Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ पुस्तक रखडतुं मुकी कोइए आशातना करवी नहि ॐ नमः। वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकृत ॥ पूजासंग्रह। [श्री स्नात्र पूजा श्रीब्रह्मचर्यव्रत पूजा, श्रीमहावीर जिनपंचकल्याणक पूजा श्री वास्तुक पूजा तथा दीपालिका देववंदन रचयिता प. पू. वाचनाचार्य श्रीमद्विजय माणिक्यसिंहसूरीश्वरजी महाराज छपाधनार स्वर्गस्थ शा. भगुभाई चतुरशीना स्मरणार्थ खेडा निवासि शा. हिरालाल भगुभाई मु. खेडा. प्रचारक पूजाप्रेमी सुप्रसिद्ध गवैया भोजक पोपटलाल रिलाल. माळीनो पाडो मु. पाटण. (उत्तर गुजरा) प्रत १०००] संवत् २०१०] [आवृत्ति पहेली [सने १९५३ For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ॐ नमः । वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकृत ॥ पूजासंग्रह ॥ [श्री स्नात्र पूजा श्री ब्रह्मचर्यव्रत पूजा, श्रीमहावीर जिनपंचकल्याणक पूजा श्री वास्तुक पूजा तथा दीपालिका देववंदन] - रचयिता प.पू. वाचनाचार्य श्रीमद्विजय माणिक्यसिंहसरीश्वरजी महाराज छपावनार स्वर्गस्थ शा. भगुभाइ चतुरशीना स्मार्थ खेडा निवासि शा. हिरालाल भगुभाइ मु. खेडा. प्रचारक पूजाप्रेमी सुप्रसिद्ध गवैया भोजक पोपटलाल हरिलाल. माळीनो पाडो मु. पाटण. (उत्तर गुजरात) प्रत १००.] संवत् २००९] [आवृत्ति पहेली [सने १९५३ ०-१२-० For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक मळवा- ठेका'. पटेल कान्तिलाल हिरालाल ठे. पटेलवाडा मुः खेडा. ॥ भवभीर भव्य जीवोने सूचना ।। मत्कृतस्यास्य काव्यस्य, यो नाम चोरयिष्यति । अहंदाज्ञा खंडनस्य, पापं तस्य भविष्यति ॥१॥ भावार्थः-आ काव्यमांथी कोइ पण गाथा अथवा पद चोरी लइने नवी कविता उभी करी तेमां कर्तार्नु नाम फेरवी बीजुं नाम जे दाखल करशे, तेने श्रीजिनेश्वर प्रभुनी आज्ञा खंडन करवानुं पाप छे. केमके ते प्रभुएज कह्युं छे के वंजण अथ्थ तदुभय-एटले शास्त्रनो अक्षर, अर्थ तथा अक्षर अने अर्थ बन्ने ए बदलवाथी ज्ञाननी आशातना थाय छे माटे भवभीरु जीवोर व्यर्थ कवि थवानी लालसाए आ पुस्तकमाथी चोरी करी, अरिहंत प्रभुनी आज्ञा लोपवानु महापाप पोताने शिर वहोर नही. ली. कर्ता. - - मुद्रक : पंडित मफतलाल झवेरचंद गांधी मुद्रणस्थान : नयन प्रिन्टींग-प्रेस ढीकवा वाडी, रीचीरोड का. २-६१. अमदावाद For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir વાચનાચાર્ય વિજયમાણિસિંહસૂરીશ્વરજી મહારાજ Lera Kele इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. જન્મ : ૧૯૨૪ શ્રાવણ સુદ ૩ - દીક્ષા ; ૧૯૪૩ મહા સુદ ૧ . વડી દીક્ષા : ૧૯૪૩ જેઠ વદ ૩ ગણિપદઃ ૧૯૫૯ અષાડ સુદ ૧૦ પન્યાસપદ : ૧૯૬૦ મહા વદ ૬ વાચનાચાર્ય'પદઃ ૧૯૬૪ જેઠ વદર For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना विद्वद्वयं वाचनाचार्य श्रीमद्विजय माणिक्यसिंहसूरीश्वरजी महाराज विरचित विविध पूजा. स्तवनादिना अनेक मौलिक ग्रन्थो आजसुधीमां व्हार पडी चूक्या छे अने ते ग्रन्थोना सदुपयोगथी भाविक श्रावकोने विद्वान सूरीश्वरजीनी रचनाओ उपर उत्तरोत्तर अनुराग अने भक्तिभाव वधतांज गया छे. पूज्यमूरीश्वरजी उच्चकक्षानी विद्वत्ता तथा कवित्वशक्ति धरावता हता, तेथी तेमनी रचनाओ धर्मशास्त्रोना आधारवाळी होवा उपरांत ते उच्चकक्षाना शब्दलालित्य, अर्थगांभीर्य अने प्रसंगानुसारी चमत्कारी छंदरचनाथी भरपूर छे. एमनी रचनाओ श्रद्धालु मुरब्बी वर्ग जेटला ज प्रेमथी ऊगता नवजुवान श्रावक भाई व्हेनो पण होशे होंशे गाय छे अने धर्ममां स्थिर थता जाय छे. एमनी रचनाओ आधुनिक संगीतमय लय, तालबद्धता अने शब्द लालित्यद्वारा आबालवृद्ध सौने धर्म तरफनी अभिरुचि वधारवामां सफलता पूर्वक काम करे छे. ___ आवा समर्थ आचार्यश्रीनी रचनाओ देशकालथी अबाधित होय ए स्वभाविक छे. समर्थांनी समर्थ रचनाओने देशकालनां बंधनो नडी शकतां नथी, ए न्याये पूज्य महाराजश्रीनी रचनाओ गुजरात बहार पण प्रचार पामी छे. अने तेने परिणामे तेमनी सारी सारी रचनाओनी देवनागरी लिपिमां छापेली नानकडी पुस्तिकाओनी माग वधवा मांडी छे. For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपरोक्त कारणसर खेडाना केटलाक भाविक गृहस्थोए एवी एक नानकडी पुस्तिका बहार पाडी सद्गत आचार्यश्रीने भक्तिभावे अंजलि आपवा विचार कर्यो, आचार्यश्रीना खेडा खातेना चरम चोमासा वखतना गुरुपूजनना आशरे रु. ३००) हता. तेमां खेडाना वतनी स्व. हीरालाल भगुभाइ शाहे पोतानी हयातीमांज रु. ५००)नी उदार सखावतनो उमेरो कर्यों एटले श्रावकोए तेवी पुस्तिका बहार पाडवानो निश्चय कर्यो. श्री हीराभाइनी उदारताने धन्यवाद घटे छे. जन समूहने वधु प्रमाणमां उपयोगमां आवे तेवी तेमज सरळ, भाववाही, उचित रागरागणीवाळी, संगीतमय अने शब्दालंकारतेमज अर्थगौरवथी भरपूर एवी तेमनी लोकप्रिय रचनाओ पसंद करी तेने नानकडी पुस्तिका रुपे छपाववानुं नकी थयु. ___ एमां (१) श्री स्नात्र पूजा (२) श्री महावीर जिनपंचकल्याणक पूजा, (३) श्री ब्रह्मचर्यव्रत पूजा, (४) श्री वास्तुक पूजा तथा (५) श्री दिवाळीना देववंदन लीधां छे....साथे साथे पूज्य सूरीश्वरजीना जीवन चरित्रनी ट्रंकी रुपरेखा पण आपवामां आवी छे. अहिं श्री महावीर जिन पंच कल्याणक पूजामांनी केटलीक ढाको श्री पर्युषण पर्वनां पंचकल्याणकनां व्याख्यानो वखते गईली तरीके ने केटलीक ढाळो स्तवन तरीके या सज्झाय तरीके पण बोली शकाय छे. श्री ब्रह्मचर्यव्रत पूजामांनी केटलीक ढाळो सज्झाय तरीके पण बोली शकाय छे. For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री स्नात्र पूजा विधि सहित होवाथी वारंवार भणावतां स्नात्रो यखते तेनो पूर्ण उत्साहथी सर्वत्र उपयोग थाय छे. श्रीवास्तुक पूजानी अनिवार्य जरुरियात तो लांबावखतथी हती. विद्वान आचार्यश्रीए ते जरुरियात आ पूजा रचीने पूरी पाडी आपण सौ उपर अनहद उपकार कयों छे. आवी सर्वांग सुंदर मनोगम्य पूजानी रचनाथी नवा धरना वास्तु वखते कई पूजा भणाववी एवो विचार करवा पणुं हवे रहेतुं नथी. छेल्ले श्री दिवाळीनां देववंदननो पण आ लघु पुस्तिकामां समावेश करवामां भाव्यो छे. ते पण उपयोगी नीवडशे. बालब्रह्मचारी वयोवृद्ध समर्थ ज्ञानी महाराजश्रीनी सर्वांग सुंदर रचनाओमाथी पसंद करेली उपरोक्त रचनाओनां गुणगान गावां ते नाने मोढे मोटी बातो करवा जेतुं छे. तेम करवा जतां तो ए समर्थ भव्यात्मानी अगाध शक्तिओने अन्याय थई बेसे ए विचारे ते रचनाओ भव्य जीवो आगळ रजू करी तेनो सदुपयोग करवा आग्रह करयो एज उचित लागे छे. आवा महान समर्थ आचार्यश्रीनी कृति विषे बे बोल लखवानुं काम मारा जेवा एक सामान्य माणसने सोंपीने आ पुस्तिका छपाबनार गृहस्थोए मारी तरफ ममतादर्शावी मारी उपर जे महान उपकार कयों छे ते माटे तेओनो हार्दिक आभार मोनी विरमुं छ. हजारो वंदन हो ए महान विभूतिने. अस्तु खेडा. ता.१-९-५३ सूरीश्वरनो गुणानुरागी नम्र सेवक वि. सं. २००९. रतीलाल जीवणलाल शाह For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमपूज्य वाचनाचार्य श्रीमद्विजयमाणिक्यसिंहसूरीश्वरजी महाराजश्रीना भव्य जीवननी ढूंकी रूपरेखा श्रीमद्नो जन्म श्री अणहिलपुर पाटणमां राजकावाडे लखियारवाडामां विक्रम संवत १९२४ ना श्रावण मुद त्रीजना रोज थयो हतो. तेमना पिताश्रीतुं नाम श्री मुळचंदभाइ अने मातुश्रीतुं नाम श्री लक्ष्मीबाइ हतुं. धार्मिकवृत्तिनां ए दंपतीने एक दीकरी नामे परसन अने एक सुपुत्र नामे वाडीलाल एम बेज बाळको हतां. ए वाडीलाल तेज आ चरित्रना नायक. ___ छ मासनीज कुमळी वयमां पिताविहोणा थतां श्री वाडीलाल मातानी लाडीली छत्रछाया नीचे उछरवा लाग्या. परिणामे तेमनामां रमतियाळपणुं अने निरंकुश रीते वर्तवानी टेव आवी. निशाळ्ना भणतरमा ए झाझु भण्या नहि. गुजराती बेज चोपडी भणी निशाळथी उठी गया छतां तेमनी विचक्षण बुद्धि अने कुदरती रीते तेमनामां रहेढं वाक्चातुर्य, कवित्वशक्ति, ज्ञाननी जिज्ञासा, साहसिकवृत्ति अने तीव्र स्मरणशक्तिने लीधे तेओ महापुरुष बनी शक्या. कवि जन्मेज छे, बनी शकता नथी ए वात तेमणे खरी पाडी. फक्त दशज वर्षनी उमरे तो ए स्वाभाविक रीते कविताओ रचवा लाग्या हता. एकज वखत वांचेलो या सांभळेलो श्लोक ते कंठस्थ करी लइ फरी बोली जता For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हता! बाळक्रीडामां पण ते हमेशां आगळज रहेता. जळक्रीडा तो तेमने बहुज गमती. ते तळावो, वावो, नदीओ तेमज कोइवार सागरमां पण डूबकी मारी शकता. तेमज सारी रीते तरी शकता. धार्मिकवृत्तिनां माता लक्ष्मीबाईनी असर नीचे होवाथी ते पाठशाळामां पण जता हता, त्यां तेओ वहेला मोडा जता तो पण सौथी वधु मुखपाठ करीने रोज पहेलो नंबर पुराववानुं गौरव प्राप्त करता पाठशाळामां श्री पंचप्रतिक्रमण, श्री भक्तामर स्तोत्र अने श्री कल्याण मंदिर स्तोत्र सुधी तेओश्रीए अभ्यास कर्यों हतो. सं. १९४२मां पाटणमा श्रीमान् प्रतापविजयजी महाराजना चातुर्मास वखते श्री वाडीलालभाई रात्री पौषध पण करता, अने रात्रे बार बार वाग्या सुधी सदरहु महाराजश्रीनी साथे धर्मसंबंधी चर्चा करता. ए सत्समागमे श्री वाडीलालभाईनी तत्त्वजिज्ञासा वधारी दीधी अने तेने परिणामे तेमनी हृदयभृमि मां वैराग्य वृक्षनुं बीजारोपण थयु. एमनो आ पैराग्य क्षणिक लागणी जन्य नहि, पग मननगर्भित होवाथी ते वृद्धिगत थतो गयो. __चातुर्मास पछी महाराजश्री साथे श्री वाडीलालभाई पण श्री संखेश्वर तीर्थे गया. त्यांथी पाछा वळतां चाणस्मामा एकज सामायिकना समयमा २५ गाथानां त्रण स्तवन कंठस्थ कर्यो. आथी महाराजश्री आवा युवानने शिष्यरत्न बनाववा ललचाया. तेज रात्रे चार वागे चाणस्मामा विराजता श्री भटेवा पार्श्वनाथ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाराजे श्री बाडीलाला : दर्शन दइ दीक्षा लेवानो आदेश आप्यो अने तेमण ... २९f निश्चय कर्यो. त्यारवाद श्रीमान् प्रतापविजयजी महाराज पाटण जई अमदावाद पधार्या एटले श्री वाडीलाले पण अमदावाद जई सं. १९४३ना माघ मासनी शुक्ल प्रतिपदाने शुभ दिने सदरहु महाराजश्री पासे चारित्र्य ग्रहण कयु, अने गुरुश्रीए तेमनुं नाम श्री माणिक्यविजयजी स्थाप्य. तेज वर्षना जेठ वद ३ ना रोज वडी दीक्षा लई तनतोड महेनतथी ज्ञानाभ्यास करवा मांड्यो पचास गाथार्नु साधुनुं प्रतिक्रमणसूत्र एकज दिवसमां अने साडात्रणसो गाथार्नु पाक्षिक सूत्र चार दिवसमा कंठस्थ कर्यु । वळी आशरे १८०० श्लोकचें सारस्वत व्याकरण अर्थ साथे फक्त त्रण मासमां कंठस्थ करी लीधुं ! आ उपरांत संस्कृत साहित्यनो तेमज धर्मशास्त्रोनो विस्तृत अभ्यास सतत चालुज राख्यो हतो. सं. १९४४ना मागसर सु. ११ ना रोज अमदावादमा लवारनी पोळना उपाश्रये तेओश्रीए पाटे बेसी सौ प्रथम व्याख्यान आप्यु हतुं ते पछी तो तेओश्रीए दीर्घकाळ सुधी विचरी समस्त गुजरात, काठियावाड अने कंईक अंशे दक्षिणनी भूमिने पण पोताना पुनित पगले अने पुनित वाणीए पावन करी लोकोने पोतानी विद्वत्ता, वक्तृत्वशक्ति अने कवित्व शक्तिथी मंत्रमुग्ध करी नांख्या हता. . चारित्र्य ग्रहण कर्या पछी तेमणे अनेक-विध कार्य कयाँ छे. सतत अभ्यास अने मननना परिणामरुप तेओश्रीए नूतन For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रचनाओनो सारो एवो फाल नूतन ढवे रजू का छे. स्तवनो अने पूजाओ आदिनी रचनानी चमत्कारी शैलिथी तेमणे अनेकना मन हरी लीधां छे. पोताना अभ्यास चालु राखवा साथे तेमणे अनेक ज्ञानपिपासुओनी ज्ञानपिपासा संतोषी छ. अनेक साथे चर्चाओ करी जैन शासनना अनुरागी बनाव्या छे, अनेकनी डगती श्रद्धाने स्थिर करी छे, अनेक स्थळोना कुसंपो मटाडी दीर्घकालना पडेलां तड तोडी एकता स्थापी छे, अनेक स्थळे भारे तपस्याओ, भव्य महोत्सवो अने स्वामिवात्सल्योद्वारा अटळक धनव्यय करावी जैन शासनने। डंको वगडाव्यो छे, अनेक स्थळे पोतानी शक्ति अने भक्तिद्वारा रोग शान्ति निपजावी छे, अने अनेक मुनिओने योगाद्वहन कराव्या छे. तथा शास्त्राभ्यास पण कराव्यो छे. व्याख्यानामां पण तेओ भावीक श्रावकोने महामूला आगम ग्रंथोना तथा अन्य धर्मशास्त्रोना रसनुं पान करावता रह्या छे. आ सर्वने परिणामे चतुर्विधसंघमां सर्वत्र तेमना तरफ पूज्यभाव दाखववामां आवतो हतो. तेमणे कुल ६४ चोमासां कर्या हतां, ते नीचे मुजवास्थळ वर्ष १६ अमदावाद. सं. १९४३, ४४, ४५, ४८, ५७, ५८, ५९, ७६, ८१, ८३, ८६, ८७, ८८, ९०, ९२ अने ९५ १० पाटण सं. १९५०, ६१, ७५, ८०, ९३, ९८, ९९, २००१, २००२ अने २००३. For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० ५ खेडा सं. १९८९, ९१, ९४, ९७, अने २००६ ४ लींबोदरा सं. १९७१, ७८, ८५ अने ९६ ३ आमोद सं. १९५४, ५६ अने ७९ ३ लोदरा सं. १९६२, ७४ अने ८४ ३ साबरमती-रामनगर सं. २०००, २००४ अने २००५ २ रांदेर सं. १९४९ अने १९५५ २ पेथापुर सं. १९५३ अने ८२ २ ऊंझा सं. १९६० अने ७२ २ एकरांबा (दक्षिणमां) सं. १९६४ अने ६५ २ वीशनगर सं. १९७३ अने ७७ १ कपडवंज सं. १९४६ १ खंभात सं. १९४७ १ पादरा नजीक चमारा सं. १९५१ १ तारंगा नजीक शीपोर सं. १९५२ १ सूरत सं. १९६३ १ डीसा नजीक राजपुर सं. १९६६ १ इलोल सं. १९६७ १ गोधरा सं. १९६८ १ सतारा जिल्लामां कराड सं. १९६९ १ बिलिमोरा सं. १९७० For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ चोमासां वच्चेना समयमां चोमासाना स्थळ उपरांत पण अनेक गामोए विहार करता रही अनेक प्रकारे भव्य जीवोने पोताना सत्समागमनो लाभ आपी तेमणे देशनामृत पायुं हतुं. विहार दरमियान श्री सिद्धाचळजी, श्री रैवतगिरिजी, श्री केसरियाजी, श्री तारंगाजी, श्री संखेश्वरजी, श्री भोयणीजी वगेरे अनेक तीर्थोनी अनेकवार यात्राओ करीने ते महानुभाव सुरीश्वरजीए पोताना आत्मानुं कल्याण पण साध्यु हतुं. सं. १९५९ना अपाड सु. १० ना रोज राजनगरमां तेओ श्रीने श्री गणीपद अने सं. १९६० ना महावद ६ना रोज श्री पन्यासपद आपवामां आव्यु हतुं. सं. १९६४ना जेठ व. १२ना रोज नीपाणीमां भव्य महोत्सव साथे तेओश्रीने बृहत्तपागच्छीय श्री चंद्रसिंहसरीश्वरजीना शुभ हस्ते श्री बाचनाचार्यपद आपवामां आव्युं हतुं. ___पूज्यसूरीश्वरजीए सं.१९५१मां राधनपुरना गंभीरने दीक्षा आपी श्री गुणविजयजी नाम आप्यु हतुं. ते पछी सं. १९५३मां माणसामां एक मारवाडी ओसवाळने श्री आनंदविजयजी सं. १९५५मां श्री धर्मविजयजीने सं. १९५८मांसाणंदना गांधी मोहनलाल छगनलालने (श्री मेघविजयजी), सं. १९५९मां सावरकुंडलाना श्री लाभविजयजीने सं. १९९१मां श्री महेन्द्रविजयजीने दीक्षा आपी ज्ञानी शिष्य समृदायथी तेओश्री विभूषित थया हता. आवा समर्थ महात्माओ जगकल्याण अर्थेज आ भूमि उपर For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जन्म धरे छे आजे ....कार्यों छे. आपणे इच्छोए के तेमना आत्माने परम शान्ति मळो! अने एमने हजारो वंदन हो! __ आ पुस्तिका खेडाना संघ तरफथी छपाती होवाथी पूज्य आचार्यश्रीना खेडानाचोमासानु जरी वर्णन करीशुं. सं.१९८९ना चैत्र मासमां खेडाना श्रावकोए अमदावाद कीकाभटनी पोळमां विराजता आ आचार्यश्रीने आग्रहभरी विनंति करी प्रथमवार खेडा खाते पधरामणी करावी भव्य सत्कार साथे नगर प्रवेश कराव्यो हतो कोइ पूर्व पुण्यना उदयथीए विद्वान आचार्यश्री पासे श्रद्धालु श्रावकोए उंडीवाडने उपाश्रये व्याख्यानमां " विवाह प्रज्ञप्ति" श्री भगवती सूत्र तथा श्लोकबद्ध पांडव चरित्र मंडाव्यु हतुं. पंदरमा शतकना वांचन वखते खेडाना श्रावको तरफथी सर्वत्र कुमकुम पत्रिकाओ लखवामां आवी हती. परगामथी अनेक भाविको ते सांभळवा आव्या हता. तेमने माटे रसोडुं पण खोलवामां आव्युं हतुं. कुल ३५० माणसोए तो खास आयंबिल करीने ज पंदरमुं शतक सांभळवानो लाभ लीधो हतो. सुत्र पूर्ण थये महामासमां शाह मोहनलाल नाथालालनी विधवा बाइ जेठी तरफथी महोत्सव करवामां आव्यो हतो, तथा स्वामि वात्सल्यनुं जमण पण करवामां आव्युं हतुं. तेमां श्री सूरीश्वरना सदुपदेशथी खेडाना जैन भावसारो पण साथे जम्या हता. ते वखते तेओश्रीनी साथे चातुर्मासमां विराजता स्व. शिष्य श्री मेघविजयजी तथा श्री विजयलब्धिसूरीश्वरजीना शिष्य श्री शुभ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयजीना आग्रहथी श्री भगवतीसूत्रना वांचननो स्मृति निमित्ते तेओश्रीए श्री वर्तमान चतुर्विशति जिन पंच कल्याणक पूजानी रचना करी हती. वीजी वखतना सं. १९९१नी सालना चातुर्मास वखते तेओश्री खेडामां व्याख्यानमां सटीक धर्म विदु तथा मृगावति चरित्र वांचता हता सं. १९९२ ना मागसर सुद ५ ने दिवसे तेओश्री श्रीमातर तीर्थे ७०० माणस साथे यात्रार्थे पधार्या हता त्यां गवैया बोलावी पूजा भणावी हती. तथा खेडाना श्री संघ तरफथी जमण करवामां आव्यु हतुं. खेडामां पण ए वर्षे श्री अठाई महोत्सव थयो हतो. त्रीजीवारना सं. १९९४ नी सालना चातुर्मास वखते तेओश्री खेडामा व्याख्यानमां पोडशक सटीक तथा श्री वासुपूज्य चरित्र श्लोकबद्ध वांचता हता. चोमासु उतरे श्री अठाई महोत्सव थयो हतो. विहार वखते महीज सुधी ७५ माणसो साथे गयुं हतुं अने त्यां श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा भणावी जमण करवामां आव्युं हतुं. ___चोथी वारना सं. १९९७ ना चातुर्मास वखते तेओश्री खेडामां व्याख्यानमां सटीक धर्मसंग्रह तथा श्रीमलयासुंदरी चरित्र श्लोकबद्ध वांचता हता. चोमासु उतये विहार वखते जेतलपुर सुधी साथे जई खेडाना श्रावकोए त्यां श्री पंचपरमेष्ठि पूजा भणावी जमण कयु हतुं. For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ पांचमी वारना सं. २००६ ना चरम चोमासा वखते नादुरस्त तबीयत होवा छतां खेडाना श्रावकाना अत्याग्रहने वश थई तेओ खेडा पधार्या हता. ते वर्षे व्याख्यानमां तेओश्री श्री उपदेशसप्ततिका वांचता हता. तेओश्रीना सदुपदेशथी खेडामां एक अट्ठाइ महोत्सव पण करवामां आव्यो हतो. सं. २००७ना मागसर सु. ११ना रोज छेल्लं व्याख्यान वांच्या पछी तेओश्रीनी तबियत लथडी हती, सुद १३ना रोज बेचेनी वधी. पेटमा गेसनुं दर्द वधतुं चाल्यु, पण सूरीश्वरे अद्भुत शान्ति जाळवी, सु. १४ना रोज अमदावादथी आवेला बे भाईओ साथे सारी रीते वातचीत करी खुलासा कर्या, पण दरदतो वधतुज जतुं हतु. सु. १३थी आजीजी कर्या करता श्राक्कोने छेवटे सु. १४ना रोज साजना पांच वागे सीवील सर्जनने बोलाववानी अनुमति मळी अने दाक्तर साहेब आव्या पण खरा. पण ते काइ पण सारवार करे ते पहेलांज लघुशंका करतां ते महापुरुष ढळी पडी काळधर्म पाम्या.. ___ वात वायु वेगे फेलाइ गइ. जैन जैनेतरनां टोळे टोला दर्शनार्थे उलटयां. तारद्वारा गाम परगाम पण समाचार पहोंचाडवामां आव्या. मढीनी तैयारी थईने खेडाना भाविक श्रावक साह सांकळचंद मथूरदासने श्री संघनी अनुमतिथी अग्नि दाहनुं सघल्लं खर्च आपवानो लाभ मळ्यो. सुद १५नी सबारे अमदावाद, साबरमती अने पाटणथी घणा माणसो महाराजश्रीनी श्मशान यात्रामा जोडावा आवी पहोंच्या. For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं. २००७ना मागसर सुद १५ना रोज सवारे साडा अगीयार वाग्ये वाजते गाजते आचार्यश्रीनी स्मशानयात्रा काढवामां आवी हती. मढीमां विराजमान आचार्यश्रीना अंतिम दर्शन माटे खेडानी शेरीओने नाके नाके अने माळिये माळिये जैन तेमज जैनेतर जनता उभराई हती. श्मशान भूमि उपर पण एटलीज भीड हती. त्यां पण पुरुषो उपरांत स्त्रीओ अने बाळको पण एटलाज प्रमाणमां ऊलट्यां हतां । चंदनकाष्ठनी चिता रचवामां आवी हती. अने चिता आगळ पण पूज्य आचार्यश्रीना चरणने अंतिम स्पर्श करवा भाविक श्रावको पडापडी करी रह्या हता. आखरे अंतिम विधि पताची श्रावको ऊंटीवाडने उपाश्रये आवी देववंदन वगेरे करी विसर्जन थया हता. तेओश्रीनी पाछळ तरतज फरीथी अहाई महोत्सव करवामां आव्यो हतो. हजारो वंदन हो ए वीरल अमर पूण्यात्माने ! अनुक्रमणिका १ स्नात्रपूजा १-१५ २ श्री ब्रह्मचर्यव्रत पूजा १६-५३ ३ श्री महावीरजिन पंचकल्याणक पूजा ५४-९१ ४ श्री वास्तुक पूजा ९२-१०८ ५ दीपालिका देववंदन १०९-११७ ६ छुटक चैत्यवंदनादि ११८-१२२ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृष्ट कुमकुमनो १४ १७ शुद्धिपत्रक पंक्ति अशुद्ध कुंमकुमनो भमरओना भमराओना उपनति उपजाति न्हावण न्हवण वरिन्टो बरिठो संबत संवर्त ७ शंगे १३ भाखे आखे भोठा भोग ब्रह्मने निर्मलब्रह्मने निराधार निरधार प्रसंगे प्रसंग संगे रमे संगे जे रमे आमन आसन १७ वृजिनविघ्नविदारणं वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं अचिल अविचल संपाजाबजो संपजाबजो दिचार विचार जब जन अडवाडियां अडवडियां dEMur 09mrnsr ur " शृंगे MER पुण्य ९ कल्याणक पूजा रचु आणी मन उलास [अशुद्ध] कल्याणक कीर्तन करी लहिये लील विलास [शुद्ध] ५७ १४ जिम जिन प्राणधार प्राणाधार '६१८ पूरा पूरो ६२ १ पर्वत पर्वसु ८० १७ थय थया [अशुद्ध १०६४ मंगलमयल मूर्ति क्षित कांचन बरणी काय, मृगलक्षण सहस मष्टोत्सर लक्षण [शुद्ध]सहस मष्टोत्तर लक्षण लक्षित, कांचन वरणी काय । मृग लक्षण मंगलमय मूर्ति, For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir GHT EEEEEEEEEEEEEEEEEEEE સ્વ. શાહ હીરાલાલ ભગુભાઈ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEE) ===================== જન્મઃ ૧૯૫૪ ના ફાગણ સુદ ૧૨ ને શનીવાર તા. ૫-૩-૧૮૯૮ સ્વર્ગવાસ; સ. ૨૦૦૯ના પ્ર. વિશાખ સુદ ૧૩ તા. ૨૬-૪-૫૩ [EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE) For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir EENIENEIEE|| 13!EMEE|| 0000000000000 ooocoooooo સ્વ. શાહ ભગુભાઈ ચતુરશો aowooo Ono EE|E|=|lEllis E LEWE!|EE|E|EE|ME||EINE|E|NEE|E|MEINEMEN| B S OX 0000 XOXO 740Lale dl. 3-3-85 સંવત ૨૦૦૨ ના મહા વદી અમાસ ને વાર રવીવાર 0 00 0000000000 EMEENEMENE|MENENÉMEE For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ स्नात्रपूजा विधिः ॥ प्रथम बाजोठ मांडी, तेना उपर कुंमकुमनो साथीयो करिये. पछी तेना उपर एक थाल मूकिये, ते थालमा केशरनो साथीयो करिये, पछी तेमां पंचतीर्थी प्रतिमा थापिये, पछी पंचामृतनो कलश भरी, अंगलहणे ढांकी, त्यां स्थापन करीने कल्याणकारं० ए काब्य भणी तथा आभरण अलंकार उतारवानो दोहो कही, अलंकार उतारवा पछी नीर्माल्य उतारवानो दोहो कही, फूल उतारवां, पछी मेरु शिखर० ए गीति कही, पखाल करी संक्षेपे पूजिये, पछी स्नात्रियाना हाथ धूप चंदने वासी, हाथमां कुसुमांजलि आपी; प्रभुनी जमणी बाजु पाटला उपर उभो राखीये, पछी नमोहत्० कही, कुसुमांजली ढालनी गाथा भणी, गंधाइडिय० ए गाथा कही, प्रभुने चरणे फूल चढाविये, पछी दोहो कही नमोहत्० कही कुसुमांजली ढाल कही गंधा० ए गाथा कही फुल चढावीये ए रीते साते कुसुमांजली पूरी करीने हाथमां चामर लेइ, प्रभु उपर ढाळतां, सकल मुणंद० ए दोहाथी मांडीने, घर घर ओच्छव थायरे त्यांसुधीनो पाठ कहेवो ने फूल चोखा प्रमुखथी प्रभुने वधावा. पछी त्रण खमासमण देइ, जगचिंतामणि चैत्यवंदन करी, नमुत्थुण कही, जयवीयराय पर्यंत कही हाथ धोइ, केशर चंदने चरची, धूपे धूपीने, मुखे मुखकोश बांधी, त्रण खमासण देई एक नवकार For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणी, पंचामृतनो कलश लेइ उभा रहे. पछी शुभलग्ने जिन जनम्या त्यांथी मांडीने संपूर्ण पूजा भणवी. पछी प्रतिमाजी उपर कलश नामबो. पछी परवाल करी, अंगलूहणुं करी, केशर चंदन पुष्प प्रमुख प्रभुने पूजिये ।। ॥ ईति स्नात्रपूजाविधिः संपूर्णः ॥ - - [॥ आ पूजामां आवेल प्रथम काव्यनो भावार्थः ।। कामने छेदनार, करुणानो अवतार, संसारनो पार पामेल, जैश्वर्ययुक्त, मापविनानी संपदाने आपनार तथा कल्याण करनार, जगमा एक सारभूत एवा जिनेश्वरोना समूहने हुं वंदन करूं छु.॥ ॥ कुसुमांजली चढावती वरखते कहेवामां आवती आर्या गाथानो भावार्थः ॥ सुगंधयुक्त अने भमरओना मनोहर झंकार शब्दवाली एबी जिनेश्वरना चरणो पर चढावेली कुसुमांजली तमारा पापोपद्रवने हो।॥ १॥] For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहमूरिकृत स्नात्रपूजा प्रारंभः ॥ उपजति वृत्तं ॥ कल्याणकारं करुणावतारं, निभिन्नमारं जगदेकसारं ॥ संसारपारं गतमीशितारं, वंदेमितारं जिनराजवारं ॥१॥ ॥दोहो॥ १अनलंकार २मनोरमा, जिन पडिमा जयकार ॥ सहज रुप सोहामणी, त्रिभुवन पालनहार ॥२॥ (एम कहीने प्रतिमाजीना अलंकार उतारीये.) ॥दोहो॥ कुसुमाभरण विना विभु, सहज मनोहर श्छाय ॥ मज्जन पीठे मालता, भवि जनने सुखदाय ॥३॥ (एम कहीने निर्माल्य उतारीये.) १ अलंकार विना पण. २ सुदर. ३ कांति. - -- For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C 1 श्री खात्रपूजा. ॥ गीति ॥ मेरु शिखर श्मघवाली॥ जन्म समय जिम जिनवर स्नान करे ॥ निर्मल जल कलशाली॥ भरि तिम न्हवण करो भवि हर्ष भरे॥ ४ ॥ __ (एम कहीने न्हावण करी, संक्षेपे पूजिये. पछी मात्रकारकना हाथ धूप चंदने वासी, कुसुमांजलि आपी, प्रभुनी जमणीदिशे पाटला उपर उभो राखोये.) ॥ नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः ॥ ॥ कुसुमांजलि ॥ ढाल ॥ विमल सुगंध जले नबरावो, विमल श्वसन ४वर अंग धरावो ॥ कुसुमांजलि म्हेलो आदिजिणंदा, तोरा चरण कमल सेवे चोसठ इदा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो आदिजिणंदा ॥५॥ (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इड्डिय महुयर,मणहर झंकार सद्दसंगीया ॥ जिन चलणोवरि मुक्का, हरउ तुह्म कुसुमांजलि दुरियं ॥६॥ (एम कहीने कुसुमांजलि चढावबी.) १ इंद्रश्रेणि. २ कलशश्रेणि. ३ वस्त्र. ४ सुंदर. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मात्रपूजा. ॥ दोहो॥ परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर परधान ॥ तस पदपंकज पूजतां, प्रगटे आतम ज्ञान ॥७॥ ॥ नमोर्हत सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः। ॥ कुसुमांजलि ॥ ढाल॥ २दानव मानव रखेचर देवा, सारे जस पदपंकज सेवा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो शांति जिणंदा, तोरा चरण कमल सेवे चोसठ इंदा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो शांति जिणंदा, (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधाइड्डिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का. हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ॥ एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी ॥ ॥दोहो॥ घातिकर्म चारे हणी, पाम्या केवल नाण ॥ शुद्धातम गुण सेवधि, पूजो त्रिभुवन भाण ||८|| ॥ नमोहत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः ।। असुर कुमार. २ विद्याधर. ३ गुणभंगर. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नात्रपूजा. ॥ कुसुणांजलि ॥ ढाल ॥ केवल देसण नाण बिलासी, पावन लोकालोक प्रकाशी ॥ कुसुमांजलि म्हेलो नेमि जिणंदा, तोरा चरण कमल सेवे चोसठ इंदा ।। कुसुमांजलि म्हेलो नेमि जिणंदा ।। (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इड्डिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया । जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी ॥ ॥दोहो॥ नग चिंतामणि जगधणी, जग बांधव हितकार ॥ सिंहासनपर शोभता, पूजो धरि बहु प्यार ॥९॥ ॥ नमोहत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः॥ ॥ कुसुमांजलि ॥ ढाल ॥ रयण सिंहासन जिनवर बेठा, परम महोदय पुण्य गरिहा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो पास जिणंदा ।। तोरा चरण कमल सेवे चोसठ इदा ।। कुसुमांजलि म्हेलो पास जिणंदा ।। १ म्होटा. For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री लावपूजा. (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इढिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ॥ (एम कहीने कुसुमांजलि चढाक्वी ॥) ॥दोहो॥ शासन नायक सुखकरु, वर्द्धमान जिनचंद ॥ पूजो प्रेमे प्राणिया, पामो परमानंद ॥ १० ॥ ॥ नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः ॥ ॥ कुसुमांजलि ॥ ढाल ॥ परमानंद परम पद पाया, निज आतम गुण संपद राया ॥ कुसुमांजलि म्हेलो वीर जिणंदा ॥ तोरा चरण कमळ सेवे चोसठ इंद्रा । कुसुमांजलि म्हेलो वीर जिणंदा.॥ (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इढिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ।। (एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी ॥) ॥दोहो॥ सीमंधर परमुख भला, महाविदेह मझार ॥ विहरमान जिन विचरता, वंदु वार हजार ॥११॥ ॥ नमोहन सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः ।। For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री.नात्रपूजा. कुसुमांजलि || ढाल॥ १चउतिस अतिशय जास बिराजे, २पणतिस वयण गुणे जे गाजे ॥ कुसुमांजलि म्हेलो सीमंघर देवा, चोसठ इंद्र करे जसु सेवा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो सीमंधर देवा । (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इड्डिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ।। (एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी.) .॥दोहो॥ अतीत अनागत ३संप्रति, जिनवर जगदाधार ॥ पूजो ध्यावो ध्यानमां, पावो भवजल पार ॥१२॥ ॥ नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः॥ ॥ कुसुमांजलि ढाल ॥ विविध वरण वर कुसुम लहीजे, नमि जिन माणक चरणे दीजे ॥ कुसुमांजलि म्हेलो सर्व जिणंदा, तोरा चरण कणल सेवे चोसठ इदा ॥ कुसुमांजलि म्हेलो सर्व जिणंदा ।। १ चोत्रीश. २ पांत्रीश ३ वर्तमान. ४ सामान्य केवलिमां रत्न समान. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मात्रपूजा. (गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इड्डिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ॥ (एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी.) ॥ इति कुसुमांजलयः॥ ॥दोहो॥ सकल मुणंद जिणंदना, प्रेमे प्रणमी पाय ॥ कल्याणक विधि वरण, भक्ति भाव चित्त लाय ॥१॥ ॥ ढाल॥ छंद चोपाइया ॥ समकित गुणशाली संजम पाली, आराधी वीसथान ॥ भव तीजे साधि सरस समाधि, करुणा भाव निधान ।। निर्मल परिणाम अनुभव जामे, बांधि जिनपद नाम ॥ भव एक लहीने त्यांथि चवीने, पंदर क्षेत्र सुठाम ॥१॥ वर मध्यम खंडे तेज प्रचंडे, राज वंश कुल धाम ।। नृपनी पटराणी गुणनी खाणी, तास कुखे अभिराम ॥ उपजे जिनराया जग सुख दाया, जग माणक जग स्वाम ॥ दुख दोहग नाशे ज्योत प्रकाशे, त्रिभुवनमा उद्दाम ॥२॥ ॥ हरिगीत छंद ।। जिनराज जग शिरताज उपजे जननी उदरमा जदा, सवि जीव हर्ष अतीव पामे नारकी पण सुख तदा ॥ तिण रात जिनवर मात सुंदर शयन मंदिर सेजमां, दश चार सुपनां सार निरखे निंद सुखभर मोजमां १ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री स्नात्रपूजा. ॥ ढाल सुपनानी॥ पेहेले गजवर दीठो, बीजे वृषभ वरिन्हो॥ तीजे सिंह सुरंग, चोथे २कमला चंग ॥ १॥ पांचमे पुष्पनी माल, छठे चंद्र विशाल ॥ सातमे सूरज सार, आठमे ध्वज झलकार ॥२॥ नवमे कलश मनोहर, दशमे पद्म सरोवर ॥ सागर भुवन विमान, तेरमे रत्न निधान ॥३॥ निर्धमअगनी निरखे, माताजी मन हरखे ॥ जइने रायने भाषे, राजा अर्थ प्रकाशे ॥४॥ जिन माणक सुत थासे, इंद्रादिक गुण गाशे ॥ सुख संपद बहु मलशे, सकल मनोरथ फलशे ॥५॥ ॥ ढाल ॥ चोथी ॥ ॥श्रीशांतिजिनेश्वर ॥ ए देशी ॥ ३अवधे अवलोकी, तव जिनने सुररायरे ॥ शक्रस्तव भाखी, वंदे शीश नमायरे ॥ जिन जननी पासे, आवी कहे सुण मायरे ॥ तुज ४नंदन होसे, तीर्थंकर सुखदायरे ॥१॥ इम इद्र वखाणी, श्रीनंदीश्वर जायरे ॥ परभाते नरपति, जोसीने तेडायरे ।। ते बोल्या राजन् , चौद भुवननो ५तायरे ॥ तुम कुलमंडल संवर, पुत्र थशे जिनरायरे ॥२॥ १ हाथी. २ लक्ष्मी. ३ अवधि. ४ पुत्र. ५ तात. अथवा रक्षक. ६ सुंदर. For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मात्रपूजा. इम सांभली राजा, राणी मन हरखायरे ॥ दाने संतोषी जोषी करे वदायरे ॥ गर्भ जिनमाणक, दिन दिन वृद्धि पायरे ॥ कल्याण वधाइ, घरघर ओच्छव थायरे ॥३॥ एम कहीने फूल चोखा प्रमुखथी प्रभुने वधावीये पछी चैत्यवंदन करी कलश लइने उभा रहे. ॥गीति ॥ शुभ लग्ने जिन जन्म्या, तव त्रिभुवनमां तेज प्रकाश थयो । नारक पण सुख पाम्या, सर्व जगत जन मन आनंद भयो ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ श्री शांतिजिननो कलश कहीशुं प्रेमसागर पूर ॥ ॥ए देशी ॥ जिनराज जन्मोच्छवतणो कहुं, कलश मंगलकार ॥ छप्पन्न दिग कुमरी तदा त्यां, आवी अवधि विचार ।। वंदी जिनेंद्र जिनेंद्र जननी, प्रेमरस भरपूर ॥ संवर्त पवने अष्ट कुमरी, हरती कचवर दूर ॥१॥ गंधोदके वलि वृष्टि करती, अष्टकुमरी सार ॥ तिम अष्ट दर्पण हस्त धरती, अष्ट जलभंगार ॥ कर अष्ट वीजण अष्ट चामर, चार दीपक धार ॥ बलि चार रक्षाकार २कदली. गेह करती उदार ॥२॥ १ जलकलश. २ केलनां घर. For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ श्री मात्रपूजा. मजन करी निर्मल जले जिन, मातने जिन अंग ॥ पहेरावी वर शणगार बाँधी, राखडी मनरंग ॥ घर शयन पधरावी कहे हे, रविश्वमाणक इश ॥ रवि चंद्र गिरि सम जीवजो इम, जाय देइ आशीश ॥३॥ ॥ दोहो ॥ इंद्रासन कंपे हवे इंद्र सकल ततकाल ॥ अवधि ज्ञाने जाणता, जनम्या जिनप दयाल ॥१॥ सिंहासनथी उठीने, सनमुख पग २सग आठ॥ जइ प्रणमे जिनराजने, करि शकस्तव पाठ ॥२॥ ॥ गीति ॥ शक सुघोषा घंटा, वजडावी उदघोषे सुरलोके ॥ जिन जन्मोच्छव करवा, ४मंदरगिरि चालो सुर मलि थोके ॥१॥ ॥ ढाल ॥ छही ॥ ॥ तीर्थकमल दल उदक भरीने, पुस्कर सागर आवे ॥ ॥ए देशी ॥ सुरवर कोडी होडाहोडी, तव मंदरगिरि जावे ॥ पहरि उछरंगे बहु सुरसंगे, जिनवर मंदिर आवे ॥ मातने वंदी मन आनंदी, श्रीजिनराज वधावे ॥ कहे जिनमाता जग विख्याता, तुज तोले कोइ नावे ? १ जगतमा रत्नसमान २ सात. ३ आ ठेकाणे घंट वगाडवो ४ मेरू पर्वत. ५ ईद्र. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मात्रपूजा. तें जिनरायो जग सुखदायो, जायो पुत्र रतन्न रत्ननी खाणी तुं कहेवाणी, कृतपुण्या धन्यधन्य । ओच्छव रंगे करिश उमंगे, हु तुज सुतनो सार ।। लहि प्रभु हाथे हरि सुर साथे, पंच रूप करि २तार ॥२॥ मेरु शिखर जइ जिन खोले लइ, सिंहासन पर बेसे ॥ त्या मुरविंदा चोसठ इंदा, मलिया हरख विशेषे ॥ भक्ति भावे कलश बनावे, आठ जाति ५अभिराम ।। सेवक पासे अति उल्लासे, ५अच्युन सुर पति ताम ॥३॥ जल मंगावे ते सुर जावे, मागधने वरदाम ।। तीरथ गंगा सिंधु चंगा, पद्मद्रह शुचि ठाम ॥ क्षीरोदक जल लावे निरमल, औषधि फल मनोहार ॥ फुल चंगेरी अतिहि भलेरी, धूप धांणां झलकार ॥४॥ थाल विशाला दर्पण माला, चामर छत्र सुहावे ॥ ६समय प्रसिद्धां जे जे कीयां, ते उपगरण मिलावे ॥ सुरगिरी आवे भावना भावे, प्रभु जोइ जोइ हरखावे ।। सहु सुर मलिया भक्त हलिया, जिनमाणक गुण गावे ॥५॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ राग धन्याश्री॥ ज्योतिष व्यंतर भुवनपति वर, वैमानिक सुर इंदाजी ॥ जल कलशाली भरिय रूपाली, नवरावे जिन चंदाजी । १ पुत्रनो. २ उज्वल. ३ देव समूह.४ सुंदर ५ बारमा देवलोकनो इंद्र. ६ सिद्धांत For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मात्रपूजा. एक अभिषेके इंद्र विवेके. घट चोसठ हजारजी ॥ जिन पर ढाले पाप पखाले, इम सवि अढिसें धारजी ॥१॥ अच्युतादिक २हरि ३सामानिक, लोकपाल मुख छेकजी॥ सुर इंद्राणी हर्ष भराणी, करे प्रभुने अभिषेकजी ॥ सोहम स्वामी अवसर पामी, इशानेंद्र ५उच्छंगजी ॥ प्रभुने ठावे रुप बनावे, चार वृषभनां चंगजी ॥२॥ भरी जल शंगे जिनवर अंगे, न्हवण करे मन रंगजी ।। चंदन चरची कुसुमे अरची, धरे आमरण अभंगजी ॥ तव बहु राचे माचे नाचे, सुरवर साचे भावेजी ।। भुंगल मेरी मुरज नफेरी, मंगल तूर बजावेजी ॥३॥ जननी पासे जई उल्लासे, जिनवरने पधरावेजी ॥ पुत्र तमारो नाथ अमारो, ईणि पेरे वचन कहावेजी ।। नमि कर जोडी बत्रीश कोडी, कंचन मणि वरसावेजी ॥ करी नंदीश्वर ओच्छव सुंदर, निज निज थानक जावेझी ॥ तपागच्छ श्रीसिंहमूरिना, सत्यविजय पंन्यासजी ॥४॥ कपूर क्षमा जिन उत्तम केरा, पद्मविजय गुण वासजी ।। रुप कीर्ति उद्योतविजयना, अमर गुमान सवायाजी ॥ सुगुरु प्रतापविजय पद सेवक, माणकविजय कहायाजी ॥५॥ रांदेर क्षेत्रे पुण्य पवित्रे, आदीश्वर जिनरायाजी॥ संकट चूरे वांछित पूरे, पामी तास पसायाजी ॥ १ कलश. २ इंद्र. ३ सामानिक देव. ४ चतुर. ५ खोळामां For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री स्नात्रपूजा. रहायन षट शर नंद निशाकर, (१९५६) अखातीज २भृगुवारजी॥ जिनवर भक्ते गाया जुक्ते, जन्म महोत्सव सारजी ॥६॥ थया अनंता जिन अरिहंता, थासे तेम अनंताजी ॥ वंदू ३संप्रति जिनपति विंशति, विहरमान जयवंताजी ॥ मंगल कारण ए साधारण, कलश भाविक जे गावेजी ।। लक्ष्मी लीला रंग रसीला, केवल माणक पावेजी ॥७॥ SENTENE HEERIENDHEERENTERTAINMENT ॥ इति वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंह सूरिकृत श्रीस्नात्रपूजा संपूर्णा १ वर्ष. २ शुक्रवार. ३ वर्तमान. ४ वीस. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्रीब्रह्मचर्यव्रतपूजाध्यापन विधिः ॥ • सर्व वस्तु आठ आठ लाविए, पहेली पूजामां जल कलश लेइने उभा रहेनुं, पछी पहेली पूजानी बे ढालो कही, काव्य मंत्र भणी, प्रभुने न्वहण करिये, पछी अंगलुहणुं करी गीत भणवु पछी केशर चंदननी कचोली लेवी ने बीजी पूजा भणाववी. ए रीते आठे पूजाओ भणाविये. विशेषमां एटलं के, त्रीजीमां फुल लेवां, चोथीमां धूप लेवो पांचमीमां दीवा लेवा, छहीमां अक्षत चोखा लेवा, सातमीमां नैवेद्य लेवं, आठमीमां फल लेवां, पूजाओ भणाव्या पछी आरती मंगल दीवो करवो. ॥ इति श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजाध्यापन संक्षेप विधिः ॥ -888 ॥ आ पूजामां आवेल काव्यनो भावार्थ: ।। पाप, विघ्न, अने विपदाने छेदनार, पुण्य अने कीर्तिना समूहनुं सुंदर कारण, तथा स्वर्ग, अने दिव्य मोक्षने आपनार एवा शीलने (ब्रह्मचर्यने) हुं हमेशां ध्याउ छु. ॥ १ ॥ Stegte are For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा ॥ अथ वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहमूरिकृत।। ॥ श्रीब्रह्मचर्य व्रत गर्भिताष्टप्रकारी पूजा ॥ ॥दोहा॥ स्वस्ति श्री शांति १सदन, वदन विनिर्जितचंद ।। २मदन ३दमन जिनवर नमुं, आणी मन आनंद ॥१॥ वचनामृत रस वरसती, समरी सरसती माय ॥ ब्रह्मचर्य पूजा रचुं, प्रणमी सद्गुरु पाय ॥२॥ कष्ट हरण मंगल करण, विमल सकल व्रत ध्वर्य ।। ब्रह्मचर्य आराधतां, वरिये शिव ऐश्वर्य ॥३॥ दान ज्ञान तप जप दया, ६निखिल क्रिया व्रत नेम ॥ ब्रह्म विना शिव नव दिये, फल अवकेशी जेम ॥ ४ ॥ एक ब्रह्म आराधतां, सवि आराधित थाय ।। भाखे दशमा अंगमा, जगदीश्वर जिनराय ॥५॥ ते माटे भवियण तमे, वरवा निर्मल बंभ ।। पूजो परमातम प्रभु, दूर तजी दिल दंभ ॥ ६॥ ९दक चंदन १०सुम धूप दीप, वर अक्षत नैवेद ।। ११पेशल फल लहि पूजिये, भाव धरी अड भेद ॥ ७॥ १ घर. २ काम.३ दमनार. ४ श्रेष्ठ. ५ विभूति. ६ सर्व. ७ वांझियो वृक्ष. ८ कपट. ९ अल. १० पुष्प. ११ सुंदर. For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा ॥ अथ प्रथम जलपूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ मैथुन मलने टालवा, वरवा ब्रह्म विशुद्ध ॥ न्हवरावो निर्मल जले, ब्रह्मचारि जिन बुद्ध ॥१॥ ॥ ढाल ॥ ताल दादरो ॥ कर्मतणा संजोगयी, निर्माण थयेलं थाय रे ।। शाने दोष दइये बीजाने। ए देशी॥ पूजो प्रेमे प्राणिया, परमातम केरा पायरे ॥ छंडो दूर मैथुन संज्ञाने ।। ए आंकणी ।। मैथुन मोह्या मानवी, वाह्या त्रिवेद विकार ॥ भटके भीम भवाटवी, आपद लहे अपरंपाररे ।। छंडो दूर मैथुन संज्ञाने ॥ पूजो० ॥१॥ ॥साखी ॥ संजम तपने शीलनु, मैथुन विघ्न महंत ॥ दर्शन चारित्र मोहनो, हेतु कहे अरिहंत ॥२॥ २कमनीय रूप कांति कला, श्रुत शरीर शक्ति सिमवाय ।। नाशे निधुवन सेवा, वली ५सुकृत सकल क्षय जायरे ॥ छंडो दूर मैथुन संज्ञाने ॥ पूजो० ॥३॥ ॥शाखी ॥ ६चरण करण जीवित हरण, प्रबल प्रमादर्नु मूल ।। आपे आधि व्याधिने, धर्म करे सहु धूल ॥ ४ ॥ .. १ ब्रह्मचर्य. २ सुंदर. ३. समूह. ४ मैथुन. ५ पुण्य. ६ चरण सित्तरी तथा करण सित्तरी. ' For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. कायर कुपुरुष सेवियु, सजन जन १वयं सदाय ॥ सरि माणक कहे छंडिये, २चिर परिचित ए दुख दायरे । छंडो दूर मैथुन संज्ञाने ।। पूजो० ॥५॥ ॥दोहो॥ वरजी मैथुन वेगलं, पालो ब्रह्म प्रधान ॥ ३साधु जन सेक्ति सदा, निर्वृति ५शर्म निदान ॥१॥ ॥ ढाल । देव वंशना अंश तमे छो देव वंशना अंश ॥ ए देशी ॥ सर्व धर्ममां सार ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार ॥ रुचिर नियम तप रत्न त्रयीनो, एज एक आधार ॥ ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार । सर्व० ॥१॥ निःशंकी निर्भय निरुपाधि, परम, ९निवृत्ति १०अगार ।। दुर्गति मार्ग निरोधक दर्शक, सुगति मार्ग श्रीकार ।। - ब्रह्म छे० ॥ सर्व० ॥२॥ अमल क्षमादि गुणोनो आश्रय, समस्त व्रत सरदार ॥ तेजस्वी लोकोत्तम तारक, वारक विपदा ११वार ॥ ब्रह्म छे० ॥ सर्व० ॥३॥ धर्म वृक्षनो स्कंध ब्रह्म छे, धर्म सरोवर पाल ॥ धर्म नगर १२प्राकार १३अतिदृढ, १४अररि १५परिध उदार ॥ ब्रह्म छे०॥ सर्व० ॥४॥ १ वर्जवायोग्य. २ अनादि कालथी सेवेलुं. ३ उत्तमअथवा मुनि. ४ मोक्ष. ५ सुख. ६ कारण. ७ सुंदर. ८ झान दर्शन चारित्र. ९ निरांत. १० घर. ११ समूह. १२ कील्लो. १३ वहु मझबूत. १४ कमाड. १५ भूगल For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. जिन माणक गणधर इम जल्पे, दशमा अंग मझार ॥ मोक्ष मार्ग छे ब्रह्म मनोहर, नित पालो नरनार ॥ ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार ॥ सर्व० ॥५॥ ॥ काव्यं ।। द्रुतविलंबितं वृतं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं । दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥मंत्रः॥ ओ ही श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मलब्रह्मचर्यदायकाय श्रीमते जिनेंद्राय, जलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥ आंगणीयां आज सुहावो राज वीरवंशी शिरताज, ए देशी॥ ओलगडी आज स्वीकारो राज, २जितकाशी शिरताज । सेवकनां काज सुधारो राज, जितकाशी शिरताज ॥ , ओलगडी० ॥ ए आंकणी।। मैथुन संज्ञामां हुँ माच्यो, राच्यो जोइ पर रूप ॥ समज्यो नही जिन मारग साचो, संबर शुद्ध स्वरूप । ३निविड अज्ञान निवारो राज जित०॥ ओलगडी० ॥१॥ तृष्णा तीव्र विषयनी टालो, वारो विरुद्ध विचार ॥ वैरागे मुज मनटुं वालो, आलो ब्रह्म उदार ॥ बिषम शर वैरी विदारो राज ॥ जित० ॥ ओलगडी० ॥२॥ १ विनति. २ जयवान्. ३ आकरु. ४ काग, For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. मन्मय भंजन नाथ निरंजन, शूरवीर सुलतान ॥ देव नही तुम सरिखो दूजो, जिन माणक गुण खाण ।। भवोदधि पार उतारो राज ॥जित०॥ ओलगडी० ॥३॥ ॥ इति प्रथम-जल पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय चंदन पूजा प्रारंभः ।। ॥दोहा॥ तजवा मैथुन तापने, सजवा शीतल शील ॥ चरचो जिनने चंदने, लेवा अक्षर लील ॥१॥ तीश नाम मैथुनतणां, भाखे श्री भगवान ।। अब्रह्मर ते अकुशल क्रिया, आदि छे २अभिधान ॥२॥ युग्म कर्म छे ए वली, तेथी मैथुनर तंत ॥ ब्याप्यु सघला विश्वमां, चय॒ तेह चरंत ॥३॥ ३वी संसर्गे संपजे, संसगि निःसार ॥ सेवावे दूषण सवी, ते सेवाधिकार५ ॥ ४ ॥ जन्मे जे संकल्पथी, ते संकल्प विचार ॥ पीडे सघळा प्राणिने, नाम बाधना धार ॥ ५ ॥ अंग दर्पथी उपजे, दर्प८ नाम दुख दाय ।। वेद मोहीनीथी हुवे, माटे मोह मनायः ॥६॥ क्षोभ पमाडे चित्तने, मानो ते मन क्षोभ१०॥ १ काम. २ नाम. ३ स्त्री संबंधे. ४ विकल्प. For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. निग्रह जस होवे नही, अनिग्रह११ ते थिर थोम ॥७॥ कलहतणा कारण थकी, विग्रह१२ एह वदाय ॥ घात करे गुण रजातनो, नाम विघात१३ गणाय ॥८॥ जेथी गुण विराधना, विभंग१४ वदिये तेह ॥ विषय प्रवृत्ति विकारनो, ३आश्रय विभ्रम१५ एह ॥९॥ अधर्म१६ ४अचरण रूपथी, अशीलता१७ पण एम ॥ प्राम धर्म तप्ति१८ गणो, शब्दादिक पर प्रेम ॥ १० ॥ परत लीला रमवा थकी, रति१९ अमिधा पण तास ॥ राग अनुभव रूपथी, राग२० नाम दृढ पास ॥११॥ ॥ढाल ॥ ॥ जोई जोईने दिलदार, चढतो प्यारनो खुमार ॥ ए देशी। पूजो पूजोने नरनार, जुगते जिनवर जगदाधार ।। वारो विषमायुध विकार, सत्वर तरशो आ संसार । समजो काम भोग सह मार, मन्मथ अथवा मृत्युकाल ॥ माटे काम भोठा मार, २१ विपदा कारी ते विदारो॥ वारो विषमायुध विकार, सत्वर तरशो आ संसार ॥पूजो०॥१॥ विगते वैर२२ रहस्य२३ विचार, वैर निमित्त रहोब्यापार॥ १०गोप्यं गुह्य२४ बहुल गमार, माने ते बहुमान२५ निवारो। वारो० ॥ पूजो० ॥२॥ १ प्रवृत्ति वारवा रोध अथवा निषेध. २ समूह. ३ स्थान ४ अचारित्ररूपथी. ५ मैथुन. ६ काम ७ जल्दी ८ काम ९ अकांत कृत्य. १० छार्नु राखवा योग्य For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ब्रह्मने नडनार, छे ब्रह्मचर्य विघन २६दुर ॥ छेदे गुणोनो संभार, तेथी व्यापत्ति २७विचारो॥ वारो॥पूजो०॥३॥ गुणगण विराधना आगार, नामे विराधना २८निराधार ।। कामासक्ति करावणहार, निश्चे प्रसंगे२९ ते नठारो॥ वारो० ॥ पूजो० ॥४॥ जाणी काम कार्य दुखकार, करजो काम गुण ३०परिहार ॥ जल्पे जिन माणक गणधार, दशमे अंगे ए अधिकारोवारो०॥ पूजो पूजोने नरनार, जुगते जिनवर जगदाधार ॥५॥ ॥दोहा॥ तीश नाम मैथुन तजो. भजो शील सुखकार ॥ उत्तम बत्रीश उपमा, शोभित जे श्रीकार ॥१॥ ग्रह गण ३उडु तारा विशे, रमणीक जिम रजनीश ॥ मणि मुक्ताना स्थानमां, वारु जिम ५वारीश२ ॥ २ ॥ मणि गणमां वैड्य३ वर, ६मौलि भूषण ७वंद ।। क्षौम युगल५ वर वस्त्रमा सुमनसमा १०अरविंद६ ॥३॥ चंदनमां गोशीर्ष छ औषघि धर हिमवान ॥ ११सीतोदा सवि १२सिंधुमां, परखो परम प्रधान ॥४॥ श्रेष्ठ समस्त समुद्रमां, स्वयंभू रमण समुद्र १० ॥ १ समूह. २ समूह. ३ नक्षत्र ४ चंद्र. ५ समुद्र. ६ मुगट. ७ समूह. ८ सूतराउ वस्त्र. ९ पुष्प. १० कमल. ११ ए नामनी नदी. १२ नदी.. For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. मांडलिक महीधर महीं, २रुचकवर११ वर मुद्र ॥५॥ ३हस्तिमल्ल१२ जिमहस्तिमां, मृगमां मधुर ५मृगेंद्र १३ ॥ श्वेणुदेव१४ सुपर्णमां, नागवीशे धरणेद्र १५ ॥ ६ ॥ ब्रह्मलोक१६ जिम कल्पमा, सभा सुधर्मा सार ।। स्थितिमां लव सप्तम स्थिति,१८ मानीजे मनोहार ॥७॥ अभय दान१९ जिम दानमां, कंबलमां कृमिरंगर० ।। वज ऋषभ नाराच२१ ज्यु, संघयणोमां चंग ।। ८ ॥ सम चोरस२२ संठाणमां, ११परम शुक्ल २३ जिम ध्यान ॥ ज्ञान विशे जिम १२ग्रामणी, कहिये केवल ज्ञान२४ ॥९॥ परम १३शुक लेश्या२५ यथा, लेश्या मांहि उदार ॥ समजो तेमज शीलने, सहु व्रतमां सरदार ॥१०॥ ॥ढाल ॥ ताल लावणी ॥ ॥ शीतल चंद्र जेवू, बदन कांतिमान ।। ए देशी ।। शीतल शील सेवो, सरस शांतिकार ।। दाहक वह्नि जेवो, १४मदनदूरवार। शीतल०॥ए आंकणी॥ मुनि मंडलमां म्होटा, जिनवर२६ जाणीजे ॥ क्षेत्रोमा १५हारि महा, विदेह२७ वखाणीजे ॥ १६शिवरीमा १ मंदर २८सार,सारसार अवधाराशीतल०॥१॥ १ पर्वत २ तेरमा द्वीपमा रहेलो पर्वत. ३ एरावण. ४ संदर. ५ सिंह, ६ ए नामनो इंद्र.७ ए नामना भवनपति देव. ८ देवलोक. ९ सर्वार्थ सिद्ध विमानना देवोर्नु आयुष, १० करमजथी रंगेली कांबल. ११ शुक्ल ध्याननो चोथो भेद. १२ प्रधान १३ शुक्ल ध्यानना त्रीजा मेदमा रहेली. १४ काम. १५ सुंदर. १६ पर्वत. १७ मेरु. For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. नंदन वन२९जिम काननमां, २मंजुल मानीजे ॥ जंबू सुदर्शन३० तरुमां, परम प्रमाणीजे ॥ धर्ममांशील'तिम घार, धार धार मनोहार शीतल०॥२॥ हयवर गयवर रथवर ने, नरवर जिम राजा३१ छ । शीलनी तिम राजा सरखी, धर्ममा माजा छ । शील विना करणी छार, छारछार छ निःसारशीतल ॥३॥ समरथ थिक ३२ जिम शत्र, सेना हरावे छ । शीलधर तिम कर्म ४विरोधि, ५बलने दबावे छे । पामे छे दलघु भव पार, पार पार निरधार ॥शीतल०॥४॥ जल्पे माणक जे प्राणी, शीलने आराधे छ । साधक ते साचो सघलां, साधन साधे छ । देखेछ शिव पुर द्वार, द्वार द्वार सुखकार ॥शीतल०॥५॥ ॥ काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारण।। दिदिवि दिव्यमहोदयदायकं, प्रणिदधेफिल शीलमहं सदा॥१॥ ॥मंत्र।। औं ही श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, निर्मल ब्रह्मचर्यदायकाय, श्रीमते जिनेंद्राय चंदनं यजामहे स्वाहा ॥ १ वन.२ सुंदर.३ रथमां बेटेलोसुभट.४शत्रु.५सेना.६शीघ्र. For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ अथ गीतं ॥ राग सोहनी ॥ ताल गझल ॥ ॥ दाह उठी छे दुखनी दीलमां, शी रीते ठंडी थशेः राग॥ आज आशा राखीने आविया, अरिहानी पासे अमे ।। चाह लागी छे ब्रह्मनी चित्तमां, ते पूरो स्वामी तमे।आज०॥१॥ देव दुनियामां बीजा देखीया, भूरि भव भूला भभे॥ आश तेनी तो मनमां न आणिये, २रामा संगे रमे |आज०॥२॥ दर्पक जीपक जिन देव छो, नेरी पण तमने नमे ॥ सरि माणक श्रीजिन सेवतां, ५श्रीनंदन स्हेजे शमे आज०॥३॥ ॥ इति द्वितीय चंदन पूजा संपूर्ण ॥ ॥ अथ तृतीया कुसुम पूजा प्रारंभ ।। ॥दोहा ॥ ६कुसुम कांडने कापवा, कुसुम लही कमनीय ।। पूजो पुष्कल प्रेमथी, जिनवर जग ८महनीय ॥१॥ पावन पुष्पे पूजिये, पारंगतना पाय ॥ काम दशा दश कारमी, जेथी दूरे जाय ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ ताल लावणी ॥ कोइन कयु कइ थाय नही सह कम छे करनार ॥ए देशी ॥ पारंगत पद पूजिये, जिम काम अवस्था जाय ॥ १ बहु. २ स्त्री. ३ काम ४ इन्द्र. ५ काम. ६ काम. ७ सुन्दर. ८ पूजवा योग्य. ९ अवस्था. For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. काम अवस्था जाय, परम पद दायक शील पमाय पारंगत पद पूजिये, जिम काम अवस्था जाय ॥ए आंकणी ॥ चिंता प्रगटे प्रथम चित्तमां, १निधुवननी निरधार ।। वीजी अवस्थामांबालाने,जोवा इच्छे ३जार पारं०॥१॥ नांखे त्रीजीमां नीसासा, दीर्घ दीर्घ दुख दाय ॥ ताव चढे ४तुर्यावस्थामां, कामी केरी काय पारं०॥२॥ दाह उठे कामीने देहे पंचम दशा मझार॥ भोजन छट्ठीमां नव भावे, कामीने धिक्कार ॥पारं०॥३॥ शरीर कंपे सातमीमां, आठमीमां उन्माद ॥ प्राणतणो संशय नवमीमां, दशमीमां ५अवसाद ॥पारं०॥४॥ काम अवस्था ए दश कूडी, निष्ठुर पाप निवास ॥ सूरिमाणक जिनवर सेवाथी, निश्चे पामे नाश पारं ॥५॥ ॥ दोहो ॥ काम दशा दश दूर करी, धरी शील सुज्ञान ॥ संतत दशविध सेविये, सरस समाधि स्थान ॥१॥ ॥ ढाल । ताल लावणी॥ मन भूलावे मन लोभावे, मन चकडोले चढावेजी ॥ए देशी॥ शील गुण धरिये शील गुण स्मरिये, शील गुणथी भव तरियेजी ।। शील गुण रक्षण सरस समाधि, स्थानक दश अनुसरियेजी । ए आंकणी॥ १ मैथुन. २ स्त्री. ३ व्यभिचारी. ४ चोथी अवस्थामा ५ नाश. ६ कठोर. ७ निरंतर. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. पशु पंडक २प्रमदा परिवजित, ३वसतीमां विचरियेजी ॥ काम विवद्धिनी कामिनी केरी, कथा कदी नव करियेजी॥ शील० ॥१॥ आमन भाषण आदि ५अबला परिचय सहु परिहरियेजी।। विनिता अंगोपाग विलोकन, स्थिर दृष्टे नव करियेजी ॥ शील० ॥२॥ ७कांता कूजित रुदित गीतादि, ९स्तनित नवि सांभलियेजी ।। पूरव १०विलसित हास्य रतादि, ११स्मर लीलान समरियेजी ॥ शील० ॥३॥ १२प्रणीताहार दूरे परिहरिये, १३भूरि उदर नव भरियेजी ॥ १५तनु १५अंबरनी शोभा तजिये, १६अंगज. गुण अपहरियेजी। शील. ॥४॥ सेवी एम समाधि स्थानक, १७विषमायुध विसरियेजी उज्वल शील माणक आराधी १८महानंद पद वरियेजी ।। शीलगुण धरिये शीलगुण स्मरिये ॥५॥ ॥काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तं ॥ वृजिनविघ्नविदारणं, सुकृतकीतिकलाप सुकारणं ।। दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, अणिदधे किलशीलमहं सदा ॥१॥ १ नपुंसक. २ स्त्री.३ मकान-रहेवानुं स्थान. ४ स्त्री ५स्त्री. ६ स्त्री. ७ स्त्री.८ शब्द. ९ सभोग समयना शब्द. १० भोगवेल. . ११ काम. १२ अत्यंत घीवाला आहार. १३ घणु.१४ शरीर १५ वस्त्र.१६कामगुण-शब्द रूप गंध रस स्पर्श. १७ काम.१८ मोक्ष. For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. २९ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, निर्मल ब्रह्मचर्य दायकाय, श्रीमते जिनेंद्राय, कुसुमानि यजामहे स्वाहा ॥ ॥अथ गीतं ॥राग रेखता ॥ ताल कवाली अहो अरिहंत उपगारी, सपर्या ताहरी सारी॥ तुरत जे संसृति तारी, बतावे मोक्षनी पारी ॥ अहो ॥१॥ महा भाग्ये तुमे मलिया, मनोरथ सर्व अब फलिया । त्रिविध संतापदूर टलिया, दिवस मुज आजथी बलिया ॥अहो॥२॥ दशा दश कामनी कापी, समाधि स्थान दश आपी ॥ सूरि माणिक्यने तारो, अरज ए उर अवधारो ॥ अहो अरिहंत उपगारी० ॥३॥ ॥ इति तृतीय कुसुम पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ चतुर्थ धूप पूजा प्रारंभ ।। ॥ दोहा । धर्म चक्री धर्मेशने, धरीये धूप सुगंध ।। हरिये ३रत दुर्गधने, परिये शील सुगंध ॥ १॥ टाली अढार अब्रह्मने, पाली पावन ब्रह्म । गाली आठे कर्मने, लहीये अचिल "ब्रह्म ॥२॥ ॥ ढाल ताल मराठी लावणी ॥ अरिहा आगल धूप उखेवी, दुष्ट अब्रह्म दूषण दहिये १ पूजा. २ संसार. ३ मैथुन ४ ब्रह्मचर्य. ५ मोक्ष. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. वर ब्रह्म विकाशी, ललित ' महोदय सुख मंगल लहिये || अरिहा०||१ दिव्य उदारिक दोय प्रकारे, कुत्सित काम विषय कहिये || धुरसुर संबंधी, इतर तिरि नर संबंधी ग्रहिये || अरिहा || २ || चित्त वीशे जो ए चितवीये, वचन वली वदने वहिये || शरीरे सेवीजे, तो वन "कलुष करम भाजन थइये || अंरिहा ० ३ || करण करावणने अनुमतिए, अष्टादशविध ए कहिये || दुर्गति दुखदायी, स्तथी रात दिवस दूरे रहिये || अरिहा ० || ४ || अधम अल अठार निवारी, जग माणक जिनवर ९ महिये || तो भव भय भेदी, १० झटिति शाश्वत शिव मंदिर जहये || अरिहा आगल धूप उखेवी दुष्ट अब्रह्म दूषण दहिये ॥ ५ ॥ दोहा अढार अब्रह्म परिहरी, धरी शील व्रत सार ॥ सहस अढार शीलांगने, साधे जे श्रीकार ॥ १ ॥ साधु ते साचा सही, सारो तस पद सेव ॥ तृष्णा जेम दूरे टले, मले शील स्वयमेव || २ || || ढाल || ताल लावणी || ॥ प्यारा हमारा तुं हमे दे आग्या जानेकी || ए देशी ॥ १ मोक्ष अथवा म्होटो उदय. २ निंदित. ३ प्रथम. ४ देव संबंधी (वैय.) औदारिक. ६ बहु. ७ पाप. ८ मैथुन. ९ पूजिये. १० शीघ्र. For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. सहस अढार शीलांग साधे साधु ते साचा ।।ए ऑकणी॥ आहार भय मैथुन परिग्रह, संज्ञा छेदे चार ।। श्रवण नयन नाशा रसना त्वग, पंच २करण जितनारसहस०॥१॥ क्षांति मार्दव आर्जव मुक्ति, तप संजम सुखकार ॥ सत्य शौचने आकिंचन ब्रह्म, धर्म दशक धरनार ॥सहस०॥२॥ ३भू जल वहि वायु वनस्पति, ध्वी ५ति चउरिद्रिय तेम ॥ पंचेंद्रिय ने अजीब कायनो, आरंभछंडे एम ॥ सहस० ॥३॥ न करे न करावे कोइ पासे, अनुमोदे नही एह ।।। जोग त्रिके जगमा जोगीश्वर, तारक साचा तेह ।।सहस०॥४॥ अनुक्रमे ए पद संजोगे, होवे सहस अढार ॥ शीलांग साधक मुनि माणकने, वंदो वारंवार सहस अढार शीलांग साधे साधु ते साचा ॥५॥ || काव्यं द्रुतविलंवितं वृत्तं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारगं, सुतकीर्तिकलापसुकारणं ॥ दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा॥१॥ ॥मंत्रः।। ओ ही श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मल ब्रह्मचर्यदायकाय . स्पर्शन. २ इंद्रिय ३ पृथ्वी. ४ द्वींद्रिय. ५ श्रींद्रिय. ६ मुनिओने विशे रत्न समान. For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. श्रीमते जिनेंद्राय धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥ । माल मोतीडानी मोंघी मंगावतो, कंथ कोडीला कंठे पहेरावजो॥ ए देशी ॥ नाथ नामीचा नेहने निभावजो. बाप बालकने दखथी बचावजो॥ दुष्ट अब्रह्म दोषने दबावजो,ब्रह्मचर्यनी वानगी बतावजो।एआंकणी।। मोह महीशनी वाहिनी हठावजो मंत्री कुबुद्धिन मान मुकावजो।। ३जरामीरुसेनानी जिपावजो,बापबालकनेदुखथीबचावजोनाथ॥१॥ तृष्णाप्तरुणीनी संगतितजावजो समता सीमंतिनीसोबत सजायजो ६चारु निवृत्ति मार्गे चढावजो, बाप बालकने दुखथीबचावजो॥ ॥नाथ ॥२॥ वसमी विषयतणी वांछा विसरावजो, सहस अढार शीलांग समरावजो॥ सूरिमाणकने सुख संपाजावजो, बाप बालकने दुःखथी बचावजो।। नाय नामीचा० ॥६॥ ॥ इति चतुर्थ धूपपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ पंचम दीपक पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ प्रिय प्रदीप प्रगटावतां, श्री सर्वज्ञ समीप ॥ अब्रह्म ८अंध तमस मटे, प्रगटे ब्रह्म प्रदीप ॥१॥ १ राजा. २ सेना. ३ काम. ४ मी. ५ स्त्री. ६ सुंदर.. ७ सुंदर. ८ अंधकार. For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. अत्र सेवी आतमा, १ अर्जी पाप अमाप ॥ भूरि भव मंडल भमे, सहतो दुख संताप || २ || महा असंजम मैथुनं, निष्ठुर करम निदान || भाखे भगवती सूत्रां, बर्द्धमान भगवान ॥ ३ ॥ वामा विषय विलासथी, मैथुन संज्ञारूढ ॥ सूक्ष्म नव लख सत्वने, मारे मोहे मूढ ॥ ४ ॥ रामा योनिमां रहे, जे वे इंद्रिय जीव ॥ लघु एक बे ऋण गुरु, ते नव लाख सदैव ॥ ५ ॥ गर्भज जीव नव लख गया, ९ महिला योनि मांहि ॥ असंख्यात वली उपजे चवे समूर्छिम त्यांही ॥ ६ ॥ स्त्री पुरुष संबंधथी, होवे तेनो घात || १० नलिका गत रुत ११ तापिता, १२ लोहशलाका १३ ज्ञात ||७|| असंख्यात पंचेंद्रिया, मनुष समूर्छिम जात ॥ स्त्री नर योगे उपजे, पनवणार्मा १४ ख्यात ॥ ८ ॥ ते माटे मैथुन तजो, सजो शीलालंकार ॥ भजो सदा भगवंतने, १५ जो १६ अमृत १७ आगार ॥९॥ ३.३ १ उपार्जन करीने. २ कठोर. ३ कारण. ४ स्त्री. ५ जीव. ६ स्त्री. ७ जघन्यथी. ८. उत्कृष्ट ९ स्त्री. १० भुंगलीमां रहेल रु. ११ तपावेली. १२ लोढानी शली. १३ दृष्टांत. १४ कहयं छे. १५ जाओ अथवा पामो. १६ मोक्ष. १७ घर. ૩ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा ॥ ढाल ॥राग देश सोरठ ॥ ॥ ताल खींमटो॥ ॥ भाइ नाम समजीने बेशी रहिये । प. देशी ॥ भाइ तजो भामानी संगत मूंडी, रचो प्रभुनी दीपक पूजा रूडी । भाइ० ॥ ए आंकणी ।। भामा तमारी बुद्धि भमावशे, करणी करावशे कूडी ॥ रजनी दिवस निज बंधनमा राखशे, सी जप तप नाखशे झुडी ॥ भाइ ॥॥१॥ बाहिर दृष्टिये जोतां बालिशने, रामा लागे अति रुडी ।। ज्ञान दृष्टिये भासे ज्ञानिने, महामल मूतरनी कुंडी ॥ भाइ ॥२॥ ४विकट कपटनी पेटी ५वनिता, लुटारी मोहनी लूडो॥ रंचे एनो जो विश्वास राखशो, तो मुलगी गुमावशो मूडी ।। भाइ ॥ ३॥ कामिनी केरी संगत करतां, आपद पामशो उंडी ॥ वीर्य विभूति खोशोने वागशे, बधा देशमां अपजश दूंडी ॥ भाइ ॥ ४ ॥ तरुणीनी, संगत राची रहे तेनी, उंच गति गइ उडी॥ जिन माणक गणधर इम जल्पे, जरा जुवो जैनागम ढूंढी ।। भाइ तजो भामानी संगत मुंडी ॥५॥ १स्त्री. २ मूर्ख. ३ स्त्री. ४ विशाल. ५ स्त्री. ६ स्त्री. ७ धन माल रिद्धि. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ दोहा ।। नारी काली नागिनी, विषम विषय विष वास । जे अंतर जीवितनो, वेगे करे विनाश ॥ १॥ दील हरे दर्शन थकी, स्पर्शनथी बल सार ॥ वीर्य हरे संगम वडे, निश्चे राक्षसी नार ॥२॥ अतिशय विषमय अंतरे, उपरथी अभिराम ॥ 'गुंजाफल सरखी गणी, २अबला अवगुण धाम ॥३॥ मोह महिपे माँडियो, प्रमदा रूपी पास ॥ जकडाणा तेमा जइ, जाण अजाण हताश ॥ ४ ॥ ५कांता कांचन सूत्रथी, विटयुं विश्व अशेष ॥ ते बन्ने जे दर तजे, परखो ते परमेश ॥५॥ अकलुष कक्ष कादंबिनी, नियमा शोक निदान ॥ दुर्गति मारग दीपिका, १०दयिता दुखनी खाण ॥६॥ निर्दयता निःस्नेहता, ११शठता साहस रोष ॥ स्वाभाविक १२श्यामा तणा, दाख्या छे बहु दोष ॥७॥ गंगा वालुका गणे, मापे १३वारीश १४वार ॥ १५कोविद पण न कली शके, १६वामा हृदय दिचार ॥८॥ इम समजी पंडित सदा, छंडी स्त्रीनो संग॥ सेवे निर्मल शीलने, राखी मन दृढ रंग ॥९॥ १ चणोठी. २ स्त्री. ३ स्त्री. ४ निराश. ५ स्त्री ६ समस्त. ७ पाप ८ वन. ९ मेधमाला. १० स्त्री. ११ माया. १२ स्त्री. १३ समुद्र. १४ जल. १५ बुद्धिमान्-पंडित. १६ स्त्री. For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ढाल || कल्याण || ताल कवाली। ॥ परोपकार ए आत्मविभूति, सज्जन मन गणता ॥ ए देशी॥ धन धन मुनिवर संजभ धारी, शिव साधन सजता सजता ॥ श्वनिता भवनुं बीज विचारी, त्रिविध त्रिविध तजता तजता ॥धन ।। १॥ माया ममता २मन्मथ मारी, परम ब्रह्म रमता रमता ॥ श्रद्धा भासन स्वरूप स्वीकारी, करम मरम धमता धमता ॥ धन ॥२॥ तेम करी न शके जे ते पण, देश विरति धरता धरता ॥ निज नारी सतोषी श्रावक, आतम हित करता करता ॥ धन० ॥३॥ केइक पर श्मणी विरमण करी, चोथु व्रत चरता चरता॥ उज्वल शील अशक्त अविरति, दोष थकी डरता डरता ॥ घन०॥४॥ सूरि माणक जिन गणधर शिक्षा, अंतरमा स्मरता स्भरता॥ उत्तम जव शुभ शील उपासी, भवसागर तरता तरता ॥ धन ॥ ५ ॥ ॥ कायं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्त ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारण ॥ दिदिवि दिव्यमहोदयदायकं, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ १ स्त्री. २ काम. ३ स्त्री. For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- ु ु || मंत्र:|| ओ ही श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मल ब्रह्मचर्यदायकाय श्रीमते जिनेंद्राय दीपकं यजामहे स्वाहा ॥ अथ गीतं ॥ राग गझल | ताल कवाली ॥ ॥ आसक तो हो चुका हूं ॥ ए राह ॥ भक्ति तो कर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥ त्रिभुवनके तात त्राता, दिव्यामृत शात दाता ॥ तुम नाम स्मर रहा हूँ, चाहे तारो या न तारो ॥ भक्ति०॥१॥ दीन बंधु दिव्य शक्ति, भव तरणी तुम भक्ति ॥ यह श्रद्धा धर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो भक्ति० ||२|| प्रभु करुणा दृष्टि कीजे, शुभ २शील माणिक्य दीजे ॥ चरणे तो पर रहा हूँ, चाहे तारो या न तारो भक्ति० ॥३॥ ॥ इति पंचम दीपक पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ पष्ठाक्षत पूजा प्रारंभ : ॥ ३ अक्षत अर्जुन अक्षते, पूजो जगदाधार ॥ अक्षत ब्रह्म अधिपति, अक्षत ब्रह्म उदार ॥ १ ॥ सर्वकाल संरक्षवा, अक्षत शील अनूप ॥ पार्श्वस्थ शील परिहरो, भाखे त्रिभुवन भूप ॥ २ ॥ ३७ १. सुख. २ शीलरूप रत्न. ३ अखंड. ४ उज्वल ५ अखंड. आत्म स्वरूप अथवा मोक्ष. ६ अखंड ब्रह्मचर्य आपनार. ७ शिथिलाचारी. For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ ढाल ॥ राग ॥ माढ ॥ ॥ प्रेमनो कोल दीयो राज कुमार ॥ ए देशी प्रेमथी प्रभु पूजो परमाधार, परिहरवा पतिताचार ॥ प्रेमथी प्रभु पूजो परमाधार ॥ ए आंकणी॥ १अभ्यंजन नव करिये अंगे, तैल स्नान दूर टाल ॥ २कक्षा शिर २कर पद मुख ४क्षालन, वरजो वारंवार ।। सदा शील साचववा सुखकार ॥ प्रेमथी० ॥१॥ ५पुद्गल संवाहन परिहरिये, ६पुर परिकर्म प्रकार ।। अंग ७मलन पण नव आचरिये, विकृति जनक बिचार ॥ परम शील उपर जो होय प्यार ॥ प्रेमथी० ॥२॥ ९अनुलेपन १श्वासनने ११धूपन, १२वपु परिमंडण वार ।। नख १३कच वस्त्र १४समारचना वर, नव करिये निरधार ॥ विसरिये १५हसन वचन सविकार ॥ प्रेमथी० ॥३॥ नृत्य गीत वादित १६नट नर्तक, १७जल्ल मल्ल वली जेह ।। तास १८विलोकन विदूषक तजिये, शृंगार रसनां १९गेह ॥ अवर पण सर्व तजो शील धार ॥ प्रेमथी० ॥ ४ ॥ राग द्वेष संमोह प्रवर्द्धक, प्रमाद दोष असार । १ घी प्रमुख चोलवू. २ काख. ३ हाथ पग. ४ धोवू. ५ शरीर चंपावq. ६ शरीर संस्कार. ७ मर्दन करावq. ८ विकार उत्पन्न करनार. ९ विलेपन. १० सुगंध द्रव्यथी बास. ११ धूपथी धूपबु. १२ शरीर शोभा. १३ केश. १४ समावु. १५ हसवु. १६ नचावनार. १७ वरत्रा खेलकदोरडा उपर खेल करनार. १८ जोवं. १९ घर. For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. पतिताचार दूरे परिहरतां, सचवाशे शील सार॥ कहे इम जिन माणक गणधार | प्रेमथी । ॥५॥ ॥दोहो॥ द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भाव थकी जग भाण ॥ भाखे शील चउ भेदथी, समजो चतुर सुजाण ॥१॥ द्रव्यथी चउ २दारा तजो, क्षेत्र थकी ३त्रण लोक ॥ कालथी दिन निशि भावथी, राग द्वेषने रोक ॥२॥ स्थिर करवा शुभ शीलने, सर्व काल शील धार ।। भावो तप नियमादिके, अंतर आत्म उदार ॥ ३ ॥ ॥ढाल ॥ राग माढ ॥ ताल लावणी ॥ ॥विषय वात मम मात तजीने, कृष्ण भजन तुं करवा दे॥ए देशी॥ अवर वात मम भ्रात तजीने, परम ब्रह्म आचरजोजी ।। इण विध अंतर आतम भावी, ४भवमकराकर तरजोजी ।। अवर० ॥१॥ ५अस्नानक ने अदंतधावन, स्वेद जिल्ल मल घरजोजी ॥ ७मौन चरण ८कच लोच क्षमा दम, ९आचेलक्य अनुसरजोजी ॥ अवर० ॥२॥ भूख तरशने टाढ ताप सही, १०लाघव पण आदरजोजी ॥ । सामान्य केवलीमा रत्न समान २ स्त्री. ३ ऊर्ध्व लोके अघो लोके तिर्यग् लोके. ४ संसारसमुद्र. ५ स्नाना. भाव. ६ ढीलो मल. ७ मौन व्रत. ८ केश. ९ वस्त्राभाव. १० अल्प उपाधि. For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. - - काष्टशयन ने १अवनि आसन, सेवी तन संवरजोजी ॥ अवर० ॥ ३ ॥ लाभ अलामे मान अमाने, हर्ष रविषाद विसरजोजी ॥ निदन दंश मशकने स्पर्श, समभावे संचरजोजी ।। अवर ॥४॥ नियम तपो गुण विनय वहीने, ब्रह्मचर्य स्थिर करजोजी ।। सरि माणक जिन पद कज सेवी, वेगे शिव वधू वरजोजी॥ अवर वात मम भ्रात तजीने० ॥५॥ काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तं ॥ जिनविघ्नविपत्तिविदारण, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं ।। दिदिवि दिव्यमहोदयदायकं, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥मंत्रः॥ ओही श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निमलब्रह्मचर्यदायकाय, श्रीमते जिनेंद्राय अक्षतान् यजामहे स्वाहा ।। ॥ अथ गीतं ॥ राग माढ॥ ॥ उगारो आवी आप, हे दिनबंधु हे दयाल ॥ ए देशी ॥ साहिब करजो सहाय, हे अरिहंत हे महंत ॥ प्रेमे प्रणमुं पाय, हे अरिहंत हे महंत ॥ ए आंकणी।। १ पृथ्वी. २ खेद-शोक. ३ स्त्री. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ४१ शिथिलाचार थयो हुं स्वामी, वामी मुनि गुण वाम ॥ प्रबल प्रमाद दशाने पामी, हारी गयो:र्छ हाम, हे अरिहंत हे महंत ॥ साधन कंइ न सधाय, हे अरिहंत हे महंत ॥ जीवित एले जाय, हे अरिहंत हे महंत ॥ साहिब० प्रेमे० ॥१॥ पुद्गल परिणतिमां हुं पडियो, जडियो कर्म जंजीर ॥ शनिष्ठुर विषय कषाये नडियो, व्हारे आवो ध्वीर, हे अरिहंत हे महंत ॥ अडवाडियां आधार, हे अरिहंत हे महंत ॥ करुणा रस ५कासार, हे अरिहंत हे महंत ॥साहिब०॥ प्रेमे०॥ पतित उद्धारक पामर पालक, टालक मोह तोफान ॥२॥ बापलिया हुंछ तुम बालक, भद्रंकर भगवान, हे अरिहंत हे महंत ॥ जिन माणक जयकार, हे अरिहंत हे महंत ॥ आपो शील उदार, हे अरिहंत हे महंत ॥ साहिब करजो सहाय० ॥ प्रेमे प्रणमुं पाय० ॥३॥ ॥ इति षष्ठाक्षत पूजा संपूर्णा ॥ 028822022 0008000 १ सुंदर. २ बेडी. ३ कठोर. ४ शक्तिमान् ५ सरोवर. For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ अथ सप्तम नैवेद्य पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहा॥ १निर्वेदी जग नाथने, नित धरिये नैवेद ॥ पावन निर्वेदीपणुं वरिये छेदी वेद ॥१॥ वेद उदय बश आतमा, सेवी विषय विकार ।। कठिन कर्म बंधन करी, आपद लहे अपार ॥२॥ विषय विकार विदारवा, अरिहा २अगदंकार ।। पूजो परम ३प्रमोदथी, पामो भव जल पार ॥३॥ ॥ ढाल || ताल लावणी ॥ रूपे शु मन राचोरे, कायानो रंग काचोरे. भगवान भजो ए देशी ॥ विषय विकार विदारोरे, बिमलात्म स्वरूप विचारोरे, जिनराज ४यजो ।। ए आंकणी ॥ विष सम वसमी विषय वासना, दारुण दुख देनार ॥ उंडा भव ५अंधुमां उतारी, करशे खूब खुवार ॥ उगरवानो नही आरोरे, विमलात्म स्वरूप विचारो रे, जिनराज यजो ॥ विषय० ॥१॥ जमण मधुर विष मिश्रित जमतां, उपजे स्वाद अपार ।। पण ते प्राणतणो पाछलथी, ६शीघ्र करे ७संहार ॥ १. बेद रहित. २ वैद्य. ३ आनंदथी. ४ पुजो. ५ कूवामां. ६ जलदी. ७ नाश. For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा एमां नही अल्प उधारो रे, विमलात्म स्वरुप विचारों रे, जिनराज यजो ॥ विषय० ॥२॥ विषय विकार विलसतां वल्लभ. लागे तेम लगार ॥ पण ते भव शत परंपरामा, दुरंत दुख दातार ॥ हाहा नर भव शुं हारोरे, विमलात्म स्वरूप विचारोरे, जिनराज यजो । विषय० ॥३॥ जरना लोभे जेम न जाणे १चमनो गंध चमार ॥ विषयाशी जीव तेम विषयमां, न गणे दुःख गमार ॥ माठो ए मोह मंझारोरे, विमलात्म स्वरूप विचारो रे, जिनराज यजो ॥ विषय० ॥४॥ आखी वये उपार्जित उत्तम, संजम तप जप सार । काम विषयगें सेवन करतां, क्षणमा होशे २क्षार ॥ सूरि माणक बचन स्वीकारो रे, विमलात्म स्वरूप विचारोरे, जिनराज यजो ॥ विषय विकार विदारो रे, विमलात्म स्वरूप विचारो रे ॥५॥ ॥दोहा॥ हरिये विषय विकारने, धरिये ब्रह्म सुधर्म ॥ करिये सेवा ३सावनी, वरिये शाश्वत शर्म ॥१॥ १ चामडानो. २ राख. ३ जिनेश्वर. ४ सुख. For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. निश्चय ने व्यवहारथी, ब्रह्मचर्य अवधार । निश्चय निज गुण रमणता, पर परिणति परिहार ॥२॥ नारी संग निवारिने, वारी विषय विकार ॥ धारी नव विध गुप्तिने, शील साधन व्यवहार ॥३॥ ॥ ढाल ॥ ताल केरबो॥ ॥ हमे दम देके सोतन घर जामा ॥ ए देशी ॥ निर्मल ब्रह्म रचरो नरनारी, चरो नरनारी चरो नरनारी ।। निर्मल ब्रह्म चरो नरनारी ॥ ए आंकणी वस्तु विचार विवेक वधारी, श्रद्धा संवेग शुद्ध समारी॥ निर्मल । पर ममता परिणति परिहारी, धैर्यथी निजगुण स्थिरता धारी ।। निर्मल ॥१॥ अखिल ३रमण चेष्टा अपहारी, विषमायुध संकल्प विसारी ॥ निर्मल० ॥ ५अतिक्रम आदि दोष विदारी, शम दम श्रमण धरम संभारी निर्मल० ॥२॥ ब्रह्म चरेजे ते ब्रह्मचारी सुब्राह्मण सुश्रमण अणगारी निर्मल०॥ सुसाघु ऋषि मुनि मनोहारी, संयत भिक्षु तेहज. भारी॥ निर्मल० ॥३॥ १ आचरो.२ सर्व. ३ काम-अथवा रति (मैथुन) ४ काम. ५ अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार अनाचार. For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा विषय विरागी परस्त्री निवारी, निज नारी सतोष स्वीकारी ॥ निर्मल० ॥ १आगारी पण शील गुण धारी, कल्प्यो २अणगारी अनुकारी ॥ निर्मल० ॥ ४ ॥ हितकर गुण नायक ३गुरु थ्हारी, ५निरपवाद ए व्रत निरधारी ॥ निर्मल०॥ . सेवा संतत शिव सुखकारी, जल्पे जिन माणक गणधारी ॥ निर्मल ब्रह्म ॥५॥ । काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं ॥ दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ भो ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मलब्रह्मचर्यदायकाय, श्रीमते जिनेंद्राय, नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥राग बिहाग ॥ त्रिताल ॥ ॥ नगीनारे नेह नजर करी आज ॥ ए दशी ॥ उगारोरे अरिहा आवी आप ॥ ए आंकणी॥ पूरण गुण परमातम प्यारा, पावन पूर्ण प्रताप ॥उगारोरे०॥ १ गृहस्थ. २ मुनिजेवो. ३ म्होटु. ४ सुंदर. ५ अपवाद रहित अर्थात् एकांत. ६ निरंतर. For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. जग गुरु जग रक्षण जगजीवन, जग बांधव जग बाप ॥ उगारोरे० ॥१॥ रागद्वेष रिपु मुजने रगडे, कनडे २करण ३कलाप |उगा. विरुआ विषय विकार विरोधि, आपे.क्लेश अमाप ॥ उगारोरे० ॥ २ ॥ करुणाकर करुणा करी कापो, सघलो ए संताप ॥ उगा० ५अमल ब्रह्म गुण माणक आपो, चूर्ण करी ७सुम चाप ॥ उगारोरे अरिहा:आवी आप ॥ ३ ॥ ॥ इति सप्तम नैवेद्य पूजा संपुर्णा ॥ ॥ अथाष्टम फल पूजा प्रारंभ ॥ ॥दोहा॥ दुख फल मैथुन दारवा, सुख फल वरवा शील ॥ पूजो फलथी जिनपति, ९अघ रज हरण १०अनिल ॥१॥ अश्व ११अनेकप आखला, १२कासर मृग १३कुक्कुर ॥ मैथुन माटे लढी मरे, कामी क्रोधी क्रूर ॥२॥ १४मर्कट पक्षी मानवी, वहता वैर विरोध ॥ १५कलाकेलिने कारणे, युद्ध करे थइ योध ॥३॥ चांदी टांकी परमियो, धातु क्षय मुख धार ।। मैथुनथी आ भव महीं, १६आमय होय अपार ॥४॥ १. शत्रु. २ इन्द्रिय. ३ समूह. ४ वैरी. ५ निर्मल. ६ ब्रह्मचर्व गुणरूप रत्न..७ काम.८ छेदवा ९ पाप. १० वायु २१ हाथी. १२ पाडा. १३ कुतर.. १४ वांदरा. १५ वांदरा १६ रोग. For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. १करण निकर्तन २क्लीवता, दौर्भाग्यादिक फार ।। परस्त्री गमने पर भवे, निपजे दुख निरधार ॥५॥ नारी पण शील नाशथी, पामे दुःख प्रचार ॥ विधवा ३निंदू वांझणी, विष कन्या अवतार ॥६॥ समजी मैथुन फल सही, इत्यादिक दुख कार ॥ वरजो काम विकारने, निपुण मति नरनार ॥७॥ ॥ ढाल ॥ धीराना पदनी देशी॥ मैथुनमां शुं मझोरे, जुवो तमे जागी जरी ॥ ५पुरुषोत्तमने पूजोरे, कलाकेलि दूर करी ॥ए आंकणी॥ चतुराइथी चित्तमां चेतो, मैथुनमा नथी माल ।। आखर खत्ता खाशो एथी, होशे मुंडा हाल ॥ पूरा मन पस्ताशोरे, रोशो आंखे आंसु भरी ॥मैथुनमांग॥१॥ शील धर्म धन स्वजन शरीरनो, वेगे करी विनाश ।। ७पशुक्रिया सेवनथी प्राणी, जावे नरक निवास ॥ चोराशी लख चहुटेरे, फेरा फरे फरी फरी मैिथुनमा०॥ २॥ दसकंधर दुर्योधन कीचक, पद्मनाभ भूपाल । इत्यादिक मैथुन इच्छाथी, वरिया १०विपत विशाल ॥ टेव बूरी ए टालोरे, धरमनी बुद्धि धरी ॥मैथुनमां० ॥३॥ १ इनद्रिय. छेदन. २ नपुंसकपणुं. ३ मरेलां छोकरां जणनारी. ४ समजु. ५ जिनेश्वर- ६ काम. ७ मैथुन. ८ रावण ९ विराट राजानो सालो १० विपदा. For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ श्री ब्रह्मचर्य व्रत पुजा १चारित्री पण क्षणमां चूके, शम दम संजम सार ॥ महाकर्म बाँधी २मोहनथी, देखे दुर्गति द्वार ॥ मैथुन दूषण म्हाडेरे, दूरे रहेजो एथी डरी ॥मैथुनमां ॥४॥ वध बंधन ने मारणथी पण, मैथुन दुष्ट विघात ।। प्रश्न ब्याकरण मांहि प्रकाशे, जिन माणक जग तात ॥ मैथुनमां न मुझेरे, ते तो जाय भव तरी ॥मैथुनमा० ॥५॥ ॥ दोहा ॥ पर्वत शिखरथी पडी, हरि मुख धाली हाथ ॥ ध्वसु पेशी मरवू भलं, करवो नही शील ५काथ ॥१॥ माछी जे आजन्मथी, बांधे पाप कलाप ।। आठगणुं छे एहथी व्रत भाग्यानुं पाप ॥२॥ ब्रह्म हीन ब्रह्मचारिने, पाडे जे निज पाय ॥ ते तुंटा मुंट। तथा, दुर्लभ बोधि थाय ॥३॥ शील विना नव संभवे, व्रत पचखाण विशेष ॥ शील सर्व व्रत मूल छे, जल्पे एम जिनेश ॥४॥ शरीरथो पण साचवे, शील अखंडित जेह ॥ ब्रह्म लोकमां उपजे, अशुद्ध मन पण तेह ॥५॥ चैत्य करावे १०कनकनां, दीये कोडी ११दीनार ॥ लाभ अधिक एथी लहे, शुद्ध शील धरनार ॥६॥ १ साधु. २ मैथुन. ३ सींह. ४ अग्नि. ५ घात. ६ समूह ७ ब्रह्मचर्यथी भ्रष्ट थयेल. ८ लुला पांगला. ९ पांचमा देव लोकमां. १० सोनानां. ११सोनैया. For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ते माटे भविजन तमे, धरजो निर्मल शील ॥ तरजो आ श्भव तोयधि, वरजो अविचल लील ॥७॥ ॥ ढाल ॥राग जंगलो ॥ ताल ठुमरी॥ . ॥ मन मोह्या जंगलकी हरणीने ॥ ए देशी ॥ तुमे पालो शील भव तरखाने ॥ ए आंकणी॥ शील समान अवर नही साधन, २भासुर निज गुण भरवाने ॥तुमे शील सुभट छे सबल सहायक, कर्म ३विपक्ष कचरवाने।।तुमे॥१॥ श्री नेमी जंबू सुदर्शन, समरथ शील अनुसरवाने ॥तुमे०॥ समरो श्रीस्थूलभद्र शमीश्वर, धीर वीर शील धरवाने ।।तुमे।।२।। विजय शेठ विजया शेठाणी, शिव मारग संचरवाने ॥तुमे०॥ पावन शील प्रतिज्ञा पाले,प्रणमो ५अघ परिहरवाने ॥तुमे०॥३॥ सीता ६अच्चंकारी सुभद्रा, निज आतम उद्धरवाने ।तुमे०॥ शील साचवती शीलवती सती, वंदो दुरित विखरवाने ॥तुम॥४॥ 'जग माणक जिन गणधर जल्पे, आपदमांथी उगरवाने ॥तुमे।। सुंदर शील सदा साचवजो, मंगल कमला वरबाने ॥तुमे०॥५॥ १ संसारसमुद्र. २ देदिप्यमान. ३ शत्रु. ४ मुनीश्वर. ५ पाप ६ अच्चंकारी भट्ठा. ७ पाप . अथवा उपद्रव. ८ जगतमां रत्न समान. ९ लक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा ॥ काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्त ।। वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं ॥ दिदिवि दिव्यमहोदयदायकं, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मलब्रह्मचर्यदायकाय श्रीमते जिनेंद्राय, फलानि यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥ ताल लावणी ॥ ॥ फुलनी पांखडी ल्यो प्राण ॥ ए देशी ॥ अमने रब्रह्मनु यो दान, भय भंजन श्री भगवान ॥ अमने ब्रह्मनु यो दान ॥ ए आंकणी ॥ दायक नायक त्रिभुवन त्रायक, धायक २घाति वितान प्रभुता लायक पुरुहूत पायक, खायक गुण मणि खाण ॥अमने ॥१॥ आतम रामी अंतर जामी, स्वामी परम प्रधान ॥ ध्वेद विरामी विभु विशरामी, नामी मोक्ष पनिदान ॥ अमने ॥२॥ - १ ब्रह्मचर्यमुं. २ घाति कर्मनो समूह. ३ इन्द्र. ४ त्रण वेद रहित. ५ कारण. For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. विघ्न विदारण विपदा वारण, तारण तीर्थशान ॥ करुणा धारण मंगल कारण, मुनि माणिक्य महान ॥ अमने ब्रह्मनु यो दान ॥ ३ ॥ ॥ अथ कलश ॥ ॥ देखो यारो क्या जख मारी, बीबी एसी लाये ॥ ए देशी ॥ सेवो सजन सेवो सजन, शील धर्म मुख दाया ॥ अष्ट प्रकारे प्रेम उदारे, पूजो श्रीजिनराया ।। सेवो० ॥१॥ सुंदर शील धर्म सेवंतां, संजम तप सेवाया। क्षांति गुप्ति मुक्ति कीर्ति, ५प्रत्यय सर्व सधाया सेवोगा। निर्मल शील धर्मथी नाशे, संकट भय ६समवाया ॥ सघलां कारज पामे सिद्धि, सुर वर होय सहाया ॥ सेवो ॥३॥ वैर विनाशी विनय विकाशी, सर्व महाव्रत "छाया । श्रेष्ठ नियम यम युक्त शील छे, अमृत प्राप्ति उपाया ॥सेवो०॥४॥ विरति वर्जित कलह विनोदी, ९भूरि कपट भराया ॥ नारद सरिखा निर्मल शीले, सिद्धि १०सदन सधाया ॥सेवो।।५॥ पावनता कारण भव तारण, तीरथ भूत कहाया । ११अर्हदर्शित मार्ग अनुपम,शील सरस समजाया । सेवो ॥६॥ १ तीर्थपति. २ दया धरनार. ३ मुनियोमा रत्न समान. ४ निभिता-अथवा मोक्ष. ५ प्रतीति. ६ समूह. ७ शोभा. ८ मोक्ष. ९ अत्यंत. १० घर. ११ अरिहंते देखाडयो छे मार्ग जेनो एq. For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. १पुरंदर गण पूजितने पण, पूज्यपणे परखाया ॥ ३अखिल जगतमां शील अनुत्तर, मंगल मार्ग मनाया। सेवो ॥ ७ ॥ दानव मानव देव ५दिवस्पति, राक्षस किंनर राया ॥ दुकरकारक ब्रह्मचारिना, प्रतिदिन प्रणमे पाया ॥ सेवो० ॥८॥ तपगणमंडण किल्मष खंडण, विजयसिंह सरि राया ॥ सत्य कपूर क्षमा जिन उत्तम, पद्मविजय पंकाया सेवो०॥९॥ रूप कीर्ति उद्योत विजयना, अमर गुमान अमाया । सुगुरु प्रताप विजय पद सेवत, प्रिय श्रुत माणक पाया ॥ सेवो० ॥१०॥ वसुधा वसु निधि वसुधा वर्षे, (१९८१) मास मधु सोहाया। १०सित पंचमी ११शशिनंदन वारे, ब्रह्मचर्य गुण गाया ॥ सेवो० ॥ ११ ॥ १२रमणीय राजनगरमां रहीने, दोहला पास पसाया ॥ कीकाभटनी पोले कोडे, कविता पूर्ण कराया ।। सेवो० ॥१२॥ १२सूरिजन संगी शील गुण रंगी, शासन प्रेम सवाया । १४वर गिरधर हेमचंद वचनथी, ए अधिकार रचाया ॥सेयो॥१३॥ १ इन्द्र. २ समूह. ३ सर्व. ४ उत्तम. ५ इन्द्र. ६ पाप ७ सुंदर. अथवा व्हालुं. ८ श्रुतज्ञानरूपरत्न. ९ चैत्र. १० उज्ज्वल. ११ बुध. १२ सुंदर.१३ पंडितजन. १४ सुंदर. For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा भविजन पूजा एह भणावो, निर्मल मन वच काया ॥ पाली शील महोदय पाचो, सुख मंगल २समुदाया ॥सेवो०॥१४॥ बोधि दाता ब्रह्म विधाता, तारक त्रिभुवन ताया ॥ पसरि माणक ६सर्वज्ञ शिवंकर, वंदी पूजी वधाया ॥ सेवो सजन ॥१५॥ NEERIEN ARRESTEETE NE TEHERE TER E STS ॥ इति वाचनाचार्य श्री विजयमाणिक्यसिंहसरिकृत श्रीब्रह्मचर्यव्रत गर्मिताष्टप्रकारीपूजा संपूर्णा ॥ १ मोक्ष अथवा म्होटो उदय. २ समूह. ३ सम्यक्त्वं ४ ब्रह्मचर्य अथवा आत्मस्वरूप अथवा मोक्ष. ५ आचार्योमां अथवा पंडितोमा रत्नसमान. ७ जिनेश्वर. For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पूजाध्यापन विधिः॥ सर्व वस्तु पांच पांच लाविये, अष्ट द्रव्यथी पांच रकेबीओ भरिये. एक स्नात्रीयो रकेवी लइने उभो रहे बीजा कलश लेइने उभा रहे. पछी पहेली. पूजानी पांच ढालो कही, काव्य मंत्र भणी, प्रभुने जलस्नात्र करी, चंदने पूजी, पुष्प चढावी, धूप उखेवीये एम अष्ट द्रव्यथी पूजिये. पछी बीजी रकेवी लेवी. ए रीते पांचे पूजाओ भणावीये. त्रीजी पूजामां वरसीदान वखते यथाशक्ति याचकने दान आपीये पूजा भणाव्या पछी आरती मंगलदीवो करीये. ॥इतिश्री महावीरजिन पंच कल्याणकपूजाध्यापनसंक्षेपविधिः॥ - - ॥आ पूजामां आवेल काव्यनो भावार्थः ॥ जे गर्भमा रहेल छतां पण इंद्रोए स्तवेला. अने जन्म्या त्यारे मेरू पर्वत उपर तीर्थ जलथी भरेल सुवर्ण रत्नना कलशोथी अति आदरपूर्वक न्हरावेला, तेमज दीक्षा केवलज्ञान अने मोक्ष प्राप्तिना पर्वरूप उत्तम दिवसोने वीसे सम्यक् प्रकारे पूजेला, ते चोवीशमा तीर्थंकर श्रीमहावीरस्वामी भव्य जीवोने सदा कल्याणनी श्रेणि पो. ॥१॥ 8000 For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ५५ ॥ अथ वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकृत॥ ॥ श्री महावीर जिन पंचकल्याणकपूजा ॥ ॥दोहा॥ परम धरम पुण्य कला, परमानंद प्रकाश ॥ प्रणमु पंचासर प्रभु, पुरिसादाणी पास ॥ १॥ समरी सारद सारदा, वंदी गुरु गुण बास ॥ कल्याणक पूजा रचुं, आणो मन उल्लास ॥ २॥ शासन नायक साहिबो, त्रिशला नंदन तास ॥ कल्याणक पूजा रचुं, आणी मन उलास ॥ ५ ॥ च्यवन जनम पावन १चरण, केवल मोक्ष निवास ॥ पंच कल्याणक पूजतां, निश्चे पातक नाश ॥४॥ कल्याणक प्रभुनां करी सर्व सुरासुर साथ ॥ २जिष्णु नंदीश्वर जइ, नमी शाश्वत जिन नाथ ॥५॥ कल्याणक महिमा तिहां, आठ दिवस अभिराम ।। करता पूरण कोडथी, लेवा अविचल धाम ॥६॥ तिणविधि तीर्थपतितणी, पूजा अष्ट प्रकार ॥ करी वरी केवल ३रमा, पामो भवजल पार ॥७॥ इगदश लख एंसी सहस, छस्से पीस्तालीश । मास खमण करी मुनिपणे, सेवी स्थानक वीश ।। ८ ॥ नंदन भव जिन नामनो, बंध करी बलवंत ॥ १ चारित्र. २ इन्द्र. ३ लक्ष्मी. ४ अगीयार लाख, For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पुजा प्राणत स्वर्ग गया प्रभु, १मंजुल भाग्य महंत ॥ ९॥ विलसे २सागर विंशति, आयुष त्यां अभिराम ॥ ४अखिल ५अमर ६गणथी अधिक, रूपकांति गुण धाम १० शाश्वत जिनवर सेवता, सुंदर भक्ति सहित ।। सुख भोगवतां स्वर्गनां, करता काल व्यतीत ॥ ११ ॥ ॥ अथ प्रथम च्यवन कल्याणक पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ वर्तमान शासन विभु, वर्द्धमान भगवान ॥ परमेष्ठि प्रभु पूजिये, प्रथम व्यवन कल्याण ॥ १ ॥ ढाल पहेली ॥राग पीलु बरवो ॥ ॥ मेरे सजनसे यू जा कहना ॥ ए देशी ॥ शासन नायक जिनपति सेवो, भविजन निर्मल भाव धरीरे ।। ए आंकणी ॥ जंबू दक्षिण भरते जाणो, माहणकुंड नगर वर मानो, विप्र रिषभदत्त नाम वखाणो । देवानंदा नामनी, तस ९गज गामिनी, १०कामिनी गुण भरीरे ।। शासन० ॥ २ ॥ आषाढ सुद छठ रजनी अमंदे उत्तराफाल्गुनी ११उडुगत चंदे, प्राणत पुष्पोत्तरथी जिणंदे ॥ १ सुंदर. २ वीश सागरोपम. ३ सुंदर.४ सर्व. ५ देव. ६ समूह. ७ घर. ८ ब्राह्मण. ९ हाथी. १० स्त्री. ११ नक्षत्र. For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पूजा. तास उदर अवतार, धर्यों निरधार, १अनंतर च्यवन करीरे ॥ शासन० ॥२॥ वारण वृषभ सिंहादिक वारु॥ चतुरा चौद सुपन जोइ ३चारु, पति पुर कहत वचन वदी प्यारं ॥ विप्र वदे तव वाण, थशे गुण खाण, "तनुज तुज तेज हिरिरे ॥ शासन० ॥३॥ प्रीतम वाणी सत्य प्रमाणी, सुख भोगवती विचरे शाणी, पेखे तव अवधे पविपाणी ॥ जगमाणक जिनराय, नमे निर्माय, नमुथ्थुणं उचरी रे ॥ शासन० ॥ ४ ॥ दोहा संक्रंदन सिंहासने, जइने बेसे जाम ॥ संशय एवो संपजे, तेना मनमा ताम ॥१॥ नीच कुले आवे नही, जिम चक्री हरि १राम ॥ आवे उत्तम ११अन्वये, आगम रीति आम ॥२॥ १२अंतिम जिन किम आविया, १३वाडव कुल विपरीत ।। ए अति अणघटतुं थयु, चिते १७पुरुहूत चित्त ॥३॥ १ अंतर रहित. २ हायी. ३ सुंदर. ४ आगल. ५ पुत्र. ६ सूर्य. ७ इंद्र. ८ इंद्र. ९ वासुदेव. १० बलदेव. ११ वंश. १२ छेल्ला. १३ ब्राह्मण. १४ इंद्रः For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ।। ढाल बीजी॥राज वढंस ॥ ॥ नाथ कैसे गजको बंध छोडायो ॥ ए देशी ॥ बिडोजा एणीपेरे चित्त विचारे ॥ अनुपम २आगमने आधारे ।। बिडोजा० ॥ ए आंकणी॥ उत्सर्पिणो अवसर्पिणी, जाय अनंती ज्यारे । अच्छेरा भूत उपजे एवो, कोइक पदारथ त्यारे ॥ विडोजा०१ नीच गोत्र कुल मदथी निकाच्यु, मरिचीतणे अवतारे ।। आवी ब्राह्मण कुल अवतरिया, एह करम अनुसारे ॥ ॥बिडोजा० ॥ २॥ जो कदी इम उपजे पण जिन ३जनि, निच कुले नवि धारे ॥ इंद्राचारथी उत्तम कुलमां संक्रंदन संचारे ॥ विडोजा० ॥३॥ माटे महाकुल जिनमाणकने, मुकवा जोइये म्हारे ॥ "एतादृश अभिलाष ६अकुंठित, आखंडल अवधारे॥ बिडोजा एणी पेरे ॥४॥ ॥दोहा॥ हरि नैगमेषीने व्हरि तेडी कहे ततकाल ॥ माहणकुंड नगर जइ, लइ जिन जगत दयाल ॥१॥ क्षत्रियकुंड नगर विशे, सिद्धारथ भूपाल ॥ १ इंद्र. २ शान. ३ जन्म. ४ इंद्र. ५ एवो. ६ मजबूत ७ इंद्र.. ८ इंद्र. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा तस राणी त्रिशला तणे, उदर धरो उजमाल ॥ २॥ गर्भ रसुता रूप तेहनो, २माहणी कूख मझार ॥ स्थापी प्रत्यर्पण करो, आणा एह उदार ॥३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग ठुमरी ॥ प्रेम वचन शरथी मन वीधी ॥ ए देशी ॥ ३वासव आणा वचन विनयथी, अंजलि करी शिर अंगी करेरे ॥ ध्वासर रजनी ब्याशी व्यतीते, कार्य सकल ते देव करेरे ॥ ॥ वासव०॥१॥ जब ते ५निर्जर श्री जिनवरने, त्रिशला राणीनी कूख धरेरे ॥ देखे तब सा देवानंदा, त्रिशला चौदश स्वप्न हरेरे ॥वासव० २ ते रजनी सा त्रिशला राणी, सूती सुंदर शयन धरेरे ॥ चौद सुपन जोइ जागी चतुरा, हर्षित पुलकित हर्ष भरेरे ॥ ॥ वासव० ॥३॥ जगजीवन जिनमाणक जननी, उठी शय्या थकी उतरेरे ॥ हंस गति जइ मन हरखंती, उर्वीपति आगल उचरेरे ॥ वासव आणा वचन ॥४॥ १ पुत्री. २ देवानंदाब्राह्मणी. ३ इन्द्र.४ दिवस. ५ देव. ६ रोमांचित. ७ पलंग. ८.राजा. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ॥दोहो॥ १वल्लभ वास भवन विशे, मूतां सुखभर सेज ॥ आजे में अवलोकियां, चौद सुपन धन तेज ॥१॥ ॥ ढाल चोथी । राग बिहाग त्रिताल । ॥ नगीनारे नेह नजर करी आज || ए देशी ॥ सलूणारे स्वम लह्यां में सार ।। ए आंकणी॥ पहेले सुपने गजवर पेख्यो, बीजे वृषभ उदार ।। सलूणारे ॥ तीजे कमनीय केशरी चोथे, श्रीदेवी श्रीकार ।। सलूणारे ॥१॥ पंचमे फूलनी माला पावन, छठे शशी सुखकार॥सलूणारे०॥ सातमे ५सविता आठमे धज शुभ, नवमें घट निरधार ॥ ॥सलूणारे० ॥२॥ दीठं पद्म सरोवर दशमें, अगीयारमें ७अकूपार ॥ सलूणारे॥ बारम देव विमान तेरमें, रम्य रतन अंबार ॥सलूणारे॥३।। जोइ ९धनंजय चौदमें जागी, प्रीतम प्राणधार ॥ सलूणारे० ॥ मानु थशे ए स्वम माणकथी, फल १०मंजुल किम ११कार ।। ॥सलूणारे स्वमः ॥ ४॥ ॥ दोहो॥ स्वम प्रिया मुख सांभली, आणी हर्ष अपार ।। १ स्वामी. २ बहु. ३ सुंदर. ४ चंद्र. ५ सूर्य. ६ कलश. ७ समुद्र. ८ सुंदर. ९ अग्नि. १० सुंदर. ११ मोटुं. For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ६१ - - अर्थ कहे १अवनिपति, निज मतिने अनुसार ॥ १॥ ॥ ढाल पांचमी:॥ राग देश ॥ विमला नव करशो उचाट के वहेला आवशुरे ॥ ए देशी ॥ जल्पे २जाया आगल स्वम अर्थ ३जगती पतिरे।। भाखे त्रिशला आगल स्वप्न अर्थ भूमि पतिरे । ए आंकणी ।। ५विपुल ६अर्थ सुख भोग विशाला, मंजु महोदय मंगल माला, थाशे रंग रसाला, रम्य ९रमा १०तिरे ॥ जल्पे० ॥१॥ परम प्रतापी:पुण्ये पूरा, उत्तम गुणथी नहीं अधूरो, होशे ११सुत बहु शूरो, तुज हस्ति गतिरे ।। जल्पे० ॥ २ ॥ वल्लभ मुखनी १२वल्लभ वाणी, सांभली राणी हर्ष भराणी, सत्य प्रमाणी, बेठी जइ १३शय्या प्रतिरे ॥ जल्पे० ॥३॥ जिन गुरु माणक कथा करंती, परम धरमनुं ध्यान धरती, स्वम स्मरंती, विचरे पुण्यवती सतीरे॥जल्पे जाया आगल०॥४॥ ॥ काव्यं ॥ शार्दूल विक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोपि च यः स्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरातीर्थीभोभृतभूरिरत्नकलशैभर्माचले मन्जितः॥ १ राजा. २ स्त्री-राणी. ३ राजा. .४ राजा. ५ बहु. ६ धन-द्रव्य. ७ सुंदर. ८ सारी. ९ लक्ष्मी. १० आनंद. ११ पुत्र. १२ व्हाली. १३ पलंगः . For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा दीक्षाकेवलमोक्षपर्वतमहाधनेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोंतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्रः॥ ओ हाँ श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय परमेष्ठिने, जलं० चंदन० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यं० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति प्रथम च्यवनकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय जन्मकल्याणक पूजा प्रारंभः ॥ ॥दोहो॥ १भूप स्वप्न पाठक भणी- पूछे तेडी प्रभात ॥ स्वम अर्थ सोहामणा भाखे ते भली भात ॥१॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग केरबो ॥ ॥ गोपीचंद लडका बादल वरशेरे कांचन महेलमे ॥ ए देशी ॥ सिद्धारथ राजा, स्वप्न महिमारे तुमे सांभलो ॥ए आंकणी।। जिनवर २चक्री जननी निरखे, चौद स्वप्न ए चंग। वासुदेवनी ३प्रम विलोके, सात स्वप्न सुख संगरे ।सिद्धास्थ०॥१॥ १ राजा. २ चक्रवर्ती. ३ माता. For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा, ६३ स्वप्न चार बलदेव सवित्री, देखे शुभ २अवदात ॥ एक स्वप्न अवलोके उत्तम, मंडलिकनी मातरे सिद्धारथ०॥२॥ ३वरेण्य लक्षण विनीत विचक्षण, धीर वीर गंभीर ॥ निरुपम जगदानंदन नंदन, होशे तुम कुल पहीररे । सिद्धारथ० ॥ ३ ॥ राज्य पति राजानो राजा, चक्री चारु चरित्र । अथवा त्रिभुवन माणक अरिहा, थाशे पुत्र पवित्ररे । सिद्धारथ०॥४॥ ॥दोहा ।। स्वप्न अर्थ ए सांभली, ७महिपति मन हरखाय ॥ जोपीने संतोषिने, विगते करे विदाय ॥१॥ इंद्र धनद आदेशथी, तियंग जुंभक ताम ।। ९भूरि कनक रत्ने भरे, सिद्धारथ १०नृप धाम ॥२॥ गुप्त थथा प्रभु गर्भमां, जननी भक्ति निमित्त । त्रिशला शोक धरे तदा, चिंते प्रभु निज चित्त ॥३॥ ॥ ढाल वीजी ॥ ॥ पाम्यो पाम्यो पदमणी नारी हो ॥ ए देशी ॥ न्यारी न्यारी ११नितांत नठारी हो, गति मोह करमनी न्यारी ॥ ए आंकणी॥ कर्यु हतुं में सुख करवाने, एतो उलटुं मुज १२अंबाने, १ माता २ उज्वल. ३ वखाणवा योग्य. ४ विद्वान् . ५ हीरो ६ सुंदर. ७ राजा. ८कूबेरभंडारी. ९ बहु. १० राजा. ११ अत्यंत खराव. १२ माता. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा थयुं अति दुखकारी हो ॥ गति० ॥१॥ जननी मन दुख कारण जाणी, अंग हलाव्यु अचरिज आणी, १अवधे एम विचारी हो । गति० ॥२॥ समजी गर्म कुशलता शाणी' राणी त्रिशला हर्ष भराणी, रविषम विकल्प विसारी हो ॥ गति ॥३॥ जिन माणिक्य अभिग्रह धारे, मात पिता जीवंतां म्हारे, थq नही ३अणगारी हो । गतिमोह० ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ पूरे दोहद भूपति, सखी शिखामण देत ।। वहती गर्भ विनोदथी, त्रिशला "शात समेत ॥१॥ भूमि धान्य भरे भरी, सदागति सुखकार ॥ शकुन सकल जय सूचवे, ९आशा तेज उदार ॥२॥ १०रवि मुख ग्रह उतम सवी, ललित योग शुभ लग्न ॥ मंगल माल महोत्सवे, १२जनपद १३संमद मग्न ॥३॥ चैत्र शुक्ल तेरश निशि, उत्तराफाल्गुनी चंद ॥ जगजीवन जिन जनमिया, प्रगटयो परमानंद ॥४॥ वागी दुंदुभि १४व्योममां, पसयों भुवन प्रकाश ।। सुख पाम्या सहु नारकी, १५उर्वी लही उश्वास ॥५॥ १ अवधि शानथी. २ दुःखदायी. ३ साधु. ४ दोहला. ५ सुख. ६ सहित. ७ वायु. ८ पंखी. ९ दिशा. १० सूर्य. ११ सुंदर. १२ देशना लोको. १३ आनंद. १४ आकाशमां. १५ पृथ्वी. For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ भक्ति नौकामां बेशीने. अमे भव तरिये ॥ए देशी ॥ . छप्पन दिग कुमरी आवाने, करे निज करणी॥ निज करणीरे, अनादि भव तरणी ॥ छप्पन |ए आंकणी॥ जिन जिनजननी नमी, जोजन क्षेत्रथीरे । कचरो काढोने, करती शुद्ध १धरणी ।। शुद्ध धरणी रे, करती शुद्ध धरणी ।। छप्पन० ॥१॥ स्वारि कुसुम वरशे, ३मुकुर कलशावलीरे ॥ वीजण चामरने, धरती दीप सरणी ।। दीप सरणोरे, धरती दीप सरणी ॥ छप्पन० ॥ २ ॥ परंभा सदन रची, ७स्नपी शणगारतीरे । रक्षा पोटली, बांधी मन हरणी ।। मन हरणीरे, बांधी मन हरणी ।। छप्पन० ॥३॥ त्रिभुवन माणक तमे, जिन घणुं जीवजोरे ॥ आशीष इम आपे, विभु गुण वरणी॥ गुण वरणीरे, विभु गुण वरणी ॥ छप्पन दिगकुमरी० ॥४॥ ॥दोहा॥ ताविष पति आसन तदा, थर हर कंपित थाय ॥ जाणे अवधि ज्ञानथी, जनम्या श्री जिनराय ॥१॥ सिंहासन तजी ९शचीपति, सन्मुख पग १०सग आठ ॥ १ पृथ्वी. २ जल. ३ दर्पण. ४ श्रेणि. ५ केल. ६ घर. ७ न्हवरावी. ८ इंद्र. ९ इंद्र. १० सात. For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा - - जइ वंदे जिनराजने, करी १शक्रस्तव पाठ ॥ २॥ वेशठ २शक गया तदा, सुर सह रेसुर गिरि शंग ।। स्वामि ५शरण सोहमपति, आवे अधिक उमंग ॥ ३ ॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥ रामनाम रस पीजे, प्याला पीजेरे ॥ ए देशी ॥ ६आप्त धाम हरि आवे, हरखे आवेरे आवेरे आवे बहु भावे ।। | ए आंकणो ॥ जननीने बंदी मन आनंदी, प्रभुपद पद्म वधावेरे वधावेरे वधावे बहु भावे । आप्त० ॥ माडीने गाढो निंद पमाडी, प्रतिबिंब पासे ठावे रे ठावेरे ठावे बहु भावे ।आप्त०॥१॥ सुरगिरि शंगे प्रभुने रंगे, पंचरूप करी लावेरे लावेरे लावे बहु भाबे । आप्त० ॥ उलट विशेषे आसन बेसे, प्रभुने अंक घरावेरे धरावेरे धरावे बहु भावे । आप्त० ॥२॥ तव सुर ९बंदा चोसठ इंदा, सर्व १०समुदित थावेरे थावेरे थावे बहु भावे ॥ आत० ॥ शास्त्र प्रमाणी स्नात्र पूजानी, शुभ सामग्री मिलावेरे मिलावेरे मिलावे बहु भावे |आप्त॥३॥ जिन मुख निरखे हइडे हरखे, निरूपम सुख रस पावरे पावेरे पावे बहु भावे ।। आत॥ १ नमुत्थुणं.२ इंद्र. ३ मेरु. ४ शिखर. ५ घर.६ जिनघर ७ इंद्र. ८ खोलामां. ९ समूह. १० एकठा. For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ६७ रहरिहय मलिया भक्त हलिया, जिनमाणक गुण गावेरे गावेरे गावे बहु भावे आप्त०॥४॥ ॥दोहा । क्षीरोदधि द्रह कुंडनां, मागधने वरदाम ॥ ललित तीर्थ जल लावता, औषधि फल अभिराम ॥१॥ तीरथ मृत्तिका तथा, चंदन सुमनस चंग ॥ सरस धूप चूरण शुचि, आणे अति उछरंग ॥ २ ॥ दर्पण चामर दीपा, छत्र कलश श्रीकार ।। सामग्री सवि स्नात्रनी, करता सुर तैयार ॥३॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग काफी ॥ ॥ चित्त तुमे करो भविक जन, मणि तंदुल उदार ॥ ए देशी॥ सुरपति करे मेरु पर, जिन जन्माभिषेक ।। ए आकणी ॥ आठ जातिना कलश अनोपम, आठ सहस प्रत्येक ॥ क्षीर नीर भरी जिनपर ढोले, इम अढीसें अभिषेक।सुरपति॥१॥ अच्युतादिक हरि सामानिक, लोकपाल मुख फ्लेख ॥ इंद्राणी आनंद भराणी, न्हवण करे धरी टेक ।।सुरपति ॥२॥ चंदन चरची कुसुमे अरची, धरी आमरण अनेक ॥ स्तवन नमन करी जई जिन जननी, समीप ठवे सुविवेक ॥सुरपति० ॥३॥ निद्रा हरी धरी अंगुल अमृत, वरशी धन अतिरेक ॥ नंदीश्वर जिनमाणक महिमा, करता सुरवर छेक ।।सुरपति ॥ इंद्र. २ फूल. ३ पवित्र. ४ इन्द्र. ५ देव. ६ अंगुठे ७ बहु ८ चतुर. - For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पूजा. ॥काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोपि च यः स्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरातीर्थीभोभृतभूरिरत्नकलशैभर्माचले मन्जितः ॥ दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्र ॥ औं ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, अर्हते, जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति द्वितीय जन्मकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ तृतीय दीक्षाकल्याणकपूजा प्रारंभः॥ ॥दोहा॥ सवारमा सिद्धारथे, छोडया बंदि समस्त । सस्ती करी वस्तु सवि, शणगायुं पुर शस्त, बांध्यां तोरण बारणे, स्वस्तिक पूर्या सार । सुमनस धूप सुगंधता, नृत्यादिक मनोहार ॥२॥ करज रहित रहियत करी, आप्यां दान अपार ।। उत्सव रंग वधामणां, जिन पूजा जयकार ॥३॥ वाजांवर वजडावियां, गवराव्यां शुभ गीत ।। स्थिति पतिता उत्सव कर्यो, रूडी कुलवट रीत ॥ ४ ॥ ज्ञाति जमाडी जुक्तिशुं देइ स्वजन सनमान ।। नाम ठव्यु नंदनतj, वर्द्धमान गुणवान ॥ ५ ॥ १ प्रशंसनीय. For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा रहरि लांछन कांचन २तनु, अमृत पान करंत ।। द्वितीया चंद्र परे विभु, दिन दिन वृद्धि लहंत ॥ ६ ॥ ॥ढाल पहेली। राग भैरवी ॥ ॥ए जमवा अभिलाष, सरस मही, ए जमवा अभिलाप ए देशी॥ बर्द्धमान भगवान, भुवनमणी, बर्द्धमान भगवान ।।ए आंकणी।। मनहर स्फूर्ति मंगलमूर्ति ३नृतन रूपनिधान ।। भुवन० ॥ ४शारद शशि सम ५वदन ६मनोरम, अधर विद्रम उपमान ॥ भुवन० ॥१॥ धुंघर वाला ९कुंतल काला, दंत १०तति ११ सित वान ॥भुवन०॥ श्वास संबंधी १२समीर मुगंधी, करपद कमल समान भुवन० २ गजगतिगामी अमल १४अनामी, १५पुद्गल प्रबल प्रधान । भुवन सहस अष्टोत्तर लक्षण सुंदर, मति श्रुत अवधि भान भुवन० ३ पूरण प्रतापी १६मधुरालापी, १७विदित सकल विज्ञान । भुवन० १८निखिलानंदन त्रिशला नंदन, गुण गण माणक खाण ॥ भुवनमणी वर्द्धमान० ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ क्रीडा करे प्रभु एकदा, लघुवय बालक १९ल्हार ॥ वासव तव बल वर्णवे, २०मरुत सभा मोझार ॥१॥ __ १ सिंह. २ शरीर. ३ नवीन.४ शरद ऋतुनो चंद्र ५ मुख ६ सुंदर. ७ होठ. ८ परबाळा. ९ केश. १० पंक्ति. ११ धोली. १२ वायु.१३ हाथपग. १४ नीरोगी.१५शरीर. १६ मिष्ट वचन बोलनार. १७ सर्व कलाना जाण.१८ सर्वने आनंद पमाडनार. १९ साथे. २० देव. For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ॥ढाल बीजी ॥ राग भैरव ॥ ॥ होन दिलराम तो क्या दिलको आराम || ए देसी ॥ नाथ लघुवाल तोए शक्ति विशाल, शक्ति विशाल वर्द्धमान सुकुमाल, नाथ लघु बाल तोए शक्ति विशाल ॥ लाखो जो लेख मली बीवडावे २ल्हारे, भय मनमां न धारे लगारे लगारे ॥तोए शक्ति विशाल ॥नाथ।। ॥ए आंकणी ॥ शाखी-मिथ्यादृष्टि मत्सरी, ३अमर एक तव आय ।। स्थूल भयंकर ४अहि थइ, वृक्ष उपर विटाय ॥ भय मनमां न धारे लगारे लगारे ॥ तोए० ॥ नाथ ॥ शक्ति० ॥ लाखो० ॥१॥ शाखी-५दीर्घपृष्ठने देखतां, व्हीने नाठा बाल ॥ पकडी निज हाथे प्रमु, करे दूर तत्काल ॥ भय मनमां न धारे लगारे लगारे तोए०॥ नाथ ॥ शक्ति०॥ लाखो० ॥२॥ शाखी-धृष्टपणे सुर ते धरे, सात तालर्नु रूप ॥ प्रकृष्ट मुष्टि प्रहारथी, वाले विष्टप भूप ॥ भय मनमां न धारे लगारे लगारे ॥ तोए०॥ नाथ० ॥ शक्ति०॥ लाखो०॥३॥ शाखी-सुर गयो जिन माणिक्यने, खामी नामी शिर ॥ तुष्ट चित्त मघवा तदा, नाम धरे महावीर ॥ १ देव. २ साथे. ३ देव. ४ सर्प. ५ सर्पने. ६ जगत. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पुजा ७१ भय मनमां न धारे लगारे लगारे । तोए० ॥ नाथ० ॥ शक्ति० ॥ लाखो० ॥ ४ ॥ ॥दोहो । आठ वर्षनी उम्मरे, मात पिता मनोहार ॥ निशाले जग नाथने, आणे हर्ष अपार ॥१॥ संशय पंडितना सवी, टाले त्यां जग तात ॥ जैनेंद्र व्याकरण वर, तदा थयुं विख्यात ॥ २ ॥ १पितृव्य नाम सुपार्श्व छ, नंदिवर्द्धन भ्रात ॥ भगिनी तास सुदर्शना, पावन जग प्रख्यात ॥ ३ ॥ वरी यशोदा यौवने, सुख विलसे संसार ॥ अठावीश वरसे गयां, मात पिता २धु मझार ॥४॥ मागे संजम अनुमति, प्रभु निज बांधव पास ॥ प्रत्युत्तर आपे तदा, नंदिवर्द्धन खास ॥ ५ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग कालिंगडो ॥ ॥ बीक लागे भाइ बापु पासे जातां मुजनेरे ॥ ए देशी॥ हाल नहीं भाइ आयें व्रतनी संमति तुंजनेरे ॥ मात पितानो विरह ५वति दहे छे मुजनेरे । हाल । ए आंकणी। भाइ वात रखे ए भाखे, पीडा पासु तुज पाखे ।। क्षत उपर खार शुं नांखे, वल्लभ तुज विजोग केम खमाय मुजनेरे ॥ हाल० ॥१॥ १ काका. २ स्वर्ग. ३ आशा. ४ आज्ञा. ५ अग्नि. For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा महावीर कहे पिअ माइ, १भार्या २सुत ३भगिनी भाइ ॥ थइ सर्व अनंत सगाइ, जगतमा क्या क्या प्रतिबंध करवो जीवनेरे ॥ हाल० ॥२॥ ध्नंदि कहे मोह नठारो, पणपाणथकी तुं प्यारो॥ वेठाय विरह नही तारो, तेथी रजा वे वर्ष पछी हुं आपीश तुजनेरे ॥ हाल० ॥३॥ जिन माणक जल्पे वारू, हो वचन प्रमाण तमारं ॥ पण आरंभ कोइ मुज सारु, करशो नही हुं रहीश ५फासु आहार ग्रहणेरे । हाल नही भाइ आपुं० ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ प्रासुक आहारी रह्या, ब्रह्मचारी बे देवास ।। तीस वर्ष जग तातजी, वस्या एम धर वास ॥१॥ अवलोके अवघे 'विभु, संजम अवसर जाम ॥ नव लोकांतिक निर्जग, विनवे आवी ताम ॥२॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग कल्याण || ___ अब मोये तारो वासुपूज्य ॥ ए देशी ॥ अब तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ।। स्वामीहो मोक्ष गामी, अव तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ॥ ए आंकणी ॥ हे अरिगंजन अरिहंत, बोधि दायक बलवंत, शिव मारग दर्शक संत ॥ शिव मारग दर्शक संतरे, तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ॥अव०॥१॥ ___ १ स्त्री. २ पुत्र. ३ बहेन. ४ नंदिवर्द्धन. ५ अचित्त. ६ वर्ष ७ देव. ८ समकित. For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ॥ शारखी ॥ जय जय जगदानंद जिन, जय जय भद्र भदंत ॥ जय जय क्षत्रिय वर वृषभ, भय भंजन भगवंत ।। स्वामीहो मोक्षगामी ॥ अब० ॥२॥ शाखी-निरुपम गुण मणि नीरधि, निखिल नीति निष्णात ॥ बूझ बूझ बुद्धि निधि, तारण त्रिभुवन तात ॥ स्वामीहो मोक्ष गामी ।। अब० ॥३॥ कल्याण श्रेणि करनार, दिव्यामृत सुख दातार, मुरिमाणक जगमां सार ॥ मूरिमाणक जगमां साररे, तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ।। अब तुमे स्थापो० ॥ ४॥ ॥ दोहो॥ ५वरसी दान दिये विभु, दुख दारिद्र निवार । कनक रजत मणि हरि करी, वस्तु विविध प्रकार ॥१॥ दिन दिन सोनैया दिये, एक कोडी अड लक्ष। निर्जर पति निर्देशथी. देव पूरे धन दक्ष ॥२॥ त्रणसे अठ्याशी कोडियो, एंशी लाख १०दीनार ।। सर्व दान संवत्सरे, आपे जगदाधार ॥३॥ दान प्रभु हाथे ग्रहे, भव्य तेह नर नार ॥ रोग मटे षट मासनो, होय वर्ष नही बार ॥ ४ ॥ १ पूज्य. २ निपुण. ३ भंडार. ४ स्वर्ग मोक्षनु. ५ वरससुधी याचकने दान देवू. ६ घोडा. ७ हाथी. ८ इंद्र. ९ हुकम. १० सोनैया. For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ श्री महावीर जिन पंचकल्याणकपूजा नंदिवर्द्धननी हवे, संमति पामी सार ॥ छठ करी सज्ज थया प्रभु, लेवा संजम भार ॥ ५ ॥ ॥ढाल पांचमी॥ ॥ पुनम चांदनीं खीली पुरी अहीं रे ॥ ए देशी ॥ दीक्षा अवसर जाणी कोडाकोडो देवतारे, १दल्मि चोसठ भावे आवे जिन दरवार । वंदो वंदो परम विरागी त्यागी वीरने रे ।। ए आंकणी॥ शाखी-कांचन मणि कलशा करी, तीर्थोदक भरी २तार ॥ न्हवरावी जग नाथने, पहेरावी शणगार ॥ शोभित चंद्रप्रभा शिक्षिकामां रत्नसिंहासने रे, पधरावी नर पूर्वक वहता सुर धरी प्यार ॥ वंदो० ॥१॥ शाखी-कुसुम वृष्टि सुर वर करे, बोले मंगल माल || शक्र ईशान चामर घरे, वाजिंत्र नाद विशाल ॥ गोरी गावे भावे साचे नाचे अपच्छरारे, सुंदर मंगल हय ५गय स्थ नर ध्वज श्रीकार ॥दोहा॥ शाखी-प्रेमे प्रभु पद पद्मने, नमे बहु नर नार ॥ कहे स्वजन हणी कमेने, शिवसुख वरजो सार ।। आवी आडंबरथी ज्ञातखंड उद्यानमां रे, अशोक तले तजी भूषण लोच करे निरधार ॥वंदो०॥३॥ शाखी-सहवद दशमी उत्तरा, जग माणक जिनराय ॥ सिद्ध नमी व्रत उचरे, मन पर्यव तवं थाय ।। १ इन्द्र. २ निर्मल. ३ श्रीयो. ४ घोडा. ५ हाथी. ६ मागशर. For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ७५ स्थापी देवाधीश्वर देवध्य प्रभु खंधले रे, नमो नाथाय कही नंदीश्वर जाय उदार ॥ वंदो वंदो परम विरागी त्यागी वीरनेरे ॥४॥ ॥काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोऽपि च यः स्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरात्ती भोभृतभूरिरत्नकलशभर्माचले मज्जितः ।। दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोंतिमजिनो भद्रावलीं सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, नाथाय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं. नैवेद्यं० फलं. यजामहे स्वाहा ।। ॥ इति तृतीय दीक्षाकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ चतुर्थ केवलज्ञानकल्याणकपूजा प्रारंभः।। ॥दोहा॥ बंधुवगने जिन हवे, पूछी करे विहार ॥ सहता सवी उपसर्गने, वहता संजम भार ॥१॥ दोय चडी दिवस छते, कुमार नामे गाम ।। ते दिन जइ काउसग रह्या, राते आतमराम ॥ २॥ कोपे २गोप तिहां कने, जिनने मारण जाय ॥ गोपति जाणी गोपने, आपे शिक्षा आय ॥३॥ १ इन्द्र. २ गोवाल. ३ इन्द्र. ४ गोवालने. For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ७६ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा हवे तिहां जिनने रहरि, करतो सेवा कोड ॥ विनय धरीने विनवे, जुगते बे कर जोड ॥४॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ प्रभु अर्ज सुणी अहीं आवो, मंजारी बाल बचावो॥ए देशी॥ आ अर्ज प्रभु अवधारो, तुम पासे राखी तारो ॥ए आंकणी॥ उपसर्ग छे घणा आपने, नाथ कहुं शिर नामी ॥ बार वर्ष वैयावच बाबत, साथे रहुं हुं स्वामी ॥आ अर्ज०॥१॥ नाथ कहे कदी थयु नथी ए, थशे नही नव थावे ॥ २शक्रादिकनी सहाय थकी जे, अरिहा ज्ञान उपावे ॥ है इंद्र थशे जे भावी, छे रीत अनादि आवी ॥२॥ सर्व जिनेश्वर केवल संपद, निज शक्ते निपजावे ॥ ते माटे उपसर्ग थशे ते, सहीश समता भावे ॥हे इंद्र०॥३॥ हरवा तव मरणांत कष्टने, सिद्धारथने ठावे ॥ प्रेमे जिन माणक पद प्रणमी, सुरपति स्वर्गे जावे ॥ आ अर्ज प्रभु अवधारो० ॥४॥ ॥दोहा॥ बहुल ब्राह्मणने गृहे, परमान्ने जिनराय ॥ प्रथम करे तय पारj, पंच दिव्य प्रगटाय ॥१॥ चेलोत्क्षेप सुगंध जल, वृष्टि दुंदुभि शब्द ।। अहो दान उद्घोषणा, थाय कनकनो ५अब्द ॥२॥ १ इन्द्र २ इन्द्रादिकनी. ३ सिद्धार्थ व्यंतरने ४ खीरे. ५ वरसाद. For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा विचरंता १वसुधा विशे, धरता उत्तम ध्यान ।। एक दिवस २द्विज आवीने, विनवे श्री भगवान ॥३॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥शु कहुं कथनी म्हारी राज, शु कहुं कथनी म्हारी॥ए देशी।। शुं कहुं दुख हुं म्हारुं राज, शुं कहुं दुख हुँ म्हारूं॥ हवे शरण छे एक तमारु राज, शुं कहुं दुख हुं म्हारं ॥ए आं० जगजीवन तुमे वरस्या ज्यारे वरसीदान विसु थ्वारे ॥ तात हतो नही हुं अहीं त्यारे, निर्भागी अति भारे राज०१। रात दिवस धन कारण रडियो, ज्यां त्यां अति आथडियो । तो पण रंच न धन सांपडियो, निविड ५ विघन घन नडियो ॥राज० ॥२॥ पुण्ये तुम पद पंकज पामी, आजे अंतरजामी ॥ ६निराश्रय निर्धन शिर नामी, शरण पड्यो छं स्वामी ॥ ॥राज० ॥३॥ दीन दयाल दया दिल धारी, दारिद्र दुःख विदारी ॥ सुखी करो मने जग सुखकारी, जिन माणक जयकारी ॥ राज० शुं कहुं दुख हु म्हारं ॥४॥ ॥दोहा॥ दीन बचन सुणी एहवां, प्रभुजी परम कृपाल । देवष्य अडधु दिय, ब्राह्मणने तत्काल ॥१॥ १ पृथ्वी. २ ब्राह्मण, ३ सुवर्ण. ४ समूह. ५ अंतराय. ६ आश्रय विनानो. For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा अति उदार अरिहंतनु, अर्द्ध वस्त्रनुं दान ॥ वस्त्र पात्रमा सूचवे, मूर्छा निज संतान ॥ २॥ अर्द्ध कंटक वलगी पडयुं, जिन रहरिदृष्टे जोय ॥ केइक ममताथी कहे, किहां पडयुं इम कोय ॥ ३ ॥ वस्त्र पात्र निज संतति, दुर्लभ मुलभ निहाल ।। कंटक ३पट लगने थशे, शासन कंटक जाल ॥ ४ ॥ निलोभी प्रभु नव लिये, ते वाडव लइ जाय ॥ वर्षाधिक इम वीरजी, ५चीवर धर कहेवाय ॥ ५ ॥ साढा बार वरश लगे, सहता परिषह घोर ॥ घोर अभिग्रह धारता, दळवा कर्म कठोर ॥६॥ ॥ दाल त्रीजी ॥ राग बरवो ॥ ताल केरबो॥ ॥ मजा देते है क्या यार तेरे बाल धुंधर वाले ॥ ए देशी ।। धन धन वर्द्धमान वडवीर, विचरे उर्वीतल उपगारी ॥ सुर नर तिरि उपसर्ग सुधीर, सम्यग सहता समता धारी ॥ए आंकणी ॥ शूलपाणिने कौशिक व्याल, गुण हीण गौशालो गोवाल । व्यंतरी कटपूतना विकराल, करे परिषह प्रभुने दुखकारी धन० ॥१॥ कपटी कुटिल हृदयनो क्रूर, संतापे बहु संगम सुर ॥ प्रभुजी पाम्या दुख भरपूर, रह्या षट मासी निराहारी धन २ १ शिष्य परंपरा. २ सिंहावलोकनथी.३ वस्त्र. ४ ब्राह्मण ५ वस्त्र. ६ पृथ्वीतल. ७ चंडकोशियो नाग ४ब्राह्मण For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ७९ गोपे स्वीला ठोक्या कान, मूकी खेचे राड महान ॥ थयु अति भैरव तव उद्यान, फाटी पर्वत शिला भारी धन ३ उधर्या अपराधी २असुमंत, श्री जिनमाणक करुणावंत ॥ मृठी बाकुल लेइ महंत, तातजी चंदनवाला तारी। धन०४ ॥ दोहा । कर्यों एक षट मासी तप पंच दिवस उण एक ॥ नव चोमासी तप कर्या, त्रण मासी बे टेक ॥ १॥ दोह मासी अढी मासिया, बेबे पट बे मास ॥ द्वादश मास खमण कयाँ, व्होतेर कीयां पास ॥२॥ बार अठम वली छठ कर्या, वस्से ओगणत्रीस ॥ भद्रादिक प्रतिमा धरी, दिन दुग चउ दश ईश ॥ ३॥ ३निर्जल तप सवी पारणां त्रणसे ओगण पचाश ॥ काल समस्त प्रमादनो, ५अंतर्मुहूर्त जास ॥ ४ ॥ ए रीते तप आचरी, समता साधन साथ ।। क्लिष्ट कर्म दल क्षय करे, ज्ञातपुत्र जगनाथ ।। ५ ।। ॥ ढाल चोथी॥ राग सोहनी ॥ कवाली। ॥ राजा मेरा किथेनी गया ॥ ए देशी ॥ वीर जिणंद जयकारा जयकारा, भविजन पूजो भावभुं । ॥ए आंकणी॥ माया काया ममता मारी, शम दम संजम धरम स्वीकारी। १ भयंकर २ प्राणी. ३ चोविहार. ४ निद्रानो. ५ बे घडी. ६ महावीर. For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८० श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा अवल बन्या अणगारा अणगारा ॥ भविजन ॥ समिति गुप्ति शोभित सोभागी, निरुपलेप निस्नेह निरागी॥ प्रतिबंध चउ तजनारा तजनारा ॥ भविजन ॥१॥ परम ज्ञान दर्शन १व्रतधारी, २परमालय प्रभु परम विहारी॥ वीय परम वरनारा वरनारा ॥ भविजन ॥ अज्जव मद्दव लाघव पुष्टि, क्षांति मुक्ति गुप्ति तुष्टि । सत्य परम सेवनारा सेवनारा ॥ भविजन० ॥२॥ निद शयन जागरण निवारी, उज्जागरण दशा अवदारी ॥ ध्यान शुकल धरनारा धरनारा ॥ भविजन० ॥ शक्ति अपूरव योगे स्वामी, क्षपकश्रेणि चढी आतमरामी। घाति करम हणनारा हणनारा ॥ भविजन० ॥३॥ ३माधव शुदि दशमी मनोहारी, चंद्र उत्तरा फाल्गुनी चारी ॥ विजय मुहूर्त शुभकारा शुभकारा ॥ भविजन० ॥ साल तरु तले छठ तप शाली, वरिया केवलश्रीरूपाली॥ सरिमाणक प्रभु प्यारा प्रभु प्यारा ॥ भविजन पूजो भावभुं ४ ॥दोहा॥ सर्ववेदी जिन केवली, हवे थय अरहंत ॥ जाणे जीवाजीवना, भाव सकल भगवंत ॥ १ ॥ प्रथम समवसरणे प्रभु, जिम स्थलपर जलधार ॥ दीधी क्षणभर देशना, निष्फल गइ निरधार ॥ २ ॥ १ चारित्र. २ निर्दोष वसति सेवन. ३ वैशाख. ४ सर्वश. For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८१ नयरी अपापा आविया, वन महसेन विशाल ।। समवसरण सुर वर रचे, त्रण गढ झाकझमाल ॥३॥ दरेक गढ चउ द्वार छे, देव देवी रखवाल ॥ छत्र ध्वज श्रीकार छ, मणिमय तोरण माल ॥४॥ शालिभंजिका शोभती, धूपधाणां झलकार ॥ प्रतिद्वार वर वापिका, कांचन कमल उदार ॥ ५॥ कांचन २वा वीशे करे, देव छंद ईशान ॥ द्वार द्वार अतिदीपतां, वीश सहस सोपान ॥ ६ ॥ रत्न गहे द्वादश सभा, कनक गढे तिर्यंच ॥ रौप्य गढे वाहन रहे, वैर विरोध न रंच ॥ ७ ॥ ॥ढाल पांचमी॥ ॥ शु नटवर वसंत थै थै नाची रह्यो ॥ ए देशी ॥ जिनराज बर्द्धमान पब्रह्म ब्यापी रह्यो, व्यापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥ शाखी-पुष्प वृष्टि दिव्य ध्वनि, भामंडल झलकार ॥ शिरपर छत्र चमर ढले, दुंदुभि नाद रसाल ॥ अनुपम ओपत विटपी अशोकथी, भविक लोक शोक कापी रह्यो, कापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो जिनराज० ॥१॥ १ पुतलीयो. २ गढ. ३ ईशान कोणमां. ४ पगथीयां. ५ सत्य शान. ६ उत्तम वचनो बोली रह्या छे. ७ वृक्ष. For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा शाखी-शोभित रत्न सिंहासने, बेठा श्री जिनचंद ।। पद पंकज प्रेमे करी, सेवे सुर नर इंद ।।। मधुर स्वरे वर मालकोश रागमां अमृत देशना आपी रह्यो, आपी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥२॥ शाखी-स्यादवाद रस कपिका, नय गम भंग निधान ॥ वाणी योजन गामिनी, वरशी श्री भगवान ॥ गणधर पदवी साथ गुण रसेवधि, संघ चतुर्विध स्थापी रह्यो, स्थापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥ ३ ॥ शाखी-ज्ञान महोत्सव सुर करे, वरत्यो जय जयकार ।। देवछंद विराजता, जिनवर जगदाधार ॥ सूरि माणक महावीर पद सेवतां, समकित बीज शुभ २वापी रह्या, वापी रह्या भव ३मापी रह्यो । जिनराज बर्द्धमान०॥४॥ ॥ काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोपिऽच यः वस्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरा, तीर्थी भोभृतभूरिरत्नकलशैर्भर्माचले मन्जितः ।। दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोऽतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ह्री श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, १ भंडार. २ वावी रह्यो छे. ३ माप करी रह्यो छे. For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८३ सर्वज्ञाय जलं. चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं. नैवेद्यं० फलं० यजामहे स्वाहा । ॥ इति चतुर्थकेवलज्ञानकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ पंचम निर्वाण कल्याणकपूजा प्रारंभः॥ ॥दोहा॥ एकादश गणधर थया, साधु चौद हजार ॥ छत्रीश सहस सुसाधवी, चरण करण व्रत धार ॥१शा दोढ लाख नव सहस छे, श्रावक शुद्धाचार ।। श्राविका त्रण लाखने, उपर सहस अढार ॥ २ ॥ त्रणसें चौद पूरव धरा, सहस त्रिशत ?अवधीश ।। केवलो २सग शत सातसें, वैक्रिय लब्धि मुनीश ॥३॥ शविपुल मति मुनि पांचसें, ४चउशत वादी सार ।। देव देवी परिकर बहु, पावन प्रभु परिवार ॥ ४ ॥ ॥ढाल पहेली ॥ राग माढ ॥ ॥ प्रेमनो कोल दियो राजकुमार ॥ ए देशी ॥ भावथी नित्य भजिये वीर भदंत, अतिशय भरिया अरिहंत ।। भावथी० ॥ ए आंकणी ॥ निर्मल रूप शरीर निरोगी, श्वास सुगंधित ५शस्य ।। मांस रुधिर क्षीर धवल मनोहर, आहार नीहार अदृश्य ।। मूल अतिशय ए चार महंत ॥ भावथी० ॥१॥ १ अवधि ज्ञानी. २ सातसें. ३ मनःपर्यवज्ञानी. ४ चारसें. ५ प्रशंसनीय. For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - ८४ श्री महावीर जिन पंचकल्याणकपूजा सुर नर तिरि जन कोडाकोडी, जोजन मांही समाय ।। जोजन गामिनी वाणी निज निज, भाषामां समजाय ॥ पाछल शिर भामंडल भासंत ॥ भावथी० ॥२॥ रोग दुकाल ईतिने २भीति, मारी वैर महान ।। अतिवृष्टि अवृष्टि न होवे, पांचर्से कोश प्रमाण ॥ कर्म क्षयथी अगीयार ए कंत ॥ भावथी० ॥३॥ सरि माणक प्रभु शासन स्वामी, वर्द्धमान जिनराय ॥ भक्ति ३निर्भर भावे भजतां, जन्म कोटि अब जाय ॥ आतम अनुभव अतिशय उलसंत ।। भावथी० ॥४॥ ॥दोहा॥ चैत्यवृक्ष ५वप्र त्रयो, सिंहासन श्रीकार ।। धर्मचक्र ध्वज गगनमां दुंदुभि नाद उदार ॥१॥ छत्र त्रय चामर चले, वायु अनुकूल वाय ।। कनक कमल नव पग ठवे, कांटा उंधा थाय ॥२॥ पक्षी दिये प्रदक्षिणा, वरशे शुचि जल फूल ॥ नख ६कच श्मश्रु वधे नही, अक्ष ऋतु अनुकूल ॥३॥ कोडी सुर सेवा करे, प्रणमे तरुवर जात ॥ दिये चतुर्मुख देशना, सुरकृत १०नवदश ख्यात ॥४॥ १ उपद्रव. २ स्वचक्न परचक्रनो भय. ३ अत्यंत. ४पाप ५ त्रण गढ. ६ केश. ७ दाढीमूछ. ८ इंद्रियार्थ ९ देवना करेला. १० ओगणीश. For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८५ इम चोत्रिश अतिशय धरे, विचरे, देश विदेश । वाणी पांत्रीश गुण वदे, आपे वर उपदेश ॥५॥ ॥ढाल त्रीजी। धमान मायाना करनारा रे.जरा जोने तपासीतारी काया॥ए देशी।। वदे बर्द्धमान जिनरायारे, महापुण्ये मनुष्य भव पाया ।। आ उत्तम अवसर आयारे, सदा सेवो धरम सुखदाया । ए आंकणी ॥ कूडी छे काया मिथ्या छ माया, छाई वादलनी छाया ॥ मोहे मझाया भरमे भूलाया, फोगट फंदमां फसायारे । महापुण्ये० ॥१॥ लोभे लूटाया कामे कूटाया, म्हारा तारामां मराया । डहापण डाह्या जन्म गुमाया, पाछल ते पस्तायारे ॥महा०॥२॥ प्रभु पूजाया संत सेवाया, धर्म मारगमा धाया ॥ समता सहाया ध्यान धराया, कल्याण तेज कमायारे ॥ महापुण्ये० ॥३॥ ज्ञान भणाया श्रद्धा सोहाया, संजम शुद्ध सधाया ।। मोक्ष उपाया एह मनाया, सरि माणक समजायारे । ॥ महापुण्ये मनुष्य भव पाया ॥४॥ दोहा–प्रसन्नचंद्र १पृथ्वीपति, दशाणभद्र २नरेश ।। उदायन आदि घणा, प्रतियोध्या २परमेश ॥१॥ श्रेणिकादि नव सत्त्वने, आप्यु जिनपद सार ।। मेघकुमारादिक बहु, तार्या राजकुमार ॥ २ ॥ १ राज. २ राजा. ३ भगवाने. ४ जीवने. For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ऋषभदत्त निज तातजी, देवानंदा माय ॥ व्याशी दिवस संबंधथी, पहोंचाड्यां शिव ठाय ॥ ३ ॥ रौहिणेय अर्जुन प्रमुख. उधर्या अधम अनेक || निरुपम जिनपद नामने, वेदे एम विवेक ॥ ४ ॥ अस्थिक गाम प्रणित भूमि, श्रावस्ती पुर छेक || आलमका नगरी जह वस्या, चोमासुं एकेक || ५ ॥ ऋण चंपा वे भद्रिका, पट मिथिला शुभ वास ॥ वैशाली बाणिज्यमां, बार कर्यो चोमास ॥ ६ ॥ राजगृही नयरी रह्या, चोमासां दश चार || ५चरम चोमासु आविया, पावापुर मोझार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल श्रीजी ॥ राग मालकोश | जय जय वीर जिणंद जगतगुरु, जय जय वीर जिणंद || ॥ ए आंकणी ॥ कार्त्तिक मास अमावसी रजनी, स्वाति नक्षत्रनो चंद ॥ जगत सोल प्रहर देशना देई स्वामी, छठ तप करी सुखकंद । जगत १ पद्मासन रही एकाको प्रभु, पाम्या पद महानंद | जगत० भाव उद्योत गये गण भूपति, विरचे दीपक वृंद | जगत। २ ए अवसर सवी सुरपति आवी, वंदे पद अरविंद | जगत० करणी उचित सवि सुरमली करता, १० निर्भर निरानंद । जगत| ३ १ ठाम. २ रोहणीयो चोर. ३ अर्जुनमाली. ४ अनार्य देश. ५ छेल्लुं. ६ मोक्ष ७ अढार गण राजाओ. ८ समूह. ९ कमल. १० अत्यंत. For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८७ दाढादिक लइ रत्न शुभ रची, सर्व सुरासुर इंद ॥ जगत० नंदीश्वर जिन माणक महिमा, करता भाव अमंद ॥ ॥ दोहा ॥ ॥जगतगुरु० ॥४॥ वर्द्धमान वचने तदा, श्री गौतम गणधार ।। देवशर्म प्रतिबोधवा, गया हता निरधार ।। १ ॥ प्रतिबोधी ते विप्रने, पाछा वलिया जाम ॥ तव ते श्रवणे सांभले, वीर लह्मा शिव धाम ।। २ ॥ ध्रसक् पड्यो तव ध्रासको, उपन्यो खेद अपार ॥ वीर वीर कही वलवले, समरे गुण संभार ॥ ३ ॥ पूछीश कोने प्रश्न हं, भंते कही भगवंत ।। उत्तर कुण मुज आपशे, गोयम कही गुणवंत ॥ ४ ॥ अहो त्रभु आ शुं कर्यु, दीनानाथ दयाल ॥ ते अवसर मुजने तमे, काढयो दर कृपाल ॥ ५ ॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥ पंथीडा सदेशो देजो म्हारा नाथने ॥ ए देशी ॥ शासन स्वामी संत सनेहो साहिबा, अलवेश्वर विभु आतमना आधारजो ॥ आथडतो अहीं मूकी मुजने एकलो, मालिक किम जइ बेठा मोक्ष मोझारजो ।। विश्वंभर विमलातम व्हाला वीरजी ॥ए आंकणी ॥१॥ मन मोहन तुमे जाण्यु केवल मागशे, लागशे अथवा केडे ए जिम बालजो ॥ १ अत्यंत भावथी. For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૮૮ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा वल्लभ तेथी टाल्यो सुजने वेगलो, भलं कर्यु ए त्रिभुवन जन प्रतिपालजो || विश्वंभर० ॥२॥ अहो हवे में जाण्युं श्री अरिहंतजी || निस्नेही वितराग होय निरधारजो || म्होटो छ अपराध इहां प्रभु माहरो श्रुत उपयोग में दीधो नही ते वारजो || विश्वंभर० ॥३॥ स्नेह की स धिग एक पाक्षिक स्नेहने एकज छं मुज कोड़ नथी संसारजो || सूरिमाणक इम गौतम समता भावता, वरिया केवल ज्ञान अनंत उदारजी || विश्वंभर विमलातम ||४|| ॥ दोहो || गौतम केवल ज्ञाननो, उत्सव अमर उदार ॥ करता पूरण कोडथी, जिनशासन जयकार || १ || सिद्धया साधु सात, साध्वी शत दश चार ॥ गया अनुत्तर आठसे, वीर तथा अणगार ॥ २ ॥ तीश वर्ष घरमा बसी, वली बेतालीश वर्ष ॥ पण धरम पाली सवि, आयुस व्होंतेर वर्ष || ३ || पार्श्वनाथ निर्वाणी, अढीसें वरशे सार || वीर जिनेश्वर शिव वर्या, कल्पसूत्र अधिकार ॥ ४ ॥ सिद्ध, बुद्ध मुक्तातमा, अनुपम सादि अनंत || ६अपुनर्भव सुख अनुभवे, भजो वीर भगवंत ॥ ५ ॥ १ स्नेहरहित. २ एकपखो. ३ चौदसे. ४ अनुत्तर वि. मानमां ५ चारित्र. ६ मोक्ष. For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८९ ॥ढाल पाचमी॥ ॥ लागी लगन मने तारी हो ललना, लागी० ॥ए देशी ॥ लागी लगन मने तारी हो जिनजी, लागी लगन मने तारी ॥ तुं त्रिभुवन उपगारी हो जिनजी, लागी लगन मने तारी ॥ ए आंकणी ॥ अकल सकल अविचल अविनाशी, नितिनगर निवासी हो जिनजी ॥ लागी० ॥ केवल ज्ञान अनंत प्रकाशी, विशदानंद विलासी हो जिनजी ॥ लागी॥तुं०॥१॥ वर्णादिक वीश रहित विरंगी, आकृति मुक्त २अनंगी, हो जिनजी ॥ लागी० ॥ वेद विवर्जित ३अरुह असंगी, निरुपम निज गुण रंगी हो जिनजी ।।लागी० ॥तुं० २ नित्य निरंजन तु निरुपाधि, निबंधन निर्व्याधि हो जिननी ।। लागी० ॥ निर्मल ज्योति पनिरीह निराधि, सहज स्वरूप समाधि हो जिननी ।लागीतु०॥३॥ सरिमाणक जिन शासन स्वामी, बर्द्धमान विशरामी हो जिनजी ॥ लागी० ॥ निःश्रेयस दशिव सुख ९धन नामी, १ मोक्ष, २ अशरीरी. ३ कर्मबीज रहित. ४ एकत्रीश गुण. ५ इच्छारहित. ६ चिंता पीडारहित. ७ मोक्ष. ८ मंगल. ९ बहु. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा आपो अंतरजामी हो जिनजी ॥ लागी० ॥ तुं०॥४॥ ॥ काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोऽपिच यः स्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरा, तीर्थांभोभृतभूरिरत्नकलशैभर्माचले मज्जितः ॥ दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोऽतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥ १ ॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, पारगातय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यं० फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति पंचम निर्वाणकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ छेला न दो मुझे गाली में नाजो पाली ॥ ए देशी ॥ चोवीशमो जिनरायो, में आजे गायो ।। त्रिभुवन केरो रतायोरे ।।में आजे गायो।।चोवोलाए आंकणी॥ रज्ञात कुलोदधि जैवातृक जिन, त्रिशला देवीनो जायोरे। में परम धरम ध्वर ज्ञान प्रकाशक पुण्य ५महोदय पायोरे ॥ ॥में० ॥ चोवीशमो० ॥१॥ परमेष्ठि अर्हत् नाथ सर्वज्ञ, पारगताय नमायोरे ॥ में ॥ . १ तात अथवा रक्षक. २ सिद्धार्थ राजाना कुलरुप समुद्रमां. ३ चंद्र. ४ नाथ अथवा सुंदर. ५ म्होटो उदय अथवा मोक्ष. For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहावीर जिन पंचकल्याणक पुजा पंचकल्याणक प्रभुनां प्रीते, जपतां पाप जलायोरे ॥०॥ चोवीशमो० ॥२॥ तप गण गगन तपन तेजस्वी, विजयसिंहसरि रायोरे मि॥ सत्य कपूर क्षमा जिन उत्तम, पद्मविजय जय दायोरे में। चोवीशमो० ॥३॥ रूप किर्ति उद्योत विजयना, अमर गुमान २अमायोरे में। सुगुरु प्रताप विजय पद सेवत, ज्ञान माणिक्य कमायो रे ॥में॥ चोवीशमो० ॥ ४ ॥ रस ऋषि निधि शशो वर्ष (१९७६) महावदी, एकादशी कवि ध्यायोरे ।। में० ॥ ४विनेय मेघविजय आग्रहथी, ए अधिकार रचायोरे ॥ में || चोवीशमो० ॥ ५॥ पुण्य पवित्रे पाटण क्षेत्रे, पंचासर जिनरायोरे ।। में० ॥ तास पसाये रही चोमासु, पूजन भाव बनायोरे॥माचोवीशमो।। शासनपति कल्याणक सुणतां, संघ सकल हरखायोरे ॥०॥ सूरिमाणक पदेवार्य समरतां, ओच्छव रंग वधायोरे ॥में० ॥ चोवीशमो० ॥७॥ ॥ इति कलशः संपूर्णः ॥ PRESENTENTERTAINMENTERNETRENDER ॥ इति बाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकता M श्री महावीरजिनपंचकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ V449 RODD: 99289222088288902 15COCOCOCCASE: 13800000000000000000000 १ सूर्य. २ मायारहित. ३ शुक्रवार. ४ शिष्य. ५ महावीर. For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्री वास्तुक पूजाध्यापनविधिः ॥ - - सर्व वस्तु पांच पांच लाविये, अष्ट द्रव्य लाववां आठ स्नात्रीया करवा. एक कलश लेइने उभो रहे, बीजो केशरचंदननी वाटकी, त्रीजो फुल, चोथो धृप, पांचमो दीवो, छ8ो अक्षत चोखा, सातमो नैवेद्य अने आठमो फल लेइने उभो रहे. पछी पहेली पूजा भणावी, काव्य मंत्र भणी, प्रभुने जल स्नात्र करी चंदने पूजी, फूल चढावी, धूप उखेविये. एम अष्ट द्रव्यथी पूजिये. ए रीते पांचे पूजाओ भणाविये पूजा भणान्या पछी आरती मंगल दीवो करिये. जे घेर वास्तुक करवानुं होय, ते नवा घरमां शुभमुहूर्ते कुंभस्थापन करी. सात, स्मरण गणवां. पछी पूजा भणाववी. शक्ति होह तो स्नत्रीयाने जमाडवा. ॥ इति श्री वास्तुक पूजाध्यापनसंक्षेपविधिः ॥ ॥ आ पूजामां आवेल काव्यनो भावार्थः ॥ भवभ्रांतिनो नाश करनार, पृथ्वीमां शांतिना करनार, सुवर्णसमानकांतिवाला, कल्याण- घर, सुंदर अने शांत एवा श्री शांतिनाथ जिनेश्वरने हुं अत्यंत स्तवं छं. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा ॥ अथ वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंह सूरिकृत श्री वास्तुक पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहा॥ स्वस्ति श्री सुख संपदा, दायक देव दयाल । विश्वंभर शौति विभु, बंद भाव विशाल ॥१॥ समरी सारद शारदा, प्रणमी सद्गुरु पाय॥ २वर वास्तुक पूजा रचुं, दिव्य महोदय दाय ॥२॥ पावन वास्तुक पूजना, करवा चांच्छित काम ।। ५वंदन मालिकादिके, शणगारी निज धाम ।। ३ ॥ पीठ त्रिक उपर ठवी, सिंहासन श्रीकार ।। पधरावी शांति प्रभु, अरचो भाव उदार ॥४॥ जल चंदन ७सुम धूपनी, दीपक अक्षत सार । शोभन भोजन फल तणी, पूजा अष्ट प्रकार ॥५॥ ॥ अथ प्रथम पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ शांतिनाथ जिन सोलमा, शांतिकारक सार ॥ पूरणप्रेमे पूजतां, वरिये सुख विस्तार ॥१॥ १ सरस्वती.२ सुंदर. ३ म्होटो उदय. ४ इच्छित फल. पामवा माटे. ५ तोरण प्रमुख. ६ घर. ७ फूल. ८ सुंदर. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्री वास्तुक पूजा ॥ ढाल॥ ॥ नागर वेलीयो रोपाव, तारा राज महेलोमां ॥ ए देशी ॥ मंजुल सिंहासन मंडाव, तारा नवीन आवासे ।। पावन शांति प्रभु पधराव, तारा नवीन प्रासादे ॥ ए टेक ॥ निर्मल नीरे न्हवरावी, चंदन चरची पुष्प चढावी ॥ धूप सुगंधित सरस धराव, तारा नवीन प्रासादे ॥ मंजुल०१ लावी गवरीचें घी ताजु, बंधुर दीपक जमणी बाजु ॥ परम ५प्रमोद धरी प्रगटाव तारा नवीन प्रासादे ।। मंजुल०॥२॥ अक्षत नैवेद फल जिन आगे, मूकी सुंदर सुस्वर रागे ॥ गंभीर गीत मधुर गवराव, तारा नवीन प्रासादे ॥ मंजुल० ३ कोडे जिन पुर नृत्य करावी, वाजितर बहु विध वजडावी ॥ भावे भव्य भावना भाव, तारा नवीन प्रासादे ॥ मंजुल ४॥ ६जगती माणक अंतरजामी, इणविध पूजी शांति स्वामी ॥ लक्ष्मी लीला मंगल लाव, तारा नबीन प्रसादे । मंजुल०॥५ ॥दोहो । गावे गुण शांति तणा, भावे भवियण जेह ॥ रिद्धि सिद्धि सुख संपदा, पावे निश्चे तेह ॥१॥ ॥ दाल ॥ राग कालिंगडो ॥ अथवा श्रीराग ॥ ॥ वंदो विश्वानंदन वीर ॥ ए देशी ॥ गावो शांति गुण पुण्यवान ।। ए आंकणी ॥ १ संदर. २ घरमां. ३ गायनु. ४ सुंदर. ५ आनंद. ६ जगतमा रत्न समान. For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वातुक पूजा जंबू भरत कुरु देशे जाणो, पुर हस्तिना पुर प्रधान ।। राज्य करे त्यां रूडी रीते, विश्वसेन नामे राजान ॥ गावो० ॥१॥ तस राणी अचिरा गुण खाणो, रूपे इंद्राणी उपमान ॥ सुंदर शयन भवनमां सूती, १प्रमीला लेती अल्प प्रमाण गावो० ॥ २॥ श्चारु सर्वास्थथी चविया, भाद्र वदी सातम भगवान ॥ आवी तास उदर अवतरिया, सह गत मतिश्रुत अवधि ज्ञान गावो० ॥ ३ ॥ चौद सुपन तव देखे चतुरा, निरुपम सुख कल्याण निदान।। उठी निज ५शय्याथी उतरी, हर्षित पुलकित हर्ष ६अमान गावो० ॥ ४ ॥ प्रियतम पासे आवी प्रीते, वदती कोमल मधुरी वाण ॥ भूपति माणक आगल भाखे, मनहर चौदे स्वप्न महान गावो० ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ गीतिवृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांतं ध्वस्तभवभ्रांति ॥ शांतं भुविकृतशांति, स्तुवे नितांत जिनेश्वरं शांति ॥१॥ १ निद्रा. २ सुंदर. ३ भादरवो. ४ साथे रह्यां छे. ५ पलंग. ६ घणो. ७ पति. ८ राजाओने वीशे रत्न समान. (विश्वसेन.) For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्री वास्तुक पूजा ॥मत्रः॥ औं ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षत नैवेद्य० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ इति प्रथमपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय पूजा प्रारंभः ।। ॥ दोहो ॥ सूता सुखभर सेजमां, आनंदे में आज ।। भाल्यां चौद सुपन भला, ते सुणजो शिरताज ॥१॥ ॥ ढाल ॥ राग माढ ॥ ॥ भावथी नित्य भजिये वीर भदंत ॥ ए देशी ॥ सुपन में आज लह्यां श्रीकार, निसुणो प्रिय प्राणधार ॥ सुपन में आज लह्यां श्रीकार ॥ ए आंकणी ॥ १आद्य सुपनमा दीठो उज्वल, २दंताबल ३चउदंत ॥ उन्नत ककुद तथा अति उत्तम, वृषभ वीजे बलवंत, ५मृगारी त्रीजा सुपन मझार ॥ सुपन० ॥ निसुणो० ॥१॥ चोथे लक्ष्मीदेवी इंचारु, ज्योति झाक झमाल । पंचम सुपने सुरभि पावन मंजुल फूलनी माल, ९सुधाकर छठे सुपने सार । सुपन० ।। निसुणो० ॥२॥ सातमे सुपने उगतो सूरज, आठमे ध्वज १०उत्तंग ॥ निरुपम कलश रूपानो नवमे, पन सरोवर चंग ॥ सुपन दशमे दीठं सुखकार ।। सुपन० ॥ निसुणो० ॥३॥ १ प्रथम.२ हाथी. ३चार दांतवालो. ४ उंचा स्कंधवाला ५सिंह.६सुंदर.७सुगंध युक्त. ८ सूदर. ९ चंद्र. १० उंचो. For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७ श्री वास्तुक पूजा अगिआरमे क्षीर सागर अनुपम, बारमे देव विमान ॥ तेरमे ररत्न निकर तेजस्वी, रनिर्धूम वह्नि प्रधान, निहाल्यो चौदशमे निरधार ॥ सुपन० ।। निसुणो० ॥४॥ ३व्योम थकी उतरतां वदने, 'अविशत पेख्यां एह ॥ मानु थशे किम फल वृत्ति मुज, गुण माणक गेह, विचारी भाखो तास विचार ॥ सुपन० ॥ निसुणो० ॥५॥ ॥दोहो॥ स्वप्न चतुर्दश सांभली, राणी मुखथी राय ।। प्रमुदित निज प्रज्ञा थकी, दाखे फल सुख दाय ॥१॥ ॥ढाल ॥ राग केरबो॥ ॥गोपीचंद लडका, यादेल वरशेरे कांचन महेलमें | ए देशी॥ १०देवानुप्रिया ते, स्वप्न सारामां सारां देखियां॥ए आंकणी।। ११रमणीय धन कण कांचन रिद्धि, सुख संपद १२संभार ॥ राज्य वृद्धि मनवांछित सिद्धि, होशे मंगलमालरे । देवानुप्रिया ॥१॥ अम कुल १२केतु अम कुल दीपक, अम कुल तिलक समान ॥ कुल १४तरु वर कुल मंडण १५मौलि, कुल १६भूधर कुल १७भाणरे ॥ देवानुप्रिया० ॥२॥ १ रत्ननो ढगलो. २ धूमाडा विनानो अग्नि. ३ आकाशथी. ४ मुखमां. ५ पेशतां. ६ घर. ७ आनंदित. ८ पोतानी बुद्धिथी. ९ भाखे १० सरलस्वभावा. ११ सुंदर. १२ समूह १३ ध्वज. १४ वृक्ष. १५ मुगट. १६ पर्वत. १७ सूर्य. For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा कुल कीर्ति कर कुलवृत्ति कर, कुल जस कर आधार ॥ कुल नंदि कर कुल वृद्धि कर, कोमल रेकर पद साररे ।। देवानुप्रिया० ॥ ३॥ सुंदर लक्षण लक्षित ३तनुधर, शशि सम सौम्याकार ॥ प्रिय दर्शन तुज पुत्र थशे वर, रूप कला भंडाररे ॥ देवानुप्रिया०॥४॥ ५प्रियतम वाणी सत्य प्रमाणी, बेठी जइ निज ठाम ॥ हर्ष भराणी जपती शाणी, जिन गुरु माणक नामरे ।। देवानुप्रिया तें, स्वम सारामां सारां देखियां ॥५॥ ॥काव्यं । गीति वृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांतं ध्वस्तभवभ्रांति ॥ शांतं भुवि कृतशांति, स्तुवे नितांत जिनेश्वरं शांति ॥१॥ मंत्रः।। ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षत नैवेद्यं० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ इति द्वितीयपूजा संपूर्णा ।। ॥ अथ तृतीय पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ ६पंडितने तेडी प्रगे, रंगे पूछे राय ॥ सरस सुपन फल सांभली, विगते करे विदाय ॥१॥ १ समृद्धि. २ हाथ पग. ३ शरीर. ४ चंद्र. ५ स्वामी. ६ सुपन पाठक. ७ सवारमां. ८ दान सन्मान करीने. For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा ॥ ढाल राग केरबो॥ ॥ हम दम देके सोतन धर जाना ॥ ए देशी ॥ शांति जिणंद नमो नरनारी, नमो नरनारी नमो नरनारी ॥ शांति जिणंद नमो नरनारी ।। ए आंकणी ।। महिमा मंदिर प्रभु १मही मंडल, गर्भ थकी पण २मारी निवारी ।। शांति ॥ जननी उदर गत ३नाकीश्वर नत, दिन दिन वृद्धि लहे हितकारी ॥ शांति० ॥ १ ॥ गर्भन पोषण करती राणी, सखियो देती शिखामण सारी ॥ शांतिः ॥ भूपृथ्वीपति सवी पदोहद पूरे, अंतर अतिशय उलट धारी ॥ शांति ॥२॥ आनंद भर विचरतां आवी, जेठ वदी तेरश मनोहारी ॥ शांति० ॥ भूमि ६पुष्कल धान्य भराणी, अवसुधा सपी वायु विहारी ।। शांति० ॥३॥ आशा सघली थई अजुवाली, ९शकुन सकल जय जय १५वकारी ॥ शांति०॥ ११प्रमद विलासी १२जनपद वासी, १ पृथ्वी. २ मारी रोग. ३ इंद्रवडे नमस्कार कराएल. ४ राजा. ५ डोहला. ६ बहु. ७ पृथ्वीने फरशतो. ८ दिशा. ९ पक्षी. १० शब्द. ११ आनंद. १२ देशना लोको. For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा सुखियां जगमां सहु संसारी || शांति० ॥ ४ ॥ १ हरि मुख ग्रह उत्तम शुभ लगे, २ रजनी नायक भरणी चारी ॥ शांति ॥ मध्य निशा समये मनमोहन, जनम्या जिनमाणक जयकारी || शांतिजिणंद ० ॥ ५ ॥ ॥ दोहो ॥ छप्पन दिक्कुमरी तदा, आणी हर्ष अपार ॥ ति करणी करवा भणी, आवी अवधि विचार ॥ १ ॥ || ढाल || राग माढ || मेरे गमका तराना ॥ ए चाल ॥ अति उलट धारी, दिशा कुमारी, उत्सव करती उदार ॥ रेनिज कल्प विचारी, मंगलकारी, दिशाकुमारी, उत्सव करती उदार ॥ ए आंकणी ॥ जिन जिनजननीने वंदी जुगते,, आठ कुमारी ईशान || रसूति सदन बनावे, एक योजन परिमाणरे ॥ "कचवर अपहारी, भूमि समारी, दिशा कुमारी उत्सव करती उदार ॥ अति उलट० ॥ १ ॥ आठ कुमारी 'सुरभि ९अनुत्तर, वरसावे जल फूल || आठ कुमारी आगल उभी, दर्पण लेई अमूलरे || आठ जलनी १० झारी, हाथमां धारी, १ सूर्यप्रमुख. २ चंद्र. ३ पोतानो आचार. ४ ईशान कोणमां. ५ सुंदर. ६ घर. ७ कचरो. ८ सुगंधीदार. ९ उत्तम. १० कलश. For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा दिशाकुमारी, उत्सव करती उदार || अति उलट० ॥ २ ॥ आठ कुमारी पंखा धरती, चामर ढाले आठ ॥ चार कुमारी दीपक १ चारु, लेइ उमी बहु ठाठरे || देखवा मनोहारी, मोक्षनी बारी, दिशा कुमारी उत्सव करती उदार || अति उलट० ॥ ३ ॥ कदली सदन रची चार कुमारी, जिन जिन ३अंबा अंग ।। अभ्यंजन पूर्वक न्हवरावी, पहेरावे "भूषण चंगरे ॥ बांधी राखडी सारी, मंदिर धारी, दिशाकुमारी उत्सव करती उदार ।। अति उलट० ॥ ४ ॥ जगचिंतामणि जग धणी जगगुरु, जग बांधव जयकार | ७ शशि रवि गिरि सम जीवजो स्वामी, गुणमाणक भंडाररे ॥ इम आशीश भारी, मुख उच्चारी, दिशाकुमारी, उत्सव करती उदार ॥ अति उलट धारी० ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ गीति वृत्तं ॥ १०१ कातं काचनकांर्ति, निशांतं ध्वस्तभव भव्यभ्रांति ॥ शांतं भुवि कृतशांतिं स्तुवे नितांत जिनेश्वरं शांतिं ॥ १ ॥ ॥ मंत्रः ॥ ॐ हीँ श्रीँ परमपुरुषाय, परमेश्वराय, ओ जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय, जलं० चंदनं ० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं • नैवेद्यं० फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति तृतीय पूजा संपूर्णा ॥ १ सुंदर. २ श्रण केळनां घर. ३ माता. ४ तैल मर्दन. ५ अलंकार ६ रक्षा पोटली. ७ चंद्र. ८ सूर्य. ९ पर्यंत. For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ श्री वास्तुक पूजा ॥ अथ चतुर्थ पूजा प्रारंभः ॥ दोहो॥ जाणी अवधि ज्ञानथी, सोहम पति सुर संग ॥ जन्मोत्सव करवा हवे, आवे धरी उछरंग ॥१॥ ॥हाल || राग केरबो॥ ॥ उभो रहेने गोवालीया, तारी वांसली मीठी वाय ॥ ए देशी ।। आवे आवे जंभारी, जिनवर मंदिर धरी उल्लास ॥ए आंकणी। मातने वंदी भाखे ३मघवा, पुण्यवती तुज धन्य । रत्न कूख धारिणी ततो, जायो पुत्र रतन ॥ आवे आवे १ सोहम नामे सुरपति हुँ छु, भय नव धरशो मात ॥ तुज नंदननो जन्म महोत्सव, करीश आज ५अवदात आवे० २ एम कही देइ ६अवस्वापिनी, प्रतिबिंब प्रकी पास ॥ पंच रूप करी लावे प्रभुने, मेरु शिखर पर खास ||आवे० ३ जिनने खोलामां लई जुगते, आसन बेसे इंद ॥ तेसठ सुरपति मलिया तव त्यां, आणी मन आनंद ॥आवे० ४ कलशादिक सवो स्नात्र पूजानी, सामग्री श्रीकार ॥ जिनमाणक जन्मोत्सव कारण, करता सुर तैयार ॥ आवे आवे, जंभारी जिनवर मंदिर धरी उल्लास ॥५॥ १ इंद्र. २ इंद्र. ३ इंद्र. ४ इंद्र ५ सुंदर-उज्वल. ६ ए. नामनी निद्रा. ७ कलश विगेरे सर्व उपगरण, For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा ॥दोहो॥ १अमल कमल जल औषधि, रतीर्थ मृदादि तमाम ।। ३अच्युत पति आदेशथी, आणे ४सुर ५अभिराम ॥१॥ ॥ ढाल ॥राग वसंत ।। ॥ होइआनंद बहाररे, प्रभु बेठे मगनमें ॥ ए देशी ॥ जिन जन्मोत्सव साररे, करे इंद्र उमंगे ॥ए आंकणी ॥ आठ जातिना कलश अनुत्तर, प्रत्येक आठ हजाररे । करे तीर्थोदक भरी तीर्थपतिने, न्हवरावे निरधाररे ॥ करे १ इम अढीशे अभिषेक करीने, पूजे विविध प्रकाररे करे०॥ कमनीय भूषण पहेरावी करे, १०स्तवन ११नमन सुखकाररे ॥करे० ॥२॥ १२मरुत सकल तव राचे माचे, नाचे हर्ष अपाररे । करे० ॥ बहु विध वर वादित्र बजावे, गावे गीत उदाररे । करे० ३ जननी पासे जई जिनवरने, स्थापे । रेहरि धरी प्याररे ॥ करे० अपहरी निद्रा प्रभु अंगुठे, करो अमृत संचाररे । करे०४ बत्रीश कोडी रत्न रूपैया, वरसावी श्रीकाररे ॥ करे०॥ जई नंदीश्वर १४मह करी पूजे, जिन माणक जयकाररे । इन्द्र उमंगे॥ करे ५ ॥ १ निर्मल. २ मागध विगेरे तीर्थनी माटी, फूल, फल, धोला सरसव, सुगंधीदार सर्व वस्तु. ३ बारमा देवलोकनो इंद्र. ४ आभियागिक देव-सेवक देव. ५ सुंदर. ६ उत्तम. ७ दरेक जातिना. ८ सुंदर. ९. अलंकार. १० स्तुति. ११ नमस्कार. १२ देव. १३ इन्द्र. १४ उत्सव. For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ श्री वास्तुक पूजा ॥ काव्यं ॥ गीति वृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांत ध्वस्तभवभ्रांति ॥ शांतं भुवि कृतशांति, स्तुवे नितांतं जिनेश्वरं शांतिं ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यंग फलं० यजामहे स्वाहा ।। इति चतुर्थ पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ पंचम पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ पपुरंदर पूजित २प्रगे, भाली सुतने भूप ॥ हर्षित ५पुलकित थई हवे, उत्सव करे ६अनूप ।। १ ॥ ॥ ढाल ॥ राग धोल । ॥ राम लक्ष्मण वनमा सिधावता ॥ ए देशी ॥ हवे ऽपृथिवी पति निज पुत्रनो, करे जन्म महोत्सव चंग, धरी मनरंग ।।मोहन वाजांवागिया।। सवी बंधीखाना छोडावियां, वधरावियां मानोन्मान, प्रमोद निदान ॥मोहन वाजां वागियां । वाजां वाग्यां जिनेश्वर द्वार, आनंद अपार ॥ मोहन वाजां वागियां ॥ ए आंकणी ।। १॥ १गजपुर नगर शणगारियु, सुरभि जल ११भू सिंचाय, १ इन्द्रे पूजेल. २ सवारमां. ३ पुत्रने. ४ राजा. ५ रोमांचित, ६ निरुपम. ७ राजा. ८ आनंद. ९ कारण. १० हस्तिनापुर. ११ पृथ्वी. For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा १०५ प्रसून पथराय ॥ मोहन० ॥ घर घर तोरण बंधावीयां, धूप धाणां घणां महकाय, ध्वजा लहकाय ॥ मोहन० ।। २ ।। २प्रिय मोतीना चोक पूराविया, वर धवल मंगल वरताय, सुनृत्य कराय ॥ मोहन० ॥ ३ऋण मुक्त कर्या सहु लोकने, दीधां याचकने बहु दान, करी सन्मान ॥ मोहन० ॥ ३ ॥ इम ४स्थिति पतिता उत्सव करी, जुगतीथी जमाडी नात, भोजन भली भात ॥ मोहन० ।। निज स्वजन वरग सत्कारिया, देई वस्त्राभरण श्रीकार, अनेक प्रकार ॥ मोहन ॥४॥ प्रभु गर्भथी मारी निवारिने, करी शांति सकल सुखकार, ५मही मोझार ॥ मोहन ॥ तिणे कारण सुत माणक तणुं, ठव्यु नाम श्री शांतिकुमार, थयो जयकार ।। मोहन वाजां वागियां ॥५॥ ॥दोहो॥ ज्नयनामृत गुण नीरधि, अचिरा देवी नंद ॥ पुरुषोत्तम प्रभु पूजतां, प्रगटे परमानंद ॥१॥ १ फूल. २ सुंदर. ३ करज रहित. ४ कुल मर्यादा. ५ पृथ्वी. ६ पुत्र रत्ननुं. ७ आंखोने अमृत जेवा. ८ समुद्र. For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा ॥ढाल। वारी वारी जावं, श्रीधर्मनाथका ॥एदेशी॥ वारी वारी जावू, श्री शांतिनाथन्ति मुद्रा देखी राजी था । |ए आंकणी॥ मंगलमयल मूत्ति क्षित कांचन वरणी काय. सहस अष्टोत्तर लक्षण लक्षित, कांचन वरणी काय । __ मृग लक्षण मंगलमय मूर्ति, कोटी रसोम सूरज मेलविये, तोए न आवे होड ।। रूप २अनुत्तर सुरथी अधिकुं, जगमां नही जस जोड ॥वारी २ प्रियदर्शन ३शंकर परमेश्वर, भद्रंकर भगवान ॥ प्रभुजी म्हारे घर पधार्या, करवा मुज कल्याण ॥ वारी ॥३ चिंतामणि मुज कर तल चढियो, ५सुर तरु फलियो आज || शांति जिनेश्वर सेवन करतां, सिद्धयां सघलां काज॥ वारी०४ एणीपेरे वास्तुक पूजा करिये, हरिये पातक जाल ।। सरिमाणक श्री शांति समरिये, वरिये मंगल माल ॥ वारी वारी जावू, श्री शांतिनाथनी मुद्रा देखी० ॥५॥ ॥काव्यं गीति वृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांतं ध्वस्तभवभ्रांतिं ।। शांतं भुवि कृतशांति, स्तुवे नितांतं जिनेश्वरं शांति ॥ १ ॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय, १ चंद्र. २ अनुत्तर विमानना देव. ३ सुख करनार. ४ हाथ. ५ कल्पवृक्ष, ६ पाप. ७ समूह. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं नैवेद्यं० फलं. यजामहे स्वाहा ॥ इति पंचमपूजा संपूर्णा ॥ ॥अथ कलश ॥सेवो सज्जन सेवो सज्जन ॥ ए देशी सेवो सजन सेवो सञ्जन, शांतिनाथ सुखदाया ॥ कमनीय वास्तुक पूजन कारण, उत्तम एह उपाया ॥ सेवो० ॥ ए आंकणो ॥ लौकिक लोकोत्तर दो भेदे, वास्तुक रयजन कहाया । ३दुरित निमित्त लौकिक दर्शाया, लोकोत्तर शुभ गाया ॥ सेवो० ॥१॥ लोकोत्तर वास्तुक आचरवा, स्थिर करी मन वच काया ॥ प्रेमे अष्ट प्रकारे पूजो, श्री शांति जिनराया ॥ सेवो० २ एथी आधि व्याधि उपद्रव, नासे सर्व ५अपाया ॥ मंगल माला विमला कमला,लहीये सुख समुदाया ॥ सेवो ३ तप गण गगन ९गगनमणि गिरुआ, विजयसिंह सरिराया। सत्य कपूर क्षमा जिन उत्तम, विजय पदे सोहाया ॥सेवो०॥४॥ पद्म रूप वर कीर्ति विजयना, श्री उद्योत अमाया ॥ अमर गुमान विजय गुणवंता, शिष्य परंपर आया ।सेवो०॥५॥ १ सुंदर. २ पूजन. ३ पापनुं कारण. (मिथ्यात्व होमादियुक्त) ४ कल्याणकारी. ५ संकटकष्ट. ६ लक्ष्मी . ७ समूह. ८ आकाश. ८ सूर्य. For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ श्री वास्तुक पूजा सुगुरु प्रतापविजय सुप्रतापे, प्रिय श्रुत माणक पाया। मेघविजय निज शिष्य वचनथी, ए अधिकार रचाया।सेवो॥६॥ वसुधा निधि निधि वसुधा वर्षे, (१९९१) मृगशिर मास मनाया ॥ वर पूर्णिमा दिन गुरुवारे, पूर्णानंद पमाया सेवो०॥७॥ राजनगरमां रही चोमासु, दोहला पास पसाया ॥ श्रद्धालु श्रावक हित हेते, पूजन एह बनाया ॥सेवो० ॥८॥ शांति धारक शांति कारक शांति नाम धराया, सूरि माणक श्रीशांतिजिनेश्वर, गुण माणकथी वधाया ।। सेवो सज्जन सेवो सज्जन, शांतिनाथ सुखदाया ॥९॥ ॥ इति बाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकत श्री वास्तुकपूजा संपूर्णा ॥ १ सुंदर, २ ज्ञान रूप रत्न. ३ सुदर (सिद्धियोग युक्त. ४ गुणरूपरत्नथी. For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपालिका देववंदन विधिः प्रथम ईर्यावही पडिक्वमो महावीर स्वामी- पहेलं चैत्यवंदन कहेवू. पछी किंचि कही नमुथ्थुणं कही अडधा जयवीयराय (आभवमखंडा सुधी) कहेवा. पछी महावीरस्वामीनुं बीजुं चैत्यवंदन, किंचि, नमुथ्थुणं कही, अरिहंत चेयाणं, अन्नथ्य कही, एक नवकारनो काउसम्ग करी, पारीने नमोहंत० भणी पहेली थोय कहेवी. पछी लोगस्स सन्बलोए अरिहंत वेइयाणं, अन्नथ्य कही एक नवकारनो काउसग्ग करी बीजी थोय कहेवी, पछी पुरकरवरदीवड्ढे कही वंदणवत्तियाए, अन्नथ्य कही एक नवकारनो काउसग्ग करी वीजी थोय कहेवी. पछी सिद्धाणं बुद्धाण, वेयावच्चगराणं, अन्नथ्थ कही एक नवकारनो काउसग्ग करी, पारीने नमो. ईत्० भणी चोथी थोय कहेवी. पछी नमुथ्थुणं, अरिहंत चेइयाणं प्रमुख प्रथमनी रीते कही महावीर स्वामीनी बीजो थोयोनो जोडो कहेवो. पछी नमुथ्युण, जातिचेहयाई, जावंत केवि साहु, नमोहत० कही महावीर स्वामीनुं स्तवन कहे, पछी अडधा जयवीयराय कही महावीर स्वामीन त्रीजुं चैत्यवंदन, किंचि, नमुथ्थुणं कही पूरा जयवीयराय कहेवा एज रीते गौतमस्वामीना देव वांदवा. पछी अर दीवालीनुं गीत कहे. ॥ इतिश्री दीपालिका देववंदन विधिः ॥ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०९ श्री दीपाली देववंदन ॥ श्री दीपालिका देववंदनं ॥ ॥ श्री वीरचैत्यवंदनं ॥ वीर जिनेश्वर केवली, नयरी अपापा आया । हस्तिपाल रज्जुक सभा, २चरम चोमासु ठाया ॥१॥ कार्तिक मास अमावसी, रजनीए जगभोण ॥ सोल पहोर देह देशना, पहोंच्या पद निर्वाण ॥ २ ॥ भावाद्योत गयो प्रभु, जिनमाणक शिवठाण ॥ . द्रव्योद्योत दीपालिका, करता ५गण राजान ॥३॥ ॥ इति प्रथमचत्यवंदनं ॥१॥ ।। अथ द्वितीयचैत्यवंदनं ॥ मानव दानव देवता, मलिया कोडाकोड ।। कल्याणक महिमा तदा, करता होडाहोड ॥१॥ मेराइयां हाथे ग्रयां, दीपकमाला कीध ॥ दीवाली ते दिनथकी, जगमां थइ प्रसिद्ध ॥२ ।। जिनमाणक महावीरनु, शिव कल्याणक एह ॥ लाख कोडी फल छठ करी, आराधो गुणगेह ॥३॥ ॥इति द्वितीयचैत्यवंदनं ॥ २ ॥ ॥ अथ तृतीयचैत्यवंदनं ॥ ज्ज्ञात कुलांबर चंद्रमा, त्रिशला नंदन वीर ॥ १ कारकुननी सभा. २ छेल्लु. ३ मोक्ष. ४ सामान्य केवलीमां रत्न समान.५ अढार गणराजाओ.६ मोक्ष. ७ सिद्धार्थराजाना कुल रूप आकाशमां चंद्र. For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० श्री दीपाली देवचंदन १हरि लांछन वर सात हाथ, कांचनवर्ण शरीर ॥१॥ तीश वर्ष घरमां वसी, लहि चारित्र प्रधान ॥ बार वर्षे छमस्थ रही, पाम्या केवल ज्ञान ।। २ ॥ तीश वर्षे प्रभु केवली, बहोतेर वर्षनु आय ।। पाली दीवाली दिने, जिनमाणक शिव जाय ॥३॥ ॥ इति तृतीयचैत्यवंदनं ॥३॥ ॥ अथ श्रीवीरस्तुतिः ॥ शांति जिनेश्वर समरिये ॥ ए चाल ॥ त्रिशला नंदन केवली महावीरजिणंद, सोल पहोरनी देशना दीधी सुखकंद ।। नव मल्लकी नव लेच्छकी सुणी गण राजिंद, योग नीरोधी पामिया प्रभु पद महानंद ।। १ ।। आदीश्वर मुक्ति गया करी षट उपवास, बावीश शिव पदवी लह्या करी अणसण मास ।। वीर २महोदयने वर्या छठ तप करी खास, कार्तिक मास अमावसी स्वाति चंद्र विलास ॥ २ ॥ पुण्य पाप फल केरडां अध्ययन उदार, ३एकशत दश प्रभु भाखियां भविजन हितकार ॥ उत्तराध्ययन प्रकाशियां छत्रीश प्रकार, ते आगमने सांभली लहो भवजल पार ।। ३ ।। देव देवी मलीने करे उत्सव परधात, गौतम इंद्रभूति लहे ध्वर केवल ज्ञान ।। १ सिंह. २ मोक्ष. ३ एकसो दश. ४ सूंदर. For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देवचंदन मातंगजक्ष सिद्धायिका सवि संकट चूरे, मुनिमाणक सहु संघनां मन वांछित पूरे ॥ ४ ॥ ।। इति प्रथम श्रीवीरस्तुतिः ॥ ॥ अथ द्वितीय श्रीवीरस्तुतिः ॥ ॥ उपजातिवृत्तं ॥ अनंतविज्ञानरमानिधान प्रशस्यप्राज्यातिशयप्रधानं ॥ स्वयंभुवं मंदरशैलधीरं ।। नवीमि वीरं भवतापनीरं ॥१॥ कंदर्प-मातंग-वधे मृगेंद्रा, मोहांधकारक्षणने दिनेंद्राः ।। नागेंद्र-देवेंद्र-नरेंद्र-वंद्याः, शिवाय मे संतु समे जिनेंद्राः॥२॥ संसारनीराकरयानपात्रं, रेकावली वल्ल्यभिलावदात्रं ।। सद्बोधबीजं सुपदाभिरामं, जैनागमं साधु नमामि कामं ॥३॥ मातंगयक्षः कृतसंघरक्षः, श्रीवीरतोथेश्वरभक्तिदक्षः ।। दीपालिकापर्वणि वः समृद्धि, ददातु माणिक्यमुनेश्च सिद्धि ।।४।। ॥ इति द्वितीय श्रीवोरस्तुतिः॥२॥ ॥ अथ श्री वीर स्तवनं ॥ ॥ जीरे म्हारे जाग्यो कुमर जाम ॥ ए देशी ॥ जीरे म्हारे श्रीमहावीर जिणंद, सिद्धारथ २मुत गुणनिलो जीरेजी। जीरे त्रिशलामात मल्हार शासनपति त्रिभुवन तिलो जीरेजी ॥१॥ नदीवर्द्धन भ्रात, भगिनी जास सुदंसगा जीरेजी ॥ जीरे० ॥ नारी जसोदानो कंत, सेवे जस पद ५सुर घणा जीरेजी ॥२॥ एकशत दश पुण्यपाप, फल अध्ययन जिणे कह्यां जीरेजी॥जीरे० १ एनामनी देवी. २ पुत्र. ३ व्हेन ४ चरण ५ देव. For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देववंदन उत्तराध्ययन छत्रीश, भाख्यां ते भवि सद्दयां जीरेजी ॥३॥जीरे० करता जग उपगार, सोल पहोर देशना दई जीरेजी ॥जीरे०॥ योग निरोधे नाथ, चौदसु गुणठाणुं लई जीरेजी ॥४:। जीरे० सरिथसिद्ध मुहूर्त, कार्तिक मास अमावसी जीरेजी ॥ जीरे० पाछली भली रात, स्वाति नक्षत्र तणो शशी जीरेजी ॥५॥जीरे० तिण अवसर प्रभु बीर, निवृति नगर सधारिया जीरेजी ॥जीरे० चलितासन ततकाल, २सुरपति सघला आविया जीरेजी॥६॥जीरे० प्रणमी जिन तिनु तेह, करणी उचित सघली करे जीरेजी ॥जीरे० भाव उद्योतने ठाम. द्रव्य उद्योत ते आचरे जीरेजी ॥७॥जीरे० उत्तम लोके कीध, झगमग दीपक आवली जीरेजी ॥ जीरे० त्यांथी प्रगटी एह, दीवाली जगमां भली जीरेजी ।।८॥ जीरे. छठतप करी नरनार. कल्याणकविधि आदरे जीरेजी ॥ जीरे० लाख कोडी फल तेह, जिनमाणक ध्याने वरेजीरेजी॥९॥जीरे० ॥ इतिश्री वीर स्तवनं ॥ ॥ अथ श्रीगौतमचैत्यवंदनं ॥ इंद्रभूति गणधर नमो, गौतम गोत्र महंत ।। मुख्य शिष्य महावीरनो, चरण करण गुणवंत ॥ १ ॥ जे निज श्रवणे सांभली, वीरतणुं निर्वाण ॥ वीतरागता भावतां वरिया केवल नाण ॥२॥ ते गौतम गुरु समरतां, दीवाली दिन खास ॥ माणक विजय कहे सवी, पोंचे मननी आस ॥३॥ ॥ इति प्रथम चैत्यवंदनं ॥१॥ १ मोक्ष. २ इंद्र. ३ शरीर. ४ श्रेणी. For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देववंदन ॥ अथ द्वितीय चैत्यवंदनं ॥ १ पृथिवीनंदन गुणनिधि, गोब्बर गाम निवास || इंद्रभूति ब्राह्मण कृती, रहि घर वर्ष पचास || १ || दीक्षा. पणशत छात्रशुं लिये चरम जिनपास || तीश वर्ष वीत्या पछी, पाम्या केवल खास || २ || बार वर्ष केवली सवी, बाणु वर्षनुं आय ॥ मुनिमाणक गौतम गुरु, नमतां शिवसुख थाय ॥ ३ ॥ ॥ इति द्वितीय चैत्यवंदनं ॥ ॥ अथ तृतीय चैत्यवंदनं ॥ वीर वदनथी सांभली, वेदपदार्थ उदार ॥ जीवतणो संशय तजी, लीधो संजमभार ॥ १ ॥ चौदपूर्व रचियां जिणे, त्रिपदी पामी सार || इंद्रभूति गणधर जयो, जिनसाशन शिणगार ||२|| लब्धिवंत महिमानिलो, मुनि माणक गुण ६शाल ॥ श्रीगौतम गुरु नामथी, नित नित मंगलमाल ॥ ३॥ ॥ इति तृतीय चैत्यवंदनं ॥ ११३ ॥ अथ श्री गौतमस्तुतिः ॥ ॥ ऋषभ चंद्रानन चंदन कीजे ॥ ए चाल ॥ इंद्रभूतिवर कनक द्युति ९कर सात शरीर गंभीरजी, गौतम गणधर प्रथम सुकर श्रीमहावीर वजीरजी ॥ अन्यपणुं मन करतां चिंतन दीवाली परभातजी, केवल १० कमला पाम्या १ पृथ्वीमाताना पुत्र. २ पंडित. ३ पांचसो ४ मुनिभोमां रत्न समान. ५ मुखथी. ६ घर. ७ सोनुं. ८ कांति. ९ हाथ. १० लक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ श्री दीपाली देवचंदन - पविमला वंद जग विख्यातजी ॥१॥ अष्टापदपर भरतनरेश्वर जिनवर भवन करावेजी, निजनिजलांछन २मान निरंजन चोवीश ३अर्हन. ठावेजी ।। जगदानंदन ते जिन वंदन गौतम गणधर आवेजी, निजलन्धे करी सूर्यकिरण धरी चढी जिनवंदे भावेजी ॥ २ ॥ त्रिपदी पामी गौतम स्वामी जिनमुखथी मनोहारीजी, निरुपम रचना पावन वचना गणिपिटका करी सारीजी ।। भविजन भाई पुण्ये पाई आगम अर्थ विचित्रजी, मन आणंदी पूजी वंदी कीजे जन्म पवित्रजी ।। ३ ।। शिवसुख मेवा मीठा लेवा जिनपदसेवा सारेजी, समकित धारी जे नरनारी विघ्न सकल तस वारेजी ॥ आपद कापे संपद आपे मातंगसुर सिद्धाईजी, शासनभक्ता धर्म रक्ता मुनिमाणक सुख दाईजी ॥४॥ ॥ इति प्रथम श्री गौतम स्तुतिः ॥ १॥ ॥अथ द्वितीय श्री गौतम स्तुतिः ॥ ॥ वसंततिलका वृत्तं ॥ श्रीज्ञात नंदन विनेयमुदार तारं, क्षीराश्रय प्रमुख लब्धि समृद्धथगारं ॥ नाम्नेद्रभूति महमाद्य गणेशितारं, वंदे सदा प्रवर गौतम गोत्र सारं ॥ १ ॥ सद्ज्ञान दर्शन चरित्र गुणद्धि युक्ताः संक्रंदनार्चित पदाः पमदास्त्र मुक्ताः । स्याद्वादिनो भुवि जयंतु सदा पवित्रा-स्तीथैकराः कलुष कर्दम शोष मित्राः ॥२॥ रंगत्प्रभूत नय भंग तरंग जालं, दृष्टांत कांततर मौक्तिक चक्रवालं ॥ नाना पदार्थ सलिलं गम हेतुरत्नं, सेवे जिनेंद्र १ निर्मल. २ प्रमाण. ३ जिन. ४ द्वादशांगी. For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देववंदन ११५ समयांबुनिधि सुयत्नं ॥ ३॥ मातंग यक्ष इह कामित दानदक्षः प्रत्यूहभित्प्रवचनाचनबद्धकक्षः । सिद्धायिकापि भवताच शुभप्रदाना, माणिक्य पूर्व विजयस्य मृगेंद्र याना ।। ४ ।। ॥ इति द्वितीय श्री गौतम स्तुतिः ॥ २॥ ॥अथ श्रीगौतमस्तवनं ॥ ॥ हरखीजी हरखीजी हुतो हरखीजी निरखीजी ॥ ए देशी ॥ हितकरणी हितकरणी वाणी वीरनी लाल हितकरणी ।। अमृतरस अनुसरणी वाणी वीरनी लाल हितकरणी ॥ शिवमंदिर निःसरणी वाणी वीरनी लाल हितकरणी ।। गौतम संशय हरणी वाणी वीरनी लाल हितकरणी ॥ ए आंकणी ॥ गौतम गोत्री इंद्रभूति द्विज २पंचसयां परिवार ॥ वादकरण प्रभु आगल आव्यो, धरि अभिमान अपार ॥ वाणी० ॥ अमृत० ॥शिव०॥ गौतम० ॥ १ ॥ पृथिवी आदि पंचभूतथी, प्रगटे चेतना सार ।। भूत विनाशे ते पण विणसे, नही परभव अवतार ॥ वाणी० ॥ अमृत० ॥ शिव० ।। गौतम ॥२॥ इम विज्ञान घनादिक पदनो, अर्थकरे विपरीत ॥ शुद्ध अर्थ स्वामी तव तेने, समजावे शुभ रीत ॥ वाणी० ॥ अमृत० ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥३॥ विज्ञान धन ते चेतन कहिये, दर्शनज्ञान उपयोग ॥ घट पट ज्ञान पणे ते उपजे, भूततणे संजोग वाणी ।। अमृत० ॥ शिव०॥ गौतम० ॥ ४॥ जेवी वस्तु देखे तेवू, उपजे आतम ज्ञान । पूरव पूरव ज्ञान विनाशे, उत्तर उत्तर ज्ञान ॥ वाणी० ॥ अमृत १ ब्राह्मण. २ पांचसो. For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ श्री दीपाली देववंदन ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥५॥ दान दया दम त्रण पदने जे जाणे तेहज जीव ।। सुमनस २सौरभ न्याये वरते, ३भूधन, ४भिन्न सदैव ॥ वाणी०॥ अमृत०॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ॥६॥ इत्यादिक जिन मुखथी सुणतां, संशय टलियो दर ।। मान तजी दीक्षा लहि हुआ, गणधर प्रथम सनूर ॥ वाणी०॥ ॥ अमृत० ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ७ ॥ वीर जिनेश्वर मुक्ते पहोच्या उपन्यो चित्त ५विषाद ॥ क्षण अंतर समतारस ध्यावे, ध्यान शुक्ल आह्लाद ।। वाणी० ॥ अमृत० ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥८॥ दीवाली परभाते पाम्या केवल माणक सार ॥ अनुक्रमे शिव सुख वरिया गौतम, वंदू वारंवार ।। वाणी०॥अमृतक ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ९ ॥ ॥ इति श्रीगौतम स्तवनं ॥ ॥ अथ दीपालिका गीतं ॥ ॥ वारीप्रभु दशमा शीतलनाथ सुणोएक विनतिरे लोलाएदेशी॥ भवियां पारंगत महावीर गया अपंचमी गइरे लोल ॥ भ० पावनपर्व दीवाली तव जगमां थइरे लोल ॥ १॥ भ० ॥ कुमति कदाग्रह कच्चर दूर निवारियेरे लोल ॥ भ० !! श्रद्धाभासन चेतन ९भवन समारियेरे लोल ॥ २॥ भ० || व्रत २०चंद्रोदय पंचवरण वर बांधियेरे लोल ॥ भ० ॥ संवर भाव सुगंधित धूपे धूपियेरे लोल ॥३॥ भ० ॥ उपशम अजव मद्दव पुष्प पगर १ फुल. २ सुगंध. ३ शरीर. ४ जूदो. ५ खेद. ७ केवळ ज्ञानरूप रत्न. ७ मोक्ष. ८ कचरो. ९ घर. १० चंदरपा. For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देववंदन ११७ भरोरे लोल || भ० || दानादिक शुभधर्म परम स्वस्तिक करोरे लोल ॥ ४ ॥ भ० ॥ शीयल विमल शिणगार सरस अंगे धरोरे लोल ॥ भ० ॥ तपजप सेवसुंवाली सुंदर आदरोरे लोल ॥ ५ ॥ भ० || मैत्रादिक वरभावन मिठाइ लहोरे लोल || भ० ॥ सत्यवचन तंबोल वदनकमले ग्रहोरे लोल || ६ || भ० ॥ उज्वल ज्ञान १ प्रदीप प्रकाश प्रमाणियेरे लोल ॥ भ० ॥ मेराइयां सझायविवेक वखाणियेरे लोल ॥ ७ ॥ भ० ॥ साधर्मिक संयोग स्वजन सम जाणियेरे लोल ॥ भ० || सुगुरुवचन रसपान अमृतरस मानियेरे लोल ॥ ८ ॥ भ० ॥ समता ध्वनिताशुं मनमंदिरमां ठरोरे लोल ॥ भ० ॥ भावदीवाली आराधी भवजल तरोरे लोल ||९|| भ० || शुद्ध रूप वरवा जिनगुण कीर्ति करोरे लोल ॥ भ० ॥ करि शासन उद्योत अमरपदवी वसेरे लोल || १० ॥ भ० ॥ मुनि "मंडल शिरताज गुमानविजय गुणीरे लोल ॥ भ० ॥ प्रणमो श्रीपन्यासप्रताप विजय गणीरे लोल ॥ ११ ॥ भ० ॥ राजनगर लोहकार तोली उपाशरेरे लोल ॥ भ० ॥ रही चोमासुं सार अजितजिन आशरेरे लोल || १२ || भ० || कमनश्रवण शरनंदी शशी १९५८ संवत्सरेरे लोल || भ० || बाहुल बहुल त्रयोदशी १०भृगुसुत ११वासरेरे लोल ॥ १३ ॥ भ० ॥ निज गुरुनी आणाथी ए रचना करीरे लोल ॥ भ० ॥ माणकविजय मनोरम १३ जयकमला वरीरे लोल ॥ १४ ॥ 1 ।। इति श्री दीपालिका देववंदनं समाप्तः || १ दीवो. २ सरिखा. ६ जल. स्त्री. ५ समूह. ६ लुहार. ७पोळ. ८ कार्तिक. ९ वदी १० शुक्र. ११ दिवस. १२ सुंदर. १३ जयलक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ पूजासंग्रह ।। श्री वीश विहरमाननु चैत्यवंदन ॥ ॥ विमळ केवळ ज्ञान कमळा ॥ ए राग ।। प्रथम सीमंधर नमो, जिनराज युगमधर बीजा ।। भव रतोयराशि तरण तारण, बाहुस्वामी नमो त्रीजा ।।१।। श्री सुबाहु वैदिये, चोथा सुजातजी पांचमा । श्री स्वयंप्रभ नाथ छठा, प्रणमिये परमातमा ॥२॥ सातमा ऋशभाननेश, अनंतवीर्यजी आठमा । सुरप्रभ नवमा नमीजे, सुरतरु ३सुरमणि समा॥३॥ दशमा विशाल जिणंद नमीये, वज्रधर अगीआरमा ।। बारमा चंद्राननेश्वर, चंद्रबाहु तेरमा ॥ ४ ॥ चौदमा प्रणमो भुजंग, जिनेश भय भंजन विभु ॥ नमो पंदरमा श्रीइश्वर, सोलमा नेमी प्रभु ॥५॥ वीरसेन जिणंद अरिहा, नाथ सत्तरमा नमो। महाभद्र अढारमा नमी, पाप संचयने धमो ॥६॥ ओगणीशमा नमु चंद्रकीति, अजितवीर्यजी वोशमा ॥ विहरमान जिनेश नमतां, लहे माणक सुख ५रमा ॥७॥ ॥ओळीनु चैत्य वंदन ॥ ॥ विमळ केवळ शान कमळा ॥ ए राग ॥ सकळ मंगळ परम कमळा केलि मंजुल मंदिरं ॥ भवकोटि संचित पापनाशन नमो नवपद जयकरं ।। १ ।। अरिहंत १ समुद्र. २ कल्पवृक्ष.३ चीतामणि. ४ समूह. ५ लक्ष्मी. ६ लक्ष्मी . ७ सुंदर. ama For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रह ११९ सिद्ध सुरीश वाचक साधु ३दर्शन सुखकरं ॥ वरज्ञान पद चारित्र तप ए॥ नमो ॥२॥ श्रीपालराजा शरीरसाजा सेवतां नवपद वरं ॥ जगमांहि गाजा कीर्ति भाजा ॥ नमो० ॥३॥ श्री सिद्धचक्र पसाय संकट आपदा नाशे अरं ॥ वळी विस्तरे सुख मनोवांछित ॥ नमो० ॥४॥ आंबील नव दिन देव वंदन त्रण टंक निरंतरं ॥ बेवार पडिकमणां पलेवण ।। नमो० ॥५॥ त्रण काळ भावे पूजिये भव तारकं तीर्थकरं ।। तिम गुर[ दोय हजार गणिये ॥ नमो० ॥६॥ इम विधि सहित मन वचन काया वश करि आराधिये ॥ तप वर्ष साढा चार नवपद शुद्ध साधक साधीये॥गद कष्ट चूरे ५शर्म पूरे । यक्ष विमलेश्वर वरं ।। श्रीसिद्धचक्र प्रताप माणिक विजय विलसे सुखभरं ॥७॥ ॥श्री पर्युषणानी थोयो । ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाली ॥ ए देशी ॥ पामी पर्व पजुषण सार, सत्तर भेदी जिन पूजा उदार, करिये हरख अपार ।। सद्गुरु पास धरी बहु प्यार, कल्पसूत्र सुणीये सुखकार, आळस अंग उतार | धरमसारथि पद सुपनां चार, सुपनपाठक आव्या दरबार वीर जनम अधिकार ॥ दीक्षाने निर्वाण विचार, षट व्याख्यान अनुक्रमे धार, मुणतां होय भवपार ॥१॥ नमि सुव्रत मल्लि अर ६कंत, कुंथु शांतिने धर्म अनंत, विमळ वासुपूज्य संत ॥ श्रीश्रेयांस शीतळ भगवंत सुविधि चंद्र सुपास भदंत, पद्म सुमति अरिहंत ॥ १ आचार्य. २ उपाध्याय. ३ समकित. ४ रोग ५ सुख ६ स्वामी अथया मुंदर. For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० पूजासंग्रह अभिनंदन संभव गुणखाण, अजितनाथ पाम्या निरवाण, ए वीश अंतरमान ॥ पास नेमीश्वर 'जगदीशान, ऋषभ चरित्र का परधान, सातमु एह वखाण ॥ २ ॥ आठमे गणधर थिविर गणीजे, नवमे बारसा समाचारी लीजे. नव वखाण सुणीजे ।। चैत्य परिवाडी विधिशुं कीजे, यथाशक्तिए तप तपीजे, आश्रव पंच तजीजे ॥ भावे मुनिवरने वंदीजे, संवच्छरी पडीकमगुं कीजे, संघ सकल खामीजे ॥ आगम वयण २सुधारस पीजे, शुभकरणी सवी अनुमोदी जे, नरभव सफळ करीजे ॥३॥ मणिमां जिम चिंतामणि सार, पर्वतमां जिम मेरु उदार, ३तरुमां जिम सहकार ॥ तीर्थंकर जिम देव मोझार, ५गुणगणमां समकित श्रीकार, मंत्रमाही नवकार ।। मतमां जिम जिनमत मनोहार, पर्व पजुषण तेम विचार, सकळ पर्व शिणगार ॥ पारणे स्वामी भक्ति प्रकार, माणकविजय विधन अपहार, देवी सिद्धाइ जयकार ॥ ४॥ (सं. १९५०) ॥ श्री पर्युषणानु चैत्यवंदन ॥ पुण्योदयथी आवियां, पर्व पजुसण सार । ओच्छव रंग वधामणां, मंगळ हरख अपार॥१॥ ६महिधरमां सुरगिरि वडो, तरुमां सुरतरु जेम ॥ ९सुरगणमां १०सुरपति वडो, पर्व पजुसण तेम ॥ २॥ अमर पडोवजडाविये, जीव दयाने लाग ।। सत्य वचन मुख भाखिये, चोरी मैथुन त्याग॥शा आरंभ मूर्छा छंडिये, नवि रमिये जुगार॥कजीओ कलह न कीजीये, हांसीनो १ जगतना इश्वर. २ अमृतरस.३वृक्षमां. ४ आंबो.५ गुण समूह. ६ पर्वतमां. ७ मेरु. ८ कल्पवृक्ष. ९ देवसमूह. १० इंद्र. For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रह परिहार ॥ ४ ॥ द्रव्यभाव जिन पूजीये, निरमळ करी निज १गात्र ॥ विनति करी मुनिराजने, दीजे दान सुपात्र ॥ ५ ॥ सदगुरु पासे सांभळो, कल्पसूत्र मनोहार ॥ त्रीजा औषधनी परे, पुण्य पुष्टि करनार ॥६॥ एकवीश वार जे सांभळे, कल्पसूत्र सुखकंद । सात आठ भवमां लहे, पदवी परमानंद ॥७॥ जिनवर चैत्य जुहारिये, मुनिवंदन हितकार।। वरशी पडिकमणुं करी, आलोइये अतिचार ॥ ८ ॥ साधर्मिकने खामणां, करिये सवि नानार ॥२क्षामक आराधक कह्यो, अवर विराधक धार । ९।। अष्टम तप वळी किजीये सामीवच्छळ रंग ॥ लाभ अनंतो पामिये, वरिये शिवसुख चंग ॥१०॥ इण विधि पर्व आराधिये, थिर करी मन वच काय ॥ तो गुण माणक ३सेवधि, थइ आतम शिव जाय ॥ ११ ॥ (सं. १९५०) नवपदजीनो रासडो॥ ॥ पूनम चांदनी खीली पूरी अहीरे ॥ ए देशी ॥ समरी शारदा ४शारद विधुवदनी ५मुदारे, प्रणमी गुरुपद गाशुं नवपद महिमा सार ।। सेवो सेवो भवियां भावे श्रीसिद्धचक्रनेरे ॥ ए टेक ।। शाखी । पहेले पद अईन् प्रभु, त्रिभुवन तात ६भदंत ।। भवसागर तारण ७तरी नमीये देव महंत ॥ बीजे सिद्ध सुहंकर प्रणमो पूरण प्रेमथीरे, केवळ दर्शन केवळ ज्ञान अनंत उदार ॥ सेवो सेवो० ॥ १॥ शारखी। १ शरीर. २ खमावनार. ३भंडार.४ शरदऋतुना चंद्रसमान मुखवाली..५ हर्षे. ६ पूज्य. ७ नाव. ८ दातार. For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ . पूजासंग्रह त्रीजे पद सरि नमो जिन शासन आधार । दीपक सम जग दीपता, छत्रीश गुण भंडार॥ चोथे 'पाठक प्रणमो धादि मतंगज केशरीरे, सुंदर आगम ध्वायण दायक मुनि हितकार ॥ सेवो सेवो० ॥२॥ शाखी ॥ सकळ साधुपद पंचमे, वंदो भाव विशाळ ॥ साधे जे शिव मार्गने, ज्ञान ध्यान उजमाळ ॥ छठे इग दुग तिग चउ पण दश सडसठ भेदथीरे, नमीये दर्शनपद सघळा गुणनो शणगार ॥ सेवो० ॥ ३ ।। शाखी ॥ ज्ञान नमो पद सातमे, पंच एकावन भेद ॥ स्वपर प्रकाशक जे करे, ५जडतानो उच्छेद ॥ अष्टम पद चारित्र अनंतर कारण मोक्ष-रे, भजिये रिक्त करे जे अष्ट करम संभार ।।सेवो०॥४॥ शाखी॥ नवमे तप पद वदिये, रोग विधन अपहार । कर्म गहन वन दहन जे लन्धि सिद्धि दातार ॥ ए नवपदमां धर्मी पंच धरम चउ जाणियेरे, देव गुरुने धर्म इमां छे दो तीन चार सेवो० ॥ ॥५॥शाखी ॥ आसो चैतर मासमां, शुद सातमथी सार । आंबिल नव दिन कीजीये, पडिकमणां बे वार । पडिलेहण तिम करिये देववंदन त्रण टंकनारे; जिन पूजन त्रण वेळा गुरणु दोय हजार ॥ सेवो० ॥६॥शाखी ।। साढाचार वरश लगे; त्रिकरण जोग समार || इण विधि तप आराधिये, तो तरीये संसार ।। श्री सिद्धचक्र प्रतापे कमळा विमळा पामियेरे, कहे मुनिमाणक पाम्यां जिम मयणा श्रीपाल ॥ सेवो सेवो भवियां भावे श्री सिद्धचक्रनेरे ॥ ७ ॥ (सं. १९५३) १ उपाध्याय.२ हाथी ३ सिंह. ४ वाचना आपनार, ५ अज्ञान. ६ समूह. ७ अग्नि. ८ लक्ष्मी . 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