Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्न हरण
RESTER
BIRTBHEE
SENSE
SHRELDHEELHI
atraTELESESE
SHRESTER
CERIES
LAR
RN
SUR
Namohidiarrorea
SEEEEEEE
DO
BABEEEEEER
EMERESEREE
SERE
TEEBEE
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vikrant Patni
JHALRAPATAN
सम्पादकीय
संस्कृति का ज्ञान कराने के
भारतीय जैन लिए जैन चित्रकथा अति आवश्यक है । वर्तमान समय में कथा कहानियाँ पढ़ने की रुचि युवा वर्ग में अधिक देखी जा रही है। जीवन को उन्नत बनाने वाली कथाओं के पढ़ने से आत्मोन्नति होती ही है तथा पुन्योपार्जन का कारण भी है, धार्मिक कथाओं के पढ़ने से आत्म शान्ति का अनुभव होता है। भारतीय संस्कृति का ज्ञान कराने के लिए कथा साहित्य अति ही आवश्यक है ।
इस कृति में क्रीड़ा कौतकी तथा सतत् विहार करने वाले नारदजी श्री कृष्ण के दरबार में आए तथा कुछ समय ठहर कर चपल स्वभावी नारदजी अन्तपुर सत्यभामा के महल गये, सत्यभामा ने नारदजी का अपमान किया। अहंकार से युक्त नारद जी ने अपमान का बदला लेने की भावना से रुकमणी का पाणिग्रहण संस्कार श्री कृष्ण के साथ करा कर सौत के रूप में बदला लिया। रुकमणी के पुत्र प्रद्युम्न ने नाना प्रकार के कौतुहल कर के मानव समाज का मनोरंजन कर प्रायश्चित करने के हेतु धर्म साधना में तल्लीन होकर अपनी आत्मा का उद्धार कर गये ।
- धर्मचंद शास्त्री
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vikrant Patni JHALRAPATAN
भरत क्षेत्र के सौराष्ट्र देश में द्वारिका नाम की नगरी थी जिसके राजा श्रीकृष्ण थे। एक दिन.....
माम प्रद्यम्न हरण
D
रेखांकन : बनसिंह
धर्मवृद्धि। धर्मवृद्धि।
पधारिए। आपके शुभ-आगमन से आज द्वारिका
धन्य हुई।
MBHARA
Cocoop
DilliANA
IH
हेद्वारकाधीश आपकी आज्ञा होतो राजमहलों में जाकर रानियों से कुछवार्ता कर आऊं
हे ऋषिवर आपको महलों में जाने से कौन रोकता है।
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
नारदजी राजभवन से शीघ्र ही महारानी सत्यभामा के महल में पहुंचे। सत्यभामा श्रृंगारादि में मग्न थी अतः नारदजी का सम्मान नहीं किया
क्या सत्यभामा को इतना घमंड होगया कि इसने मेरा सम्मान नहीं किया
AND
Co
Merry
SV
नारदजी शीघ्रहीमहलसे बाहर निकलगये सत्यभामा कोनारदजी के आने का यता
भी नहीं चला।
क
नारदजी द्वारिका से चलकर कैलाश पर्वत पर पहंचे तयासत्यभामा के अपमान की योजना बनाने लगे।
हाअच्छा होगा कियदि एकदिन नारदजी कुण्डनपुर हां इस कन्या से श्री कृष्ण की शादी करवाएं जिससे में सत्यभामा सेसुन्दर नगर गयेजहाँ पर राजा
मेरा अपमान का बदला लिया जा कन्या का श्रीकृष्ण भीष्म की पुत्री रुक्मिणी को
सकेगा से विवाह करवाएं देवा जिससे सत्यभामा का अपमान अवश्य होगा।
नारदजी ने बहुत जगह जाकर सुन्दर कन्या
की खोज की
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
नारदजी कुंण्डनपुरसे कैलाशपर्वत पर पहुंचे कैलाश पर्वत से नारदजी द्वारिकापुरी पहुंचे .. वहां बैठकररुक्मिणीकासुन्दर चित्रबनाया
(कल्याण हो, द्वारिकाधीश! हो! यहचित्रबहुत सुन्दर बना श्रीकृष्ण
देखिएन,हम आपके लिएकैसा इसे देखकर मोहित जरूर होंगे।
दुर्लभचित्र लाए हैं।
इतना सुन्दर रूप! मुनिराज यह कोई मानवी हेया कोई देवीया
अप्सरा?
पhि
06000
यहचित्रकुंण्डनपुर के राजा भीष्म की परम रूपवती पुत्रीरुक्मिणीका है।यहकन्या हर प्रकार से आपके
(योग्य है, राजन्।
है तो तोक्या,
कुंआरीही। यहबालाकुंआरी
किन्तु इसके पितानेइसकी मंगनीचंदेरीके राजा शिशुपालके साथकरदी है।
pooपण
प्राप्रपा
तबछोडिए।जबइसका विवाह तयहोही चुकाहेतबाइस प्रसंग सेक्वालाभ
सोबात नहीं कृष्ण वास्तव में, यह कन्या शिशुपालसे | विवाह नहीं करना चाहती।
एक बार हमने आपकी चर्चा इससे की थी, बस तभीसेयह मन-प्राण से आपका वरण कर चुकी है।
तब क्या किया
जाए?
10oCoomna
COOOO
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुक्मिणी का हरण लेकिन शिशुपाल से युद्ध किष्ट बिना यह संभव न हो सकेगा।
वह देरवा जाएगा। आप तो यह बताइए किरुक्मिणी के पास कब और कहां पहुंचा जाए।
ठीक है। मैं पांचवे दिन प्रातः ही पावन में पहुंच आऊंगा। अच्छातो अब चलूसीआपकी चंदेरी केमी रंग-दंग इच्छा देखू।
कुंडनपुर में एक सुन्दर । /उपवन है -पद्मवन विमणी नेवहां अशोक वृक्ष के नीचे कामदेवकी मूर्ति स्थापित की है। आज से ठीक पांचवे दिन वह आपको वहीं मिलेगी उसी दिन उसका विवाह
होना। नारदजी द्वारिका से चलकर चंदेरी आर..... और शिशुपाल के महल में पहुंचे। ।
अरहंत/अरहत।।
पधारिये. -मुनिराज स्वागत है। कृपया आसन ग्रहण करें।
food
COLAUAIL
MAMINI
शिशुपाल ने नारदजी को सम्मान पूर्वक आसम दिया ।
सुमा है तुम्हारा विवाह कुंडनपुरकी राजकुमारी रुक्मिणी के साथ
हो रहा है
आपने सही शुमा है. मुनिवर। कोई विशेष बात)
10 हाहैं। तुम अपनी लग्नपत्रिका) तो दिवाओ।
अभी लीजिष्ट,
मुनिराजा शिशुपाल ने अपनी लग्नमत्रिकामारदजी को दिखाई
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजन, पत्रिका में तुम्हारे लग्न में विधके ठीक है। ऐसा ही करूंगा। और कोई आदेश। स्पष्ट संकेत है तुम्हारे शरीरकोभी कष्ट पहुंच सकता हैं। इसलिए तम्हें कुंडनपुर सेना लेकर जाना चाहिए।
मैंने तुम्हें सचेत कर दिया। आगेतुम्हारी इच्छा अबचलता हूँ अरहंत। अरहत।।
अच्छा मुनिवर।
900
नारदजी चंदेरी से कुडनपुर चले गये।वहां रूक्मिणी
और उसकी बुआको समझा
बुझाकर मोकातर-भ्रमण के लिए निकल गष्ट। बुआजी,नारदजीकहतोगटहैं। किन्तु
श्रीकृष्ण नहीं आटतो? .
कुंडनपुर में पांचवे दिन प्रातः ही शिशुपाल के सैनिकोंने नगर में जगह-जगह डेरा डाल दिया।
muTITUm
ऐसा नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण पावन में अवश्य पहुंचेंगे। वहां चलने की तैयारी कर।
सुना है नगर में सब जगह शिशुपाल के सैनिक तैनात हैं। अगर उन्होंने हमें वहां नहीं। जाने दिया,तो?
550000
प्रजा सामकीजुटा। मैं तेरे साथ चलूंगी। देखती हं.तुके वहां जाने से कौन शकताहेर
(LOAMREVINTOTASHATTERTALIMITTHALALITISHAD
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुक्मिणीऔर उसकी बुआदासियों के साथ गीत गाती हुई पद्मवन की ओर चली, मार्ग में शिशुपाल के सैनिकों ने उन्हें रोका।
अरे तुमसब कहांजारही हो?) यहीं पवन में क्मिणी नेष्टक
-मनौती मना रखीथी।जिस दिन बसका विवाह होगा यह उपवन में कामदेव की पूजा करेगी। इसलिए यह उपवन में जारही है।
ठीक है. जाओ। परजल्दी लौटना।
शिशुपाल के सैनिकोंने रूक्मिणीको उपवन में
जाने की अनुमति दे दी। पद्मवनके समीप पहुंचने पर..... ।। बेटी,अब
अकेली हीजा। तेरी मनोकामना परी हो।
जैसी आपकी आज्ञा
ISHTRA
INIT
न्य
CRED
3209)
पड़ावन में श्रीकृष्णको न पाकर रुक्मिणी दुखी हो उठी,श्रीकृष्णा कामदेव की मूर्ति के पीछे छिपे हुए
हे कृष्ण, हेमुरारी मेरी पुकार सुनो और दर्शन
दो।
में उपस्थित हूं.देवी चिन्तात्यागो कुछ ही दूरी पर रथखड़ा है वहां मेरैबड़े भाई बलराम भी हैं। तुमचलकर स्थ पर बैठो। द्वारिकापुरीतुम्हारी प्रतीक्षा कर रही
है।
OF
रूक्मिणीको दुखी देख श्रीकृष्णसामने आष्ट
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुक्मिणी सहित श्रीकृष्ण और बलदेवरथमें बैठकर आकाशमार्ग में पहुंचे,श्रीकृष्णाने शंखनाद कर घोषणाकी.....
मयंकर युद्ध हुआ,श्रीकृष्ण की विजय हुई,वह मामणी के साथ विधिपूर्वक विवाह कर द्वारिका पहुंच गए।
हे राजा जनों,सेनापतियों, सुनो मेरा नाम कृष्ण है। मने बलपूर्वक सक्मिणी का हरण किया है। जिसमें शक्ति हो
घुडाले।
MyINDI
Mi
1
Famana
महारानी जी, आजकल आप इतनी उदास क्यों रहती हैं।
रुक्मिणी के द्वारिका आगमन के कुछ दिन बादसेहीमहारानी सत्यभामा धावित रहमेलगीथी एक दिन उनकी दासी ने उनसे पूछा.....
ASSIC
क्या बताऊं, दासी जबसे रुक्मिणी आई है, महाराज इधर आना ही भूल गए हैं। रुक्मिणी के कहने पर ही उन्होंने ऐसा किया होगा। यही सोचकर मैं दुखी
है।
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Kaa-.000cci
200ctob0
एक दिन श्रीकृष्णकीसभामें कुरूदेश के राजा दुर्योधनका दूत आया।
लटMullAIWUmmm
IIIIIIIIIUUULAUMimms HTIOUTUnintHmminimilufillinum
महाराजाधिराज द्वारिकाधीश की जय महाराज हमारे स्वामी ने आपकी सेवा में एक प्रस्ताव भेजा है। यदि आपके पुत्र हों और उनके पुत्री अथवा आपके पुत्री और उनके पुत्र तो दोनों का विवाह कर देंगे, इस संबंध में उन्होंने आपकी सहमति चाही है,
श्रीमान
4ha
C
हेदूत। राजा दुर्योधन से पहले हमारा कुशलक्षेमकहना। फिरकहना कि हमें उनका प्रस्ताव
स्वीकार है।
R
दूती रुक्मिणी
सत्यभामा को इस प्रस्ताव कीजानकारी मिली, वह मनही मनशंकित हो उठी। वह सोचने
के पास पहुंची।
माता, महारानी सत्यभामाकी आज्ञा से एक निवेदन है। यदि आपके पुत्र का विवाह पहले हुआ तो आप उनकी चोटी पर पैर रखेगी। यदि उनके पुत्रका विवाह पहले हुआ तोवह आपकी चोटी पर पैर
रखेंगी
यदि
लभी.....
Ko/ रुक्मिणी
OX
(के पहले 'पुत्रहो गया, तब तो मेरी और भी अधिक उपेक्षा होगी।
कोई अच्छी बात 'तोनहीं, लेकिन यदि उनकी यही इच्छा है तोमुझे आपत्ति नहीं।
GANO.
उन्होने दूती को बुलाया और सक्मिणी केपाससंदेश भेजा.....
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
समुन्द्र और
कुछ दिन बाद एक रात के पिछले पहर मेंरुक्मिणीनेछः स्वम देरखे। अगले दिन उन्होंने श्रीकृष्ण को उनस्वनों के बारे में बताया। हेस्वामी रात
(निर्धूम अग्नि मैंनेछःस्वनदेने...
चन्द्रमा टेरावत हाबी
/ हे प्रिये।इन स्वप्नों
का फलबहुत अच्छा है। निकट भविष्य महीतुमको अति तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा।
उगतामा
घठे स्वप में मैंने
सत्यभामा नेभीकुछ स्वयं को विमान
ऐसे ही स्वप्नदेखे। में बैठे देखा।
ऐमाह बीतने पर दोनों ने एक-एक पत्रको जन्म दिया श्रीकृष्ठा ने दोनों काजन्मोत्सव उन्नास
के साथ मनाया रुक्मिणीके नवजात पुत्र के गायब होजाने का सामाचार द्वारिका में सर्वत्र फैल गया। श्रीकृष्ण ने अपने मंत्रियों और सेनापतियों को संबोधित किया।। मंत्रिवर,रूक्मिणी पुत्र का हरण अति लज्जा और शोककी बात है। सभी दिशाओं में सैनिक भेज दीजिए। शीघ्रातिशीध्र शिशुका पता लगाई। जो आज्ञा,महाराज
VINIL
This
सेनिक बालक की रखोज में सभी दिशाओं में दौड़
पड़े।
कुछ दिन और जीत गए। किमणीपुत्र काकहीं कोई यतानही चमा एक दिन नारदर्जी श्रीकृष्णकी सभा में आए
अरहत! अरहंत!! कल्याण हो,
द्वारिकाधीशा पधारिए मुनिराज! मैं तो पल-पल आपकी प्रतीक्षा कर रहा था। रुक्मिणी के नवजात पुत्रका हरण होगया है। अभी तक पता
नहीं चला।
TV
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
सक्मिणीका पुत्र पांच दिन का हो गया। एक दैत्य आकाशमार्ग से गुजयरुक्मिणी केमहलके ऊपर पहुंचतेही उसका विमान अचानक रुक गया रुक्मिणी अपने पुत्र को लिए प्रसुति गृह में सो रही थी।
मेरा विमान यहां अपने आपक्योंरुक गया। अवश्य हीयंहा कोई जिन मंदिर है।
या फिर मेराकोई शत्रु।
an
दैत्यने अवधिज्ञान से जान लिया कि रुक्मिणी कानवजात पुत्र उसका पूर्वजन्म का शत्रु है। दैत्यरूक्मिणीसुतकाहरण कर आकाशमार्ग से चल दिया
(रेधूर्त तू ही पूर्वजन्मकाराजा मधुहै। मेरा शत्रु! तुने मेरी पत्नीका हरण किया था में
तुझे जीवित नहीं छोडूंगा।
वह शिशुको तक्षक पर्वत पर ले गया। वहां उसने एक बहुत बड़ी चट्टान देखी
हायह ठीक है। इसे इस बावनहाथ की चट्टान के नीचे दबा दूं। यह • यहीं तड़प-तड़प करमर
जाएगा।
दैल्यशिशुको चट्टान के नीचे दबा कर चला गया। बाद में....
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
रानी यहाअवश्यहीकोई जिनमन्दिर है।या कोई दैत्य रहताहै।अन्यथाहमारा विमान नहींरुकता
मघकूटनगरके राजाकालसंवर अपनी रानी कमक आश्चर्य यह चट्टानठहरिए। मैं अभी विद्याबल मालाके साथ आकाशमार्ग से गुजरे। उसचटान हिलक्यों रहीहैं? अवश्य सेइस चट्टान को हटाती है। पर आते ही उनका विमान अपने आपसक गया। हीइसके नीचे कोई जीव, हेदेव संभव हैयहां कोई चरम
दबा है। धारीरी संकट में हो। हमें देखना चाहिए
10098
स्पOJNA
वराजाकालसंवर रानी कनकमाला
केसाथ तक्षक पर्वत पर उतरे। चट्टानकैहटतेहीवहानवजात
इतना सुन्दर शिशुयहां कहां से आया? फिर शिशु दिखाई दिया राजाकालसंवर चट्टान के नीचेदबकर भीमरा नहीं। ने तुरन्त उसे अपनी गोद में उठा लिया। निश्चय ही यह बालक अति विलक्षणहें।
हे देवी, तुम्हारे कोई पुत्र नहीं है। यह पुत्र
तुम स्वीकारो।
Soon
हेस्वामी। अन्य रानियों से आपके पांच सौ पुत्र हैं।यदिआप इसेयुवराजका पद देने का वचन देंतोमें
इसे स्वीकार कर
राजाकानसंबर नेरानीकनक मालाकी शर्त मामली। बालक को लेकर दोनों मेघकूटनगर
आगरा
अपनी नगरी में पहुंचने पर राजा कालसंवरमेसभाधुलाई
मंत्रियों और सभासदों। रानीकनकमाला के गूढ गर्भ था। उसने वन में एक बधाई हो महाराज अति सुन्दर पुत्र कोजन्म दिया है। नवजात शिशु के जन्माल्सवकी
तैयारियां जोर-शोर से की जाए । जैसी आपकी आज्ञा
:
1 Dog
नवजात शिशु का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया बालककानाम प्रधुम्नकुमार रखा गया।
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
नारदजी द्वारिका में.....
क्याबताया तीर्थकर सीमंधर स्वामी ने?
PAL
हाँ,मैने नवजात शिशु के हरण का सामाचार सुना था मैतभी पुण्डरीकनी नगरी के तीर्थकर सीमंधर स्वामी के समवशरण में गया। भगवान
की स्तुति करके तुम्हारे पुत्र के बारे में पूछा
तुम्हारेपुत्रका हरणपिछली शत्रुता के कारण एक दैत्यने किया है वह उसेमारना चाहतामा किंतु ऐसानहोसका
और अबवह बालक मेघकूटनगर के राजा कालसंवर और रानी कलकमालाके पास
तोचलिए,
उसे ले आएं।
नहीं माधव | वह अभीनहीं आयेगा, भगवानसीमंधर स्वामी के अनुसार वह सोलह वर्ष बाद सोलह विद्याओंसहित लौटेगा उसके आगमन के लक्षण भी उन्होंने बताए-गूगबोल्नेलगेंगे, बहरेसुनने लगेंगे,सूरवेवृक्षहरे हो जाएंगे, जावड़ियाजल से भरजाएंगी, आदि आदि। आपने यह
में मेघकूट जाकर तुम्हारे पुत्रकोदेख भी आयाह। राजा-रानी सामाचार देकर
ने उसकाजन्मोत्सव बड़ी धूमधामसे मनाया था। बड़ा उपकार
प्रद्युम्नकुमार नाम ररबाहे उन्होंने उसका। किमा। मुनिवर।
अच्छा !
समयमीततागया। प्रद्युम्नकुमार ने सोलहवें वर्ष में प्रवेश किया। एकदिनराजा कालसंवरमे सभा बुलाई। उससमयसभासदौके अलावासभी राजकुमार भी मौजूद थे।
नारदजी प्रद्युम्न के रूपगण आदिका विस्तार | सेवर्णन कर देशांतर गमन कर गए। द्वारिका
मेंव्याप्त शोक कीमहर समाप्त हुई। सभासों! प्रद्युम्न कुमार राजकुमारों में सबसे छोटा है। किंतुबहसबसे अधिक बलवान और योग्य है। फिर मैंने रानी कनकमाला कोवचाभीदेररवाहे। इसलिए में प्रद्युम्न कुमार कोयुवराज घोषित करताहूँ। प्रद्युम्न, आगे आओ और युवराज का
पद ग्रहण करो।
आपकी आज्ञा) शिरोधार्य,
पिताजी
राजकुमारों को राजा का यह. निर्णय बुरा लगा।
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजा के अन्य यह पिताजी का पुत्रों ने आपस अन्याय है। वज्रदंष्ट्र में मंत्रणा हम में सबसे बड़े है। की। युवराज का पद उन्हें ही ।
मिलना चाहिए) था।
5)
पिताजी के अनुसार हममें सबसे अधिक पराक्रमी और योग्य प्रद्युम्न है। मेरे विचार से उसे ही गुफा मैं प्रवेश करना चाहिए।
प्रद्युम्न कुमार को दैत्य भुजंगदेव ने ललकारा
मैं भुजंगदेव हू। इस गुफा का रक्षक! यहां जिसने प्रवेश किया जीवित नहीं लौटा।
बालक हो। इसलिए समझाता हूँ। लौट जाओ। क्यों
Woven WWE
नाहक जान गंवाते हो।
| हमें इस निर्णय का विरोध करना चाहिए
यही ठीक है। किसी बहाने प्रद्युम्न को बाहर 'चलो नही!
ले
उसका
काम
तमाम
कर देंगे
विरोध करने से कुछ न होगा। क्यों न रास्ते का कांटा ही हटा दिया जाए प्रधुम्न का वध..!
राजकुमारों को उनकी माताओं की भी शह थी
राजकुमार एकत्र होकर राजा कालसंवर के पास पहुंचे
कौन हो तुम? बिना अनुमति के सफा में प्रवेश कैसे किया?
पिताजी, युवराज प्रद्युम्न कुमार सहित हम सभी भाई जिन वंदना (के लिए विजयार्द्ध पर्वत पर जाना चाहते हैं।
कृपया हमें आज्ञा दें।
भाइयों, गुफा में प्रवेश करने वाले को राज्य लक्ष्मी मिलेगी ऐसा पूर्वजों का कथन है। हम में से कौन गुफा में प्रवेश करेगा
सुभे आपका आदेश सहर्ष स्वीकार है। गुफा में मैं ही
जाऊंगा।
उत्तम विचार है। अवश्य जाओ। मेरी शुभकामनाएं और आशीष ।
प्रद्युम्न कुमार सहित सभी राजकुमार विजयार्दू पर्वत को चल दिए । विजयाई पर्वत में एक गुफा थी, जिसमें भुजंगदेव नामक एक दैत्य रहता था, राजकुमारों ने छल से प्रद्युम्न को गुफा में भेजा।
वज्रदंष्ट्र हम सब में बड़े हैं। यह जिसे आज्ञा देंगे, वही जाएगा।
वज्रदंष्ट्र के कहने पर प्रद्युम्न कुमार ने गुफा में प्रवेश किया।
मेघकूट नगर का युवराज प्रद्युम्न कुमार । यहां राज्य लक्ष्मी प्राप्त करने आया हूँ। "मुझे रोकने वाले तुम कौन हो ?
प्रद्युम्न कुमार और भुजंगदेव में युद्ध होने लगा।.
13
बकवास बंद करो। साहस हो तो युद्ध करो।
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
PAT
दोनों में काफी समय तक युद्ध हुआ,
गुफा के बाहर राजकुमार कुछ और हीसोच अंत में
कर मग्न हो रहे थे। भुजंगदेव पराजित
इतनी देर होगई। हुआ।
लगता है दैत्यने प्रद्युम्नकोमार डाला।चलोलोट
चलें। जाओ, तुम्हें मैजीवनदान देता हूँ।अबजब कभी मैं तुम्हें याद
करूं, हाजिरहोना मैंहार मानता हूँ। आजसे में आपका सेवक
जोकामबताऊं,तुरंत ।
आश्चर्य
पूराकरना। और आपमेरे स्वामी।येकोष निधियां, विद्याटसब
वह जीवित
समझे। आपकी है।यह रत्नंजटितमुकुटधारण कीजिए और मुझे आज्ञा दीजिए, क्या करूं।
(वापस आ रहा है। प्रद्युम्नको वस्त्राभूषण
मैंतो पहले ही जानताथा तुमअवश्य तदन्तर राजकुमार विपुल पर्वत के समीप पहुंचे बंधु, इस पर्वत सेसज्जित देखसभी राज्यलक्ष्मी प्राप्त करोगे। बधाई।।
शिखर पर मैं राजकुमारों ने ऊपरी
जोभीइसपर्वत शिखर चलो अब किसीऔरजगह चलें।
पर चढ़ने में सफल होगा,
(चदनाचाहता हूं। आप मनसे प्रशंसा की। (जैसी आपकी
उसेमनचाहा मिलेगा।
अनुमति दें। इच्छा ।
Tar
UTAM वजदंष्ट्र प्रद्युम्न कुमार को मारने के इरादे से चौदह अन्य स्थानों पर ले गया। प्रद्युम्न सभी जगह विजयी हुआ और उसे 14 विद्याएं प्राप्त हुई।
/CHIRajuline प्रद्युम्नकुमार पर्वत शिखर पर पर्वत शिखर पर पहुंचने पर प्रद्युम्न कुमार को एक अपूर्व सुन्दरी वहां बैठी दिखाई दी। वह असमंजस में. चदने लगा।
पड़ गया। तभी वहां वसंत नामक देव का आगमन हुआ। हे महानुभाव। यह अपूर्वसुन्दरी कौन है और इस निर्जन पर्वत पर क्यों बैठी है ? यह प्रभंजन नामक विद्याधरकी सुपुत्री है। गुरुवाणी है कि इसका विवाह राजकुमार प्रद्युम्न से होगा। गुरुमुख सेयहभी सुना है कि प्रद्युम्न कुमार कभी भी इसशिखर पर आ सकते हैं। यह उन्ही की प्रतीक्षामेंयहां बैठी है।
VOICIPM
प्रधुम्न कुमार ने अपना परिचय दियाऔर वसंतदेव की साक्षी पूर्वक उस सुन्दरीसेविवाह किया
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
LIO
कालकर
।
हमने प्रद्युम्न को
मेघकूट नगर पहुंचने पर वजदंष्ट्र प्रद्युम्न तथा अन्य राजकुमारों केसाथ मारने के जितनीअधिक
राजसभा में उपस्थित हुआ। कोशिश की वह उतनाही अधिक शक्तिवान,विद्यावान
पिताजी। प्रणाम। हमसभी
भाईसानंदलौट आए हैं। होता गया।यदि यह इसशिखर)
प्रद्युम्न सचमुच बहुत सेभीसकुशल विजयी होकर
सशुभ वीर है उसनेसोलह
समाचार लौट आया तोहमयहींसे
स्थानोंसेसोलह
/सेमुझे बड़ा वापस लौट चलेंगे।
लाभ प्राप्त किए
हर्षहुआ।
प्रधुम्नातुमसे ठीक है।यही
मुझे यही करना चाहिए।
आशा थी। जाओऔर शिघ्रही
यह
समाचार -ATESne
अपनी प्रद्युम्न कुमार शिखर से सकुशल ।
जोआज्ञा,
माकोदो। नीचे उत्तर आया
पिताजी। प्रधुम्न कुमार रानी कनकमाला के महल में गया।।
प्रद्युम्न! सुनो, में तुम्हारीमानहीं हैं।। माताजी.प्रणाम ! आपके आशीर्वाद से मैंने सोलह भाभ
तुमतो हमें जंगल में मिलेथे। तुम्हारे
बचपन में ही में तुम्हारेरुप पर सुरवीरहो। तुमने सोलह प्राप्त किए।
मुग्ध हो गई थी। उसी समय लाभ प्राप्त किए-यह सुनकर
मैंने एक कामनाकीथी मेरा रोम रोमप्रसन्न
जब तुमतरूण हो होउठा | मेरीइच्छा
जाओगे, तुम्हे अपना है कि अब तुम
पति बनाऊंगी। अतः सत्रहवा लाभ भी
सत्रहवेंलाके प्राप्त करो।
रूप में मुझे
प्राप्तकरो। धिक है तुम्हारीकामनाको। ऐसाधृणित विचार! हेमा चित को स्थिरकरो। इस
अशोभनीय विचार को HTROL
तुरंतत्याग दो। प्रद्युम्न रानी कनकमालाको समझाकरदरखी । हे स्वामी अबमेराजीनाबेकार है, जिसेहमने पुत्र की तरह मन अपने महल में चला गया और अपने प्रयास पाला-पोसा, उसी प्रद्युम्न ने मेरी इज्जत लूटनेका प्रयास में असफल होनेपररानीकनकमालाने अपना
किया। आपके रहते हुए क्या..... रूप निगाड लिया।राजा कालसंवर के आने
राजाकालसंवर ने रानीकी पर उसने प्रद्युम्न की झूठी शिकायत की।
शिकायत पर विश्वासकर लिया
बस,बस आगे कुछनकहो उस नीच को अपने किए काफल
भोगना पड़ेगा।
ODC
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
कनकमाला । अब तो मुझे तभी शांति बहुत उग्रहो मिलेगी, जब मैं उसका उठी
रक्तरंजित कटा शीश
देख लूंगी।
राजा कालसंवर ने अपने सबसे बड़े पुत्र वज्रदंष्ट्र को बुलाया। तुमसब भाई दुष्ट प्रद्युम्न को
हम आपके आदेश कहीं एकांत में लेजाकर मार
का पालन करेंगे। डालो। उसने बड़ा नीच काम
आप निश्चिंत किया है। मैं उसकी सूरत
रहें भी नहीं देखना चाहता
हागा
वजदंष्ट्र और उसके अन्यभाई प्रद्युम्न को बहकाकर जल
क्रीड़ा के लिए एक राजा कालसंवर ने रानी को प्रद्युम्न को मरवाने
बावड़ी पर से का वचन दिया।
गये। प्रयुम्न कुमार को विद्याबल से वजदंष्ट्र और जैसे ही मायावी प्रद्युम्नकुमार बावड़ी में कूदा,राजकुमारों ने उसे डुबाने की कोशिश की अन्य राजकुमारों केमन में किये पाप कापता
( इसे दबोचलो। चल गया। उसने तुरंत अपना मायावी
हम इसे यहीं डुबाकर मार डालेंगे। रुप बनाया ! असली प्रद्युम्न कुमार पेड़ पर चद गया और अपने मायावी रुपको बावड़ी में कुढ़ाया अरे प्रद्युम्न! वहां क्या खड़े हो। कूदोन सच बड़ामजा है अभी
आया।
1980
S
अरे यहक्या हुआ।इस
बावड़ी को शिलासे
किसने दकादिया
जब तट पर केवल एक ही राजकुमार वह राजकुमार राजाकाससंवर पिताजी अनर्थ हो गया। प्रद्युम्नकुमारने रह गया तब असली प्रद्युम्नकुमार कीसभा में पहंचा
सभीभाईयों को बावड़ी में कैद कर दिया सनबावड़ी को एक विशालशिला
है। मुझे तोकेवल इसलिए छोड़ दिया । सेदक दिया
कि आपको रखबरकर सर्व कुषकीजिए मैंने! हा हा हा । तुम
(सभी भाईयों की जान खतरे मेंहै
महाराज पिताजी के कहने पर मुझे
अच्छा। उसकीयह वहअकेले आपके मारने आए थेन! जाओ,
मजाल? मैंदेखता
हूं वश में नहीं आयेगा (औरजोकुछ मैंने किया है,
सेना लेकर जाकर पिताजी को
जाइट। बता दो।
SNIWANWAR
शिला सेद्वार दक जाने सेक को छोड़कर । सारे राजकुमार बावड़ी में कैद होगा।
|| राजा कालसंवर सेना लेकर बावड़ी की और चल दिया ।
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्न कुमार ने विद्या के प्रभाव से एक विशाल सेना बनाली, भीषण युद्ध हुआ। कालसंवर के बहुत सैनिक मार गए। आरिवर प्रद्युम्न कुमार ने कालसंवर को नागपाश में बांध लिया।
अरे कोई है। मुझे इस नागपाश के बंधन से मुक्त कराओ।
पिताजी, आपके सैनिक तो भागे जा
तभी आकाश मार्ग से नारदजी वहां आ पहुचनालायक अरे! कालसंवर! प्रद्युम्नने। जिसे तुम्हारी यहदशा मैंने पाला। किसने की? युवराज का पद
सदिया। उसी बेटेने महाराज
तुमने ऐसा क्यों किया, प्रद्युम्न?
मुनिवर, दुश्चरित्रा मां के मिथ्या आरोप पर विश्वास कर इन्होंने मुझे मार डालने कीकोशिश की। मैंने उसका प्रतिरोध किया है, बस।
प्रद्युम्न कुमार नेकनकमाला कादुश्चरित्र नारद को बताया।
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
वत्स। इस निंद्य चर्चाको बंद करो। रानीकनकमात्मा के पूर्व भव के राजन!आपने प्रद्युम्नका लालन-पालन किया। इसके आपके यहां रहने कारण यह सब हुआ। इसे भूल जाओ और राजाकालसंवरकोमुक्त करो की अवधि पूरी हुई। अब इसे अपने पिता कृष्ण और माता रुक्मिणी के
पास जाने की अनुमति दीजिए। जैसी आपकी आज्ञा।
तो क्या यहीं से विदा लेंगे। नगर तक नहीं चलेंगे।
प्रद्युम्न कुमार की जय
LAEXCOM
हातात! चलिए, महलोंतक प्रद्युम्नकुमार ने राजा कालसंवर को नागपाशसे और उनके पांच सौराजकमारों चलिए। मुझे माता कनकमालासेभी कोबावड़ी से मुक्त किया। मृत सैनिकों कोजीवन दान देकर अपनी सेनाकोलुप्तकर दिया। आज्ञा लेनी है। प्रद्युम्नकुमार रानी कनकमाला से आज्ञा लेने पहुंचा
हे माता! मैं अपने जनक -जननी के पास जा रहा हूँ। अज्ञानवश मुझसे आपका जो अनादरहूआ, उसके लिए क्षमा करें, मुझे द्वारिका जाने की अनुमति
दें। बेटा, क्षमा तो मैं चाहती हूँ। जाने किस पूर्व यापके कारण मेरी बुद्विभ्रष्ट हो गई। मैं अपने को कभी क्षमा नहीं कर सकूगी। तुम हंसी-खुशी जाओ तुम्हारा सदा कल्याण
हो।
LCOM
DON
राजा कालसंवर,रानी कनकमालाऔरमेधकूट वासियों ने प्रद्युम्न और नारदजीकोअश्रुपूरित नयनों से विदा किया।
हेतात! द्वारिका अभी
कितनीदर है।
प्रद्युम्नकुमार ने विद्याबलसे एक सुंदर । इस समय हम विद्याधरों विमान बनाया नारदजी और प्रद्युम्नने के देशसे गुजर रहे हैं।
आकाशमार्ग से द्वारिकापुरी के लिए प्रस्थान द्वारिका अभी दूर है। किया। उन्होंने शीघ्रहीकाफी दूरी तयकर
ली।
bea
Pen Dang
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुछ दूरी और निकलने के बाद एक स्थान पर सैनिकों की एक टुकड़ी जाती हुई दिखाई दी।
हे पुज्यवर! तनिक नीचे तो देखिए। कोई सैन्यदल जा रहा है।
हां वत्स ! दुर्योधन की पुत्री राजकुमारी उदधि कुमारी सैनिकों के साथ द्वारिकाजा रही है। पहले इसका विवाह तुम्हारे साथ होना था। किन्तु तुम्हारा हरण हो गया इसलिष्ट अब इसका विवाह सत्यभामा
के पुत्रभानुकुमार के साथहोगा।
SIVE
हे भाई! तुम कौन हो
प्रद्युम्न कुमारके मन में उदधिकुमारीकोदेखने की लालसा जंगी। हेतात।
जाओ। किन्तु कहीं आपकी आज्ञा होतो
कोई विघन खड़ा हो। मैं सेना देव आऊं
नारदजीने प्रद्युम्नको दुर्योधन और श्रीकृष्ण के पूर्व निश्चय के बारे में विस्तार से
बताया। और यों मार्ग रोक कर क्यों खड़े हो गए हो?
हम भील राजा हैं। श्रीकृष्ण की आज्ञा सेद्वारिका जानेवाला।
से कर वसूल करते हैं।
FDMA
Anil
विमानको आकाश में रोककर प्रद्युम्न कुमार नीचे जमीन पर उतर आया। और एक भील का वेष बनाया और सैनिकों का मार्ग रोककर
रखड़ा हो गया। कर के रूप में हमें तुमको क्या देना होगा?
तुम्हारे पासजो राजकन्या है, उसेही मैं करके रूप में चाहता हूं।
सूख! यह कैसे
हो सकता
AJENDRA
ठठाललललललल
19
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
'बचाओ बचाओ
पकड़ो पकड़ो
अरे यह तो कोई मायावी है, आकाश में उड़ गया।
Bec
कैसे हो सकता है!!! हा, हा, हा, लो देखो, ऐसे मैं तुम्हारी राजकुमारी को हर कर आकाश मार्ग से जाता हूं। किसी में सामर्थ्य हो तो आए और इन्हें छुड़ाले ।
बहुत सुंदर नगरी जान पड़ती है। आपकी • आज्ञा हो तो मैं नगरी को देख आऊं
A A
प्रद्युम्न कुमार का विमान द्वारिकापुरी के समीप पहुंचा
नारद जी ने प्रद्युम्न को सचेत किया
बेटा प्रद्युम्न! ये ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं, ये भव्य मन्दिर देख रहे यह यादवों की नगरी है बेटा! यहां तुमने कोई कौतुक किया तो वे बहुत उत्पात हो नहीं है तुम्हारे पिता श्री कृष्ण की राजधानी द्वारिकापुरी मचाएंगे।
TOROD
Saannal na
दैत्य है
20
भील रूपी प्रद्युम्न कुमार उदधि कुमारी को लेकर आकाश में खड़े अपने विमान में जा पहुंचा।
हे तात!
मेरी रक्षा कीजिए।
यह भील मुझे जबरन ले आया है। मेरे पिता ने मुझे महारानी रुक्मिणी के पुत्र को देना विचाराथा इसीलिए मैं द्वार जा रही थी, कृपया। इसके चंगुल से मुझे मुक्त कराइए।
बेटी। विसाय 'मत कर। शोक त्याग। यह भील नहीं है। तेरा पति रुक्मिणी का पुत्र प्रद्युम्न है। हम लोग भी द्वारिका ही चल रहे हैं।
नारद जी ने उदधिकुमारी को धीरज बंधाया। भील का रूप त्याग | प्रद्युम्न अपने असली रूप में आ गया। उदधिकुमारी प्रसन्न हो उठी।।
नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा ! मैं गया और आया
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्न कुमार ने एक युवक को एक घोड़े पर चदे देवा, विद्याबलसे वह जान गया कि युवक सत्यभामा सुत भानुकुमारथा । प्रद्युम्नने विद्याद्वारा एक सुंदर घोड़ाबनाया और वृद्वका रूप कर भानुकुमार के पास पहुंचा।
हे वृन्द ! क्यायह रहा है तो। और मैं इसेबेचना) घोड़ा तुम्हारा है? चाहता हूं।
घोड़ा देखने में तो बदियालगता है। किंतु खरीदने. से पहले मैं इसकी परीक्षालूंगा
अवश्य।
(आइ, उई, मर गया ।
भानुकुमार घोड़े परसवार होगया और उसकी चाल देखने लगा अचानक घोड़ासरपट दौड़ा। भानकमारको जमीन पर पटक कर घोड़ा वापस प्रद्युम्न के पास आ गया
प्रद्युम्न ने द्वारिका में बहुतसे कौतुक किये।
अहो भाग्य! कृपया इच्छाकार आसन पर
विसजें।
नगर के मध्य में एक सुन्दर महल था। विद्याबल से प्रद्युम्न को पता चल गया कि वह महल महारानी रुक्मिणीकाथा क्षुल्लक का रूप धारण कर वह महलमें पहुंचा।
O
OESDehne
हेमाता! तुझे भव-भव में दर्शन विशुद्धि प्राप्त हो।
Brope
रुक्मिणी जिन भल भी उसने क्षुल्लकजीको । सम्मान के साथ आसन पर बैठाया।
21
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
रूक्मिणी क्षुल्लक जी से धर्मचर्चा करने लगी। हे पूज्यवर। सम्यकत्व के कितने अंग
होते हैं? देवी सम्यकत्व के आठ अंगहोते हैं) हे श्रद्धेया नारदजी
द्वारा बताए पुत्र आगमन के सभी लक्षण प्रकट हो. देस गए हैं। किंतु वह कहीं नहीं दिखाई। ध्यानसे देखो,मैं देता।यहम्या रहस्य है। ही तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न
क्षुल्लकजीरूपी प्रद्युम्नने आठ अंगोका विस्तारसे विवेचन किया। प्रद्युम्न के आगमन के
नारदजी द्वारा बताए लक्षण प्रकट होने लगे। गूंगे बोलने, बहरेसुनने लगे सूखेवृक्षहरेहो गए,कुरूपरूपवान हो गए आदि
क्षुल्लक का रूप त्याग प्रद्युम्न ने अपना असली रूप प्रकट किया। रुक्मिणीने प्रद्युम्न को अंक में भर लिया,वह हर्ष से पागल हो उठी।
481AL उसी समय महारानीसत्यभामा की दासियां आती दिखाई दी। उन्हें देख रुक्मिणी। बहुत चिंतित हो उठी।
क्या बताऊं बेटा, देवयोगसे हे माता! इन दासियोंको आता
तुम्हारा तो हरण होगया था आज देख आपउदास
सत्यभामाजीके पुत्र काउदधिकुमारी और चिंतित
के साथ विवाह होगा प्रतिज्ञा के क्यों हो गई
अनुसार आज सत्यभामाजी मेरी चोटी पर अपना पैर रखेंगीये दासियां मुझसे मेरी चोटी मांगने आ रही हैं।
5pno
सक्मिणी ने पूर्व में की गई प्रतिज्ञा प्रद्युम्न को बतलाई।
PREG
260
93
यह कभी नहीं होगा,मातासल्यभामाजी के पुत्र का विवाह भी उदधिकुमारी केसाथ नहीं होगा वह तो तुम्हारी बहू बनेगी। विश्वास नहो तोचलकर खुद देखलो। वह आकाश में नारदजी के साथ मेरे विमान में बैंठी है।
छळORE
सच? चल तो सही। मैं भी तो देखू रूप की दुलारी को अपनी प्यारी बहू को।
प्रद्युम्न कुमार रुक्मिणी को लेकर विद्याबल से आकाश में उड़ गया। महल में चारों तरफ शोर मच गया।
22
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोई चिन्ता नहीं। मेरे प्रज्यों को आज अपने बालक के बल-पराक्रम का परिचय मिल'
जाएगा।
दास-दासियों | यह क्या हुआ प्रद्युम्न अब का शोर सुनकर तो यादव अवश्य ही तुझसे आकाशमार्ग युद्ध करेंगे। सेजाती हुई रुक्मिणी युद्ध की आशंकासे विचलित हो उठी।
पकड़ो पकड़ो
/ अरे जल्दी से द्वारिकाधीशकोसूचना
दो।
देखो कोई मायावी रुक्मिणी माता का हरण करके लेजा रहाहै।
V
n.
nnn
हे वीर और विलक्षण बालक! मैं तुझे मल्लयुद्ध के लिए ललकारता
हे सुभट शिरोमणि! मुझे आपकी चुनौती स्वीकार है।
सूचना मिलते ही श्रीकृष्ण ने रणभेरी बजवादी। आननफानन में यादव सेना एक्य हो गई और आदेश की प्रतीक्षा करने लगी। रूक्मिणीको विमान में बैठाकर प्रधुम्न तुरंत 1769 वापस आ गया। भुजंगदेव और विद्याओं की सहायता से उसने एक विशाल सेना बनाई।दोनों सेनाओंमें डटकर युद्ध हुआ।
युद्ध में यादव सैनिक अधिक संख्या में मारे गए यह देख श्रीकृष्ण ने प्रद्युम्न को मल्लयुहू की चुनौती दी।
23
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
विमान में बैठी रुक्मिणी व्याकुल हो उठी।
मुनिराज ! प्रद्युम्न नहीं जानता कि वह अपने
) ठीक है। जाताहूं। पिता से ही युद्ध कर रहाहै। कृपया इसे रोकिए नहीं तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा।
नारद जी विमान से उतर कर नीचे आष्ट और पिता-पुत्र युद्ध को बंद कराया हे कृष्ण। यह युवकही तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न है। पिता-पुत्र में युद्ध कैसा?
क्या
??
प्रद्युम्न श्रीकृठण के चरणों में | हेतात ! मुझे क्षमा करें। मुझसे बड़ा अपराध होगया।मैं सभी गिर पड़ा! श्रीकृष्ण ने बड़े स्नेह सैनिकों को अभी जीवन दान देताहूं। आकाश से विमान को से उसे अंक में भर
उतार कर माताजी को लाता। वत्स! मुझे तुम्हारी लिया।
वीरता और विद्याबल पर गर्व है।
माधव !विमान में रुक्मिणी जी के साथ दुर्योधन सुता उदधिकुमारी
भी है।
24
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
BM
हेमंत्रियों प्रद्युम्न और उदधिकुमारी के विवाह की तैयारियां कीजाष्टं। विवाह बड़ी धूमधाम से होना
चाहिए जो आज्ञा महाराज!
हेमाधव । राजाकालसंवर और रानी कनकमाला प्रद्युम्न के पालन करने वाले माता-पिताहे। यह विवाह उनकी साक्षीसे होनाचाहिए माताजी ! प्रतिज्ञा के अनुसार अब आपको महारानी सत्यभामा जी की चोटीकटवाकर मंगवासेनी
चाहिए।
श्रीकृठणने राजाकालसंवरऔर रानी कनकमाला को बुलानेदूत भेज दिया।
प्रद्युम्न के विवाह के दिन
पद
नहीं बेटा! वह बड़ी हैं। मुझसे भीअधिक तुम्हें उनका आदर करना चाहिए। बड़ों का सम्मान करनाही श्रेष्ठपुरुषों का आचरण होता
है।
Res
DO
goo000000000
उदधिकमारी के साथ-साथ प्रद्युम्नकुमार का अन्य अनेक कन्याओं से विवाहहुआ उन्होंने दीर्घकाल तक सांसारिक सुख भोगा।
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
आरिवर प्रद्युम्नकुमार को वैराग्य हो गया वह अपने पिता के पास दिगंबर दीक्षा लेने की अनुमति प्राप्त करने गए।
हे पिताश्री। आपकी कृयासेमैंने समस्त सांसारिक सुरवों को भोगा है। किंतु संसार अनित्य है। इसलिए मैं दिगम्बर दीक्षा लेना चाहताहूं कृपया अनुमति और आशीष
हेवल्स वैसेतोअभी तुम्हारी उम्र वैराग्य योग्य नहीं है। जीवन में पुत्र को पिता से भी आगे निकलना चाहिए ऐसा सोच मैं तुम्हें अनुमति देता हूं। मेरा आशीष सदैव तुम्हारे साथ है
श्रीकृष्ण की अनुमति ले प्रद्युम्नकुमार माता रुक्मिणी के पास गए।
हे मां , में दीक्षा लेने जा रहा हूं। पिता जी की अनुमति मिल गई है। कृपया आप भी अनुमति
बेटा! तेरी विरक्ति देख मुझे भी वैराग्य हो रहा है। तेरे साथ मैं भी दीक्षा लूंगी।
HOMBOOT
हमभी आर्यिका व्रत धारण करेंगी
प्रद्युम्न कुमार के वैराग्य की खबर सुनकर रति, उदधिकुमारी आदि रानियां सांसारिक भोगों से विरक्त हो गई
हे स्वामी ! आप ही हमारे सर्वस्व' हैं। अतः हम भी आर्यिका.....
Monoar
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
प
উ
प्रद्युम्न कुमार माताओं- रानियों के साथ गिरनार पर्वत पर भगवान नेमिनाथ के समवशरण में
पहुंचे।
रुक्मिणी आदि माताओं एवं रति आदि रानियों के साथ प्रद्युम्न कुमार दीक्षा लेने चल दिए।
हे गुणसागर !
हम सब की कामना है कि आप इस मार्ग पर चलकर जयी हों तथा आत्म कल्याण, करें ।
27
द्वारिका वासियों ने प्रद्युम्नकुमार के वैराग्य की अनुमोदना की।
हे नाथ! आम भव- बंधन से मुक्त करने वाले, जन्म-मरण का नाश करने वाले हैं। कृपया हमारा कल्याण कीजिए। हमें दिगम्बर दीक्षा दीजिए।
ICC
प्रद्युम्न कुमार ने भगवान नेमिनाथ की साक्षी से दिगम्बर दीक्षा ली। माताओं और रानियों ने आर्थिका व्रत धारण किया।
TROTREY SANJALI
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ON
VIDEO
घोर तपकरके प्रधुम्नकुमार गिरनार पर्वत के तीसरे शिरबर से
मोक्षगामीहए।
28
Vikrant Patni JHALRAPATAN
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vikrant Patni JHALRAPATAN
प्रकाशक : आचार्य धर्म श्रुत ग्रन्थ माला, गोधा सदन,
अलसीसर हाउस, संसार चंद रोड़, जयपुर सम्पादक : धर्मचंद शास्त्री लेखक : मुनि अमित सागर जी चित्रकार : बनेसिंह जयपुर
प्रकाशन वर्ष : १९८७
अंक
मूल्य : १०.00
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________ जैनाचार्यों द्वारा लिखित सत्य कथाओं पर आधारित जैन चित्र कथा आठ वर्ष से 80 वर्ष तक के बालकों के लिए ज्ञान वर्धक, धर्म, संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी देने वाली स्वस्थ, सुन्दर, सुरुचिवर्धक, मनोरंजन से परिपूर्ण आगम कथाओं पर आधारित जैन साहित्य प्रकाशन में एक नये युग का प्रारम्भ करने बाली एक मात्र पत्रिका जैन चित्र कथा ज्ञान का विकाश करने वाली ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और चरित्र निर्माणकारी सरल एवं लोकप्रिय सचित्र कथा जो बालक वृद्ध आदि सभी के लिए उपयोगी अनमोल रत्नों का खजाना, जैन चित्र कथा को आप स्वयं पढे तथा दूसरों को भी पढ़ावे। विशेष जानकारी के लिए सम्पर्क करें। आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला संचालक एवं सम्पादक-धर्मचंद शास्त्री श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गुलाब वाटिका लोनी रोड, जि० गाजियाबाद फोन 05762-66074