Book Title: Pathya
Author(s): Punamchand Tansukh Vyas
Publisher: Mithalal Vyas
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020550/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न तु पथ्यविहीनस्य भैषजानां शतैरपि ॥ भारतीय चिकित्सा शास्त्र। विनापि भेषजैाधिः पथ्यादेव निवर्त्तते । व्यास पूनमचन्द तनसुख वैद्य, व्यावर-राजपूताना। For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीः ॥ पथ्य। [आरोग्य रहने का स्वाधीन उपाय] SSSS लेखकव्यास पूनमचन्द तनसुख वैद्य ।। "वैद्य गाइड," "आयुर्वेद में बुद्धि बढ़ाने का उपाय," HOW "पास गरिष्ट के प्रयोग और व्याख्या," "तात की OS: दवाये," "रीति रिवाज और स्वास्थ्य," "पानी लगने की बीमारी और संग्रहणी का इलाज," "रजस्वला सम्बन्धी बीमारिये और उनका उपाय," "रजस्वला के समय पालन करने योग्य प्रारोग्य नियम," श्रादि २ पुस्तकों के लेखक और हिन्दी वैद्य कल्पतरु के श्रानरेरी सम्पादकAll Rights Reserved. RSS69568965SSSSSSS प्रकाशक पं० मीठालाल व्यास, व्यावर-राजपूताना। (डाक व्यय चार आना 560686SSSSSSSSSSSSSSS ल्य रु०१) For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुद्रक-बाबू विश्वम्भरनाथ भार्गव, “स्टैन्डर्ड प्रेस," [रामनाथ भवन] इलाहाबाद। For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१] ॥ श्रीः । श्रीमान् महता चिमनसिंहजी साहब, रईस, और म्युनिसिपल कमिश्नर, व्यावर। महोदय, स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकें लिखने की अभिरुचि श्राप ही की कृपा से उत्पन्न हुई थी, प्रारम्भ में श्राप ही ने ऐसी पुस्तके लिखने के लिये हमें उत्साहित किया था, और यह भी आप ही की शुभ प्रेरणा का परिणाम है कि इस समय तक आरोग्य रक्षा की कई उपयोगी पुस्तक निकल चुकी है और जनता द्वारा पसन्द की गई हैं। अतः भाप के इन आभारों को ध्यान में रख कर बनुन कामय से इच्छा थी कि सर्व साधारण के उपयोग में प्रान्ने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई पुस्तक आप की सेवा में अर्पण की जावे। अस्तु यह ‘पथ्य' प्राज आप की सेवा में भेट किया जाता है, स्वीकार कीजिये । यह पथ्य के रूप में सर्व साधारण के लिये हित कर है । आशा है कि आप को अपनी इच्छाओं की पूर्ति होती देखकर सन्तोष होगा। व्यास पूनमचन्द तनसुख वैद्य For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका। H ARE स रोग्य वर्धक साधन और पथ्य की आवश्यकता र प्रत्येक व्यक्ति को रहती है, परन्तु यह जान कर दुःस्त्र होता है कि जनता का बहुत बड़ा समुदाय इस विषय में आजकल एक दम अजान है। अजान ही नहीं किन्तु ऐसे मिथ्या विचार भो उनके हृदय में जड़ जमा बैठे हैं जो उल्टे अपथ्य के रूप में शरीर को हानि पहुंचाते हैं। आजकल पथ्य और उसके नाम से व्यवहार किया जाता है वह लाभ के स्थान में हानि ही अधिक पहुंचाता है, यह अनेक बार अनेक स्थानों पर सिद्ध हो चुका है । लोग वास्तव में पथ्य की असली बातें जानते तो नहीं और जो कुछ मन में ठोक अँचा, वा परम्परा से सुन लिया, उसी को 'ठीक' पध्य मान बैठते हैं और फिर कष्ट उठाते हैं। प्रारोग्य रहने का लामा अाधार पथ्य ही पर है और बोमारी में तो इसकी उपकारिता और आवश्यकता और भी बढ़ जाती है पर इसका बराबर पालन न करने से अनेकों को अपने ही हाथो दुःख भुगतना पड़ता है। और चिकित्सा अच्छी होने पर भी कारगर नहीं होती। प्रायः देखा गया है कि लोग बीमार होने पर चिकित्सा के लिये सैकड़ों खच करते हैं, नामी २ वैद्यों को बुलाते हैं, और अच्छी से अच्छी दवा लेने का प्रबन्ध करते हैं, पर केवल योग्य पथ्य की कमी और उस पर पूरी आस्था न रखने से वे लास नहीं उठाते, और बहुत दिनों तक बीमार रहकर चिकित्सक के सारे प्रयत्नों को बिगाड़ देते हैं। वैद्य कितनी ही चिकित्सा करे, पर यदि रोगा For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्य न रखे तो उसे कुछ भी लाम नहीं होता। दवा तो दो चार रत्ती ही होती है, पर कुपथ्य उसकी अपेक्षा न जाने कितने गुना अधिक कर लिया जाता है। फिर दवा कारगर हो भी तो कैसे हो? चिकित्सा का पहिला पाया पथ्य है। हमारा निजका अनुभव है कि कितने ही रोगी ओषधि से नहीं किन्तु केवल पथ्य की कृपा और प्रताप से प्रारोग्य हुये हैं और अब तक जीवन का आनन्द भोग रहे हैं। और इधर कितने हो रोगी बढ़िया २ औषधिये सेवन करके भी कुपथ्य के कारण नीरोग नहीं हुये, तथा बीच २ में अनेक बार पोछे उथल गये, और अन्त में असाध्य अवस्था में पहुँच गये। कितने ही रोगों वैद्य के यता देने पर भी मना की हुई वस्तुयें खा जाते हैं, वा मन चाहा व्यवहार करते हैं, जिससे उन्हें शीघ्र आरोग्यता नहीं मिलती। वे डर से अपने कुपथ्य का हाल भी यथा समय नहीं कहते, और उससे विशेष कष्ट उठाते हैं । पर बहुत से रोगी ऐसे भो देखे गये हैं जो वैद्यजो की आज्ञा को परमेश्वर की प्राज्ञा मान कर उनके आदेश के विरुद्ध कुछ भी नहीं करते और उसी से वे आरोग्य भी शीघ्र हो जाते हैं । अतः स्वास्थ्य की इच्छा रखने वालों को चिकित्सक की इच्छा और आदेशा. नुसार यथोक पथ्य का पालन अवश्य करना चाहिये । और यदि कभी भूल से कुपथ्य हो भी जाये तो उसे छिपाना नहीं चाहिये किन्तु अपने चिकित्सक को उसकी सूचना अवश्य कर देनी चाहिये जिससे समय पर उसका योग्य प्रतिकार किया जा सके। पथ्य की महिमा तो लोगों को शात अवश्य है, पर उस पर दृढ़ 'श्रास्था' भनेको को नहीं होती है, जिसका एक मात्र कारण यह है कि वे स्वयं पथ्य सम्बन्धी जानकारी नहीं रखते और इसी से वे कुपथ्य से न बच कर प्रायः कष्ट उठाते हैं। For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीमारी में तो चिकित्सक कुछ पथ्य सम्बन्धी आदेश कर भी देते हैं पर तन्दुरुस्ती में पथ्य का पालन किस प्रकार करना चाहिये इस की जानकारी नहीं मिलती । बीमारी में भी वैद्य को इतना अवकाश नहीं होता कि वे प्रत्येक बात के लिये एक एक रोगी को व्यौरेवार समझा। इसके लिये तो मोटी २ बातें स्वयं रोगी वा उसके घर वालों ही को शोत रहनी चाहिये। परन्तु ऐसा न होने के कारण बहुत बार रोगो अपनी ही समझ के अनुसार कार्य करते हैं। जो बहुत करके कुपण्य में सहायता देने वाले होते हैं। हिन्दी साहित्य में सर्व साधारण को जानकारी पैदा करा देने वाली ऐसी पुस्तके नहीं हैं कि जिनसे वे स्वयं समझ कर लाभ उठा सके । कई शाखीय पुस्तके हैं भी तो कटु, तीक्षण, तिक, मधुर, आदि वैज्ञानिक शब्द गुणों के सम्बन्ध में लिखे रहते हैं, जो वैद्या के अतिरिक सर्व साधारण के लिये विशेष उपयोगी नहीं होते हैं। अस्तु! बहुत समय से इस बात की आवश्यकता प्रतीत होती थी कि सर्व साधारण जिससे पथ्य सम्बन्धी प्रावश्यक मोटी २ बाते सहज में जान सके इसका प्रयत्न हो। हमारे मित्रों ने इसके लिये एक पुस्तिका लिख देने के लिये हमसे बहुत समय पहिले ही अनुरोध किया था, परन्तु चिकित्सा के कार्य के आगे इतना अवकाश नहीं मिला कि अब से पहिले यह पुस्तक उपस्थित की जा सकती । इस पुस्तिका का प्रारम्भिक अंश कुछ वर्ष पहिले “पथ्य और उस की आवश्यकता" के शीर्षक से 'सुधानिधि' में प्रकाशित कराया गया था, पर अब तक यह अपूर्ण ही रहा। हाल में इसका कुछ और अंश 'हिन्दी वैद्यकल्पतरु' में भी निकाला गया और लोगों ने उसे बहुत पसन्द भी किया तथा सम्पूर्ण पुस्तक प्रकाशित कर देने के लिये ताकीद भी की, तदनुसार For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनकी इच्छा पूर्ति के लिये यह 'पथ्य' हिन्दी जनता के सामने उपस्थित किया जा रहा है। आशा है लोग इससे जानकारी प्राप्त कर यथा अवसर लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे। इस पुस्तक में शास्त्रीय कठिन बातें छोड़ दो गई हैं, तथा साधारण अवस्था में रोगो को स्वयं जितने ज्ञान की आवश्यकता होती है उतना हो विवेचन किया गया है, क्योंकि विशेष लिखने से विषय कठिन हो जाता जो सर्व साधारण के काम का नहीं होता। यह पुस्तिका विशेष कर उन्हीं लोगों के लिये लिखो गई है जो इस विषय में कुछ भी जानकारी नहीं रखते, और इसी से कई स्थानों पर आवश्यक बातो को पुनरुक्ति भी करनी पड़ी है। आशा है कि साहित्य के मर्मज्ञ इसके प्रति अनुचित विचार न करेंगे। इस पुस्तक का उपयोग कर नीरोगावस्थामें-उसी प्रकार बीमारी में तथा वैद्य और बीमार दोनों ही समान रूपसे लाभ उठासकेंगे। बीमारी में इस पुस्तकके पढ़ते रहनेसे रोगोको सहसा कुपथ्य करने की इच्छा उत्पन्न हो नहीं होगो, तथा उसके लिये कौन वस्तु पथ्य है और कौन अपथ्य, उसे वह स्वयं ही जान लेगा और उसी के अनुसार चलने के लिये उत्साहित भी होगा। वैध को भी हर एक बात समझाने के लिये अपना बहुत सा समय खर्च नहीं करना पड़ेगा। केवल उक रोगो के लिये पथ्य सम्बन्धी कोई विशेष प्रावश्यक व्यवस्था देने की कोई होगी वही उसे बता देनी पर्याप्त होगी रोगी इल पुस्तक में उसका भी नोट कर अन्यान्य बातों के साथ २ उसे भी याद रख सकेगा। और उनके अनुसार चल सकेगा। वैद्य को निश्चिन्तता रहेगी कि रोगो इस पुस्तक द्वारा सचेत रहकर पथ्य में कोई गड़बड़ अजानमें नहीं कर बैठेगा और उससे उसे आराम For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होने का अधिक विश्वास रहेगा। अस्तु आशा है यह पुस्तक रोगी और चिकित्सक दोनों ही के लिये लाभ दायक होगी और वे इसका लाभ उठाकर श्रारोग्यता के उपायों की वृद्धि में सहायक होंगे। इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिये हमें अपने मित्र श्रीमान् सेठ पूसामल जी पोदी से आर्थिक महायता मिली है एवं इसके प्रकाशित होने के पहिले ही अनेको ने इसके ग्राहक बन कर इस पुस्तक की उपयोगिता की कदर की है अतः हम उनके प्रति कृतज्ञता प्रकाश करते हैं। ब्यावर व्यास पूनमचन्द तनसुख वैद्य, ७८ । पौषबदी २४ आनरेरी सम्पादक --हिन्दो चैट. कल्पतरु For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'पथ्य' का सूची पत्र । विषय पृष्ट संख्या श्रारोग्य रहने का स्वाधीन उपाय पथ्य की महिमा पथ्य रखने की आवश्यकता यही पथ्य नहीं कहलाता पथ्य पर श्राज कल की श्रद्धा ... पथ्य रखने का श्राविकार भारत में हुआ है रोग दूर करने में पथ्य ही प्रधान साधन है बीमार भी पथ्य नहीं रखते आज कल के पथ्य से लोग मयभीत हो गये हैं अपढ़ औद्यों ने पथ्य का आतङ्क फैलाया है भयानक पथ्य पथ्य के सम्बन्ध में बुरे भाव फैल गये हैं पथ्य के प्रबन्धक पथ्य में अनुचित हस्तक्षेप ... बताये पथ्य पर लोग चलते ही नहीं पथ्य पर फिर श्रद्धा रखी जावे पथ्य के अम्बन्ध में कुछ (७५) स्मरण रखने योग्य वचन १७ पथ्य की शास्त्रीय प्रशंसा पथ्य सम्बन्धी जानने योग्य कुछ बातें पथ्य के मूलद्रव्य-पदार्थ-कैसे हो; ... ... पथ्य भले प्रकार तैयार किया जावे बनाया जावे ... 122800 m Gon c ww www For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय पृष्टसंख्या पथ्य हमेशा नियत समय पर देना चाहिये ... ३१ पथ्य नियत परिमाण में दिया जावे ... पथ्य के समय रोगी का चित्त शान्त रहे वैसा उद्योग हो पथ्य देने का ढङ्ग पथ्य सम्बन्धी कुछ (५४) नोट .... नीरोगावस्था में पथ्य (५८) विषयों पर उपदेश ... बीमारी में पथ्य सामान्य पथ्य सर्व ज्वर मलेरिया ज्वर-मौसिमी बुखार मच्छरों से बचने के उपाय निकाला-मधुर ज्वर सन्निपात ज्वर न्यूमोनिया-गुजराती पुराना ज्वर-जीर्णज्वर ज्वर-निर्बलावस्था ज्वर में उपद्रव अतिसार आम की दस्ते :::::::::::::: अजीर्ण मन्दाग्नि तथा संग्रहणी (पानीलगने कीव्याधिकापथ्यापथ्य) ६४ मसा-अर्श सर्दी-जुखाम काल श्वास क्षय For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय पृष्ट संख्या १०६ नकसीर पाण्डु रोग यकृत रोग उदररोग, शोथरोग, जलन्धर रोग मेद रोग श्राम वात वात व्याधि रकविकार ( दाद, पांच, खाज) कमी सूजाक गर्मी प्रदर कुसुवावड़-गर्भपात सुवावड़-प्रसूति कब्जी मलावरोध नाशक कुछ सौम्य औषधिय धातुस्नाव, निर्बलता, स्वमदोष बालकों का पथ्य छूत की बीमारिये 40 इनफ्लुन्जा शीतला ओरो-बोदरी खुल खुलिया-कुकर खांसी रोग निबलावस्था - ~ For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४] पृष्ट संख्या विषय दूध चावल गेहूं १५३ શ્વર १५५ पप साबूदाना बाजरी जवार १५६ १५७ मकी १५७ जव १५८ मोठ चक्ला तुर कीदास उड़द चना सेके हुये धाम्य (फूली, पानी, परमल, माडवा, ... मुरमुरे, आदि) अंगार, बटिया, रोटरो, रोटा, पुड़ी, सोगरा, खाखरा, बेसड़ की रोटी, मिस्ठीरोरी, बेड़ीरोटी, खागा ... पटोलिया दाल दलिया थूली खिचड़ी घाट खोच खारिया For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय पृष्ट संख्या १६६ बेसन मैदा लुखी चोपड़ना घत तैल नमक लाल मिरच हींग गर्म मसाला पाक पोदीना "राधनिया १७७ २७८ खाँड खटाई दही छाछ नीबू भालू बुखारा काचरी इमली प्रशंवला प्राचार कैरौंदा For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय पृष्ट संख्या अानार दाने कठोरी काँजी साग बड़ी पापड़ चंदलिया मेथी हरी जिमीकन्द कोला वृन्ताक तोरई भिंडी परवल बथुत्रा भालू करेला मोगरी गवार फली प्रवर्ती रतालू गाजर छोला (कचा चना) For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय मटर बालार पालक चचलो की फली मतीरा पाल पोई गोभी कोदा लहसुन दाणा मेथी कर सागरी कुमटिया क्वारपाठा सहजने की फली टमेटा कढ़ी गट्टा हरेफल नारंगी दाडिम OM २७२ ६४ २०५ २०५ केला श्राम कैरी २०६ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृष्ट संख्या २०७ विषय खरबूजा जामुन बेर ... ककड़ी बालम ककड़ी काचरा सिंघाड़ा नासपाती सीताफल जामफल एरण्ड ककड़ी घीयातोरुई अंजीर सहतूत सकरकन्द सूखे फट्स बादाम पिश्ता काजू २१२ छुहारे पिण्ड खजूर किसमिस मुनक्का दाख चिरञ्जी अंजीर २१२ ... २१३ २३ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृष्ट संख्या २१४ २१४ ४ बिषय मूंगफली अखरोट नारियल-गिरी मिठाई मावे की मिठाई मैदे की मिठाई बेसन की मिठाई क्षार ... इलायची पान ... वायु का पथ्या पथ्य (वायुकारक तथा वायुनाशक ) पित्त का पथ्यापथ्य (पित्तकारक तथा पित्तनाशक) फका पथ्यापथ्य (कफकारक तथा कफनाशक ) भारी-देर से पचने वाली वस्तुये... हलको-जल्दी पचने वाली वस्तुयें बसन्त ऋतु में पथ्यापथ्य ग्रीष्म ऋतु में पथ्यापथ्य वर्षा ऋतु में पथ्यापथ्य शरद ऋतु में पथ्यापथ्य सर्दी की हेमन्त ऋतु में पथ्यापथ्य स्वच्छता जल ... For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) विषय पृष्ठ संख्या जल के सम्बन्ध में आयुर्वेविक श्रादेश वेगधारण २४१ दांतन तैल मर्दन व्यायाम स्नान हवा खाने जाना सोना-निद्रा शहद दवाओं पर पथ्य ... इलाज किस बैद्य से कराना चाहिये घड़ी २ इलाज बदलना बुरा है ... देशी खाद्य पदार्थ ... हमारी अन्य पुस्तके For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'पथ्य ।' ( आरोग्य रहने का स्वाधीन उपाय ) 13 नीरोग रहने की पहली सीढ़ी - साधन - एक 'पथ्य' ही है। यह केवल हमारे पूजनीय श्रायुर्वेद का ही सिद्धान्त नहीं है; किन्तु जगत् के सभी चिकित्सातत्वज्ञ इस बात की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं। इसमें किञ्चित् भी सन्देह नहीं । भारतवासियों में आज 'पथ्य' के सम्बन्ध में जो इतने ऊंचे भाव हैं, उसका कारण केवल अन्ध परम्परा अथवा झूठी श्रद्धा और निरा विश्वास ही नहीं है, किन्तु यह सत्य है कि मनुष्य के स्वास्थ्य सुधार के लिये 'पथ्य' से सरल और कम खर्च का तथा अपने स्वाधीन कोई साधन अथवा उपाय तक नहीं जाना गया है । फिर यदि पथ्य- परहेज- से होने वाले पूर्व लाभों के कारण हम भारतवासी शारीरिक अव्यबस्था के 'सुधार में इसकी विशेष आवश्यकता समझें तथा उसके प्रति इतना अधिक मनोयोग प्रगट करें, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । पथ्य की महिमा - आयुर्वेद में तो पथ्य की बड़ी प्रशंसा की गई है। यह रोग दूर करने में औषधियों से भी अधिक गुण वाला और प्रभाव शाली समझा तथा माना गया है। हमारे यहां रोग नाश करने के उपायों में स्वास्थ्य बनाये रखने अथवा पीछा स्वास्थ्य प्राप्त करने में यह सिद्धान्त वाक्य माना गया है, कि "बिना श्रौष For Private And Personal Use Only " Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धियों के सेवन किये भी हम लोग केवल एक पथ्य के द्वारा ही फिर से नीरोगता प्राप्त कर सकते हैं ; परन्तु यदि औषधियों का सेवन तो बहुत करे किन्तु पथ्य को न रखे तो किसी दवा से भी आरोग्यता-तन्दुरुस्ती प्राप्त करना बहुत ही कठिन अर्थात् दुर्लभ होता है।" पथ्य रखने की आवश्यकता मनुष्यों को पथ्य रखने की आवश्यकता प्राकृतिक है । शारीरिक बिगाड़ जिसे हम भाषा में 'रोग' नाम से पुकारते हैं, वह तथा मनुष्यों की प्रकृति अनेक प्रकार को होती है । खान, पान, रहन, सहन, प्रत्येक का भिन्न २ प्रकार-रुचि का होता है। अतः देश, काल, रूढ़ि और स्वभाव आदि सब एक समान न होने से सभी अवस्थाओं में सब के लिये एक ही प्रकार का कोई नियम उपकारी नहीं ठहर सकता है। अस्तु मनुष्यों को भिन्न भिन्न अवस्था में भिन्न भिन्न प्रकार से खान, पान, आदि सेवन करना उचित होता है, क्योंकि जो वस्तु एक को लाभकारी होती है, वह कभी कभी दूसरों को मुआफिक नहीं आती है। एक वस्तु से एक रोग को शान्ति मिलती है, और दूसरों की उसले वृद्धि होती है। शीत देश से ऊपण देश वासियों में हर बात में भिन्नता रहती है। धनाढया और गरीबों के खान, पान और रहन, सहन में अन्तर होता है, ऐसे ही गाँवों की अपेक्षा नगरवासियों में और मांसाहारियों की अपेक्षा बनस्पतिसेवियों में भिन्नता रहती है, तथा शीत की अपेक्षा ग्रोप्म में जो भेद मालूम पड़ता है, उससे निश्चय होता है कि भिन्न भिन्न अवस्थात्रा में भिन्न भिन्न प्रकार से पथ्य रखने को आवश्यकता मनुष्य जाति को है। For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३ ) यही पथ्य नहीं कहलाता यद्यपि आज पथ्य की व्याख्या हम कुछ और ही समझे बैठे हैं ; तैल, गुड़ खटाई से बचना और खारे खट्टे का उपयोग न करना मात्र ही पथ्य परहेज कहलाता है; परन्तु वैद्यक शास्त्र में पथ्य का इतना संकीर्ण अर्थ वा ऐसा विंगड़ा हुआ भाव नहीं है जितना कि आज के अकसीर(?)धों से इसके प्रति हमें प्रायः उपदेश मिला करता है । बैदक शास्त्र में पथ्य की व्याख्या इस प्रकार हुई है, हिन्दुओं के आदर्श ग्रन्थ चरक संहिता में कहा है कि पथ्यं यथो न पेतं यच चोकं मनसः प्रियम् । यचा प्रियमपथ्यंञ्चानि नियतं तन्न लक्षयते ॥ जो २ वस्तु प्राण यात्रा-जीवन निर्वाह के लिये उपयोगी हो और मन को प्रिय हो वे सब पथ्य हैं। अर्थात् मनुष्य का शरीर जिस अवस्था में जिस प्रकार के रहन सहन और खान पान आदि से तन्दुरुस्त होता हो, वा रह सकता हो, उसी रीति के उपयोग ही को पथ्य कहते हैं और इससे विपरीत जिससे शरीर का स्वास्थ्य बिगड़ने की सम्भावना हो वा बिगड़ा हुआ हो, वह सुधरने के स्थान में अधिक बिगड़े उसे अपथ्य कहते हैं। पर हम लोग ऐसे उन्म भावों को लेकर पथ्य रखते हो. ऐसा क्वचित ही कहीं दृष्टि गोचर होता है, सचमुच इस विलासितापूर्ण समय में लोगों को शास्त्रीय पथ्य से रुचि भी नहीं रही है। पथ्य पर आजकल की श्रद्धा आजकल हम लोग पथ्य करते हैं, वह उसके गुणों की श्रद्धा के कारण यथोक विचार से नहीं करते हैं ; किन्तु उसके अपूर्व For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाभों का उपदेश हमने पूर्वजों से सुन रक्खा है उससे, अथवा पुराने समय से अपने कुटुम्बियों में इसके पालन करने की रूढ़ि प्रचलित रहने से, तथा श्रायुर्वेद में इसकी लुभाने वाली प्रशंसायें जो आजकल कभी किसी अवसर पर केवल प्रमाण के तौर पर सुनाई पड़ती है, उससे पथ्य के शरण में हम लोग जाते हैं। (भले हो जाय)-परन्तु केवल खान, पान का अधूरा और वह भी इतना संकुचित कि जो कभी कभी तो उल्टा अपथ्य के रूप में अपना प्रभाव करता है, असल में वास्तविक पथ्य नहीं है ; किन्तु पथ्य के नाम से केवल शरीर को एक प्रकार श्रावश्यक वस्तुओं के उपयोग करने से भी वंचित रखना, और वृथा ही कष्ट देना है। पथ्य का आविष्कार भारत में हुआ है___ हम लोगों के लिये यह एक प्रसन्नता की बात है कि पथ्य की मुख्य खोज हमारे इसी देश में हुई है । इस विषय पर जितना प्रकाश श्रव तक संसार में हुआ समझा जाता है, उसमें हमारे ऋषि प्रणीत आयुर्वेद का नाम अग्रणीय है। ( दवाई के साथ सिद्ध पथ्य आयुर्वेद का महान गौरव है, जगत् के किसी भी चिकित्सा शास्त्र में इस भांति पथ्ययुक्त भैषज्य नहीं देखा है। पथ्य प्रयोग के विषय में पाश्चात्य चिकित्सा आयुर्वेद से कहीं नीचे है यह बात ज़ोर से कही जा सकती है-मद्रास वैध सम्मेलन के सभापति के वाक्य-)। इस विषय में हमारे यहां साधारण वस्तु के लिये इतना अनुभव किया गया है, कि आज के उच्च कोटि के वैज्ञानिक और प्रथक्करण करने वाले भी उस तह तक नहीं पहुंच सके हैं। किन्तु खेद है कि हम आयुर्वेद के भक्त बनते हुये भी अज्ञान के कारण उचित और आवश्यक पथ्य को न रख कर अपने For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाथों अपने आयुर्वेद की अप्रतिष्ठा के कारण बनते हैं और उसे नीचा दिखाने का अपयश लेकर अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ते हैं। रोग दूर करने में पथ्य ही प्रधान साधन है__ इस सुधरे हुये ज़माने में रोगों को दूर भगाने के लिये लगभग ७५००० औषधियों का आविष्कार एक अकेली एलोपेथी चिकित्सा में निकल चुका है ऐसा पाश्चात्य डाकृरों का कहना है । इसके अतिरिक न जाने वीसियों प्रकार की नवीन चिकित्सा पद्धतियां भी और प्रचलित हुई हैं। औषधियों के साथ गऊलोचन, काडलिवर आइल, बोवरील, लोबीझ एक्स्ट्राकृ श्राफमीट, चिकिनसोप, हड्डियों से निकाला हुआ फासफोरस, जानवरों के पेट में से आया हुआ पेपसिन, कहां तक नाम ले प्राणी यन्त्रज प्रणाली Animal Organo therrapy में ऐसी ही औषधं खासकर उपयोग की जाती है, एडरिनालिन Adrenalin, सेरेविन एण्ड मायेलिन Cerebrine & Myelin सेरेबिन Cerelbrin, एकस्ताक अव डिउडिनाल मेम्ब्रेन Extract of Duodenal Membrane, इनफन्डिबुलेर एकस्टाक Infundibular Extract मिउसिन Mucin, एभेरिवान एकटक (Ovarian Extract टाइयेलिन Ptyalin, रेड बोनम्यारो एकस्तै कृ Red Bone Marrow Extract स्पार्मिन Spermin थाइमस ग्लान्ड Thymus gland थाइरेउड ग्रन्थि के प्रयोग-Thyroid Glandd Preparations, इत्यादि ग्लानिकारक पदार्थों का भी व्यवहार किया जाने लगा है, फिर भी रोगों की संख्या उल्टी बढ़ते बढ़ते दो हजार के ऊपर तक पहुंच गयी है। पर शोक है, कि हम यह सब जानते हुये भी इसके प्रतिकार For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का सच्चा उपाय नहीं हूँढ़ते हैं। इसके लिये हमें कहीं दूर नहीं जाना है, कई वर्षों तक जांच पड़ताल करने की आवश्यकता भी नहीं है, है तो केवल यही है, कि अपने प्राचीन ग्रन्थों का अनुशीलन करें। हमारे आयुर्वेद में इसका उपाय बड़ा सीधा और सरल बताया गया है। पर आज तो 'घर आया नाग न पूजिये, बाँबी पूजन जाय ।' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। फिर हजार कोई कुछ कहे उस पर विश्वास ले आना कहां? आप सच मानिये इस सिद्धान्त में कभी विलक्षणता मालूम नहीं पड़ेगी। यदि उचित और आवश्यक पथ्य का प्रचार औषधियों के स्थान में बढ़ाया जावे, और लोग इसके प्रति बनावटी नहीं किन्तु सच्चा अनुराग रखें तो यह बात सत्य है, कि जगत् के प्राणियों को प्रकृति के विरुद्ध बारम्बार मिक्सचरों से अपने पेट को अस्पताल बनाना नहीं पड़े । धन धर्म की रक्षा होगी, और द्यौ और डाकरों को चिकित्सा सम्बन्ध में काम करने को बहुत कम रह जायगा साथ ही नेताओं को हमारे देश की तन्दुरुस्ती की इस कङ्गालो के लिये इतना चिन्तित न होना पड़ेगा। नैव लोलिम्बराज जी कवि ने ठीक ही कहा है कि"पथ्ये सति गदार्तस्य किमोषध निषेवणैः' अर्थात् पथ्य का सेवन किया जाय तो औषधियों के उपयोग करने की आवश्यकता हो न पड़े। तात्पर्य यह है, कि पथ्य रखने से शरीर में सहसा कोई बिगाड़ नहीं होता और यदि कदाचित् कभी कुछ हो जाय तो शोध हो अपने आप पथ्य से दूर हो जाता है ।अतः औषधियों की तब आवश्यकता ही नहीं होती है। बीमार भी पथ्य नहीं रखते शास्त्र में इसके सम्बन्ध में चाहे कुछ ही क्यों न लिखा रहे, For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परन्तु स्वास्थ्यावस्था की कौन कहे, लोग बीमारी में भी पथ्य बराबर नहीं रखते हैं। पथ्य की सलाह देने वाला आज शत्र में गिना जाता है । रोगियों को आदेश करते समय विचारे वैधों को जिस भाव का सामना करना पड़ता है वह भगवान ही जानता है । यधपि रोगियों को उचित खुराक से वञ्चित रख कर बै. उस वस्तु का स्वय लाभ उठाने वा उपभोग करने की इच्छा तो परोक्ष रीति से भी नहीं करता है और न पथ्य नामक व्यवस्था जो आयुर्वेद में वर्णित हुई है, वह उन लिखने वाले महानुभावों ने कोई स्वार्थान्धपन से की है, फिर भी पथ्य के लिये जान बूझ कर आज भी उपेक्षा-लापरवाही-को जाती है, उससे सचमुच 'अपने पैर अपनी कुल्हाड़ी' वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। आजकलके पथ्यसे लोग भयभीत होगये हैं___ आयुर्वेद में इसकी खूब चर्चा रहने के कारण वर्तमान बीसवीं शताब्दि के मनुष्यों को प्रसन्न होना तो दूर रहा वरन् कितने ही-नहीं ! नहीं !! स्वयं आयुर्वेद के भक बने हुये लोग भी-पथ्य के नाम से क्लषित है, और इसी कारण आयुर्वेद द्वारा चिकित्सा कराने से उदासीन भी हैं। भलाई के स्थान बुराई वाली अवस्था हुई है। हम लोगों की ना समझी वा विचारपूर्वक ध्यान न देने के कारण अवस्था यहां तक पहुंची है, कि दूसरे चिकित्सा शास्त्र भी आयुर्वेद को अल्पज्ञता के कारणे में एक कारण इसे भी और-वह भी मुख्य गिनने लगे हैं; और अवसर प्राप्त होने पर अपने विचारों को दर्शाते हुये पथ्य को अोट में आयुर्वेद पर कटाक्ष करते हैं। महानुभावों, ! पथ्य के नाम से आज जो घणा की जाती है, उसमें आयुर्वेद शास्त्र का कोई कुसूर नहीं है। वैधक में ऐसा For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहीं भी उपदेश नहीं है कि जिसमें पथ्य की अनुचित स्वेच्छाचारिता अाज की समान गिनी गयी हो । वरन् इस अवस्था के उपस्थित करनेवाले इस समय के आयुर्वेद के उपासक कहलानेवाले ही एक संख्या के वैध है, जिन्होंने अपने बटुओं की कृपा से आयुर्वेद के प्रेमियों में इसका अातङ्क खड़ा कर दिया है। अपढ़ वैद्यों ने पथ्य का आतङ्क फैलाया है आतङ्कका कारण यह नहीं कि पथ्य रखने से रोगियों को अपने जोवनमें हानि उठानी पड़ी हो वा रोग शान्त करने में आपत्ति का सामना करना पड़ा हो; परन्तु बात कुछ और ही है। इधर पिछले वर्षों से वैद्य कौन है वा कौन होना चाहिये और किसकी चिकित्सा करानी आवश्यक है, इसका महत्व हम भूल बैठे हैं। ___ इसमें संशय नहीं कि राज्य की रोकटोक न रहने से अाजकल अनेक नामधारी चिकित्सक बन बैठे हैं, जो खाद्याखाद्य पदार्थों की पूरी जानकारी नहीं रखते हैं और अपनी अनभिज्ञताके कारण संशय ही संशय में रोगी को कई एक उपयोगी और लाभकारी वस्तुओं तकके सेवन करने की मनाई पथ्यके नामसे करदेने में ही अपना भला समझते हैं । जिससे रोगो को इधर तो बीमारी से भूख नहीं लगती है और हरदम अरुचि बनी ही रहती है और वह उससे दिन प्रति दिन दुर्बल वा शक्ति- हीन होता चला जाता है, उधर वैद्य जी के ज्ञान की अपूर्णता के दोष से पथ्य की एकबारगी कठिनाई और भी अन्न तथा बलदायक पदार्थ पहुंचने में बाधा डाल देती है। यहां तक कि कई वस्तुएं उस रोग में लाभकारी होने पर भी उनसे उसे दूर रहना पड़ता है, जिससे For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूरा स्वास्थ्य प्राप्त करने में देर लगती है और बीमारी के दिन बड़ो बेचैनीसे निकालने को उसे लाचार होना पड़ता है। यही एक मुख्य कारण है, कि जिससे सारे देश में पथ्य का आतङ्क छोटे और बड़ों में अधिक से अधिक बढ़ता जा रहा है और इससे वैधों की चिकित्सा भी घट रही है। अब लोगों का यह साधारण विचार होरहा है कि वैद्यों में पथ्य की कठिनाई पहले दरजे की होती है और बिना कोई खास कारण उपस्थित हुए वे अब वैधो से चिकित्सा करानेमें प्रायः घबड़ाते हैं। भयानक पथ्य एक और भी कारण है कि अनेक "महावैद्य" अपने उपचारों से भी अश्रद्धा उत्पन्न कर रहे हैं। इस श्रेणी के लोग गिन्ती के कुछ निर्दिष्ट Certain प्रयोगों से जगत् भर की सम्पूर्ण बीमारियों के मिटा देने में अपने को प्रवीण Expert समझकर प्रत्येक रोग के लिये "मुह आने वाली" दवाइयों-पारा, रसकपूर, हिंगुल, भिलावां, हरताल, वा ताँवा आदि का उपयोग कराते हैं और अपना वा औषधका महत्व और गोप्यत्व अधिक बढ़ाने के लिये तथा अपने पथ्य सम्बन्धी ज्ञान के घाटे से वे सेवनकर्ता तथा उसके कुटुम्बियो को इतना भय में डाल देते हैं मेरी बतायी अमुक चीजों के सिवाय यदि कुछ भी मुह में डाल लिया तो अवस्था बिगड़ कर ऐसी और जैसी हो जावेगी और फिर कुछ भी उपाय न लगेगा। यह इन्हीं लोगों का सिद्धान्त वाक्य है कि “पथ्यं तु कठिनं वदेत्” और मनुष्य जीवन को बरबाद करने वाली औषधियों के लिये शायद इतनी कठि. नाई कुछ काम की होती भी होगी पर वे तो एक बार For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और कुटुम्बियों पराभूति बताने के उस गज़ब ( १० ) ही कोई वस्तु कई दिनों तक लगातार रोगी को लेने के लिये बाध्य कर देते हैं और वह भी बिना नमक (!) विचारा रोगो दुःखी होकर भी आरोग्यता की शुभ आशा से सब कुछ मानने के लिये तयार है। पर वास्तव में ऐसे उपचारों से उनका रोग हटता है वा नहीं यह तो भगवान ही जानते हैं। पर उनसे मिलने भेटने एवं बीमारी में सहानुभूति बताने के लिये आनेवाले मित्रों और कुटुम्बियों पर रोगो की दोनता तथा उस गज़ब के पथ्य का भयानकपन उनके दिलों में जादू का असर कर जाता है और इसकी जान कारी रखने वाले वे अपनी अवस्था में बिना विशेष लाचार बने कभी भी कहने को इस आयुर्वेद के ट्रीटमेण्ट में पथ्य के वशीभूत बनने के लिये तैयार नहीं होते हैं। वे लोग यह जानने की आवश्यकता नहीं समझते-या उनको जताने का कोई साधन ही नहीं किया जाता है कि डाक्टरी के सिवाय अन्य जितनी चिकित्साएं आज कल होतो हैं, वे सभी आयुर्वेद को ही नहीं; किन्तु इसके आश्रय में अपना जीवन निकालने का प्रपञ्च करने वाली आयुर्वेद से भिन्न कोई दूसरी ही पैथी है। " इसके साथ ही एक बात यह भी है कि अच्छे की अपेक्षा खोटी और अचम्भे की बातें बहुत फैलती है; और यो पथ्य की जबरदस्ती लोगों के हृदय में दूर दूर तक जम जाती है। ___ जब रोग की बढ़ती मालूम होती है तब स्वास्थ्य के अन्य नियमों की ओर ध्यान न देकर और औषध प्रयोग और निदान में अपनी कमो न समझकर कई नीमहकोम अपना अपराध वा भूल बचाने का महत्व प्रकट करने के लिये बिना सच्चे प्रमाण और आधार के केवल अपथ्य For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) कर लेने के सम्बन्ध में उसे तथा उसके सहचरों परिचारकों को खूब फटकार बताते हुए यह निर्भम कहते हैं कि विना पथ्य में बिगाड़ किये ऐसा हो हो नहीं सकता, और अपना पल्ला छुटाने के लिये यहां तक कह बैठते हैं, कि “अब मैं इसकी चिकित्सा भी नहीं करता, तुम तो पथ्य को बिगाड़ लेते हो और मुझे बदनामी देने को तैयार हो । मैं यह नहीं चाहता तुम दूसरा प्रबन्ध करो।” उस समय वैध जो के इन वचनों से रोगी के घरवालों पर जो बीतती है उसे सारो उमर भूल नहीं सकते। विचारे जैसे तैसे उसे फिर मनाकर उससे चिकित्सा कराते हैं । यदि कहीं दैवयोग से आराम न हुआ तो वैध जो अपनी इस अप्रतिष्ठा को बचाते हुए यह प्रचार करते फिरते हैं, कि अमुक ने अपना पथ्य ठीक नहीं रखा, विगाड़ दिया, जिससे औषधि गुण न कर सको। इससे भी लोगों के मन में यह भाव बैठ जाता है, कि आयुर्वेद के पथ्य के बिगाड़ से इतना अनिष्ट हो सकता है और वे इससे यथा सम्भव दूर रहने का यत्न करते हैं। ऐसे ऐसे कई कारण उपस्थित होगये, कि जिनसे पथ्य का डर लोगों के हृदय में बढ़ता ही जाता है। अब इसके लाभ के स्थान में लोग समझने लगे हैं, कि यदि बी (?) के कहे पथ्य में कभी किंचित् भी भूल हो जाय तो महान् अनर्थ होजाना बहुत सम्भव है। इसी से अनेक लोग आयुवेद का महत्व जानते हुए भी चिकित्सा कराते भय खाते हैं, और अपनी आयु भर को सभी अवस्थाओं में निरोगता प्राप्त करने के लिये वैओं की शरण में नहीं पहुंचते हैं, यही नहीं अपने मित्रादिकों को भी अपना अनुगामी बनाने के लिये उनकी अस्वस्थता में सहृदयता के भाव से अपने मनोगत विचारों को प्रकट कर उनके भो हृदयों को निर्बल और शंकित करते रहते हैं। For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) पथ्य के सम्बन्ध में बुरे भाव फैल गये हैं__ अनपढ़ वैद्यों के अविचार और अनुचित कृत्यों से पथ्य के सम्बन्ध में जो बुरे भाव हम लोगों में फैल गये हैं, उनसे भी कहीं अधिक दोष और हानि स्वास्थ्य के उत्तम विचारों की कमी और मूर्खता के कारण हम सर्वसाधारण की इस ओर उपेक्षा की दृष्टि रखना समझनी चाहिये। आज जन साधारण यह बिलकुल भूल बैठा है कि पथ्य क्या होता है और कैसे करना चाहिये । इसके लिये सहृदयों को अफसोस तो यों हो रहा है, कि जिस विद्या का पहिले पहिल यहां प्रादुर्भाव हुआ है, भारत में जहां इतनी जांच पड़ताल कर खान पान और रहन सहन के लिये बारीको ढूंढ़ निकाली गयी है, जहां के लोग एक समय सब एक दम इसी के भक्त थे, वहां अाज पथ्य रखने वाले और उसकी व्यवस्था देने वाले दोनों को ही यह शोचनीय दशा हो गई है, कि जिससे आयुर्वेद की जो हानि होती है, वह तो एक ओर रही वरन् स्वयं उनको भी अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। फिर भी इसके सुधार की ओर ध्यान न पहुंचाना आश्चर्य से बढ़कर क्या कहा जा सकता है ? पथ्य के प्रबन्धक चिकित्सा संसार में प्रविष्ट रहते हम अपने अधिकार और ज्ञान का यह कह कर अनुचित उपयोग नहीं कर रहे हैं कि हम लोग सचमुच पथ्य रखना भूल गये हैं। अाज पथ्य की वह आदर्श प्रणाली न रहने से ही सैकड़े ५० की मृत्यु तो केवल इसकी गैर व्यवस्था से ही होती है। अनेक धनाढयों के यहां भी इसी कुव्यवस्था के कारण भूखों मरते प्राणान्त हो जाते हैं; और ठीक इससे उल्टा निम्न श्रेणी के लोगों के For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) बीमारों को तंगी रहते हुए भी अधिक खिलाकर बिना मौत मारते हैं । यह तो प्रति दिन का अनुभव है, कि समय पड़ने पर प्रायः सभी बीमार होने पर डाकुर वा वैद्य की सलाह तो लेते हैं, उन्हें फीस आदि देकर द्रव्य का भी खर्च करते हैं; परन्तु जिस पथ्य के आधार पर जीवन और लाभ हानि है उसकी सारी बागडोर बूढ़ी डोकरियों केही हाथ रहती है । चाहे चिकित्सक ने अमुक अमुक वस्तु सेवन करने वा श्राहार विहार करने की प्राज्ञा न दो हो; परन्तु स्वयं बीमार मनके वशीभूत वन कर छिपके अपथ्य कर बैठता है; और बुढ़ियां रोगी की इच्छा को घरौवा बताने के लिये अज्ञानतावश पूर्ण करने में सहायक होती है, और इस पर भी तुर्रा यह है कि वैध जी के पूछने पर कभी सच नहीं कहतीं, बरन् पथ्य का महत्व बतलाती हुई अपने को समझदार सिद्ध करती हुई सीधा मुह रख के उत्तर देती हैं कि "श्राप की आज्ञानुसार केवल दालका पानी ही दिया था, और कुछ भी नहीं दिया"। ऐसे झूठ बोलकर बिचारे वैद्यों और डाकृरों को ठग कर उन्हें विशेष परिश्रम और विचार में डालती है। भला जहां पथ्य के लिये इतनी अज्ञानता है, वहां रोगियों का कल्याण धुरन्धर वैद्यों की चिकित्सा होने पर भी कैसे हो? पथ्य में अनुचित हस्ताक्षेप रोगी को बिना इच्छा के उसके बन्धुगण विशेष कर स्त्रियां तो आग्रह करके कुछ न कुछ अधिक खिलाने में ही उसका भला समझती हैं । वे बिचारी अशिक्षा और स्वास्थ्य के नियमों और उसके लाभों की अनभिज्ञता के कारण यह नहीं समझती हैं कि इस थोड़ी सी वस्तु से ही कितनी हानि पहुंच सकती है। उनके सारे उद्योग और प्रयत्न की प्रसन्नता इसी में रहती For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है, कि रोगी कैसे ही कुछ भी अधिक खा ले, चाहे उसका परिणाम कैसा ही क्यों न हो, वे उस समय उसकी चिन्ता नहीं करतीं । उनका यह सिद्धान्त वाक्य है, कि "खाता पीता न मरे ऊंघतरा मरजाय।" मिलने जुलनेवाले भो मूर्खतावश इसी का उपदेश करते हैं कि दो ग्रास भी अधिक अन्न पेट में किसी भी प्रकार जैसे तैसे पहुंचा दिया जाया करे तो बहुत उत्तम । पर वे अपनी बुद्धि से इतना विचार करने का कष्ट भी नहीं उठाते हैं, कि यदि रोगी रुचि से खाय तो फिर बीमारी ही कैसी ? और बिना रुचि के पेट में डालना मानो मांदगी में मृत्यु का जल्दी आवाहन करने का उधोग करना है। ये लोग बारबार पूछ करके स्वयं नेधों को भी दिक करते हैं, और कई बार अपथ्य करने वाली वस्तुओं के लिये भो उनसे जबरन आज्ञा प्राप्ति के लिये भी भरसक प्रयत्न करते हैं। और रोगों के दुर्भाग्य से कभी कभी किसी न किसी रूप में थोड़ी बहुत सफलता इन्हें मिल हो जाती है। कहां । पथ्य की उपेक्षा तो हम लोगों के घरों में यहां तक को जाने लगी है कि स्पष्ट आदेश कर देने पर भी वो और डाकुरों के कथन का पूरा पालन नहीं हुआ करता है । चलते फिरते और अच्छी पाचन शक्ति वाले मनुष्य के पथ्य में यदि वैद्यकीय सलाह के उपरान्त थोड़ा बहुत अन्तर भी हो जाय तो उतना अनिष्टकारी नहीं होता है । परन्तु मृत्यु शय्या पर पड़े हुए मन्दाग्नि वाले निर्बल रोगी के पथ्य में यदि वैध की सूचना के विरुद्ध थोड़ा भी अन्तर किया जाय तो बहुत भयङ्कर है । अतः ऐसी अवस्था में तो वैद्य की श्राशा का पूरा पूरा पालन ही श्रेय है। पर अज्ञानी मनुष्य इस विषय में अपनी अधिक चतुराई का उपयोग कर उपचारक की सारी आशा को भङ्ग करके खेल बिगाड़ देते हैं । सैकड़ो और हजारों For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोमारी के खान, पान में ऐसी गलतियाँ और असावधानी देख कर चित्त को बड़ा हो खेद होता है। और परिचारको की बुद्धि पर दया आजाती है। खान, पान की इन भूलों से लापरवाही और अज्ञानता से अनेको अकाल मृत्यु को प्राप्त होगये, जिसके उदाहरण हमारे हो सामने नहीं वरन इसका व्यवसाय करने वाले सब के सामने बनते हैं। . बताये पथ्य पर लोग चलते ही नहीं___ यह कहते शोक होता है, कि लैद्यों की की हुई सूचनाओं पर यथोक्त अमल नहीं होता है, और चिकित्सक को रोगो के यहाँ से बाहर होने के साथ ही इस विषय के अनधिकारो होने पर भी घर के कुटुम्बी पड़ोसी और बूढ़ो विधवाएं सिद्ध वैद्य बन बैठती है। रोगी को जहाँ एक घुट उतरना भी कठिन और वह भो अनावश्यक होता है, वहां उसको डराके धमका के ज़बरदस्तो कर के भरा कटोरा गले में आँधाकर पेट में भरते हैं। कहो यह अपने हाथों कितना अनिष्ट होता है । मुह से बोलने की शक्ति रखने वाले तो फिर भा बड़े उद्योग से इससे थोड़ो बहुत रक्षा पा सकते हैं, ऐसा हम अनुमान कर ले परन्तु जब दूध मुंह बच्चों के साथ, जो बोलने की शकि नहीं रखते, इस प्रकार वर्ताव किया जाता होगा तब उनकी क्या गति होती है, यह तो भगवान ही समझते हैं। बच्चा ज्योही रोने लगा कि माता झट स्तन पान कराने लगती हैं, पर रोने का असली कारण जानने की दरकार नहीं होती। बच्चों को दूध अधिक पी लेने से ही अजीर्ण हुअा हो, दस्त लगते हो, वमन होता हो, उसी से चाहे वह रोता हो तौभी इनकी वहां परवाह कौन करता है ? अाज की|स्त्रियाँ तो केवल घड़ी घड़ी स्तनपान कराने में ही उनके पथ्य का बहुत बड़ा For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) नियम पालन कर लेना समझती हैं। फिर मृत्यु संख्या जो बढ़ रही है, उसके लिए और कारणों के खोजने की आवश्यता ही क्या है? ___ वैध जी बहुत विचार के पश्चात् पथ्य के लिये हज़ार कहें, लाभ बतावे, पर घर की स्त्रियाँ ही क्यों बूढ़े और जवान भी टस से मस नहीं होते हैं । दूध तो बुखार में चिकित्सक की पाशा मिल जाने पर भी अबलाओं के ख्याल से तो सब अवस्थाओं में जहर ही समझा जाता है। बर्फ के लिए तो कुछ पूछिये हो मत । ऐसे ऐसे पथ्य के सम्बन्ध में अब अनेक प्रकार से अन्धाधुन्धी होने लगी है। पथ्य पर फिर श्रद्धा रखी जावे । __ अब इसे और अधिक न बढ़ा कर यही प्रश्न करने की इच्छा होती है कि भला यह तो कहिये क्या इन्हीं विचारों को रखते हुए हम पथ्य की मनशा पूरी कर रहे हैं? क्या ऐसी अवस्था के लिये ही शास्त्रों में इस पर इतना विवेचन किया गया है ? यदि आप आज कल जैसा कि बर्ताव किया जा रहा है उसे ही पथ्य का सच्चा स्वरूप और लाभकारी मार्ग समझते हैं। तो आप सचमुच बहुत भूल में हैं। अतः यह अपने तथा अपने कुटुम्ब के कल्याण के लिये बहुत उचित और आवश्यक है कि इस सम्बन्ध में शास्त्र में जो आज्ञा है उसे ध्यान से पढ़ें, सुने और सुनावें और उसके अनुसार चलने के लिये दृढ़ चित्त हो; क्योंकि निरोग रहने के लिये पथ्य में ही सुधार करने की सब से बड़ी श्रावश्यकता हमारे धन्वन्तरि भगवान तक ने मानी है। केवल एक पथ्य के सहारे ही अनेक भयङ्कर रोगी बिना औषधों के भी आराम होते हमने अपनी आंखो देखे हैं। इसी लिए कहते हैं, कि अपने अपने घरों में आरोग्यता देवी की आराधना के लिये For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पभ्य को उस आदर्श प्रणाली को फिर से नियमित प्रचलित कर शोक सन्ताप से बचिये । साथ ही वैचों का भी कर्तव्य है, कि वे अनावश्यक पथ्य का वृथा बोझ डाल कर रोगी को निष्प्रयोजन बेचैन न बनाया करें ।नहीं तो अब समय ने पलटा खा लिया है, और वे अपने इन कृत्यों से आयुर्वेद की हानि कर स्वयं हास्यास्पद बनेंगे। पथ्य के सम्बन्ध में कुछ स्मरण रखने योग्य वचनः(१) इस संसार में पथ्य से बढ़कर आरोग्य देने वाली कोई भी वस्तु नहीं है। (२) मनुष्य के लिये पथ्य रखना वैद्यकशास्त्र में नितान्त आवश्यकीय माना है। (३) स्वास्थ्य की इच्छा रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को पथ्य से चलना चाहिये। (४) बीमारी में पथ्य की ओर विशेष ध्यान रखना हितकारी होता है। (५) बीमार को ही पथ्य से चलना चाहिये सो बात नहीं है। किन्तु निरोग को भी पथ्यापथ्य के नियमों को पालने की और भी अधिक आवश्यकता रहती है। (६) बच्चों के पथ्य की ओर माता पिताओं का विशेष लक्ष्य रहना चाहिए, क्योंकि वे बोल कर कोई बात नहीं कर सकते हैं। (७) आयुर्वेदशास्त्र में पथ्य से होने वाले लाभों का विस्तार से वर्णन किया गया है। () अनेक रोगों का मूल कारण पथ्यापथ्य सम्बन्धी अज्ञानता ही है। For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) (E) पथ्य के विगाड़ से ही अनेक बीमारियां जगत में फैलती हैं। (१०) पथ्य रखने से सहसा रोग का आक्रमण नहीं होता है। ___ (११) बड़ी बड़ी बीमारियां पथ्य से चलने वाले मनुष्यों को नहीं होती है। (१२) पथ्य में रहने से, बिना औषध भी रोग दूर हो जाते हैं। (१३) पथ्य न रखने से साधारण रोग भी अन्त में असाध्य हो जाते हैं। (१४) असाध्य बीमरियां पथ्य रखने से ही प्राराम होती है। (१५) अनेक बीमारियां तो केवल पथ्य में सुधार करने से ही दूर हो जाती हैं। __(१६) औषधियों का गुणः पथ्य रखने पर ही पूरा पूरा मिल सकता है। (१७) यदि पथ्य न रखा जावे तो हमार दवाइयां लिया करें, पर रोग मिटना कठिन हो हे ता है। (१८) संग्रहणी बवासीर, कुष्ट, क्षय आदि भयानक रोग तो पथ्य रखने से ही आराम हो सकते हैं। (१६) पथ्य में चलने से हैजा आदि संक्रामक रोगों से बचाव रहता है। ( २० ) दायमुलमरीज (पिण्डरोगी ) के लिये पथ्य ही एक उनके जीवन का सहारा होता है। (२१) जीवन बरबाद करने में कुपथ्य के बराबरी करने वाला एक भी पदार्थ नहीं समझा गया है। . For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) (२२) जो कुपथ्य करने के वशीभूत होजाते हैं उन्हें औषधि लेना वृथा ही है। (२३) पथ्य में चलने वालों को वैद्यों, हकीमों और डाकृरों के पास घड़ी घड़ी शिकायत नहीं करनी पड़ती है। (२४) तन्दुरुस्ती हज़ार नियामत, केवल एक पथ्य से ही रह सकती है। (२५. ) स्त्री, धन आदि से शरीर की कीमत अधिक समझो गई है ; पर उसकी रक्षा केवल एक पथ्य से ही हो सकती है। (२६) प्रतिदिन औषधि खाते रहें ; किन्तु पथ्य न रखें तो आरोग्य नहीं रह सकते हैं। (२७) बीमार पड़ने से कुटुम्बियों को जो केश होता है उसे हम पथ्य के सहारे हो शीघ्र मिटा सकते हैं। (२८) पथ्य एक ऐसा अनमोल पदार्थ होने पर भी उसकी कुछ भी कीमत नहीं देनी पड़ती है। (२६) नीरोगता प्राप्त करने के लिये औषधि का तो खर्च भी होता है पर पथ्य रखने से खर्च अधिक होना तो दूर रहा उल्टा घट जाता है। ( ३० ) मनुष्य के स्वास्थ्य सुधारने के लिये पथ्य से भी सरल और कम खर्च और अपने स्वाधीन कई उपाय अब तक जाना नहीं गया है। (३१) प्रत्येक मनुष्य के पास रोग से बचने अथवा उसे दूर करने का जो सब से बड़ा शस्त्र है वह यही एक पथ्य है। (३२) विचार के साथ पथ्य का सेवन करने से नीरोगता अधिक दिन टिकती है। (३३) यदि हम चाहते हैं कि बराबर कमाते रहें और For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाहा ( २० ) बीमार होकर पड़ना न पड़े तो पथ्य रखने का अभ्यास करना चाहिये। (३४) कुपथ्य से डरने वाले खानदानों से लेश, दुःख, सन्ताप, रोग प्रादि दूर ही रहते हैं। (३) पथ्य सम्बन्धी ज्ञान वैद्यों और डाकृरों के लिये ही नहीं किन्तु सर्व साधारण के लिये भी उतना ही काम का समझा गया है। (३६) आदेश मिलने पर पथ्य के सम्बन्ध में कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। (३७) कोई हमें पथ्य के रखने के लिये कहे वा न कहे पर हमें तो चाहिये कि अपना लाभ समझ कर सदा पथ्य से ही रहा करें। (३८) बीमार को पथ्य के सम्बन्ध में चिकित्सक की अामा का पालन यथोक करना चाहिये। (३६) पथ्य में बिना चिकित्सक की सम्मति लिये अपनी अल नहीं दौड़ानी चाहिये। (४० ) कुपथ्य न करने के लिये मन को सदा वश में रखना चाहिये। (४१) बीमारी में कुपथ्य को ओर मन बहुत दौड़ता है पर बिना चिकित्सक की आज्ञा के मुंह में कुछ भी न डालना चाहिये। (४२) बीमारी में मुंह वश में रखना, रोग के जीत लेने का एक बड़ा साधन है।। (४३) मन के वशीभूत होकर कुपथ्य कारक वस्तु को थोड़ी सी खाने की इच्छा बता कर वैद्य से उसकी आज्ञा प्राप्त करने का बारबार प्रयत्न करना अपने ही लिये हानिकारक For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१ ) (४४) कुपथ्य थोड़ा सा भो-बहुत हानिकारक होता है। (४५) यदि बीमारी में तुम्हारा मन अनेक कुपथ्य कारक वस्तुओं को ओर जाता हो तो उन सब बस्तुओं को याददाश्त डायरी में कर रखो और श्राराम होने पर उन्हें सेवन कर अपनी इच्छा को पूर्ण कर लो। (४६ ) जो पथ्य कुपथ्य के सम्बन्ध में ज्ञान नहीं रखते हैं, उनकी सम्मति पर इल विषय में कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। (४७) मिलने जुलने वाले घरूपा बतलाने के लिये प्रायः कुपथ्य करने में भी सहायता दे दिया करते हैं । इस विषय में बीमार को स्वयं सावधान रहना उचित है। (४८) त्रियां पथ्य कुपथ्य को ओर बहुत कम ध्यान देती है अतः उनके द्वारा कुपथ्य हो जाने का बड़ा भय है, इससे सावधानी रखनी चाहिये। (४६) स्त्रियां कभी कभी अविचार से ज़बरदस्ती भी कुपथ्य करा बैठती हैं। (५०) जिस खान पान वा रहन सहन से प्रारोग्यता प्राप्त करने में देर लगती हो वा उससे वह रोग बढ़ता हो उसी को कुपथ्य कहते हैं। (५१) बिना इच्छा के ज़बरदस्ती कुछ खा लेना भी कुपथ्यही समझना चाहिये। (५२ ) पथ्य रखनेसे आजतक कोई नहीं मरा पर कुपश्य से प्रति दिन मृत्यु संख्या बढ़ती हुई देखरहे हैं। (५३) घर की बुढ़ियां छिपाकर भी कुपथ्य करा देती हैं। पर यदि कभी ऐसी भूल होजाय तो चिकित्सक को फौरन खबर कर देने में बीमार का भला है। For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) (५४) के विना पूछे भी जो कुपथ्य हो जानेकी बात कहदेते हैं वे जल्दी नीरोगता पाते हैं। (५५) कुपथ्य करलेनेसे भी कहीं अधिक भूल उसे छिपाना है। (५६) कुपथ्य हो जानेकी खबर देने में कभी नहीं शरमाना चाहिये। (५७ ) कुपथ्यको छिपाने वाले दुःख पाते हैं। (५८) नेद्य को कुपथ्य हो जाने की सूचना जितनी जल्दी मिलेगी उतनाही बीमारका कल्याण होगा। (8) जो लोग कुपथ्य हो जाने की बात प्रकट करदिया करते हैं उनका सुधार जल्दी किया जा सकता है। (६०) कुपथ्य छिपा नहीं रहता है, अतः हमें उसे छिपाना चाहिये भी नहीं।। (६१) बार बार कुपथ्य करनेवाले बीमारसे चिकित्सक की सहानुभूति घट जाती है। (६२) जिसकी चिकित्सा हो उसी के आदेशानुसार पथ्य रखना लाभकारी है। (६३) किस रोगमें कौन पथ्य और कौन अपथ्य है इसके निर्णयमें चिकित्सक की बातही माननीय है। (६४) पथ्यके सम्बन्धमें चिकित्सकने जो श्राज्ञा दी हो उसका अक्षरशः पालन करना चाहिये। (६५) कभी कभी चिकित्सक की स्पष्ट आज्ञा मिलजाने परभी मूर्खतावश घरकी स्त्रियां संशयमें उनका पालन नहीं करती हैं। पर इस प्रकार करना हानिकारक है। (६६) चिकित्सक की आज्ञानुसार न खानेसे कोई मरता नहीं है परन्तु अधिक खालेनेसे अजीणका अनुभव सब किसीने अनेकों बार किया होगा। For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) पथ्यके लाभ और उसके पालन करनेकी आदत बचपनमें ही डालनी चाहिये। (६८) यदि हम वैधक ज्ञान नहीं रखते हैं तो किसीभी बीमारको पथ्यके सम्बन्धमें हमें कभी कुछ भी सलाह न देनी चाहिये। (६६) खानेपीनेके सम्बन्ध रोगीपर कभी ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिये। (७० ) एक अकेले खानपानको ही पथ्य कुपथ्य नहीं कहते हैं किन्तु उसके साथही रहनसहनका भी समावेश आजाता है। (७१) पथ्यमें आहार और बिहार. दोनोंकी गणना समझनी चाहिये। { ७२ ) बीमारीमें घरवालोंकी सबसे अधिक सेवा सुश्रूषा इसीमैं समझनी चाहिये कि वे रोगीको कुपथ्यसे बचाये रखें। (७३ ) पथ्य रखनेवाला कोई दुसरेका उपकार नहीं करता है, किन्तु स्वयं ही उसका लाभ उठाता है। (७४) पथ्यापथ्य जाननेके लिये आयुर्वेदका आरोग्यशास्त्र देखना चाहिये। (1) ईश्वरसे प्रतिदिन प्रार्थना करनी चाहिये कि वह हमें कुपथ्यसे दूर रहनेकी शुद्ध बुद्धि प्रदान करे । पथ्य की शास्त्रीय प्रशंसा। पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषध निषेवणैः । प्रथ्येऽसति गदार्तस्य कि मौषध निषेवणः ॥ लोलिम्बराज, वैद्यजीवन। For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) बिनापि भेषजै व्याधि पथ्या देव निवत्तते। नतु पथ्य विहीनस्य भैषजानां शतैरपि ॥ बंगसेन, भावप्रकाश । आलोक्य वैद्य तन्त्राणि यत्नादेष निबध्यते। व्याधितानां चिकित्सा, पथ्यापथ्य विनिश्चयः ॥ निदानौषधपथ्यानि त्रीणि यत्नेन चिन्तयेत् । तेनैव रोगाः शोर्यन्ते शुष्के नीर इवाकुराः ॥ रुतु सर्वास्वपथ्यानि यथास्वं परिवर्जयेत् । तास्त्वपथ्यै विवर्धन्ते दोह दैरिव वीरुधः ॥ विनाऽपि भेषजै याधिः पथ्यादेव विलीयते। नतु पथ्य विहीनस्य भेषजानां शतैरपि ॥ दोषान्दृष्यान्देशकालौ सात्म्यं सत्त्वं बलं वयः । विकृति भेषजं वह्निमाहारं च विशेषतः ।। निरीक्ष्य मातेमान्वैधश्चिकित्सां कुर्तुमुवतः। पथ्यानि योजयेन्नित्यं यथास्वं सर्वरोगिषु ॥ योग रत्नाकर । नित्यं हिता हार विहार सेवो समीक्ष्यकारी विषयेष्वसतः । दातासमः सत्यपरः क्षमावा नाप्तोपसेवो च भवत्यरोगः ॥ वागभट। पथ्य सम्बन्धी आनने योग्य कुछ बातें। पथ्य में रहना सदा लाभकारी है, आरोग्यावस्था से भी कहीं अधिक बीमारी में इससे लाभ पहुंचता है। यह बीमारों का प्राण है, तन्दुरुस्ती का जीवन है, देहका रक्षक है, शक्ति देने वाला है, क्षीण हुए देह को फिर से हृष्ट पुष्ट बनाता है, चिकित्सा की सफलता भी बहुत कुछ इसी पर अवलंबित है अतः बीमार की सेवा सुश्रुषा करने वालों को चाहिये कि वे For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्यकी उपयोगिता और महत्व को ध्यान में रखते हुये, अपनी जिम्मेवारी को समझ कर चिकित्सक की इच्छानुसार बड़े प्रेम से पथ्य की सुव्यस्था रखें जिस से रोगी को शीघ्र श्रारोग्यता मिले। यह सत्य है कि बोंमार के पथ्य का प्रबन्ध उत्तम हो तो असाध्य और प्राशा छोड़े हुए रोगोभी कभी कभी थोड़े समय में और बिना विशेष कठिनाई के श्राराम हो जाते हैं। ___ बीमार के पथ्य में ध्यान करने योग्य ५, ४ बातें ऐसी हैं कि यदि लक्ष्य सहित प्रयत्न किया जावे-उपचारक उचित रीति से व्यवहार करे-तो आशातीत लाभ पहुंच सका है। सबसे प्रथम तो पथ्य की व्यवस्था वैद्य की इच्छानुसार रखी जावे और इसमें उन्हों को श्राज्ञा शिरोधार्य की जावे । वैध जो कहे वही खान पान दिया जावे तथा रहन सहन श्रादि भी वह बतलावे वैसा ही रखा जावे। द्वितीय पथ्य जिन वस्तुओं का दिया जावे उनके मूल पदार्थ बढ़िया और ऊचे प्रकार-जाति के हो । बाजार में सस्ते के नाम से बिकने वाले धान्य तथा खाध पदार्थ निकसे और बिगड़े स्वाद के होते हैं जो रोगी को शक्ति बनाये रखने का गुण-पूरागुण नहीं रखते हैं। तृतीय पथ्य अच्छी तरह से बिधि पूर्वक तैयार किया हुआ यथा सम्भव स्वादिष्ट होना चाहिये। चतुर्थ पथ्य हमेशा नियत समय और नियत मात्रा ( मात्रा समय समय पर वैध-गोगो को सुधा और अग्नि तथा आवश्यकता का विचार कर घटाता बढ़ाता रहता है ) में दिया जावे। पंचम पथ्यके समय रोगीका चित्त शान्त रहे और वह उसे स्वाद और रुचि से सेवन कर सके इसकी व्यवस्था रखी जाये। और भी ऐसे ही विषयों को लेकर लग्न के साथ पथ्य का. युक्ति पूर्वक प्रबन्ध किया जावे तो खान पान के पथ्य को लेकर रोगी को 'कंटाला' For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * २६ ) झुन्झूल-मालूम न हो और वह जल्दी आरोग्य हो जाने के कारण अधिक दिन तक पथ्य के वश में भी रहने के लिये बाध्य न हो अथवा उसे होना न पड़े। चिकित्सा शास्त्र के नियमानुसार जिस प्रकार रोगी की अवस्था प्रकृति और रोग आदि का निर्णय करके औषध दी जाती है, उसी प्रकार पथ्य की व्यवस्था भी इतने ही विचार के पश्चात् की जाती है करनी पड़ती है । वैध, उपचारक को पथ्य के सम्बन्ध में अच्छी तरह समझा देता है कि वह अमुक प्रकार का खान पान और रहन सहन उक्त रोगों के लिये रखे । रोगी की प्रकृतिके बदलाव के साथ २ औषध की भांति पथ्य में भी आवश्यक सुधार-फेरफार किया जाता हैहोता रहता है तभी रोगी के शीघ्र आरोग्य होने की आशा को जा सकती है। पर कितने ही वैध इस सुनियम को अच्छी तरह नहीं जानते वा जानते हुये भी उपेक्षा रखते हैं और पथ्य के सम्बन्ध में चिकित्सा करते समय प्रारम्भ में व्यौरे वार सलाह नहीं देते हैं, जिससे यश प्राप्त करने के निर्भय और सुलभ मार्ग से हटे रहते हैं, जो रोगी एवं वैद्य दोनों के हित की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। __ प्रायः देखा गया है कि साधारण रोगों में नतो कुछ जानने की इच्छा ही रहती है और न वैद्य कुछ व्यवस्था ही देता है। यो तो दवा 'गर्म पानी में ली जावे वा ठंडे में, ज्यादा गर्म करके ली जावे वा कांसो तप, पानी इंट बुझाया दिया जावे वा केलु बुझाया इत्यादि के लिये तो बड़ी पूछ ताछ की जाती है मानो इतनी सी बात ही में गुण अवगुणमें बड़ा अन्तर पड़ जायगा। पर खान पान और रहन लहन में आवश्यक सुधार करने की सलाह मिल जाने पर भी उसकी पर्वाह नहीं की जाती है। For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुड़ खावें और गुलगुले का परहेज पूछे वाली अवस्था उपस्थित की जाती है। वैधक व्यवसायके नियमानुसार वैध का कर्तव्य है कि वह औषध देने के साथ ही पथ्य रखने सम्बन्धी सभी आवश्यक वाते भी-रोगी के उपचारक को कह दें और कथनानुसार प्रबन्ध भी ठीक किया गया है वा नहीं इसकी देख भाल भी रखें। पर देखते हैं कि पिछले समय से पथ्य पर से लोगों की आसता घट जाने से वा पथ्य पालने में कष्ट होने से बहुत बड़ा समुदाय विना लाचार हुये अपने जीभ के स्वाद को छोड़ने का साहस नहीं करता इस से जहां पथ्य रखने के लिये कुछ कहा सुना न जावे वहीं जरूरत पड़ने पर इलाज कराने दौड़ते हैं। पथ्य को व्यवस्था न देने वाले वैद्यों को बड़े मान से पूजा करते हैं, लाभ पहुंचाते हैं और प्रशंसा करते फिरते हैं इस से अपनी रोजी का ख्याल कर अनेक बड़े २ वैद्यों ने भी ग्राहको को घटने न देने के लिये पथ्य जैसी आरोग्यकारी प्रणाली को 'जीभ के स्वादी' लोगों को प्रत्येक अवस्था में बताना बन्द कर अपना व्यवसाय स्थिर रखना चाहा है । पर रोगी को अपने कल्याण के लिये वैद्य कहे या न कहे स्वयं बीमार वा उपचारक को आगे हो कर बड़ी नम्रता से पथ्य के सम्बन्ध में सब पूछ लेना चाहिये और इस के लिये वैद्य को सोचने विचारने के लिये संक्षेप में रोगी को जो २ मुआफिक न पड़ते हों वे कह भी देना चाहिये जिस से वैध जो को सलाह देने में सुभीता रहे । ध्यान रहे-अपनी इच्छानुसार For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैध को घुमा फिरा कर 'हां' भराने के लिये कोई युक्तिवाउद्योग न किया जावे । न उस पर विशेष दबाव ही डाला जावे। 'थोड़ा हो लूंगा,-मैं ज्यादा तो खाता ही नहीं, मुझे भाता ही नहीं, मुझसे खाया हो नहीं जाता~का विश्वास उत्पन्न करके कभी श्राज्ञा प्राप्त न की जावे, किन्तु वैद्यजी को अपनी स्वतंत्र राय देने का अवसर दिया जावे। यदि रोगी अपनी कुछ इच्छा प्रकाशित करे तो उसकी सूचना वैद्य जी को अवश्य कर दी जावे पर रोगी के दबाव में श्राकर ज़बरदस्ती कोई श्राक्षा प्राप्त करने की कोशिश न की जावे । अवश्य हो असाध्य रोगों में वैध एवं रोगी दोनों पथ्य के लिये विशेष सावधानी रखते हैं । और दवा के समान ही पथ्य को भी महत्व देते हैं । व्यवस्था पत्रके साथ ही यह बतला दिया जाता है कि अमुक प्रकार का खान पान दिया जावे और हवा आदि का प्रबन्ध रखा जावे। मृत्यु के भय से डर कर सन्निपात आदि अवस्था में पथ्य का ख्याल पूरा २ रखा जाता है, फिर भी कभी २ लोग मन चाहा खिला पिला कर रोगो को बिगाड़ देने में नहीं चूकते हैं और अपनी भूल के लिये पश्चाताप करने का अवसर उपस्थित कर देते हैं अतः वैधों को चाहिये कि वे केवल सलाह दे देने के भरोसे पर ही निश्चिन्त न हो बैठे किन्तु उनके कथनानुसार कार्य किया भी गया है वा नहीं उसकी देख रेख भी रखें। पथ्य के मूल द्रव्य-पदार्थ-कैसे हो ? पथ्य जिन वस्तुओं का दिया जावे वे बढ़िया और ऊँची कोटि-क्वालीटी ( Superior quality ) की हो यह पहिले कहा जा चुका है। धान्य आदि सब अच्छे और For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पके हुये होने चाहिये । व्यापारी लोग प्रायः द्रव्य कमाने की दृष्टि से बिगड़ी वस्तुओं को भी अच्छे रुप में बता कर धन कमाने का प्रपंच किया करते हैं और खरीदारों को धोका देते हैं अतः बहुत सावधानी से पदार्थ खरीदे जावें । अधपके वा हलकी किस्म-क्वालीटी के द्रव्यों का उपयोग बीमारों के पथ्य में न किया जावे । साधारण अवस्था में हलके धान्यों की बनी वस्तुयें इतना नुकसान नहीं करती वा उस नुकसान का अनुभव नहीं होता, पोषण द्रव्यों की कमी से उनसे शक्ति जितनी प्राप्त होनी चाहिये उतनी नहीं होती पर फिर भी आर्थिक अवस्था से यदि हलके धान्य ही व्यवहार करने को स्वास्थावस्था में लाचार होना पड़े तो चिन्ता नहीं, पर बीमारी में हलके धान्यादि पदार्थ वा खराब गाय का दूध व्यवहार किया जावे तो पथ्य ले लेने पर भी रोगी को उसका गुण पूरा २ नहीं मिलता जिससे जीवनी शक्ति जल्दी २ नहीं बढ़ती वा घटती हुई रुक नहीं जाती। कारण यही है कि पथ्य के पदार्थ हलके, पुराने सड़े, गले, होने से वे निकसे-निर्गुण वाले होते हैं, उनमें पूरा गुण नहीं रहता, वे शक्ति बढ़ाने का गुण नहीं रखते, उनका स्वाद स्वाभाविक नहीं होता, उनका रूप, गन्ध कुछ और ही प्रकार का होता है अस्तु अस्वस्थावस्था में जो खान पान दिया जावे उनके पदार्थ उत्तम जाति के हो। __ पीने का पानी भी अच्छे कुंए का, हलका, मीठा और स्वच्छ और अच्छी तरह से छना हुआ, ताजा होना चाहिये। पथ्य भले प्रकार तैयार किया जावेबनाया जाव-पथ्य अच्छी तरह से पकाया जावे। कञ्चे, अधपके, बले हुये या धुश्रां लगे पथ्य न तो स्वादिष्ट होते हैं और न गुण ही करते हैं । पथ्य ताकीद For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में तेज अग्नि से न बनाया जावे जिससे उसका 'हीण बल जावे'। न इतनी कम अग्नि से तैयार किये जावे कि पूरा पके-सिके भी नहीं वा धुए से खारे हो जावें । पथ्य बहुत सावधानी से, स्वच्छता से बनाये जावे, उनमें कंकर, रेत, स, केश आदि न हो इसका खास ध्यान रखा जावे, कारण बीमारी की हालत में रोगो का चित्त इन चोज़ों से बड़ा ही उत्तेजित हो जाता है। बीमारी में स्वाद और रुचि बदल जाने के कारण रोगी की इच्छा वा स्वभाव तन्दुरुस्तों के समय सा नहीं होता, इस से वह भूख न होने से भोजन में कुछ न कुछ खोड-कमी निकालता ही रहता है। कभी कहता है दाल पतली हो गई है, कभी जाडी-गाढी बहुत बतलाता है, नमक नहीं डाला, मिरचे बहुत डाल दी, बहुत ले आये, गर्म है, ठण्डी हो गई है इत्यादि अनेक प्रकार से वह कुछ न कुछ कमी-अच्छा और स्वादिष्ट पथ्य बना होने पर भी बतला देता है पर उसके लिये ' ठीक हो बनी है' का पीछा जवाब दे कर जिद्द नहीं करनी चाहिये किन्तु उसको इच्छानुसार तुरंत हो व्यवस्था कर देनी चाहिये जिसले उसका चित्त शान्त रहे और सन्तोष हो। ज़रा होशियारी और समय सूचकता को काम में लाने से रोगी वही वस्तु रुचि के साथ खा सकता है और मूर्खता वा जिद्ध करने पर उसका चित्त व्याकुल होकर बड़ा कष्ट पाता है-छोजता है। परिचारक को चाहिये कि रोगी को पथ्य स्वच्छ थाली में परोस कर ले जावे, सागपात सब जुदे जुदे कटोरियों में हों, खाने की सब चीजें करीने से रखी हुई हो, नमक, मिरच आदि सब मलाले रोगी की तत्कालिन रुचि के अनुसार डाले हुये हो और वह सुभीते के साथ उन्हें ले सके ऐसे पात्रों में हो। यदि रोगी की शक्ति न हो तो वह बिस्तर पर बैठा बैठा ही ले सके ऐसी For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवस्था की जावे । पथ्य स्वादिष्ट बना हुआ है कि नहीं, उसमें नमक ज्यादा तो नहीं पड़ गया है इसकी जांच पड़ताल रोगी के पास पथ्य ले जाने के पहिले ही कर ली जावे। रोगी जब बिना स्वाद का वा कुछ खामी वाला पथ्य देखता है तो वह बीमारी से हृदय कमजोर होने के कारण बहुत दुःखित होता है, पथ्य बनाने वाले पर तथा लाने वाले पर उसे बड़ा क्रोध श्राता है पर नवीन तैयार कर और लाने की आशा देने का साहस न कर वा मन को काबू में न रख कर क्रोध के श्रावेश में पथ्य ही नहीं लेता वा ज़बरदस्ती बिना मन-दुःख मानता हुअा-लेता है जो लाभ नहीं करता है। उसका चित्त अशान्त हो जाने के कारण वह पथ्य के अहार विहार सम्बन्धी अन्य नियमों की ओर भी परवाह नहीं रखता जिससे वोमारो बढ़ने में सहायता मिलती है। पथ्य हमेशा नियत समय पर देना चाहिये पथ्य हमेशा नियत समय पर ही देना चाहिये । घड़ी २ वा कभी किसी समय और कभी किसी समय देना शारीरिक नियमों और प्रकृति के अनुसार ठीक नहीं है। मारवाड़ी में कहते भी हैं कि टैमसर रोटी खाने से वह सीरी होती है। मनुष्य को ज्ञान तन्तुओं का स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वे सदा प्रादत-नियम का अनुसरण करती हैं। पाचक इन्द्रियों को एक दिन १० बजे अन्न पचाना पड़े तो वे दूसरे दिन फिर १०बजे ही अन्न पचाने के लिये तैयार होती है, उत्सुक बनती है वा रहती है पर उस समय पचाने की वस्तु न मिलने से उन्हें हताश होना पड़े अथवा बिना समय भोजन करने से उन्हें ज़बरदस्ती बिना टाइम पचाने के लिये लाचार उधत होना पड़े, अथवा उसके पचाने में डील हो, इनके अतिरिक्त वैद्य For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोगी को जीवनी शक्ति का अन्दाजा लगा कर आवश्यकतामुसार पथ्या के लिये समय, संख्या और परिमाण निर्धारित करता है पर उसके अनुसार न चलने से जल्दी आरोग्यता नहीं मिलती अस्तु वैद्य जिस जिस समय पथ्य देने के लिये काहे उसी २ समय ( रोगी की इच्छा से थोड़ा अन्तर भी किया जा सकता है ) पथ्य दिया जावे। यह नहीं कि जब पध्य बने तब पथ्य दिया जावे। पथ्य किस २ समय दिया जावे और कितनी बार दिया जावे यह वैद्य इलाज हो के साथ बतला देते हैं । पर साधारण रोगों में ऐसी पूर्ण व्यवथा नहीं भी की जाती है। रोगी को भूख लगे तभी पथ्य देना चाहिये यह एक शास्त्रीय साधारण नियम है, मामूली अवस्था में इसी सिद्धान्त के अनुसार रोगी, को पथ्य दिया जावे, पर असाध्य और कठिन रोगों में पथ्य की खास व्यवस्था रखनी चाहिये और नियत समय में नियत परिमाण काही पथ्य दिया जावे । ध्यान रहे विना वैध की खास आज्ञा के ४)घण्टे के बीच में पथ्य कभी न दिया जावे। घडी २ खिलाने से एक तो दिया हुआ पथ्य पचता नहीं है । पेट को आराम नहीं मिलता, दवा को अपना असर करने में पूरा समय नहीं मिलता अतः एक बार दिया हुआ पथ्य पच जाने पर दूसरी वार देना चाहिये । समय पर पथ्य देने से दवा देने का समय भी ठीक ढङ्ग से निर्धारित किया जा सकता है। बार २ रोगी को पथ्य लेने के लिये तङ्ग करने से वह व्याकुल हो जाता है। कारण बीमारी में अरुचि रहने से उसे बार २ पथ्य लेने का काम महा भारत जंचता है इस से उसे दिक न किया जावे। - स्मरण रहे नियत समय का यह मतलब नहीं लगाया जावे कि रेल के टाइम के अनुसार ही व्यवस्था रखी जावे । For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोगो सोता होतो उसे पथ्य का समय समझ कर जगाया न जावे न रोगो की इच्छा विना जबरदस्ती दिया ही जावे। पथ्य नियत परिमाण में दिया जावेपथ्य नियत परिमाण में हो देना चाहिये । वैध, रोगी की अवस्था विचार के पथ्य को मात्रा निश्चित करता है । इसके लिये उसकी पाचन शक्ति, जोवन शक्ति का हास, शक्ति बनाये रखने की आवश्यकता और रोग आदि कई एक विषयों पर विचार किया जाता है । अतः वैध जितना खाने को बतलावे उतना हो दिया जावे । कभी कम और कभी ज्यादा (बिना सूक्ष्म विचार किये) पथ्य देना गोगो के लिये सदा लाभकारी नहीं। कभी स्वाद से वा अन्य किसी कारण से रोगो खातो अधिक जाता है परन्तु वह पचता नहीं जिससे रोग दूर करने में उल्टो बाधा होती है। कई रोगों में अधिक पथ्य खास तौर पर हाईन भी करता है अस्तु कठिन रोगों में इसका ध्यान बराबर रखा जावे । साधारण अवस्था में तौल कर पथ्य देने की व्यवस्था होनी सहज नहीं अतः पथ्य देने वाले को ही इसका अन्दाज रखना चाहिये कि रोगो जरूरत से अधिक स्वाद के वशीभूत होकर न स्वा जावे । रोगो को कम खाने के लिये नादिरशाही हुक्म देना वा ज्यादती करना, धमकाना ठीक नहीं किन्तु युक्ति से उसे समझा कर अधिक खाने से बचाना चाहिये। पथ्य के समय रोगी का चित्त शान्त रहे वैसा उद्योग हो पथ्य के समय रोगो का चित्त शान्त रहे इसका खास प्रवन्ध किया जाये । उसके पास पथ्य के समय किसी प्रकार For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४ ) की गड़बड़ न हो, भीड़ न हो, मकान स्वच्छ हो, धुआँ आदि न आता हो, दुर्गन्ध कहीं से न आती हो अस्वच्छता न हो, खास विश्वासु आदमियों के अतिरिक्त कोई दूसरा पास न हो ऐसी व्यवस्था रखी जावे । व्यापार वा काम काज सम्बन्धी चर्चा उस समयरोगी के सामने न की जावे । उस समय मीठी तथा मधुर शान्तिदायक बात करनी चाहिये तथा युक्ति से उसकी इच्छाओं को वैद्य के आदेशानुसार फेर कर प्रसन्न बनाये रखें। और किसी विषय में भी उत्तेजित न होने दें। ऊपर कही बातों को ध्यान में रख कर पथ्य सेवन कराया जावे तो उस पथ्य से पूरा २ लाभ पहुँचता है, जो हज़ार दवानो से भी होना कठिन है । कारण यह सदा सत्य है कि दवा से भी खान पान रोग घटाने में अधिक मदद देते हैं। : पथ्य देने का ढङ्ग' पथ्य इस ढङ्ग से दिया जावे कि उस पर रोगी को अरुचि वा अभाव (घणा) उत्पन्न न होने पाये। कारण प्रभाव हो जाने पर चाहे जैसा लाभकारी और उत्तम तथा स्वादिष्ट पथ्य भी रोगी को नहीं रुचता है । और बिना रुचि खाया, पथ्य भी नकसान ही करता है। बीमार को सदा एक ही प्रकार का पथ्य स्वाद नहीं लगता, कुछ दिन बाद वह उसे नहीं भाता और दूसरी चीजो की अोर उसका मन दौड़ा करता है, जो स्वाभाविक ही है। अतः इसका ध्यान रखते हुये समय २ पर वैध की अाशानुसार पथ्य में फेर फार करते रहने का ध्यान रखना चाहिये। पर इसके लिये यह नहीं कि जो चाहा पथ्य For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५ ) दे दिया । पथ्य के सम्बन्ध में वैद्य की श्राज्ञा ही सर्वोपरि समझो जावे, और रोगों की रुचि की खबर वैद्य को बराबर करते रहना चाहिये, जिससे वह रोगी की अवस्था, जरूरत रोग और रुचि पर भले प्रकार विचार कर समय पर पथ्य में उचित फेरफार करता रहे। पथ्य की व्यवस्था करना मामूली काम नहीं है। इसके लिये व्यवहारिक ज्ञान की जरूरत होती है। चाहे जो व्यक्ति पथ्य को युक्ति के साथ सेवन करा कर रोगी को राजी नहीं रख सकता। पथ्य देने वाले में धैर्य, शान्ति, तत्परता और सहनशीलता के गुण भी होने चाहिये । ये गुण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में वोमारी के समय विशेष रूप से पाये जाते हैं। इससे पथ्य देने का काम स्त्रियों के जिम्मे हो रखना ठीक है परन्तु स्त्रिय आरोग्यता के नियमों से एक दम अजान होने से, भूल से, मूर्खता से वा धृष्टता से पथ्य के स्थान में कुपथ्य करा बैठती है, आदेशानुसार प्रबन्ध नहीं करती, अपनी अकल लगा कर कुछ का कुछ कर बैठती है, अथवा रोगी को जबरदस्ती खिलाने में और अधिक खिलाने के उद्योग ही में सदा लगी रहती है। साथ ही अपमे कियों का साफ २ कहती भी नहीं हैं इससे अकेली स्त्रियों पर और खास कर असाध्य रोगों में पथ्य जैमा महत्व का काम सौंप कर निश्चिन्त हो बैठना वा विश्वास रखना उचित नहीं कहा जा सकता । इसके लिये रोगी का कोई बड़ा सम्बन्धी जिस पर रोगी की श्रद्धा बहुत हो और रोगी उसके कहे को मानता भी हो उसे जिम्मेवार बनना चाहिये और प्रबन्ध रखना चाहिये । .: ...पथ्य देने वालों को ऊपर किये विवेचन के सिवाय औ भी कितनी ही बातों पर ध्यान रखना चाहिये जिससे रोगी को For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) अनुचित कष्ट वा क्लेश न हो और पथ्य भी सरलता से दिया जा सके। बीमारी चौबीसों घण्टे ही एक सी नहीं रहती है। कभी कम और कभी ज्यादा होती है, अतः जब ज्यादा हो उस समय रोगी को पथ्य के लिये अनुरोध करना उचित नहीं। क्योंकि ऐसे समय उसका चित्त शान्त नहीं होता और उससे उसे पथ्य नहीं भाता है, पर लोग इसका विचार न कर अपनी इच्छानुसार जब चाहा तभी खाने के लिये रोगी को बाध्य करते हैं पर उस समय उसे भूख न होने से वा रुचि से न खाये जाने से वह पथ्य उलटा प्लेशकारी होता है। बिना भूख के खाया जाने पर गुण भी नहीं करता और न अच्छी तरह वह खाया हो जाता है। . रोगी को अपनो रुचि अनुसार पथ्य लेने देना चाहिये अथवा वैद्य सलाह दे उतना देना चाहिये । पर अधिक खाने के लिये आग्रह करना वा जबरदस्ती उत्साहित बनाना ठोक नहीं । प्रायः देखा गया है कि जब रोगी को पथ्य नहीं भाता है, उसे अनिच्छा होती है तब भी यही सलाह दी जाती है कि 'श्रांख मीच कर पानी की गुटक ही से उतार लो'। उसके नहीं खाने की शिकायत-गनगनाट-दूसरों के सामने कर उल्हना दिलाना वा दूसरे के सामने पस्तहिम्मत बताना और उससे उसे दबाने-लाचार करने में किसी रूप में दूसरे से सहायता प्राप्त करने का उद्योग करके बिना रुचि के भी रोगी को खाने के लिये लाचार करना सर्वथा निन्दनीय है। पथ्य के लिये रोगी से उतावल नहीं की जावे । अशक्तता के कारण रोगी तुरंत ही उठ कर पथ्य लेने की इच्छा नहीं करता वह धीरे २ विचार करता २ उठता है अतः शान्ति के साथ रोगी चाहे उस तरह से पथ्य लेने में सहायता दी जावे । For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) उठते ही, थकावट से पथ्य लेने की हिम्मत नहीं होती, उसका श्वास फूल जाता है अतः कुछ देर ठहर कर-बीसाई खा लेने पर-पथ्य देना शुरू करना चाहिये । बीमार को पलवाड़ा (करवट) फेरले में भी कभो २ बहुत परिश्रम होता है, वह उस समय पूरा बोल तक ह सकता। अस्तु बीमार को बैठाके पर कुछ देर तक घोसामी (rest) खाने देना चाहिये । प्रास भी धोरे २ दिया जावे जल्दी २ लेने से वह घबड़ा जाता है, किया हुआ निकल जाता है। पथ्य सम्बन्धी कुछ नोट (१) रोगो को पथ्य हरबार ताजा दिया जावे। सुबह का श्याम और श्याम का सुबह न दिया जावे । ४ घण्टे से पहिले का तैयार किया पथ्य न दिया जावे। रोटो, साग, श्रादि ठंडे, बासी, पोछे गर्म किये हुये न दिये जावें । ठण्डे, बासी पथ्य में स्वाद नहीं रहता है, पौष्टिक रस निकल जाता है, कुछ विकार भी पैदा हो जाता है, पचता भी देर से है अतः रोगी को जब ज़रूरत हो तभो ताजा पथ्य तैयार करके दिया जावे।। (२) रोगो को पथ्य हमेशा हलका, जल्दी पचने वाला और ताकत देने वाला देना चाहिये। (३) रोगी को पथ्य कभी उसकी रुचि से अधिक न दिया जावे। (४) रोगी को पथ्य अधिक लेने के लिये उस पर दबाव वा सखी न की जावे। (५) रोगी के पथ्य में श्लेष्मकारी वस्तुयें न दी जावें। (६) घोमारों में घत, खांड, मिठाई, मैदे की चीजें, श्रादि सब हानि करते हैं । जब रोग दूर हो जाय तब इनका सेवन कभी २ थोड़ा २ जरूरत हो तो रुचि के अनुसार करना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (७) रोगी के पथ्य में सीजते घत मिला देने वा 'मौन' डालने की कुप्रथा का उपयोग कभी न करना चाहिये । खीचड़ी थूली, दलिया रोटी आदि में घी मिला कर देने से वह देर में पचती है। कभी २ उससे कई उपद्रव हो जाते हैं, सूजन, पाण्डु, उदरविकार, मंदाग्नि, ज्वर, खास, श्वास, अतिसार आदि हो जाते हैं वा बढ़ जाते हैं। पर को इसका पता भी नहीं लगता। (८) रोगी की थाली में खुराक एकदम बहुत सी न ले आना चाहिये, क्योंकि वह अधिक खुराक देख कर डर जाता है, उसे अरुचि उत्पन्न हो जाती है, वह अपनी इच्छामुजब खुराक भी नहीं ले पाता अतः प्रारम्भ में थोड़ा पथ्य लाना चाहिये और रोगी फिर इच्छा करे तो दूसरी बार और ले आना चाहिये पर आलस्यवश, दूसरी बार फिर लाने की तकलीफ से बचने के लिये एकवार में ही अधिक ले आना अच्छा नहीं। (E) रोगी को पथ्य रसोई घर में या उसके निकट ही नहीं देना चाहिये क्योंकि वह वहां अनेक प्रकार के व्यञ्जन बने देख कर उनके खाने की इच्छा प्रगट करता है, उसके लिये कोशिश करता है, हठ करता है और मन को वश में न रख कर खा भी लेता है अथवा लाचार होकर दे देना भी पड़ता है। अतः उसे याद में वा दृष्टि में कुपथ्य वाली वस्तुयें न श्राने देनी चाहिये और इसका खास प्रबन्ध रखना चाहिये। (१०) रोगी जहां रहता है वहां कोई खाद्य पदार्थ नहीं रखना चाहिये और न वहां कोई कुछ खावे वा खाता हुआ जावे। (११) बीमार को मालूम न होने देना चाहिये कि घर में क्या २ वस्तुयें बनी हैं वा बनाई गई है। For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . (१२) जहां तक हो, घर में किसी के बीमार होने पर कुपथ्यकारी पदार्थ न तो बनाना चाहिये और न बाजार से लाकर खाना ही चाहिये। (१३) रोगों को कभी २ भूख की मालूम ही नहीं पड़ती है । अतः युक्ति से उसे याद दिला कर कुछ खिला देना ज़रूरी (१४) कई बीमार यह नहीं जानते कि उन्हें कितनी भूख लगी है और कितना खाना चाहिये, अतः उन्हें अपचन न हो उतनी खुराक दे देनी चाहिये पर अधिक न दी जावे। ... . (१५) कितने ही रोगी स्वाद श्रादि के कारण अधिक खा लेने के लिये प्रयत्न करते हैं, पर उन्हें युक्ति से मना किया जावे, फिर खाने के लिये सलाह दी जावे, परखाने को 'ना' कह देने से वह रूष्ट हो जाता है और मानसिक चिन्ता करता है'घुटता है। .(१६) रोगों की थाली में खाते कुछ बच रहे तो उसे खा लेने के लिये दबाव न डाला जावे । कई लोग कह देते हैं कि 'इतेरे वास्ते अवे पाछो कई ले जाऊं', 'इतो कठे, नाकुं', थारो पठो दूजो कुंण खावे', 'खायो' ही नहीं ने यूंही तकलीफ दी। 'खावणां केखा है मंगावरणा है' 'यूरो यूही पड़ियो है'। पर इन वचनों से रोगी को आन्तरिक दुःख होता है जिसका अनुभव परिचारक को मालूम नहीं पड़ता है पर उससे रोग के घटने में मानसिक रुकावट पहुंचती है। (१७) खुराक जो बच जावे, वह रोगी के कमरे से तुरंत बाहिर लेजाई जावे। . (१८) कितने ही कुटैव वा बालस्य के कारण रोगी से बचा हुआ पथ्य उसके मांचे के नीचे रख-सिरका देते हैं पर उससे For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४० ) वहांधणा-सूग उत्पन्न होने लगती है, मक्खी मच्छर आदि बहुत आ जाते हैं । जो स्वास्थ्य के लिये अहितकर है। कई इस लिये वहीं थाली सिरका देते हैं कि रोगी फिर मांगेगा तब देंगे, पर यह स्वास्थ्य की दृष्टि से जंगली और खराब रिवाज है। (१६) पथ्य लेते २ उस पर किसी कारण से, मक्खी आदि से, अभाव,घृणा वा सूग आजावे तो वह तुरंत वहां से हटा देना चाहिये क्योंकि वह उसे फिर आंख से देखना तो दूर नाम सुनना भी कभी २ पसन्द नहीं करता है । यदि वह तुरंत ही वहां से हटाया न जाये तो खाया हुआ भी सब पीछा निकल जाता है और उस पर हमेशा के लिये 'टोकार' बैठ जाती है। ___ (२०) जिस खुराक पर रोगी को एकवार सूग आ जातो है, अभाव हो जाता है, वह फिर रोगी के पास नहीं लाई जाये और न उसके साथ कोई और वस्तु लाई जावे, नहीं तो उसके साथ की वस्तुओं पर भी अभाव हो जाया करता है। (२३) ध्यान में रहे रोगी न खाने लायक पथ्य चोरी करके खा लेता है बाजार से मंगा लेता है घर के आदमी दे देते हैं, लुक छिप कर पड़ोसी मित्र, नौकर, नो, बालक आदि कुपथ्य करने में सहायता देते । पर चौथाई पेठा [मावेका ] अथवा एक जलेबी भी बोमार को पोछा बीमार कर देने उथलाने में काफी है। (२२) बहुत महनत से अच्छा हुआ रोगो भी पथ्य को थोड़ी सी गफलत से भी पीछा भयङ्कर स्थिति में या जाता है। (२३) रोगी के पास स्वच्छता खूब रखो जाये। उसके कपड़े लत्ते तथा प्रौढ़ने बिछाने के बिस्तर आदि सब साफ हो इस की सम्हाल रखी जावे । For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१ ) (२४) रोगी के प्रौढ़ने बिछाने के विस्तर दूसरे तोसरे दिनधूप में डाल देना चाहिये। (२५) रोगी के कमरे में हवा अच्छी तरह श्रावे तथा जावे उसको तजबीज रखो जावे, पर रोगी के ऊपर सीधी हवा का झोका न आवे इसके लिये उसका बिछोना कुछ भाड़ में रखा जावे तथा कपड़े खूब ओढ़ाये रखना चाहिये । बारी वारनों पर चिक डाल देना अच्छा रहता है। (२६) सर्दी लग जाने के डर से हवा रोकने की अपेक्षा रोगीको खूब कपड़ों से गर्म कपड़ों से ओढ़े रखना और हवा की रोक न करना हजार अच्छा है। (२७) रोगी के कमरे में रोज धूप आवे-प्रकाश हो ऐसा प्रबन्ध रखना चाहिये, तथा ऐसे स्थान में ही बीमार को रखना चाहिये। (२८) रोगी के कमरे में धधकते हुये कोयले बारी बारने बंद करके कभी न रखना चाहिये । इस से गेस के कारण बड़ा धुरा परिणाम निकलता है। (२६) रोगो के पास बहुत भीड़ न की जावे । भीड़ से बचने के लिये रोगो के पास के कमरे में बैठने का प्रबन्ध किया जावे और जो मिलने वाले आवें वे वहां उनके घर वालों से मिलले । तथा जो रोगों के पाल जाना ही चाहे तो उनके लिये घर वाले ऐला प्रबन्ध करें कि एक एक मिलने जाने दिया जावे और जब वह दो चार मिनिट में पीछा आजाबे तब दूसरे को जाने दिया जावे। (३०) रोगो को घड़ी २ उठने की तकलीफ नहीं देनी चाहिये । सन्निपात खास कर गुजराती रोग में बार २ उठने बैठने से रोगी बहुत बढ़ता है अतः इसकी सम्हाल की जावे। For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२ ) (३१) बीमार को चाहिये कि उसे भूख हो उससे कम खावे । वैद्यक शास्त्र में बताया है कि पेट अन्न से दो पांती और जल से १ पांती भरना चाहिये तथा एक पांती पेट खाली रखना चाहिये। .: (३२) सूखे, बासी, सड़े हुये, अधपके, जले हुए, धुआं लगे भूट तथा वे स्वादे पदार्थ किसी अवस्था में भी न खाये जावें । (३३) पथ्य को खूब चबा चबा कर खाना चाहिये जिससे वह जल्दी पच जावे और प्रांतों को मिहनत न हो। जिनकी पाचन शकि कमजोर है उन्हें जरूर चबा २ कर खाना चाहिये। (३४) जो बीमार चलते फिरते होते हैं उन्हें खान पान बहुत नियमलर करना चाहिये तथा भारी चीजें नहीं खानी चाहिये। (३५) प्यास लगने पर पानी जरूर पीना चाहिये । उपचारकको चाहिये की वह इस में रोक टोक न करे पर ताप, मंदाग्नि आदि में थोड़ा २ पीना चाहिये। (३६) हर एक को यह समझ रखना चाहिये कि कई वस्तुयें असल में हलकी होती हैं, जल्दी पचती है परन्तु यदि वे बहुत खा ली जायें तो देर में पचती है जैसे चावल, मंग तथा वे संस्कार से भारी भी हो जाती है जैसे बीणज, दालका सीरा, आदि अतः हलकी वस्तुयें भी अधिक न खाई जावें तथा हलकी संस्कार की हुई और भी कम खाई जावें। (३७) कई वस्तुयें स्वभाव ही से भारी होती हैं जैसे उड़द । इसकी दाल बनाकर खाने पर भी देर से पचती है फिर वह अधिक खा ली जावे तो और भी देर से पचती है। पर वही यदि संस्कार की जावे, उसके लड्डु बनाये जावे तो वह For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और भी भारी हो जाती है। एक तो पदार्थ ही भारी है फिर संस्कार से और भी भारी हो जाता है और बहुत देर से पचता है। (३८) पथ्यके समय तथा वहपच न जावे तब तक मानसिक चिन्ता-विचार कुछ नहीं करना चाहिये। (३६) शक्ति होतो पथ्यके पश्चात कुछ टहलना चाहिये। परयाद रहे जल्दी २ चलना वा बहुत दूर जाना नुकसान करता है। (४०) पेशाब-टट्टी की हाजत कभी रोकना नहीं चाहिये । हाजत होने पर टट्टी न जाने से वा पेशाब न करने से अनेक बड़ी २ बीमारिये पैदा हो जाती है वा बढ़ती है। (४१) सुबह-खास कर ज्वरावस्था में रोगी कुछ पथ्य न ले तो चिन्ता नहीं पर संध्या को कुछ न कुछ देना ज़रूरी है (निरने कालजे नहीं सूवणा चहीजे।) (४२) स्वच्छ हवा के बराबर ही यदि कोई महत्व की वस्तु है तो वह स्वच्छ और उत्तम अन्न है। (४३) याद रखना चाहिये कि जो अन्न अच्छे-स्वथ्य अादमी को फायदा पहुंचाता है वह बीमार को और भी बीमार कर देता है, और जो अन्न बीमार को फायदा पहुंचाता है उसको लेने से अच्छा आदमी कमजोर हो जाता है। अतः अवस्थानुसार खान पान लिया जावे। (४४) बीमारीकी खास हालतमें जिस चीजको रोगीका मन खाने को चाहे वह चीज उसे दे देने से जितनी हानि नहीं होती परन्तु बीमारी के बाद कमजोरी में दे देने से भारी हानि होती है। For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४ ) (४५) ज्वरमें खट्टी चरको वस्तुओं पर मन बहुत चलता है। पर खट्टाई से कमजोरी के कारण सूजन श्राजाती है, पाण्डु हो जाता है, ज्वर जल्दी दूर नहीं होता तथा अनेक प्रकार की व्याधिये उठ खड़ी होती हैं। (४६) बीमार के लिये रहन सहनके पथ्यमें स्वच्छ वायुका आना, स्वच्छ जल पोना, स्वच्छता रखना, पाखाना, मोरी, नारदा, पेशाब जगह आदि का साफ रखना, और सूर्य का प्रकाश आने देना बहुत जरूरी और लाभदायक है। इनमें से किसी एक में खराबी वा कमी रहने से बीमारी जल्दी दूर नहीं होती है। (४७) रोगो को हमेशा धुले हुये स्वच्छ वस्त्र पहिनाना चाहिये । बीमारी में पसीना आदिके कारण कपड़े जल्दी खराब हो जाते हैं, उनमें बदबू आने लगती है अतः ५। ४ दिन से कपड़े ज़रूर वदला देना चाहिये। (४८) रोगीके कपड़े जल्दी खराब होते हैं। उसी प्रकार वीछाने का पथरना तथा तकिया भी जल्दी मैला हो जाता है अतः उनकी खोली बदलाना चाहिये तथा धूप भी दिखानी चाहिये । (38) मैले पथरनों में सड़न होती है, बदबू आती हैजो रोगी को लगातार नुकसान पहुंचाती है अतः प्रौढ़ने बिछाने के कपड़े स्वच्छ हो और स्वच्छ रहें इसका प्रबन्ध बराबर रखना चाहिये। (५०) रोगी केकमरे में सामग्री बहुत न रहने देनी चाहिये। अधिक सामग्री से सफाई नहीं होती है। जीर्ष व्याधि [पुरानी बीमारी ] में इसका ज्यादा ख्याल रखना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) (५.३) रोगी के कमरे में चाहे जहां न थूकना चाहिये और रोगी के थूकने के लिये खास बरतन रखना चाहिये । (५२) रोगी के कमरे में जहां तहां पानी ढोल कर, चीखला' नहीं करना चाहिये। (५३) मलमूत्र के पात्र रोगी के कमरे में ही पड़े रखना उचितन ही किन्तु आवश्यकता के समय ले आना चाहिये और पीछे बाहर ही रखने चाहिये। (५४) रोगी के कमरे में घासलेटकी तेज रोशनी नहीं रखनी चाहिये । न विना चिमनी की लालटेन ही रखना चाहियेयह बहुत नुकसान करती है इसका धुंआ रोग बढ़ाने में मदद देता है । मीठे तेल का दीया अच्छा है। तीब्र व्याधि में घृत का दीपक जलाना चाहिये। निरोगावस्था में पथ्य बीमार हो को पथ्य रखना चाहिये वा पथ्य में रहना चाहिये, यह बात नहीं है । बीमार से भी कहीं अधिक निरोगा वस्था में पथ्य रखने की जरूरत है, कारण बीमार होकर उसका इलाज करने की अपेक्षा बीमार ही नहीं इसका साधन रखना वा प्रयत्न करना अधिक श्रेष्ठ है। यह हरएक को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये । इसी सिद्धान्त को मान्य करके हम घरू चिट्टियों में अपने निजी और प्रेमी लोगों को लिखा करते हैं कि 'शरीर रो जापतोरखावसी, अर्थात् हित आहार विहार सेवन करसी। हां यह सच है कि बीमार के पथ्य में थोड़ी सी भूल हो जाय वा साधारण कुपथ्य कर लिया जावे तो बड़ा नुकसान होता है परन्तु तन्दुरुस्ती में साधारण कुपथ्य का बुरापरिणाम प्रत्यक्ष में नहीं दीखता, पर रोज २ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुपथ्य किया जावे, कभी किसी प्रकार का कुपथ्य और कभी दूसरी तरह का कुपथ्य किया जावे तो उससे जरूर तन्दुरुस्ती बिगड़ जाती है । कुपथ्य हमेशा चाहे हम किसी अवस्था में हो -हानिकर है। निरोगावस्था में कुपथ्य का फल तुरंत और प्रत्यक्ष नहीं होता पर उसका बुरा असर शरीर पर अपना प्रभाव करता रहता है और जब शरीर को (Resisting Power) सहन शक्ति घट जातो है तो थोड़े से कुपथ्य से ही अचानक तन्दुरुस्ती बिगड़ जाती है और कभी २ तो बड़ी २ बीमारिय उत्पन्न हो जाती है जो सहज में और थोड़े प्रयत्न में दूर नहीं होती। अतः हमारी खान पान सम्बन्धी भूलों से बीमार न होना पड़े इसके लिये पथ्य रखना बहुत जरूरी है और अंधाधुन्ध जो पाया वही खा लिया पेट में अल लियाइससे बचना चाहिये। तन्दुरुस्ती में निम्न प्रकार ले खान पान तथा रहन सहन रखना हितकर है। इनका पालन करने से सहसा रोग का आक्रमण नहीं होता है और शरीर निरोग बना रहता है। (१) भोजन रोज नियत समय पर-टेमसर-करना चाहिये। (२) एक बार रुचि अनुसार भोजन कर लेना चाहिये-जीम लेना चाहिये पर घड़ी में कुछ खाया और घड़ो पीछे दूसरी चीज खाई-यह ठीक नहीं, इससे पाचन शक्ति में बिगाड़ हो जाता है प्रांतोंको पारामी नहीं मिलती और धीरे २ कमजोर होकर वे मंदाग्नि करोग उत्पन्न कर देती है अतः बार बार नहीं खाना चाहिये । मारवाड़ी समाज में बालक तथा जवान लोग इस नियम का पालन नहीं करते, घे बाजार से कभी कुछ और कभी कुछ खरीद कर घड़ी २ खाते रहते है पर इससे शरीर ताकत वाला होने के स्थान में कमजोर होता है । जो जब प्राथा मंह में डाल लिया रोग पैदा करता है.। ......... For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) भोजन ठूस कर नहीं खाना चाहिये। स्वाद के बशीभूत होकर हम अकसर अधिक खा जाते हैं। कभी,२ मित्रों के यहां जीमनों में अधिक मनवार से बहुत खा जाते हैं पर वह शरीर को नुकसान पहुंचाता है अतः रोज कुछ न कुछ कम ही खाना चाहिये । यदि कभी अधिक खाने के लिये लाचार होना पड़े तो दूसरे दिन नहीं खाना चाहिये वा कम खाना चाहिये। (४) अधिक खट्ट, अधिक मीठे पा बहुत चरके पदार्थ नहीं खाने चाहिये न बहुत परिमाण में इन्हें सेवन करना चाहिये। (५) रोज़ २ भारी चीज नहीं खानी चाहिये, किन्तु कभी कुछ खाली कमो २ । ३ दिन तक नहीं भी खाई इस तरह से मीठाई का व्यवहार करना चाहिये। (६) स्वाद के वशीभूत होकर ही न खाना चाहिये किन्तु इसके लिये पेट से सलाह भी लेनी चाहिये। (७) श्राचार तैल खटाई, मीठा, मेरे को चीजें आदि रोज २ नहीं खानी चाहिये । न बहुत खानी चाहिये। () कोई भी वस्तु खाने को ली जावे पर वह अधिक न लेने से हानि नहीं करती है। (6) जो भुश्राफ़िक न हो वह नहीं खानी चाहिये। (१०) मौसिम में जो फटस-रसाल और साग आदि श्रावे वे जरूर सेवन किये जावें पर कम और किसी २ दिन। (११) रोज एक ही प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिये किन्तु समय २ पर बदलना चाहिये। . . (१२) भोजन प्रातः १० १ ११ बजे और शाम को ६ । ६॥ बजे खाना चाहिये। :: (१३) भोजन साफ जगह में करना चाहिये । गीले. मैले, दुर्गन्ध वाले स्थान में जहां धुत्रां प्राता हो वहां नहीं जीमना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८ ) (१४) भोजन शान्ति पूर्वक करना चाहिये । (१५) भोजन करने बैठे तब हाथ पैर को खूब साफ धोना चाहिये । बिना हाथ पैर धोये भोजन पर बैठ जाने से कितने ही रोगकारी परिमाणु भोजन के साथ पेट में हाथ पर से चले जाते है और उनसे कितने ही संक्रामक रोग पैदा हो जाते हैं। (१६) भोजन में विरुद्ध आहार नहीं होना चाहिये । दही दूध, रायता खोर, अचार खीर, अचार दूध, गट्टे खीर, कढ़ी दूध श्रादि साथ २ सेवन न किये जायें। लोग स्वाद के कारण खट्टे मीठे तथा एक दूसरे से विरुद्ध वाले पदार्थ साथ मिल कर खा जाते हैं पर वे एक प्रकार का रोगोत्पादक विष पैदा करते जो अचानक तीव्र रोग पैदा कर शरीर को जोखिम में डाल देते हैं अतः थाली में जो वस्तु आवे वही खाना जरूरी है यह नहीं, किन्तु जो लाभकारी हो वही सेवन की जावे। (३७) भोजन में पहिले भारी अर्थात् मीठाई, खोर, ग्धीण, आदि और फिर हलकी चीजें खावें। फल भोजन के पहिले खाना चाहिये । केला ककड़ी मूला, दाड़म, भोजन के बाद खावें । अरवी, भीडी आदि ___ (१८) सर्दी की मौसिम में यदि दाडम वगैर खाने की इच्छा हो तो धूप में बैठ कर खानी चाहिये और उन पर ठण्ढा पानी न पीकर गर्म पीना चाहिये जिससे ठण्ड न लगने पावे। (१६) भोजन के बीचमें थोड़ार जल पीना चाहिये। भोजन के बाद पानी पीना खराब है कई लोग भोजन के बाद डकल २ पानी पी जाते हैं पर उससे अन्न देर से पचता है। (२०) भोजन के समय पानी थोड़ा पीना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 8 ) (२१) भोजन जल्दी २ न किया जावे किन्तु प्रत्येक ग्रास खूब चबा २ कर निगला जावे। बिना चबाये जल्दी निगल जाने से खाया अन्न देर में पचता है, आतों को परिश्रम बहुत करना पड़ता है। बहुत लोगों को तो जल्दी २ खाने के कारण ही कई बार बीमार होना पड़ता है। (२२) ठंडी रोटो तथा साग वगैरह नहीं खाने चाहिये न ठंडी कोई वस्तु पीछी गर्म करके खानी चाहिये ।। (२३) जल साफ-स्वच्छ पीना चाहिये, तृषा रखने से खून सूखता है, गर्मी बढ़ती है । भूख लगी हो उस समय जल पीना, पेट का गोग पैदा करता है । उसी प्रकार प्यास में खाने से गुल्म रोग होता है अतः प्यान लगे उस समय जल पीना चाहिये और भूख लगे तब भोजन करना चाहिये। (२४) भोजन करने के बाद बैठे रहना वा सो जाना अच्छा नहीं किन्तु कुछ समय तक धीरे २ घूमना चाहिये। . (२५) भोजन से उठने के बाद बहुत दूर पैदल जाना, जल्दी जल्दी चलना, दौड़ना, सवारी करना, कसरत करना, मेहनत का काम करना, स्नान करना, तपतापना बुरा है अतः घण्टे आध घण्टे तक अारामी Rest करना चाहिये। ___ (२६) दिन में लोना बुरा है पर गर्मी की मौसिम में हानि नहीं करता है। (२७) धूप में नंगे पैर नहीं फिरना चाहिये न पैर गीले रखना चाहिये। (२८) प्रातः जल्दी उठना चाहिये, और सब से पहिले शौचादि से निपट कर भगवान् का स्मरण करना चाहिये । (२६) मल त्याग हमेशा नियत समय जरूर त्यागना चाहिये और टट्टी में बहुत समय न लगाना चाहिये, वहां इधर For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५० ) उधर के विचार करने से दस्त देरसे लगती है और फिर धीरे २ समय अधिक लगने की आदत हो जाती है । _(३०) टट्टी बहुत साफ रहनी चाहिये। लोग इसकी स्वच्छता के प्रति बहुत ध्यान नहीं देते पर स्वास्थ्य को बिगाड़ने में टट्टी की सड़ांद दुर्गन्धि ही अधिक हानि पहुंचाती है अतः इसकी सफाई के लिये विशेष ध्यान रखना चाहिये । चने से २।४ महीने में टट्टी का मकान पुतवा देना चाहिये और फर्श पर चना वा फिनाइल छिड़कवाना चाहिये। __ (३१) पेशाब अथवा टट्टी की हाजत हो तब सब काम छोड़ पहिले हाजत दूर करनी चाहिये । शंका मारने से कई रोग हो जाते हैं, कब्जी की आदत पड़ जाती है । (३२) दातन हमेशा करना चाहिये । पेट के बुरे परिमाणु वाफ-श्वास द्वारा अाकर दांतों पर रातको जम जाते हैं, वे अच्छी तरह साफ न करने से पीछे भोजन वा पानी के साथ पेट में जाकर कई प्रकार के रोग पैदा करते हैं, पाचन शक्ति बिगाड़ देते हैं । मुंह में बास आती है, दांत खराब हो जाते हैं, वस्तुओं का स्वाद बराबर मालूम नहीं पड़ता अस्तु दांत हमेशा साफ़ रखे जायें। (३३) दांतन बंबूल वा नीम का हमेशा प्रातः शौच से निवृत होकर करना चाहिये। अंगुली से दांतन कर लेने से पूरा लाभ नहीं होता। * दंतमञ्जन अच्छा होतो उससे भी दांत साफ किये जा सकते हैं। -------------------- __*नीचे लिखे दन्त मंजन के प्रयोग अच्छे और लाभदायक है अतः इनमें से जो पसन्द पड़े उसे तयार करके काम में लावें। (१) नीम की लकड़ी का कोयला तोला १०, सैन्धव तोला २, सफेद जीरा सेका तोला १, सोगी फूली तोला! For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) दांतों को भोजन के बाद भी रोज साफ करना चाहिये। (३५) दांतों की सफाई जो अच्छी रखता है उसके दांत वृद्धास्था में भी मजबूत रहते हैं। (३६) प्रति सप्ताह क्षौर करानी चाहिये। (३७) कसरत जरूर करनी चाहिये । सभी लोगों को थोड़ी बहुत और नहीं तो अपने २ घर ही में कसरत करनी चाहिये। इससे शरीर निरोग और फुर्तिला रहता है, और सहसा कोई रोग आक्रमण नहीं कर पाता। लिखने पढ़ने का काम करने वालों को जरूर ऐसा कोई काम रोज करना चाहिये जिसमें मिहनत हो । कसरत रोज नियत समय पर करनी चाहिये पर ताकत बढ़ाने की इच्छा से बहुत अधिक करनी बुरी है। तमालपत्र तोला १, पीपल तोला १, अकलकरा तोला १, कपूर तोला :-विधि-प्सबको अलग २ पीस कर मिला लें । मञ्जन बहुत बारीक पीसा जावे इसका खास ध्यान रखें। (२) फुलाया मोरथूथा तोला १, सोगी फुलाई तोला २ फुलाई फिटकरी तोला ३ चाक तोला ८, लौंग तोला २-सब को बारीक पीसकर मिला लें। (३) कपूर तोला १, कत्था तोला १, हिरादखनी तोला १, इलायची तोला १ माजूफल तोला १-इन सबको बारीक पीस मिला लें। (४) बादाम के छोड़ों के कोयले तोला १०, चाक तोला १०, टंकण तोला १, सोडा तोला १, मोरथूथा मासा ३, दालचीनी, तमालपत्र, अकलकरा, पीपल, लौंग, कपर, माजूफल कत्था ये सब प्राधा २ तोला ले। सबको बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ ) (३८) शरीर में शक्ति हो उतना काम करना चाहिये। (३६) रोज नहीं तो कभी २ तो जरूर तैल मसलाना चाहिये। पैर के तलुओं में तथा शिर में तैल जरूर लगाना चाहिये। (४०) स्नान रोज करनी चाहिये । सर्दी में ठंडे नहीं तो गर्म जल से की जावे । बन्द मकान में जहां हवा का झोंका बदन पर न लगता हो वहांकरनी चाहिये । हवा लगे वहां स्नान नहीं करनी चाहिये । स्नान करने के पश्चात् शरीर को सूखे अंगोछे से जरूर पोछना चाहिये, फिर स्वच्छ और सूखे कपड़े पहिनना चाहिये। (४१) कपड़े स्वच्छ और सर्दी गर्मी से बचाने वाले होने चाहिये । बनीयान-कबजा बहुत साफ़ पहिनना चाहिये । सर्दी में ऊन के तथा रुईदार कपड़े पहिने जावें। रुई के कोट से शरीर काचा हो जायगा यह विचार लोगों का गलत है। (४२) वायु सेवन-खुले मैदान में करने जरूर जाना चाहिये । हवा का झोंका न लगे इसके लिये खूब कपड़े पहिने हुये होने चाहिये। (४३) ठंडी हवा चलती हो उस समय मुंह से श्वास न लेकर नाक से श्वास लेना चाहिये जिससे जुखाम, न्यूमोनिया की शिकायत न होने पावे। (४४) वन्द मकान में नहीं सोना चाहिये। मुंह ढक कर नहीं सोना चाहिये। प्रौढ़ने बिछाने के बिस्तर साफ होने (४५) मकान के बारी बारने खुले रखे जावें जिससे ताजी हवा सदा मिलती रहे तथा प्रकाश और धूप भी आती रहे। यदि ठण्ड का भय हो तो श्रौढ़ने के कपड़े विशेष शरीर पर रक्खे जावें तथा परदे लगा दिये जावेपर एक दम खिड़किये बन्द न की जावें। चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४६) खाट पर सोना चाहिये । जमीन पर सोने से ठण्डी का असर अधिक होता है फर्श की सील (Dampness) स्वास्थ्य को बिगाड़ती है। (४७) कमरे में जलती कोयलों की अंगेठो रखकर न सोना चाहिये, नहीं तो कोयलों को गेस से उस कमरे में, सोने वालों को हानि पहुंचता है, वे अचेत हो जाते हैं, उनका जो घबड़ाता है, उल्टो होती है। सर्दी को मोसिम में ऐसे कई केस होते है अतः लावधान रहना चाहिये । (४८) संक्रामक रोग फैला हुआ हो उन दिनों में खाली पेट बाहर नहीं जाना चाहिये किन्तु, कुछ खाकर बाहर निकलना चाहिये जिससे बीमारी के धावा होने का भय कम हो, पैर में मोजे पहिनने चाहिये, रोगो के मुंह के पास अपना मुंह न ले जाना चाहिये, और अपने पास (Eucalyptus oil) से तर किया रूमाल रखना चाहिये। (४६) मन्छ ले बचाव करना चाहिये। (५०) भीड़ में नहीं बैठना चाहिये। (५३) पैर ठंडे होना कोई न कोई बीमारी का रूप है अतः पैर सदा गर्म रहें इसका प्रवन्ध रखना चाहिये । गोले में खुले पैर कभी नहीं फिरना चाहिये। (५२) वर्ष में १०-२० दिन काम काज से फुरसत लेकर पूर्ण आरामी (Complete rest) करना चाहिये। (५३) बीमार के पाप्त बहुत निकट अपना मुंह वगैरः नहीं ले जाना चाहिये, नहीं तो बीमारी के बुरे परिमाणु अपने श्वास में चले आवै और नुकसान उठाना पड़े। (५४) 'टेमसर' रात को सो जाना चाहिये और शान्ति पूर्वक सो जाना चाहिये, नींद की कमी से अच्छी खूराक भी ताकत For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४ ) नहीं देती है, शनि घटती जाती है और शरीरिक तौल Weight भी घट जाता है। अधिक सोने से मेद बढ़ती है। (५५) नियमित भोजन करने से दीर्घ जीवन प्राप्त होता है । (५६) बहुत से लोगों का ख़याल है कि पुष्टि-कारक पदार्थों के अधिक व्यवहार से ही अधिक बल होता है किन्तु पुष्टिकारक पदाथों को सेवन कर अच्छी तरह हज़म नहीं कर सकते उनके लिये वह भोजन विष का काम करता है। (५७) जो लोग अच्छी तरह अग्नि चेतन न होने पर लालसावश अजीर्ण ही में भोजन करते हैं वे अग्निमांध, अम्लपित्त, शूल, प्रमेह आदि रोगों के द्वार होकर अकाल मरण का मुंह देखते हैं। (५८) खान पान के बिगाड़ भिन्न २ प्रकार के स्वादिष्ट पदाथ तथा मिठाइयों को सेवन करने की रुचि आजकल लोगों की बहुत हो गई है । अन्य सुधारों की भाँति भोजन की तैयारी में भी अनेक प्रकार के सुधार (?) होते जा रहे हैं पर इन सुधारों की कृपा से सैकड़ों प्रकार के स्वादिष्ट किन्तु अप्राकृतिक पदार्थ बनने लगे हैं जो स्वाद के रूप में धीरे २ विष का सा असर करते हैं। सौम्य खाद्य पदार्थों के स्थान आज तामसी खान पानों का प्रचार बढ़ रहा है। आज जो रसोइयाधुंआधोर-चरपराहट और तमतमाहट वाले शाक बनाता है तथा कई प्रकार के स्वादिष्ट पक्वान्न बनाना जानता है वह हुशियारों में गिना जाता है, उसकी सब जगह प्रतिष्ठा होती है, उसकी घर २ चाहना रहती है, उग्ने अपने यहाँ रखने और उसका बनाया भोजन करने के लिये सभी इच्छुक रहते हैं, परन्तु कोई इस बात का विचार नहीं करता कि ऐसे स्वादिष्ट किन्तु अशकृतिक पदार्थो से शरीर को क्या लाभ और क्या हानि पहुँचती है ? लोगों ने स्वाद ही को गुण मान For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५ ) लिया है पर यह ग़लत है, स्वाद के मोह में वे यह नहीं जानते और न जानकर सहजही में विश्वास करते हैं कि चरपराहटवाले शाक पान से, स्वादिष्ट पक्वान्नों से, तथा कहने को लज्जतदार रसोई से शरीर में ताक़त-पोषण पहुँचने के स्थान आमाशय बिगड़ कर अनेक प्रकार के रोग पैदा होते हैं जो धीरे धीरे प्रवल रूप धारण कर शरीर को नष्ट कर देते हैं । ऐसे खान पान से कलेजा (लोवर) विगड़ कर सुस्त हो जाता है जिससे कुछ समय पश्चात् अन्न वराबर पाचन नहीं होता और बार २ अजीर्ण होता रहता है, कभी उल्टी होती है, कभी जी मचलाता है, कभी पेट फूल जाता है, कभी पेट में दर्द होता है, कभी सिर में पीड़ा होती है और कभी मुँह में छाले हो जाते हैं, इन के सिवाय उत्साहमन्द तथा दूसरे कई रोग पैदा हो जाते हैं पर जीभ को वश में न रख सकने के कारण ऐसे रोगों से भुगते हुये भी आजकल के स्वादिष्ट पदार्थों को देखते ही उसे खाने के लिये कोई ना कहने की हिम्मत नहीं रखते, भूख न होने पर भी, पेट भरा हुआ होने पर भी, भोजन किये को देर न हुई होने पर भी म्वाद से बहुत अधिक खा लिया जाता है कि जिसका अन्त में परिणाम सिवाय वोमारी पैदा होने के और कुछ नहीं हो सकता है। खाने के पहिले अपने पेट की अवस्था समझ लेनी चाहिये, पर स्वादिष्टता के आगे पेट ज़बरदस्ती ठूमा जाता है, उस समय पेट में उसके लिये जगह है वा नहीं इसका ख्याल नहीं किया जाता किन्तु जितना खाया जा सके उतना खा लिया जाता है । यहाँ तक की अजीर्ण हो रहा हो, खट्टी डकारें आती हो, छाती में जलन मालूम पड़ती हो, दस्त की कब्जियत हो, तो भी स्वादिष्ट पदार्थ को खाने के लिये इन्कार कैसे किया जावे ? पर लोगों को समझना चाहिये कि उल्टी, अपचन, अरुचि, सिर पीड़ा, खट्टी डकार आदि सब अजीर्ण के For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिह्न हैं और अजीरा एक प्रकार का गुप्त विष है जो न जाने कब किस तरह से मनुष्यों का नाश कर देता है जिसका पहिल अनुमान नहीं लगाया जा सकता। साधारण अवस्था में ऐसे खान पान का बुरा असर उसी दिन मालूम नहीं पड़ता है इसी से लोग निर्भय होकर व अजान में रहकर स्वादिष्ट पदार्थों से पेट को भरते हैं और समझाने पर भी सावधान नहीं होते हैं । स्वास्थ्य ज्ञान की कमी के कारण अब काम काज से छुट्टी के दिनों में, नये दिनों में, तथा उत्सवों और प्रानन्द के अवसरों में स्वादिष्ट के नाम से पोषण में होन पदार्थों का सेवन कर लोग आनन्दित बनते हैं पर अनेक बार इस प्रकार स्वादिष्ट पदार्थों से आनन्दित होकर हम परोक्ष में अपनी रोग प्रतिबन्ध शनि गंवा देते हैं और फिर थोड़ी सी सी गर्मी से पीड़ित हो कर कष्ट उठाते हैं। स्वास्थ्य के लिये सब से बुरा रोग अजीर्ण है पर अजोर्स न होने पावे इसकी कोई सम्हाल नहीं रखते हैं। अजीर्ण में भोजन करना विष के समान है, शास्त्र में इसके लिये बड़ी २ आज्ञाय है पर प्रायः देखा गया है कि कितने हो तो अजीर में स्वादिष्ट, अप्राकृतिक, किन्तु विरुद्ध और भारी भोजन कर अजीर्ण को और भी पुष्टि प्रदान करते हैं, वे लमझते नहीं वा जानकर मूखों की भांति परवाह नहीं करते कि स्वयं उन्होंने ही पेट की सामर्थ्य से कहीं अधिक भोजन करके अजीर्ण रूपी विष उत्पन्न किया है और अब उसमें फिर अधिक खाकर अजीर्ण रूपी विष में वृद्धि करना मानो अपने कृत्यों से ही मौत को जल्दी बुलाना है। जिन लोगों को अजीर्ण से दूसरे रोग पैदा हो जाते हैं वे रोग का कारण न समझ नेधों और डाक्टरों से-मुझे उल्टी होती है, मुझे दस्ते लगती है, पेट फूल रहा है-इत्यादि शिकायत करके दवा मांगते हैं। वैद्य जी रोग For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७ ) का कारण लमझ कर उन्हें लंघन करने का तथा पथ्य रखने का उपदेश देते हैं जिससे उनके पेट की सड़ांद दूर होकर कोठा-आमाशय साफ हो जाये । पर इस प्रकार की सादी औषधिय देने वा इलाज बतलाने से वे कहा करते हैं कि "खर्च पड़ जाय तो कोई परवाह नहीं है, परन्तु मुझे कोई बढ़िया, कीमती, अकसीर दवा वा भस्म आदि दोजिये, खर्च के वास्ते विचार न करिय. परन्तु मेरा रोग एक दो दिन में शान्त हो जावे ऐसा करिये, साथ ही साथ खूराक भी जारी रहे ऐसी दवा दीजिय, मुझसे लंघन नहीं हो सकता न पथ्य ही रखा जा सकता है" । विचारे अपने रोग का मूल कारण नहीं समझते इससे वे यदि ऐला कहें तो इसमें कोई अनोखी बात नहीं है । तन्दुरुस्त रहने के इच्छुक लोगों को यह सदा स्मरण रखना चाहिये कि प्रथम तो रोग का मूल कारण हूँढ कर उसे दूर करने का यत्न करना चाहिये फिर रोग को शान्त करने के उपायों की योजना करनी चाहिये । रोग दूर करने का सब से बढ़िया यही मार्ग है। केवल दवाओं से ही रोग दूर करने का विश्वास रखना गलत है क्योंकि बहुत दवायं खाने से फायदा होता नहीं देखा गया किन्तु उल्टा नुकसान ही पहुंचता है। भोजन में होडाहोड (देखा देखो) करने से भी हानि होतो है । अमुक दो लड्डू खाता है तो मैं तीन खा सकता हूं, तुम एक रोटी लो तो मैं दो लू, जो तुम एक लडडू लो तो मैं भी एक लड्डू ले लू, इस प्रकार देखा देखो से लोग अधिक भोजन करके अपने आमाशय को बिगाड़ कर जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं ? फिर अजीर्ण, उल्टी, दस्त, आदि से पीड़ित होते हैं पर प्रारम्भमें इसका विचार नहीं रखते और भोजन करते समय स्वाद के वशीभूत होकर होडा होड करके अधिक स्त्राना खा जाते हैं। लोगों को इस बात का विचार करना For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( पू.) चाहिये कि होडाहोउ द्वारा वे क्यों बिना जरूरत अन्न को बरबाद करते हैं और स्वयं पीड़ित भी होते हैं ? होडाहोडी से अधिक खाना मानो पेट में अन्न के रूप में विष पहुंचाना है, यह तो अपने ही हाथ से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। यदि अन्न को कहीं गीली जगह में दो चार दिन रखें तो उसमें सड़ांद-दुर्गन्ध उत्पन्न होकर बदबू निकले बिना नहीं रहती है, उसी प्रकार आमाशय में अधिक डाला हुआ भोजन भी पचता नहीं किन्तु बातों में सड़ने लगता है और उससे बदबू, खट्टापन, उल्टी, डकार आदि जो मालूम होती है वह एक प्रकार मनुष्य को सावधान करती है कि भाइयो ! होशियार हो जावो! तुम्हारे पेट में सड़न पैदा होगई है और यदि योग्य प्रतीकार नहीं किया गया तो परिणाम अशुभ होगा। पर तो भी लोग बिना समझे अजीई में खाना खाकर और भी अधिक सड़ांद पैदा करते हैं। . खाने में अति आग्रह-यह भो शरीर को हानि पहुंचाता है। मेरी सौगन्ध, तुम्हारी सौगन्ध, मेरे अाग्रह से इतना और खाइये, मेरी मनवार से लीजिये, मैं तो मनवार करने अव ही आया हूं, मेरी मनवार भी नहीं लोगे? क्या मुझ से नाराज़ हो? आदि २ 'अपणायत' और प्रेमकी बाते जीम लेने के पश्चात करके, जीमनेवाले पर दवाव डालकर कुछ और खा लेने के लिये लाचार करना किसी रूप में भी उचित नहीं, लोग अधिक खाने से अानन्द समझ कर, खानेवाले को अधिक परोसदेते हैं और विचारे खाने वाले अनिच्छा होने पर भी नाराज़गी के डर से अधिक परोसा हुआ खा कर अपने पेट को बिगाड़ते हैं । मनवार ! करनेवालों को यह समझना चाहिये कि वे मनवार द्वारा दूसरों पर प्रेम प्रगट करने हैं पर परोक्ष में उससे दूसरों को हानि पहुँचती है। अतः यह For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 48 ) प्रेम नहीं किन्तु एक प्रकार का शत्रुत्व है, अस्तु भोजन में अति आग्रह करके विशेष खिलाने की ज़रूरत नहीं है, न अच्छापन ही है। कितने ही लोग मनवार ही से भर पेट खाते हैं और जो मनवार उनकी जिमानेवाला न करे तो बुरा समझते हैं इसलिये कहीं २ ज़बरदस्ती मनवार करनी पड़ती है। पर यह रिवाज़ बुरा है। नास्ता (जल-पान) भी हानिकर है आजकल नास्ता भी मनुष्य के श्रआमाशय को बिगाड़नेवाला एक बड़ा साधन हो चला है। अच्छी तरह खाये हुये हों और पेट में जगह न हों तो भी जल-पान करने का अवसर उपस्थित हो जाता है । जहाँ दो दोस्त इकट्ठे हुये कि नास्ता ( ब्लाटीङ्ग पार्टी ) करने की चर्चा छिड़ जाती है और नास्ता किया जाता है, पर यह बड़ी भूल है जिमका ख्याल नहीं किया जाता है । पहिले तो जितना मिल जाय उतना ही पेट में डालने को तैयार होजाते हैं और पीछे यदि उनको अजीरा वा उल्टोत्रादि हो तो दवा लेने दौड़ते हैं पर अजीर्ण तथा उल्टी तो केवल जल पान के उस ज़हर को बाहर निकालने के प्रयास मात्र है जिसे वे सहज में समझ नहीं सकते। देखा देखो इससे भी शरीर को हानि पहुँचती है । पड़ोसी के यहाँ घेवर बने हैं तो अपने घर में भी वही बनने चाहिये, चाहे बालक बीमार ही क्यों न हो, चाहे अजीर्ण ही क्यों न हो रहा हो, परन्तु पड़ौसी के जो बना है वही अपने यहाँ भी बनना चाहिये । नहीं तो परस्पर व्यवहार में खामीभावेगी, कमी पड़ेगी और लोभी भी समझ जावेंगे । ये सब बुरे ख़याल हैं जो लव त्याग देने के योग्य है । देखा देखी ले कई हानिये होती है जिसकी समझ तत्काल भले ही न पड़े परन्तु अधिक समय बाद उससे शरीर तथा पेशे, दोनों को नुकसान अवश्य पहुँचता है। खान पान से For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीमारी में पथ्य (DIET) पथ्य की महिमा वोमारी में विशेष मालूम पड़ती है और इसकी आवश्यकता भी तभी अधिक समझी जाती है अतः बीमारी में पथ्य का पालन बरावर किया जाये । पथ्य के सम्बन्ध में यह बात सदा स्मरण रखने की है कि तन्दुरुस्त और बीमार के खान पान में सदा फ़र्क रहता है । तन्दुरुस्त हालत में जो पदार्थ हितकारी होता है वही पदार्थ बीमारी में उसी आदमी को नुकसान भी कर सकता है। कितने ही पदार्थ स्वभाव से हितकारी होते हैं और तन्दुरुस्ती में उनका उपयोग बेखटके किया जा सकता है पर बीमारी में वेही पदार्थ हानि भी पहुंचाने वाले हो जाते हैं अतः तन्दुरुस्ती के समय का खान-पान बीमारी के समय भी लाभदायक समझ कर उपयोग करते रहना सदा उचित नहीं। बीमारी में रोग जल्दी दूर हो इसी का ध्येय रखना पड़ता है अस्तु बीमारी दूर होने में जिन साधनों से सहायता मिलती हो वे ही साधन तथा खान-पान हितकर समझ कर-पथ्य मानकर सेवन करना चाहिये और इसके लिये रोज के खानपान में योग्य फेरफार करके रोगानुसार भिन्न २ प्रकार का पथ्य पालन करना चाहिये। बीमार के लिये पथ्य पसन्द करते समय इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि वह पथ्य प्रथम तो उस रोग को दूर करनेवाला हो अथवा रोग के कारण को दूर करने में मदद देने वाला हो, शक्ति दायक हो (बोमारी में गेग-पोड़ा के कारण सहन-शक्ति-Resisting power इतनी घट जाती है कि वह उक रोग से आराम होने तक अपना टिकाव-सामना नहीं कर सकता अतः शक्ति बनाये रखने के लिये शक्ति दायक पथ्य का सेवन करना आवश्यक है)। जल्दी पच जाता हो और स्वादिष्ट भी हो। इन गुणों के साथ २ वह रोगी के मुत्राफ़िक भी श्राता हो और उस पर उसकी रुचि भो हो। For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६१ ) सामान्य पथ्य (General Diet ) निम्न खाद्य पदार्थ श्रादि प्रायः सभी रोगों में पथ्य के रूप में विशेष व्यवहार में आते हैं। आवश्यकता होने पर इनमें से श्रवस्थानुसार रोगी के लिये जो २ हितकारी हों और मुनाफ़िक भी हों उनकी व्यवस्था करनी चाहिये । साधारण अवस्थामें वैद्य पथ्य नहीं बतलाते पर रोगी को चाहिये कि वह सदा पथ्य में रहे और नीचे लिखी वस्तुओं में से जो पसन्द श्रावे उनका उपयोग करे । dren (Acute ) अथवा नवीन तरुण रोगों में, अत्यन्त निर्वलावस्था में, मदाग्नि में तथा खास कर ज्वरादि व्याधियों मैं इनका उपयोग विशेष किया जाता है। पुराने तथा जीर्ण ( Chronic ) रोगों में तथा खास २ बीमारियों में और भी कई प्रकार के खाद्य पदार्थ तथा फल फूल ( Fruits) आदि भी दिये जा सकते हैं जिनकी व्याख्या श्रागे भिन्न २ रोगों के पथ्य में की जावेगी । पश्य दूध -- ( पाचन न होता हो अथवा रोगी दुर्बल होतो दूध में जल, पीपल, सोंठ, तुलसी आदि उष्णद्रव्य वा चने का पानी वा सोडा मिला कर गर्म करके छान कर थोड़ा २ बार बार ३३४ घण्टे के अन्तर से दिया जावे ।) अपथ्य बासी पदार्थ बहुत समय पहिले तैयार किये हुये पदार्थ | भारी चीजें (बाटिया, रोटा, सोगरा, घाट, खीच, खारिया, बाटी, चीलड़ा, सीरा, लापसी, मिठाई, खीर, रबड़ी, मावा, पूड़ी, सूखे फूट्स आदि । For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैल [ ६९ ] मंग का पानी (यदि लंघन ! मिठाई। कराया हो तो अन्न प्रारम्भ मावे की चीजें गाढा किया करने के पहिले दो तीन दूध माषा,गुजा, पेठा आदि। समय दिया जावे) घृत-खास कर अधिक भूने मूगों की दाल (मंदाग्नि मात्रा में, कफ के रोग में, में साधारण दालकी अपेक्षा मंदाग्निमें, तथा यकृतरोगमें। जल्दी पचती है। आचार मंग की दाल दही बड़े (रायता) जव का पानी Barley सीजती में घृत डालकर तैयार water बावलो का मांड किये पदार्थ (थूली में, मंगो में, खीचड़ी में, दलिये में चावलों की फूली चावलों में, मोण वाली रोटी, साबूदाना (पानी वा दूध में तैयार किये हुये।) मोण वालो पुड़ी आदि।) खटाई (अमचूर, काचरी) दलिया (बाजरी का मूंग की । आमली खट्टा दही) दाल के साथ।) अधिक खाना, चावल (बिना खांड के) वार बार खाना थूली दूध-दूहने के पश्चात् ठण्डा खिचड़ी तो ४ घण्टे और गर्म किया पटोलिया ६घण्टे बाद पीना। गेहूं की रोटी गेहूं का अंगार बाटिया चंदलिये का शाक कर वृन्ताक স্থা जमीकन्द For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६३ ) आंवला सेन्धा नमक बड़ियें पापड़ घृत की सेव घृत का मोगर सेव अनार (ठंड के रोगों नहीं) नारंगी द्राक्ष, मिनका दाख फालसा नीबू (?) धृत (तरुण व्याधि में बहुत कम, कफ को बीमारी में बिलकुल नहीं, अन्यावस्था में साधारण तौर पर।) खांड (कफ न हो तो दूध में वा साबूदाने में मिलाकर थोड़ी सेवन की जावे।) जल अस्वच्छ और बिना छना जल स्वच्छ जल बासी पानी। ताजा और छाना हुश्रा दिन का गर्म किया रात को ( गर्मी की ऋतु में बासी और रात का गर्म किया दिन पानी ठंडा होता है उस से को सेवन करना। वह भी निर्मल सेवन किया जा सकता है।) For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६४ ) ईंट अवस्था में ) गर्म किया जल अधिक उबाला जल ( तीक्ष्ण बीमारियों में तथा संक्रामक रोगों के समय ।) बुझाया जल (साधारण रहन-सहन ( १ ) रोगी के कमरे में हवा अच्छी तरह आती और जाती रहे इसके लिये बारी बारने खुले रखे जावें (तीव्रव्याधि, अत्यन्त निर्वला चस्था तथा शोतकाल में Caution रुकाव के साथ इसका उपयोग हो ।) (२) रोगी के कमरे में उजि याला श्राता रहे वैसा प्रबन्ध रखें (3) योमार के शरीर पर हवा का झोका न लगने पावे इसकी खासतौर पर सम्हाल रखी जावे ( रोगो का शरीर गर्म कपड़ों से खूब ढका रखा जावे तथा उस की खाट बारी बारने के पास नहीं बिछाई जावे ।) Špangala गर्म जल में ठंडा जल मिला कर पिलाना । (१) रोगी के कमरे में हवा बिलकुल न आने देना । (२) रोगी ने बिछाने तथा पहिनने के कपड़ों का | अच्छा प्रबन्ध न रखना । (३) हवा का झोका शरीर पर लगने देना ( काफी ज़रू रत अनुसार गर्म कपड़े शरीर पर न रखना ।) (४) स्वच्छता न रखना (५) कमरे में ग्रहस्थ की बहुत सी वस्तुयें पड़ी रखना भीड़ रखना । (६) मैले कुचैले कपड़े पहिनना (७) धूप तथा उजियाले की रोक रखना । (८) कमरे में जहां तहां For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६५ ) (४) रोगों के ओढ़ने,बिछाने पानी ढोल कर 'चोखला' तथा पहिनने के कपड़े समय करना समय पर यदले जावें। कपड़े (E) शक्ति से अधिक परिबहुत साफ और धुले हुये श्रम करना। रखे जायें। (१०) बहुत बोलना। (५) रोगी के कपड़ों को (११) धन्धे का फिक कभी २ धूप भी दिखा दी करना। जाये। (१२) कमरे में आदमियों (६) रोगी के कमरे में की बहुत भीड़ होने देना। भीड़ न होने दी जावे। (१३) रोगी को घड़ी २ (७) रोगी के कमरे में उठाना, बैठाना तथा बतस्वच्छता रखो जावे। लाना। (८) रोगी के कमरे में (१४) रोगी को दिक प्रोद्रता वा शोल Damp- करना, डराना व धमकाना। neSS न होने पावे इसके लिये वहां श्राम पाल पानी म ढोला जावे। (8) रोगी के कमरे में धूप अगरबत्ती, रोज जलाई जावे। (१०) रोगी को किसी प्रकार की खेचल-परिश्रम न करने देना। (११) रोगी को सदा एक से Temperature ताप मान वाले स्थान में रखना चाहिये। (बिना खास जक For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६६ ) रत के रोगी को कभी भीतर और कभी बाहर न भाना चाहिये)। (१२) रोगी को प्रसन्न रखना। (१३) रोगो के साथ मृदु व्यवहार तथा मिष्ट भाषण करना चाहिये यदि वह कुपथ्य कर भी ले तो उसे कटु वाक्य कहना वा धमकाना वा डराना नहीं चाहिये किन्त, समझाना चाहिये। सर्व ज्वर-FEVER. सामान्य पथ्य में जो २ खाद्य पदार्थ बतलाये हैं उनमें से अनेक द्रव्य ज्वर में विचार के साथ उपयोग किये जा सकते ज्वर के प्रारम्भ में ११२ टक लंघन किया जावे तो अच्छा है। लंघन से रोग के कारण दूर हो जाते हैं। लंघन शकि अनुसार किया जावे, जो गुण लंघन से होता है वही साधारण अवस्था में कुछ कम और हलका खाने से हो जाता है । लंघन इतना नही किया जावे कि जिससे शक्ति बहुत घट जावे ( सन्निपात आदि ज्वरों में लंघन अधिक भी कराना पड़ता ज्वर में पथ्य जहां तक हो 'तरल पदार्थ का दिया जावे तथा वह भी थोड़ा २ किन्तु बार बार दिया जावे । साधारण For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६७ ) अवस्था में श३ घण्टे के अन्तर से पथ्य दिया जावे। मियादो बुखार में तथा तरुण ज्वर में चींगट तथा मीठा न दिया जावे । भारी पदार्थ भी न दिये जावें। ज्वर से श्रआमाशय में एक प्रकार का बिगाड़ उत्पन्न हो जाता है अतः खान पान की सम्हाल रखो जावे । ज्वर दूर होजाने पर भी परहेज कई दिन तक रखना चाहिये, स्नान, ठंरी हवा का सेवन, अधिक घूमना। भारी चीजें खाना, परिश्रम करना आदि सब ताकत पीछी न आ जावे तब तक सेवन करना कुपथ्य है। पथ्य अपथ्य दूध-कफ ज्वर हो तो भारी अन्न। नहीं अथवा उष्ण दवाओं स्निग्ध भोजन के साथ, साधारण अवस्था मीठाई। में थोड़ी खांड़ मिला ली अधिक घृत मिली चीजें जावे, तुलसी, साठ, पीपल सीजती में घृत मिलाई केसर, दालचीनी, व जव वस्तुयें। के पानी के साथ लिया छाछ। जावे। खटाई (वमन व तृषा के हलका अन्न। उपद्रव के बिना।) कम भोजन। अतिभोजन । मंग की दाल (बिना प्रकृति विरुद्ध भोजन। धोई)। ठंडा बासी भोजन । साबूदाना। पूड़ी। जव का पानी। कचौड़ी (ताव उतर जाने चावल (कफ हो तो नहीं) पर रुचि के लिये थोड़ी दलिया लूखा सी कभी ली भी जा सकती खिचड़ी लूखी थुली ठंडी चीजें खाना। For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रोटी गेहूं की लूखी श्रंगार बाटिया खा वृन्ताक | मेथी सुखी-हरी बड़ी (दस्ते लगती हो तो नहीं) चंदलिया । पोदीना । अनार अंगूर नीबू www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापड़ | स्वाद के लिये खींचिया कम मात्रा में श्राद्रक सैन्धव के साथ मिन का दाख ( सैन्धव पीपल मिला कर गर्म कर के भी दी जा सकती है । ) सेव (पित्त अधिक हो व पाचन शक्ति का बिगाड़ हो तो) नारंगी ( पित्त अधिक हो वमन व तृषा का उप द्रव हो तो । ) 37 22 ( ६८ ) 23 नीबू का श्राचार- ( लूणिया) मोगर तला हुआ ( कम मिरच का ) की (ताव न हो सेव घृत उस समय श्ररुचि को दूर ट्स खाना । बार २ भोजन । For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६ ) करने के लिये, थोड़ी।) आलू बुखारा ( तृषा व घमन में तथा कभी कभी खटाई की पूर्ति के लिये भी इसका उपयोग किया जा सकता है।) कठोरी ( साधारण ताप ही हो तो स्वाद के लिये।) हरा धनिया। चाय-दूधकी। तुलसी की चाय दूध की पान। कढ़ी। ठंडा जल पीना। स्वच्छ जल। इंट वुझाया अल गर्म करके ठरहा किया जल गर्म जल पोपल के छोड़ों को जला कर उसे जल में बुझा दे और फिर छान २ कर पिलाव। ठण्डा जल (वमन वा तृषा का उपद्रव हो तो।) बरफ- वमन व For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० ) ( तृषा की शान्ति के लिये, पित्त ज्वर में, पर संघातिक ज्वर में, तथा मियादी बुखार में नहीं। सोडावाटर-वमन व तृषा के उपद्रव में। लेमनेड-पित्त ज्वर तृषा व वमन में। पर निकासा तथा सन्निपात में नहीं। पानी थोड़ा२ बार बार पीना चाहिये। यदि अधिक तृषा होतो एक बार बहुत सा पिला देना चाहिये जिस से तृप्ति हो जायेगी और तृषा भी शान्त हो जावेगी अथवा वह पीछा निकल पावेगा और उल्टी के विकार को भी अपने साथ निकाल देगा । ऐसी भवस्था में ठण्डा जल ही देना चाहिये। खटाई देनी ज़रूरी हो तो आचार, आंवला, नीबू वा आलूबुखारे की खटाई दी जावे। दही की खटाई भी दी जा सकती है। For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७१ ) रहन महन(१) पूर्ण विश्राम करना चाहिये। (२) निर्वात स्थान में रहना चाहिये। (३) शरीर को कपड़ों से ढके रखना। (४) गर्म कपड़े पहिनना। (५) मानसिक श्रम नहीं करना। (६) स्वच्छता रखना। (७) स्वच्छ मकान में अन्य सामान्य पथ्य में रहन सहन बतलाया है वैसा करना। स्वेद लेना उत्तम है। नल की मालिस (सर्दी व थकान से ज्वर हो तो) ब्रह्मचर्य का पालन। (१) परिश्रम करना। (२) कसरत करना। (३) हवा में बैठे रहना व हवा में घूमने जाना। (४) कपड़े काफी और बदन को सर्दी से बचावे बैसे न पहिनना। (५) छाती खुली रखना। (६) रात्रि में बाहिर निकलना। (७) स्नान करना। (८) रात्रि में जागना। (E) दिन में सोना। (१०) ज़ोर २ से बात करना। (११) शरीर के ठंडा पानी लगाना। (१२) धूप में बैठना व फिरना। (१३) तेल मसलाना (सर्दी के बुखार में मना नहीं है।) (१४) बुखार का समय चिंतन करना। For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७२ ) मलेरिया ज्वर-मौसमी बुखार । Malarial Fever. खानपान तथा रहन सहन 'सर्व ज्वर' में बतलाया है उसके अनुसार रखा जावे। इस ज्वर में लंघन विशेष न करायाजावे । (१) प्रारम्भ में हलका सा जुलाब लेना अच्छा हैं (२) ज्वर में प्रारम्भ में दवा लेने की शास्त्रों में मनाई है पर इस ताव में दवा लेना अनुचित नहीं । (३) तुलसी का उपयोग ज्वर में व ज्वर न हो उस समय लेना लाभकारी है । (४) दूध का सेवन अति हितकारी है । ज्वर के समय ठण्ड लगे तब - पथ्य कपड़े श्रौढ़ना, तापना, सेंकना, पानी की गर्म बोतलें पास रखना। गर्म पानी पीना | गर्म गर्म चाह वा तुलसी की चाह पीना । जब शरीर गर्म हो जावे कपड़े औढ़ने के कम कर देना गर्म उपचार बंद कर देना । बर्फ (उल्टी, तृषा वा दाह हो तो) सोडावाहर लेमनेड अपथ्य ठण्डा पानी पीना । धूप में बैठना । ताव का समय चितवन करना । भोजन करना दही, छाछ, मूला काकड़ी, मकिये, भारी चीज़ खाना । तब ! गर्म उपचार करना खूब श्रौढ़ना हवा की चौफेर से रोक देना । For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७३ ) नीबू द्राक्ष दाड़म नारंगी आलूबुखारा गर्म पानी पीना शृत शीत पीना पानी पीने को बहुत कम पीपल के छोडो का पानो ! दना। पीना घृत शरीर के हाथों पैरों की हथेलियों के मसलाना पसीना लेना। ___ ज्वर जिस समय उतर गया हो तब (ज्वर पाना बन्द न हो उस समय तक।) भारी चीज़े देर से पचने जल उबाला पिया जावे वाला आहार। ठपडी चीजें खाना, मकिये खाना। अधिक भोजन करना। घत अधिक लेना। ठंडे जल से स्नान करना ठंड का बचाव न रखना । नोट-पित्त ज्वर में तथा मलेरिया ज्वर में जब शरीर गर्म हो गया हो और दाह अत्यन्त हो तब ठण्डा उपचार, तथा ठण्डा पथ्य देना चाहिये जिससे दाह शान्त हो । For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७४ ) हवा की रोक टोक विशेष न होनी चाहिये कमरे में गर्मा हो तो बाहर बरंडे वातीबारी में सोना चाहिये। मलेरिया का प्रकोप जब अधिक हो तब जल उवाला पीना चाहिये तथा तुलसी की चाह रोज़ लेनी चाहिये। इनसे आक्रमण का भय कम हो जाता है। सबसे अधिक सावधानी मच्छरों से बचने की रखनी चाहिये, मलेरिया का विष मच्छरों के काटने से शरीर में प्रवेश होता है अतः मच्छरों से बचने के लिये पलंग पर मसेरी डाली जावे, मकान में गंधक का धंधा किया जावे। जिसे ज्वर भाजावे उसे तो मच्छरों से बचने की खास तजवीज़ रखनी चाहिये । मच्छरों से मचने के खास उपाय नीचे लिखे जाते हैं आशा है लोग पढ़ कर लाभ उठायेंगे। मच्छरों से बचने के उपाय । वर्षा काल आगई । मच्छरों का उपद्रव भी बढ़ चला। भाग्यवान् और श्रीमन्त लोग मसहरी आदि से अपना अपना बचाव लक्ष्मी की कृपा से कर लेंगे। किन्तु गरीबों का हाल बुरा है वे इसके भोग बनकर पहिले तो अपनी निद्रा मुख से नहीं लेपाते हैं, उनकी तत्कालीन पीड़ा भी सहते हैं और पश्चात् मलेरिया ज्वर से अस्वस्थ्य होकर कष्ट उठाते हैं। यह हाल कुछ नया नहीं है, वर्षों से ऐसा ही देखते आ रहे हैं परन्तु सर्व साधारण के लिये ऐसा कोई सार्वजनिक प्रयत्न नहीं होता कि खास मच्छरों की उत्पत्ति ही घट जाय। लोग मच्छरों के उपद्रवों को प्रायः = महीने भूल जाते हैं, वर्षाकाल में स्वयं मच्छर ही अपनी भिन्न भिन्नाहट से याद दिलाते हैं For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( y ) पर उस समय पहिले से तैयार न होने एवं संगठन की न्यूनता से कुछ उपाय नहीं होता वा किया जाता इससे श्राये वर्ष वर्षाकाल में मच्छरों की पीड़ा सताती है । यद्यपि चारों ओर से इनसे रक्षा पाने के लिये पुकार हो रही है परन्तु अब तक न तो कोई गीवान बना है और न कोई उपाय ही कारगर हुआ है। पर वास्तव में यदि हम यह चाहते हों कि हम लोगों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे तो मच्छरों के प्रतीकार के लिये आवश्यक उद्योग प्रत्येक को करना चाहिये । मच्छरों के नाश से केवल उनके डंस वा मलेरिया की पीड़ा ही कम नहीं होगी किन्तु परोक्ष में अन्यान्य बीमारियों के कारण भी दूर होंगे और सफाई की और अधिक ध्यान रहने से तन्दुरुस्ती का भी श्रानन्द मिलेगा जिससे कितनी ही चिन्तायें कम हो जावेगी । मच्छर आस पास उत्पन्न ही न हो इसके लिये घर में कहीं पानी जमा न होने पावे इसका ध्यान रखा जावे, मोरिये साफ रखी जावें, उनमें चुने का पानी डाला जावे । रसोई घर सथा जहां झूठे बरतन साफ किये जाते हैं वहां सफाई रखी आवे, चाहे जहां बैठ खान पान न किया जावे जिससे घर में हर स्थान पर झूठन श्रादि के कारण मक्खी मच्छर पैदा हों वा रहें। जहां बरतनों का धोवन - मैला झूठा पानी श्रथवा झूठनडाली जावे, वह जगह २/३ दिन में चूने से साफ करादी जाया करें। तथा हो सके तो थोड़ा घासलेट तेल भी वहाँ डाल दिया जावे । वर्षा का जल सड़क पर वा गली में घर के सामने वा आस पास न बहकर, शेष कुछ पड़ा रह जाय इसके लिये सावधानी रखी जावे, पड़े हुये पानी में १ सप्ताह के बाद मच्छर पैदा होने लगते हैं अथवा पैदा हुए मच्छरों की वृद्धि होने में सहायता मिलती है। कीचड़ न हो और घर में सील भी पैदा न हो इसका ध्यान भी रखा जावे । इत्यादि साधन For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मच्छर उत्पन्न न हो इसके लिये वर्षा काल में अवश्य किये जावें पर स्मरण रहे एक घर में अच्छा साधन रहने पर भी यदि पड़ौसी इधरः उपेक्षा से वर्ते तो वहां से मच्छर उत्पन्न होकर, फैलकर सारे महल्ले वा नगर को कष्ट पहुंचा सकते है, स्मरण रहे पड़ौसी भी हमारी तरह इतनी ही खबरदारी रखेगा यह मान लेना उचित नहीं अतः घर में मच्छरों का उपद्रव न होने पावे इसके लिये भी स्थानिक खास प्रयत्न किये जावें। ___ संध्या को घर में धुआं किया जावे, अग्नि पर नीम के पत्ते, गुगल, और थोड़ा गन्धक डालकर मकान के बारी बारने बन्द कर दिये जायें जिससे वहां मच्छर नहीं पाते तथा वहां के भग जाते हैं। केवल छाणों के उपले-कंडे के धुएं से भी मच्छर भग जाते है । लोबान, कपर, मेन्थल की गंध तथा धुएं से मच्छर नहीं पाते हैं । मच्छर अंधियारे में रहना पसन्द करते श्रतः सन्ध्या को सोने के मकान के दरवाजे तथा खिड़कियों को बन्द कर दिये जावे जिससे बाहर से आकर मच्छर घर में प्रवेश न कर सके । सन्ध्या समय मच्छर घरों में आ घुसते हैं पर यदि मकान और खास कर सोने के कमरे बन्द रहें तो वे वहां स्थान न पाकर दूसरी जगहों पर जा अाश्रय लेते हैं फिर रात को इधर से उधर बारी बारने, दरवाजे खुले रहने पर भी प्रायः नहीं पाते। ___ वर्षा काल में एक ओर तो मच्छरों का उपद्रव रहता है दूसरी ओर गर्मी सताती है, यदि मच्छरों से बचने के लिये कुछ ओढ़ा जावे तो गर्मी से व्याकुलता होती है और नहीं ओढ़ा जावे तो मच्छर काटते हैं अतः इस आपत्ति से बचने के लिये-मच्छर न कांटे उसके लिये निम्न उपाय जो बहुत वार अनुभव किया जा चुके है काम में लाने चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युकलिप्स तेल तोला १ तिल्ली का तैल तोला ५ मिश्रित करके शीशी में रख छोड़ें। सोते समय थोड़ा सा यह तेल शरीर पर, हाथ, पांव तथा मुंह पर मल लिया जावे। इससे मच्छर पास नहीं आवंगे और न काटेंगे। यह तैल सुगन्ध में भी अच्छा होता है जो सभी को पसन्द पड़ सकता है। यह मच्छरों से बचने के लिये अच्छा सक्रांमक उपाय है, सुगन्ध भी बुरी नहीं है और महंगा विशेष नहीं पड़ता है। जो लोग इसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं उन्हें तिल के तेल में थोड़ा घासलैट और कपूर मिला कर हाथ पैर में लगाना चाहिये। तारपीन का तेल भी इसी प्रकार मलने से मच्छर नहीं काटते हैं। रोसमरी का तेल, तथा लैमन ग्रास तैल, भी इसी तरह उपयोगी है। नीबू का तैल मुंह हाथ पैर और शरीर के खुले अंग पर लगाने से मच्छर नहीं काटते हैं। ___ इन सब तैलो से क्षणिक हित होता है। तेल की सुगन्ध ज्यों ही की कम हुई कि मच्छर फिर श्राने लगते हैं। इनसे घण्टे अाध घण्टे असर रहता है। ___मच्छर काले, लाल, पीले और हरे रंग पर विशेष पाते हैं अतः इनसे बचने के लिये सफेद रंग के कपड़े व्यवहार में लाये जायें। For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७८ ) निकाल'-मधुर ज्वर । खान पान तथा रहन सहन सर्व ज्वर में कहा है वहीं रखा जावे पर सरती से काम लिया जाये। विशेष पथ्य नीचे कहा है वह रखा जावे। इसमें पथ्य का पालन यथा विधि किया जावे। तीव्र ज्वर है अतः पथ्य में सावधानी रखनी चाहिये। अधिक खालेने पर ज्वर का वेग बढ़ जाता है अतः जरूरत से ज्यादा खाने को न लिया जावे। जहां हवा बहुत न आती हो वहां रहना चाहिये । पथ्य अपथ्यमंग की दाल । मीठाई। बाजरी का दलिया लूखा। खटाई। दूध ( कफ न हो तो, सोंठ ठंडी चीजें। मिला कर वा तुलसी के भारी चीज़े। साथ दिया जावे।) घृत, रोटी (उपद्रव नहीं हो तो) छाछ, दही बड़ो। शरबत, चंदालया। सीरा, लापसी! वृन्ताक। उपद्रव होतो लंघन ठण्डा जल कराया जावे। ठण्डा गर्म एकत्र किया मोठ का यूष जल बर्फ मिलाया जल इंट बुझाया ( साधारण सोडावाटर अवस्था में तथा निकाला लेमनेड बर्फ For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 9 ) ढल जाने पर) अधिक उबाला (तीव अवस्था में) रहन सहन(१) रोगी के कमरे में (१) हवा खूब आने देना। हवा अधिक न आवे वैसा (२) ठण्ड से बचाव नहीं प्रबन्ध करना। रखना। (२) खिड़किये साधा- (३) रोगी का अंग ढके रण तौर पर बन्द कर देना नहीं रखना। वा परदे लगा देना। (४) बारी बारने खुले (३) बीमार को खाट पर रखना। ही रखना बाहिर घूमना (५) बाहर घूमना फिरना। फिरना नहीं चाहिये। (६) परिश्रम करना। (४) कमरे में सदा एक (७) स्नान करना। सी उष्णता रहे वैसा प्रबन्ध रखना। (१) पसीने की दवा देना (२) ताव उतार देने की दवा देना। (३) ताष जल्दी रोकने । की दवा देना। तोब अवस्था में रोगो के पास चाहे जिसे न आने देना चाहिये। धूप रोम करना, संक्रामक नाशक द्रव (गोमूत्र, नीम जल, चूने का पानी, अरेठे का पानी श्रादि) से आगन्तुक के हाथ पैर घुला कर भीतर जाने देना चाहिये । रोगी के कमरे में भीड़ न होने देना। For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८० ) सन्निपात ज्वर । तीन अवस्था में पथ्य की ओर ध्यान दवा की भांति बराबर रखना चाहिये। रोग कुछ कम हो तथा उपद्रव घट जावे तब पथ्य की सखी कुछ घटा देनी चाहिये। लंघन कराना चाहिये। पर कभी २ दृध लंघन में भी शक्ति बनाये रखने के लिये दिया जाता है। ठण्डा जल, कफ कारी वस्तुये, मिठाई, घृत इसमें भूल से भी प्रत्यक्ष में वा अप्रत्यक्ष में न देने चाहिये। सन्निपात दूर हो जावे तब सर्व ज्वर में कहा पथ्य देना चाहिये। अपथ्य लंघन ( उपद्रव के चिह्न उपद्गव के समय अन्न दूर हो तब तक-पर यदि देना, ठण्डी चीज़े देना, निर्बलता अधिक हो तो मिठाई थोड़ी भी देना, कम समय तक) श्लेश्यकारी वस्तुयें देना, हरे दूध (दूध का विकार फूटस खाना, सूखे फटस दूर करने वाली तथा खाना पाचन औषधे मिला कर मिश्री थोड़ा २-देखो 'दूध') ( उपद्रव कम हो जाने दाल का पानी (उपद्रव पर भी घृत, मिठाई, कफकम होजाने पर) कारी चीजे, भर पेट अन्न रोटी (उपद्रव दूर हो नहीं देना चाहिये।) जावे तब) पथ्य For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) उबाल कर ठण्डा करके ठण्डा जल पीना देना। सुबह का उबाला रात को दिन का उबाला शाम और रात का उबाला दूसरे तक और शाम का उबाला दिन को देना। सुबह तक ही दिया जाये। बर्फ। जल का प्रबन्ध बराबर शरबत। ऊपर लिखे अनुसार रखें रहन सहन(१) हवा की रोक रखना (१) हवा का बचाव न पर एक दम रुकाव नहीं रखना जिससे रोगी को करना। ठण्ड आक्रमण कर जावे। (२) स्वच्छता खूब रखना। (२) ठण्ड लग जाने देना। (३) भीड़ न होने देना। (३) बाहर घूमना। (४) रोगी को पूरी आरा (४) शरीर के ठण्डा पानी मी में रखना Complete लगाना। Rest (५) स्नान। (५) कपड़े लत्ते श्रौढ़ने का प्रबन्ध अच्छा रखना। (६) सर्दी से बचाव रखना (७) रोगी को शान्त रखना। श्राद्रेक, तुलसी, पान, उपयोगी है। बालुका स्वेद, सेक, नस्य भी उपयोगी हैं। For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्यूमोनिया-गुजराती। त्रिदोष ज्वर Pneumonia सन्निपात की भांति पथ्य रखना चाहिये पर लङ्घन उतना रखने की जरूरत नहीं है । दूध इसमें लाभ करता है, कफ की बाधा रहने पर भी यह शक्ति दायक होने से इसका सेवन कराना ज़रूरी और लाभकारी है। दूध के स्थान मृङ्ग की दाल का पथ्य भी काम में लाया जा सकता है। दूध में सोठ, पीपल, सोडा वा चने का पानी मिला कर देना चाहिये । उपद्रव कम हो जाने पर पथ्य की सख्ती कम कर देनी चाहिये पर सर्दी से पूरा २ बचाव रखना चाहिये । ठण्ड न लग जावे नहीं तो रोग उथला खा जावेगा। दर्द पर सेंक बराबर करते रहना चाहिये। पथ्य अपथ्य भारी वस्तु दाल मूंग की ( उपद्रव विना उपद्रव शान्त हुये घटने पर शक्कि रखने वाली वा १० दिन निकले पहिले खुराक चाह, काफी,तुलसी दूध वा दाल के सिवाय सोंठ, समय समय पर दूध अन्न देना। के साथ देना। जल ठण्डा जल उबाला देना चाहिये। (१) हवा का झोका शरीर रहन सहन पर लगने देना। (२) गर्म कपड़े न पहिनना (१) गर्म कपड़े पहिनना। (३) अंग खुला रखना (२) कमरे में हवा गर्म (४) बार बार उठना बैठना तथा सूखी रखना। वा दुरटट्टी पेशाब करनेजाना। For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३ ) (३) हवा कमरे में अधिक न श्रावे इसके लिये दरवाजों पर परदे लगा देना। पर रोकना नहीं। (४) सर्दी से बचाव रखना। (५) रोगो को सम्पूर्ण बारामी देना। (६) रोगी को बहुत बोलने नहीं देना। (७) रोगो को इधर उधर करवटें बदलने तथा घड़ी २ उठने बैठने न देना। (E) कमरे में दूसरा सामान नहीं रखना। (8) भीड़ कमरे में नहीं होने देना। (१०) रोगी को शारीरिक कुछ भी महनत न करने देना । टट्टो पेशाब भी वहीं कराना। (१) ताव कम करने वाली दवायें देना। ज्वर की मियाद पूरी हो जाने पर वा उपद्रव दूर हो जाने पर ज्वर का सामान्य पथ्य रखना चाहिये। जल्दी बाहर न आना चाहिये। कफ कर्ता वस्तु न खानी चाहिये। इस बीमारी में रोगी असाध्य अवस्था में पहुंच जाने, प्राशा छोड़ देने पर भी अनेक आरोग्य हो जाते हैं अतः प्राशा, धैर्य और शान्ति से अन्तिम श्वास तक उपाचार चालू रखना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) सर्दी की मौसिम में इसके अाक्रमण प्रायः हुआ करते हैं अतः हवा ज़ोर से ठंडी चलती हो उस समय मुंह से ठण्डी सांस नहीं लेना चाहिये किन्तु नाक से श्वास लेना चाहिये । छाती को ढकी रखना चाहिये। ऊनके कपड़े पहिनना चाहिये। रात को आंगन में न सोना चाहिये । सीलवाली जगह में नहीं रहना चाहिये । गले में गलपट लपेरना चाहिये । युकलिप्स तैल सूंघना चाहिये । जिन्हें न्यूमोनिया बार बार होता हो उन्हें सर्दी से सदा बचते रहना चाहिये । गर्म जल में थोड़ा नमक मिला कर नाक को भीतर से धोना चाहिये तथा कुल्ले भी करना चाहिये। प्रपथ्य पुराना ज्वर-जीर्ण ज्वर । Hectic Fever. पथ्य की सख्ती बहुत नहीं रखनी चाहिये, केवल इतना ध्यान रखा जावे कि पाचन शक्ति पर ज़ोर पड़े वैसा खान पान न किया जावे। ठंडी का प्रबन्ध रखें। पथ्य दूध-अमृत है-पीपल अधिक भोजन । मिला कर। भोजन पर भोजन। मुत्राफिक श्रावे वे सब गर्म खान पान। खान पान थोड़ी मात्रा में भारी भोजन। लिये जावें। मिठाई। हरे साग। रबडी। .फूट्स मावा, खीर, नारंगी (दोपहर को सर्दी सीरा (अजवायन डाल कर अंगूर न हो तो ले कमो थोड़ा सा लिया भो सेव । जा सकता है।) For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) नीबू (इच्छानुसार बालूबुखारा | कोई भो. छाछ खट्टाईले आंवला । परन्तु बहुत कठोरी । कम साग में पकी खटाई लें। घत दही प्रकृति विरुद्ध खान पान रायता आचार (नीबू को छोड़ कर) लंघन स्वच्छ और हलका जल रहन सहन(१) बाहर शक्ति अनुसार हवा खाने जाना। (२) सर्दी से बचाव करना। (३) हवा बदलने दूसरे गांव जाना (४) औषधों से सिद्ध किया तैल मर्दन करना। (२) सर्दी का प्रबन्ध न रखना। (२) परिश्रम बहुत करना। (३) बन्द मकान में रहना। (३) व्यायाम, परिश्रम करना। (४) स्नान रोज़ करना ज्वर निर्बलावस्था । ज्वर चले जाने पर शरीर कई दिन तक निर्बल रहता है। ज्वर तो नहीं होता पर शक्ति धीरे२ पाती है। ज्वर छूट जाने पर कार्य करने की इच्छा प्रबल हो जाती है इससे कभी २ शक्ति से भी अधिक महनत हो जाती है यद्यपि उस समय उसका परिणाम मालूम नहीं पड़ता परन्तु मिथ्या बिहार के कारण कुछ समय में ज्वर पीछा बाजाता है अतः धीरे २ शक्ति अनुसार काम काज में लगना चाहिये । सर्दी का बचाव रखना चाहिये, एक दम परहेज़ को नहीं छोड़ देना चाहिये । इन दिनों For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में भूख खूब लगने लगती है, इससे हर एक चीज़ की ओर मन दौड़ता है पर परहेज़ न रखने से, और चाहे जो खालेने से वा अधिक खालेने से बुखार फिर आधेरता है वा ताकत जल्दी नहीं पाती है.अस्तु निर्बलावस्था में भी पथ्य रखना ज़रूरी है। हां पहिले सी सख्ती की ज़रूरत नहीं । भारी चीज़, मीठा एक दम ज्यादा नहीं खाना चाहिये, नहीं तो श्राम हो जाने से फिर ज्वर श्रा जाने की आशंका रहती है। इन दिनों में ताकत की दवा ली जाती है इससे उस दवा का पथ्य भी ध्यान में रखना चाहिये, नहीं जब पकी खटाई लेने में हानि नहीं। नियत समय पर भोजन भूख हो उससे कम भोजन परहेज धीरे २ कम करना जल-कुयेका ताज़ा स्वच्छ रहन सहन(१) घूमने जाना (२) हवा बदलने दूसरे गांव जाना अपथ्यः बार बार खाना। ज्यादा खाना। खटाई बहुत खाना। ताकत के लिये बादाम का सीरा लेना। रधीण में बहुत घृत लेना। (१) परिश्रम बहुत करना (२) ठण्डी से बचाव रखने का प्रबन्ध न करना (३) स्नान ठण्डे जल से करना। -.' For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८७. ) ज्वर में उपद्रव । ज्वर में कहे अनुसार ही पथ्य रखना। जो उपद्रव हो उसका पथ्य भी पालन करना चाहिये। ज्वर में शीत में आजाने पर- . अपथ्यः ठण्ड लगने देना। . ठण्डी वस्तु देना। ठण्डा पानी पिलाना। शरबत देना। अन्न देना। पथ्य गर्म पेय पिलाना। चाह-तुलसी, काफी, की चाय देना। सोंठ का क्वाथ देना। हाथ पैर में तेल मसलाना। हाथ पैर तपाना। गर्म पानी से सेंक करना। औषध भैरवरस अमृत संजीवनी गुटी अमर सुन्दरी गुटी दिवालमुष्क लोग का काथ कस्तूरी अतिसार । DIARRHEA प्रायः अपचन से दस्ते लगती हैं श्रतः भूख हो उससे ज्यादा और भारी चीज़ नहीं खानी चाहिये । कभी २ गर्मी से For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्य भी दस्ते लग जाती हैं अतः तब ठण्डा पथ्य लिया जावे। खराब पानी से भी दस्तो का विकार हो जाता है अतः स्वच्छ और हलका जल पीना चाहिये । दस्तावर पथ्य इसमें लाभदायक नहीं। अपथ्य प्रारम्भ में१दिन लंघन | भारी अन्न। कर लेना वा कम खाना। ठंडा बासी अन्न । दूध-बकरी वा गाय का अत्यन्त गर्म वस्तु । (सोडा वा चूने के पानी के गर्मागर्म पेय। साथ ।) नवा श्रन्न । दाल। मीठाई। चावल। घृत। मंग श्राखे। गेहूं-मेदा। तूर की दाल। बेसन की चीज़। खिचड़ी। गुड़-खांड़। रोटो। कच्चे फल। जवार की रोटी। सांठा। साग (कम खावें)। श्राम्र। श्राद्रेक। लहसुन। कैथ (कठोरी)। नारियलगिरी। जामुन। कोला। दाड़म। काकड़ी। सेव। निबं। पतली चीजें (कढी वगैर) भांग (जो पीते हो वा जिन्हें मुश्राफिक हो।) थूलो। वथा ! For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 48 ) . चावलो का मांड श्रामगुठलो खराब जल पीना। जल अधिक पीना। जल कम पीना चाहिये। उबाला हुश्रा पीना चाहिये। पानी के स्थान छाछ पी जावे। रहन सहन(१) rest-पारामी करना। (२) पेट पर फलानेल का कपड़ा बांधना। (३) सर्दी और खास कर पेट के सर्दी न लगने पावे इसका प्रबन्ध करना। (४) पेट मसलाना (ज़रूरत हो तो) (१) कसरत करना। (२) स्नान करना। (३) नींद न लेना। (४) चिन्ता। (५) क्रोध। (६) मल मूत्र की शंका को रोक रखना (वेगधारण) (७) धूप में फिरना। (5) ठण्ड में बैठना। (8) मालिस करना। श्राम की दस्ते । Dysentery. अतिसार में कहा हुआ पथ्य पालन करें। प्रारम्भ में हलका जुलाब लेवे । राध लोही की दस्ते धोरे २ श्राराम होती है अतः कोई भी दवा ५। ४ दिन तक लगातार लेकर देखनी चाहिये । उपवास न करावे किन्तु शक्ति रखने वाला पथ्य दिया जावे। For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४० ) अपथ्य दूध-चने का पानी मि मिठाई लावें बकरी का दूध हो तो अधिक मरिचे और भी अच्छा । छाछ दही घत साबूदाना सातु चावल ठण्डी बासी वस्तुयें लेना. हरे फ्रूट्स (सेव, नरंगी, वर्फ अनार) ठंडी चीज़ लेना। विरेच वाली हलकी दवायें सेवन करना। पानी पानी अधिक पीना। उवाला पानी पीना चाहिये। सौंफ कार्क। रहन सहन(१) स्वच्छ हवा में रहना (२) पेट में ठण्डी हवा (२) पेट पर गर्म कपड़ा लगने देना। बांधे रखना। (२) ठण्ड से बचाव न (३) अलसी का पेट पर करना। सेक करना। (३) स्नान । (४) बीमार होने पर Rest करना चाहिए। निम्न लिखित यातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए । (१) परिश्रम की थकान पर कपड़े लसे से शरीर अच्छी तरह ढका रहे और हवा न लगने पाये इसका सदा ध्यान रक्सा जाये। For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3) - (२) कपड़े लत्ते सब साफ और स्वच्छ पहिने जावें । (३) जहां धूप न पाती हो उस मकान में अधिक समय तक नहीं ठहरना चाहिए। (४) जहां हवा दुर्गन्धयुक्त वा अस्वच्छ रहती' हो वा बंद रहती हो वहां निवास नहीं करना चाहिए। (५) जल साफ किया हुश्रा, यदि हो सके तो उबाला हुआ पिया जावे। (६) कच्चे फल न खावें। ... (७) मौसिमी रसाल (फ्रूटम) अधिक परिमाण में और बार बार सेवन न किये जायें। (E) पेट में ठंडी हवा न लगने पावे इसके लिये बनियान वा कब्ज़ा श्रादि हरदम पहिने रहें। (E) वर्षा के जल में बहुत देर तक भीगते न रहें और विशेष कर २।३ वर्षा हो चुकने पर-गर्मी मिट जाने पर न भीगें। (१०) अजीर्ण हो उस प्रकार भोजन न किया जावे। (११) खानपान नियमित और साधारण किया जाये। (१२) मिर्च, गर्म मसाले, मिष्टान हरे साग आदिका व्यवहार अधिक न किया जावे। (१३) जुलाव न लिया जावे। साथ ही कन्ना की शिकायत भी हो तो साधारण औषधि से थोड़ी मात्रा में दूर की जावे। कुछ लोग इस बीमारी में पेट का दर्द समझ कर तथा दस्तों की शिकायत देख कर 'पेचुरी' धरन टलने का अनुमान For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर लेते हैं और पेट मसलवाते हैं वा नस खटकाते हैं और पश्चात् गुड़का सीरा जलेबी वा मीठो कोई चीज़ खाना जरूरी समझते हैं पर इससे उल्टो हानि पहुंचती है । मीठे से मरोड़ा हो जाता है। अजीर्ण-Dyspepsia अजीर्ण हो जाने पर १ वा २ टंक ( समय ) कुछ न खाना चाहिये फिर हलका भोजन करें। पुराने अजीर्ण में पथ्य का पालन कई दिन तक बराबर किया जावे पर ध्यान रहे बहुत परहेज़ रखने से नुकसान भी पहुंचता है अतः रुचि अनुसार सुपाच्य हलका भोजन किया जावे। पुराने अजीर्ण में कुपथ्य की ओर मन बहुत जोता ह पर मन को वश में रख कर भारी चीज़ नहीं खानी चाहिये। हवा खाने (घूमने) सुबह श्याम रोज़ जाना चाहिये। विश्राम Rest करना चाहिये। पेट को भी आरामी देना चाहिये। जिन्हें बार बार अजीर्ण हो जाता हो उन्हें खान पान में खास तौर पर सुधार करना चाहिये, कम खाना चाहिए हलका और जल्दी पच जावे वैसा खाना चाहिये, फूट्स अधिक खाने चाहिए, पूड़ी मिठाई, अधिक घृत तथा मावे की वस्तु नहीं खानी चाहिये, कोई भी वस्तु हो, उसे खूब चबा चबा कर फिर पेट में उतारनी चाहिये। पथ्य अपथ्य हलका पाचन होजावे बिगड़ा हुआ तथा भारीः वैसा आहार करना चाहिये अन्न खाना। कम खाना ( भूख हो । वासी अन्न खाना। For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) बार बार भोजन करना। बहुत खा लेना मावा खीर उससे कुछ कम खाना चाहिये।) तैल, मरिच तथा खटाई के परहेज़ की विशेष ज़रूरत नहीं (तीन अजीर्ण में) नींबू प्रावला जामुन पोदीना रबड़ी तुलसी खाजा पूड़ी चीलड़ाबेड़ा रोटी रोटा मिठाई अधिक घृत मैदे की वस्तुयें खांड घृत वृत्ताक दही-खट्टा नहीं छाछ करेला धनिया-हरा तथा सूखा कठोरी काजी हींग दाड़म मंग की दाल खिचड़ी चावल आईक पापड़ बड़ी For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैर दाणामेथी पान चूने का जल जल - गर्म जल पीना सोडा वाटर लेमनेड नीबू की सिकंजी www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( पृष्ठ ) रहन सहन - (१) प्रकृति के नियमानु सार रहना (२) घूमना (३) स्वच्छता रखना (४) ताज़ी हवा का सेवन करना (५) हवा बदलने बाहर जाना बहुत पानी पीना । चाय का सेवन रखना रात को पानी की तृषा रखना । (१) रात को जागना । (२) बैठे रहना । (३) बहुत दातों को रगड़ना । समय तक (४) गन्दे और दुर्गन्ध मकान में रहना । (५) ताजी हवा न खाना (६) दांतों को साफ न रखना । पुराने अजीर्ण में गर्म-दाह, अन तथा अधिक मसाले वाले पदार्थ सेवन नहीं करने चाहिये । मंदाग्नि तथा संग्रहणी । Chronic Dysentery or Sprue Indigestion (पानी लगने की व्याधि का पथ्यापथ्य ।) इस रोग में अन्न बंद करके दूध वा दही वा छाछ अनुमान से २०/२५ और इससे भी अधिक दिन तक लगातार सेवन For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) की जावे । जब आरोग्यता मालूम दे तब धोरे धोरे पीछा अन्न प्रारम्भ किया जावे और कई दिन तक हलका पथ्य लें। आरोग्य होजाने पर भी कई दिन तक पथ्य बराबर रखें, मिठाई वगैर न खावें, न अधिक ही खावें जब ३।४ महीने अच्छी तरह निकल जावे तर थोड़ा २ और कभी २ 'मीठा' वगैरः लेना चाहिये । इससे पहिले मीठा खाने से सुधरा हुआ रोगी भी पीछा उथल जाता है। अनेक लोग छिप कर खा जाते हैं, अन्न बंद होता है उन दिनों में भी खा लेते हैं और जब पीछे अन्न शुरु कर देते हैं तब भी जल्दी खाने के लिये प्रयत में रहते हैं जिससे अकसर गड़बड़ हो जाया करती है और जल्दी श्रारामी नहीं मिलती है। अन्न इस रोग में बन्द कर देना बहुत हितकर है। प्रथम तो दूध वा छाछ स्वयं रोग नाशक है, द्वितीय केवल दूध का प्रयोग रहने से कुपथ्य करने का अवसर रोगी को बहुत कम मिलता है और यदि कुछ दिन-रोगी भारी चीजें (कुपथ्य) न खाने पावे तो वह तुरन्त और निश्चय-यदि आयु हो तो-आरोग्य हो जाता है । प्रायः देखा है कि अन्न बराबर चालू रख कर चिकित्सा करने से जल्दी आरामी नहीं मिलती है, कभी २ तो लाभ होता ही नहीं है। पथ्य इसी रोग में अच्छा रखने की ज़रूरत है, कारण जो कुछ खाया जाता है वह पेट में जाता है परन्तु पेट की बातें कमजोर होती हैं उससे इसका बुरा असर तुरंत मालूम पड़ता है और कई दिन तक उसका प्रति फल स्वरूप-कष्ट उठाना पड़ता है । यदि बार बार कुपथ्य किया जावे तो फिर, आरोग्य होने की प्राशा भी कम रहती है और वैद्य भी उसके प्रति खास तौर पर (Interest ) नहीं लेते हैं। अन्न वन्द करके दूध वा दही वा छाछ सेवन की आवे तब For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) पथ्य दूध (पाचन कर्ता औषधों - के साथ) दही ( जीरा, हींग सैन्धव के साथ) छाछ (जीरा, हींग सैन्धव के साथ) जलज़रूरत हो तो सौंफ का अर्क। जल स्वच्छ और हलका पीना चाहिये। जल कम पीना। रहन सहन(१) पूर्ण विश्राम Rest (२) शक्ति अनुसार थोड़ा थोड़ा घूमना। (३) सर्दी से बचाव रखना। (४) कपड़े लत्तों से शरीर ढंका रखना। (५) स्वच्छ कपड़े पहिनना (३) प्रसन्न रहना। (७) अच्छे साफ स्थान में रहना। (८) शहर के बाहर घूमना (6) दातौन दोनों समय करना। अपथ्य : अन्न लेना। मीठा खाना। अधिक मात्रा में दूध वा दही लेना। प्रभात का दूध शाम तक लेना। जल अस्वच्छ पीना। जल अधिक पीना। (१) काम काज में लगे रहना। (२) अधिक घूमना (ताकत प्राप्त करने की इच्छा से शक्ति उपरान्त घूमना) (३) सर्दी से बचाव रखने का प्रयत्न न रखना। (४) कपड़े लत्ते अस्वच्छ पहिनना। (५) चिन्ता, क्लेश श्रादि करना। (६) शहर में ही इधर उधर घूमना। (७) टाइम अनुसार काम न करना। (E) दातौन न करना। (E) समय पर नहीं सोना। For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानना। (१०) समय पर निद्रा लेना। (१०) गन्दे मकान में रहना। (११) कभी कभी स्नान (११) वैद्य का कहा न करना। अन्न शुरू करने के पश्चात् अन्न पीछा धीरे धीरे बढ़ाया जावे। ताकीद करने से पीछो गड़बड़ होजाती है । अन्दाज़ से नहीं किन्तु रोज़ तौल कर वैद्य की इच्छानुसार अन्न लिया जावे। अधिक न खावे, भारी चीज़ न खावें। दूध दही छाछ मूंग की दाल साबूदाना चावलों का माड चावलो की फूली चाबल ( कभी कभी और थोड़ा) जवार अनार नारंगी सेव एरण्ड काकड़ी कटोरी ( कुछ दिनों बाद, सजन न हो तो) अपथ्य अधिक खाना। बार बार खाना। भारी चीजे खाना। मीठाई। जल्दी जल्दी खाना ( बिना चबायें) अधिक घृत। खांड। सीरा, तुड़ी। प्राचार। गेहूं बारीक पीसे हुये। तूरकी दाल (कुछ दिन तक) चंवला। मटर। उड़द। वयुआ। For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८ ) मौसंबी रोटी सैन्धव काली मिरच अरुचि हो तब वा कभी कभी अन्न बदलने के लिये ऊपर लिखी चीज़ों के सिवाय अन्य हलकी चीजें पैठा। ज़मीकन्द। काकड़ी, काचरे। नारियल। रतालू । जव। बैर। अंजीर। सुपारी। रंधी। लालमिरच। नमक अरारूट डबल रोटी खिचड़ी आदि भी सेवन की जावे। साग भी लिये जावें । पर कम खावें और रोज़ रोज़ एक ही प्रकार का साग न खावे। समय पर खाना । कम खाना। जल कम पोवें हलका और स्वच्छ जल : अधिक जल पीना। भारी जल पीना। रोटी खाते समय बहुत पीना। पोवे रहन सहन(१) दूध के समय जो रहन सहन का पथ्य रखा वही चालू रखा जावे। (२) अन्न चबा चबा कर (१) दूध वा छाछ के समय जो रहन सहन का अपथ्य रस्त्रा वही चालू । For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खावें (३) भोजन ताकीद में नहीं करें किन्तु शान्तिपूर्वक ___ जीमें । (४) एक जगह बैठे नहीं रहना (५) मन में 'आरोग्य हो गये' का दृढ़ संकल्प रखें। (६) व्यायाम ( बहुत दुर्बल न हो तो) (२) अन्न बिना चबाये या थोड़ा चबाये गिट (निगल) जाना। (३) भोजन जल्दी जल्दी करना। (४) जागरन करना। (५) धूप में घूमना। (६) घूमने, हवा खाने नहीं जाना। (७) वेगधारण करना। (E) सर्दी से बचने के लिये काफी कपड़े न पहिन कर लापरवाही रखना। 8) चिन्ता करना। (१०) काम काज देखना, करना। (११) सट्टा करना। (१२) लिखने पढ़ने का काम बहुत करना। (१३) बुरे स्थान में रहना (१४) स्वच्छता का प्रबन्ध न रखना। (१५) सील वाली जगह में रहना। (१६) बीमारी की चिन्ता करना। For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) (१७) ब्रह्मचर्य का पालन न करना। (१८) एक जगह बैठे रहना (१६) अधिक परिश्रम करना। इस रोग का इलाज हमारे यहां शर्तिया किया जाता है। अन्न बन्द करके दूध, दही वा छाछ के अनुपान सेदवा दी जाती है और रोगी जल्दी श्राराम होता। जो इस रोग से पीड़ित हो वे हमारी सलाह से लाभ उठावें। मसा-अर्श । ( Piles.) दस्त साफ़ रोज़ पाजावे इसका प्रबन्ध रखना। कब्जी . करने वाली कोई वस्तु सेवन न की जावे । एक स्थान पर बहुत देर तक नहीं बैठे रहना चाहिये । स्वच्छ हवा में घूमना बहुत हितकर है। नियमित व्यायाम करें। पथ्य अपथ्य दूध (किसी किसी के दूध से खून पड़ने लग दाह कारक अन्न जाता है अतः मुला कबजी करने वाले अन्न फिक न हो तो न भारी वस्तुयें पाचन में हानि करने वाली चीजें छाछ (चित्रक मिला कर उड़द पर खून पड़ता हो श्राम तबचित्रक क्रीछालन तैल मिलाई आवे।) श्रामली दही For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जमीकन्द (बहुत हितकर आंवला हरडे खिचड़ी चावल माखन कठोरी नारंगी दाड़म सेव चवला बाजरी वृत्ताक करेला काजु नवीन अन्न मद्य अत्यन्त रुक्ष अन्न जलनवीन जल। बहुत जल पीना। चाय तया काफी का अधिक सेवन करना। (१) पूर्व का पवन सेवन करना। (२) मूल मूत्रादि के वेगों का धारण करना। (३) सवारी करना। (४) गद्दी · तकियों पर बैठना। (५) घूमना नहीं। अंगूर वथुत्रा गुलकन्द मोठ रहन सहन(१) पैदल धीरे धीरे बहुत दूर तक रोज़ घूमना, बैठे न रहना। (२) खुली हवा, बगैचो, तथा तलाब के पास पास घूमना। (३) कठिन वस्तु-कुर्सी, बेंच, पाट आदि पर वैठना। For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०२ ) खूनी बवासीर गर्म वस्तुयें सेवन करना। माखन। ठंडी वस्तु सेवन तथा लेए तिल दही। बर्फ (मसे के बांधना) बाजरी पान नवसादर। चंदलिया। श्रांवला। नारियल। सींघाड़ा। दाड़म। सेव । नारंगी। जलटंडा जल पीना रहन सहन-- (१) शीतल वस्तु का (१) गर्म वस्तुओं का व्यवहार । सेवन करना (२) मसे पर ठंडे जल की खूब धार देना। स्वादिष्ट विरेचन-अर्श रोग में दस्त साफ लाने के लिये अत्यन्त उमदा वस्तु है। सर्दी-जुखाम । (Coryza) सर्दी से अनेक बीमारिये पैदा हो जाती हैं अतः सर्दी से बचाव रखना बहुत जरूरी है और यदि देव वशात् सर्दी लग For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०३ ) जावे तो उसका उपाय भी तुरन्त करना चाहिये । लापरवाही रखने से कई दिन कष्ट उठाना पड़ता है और कभी कभी क्षय जैसी बीमारिय उत्पन्न होने का मूल कारण भी सर्दी हो समझी जाती है । जुखाम मालूम होते हो घर में बैठ रहना चाहिये और सब काम काज छोड़ कर १ वा २ दिन आरामी करना चाहिये । प्रवाही पदार्थ बहुत कम और देर में पोने चाहिये। एक से ताप मान वाले कमरे में एक दो दिन रहना चाहिये। बाहय पथ्य अपथ्य प्रारम्भ में हलका जुलाब । ठण्डी वस्तये। लेना चाहिये। भारी चीजें। २४ घण्टे तक कुछ न मूली। खाना चाहिये। श्रनार। गुड़ की बनी चीजे (गुड़- नारंगी। राब सीरा-गर्मा गर्म लिया खांड की चीज। जावे) चने खाना । नाक में से पानी बहुत श्रावे तब ) साधारण अवस्था में खान पान का विशेष परहेज नहीं है परन्तु रहन सहन में विशेष सुधार रखने की जरूरत है। जल ठंडा जल पीना। २४ घंटे तक पानी नहीं। पानी बार बार और अधिक पीना। पानी कम पीना। उष्ण जल पीना। पीना। For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) स्नान करना। (२) खुले बदन बाहर घूमना। (३) परिश्रम करना (४) काम काज में फंसे रहना। (५) सील वाली जगह में रहन सहन(१) गर्म कपड़े पहिने रखें। (२) सर्दी से बचाव रखे। (३) पैर तथा छाती की रक्षा ठंड से खास तौर पर की जावे इन्हें सदा ढके रखें। गर्म रखें। (४) मोजे पहिरना चाहिये। (५) गले में गलपट लपेरना चाहिये (६) उष्ण स्थान में रहना चाहिये। (७) गर्म विस्तर में लेट रहना चाहिये। (E) गर्म जल में राई डाल बार फिर उसे उबाल कर पाद स्नान करना चाहिये। संघनाएमोनिया कार्ब (चना, नवसादर मिला कर) कपूर, यूकल्पिटस तेल गर्म जल से २० मिनिट तक कुल्ले करना। नाक के बाहर ऐरण्ड की मांगी गर्म करके लगाना। तुलसी की चाह लेना। For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( १.०५ ) बार २ सर्दी लग जावे उसे हवा बदलने जाना चाहिये और सुबह घूमने जाने की आदत डालनी चाहिये । गर्म जल में नमक मिला कर नाक धोना तथा कुल्ले करना चाहिये । गर्म जल में पोटास परमगेनाद मिला कर नाक धोना चाहिये | www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कास | प्रकृति के जो मुश्राफिक न हो वे वस्तुयें सेवन नहीं करनी चाहिये । ठण्ड से शरीर को बचाये रखना चाहिये । स्निग्ध वस्तु पर जल - ठण्डा जल नहीं पीना चाहिये । पथ्य गेहूं मंग बकरी का दूध (पीपल वा सोंठ मिला कर ) घृत ( कम ) ऊपर पानी नहीं पीना चाहिये, पापड़ तला हुआ घृत, कास वाले को लेना चाहिये । थूली खिचडी बड़ी वृन्ताक तूरदाज चंदलिया अपथ्य ठण्डी वस्तुयें सेवन करना कफकारी वस्तु खाना मूला खटाई दही मीठाई सीरा गिरी दाम, बोर, खीर मैदे की वस्तुयें उड़द बासी वस्तु भैंस का दूध For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापड़ रहन सहन(२) सूखी हवा में रहना। (२) छाती पर सेक करना (३) मौजे पहिने रखना। हवा बदलने जाना। रात्रि में बहुत भोजन ठण्डा जल (३) उण्डो तथा सील वालो जगह में रहना। (२) दिन में सोना। (३) कपड़ों से छाती वगैर अंग बराबर ढके न रखना। (४) ठण्डी हवा श्वास में लेना। श्वास । (Asthina.) ज्वर में तथा कास में कहा हुश्रा पथ्य पालन करना। भूख हो उससे कुछ कम खाना, अजीर्ण न हो जाय इसका ध्यान रखना चाहिये । जब श्वास का दौरा न हो उन दिनों में व्यायाम करना चाहिये । सर्दी से बचाव रखना चाहिये । गर्म हवा में रहना चाहिये। छाती के कपड़े ढोले रखने चाहिये। स्नान गर्म पानी से की जावे। हवा ताजी लेवें, कब्ज़ी न होने देना। धूली तथा धूप से बचाव करना चाहिये । भारी खुराक, बासी अन्न, लूखा अन्न, दही, खांड खटाई न खाना चाहिये। क्षय । Consumption or Phthisis. भयङ्कर रोग है । शान्ति पूर्वक धैर्य के साथ बराबर पथ्य का पालन रखना चाहिये । दवा से भी पथ्य अधिक लाभ पहुंचाता है। इस रोग में जल्दी पचे और ताकत दे लैला पथ्य For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हींग। ( १०७ ) देना चाहिये । अच्छी और स्वच्छ हवा में रहना और शक्ति अनुसार घूमना इसमें बहुत ज़रूरी है। पथ्य बहुत दिन तक रखना चाहिये। इस रोग में अजीर्ण हो जाय उतना खान पान न लेना चाहिये । थोड़ा २ किन्तु बार २ तीन चार घण्टे से पथ्य देना चाहिये । दूध इस रोग में अमृत है। जीवन (च्यवनप्राश अवलेह) भी बहुत लाभ पहुंचाता है। पथ्य अपथ्य दूध न पचे तो चने के भारी चीज़ खाना। पानी के साथ । दृध अच्छी रूखी वस्तुयें सेवन करना। गाय का वा बकरी का हो) खट्टे पदार्थ। साबूदाना विरुद्ध भोजन। यव करेला। तूर की दाल दहीं। थली लाल मरिच। खीचड़ी मूला। दलिया (दूध के साथ) आलू । बकरी का दूध, दही, घृत । कांदा। घृत वाले पदार्थ तैल बादाम तथा ओलीव के सिवाय), मीठा रस कच्चे तथा पचने में कठिन श्रान (बहुत थोड़ा) हो ऐसे फल। खजूर वायु करने वाले पदार्थ दाडिम (चवला) फालसा चनों का साग। सेव गेहूं माखन For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०८ ) अंगूर प्रावला लहसुन उबाला पानी ठंडा करके रहन सहन(१) गर्म जल से स्नान करना। (२) अच्छे और स्वच्छ वस्त्र पहिरना। (३) स्वच्छ स्थान में रहना (४) शरीर की स्वच्छता रखन।। (५) माला पहिनना। (६) सुगन्धित वस्तु सूघना। (७) चांदनी में बैठना। (८) कपूर संघना। (8) गाना सुनना। (१०) ब्रह्मचर्य रखना। (११) वस्तिका (पिचकारी एनिमा) (१२) पैदल घूमना। (१३) सोना = (घण्टे)। (१४) गर्म कपड़े पहिनना। (१५) पैर गर्म रखना। (१६) मौजे पहिनना। चीलड़ा, अत्याहार (बहुत भोजन) उपवास बहुत थोड़ा भोजन। बिना समय भोजन। (१) दस्त की दवा लेना। (२) ब्रह्मचर्य न रखना। (३) गन्दी हवा में रहना। (४) परिश्रम करना। (५) दम चढ़े उतनी मेहनत करना। (६) कपड़े साफ़न रखना। (७) मकान में गंदगी रखना। (८) बहुत जागना। (E) दिन में सोना। (१०) शोक। (११) क्रोध। . (१२) खुदगाना। (१३) मकान बन्द करके सोना। (१४) वाईसीकल पर बैठना। (१५) पान । (१६) मल मूत्रादिके वेगों को रोकना। For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) जंगल, पर्वत वा समुद्र की हवा खाना (१८) बकरी के बच्चों के साथ रहना। (१६) धूल, धूप से दूर रहना (२०) मकान में धूप करना। (२१) खुले मकान में रहना। (२२) सर्दी से बचाव करना (२३) स्वच्छ और ताज़ी हवा जितनी अधिक मिले उतना ही अच्छा। (२४) प्राणायाम नोट-ऐसा कोई खान पान न करें जिससे मल और शुक्र को हानि पहुंचे । अच्छी हवा में रहना इस रोग में जीवन है । ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। नकसीर । (Epistaxis) Disease of Nose. ठण्डी वस्तुयें सेवन करना चाहिये । प्रांवले जल में पीस कर घृत मिला कर शिर पर लगाना चाहिये। नीबू का रस, फिटकड़ी, द्रोब का रस व अन्य ठंढी चीज़ सूंघना चाहिये। दोनों हाथ कुछ समय तक ऊपर को उठाये रखना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११० ) घृत, मिसरी, केसर इनको मिलाकर गर्म करके सूंघना इसमें बहुत हितकारी है। पेठे का पाक खाना चाहिये । अपथ्य पाण्डु रोग। ( Anaemia. ) ताजी हवा और हलका भोजन इस रोग का असली पथ्य है। इस रोग में अन्न बन्द करके केवल दृध ही कुछ दिन सेवन करना लाभदायक जल्दी होता है । पथ्य हलका भोजन भारी अन्न । भूख से कम भोजन मिठाई। सीरा। दस्त लगाना (प्रारम्भ में) डोठा। जव-जुना पूड़ी। गेहूं चीलड़ा। चावल घृत अधिक लेना। मंग बार बार खाना। तुहर दाल हींग। चंदलिया उड़द । बैंगन (पीलीये में नहीं) खटाई। आंवला 'गर्म चीजें। 'पान । For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १११ ) । अस्वय छाछ में सूजन हो तो । मंगफली दही | नहीं । आचार सुपारी पथ्य नियत समय पर रोज लिया जाये। जलस्वच्छ जल । अस्वच्छ जल रहन सहन (१) परिश्रम करना (१) अच्छी हवा में रहना। (२) मानसिक चिन्ता करना (२) खुली हवा में रहना। (३) सर्दी से बचाव न (३) गर्म कपड़े पहिनना। करना। (४) शक्ति अनुसार घूमने (४) वेग धारण करना जाना। (५) ब्रह्मचर्य न रखना (५) बगीचों की हवा खाना। (६) बन्द मकान में रहना (६) हवा बदलने दूसरे गांव (७) स्वच्छता न रखना जाना। (७) फ़िकर छोड़ना। यकृत रोग। ..(Disease of the Liver.) यकृत के रोगों के सम्बन्ध में पथ्य को लेकर विशेष व्याख्या हमारे श्रायुर्वेद में नहीं मिलती है, पर आज कल लोवर सम्बन्धो बीमारिये अधिक होने लगी हैं अतः यकृत सम्बन्धी रोगों का पथ्य खास तौर पर उद्धृत किया गया है आशा है सर्व साधारण इससे लाभान्वित होंगे। For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) खांड़ (Sugar) श्राटा-मेदा (Starch) स्निग्ध पदार्थ-घृत तैल (चर्बी fat) बहुत करके यकृत की क्रिया-पित्त-से पाचन होते हैं पर यकृत में किसी प्रकार का विकार पैदा हो जाने से पाचन क्रिया सुस्त हो जाती है और उपरोक खाये पदार्थ बराबर पाचन नहीं होते हैं और यकृत का सुधार होने के स्थान अधिक और अधिक बिगाड़ होता जाता है अतः यकृत की बीमारियों में यकृत को आरामी देनी चाहिये, यह आरामी उपरोक पदार्थों के न सेवन करने से ही मिल सकती है। यकृत की बीमारी में ऐसा पथ्य हो जो बिना यकृत की क्रिया के भी पच जावे। ऐसे पथ्य में दूध सब से श्रेष्ठ है। अवस्था में सुधार होने पर धोरे २ थोड़ी मात्रा से प्रारम्भ करके अन्य पदार्थ भी दिये जा सकते हैं। पथ्य थोड़ा २ दिया जावे यदि जरूरत हो तो दिन में कई बार दे दिया जावे पर एक बार में ही बहुत न दिया जावे ४५ घण्टे बाद थोड़ा २ पथ्य दिया जावे। अकेला दूध कई दिन तक लेने पर रोगो को अरुचि हो जाती है अतः प्रारम्भ में कुछ दिन दूध देकर फिर पतला और हलका पथ्य दिया जावे और ज्यो २ भूख बढ़े त्यो २ पथ्य बढ़ाया जावे। जिसे यकृत की बीमारी हो उसे मलेरिया ग्रस्त देश छोड़कर अन्यत्र स्वस्थ्यप्रद स्थान में चले जाना चाहिये। हमेशा व्यायाम करना चाहिये । व्यायाम भी ऐसा हो जिसमें पेट और श्वांस की क्रिया में प्रभाव पड़े। पैर द्वारा घूमने से अभीष्ट सिद्ध नहीं होता अतः घोड़े की सवारी तथा प्राणायाम करना विशेष श्रेष्ठ है। जमनाष्टिक तथा अङ्ग मर्दन की कसरत भी लाभदायक है। पुरानी बीमारी में जल वायु बदलना चाहिये। समुद्र किनारे की हवा इसमें लाभदायक है, शहर वालों को गाँवों में कुछ दिन जा बसने से भी लाभ पहुंचता है। स्नान करते रहना For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११३ ) चाहिये पर स्नान के बाद अङ्ग को भले प्रकार मर्दन करके पोछना चाहिये । वाष्पस्नान इसमें विशेष लाभदायक है। सूखे स्थान में रहना चाहिये। जहां एक सी ऋतु रहती हो वहां अधिक समय तक निवास करना चाहिये । गर्मी से एक दम सर्दी में और सर्दी से एक दम गर्मी में नहीं जाना चाहिये, सर्दी से बचाव रखना चाहिये , ठण्ड न लगने पाये। इसकी सम्हाल रखी जावे। गर्म कपड़े पहिनेजावें ब्रह्मचर्य का पालन बहुत ज़रूरी है । इस रोग में सब काम नियम पूर्वक होने चाहिये । निम्न चार विषय पथ्य को लेकर सदा ध्यान में रखने चाहिये : (१) निर्यामत-आहार । (२) नियत समय पर-शयन । (३) यथा समय-स्नान । (४) यथोचित व्यायाम । पथ्य अपथ्य खांड़ कम बारीक वाटा श्राटा (तीव्र रोग में) ताजे फल एरण्ड काकड़ी स्निग्ध पदार्थ धृत तैल पूर्ण विश्राम तैल वाले पदार्थ अच्छे कपड़े पहिनना স্থলি अच्छी हवा सेवन करना गर्म मसाला आराम होते ही बाहर घूमने जाना। मैदा For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११४ ) उदर रोग, शोथ रोग, जलन्धर रोग (Dropsy.) आदि। इन रोगों में जल्दी और निश्चय लाभ उठाने के लिये अन्न बन्द करके केवल गाय का दूध सेवन करना चाहिये । तीवावस्था में कभी कभी ऊंटनी का दूध भी लाभदायक होता है। नमक इन रोगों में बहुत नुकसान पहुंचाता है अतः सेवन न किया जावे । दस्त रोज साफ आवे वैसा प्रयत्न करना चाहिये। पथ्य अपथ्य गेहूं लंघन रेचन दूध मूंग की दाल एरण्ड तैल जव करेला चवला भारी अन्न मीठाई नमक कब्जी करने वाली वस्तुयें मेदा बेसण अजवायन (भोजन के पश्चात् आद्रक लवण जलनहीं पीना वा कम पीना । वाष्प का जल पीना चाहिये । खटाई छाछ, रायता, दही अमचुर अमली आम उड़द घृत For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ११५ ) । ठंडी वासी चीजें। पूड़ी रहन सहन( १) ठंड, सर्दी से दूर (१) दिन में सोना। रहना। (२) परिश्रम बहुत करना। (२ सूजन वाला स्थान (३) कासीद करना। ऊंचा रखना। (४) बन्द और गन्दे मकान (३) स्वच्छ हवा सेवन में रहना। करना मेद रोग ।(Inst.ity) चर्बी वाले पदार्थ कम खाने चाहिये। कसरत खूब करनी चाहिये, मातः सायं बहुत दूर तक रोज घूमने जाना चाहिये। रात को निद्रा कम लेनी चाहिये और एक जगह पर बहुत देर तक बैठे नहीं रहना चाहिये। पथ्य अपथ्य लंघन गेहूं दूध (केवल) भारी चीज़ जवार मीठाई चावल जव रबड़ी वृन्ताक मंग विला छाछ फटस For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra क्षार जल- उबाला जल पीना । रहन सहन (१) चिन्ता करना । (२) परिश्रम करना । (३) रात्रि में जागना । (४) गर्म जल से स्नान --- www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करना (५) व्यायाम करना | (६) स्वारी पर बैठना । पथ्य ( ११६ ) लंघन रेचन ( दस्त लगाना) हलका अन जब मृग धूली रोटो बाजरी रुखा अन्न (१) आरामी से रहना । (२) बहुत सोना । श्रामवात । (Rheumatism ) वात व्याधि की समान ही पथ्य रखना चाहिये पर इस खास रोग में पथ्य हलका और जल्दी पच जाय वैसा लेना चाहिये । (३) व्यायाम न करना (४) घूमने नहीं जाना किन्तु एक स्थान पर बैठे रहना । दही गुड़ उड़द अपथ्य कफकारक वस्तु मीठाई मावा सीरा मेदे की चीज़ बेस की चीजें For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११७ ) वृन्ताक मलाई करेला छाछ चावल आमली आद्रक अमचर दृध (पतला, सोडा मिला चवला कर।) खीच बाजरी का नीबू (दर्द अधिक हो तब नहीं।) जलहलका, स्वच्छ और क्षार ठंडा जल वाला जल पीना चाहिये। उबाल कर ठंडा किया। रहन सहन(१) गर्म कपड़े पहिनना । (१) सर्दी से बचाय न (२) तैल मसलाना। रखना। (३) गर्म जल से स्नान (२) मलमूत्र के वेग को रोकना। करना। (४) सेक। (३ रात को जागना। (५) बफारा देकर पसीना (४) अधिक श्रम करना। निकालना। (५) गन्दे और बन्द मकान (६) पसीने वाले कपड़े में रहना। जल्दी बदल देना। १६) पूर्व का पवन सेवन (७) दर्द वाले स्थान को करना। फलानेल के कपड़े से ढके (७) चिन्ता। रखना। (८) शोक। (E) पवन से बचना। (8) क्रोध। (8) सर्दी से बचना। (१०) उद्वेग। For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) (११) दिन में सोना। (१२) ब्रह्मचर्य न रखना। (१३) ठंडे पानी से स्नान करना । (१४) काफी कपड़े नहीं पहिनना। (१५) भूमि पर सोना । (१६) सील वाली जगह में रहना। (१७) विशेष श्रम करना। जीर्ण व्याधि होने पर श्रावहवा बदलने के लिये दूसरी जगह पर जाना। वात व्याधि । (Nervous Desease.) यह बीमारी धीरे २ दूर होती है । योगराज गुगुल इसमें सब से बढ़िया दवा है। ठण्डी चीजें नहीं खानी चाहिये । ठण्ड से बचना चाहिये। पथ्य अपथ्य दस्त लगाना दही छाछ मंग की दाल थली रायता बाजरी की रोटी प्राचार गेहूं की रोटी खटाई तूरकी दाल प्रांवली अमचूर मूला धृत For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११६ ) उपवास करना बासी अन्न चवला मेथी-सूखी-हरी आंवला नीबं चंदलिया हींग वृत्ताक पापड़ कैर क्षार गुड़ (खास अवस्था में तथा जीर्णावस्था में। जलजल गर्म करके पीछा ठंडा करके पीना। सोडावाटर। रहन सहन ठण्डा जल पीना। अस्वच्छ जल। (१) स्वच्छता विशेष रखी जावे। (२) स्वच्छ हवा सेवन कीजावे। (३) घूमने जाना। (१) जागना। .. (२) वेग धारण करना। (३) सवारी करना। For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२० ) रक्त विकार । (Skin Disease.) (खाज, पांव, दाद, आदि) रक्त विकार की बीमारियों में नमक नहीं खाना चाहिये। अथवा सादे नमक के स्थान सैन्धव खाना चाहिये। पथ्य प्रारम्भ में जो ‘साधारण पथ्य' बतलाया है उसी का पालन करना चाहिये। स्वच्छता खूब रखनी चाहिये, कपड़े साफ़ पहिनने चाहिये । ताज़ी हवा में घूमने जाना चाहिये। गन्दे और बन्द मकान में न तो रहना चाहिये और न रात को सोना चाहिये। श्रौढ़ने बिछाने के कपड़े धूप में रोज़ रखे जाने चाहिये । सब से अलग भोजन करना चाहिये, खाने के, पीने के बर्तन भी अपने अलग रखने चाहिये । अरेठा, साबु, खारा, गंधक वा नीम के पानी से शरीर को दाद आदि स्थान को साफ़ रखना चाहिये। दस्त साफ आवे वैसा प्रयत्न रखा जावे । खटाई इन रोगों में नुकसान करती है। चंदलिये का साग लाभकारी है। कृमि । (Worms.) पेट में कृमि हो जाने पर दस्त की दवा देनी चाहिये। बच्चों को अकसर यह बीमारी होती है और इसी से ज्वर, शूल, मंदाग्नि आदि की पीड़ाये अनेक वार होती है। मीठा, मैदा, चना, खांड सेवन नहीं करने चाहिये । पथ्य अपथ्य जुलाब चावल चना वथा अजीर्ण में भोजन मैदा For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नींबू क्षार उड़द मीठाई वायविडंग पान दही दूध कांजी हींग गोमूत्र तैल (रोटी पर लगा कर) अजवायन । शाकभाजी जलरहन सहन ठण्डा जल दिन में सोना सुजाक। Gonorrhoea. यह संक्रामक-चेप से दूसरे के लगने वाला-रोग है । इस में स्वच्छता रखने की और विशेष ध्यान रखना चाहिये । बहुत से लोग प्रारम्भ में इसे छिपा रखते हैं परन्तु इससे उन्हें बहुत हानि होती है। सूजाक वाले के सन्तान नहीं होती है अतः इस रोग से सदा बचना चाहिये। रोग हो जाने पर तुरन्त ही धैर्य के साथ इलाज कराना चाहिये। पथ्य तीदण (तरुण) अवस्था मेंहलका आहार। मरिच चटनी चावल प्राचार फल हरे खटाई गर्म वस्तु For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२२ ) थूली शरबत अमचुर आमली खिचड़ी भारी चीजें मंग की दाल मिठाई बिना मिरच के हरे सागः पूड़ी हलकी चीजें रोटी बाजरी जलअधिक जल पीना चाहिये। चाह ठंढा जल, स्वच्छ जल काफी पीना चाहिये। गर्म पेय दूध और जल मिला कर पीना। रहन सहन(३) पूरी पारामी करना। (१) चलना फिरना। Complete Rest (२) अस्वच्छता रखना। (२) बिछौने पर लेटे रहना। (३) घाव-रसी को साफ़ न रखना। (३) २३ सप्ताह तक खार पर लेटे रहना। (४) व्यसन । (४) ब्रह्मचर्थ। (५) तमाखू । (५) शुद्ध विचार। (६) भांग। (६) कमर के नीचे तकिया रखना। (७) दस्त साफ़ आवे ऐसा प्रबन्ध रखना। (E) बिछौना सख और ठएडा होना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) पुराना सुजाक हो जाने पर पौष्टिक और रक शोधक द्रव्य लेना चाहिये | गर्म वस्तुये गर्म मसाला । खटाई साधारण पथ्य जो पहिले प्रारम्भ में कहा है वह पालन करना चाहिये । पिचकारी लगानी चाहिये। धृत दूध गर्मी। Syphilis. भयङ्कर और बुरी बोमारी है। संक्रामक है। इस रोग को छिपाना नहीं चाहिये किन्तु धैर्य से इलाज तुरंत कराना चाहिये । यह बीमारी जल्दी नहीं किन्तु धीरे २ श्राराम होती है। गर्मी वाले की सन्तान पूरे महीने की नहीं होती है, अक्सर गर्भपात होता रहता है। स्वच्छता अधिक रखने की जरूरत है। पथ्य सूजाक में बतलाया है वह तथा 'साधारण पथ्य' जो पहिले कहा है वह पालन किया जावे। ठंडी वस्तुयें नहीं ली जावें । खून साफ की दवायें सेवन की जावे। नमक सैंधव ही ले। प्रदर। Leucorrhoea. पथ्य पहिले 'सामान्य पथ्य' में कहा है उसका पालन किया जावे । स्वच्छता रखी जावे । चाह काफी का सेवन बन्द किया जावे। For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२४ ) स्नान करना, ब्रह्मचर्य रखना, जननेन्द्रिय को सुबह सांम ठण्डे पानी से खूब साफ धोना, स्वच्छ हवा सेवन, ठंडे पानी में बैठना, दस्त साफ श्रावे वैसा प्रयत्न रखना और ताकत की दवा लेना उपयोगी है। इस रोग का इलाज और विशेष पथ्य 'रजस्वला सम्बन्धी बीमारिये और उनसे बचने का उपाय' नामक पुस्थक में हमने विस्तार से कहा है अतः उसे देखें। कुसुवावड़ । Abortion. सुवावड़ की भांति परहेज़ रखना, पर कुछ कम दिन रखना चाहिये । स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान दिया जावे। दूध हितकर है । ठण्ड न पहूंचे कैसे मकान में रखना चाहिये पर जहां हवा पाती ही न हो, उजियाला न हो, वहां रखना नुकसान पहुंचाता है। कितनी ही स्त्रियों को कुसुवावड़ की आदत पड़ जाती है । और बार बार दो चार महीनों का गर्भ गिर पड़ता है अतः जिसे एकवार कुसुवावड़ हुई हो उसे भविष्य में फिर न हो इसकी सावधानी रखनी चाहिये । गर्भाशय के भीतर आवल ( ? ) आदि सब साफ निकल गये हों इसकी सम्हाल रखी जावे। सुवावड़। Delivery. बात और कफ नाश करने वाले व्यवहार तथा खान पान सेवन करने चाहिये। स्वच्छता खूब रखनी चाहिये । श्रौढ़ने विछाने के लिये विस्तर साफ और आवश्यकतानुसार हो। For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२५ ) सर्दी से बचाव रखना चाहिये । हवा कम आवे पर एकदम बन्द नहीं कर देनी चाहिये। उजियाला भी आते रहना जरूरी है। लोग खिड़कियों के परदे आदि बांध कर हवा विलकुल रोक देते हैं पर स्वास्थ्य की वृष्टि से यह अच्छा नहीं । सर्दी से बचने के लिये हवा को भी रोक देना अच्छा नहीं। धधकते कोयलों की सीगड़ी भीतर नहीं रखनी चाहिये । पथ्य बहुत भारी वस्तु नहीं देनी चाहिये । प्रारम्भ में लंघन कराकर अजवायन देना चाहिये, पीपलामूल देना चाहिये, दूध देना लाभ कारी है, ५।७ दिन बाद हलका अन्न दूध सेवन करना चाहिये, तेल की मालिस करानी चाहिये, धूप कमरे में रोज कराना चाहिये । बात व्याधि में कहा पथ्य कुछ दिन तक सेवन कराना चाहिये। मैदा, मैदे की मिठाई, मावा, खोर, खटाई, मूला, ठंडी चीज काकड़ौ, सीरा पूड़ी, वगैर नहीं खाने चाहिये। प्रारम्भ में कुछ दिन जल उबाला देना चाहिये। . कब्जी । Constipation. रोज जुलाव लेना अच्छा नहीं। फूटस, हरे साग, नीबु नारंगो, खजूर आदि का सेवन अधिक करना चाहिये । बिना छाना पाटा खाना चाहिये। चोपड़ चंदलिया कजी को दूर करते हैं । इस सम्बन्ध में हमारे मित्र श्रीयुत पं० हनुमत्प्रसाद जो वैध बंबई Co. मारवाड़ी औषधालय कालबा देवी रोड ने 'मलावरोध चिकित्सा' नामक एक पुस्तक बड़ी अच्छी लिखी है उसे पढ़ना चाहिये मूल्य ।। है । नीचे मलावरोध नाशककुछ सौम्य औषधिय प्रकाशित की जाती हैं-आशा है पाठक गण जरूरत के समय सेवन कर लाभ उठावेंगे। For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) मलावरोध नाशक-कुछ सौम्य औषधियें । (१) छोटी हरड, गुलाब के फूल, काली दाख, बादाम का मगज, सौफ ईन चीजों को बराबर लेके कूट पीस कर प्राधे २ तोले की गोली बनाली जावे । इनमें से रात को सोते समय १ या २ गोली खाने से दस्त साफ होगा। (२) हरड, बहेडा, आंवला, इन तीनों चीजों को समान भाग लेकर तीन माशे से छः माशे तक रात को सोते वक्त पानी के साथ खाने से दस्त साफ होगा। (३) एक, दो हरड का मुरब्बा अथवा एक मुठी भर बीज सहित काली मुनक्का के सेवन से दस्त साफ होता है। (४) सवेरे या रात को दूध अथवा पानी में एक दो चम्मच ओलिव-पाईल, बादाम रोगन, या एरंड का तेल डाल कर पोना, या गुड़ अथवा रोटो के साथ गुड़ खाना भी कब्जियत को मिटाता है। (५) एक दो औंस ताजा दाख का रस निकाल के शक्कर वा नमक मिला के पोना लाभदायक है। (६) नाभी के चारों ओर पानी से भीगा हुआ टुवाल लपेट रखने से या पोले रंग के कांच को साफ शोशों में भर के, बराबर डाट लगा कर, चार घंटे सूर्य की ताप में रक्खा हुआ शुद्ध जल भोजन के पीछे एक दो तोले पीने से कब्जियत दूर होती है। (७) दाख, हरड और शक्कर या सेंधानमक इन तीनों की गोली बना के एक तोला प्रमाण खाने से दस्त साफ होगा। (E) गुलकन्द एक दो तोले खाकर गरम दूध पीवें । For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२७ ) (E) बड़ी हुई, सनाकी पत्ती और रेवंदीनी को बराबर वजन में लेकर बारीक पीस के बेर के प्रमाण गोली बना के रात को सोते समय गर्म दूध, या पानी से एक दो गोली खावें । प्रातःकाल दस्त साफ होगा। (१०) पाचक सारक चूर्ण सोंठ, सनाय, हर्ड, सैंधव लवण, निसोत संचल नमक और सौंफ को समान भाग ले के बारीक पीस के रक्खें । रात को सोते समय ३--४ माशे खाने से दस्त साफ होगा। (११) मंजिष्टादि चूर्ण मजीठ २॥ तोले, गुलाब के फूल ५ तोले, त्रिफला १० तोले, छोटो हर्ड ५ तोले सोफ २|तोले, सना १० तोले, पाषाण भेद २॥ तोले इलायची २॥ तोले तुख्मकासनी ॥ तोले, गोखरू २॥ तोले, सोरा खार २॥ तोले, इन सब बस्तुओं को बारीक पीस कर ठंडे जल से २ माशा से ४ माशा तक खावें । इससे मल और मूत्र दोनों साफ होंगे। रक शोधन और दाह शान्ति के लिये भी यह अच्छा है। (१२) शिवाक्षार पाचक चूर्ण सोंठ, मिर्च, पीपल, अजमोद, सेंधानमक, स्याहजीरा, सफ़ेद जीरा, हरड, साजीखार, सब चीजें १---१ तोले, हींग ( सेको हुई ) ४ माशे सब चीजों का चूर्ण करके २ माशे से ६ माशे तक खावे इससे अजीर्ण, मलावरोध, मन्दाग्नि और अम्लपित्त में फायदा होगा। For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२८ ) (१३) अभयादि मोदक हरड की छाल, काली मिर्च, सौंठ, वायविडंग, श्रामला, पीपल, पीपलामूल, तज, पत्रज, नागरमोथा, ये चीजें आधा २ तोला दन्ती मूल, १ तोला, निसोत ५ तोले, मिश्री ३ तोले, सब चीजों का चूर्ण कर शहद में मिला के गोलियां बनावें । प्रातःकाल पानी से एक गोली खावें । दस्त होंगे। जब तक दस्त हो ठंडे पानी से हाथ पैर न धो गर्म पानी काम में लें। इससे कोष्ठ की शुद्धि होकर अनेक रोग नष्ट होते हैं । मात्रा-जुलाब के लिये १ तोले से १॥ तोला दस्त साफ लाने के लिये ३ माशे। ऊपर औषधियों के जो प्रमाण लिखे गये हैं वे मनुष्यों की प्रकृति के अनुसार कम ज्यादा किये जा सकते है।। (१४)स्वादिष्ट विरेचन-शुद्ध गंधक तोला २॥ सोंफ तोला २॥ मलेठी तोला २॥ सोनामुखी तोला ॥ खांड़ तोला १६ अलग २ पीस कर एकत्र मिलाले। मात्रा मासा ३।४ सोते समय ठण्डे जल से लेवे। (५) गुलाब के फूल तोला १ मजीठ तोला १ निसोत छाल तोला ? हरडे तोला १ सोनामुखी तोला १ खांड तोला मात्रा मासा ३ ठण्डे जल के साथ (१६) हरडे तोला ? For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) काली दाख तोला १ कीरमालागिर तोला १ निसाथ तोला १ काला नमक तोला १ अधकचरी करके २॥ तोला चर्ण १० तोला जल में रात्रि को भीगो दें, प्रभात को थोड़ा गर्म करके छान कर पी लें। अच्छी दस्त अाती है। धातुश्राव, निर्बलता, स्वप्नदोष । (Spermatorrhæa ) पाचन हो वैसे पौष्टिक अन्न सेवन करने चाहिये । दूध, घृत, उड़द आदि खाने अच्छे हैं । खटाई न खावें। प्रमेह हो तो त्रास इलाज करें। नीचे कुछ सादे किन्तु अच्छे प्रयोग लिखे है उनका सेवन करना बहुत लाभकारी है। (१) हरडे छाल तोला १० मिश्री तोला १० सहत तोला २० मात्रा माला ६ रोज रात को सोते समय ले, इच्छा होतो ऊपर से गर्म किया मोठा दूध पोवें। (२) तुलसी के बोज तोला ५ मिश्री तोला ५ दूधके साथ फंको । मात्रा मासा २३ (३) प्रासगन्ध तोला १ हमारी लिखी 'ताकत की दवा' नामक पुस्तक मंगा कर बदनी चाहिये । उसमें अनेक अनुभव किये नुमखे ताकत बढ़ाने के लिख है। For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३० । चनिया गोंद तोला १ सीघोड़ा तोला १ मेदा लकड़ी तोल १ मिश्री तोला३ दूध के साथ फंको-यह श्वेतप्रदर में भी बहुत गुणकारी है। मात्रा मासा २३ (४) काकड़ा सिंगी तोला १ प्रांवला तोला। नीम गिलोय तोला गोखरू तोला मिश्री तोला २ मात्रा मासा ६ दूध के साथ दस्त हमेशा साफ आवे इसका प्रबन्ध रखना चाहिये। .. स्नान ठंडे जल से बन्द मकान में की जावे, धूमने जाना चाहिये, ताजी हवा सेवन की जावं । यव धानुश्राव में उपयोगी खाद है। बालकों का पथ्य । Child Disease दृध माता का मुत्राफिक नाता हो तो बच्चे को माता का दूध छुड़ा कर बकरी वा गाय का दूध देना चाहिये । छोटे बच्चों को दृध थोड़ा पानी मिला कर कुछ गर्म करके देना वाहिये । माता का दूध साफ और हलका हो उसकी दवा देनी चाहिये कारण माता का दूध जितना उपयोगी होता है उतना बाहरी दूध गुण नहीं करता। गाय का वा बकरी का ताजा दूध न मिले तो (डब्बों)का दृध देना चाहिये पर बच्चं उनसे For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३१ ) अच्छी तरह पोषण नहीं होते। फीडिंग बोतल (काच के बोबे ) से जो दूध बालकों को पाते हैं वे बराबर भीतर से साफ नहीं हो सकते और उससे सड़ा, बिगड़ा दूध उसमें कुछ न कुछ भीतर बना रहता है, वह पेट में जाने से श्रजीर्ण, दस्ते वा सूके का रोग पैदा करता है अतः पहिले फोडिंग बोतल को हरबार अच्छी तरह गर्म जल से धोकर फिर ताजा दूध डालकर पीना चाहिये । उसे हरबार सावधानी से साफ करना चाहिये, रबड़ की बीटी को भी अच्छी तरह साफ करनी चाहिये । दूध में मीठा मिलाने की ऐसी ज़रूरत नहीं है पर थोड़ा सा ४ । ५ महीने के बाद मिलाया जावे तो ऐसी हानि नहीं । छः मास पहिले अन्न नहीं देना चाहिये | मिठाई, जलेबी, मावे की चोज़, आदि देकर उसे रोज खाने के लिये हिलाना नहीं चाहिये, इनसे ताक़त तो नहीं ती पर पेट में विकार हो जाता है। बच्चों के कपड़े बहुत साफ़ रखने चाहिये, श्रौढ़ने बिछाने के विस्तर भी साफ़ रहने चाहिये, गन्दे और मैले विद्वानों से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है । कपड़े गर्म पहिनने चाहिये जिससे सर्दी का बचाव हो सर्दी में इधर उधर न फिराना चाहिये। बच्चों को रोज़ स्नान कराना चाहिये और बाहर घूमाना भी चाहिये । छूत वाली बीमारियाँ | (Epidemic Disease.) आज कल हमारे देश में छूत वाली बीमारियों का भी दौर दौरा होने लगा है। श्रये वर्ष किसी न किसी बीमारी की इधर वा उधर शिकायत सुनाई पड़ती है । पहिले इनका इतना प्रकोप नहीं होता था इसलिये इनके विषय में अज्ञान रहने पर भी इतनी हानि नहीं थी पर अव जानकारी न रखना मानो For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३२ ) अपना तथा अपने कुटुम्ब का जीवन जोखिम में डालना है अतः व खाने कमाने की और २ विद्यार्थी के साथ २ छूत वाली बीमारियों का ज्ञान रहना भी बहुत ज़रूरी हो गया है। कुछ लोग श्राज भी छूत वाली बीमारियों की परवाह नहीं रखते और मामूली बीमारियों की भांति इनमें भी वैसा ही रहन सहन रखते हैं पर अन्त में उन्हें उससे विशेष कष्ट उठाना पड़ता है ऐसा बहुत बार अनुभव हो चुका है अतः खाली हिम्मत रख कर ही छूत वाली बीमारियों की परवाह न रखना और मन चाहा वर्ताव करना एक बड़ी भूल है। लोगों को चाहिये कि वे इस विषय में सावधान रहें और कोई भी छूत वाली बीमारी छूट निकलने पर अपने मित्रों और कुटुम्बियों तक को सावधान होने के लिये श्रावश्यक सूचना कर दें जिससे उनके जान पहिचान वालों को भी वृथा ही कष्ट न उठाना पड़े । । सब से प्रथम तो रोगी को एक साफ़ मकान में अलग रखना चाहिये जहां हवा का आवागमन खूब हो । सेवा सुश्रूषा करने वाले के सिवाय घर के सब लोगों को उसके पास न बैठे रहना चाहिये | बिना ज़रूरत के बीमार के अंग को न छूना चाहिये, उसके मुंह के पास मुंह न ले जाना चाहिये और उसका मल, मूत्र, कफ, थूक, सेडा, आदि दूर फेंकवाना चाहिये, उपयोग में लाये हुये कपड़े लत्तों को गर्म पानी से उबाल कर धूप में रखने चाहिये और मकान को पुतवा देना चाहिये, कुछ समय तक उस मकान वा कमरे में किसी को उठना, बैठना, वा सोना नहीं चाहिये। ज़रूरत अनुसार छूत नाशक दवाओं से वहां की सफाई भी करानी चाहिये । रोगी को हिम्मत बढ़ानी चाहिये । गांव में बीमारी फैलने पर सब से अच्छा व्यक्तिगत बचाव का उपाय यही है कि कुछ समय के लिये वह स्थान छोड़ दिया For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३३ ) जावे। खान पान में नियमितपन और मिताहारपन रखा जावे । बासी, ठण्डी, सड़ी, गली भारी वस्तु सेवन न को जावें। जल स्वच्छ किया पोवे, ज़रूरत हो तो उबाला पोवें। कपड़े लत्ते बरावर सर्दी गर्मी से बचाव करें मैले पहिने जावें । पैरों को गर्म रखने के लिये मोजो का व्यवहार करें। नियत समय पर सोजावें, रात को अधिक देर तक जागे नहीं। रात को बाहर न घूमे। शोतवाली जगह में न रहें, भूमि पर न सोवें, स्वच्छता रखें, कपड़े लत्तो को धूप दिखाया करें ।धूप करें। प्लेग की बीमारी में आस पास बीमार होने की खबर मिलते हा अपना मकान छोड़ दूसरे स्थान जा रहें । घर में चहा मरा मिले तो आलस्य न रख कर तुरन्त मकान छोड़ बाहर चले जावं । विचार ही विचार में समय न खोवे । चहे को हाथ से न पकड़े किन्तु चिमटे से पकड़ कर तैल डाल कर जला दें। टोका लगवा ले । माजे पहिन रखें । सर्दी से बचाव रखें। जब वीमारी मिट जावे तव पोछे मकान में लौट आवें और उसे पुतवा देने के बाद वहां रहें। हैजा। (Cholera) भयङ्कर रोग है । संक्रामक भी है । इस रोग में इधर उधर की दवायें देने की अपेक्षा प्रारम्भ ही में किसी अच्छे वैध से इलाज कराना चाहिये । रोगी के पाप्त स्वच्छता रखनी चाहिये। रोगा को खुली हवा में रखना चाहिये । पहिनने को कपड़े-खूब हो और गर्म भो हो । बीमार को खाट पर लेटाना-सुलाना चाहिये । वहां धूप करना चाहिये । मल मूत्रादि दूर ले जाकर फेंकना चाहिये, फिनाइल वा चने से स्थान साफ़ रखना चाहिये । रोगी के पास अधिक भीड़ न होने देना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३४ ) अपथ्य प्रारम्भ में लंघन (जब तक रोग शान्त हो) अन्न देना उपद्रव शान्त होने पर चने आदि सेके धान्य। प्रारम्भ में चावलों का मांड देर से पचने वाली चीजें। वा मूग का पानी देना ज्यादा खाना। चाहिये। दृध बिना उबाला पीना साबूदाना-फिर दलिया चावल कांदा छाछ दूध (चने के पानी के साथ) जल उवाल करके पोला ठण्डा : अस्वच्छ जल पीना करके दिया जावे। बर्फ के टुकड़े (तृषा अधिक हो तो) पानी कम देना चाहिये, पानी के स्थान सोड़ा वाटर दिया जाये। थोड़ा २ पानी बार बार दिया जावे। जल में थोड़ा नमक मिला दिया जावे। रहन सहन (१) शान्ति और धैर्य रखना (१) स्नान करना। (२) स्वच्छता (२) आग तापना! (३) स्वच्छ और ताजी हवा तथा काफी हवा। (३) धूप में बैटना। । For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्य अपथ्य (6) Complete Rest. (४)श्रम करना। पूर्ण विश्राम (५) हाथ पैर गर्म रखना (५) व्यायाम। ठंडे हो जाय तो तपा दन चाहिये । जिस समय हैजे की बीमारी गांव में हो उस समय तन्दुरस्त लोगों को नीचे लिखे अनुसार पथ्य करना चाहिये। (१) यह बीमारी कीड़ों के द्वारा उत्पन्न होती है अतः काम में आने वाली सभी चोजें उबाल कर व गर्म पानी से धोकर काममें लानी चाहिये । पानी दूध तथा मक्खियों के द्वारा ये कीड़े इधर उधर फैलते हैं अतः जल और दूध औटाकर पीना चाहिये, वरतन वगैर सब औटाये गर्म जल से साफ़ करने चाहिये और खाने की चीजों को मक्खियों से छूने न देना चाहिये। २) हाजमे में खराबी हो वैसी चीजें काम में नहीं लानी चाहिये । कच्चे तथा सड़े हुये फल ! खरबूजा, ककड़ी ) बासी अन्न, कभी नहीं खाना चाहिये। कन्द आदि को उबाल कर वा गर्म जल से धोकर खाने चाहिये। (३) खाली पेट (अर्थात भूखे) हैजे के बीमार के पास नहीं जाना चाहिये । बाहिर निकलने के पहिले कुछ बालेना जरूरी ४) हैजे के बीमार के पास जाने के बाद हाथ पर अच्छी . तरह गर्म जल तथा सावुन से धो लेना चाहिये। (५) हैज के दिनों में थकावट वा सरदी वा हरारत से बचना चाहिये न अटरम सटरम खाना चाहिये। (६) हैजे के दिनों में जुलाव नहीं लेना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३६ ) (७) प्रत्येक को दृढ़ निश्चय रखना चाहिये कि उसे हैजा नहीं होगा । इन्फलुएन्जा | ( Influenza, ) ईन्फ्लुएञ्जा की भयङ्करता को समझ कर, दूरदर्शिता का विचार कर प्रत्येक गृहस्थ को सावधान रहना चाहिये, श्रीर रहन सहन तथा खान पान में इस प्रकार का सुधार किया जावे जिससे इसका धावा होने का कारण हो उपस्थित न हो । सम दारों का कहना है कि पानी के पहिले पाल बांधना चाहिये Preventior is better than cure तदनुसार नीचे लिखे उपचार तथा उपाय, जो गत ईन्फ्लुएञ्जा के समय विशेष कारगर हुए समझे गये वे प्रकाशित किये जाते हैं। आशा है कि समय पर लोग इनका उपयोग कर लाभ उठायेंगे । ईन्फ्लुएञ्जा से बचने के साधन । (२) जहां तक हो इसकी छूत से बचा जाये । (२) यह बीमारी दूसरे कारणों के सिवाय खास कर व्यक्तिगत समागम, भीड़, श्वास, थूक, अस्वच्छता और अन्धेरे मकान में निवास आदि के प्रसङ्ग होने से अथवा ऐसे स्थानों में रहने से आक्रमण किया करती है । अतः ईन्फ्लुएञ्जा के समय इनसे बचाव किया जाये । (३) सभा सोसाइटियों में मेले खेलों में, नाटक तमाशों में जहां अधिक समुदाय एकत्र हो वहां भीड़ में कभी नहीं जाना चाहिये। रेल में भी जहां अधिक मनुष्य बैठे हुए हों वहां नहीं बैठना चाहिये। भीड़ से इसके आक्रमण का भय अधिक है। For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) (४) कमरे में प्रतिदिन धूप आ जाय ऐसा प्रबन्ध रखना चाहिये । स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाये। (५) व्यायाम प्रतिदिन किया जावे। (६) खानपान आदि नियमसर किये जावें। (७) खाद्य पदार्थ उत्तम, उपण, साफ और जल्दी पचने वाले संवन किये जाय । (1) सड़े गले ठण्डे पदार्थ न खावें, न वार बार खावे, बाजार की हलवाइयों की तैयार की चीजें जहां तक हो नहीं खायी जावे। (8) सर्दी से बचाव किया जावे। (१०) कपड़े गर्म पहिने जायं, छाती अच्छी तरह ढकी रहे, पैरों में मोजे पहिने जावें । सर्दी न लग जाय इसके लिये कपड़े अच्छी तरह पहिने जायं शरीर खुला न रखा जावे। (३६) स्नान ठण्डे जल से नहीं करनी चाहिये, किन्तु गर्म जल से स्नान की जावे। (१२) स्नान खुले मैदान में वा कुओं पर न की जाय। हवा न लग जाय इलका स्नान के समय पूरा ध्यान रखा जाये। (१३) हवा अच्छी तरह पा जा सके जैसे खुले मकान में रहना तथा सोना चाहिये । (१४) ईन्फ्लूएआ के दिनों में बालकों को स्कूल कुछ दिन नहीं भेजना चाहिये। (१५) नमक मिले गर्म जल से कुल्ले तथा नास्य रोज करना चाहिये। (१६) बीमार होने पर सब काम काज छोड़ कर आराम करना चाहिये और जब शरीर अच्छी तरह ठीक हो जाय तब काम काज में लगना चाहिये तथा घर से बाहर निकलना चाहिये । इस बीमारी में दिल बहुत कमजोर हो जाता है अतः For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिना सख्त जरूरत के चारपाई पर से भी बीमारी में नहीं उठना चाहिये। (२७) थकावट मालूम हो वैसा परिश्रम नहीं करना चाहिये। (१८) कमरा गर्म रखना चाहिये । (१६) रात को बहुत देर तक नहीं जागते रहना चाहिये। (२०) रोगी के काम में आये हुए द्रव्य, कपड़े, धूप में रखे जावे अथवा गर्म जल में उबाल लिये जावें। (२१) रोगी के काम में आये हुए वरतन अग्नि से तपा कर वा गर्म जल से धोकर काम में लाने चाहिये। (२२) अंधियारे, विन हवावाले मकान में न तो रोगी को रखना चाहिये और न स्वस्थ पुरुष को ही रहना चाहिये ! (२३) बीमार के कपड़े रोज बदल देना चाहिये । २४) रोगी के मलमूत्र, कफ, थूक, आदि को बहुत दूर फेंकना चाहिये। (२५) चाहं जहां थूकना नहीं चाहिये । इससे रोग फैलने में सहायता मिलती है। योमार के थूक-कफ में बीमारी के जीव होते हैं अतः उगलदान में तनाशक दवाओं का जल फिनाइल आदि रखना चाहिये और उसे दूर फेकना चाहिये। (२६) बीमार होते ही-सर्दी लगने का अनुमान होते ही तुरन्त इलाज का प्रबन्ध करना चाहिये । समय विचार में वा लापरवाह में वृथा नहीं गवांना चाहिये।। (२७) बीमार होने के साथ ही योग्य प्रवन्ध तथा इलाज कराया जावे तो रोगी सहज में ही आराम हो सकता है । (२८) जिस कमरे में बीमार सोता है उसमें सेवा सुश्रषा करने वाले के अतिरिक कोई नहीं सोना चाहिये सेवा सुश्रपा For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३६ ) करनेवाले को भी चाहिये कि वह लगातार वहां बैठा न रहे किन्तु बीच बीच में बाहर टहल भी आवे। (२६) रोगी के कमरे में हवा आती रहे । इससे हित होता है, पर हवा का झोका रोगी के बदन पर नहीं लगना चाहिये तथा वाहर ले खराव हवा भीतर न आवे इसका ध्यान भी रखना चाहिये। (३०) जुखाम होते ही छाती पर तारपीन का तेल थोड़ा कपूर मिला कर सेक देना चाहिये। ३१) रूमाल पर युकलेपटिस नैल छिड़क कर रोज संघना चाहिये। ३२. तुलसी के पत्तों की चाह रोज लेनी चाहिये । (३३) अमरसुन्दरी गुटो का सेवन रोज करना चाहिये, इससे आक्रमण का भय कम हो जाता है। ३४) बीमार होने पर जल गर्म किया हुआ सेवन किया जाये। ३५) एक सेर जल में पोटास परमेगनाट रत्ती भर मिला कर प्रतिदिन कुल्ले किये जावें । नाक भी भीतर से धोया जावे । यह रोग प्रतिवन्ध साधन है। ३६) युकलेटिस नेल संघना, कुल्ले नमक वा पोटाल पारमंगनाट के करना, इन्हीं से नस्य लेना, तुलसी वा दालचीनी की चाह सेवन करना आदि से इस रोग के होने का भय बहुत कम हो जाता है। शीतला। Smal Ipox.) बड़ी भयानक बीमारी है, इससे बीमारी के समय अत्यन्त कष्ट पहुंचने के सिवाय चेहरा सदा के लिये कुरूप हो जाता है, किसी किसी के नेत्रों में फूली भी पड़ जाती है अतः इस रोग में विशेष सावधानी रखनी चाहिये । यह अत्यन्त मृत For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४० ) वाली बीमारी है। बच्चों को बीमार से दूर रखना चाहिये, बीमार को स्वच्छ जगह में रखना चाहिये, जहाँ हवा आवे और जाचे पैसे कमरे में रखना चाहिये पर रोगो के बदन पर हवा का भोका नहीं लगना चाहिये। कमरे में बोमार के पास सेवा सुश्रुषा करने वाले के सिवाय दूसरे को नहीं जाना चाहिये। मकान में धूप-लोबान खेना चाहिये। नीम जलाना चाहिये । बीमार के उपयोग आये हुये कपड़े धुलवाने के बाद दूसरे काम में लाने चाहिये। शोतला न निकले इलके लिये चेचक का टीका लगाना बहुत लाभदायक है. ३४ महोने का बालक होने पर टोका लगवा लेना चाहिये, बड़ा होने पर लगवाने से से वह खाज करके टोके को बिगाड़ देता है अतः छोटो उन में ही लगाना श्रेष्ठ है टीका लगाये हुये को शीतला कम निकलती है। ठंड से रोगी को बचना चाहिये। युकलिपट स तेल वा कपूर वा तारबीन का तैल सूधना चाहिये। अपथ्य लंघन तेल भारी अन्न चावल क्रोध पथ्य रोटी धूप खट्टा वेग रोकना बाजरी मोठ मंग करेला बने (व्रण भरीज जावें तब) पानीउवाला हुआ। For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४१ श्रोरी । ( Measles.) शीतला की भांति ओरी भी छूत वाली बीमारी है। यह बच्चों को बहुत निकलती है इसका टीका अभी नहीं निकला है। इसमें एकाएक कोई उपद्रव उठ खड़ा होता है, कमजोरी, खाँसी, जुखाम, ज्वर, फेफड़े में बिगाड़, दानों का पीछा बैठ जाना आदि उपद्रव प्रायः होते हैं। किसी २ के श्रांख में फूली पड़ जाती है, कान से रसी बहने लगती है। श्रावश्यकता अनुसार उपद्रव का उपाय करना चाहिये । आराम होने पर रोगी को जल्दी बाहर हवा में नहीं निकलना चाहिये | सर्दी से बचाव रखना चाहिये । शीतला में बताया पथ्य रखना चाहिये। बीमार के पास जिसे पहिले ओरी नहीं निकली हो उसे नहीं जाने देना चाहिये, बच्चों की खास सम्हाल रखनी चाहिये कि वे बीमार के पास न जायें नहीं तो उन्हें भी ओरी छूत के लगने से निकल श्रावेगी । इसकी छूत १ महीने तक रहती है। खुल खूलिया । ( Hooping Cough. ) छूत वाली बीमारी है । घर में किसी एक बच्चे के यह बोमारी हो जावे तो दूसरे बच्चों को भी यह जरूर हो जाती है और सहज में तथा जल्दी दूर नहीं होती है। लगभग ४० दिन तक यह खांसी चलती है, बच्चा खांसते खांसते हैरान हो जाता है, उसे उल्टी हो जाती है खाया पेट में टिकता नहीं है और कमजोरी इतनी बढ़ जाती है कि कभी तो आरोग्य होना भी कठिन होता है । अतः ऐसे बीमार से बच्चों को अलग रखना For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४२ ) चाहिए, बीमार वाले के साथ खेलने कूदन नहीं देना चाहिये न उनके घर हो जाने देना चाहिये । बीमार हो उसका सर्दी से बचाव रखना चाहिये, हवा न लगने देनी चाहिये, हलका आहार करना चाहिये, गर्म कपड़े पहिनाने चाहिये, छाती ढकी रखनी चाहिये, कमरा गर्म रखना चाहिये । युकलिपट्स तैल सूघना चाहिये। रोग निर्बलावस्था । बीमारी से उठे बाद रोगीको ‘खाने ही खाने की लग जाती है। जो चीज उसे पसंद होती है उसके लिये उसका जी ललचाने लगता है कि "कब खाऊंगा" इत्यादि और वह उसे मिल भी गई तो थोड़ी सी से उसकी तृप्ति नहीं होतो ऐसी वस्तु खाना कुपथ्य करना है। इससे बीमारी लौट अातो है और भयंकर परिणाम निकलता है। बोमारी मिटे वाद कमजोरी को हालत में रोगो को क्या खिलाना चाहिये और क्या नहीं, सो डाकृर की सलाह से ठहराना चाहिये, क्योंकि डाकर के सिवाय इस बात के ठहराने का अधिकारो कोई नहीं है। बीमारी की हालत में डाकर रोज देख कर इस विषय की सूचना देता था, अब डाकुर रोज नहीं पाता चार पांच रोज में देखता है, उसका सब काम नर्स पर आ ठहरता है। वह अच्छी होती है तो अपना और डाकुर का काम अकेलो कर लेती है। बीमारी अच्छी होने के बाद खाने पीने की लापरवाही होने से या घर के आदमियों के लाड़ से रोगों के मर जाने के सैकड़ों उदाहरण हमारे सुनने में आते हैं। मैं कह चुका हूं कि बीमारी से उठे बाद रोगी को “खाने हा" की सूझता है। जो चीज देख पड़े उसे वह खाना चाहता है। इसके लिये वह नर्स For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की खुशामद करता है, घर के मनुष्यों से या स्नेही सम्बन्धियों से हठ करता है, रोया करता है । घर के मनुष्य वगैरः स्नेह से कहो या झुझलाने से कहो नर्स को हाथ पैर जोड़ कर वह चीज उसे खाने को दे देते हैं। परन्तु उनके इस कृत्य का भयंकर परिणाम निकलना बहुत सम्भव हैं। कभी २ ऐसा भी होता है कि बीमारी अच्छी हो जाने पर भी बीमार को बिलकुल भूख नहीं लगता। वह अन्न नहीं खा सकता। इससे उसमें शक्ति पाने में बड़ी देर लगती है। परन्तु जब तक आवहवा तब्दील करने की शक्ति उसमें न आ जाये तब तक नर्स को चाहिये कि उसे भारी भोजन न करावे और जो कुछ खिलाया जावे वह वक्त पर खिलाया जावे। बीमारी के बाद की कमजोरी में कुपथ्य से ही हानि नहीं होती, बहुत दिनों से एक ही जगह पड़े रहने की वजह से बीमार को असूझन आई हुई होती है। इससे वह कुछ अच्छा होते ही ( अपनी शक्ति का विचार न कर ) जरूरत से ज्यादा घूमने फिरने लगता है, खुली हवा में बदन खोल कर बैठ जाता है, घटी गप्पं मारने लग जाता है, दिल बहलाने के लिये कोई अखबार या नाविल पढ़ने लगता है तो ४ चार घंटे पढ़ता ही जाता है । इससे उसका माथा दुखने लगता है। अशक मनुष्य को गरम कपड़े जरूर पहनने चाहिये, परन्तु वह पतली मलमल का कुर्ता पहन कर फिरने लगता है। इस तरह की नादानी का परिणाम यह होता है कि बीमार के शरीर में जल्दी कि नहीं पातो, अशक्त रोगी को बच्चों की भांति संभालना पड़ता है। उसका शरीर और मन दोनों कमजोर हो गये होते है। जब तक ये दोनों ठोक रास्ते पर न पा जावें तब तक अपनी बुद्धि से नर्स को इन्हें संभालना चाहिये । वीमारी के हटते ही रोगी को स्वच्छ ताजी और विपुल हवा की और भी For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्यादा जरूरत होती है। इसलिये श्रावहवा बदलने के लिये रोगी को सुबह शाम टहलना चाहिये। जो रोगी ऐसा नहीं कर पाते उनमें बहुत दिनों तक शक्ति नहीं पाती। उन्हें बुखार नहीं होता, कुछ दुख नहीं होता, खाँसी नहीं पाती न शूल उठता है, परन्तु उनमें शक्ति नहीं बढ़ती और उनके चेहरे पर रौनक नहीं पाती ऐसी हालत में अगर उन्हें नीचे मंजिल में न रख ऊपर की मंजिल पर ही रखा जावे तो उनमें कुछ शकि और होशियारी आने लगे। जो शख्ल गरीबी के कारण घर छोड़कर कहीं बाहर नहीं जा सकते, यदि वे एक कोठरी में से दूसरी कोठरी में हो जाकर रहें तो उन्हें फायदा मालूम होने लगे। जगह पलटने का या आयहवा तबदील करने का परिणाम बहुत जल्द होने लगता है और इससे रोगी को अच्छा लाभ पहुंचता है। यह बात प्रतिदिन के अनुभव की है। जो धनवान हैं, जिन्हें हर बात की अनुकूलता है उन्हें श्राबहवा पलटने के लिये देश पर-देश में जाना कुछ कठिन नहीं है, परन्तु विचारे गरोव जिन्हें अच्छी तरह पेट भर कर एक वक्त भो खाने को नहीं मिलता वे क्या करें ? उनके लिये धर्मार्थ सार्वजनिक प्रारोग्य गृह ( जहां खाने पीने औषधि पानी देने और सेवा शुश्रूषा करने का उत्तम प्रबन्ध किया जाय ) बनाये जावेगे तो कितने ही प्राणियों का बचाव होगा और कितने ही कुटुम्बो की गृहस्थी चलेगी। __बहुत से मनुष्यों का मत है कि वीमारी मिटो कि रोगी चगा हुअा। परन्तु यह मत भूल भरा हुआ है। बीमारी की जैसे बहुत सी अवस्थायें है वैसे ही बीमारी के बाद की कमजोरी की भी बहुत सी अवस्थायें हैं। और उस कमजोरी के ठहरने का समय भी एक सा नहीं होता। यदि बीमारी मामूली हुई तो उसके बाद की रहने वाली कमजोरी बहुत थोड़े समय तक For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४५ ) रहती है और बोमारी भयंकर हुई तो उसके बाद की कमजोरी भी बहुत दिनों तक रहती है। और कभी २ तो वह निर्मूल होती ही नहीं । बीमारी में जिस तरह अच्छी शुश्रूषा की आवश्यकता है, वैसी ही आवश्यकता उसके वाद की कमजोरी में भी है। परन्तु इस बात को सब मनुष्य नहीं जानते । श्रेष्ठ शुश्रूषा का जिन्हें अनुभव है वे जान सकते हैं । और बतला सकते हैं कि नर्स यदि अच्छा और दयामयी न हुई तो हजारों रोगी मर जायेंगे कितने ही रोगी जन्म भर के लिये पराधीन हो जायंगे और कितने जीवन से घबड़ा कर आत्महत्या करने में प्रवृत्त हो जायेंगे | बीमारी से बच कर प्राणों की रक्षा हो जाता और बात है और पहिले की भांति सशक्त और नीरोग होना दूसरी बात है । शक और नीरोग होना उत्तम शुश्रूषा के परिणाम मैं होता है । कभी २ तो नर्स के अच्छी शुश्रूषा करने पर उन बीमारों को भी फायदा पहुँच जाता है जिनके बारे में डाक्टर लोग हाथ समेट लिये होते हैं । I वेचार गरीबों को नर्स नहीं मिलती। उन्हें बीमारी से उठते ही कमजोरी की हालत में ही (जब कि शुश्रूषा की श्रावश्यकता मिट नहीं जाती) काम पर जाना पड़ता है। इससे उनकी बीमारी लौट आती हैं और उन्हें प्राण छोड़ने होते हैं। ऐसे आदमियों के घर में जाकर देखने से उनकी सच्ची स्थिति मालूम हो जाती है। घर में कमाने वाले श्रादमी के बीमार पड़े रहने से खाने पीने की भी दिक्कत रहती है। ऐसी हालत में नल कहाँ से पावें ? सारे घर वाले जिसके श्रधार पर हैं, उनके बीमार हो जाने से वह स्वयं वो सा मालूम होने लगता है। क्योंकि बीमारी काम में श्राने वाले कपड़े लत्ते, औषध, पथ्य आदि आवश्यक चीजें उसके सिवाय और For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) कौन लावे? ऐसे आदमी दैवयोग से अच्छे भी हो गये तो बिलकुल नीरोग और शसक नहीं हो पाते । उनकी बीमारी पलटती है और अन्त में उसी बीमारी में उनका देहान्त हो जाता है यदि धनवान मनुष्य गरीबों के लिये हवा. तबदीली के लिये तथा अन्यान्य बातो का सुभीता कर देंगे तो बहुत सी असाध्य बीमारियाँ अच्छी हो जायंगी। -शुश्रुषा से उद्धृत। दूध । बीमार के लिये दूध का पथ्य 'अमृत' है । यह जल्दी पचता है, शक्ति बढ़ाता है और प्रकृति को रोग दूर करने में मदद देता है। बीमारो में अन्य खाद्य पदार्थ नहीं पचते, परन्तु दृध हलका होने से शीघ्र पच जाता है और शक्ति भी अधिक बढ़ाता है। रोग और पीड़ा के कारण वीमा कमजोर होता जाता है, उसकी जीवनी शक्ति घटती जाती है उसे रोकने के लिये दूध ही एक ऐसा पथ्य है जो आश्चर्य जनक गुण करता है । दृध प्रायः सभी अवस्थाओं में लाभकारी है, रोग की तीवावस्था तथा जीर्णावस्था में दोनों समय एक सा लाभदायक है। दध का आत्मीकरण (अङ्ग लगना) भी अन्य खान पदार्थों की अपेक्षा अधिक होता है। ज्वर में उपरणता बढ़ती है जो खाद्य पदार्थों से उत्पन्न होती है अतः उपरणता उत्पन्न होना बन्द करने के लिये ज्वर में लंघन करने का विधान है, परन्तु दृध से अन्न की अपेक्षा बहुत कम उष्णता पैदा होता है अतः ज्वर में दूध का उपयोग करना जरूरी और हितकर है। पथ्य में गाय का दूध ही देना चाहिये, बकरी का दृध क्षय में, जीर्ण ज्वर में, अतिसार में, प्रवाहिका में, कास में तथा बालकों को देना For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४७ ) अच्छा है पर इन रोगों में गाय का दूध भी श्रेष्ठ है । भैंस का दूध भारी है, देर से पचता है, इस लिये बीमारी में देना ठीक नहीं। तन्दुरुस्त हालत में ताकत के लिये भैस का दूध अच्छा है। गाय का दूध भी ताकत के लिये अच्छा है। दूध स्वस्थ्य गाय का लेना चाहिये। बोमार तथा कमजोर गाय का दूध लाभ के स्थान हानि पहुंचाता है, उसमें अनेक प्रकार के रोगोत्पादक परिमाणु रहते हैं, वह पोषण भो ठोक नहीं करता। दूध में कीटाणुं बहुत जल्दी पैदा हो जाते हैं और उनकी वृद्धि भी तुरन्त और बहुत अधिक होती है अतः विना गर्म किये दूध को पोना बहुत हानिकर है। दूध को खूला रखने से कीटाणं ज्यादा पैदा होते हैं अतः दूध को सदा ढके रखना चाहिये। संक्रामक रोग ( हैजा अतिसार आदि ) फैले हुये हों उस समय खास सम्हाल रखनी चाहिये। बाजार में बिकने वाला दूध पथ्य के काम का नहीं। उसमें मैला पानी, रोगोत्पादक जंतु, फूल, गोवर, मैल आदि के साथ, सुबह शाम का मेल किया, गाय बकरी भेल का परस्पर मिलाया हुआ होता है जो बीमार को हानि पहुंचाने के अतिरिक्त लाभ कम पहुचाता है। दृध बीमार के लिये गाय का रूबरू दुहा होना चाहिये, तभी उसका लाभ उसे मिलेगा। संक्रामक रोग फैला हुआ हो, हैजा श्रादि-उस समय बाजार का दूध नहीं पीना चाहिये और विना अच्छी तरह उबाले कभी नहीं पीना चाहिये। दूध को बहुत गाढ़ा नहीं करना चाहिये, गाढ़ा करने से दूध के कई उपयोगी तत्व नष्ट हो जाने हैं, वह पचता भी देर से है। स्वाद पतला दूध नहीं लगता है इससे लोग गाढ़ा दूध पीते हैं पर उससे तन्दुरुस्त हालत में भी लाभ नहीं पहुचता है । बीमार के लिये दृध एक अच्छा ‘उवाला' आने पर उतार सय करपयः । यो बलकरी पय" For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४८ ) कर पीना चाहिये । मन्दाग्नि वालों को सन्निपात आदि वस्था में जल मिलाकर, उबाल कर, जब जल बल चुकता है सब छान कर पिलाते हैं । संग्रहणी, मन्दाग्नि और पाचनशक्ति कमजोर होने पर इसकी थर उतार छान कर देते हैं । दूध पर बीमार बहुत समय तक रह सकता है। कितने ही रोगों में अन्न बन्द कर देने की जरूरत होती है तब केवल दूध ही दिया जाता है और उससे उसकी वह बीमारी दूर होकर ताक़त रहती है। हमने संग्रहणी, पाण्डु, शोथ और उदर रोग अनेकों को केवल दूध देकर अच्छे किये हैं । कोई तकलीफ रोगी को मालूम नहीं होती है। दूध बढ़ाते २ चार पांच सेर तक दिया जाता है और श२ मास तक भी दिया है। मनाई है पर यदि दिया जावे तो हानि देना चाहिये-नय ज्वर के प्रारम्भ में दूध की शास्त्रों में सौंठ, पीपल, तुलसी वा केसर मिला के नहीं करता। कफ की बोमारी में दूध कम में मना नहीं है— पर तब भी चुने के पानी व सोडे के साथ जरूरत होने पर दिया जा सकता है। जिस से वह जल्दी पच जावे कब्ज करे। लंघन की अवस्था में जब रोगी कमजोर होता जाता हो उस समय उसकी जीवन-शक्ति बनाई रखने के लिये दूध - थोड़ा २- सोंठ, पीपल, दालचीनी, तुलसी वा केसर, चने का पानी, सोडा वा केवल जल मिला कर ही देना चाहिये । रोग की तीव्र अवस्था में अथवा पाचन शक्ति कमजोर होने पर खांड नहीं मिलानी चाहिये । खांड की अपेक्षा दूध में मिसरी मिलाना अधिक लाभदायक है । सहत, मिनका दाख फ्रूट्स भी मिलाकर दिये जा सकते हैं। अनेक लोग घृत मिला कर भी लेते हैं पर बीमार के लिये नहीं किन्तु ताक़त के लिये है । जो लोग निर्बलावस्था में ताकत के लोभ से घी मिला For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) कर है अथवा गादा दूध पीते हैं वे पोछे जल्दी बीमार हो जाते हैं। पथ्य अपथ्यज्वर (निकाला छोड़ कर कफ के रोग सन्निपात ज्वर खांसी (नवीन) संग्रहणी नवीन तीब्र ज्वर जीर्णज्वर कफ न हो तो अर्श (अमृत है) रक विकार (किसी २ को) मानसिक बीमारिय मुशाफिक न आवे (अजीर्ण उन्माद हो जाये) मूर्छा दाह छर्दि पाण्डु उदर-शूल शोथ दुर्बल ताकत के लिये जीवनी शक्ति को स्थायो रखने के लिये। ___ अनेक लोगों को दूध नहीं पचता है, मुश्राफिक नहीं आता है उन्हें चने के पानी के साथ, सोड़े के साथ, नींबू के रस के साथ अथवा च्यवनप्राश अवलेह के साथ देना चाहिये । सुगन्धित द्रव्य-चातुर्जात, जायफल, जावंत्री, इलायची, केसर, दालचीनी, भो मिलाना अच्छा है। For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( १५० ) प्रभात का दुहा दूध गर्म करने पर ११ । १२ बजे तक काम में ले आना चाहिये । ध्यान में रहे ५ घण्टे बाद दूध बिगड़ जाता है— बीमार के उपयोगी नहीं रहता । रबड़ी, खीर, बीमार के लिये उपयोगी नहीं हैं । मावा भी काम का नहीं है। दूध में रोटी मिला कर चूर कर खाने से वह देर से पचता है | अतः रोटो अलग वर कर फिर मिला कर खानी चाहिये । कई ऐसी वस्तु हैं जो दूध के साथ खाने से भीतर नुक सान पहुंचाती है अतः जब २ दूध का सेवन किया जाये तब २ नीचे लिखो दूध से विरुद्ध चीजें न खायें । दूध के विरुद्ध तो दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध दूध A " 2 1, ११ 1 " 40 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir = " "5 नींबू, खटाई का साग, आमली, दाम, नमक (सैन्धव कम हानि करता है । कुलथ दही छाछ वधुत्रा सूखे साग जासुन मूली केला - नारियल गुड़ उड़द लहसुन -कांदा गर्म पदाथ तिलों की खल-तैल खिचड़ी | For Private And Personal Use Only कैरी Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूध के आंवला, सोंठ, हरड़, खांड़, ये दोस्त मान गये हैं। गुड़, मूला, और खटाई दुशमन है। ___ शास्त्र में भोजन के बाद दूध पीना अच्छा बतलाया है जो तन्दुरुस्त हों उन्हें पीते रहना चाहिये। दृध से अजोर्ण हो गया हो तो सोठ सैधानमक लेना चाहिये। श्राजवायन भो दूध का पालन है। स्त्रीर, रबड़ी का पालन मंग की दाल है। मावे का विकार शान्त करने के लिये दस्त की दवा उपयोगों है । शिवाक्षार पाचन वर्ण लाभदायक दूध के समान गुण करने वाला ‘मंग की दाल' है। मंग किसी 7 में प्रति निधि रूप में सेवन किये जा सकते हैं। - प्रातः काल का दूध कछ भारी होता है कारण रात को गाय एक जगह बंधी रहती है अतः थोड़ा जल मिला कर दूध उपयोग किया जावे शाम का दूध हलका होता है क्योकि गायें जंगल में चर कर घूम कर पाती है। बिगड़ा दूध पीने से अति लार. उल्टी, पेट में दर्द, अजीर्ण, हैजा आदि रोग उत्पन्न होते हैं। दूध के साथ अटा भी लिये जा सकते हैं। टप खट्टे तथा मीठे दोनों प्रकार के निश्चित हो । जैसे सफरजंद और खिजूर, काली द्राक्ष और नारंगो, लारंगो और मीठा नींबू। गर्म किये दूध में किन्हीं २ को बाल आती है अतः इसके लिये दो बरतन लेकर दूध को बार २ एक दूसरे में पलटना चाहिये जिससे दूध में प्राणवायु अधिक मिल जावे और वाल उड़ कर स्वाद में मटा लगे। दृध को एक दा नहीं पी लेना चाहिये किन्तु चूंट २ पोना चाहिये और मुंह में अच्छो तरह हिला हिला कर पीना चाहिये । जिससे दूध जल्दी पाचन हो। For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५२ ) शरद ऋतु में दूध पीना बहुत लाभ पहुंचाता है शास्त्र में कहा है कि "शारदं च पयः पीतं तेन जीवंति जंतवः॥ चावल। हलका और शीघ्र पचने वाला धान्य है । पर ये खा बहुत लिये जाते हैं इससे प्रायः मात्रा की अधिकता के कारण देर से पचते हैं। अच्छी अग्नि वालों को तथा परिश्रम करने वालो को चावल खाने पर पोछो भूख जल्दी लग जाती है। किसी २ को यह बादी भी करते हैं, पेट में दर्द हो जाता है, कफ कर्ता भी है अतः जिसे मुआफ़िक न आवे उसे चावल खाने के लिये लाचार न करना चाहिये । चावल में घृत बहुत मिला कर खाते हैं पर घृत के कारण ये देर से पचते हैं। तूर की दाल के साथ खाना यह अच्छा है। जिसे मुआफ़िक हो उसे सभी रोगों में हलके पथ्य के रूप में सेवन करने चाहिये । पर इनमें स्टार्च-आटा बहुत है इससे संग्रहणी पानी लगने की बीमारी, प्रमेह, कफ, श्वास, पेट शूल, आदि में न देने चाहिये । चावल बादो न करें इसके लिये इनके साथ सोंठ, मिरच, नमक, लोग मिला कर सेवन करने चाहिये। कफ में आद्रक के साथ सेवन करने चाहिये । चावलों के साथ खांड़ मिला कर खाना अच्छा नहीं, पित्त की बीमारी के सिवाय कभी नहीं खाना चाहिये । मदाग्नि में खांड़ के साथ खाना हानिकर है । चावल खूब चबा चबा कर खाने चाहिये, नीबू और नमक से ये जल्दो पचते हैं। चावलों की फूली चावलों से बहुत हलकी होती है, उल्टी में ज्यादा फायदा करती है। For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्य ( १५३ ) अप संग्रहणी मंदाग्नि कफ पित्त रोग श्वास उल्टो प्रमेह तृषा शूल अतिसार यकृत रोग चावलों के अजीर्ण में नरियल का जल, दूध, दही वा नोवू फायदा करता है। ___ नये चावलों से अजीर्ण और पेट में दर्द होने लगता है इससे बने वहां तक पुराने चावल खाने चाहिये । चावल पचते सब से जल्दो है पर पोषण पदार्थ इसमें कम होता है। ___ एक वर्ष का पुराना चावल अच्छी तरह बलकारी और लघु होता है । फिर क्रमशः बलकारित्वगुण नष्ट होने लगता है। नये चावल बलकारी होते हैं किन्तु चे भारी और कफ बढ़ाने वाले होते हैं। ___ चावल बहुत साफ़ किये हुवे न होने चाहिये कारण चावला के ऊपर के अंश में फोस फरस ( I hosphorous ) और लोह ( Iron) होते हैं जो मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाते है तथा रक्त को साफ करते हैं। अतः हलके मोटे चावल ही उप योग में लाये जायें। गेहूं। सव धान्यों में गहूं पुष्टि कर और चावल जल्दी पचने वाले हैं। और इनका पथ्य रोगो के लिये हित कर है। गेहूं को चोपड़ कर घृत लगा कर खाना चाहिये पर तीव्र For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५४ ) अवस्था में तथा पाचन शक्ति कमजोर हो तब चोपड़ना नहीं चाहिये । ज्वर, कास, कफ में भी घृत नहीं लगाना चाहिये | गेहूं का आटा बहुत बारीक नहीं पीसाना चाहिये, न बहुत बारीक चारनी में छान कर बहुत धुला ही निकाल देना चाहिये । थले मैं पोष्टिक तत्व विशेष है जो बहुत उपयोगी है। कुब्जी वाले के लिये तो थला श्रांटे में रहना बहुत ज़रूरी है, इससे दस्त साफ़ श्राती है। रोटी से थली ताकत वर है पर वह भूख से ज्यादा खाली जाती है, अन्दाज नहीं रहता । पटोलिये से भारी अंगार वाटिया उससे रोटी, रोटी से बाटिया (जाड़ी रोटी) और सव से भारी रोटा होता है जो देर से पचता है। सर्दी में अन्य ताकत की दवाओं से भी बढ़ कर लापसी फ़ायदा करती है। कई दिन खानी चाहिये। गेहूं का गाल (सत) ठण्डा पौष्टिक होता है ग्रीष्म में लाभकारी है। ठण्डाई में काटे गेहूं का सत डालते हैं, पौएिक है। पथ्य सभी रोगों में (कम लेना) पाचन शक्ति ठोक हो तो चोपड़ कर खाना | काल में, कफ में, श्वास में, ज्वर में चोपड़ कर नहीं खाना चाहिये | बात व्याधि | संग्रहणी अतिलार प्रमेह अपथ्य सोडा मिला कर सेवन करने से जल्दी पचता है। गेहूं में १७ भाग थूला रहता है । For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूग। दूध की भांति यह भी सब रोगों में पथ्य है, जहां दूध नहीं दिया जा सकता वहां मंग की दाल दी जाती है। यह दूध का प्रतिनिधि है । यह शक्ति वर्धक है, मांस (टिसूस) बनाता है, पचने में हलका है, स्वादिष्ट है, नाइट्रोजन भी अधिक है अतः पथ्य के उपयोगी है। मंग का पानी तोवावस्था में तथा लंघन के बाद अन्न प्रारम्भ करने के पहिले दिया जाता है फिर पतली दाल, फिर दाल और फिर रोटी की पोली फिर रोटो दी जाती है । ज्वर में यह बहुत लाभकारी है। श्राखे मंग कुछ बादो किया करते है पर दस्त बन्द करने में इनका पथ्य दिया जाता है। पथ्य अपथ्य थोड़ी मात्रा में यह किसी लंबन में बा लंघन के रोग में अपथ्य नहीं है। समय दूध के एवज में मूंग की दाल पथ्य में सब निकाला। दालों में सर्वोत्तम दाल अतिलार समझी जाती है। कफ नेत्र रोग कास पथ्य ज्वर साबूदाना। जल्दी पचता है । जब अन्न नहीं पचता है उस समय साबूदाना दिया जाता है। जीर्ण निर्वलरोगो को यह सुग्राफिक ठोक श्राता है। ज्वर में भो इसका सेवन कराया जाता है। रोगो को For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५६ ) दलिया दाल दुध देते २ जब अरुचि हो जाती है तब पथ्य बदल कर साबूदाने का दिया जाता है । यह दूध वा पानी के साथ तैयार करके दिया जाता है दोनों रीति अच्छी है। जहां दूध देना ठोक नहीं वहां जल से तैयार करके देना चाहिये । कई एको की सम्मति है कि चावल से साबूदाना देर से पचते हैं पर अन्य धान्यों की अपेक्षा फिर भो जल्दो पचते हैं। बाजरी। गर्म है । ज्वर में इसका दलिया मूंग की दाल मिलाकर पतला २ सेवन कराया जाता है। ज्वर में बहुत अच्छा पथ्य है, दस्त साफ लाता है, शक्ति वर्धक है हृदय को ताकत देता है, निकाले में यह अपने उपणता के गुण ले शरीर को लेबीजने collaps होने नहीं देता है। बीमारी में इसका पथ्य स्वाद लगता है, इसकी रोटी ( सोगरा ) देर से पचतो है। जीर्णावस्था में, अपचन में, मंदाग्नि में नहीं देना चाहिये। खीच और भी देर से पचता है। सर्दी की मौलिम में घृत मिलाकर खाते हैं पर अच्छो अग्नि वालों को ही सेवन करना चाहिये। अपथ्य निकाला रक्तापित्त वायु के रोगों में खून विकार पित्त के रोग गर्मी को मौसिम में बाजरी जिन्हें गर्म पड़ती हो वे दूध के साथ लें अथवा खांड मिला कर ले । स्वास्थ्यावस्था में सोगरा चोपड़ कर लेना For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाहिये जिस से गर्मी नहीं करे । सर्दी में पौष्टिक गुण के लिये तथा सर्दी से रक्षा पाने के लिये इसके साथ गुड़ भी खाते हैं। बाजरी गेहूं से जल्दी पचतो है। जवार । बीमार को इसका पथ्य नहीं दिया जाता है। यह रुखी और वादी करती है । अतोसार में कब्जी के लिये इसकी रोटी दो जाती है। अपथ्य संग्रहणी अतिसार वायु के रोगों में पित्त के रोगों में कब्जी में मकी। पथ्य में यह बहुत उपयोग नहीं की जाती है। वादी करती है, रखी है, देर से पचती है, पेट भारी होजाता है। घाट तथा इसका सोगरा भूख से अधिक खा लिया जाता है और उससे पेट तनीजता है, दर्द भी होता है। दही के साथ खाने से यह जल्दो पचती है, मकिया स्वादिष्ट और अन्न को रसाल है। बीमार के लिये उपयोगी नहीं । मंदाग्नि वालों को नुकसान पहुंचाता है । ज्वर में हानिकर है। बहुत लोगों का ख्याल है कि श्रासोज कार्तिक में मकिये बहुत खाने से ही बुखार श्राजाता है। गर्म २ मकिये खाकर ठण्डा पानी पीना हानिकर है। बहुत गर्म २ खाना भी दांता को नुकसान पहुंचाता है। - - - For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra खांसी श्वास स्वरभंग जव । पथ्य में बहुत उपयोग किया जाता है । जबका पानी अकेला वा दूध के साथ जब अन्न नहीं पचता है तब दिया जाता है । मंदाग्नि में, उध्यता में, मूत्रकृच्छ में, वमन में, तृष्णा में, इसका पानी बहुत उपयोगी है। दूध नहीं पचता है तब दूध के साथ इसका जल (Barley water) मिला कर देते हैं । प्रमेह मे जब की रोटो बहुत लाभकारी है । ग्रीष्म ऋतु में इसका पथ्य ठण्डा और शान्तिदायक समझा जाता है । धानिये इसीलिये ग्रीष्म में बहुत सेवन की जाती हैं। पथ्य कण्ठ रोग त्वचा रोग मेद रोग पीनस रक्तविकार ऊरुस्तम्भ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कफ प्रमेह मधुमेह यकृत विकार ( १५८ ) अपथ्य वायु के रोग जब नवीन ही उपयोग किये जावें । पुराने हीन वीर्य हो जाते हैं । For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५६ ) मोठ। ज्वर में इसकी दाल ( मोठ का पानी) पथ्य के रूप में उपयोग की जाती है। निकाला जब बिगड़ जाता है तब इसका उवाला पानी देते हैं । कब्जी करता है, अल्प बल कारक है। अपथ्य वादी के रोग पथ्य कफ के रोगों में पित्त के रोगों में ज्वर रक्तपित्त दाह कृमि क्षय उन्माद चवला। वायु करता है। यह पथ्य के रूप में उपयोग नहीं किया जाता । इसके चीलड़े, बड़े बेड़ारोटो बनाकर खाते हैं पर बीमार के लिये हित कर नहीं । बीमारी दूर हो जाने के बाद भी निर्बलावस्था में इसका सेवन नहीं करना चाहिये । स्वाद से इसके खाद्य पदार्थ अधिक खा लिये जाते हैं जो नुकसान करते हैं। यह दर से पचने वाला, वायु करता, धान्य है। इस से पेट में दर्द भी होने लगता है। For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६० ) पथ्य अपथ्य अतिसार जुखाम मंदाग्नि निर्बलावस्था पुरानी बीमारी ज्वर चवलों के विकार में अजवायन और पीपल लेना गुणकारी है। तूर की दाल । इसमें प्रोजस तत्व (Nitrogen) बहुत है। चावल में कम है अतः चावल के साथ मिला कर खाने से दोनों खाद्य पदार्थ मिल कर ताकत देते हैं । यह भारी है देर से पचती है, खटाई से इसका गुण-शक्ति विशेष प्राप्त होता है। गर्म मसाला मिला कर खाने से यह बादी नहीं करती है। पथ्य স্মথ ज्वर . संग्रहणी স্ময় लोहीविकार गुल्म निर्वलावस्था दुर्बलावस्था सब प्रकार की दालों का पालन 'कांजी का सेवन है। For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६१ ) अजीर्ण उड़द । पथ्य के रूप में उड़दों का उपयोग नहीं किया जाता है। पौष्टिक है, स्नायुतंत्र-वायु के रोगों में यह विशेष लाभ कर्ता है पर पचता देर से है। शरीर को भारी करता है । मगज को ताकत देता है। अपथ्य ताकत के लिये ( पाचन- मंदाग्नि शकि ठीक हो तो) संग्रहणी पक्षाघात शूल बात व्याधि पित्तविकार दुबलावस्था कफ वीर्य वर्धक स्नायुपीड़ा (Nerveos उदर रोग liscase ) यकृत रोग मस्तिष्क पुष्टि वर्धक नेत्र ज्योति वर्धक धातुविकार अनिद्रा उड़दों के लड्डू, पाक, खीर, आदि शीतकाल में ताकत के लिये उपयोग किये जाते हैं, इनसे मगज का खालीपन दूर होता है, श्राखों की ज्योति बढ़ती है, स्फूर्ति आती है। धातु विकार को दूर कर पुष्टि होती है। उड़द बहुत देर से पचने वाले पदार्थ हैं फिर इसके साथ गुड़, खांड़, बूरा, घृत मिला देने से और भी देर से पचते हैं इसीसे गुड़ खांड बूरा घत (?) और मूली विरुद्ध पदार्थ इसके माने गये हैं। ११ For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( १६२ ) शास्त्र में अत्यन्त हित कारी पदार्थ इसे माना है (बीमारी की अवस्था में) उड़दों के विकार का पालन ज्वरांकुश है। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चना | ठंडा है। बादी करता है । मंदाग्नि करता है । दस्तावर भी है । पचने में भारी है। सेके चने खून को सुखाते हैं अतः उनके साथ खांड, गुड़, व मखाने खाने चाहिये । हरे चने कफ कर्त्ता है । ठंडा मूत्रकृच्छ पित्त प्रमेह पीनस पथ्य अपथ्य वायु आध्मान दस्तों की बीमारी मंदाग्नि पेट शूल चनों के विकार का पालन धतूरा है । धतूरा स्वयं जहर है अतः विना वैद्य की सलाह के न लेवें। चने में पौष्टिक तत्व बहुत है पर बहुत सेवन से उलटा वीर्य को हानि पहुंचती है । संके धान्य | चावलों की फूली - हलकी, शीघ्र पचने वालो, यमन, तृषा मैं हितकर होतो है । जब अन्न न पचता हो वा पेट में नहीं टिकता हो तब चावलों की फूली जल में भीगो कर उसका पानी वा भोगी फूली खिलाते हैं। अजीर्ण, श्रग्निमंद, श्रतिसार में यह पथ्य है । For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६३ ) जब की धानी-ठंडी और मूत्र के रोगों में पथ्य है। गेहूं की धानी (परमल)-मंदाग्नि में पथ्य है। मूग (माडवा) बाजरी, (मुरमुरे) की धानी ज्वर में पथ्य है उदर रोग, शूल मंदाग्नि में इनका उपयोग लाभ दायक है। सेके धान्यों दूध का सेवन किया जा सकता है दूध के साथ मिला कर भी सेशन किये जा सकते हैं। अंगार बाटिया, रोटी, पुड़ी, रोटा, सोगरा । बहुत समय तक भीजोये हुये आटे को अच्छी तरह गुड़दा कर भले प्रकार से सेकी हुई रोटो श्रादि जल्दी पचती है। अंगार बाटिया-रोटी से जल्दी पचता है, हलका होता है पर कुछ गर्मी करता है अतः कई दिन लगातार सेवन नहीं करना चाहिये। रोटी-नरम होती है। अग्निमंद हो तथा लघंन के बाद अन्न प्रारम्भ में रोटो को पोलो दी जातो है फिर धोरे २ रोटी दी जाती है । ज्वरावस्था में जब ज्वर हो वा ज्वर चले जाने पर भी कुछ दिन तक रोटी लूखी खानी चाहिये । रुखी रोटी लेने से भूख खूब लगती है । करडी रोटी नरम को अपेक्षा देर से पचती है। ___ जाडी रोटो (बाटिया) देर से पचती है। बीमार को नहीं देनी चाहिये । निर्बलावस्था में भी देनी बुरी है। लगातार कई दिन तक लेने से रोग क पीछा उथला खा जाने का डर रहता रोटा-भारी होता है। देर से पचता है, भूख से ज्यादा खाने में प्राजाता है और उससे पाचन करने में बड़ी तकलीफ For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होती है। रोटे का गिर हलका होता है, जल्दी पचता भी है पर ज्यादा न खाया जावे तो। पुड़ो-देर से पचती है । बीमारी में नहीं देनी चाहिये। गर्मी करती है । स्वास्थावस्थामें रोज खाने से अग्निमंद हो जाती है गर्मी करती है। ज्वर आदि बीमारिये पैदा हो जाने की अशंका हो जाती है। बीमार रोज ले तो जरूर उसे भुगतना पड़ता है । इससे आम हो जाती है । मंदाग्नि, संग्रहणी, उदर, शोथ, पाण्डु, अर्श, ज्वर में यह अपथ्य है। सोगरा-देर से पचता है, गर्मी करता है, रोटो की अपेक्षा ज्यादा खाया जाता है। खाखरा-स्वाद के लिये अथवा रुचि उत्पन्न करने के लिये इसका सेवन किया जाताहै थोड़ा और कभी रुचि उत्पन्न करने के लिये ज्वर में दिया जाय तो उतनी हानि नहीं । हानि को अपेक्षा लाभ विशेष होता है पर स्वाद से ज्यादा खा लिया जाता है अतः इसका ध्यान रखें। कास हो तो थोड़ो हलदी मिला लेनी चाहिये । अजवायन डालना लाभ कारी है। बेसण को रोटो-अरुचिमे तथा मुंह के जायके को सुधारने के लिये ज्वरावस्था में कभो २ देते हैं पर देर से पचतो है। निर्बलावस्था में कभी किसी दिन थोड़ी मात्रा में देनी वैसी हानि कर नहीं । मंदाग्नि में नहीं देनी चाहिये। मिसी रोटी-बीमार के लिये उपयोगी नहीं। बेडा रोटो-बीमार के लिये उपयोगो नहीं बहुत देर से पचतो है, पेट में विकार पैदा करती है। खाजा-बीमार के लिये उपयोगो नहीं । ज्वर, भंदाग्नि अतिसार संग्रहणी, अर्श, कास आदि सभी रोगों में अहित कर चीलड़ा For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६५ ) पटोलिया। गेहूं के आटे का बनाया जाता है । जल्दी पचता है। अतिसार में नहीं देना चाहिये। मीठा भी दिया जाता है पर कफ में, कास में, तथा अत्यन्त निर्बलावस्था में मीठा नुकसान पहुंचाता है। कण्ठ में जब कुछ नहीं उतरता है वा जीभ पर छाले हो जाते हैं तब पटोलिया दिया जाता है। - - दाल। पथ्य में मूंग की दाल दी जाती है, ज्वर में मोठ की दाल भी देते हैं । दाल पतली तथा काठी दोनों प्रकार की होती है पर लंघन के पश्चात तथा भयङ्कर अवस्था में पतली ही देते हैं । पतली सहज में पी ली जाती है। चने की दाल बादी करती है, दस्त ले आती है, पेट में किसी २ के दर्द भी हो जाता है, पचती भी देर से है अतः पेट में विकार हो, मन्दाग्नि हो उसे चने की दाल नहीं खानी चाहिये। लोग और सोडे के साथ इच्छा की पूर्ति के लिये थोड़ी खाई जा सकती है। दाल में घृत कम डालना चाहिये, रुचि अनुसार थोड़ा गर्म मसाल:-~-पित्त के विकार में छोड़ कर-डालना चाहिये, हींग का बगार देना भी अच्छा है। सब प्रकार की दालें कांजी, कोकम, नीवू तथा सोडे से जल्दी पचती है। दलिया। बाजरी का मूंग की दाल के साथ बनाया जाता है, पतला पतला देते हैं । ज्वर में यह पथ्य उपयोगी समझा जाता है। For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६६ ) घृत से चोपड़ा भी जाता है पर कास में, तीव्र ज्वर में, नहीं चोपड़ना चाहिये । अतिसार में यह अधिक दिन तक लगातार सेवन न करना चाहिये । ताव कम हो जावे व गर्मी मालूम दे तो दूध के साथ वा घृत से चोपड़ कर देना चाहिये। बच्चे की मा को इसका सेवन ठण्ड में व वर्षा ऋतु में कराना चाहिये। बच्चे को जब सर्दी लग गई हो तब उसकी मा को घृत में राई तल कर और वह दलिये में मिला कर सेवन कराई जावे।। दलिया बहुत पौष्टिक नहीं है, अधिक नहीं खा लेना चाहिये न बहुत दिन तक सेवन करना चाहिये। यह बीमारी में हृदय को कमजोर नहीं होने देता है यही इसका महत्व का गुण है । बड़ियों के साथ यह स्वाद विशेष लगता है । यह बीमारों का पथ्य है। थूली। गेहूं की बनाई जाती है। कोई भी धान्य बारीक पीसा हुआ होने की अपेक्षा दला हुआ अधिक गुणवाला, जल्दी पचनेवाला तथा पौष्टिक गुणवाला होता है पर खाने का अन्दाज न होने से अधिक खा लिया जाता है और उससे पेट में भारीपन होजाता है और पचता भी देर से है। रोगी को उसकी खूराक के अनुसार इसका सेवन कराना अच्छा है । यह पथ्य कर खाद्य पदार्थ है । रोगो की रुचि सदा एक ही पथ्य पर नहीं रहतो अतः कभी कभी बदलना भी जरूरी होता है ।थूलो ऐसी अवस्था में प्रतिनिधि रूप में काम में लाई जा सकती है। ज्वर में चोपड़नी नहीं चाहिये । कम्जी दूर करती है । संग्रहणी में, मंदाग्नि में इसे न देना चाहिये। खिचड़ी से थूली अधिक ताकतवर है। For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६७ ) खिचड़ी। पथ्य रूप में सेवन की जाती है। दस्तावर है। पचती जल्दी है पर रोटी की अपेक्षा-अन्दाज न होने से ज्यादा खाने में श्रा जाती है और अधिकता के कारण-देर से पचती है। घृत मिला कर खाने से भी देर से पचती है। दाल और चावल अलग २ सीजो कर फिर मिला कर खाने की अपेक्षा खिचड़ी भारी होती है कारण चावलों का मांड उसी में रहता है। यह धुपो और तुसोवाली दो प्रकार की होती है। तूसों वाली देर से पचती है परन्तु उसमें पौष्टिक तत्व अधिक रहता है । धुपी हुई वादी करतो है पर वह कुछ निकसी भी होती है। जुलाब में यह प्रायः सेवन की जाती है, इसे नरम २ धान कहते हैं, ठण्डी नुकसान करती है । दूध के साथ नहीं खानी चाहिये। इसका पालन सैन्धव नमक है। घाट। मक्को का बनता है। देर से पचता है। निर्बलावस्था में इसे सेवन नहीं करना चाहिये। छाछ से यह जल्दी पचता है । क्षार तथा दही इसको जल्दी पचाते हैं । बादी करता है । बीमारों का पथरा नहीं है। खीच । बहुत देर से पचता है। मंदाग्नि वाले को नहीं खाना चाहिये । बीमारों का यह पथ्य भी नहीं है । बीमारी में जब रोग पीछा उथला खाता हो तब इसके सेवन से पाचक For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६८ ) इन्द्रियों को परिश्रम बहुत करना पड़ता है उससे बुखार भाजाने में मदद मिलती है। अपथ्य उदर रोग पाण्डु मंदाग्नि संग्रहणी मूत्र कृच्छ ज्वर निर्बलावस्था पित्त विकार खारिया । बहुत गरिष्ट है। देर से पचता है। मन्दाग्नि वाले को नहीं दिया जावे । ज्वर में जब तक अन्न नहीं भाता है तब तक यह अपथ्य करता है फिर उतना नहीं परन्तु पचता नहीं है उससे बुरा असर तो होता ही है। स्वास्थ्यावस्था में भी यह लाभ और स्वाद के स्थान हानि अधिक पहुंचाता है। बीमार का पथ्य नहीं है। अपथ्य शोथ अतिसार उदर रोग पाण्डु मन्दाग्नि निर्बलावस्था जीर्णावस्था For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६६ ) बेसण। बेसण के पदार्थ देर से पचते हैं, दस्तावर होते हैं । निर्बला. वस्था में अधिक न खाने चाहिये । मन्दाग्नि, संग्रहणी, जीर्णव्याधि, ज्वर जिस समय तेज अवस्था में हो उस समय बेसण. का उपयोग नहीं करना चाहिये, कम करना चाहिये । अपथ्य मन्दाग्नि सूजन संग्रहणी पाण्डु उदर शूल बेसण का पाचन खटाई से होता है। - - मेदा। कजी करता है। देर से पचता है। आम पैदा करता है। बीमारी में यह नुकसान करता है। इससे नाड़िये रुक जाती है, भूख पीछी बन्द हो जाती है, रोग पीछा उथला स्वाजाता है। प्रायः सभी रोगों में यह सेवन करना अपथ्य है ।जब तबियत ठोक हो तब भी कम खाना चाहिये । खाजा, पूड़ी, डोढ़ा, सीरा श्रादि सभी देर से पचते हैं। For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७० ) अपथ्य प्रायः सभी बीमारियाँ में ज्वर जीर्ण ज्वर मन्दाग्नि तिलार सूजन संग्रहणी कास कफ पाण्डु लीवर बच्चे अजवायन, सोडा इसको जल्दी पचाता है। लूखी । बीमारी में न प्राय: लूखा ही देना चाहिये । इससे अन्न जल्दी पचता है, भूख ज्यादा लगती है। ताक़त ज़रूर कम श्राती है और धीरे २ श्राती है पर जल्दी चोपड़ देने से अग्नि बढ़ती नहीं तथा कई रोग दूर नहीं होते हैं। लूखी रोटी गर्मी भी करती है । हमेशा लूखी खाना बुरा है पर यदि अन्न ज्यादा खाया जावे (स्वास्थावस्था में) तो उससे लूखी की कमी की पूर्ति हो जाती है। हमेशा लूखी खाने से शरीर सूख जाता है। For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पथ्य ज्वर ज्वर निर्बलावस्था उदर रोग संग्रहणी कफ कास www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७१ ) अपथ्य कमजोरी में क्षय में बीमारी पित्त नेत्र रोग दूर होने पर खाज मगज के रोग शिर पीड़ा जीर्ण ज्वर For Private And Personal Use Only चोपड़ना । लोगों को बिना चोपड़े रोटी, रधीण, भाता नहीं है । यह रोज का अनुभव है कि रोगो रोज २ चोपड़ने के लिये श्राज्ञा मांगते हैं और कभी २ दबाव से भी श्राज्ञा चाहते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि कमजोरी घृत खाने से ही दूर होती है। पर बीमारी में घृत अधिक खाना बुरा है। इससे ग्राम पैदा हो जाती है, भूख कम हो जाती है, कास श्वास में मदद मिलती है, बुखार (चीगट से) पीछा आने लगता है, जुरबन्ध जाती है अतः बीमारी में घृत अधिक देना नहीं चाहिये । मोण में वा सीजती में बहुत से घृत डलाते हैं और ऐसा समझते हैं कि यह घृत अन्न के साथ मिला होने से नुकसान नहीं करता पर बात ऐसी नहीं है । इस प्रकार डाला हुआ घृत नाड़ियों को तो पचाना ही पड़ता है पर वे कमजोर होने से पचा नहीं Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९२ ) सकती। ऐसा नहीं कि आटे के धोखे में आटे के साथ घृत भी पच जावे और नाडियों को मेहनत घृत के स्थान प्राटे ही की करनी पड़े। पेट में घत और पाटा अलग २ होकर भिन्न २ रूप से पचता है अतः चाहे सीजती में घृत डालें, चाहें ऊपर से चोपडे, नाड़िये मज़बूत हो, अग्नि तेज हो तब तो पच जावेगा नहीं जब अवश्य नुकसान करेगा। शक्ति और उष्णता बढ़ाने के लिये चोपड़ने की ज़रूरत रहती है पर निर्बलावस्था में यह जल्दी पचता नहीं अतः शकि आने तक, भूख बराबर लगने तक नहीं चोपड़ना चाहिये, कम चोपड़ना चाहिये। घृत की कमी अन्न से किसी अंश में पूरित हो जाती है। बीमारी में चोपड़ना ज़रूरी हो तो घृत को उबाल कर पापड़ तल के फिर वह घृत काम में लाना चाहिये । अथवा काली मिरच पीसी के साथ चोपड़ना चाहिये अथवा ऊपर काली मिरच चाब लेनी चाहिये । _सर्दी की ऋतु में उष्णता के लिये घृत का सेवन करना चाहिये । घृत के सेवन से गर्मी कम हो जाती है। पित्त शान्त हो जाती है। चोपड़े पर पानी पोलेने से खास हो जाती है। चोपड़े पर चने, पान वा पापड़ खाकर जल पीना चाहिये । क्षय में, शोष में, घत चोपड़ कर खाना चाहिये। घृत । खाने में घृत ही का उपयोग करना चाहिये। ज्यादा सेवन करने से यह पचता नहीं है । श्राम हो जाती है ज्वर बढ़जाता है, उदर रोग, सूजन, मंदाग्नि संग्रहणी रोग बढ़ जाते हैं। For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीत काल जीर्ण ज्वर ( १७३ ) पथ्य पित्त विकारकी शांति के लिये नेत्र विकार की शान्तिके लिये शक्ति बढ़ाने पौष्टिक raar (पाचन शक्ति अच्छी हो तो ) शोष यकृत रोग अतिसार बालक वृद्ध कफरोग श्राम अजीर्ण ज्वर मंदाग्नि पाण्डु उदर अपथ्य कांसी तथा ताम्र के पात्र में बहुत दिन रखा घृत बिगड़ जाता है । घृत का पालन - सेके मूंग, लहसुन, गर्म जल वा चने हैं 1 हींग, लौंग, मिरचकाली, इलायची जीरा, धनिया, श्रदरख, सोंठ, खटाई, सैन्धव भी पालन कर्त्ता चीजें हैं । घृत के अजीर्ण में नीबू, सोंठ, कोकम वा निंबोलीका सेवन करना चाहिये । माखन-गर्मी को कम करता है। गरमी की मौसिम में तरावट पहुंचाता है। क्षय के बीमार के लिये लाभदायक है । धातु, श्रोज, बल की वृद्धि करता है, क्रान्ति देता है, पुष्टि कर है अर्श, क्षय, रक्त विकार, अर्दित वायु, कास, नेत्ररोग में लाभदायक है। मेद बढ़ाता है । माखन के साथ शाक खाने की शास्त्र में मनाई लिखी है। For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपथ्य ( १७४ ). तैल । खाने में उपयोग नहीं करना चाहिये । तैल का गुण मर्दन से ही होता है अतः मर्दन करना तैल ही अच्छा है। कई साग तैल में तैयार किये जाते हैं, प्राचार भी तैल ही में बनते हैं पर तैल घृत से देर में पचता है। गर्मी भी करता है । तैल अधिक सेवन से फोड़े, फुनसी, नेत्र पीड़ा, अर्श, खून विकार, मूत्र कृच्छ, उपदंश आदि रोग होजाते हैं वा वढ़जाते हैं । कई दवायें तैल के खास विरुद्ध होती हैं अतः दवायें लेवें तव तैल सेवन न किया जावे। बीमारो में मंदाग्नि रहने से तेल का उपयोग नहीं करना चाहिये। पथ्य शिरके लगाना ज्वर मर्दन पित्त विकार वात रोग अर्श ज्वर-जीर्णावस्था रक विकार जीर्ण ज्वर (मर्दन) नेत्र रोग सर्दी में ( मसलाना छाले ( हमें) संग्रहणी अतिसार धातु विकार चर्म रोग रन पित्त तेल का पालन कांजी है। तैल यदि अधिक सेवन किया जावे तो उसका पालन नमक, त्रिफला वा दूध चावल है। For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५ ) नमक। बहुत उपयोगी वस्तु है। इसके बिना कोई भी खाद्य स्वाद नहीं लगता है । रक्त विकार में इस का सेवन बन्द कर दिया जाता है पर इसके बिना अन्न नहीं भाता और उस मे कमजोरी होजाती है। शरीर को तन्दुरुस्त रखने के लिये नमक खाना जरूरी है अतः बिना खास जरूरत के नमक बन्द न करना चाहिये । अजीर्ण, पेटशूल में नमक लाभदायक है। नमकों में सैन्धव सब से अच्छा नमक माना गया है । साधारण अवस्था में जहां नमक बन्द करना हो वहां प्रतिनिधि रूप में सैन्धव का सेवन किया जासकता है। पारे की दवा लेने पर नमक का सेवन बन्द करना चाहिये । सूजन, तथा उदररोग में भी नमक हानि करता है अतः इसका सेवन तब न किया जावे। यह सूजन, उदररोग, जलोदर, खाज, नेत्ररोग, में अपथ्य है। नमक अधिक सेवन से नेत्ररोग, प्यास, रक पित्त, कोढादि शरीर का दुर्बलपन होना, केश जल्दी सफेद होजाना आदि रोग उत्पन्न होते हैं। लालमिरच। बहुत मिरचे खाने से खुशकी, रक्त विकार, प्रमेह, नेत्ररोग, अतिसार, मुंह के छाले, गुदा में जलन, धातु की निर्बलता, आदि रोग होजाते हैं वा बढ़जाते हैं । अर्श में से खून आने, लगता है । लाल के स्थान काली मिरच बीमार को बहुत मुनाफिक लाती है । हरि मिरचे प्राचार के काम में आती हैं। पर बीमार को नहीं देना चाहिये। For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६ ) हींग। गर्म है । पाचक है। पेट की वायु को दूर करती है। पथ्य मंदाग्नि, शूल, उदर विकार, मेद प्लीह, प्रामदोष, कफ के रोग वात के रोग उन्माद, अपथ्य-गर्म प्रकृति वाले को, पित्त के रोगों में। गर्म मसाला । पाचक है, रुचिकर्ता है, गर्म है। पित्त के रोगों में नहीं देना चाहिये। आद्रक । आर्द्रक से साग स्वादिष्ट बनते हैं। पाचन कर्ता, उष्ण है। भोजन के पहिले सैन्धव के साथ सदा लाभकारी है। इस का साग भी बनता है और मसाले के रूप में भी उपयोग किया जाता है। पथ्य अपथ्य अरुचि, गुल्म उष्ण कंठ खासी रक्तपित्त श्वास पित्तरोग उदर विकार मूत्रकृच्छ शूल पाण्डु ज्वर For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंदाग्नि दोपन पाचन अर्श अजीर्ण पोदीना । इसकी चटनी बनाई जातो है । उष्ण है। पाचक है, रुचि कर्ता है, ज्वर में हितकर है, अग्नि दोपक है, पेटका दर्द मिटाता है। चटनी में खटाई डालने से वह रुचिकर ज़रूर हो जाती है पर खटाई से यह कितने ही रोगों में जिनमें खटाई नुकसान करती है हानिकर होती है । हैजा, अजीर्ण, अतिप्तार, श्राफरा मंदाग्नि, अरुचि तृषा, जुखाम, ज्वर छदि में पथ्य है। हरा धनिया । यह साग में डाला जाता है। सुगन्ध तथा स्वाद के लिये दाल, बड़ी तथा अन्य सागों में भी डालते हैं, चटनी भी वनाई जाती है। रुचिकर्ता है। थोड़ी मात्रा में मियादी बुखार को छोड़कर अन्य तावों में सेवन किया जा सकता है। ठंडा है तृष्ण, दाह, खांसी, वमन में पथ्य है। गर्मा करता है । देर से पचता है। ताकतवर है। बीमार को खांड की अपेक्षा कम नुकसान करता है। कितनी होबीमारियों में खांड हानि करती है वहां गुड़ लाभकारी समझाजाता है। सर्दा की मौसिम में विशेष गुण करता है। गुड़ पुराना For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च्छा होता है। मधु का प्रतिनिाय गुड़ गर्मी कम करता है / यह शोतहारि, मधुर ख. पश्य अपथ्य सर्दी लोही विकार ग्रहणी (संकोच के साथ) पित्त के रोग परिश्रम करने पर अर्श (रकाश) कफ के रोग मुंह के छाले वायु के रोग नेत्र रोग शीत काल में थकान में चोट लगने पर खून के निकलने पर | भा. मी मागग्सुरिझानमदिर श्वास श्री महावीर जैन आराधना केना रुधिर विकार मा (गांधीनगर) R M जीर्ण ज्वर विषम ज्वर क्षय गुड़ का पालन जमीकन्द है। नया गुड़ कृमिवधत होता है। खांड। खांड का अधिक सेवन बीमार को हमेशा नुकसान पहुंचाता है / पित्त की बीमारियों को छोड़ कर अन्य बीमारियों में खांड अपथ्य है / दूध में खांड का व्यवहार प्रायः बोपारों को होता है पर अन्य रूप में मीठाई आदि मै-यह अवश्य नुक For Private And Personal Use Only