Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): Digambar Jain Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
Catalog link: https://jainqq.org/explore/032857/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा प्रकाशकः दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत-३ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [दैनिक एवं पर्वके दिनों में करने योग्य सभी पूजाओं तथा स्तोत्रका संग्रह ] प्रकाशक : दिगम्बर जैन पुस्तकालय गांधीचौक सूरत-३ LS मुद्रक : शैलेश डाह्याभाई कापड़िया "जैन विजय प्रिन्टींग प्रेस" गांधीचौक, सूरत-३ -* *मूल्य रु. 15-00 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * विषय सूची * क्रम सं. पेज नंबर 1. देव दर्शन विधि 2. दर्शन पाठ (दर्शनं देव) 3. वर्तमान तथा भविष्यत् तीथंकरोंके नाम 4. दर्शन पाठ (बुधजनजी कृत) 5. पंचामृताभिषेक पाठ (संस्कृत) 6. लघु शांतिमंत्र 7. बृहत शांति मंत्र 8. अभिषेक पाठ 9. लघुपंचामृताभिषेक भाषा 20. विनय पाठ 21. पूजन प्रारम्भ 12. देवशास्त्र गुरुकी भाषा पूजा 23. बीस तीर्थङ्कर, भाषा पूजा 24. देवशास्त्र विद्यमान तीर्थङ्कर एवं सिद्धपूजा (समुच्चय) 15. तीस चौवीसीका अर्घ 16. विद्यमान बीस तीर्थङ्करका अर्घ 27. कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालयोंका अर्घ 18. सिद्ध पूजा द्रव्याष्टक 19. सिद्ध पूजा भावाष्टक . 20. सिद्धपूजा भाषा (अष्ट करम करि०) 21. समुच्चय चौबीसी पूजा 22. निर्वाण क्षेत्र पजा 23. सप्तऋषि पूजा 24. सोलह कारण पूजा 25. पंचमेरु पूजा Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेज नंबर 900 0.00 0 0 0.aor क्रम सं. (ख) 26. नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाह्निका) पूजा 27. दशलक्षण धर्म पूजा 28. रत्नत्रय पूजा (समुन 29. दर्शन पूजा 30. ज्ञान पूजा 31. चारित्र पूजा 32. सरस्वती पूजा 33 गुरु पूजा 34. अकृत्रिम चैत्यालय पूजा 35. श्री ऋषि मण्डल पूजा 36. तीस चौबीसीकी पूजा 37. रविव्रत पूजा 38. आदिनाथ पजा (नाभिराय मरुदेविके....) 39. पंचबालयती तीर्थकर पूजा 40. पंचपरमेष्ठी पूजा 41. श्री शांतिनाथ जिन पूजा 42. पार्श्वनाथ पूजा 43. नवग्रह अरिष्ट निवारक पूजा 44. रक्षा बन्धन पूजा 45. सलूना पर्व पूजा 46. चौसठ ऋद्धि (समुच्चय) पूजा 47. वर्धमान जिन पूजा 48. महा अर्ष 49. शांतिपाठ भाषा 50. भजन....नाथ तेरी पूजा को फल पायो . 51. स्तुति (तुम तरण तारण) 52. विसर्जन 126. 130 150 154. 157 160 165 167. 169 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 180 191 207 क्रम सं. पेज नंबर 53. पद्मावती माताको पूजा 172 54. शांतिपाठ (संस्कृत) 176 55. विसर्जन संस्कृत 56. चौबीस तीर्थकरकी आरती 57. पंचपरमेष्ठीकी आरती 180 58. पद्मावतीकी माताकी आरती 59. भक्तमर स्तोत्र 181 60. तत्वार्थ सूत्रम् 61. बारह भावना 206 '62. निर्वाण कांड भाषा / '63. श्री पद्मप्रभ पूजा (अ० क्षेत्र पद्मपुरा क्षेत्र स्थित) 210 64. चांदनगांव महावीर श्री महावीरजी क्षेत्र स्थित) 214 "65. श्री चन्द्रप्रभ पूजा (अ० क्षेत्र देहरा-तिजारा स्थित) 219 66. कलिकुण्ड पार्श्वनाथ पूजा 67. विघ्नहर पार्श्वनाथ (अ० क्षेत्र) पूजा 68. श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजा (अ. क्षेत्र पैठण स्थित) 232 69. श्री मुनिसुव्रतनाथकी आरती 70. श्री मनिसुव्रतनाथकी स्तुति 237 71. श्री पद्मप्रभ चालीसा 72. श्री चन्द्रप्रभु चालीसा 240 73. श्री पार्श्वनाथ चालीसा 243 74. श्री महावीर चालीसा 245 75. लक्ष्मी प्राप्ति एवं मनोकामना पूर्ण करनेका मंत्र 248 76. शान्ति मंत्र. 248 977. नवग्रह शांतिके लिए मंत्र जाप 224 229 236 230 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राहम ( श्री 1008 श्रीविहर पाधनाथ Dist2 नमक्षिय-महुवा (सुरत) श्री 1008 विघ्नहर पार्श्वनाथ भगवान् 1000 वर्ष प्राचीन अतिशय वेलुरकी प्रतिमा FREE वह Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21 1424262262CCC07030 RDCPCDC23232:RT DIP * एक ही जगहसे ग्रन्थ मंगावें। हमारे यहां धर्म, न्याय ज्योतिष, सिद्धांत, कथा, पुराण षट्खण्डागम, धवल, जयधवलके अतिरिक्त पवित्र काश्मीरी केशर, वशांग, धूप, अगरबत्ती, कांचकी व चांदीकी मालायें, जनोई, जैन पंचरंगी झंडा, बम्बई (शोलापुर इन्दौर, दिल्ली तीनों जैन परीक्षालयके पाठयक्रमको पुस्तकें मंगा. कर हमारे लिए सेवाका अवसर दीजिये / ग्राहकोंको संतोषित करना हमारा लक्ष्य है। पर्वके अवसर पर आवश्यकतानुसार उच्च कोटिके जैन साहित्यिक ग्रन्थ रत्न पढके मनुष्य जन्म सफल बनाईये / एक पत्र लिखकर सूचीपत्र मुफ्त मंगवाईये। 523929DICA शैलेश डाह्याभाई कापड़िया * दिगम्बर जैन पुस्तकालय, गांधीचौक, सूरत-३ / टे. नं. 27621 / मा Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PARTY सन्मार्ग दिवाकर आचार्य विमलसागरजी महाराज Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * * W * W T ! पूजन कथा विधानादि / , सिद्धचक्र विधान (कपडा बाईन्डींग) 24.00 नित्य पूजा गुटका 8.00 नित्य नियम पूजा (दैनिक पाठ पूजा) 15-00 चतुर्विंशति पूजन वृन्दावन चौषठ ऋद्धि विधान सोलहकारण विधान दशलक्षण विधान सुगंधदशमी पूजा विधान रविवार व्रत कथा विधान सहित दशलक्षण धर्म दिपक जैन व्रत कथा संग्रह नंदीश्वर विधान शांतिनाथ विधान रत्नत्रय विधान 3-00 रक्षाबंधन कथा आराधना कथा प्रथम 8-00 ,, ,, द्वितीय--८-००, तृतीय नवीन महावीर किर्तन 60-00 धन्यकुमार चरित्र 5-00 नवग्रह विधान सच्चा जिनवाणी 44-00 बृहद जिनवाणी 40.00 दिगम्बर जैन पुस्तकालय गांधीचोक, सूरत-३. 6 vanaunarianamainanimamimarathi.eenawikinawinakairy deg v Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीतरागाय नमः देव दर्शन विधि मन्दिरके दरवाजेमें प्रवेश करते ही बोलेॐ जय जय जय, निःसही, निःसही, निःसही। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु / भगवानके सामने खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर बोलेणमो अरिहंताणं, जमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। : पमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणे / / . भगवानकी तीन प्रदक्षिणा देवे। बंधी मुट्ठीसे बंगुठा भीतर; करके चावलका पूज चढ़ावे भगवानके सामने अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ऐसे पांचों पद बोलते हुए क्रमसे बीचमें, उपर, दाहिनी तरफ नीचे और बाई तरफ ऐसे, पांच पूज चढ़ावे / सरस्वतीके सामने-प्रथमं करणं चरणं द्रन्यं नमः ऐसे बोलकर क्रमसे चार पूज लाइनसे चढ़ावे * * * * गुरुके सामने-सम्यग्दर्शन सम्यकज्ञान सम्यकचारित्र ऐसे बोलकर क्रमसे तीन पून लाइनसे चढ़ावे * * * पुनः हाथ जोड़कर स्तोत्र बोले..हे भगवन् ! नेत्रद्वय मेरे सफल हुये हैं ओज अहो / / तव चरणांबुजका दर्शन कर जन्म सफल हैं आज महो।। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [2 नित्य नियम पूजा हे त्रिभुवन के नाथ ! आप के दर्शन से मालूम होता। यह संसार जलधि चुल्लू जल सम हो गया अहो ऐसा // 1 // अहंसिद्धाचार्य ओ पाठक साधु महान / पंच परम गुरुको नम भव भवमें सुखदान // 2 // पुनः विधिवत् पृथ्वीतल पर मस्तक टेक कर नमस्कार करे। अर्थ-हे भगवान् ! आपके चरण कमलोंका दर्शन करके आज मेरे दोनों नेत्र सफल हो गये हैं और मेरा जन्म भी सफल हो गया है। हे तीन लोकके नाथ ! आपके दर्शन करने से ऐसा मालूम होता है कि जो मेरा संसार समुद्र अपार था सो आज चुल्लू भर पानीके समान थोड़ा रह गया है। अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पंच परम गुरु भवर में सुख देनेवाला है मैं इनको नमस्कार करता हूँ। दर्शन पाठ दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम् / दर्शनं स्वर्ग सोपानं दर्शनं मोक्ष-साधनम् // 1 // दर्शनेन जिनेंद्राणां साधुनां वन्दनेन च / न चिरं तिष्ठते पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् // 2 // वीतराग-मुखं दृष्टवा, पद्मराग सम प्रमं / जन्म-जन्म-कृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति // 3 // दर्शनं जिन सूर्यस्य संसार ध्वान्त-नाशनम् / बोधनं चित्तपद्मस्य समस्तार्थ-प्रकाशनम् / / Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा दर्शनं जिनचन्द्रस्य सद्धर्मामृत-वर्षणम् / जन्म-दाहविनाशाय वर्धनं सुखवारिधेः // 5 // "जीवादि-तत्व प्रतिपाद-काय सम्यक्त्व मुख्याष्टगुणार्णवाय / प्रशांतरुपाय दिगंबराय देवाधिदेवाय नमो जिनाय / 6 // चिदानन्दैक रुपाय जिनाय परमात्मने / परमात्मप्रकाशाय, नित्यं सिद्धात्मने नमः // 7 // अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम / / तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर // 8 // न हि त्राता, न हि त्राता, न हि त्राता जगत्त्रये वीतरागात्परो देवो न भूतो न भविष्यति // 9 // जिने भक्तिजिने भक्ति जिने भक्तिर्दिने दिने / सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु, सदा मेऽस्तु भवे भवे // 10 // जिनधर्म, विनिमुक्तो मा भवेच्चक्रवत्यंपि / स्याच्चेटोऽपि दरिद्रोऽपि जिनधर्मानुवासितः // 11 // जन्म जन्मकृतं पापं जन्मकोटिमुपार्जितम् / जन्म-मृत्यु जरा-रोगं हन्यते जिनदर्शनात् // 12 // अद्याभवत्सफलता नयन-द्वयश्य, . देव त्वदीय चरणांबुज-वीक्षणेन / अद्य त्रिलोक-तिलकं प्रतिभासतेमे, संसार-वारिधिरयं चुलुक-प्रमाणम् // 13 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा वर्तमान 24 तीर्थंकरोंके नाम 1. आदिनाथजी, 2. अजितनाथजी, 3. संभवनाथजी 4. अभिनन्दननाथ जी, 5. सुमतिनाथजी, 6. पद्मप्रभजो, 7. सुपार्श्वनाथजी, 8. चन्द्रप्रभजी, 9. पुष्पदंतजी, 10 शीतलनाथजी, 11. श्रेयोनाथजी, 12. वासुपूज्यजी 13. विमलनाथजी, 14. अनन्तनाथजी, 15. धर्मनाथजी, 16. शांतिनाथजी, 17. कुन्थुनाथजी, 18. अरनाथजी, 19. मल्लिनाथजी, 20. मुनिसुव्रतनाथजी, 21. नमिनाथजी, 22. नेमिनाथजी, 23. पार्श्वनाथ जी, 24. महावीरजी। . भविष्यतू 24 तीर्थंकरोंके नाम 1. महापद्मजी, 2. सुरदेवजी, 3. सुप्रभजी, 4. स्वयंप्रमजी 5. सर्वायुद्धजी, 6. जयदेवजी, 7. उदयदेवजी, 8. प्रभादेवजी,९. उदंकदेवजी,१०. प्रश्नकीर्तिजी, ११.जयकीर्तिजी 12. पूर्णबुद्धजी, 13. निकषायजी 14. विमलप्रमजी, 15. बहलगुप्तजी, 16. निर्मलगुप्तजी, 17. त्रिगुप्तजी, 18. समाधिगुप्तजी, 19. स्वयंभूजी, 20. कंदर्पजी, 21. जयनाथजी, 22. विमलनाथजी, 23. दिव्यबाजी 24. अनन्तवीर्यजी। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा कवि बुधजनजी कृत स्तुति [हिन्दी दर्शनपाठ] प्रभु पतित पावन मैं अपावन चरण आयो शरणजी। यो विरद आप निहार स्वामी मेट जामन मरणजी / / तुम ना पिछान्यो आन मान्यो देव विविध प्रकारजी। या बुद्धि सेती निज न जान्यो भ्रम गिन्यो हितकारजी। भव विकट बनमें कर्म वैरी ज्ञान धन मेरो हन्यो। तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय अनिष्ट गति धरतो फिरयो / धन घड़ी यो धन दिवस यो ही धन जनम मेरो भयो। अब भाग मेरो उदय आयो दरश प्रभुको लख लयो॥ छवि वीतरागी नगन मुद्रा दृष्टि नासा पै धरै / वसु प्राविहार्य अनन्त गुणजुत कोटि रवि छविको हरें॥ मिट गयो।तिमिर मिथ्यात्व मेरो उदय रवि आतम भयो। मो उर हरष ऐसो भयो मनु रङ्क चिंतामणी लयो। मैं हाथ जोड़ नवाय मस्तक वीनऊं तुव चरणजी। सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन सुनहु तारण तरणजी / / जाचूनही सुरवास पुनि नर राज परिजन साथजी / बुध' जाचहूं तुम भक्ति भव भव दीजिये शिवनाथजी / Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा श्री चौवीस तीथङ्करोंका चिन्ह / वृषभनाथका 'वृषभ' जु जान / अजितनाथके 'हाथी' मान / संभवजिनके 'घोडा' कहा / अभिनन्दनपद 'बन्दर' लहा॥१॥ सुमतिनाथके 'चकवा' होय / पद्मप्रभके 'कमल' जु जोय / जिनपासके 'सथिया' कहा / चंद्रप्रभ पद 'चन्द' जुलहा // 2H पुष्दन्त पद 'मगर' पिछान / कल्पवृक्ष 'शीतल' पद मान / श्री श्रेयांस पद 'गैंडा' होय। वासुपूज्यके 'भैसा' जोय // 3: विमलनाथपद 'शूकर' मान / अनंतनाथ के 'सेही' जोन / धर्मनाथके 'वज्र' कहाय शांतिनाथ पद हिरन' लहाय 4 / कुन्थुनाथके पद 'अज' चीन / अरजिनके पदचिह्न जु'मीन' / मल्लिनाथके पद 'कमल' कहा। मुनिसुव्रतके 'कछुआ'लहा / 5. लालकमल नमिजिनके होय / नेमिनाथ-पद 'शङ्खजु जोय / पार्श्वनाथके 'सर्प' जु कहा। वर्द्धमान पद 'सिंह' हि लहा / 6 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [7. HIDASTI श्री पंचामृताभिषेक पाठ श्री पंचनमस्कार मंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, गमो आइरियागं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं / मंगलाष्टकं श्रीमन्नम्रसुरासुरेंद्रमुकुटप्रद्योतरत्नप्रभा / भास्वत्पादनखेदवः प्रवचनांभोधीदवः स्थायिनः / / ये सर्वे जिनसिद्धसूर्यनुगतास्ते पाठकाः साधवः / स्तुत्या योगिजनैश्च पंचगुरवः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 1 // सम्यग्दर्शनबोधवृत्तममलं रत्नत्रयं पावनं / मुक्तिश्रीनगराधिनाथजिनपत्युक्तोपवर्गप्रदः / धर्मः सूक्ति सुधा च चैत्यमखिलं चैत्यालयं श्यालयं / प्रोक्तं च त्रिविधं चतुर्विधममी कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 2 // नामेयादि जिनाधिपास्त्रिभुवनख्याताश्चतुर्विशतिः / श्रीमंतो भरतेश्वरप्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश // ये विष्णु प्रतिविष्ण लांगलधराः सप्तोचरा विंशतिस्त्रैकाल्ये प्रथितात्रिषष्टिपुरुषाः कुर्वन्तु मे (त) मंगलम् // 3 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा देव्योऽष्टौ च जयादिका द्विगुणिता विद्यादिका देवताः। श्रीतीर्थंकरमातृकाश्च जनका यक्षाश्व यक्ष्यस्तथा // द्वात्रिंशत्रिदशाधिपास्तिथिसुरा दिकन्यकाश्चाष्टधा, दिक्पाला दश चैत्यमी सुरगणाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 4 // ये सर्वोषधऋद्धयः सुतपसो वृद्धिंगताः पंच ये, ये चाष्टांगमहानिमित्त कुशला येऽष्टाविधाश्चारणाः / पंचज्ञानधरास्त्रयोपि बलिनो ये बुद्धिऋद्धीश्वराः, सप्तैते सकलाचिंता गणभृताः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 5 // कैलासे वृषभस्य निवृतिमही वीरस्य पावापुरे, चंपायां वसुपूज्यसजिनपतेः सम्मेदशैलेहतां / शेषाणामपि चोर्जयंतशिखरे नेमीश्वरस्याहतो, निर्वाणावनयः प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 6 // ज्योतिय॑न्तरभावनामरगृहे मेरो कुलाद्रौ तथा, जंबूशाल्मलिचैत्यशाखिषु तथा वक्षाररूप्याद्रिषु / इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नंदीश्वरे, शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 7 // यो गर्भावतरोत्सवों भगवतां जन्माभिषेकोत्सबो / यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक् // यः कैवल्यपुरप्रवेशमहिमा / संभावितः स्वर्गिभिः, कल्याणानि च तानि पंच सततं कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् // 8 // Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [. इत्थं श्रीजिनमंगलाष्टकमिदं सौभाग्यसंपत्प्रदं / कल्याणेषु महोत्सवेषु सुधियस्तीर्थकराणामुषः // ये श्रवंति पठति तैश्च सुननर्धर्मार्थकामान्विता / लक्ष्मीराश्रयते व्यपायरहिता निर्वाणलक्ष्मीरपि / 9 // // इति श्रीमंगलाष्टकम् // अथ अभिषेक पाठ 'श्रीमज्जिनेन्द्रमभिवंद्य जगत्त्रयेशं स्याद्वादनायकमनंतचतुष्टयाईम् श्रीमूलसंघसुदृशां सुकृतकहेतु जैनेन्द्रयज्ञविधिरेष मयाभ्यधायि // 1 // ॐ ह्रीं श्रीं भः स्वाहा स्नपनप्रस्तापनाय पुष्पाञ्जलिः क्षिपेत् // 1 // (नीचे लिखे श्लोकको पढ़कर आभूषण और यज्ञोपवीत धारण करना / ) श्रीमन्मन्दरसुन्दरे (मस्तके) शुचिजलैधौतः सदर्भाक्षतैः / पीठे मुक्तिवरं निधाय रचितं त्वत्पादपद्मस्रजः / इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थकमिदं यज्ञोपवीतं दधे / मुद्राकंकणशेखराण्यापि तथा जन्माभिषेकोत्सवे // 2 // ___ॐ ह्रीं श्वेतवर्णे सर्वोपद्रवहारिणि सर्वजनमनोरञ्जिनि परिधानोत्तरीयं धारिणि हं हं झं झं सं सं तं तं पंप परिधानोत्तरीयं धारयामि स्वाहा / Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] नित्य नियम पूजा ॐ नमो परमशान्ताय शांतिकराय पवित्रीकृताय अहं. रत्नत्रयस्वरूपं यज्ञोपवीतं धारयामि मम गात्रं पवित्रं भवतु ह्रीं नमः स्वाहा। (तिलक लगानेका श्लोक) सौगंध्यसंगतमधुव्रतझड्कृतेन, संवर्ण्यमानमिव गंधमनिंद्यमादौ / आरोपयामि विबुधेश्वरवृन्दवन्ध पादारविदमभिवंद्य जिनोत्तमानाम् // 3 // __ (भूभिप्रक्षालनका श्लोक ) ये संति केचिदिह दिव्यकुलप्रसूता, नागा प्रभूतबलदर्पयुता भुवोऽधाः / संरक्षणार्थममृतेन शुभेन तेषां, प्रक्षालयामि पुरतः स्नपनस्य भूमिम् / 4 // ॐ ह्रीं जलेन भूमिशुद्धि करोमि स्वाहा / ___ (पीठप्रक्षालनका श्लोक) श्रीरार्णवस्य पयसां शुचिभि: प्रवाहैः, __ प्रक्षालितं सुरवर्यदनेकवारम् / अत्युद्यमुद्यतमहं जिनपादपीठ, प्रक्षालयामि भवसंभवतापहारि // 5 // ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रः नमोऽहंत भगवते श्रीमतें पवित्रतरर बलेन पीठप्रक्षालनं करोमि स्वाहा // 5 // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [11. ( पीठपर श्रीकारलेखन) श्रीशारदासुमुखनिर्गतवीजवर्ण। श्री मंगलीकवरसर्वजनस्य नित्यं / / श्रीमत्स्वयं क्षयति तस्य विनाशविघ्नं / श्रीकारवर्णलिखितं जिनभद्रपीठे // 6 // ॐ ह्रीं श्रीकारलेखनं करोमि स्वाहा // 6 // ( अग्निप्रज्वालनक्रिया) दुरन्तमोहसन्तानकान्तारदहनक्षमम् / दर्भः प्रज्वालयाम्यग्नि ज्वालापल्लविताम्बरम् // 7 // ॐ ह्रीं अग्निप्रज्वालयामि स्वाहा // 7 // (दशदिक्पालक आह्वान ) इन्द्राग्निदंडधरनैऋतपाशपाणि / वायूत्तरेण शशिमौलिफणींद्रचन्द्राः / / आगत्य यूयमिह सानुचराः सचिन्हाः / स्वं स्वं प्रतीच्छत बलिं जिनपाभिषेके // 8 // (दशदिक्पालक भंत्र) * आं क्रौं ह्रीं इन्द्र आगच्छ आगच्छ इन्द्राय स्वाहा // 1 // ॐ क्रीं ह्रीं अग्ने आगच्छ गच्छ अग्नये स्वाहा // 2 // .ॐ क्रों ह्रीं यम आगच्छ आगच्छ यमाय स्वाहा // 3 // & आक्रो ह्रीं नैऋत आगच्छ आगच्छ नैऋताय स्वाहा // 4 // आं प्रौं हीं वरुण आगच्छ मागच्छ रणाय स्वाहा // 5 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा आं को ह्रों पवन आगच्छ आगच्छ पवनाय स्वाहा // 6 // ॐ आं क्रौं ह्रीं कुबेर आगच्छ आगच्छ कुबेराय स्वाहा // 7 // * आं को ह्रीं ऐशान आगच्छ आगच्छ ऐशानाय स्वाहा // 8 // आं क्रौं ह्रीं धरणेन्द्र आगच्छ आगच्छ धरणेद्राय स्वाहा // 9 // "ॐ आं को ह्रौं सोम आगच्छ आगच्छ सोमाय स्वाहा // 10 // नाथ ! त्रिलोकमहिताय दश प्रकार / ___ धर्माम्बुवृष्टिपरिषिक्तजगत्त्रयाय // अर्घ महागुणरलमहार्णवाय / .. तुभ्यं ददामि कुसुमैविंशदाक्षतैश्च / 9 // ह्रों इन्द्रादिदशदिक्पालकेभ्यो इदं अर्ब पाद्य गंधं दोष धूपं चरु बलि स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञ भागं च यजामहे प्रतिगृह्यता र स्वाहा // 9 // (क्षेत्रपालको अर्घ ) भो क्षेत्रपाल ! जिनपः प्रतिमांकपाल, दंष्टा कराल जिनशासनरक्षपाल / तैलादिजन्म गुडचन्दनपुष्पधूपै भॊगं प्रतीच्छ जगदीश्वरयज्ञकाले // विमल सलिलधारामोदगन्धाक्षतोघैः, ... प्रसवकुलनिवेद्यर्दीपधूपैः फलौषैः / पटह पटुतरोधैः वस्त्रसद्भूषणोधैः, जिनपतिपदभक्त्या ब्रह्मणं प्रार्चयामि // 10 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा आं क्रौं अत्रस्थ विजयभद्र-वीरभद्र--मणिभद्र--भैरवापराजित--पंचक्षेत्रपालाः इदं अध्यं पाद्य गंधं दीपं चरु बलि स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा // 10 // (दिक्पाल और क्षेत्रपालको पुष्पांजली) जन्मोत्सवादिसमयेषु यदीय कीतिः / सेन्द्राः सुराः प्रमदभारनता स्तुवन्ति // तस्याग्रतो जिनपतेः परया विशुद्धा / पुष्पांजलि मलयनाद्रिमुपाक्षिपेऽहम् // 11 // इति पुष्पांजलिः क्षिपेत् // 11 // ( कलशस्थापन और कलशोंमें जलधारा देना) सत्पल्लवार्चितमुखान् कलधौतरूप्य ताम्रारकूटघटितान् पयसा सुपूर्णान् / / संवाह्यतामिव गतांश्चतुरः समुद्रान् / संस्थापयामि कलशान जिनवेदिकांते // 12 // ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रीं ह्रः नमोऽहते भगवते श्रीमते पद्म महापद्म तिगिच्छ केशरी पुण्डरीक महापुण्डरीक गंगा सिन्धु रोहिद्रोहिताच्या हरिरिकाम्ता सीता सीतोदा नारी नरकांता सुवर्णकूला रूप्यकूला रक्ता रक्तोदा क्षीराम्भोनिधिशुद्धजलं. सुवर्णघंट प्रक्षालित परिपूरित नवरत्नगन्धपुष्पाक्षताभ्यचितमामोदकं पवित्रं कुरु कुरु शो झों वं मं हं संतं पं द्रां द्रीं अ. सि आ उ साय नमः स्वाहा / Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा ( अभिषेकके लिये प्रतिमाजीको अर्घ चढ़ाना) "उदकवन्दनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलार्धकः / 'धवलमंगलगानरवाकुले, जिनगृहे जिननाथमहं यजे // 13 // - ह्रीं परमब्रह्मणेऽनन्तानन्तज्ञानशक्तये अष्टादशदोषरहिताय षट्चत्वारिंशद्गुणसहिताय अर्हत्परमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अगं निर्वपामोति स्वाहा // 13 // __(बिम्बस्थापना) यः पांडुकामलशिलागतमादिदेव मस्नापयन् सुरवरा सुरशैलमूनि / / कल्याणमीप्सुरहमक्षततोयपुष्पैः / संभावयामि पुर एव तदीयबिम्बम् // 14 // ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह श्रोवर्णे प्रतिमास्यापनं करोमि स्वाहा / ( मुद्रिकास्वीकार ) प्रत्युप्तनीलकुलिशोपलपद्मराग नियंत्करप्रकरवद्धसुरेन्द्रचापम् // जैनाभिषेकसमयेऽङ्गुलिपर्वमूले / रत्नाड्गुलीयकमहं विनिवेशयामि // 15 // -ॐ ह्रीं श्रीं क्लों ऐं अर्ह अ सि आ उ साय नमः मुद्रिकाधारणं॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [R नित्य नियम पूजा (जलाभिषेक 1) दूरावनम्रसुरनाथकिरीटकोटिसंलग्नरल किरणच्छविधूसरांघ्रिम् प्रस्वेदतापमलमुक्तमपिप्रकृष्टभक्त्याजलैजिनपतिंबहुधाभिषिञ्च मंत्र--(१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वं मं हं सं तं पं वं व मं मं हं हं सं सं तं तं झं झं इवी इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रो द्रावय द्रावय ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते पवित्रतरजलेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा। मंत्र-(२) ॐ ह्रीं श्रीमंतं भगवंतं कृपालसंतं वृषभादि वर्धमानातं चतुर्विंशतितीर्थंकरपरमदेवं आद्यानां आये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रो आर्यखण्डे ......................"देशे..................."नाम नगरे एतद्"..........."जिनचैत्यालये सं............."मासोत्तम मासे.................."पक्षे तिथौ...................."वासरे प्रशस्त * ग्रहलग्न होरायां मुनि--आर्यिका--श्रावक-श्राविकाणाम् सकलकर्मक्षयाशं जलेनाभिषेकं करोमि स्वाहा / इति जलस्नपनम् / * __ अर्घ :-उदक चंदन"...........""अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / (फलरसाभिषेक 2) मुक्त्यांगनानमविकीर्यमाणैः पिष्टार्थकपूररजोविलासः / करोषैर्भक्त्या जिनस्य वरसंस्नपनं करोमि।। * नोट--उपरोक्त दोनों मंत्रोमेंसे कोई एक मंत्र बोलना चाहिये। नोट--प्रतिष्ठापाठादिमें जलके बाद फल रसका ही अभिषेक हैं। जो रस मौजूद हो उसीका श्लोक पढ़कर चढ़ाना चाहिये। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा मंत्र- ही........................."इति शर्करास्नपनम् / अर्ण-उदकचन्दन..............."अब निर्नपामीति स्वाहा / / भक्त्या ललाटतटदेशनिवेशितोच्चैः / हस्तैश्च्युता सुरवरासुरमर्त्यनाथैः / / तत्कालपीलित महेक्षुरसस्य धारा / सद्यः पुनातु जिनबिम्बगतव युष्मान् // 19 / / मन्त्र-ॐ ह्रीं... ..." इति इक्षुरसस्नपनम् ! अर्घ-उदक चन्दन................"अर्धा निर्वपामीति स्वाहा // नालिकेरजलैः स्वच्छ शीतः पूतैमनोहरैः। स्नानक्रियां कृतार्थस्य विदधे विश्वदर्शिनः // 20 // मन्त्र-ॐ ह्रीं......................"इति नालिकेरस्नपनम् / / अर्ज-उदक चन्दन"""""."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / सुपक्वैः कनकच्छायैः सामोदर्मोदकारिभिः / सहकाररसैः स्नानं कुर्मः शमैकसबनः // 21 // मन्त्र- ही........................."इति आम्ररसस्नपनम् / अर्घ-उदक चन्दन................"अर्घ निर्वपामीति स्वाहा (घृताभिषेक 3) उत्कृष्टवर्ण-नय-हेम-रसाभिरामदेहप्रभावलयसङ्गमलुप्तदीप्तिम् / धारां घृतस्य शुभगन्धगुणानुमेयां, वन्देऽहंतां सुरभि संस्नपनोपयुक्ताम् // 22 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 17 मंत्र- ह्रीं....................................." इति घृतस्नपनम् / / अर्घ-उदक चन्दन...................."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा (दुग्धाभिषेक 4) सम्पूर्ण-शारद-शशांकमरीचिजाल स्पन्दैरिवात्मयशसामिन सुप्रवाहैः / धीरैर्जिनाः शुचितरैरभिषिच्यमानाः / ___ सम्पादयन्तु मम चितसमीहितानि // 23 // मंत्र- ह्रीं......... ............"इति दुग्धाभिषेकस्नपनम् / अर्थ उदक नन्दन ........... अर्घ निर्मपामोति स्वाहा // __ ज्येष्ठजिनवर जयमाला ( भट्टारक ब्रह्मकृष्णकृत ) अमरनयरिसम नयरि अयोध्या नाभिनरेन्द्र पसे निजबुध्या। सुरपति मेरुशिखर ले चढिया कनक कलश क्षीरोदधिभरिया !! तसधर राणी मरुदेवी माया युगपति आदि जिनेश्वर जाया। ज्येष्ठमास अभिषेक जु करिया अष्टोत्तर शत कुंभजु भरिया / / मभकत जलधारो संचरिया ललितकलोल धरषि उतरिया / जय जय सुरनिकरी उच्चरिया इंद्रइंद्राणी सिंहासन धरिया / अंग अनंग विभूषण धरिया कुडलहार हरितमणि जड़िया। नोट-* जिस महिने में अभिषेक किया जाय उस महिनेका नाम बोलना चाहिये / यह जयमाला दुग्धाभिषेकके समय बोली जाती हैं। प्रत्येक पंक्तिके बाद 'सुरपति मेरुशिखर' वाली पंक्तिको दुहराना चाहिये / Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18] नित्य नियम पूजा ऋषम नाम शतमुखविस्तरिया कमलनयन कमलापति कहिया / / युगला धर्मनिवारण चरिया सुरनर निकर गंधोदक महिया / रत्न कचोल कुमारिनी भरिया जिनचरणाम्बुज पूजत हरिया / / हिम हिमांशु चंदन घनसरिया भूरि सुगंध गंध पसरयिया / अक्षत अवतवास लहरिया रोहिगिकांत किरणसम सरिया / / देखत रूचिकर अमरनि करिया पंचमुष्टि जिन आगे धरिया। सुन्दर पारिजात मोगरिया कमल बकुल पाटल कमदरिया / चरुवर दीप लेय अपछरिया जिनवर आगे उतारि उधरिया। अगर तगर धूप फलफलिया फणस रसाल मधुर रसभरिया / कसुमांजलि सांजलि समुजलिया पंडितराय अभ्रवच कलिया। त्रिभुवनकीति पदपंकज वरिया रत्नभूषणहरि महापद कहिया / / ब्रह्मकृष्ण जिनराज स्तविया जयजयकार करी मनहरिया / कभ कलशभरि जयजिनवरिया शाश्वत धर्म सदा अनुसरिया।। याति जिनचैत्यानि विद्यन्ते भुवनत्रये / तावन्ति सततं भक्त्या त्रिः परीत्य नमाम्यहम् / / / दध्याभिषेक 5) दुग्धाब्धिवीचिचयमंचितफेनराशि ___ पाण्डुत्वकांतिमवधीरयतामतीव / दनांगता जिनपतेः प्रतिमा सुधारा / सम्पद्यतां सपदि वांछितसिद्धये वः / / 24 / / मंत्र-ॐ ह्रीं............... .................." इति दधिस्नपनम् / अर्घ-उदकचन्दन....................."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [19 [सवौषधि 6] संस्नापितस्य घृतदुग्धदधीक्षवाहैः / सर्वाभिरौषधिभिरहत उज्वलाभिः / उद्वतितस्य विदधाम्यभिषेकमेला, कालेयककमरसोत्कटवारिपुरः // 25 // मन्त्र- ॐ ह्रीं ......................' इति सर्वोषधिस्नपनम् / अर्ध-उदकचन्दन..............."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / ( चतुःकोणकुभकलशाभिषेकः 7) इष्टमनोरथशतैरिव भव्यपुंसां, पूर्णैःसुवर्णकल शैनिखिलैर्वसाने संसार सागरविलपनहेतुसेतुमाप्लावये त्रिभुवनैकपति जिनेंद्रं / / मंत्र- ह्रीं... ............."इति चतुःकोणकुम्भकलश स्नपनम् / अर्घ-उदकचंदन .. ... ... ... ..अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। (चन्दनलेपनम् 8) संशुरशद्धया परया विशुध्या / कपुरसम्मिश्रितचंदनेन / जिनस्य देवासुरपूजितस्य / विलेपनं चारु करोमि भक्त्या / 26 मंत्र-ॐ ह्रीं....... ....." इनि चन्दनलेपनम् करोमीति स्वाहा / अर्घ-उदकचंदन.................... अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / (पुष्पवृष्टि 9) यस्य द्वादशयोजने सदसि सद्गंधादिभिः स्वोपमानप्यान्सुमनोगगान्सुमनसा वर्षति विश्वक् सदा / यः सिद्धिं सुमनः सुखं सुमनसां स्वं ध्यायतामावह सं देवं समनोमुखैश्च सुमनौभेदैः समभ्यचये // मन्त्र-ॐ ह्रीं सुमनःसुखप्रदाय पुष्पवृष्टि करोमि स्वाहा / Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 / नित्य नियम पूजा ( मंगल आरति 10) दध्युज्वलाक्षतमनोहरपुष्पदीपेः पात्रापितं प्रतिदिनं महतादरेण त्रैलोक्यमंगलसुखालयकामदाहमारातिकं तवविभोरवतारयामि ( इति मंगल आरति अवतारणम् / / पूर्णसुगंधितकलशाभिषेक 11) द्रव्यैरनल्पधनसारचतुःसमाढयैरामोदवासितसमस्तदिगंतरालैः मिश्रीकृतेन पयसा जिनपुगवानां त्रैलोक्यपावनमहं स्नपनं करोमि / / मंत्र-ॐ ह्रीं..............." इति पूर्णसुगधितजलस्नपनम् / अर्ध-उदकचंदन.................."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / / / अथ शान्तिमन्त्राः प्रारभ्यते ___ॐ नमः सिद्धेभ्यः / श्री वीतरागाय नमः / ॐ नमोऽर्हते भगवते / श्रीमते पार्वतीर्थंकराय द्वादशगणपरिवेष्टिताय, शुक्लध्यानपवित्राय / सर्वज्ञाय / स्वयंभुवे / सिद्धाय / बुद्धाय / परमात्मने / परमसुखाय / त्रैलोक्यमहीव्याप्ताय / अनंतसंसारचक्र-परिमर्दनाय / अनंतदर्शनाय अनंतवीर्याय / अनंतसुखाय सिद्धाय, बुद्धाय, त्रैलोक्यवंशकराय, सत्य. ज्ञानाय, सत्यब्रह्मणे, धरणेन्द्रफणामंडलमण्डिताय, ऋष्यायिका श्रावक-श्राविका प्रमुख वर्तुस्संघौपसर्गविनाशनाय, याति कर्मविनाशनाय अघातिकर्मविनाशनाय, अपवायं छिंद छिंद, भिंद भिंद / मृत्यु छिंद 2 भिंद 2 / अतिकामं छिंद 2 भिंद 2 / रतिकामं छिंद 2 भिंद 2 / क्रोधं जिंदर Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [ 21 भिद 2 / अग्निं छिंद 2 भिंद 2 सर्वशत्र छिंद 2 भिंद 2 / सर्वोपसर्ग छिंद 2 भिंद 2 / सर्वविघ्नं छिंद 2 भिंद / सर्वभयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्वराजभयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्न चोरभयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्वदुष्टमयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्वमृगभयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्नमात्मचक्रभयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्वपरमंत्रं छिद 2 भिंद 2 / सर्वशूलरोगं छिंद 2 भिंद 2 / सर्व क्षयरोगं छिंद 2 भिंद 2 / सनकुष्ठरोगं छिंद 2 भिंद 2 / सर्वक्रररोगं छिंद 2 मिंद 2 सर्वनरमारी छिद 2 भिंद 2 / सर्वगजमारी छिह 2 भिंड। सर्वोश्वमारी छिंद 2 भिंद 2 / सर्वगोमारी छिंद 2 भिंद 2 / सन महिषमारी जिंद२ भिंद 2 / सर्ग धान्यमारी छिह 2 मिंद 2 सर्ववृषमारी छिह 2 भिंद 2 / सर्व गुल्ममारी छिंद 2 भिंद 2 / सर्न पत्रमारी जिंद 2 भिद 2 / सर्न पुष्पमारी छिंद 2 भिंद 2 / सर्व फलमारी छिंद 2 भिंद 2 / सर्वराष्ट्रमारी छिंद 2 भिंद 2 / सर्व देशमारी छिंद 2 भिंद 2 : सर्व विषमारी जिंद 2 भिंद 2 / सर्व वेतालशाकिनी भयं छिंद 2 भिंद 2 / सनवेदनीयं छिंद 2 भिंद 2 / सर्व मोहनीयं छिद 2 भिंद 2 / सर्वकर्माष्टकं छिंद 2 भिंद 2 / ___ॐ सुदर्शन महाराज चक्रविक्रमतेजोबलशौर्यवीर्यशांति कुरुकुरु / सर्वं जनानंदनं कुरुकुरु / सर्व भव्यानंदनं कुरुकरु / सर्व गोकुलानन्दनं कुरु कुरु सर्नग्रामनगरखेटकर्वटमटम्बपत्तन Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 ] नित्य नियम पूजा द्रोणमुखमहानंदनं कुरु कुरु सर्व लोकानन्दनं कुरु कुरु / सर्व देशानन्दनं कुरु कुरु / सर्व यजमानानन्दनं कुरुकुरु / सर्व दुःख हन हन, दह दह, पच पच कुट कुट, शीघ्र शीघ्र। यत्सुखं त्रिषु लोकेषु व्याधिर्व्यसनवर्जितं / अभयं क्षेममारोग्यं स्वस्तिरस्तु विधीयते / शिवमस्तु / कुलगोत्रधनधान्यं सदास्तु / चन्द्रप्रभ-वासुपूज्यमल्लि वर्द्धमान पुष्पदन्त-शीतल-मुनिसुव्रत नेमिनाथ-पार्श्वनाथ इत्येभ्यो नमः // ( इत्यनेन मन्त्रेण नवग्रहार्थ गन्धोदकधारावर्षणम् ) (गन्धोदकवन्दनमंत्रः) निर्मल निर्मलीकरणं पवित्रं पापनाशनम् / जिनगन्धोदकं बन्दे कर्माष्टकनिवारणम् / / इति गन्धोदकवन्दनम् / अथ बहच्छान्तिमंत्राः प्रारभ्यते ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं इवी इवीं क्ष्वी वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय नमो अहंते भगवते श्रीमते ॐ ह्रीं क्रौं मम पापं खंडय खंडय हन हन दह दह पच पच पाचय पाचय शीघ्र कुरु करु / ॐ नमोऽर्ह झं झ्वी क्ष्वी हं सं झं वं वः पः हः क्षांक्षी क्षु क्षधे झैं क्षौं क्षः ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह है है हौं हः अ सि आ उ सा नमः मम पूजकस्य (सर्वेषां पूजकानाम् ) ऋद्धि वृद्धिं कुरु कुरु स्वाहा / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [23 ॐ द्रां द्रीं द्रावय द्रावय नमोऽहते भगवते श्रीमते ठः ठः मम श्रीरस्तु वृद्धिरस्तु पुष्टिरस्तु शांतिरस्तु कांतिरस्तु कल्याणमस्तु मम कार्यसिद्धयर्थं सर्वविघ्ननिवारणार्थ श्रीमदभगवतः सर्वोत्कृष्टत्रैलोक्यनाथाचितपादपद्मप्रसादात् सद्धर्मश्रीवलायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिरस्त स्वस्निास्त धनघान्यसमृद्धिरस्तु श्रीशांतिनाथो मां प्रति प्रसिदत, श्रीवीतरागदेवो मां पति प्रसिदत, श्रीजिनेन्द्र-परममांगल्यनामधेयो ममेहामुत्र च सिद्धि तनोतु, ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते चितामणो-पार्वतीर्थकराय रत्नत्रयरूपाय अनन्त चतुष्टयसहिताय धरणेंद्रफणामण्डलमण्डिताय समवशरण लक्ष्मीशोभिताय इन्द्रधरणेंद्रचक्रवादि--पूजितपादपद्माय केवलज्ञानलक्ष्मी--शोभिताय जिनराजमहादेवाय अष्टादशदोषरहिताय षट् चत्तारिंशत्गुणसंयुक्ताय परमगुरु परमात्मने विद्वाय वुद्धाय त्रैलोक्यपरमेश्वराय देवाय सर्वसत्वहितंकराय धर्मचक्राधीश्वराय सर्वविद्यापरमेश्वराय त्रैलोक्यमोहनाय धरणेद्रपद्मावनीसहिताय अतुलबलवीर्यपराक्रमाय अनेकदैत्यदानवकोटिमुकुटघृष्टपादपीठाय ब्रह्माविष्णुरुद्रनारदखेचरपूजिताय सर्वभव्यजनानन्द कराय सर्वरोगमृत्युघोरोपसर्गविनाशाय सर्वदेशग्रामपुर पट्टनराजा-प्रजाशांतिकराय सर्वजीवविघ्ननिवारणसमर्थाय श्रीपार्श्वदेवाधिदेवाय नमोस्तु श्रीजिनराजपूजन Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 ] नित्य नियम पूजा प्रसादाद सर्वसेवकानां सर्वदोषरोगशोकभयपीडाविनाशनं कुरु कुरु सर्वशांति तुष्टिं पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा / ॐ नमो श्री शांतिदेवाय सर्वारिष्टशांतिंकराय हां ह्रीं ह्र, हों ह्रौं हः अ सि आ उ सा मम सर्व विघ्नं शांतिं कुरु कुरु स्वाहा, मम तुष्टि पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा / श्री पार्श्वनाथपूजनप्रसादात् मम अशुभानि पापानि छिंद 2 भिंद 2 मम परदुष्टजनोपकृत मंत्र तंत्र दृष्टिं मुष्टिं छलछिद्रदोषान् छिद 2 भिंद 2 मम अग्निचोर जलसर्वव्याधि छिद 2 भिंद 2 मारींकृतोपद्रवान् छिद र भिंद 2 सर्वभैरवदेवदानव वीरनरनारिसिंहयोगिनी कृत विघ्नान् छिद 2 भिंद 2, डाकिनी शाकिनी-भूत भैरवादिकृतविघ्नान् छिंद 2 भिंद 2, भवनवासीव्यन्तर-ज्योतिषीदेवदेवीकृतविघ्नान् छिंद 2 भिंद 2, अग्निकुमारकृत विघ्नान् छिंद 2 भिंद 2, उदधिकुमारस्तनितकुमारकृतविघ्नान् छिंद 2, भिंद 2, द्वीपकुमार-दिक्कुमारकृतविघ्नान् छिंद - भिंद 2, वातकुमारमेघकमारकृतविघ्नान छिंद 2 भिंद 2, इन्द्रादिदशदिक्पालदेवकृतविघ्नान् छिद छिंद भिंद भिंद / जयविजय-अपराजितमणिभद्र-पूर्णभद्रादि क्षेत्रपालकृतविघ्नान् छिंद 2 मिद 2, राक्षस वेताल-देत्य-दानवयक्षादिकृत विघ्नान् छिंद 2 भिंद 2, नवग्रहकृत सर्वग्रामनगरीपीडां छिंद 2 भिंद 2, सर्वग्राम नगर देशमारी रोगोन् छिंद 2 मिंद 2, सर्व स्थावरजंगम वृश्चिकदृष्टिविष Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा जातियविष सादिकृत दोषान् छिंद 2 भिंद 2, सर्वसिंहअष्टा पदव्याघ्रव्यालवनवर जीव भयान् छिदर भिद 2, परशत्रुकृत-मारणोच्चाटन विद्वेषण मोहन-बशीकरणादिदोषान छिद२ भिंद 2, सर्न देशपुरमारी छिंद 2 भिंद 2, सर्वराजनरमारीम् छिद 2 भिंद 2, सर्वं हस्ति-घोटकमारी छिद 2 भिंद 2, ॐ भगवती श्रीचक्रेश्वरो ज्वालामालिनी कूष्मांडिनी पद्मावती देवी अस्मिन् जिनेन्द्रभवने आगच्छ 2 एहि 2 तिष्ठ 2 बलिं ग्रहाण 2 मम धनधान्यसमृद्धि कुरु 2 सर्व भव्यजीवानन्दनं कुरु 2 सर्व देशग्रामपुरमध्ये क्षुद्रोपद्रवसवें दोषमृत्युपीडाविनाशनं कुरु२ सर्नपरभयनिवारणं कुरु२ स्वाहा ॐ आं क्रौं ह्रीं श्रीवृषभादि वर्धमानांत चतुर्विंशति तीर्थकरमहादेवाः प्रियंतां 2, मम पापानि शाम्यंतु घोरपसर्गाणि सर्वविघ्नानि शाम्यंत ॐ आं क्रौं हीं श्रीचक्रेश्वरीज्वालामालिनी कूष्मांडि पद्मावती देवी प्रियंताम् 2, ॐ आं क्रौं ह्रीं श्री रोहिण्यारि-महादेवी अत्र आगच्छ 2 सनदेवताः प्रियंताम् 2, ॐ आं क्रौं ही श्री मणिभद्रादि यक्षकुमारदेवाः प्रियंताम 2, सर्वे जिनशासन-रक्षकदेवाः प्रियंताम् 2 श्री आदित्य सोम मंगल बुध बृहस्पति शुक्र शनि राहु केतु सर्वे नवग्रह देवाः प्रियंताम् 2 प्रसीदन्तु ! देशस्य राष्ट्रस्य राज्ञः करोंतु शांति भगवान् जिनेन्द्रः / यत्सुखं त्रिषु लोकेषु व्याधिर्व्यसनवर्जितं / अभयं क्षेममारोग्यं स्वस्तिरस्त मम सदा / यस्यार्थं क्रियते कर्म स प्रीतो नित्यमस्तु मे / Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 / नित्य नियम पूजा शांतिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः / आह्वानं नैव जानामि नैव जानामि पूजनम् / / विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर / प्रध्वस्त घातिकर्माण केवलज्ञानभास्कराः कुर्वन्तु जगत शांतिं वृषभाद्या जिनेश्वराः / / // इति शांतिधारा // गन्धादक लेनेका श्लोक मुक्तिश्रीवनिताकरोदकमिदं पुण्यांकुरोत्पादकं / नागेन्द्रत्रिदशेन्द्रचक्रपदवी-गज्याभिषेकोदकम् / / सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनलता-संवृद्धिसम्पा:कम् / कीर्ति-श्री जयसाधक तब जिन ! स्नानस्य गंधोदकम् / / . (चन्दन चढ़ानेका श्लोक) . ताम्यन्त्रिलोकोहामध्यवति-समस्तसत्वाहितहारिवाक्यान् / श्रीचंदननैर्गंधविलुब्बभृगै-जिनेन्द्र सिद्धांतयतीन् यजेऽहम् / / __ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये अष्टादशदोषरहिताय षट्चत्वारिंशद्गुणसहिताय अर्हत्परमेष्ठिने संसारतापविनाशनाय चन्दनं निपामोति स्वाहा / पुष्प चढ़ानेका श्लोक : विनीतभव्याब्जावबोधसूर्यान् वान् सुचर्यान् कथनैकर्यान कुन्दारविंदप्रमुखैः प्रसूनजिनेंद्रसिद्धांतयतीन यजेऽहम् / / ____ॐ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये अष्टादशदोषरहिताय षट्चत्वारिंशद्गुणसहिताय अर्हत्परमेष्ठिने कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्मपामोति स्वाहा / // इति अभिषेकपाठ // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 27. लघु अभिषेक पाठ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॐ नमः सिद्धेभ्यः पणविवि पंचपरमगुरु गुरु जिन शासनो, सकल सिद्ध दातार सुविधन विनाशनो / शारद अरु गुरु गौतम सुमति प्रकाशनो, मङ्गल कर चउ संघहि पाप पणासनो / / पापहि पणासन गुणहि गरुआ, दोष अष्टादश-रहिउ / धरि ध्यान कर्मविनाशि केवल-ज्ञानी अविचल जिन लहिउ / / प्रभु पंचकल्याणक विराजित सकल सुर-नर ध्यावहीं। त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनवर जगत मङ्गल गावहीं / / 1 / उदक-चन्दन-तंदुल पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घकः / धवल-मंगल-गान-रवाकुले, जिनगृहे पंचकल्याणमहं यजे // ॐ ह्रीं भगवानके गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पञ्चकल्याण के म्योऽर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा / अभिषेक पाठ श्री तुम मज्जिनेन्द्र तुम चरण नख, नव्य कंज हित सूरि। विघ्न-शिलोच्चय दलत पवि, नम हरण भव भूरि // 1 // आप्त-वदन-उद्भव-वचन, हितमित विशद प्रमाग / दृष्ट इष्ट अविरोध कृत, जिनवाणी दुःखखान / 2 / / निरारम्भ परिग्रह रहित विजय-बासनातीत ज्ञान-ध्यान-तप-रत मुनी, सहज जगतजन मीत ..3. // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 ] नित्य नियम पूजा तदाकार प्रतिबिम्बको प्रथम कहो अभिषेक / ताते विधि अभिषेककी, योग्य रचों सविवेक // 4 / इति अभिषेक प्रतिज्ञां कृत्वा पुष्पांजलि क्षिपेत् / दोहा-प्रणव आदि जय जय उचरि, नमन ठानि पढ़ि मंत्र। मंगल उत्तम शरण गहि, स्वस्तिक लिखहूं स्वतंत्र / / अथ मंत्र पाठ ॐ जय जय जय। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु / णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं / पमो उवज्झायाणं, णमो लोए सबसाहूणं / / अनादि मूल-मंत्रेभ्यो नमः ! (पुष्पांजलि क्षेपण करना) चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलि-पण्णत्तो धम्मो मंगलं, / चतारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगतमा, साहू लोगुत्तमा, केवली-पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा, चत्तारि शरणं पधज्जामि, अरिहंत शरणं पवज्जामि, सिद्धे शरणं पधज्जामि साहू शरणं पधज्जामि, केवलि-पण्णतं धम्मं शरणं पव्वज्जामि // ॐ नमो अर्हते स्वाहा / ( पुष्पांजलि क्षेपण करें) अपराजित मन्त्रोऽयं, सर्व-विघ्न-विनाशकं / मङ्गलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मङ्गलं मतं / / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 29 - मत्तगयन्द छन्द श्री जिननो पदपंकजको नमि नित्य सही विधि न्होंन प्रसाएँ। ताहित सन्मुख तिष्ठत उज्वल द्रव्य सुधार यहां विस्तार / / कंचन पीठक मैं करि स्वस्तिक पुष्प सुगंधित धोकरि डारें। तामधि तोय शिवालय-नायक हो अभिषेक हितार्थ सुधारें। ॐ ह्रीं सिंहपीठे जिनबिम्बं स्थापयाम्हम् // नीर महाशचि गंधक चन्दन अक्षत पुष्प सु ले अनियारे। व्यंजन सजुत ले चरू उत्तम दीप धूप फल अर्घ सु धारे // यों वसु द्रव्य तनों करि अर्घ उतारि-उतारि यजों पद थारे / यो मुझ शीघ्र शिवालय वास सदा तुम भव्य उबारन बारे // ___ॐ ह्रीं स्नपनपीठे स्थित-जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामोति स्वाहा / कृत्रिम और अकृत्रिम बिम्ब सनातन राजत श्री जिन तेरे / तास तनी इन्द्र उपासन ठानत भानत कर्म करे रे। क्षीर समुद्र नदी नद तीरथ तास तनों जल प्रासुक हरे / कंचन कुभ भरे परिपूरण ल्याय यथाक्रम उत्थित टेरे // 1 // कर्मजंजीर जरयो यह जीव शुभाशुभ भोगत ज्ञान न पायो। पै अब कालसुलब्धि प्रसाद लह्यो तब दर्शन आनन्द आयो / हो तुम कर्मकलङ्क-विनाशक प्रेम तउ इत प्रेरित लायो। हो गनकार करों अभिषेक वरों शिवनारि समय अब आयो। यो कहि दीप चहों दिशि जोय कियो बहु धुमसु धूपक केरो। वाजत ताल सुवीन मृदङ्ग शची पुनि नाचत भाव सु टेरो॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 ] नित्य नियम पूजा जय जिनराज इतीश उचारि कियो अभिषेक जिनेश्वर तेरो। तासम शक्ति प्रमाण यहां हम ठानत भानत कर्म करेरो 3 / ॐ ह्रीं शुद्धोदकेन जिनाभिषेक करोम्यहम् / यों अभिषेक कियो अब पूरण पूजनके हित अर्क सुधारो। तीरथ को जल प्रासुक चन्दन अक्षत अक्षत पुष्प सुप्यारो / ले चरु दीपक उत्तम धूप फला करों वर मंत्र उचारो। वार धरो तुव चरणनके ढिग हो जिन तारक मोहिं उबारो॥ ॐ ह्रीं अभिषेकोत्सवसमये श्री जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्व० स्वाहा / या उपरात शचीपती आदिक सर्वे सुरासुर स्तोत्र उचारया। हो तुम नाथ अनाथनिके पुनि मोहमहाभट उद्धत मारयो / मैं जगजाल फस्यो बहुदुःख सह्यो नहिं जात भयो दुखियारो हो करुणानिधी जाननहार तुम्ही समरत्थ मुझे अब त्यारो। व इति पठित्वा पुष्पांजलिं परिक्षिपेत् / तीन प्रदक्षिण दे शिरनाय शचीपति आदिक सर्व सुरेशा / ले चरणोदक शीश धरयो सुरनाथ प्रभुति जु नाग नरेशा / मैं धरि ध्यान प्रदक्षिण देय न तुपाद जिनेश महेशा / हो तुव पाद प्रसाद-कीमा मोक्ष महाफल शीत्र विशेषा / इति प्रदक्षिणां दत्वा नमस्कारं च कृत्वा जिनगंधोदक शिरसि धार याम्यहम् / / ले शुचि उज्वल स्वग सद्भब वस्त्र अलौकिक हस्त मंझारे। तव तन ऊपर नीर निहार शचीपती मार्जनको विस्तारे / / पुलकित सइस नमनकरि मघवा निरखत पावनरूप तिहारे / धन्य धन्य जिनराज लोकमें वसुविध कर्म जलावन हारे / / इति पठित्व जिनबिम्बस्य सम्मानम् करोभ्यहम् / Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा दोहा-माजन करि वेदी विष, सिंहासन परि थापि / प्रातिहार्ययुत निरख जिन, यजन करो गुन जापि // // पुष्पांजलिं / / / ___ लघु पंचामताभिषेक भाषा शुद्ध घृत--दुग्ध आदिसे पंचामृत अभिषेक करना हो तो यह पाठ बोलना अथवा पंचामृतके अभावमें सिर्फ जलधारासे काम लेना। दोहो-श्री जिनवर चौवीस वर, कुनयध्वांतर भान / अमितवीर्य दृगबोधसुख-युत तिष्ठो इहि थान / नाराच छन्द : गिरीश शीश पांडपै, सचीश इश थापियो महोत्सवो अनन्दकन्दको, सबै तहां कियो।। हमैं सो शक्ति नाहिं व्यक्त देखि हेतु आपना / यहां करै जिनेन्द्रचन्द्रकी सुबिंब थापना / पुष्पांजलि क्षेपणकर श्रीवर्णपर जिनबिम्बकी स्थापना करें। कनकमणिमय कुम्भ सुहावने, हरि सुक्षीर भये अति पावने / हम सुवासित नीर यहां भरें, जगतपावन पाय तर धरै / / पुष्पांजलि क्षेपणकर वेदीके कोनोंमें चार कलश स्थापना करें। शद्धोपयोग समान भ्रमहर, परम सौरभ पावनो। आकृष्ट भृङ्ग समूह गंग-समुद्भवो अति भावनो // मणिकनककुम्भ निसुम्भकिल्विष, विमल शीतल भरि धरौं। श्रम स्बेद मल निरवार जिन त्रय धार दे पायनि परो 4 // ॐ ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य जलेनाभिषिच्ये / Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 ] नित्य नियम पूजा अति मधुर जिनधनि सम सुप्राणित प्राणिवर्ग सुभावसों। बुधचित्तसम हरिचित नित, सुमिष्ट इष्ट उछावसों / / तत्काल इक्षुसमुत्थ प्रासुक रतनकुम्भ विर्षे भरौ / यम त्रास ताप निवार जिन त्रय धार दे पायनि परौ / 5 / ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थ अद्य इक्षुरसेनाभिषिच्ये / निस्तप्त-क्षिप्त सुवर्ण-मद-दमनीय ज्यो विधि जैनकी / आयुप्रदा बलबुद्धिदा, रक्षा सु यों जिय सैनकी / तत्काल मन्थित क्षीर उत्थित, प्राज्य मणिझारी भरौं / दी अतुलबल मोहि जिन, त्रय धार दे पायनि परौं / 6 / ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयाथं अद्य घृतेनाभिषिच्ये / सरदभ्र शुभ्र सुहोटकद्युति, सुरभि पावन सोहनो / क्लीवत्वहर बल धरने पूरन पय सकल मनमोहनो / / कृतउष्ण गोथनतै समाहृत घट जटितमणि मैं भरौं / दुर्बल दशा मो मेट जिन त्रय धार दे पाय ने परौं / ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य दुग्धेनाभिषिच्ये / वर विशद जैनाचार्य ज्यो मधुराम्लकर्कशता धरैं / शचिकर रसिक मन्थन विमन्थन नेह दोनों अनुस” / गोदधि सुमणिभृगार पूग्न लायकर आगे धरौं / दुखदोष कोष निवार जिन त्रय धार दे पायनि परौं / 8 // ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य दध्यानाभिषिच्ये। "सर्वोषधी मिलायके भरि कंचन भृङ्गार / जजौ चरण त्रय धार दे, तारवार भवतार // 9 // ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थ अद्य सवौषधिभ्यामभिषिच्ये। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा विनय पाठ दोहा-इह विधि ठाडो होयके प्रथम पढ़े जो पाठ। धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जु आठ // 1 // अनन्त चतुष्टयके धनी, तुमही हो सिरताज / मुक्तिवचूके कंत तुम, तीन भुवनके राज // 2 // तिहुँ जगकी पीडा हरन, भवदधि शोषणहार / ज्ञायक हो तुम विश्वके, शिव सुखके करतार // 3 // हरता अघ-अंधियारके, करता धर्म प्रकाश / थिरतापद दातार हो, धरता निज गुण राश // 4 // धर्मामृत उर जलधिसो, ज्ञान भानु तुम रूप / तुमरे चरण सरोजको, नावत तिहुँ जग भूप // 5 // मैं वन्दौ जिनदेवको, कर अति निर्मल भाव / कर्मबंधके छेदने, और न कळू उपाव . / 6 भविजनको भवकूप ते, तुमही काढनहार / दिनदयाल अनाथपति, आतम गुण भंडार // 7 // चिदानंद निर्मल कियो, धोय कर्म रज मैल / सरल करी या जगतमें, भवि जनको शिव गैल / तम पद पङ्कज पूजते, विघ्न रोग टर जाय ! शत्र मित्रताको धरै, विष निरविषता थाय / / 9 / / चक्री खगधर इन्द्रपद, मिल आपत आप। . अनुक्रम कर शिवपद लहैं, नेम सकल हनि पाप // 10 // 3 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा तुम विन मैं व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन / जन्म जरा मेरी हरो, करी मोहि स्वाधीन // 11 // पतित बहुत पावन किये, गिनती कौन करेव / अंजनसे तारे प्रभु, जय जय जय जिनदेव / / 12 / / थकी नाव भवदधि विषै तुम प्रभु पार करेय / खेवटिया तुम हो प्रभु, जय जय जय जिनदेव / 13 / / राग सहित जगमें रुल्यो, मिले सरागी देव / वीतराग भेट्यो अबै, मेटो राग कुटेर / / 14 // कित निगोद कित नारकी, कित तिथंच अज्ञान / आज धन्य मानुष भयो, पायो जिनवर थान / 15 // तुमको पूजे सुरपति, अहिपति नरपति देव / 'धन्य भाग्य मेरो भयो करन लग्यो तुम सेव / / 16 / अशरणके तुम शरण हो, निराधार आधार / मैं डूबत भवसिंधु में, खेओ लगाओ पार / / 17 / इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान / 'अपनो विरद निहारकै कीजे आप समान // 18 // तुमरी नेक सुदृष्टित, जग उतरत है पार / हा हा डुब्यो जात हो, नेक निहार निकार / 19 / जो मैं कहहूँ और सों तो न मिटे उरभार / मेरी तो तोसौं बनी, तातें करौ पुकार / 20 / / वन्दी पांचो परम गुरु सुर गुरु वन्दत जास : विधन हरन मंगल करन, पुरन परम प्रकाश // 21 // Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 35 चौबीसों जिनपद नमों नमों शारदा माय / शिवमग साधक साधु नमि, रच्यो पाठ सुखदाय // 22 // मंगल मूर्ति परम पद पंच धरों नित ध्यान / हरो अमंगल विश्वका मंगलमय भगवान / 23 // मंगल जिनवर पद नमो मंगल अहंत देव / मंगलकारी सिद्धपद सौ वंदो स्वमेव / 24 // मंगल आचारज मुनि, मंगल गुरु उवजाय / सर्व साधु मंगल करो वंदो मन बच काय // 25 // मंगल सरस्वती मात का मंगल जिनवर धर्म। मगलमय मंगल करो हरो असाता कर्म / 26 / / या विधि मंगल करनेसे जगमें मंगल होत / मंगल 'नाथुराम' यह भवसागर दृढ़ पोत / 27 / / / पुष्पांजलि क्षेपण करे // पूजन प्रारम्भ ॐ जय जय जय / नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु / णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं / णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्यसाहू गं / 1 / / ॐ हीं अनादिमूलमंत्रेभ्यो नमः / (पुष्पांजलि क्षेपण करना) चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलि-पणतो धम्मो मंगलं, / चतारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवली-पण्णत्तो Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा धम्मो लोगुत्तमा, चत्तारि शरणं पन्नज्जामि, अरिहंते शरण पव्वज्जामि, सिद्धे शरणं पव्वज्जामि साहू शरणं पयज्जामि, केवलि-पण्णतं धम्मं शरणं पव्वज्जामि // ॐ नमोऽहंते स्वाहा। (पुष्पांजलि) अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा / ध्यायेत्पच्चनमस्कारं सर्वपापेः प्रमुच्यते / 1 // अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतंऽपि वा / . यः स्मरेत्परमात्मानं स बाह्याभ्यन्तरे शुचिः / / 2 / / अपराजित-मंत्रोऽयं सर्वविघ्न-विनाशनः / मङ्गलेषु च सर्वेषु प्रथमं मङ्गलम् मतः // 3 // एसो पच्च णमोयारो सव्वपावपणासणो / मङ्गलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं // 4 // अहमित्यक्षरं ब्रह्म-वाचकं परमेष्ठिनः / सिद्धचक्रस्य सद्वीजं सर्वतः प्रणमाम्यहं / 5 // कर्माष्टकविनिमुक्त मोक्षलक्ष्मी निकेतनम् / सम्यक्त्वादिगुणोपेतं सिद्धचक्रं नमाम्यहं // 6 // विघ्नौधाः प्रलयम् यान्ति शाकिनी-भूतपन्नगाः / विषं निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे / 7 // (यहां पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिये ) (यदि अवकाश हो तो यहां पर सहस्रनाम पढ़कर दश अर्घ देना चाहिये नहीं तो नीचे लिखा श्लोक पढकर एक अर्ध चढावें) उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरू-सुदीप-सुधूप-फलार्घकैः / धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे 8|| ॐ ह्रीं श्री भगवज्जिन-सहस्रनामेभ्यो अर्घ निर्वपामोति स्वाहा / Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [37 // स्वस्ति मंगल / / श्रीमज्जिनेन्द्रमभिवंद्य जगत्त्रयेशं, स्याद्वाद-नायकमनंतचतुष्टयार्हम् / श्रीमलसङ्ग-सुदृशां-सुकृतकहेतुजैनेंद्र-यज्ञ-विधि रेष मयाऽभ्यधायि // 9 // स्वस्ति त्रिलोकगुरवे जिनपुङ्गवाय, स्वस्ति-स्वभाव-महिमोदय-सुस्थिताय / स्वस्तिप्रकाश सहजो जितद्धड मयाय, स्वस्ति प्रसन्न-ललिताद्भुत वैभवाय // 10 // स्वस्त्युच्छलद्विमल-बोध-सुधाप्लवाय, स्वस्ति स्वभाव-परभावविभासकाय, स्वस्ति त्रिलोक-विततेकचिदुद्गमाय स्वस्ति त्रिकाल-सकलायत विस्तृताय // 11 // द्रव्यस्य शुद्धिमधिगम्ययथानरूपं, भावस्य शुद्धिमधिकामधिगंतुकामः / आलंबनानि विधिधान्यवलंब्यवल्गन्, भूतार्थयज्ञ-पुरुषस्य करोमि यज्ञ // 15 // अर्हत्पुराण-पुरुषोत्तम पावनानि, वस्तून्यनूनमखिलान्ययमेक एव / अस्मिन् ज्वलद्विमलकेवल-बोधवह्नो, पुण्यं समग्रमह मेकमना जुहोमि / 13 // ॐ ह्रीं विविधयज्ञ-प्रतिज्ञानाय जिनप्रतिमाने पुष्पांजलि क्षिपेत् / श्री वृषभो नमः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अजितः / श्री संभवः सस्ति, स्वस्ति श्री अभिनन्दनः / श्री सुमतिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री पद्मप्रभः / श्री सुपार्श्वः स्वस्ति, स्वस्ति श्री चन्द्रप्रमः / श्री पुष्पदन्तः स्वस्ति, स्वस्ति श्री शीतलः / श्री श्रेयांसः स्वस्ति, स्वस्ति श्री वासुपूज्यः / Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 ] नित्य नियम पूजा श्री विमलः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अनन्तः / श्री धर्मः स्वस्ति, स्वस्ति श्री शांन्तिः / श्री कुन्थुः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अरनाथः / श्री मल्लिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री मुनिसुव्रतः / श्री नमिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री नेमिनाथः / श्री पार्श्वः स्वस्ति, स्वस्ति श्री वर्धमानः / (पुष्पांजलि क्षेपण करें) नित्याप्रकम्पाद्भुत-केवलोधाः स्फुरन्मन पर्यय-शुद्धबोधाः / (यहांसे प्रत्येक श्लोकके अन्तमें पुपांजलि क्षेपण करना चाहिये।) कोष्ठस्थ-धान्योपममेकबीजं संभिन्न-संश्रोत-पदानुसारि / चतुर्विधं बुद्धिवलं दधानाः स्वस्ति क्रियातुः परमर्षयो नः / 2. संस्पर्शनं संश्रवणं च दूरा दास्वादनाघ्राणविलोकनानि / दिव्यान् मतिज्ञानवलाद्वहंतः स्वस्ति क्रियासु परमर्षयो नः / 3 प्रज्ञा-प्रधानाः श्रमणाः समृद्धाः प्रत्येकबुद्धाः दशसर्वपूर्वैः / प्रवादिनोऽष्टांगनिमित्तविज्ञाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः४ जङ्घावलि-श्रेणि-फलाम्बु-तंतु-प्रसूनबीजांकुर- चारगाह्वाः / नभोऽङ्गण-स्वैर-विहारिणश्च स्वस्ति क्रियासु परमर्षयो नः 5 अणिम्नि दक्षाकुशला महिम्नि लघिम्नि शक्ताःकृतिनोगरिम्णि मनोवपुर्वाग्वलिनश्च नित्यं स्वस्ति क्रियासु परमर्षयो नः 6 तथाऽप्रतीघातगुण प्रधानाः स्वस्ति क्रियासु परमर्षयो नः / Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा. दीप्तं च तप्तं च तथा महोयं घोरं तपो घोरपराक्रमस्थाः / ब्रह्मापरं घोरगणाश्चरंतः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः। 8. आमर्षसौंषधयस्तथाशीविषा विषा दृष्टविषंविषाश्च / सखिल्ल-विड्-जल्लमलौषधीशाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो न: थीरं स्त्रवन्तोऽत्र घृतं स्त्रवन्तो मधुरस्त्रवंतोऽप्यमृतं स्त्रवन्तः / अक्षीणसंवासमहानशाश्च स्वस्ति क्रियासुः पामर्षयो नः / 10. (इति पुष्पांजलि) [इति परम-ऋषिस्वस्ति मगल विधान] देव-शास्त्रा-गुरु-पूजा (भाषा) ( कवि द्यानतराय कृत) अडिल्ल छंद-प्रथम देव अरिहन्त सुश्रुत सिद्धांतजू / गुरु निग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पंथजू / / तीन रतन जग माहिं सो ये भवि ध्याइये / तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये // 1 // दोहा-पूजों पद अरिहन्तके, पूजों गुरुपद सार / पूजों देवी सरस्वती, नित प्रति अष्ट प्रकार / / ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं / / ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः स्थापनम् / ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / // गीता छन्द / सरपति उरगनरनाथ तिनकर, वन्दनीक सप प्रभा / अति शोभनीक सुवणे उज्जवल देख छबि मोहित सभा / वर नीर क्षीरसमुद्र घट भरि, अग्र तसु बहुविधि न। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु, निम्रन्थ नित पूजा र Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4.] नित्य नियम पूजा दोहा-मलिन बस्तु हर लेत सब, जल स्वभाव मल छीन / ___जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन // 1 // ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरुभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्ग। जे त्रिजग उदर मंझार प्राणी, तपत अति दुद्धर खरे / तिन अहितरन सवचन जिनके, परम शीतलता भरे / तसु भ्रमर लोभित घ्राण पावन, सरस चंदन घसि सचूं। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू // दोहा-चन्दन शीतलता करे, तपत वस्तु परवीन / ___जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु बीन // 2 // ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरुभ्यो संसार-ताप विनाशनाय चंदनं निर्ग० / यह भवसमुद्र अपार तारणके निमित्त सविधि ठई। अती दृढ परमपावन जथारथ, भक्ति वर नौका सही। उज्वल अखंडित सालि तंदुल, पुज धरि त्रयगुण ज~। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू। दोहा-तंदुल सालि सुगंध अति, परम अखंडित बीन / जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन // 3 // ॐ ह्रीं देव शास्त्र गुरुभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्व० स्वाहा / / जे विनयवंत सुभव्य उर, अम्बुज प्रकाशन मान है। जे एक मुख चारित्र भाषित, त्रिजग माहिं प्रधान है। लहि कुंद कमलादिक पहुँप, भव भव कुवेदन सों वचू। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [41 दोहा-विविध भांति परिमल सुमन, भ्रमर जास आधीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन // 4 // ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व. स्वाहा। अति सबल मद कंदर्प जाको, क्षुधा उरग अमान है। दुस्सह भयानक तासु नाशनको, सु गरुड़ समान है। उत्तम छहों रस युक्त नित, नैवेधकरि घृत में पचू / अरिहन्त श्रत सिद्धांत गुरु निग्रंथ नित पूजा रचू / / दोहा-नाना विधि संयुक्तरस, व्यज्जन सरस नवीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन / 5 / / ॐ ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो क्षधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। जे त्रिजग उद्यम नाश किने, मोहतिमिर महावली / तिहि कर्मघाती ज्ञानदीप, प्रकाश ज्योति प्रभावली // इह भांति दीप प्रजाल, कंचनके सभाजनमें खचू / अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू॥ दोहा-स्वपर प्रकाशक ज्योति अति दीपक तमकरि हीन / जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन / 6 // ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्ग. स्वाहा जो कर्म-इंधन दहन अग्नि, समूह सम उद्धत लसे / वर धूप तासु सुगंध ताकरि, सकल परिमलता हंसे / / इह भांति धूप चढाय नित, भवज्वलन माहीं नहिं पचू। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 ] नित्य नियम पूजा दोहा-अग्नि माहिं परिमल दहन, चन्दनाद गुणलीन / ____जासों पूजी परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन / 7 / ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व स्वाहा / / 7 / / लोचन तु रसना घ्राण उर, उत्साहके करतार है / मो न उपमा जाय वरणी, सकल फल गुणसार हैं / सो फल चढ़ावत अर्थपूरन, परम अमृतरस सचू / अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निर्ग्रन्थ नित पूजा रचू / / दोहा-जे प्रधान फलविष, पञ्चकरण रस लीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन // 8 // ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० स्वाहा / 80 जल परम उज्जवल गन्ध अक्षत, पुष्प चरु दीपक धरु / वर धूप निर्मल फल विविध, बहु जनमके पातक हरू / / इह भांति अर्घ चढाय नित भवि, करत शिवपंकति मच। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निर्गन्थ नित पूजा रच। दोहा-सुविधी अर्घ संजोयके अति उछाह मन कीन / जासों पूजों परमपर देव शास्त्र गुरु तीन / 9 / / ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो अनयंपद प्राप्तये अर्घ निर्ग. स्वाहा / / 9 / // अथ जयमाला दोहा / / देव शास्त्र गुरु रतन शुभ तीन रतन करतार / भिन्न भिन्न कहूँ आरती अल्प सुगुण विस्तार // 1 // // पद्धरि छन्द // चौ कर्मसु त्रेसठ प्रकृति नाशि, जीते अष्टादश दोषराशि। जे परमसुगुण है अनंत धीर, कहवतके छयालिस गुण गंभीर / / Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [43, शुभ समवशरण शोभा अपार,शत इन्द्र नमत कर शीसधार / देवाधिदेव अरिहंत देव, वन्दों मन-वच-तनकरि सुसेव / / 3 // जिनकी धुनि ह ओंकार रूप, निर अक्षरमय महिमा अनप / दशअष्ट महाभाषा समेत, लघुभाषा सात शतक सुचेत // 4 // सो स्याद्वादमय सप्त भङ्ग गणधर गूथे बारह सु अङ्ग / रवि शशि न हरै सो तम हराय सोशास्त्र नमो बहुप्रीति ल्यायः गुरु आचारज उवझाय साध,तन नगन रतनत्रय निधि अगाध संसार देह वैराग्य धार, निरवांछि तपै शिवपद निहार 6 // गुण छत्तिस पच्चिस आठ बीस, भवतारण-तरन जिहाज ईस। गुरुकी महिमा वरनी न जाय, गुरुनाम जपों मन-वचन-काय 7 सोरठा कीजै शक्ति प्रमान, शक्ति विना श्रद्धा धरै / 'द्यानत' श्रद्धावान, अजर अमरपद भोगवे / / * ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो: जयमाला पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा / बीस तीर्थङ्कर भाषा पूजा दोहा- दीप अढाई मेरू पन, अरू तीर्थंकर बीस / तिन सबकी पूजा करूँ, मनवचतन धरि शीस / / ह्रीं विद्यमानविंशति तीर्थङ्कराः अत्र अवतर२ संवौषट् स्थापन ह्रीं विद्यमानविंशति तीर्थङ्कराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं विद्यमानवितितीर्थङ्कराः अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् . Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र वंद्य, पद निर्मल धारि / शोभनीक संसार, सारगुण हैं अविकारी // शीरोदधि सम नीरशों, (हो) पूजों तषानिवार / सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मंझार / / श्री जिनराज हो भवतारण तरण जहाज // 1 // ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यःजन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. इस पूजामें बीस पुज करना हो तो, इस प्रकार मंत्र बोलना ॐ ह्रीं सीमंधर-युगमंधर बाहु-सुबाहु--संजातक-स्वयंप्रभऋषभानन-अनंतवीर्य-सूरप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चंद्राननभद्रबाहु-भुजङ्गम-ईश्वर नेमिप्रभ वोरसेन-महाभद्र-देवयशोऽजितवीर्येति विंशतिविद्यमानतोर्थङ्करेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति / तीन लोकके जीव, पाप आताप सताये / तिनको साता दाता, शीतल वचन सुहाये // बावन चंदन सों जजू. (हो) भ्रमण तपत निरवार / सीमंधर ही विद्यमानविंशतितीर्थङ्करेभ्यो भवताप-विनाशनाय चंदनं नि. यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी। तात तारे बड़ी भक्ति नौका जगनामी / तंदुल अमल सुगषसों (हो) पूजों तुम गुगतार / सीमंधर आ. ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्ग० भविक-सरोज विकास, निंद्य-तमहर-रवि से हो। जति श्रावक आचार, कथनको तुमही बड़े हो / फुल सुवास अनेकसों (हो) पूजों मदन प्रहार / सीमंधर 4 ॐ ह्रीं विद्यमातविंशतितोथंकरेभ्यो कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निक Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 नित्य नियम पूजा काम नाग विष धाम, नाशको गरूड कहे हो। क्षुधा महादव-ज्वाल, तास को मेघ लहे हो।।। नेवज बहु घृत मिष्टसो (हो) पूजों भूख विडार / सीम. // 5 ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेचं नि. उद्यम होन न देत सर्व जग माहिं भरयो है। मोह महातम घोर. नाश परकाश करयो हैं। पूजों दीप प्रकाशसों (हो) ज्ञान-ज्योति करतार / सीम. 6 ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपंनि कर्म आठ सब काठ भार विस्तार निहारा / ध्यान अगनि कर प्रकट सर्व किनो निरवारा / / धूप अनुपम खेवते (हो) दुःख जलै निरधार / सीम. // 7. ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व० // 7 मिथ्यावादी दुष्ट लोभऽहंकार भरे हैं / सबको छिन में जीत जैन के मेरू खरे हैं। फल अति उत्तमसों जजो (हो) वांछित फल दातार / सी.८ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि / जल फल आठों दरव अरघ कर प्रिति धरी है। गणधर इन्द्रनहु तै थुति पूरी न करी है // द्यानत, सेवक जानके (ही) जग” लेहु निकार / / सीम.९ ह्रीं विद्यमानविशतितीर्थकरेग्योऽनर्घ्य पदप्राप्तये अर्घ्य निर्व०।९ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा // अथ जयमाला // सोरठा-ज्ञान सुधाकर चन्द, भविक--खेत-हित मेघ हो / भ्रम-तम भान अमन्द, तीर्थङ्कर बीसों नमों / / // चौपाई 16 मात्रा // सीमन्धर सीमन्धर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामो / 'बाहु बाहु जिन जगजन तारे. करम सुबाहु बाहुबल दारे // 1 जात सुजात सुकेवल--ज्ञानं, स्वयंप्रभु प्रभु स्वयं प्रधानं / ऋषभानन ऋषि भानन दोषं अनन्त वीरज वीरज कोषं / / 2 सौरी प्रभ सौरीगणमालं, सुगग विशाल विशाल दयालं / वज्रधार भव-गिरिवज्जा हैं चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं / 3 // भद्रबाहु भद्रनिके करता, श्री भुजङ्गभुजङ्गम हरता / ईश्वर सबके ईश्वः छाजै, नेमिप्रभु जस नेमि विराजे ||4|| वीरसेन वीरं जग जानें महाभद्र महाभद्र बखानैं / नमों जसोधर जसधरकारो नमों अजित बोरज बलबारो॥५ धनुष पांचसै काय विराजे आयु कोडिपुरव सब छाजै। समवसरण शोभित जिनराजा, भव-जलतारन तरन जिहाजा 6 सम्यक रत्नत्रयनिधिदानी, लोकालोक-प्रकाशक ज्ञानी / शतइन्द्रनिकरि वंदित सोहैं, सुरनर पशु सबके मन मौहै / 7 दोहा-तुमकों पुजै वन्दना, करे धन्य नर सोय / 'द्यानत' श्रद्धा मन धरै सो भो धर्मी होय // ॐहों विद्यमानविशति तीर्थकरेभ्यो जयमाला पूर्णानं नि / // इत्याशीर्वादः // Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [47 नित्य नियम पूजा श्री देव-शास्त्र गुरु विदेह क्षेत्रस्थ श्री विद्यमान बीस तीर्थकर तथा श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठोकी दोहा-देव-शास्त्र गुरु नमन करि, बीसतीर्थकर ध्याय / सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूचित हुलसाय / / ॐ ह्रीं श्री देव शास्त्र-गुरुसमूह ! श्री विद्यमान विशति तीर्थंकर समूह ! श्री अनन्तानंत ! सिद्धपरमेष्ठी समूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव भषट् सन्निधिकरणं / अष्टकं अनादिकालसे जगमें स्वामी जलसे शुचिताको माना / शुद्ध निजातम सम्यक, रत्नत्रय निधिको नहीं पहिचाना / / अब निर्मल रत्नत्रय जल ले, देवशास्त्र गुरुको ध्याऊं। भव आताप मिटावनकी, निजमें हो क्षमता समता है। अनजाने अबतक मैंने, परमें की झठी ममता है।। चन्दन सम शीतलता पाने श्री देवशास्त्र गरुको ध्याऊं / विद्यमान श्री बोस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभुके गुग गाऊं।चंदनं।२ अक्षय पदके बिना फिरा जगकी लख चौरासी योनीमें / अष्ट कर्मके नाश करनको, अक्षत तुम ढिग लाया मैं / अक्षय निधि निजकी पाने अब देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं अक्षतं / 3 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48] नित्य नियम पूजा पुष्प सुगन्धीसे आतमने, शील स्वभाव नशाया है। मन्मथ बाणोंसे बिंद करके चहुँ गति दुःख उपजाया है। स्थिरता निजमें पानेको, श्री देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान थी बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं ।पुष्पं / 4. पट रस मिश्रित भोजनसे, ये भूख न मेरी शान्त हुई / आतम रस अनुपम चखनेसे, इन्द्रिय मन इच्छा शमन हुई / भूख सर्वथा मेटनको श्री देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं नैवेद्य५: जड़ दीप विनश्वरको अबतक, समझा था मैंने उजियारा / निज गुण दरशायक ज्ञान दीपसे, मिटा मोहका अंधियारा। ये दीप समर्पित करके मैं, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं / दीपं / 6. ये धूप अनलमें खेने से कर्मोको नहीं उलायेगी / निजमें निजकी शक्ति ज्वाला, जो राग द्वेष नशायेगी / उस शक्तिदहन प्रकटानेको, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं। धूपं 7 पिस्ता बदाम श्रीफल लवंग, चरणन तुम ढिंग मैं ले आया। आतमरस भीने निजगुण फल, मम मन अब उनमें ललचाया : अब मोक्ष महाफल पानेको श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊ / फलं 8 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 49 अष्टम वसुधा पानेको करमें ये आठों द्रव्य लिये / सहज शद्ध स्वाभाविकतासे निजमें निज गुण प्रगट किये। ये अर्घ समरण करके मैं, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊ। अर्घ / 9 // जयमाला // नशे घातिया कर्म अर्हन्त देवा, करें सुरअसुर नर मुनि नित्य सेवा। दरश जान सुख बल अनंतके स्वामी, छियालीस गुणयुक्त महाईश नामी। तेरी दिव्य वाणी सदा भव्य मानी, महा मोह विध्वंसिनी मोक्षदानी / अनेकान्त मय द्वादशांगी बखानी, नमो लोक माता श्री जैन वाणी.।। विरागी अचारज उवज्झाय साधु दरश, ज्ञान भंडार समता अराधू / नगन वेशधारी सु एका बिहारी निजानन्द मंडित मुकति पथ प्रचारी / विदेह क्षेत्रमें तीर्थंकर बीस राजे, विरहमान बन्दू सभी पाप भाजें / नम सिद्ध निर्भया निरामय सुधामी अनाकुल समाधान सहजाभिरामी। छन्द / देवशास्त्र गुरु बीस तीर्थंकर, सिद्ध हृदय बिच धरले रे / पूजन ध्यान गान गुण करके, भवसागर जिय तरले रे // ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरुभ्यः श्री विद्यमान-विंशति तीर्थंकरेभ्यः अनन्तानन्त-सिद्ध परमेष्ठिभ्यः जयमाला पूर्णाज़ निर्वपामीति / Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '50 ] नित्य नियम पूजा तीस चौबीसीका अर्घ द्रव्य आठों जु लीना है, अर्घ करमें नवीना है। पूजता पाप छीना है, 'भानुमल' जोर कीना है / दीप अढाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता विषे छाजे / सात सत बीस जिनराजे, पूजतां पाप सब भाजै / / ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत दश क्षेत्रके विष तीस चौबीसीके सातसौ बीस जिनबिम्बेभ्योऽयं निर्मपामीति स्वाहा। विद्यमान बीस तीर्थंकरोका अर्थ उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरू-सुदीप-सुधूप-फलार्धकः / "धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे :1|| ॐ ह्रीं सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजातक--स्वयंप्रभऋषभानन-अनंतवीर्य-सूरप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चंद्रानन-- भद्रबाहु-भुजङ्गम-ईश्वर नेमिप्रभ वोरसेन-महाभद्र-देवयशोऽजितवीर्यति विशति-विद्यमान तीर्थङ्करेभ्योऽध्यं निर्वपामीति / कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्यालयोके अर्ध कृत्याकृत्रिम-चारु-चैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान् / वन्दे भावनव्यंतरान् द्युतिबरान् स्वर्गामरावासगान् / सद् गन्धाक्षत-पुष्पदाम चरुकैः, स दीप-धूपैः फलैंः / द्रव्यैर्नीरमुखैयंजामि सततं दुष्कर्माणां शान्तये / 15 ॐ हीं कृतिमाकृत्रिमचैत्यालय-संबंधिजिनबिबेभ्यो अर्घ निर्व। वर्षेषु वर्षान्तर पर्वतेषु नन्दीश्वरे यानि च मंदरेषु / थावंति चैत्यायतनानि लोके, सर्वाणि बन्दे जिनपुगवानां 2 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [51 नित्य नियम पूजा "अवनि-तल-गतानां कृतिमाकृत्रिमाणां, वन-भवन-गतानां दिव्य वैमानिकानाम् / यह मनुज-कृतानां देवराजार्चितानां. जिनवर-निलयनां भावतोऽहं स्मरामि : श। जम्बू-घातकी-पुष्करार्ध-वसुधा-क्षेत्र-त्रये ये भवाः चन्द्रांभोज-शिखंडि-कण्ठ-कनक-त्रावृड्घनाभाजिनाः / सम्यग्ज्ञान-चरित्र-लक्षण धरा दग्धाष्ट-कर्मेन्धनाः, भूतानागत-वर्तमान समये तेभ्यो जिनेभ्यो नमः // 4 // श्रीमन्मेरौ कुलाद्रौ रजतगिरिवरे शाल्मलौ जम्बूवृक्षे, वक्षारे चैत्यवृक्षे रतिकर रूचिके कुण्डले मानुषांके / इष्वाकारेऽजनाद्रौ दधिमुख-शिखरे व्यन्तरे स्वर्गलोके, ज्योतिर्लोकेऽभिवन्दे भवन-महितले यानि चैत्यालयानि // 5 द्वौ कुन्देकुन्दु-तुषार-हार-धवलौ द्वाविन्द्र-नील-प्रभौ। द्वौ बन्धूक-सम-प्रभौ जिन वृषौ द्वौ च प्रियंगु प्रभौ / शेषाः षोडश-जन्ममृत्युरहिताः सन्तप्त हेम-प्रमाः ___ स्ते संज्ञानदिवाकराः सुरनुताः सिद्धि प्रयच्छन्तु नः // णवकोडिसया पणवीसा तेपण लक्खाण सहसत्ताइसा / नी सेते अडियाला, जिण पडिमा किट्टिमा वन्दे / / ॐ ह्रीं त्रिलोक-सम्बन्धि कृत्रिम अकृत्रिमचैत्यालयेभ्यो अनि इच्छामिभंते ! चेइयभक्ति काओसग्गो कओं तस्सालोचेउं अहलोय : तिरियलोय-उड्ढलोयम्मि किट्टिमाकिट्टिमाणि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 / नित्य नियम पूजा जाणि जिनचैइयाणि ताणि सव्वाणि तीसु वि लोयेसु भवणवासिय-बाण-विन्तर-जोइसिय-कप्पवासियत्ति चउविहा देवाः सपरिवारा दिव्बेण गंधेण, दिव्येण, फुफ्फेग दिव्वेण-धूवेण दिव्वेण चुण्णण, दिब्वेण, वासेण, दिव्वेण ह्नाणेण णिच्चकालं अच्चन्ति पुज्जन्ति वंदन्ति णमस्संति / अहमवि इह संतो तत्थ संताइ णिच्चकालं अच्चेमि पुज्जेमि वन्दामि णमस्सामि! दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाधिमरणं जिनगुगसंपत्ती होउ मज्झं // ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् ) अथ पौर्वाहिक* देववन्दनायां पूर्वाचार्यानक्रमेण सकल. कर्म क्षयार्थ भाव पूजा नंदना स्तव समेतं श्री सिद्धभक्तिकार्योत्सर्ग करोम्हम् / ताव कायं पावकम्मं दुच्चरियं बोस्सरामि / णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं / णमो उबज्झायाणं, गमो लोए सव्वसाहूणं // (यहांपर नौ बार णमोकार मंत्रका जाप्य करना चाहिये / अथ सिद्ध पूजा द्रव्याष्टक ऊर्ध्वाघोरयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितं। वर्गापूरितदिग्गताम्बुज-दलं तत्सन्धि-तत्त्वान्वितं / / * नोट-अगर दोपहरको पूजन करें तो पौवाहिकके स्थान पर मध्यालिक और सायंकाल करें तो अपरालिक बोलना चाहिये। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [53. अन्त-पत्र-तटेष्वनाहतयुतं ह्रींकार-संवेष्टितं / देवं ध्यायति यः स मुक्ति-सुभगो वैरीम-कण्ठीरवः / / ॐ ह्रीं श्री सिद्धचकाधिपते! सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते ! सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते ! 'सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / निरस्त-कर्म सम्बन्धं, सूक्ष्म नित्यं निरामयम् / वन्देऽहं परमात्मानममूर्चमनुपद्रवम् / / 1 / / (पुष्पांजलिं) जिन त्यागियोंको बिना द्रव्य चढाये भावोंके द्रव्योंसे ही पूजा करना हो वे आगेसे भावाष्टकको बोलकर करे / अष्टद्रव्यसे पूजा करनेवालोंको भाव पूजाका अष्टक कदापि नहीं बोलना चाहिये। सिद्धौ निवासमनगं परमात्म गम्यं, हान्यादि-भाव रहितं भव-वीत-कायं / रेवापगा-वरसरो-यमुनोद्भवानां नीरैर्यजे कलशगैर्वर-सिद्धचक्रम् / 1 ह्री सिद्ध चक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं। आनंद-कन्द-जनक-धन-कर्ममुक्त, सम्यक्त्व-शर्म-गरिम जननाति वीतं / सौरभ्य-वासित-भुनं हरि-चन्दनानां, गन्धैर्यजे परिमलैनर-सिद्धचक्रम् // 2 // ___ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने संसार-तापविनाशनाय चंदनं निर्ग० / Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 ] नित्य नियम पूजा सर्वावगाहन-गुणं सुसमाधि-निष्ठ सिद्ध स्वरूप-नि पुर्ण कमलं विशालं / सौगन्ध्य--शालि-वनशालि--वराक्षतानां, पुजैर्य जे शशि--निभँवर-सिद्ध वकम् / / 3 / में हों सिद्व वक्राधिपतये सिद्ध परमेष्ठिने अक्षपपद प्राप्तये अक्षतं / नित्यं स्वदेह-परिमाणमनादि-संज्ञ, द्रव्यानपेक्षमृतं मरणाद्यतीतम् / मन्दार-कुन्द-कमलादि-वनस्पतींनां, पुष्पैर्यजे शुभतमर्वर-सिद्धचक्रम् / / 4 / / ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं० ऊर्ध्व-स्वभाव-गमनं सुमनोव्यपेतं, ब्रह्मादि-बीज-सहितं गगनावभासम् / क्षीरान-साज्य वटकै रस-पूर्ण-गर्भ-नित्यं यजे चरुवरैर्वर, सिद्ध-चक्रम् // 5 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं. आतक-शोक-भय रोग-मद-प्रशातं, निर्द्वन्द्वभाव-धरणं महिमानिवेशं / कपूर-वर्ति-बहुभिः कनकावदातर-दीपर्यजे रूचिवरैवेर, सिद्धचक्रम् / 6 / / ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतयेसिद्धपरमेष्ठिने मोहांधकार विनाशनाय दीपं पश्यन्समस्त भुवन युगपनितांतं, त्रैकाल्य-वस्तु-विषये निविडप्रदीपम् / सद्रव्य-गंध-घनसार-विमिश्रितानां, धृपेयजे परिमलैर्वर सिद्धचक्रम् // 7 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये मिद्धपरमेष्ठिने अष्टकर्मदहनाय धूपं नि० सिद्धासुराधिपति-यक्ष-नरेंद्र-चक्रे-ध्येयं शिवं सकल-भव्य जनैः सुनंद्यम् / नारंगिपुग-कदली फल-नारिकेलः, सोऽहं यजे वरफलेवर सिद्धचक्रम् // 8 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोक्षफलप्राप्तये फलं नि: Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [55. नित्य नियम पूजा गंधाढ्य सुपयो मधुव्रत-गणैः संगं वरं चंदनम् / पुष्पौधं विमलं सदक्षत-चयं रम्यं चरु दीपकम् / / चूपं गंधयुतं ददामि विविधं श्रेष्ठ फलं लब्धये / सिद्धानां युगपत्क्रमाय विमलं सेनोत्तरं वांछितं 9 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्ध्या ज्ञानोपयोग-विमलं विशदात्मनपं, सूक्ष्म-स्वभाव-परमं यदनंतवीर्य : कौंध-कक्ष दहन-सुख शस्य बीजं वन्दे सदा निरुपम वर सिद्धचक्रम् / 10 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने महालुं निर्व. स्वाहा। त्रैलोक्येश्वर-वंदनीय चरणाः प्रापुः श्रियं शाश्वता / यानाराध्य निरुद्ध चण्ड-मनसः संतोऽपि तीर्थङ्कराः / / मत्सम्यक्त्व विबाध-वीर्य-विशदाऽब्याबाधताधैगुण / युक्तांस्तादिनिह तोष्टवीमि सवतं सिद्धान् विशुद्धोदयान् / / (पुष्पांजलि) // अथ जयमाला // विराग सनातन शांत निरंश निरामय निर्भय निर्मल हंस सुधाम बिबोंध निधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 1 विदूरित संसृति-भाव निरंग, समामृत-पूरित देव विसंग। अबंध कषायविहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह 2 निवारित-दुष्कृत कर्मविपाश, सहामल-केवल केलि-निवास / भवोदधिपारग शांत विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 3 अनंत सुखामृत सागर धीर, कलंक-रजोमल भूरि-समीर / विखंडितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह।४ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 ] नित्य नियम पूजा विकार-विवर्जित-तर्जित-शोक, विबोध-सुनेत्र-विलोकित-लोक विहोर विराव विरंग विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह 5 रजोमलखेदविमुक्त विगात्र, निरन्तर नित्य सुखामृतपात्र / सुदर्शनराजित नाथ विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 6 नरभर वन्दित निर्मल-भाव अनंत-मुनीश्वर-पृज्य विहाव / सदोदय विश्व महेश विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / विदम्भ वितृष्ण विदोष विनिद्र, परापर शंकर सार वितिन्द्र विकोप विरूप विशंक विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 8 जरामरणोज्झित वीतविहार, विचिंतित निर्मल निरहंकार। अचिंत्य-चरित्र विदर्प विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह 9 विवर्ण विगंध विमान विलोभ, विमाय विकाय विशब्द विशोभ अनाकुल केवल सर्व विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 10 (घत्ता)-असमय-समयसारं चारुचैतन्यचिह्न पर-परणति-मुक्तं पद्मनन्दीन्द्र-वंद्य / निखिल-गुण-निकेतं सिद्धचक्र विशुद्ध स्मरति नमति यो वा स्तौति सोऽभ्येति मुक्तिम् / / 11 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने महाघ / अथाशीर्वादः / अडिल्ल छन्द / अविनाशी अविकारं परम रस-धाम हों। समाधान सर्वज्ञ सहज अभिराम हो / शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनन्त हो, जगत शिरोमणि सिद्ध सदा जयवन्त हो / 1 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 57 ध्यान अग्निकर कर्म कलंक सबै दहे, नित्य निरंजन देव सरूपी हूं रहें। ज्ञायकके आकार ममत्व निवारिक, ___ सो परमातम सिद्ध नम् सिर नायकै // 2 // दोहा-अविचल ज्ञान-प्रकाशतै, गुण अनन्तकी खान / ध्यान धरै सो पाइये, परम सिद्ध भगवान // अविनाशी आनंदमय, गुण पूरण भगवान / शक्ति हिये परमात्मा, सकल पदारथ ज्ञान / / 3 / / ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलिं क्षिपेत् / सिद्ध पूजाका भावाष्टक निज-मनो-मणि-भाजन-भारया,सम-रसैक, सुधा रस-धारया। सकल-बोध-कला-रमणीयक, सहज-सिद्धमहं परिपूजये जलं। सहज-कर्म कलंक-विनाशनेरमल भाव-सुवासित-चन्दनः / अनुपमान-गुणावलि-नायक, सहज-सिद्धमहं परिपूजये।चंदनं सहज-भाव-सुनिर्मल तंदुलैः, सकल दोष विशाल-विशोधनैः / अनपरोध सुबोध-निधानकं, सहज-सिद्धमहं परिपूजये ।अक्षतं समयसार-पुष्प सुमालया, सहजकमकरेण विशोधया / परम-योग-वलेन-वशीकृतं, सहज-सिद्धमहं परिपूजये / / पुष्पं अकृत-बोध-सुदिव्य-नैवेद्यकैर्विहित-जाति-जरा-मरणांतकः / निरवधि-प्रचुरात्म गुणालयं, सहज-सिद्धमहं परिपूजये ।नैवेद्य सहज रत्न-रूचि प्रतिदीपकः,रूचिविभूति-तमः प्रविनाशनः / निरवधि-स्वविकास-प्रकाशन ,सहज-शिद्धमहं परिपूजये ।दीपं Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 / नित्य नियम पूजा निज-गुणाक्षय-रूप-सुधूपनैः, स्वगुणघाति-मल-प्रविनाशनः / विशद-बोध सुदीर्घ-सुखात्मक, सहज-सिद्धमहं परिपूजये।धूप परम-भाव-फलावलि-सम्पदा, सहज-भाव-कुभाव विशोधया। निज-गुणा-स्फुरणात्मनिर जनं, पहज सिद्धमहं परिपूजये / फलं नेत्रोन्मीलि-विकास-भाव-निय हैरत्यन्न ब.धाय वै। वागंधाक्षत-पुष्प-दाम-चरकः सदीप-धूपैः फलः / / यश्चितामणी-शुद्ध-भाव-परम-ज्ञाना मकैरर्चयेत / सिद्ध स्वादुमगाध-बोधमचलं संचर्ययामो वयं / / 9 / इति / / सिद्ध पजा भाषा ___ अडिल्ल छन्द अष्ट करम करि नष्ट अष्ट गुण पायक अष्टम वसुधा माहिं विराजे जायक ... ऐसे सिद्ध अनन्त महन्त मनायकै / __संवौषट आह्वान करू हरषायकै / ही सिद्ध परमेष्ठिन् ! अत्र अवतर 2 संवौषट् स्थापनं। ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः / ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / छन्द त्रिभंगी। हिमवनगत गंगा आदि अभंगा, तीर्थ उतंगा सरवंगा। आनिय सुरसंगा सलिल सुरंगा, करि मन चंगा भरिभृङ्गा। त्रिभुवनके स्वामी त्रिभुवननामी, अन्तरजामी अभिरामी। शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी सिद्धजजामी सिरनामी // ॐ ह्रीं श्री अनाहतपराक्रमाय सर्वकर्मविनिमुक्ताय सिद्धचकाधिपतये जलं निपामोति स्वाहा / Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [59 हरिचन्दन लायो कपूर मिलायो. बहु महकायो मनभायो / जलसंग घसायो रंगसुहायो, चरण चढ़ायो हरषायो / त्रि.२ ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा // 2 // तन्दुल उजियारे शशिदुतिटारे, कमल प्यारे अनियारे। तुषखंड निकारे जलसु पखारे, पुज तुम्हारे ढिंग धारे ।त्रि.३. ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा / सुरतस्की बारी, प्रतिविहारी किरिया प्यारी गुलजारी। भरि कंचन थारी फलसंबारी, तुम पद धारी अतिसारी त्रि.४ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये पुष्प निर्वपामीति स्वाहा // 4 // पकवान निबाजे, वाद विराजे, अमृत लाजे, क्षुत भाजे / बहु मोदक छाजे, घेवर खाजे, पूजन काजे करि ताजे / त्रि. 5 ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा / / 5 / / आपापर भासे ज्ञान प्रकाशै, चित्तविकासे तम नाशै / ऐसे विध खासे दीप उजासे, धरि तुम पासे उल्लासे ।त्रि.६ . ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये दीपं निर्वापामीति स्वाहा / / 6 / / चुम्बक अलिमाला गन्धविशाला, चंदनकाला गरूवाला। तस चूर्ण रसाला करि ततकाला, अग्निज्वालामे डाला।त्रि.७ . ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये धूपं निर्भपामोति स्वाहा // 7 // श्रीफल अतिभारा, पिस्ता प्यारा, दाख छुहारा सहकारा। ऋतु ऋतुका न्यारा सत्फलसारा, अपरम्पारा, ले धारा / त्रि.८. ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये फलं निर्भपामीति स्वाहा / / 8 / / जल फल वसुवृन्दा अरघ अमन्दा, जजत अनन्दाके कन्दा। मेटो भवफादा, सबदुखदादा, 'हीराचन्दा' तुम बन्दा त्रि.९ ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये अध्यं निपामीति स्वाहा / Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60] नित्य नियम पूजा // अथ जयमाला // दोहा-ध्यान दहन विधि दारु दहि पायो पद निरवान / पंचभावजुत थिर भये, नमों सिद्ध भगवान // त्रोटक छन्द सुख सम्यग्दर्शन ज्ञान लहा, अगुरु-लघु सूक्ष्म वीर्य महा। अवगाह अबाध अघायक हो, सब सिद्ध नमो सुखदायक हो / असुरेन्द्र सुरेन्द्र नरेन्द्र जजै, भुवनेन्द्र खगेन्द्र गणेन्द्र भजे / जर जामन मरण मिटायक हो सब० // 3 // अमलं अवलं अकलं अकुल, अछलं असलं अरलं अतुल / अरलं सरलं शिवनायक हो सब० // 4 // अजरं अमरं अधरं सुधरं, अडरं अहर अमरं अधर / अपरं असरं सब लायक हो सब० / / 5 / / वृषवृन्द अमन्द न निन्द लहैं, निरदन्द,, अफन्द सुछन्द रहे / नित आनन्दवृन्द बधायक हो, सब० / 6 / / भगवन्त सुसन्त अनन्तगुणी, जयवन्त महन्त नमन्त मुनी। जगजन्तु-तणे अपघायक हो, सब ||7|| अकलंक अटंक शुभंकर हो, निरडंक निशंक शिवकर हो / अभयंकर शंकर क्षायक हो, सब० // 8 // अतरंग अरंग असंग सदा, भवभंग अभंग उतंग सदा / सरवंग अनंग नसायक हो, सब० // 9 // ब्रमण्डजूमंडलमंडन हो, तिहुँ दंडप्रवंड विहण्डन हो / चिद पिंड अखण्ड अकायक हो, सब० // 10 // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा निरभोग सुभोग वियोगहरे, निरजोग अरोग अशोग धरे। भ्रमभंजन तीक्षण सायक हो, सब० // 11 // जय लक्ष्य अलक्ष्य सुलक्ष्यक हो, जय दक्षक पक्षक रक्षक हो। पण अक्ष प्रतक्ष खपायक हो, सब० / 15 // निरभेद अखेद अछेद सही, निरवेद अवेदन वेद नहीं। सबलोक अलोकहि ज्ञायक हो, सब० // 13 // अमलीन अदीन करीन हने, निजलीन अधीन अछीन बने। जमको घनघात बचायक हो, सब० // 14 // न अहार निहार विहार कब, अविकार अपार उदार सबै / जगजीवनके मन भायक हो, सब० // 15 // अप्रमाद अमाद सुस्वादरता, उनमाद विवाद विषादहता। समता रमता अकषायक हो, सब० / 16 // असमंद अधंद अरन्ध भये निरबन्ध अखन्द अगन्ध ठये / अमनं अतनं निरवायक हो, सब० / 17 निरवर्ण अकर्ण उधर्ण वली, दुखहर्ण अशर्ण सुशर्ण भली / बलि मोह की फौज, भगायक हो सब० / / 18 / / परमातम पूरन पायक हो, सब० / 19 / / विररूप चिद्रूप स्वरूपद्युति, जसकूप अनूपम भूप भुती / कृतकृत्य जगत्त्रयनायक हो सब० // 20 // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा "जब इष्ट अभीष्ट विशिष्ट हितु, उतकिष्ट वरिष्ट गरिष्ट मितू / शिवतिष्ठत सर्व सहायक हो, सब० // 21 // जय श्रीधर श्रीकर श्रीवर हो, जय श्रीकर श्रीमर श्रीझा हो। जय ऋद्धि सुसिद्धि बढ़ायक हो, सब० // 22 // - दोहा-सिद्धसुगुण को कहि सके ज्यों विलस्त नभ मान / ___हिराचन्द' तात जजें, करहु सकल कल्याण ||23 // ॐ ह्रीं श्री अनाहतपराक्रमाय सकलकर्मविनि मुक्ताय सिद्धचक्राधिपतये अनध्यं प्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा / (यहां पर विसर्जन भी करना चाहिये ) "अडिल्ल-सिद्धजनें तिनको नहिं आवे आपदा / पुत्र पौत्र धन धान्य लहै सुख सम्पदा / / इन्द्र चन्द्र धरणेन्द्र नरेन्द्र जु होयकै। जा मुक्ति मझार करम सब खोयकै // 24 // ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् / ) समुच्चय पूजा वृषभ अजित संभव अभिनन्दन, सुमति पन सुपार्श्व जिराय। चन्द पहुप शीतल श्रेयांस नमि वासुपूज्य पूजित पुरराय / / विमल अनंत धर्मजश उज्ज्वल,शांति-कुन्यु अर मल्लि मनाय / मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्वप्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय // __ॐ ह्रीं श्री वृषभादि-महावीरांत-चतुर्विंशति-जिन-समूह ! अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा ....................63, मुनिमन सम उज्ज्वल नीर, प्रांसुक गंध भरा / भरि कनक कटोरि धीर दीनों धार धरा / चौबीसों श्रीजिनचन्द आनन्दकन्द सही। __पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही / 1 // ॐ ह्रीं श्री वृषभादि-वीरांतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि: गोशीर कपूर मिलाय, केशर रंगभरी / जिनचरणन देत चढ़ाय, भव आताप हरी। चौबीसो चंदनं। तंदुल सितसोमसमान, सुन्दर अनियारे / मुक्ताफलकी उनमान, पुजधरों प्यारे / चौबीसो अक्षतं // वरकंज कदंब कूरंड. सुमन सगंध भरे / जिन अग्र धरो गुनमंड, काम कलंक हरे / / चौ०। पुष्पं / / मन मोहन मोदक आदि. सुन्दर सद्य बने / रसपूरित प्रासुक स्वाद जजत क्षुधादि हने ।।चौ०। नैवेद्य। तमखंडन दीप जगाय, धारो तुम आगे / सब तिमिर मोह क्षय जाय, ज्ञानकला जागे ।चौ० ॥दीपं / दशगंध हुताशनमांहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूम करम जरि जाहिं तुमपद सेबत हों / चौ० / धूपं / / शुचि पक्व सुरस फल सार सब ऋतुके ल्यायो / देखत दृगमनको प्यार, पूजत सुख पायो * चौ० ||फलं।। जल फल आठों शुचि सार ताको अर्घ करो। तुमको अरपो भवतार, भव तरि मोक्ष वरों ।.चौ० ॥अध्यं / Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64] नित्य नियम पूजा घत्ता // अथ जयमाला // दोहा-श्रीमत तीरथनाथपद, माथ नाय हित हेत ! ____गाऊ गुणमाला अबै, अजर अमरपद देत / 1 // जय भवतमभंजन जनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छ करा। शिवमगपरकाशक अरिगन नाशक, चौबीसों जिनराज वरा / / पद्धरि छन्द नय ऋषभदेव ऋषिगन नमंत, जय अजित जीतवसु अरि तुरन्त जय संभव भवभय करत चूर, जय अभिनन्दन आनन्दपूर / जय सुमति सुमतिदायक दयाल. जय पद्मपद्मदुतितन रसाल। जय जय सुगस भवपासनाश, जय चंद चंद तनदुतिप्रकाश / / जय पुष्पदंत दुतिदंत सेत, जय शीतल शीतलगुण निकेत / जय श्रेयनाथ नुतसहस भुञ्ज, जय वासवपूजित वासुपूज्ज / / जय विमल विमलपद देनहार, जय जय अनंत गुणगन अपार जय धर्म धर्म शिवशर्म देत, जय शांति शांति पुष्टि करेत / जय कुन्थु कुन्थुवादिक रखेय, जय अरजिन वसुअरि क्षयकरेक जय मल्लि मल्ल हत मोह मल्ल, जय मुनिसुव्रत व्रतशल्ल दल्ल: जय नमि नित बासवनुतसपेम, जय नेमनाथ वृषचक्र नेम / जय पारसनाथ अनाथनाथ, जय वर्द्धमान शिवनगर साथ // पत्ता-चौबीस जिनंदा, आनंदकंदा-पापनिकंदा सुखकारी। तिनपदजुगचंदा, उदय अमंदा, वासव वंदा, हितकारी // ॐ ह्रीं वृषभादिचतुविंशतिजिनेभ्यो महायं निर्वपामीति स्वाहा / सोरठा-भुक्ति मुक्ति दातार, चौबीसों जिनराज वर / तिनपद मनवच धार जो पूजे सो शिव लहै // ( इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत् / ) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा निर्वाण क्षेत्र पूजा (कविवर द्यानतरायजी कुत) सोरठा। परम पूज्य चोबीस जिहँ जिहँ थानक शिव गये। सिद्धभूमि निशदीस, मन वच तन पूजा करौं / 1 // ॐ ह्रीं चतुविशति तीर्थकर-निर्वाण क्षेत्राणि / अत्र अवतर अवतर, संवौषट् आह्वाननं / ॐ ह्रीं चतुविशति-तीर्थकर निर्वाण क्षेत्राणि अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ह्रीं चतुर्विशति तीर्थकर-निर्वाण क्षेत्राणि अत्र मम सन्निहितो भक भव वषट् सन्निधिकरणं / / गीता छन्द शुचि क्षीरदधि सम नीर निरमल, कनकझारीमें भरी। संसार पार उतार स्वामी, जोरकर विनती करो // सम्मेदगढ गिरनार चम्पा, पावापुरी कैलाशको। पूजों सदा चौवीसजिन निर्वाण भूमि निवासको / 1 // ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रेभ्यो जलं नि० // 1 // केशर कपुर सुगन्ध चन्दन, सलिल शीतल विस्तरौ / भवतापको सन्ताप मेटो, जोरकर विनती करो। सम्मेद.॥ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति-तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रेभ्यो चन्दनं नि Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा मोती समान अखण्ड तन्दुल अमल आनन्द धरि तरौ / औएन हरो गुण करौ हमको, जोरकर विनती करौ ।सम्मेद३ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति-तीर्थंकर निर्वाण-क्षेत्रोभ्यो अक्षतान् नि।। शभ फुलरास सुवासवासित, खेद सब मनकी हरी। दुखधामकामविनाश मेरो, जोरकर विनती करौ ।सम्मेद.४ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति-तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रोभ्यो पुष्पं निः // 4 // नेवज अनेक प्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं / मम भूख दुखन टार प्रभुजी, जोरकर विनती करी ।सम्मेद.५ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति-तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रोभ्यो नैवेद्य नि० .5 // दीपक प्रकाश उजास उज्जवल, तिमिरसेती नहि डरौ / संशयविमोह विभरम तमहर, जोरकर बिनती करौ सम्मेह.६ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति-तीर्थीक र-निर्वाण-क्षेत्रेभ्यो दीपं नि० / 6 / शुभधूप परम अनूप पावन, भाव पावन आचरौ / सब करमपुज जलाय दीज्यो, जोरकर विनती करौ।सम्मेद.७ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति-तीर्थंकर-निर्वाण क्षेत्रेभ्यो धूप नि० // 7 // बहुफल मंगाय चढाय उत्तम, चारगतिसों निरवरी ! निहच मुकतिफल देहु मोकों जोरकर विनती करौ सम्मेद.८ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति-तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रेभ्यो फलं नि० // 8 // जल गंध अक्षत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरो / द्यानत करो निरभय जगतसों जोरकर विनती करौ सम्मेद. ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति-तीर्थंकर-निर्वाण-क्षेत्रेभ्यो अध्यं नि० // 9 // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * नित्य नियम पूजा [67 // अथ जयमाला / सोरठा / श्री चौवीसजिनेश, गिरिकैलाशादिक नमो / तीरथ महाप्रदेश, महापुरुष निरवाणते / / नमो ऋषभ कैलाशपहारं नेमिनाथ गिरनार निहारं / वासुपूज्य चंपापुर वन्दौ, सन्मति पावापुर अभिनन्दों // 2 // वंदी अजित अजित पद दाता, वंदौ संभव भवदुखघाता। वंदौ अभिनन्दन गुणनायक, वंदी सुमति सुमतिके दायक 3 वंदी पद्ममुकति पदमाकर, वंदी सुपास आशपासाहर / वंदौ चन्द्रप्रभ प्रभुचंदा, वंदी सुविधि सुविधि निधिकंदा॥४ वंदी शीतल अघतपशीतल, वंदौ श्रेयांस श्रेयांस महीतल / वंदो विमल विमल उपयोगी, वंदी अनंत अनंत सुखभोगी।५ वदौ धर्म धर्म-विस्तारा, वंदो शांति शांति मनधारा / वंदी कुन्थु कुन्थु -रखबालं, वंदौ अर अरिहर गुणमालं 6 वंदौ मल्लि काममलचूरन, वंदो मुनिसुव्रत प्रतपूरन / वंदौ नमिजिन नमितसुरासुर, वंदौ पास पास भ्रम जगहर 7 बीसों सिद्ध भूमि जा ऊपर, शिखर सम्मेद महागिरि भूपर। भावसहित वन्दे जो कोई, ताहि नरकपशुगति नहिं होइ।८ नरपति नृपसुरशुक्र कहावे, तिहूँजग भोग भोगि शिव पावै / विघन बिनाशन मंगलकारी, गुणविलास वन्दौ भवतारी / 9 पत्ता-जो तीरथ जावै, पापमिटावै ध्यानै गानै भगति करें। ताको जस कहिये, संपति लहिये, गिरि के गुणको बुधउचरैं। ॐ ह्रीं श्री चतुविशति तीर्थंकर निर्वाण क्षेत्रेभ्यो पूर्णाय नि 10 इत्याशीर्वादः। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68] नित्य नियम पूजा सप्त ऋषि पूजा छप्पय प्रथम नाम श्रीमन्व दुतिय स्वरमन्व ऋषीश्वर / तीसरे मुनि श्रीनिचय सर्व सुन्दर चौथोवर / / पंचम श्रीजयवान विनयलालस षष्ठम भनि / सप्तम जयमित्राख्य सर्व चारित्रधाम गनि // ये सातो चारणऋद्धिधर, करू तास पदथापना। मैं पूजू मनवचकायकरि, जो सुख चाहूं आपना / / ॐ ह्रीं चारण ऋद्धिधर श्री सप्तऋषीश्वर ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / अष्टक-गीता छन्द शुभतीर्थ उद्भव जल अनूपम, मिष्ट शीतल लायकै / भवतृषा कन्द निकन्दकारण शुद्ध घट भरवायकैं। मन्वादिचारणऋद्विधारक, मुनिन की पूजा करु। ता करें पातक हरें सारे सकल आनंद बिस्तरु / / 1 / / ॐ ह्रीं श्रीमन्व, स्वरमन्व, निचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, ऋषिभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा // 1 // श्रीखण्ड कदलीनंद केशर, मंदमंद घिसायकै / तस गंध प्रसारित दिगदिगंतर, भर कटोरी लायकै मन्त्रादिर ॐ ह्रीं मन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी सप्तऋषिभ्यो चन्दनं नि०१२॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [69 "अति धवल अक्षत खंड-वर्जित, मिष्ट राजन भोगके / कलधौत थारा भरत सुन्दर, चुनित शुभ उपयोगके म.३॥ ॐ ह्रीं मन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः अक्षतान् नि० बहु वर्ण सुवरण सुमन आछे अमल कमल गुलाबके / केतकी चंपा चारु मरुआ, चुने निज कर चावके ॥म.४॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋविधारी सप्त-ऋषिभ्यः पुष्पं नि. पकवान नानाभांति चातुर, रचित शुद्ध नये नये। सद मिष्ट लाडू आदिभर बहुँ, पुरटके थारा लये ॥म. 5 / ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्तऋषिभ्यः नैवेद्यं निक कलधौत दीपक जड़ित नाना भरित गोघृत सारसों अति ज्वलित जगमग ज्योतिजाकि तिमिरनाशनहारसों म.६ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः दीपं नि० दिकचक्र गंधित होत जाकर, धूप दश अंगी कही। सो लाय मनवचकाय शुद्ध, लगायकर खेऊं सही ।मन्वादि.७ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः धूपं नि० वरदाख खारक अमित प्यारे, मिष्ट चुष्ट चुनायके / द्रावडी दाडिम चारु पुगी, थाल भर भर लायकै ॥म.॥८ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋद्धिधारी-सप्त ऋषिभ्यः फलं नि० जलगंधअक्षतपुष्पचरुवर, दीप धूप सु लावना। फल ललित आठों द्रव्यमिश्रित, अघ कीजे पावना म.९ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः अध्यं नि Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 ] . नित्य नियम पूजा अथ जयमाला / छन्द त्रिभंगी / वंदू ऋषिराजा, धर्मजहाज, निजपरकाजा करत भले / करुणाके धारी, गगन बिहारी दुःख अपहारी भरम दले // काटत जमफदा भविजन वृन्दा, करत अनंदा चरणनमें / जो पूजे ध्यावै मंगल गावै फेर न आवै भववनमें / / 1 / / पद्धरि छन्द जय श्रीमनु मुनिराजा महंत त्रस थावरकी रक्षा करंत / जय मिथ्यातम नाशक पतंग, करुणारसपूरित अंग अंग। 2. जय श्रीस्वमनु-अकलंकरूप, पद सेव करत नित अमर भूप / जय पंच अक्ष जीते महान, तप तपत देह कंचनसमान / 3 जय निवय सप्त तत्वार्थ भास, तप-रमातनों तनमें प्रकाश / जय विषयरोध संबोध भान, पर परणति नाशन अचल ध्यान जय जयहि सनसुन्दर दयाल, लखि इन्द्रजालवत जगत जाल जय तष्णाहारी रमण राम, निज परणतिमें पायो विराम / / 5 जय आनंदघन कल्याणरूप, कल्याण करत सबको अनूप / जय मद नाशन जयवान देव, निरमद विचरत सब करत सेव।६ जय जयहि विनयलालस अमान, सब शत्रु मित्र जानत समान जय कृषितकाय तपके प्रभाव, छबि छटा उडति आनंददाय / 7 जय मित्र सकल जगके सुमित्र, अनगिनत अधम कीने पवित्र जय चंद्रवदन राजीव-नैन, कबहूँ विकथा बोलत न बैन / 8. जय सातों मुनिवर एक संग, नित गगन गमन करते अभंग। जय आये मथुरापुर मंझार, तहं मरिरोगको अति प्रचार // 9 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा........................[ 71. जय जय तिनचरणनिके प्रसाद सब मरी देवकृत भईवाद / जय लोककरै निर्भय समस्त, हम नमत सदा नित जोड़हस्त / जय ग्रीषमऋतु परवत मंझार, नित करत अतापन योगसार जय तषापरीषह करत जेर, कहुँ रंच चलत नहीं मनसुमेर / 11 जय मूल अठाईस गुणनधार, तर उग्र तपत आनंदकार / जय वर्षाऋतुमें वृक्षतार, तह आत शीतल झेलत समीर / 12 जय शीतकाल चौपट मंझार. कै नदीसरोवर तट विचार / जय निवसत ध्यानारुढ होय रं वकनहि मटकत रोम कोय 13 जय मृतकासन वज्रासनीय, गोदून इत्यादिक गनीय / जय आसन नानाभांति धार, उपसर्ग सहत ममता निवार 14 जय जपत तिहारो नाम कोय, लख पुत्र पौत्र कुलवृद्धि होय / जय भरे लक्ष अतिशय भंडार,दारिद्र तनों दुःख होय छार 15 जय चो अग्नि डाकीन. पीशाच, अरुईति भीतिसब नसतसांच जय तुम सुमरत सुखलहत लोक, सुरपुर नप्रत पद देत धोक छन्द रोला / ये सातों मनिराज, महातप लछमी धारी। परम पूज्य पद धरे, सकल जगके हितकारी। जो मन वच तन शुद्ध होय सेवे औ ध्यानै / सो जन ‘मनरंगलाल' अष्टऋद्धिनको पावै / / 17 / / दोहा-नमन करत चरनन परत अहो गरीबनिवाज / पंच परावर्तननित, निरवारो ऋषिराज // 18 // ह्रीं श्रीमन्वारादि-चारण-ऋद्धिधारी सप्तऋषिभ्यः पूर्णाऱ्या निक Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72) नित्य नियम पूजा सोलहकारण पूजा अडिल्ल-सोलहकारण भाय तीर्थंकर जे भये, हरष इन्द्र अपार मेरु पं ले गये / पूजा करि निज धन्य लख्यो बहु चावसों। हमहूँ षोडशकारण भावै भावसों / ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारणानि अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / अथाष्टक / कंचन झारी निर्मल नीर, पूजों जिनवर गुण गंभीर / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो / दरश-विशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर-पद-दाय / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो / ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धि 1, विनयसम्पन्नता 2, शीलवतेष्वनतिचार 3 अभीक्ष्णज्ञानोपयोग 4, संवेग 5, शक्तितस्त्याग 6, शक्तितस्तप 7, साधु समाधो 8, वैयावृत्यकरण 9, अर्हद्भक्ति 10, आचार्य भक्ति 11, बहुश्रुतभक्ति 12, प्रवचन भक्ति 13, आवश्यकापरिहाणि 14, मार्ग प्रभावना 15, प्रवचन वात्सल्य 16, इतिषोडश कारणेभ्यः नमः // जलं // 1 // चंदन घसों कपूर मिलाय, पूजौं श्री जिनवर के पाय / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।दरश-वि०२॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारणेभ्यः चन्दनं नि० स्वाहा / Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा. [73 तन्दुल धवल मुगन्ध अनूप पूजौं जिनवर तिहुँ जग भूप। परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो // दरशवि०॥३॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यो अक्षतं नि / फुल सुगन्ध मधुप गुजार पूजौं जिनवर जग आधार / परमगुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो दरशवि०॥४॥ ॐ ह्रों दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारणेभ्यः पुष्पं निर्व० / सद नेवज बहु विधि पकवान, पूजौं श्रीजिनवर गुणखान / परमगुरु हो जय जय नाथ परमगुरु हो / दरशवि० // 5 // ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः नैवेद्यं नि० / दीपक ज्योति तिमिर छयकार पूजू श्रीजिन केवल धार / परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥दरशवि० / / 6 // ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः दीपं निर्व० / अगर कपूर गन्ध शुभ खेय, श्री जिनवर आगे महकेय / परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो / / दरशवि०॥७॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः धूपं निर्व० / श्रीफल आदि बहुत फल सार, पजौं जिन वांछितदातार / परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो / दरशवि०।८॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः फलं निर्व० / जल फल आठों द्रव्य चढाय, 'द्यानत' परत करो मनलाय / परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥दरशवि० // 9 // ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः अध्यं निर्व। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 ] नित्य नियम पूजा // अथ जयमाला // दोहा षोडशकारण गुण कर, हरै चतुरगति वास / पापपुण्य सब नाश कै, ज्ञान भानु परकाश / / दरश विशुद्ध धरै जो कोई, ताको आवागमन न होई / विनय महा धारे जो प्राणी, शिव वनिताकी सखी बखानी / / शील सदा दृढ़ जो नर पाले, सौ और नकी आपद टाले / ज्ञानाभ्यास करे मन माहीं, ताके मोह-महातम नाहीं // 3 // जो संवेग-भाव विस्तारै, सुरग-मुक्ति पद आप निहारे / दान देय मन हर्ष बिशेख, इह भव जश परभव सुख देख 4 जो तप तपै खपै अभिलाषा, चूरे कर्म शिखर गुरु भाषा / साधुसमाधि सदा मन लावै, तिहूँ जग भोग भोगि शिवजावै 5 निश दिन वैपावृत्य करैया, सा निश्चय भवनीर तिरैया / जो अरहत-भक्ति मन आनै सो जन विषय कषाय न जाने // 6 जो आचारज भक्ति कर है, सो निरमल आचार धर है। बहुश्रुतवन्त-भक्ति जो करई सो नर संपूरण श्रुत धरइ / / 7 / प्रवचन भक्ति कर जो ज्ञाता, लहैं ज्ञान परमानन्द-दाता / षट् आवश्यक नित जो साधे, सो ही रत्नत्रय आराधे / 8 / धर्म प्रभाव करे जे ज्ञानी, तीन शिव मारग रीति पिछानी। वत्सल अंग सदा जो ध्यावै, सो तीर्थंकर पदवी पावै / 9 / दोहा-ये ही सोलह भावना, सहित धरै व्रत जोय / देव-इन्द्र-नर-वंद्य पद, धानत शिव पद होय / / 7 ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः पूर्णाऱ्या निर्व० // Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा __सवैया तेईसा सुन्दर षोडशकारण भावना निर्मल चित्त सुधारक धारै / कर्म अनेक हने अति दुर्धर जन्म जरा भय मृत्यु निवारै / / दुःख दरिद्र विपत्ति हरै भवसागरको पर पार उतारै / ज्ञान कहे यहि षोडशकारण, कर्म निवारण सिद्ध सुधारै॥ अथाशीर्वादः / जाप्य ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयै नमः / ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नतायै नमः, ॐ ह्रीं शीलवताय नमः, ॐ ह्रीं अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगाय नमः, ॐ ह्रीं संवेगाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्तपसे - नमः, ॐ ह्रीं साधुसमाध्यै नमः, ॐ ह्रीं वैयावृत्यकरणाय नमः, ॐ ह्रीं अर्हद्भक्त्ये नमः, ॐ ह्रीं आचार्यभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं बहूश्रुतभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं आवश्यकपरिहाण्यै नमः, ॐ हीं मार्गप्रभावनायै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनवत्सलत्वाय नमः / / 16 / / पंचमेरु पूजा गीता छन्द तीर्थंकरोंके हवन जलते भये तीरथ शर्मदा / तातै प्रदच्छन देत सुरगन, पंचमेरुनकी सदा / / दो जलधि ढाईद्वीपमें सब गनत मूल बिराजहीं। पूजौं असी जिनधाम-प्रतिमा, होहि सुख दुःख भाजही 1: ॐ ह्रीं पंचमेरु जिन सम्बन्धि चैत्यालयस्थ-जिनप्रतिमा समूह Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य निवब पूजा * अबावतरावतर संवोषट् / ह्रीं पंचमेरु-सम्बन्धित-जिन-चैत्या‘लयस्य -जिन-प्रतिमा-समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ह्रीं पंचमेरु-सम्बन्धि-जिन-चैत्यालयस्थ-जिन-प्रतिमा समूह ! अत्र : मम सन्निहितो भव भव वषट् / अथाष्टक, चौपाई आंचली बद्ध (15 मात्रा। शीतल मिष्ट सुवास मिलाय, जलमों पूजौ श्रीजिनराय / महासुख होय देखे नाथ परम सुख होय / पांचो मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमाको करों प्रणाम / - महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय / 1 // ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरु विजय अचलमेरु, मन्दिरमेरु विद्युन्मालीमेरु-पंचमेरु सम्बन्धि अस्सी जिन-चैत्यालयेभ्यः जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति // 1 // जल केसर कपूर मिलाय गन्धसों पुजों श्री जिनराय : महासुख होय, देखे नाथ, परमसुख होय ||पांचो० 2 / / ॐ ह्रीं पंचमेरु संबंधि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिबेम्यः चंदनं नि० अमल अखंड सुगन्ध सुहाय अच्छतसों पूजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ, परमसुख होय / पांचों० / 3 // ह्रों पंचमेरु सम्बन्धि जिन-चीत्यालस्थ-जिनबिबेभ्यः अक्षतान् / ' वरण अनेक रहें महकाय, फुलसों पूजों श्री जिनराय / . महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / पांचों० 4 ' ॐ ह्रीं पंचमेक सम्बन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिबेभ्यः पुष्पं नि० . मनवांछित बहूँ तुरत बनाय, चरूसों पूजों श्रीजिनराय / . महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / पांचो० // 5 // ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिंबेभ्यः नैवेद्यं निक Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [77 तमहर उज्ज्वल जोति जगाय, दीपसी पजों श्री जिनराय। महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / पांचों / / 6 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनविवेभ्यः दीपं निक खेऊं अगर अमल अधिकाय धूपसों पजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / / पांचो० // 7 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन चैत्यालयस्थ-जिनबिवेभ्यः धूपं नि० सुरस सुवर्ण सुगंध सुभाय, फलसों पूजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय // पांचों० / 8 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिवेभ्यः फलं नि. आठ दरबमय अरघ बनाय 'द्यानत' पूजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥पांचों० / / 9 / / ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिबेभ्यः अध्यं निल जयमाला-सोरठा प्रथम सुदर्शन-स्वामी, विजय अचल मन्दर कहा / विद्युन्माली नाम पंचमेरु जगमें प्रगट // 10 / बेसरी छन्द प्रथम सुदर्शन मेरु विराज, भद्रशाल वन भूपर छाजै / चैत्यालय चारों सखकारी, मनवचतन कर वन्दना हमारी। उपर पांच शतक पर सौहै नंदनवन देखत मन मोहे चैत्या. साढ़े वासठ सहस ऊंचाई, बन सुमनस शौभै अधिकाई ।चै. ऊंचा जोजन सहस छतीसं, पांडुकवन सोहै गिरिशीसं चि. चारो मेरु समान बखान, भूपर भद्रसाल चहूँ जाने / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी / Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 ] नित्य नियम पूजा ऊँचे पांच शतक पर भाखे, चारों नंदनवन अभिलाखे / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतन कर वंदना हमारी / साढ़े पचपन सहस उचंगा, बन सोमनस चार बहुरंगा / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनववतनकर वंदना हमारी // उच्च अठाइस सहस बताये, पांडक चारों वन शुभगाये / चैत्यालय मोलह सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी / / सरनर चारन वंदन आत्रे, सो शोभा हम किह मुखगावें / चैत्यालय अस्सी सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी / दोहा-पंचमेरूकी आरती, पढ़े हुने जो कोय / 'द्यानत' फल जानै प्रभु, तुरत महा सुख होय // 11 // ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धि जिन-चैत्यालयस्थ जिनबिबेभ्यो अध्यं नि. नन्दीश्वरद्वीप (अष्टान्हिका) पूजा सरव परवमें बड़ो अठाई परव हैं। नन्दीश्वर सुर जांहि लिये वसु दरव हैं / हमें शक्ति सौं नांहि इहा करि थापना।। ___ पूजै जिनगृह प्रतिमा है हित आपना // ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वोपे द्विपंचाशत-जिनालयस्थ जिनप्रतिमा समूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / कंचन मणिमय भृगार, तीरथ नीर भरा / तिहूँ धार दई निरवार, जामन मरन जरा / / Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [79 * नन्दीश्वर श्री जिनधाम, बावन पूज करों। वसु दिन प्रतिमा, अभिराम, आनन्दभाव धरो / 1 / ॐ ह्रीं मासोत्तमे....मासे शुभे शुक्लपक्षे अष्टाह्निकामां महामहोत्सवे नन्दीश्वरद्वीपे पूर्व दक्षिण-पश्चिमोत्तरे एक अंजनगिरी चार दधिमुख आठ रतिकर. प्रतिदिशि तेरह 2 इति बावन जिन चैत्यालयेभ्यः जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा // 1 // भवतपहर शीतल वास, सो चन्दन नाहीं।। प्रभु यह गुण कोजै सांच, आयो तुम ठांहीं नन्दी०:२।। ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ जिन-प्रतिमाभ्यः चंदन निर्व। उत्तम अक्षत जिनराज पुज धरे सो है / सब जीते अक्षसमाज, तुम सम अरू को है ।।नन्दी. 3 // ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वीपे जिनालय स्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वक तुम काम विनाशक देव, ध्याऊं फूलनसौं। लहि शील लच्छमी एव, छूटों शूलनसौं / नन्दी० // 4 // ॐ ह्री नंदीश्वरद्वोपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः पुष्पं नि / नेवज इन्द्रयवलकार सो तुमने चूरा / चरू तुम ढिग सोहै सार, अचरज है पुरा / नन्दी० // 5 // ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः नैवेद्य नि / दीपक की ज्योति प्रकाश तुम तन मांहिं लसै। टूटे करम की राश, ज्ञानकणी दरसे / / नन्दी० // 6 // ॐ ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः दीपं नि०। * नन्दीश्वरद्वीपे महान चारों दिशि सों हैं। बावन जिनमंदिर जान सुर नर मन मोहें / Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 नित्य नियम पूजा कृष्णागरु धूप सुवास, दशदिशि नारि वरें। अति हरषभाव परकाश, मानों नृत्य करै ।।नन्दी० // 7 // ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः धूपं नि० बहुविधिफल ले तिहूँकाल, आनन्द राचत हैं। तुम शिवफल देहु दयाल तु ही हम जाचत है / नन्दी.। 8. ॐ ह्रीं श्रीनदोश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः फलं नि० यह अर्घ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हो। 'द्यानत' किज्यो शिवखेत भूमि समरत हों / नन्दी०।।९। ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वोपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः अर्घ्य नि० जयमाला-दोहा कार्तिक फाल्गुन षाढके, अन्त आठ दिनमाहि / नन्दीश्वर सुर जात हैं, हम पूमैं इह ठाहिं / / / एकसौ त्रेसठ कोड़ि जोजन महा लाख चौरासिया एकदिशः में लहा आठमों द्वीप नन्दीश्वर भास्करं / भौन बावन प्रतिमा नमों सुखकरं // 2 // चारदिशि चार अंजनगिरी राजही सहस चौरासिया एकदिशि छाजहीं। ढोलसम गोल ऊपर तले सुन्दरं भौन. / 3 / एक इक चार दिशि बार शुभ बाबरी / एक इक लाख जोजन अमल जलभरी चहुंदिशि चार बन लाख जोजन वरं / भौन०1४॥ सोल बापीन मधि सोल गिरि दधिमुखं / सहस दस महा जोजन लखत ही सुखं बावरी कोण दो मांहि दो रतिकरं // भौन / 5 // शैल बत्तीस इक सहस जोजन कहे, चार सौलै मिले सर्व बावन लहे / एक इक सीस पर एक जिनमन्दिरं / भौन०१६ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [81... नित्य नियम पूजा विब अठ एकसो रतनमय सोहही . देव देवी सरव नयनः मन मोहही। पांचस धनुष तन पद्मआसन परं भौनं. 7 लाल नख मुखनयन श्याम अरु श्वेत हैं / श्याम रंग भौह शिर केश छवि देत हैं। वचन बोलत मनो हंसत कालुष हरं / भौन० 8 / कोटि शशि भानु दुति तेज छिप जात लखि होत सम्यक धरं / भौन०।९।। सोरठा-नन्दीश्वर जिनधाम, प्रतिमा महिमा को कहै। 'द्यानत' लीनो नाम यहि भगति शिव सुख करै / / ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वोपे जिनालय स्थ-जिन-प्रतिमाभ्य पूर्णाध्यं निक दशलक्षण धर्म पूजा उत्तम छिमा मार्दव आर्जव भाव हैं / सत्य शौच संयम तप त्याग उपाव हैं। आकिंचन ब्रह्मचर्य धरम दस सार है। चहूँ गति दुखतै काढि मुकति करतार है॥१॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश लक्षणधर्म ! अत्र अवतरावतर संवौषट ही उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भवरव षट सोरठा-हेमाचल की धार, मुनिचित सम शीतल सुरभि / भव आताप निवार, दशलक्षण पूजों सदा // 1 // ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच संयम,तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्यादि-दश-लक्षणधर्माय जलं निर्वपामीति // 1 // Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2] नित्य नियम पूजा चंदन केशर गार, होय सुवास दशदिशा। भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / / 2 / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय चन्दनं नि० // 2 // अमल अखंडित सार, तंदुल चंद्र समान शुभ / भव आताप निवार, दशलक्षग पूजौ सदा // 3 // ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय अक्षतान् नि० // 3 // फूल अनेक प्रकार, महके ऊरधलोक लों। भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / / 4 // ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय पुष्पं नि० // 4 // नेवज विविध निहार, उत्तम षटरस संजुगत / भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय नैवेद्य नि० // 5 // वाति कपूर सुधार, दिपक जोति सुहावनी / भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा // 6 // ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दण-लक्षणधर्माय दीपं नि० // 6 // अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगन्धता। भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / 7 / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि दश-लक्षणधर्माय धूप नि० // 7 // फल की जाती अपार, घ्राण नयन मनमोहने भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / / 8 / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय फलं नि // 8 // आठों दरब संवार, ‘यानत' अधिक उछाहसों। भव आताप निवार, दशलक्षण पूजौं सदा / 9 / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधीय अयं नि० // 9 // Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा.......................८३.. अङ्ग पूजा- सोरठा पीडै दुष्ट अनेक, बांध मार बहु विधि करै। धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजै पीतमा / 1 // चौपाई मिश्रित गीता छन्द उत्तम छिमा गहो रे भाई इहभव जस परभव सुखदाई। गाली सुनि मन खेद न आनो, गुनको औगुन कहै अयानो / / कहि है अयानो वस्तु छीने, बांध मार बहुँविधि करें। धरतै निकार, तन विदारै वैर जो न तहां धरै / / ते करम पूरव किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा। अतिक्रोध अगनि बुझाय प्रानी, साम्य जल ले सीयरा॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमाधौगाय अी निर्वपामीति स्वाहा // 1 // मान महाविषरूप, करहि नीचगति जगतमें / कोमल सुधा अनप, सुख पाने प्राणी सदा / 2 / / 'उत्तम मार्दवगुण मन माना, मान करनको कौन ठिकाना। वस्यो निगोदमाहित आया, दमरी रूकन भागबिकाया / / रुकन विकाया कर्म वशतें देव इकइन्द्री भया / उत्तम मुआ चांडाल हुआ, भूप कीडोंमें गया / जीतव्य-जीवन-धन गुमान, कहा करे जल बुदबुदा। करि विनय बहुँगुण बड़े जनकी ज्ञानको पानै उदा॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दवध गाय अर्घ निर्व० स्वाहा // 2 // कपट न कीजे कोय, चोरनके पुर ना बसे / सरल सुभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा // 2 // उत्तम आर्जवरीति बखानी रंचक दगा बहुत दुखदानी / मनमें हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तनसों करिये // Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 ] नित्य नियम पूजा करिये सरल तिहुँ जोग अपने देख निरमल आरसी / मुख करें जैसा लखै तैसा, कपट प्रीति अंगारसी // नहि लहै लछमी अधिक छलकरि, करमबंध-विशेषता / भय त्यागी दूध बिलाव पीवै आपदा नहिं देखता // 3 // * ही उत्तमआर्जवधर्मागाय अयं निर्वपामीति स्वाहा // 3 // कठिन वचन मत बोल, पर निंदा अरु झूठ तज / सांच जवाहर खोल, सतवादी जगमें सुखी . उत्तम सत्यवरत पालीजै, पर विश्वास घात नहीं किजै / सांचे झूठे मानुष देखो, आपन पूत स्वपास न पेखो / / पेखो तिहायत पुरुष साँचेको, दरव सब दीजिये। मुनिराज श्रावककी प्रतिष्ठा, सांचगुन लख लीजिये। ऊँचे सिंहासन बैठी वसुनृप धरमका भूपति भयो / बच झूठ सेती नरक पहुँचा, सुरगमें नारद गया // 4 // ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मागाय अध्यं निर्वपामोति स्वाहा // 4 // धरि हिग्दै सतोष, करहूँ तपस्या देहसों / शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसारमें / / उत्तम शौच सर्व जग जानो, लोभ पापको वाप बखानौ / आशा-पास महा दुखदानी, सुख पावे सन्तोषी प्राणी / / प्राणी सदा शुचिशील जप तप, ज्ञानध्यान प्रभावत। नित गंगजमुन समुद्र हाये अशुचि दोष सुभावतें / ऊपर अमल मल भरयो भीतर, कौनविधी घट शुचि कहै / / बहू दह मैली सुगुनथैली, शौच गुग साधु लहै // 5 // ॐ ह्रीं उत्तमशौचधर्मागाय अर्घ्यं निर्भपामीति स्वाहा // 5 // Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [85 काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्री मन वश करो / संयमरतन संभाल, विषयचोर बहु फिरत हैं // 6 उत्तम संयम गहु मन मेरे, भव भवके भाजै अघ तेरे / सुरग नरकपशुगतिमें नाही, आलस-हरन करणसुख ठाहीं॥ ठाही पृथ्वी जल आग मारुन. रूख त्रस करूना धरो। सपरसन रसना घ्रान नैना, कान मन सब वश करो जिस बिना नहिं जिनराज सीझे तू रूल्यो जग कीच में / इक धरी मत विसरो करो नित, आव जममुख बीचमें।६ ॐ ह्रीं उत्तमसंयमधर्मागाय अयं निपामीति स्वाहा / तप चाहें सुर राय, करमशिखरको वज्र है। द्वादशविधि सुखदाय, क्यों न करे निज शक्तिसम / उत्तम तप सब मांहि बखाना, कर्मशैल को वज्र समाना। वस्यो अनादि निगोद मंझारा, भूविकलत्रय पशुतन धारा / धारा मनुष तन महादुर्लभ, सुकुल आयु निरोगता / श्री जैनवाणी तत्त्वज्ञानी, भई विषयपयोगता / / अति महादुर्लभ त्याग विषय, कषाय जो तप आदरे / नरभव अनूपम कनक घरपर, मणिमयी कलशा धरे 7 // ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्मागाय अर्घ्य निर्मपामीति स्वाहा / दान चार परकार, चार संघको दीजिये / धन बिजली उनहार, नरभव लाहो लीजिये / / उत्तम त्याग कह्यो जग सारा, औषध शास्त्र अभय आहारा / निह चै रागद्वेष निरवारै, ज्ञाता दोनो दान संभारै / / Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 ] नित्य नियम पूजा दोनों संभारे कूप जलसम, दरव घरमें परनिया / निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया / / धनि साध शास्त्र अभयदिवैया, त्याग राग विरोधकों। विन दान श्रावक साधु दोनो, लहै नाहीं बोधकों // 8 // ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्मागाय अयं निर्मपामीति स्वाहा / परिग्रह चौविस भेद, त्याग कर मनिराजजी / तृष्णाभाव उछेद, घटती जान घटाइये / / उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह चिन्ता दुखही मानो। फांस तनकसी तनमें सालैं, चाह लंगोटीकी दुख भाले / भाले न समता सुख कभी नर, बिना मुनि मुद्रा धरै / धनि नगनपर तन नगन ठाड़े, सुर असुर पायनि परै / / घरमांहि तष्णा जो घटाबे, रुचि नहीं संसार सौ / बहु धन बुरा हूँ मला कहिये लीन पर उपगारसौं / 9 / / ॐ ह्रीं उत्तम आकिंचन्यधर्मागाय अर्ध्या निर्मपामीति स्वाहा / शील बाड नो राख, ब्रह्मभाव अन्तर लखो। करि दोनों अभिलाख, करहु सफल नर भव सदा / उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनौ, माता बहिन सुता पहिचानौ / सहै बान वर्षा बहु सूरे, टिके न नैन-बाण लखि कूरे / / कूरे तियाके अशुचितनमें कामरोगी रति करें / बहु मृतक सड़हि मसानमांहीं काक ज्यों चोंचे भरै / संसारमें विषबेल नारी, तजि गये जोगीश्वरा / 'द्यानत' धरम दशपेंड चढिके शिवमहलमें पगधरा .10 // ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधांगाय अध्यं निनपामोति स्वाहा / Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा जयमाला दोहा-दशलच्छन वंदौं सदा, मनवांछित फलदाय / कहों आरती भारती, हम पर होउ सहाय // 1 // बेसरी छन्द उत्तम छिमा जहां मन होई, अन्तर बाहिर शत्रु न कोई / उत्तम मादेव विनय प्रकासे, नानाभेद ज्ञान सब भासे / / उत्तम आर्जव कपट मिटावे. दुरगति त्यागी सुगति उपजावे। उत्तम सत्य-वचन मुख बोले, सो प्रानी संसार न डोले / / उत्तम शौच लोभ-- परिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी उनम संयम पालै ज्ञाता, नरभव सफल करें ले साता / / उत्तम तप निरवांच्छित पाले सो नर करम-शत्र को टाले। उत्तम त्याग करे जो कोई, भोगभूमि-सुर-शिवमुख होई // 5 उत्तम आकिंचन व्रत धारै परम समाधिदशा विस्तारै : उत्तम ब्रह्मचर्य मन लागै, नरसुर सहित मुकतिफल पान। 6 दोहा-करे करमकी निरजरा, भव पीजरा विनाश / अजर अमरपदको लहै, 'द्यानत' सुखकी राश / / ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम तप त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य दशलक्षणधर्मांगाय पूर्णाऱ्या निन० स्वाहा / रत्नत्राय पूजा दोहा-चहूँगति-फणि विष-हरन-मणि, दुःख पावक जलधार। शिव मुख-सुधा-सरोवरी, सम्यकत्रयी निहार // 1 // Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8] नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र अवतर अवतर, संवौषट् / ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं सम्यगरत्नत्रय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / सोरठा-क्षीरोदधि उनहार, उज्ज्वल जल अति सोहनो। जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों // 1 // ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय जन्मरोगविनाशनाय जलं निर्व० स्वाहा चंदन केशर गारि, परिमल महा सुरंगमय / जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों // 2 // ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय भवतापविनाशनाय चन्दनं नि० स्वाहा / तंदुल अमल चितार, वासमति सुखदास के / जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों / / 3 / / ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् नि० स्वाहा / महक फूल अपार, अलि गुजै ज्यों थुति करे / जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों / 4 / ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं नि० स्वाहा। लाडू बहू विस्तार, चीकन मिष्ट सुगन्धयुत / जनम रोग निरवार सम्यकत्नत्रय भजों / / 5 / / ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि० स्वाहा। दीप रतनमय सार, जोत प्रकाशै जगतमें / जनम रोग निरवार, सम्यक्रत्नत्रय भजों // 6 // ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि / धूप सुवास विथार, चंदन अगर कपूरकी। ___ जनम रोग निरवार, सम्यकत्नत्रय भजों // 7 // ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि० स्वाहा / Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [89 फल शोभा अधिकार, लोंग छुहारे जायफल / जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों // 8 // ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि० स्वाहा / आठ दरव निरधार उत्तमसों उत्तम लिये। जनम रोग निरवार, सम्यकरत्नत्रय भजों // 9 // ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय अनध्य पद प्राप्तये अध्यं नि० स्वाहा / सम्यकदर्शनज्ञान, व्रत शिवमग तीनों मयी। पार उतारन यान, 'द्यानत' पूजों व्रत सहित // 10 // ॐ ह्रीं सम्यगरत्नत्रयाय पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा / समुच्चय जयमाला दोहा-सम्यकदर्शन ज्ञान व्रत इन विन मुकति न होय / अन्ध पंगु अरु आलसी जुदे जलै दवलोय // 1 // चौपाई जानै ध्यान सुधिर बन आने, ताके करमबन्ध कट जाने। तासौं शिवतिय प्रीति बढ़ानै, जो सम्यक रत्नत्रय ध्यान।२ ताकौं चहुँगतिके दुःख नाहीं, सो न पर भवसागर मांहीं / जनम जग मृत दोष मिटानै जो सम्यक रत्नत्रय ध्यानै 3 सोई दशलच्छनका साधे, सो सोलह कारण आराधै / सो परमातम पद उपजानै, जो सम्यक रत्नत्रय ध्यानै // 4 सोई शक्र-चकि-पद लेई, तीन लोकके सुख बिलसेई / सो रागादिक भाव बहावै, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावै / 5 / सोई लोकालोक निहारै, परमानन्द दशा विस्तारै / आप तिरै औरन तिरवाने, जो सम्यक रत्नत्रय ध्या व // 6 // Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90] नित्य नियम पूजा दोहा-एक स्वरूप प्रकाश निज, वचन कह्यो नहि जाय / तीनभेद व्योहार सब 'द्यानत' को सुखदाय ||7|| ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय महाऱ्या निर्मपामीति स्वाहा / दर्शन पूजा दोहा-सिद्ध अष्टमगुनमय प्रगट मुक्त जीव सोपान / ज्ञानचरित जिहं बिन अफल, सम्यग्दर्शन प्रधान / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्री अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, तषा हरै मल छय करें / सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / 11 ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय जलं निर्व० स्वाहा / जल केशर घनसार, ताप हरै शीतल करै। ___ सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा // 2 // ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय चंदनं निर्व• स्वाहा / अक्षत अनुप निहार, दारिद नारी सुख भरै / सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / / 3 / / ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अक्षतान् निर्व• स्वाहा / पहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै। सम्यक दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा // 4 ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय पुष्पं निर्व० स्वाहा / Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा................................. नेवज विविध प्रकार, क्षधा हरै थिरता करें / सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / / 5 / / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय नैवेद्य निर्व' स्वाहा। दीप ज्योति तमहार, घटपट परकाशैं महा / सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / 6 // ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय दीपं निर्व० स्वाहा / धूप घ्राणसुखकार. रोग विधन जडता हरै।। सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / / / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय धूप निर्वः स्वाहा / श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर शिवफल करे / सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूर्जी सदा // 8 // ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय फलं निर्ब० स्वाहा / जल गंधाक्षत चारु दीप धूप फल फूल चरु / / सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / 9 / / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्व० स्वाहा / जयमाला दोहा-आप आप निहचै लखौ, तत्वप्रीति व्योहार / रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्टगुण सार || 1 // चौपाई मिश्रित गीता छन्द सम्यकदर्शन रतन गहीजी, जिन-वच में संदेह न कीजै। इहभव विभव-चाह दुखदानी, पर भव भोग चहै मत प्रानी। प्राणी गिलान न करि अशुचिलखि, धरम गुरू प्रभु पर खिये परदोष ढकिये धरम डिगतेको मुथिर कर हरखिये। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92] नित्य नियम पूजा उसंघको वात्सल्य कीजै धरमकी परभावना / गुण आठसौ गुन आठ लहि के, इहां फेर न आवना // 2 // ॐ ह्रीं अष्टांगसहित-पंर्चावशतिदोषरहिताय सम्यग्दर्शनाय पूर्णाध्य ज्ञान पूजा पंचभेद जाके प्रगट, ज्ञेय प्रकाशन भान / मोह तपन-हर-चन्द्रमा सोइ सम्यकज्ञान / / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान ! अत्र अवतर अवतर, संवौषट् / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान ! अब मम सन्निहितो भव भव वषट् सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, तषा हर मल छय करे / सम्यक्सान विचार, आठ भेद पूजौं सदा // 1 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय जलं निर्वपामोति स्वाहा / जलकेशर घनसार, तोप हरै शीतल करे / सभ्यज्ञान विचार, आठ मेद पूजौं सदा / / 2 / / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय चन्दनं निर्वपामोति स्वाहा / अक्षत अनुप निहार, दारिद ना सुख भरै / सम्यकज्ञान विचार आठ भेद पजौं सदा // 3 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा / पहूच सुवास उदार खेद हरे मन सुचि करें। सम्यकज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा // 4 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा / Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा नेवज विविध प्रकार, छधा हरै थिरता करै। सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पजौं सदा // 5 / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय नैवेद्य निर्वापामीति स्वाहा / दीप ज्योति तमहार, घटपट परकाशै महा सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा // 6 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय दीपं निर्मपामीति स्वाहा / धूप घ्राण सुखकार, रोगविघन जडता हरै / सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा / / 7 / / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय धूपं निर्मपामोति स्वाहा / श्रीफल आदि विथार, निह सुरशिवफल करें। सम्यग्ज्ञान विचार, आठ मेद पूजौं सदा // 8 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय फलं निर्मपामोति स्वाहा / जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरू। सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा / / 9 / / ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा / जयमाला दोहा-आप आप जाने नियत, ग्रन्थ पठन व्योहार / संशय विभ्रम मोह बिन अष्टअङ्ग गुनकार / / 1 / / चौपाई मिश्रित गीता छन्द / सम्यग्ज्ञान रतन मन भाया, आगम तीजा नेन बताया। अच्छर शुद्ध अरथ पहिचानो, अच्छर अरथ उभय संगजानो। जानौ सुकाल पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइये / तपरीति गहि बहु मौन देकै विनय गुन चित लाइये / / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .........................नित्य नियम पूजा ए आठ भेद करम अछेदक, ज्ञानदर्पण देखना। इस ज्ञानहीसौं भरत सोझा, और सब पट पेखना // 2 // ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पूर्णाऱ्या निर्मपामीति स्वाहा / चारिका पूजा दोहा-विषयरोग औषध महा दवकषाय जलधार / तीर्थंकर जाकों धरै सम्यक्चारितसार // 1 // ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र अवतर 2 संवौषट् / ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, तषा हरे मल छय करें / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा // 1 // ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय जलं निन० स्वाहा / जल केसर घनसार, ताप हरै शीतल करें / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा / / 2 / ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय चन्दनं निर्व० स्वाहा / अक्षत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरै / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पजों सदा // 3 // ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अक्षतान् निर्व० स्वाहा / पहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करे / सम्यञ्चारित सार, तेरह विध पजौं सदा // 4 // ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय पुष्पं निन० स्वाहा / नेवज विविध प्रकार, छधा हर थिरता करें / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजों सदा // 5 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [95 ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय नैवेद्यं निर्व० स्वाहा / दीप ज्योति तमहार, घटपट परकाशै महा / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा / / 6 / / ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय दीपं निर्न० स्वाहा / धूप घ्राणसुखकार, रोग विधन जडता हरै। सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा / 7 / ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय धूपं निर्व० स्वाहा / __ श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर शिवफल करें / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पृजौं सदा / 8 / ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय फलं निर्न० स्वाहा / जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु / सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा / 9 // ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अर्घ्य निर्वा० स्वाहा / जयमाला दोहा। आप आप थिर नियत नय, तपसजम व्योहार / स्वपर दया दोनों लिये, तेरह विध दुखहार // 10 // चौपाई मिश्रित गीता छन्द सम्यक्चारित रतन संभालो, पांच पाप तजिके व्रत पालो। पंचसमिति त्रय गुपतिगहीजै, नर भव सफल करहूँ तन छीजै॥ छिजे सदा तनको जतन यह, एक संजम पालिये। बहु रूल्यो नरक निगोद मांही, विषय कषायनि टालिये // शुभ करम-जोग सुघाट आयो पार हो दिन जात है / . 'द्यानत' धरम की नाव बैठो शिवपुरी कुशलात है // 2 // ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय महाऱ्या निन० स्वाहा / Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा सरस्वती पूजा दोहा-जनम जरो मृत्यु छय कर हरै कुनय जडरीति / भव सागरसों ले तिरै पूजै जिनवव प्रीति / 1 / / ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीवाग्वादिनि / अत्र अवतर, अवतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट / क्षीरोदधि गंगा, विमल तरंगा, सलिल अभंगा सुखसंगा। भरि कंचन झारी, धार निकारी, तृषा निवारी, हित गंगा।। तीर्थकरकी धुनि, गणधरने सुनि, अङ्ग रचे चनि ज्ञान मई। सो जिनवरवानो, शिवसुखदानी त्रिभुवन मानी, पूज्य भई / / 1 ॐ ह्रीं श्रीजिन मुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै जल निर्व० स्वाहा / कपर मंगाया चंदन आया केशर लाया रंगभरी। शारद पद वंदौं, मन अभिनंही, पापनिकंदौं दाहहरी तीर्थ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यौ चंदनं निर्व० स्वाहा / सुखदास कमोदं धारकमोदं, अतिअनुमोदं चंदसमं / बहुभक्ति बढाई, किरति गाई होहु सहाई, मात ममं तीर्थ०३ ॐ ह्रीं श्रोजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अक्षतान निर्व० स्वाहा। बहु फल सुवासं. विमल प्रकाशं, आनन्दरासं लाय धरे। मम काम मिटायौ,शील बढायौ सुख उपजायो, दोषहरे तीर्थ ॐ ह्रीं श्रोजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै पुष्पं निर्व: स्वाहा / पकवान बनाया बहुघृत लाया सब विधभाया, मिष्ट महा / पजू थुति गाऊं प्रीति बढाऊं, क्षुधा नशाऊं हर्ष लहा / तीर्थ ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै नैवेद्य निर्व० स्वाहा / Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 97. करि दीपकजोतं, तमछयहोतं, ज्योति, उदोतं, तुमही चढे / तुमहो परकाशक भरमविनाशक. हमघट मासक, ज्ञानबढे ती ॐ ह्रीं श्रोजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै दीपं निर्व० स्वाहा। शुभगंध दशोकर, पावको धर धूप मनोहर खेवत हैं। सब पाप जलावै, पुण्य कमावै, दास कहानै सेवत हैं / ती ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोड सरस्वतीदेव्यौ धूपं निर्व० स्वाहा / बादाम छुहारी लोंग सुपारी, श्रीफल भारी, ल्यावत हैं / मनवांछित दाता, मेट असाता, तुम गुन माता, ध्यावत है ती ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै कलं निर्व० स्वाहा / नयनन सुखकारी, मृदुगुनधारी उज्ज्वल भारी, मोल धरै। शुभगंधसम्हारा, वसन निहारा तुमतन धारा ज्ञान कर ती० ॐ ह्रीं श्रोजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै वस्त्रं निर्मः स्वाहा / जल चंदन अच्छत, फूल चरु चत दीप, धूप अति फल लावै / पूजा को ठानत, जो तुम जानत, सो नर 'द्यानत' सुखपावै ती. ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भबसरस्वतीदेव्यै अर्घ्य निर्व० स्वाहा / जयमाला सोरठा-ओंकार धुनिसार, द्वादशांग वाणी विमल / नमों भक्ति उरधार, ज्ञान करै जडता हरै // पहलो आचारांग बखानो, पद अष्टादस सहस प्रमानो। दूजो सूत्रकृतं अभिलाषं पद छत्तीस सहस गुरुभाष / 1 // तीजो ठाना अङ्ग सुजानं, सहस बियालीस पद सरधानं / चौथो समवायांग निहारं, चौसठ सहस लाख इकधारं / 27 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा पंचमव्याख्याप्रज्ञपति दरशं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं / छट्ठो ज्ञातृकथा विस्तारं पांच लाख छप्पन हजारं / 3 / सप्तम उपासकाध्यायनंग. सत्तर सहस ग्यारह लख भंगं / अष्टम अन्तकृतं दस इसं, सहस अट्ठाइस लाख तेईसं / 4 / / नवम अनुत्तरदश सुविशालं, लाख बानवै सहस चवालं / दशम प्रश्न व्याकरण विचारं, लाख तिरानवे सोल हजारं / / ग्यारम सूत्रविपाक सुभाखं, एक कोड़ चौरासी लाखं / चार कोड़ि अरु पन्द्रह लाखं, दो हजार सब पद गुस्शाखं / ' द्वादश दृष्टिवाद पन भेदं, इकसौ आठ कौडिपन वेदं / अडसठ लाख सहस छप्पन है, सहित पंचपद मिथ्याहन है। इकसो बारह कोड़ि बखानों, लाख तिरासो ऊपर जानों। ठावन सहस पच्च अधिकाने, द्वादश अंग सर्व पद माने / / 8 कोड़ि इकावन आठहि लाखं, सहस चरासो छहसो भाखं साड़े इक्कीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये / / 9 / / दोहा-जा वानी के ज्ञानते, सूझे लोक अलोक / 'द्यानत' जग जयवन्त हो, सदा देतहों धोक / / 10 // ॐ ह्रीं जिनमुखोद्भवसरस्वतोदेव्यै पूर्णाध्यं निर्व० स्वाहा / गुरु पूजा दोहा-चहुँ गति दुखसागरविष तारनतरन जिहाज / रतनत्रयनिधि नगन तन, धन्य महा मुनिराज ||1: ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय-सर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय--सर्वसाधुगुरुसमूह / अत्र Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्य नियम पूजा ] 99 तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय सर्गसाधु• गुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / शुचि नीर निरमल छीरदधिसम, सुगुरु चरन चढाइया / तिहूँ धार तिहूँ गदटार स्वामी, अति उछाह बढाइया / भव भोग तन वैराग धार निहार शिव तव तपत हैं। तिहूँ जगतनाथ अराध साधु सु पूज नित गुन जपत हैं। ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसन्साधुगुरुभ्यः जलं निर्व० स्वाहा / करपूर चन्द सलिलसौं घसि, सुगुरु पद पूजा करौं / सब पाप ताप मिटाय स्वामी, धरम शीतल विस्तरो भव०.२ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः चंदनं निर्व० स्वाहा / तन्दूल कमोद सुवास उज्ज्वल, सुगुरु पद पगतर धरत हैं। गुनकार ओगुनहार स्वामी, वंदना हम करत है / भव०॥३ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः अक्षतान् निर्व० स्वाहा। शुभफुलराश प्रकाश परिमल सुगुरुपायनि परत हो। निरवार मार उपाधि स्वामी, शीलदृढ उर धरत हों भव.४ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः पुष्पं निर्व० स्वाहा / पकवान मिष्ट सलौन सुन्दर सुगुरु पांयनि प्रीतिसों। धर क्षुधारोग विनाश स्वामी, सुथिर कीजे रीतिसों ।मव.५ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः नैवेद्य निर्व• स्वाहा / दीपक उदोत सजोत जगमग सुगुरु पद पूजों सदा / जमनाश ज्ञान उजास स्वामी, मोहि मोह न हो कदा ।भव.६ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः दीपं निर्व० स्वाहा / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 ] नित्य नियम पूजा बहु अगर आदि सुगंध खेऊ सुगुण पद पद्महि खरे / दुख पुजकाठ जलाय स्वामी, गुण अछय चितमें धरे ।भव." ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्न भर थार पूंग बदाम बहुविधि सुगुरुक्रम आगे धरों। मंगल महाफल करो स्वामी, जोर कर विनती करों ।भव.८ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः मोक्षफल प्राप्तये फलं नि० जल गंध अक्षतफूल नेवज, दीप धूप फलाबली / 'द्यातन' सुगुरुपद देहु स्वामी, हमहिं तार उतावली भव.९ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः अनपद प्राप्तये अध्यं निक जयमाला . दोहा-कनकामिनी विषयवश, दीसै सब संसार / त्यागी वैरागी महा, साधु सुगुन भंडार // 1 // तीन घाटि नवकोड सब, बन्दी शीश नवाय / गुण तिन अट्ठाईस लौं. कहूँ आरती गाय ||2|| बेसरी छन्द एक दया पालै मनिराजा. रागदोष, द्वै हरन परं / तीनों लोक प्रकट सब देखे, चारों आराधन निकर / / पंच महाव्रत दूद्धर धारै, छहों दर्व जानें सुहितं / सातभंग वानी मन लाने, पानै आठ रिद्ध उचितं / / 3 / / नवों पदारथ विधिसौं भाखौं, बन्ध दशों चूरन करनं / ग्यारह शंका जाने माने, उत्तम बारह व्रत धरनं / / तेरह भेद काठिया चूरे, चौदह गुणथानक लखियं / महा प्रमाद पंचदश नाशे, सोल कषाय सबै नशियं // 4 // Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा बन्धादिक सत्रह सब चूरे ठारह जन्म न मरण मनं / एक समय उनईस परीषह, बीस प्ररुपनिमें निपुनं / / भाव उदीक इकीसौ जान, बाइस अभखन त्याग करं। अहिमिंदर तेईसौं वन्दै, इन्द्र सुरग चौबीस वरं // 5 // पच्चीसों भावन नित भानै छब्बीस अंग अपंग पढे / सत्ताइसो विषय विनाशै, अट्ठाईसों गुण सु पढे / शीत समय सर चौहटवासी, ग्रीषमगिरिसिर जोग धर। वर्षा वृक्षतरै थिर ठाढ, आठ करम हनि सिद्ध वरं / 6 / दोहा-कहो कहां लों भेद में, बुध थोडी गुण भूर / 'हेमराज' सेवक हृदय, भक्ति करो भरपूर !! ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यो अर्घ्य नि० स्वाहा / अकृत्रिम चैत्यालय पूजा चौपाई आठकरोड अरु छप्पनलाख, सहस सत्याणव चतुशतभाख / जोड इक्यासी जिनवर थान, तीनलोंक आह्वानकरान 16 ह्रीं त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि-षटपंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयानि अत्र अवतर 2 संवीषट् / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः / अत्र मम संनिहितानी भव 2 वषट् / छन्द त्रिभंगी / क्षीरोंदधिनीरं, उज्ज्वल सीरं, छान सुचिर', भरि झारि / अति मधुर लखावन, परमसुपावन तृषोबुझावन, गुगभारी।। वसुकोटि स छप्पनलाख सताणा, सहस चारशत इक्याशी / जिनगेह अकीर्तिम तिहुँ जगभीतर पूजत पद ले अविनाशी।। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102/ नित्य नियम पूजा ह्रीं गेलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट् पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्र-- चतःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो जल नि० // 1 // मलयागिर पावन चंदन बावन, तापबुझावन, घसि लीनो / धरि कनककटोरी, द्वैकरजोरी, तुमपदओरी, चितदीनो ।वसु. ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो चंदनं नि० // 2 // बहुभांति अनोखे तंदुल चोखे, लखि निरदोखे हम लिने / धरि कंचनथाली तुमगुणमाली, पुजविशाली करदीने।वसु. ह्रीं शैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो अक्षतान नि० // 3 // शुभ पुष्पसजाति. है बहु भांति अलि लिपटाती, लेय वरं / धरि कनक-रकेबी करगह लेवी, तुम पदजुगकी, भेटधर वसु. ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र। चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो पुष्पं नि० // 4 // खुरमा जू गिदौड़ा बरफी पेंडा, घेवर मोदक भरि थारी। विधिपूर्वक कीने, घृतपयभीने, खंडमें लीने, सुखकारी बसु. ॐ ह्रीं रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो नैवेद्य नि० // 5 // मिथ्यात महातम छाय रह्यो मम, निजभव परणति न हिंसूझै / इह कारण पाकै दीप सजाकै, थाल धराकै हम पूजै॥वसु.। ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो दीपं नि० // 6 // दशगंध कुठाकै धूप बनाके निजकर लेके, धरि ज्वाला। तम धूम उडाई, दशदिशछाई बहुमहकाई अतिआला वसु.. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य. नियम प्रजा / 103 ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो धूपं नि० // 7 // बादाम छुहारे, श्रीफल धारे, पिस्ता प्यारे, दाख वरं। इन आदि अनोखे लखि निरदोखे थालपजोखे, भेट धरं विसु. ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतैकाशोति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो फलं नि० // 8 // जल चंदन तंदुल कुसम रु नेवज, दीप धूप फल, थाल रचौं। जयघोष कराऊ बीनबजाऊं अर्घ चढाऊं,खूब नचौं विसु० / ॐ ह्रीं नौलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्योः अयं नि० // 9 // अथ प्रत्येक अर्घ / चौपाई / अधोलोक जिनआगमसाख, सात कोडि अरु बहतर लाख / श्रीजिनभवन महा छवि देइ, ते सब पूजौं वसुविधि लेई / ॐ ह्रीं अधोलोकसम्बन्धि सप्तकोटि -द्विसप्तति-लक्षाकृत्रिम श्री जिनचैत्यालयेभ्यो अगं निर्व स्वाहा / मध्यलोक जिन मन्दर ठाठ, साढेचार शतक अरु आठ / ते सब पूजौं अर्घ चढाय, मन वच तन त्रयजोग मिलाय / / ॐ ह्रीं मध्यलोकसम्बन्धि चतुशताष्टपंचाशत श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा // 2 // अडिल्ल-ऊर्ध्वलोक के मांहि भवन जिन जानिये, लाख चौरासी सहस सत्याणव मानिये / तापै धरि तेईस जजों शिरनायक कंचन थाल मझार जलादिक लायकै // 3 // ॐ ह्रीं ऊर्ध्वलोकसम्बन्धि चतुरशीति लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रत्रयोविंशति श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ्य निर्व• स्वाहा / 3 / Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104] नित्य नियम पूजा गीता छन्द चसुकोटि छप्पन लाख ऊपर, सहस सत्याणव मानिये / 'शतच्यार :गिनले इक्यासी, भवनजिनवर जानिये / / तिहुँ लोक भीतर सासते सुर असुर नर पूजा करे। तिन भवनको हम अर्घ लेके पूति हैं जगदुख हरें / 4 / ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतैकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो पूर्णाऱ्या नि० // 4 // अथ जयमाला 'दोहा-अब वरणों जयमालिका, सुनों भव्य चित लाय / जिनमन्दिर तिहुँ लोयके देहूँ सकल दरशाय / / पद्धरि छन्द जयअमलअनादि अनंतजान, अनिमितजु अकीर्तमअचल थान जय अजय अखंड अरूपधार, षट् द्रव्य नही दी लगार / / जय निराकार अविकार होय, राजत अनंत परदेश सोय। जैशुद्ध सगुण अवगाहपाय, दशदिशामाहिं इहविधि लखाय / यह भेद अलोकाकाश जान तामध्य लोक नभ तीन मान। स्वमेव बन्यौ अविचल अनंत, अविनाशिअनादि जु कहतसंत पुरुषाअकार ठाडो निहार, कटि हाथ धारि द्वै पग पसार / दच्छिन उत्तरदिशि सर्व ठौर, राजू जुसात भाख्यो निचोर।। जय पूर्व अपरदिश घाटबाधि, सुन कथन कहूं ताकोजु साधि लखि श्वभ्रतले राजू जु सात, मधिलोक एक राजू रहात / फिर ब्रह्मसुरग राजू जु पांच, भू सिद्ध एक राजू जु सांच / / Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "नित्य नियम पूजा [105 दश चार ऊंच राजू गिनाय, षटद्रव्य लये चतुकोण पाय / तसु वातवलय लपटाय तीन, इहनिराधार लखियो प्रवीन / त्रसनाडी तामधि जान खास,चतुकोन एक राजू जु व्यास / / राजू उतंग चौदह प्रमान लखि स्वयंसिद्ध रचना महान / तामध्य जीव त्रस आदि देव, निज थान पाय तिष्ठे भलेय / / लखि अधोभागमें श्वभ्रथान गिन सात कहे आगम प्रमान / षटथानमाहिं नारकिवसेय, इक श्वभ्रभाग फिर तीनभेय / / तसु अधोभाग नारकि रहाय, पुनिऊध्व भाग द्वय थानयाय / वस रहें भवन व्यंतरजु देव पूर हर्म्य छजै रचना स्वमेव // विहथान गेह जिनराजभाख, गिन सातकोटि बहत्तर जुलाख / जे भवननमों मनवचन काय, गतिश्वभ्रहरन हारे लखाय // पुनि मध्यलोक गोलाअकार, लखिदीप उदधिरचना विचार / गिन असंख्यात भाखे जुसंत, लखि संभुरमन सबके जु अंत / / इक राजुव्यासमें सर्व जान, मधिलोकतनो इह कथन मान / सबमध्य द्वीप जम्बू गिनेय त्रयदशम रुचिकवर नाम लेय / इन तेरहमें जिनधाम जान, शतचार अठावन हैं प्रमान ! खग देव असुर नर आयआय, पद पूजजाय शिर नायनाय / / जय ऊर्ध्वलोक सुर कल्पवास, तिहथानछजे जिनभवनखास / जय लाखचुरासी पर लखेय, जयसहस सत्याणव और ठेय / / जय बीसतीन फूनि जोडदेय, जिनभवन अकीर्तम जानलेय / अतिभवन एकरचना कहाय, जिनबिंब एकशत आठ पाय / / Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 ] नित्य नियम पूजा शतपंच धनुष उन्नत लसाय, पदमासन जुतवर ध्यानलाय / शिरतीन छत्रशोभितविशाल, त्रयपादपीठ मणि जडितलाल / / भामंडलकी छवी कौन गाय, फुनिचंवरढरत चोसठि लखाय: जय दुन्दुभिरव अद्भुत सुनाय, जयपुष्पवृष्टि गंधोदकाय // जय तहअशोक शोभा भलेय मंगल विभूति राजत अमेय / घटतूप छजे मणिमाल पाय, घटधूम्रधूम दिग सर्व छाय / / जयकेतुपंक्ति सोहैं महान, गंधर्व देव गन करत गान / सुर जनमलेतलखि अवधिपाय, तिहथान प्रथम पूजन कराय / / जिनगेहतनो वरनन अपार, हम तुच्छबुद्धि किम लहतपार / जयदेव जिनेसूर जगत भूप, नमि नेम मंगे निज देहरूप / / ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बध्यष्टकोटि षट् पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिम श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्या निर्वपामीति स्वाहा / दोहा-तीनलोकमें सासते, श्रीजिन भवन विचार / मनवचतन करि शुद्धता पुजों अरघ उतार / / तिहुँ जगभीतर श्रीजिनमंदिर, बने अकीर्तम अति सुखदाय / नर सुर खगकरि नंदनीक जे तीनको भविजन पाठ कराय।। धनधान्यादिक सपति तिनके, पुत्र पोत्र सुख होत मलाय। चक्रीसुर खग इन्द्र होय के, करम नाश शिवपूर सुख थाय / / ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् ) Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [107.. स्व० त्यागी दौलतराम वर्णी कृत श्री ऋषि-मण्डल पूजा स्थापना / दोहा। चौबीस जिनपद प्रथम नमि, दुतिय सुगणधर पाय। तृतीय पंच परमेष्ठि को, चौथे शारद माय || मन वच तन ये चरन युग, करहूँ सदा परनाम / ऋषि मण्डल पूजा स्चो, बुद्धि बल द्यो अभिराम // अडिल्ल छंद-चौवीस जिन वसु वर्गपंच गुरु जे कहे / रत्नत्रय चव देव चार अवधि लहे / / अष्ट ऋद्धि चव दोय सर ही तीन जू / अरहंत दश दिग्पाल यंत्र मे लीन जू / / दोहा-यह सब ऋषि मण्डल विषे, देवी देव अपार / तिष्ठ तिष्ठ रक्षा करो, पूजू वसु विधि सार // ही वृषभादि चौबीसतीर्थकर, अष्टवर्ग अहंतादि पंचपददर्शन-ज्ञान-चारित्रसहितचनिकायदेव, चार प्रकार अवधि, धारक श्रमण, अष्ट ऋद्धिसंयुक्त चतुर्विति सूरि, तीन ह्रीं, अहंत विबदस दिग्पाल यंत्रसम्बन्धिपरमदेव अत्र अवतर 2. संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनम् / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / अथाष्टक जल क्षीर उदधि समान निर्मल तथा मुनि-चित सारसों।। भरङ्ग मणिमय नीर सुन्दर तृषा तुरत निवारसों / Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108] नित्य नियम पूजा जहां सुभग ऋषि मण्डल बिराजै पूजि मन वच तन सदा / तिस मनोवांछित मिलत सबसख स्वघ्नमें दुख नहिं कदा / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय यंत्रसम्बन्धिपरमदेवाय जलं। मलय चंदन लाय सुन्दर गंध सों अलि झंकरें / सो लेहु भविजन कुम्भ भरिके तप्त दाह सब हरें // जहां सुभग ऋषि० ॥तिम मनो० / चंदनं / / इन्दू किरण पमान सुन्दर ज्योति मुक्ता की हरैं। हाटक रकेबी धारि भविजन अखय पद प्राप्ती करे / / जहां सुभग ऋषि० / / तिस मनो० // अक्षतं / पाटल गुलाब जुही चमेली मालतो बेला घने / जिस मुरमिते कल हंस नाचत फूल गुथि माला बने / जहां सुभग ऋषि० 1. तिस मनो० / / पुष्पं // अर्द्ध चन्द्र समान फेनी मोदकादिक ले घने / घृतपत्र मिश्रितरस स पूरे लख क्षुधा डायनो हने / / जहां सुभग ऋषि / तिस मनो० / नेवेद्यं / / मणि दीप ज्योति जगाय सुन्दर वा कपूर अनूपकं / / हाटक सुथाली माहि धरिके वारि जिनपद भूपकं / / जहां सुभग ऋषि० // तिस मनो० / दीपं // चंदन सु कृष्णागरु कपूर मंगाय अग्नि जराइये / सो 'धूप धूम्र' आकाश लागी मनहुँ कर्म उडाइये / / जहां सुभग ऋषि० // तिस मनो // धूपं // दाडिम सु श्रीफल आम्र कमरख और केला लाइये / Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [109 मोक्ष फलके पायवे की आश धरि करि आइये / बहां सभग ऋषि० // तिस मनो० / फलं // जल फलादिक द्रव्य लेकर अर्घ सुन्दर कर लिया। संसार रोग निवार भगवत् वारि तुम पद में दिया / जहां सुभग ऋषि० / तिस मनो० // अध्यं / / अर्घावली। अडिल्ल छन्द / / वृषभ जिनेश्वर आदि अन्त महावीरजी। ये चउवीस जिनराज हनों भवपीरजी // ऋषि मण्डल बिच ही विर्षे राजे सदा / पूजू अयं वनाय होय नहिं दुख कदा / * ही सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थाय वृषभादिचतुर्विंशतितीर्थङ्कर परमदेवाय अध्यं निर्व० स्वाहा / आदि कवर्ग सु अन्तजानि शाषासहा, / ये वसुवर्ग महान यन्त्र में शुभ कहा / / जल शुभ गन्धादिक वर द्रव्य मंगायके / __पूजहूँ दोउ कमजोर शीश जिन नायके / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थाय कवर्गादिअष्टवर्ग सहिताय हम्ल्व्यू परम यंत्राय अर्घ निर्व० स्वाहा / कामिनी मोहनी छन्द परम उत्कृष्ट परमेष्ठी पद पांच को, नमत शत इन्द्र खग वृन्द पद सांचको / तिमि अघनाश करणार्थ तुम अर्क हो, अर्घ लेय पूज्य पद देत बुद्धि तर्क हो / ही सर्बोपद्रविनाशनसमर्थाय पंचपरमेष्ठिपरमदेवाय अध्य Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 ] नित्य नियम पूजा सुन्दरी छन्द 'शुभग सम्यग दर्शन ज्ञान जू, कह चरित्र सुधारक मान जू। अर्थ सन्दर द्रव्य सु आठ ले, चरण पूजहूँ साज स ठाठ ले / ह्रों सर्वोपद्रवविनाशनसमोभ्यो सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रेभ्योऽy हरिगीता छन्द भवनवासी देव व्यंतर ज्योतिषी कल्पेन्द्र जू, जिनगृह जिनेश्वर देव राजै रत्न के प्रतिबिंब जू / तोरण ध्वजा घण्टा बिराजै चंवर ढरत नवीन जू, वर अर्घ ले तिन चरण पूजौं हर्ष में अति लोन जू / "ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय भवनेन्द्रव्यांतरेन्द्र ज्योतिषेन्द्र कल्पेन्द्र चतुःप्रकारदेवगृहेभ्यः श्रोजिनचेत्यालयसंयुक्तेभ्यो अh० दोहा-अवधेि चारप्रकार मुनि, धारत जे ऋषिराय / अर्घ लेय तिन चरग जजि, विधन सब मिट जाय / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थेभ्यो चतुःप्रकार अवधिधारक - मुनिभ्योऽर्णी . भुजंगप्रयात छन्द कही आठऋद्धि धरे जे मुनीशं महाकार्यकारी बखानो गनीशं जल गंध आदे दे जजों वर्नतेरे,लही सुक्ख सबेरे हरो दुख केरे ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्यो अष्टऋद्धिसहित मुनिभ्योअर्घ्य श्री देवी प्रथम बखानी, इन आदिक चौबोसों मानी / तत्पर जिन भक्ति विष हैं, पूजत सब रोग नशै हैं / / ह्रों सर्वोपद्रवविनाशनसमषैभ्या श्रीआदिचतुर्विशदेवोम्योऽध्यंग Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..नित्य नियम पूजा............................१११.. हंसा छन्द यन्त्र विषै वरन्यो तिरकोन, ही तहं तीन युक्त सुखभोन / जल फलादि वसु द्रव्य मिलाय, अघे सहित पूजूशिनाय / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थायत्रिकोणमध्ये तीनह्रीं संयुक्तायऽध्य तोमर छंद दश आठ दोष निरवारि, छयालीस महागुण धारि / वसु द्रव्य अनूप मिलाय, तिन चने जजों सुखदाय / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय अष्टादशदोषरहिताय छयालीस महागुणयुक्ताय अर्हपरमेष्ठिने अर्ध / सोरठा-दश दिश दश दिग्पाल, दिशानाम सौ नामवर / तिनगृह श्रीजिन राज पूजो मैं वन्दौं सदा / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्यो दशदिग्पालेभ्यः जिनभक्ति युक्तेभ्योऽयं निन / दोहा-ऋषिमण्डल शुभयन्त्र के देवी देव चितारि / __ अर्घ सहित पूजहूँ चरन, दुख दारिद्र निवारि / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्यो ऋषिमंडल सम्बन्धदेवीदेवेभ्योऽयं निर्ग० / अथ जयमाला दोहा-चौबीसों जिन चरन नमि, गणधर नाऊं भाल / शारद पद पंकज नमूगाऊ शुभ जयमाल / जय आदिश्वर जिन आदिदेव, शत इन्द्र जऊँ मैं करहुँ सेव / जय अजित जिनेश्वर जे अजीत जे जीत भये भव ते अतीत // जय संभव जिन भवकूप मांहि ड्वतराखहु तुम शर्ण आंहि / जय अभिनंदन आनंद देत, ज्यों कमलों पर रवि करत हेत। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 ] नित्य नियम पूजा जय सुमति 2 दाता जिनन्द, जयकुमति तिमिर नाशनदिनंद / जय पद्मालंकृत पद्मदेव, दिनरैन करहूँ तब चान सेव / / जय श्री सुपार्श्व भव पास नाश, भवि जीवनकू दियो मुक्तिवास' जय चंद जिनेश दया निधान, गुणसागर नागर सुख प्रमान जये पुष्पदंत जिनवर जगीश. सतइन्द्र नमत नित आत्मशीश जय शीतल वच शीतल जिनंद, भवताप नशावत जगतवन्द जय जय श्रेयांस जिन अति उदार, भविकंठ मांहि मुक्तासुहार जय वासुपूज्य बासव खगेश, तुम स्तुतिकर पुनि नमि हमेश। जय विमल जिनेश्वर विमलदव, मलरहित विराजत करहूँ सेव जय जिन अनंतके गुण अनंत कथनी कर गगधर लहे न अंत / जय धर्म धुरंधर धर्मधीर, जय धर्म चक्र शुचि ल्याय वीर / जय शांत जिनेश्वर शांतिभाव, भववन भटकत शुभमग लखाव जय कुन्थु कुन्थुवा जीव पाल सेवक पर रक्षा करि कृपाल / जय अरहनाथ अरि कर्मशैल, तपवज्र कांड 2 लहिमुक्ति गैल जय मल्लि जिनेश्वर कर्म आठ, मल डारे पायो मुक्ति ठाठ / जय सुव्रत मुनि व्रत धरन्त, जय सुव्रत व्रत पालत महन्त / जय नमिय नमत सुरवृन्द पाय पद पंकज निरखत शीशनाय / जय नेमि जिनेन्द्र दयानिधान, फैलायो जग में तत्वज्ञान / / जय पारस जिन आलस निवारि उपसर्ग रुद्र कृत जीतधारि। जय महावीर महाधीरधार, भव कूप थकी जग ते निकार / / जय वर्गआठ सुन्दर अपार, तिन भेद लखत बुध करतसार / जय परमपूज्य परमेष्ठि सार, जिन सुमरत वरसे मोड धार / Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 113 जय दर्शन ज्ञान चरित्र तीन, ये रत्न महा उज्ज्वल प्रवीन / जय चार प्रकार सुदेव सार, तीनके गृह जिन मन्दिर अपार / / जो पूजै वसुविधि द्रव्यलाय, मैं इत जजि तुम पद शीशनाय / जो मुनिवर धारत अवधि चार,तिन पूजे भवि भव सिंधुपार / / जो आठ ऋद्धि मुनिवर धरंत, ते मोपै करुणा करि महन्त / चौबीस देवि जिन भक्ति लीन, बंदन ताको सु परोक्ष कीन / / जे ही तीन त्रिकोण मांहि, तिन नमत सदा आनन्द पाहि। जय जय जय श्री अरहंत विब तीन पद पूजू मैं खोइ डिंब / जो दश दिग्पाल कहें महान, जे दिशा नाम सो नाम जान / जे तिनके गृह जिनराज धाम, जे रत्नमई प्रतिमाभिराम / ध्वज तोरण घंटायुक्तसार, मोतिन माला लटकै अपार / जे ता मधि वेदि है अनूप, तहां राजत हैं जिनराज भूप / / जय मुद्रा शांति विराजमान, जा लखि वैराग्य बढ़े महान : जे देवि देव आय आय पूजै तिन पद मन वचन काय / जल मिष्ठ सु उज्ज्वल पय समान, गंदन मलयागिरको महान जे अक्षत अनियारे सु लाय जे पुष्पन की माला बनाय / चरु मधुर विविध ताजी अपार,दीपक मणिमय उद्योतकार। जे धूपसु कृष्णागर सुखेय, फल विविध भांतिके मिष्टलेय // वर अर्घ अनुपम करत देव, जिनराज चरण आगे चढ़ेव / फिर मुखतें स्तुति करते उचार हो करुणानिधि संसार तार। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा मैं दुख सहे संसार इस, तुमौं छानी नाहीं जगीश / जे इहविधि मौखिक स्तुति उचार,तिन नशत शीघ्र संसारभार इहविधि जो जन पूजन कराय,ऋषि मंडल यंत्र सु चिचलाय जे ऋषिमंडल पूजन करत, ते रोग शोक संकट हरन्त / जे राजारन कुल वृद्धि जान, जल दुर्गसु जग के हरि बखान जे विपत घोर अरु अहि मसान. भय दूर करै यह सकल जान जे राजभ्रष्ट ते राज पाय, पद भ्रष्ट थकी पद शुद्ध थाय / 'धन अर्थी जन पावै महान, या मैं संशय कछ नाहिं जान / भार्या अर्थी भार्या लहन्त, सुत अर्थी सुत पावै तुरंत / जे रूपा सोना ताभ्रपत्र, लिख तापर यंत्र महा पवित्र / / ता पूजै भागे सकल रोग जे वात पित्त ज्वर नाशि शोग / तिन गृह तैं भूत पिशाच जान, ते भाग जांहि संशय न आन जे ऋषिमंडल पूजा करत, ते सुख पावत लहि लहै न अंत / जब ऐसी मैं मन मांहि जान तब भाव सहित पूजा सुठान / चसुविधिके सुन्दर द्रव्य ल्याय, जिनराज चरण आगे चढाय फिर करत आरती शुद्ध भाव, जिनराज सभी लख हर्ण आव तुम देवनके हो देव देव इक अरज वितमें धारि लेव // हे दिन दयाल दया कराय, जो मैं दुखिया इह जग भ्रमाय / जे इस भववनमें वास लीन जे काल अनादि गमाय दीन / / __ भ्रमत चतुर्गति विपिन मांहि,दुख सहे सुनखको लेशनाहिं ये कर्म महारिपु जोर कीन, जे मनमाने ये दुःख दीन / Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्व नियम पूजा....................[११५.. [112 ये काहे को नहिं डर धराय, इनसे भयभीत भयो अपाय / यह जन्म२ की बात जान मैं कह न सकत हूँ देवमान / / जब तुम अनन्त परजाय जान, दरशायो संसति पथ विधान उपकारी तुम बिन और नाहि दीखत मोकों इस जगत मांहि तुम सब लायक ज्ञायक जिनेन्द्र, रत्न त्रय सम्पत्ति द्यो अमंद यह अरज करू मैं श्रीजिनेश, भवर सेवा तुम पद हमेश // भवभवमें श्रावक कुल महान, भवभवमें प्रकटित तत्वज्ञान / भवभवमें व्रत हो अनागार, तिस पालन तें हों भवाब्धिपार // ये योग सदा मुझको लहान, है दिनबन्धु करूणा निधान / "दौलत आसेरी" मित्र दौय, तुम शरण गही हरषित सुहोय पत्ता-जो पूजे ध्यावे भक्ति बढावे, ऋषि मंडल शुभ यंत्रतनी। ___ या भव सुखपावे सुजस लहावे, परभव स्वर्ग सुलक्ष धनी ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय रोगशोक सर्व-संकट-हराय - सर्वशांतिपुष्टिकराय श्रीवृषभादि चौबीस तीर्थंकर अष्ट वर्ग अरहंतादि पंचपद, दर्शन ज्ञान चारित्र सहित चतुनिकाय देव चव प्रकार अवधिधारक श्रमण अष्ट ऋद्धि संयुक्त बीस चार सुरि, तीन हीं अहंदबिम्ब दशदिग्पाल यंत्र सम्बन्धि परमदेवाय जयमाला पूर्णाऱ्या निर्वपामोति स्वाहा / ऋषि मंडल शुभ यंत्र को जो पूजे मन लाय / ऋद्धि सिद्धि ता घर बसे, विधन सघन मिट जाय / / विधन सघन मिट जाय, सदा सुख सो नर पावै / ऋषि मंडल शुभ यंत्र तनी, जो पूज रचावे / / Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 / नित्य नियम पूजा भाव भक्ति युत होय, सदा जो प्राणी व्यावै / या भव में सुख भोग, स्वर्गकी सम्पति पावै / / या पूजा परभाव मिटे भव भ्रमण निरन्तर / यात निश्चय मान करो, नित भावभक्ति धर / / ___( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् / सम्बत् भूव ग्रह मांहि, सावन सार असेत / पहर रात बाकी रही, पूर्ण करी सुख हेत // श्री तीस चौबीसी पूजा पांच भरत शुभ क्षेत्र, पांच ऐरावते, ___आगत नागत वर्तमान जिन शाश्वते / सो चौबीसी तीस जजों मन लायके, आह्वाननं विधि करू वार त्रय गायके / / ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धि-पंचभरत पंचऐरावत क्षेत्रस्थ भूतानागत वर्तमान-सम्बन्धिसप्तशतविंशतितीर्थकराः अत्र अवतर२ संवौषट् इति आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / नीर दधि क्षीर सम लायो, कनकके भृग भरवायो / जरा मृतु रोग सन्तायो, अवै तुम चरण ढिंग आयो / द्वीप ढाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता दश विष छाजे। सात शत बीस जिनराजै, पूजते पाप सब भाजै / / 1 / / ॐ ह्रीं पंचभरत-पंचऐरावत--क्षेत्रस्थ--भूतानागत-वर्तमानकाल सम्बन्धि तीस चौबीसीके सातसोवीस तीर्थकरेभ्यो जलं नि / Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा सुरभिजुत चन्दन लायो, संग करपर घसवायो / “धार तुम चरण ढरवायो, सु भवआताप नशवायो द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो चदनम् नि० / चन्द्रसम तन्दुल, सारं किरण मुक्ता जु उनहारं / पुज तुम चरनडिंग धारं, अक्षय पद काजके कारं ।द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अक्षतान् नि / पुष्प-शुभ गन्धजुत सोहे सुगन्धित तास तन मोहे / जजत तम मदन छय होवे, मुक्तिपुर पलकमें जोवे द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो पुष्प नि / -सरस व्यज्जन लिया ताजा, तुरत बनवाइया खाजा / चरन तुम जजो महाराजा, क्षुधा दुख पलकमें भाजा द्वीप० ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो नैवेद्य नि०।। दीप तम नाशकारी है, सरस शुभ ज्योतिधारी हैं / होय दश दिश उजारी है, धूम्र मिस पाप जारी हैं।द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो दोप नि० / सरस शुभ धूप दश अगी, जलाऊं अग्निके संगी। करम की सैन चतुरंगी, चरण तम पूजते भंगी ।।द्वीप०॥ ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो धूप नि० / Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 ] नित्य नियम पूजा मिष्ट उत्कृष्ट फल ल्यायो, अष्ट अरि दुष्ट नशवायो / श्रीजिन भेट करवायो, कार्य मनवांछित पायो ॥द्वीप ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो फलं नि / द्रव्य आठो जु लीना है. अर्घ करमें नवीना है / पूज” पाप छीना है 'भानमल' जोड कीना है // द्वीप० / / ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि० / प्रत्येक अर्घ आदि सुदर्शन मेरु तनी दक्षिण दिशा, भरत क्षेत्र सुखदाय सरस सुन्दर बसा / तिहँ चौवीसी तीन तने जिनरायजी, बहत्तरि जिन सर्वज्ञ नमो शिरनायजी 1 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुकी दक्षिण दिशा भरत क्षेत्र सम्बन्धिके . तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / ताहि मेरु उत्तर ऐरावत सोहनो, आगत नागत वर्तमान मनमोहनो / तिहँ चौबीसी तीन तने जिनरायजी, बहत्तरि जिन सर्वज्ञ नमों शिरनायजी / 2 / ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुकी उत्तर दिशा ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धि तीन चौबीसोके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि० / खण्ड धातुकी विजय मेरुके, दक्षिण दिशा बरत शुभ जान / तहां चौबीसी तिन विराजे, आगत नागत करु वर्तमान / तिनके चरणकमलको निशदिन अर्घ चढाय करु उरध्यान / इस संसार भ्रमणते तारो अहो जिनेश्वर करुणा वान. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं घातुकीखंड द्वीपको पूर्वदिशि विजयमेरुकी दक्षिण भरत क्षेत्र संबन्धी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि / इसी द्वीपकी प्रथम शिखरके, उनर ऐगवत जो महान / आगत-नागत वर्तमान जिन, बहत्तरि सदा शाश्वते जान / / तिनके चरण कमलको निशदिन, अर्ध चढ़ाय करू उरध्यान इस संसार भ्रमण तारो, अहो जिनेश्वर करुणावाम // ॐ ह्रीं घातुकीखण्ड द्वोपको पूर्वदिशि विजयमेरुको उत्तरदिशि ऐरावतक्षेत्रसंबन्धी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि० चौपाई खंडधातकी गिरि अचल जु मेरु, दक्षिण तास भरत बहुँ घेरू तामें चौबीसी त्रय जान, आगत नागत अरु वर्तमान / , ह्रीं घातकीखण्डकी पश्चिम दिशा अचलमेरुकी दक्षिण दिशा भरतक्षेत्रसंबंधी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि० .. अचल मेरु उत्तर दिश जाय ऐरावत शुभ क्षेत्र बताय / तामें चोवीसी त्रय जान, आगत नागत अरु वर्तमान / / ॐ ह्रीं धातुखंडकी पश्चिमदिशा अचलमेरुकी उत्तर दिशा ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धि तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्धा नि० : सुन्दरी छन्द द्वीप पुष्करकी पूरब दिशा, मंदिर मेरुकी दक्षिण भरतसा / ताविणे चौबीसी तीन अर्घ जु, अर्घ लेय जजों परवीन जु / ॐ ह्रीं पुष्कर द्वीपकी पूर्वदिशा मंदिर मेरुको दक्षिणदिशा भरत क्षेत्र सम्बन्धि तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि० / गिर सु मन्दिर उत्तर जानियो, क्षेत्र ऐरावत सु बखानियो / ताविषै चौबीसी तीन जु अर्घ लेय जजु परवीन जू / Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 / नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं पुष्करद्वीपकी पूर्व दिशा मंदिरमेरुकी उत्तरदिशा ऐरावत सम्बन्धि तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि० / . पद्धरि छन्द पश्चिम पुष्करगिरि विद्युतमाल, ता दक्षिण भरत बन्यो रसाल तामें चौबीसी हैं जु तीन वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन / / हीं पुष्कराद्ध द्वीपकी पश्चिमदिशा विद्युतमालीमेरुकी दक्षिण दिशा भरतक्षेत्रसंबंधी तीन चौबीसीके बहत्तरजिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि. याही गिरिके उत्तरजु और ऐरावत क्षेत्र तनी सुठोर / तामें चौबीसी हैं जु तीन वसु द्रव्य लेय पजों प्रवीन // ह्रीं पुष्करार्द्धद्वीपकी पश्चिम दिशा विद्युत्मालीमेरुकी उत्तरदिशा ऐरावतक्षेत्रसंबन्धी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि। द्वीप अढाई के विष, पंचमेरु हित दाय / दक्षिण उत्तर तालुके, भरत ऐरावत भाय / भरत ऐरावत भाय, एक क्षेत्र के मांही, चौबीसी है तीन, तीन दशो ही के माहीं / दशो क्षेत्र के तीस सात सौ बीस जिनेश्वर, अर्थ लेय कर जोर जजौं 'रविमल' मन शुद्ध कर / ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धी दश क्षेत्रके विष तीस चौबीसीके सातसौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / जयमाला दोहा-चौबीसी तीसो तनी पजा परम रसाल / मन-बच-तन सों शुद्धकर अब वरणो जयमाल / / जय द्वीप अढ़ाई में जु सार, गिरि पंचमेरु उन्नत आर / तागिरि पूरब पश्चिम जु और,शुभक्षेत्र विदेह बसै जुठोर / दक्षिण के माही, माहीं / Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 121 ता दक्षिण क्षेत्र भरत सुनान है उत्तर ऐरावत महान / गिरि पांचतन दश क्षेत्र जोय, ताको वरनन सुनि भव्य लोय जो भरत तने वरनन विशाल, तेसो ही ऐरावत रसाल / इक क्षेत्र बीच विजयाद्ध एक ता उपर विद्याधर अनेक / / इक क्षेत्र तने षट खंड जान, तहां छहों काल बरतें समान / जो तीन कालमें भोगभूमि, दश जाति कल्पतरु रहें भूमि // जब चौथी काल लगै जु आय, तब कर्मभूमि व सु आय / जब तीर्थंकरको जन्म होय, सुरलेय जज गिरि मेरु सोय / बहु भक्ति करें सब देव आय, ताथेई थेई थेई की तानलाय हरि तांडव नृत्य करे अपार, सब जीवन मन आनंदकार / / इत्यादि भक्ति करिके सुरिन्द्र, जिनथान जाय युत देव वृन्द या विधि पांच कल्याण जोय, हरिभक्ति कर अतिहर्ष होय या काल विगै पुण्यवन्त जीव, नरजन्मभार शिव लहै अतीव सब त्रेसठ पुरुष प्रवीन जोय सब याही काल विगै जु होय जब पंचमकाल करे प्रवेश, मुनि धर्म तनो नहिं रहे लेश / विरले कोई दक्षिण देश माहि, जिनधर्मी जन बहुते जु नांहीं जब आवत है षष्टम जु काल दुःखमें दुःख प्रगटै अतिकराल तब मांसभक्षी नर सर्व होय, जहां धर्म नाम नहिं सुनै कोय याही विधिसे षट्काल जोय, दशक्षेत्रनमें इकसार होय // सब क्षेत्रनमें रचना समान जिनवाणी भाख्यो सो प्रमान / चौबीसी है इक क्षेत्र तीन दश क्षेत्र तीस जानो प्रवीन / / Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 / नित्य नियम पूजा आगत नागत जिन वर्तमान सब सात शतक अरु बीस जान सवही जिनराज नमो त्रिकाल,मोहिमववारिधित ल्यो निकाल यह वचन हृदय में धारि लेव मम रक्षा करो जिनेन्द्र देव / 'रविमल' की विनती सुनो नाथ, तुमशरणलई करजोडी हाथ मनवांछित कारज करो पूर, यह अज हियेमें धरि हजूर / / पत्ता-शत सातजु बासं श्रीजगदीशं आगत नागत वर्ततु है मनवचतन पूज, सुबमन हूँजै सुरग मुक्तिपद धार त है. ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धि दशक्षेत्रके विषै तीस चौबीसीके सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / दोहा-सम्बत् शत उन्नीस के ता उपर पुनि आठ / पीय कृष्ण तृतीया गुरु, पूरन कीनो पाठ / / अक्षर मात्राकी कसर, बुध जन शुद्ध करेहि / अल्प बुद्धि मोहि जानके, दोष नाहिं मम देहि / / पडयो नहीं व्याकरण मैं, पिङ्गल देख्यो नाहिं / जिनवाणी परसादतै उमंग भई घट मांहि / मान बढाई ना चहूँ, चहूँ धर्मको अंग / / नित प्रति पूजा कीजियो, मनमें धार उमंग / / ___ इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि रविव्रत पूजा यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन कही। करहुँ भव्यजन लोक, मुमन दे के सही / / पूजौं पार्श्व जिनेन्द्र त्रियोग लगाय के / मिटै सकल संताप मिले निधि आयके ... Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम बूजा.....................[ 193. मति सागर इक सेठ कथा ग्रंथन कही। उनही ने यह पूजा कर आनन्द लही / / ताते रविव्रतसार, सो भविजन कीजिये / / सुख सम्पति संतान अतुल निधि लीजिये। दोहा-प्रणमों पार्श्व जिनेशको, हाथ जोड शिर नाय / परभव सुखके कारने, पूजा करू बनाय / / रविवार व्रतके दिना, एहीं पूजन ठान / ता फल स्वर्ग सम्पति लहै, निश्चय लीजे मान / ॐ ह्रीं पार्श्वनाथ जिनेंद्र / अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः प्रतिष्ठापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / / उज्ज्वल जल भरके अति लायो रतन कटोरन माहीं / धार देत अति हर्ष बढावत जन्म जरा मिट जाहीं // पारसनाथ जिनेश्वर पूजों रविव्रत दिन भाई / सुख सम्पति बहु होय तुरत ही आनन्द मंगल दाई / / ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रायजन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / / मलयागिरि केशर अति सुन्दर कुकुम रंग बनाई। धार देत जिनचरन आगे, भव आताप नशाई / पारस चंदनं मोती सा अति उज्ज्वल तन्दुल ल्यायो नीर पखारो / अक्षयपदके हेतु भावसों श्रीजिनेश्वर ढिंग धारो पारस अक्षतं. बेला अर मचकुन्द चमेली, पारिजातके ल्यावा। चुनचुन श्री जिन अग्र चढ़ाऊ, मनवांछित फल पावो .पा.पुष्प बावर फेनी गुजा आदिक, घृत में तेल पकाई। कंचन थार मनोहर भरके, चरनन देत चढाई पारस.निवे Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 ] नित्य नियम पूजा मणिमय दीप रतन मय लेकर, जगमग जोति जगाई। जिनके आगे आरति करके, मोह तिमिर नशजाई पा. दीपं चूनकर मलयागिरका चन्दन, धूप दशांग बनाई। तव पावकमें खेय भावसों, कर्मनाश हो जाई / पारस.। धूपं श्रीफल आदि बदाम सुपारी, भांति भांति के लायो श्रीजिनचरन चढाय हरष कर, तातै शिवफल पावो ।पा. फलं जल गन्धादिक अध्य द्रव्य ले, अरघ बनाओ भाई। नाचत गावत हर्षभाव सों कंचन थार भराई / पा. / अर्घ गीता छन्द मन वचन काय विशुद्ध करके पार्श्वनाथ सु पूजिये / जल आदि अर्घ बनाय भविजन भक्तिवंत सु हुजिये / पूज्य पारसनाथ जिनघर, सकल सुख दातारजी / जे करत हैं नरनारी पूजा, लहत सुख अपारजी पूर्णा / / जयमाला दोहा-यह जगमें विख्यात है, पारसनाथ महान / जिन गुनकी जयमालिका, भाषा करो बखान / पद्धरि छन्द जय जय प्रगमों श्रीपार्श्वदेव, इन्द्रादिक तिनकी कात सेव / जय जय सु बनारस जन्म लीन, तिहूंलोक विष उद्योत कीन / जय जिनके पितुश्रीविश्वसेन, तिनके घर भये मुख चैन देन / जय बामा देवी मात जान, तिनके उपजे पारस महान // 2 जय तोन लोक आनन्द देन, भविजनके दाता भए ऐन / जय जिनने प्रभुको शरण लीन, तिनकी सहाय प्रभुजो सो क्रीन Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 125 जय नाग नागिनी भये अधीन, प्रभु चरनन लाग रहे प्रवीन तनके सो देह स्वर्गे सु जाय, धरणेन्द्र पद्मावती भये आय 4 जय चोर सुअंजन अधमजान, चोरी तज प्रभुको धरे ध्यान जय मृत्यु भये स्वर्गे सु जाय, ऋद्धि अनेक उनने सो पाय 5 जय मतिसागर इक सेठ नान जिन, रविवत पूजा करि ठान तिनके सुत थे पर देश मांहि, जिन अशुभ कर्म काटे सु ताहि 6 जे रविव्रत पूजन करि सेठ ता फलकर सबसे भई भेट / जिन जिनने प्रभुकी शरण लीन, तीन रिद्धि सिद्धि पाई नविन जे रविव्रत पूजा करहि जेय, ते सुक्ख अनन्तानन्त ले / धरणेन्द्र पद्मावती हुए सहाय प्रभु भक्त जान तत्काल जाय पूजा विधान इहि विधि रचाय, मन वचन काय तीनों लगाय जे भक्तिभाव जयमाल गाय सोही सुख सम्पति अतुल पाय बाजत मृदंग बीनादि सार, गावत नाचत नाना प्रकार / तन नननननननन ताल देत, सन नननननन सुर भर सुलेत ता थेई थेई थेई पग धरत जाय, छमछमछमछम घुधरु बजाय जे कहति निरति इहि भांति२, ते लहहि सुक्ख शिव पुरसुजातः दोहा-रविव्रत पूजा पार्श्वकी करे भाविक जन जोय / __ सुख सम्पत्ति इह भव लहें तुरत सुरंग पद होय / / ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथाय जिनेन्द्राय पूर्णीय निर्व० / अडिल्ल-रविव्रत पाय जिनेन्द्र पूज्य भवि जन धरे / भव भव के आताप सकल छिनमें टरें / / Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 नित्य नियम पूजा होय सुरेन्द्र नरेन्द्र आदि पदवी लहें / सुख सम्पति सन्तान अटल लक्ष्मी रहें / फेर सर्व विध पाय भक्ति प्रभु अनुसरै / नाना विध सुख भोग बहुरि शिव तियवरै / / ___ इत्याशीर्वादः / श्री आदिनाथ जिन पूजा / नाभिराय मरुदेविके नन्दन, आदिनाथ स्वामी महाराज / सर्वारथसिद्धितै आप पधारे, मध्य लोक मांहि जिनराज / / इन्द्रदेव सब मिलकर आये, जन्म महोत्सव करने काज / आह्वानन सब विधि मिल करके, अपने कर पूजै प्रभु पाय // ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् / क्षीरोदधिको उज्ज्वल जल ले, श्रीजिनवर पद पूजन जाय। जन्म-जरा दुख मेटन कारन, ल्याय चढाऊ प्रभुजीके पाय / श्रीआदिनाथके चरण-कमलपर, बलि-२ जाऊं मन वच काय हो करुणानिधि भवदुख भेटो, यात मैं पूजों प्रभु पाय / / ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं। - मलयागिरी चंदन दाह निकन्दन, कंचनझारीमें भर ल्याय / श्रीजीके चस्ण चढावो भविजन, भव आताप तुरत मिटि जाय श्री आदि० // चंदन // Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 127 'शुभशालि अखंडित सौरभ-मंडित, प्रासुकजलसौं धोकर ल्याय 'श्रीजीके चरण वढावो भविजन, अक्षय पदको तुरत उपाय / / श्री आदि० ।।अक्षतं / कमल केतली बेल चमेली, श्रीगुलाबके पुष्प मंगाय / श्री जीके चरण चढावो भविजन, कामबाण तुरत नशि जाय। श्री आदि० / / पुष्प / / नेवज लोना पट रस भोना श्रीजिनवर आगे धरवाय / थाल भराऊं क्षधा नशाऊ, ल्याऊ प्रभु के मंगल गाय / / श्री आदि० / नैवेद्यं / / जगमग जगमग होत दशो दिश,ज्योति रही मंदिर में छाय / श्रीजीके सन्मुख करत आरती, मोह-तिमिर नास दुखदाय // श्री आदि० / दीपं / / अगर कपर सुगन्ध मनोहर, चन्दन कूट सुगन्ध मिलाय / श्रीजोके सन्मुख खेय धुपायन, कर्म जरे चहूँ गति मिटजाय श्री आदि. ॥धूपं। श्रीफल और बदाम सुपारी केला आदि छुहारा ल्याय / मनमोक्ष-फल पावन कारन, ल्याय चढाऊं प्रभुजीके पांय / / श्री आदि० / फलं। शुचि निरमल नीरं गन्ध सुअक्षत, पुष्प चरुले मन हरषाय। दीप धूप फल अर्थ सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय / / श्री आदि०॥अ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 ] नित्य नियम पूजा पंचकल्याणक सवार्थसिद्धि” चये मरुदेवी उतर आय / दोज असित आषाढकी जजू तिहारे पाय / / ॐ ह्रीं आषाढकृष्णाद्वितीययां गर्भ कल्याणकप्राप्ताय श्रीआदि-- नाथ जिनेंद्राय अ नि० स्वाहा / चैत्र वदी नौमी दिना, जनम्या श्री भगवान / सुरपति उत्सव अति कराया, मैं पूजों धर ध्यान / / ॐ ह्रीं चैत्र कृष्णानवम्यां जन्मकल्याणक प्राप्ताय श्रीआदिनाथ जिनेंद्राय अधू नि० स्वाहा / ___ तृणवत ऋद्धि सब छांडिके, तप धारयो बन जाय / नौमी चैत्र असेत की, जजूतिहारे पांय / / ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णानवम्यां तपकल्याणक प्राप्ताय श्रीआदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ नि० स्वाहा / फाल्गुन यदि एकादशी, उपज्यो केवल ज्ञान / इन्द्र आय पूजा करि, मैं पूजों यह थान / ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा एकादश्यां ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्री. आदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ नि० स्वाहा / माघ चतुर्दशि कृष्ण की मोक्ष गये भगवान / भवि जीवोंको बोधिके, पहूँचे शिवपुर थान / / ॐ ह्रीं माघकृष्णाचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणक प्राप्ताय श्री आदि नाथ जिनेंद्राय अर्घ नि० स्वाहा / जयमाला। आदीश्वर महाराज मैं विनती तुमसे करू / चारो गतिके मांहि मैं दुख पायो सो सुनो ! / Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 129 अष्ट कर्म मैं एकलो. यह दुष्ट महादुख देत हो / कबहूँ इतर निगोद में मकू पटकत करत अचेत हो / / म्हारी दीनतणी सुन विनती // 1 // प्रभु कबहुँ पटक्यो नरकमें जठे जीव महादुःख पाय हो। निष्ठर निरई नारकी, जठे करत परस्पर घात हो / म्हा.. प्रभु नरकतणा दुःख अब कहु जठे करत परस्पर घात हो। कोइयक बांध्यो सांभसो, पापी दे मुद्गरकी मार हो म्हा.. कोइयक काटे करीत सों पापी अंगतणी दोय फाड हो / प्रभु यह विधि दुःखभगत्या घणा फिरगतिपाई तिरयंच हो। हिरण बकरा बाछला, पशु दीन गरीब अनाथ हो। पकड कसाई जाल में पापी काट काट तन खाय हो म्हा. प्रभ मैं ऊट बलद मैंसों भयो, ज्यांपै लादियों भार अपार हो नहिं चाल्यो जब गिरपरयो, पापी दे सोटन की मार हो म्हा.. प्रभु कोइयक पुण्य संयोगसु मैं तो पायो स्वर्ग निवास हो। देवांगना संग रमि रह्यो, जठै भोगनिको परिताप हो। म्हा. प्रभुसंघ अप्सरा रमि रह्यो कर कर अति अनुराग हो / कबहुँक नन्दनवन-विौ, प्रभु कबहुँ बन गृह मांहि हो / म्हा.. प्रभु यहविधि काल गमायकं, फिर मालागई मुरझाय हो। देव तिथि सब घट गई फिर उपज्यो सोच अपार हो। सोच करता तन खिरपडयो,फिर उपज्यो गरममें जाय हो म्हा: Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 ] नित्य नियम पूजा प्रभुगर्भतणा दुख अब कहूँ, जठै सकुडाईकी ठोर हो / हलन चलन नहिं कर सक्यो जठे सघनकीच घनघोर हो।म्हा माता खाचे चरपरो, फिर लागै तन सन्ताप हो / प्रभु जो जननी तातो भखै, फिर उपजे तन संताप हो ।म्हा. औंधे मुख झुल्यो रह्यो, फेर निकसन कौन उपाय हो / कठिन 2 कर निसरयो जैसे निसरै जंत्रीमें तार हो !म्हा. प्रभु फिर निकसत ही धरत्यांपडयो,फिर लागीभूक अपारहो राय रोय विलख्यो घणो, दुख वेदनको नाहिं पार हो ।म्हा. प्रभु दुख मेटन समरथ धनी, यात लागू तिहारे पाय हो। सेवक अरज कर प्रभु ! मोकू भवोदधि पार उतार हो म्हा. दोहा-श्रीजीकी महिमा अगम है, कोई न पावै पार / मैं मति अल्प अज्ञान हूँ, कौन करै विस्तार / / ॐ ह्री आदिनाथाय जिनेन्द्राय महार्घ निर्व० स्वाहा / दोहा-विनती ऋषभ जिनेशकी जो पढसी मन लाय / स्वर्गामें संशय नहीं निश्चय शिवपुर जाय / इत्याशीर्वादः / / पंच बालयती तीर्थंकर पूजा दोहा-श्री जिन पंच अनंगजित, वासुपूज्य मलि नम / पारसनाथ सुवीर अति, पूजूचित धरि प्रेम / / ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्यो अत्रावत रावतर संवौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 131 शुचि शीतल सुरभि सुनीर, लायो भर झारी / दुख जामन मरन गहीर, याको परिहारी / श्री वासुपूज्य मलि नेम, पारस वीर अति / नमु मन वच तन धरि प्रेम, पांचों बालयति / ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा / चन्दन केशर करपूर जल में घसि आनो / भव तप भंजन सुखपूर, तुमको मैं जानो // श्रीवासु. चंदनं वर अक्षत विमल बनाय, सुवरण थाल भरे वह देश देशके लाय, तुमरी भेट धरे। बासु. / / अक्षतं / / यह काम सुभट अति सूर, मनमें क्षोभ करो। मैं लायो सुमन हजूर, याको वेग हरो / श्रीवासु. / पुष्पं / / पटस परित नैवेद्य, रसना सुखकारी। द्वय करम वेदनी छेद, आनंद ह भारी / श्रीवातु. नैवेद्यं // धरि दीपक जगमग ज्योति तुम चरनन आगे। मम मोह तिमिर क्षय होत, आतम गुण जागे॥श्रीवासु.दीपं -ले दशविधि धूप अनूप, खेऊ गन्ध मयी। दशगंध दहन जिन भूप, तुम हो कर्मजयी ।श्रीवासु. धूपं। पिस्ता अरु दाख बदाम, श्रीफल लेय घने / तुम चरण जजूगुणधाम,द्योसुख मोक्ष तने ।श्रीवासु. फलं॥ सजि वसुविधि द्रव्य मोनज्ञ, अरघ बनावत है। वसुकर्म अनादि संयोग, ताहि नसावत हैं ।श्रीवासु.||अघं। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 ] नित्य नियम पूजा जयमाला दोहा-बालब्रह्मचारी भये, पांचो श्री जिनराज : तिनकी अब जयमालिका, कहूँ स्वपर हितकाज / / जय जय जयजय श्रीवासुरज्य तुम सम जगमें नहीं और दूज / तुम महालक्ष सुर लोक छार. जब गर्भ मात मांहि पधार / षोडश स्वपने देखे तुमात, बल अवधि जान तुम जन्म तात / अति हर्षधार दंपति सुजान, बहु दान दिया जाचक जनान || छप्पन कुमारिका कियो आन.तुम मात सेव बहु भक्ति ठान / छः मास अगाऊ गर्ने आय, धनपति सुवरन नगरी रचाय / / तम तात महल आंगन मंझार तिहूँकाल रतन धारा अपार / घरपाये पट नवनाम सार, धनि जिन पुरुषन नयनन निहार जय मल्लिनाथ देवन सदेव, शतइन्द्र करत तुम चरन सेव / तुम जन्मत ही त्रयज्ञान धार, आनन्द भयो तिहुँ जग अपार तबही ले चहु विधि देव संग, सौधर्म इन्द्र आयो उमंग / सहि गज ले तुम हर गोद आप,बन पांडुक शिल उपर सुथाप क्षीरोदधि ते बहु देव जाय,भरि जल घट हाथोहाथ लाय / / करि न्हवन वस्त्रभूपण सजाय, दे ताल नृत्य तांडव कराय / पुनि हर्षधार हृदये अपार, सब निर्जर तब जय जय उवार / तिस अवसर आनन्द हे जिनेश हम कहिवे समरथ नांहि लेश जय जादोपति श्री नेमिनाथ हम नमत सदा जुग जोरि हाथ तुम ब्याह समय पशुवन पुकार, सुन तुरत छुडाये दयाधार / कर कंकण अरु सिर मौर बन्द, सो तोड भये छिनमें स्वछन्द Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा....................... 133 . तबही लोकांतिक देव आय, वैराग्य वर्द्धनी थुति कराय // तत्क्षण शिविका लाये सुरन्द आरुढ भये तापर जिनेन्द्र / सो शिविका निज कंधन उठाय,सुरनरखग मिल तपवन ठैराय कचलौंच वस्त्र भूषण उतार, भये जती नगन मुद्रा सुधार / हरि केश लेय रतनन पिटार, सो क्षीर उदधि मांहि पधार जय पारसनाथ अनाथ नाथ, सुर असुर नमत तुम चरण माथ जुग नाग जरत कीनो सुरक्ष, यह बात सकल जगमें प्रत्यक्ष तुम सुर धनु सम लखि जग असार, तपत भये तन ममतवार सठ कमठ कियो उपसर्ग आय, तुम मन सुमेरु नहिं ढगमगाय तुम शुक्लध्यान गहि खंडन हाथ,अरि चार घातियाकर सुधात उपजायो केवल ज्ञान भानु, आयो कुवेर हरि बच प्रमाण की समोसरण रचना विचित्र, तहां खिरत मई वाणी पवित्र मुनि सुरनर खग तिर्यच आय सुनि निज२ भाषा बोध पाय !! जय वर्द्धमान अंतिम जिनेश पायो न अंत तुम गुण गण,श / तुम चार अघाती करमहान लियो, मोक्षस्वयंसुख अचलथान / / तबही सुरपति बल अवधिजान, सब देवन युत बहु हर्षठान / सजि निज बाहन आयो सुतीर, जहं परमौदारिक तुम शरीर निर्वाण महोत्सव कियो भूर, ले मलयागिर चन्दन कपूर / बहु द्रव्य सुगन्धित सरस सार, तामें श्रीजिनवर वपु अपार निज अगनिकुमारिन मुकूटनाय,विहं रतननिशुचि ज्वाला उठाय तिस शिर मांह दीनों लगाय,सो भस्म सबन मस्तक चढाय अति हर्ष थकी रचि दीपमाल, शुभ रतनमई दशदिश उजाल Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134] नित्य नियम पूजा पुनि गीत नृत्य वाजे बजाय, गुण गाय ध्याय सुरपति सिधायः सो थान अवै जगमें प्रत्यक्ष, नित होत दीपमाला सुलक्ष / हे जिन तुम गुण महिमा अपार, वसु सम्यग्ज्ञानादिक सुसार तुम ज्ञानमांहि तिहुँलोक दर्व, प्रतिबिंबत हैं चन अचर सर्व / लहि आतम अनुभव परम ऋद्धि, भये वीतराग जगमें प्रसिद्ध ह बालयति तम सबन एम, अचरज शिवकांता वरी केम / तुम परम शांति मुद्रा सुधार, किये अष्टकर्म रिपुको प्रहार / / हम करत विनती बार बार, कर जोर स्व मस्तक धार धार / तुम भये भवोदधि पार पार, मोको सुवेग ही तार तार / / अरदास दास ये पूर पूर, वसु कर्म शैल चकचूर चूर / दुख सहन करन अब शक्ति नाहि गहि चरणशरण किजे निवाह चौ०-पांचों बालयति तीर्थेश, तिनकी यह जयमाल विशेष / मनवचकाय त्रियोग संहार जे गावत पावत भवपार / / : ॐ ह्रीं पंच बालयति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पूर्णाघ / दोहा-ब्रह्मचर्य सो नेह धरि, रचियो पूजन ठाठ / पांचो बाल यतीन को, कीजे नित प्रति पाठ / / इत्याशीर्वादः / पंच परमेष्ठीको पूजा। दोहा-मंगल मय मंगल करन, पंच परम पदसार ! अशरण को ये ही शरण, उत्तम लोक मंझार / 1 // चव अरिष्ट को नष्ट कर, अनन्त चतुष्टय पाय / परम इष्ट अरिहन्त पद, वन्दौं शीष नवाय // 2 // Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 135 नित्य नियम पूजा वसुविधिहरि वसु भू वसे वसु गुणयुत शिव ईश / नमूनाथ वसु अंग तिन, दायक पद जगदीश // 3 // बाप धरै आचार शुभ, पर आचरावन हार / सो आचरज गुणधर, नमू शीश कर धार ||4|h. आप अंग पूरव बढे, शिषनि पढावत सोय / ___ ते उवझाय सु नाय सिर, नमू देव धी मोय // 5 // मोक्ष मार्ग साधन उदित, धरै मूल गुण साध / ___मैं शिवसाधन साधु पद, नमूहरन भव वाधि // 6 // इहि विधि पंचनि प्रगमिकर, रचू पूज सुखकार / तातै प्रथमहि पढनि को, समुचय जजि हूँ सार ।पुष्पा.. [अथ पंच परमेष्ठी सामान्य पूजा] अडिल्ल-प्रथम नमू अरिहन्त सिद्ध अरु सूर ही, ___ उपाध्याय सब साधु नम गुण पूरहो // परम इष्ट यह पंच जजों जुग पादही, आह्वाननं विधि करू सगुन गुण गावहीं / / ह्रीं श्री अरहन्तादि सर्वसाधुपर्यंत पंचपरमेश्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः प्रतिष्ठापनं. बत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / अथाष्टक-गीता छन्द / वर मिष्ट स्वच्छ सुगन्ध शीतल, सुर सरित जल लाइये। भरि कनक झारी धार देतें, जन्म मृत्यु नशाइये / / Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 / नित्य नियम पूजा अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सुपद सब साधही / पूजू सदा मन वचन तन तें, हरो मो भव बाध ही / / ॐ ह्रीं श्री अरहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधुभ्यो जन्मजरामृत्य विनाशनाय जलं निर्वपामी ति स्वाहा / मलय माहि मिलाय केशर, घसों चंदन बारना। भृगार भरिकरि चरण पूजन, भवआताप नसावना अ.चंदनं अक्षत अखंडित सुरभि श्वेत हि, लेत भरि करि थालही। जे जजै भविजन भाब सेती, अक्षयपद पावै सही अरि.अथतं स्वर्ण रूप्यमय मनोहर, विविध पुष्प मिलाइये / भरि कनकथाल सु पूजि है,भवि समर-धान नशाइये ।अ.पुष्पं बहु मिष्ट मोदक मुष्ट फेनी, आदि बहु पकवान ही। भरिथाल प्रभु जमैं विधतै, नसें क्षत दुखनाशही अरि.नवेद्य मणि स्वर्ण आदि उद्योत कारण, दीप बहुविधि लीजिये / तम मोह पलट विध्वंसने,जुग पाद पूजन कीजिये ।अरि.दीपं कपूर अगर सुगन्य चंदन, कनक धूपायन भरें। भवि करहि पूजा भाव सेती, अष्ट कर्म सब जरै अ. धूप। बादाम श्रीफल लौंग खारिक, दाख पुंगी आदि ही। भरिथाल भविजन पूज करित, मोक्षफल पावै सही ।अ.फलं जल गंध अक्षत पुष्प चरु ले, दीप धूप फलो गही / करि अर्घ पू0 पंचपद को, लहैं शिवसुख वृन्द ही / अहि.अर्घ जयमाला दोहा-नम् प्रथम अरिहन्त सिद्ध, आचारज उवझाय / __ साधु सकल बिनती करू, मन वच तन शिरनाय / / Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 137 पद्धरि छन्द "चव घाति चूर अरिहंत नाम, पायोच्युत दोष सगुणधाम / तिनमें षटचाल जु मुख्य थाय, तिनमें दशगुण जनमत उपाय / / जय केवल ज्ञान उद्योत ठान, उपजे दशगुणको कहि बखान / चौदह गुण देवनि करत होय, तिनकी महिमा चरणे सु कोय वर अष्ट प्राविहारज संयुक्त, चामर छात्रादिक नाम युक्त / केवल दर्शन वरज्ञान पाय,सुखवीर्य अनन्त चतुष्टय पाय / / ये कहिवेके गुण हैं छिपार, गुण अनंत लखै तिनको न पार तातै करिहो करि अर्घ लेय, मोहि तारिर अरिहंत देव / / वसुविधिहरि वसुभू बसे सिद्ध,बसुगुण आदेिक लहि अत्यन्तरिद्ध पूजू मन वच तन अर्घ ल्याय, मोकू तुम थानकमें बसाय / / * वर द्वादश तप दश धर्म मेव, षट् आवास पंचाचार येव / त्रय गुप्ति सुगुन छत्तीसपाय, सब संघ ज्येष्ठ गुरु सरिथाय / बहु जीवन वृषको मग बताय, शिव संपति दिनी स मुनिराय पूजू मन वच तन अर्घ लेय, मोकू अजरामर पद करेय / / वर ग्यारह अंगरु चौद पूर्व, पढ उपाध्याय पद लहिये पूर्व तिनके पद पूजत अर्घ लाय, सब भ्रम नाशन जिन ज्ञानपाय गुण मूल अष्टविंशति अनूप, धरि हैं सब साधु तु शिव स्वरूप व्रत पंचसमिति पणइन्द्र रोध, षट् आवास भूमि सुशयन सोध तजि स्नान वसन कचलौंच ठानि,लघु भोजन ठाढे करत आन / त्यागे दातुन ये अष्टवीस, धरि साधे शिव तिन नमत शीस Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 ] नित्य नियम पूजा करि अष्ट द्रव्यको अर्थ लेय, सब साधुनकी करिहों जु सेव मैं मन वच तनतें शीश नाय, नमि होमो शिवमगको बताय जलथल रत मग विकट मांहि, ये पंच परमगुरु शरण थाहि डायन प्रेतादि उपद्रव माहि, उन पंच परम विन को सहाय बहु जीव जपत नवकार येव, रिद्ध सिद्ध लहि संकट हरेव / सो कथन पुरान 2 मांहि, हम ताको महिमा का कहाहि / / पत्ता-ये पंच आराधे, भव दुख बांधे, शिव संपति सहजै बरई मैं मन वच गाऊं, शीश नवाऊ, मो अविचल थान धरई ॐ ह्रीं पंचपरमेष्ठि जिनेभ्यः जयमाल पूर्णाऱ्या / सोरठा- विधन विनाशनहार, मंगलकारी लोकमें / सो तुमको भी सार, पंच सकल मंगल करें / इत्याशीर्वादः। श्री शान्तिनाथ जिन पूजा। मत्तगयन्द छन्द (जमकालंकार या भवकाननमें चतरानन पापपनानन घेरी हमेरी। आतमजानन मानन ठानन बानन हो दई सठ मेरी / / तामद भानन आपहि हो, यह छानन आनन आननटेरी। आन गही शरणागतको अब श्रीएतजी पत राखहु मेरी / / ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् / Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 139 (अष्टक) छन्द त्रिभंगी। अनुप्रासक / (मात्रा 32 जगनजित) हिमगिरिगतगंगा धार अभंगा, प्रासुक संगा, भरि भृगा। जरमरन मृतंगा नाशि अघंगा, पूजि पदंगा मृदु हिंगा / / श्री शान्तिजिनेशं नुतचक्रेशं वृषचक्रेशं चक्रेशं / हनि अस्चिक्रेशं हे गुनधेशं दयामृतेशं मक्रेशे / / 13 ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि वर बावनचंदन, कदलीनंदन, धनआनंदन सहित घसों। भवतापनिकंदन, ऐरानंदन, बदि अमंदन चरन वसों श्री. 2 ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेंद्राय भवतापविनाशनाय चंदनं नि। हिमकरकरि लज्जत,मलयसुसज्जत, अच्छत जज्जत भरीथारी दुखदारिद गज्जत,सदपदसज्जत भवभयभजत अतिभागी श्री &ह्रीं श्री शांतिनाथजनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि / मंदार सरोज कदली जोज, पुज भरोज मलय भरं / भरि कंथनथारी, तुमढिग धारी, मदनविदारी धीरधरं श्री४. ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेंद्राय कामबाणविध्वशनाय पुष्प नि० / पकवान नवीने पावन कीने षटर सभीने सुखदाई / मनमादनहारे, क्षुधा. विदारे आगें धारै गुनगाई / श्री. 5 ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि० / तुम ज्ञानप्रकाशे, भ्रमतम नाशे, ज्ञेयविकाशे सुखराशे / दीपक उजियारा, यातें धारा, मोह निवारा निजभासे श्री ॐ हीं श्री शांतिनाजिनेंद्राय मोहांधकारविनाशनाय दीप नि० चन्दन करपूरं करिवर चूर, पावक भूर माहिजुरं / तसु धूप उडावै, नाचत आवै, अलि गुजावै नधुरसुर श्री.७. ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि० स्वाहा / Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 ] नित्य नियम पूजा बादाम खजूरं, दाडिम पूरं, निंबुक भूरं ले आयो / तासो पद जजों,शिवफल सजो निजरसरज्जों उमगायो ।श्री. ॐ हों श्री गांति नायजितेंद्राय मोशन प्राप्तये फलं नि / वसुद्रव्य संवारो, तुमढि गधारी आनन्दकारी दृगप्यारी / तुम हो भतारी करूनाधारी यातै थारो, शरनारी श्री. 9 ॐ ह्रीं श्री शांति नाय जिनेंद्राय अनघपदप्राप्तये अर्घ नि० / (पंचकल्याणक अर्ध (सुन्दरी तथा द्रुतविलंबित छन्द) असित सातय भादा जानिये, गरम मंगल तादिन मानिये / शचि कियो जननी पद चर्वन हम कर इत ये पर अर्जनं // ही भाद्रपद कृष्णसप्तम्यां गर्भमङ्गलमंडिताय श्रोशांतिनाथायाघ जनन जेठ चतुदशि श्याम है, सफलइन्द्र सु आगत धाम है गजपुरै गज माजि सबै तबैं, गिरि जमैं इत मैं नजि हो अबै / * डोंगष्टकृष्ण चतुर्दश्यां जन्म मंगलप्राप्ताय श्री शांतिनाथाया, भव शरीर सुभाग असार है, इमि विवार तबै तप धार है। भ्रमर चौदसि जेठ सुहावनी, परमहेत जजों गुन पावनी / / ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्ण चतुर्दश्यां निःक्रमण महोत्सव मण्डिताय श्रो शांतिनाथाया / शुकलपोष दशैं गुखराश है, परम केवल-ज्ञान प्रकाश है / भवस पुद उधान को, हम कर नित मंगल सेवको / / ... डों पोष शुक्ल दशम्यां केवलज्ञान प्राप्ताय श्री शांतिनायाया / असित चौदसि जेठ हनें अरि,गिरि समेदथकी शिव-तिय-वरो प्रकलइन्द्र में तित आयकै, हम ज में इत मस्तक नायके / 5 ॐडों ज्येष्ठकृष्णावतुर्दश्यां मोक्षमंगल प्राप्ताय श्रीशांतिनाथाया Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 141 जयमाला शांति शांतिगुनमंडिते सदा जाहि ध्यावत सु पडिते सदा / मैं तिन्हें भक्तिमंडिते सदा पूजिहों कलुषहंडिते सदा / 5 / मोच्छ हेतु तम ही दयाल हो, हे जिनेश गुनरत्नमाल हो। मैं अबै सुगणदाम ही घरों ध्यावते तुरित मुक्ति-तीय वरों छन्द पद्धरि ( 16 मात्रा) जय शांतिनाथ चिद्रुपराज, भवसागर में अद्भुत जहाज / तम तजि सरवारसिद्धथान सरवारथजुत गनपुर महान ||1 तिन जनम लियो आनन्द धार, हरि तत छिन आयौ राजद्वार इन्द्रानी जाय प्रसूतिथान, तुमको कर में ले हरष मान / / 2 / / हरि गोद देय सो मोद धार, शिर चमर अमर ढारत अपार गिरिराज जाय तित शिला पांड, ताजै थाप्यौ अभिषेक मांड तित पंचमउदधि तनौं सुबार, सुकर करकरि ल्याये उदार। तव इन्द्र सहस करकरि आनंद, तुम सिर धाग ढारयौ सुनंद 4 अघ घघघघघघ धुनि होत घोर,भभभभभभ धधधध कलशशोर हमममम वाजत मृदंग, झन नननननननन न पुरंग / / 5 / / तननननननननन तनन तान धननननन घंटा करत ध्वान। ता थेईथेईथेईथेईथेई सुचाल, जुत नाचत गावत तुमहिं भाल चटचटचट अटपट नटत नाट, झटझटझट हट नट शट विराट इमि नाचत रात भगतरंग, सुर लेत जहां आनंद सग / / 7 इत्यादि अतुलमंगल सुठाट, सित बन्यो जहां सुरगिर विराट पुनिकारवियोमा पितृसदन बाय,हरि सौप्यो तुम तितरथाय Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा पुनि राजमाहि लहि चकरत्न,भोग्यौ छखंड करि धरम यत्न पुनि तप धरि केवलरिद्धिपाय,भबि जीवनकों शिवमग बताय शिवपुर पहुँचे तुम हे जिनेश, गुणमंडित अतुल अनंतामेष / मैं ध्यावतुहीं नित शीश नाय,हमरी मवबाधा हरि जिनाय 10 सेवक अपनों निज जान 2, करुणा करि भौभय भान-भान / यह विघन मूलतरू खांडखड, चितवितित आनंद मंडमंड 11 घता-श्रीशांति महंता, शिवतियता,सुगुन अनंता भगवंता। भवभ्रमन हनंता,सौख्य अनंता,दातारं तारनवंता / 12 ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय पूर्णाऱ्या निर्वपामोति स्वाहा / छन्द रुपक सवैया (मात्रा 31) शांतिनाथ जिनके पदपंकज, जो भवि पूजै मनव चकाय जनम जनमके पातक ताके, ततछिन तजि के जाय पलाय // मनवांछित सुख पावे सौ नर, बाचै भगतिभाव अतिलाय / ता” 'वृन्दावन' नित बंद, जाते शिवपुरराज कराय / / ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् / श्री पार्श्वनाथ पूजा - गीता छन्द वर स्वर्ग प्राणतको विहाय, सुमात वामा सुत भये / अश्वसेनके पारस जिनेश्वर, चरण जिनके सुर नये / / नवहाथ उन्नत तन विराज, उरग लच्छन पद लसे / थापू तुम्हें निन आय तिष्ठो करम मेरे सब नौं / ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवोषट / ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाय जिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 143 नित्य नियम पूजा क्षीरसोमके समान अम्बुसार लाइये हेमपात्र धारिक सु आपको चढाइये / "पाश्वनाथ देव सेव आपकी करू सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा / / ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / / चन्दनादि केशरादि स्वच्छ गन्ध लीजिये / / आप चर्न चर्च मोहतापको हनीजिये / / पाच // 2 // ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय भवतापविनाशनाय चंदनं नि: केन चन्दनके समोन अक्षतान् लायक। वर्गके समीप सार पुजको रचाइक / / पार्श्व• / 3 // ॐ ह्रीं श्रोपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि। केवड़ा गुलाब और केतकी चुनाइके / धार वर्णके समीप कामको नसाइक // पार्श्व० / / 4 / ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंशनाय पुष्प नि० घेवरादि बाबरादि मिष्ट सद्य में सने। आप चर्ण चर्चते क्षुधादि रोगको हने / पाव०॥५॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निक लाय रत्नदीपको सनेहपूरके भरू। वातिका कपूर वारि मोह ध्वांतकू हरू / पार्श्व० // 6 // ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपनि धूप गन्ध लेयकै सु अग्निसंग जारिये / / तास धृपके ससंग अष्ट कर्म वारिये ॥पार्य० // 7 // ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि / Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 / नित्य नियम पूजा खारिकाहि चिरभटादि रत्नथाल मैं भरूं। हर्णधारकै जजू सुमोक्ष सुक्खको वरु पार्श्व० 8 / ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फल नि० // नीरगंध अक्षतान पुष्प चार लीजिये / दीप धूप श्रीफलादि अर्घतै जजीजिये : पाय० / / 9 / / ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ नि / पंचकल्याणक शुभप्रानत स्वर्ग विहाये, वामा माता उर आये। पैशाखतनी दुतिकारी, हम पूज विधन निवारी / 1 / ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णाद्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रीय अर्ध नि० स्वाहा / जगमें त्रिभुवन सुखदाता, एकाशि पौष विख्याता / श्यामा तन अद्भुत राजै रवि कोटिक तेज स लोजै // 2 // ह्रींपौषकृष्णकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीपा: जिनेंद्राया कलि पौष एकादशि आई, तब बारह भावनभाई। अपने कर लोंच सु कीना हम पूलै चरन जजीना / 3 / / ॐ श्रींपौषकृष्णकादश्यांतपोमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वजिनेंद्राया कलि चैत्र चतुर्थी आई, प्रभु केवलज्ञान उपाई। तब प्रभु उपदेश जु कीना, भवि जीवनको सुख दीना // 4 // ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णचतुर्थी दिनेकेवलज्ञानप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथाया. सित तातै सावन आई, शिवनारि वरी जिनराई / / सम्मेदाचल हरि माना, हम पूमैं मोक्ष कल्याना // 5 // ह्रीं श्रावणशुक्लासप्तम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीपाननाथाया Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा जयमाला पारसनाथ जिनेन्द्र तने वच, पौनभखी जरतें सुन पाये। करयो सरधान लह्यो पद आन भयो प्रद्मावती शेष कहाये। नाम प्रताप टरै संताप सु भव्यनको शिवशरम दिखाये / है विश्वसेनके नन्द भले, गुणगावत हैं तुमरे हरशाये // 1 // दोहा-केकी-कंठ समान छवि, वपु उतंग नब हाथ / __ लक्षण उरग निहार पग, वन्दों पारसनाथ / 2 / / पद्धरि छन्द रची नगरी छहमास अगार, बने चहुँगोपुर शोभ अपार / सुकोटतनी रचना छवि देत, कंगूरन लहकै बहुकेत / 3 / बनारसकी रचना जु अपार, करि बहु भांति धनेश तैयार। तहां विश्वसेन नरेन्द्र उदार, करै सुख वाम सु दे पटनार / 4 तज्यों तुम प्राणत नाम विमान, भये तिनके वर नंदन आन / तबै सुरइन्द्र-नियोगन आय, गिरिंद करी विधि न्हौन सुजाय // पिता घर सौंपि गये निजधाम,कुवेर करै वसु जाम सुकाम / बढ़े निज दौज मयंक समान, रमै बहु बालक निर्जर आन !.6 भये जब अष्टम वर्ष कुमार, धरे अणुव्रत महा सुखकार / पिता जब आनकरी अरदास करो तुम न्याह वरो मम आश करी तब नाहिं, रहे जगचंद,किये तुम काम कषाय जु मंद। चढे गजराज कुमारन संग, सु देखत गंगतनी सु तरंग // 8 // लख्यो इक रंक करें तप घोर चहुँदिशि अगनि बलौ अतिजोर कहै जिननाथ अरे सुन भात करै बहुजीवनकी मत घात / 9 / 10 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा भयो तब कोप कहै कित जीव, जले तब नाग दिखाय सजीव लख्यो यह कारण भावन भाय,नये दिव ब्रह्मऋषिसुर आय / / तष ही सुर चार प्रकार नियोग,धरी शिविका निजकंध मनोग कियो वन मांहि निवास जिनंद, धरे व्रत चारित आनंदकंद !! गहे तहं अष्टमके उपवास गये धनदत्त तने जु अवास / दयो पयदान महा-सुखकार, भई पनवृष्टि तहां तिर्हिवार 12 गये तब काननमांहि दयाल, धरयो तुम योग सबहिं अघटाल तब वह धूम सुकेतु अयान, भयो कमठाचरको सुर आन।१३ करै नभगौन लखे तुम धीर जु पूरव बैर विचार गहीर / कियो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहुतिक्षण पवन झकोर 14 रह्यो दशहूँ दिशिमें तम छाय, लगी बहुअग्नि लखी नहिं जाय मुरुडनके बिन मुड खिलाय, पड़ें जल मसलधार अथाय 15 तबै पद्मावती कंथ धनिंद, चले जुग आय जहां जिनचन्द / भग्यो तब रंकसु देखत हाल, लह्यो तब केवल ज्ञान विशाल दियो उपदेश महा हितकार, सभव्यन बोधि समेद पधार। सुवर्णभद्र जहं कूट प्रसिद्ध वरी शिव नारि लही बमुरिद्ध / 17 जजू तुम चरन दुहूँ कर जोर, प्रभू लखिये अब ही मम ओर कहें 'बखतावर रत्न' बनाय, जिनेश हमें भवपार लगाय 18 // पत्ता // अव पारस देवं, सुरकृत सेवं नंदत चर्न सनागपति / करुणाके धारी, परउपकारी, शिवसुखकारी कर्महती // 19 ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पूर्णाघ्यं नि० स्वाहा / Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा........................... 14... “अडिल्ल-जो पूजै मनलाय भव्य पारस प्रभु नितही, ताके दुख सब माय भीत व्यायै नहिं कीतही / सुख संपति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे, अनुक्रमसौ शिव लहै 'रतन' इमि कहै पुकारे / 20 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलि) नवग्रह अरिष्ट निवारक पूजा / श्लोक-प्रणम्याद्यन्ततीर्थेशं, धर्मतीर्थप्रवर्तक / भव्यविघ्नोपशान्त्यर्थं ग्रहाा वर्ण्यते मया // मार्तण्डेन्दुकुजःसौम्य, सूरसूर्यकृन्तान्तकाः / राहुश्च केतुसंयुक्तो, ग्रहशान्तिकरा नव // दोहा-आदि अन्त जिनवर नमो, धर्मप्रकाशन हार / भव्य विघ्न उपशांतको, ग्रहपूजा चित धार / / काल दोष प्रभावसों, विकलप छुटे नाहिं / जिन पूजामें ग्रहन की पूजा मिथ्या नाहिं / / इसही जम्बूद्वीपमें, रवि शशि मिथुन प्रमान / ग्रह नक्षत्र तारा सहित, ज्योतिश्यचक्र प्रमान / / तिनही के अनुसार सौं, कर्म चक्र की चाल / सुखदुख जाने जीवको, जिन वच नेत्र विशाल / ज्ञान प्रश्न व्याकरण में, प्रश्न अंग है आठ / भद्रबाहु मुख जनित जो, सुनत कियो मुख पाठ / / Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 ] नित्य नियम पूजा अवधिधार मुनिराजजी कहे, पूर्व कृत कर्म उनके बच अनुसार सौं, हरे हृदय को भर्म / समुच्चय पूजा / दोहा-अक चन्द्र कुज सोम गुरु, शुक्र शनिश्चर राहु / केतु ग्रहारिष्ट नाशने, श्री जिन पूज रचाहूँ / ॐ ह्रीं सर्वग्रह अरिष्ट निवारक चतुर्विंशति जिन अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापन अत्र मम सन्निहितो भव 2 वषट् सन्निधिकरणं / अधक-गीतीका छन्द / क्षीर सिंधु समान उज्वल, नीर निर्मल लांजिये / चौबीस श्रीजिनराज आगे, धार त्रय शुभ दीजिये / रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवे / पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवै / ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्ट निवारक श्र चतुविशति तोर्थक र जिनेंद्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा / श्रीखंड कुमकुम हिम सुमिश्रित, घिसों मनकरि चावसौं / चीवीस श्रीजिनराज अघहर, चरण चरचों भावसौं ।रवि. चं. अक्षत अखंडत सालि तंदुल, पुज मुक्ताफलसमं / चौबीस श्रीजिनराज पूजत,नाश ह नवग्रह भ्रम ।रवि. अ. कुद कमल गुलाब केतकी, मालती जाही जूही / काम बाण विनाश कारण, पजि जिननाला नही रवि. पुष फोजी हा मा पार, लै मोहक वर / शाद्र आकनिय विजाक्षम कब मुखको वि.ने Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 149 -मणि दीप जगमग ज्योत तमहर, प्रभु आगे लाइये / अज्ञान नाशक जिन प्रकाशक,मोह तिमिर नसाइये ।रवि.दी] कृष्णा अगर घनसार मिश्रित लोंग चन्दन लेइये / ग्रहरिष्ट नाशन हेतु भविजन, धूप जिनपद खेइये रवि. घूर्ण बादाम पिस्ता सेव श्रीफल, मोच लिंबू सद फलं। चौबीस श्रीजिनराज पूजत,मनोवांछित शुभ फलं रवि. फलं जल गंध सुमन अखण्ड तंदुल, चरू सुदीप सुधूपकं / फल द्रव्य दूध दही सुमिश्रित, अर्घा देय अनुपकं रवि. अर्घ जयमाला दोहा-श्री जिनवर पूजा किये, ग्रहरिष्ट मिट जाय / पंच ज्योतिषी देव सब, मिल सेवे प्रभु पाय / पद्धरि छन्द जयजय जिन आदि महंत देव, जय अजित जिनेश्वर करहिंसेव जयजय संभव भव भय निवार, जयजय अभिनंदन जगत तार जय सुमति 2 दायक विशेष, जय पद्मप्रभ लख पदम लेष / जयजय सुपार्स हर कर्म पास, जयजय चंद्रप्रभ सुख निवास जय पुष्पदन्त कर कर्म अंत, जय शीतल जिन शीतल करंत जय श्रेय करन श्रेयांस देव, जय वासुपूज्य पूजत सुमेव / / जय विमल 2 कर जगतजीव, जय 2 अनन्तसुख अति सदीव जय धर्म धुरंधर धर्मनाथ, जय शांति जिनेश्वर मुक्तिसाथ / जय कुन्थुनाथ शिवसुखनिधान जय अरह जिनेश्वर मुक्तिखान जय मल्लिनाथ पद पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत प्रकाश Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 ] नित्य नियम पूजा जय जय नमिदेव दयाल संत, जय नेमनाथ प्रभु गुण अनन्त जय पारस प्रभु सङ्कट निवार, जय वर्द्धमान आनन्दकार / / नवग्रह अरिष्ट जब होय आय, तब पूमैं श्रीजिनदेव पाय / मनबच तन सब सुख सिंधु होय, ग्रहशांति रीत यह कही जोय ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्ट निवारक श्री चतुर्विशतितीर्थंकर जिनेंदाय पंचकल्याणक प्राप्ताय अघी निर्मपामीति स्वाहा / दोहा-चौबीसो निदेव प्रभु, ग्रह सम्बन्ध विचार ! पुनि पूजों प्रत्येक तुम, जो पाऊ मुखसार : इत्याशीर्वादः। रक्षा बन्धन पूजा ( श्री विष्णुकुमार पूजा) अडिल्ल छन्द विष्णकुमार महामुनि का ऋद्ध भई : नाम विक्रीया तास सकल आनन्द ठई / सो मुनि आये हथनापुर के बीचमें। मुनि बचाये रक्षा कर वन बीच में 1 तहां भयो आनन्द सर्व जीवन धनी / जिमि चिन्तामाणे रत्न एक पायो मनो / सब पुर जै नै कार शब्द उचात भये / मनि को देय आहार आप करते भये // 2 // ॐ ह्रीं श्री विष्णुकुमार मुनि अत्रावतराबतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [151 - अथाष्टक चाल-सोलहकारण पूजा की। गंगाजल सम उज्वल नौर, पूजों विष्णुकुमार सुधीर / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्त सैकडो मुनिवर जान, रक्षा करी विष्णु भगवान | दयानिधि होय, जय जगवन्धु दयानिधि होय / जहाँ श्रीविष्णुकुमार मुनिभ्योनमः जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं मलयागिरी चन्दन शुभसार, पूजों श्रीगुरुवर निर्धार / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्त.. ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः भवतापविनाशनायचंदनं नि० श्वेत अखंडित अक्षत लाय पूजों श्री मुनिवरके पाय / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ! सप्त.।। ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमार मुनिभ्योनमः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निक कमल केतकी पुष्प चढाय, मेटो कामबाण दुखदाय / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय // सप्त। ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः कामबाणविघ्वंशनाथ पुष्प निक लाड़ फेनी घेवर लाय, सब मोटक मुनि चरन चढाय / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्ता ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमार मुनिभ्यो नमः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निक घृत कपुरका दीपक जोय, मोहतिमिर सब जावै खोय / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्त.। ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः मोहांधकारविनाशनाय दीफ अगर कपूर सुधूप बनाय, जारे अष्ट कर्म सुखदाय दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्त.. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 ] नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः अष्टकर्मदहनाय धूप नि० लौंग लायची श्रीफल सार, पूजों श्रीमुनि सुख दातार / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥सप्त.॥ ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः मोक्षफल प्राप्तये फलं नि० जलफल आठों द्रव्य संजोय, श्रीमनिवर पद पूजों दोय / दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय / सप्त." ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्योनमः अनर्घपदप्राप्तये अर्घ नि० अथ जयमाला दोहा-श्रावण सुदी सु पूर्णिमा, मुनि रक्षा दिन जान / रक्षक विष्णुकुमार मुनि, तिन जयमाल बखान / चाल-छन्दभुजङ्गप्रयात श्री विष्णु देवा करू चर्ण सेवा ! ___ हरो जनकी बाधा सुनो टेर देवा / / गजपुर पधारे महा सुक्खकारी / धरो रूप वामनसु मनमें विचारी // 2 // गये पास बलिके हुआ वो प्रसन्ना / ___जो मांगो सौ पावो दिया ये वचन्ना / मनि तीन डग मांगी धरनी सु तापै // दई ताने ततक्षिन सु नहिं ढील थापै / / 3 / / कर विक्रिया मुनि सु काया बढाई / जगह सारी ले ली सु दृढ दो के मांह / / . Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा.................[ 153 . धरी तिसरी डग बली पीठ मांहीं / सु मांगी क्षमा तब बलीने बनाई // 4 // जल की सु वृष्टि करी सुक्खकारी / सरव अग्नि क्षण में भई भस्म सारी // टरे सर्व उपसर्ग श्री विष्णुजी से / भई जै जैकारा सरव नन ही 5 // चौपाई फिर राजाके हुक्म प्रमान, रक्षा बन्धन बन्धी सुजान। मुनिवर घर घर कियो विहार, श्रावकजन तिन दियो आहार जाघर मुनि नहि आये कोय, निज दरवाजे चित्र सुलोय / स्थापन कर तिन दियो आहार, फिर सब भोजन कियो संहार तबसे नाम सलूना सार, जैन धर्म का है त्योहार / शुद्ध क्रिया कर मानो जीव, जासौं धर्म बरै सु अतीव / / धर्म पदारथ जगमें सार, धर्म बिना झठो संसार / सावन सुदी पूनम जब होय, यह दो पूजन कीजै लोय / / सब भाइन को दो समझाय, रक्षाबंधन कथा सुनाय / मनिका निज वर करो अकार, मनि समान तिन देउ अहार // सबके रक्षा बन्धन बांध जैन मुनिन को रक्षा जान / इस विधिसे मानो त्यौहार, नाम सलूना है संसार / / धत्ता-मुनि दिनदयाला सबदुख टाला, आनंदमाला सुखकारी _ 'रघुसुत' नित वंदे आनंद कंदे सुख करंदे हितकारी।। ॐ ह्रीं श्री विष्णुकुमारमुनिभ्यो नमः महाघ्य निर्व० स्वाहा / Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 ] नित्य नियम पूजा दोहा-विष्णकुमार मुनि के चरण जो पूजे धर प्रीत / 'रघुसुत' पावै स्वर्गपद लहैं पुण्य नवनीत / / इत्याशीर्वादः / सलूना पर्व पूजा। (श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत मुनि पूजा ) ( चाल-जोगीरासा) पूज्य अकम्पन साधु शिरोमणि सात शतक मुनि ज्ञानी : आ हस्तिनापुर कानन में हुए अचल दृढ़ ध्यानी / / दुखद सहा उपसर्ग भयानक सुन मानव घबराये / आत्मा साधना के साधक वे, तनिक नहिं अकुलाये / योगी राज श्री विष्ण त्याग तप, वत्सलता-वश आये / किया दूर उपसर्ग, जगत-जन मुग्ध हुए हर्षाये / / सावन शुक्ला पन्द्रस पावन, शुभ दिन था सुखदाता / पर्व सलूना हुआ पुण्य प्रद यह गौरवमय गाथा // शांति दया समता का जिनसे नव आदर्श मिला है / जिनका नाम लिये से होती जागृति पुप्य कला / करू वंदना उन गुरुपद की वे गुण में भी पाऊ' / आह्वाननं संस्थापन सन्निधि-करण करू हर्षाऊ / / ॐ ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिसमूह अत्र अवतर 2 संत्रौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अक्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधिकरणं / Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा अथाष्टक-गीता छन्द मैं उर सरोवर से विमल जल भावका लेकर अहो / नत पाद-पद्मोमें चढाऊ मृत्यु जनम जरा न होय / / श्री गुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें। पूजा करू पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें। ___ॐ ह्रीं श्रीअकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा / सन्तोष मलयागिरिय चन्दन, निराकलता सरस ले / नत पादपद्मो में चढाऊं, विश्वताप नहीं जले / श्रीगुरु.चंदन तंदुल अखंडित पूत आशाके नवीन सुहावने / नत पादपमो में चढाऊं, दीनता क्षयता हने श्रीगुरु. अक्षतं। ले विविध विमल विचार सुन्दर सरस सुमन मनोहरे / नत पादपद्मों में चढाऊ कामकी बाधा हरे / श्रीगुरु.।पुष्पं / शुभ भक्ति घृतमें विनयके पकवान पावन मैं बना / नत पादपद्मोंमें चढाऊ मेटू क्षधाकी यातना |श्रीगुरु.।नैवेद्यं // उत्तम कपूर विवेकका ले आत्म दीपकमें जला / कर आरती गुरुकी हटामोह तमकी यह बला|श्रीगुरु.दीपं ले त्याग तपकी यह सुगन्धित धूप में खेऊ अहो / गुरु चरण-कणसे करमका कष्ट यह मुझको न हो श्रीगु.धूर्ण शुचि साधनाकै मधुरतम प्रिय रस फल लेकर यहां / नत पादपोंमें चढ़ाउं. मुक्ति मैं पाउ यहां / श्रीगुरु. फलं / Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...156 ] ..... नित्य नियम पूजा यह आठ द्रव्य अनूप श्रद्धा स्नेहसे पुलकित हृदय / नत पादपमोंमें चढाऊ भवपारमें होऊं अभय ॥श्रीगुरु.अघ।। जयमाला सोरठा-पूज्य अकम्पन आदि, सात सतक साधक सुधी / यह उनकी जयमाल वे मझको निज भक्ति दें। पद्धरि छन्द वे जीव दया पाले महान, वे पूर्णा अहिंसक ज्ञानवान / उनके न रोष उनके न राग, वे करें साधना मोह त्याग / / अप्रिय असत्य बोले न बैन, मन वचन कायमें भेद हैं न / ये महा सत्य धारक ललाम, है उनके चरणों में प्रणाम / / वे ले न कभी तृणजल अदत्त उनके न घनादिकमें ममत्त / वे व्रत अचोर्य दृढ धरै सार, है उनको सादर नमस्कार / / वे करें विषयकी नहीं चाह उनके न हृदयमें काम-दाह / वे शील सदा पार्ले महान,कर मग्न रहे जिन आत्मध्यान / / सब छोड वसन भूषण निवास, माया ममता अरु स्नेह आस वे धरें दिगम्बर वेष शांत होते न कभी विचलित न प्रांत // नित रहे साधनामें सुलीन, वे सहें परीषह नित नवीन / वे करें तत्पर नित विचार, है उनको मादर नमस्कार / / पंचेन्द्रिय दमन करें महान वे सतत बढ़ावें आत्मज्ञान / संसार देह सब त्याग, वे शिव-पथ साधे सतत जाग / 'कुमरेश' साधु वे हैं महान, उनके पावे जग नित्य त्राण / मैं करू वंदना बार बार वे करे भावार्णव मझे पार // Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा....................! 157.. [ 157 . घत्ता मुनिवर गुणधारक पर उपकारक भवदुत हारक सुखकारी। वे करम नशायें सुगुण दिलायें मुक्ति मिलायें भवहारी / / ॐ ह्रीं अकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यो महाघ निन / सोरठा-श्रद्धा भक्ति समेत जो जन यह पूजा करें। ___ वह पाये निज ज्ञान, उसे न व्यापे जगत दुख / / ___ इत्याशीर्वादः / चौसठ-ऋद्धि (समुच्चय पूजा / गीता छन्द संसार सकल असार जामें सरता कछु है नहीं, धनधान धरणी और गृहणी त्यागी बीनी वनमही। ऐसे दिगम्बर हो गये, अरु होयंगे बरतत सदा,. इत थापि पूजों मन वचन करि देहु मंगल विधि तदा // 1 // ॐ ह्रीं भूतभविष्यद्वर्तमानकालसंबंधि पंचप्रकारसर्गऋषिश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं : अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / चाल-रेखता लाय शुभ गंगजल भरिकै कनक भृगार धरि करिकै / जन्म जरामृत्यु के हरनन, यजो मुनिराजके चरणन // 1 // ॐ ह्रीं भतभविष्यद्वर्तमानकालसंबंधिपुलाकबकुशकुशीलनिग्रंथस्ना तकपंचप्रकार सर्वमुनिश्वरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निक Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा “घसो कश्मिर संग चन्दन मिलावो केलिको नन्दन / करत भवतापको हरनन, यजों मनिराजके चरणन 2 नंदनं / अक्षत शुभ चन्द्र के करसे, भरो कगथाल में सरसे / / अक्षयपद प्राप्तिके करणन यजों,मुनिराजके वाशन !3 अक्षतं। पहुप ल्यो घ्राणके रंजन, उडत ता मांहि मकरंदन / मनोभव बाणके हरनन, यजो मनिराजके बरगन / 4 पुष्पं / लेय पकवान बहुविधिके, भरो शुमथाल सुवरशके / असातावेदनो क्षरणन, यजों मनिराजके चरण 15/ नवेद्य। जगमगे दीप लेकरिके, रकाबी स्वर्णमें धरिके : मोहविध्वंशके करणन यजों मुनिराज चरणन 6 दीपं / अगर मलयागिरि चन्दन, खेयकरि धूपके गन्धन / होय कर्माष्टको जरनन यजों मुनिराजके चरणन ७/धू / सिरीफल आदि फल ल्यायो, स्वर्णको थाल भरवायो / होय शुभ मुक्तिको मिलन, यजों मनिराजके चरगन सफल जलादिक द्रव्य मिलवाये, विविध वादिन बजवाये / अधिक उत्साह करि तनमें, चढायो अर्घ चरणन / 9 अर्व / सोरठा-तारण तरण जिहाज, भव समुद्र के मांहि जो / ऐसी श्री ऋषिराज, सुमरि सुमरि विनती करो // 1 // पद्धरि छन्द / जयजय जय श्री मनियुगल पाय, मैं प्रगमो मनवच शीशनाय ये सब असार संसार जानि, सब त्याग कियो आतमकल्याण Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा क्षेत्र वास्तु अरू रत्न स्वर्ण, धन धान्य द्विपद अरु चतुकचणे अरु कोप्यो भांड दश बाह्य भेद, परिग्रह त्यागे नहीं रंचखेद मिथ्यात तज्या संसार मूल,मुनि हास्य अरंति रति शोकशूल भय सप्त जुगुप्सा स्त्रीय वेद पुनि पुरुष वेद अरु क्लीव वेद 4 अरु क्रोध मान माया रु लोभ, ये अंतरङ्गमें करत क्षोभ / इमि ग्रंथ सबै चौवीस येह, तजि भए दिगम्बर नग्न जेह 5 गुणमूल धारि तजि राग दोष, तप द्वादश धरि तन करत शोष तग कंचन महल मसान मित्त अरु शत्रुनिमें समभाव चित्त 6 अरु मणि पाषाण समान जास, पर-परणतिमें नहिं रंच वास यह जीव देह लखि भिन्न२, जे निज स्वरूपमें भाविकिन्न 7 ग्रीषमऋतु पर्वत शिखर वास. वर्षा में तरुतल है निवास / जे शीतकालमें करत ध्यान, तटनीतट चोहट शुद्ध थान 18 हो करुणासागर गुण अगार मुझ देहि अखय सुखको भंडार / मैं शरण गही मुझ तार 2, मो निज स्वरूप द्यो बार बार 9 // धत्ता // यह मुनि गुणमाला, परम रसाला जो भविजन कंठे धरही। सबविघ्नविनासहि,मंगल भासहि,मुक्तिरमा वह नर वरही ॐ ह्रीं भूतभविष्यत्वर्तमानकाल संबंधिपचप्रकारऋषिश्वराया। दोहा-सर्व मुनिनकी पूजा यह, करै भव्य चित्त लाय / वृद्धि सर्व घरमें बसै, विघ्न सबै नशि जाय // 11 // इत्याशीर्वादः / Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा श्री वर्धमान जिन पूजा। मत्तगयन्द / श्रीमत वीर हरै भवपीर भरे सुख सीर अनाकुलताई। केहरि अङ्क अरीकरदक नये हरि पंकति मौलि सु आइ / / मैं तुमको इत थापतु हौं, प्रभु भक्ति समेत हिय हरखाई। हे करुणाधनधारकर देव ! इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् / अष्टक छन्द / क्षिरोदधि सम शुचि नीर, कंचन भृग भरो। प्रभु वेग हरो भवपीर, यातें धार करौं / / श्री वीर महा अतीवीर, सन्मति नायक हो / जय वद्धमान गुण धीर, सन्मति दायक हो / / ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / 1. मलयागिर चन्दन सार, केशर संग घसों / प्रभु भव आताप निवार, पजत हिय हुलशों। श्री वीर / ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेंद्राय भवतापविनाशनाय चंदनं नि है. तन्दुल सित शशि सम शुद्ध, लीनों थार भरी। तसु पुज धरों अविरुद्ध, पावो शिव नगरी / श्री वीर० / ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० / Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा सुर तरुके सुमन समेत सुमन सुमन प्यारे / सो मनमथ-भज्जन हेत, पूजों पद थारे / श्री वीर० / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पनिक रस रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी। पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी। श्री वोर० / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि०. तुम खडित मंडित नेह, दीपक जोबत हो / तुम पदतर हे मुख गेह, भ्रमतम खोबत हो / श्री वीर० / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीप निक हरिचन्दन अगर कपूर चूर सुगन्ध करा / तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा। श्री वीर / ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि / ऋतुफल कलवर्जित लाय, कंचन थार भरों। शिवफल हित हे जिनराय, तुम ढिग भेट धरों ।श्री वीर ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० / नल फल वसु सजि हिमथार, तन मन मोद धरों। गुण गाऊ भवदधि तार, पूजत पाप हरों / श्री वीर० / 0 ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्तये अर्ध नि / पंचकल्याणक मोहि राखो हो शरणा, श्रीवर्धमान जिनरायजी मोहि राखो गरम पाढ सित छह लियो तित, त्रिशलाउर अपहरना / / Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 ] नित्य नियम पूजा सुर सुरपति तित सेवकरो नित, मैं पूजौं भवतरना ।मोहि० ॐ ह्रीं आषाढशुक्लषष्ठयांगर्भमंगलमंडिताय श्रीमहावीरायाघ / जनम चैत्र सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कनवरना / सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो मैं पूजों भा हरना |मोहि। ह्रीं चैत्र शुक्लात्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमहावीराया, मंगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना। नृपकुमार घर पारण कीनो, मैं पूजों तुम चरना ।मोहि० ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णादशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमहावीर जिनेंद्राय अर्घ नि० स्वाहा / शुक्ल दशैशाख दिवस अरि धाति चतुक क्षय करना। केवल लहि भवि भवसर तारे, जजी चरन सुखभरना मोहि. ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल दशम्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्रीमहावीर जिनेंद्राय अर्ध नि० स्वाहा / / कार्तिक श्याम अमावस शिवतिय पावापुरतें वरना। गणफणिवृन्द जजै तित बहुविधि मैं पूजौं भय हरनामोहि. ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावश्थां मोक्षमंगलमंडिताय श्री महावीर जिनेंद्राय अर्घ नि० स्वाहा ___ जयमाला (छन्द हरिगीता) गनधर असनिधर चक्रधर हलधर गदाधर वरवदा। अरु चापधर विद्यासुधर, त्रिशूलधर सेवहि सदा / / दुखहरन आनन्द भरन, तारन तरन चरन रसाल है। सुकुमाल गुनमनिमाल उन्नत भालकी जयमाल है / 1 // Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 163 छन्द घत्ता जय त्रिशलानंदन हरिकृतवन्दन जगदानन्दन चंदवरं / भवतापनिकंदन तनकनमंदन रहित सपन्दन नयनधरं // 2 छन्द त्रोटक जय केवलभानु कला सदनं, भवि कोक विकासन कंदवनं / जगजीत महारिपु मोह हरं, रजज्ञान दृगावर चूर करं // 1 गर्भादिक मंगल मंडित हो, दुख दारिदको नित खंडित हो जगमांहि तुम्हीं सत पंडित हो, तुमही भव भावविहंडित हो हरिवंश सरोजनको रवि हो, बलवन्तमहन्त तुम्ही कवि हो लहि केवल धर्म प्रकाश कियो, अवलौं सोई मारग राजतियो पुनि आप तने गुनमांहि सही सुरमग्न रहे जितने सबही / तिनकी वनिता गुन गावत है,लय माननि सों मनभावत हैं पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुव भक्ति विषै पम एम धरी // झन झन झननं झननं सुरलेत तहां तननं तननं // 5 // घननं घननं धन घण्ट बजे, दृम हम मिरदंग सजें। गगनांगन-गर्भगता सुगता ततता ततता अतता वितता // 6 // धगतां धगतां गति बाजत है सुरताल रसाल जु छाजत है। सननं सननं सननं नभमें इकरुप अनेक जु धारि भ्रमैं / 7 // कइ नारि सुवीन बजावत हैं तुमरी जस उज्जवल गावत हैं। करताल विष करताल धरे, सुरताल विशाल जु नाद करें - इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी / तुमही जगजीवनके पितु हो,तुमही बिन कारनौं हितु हो। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 1 नित्य नियम पूजा तमही सब विघ्न विनाशन हो, तुमही निज आनन्द भासनहीं तुमही वित चिंतत दायक हो,जगमांहि तुमही सब लायकहो तुमरे पन मंगल मांहि सही, जिय उत्तम पुण्य लियो सवही हमको तभरी शरणागत हैं, तमरे गुनमें मन पागल है / / 11 प्रभु मो हिय आप सदा वसिये, जबलों वसुकर्म नही नसिये तबलों तम ध्यान हिये वरतो,तबलों श्रतिचिंतन चित्त रतो१२ तबलों व्रत चारित चाहतु हो,तबलों शुभ भाव सुगावतु हो / तबलों सत संग ते नित रहो, तबलों मम संजभचित गहों। जबलों नहिं नाशकरो अरिको, शिवनारि वरों समताधरिको / यह यो तबलों हमको जिन नो,हम जाचा हैं इतनी सुनजी घत्ता-श्रीवीर जिनेशा, नमतसुरेशा, नागनरेशा भगति भरा। ___ 'वृन्दावन' ध्यावै विघन नशाने, वांछि। पार्वे शर्मवा 15 ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय महाघ निर्मपामीति स्वाहा / दोहा-श्रीसन्मतिके जुगल पद, जो पूर्जे धरि प्रीत ___ "वृन्दावन" सो चतुर नर, लहै मुक्ति नवनीत / / इत्याशीर्वादः / / सुनिये जिनराज त्रिलोक धनी, तुममें जितने गुण हैं तितनी काहे कौन सके मुखसों सबही, तिहिं पूजतहो गही अर्घ यही ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि वोरांतेभ्यो चतुर्विंशतिजिनेभ्यो पूर्णाघ नि' कवित्त ऋषभ देवको आदि अन्त, श्रीवर्धमान जिनवर सुखकार / तिनके चरण कमलको पूज, जो प्राणी गुणमाल उचार / / Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा..........[ 165. ताके पुत्रमित्र धन जोवन, सुख समाज गुन मिलै अपार / -सुरपद भोग भोगी चक्री हृ, अनुक्रम लहै मोक्षपद सार // 2 इत्याशीर्वादः / महा अर्घ। प्रभुजी अष्ट द्रव्यजु ल्यायो भावसों / प्रभु थांका हर्ष हर्षगुण गाऊ' महाराज ! यों मन हरख्यो प्रभु थांकी पूजाजी रे कारणे / प्रभुजी थांकी तो पूजा भवि जीव जो करें / / ताका अशुभ कर्म कट जाय महाराज / यो मन / प्रभुजी इन्द्र धरणेन्द्रजी सब मिली गाय / प्रभुका गुणां को पार न पायो महाराज // यो मन ! प्रभुजी थे छो जी अनन्ताजी गुणवान / थाने तो सुमरयां, संकट परिहरे महाराज / / यो मन०॥ प्रभु थे छो जी साहिब तीनों लोक का। जिनराज मैं छू जी निपट अज्ञानी महाराज / यो मन०॥ प्रभु थांका तो रुपको निरखन कारणे / सुरपति रचया छ नयन हजार महाराज / / यो मन०॥ प्रभुजी नरक निगोदमें भव भव मैं रुल्यो / जिनराज सहिया छै दुःख अपार महाराज ।यो मन०॥ प्रभुजी अब तो शरणोजी थारों में लियो / किस विधि कर पार लगावो महाराज // यो मन० // Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा प्रभुजी म्यारो तो मनडो थामें धुल रह्यो / ज्या चकरी बिच रेशम डोरी महाराज / ।यो मन० / / प्रभुनी तीन लोक में हैं जिन बिम्ब / कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजस्यां महाराज . यो मन. प्रभुजी जल चन्दन अक्षत पुष्प नेवेद्य / दीप धूप फल अर्घ चढाऊ महाराज / जिन चैत्यालय महाराज, सब चैत्यालय जिनराज |यो प्रभुजी अष्ट द्रव्य जु ल्यायो बनाय / पूजा रचाऊ श्री भगवानकी महाराज ! यो मन / अरिहंता छियाला सिट्ठा मूर छत्तीसा। उवज्झाया पणवीसा साहूणं होती अडवीसा / (निम्नलिखित अर्घ बोलते समय जलधारा छोड़ते रहना चाहिये) ॐ ह्रीं श्रीं अरहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सवसाधु पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः दर्शनविशद्धियादि पाडशकारणेभ्यो नमः उत्तम क्षमादि दशलक्षणधर्मेभ्योः सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चारित्रेभ्या नमः भूत-भविष्यत-वर्तमानकालचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो नमः सिद्धक्षेत्रेभ्यो नमः अतिशयक्षेत्रेभ्यो नमः अद्य संवत.......मध्ये........मासे .......पक्षे...... तिथौ......समये पूजायां सकलकर्मक्षयार्थ अन पदप्राप्तये जलाअर्घ महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा / भाव जा बन्दनास्तवसमेतं कायोत्सर्ग करोम्यहम / Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 167 (यहां कायोत्सर्गपूर्वक 9 बार णमोकार मंत्रका जाप्य करना चाहिये। कई महानुभाव उक्त महाअर्घके स्थान पर पंचपरमेष्ठि, जयमाला बोलते हैं। शांति पाठ भाषा शांतिपाठ बोलते समय पुष्प क्षेपण करते रहना चाहिये। शांतिनाथ मुख शशि उनहारी, शील गुणवत संयमधारी। लखन एकसोआठ बिराजे, निरखत नयन कमलदल लाजै / / पंचम चक्रवर्ति पदधारी, सोलम तीर्थंकर सुखकारी। इन्द्र नरेन्द्र पूज्य जिन नायक, नमो शांतिहित शांतिविधायक दिव्य विटप पहुपन की वरषा, दुन्दुभि आसन वाणी सरसा छत्र चमर भामंडल भारी, ये तुव प्रातिहार्य मनहारी / / 3 / / शांति जिनेश शांति सुखदाई, जगत पूज्य पूजौं शिरनाई। परम शांति दीजै हम सबको. प. तिन्हें पुनि चार संघको 4 वसंततिलका पूर्ण जिन्हैं मुकुट हार किरीट लाके / इन्द्रादि देव अरु पज्य पाज जाके / सो शांतिनाथ वरवंश जगत्प्रदीप / मेरे लिये करहि शांति सदा अनूप / 5 // इन्द्रवज्रा संपजकों को प्रतिपालकोंको यतीनकों औ यतिनायकों को राजा-प्रजाराष्ट्रसुदेशको ले कीजे सुखी हे जिन शांतिको दे। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 ] नित्य नियम पूजा स्रग्धरा छन्द / होवे सारी प्रजाको सुखबल युत हो धर्मधारी नरेशा / होवे वर्षा समै पै तिलभर न रहे व्याधियोंका अन्देशा / होवे चोरी न जारी सुसमय वरते हो न दुष्काल भारी / सारे ही देश धाएँ जिनवर वृषको जो सदा सौख्यकारी : 7 दोहा / घातिकर्म जिन नाश करि. पायो केवलराज : शांति करो सब जगतमें वृषभादिक जिनराज / / अथेष्टक प्रार्थना (मन्दाक्रान्ता। शास्त्रोंका हो पठन सुखना लाम सत्संगती का सद्बतों का सुज: कहके, दोष ढांकु सभीका / / बोलु प्यारे वचन हीतके, आपका रूप ध्याऊ / तोली सेऊं चरण जिनके मोक्ष जौलों न पाऊं।। आर्या / तब पद मेरे हिय में, मम हिय तेरे पुनित चरणों में। तबलौं लीन रहों प्रभु जबलौ पाया न मुक्ति पद मैंने / 10 अक्षर पद मात्रा से, दूषित जो कछु कहा गया मुझसे / क्षमा करो प्रभु सो सब, करूणा करि पुनि छुडाहु भव दुखसे हे जगबन्धु जिनेश्वर पाऊ तव चरण शरण बलिहारी / / मरण समाधि सुदुर्लभ कर्मोका क्षय सुबोध सुखकारी / 12 (परिपुष्पांजलि क्षेपण ) ( यहांपर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नित्य नियम पूजा [169 भजन नाथ ! तेरी पूजाको फल पायो,मेरे यो निश्चय अब आयो / मेढक कमल पाखडी मुख ले वीर जिनेश्वर धायो। . श्रेणिक गजके पग तल मुवो, तुरत स्वर्गपद पायो / नाथ.॥ मैंनासुन्दरी शुभ मन सेती, सिद्धचक्र गुण गायो / अपने पतिको कोढ गमायो, गंधोदक फल पायो / / नाथ.॥ अष्टा पदसे भरत नरेश्वर आदिनाथ मन लायो / अष्टद्रब्यसे पूज्य प्रभुजी, अवधि ज्ञान दरशायो / नाथ.॥ अंजनसे सब पापी तारे, मेरो मन हुलसायो / महिमा मोटी नाथ तुम्हारी मुक्तिपुरी सुख पायो / नाथ.॥ थकि थकि हारे सुर नर खगपति, आगम सीख जतायो। 'देवेन्द्रकीर्ति' गुरुज्ञान 'मनोहर' पूजा ज्ञान बतायो ।नाथ.॥ // स्तुति // तुम तरणतारण भवनिवारण भविक मन आनन्दनो। श्री नाभिनन्दन जगत वन्दन, आदिनाथ निरंजनो // 1 // तुम आदिनाथ अनादि सेऊ, सेय पदपूजा करू। कैलास गिरिपर ऋषभ जिनवर, पदकमल हिरदै धरु // 2 // तुम अजितनाथ अजीत जीते अष्टकर्म महाबली / यह विरद सुनकर शरण आयो, कृपा कीज्यो नाथजी / / 3 / / तुम चन्द्रवदन, सुचन्द्रलच्छन, चन्द्रपुरी परमेश्वरो / महासेननन्दन जगतवन्दन चन्द्रनाथ जिनेश्वरो // 4 // Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 / नित्य नियम पूजा तुम शांति पांचकल्याण पूजों, शुद्ध मनवचकाय जू / दुर्भिक्ष चोरी पाप लाशन विधन जाय पलाय जू / / 5 / / तुम बालब्रह्म विवेकसागर, भव्य कमल विकासनों : श्री नेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो / 6 / / जिन तलि राजुल राजकन्या, कापसेन्या बस करी / चारित्र रथ चढि होय दुलह, जाय शिवरमणी वरी / 7 / कंदर्प दर्ण सुसलिच्छन कमठ शठ निर्मद कियो / अश्वसेन नन्दन जगतवन्दन, सकल संघ मङ्गल कियो / 81 जिनधरी बालकपणे दीक्षा, कमठ मान विदारकै / / श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के पद, मैं नमो शिरधारकै / 9 / तुम कर्मघाता मोक्षदाता, दिन जानि दया करो। सिद्धार्थनन्दन जगतवन्दन, महावीर जिनेश्वरा || छत्र तीन सोहे सुरनर माहे, बीनती अब धारिये करजोडि सेवक बीनवे प्रभु, आवागमन निवारिये 111: अब होउ भव भव स्वामि मेरे मैं पदा सेवक रही। करोडि यो वरदान मांगू मोक्षफल जाना लाहौं / / 12 जो एक मांही एक राजे एक मांही अनेकनों / इक अनेक की नहीं संख्या, नमूसिद्ध निरजनो / 13 // चौपाई मैं तुम चरण कमल गुण गाय, बहुविधि भक्ति करो मनलाय जनम जनम प्रभु पाऊँ तोहि, यह सेवाफल दीजे मोहि / 14 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 171 कृपा तिहारी ऐसी होय, जाम्न मरन मिटावो मोय / बार बार मैं विनती करूं, तुम सेवा भवसागर तरु। 15 / / नाम लेत सब दुख मिट जाय तुम दर्शन देख्यो प्रभु आय / तुम हो प्रभु देवनके देव मैं तो करू चरण तब सेव / / 16 / / जिन पूजा तें सब रख होय, जिन पूजा सम और न कोय / जिन पूजा ते स्वर्ग विमान, अनुक्रमते पा. निर्वाण ||17 // मैं आयो पूजनके काज, मेरो जन्म सफल भयो आज / पूजा करके नवाऊ शिश, मुझ अपराध क्षमहु जगदीश // 18 दोहा-सुख देना दुख मेटना, यही तुम्हारी बान / मो गरीब की बीनती, सुन लिज्यो भगवान // 19 // पूजन करते देव की, आदि मध्य अवसान / सुरगनके सुख भोग कर, पावै मोक्ष निदान // 20 // जैसी महिमा तुम विर्षे और धरै नहिं कोय / जो सुरज में ज्योति है, तारण में नहिं सोय // 21 // नाथ तिहारे नामते अघ छिनमांहि पलाय / ज्यों दिनकर प्रकाशते, अन्धकार विनशाय // 22 // बहुत प्रशंसा क्या करूं मैं प्रभु बहुत अजान / पूजाविधि जानू नहीं शरण राशि भगवान // 23 // इस अपार संसार में शरण नाहिं प्रभु कोय / याते तब पद भक्तको भक्ति सहाई होय ॥२४॥इति।।. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा विसर्जन विन जाने वा जानके, रही टूट जो कोई / तुम प्रसाद ते परमगुरु, सो सब पूरण होय // 1 / / पूजन विधि जानों नहीं, नहीं जानौं आह्वान / और विसर्जन हूँ नहीं क्षमा करहु भगवान 2 / मन्त्रहीन धनहीन हूँ क्रियाहीन जिन देव / क्षमा कर हु राखहु मुझे, देहूँ चरणकी सेव / 3 / आये जो-जो देवगण, पूजे भक्ति प्रमाण / ते सब मेरे मन बसी, चौबीसों भगवान' / 4 / इत्याशीर्वादः / आशिका लेना-श्री जिनवरकी आशिका, लिजै शीश चढाय __ भव-भवके पाकत कटे दुख दूर हो जाय / / १-विसर्जनमें कई लोग दोहा निम्न प्रकार और बोलते हैं। आये जो जो देवगण, पूजे भक्ति प्रमान / ते सब जावह कृपाकर, अपने२ स्थान // 4 // इति // पद्मावती पूजा। (छप्पय ) जग जीवनको शरण, हरण भ्रम तिमिर दिवाकर / गुण अनन्त भगवन्त कन्थ, शिवरमणि सुखाकर / किशनवदन लजिमदन, कोटिशशिसदन विराजै / उरगलछन पगधरण, कमठ मदखण्डन साजै / / Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [173 अनन्त चतुष्टय लक्षिकर, भूषित पारस देव / त्रिविध नमौं शिरनाय के करू पद्मावती सेव // 1 // दोहा- आह्वानन बहुविधि करौं इस थल तिष्ठो आय / सत्य मात पद्मावती, दर्शन दीजो धाय / / ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथ भक्त धरणेन्द्र भार्या श्री षद्मावती महादेवी अत्रावतरावतर संत्रौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / / गङ्गा हृदयनीरं सुरभिसमीरं आकृतक्षीरं ले आयो। रतननकी झारी भरिकरिधारी आनन्दकारी चितचायो / / पद्मावतिमाता जगविख्याता, दे मोहि माता मोदभरी / मैं तुम गुनगाऊँ हर्ष बढाउँ, बलि वाल जाऊँ धन्यधरी। ___ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्री पार्श्वनाथ भक्त धरणेन्द्र भार्याय श्री पद्मावत्यै महादेव्यै जलं निर्वपामीति स्वाहा। गोशीघिसायों केशर लायो, गन्ध बनायो स्वच्छ मई / आताप विनाशे चित हुल्लासे, सुरभि प्रकाशे शीतभई // पद्मा० / चंदनं... मुक्ताउनहारं अक्षतसारं खण्ड निवारं गन्धभरे / शशिज्योतिसमानं मिष्टमहानं, शक्तिप्रमानं पुजधरे / / पद्मा० / / अक्षतं / चम्पारु धमली केतकि सेलि, गन्ध जु फैली चहुँ ओरी। चितभ्रमर लुभायो मन हरषायो,तुम ढिग आयो मन मोरी। पमा० / पुष्पं / / Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 ] नित्य नियम पूजा - - - घेवर घृतसाजे खुरमाखाजे, लाडू ताजे थार मरे / नैनन सुखदाई तुरत बनाई कीरत गाई अग्रघरे / पद्मा० / नैवेद्यं // दीपक शशि जोतं तभक्षय होतं ज्ञान उद्यात छाय हो / ममकुमतविनाशी मतप्रकाशी, समताभाषा सरना / पद्माः / दीपं / / कृष्नागुरु धृष सुरभि अनूप मनवचरूप सेतु हौं / दशदिशा लिखाये बाध बजाये, तुम चरन खेवतु हौं / पद्मा० / धूपं / / बादाम सुपारी श्रीफलभारो, आनन्दकारी भरियारी : तम चरन चढ़ाऊँ चित उमगाऊँ वांछित पाऊँ जहा।। एमा० फलं।। जल चन्दन अक्षत पुष्प चरु चित, होप धूपकल लायघरे / शुभ अर्घ बनायो पूजन धायो, तूर बजाया नृत्य करे / / पद्मा० / अघ|| अथ जयमाला श्री पद्मावतो माय शुम, अनेक तन शोभते / अब वर्णन जय माला, सुनौं सुजन मन लायके / / 1 / पद्धरि छन्द जय तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ, प्रणम् तिरकाल नवाय माथ / जिनमुखसे बानी खिरी सार, सब जीवनको आनन्दकार / / छमस्थ अवस्थाको जुवर्ण सुनियो भवि चित लगाय कर्ण / इकदिन गज चढ श्री पार्श्वनाथ,अरु सखा अनेकों लिये साथ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 175 गंगा तट आये मोद ठान तहां तापस कुपत कर अयान / इक काष्टथूलमें नाग दोय, वापसको कछु नहिं ज्ञान सोय। वह काष्ठ अग्निमें दिया लगाय, उरगनिकों संकट परौ आय यह भेद जान श्रीपार्श्वदेव, तापसके ढिंग आये स्वमेव // तासों बोले नहिं ज्ञान लाय, हिंसा भय तप करि कुग तेहोय चीरौ जो काष्ठ तत्काल साय, काढ़े सुनागिनी नाग दोय // तिनके जु काष्ठ गत रहे प्राण, पारस प्रभु करुणाधर महान तिनके वचनामृत शुभ महान, निमेल भावोंसे सुने कान // तत्काल पुण्यसमुदाय होय, उत्तम गति बन्ध कियो सुदोय / सन्यास कियो मनको लगाय, धरणेन्द्र सु पद्मावती लहाय।। सोही पद्मावती मात सार, नित प्रति पूजौं मैं बार बार / बहुत जीवन उपकार कीन, मेरी बारी मैं बहुत दीन / जल आदिक वसु विधि द्रव्यलाय, गुणगान गाय बाजे बजाय घननन घननन घण्टा करन्त तननं तननं नूपुर तरन्त / / ताथेई थेई२ घुघरु करन्त, झुकि झुकि झुकि फिर पग धरंत / बाजत सितार मिरदंग साज, वीना मुरली मधुरी अवाज // करि नृत्य गान बहुगुण बखान, कहलों महिमा वरन अयान "सेवक' पर सदा सहाय कीन, विनती मोरी सुनियो प्रवीन / पत्ता-पद्मावति माता तुमगुण गाता आनन्ददाता कष्ट हरौ / मुनि मातामोरी शरणजु तोरी,लखि मम ओरी धीर धरौ॥ ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्री पद्मावती देव्यो पूर्णाघ / Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 / नित्य नियम पूजा दोहा-हे माता मम उर विष पूरण तिष्ठो आय / रहे सदैव दयालुता कहता सेवक गाय / / इत्याशीर्वादः। शांतिपाठ संस्कृत। शातिजिनं शाश-निर्मल-पत्र, शील-गुण-व्रत संयम-पात्रं / अष्टशताचित-लक्षण गात्रं, नौमि जिलोत्तमम्बुज-नेत्रं // 1 // पच्चम भीप्सित-चक्रधराणा पूजितमिंद्र-नरेन्द्र गणेश्च / शांतिकरं गण-शांतिमभीप्सुः पोडश तीर्थंकरं प्रणमामि 12 दिव्य-तरूः सुर-पुष्प-सुवृष्टिर्दुन्दुभिरासन-योजन घोषो / आतपवारण-चामर युग्मे यस्य विभाति च मंडलतेजः / 3 // तं जगदचिंत शांति जिनेन्द्र शांतिकर शिरसा प्रणमामि / सर्वगणाय तु यच्छतु शांति मह्यमरं पठते परमां च / 41. येऽभ्यचिता मुकुट कुण्डल-हार-रत्नैः, शक्रादिभिः सुरगणै स्तुति-पाद-पद्माः / ते मे जिनाः प्रवर-वंश-जगत्प्रदीपा--- स्तीर्थंकराः सतत शांतिकरा भवन्तु / / 5 / / इन्द्रवज्रा। संपूजकानां प्रतिपालकानों यतीन्द्र सामान्य-तपोधनानां / देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांति भगवान जिनेन्द्रःक्षेम सर्व-प्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भुमिपालः / काले काले च सम्यग्वषेतु मधवा व्याधयो यान्तु नाशम् / / Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 17 दुर्भिक्षं चोर-मारी क्षणमपि जगतां मा स्म भूज्जीवलोके, जैनेन्द्र धर्मचक्र प्रभवतु सततं सर्व सौख्य प्रदायि // 7 // प्रध्वस्त घाति कर्माणः केवलज्ञान-भास्कराः / कुर्वन्तु जगतां शांति वृषभाद्या जिनेश्वराः ||8 प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नमः / यथेष्ट प्रार्थना / शास्त्राभ्यासों जिनपति नुतिः संगति सर्वदायेंः, सवृत्तानां गुण गण कथा दोषवादे च मौनं / सर्वस्यापि प्रिय हित वचो भावना चात्मतत्त्वे / सम्पद्यन्तां मम भव भये यावदेतेऽपवर्गः // 9 / आर्यावृतं / तव पादौ मम हृदये मम हृदयं तव पद द्वये ली। तिष्ठतु जिनेन्द्र ! तावद्यावनिर्वाण संप्राप्तिः // 10 // बक्खर-पयत्थ-हीणं मत्ता हीणं च जं मए भणियं / तं खमऊ णाणदेवाय मज्झवि दुक्खक्खयं दितु / 11" दुक्ख-खयो कम्म-खओ समाहिमरणं च वोहि-लाहोय / / मम होउ जगद्-बंधव तव जिणवर चरण-सरणेण // 12 // संस्कृत प्रार्थना / त्रिभुवन गुरो ! जिनेश्वर ! परमानन्देक कारन कुरुष्व है। मयि किंकरेत्र करुणां यथा तथा जायते मुक्तिः / / 13 / ' निविण्णोहं नितरामर्हन् बहुदुःखया भवस्थित्या / अपूनर्भवाय भवहर ! कुरु करुणामंत्र मयि दीने / / 14 / / 12 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178] नित्य नियम पूजा उद्धर मां पतितमतो विषमाद्-भवकूपतः कृपां कृत्वा / अर्हबलमुद्धरणे त्वमसीति पुनः पुनर्वच्मि / 15 // त्वं कारुणिक: स्वामी त्वमेव शरणं जिनेश ! तेनाहं / मोह-रिपु-दलित मानं फुत्करणं तव पुरः कुर्वे / 16 // ग्रामपतेरपि करूणा, परेण केनाप्युपद् ते पुसि / जगतां प्रभो ! न किं तव, जिन ! मयि खलु कर्मभिःप्रहते अपहर मम जन्म दयां कृत्वै चेत्येक वचसि वक्तव्यं / तेनातिदग्ध इति मेव देव ! मभूव प्रलापित्वं / / 18 / / तब जिनवर ! चरणाब्ज-युगं करूणामृत शोतलं यावत् / संसार-ताप-तप्तः करोमि हृदि तावदेव सुखी // 19 // जगदेक शरण भगवान् ! नौमि श्रीपद्मनन्दित गुणौष / किं बहुना कुरु करुणामंत्र जने शरणमापन्न // 20 // अथ विसर्जन ज्ञानतोऽज्ञानतो घापि शास्त्रोक्तं न कृतं मया / तत्सर्व पूर्णमेवास्तु त्वत्प्रसादाग्जिनेश्वर ! / 1 // आह्वानं नैव जानामि नैव जानामि पूजनं / विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ! / / 2 / / मन्त्रहीनं क्रियाहीनं द्रव्यहीनं तथैव च / तत्सर्व क्षम्यतां देव रक्ष रक्ष जिनेश्वर // 3 // १-विसर्जन पाठ यही तक है कई लोग निम्न पद्य और बोलते हैं। आहुता ये पुरा देवा लब्धभागा यथाक्रमं / ते मायाभ्यचिता भक्त्या सर्ने यान्तु यथास्थितिम् / / thi Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 179 चोबीस तीर्थंकरकी आरती अघहर श्री जिनबिम्ब मनोहर,चोवीस जिनका करो भजन आज दिवस कंचन समउगीयो,जिनमंदिरमें चलो सजन टेक म्हवन स्थापना सहस्त्रनाम पढ, अष्ट विधार्चन पूज रचन / जयमाला आरती सुस्वर,स्तवन सामायिक त्रिकाल पठन / जयजय आरती सुरनर नाचत, अनहद दुंदुभी बाज बजन / रतन जडित कर स्थाल मनोहर ज्योति अनुपम धूम्रतजन / ऋषभ अजित संभव सुखदाता, अभिनंदन के नम चरण / सुमति पद्मप्रभ, देव सुपान,गंद्रनाथ वपु शुभ्र वरण अ. पुष्पदंत, शीतल श्रेयांस नमी वासुपूज्य भवतार तरन / विमल अनंत धर्म शांति,जिन,कुथु अरहंत जन्म मरण ।अ. अरु मल्लि मुनिसुव्रत,नमि नेमि पार्श्वनाथ हत अष्ट करम नाथवंश, उन्नत, कर सप्तम अंतम सन्मति देव शरन अ.५ समवशरणको अगणित शोभा, बार सभा उपदेश धरन / जीव उद्धारक,त्रिभुवन तारक,राय रंकको राख शरन ।अ.६ तीर्थंकर गुणमाल कंठकर,जाप जपो नित करो कथन / देवशास्त्र गुरु विनय करो,ये तोन रतनका करो जतन। अ.७ मूलसंघ पुष्करगच्छ मंडन, शांतिसेन गुरुपाद रचन / भविजन भावे शिवसुख पावे बगेरवाल कहे लाड रतन / अ.८ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 180 / नित्य नियम पूजा . पंचपरमेष्ठीकी आरती यह विधि मंगल आरती कीजे, पंचपरमपद भजि सुख लीजे प्रथम आरती श्रीजिनराजा, भवदधि पार उतार जिंहाजा // 1 दूजी आरती सिद्धनकेरी सुमिरन करत मिटत भवफेरी // 2 // तीजी आरति सूरि सुनींद्रा जन्ममर दुख दूर करिंदा // 3 // चौथी आरती श्री उवझाया, दर्शन होवत पाप पलाया // 4 // पांचवी आरती साधु तुम्हारी,कुमतिविनाशन शिव अधिकारी छट्ठी ग्यारह प्रतिमाधारी, श्रावक वंदो आनंदकारी / सातमी आरती श्री जिनवाणी, सेवत स्वर्ग-मुकतिसुखदानी। पूजा करके आरती कीजे, जनम-जनमका लाहो लीजे / / जो यह आरती पढ़े पढ़ावे, धानत अजर अमर पद पाने / / पद्मावति माताकी आरतो पद्मावति माता दर्शन की बलिहारियां / पार्श्वनाथ महाराज विराजे मस्तक ऊपर थारे / इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र सभी खड़े रहे नित द्वारे पद्मावति / जो जिय थारो शरणों लींनो सब संकट हर लीनो। पुत्र पौत्र धन संपति देकर मंगलमय करि दीनो // 2 // डाकिन शाकिन भूत भवानी नाम लेत भग जावे / वात पित्त कफ रोग मिटे अरु तन मन सुख हो जावे // 3 // दीप धूप अरु पुष्पहार ले मैं दर्शन को आया / दर्शन करके माता तुम्हारे मनवांछित फल पाया। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “नित्य नियम पूजा [12 आचार्य मानतुगाचार्य द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र =x=3 भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रमाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमो-बितानम् / सम्यक् प्रणम्य जिन-पाद युगं ! युगादावालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् // 1 // यः संस्तुतः सकल वाङ्गमय-सत्वबोधादुद्भुत-बुद्धि पटुभिः सुरलोक-नाथैः / स्तोत्रैजगत्रितय चित्त-हरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् / 2 / / -बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद् पीठ ! स्तोतु समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम् / बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दु-बिम्बमन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् // 3 // वक्तु गुणान् गुण-समुद्र ! शशांक-कांतान, कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्धया / कल्पान्त-काल पवनोद्धत-नक्र चक्रं, को वा सरीतमलमम्बुनिधिं भुजाभ्यां // 4 // Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182 ] नित्य नियम पूजा सोऽहं तथापि तव-भक्ति-वशान्मुनीश ! कत स्तवं विगत-शक्तिरपि प्रवृत्तिः / प्रीत्यात्म-- विर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रम् , नाभ्येति किं निज-शिशोः परिपालनार्थम् / / 5 / / अल्प-श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् / यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र-चारु-कलिका-निकरै क-हेतु // 6 // त्वत्संस्तवेन भव-संतति सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् / आक्रान्त-लोकमलि-नीलमशेषमाशु, सूर्याशु-भिन्नमिव शावरमंधकारम् // 7 // मत्त्वति नाथ ! तब संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् / चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ता-फल-द्युतिमुपैति नन्द-बिन्दुः 8 आस्तां तव स्तवनमस्त-समस्त-दोषं, त्वत्सङ्कथापि जगतां दुरितानि हति / दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकासमाजि // 9 // Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [183? नात्यद्भुतं भुवन-भूषण ! भूतनाथ / भूतैगुणभूवि भवन्तमभिष्टुवन्तः, तल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति / 10 // दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः / पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धोः, क्षारं जलं जलनिधेरसितुक इच्छेत् // 11 // गैः शान्त-राग रूचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापितस्त्रि-भुवनक-ललाम-भृत / तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यो समानमपरं न हि रुपमस्ति / 12 / / वक्त्रं क्व ते सुर-नरोग्ग-नेत्र-हारि, निः शेष निर्जित-जगत्रितयोपमान / बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाशकल्प // 13 / सम्पूर्णमण्डल-शशांक कला-कलापशुभ्रा गुणात्रिभुवनं तव लंघयन्ति / ये संश्रिता- स्त्रि-जगदीश्वर-नाथमेकं, कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम् / / 14 / Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184] नित्य नियम पूषा चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-. नीतं मनागपि मनो न विकार- मार्गम् / कल्पांत-काल-मरुता चलिताचलेन, कि मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् / / 15 / निधूम-वतिरपजित-तैल पुरः, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रगटीकरोषि / गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः // 16 // नास्तं कदाचिदुपयासि न राहु-गम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति / नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महा-प्रभावः, सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र लोके / / 17 / नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं, गम्यं न राहु-बदनस्य न वारिदानाम् / विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्तिं, विद्योतयज्जगदपूर्व-शशांक बिम्बम् // 18 // किं शर्वरीषु शशिनाही विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दु-दलितेषु तमः सु नाथ ! निष्पन्न-शालि-वन-शालिनि जीव लोके, कार्य कियज्जलधरैर्जल-भार-नम्रः // 19 // Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नित्य नियम पूजा [1 ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु / तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच-शकले किरणाकुलेऽपि // 20 // मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, "दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति / किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनोहरति नाथ ! भवान्तरेऽपि // 21 // स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् , नान्या सुतं त्वदुपम जननी प्रसूता / सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशु-जालम् // 22 // त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्य-वर्णममलं तमसः पुरस्तात् / त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, -नान्यः शिवः शिव-पदस्य मुनीन्द्र पंथा // 23 // त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्य', ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् / योगीश्वरं विदित-योगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः // 24 // Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186 ] नित्य नियम पूजा बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित बुद्धि-बोधात्, त्वं शंकरोसि भुवन-य-शंकरत्वात् / धाताऽसि धीर ! शिव-मार्ग-विधेविधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमोऽसि / 25 / तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनातिहराय नाथ ! तुभ्यं नमः क्षिति-तलामल-भूषणाय / तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिनभवोदधि-शोष णाय / / 26 // को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणरशेषस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! दोषैरुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वैः, स्वप्नांतरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि // 27 // उच्चौरशोक-तरु-संश्रितमन्मयूख - माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् / स्पष्टोल्लसत्किरणमस्त-तमो वितानं, विम्ब रवेरिव पयोधर-पार्श्ववति / / 28 / 10 सिंहासने मणि-मयूख-शिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातं / बिम्बं विय द्विलसदंशुलता-वितानं, तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव-सहस्त्र-रश्मेः / .29 / / Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 187 कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभ, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् / उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झरवारि-धार मुच्चौस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् // 30 // छत्रत्रयं तव विभाति शशांककांतमुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापं / मुक्ता-फल प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभ, प्रख्यापयत्त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् // 31 / गंभीरतार-रव-पूरित-दिविभागस्ौलोक्य लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः / सद्धर्मराज-जय-घोषण-घोषकः सन, खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी // 32 // मंदार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजातसंतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा / गंधोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरूत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसा ततिर्वा | // 33 // शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते, लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती। प्रोद्यहिवाकर-निरंतर-भूरि-संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्यां / 34: Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 नित्य नियम पूजा स्वर्गापवर्ग-गम-मार्ग-विमार्गणेष्टः, सद्धर्म-तत्व-कथनैक-पटस्त्रिलोक्याः / दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थ-सर्वभाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः // 35 // उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुज-कांती, पर्दूल्लसन्नख-मयूख-शिखाभिरामौ / पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पमानि तत्र विबुधाः परिकल्पयंति / 36 // इत्यं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र ! धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य / यादृक्प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि // 37 / श्च्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल-मूलमत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम् / ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानां // 38 // भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्तमुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमि-भागः / बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते / 39 / Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [189 . कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि कल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिङ्गम् / विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं, त्वन्नाम-कीर्तन-जल शमयत्यशेषम् // 40 // रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कंठ-नीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्त / आक्रामति क्रम-युगेण निरस्त-शङ्क स्त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुसः // 41 // बल्गत्त रंग-गज-गर्जित-भीमनादमाजी बलं बलवतामपि भूपतीनां / उद्यदिवाकर-मयूख-शिखापविद्धं, त्वत्कीर्जनात्तम इवाशु भिदामुपैति // 42 // कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित-बारिवाहवेगावतार-तरणातुर-योधभीमे / युद्ध जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षा स्त्वत्पाद-पंकज वनायिणो लभन्ते // 43 // अम्भोनिधौ क्षमित भीषण नक्रचक्रपाठीन-पीठ-भय-दोल्वणं वाडवाग्नौ / रङ्गतरङ्ग शिखर स्थित यान पात्रास्त्रास विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति / / 44 // Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190 ) नित्य नियम पूजा उद्भूत भीषण जलोदर भार भुग्नाः शोच्यां दशामुपगत्ताश्व्युत जीविताशाः / त्वत्पाद पंकज रजोऽमृत-दिग्ध-देहा, मां भवंति मकरध्वजः तुल्यरुपाः // 45 // आपाद कंठमुरु-शखल वेष्टितांगा, गाढं वृहनिगड कोटि निघृष्ट जंघाः / त्वन्नाम मंत्रमनिशं मनुजाः स्मरंतः सद्यः स्वयं विगत बंध भया भवन्ति // 46 // मत्तद्विपेन्द्र मृगराज दवानलाहिसंग्राम वारिधि-महोदर बंधनोत्थं / तस्याशु नाशमुपयाति भयं भयेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते / 47 // स्तोत्र स्त्रज तव जिनेन्द्र ! गुणैनिबद्धा, भक्त्या मया रुचिर वर्ण विचित्र-पुष्पां / धचे जनो य इह कंठ-गतामजस्त्रं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः // 48 // इति श्रीमानतुगाचार्य विरचित आदिनाथस्तोत्र (भक्तामर स्तोत्र) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [ 191 तत्वार्थसूत्रां [ आचार्य गुद्धपिच्छ] मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां / ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये / / प्रकाल्यं द्रव्य-षटकं नव-पद-सहित जीव-षटकाय-लेश्याः / पंचान्ये चास्तिकाय व्रत-समिति-गति-ज्ञानं चारित्रभेदाः // इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवन-महितः प्रोक्तमहद्भिरीशैः। प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यः सवै शुद्धदृष्टिः। सिद्धे जयप्पसिद्धे चउविहाराहणाफलं पत्ते / वंदिता अरहते वौच्छं आराहणा कमसो / उज्जोवणमुज्जवणं णिव्वहणं साहणं व णिच्छरण / दसण-णाण चरित्त तवाणमाराहणा भणिया * 3 // सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः / 1 / / तत्त्वार्थ-श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं / / 2 / तनिसर्गादधिगमाद्वा।३। जीवाजीवास्रव-बंध-संवर-निर्जरा-मोक्षास्तत्वं / 4 / नामस्थापना-द्रव्य-भावतस्यन्न्यासः // 5 // प्रमाणनगरधिगमः। निर्देश-स्वामित्व-साधनाधिकरण-स्थिति-विधानतः / 7 // सत्संख्या-क्षेत्र-स्पर्शन-कालांतर-भावाल्पबहूत्वैश्च // 8 // मति-श्रुतावधि-मनःपर्यय-केवलानि ज्ञानं // 9 / तत्प्रमाणे // 10 // आद्ये परोक्षं // 11 / / प्रत्यक्षमन्यत् / / 12 // मतिस्मृतिः संज्ञा चिंताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरं // 13 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 192 ] नित्य नियम पूजा तदिन्द्रियानिन्द्रिय-निमितं / 14 // अपग्रहहावाय-धारणाः // 15 / बहु-बहुविध-क्षिपानि-सृतानुक्त घ्र वाणां सेतराणां / 16 / अर्थस्य / 17 / व्यंजनस्यावग्रहः / 18 न चक्षुरनिन्द्रियाभ्यां / 19 श्रुतं मतिपूर्वद्वयनेक द्वादश भेदं / 20 भवप्रत्ययोऽअधिदेव-नारकाणां 21: क्षयोपशम-निमित्तः षड्विकः-- ल्पःशेषाणां / 22 ऋजु विपुलमती मनः पर्यायः 23 / बिशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः 24 विशुद्धि क्षेत्र स्वामिविषयेभ्योऽवधि-मनः पर्याययोः 25 मति श्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्व-पर्यायेषु / 26 रुपिष्ववधेः / 27 : तदनन्तभागे मनः पर्ययस्य / 28 सर्व द्रव्य पर्यायेषु केवलस्य / 29 / एकादिनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुभ्यः / 30 मति-श्रुतावधयो विपर्ययश्च / 31 / सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् 32 नैगम-संग्रह व्यवहारर्जुसूत्र-शब्द-समभिरुटैगंभूतानयाः / / ___ इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रो प्रथमोऽध्यायः // 1 // औपशमिक-क्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिक-पारिणामिकौ च / 1 // द्वि नवाष्टा-दशैकविंशति-त्रि-- भेदा यथाक्रमं / 2. सम्यक्त्व-चारित्रे / 3 / ज्ञान-दर्शन-दान. लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च / 4 / ज्ञानाज्ञान-दर्शनलब्धयश्चतु-स्त्रित्रि-पंचभेदाः सम्यक्त्व-चारित्रसंयमासंयमाश्च / 5 गति-कषाय-लिंग-मिथ्यादर्शनाज्ञानासंयता-सिद्ध-लेश्याश्चतुश्चतुस्यकैकैकैकपड्भेदाः // 6 // जीवभव्याभव्यत्वानि. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्य नियम पूजा [ 193 च / 7 उपयोगो लक्षणं 8 स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः 9 // संसारिणो मुक्ताश्च / 10 समनस्काऽमनस्का: 11 संसा.. रिणस्त्रस-स्थावराः / 12 पृथिव्यप्तेजो-वायुः वनस्पतयः स्थावराः / 13 / द्वीन्द्रियाद यस्त्रसाः / 14 / पंचेन्द्रियाणि / 15 / द्विविधानि 16: निर्तुत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् / 17 / लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियं 18 / स्पर्शन-रसनाघ्राण-चक्षक्षोत्राणि / 19 स्पर्श-रस-गंध-वर्ण-शब्दास्ताः 20 श्रुतमनिन्द्रियस्य / 21 / वनस्पत्यन्तानामेकं / 22 कृमि पिपीलिका-भ्रमरमनुष्यादीनामेकै कवृद्धानि / 23 / संज्ञिनः समनस्काः / 24 / विग्रहगतौ कर्मयोगः ।२५।अनुश्रेणि गतिः 26. अविग्रहा जीवस्य / 27 / विग्र हवती च संसारिणः प्राक्चतुर्व्यः / 28. एकसमयाऽविग्रहा।२९। एकं द्वौ त्रीवानाहारकः / 30 / संमच्छेन गर्भोपपादाजन्म 31 सचित्तशीत-संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तधोनयः / 32 जरायुजांडज-पोतानां गर्भः / 33. देवनारकाणामुपपादः / 34 / शेषाणांसम्मूर्छनं / 35 / औदारिक-वैक्रियिकाहारक- तैजसकार्मणानि शरीराणि // 36 // परं परं सूक्ष्मं / 37 / प्रदे शतोऽसंख्येयगुणं प्राक तैजसात् / 38 / अनन्तगुणे परे / 39 / अप्रतीपाते / 40 / अनादि संबंधे च 41 सर्वस्य / 42 // तदादीनि भाज्यानि-युगपदेकस्मिन्नाचतुर्म्यः १४३निरूपभोगमन्त्यं / 44 / गर्भसम्मळुनजमाद्यं / 45 / .. औपपादिकं वैक्रियिक / 46 / लब्धि-प्रत्ययं च // 47 // 13 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 194] नित्य नियम पूजा तैजसमपि / 48 / शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव / 49 / नारकसमूच्छिनो नपुसकानि / 50 न देवाः 151 / शेषास्त्रिवेदाः।५२। औपधादिक-चरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः / 5 / इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे द्वितीयोऽध्यायः // 2 // ___ रत्न--शर्करा-बालुका-पंक--धूम--तमो--महातमःप्रभा भूमयो बनवुवाताकाश प्रतिष्ठाः सप्ताऽधोऽधः योजन 1 तासु त्रिंशत्पंचविंशति-प बदशदश त्रि-पंचोन क-नरकशतसहस्त्राणि-पंव-चैव यथाक्रमः / 2 / नारका नित्याऽशुभतरलेश्या-परिणाम-देह-वेदना-विक्रियाः 3 परस्परोदीरितदुःखाः / 4 संश्लिष्टाऽसुरोदीरितः दुःखाश्चमाक चतुर्थाः / 5 तेष्वेक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रपर्सिशत्सागरोपमा सत्यानां परा स्थितिः 6 / जम्बूद्वीप लवणोदादयः शुभनामानो द्वीप समुद्राः 7 द्विह्निविष्कम्भाः पूर्व-पूर्व परिक्षे. पिणो वलयाकृतयः 8 तन्मध्ये मेरुनाभिध तो योजन शत सहस्त्र विष्कम्भो जम्बूद्वीपः / 9 / भरत हैमवत-हरि विदेह रम्यक हैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि 110 / तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिम वन्महाहिमवनिषध-नील रुक्मि शिखरिणो वर्षे धर-पर्वताः / 11 / हेमार्जुन तपनीय वैडूर्यरजत हेम मयाः / 12 / मणिविचित्र पार्वा उपरि मूले च तुल्य-विस्ताराः 13, पन महापद्म-तिगिच्छ केशरि-महापुण्डरीक पुण्डरीका Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 1955 म्भो हदः / 15 / दश योजनावगाहः / 16 / तन्मध्ये योजनं पुष्करम् / 17 / तद्विगुणाहदाः पुष्कराणि च / 18 तन्निवासिन्यो देव्यः श्री ही-धति-कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससा-मानिक-परिषत्काः / 19 / गंगा-सिन्धु. रोहिद्रोहि-तास्या हरिद्धरिकांताः सीता सीतोदा नारी नरकांता सुवर्ण रुप्य कूला-रक्तारक्तोदा- सरितस्तन्मध्यगाः / 20 / द्वयोर्द्वयोः पूर्व : पूर्वगाः / 21 // शेषास्त्परगाः / 22 / चतुर्दशनदीसहस्त्र-परिवृता गंगासिन्ध्वादयो नद्यः 23 / भरतः षडविंशति-पंचयोजनशत-विस्तारः षट चैकोनविंशतिभागा योजनस्य 24 तद्विगुण-द्विगुण विस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः / 25 उत्तरा दक्षिण-तुल्याः / 26 / भरतैरावतयोवृतिहासौ षट्-समयाभ्यामुत्सपिण्यव-सपिणीभ्याम् / 27. ताभ्याम-परा भूमयोऽवस्थिता / / 8 / एक द्वि-त्रि पत्योपमस्थितयोः हैमवतक-हारिवर्षक-दैव कुरवकाः 29 तथोत्तराः. / 30 / विदेहेषु संख्येय-कालाः / 31 / भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवति शत भागः 32. विर्घातकीखण्डे / 33 // पुष्कराढेच 34 प्राड्-मानुषोत्तरान्मनुष्याः।३५॥ आर्याम्लेच्छाश्च / 36 / भरतैरावत-विदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तर कुरुभ्यः / 37 / नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तमुहुर्ते 138 तिर्यग्योनिजानां च 39 / / इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्र तृतीयोऽध्यायः // 3 // Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा देवाश्चतुर्णिकायाः / 1 / आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः 2 / दशाष्ट पंव-द्वादश विकल्पा: कल्मोपपन्नपर्यंताः / 3 / इन्द्र सामानिक त्रायस्त्रिंशत्पारिषदात्मरक्ष-लोकपालानीक प्रकीर्णकामि योग्य किल्विषिकारवैकशः।४। त्रायस्त्रिंश-लोकपाल - वा व्यन्तर-ज्योतिष्का: 5 / पूर्वयोवीन्द्राः / 6 / काय प्रवीचारा आ ऐशानात् 7 शेषाः स्पर्श रूप शब्द मनः प्रवीवाराः / 8! परेऽप्रबीचाराः / 9 / भानवालिनोऽसुर नाग विद्युतसुपर्णाग्नि वात स्तगतोदधि द्वीप दिक्कु माराः / 10 / व्यन्तराः किनर किंपुरुष महो ग गन्धर्व यक्ष राक्षप भूत पिशाचाः / 11 // ज्योतिकाः सूर्याचन्द्रमस ग्रह नक्षत्र की णक तारकाश्च 12 मेकपाक्षिणाः नित्य गतयो नृलोके / 13 / तत्कृतः काल विभागः / 14 / बहिरवस्थिताः 15 वैमानिकाः / 16 / कल्पापपन्नाः कल्पातीताश्च / 17. उप. यु परि / 18 सोधर्मेशान पानकुमार-माहेन्द्र-ब्रह्म ब्रह्मात्तर लान्तव कापिष्ठ-शुक्र महाशुकसत्तार सहस्त्रारेवा नत-प्रागत. योरारणाच्युतयोनेवसु प्रत्यकेषु विजय जयन्त वैजयन्ता पराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च / 19 / स्थित प्रभाव सुख-द्युति लेश्या-विशुद्धोन्द्रियावधि विषय तोऽधिकाः / 20 / गति शरीर परिग्रहाभि मानता हीनाः / 21 / पीत पद्म शुक्ल लेश्या द्वित्रि शेषेषु 22 / प्राग्वेय केभ्यः कल्पाः 123 / ब्रम लोकालया लौकान्तिकाः 124 / सारस्वतादित्य ब्रह्मरूप गर्दतोय तुषिताव्याधारिष्टाश्च / 25 / विजयादिषु द्वि चरमाः 26 / Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 197 औपपादिक-मनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः 27 स्थितिरसुरनाग-सुपर्ण द्वीप शेषाणां सागरोपम-त्रिपल्योपमा हीन. मिता: 28 सौधर्मेंशानयोः सागरोपमऽधिके 29 / सानत्कुमार माहेन्द्रयोः सप्त / 30 / त्रि-सप्तनवैकादश-त्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु 31 / आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन-नवसु ग्रेवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च / 32 / अपरापल्योपममधिकम् / 33 / परतः परतः पूर्वापूर्वाऽनन्तरा 34 नारकाणां च द्वितीयादिषु 35 / दश वर्ष सहस्त्राणि प्रथमायाम् / 36 भवनेषु च / 37! व्यन्तराणां च / 38 परापल्योममधिकम् / 39 ज्योतिष्काणां च 40 / तदष्टभागोऽपरा / 41 लौका. न्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि च सर्वेषां / 42 // इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रो चतुर्थोऽध्यायः // 4 // अजीवकाया धर्माधर्माकाश-पुद्गलाः / 1 / द्रव्याणि।२ जीवाश्च / 3 / नित्यावस्थितान्यरूपाणि / 4 रुपिणः पुद्गलाः / 5 / आकाशादेकद्रव्याणि / 6 / निष्क्रियाणि च 171 असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधर्मैक जीवानाम् |8| आकाशश्यानन्ताः 9 / संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् / 10 / नाणोः 11 // लोकाकाशेऽवगाहः / 12 / धर्माधर्मयोः कृत्स्ने / 13 / एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानां 14 / असंख्येयभागादिषु जीवानाम् / 15 / प्रदेश-संहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् / 16 / गति-स्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकारः / 17 / Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 ] नित्य नियम पूजा आकाशस्यावगाहः 18 शरीरवाड् मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् / 19 / सुखदुःख जीवित मरणोपग्रहाश्च 120 परस्परोपग्रहोजीवानां !21 / वर्तना परिणाम क्रिया परत्वा परत्वे च कालस्य / 22: स्पर्श-रस गन्ध-वर्ण-वंत: पुद्गलाः 133 शब्द बंधसौम्य स्थौल्य संस्थान मेद-तमश्छायातपोद्योतवंतश्च 24 / अणवः स्कंधाश्च 125: भेद-संघातेभ्याः उत्पद्यन्ते / / 6 / भेदादणुः / 27 भेद-संघाम्तेयां चाक्षुषः / 28 सद्-द्रव्य-लक्षणम् / 29 उत्पादव्यय प्रौव्ययुक्तं सद / 30 / तद्भावाव्ययं नित्यम् 31 / अर्पितालर्पितसिद्धेः 32 स्निग्ध रूक्षत्वाद्बन्धः / 33 / न जघन्य मुणानाम् 34 / गुणसाम्ये सदृशानाम् / 35 / द्वयधिकादि गुणानाम् तु 36 / बन्धेऽधिको पारिणामिकौ च / 37 / गुणपर्ययवद द्रव्यम् / 38 कालश्च / 39 / सोऽनन्तसमयः / 40 द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः / 41 / तद्भावः परिणामः // 42 // इति तत्त्वार्थाधिगमें मोक्षशास्त्रे पंचमोऽध्यायः // 5 // काय-वाड़-मनः कर्मयोगः 1 स आस्रवः / 2 / शुभ: पुण्यस्याशुभः पापस्य 3 / सकषायाकषाययोः साम्परायिके र्थापथयोः 4 इन्द्रियकषायावत-क्रियाः पंच चतुः पंचपंचविंशति संख्याः पूर्वस्य भेदाः 5 / तीव्र मन्द-ज्ञाताज्ञात भाबाधिकरण-वीर्य-विशेषेभ्यस्तद्विशेषः 6 अधिकरणं जीवाजीवाः 7 आद्य संरम्भ समारम्भारंभ योग-कृत कारिता Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा -नुमत कषाय विशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः '8 / निवर्तनाः निक्षेप संयोगनिसर्गा द्वि चतुर्द्धि-त्रि भेदः परम् / 9 / तत्प्रदोपनिहनव-मात्सर्यान्तररायासादनोपघाता ज्ञान दर्शनावरगयोः / 10 / दुःख-शक तापानन्दन-वध परिदेवनान्यात्म परोभय-स्थानान्यसद् वेद्यस्य / 11 / भूतव्रत्यनुकम्पादान सरागसंयमादि योगः शान्तिः शौचमिति सद्यस्य / 12 / केवलि-श्रुत-संघ-धर्म देवावर्णवादो दर्शनमोहस्य / 13 / कषायोदयातीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य / 14 बह वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुष 15 मायातैर्यग्योनस्य / 16 / अल्पारम्भ-परिग्रहत्वं मानुषस्य / 17 / स्वभाव मार्दवं च / 18 / निः शीलवतत्विं च सर्वेषाम् / 19 / सरागसंयम संयमासंयमाकामनिर्जरा बालतपांसि देवस्य / 20 सम्यक्त्व च / 21 योग वक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः 22. तद्विपरीतं शुभस्य / 23 दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्नता शील व्रतेष्वनतीचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोग संवेगौ शक्तितस्त्याग तपसी साधुसमाधि.यावृत्यकरण-महदाचार्य-बहुश्रुत प्रववनभक्ति-- रावश्यकापरिहाणि मार्गप्रभावना प्रवचन वत्सलत्वमितितीर्थंकरत्वस्य 24 परात्म-निंदा प्रशंसे-सदसद्गुणोच्छादनोभा वने च नीचैर्गोत्रस्य / 25 तद्विपर्यायो नीचैत्यनुत्सेको चोत्तरस्य / 26 / विघ्नकरणमन्तरायस्य // 27 // इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रो षष्ठोऽध्यायः // 6 // हिंसाऽनृत स्तेयाब्रह्म परिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् / / Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 ] नित्य नियम पूजा देश सर्वतोऽणु-महती / 2 / तत्स्थैयार्थ भावनाः पच-मच 3. वाइमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपण समित्यालोकित पानभोजनानि पंच।४। क्रोध लोभ भीरूत्व हास्य प्रत्याख्यानात्य नवीविभाषण च पच 5 / शून्यागार वि मोवितावास परोपधाकरण भैक्ष्य शुद्धि-सधर्माऽविसंवादाः पंच 6 / स्त्री रागकथाश्रवण तम्मनोहरांगनिरीक्षण पूर्वरतानम्मामध्येट स. स्वशरीरसंस्कारत्यागाः पंच 7' मनोज्ञामन ज्ञेन्द्रिय-विषय. रागद्वेषवर्जनानि पंच / 8 / हिंसादिविहामुत्रापायावद्यदर्शनं 19' दुःखमेव वा 10 मैत्री-प्रमोद कारुण्य माध्यस्थ्यानि च सत्वगुणाधिक-क्लिश्यमानाऽविनयेषु / 11 / जगत्कायस्वभावौ वा संवेग-वैराग्यार्थम् 12 / प्रमत्तयोगात्प्राग व्यपरोपणं हिंसा / 13 / असद्विधानमनृतम् / 14 / अत्तादानं स्तेयं / 15 / मैथुनंब्रह्म ! 16 मुर्छा परिग्रहः 17 निः शल्यो व्रती / 18 अगार्य नगारश्व / 19 / अणवतोऽगारी 120 दिग्देशानर्थदण्ड विरति सामायिक-पोषधोपवासोपभोगपरिभोग-परिमाणातिथि संविभाग व्रत सम्पन्नश्च 21 मारणान्तिकी सल्लेखनां जोषिता।२२॥ शंका कांक्षा-विधिकित्सान्यदृष्टि प्रशंसा संस्तवाः सम्यग्दृष्टरतीचाराः / 23 / व्रत शीलेषु पंच पंच यथाक्रमं / 24 / बन्ध-वध-च्छेदातिभारारोपणानपान-निरोधाः 25 / मिथ्योपदेश रहोभ्याख्यान कूटलेखक्रिया-न्यासापहार-साकारमन्त्रभेदाः / / 26 / / Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा ............. [ 2010 स्तेनप्रयोग तदाहृतादान विरुद्धराज्यातिक्रम हीना-धिकमानोन्मान-प्रतिरुपकव्यवहाराः।२७। परविवाहकरणेत्वरिका परिगृहीतापरिगृहीतागमना नंगक्रीडा कामतीव्राभिनिवेशाः / 28 / क्षेत्रवास्तु-हिरण्यसुवर्ण धनधान्यदासीदास कुष्यप्रमाणाति क्रमाः / 29 / उधिस्तिर्यगव्य तिक्रम क्षेत्रवृद्धिस्मृ त्यन्तराधानानि / 30 / आनयन-प्रेष्यप्रयोग-शब्दरुपानुपातपुदगलक्षेपाः / 31 / कन्दर्प कौत्कुच्य मौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि 32 // योग-दुःप्रणिधानानादर स्मृत्यनुपस्थानानि / 33 / अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गा दान-संस्तरोपक्रमणाना दरस्मृत्यनुपस्थानानि / 34 / सचित्तसम्बन्ध सम्मिश्राभिषवदुः पक्वाहाराः / 35/ सचित्तनिक्षेपापिधान परव्यपदेश-मात्सर्य-कालातिकमाः 36 / जिवित-मरणाशंसा मित्रानुराग सुखानुबन्धः निदानानि (371 अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्यो दानम् 39 / विधि द्रव्यदात-पात्र-विशेषात्तद्विशेषः / 39 , इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रो सप्तमोऽध्यायः // 7 // मिथ्यादर्शनाविरति-प्रमाद कषाय योगा बन्धहेतवः 11 / सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो यांग्यान् पुद्गलानादत्ते स बंधः / 2 / प्रकृति स्थित्यनुभाग प्रदेशास्तद्विधयः 3 / आद्यो ज्ञान-दर्शनावरण वेदनीय मोह-नीयायुर्नाम-गोत्रान्तरायः 4 पंच-नव द्वयष्टाविंशति चतुर्द्वि चत्वारिंशद्-द्वि१४ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 ] नित्य नियम पूजा पंव मेदा यथाक्रमम् / 5 / मतिश्रुतावधिमनः पर्यय केवलानाम् '6 / चक्षु रचा रवधिकेवलानां निद्रा निद्रानिद्राप्रवला प्रचला प्रचला-स्त्यानगृद्धयश्च / 7 / सदसद्व ये 8 दर्शन चारित्र मोहनीयाकपायकषायवेदनीयाख्यास्त्रि द्विनव पोडशभेदाः सम्यक्त्व मिथ्यात्व तदु भयान्य कषाय कपायो हास्यरत्यर तिशोकमयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुसकवेदाः अनंतानुबंध्यप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलन-विकल्पाश्चेकशः क्रोध मानमाया ल भाः / 9 / नारकतैयग्योन मानुषदैवानी 10 गति जाति शरीरांगोपांग निर्माण बंधन-संघात संस्थान-संहनन स्पर्श-रस-गंध वर्णानुपूर्व्य गुरूलघूपघात-परघाता तपो द्यो तोच्छवासविहायोगतयः प्रत्येक-शरीर त्रस सुभग सुस्वरशुभ सूक्ष्म-पर्याप्ति-स्थिरादेय यशः कीर्ति से राणि-तीर्थक रत्वं च / 11 / उच्चैनीचेश्च : 12. दान-लाभ भोगोपभांगवीर्याणाम् / 13 आदि तस्तिमृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपम-कोटी कोट्यः परास्थितिः / 14. सप्ततिर्मोहनीयस्य 115 विंशतिनाम गोत्रयोः 16 // त्रयस्त्रिंशत्सागर पमाण्यायुषः / 17 / अपराद्वादश मुहूर्ता वेदनीयस्य 118 नामगोत्रयोरष्टौ / 19 / शेषाणामन्तमुहूर्ता / 20 / विपाकोऽनुभवः / 21 / स यथानाम / 22 / ततश्च निर्जरा 23 / नाम प्रत्ययाः सर्वतो योग विशेषात्-सूक्ष्मैक क्षेत्रावगाह स्थिताः सर्वात्म प्रदेशेष्वनन्तानन्त-प्रदेशाः :24 / सद्व द्य शुभायुर्नाम-गोत्रागि Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [203 - पुण्यं / / 5 / अतोऽन्यत्पापम् 26 / इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रअष्टमोऽध्यायः // 8 // आस्रव-निरोधः संवर / 1 // स गुप्ति-समिति-धर्मानुप्रेथा “परिषहजय चारित्रः / 2 / तपसा निर्जरा च / 3 / सम्यग्योग निग्रहो गुप्तिः / 4 / इर्याभाषणा-दाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः 5 / उत्तम क्षमा मार्दवाव शौच-सत्य संयम-तप. स्त्यागाकिंवन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः।६। अनित्याशरण-संसारैकत्वान्यत्वा शच्यास्रवसंवर निर्जरालोक बोधि दुर्लभ धर्मस्वाख्या-तत्वानुचिंतनमनुप्रेक्षाः 7. मार्गाच्यवन निर्जरार्थ परिषोढव्याः परीषहाः / 8 / क्षुत्पिपासा शीतोष्ण दंशमशकनाग्न्यारति-स्त्री चर्या विषया-शय्याक्रोश वधयाञ्चनालाम रोग तृणस्पर्शमल सत्कार पुरस्कार-प्रज्ञाऽज्ञानादर्शनानि / 9 / सूक्ष्मसाम्पराय-छमस्य वीतरागयोश्चतुर्दश / 10 एकादश जिने / 11 / बादरसाम्पराये सर्वे / 12 / ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने / 13 / दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ / 14 / चारित्रमोहे नाग्न्यारति स्त्री विषद्याक्रोश याषना सत्कारपुरस्काराः।१५। वेदनीये शेषाः / 16 / एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नकोनविंशतिः / 17 सामायिक--च्छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि सूक्ष्म साम्पराय-यथा ख्यातमिति-चारित्रम् // 18 // अनशनाव मौदर्य वृत्तिपरिसंख्यान रसपरित्याग-विविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्य तपः / 19 / प्रायश्चित विनय वैयावृत्य स्वाध्याय-व्युत्सर्ग ध्यानान्युत्तरं / 20 नव चतुर्दश Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204 ] नित्य नियम पूजा पंच द्वि भेदा यथाक्रमं प्रागध्यानात् ।२१।आलोचना-प्रतिक्र-- मण-तदुभयविवेकव्यु-सर्गतपश्छेद-परिहारोपस्थापनाः 22 / ज्ञान दर्शन चारित्रोपचाराः / 23 / आचार्योपाध्याय तपस्त्रि शैक्ष्यग्लान गण कुल संघ साधु मनोज्ञानाम् / 24 / वाचना पृच्छनानुप्रेक्षाम्नाय धर्मोपदेशाः / 25 बाह्याभ्यन्तरोपध्योः / 26 उत्तम संहननस्यैकाग्र चिंता-निरोधो ध्यानमान्त मुहू. त्तात् / 27 आर्तरौद्र-धर्म्य शुक्लानि / 28 / परे मोक्षहेतू / 29 आर्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृति समन्याहारः।३० विपरीतं मनोज्ञस्य / 31 / वेदनायश्च / 32 // निदानं च 33 / तदविरत-देशविरत-प्रमतसंयतानाम् / 3 / / हिंसानृत-स्तेय-विषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरत देशविरतयोः / 35 आज्ञापाय-विपाक-संस्थान विचयाय धर्म्यम् / 36 / शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः / 37 परे केवलिनः / 38 / पृथक्वेकत्ववितर्क-सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्युपरत-क्रियानिवर्तीनि 39 / त्र्येकयोग काययोगयोगानाम् / 40 एकाश्रये सवितर्कवी. चारे पूर्वे / 41 / अबीचारं द्वितीयम् 42 / वितर्कः श्रुतम् / 43 / विचारोऽर्थव्यंजन योग-संक्रांतिः / 44 सम्यग्दृष्टि श्रावक विर. तानंतवियोजक-दर्शनमोहक्षपकोशमकोपशांत मोह-क्षपकथीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुण-निर्जराः / 45 / पुलाकवकुश कुशील निग्रंथ स्नातकाः निग्रंथाः।४६ संयम-श्रत प्रति.. सेवना तीर्थ लिंग-लेश्योपपाद स्थान विकल्पतः साध्याः / 47 इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रो नवमोऽध्यायः / / 9 / / Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्य नियम पूजा [ 205 मोहक्षयाज्ज्ञान-दर्शनावरणान्तराय क्षयाच्च केवलम् 11 / बन्धहेत्वभाव- निर्जराभ्यां कुत्स्न-कर्म-विप्रमोक्षो मोक्षः 2 औपमिकादि-भव्यत्वानां च / 3 / अन्यत्र केवलसम्यक्त्व ज्ञान दर्शनसिद्धत्वेभ्यः / 4 तदनन्तर मद्यं गच्छत्यालोकान्तात् / 5 / पूर्वप्रयोगा दसंगत्वाद् बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च / 6 / आविद्ध-कुलाल चक्रवद् व्यपगतलेपालाबुबदेरण्ड बीजवदग्नि-शिखावच्च 7 / धर्मास्तिकायाभावात् / 8 / क्षेत्र-काल-गति लिंग-तीर्थ-चारित्र प्रत्येकबुद्धबोधित ज्ञानावगाहनान्तर संख्याल्प बहुत्वतः साध्या 9 / इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे दशमोऽध्यायः // 10 // कोटिशतं द्वादशं चेव कोट्यो, लक्षाण्यशीतिस्त्यधिकानी चैव / पञ्चाशदष्टौ च सहस्त्रसंख्या-मेतश्रुतं पंचपद नमामि / 1 / अरहन्त भासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियंसव्वं / प्रगमामि भत्ति-जुत्तो, सुदणाणमहोवयं सिरसा / 2 / अक्षर मात्र-पदस्वर-हीनं व्यंजन-संधि-विवर्जित-रेफम् : साधुभिरत्र मम क्षमितव्यं को न विमुह्यति शास्त्र-समुद्रे / 3 / दशाध्याय परिच्छन्ने तत्वार्थे पठिते सति / फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुगवैः / 4 / तत्वार्थसूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् वन्दे गणीन्द्र संजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् / 5 / जं सक्का तं कीरइ जं पुण संक्का तहेव सदृहणं / सह-माणो जीवो पावइ अजरामरं ठाणं / 6 / तव यरगंवय-धरणं, सञ्जमसरणं Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूषा सजीव या करणम् / अंत समाहि मरण च जीवदया करणम् / अंते समाहि मरणं, चउविह-दुक्खं णिवारेई / 7 // // इति तत्वार्थ-सूर्य समाप्तम् / / बारह भावना / (भूधरदास कृत) दोहा-राजा, राणा, छत्रपति, हाथिनके असवार / मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार / 1 // दल-बल देई-देवता, मात-पिता परिवार / मरती बिरियां जीवको, कोई न राखनहार / 2 / / दाम विना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान / कहूँ न सुख संसारमें, सब जग देख्यो छान / 3 // आप अकेले अवतरै, मरै अकेलो होय / यों कवहूँ इस जीवको, साथी-सगा न कोय // 4 // जहाँ देह अपनी नहीं, तहां न अपनो कोय / घर-सम्पत्ति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय / / 5 / / दिपै चाम चादर मढ़ी, हाड पिंजरा देह / भीतर या सम जगतमें, अवर नहीं धिन गेह // 6 // सोरठा-मोह नींदके जोर, जगवासी धूमै सदा।। कर्म चोर चहुँ ओर, सरबस लूटै सुध नहीं | // 7 // सतगुरु देय जगाय, मोह-नींद जब उपशमै / तप कछु बनहिं उपाय, कर्म-चोर आवत रुकै 8 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 207. दोहा। ज्ञान-दीप तप-तेल भर, घर शोध भ्रम छोर / या विध बिन निकसे, नहि पेठे पूरव चोर // 9 // पंच महाव्रत संचरण, समिति पंच परकार / प्रबल पंच इन्द्रीय-विजय, धार निर्जरा सार // 10 // चौदह राजु उतंग नभ, लोक पुरुष संठान / तामें जीव अनादित, भरमत हैं बिन ज्ञान // 11 // धन-कन-कंचन राज-सुख, सबहि सुलभकर जान / दुरलभ है संसारमें, एक जथारथ ज्ञान / 12 // जांचे सुर-तरु देय सुख, चिन्तन चिन्ता रैन / बिन जांचे विन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन // 13 // निर्वाण कांड भाषा दोहा-वीतराग वन्दौं सा, भाव-सहित सिरनाय / कहूँ कांड निर्वाणकी, भाषा सुगम बनाय // 1 // . चौपाई अष्टापद आदीश्वर स्वामी, वासुपूज्य चम्पापुरि नामी / नेमिनाथ स्वामी गिरनार, बंदौं भावभगति उर धार // 2 // चरम तीर्थकर चरम शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर / शिखर समेद जिनेसुर बीस, भाव-सहित वंदौं निशदीस / 31 वरदतराय रु इन्द्र मुनिन्द, सायरदत्त आदिगुणवृन्द / नगर तारवर मुनि ऊठकोडि,वन्दौं भाव सहित कर जोडि Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208] नित्य नियम पूषा श्रीगिरनार शिखर विख्यात कोड़ि बतत्तर अरु सौ सात / सम्बु प्रदुम्न कुमर द्वै भाय, अनिरुध आदि नमूतमु पाय 5 रामचन्द्र के सुत द्वै वीर, लाड़ नरिन्द्र आदि गुणधीर / पांच कोड़ि मुनि मुक्ति मँझार, पावागिरि बन्दौं निरधार 6 पांडव तीन द्रविड राजान,आठ कोड़ि मुनि भकति पयान / श्रीशत्रुजय गिरिके शीस, भाव-सहित वन्दौं विश दीस / / 7 जे बलभद्र मुकतिमें गये, आठ कोड़ि मनि औरहु भये / श्रीगजपंथ शिखर सुविशाल,तिनके चरन नमू तिहुँ काल / 8 राम हण सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील-महानील / कोड़ि निन्याणवै मुक्ति पयान,तुगीगिरी वन्दौं धरि ध्यान 9 नंग अनंग कुमार सुजान, पांच कोड़ि अरु अर्घ प्रमान / मुक्ति गये सोनागिरि सीश, ते वन्दौं त्रिभुवन पति ईश 10 रावणके सुत आदि कुमार, मुक्ति गये रेवा तट सार / कोटि पंच अरु लाख पचास,ते वन्दौं धरि परम हुलास // 11 रेवा नदी सिद्धवर कूट, पश्चिम दिशा देह जहँ छुट / है चक्री दश कामकुमार, ऊठ कोड़ि वन्दौं भव पार 12 बड़वानी बड़नयर सुगंग, दक्षिण दिशि गिरि-चूल उतंग। इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण, ते बन्दौं भवसायर तर्ण / / 13 सुवरण भद्र आदि मनि चार,पावागिरि वर शिखर मंझार। चेलना नदी तीरके पास, मुक्ति गये बन्दौं नित तास / 14 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 209 "फल होड़ि वडगाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप / गुरु दत्तादि मुनिसुर जहां मुकित गये बन्दौं नित तहां // बाल महाबाल मुनि दोय, नाग कुमार मिले त्रय होय / श्री अष्टापद मुक्ति मँझार, ते बन्दौं नित सुरत संभार / अचलापूरकी दिश ईशान, जहां मेंढागिरी नाम प्रधान / साढ़े तीन कोडि मुनिराय, तिनके चरण नमूचित लाय / बंसस्थल वनके ढिग होय, पश्चिम दिशा कुन्थुगिरि सोय / कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणनि करू प्रणाम / / जसरथ राजाके सुत कहे, देश कलिंग पांच सौ लहे / कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, बन्दन करू जोर जुग पान // -समवशरण श्रीपार्श्व-जिनंद, रेसिन्दोगिरी नयनानन्द / वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते वन्दौं नित धरम जिहाज // मथुरापुर पवित्र उद्यान, जम्बू स्वामी प्रायें निर्वाण / चरमकेवली पंचम काल, ते वन्दौं नित धर्म-जिहाज // तीन लोकके तिरथ जहाँ, नितप्रति वन्दन कीजै तहां / -मन-वच-काय सहित सिर नाय. चन्दन करहिं भविकगुण गाय संवत सतरह सौ इकताल आश्विन सुदि दशमी सुविशाल / भैय्या' वन्दन करहि त्रिकाल, जय निर्वाण कांड गुणमाल॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 ] नित्य नियम पूजा अतिशय क्षेत्र श्री पद्मपुरामें विराजित / श्री पद्मप्रभ जिन पूजा। श्रीधर नन्दन पद्म प्रभ, वितराग जिननाथ / विधन हरण मंगल करन, नमों जोरि जुगहाथ / / जन्म महोत्सव के लिए, मिलकर सब सुर राज / आये कौशाम्बी नगर, पद पूजाके काज / / पद्मपुरीमें पद्मप्रभ, प्रगटे प्रतिमा रूप / परम दिगम्बर शांतिमय, छबि साकार अनूप / / हम सब मिल करके यहां, प्रभु पूजाके काज / आह्वानन करते सुखद कृपा करो महाराज !.. ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रम जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् / अष्टक / थीरोदधि उज्वल नीर, प्रासुक गन्ध भरा कंचन झारी में लेय, दीनो धार धरा / / वाडीके पद्म जिनेश, मंगल रूप सही। काटो सब क्लेश महेश मेरी अज यही // 1. ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / 165 चन्दन केशर करपूर, मिश्रित गन्ध धरो / शीतलता के हित देव, भव आताप हरो // बाडा के० // ॐ ह्र श्री पद्मप्रभ जिनेंद्राय भवतापविनाशनाय चंदनं नि / Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [211 ले तन्दुल अमल अखंड, थाली पूर्ण भरो। अक्षय पद पावन हेतु हे प्रभु पाप हरो || बाडा के०॥ ह्रीं श्री पद्मप्रजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० / ले कमल केतकी वेल, पुष्प धरु' आगे। प्रभु सुनिये हमरी टेर, काम कला भागे / / बाडा के० // ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वांशनाय पुष्पनिक नैवेद्य तुरत बनवाय, सुन्दर थाल सजा। मम क्षधारोग नश जाय, गाऊं वाद्य वजो / बाडा के०॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निक हो जगमग 2 ज्योति, सुन्दर अनियारी / ले दीपक श्री जिन चन्द, मोह नशे भारी ||बाडा के०॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपनि ले अगर कपूर सुगन्ध चन्दन गन्ध महा। खेवत हों प्रभु ढिंग आज, आठों कर्म दहा ||बाडा के०।। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि / श्रीफल बादाम सुलेय केला आदि धरे / फल पाऊ शिव पद नाथ, अरपू मोद भरे बाडा के०it. ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० / जल चंदन अक्षत पुष्प नेवज आदि मिला। मैं अष्ट द्रव्य से पज, पाऊ सिद्ध शिला / / बाडा के०॥ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्तये अर्ध नि B. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 ] नित्य नियम पूजा अध्यं चरणोंका चरण कमल श्री पद्म के, वंदौं मन वच काय / अर्घ्य चढाऊ भावसे कर्म नष्ट हो जाय // बाडा के ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र चरणकमलेभ्यो अर्घ नि / भूमिमें विराजमानका अर्थ / 'धरतीमें श्री पनकी पद्मासन आकार | परम दिगम्बर शांतिमय, प्रतिमा भव्य अपार / सौम्य शांत अति कान्तिमय, निर्विकार साकार / अष्ट द्रव्यका अर्घ्य ले, पूजो विविध प्रकार / बाडा के.। ॐ ह्रीं श्रोपमप्रम जिनेन्द्राय भूमि में स्थित समय अर्घ्य नि / पंचकल्याणक (हर एक दोहाके बाद नीचे लिखो आंचरो पढ़ना चाहिये) श्री पद्मप्रभ जिनराजजी मोहे राखो हो शरना / दोहामाघ कृष्ण छठीमें प्रभो आये गर्भ मझार / मात सुसीमाका जनम, किया सफल करतार श्रिीपम० -ॐ ह्रीं माघ कृष्णा षष्ठी दिने गर्भ मंगल प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ 'जिनेन्द्राय अध नि० स्वाहा / कार्तिक सुद तेरस तिथि, प्रभो लियो अवतार / देवों ने पूजा करी, हुआ मंगलाचार / / श्रीपद्म० / ह्रीं कार्तिक शुक्ला त्रयोदश्यां जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ "जिनेन्द्राय अब नि० स्वाहा / Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 213 कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, तृणवत् बंधन तोड / तप धार्यो भगवान् ने, मोह कर्म को तोड / / श्रीपन / ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्ला त्रयोदश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घ नि स्वाहा / चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा उपज्यो केवलज्ञान / भवसागर से पार हो, दियो भव्य जन ज्ञान ॥श्रीपा०॥ ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ला पूर्णिमायां केवलज्ञान प्राप्ताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ नि० स्वाहा / फाल्गुन वदी सुचौथ को, मोक्ष गये भगवान / इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजौं धर ध्यान ॥श्रीपम॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा चतुर्थी दिने मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घ नि० स्वाहा / जयमाला दोहा-चौत्रीसौं अतिशय सहित, बाडा के भगवान / जयमाला श्री पद्मकी, गाऊ सुखद महान // पद्धरि छन्द जय पद्मनाथ परमात्मदेव, जिनकी करते सुर चरणसेव / जय पद्म 2 प्रभु तन रसाल, जय 2 करते मुनिमन विशाल / कौशाम्बीमें तुम जन्म लीन, बाडामें बहु अतिशय करीन / इक जाट पुत्रने जमीं खोद, पाया तुमको होकर समोद / सुनकर हर्षित हो भविक वृन्द, आकर पूजा की दुख निकंद। करते दुखियोंका दुःख दूर, हो नष्ट प्रेत बाधा जरुर / डाविन शाकिन सब होय चूर्ण, अन्धे हो जाते नेत्र पूर्ण / / Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 ] नित्य नियम पूजा श्रीपाल सेठ अंजन सुचोर, तारे तुमने उनको विभोर / अरु नकुल सर्प सीता समेत, तारे तुमने निज भक्ति हेत / हे संकट मोचक भक्त-पाल, हमको भी तारो गुग विशाल / / विनती करता हूँ बार बार, होवे मेरा दुख क्षार क्षार / मीना गूजर सब जाट जैन, आकर पूजे का तृप्त नैन / / .मन वच तन से पूजे जो कोय, पावे वे नर शिवसुख जु सोय ऐसी महिमा तेरी दयाल, अब हमपर भी होवो कृपाल / / ॐ ह्रीं श्रोपद्मप्रभ जिनेन्द्राय जयनाला पूर्णाज़ नि० स्वाहा / पूजन विधि जानू' नहीं नहिं जानू आह्वान / भूल चूक सब माफ कर, दया करो भगवान / / इत्याशीर्वादः। चांदनगांव महावीर स्वामी पूजा। (स्व० श्री पूरणमलजी शमशाबाद कृत) छन्द / श्री वीर सन्मति गांव चांदनमें प्रगट भये आय कर / जिनको वचन मन कायसे मैं, पूजहूँ शिरनाय कर / / हुये दयामय नार नर लखि, शांति रूपा वेष को। तुम ज्ञान रूपी भानू से, कीना सुशोभित देश को // सुर इन्द्र विद्याधर मुनि, नरपति नवावे शीश को / हम नमत हैं नित चावसौं महावीर प्रभु जगदीश को। ॐ ह्रीं श्रीचांदनगांव महावीर स्वामिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं / ॐ ह्रीं श्री चांदनगांव महावीर स्वामिन Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 215 अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ॐ ह्रीं श्री चांदनगांव महावीर स्वामीन् अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं / अथाष्टक क्षीरोदधि से भरि नीर, कंचनके कलशा / तुम चरणनि देत चढाय, आवागमन नशा / / चांदनपुरके महावीर, तौरी छवि प्यारी / प्रभु भव आताप निवार, तुम पद बलिहारी // 1 / / ___ॐ ह्रीं श्री चांदनगांव महावीर स्वामीने जलं नि / मलयागिरि और कपुर, केशर ले घस्यों। प्रभु भव आताप मिटाय, तुम चरन परसों ।चांदन चंदनं तंदुल उज्ज्वल अति धोय, थारी में लाऊ। तुम सन्मख पूज चढाय, अक्षयपद पाऊँ ।चांदन अक्षतं / / बेला केतकी गुलाब, चंपा कमल लाऊ / दे काम बाण करि नाश, तुमरे चरण दऊं।। चांदन.।पुष्प। फेनी गुंजा पकवान, मादक ले लीजे / करि क्षुधा रोग निरवार, तुम सन्मुख कीजे चांदन.निवेद्य धृत में कपूर मिलाय, दीपक में जारों / करि मोह तिमिरको दूर, तुम सन्मुख बारों / चांदन. दीप। दश विधि ले धूप बनाय, तामें गंध मिला। तुम सन्मुख खेऊ आय, आठों कर्म जला ।।चांदन.धूपं / / पिस्ता किसमिस बादाम, श्रीफल लोंग सजा। श्री वर्द्धमान पद राख; पाऊ मोक्ष पदा / चांदन. फलं॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 216 / नित्य नियम पूजा जल गन्ध सु अक्षत पुष्प चरुवर जोर करों। ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्ज करों / / चांदन / अर्थ / / टोंकके चरणोंका अर्घ / जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बरसावं / तुम चरण दरशन होत, आकुलता जावै / / जहां छतरी बनी विशाल, अतिशय बहु भारी / हम पूजत मन वच काय, तजि संशय सारी / चांदन. || ह्रीं टोंकमें स्थापित श्री महावीर चरणेभ्यो नमः अघी ___टीले में विराजमानका अघ / टीले के अन्दर आप सोहे पद्मासन, जहां चतुरनिकाई देव, आवे जिन शासन / नित पूजन करत तुम्हार कर में ले झारी. ___ हम हूँ वतुद्रव्य बनाय, पू भी थारी ||चांदन.।। ह्रीं श्रीचांदनपुर महावीरजिने टीले में विराजमान समयकाsic पंचकल्याणक / कुण्डलपुर नगर मंझार त्रिशला उर आये / सुदि छठि अषाढ सुर आय, रतनजु बरसायो चांदन. ॐ ह्रींश्रीमहावीर जिनेंद्राय आषाढशुक्लाषष्ठयांगर्भमंगलप्राप्ताया जनमत अनहद भई घोर, आय चतनिकाई। तरस शक्लाको चैत्र, सुरगिरी ले जाई / / चांदन. // ह्रीं श्रीमहावीरजिनेंद्रायचैत्रशुक्लात्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्तायाधी कृष्णा मगसिर दश जान, लौकान्तिक आये। करि केशलोंच तत्काल, झट वनको धाये / चांदन. ह्रीं श्रीमहावीरजिनेंद्राय मगसिरकृष्णादश्यांतपोमंगलप्राप्ताया Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [217 वैशाख सुदी दश मांहि घाति क्षय करना। पायो तुम केवलज्ञान, इन्द्रनकी रचना ॥चांदन०॥ ह्रीं श्रीमहावीरजिनाय वैशाखशुक्लादश्यां केवलज्ञानप्राप्ताया. . कार्तिक जु अमावस कृष्ण पावापुर ठाहीं / भयो तीन लोकमें हर्ष, पहूँचे शिव माहीं ॥चांदन०॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनाय कार्तिककृष्णामावश्यां निर्वाणप्राप्ताया जयमाला (दोहा) मङ्गलमय तुम हो सदा, श्री सन्मति सुखदाय / चांदनपुर महावीरकी, कहूँ आरती गाय // पद्धरि छन्द जय जय चांदनपुर महावीर तुम भक्त जनोंकी हरत पीर / जड चेतन जगमें लखत आप, दई द्वादशांग बानी अलाप / 1 / अब पंचम काल मंझार बाय, चांदनपुर अतिशय दई दिखाय टिलेके अन्दर बेठ वीर, नित हरा गायका आप क्षीर 2 ग्वाला को फिर आगाह कीन, जब दर्शन अपना आप दीन / सूरत देखी अति ही अनूप, हैं नग्न दिगंबर शांति रूप // 3 // वहां श्रावक जन बहूँ गये आय,कीये दर्शन करि मन वचन कायः है चिन्ह शेरका ठीक जान, निश्चय हैं ये श्री वर्धमान / 4 / सब देशनके श्रावक जु आय, जिन भवन अनूपम दियो बनायः फिर शुद्ध दई वेदी कराय, तुरतही गजरथ फिर लयो सजाय५ ये देख ग्वाल मनमें अधीर, मम गृहको त्यागो नहीं वीर। तेरे दर्शन बिन वजूप्राण,सुनि टेर मेरी कृपा निधान // 6 // Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 ] नित्य नियम पूजा कीने रथमें प्रभु विराजमान,रथ हुआ अचल गिरिके समान / तब तरह 2 के किये जोर बहुतक रथ गाडी हिये तोड 7/ निशिमांहि स्वप्न सचिबहिं दिखात, रथचलेग्वालका लगतहाथ भोरहि झट चरण दियो बनाय, संतोष दियो बालहि कराय करि जय जय प्रभुसे करी टेर स्थ चल्यो फेर लागी न देर / बहुनृत्य करत बाजे बजाय, स्थापन कीने तहं भवन जाय 9 इकदिन मंत्रीको लगा दोष,धरि तोप कही नृप खाइ रोष / तुमको जव ध्याया वहाँ वीर,गोलासे झट बच गया वजीर। मंत्री नृप चांदनगांव आय, दर्शन करि पुजा को बनाय // करि तीन शिखर मन्दिर रचाय कंचन कलशा दीने घराय / वह हुक्म कियो जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश / अव जुडन लगे नर व नारि तिथि चत सुदी पूनों मंझार : मीना गजर आवे विचित्र, सब वर्ण जुडे करि मन पवित्र / बहूँ निरत करत गांवें सुहाय, कोई 2 धत दीपक रह्यो चढाय कोई जय र शब्द करे गंभीर, जय जयजय हे श्री महावीर / जैन नन पूजा रचत आन, कोई छत्र चमर के करत दान / जिसकी जो मन इच्छा करंत, मन वांछित फल पावे तुरंत / जो करे बंदना एक वार, सुख पुत्र संपदा हो अपार / / जो तुम चरणों में रक्खों प्रीत, ताको जगमें हो सके जीत / है शुद्ध यहां का पवन नीर, जहां अति विचित्र सरिता गंभीर पूरनमल पूजा रची सार, जहां हो भूल लेउ सज्जन सुधार / सेरा है शमशाबाद गाम, त्रिकाल करु भुको प्रणाम / / Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा मा.................. 219. श्री वर्द्धमान तुम गुण निधान, उपमा न बनी तुम चरणनकी। है चाह यही नित बनी रहे अभिलाष तुम्हारे दरशन की। ॐ ह्रीं श्री चांदनपुर महावीर जिनेन्द्राय पूर्णाध्यं / दोहा-अष्ट कर्मके दहनको, पूजा रची विशाल / पढ़े सुने जो भावसे, छूटे जग जंजाल / / संवत जिन चौबीस सौ, है बासठ की साल / एकादश कार्तिक वदी पूना रची सम्हाल / // इत्याशीर्वादः // अतिशय क्षेत्र देहरे तिजाराके श्री चन्द्रप्रभ जिन पूजन / वर चंद्र काम कलंक वजित नेत्र मनहिं लुभावने, शुभ ज्ञान केवल प्रगट कीनों धातिया चारो हने / ऐसे प्रभुके दर्श पाये धन्य दिन यह वार है, होकर प्रगट महिमा दिखाई नमन शत शत वार है / / देहरे के श्रीचन्द्र प्रभ मम उर मन्दिर आय / तिष्ठ तिष्ठ नाथ मैं, पूजू मन वच काय // 1 // __ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् / आह्वाननं अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / अथाष्टक धीरोदधि को जल लाय, कंचन भृङ्ग भरा / तुम ढिंग दे धार नशाय, जामन मरन जरा // . Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 ] नित्य नियम पूजा देहरे के चन्द्र जिनेश अर्ज सुनहूँ मेरी / / मेटहूं भव भ्रमण क्लेश प्रभु न करा देरी / 1 // ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / चंदन केशर कपूर, श्रद्धा सहित घसे / पूजत तुम चरण हजूर, भव आताप नशे ।देहरे० / ॐ ह्रीं देह रेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय भवतापविनाशनाय चंदनं नि उज्ज्वल अक्षत जिनराज, मुक्ता सम ल्याऊं। दऊ पुज चरण ढिंग आज, अक्षय पदपाऊ देहरे.! ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० बेला गुलाब मचकंद सुमन सुगंध भरे / तुमको पूजत प्रभु चन्द्र, काम कलंक हरे ।।देहरे०।। ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय कामवाणविध्वंशनाय पुष्पनिक नैवेद्य जु विविध प्रकार, षट रस बलकारी / कर क्षुधा वेदनी क्षार, भूख नशे म्हारी ।देहरे / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यंनि० घृतके भर दीप जलाय, धारु तुम आगे / मम तिमिर मोह नशि जाय ज्ञानकला जागे ।।देहरे०।। ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपनि शुभ धूप दशांग बनाय पावक में खेऊ / मम अष्ट करमजर जाय मोक्षधरा लेऊ / / देहरे०।। ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप निर्व.। पिस्ता बादाम अनार, केला सुखकारी / धारे प्रभु चन्द्र बगार, पावे शिवनारी ॥देहरे०॥ ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेंद्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि / Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा .[ 221. सब जल फल आदिक अर्घ, तुम गुण गावत हूं। पद पाऊ नाथ अनर्घ, शीश नमावत हूँ // देहरे० / / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तयेऽयं निर्व० पंचकल्याणक वदी चैत सुपंचमी आई, तज वैजयंत जिनराई। लक्ष्मणा मात उर आये, सुर इन्द्र जजे सिरनाये / 0 ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभ जिनेन्द्राय चैत्रवदी पंचमीको गर्भमङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा / / कलि पौष एकादशि आई, जन्मे थे त्रिभुवन राई / सुर चन्द्रपुरी मिल आये, अभिषेक सुमेर कराये / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय पौषकृष्णा एकादशीको जन्ममङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा। प्रभु भवतन मोग अपारा, निस्सार जाय जग सारा / वदि पौष एकादशि प्यारी, वनमें जा दीक्षा धारी / / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय पौषकृष्ण एकादशीको तपो मङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा / चहूँ कर्म घातिया नाशा, शुम केवल ज्ञान प्रकाशा। फाल्गुन शुभ सप्तमी कारी, बना समोसरण मनहारी॥ ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुनवदी सप्तमीको केवलज्ञान प्राप्ताय अर्घ नि० स्वाहा / सम्मेद शैल प्रभु नामी, है ललित कूट अभिरामी / फाल्गुन सुदि सप्तमी चूरे, शिव नारि वरिविधि कूरे / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुनसुदी सप्तमीको मोक्षमङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा / Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 222 ] नित्य नियम पूजा जयमाला दोहा-चन्द्र वदन लक्षण विमल, निष्कलंक निष्काम / ऐसे श्री जिन चन्द्र को बंदी आठों याम / शांति मूर्ति लख आपको, काटे अनन्ते पाप / रोग शोक दारिद्र दुख, नशत आप से आप / पद्धरि छन्द जय चन्द्रनाथ द्यति अमल चंद्र,जय इन्द्रचंद्र बंदित सुचन / जय चन्द्रपुरीमें जन्मलीय, महासेन नृपति गृह शोभ कीन / जय मात लक्ष्मण गोद पाय नाना क्रीडा कीनी जिनाय / देवन कुमार संग खेल कीन,प्रभवृद्धि भये मन मोद लीन / दश लक्ष्य पूर्व वह लही आप, रहें इन्द्र अमरगण सदा साथ ले राज्य भार चिरकाल कीन, जानों नहीं काल व्यतीत हीन सब वस्त्र आभरण देव लाय, श्री जिनको संतोषित कराय / एकदिन शृङ्गार करौ जू नाय, दर्पणमें लख निज मुख सुआप एक चिह्न जू मुख पर लख प्रवीन,भव भोगन वांछा लांछदीन वर चन्द्र पुत्रको राज्य देय, संबोधित प्रभुजी स्वमेव / 'विमल' जु पालखीमें बिठाय,ले गये नाथ को इन्द्र आय / सर्वतुक बन दीक्षा सु लीन, सह इक हजार राजा प्रवीन / / कर पंच मुष्ठि से लोंच केश, धारो जु दिगम्बर नग्न भेष / था नलिन नगरपुरका सुराय, तसु नाम सोमदत्तजी कहाय / / कीनौ जु पारनों तासु गेह, जहां रत्नोंका बरसा जु मेह / Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 223 फिर आत्म ध्यानमें भये लीन, लहि केवल कीने कर्म छीन // कीनों विहार भारत जु बर्ष, यह पुण्य धरा प्रगटी प्रत्यक्ष / धर्मोपदेश से भव्य तार, आये सम्मेद शिखर पहार / / तहां योग नियोग किये जु सार,पहुँचे प्रभु मोक्ष महल मंझार यह पंचम दुखमा काल जान, हुई धर्म कर्म सबकी जु हान / इस नगर तिजारा मध्य खेत, देहरा पवित्र सुन्दर सुक्षेत्र / श्रावण शुक्ला दशमी अनूप, वर वार बृहस्पति शुभ स्वरूप / / सम्वत् तेरह दो सहस वर्ष मध्याह्न समय अभिजित मुहूर्त / जिन प्रगट भये अतिशय सरुप, दिखलाया अपना दिव्यरूप प्रभु के दर्शन लख कटत पाप,सुख शांति मिलित तुमनाम जाफ सब भूत प्रेत भयभीत होय,डर कर भागत हैं नमत तोय / अरु दुख अनेक जाते पलाय, जो भाव सहित प्रभुको जु ध्याय उनके संकट टरते न कोय विन भाव क्रिया नहीं सफल होय अव अरज सुना मेरी कृपाल मैं भव दुख दुखिया हे दयाल मत देर करो सुनिये पुकार, दुष्ट अष्ट करम मेरे निवार / धत्ता-श्रीचन्द्र जिनेशं दुख हर लेतं, सब सुख देतं मनहारी / गाऊं गुणमाला जग उजियाला,कीति विशाला सुखकारी / / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभ जिनेन्द्राय महाघ नि० स्वाहा / दोहा-देहरे के श्रीचन्द्र को, मन बच तन जो ध्याय / ऋद्धि वृद्धि होवे 'सुमति' संकट जाय पलाय / / इत्याशीर्वादः। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 ) नित्य नियम पूषा कलि कुण्ड पार्श्वनाथ पूजा। सबके मध्य लिखा ह्रींकार फिर चहुँ ओर ब्रह्म अक्षर / उसके बाद लिखा स्वर खींवों आठ वज्र रेखा दुर्द्धर // 1 // प्रणव वज्र रेखा आगे है मध्य अनाहत युगल लिखा / ह-भ-म-र-घ'झ-स-ख पिंड युक्त जिनवणे सहित संशुद्ध लिखा पीछे वेष्टित किया यथाविधि यही मन्त्र कलिकुण्ड महान / ‘पर कृत विघ्न निवारक है अरु चोर डाकिनी नाशक जान 3 जो मंत्रज्ञ डाम से इसको कांस्य पात्र में लिखते हैं / करते हैं श्री खण्ड लेख जो उनको सन्मुख मिलते हैं // 4 // दोहा-रोग शोक नाशक विमल, सिद्ध सु महिमावान / ___ करू शुद्ध संस्थापना, श्री कलिकुण्ड महान / / ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कलिकुण्डदण्ड श्री पार्श्वनाथ धरणेन्द्र पद्मावती-सेवित अतुल-बलवीर्यपराक्रम सर्वविघ्नविनाशक / अत्र अवतर 2 संवौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठ ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव 2 वषट् सन्निधिकरणं / शुभ तीर्थ गंगा नदी द्रह पद्माद्विपै मैं जाय के / शीतल सुगंधित ओर शुद्ध पवित्र जल भर लायके / / दुष्ट कृत्य उपसर्ग नाशक एक ही जिन. नाथ को / मैं पूजता हूँ भाव से कलिकुण्ड पारस नाथ को // ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अहं कलिकुण्डदण्ड श्री पार्श्वनाथ धरणेन्द्र 'पद्मावती सेविताय अतुलबलवीर्य-पराक्रमाय सर्वविघ्नविनाशनाय Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिल्य निवम पूजा [ 225 हम्व्य मल्ल्य्म्म्ल्व्य रमल्व्यम्ल्व्य इम्ल्व्यसै सम्व्या खम्ल्व्यहँ जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि० स्वाहा। अतिगंध से जिस नै लुभाते भ्रमर नित्य अनेक हैं। वह मलयागिरिका दाहनाशक शद्ध चंदन एक हैं दुष्ट. चंदनं चन्द्र के सम शुक्ल स्वच्छ अखंड शालि बनाय कै। अविनाशि पदकी प्राप्तिहेतु अनिंद्य तंदुल लायकै दुष्ट.।अक्षतं मंदार अरु बकुलादि के रमणी पुष्प मंगाय कै। सरमें प्रफुल्लित कमल कुसुम सुगंधसी महकायकै दुष्ट.पुष्र्ण ताजे बनाये विविध घृत रसपूर्ण व्यंजन लायक। अति स्वच्छ सुन्दर कनक भाजनमें उन्हें रखवायकै दुष्ट.नैवेद्यं जगका प्रकाशक तम विनाशक कनकमय दीपक धरु। बहु जगमगाते ज्योतिमय अति अलितसे पूजा करु दुष्ट.दीर्ण कपूर चंदन अगुरु काष्ठादिक अनेक मंगायकै / अति गंध युक्त अनूप धूप दशांग को बनवायकै ।दुष्ट. धूप गोला छुहारे दाख पिस्तादिक अनेक सुलायक / मोक्षका अभिलाष कर रमणीक फल मंगवायकै ।दुष्ट.फलं। जल गंध अक्षत पुष्प चरु फल दीप धूप मिलायकै। वसु अर्घ से कलिकुण्ड पूजू हर्ण भाव बढायकै दुष्ट, अध।। अडिल्ल छन्द सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु अरु शक है, राहू केतु शनिश्वर नवग्रह चक्र है / Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 ] नित्य नियम पूजा ASANA इनकी शांति हेतु मैं शांत जु भाव से, पूजू श्री कलिकुण्ड प्रभु अति पावसे / / ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अहँ कलिकुण्डदण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावतीसेविताय अतुलबलवीर्य-पराक्रमाय सर्वविघ्नविनाशनाया हम्ल्व्य्र मल्व्यर्थी म्म्व्यरु रम्व्यम्लव्य इम्लव्य स्म्ल्व्य खम्त्व्यर अनर्घ पदप्राप्तये अर्घ नि० स्वाहा / स्तुति देवेन्द्रों से पूजित हो, सर्वज्ञ जिनेश्वर हो भगवान ; सदुपदेश जिनवर तुम मैं प्रणाम करता गुणगान / सर्व विघ्न विनाशक हो प्रभुवर तुम हो सद्गुण की खान / विनती करता नाथ आपकी, हो नायक कलिकुण्ड महान 1 नित्य भक्ति पूर्वक निज मनमें याद किया जो हैं करते / अपनी शक्त्यानुसार प्रार्थना करके मंत्र जपा करते।। पूजा करते भक्तिभाव से यंत्रराज की जो गुणगान / पूर्ण हुआ करती है उनकी, मनोकामना निश्चय जान 21. भक्ति जि-हों यंत्रराज में, है उनको सब सुख मिलता ! उनके घरमें कल्प वृक्ष, मानों उत्पन्न हुआ करता / अथवा प्रगट होत चिंतामणि, रत्न चिन्त्य वस्तु दाता। या फिर मानव मनोरथोंके हेतु कामधेनु पाता / 3. देवासुर से वंदित है जो रत्न पात्र में लिखा गया / रत्नत्रय आराधन का कारण है जो सुना गया / Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 227. श्रीकलिकुण्ड यंत्र को मैं अध्यात्म प्रेममें पगा हुआ। नमस्कार करता हूँ मन में भक्ति रंगसे रंगा हुआ // 4 // पड़े जेलखानों में जो हैं या बंधन में बन्धे हुए। ज्वर अतिसार ग्रहणी रोगोमें प्राणी जो हैं फंसे हुए / / सिंह करी साग्नि चोर अरु विष समुद्र के कष्ट अनेक / / . राज काजके सभी डरों को यंत्र दूर करता है एक // 5 // वंध्या स्त्री बहु पुत्र वती हो सुख का अनुभव करती हैं / सर्व अनर्थ दूर होते हैं शांति पुष्टि नित होती है / सुख अरु यश बढता है उनका जो नित पूजन करते हैं / / . श्री जिनके मुखसे निकले कलिकुण्ड यंत्रको भजते हैं // 6 // सब दोषों से रहित तथा इन्द्रो से सम्पूजित हैं वे / सर्व सुखोके दाता है अरु विघ्न विनाशकर्ता हैं ये / जो जन परम भक्तिसे पढते और अर्चना करते हैं / / पूर्ण सुखी होते हैं वे फिर मुक्ति रमा को वरते हैं // 7 // __ परिपुष्पांजलि / अथ जयमाला। दोहा-जिनवर के सुमरण किये, पाप दूर हो जाय / ज्यो रवि किरणो से सदा, अन्धकार नशि जाय // पद्धरि छन्द जय अंजन पर्वत सम जिनेश, धन गर्जन सम तब धुनि बहेय / मदमत्त शांत होता गजेश, मनमें भजते जो जन जिनेश / / 10 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228] नित्य नियम पूजा अति क्रुद्ध जीभ मुहँ दांत फाड, यमराज समान रहा दहाड / मृग सम होता है वह मृगेश, मनमें भजते जो जन जिनेश / 2 खुल रहे केश काले कराल, बहु रहा लाल आंखे निकाल / बनता प्रसन्न वह व्यंतरेश मनमें भजते जो जन जिनेश 3 / बहु भीषण जल वरसे दुरुह, तट अधिक हुआ जल का समूह / गोखुर प्रमाग होता जनेश, मनमें भजते जो जन जिनेश / 4 सिर चमक रही मगिका महान त्रयोलोक क्षोभ कारण महान नहीं डरता क्रूरभृजंगनेश, मनमें भजते जो जन जिनेश / 5 / जहां तीव्रज्वाला माला प्रसार, धत तेल हवा सेदुगुणझार / वह शांत होय जिन तारकेश, मनमें भजते जो जन जिनेश 6 पड जेल बन्धे जंजीर डार, बन्धु जिनके रोते अगार / वे छूट अभय पाते अशेष मनमें भजते जो जन जिनेश 17 / फंस रहा मनुज रिपु चाल बीच वह संकट कष्ट अनेक कीच असि कमलवेन नहिं हो क्लेश,मनमें भजते जो जन जिनेश / 8 दोहा। होते सुर असुरेश सब, अरु विद्याधरराज / वशमें उनके सर्वदा सुमरत जो जिनराज / ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ कलिकुण्डदण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती-सेविताय अतुलबलवीर्य-पराक्रमाय सर्वविघ्नविनाशनाय हम्व्य भव्य मम्व्यर रम्य धाव्य इम्लव्य सम्हय् खम्व्यहँ जन्मजरामृत्यु विनाशनाय अर्घ नि० स्वाहा। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 229 श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्रा महुवाकी पूजा / सुरत के पास महुवा (मधुपुर नगर) में यह अतिशय क्षेत्र है जहां बारडोली सुरत व नवसारी स्टेशनो से बसमें जाया जाता है, श्री विघ्नहर पार्श्वनाथकी 4 फीट ऊंची वेलुर पाषाणकी अतिशय युक्त प्रतिमाजी है। जिनके दर्शन करनेसे समस्त प्रकारके विघ्न संकट, मुसीबत, आपत्तियोंको दूर करती है, और मनवांछित मनोकामना. ओंको पूर्ण करती है। जिसकी यह पूजा श्री भट्टारकविद्याभूषगजीने बनवाई है / दोहा- महुवा नगर विराजते, पार्श्वनाथ जिनराय / विघ्नहर मंगल करण, भव भर होउ सहाय / ॐ ह्रीं महुवानगर विराजित श्रीविघ्नहर पार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर वौषट् इति आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः प्रतिस्थापनं अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं / अष्टक / गंगा भरी झारी, सन्दर भरी, मीनाकारी सरस भरी / तामें गंगाजल, भरी अति निर्मल, परित मनसे हाथ भरी // पूजो प्रभु पारस, देत महारस, विघ्नहर जिन यश गाया। कमठा मद मारण, नाग उधारण संयम धारण तज माया। ___ ह्रीं श्री महुवानगर बिराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय बलं नि० स्वाहा / Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230 ] नित्य नियम पूजा केशर ले चंदन चरचत अङ्गन, विघ्नहर तन सुख दाता / "श्रीजिनपद वंदन,दाह निकंदन,तपत हरन शीतल जात.पूजो ____ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय संसारतापविनाशनाय चंदनं नि स्वाहा / सुखदास सुपेती, अक्षत सहेती, कलश सु लेती पूज कगे। अखंड सु उज्वल,गुण अति निर्मल, देहि अक्षेपद वास धरो. पू ___ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० स्वाहा / चंपक ले पूजो, अरु मचकुन्दो, वास सुगन्धो चुनि आना, बहु परिमल जाति,सुगंध सुपाति,मदन हरन तन सुख मानो.पू ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पनि स्वाहा / घेवर ले साजे, सुखमा ताजे, सरस मनोहर अति ल्याजे / कंचन भरि झारी, फेर रसाली क्षुधा निशाली मुख याजे.पू. ___ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्रीविघ्नहर पार्श्वनाथाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि० स्वाहा / / कंचन ले दीपं, ज्योति अनूपम, वाति कपूर जोय घरं,। मर्म ज्ञान उजारण तिमिर निवारण, शिवमारग परकाशकरं.प ___ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्रीविघ्नहर पार्श्वनाथाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपनि० स्वाहा / कृष्णागुरु धृप धूप अनुपम, सेवन घट ले जिन आगे, खेवो भवितारं, कर्मकुठारं छार उजारं उडि भागे. प० / / ____ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय अष्टकर्मदहनाय धूप नि० स्वाहा / Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [231 श्रीफल नारंगी खारक पुगी, चोचमोच बहुभांति लिये। जिनचरण चढावो भक्ति बढावो,शिवफल पावो सूरि किये.' ___ॐ ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय मोक्षफल प्राप्तये फल नि० स्वाहा / जल गंध सु अक्षत, कुसुम चरूवर, दीप धूप फल ले भारी। यह अर्घ सु कीजे, जिनपद दीजे, 'विद्याभूषण' सुखकारी.पू ___* ह्रीं श्री महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय अनपद प्राप्तये अर्घ नि स्वाहा / जयमाला। चन्द्रनाथं नमस्कृत्यं, नत्वा च गुरुपादकम् / पार्श्वनाथस्य जयमाला, वक्ष्ये प्राणि-प्रसौख्यदाम् // पद्धरि छन्द / जय पाव जिनेश्वर अकलरूप,जय इन्द्र चन्द्र फणिनमतभूप जय विश्वसेनके पुत्र सार, जय वामादेवी सुत धर्मकार / / जय नीलवर्ण वर सायर काय, जय नवकार ऊचो जिनंदराय जय शतएक जिनपर तनु आय.जय खंडित क्रोध त्रिशल्यमाय जय उग्रवंश उदियो सुर, जय कमठ महान ते किया दूर। जयभूत पिशाचा दूर त्रास, डाकिनी शाकिनी आवे न पास / / जय चिंतामणि तुम कल्पवृक्ष,जय मनवांछित फल दान दक्ष / जय नंत चतुष्टय सुखधार, जय 'विद्याभूषण' नमत सार / धत्ता / जय पारस देवं सुरीकृत सेवं, नासिय जन्म जरा मरणम् / जय धर्म सुदाता भव जल, त्राता, विघ्नहर सेवित चरणम् / / Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232 / नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं महुवानगर विराजित श्री विघ्नहर पार्श्वनाथाय पूर्णाऱ्याम् निर्वपामीति स्वाहा / कल्याण विजयभद्र, चिंतितार्थ मनोरथम् / पार्श्व पूजा प्रसादेन, सर्व कामाय सिद्धयति / / इति श्री भट्टारक विद्याभूषण रचित विघ्नहर पार्श्वनाथ पूजनम् समाप्तम् / -X श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजा / स्थापना. विघ्न हरण मंगल करण हो प्रभु दीनानाथ / मुक्ति रमा के कंथ तुम, जय मुनिसुव्रतनाथ / / नृप सुमित्र के लाल तुम, श्यामा देवी मात / करु स्थापनो त्रिविधि, मम हृदय बिराजो नाथ / ह्रीं श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पैठण स्थित बिराजित मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ह्रीं श्रीं मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अत्र मम .सन्निहितो भव भव वषट् संन्निधिकरणं / (चाल-नंदीश्वर श्री जिनधाम बावन पुंज करो) प्रश सम्यक भाव जगाव, प्रामुख जल लायो / मम जन्म मरण नशजाय, तव चरण आयो / श्री मुनिसुव्रत भगवान, भवदधि पार करो / मन वच तन पूजू आज संकट दुर करो।। ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 233 केशर कपूर मिलाय, चंदन ले आयो / मम भव आताप नशाय, पूजत सुख पायो ॥श्री.॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वः स्वाहा। मुक्तासम उज्वल लाय, अक्षत चढवायो / अक्षयपद दीजो नाथ. तुम चरण आयो / श्री. ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा / इस काम महारिपु काज, बहु दुःख पावत हूँ। थिरता निजमें मिल जाय, पुष्प चढायत हूँ।श्री.॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंशनाय' पुष्पं निर्व० स्वाहा / मन मोहन मोदक आन थाली भर लायो / मम क्षुधारोग मिट जाय, तुमपद चढवायो श्रिी.॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनायः नैवेद्य निर्व० स्वाहा / यह दिप रतनमय लाय, धारु तुम आगे। मम मोहतिमिर नश जाय, ज्ञान कला जागे |श्री.॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाया दीपं निर्ग० स्वाहा। यह कर्म महावलवान, चहुँगति भरमावे / खेऊ चरणन में धूप, करम सब कटजाये. ॥श्री.॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 234] नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूप निर्चपामीति स्वाहा / बहुविधि में ऋतुफल लाय चरण चढावत हूँ। शिवपद चिरसुख मिल जाय, यह मन भावत हूं ॥श्री. / ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फल निपामीति स्वाहा / जल फल बसु द्रव्य मिलाय, अर्घ चढावत हूँ। शिवपद निजपद मिलजाय, तुम पद अर्पत हूँ // श्री मुनिसुव्रत भगवान, भवदधि पार करो / मन वच तन पूजू आज, संकट दूर करो / / + ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अनपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / जयमाला। (चाल-केवल रवि किरणोंसे जिनका संपूर्ण प्रकाशित है अंतर) "प्रभु चरण तुम्हारे आकर के, भक्तिके सुमन चढाता हूँ। विस्तृत है तेरी यशगाथा, उसका मैं पार न पाता हूँ। जो शरण तुम्हारे आता है, भवदधिसे पार चलानाता। वह जनम मरण के दुःखोसे, क्षणभरमें छुटकारा पाता / / वैशाख वदी दशमी के दिन, प्रभु राजगृहीमें जन्म लिया। इन्द्रोंने जन्म कल्याणका, उत्सवकर अतिशय पुण्य लिया। हुवे चार कल्याणिक राजगृही, सम्मेदशिखरसे मोक्ष गये / चकर्म नाशकर सिद्धभये, अविनाशी अनंत सुख प्राप्त किये / / Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 235 इतिहास पुरातन बदलाता, यह भूमि पवित्र मनोहर है। भारतकी संस्कृतिका अनुपम, मानो यह क्षेत्र धरोहर है। खर दूषण राजो एकसमय, दंडकवनमें जब आया था। वनकी सुन्दरता लखमनमें,उसका चित अति हुलसाया था। हो हर्षित तभी यहां उसने, वालूकी मूर्ति बनवाई थी। सुन्दर मंदिर बनवा करके, यह मूर्ति उसमें पधराई थी। प्रतिष्ठानमें बिंब प्रतिष्ठाकर, अपना नरभव सफल किया। सबने मिल प्रभुकी पूजा की, अरु महापुण्यका लाभ लिया। आचार्य माघनंदी स्वामी, कर भ्रमण यहां पधारे थे। उनके सुपुत्र शलिवाहन, शाककर्ता नप कहलाये थे। पैठण नगरी सुप्रसिद्ध यहां, जिनमंदिर निर्मित है भारी / मुनिसुव्रत प्रभुकी श्यामवर्ण प्रतिमा है जिसमें तुखकारी // यह चतर्थ कालकी प्रतिमा है जिसका है अतिशय भारी। भक्तोके संकट मिटजाते वांछित फल पाते है नरनारी / / चिमना पंडितने मावसको पुनमका चांद दिखाया था। प्रभुकी भक्तिसे प्रेरित हो सबने मिल हर्ष मनाया था / बिन धूप सुगंधित धुवा यहां मंदिरजी में से आता है। भक्तोके द्वारा नंदा दीप निशदिन अखांडसा जलता है / / मावस पुनमकी रात्रीमें जय घण्टा नाद सन पाता हैं। स्वर्गोसे सुरगणका समूह, प्रभु दर्शनको नित आता है / / Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 236 / नित्य नियम पूजा प्रभु मुनिसुव्रत महिमा अपार,हम अल्प बुद्धि किसविध गाये। हम शरण तुम्हारी आये हैं संकट अनिष्ट सब मिट जाय / प्रभु आज तुम्हारी पूजा हम, नहि शास्त्रविधिसे करपाये / अज्ञान समझ प्रभु क्षमा करो, हम भक्ति भावसे आये है / भव भ्रमण नही मिटता जबतक प्रभुसाथ आपका बनारहे। बनु मुक्तिपथका 'राही' यह भाव सदा ही बना रहे। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जयमाला सहित अर्घ नि स्वाहा दोहातीर्थकर प्रभु विसवे, श्री मुनिसुव्रत नाथ / करु आरती अघ, चरण नवाऊँ माथ / / पैठण में विराजित आप कच्छवा चिन्ह सुहाय / बार बार विनवू सदा, हम पर होवू सहाय / जो भविजन पूजन करे, मनवांछित फलपाय / सुख संपति संपति लहे, क्रमशः शिवपुर जाय / / ___ इत्याशीर्वाद पुष्पांजलि क्षिपेत / -Xभ. मुनिसुव्रतनाथकी आरती (चाल-ॐ जय जगदीश हरे। ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी, प्रभुजय मुनिसुव्रत स्वामी / भक्ति भावसे प्रणमू, जय अंतरयामी // ॐ जय मानसुव्रत स्वामी // 1 // Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [237 राजगृहीमें जन्म लिया प्रभु आनंद भयो भारी / सुर नर मुनि गुण गाये, आरती करी थारी / / ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी / 2 // पिता तिहारे, सुमित्र राजा, शामाके जाया / श्यामवर्ण मुरत तेरी, पैठणमें अतिशय दर्शाया / ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी // 3 // जो ध्यावे सुख पावे, सब संकट दूर करें / मन वांछित फल पावे, जो प्रभु चरण धरें / / ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी ! 4 // जन्म मरण, दुख हरो प्रभु, सब पाप मिटे मेरे / ऐसी कृपा करो प्रभ, हम दास रहे तेरे / / ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी 5 // निजगुण ज्ञानका, दीपक ले आरती करू थारी / सम्यग्ज्ञान दो सबको, जय त्रिभुवनके स्वामी / / ____ॐ जय मुनिसुव्रत स्वामी / 6 / / भ. मुनिसुव्रतनाथ स्तुति (चाल-तुमसे लागी लगन....) दीनोंके दीनानाथ, मुनिसुव्रतनाथ, जिनेश प्यारा, मेटो मेटोजी संकट हमारा / मंगल स्तुती करु', मनमें ध्यान धरु, प्रभु प्यारा, सब संकट तुमने निवारा ॥टेक।। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238 ] - नित्य नियम पूजा शामाके आंखोंके तारे, सुमित्रके राज दुलारे, पैठण में प्रगटे प्रभो, मङ्गल होवे-विभो-आनंदसारा // 1 // राजगृही प्रभु आये, चारो कल्याणिक मन भाये, पावन भूमि जहां, सम्मेदगिरि महान, निर्वाणपद थारा // 2 // सुर-नर-मुनि आये, प्रभु तव गुण सब गाये, सम्यक् ज्योति जगे अष्ट कर्म नशे, जिनेश प्यारा ||3 // अंजनसे पापी तारे, राजा श्रीपालका कष्ट निवारे, मेटो जामन मरण, कर दो दुखका हनन्. मुनिसुव्रत प्यारा / 4 भाव भक्तिसे शीस नवाऊ', प्रभु तव पद कैसे पाऊ, 'राहो' व्याकुल खडा, तेरे चरणों पडा,कर दो भव पारा // 5 // -x पद्मप्रभ चालीसा शीश नवा अहंतको सिद्धन करू प्रणाम / उपाध्याय आचार्यका ले सुखकारी नाम / / सर्व साधु और सरस्वती जिन मंदिर सुखकार / पद्मपुरीके पद्मको मन मन्दिरमें धार // जय श्रीपद्मप्रभु गुणधारी,भवि जनको तुम हो हितकारी / देवोंके तुम देव कहाओ, छ? तीर्थङ्कर कहलाओ / तीन काल तिहुँ जगकी जानो, सब बाते क्षगमें पहचानो / वेष दिगम्बर धारण हारे, तुमसे कर्म शत्रु भी हारे / / Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 239 मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दष्टि सुखद जमती नासा पर। क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेषका लेश न पाया / वीतराग तुम कहलाते हो, सब जगके मनको भाते हो / कौशाम्बी नगरी कहलाए, राजा धारणजी बतलाए / सुन्दर नाम सुसीमा उनके, जिनके उरसे स्वामी जन्मे / कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरव बतलाई / / इक दिन हाथी बंधा निरखकर, झट आया वैराग उमड़कर / कार्तिक सुदी त्रयोदश भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी।। सारे राज पाटको तजके, तभी मनोहर वनमें पहुंचे। तप कर केवल ज्ञान उपाया, चत सुदी पूनम कहलाया / / एक सौ दश गणधर बतलाए, मुख्य वज्र चामर कहलाए। लाखों मुनि आर्जिका लाखों,श्रावक और श्राविका लाखों। असंख्यात तियंव बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये। फिर सम्मेदशिखरपर जाकर, शिवरमगीको ली परणाकर / / पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई। जयपुर राज ग्राम बाडा है, स्टेशन शिवदासपुरा है / / मूला नाम जाटका लड़का, घरकी नींव खोदने लागा / खोदत खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनताको बतलाई / / चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पद्म प्रभुकी मति बताई। मनमें अति हर्षित होते हैं, अपने दिलका मल धोते हैं / Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 ] नित्य नियम पूजा तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेतको दूर भगाया। अब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे / जपनेसे जब नाम तम्हारा, भूत प्रेत वो करे किनारा / ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आंखे पाते हैं / प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ही हिरदयको भाए / ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस भवसे वह नर तरता है / अन्धा देखे गूगा गावे. लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे / बहरा सुन-सुन कर खूश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे / / मैं हूँ स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा। चालीसेको चन्द्र बनावे, पद्म प्रभुको शीश नवावे // नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन खेय सुगंध अपार, पद्मपुरीमें आयके // होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो / जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जगमें चले / -+श्री चन्द्रप्रभु चालीसा वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणीको ध्याय / लिखनेका साहस करू चालीसा सिर नाय / / देहरेके श्री चन्द्रको पूजों मन वच काय / ऋद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय // Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 241 जय श्रीचंद्र दयाके सागर, देहरे वाले ज्ञान उजागर / शांति छवि मरति अति प्यारी, मेष दिगंबर धारा भारी / नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी। देवोंके तुम देव कहावो, कष्ट भक्तके दूर हटावो / समंतभद्र मुनिवरने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया / तुम जगमें सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थङ्कर कहलायो / महासेनके राजदुलारे, मात सुलक्षणाके हो प्यारे / चन्द्रपुरी नगरी अति नामी, जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी / पौष वदी ग्यारसको जन्मे, नर नारी हरषे तब मनमें / काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी। फाल्गुन वदी सप्तमी भाई, केवलज्ञान हुआ सुखदाई / फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहाँसे / लोभ मोह और छोडी माया, तुमने मान कसाय नसाया / रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी। पंचम काल महा दुखदाई, धर्म कर्म भूले सब भाई / अलवर प्रान्तमें नगर तिजारा, होय जहां पर दर्शन प्यारा। उत्तर दिशिमें देहरा माहीं, वहां आकर प्रभुता प्रगटाई / सावन सुदी दशमी शुभ नामी, आन पधारे त्रिभुवन स्वामी। चिन्ह चन्द्रका लख नर नारी, चंद्रप्रभुकी मूरती मानी / मूर्ति आपकी अति उजियाली, लगता हीरा भी है जाली। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2.42 / नित्य नियम पूजा अतिशय चन्द्र प्रभुका भारी, सुनकर आते यात्री भारी / फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी, जुडता है मेला यहां भारी / कहलानेको तो शशि धर हो, तेज पुज रविसे बढ़कर हो / नाम तुम्हारा जगमें सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा / राक्षस भूत प्रेत सब भागे, तुम सुमरत भय कभी न लागे। कीर्ति तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी। जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी / जो भी जैसी आश लगता, पूरी उसे तुरत कर पाता / दुखिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खा कर जाते हैं खुला सभीको प्रभु द्वार है, चमत्कारको नमस्कार हैं। अन्धा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें। बहरा भी सुनने लग जावे, गहलेका पागलपन जावे / अखंड ज्योतिका घृत जो लगावे,संकट उसका सब कट जाये। चरणोंकी रज अति सुखकारी, दुख दरिद्र सब नाशनहारी / चालोमा जो मनसे ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे / पार करो दुखियोंकी नैषा, स्वामो तुम बिन नहीं खिवैया / प्रभु में तमसे कुछ नहिं चाहूँ, दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ / करू वन्दना आपकी, श्री चन्द्र प्रभु जिनराज / जंगल में मंगल कियो,. रखो 'सुरेश'की लाज.!!, Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा [ 243 श्री पार्श्वनाथ चालीसा // दोहा / / शीश नवा अरिहंतको, सिद्धन करू प्रणाम / उपाध्याय आचार्यका ले सुखकारी नाम / / सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार / अहिच्छत्र और पार्श्वको, मन मन्दिरमें धार / // चौपाई // पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तम व्रतके धारी सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवनके देवा / तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जगका निस्तारा। अश्वसैनके राजदुलारे, वामाकी आंखोंके तारे / काशीजीके स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये / इक दिन सब मित्रोंको लेके, सैर करनको बनमें पहुँचे / हाथी पर कस कर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी / एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले बचन सुनाकर / तपस्वी ! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़में जीव जलाते / तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया। निकले नाग नागिनी कारे, मरनेके थे निकट बिचारे / / रहम प्रभुके दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया। मर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये / तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थोंमें गाया। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्य नियम पूजा एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वनकी ठानी / तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहां पर आये। फौरन ही प्रभुको पहिचाना, बदला लेना दिलमें ठाना / बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे वो नली गिराई / बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तनको नहीं हीलाये / पद्मावती धरणेन्द्र भी आये, प्रभुकी सेवामें चित लाये / पद्मावतीने फन फैलाया, उस पर स्वामोको बैठाया / धरणेन्द्रने फन फलाया, प्रभु के सर पर छत्र बनाया / कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया / यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहां पर आये / शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना / पार्श्वनाथका दर्शन पाया, सबने जैन धरम आनाया / अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी पर जा सगरी / राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाया। प्रतिमा पर पालीश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया। वह मिस्त्री मांस खाता था, इससे पालिश गिर जाता था। मुनिने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया। मिस्त्रीने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना / गदर सतावनका किस्सा है, इक मालीको यो लिक्खा है। माली एक प्रतिमाको लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर / उस पानीका अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी / Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..नित्य नियम पूजा........................ 245.. जो अहिच्छत्र हृदयसे ध्यावे, सो नर उत्तम पदवी पावे। पुत्र संपदाकी बढती हो, पापोंकी इक दम घटती हो। है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी / रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नर नारी। चालीसेको ‘चन्द्र' बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये / // सोरठा // नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन / खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आयके / होय कुबेर समान जन्म दरिद्री होय जो। जिसके नहिं संतान, नाम वंश जगमें चले / / श्री महावीर चालीसा ( शमशाबाद नि० कवि० पूरनमल कृत ) // दोहा / सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरू अरहन्त / निर आकुल निवाँच्छ हो, गए लोकके अन्त / / मङ्गल मय मङ्गल करन, वर्धमान महावीर / तुम चिंतत चिंता मिटे, भव हरो सकल भव पीर / ॥चौपाई // महावीर दयाके सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर / / शांत छवि मरति प्यारी, वेष दिगम्बरके तुम धारी // कोटि भानुसे अति छवि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे / महापति अरि कर्म विदारे, बोधा मोह सुभटसे मारे। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246 ] नित्य नियम पूजा काम क्रोध तजि छोडो माया,क्षणमें मान कषाय भगाया। रागी नहीं, नहीं तू द्वेषो, वीतराग तू हित उपदेशी / प्रभ तुम नाम जगतमें सांचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा / राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे / महा शूलको जो तन धारे, होवे रग असाध्य नबारे / व्याल कराल होय फगधारी, विषको उगल क्रोध कर भारी महाकाल सम करै डसत्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता / महामत्त गज मदको झार, भगै तुरत जब तुझे पुकारै / फार डाढ़ सिंहादिक आवं ताको हे प्रभु तुहीं भगावै / होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै / शस्त्र धार अरि युद्ध लडन्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता। पवन प्रचण्ड चलें झकझोरा, प्रभु तुम हरी होय भय चौरा / झार खण्ड गिरि अटवी माहीं,तुम बिनशरण तहां को उनाहीं वज्रपात करि धन गरजावै, मसलधार होय तडकावै / होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना / बन्दीगृहमें बन्धी जंजीरा, कठ सुई अनिमें सकल शरीरा / राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिहासन तुही विठावै / न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी / जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु को तुरन्ता / चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता निविपक्ष में आप करता ! Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'नित्य नियम पूजा [ 247 एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डपुर धामा / सिद्धारथ नृप सुत कहलाये, त्रिशला मात उदर प्रगटोये / तुम जनमत भयो लोक अशोका,अनहद शब्दभयो तिहुंलोका। इन्द्रने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा / कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी / अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी। शांत भावधर कर्म विनाशे तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे / जड-चेतन त्रय जगके सारे, हस्त रेखवत सम तू निहारे / लोक अलोक द्रव्य षट् जाना, द्वादशांगका रहस्य बखाना / पशु यज्ञोंका मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा / अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा / पंचम काल विष जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई। क्षणमें तोपनि वाडि हटाई, भक्तनके तुम सदा सहाई / अरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता। // सोरठा॥ करे पाठ चालिस दिन नित चालीसहिं बार / खेवै धूप सुगंध पढ़, श्री महावीर अगार / / जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान / नाम वंश जगमें चले, होय कुबेर समान / / 'पूरनमल' रचकर चालीसा / हे प्रभु तोहि नवावत शीशा // Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248 नित्य नियम पूजा लक्ष्मी प्राप्ति एवं मनोकामना पूर्ण करनेका मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्री अ सि आ उ सा नमा (प्रातः काल 1 माला) शान्ति कारक मन्त्र ॐ ह्रीं परमशान्ति विधायक श्री शान्तिनाथाय नमः / अथवा ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत परम सिद्धेभ्यो नमः / नव-ग्रह शांतिके लिए मंत्र जाप = ॐ णमो सिद्धाणं (10 हजार) चन्द्र = ॐ णमो अरिहंताणं (10 हजार) मंगल = ॐ णमो सिद्धाणं (10 हजार) = ॐ णमो उवज्झायाणं (10 हजार) (गुरु) बृहस्पति = ॐ णमो आइरियाणं. (10 हजार) = पमो अरिहंताण (10 हजार) = ॐ णमो लोए सव्व साहूणं (10 हजार) केतु = ॐ णमो सिद्धार्ण (10 हजार) केतु राहु = ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं, ॐ णमो उवझायाण ॐ णमो लोए सव्व साहूणं ( 0 हजार), शुक्र शनि // इति समाप्त // Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रहो जीवानाम सभा तरहके दिगम्बर जैन धार्मिक ग्रंथ मंगानका पता दिगम्बर जैन पुस्तकालय खपाकाळचा गांधी चौक,