेहमां रंग गुरुनां कह्यांना
वैराग्य रंगो न गुरू दितेषु। [पदेशवचनथी न करचो। क्ली दुष्ट जीवोनां मातां वचनने वीषे नपशम वा शांति न आणी श्र
न उर्जनानां वचनेषु शांतिः॥ [र्थात् कोधादीक करया॥ हे देव न थयो मुजने अध्यात्मलेश जे सम्यक् नवु जणाववु धर्मानु .. ना ध्यात्मलेशो ममकोपि देव । [ष्टान करणादिक कोइ॥ माहारा श्रात्माने केम करी तारं नवसमुद्रना दुःखथी एटले ते दुःख थी तरकुंतो पुर्वोक्त सुक्रतोथी थाय तेतो न सेव्यांमाटे न तरायज २२
तार्यः कथं कार मयं नवाब्धि ॥ २२॥ गयानवमांसुक्रत में न करयुं संका शाथी जाण्यु नत्तर तथावीध सुरव
पूर्वेनवे कारि मया न पुण्यं । [ना अनावी। श्रावतानघमां पण नही करीश ॥
अागामिजन्म न्य पि नो करिष्ये ॥
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जे कारण माटे हुं एहवा प्रकारनो ते कारणं माटे माहारे नष्ट थया शुं य दीष्टशो हं मम तेन नष्टा । [ते श्रावतापदमां के हेरे । हे त्रीनोवन ठाकोर नृत वा गयोकाल भविष्य वा श्रावतोकाल वर्त्त मानकाल ए त्रणे जन्म पुन्य सुक्रत न करवाथी माटे कीम तरीश नूतो द्भवद्भावि नव त्रयीशः ॥ २३ ॥ [इति ॥ २३ ॥ शुं अथवा मुधा वा फोगट हुं घणा प्रकारे हे देव । किं वा मुधा हं बहुधा सुधानुक ।
हे पूज्ज तुमारा श्रागल स्वकीय वा श्रात्मीयं वा माहारु चरीत्र एटले पूज्य त्वदग्रे चरितं स्वकीय ॥ [ तमारा आागल मारु चरीत्र कहुबुं जे कारण माटे हे त्रण लोकनां स्वरूप तेहना । जल्पामि यस्मात् त्रिजग त्स्वरूप |
नीरूपक वा त्रीभुवन लक्षण कथक हो माटे तमारा वीषये या ठेकाले ए माहारुं चरीत्र मारे केहेवुं कोणमात्र बे ॥ २४ ॥ निरूपकत्वं कियदेत दत्र ॥ २४ ॥
हवे स्तुती करता समाप्ती मंगल केहेते हे दीनोद्वार धुरंधर दीनदयामणा जीवोने नदार करवामां प्रागेवान तमारा वीना कोइ नथी ने माहारा विना कृपानु बीजु ।
दीनोधार धुरंधर स्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपा । पात्र नथी लोकमां हे जिनेश्वर तथापी वा तोहेपण ते लक्ष्मीने हूं जाचतो वा मागतो नथी ।
पात्रं नात्र जने जिनेश्वर तथाप्येतां नयाचे श्रीयं ॥ शु हे अरिहंत एक एज श्राश्वर्यकारी जनु बोधी वा समकीत रत्न केवल मोक्षहेतु अर्थात् मोक्षसुख मुल हेतु ।
किंव निमेव केवल महो सोधि रत्न शिवः ।
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२१
हे मोक्षलक्ष्मीना समुद्र हे मंगलीकना एकधांम मंगलीक कारक प्रार्थना करूतुं इहां स्तोत्र करताई थापणु नाम रत्नाकरसूरि प जाव्यं ॥ २५ ॥
श्रीरत्नाकर मंगलैक निलय श्रेयस्करं प्रार्थये ॥ २५॥
॥ इति रत्नाकर पचीसी समाप्तः ॥
॥ अथ श्री वीरजिन स्तवन ॥
जश्का समणे जयवं । महावीरे जिपुत्तमे ॥ लोगना हे सयंबु | लोगंतिय विवोहिए ॥ १ ॥ वच्चरं दिन्नदापोहे | संपूरिय जणासए ॥ नाणत्तय समानते । पुत्ते सि राइणो ॥ २ ॥ चिच्चा रऊंच र÷च । पुरं तेनरं तहा ॥ निमित्ता आगारान। पव्वइए अपगारियं ॥ ३ ॥ परीसहाणं नो भीए । नेरवाणं खमाखमे ॥ पंचहा समिए गुत्ते । बंजारी किं ॥ ४ ॥ निम्म निरहंकारे । कोहे माण किए ॥ मार लोविमुक्के । पसंते चिन्न बंधणे ॥ ५॥ पुरंवा लेवे । संखोश्व निरंजणे ॥ जीवेवा
परिघाए । गयणंव निरासए ॥ ६ ॥
वानव्व अप्प
| कुम्मोवा गुत्तईदिए || विप्पमुक्के विहंगव्व । खगिसिंगंव एगगे ॥ ७ ॥
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२१३ नारंमेवा पमत्तेय । वसहेवा जाय थामए ॥ कुंजरोश्व सोमीरे । सीहोवा उमरिस्सए ॥७॥ सायरोश्व गंजीरे । चंदे श्व सोमलेसए॥ सूरोवा दित्त तेयल्ने । हेमंवा जाय रूवए ॥५॥ सव्वं सहे धरित्तिव्व । सायरंबुव्व सबहे ॥ सुहुय हुयासुव्व । जलमाणेय तेयसा ॥१०॥ वासी चंदण कप्पेय । समाणे लोढुं कंचणे ॥ समे पूया वमाणेसु । समे मोके नवे तहा ॥११॥ नाणेणं दंसणेणंच । चरितेण मणुत्तरे ॥ आलएणं विहारेण । मद्दवेण ऊवेणयं ॥१२॥ लाघवेणं च खंतीए । गुत्ती मुत्ती अणुत्तरे ॥ संजमेण तवेणंच । संवरेणं मणुत्तरे ॥१३॥ अणेग गुण सयाइने । धम्म सुक्काण जायए॥ घाश्कएण संजाए । अणंतवर केवली ॥१४॥ वीयराएय निग्गंथे । सव्वन्नू सव्वदंसणे ॥ देविंद दाणविंदेहिं । निव्वत्तिय महा महे ॥१५॥ सव्व नासाणुगाएय । नासाए सव्व संसए॥ जुगवं सव्व जीवाणं । निंदिन निन्न गोयरे ॥२६॥ हिए सुहेय निस्सेय । कारए सव्व पाणिणं ॥ महव्वयाणि पंचेव । पन्नवित्ता सनावणे ॥१७॥ संसारसायरं बुद्ध । जंतु संताण तारए ॥
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१४ जाणुव्व देसियं तिल । संपत्ते पंचमं गई॥१७॥ से सिवे अयले निच्चे । अरूवे अयरामरे ॥ कम्म प्पपंच नम्मुक्के । जएवीरे जएजिणे ॥१॥ से जिणे वघमाणेय । महावीरे महायसे ॥ असंखउक खिन्नाणं । अम्हाणं देवनिव्वुश्॥३०॥ श्य परम पमोया संथन वीरनाहो ॥ परम पसमदाणा देउ तुलत्तणंमे ॥ असम सुह उहेसु सग्ग सिघीनवेसु । कणय कयवरेसुं सत्तु मित्तेसुवावि ॥२१॥
॥ इति श्री वीरजिन स्तवन ॥
॥अथ श्री मंधरस्वामीनु स्तवन । केवलनाण सणाहं । विदेह वासंमि संठियंधीरं ॥ सुर मणु नमिय चलणं। सीमंधर सामियं वंदे॥॥ जय सीमंधर सामिय। नविय महाकुमुय बोहण मयंक॥ समरामि तं महायस श्हविन नारहेवासे ॥२॥ सीमंधर देव तुमं । गामा गर पडणेसु विहरंतो॥ धम्मं कहेसि जेसिं । सहलं चिय जीवियं तेसिं ॥३॥ किं नयवं मह कम्मं । समव्यिं तारिसेहिं पावहिं॥ जं नहजा जम्मो । तुह पयमूले सया कालं ॥४॥ चिंतामणि सारितो। अहवा कप्पडुमव्व सुह फलन॥
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२१५ अप्पुव्व कामधेणू । नहु नहु ताणंपि अहीयरो ॥५॥ बऊर तुह सामित्तं । तिहूयण मसंमि ननण अन्नस्स ॥ जम्हा एरिस रिघी । नहुदीस सेस पुरिसस्स ॥६॥ कश्या हं सामितुमं सिंहासण संठियं सपरिवारं ॥ धम्मं वागरमाणं पिबस्सं निय नयणेहिं ॥ ७ ॥ पुऊतुते मणोरह । निचं जे हियय संठिया मन॥ पाव रंकोवि फलं । संपत्ते कप्परुखंमि ॥७॥ निच्चं काएमि अहं । तुह पयकमलंसु निम्मलं धीर॥ तहकुरु देव पसायं । जह दरिसायं ममंदेसि ॥ए॥ ते धन्ना कयपन्ना । देवा देवीय माणवा सव्वे॥ जे संसय वुछेयं । करंति तुहपायमूलंमि ॥१०॥ अहयं पुन्नविहूणो । गणे गणमि संसया वमिन॥ श्छामि विसूरंतो । बनमा नांणपरिहीणो ॥११॥ कुणसु पसायं गुरुयं । वचत्तीसंसयाण जह हो ॥ जम्हा महाणुनावा । सरणागय वडला हुंति ॥२॥ कम्मवसेणय अहयं । नारहवासंमि जवि चिघमि॥ तहवि तुमं महियए । रयणायर चंद पाएण ॥१३॥ तं पहु तं मन गुरू । तं देवो बंधवो तुमं चेव ॥ गुरु संसार गयाणं । जीवाणं हुक्त तं सरणं ॥१४॥ संसार जलहिमशे। निबुड्डमाणेहिं नव्व सत्तेहिं ॥ पशदिवसं समरिऊ।सीमंधर सामि पयकमलं ॥१५॥
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जश्नह परमपयं । निव्वंना तहय जम्म मरणाणं॥ ता समरह जिणनाहं । विदेहवासंमि विहरंतं॥१६॥ जो निच्चं नव्वाणं । विदेहवासंमि सामि विहरंतो॥ स धम्मदेसणाए। मित्त पपासणं का ॥१॥ पञ्चूसे मशणे । संका समयंमि सव्वकालंमि ॥ सीमंधर तिबयरं । वंदेहं परम नत्तीए ॥१७॥ पंचधणुस्सय माणो । चनरासी पुव्वलख वरिसाक॥ सो सीमंधरनाहो । अणंतनाणी सयाजय ॥२॥ मुणिसुव्वय नमि तिब्यर। अंतरे रऊलछि विचहुं ॥ छमिय पव्वन्न दिलं । सीमंधर सामियंवंदे ॥३०॥ श्य सीमंधरनाहो । थुन मए नत्तिराय कलिएणं॥ सासय सुहक्क जण । जयनाहो होन नवियाणं ॥२॥
॥ इति श्री मंधरजिन स्तवनं ॥
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॥ अथ श्री गुरु प्रददाणा ॥ गोश्रम सुहम्म जंबू । पनवो सिङनवाइ आयरिश्रा॥ अन्नेवि जुगप्पहाणा । पइंदिठे सुगुरु ते दिन ॥१॥ अऊ कयलो जम्मो। अऊ कयद्धं च जीवियं मन ॥ जेण तुह दंसणा मय । रसेण सत्ताई नयणाइं॥॥ सो देसो तं नगरं । तं गामो सोअ आसमो धन्नो॥ जब पहु तुम्हपाया। विहरंति सयावि सुपसन्ना ॥३॥
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२१७ हबा ते सु कयहा । जे किश्कम्मं कुणंति तुह चलणे॥ वाणी बहुगुण खाणी। सुगुरु गुणा वन्निा जीए॥४॥ अवयरिया सूरधेणू । संजाया महगिहे कणवुरी ॥ दारिदं अङगयं । दिठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥५॥ चिंतामणि सारिख । समत्तं पावियंमए अऊ॥ संसारो दूरिकन । दिहे तुह सुगुरु मुहकमले ॥६॥ जा रिधी अमरगणा । मुंजता पियतमाई संजुत्ता॥ सापुण कित्तियमिता । दिछे तुह सुगुरु मुहकमले ॥७॥ मण वय काएहिंमए । जंपावं अङियं सयानयवं॥ तं सव्वं अऊ गयं । दिछे तुह सुगुरु मुहकमले ॥॥ उन्नहो जिणिंदधम्मो। उलहो जीवाण माणुसो जम्मो॥ लपि मणुअजम्मे। अश् उलहा सुगुरु सामग्गी॥॥ जब नदीसंति गुरु । पञ्चूसे उठिएहिं सुपसन्ना। तब कहं जाणिऊ। जिणवयणं अमिश्रसारिखं ॥१॥ जह पासिंमि मोरा। दिणयर उदयमि कमलवणसंमा॥ विहसंति तेमतच्चिय । तह अम्हे दंसणे तुम्ह ॥११॥ जह सरइ सुरहि वहो । वसंतमासंच कोईला सरई॥ वंऊसरई गइंदो । तहअम्म मणं तुमं सरई ॥१२॥ बहुयां बहुयां दिवसमां। जश् मई सुहगुरु दिछ॥ लोचनबे विकसी रह्यां। हीअम अमित्र पश्छ॥१३॥ अहो ते निङिन कोहो । अहो माणो पराजिन ॥
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अहो ते निरक्किया माया । हो लोहो वसीकीन ॥ १४ ॥ वं साहु | अहो ते साहु मद्दवं ॥
अहो ते
हो ते उत्तम खंती । अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥ १५ ॥ इहंसि उत्तमो नंते । पञ्चाहोहिसि उत्तमो ॥ लोगुत्तमुत्तमं ठाणं । सिद्धि गच्छसि नीर ॥ १६ ॥
रिय मुकारो। जीवं मोएइ नवसहस्सा ॥ नावे कीरमाणो । होइ पुणो बोहि लाना ॥ १७ ॥ आयरि नमक्कारो । सव्व पाव प्पपासणो ॥ मंगलाच सव्वेसिं । तईयं हवइ मंगलं ॥ १८ ॥
॥ इति श्री गुरु प्रदक्षणा समाप्तः ॥
॥ अथ जीवानुंसास्ति कुलक ॥
रेजीव किं नबुझसि । चनगइ संसारसायरे घोरे ॥ जमीन तकालं । अरह घमिव्व जलमझे ॥ १ ॥ रेजीव चिंतसि तुमं । निमित्तमित्तं परोहवश तुझ ॥ सुह परिणाम जणियं । फल मेयं पुव्व कम्माएं ॥ २ ॥ रेजीव कम्मनरिश्रं । नवएसं कुसि मुटु विवरि ॥ डुग्गय गमण मणाणं । एसच्चिय हियइ परिणामो ॥३॥ रेजीव तुमं सीसे । सवणा दाऊण सुरासु मह वयणं ॥ जं सुरकं नइपाविसि । ता धम्मविवनि नूणं ॥ ४ ॥
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रेजीव माविसायं । जाहितुमं पिचिकण पररिधी। धम्मरहियाण कुत्तो। संपऊ विवह संपत्ती ॥५॥ रेजीव किं नपिछसि । किऊंतं जुव्वणं धणं जीअं॥ तहविहु सिग्धं नकुणसि।अप्पहियंपवर जिणधम्म॥६॥ रेजीव माण वङित्र। साहस परिहीण दीण गयलऊ ॥ अबसि किं वीसबो । नहु धम्मे श्रायरं कुणसि ॥७॥ रेजीव मणुयजम्मं । अकय जुव्वणंच वोलीणं ॥ नयचिन्नं नग्ग तवं । नय लही माणित्रा पवरा ॥॥ रेजीव किं न कालो। तुझग परमुहं नीयंतस्स ॥ जं डिअं नपत्तं । तं प्रसिधारा वयंचरसु ॥५॥ श्यमामुह सुमणेणं । तुम सिरी जा परस्स श्राश्ता । ता आयरेण गिन्हसु । संगोय विहि पयत्तेण ॥१॥ जीवं मरणेण समं । नपऊ जुव्वण सह जराए॥ रिघी विणास सहिा । हरिस विसान नय कायव्वो ११
॥ति जीवानूसास्ति कुलक समाप्तः ॥
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ली सा० मगनलाल मनसुखरामनी वीनंती ए जे जे आ चो|| पमीमां सूत्र अर्थ वर्ण मात्रादिक मारी जे कांइ जुल थइ होय ते सुस्वजनो मारा नपर कीरपा करी शुद्ध करी प्रव्रतावजोजी ने मा रगथी जे फेर थयु होय ते मुजने मिथ्या दुक्रत ॥संवत १४४ ना श्रावण वदी ११ ने वार रवेन ॥
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॥ति प्रक्रणमाला समाप्त॥ WOODOO@dee 90
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