Book Title: Prachin Jain Smaraka Mumbai
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
Catalog link: https://jainqq.org/explore/010444/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website. Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility. If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर सेवा मन्दिर दिल्ली ४८० सख्या 2:०२५. काल नं० क्रम सख्या १७.१५ पाव खण्ड Page #3 --------------------------------------------------------------------------  Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. PARAN .... बम्बई प्रान्त प्राचीन जैन स्मारक oooo 00000००००००००००००००००००००००००००००००००००००६-000000*. 50000000 संग्रहकर्ता:---.. जैनधर्मभृपक धर्मदिवाकर ब्रह्मचारी शीलादजी. 37० सम्पादक "अनमित्र"-यूरत । NuocHous-ooooooooooooooooooooo .... ८० १६० जोहो बाबार-बम्बई । वीर सं५ ५.५ १. स हर५ प्रथमाति संख्या १०१० -रह आने लागतगात्र । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ সাঙ্গमाणिकचन्द पानाचन्द जौहरी, १६० जौहरी बाजार, बम्बई । मूलचन्द किसनदास कापडिया, "अनविजय" प्रिप्रस-सूरत। - - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) उपोद्घात । इस पुस्तकके लिखनेके प्रयासमें मुख्य कारण सेठ वैजनाथ सरावगी (मालिक फर्म सेठ जोखीराम मूंगराज नं० १७३ हैरिसन रोड कलकत्ता) मंत्री प्राचीन श्रावकोडारिणी सभा कलकत्ता हैं। उनकी प्रेरणा हुई कि जो मसाला सर्कारी पुरातत्त्व विभागका यत्र तत्र फैला हुआ है उसको संग्रह करके यदि पुस्तकाकार प्रकाश कर दिया जावे तो जैन इतिहासके संकलनमें बहुत सहायता प्राप्त हो। उनकी इस योग्य सम्मतिके अनुसार बंगाल बिहार उड़ीसाके और युक्त प्रांतके गजेटियरोंको देखकर इन दोनोंके स्मारक सन् १९२३ में प्रकाशित किये गए । अब यह बम्बई प्रांतका जैन स्मारक नीचे लिखी पुस्तकोंको मुख्यतासे देखकर लिखा गया है। (1) Imperial Gazetteer of Boray Presidency ___Vol. I and II ( 1909 ). (2) Revised list of antiquarian remains in Bombay Presidency by Cousins ( 1897 ) A, S. of Indi. Vol. XVI. (3) Report of Eluri Brahu and Juin cilvus in Western India ( 1830 ) by Burgess A. S. of India Vol. V. (4) Belgaum Gazetteer (1884) Vol. XXI. (5) Dharwar Vol. XXII. (6) Architecture of Ahmed thad by Hope Fergusson (1805). Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) (7) Thana Gazetteer Vol. XIII. (8) Bijapur Vol. XXIII. (9) Kolhapur ,, (1886) Vol. XXIV. (10) Sholapur ,, (1884) Vol. XX. (11) Nasik , (1888) Vol. XVI. (12) Baroda , (1883) Vol. III. (13) Rewakantha (te. G. (1880) Vol. VI. (14 Ahmedabad G. (1879) Vol. III. (15) Khundrsh G. (1880) Vol. XII. इनके सिवाय और भी कुछ पुस्तकें देखी गई। कुछ वर्णन दिगम्बर जैन डाइरेक्टरीसे लिया गया। हमको पुस्तकोंकी प्राप्तिमें Imperial Library of CalCutia zile Bombay Royal Asiatic Society Litrary B..!ny से बहुत सहायता प्रात हुई है जिसके लिये हम उनके अति आभारी हैं । जो कुछ वर्णन हमने पढ़ा वही संग्रहकर इस पुस्तकमें दिया गया है । जहां कहीं हम स्वयं गए थे वहां अपना देख हुआ वर्णन बढ़ा दिया है । जहां दि० जैन मंदिर व प्रतिमाका निश्चय हुआ वहां स्पष्ट खोल दिया है। जहां दिग० या वे का नाम नहीं प्रगट हुआ वहां जहां जैसा मूलमें था वैसा जन मंदिर व प्रतिमा लिखा गया है । इस बम्बई प्रांतके तीन विभाग है- गुजरात, मध्य और दक्षिण, जिनमें से गुजरात विभागमें अधिकांश श्वेताम्बर जैन मंदिर हैं तथा मध्य और दक्षिणमें मुख्यताम्ये दिगम्बर जैन मंदिर है ऐसा अनुमान होता है। इस बम्बई प्रांतमें जेन राजाओंने अपनी अपनी वीरताका यशस्तम्भ बहुत कालतक स्थापित रक्खा, यह बात इस पुस्तकके Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) पढ़नेसे विदित होगी । जबसे जैन राजाओंने धर्मकी शरण छोड़ी और संसार वासनाके वशीभूत हुए तबसे ही उनकी श्रद्धा शिथिल हो गई । इस शिथिलता अवसरको पाकर अजैन धर्मगुरुओंने उन्हें अपना अनुयायी बना लिया और उनहींके द्वारा बहुत कुछ जैन धर्मको हानि पहुंचाई गई - राजा के साथ बहुत प्रजा भी अजैन हो गई । उदाहरण - कलचूरी वंशज जैन राजा बज्जालका है जिसको सन् १९६१-११८४ के मध्यमें वासव मंत्रीने शिख धर्मी बनाया और लिंगायत पंथ चलाया। इससे लाखों जेनी लिंगायत हो गए देखो ष्टष्ट ११३ || इस कारण बहुतसे जैन मंदिर शिव मंदिरमें बदल दिये गए जिसके उदाहरण पुस्तक पढ़नेसे विदित होंगे ! जेन राजागगोंने बहुतसे सुन्दर २ जैन मंदिर निर्मापित कराए और उनके लिये भूका संकेत पुस्तकले मिलेगा। तथा दोरा वंशी अनेक कूट सी जैन राजाओं राज्य किया है। गुजरात में काकी, राष्ट्र राजा ने धर्म मानेवाले हुए हैं। गुजरात और दक्षिण बहुत सोलंकी वंशधारी गुरुराज लेकर देव (सन ९६१ से १३०४) तक जो राजा हुए वे प्रायः सव ही जैन धर्मवारी थे इनमें सिद्धराज और कुमारपाल प्रसिद्ध हुए हैं । वेदराबाद में एलूरा गुफाके जैन मंदिर व बीजापुर में ऐहोली और बादामीकी जैन गुफाएं दर्शनीय हैं - शिल्पकलाका भी उनमें बहुत महत्त्व है मुसलमानोंने बल पकड़कर कितने जैन मंदिरोंको मसजिदोंमें बदला यह बात भी पुस्तकसे मालूम पड़ेगी । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) हरएक इतिहासप्रेमी व्यक्तिको उचित है कि इस पुस्तकको आदिसे अंततक पढ़कर इससे लाभ उठावे और हमारे परिश्रमको सफल करे । तथा जहां कहीं हमारे लेखमें अज्ञान और प्रमादके वश भूल हो गई हो वहां विद्वान पाठकगण सुधार लेवें तथा हमें भी सूचना करनेकी रूपा करें। जन जातिके भारतीय इतिहास संकलनमें यह पुस्तक बहुत कुछ सहायता प्रदान करेगी। इसका प्रकाश जैन धर्मको प्रभावनामें सदा उत्साही सेठ माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी (नं० ३४ ० जौहरी बाजार, बंबई) की आर्थिक सहायतासे हुआ है तथा प्रचारके हेतु लागत मात्र ही मूल्य रक्खा गया है। जैन धर्मका प्रेमी-- बम्बई, ब्र. सीतलप्रसाद। ता. ७-११-१९२". ॐ AR S4 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ ) बम्बई : न्तके प्राचीन जैन स्मारक की #The बम्बत है । यथार्थ यह कई । समूह है। उसके मुख्य उसमें है - सिन्ध, गुजरात, कोफन बम्बई प्रांत और ऐतिहासिक यावा, खानदेश, और कर्नाटक | इसमें लगभग एकलाख यह मान्त जितना लम्बा चौड़ा है तेईसहजार मील स उतना महत्वपूर्ण भी है। या वह आज देशके प्रान्तोंका सिरताज है वैसा ही प्राचीन इतिहास भी वह प्रसिद्ध रहा है । ईस्वीसन्से हजारों वर्ष पूर्व इस प्रान्तका बहुत दूर के पूर्वी और पश्चिमी देशोंसे समुद्रद्वारा व्यापार होता था | भृगुकच्छ (भरोच), सोपारा, सूरत आदि बड़े प्राचीन बन्दर स्थान हैं । इनका उल्लेख आजसे अढाई हजार वर्ष पुराने पाली ग्रंथोंमें पाया जाता है । अधिकांश विदेशी शासक, जिन्होंने इस देशपर स्थायी प्रभाव डाला, समुद्र द्वारा इसी प्रान्त में पहले पहले आये । सिकन्दर बादशाह सिन्धसे समुद्र द्वारा ही वापिस लौटा था । अरब लोगोंने आठवीं शताब्दिके प्रारम्भमें पहले पहल गुजरात पर चढ़ाई की थी । ग्यारहवीं शताब्दिके प्रारम्भमें महमूद गजनवीकी गुजरातमें सोमनाथके मंदिरकी लूटसे ही हिंदू राजाओंकी सबसे भारी पराजय हुई और हिन्दू राज्यकी नींव उखड़ गई । सत्रहवीं शताव्दिके प्रारम्भमें ईस्टइंडिया Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) कंपनीने पहले पहल इसी प्रांतमें सुरत, अहमदाबाद और केम्बेमें अपने कारखाने खोले थे । मुगलोंके समयमें हिन्दूराष्ट्रको पुनर्जीवित करनेवाला शेर शिवाजी इसी प्रांतमें पैदा हुआ था और वर्तमानमें राष्ट्रीय भावोंको जागृत करनेका अधिकांश श्रेय बम्बई प्रांतको ही है । इस प्रकार भारतीय इतिहासकी कई एक धारायें इसी प्रांतसे प्रारंभ होती हैं । भारतवर्ष के प्राचीनतम जैन, हिन्दू और बौद्धधर्मोका इस प्रांतसे घनिष्ट सम्बन्ध रहा है । बम्बई प्रान्तसे जैन, हिंदू और हिंदुओंका परम पवित्र तीर्थक्षेत्र, बौद्ध धोका पौराणिक कृष्ण महाराजकी हारिकापुरी इसी सम्बंध ! प्रान्तने और बनवायके समयके रामचन्द्र के अनेक ली स्थान जनम्थान आदि नासिकके आसपास इसी प्रांत के आन हैं। महात्मा कुटने अपने पूर्व गो कई बार प्रांत समारा आदि स्थानों जन्म लिया था। ईसाणे कई साली पूर्व इस प्रांत बौद्ध धर्मका नदार हो चुका था। यतः धर्म जहांले अब लुप्त हो गया है पर सती कीर्ति अक्षय बनाये के लिये इस प्रांतमें सैकड़ों मागील गुफायें आज भी विद्यमान है जो अपनी कारीगरीसे संसारको जाश्यान्वित कर रही हैं। अनन्टा, कन्हेरी, एलोरा, पीतलखोरा, भाजा आदि स्थानोंकी गुफायें तो संसारमें अपनी उपमा नहीं रखतीं। प्रति वर्ष दररसे हजारों देशी और विदेशी यात्री इन स्थानोंकी भेंटकर अपने नेत्र सफल करते हैं । जैन धर्मका तो इस प्रान्तसे असन्त प्राचीन और बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) बिहार प्रांतको छोड़ अन्य और किसी प्रांतमें बम्बईके बराबर जैनियोंक सिद्धक्षेत्र नहीं हैं। पुराणोंसे विदित होता है कि पूर्वकालमें यह प्रांत करोड़ों जैन मुनियोंकी विहार भूमि थी। बाईसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथके पांचों ही कल्याणक इसी प्रांतमें हुए हैं। उनका मुक्ति स्थान गिरनार आज अनेक जैन मंदिरोंसे अलंकृत हो रहा है जिसकी बन्दना कर प्रतिवर्ष सहस्रों यात्री अपने पापोंका क्षय करते हैं। यह वही ऊर्जयन्त पर्वत है जिसका सुन्दर वर्णन माघ कविने अपने शिशुपाल वध काव्यमें किया है । पावागिरि, तारंगा, शत्रुनय वा पालीताणा, गजपंथा, मांगीतुंगी, कुंथलगिरि क्षेत्रोंको करोड़ों मुनियोंने अपनी तपस्या और केवलज्ञानसे पवित्र किया। ये स्थान हजारों वर्षोंसे जैनियों द्वारा पूजे जा रहे हैं। इनमें से अनेक स्थानों के मंदिरोंकी कारीगरीने अली विलक्षणतामे मारक कला कौशल सम्बंधी इतिहासमें चिरस्थायी स्थान प्रात कर लिया है। जब विलेन बन्यों में इस प्रांतके विषय उपर्युक्त समाचार मिलते हैं तब यह प्रश्न उटाना निरइतिहासकालमें बंबई प्रांतका श्रक है कि बंबई प्रांतसे नैनधर्मका अन धर्मसे सम्बन्ध। संबन्ध कब प्रारंभ हुआ। निस्सन्देह यह संबन्ध इतिहासातीत कालमे चला आरहा है। भारतके प्राचीन इतिहासमें मौर्यसम्राट् चन्द्रगुप्तका काल बहुत महत्त्वपूर्ण है । इस देशका वैज्ञानिक इतिहास उन्हींके समयसे प्रारंभ होता है। वैज्ञानिक इतिहासके उस प्रातःकालमें हम जैनाचार्य भद्रबाहुको एक भारी मुनिसंघ सहित उत्तरसे दक्षिण Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१० भारतकी यात्रा करते हुए देखते हैं। उन्होंने मालवा प्रांतसे मैसूर प्रांतकी यात्रा की और श्रवणबेल्गुलमें अपना स्थान बनाया। उनके शिष्य चारों ओर धर्मप्रचार करने लगे । आगामी थोड़ी ही शताब्दियोंमें उन्होंने दक्षिण भारतमें जैन धर्मका अच्छा प्रचार कर डाला, अनेक राजाओंको जैनधर्मी बनाया, अनेक द्राविण भाषाओंको साहित्यका रूप दिया, अनेक विद्यालय और औषधिशालाएं आदि स्थापित कराई । बम्बई प्रांतके प्रायः सभी भागोंमें भद्रबाहुस्वामीके शिष्योंने विहार किया और जैनधर्मकी ज्योति पुनरुद्योतित की। ईसाकी पांचवीं छटवीं शताब्दीमें भी यहां अनेक प्रसिद्ध जैन मंदिर बने थे । इनमेंका एक मंदिर अबतक विद्यमान है। वह है ऐहोलका मेघुती मंदिर । इस मंदिरमें जो लेख मिला है वह शक सं० ५५६ का है। उससे बहुतसी ऐतिहासिक वार्ताएं विदित होती हैं । उसका लेखक जैन कवि रविकीर्ति अपनेको कालिदास और भारविकी कोटिमें रखता है । यह लेख इस पुस्तकमें दिया हुआ है। ईसाकी दशवीं शताब्दितक जैन धर्म दक्षिण भारतमें बराबर उत्तरोत्तर उन्नति करता गया। यहांके बंबई प्रांतमें जैन धर्मका कदम्ब, रट्ट, पल्लव, सन्तार, चालुक्य, उन्नति । राष्ट्रकूट, कलचुरि आदि राजवंश जैन धर्मावलम्बी व जैनधर्मके बड़े हितैषी थे । यह बात उस समयके अनेक शिलालेखोंसे सिद्ध है। इन्होंने जैन कवियोंको आश्रय दिया और उत्साह दिलाया । उन्होंने अनेक धार्मिक बाद कराये जिनमें जैन नैयायिकोंने विजय Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राप्तकर यश लूटा और धर्मप्रभावना की दिगंबर जैनियोंके बड़े२ आचार्य इन्हीं राजवंशोंसे संबन्ध रखते थे। पूज्यपाद, समंतभद्र, अकलंक, वीरसेन, निनसेन, गुणभद्र, नेमिचन्द्र, सोमदेव, महावीर, इन्द्रनंदि, पुष्पदन्त आदि आचार्योने इन्हीं राजाओंकी छत्रछायामें अपने काव्योंकी रचना की थी और बौद्ध और हिंदू वादियोंका गर्व खर्व किया था। इसी समृद्धिकालमें जैनियोंके अनेक मंदिर गुफायें आदि निर्मापित हुई। इस प्रकार दशवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत और विशेष कर बम्बई प्रांतमें जैनधर्म ही मुख्य बम्बई प्रांतमें जैनधर्मका ह्रास । धर्म था । पर दशवीं शताब्दिके पश्चात जैनधर्मका ह्रास प्रारम्भ हो गया और शैव, वैष्णव धर्मोका प्रचार बढ़ा । एक एक करके जैन धर्मावलंबी राजा शैव होते गये। राष्ट्रकूट राजा जैनी थे और उनकी राजधानी मान्यखेटमें जैन कवियोंका खूब जमाव रहता था । ग्यारहवीं शताब्दिके प्रारम्भमें राष्ट्रकूट वंशका पतन होगया और उसके साथ जैन धर्मका जोर भी घट गया । इसका पुष्पदंत कविने अपने महापुराणमें बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है । यथादीनानाथधनं सदाबहुधनं प्रोस्फुल्लवल्लीवनं । ___मान्याखेटपुरं पुरंदरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् ॥ धारानाथनरेन्द्रकोपशिखिना दग्धं विदग्धप्रियं । केदानीं वसतिं करिष्यति पुनः श्री पुष्पदन्तः कविः ।। अर्थात्-नो मान्यखेटपुर दीन और अनाथोंका धन था, Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जहांकी फूल वाटिकायें नित्य हरी भरी रहती थीं, जो अपनी शोभासे इंद्रपुरीको भी जीतता था वही विद्वानोंका प्यारा पुर आज धाराधीशकी कोपाम्निसे दग्ध होगया । अब पुष्पदंत कवि कहां निवास करेंगे ? उधर कलचुरि राजा वज्जाल जैनधर्मको छोड़ शैव धर्मी हो गया और जैनियोंपर भारी अत्याचार करने लगा। यही हाल होयसल नरेश विष्णुवर्द्धनका हुआ, जिसने अनेक जैन मंदिर बनवाकर और उनको भारी २ दान देकर जैनधर्मकी प्रभावना की थी वही उस धर्मका कट्टर शत्रु होगया। कहा जाता है कि कई राजाओंने तो शैवधर्मी होकर हजारों जैन मुनियों और गृहस्थोंको कोल्हमें पिरवा डाला। गुजरात के राजदरबार जैनियोंका प्रभाव कुछ अधिक समयतक रहा पर अंतमें वहां भी उनका पतन होगया। इस प्रकार राजाश्रयसे विहीन होकर और रानाओं हारा सताये जाकर यह धर्म क्षीण हो गया। जिन स्थानों में लाखोंनी ये वहां धीरे२ एक भी जेनी न रहा । कई स्थानों में न मंदिरों आदिक ध्वंस अबतक विद्यमान है पर कोसोंतक किसी ननीका पता नहीं हैं। बेलगांव, धारवाड़ा, दीमापुर आदिले जैन लावशेषोंगे भरे पड़े हैं । अनेकन मंदिर शिवमंदिरों में परिवर्तित कर लिये गये। कुछ कालोपरान्त जर मुसल्मानोंका जोर बढ़ा तब और भी अवस्था खराब होगई । उन्होंने जैन मंदिरोंको तोड़कर भसनिदें बनवाई। कई मसजिद्रोंमें जैन मंदिरोंका मसाला अब भी पहचाननेमें आता है। बौद्धोंके समान जैनियोंने भी अनेक कलाकौशलसे पूर्ण गुफा बनवाई थीं। प्रायः जहार बौद्ध गुफायें हैं वहां थोड़ी बहुत जैन Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (??) गुफायें भी हैं। इनपरसे अब या तो जैनधर्मकी छाप ही उठ गई या जैनियोंने उनको सर्वथा भुला दिया है । ऊपर हमने जो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्तकमें पाये जायगे । धर्महितैषी और जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त कका अच्छी तरह अवलोकन करना चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा और अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट करना चाहिये कि कहां२ पुराने जैन मंदिर व मंदिरोंके ध्वंसावशेष हैं, कहां२ जैनमंदिर शैवमंदिरों और मसजिदोंमें परिवर्तित कर लिये गये हैं और कहां२ जैन गुफायें अरक्षित अवस्थामें हैं । जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानों को अवश्य देखें और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित करावें । बम्बई प्रांतमें अनेक स्थानों जैसे पाटन, ईडर आदिमें बड़े२ प्राचीन शास्त्र भंडार हैं । इनका सूक्ष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है । भारतवर्ष के जैनियोंकी लगभग आधी जन संख्या बम्बई प्रांत में निवास करती है । इन भाइयों का सर्वोपरि कर्तव्य है कि वे इस पुस्तक की सहायता से अपने प्रांतकी धार्मिक प्राचीनताको समझें और जैनधर्मके पुनरुत्थानमें भाग लें । पुस्तक के लेखकका यही अभिप्राय है । उपसंहार । गांगई । कार्तिक वदी ३० नि. सं. २४५१ हीरालाल [ हीरालाल जैन एम० ए० सं० प्रोफेसर किंग एडवर्ड कालेज अमरावती-बरार ] Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचीपत्र। -'. :. (१) बम्बई प्रान्त । (६) भरुच जिला ... ११ , शहर ... ... २ (१) मरूच शहर ... ., (२) अहमदाबाद जिला ... ४ , की निनाव (1) ,, नगर ... ४ कपरेका शिल ... २० जैन शिम्पपर फर्गुसनका गोलभूगार जातिके मत ... ... ४ प्र. अजित ... २१ करणरती, प्राचीन नाम नीली सतीका जन्म , (२) धन्धूका-हेम चन्द्र श्वे.. (२) शुकलतीर्थमें मौर्य का अन्मस्थान ... ९ चन्द्रगुप ... ... २२ (6) घोलका ... ... (8) अंकलेश्वर-धवलादि १४) गोधा द्वीप प्रन्योकी प्रथम पूजा , (३) खेड़ा जिला (४) सबोतके श्रीशीतलनाथ २३ (१) कपरवंज (५) गांधर ... २४ (२) मतार ... (१) शाहाबाद (३) महुधा ... (७) कापी ... (४) महमदाबाद (७) सूरत जिला (५) नडियाद (१) सात शहर (6) उमरेठ (२) रोदेर ... (8) खंभात राज्य ... () पाल ... (4) पंचमहाल जिला ... (४) मापी ... (१) पाषागा सिद्धक्षेत्र (८) राजपीपला राज्य (२) चांपानेर ... ... . () थाना जिला (७) देसार ... ... , (१) अमरनाथ (.) राहो ... (२) पोरीषकी (५) गोदरा ... ... (a) : :: :: : : :: Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ya (४) कल्याण . . () कुम्भरिया ... (५) कन्हेरी गुफाएँ ... , (७) बड़ाली वा अमीजरा (१) सोपारा-बहुत प्राचीन _____ पाश्वनाथ ... ... ३९ स्थान ... ... १ (१२) पालनपुर एजन्सी .. (७) तारापुर .... ... (१) दीसा ... ... " (८) बजाई ... (२) पालनपुर नगर ... .. (९) वशाली ... ... , (१३) काठियावाड़ राज्य (१०) बड़ौधा राज्य सौराष्ट्रदेश] ४१ (1) नवसारी (1) पालीताना या सेव॒जय (२) महुआ ... ... सिद्धक्षेत्र ... ... ४२ (३) अनहिलवाड़ा पाटन (२) गिरनार या उर्जयंत (1) चनासामा ... सिद्धक्षेत्र ... ... (५) उन्मा ... ... जुनागढ़ शहर ... (६) बड़नगर ... ... अमरकोटमें गुफाएँ (७) सोत्री या सरोत्रा (3) सोमनाथ ... ४५ (८) गहो ... ... (४) वधवान ... ... (९) मंजपुर ... ... (५) गोरखमढ़ी ... , (10) संकेश्वर ... (6) वावडयावाड़ या (11) पंचासुर ... सुचालवेट ... ४७ (१२) चन्द्रावती ... , (७ पालू या बूला बलभीपुर ४८ (१३) मोरा नगर (८) तेलु बाकी गुफाएँ ४८ (१४) सोजित्रा ... , (९ द्वारिकापुरीम दि. जैन (११) महोकांठा एजन्सी ३७ मंदिर व मरण विक, (१) ईडर नगर ... , [१४] कच्छ राज्य ... ४१ (२) समाप्त राज्य ... , (6) भद्रेश्वर (मरावती) (३) मिलोड़ा ... , (1) भंबर ... (४) बोसीना सबली... ८ (३) गेदी ... .. . (-)तिवा या मंगा सिबक्षेत्र ३०) (१)पट ... Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : * : : : : ': : [१५] महमदनगर जिला ५१ (७) बम्मारना या भी (१) पेड़गांव ... ... मपंच विवक्षेत्र १ (२) मिरी ... ... (.) सिमार ... ... २ (७) संगमनेर ... ५२ (८) मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र , (४) मेहेकरी x सेतवाल नासिकनगरकी प्राचीनता दि० अन ... [१८] पूना जिला ... २४ (५) घोटान ... (1) जुन्नार ... ... [१६] खानदेश जिला ... ५३ (२) बेड़सा ... ... " (1) नंदुरबार (6) भांजा ... (२) तुग्नमाल (४) भवसारी (भोजपुर) (३) यावर मगर (४) भामेर (५) कारली ... ... ... " ( शिवनेर ... ... (५) निजामपुर ... (९) पाटन या पीतलखोरा (७) बामचन्द्र गुफा ... , अन गुमाएँ ..., [१६] सतारा जिला ... ६६ (1) जिन्टा गुमाएँ । (१) करादनगर ... दि जैन मूर्तिये ५५ (२ बाई ... ... (८) एरंजेल ... ... ५६ (३) घू लवाटी जैन गुफा [१७] नासिक जिला ... ५७ (४ फलटन ... ... (१) अंजनेरी (जिना, २० शोलापुर जिला ... ६८ जैन गुफाएँ ... , (1) बेलापुर ... ... " (२) अकई तकई) २ दीगां। ... ... , जैन गुफाएँ ... ५८ [२१ बेलगाम जिला ... ६६ (३) वादानगर जैन गु० ५९ इतिहास- नाशी (४) त्रिंगलवाड़ी ( इगतपुरी) बन राजा जैन गुफाएँ ... ६. जैनोंका महा ... ७. (५) नासिक नगर पांडु. राहवंशके जैन गजानामें मैन भृति , भोका कुल वृक्ष ७२ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० (१) बेलगाम शहर व किला दर्शनीय जैन मन्दिर ७ बेलगामका अपूर्व इति... (२) हालसी (हलसिगे) .. (३) होंगल (बेल होंगल) कादम्ब वंशावली वृक्ष ७८ (४) हुली ... ... (५) कोन्नूर ... (6) नान्दीगढ़ (७) नेसी ... (८) बुक्कुन्ड ... (९) देगुलवली (१०) कडरोली (११) इनिरी (१२) कलहोले यादव राजाओकी वंशावली ... ८३ (१३) मनोली ... , (१४) सौन्दत्ती जनशिलालेख ,, (14) ताबन्दी ... ८९ (१९) कोकतनूर ... (1७) बादगी ... ... (1८) कागवद ... " (१४) रायबाग ... [२२] बोजापुर जिला ... ८८ (1) ऐवल्ली (ऐहोली) प्राचीन जैन मंदिर व गुफा ४ मेघुती दि जैन मंदिर ८१ का सबसे प्राचीन जैन शिलालेख ... ९२ । नकल लेख मेधुती मंदिर संस्कृतमें ९१ उल्था लेख मेघुती मंदिर हिन्दीमें ५५ भरपीबीड़ी ... 103 (२) बादामी-प्रसिद्ध जैन गुफा,, (3) बागलकोट ... १०५ (४) हुनगुंड ... ... " (५) पट्टदकल-प्राचीन जैन मंदिर ... ... (१) तालीकोटा ... " (9) सलतगी ... ... " (८) अलमेली ... १०७ (९) वागेवाड़ी (१०) वासुकोड ... (११) बीजापुर किलेमें दि. जैन मूर्ति ... (१२) धनूर ... ... (१३) हल्लूर ... ... (१४) हेवल ... ... (१५) जैनपुर ... (१६) करड़ीग्राम (१) कुन्टोजी ... (८) मुद्देविहाल ... " (1८) संगम ... ... (२०) सिंदगी ... (२१) सिहर ... ... (२२) बावानगर ... १ (२३) पनाला किता , १०८ १० Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ...:५८ कोल्हापुरका अंबाबाई मंदिर प्राचीन जैन मंदिर है ૧૫૫ खेद्रापुर ...१५९ [२६] मोरज राज्य ...१५७ [३०] सांगलो स्टेट .३१ गोआ पुर्तगाल कादम्न जन गना ... , [३२] हैदराबाद राज्य ...१५८ (१) आतनू ...१५८ (२) भाष्टे (3) उखलद (४) कचनेर (५) कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र, (९. कुलपाक (७) तड़कल (८) तेर ...१६० (५) धाराशिव प्राचीन गुफाएं करकुन्ड पाश्वनाथ ... " (10) बंकुर ...१९१ (11) मलखेड राजा अमोघ वर्ष आचार्य जिनसेन , अकलंकदेव जन्म १९२ (१२) सावरगांव ... " {१३) होनसेलगी ... , (१४) एलुग या चरणाद्रिकी,, जन गुफाएं ... , इन्द्रसभाकी दि. जैन मूर्तिये ...१९३ । जगन्नाथ गुफाकी जैन मूर्तिएं ... १६९ (१५) बोधान ... ११ (१६) पाटन दे ... , गुजगतका इतिहास १७३ के प्राचीन विभाग ... १७५ गुजगतका म्लेच्छ देश हिंदू शानोंमें 1. मौर्योकी प्रशंसा , क्षत्रपों का राज्य १८० गुमंवश ... १८४ राजा यशोधर्मन मालवाका १८८ वल्लभीवंश ... , का प्रबन्ध ... १८४ चालुक्य वंश ... राष्टयूट वंशावली अन हलवाहा राज्य ... २० चावड़वंश सोलंकीवंश ... २७३ आबृका प्रसिद्ध जैन मंदिर २०५ आवार्य वे० हेमचन्द्र २०६ दिगम्बर श्वेतांवर बाद सभा ... २०७ राजा कुमारगल ... २०९ वस्तुपाल तेलपाल आबूके जैन मंदिर ... २११ भाव लेखकों का मत गरातपर ... २13 . 143 . Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BIBDEECCD333000 मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक 190€€€€33313 (२) बंबई प्रात व नगर । sue बम्बई प्रांत चौहद्दी इस प्रकार है उत्तर- उत्तर पश्चिममें बलूचिस्तान, पंजाब, राजपूताना । पूर्वमें मध्यभारत, मध्यप्रांत, वरार और हैदराबाद, निजाम । दक्षिणमें मदरास, मेमूर | पश्चिममें अरबसमुद्र । बृटिश बम्बई सिंधु लेकर १२,२९८४ वर्ग मील है । देशी राज्य ६५७६१ वर्ग मील है । इतिहास - सन् ई० से १००० वर्ष पूर्वतक पूर्वी आफ्रिकाके मार्गसे लाल समुद्रतक तथा ७५० वर्ष पूर्वतक फारस की खाडीसे वेविलानके साथ व्यापार होता था । सन् ई० के बहुत पहलेसे जैन धर्म दक्षिणमें भी फैला हुआ था । सन ६०० से ७५० तक - चालुक्य राजाओंने दक्षिणमें राज्य किया, उस समय दक्षिण में जैनधर्म बहुत उन्नतिमें था । ૧ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ____ गुजरात शाखामें ७५०से ९८०तक गूजर और राष्ट्रकूटोंने साहित्यकी बहुत उन्नति की तथा खासकर जैनियोंको बहुत महत्त्व दिया । इनमें राजा अमोघवर्ष प्रथम (८१४- (७७) जन साहित्य का खास संरक्षक हुआ है । इसकी उदारताने अरबोंके दिलोंमें बड़ा असर किया था वे इसे वल्ल पर.ज कहते थे । राष्ट्रकूटकी दूसरी शाखा दक्षिणमें ( ८०० से १००८ तक ) राज्य करती थी। सन् ७७५ में पारसी लोग फारसकी खाड़ीसे व्यापारको आए । इन राजाओंने जो — जैनधर्म, शैव, विष्णु तीनों धर्मोपर माध्यस्थभाव रखते थे' इनका बहुत आदर किया। सन् ९७३ में दक्षिणमें बलवा हुआ तब प्राचीन चालुक्य वंशीय तैलने राष्ट्रकूटोंको दवाकर नया चालुक्य राज्य स्थापित किया व राज्यधानी ( दक्षिणमें) कल्याणीमें रक्खी। इसके पीछे बैरप्याने अपना राज्य दक्षिण गुजरातमें जमाया, परन्तु दूर दक्षिणमें शिलाहार लोग समुद्रतटतक राज्य करते रहे। दक्षिणमें ९७३ से ११५६ तक कल्याणीके चालुक्योंने राज्य किया । इन्होंने कांचीके चोलोंसे युद्ध किया तथा मालवाके परमारोको व त्रिपुरा (जबलपुर) के कलचरियोंको विनय किया। हलेविलका होयसाल वंश मैसूरमें राज्य करता रहा (११२०) व सिंधाणुके नीचे याद । दक्षिणके राज्य रहे (१२१२) । __बई श:--वर्तमान बम्बईमें सात भिन्न २ टापू गर्भित हैं । जो राजा अशोकके समय में आगंत या उत्तर कोंकणका एक विभाग था। पीछे दूसरी शताब्दीमें यहां शतमान लोग राज्य Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्त व नगर। करते थे। उसके पीछे मौर्य फिर चालुक्य फिर राष्ट्रकूटोंने राज्य किया । मौर्य और चालुक्योंके समयमें (सन् ४५० से ७५०) पुरीनगर या एलीकैन्टा टापू बम्बईबंदरमें मुख्य स्थान था । कोंकणके शिलाहार राजाओंके नीचे (८१० से १२६०) बम्बई प्रसिद्ध हुआ तथा वालकेश्वरका मंदिर बनाया गया था, परन्तु राजा भीमके समयमें यह नगर हुआ था यह देवगिरिके यादववंशमें था। इसने महिकावती ( महिम ) को मुख्यस्थान बनाया था। जिसपर अलाउद्दीन खिल नीने सन् १२९४ में हमला किया। यहां हिन्दूभोंका राज्य १३४८ तक रहा । 0. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। गुजरात विभाग। - (२) अहमदाबाद जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम और दक्षिण, काठियावाड । उत्तर-बड़ौधा | उत्तर पूर्व-महीकांठा । पूर्व-बालसिनोर और खेड़ा । दक्षिण पूर्व-कम्बेकी खाडी । यह ३८१६ वर्गमील है। मुख्य स्थान - (१) अहमदाबाद नगर-जब मुसल्मान लोगोंने इस नगर पर अधिकार किया तब उन्होंने जैनियोंके ढंगके मकान बनाए। उनकी मसजिदें भी प्रायः जैन रीतिकी हैं। जेम्स फार्गुसन साहब लिखते हैं: Mohamedans had here forced themselves upon the most civilised and the most essentially building rice at that time in India, and the Chalukyas Conquercd their conquerors, and forced thein:10 adopt forms and ornaments which;were superior to any thc invaders knew or could have introduced. The result is in style which combines all the degance and finish of Jain or Chalukyan art with a certain largeness of conception, which the Hindu never quite attained, but which is characteristic of people who at this time were subjecting all India to their sway. (R. A. S. J. 1900 & Ahm. Surrey 1896 Vol. VI) भावार्थ-भारतमें उस समय एक बहुत ही सभ्य और बहुत ही उपयोगी मकान निर्माण करानेवाली जाति पर मुसल्मानोंने जब अधिकार किया तब चालुक्य लोगोंने अपने जीतनेवालोंको भी जीत लिया अर्थात् उनपर यह असर डाला कि वे उन रीतियोंको Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला। व भूषणोंको स्वीकार करें जो सबसे बढ़िया थे व जिनका इन आक्रमणकर्ताओंको ज्ञान न था । इसका फल यह है कि मकानोंमें जैन या चालुक्यकलाकी सुन्दरता समागई। उसमें कुछ अधिकता की गई जिसको हिन्दू कभी नहीं पासके थे, परन्तु जो उन लोगोंके व्यवहारमें थी जो इस समय सर्व भारतको अपने अधिकारमें कर रहे थे।" नोट-इससे जैनियोंके महत्त्वका अच्छा ज्ञान होता है । इस नगरके बाहर रखियाल ग्राममें मलिक शाबानकी बड़ी कब है उसमें जो खभे व नकासी किये हुए पत्थर भीतर चबूतरोंके बनाने में लगे हैं वे सब कुछ जैन व कुछ हिन्दू मंदिरोंसे लिये हुए मालूम होते हैं ( A. S. of India W. for. 1921 ) दिहली और दर्यापुर दरवाजोंके बीचमें फूटी मसजिद है। यह एक बड़ी पत्थरकी मसजिद है जिसमें ५ गुम्बज हैं। सामने खुली है इसमें २२ खंभे हैं । इनमेंसे कुछ जैन कुछ हिन्दू मंदिरोंके हैं। इस नगरमें दर्शनीय जैन मंदिर हाथीसिंह का है (बना सन १८४८) व चिंतामणिका जैन मंदिर है जो नगरसे पूर्व ॥ मील सरसपुरमें है। इसको शांतिदासने नौ लाख रुपयेये सन १६३८ में बनाया था। इसको बादशाह औरङ्गजेबने नष्ट किया । अब भुला दिया गया है । ( A. S. of India Vol XVI Cousi as) इसी शांतिदासनीके मंदिरके सम्बंधमें जो 'रेलवे स्टेशनसे बाहर है। अहमदावाद गजेटियर ( जिल्द १ छपा १८७२ ) में है कि यह ऐतिहासिक वस्तु है । यह नगरमें सबसे सुन्दर रचनाओंमें एक थी। यह मंदिर एक बड़े हातेके मध्यमें था } हातेके चारों तरफ एक पत्थरकी ऊंची दीवाल थी जिसमें सब तरफ छोटे २ मंदिर थे। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इस हरएकमें नग्न मूर्तियां कृष्ण या श्वेत संगमर्मरकी थीं । द्वारके सामने दो बड़े आकारफे काले संगमर्मरके हाथी थे इनमेंसे एकपर शांतिदासकी मूर्ति बनी थी। १६४४ से ४६ के मध्यमें औरङ्गजेबने मंदिरको नष्ट किया, मूर्तियोंको तोड़ डाला व इस मंदिरको मसजिदमें बदल दिया। इस बातसे दुःखित होकर जैनियोंने बादशाह शाहजहांको प्रार्थना की जो औरङ्गजेबके इस कृत्यसे बहुत अप्रसन्न हुआ, तब बादशाहने आज्ञा दी कि इसको मंदिरकी दशामें ही पलट दिया जावे । अब भी वहां जैन मूर्तियें मिलती हैं यद्यपि उनकी नाक भंग है। भीतोंपर मनुष्य व पशुओंके चित्र हैं । शांतिदासने खास मूर्तिको वहांसे बचाकर नगरमें रक्खा और इसलिये जौहरीबाड़ामें एक दूसरा मंदिर बनवाया । ___अहमदावाद जैनियोंका मुख्य स्थान है । १२० जन मंदिरोंसे अधिक हैं जिनमें हाथीमिंहके मंदिरके सिवाय १८ प्रसिद्ध हैं, १२ मंदिर दर्यापुर, ४ खांदीनत व २ जमालपुरमें हैं। "Arechetcture of Ahmedabad by Hore and Fergusson 1866." में नीचेका कथन है । पृष्ठ ६९ में है कि-..... ईसाकी प्रथम शताब्दीसे अबतक गुजरातवामी भारतवर्षभरकी जातियोंमेंसे एक बहुत उपयोगी, व्यापारी और समृद्धिशाली समाज है। कृषि कर्ममें भी वे इतने ही परिश्रमी हैं, जितने ही वे युद्ध में वीर हैं तथा स्वतंत्रता रखनेमें देशभक्त हैं । उनकी चित्रकला भी सदा पवित्र और सुन्दर रही है । तथा इन लोगोंका धर्म भी जैन धर्म है। यह सच है कि इस प्रांतमें विष्णु और शिवकी पूजाकी भी अज्ञानता नहीं रही है तथा बहुत समय तक बौद्धमत भी इसकी Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला। [७ पूर्वीय सीमा में स्थापित रहा है, परंतु बौद्ध गुफाएं इस प्रांतकी सीमामें ही हैं । यह धर्म प्रांतके भीतर नहीं घुसा । यह माल्टम नहीं कि जनपने गुजरात में पैदा हुआ या कहींसे आया, किन्तु जहांतक हमारा ज्ञान जाता है यह प्रांत इस धर्मका बहुत उपयोगी घर व मुख्यस्थान रहा है । भारतमें जितनी धर्मोकी शकले हैं उन. सबमें शायद यह जैनधर्म सबसे पवित्र और उत्तम है “Of the Indian furms i religion it is, on the whole, perhaps the purest and the best ”. यह धर्म उस स्थूल व अमाननीय अन्धश्रद्धासे दूर है जो बहुधा शिव व विष्णुकी पूजाके साथ रहती है और न यह बहुत अधिक पुनारी माधुओंसे दबा हुआ है जैसा कि बौद्धधर्म मालम होता है । न इसका मुकाबला वेदांतके ब्राह्मणधर्मसे होसक्ता है निसको आर्य लोग अपने साथ भारतमें लाए। यह धर्म जैसा सुंदर व पवित्र है वैसा दूसरा नहीं मालूम होता है। There seems none other so elegant and pure. जबसे मुसलमानोंने गुजरातपर अधिकार किया उन्होंने इसके उखाड़नेकी शक्तिभर चेष्टा की, किन्तु यह बराबर जीता रहा तथा इसके माननेवाले अब भी बहुत हैं । जैनियोंकी चित्र. कला व शिल्पने अपनी सुन्दरताके कारण मुसल्मानोंपर असरडाला निससे उन्होंने इसको स्वीकार किया । अहमदाबादमें बहुतसी मुसल्मानोंकी इमारतों में जनकिताला झलकती है। अहमदावादका प्राचीन नाम करणवती था । अहमदशाहने सन् १४ १२ में इसका नाम अहमदावाद रक्खा । उस समय यहां Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। जैन शिल्पकला खूब फैली हुई थी। इसी समय उ-हिलवाड़ा नगर भी बहुत समृद्धिशाली था जो मंदिरोंसे व दूसरी बड़ी २ इमारतोंसे पूर्ण था। इतिस-यह है कि यह करणवती नगरी ग्यारहवीं शताब्दीमें स्थापित हुई थी। वल्लभीका राजा शिवरादित्य था जिसने पांचवीं शताब्दीमें जैनधर्म धारण किया । जैन लोग बौद्धोंसे पहले की एक बहुत प्राचीन जाति है । इन्होंने अपना सिक्का गुजरात और मैसूरमें अच्छी तरह जमाए रक्खा । अब भी इन लोगोंके हाथमें भारतका बहुत व्यापार व बहुत धन है । अपने मंदिरोंकी सुन्दरता व मूल्यताके लिये ये लोग प्रसिद्ध हैं । मैसूर और धाड़वाड़में भी इनकी बहुत संख्या है । वल्लभीके पतन होनेपर पंचामृरके राजा जयशेष को दक्षिणके सोलंकी राजपूतोंने हरा दिया तब उसने अपनी गर्भस्था स्त्री रूपसुन्दरीको उसके भाई सूरपालके साथ जंगलमें भेज दिया । वहां उसके पुत्र हुआ जिसको उसकी माता एक जैन साधुके पास लेगई। साधुने बालकको भाग्यवान जाना तब उसका नाम वनगज रखा गया । सन ७४६ में जब वह ५० वर्षका हुआ तब उसने सोलंकीको भगा दिया और उनहिल.वाडा नगरकी नींव डाली। उसका मुख्य मंत्री चम्पा हुआ। ६०० वर्ष तक गुजरातका राज्यस्थान उनहिलवाड़ा रहा। वनराजने आफ्रिका व अरबसे व्यापार चलाया व इसने बहुतसे मंदिर बनवाए। इसके पीछे इसके पुत्र योगराज, फिर खेमराज, भोगराज, श्री वैरसिंहने राज्य किया, फिर रत्नादित्य राजा हुआ, फिर सामंतसिंह हुए । इसने मूलराज सोलंकीको गोद लिया जो सन् ई० ९४२ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला। में राजा हुआ । उसका पुत्र चामुण्ड (सन् ९९७) व उसका पोता दोनों साधु होगए । दुर्लभका पुत्र भीडर प्रथम सन् १०२४ में राज्यपर बैठे, सन् १०७२ में वह और उसका बड़ा पुत्र क्षेमराज साधु होगए तब छोटे पुत्र करणने राज्य किया । उसने गिरनार पर्वतपर एक सुन्दर जैनमंदिर बनवाया व इसीने करणवतीनगरी स्थापित की। इसके पीछे इसके पुत्र सिद्धराज (सन् १०९४ ) फिर कुम रपालने सन् ११४३ में राज्य किया। ___अहमदावाद इतना बड़ा नगर था कि एक विदेशी यात्री Mard.ac मैन्डेस्लाक लिखता है कि जिसने सन् १६३८ में अहमदावादको देखा था। “एसियाकी ऐसी कोई जाति व ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो इस नगरमें न दिखलाई पड़े। यहां २० लाख आदमी हैं तथा ३० मीलके घेरेमें वमा हुआ है " ट० ७६ मेंमुसलमानी मसजिदोंमें जैन मंदिरोंका बहुतसा मसाला लगाया गया है। अहमदशाहकी मसजिदमें भीतर जैन गुम्बज है और बहुतसा मसाला किसी मंदिरका है। हैवतखांकी मसजिदमें भी भीतर जैन गुम्बन है । मरद आलमकी माजिद में जैनियोंके खंभे हैं। जिस समय उदयपुरके खुम्बोरानाने सादरामें जन मंदिर बनवाया था उसी समय अहमदशाहने जुम्मामसजिद बनवाई थी। से उस जैन मंदिरमें २४० खंभ हैं वैसे ही इस मसजिदमें हैं। धन्दूका-भाधर नदीके दाहने तटपर, अहमदावादसे उत्तर पश्चिम ६२ मील। यह श्वे. जैनियोंके आचार्य हेमचन्द्रका जन्म स्थान है। हेमचन्द जातिके मोड़वनिये थे। इनके घरमें राजा कुमारपालने एक मंदिर बनवा दिया था जिसको विहार कहते हैं। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। कपडवंज-कैरासे उत्तर पूर्व २६ मील यह बहुत प्राचीन स्थान है। वर्तमान नगरमें ५०० से ८०० वर्ष पुरानी इमारतें हैं। कोटकी भीतके पास एक बहुत ही प्राचीन नगरका स्थान है। इसका असली नाम कपटपुर था । यहां एक सुन्दर जैन मंदिर है इसमें १॥ लाखकी लागत लगी है। मतार-तालुका मतार । कैरासे दक्षिण पश्चिम ४ मील । यहां एक सुन्दर जैन मंदिर है जो ४ लाखसे सन् १७९७ में बनाया गया था। महुधा-नडियादमें एक नगर । इसको २००० वर्ष हुए एक हिन्दू राजकुमार मानधाताने वसाया था। मेहमदावाद-स्टेशन अहमदावादसे दक्षिण १८ मील । सन् १६३८ में एक छोटा नगर था। इसके निवासी हिन्दू मूत कातनेवाले व बड़े व्यापारी थे । १६६६ में यह गुजरात व निकटके स्थानों को बहुतमा मृत भेजता था । नडियाद-यह १६३६में बहुत बड़ा नगर था। बहुतसा रुईका कपड़ा बनता था। सन् १७७५में यहांके लोग महीन कपड़ा बनाते और पहनते थे । यहां भी जैनमंदिर है। उमरेठ-तालुका आनन्द । आनन्दसे उत्तर पूर्व १४ मील नगरके पास एक बावड़ी ५०० वर्षकी प्राचीन है जिसमें ५ खन व १०९ सीढ़िया हैं । इसको अनहिलवाड़ाके राजा सिद्धराजने बनवाई थी। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंभातराज्य। [१३ (४) खंभातराज्य। खेड़ाजिलेके पास खंभातराज्य है--यहां एक जम्मा मसजिद है जिसको सन् १३२५में महम्मदशाह विन तुघलकने बनवाई थी। इसमें ४ ४ बड़े व ६८ छोटे गुम्बज व बहुतसे खंभे हैं । ये सब खंभे जैन मंदिरोंसे लाए गए हैं। यहां प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं। जैसे (१) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथका दंडरवाड़ामें जो सन् १५३८में बनाया गयाथा । इसमें दो भाग हैं १ जमीनके नीचे, एक ऊपर । (२) श्री आदीश्वर मंदिर जिसको तेजपालने सन १६०५में बनाया था । (३) श्री नेमिनाथ मंदिर नगरसे ३ मील पर येरलापाड़ामें । यह एक प्राचीन नगर है । भीमदेव हि० के राज्यमें (सन् १२४१) वस्तुपाल नो प्रसिद्ध जैन मंत्री भीमदेवके अधिकारी लवणप्रसाद और उसके पुत्र रानावीर धवलका था कुछ दिन खंभातका गवर्नर था उसने यहां जैनियोंके मंदिर पुस्तक भंडारादि बहुत बनाए। यह बात उसके मित्र पुरोहित सोनेश्वरने कीर्तिकौमदीमें लिखी है तथा जैन भंडारोंमें जो १३ वीं शताब्दीके प्रथम अर्द्धकालका पुरानासे पुराना लिखित ग्रंथ मिलता है उससे सिद्ध है । इन मंदिरोंमेंसे कुछोंको सन् १३०८ में तोड़कर जामा मसजिद बनाई गई थी। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (५) पंचमहाल ज़िला। इसके दो भाग हैं । पश्चिमीय भागकी चौहद्दी है । उत्तरमें राज्य लूनवाड़ा, संथ व संजीली, पूर्वमें वारिया राज्य, दक्षिणमें बड़ौधा, पश्चिममें बड़ौधा राज्य, पांड महवास और माही नदी । पूवीर्य भागकी चौहद्दी है । उत्तरमें चिलकारी, व कुशलगढ़ राज्य, पूर्वमें पश्चिम मालवा, दक्षिणमें पश्चिम मालवा, पश्चिममें सुन्थ, संजीली, वारिया राज्य । इसमें १६०६ वर्ग मील स्थान है यहां पावागढ़ पहाड़ बहुत प्रसिद्ध जैनियोंका तीर्थ है-यहांसे 'ध्यान करके इस कल्पकालमें श्री रामचन्द्रनीके पुत्र लवकुश तथा पांच कोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । पर्वतपर प्राचीन जैन मंदिर हैं। नीचे भी मंदिर व धर्मशालाएं हैं। इसका आगम प्रमाण यह है-..... गाथा रामसुवा वेणि जणा, लाडरिंदाण पंचकोडीओ। पावागिरिवरसिहरे, णिवाणगया णमो तेसि ॥ ५॥ (निर्वाणकांड प्राकृत) दोहा-रामचन्द्रके सुत दैवीर, लाइनरिंद आदि गुणधीर । पांच कोड़ि मुनि मुक्ति मंझार, पावागिरि वंदों निरधार ॥६॥ (निर्वाणकांड भगवतीदासकृत रचा सं० १७४१ ।) यह गोधरासे दक्षिण २५ मील व बड़ौधासे पूर्व २९ मील है। यह पहाड २६ मीलके घेरेमें है । समुद्र तहसे २५०० फुट ऊंचा Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पंचमहाल जिला। [१५ ~~~~~~~rnmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwmmmmmmmmmmmmm है। चांद नामका कवि अलहिलवाड़ाके भीडर प्रथमके वर्णनमें (१०२२-१०७२) पावागढके राना रामगौर, तुआरका नाम लेता है । सन् १३००में चौहान राजपूतोंके हाथमें था 'जो मेवाडके रणथांभोरसे भागकर आए थे' (१२९९-१३००)। सन् १४८४ तक इनके हाथमें रहा फिर सुलतान महमूद बेगड़ने इस तरह कबजा किया कि एक दफे पावापति श्री जयसिंहदेव पाताई रावल नौराहीमें अपनी राज्यधानी की स्त्रियोंका नृत्य देख रहे थे उस समय उन्होंने एक सुन्दर स्त्रीका कपडा पकड लिया, वह नारान हो गई और यह बचन कहा कि तुम्हारा राज्य शीघ्र ही चला जायगा। थोडे दिन पीछे चांपानेरके ब्राह्मण जवालवने अहमदाबादके सुलतान महमूदसे मुलाकात की और चढ़ाई करवादी । जयसिंहने वीरता दिखाई, अंतमें संधि हो गई, जावा जयसिंहका मंत्री बन गया । सन् १५३५ में मुगल बादशाह हुमायूंने कबजा किया ( देखो अकबर नामा )। सन् १७२७ में कृष्णाजीने ले लिया। सन् १७६१ व १७७० में महाराज सिंधियाने कवना किया । सन् १८५३ में बृटिशके हाथमें आया । इस पावागढ़के नीचे उत्तर पूर्वकी ओर राजशू चांपानेरके भग्न स्थान देखने योग्य हैं और दक्षिणकी तरफ गुफाएं हैं जहां थोड़े दिन पहले तक हिंदू साधु रहते थे। पर्वतपर पत्थरकी दीवाल महाराज सिंघियाने बनवाई थी। फाटकके आगे बढ़कर खास मार्गसे १०० गज दाहनेको जाकर १ खंदक है जो १०० फुट गहरी है, कोनेमें पत्थरकी भीतसे घिरा हुआ एक छोटासा कमरा है जो बिलकुल बंद है। भीतके छिद्रोंसे एक कबसी दिखलाई पड़ती है इसके Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। लिये यहां एक दन्तकथा है कि एक राजपूत रानीको यहां जीता गाड़ दिया गया था। इस पहाड़ीके कोनेपर एक कब है उसके आगे सात महलके खंड हैं । इस सात खनके महलको चम्पावती या चम्पारानी या कवेर जहबरीना महल कहते हैं। उपरके चार खन गिर गए हैं फिर पुरानी दीवाल है फिर किलेके भम्न हैं फिर जुलन बुदन द्वार है । ऊपर नागरहवेली है। सदनशाह द्वारसे १०० गज ऊपर मांची हवेली है । यह लकड़ीका मकान है जहां सिंधियाका सेनापति रहता था। पासमें पुरानी माची हवेलीके भग्नांश हैं, एक तालाब है, १ खंडित मसनिद है, ५ कूप हैं जिनमेंसे ४ नष्ट है १में बहुत अच्छा पानी है । माची हवेलीसे पाव मील जाकर मकई कोठारका दरवाजा है । इसमें ३ गुम्बज हैं। दक्षिण पूर्वकी तरफ १००० फुटकी उंचाई पर भग्न द्वार है, पुराने मकान हैं, एक भीत हैं। यहीं जयसिंहदेव अंतिम पाताई रावलका महल है (सन् १४८४)। कोठार दरवाजेसे पाव मील जाकर पाटिका पुल आता है फिर पाव मील चलकर ऊपरी भागके नीचे पहुंचना होता है। फिर १०० गज चलकर तारा हारपर जा फिर १०० गज चल एक इमारत आती है जिसके दो द्वार हैं। नगारखानाके सामने सुरज द्वार है । इसको इंग्रेजोंने सन् १८०३ में नष्ट किया था, पीछे सिंधियोंने बनवाया । बाहरी द्वारमें जैन मंदिरोंके पत्थर लगे हैं। नगारखाना द्वारके भीतर कालका माताके मंदिर तक २२६ सीढ़ियां हैं (इनमें दि० जैन प्रतिमाएं भी चस्पा हैं) जिनको महाराज सिंधियाने बनवायी थीं। कालका माताका मंदिर करीब १५० वर्षका है । पासमें ही मुसल्मान सदन पीरकी कब है। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमहाल जिला [१७ - पहाड़ीकी पश्चिम ओर सात नवलखा कोठार हैं जिनपर गुम्बन २१ फुट वर्ग है । उत्तरकी तरफ बहुतसे तालाव हैं और छोटे२ सुन्दर नक्काशीदार जैन मंदिर हैं। यहां दिगम्बर जैनी प्रतिवर्ष अच्छी संख्यामें यात्रा करने आते हैं। प्रबन्धक सेठ लालचन्द काहानदास नवीपोल बड़ौदा हैं। पर्वतके नीचे भी दि० जैन मंदिर व धर्मशालाएं हैं। चांपानेर-पावागढ़ पर्वतके नीचे वसा हुआ था । इसको अनहिलवाडाके बनराज (सन् ७४६-८०६) के राज्यमें एक चंपा बनियेने बसाया था । पीछे १५३६ में बहादुरशाहके मरण तक यह गुजरात की राज्यधानी रहा । यहां हलाल सिकन्दर शाहका मकवरा (सन् १९३६ का) पुगनी इमारत है । देसार होलमें सोनीपुरके पास। यहां पुराना पत्थरका महादेव नीका मंदिर ... उसकी वगलोंमें नीचेसे ऊपर तक जो सुन्दर खुदाई है वह पुराने गुजराती ब्राह्मण व जैन इमारतोंसे लगाई दाहोद-गोधरासे ४३ मील प्राचीन नगर था। सन् १४१९ नक बाहरिया राजपूतोंके पास रहा । सुलतान अहमदने डूंगर रानाको हराकर ले लिया । सन् १९७३में बादशाह अकबर स्वामी हए। सन १७५० में सिंधियाके पास आया। यहां गवर्नर रहता था व १७. ५। एक बड़ा नगर था, सन् १८४३ में इंग्रजोंने कबना किया । यहां औरंगजेब बादशाहके जन्मके सन्मानमें बादशाह शाहजहांने सन् १६१९में कारवा सराय बनवाई थी। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ___ गोदग-पंचमहालका मुख्य नगर रेलवे जंकशन है। बड़ौधा और दाहोदके बीचमें है। यहां शेरा भागोलके रास्तेके ऊपर घेलीमाता नामसे प्रसिद्ध देवी है। मंदिरके पास पीपलका वृक्ष है। निसको घेलीमाता मानते हैं यह श्री पार्श्वनाथ भगवानकी कात्योत्सर्ग नग्न मूर्ति है अखण्डित है। सर्पके फण भी है। प्रतिमा बहुत ही सुन्दर ब तेजस्वी है । तीन प्रतिमा पीपल वृक्षके नीचे पड़ी हैं वे भी कायोत्सर्ग जिन प्रतिमा हैं । यहांसे कुछ पाषाण रेलवेके उस तरफ सिदरीमाताके देवलके वहां गए हैं वहां भी भूमिपर नव जन प्रतिमा विराजित हैं। घेलीमाताके पीछे प्राचीन सरोवर है । उसकी सीढ़ियोंमें जिन मंदिरके पत्थर लगे हैं। इस सरोवरके पास जूनी जुम्मा मसनिद है । यह मसनिद वास्तवमें जैन मंदिर तोड़कर बनाई गई है इसमें संदेह नहीं । यह बहुत पुरानी मसजिद है । ( लेखक गोकुलदास नान नीभाई गांधी वीरशासन अहमदावाद ता० १०-१०-१९२४ ।) Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुच जिला। [१६ - - - ~ (६) भरुच जिला । इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें माही नदी, पूर्व में बड़ौधा और राजपीपला, दक्षिणमें कीन नदी, पश्चिममें खंभात खाड़ी। यहां १४६७ वर्ग मील स्थान है । इसका प्राचीन नाम भृगुकच्छ है । इसका इतिहास यह है कि यह एक दफे मौर्य राज्यका भाग था जिसका प्रसिद्ध राजा महाराज चन्द्रगुप्त ( नोट-जो जैन धर्मी था) यहां शुक्लतीर्थपर आकर वास करता था । मौर्योसे शाहोंके पास गया जिनको पश्चिमीय क्षत्रप कहते थे फिर गुर्जर और राजपूतोंने फिर कल्याणके चालुक्योंने बादमें राष्ट्रकूटोंने आधिपत्य किया। फिर यह अनहिलवाड़ाके राज्यमें शामिल होगया । पीछे सन् १२९८ में मुसल्मानोंने कब ना किया । (१) भरुच शहर-यहां जैन, हिंदू, व मुसल्मानोंकी कारीगरीकी बढ़िया इमारतें शहरमें मिलेंगी, उनमें सबसे प्रसिद्ध जम्मामसजिद है जो जैन रीतिसे चित्रित और शोभित की गई है इसमें जो खम्भे हैं वे सब प्राचीन जैन और हिन्दू मंदिरोंसे लिए गए हैं। तथा जहां यह मसजिद है वहांपर पहले जैन मंदिर था । इसमें ७२ खभे नक्काशीदार हैं। गुम्बन और उसकी पत्थरकी छतें जैनियोंके ढंगकी हैं। यहां नीचे लिखे प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं (१) श्री आदिश्वर भगवानका मंदिर वीनलपुर पट्टीमें यह सन् १८६९ में बना था। फर्श संगमर्मरका है। (२) श्री मुनि सुव्रत भगवानका मंदिर पाषाणका जिसमें नक्काशी व चित्रकारी सन् १८७२ में की गई थी। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (३) एक देराशर भूमिके भीतर उंडी बखारमें । (४) श्री मालपोलमें मंदिर जिसमें मूर्ति संवत १६६४ की है। (५) श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर जो १८४९ में बना । (६) श्री आदिश्वर जैन मंदिर जो संवत १४४३ में बना । भरुच भारतके सबसे प्राचीन बंदरोंमेंसे एक है। १८०० वर्ष हुए यह व्यापारका मुख्य स्थान था । तब भारतसे और पश्चिमीय एसियाके बंदरोंसे व्यापार चलता था । इतने कालके पीछे भी इसने अपना गौरव बनाए रक्खा । १७ सत्रहवीं शताब्दीमें यहांसे जहाज पूर्वमें जावा सुमात्राको और पश्चिममें अदन और लाल समुद्रको जाते थे। कपड़ा-प्राचीनकालमें यहांसे मुख्य बाहर जानेवाली वस्तुओंमें कपड़ा था। सत्रहवीं शताब्दीमें जब पहले पहले इंग्रेज और डच लोग गुजरातमें बसे तब यहांके कपड़ा बनानेवालोंकी प्रसिद्धिके कारण उन लोगोंने भरुचमें अपनी कोठियें स्थापित की। यहांकी तनजेबें प्रसिद्ध थीं। सत्रहवीं शदीके मध्यमें यहां इतना बढ़िया महीन सूतका कपड़ा बनता था जैसा दुनियांके किसी हिस्सेमें नहीं बनता था बंगालको भी मात कर दिया था। (about middle of any in Century district is said to have produced more manufactures of those of the finest fabrics than the same extent of country in any part of the world 1ot cxcepting Bengal.) यहां पर श्री नेमिनाथनीके दि. जैन मंदिरमें गोलश्रृंगार वंशधारी दि० जैन ब्रह्मचारी अजितने संस्कृत हनूमान चरित्र रचा श्लोक २००० सर्ग ११ इसकी एक प्राचीन प्रति लिखित Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरच जिला [२१ इटावा (युक्तप्रांत) के पंसारी टोलाके मंदिरमें लाला विलासरायके संस्कृत ग्रन्थ भण्डारमें है जो संवत् १५६९की लिखित है उसकी प्रशस्तिमें ये वाक्य है " इदं श्री शैलराजस्य चरितं दुरितापहं रचित भृगुकच्छे च श्री नेमिजिन मंदिरे । गोलश्रृंगारवंशेनभस्य दिनमणि वीर सिंहो विपश्चित् । भावी पृथ्वी प्रतीता तनुरुह विदितो ब्रह्म दीक्षा सुतोऽभूत् । तेनोचैरेष ग्रन्थः कृति इति सुतरां शैलराजस्य सूरेः । श्रीविद्यानंदि देशात सुकृत विधिवशात् सर्वसिद्धि प्रसिद्धै।भाव यह है कि वीरसिंह गोलश्रृंगारेके पुत्र अजित ब्रह्मचारीने श्री विद्यानंदिनीके उपदेशसे भरोचके नेमिनाथ जिन चैत्यालयमें रचा । ___ इस भृगुकच्छ नगरमें श्री महावीरस्वामीके समयके अनुमान राजा वसुपाल राज्य करते थे तब वहां एक जैनी सेठ जिनदत्त रहते थे उनकी स्त्री जिनदत्ता थी। उसकी कन्या नीली सती शीलव्रतमें प्रसिद्ध हुई है। ( देखो कथा २८वीं आराधना कथाकोश बनेमिदत्त कृत) प्रमाण। क्षेत्रेऽस्मिन् भारते पूते लाटदेशे मनोहरे । श्रीमत्सर्वज्ञ नाथोक्त धर्म कार्यैरनुत्तरे ॥ २ ॥ पत्तने भृगुकच्छाख्ये सर्ववस्तु शतैर्मृते । रानाऽभूद्वसुत्पालाख्यो सावधानः प्रजाहिते ॥ ३ ॥ श्रेष्टी श्रीजिनदत्तो भूद्वणिक सन्दोहसुन्दरः । श्रीमजिनेन्द्र चंद्राणां चरणार्चन तत्परः ॥ ४ ॥ तत्प्रिया जिनदत्ताख्या साध्वी सद्दानमंडिता । नीली नाम्नी तयोः पुत्री मुनीनामिव शीलता ॥५॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M २२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (२) शुकलतीर्थ-नरबदा नदीके उत्तर तटपर एक ग्राम है जो भरुच नगरसे १० मील है । यहीं मौर्यचन्द्रगुप्त और उसके मंत्री चाणक्य आकर वास किया करते थे। ग्यारहवीं शताब्दीमें अनहिलवाड़ाका राजा चामुंड जो अपने पुत्रके वियोगसे उदास होगया था यहीं आकर वास करता था। (३) अंकलेश्वर यहां पहले कागज बननेका शिल्प होता था जो अब बंद होगया है। (old piuper manufacturing industry ). नोट-यहां दि० जैनियोंके ४ मंदिर है जिनमें बहुत प्राचीन व मनोज्ञ मूर्तियां हैं । संवत रहित एक मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवानकी पुरुषाकार भौरेमें विराजित है । यह भूमिसे मिली थीं। अंकलेश्वर बहुत प्राचीन नगर है । मुड़बिद्री (दक्षिण कनडा) में जो श्रीजय धवल, धवल, व महाधवल ग्रन्थ श्री पार्श्वनाथ मंदिरमें बिरानमान हैं उनके मूल ग्रन्थ इसी नगरमें श्री पुष्पदंत भूतबलि आचार्योने रचे थे जिनको अनुमान २००० वर्षका समय हुआ । इसका प्रमाण पंडित श्रीधरकृत श्रुतावतार कथामें है। जैसे " तन्मुनिद्वयं अंकलेसुरपुरे गत्वा मत्वा षडंग रचनां । कृत्वा शास्त्रेषु लिखाप्य लेखकान् सन्तोष्य प्रचुर दानेन । ज्येष्ठस्य शुक्ल पञ्चम्यां तानि शास्त्राणि संघसहितानि नरबाहनः पूनयिष्यति...." Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुच जिला । [ २३ भावार्थ- वे मुनि दो पुष्पदन्त और भूतबलि अंकलेश्वर नगरमें आए यहां षडंग शास्त्रकी रचनाकी शास्त्रों में लिखाया व ज्येष्ठ सुदी १ को संघसहित भूतवलिनीने पूजन की । (सिद्धांतसारादि संग्रह माणकचन्द ग्रन्थमाला नं० २१ पत्रे ३१७) (नोट) - (४) सजोत--अंकलेश्वर स्टेशनसे ६ मील। यह पहले बड़ा नगर होगा। यहां भौरेमें श्री शीतलनाथ भगवानकी दि० जैन मूर्ति पद्मासन २ हाथ ऊंची बहुत ही शांत, मनोज्ञ व ऊंची शिल्प कलाको प्रगट करनेवाली है। इसमें संवत नहीं है इससे बहुत प्राचीन कालकी निर्मापित है । इसकी अतिशय ऐसी है कि सर्व हिंदू जाति दर्शन करने को आती है । यह बात प्रसिद्ध है कि भरुच में एक दफे एक नाविकका जहाज अटक गया उसको स्वप्न हुआ कि तू सजोतमें शीतलनाथके दर्शन कर जहाज चल पडेगा । उसने आके दर्शन किये जहाज ठीक रीतिसे चल पडा । इस मूर्तिका दर्शन करते २ कभी मन तृप्त नहीं होता है । जैसे मैसूर श्रवणबेलगोला में कायोत्सर्ग श्री बाहुबलिकी मूर्ति शिल्पकलामें अद्वितीय है वैसे इसको जानना चाहिये । इसकी पत्थरकी वेदीपर यह लेख है । "संवत् १८३५ श्रावण वदी १ श्री मूल संघ हूबड ज्ञातीयसा सोमचन्द भुला तत्पुत्र काहनदास सोमचंद बाई देवकुंवरे तया श्री शीतलनाथस्य प्रतिष्ठापनं करापितं श्रीरस्तु " यह मूर्ति अंकलेश्वरके पश्चिम रामकुण्डको खोदते हुए निकली थी जिस रामकुण्का वर्णन हिंदुओंके संस्कृत नर्बदा पुराण में है । इसी मूर्तिके साथ वह मूर्ति भी निकली थी जो अंकलेश्वरके भौरेमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की है। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] मुंबईप्रान्तक प्राचीन जैन स्मारक । (५) गांधार - ता० वागरा जम्बूसर स्टेशनसे १२ मील - यहां प्राचीन जैन मंदिर हैं । १ जैन मंदिर सन् १६१९ में भौंरां सहित बनाया गया था । यह बहुत प्राचीन नगर था। यहां ३ मीलके घेरे में पुराने टीले मिलते हैं । (६) शाहाबाद-भरुचसे उत्तर पूर्व १३ मील यहां श्री पार्श्व नाथजीका जैन उपासरा है। (७) कात्री - ता० जंबूसर - यह माही नदीपर पुराना जैन पूज्यनीय स्थान है । दो जैन मंदिर सास बहूकी देहरीके नामसे प्रसिद्ध हैं। हरएक शिलालेख हैं । ( See Indian Antiquary V 109, 144 ) . Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ सूरत जिला । (७) सूरत जिला । इसकी चौहद्दी इस तरह है-पूर्व में बड़ौधा, राजपीपला, वांसदा धरमपुर, दक्षिणमें थाना जिला और दमान (पुर्तगालका ) पश्चिममें अरब समुद्र उत्तरमें भरुच और बड़ौधा राज्य । यहां । ६५३ वर्ग मील स्थान है । इतिहास - यूनानी भूगोलविशारद टोलेमी : 'tolemy (सन् १९०) लिखता है कि यह पुलिपुला व्यापारका मुख्य केन्द्र था । शायद पुलिपुलासे मतलब फूलपाड़ासे है जो सूरत नगरका पवित्र स्थान माना जाता है । सूरत शहर से पूर्व १३ मीलपर कावरेज के किलेमें हिंदू राजा रहता था जो १३ वी शदी में कुत्तबुद्दीनसे हारकर भाग गया । यहांकी प्राचीनताकी बात यह है कि कुछ मसजिदें प्राचीन जैन मंदिरोंको तोड़कर बनी हैं जैसे रांदेर में जम्मा मसजिद, मसजिद मियां व खारवा व मुन्शीकी मसजिद । -- (१) सूरत शहर - यह मोटे व रंगीन रुईके कपडोंके लिये व रेशमपर सुनहरी व रुपही फूल कामके लिये प्रसिद्ध था। किसी समय जहाज बननेका शिल्प बहुत चढा हुआ था और यह सब पारसियोंके हाथ में था । बड़े २ जहाज जो ५०० से १००० टन बोझा ले जाते थे चीनके साथ व्यापारमें लगे रहते थे । सुरतके शाहपुरवा - ड़ानें घेरेके भीतर जो कड़ीकी मसजिद है वह भी जैन मंदिरके सामानसे बनी है। शाहपुरा, हरिपुरा, सय्यदपुरा व गोपीपुरा में बहुत जैन मंदिर हैं | नोट - यहां दि० व श्ये ० के प्राचीन जैन मंदिर व शास्त्र हैं । सूस्तके कतारगांबके पास वसतिया देवडी है जहां अनु फा ም Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । RvuAR मान १०० के छोटी २ जैन साधुओंकी समाधिये हैं जिनपर लेख भी हैं । यह दि० जैनियोंकी हैं। (२) रांदेर-सुरत शहरसे २ मील तापती नदीके दाहने तटपर। यह चौरासी तालुकेमें एक नगर है। दक्षिण गुजरातमें सबसे प्राचीनस्थानोंमें यह एक है। ईसाकी पहली शताब्दीमें यह एक उपयोगी स्थान था जब भरोच पश्चिमीय भारतमें व्यापारका मुख्य स्थान था । अलविरुनीने (सन् १०३१ में) लिखा है कि दक्षिण गुजरातकी दो राज्यधानी हैं एक रांदेर (या राहन जौहर ) दूसरा भरोच । तेरहवीं शताब्दीके प्रारम्भमें अरब सौदागरों और मल्लाहोंके संघने उस समय रांदेरमें राज्य करनेवाले जैनियोंपर हमला किया और उनको भगा दिया । तथा उनके मंदिरोंको मसजिदोंमें बदल लिया । जम्मा मसजिद जैन मंदिरसे बनी है । तथा कोर्टकी भी जैन मंदिरकी हैं। करवा या खारवाकी मसजिदमें जो लकड़ीके खण्मे हैं वे जैनियोंके हैं । मियां मसजिद भी असलमें जैन उपासरा था । वालीनीकी मसजिद भी जैन मंदिर कहा जाता है मुन्शीकी मसजिद भी जैन मंदिर था । अब वहां पांच जैन मंदिर पुराने हैं। रांदेरके अरब नायतोंके नामसे दूर दूर देशोंमें यात्रा करते थे । सन् १५१४ में यात्री बारवोसा Barbos वर्णन करता है कि यह रांदेर मूर लोगोंका बहुत धनवान व सुहावना स्थान था निसमें बहुत बडे २ और सुंदर जहाज थे और सर्व प्रकारका मसाला, दवाई, रेशम, मुश्क आदिमें मलक्का, बङ्गाल, तनसेरी (Tenna gerim) पीगू, मर्तवान और सुमात्रासे व्यापार होता था। हमने खयं रांदेर जाकर पता लगाया तो ऊपर लिखित मसजिदें जैन मंदि Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरत जिला। [२७ रोंको तोड़कर बनी हैं यह बात सच पाई। रांदेरमें अब दि० जैन मंदिर एक है। (३) पाल-सूरतसे ३ मील यहां श्री पार्श्वनाथका बहुत बड़ा जैन मंदिर है। (४) मांडवी-ता० मांडवी यहां श्रीआदिनाथजीका दि० जैन मंदिर दर्शनीय है। इस पर यह शिलालेख है “ संवत १८५७ वर्षे वैशाख मासे कृष्ण पक्षे दश्यां तिथौ शनौ श्रीयुत संवत्सर सरखती गच्छे बलात्कार गणे कुन्दकुन्दान्वये भट्टारक सकलकीर्ति तदनुक्रमेण भ० श्री विजयकीर्ति तत्पट्टे श्री भ० श्री नेमिचन्द्रदेव तत्पट्टे श्री चन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ• श्री रामकीर्ति देव, तत्पट्टे भट्टारक श्री यशकीर्ति उपदेशात्....श्री मांडवी ग्रामे समस्त श्री संघ श्री मूलनायक श्री आदिनाथं नित्यं प्रणमति । शुभम् । यहां एक जैन श्वेतांबर मंदिर भी हैं जो संवत् ० १८४५में बना था। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नक्काशी है । भीतर लिंग है । जो कारीगरी भीतरके खंभोपर व 1 बाहर दिख रही है वैसी इस बंबई प्रांतमें कहीं नहीं है । यहां शिवरात्रि ( माघ में) को मेला भरता है । नोट - इसकी जांच होनी चाहिये । शायद जैन चिन्ह हो । (२) बोरीवली- सैलसिटी तालुका वंबईसे उत्तर २२ मील स्टेशन बी० बी० सी० आईसे करीब आध मील स्टेशनसे पूर्व पोनीसर और भागा घाटीके निकट बौद्धोंकी खुदी हुई गुफाएं हैं। इसके दक्षिण पूर्व करीब २ मीलके अकुलमें एक काले रङ्गका बडा टीला है । इसके ऊपर खुदाई है व २००० वर्ष पुरानेपाली अक्षर हैं। इसके दक्षिण २ मील जाकर जोगेश्वर नामकी ब्राह्मण गुफा ७ वीं शताब्दीकी है । गोरेगांव स्टे० से ३ मील गुफाएं हैं उनमें सबसे बड़ी नं० तीन २४०x२०० फुट है । (३) दाह नू - बन्दर ता० दाहानू दाहानूरोड स्टे० (बी०बी०) से २ मील बम्बईसे ७८ मील, पहले यह नगर था । इस स्थानका नाम नासिककी गुफाओंके शिलालेखों में आया है (सन् १०० ई० में) (४) कल्याण - बम्बई से दक्षिण पूर्व ३३ मील | इसका नाम पहलीसे छठी शताब्दी तकके शिलालेखों में आता है । दूसरी शताब्दीके अन्तमें यह नगर बहुत उन्नतिपर था । कैस्मस इंडिका Casmas Indica कहता है कि छठी शताब्दीमें यह पश्चिम भार तके पांच मुख्य बाजारों में से एक था। यह बलवान राजाका स्थान था । यहां पीतल, कपड़ेका सामान तथा लकड़ीके लट्ठोंका व्यापार होता था । (५) कन्हेरी गुफाएं - थानासे ६ मील, जी० आई० पी० के भानदुव स्टेशनसे या बी० बी० के वोरिवली स्टे० से निकट है । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाना जिला। [३१ इसका प्राकृत नाम कन्हगरि संस्कृतमें कृष्णगिरि है उसकी पवित्रता बौद्धोंकी उन्नतिके समयसे है । १०० वर्ष पहलेसे ५० सन् ई० तककी गुफाएं हैं। कुछ गुफाएं चौथीसे छठी शताब्दी तककी हैं यहां ५४ शिलालेख हैं (देखो बम्बई गजेटियर जिल्द १५ वीं सफा १२१ से १९५)। (६) सोपारा-तालुका बसीन-बसीनरोड़ स्टे०से उत्तर पश्चिम २॥ व बीरार स्टे० से दक्षिण पश्चिम ३॥ मील है । यह प्राचीन नगर था । यह सन ई० से ५०० वर्ष पहलेसे लेकर १३०० इ० तक कोंकनकी राज्यधानी था । महाभारतमें व गुफाओंके लेखोंमें इसका नाम शुर्पारक है । यूनानी टोलिमीने सौपार, व प्राचीन अरब यात्रियोंने सुबार नाम लिखा है ! महाभारतमें लिखा है कि यहां पांच पांडव ठहरे थे । गौतमबुद्ध अपने पूर्व जन्मोंमें यहां पैदा हुआ था । जैन लेखकोंने सुपाराका बहुत स्थानोंमें नाम लिया है। सन ई० से पहली व दूसरी शताब्दी पहलेके लेखोंमें इसका नाम सोपारक, सोपाराय व सोपारग पाया जाता है । पेरिप्लसके संपादकने लिखा है कि तीसरी शताब्दीमें औारा भरुच और कल्याणके मध्यमें समुद्र तटपर १ बाजार था । (B. R. A S. 1882) सोलोमनने इसको ओपलायर नाम देकर लिखा है। यह ईसासे १००० वर्ष पहले व्यापारका मुख्य केन्द्र था, इतिहासके समयके पहलेसे इस थानाके किनारेसे फारस, अरब और अफ्रिकासे व्यापार होता था । जेनेसिस अध्याय २८में कहा है कि भारतीय मसालोंमें अरबके साथ व्यापार चलता था तथा मिश्र वासियोंमें भारतकी वस्तुएं प्राचीनकालमें व्यवहार की जाती थीं। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ manna ३२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। Wilkinson's ancient Egyptians II P. 237. फारशकी खाड़ीके नाकेसे भारतके साथ व्यापार बहुत ही पूर्वकालसे होता था। नेवूचडनजर ( सन ई०से ६०६ से ५६१ वर्ष पहले ) ने फारसकी खाड़ीपर बैंक स्थापित किये थे और सीलोन व पश्चिमीय भारतसे व्यापार करता था। भारतको ऊन, जवाहरात, चूना, मट्टी, ग्लास, तेल भेजता था व भारतसे लकड़ी, मसाला, हाथीदांत, जवाहरात, सोना, मोती लाता था। Heeren's historical Rescarches lI P. 209, 247. (७) तारापुर-या चिंचनी, महिम और दाहानू तालुका, महिमसे उत्तरसे १५ मील । यह बहुत प्राचीन नगर है। नासिककी गुफाके पहली शताब्दीके लेखमें इसका नाम चेचिज्ञ आया है । (८) वजाबाई-तालुका भिवंडीमें पवित्र स्थल-भिवन्डीसे उत्तर १२ मील । यहां गर्म पानीके झरने हैं । इसके लिये प्रसिद्ध है । एक पहाड़ीपर सुन्दर देवीका मंदिर है। चैत्रमें मेला लगता है। (९) वशाली-मुखाड़में तालुका शाहापुर--एक छोटी पहाड़ीकी उत्तर और ढालमें एक चट्टानमें खुदा मंदिर है जो १२४१२ फुट है। इमके द्वारके सामने एक आलेके दोनों तरफ दो मूर्तिये हैं हरएक ३ फुट ऊंची है। ये ध्यानरूप हैं द्वारके ऊपर १ छोटी खंडित मूर्ति है। ये मूर्तियें व मंदिर जैनियों । मालूम होता है। देखना चाहिये। नोट-इस जिलेमें और भी जैन चिन्ह अवश्य होंगे जांच होनेकी जरूरत है । जैन शास्त्रोंमें सुपाराका कहां २ वर्णन है यह बात भी संग्रह करने लायक है। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ बड़ौधा राज्य। (१०) बड़ौधा राज्य। बड़ौधाका प्राचीन नाम एक दफे हिन्दुओंने चन्दनावती प्रसिद्ध किया था क्योंकि राजपूत दोरवंशके राजा चंदनने इसको जैनियोंसे छीना था । यह चंदन प्रसिद्ध मलियाधीका पति व मशहूर कन्या शिवरी और नीलाका पिता था पीछेसे इसे परावली फिर वतपत्रु कहने लगे। (१) नवसारी-यहां श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर है। (२) महुआ-पूर्ण नदीपर-एक दि० जैन मंदिर है जिसमें सुन्दर कारीगरी है। प्रतिमाएं बहुत प्राचीन हैं। शास्त्रभंडार बहुत बढ़िया है, यहां श्री पार्श्वनाथजीकी मूर्ति भौरमें है जिसे विघ्नहर पार्श्वनाथ भी कहते हैं-सर्व अनैन भी पूजते हैं। यह मूर्ति कृष्ण पाषाण २॥ हाथ ऊंची पद्मासन वड़ी मनोज्ञ व प्राचीन है। यह सं० १३५३में खानदेश जिलेके सुलतानपुरके पास तोड़ावा ग्राममें खेत खोदते हुए मिली थी। सेठ डाह्याभाई शिवदासने लाकर यहां विराजित की। ऊपर १ वेदीमें श्वेत पाषाणका पट है २४ प्रतिमा हैं मध्यमें ३ हाथ ऊंची कायोत्सर्ग श्री ऋषभदेवकी मूर्ति है जो नौसारीके दि० जैन मंदिरसे यहां सं. १९११ में लाई गई थी। दर्शनीय है। प्रबन्धकर्ता इच्छाराम झवेरचंद नरसिंगपुरा हैं। (३) अनहिलवाड़ा पाटन-सिद्धपुर स्टेशनसे जाना होता है। यह चावड़ी और चालुक्य राजाओंकी पुरानी राज्यधानी है। इसको वनराजने सन् ७४६ में आबाद किया था। परन्तु मुसल Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक | मानोंने इसे १३वीं शताब्दी में ध्वंश किया । बहुतसे वर्तमान में बने हुए मंदिरों में पुराने मंदिरोंके खण्ड व मसाले पाए जाते हैं । पंचासर पार्श्वनाथ जैन मंदिर में एक संगमर्मर की मूर्ति है जो पाटन के स्थापनकर्ता वनराजकी कही जाती है। इस मूर्तिके नीचे लेख है जिसमें बनराजका नाम व संवत् ८०२ अंकित है इसी मूर्तिकी बाईं तरफ वनराजके मंत्री जाम्बकी मूर्ति है। श्री पार्श्वनाथके दूसरे जैन मंदिर में लकड़ीकी खुदी हुई छत बहुत सुन्दर है तथा एक उपयोगी लेख खरतर गच्छ जैनियोंका है । दूसरे एक जैन मंदिर में वेदी संगमर्मरकी बहुत ही बढ़िया नक्कासीदार है जिसपर मूर्ति विराजित है । नोट - इस पाटन में जैनियोंका शास्त्रभंडार भी बहुत बड़ा दर्शनीय है यहां दोआने जैनी बसते हैं । उनके सब १०८ मंदिर हैं प्रसिद्ध पंचासर पार्श्वनाथका है जिसमें २४ वेदियां हैं । ढांढरवाड़ा में सामलिया पार्श्वनाथका बड़ा मंदिर है जिसमें एक बडी काले संगमर्मर की मूर्ति सम्पवतीराजाकी है। वहीं श्री महावीर - स्वामीका मंदिर हैं जिसमें बहुत अद्भुत और मूल्यवान पुस्तकोंके भंडार हैं । इनमें बहुतसे ताड़पत्रपर लिखे हैं । और बड़े २ संदूकोंमें रक्षित हैं । (४) चूनासामा - बड़बाली तालुका- यहां बड़ौधा राज्यभर में सबसे बड़ा जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है इसमें बढ़िया खुदाईका काम है- इसी शताब्दी में ७ लाखकी लागत से बना है । (५) उन्झा - सिद्धपुर से उत्तर ८ मीक । कोड़ावाकुनवीका Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ौधा राज्य। [ ३५ एक बड़ा मंदिर है जो जैन मंदिरके ढंगपर सन् १८५८में बनाया गया था। (६) बडनगर-विसाल नगरसे उत्तर पश्चिम ९ मील । यहां दो सुन्दर जैन मंदिर हैं। (७) सरोत्री या सरोत्रा-सरोत्री टे० से ५ मील यहां कई पुराने जैन मंदिर हैं उनमें बहुतसे छोटे२ लेख हैं । एक बहुत प्राचीन व प्रसिद्ध सफेद संगमर्मर पत्थरका जैन मंदिर है। मध्यमें एक है। चारोंतरफ ५२ मंदिर हैं जो गिरगए हैं। इसकी सर्व मूर्तिये अनुमान ६०के अन्यत्र भेज दी गई हैं । (८) राहो-सरोत्रासे उत्तर पूर्व ४ मील यहां प्राचीन सफेद संगमर्मरके जैन मंदिरके ध्वंस भाग हैं । एक बंगलेके बाहर द्वारपर पुराने मंदिरके खंभे भी लगे हैं। (९) मूंजपूर- पाटनसे दक्षिण पश्चिम २४ मील | यहां प्राचीन इमारत एक पुरानी जमा मसजिद है। जो और गुजराती पुरानी मसजिदोंके समान पुराने हिन्दू और जैन मंदिरोंके मसालेसे बनाई गई है। यहां एक संस्कृतमें शिलालेख है परन्तु पढ़ा नहीं जाता। (१०) संकेश्वर-मुंजपुरसे दक्षिण पश्चिम ६ मील-यह जैनियोंका प्राचीन स्थान है। यहां श्री पार्श्वनाथनीका पुराना जैन मंदिर है । इसके चारों तरफ छोटे २ मंदिर हैं । एक मंदिरके द्वारपर कई लेख सं० १६५२ से १६८६ के हैं । यह कहा जाता है कि प्राचीन मंदिरमें जो श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति थी उसको उठाकर Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। नए मंदिरज़ी में ले गए हैं । इस मंदिरकी एक प्रतिमा पर संवत १६६६ है व नए मंदिरकी प्रतिमा पर सं० १८६८ है । (११) पंचासुर-संकेश्वरसे दक्षिण ६ मील । यह गुजरातके सबसे प्राचीन नगरोंमेंसे एक है। ११०० वर्ष हुए यहांके प्रसिद्ध जयशेषर राजाको भुवर राजाके आधीन दक्षिणकी सेनाने घेर लिया था। यहां जमीनके नीचेसे बड़ी २ पुरानी ईटे निकली हैं। (१२) चन्द्रावती-राहोसे उत्तर पूर्व १५ मील । पर्वत आबूके नीचेसे थोड़ी दूर-यह संगमर्मरका पुराना सुन्दर नगर था। यहां एक स्थानपर १३६ मूर्तियें विराजमान हैं। नोट-देखना चाहिये । शायद जैन हों। (१३) मोधेरा नगर-छोटी पहाड़ीपर । जैन कथाओंमें इसको मोधेरपुर या मुधवंकपाटन लिखा है । (१४) सोजित्रा-यहां दि० जैन भट्टारकोंकी दो पुरानी गदियां हैं । मूलसंघ और काष्टासंघकी । तीन दि जैन मंदिर हैं। यहां कुछ प्राचीन दि जैन मूर्तियां खभातके मंदिरसे लाकर विराजमान की गई हैं। यहां काष्टासंघके मंदिरजीमें प्राचीन जैन शास्त्र भण्डार है। . ... . . Jio SSPATRAJISODE HINDI Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महीकांठा एज'सी। [३७ (११) महीकाठा एजंसी। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तर पूर्व उदयपुर और डूंगरपुर दक्षिण पूर्व रेवाकांठा, दक्षिण-खेड़ा, पश्चिम-बड़ौधा और अहमदावाद । यहां ३१२५ वर्गमील स्थान है। - ईडर राज्य-यह सन् ८०० से ९७० तक गहलोटों व १००० से १२०० तक परमार राजपूतोंके आधीन रहा। (१) ईडर नगर-यहां गढ़में कुछ गुफाओंके जैन मंदिर ४०० वर्षके प्राचीन हैं एक भूमिके नीचे संगमर्मरका व एक ऊपर श्री शांतिनाथका है। नोट-यहां पहाड़पर दिगम्बर और श्वेताम्बर जैनियोंके मंदिर दर्शनीय हैं । नगरमें दोनोंके कई मंदिर हैं । दि० मंदिरोंमें बहुत प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं तथा जैन शास्त्रभंडार बहुत प्राचीन हैं । यहां दि० जैन भट्टारकोंकी गद्दी है। (२) खंभातराज्य-इसका वर्णन खेड़ा जिलेमें लिखा गया है यह अहमदावादसे ५२ मील है । यहां प्राचीन ध्वंश इमारतें बहुत हैं जो खभातकी सम्पत्तिको दिखलाते हैं । जुमा मसनिदमेंके स्तंभ जैन मंदिरोंसे लेकर लगाए गए हैं जो बहुत ही शोभा दिखाते हैं। (३) भिलोड़ा-यहां सफेद संगमर्मरका जैन मंदिर श्री चन्द्रप्रभुका है जो ३८ फुट ऊंचा व ७०x४५ फुट है। इसमें ४ खनका मानस्तंभ है जो ७६ फुट ऊंचा है। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (४) पोसीमा सबली-यहां श्री पार्श्वनाथ और नेमिनाथमीके जैन मंदिर हैं जो सफेद पाषाणके २६ फुट ऊंचे व १५०x१४ ० फुट हैं। (५) तिम्बा-जिला गोदवाड़ा। श्री तारंगा पहाड़ । नोट-यह जैनियों का माननीय सिद्धक्षेत्र हैं । दिगम्बर जैन शास्त्रोंमें इसका प्रमाण इस तरह दिया है। गाथावरदत्तो य वरंगो सायरदत्तो य तारवरणयरे । आहट्टय कोड़ीओ णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ ३ ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड ) दोहा वरदत्तराय रु इंद मुनिंद, सायरदत्त आदि गुणवृन्द । नगर तारवर मुनि उठ कोड़ि, वंदों भाव सहित करजोड़ि॥४॥ ( भाषा निर्वाणकांड भगवतीदास कृत सं० १७४१ में ) भावार्थ-इस ताइवर क्षेत्रपर वरदत्त राजा, इन्द्र मुनि व सागरदत्त आदि साढ़े तीन कोड़ मुनि मुक्ति पधारे हैं। यहां बहुतसे जैन मंदिर हैं। उनमें श्री अनितनाथ और संभवनाथके मंदिर ७०० वर्ष हुए राजा कुमारपालके समयमें रचे हुए कहे जाते हैं । ( फोर्वसकत रासमाला ) यहां अखंडित खंडित बहुतसी दि० जैन मूर्तियां यत्र तत्र हैं। बहुत जैन यात्री पुजाको भाते हैं। (६) कुम्भरिया-दांतासे उत्तर पूर्व १४ मील । अम्बाजीसे दक्षिण पूर्व १ मील । यहां सफेद संगमर्मरका श्री नेमिनाथनीका Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महीकांठा एज सी। [ ३६ जैन मंदिर सबसे बड़ा है। पहले यहां ३६० मंदिर थे अब केवल ५ हैं । बहुतसे ज्वालामुखी पर्वतकी अग्निसे नष्ट होगए । एकमें शिलालेख सन् १२४९ का है कि कुमारपालके मंत्री चाहड़के पुत्र ब्रह्मदेवने कुछ इमारत इसमें जोड़ी, दूसरा सन् १२०० का है कि सर्व मंडलिकोंके तख्त अर्बुदके राजा श्रीधर वर्षदेवने जिनपर सदा सूर्य चमकता है इस अरसन पूरमें एक कूप बनवाया। दूसरे भी लेख हैं। कुछ मंदिर विमलशाहके बनवाए हुए हैं । एक पाषाण पर लेख है । " श्री मुनिसुव्रत स्वामी बिम्बम् अश्वावबोध स मलिकाविहार तीर्थोद्धार सहितम् ।" कुम्भरियामें ५ मंदिर जैनोंके शेष हैं । इस नगरको चितौड़के राजा कुंभने बसाया था। शिल्पकारीके खभे बहुत बड़े नेमिनाथके मंदिरजीमें हैं। एक खंभेपर लेख है कि इसे सन् १२५३में आमपालने बनवाया। इस बडे मंदिरमें आठ वेदियां हैं जिनमें श्री आदिनाथ और पार्श्वनाथकी मूर्तिये हैं बीचमें श्री नेमिनाथकी मूर्ति है जिसमें सन १६१८का लेख हैं। मंडपमें जैन मूर्तियां सन् ११३४ से १४६८ तककी हैं। (७) बड़ाली या अभीजरा पार्श्वनाथ-ईडरसे १० मील । दि. जैन मंदिर प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ चतुर्थकालकी पद्मा ० है । ASHTRA Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१२) पालनपुर एजंसी। इसकी चौहद्दी इस तरह है । उत्तरमें उदयपुर, सिरोही, पूर्वमें महीकांठा, दक्षिणमें बड़ौधा राज्य और काठियावाड़, पश्चिममें कच्छकी खाड़ी। यह अनहिलवाड़ाके राजपूतोंके आधीन सन् ७४६ से १२९८ तक रहा । (१) दीसा-बम्बईसे ३०० मील पालनपुर दीसा रेलवेपर, यहां दो जैन मंदिर हैं। (२) पालनपुरनगर- यहां नगरके बाहर दो भाग हैं एक जैनपुरा दूसरा ताजपुरा बीचमें एक खाई २२ फुट चौड़ी व १२ फुट गहरी है । यह बहुत पुरानी वस्ती है । ८ वीं सदीमें यह वह स्थान है जहां अनहिल वाड़ाके चावड़ वंश स्थापक वनरान (७४६-८०) पाला गया था। १३ वीं शदीके प्रारम्भमें यह चन्द्रावतीके पोनवार घरानेके प्रल्हाद देवकी राज्यधानी थी। इसका नाम था प्रह्लादपाटन, १४ वी शदीमें पालन्सी चौहानोंने ले लिया जिससे इसका वर्तमान नाम है। यहां भी जैन मंदिर है। KOT Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * कोई श)। [४१ (१३) काठियावाड़ राज्य (सौराष्ट्र देश) इसमें २३४ ४५ वर्ग मील स्थान है। इसके ४ भाग हैं -झालावाड़, हालार, सोराठ और गोहेलबार । कच्छ और खंभातकी खाड़ीके मध्य देशको काठियावाड़ कहते हैं। इतिहास-यहां मौर्य, यूनानी, तथा क्षत्रपोंने क्रमसे राज्य किया है । पीछे कन्नौजके गुप्तोंने राज्य किया जिन्होंने अपने सेनापति नियत किथे । अन्तके सेनापति स्वयं सौराष्ट्रके राजा हो गए निन्होंने अपने गवर्नर वल्लभीनगरमें रक्खे । यह वल्लभी वर्तमानमें दबा हुआ नगर बाला है जो भावनगरसे उत्तर पश्चिम १८ मील है । जब गुप्तोंका प्रभाव गिरा तब वल्लभीके राजाओंने जिनके वंशको गुप्तोंके सेनापति भट्टारकने स्थापित किया था अपना अधिकार कच्छ तक बढ़ा लिया और मेर लोगोंको हरा दिया जिन्होंने काठियावाइपर सन् ४७० से ५२० तक अधिकार जमा लिया था। रामा ध्रुवसेन द्वि० के राज्य (सन् ६३२ से ६४०)में चीनी यात्री हुइनसांगने वलपी (वल्लभी) और सुलचा (सौराष्ट्र )की मुलाकात की थी-७४६ से १२९८ तक राज्यस्थान अणहिलवाडाहो गया । इस मध्यमें कई राज्य उठे और जेठवा लोग सौराष्ट्र के पश्चिममें एक बलवान माति हो गए । अनहिलवाड़ा १२९ में ले लिया गया। तव झाला लोग उत्तर काठियावाडमें बस गए । प्राचीन स्मारक-प्रसिद्ध अशोकके शिलालेखके सिवाय जूनागढ़में बौडोंकी पहाड़में खुदी गुफाएं व मंदिर हैं जिनका Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । वर्णन हुइनसांगने ७वीं शदीमें किया है । तथा कुछ सुन्दर जैन मंदिर गिरनार और सेधुंजय पर्वतपर है। घूमलीमें जो पहले जेठवा लोगोंकी राज्यधानी थी बहुतसी खडित प्राचीन इमारते हैं। (१) पालीतानाराज्य-सेव॒ञ्जय पर्वत-मालूम हुआ है कि सौराष्ट्रमें गोहेल सरदारोंके वसनेके पहलेसे ही जैन लोग सेब्रुनय पर पूजा करते थे। शाहज़ादे मुरादबक्शने सन् १६५० में एक लिखित पत्रसे पालीतानेका ज़िला शांतिदास जौहरी और उसके संतानोंको दिया था। शांतिदासकी कोठीसे मुरादबख्शको युद्धके लिये रुपया दिया गया था जब वह दाराशिकोहसे आगरामें लड़ने गया था। मुगलराज्यके नष्ट होनेपर पालीताना गोहेलके सरदारोंके हाथमें आ गया जो गायकवाड़के नीचे रहते थे। यह सर्व पहाड़ धार्मिक है यहां जैन श्रावक हरवर्ष यात्रा करते हैं। यहां श्री युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन ये तीन पांडव मोक्ष प्राप्त हुए हैं व आठ कोड़ मुनि भी । इसी लिये जैन लोग पूजते हैं। दि. जैन आगममें प्रमाण यह हैपांडुसुआ तिण्णि जणा दविडणरिंदाण अट्ठकोड़ीओ। सेत्तुनय गिरि सिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ ६ ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड ) भाषा पांडव तीन द्रविड़ राजान । आठ कोड़ मुनि मुक्ति प्रमाण । श्री सेतुंनयगिरिके शीस । भावसहित वन्दों जगदीश ॥ ७ ॥ ( भगवतीदास कृत) . Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। [४३ यहां पर्वतपर वर्तमानमें दिगम्बर जैनोंका खास एक बड़। मंदिर है जहां वे लोग पूनने जाते है उसमें मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान १६ वें तीर्थकरकी पुरुषाकार पद्मासन मूर्ति बहुत मनोज्ञ सं० वि० सं० १६८६ की है प्रतिष्ठाकारक बादशाह जहांगीरके समयमें अहमदाबाद निवासी रतनसी हैं-देखो___Epigraphica Indica Vol II PxP.72 ___श्वेतांबर जैनोंके बहुतसे विशाल मंदिर हैं। यह पर्वत समुद्र तहसे १९७७ फुट ऊंचा है मुख्य दो चोटियां हैं फिर उनकी घाटी धनवान जैन व्यापारियोंने बना दी है । कुल ऊपरका भाग मंदिरोंसे ढका हुआ है जिनमें मुख्य मंदिर श्री आदिनाथ, कुमारपाल विमलशाह, सम्प्रति राना और चौमुखाके नामसे प्रसिद्ध हैं। यह चौमुखा मंदिर सबसे ऊंचा है जिसको २५ मीलकी दुरीसे देखा जासक्ता है । इस चौमुखा मंदिरके सम्बन्धमें जो खरतरवासी टोंकमें है ऐसा कहा जाता है कि यह विक्रम राजाका बनाया हुआ है परंतु यह नहीं बताया गया कि यह संवत ५७ वर्ष पहले सन् ई०का है या ५०० सन् इ० में हुए हर्ष विक्रमका है या अन्य किसीका है । परंतु वर्तमान रूपसे ऐसा मालूम होता है कि यह करीब सन् १६१९ के फिरसे बना है। अहमदावादके सेवा सोमनीने सुलतान नुरुद्दीन जहांगीर, सवाई विजय राजा, शाहनादे सुलतान खुशरो और खुरमाके समयमें सं० १६७५में वैशाख सुदी १३ को पूर्ण कराया । देवराज और उनके कुटुम्बने जिसमें मुख्य सोमनी और उनकी स्त्री राजलदेवी थी उन्होंने यह चौमुखा... आदिनाथजीका मंदिर बनवाया है। देखो Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । Burgess notes of visit W. S. Hill Bombay 1869. इस सेतुंजय पर्वतकी चौहद्दी इस प्रकार है: mi पूर्व में - घोघाके पास कच्छखाड़ी, भावनगर । उत्तरमें सिहोर और चमारड़ी की चोटियां, उत्तर पश्चिम व पश्चिम मैदान जहांसे श्री गिरनारजी दिखता है । यहां सेत्रुञ्जय नामकी नदी भी है । (२) गिरनार या उज्जयंत - यह मुख्यतासे जैनियोंका पवित्र पहाड़ है, परन्तु बौद्ध और हिन्दू भी मानते हैं । यह जूनागढ़के पूर्व १० मील है । ३५०० फुट ऊंचा है । चूडासमास राजाका पुराना महल और किला अभीतक बना हुआ है । यहां तीन प्रसिद्ध कुंड हैं - गौमुखी, हनुमानघोरा, कमण्डलकुण्ड । पर्वतके नीचेसे थोड़ी दूर जाकर वामनस्थली है । यह प्राचीन कालमें राज्यधानी थी तथा बिलकुल नीचे बलस्थान है जिसको अब बिलखा कहते हैं । पर्वतका प्राचीन नाम उज्जयंत है । पर्वत के नीचे एक चट्टान है 1 जिसमें अशोकका शिलालेख ( संवतसे २५० वर्ष पहलेका ) है । दूसरा लेख सन् १९० का है जिससे प्रगट है कि स्थानीय राजा रुद्रदमनने दक्षिण राजाको हराया था। तीसरा सन ४५५ का हैं जिसमें लिखा है कि सुदर्शन झीलका बांध टूट गया था तथा तूफानसे नष्ट हुए पुलको फिरसे बनाया गया । देखो Fergusson History of India's architecture 1876 P. 230-2 पर्वतपर सबसे बड़ा और सबसे पुराना मंदिर श्रीनेमिनाथका है जो लेखसे सन् १२७८ का बना मालूम होता है । इस मंदिरके पीछे तेजपाल वस्तुपाल दो भाइयोंका निर्मापित मंदिर है । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। [४५ नोट--यहां जैनियोंके बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथजीने तप करके मोक्ष प्राप्त की है। श्री कृष्णके पुत्र प्रदुम्नकुमार संबुकुमार आदिने भी। इसके सिवाय बहुतसे और मुनियोंने। इसीलिये भारतके सब जैन लोग बडी भक्तिसे दर्शन पूजा करने आते हैं । दि० जैन शास्त्रोंमें इसका प्रमाण यह है: णेमिसामि पनण्णो सम्बुकुमारो तहेव अणिरुद्धो । वाहत्तरि कोडीओ उज्जते सत्तसया सिद्धा ॥ ४ ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड ) भाषाश्री गिरनार शिषर विख्यात । कोड़ि यहत्तर अरु सौ सात । शंबुप्रद्युम्नकुमर दो भाय । अनुरुहादि नमो तसु पाय ॥ ( भगवतीदास कृत) यहां गढ़ गिरनारपर ३६ लेख हैं जो सब प्रायः सं. १२८८ के वस्तुपाल तेजपाल गंत्रियोंके हैं। नेमिनाथजी मंदिरके द्वारके दक्षिण हातेके पश्चिम एक छोटे मंदिरकी भीतपर दि. जैन लेख है । न० १२ लेखके पश्चिम शब्द हैं। "स० १५२२ श्री मूलसंघे श्रीहर्षकीर्ति, श्रीपद्मकीर्ति भुवनकीर्ति...." (२) जूनागढनगर-गिरनार और दातार पहाडीके नीचे प्राचीनता और ऐतिहासिक सम्बन्धमें भारतवर्ष में यह अपने समान दूसरेको नहीं रखता । अपरकोटमें बढ़िया बौद्धोंकी गुफाएं हैं । तमाम खाई और उसके निकट गुफाओं व उनके ध्वंश भागोंसे व्याप्त है। इसमें सबसे बढ़िया खापराकोडिया है जो पहले ३ खनका मठ का । देखो--- Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तक प्राचीन जैन स्मारक । Dr. Burgess antiquities of Cutch Kathiawar अपर कोटमें दो कूप हैं जिनके लिये प्रसिद्ध है कि प्राचीन कालमें चूड़ासम राजाओंकी दासी कन्याओंने बनवाए थे । "Cave temples of India by fergusson and Burgess 1880." नामकी पुस्तक में जूनागढ़ गिरनारके सम्बन्धमें लेख है कि नगरकी पूर्व तरफ गुफाएं देखने योग्य हैं खासकर बाबा धाराके मठकी तरफ भीतों में । ये गुफाएं बहुत प्राचीन कालकी हैं। मैदानमें एक चौकोर पाषाणके स्तम्भका नीचे का भाग है उसके पास एक छुटा पत्थर मिला था जिसके एक कोनेपर राजा क्षत्रपके लेखका एक भाग था यह लेख स्वामी जयदमनके पोते शायद रुद्रसिंह समयका है जो रुद्रदमनका पुत्र था जिसका लेख राजा अशोक के लेखकी चट्टान के पीछे है । इस लेखमें केवलानी शब्द है जिससे डाक्टर बुहलरका खयाल है कि यह जैन लेख है और यह बहुत संभव है कि ये सब राजकुमार जैन धर्म से प्रेम रखते थे । ४६ ] (३) सोमनाथ (देव पाटन, प्रभास पाटन, वेरावल पाटन या पाटन सोमनाथ) काठियावाडके दक्षिण तटपर जूनागढ़ स्टेटमें एक प्राचीन नगर है। दो नगरोंके मध्य आधी दूर जाकर समुद्रकी नोकपर एक बड़ा और प्रसिद्ध शिव मंदिर है । जो पाटनसे करीब १० मील है । उस विरावल पाटनमें एक जैन मन्दिर जुमा मसजिद के पास बाजार में हैं जिसको मुसल्मानोंने अपना घर बना लिया है । इसके गुम्बज और खंभे खुदे हुए हैं । इसकी Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४७ ww काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। इमारतके नीचे १ भौंरा है जो ३५ फुटसे ४७॥ फुट है इसके ६ कमरे हैं । यह पाषाणका बना है । नोट-इसको अच्छी तरह जांचना चाहिये । (४) वधवान-यहां नगरके पूर्व नदी तटपर श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर ११ वीं शदीका है । इसका प्राचीन नाम श्री वर्धमानपुर है। (५) गोरखमढ़ी-उत्तरकी तरफसे जानेपर एक गुफाका मंदिर आता है जिसमें गोरखनाथ और मच्छेन्द्रनाथकी मूर्तियें हैं। यह गुफा ३० फुट लम्बी चौडी है शायद यह गिरनार पहाड़पर है। (६) वाबडियावाड-या सुजालबेट-यहां बहुतसी ध्वंश वावडिया हैं खण्डित मकानोंकी वस्तुओं व लेखोंसे प्रगट होता है कि यह एक ऐश्वर्यशाली नगर था। इस द्वीपके खेतोंमें ४ संगमर्मरकी मूर्तियां पड़ी हैं जिनपर नीचेके लेख हैं। (१) सं० १३०० वर्षे वैशाख वदी ११ बुधे सहजिगपुर वास्तव्य पल्लीनातीय ट० देदाभार्या कड़ देविकुक्षि संभूत परी० महीपाल महीचन्द्र तत्सुत रतनपाल विजयपालै निज पूर्वज ठ० शंकर भार्या लक्ष्मी कुक्षि संभूतस्य संघपति मुधिगदेवस्य निन परिवार सहितस्य योग्य देव कुलिका सहित श्री मल्लिनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठित श्री चन्द्र गच्छीय श्री हरिभद्र सूरिशिष्यैः श्री यशोभद्रसूरिभिः ॥ छा" मङ्गलं भवतु ॥ छः (२) संवत १३१५ वर्ष फागुण वदी ७ शनौ अनुराधा नक्षत्रेऽघेह श्री मधुमत्यां श्री महावीर देव चैत्ये प्राग्वाट ज्ञातीय Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । श्रेष्ठ आसवदेवसुत श्री सपालसुत गंधिबी बीकेन आत्मनः श्रेयाथै श्री पार्श्वदेव विकारितं, चन्द्रगच्छे श्री यशोभद्रसूरीभिः प्रतिष्ठितं । (३) स० १२७२ बर्षे ज्येष्ठ वदी २ रवौ अद्येह टिंबन के मेहरराजश्री रणसिंह प्रतिपत्तौ समस्त सन्धैन श्री महावीर बिम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्री चन्द्र गच्छीय श्री शांतिप्रभ सूरिशिष्यैः श्री हरिप्रभ सूरिभिः । (४) सं० १३४३ माघ सुदी १० गुरौ गुर्जर प्रार्वाट ज्ञातीय ठ० पेथड श्रेयसे तत्सुत पाल्हणेन श्री नेमिनाथ बिम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्री नेमिचन्द्र सूरि शिष्य श्री नयचन्द्र सूरिभिः । - (७) वालू या बूला - सोनगढ़ से उत्तर १६ मील व भरमा - रसे पश्चिम उत्तर २२ मील । इसीका प्राचीन नाम वल्लभीपुर था (नोट जहां देवर्द्धिगण साधुने ९०० वीर सं० के अनुमान श्वेतांबर आगमोंकी रचना की थी ) कुछ ध्वंश स्थान हैं। शिक्के व ताम्रपत्र मिलते हैं । (८) तेलुजाकी गुफाएं -काठियावाड़ के दक्षिण पूर्व सेडुंजय पहाड़ीके मुखपर तेलुगिरि नामकी पहाड़ी है । यहां बौद्धोंकी ३६ गुफाएं हैं। वर्तमान में यहां दो नवीन जैन मंदिर हैं । (९) द्वारिकापुरी - पोरबंदर स्टेशन उतरकर समुद्रतटसे जहाज पर थोडी दूर चलकर द्वारिका आती है टिकट ) है | जहाजसे उतरकर द्वारिकापुरीके स्थान मिलते हैं । यहां एक दिगम्बर जैन मंदिर है भगवान नेमिनाथजीकी प्रतिमा व चरण चिन्ह बिराजमान हैं । यह श्री नेमिनाथ भगवानका जन्मस्थान प्रसिद्ध है । ( देखो तीर्थयात्रादर्शक ब्र० गेबीलाल कृत ) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कच्छ राज्य। Am~ (१४) कच्छ राज्य। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तर और उत्तर पश्चिम सिन्धु, पूर्व-पालनपुर, दक्षिण-काठियावाड़ व कच्छ खाड़ी, दक्षिण पश्चिम भारतीय समुद्र । इसमें ७६१६ वर्गमील स्थान है। इतिहास यह है कि प्राचीनकालमें यह मिमन्दरके राज्यका भाग था पीछे शकोंके हाथमें गया। फिर पार्थियनोंने कबजा किया। सन् १४० और ३९० के मध्यमें यहां सौराष्ट्रके क्षत्रपोंने राज्य किया फिर मगधके गुप्त राजाओंमें शामिल होगया और वल्लभी राजाओंने राज्य किया। सातवीं शताब्दीमें यह सिन्धका भागहोगया। (१) भद्रेश्वर (भद्रावती) अन्नारसे दक्षिण १४ मील समुद्र तटपर यह एक प्राचीन नगरका स्थान है। बहुतसा मसाला पत्थर बनानेके लिये हटा लिया गया है। परन्तु अब भी यहां जैन मंदिर देखने योग्य है। १७ वीं शताब्दीमें इस मंदिरको मुसल्मानोंने लूट लिया और बहुतसी जैन तीर्थकरोंकी मूर्तियोंको खडित कर दिया। १२ वीं और १३ वीं शताब्दीमें यह मंदिर प्रसिद्ध यात्राका स्थान था । यह जगइशाहका मंदिर कहलाता है । इसकी भीत और खभोपर कुछ लेख है। देखो ( Arch report W. India Vol. II ). यह मंदरासे पूर्वोत्तर १२ मील है। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (३) संगमनेर तालुका-यहां दो ताम्रपत्र मिले हैं जिसमें एक संस्कृतमें शाका ९२२ का है जिसमें यह लेख है कि सुमदासके यादवोंके महासामंत भिल्लोनाने एक दान दिया था । ( Ep. Ind. vol II part XII P. 42.) (४) मेहेकरी-अहमद नगरसे पूर्व ६ मील एक ग्राम । यहां एक पहाडीके नीचे एक प्राचीन जैन मंदिर है । अहमदावाद गैजेटियर जिस्ट १७ छपा १८८४ में पृष्ठ ९९ से १०३ में जैन शिम्पियोंका हाल इस तरह दिया है । "इनकी संख्या ३४६१ है। ये दरजीका काम करते हैं। जाति शैतवाल है । ये माड़वाड़से आकर बसे मालूम होते हैं। इनका रक्त क्षत्रियोंका है । इनका कुटुम्ब देवता श्री पार्श्वनाथ हैं। ये लोग स्वच्छ रहते हैं, परिश्रमी हैं, नियमसे चलनेवाले है तथा अतिथि सत्कार करते हैं किन्तु कुछ मायाचारी भी हैं । ये सब दिगम्बर जैन हैं । इनका धार्मिक गुरु विशालकीर्ति है जिसकी गही वारसीके पास लाटूर में है । इनके जातीय बन्धन दृढ़ हैं। ये अपने झगड़े जातीय पंचायतमें तयकर डालते हैं।" । (५) घोटान-अहमदनगरसे औरङ्गाबाद जाते हुए खास सड़पर शिवगांव और पैथानके मध्यमें एक महत्व पूर्ण स्थान है । यहां ४ मंदिर हैं उनमें १ जैन है अब इसको हिंदू कर लिया गया है। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खानदेश जिला । (१६) खानदेश जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: - उत्तर में - सतपुरा पर्वत और नर्मदा नदी, पूर्व में बरार और नीमाड़, दक्षिणमें - सातमाल, चांदोर या अजंटा पहाड़िया, दक्षिण पश्चिम-नासिक जिला । पश्चिममें बड़ौधा और रीवाकांठा में सागवाड़ा राज्य । इसमें स्थान १०० ४१ वर्गमील है । [ ५३ इसका इतिहास यह है कि यहां १५० सन् ई० से पूर्वका शिला लेख मिला है - यहां यह दंतकथा प्रसिद्ध है कि सन् ई० से बहुत समय पहले यहां राजपूतोंका वंश राज्य करता था जिनके बड़े अवध से आए थे । फिर अंधोंने फिर पश्चिमी क्षत्रपोंने राज्य किया । ५वीं शताब्दी में चालुक्यवंशोंने बल पकड़ा फिर स्थानीय राजा राज्य करने लगे--यहां तक कि जब इधर अलाउद्दीन आया था तब असीरगढ़ के चौहान राजा राज्य करते थे । मुख्य प्राचीन जैन चिन्ह (१) नंदुरबार नगर व तालुका - तापती नदीपर यह बहुत ही प्राचीन स्थान है। कन्हेरीकी गुफाके तीसरी शताब्दीके शिलालेखमें इसका नाम नंदीगढ़ हैं। इसको नंद गौलीने स्थापित किया था यहां शायद कोई जैन चिन्ह मिले । - (२) तुरनमाल-तालुका तलोदा । पश्चिम खानदेश सतपुरा पहाड़ियोंकी एक पहाड़ी । यहां एक समय मांडूके राजाओं की राज्यधानी थी । यह पहाड़ी ३३०० से ४००० फुट ऊंची है १६ वर्गमील स्थान है । पहाड़ीपर झील है और बहुतसे मंदिरोंके अवशेष हैं। इनको लोग गोरखनाथ साधुके मंदिर कहते हैं । । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहाड़ीकी दक्षिण ओर एक श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर है जहां अक्टूबर में वार्षिक मेला होता है। धूलियासे उत्तर पश्चिम ६२ मील तलोदा है। (३) यावलनगर-पूर्व खानदेश । सावदासे दक्षिण १२ मील । यह स्थान पहले मोटा देशी कागज़ बनानेमें प्रसिद्ध था । (४) भामेर-तालुका पीपलनेर । निजामपुरसे ४ मील । पहले एक बड़ा स्थान था । पहाड़ीके सामने निजामपुरकी तरफ बहुतसी गुफाएं हैं जिनमें जाना कठिन बताया जाता है । ( Ind. Ant. Vol II P. 128 & Vol IV. P. 339 ) यह भामेर धूलियासे उत्तर पश्चिम ३० मील है। यहां गांवके ऊपर पश्चिममें १ गुफा है वरामदा ७४ फुट है तीन द्वार हैं कमरा २४ से २० फुट है ४ चौखुण्टे खम्भे हैं भीतोंपर श्री पार्श्वनाथ व अन्य जैन तीर्थङ्करोंको मूर्तियां अङ्कित हैं। गांवके बाहर दो पहाड़ियोंके पश्चिम एक साधुका स्थान है ।। (५) निजामपुर-पीपलनेरसे उत्तर पूर्व १० मील--यहां बहुतसे ध्वंश स्थान हैं। एक पाषाणका जैन मन्दिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है जो ७५ से १९ फुट है । यह १७ वीं शताब्दीमें सूरत और आगराके मध्यमें पहला बड़ा नगर था । (६) पाटन तथा पीतल खोरा--तालुका चालिसगांव । चालिस गांव रेलवे प्टेशनसे दक्षिण पश्चिम १२ मील, यह एक पुराना ध्वंश नगर है। यहां १॥ मीलपर पहाड़िया हैं । यहीं पीतल खोरा गुफाएं हैं। पश्चिमकी घाटियोंमें नागार्जुनकी कोठरी, सीताकी न्हानी और श्रीनगर चावड़ी नामकी गुफाए हैं। ध्वंश मंदिरोंमें एक जैन मन्दिर है। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खानदेश जिला। ब्राह्मण मंदिरके आगे १०० गजकी दूरीपर एक ध्वंश जैन मन्दिर है मिसके द्वारपर एक पद्मासन जिन मूर्ति है। भीतर वेदी खाली है परन्तु नक्काशीका काम अच्छा है । नागार्जन की कोठरी नामकी जो तीसरी गुफा है जो गांवके ऊपर ही है उसमें वरामदा है भीतर गुफा है यह जैनियोंकी खुदाई हुई है इसमें बहुतसी दिगम्बर जैन मूर्तियां हैं। नागार्जुन कोठरीका वरामदा १८ फुटसे ६ फुट है दो स्तंभ हैं । भीतरका कमरा २० फुटसे १६ फुट है । गुफाके बाहर इन्द्र इन्द्राणी वैसे ही स्थापित हैं जैसे एल्टूराकी गुफामें हैं। पीछेकी दीवालमें कुछ ऊंची वेदीपर एक जैनतीर्थंकर की मूर्ति है जो एक कमलपर विराजित है । आसनके पीछे दो हाथियोंके मस्तक अच्छे खुदे हुए हैं । आसनमें दो खड़गासन जैन मूर्तियां हैं, दो चमरेन्द्र हैं। विद्याधरादि बने हैं। प्रतिमाजीके ऊपर तीन छत्र शोमायमान है । इस प्रतिमाके थोड़े पीछे एक पद्मासन जैन मूर्ति २ फुट ऊंची है । दक्षिण भीतपर कुछ पीछे एक पूरी मनुष्यकी अवगाहनामें कायोत्सर्ग जैन मूर्ति है भामण्डल, छत्रादि सहित है। ___यह गुफा एल्लूराकी सबसे पीछेके कालकी गुफाके समान है शायद यह ९ मी या १० मी शताब्दीकी होगी । पाटन ग्राममें कई ध्वंश मंदिर हैं जिनमें १२ वीं ब १३ वीं शताब्दीके देवगढ़के यादवोंके लेख हैं। (७) अजन्टा गुफाएं-फर्दापुरसे ३॥ मील दक्षिण पश्चिम तथा पांचोरा रेलवे स्टेशनसे ३४ मील। यहां दूसरी शताब्दी पूर्वसे ८ वीं शताब्दी तककी गुफाएं हैं नं• ८ से १२ तक पांच गुफाएं Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। बहुत पुरानी हैं। अंधभृत्य या शतकर्णी राजाओंने दूसरी या पहली शताब्दी पहले सन ई० के बनवाई थीं । गुफा १० में सबसे प्राचीन लेख है। नासिकके लेखोंमें प्रसिद्ध वसिट्ठ पुत्रने दान किया था उसका वर्णन है । इन गुफाओंसे यह मालूम होता है कि ७०० सन् ई० तक लोग कैसे वस्त्राभूषण पहनते थे व कैसी चित्रकला थी । बौद्ध साधुओंके जीवन अधिक चित्रित हैं परन्तु ब्राह्मण और जन साधुओंको भी दिखाया गया है । गुफा १३ वीं में दिगम्बर जैन साधुओंका एक संघ चित्रित है जिनमें केश नहीं हैं न वस्त्र हैं साथमें कुछ ऐसे भी हैं जिनके केश तथा वस्त्र हैं। नं० ३३ की गुफामें भी दाहनी तरह दिगम्बर जैन मूर्तियें हैं। यहांकी गुफा नं० १ बहुत ही सुन्दर है finest तथा नं० २ बहुत ही बढ़िया मठ है richest monastry है। (८) एरंडोल-प्राचीन नाम अरुणावती। यहां पांडववाड़ा है। जहां १२ दि. जैन मंदिर थे। यहांसे १ अखंडित जैन प्रतिमा लेख सहित नगरके मंदिरमें बिराजित है तथा एक मूर्ति जंगलसे लाकर भी जैन मंदिर में हैं ( दि. जैन डायरेकटरी) Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मासिक जिला । I ५७ (१७) नासिक जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-- उत्तर और उत्तर पूर्व - खानदेश, दक्षिण - पूर्व- निजाम राज्य, दक्षिण-- अहमदनगर, पश्चिम थाना, धरमपुर, सरगाना–इसमें ५८५० वर्ग मील स्थान है । इसका इतिहास यह है कि सन ई० के पहले दूसरी शताब्दीसे दूसरी शताब्दी तक यह अभ्रोंका राज्य था जो बौद्ध थे । उनकी राज्यधानी नासिकसे दक्षिण पूर्व ११० मीलपर पैथन थी । फिर चालुक्य, राठौर, चांदोर और देवगिरि यादवोंने सन् १२९५ तक राज्य किया -- पश्चात् मुसलमानोंने कबजा किया । इस जिलेमें प्रसिद्ध गुफाओंके मंदिर बौद्ध पांडलेना नामसे हैं तथा जैनियोंके गुफाओंके मंदिर चम्भार और अंकईकी गुफाओं में तथा इगतपुरीके पास त्रिंगलवाड़ी में हैं । सन् ८०८ में मार्कंडेय किला राष्ट्रकूट राजाओं का बास स्थान था । इस जिलेके जैन स्मारक | ነ (१) अजनेरी (अंजिनी ) नासिक नगरसे १४ मील और त्रिम्बकसे भी १४ मील है- यह एक पहाडी ४२९५ फुट ऊंची इसमें ३ वर्ग मील स्थान है । ऊपर की चट्टानमें तालाब और बंगले के ऊपर एक छोटी जैनगुफा है जिसमें एक पद्मासन जैन मूर्ति है- १ छोटा द्वार है दोनों तरफ मूर्तियें हैं - भीतर १ लम्बा बरामदा मंदिररूपमें है । नीचेकी चट्टानमें दूसरी छोटी जैन गुफा है जिसके द्वार पर ही श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति है । (नोट - भीतर और भी दि ० जैन मूर्तियां हैं ) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । यहां अब एक पुजारी दिगम्बर जैनोंकी तरफसे रहता है जो पूजा करता है । अंजनेरीके नीचे कुछ बढ़िया मंदिरोंके अवशेष हैं। जो सैकड़ों वर्षोंके प्राचीन हैं। ऐसा कहाजाता है कि ये मंदिर ग्वालियरके राजा अर्थात् देवगिरी यादवोंके समयके हैं (सन् ११५० से १३०८ ) इनमें बहुत जानने योग्य जैनियोंके मंदिर हैं। इनमेंसे एक मंदिरमें जिसमें जैन मूर्ति भी है एक संस्कृतका लेख शाका १०६३ व सन् ११४० ई०का है जिसमें यह कथन है कि सेणचंद्र तीसरे यादवराजाके मंत्री बानीने इस चंद्रप्रमजीके मंदिरके लिये तीन दूकानें भेट की तथा एक धनी सेठ वत्सराज, वलाहड और दशरथने उसीके लिये एक घर और एक दूकान दी। शायद यह पहाड़ी इसीलिये अंजनेरी कहलाती हो कि श्री हनूमानकी माता अंजनाने यहां ही श्री हनूमानको जन्म दिया था। (२) अकई (तंकई )-तालुका येवला यहां दो पहाड़िया साथ २ हैं । यह मनमाड़ प्टेशनसे दक्षिण ६ मील है । ३१८२ फुट उंचाई है यहां ७ कोट किलेके हैं इस जिलेमें सबसे मजबूत किला है। तंकईकी दक्षिण तरफ सात जैन गुफाए हैं जिनमें बढ़िया नक्कासी है । इन गुफाओंका वर्णन इस प्रकार है (१) गुफा २ खनकी स्वंभोंके नीचे द्वारपाल बने हैं। (२) गुफा २ खनकी-नीचेके खनमें बरामदा २६ से १२ फुट है दोनों ओर बड़े आकार एक तरफ इन्द्रहाथी पर है दूसरी ओर इन्द्राणी है इसके पीछे कमरा २५ फुट वर्ग है उसमें वेदीका कमरा है उसके द्वारपर हर तरफ १ छोटी जैन तीर्थकरकी मर्ति है। वेदीका कमरा १३ फुट वर्ग है वहां एक मूर्तिका आसन Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला। है उपरके खनमें कमरा २० फुट वर्ग है ४ खंभे हैं । वेदीका कमरा ९से ६ फुट है भीतर एक मूर्तिका आसन है । .... (३) गुफा-आगेका कमरा २५ फुटसे ९ फुट है। यहां इन्द्र और इन्द्राणी बने हैं । वेदीका कमरा २१ फुटसे २५ फुट है। इसमें ४ स्तंभ हैं। पीछेकी भीतपर हरएक तरफ पुरुषाकार कायोत्सर्ग नग्न दिगम्बर जैन मूर्ति है। बाई तरफ श्री शांतिनाथ भमवानकी मूर्ति है मृगका चिन्ह है जिनके दोनों तरफ श्री पार्श्वनाथ खड़गासन हैं। श्री शांतिनाथजीसे इनका आकार तीसरे भाग है । शायद यह १२ वी व १३ वीं शताब्दीकी गुफा हो। (४) इस गुफाके बरामदेके सामने दो बड़े साफ चौखुन्टे खंभे हैं हरएक ३० फुट ऊंचे हैं। इसका कमरा १८ फुट से २४ फुट है । बाएं खंभेपर एक लेख है जो पढ़ा नहीं जाता । इसके अक्षर शायद १२ वी व १३ वीं शताब्दीके होंगे । __ दूसरी दो गुफाओंमें जो मंदिर हैं उनमें जैन तीर्थकरकी मूर्तिये हैं । ( यह दर्शनीय स्थान है )। (३) चांदोडनगर-ता० चांदोर नासिकसे उत्तर पूर्व ३० मील व लासलगांव स्टेशनसे उत्तर १४ मील। यह नगर १ पहाडीके नीचे हैं जो ४००० से ४५०० फुट ऊन्ची है । इस नगरका प्राचीन नाम चन्द्रादित्यपुर शायद होगा जिसको चांदोरके यादव वंशके संस्थापक द्वीधपत्रारने वसाया था (सन् ८०१-१०७३ यादववंश) सन् १६३५ में इसको मुगलोंने ले लिया। पहाड़ी पर रेणुकादेवीका. मंदिर और कुछ जैन गुफाए हैं। चांदोर किलेकी Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । चट्टानमें जो जैन गुफा है उसमें भी जैन तीर्थकरोंकी मूर्तियां हैं उनमें मुख्य श्री चन्द्रप्रभ भगवानकी है। (४) त्रिंगलवाडी-तालुका इगतपुरी--इगतपुरीसे ६ मील । बम्बईसे इगतपुरी ८५ मील है। पहाडीके किलेपर त्रिंगलवाडी गांव है । पहाडीके नीचे १ ज न गुफा है जो पहले बहुत सुन्दर गुफा थी। इसमें बड़ा कमरा ३५ फुट वर्ग हैं भीतरका कमरा व वेदीका कमरा भी है । द्वारके सामने बरामदेकी छतके मध्यमें ५ मनुष्योंके आकार गुलाई में खुदे हुए हैं मध्यकी मूर्तिको हरएक दोनों तरफ मदद दिये हुए है जब कि दो और नीचेको मदद दे रहे हैं द्वारके ऊपर मध्यमें जिनमूर्ति है । कमरेके भीतर इतके चार चौखूटे खंभे हैं । द्वारके ऊपर एक जिन मूर्ति तथा चौखटके ऊपर तीन जिन मूर्तिये हैं । वेदीके कमरे में जो बहुत स्वच्छ तथा १३ से १२ फुट है वेदीके ऊपर भीतके सहारे एक पुरुषाकार जैन मूर्ति है । छाती, मम्तक और छत्र गिर गए हैं पग और आसन रह गए हैं । आसनके मध्यमें वृषभका चिन्ह है जिससे प्रगट है कि यह श्रीरिषभदेवकी मूर्ति है । इसके दोनों ओर लेख है जिसमें संवत १२६६ है। गुफाके उत्तरकोनेमें भीत पर एक बहुत सुन्दर लेख था । अब उसका थोड़ासा भाग बच गया है । गुफाका अग्र भाग व द्वारके भाग पहले चित्रित थे जिसके चिन्ह अवशेष हैं। (५) नासिकनगर-बम्बईसे १०७ मील यहां देखने योग्य स्थान हैं (१) दसहरा मैदान-शहरसे दक्षिण पूर्व ॥ मील (२) पंचवटीके पूर्व १ मीलके अनुनाम पो Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मासिक जिला। [६१ बन जिसमें गुफाएं हैं व रामचंद्रजीका मंदिर है । (३) पश्चिमकी तरफ ६ मील गोवर्डन या गङ्गापुरकी प्राचीन वस्ती जहां बहुत सुन्दर पानीका झरना है। (४) जैन चंभार लेन गुफाएं (यही श्री गनपंथजी तीर्थ है) (५) पांडु लेना या बौद्धोंकी गुफाएं ये एक पहाड़ीमें हैं । बम्बईकी सड़कके निकट । इनको शिलालेखोंमें निरन कहा गया है । ये बौद्ध गुफाएं सन ई० २५० वर्ष पूर्वसे ६०० ई० तककी हैं। इनमें बहुतसे शिलालेख अन्ध्रों, क्षत्रपों व दूसरे वंशोंके हैं । पश्चिमीय भारतमें ये लेख मुख्य हैं व इनसे प्राचीन इतिहासका पता चलता है। इन्हीं पांडु लेना गुफाओंमें नं० ११ की जो गुफा है उसमें नीलवर्णकी श्री रिषभदेवकी जैन मूर्ति बिराजित है । पद्मासन २ फुट ३ इन्च ऊंची है। मालूम होता है ११ वीं शताब्दीमें दि० जैनोंका यहां प्रभुत्व या । (नासिक गनेटियर नं० सोलह सफा ५८१) (नोट-भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईको इस गुफाकी रक्षा करनी चाहिये )। ___ इसी गजटियरके सफा ५३५ में है कि ११ वी व १२ वीं शताब्दीमें नासिक जैनधर्मके महत्वसे व्याप्त था । इस नासिकका प्राचीन नाम पद्मनगर और जनस्थान या । यही वह स्थान है जहां मुवर्णनखा खरदूषणकी स्त्रीका मिलाप श्री रामचंद्रजीसे हुआ था। प्राचीन कालमें यहां श्री चन्द्रप्रभु भगवानका जैन मंदिर था जिसको अव कुन्तीविहार कहते हैं। (६) चंभार लेना या श्री गजपंथा तीर्थ-नासिकनगरसे ५ मा ६ मील एक पहाड़ी है जो ६०० फुट ऊंची है ऊपर जानेको १७३ सीढ़िया बनी हैं। यहां प्राचीन जैन गुफाएं हैं अब भी Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दि० जैन लोग इसको सिद्धक्षेत्र मानकर पूजने जाते हैं । उनके शास्त्रोंका प्रमाण इस भांति है । संत्ते जे बलभद्दा जदुवणरिंदाण अट्ठकोडीओ । गजपंथे गिरिसिहरे णिव्वाण गयाणमोतेसिं ॥७॥ (प्राकन निर्वाणफंड) भाषा जे बलिभद्र मुक्तिको गए। आठ कोड़ि मुनि और हु भये । श्री गजपंथ शिषर सुविशाल। तिनके चरण नमो तिहुंकाल । (निर्वाणकांड भगवतीदास) (७) सिमार-सिन्नार तालुका-नासिकसे दक्षिण २० मील। शहरसे एक मील पूर्व खेतोंमें एक छोटा हेमादपंथी मंदिर है जो कुछ ध्वंश होगया है इसके पूर्वीय द्वारके ठीक बाहर एक कुएंके पास दो पुरुषाकार ने नमूर्तिये हैं। (८) मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र-इसी मनमाड़ नासिक जिलेमें मनमाड (G. I. P.) प्टेशनसे करीब ५० मील यह सिद्धक्षेत्र हैं । दो पवर्त साथमें जुड़े हैं। दोनों पर्वतों पर पांच छः गुफाओंमें प्राचीन दि० जैन मूर्तियां हैं-पर्वतपर बलदेवजी कृष्णजीके भाईने तप किया था उनका स्थान है तथा कृष्णजीकी दाह क्रिया यहीं हुई है उसका भी स्थान है। यहांसे श्री रामचन्द्रजी, हनुमानजी, सुग्रीवजी, गवयजी, गवाक्षजी, नीलनी और महानीलजी तथा मिनानवेकरोड़ अन्य साधु गत चतुर्थकालमें मुक्ति पधारे हैं। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला। [६३ गाथारामहणू सुग्गीओ गवय गवाक्खोय णील महणीलो । णवणवदी कीडीओ तुण्गीगिरि णिव्वुदेवंदे ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड ) रामहनू सुग्रीव सुडील, गव गवाक्ष्य नील महानील । कोड निनानवे मुक्ति प्रमाण, तुण्गीगिरि वंदोधरिध्यान ।। (निर्वाणकांड भाषा) पर्वतके नीचे दि० जैन मंदिर व धर्मशालाएं हैं । कार्तिक सुदी १५ को मेला होता है । मुनीम रहता है नासिक नगरका वर्णन आराधना कथा कोश ब० नेमिदत्तकृत नागदत्साकी कथामें आया है (नं० ५१में) आभीराख्य महादेशे नाशक्य नगरेवरे । वणिक सागरदत्तो भून्नागदत्ता च तस्प्रिया ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१८) पूना जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें अहमदनगर, पूर्व में पश्चिममें कोलाबा । ६४ ] अहमदनगर और शोलापुर। दक्षिणमें नीर नदी, इसमें ५३४९ वर्ग मील स्थान है । इसका इतिहास यह है कि इतिहासके पूर्व समयमें यह दंड - कवनका एक भाग था । बहुत प्राचीन समयमें यह व्यापारका मुख्य मार्ग था । बोरघाट और नाना घाटियोंपर होकर कोंकनको माल जाता था । इसके बहुत प्रमाण उन लेखोंमें हैं जो पहाड़में खुदे हुए भाजा, वेडसा, कारली और नानाकी घाटियोंमें हैं । (१) जुन्नार - पुनासे उत्तर पश्चिम ५६ मील । एक प्राचीन स्थान है । सन ई० के १०० वर्ष पहले अन्ध्रराजा राज्य करते. थे । बेड़सा में एक लेखसे मरहठोंका सबसे प्राचीन नाम मिलत है । यहां पश्चिमी चालुक्योंने ५५० से ७६० ई० तक, राष्ट्रकूटोंने ७६० से ९७३ तक फिर पश्चिमी चालुक्योंने ९७३ से १९८४ तक फिर देवगिरिके यादवोंने १३४० तक राज्य किया पीछे मुसमानोंने कबजा कर लिया । (२) वेडसा - ता० मावल, खंडाला स्टेशनसे दक्षिण पश्चिम ५ मील एक ग्राम है - यहां पहली शताह्वीकी गुफाएं हैं । सुपाई पहाडियां ३००० कुट ऊंची हैं मैदानके ऊपर दो खास गुफाएं है एक गुफामें द्वारके ऊपर यह लेख है " नासिकके आनन्द सेठीके पुत्र पुश्यन्कका दान" बड़ी कोठरीके उपर एक कूएंके पास दूसरा लेख है " महाभोजकी कन्या सामजिकाका धार्मिक दान" यह सामज्ञिका अयदेवनककी स्त्री महादेवी महारथिनी थी । यह लेख इसलिये Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला। [६५ बहुत ही उपयोगी है कि इसमें सबसे पहले शब्द महारथ आया है। (३) भाजा-मावल ता० में एक ग्राम, खड़कालासे दक्षिण पश्चिम ७ मील । ग्रामके ऊपर ४०० फुट ऊंची पहाडी है इसकी पश्चिम ओर पहली शताब्दी पहलेकी १८ बौद्ध गुफाएं हैं । बारहवीं गुफामें जो ५९से २९ फुट है प्रसिद्ध कारीगरी है। यहां कई लेख हैं। (४) भवसारी-(भोजपुर)-हवेली तालुका । पूना शहरसे उत्तर ८ मील । यहां बड़े २ पाषाणोंमें योद्धाओंकी मूर्तियें खुदी हैं-यह ८५० ई०से पुराना है। (५) कारली-ता० मावल । पूनासे बम्बई सड़कपर एक ग्राम कारलीसे २॥ मील और लोनौली प्टेशनसे ५ मील प्रसिद्ध गुफाएं हैं । एक बहुत बड़ा और पूर्ण चैत्य है यह बहुत पवित्र है। तथा महाराज भूति या देवदत्त (सन् ई० से ७८ वर्ष पहले) द्वारा खोदा गया था । ऐसा लेखसे प्रगट है । देखने योग्य है (६) शिवनेर- जुन्नार ता का पहाड़ी किला, पूना शहरसे उत्तर ५६ मील । यह स्थान पहलीसे तीसरी शताब्दी तक बौद्धोंका मुख्य स्थान रहा है । यहां ५० कोठरियां व मठ है। (७) बामचन्द्र गुफा-पूनासे उत्तर पश्चिम २५ मील ।। बामचंद्र ग्रामके बाहर एक चट्टानमें मंदिर है तथा दो मंदिरोंकी खुदाईका प्रारम्भ है। यह शायद जैन गुफा ही है । अब इसमें लिंग स्थापित है। नोट-पूनाके वर्णनमें खास जन स्मारकक' नाम कहीं नहीं मिला परन्तु ऊपर दिये हुए स्थानोंमें खोन कर मे शायद कोई चिन्ह मिल सकें। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१९) सतारा जिला इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तर भोर और फलटन राज्य, और नीरा नदी, पूर्वमें शोलापुर, दक्षिण वारण नदी, कोल्हापुर और सांगली, पश्चिम पश्चिमीय घाट, कोलाबा और रत्नागिरी जिला । यहां ४८२५ वर्ग मील स्थान है । इस ज़िलेका इतिहास यह है कि यहां सन् ई० से २०० वर्ष पूर्व से २०८ ई० तक शतवाहन राजाओंने राज्य किया फिर इनकी कोल्हापुर शाखाने चौथी शताब्दि तक फिर पश्चिमीय चालुक्योंने १५० से ७५० तक फिर राष्ट्रकूटोंने ९७३ तक फिर पश्चिम चालुक्योंने और उनके नीचे कोल्हापुरके शिलाहारोंने १९९० तक फिर देवगिरीके यादवोंने १३०० तक पश्चात् मुमलमानोंने अधिकार किया । ६६ ] यहां कराके पास, तासगांव में भोसा पर बा के पास, भाउ तालुका में मालाउद में, कुंडल, पाटन, पटेश्व में बौद्ध और ब्रह्मण गुफाएं है । (१) करादनगर सतारानगर से दक्षिण पश्चिम ३१ मील और कराद रेलवे स्टे० मे दक्षिण पश्चिम ४ मील । दक्षिण पश्चिमसे करीब ३ मील यहां ५४ बौद्ध गुफाएं हैं । (२) बाई - महाबलेश्वर के पूर्व १५ मील और मताराशहर से दक्षिण पश्चिम २० मील। यहां पास लोहारी ग्राम में कुछ बौद्ध गुफाएं हैं। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतारा जिला। (३) धूमलवाडी सतारारोड रेलवे स्टेशनके निकट-तालुका कोरेगांव यहां एक गुफा है। जिममें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी मूर्ति २॥ फुट ऊंची है मस्तक खंडित है। गुफामें पानी भरा रहता है। पहाड़ीपर आधी दूर जाकर एक खुदाई है जिसको खभटोंक कहते हैं । एक गुफाका मंदिर है । मट्टी और पानीसे भरी है। पहाड़ीपर पुराने किलेके ध्वंश हैं। इम्पीरियल गजटियर बम्बई प्रांत भाग १ (सन १९०९) सफा ५३९ पर लिखा है। " The Jains in Satara dist represent a carvival of early Jainism, which was once the religion of the rulers of the King dom of carnatec." भावार्थ-सतारा जिलेके जनो प्राचीन जैनधर्मके अस्तित्वको बताते हैं । जो कर्नाटकके राजाओंका धर्म था । (४) फलटन-नगरमें एक २००० वर्षका प्राचीन पाषाण जिन मंदिर है, नग्न मूर्तियां अंकित हैं । अभी महादेव पधरा दिये गए हैं जिनको जगेश्वर महादेव कहते हैं। 443-4620 ... Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२०) शोलापुर जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तरमें अहमदनगर, पूर्वमें निजाम राज्य, अकलकोट राज्य, दक्षिण में बीजापुर और मिरज, पश्चिममें औधराज्य, सतारा, फलटन, पूना, अहमदनगर । यहां स्थान ४५४१ वर्गमील है । ६८ ] यहां सन् ई० से २० वर्ष पहले से लेकर २३० ई० तक शतवाहन या अधवेशने राज्य किया । जिनकी राज्यधानी गोदावरीपर पैथनपर थी जो शोलापुर नगरसे उत्तर-पश्चिम १५० मील है । सुसलमानोंके दखल के पहले यहां क्रमसे चालुक्य, राष्ट्र, पश्चिम चालुक्य व देवगिरि यादवोंने राज्य किया था । 1 यादवों समयकी कारीगरी बावी, मोहाल, मालसिरस, नातेपुते, बेलापुर, पंढरपुर, पुलमेज, कुंडलगांव, कासेगांव तथा मार डेके हेमदपंथी मंदिरोंमें पाई जाती है । (१) बेलापुर - पंढरपुरसे २२ मील ग्रामके मध्य में सर्कारवाड़ा प्राचीन मंदिर चालुक्योंके ढंगका है। यह जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है । द्वारके ऊपर आलेमें एक जैनमूर्ति है । मंडपकी छतमें चार खुदे हुए स्तम्भ हैं । (२) दहीगांव - दिकसाल स्टे० से २२ मील | यहां श्री महावीरस्वामी के मंदिर हैं अनेक प्रतिमाएं है यहां महतीसागर ब्रह्मचारी होगए हैं उनका समाधिमरणका स्थान है । जैन लोग वार्षिक मेला भरते हैं । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। (३) दक्षिण भाग। (२१) बेलगाम जिला। इसकी चौहदी इस प्रकार है उत्तर-मीरज और जथका राज्य, उत्तर पूर्व बीजापुर, पूर्वजमखंडी, मुधल, कोल्हापुर और रामदुर्ग राज्य दक्षिण व दक्षिण -धाड़वाड़ और उत्तरकनड़ा, कोल्हापुर और गोआ, पश्चिम सावंतवाड़ी और कोल्हापुर राज्य ॥ इसमें ४६४९ वर्गमील स्थान है । इस जिलेमें रिश्ना, घटप्रभा और मलप्रभा मुख्य नदिये हैं । इतिहास-यहां सबसे प्राचीन स्थान हालती है। जो नौ कादम्ब राजाओंकी राज्यधानी है । ७ ताम्रपत्र मिले हैं। प्राचीन चालुक्योंने १५०से ६१ तक, फिर पश्चिमी चालुक्योंने ७६० तक, फिर १२५० तक राष्ट्रकूटोंने ज़िनकी शक्ति राट्ट महामंडलेश्वरोंमें जीवित रही जिन्होंने सन् ८७५ से १२५० तक राज्य किया । इनकी राज्यधानी पहले सौन्दत्ती थी तथा सन् १२१०में वेणुग्राम या बेलगाम हो गई। १२वीं और १३वीं शताब्दीके प्रारम्भमें गोआके कादम्ब राजाओंने सन् ९८० से १२५० तक हालसी जिलेके भाग और वेणुग्राम पर राज्य किया। तीसरे होसाल राजा विष्णुवर्धन या विट्टिदेवने (सन् १९०४-४१) हालसीके Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । १ भागको युद्धकी लूट में लेलिया । राह राजाओंने गोआको सन् १२०८ में अधिकार में लिया । राट्टोंका अंतिम राजा लक्ष्मीदास द्वि • हुआ जिसको देवगिरि यादव सिंघन द्वि० के मंत्री और सेनापति वाचनने परास्त किया फिर १३२० में दिल्लीके मुसल्मान बादशाहोंने अधिकार किया । जैन मंदिरोंका महत्त्व - जो यहां जखनाचार्य्यके नामसे मंदिर इधरउधर छितरे हुए पाए जाते हैं वे वास्तव में चालुक्य राजाओंके हैं । उनमें से एक बहुत ही सुन्दर देगानवेमें हैं । कोन्नूर में इति - हासके पहले समाधिस्थान हैं। बहुत से मंदिर ११, १२ व १३ शताब्दीके जो इस जिलेमें फैले पड़े हैं वे असल में जैन लोगोंके थे किन्तु उनको लिंग या शिव मंदिरोंमें बदल दिया गया है । उन जैन मंदिरोंमें जो बहुत प्रसिद्ध हैं वे नीचे स्थानोंपर हैं। (१) बेळगामका किला (२) संपगाव ता० के देगानवे, बाक्कुंड, नेसाग (३) पारसगढ़ ता० केहुली, मनोली, येळम्मा (४) चीकोड़ी ता० शंखेश्वर (५) अथनी ता० के रामतीर्थ और नांदगांव | जनोंका महत्व - यहां बहुत जैन किसान और मजदूर हैं । जिससे यह विदित होता है कि प्राचीन कालमें इस बम्बई कर्णाटक में जैन धर्मकी बहुत श्रेष्ठता थी— Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [७१ (There are numurous cultivators and labourers indi. cating the former supremacy of the Jain religion in Bombay Carnatic ) बेलगाम गनटियर जिल्द २१ (सन् १८८४) से जो विशेष इतिहास प्रगट हुआ है वह इस तरह पर है । इस बेलगाम जिले में सबसे प्राचीन स्थान पालासिगे, हालासिगे या हालसी पर है जो खानापुरसे दक्षिण पूर्व १० मील व वेलगामसे दक्षिण २३ मील है । हालसीसे करीब ३ मील पर जो ७ ताम्रपत्र मिले हैं उनसे विदित होता है कि ५वीं शताब्दिके करीब यह नौकादम्ब रानाओंकी राज्यवानी था । प्रायः ये सबही प्राचीन कादम्बोंके ताम्रपत्र प्रारंभ और अंतमें जैन मंगलाचरणको प्रगट करते हैं और सिवाय एक ताम्रपत्रके जो एक साधारण मनुष्यको भूमिदानके सम्बन्धमें है शेष सब ताम्रपत्र जैन धर्मको वृद्धिके लिये भूमि या ग्रामोंके दानके सम्बन्धमें हैं। पांच ताम्रपत्रोंमें पालासिग या हालसीका नाम है । एक बताता है कि हालसोमें जैन मंदिर बनाया गया । बेलगाममें जिन राहोंने राज्य किया था (मन् ८५० से १२५० तक) वे अपना सम्बन्ध राष्ट्रकूट राना कृष्ण द्वि० (सन् ८७५ से ९.११)से बताते हैं । ये राट्टराजा जन धर्मके माननेवाले थे। इनकी उपाधि थी। लाहनूर पुरवर आधोश्वर अर्थात् लाडनूरके राना जो सब नगरोंमें प्रधान नगर था। राट्ट वंशका कुलवृक्ष इस प्रकार है Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । मेराड पृथ्वीवर्मा ( शाका ७६७ या ई० ८०० ) पिग स्त्री नीजीदव्वे 1 शांति या शांतिवर्मा शाका ६०२ या ई० ६८० स्त्री चांदी कव्वे दबारी या दायुम कनकैर हि० शा० १००४ या ८ 1 नन्न 1 कार्तविद्या प्रथम या कत्त शा० ६६ aahe प्रथम या कन्न प्रथम एरग i शेन प्रथम या कालसेन प्र० स्त्री मैललदेवी | अंक शा० ६७० या ई० १०४८), कार्त्तवीर्य या कन्त द्वि० (शा० १०६० | या १०१० स्त्री भागलदेवी शेन द्वि० या कालसेन द्वि० स्त्रो लक्ष्मी| देवो शा० १०५० कत्तम तृ० या कार्तवीर्य तृ० ( स्त्री पद्मलदेवी शा० १०८६ ) 1 लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्रथम ( शा० ११३० या सन् १२०८ ) 1 स्त्री चंचलादेवी कार्तवीर्य्य चतुर्थ ( शा० १९२४ से ४१ स्त्री एचलादेवी लक्ष्मीदेव द्वि० (शा० ११५० या सन् १२२८ ) मल्लिकार्जुन ( शा० ११२३ से ११३० सन् १२०१ या १२०८ ) Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। ____ नोट-मेराड या उसके पुत्र पृथ्वीवर्मा असलमें पवित्र मैलापतीथकी जै नकारेय जातिके आचार्य या गुरु थे (नोट मेलापतीर्थ कहां यह कारेय जाति कहां है, पता लगाना चाहिये)। राष्ट्रकूष्ट राजा कृष्ण द्वि० ने पृथ्वीवर्माको महासामन्त या महामंडलेश्वरकी उपाधि दी थी। सौन्दरतीमें जो शिलालेख सन ९८० (शाका ९०२) का पाया गया है वह लिखता है कि राजा शांतिवर्माने सौन्दत्तीमें एक जैन मंदिरके लिये भूमि प्रदान की थी। और उसीमें यह भी लेख है हरएक तेलकी चक्की चलानेवाला दीपावलीके उत्सवके लिये एक सेर तेल देगा। लक्ष्मीदेव प्रथमकी रानी चन्दलादेवी या चंद्रिकादेवी थी इसके नामको प्रगट करनेवाला एक शिलालेख सम्पगांवसे उत्तर पश्चिम ६ मील हन्निकरी पर है-यह लेख कहता है कि राहोंने अपनी राज्यधानी सौन्दत्तीसे वेणुग्राम या बेलगाममें बदली। मुख्य स्थान । (१) बेलगामशहर व किला-यहांका किला १०० एकड़ करीब भूमिमें है। इस किलेपर जब इंग्रेजोंने अधिकार किया तब वहां १० जैन कुटुम्ब रहते थे। इस किले में अब तीन जैन मंदिर हैं जो करीब १२०० सनके हैं नोट- इनमें से एक बहुत बढ़िया कारीगरीका है इसका हमने ता० २५ मई १९२३ को दर्शन किया है। छतोंपर कमलों के आकार व खंभोंमें बेलें बहुत अपूर्व हैं । इस मंदिरको कमलवस्ती कहते हैं। चौकमें ७२ जिन प्रतिमाएं छतके वहां हैं उनमें २४ पद्मासन २४ मंदिरोंके आकारोंमें हैं-यह चौंक १४ खम्भोंक Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इन खंभों में पालिश बहुत चमकदार है-द्वार पर देवताओंके चित्र बीचमें पद्मासनज नमूर्ति है। भीतर भी वेदी के बाहर कमल, भीतर कमल, वेदीके पीछे दो हाथी ऊपर दो सिंह २४ चिन्ह - व यहां बहुत से कमल हैं - एक एकके भीतर कई कमल हैं। यहांकी पत्थर की कारीगरी आबूजीके जिन मंदिरोंकी कारीगरीसे मिलती है। यहां जो मूलनायक श्री नेमिनाथजीकी बड़ी मूर्ति थी वह बेलगाम शहरकी बड़ी वस्तीमें विराजित है । वर्ण कृष्ण है - यह मंदिर देखने योग्य है- दूसरी चतुर्भुज वस्ती है । इन तीन मंदि - रोंके सिवाय इस किले में और भी मंदिर थे क्योंकि किलेके बाहर और भीतर जो अब घर हैं उनमें द्वारके खंभे जो लगे हैं वे जैनमदिरोंके लगे हैं। सन १८८४ में दो बहुत ही सुन्दर नक्काशी के पत्थर एक बागमें खोदनेपर निकले थे इसी शताब्दी में दो राह राजाओंके शिलालेख किलेके मंदिरोंसे पाए गए हैं वे बम्बई रायल एसियाटिक सोसायटीको दे दिये गए हैं । यह प्राचीन कनड़ी भाषामें हैं । इनमें से एक में राष्ट्रकूट या राह वंशीय महाराज शेनद्वि० का नाम है - वंशावली कार्तवीर्य्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक गई है जो करीब ११९९ से १२१८ तक यहां राज्य करते थे | तब एक वीचा राजाका और उसके पुत्रोंका वर्णन है । फिर वह लेख कहता है कि सन् १२०५ या शाका ११२७ में पौषसुदी २ के दिन नत्र राज्यधानी वेणुग्राममें कार्तिवर्मा और मल्लिकार्जुन राज्य कर रहे थे तब श्रीयुत शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें राजा वीचाके बनाए गए राहोंके जैन मंदिरके लिये भूमि दान किये गये थे जो भूमि दी गई थी वे करवली जिलेमें Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। ममबरवानी ग्राममें हैं। दूसरा शिलालेख उन्हीं ऐतिहासिक बातोंको प्रगट करता हुआ इसी मंदिरके लिये उसी दिन उन्हीं शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें दूसरी भूमियोंके दानको कहता है जो बेलगाममें थीं इसमें कार्तवीर्यकी स्त्रीका नाम पद्मावती है । इस किलेके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि इसको जैन राजाने बनवाया था। (नोट-बेलगामके जैनियोंसे मालूम हुआ कि एक दफे कोई जैन मुनिसंघ वेणुग्राममें आया था-तब खबर पाकर राजा और पञ्चलोग रात्रिको ही मशालें जलाकर दर्शन करनेके लिये गए। मुनि मब ध्यानस्थ मौन थे पीछे लौटते हुए अन्तमें जो मशालवाला था उसकी मशालकी लौ किसी वांससे लग गई। इस बातपर किसीने ध्यान न दिया सब चले आए वह आग बढ़ती हुई फैल गई और जिन वासोंके मध्यमें मुनि गण ध्यान कर रहे थे वहां तक फैल गई और उसने ध्यानम्थ मुनियोंके शरीरोंको दग्ध कर दिया । मुनियोंने ध्यान नहीं छोड़ा। दूसरे दिन जब यह खबर प्रगट हुई तो महान शोक व दुःख हुभा । इस प्रमादके दोषके मिटानेके लिये राना और पंचोंने यह प्रायश्चित लिया कि १०८ जैन मंदिर बनवाए नावें । कहते हैं इस किलेमें १ ० ८मिन मंदिर छोटे या बड़े बनवाए गए थे। बेलगाममें अब भी बहुत जेनी हैं व कई जैन मंदिर हैं। इस किलेकी कमलवस्तीमें एक प्रतिमा विराजित है जिसकी सेवा पूना श्रीयुत देवेन्द्र लोकप्पा चौगुले लकड़ीके व्यापारी बेलगाम फोर्ट करते हैं। (Indian antiquary V. IV P. 34) में बेलगाम शहरके सम्बंधमें लिखा है कि प्राचीन बेलगामको जैन राजाने बसाया था। जनकवि परसिज भवनंदन बेलगाम Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । निवासीने पुरानी कनड़ी में एक यहांके राजाओंका इतिहास लिखा है उससे मालूम हुआ कि शाहपुर और बेलगामको जीर्ण शीतपुर कहते थे । यहां सामंतपट्टन नगरके अधिपति जैनीराजा कुन्तमय रहते थे जो बडे धर्मात्मा तथा दयावान थे। इनके राज्यमें सब लोग प्रसन्न थे । एक दिन एकसौ आठ १०८ जैन साधु अनगोतू (जो हखगिरिका प्राचीन नाम था) के वनमें दक्षिणसे आए और रात्रिको ध्यानस्थ बैठे । राजा कुन्तमराय अपनी रानी गुणवती के साथ रात्रिको ही बंदनाके लिए गए । मसालोंकी लपकोंसे वनमें अग्नि लग गईं वे साधु ध्यान से न उठे अग्निमें ही दग्ध होगए | इसलिये राजाने यह दड लिया कि १०८ जैन मंदिर बनवाऊंगा । जहां किले में अब कुछ जैन मंदिर पाएजाते हैं वही उसने १०८ मंदिर बनवाए। उसकी स्त्री गर्भस्था थी उसने बेलगामका नाम वंसपुर रक्खा । कुछ काल पीछे बेलगाम में सावंतबडीका राजा कुन्तमका पुत्र शांत बहुत प्रसिद्ध हुआ । यह जैनधर्मका पंडित था, बहुत वीर तथा जैन साधुओं का रक्षक था। इसने जैन मंदिरों में बहुत धन लगाया । इसकी चौदह स्त्रिये थीं उनमें मुख्य पद्मावती थी जो बहुत प्रसिद्ध थी इसके पुत्रका नाम अनन्तवीर्य था। शांत एक दफे यातूर के पास सुदर्शन नदीमें स्नान करनेको गया वहां बिजली गिरने से मरणको प्राप्त हुआ । तब मंत्रियोंने अनंतनोर्थको राजा स्थापित किया । कुछ काल पीछे इसी वंशमें राजा मल्लिकाभुंग हुआ। इसीके समय में प्रसिद्ध मुसल्मान असदखांने कपटसे वेलगामका राज्य ले लिया और १०८ मंदिरोंको ध्वंश करके किला बनाया । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। (२) हालसी-(हलसिगे) ग्राम, ता. खानापुर, खानापुरसे दक्षिण पूर्व १०मील । हालसी एक बहुत प्राचीन स्थान पर है जो पूर्व समयके कादम्बों (सन ई० ५००) का मुख्यस्थान था तथा गोआके कुटुम्बोंका छोटा राज्यस्थान था जिन्होंने ९८०से १२५२ तक राज्य किया। यहांके सब ताम्रपत्र कादम्ब राजाओंके प्राचीन वंशको प्रगट करते हैं जो जैनी थे व जिनकी राज्यधानी बनवासो और हालसीमें थी। यहां सन् १८६० में ६ ताम्रपत्र एक टीलेमें मिले थे जो चक्रतीर्थके कूएके पास हैं जो हालसीसे उत्तर ३ मील नांदगढ़की सड़कपर है। ये सब ५वीं शताब्दीके हैं और सब जैन कादम्ब राजाओंकी वंशावलीको प्रगट करते हैं। (३) होंगल (वेल होंगल) ग्राम ता० साम्पगांव-यहांसे पूर्व ६ मील ग्रामके उत्तर १ प्राचीन जैन मन्दिर है जिसको अब लिंग मंदिर बदल लिया गया । इसमें १२ वीं शताब्दीके दो लेख हैं । इनमेंसे एक लेखमें ता० ११६४ है । राज्य, राह सार कार्तवीर्य (११४३-११६४)-इसमें १ जैन मंदिरके बनने व उसको भूमि देनेका वर्णन है । इस शिला लेखके ऊपर मध्यमें पद्मासन श्री जिनेन्द्रकी मूर्ति है। उसकी दाहनी तरफ एक खडगासन मूर्ति है ऊपर चन्द्रमा है और वाई तरफ १ गाय और बछड़ा है ऊपर सूर्य है। ( Indian antiquary IV 115 Fleet's Kanarese dynasties 82.) हागलके शिला लेखमेरो Ind. Ant. X P. 249. से बनवासीके कादम्ब वंशकी वंशावली वंशस्थापक मयूरभंजसे दी जाती है। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयूरभंज प्रथम P २ कृष्णवर्मा ३ नं० १ नागवर्मा प्र० T ४ विष्णुवर्मा ५ मृगवर्मा I सत्यवर्मा I ७ विजयवर्मा 1. ८ जयवर्मा प्र० 1. नागवर्मा द्वि० T १० शांतवर्मा प्र० ११ कीर्तिवर्मा प्र० T [ 26 मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावली १३ चट्टप, या चट्टयां या चाहुग I तैल या तैलप प्र० कीर्तिवर्मा द्वि० या कीर्तिदेव 1 तैलनसिंह शा० ६६०-६६६ १२ आदित्यवर्मा T कोर्तिदेव द्वि० १४ जयवर्मा द्वि० या जयसिंह - शांतिवर्मा द्वि० या शांत, शांतप T शा० १०१० तैल द्वि० शा० १०२१-१०७२ 1 ਰੋਲਸ 1 चौकी या जाकी विक्रम या विक्रमांक कामदेव या तौलमन अंकका शो० ११०३ - १११८ बेलगाम जिला । [ ७६ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (१) हुली-ग्राम ता. पारसगढ़ । सौन्दत्तीसे पूर्व ५ मील । यहां खास देखने योग्य एक सुन्दर किन्तु ध्वंश मंदिर पंचलिंगदेवका है । यह असलमें जैन मंदिर था भीतर एक लिंगायत मूर्ति नागमूर्ति व गणपति विराजित है । जो शायद दूसरे मंदिरोंसे लाकर बिराजित किये गए हैं । यहां तीन शिला लेख हैं दो पश्चिमी चालुक्य राज्य विक्रमादित्य हि० (१०१८--४८) और सोमेश्वर (१०६९.-७५) को बताते हैं व तीसरा कालाचूरी बजाल (सन् ११५५-११७७) को बताता है। (५) कोनर-(कोंड नूरु शिलालेखमें) ग्राम ता० गोकाक । घटप्रभा नदीपर गोकाकसे उत्तर पूर्व ५ मील दक्षिणकी तरफ कुछ रेतीली पहाड़ियोंके नीचे ऐसी ही कोठरियां हैं जिसमें पाषाणकी दीवाले व छतें हैं ऐसी कोठरियां दक्षिण है। दराबाद तथा दक्षिणी भारतके अन्य स्थानोंमें पाई जाती हैं । इंग्लैंड में प्राचीन पाषाणके कमरोंसे इनकी सदृशता होती है इससे ये देखने योग्य हैं । ये सब ५० से अधिक एक समुदायमें हैं । लोग इनको पांडवोंके घर कहते हैं । ये बहुत ही प्राचीन हैं । (नोट-ये सब जैन साधुओंके ध्यानके स्थान हैं ) ग्रामके जैन मंदिरमें राट्ट रानाका लेख शाका १००९ का है। इस शिलालेखका भाव यह है--- इस लेखमें चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल या विक्रमादित्य द्वि० और उसके पुत्र जयकर्णका वर्णन है। जयकर्णके सिवाय इस लेखमें चामुण्ड दंडाधिप या सेनापतिका भी वर्णन है जो कुन्डी देशका शासन करता था और मण्डलेश्वर राना सेनका भी वर्णन है Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [८१ जो राहोंका राजा था। इसमें बलात्कारगणके वंशधरोंका वर्णन है नो कोंडनूरु और हिलेयरुमें राजासेनके नीचे ग्रामके अधिपति थे। पहला दान सरिगंक वंशके निप्पियम गामण्डने उस जैन मंदिरको किया जो कोंडनुरुमें शाका १००९ में बनवाया गया था। उसी बडे चालुक्य राजा कोन्नने भी इसी मंदिरको दान किया यह राना यहां पूजा करने आया था-तथा एक दान शाका १०४३ में विक्रमके प्रिय पुर जमकर्णने अपने पिताके राज्य में किया-तथा निप्पियम गामण्डने कुण्डीमें एक घर व १५० कम्माभूमि दी । गोकाक फाल जहां नदीका पानी गिरता हैं वहां जो मंदिर हैं वे मूलमें जैनमंदिर थे। The temples near fall werc originally Jain temples. तथा जो यहां गुफाएं हैं वे जैन साधुओंकी तपस्याके लिये हैं । यह कोनूर प्राचीन काल में जीनियोंका महत्व स्थान था। अभी भी ग्रामका आधिपत्य लिंगायत वंशके साथ २ जैन वंशको है। (६) नान्दीगढ-ता० बीड़ी, वेलगामसे दक्षिण २० मील है । यहां एक प्राचीन नमूनेदार जैनम दिर जंगलमें है जहां अच्छी कारीगरी है। (७) नेसी ता० सपिगांव-सांपगांवसे उत्तर ७ मील यहां एक वासवका शिव मंदिर है उसमें राट्ट राजा कार्तवीर्यके समयका शिलालेख शाका ११४१ का है। (८) बुलन्ड ता० सांपगाम-यहांसे दक्षिण पूर्व १० मील । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । यहां एक बहुत बड़ा सुन्दर प्राचीन जैन मंदिर मुक्तेश्वरका है जिसमें विशाल प्रदक्षिणा व बढ़िया खुदाब व शोभा है । (९) देगुलवल्ली-देगांवसे उत्तर पश्चिम १ मील व कित्तूरसे दक्षिण पश्चिम ३ मील । एक प्राचीन ईश्वरका मंदिर है जो मूलमें जैनियोंका था । ध्वंश होगया है । यहां १५ वीं शताब्दीका कनड़ी शिलालेख है। (१०) कडरोली-मलप्रभा नदीपर सांपगांवसे दक्षिण ६ मील । यहां पश्चिमी चालुक्य सोमेश्वर द्वि० का शिलालेख शाका ९९७ ( Ind. Ant, Vol. I P. 141 ) का है। (११) हन्निकरो-सांपगावसे उत्तर पश्चिम ४ मील यहां एक प्राचीन स्वच्छ जान मंदिर है जिसको अब शिवालय या ब्रह्मदेव मंदिर कहते हैं। (१२) कलहोले-घट प्रभा नदीपर । गोकाको करीव ७ मील । यहां एक प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें शिलालेख हैं। अब इसको लिंगायत मंदिर कर लिया गया है। शिलालेख राट्ट राजाओंका और कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन दोनों भाइयोंका है ( ११९९--१२१८ ) निनकी राज्यधानी बेलगाम थी। इसमें लेख है कि शाका ११२७ पोप सुंदी २ शनिवारको १६वें तीर्थकर श्री शांतिनाथ भगवानका (जैन) मंदिर जो कहोलीमें है उसीलिये कुछ भूमि व कुछ नगद दान राजा कार्तवीर्य चतु० ने पुजारीको किया। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। ___ [८३ कलहोलेके शिलालेखमें यादव राजाओंकी वंशावली दी है. रब्बा स्त्री होला देवी ब्रह्मा स्त्री चन्दलादेवो राजा प्रथम स्त्री मैललदेवी चंदलादेवी सिंह या सिंगिदेव स्त्री भागलदेवी या चंद्रिकादेवी राजा द्वि० स्त्री चंदलदेवी और लक्ष्मीदेवी। नोट-राजा प्रथमकी कन्या चंद्रिकादेवी राट्ट राजा लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्रथमको विवाही गई थी। यही कार्तवीर्य चतुर्थ तथा मल्लिकार्जुनकी माता थी। मिस मंदिरको दान किया गया उसको रानाहि० ने बनवाया था। मंदिरके गुरु श्री मूलसंघ कुन्दकुन्द आचार्यकी शाखा हणसांगी वंशके थे । इस हणसांगी वंशके तीन गुरु मलधारी हुए हैं जिनके एक शिप्य महानिक नेमिचन्द्र थे। श्री नेमिचन्द्रके शिप्य शुभचन्द्र थे । शुभचन्द्र चन्द्रके समान पवित्र थे। इन्हींने दिगम्बर धर्मकी बहुत उन्नति की थी। शुभचंद्रके शिष्य श्री ललितकीर्ति थे। (१३) मनोली-सौंदत्तीसे उत्तर ६ मील । यह मलप्रभा नदीपर १ बड़ा नगर है। नगरके पश्चिम मंदिर हैं। दोसे छोटा तीन गुम्बनका एक जैन मंदिर है जिसमें रंगावेज़ी अच्छी है। (१४) सौन्दत्ती-ता० पारशगढ़ । बेलगामसे ४ ० मील पूर्व । यहां एक प्राचीन जैन मंदिर हैं। यहां ६ शिलालेख हैं जिनमें राट्ट वंशके राजाओंके लेख सन् ८७५ से १२२९ तकके हैं। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहला जैन मंदिरकी बाई तरफ भीतमें एक पाषाण लगा है। इसके ऊपर मध्यमें श्री जिनेन्द्र पद्मासन हैं दाहनी तरफ गाय वछड़ा है बाई तरफ सूर्य चन्द्र है । इस लेखमें पुरानी कनड़ी भाषाकी ५३ लाइन हैं जिनमें सौंन्दत्ती और बेलगामके तीन राट्ट राजाओं द्वारा दिये हुए दानोंका वर्णन है । इसमें कथन है कि सुगंधवर्ति ( जो सौंदत्तीका प्राचीन नाम था ) में दो जैन मंदिरोंको प्रथम राह राजा पृथ्वी वर्मा प्रथम और शेन प्रथमने जो ७ वें राट्ट राजा थे, बनवाया और ६ या ७ भूमियोंका दान कुछ राट्ट राजाओंके द्वारा दिया हुआ है ऐसा कथन है । तथा एक दान १०९७ में पश्चिमी चालुक्य महाराजा विक्रमादित्य छठे ( त्रिभुवनमल्ल ) ने दिया ऐसा वर्णन है । इनमेंसे तीन दान जैन मंदिरोंको और चार दातारोंके गुरुओंको दिये गए हैं इनमेंसे दो में ता० ८७५ और १०९७ है। यह लेख यह भी बताता है कि पृथ्वीरामका स्वामी राजा राष्ट्रकूट महाराज कृष्ण थे (८७५ से ९११ ) तथा सुगन्धवति नगरीके निकट मल्हारी ( मलप्रभा ) नदी बहती है। इसी लेलसे यह भी प्रगट हुआ कि पृथ्वीवर्मा मेरडका पुत्र था। यह राजा गद्दीपर आनेके पहले पवित्र मुनि मैलपतीर्थका धार्मिक शिष्य कारय जातिमें था । इसने शाका ७९८ में मन्मथ संवत्सरमें यहां जैन मंदिर बनवाया और १८ निवर्त भूमि दान की। दूसरा शिला लेख एक पाषाणमें है जो इसी ही जैन मंदिरकी दाहनी भीतपर लगा है, इसके ऊपर मध्यमें एक पद्मासन निन है, यक्ष यक्षिणी चमर कररहे हैं । दाहनी तरफ गाय वछड़ा है, ऊपर सूर्य है तथा Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला । [ ८५ बाई तरफ एक पद्मासन जिन हैं ऊपर चंद्रमा है । यह लेख ११ लाइन में है पुरानी कनड़ी भाषा है ता० ९८१ सन् है । इसमें कुन्दुर जैन जातिकी और उसके गुरुओंकी बहुत प्रशंसा दी है तथा यह वर्णन है कि चौथे राह राजा शांतने १५० मत्तर भूमि उस जैन मंदिरको दी जो उसने सौंदत्तीमें बनवाया था और उतनी ही भूमि उसी मंदिर को उसकी स्त्री निजिकव्वेने दी । प्रारम्भमें भूमिकी माप है जो राह जिनके मंदिरके लिये अलग की गई थी। इसीमें यह भी आज्ञा है कि प्रत्येक तैल मिलवाला १ मन तैल दीपावली के दिन मंदिर में दीपके लिये देवे । (बम्बई राय ० ए० सी० नं० १०) पांचवा लेख एक पाषाणमें है जो अब मामलतदारके दफ्तर में है । यह इसी जैन मंदिरके सामने एक आंगनके खोदने से मिला है । इसमें ५३ लाइन हैं। वे ही चिन्ह हैं। इसमें पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वि० ( सं० १०७७ - १०८४ ) के आधीन ९ में राह राजा कार्यवीर्य द्वि० की वंशावली राजा नन्नसे दी है । “ Indian nnbiquary Vol. IV 1. 279-280 " से सौंदत्तीके लेखोंका विशेष वर्णन इस प्रकार और जानना चाहिये P. (१) मैले तीर्थकी कारेय शाखामें आचार्य श्री मूल भट्टारक हुए । उनके शिष्य विद्वान गुणकीर्ति थे । इनके शिष्य इच्छाको जीतनेवाले इंद्रकीर्तिस्वामी थे । इनका शिष्य मेरड़का बड़ा पुत्र राजा पृथ्वी वर्मा था जो श्रीकृष्णराजदेवके आधीन था शाका ७९७ ॥ (२) राजापरग - कन्नकेर प्र० का पुत्र गानविद्यामें निपुण था, (३) कन्नकैरद्वि० के धार्मिक गुरु श्री कनकप्रभ सिद्धांत वे Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । देव थे जो गणधर के समान थे (४) कालसेन राजाने सुगंधवर्ति में जिनेन्द्र मंदिर बनवाया था । ( ४ ) शांतिवर्मा राजाने शाका ९०२ में आचार्य बाहुबलिदेवके चरणोंमें सुगन्धवर्तिके जैन मंदिरोंके लिये १- १५० मत्तर भूमि दी। यह बाहुबलि व्याकरणाचाय थे उस समय श्री रविचन्द्रस्वामी, अनन्दी, शुभचन्द्र भट्टारकदेव, मौनीदेव, प्रभाचन्द्रदेव मुनिगण विद्यमान थे (५) भुवनैकमल्ल चालुक्य वंशीय सत्याश्रयके राज्य में लट्टलरपुर के महा मंडलेश्वर कार्तवीर्य द्वि० सेन प्रथमके पुत्र थे तब मुनि रविचन्द्रस्वामी व अरहनंदी मौजूद थे (६) राजा कत्तम्की स्त्री पद्मलादेवी जैनधर्मके ज्ञान व श्रद्धानमें इन्द्राणी के समान थी जिसका पुत्र लक्ष्मण था जो मलिर्काजुन और कार्तवीर्यका पिता था (७) सौंदत्तीके ८ वें लेखमें जो चालुक्य विक्रमके १२ वें वर्ष राज्यमें लिखा गया आचार्योंके नाम दिये हैं ) बलात्कारगण मुनि गुणचन्द-शिष्य नयनंदि, शिष्य श्रीधराचार्य, | शिष्य चन्द्रकीर्ति, शिष्य श्रीधरदेव, शिष्य नेमिचन्द्र और वासुपूज्य त्रैविद्यदेव, वासुपूज्यके लघुभ्राता मुनि विद्वान मलयाल थे वासुपूज्य के शिष्य सर्वोत्तम साधु पद्मप्रभ थे । सोरिंगका वंशका निधियामी गुरु वासुपूज्यका सेवक था । (१२) तावन्दी - बेलगाम - कोल्हापुर रोड़पर एक ग्राम चिकोड़ीके दक्षिण पश्चिम १५ मील । एक छोटा जैन मंदिर भरमप्पाके नामसे है । यहां कार्तिकमें एक मेला होता है तब करीब १००० जैनी एकत्र होते हैं । (१६) कोकतनूर ता० अथनी - अथनीसे पूर्व दक्षिण १० मील, वीजापुर से ४५ मील यहां एक प्राचीन स्वच्छ जैन मंदिर है। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। (१७) सादगी-अथलीसे पूर्व १३ मील, प्राचीन जैनमंदिर जो व्यवहार में नहीं आता व जीर्ण है। (१८) कागवाद- अथनीसे पश्चिम २२ मील एक पहाड़में खुदाई है वहां सुन्दर जैन मूर्ति है तथा एक मैनमंदिर है। (१९) रायबागप्राचीन नाम बागे या हवीनबागे बेलगामके देशी राज्योंमें एक नगर है। यहां संस्कृतमें शिलालेख है । इसमें पहले कृष्ण प्रथमका नाम है जिसने राहवंशको प्रसिद्ध किया । फिर राजासेन सेलेकर कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक नाम हैं। इनका समकालीन यादव वंशका राजा रेव्वा या जो कोपनपुरका अधिपति था। इसमें उस दानका वर्णन है जो कार्तवीर्यदेवने शाका ११२४ को शुभचन्द्र भट्टारकदेवको किया, वास्ने राट्टोंके जैन मंदिरोंके लिये जिनको उसकी माता चंद्रिकादेवीने स्थापित किया था। यहीं दूसरा लेख नरसिंहसेठीके जैन मंदिरमें है । संस्कृतमें यह चालुक्य लेख है । (शायद) शाका १०६२ में नरसिंहसेठीके जैन मंदिरको महाराज जगदेकमल्लके राज्यमें दंडनायक दासिम रसुने दान किया । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२२) वीजापुर जिला। इस जिलेकी चौहद्दी इस प्रकार है उत्तर-भीमा नदी, शोलापुर, अकलकोट । पूर्व और दक्षिण पूर्व-निजाम राज्य । दक्षिण-मलप्रभा नदी तटपर धाड़वाड़ और रामदुर्ग है । पश्चिम--मुधाल, जामखंडी और जथ राज्य । इस निलेका प्राचीन नाम-कलादगी जिला है । सन् १८४५में इसका नाम वीजापुर पड़ा है। इतिा -प्राचीन कथामें दंडकारण्या इंडकवनके सम्बन्धमें इस किलेके मात स्थानोंका वर्णन आया है-एवल्ली हंगुडमें, बदामी, बागलकोट, धूलखेड़ इंडीमें, गलगली बागलकोटमें, हिप्पर्गी, सिंदगीमें व महाकूट बदामीमें। दूसरी शताब्दीमें यहां तीन स्थान बहुत प्रमिद्ध थे जिनका वर्णन Ptolenny टोलमीकी सूचीमें है । (१) बदामी (२) इंडी (३) करकेरी। जहांतक ज्ञात है बादामी इन सबमें प्राचीन जगह है। यहां पल्ला वंशका किला है । छठी शताब्दीके दव्यमें चालुक्य वंशीय राजा पुलकेशी मने पल्लवोंसे वादामी ले लिया। यहांसे मुसल्मानोंके आनेतक इतिहासके चार भाग हैं- पूर्वीय चालुक्योंने और पश्चिमीय चालुक्योंने ७६० सन ई० तक, राष्ट्रकूटोंने ७६० से ९७३ तक फिर कलचूरी और होसाल वल्लालने ११९० तक जिसमें सिंदा राजा दक्षिण बीजापुरमें ११२० से ११८० तक रहे-देवगिरि यादवोंने ११९० से तेरहवीं शताब्दी मुसल्मानोंके आनेतक राज्य किया । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ ८६ सातवीं शताब्दीमें चीन यात्री हुइनसांगने वादामीका दर्शन किया था तब यह चालुक्य वंशका स्थान था। वह वर्णन करता है कि "यहांके लोग लम्बे कदके, मानी, सादे, ईमानदार, कृतज्ञ, वीर और बहुत ही साहसी हैं । राजाको अपनी सेनाका अभिमान है, राज्यधानीमें बहुत मंदिर व मठ हैं, पुराने टीले व राजा अशोकके समयके स्तूप हैं । यहां हर प्रकारके साधु मिलते हैं। लोगोंको शिक्षाका बहुत प्रेम है और वे सत्य और धर्मके अनुसार चलते हैं । चहुंओर १२०० मठ इस राज्यमें हैं।" यहां बहुत प्राचीन शिल्पकला है व प्रसिद्ध शिलालेख अरसीबीडी, ऐकल्ली, और बादामी में हैं ( ६ से १६ वीं शताब्दी तकके) व बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर ऐवाली और पत्तदकलमें हैं। ऐवल्लीका मेघुती जैन मंदिर मादे पत्थरके कामके लिये प्रसिद्ध है। पत्तदकलके मंदिर द्राविड़ और उत्तरी चालुक्य ढंगके हैं। हुंगुड तालुकामें मंगमपर संगेश्वरका मंदिर बहुत पुराना है। प्रसिद्ध स्थान। (१) ऐवल्ली (होली)--प्राचीन ग्राम--ता० हुंडगुंड मलप्रभा नदीपर वसा है। हुनगुन्डसे दक्षिण पश्चिम १३ मील है । हम यहां ता० ३ जून १९९३को स्वयं गए थे। यह किसी समय बड़ा भारी नगर होगा क्योंकि पाषाणके मंदिर व मकान चारों तरफ टूटे फूटे पडे हैं जैनियोंके भी बहुतसे मंदिर हैं। कुछोंमें महादेवकी स्थापना है । एक छोटीसी पहाड़ी है उसके ऊपर जाते हुए मार्गमें मैदानमें एक दि० जैन मूर्ति खंडित पड़ी है। ८० सीढ़ी ऊपर जाकर द्वारपर द्वारपालकी मूर्ति खड़ी है जिसकी ऊंचाई ६ हाथ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । होगी। ऊपर जाकर मेघुतिका प्रसिद्ध दि० जैन मंदिर दर्शनीय है, यह लम्बाईमें ५२ हाथ है। मंदिरके चारों तरफ बड़ा मैदान है । इसकी दाहनी तरफ भीतपर एक शिलालेख पुरानी कनड़ी लिपिमें बहुत बड़ा ऐतिहासिक है जो ५ फुट लम्बा व २ फुट चौड़ा है। यह लेख संस्कृत भाषामें है इसकी नकल व इसका उल्था आगे दिया गया है । मंदिरके भीतर जाकर वेदीमें खंडित दि. जैन मूर्ति पल्पकासन तीन हाथ ऊंची है दो इन्द्र दोनों तरफ हैं, दोनों तरफ सिंह बना है । बीचकी वेदीके पीछे १ गुफा है व १ गुफा बगलमें है, यह मुनियोंके ध्यान करनेके योग्य है । मंदिरके ऊपर वेदी है, सिंह चिन्ह है प्रतिमा नहीं है । मंदिरके बाहर चित्रकारीमें हाथी व देव आदि निर्मित हैं। आगे थोड़ी दूर जाकर दि जैन गफा आती है जो बहुत ही बढ़िया शिल्पको बताती है व जहां प्राचीन द जेन मूर्तियां दर्शनयोग्य हैं। __सामने वेदीमें पल्यंकासन श्री महावीरस्वामीकी मूर्ति ३ हाथ ऊंची अखंडित है दोनों तरफ चमरेन्द्र हैं, व सिंह है, तीन छत्र सहित हैं । वेदीके द्वारपर दो इन्द्र हैं । वेदीके बाहर बीचके कमरेमें एक ओर महावीरस्वामीकी मूर्ति ३ हाथ ऊंची पल्यंकासन चमरेन्द्र सहित--इस प्रतिमानीके दोनों तरफ २४ स्त्री पुरुष हाथ जोड़े खड़े हैं । कमरेके बाहर दालानमें एक तरफ श्रीपाश्वनाथजीकी कायोत्सर्ग मूर्ति ३॥ हाथ ऊंची धणेन्द्र पद्मावती सहित हैं पासमें एक गृहस्थ हाथ जोड़े खड़े है । बांई तरफ श्री गोमटस्वामीकी कायोत्सर्ग मूर्ति है ३॥ हाथ ऊंची यक्ष यक्षिणी सहित । ये सस Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। दि. जैन मूर्तियां अखंडित और पूज्य हैं ( परंतु कोई पूजा करनेवाला नहीं ) इस दालानकी छतपर बहुतसे स्वस्तिक बड़ी कारीगरीसे रचे गए हैं । कमलोंके भीतर व बाहर छतपर अपूर्व शोभा है । इस गुफाका न० ७० है । नीचे ग्राममें वीरुपक्ष मंदिरके सामने तीन दि जै। मंदिर हैं। एकमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूर्ति २॥ हाथ पद्मासन अखंडित विराजमान है। यहां एक चरन्ती मठ कहलाता है। यहां कई दि. जैन मंदिर हैं। एक हातेमें ६ मंदिर हैं, एक एक हारपर बारहबारह मूर्ति स्थापित हैं-१ वेदीमें २ हाथकी ऊंची मूर्ति है। " Fergusson cave temyles of India 1886," में यहांकी जैन गुफाका हाल यह दिया है कि बरामदा ३२ फुटसे १७॥ फुट है जिसके चार चौकोर म्तम्भ हैं । इसकी भीतरकी वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ फणहित वादामीके सामान है । दाहनी तरफ श्री बाहुबलि हैं। वेदीका मंदिर ८ फुट ३ इंच चौकोर है यहां एक तीर्थकरकी पल्यंकासन मूर्ति वदामीके समान है । बीचके कमरेमें श्री महावीर स्वामी हैं और दूसरी मूर्तियां हैं व हाथी हैं जो उनके नमस्कार करनेको आए हैं। यहांपर अवश्य कोई ऐतिहासिक घटना है। " Archealojical survey report 1907-8 " में यहांके मेघुती दि. जैन मंदिरका वर्णन इस भांति दिया है जो जानने योग्य है ऐहोल एक प्राचीन नगर है। बादामी प्टेशनसे १४ मील व कटगेरीसे १०-१२ मील है। यह तेरह शताब्दियों तक Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । चालुक्य राजाओंका मुख्य नगर रहा है। प्राचीन शिलालेखमें इस नगरका नाम “आर्यपुर" या आय्यवले मिलता है । सातवीं व आठमी शताब्दीमें यह पश्चिमी चालुक्योंकी राज्यधानी थी। यहां एक जैन गुफा है जिसकी कोई फिक्र नहीं लेता है ( uncare for ) मेधुती दि० जैन मंदिरमें जो शिलालेख है उससे विदित है कि यह मंदिर सन् ई० ६३४ में किसी रविकीतिने चालुक्य राजा पुलकेशी द्वि०के राज्यमें बनवाया था। मंदिर उत्तरकी तरफ है। जो यहां वीरुपक्षका मंदिर दक्षिण मुख है निसमें लिंग स्थापित है यह मूलमें जैन मंदिर होगा। इस मंदिरके सामने प्राचीन जैन मंदिर है । चरन्ती मठमें जैन मंदिर हैं मेघुती मंदिरमें एक विशाल जैन मूर्ति है-यह मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है ( It is eartist date: t . ) जैन गुफाके ऊपर बहुतसे कमरे ध्यानके हैं-(वीजापुर गनटियर)। मेघुती दि. जैन मंदिरका प्रसिद्ध लेख । "Indian antiquary Vol. V 1896 Page 67." में इस लेखकी नकल दी हुई है सो उल्था सहित नीचे प्रमाण है इस पाषाणकी ५९॥ इंच चौडाई व २६ इंच ऊंचाई है यह चालुक्य बंशका लेख है। इन दक्षिणी भागोंमें यह लेख मवसे पुराना व सबसे अधिक महत्वका है । (Oldest one and most important of all the stone tablest' of these parts. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६३ वीजापुर जिला। इसमें इस भांति राजाओंका वर्णन है----- जयसिंह प्रथम या जयसिंह वल्लभ पुलिकेशी प्रथम कीर्तिबर्मा प्रथम मंगलीशा या मंगलीश्वर पुलिकेशी हि० या सत्त्याश्रय इस लेखका अभिप्राय यह है कि शाका ५०७में पुलिकेशीके राज्यमें किसी रविकीर्तिने यह श्री जिनेन्द्रका मंदिर पाषाणका बनवाया । इस लेखसे इधरका बहुतसा इतिहास मालूम होता है। इस लेखमें बहुत महत्वकी बात यह है कि इसमें कदम्ब और कलचूरी रानाओंका, वनवासी नगरीका, कोंकणके मौर्योका, आप्पायिक गोविन्दका वर्णन है जो शायद राष्ट्रकूटवंशका था । १२ वीं लाइनमें इधरके देशको महारापतु वातापिपुरी या वातापिनगरी (वर्तमान बदामी) के नामसे लिखा है-- ___ नकल लेख मेघुती मदिर। (१) जयति भगवान् जिनेन्द्रो....न....र(?, क्ष) ण जन्मनो यम्य ज्ञान समुद्रांतर्गत मखिलअगदन्तरी पमिव ।। तदनु चिरमपरियश्चलुक्य कुलविपुल जलनिधिर्जयति ॥ एथिवी मौली (लि) ललामो-यप्रभव-पुरुषरत्नानाम् ।। शूरे विदुषि च विभजन्दानाम्मानञ्च युगपदेकत्र ।।(२) अविहित याथातथ्यो जयति च सत्याश्रयस्सुचिरम् ।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mernamrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrnar १४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। पृथिवी बल्लभ शब्दो येषामन्वर्थताञ्चिरज्जातः तद्वंशेषु जिगीपुपु तेषु बहुप्वप्यतीतेषु ॥ नानोहति शताभिघात पतितभ्रांताश्वपत्तिद्विपे, नृत्यदभीमकबन्ध खड्गकिरणज्वाला सहश्रेरणे (३) लक्ष्मी वित चापलादिव कृता शौर्येण येनात्मसात् राजासीजय सिंघवल्लभ इति ख्यातश्चलुक्यान्वयः ॥ तदात्मनो भूद्रणरोग नामा दिव्यानुभावो जगदेकनाथः अमानुषत्त्वं किल यस्य लोक मुसुप्तस्य जानाति वपु प्रकर्षात् ॥ तस्याभवत्तनूज-पुलिकेशि यःश्रितेन्द्रकांतिरपि (४) श्री वल्लभोप्ययासोद्वातापिपुरी वधूवरताम् ॥ यत्त्रिवर्ग पदवीमलं क्षितौ नानु गन्तुमधुनापि राजकम् । भूश्च येन हय मेधया जिना प्रापितावभृथमन्जना वभौ ॥ नलमौर्य कदम्ब कालरात्रिस्तनयस्तम्य वभूव कोर्तिवर्मा परदार निवृत्तचित्तवृत्तेरपि धीर्यस्य रिपु (५) श्रियानुकष्टा ॥ रण पराक्रम लब्ध जयश्रिया सपदि येन विरुग्नमशेषतः नृपति गन्धगजेन महौजसा एथुकदम्बकदम्बकदम्बकम् ॥ तस्मिन् सुरेश्वरविभूति गताभिलाषे राजा भवत्तदनुज किल मंगलीशः य पूर्व पश्चिम समुद्र तटोषिताश्वः सेनारजः-पट विनिर्मित दिम्बितानः ।। स्फुरन्मयूखैरसि दीपिका शतैः (६) व्युदम्य मातङ्गतमिस्रसंचयम् । अवाप्तवान्यो रणरंगमंदिरे करच्चुरि श्री ललनापरिग्रहाम् ।। पुनरपि च निवृक्षोम्सैन्यमाकान्त सालम् रुचिर वहुपताकं रेवती द्वीप मागु आसपदि महदुदन्वरोप संक्रान्तबिम्बं वरुण वलमिवाभृदागतं यस्य वाचा ।। तम्याग्रजम्य तनये नहंषानुभागे लक्ष्म्या किला (७) मिलषिते पुलिकेशि नाम्नि सासूय मात्मनि भवन्त मतपितृव्यम् ज्ञात्वा परुद्ध चरितव्यवसाय बुद्धौ ।। स यदुपचित मन्त्रोसाह शक्ति प्रयोग क्षपित बल विशेषो मंगलीशो स्समन्तात् स्वत Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। नयगत राज्यारम्भयत्ने न साई निजमतनु च राज्यं जीवितं चोज्झतिस्म ॥ तावच्छत्रभंगे जगदखिल मरात्यन्धकारोपरुद्धं (८) यस्यासह्य प्रताप द्युति ततिभिरिघाक्क्रान्त मासीत्प्रभातम् नृत्यद्विद्युत्पताकैः प्रनविनि मरुति क्षुण्ण पर्यंत भागैर्गद्भिारिवासै ( है ) रलिकुल मलिनं व्योमयातंकदावा । लब्ध्वा कालं भुवमुपगते जेतुमाप्यायिकाख्ये गोविन्दे च द्विरद निकरैरुत्तराम्भोधिरथ्याः यस्यानीकैयुधि भय रसज्ञत्वमेक-प्रयातस्तत्रावाप्तम्फलमुपसतम्या (९) परेणापि सद्यः॥ वरदातुङ्ग तरङ्ग रंग विलसद्वंसानदीमेखला बनवासीमवमृद नतम्सुरपुर प्रस्पर्धिनी सम्पदा महता यम्य वलार्णवेन परितस्संछादितोलीतलं स्थलदुर्गज्जलदुर्ग तामिवगतं तत्तत्क्षणे पश्यताम् ।। गंगाम्बु--पीत्वा व्यसनानि सप्त हित्वा पुरोपार्जित संपदो पि यम्यानुभावोपनताम्सदा सन्ना-(१०) सन्नसेवामृतपान शौण्डाः कोंकणेषु यदादिष्ट चण्डदण्डाम्बुबीचिभिः उदस्तास्तरसा मौर्य पल्बलाम्बुसमृद्धयः । अपरजलधेलक्ष्मी यस्मित्पुरीम्पुरभित्प्रभे मदगजघंटाकार विां शतैरवमृदनति जलद पटलनीका कीर्णनवोत्पल मेचकजलनिधिरिव व्योम व्योन समो भवदम्बुनिधिः ॥ प्रतापोपनता यस्य लाट मालय गूर्जराः दण्डोपनतसामन्त चा वाइवाभवन ।। अपरिमित विभूति स्फीत सामन्तसेना मुकुटमणि मयूखाक्क्रान्त पादारविन्दः युधि पतित गजेन्द्रानीक वीभत्सभूतो भयविगलित हर्षो येन चाकारि हर्षः ॥ भव मुरुभिरनीक शशा (१२) सतो यस्य रेवा विविधपुलिन शोभा वन्ध्य बिन्ध्योपकंठा अधिकतर मराजत्स्वेन तेनो महिना शिखरिभिरिभ वा वर्म णां स्पढयेव ।। विधिवदुपचिता भिश्शक्तिभिश्शक्रकल्पस्तिसृभिरपि गुणौघेस्स्वैश्च Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। महाकुलाद्यैः अनमदधिपतित्त्वं यो महाराष्ट्रकाणां नवनवति सहश्र ग्राममानां त्रयाणां गृहिणां स्व (१३) ख गुणैस्त्रिवर्गतुङ्गा विहितान्य क्षितिपाल मानभंगाः अभवन्नुपजात भीति लिंगा यदनीकेन सको (स) ला कलिङ्गाः पिष्टं पिष्टपुरं येन जातं दुर्गम दुर्गमञ्चित्रं यस्य कलेर्वृत्तं जातं दुर्गमदुर्गमम् ।। सन्नद्ध वारण घटास्थ गितान्तरालम् नानायुधक्षतनर रक्षतनाङ्गरागम् आसीन्जलं यदव मर्दित मभ्रगर्भाणा लमम्बरमिवोर्जित सान्ध्य रागम् ॥ उद्धतामल चामरध्वज शतच्छात्रान्धकारैव्वलैः शौर्योत्साहरसोडतारि मथनम्मौलादि भिष्षवि धैः आकान्तात्म बलोन्नतिम्बल रजस्सञ्छन्न कांचीपुरः प्राकारान्तरित प्रताप मकरोद्यः पल्लवानाम्पतिम् ॥ कावेरी दृत शफरी विलोल नेत्रा चोलानां सपदि जयोद्यतस्य यम्य प्रश्च्योतन्मद गजसे (१५) तुरुद्ध नीरा सस्पर्श परिहरतिम्म रत्नराशेः ॥ चोलकेरल पाण्ड्यानाम् यो भूत्तत्र महईये पल्लवानीक नीहारतुहिनेतर दीधितिः ॥ उत्साह प्रभु मंत्र शक्ति सहिते यस्मिन्समंता दिशो नित्वा भुमिपतीन्विसृज्य महितानाराध्य देवद्विजान् वातापीन्नगरीम्प्रविश्य नगरीमेका मिवोर्वीमिमाम् चञ्चन्नीरविनील नीर परिखां (१६) सत्याश्रये शासति ॥ त्रिंशत्सु त्रिसहश्रेषु भारतादाहवादितः सप्ताब्द शत युक्तेषु शतेप्वद्वेषु पञ्चसु ॥ पञ्चाशत्सु कलौ काले षट्सु पञ्च शतासु च। समासु समतीतासु शकानामपि भूभूजाम् ॥ तस्याम्बुधित्रय निवारित शासनस्य (१) । सत्त्याश्रयम्य परमाप्तवता प्रसादं शैलंजिनेन्द्र भवनम्भवनम्नहिम्नान्निापितम्मतिमता रविकीर्तिनेदम् ॥ प्रशस्ते वसतेश्चास्याः जिनस्य त्रिनगद गुरो कर्त्ता कारयिता चापि रविकीर्ति कृती स्वयम् ॥ ये नायोजितवेश्म स्थिर मर्थविधौ विवेकिना निनवेश्म स विजयतां रविकीर्ति कविता (१८) श्रितकालिदास भारविकीर्तिः । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [१७ wwww उल्था श्री भगवान जिनेन्द्र जयवंत हो, जिनके ज्ञानसमुद्र में सर्व जगत एक द्वीपके समान है।....उसके पीछे चालुक्य वंशरूपी समुद्र चिरकाल जयवंत हो, जिसकी महत्ताका परिचय नहीं हो सक्ता । जो पृथ्वीके मुकुटकी मणि है तथा पुरुषरत्नोंकी उत्पत्तिकर्ता है। तथा चिरकाल श्री सत्याश्रय जयवंत हो जो सत्यका आश्रय करनेवाला है तथा जो एक साथ वीर और विद्वानोंको दान और मान देता है । इनके वंशमें बहुतसे राजा हो गए जो विनयके इच्छुक थे व जिनका पृथ्वीवल्लभ नाम सार्थक था । इसी चालुक्य वंशमें प्रसिद्ध राजा जयसिंहवल्लभ हो गए हैं जिन्होंने ऐसे युद्ध में अपनी शूरवीरतासे उस लक्ष्मीदेवीको जीत लिया है जो चपलताने भरी हुई है कि जिस युद्धमें उसके सैकड़ों बाणोंसे धबड़ाए हुए अनेक घोड़े पैदल तथा हाथी गिराए गए थे व जहां नाचने हुप व भयमें भरे हुए मस्तकरहित शरीरों की व तलवारोंकी हमारों किरणें चमक रही थीं। उसका पुत्र देवसम प्रभावशाली व पृथ्वीका एक अकेला स्वामी रणरान नामका था जिसके शरीरकी उत्तमतासे उसकी निद्रावस्थामें भी उसका अद्वितीय मनुप्यपना लोकोमें प्रगट था । उसका पुत्र गुलिकेशी PuleKesi 1 था जिसने यद्यपि चंद्रमा की क्रांति पाई थी व जो लक्ष्मीदेवीका प्रिय था तथापि वातापिपुरी नगरीरूपी वधूके वरपनेको प्राप्त था । उसके धर्म, अर्थ, कामरूप तीन वर्गके साधनकी बराबरी पृथ्वीमें कोई नहीं कर सक्ता था । उसके अश्वमेध करनेके पीछे पवित्र भेटसे यह पृथ्वी शोभा Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। यमान थी। उसका पुन कीर्निचर्या था जो नल, मौर्य और कदम्ब वंशोंके लिये कालरात्रि था । यद्यपि वह परस्त्रीसे विरक्त था तथापि उस धीरका मन अपने शत्रुओंकी लमीसे आकर्षित था। पदम्बोंके वंशके विशाल कदम्बवृक्षको युद्ध में अपने पराक्रमसे विजयलक्ष्मीको प्राप्त करनेवाले महा तेनम्बी नृपके गजने खंड २ कर दिया था। जब इस राजाकी इच्छा इन्द्रसम विभृतिमें तृप्त हो गई थी तब उसके लघुभाई मंगलीश राजा हुए. जिन्होंने अपने घोड़े पूर्व पश्चिमके समुद्रोंके तटोंपर ठहराए थे तथा अपनी सेनाकी रजसे चारों तरफ मंडप छा दिया था। जिसने मातं? जातिके अन्धकारको अपनी सैकड़ों चमकती हुई तलवारोंके दीपकोंसे दूर करके युद्धके मध्यमें कटचूरियों (कलचूरियों)के वंशकी लकीपी सुन्दर स्त्रीको अपनी स्त्री बना लिया था और फिर जब उसने शीघही रेवतीद्वीप ( हारका जहां रैवताचल या गिरनार है ) को लेना चाहां तब उसकी विशाल सेना जो सुन्दर पताकाओंसे शोभित व निसने किलोंको घेर लिया था समुद्रमें ऐसी झलकती थी मानो वरुणकी सेना ही उसके वश में हो गई है। ___जब उसके बड़े भाईक पुत्र पुलकेशीको-ओनके ममानप्रभावशाली था-लक्ष्मीदेवीने पसन्द किया तथा उसने अपने चारित्र व्यापार और बुद्धिमें यह समझा कि उसके चाचा उसकी तरफ ईर्षा भाव रखते हैं, तब पुलकेशी द्वारा संग्रहीन मंत्र, उत्साह तथा शक्तिके प्रयोगसे मंगलीशकी शक्ति बिलकुल नष्ट हो गई और उसके इस प्रयत्नमें कि वह राज्यको अपने ही पुत्र के लिये खखे, मंगलीशने अपना राज्य तथा जीवन खो दिया। जब इस तरह मंगलीशका Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [EE छत्र भंग हुआ तब सर्व जगत शत्रुओंके अन्धकारसे छागया, परन्तु उसके असह्य प्रतापके विस्तारसे पीड़ित होकर मानो प्रभात हो गया। उस आकाशमें जो भौरोंके समान काला था बहती हुई हवासे उड़ते हुए पताकाओंकी विजलीकी समान चमकसे तड़का हो गया। असर पाकर जब अप्पयि पदधारी गोविन्द राजा (जो राष्ट्रकूटोंका राजा था) जो उत्तर समुद्रका स्वामी था अपनी हाथियोंकी सेनाको लेकर पृथ्वीके विजय करनेको आया तब इस पुलकेशीकी सेनाओं के हाथोंसे-निसको पश्चिमके राजाओंने मदद दी थी-वह भयभीत हो गया और शीघ्र अपनी कृतिके फलका लाभ किया। जब वह बनवामीको घेर रहा था जिसके किनारेपर *हंस नदी थी जो वरदा नदीके उच्च तरंगोंमें क्रीड़ा करती थी व जो नगर स्वर्गपुरीके समान था तब वह किला जो सूखी जमीनपर था चारों तरफसे उसकी सेनारूपी समुद्रसे ऐमा घिर गया मानों लोगोंको ऐसा मालूम होता था कि समुद्रके मध्यमें कोई किला है। वे लोग भी जिन्होंने गंगाका पानी पिया था और मात व्यसन त्याग दिये थे तथा लक्ष्मीको भी प्राप्तकर लिया था उसके प्रभावसे आकर्षित हो सदा उसके निकट सम्बन्धका अमृत पान करना चहते थे। कोंकणके देशोंमें उसकी आज्ञासे नियुक्त चंडदंडरूपी समुद्रकी तरंगोंसे मौर्यरूपी सरोवरके जलके भंडार शीघ्र ही वश करलिये * वर्तमानमें वरदा नदी वनवासी नगरके नीचे बहती है तथा हंस नदी किसी पुरानी धाराका पुराना नाम है। जो यहांमे ७ मील है व इसीकी उपनदी है। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गए थे । नगरको दग्ध करनेवाले शिवके समान उसने जब उस नगरको जो कि पश्चिम समुद्रकी लक्ष्मीदेवीके समान था मदोन्मत्त हाथियोंके समान सैकड़ों जहाजोंसे घेर लिया तब वह आकाश जो नए विकसित कमलके समान नील वर्ण था व मेघोंसे घिरा हुआ था समुद्रके समान हो गया और समुद्र आकाशके समान हो गया। उसके प्रभावसे पराजित होकर लाट, मालव और गुर्जर ऐसे योग्य आचरणवाले हो गए, जिसतरह दंडसे वशीभूत सामन्त लोग हों । राजा हर्षके चरणकमल उसकी अपरिमित विभूतिसे पाले हुए सामन्तोंके रत्नोंकी किरणोंसे ढके हुए थे जब युद्धमें उसके बलवान हाथियोंकी सेना इससे मारी गई तब उसका हर्ष भयमें परिणत हो गया । जब वह पृथ्वीको अपनी बड़ी सेनाओंसे शासित कर रहा था तब रेवा (नदी) जो विन्ध्याचलके निकट है व जिसके तट वालूसे शोभित हैं उसके प्रभावसे अधिक शोभायमान होगई । यद्यपि पर्वतोंके महत्व को देखकर उसके हाथियोंने ईर्षासे उस नदी के संगको छोड़ दिया था । इन्द्र तुल्य तीन शक्तियोंको रखनेवाले उस राजाने अपने उच्च कुल आदिक गुणोंके समुदायसे तीन देशोंपर अपना अधिकार प्राप्त किया था जिनको महाराष्ट्रक कहते हैं जिसमें ९९००० निनानवे हजार ग्राम थे । कलिंग और कौशल देशवासी - जो गृहस्थोंके उत्तम गुणोंसे संयुक्त हो त्रिवर्ग साधनमें प्रसिद्ध थे और जिन्होंने दूसरे राजाओंका मान भंग किया था- इस राजाकी सेनासे तभयभी थे । उसके द्वारा वशीभूत हो पिष्ठपुरका किला दुर्गम न Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [१०१ रहा। इस वीरके कार्य सब दुर्लभ कार्योंमें भी अति दुर्लभ थे । वह जल उसके द्वारा क्षोभित होकर जिसमें उसके हाथियोंकी महान सेनाने प्रवेश किया था व जो उसके अनेक युद्धोंमें मारे गए मनुप्योंके रक्तसे लाल वर्णका हो गया था-उस आकाशके समान झलकता था जिसमें मेघोंके मध्यमें सूर्यके द्वारा संध्याका रंग छागया हो । अपनी उन सेनाओंसे जोकि निर्दोष चमरोंके हिलानेसे व सैकड़ों पताकाओं व छत्रियोंसे अंधकारमें आगई थीं और जिन्होंने अपने उत्साह और शक्तिसे उन्मत्त उसके शत्रुओंको पीड़ितकर दिया था और जिसमें छःप्रकार शक्तिये थीं उस राजाने अपनी शक्तिसे प्रसिद्ध पल्लवोंके राजाको उसका प्रभाव अपनी सेनाकी रजसे छिपे हुए उसके कांचीपुर नगरके कोटके भीतर ही छिपा दिया था । जब उसने चौलोंकी जीतके लिये शीघही तय्यारी की तब उस कावेरी नदीने जो मछलियोंके चंचल नेत्रोंसे भरी हुई थी अपना सम्बन्ध समुद्रसे छोड़ दिया क्योंकि उसके जलका प्रवाह उस राजाके मदोन्मत्त हाथियोंके पुलसे रुक गया था। वहां उसने चोलों, केरलों और गांडयोंको महाऋद्धियुक्त किया परन्तु पल्लवोंकी सेनाके पालेको गलानेके लिये मूर्य सम हो गया। जब राजा सत्यायने अपने उत्साह, प्रभुत्त्व व मंत्रशक्तिसे सर्व निकटके देशोंको जीत लिया और परास्त राजाओंको विसर्जन कर दिया तथा देव और ब्राह्मणोंको आराधित किया और अपनी वातापी नगरी (वदामी) में प्रवेश किया तब उसने सर्व जगतको ऐसे नगरके समान शासित किया जिसके चारों तरफ नृत्य करते हुए समुद्रके जलसे पूरित नीलखाई बह रही हो । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ३७३० तीन हजार सातसो तीस वर्ष भारतोंके युद्धके वीतनेपर व ३५५० तीनहजार पांचसौ पचास वर्ष कलियुगके जानेपर और शक राजाओंके ५०६ पांचसौ छः वर्ष होनेपर महिमापूर्ण यह पाषाणका मिनेन्द्रमंदिर विद्वान रविकीर्ति द्वारा निर्मापित किया गया था। जिस रविकीर्तिने उस सत्याश्रयके महान प्रसादको प्राप्त किया था जिसकी आज्ञा मात्र तीन समुद्रोंसे ही रोकी गई थी। इस तीन जगतके गुरुश्री जिनेन्द्र मंदिर की प्रशस्तिका लेखक तथा जिसने इस मंदिरको निर्मापित कराया वह यह स्वयं रविकीर्ति है। वह रविकीर्ति विजयको प्राप्त करे, जिसने अपनी कवितासे कालिदास और भैरवीकेसे यशको प्राप्त किया है व जो कार्यके करनेमें विवेकी है व जिसने यह महान जिनमंदिर बनवाया है । लेखके नीचे जो कनड़ी भाषामें है उसका उल्था । मुश्रीवल्लीका ग्राम, भेलटिकवाड नगर तथा पर्वनूर, गंगबूर, पूलिगिरि और गंडव ग्राम इस देवताकी सम्पत्ति हैं। उत्तर और दक्षिणकी तरफ इस पर्वतके नीचे दक्षिण भीमवारी तक इस महापथांतपुर नगरकी सीमा है। इस मेघुती मंदिरके ऊपरी भागके आंगनमें एक स्मारक पाषाण है जिसमें एक छोटासा लेख पुराने कनडी अक्षरों में है । इसके अक्षर १२वीं व १३वीं शताब्दीके हैं। जिसका भाव यह है कि यह रामशेठीकी निषिधिका है जो मूलसंघ बलात्कारगणके कमल थे व ऐमसेठीके पुत्र थे जो दुगलगड़ ग्राम वासी व रामवरग जिलेके संरक्षित व्यापारी थे। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०३ अरसीबीडी-तालुका हुनगंडमें एक ध्वंश नगर-हुंनगडसे दक्षिण १६ मील । यहां प्राचीन चालुक्य राज्यधानी थी जिसका नाम विक्रमपुर था जिसको महान विक्रमादित्य चतुर्थने (१०७६११२६) में स्थापित किया था। उसके समयमें पश्चिम चालुक्य ९७३--११९०) बहुत उन्नतिपर थे। कलचूरियोंने ११५१में लेरिया तब भी यह एक महत्वका स्थान था। यहां दो ध्वा जैन मदिर हैं, दो बड़े चालुक्य और कलचूरी वंशके शिलालेख पुरानी कनडीमें हैं। (२) वादामी-ता० वादामी, एम० एम०रेलवेपर स्टेशन । यह म्थान इस लिये प्रसिद्ध है कि यहां एक जैन गुफा सन ई० ६५० की है व तीन ब्राह्मण गुफाएं हैं। जिनमें एकमें शिलालेख सन् ई० ५७९का है। जैन गुफा ३१ फुट लम्बी व १९ फुट चौडी है। ता० १ जून १९२३को हमने वादामीकी यात्रा की थी । गुफाके नीचे एक बडा रमणीक सरोवर है । यह जैन गुफा बहुत ही सुन्दर व अनेक अखडित दि. जैन मतियोंसे शोभित है । यह गुफा ५ दरकी है-इसके ४ स्तम्भ हैं । जो चौकोर हैंस्तम्भोंपर फूलपत्ती व गृहस्थ स्त्री पुरुष बने हैं । गुफाके बाहर पूर्व मुख १ प्रतिमा श्री महावीरस्वासकी पल्यंकासन है १ हाथ उंची। एक तरफ यक्ष है, दो चमरेन्द्र हैं, तीन छत्र हैं । सामने भीतपर सिंह व हरएक कोनेके ऊपर व स्तंभपर सिंह है। वास्तवमें यह गुफा श्री महावीरस्वामीकी भक्तिमें अपनी वीतरागताको झलका रही है । भीतर जाकर बाहरी दालानमें पूर्वमुख भीतपर श्री पार्थनाथ कायोत्सर्ग ५ हाथ ऊंचे फणसहित, १ चमरेन्द्र खड़े, १ बैठे Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दोनोंओर, १ कोनेमें एक यक्ष । इसीके सामने भीतपर पश्चिम मुख श्री गोमटस्वामी ९ हाथ ऊंचे कायो ० चार सर्प लिपटे केश ऊपरसे आगे आकर तपके कारण कंधेपर लटक रहे हैं। दो चमरेन्द्र इधर उधर हैं | नीचे दो गृहस्थ घुटनोंसे हाथ जोड़े बैठे हैं। वास्तवमें यह मूर्ति साक्षात् श्री बाहुबलि महाराजके एक वर्ष तपके atest दिखला रही है । इस दालान में चार खंभे हैं। दो मध्य में दो भीतके सहारे । इन चारोंमें अनेक पल्यंकासन और खड़गासन दि० जैन मूर्तियां अपनी वीतरागताको झलका रही हैं । इसके आगे वेदी कमरे के बाहर भीतरी दालान है यहां भी अपूर्व प्रतिमाएं हैं। १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची खडगासन पूर्वमुख है ऊपर तीन छत्र हैं । इसके आसपास कई मूर्तियां हैं । सामने पश्चिम मुख १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची कायोत्सर्ग, दो यक्ष हैं व अनेक प्रतिमाएं आसपास हैं । वेदीके कमरेके द्वारके दोनों ओर मुख्य श्री पार्श्वनाथ फणसहित १। हाथ ऊंचे तथा अन्य मूर्तियें हैं । आगे ४ सीढ़ी चढ़कर वेदीका कमरा है । द्वारपर दोनों ओर दो इन्द्र हैं । भीतर मूल नायक श्री महावीर स्वामी पल्यंकासन ३ हाथ ऊंचे दो इन्द्र सहित व तीन सिंहसहित विरान्ति हैं । इस प्रांतमें यह दि जैन गुफा दर्शनीय तथा पूज्यनीय है । ( Fergusson cave temples of India 1880 ) में इस वाद मी जैन गुफाका इस तरह वर्णन दिया गया है कि यह वादामी कलादगी कलेकटरीमें कलादगीसे दक्षिण पश्चिम २३ मील है । मलप्रभा नदीसे ३ मील है । प्राचीन कालमें यह चालुक्य वंशी राजाओंकी बातापि नगरी थी । पुलकेशी प्र ܀ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला । [ १०५ थमने छट्ठी शताब्दीके प्रारंभमें इसको अपनी राजधानी किया था । यह जैन गुफा करीब ६५० ही में खोदी गई होगी । वरामदा ३१ फुटसे ६ || फुट है गहराई १६ फुट है । पीछेका कमरा ६ फुट और २५ || फुट है । यहांसे आगे ४ सीढी चढ़कर सिंहासनपर श्री महावीरस्वामी पल्यंकासन विराजित हैं । वरामदेके कोनोंमें दोनों तरफ ७ || फुट ऊंचे श्री गोमटस्वामी और श्री पार्श्वनाथ की मूर्तियें शोभित हैं। स्तंभों और भीतों पर बहुतसी तीर्थकरोंकी मूर्तियां हैं । नोट- यहां पूजन पाठ नही होती है। यहां इंडी निवासी श्री आदप्पा अनन्तप्पा उपाध्याय जैन सकुटुम्ब रहते हैं जो अस्पताल में कम्पाउंडर हैं । इनके घरमें मूर्ति भी है । (३) वागलकोट नगर घटप्रभा नदी पर । यहां १ दि ० जैन मंदिर है, जैनीलोग भी हैं। यहां १ जैन बाजार है जिसको जैनियोंने नवाब सावनूर (१६६४ - १६७५) के राज्यमें बनवाया था । (४) हुन गुंड ग्राम - बागलकोटसे २९ मील । यह बीजापुरसे दक्षिण पूर्व ६० मील है । नगरके सामने जो पहाडी है उसपर १ जैन मंदिर के अवशेष हैं जिसको मेघुती मंदिर कहते हैं। मंदिरके स्तम्भ चौकोर हैं और बहुत मोटे हैं । एक खंभेमें बहुत अच्छी । खुदाई है। पुराने सब डिविजनल आफिसके पास उसके उत्तर में एक जीर्ण जैन गुफा है। यहांकी मूर्ति नहीं रहीं । नगरमें पर्वतके नीचे जो रामलिंगदेवका मंदिर है उसमें जैन मंदिरोंके सोलह स्तम्भ चौकोर बढ़िया हैं । इस मंदिरके पास एक घरके आंगन में एक छोटा मंदिर है जिसमें पुराने चौकोर खंभे जैन मन्दिरोंके हैं। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । (५) पट्टदकल - ता० वादामी, वादामीसे ९ मील। यहां बहुतसे प्राचीन मंदिर जैन और ब्राह्मणोंके हैं, उनमें ७ वीं व ९ वीं शताब्दी के शिलालेख हैं । ये सब मंदिर द्राविड़ शिल्पके नमूने हैं । शिव मंदिरके पश्चिममें एक पुराना जैन मंदिर है । द्राविड शिल्प में रचित है । खुला हुआ कमरा है । जिसके ८ स्तम्भ हैं । मंदिरके हरदोओर सवारसहित हाथीका आधा भाग है, दृष्टिके ऊपर ५ फणका सर्प है । भीतर के कमरे में चार चौकोर स्तंभ हैं । इसके भीतरके कमरे में दो गोल व दो चौकोर खंभे हैं। मंदिरजी मूर्तिरहित है । एक कायोत्सर्ग नग्न मूर्ति जिसपर सात फणका सर्प है आगे चट्टानपर घुटनोंसे खंडित विराजित है । (नोट- यही वेदी पर होगी) कमरे की छतपर जानेको एक सीढ़ी है। मंदिर के ऊपर शिषर है । उसमें भी एक कमरा है तथा उसमें प्रदक्षिणा है । मंदिरके बाहर आश्चर्यजनक कारीगरीकी खुदाई है । यह बहुत प्राचीन नगर है । टोलमी, मिश्र भूगोलवेत्ता (सन १५० ) ने इसका नाम पेटिरगाला लिखा है । (६) तालीकोटा - ता० मुद्दे विहाल । एक नगर है । यहां जुमामसजिद एक ध्वंश मकान है जिसके खंभे जैनोंके हैं । एक शिवका मंदिर पुराना है । इसमें एक लिंगके सिवाय कुछ जैन मूर्तियां हैं इसके खंभे गोल हैं। उसपर जैन मूर्तियां बनी हैं । (७) सलतगी ता० इंडी | इंडीसे दक्षिण पूर्व ६ मील एक पाषाणके खंभे पर देव नागरी अक्षरोंमें एक लेख शाका ८६७ का राष्ट्रकूट वंशका है। इसमें लेख है कि कृष्ण चतुर्थ (९४५ - ९५६ ) ने कर्णपुरी जिलेके पाविट्टगामें एक विद्यालय स्थापित किया । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०७ (4) अलमेली ग्राम ता० सिंदगी-यहांसे उत्तर १२ मील । यह कहा जाता है कि यहां ग्रामके पश्चिम सरोवरपर एक बड़ा जैन मंदिर था । आसपास बहुतमी नग्न मूर्तियां पाई जाती हैं। (९) बागेवाडी-बीजापुरसे दक्षिण पूर्व २५ मील । यहां लिंगायत मटके स्थापक वाभवका जन्म स्थान है । वासवेश्वरका मंदिर दक्षिण मुख है जिसमें आलोंपर जैन मूर्तियां हैं और बड़ी कारीगरीके द्वारपाल हैं । रामेश्वर मंदिर भी पुराना और जैन पद्धतिका है। (१०) वासुकोड-मुद्देविहालसे ६ मील उत्तर पश्चिम । यहां १ जैन मंदिर है जिसको जाखना चार्यने बनवाया था । (११) बीजापुर-फ्रांसीम यात्री मन्देलो-जिसने सन् १६३८ और ३९ में भारत यात्रा की थी-लिखता है कि सर्व एसिया भरमें नितने बडे २ नगर हैं उनमें एक यह भी है, इसका ऊंचा पाषाणकोट १५ मीलसे ऊपर है । चौडी खाई है । बहुत दृढ़ किला है,जहां १००० पीतल और लोहेके तोपखाने हैं। बादशाही मकानको अर्ककिला कहते हैं । मलिक करीमकी मसजिद को स्थानीय लोग कहते हैं कि यह एक जैन मंदिर था। (सं० नोट) अब भी यहां कई पुराने जैन मंदिर हैं व किलेमें प्राचीन दिनैन मूर्तियां अखंडित बिराजमान हैं। यहांसे २ मील एक प्राचीन जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथनीका है, प्रतिमा १ हाथ ऊंची है। किलेकी मूर्तिये चंदावावडीसे लाई गई हैं। उनका वर्णन एक श्री पार्श्वनाथ ३ हाथ पद्मासन संवंत १२३२ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । २ प्रतिमा प० २ || फुट ऊंची १ शांतिनाथकी ३ मूर्तियें १ फुट ऊंची १ स्फटिक पाषाणकी एक प्रतिमामें सं० १००१ विजयमूरि प्रतिष्ठाचार्य सब प्रतिमाएं ९ हैं (दि० जैन डाइरेक्टरी) | हम जब २४ मार्च १९२५को किला देखने गए तो वहां हमें ६ मूर्तियें अखंडित दि० जैनकी नीचे प्रमाण मिलीं । (१) कायोत्सर्ग २ हाथ ऊंची नं ० (२) २ नं० "" 99 "" " मूलसंघ आदि लिखा है । (३) (8) (9) 99 (६) पल्यंकासन २ अंतिम दो प्रतिमाओंपर सं० १२३२ शाका पौष सुदी ३ "" " "" पार्श्वनाथ 12 सी ६ सी ५ कृष्णवर्ण पार्श्वनाथ सी ३ सी २ सी ४ ९ सी १ (१२) धनूर - कृष्णा नदीपर । हुनगुंडसे उत्तर १० मील, ग्रामके बाहर एक छोटा मंदिर जैनके ढंगका है - इसमें लिंग है । धनेश्वरका कहलाता है | (१३) हल्लूर - बागलकोटसे पूर्व ९ मील - ग्रामके उत्तरमें पहाडीपर मेलगुडी अर्थात् पहाडी मंदिर है (मेल = पहाडी, गुडी = मंदिर) जो ७६ फुट लम्बा ४३ फुट चौडा और २१ फुट ऊंचा है । यह दक्षिण मुख है, बहुतही बढिया प्राचीन जैन मंदिर है । अब इसमें लिंग रख दिया गया है । भीतोंके सहारे व सामने Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोजापुर जिला । [ १०६ आठ खड़े आसन जैन मूर्तियां हैं, हरएक पांच फुट ऊंची है। इनमें से चारपर सात फणका सर्पमंडप है । दूसरे चार पर दो सर्पफण फैलाये हैं । हरएक चरणके पास सर्प है । (सं० नोट- ये सब श्री पार्श्वनाथकी अपूर्व मूर्तियां हैं ) इनमें कुछ खंडित हैं। मंदिर बिजलीसे नष्ट हो गया है । नोट- शायद यह मंदिर तब बना था जब ११ वीं शताब्दीके करीब यहां दिगम्बर जैन बहुत रहते थे । (१४) हेब्बल - वागेवाड़ीसे दक्षिण १२ मील । ग्रामसे ३०० गज जाकर वागेवाड़ी नोदगुडी सडक है । झाड़ियोंके पीछे एक ऊंची भीतसे छिपा हुआ एक सुन्दर जैन मंदिर है । जिसमें मंडप, वेदी व कमरा है । कमरे में २२ खंभे हैं व ४ पिलैस्तर हैं 1 चार बीचके खंभे ८ फुट ऊंचे हैं दूसरे ६ फुट ऊंचे हैं। भीतरकी वेदीका मंदिर २५ फुट चौकोर है । इसको भी लिंगमंदिर कर लिया गया है । (१५) जैनपुर - बागलकोटसे उत्तर पश्चिम २५ मील । यह बीजापुर, बागलकोटकी सडक पर कृष्ण नदीके वाएं तटपर है । यहां पहले जैन लोग रहते थे इसीलिये जैनपुर प्रसिद्ध है । (१६) करड़ीग्राम - हुनगुंडसे उत्तर पूर्व १० मील | यहां तीन मंदिर व तीन पुराने शिलालेख हैं । ये मंदिर मूलमें जैनियोंके दिखते हैं । एक लेख ११५३ व एक १५५३का है । यह दूसरा लेख ग्यारहवें विजयनगर राजा सदाशिवरायका है (१५४२१५७३) Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (१७) कुन्टोजी-मुद्देविहालसे उत्तरपूर्व २ मील । वासेश्वरका मंदिर चार कोनोंका है। ७० फुटसे १२४ फुट । दो मंदिर मिले हैं, इनके मध्य में एक आंगन है जिसमें चौतीमन खंभे हैं, २२ गोल १२ चौकोर । (१८) मुद्देविहाल-बीजापुरसे दक्षिण पूर्व ४५ मील । यहां नगरके आसपास कुछ जैन खंभे पड़े हुए हैं। (१९) संगम-हुनगुंडमे उत्तर १० मील । संगमेश्वरके मंदिरके २७ वभे जैन ढंगके हैं। इस मंदिरको ८०० वर्ष हुए एक जैनने बनवाया था, जिसका नाम था द्यावनायक गंजीपाल । सीढ़ियोंसे नीचे मंदिरसे नदीको जाते हुए एक पाषाणकी छत्री है जिसके भूरे हरे रंगके चार गोल खंभे जैनियों के हैं। (२० सिंदगो-बीजापुरसे उत्तर पूर्व ३५ मील। यहां संगमेश्वरका मंदिर है जिसमें बहुतमी जैन मूर्तियां हैं, कछ खडित हैं। (२१) सिरूर-वागलकोटसे दक्षिण पश्चिम ९ मील। ग्रामके बाहर लक्ष्मीका खुला मंदिर है जिसमें जैन खंभे हैं । बडे मरोवरके दक्षिण तटपर १८ एकड़ मूमिमें एक प्राचीन और सुन्दर भिडेश्वर का मंदिर (६० से ३२ फुट) है । यह मूलमें जैन मंदिर था । भीत और ख भोंपर अच्छी खुदाई है। मंदिरके दक्षिण तरफ शिलालेख हैं, जो सम्झत और पुरानी कनड़ीमें हैं। इनमें कोल्हापुरवंशका वर्णन है जो चालुक्योंके आधीन थे । नामशाका ९७२ मे १ ०२१तकके हैं। मंदिर पूर्व द्वारपर एक चबूतरा है । एक पत्थरको दो जैन खंभे थांभे हुए हैं। ग्रामके आसपास बहुतसे जैन खंभे फैले पड़े हैं। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। तलाचकोड या बासिलहिड-वादामीसे दक्षिण ३ मील, देवीके मंदिरके पास १ झील ३६२ फुट चौकोर व २५ फुट गहरी है। इसको सन् १६८० में दो जन सेठ शंकरसेठ और चन्द्रसेठने बनवाया था । (२२) वाधानगर-नि० बीजापुर-बीनापुरसे २० मील । प्राचीन जैन मन्दिर श्री पार्श्वनाथ कायोत्सर्गवर्ण हरा ॥ हाथ (दि. जैन डा० ) (२३) पनालाका किला-यहां अम्बाबाईका प्रसिद्ध मंदिर है । जिसके चारों ओर बहुतसे प्राचीन मंदिर हैं। एक दिगम्बर जैन मन्दिर है जिसमें अब विष्णुकी मूर्ति है । मंडपके गुम्बनके नीचे बहतमी कायोत्सर्ग नग्न जैन मूर्तियां हैं। वंदेमातरम Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२३) धाड़वाड़ जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें बेलगाम, बीजापुर । पश्चिममें निजाम और तुंगभद्रा नदी जो मदराससे जुदा करती है। दक्षिणमें मैसूर, पश्चिममें उत्तर कनड़ा। यहां ४६०२ वर्ग मील स्थान है । १९२ ] इसका इतिहास यह है । ताम्रपत्रोंसे यह बात प्रगट होती । है कि सन् ई० के एक शताब्दी पहले धाड़वाड़ के भागों में उत्तर कड़ाके वनवासी राजा लोग राज्य करते थे । वनवासीके अन्ध भृत्योंके पीछे गंग या पल्लव वंशके राजाओंने राज्य किया था, उन्होंने पूर्वीय कदम्बको स्थान दिया। कदम्ब एक जैन वंश था जिसने वनवासीमें छठी शताब्दी तक राज्य किया फिर पूर्वीय चालुक्यों और पश्चिमी चालुक्योंने ७६० तक, राष्ट्रकूटोंने ९७३ तक फिर पश्चिमीय चालुक्योंने १९६५ तक फिर कलचूरी वंशने १९८४ तक फिर होयसोलियोंने १२०३ तक फिर देवगिरि यादवोंने १२९५ तक । इसके मध्य में आधीन रहकर कादम्बोंने भी राज्य किया जिनके राज्य स्थान वनवासो और हांगल में थे । फिर मुसलमानोंने 1 अधिकार किया। कहते हैं कि हांगल में पांडवोंने निवास किया था । धाड़वाड़ गजेटियरसे यह मालूम हुआ कि कादम्ब जैन राजाओं का वंश था । जिनकी राज्यधानी वनवासी थी जो उत्तर मैसूर में हरिहरके पास उछंगी पर है, तथा बेलगाम में हालसो पर व धाड़वाड़ में त्रिपर्वत या त्रिगिरि पर थी। उनके ताम्रपत्र जो करजगी से पश्चिम ६ मील देवगिरि पर पाए गए हैं नौ राजाओं के नाम Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला । [ ११३ गिनाते हैं और खासकर लिखते हैं कि जैन मंदिरोंके लिये ग्राम और भूमिदान किये गए । (Fleets' Canarese dynasties 7-10.) 1 धारवाड़ में प्राचीन चालुक्य राज्यका सबसे प्राचीन लेख हांगलसे पूर्व १० मील आदुरमें एक पाषाणपर पाया गया है । इसमें लेख है कि छठे पूर्वीय चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा प्रथम ( ता० ५६७) ने जैन मंदिरको दान किया जिसको एक नगरसेठने बनवाया था । कादम्वराज्य के मध्य में इस लेखका मिलना इस बातको पुष्ट करता है कि कीर्तिवर्माने कादम्बोंको हरा दिया । जो बात ऐहोलके प्रसिद्ध लेख में है । वंकापुरमे २० मील लखमेश्वर में जो तीन लेख ता॰ ६८७, ७२९ व ७३ ४ के राजा विनयदित्त्य (६८० - ६९७), विजयदित्त्य ( ६९७ ७३३), राजा विक्रमादित्य द्वि० (७३३–७४७) के शासन कालके मिले हैं उनमें भी जैन मंदिरों और गुरुओंको दानका वर्णन है । कलचूरी (११६१-११८४), यद्यपि कलचूरी लोग जैन थे, परन्तु बालको शैवधर्मपर प्रेम होगया । उसका मंत्री वासव था, उसने ऐसा अवसर पाकर लिंगायत पंथ चलाया और बहुत अनुयायी बनाकर बज्जालको गद्दीसे उतारकर आप राजा होगया । जैनियोंके कथनानुसार वज्जालके पुत्र सोमेश्वरसे भय खाकर बासव उत्तर कनड़ाके उलबीमें भाग गया और सोमेश्वर राजा हुआ । कलचूरी या कालाचूर्य - इनकी उपाधि कालंजर - परवाराधीश्वर है । इनकी उत्पत्ति कालंजर नगरसे है । जो अब बुन्देलखंड में एक पहाड़ी किला है । कर्निकघम साहब ( A. R. IX) 1 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । थनानुसार ९ मी, १० वी, ११ मी शताब्दीमें यह बुन्देलखण्डमें एक बलवान शाखा चेदीवंशकी थी। उनके वंशका संवत कालाचूरी या चेदी संवत कहलाता है-जो सन् ई० २४९ से चलता है। उनकी राज्यधानी त्रिपुरा पर थी। जो जबलपुरसे पश्चिम ६ मील है । कालाचूरीके त्रिपुरा वंशके लोगोंने बहुत दफे राष्ट्रकूट और पश्चिमीय चालुक्योंमे विवाह सम्बन्ध किये थे। इसी वंशकी दूसरी शाखा छठी शताब्दीमें कोन्कनमें राज्य करती थी, जहांमे पूर्वीय चालुक्य राजा भंगलीशने-जो पुलकेशी द्वि० (६१०६३४ ) का चाचा था-भगा दिया था। कालाचूरी अपनेको हेय कहते हैं और अपनी उत्पत्ति यदुवंशसे कार्यवीर्य या सहस्रबाहु अर्जुनसे बताते हैं। पुरातत्व-धाड़वाड़ चालुक्य राजाओंके ढंगसे भरा हुआ है। पुरातत्वके मुख्यम्थान हैं । गड़ग, लाकंही, दम्बल, हावेरी, हांगल, अन्निगेरी, वन्कापुर, चन्ददामपुर, लक्ष्मेश्वर, नारंगल | इन सबोमें बहुत सुन्दर पाषाणके मंदिर हैं जो ० मी ये :2 वीं शताब्दी तकके हैं । इनको जखनाचार्यका ढंग कहते हैं। जवनाचार्य एक गनकुमार था जिनके हाग अचानक एक ब्राह्मणका वध होगया था। इसके प्रायश्चित्तमें उसने बनारसमे केप कमोरिन तक मंदिर २० वर्षमें बनवाये ।। लिंगायत-इस जिलेमें चारलाख सतीसहजार हैं ४३७००० । यह वात साधारण रीतिसे मानी जाती है कि लिंगायतोंकी उत्पत्ति १२ बारहवीं शताब्दीने है । जब एक धार्मिक सुधारक हैदरावादके कल्याणीके निवासी बासवने इस जातिकी प्रसिद्धि की और इसके Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [११५ शिवभक्त बनाया । यह माना जाता है कि जैन लोग अधिक संख्यामें लिंगायत होगए । उस समय जैन धर्म दक्षिण महाराष्ट्रमें . फैला हुआ था । It is supposed that lingayats were largely converts from Jainism which was prevalent throughout southern Mahratta country where the sect first came with prominence. मुख्यस्थान। (१) वंकापुर-ता० बंकापुर। एकनगर । बंकापुरका सबसे पहले नाम कोल्हापुरके एक शिला लेखमें आया है जो सन् (७८ का है। उसमें वर्णन है कि बंकापुर एक बड़ा प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नगर है । इसका नाम चेलेकितन राजा बंकेयारसके नामसे पड़ा है जो राष्ट्रकूट राजा अमोघ वर्ष (८५१-६९) के नीचे धाडवाडका राजा था । सन् १०७१ में गंगवंशका राजा उदयदित्य इस नगरमें राज्य करता था । सन् १४०६में बहमनी सुलतान फीरोजशाहने इसे अधिकारमें किया । यहां एक सुन्दर जैन मन्दिर रङ्गस्वामीका है जिसमें कई शिला लेख हैं। उनमें एक लेख शाका ९७७ ( सन् १ ०२५) का है जब कि चालुक्य राजा गंग परमेश्वर विक्रमादित्य देव जो त्रैलोक्य मल्लदेवका पुत्र था व कुवलालपुर नगरका महाराजा व नन्दगिरिका स्वामी था । इसके मुकुटमें हाथीका चिन्ह था व जो गंगावादित ९६००० व वनवासी १२००० पर राज्य करता था और जब कि उसके आधीन बड़ा सर्दार कादम्ब कुलतिलक राना मयूरवर्मा १२००० वनवासीमें राज्य कर रहा था, उस Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NON M ११६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। समय जैन मंदिरके लिये हरिकेशरीदेव और उसकी स्त्री सच्चलदेवीने भूमि दी । यह वंकापुरके पांच धार्मिक महाविद्यालयोंके स्थापक थे, नगरसेठ थे, महाजन थे और सोलह (The sixteen) थे। ( सोलह थे इसका भाव समझमें नहीं आया )। नगरेश्वरके अवत्तु खम्बद वस्तीके मंदिरमें एक पुराना कनडी लेख है नं० ६में १२ लाइन हरएक २३ अक्षरकी हैं इसका भाव यह है कि शाका १०१३ में त्रिभुवनमल्ल विक्रमादिस द्वि० के अफसरने एक दान किया। नं० ७ वाई तरफ जो लेख है वह २६ अक्षरोंकी लाइनवाला ३७ लाइनमें है। इसमें कथन है कि विक्रमके ४५ वर्षके राज्यमें शाका १० ४२में किरिया बंकापुरके जैन मंदिरको दान किया गया । ( Ind. Alt: IV. 203 & V 203-5. ) धाडवाड गजटियरमें है कि वंकापुरको शाहाबाजार भी कहते हैं । यह धाडवाडसे ४० मील है। यहां कादम्बोंने १०५० से १२०० तक राज्य किया जो पश्चिमी चालुक्योंके आधीन थे (९७३-११९२)। उस समय यह जैनियोंके महत्वसे पूर्ण था । At that time Bankapur Seems to hve been an important Jain centre with a Jain temple and 5 religious colleges, ___ एक बड़ा जैन मंदिर था ( शायद वही जो रंगस्वामीका मंदिर कहलाता है व जिसमें ६. खंभे हैं ) तथा पांच धार्मिक महाविद्यालय थे । सन् १०९१, ११२० और ११३८ में जैन मंदिरको दान किये गए थे जिसका वर्णन नगरेश्वरके मंदिरके लेखमें है । ये दान पश्चिमके चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वि. (१०७३ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घाइवाड़ जिला। [११७ ११२६) और उसके पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ (११२६-११३८) के राज्यमें हुए थे। यहां ही वंकापुरमें श्री गुणभद्राचार्यने अपना उत्तरपुराण शाका ८२० व सन् ८९ (में पूर्ण किया जब यह वनबासी राज्यकी राज्यधानी थी व यहां राजा अकाल वर्षका सामन्त लोकादित्य राज्य करता था । यह जैन धर्मका भक्त था । श्री गुणभद्रकी गुरुवंशावली इस प्रकार है एलाचार्य वीरसेन विनयसेन जिनसेन दशरथगुरु अमोघवर्षराजा गुणभद्र लोकसेन मंडल पुरुष। श्री जिनसेन बडे भारी आचार्य व कवि व विद्वान थे-जिनसेनने श्री जयधवल टीका शाका ७५९में पूर्ण की तथा पार्धाभ्युदय काव्यको मान्यखडमें राजा अमोघवर्षके राज्यमें पूर्ण किया। इस काव्यको इंग्रेज विद्वानोंने मेघदूत (कालिदासकृत)से बढ़िया लिखा है। Jinasen however claims to be cousidered a higher genius than the author of cloud mense Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । nger (मेघदूत्त) पार्धाभ्युदय is one of the curiosities of sanskrit literature. . श्री जिनसेनके समकालीन राजा इस भांति थे। " (१) राजा अमोघवर्ष-प्रथम (जैनधर्मी) नृपतुंगदेव, सार्वदेव । यह बड़ा विद्वान् था, इसने संस्कृत व कनडीमें अनेक जैन ग्रन्थ बनाए । प्रसिद्ध संस्कृतमें प्रश्नोत्तर रत्नमाला व कनड़ीमें कविराज मार्ग अलंकार ग्रन्थ है । राज्यकाल शाका ७६६ से ७९९ तक है । इनके समयमें ही श्री जिनसेनने शरीर त्यागा । राजा अमोघवर्ष भी अतमें मुनि होगए थे। इसके पीछे ८० ११ वर्ष तक अमोघवर्षके पितृव्य इंद्रराजने फिर अमोघवर्षके पुत्र अकालवर्ष या द्वि० कृष्णने शाका ८११ से (३३ तक राज्य किया यह बड़ा सम्राट था । (२) धाड़वाड़ नगर-नगरके बाहर काली मिट्टीके मैदान नवल गुंडकी पहाड़ी तक पूर्वओर चले गए हैं व उत्तर पूर्व प्रसिद्ध येलम्मा और पारशगढकी पहाड़ी तक (दक्षिण-पूर्वकी तरफ मूलगंडकी पहाड़ी करीब ३६ मील दूर है)। धाड़वाड़के दक्षिण १॥ मील मैलारलिंग नामकी पहाड़ी है। उसकी चोटी पर एक पाषाणका मंदिर जैन ढंगका बना है । खंभे आदि बहुत बड़े भारी पत्थरके हैं तथा उसी पाषाणकी छत बहुत सुन्दर चित्रकलासे अंकित है। एक खण्भेमें फारसीमें लेख है कि इस मंदिरको मसजिदके रूपमें बीजापुर सुलतानने सन् १६८० में बदल दिया। (३) हांगलनगर-धारवाड़से उत्तर ५० मील । यहां ६०० गजके करीब चौड़ा एकटीला है जिसको कुन्तीनाडिव्वा या कुन्तीका Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ ११६ झोपड़ा कहते हैं। यहां यह विश्वास है कि विदेश भ्रमणमें पांडवोंने यहां निवास किया था। इसको शिलालेखोंमें विराटकोट, विराटनगरी, पानुन्गल भी लिखा है । पश्चिमी चालुक्योंके नीचे कादम्ब वंशके राजा यहां सन् १२०० तक राज्य करते थे फिर होयसाल राजा वल्लालने अधिकार जमाया। यहां एक पुराना किला है निममें कई पुराने जीर्ण जैन मंदिर हैं-इनमें शिलालेख भी हैं। एकमें पश्चिमी चालुक्य राजा विक्रमादित्य त्रिभुवनमल्लका लेख है। (४) लाकंडी-ता० गड़गमें एक प्राचीन महत्वका स्थान है। गड़ग शहरसे दक्षिण पूर्व ७ मील। यहां ५० मंदिर व ३५ शिलालेख हैं। ये सब जाखनाचार्यके बनवाए कहे जाते हैं । सबमें पुराना लेख सन् ८६८का है । सन् ११९२में होयसालराजा वल्लाल या वीरवल्लाल (११९२-१२११)ने अपनी राज्यधानी इसी स्थान पर की तब इसका नाम लक्कीगुंडी प्रसिद्ध था। यहीं बल्लालने यादव भिल्लानकी सेनाको हराया जो उसके पुत्र जैतुगीकी सेनापतित्वमें आई थी। ग्राममें दो जैन मंदिर हैं-पश्चिममें सबसे बड़ा है, इसमें बहुत बड़ी बैठे आसन जैन तीर्थकरकी मूर्ति । इससे थोड़ी दूर एक छोटा जीर्ण जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है, इस जैन मंदिरके चारों तरफ बहुतसे जैन मूर्तियोंके खंड पड़े हैं। एक जैन मंदिरमें ११७२का लेख है। बड़ा मंदिर बहत सुन्दर है, शिखर भी पूर्ण रक्षित है । सन् १०७०में चोल राजाने हमला किया था तब यहांके मंदिर व लक्ष्मणेश्वरके मंदिर नष्ट किये गए थे किन्तु फिरसे दुरुस्त किये गए थे। इस जैन मंदिरमें शिल्पकला बहुत सुन्दर है ऐसा फर्गुसन साहब कहते हैं। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm १२०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (५) मूलगुंड नगर-गडगसे दक्षिण पश्चिम १२ मील । यहां ४ जैन मंदिर हैं। जिनमें ३ के नाम हैं-श्री चन्द्रप्रभु श्री पार्श्वनाथ, हीरी मंदिर । हीरी मंदिरमें दो शिलालेख हैं। एक सन् १२७५ का है । चौथे जैन मंदिरमें दो लेख सन् ९०२ और १०५३ के हैं। यह स्थान वेन्तूरसे दक्षिण पूर्व ४ मील है । गड़गका पुराना नाम क्रतुक है । चंद्रनाथके जैन मंदिरकी भीतें बाहरसे देखनेयोग्य हैं। यहां ७ शिलालेख हैं (१) चंद्रनाथ मंदिरमें शाका ११९७ का । इसमें मूलगुंडके राजा मदरसाकी स्त्री भामत्तीकी मृत्युका वर्णन है । (२) इसी मंदिरके एक खंभे पर शाका १५९७ का है । (३) यहीं शाका ८२५का है । राष्ट्रकूट राजा कृष्णवल्लभके राज्यमें चंद्रार्य वैश्यने मूलगुंडमें एक जैन मंदिर बनवाया व भूमि दान की। इस मंदिरके पीछे एक बहुत बडी पहाड़ी चट्टान है, उसपर २५ फुट लम्बी एक मूर्ति पूर्ण कोरी गई है व लेख है जो कुछ मिट गया है । (४) वहीं एक पाषाण है उसमें छोटा लेख है । (५) एक जैन मंदिरकी भीत पर शाका ८२४का लेख है । (६) दूसरे जैन मंदिरमें शाका ९७५का है। (७) हीरी मंदिरमें शाका ११९७का है। मूलगुंडमें एक शिलालेख पर यह वर्णन है श्री चंद्रप्रभुको नमस्कार हो-चीकारी जिसने जैन मंदिर बनवाया था उसके पुत्र नागार्यके छोटे भ्राता आसार्याने दान किया। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला । [ १२१ यह आसा नीति और धर्मशास्त्रमें बड़ा विद्वान था इसने नगरके व्यापारियोंकी सम्मतिसे १००० पानके वृक्षोंके खेतको सेनवंशके आचार्य कनकसेनकी सेवामें मंदिरोंके लिये दान किया । यह कनकसेन मीरव व वीरसेनका शिष्य था । यह वीरसेनजी पूज्यपाद कुमारसेनाचार्यके संघके साधुओंके गुरु थे । (६) नारैगल नगर - ता० ऐन । धाडवाडसे पूर्व ५५ मील । यह प्राचीन नगर है । मंदिर हैं व लेख १२ से १३ शताब्दीके हैं । (७) रत्तीहल्ली - ग्राम ता० कोड- यहांसे दक्षिण पूर्व १० मील ३६ खंभोंका मंदिर जखनाचार्यके ढंगका है। यहां ७ शिलालेख ११७४ से १५५० तकके हैं, एक ध्वंश किला है। (८) रोननगर - धाड़वाड़ से ५५ मील । यहां सात काले पाषाणके मंदिर हैं एकमें लेख १९८० के अनुमानका है। (९) शिरगांव - ता० बंकापुर - यहां वासप्पा और कलमेश्वरके मंदिरोंमें १० शिलालेख हैं । (१०) अमिनभवी - धाड़वाड़से उत्तर पूर्व ७ मील। यहां ग्रामके उत्तरमें एक प्राचीन जैन मंदिर श्री नेमिनाथजीका बहुत बड़ा है। ४० गज लम्बा है, बहुतसे खंभे हैं। यहां तीन शिलालेख हैं । (११) हेव्बल्ली - धाड़वाड़ के उत्तर ८ मील पूर्व-व्यारहट्टीसे ५ मील । यहां गांवके दक्षिण संभूलिंगका मंदिर है जिनमें जैन रीतिका शिल्प है । यह करीब ५७ फुट लम्बा है । (१२) चब्बी-हुबलीसे दक्षिण ८ मील - इसका प्राचीन नाम सोभनपुर था । यह प्राचीनकालमें जैन राजाकी राज्यधानी था। उस समय यहां सात जैन मंदिर थे जिनमें अब ग्रामके मध्य में Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । एक रह गया है। विजयनगरके राजाओंने इसकी उन्नति की थी। तथा कृष्णराजा (सन् १९०९-१५२९) ने यहां और हुबलीमें किला बनवाया । इस छव्वीका वर्णन सबसे पहले यहांसे उत्तर ४ मील आदरगुंचीके एक पाषाणमें आया है जिसमें लेख सन् ९७१ का है। जिसमें एक दानका वर्णन आया है जो छन्वी (३०) के अधिपति पांचलने किया था। ( Ind. Antiquary XII 255. ) (१३) आदरगुंची-छव्वीसे उत्तर ४ मील | यहां एक बड़ी जैन मूर्ति व शिलालेख है। ___ (१४) हुबली-यहां एक जीर्ण जैन मंदिर है । जिसका फोटो Dharwar and Mysor architeture नामकी पुस्तकमें दिया है। (१५) सोरातुर-सिरहट्टीसे पूर्व उत्तर २ मील व मूलगुंडसे पूर्वदक्षिण ६ मील । यहां एक जैन मंदिरमें शिलालेख शाका ९९३ का है। ( Ind. Ant. XII 256). (१६) अरतलू-ता० वंकापुर-शिग्गांवके पश्चिम ६ मील । * यहां १ जैन मंदिर है जो सन् ११२०के अनुमान बना था। (१७) कल्लुकेरी-हांगलसे दक्षिण पूर्व १२ मील व तिलिवल्लीसे पूर्व ६ मील । यहां वासरेश्वरका मंदिर जैन ढंगका है । भीतोंपर मूर्तियां व शिल्प दर्शनीय है। (१८) यलवत्ती-नीदसिंगीसे दक्षिण १॥ मील । यहां पुराना जैन मंदिर है। भीतपर नक्काशी हैं। एक मूर्ति विना बनी पड़ी है। Amummunita Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [१२३ (१९) कर गुद्री कोप-हांगलसे ५ मील । नारायणके मंदिरके दक्षिण या ग्रामके पश्चिम एक संरक्षित कादम्ब वंशावलीको पूर्ण दिखानेवाला शिलालेख १०३० का है। (२०) मुत्तूर-तडससे पश्चिम ३ मील । यहां जैन ढंगका मादेर है। (२१) भैरवगढ़-हैतुरसे उत्तर, तुङ्गभद्रा नदीपर । रत्तीहल्लीसे १० मील दक्षिण पूर्व इसका प्राचीन नाम सिंधुनगर था । यह सिंधुवल्लाल वंशकी राज्यधानी था जिनका कुलदेवता भैरव था ( नोट-यहां जैनस्मारक मिल सक्ते हैं ) । (२२) लक्ष्यमेश्वर-शिग्गांवसे उत्तर पूर्व २१ मील व करजगीसे उत्तर २० मील, इसका प्राचीन नाम पुलिकेरी है। यहां बडे महत्वके मंदिरोंका समूह है। जिनमें मुख्य है। (१) संखवस्ती-यह प्राचीन जैन मंदिर है । नगरके मध्यमें ३६ खंभोंसे छत थंभी हुई है । (२) हलवस्ती यह छोटा जैन मंदिर है । संख वस्तीमें ६ लेख हैं। ( Ind. Ant. VII. P. 10 111 ). इन लेखोंका कुछ भाव यह है। लक्ष्मेश्वरके संखवस्तीके लेखोंका वर्णन(१) एक पाषाण ५ फुट ऊंचा २ फुट चौड़ा है इसमें पुरानी कनड़ीमें ८२ लाइन है। दशवीं शताब्दीका लेख है। इसमें तीन भिन्न २ लेख हैं। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A NNA १२४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नं० १-५१ लाईन तक है। गंगवंशीय मारसिंहदेव सत्त्यवाक्य कोंगनीवर्मा अर्थात् गंगकदर्पने शाका ८९० में विभवसंवत्सरमें जैन गुरु जयदेवके पुलिगेरी (लक्ष्मेश्वरका पुराना नाम) शहरके भीतरकी कुछ जमीने राजा गंगकंदर्प (स्वयं) द्वारा निर्मित या जीर्णोद्धारित श्री जिनेन्द्रके जैन मन्दिरकी सेवाके लिये दीं। वंशावली इस तरह दी है माधव कोंगनीवर्मा या माधव प्रथम माधव द्वि० मारसिंह हरिवर्मा नं० २-५१ लासे ६१ तक-सेन्द्र वंशका लेख । इस लेखमें चालुक्य राजा रणपराक्रमांक और उसके पुत्र एरय्याका वर्णन है। तब राजा सत्त्याश्रयका कथन है फिर राजा सत्याश्रयका समकालीन राजा दुर्गाशक्ति था। जो भुजेन्द्र या नागवंशकी शाखा सेन्द्रवंशमें प्रसिद्ध विनयशक्तिके पुत्र कुन्दशक्तिका पुत्र था । . राजा दुर्गाशक्तिने जिनेन्द्रके मंदिरके लिये पुलिगेरीमें भूमिदान दी। नं० ३-६१से अन्ततक-यह पश्चिमीय चालुक्य वंशीय विक्रमादित्य द्वि० (शाका ६५६) का लेख है जो इसने रक्तपुर अपने विनयस्थलसे प्रसिद्ध किया । इसमें कथन है कि पुलिगेरीके संखतीर्थ वस्तीका जीर्णोद्धार कराया व जिनपूजाके लिये कुछ भूमि दान की। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घोड़वाड़ जिला। [ १२५ नोट-पहले भागमें कथन है कि देवगणके सिद्धांत परगामी श्री देवेन्द्र भट्टारकके शिष्य मुनि एकदेवके शिष्य जयदेव पंडितको दान किया। नं० तीसरेमें है कि-मूलसंघ देवगणके श्री रामचंद्र आचार्यके शिष्य श्री विजयदेव पंडिताचार्यको दान किया गया जो जयदेव पंडितकें गृहशिष्य थे । (२३) आदर-हांगलसे पूर्व १० मील । यहां एक शिलालेख संस्कृतमें छठे चालुक्यराजा कीर्तिवर्मा प्रथम (सन् ५६७) का है जिसने जैन मंदिरको दान किया था। चौथा शिलालेख तेरहवें राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वि० (सन् ८७५ से ९११) या अकालवर्षका है। जैसा कि लेखमें हैं। इसमें चिलकेतन वंशके महासामंतका वर्णन है जो क्नवासी (१२०००) का स्वामी था । एक शिलालेख सन् १०४ ४ का पश्चिमी चालुक्यराज्य सोमेश्वर प्रथमका है । इनके समयके ४० लेख सन् १०४२ से १०६८ तकके मिले हैं (Flest's Canaxese Dynasty) (२४) दम्बल-गड़गसे दक्षिण पश्चिम १३ मील एक प्राचीन नगर है । दक्षिणमें एक जीर्ण पाषाणका किला है जिसके भीतर एक जीर्ण जैन मंदिर है। (२५) देवगिरि-करजगीसे पश्चिम ६ मील। इसको त्रिपर्वत भी कहते हैं। यहां एक सरोवरको खोदते हुए सन् १८७५७६में कई ताम्रपत्र मिले हैं। ये सब प्राचीन कादम्ब राजाओंके दानपत्र हैं जो पांचवीं शताब्दीके करीब हुए थे। अक्षर पुरानी Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । कनड़ी व भाषा संस्कृत है । एकमें है कि महाराजा कादम्ब श्री कृष्णवर्माके राजकुमार पुत्र देववर्माने जैन मंदिरके लिये एक खेत दिया। इसमें यापनीय संघका वर्णन है और है कि श्री कृष्ण कादम्ब वंशका शिरोमणी था तथा युद्धका प्रेमी था । दूसरा लेख कहता है कि काकुष्ठ वंशी श्री शांतिवर्मा के पुत्र कादम्ब महाराज मृगेश्वर वर्माने अपने राज्यके तीसरे वर्ष कार्तिक वदी १० को परलूराके एक जैन मंदिरके लिये खेत दिये । यह दान वैजयन्ती या वनवासीमें किया गया। तीसरा ताम्रपत्र कहता है कि इमी मगेश्वर वर्माने जैन मंदिरों और निग्रन्थ तथा श्वेतपट दो जैन जातियोंके व्यवहारके लिये एक काल वंग नामका ग्राम अर्पण किया। ( Ind. Ant. VII 33 34) (२६) हत्तीमत्तर-करजगीसे उत्तर ५ मील । यहां एक पाषाण मिला है। पुरानी कनडीमें लेख है। आठवें राष्ट्रकूट राजा इन्द्र चौथे या नित्त्य वर्ष प्रथमके राज्य सन् ९१६ (शा० ८३८) में शायद जैन संस्थाके लिये महा सामन्त लेन्देयरारने कच्छवर कादम्बका वुटवर ग्राम दान किया। यह सामन्त पुरीगेरी या लक्षमेश्वर ३०० का स्वामी व पल्टिय मल्टयूरका महानन था। यह इस ग्रामका पुराना नाम था । (२७) निदगुन्डी-बंकापुरसे पश्चिम ५ मील । यहां ५ शिलालेख हैं । उनमें से एक चौथे गष्ट्रकूट राना अमोघवर्ष प्रथम (८५१-८७७) के राज्यमें उसके आधीन चिलकेतन वंशके वंकेरायोंके आधीन वनवासी (१२०००), वेलवाला ( ३००) Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [१२७ कुन्दूर (६००), पुरीगेरी या लक्ष्मेश्वर ३०० तथा कुन्दरगी (७०) का आधिपत्य था। (२८) आरटाल-तहसील बंकापुर-हुबलीसे २४ मील । यहां जंगलमें एक प्राचीन पाषाणका मंदिर श्री पार्श्वनाथ स्वामीका है । मूर्ति बड़ी कायोत्सर्ग है । प्राचीन कनड़ीमें शिला लेख है । शाका १ ० ४५में मंदिर बना सत्याश्रय कुल तिलक चालुक्य रानम् भुवनैकमल्लविजय राज्ये । (दि. जैन डाइरेक्टरी, नकल लेख भी दी है) (२९) मुन्दी-ता० रोन यहां जैन मंदिरके सम्बन्धमें एक शिलालेख है जो (IFleet's Canarese Dynasty ). में दिया है । उसका सार यह है कि इस लेखमें पश्चिमीय गंगवंशी राजकुमार बुटुगका वर्णन है । जिसने आतकर-के शिलालेखके अनुसार चोल राजा दित्यको उम युद्धमें मारा था जो दित्त्यसे और राष्ट्रकूट राजा कृष्ण हि० से करीब सन् ९४९ में हुआ था । इस लेखमें भूमिदान उस जैन मंदिरको है निसको उसकी स्त्री दिवलम्बाने सुन्दीके स्थापित किया था। यह राजा बुटुग ९६००० ग्रामोंके गंग मन्डलपर राज्य करता था । पुरिकरमें राज्यधानी थी। शाका ८६० कार्तिक सुदी (को इसने जो कि श्रीमान् नागदेव पंडितका शिप्य था ६० निवर्तन भूमि अपनी स्त्री दिवलम्बाके बनाए हुए चैत्यालयके लिये दी। इस स्त्रीने छः आर्यिकाओंका समाधिमरण कराया था तथा इस प्रसिद्ध जैन मंदिरको बनवाया था। यह लेख संस्कृतमें है। वंशावली नीचे प्रकार है वंशक्ष पश्चिम गंगराजा। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८] मुंबईप्रान्तके प्राचोन जैन स्मारक । (१) जान्हवी वंश कान्वायन गोत्रीय प्रसिद्ध कोगुणी वर्मन् माधव प्रथम-जिसने दत्तकसूत्रपर टीका लिखी है। हरिवर्मन् विष्णुगोप माधव द्वि० परमेश्वर या अविनीति-यह माधवकी बहनका | लड़का कादम्बवंशीय कृष्ण वर्मनका | पुत्र था। विनीत-किरातार्जुनीयके १५ अध्यायोंका कता। मुश्कर श्रीविक्रम भूविक्रम शिवमार श्री पुरुषकोंगुणी वर्मन् शिवमार सैगोत्तकों गुणी वर्मन विनयदित्य Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [१२६ विनय दित्य राजमल्ल सत्यवाक्य कोंगुणी वर्मन् । एरगंग नीतिमार्ग कोगुणी वर्मन् राजमल्ल सत्य वाक्यकों गुणदत्तरंग बुटुग (इसने पल्लव राजाको लूटा व अमोघ वर्षकी कन्या अव्वलब्बा व्याही) कुमार वेदेंग-एरगंग नीतिमार्ग कोंगुणी वर्मन् (सने पल्लवोंको जंतिप्पेरुपे रु पर हराया) वीर वेदेंग नरसिंह सत्यवाक्य कोंगु० कच्छेयगंग राजमार जयदत्तरंग, गंगगांगेय, गंगनारायण, नीतिमार्ग को बुटुग, सत्यनीति वाक्य को० ____ सन् ९३८ में इसकी स्त्री दिवलम्बा थी। इसी वुटुगने तंजापुर घेर लिया था और ाजा दित्यको जीता था । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२४) उत्तर कनड़ा जिला । उसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें बेलगाम, पूर्व धारवाड़, मैसूर; दक्षिण में मदरास प्रांतीय दक्षिण कनड़, पश्चिममें अरब समुद्र ७६ मील रह जाता है । उत्तर-पश्चिम गोआ । यहां ३९४५ वर्ग मील भूमि है । शरवती नदी - होनावरसे पूर्व ३५ मीलके करीब ८२५ फुट ऊंची चट्टान के ऊपरसे गिरती है । यही प्रसिद्ध जरसोप्पा फाल Gorsoppa Fall कहलाता है । १३० ] इतिहास - यहां सन् ई० के पहले तीसरी शताब्दी में राजा अशोकने बनवासीको अपना दूत भेजा था। यहां जो बहुतसे शिलालेख मिले हैं उनसे प्रगट है कि यहां वनवास के कादम्बोंने, फिर राहोंने फिर पश्चिमीय चालुक्योंने फिर यादवने क्रमसे राज्य किया । यह बहुत काल तक जैन धर्मका दृढ़ स्थान रह चुका है। It was for long a stronghold of Jain religion. सन् १६०० में यह विजयनगरके राजाओंके आधीन था। पुरातत्व - इस जिलेमें विशेष महत्वके स्थान वनवासी जरसप्पा, और भटकलके जैन मंदिर हैं । वनवासीका मंदिर जिसके लिये यह प्रसिद्ध है कि यह जाखनाचार्यका बनाया हुआ है, बहुत बड़ा है। इसमें बहुत सुन्दर मूर्तियां च चित्रादि कोरे हुए हैं । इसके आंगन में एक खुला पत्थर पड़ा है जिसमें दूसरी शताब्दीका लेख है । वर्तमान जरसप्पा नगरके पास नगर वस्तीकेरी में कई जैन मंदिर हैं जो इस बातको बताते हैं कि यह एक पुराना नगर था । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [ १३१ यद्यपि समयके फेरसे ये बहुत नष्ट होगए हैं, परन्तु इनमें २३ वें और २४ वें तीर्थंकरोंकी मूर्तियां अभीतक ठीक हैं । बड़े सुन्दर कृष्ण पाषाणकी हैं। भटकलमें अभी तक १४ जैन मंदिर मौजूद हैं जो पंद्रहवीं शताब्दीमें प्रसिद्ध चन्नभैखदेवीके राज्यके समयसे हैं। भटकल-जरसप्पा और वनवासीमें बहुत लेख कनड़ी भाषामें पाए गए हैं:... मुख्य स्थान। (१) बनवासी ( बनवासी ) ग्राम तालु० सिरसी, बरदा नदीके तटपर, सिरसीसे. १४ मील । यह प्राचीनकालमें बड़े महत्वका स्थान था। यहां कादम्ब राजाओंकी राज्यधानी रह चुकी है। जो जैन मंदिर पश्चिमकी तरफ बड़ा है उसमें १२ शिलालेख दूसरी शताब्दीसे १७वीं शताब्दी तकके हैं। Ftolemy टोलमी ने इसका वर्णन किया है । सन् ई० से तीसरी शताब्दी पहले बौड पुस्तकोंमें भी इसका नाम आया है । बनवासी (१२०००) को तेरहवीं शताब्दीमें देवगिरि यादवोंने ले लिया । इसका प्राचीन नाम जयन्तीपुर था। पांचवीं शताब्दीमें कादम्ब वंशका राजा मयूरकर्मा बहुत प्रसिद्ध हुआ । उसने चालुक्य राजाओंसे मित्रता कर ली थी। सन् १०७५ में यह जिला भुवनैकमल्लके सेनापति उदयंदिसके आधीन था, उस समय विक्रमादित्यने १०७६ में उसपर अधिकार किया। इसने इस निलेको अपने भाई जयसिंहको दे दिया। उसने झगड़ा किया तब यह जिला वर्मदेवको दिया गया तथा ११५७ में कलचूरी लोगोंने चालुक्योंका विरोध किया तब चालुक्योंने अपना . Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । अधिकार स्थिर रक्खा यहां बहुतसे शिलालेख विभु विक्रम धवलपरमादिदेव तथा कादम्ब सर्दार कीर्तिवर्मदेव शाका ९९० के हैं । ( India Antiquary IV Vol 205-6 ) भटकल या सुसगडी या मणिपुर - यह एक नगर तालुका होनावर में हैं जो होनावरसे २४ मील दक्षिण हैं, यह एक नदीके मुख पर बसा है जो अरब समुद्र में गिरती है। कारवार से दक्षिण पूर्व ६४ मील है । चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दिमें यह व्यापारका स्थान था । कप्तान हौमिलटन (१६९० से १७२०) के कहने के अनुसार यहां एक भारी नगरके अवशेष थे । तथा १८ वीं शताब्दिके प्रारंभ में यहां बहुतसे जैन और ब्राह्मणोंके मंदिर थे । उन मंदिरोंमेंसे जानने योग्य महत्वके जैन मंदिर नीचे भांति हैं । जैन मंदिरोंकी रचना बहुत प्राचीन काल की है। उनमें अग्रसाला है, मंदिर है, ध्वजा स्तंभ है । (१) जत्तपा नायक चंद्रनाथेश्वर वस्ती - यह यहां सबसे बड़ा जैन मंदिर है । एक एक खुले मैदानमें हैं। चारों तरफ पुराना कोट है । इसमें अग्रसाला, भोगमंडप तथा खास मंदिर है । मंदिर में दो खन हैं। हरएक खनमें तीन २ कमरे हैं, जिनमें श्री अरह, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि तथा पार्श्वनाथकी मूर्तियां हैं। परन्तु ये सब प्रायः खंडित हैं । इस मंदिरके पश्चिम भोगमण्डपकी दीवालों में सुन्दर खिडकियां लगी हैं । अग्रशालाका मंदिर भी दो खनका है हरएक दो कमरे हैं जिनमें श्री ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, तथा चद्रनाथेश्वरकी प्रतिमाएं हैं । द्वारपर द्वारपाल भी हैं । इसकी कुल लंबाई ११२ फुट है, आगे मंदिरकी चौड़ाई Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [१३३ ४० फुट है। तथा भीतर मंदिरकी चौडाई ५० फुट है। ध्वजा दंड-एक बहुत सुन्दर स्तंभ है जो १४ वर्ग फुट चबूतरेपर खडा है । इसका स्तंभ एक पाषाणका २१ फुट ऊंचा है ऊपर चौकोर गुंबज है । वस्तीसे पीछे एक छोटा स्तंभ है जिसको यक्ष ब्रह्म खंभा कहते हैं । इसका खंभा १९ फुट लम्बा है। यह एक चबूतरेपर हैं जिसके ऊपर चार कोनेमें चार छोटे खंभे हैं उनपर आले हैं । जत्तपा नायकने इस मंदिरकी रक्षाके लिये बहुतसी जमीनें दी थीं परन्तु उनको टीपू सुलतानने लेलिया । यह मंदिर भटकलमें सबसे सुन्दर पुराना मंदिर है तथा इसकी रक्षा अच्छी तरह करनी चाहिये । ग्रामवाले अपनी मरज़ीसे यहांके सुन्दर पाषाणोंको उठा ले जाते हैं । (२) श्री पार्श्वनाथ बस्ती-५८ फुट लम्बी व १८ फुट चौडी है । शिलालेखके अनुसार यह शाका १४६५ में बना था । ध्वना स्तंभ-एक ऊंचे टीले पर सुन्दर स्तंभ है । ऊपर एक छोटा मंडप है जिसमें चौतरफ मूर्तियां हैं। (३) शांतेश्वर बस्ती-यह करीब २ चंद्रेश्वर बस्तीके समान है। ___ तथा थेतवाल नारायण देवस्थान जो सुन्दर कारीगरीके साथ काले पाषाणका बना है तथा शांतप्पा नायक तिरुमल देवस्थान और रघुनाथ देवस्थान भी देखने योग्य है । यहां बहुतसे शिलालेख हैं जैसे (१) चन्द्रनाभ बस्तीमें ७० लाइनका, (२) वहीं ७९ लाइनका, इसके पीछे ६३ लाइनका, ता० १४७९ नल संवत्सर, (३) इसीके आंगनके दक्षिण पूर्वकोने में जिसमें जैन चिन्ह हैं, (४) पार्श्वनाथ बस्तीमें शाका १४६८ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । विश्ववसु संवत्सर, (५) उसीमें, (६) उसीमें शा० १४६५ प्लव सं०, (७-८) उसीके पीछे, (९) शांतेश्वर मंदिरके आंगन में इसमें बहुत सुन्दर विराट क्षेत्रपाल अंकित हैं ऊपर लेख शा० १४६५, (१०) एक छोटा, (११) वहीं दो पत्थर बड़े जो दव गए हैं, (१८) चतुर्मुख बम्तीमें जिसके पत्थरोंको गांववाले उठा ले गए हैं। एक झाड़ीमें एक सुन्दर बडा शासन है जिनमें जैन चिन्ह हैं, (१९) उसीके पास भाट कलसे दक्षिण पश्चिम आध मीलपर एक पाषाणका पुल है जिसको जैन राजकुमारी चन्नभैरवदेवीने १४५० में बनवाया था । पहाडीके ऊपर एक रोशनी घर है जो ८ मीलसे दिखता है। (३) चितकुल-ग्राम ता० कारबार। यहांसे उत्तर ४ मील यह समुद्र तटपर है । एक बड़ा स्थान रह चुका है। इसका नाम सिंधपुर, चिंतपुर, सिंतबुर सिंतकुल, सिंतकोरस, चित्तीकुल, चितिकुल भी प्रसिद्ध हैं। अरब यात्री मसौदी (९०० के लगभग)से लेकर इंग्रेज भूगोल वेत्ता ओगिलवी (१६६० के लगभग) तक इसका वर्णन करते हैं । ( यहां जैन चिन्होंको तलाश करना चाहिये )। (४) जरसप्पा नाम-तालु० होनावर । यहांसे पूर्व १८ मील शरावती नदीपर । जरसप्पा झरनेसे भी इतनी दूर है। इस ग्रामसे १॥ मील नगरवस्तीकेरीके बहुत बड़े जीर्ण मकान हैं । यह जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९-१६१०) का राज्य स्थान था । स्थानीय लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि अपने महत्वके दिनोंमें यहां १ एक लाख घर तथा ८४ चौरासी मंदिर थे। सबसे बड़े महत्वका मंदिर एक चौमुखा जैन मंदिर है जिसके चार द्वार हैं Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला । [ १३५ व उनमें चार प्रतिमाएं हैं। पांच और जीर्ण जैन मंदिर हैं जिनमें मूर्तियें व शिलालेख हैं । श्री वर्द्धमान या महावीरस्वामीके मंदिरमें एक सुन्दर कृष्ण पाषाणकी मूर्ति श्री महावीरस्वामी चौबीसवें तीर्थंकरकी है । इसमें ४ शिलालेख हैं । यह किम्वदन्ती है के विजयनगरके राजाओं (१३३६-१९६१) ने जरसप्पाके जैन वंशको कनड़ामें उन्नत किया । बुचानन साहब कहते हैं कि हरिहर के वंशके राजा प्रतापदेवराय त्रिलोचियाकी आज्ञासे जरसप्पाके सरदार इचप्पा बौदियारु प्रतिनीने सन् १४०९ में मनकीके पास गुणवंतीके जैन मंदिरको दान किया था । इचप्पा सरदारकी पोती विजयनगर राजाओंसे करीब २ स्वतंत्र हो गई । तबसे यहांका राजत्व प्रायः स्त्रियों के हाथमें रहा है, क्योंकि करीब २ सर्व ही १६ वीं व १७ वीं शताब्दीके प्रथम भागके लेखक जरसप्पा या भटकल की महारानीका नाम लेते हैं । १७ वीं शताब्दीके शुरू में जरसप्पाकी अंतिम महारानी भैरवदेवी पर वेदनूरके राजा वेंकटप्पा नायकने हमला किया और हरा दिया । स्थानीय समाचारके अनुसार वह सन् १६०८ में मरी । सन् १६२३ में इटलीका यात्री डेलावैले Dellavalle इस स्थानको प्रसिद्ध नगर लिखता है । तथा उस समय नगर व राजमहल ध्वंश हो गया था, उनपर वृक्ष उग आए थे । यह नगर काली मिर्च pepper के लिये इतना प्रसिद्ध था कि पुर्तगालोंने जरसप्पाकी रानीको "Rainbada Pirnanta' अर्थात् pepper queen लिखा है । ऊपर लिखित चर्तुमुख मंदिरका विशेष वर्णन यह है कि यह बाहरके द्वारसे भीतरके द्वारतक ६३ फुट लम्बा है। मंदिर २२ फुट Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वर्ग है । बाहर २४ फुट है। चार बडे मोटे गोल खंभे हैं, उनपर टांडें लटक रही हैं । मंडप व मंदिरके द्वारोंपर हरतरफ द्वारपाल मुकुट सहित हैं। भूरे पाषाणका मंदिर है। इसके शिषरके पाषाणोंको होनावरके मामलतदारने दूसरे मंदिरमें ले लिया है । यहां नेमिनाथका मंदिर भी अच्छा है । मूर्ति बडी सुंदर व बडी अवगाहना की है। आसन गोल है। उसके पीछे शिल्पकारी अच्छी है आसनके किनारे कनड़ी अक्षरों में दो श्लोक हैं। श्री पार्श्वनाथके मंदिरमें बहुतसी मूर्तियां दूसरे मंदिरसे लाई गई हैं। उनमें एक पांच धातुकी बड़ी ही मुन्दर है। इसके पश्चिम एक बड़ा पाषाणका मकान है उसमें १२ दि. जैन मूर्तियें खड़गासन विराजमान हैं। कांदेवस्तीके मंदिरमें छत नहीं रही परंतु कृष्णवर्ण १पार्श्वनाथकी मूर्ति ४। फुट ऊंची है उस पर शेषफण बहुत ही सुन्दर कारीगरीके हैं। __ शिलालेखोंका वर्णन-श्री वर्द्धमान स्वामीके मंदिरमें (१) पाषाण ६ फुट ऊपर जिनमूर्ति है, दो पूजक हैं । नीचे गाय व बछडा है व लम्बा लेख है, (२) १ पाषाण ४ फुट लंबा ऊपर श्री जिनेन्द्र चमरेन्द्र सहित, बीचमें दो समुदाय पूनकोके हैं। हर तरफ १ ऊंची चौकी है।नीचे हर तरफ स्त्रियां पूजक हैं। वैसी ही चौकी है । (३) १ पाषाण ५ फुट लंबा दूसरेके समान करीब २ (४) मंदिरके पीछे भूमिमें दबी श्री पार्श्वनाथ मंदिरके पूर्वकोंनेमें तीन पाषाण खुदे हुए उपरके समान हैं। कादेवस्तीकी भीतके बाहर एक लेख ४ फुटका है । जरसप्पासे घाटकी तरफ जाते हुए ५ या ६ मीलपर एक Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [१३७ पुराना कनड़ी शिलालेख है जो सड़क किनारे खड़ा है। (५) मनकी-ग्राम, ता० होनावर, यहां बहुतसे जैन मंदिरोंके अवशेष हैं जो इस बातको बताते हैं कि किसी समय यहां जौनयोंका बडा जोर था ! बहुतसे शिलालेखोंसे यहांका महत्व झलक रहा है। (६) सोनडा-ग्राम, ता० सिरसी, यहांसे उत्तर १० मील यहांका पुराना किला बडे महत्वका है। यहां स्मार्त, वैष्णव और जैनके मठ हैं। सोंडाके राजा विजय नगरके राजाओंकी शाखा थी जो सोंडामें (१९७०-८०)में वसे। सोंडा प्टेशनसे ३ मील पश्चिम त्रिविक्रमका मंदिर है। सामने लम्बा ध्वजास्तंभ है। यह बात प्रसिद्ध है कि दक्षिण कनड़ाके उड़पी मठके आठ साधुओंमेसे एक श्री वादिराज स्वामी बड़े प्रसिद्ध थे-उन्होंने अपने तपके बलसे नारायण भूतकी सहायतासे इस मंदिरको बद्रिकाश्रमसे सोंडामें उठा मंगाया और आप स्वयं उसमें स्थापित होगए । उनका नाम त्रिविक्रम देव हुआ। (नोट-यह वादिराजस्वामी अवश्य जैनाचार्य विदित होते है। इस मंदिरको देखकर इस कथाका भाव समझना चाहिये। सं०) यहां जैनियोंका मठ आठवीं शताब्दीका है । एक पुराने आदीश्वर भगवानके जैन मंदिरमें बहुत ही पुराना शिलालेख है। इसमें यह लेख है कि राजा इमोदी सदाशिवरायने शाका ७२२ व सन् ७९९ में दान दिया। दूसरा लेख सन् ८०४का जैन मठमें था । जो चामुंडराय राजाके राज्यका था, जो चामुंडराय दक्षिणके सब राजाओंका मुख्य था। यह एक जैन राजा था। दानपत्रमें Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लेख है कि इस राजा पुरुषाओंने अर्थात् सदाशिव और वल्लालने बौद्धों को परास्त किया । तीसरा लेख सन् १९९८ का जैन मठमें सुद्धिपुर के सदाशिव राजाका है । (७) उलवी - ग्राम ता० हलियल । यहां बहुत प्राचीनकालके कुछ मंदिर हैं । (८) विदरकन्नी या वेदकरनी - विलगी से सिद्धापुरको जाते हुए सड़कपर एक छोटा जैन मंदिर है जिसमें बहुतसे पाषाण नकाशीके हैं । (९) विलगी - सिद्धपुरसे पश्चिम पांच मील | यहां महत्वकी वस्तु श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार सन् १६५० में राझप्पराजाके पुत्र जैनकुमार घंटेवादियाने कराया था । इसमें श्री नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और श्री महावीरजी की मूर्तियें स्थापित कीं । यह मंदिर बहुत बढ़िया नक्काशीका है । तथा द्राविडी ढंगका है। जैसा पश्चिम मैसूरके हलेविड या द्वार समुद्र में होयसाल वल्लाल मंदिर विष्णुका है । दो शिलालेखों में वर्णन है कि नौ ग्राम तथा चावल दान किये गए । विलगीका प्राचीन नाम श्वेतपुर था। ऐसा कहा जाता है कि इसको जैन राजा नरसिंहके पुत्रने स्थापित किया था जो विलगीसे पूर्व ४ मील होसूरमें १५९३ के अनुमान राज्य करता था । कहते हैं श्री पार्श्वनाथ मंदिरको नगर वसानेवाले जैन राजाने बनाया था । श्री पार्श्वनाथ मंदिरके द्वारके भीतर दो बड़े शिलालेख ६ फुट शाका १५१० व ६ || फुट शाका १९५० के हैं । (१०) हादवल्ली - भटकलसे उत्तर पूर्व मील। यहां ११ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। { १३६ पुराने मकानोंके ध्वंश हैं। पहले यह बड़ा समृद्धिशाली जैन नगर था। यहां तीन जैन मंदिर भटकलके समान हैं उनमेंसे दोतो ग्राममें हैं व एक चन्द्रगिरि पर्वतपर जीर्ण है। (११) होनावर-एक व्यापारका प्राचीन स्थान । यह शिरावती या जरसप्पा नदीके तटसे दो मील है। यही हनुरुहद्वीप है। जिसका वर्णन पम्प ( ९०२-४३) ने जैन रामायणमें किया है । यूनान लोगोंने इसको नबुरके नामसे कहा है । (१२) कलटीगुडड-एक पर्वत २५०० फुट ऊंचा होनावरसे उत्तर पूर्व १० मील यह स्थान जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९१६१०) के आधिपत्यमें एक महत्व पूर्ण हाविग संस्थान था । (१३) कुम्ता-रूईको जहाजपर लादनेका खास बंदर । यह याद्री नदीसे ३ मील है । यह जैनवंशका मुख्य स्थान था जिनके हाथमें दक्षिण होनावर तक स्थान था । ( Buchanan Mysore and Canara 111 53 ) (१४) मुर्देश्वर-होनावरसे दक्षिण १३ मील । व वैल्लूरसे दक्षिण ३ मील । एक कंदुगिरि नामकी छोटी पहाड़ीपर एक जैन मंदिर है जिसको कहा जाता है कि कैकुरीके जैन राजाओंने बनवाया था। यहां बहुतसे पाषाणोंपर अच्छी नक्कासी बनी हैं । फसली १२२१ में सर्कार इस मंदिरको १४४०) वार्षिक देती थी। यहां ३१ शिलालेख शाका १३३६ और १३८१ के हैं । स्कूलके पश्चिम ५० गजपर १ जैन लेख ५४ लाइनका है हरएकमें ५० अक्षर हैं । बंगलोंसे उत्तर पश्चिम दो मोल एक जीर्ण जैन मंदिर वस्ती मकीके नामसे हैं। यहां बहुत सुन्दर लेख युक्त पाषाण हैं। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ''" (१५) कुलेटार - ता० सिरसी ग्राम, वनवासीसे ९ मील । यहां पुराना जैन मंदिर है । इसमें ४ पाषाण हैं हरएक जिनेन्द्रकी मूर्ति चमरेन्द्र सहित है ऊपर सूर्य और चंद्र है । दो बड़े पाषाणोंमें बहुत लेख हैं । तथा कृष्ण पाषाणकी ४ जैन मूर्तियां हैं नीचे आसनपर लेख हैं । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला | (२५) कोलाबा जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तरमें बम्बई बन्दर, कल्याण । पूर्वमें पश्चिमी घाट, मोर राज्य व पूना, सतारा । दक्षिण पश्चिम रत्नागिरी । पश्चिममें जंजीरा राज्य व अरब समुद्र । [ १४१ यहां २१३१ वर्गमील स्थान है इतिहास - कोलाबा में बड़े महत्वकी बात यह है कि इसका व्यापारी संबंध विदेशी जातियोंसे रहा है । भारतीय समुद्र होकर मार्गथा । इतिहासके पहलेसे अरव और आफ्रिकासे व्यापार था । मिश्र और फैनीशिया (२५०० से ५०० वर्ष सन् ई० से पहले) से मुख्य संबन्ध था । ग्रीक और पैथियन लोगोंके साथ (२०० सन् ई० से पहलेसे २०० सन् तक) मुसल्मान अरबों के साथ मित्रके समान व्यवहार था जो यहां (सन् ७०० - १२००) में आते रहे थे । कोलाबा में सर्वसे पुराने इतिहासके स्थान चिउल, पाल, कोल महाड़के पास, कुड़ा राजपुरीके पास जिनमें पहली शताब्दीकी बुद्ध गुफाएं हैं। कोलाबा में बौद्धोंका बहुत निवास रहा है, उनका महत्व था । चीन यात्री हुइनसांग (६४०) ने यहां चिमोलोके पूर्व कुछ मीलपर राजा अशोकका स्तंभ देखा था (सन् ई० से २२५ वर्ष पहले) । यहां अन्ध्र भृत्योंने भी राज्य किया है । सन् १६० में जब वहां यज्ञश्री या गौतमी पुत्र द्वि० राज्य करते थे तब इनका बहुत प्राबल्य था । शतकर्णी राज्यके नीचे कोन्कनका व्यापार पश्चिमसे बहुत उन्नत पर था जब रोम लोगोंने मिश्रको ले लिया था (सन् ई० से ३० वर्ष पहले ) । टोलिमी, यूनानी भूगोल वेत्ताको ( सन् १३५ -- १५० ) कोंकनका ज्ञान था । कन्हेरी, नाशिक, करली Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । और जुन्नत गुफाओंमें जो यादवोंने दान किये हैं उनसे पता चलता है कि कुछ यूनानी लोग यहां बस गए थे और उन्होंने बौद्धधर्म स्वीकार किया था। (See Hough's chris to anity in India P. 51). पहली शताब्दीमें यूनानी बुद्धिमान डिसमाइस मिश्रसे भारतको व्यापार केन्द्रोंको देखने आया था-अलेकनेंड्रियासे पन्टेनस ईसाई पादरी होकर सन् १३८ में आया था, वह कहता है कि यहां उसने श्रमण (जैन साधु), ब्राह्मण व बौद्ध गुरुओंको देखा जिनको भारतवासी बहुत पूजते थे क्योंकि उनका जीवन पवित्र था। ऐसा भी मालूम होता है कि उस समय भारतवासी अलेक ड्रियामें मए भी थे। सन् ई ० से २०० वर्ष पूर्वसे २०० ई० तक मिश्र निवासी लाल जातिसे तथा भीतर पैथान और टागोरसे बंगालकी खाड़ी व और पूर्वी किनारोंतक खास व्यापार चलता था। जो वस्तु भारतसे भेजी जाती थीं वे ये थीं । भोजन, शक्कर, चावल, कपड़े रुईके, रेशमका सूत, हीरे, पन्ने, मोती, लोहा, सुवर्ण । भारतीय फौलाद (Steel) बहुत प्रसिद्ध था । फारसकी खाड़ीसे पैलमैरातक बहुत व्यापार था । कोंकनके व्यापारियोंने सन् १८७८में बहुतसे सुन्दर मठ बनवाए थे। ये उनकी उदारताके नमूने हैं, गुजरातके क्षत्रप राजाओंमें सबसे बड़े राजा रमनने शतकर्णी लोगोंको दो दफे हराया और उत्तरकोंकण ले लिया-- (Indian Ant: VII 262 ). मसलीपटनके महीन कपड़े बहुत प्रसिद्ध थे। यह बड़ा भारी बाजार था अवीसीनियाकी राज्यधानी अदुलीसे भी व्यापार Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला। [१४३ था। भारतीय जहाज कपड़ा, लोहा, रुई ले जाते थे व वहांसे हाथीदांत व सींग लाते थे। छठी शताब्दीमें मौर्य्य लोग या नल सर्दार राज्य करते थे। चालुक्योंका प्रथम राजा कीर्तिवर्मा (सन् ५५०से ५६७)-जिसने कोंकणमें चढ़ाई की थी-नल और मौर्योंके लिये यमके समान वर्णन किया गया है। कीर्तिवर्माका पोता पुलकेशी द्वि० (६१०--६४०) था । जिसने कोन्कनको विजय किया । इसने लिखा है कि उसका सर्दार चंड-डंड मौर्योको भगानेके लिये समुद्रकी तरंग था (Arch S. R. III 26.) थाना निलेके वाडसे लाए हुए एक लेखयुक्त पाषाण (पांचवी या छट्ठी शताब्दी)से मालूम होता था कि उस समय कोंकणमें सुकेतुवर्मा राज्य कर रहा था । इस चालुक्य सर्दार चंड-दंडने मौर्योकी राज्यधानी पुरी (अज्ञात) पर हमला किया था । यह नगर पश्चिमीय भारतकी लक्ष्मीदेवीका स्थान था। वीस शिलाहारोंने थाना और कोलाबामें सन् ई० ८१० से १२६० तक राज्य किया था। पांचवां राजा झंझा था जिसका वर्णन अरब इतिहासज्ञ ममूदीने लिखा है कि वह सन् ९१६ में चिवलमें राज्य करता था । तथा चौदहवां राजा अनन्तपाल या अनन्तदेव था (सन् १०९६) जिसने दो मंत्रियों की गाड़ियोंपर कर माफ कर दिया था जो चिवल बंदरपर आती थीं। तेरहवीं शताब्दीमें देवगिरिके यादवोंने राज्य किया । सन् १३७७ में विजयनगरके या आनेगुंडीके रानाओंने कोंकणके कुछ बंदर लेलिये । मुसल्मानोंके पहले दक्षिण कोंकण जिसमें वर्तमान कोलाबा है लिंगायतवंशी राजाओंके हाथमें था जिनको कनड़ा राजा कहते थे जिनका मुख्यस्थान आनेगुंडी था। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। मुख्य स्थान । (१) चिवल या रेवडंड-बम्बईसे दक्षिण ३० मील, कुंडलिका नदीके उत्तर तटपर । यह बहुत ही प्राचीन स्थान है। कन्हेरी गुफाओंमें (सन् १३०-५००) में इसका नाम चेमुला लिखा है। हुइनसांगने चिमोलो लिखा है। पौराणिक समयमें - इसको चंपावती या रेवतीक्षेत्र कहते थे । ९१५ में अरब यात्री मसूदीने इसका नाम सैमूर दिया है-उस समय यहां राजा झंझा था। सन् ९४२ में यहांका वर्णन यह प्रसिद्ध है कि यहांके लोग मांस, मत्स्य व अंडे नहीं खाते थे । सन् १३९८ में वहमनी बादशाह फीरोजने यहांसे जहाज दुनियांकी सुन्दर वस्तुओंको लानेके लिये भेजे थे । सन १५८६ में यहां भारतीय तटसे नारियल, मसाले, औषधि, चीन व पुर्तगालसे चन्दन, रेशम आदि तथा यहांसे मलक्का, चीन, उर्मन, पूर्व अफ्रिका, पुर्तगालको लोहा, अन्न, नील, अफीम, रेशम, अनेक प्रकारके रुईके कपड़े, सफेद, रंगीन, छपे हुए भेजे जाते थे। There would seem to have been ( about 1584 A. D.) a strong Jain and Gujrati Wani clement among the merchants of Cheul as Fitch English inan describes, the gentiles as having a very strange order among them. They killed nothing, they ate no flesh, but lived on roots, rice and milk In Cambay they had hospitals to keep lame dogs and cats and for the birds. They would give food to ants ( Fitch in Hakluyt's Voyage 384 ) भावार्थ-सन् १५८४ के अनुमान यहां बहुतसे जैन और गुजराती बनिये व्यापारी थे । जैसे फिच इंग्रेज लिखता है कि जो किसीकी हिंसा नहीं करते थे, वनस्पति, चावल व दूध खाते थे। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला। [१४५ मांस नहीं लेते थे, तथा इन लोगोंमें बहुत आश्चर्यकारक नियम हैं। कंबे (खभात) में इन्होंने लंगडे कुने व बिल्लियोंके लिये व चिड़ियोंके लिये अस्पताल बनादिये थे ये लोग चींटियों तकको भोजन देते थे। फ्रेंच यात्री फॅब्कन पैरर्ड (१६०१-१६०८) ने यहांका हाल देखकर लिखा है ( Bruce's Anal I 125 ) कि यहां बुननेका बहुत बड़ा शिल्प है, बहुत सुन्दर रुईके सुत मिलते हैं। चीनके रेशमसे भी बढ़िया रेशमका सामान बनता है। गोवामें यहांका माल बहुत खपता है । उत्तर पूर्वको बौद्ध गुफाएं हैं । (२) गोरेगांव-मनगांव तटमें बन्दर-दासगांवके उत्तर पश्चिम ६ मील बौद्ध गुफाएं हैं। (३) कुड़ा गुफाएं-मानगांवके उत्तर-पश्चिम १३ मील कुड़ा ग्राम है। राजपुरी तटसे उत्तरपूर्व २ मील । यहां बौद्धोंकी २६ गुफाएं हैं। छठी गुफामें ५ लेख ५वीं या ६ठी शताब्दीके हैं शेष गुफाएं पहली शताब्दी की हैं। सबसे पुरानी गुफा लेख यह है। ___" एक गुफा बनानेका दान किया सिवमाने जो लेखक शिवभूतका छोटाभाई था जो सुलाशदत्तके पुत्रोंमें थे उसकी स्त्री उत्तरदत्ता थी। ये महामोज मान्दव खंडपलीताके सेवक हैं जो महा भोज सदागिरि विजयका पुत्र है । चट्टानपर खुदाई कराई शिवमाकी स्त्री विजयाने और उसके पुत्र सुलासदत, शिवपालिता, शिवदत्त, सपिलने, खभे बनवाए उसकी कन्याओंने सपा, शिवपलिता, शिवदत्ता और सुलासदत्ताने।" (४) महाड-सावित्री नदीके दाहने तटपर, बांकटसे पूर्व ३४ मील । यह दासगांवसे ( मील एक बंदर है । प्राचीन नाम Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । महिकावती है - यहां पाले पहाड़ीपर बौद्ध गुफा है । (५) पाले - महाड़ से २ मील ग्राम । होलिमी ( १४ वें ) ने इसे वाल पाटना लिखा है तथा शिलाहर वंशके १४ वें राजा अनन्तदेव ( सन् १०९४ ) के ताम्रपत्र में इसका नाम वलिपट्टन है, बौद्धगुफाएं हैं । (६) कोल गुफाएं - महाड़ से दक्षिणपूर्व १ मील | यहां भी समूह बौद्धोंकी गुफाओंका है। (७) रायगढ़ - राज्यकिला - प्राचीन नाम रायरी महाड़से उत्तर १६ मील | यह १ पहाड़ी २२५० फुट ऊंची है। शिवाathी राज्यधानी थी । बांडीसे चढ़ने में तीन घंटे लगते हैं । 1 (८) रामधरण पर्वत - अलीबाग में- अलीबागमे उत्तरपूर्व ५ मील | कार्ले पाससे उत्तर । यह पुरानी चट्टान है । गुफाएं १२ खुदी हैं, पता नहीं चलता है, किस धर्मकी हैं । ( नोट- यहां जैनियों को खोजना चाहिये ) कार्ले पाससे पश्चिम सुख पश्चिमकी तरफ से जानेका मार्ग है । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नागिरी जिला | [ १४७ (२६) रत्नागिरी जिला । इसकी चौहद्दी इसप्रकार है- उत्तर में जंजीरा कोलाबा, पूर्वसतारा, कोल्हापुर, दक्षिण - सावतवाड़ी, गोआ । पश्चिम - अरब समुद्र । इतिहास - यहां चिपतून और कोल गुफाएं यह प्रगट करती हैं कि सन ई० से २०० वर्ष पूर्व से ५० सन् ई० तक यहां 'बौद्धोंका जोर था । पीछे यहां चालुक्य राजाओंका बहुत बल रहा । सन् १३१२में मुस० ने कबज़ा किया । मुख्यस्थान | (१) दामल - समुद्रसे ६ मील, बम्बई से दक्षिण पूर्व ८५ मील | अंजनवेल या विशिष्ट नदीके उत्तर तटपर यह बड़ा प्राचीन स्थान है । बहुतसे ध्वंश स्थान हैं। यहां एक चंडिका बाईका मंदिर नीचे भौर में हैं, यह उसी समयका है जिस समय बादामी (बीजापुर जिला ) की गुफाओंके मंदिर बनाए गए थे । बरवार नामका स्थानीय इतिहास है । उसमें कहा है कि ग्यारहवीं शताब्दी में दामल बलवान जैन राजाका स्थान था और एक पाषाणका लेख शालिवाहन १०७८ का पाया गया है। यहांके लोगों का कहना है कि इसका प्राचीन नाम अमरावती था । (२) खारेपाटन - ता० देवगढ़ - इस नगरके मध्य में करनाटक जैनी रहते हैं । एक जैन मंदिर है, मंदिर में एक छोटी पाषाणकी कृष्णमूर्ति है जो एक नदी की खाड़ी में पाई गई थी । राष्ट्रकूट वंशके ताम्रपत्र भी यहां मिले हैं। ( Indian Ant:Val II 321 and IX 33 ). Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । M (२७) सिंध प्रात। उत्तर-बलूचिस्तान, बहावलपुर । पूर्व-राजपूताना राज्य जैसलमेर और जोधपुर। दक्षिण-कच्छखाडी अरब समुद्र । पश्चिम-जामकोलात, बलूचिस्तान । यहां ५३११६ वर्गमील स्थान है। इतिहास-मौर्य राज्यके पीछे यूनानियोंने पआबपर सन् ई० से २०० पूर्व हमला किया । अपोलोदातस व मेनन्दर यूनानियोंने सन् ई० के १०० वर्ष पूर्व तक सिंधुमें राज्य किया । फिर मध्यएसियासे बहुतसे हमले हुए । सफेद हन लोग यहां बस गए और रायवंशको स्थापित किया । अलोर और ब्राह्मणाबादमें दक्षिणमें बौद्धोंका जोर रहा । पुरातत्व-इन्दस नदीकी खाडीमें बहुतसे ध्वंश नगरोंके स्थान हैं जैसे लाहोरी, काकरबुकेरा, समुई, फतहबाग, कोटवांभन, जुन, थरी, वदिनतूर, थर और पारकर जिलेमें विरावह ग्रामके पास पारीनगर नामके एक बड़े महत्वशाली नगरके ध्वंश स्थान हैं । इस नगरको कहा जाता है कि सन् ४५६में बालमीरके जसोपरमारने स्थापित किया था। जिसको मुसल्मानोंने ध्वंश किया ऐसा माना जाता है। इन्हीं ध्वंश स्थानोंमें बहुतसे जैन मंदिरोंके खंड हैं। मुख्यस्थान। (१) भाम्बोर-( करांची जिला ) यह प्राचीन नगर है । प्राचीन नाम देवल है व मंसावर है। यहां जो सिक्के व ध्वंश मिले हैं उनसे प्रगट है कि यह पहले बहुत महत्वका स्थान था। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंध प्रांत । [१४६ थार और पार्कर जिला-उत्तरमें खैरपुर, पूर्वमें-जैसलमेर राज्य, मतानी, जोधपुर, कच्छखाड़ी; दक्षिण कच्छखाड़ी; पश्चिम हैदराबाद। (२) गोरी-इस जिलेके पार्कर भागमें कई प्राचीन मंदिर दिखलाई पड़ते हैं उनमें एक जैन मंदिर विरावहसे १४ मील उत्तर है । इस जैन मंदिरमें एक बड़ी पवित्र और प्रसिद्ध मूर्ति है जिसका नाम गोरी प्रसिद्ध है। यह जैन मंदिर १२५ फुटसे ५० फुट है। संगमर्नरका बना है । यह कहा जाता है कि ५०० वर्ष हुए एक मंगा ओसवाल पारीनगरका पाटन माल खरीदने गया था । उसको स्वप्न हुआ कि एक मुसल्मानके घरमें १ मूर्ति है । वह उसे पारीनगर ले आया। गाड़ीपर रख ली थी। जहां गाड़ी ठहर गई आगे न चली, वहीं उसको स्वप्न हुआ कि बहुत धन व संगमर्मर जड़ा है । उसने निकालकर संवत १४३२में गौरीके नामसे इस मंदिरको बनवाया। इसमें बड़ी बढ़िया खुदाई है । मन् १८३५ में मूर्ति गायव होगई। मंदिरमें शिला लेख सन् १७१५ का है. जब जीर्णोद्धार हुआ था। ___ इसी जैन मंदिरके पास पारीनगर नामके पुराने नगरके ध्वंशस्थान हैं जो ६ वर्गमील तक स्थानमें हैं। जिसमें बहुत संगमर्मरके स्तम्भ फैले पड़े हैं। यह नगर किसी समय बहुत धनशाली और जनसंख्यासे पूर्ण था। इसका ध्वंश १६ वीं शताब्दीमें हुआ था । अभी भी यहां पांच या छः पुराने मंदिरोंके ध्वंश मोजूद हैं जिनमें बहुत ही बढ़िया शिल्प व खुदाई है। ( नोट-किसी जैनीको यहां जाकर देखना चाहिये )-दूसरा ध्वंश नगर यहां रतकोट है। जो रानाहू Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] मंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । ग्रामसे २० मील दूर खिप नगरसे दक्षिण नार नदीपर है । मीरपुर खासके पास कहसी नगरके ध्वंश हैं जो पहले ब्राह्मणावाद कहलाता था इसका नाश ८ वीं शताब्दीमें हुआ । यहां बहुत प्राचीन ध्वंश हैं । ( R. J A S Gf India 734 ) (३) नगरपार्कर - ता० नगर | अमरकोट से दक्षिण १२० मील | प्राचीन नगर | नगरपार्करने उत्तर पश्चिम भोदेश्वर है वहां तीन प्राचीन जैन मकानोंके हैं जो कहा जाता है कि सन १३७९ और १४४९ में बनाए गए थे । C (४) विराह - के वंशो जो जैन मंदिरोंके शेषांश हैं उनमें से मि गिल बहुत से खुदे हुए पाषाण कराची अजायब घरमें ले गए हैं। यहां बहुत प्राचीन व महत्वकी रचनाएं हैं 1 ग्राममें दूसरा जैन मंदिर है जो हालका बना है । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर राज्य । ( २८ ) कोल्हापुर राज्य । इसके मुख्यस्थान नीचे प्रकार हैं (१) अटला - ग्राम, कोल्हापुर शहरसे उत्तरपूर्व १२ मील, वरण नदी दक्षिण छ मील | यहां रामलिंगका जो गुफा मंदिर है वह वास्तव बौद्ध या जैनका होगा। अब वहां ब्राह्मण पूजा होती है। (२) कोल्हापुर शहर - यह बहुत प्राचीन स्थान है। यहां पासमें सन १८८० के लगभग एक बड़े स्तूपके भीतर एक प्राचीन पिटारा मिला था जिसमें सन ई० की तीसरी शताब्दी के राजा अशोक के समय अक्षर हैं। यहां अबाबाई मंदिर मंदिर. सेशासायी मंदिर जो इनके पाषाण नगरके दूसरे बहुत अच्छी है । नकल है वे जैन मंदिरो भाग हैं । स्थानोंसे लाए गए हैं उनमें खुदाई [ १५१ नगारखाना- इसमें जैन मंदिरों लाए हुए खुदाईके पाषाण है। जैन वस्ती - हेमदपंती ढंगका एक प्राचीन जैन यह ७३ फुट १३ फुट हैं। मंदिरजीके पास दो लेखके पाषाण शाका १०९८ और १०६६ के हैं । मंदिर यह शिलाहार (३) पावल गुफाएं - जोतिबाकी पहाड़ीके पास कोल्हापुरसे ५ मील | यहां एक बड़ी गुफा ३४ फुट चौकोर है जिसमें १४ स्वम्भे हैं | अलटाके पास पूर्वकी तरफ एक प्राचीन जैन कालिज (old jvin coll go ) है जिसपर ब्राह्मणोंने अधिकार कर लिया है। (४) रायबाग - कोल्हापुर से दक्षिण पूर्व २० मील, चिकोइसे उत्तर पूर्व २४ मील | कहा जाता है कि यह जैन राजाओंकी राज्यधानी ग्यारहवीं शदीमें थी। वैसे ही बेरूद खेलना, शंखे Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । श्वरमें भी थी। यहां जैनमन्दिर सबसे पुराना मकान है । यह काले पाषाणका है, ७६ फुट लम्बा ३० फुट चौड़ा, इसमें बहुत बडे खम्भे हैं | दो पाषाणोंपर लेख शाका ११२४ के हैं । (५) खेद्रापुर - या कृष्ण | कोल्हापुरसे पूर्व ३० मील और कुरुन्दवाड़ से पूर्व ७ मील । ग्राममें एक छोटासा जैन मंदिर है । (६) विड या बेरद - पंच गंगा नदीपर | कोल्हापुरसे दक्षिण पश्चिम ९ मील । यह एक राजाकी राज्यधानी थी जो कोल्हापुर और पनालाका स्वामी था । प्राचीन ध्वंश बहुत हैं । सुवर्णकी पुरानी मोहरें मिलती है । एक प्राचीन पाषाणका मंदिर सन १२०० के करीबका है। ( नोट- वहां जैन चिन्होंको इन्दना चाहिये ) । (७) हेरले - कोल्हापुरसे उत्तरपूर्व ७ मील। मीरजकी सड़क पर यहां एक शिलाहार राजाका शिलालेख पुरानी कनडीमें शाका १०४०का है जिसमें एक जैन मंदिरको दान देनेकी बात है। (८) सावगांव-कागलसे पूर्व ३ मील। यहां एक जैन मंदि रमें श्री पार्श्वनाथजी की मूर्तिका आसन है । (९) वमनी - मिदमोली के पास, कागलसे दक्षिण पश्चिम ४ मील | यहां एक जैन मंदिरमें शाका १०७३ का शिलालेख है । (१०) करवीर - कोल्हापुरके राज्यकी प्राचीन राज्यधानी । (११) बदगांव-कोल्हापुरसे उत्तर १० मील एक नगर । यहां एक जैन मंदिर है जिसको आदप्पा भगसेटीने १६९६ में ४००००) खर्चकर बनवाया था। (१२) कुंडल - सर्दन मरहटा रेलवेके कुंडल स्टेशनसे २ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर जिला । [१५३ मील | ग्राम निकट पहाड़ीपर दो प्राचीन जैन मंदिर, इनमें श्री पार्श्वनाथकी मूर्तियें है जो श्री गिरीपार्श्वनाथ और झरी पाचनाथके नाममे प्रसिद्ध हैं। (१३) कुंभोज-बाहुबली पहाड-हाथकलंगड़ा प्टे से ५ मील | पहाड़ी ॥ मील ऊंची है, यहां बाहुबलि नामके दि० जैन मुनि होगए हैं, व बाहुबलि मुनिकी चरणपादुका हैं। इससे पर्वत प्रसिद्ध है । यहां १६ खंभोका जैन मंदिर है। (१४) स्तवनिधि-कोल्हापुरमे व चिकोड़ी प्टेशनसे करीब ३० मील | यहांपर प्राचीन जैन मंदिर हैं। पहाड़ी मुनियोंके ध्यानके योग्य है। कोल्हापूर शहरके जैन मंदिरमें जो शिलाहारी शिलालेख शाका १०६५ का है उसका भाव यह है । शुक्रवारपेटमें यह जैन मंदिर है। शिलालेख संस्कृत भाषा पुरानी कनड़ी लिपिमें है। शिलाहार बंगके महामंडलेश्वर विजयदियदेवने माघ सुदी १६ शाका १०६५ को एक खेत और १ मकान १२ हम्त आजिर गेखोला मिलेके हाविन हीरिलगे ग्राममेंमे वहीं स्थापित श्री पार्श्वनाथजीके जैन मंदिरमें अष्टद्रव्य पृजाके लिये दिया । इस मंदिरको मूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छके अधिपति माघनंदि सिद्धांतदेवके शिप्य सामंत कामदेवके आधीनस्थ वासुदेवने बनवाया था। तथा उस दानसे क्षुल्लकपुरमें पवित्र रूपनारायणके जैन मंदिरकी मरम्मत भी वहांके पुनारीके हारा हो यह भी लेख है, यह दातार विजयादसदेव तगार नगरके राजा जातिगके पुत्र गोकुल उसके पुत्र मारसिंह उसके पुत्र गंधारदित्यदेवका पुत्र था। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दानके समय राजाने श्री माघनंदि सिद्धांतदेवके शिष्य माणकनंदि पंडितके चरण धोए थे । इस दानको सर्व करसे मुक्त कर दिया गया | नोट - यहां के दोनों लेखों की नकल दि० जैन डाइरेक्टरीमें ढ़ी हुई है | नोट - क्षुल्लकपुर - कोल्हापुरका दूसरा नाम है । मनी ग्राममें जो शाका १०७३ला लेख शिलाहार राजा विजयादित्यका है उसका भाव यह है जैन मंदिरके द्वारपर लेख है। संस्कृत भाषा पुरानी कनड़ी है। ४४ लाइन हैं । इसमें लिखा है कि राजाने चोहोर - कानगावुन्ड के पास ग्रामके श्री पार्श्वनाथ भगवानके जैन मंदिरकी अष्टद्रव्य पूजा व मरम्मत के लिये नाक गेगोला जिलेके भुदरग्राममें एक खेत और घर दान किया । श्री कुंदकुंदान्वयी श्री कुलचंद्र मुनिके शिष्य श्री माघनंदि सिद्धांतदेव के शिष्य श्री अर्हनंदि सिद्धांतदेवके चरण धोकर ( Epigraphics Indica III ) कोल्हापुर राज्यमें यह बड़े महत्त्वकी बात है कि वहां जैन किसान ३६००० हैं । ये बहुत प्राचीन कालके बसे हुए हैं । पहले यहां जैनोंका बहुत प्रभाव था इसके ये चिन्ह हैं । ये बड़े शांतप्रिय व परिश्रमी हैं । Kolhapur is remarkable in large number of Jain Cultivators ( 36000 ) who are cvisidence of former predominance of Jain relic in scuth Marhatta country They are peaceful and Industrious peasentry. (P. 51) Infi. Gaz, 1908 Vol 11 Bombay. कोल्हापुर - गजेटियर में लिखा है कि यहांके जैन बडे निय - Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर जिला। मोंके पावन्द व आज्ञानुवर्ती हैं वे बहुत कम अदालतोंमें आते हैं। यहांके मेन जमीदार अपनी स्त्रियोंके साथ खेतका काम करते हैं। जन मृतिय-कोल्हापुर शहर और आसपास बहुतमी खंडित जैन मूर्तियां मिलती हैं। मुमलमानोंने १३वीं व वीं शताब्दी में जैन मंदिर तोड़ डाले थे। जब जनलोग ब्रह्मपुरी पर्वतपर अंबाबाईका मंदिर बनवा रहे थे तब राजा जयसिंहने किला बनवाया था। यह राजा अपनी मभा कोल्हापुग्ने पश्चिम ९ मील बीडपर किया करता था। २वीं शताब्दी में कोल्हापुरम कलचूरियोंके माथ--जिन्होंने कल्याणके चाटुक्योंको जीत लिया था और दक्षिणके स्वामी हो गा थे- चालुक्योंके आधीनस्थ कोल्हापुरके शिलाहागेका युद्ध हुआ था। तब भोज राजा द्वि० (११७८-१२०९) शिलाहार रानाने कोल्हापुरको राज्यधानी बनाई और बहमनी राजाओंके आनेतक राज्य किया। यहां कुल २५.२.मंदिर हैं उनमें अंबाबाईका मंदिर सबसे बड़ा और सबसे महत्वका और सबसे पुराना शहरके मध्यमें है । यह काले पाषाणका दो खना है । जैनलोग कहते हैं कि यह मंदिर पद्मावती देवीके लिये बनवाया गया था। इस इमारतकी कारीगरी प्रमाणित करती है कि जैनलोग इसके मूल अधिकारी हैं (Jains to the orijiual prostessors) जैसे हर क ब्राह्मण मंदिरमें गणपतिकी मूर्ति होती है सो यहां नहीं है । भीत और गुंबजों पर बहुतमी पद्मासन जैन मूर्तियां हैं जो बहुतमी नग्न हैं । इससे यह जैन मंदिर था ऐसा प्रमाणित होता है । इसमें ४ शिलालेख शाका ११४० और ११५८ के हैं। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १५६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । खिद्रापुर-कृष्ण नदी तट सेढ़वाल स्टेशनसे ४ मील । प्राचीन मंदिर श्रीऋषभदेव बड़ी मूर्ति है। यहां कोपेश्वरमहादेवका मंदिर है वह जैनियोंका विदित होता है। (दि. जैन डा० ) कोल्हापुरके आजरिका स्थानमें त्रिभुवनतिलक चैत्यालयमें श्री विशालकीर्ति पंडितदेव शिप्य शिलाहारकुलतिलक वीर भोजदेव राज्ये शाका ११२७में श्री सोमदेव आचार्यने शब्दार्णव चंद्रिका व्याकरण लिवी (देखो म०प्रति इटावा दि जैन मंदिर पंसारीटोला) . . Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAwan मीरज राज्य। [१५० (२९) मीरज राज्य । यहां मुख्य स्थान हैं। (१) मुदौल-कलादगीसे पूर्व उत्तर १६ मील । दो प्राचीन मंदिर जैनियोंके ढंगके हैं । अब शिव स्थापित हैं। (२) पंदगांव-बेलगावसे कलादगीकी सड़कपर ग्रामके पश्चिम ४-५ मील । सड़कके किनारे एक छोटा जैन मंदिर है । (३०) सांगली स्टेट। यहां मुख्य स्थान हैं। (१) नेग्दाल-यहां बड़े महत्वका एक जैन मंदिर श्री नेमिनाथ भगवानका है नो ११८ ७में बना था। (३१) गोआ (पुर्तगाल) इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें मावंतवाड़ी स्टेट, पूर्वमें पश्चिमीय घाट, बेलगाम, उत्तर कनड़ा, दक्षिण उत्तर कनड़ा, पूर्वमें अरब समुद्र यहां १ ४७० वर्ग मील स्थान है। इसका प्राचीन नाम गोमनचल है। यहांके कुछ शिलालेख यह बताते हैं कि गोआमें वनवामीके कादम्बोंका राज्य था जिनका प्रथम राजा श्री त्रिलोचन कादंव सन ई० ११९ व १२० के करीब हुआ है । इस वंशने ( स० नोट-यह जेन वंश था ) यहां मुस० के आने तक सन १३१२ तक राज्य किया। - Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (३२) हैदराबाद राज्य । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: उत्तर--बरार । उत्तर पूर्व - खानदेश । दक्षिण- कृष्णा नदी और तुङ्गभद्रा नदी । पश्चिम - अहमदनगर, शोलापुर, बीजापुर, धारवाड़ । पूर्व में वर्षा और गोदावरी नदी । यहां स्थान ८ २६९८ वर्गमील है । यहां अन्धोंने सन ई० से २२० पूर्वसे राज्य किया । फिर चालुक्योंने, १५० ई० के करीब तक उनकी राज्यधानी कल्याणी रही । पुलकेशी द्रि० (६०८- ६४२ ) ने प्रायः सर्व भारतमें नर्वदा दक्षिण तक राज्य किया तथा यह कन्नौज के हर्षवनसे भी मिला था । मलखेड़ के राष्ट्रकूटोंने आठवीं सदीमें फिर करीब ९०३ के चालुक्य वंशने पीछे ११८९ के अनुमान यादवोंने राज्य किया । राज्यधानी देवगिरि या दौलताबाद | सन १३९८ में देवगिरि का राजा हरपाल मारा गया । मुहम्मद तुघलक दिहली ने राज्य किया । यहां जैनियों की वस्ती २०३४० है । (हंटर गजटियर १००८ ) मुख्यस्थान । (१) आतन - ( चंद्रनाथ ) दुधनीसे ५ मील | ग्राम बाहर जैन मंदिर प्राचीन है। प्रतिमा श्री पन्द्रप्रभु २ हाथ पद्मासन है १ पापाण २४ प्रतिमाका तीन प्रतिमा कायोत्सर्ग १ || फुट i ऊंची हैं । M 7 (२) आष्टे - आलंडसे १६ मील | मार्गमें अचलर ग्राममें प्राचीन जैन मंदिर है । वर्तमानमें महादेव पधरा दिये गए हैं । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद राज्य । [ १५६ आष्टा श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर शाका ५२८ का बना है । कृष्ण वर्णा २ फुट पद्मा० मूर्ति चौथे कालकी है । इनको विघ्नहर पार्श्वनाथ कहते हैं । (३) उखलद - जि० परभणी किगेली स्टेशनमे ४ मील | पूर्णा नदीपर प्राचीन पाषाणका जैन मंदिर प्रतिमा श्री नेमिनाथ बड़े आकार । (४) कचनेर - और ङ्गाबादसे २० मील । विशाल जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है । (५) कुन्थलगिरी - वारसी टाउनसे १६-१७ मील । यह जैन सिद्धक्षेत्र है । पर्वतपर बहुत से जैन मंदिर हैं, सब दि० जैन हैं। श्री देशभूषण कुलभूषण मुनि यहांने मोक्ष पधारे हैं उनके चरण चिन्ह हैं । दिगम्बर जैनोंमें प्रसिद्ध निर्वाणकांडमें इस क्षेत्रका इस तरह वर्णन है गाथा - वंसत्थलवरणियरे पच्छिमभायम्मि कुन्थुगिरिसिहरे । कुल देसभूषणमणी पिया मो तेसिं ॥ १७ ॥ ( प्राकृत निर्वाण कांड ) भाषा वंशस्थल बनके ढिग होय, पश्चिम दिशा कंथगिरि सोय । कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणां करों प्रणाम ॥ १८ ॥ ( निर्वाणकांड भगवतीदास ) (६) कुलपाक - (वनवादा लाइन) अलरे स्टेशनसे ४ मील । प्राचीन जैन मंदिर, प्रतिमा श्री आदिनाथजीकी जिनको माणक स्वामी कहते हैं: ( 9 ) तडकत्व - ( G. I. P. Ry . ) गाणगापुरसे १२ मील । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। जैन मंदिर प्रतिमा श्री शांतिनाथनीकी कृष्ण वर्ण ६ फुट ऊंची कोरी हुई है। (८) तेर-धाराशिवसे ( मील । यहां प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें एक पद्मासन मूर्ति श्री महावीरस्वामीकी उन्हींके मूल आकारमें विराजित है अन्य मूर्तियां है व लेख है जो पढ़ा नहीं जाता है । यह ग्राम प्राचीन कालमें तगर नामका नगर था और दक्षिणमें व्यापारका मुख्य स्थान था ऐमा यूनानी लेखकोंने लिखा है पहली शताब्दी तक इस मुख्य नगरका पता है । तथा १० वीं या ११वीं शताब्दीमें भी यह एक बड़ा महत्त्वका स्थान था ऐसा देशी राज्योंके लेखोंसे पता चलता है। यह बारसीसे पूर्व ३० मील है । तर्णा नदीके पश्चिम तटपर है। यहां जो उत्तरेश्वरका मंदिर है वह मूलमें जैन मंदिर था। उसकी कारनिशके नीचे जैन मूर्ति है । यहां बहुत प्राचीन और भी जैन मूर्तियां मिलती हैं। एक पुनारी रहता है। प्रबन्ध धाराशिवके दि० जन पंचोंके आधीन है । मुख्य भाई सेट नानचन्द नेमचन्द वालचन्दनी हैं। (९) धाराशिव-इसको अब उम्मानाबाद कहते हैं। वारमी लाइनके एडमी स्टेशनमे १४ मीलके करीब । यहां नगरमे २-३ मीलपर बहुत पुरानी ५ गुफाएं हैं। एक गुफा बहुत बड़ी है जिसमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूल अवगाहनाकी मूर्ति बटे आसन बहुत सुन्दर सात फणके छत्र सहित विराजमान है। दूसरा गुफामें भी ऐसी ही मूर्ति है । एक गुफामें मूर्ति खंडित होगई है । ये गुफाएं दर्शनीय हैं । इनको राजा करकंडुने बनवाया था। आराधनाकथाकोषमें ११३ वीं कथा राजा करकंडुकी है। उसमें तेर Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। नगर व धाराशिवका वर्णन है व गुफाओंमें श्री पार्श्वनाथ स्थापनका कथन है प्रमाणअत्रैव भरते क्षेत्रे देशे कुन्तलसंज्ञके । पुरे तेरपुरे नीलमहानीलौ नरेश्वरौ ।। ४ ।। अस्मात्तेरपुरादस्ति दक्षिणस्यां दिशि प्रभो । गव्य॒ति कान्तरेचारुपर्वतोस्योपरि स्थितम् ।। १४४ ॥ धाराशिवपुरं चास्ति सहस्रस्तंभसंभवम् । श्री मज्जिनेन्द्रदेवस्य भवनं मुमनोहरम ।। १४ ॥ करकंडश्च भूपालो जनधर्मधुरंधुरः। स्वस्य मातुस्तथा वालदेवस्योच्चैः मुनामनः ।। ११६ ॥ कारयित्वा मुधीस्तत्र लयणत्रयमुत्तमम् । तत्प्रनिष्ठां महाभृत्या शीघ्र निर्माप्य सादगत् ।। १९७।। अर्थात् करकंड रानाने धाराशिवमें अपने, अपनी मां व बलदेवके नाममे तीन गुफाओंके मंदिर बनवाकर बनी विभूतिसे प्रनिशा कराई। (१०) बंकुर-नि० गुलवर्गा-शाहाबाद (G. ! P.) मे २ मील । जैन मंदिर पाषाणका है-चार गर्भालय हैं। अंतर्गर्भमें प्रतिमा ६ फुट कायोत्मर्ग । बाहर--पार्श्वनाथ. आदिनाथ आदि। (११) मलग्वेड़-वाड़ीके पास चितापुरसे ४ मील-मलखेड़ रोड टेशन । प्राचीन नाम मलियाद्री यहां पहले १५ दि. जैन मंदिर थे। अब एक मंदिर स्थिर है कई मंदिर किले में बचे हैं। यही वह मान्यग्वेड है जो रागा अमोघ वर्ष जन सम्राटकीराज्यधानी थी । यहीं श्री जिनसेनाचार्यने पार्थाभुदयकाव्य पूर्ण Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । किया था। जो मंदिर अब चालू है इसमें बहुत प्राचीन तथा मनोज्ञ दि. जैन मूर्तियें हैं। यही वह मान्यखेड है जहां जैनियोंके प्रसिद्ध आचार्य श्री राजवार्तिकके कर्ता श्री अकलंकदेव हुए हैं। राना शुभतुंगके मंत्री पुरुषोत्तम भार्या पद्मावतीके यह पुत्र थे । प्रमाणअत्रैव भारते मान्यग्वेटाख्यनगरे वरे । राजाऽमृच्छभतुंगाख्यस्तन्मंत्री पुरुषोत्तमः।। भार्या पद्मावती तस्य तयोः पुत्रौ मनः प्रियौ । संजातावकलंकाख्य निष्कलंकी गुणोज्वलौ॥।॥ इन्होंने ही कलिंग देशके रत्नमंचयपुरके राना हिमशीतलकी सभामें बौडोंके गुरु संघश्रीमे वाद करके उनको परास्त किया था। यह राजा शुभतुंग अकालवर्ष सन् ८६७ में यहां राज्य करने थे। जैसा राष्ट्रकूट वंशकी पट्टावलीमे प्रगट है। (१२) सांवरगांव-(नि० उममानाबाद) वारसीये २४ मील । शोलापुरसे १४ मील। हेमाडपंथी दि० जैन मंदिर श्री पाश्वनाथ ३॥ हाथ कृष्णवर्ण है। (१३) होनसलगी-नि० गुलबगा। होनमलगी म्टेशन है । सावलजी (G. I. P.)मे २ मील-प्राचीन जैन मंदिरमें श्रीपार्श्वनाथ ४ फुट कार्योत्सर्ग व शांतिनाथ ४ फुट। शिलालेग्य कनडीमें हैं। (१४) एलुगकी जैन गुफाएं-दौलताबाद स्टेशनमे १२ मीलके करीब दर्शनीय । यहां ३२-३३ गुफाएं हैं जिनमें ५ जैन गुफाएं बहुत बड़ी हैं। जिनमें बड़ी मनोज्ञ दि. जैन प्रतिमाएं हैं Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [१६३ व बड़ी सुन्दर कारीगरी है तथा हजारों आदमियोंके बैठनेका स्थान है। हम देखनेको गए थे अपूर्व काम किया हुआ है। Arch S. of W. India Vol V Report of Elura by Pur. gess 1880). नाम पुस्तकमें जो वर्णन दिया हुआ है वह नीचे लिखे भांति है। इन्द्रसभा। यहां दो बहुत बड़ी जैन गुफाएँ हैं। दो खनकी हैं। एकका नाम इन्द्र गुफा दूसरीका नाम जगन्नाथ गुफा । इन गुफाओंका समय बौद्ध और ब्राह्मण गुफाओंके पीछे मालूम पड़ता है। क्योंकि राठोड़ वंशके नष्ट होनेके पीछे राष्ट्रकूटोंका राज्य गोविंद तृतीयके समयमें बट गया था जब उसके छोटे भाई इन्द्रने आठवीं शताब्दीके अन्तमें गुजरातमें भिन्न राज्य स्थापित किया था। जैनियोंने इस स्थानपर अधिकार कर लिया था और तब उन्होंने अपने धर्मका महत्व यहांपर स्थापित किया। निमकी उन्होंने अन्य दो धर्मोके मुकाबले में आवश्यक्ता समझी थी। इन्द्रसभा-कैलाश गुफाके समान गुफाओंका समूह है । बीचमें दो खनकी गुफा है। सामने सभा है । हरएक तरफ छोटी २ गुफाएं हैं। गुफाका मुंह दक्षिण ओर है । सभाके बाहर हरतरफ एक छोटा कमरा १९ फुटमे १३ फुट है, जिसमें एक छोटी भीत परदेके तौरपर है । मामने दो खंभे हैं, जो नीचे चौकोर हैं ऊपर गुम्बन हैं। इस कमरेके अन्तमें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी और तपस्या करते हुए गोमट्टस्वामी या बाहुबालेकी मूर्तियें हैं । सभाके दक्षिण तरफ एक भीत है और एक द्वार है। यह सभाका कमरा Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ५६ फुट लम्बा दक्षिणसे उत्तर है व ४८ फुट पूर्व पश्चिम है । इसमें दाहनी तरफ एक हाथी आसनको छोड़कर १५ फुट ऊंचा है । जो गिर गया है । एक सुन्दर स्तम्भ २७ फुट ४ इंच ऊंचा है इसके ऊपर चतुरमुख प्रतिमा है और एक छोटा मंडप सामने शिवमंडपके समान है । यह आठ फुट ४ इंच चौकोर है । सभासे ८ सीढ़ियां हैं, हर तरफ द्वार है । चढ़ाई उत्तर व दक्षिण दोनों तरफ से है हरएक द्वार में दो स्तम्भ हैं । इस कमरे के भीतर एक चौकोर पाषाणकी वेदी है जिसके हर तरफ सिंहासन पर श्री महावीरस्वामीकी मूर्ति कोरी हुई है । बरामदे को छोडकर नीचे का कमरा ७२ फुट ४८ फुट है। जिसके आगे दो स्तंभ हैं और दो स्तंभ उस मंदिरके कमरे के सामने हैं जो ४० फुट १५ फुट है । यह मंदिरका कमरा १७ || फुटसे १३ फुट है । इसमें श्री महावीरस्वामी सिंहासनपर बिराजमान हैं। सामने धर्मचक्र है । इन चिन्होंसे यह प्रगट होता है कि ये गुफाओंके मंदिर दिगम्बर जैनोंके हैं । बरामदेको सीढ़ी गई है जो ऊपर बडे कमरेकी पूर्व तरफ है । यह ऊपरका कमरा बरामदेको छोडकर जिसके मध्यमें एक नीचीमी भीत है ५५ फुट ७८ फुट है । वरमदा १४ फुटसे १० फुट है । इसके हर तरह इन्द्र और इन्द्राणी विराजमान हैं- पूर्व ओर इन्द्र हाथीपर और पश्चिम और इन्द्राणी सिंहासनपर है (नोट-ये बड़े ही सुन्दर सुसज्जित हैं) । कमरे की बगलसे जाकर इन मूर्तियों के पीले एक छोटा कमरा ९ से ११ फुट है । इसमें होकर उन मंदि - रोंमें जाना होता है जो सामनेके मंदिरके हरतरफ बगलमें हैं । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला | [ १६५ कुछ दूर जाकर हरएक बगलके कमरेसे एक छोटे कमरे में पहुंचना होता है जहां सब तरफ जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां कोरी हुई हैं । ये कमरे बगलके कमरोंके वरामदेके अन्तमें हैं। पूर्व ओर वरामदेमें दो खंभे सामने व दो पीछे हैं। द्वारके सामने दक्षिण तरफ अंबिका देवी है । दाहनी तरफ इंद्र हैं। बाएं हाथमें एक थैली व दाहनेमें नारियल है । ये 1 मुख्य जैन मूर्तियोंके सामने हैं । कमरा २५ फुटसे २३ || फुट है । छतका आधार ४ चौकोर खंभोंसे है। जिसमें गोल गुम्बज हैं। इसमें दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामीकी मूर्ति है जो दिगम्बर जैनोंको बहुत प्यारी है, कनड़ा देशमें ऐसी कई बड़े आकार की मूर्तियां स्थापित हैं । बाई तरफ भी श्री पार्श्वनाथ भगवानकी नग्न मूर्ति चमरेन्द्र सहित हैं। छोटी वेदियों में पद्मासन श्री महावीरस्वामी की मूर्तियें हैं। कमरेकी हर तरफकी भीतोंके सहारे बहुतसी नग्न जैन मूर्तियां हैं व बीचमें इधरउधर बहुतसी छोटी मूर्तियां हैं। भीतर सिंहासनपर पद्मासन श्री महावीर स्वामी विराजमान हैं । इस बड़े कमरे के दक्षिण पश्चिम कोने में दूसरा द्वार है जिस पर चार हाथ की देवी दाहनी तरफ है व नीचे बाई तरफ एक मोड़पर आठ हाथवाली देवी सरस्वती है। एक छोटे कमरेसे होकर कुछ कदम चलकर हम एक बरामदे में आते हैं फिर एक छोटे कमरेमें जैसा पहले कह चुके हैं यहां भी अंबिका दाहनी ओर है और उसके सामने चार हाथकी देवी है, जिसके उठे हुए हाथोंमें दो गोल फूल हैं और जो हाथ घुटनेपर है उसमें वज्र है । वरामदेके पश्चिम ओर द्वारके सामने इन्द्रकी मूर्ति है । भीतर वेदीके Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www १६६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। कमरेमें श्री महावीरस्वामी है, भीतोंमे कई कमरे हैं। इस कमरेके वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ भगवान और दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामी पूर्व ओरके समान विरामित है। यहां नो चार मध्यके खंभे हैं उनमें खुदाई बहुत महीन है। इस पहाड़ी चट्टानके दाहने आधेमें दो खन हैं जब कि बाई तरफ एक खन है। दाहने दो खनोंमेंसे ऊपरके खन और बाई तरफके खनके मध्यमें बढ़िया खुदाई है। नीचली तरफ एक युद्धका चित्र है जिसमें तीन लेटे हुए शरीगेंके उपर चार शरीर पडे लड़ रहे हैं । इसके ऊपर एक आला है जिसमें एक चबुतरेकी बाई तरफ दो स्त्रियां और दाहनी तरफ दो पुरुष घुटनोंकेबल झुके हुए हैं तथा इसके उपर श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति पद्मासन मिहामनपर है । सामने चक्र है। दाहनी तरफ एक पूजक है। हरतरफ मुकुट सहित चमरेन्द्र हैं । पीछे मात फणका मप छत्र किये हुए है । उपर बाई तरफ एक चित्र मंदिरका है । दाहनी तरफ जो मबसे नीचेका खन है वह हालमें ही मट्टीसे साफ किया गया है जिसमें सामने दो स्वच्छ खंभे हैं। दीवालके पीछे इन्द्र और अम्बिकाकी मूर्तिये हैं जो बहन मुन्दर व सुरक्षित हैं। इसमें बाई तरफ श्री पार्श्वनाथ और दाहनी तरफ श्री गोमट्टस्वामी हैं जिनके चरणोंपर हिरण और कुत्ते बैठे हुए हैं और पीछे जाकर पद्मासन तीर्थंकर बिराजमान हैं। भीतर वेदीमें श्री महावीरस्वामी चमरेन्द्र छत्र तीन, और अशोक वृक्ष महित हैं । इमके आगे एक दूसरा कमरा है जिसमें श्री पार्श्वनाथ बाई तरफ व दाहनी तरफके आधे ऊपरके भागमें दो छोटी पद्मासन मूर्तियां है। मंदिर द्वारके हरतरफ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [१६७ इन्द्र और अम्बिका ( इन्द्राणी) है और मामने सिंहासनपर पद्मासन चमरेन्द्र सहित तीर्थकर विराजमान हैं। इस मंदिरमें श्री गोमटस्वामीकी मूर्ति खास गुफा और इम मंदिरके मध्य सामने कोरी हुई है। इन दोनोंकी बाई तरफ और करीब २ इतना ऊँचा-जितने ये दोनों हैं-एक कमरा करीब ३० फुट चौड़ा व २५ फुट गहरा है । सामने एक भीत है निमके उपर द्वारके हरतरफ एक खंभा है। भीतके ऊपरी भागपर बहुतसे कमलादि कोरे हुए हैं तथा हाथी बने हुए हैं जिनका मुख पुप्योंपर है। भीतर चार बभे हैं जिनकी जद चौकोर है, ऊपर गुम्बज हैं। मामनके वापर बहुत चित्रकारी है । पश्चिमकी तरफ बीचके कमरे में श्री पार्श्वनाथ विराजमान हैं। फणके छत्र महित व चमरेन्द्र महित है । पगमें दो नागनियां हैं और दो सुन्दर वस्त्र महित पुजारी हैं । जबकि उनके चारों ओर देवतागण ध्यान में उपमर्ग कर रहे हैं । ( नोट--यह कमठके जीव द्वारा उपसर्गका चित्र है)। पासवाले दूसरे कमरेमे पहलेकी भांति रचना छोटे मापमें है तथा एक पद्मासन तीर्थंकर विराजमान है। पूर्वकी भीतकी तरफ मध्य कमरेमें श्री गोमटस्वामी हैं जिनके चरणोंपर हिरण और कत्ते और कुछ स्त्रियां बेटी हुई हैं । इनके उपर गंधर्व आदि देव हैं जो वाना, फूलादि लिये हुए हैं। इसके दाहनी तरफ कमरेमें एक छोटी मूर्ति श्री पार्श्वनाथजीकी है। वाई तरफ एक खड़ी मूर्ति है, जो आधी तड़क गई है, जिनके पास मृग, मकर, हस्ती, शूकर आदिके चिन्ह हैं। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इसके ऊपर एक पद्मासन जिनकी मूर्ति है और भीतके पीछे इन्द्र और इन्द्राणी थे जो अब मिट गए हैं। मंदिर द्वारपर दो जैन द्वारपाल हैं । भीतर सिंहासनपर जिनेन्द्र हैं तीन छत्र व देवोंद्वारा दुभि आदि सहित हैं। तीन कमरोंके ऊपर दीवालके सामने एक कमरा बीचमें है जिसमें एक स्त्री पुरुष कोरे हुए हैं । जिनको सेवामें गुप्प लिये दो छोटी स्त्रियां हैं। बगलमें मकर तोरण लिये हुए हैं। भीतोंकी तरफ हाथी पुष्पोंपर रमते व सार्दूल एक छोटे हाथीपर चढ़ा हुआ है - इसके ऊपर पानीके घड़े हैं । कमरे के ऊपर मालाएं लटक रही हैं । पासमें जो रचना है उसमें कई पशु बने हैं । इसके ऊपर छोटेर मंदिर हैं हरएक मूर्ति है । बीचमें बाई तरफ इन्द्र है. दानी तरफ इन्द्राणी है। शेष आलोंमें श्री गोस्वामी. श्री पार्श्वनाथ तथा दूसरे तीर्थकर हैं । मध्यभागमें एक मकान छरित है जिससे चार झुकती हुई मूर्तियां श्रां हैं। एक तरफ श्री जिनेन्द्रदेव पद्मासन विराजित हैं उसीके उपर एक चैत्यको विकीमें दूसरे जिनेन्द्र हैं । इसके उपर कुछ आगे आकर इसकी रक्षाका उपाय है। I aar alert छतको भनेवाले सभोंमें भिन्न २ प्रकारके मृने हैं तथा भीतोंपर चित्रकारी है। मध्य कमरे में पांच भिन्न २ नमूनोंके सांभ हैं। हरएक बगलकी भीतके मध्यमें जो बड़े कमरे में हैं उनमें सिंहासनपर एक पद्मासन जिन है, सामने चक्र, हाथी व सिंह खुदे हैं, नीचे दो हाथी हैं, भामंडल, छत्र व अशोक वृक्ष व चमरेन्द्र हैं । दूसरे दो स्थानों पर सिंहासनपर दो छोटी जैन मूर्तियां हैं। मंदिरके सामने हरएक खंभेके सामने तथा Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। हरएक तरफ भीतपर भी लम्बी नग्न मूर्तियां हैं जिनमें कुछ हानि आगई है । छतमें बड़ा कमल मध्यमें है तथा बहुत कुछ रंगावेजी है यद्यपि धूआं छा गया है। जगन्नाथ सभा । दूसरी बड़ी गुफा इस जैन समुदायमें जगन्नाथ गुफा है जो इन्द्र सभाके पाम है । इस गुफाका सभाम्थान ३८ फुट चौकोर है । इसमें जो रचना है वह बिलकुल नष्ट होगई है। सभास्थानसे एक जीना बड़े कमरे के दाहने कोनेकी तरफ गया है । यह कमरा ५७ फुट चौड़ा व ४४ फुट गहग है। करीब १४ फुट उंचा है। १२ बड़े २ खंभे छतको संभालने हैं तथा दो खंभे मामने हैं। बाहर हरएक कोनेपर एक बड़े हाथ का मस्तक है । हाक खंभेके सामने बीचमें मनुष्योंके व इधर उधर पशुओंके चित्र हैं. उपर छोटे वृक्षोंकी नांदे हैं उनपर मनुष्योंके व दृमरे चित्र हैं । इसके उपर और भी चित्रकारी हैं । इसकी नीचे की चट्टान इन्द्रमभाके नमूनेकी है, परंतु छोटी है । कमरा नीचेका २४ फुट चौकोर व १३।। फुट ऊंचा है | चार खंभे छतको थांभे हैं। मामने एक छोटा वरामदा है। भीतपर दो चौकोर खंभे हैं। दो खंभे वरामदेसे कमरेको जुदा करते हैं । निममें दो बेदियां हैं बाई और श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं ऊपर मर्पफण हैं व चमेरेंद्र आदि हैं तथा दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामी हैं । भीतके छः स्थानोंपर दूसरी पद्मासन तीर्थकरकी मूर्तियां हैं । वरामदेमें बाई तरफ इंद्र है व दाहनी तरफ इन्द्राणी हैं । भीतरके मंदिरमें एक छोटे कमरेके द्वारा जाना होता है। द्वारपर सुन्दर तोरण है। यह कमरा ९ फुटसे ७ फुट व १० Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। फुट ८ इंच ऊंचा है । इसमें पद्मासन श्री महावीरस्वामी सिंहासनपर विराजमान हैं। इस जगन्नाथ सभाके बाई तरफका हॉल २७ फुट चौकोर व १२ फुट ऊँचाई जिसमें मंदिर ९|| फुटसे ८॥ फुट व ९ फुट १॥ इंच ऊँचा है हर तरफ इसके कोटरी है । जिसके बाईं तरफ पामकी गुफामें जानेका मार्ग है । इस सभाकी दूसरी तरफ दो छोटे मंदिर हैं जिनमें जैन चित्रकारी है। गुफा नं० ३४ वीं आखरी गुफा जगन्नाथ सभाके पाम है । बरामदा नष्ट हो गया है । इसमें हॉल २०० फुट चौड़ा, २२ फुट गहरा व ९ फुट ८ इंच ऊँचा है, ४ खंभे हैं। भीतोंपर सुन्दर चित्रकारी है । छोटा कैलास-गुफा यह जैनियोंकी पहली गुफा है। हाल ३६ फुट चौकोर है । १६ खंभे हैं । कुल गुफा ८० फुट चौड़ी व १०१ फुट लम्बी है । यहां खुदाई करनेपर कुछ मूर्तियां शाका ११६९ की मिली थीं। एलरा पर्वतको चरणाद्रि भी कहते हैं। एटरा पहाड़की गुफाओंका वर्णन भिन्न २ रचनाके चित्रों सहित जिनमें जैन मूर्तियोंके भी व बभोंक भी चित्र हैं ( Cuve tuple of Indiio by Fireussou and Buigi's 1880 ) में दिया है । उमसे जो विशेष हाल मालूम हुआ वह यह है । कि इन्द्रसभाके पश्चिम बीचके कमरेमें दक्षिण भीतपर श्री पार्श्वनाथ हैं व सामने श्री गोमटस्वामी हैं । पीछे भीतके इंद्र, इन्द्राणी, भीतर मंदिरमें सिंहासनपर श्री महावीरस्वामी हैं नीचेके Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [ १७१ हॉलमें घुसते ही सामने वरामदेकी वाई तरफ दो बड़ी नग्न मूर्तियां श्री शांतिनाथ मोलहवें तीर्थकरकी हैं। नीचे एक शिलालेख (वीं व ९मी शताब्दीके अक्षरों में है, लेख है " श्री सोहिल ब्रह्मचारिणा शांति भट्टारक प्रनिमेयम " अथात् सोहिल ब्रह्मचारी दाग यह शांतिनाथ भगवानकी प्रतिमा । इसके आगे एक मंदिर है, इसके हालमें एक खंभा है, जिस पर एक नग्न मूर्ति विराजित है। उसके नीचे एक लाइन हैं "श्री नागवा कृत प्रतिमा " अर्थात् नागवर्मा द्वारा निर्मित प्रतिमा । जगन्नाथ गुफा में विशेष कथन यह है कि इस गुफाके कुछ ग्यभोंपर पुगनी कनडीमें कुल लेग्व है जो मन ई . ( ००से ८५० तकके होंगे। इन गुफाओंकी पहाड़ीकी दृमरी तरफ कुछ उपर जाकर एक मंदिरमें बहुत बड़ी मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवानकी है जो १६ फुट ऊंची है, इसके आमनपर लेख है मिनी फाल्गुण मुदी तीन मंवत ११५६ है जो ता० २१ फर्वरी बुधवार सन १२३३ के बराबर है । लेखमें है कि श्री वर्द्धमानपुर निवामी रेणुगी थे, उनके पुत्र गेलुगी थे, उनकी स्त्री स्वर्णा थी। जिसके चार पुत्र थे। चक्रेश्वर आदि । उसने चारणोंसे निवामित इस पहाड़ीपर श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति प्रतिठा कराई। इसके नीचे बहुतमी छोटी २ जेन गुफाएं हैं जो बहुत नष्ट होगई हैं। तथा चोटीके पाम एक खाली गुफा है जिसमें सामने दो चौकर खंभे हैं। एक शिलालेख-एल्लूरामें एक दशावतार लेख है इसमें Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। महान राष्ट्रकूट वंशके दो प्राचीन राजाओंका वर्णन है अर्थात् दंतिवर्मा और इन्द्रराजका जो सातवीं शताब्दिके प्रारम्भमें जरूर राज्य करते होंगे इसमें वंशावली दी है जिसमें नाम है, गोविंद प्रथम, कर्क, इन्द्र. दंतिदुर्गा । दंतिदुगोने पश्चिमीय चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा हि को अपने अधिकारमें किया था तथा और भी राजाओंको विजय किया था इससे इसका नाम वल्लभ प्रसिद्ध था। इस राजाके प्रथम मंत्री मोरारजी मार्वकी भी प्रशंसा लिखी है। यह भी प्रगट होता है कि यह सेना लेकर यहां आया था और ठहरा था । दंतिदुर्गा मन ७२२से ७२५ तक राज्य करता होगा और इसने यहां यात्रा की। इससे प्रगट है कि शायद इसने दशावतार मंदिर बनवाया हो। इसका चाचा व उत्तराधिकारी कृष्ण प्रया था। इसके सम्बंधमें प्रसिद्ध है कि इसने एलापुरा पहाड़ी पर अपने को बसाया था। इस स्थानको जांच नहीं हुई है शायद यह एल्टर गुफाओंके उपरकी पहाड़ी है। जहां वर्तमान रोजा नगरके बाहर प्राचीन हिन्दु नगरके वंश हैं । बोधान-ता० निजामाबाद । यहां एक देवल ममजिद है जो मूल में जैन मंदिर था क्योंकि नार्थकरकी बेटी मूर्तियें कई पाषाणोंपर अंकित हैं । ( निजामपुरा रिपोर्ट १९१४-१५) पाटनचेस-हंदगगदमें उत्तर पश्चिम १८ मील । यह स्थान जैन धर्मकी पूजाका बहुत प्रमिह म्थान था। यहां नगरके कई स्थानोंपर श्री महावीरम्बामी और दूसरे तीर्थकरोंकी बड़ी२ मृर्तिय १० फुटसे १४ फुटतककी विराजमान हैं--तथा हालमें भूमि खोदनेसे और भी मूर्तियें निकली हैं । दक्षिणके उत्तर भाग, एलोरा, Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १७३ बोधान, वारंगल आदि स्थानोंके स्मारकोंसे प्रगट है कि इन भागोंके शासक राजागण सातवींसें दशवीं शताब्दी तकके जैनधर्मसे प्रेम करते थे और यह धर्म बहुत उन्नतिपर था । पीछे शिव तथा विष्णु । भक्तोंने जैन मंदिरोंको नष्ट किया। वही दशा पाटनचेरूके मंदिरोंकी हुई है । (हैदराबाद १९१५-१६ ) गुजरातका इतिहास | बम्बई गजेटियर जिल्द ? भागमें गुजरातका इतिहास सन् १८९६ में छपा था । उसमें से लिखा गया । पं० भगवानलाल इंद्रजीने प्राचीन गुजरातका इतिहास सन् ई० ३१९ पहलेसे १३०४ तक तय्यार किया था जिसको जैकसन साहबने पूर्ण किया था । गुजरातकी चौहद्दी है -पश्चिम में अरब समुद्र, उत्तर पश्चिम कच्छ खाडी, उत्तर- मेवाड, उत्तरपूर्व आवृ. पूर्व - विन्ध्याका वन, दक्षिणमें तापती नदी | इसके दो भाग हैं गुर्जरराष्ट्र और मौराष्ट्र या काठियावाड । गुर्जरराष्ट्र में ४५००० वर्गमील व मौराष्ट्रमें २७००० वर्गमील स्थान है । यहां सन ३०० ई० पहलेसे १०० ई० तक समुद्रद्वारा यूनानी, वैकटीरियावाले, पार्थियन और स्कैथियन आते रहे । सन् ६०० से ८०० तक पारसी और अरब आए । सन् ९०० से १२०० तक संगानम् लुटेरे, सन् १९०० से १६०० तक पुर्त Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गाल और तुर्क, सन् १६०० से १८०० तक अरब, आफ्रिकन, आरमीनियन, फ्रांसीसी, सन् १७५० से १८१२ तक वृटिश आए । तथा पृथ्वीद्वारा उत्तरसे सन् ई० से २०० वर्ष पूर्व से सन् ५०० तक स्कैथियन और हून, सन् ४०० से ६०० तक गुर्जर, सन् ७५० से ९०० तक पूर्वीय जादव और काथी, सन् ११०० से १२०० तक अफगान और मुगल, पूर्वसे सन् ई० ३०० वर्ष पूर्व मौर्य लोग, सन् १०० पूर्वसे ३०० तक छत्रप और अर्ध स्कैथियम ३०० में गुप्त लोग, सन् ४०० से ६०० तक गुर्जर, सन् १५३० में मुगल, सन १७५० में मराठा । दक्षिणमे मन् १०० में शतकर्णी, ६५० से ९९० में चालुक्य और राष्ट्र कूट आए । शिलालेखोंसे यह प्रगट है कि गुर्जरोंका प्राचीन स्थान पंजाब व युक्त प्रान्त था वे मथुरामें सन् ई० ७८ में राजा कनिष्कके समयमें थे वहांसे वे सन ३०० के अनुमान राजपूताना, मालवा, खानदेश और गुजरातमें आए जब गुप्तोंका राज्य था और सन् ४९० के अनुमान स्वतंत्र राजा होगए । सन ८९० में काश्मीरके राजा शंकर वर्मन ने गुर्जर राजा अलखानापर हमला किया यह हार गया तब अलखानाने टक्कादेश या पंजाब देकर संधि करली | चीन यात्री हुईनमांग के समय में सन् ६२० में गुर्जरोंके दो स्वतंत्र राज्य थे । (२) उत्तरीय गुर्जर - जिसको चीनाने क्यूचलों लिखा है । इसकी राज्यधानी पिलोमो या भिनमाल या श्रीमाल थी । यह आसे उत्तर पूर्व ३० मील एक प्राचीन नगर है। एक जैन लेखक Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १७५ गुजरातका इतिहास। ( Indian Antiquary XIX 233 ) में लिखते हैं कि भिन माल भीमसेन राजाकी राज्यधानी थी तथा विद्याका मुख्य केन्द्र था । ( राज्यमाला भाग १ पत्र ५६ ) के अनुसार इस श्रीमालनगरका राजा मूलराजसोलखी (सन् ९४२-९९७)के साथ उस हमले ने था जो सोरठके विरुद्ध किया गया था। यहां बहुत बस्ती थी २ दक्षिण-गुजरात-इसकी राज्यधानी नांदीपुरी थी वर्तमानमें नांदोद जो राजपीपला राज्यकी राज्यधानी है । सन् ५८९ से ७३५ तक यह बहुत महत्वशाली नगर था जैसा प्राचीन शिला- , लेग्वसे प्रगट है। चौथीसे आठवीं शताब्दी तक उत्तर और दक्षिणके मध्यका गुजरात देश वल्लभियोंके अधिकारमें था जो मूलमें गुर्जर थे। इस गुजरातके प्राचीन विभाग-तीन थे (१) आनन (२) सौराष्ट्र और (३) लाट--आन की राज्यधानी आनंदपुर या बड़नगर या आनर्तपुर थी जो नाम वल्लभी राजाओंने सन ५०० से ७०० तकमें व्यवहार किया है. (Id Ant: VII 73.m) रुद्रामन क्षत्रपके गिरनारके लेख ( मन १५० ) में आनन और सौराष्ट्रको भिन्न २ प्रांत लिग्वा है । स्कंध गुप्तके गिरनार लेख सन् ४५० में भी सौराष्ट्रका नाम है । नामिकके गौतमीपराके लेखमें सोरठ नाम प्रारुतमें हैं (सन् १५०)। १३ वी व १४ वीं शताब्दीके श्री जिनप्रभमूरि रचित तीर्थकल्पमें सुराया नाम है । विदेशियोंने भी इसका नाम लिखा है जैसे स्टेशनों (५० सन् ई० पहलेसे २० तक) ने व ल्पिनी (सन् ७०) ने व टोलिमी मिश्र Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। भूगोल वेत्तामें (सन् १५०) व यूनानी लेखक पैरीप्लसने ( सन् २४०) चीनीहुईनसांगने भी सन् ६०० से ६४० में वल्लभी और सौराष्ट्रको भिन्नर प्रांत लिखा है। वल्लभीको वर्तमानमें गोहिलवाडा कहते हैं इसीको जिनप्रभसूरिने सेव॒नय कल्पमें वल्लकवसाड़ लिखा है । (३) लाट प्रांत माही नदीसे ताप्ती तक है। टोलिमीने इसे लारिकी कहा है। तीसरी शताब्दीके वात्स्थापन रचित कामसूत्रमें मालवाके पश्चिम लाट देश आया है। छठी शताब्दीमें ज्योतिषी बराहमिहिरने भी लाटका नाम लिया है। अनंताके ५ वीं शदीके लेखमें है । मंदमोरका लेख (सन् ४३७) कहता है कि लाट देशमें रेशमके बुननेवाले थे । लाट निवासी राजाओंको राष्ट्रकूट वंशी कहते हैं। इस वंशका बडा राना महाराजा अमोघ वर्ष था (सन् ८५१-८७९) उसने इसे राट्ट वंश कहा है । लाट टूर जो मौंदत्ती और बेलगामके राठोंका मूल नगर था इमी लाट देशमें होगा । भरुच और मालवाके धारके मध्यमें जो देश हैं जहां मुख्य नगर बाघ और टांग है उमको अब भी राठ कहते हैं गुजरातमें गिरनार पर्वतकी चट्टानका लेख सबसे पुराना सन् ई० से २४० वर्ष पहलेका है दूसरा लेख वहीं क्षत्रप रुंद्रादामनका सन् १३९ का है । इनमें मौर्य महाराज चन्द्रगुप्त (सन् ४० से ३०० वर्ष पहले) का वर्णन है । हेवट साहबने गुजरातका पता सन ई० से ६००० वर्ष पूर्व तक लगाया है। मिश्र देशमें जो कब खोदी गई हैं वे सन ई० से १७०० वर्ष पहलेकी हैं उनमें भारतीय तंजेव व नील पाई गई है (J. R. A. S. XX 206) सन् ई० से ४००० Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १७७ वर्ष पहले तक भारतकीं लकड़ी तथा सिंधुमें अर्थात् भारतीय तन्जेवोंमें पश्चिमीय भारत और युफ्रटीज नदीके मुख तकके देशसे व्यापार होता था । द्राविड़ भाषा बोलनेवाले सुमरी लोगोंका संबंध सिनाई और मिश्रसे था, जिनका सम्बन्ध पश्चिम भारतसे ६००० वर्ष सन्के पूर्व तक था ( Compare Hibbert lectures J. R. AS XXI 326 ) हिन्दू धर्म शास्त्रोंमें गुजरातको म्लेच्छ देश लिखा है और मना किया है कि गुजरात में न जाना चाहिये । ( देखो महाभारत अनुशासन पर्व २११८-९ व अ० सात ७२ व विष्णुपुराण अ० द्वि० ३७) । भारतके पश्चिममें यवनों का निवास बताया है (JBRJS IV 468 ) प्रबोधचंद्रोदयका ८७ वां लोक कहता है कि जो कोई यात्राके सिवाय अंग, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र तथा मगध में जायगा उसको प्रायश्चित लेकर शुद्ध होना होगा । (स० नोट - ऐसा समझमें आता है कि इन देशोंमें जैन राजा थे व जैन धर्मका बहुत प्रभाव था इसीलिये ब्राह्मणोंने मना किया होगा ।) मौके अधिकारके समय से गुजरातका इतिहास ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन लेखों में मिलता है । मौर्य लोग बड़े उदार शासक थे, और इनकी प्रतिष्ठित मित्रता यूनान व मिश्र देशके राजाओंसे व अन्योंसे थी । (Mauryas were beneficent rulers and had also honorable alliances with Gitek and Egyptian Kings etc.) इन कारणोंसे मौर्य वंश एक बड़ा बलवान व चिरस्मरणीय वंश था । शिलालेखोंसे यह बात विश्वास की जाती है कि मौर्य ૧૨ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वंश संस्थापक महाराजा चंद्रगुप्त थे (सं० नोट-“यह राजा जैनधर्मानुयायी थे व श्री भद्रबाहु श्रुतकेवलीके शिप्य मुनि होगए थे" यह बात श्रवण बेलगोला आदिके शिलालेखोंसे प्रमाणित है) ने ( सन् ३१९ वर्ष पूर्व) अपना शामन गुजरातपर भी बढ़ाया था.। गिरनारकी चट्टानमें जो सन् १५०का रुद्रदामनका लेख है उससे यह प्रगट होता है । (देखो R. A. S..J. 191 P. 47 ) कि इस चट्टानके पास जो मुदर्शन झील है उसको मूलमें महाराज चंद्रगुप्तके साले वैश्यजातीय पुप्पगुप्तने बनवाया था। ( राजा अशोकने भी एक सेठकी कन्या देवीको विवाहा था । देखो Cunninghan Blilza Tipes 45 arto Turnouis maha. vansar G ) इस लेख की भाषामे निःसंदेह यह प्रगट होता है कि चंद्रगुप्तका राज्य गिरनारके देशपर था तथा पुष्पगुप्त उमका राज्याधिकारी (Goiterno:) था। यही लेख कहता है कि महागन अशोकके राज्यमें उमके राज्याधिकारी यवनगज तुम्पने इस झीलको नालियोंसे भूपित किया था। राना चंद्रगुप्त से लेकर अशोक तक मौर्य राज्य बहुत विस्तृत था। अगोकने अपने बड़े गज्यकी हद्दोंपर म्तंभ गड़वा दिये थे। जमे उत्तर पश्चिममें कपर्दिगिरि पर या वाकृके शावाजगढ़ पर. जो पाली लिपिमें हैं तथा उत्तरमें कालसी पर, पूर्व में धौली और जंगठा पर. पश्चिममें गिरनार और नुपारा पर, दक्षिणने मैसर, ये सब मौर्य लिपिमें हैं.... ___ मौर्योकी राज्यधानी गुजरातमें गिरिनगर या जूनागढ़ थी। क्षत्रपोंके राज्य (सन् . ० ० से ३८० तक ) तथा गुप्तोंके राज्य ( ३८० से ४६० तक ) में यही राज्यधानी थी। मौर्योकी Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १७६ दक्षिणी राज्यधानी सोपारा थी जो वेमीनके पास है । जहाजोंके लिये बंदर है। यह कोंकण व दक्षिण गुजरातका मुख्य व्यापार केन्द्र था। बौद्ध और जैन लेखोंसे प्रगट है कि अशोकके पीछे उसकी गद्दीपर उसका अंधा पुत्र कुणाल नहीं बैठा था किन्तु उसके दो पोतोंने अर्थात् दशरथ और सम्प्रतिने राज्य किया था। गया निलेके बराबर और नागार्जुन पहाड़ियोंके लेखोंमें दशरथका नाम है । जैन लेखों में सम्प्रतिकी बहुत अधिक प्रशंसा है ( देखो हेमचंद्रकत परिशिष्ट पर्व व मेरुतुंगरुत विचारश्रेणी)। यह कहा जाता है कि करीब २ सब प्राचीन जैन मंदिर राजा सम्प्रतिके बनवाए हुए हैं। जिनप्रभमूरि जैनाचार्यने पाटलीपुत्र कल्पग्रंथमें पाटलीपुत्रकी कथाएं दी है । उनमें एक स्थानपर है----- " कुणालमनुत्रिखंडभरताधिपः परमाहतो अनार्यदेशेबपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रति महाराजाऽसौऽभवत ।" इसका भाव यह है कि कुणालके पुत्र सम्प्रति थे जो तीन खंड भरतके राजा थे, परम अहंत भक्त जन थे। जिन्होंने अनार्य देशोंमें भी मुनियोंका विहार कराया। अशोकके पीछे दशरथ तो पूर्व भारतमें व सम्प्रति पश्चिम भारतमें राज्य करते थे, जहां जन जाति अब भी विशेष फैली हुई है। यह संप्रति उनका भी राजा था। इसके पीछे मौर्य राजाका नाम नहीं सुन पड़ता है। सन् ५०० में मौर्य राजाओंका नाम मालवा और उत्तरी कोंकणमें झलकता है। संपतिने सन् ई० से १९७ वर्ष पूर्व तक राज्य किया। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M १८०] मुंबईप्रान्तके प्राचान जैन स्मारक। इसके पीछे १७ वर्षका इतिहास अप्रगट है। यूनान लोगोंने गुजरात पर सन् ई० से १८० वर्ष पूर्वसे १०० वर्ष पूर्व तक राज्य किया। उनके दो प्रसिद्ध राजा हुए, मीनन्दर और अपोलोदोतस, इनके सिके पाए गए हैं। क्षत्रपोंका राज्य-यहां सन् ई० ७० पूर्वसे सन् ३९८ तक रहा है । इसके वंशको शाहवंश भी कहते थे, जो सिंह वंशका अपभ्रंश है । इनको सेन महाराज भी कहते हैं । शिलालेखोंके अंतमें सिंहका चिन्ह है। काठियावाड़के क्षत्रपोंके वंशका वंश चासथना (सन् १३० ) से होता है, जिनके बड़े राना नहापन (सन् १२० ) और उनके जमाई शक उपभदत्त (रिषभदत्त) के नाम नामिकके शिलालेखोंमें आते हैं कि वे शक, पहलवी और यवनोंके मुखिया थे। कुशान मंवत (मन् ७८ ) को पश्चिमी क्षत्रपोंके पहले दो राजा चशथमा प्रथम और जयदमनने स्वीकार नहीं किया है जिससे प्रगट है कि वे कुशानोंसे पूर्वके हैं। क्षत्रपोंके दो वंश थे (१) उत्तरीय-जो काबुलसे जमना गंगा तक राज्य करने थे और (२) पश्चिमीय-जो अजमेरसे उत्तर कोंकण तक दक्षिणमें और पूर्वमें मालवासे पश्चिम अरब समुद्र तक राज्य करते थे। प्राकृत मिकों में नाम क्षत्रप, क्षत्रय व खतप मिलता है। ये लोग वास्तव में वैकादियाने भारतमें आए थे। यहां भारतीय धर्म और नाम धारण कर लिये। उत्तरीय क्षत्रपोंका राज्य सन ई० से ७० वर्ष पूर्व राजा Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १८१ मनेससे शुरू होकर कुशान राजा कनिष्क (सन् ७८) तक समाप्त होजाता है । मनेस स्कैथियनके शाका वंशमें था। मनेस क्षत्रपका पुत्र क्षत्रप सुदासने मथुरामें राज्य किया फिर कनिष्कने। पश्चिमी क्षत्रपोंके राजा। (१) नहापान-प्रथम गुजरातका क्षत्रपा सिक्केपर है । “राज्ञो क्षहरातस नहपानस ।" उषभदत्त जमाई नहपानका इसको नहपानकी कन्या दहमित्रा विवाही गई थी। नामिक और करलेके शिलालेखोंमे प्रगट है कि उपमदत्तने नहपानके राज्यमें बहुत लाभकारी काम किये थे। यह बड़ा भारी अधिकारी था । यह हर वर्ष सन्नों ब्राह्मणोंको भोजन देता था । भृगुकच्छ ( भरुच ) और दशपुर ( मंदसोर ) में धर्मशाला व दानशालाएं व गोवर्धन तथा सुपारामें बाग और कुएं बनवाये थे । अम्बिका, तापती. कावेरी. दाहान नदीपर मुफ्तकी नौकाएं जारी की थीं व नदी नटपर सीढ़ियां व घाट बनाए थे। इन कामों में ब्राह्मण भक्ति झलकती है, परन्तु उमने नाभिकमें बौद्धगुफा बनवाई। गुफाओंमें निवासी साधुओंके लिये ३०० कार्यपान और ( ००० नारियलके वृक्ष व एक ग्राम पूनामें कारलेके पास दान किया । ऋषभदत्त ब्राह्मणधर्मी जब कि उसकी स्त्री बौद्धधर्मी मालूम होते हैं। (२) क्षत्रप चसथाना द्वि०-(सन् १३० से १४०), इसका पिता जन्नोतिक था, जैसा उसके शिक्कोंसे प्रगट है। (इस चसथानाका पोता रुद्रदामन था नो जूनागढ़ लेखोंमें है । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक | (३) क्षत्रप तृ० जयदमन- सन १४० से १४३ (४) क्षत्रप च० रुद्रदामन सन् १४३ से १९८ सिक्केपर है " राज्ञो क्षत्रप जयदामपुत्र राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामन ।" इसका जो लेख सुदर्शन झील पर है उससे प्रगट होता है कि रुद्रदामनकी राज्यधानी उज्जैनमें थी तथा ये नीचे लिखे स्थानोंके खामी थे (१) अकरावंती ( पूर्व व पश्चिम मालवा ), अनूप ( गुजरात के पास), आनर्त, सुराष्ट्र, स्वाभ्रा (उत्तर गुजरात), मारु (माड़वाड़), रच्छा, सिंधु सौवीर (सिंध और मुलतान), ककुर, अपरांत (उत्तर में माही दक्षिण में गोआ ) निपाद (देश-पूर्व में मालवा, पश्चिममें मिश्र, आव उत्तरमें. उत्तर कोकणतक, दक्षिण में कच्छ और काठियावाड़) | रुद्रदामनने दो युद्ध किये थे, एक यौद्धेयोंसे, दूसरा दक्षिण पथके शतकरणी । दोनोंमें विजय पाई । यौद्धेयोंके सिक्के तीसरी शताब्दीके युक्त प्रांत में मिले हैं । यह रुद्रदामन बड़ा विद्वान था । व्याकरण, राज्यनीति, गान, व न्यायशास्त्र में निपुण था । राजाओंके स्वयम्वरोंमें कई कन्याओंने वरमालाएं डाली थीं । उसको यह प्रतिज्ञा थी कि मिवाय युद्धके कोई मनुष्य किसी मनुष्यको न मारे । उसने सुदर्शन झीलको अपने ही खजानेसे बनवाई व कर नहीं लगाया । २ - क्षत्रप पंचम दामाजद या दामाजदस्ती मन- १५८ से १६८ तक | यह रुद्रदामनका पुत्र था । बीचमें रुद्रदामनके भाई रुद्रसिंह ने भी राज्य किया । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ - जीवदामन - सन् १७८ -रुद्रसिंह द्वि० - जीवदामनका चाचा- सन् १८१-१९६ इसके समयका एक गौड़ शिलालेख उत्तर काठियावाड़ के हालार स्थानमें पाया गया है | ( Indian Ant x 57) जिसमें एक कप खोदनेका वर्णन है। ?? (८) क्षत्रप सेन - रुद्रसिंह का पुत्र सन् २०३ से २२० मध्यका वर्णन नहीं । (९) क्षत्रप पृथ्वीमेन रुद्रसेनका पुत्र सन् २०२ (20) संघदमन २२२-२२६ (28) सेन का भाई २२६ - २३६ (१२) दामाजदश्री पुत्र रुद्रसेन २३६ (१३) वीरदमन दामसेनका पुत्र २३६-२३८ (१४) यशदमन भ्राता वीरदमन २३९ "" ** "" गुजरातका इतिहास । 13 "" (१५) .. विजयसेन दामाजद श्री वृ० विजयमेन २९०-२६५ (१६) (१७) रुद्रसेन द्वि० पुत्र वीरदमन २१६-२७२ (१८), विश्वसिंह पुत्र रुद्रसेन २७२-२७८ (१९), भर्तृदमन भ्राता विश्व० २७८-२९४ (२०), विश्वमेन पुत्र भर्तृ २९४ - ३०० चम्थमा वंशका अंत ७ वर्ष पीछे [ १८३ १५ ** २३९-२४९ (२१) क्ष० रुद्रसिंह पुत्र जीवदमनका सन ३०८-३११ में सिक्का कहता है। स्वामि जीवदान पुत्रसक्षत्रपस रुद्रसिंहस । (२२) क्ष० यशदमन पुत्र रुद्र० सन ३२० Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२३), दामश्री, भ्राता यश ३२० फिर ३० वर्षका पता नहीं (२४), स्वामी रुद्रसेन, पुत्र रुद्रदमन ३४८ - ३७६ (२५) रुद्रसेन च ० - पुत्र सत्यसेनका ३७८-३८८ (२६) सिंहमेन भतीजा रुद्र (२७) स्कंध इसके पाससे राज्य गुप्तोंके हाथमें गया । बैटक- इस वंशकी राज्यधानी उत्तर पूनामें जुन्नारमें थी । इसका संस्थापक महाक्षत्रप ईश्वरदत्त था । सन २४८ में इसको दामजद श्रीने हराया, सन् २०० में इन बैकूटकों को जबलपुर से पश्चिम ४ मील त्रिपुरा और कालंजर ( जबलपुर से उत्तर १४० मील ) सन् २५६ में भगा दिया गया था । इन लोगोंने अपने सम्वतका नाम चेदी सम्वत रखखा । त्रैकूटक लोग हैहयन वंशके नाम से सन १९९ में समृद्धिको प्राप्त हुए और अपनी शाखा अपने प्राचीन नगर त्रिकूटपर स्थापित की | तथा बम्बई बन्दर बहुत भाग दक्षिण तथा दक्षिण गुजरातपर राज्य किया । क्षत्रपोंके पतन और नालुक्योंके महत्त्व समयको ( सन् ४१० से १०० ) इन्होंने शायद पूर्ण किया । गुप्तवंग- क्षत्रपोंके पीछे गुजरात पर गुप्तोंने ४१० से ४५० तक राज्य किया । इन गुप्तांगों के राजा नीचे प्रमाण हुए हैंगुप्त संवत मन ई० १-१२ ३१९-३२२ १२-२९ ३२१-३४९ २९-४९ ३४९-३६९ (१) एक छोटा राजा युक्त प्रांतमें (२) धटोटकच (३) चंद्रगुप्त प्रथम वलशाली " 77 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [१८५ (४) समुद्रगुप्त बड़ा , ५०-७५ ३७०-३९५ (५) चन्द्रगुप्त द्वितीय , ७६-९६ ३९६-४१५ यह बड़ा राजा था। इसने मालवाको गुप्त सं० ८० व गुजरातको गुप्त मं० ९० व सन् ई० ४ १ ० में विजय किया था। (६) कुमारगुप्त-गुजरात व काठियावाड़में राज्य किया था । गुप्त सं० ९१-१३३ । ई० स० ४१६-४५३ (७) स्कंधगुप्त-गुजरात व कच्छ में राज्य किया था । गुप्त सं० १३३-१४९ । ई० स० ४५४-४७० इसने बहुत दिनोंसे विस्मृत अश्वमेध यज्ञको किया था । चंद्रगुप्त हि०, कुमारगुप्त व मध ब्राह्मणधर्म धारी थे। चंद्रगुप्त प्रथमने तिरहुतकी लिच्छवीवंशकी कन्याके माथ विवाह किया था । समुद्रगुप्तने अपनी मानाका नाम कुमारदेवी मिकोंमें लिया है (देखो कंधगुप्त जूनागढ़ लेख Iud. Ast. XIV) समुद्रगुप्तकी प्रशंमा अलाहाबाद के खबके लेखमें है (देखो J. R. I. S. XXI लाइन मातमें है कि इमने अच्युत नागसेनकी मेनाका विध्वंश किया । ला० १९-२० में है कि इसने नीचे लिग्वे प्रांतोंके गनाओं पर विजय पाई (१)कोशलका मनेन्द्र, (२) महाकांतार (रायपुर और छत्तीसगढ़के मध्य) का व्याघ्रराज, (३) कौराहा (केरल) का मुंडराग, (१) पैप्टपुर, महेन्द्रगिरी औसरका राजा स्वामीदत्त, (५) ऐरंग पल्लकका दमन, (६) कांचीका राजा विष्णु, (७) सायाव मुक्तका गना नीलराज, (८) वेंगीका हस्तिबर्मन, (९) पालकका उग्रसेन (१०) देवराष्ट्रका कुवेर, (११) कौस्थलपुरका धनंजय । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लाइन २१ कहती है कि उसने आर्यावर्त्तके ९ राजाओंको नष्ट किया । वे राजा हैं-रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चंद्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नंदिन, बलदर्मन । इनमें गणपतिनाग ग्वालियरका राजा था । ला० २२-२३ कहती है कि नीचेके राजा उसको कर देते थे। ममतत, गंगाखाड़ी, दायक (दक्षिण), कामरूप ( आसाम ), नेपाल, कात्रिक ( कटक ), मालवा, अर्जुनायन, यौडेय, मादक, आमीर. प्रार्जुन, सनकानिका, काफ, खरपरिक । नीचेके रानाओंने अपनी कन्याएं दी थीं-शाक, मुरुण्ड, मैहलक हीपोंके कुशान राजा देव पुत्र, शाहव शाहानुशाहीने । यह लेख कहता है कि ममुद्रगुप्तके राज्यमें मथुरा, अवध, गोवपुर, अलाहाबाद, बनारस, विहार, तिरहुत, बंगाल, राजपूतानाका पूर्व भाग शामिल था। इमीका पुत्र चन्द्रगुप्त हि० था । माता दलतादेवी थी। इमीका दूसरा नाम विक्रमादित्य था। इसने क्षत्रपोंसे गुजरात और काठियावाड़ लिया था। यह उज्जनका राना कहलाता था । उसके काठियावाडी मिकोंपर यह लेख है - "परमभागवत महाराजाधिराज श्रीचंद्रगुप्त विक्रमादित्य इमीने गुप्त संवत चलाया । यह मंवत मन ४७० में जाता रहा, तब प्राचीन मालवाका संवत विक्रम (मन ई० से ५७ वर्ष पूर्व) फिर चलने लगा। ____ इसका पोता स्कंधगुप्त था, जिसने सौराष्ट्रदेशका अधिपति पर्णदत्तको चुना था। इसका पुत्र चक्रपालित था। पर्णदत्तके सम Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १८७ यमें सुदर्शनझील फिर ठीक कीगई थी (सन् ४५७)। यह झील गिरनार पर्वतके पश्चिम भवनाथकी घाटीके पास है। ( B. R. A.S. XVIII ! कंधगुप्तके राज्यकी तारीग्वं गिरनार लेख पर १३६-१३७ हैं । काहोन गोरखपुरके ग्वभेमें १४१ हैं, इन्डो-खेड़ा ताम्रपत्र में १४६ है । शिक्कोंपर १४४, १४५, १४९ है। इसके पीछे गुप्तोंका प्रभाव घट गया। गुप्तवंशमें बुधगुप्त मन ४८५में हुआ। इसका नाम मागर जिलेके एगनक मंदिरके बभेमें है । इमका राज्य कालिंदी (जमना) और नर्वदाके मध्यमें था। तोगमन-मन ४९७ बुधगुप्तके पीछे ग्वालियरके मिक्कोंमें नाम है । इसका पुत्र मिहिरकुल था (: A t. 111) ___भानुगुप्त-मन ५१ . यह, मालवाके किसी भाग पर राज्य करता था। इसके वंशका राज्य हर्षवर्धन ( ६०७-६५० के ममय तक चलता रहा । हर्षचरितमें राज्यवईनका शत्रु मालवा देवगुप्त कहा गया है । पश्चिम भारतमें जब गुप्त गिरे तब गुप्तोंकी एक शाखा राजा नारगुप्त बालादित्यके नीचे मगधमें उठी थी। पुष्पमित्र जैन वंश-कंध गुप्तका लेख जो भिटोरीके स्तंभ है उसमें लिखित है कि इसने पुप्पमित्रको विनय किया। यह पुष्पमित्र सन ४५५ में था । यह वंश सन ७८ से ९३७ तक चलता रहा । राना कनिष्कके समयमें यह वंश बुलन्दशहरके पास बस गया था और अपनेको जैन धर्मानुयायी कहता था । ( देखो-Bhitari Ins, corp. Ius. I. HI.) गुप्त-स्कंधगुप्तके पीछे उसके भाई पुरुगुप्तने, फिर उसके Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पुत्र नरसिंहगुप्त, फिर उसके पुत्र कुमारगुप्त द्वि० ने राज्य किया। __ यशोधर्मन-सन ५३३-३४ मालवाका। इसने मिहिरकुलको हरा दिया था तो भी ग्वालियरका राजा मिहिरकुल रहा था (यूनानी व्यापारी कोसमस इंडीकोव बुस्तेने सन ५२० में उत्तर भारतमें इसका राज्य मालूम किया था) यशोधर्मनका राज्यस्थान मंदसोर था। देखो - Fit et itorps Its. Ind III. इसने ब्रह्मपुत्रमे महेंद्रगिरि तक व हिमालयासे दक्षिणममुद्र तक विजय किया था। छटी शताब्दीमें उज्जैनमें एक प्रसिद्ध वंश गज्य करता था ! यगोधर्मन म्वयं महान विक्रमाढत्य था। बल्लभी वंश-मन् ५०९-७६६)-गुजरातमें गुमोंके पीछे बल्लभी बंशने राज्य किया। इनका राज्यस्थान वलेह या वल्लभी था जो भावनगरले पश्चिम २० मील है और शठंजय पर्वतमे उत्तर २५ मील है। दो मी मिनप्रभसारिकृत संजयकल्पमें जो नेरहवीं शताब्दी में लिखा गया था इसका नाम वल्लभी आया है व प्रांतका नाम बलाहक है। (म० नोट यहीं ९ : ० वीर मम्बतमें इवे० आचार्य देवढिगणिने नांवरी लोगोंमें पाए जानेवाले आचागंग आदि अंगोंकी रचना की थी. इसलिए वर्तमान पाए जानेवाले श्वेताम्बरी अंग प्राचीन लिखित मूल अंग नहीं है।) चीन यात्री हुईनमांग मन ६४० में लिखता है कि इस समय यह एक नगर बड़ा धनवान व जन संग्व्यासे पूर्ण था । करोड़पति मौ से ऊपर थे (Over liuarrest merchant s owned 100 lack)। ६००० साधुओंके बहुतसे संघाश्रम थे। राजा यहांका क्षत्री था जो मालवाके शिलादित्यका Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। भतीना तथा कान्यकुब्जके राजा शिलादित्यके लड़केका जमाई था। नाम उसका ध्रुवपद था । यह बौद्ध धर्मको मानता था। इसने बौद्धोंके लिये अर्हतप्रचार नामका मठ बनवादिया था। जहां बोधिसत्त्व साधु गुणमति और स्थिरमति रहते थे। इन्होंने शास्त्र बनाए थे। वल्लभीके ताम्रपत्र पाए गए हैं। यहां मंदिर व मकान इंटों और लकड़ीके होते थे, परन्तु एक ही मंदिरका यहां पता चला है जो गोपीनाथपर है। ( Eurges Kuthiawur and Kitch 18977. एक ऐसा लकड़ी व इंटोंका मंदिर शत्रुनय पर्वत व एक मोमनाथपर था ऐसा पता लगा है । कहते हैं कि अनहिलवाड़ाके राजा कुमारपाल सोलंकी ( सन १ १ ४३-१ : ७४) का मंत्री शत्रुञ्जय पर्वतपर श्री आदिनाथजीके जैन मंदिरमें पूजनको आया था तब तक चूहेने दीवेकी बत्तीसे मंदिरमें अग्नि लगा दी और लकड़ीका मंदिर भम्म होगया । तब मंत्रीने पाषाणके मंदिर बनानेका इरादा किया। ( कुमारपाल चरित्र ) सोमनाथमें भद्रकालीका मंदिर पहले लकड़ीका था फिर उसको भीमदेव ( १०२२-१ ०७२ ) ने पाषाणका बनाया, ऐसा लेखसे प्रगट है। ___ वल्लभी वंशके जो ताम्रपत्र हैं उनमें वृषभका चिन्ह है तथा भट्टारक शब्द आता है । ये सब संस्कृतमें हैं। वमी संवत सन् ई० ३१९ में शुरू हुआ है । वल्लभी राजाओंके प्रबंधमें इस भांति नाम प्रसिद्ध थे। (१) आयुक्तिक या विनियुक्तिक-मुख्य अधिकारी । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२) द्रांगिक-नगरका अधिकारी (३) महत्तरि-ग्रामपति (४) चाटभट-पुलिस सिपाही (५) ध्रुव-ग्रामका हिसाब रखनेवाला वंशज अधिकारी तलाटी या कुलकरणीके समान (६) अधिकरणिक-मुख्य जन (७) डंडपासिक-मुख्य पुलिस आफिसर । (८) चौरोर्णिक-चोर पकड़नेवाला । (९) राजस्थानीय--विदेशी रानमंत्री । (१०) अमात्य-मंत्री। (११) अनुत्पन्नादान समुदग्राहक--पिछला कर वमल करनेवाला (१२) शौल्किक-चुंगी आफिसर Custom Officer (१३) भोगिक या भोगोर्णिक-आमदनी या कर वसूल करनेवाला (१४) वर्मपाल-मार्ग निरीक्षक सवार । (१५) प्रतिसरक-क्षेत्र और ग्रामोंके निरीक्षक । (१६) विषयपति-प्रांतका आफिमर । (१७) राष्ट्रपति-निलेका आफिसर । (१८) ग्रामकूट-ग्रामका मुखिया । विषयके नीचे आहार (निवार पथक (उसका भाग) फिर स्थली (उसका भी भाग) ऐसे भाग थे । राज्यधर्म अधिकतर शैव था। केवल ध्रुवमेन (५२६ ई०) परमभागवत वैष्णव था। इसका भाई और राज्याधिकारी धरपत्त--परमादित्यभक्त तथा गृहसेन बुद्धके उपासक थे। सब वल्लभी राना परममहेश्वर कहलाते थे। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास । [ ११ ये लोग मालवासे आये और अपना संवत मालवाके समान कार्तिकसे गिनते थे। गुप्तलोग चैत्रसे गिनते थे । वल्लभीराजागण | (१) सेनापति भट्टारक सन् १०९ - १२० । इसने मिहरवंशके माद्रिक (४७० - ५०९ ) को हटाया था जिनका राज्य काठियावाडमें था | अब भी मिहर लोग काठियावाडके दक्षिण वर्दा पहाड़ी में पाए जाते हैं। पोरबंदर के जेठोर सर्दार मिहर राजा कहलाते हैं। सन् ४७० में गुप्तों और मिहरोंसे युद्ध हुआ था तब गुप्त हार गए थे। मिहिर और गुप्तोंके पंजाब विजई मिहिर कुल (९१२५४० ) में कुछ सम्बन्ध था । काठियावाड़ के उत्तर पूर्व मिहर लोग १३वीं शदी तक राज्य करते रहे (रामायण) । सेनापति भट्टारकके चार पुत्र थे । धरसेन, द्रोणसिंह, रोग और धरता १०० से २६ तकका पता नहीं । (२) ध्रुवसेन प्रथम (१९६ - २३९) ४ वर्षका पता नहीं । (३) ग्रहसेन ( १३९ -१६० ) यह बड़ा राजा था । मंत्री स्कन्धभट था । (४) धरसेन द्वि० (१६९ १८९ ) ग्रहसेनका पुत्र । (५) शिलादित्य नं ० १ (२९०-६०९) पुत्र धर ० | इसको धर्मादित्य भी कहते थे। मंत्री चंद्रभट्टी थे । (६) सरग्रह - (६१०-६१९) भाई शिला० (७) घरमेन तृ० (६२९-६२० ) पुत्र ० ख० (८) ध्रुवसेन द्वि० या बालादित्य (६२० -- ६४०) भ्राता धरसेन (९) धरसेन च० (६४० - ६४९) पुत्र ध्रुव ० यह बहुत बलवान Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। था। ६४९का ताम्रपत्र कहता है कि यह परममारक महाराजाधिराज परमेश्वर चक्रवर्ती थे। भट्टीकाव्य बल्लभीमें इसीके राज्यमें लिखा गया था। जैसा वाक्य है "काव्यमिदम् रचितम् मया वल्भ्याम् श्री धरसेन नरेन्द्र पालितायाम् "। (१०) ध्रुवसेन तृ० (६५०-६५६) धरसेन च० के दादाके लड़के देराभटका पुत्र । (११) खरग्रह (६५६-६६५ ) भ्राता ध्रुव । (१२) शिलादित्य तृ० (६६६-६७५) खरग्रहके बड़े भाई शिलादित्य द्वि०का पुत्र)। (नोट-शि० द्वि०का नाम ऊपर नहीं है) (१३) शिलादित्य च० (६७५-६९१) पुत्र शि० तृ. (१४) शिलादित्य पं० (६९१-७२२) पुत्र शि० च० (२५) शिलादित्य छ० (७२२-७६०) ,, शि० पं० (१६) शिलादित्य सप्तम धुवपद (७६०-६६६)पुत्र शि० छ। अरब लेखकोंने बलहारोंको, चालुक्यों (६००-७५३)को व राष्ट्रकूटों (७५३-९७२)-को जो पूर्व दक्षिणमें मालग्वेडमें राज्य करते थे-स्वीकार किया है। प्रोफेसर भंडारकर (D can listory 565) कहते हैं कि पूर्वके कई चालुक्य व राष्ट्रकूट राना वल्लभ कहलाते थे और वल्लारोंके सम्बन्धमें लिखा है कि वे कर्णाटकमें राज्य करते थे, उनकी कनड़ी राज्यधानी मानकिर या मानखेडपर थी जो समुद्र तटमे ६४० नील है । जैनियोंके लेख बताते हैं कि मेवाड़के गोहिल या सेशोदिया लोग काठियावाड़की वाल या वल्लभीसे आए थे तथा अनहिलवाड़ामें (सन् ७४६) उन्होंने अपने गुजरात राज्यका मुख्य Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास [१९३ स्थान बनाया। तथा इनही गोहिल लोगोंने मेवाड़में वल्लीनगर वसाया जहां ये सन् ९६८ तक राज्य करते रहे, जिनकी उपाधि सेसोदिया सर्दार वल्लभी शिलादित्य रही । सेसोदिया लोग अपना नाम गोहेलाट होनेसे अपनी उत्पत्ति गुफामें उत्पन्न गुहसे बताते हैं। शायद यह गुहसेन (५५५-५५७)से उत्पन्न हों। ___ अरबलोग कहते हैं कि वल्लभीकी एक शाखा बलेहमें उस समय तक राज्य करती रही जबतक सन् ९५० में मृलराज सोलंकीने उसको जीत न लिया । वाला लोगोंका पुराना राज्यस्थान जूनागढ़से दक्षिण पश्चिम ९ मील बंथली था । मेसोदिया या गोहिला लोग कहते हैं कि बालोंका मंस्थापक कनकसेन सन १५०में उत्तर भारतसे आया और घोलका तथा घांकमें वश गया। चालुक्यांश (६३४-७४०)-चालुक्योंने दक्षिणसे आकर गुजरातको विजय किया था। पहले इन्होंने पुरी अर्थात राजूपुरी, या जंजीरा या एलीफेंन्टाके कोंकण मौर्योको जीता था । पांचवीं सदीमें प्रसिद्ध बाड़ राजा मुकेतुवर्मनके राज्यसे प्रमाणित है कि यह मौर्यवंश कोंकणमें राज्य कर रहा था। पीछे कीर्तिवर्मनके अधिकारमें चालुक्योंने इनको हराया था। उनकी अंतिम विनय पुलकेशी द्वि० (सन् ६१०-६४०) के अधिकारी चंड डंडने की थी और उनकी राज्यधानी पुरी ले ली थी। (Ind. Ant. VIII 243-4). फिर येही चालुक्य उत्तरकी तरफ बढ़ते गए । दक्षिण वीजापुरके रोहोलीके शिलालेखसे प्रगट है कि सन् Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ई० ६३४ तक लाड़, मालवा, और गुर्नरके राजा पुलकेशी द्वि. के आधीन हो गए थे। दक्षिण गुजरातमें चालुक्य राज्यकी बराबर स्थिति पुलकेशी द्वि० के पुत्र धाराश्रय जयसिंह वर्मनने--जो विक्रमादित्य सत्याश्रय ( ६७०-६८० ) का छोटा भाई था-की थी। नौसारीमें जयसिंह वर्मनके पुत्र शिलादित्यके दानका लेख मिला है जिसमें लिखा है कि जयसिंह वर्मनने अपने भाईसे राज्य पाया । (१) जयसिंह वर्मन परम भट्टारक ( ६६६-६९३ ) यह स्वतंत्र राजा था । इसके पांच पुत्र नौमारीमें राज्य करते थे। इसके एक पुत्र श्राश्रयने एक दान किया था निमका लेख सरनमें मिला है। इससे प्रगट है कि ६९१ में जयसिंह अपने पुत्र युवराजके माथ राज्यकर रहा था। (२) मंगलरान-पुत्र जयसिंहका (६९ ८. ७३१) (३) पुलकेशी जनाश्रय-मंगलराजका छोटा भाई बलमरमें विनयदित्य मंगलरान (७३-७३८) व नीमारी पुलकेशी जनाश्रय (मन ७३८) के लेख मिले हैं। पुलकेशी जनाश्रयके ममयमें अब खलीफा हासमने हमला कर काट दिया था। इस वंशका नाश राष्ट्रवाटवंगकी गुजगत शाखाने किया नो सन् १७५७-५८में गुजरातमें राज्य कर रही थी। जयसिंहके पुत्र बुद्धवर्मनने केगमें व तीमरे पुत्र नागवईनने पशिम नाशिकमें राज्य किया । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १६५ गुर्जरवंश-(५८०-८०८) वल्लभी और चालुक्य वंशका जब महत्व गुजरातमें था तब एक छोटा गुर्जर राज्य भरुचके पास राज्य करता था । संस्कृतके ९ ताम्रपत्र मिले हैं Ind. Ant. v. VII. XIII. XVII ). इनकी राज्यधानी नान्दीपुरी या नांदोद थी जो रानपीपला राज्यमें है। भरुचसे पूर्व ३५ मील । इनकी उपाधि " समधिगत पंचमहाशब्द " थी अर्थात् जिन्होंने पांच पद प्राप्त किये थे। इनका राज्यवंश। (१) दद्दा प्रथम-(सन् ५८०-६०५) (२) जयभट्ट प्रथम-(६०५-६२०) (३) दद्दा हि० -(६२० - ६५०) (४) जयभट्ट हि०-(६५०-६७५) (५) दद्दा ४०-(६७५-७००) (६) जयभट्ट तृ०-(७०४-७३४) खेडाके दान पात्रोंमें दवा प्रथमके पुत्र जयभट्ट प्रथमको विनयी और धर्मात्मा राना लिखा है तथा उसकी उपाधिमें वीतराग शब्द है । उसके पुत्र दद्दा हि० की उपाधि प्रशांतराग थी इसने दो दान किये थे । (Ini. Ant. III). इन दानोंमें है कि नंबूमर और भरुचके कुछ ब्राह्मगोंको अकृरेश्वर (अंकलेश्वर) तालुकामें सिरोशपदक (या मिमोद्रा) ग्राम दान किया गया था। ७०४-५के दानपत्र (In!. Ant VIII ) में दद्दाके सम्बन्धमें लिखा है कि उसने बल्लभीके राजाकी रक्षा की थी निसको प्रसिद्ध हर्षदेवने हरा दिया था। यह वही हर्ष है जो कन्नो Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६] मुंबईप्रान्तके प्राचान जैन स्मारक। जमें ६०७-८ में राज्य करता था । पुलकेशी द्वि०ने सन् ६३४ में नर्मदापर हर्षको विजय किया था। दहा तृको बाइसहायकहते थे । जयभट्ट तृ० को महासामंताधिपति कहते थे। इसके समय में अरब लोगोंने हमला किया था जिसको नौसारीपर युद्ध करके पुलकेशी जनाश्रयने परास्त किया था। ७३४ के पीछे इनका पता नहीं चलता है। (सं० नोट) इस वंशके राजाओंकी वीतराग आदिकी उपाघिसे अनुमान होता है कि शायद इस वंशके राना जेनी हों। राष्ट्रकूटवंश-गुजरातमें ये लोग दक्षिणसे सन ७४३ में आए। ये अपनेको चंद्रवंशी या यदुवंशी कहते हैं। इनका मुख्यस्थान मान्यखेड (मलखेड) है जो शोलापुरसे दक्षिण पूर्व ६० मील है। इनका सबसे प्राचीन शिलालेख सन् ४५० का मिला है, जिस समय राजा अभिमन्यु राज्य करते हैं उसमें चार राजा दिये हुए हैं। मानान्केर देवराज भविष्य अभिमन्यु Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्रकूट वंशका वृक्ष सन् ६३० से इस भांति है (१) दंतिवर्मन सन् ६३० (२) इन्द्र प्रथम सन् ६५५ (३) गोविन्द प्रथम सन् ६८० (४) कका प्रथम सन् ७०५ गुजरातका इतिहास। (५) इन्द्र द्वि० ७३० (७) कृष्ण ७६५ (६) दंतिदुर्ग या दंति गोविन्द (८) गोविन्द द्वि० ७८० वर्मन ७.३ (९) ध्रुव, धारावर्ष, निरुपम, घोर ७९५ कक्का द्वि०७४७ . । ... (१०) गोविन्द तृ०, प्रभूतवर्ष, वल्लभनरेंद्र, जगतुंग, पृथ्वीवल्लभ ८०३ (१) इन्द्र-गुजरात शाखास्थापक 633 ] Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) इन्द्र १६८] (१०) गोविन्द ४० (११) अमोघवर्ष, सार्वदुर्लभ, श्री वल्लभ, लम्बीवल्लभ व वल्लभस्कंध शाका ७७३-७९९ सन् ८१४-८७७ (२) कर्क ८१२ (३) गोविन्द-प्रभृतवर्ष ८२७ दंतिवर्मन (४) ध्रुव, धागवर्ष, निरुपम ८३५ (५) अकाल वर्ष-शुभतुंग ८६७ --- ___(७) अकाल वर्ष-कृष्ण ८८८ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (१२) अकालवर्ष कृष्ण. कन्नर (६) ध्रुव द्वि० ८७१ जगतुंग ( राज्य न किया ) (१३) इन्द्र तृ० पृथ्वीवल्लभ. रत्तकंदर्प, कीर्तिनारायण नित्यंवर्ष. सन ९१४ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) इन्द्र तृ० (१४) अमोघवर्ष शा० ८४० सन् ११८ (१५) गोविंदराज-साहसांक सुवर्णवर्ष (१६) वहिग (१७) कृष्ण ०४-००६ (१८) कोटिंग (१९.) निम्पम गुजरातका इतिहास। (२०) कक्कल या कर्कराज सन् ९७२ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] : मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नोट- प्रसिद्ध नागवर्मनकी कन्या गोविंदको व्याही थी जिसका पुत्र कक्का द्वि० सन् ७४७ में था । कक्का प्रथमका पोता दंतिदुर्गा एक बलवान राजा था । उसने माही और नर्मदा मध्यके गुजरातको विजय किया था व लाट तथा मालवाका भी अधिकारी था । दक्षिणको लौटते हुए दंतिदुर्गाके पीछे १० वें राजा गोविंद तृ० ने गुजरातदेश अपने छोटे भाई इन्द्रको सौंप दिया । जबसे गुजरातकी शाखा प्रारंभ हुई । 1 इन्द्रको लाटेश्वर भी कहते थे इसने ८०८ से ८१२ तक फिर कर्क प्र० ने ८१२ से ८२१ तक राज्य किया था । इसको सुवर्णवर्ष तथा पातालमल्ल भी कहते थे । कर्कका सूरतका दानपत्र मन ८२१का मिला है, जिससे प्रगट है कि कर्कने वेकिक नदी (बलसरके पास बांकी) के तटपर अपने राज्यस्थानसे नौसारीके एक जैन मंदिरको नागसारिक के पास अम्बापातक ग्राम भेट किया। इस दानपत्रका लेखक युद्ध और शांतिका मंत्री नारायण है जो दुर्गाभट्टका पुत्र है । ताप्ती नदी दक्षिण यह पहला ही भूमिदान है जो गुजरात राष्ट्रकूट राजाने किया था । इससे यह पता चलता है कि राजा अमोघवर्षने कर्कके राज्य में उत्तर कोंकणका भाग दे दिया था जो अब ताप्तीके दक्षिण गुजरात कहलाता है। शाका ८३२ व सन् ९१० के ताम्रपत्रसे प्रगट है कि बल्लभ अर्थात् अमोघवर्ष या प्रसिद्ध महास्कंधने एक सेना भेजकर कंथिक (बम्बई और खंभातका तट) को घेर लिया। इस युद्धमें ध्रुव जखमी होकर मर गया । कन्हेरी गुफाका लेख भी Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास [ २०१ कहता है कि अमोघवर्ष शाका ७९९ व सन् ८७७में जीवित था। ध्रुवके पीछे उसके पुत्र अकालवर्षने राज्य किया । जिसका नाम शुभतुंग भी था फिर उसके पुत्र ध्रुवहिने फिर दंतिर्वमनके पुत्र अकालवर्ष, कृष्णने राज्य किया । इसी समय मान्यखेडमें राष्ट्रकूट अमोघवर्ष राज्य कर रहे थे जिन्होंने ६३ वर्ष राज्य किया । अब गुजरात राष्ट्रकूट वंश समाप्त हुआ, परंतु मान्यखेडके मुख्य वंश रप्टकूटने फिर सन् ९१४में दक्षिण गुजरातमें आधिपत्य जमाया । जैसा नौसारीके दो ताम्रपत्रोंसे प्रगट है। जिसमें यह कथन है कि कृष्ण अकालवर्ष के पोने व जगतुंगके पुत्र गजा नित्यमर्ष इन्द्रने लाड़ देशमें नौमार्गके पास कुछ ग्राम दान किये । (B. R. A S. XVIII , मान्यखेड़के अमोघवर्ष के पीछे अकालव ने ८८. मे ९, तक राज्य किया । मालम होता है कि इस दक्षिणी रणने गुन रातको लेलिया था. क्योंकि इस ममयसे दक्षिण गुजरातको जो लाडके नामसे कहलाता था दक्षिण राष्ट्रकूटमें सदाके लिये शामिल कर लिया गया। शाका ८३२ का कपड़वंजका एक दानपत्र मिला है (ED. IN ID: जिसमें लेख है कि महा सामंत कृष्ण अकालवर्ष प्रचंडके सेनापति चंद्रगुप्तके अधिकारमें प्रांतिनके पास हर्षपुर या हर्मोल पर खेड़ा जिलेमें ७५० ग्राम थे । सन् ९७२में गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पाके अधिकारमें चला गया जिसने वारप्पा या द्वारप्पाको मौंप दिया था । इसका युद्ध सोलंकी मूलरान अनहिलवाड़ा (९६१-९९७) के साथ हुआ था। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a n.hryana २०२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । wwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ___अनहिलवाड़ा राज्य-७२० से १३०० तक। इसका वर्णन नीचे लिखे ग्रन्थोंके आधारपर इस गज़टियरमें लिखा है। हेमचंद्र कृत द्वाश्रयकाव्य, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिंतामणि और विचारश्रेणी, जिनप्रभसूरिकत तीर्थकल्प, जिनमंडनोपाध्यायकृत कुमारपाल चरित्र, कृष्णर्षिकत कुमारपाल चरित्र, कृष्णभट्टरत रत्नमाला, सोमेश्वरकत कीर्तिकौमुदी, अरिमंहकृत सुरुतसंकीर्तन. राजेश्वरकृत चतुर्विशति प्रबन्ध, वस्तुपाल चरित्र । चावड़वंश-सन् ७२० से ९६१ तक । अनहिलवाड़ाकी स्थापनाके पहले चावड़ सर्दार पंचासेर ग्राममें राज्य करते थे, जो गुजरात और कच्छके मध्य वधियारमें एक ग्राम है । मन ६९६में जयशेखर चावड़को कल्याणकटकके चालुक्य राजा भुवड़ने मार डाला । उमकी स्त्री रूपमुंदरी गर्भस्था थी। उसीका पुत्र वनराज था जिमने अनहिलवाड़ाको स्थापित किया। पंचासेरको अरब लोगोंने ७२०में नष्ट किया। प्रबन्ध चिंतामणिमें लिखा है कि गर्भस्था रूपसुंदरी बनमें रहती थी। वहां उसने एक पुत्रको जन्म दिया तब एक जैन यति ( नोट-श्वे० मालूम होते हैं। ) शीलगुणमूरिने उसकी मातासे पुत्र लेकर एक आर्यिका वीरमतीको पालनेके लिये दिया । साधुने उसका नाम वनराज रक्खा । इसके मामा मुरपालने इसे बड़ा किया । इसने अनहिलवाड़ा बसाया । सन् ७४६ मे ७८० तक राज्य किया। इसकी आयु १०९ वर्षकी थी। इस वनराजने अनहिलवाड़ामें पंचासर पार्श्वनाथका जैन मंदिर बनवाया जिसमें मूर्ति पंचासरसे लाकर विराजमान की। इसी मूर्तिके सामने वनराजने नमन करते हुए अपनी मूर्ति Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास। [२०३ स्थापित की जो अब सिद्धपुरमें है। इसका चित्र राजमालामें दिया हुआ है। इस मंदिरका वर्णन मोलंकी और बाघेलके समयमें भी मिलता है। चावड़ गजा हुए। (१) वनराज ७८० तक २६ वर्षका पता नहीं फिर भाई (२) योगराज (०६ मे ८४१. फिर इसका पुत्र (३) क्षेमरान ८४१ मे ८८. फिर इसका पुत्र (४) चामुंड ८८० मे २०८, फिर इमका पुत्र (५) घघड ९०८ मे ९३७ (६) नाम अप्रगट ९३ ७ मे ९६१ तक । चालुक्य या सोलंकी-(९६४ मे १२४२ तक ) चावटोंक पीछे सोलंकियोंने राज्य किया । ये लोग जैनधर्म पालने थे इमीसे न लेखकोंने इनका वर्णन अच्छी तरह लिखा है । मोलंकियोंके सम्बन्धमें सबसे प्रथम लेग्वक श्री हेमचन्द्र आचार्य (० मन् १०८९-११७३) है। इन्होंने अपने द्वाश्रय काव्यमें सिद्धराज (११४३) तक वर्णन दिया है । इस काव्यको हेमचन्द्रने सन् ११६० में शुरू किया था, परन्तु इसकी समाप्ति अभय तिलकगणि (श्वे. माधु) ने १२५५में की थी l Aut: IV. 70 VI 131) ). अंतिम अध्यायमें केवल राजा कुमारपालका वर्णन है । अंतिम चावड़ा राजा भृभत हुआ था। उसके पीछे चावड़ा रानाकी कन्याके पुत्र मूलराजने राज्य किया । (१) मूलराज (९६१-९९६) भूभतकी बहनका तथा महाराजाधिराज राजी चालुक्यका पुत्र था । बहुत जैन लेखकोंने अनहिलवाडाका इतिहास मुलराजसे प्रारंभ किया है। यह सोलंकी Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। वंशका गौरव था । इसने अपना राज्य काठियावाड और कच्छ पर बढ़ाया था । दक्षिण गुजरात या लाड़के राजा बारप्पासे तथा अनमेरके राजा विग्रहराजसे युद्ध किया था। अजमेरके राजाओंको सपादलक्ष कहते थे । अजमेरका नाम मेहर लोगोंसे पडा है जिन्होंने ५वीं व ६ठी शताब्दीके मध्यमें वहां राज्य किया था। हम्मीरकाव्यमें प्रथम अजमेरका राजा चौहान वासुदेव सन् ७८०में था। इससे चौथा राजा अजयपाल ( ११७४-- ११७७ ) व १० वां विग्रह राज था। मूलरानने अनहिलवाडामें एक जैनमंदिर बनवाया जिसको मूलवस्तिका कहते हैं । इसने कुछ शिवमंदिर भी बनवाए थे। मूलरानने अपना बहुतमा समय सिहपुरके पवित्र मंदिरमें बिताया था जो अनहिलवाड़ासे उत्तरपूर्व १५ मील है। (२) चामुड़-मूलरानका पुत्र (मन ९९७-- १ ० १ ०) दूसरा राना हुआ । यह यात्रा करने बनारमकी तरफ गया था। मार्गमें मालवाके राना मुंजने युद्ध किया (सन् १ ० १ १) और इसका छत्र लेलिया तब यह छत्ररहित साधारण त्यागीके रूपमें यात्राको गया। मुंजके पीछे मालवामें राजा भोजने (मन १०१४) तक राज्य किया। (३) दुर्लभ-(१०१०-१ ०२२) चामुंडका पुत्र इमको जगत झंपक भी कहते थे । इमने दुर्लभ सगेवर बनवाया था। (४) भीम प्रथम-(सन् १ ०२२-१०६४) यह दुर्लभका भतीजा था । यह बहुत बलवान था । भीमने सिंध और चेदी या बुन्देलखण्डके राजापर हमला किया। उसी समय मालवाके राजा भोजके सेनापति कुलचन्द्रने अनहिलवाड़ापर हमला किया और Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ २०५ जय प्राप्त की ( देखो भिलसाके पास उदयपुरके मंदिर में एक लेख राजा भोजके पीछे उदयादित्य राजाका ), परन्तु भीम राज्य करता रहा । १०२४ में महमूद गजनीने सोमनाथ महादेव के मंदिरपर हमला किया | यह मंदिर वल्लभी लोगोंने बनवाया था (सन् ४८० ) इसमें मूलराजने भी धन दिया था। इस मंदिरके लकडीके ५६ खंभे थे । महमूदने ५०००० हिन्दू मारे व २० लाख दीनार द्रव्य लूटा । महमूदके जानेके पीछे भीमने फिरसे सोमनाथ के मंदिर को पाषाणका बनवा दिया। कुछ वर्ष पीछे आचूके सदीर परमार धन्धुकासे भीमकी अनबन हो गई तब उसने अपने सेनापति विमलको उसे वश करनेको भेजा । धन्धुका वशमें हो गया, इसने आचूकी चित्रकूट पहाड़ी बिमलको दे दी, जहां विमलशाहने प्रसिद्ध जैनमंदिर बन - वाया जिसको मिलवसही कहते हैं । (५) कर्ण - (१०६४ - १०९४ ) यह भीमका पुत्र था इस राजाके तीन मंत्री थे। मुंजाल, सांतु और उदय । उदय मारवाडके श्रीमाली बनिये थे । सांतुने सांतुवसही नामका जैनमंदिर बनवाया था । उदयने कर्णद्वारा स्थापित करुणावती (वर्तमान अमदावाद) में उदयवराह नामका जैनमंदिर बनवाकर उसमें ७२ मूर्तियें तीर्थंकरोंकी स्थापित की थीं । उदयके पांच पुत्र थे - आहड, चाहड, बाहड, अंबड और सोला । पहले चारने कुमारपाल राजाकी सेवा की । सोल्ला व्यापारी हो गया था । (६) सिद्धराज जयसिंह - कर्णका पुत्र । (१०९४ - ११४३ ) मुंजाल और सांतु मंत्री इसके भी रहे। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इसके एक दूसरे मंत्रीने सिद्धपुरमें प्रसिद्ध जैन मंदिर महाराज भुवन बनवाया उसी समय सिद्धराजने रुद्रमालाका मंदिर सिद्धपुरमें बनवाया । इसको सधारो जैसिंह कहते थे । यह बड़ा बलवान, धार्मिक व दानी था, सोमनाथ महादेवका भी भक्त था । यह मंत्र शास्त्र जानता था इसलिये इसको सिद्ध चक्रवर्ती कहते थे । इसने बर्द्धमानपुर (वधवान) आकर सौराष्ट्र राना नोधनको विजय किया तथा सोरठदेश लेकर सज्जनको अधिकारी नियत किया ( देखो गिरनार लेख सम्वत ११७६ )। सज्जनने श्री गिरनारमें नेमिनाथजीका जैन मंदिर बनवाया (लेख सन् १ १२०)। सिद्धराज जैनधर्मका भी भक्त था । यह ब्राह्मणोंके भयसे भेष बदलकर श्री सेव॒नयकी यागको भी गया था, वहां श्री आदिनाथनीकी भेट १२ ग्राम किये थे। सिद्धराजने सिंह संवत चलाया था जो सन् १११३से प्रभास और दक्षिण काठियावाड़के लेखोंमें है। उस समय मालवाका राजा नववर्मन परमार था (११०४-११३३) और उसका पुत्र युवरान यशोर्वमन (१ १ ४३) था। मिद्धराज १२ वर्ष तक मालवाके राजासे लड़ा। अंतिम विजय मन ? १३ में सिद्धराजने पाई तबसे इसका नाम अवन्तिनाथ प्रसिद्ध हुआ। (Ind. Ant. VI 114) दूसरा युद्ध महोवाके चंदेलराना सायनसे हुआ, उसमें मिद्धराजने भेट पाकर सन्धि करली । जनस्वक इसको जैनधर्मी लिखते हैं, परंतु इसकी भक्ति महादेवमें भी थी। इसने सिहपुरमें रुद्रमहालय बनवाया तथा पाटनमें सहश्रलिंग नामकी झील बनवाई थी। इसी सिद्धरानके समयमें श्वे. जैनाचार्य हेमचंद्र प्रसिद्ध हुए थे। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ २०७ यह बड़े विद्वान् थे । राजा इनका बहुत सन्मान करता था। इनकी बहुत प्रसिद्धि राजा कुमारपालके समयमें हुई थी । इस समय धारके राजा भोजकी विद्वन्मान्यता बहुत प्रसिद्ध थी । उसकी सभा में पंडितगण बैठते थे । राजा भोजका एक संस्कृत विद्यालय धार में था, जिसके खंभे धारकी मसजिदमें हैं । इनमें संस्कृत प्राकृत व्याकरणके ४०० सूत्र खुदे हुए हैं। इसी कारण और राजाओंने भी विद्याकी मान्यता की थी गुजरात, सांभर व अन्य प्रांतोंके राजा भी विद्वानोंकी कदर करते थे। अजमेर में जो अढ़ाई दिनका झोपड़ा है वह भी संस्कृत विद्यालय था उसके पाषाणोंपर पूर्ण नाटक अंकित मिला है। सिद्धराज के एक कवि श्रीपालने सहश्रलिंग झीलपर एक प्रशस्ति लिखी है । इसी समय हेमचंद्राचार्यने सिद्धम व्याकरण और हाय काव्य लिखा । दिगम्बर श्वेताम्बर बाद सभा - राजा सिद्धराजने एक बाद सभा बुलाई थी । करणाटकके एक दिगम्बर जैनाचार्य कुमा । दचंद्र करणावती या अहमदावाद में आए थे । तत्र श्वेताम्बर जैन आचार्य देवसूरि अरिष्टनेमिके जैन मंदिर में रहते थे। दोनोंकी वार्तालाप हुई फिर दिगम्बर जैन साधु अनहिलवाड़पाटन नग्नावस्थामें आए । सिद्धराजने उनका बहुत सन्मान किया क्योंकि वे उसकी माताके देशसे पधारे थे । सिद्धराजने हेमचंद्रसे कहा कि आप वाद करें। हेमचंद्रने कहा कि देवसूरिको वादके लिये बुलाना चाहिये | देवसूरि और कुमुदचंद्रका वाद सभामें हुआ । दिगंबरोंकी तरफसे कहा गया था कि स्त्री निर्वाण नहीं पासक्ती तथा वस्त्र सहित जैन निर्वाण नहीं पासक्ता । ये दोनों बातें राजाके श्वे ० Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जैन मंत्रियोंको मान्य न थीं इस लिये वाद होते होते ब्राह्मणोंकी सभाओंके समान हुछड़ मच गया तब सिद्धराजने शांति कराई । श्वे ० लेखक कहते हैं कि देवसूरिने विजय प्राप्त की । देवसूरी हेमचंद्रका गुरु था । सिद्धराजके कोई पुत्र न था । भीमदेव प्रथमका पड़पोता त्रिभुवनपाल सिद्धराजके नीचे दहिलथीमें अधिकारी था । उसकी स्त्री काश्मीरदेवी थी जिससे तीन पुत्र महीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल और दो कन्याएं प्रेमलदेवी और देवलदेवी हुए । ज्योतिषशास्त्र से जानकर कि कुमारपाल राजा होगा सिद्धराज उससे असंतुष्ट हो गया। तब कुमारपाल भाग गया। एक मित्रके साथ कुमारपाल खंभात गया वहां हेमचंद्राचार्य से मिलाहेमने कहा कि तू अवश्य राजा होगा । कुमारपालने आचार्यकी शिक्षा के अनुसार चलना स्वीकार किया। यहांसे कुमारपाल टपद्रपुर (बड़ौधा) आया और एक बनियेसे मिला जिसका नाम कतक था, कहते हैं इसने भुने हुए चने खिलाकर कुमारपालका सन्मान किया। यहांसे वह भृगुकच्छ या भरोंच गया फिर उज्जैन जाकर अपने कुटुम्बसे मिला, वहांसे वह कोल्हापुर भाग गया । वहांसे कांची या कंजीवरम् गया। वहांसे कालम्बपाटन गया । वहांके राजा प्रतापसिंहने उसे बड़े भाई के समान रक्खा और उसके सन्मानमें एक मंदिर बनवाया । नाम रक्खा " शिवानंद कुमालपालेश्वर तथा सिक्के में कुमारपालका नाम खुदवाया । यहांसे वह चित्रकूट ( चित्तौर) आया फिर उज्जैन आया। यहांसे वह अपना कुटुम्ब लेकर सिद्धपुर आकर अनहिलवाड़ा आया व अपने साले कृष्णदेवसे मिला । 17 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास। [२०६ उसी समय सिद्धरानका मरण सन् ११४३में हो गया तब मंत्रियोंने कुमारपालको राना उसकी ५० वर्षकी उम्रमें बना दिया। (७) कुमारपाल (मन् ११४३-११७४) इसकी पटरानी भृपालदेवी थी। कुमारपालने उदयनको मंत्री, उदयनके पुत्र बाहड़को महामात्य व मिस बनियेने चने दिये थे उस कतकको बडीधा ग्रामका राज्य दिया । जो मित्र कुमारपालके साथ गया था उस वोपरीको लाट मंडलका राज्य दिया । सांभरके राजा आनाकसे युद्ध हुआ। कुमारपालने विजय पाई । उसने मालवाक राजा वल्लालको भी हरा दिया। कोंकणके राजा मल्लिकार्जुन पर भी इने विनय पाई। अंबड सेनापतिके इस कार्यमे प्रमन्न हो कुमारपालने उमे राजपितामहका पद दिया । मौर प्टक गाना सुमीग्मे भी युद्ध हुआ। उदयन मंत्रीने यह कार विजय पाई । उदयन पालीन नामें यात्राको आया । जब वह दर्गन कहा था एक चूहे ने दीपकी बीमे लकड़ीके मंदिर में अनि लगादी तब उसने इरादा करलिया कि इसको पापाणका बना देंगे। एक गुजगतके युद्ध में जैन मंत्री वन घायल हो गया और वह सन् । ४९३ मा। तब वह अपने पुत्रोंको कह गया था कि मे. जयपर आदीश्वर मंदिर, गरुचमें सयुनिका विहार तथा गिरनारकी पश्चिम और सीढ़ियां बन पाना । तदनुसार उसके दोनों पुत्र वाहड़ और अम्बड़ने मंदिरादि कवादि । जब सुकुनिका विहारमें श्री मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा हुने लब रजा कुमारपाल अपनी सभामंडी सहित पधारे थे। हेन कदाचार्य भी मौजूद थे । गिरनारने मीनियां भी क.टी गई थी मा सन १९६६के लेखसे प्रगट है। . Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] मुबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इसमें ६३ लाख द्रम्मा खर्च हुए थे, (द्रम्मा = 1-) सेनुन्जयपर आदीश्वर मंदिर सन् १९५६ में बनवाया गया था । बाहडने सेंजयके पास बाहड़पुर नामका नगर बसाया और त्रिभुवनपाल नामका जैनमंदिर बनवाया ( यह पालीतानाके पूर्व ) है । कुमारपालने पद्मपुरकी पद्मावतीको विवाहा था व सांभर और मालवाके राजाओंको जीता था । सोमनाथ के मंदिरका भी जीर्णोद्धार किया था । खंभात या स्तंभतीर्थमें सागलबसहिकके जैन मंदिरका भी जीर्णोद्वार कराया था जहां हेमचंद्राचार्यने दीक्षा धारण की थी। इसने पाटनमें करम्बिक विहार, भूपालविहार नामके मंदिर बनवाए तथा हेमचंद्र के जन्मस्थान में झोलिकाविहार बनवाया | इसके सिवाय कहते हैं कि इसने १४४४ मंदिर नवाए। इसकी सभा में रामचंद्र और उदयचंद्र दोन पंडित रहते थे। रामचन्द्र प्रबन्धशतक बनाया था | हेमचंद्र चान्विंग नानके मोड़ बनिया व पाहिनी माताका पुत्र सन सिरानके राज्यमें इसने सिद्ध हे व अनेका नाममाला रचे । तथा द्वायको हेमचन्द्राचार्यकी सम्मति कुमारपालने श्री शांति १०८९ में फेल हुआ था । व्याकरण देनामाला किया । मूर्ति था। इसने राज्यमें स्थापित की थी। यह मांग नहीं अपने राज्य शिकार खेलने व पशुवक मनाई कर इसने शिकारियोंसे शिरा दूसरे कामोंने इसकी सेना के सब पशुओं को बना हुआ पानी दिया जाता था । पुत्र मरता था उसी जायदाद पर भी हमने अपना हक दी थी । दिया था Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ २११ छोड़ दिया था। कुमारपालके समयमें हेमचंद्राचार्य ने नीचे लिग्वे ग्रंथ लिखे-(१) आध्यात्मोपनिषद या योगशास्त्र १२००० श्लोक-१२ अध्यायमें, (२) त्रिशष्ठि शलाका पुरुषचरित्र परिशिष्ट पर्व ३५०० श्लोक, (३) श्री महावीरके पीछे स्थविर जीवननस्त्रि, (४) प्रारत शब्दानुशासन, (५) द्वाश्रय प्रारतकाव्य, (३) छन्दोनुशासन ६००० श्लोक, (७) लिंगानुशासन, (८) प्राकृत देशी नाममाला, (९) अलंकार चूड़ामणि । हेमचंद्राचार्य ८४ वर्षकी आयुमें सन् ११७२में खर्ग प्रात हुए। राना कुमारपालका मरण सन ११७४में हुआ । कुमारपालके कोई पुत्र न था। उसके बाद उसके भाई महीपालका पुत्र अजयपालने राज्य किया । (८) अजयपाल-(११७५.१९५७; यह जैनधर्मसे द्वेष रखता था। (९) मूलराज दि० (१ : ५९, यह अजयपालका पुत्र था । (१०) भीन दि०-: । ५०, ४२) भीमके पीछे वाधेलोंका बल पास हुआ। वाट वंश-(२१९-१३०४) वाघेरवंश सोलंकी वंशकी एक शाखा थी जो कुमारपालकी माताकी बहनके पुत्र अर्ण राजा या आणकसे प्रगट हुई। (१) अर्णराज (११७०-१२००) इसने अनहिलवाड़ाके दक्षिण-पश्चिम १० मील वाघेला ग्रामका राज्य पाया था । (२) लवणप्रसाद (१२००-१२३३) इसका पुत्र वीरधवल था, इनके यहां वस्तुपाल और तेजपाल दो प्रसिद्ध जैन मंत्री थे, Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जिन्होंने आबूके प्रसिद्ध जैन मंदिर व शेव॒जय तथा गिरनारके जैन मंदिर बनवाये। (३) वीरधवल-(१२३३-१२३८) इसका मंत्री तेजपाल जैन था। तेजपाल बड़ा वीर था इसने गोधराके सरदार धूधलको कैद कर लिया था। वस्तुपाल जैन भी बड़ा वीर था, इसने दिहलीके सुलतान मुहम्मद गोरी (११९१ १२०५) की सेनाओंको विनय किया। ता उससे मंधि करली। अपनी माताकी तथा अपनी स्त्री ललितादेवीकी मम्मतिसे वस्तुपालने श्री आवूनीका श्री नेमिनाथका मंदिर सन् १२३ में, श्री सेव॒जयमें श्री पार्श्वनाथनीका तथा गिरनार में श्री नेमिनाथजीका मंदिर सन् १२३२में बनवाए। वस्तुपाल सेवजयकी यात्राको जाता था। मार्गमें प्राणान्त हुआ। तब उसके भाई तेनपाल व उसके पुत्र जयंतपालने वस्तुपालके देहकी दाह पहार पर की और उसकी यादगारमें स्वर्गारोहण पासाद बनवाया । (४) विशालदेव (१२४३-१२६) इसके समय में वर्षलोंका अधिकार गुजरातमें होगया था । (५) अर्जुनदेव (१२६२-- १२७४)- यह विशालदेवके भाई प्रतापमलका पुत्र था। (६) सारंगदेव (१२७५-१२९६) यह अर्जुनदेवका पुत्र था । वस्तुपालके आबूनीके मंदिरमें सन् १२९४का एक शिलालेख है जो प्रगट करता है कि उस समय अनहिलवाड़ पाटनका राना सारङ्गदेव था तथा कुछ दान जैन मंदिरोंको किया गया। (७) कर्णदेव (१२९६-१३०४) इसके समयमें गुजरातको Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [२१३ अलाउद्दीन खिलजीके भाई अलफ्तखाने नशरतखांक माथ १२९७ में ले लिया । अलफ्तखाने बहुतसे जैन मंदिरोंको तोड़कर अनहिलवाड़ामें मसनिदें बनवाई। मुसलमानलोग-(१२९७-१७६०) अहमद प्रयमने सन् १४१३ में वर्तमान अहमदाबाद वसाया व १४१९ में त्रिम्बकदाससे चांपानेर नगर लेकर ध्वंश किया तथा महमदशाहने पावागढ़को सन् १४८४ में लिया । नोट-आबू पर्वतसे ६० मील पश्चिम भिनयाल-जो ऐतिहासिक श्रीमाल है-छठीसे नौमी शताब्दी तक गुजरातकी राज्यधानी रहा । यहां चार जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीके हैं। यूनान लोगोंको पश्चिम भारतका ज्ञान था ष्टैवो (सन् ६३ ई० पूर्वसे २३ सन ई०) लिखता है कि सन १४में पोरसके पाससे तीन भारतीय एलची भेट लेकर आगष्टम बादशाहके पास आए थे-उनहीके साथ भरुचसे एक जैन श्रमणाचार्य आए थे-- इन्होंने अथन्सनगरमें ममाधिमरण किया था। अरब लेखकोंने गुजरातके सम्बन्धमें लिखा है अलविरुनी (सन् १०३०) वल्लभवंशके सम्बन्धमें लिखता है कि अनहिलवाड़ाके दक्षिण ९० मील वल्लभीनगर था जैन लेखक लिखते हैं कि वल्लभीका पतन सन् ८३० में हुआ। सन् ८५०से १२५० तक जितने गुजरातके शासक हुए हैं उन सबमें जिस वंशका प्रभाव अरबोंपर पड़ा वह मान्यखेड़ वा बल्हारवंश है (सन् ६३०से ९७२) अरबोंने राष्ट्रकूटोंकी बहुत Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४] मप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। प्रशंसा लिखी है। वे गोविन्द तृ० पृथ्वीमठ (८०३-८१४) को वल्लभ तथा उसके पीछे अमोघवर्ष वल्लभस्कंध (९१५-९४४) को परमवल्लम कहते थे। एक व्यापारी सुलैमान (८१५) ने मान्यखेडके रानाको दुनियांके बड़े रानाओंमें चौथा नं दिया है। अरबलोगोंने लिखा है • The Arabs found the Fastra Kutas kind and liberal rulers, there is ample evidence. In their territories property was secure; Theft or rubbery was unknown, Commerce was encouraged or Foreignes irere treated with consideration and respect The Rastrakutas dominion was Tast, well-peopled. commercial and fertile. The people lived nostly on vegetarian diet, rice, peas, beans etc their daily food, suleman represents the people of Gujrat as steady abestenious, and sober abstaining from Rive as well as from vinegar." "कि राष्ट्रकूट वंशके राजा बड़े दयालु तथा उदार थे । इस बातके बहुत प्रमाण हैं। इनके राज्यमें मालको जोखम न थी, चोरी या लूटका पता न था । व्यापारकी बड़ी उत्तेजना दी जाती थी। परदेशी लोगोंके साथ बड़े विचार व सन्मानमे व्यवहार किया नाता था । राष्ट्रकूटोंका राज्य बहुत विशाल था। घनी वस्ती थी। व्यापारसे भरपूर था व उपनाऊ था । लोग अधिकतर शाकाहारपर रहते थे। चावल चना मटर आदि उनका नित्त्यका भोजन था । मुलेमान लिखता है कि गुजरातके लोग पक्के संयमी थे मदिरा तथा ताड़ी काममें नहीं लेते थे। सन् १३००के अंतमें रशीउद्दीन वर्णन करता है कि गुजरात बहुत ऐश्वर्य्ययुक्त देश है-जिसमें ८०००. ग्राम हैं। लोग बड़े खुश हैं, पृथ्वी उपनाऊ है। तथा सबसे बड़ी बात जो अरब Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास [२१५ लोगोंको पसंद आई वह राना और प्रनाका उनके मुसल्मानी धमकी तरफ माध्यस्थ भाव है । सन् ९१६में आबू नईद लिखता है कि हिन्दू लोगोंमें परदेका रिवाज न था। राजाओंकी रानियां भी स्वतंव्रतासे दरवारमें आतीं व लोगोंसे मिलती थीं। ११ वीं शदीके अंतमें अलहदीसी लिखता है कि भारतवासी बड़े न्यायशील हैंअपने कारोव्यवहारमें नीतिका बहुत ध्यान रखते हैं। इनकी ईनामदारी, मचा विश्वास व सत्यताके कारण ही विदेशी उनके देश में बहुत मळ्यामें आते हैं और वाणिज्य की उन्नति करते हैं। ------ -- Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयुक्त प्रांतकेप्राचीन जैन स्मारक। यह अपूर्व स्मारक भी पूज्य ब. शीतलप्रसादनीने ही बड़े परिश्रमसे पुराने सरकारी गैजेटियरपरसे तैयार किया है। इसमें संयुक्त प्रान्तके सभी जिलोंका वर्णन है । प्रत्येक ग्रामका वर्णन उसके जिले परगने महित स्पष्ट दिया गया है । इसमें की भूमिका ३२ एष्ठोंमें बाहीरालालजीने महत्वपूर्ण अनेक प्राचीन उदाहरणों सहित लिखकर इसकी महत्वता और भी बढ़ा दी है। इसमें : जिलोंका वर्णन है और अकारादि क्रममे प्रत्येक ग्रामको सूर्च न दी है। निममे किम ग्राममें कौन प्राचीन स्थान है यह तुरत निकल सक्ता है। संयुक्त प्रान्तके भाइयों को इसकी १-१ प्रति मंगाकर अपने यहांके प्राचीन स्थानोंकी खोन कर अपनी प्राचीनता प्रकट करनी चाहिए। इलाहाबादकी सुन्दर छपाई व अच्छा कागज तथा टष्ठ करीब १६. होने दुग मूल्य मिर्फ ) है । और भी मब जगहके छपे मर प्रकारके जैन ग्रन्थ हमारे यहां हमेशा तैयार रहते हैं। कमीशन भी देते हैं। मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय, चन्दावाड़ी-मूरत । -MRAK Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९ अक्षरवार सूची। अकलंक देव . १६२ अहमदाबाद निला ४ अनहिलवाड़ाराज्य २०२ , नगर | अरब लेख २१३ अजित ब्रह्मचारी अरसनपुर अंकलेश्वर असीरगढ़ अमरनाथ अर्हनंदी अनहिलवाड़ा पाटन अकालवर्ष या अमीझरा पार्श्वनाथ ३९ राजा रुष्ण १२५--१९८ अमरकोट अविनीति १२८ अंभार अशोक १७८ अहमदनगर जिला अभिमन्यु १९६ अजन्टा गुफा ५५ अजयपाल २११ अजनेरी अकई तकई ५८ अनदेव अमीबीड़ी अलमेली १.०७ अरांत १८२ ओववर्ष ११७...२.१.१ ८--- १६१ --१७२-१२८ भादर गुंगी अमिनभवी अरतलू १२२ थारटाल १२७ अटला ग्राम १५१ / बानू २१२ १२५ १५८ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) १५८। १२९ आष्टे - आदित्यवर्मा आनन आर्यपुर या आय्यवले आसार्य १६ ७९ एरगंग नीतिमार्ग १७५ एरंडोल एलुरा १२१ एरग एलाचार्य एक देव मुनि १६२ ११७ ऐवल्ली-ऐहोली इन्द्रसभा इन्द्रराज इन्द्रराजा प्र० दि. इन्द्रकीर्ति स्वामी इमोदी सदाशिवराय औप्पारा ईडर नगर ir उमरेट उन्झा उज्जयंत सिद्धक्षेत्र उत्तर कनडा मिला उड़पी जैन मठ लवी गाम करणवती कपड़वंज कल्याण कन्हेरी गुफाएं कच्छ राज्य ४३ कन्थ कोट १३० फराद नगर १३.७ कडरोली १३८ कलहोले १५९ कड़ी माम १८०- कली जैन मंत्र उखलद उषमदत्त Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) १८ १२० १८० कल्लुकेरी १२२) कर्णदेव २१२ करगुद्रीकोप १२३ कलादगी जिला कलटी गुडर कविराज मार्ग कड़ा गुफाएं १४५ ऋतुक करवीर १५२ कचनेर १५९ काबी करकंडु पार्श्वनाथ | काठियावाड राज्य क्षत्रपोंका राज्य कारली कत्त प्रथम कादम्ब वंशावली ७८ व ११२ कलकैर प्रथम ७२ कागवाद ___७२ कार्तविद्या प्रथम हि० तृ• च० १२ कत्त हि कालमैन प्र० हि० , कारेय जैन जाति कृष्णवर्मा ७८ कामदेव कनकप्रभ सिद्धांत त्रैवेद्यदेव ८५ काकुष्ट बंशी १२६ कृष्णवल्लभ राना १२० कांचीपुर कच्छेयगंग राजमल्ल १२९ स्कंध गुप्त १८५ कीर्तिवर्माप्र० द्वि० या कीर्तिदेव कका प्रथम द्वि. ७८-७९ कृष्ण १९७ कर्क १९८ कुम्मरिया ककल या कर्करान ९९ कुन्टोनी ११० २०५ कुमता बंदर कर्ण Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) P ०८ १२९ ११ १८५ १४० कुंडल १५२ खम्भात राज्य कुम्भोज १५३ खरग्रह कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र १५९ खा कुलपाक खानदेश मिला कुमारपाल राजा खारेपाटन कुमार वेदेंग क्षुल्लकपुर १५५ खेडा जिला कुलचंद मुनि १५४ / खेदापुर ११२-१५६ कुमार गुप्त कुलचंद्र |गजपन्थ सिद्धक्षेत्र कुन्दुर जैन जाति गंगवंशी मानसिंह जैन १२४ कुमार सेनाचार्य गंग वंश ग्रहसेन क्षेमराज गणकीर्ति स्वामी कोन्नुर गान्धार कोकतनूर कोलाबा जिला गिरनार कोल गुफाएं कोल्हापुर राज्य १५१ गुणभद्राचार्य १५१ गुजरातका इतिहास १७३ जा नंदिर व लेख १२४ गुप्त वंश १८४ कोगुणीवर्मन १२८+ गुणचंद्र मुनि ८६-११७ कोट्टिग १९९+ गुणदत्तरंग खुटुग १२९ १२१ १२७ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गेदी (५) चरणाद्रि १६२-१७० चट्टप, चट्टया, चन्द्रकीर्ति चंद्रार्य वैश्य चन्न भैरव देवी चंद्रगुप्त महारान १७६-१७८ चश्थमा वंश चंद्रगुप्त प्रथम १४९ गोधा द्वीप गोदरा --- गोलश्रृंगार नाति गोरख मढ़ी गोरेगांव १२० & com १८३ गोरी .. हि. गोआ गोविन्द राना , प्रथम द्वि० गोहिलवाडा गोहिल १९७ ५९ १७६ १९३ १९२ चाम्पानेर चांदोड़ नगर चालुक्य वंश चावड वंश चाटुंग चामुंडराय चामुंड २०२ घटोत्कच घघड़ २०३ २०३ २०४ चामुंड घोटान घोर १४४ चन्द्रावती चम्भार लेना चितकुल चिबल चिलकेतन वंश ६१ चिंतपुर १२१ चित्तीकुल १३१ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) | जैनपुर ३३ जैन किसान चनासामा 44 १५१ चेदी सम्वत् १८४ टोलिमी तिम्बा जगत्तुंग तड़कल जयभट्ट प्र. हि० तृ० १९४ जयदत्त रंग १२९ तारापुर जरसप्पा ३४ तारंगा जगन्नाथ सभा १६९ तावन्दी जखनाचार्य ७० तालीकोटा जयवर्मा प्र. दि. या जयसिंह ७८ जयसिंह प्र० त्रिंगलवाड़ी जयसिंह वर्मन १९४ जान्हवी वंश त्रिभुवनमल राना त्रिकूट जिनसेनाचार्य ११७-१६१ तीर्थकरस जिनप्रभसूरि १७५ तुरनमाल नीव दामन क्षत्रप तेलुमाकी गुफाएं जूनागढ़ ८०-८१ नैनशिल्पपर फर्गुसन मेनोंका महत्व ..कया तेलपदि. ९ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तैलनसिंह त्रैकूटक .. १८४ डिशा तोरामन दिगम्बर श्वेताम्बर बादसभा २०७ दिवलम्बा रानी दी दीमा तौलमन थाना जिला दुबिनीत दुर्लभ देसार देगुलवल्ली देवगिरि दहीगांव दम्बल दबारी दशरथगुरु दंतिवर्मा दंतिदुर्गा दशपुर ( मंदसोर ) दहा प्र० हि० तृ. ११७ १७२-१९७देववर्माकमार देवराज देवेन्द्र भट्टारक १८१ वाहोद दाह द्वारकापुरी दामल धन्धूका | धवलादि ग्रन्थ धनूर १०८ ४८ घरसेन दि०, १०, च० १९॥ धा ७२ धाड़वाड़ जिला ११२ ११८ दामसेन दामादश्री " पाराशिव Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) धाराश्रय जयसिंह वर्मन् १९४ । नागदेव पंडित धारावर्ष १९७ नान्दीपुरी, नांदोद १७५ . ध्रुवसेन प्र०, द्वि० १९१ निजामपुर ध्रुव १९७ निदगुंडी नित्यवर्ष या इन्द्र चौथा धूमलवाड़ी निषाद निरुपम धोलका नेसी नडियाद नेवचट नजर नवमारी २ नेमिचन्द्र नंदुरबार नगर पार्कर ५० पंचमहाल जिला नन्न नयनन्दि नहापान पनालाका किला पृथ्वी वर्मा नासिक जिला ५७ परमिनभवनंदन नैन कवि । , नगर ६० प्रभाचंद्र देव ,, ,, की प्राचीनता ६३ परमेश्वर गंगवंशी ८१ प्रबोध चन्द्रोदय नारैगल नगर १२१ एथ्वीसेन क्षत्रप १८३ नागवर्मा प्र०, हि. ७८ प्रभूत वर्ष ७२ पंचासुर नान्दीगढ़ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ १९१ - पृथ्वीवल्लभ १९७ / पुष्पमित्र जैन वंश पद्मलादेवी पुलकेशी जनाव , पद्मप्रभ मुनि "पूना जिला पल्लवबंश प्रश्नोत्तर रत्नमाला ११८ पोसीना सवली प्रतापदेवराय त्रिलोचिया १३५ पेड़गांव पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पाधीम्युदय काव्य १६१ परीप्स पाल पालनपुर एजन्मी ४० फलटन ,, नगर पालीताना ४५ बम्बई प्रान्त पाटन या पीतलखोरा __,, शहर पांडुलेना ६० बजाबाई पाले बडौधा राज्य पावल गुफाएं १५१ बड़नगर पाटन चेरु ६२ बांकापुर पानुंगल बनवासी बमनी पिटुग बदगांव पुलिकेरी पुलिकेसी प्र.दि. ९३ बर्द्धमानपुर पुष्पगुप्त वैश्य १७८ वनराज ११५ १५२ २० १२३ बंकुर २.३ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बामचंद्र गुफा बाई बादगी बादामी बागलकोट बावानगर बाहुबलि देव वासुपूज्य बिड बीजापुर जैन मूर्ति "" बीर बेदेंग वि मु बुटुग राजा गंगवंशी बेलापुर बेलगांव निका " शहर व किला बेल होंगल मेरद वैरम्या (१०) ६५ बोरीवली ६६ बोधान 67 १०३ | भरुच जिला ८६ । ८६ १०५ " शहर भद्रेश्वर-भद्रावती १११ १५२ | भविष्य भवसारी भटकल भर्तृदमन ८८ भामेर १०७ भांजा १२९ भाम्बोर भानुगुप्त १२७ भिलोड़ा ६८ भिनमाक ६९ मिटोरा ७३ भीम प्रथम हि० २ भुवनैकम १९२ बो "1 भ भा मि भी ३० १७२ १९ ११ ४९. ६५ १३२ १८३ १९६ १४ ६५ १४८ १८७ १७ १७४ १८७ १०४ १११ ८६ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूविक्रम भैरवगढ़ भैरवदेवी भोजपुर भोजराजा डि. मतार महुधा महमदावाद मनोली मनकी भू भै भो महुआ महीकांठा एजन्सी मदरसा राजा मृगेश्वर वर्मा म महाड़ मलखेड़ मल्लिकार्जुन मयूरभंज प्र० मृगवर्मा मंगलीश या मंगलीश्वर (११) १२८ | मंगलराज १२३ १३५ ܐܐܐ मसली पटम १२ मलपाल मुनि मलियाद्रि माण्डवी मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र मारसिंह जैन माधव कोंगनीवर्मा माधव प्र० माधव द्वि० माघनंदि सिद्धांत देव माणकनंदि पंडित मानान्केर ?? ३३ ३७ ८३ मिरी १३७ १४९ | मीरज राज्य १६१ ७२ मुद्दे विहाल मा ७८ मुत्तूर ७८ मुंदेश्वर ९३ मुश्कर १२० १२६ | मुंजपुर मि मी १४२ १९४ ་ ८६ १६१ ६२ १२४ ** " १५३ ११४ १९६ ११ १५७ १२३ १३९ १२८ ३१ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प १२१ (१२) मूलगुंडनगर १२० मूलराज सोलंकी १७६-२०३ रत्तीहल्ली , हि० २११ रत्नागिरी जिला रखियाल मेहेकरी ५२+ रविचंद्रस्वामी मेघुती जैन मंदिर . रविकीर्ति मेराड़ ७२ रणराग मौर्य चन्द्रगुप्त मैलाप तीर्थ रान्देर मोधेरा नगर ३६ राजपीपला राज्य राहो २१ । रानवार्तिक मौर्योकी प्रशंसा १७७ - राहवंशी मौनी देव ८६ : , कुलवंश रायबाग यलबत्ती १२२ रायगढ़ यशोधर्मन १८८ रामधरण पर्वत यशदमन १८३ रामबाग राष्टकूट वंशावली यावल नगर ५४ : रामचन्द्र आचार्य यादव राजाओंकी वंशावली ७८ राजमल यावनीय संघ १२६ योगराज २.३ रुद्रामन क्षत्रप १२५ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुद्रसिंह रुद्रसेन रूपसुन्दरी रे रेवडंड रेवतीद्वीप, रेवताचल रो लवणप्रसाद ललितकीर्ति लाकडी लाट रोननगर लक्की गुंडी ११९ लक्ष्यमेश्वर १२३ लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्र० द्वि० ७२ लंबी वल्लभ १९८ २११ लिंगायत ल्पिनी ल लोकादित्त्य लोकसेन ला लि स्टे लेन्देयरार सामन्त लो (१३) १८३ ८ बशाली बड़ाली १४४ | वधवान ९८ | वल्लभीपुर १२१ वस्तुपाल तेजपाल वज्जाल कलचुरी बल्लभ नरेन्द्र वल्लभ स्कंध वट्टिग ११९ १७५-१७६ ११४ १७५ वल्लभी वंश 99 वावड़ियावाड़ वाल बागवाड़ी वा वासुकोड वातापिपुरी वादिराज स्वामी वाघेल वंश वि, वी विदरकनी विलगी १२६ विरावह ११७ विराटकोट, विराटनगरी विष्णुवर्द्धन या विट्टिदेव ३२ ३९ ४७ ४८ १८८ २११ <• १९७ १९८ १९८ ४७ ४८ १०७ १० ०७ ९७ १३७ २११ १३८ १३८ १५० ११९ ६९ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुवर्मा विशाल देव विमलशाह विश्वसिंह विजयसेन विष्णु गोप विजयदेव पंडिताचार्य विजय वर्मा विनयदित्त्य विजय दित्त्व विनयसेन वीरसेन वीरदमन वीरवल युक्कुंड वृला विक्रमादित्य चालुक्य ८०-८४ ११६ ११३-१२८ बेडसा वेणु ग्राम बु, वृ श्रमण शब्दार्णव चंद्रिका २१२ शाहाबाद २७५ | शांतिदास सेठ शांतिवर्मा १८३ १८३ १२८ ! श्राश्रय १२५ ७८ " (१४) ११ 19 १८३ २१२ शांतिवर्मा प्र. हि. या शांत या शांतप शि शिवनेर शिग्गांव शिवमार राजा शिलादित्य श्रीधराचार्य श्रीधरदेव श्री विक्रम श्री शा श्रीमाल ८१ श्रीवल्लभ ४८ शी १४२ श्वेतपुर १५६ | शेन प्रथम शु शुकलतीर्थ ६४ | शुभचंद्र भट्टारक ६९ | शुभतुंग राजा २४ शे ७२ ७८ १२८ पुरुष कोंगणी वर्मन् १२८ १७४ १९८ १९४ १२१ १२८ १९१-२ くる 13 २१ 86. १६२ १.३८ ७२ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- _