Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम,व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विविध विषयों के मर्मज्ञ जैनाचार्य पूज्य श्री घासीलालजी महाराजा प्रणीत हिन्दी व्याख्या सान्वित सम्प्रेरक तपस्वी ध्याठायोगी मुनि श्री कन्हैयालाल जी महाराजा प्रकाशक आचार्य श्री घासीलाल जी महाराज साहित्य प्रकाशन समिति इन्दोर. ersonairOSCOVE library.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम-व्याकरण-न्याय - ज्योतिष आदि विविध विषय मर्मज्ञ जैनाचार्य श्री घासीलाल जी महाराज प्रणीत नानार्थोदयसागर कोष संप्रेरक ध्यानयोगी तपस्वी खानदेश केशरी पंडितरत्न मुनिश्री कन्हैयालाल जी महाराज प्रकाशक आचार्य श्री घासीलाल जी महाराज साहित्य प्रकाशन समिति इन्दौर Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 प्रकाशक : आचार्य श्री घासीलाल जी महाराज साहित्य प्रकाशन समिति ३० जावरा कम्पाउण्ड, इन्दौर-४५२ ००१ (मध्यप्रदेश) - मुद्रणव्यवस्था निदेशन : श्रीचन्द सुराना के लिए दिवाकर प्रकाशन, 7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, - आगरा-282002 (उत्तर प्रदेश) मुद्रक : शक्ति प्रिन्टर्स, आगरा 0 प्रथमावृत्ति : वि. सं. 2045 आषाढ़ जुलाई १९८८ गापित मूल्योजना मूल्य : रुपया मात्र Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Authentic Scholar of Agam, Grammar, Logic, Astro-nomy-logy etc. Jainacharya Shri Ghasilalji Maharaj's NANA-ARTHODAYA-SAGAR-KOSHA (A Dictionary of Sanskrit Words with Hindi Commentry) Instigator Dhyanyogi Tapasvi Khandesha Keshari, Pandit-ratna Munishri Kanhaiyalalji Maharaj Publishers Acharya Shri Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore (M. P.) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O Nana-Arthodaya-Saagar Kosha [ Sanskrit Dictionary ] 0 First Edition V. Samvat 2045 July 1988 Published by Acharya Shri Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti 30, Javara Compound, Indore (M.P.) D Printed under the guidance of Shri Chand Surana, Diwakar Prakashan, A-7, Awagarh House, Agra-282 002 Shakti Printers, Agra. Price Rs. 4- only *50.900 el Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक के बोल साहित्य समाज का दर्पण तो है ही, गौरव भी है । जिस समाज का साहित्य जीवन्त है, वह अमर है । महाकाल के क्रूर प्रहार भी उसके अमर यश एवं संस्कारों को मिटा नहीं सकते । स्थानकवासी जैन परम्परा के प्रज्ञापुरुष स्व० आचार्य श्री घासीलालजी महाराज इस शताब्दी के महान् साहित्यस्रष्टा सन्त थे । उनके विषय में कहा जाता है कि वे जैन परम्परा के द्वितीय हेमचन्द्र थे । श्रुतोपासना और श्रुत-सर्जना ही उनके जीवन का अन्यतम उद्देश्य था । उनके द्वारा रचित साहित्य की सूची ( जीवन परिचय में) देखकर पाठक अनुभव कर सकते हैं, उन्होंने श्रुत-सर्जना में किस प्रकार अपना जीवन समर्पित कर समूची मानव-जाति के लिये ज्ञान का अमर दीपक प्रज्वलित रखा | आचार्य श्री द्वारा सम्पादित / संशोधित आगम तथा कतिपय अन्य ग्रन्थ तो प्रकाश में आ चुके हैं, किन्तु अभी भी उनका अधिकाँश साहित्य प्रकाशन की प्रतीक्षा में है । आश्चर्य है कि एक महापुरुष ने हमारे लिए इतनी विपुल ज्ञान राशि एकत्र की और हम उसकी सुरक्षा भी नहीं कर सकते ! क्या एक व्यक्ति के इस महान श्रम को हम हजारों व्यक्ति मिलकर भी उजागर नहीं कर सकते ? खानदेश केशरी पं० रत्न, तपस्वी, ध्यानयोगी मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज परम उपकारी गुरुदेव श्री घासीलालजी महाराज की पुण्य स्मृति में जब कभी भाव-विभोर होकर उनके विषय में प्रकाश डालते हैं तो हमारे मन की खिड़कियाँ खुल जाती हैं और हम सोचने लगते हैं कि जिस अतीव श्रम और समर्पण भाव से जिन्होंने इतना विशाल साहित्य सृजन किया, वह आज कितनी और कैसी दयनीय स्थिति में है ? वे बहुमूल्य पाण्डुलिपियाँ या तो कपाटों में बन्द पड़ी हैं या उन पर धूल, मिट्टी जम रही है और खतरा है कि कहीं यह दुर्लभ विपुल ज्ञान राशि साहित्य तस्करी के रास्ते विदेशों को न चली जाय ? उन विदेशों को, जहाँ हमारी दुर्लभ सांस्कृतिक ज्ञान- सम्पदा मिट्टी के भाव खरीदकर उसमें से सोना पैदा किया जाता है । हम जानते हैं कि भारत की दुर्लभ साहित्य सामग्री विपुल परिमाण में विदेशों में बिकी है और उससे खूब लाभ उठाया गया है । गुरुदेव प्रणीत इस साहित्य-सम्पदा पर भी कहीं किसी भी कुदृष्टि न पड़े अतः हमें इस विषय में पहले से ही सावधान रहना चाहिए । तपस्वीराज श्री कन्हैयालालजी महाराज जब इन्दौर पधारे और उन्होंने हमारे सम्मुख जब ( ५ ) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस साहित्य के संरक्षण की चर्चा की तो हम सब गद्गद् हो उठे । तत्क्षण दृढ़ संकल्प किया गया कि साहित्य की इस मूल्यवान निधि का यथोचित्त सम्पादन प्रकाशन करवाकर जन-जन के कल्याण के लिए इ शीघ्र ही उपलब्ध करवाया जाय। तपस्वी गुरुदेव श्री की प्रेरणा तथा मार्ग-दर्शन में एक समिति का गठन किया गया और साहित्य प्रकाशन का कार्य सुचारु रूप से संचालित करने का दायित्व श्री फकीरचन्दजी मेहता को सौंपा गया। इस कार्य में गुरुदेवश्री की प्रेरणा से समाज के अनेक गणमान्य सज्जनों ने उदारतापूर्वक सहयोग प्रदान किया है और हमें आशा है वे भविष्य में भी सहयोग करते रहेंगे। हम प्रयास करेंगे कि आचार्यश्री की महत्वपूर्ण कृतियों का प्रकाशन यथाशीघ्र हो । फिलहाल तोन विशिष्ट ग्रन्थों का प्रकाशन कार्य प्रारम्भ किया गया है (१) प्राकृत चिन्तामणि (प्राकृत व्याकरण : प्रथमा परीक्षोपयोगी) (२) प्राकृत कौमुदी (प्राकृत भाषा का सम्पूर्ण व्याकरण पंचाध्यायी) (३) श्री नानार्थोदय सागर कोश (विशिष्ट शब्द कोश) इन तीनों का प्रकाशन समाज के सुपरिचित विद्वान साहित्यसेवी श्री श्रीचन्दजी सुराना (आगरा) को सौंपा गया है । वैसे ही मूर्धन्य विद्वान डा. नेमीचन्दजी जैन ने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिख कर इसमें चार चाँद लगा दिये हैं। हमें विश्वास है कि ये प्रकाशन सभी के लिये उपकारी एवं लाभदायी होंगे और हमारे साँस्कृतिक तथा साहित्यिक अभ्युत्थान के लिए एक सोपान सिद्ध होंगे। इन ग्रन्थ-मणियों में से हमने प्रथम मणि प्राकृत चिन्तामणि का प्रकाशन किया है, अब "नानार्थोदय सागर कोष" द्वितीय मणि के रूप में प्रस्तुत है। हमें विश्वास है जिज्ञासु जन, जो जैन धर्म तथा उत्तर काल की भाषा सम्पदा का अधिक गहरा अध्ययन करना चाहते हैं, इससे वे अवश्य लाभान्वित होंगे। विनीत फकीरचन्द मेहता (महामन्त्री) नेमनाथ जैन (अध्यक्ष) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य आचार्य श्री घासीलाल जी महाराज साहित्य प्रकाशन समिति प्रेस्टीज फूड्स, ३० जावरा कम्पाउन्ड, इन्दौर कार्यकारिणी पदाधिकारी (१) श्री नेमनाथजी जैन इन्दौर अध्यक्ष (२) श्री अमोलकचन्दजी छाजेड़ कराही उपाध्यक्ष (३) श्री पूनमचन्दजी बरडिया उपाध्यक्ष (४) श्री ताराचन्दजी वेद दिल्ली उपाध्यक्ष (५) श्री मोतीलालजी सेठिया होलनाथा उपाध्यक्ष (६) श्री फकीरचन्दजी मेहता इन्दौर महामंत्री (७) श्री सुगनचन्दजी रोकड़िया बड़वाह मन्त्री (८) श्री हस्तीमलजी झेलावत इन्दौर मन्त्री () श्री शांतिलालजी मारू इन्दौर सहमन्त्री (१०) श्री केशरीमलजी बोहरा इन्दौर कोषाध्यक्ष (११) श्री चांदमलजी लूनिया कसरावद सदस्य (१२) श्री लक्ष्मीचन्दजी मंडलिक इन्दौर सदस्य (१३) श्री मदनलालजी बोड़ाना इन्दौर सदस्य (१४) श्री एन० सी० बम इन्दौर सदस्य (१५) श्री धीरजलालजी मोहनलालजी गांधी (धुलिया) इन्दौर सदस्य [ ७ ] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना आगम-मर्मज्ञ पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज (१८८४-१९७३ ई०) एक मनीषी शब्द शिल्पी थे, जिन्होंने 'प्राकृत चिन्तामणि' जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ का सृजन किया नानार्थक शब्द कोश "नानार्थोदय सागर कोष' (हिन्दी-टीका-सहित) जैसे बह्वर्थबोधी कोश की रचना की। शब्द यद्यपि जड़ होता है, तदपि उसमें अनुभूति की जो जीवन्तता एक रचनाकार सन्निविष्ट करता है, वह महत्व की होती है । वस्तुतः शब्द एक पात्र है, जिसमें अर्थ या परमार्थ स्थापित करता है रचयिता और जिसकी पुनरनुभूति करता है पाठक, दर्शक, श्रोता या आस्वादक। किस समय, किस स्थिति का कितना दबाव है, इसका ध्यान रख कर ही शब्द की संवेदनशीलता में उतार-चढ़ाव आते हैं। शताब्दियों में अन्तहोन ओर-छोर से यात्रायित एक शब्द किन किन विवक्षाओं से गुजरा है, जब तक इसकी विशद जानकारी एक कोशकार को नहीं होती, तब तक वह अपने छोर पर सम्बन्धित शब्द की व्याख्या/विवेचना नहीं कर सकता। संस्कृत के पास कितनी अपरंपार/अकूत शब्द-संपदा है, इसे विश्व के प्रायः सभी भाषाशास्त्री जानते हैं। यह शब्द-संपदा दिन-दो दिन का विकास नहीं है, अपितु शताब्दियों का संचयन है। परिवर्तनों की लहरें आती हैं। सत्ताएँ उलट जाती हैं। सभ्यताएँ काल कवलित हो जाती हैं, फिर भी शब्द सिर ताने खड़ा रहता है। शब्द, वस्तुतः, मनुष्य की सर्वोपरि उपलब्धि है, जिसके द्वारा वह काल । अमर-मत्यंञ्जय हआ है। आज भी हम शब्द के माध्यम से ही अपनी पूर्ववर्ती विचार पूंजी को उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त करते हैं। माना, शब्द की अपनी सीमाएँ हैं । वह किसी एक पल में किसी एक समग्रता/संपूर्णता को अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, तथापि वह मनुष्य के हाथों में एक ऐसा मृत्युंजयी औजार है जिसके द्वारा वह प्रगति के सूत्र को आगे बढ़ाता है/बढ़ाता आया है। प्रश्न उठता है कई बार कि जब एक ही शब्द से काम चल रहा होता है तब उसके पर्याय अथवा समानार्थक शब्द की आवश्यकता क्यों होती है ? होती है, इसलिए कि कई बार हम किसी एक शब्द द्वारा अपनी मनोदशा को उसकी परिपूर्णता में सम्प्रेषित नहीं कर पाते अथवा किसी एक युग-चेतना को उसके द्वारा लोकहृदय तक पहुँचाने में असफल होते हैं, अतः किसी समानार्थक शब्द का या उसी शब्द में किसी अन्य अर्थ का नवोन्मेष हमें करना होता है। पर्यायिकी (सिनोनिमी) का विकास इसी दबाव या आवश्यकता के कारण हुआ है । वस्तुतः कोई शब्द समानार्थक होता ही नहीं है, वह लगभग समानार्थक होता है । नानार्थकता समानार्थकता के बाद की सीढ़ी है । जब हम दूसरा शब्द नहीं ढाल पाते तब अपने [ ८ ] Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुराने संचय के शब्द में ही किसी नवार्थ का उत्तेजन करते हैं । यह शब्द शिल्प है, इसका इन्द्रजाल या विज्ञान बिल्कुल जुदा है । हूबहू वैसा अर्थ रखने, या सम्प्रेषित करने पर उस शब्द की दरअसल कोई आवश्यकता थी ही नहीं; अतः तय है कि कोई शब्द किसी का समानार्थक नहीं हो सकता — कोई न कोई आर्थी अपरिहार्यता होती है जो किसी मिलते जुलते शब्द का आविष्कार करती है । इस तरह बनते हैं पर्याय शब्द, या एक ही शब्द में उदित होते हैं नानार्थ । जहाँ एक ओर पर्याय शब्दों की आवश्यकता होती है, वहीं दूसरी ओर ऐसे शब्द भी जरूरी होते हैं, जो दीराते एक जैसे हैं; किन्तु संदर्भ में / साहचर्य में / प्रयोग में अलग अर्थ देते हैं । किसी सादृश्य के कारण एक ही शब्द के कई कई अर्थ विकसित हो पड़ते हैं । शब्द एक ही होता है; किन्तु अलग-अलग स्थितियों में पड़-पड़ कर उसके अलग-अलग अर्थ विकसित हो जाते हैं । नानार्थक / बह्वर्थक / अनेकार्थक शब्दों के आकलन की परम्परा बहुत प्राचीन है । संस्कृत में तो इस तरह के कई शब्दाकोश हैं । सब में बड़ा नानार्थ कोश केशव स्वामी का है, जिसमें ५,८०० श्लोक हैं और जो १६६० ई० में आकलित हुआ । वैसे संस्कृत शब्द कोशों की परम्परा विशेषतः नानार्थक शब्दकोशों की, का आविर्भाव बहुत पहले हुआ । इस आरम्भ का कोई निश्चित छोर पकड़ना तो सम्भव नहीं है; किन्तु आज से दो हजार वर्ष पूर्व अमरसिंह ने जिस 'अमरकोश' का सम्पादन / आकलन किया था, वह एक ऐसा विकास बिन्दु है, जिस पर खड़े होकर हम नानार्थक शब्द कोशों की परम्परा का सिंहावलोकन कर सकते हैं । 'अमरकोश' को जगज्जनक कहा गया है । इसके तीसरे वर्ग के तीसरे उपवर्ग में 'नानार्थ कोश' है । इसके बाद शाश्वत ने अनुष्टुप छन्द में अनेकार्थक कोश ( अनेकार्थं समुच्चय ) की रचना की । कहा जाता है कि यह 'अमरकोश' के नानार्थ उपवर्ग का ही पल्लवन है । इसके बाद आया भट्ट हलायुध का 'अभिधान रत्नमाला कोश' । इसके बाद यादव प्रकाश का 'वैजयन्ती कोश' है । महेश्वर ( विश्व प्रकाश), मंत्र ( अनेकार्थ कोष), अजय पाल ( नानार्थ संग्रह), तारकाल, दुर्ग, धनन्जय ( नाम माला), हेमचन्द्र ( अनेकार्थ संग्रह), मेदिनीकार (मेदिनी कोश ), केशव स्वामी ( नानार्थार्णव) आदि ऐसे नानार्थ कोशकार हुए हैं, जिन्होंने भारतीय कोश परम्परा को न सिर्फ समृद्ध किया है वरन् उसे एक अनुशासन भी प्रदान किया है । इस गौरवशालिनी परम्परा में 'नानार्थोदय सागर कोष' एक मील का पत्थर है, जिसमें लगभग २२०० श्लोकों में ३५०० के आस-पास शब्द - प्रविष्टियाँ हैं । पूछा जा सकता है ऐसे शब्द - कोशों की क्या उपयोगिता है ? कई बार किसी लेखक, या रचनाकार, या किसी विशिष्ट संदर्भ को लेकर कोई ऐसा शब्द आ बैठता है, जिसका विशिष्ट अर्थ जाने बिना कोई संदर्भ स्पष्ट नहीं होता; बड़ी जटिलता और उलझन खड़ी हो जाती है । चारों ओर घोर धुन्ध छा जाती है और बड़े से बड़ा इतिहासज्ञ / भाषाविद् ग्रन्थि को सुलझा नहीं पाता। ऐसी पेचीदगियों में काम आते हैं इस तरह के विशिष्ट कोश, जो किसी एक शब्द के नानार्थ बताते हैं और गाँठ खोलते हैं । इस तरह के कोशों से कई समस्यायों के समाधान संभव होते हैं । कई बार तो किसी एक शब्द का गलत अर्थ ले लेने पर कई गलत परम्पराओं की स्थापना हो जाती है / हुई है । बड़े-बड़े मनीषियों के नाम पर आमिष भोज मात्र इसलिए मढ़ दिया गया चूँकि संबंधित व्याख्याकारों / इतिहासज्ञों को शब्द के वानस्पतिक अर्थ ज्ञात नहीं थे । इस तरह की भ्रान्तियाँ तब फैलती हैं, जब शब्दों का पारम्परिक अर्थबोध लुप्त होने लगता है । " नानार्थोदय सागर कोष" की सबमें बड़ी विशेषता यह है कि उसने प्रविष्ट शब्द के लगभग तमाम अर्थों को देने का प्रयत्न किया है । हम इस [ 8 ] Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात का सहज ही अनुमान कर सकते हैं कि इस तरह की कोश-रचना में किसी कोशकार को कितना अध्ययन करना होता है और विविध विषयक कितने ग्रन्थों का रोमन्थन करना होता है ? बल्कि सिर्फ इतने से ही उसका काम नहीं चलता, उसे इस तरह को कोश-परम्परा में प्राप्त समस्त कोशों को भी देख जाना होता है। __ पं० मुनि घासीलालजी महाराज के इस कोश से हम कुछ शब्द लें। पृष्ठ २५/श्लोक १२८ में 'आत्मन्' (आत्मा) शब्द के ११ अर्थ दिये हैं—जीव (जीवात्मा), धृति (धैर्य), बुद्धि, पुत्र, ब्रह्म, मानस (मन), यत्न, स्वभाव, मार्तण्ड (सूर्य), परव्यानि । पृष्ठ ६३/श्लोक ३४१ में 'कुक्कुट' के ६ अर्थ दिए हैंतृणोल्का, स्फुलिंग, चरणायुध (मुर्गा), कृक्कुभ, शूद्रपुत्र, निषाद-तनय । पृष्ठ १/श्लोक १ में अंशु' शब्द के ५ अर्थ दिये हैं-प्रभा, किरण, लेश, वेश, विवस्वान (सूर्य) । पृष्ठ १६/श्लोक ९७ में 'क्षुल्लक' के ४ अर्थ दिये हैं-नीच, अल्प, कनिष्ठ, दुगंत (दीन-दुःखी)। पृष्ठ ११५/श्लोक ६२२ में 'छन्द' के ५ अर्थ दिये हैंअभिलाष, अभिप्राय, वश, रहस् (एकांत), विष । पृष्ठ ११६/श्लोक ६४४ में 'जननी' शब्द के अर्थ दिये है-माता, मजीठा, जटामांसी, दया, कटुका, यूथिका, चर्म-चटिका, अलक्तक । ऐसे शब्दार्थी से जहाँ एक ओर हमें कई प्रश्नों के समीचीन समाधान सहज ही मिल जाते है, वहीं दूसरी ओर कई सामाजिक रीति-रवाजों और सांस्कृतिक काल-बिन्दुओं को समझने में भी सहायता मिलती है। ___ मैं समझता हूँ प्रस्तुत शब्दकोष न केवल स्थानकवासी मुनि-परम्परा को चिर-गौरवान्वित करता है अपितु वैश्विक नानार्थ कोश-परम्परा के लिए भी एक उल्लेखनीय घटना है। मुझे विश्वास है कि इसके प्रकाशन के साथ ही स्थानकवासी समाज ऐसा कोई प्रयत्न अवश्य करेगा कि जिससे कोशविज्ञान की लुप्त होती परम्परा को पुनरुज्जीवन मिले और स्वाध्याय के निमित्त अभिनव पिपासा और रुचि का पुनरुभव हो । मैं इस/ऐसे प्रकाशनों से उत्पन्न संभावनाओं के प्रति काफी आशान्वित हूँ। ५ मई १९८८] -डा. नेमीचन्द जैन, सम्पादक "तीर्थकर" विचार मासिक [ १० ] Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनागम रहस्यवेत्ता, महान तपोधनी विदद्रत्न आचार्य श्री घासीलालजी महाराज : जीवन-परिचय जैनाचार्य जैनधर्मं दिवाकर साहित्यमहारथी आचार्यवर्य परम श्रद्धेय पूज्य श्री घासीलालजी महाराज स्थानकवासी जैन समाज के एक प्रसिद्ध विद्वान सन्त थे । आचार-विचार में उच्चकोटि के आदर्श थे । सहिष्णुता, दया, वैराग्य, चरित्रनिष्ठा, साहित्यसेवा तथा समाजसेवा के जीवन्त स्वरूप थे । आपके जीवन सम्बन्धी अनेक विध गुण सम्पदाओं की ओर जब नजर डालते हैं तब निस्संकोच कहा जा सकता है कि आप आध्यात्मिक जगत के चमकते सितारे थे । वैसे तो हमारे पूज्य आचार्यश्री के जीवन में सभी गुण अनुपम थे ही किन्तु जैन आगम साहित्य विषयक आपका तलस्पर्शी ज्ञान अनुपमेय था। आपके जीवन का अधिकांश भाग आगमों का परिशीलन कर उनकी टीका एवं विविध साहित्य की रचनाओं में ही व्यतीत हुआ । आपका साहित्य निर्माण विषयक जो भगीरथ प्रयत्न रहा है, वैसा समस्त स्थानकवासी समाज के निकटवर्ती इतिहास में किसी अन्य मुनि का नहीं रहा, यह कहा जा सकता है । स्थानकवासी समाज में ऐसा भी युग था जबकि मुनिराजों को संस्कृत पढ़ना निषिद्ध माना जाता था । किन्तु महान आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने इस दिशा में महान क्रान्तिकारी कदम उठाए । आपने अपने योग्य शिष्य पं. रत्न श्री घासीलालजी महाराज को संस्कृत का प्रकाण्ड पण्डित बनाकर समाज की अपूर्व सेवा की । गुरुदेव से शिक्षा प्राप्त कर आपने अपना समस्त जीवन साहित्य निर्माण में लगा दिया । एक विचारक का कथन है कि प्रायः जन-समाज के चित्त में चिन्तन का प्रकाश ही नहीं होता । कुछ ऐसे भी विचारक होते हैं जिनके चित्त में चिन्तन की ज्योति तो जगमगा उठती है परन्तु उसे वाणी के द्वारा प्रकाशित करने की क्षमता ही नहीं होती । और कुछ ऐसे भी होते हैं जो चिन्तन कर सकते हैं, अच्छी तरह बोल भी सकते हैं परन्तु अपने चिन्तन एवं वक्तव्य को चमत्कार पूर्ण शैली में लिखकर साहित्य का रूप नहीं दे सकते । पूज्यश्री ने तीनों ही भूमिकाओं में अपूर्वसिद्धि प्राप्त की थी । जहाँ आपका चिन्तन और प्रवचन गम्भीर था, वहाँ आपकी साहित्यिक रचनाएँ भी अतीव उच्चकोटि की है । पूज्यश्री के साहित्य में पूज्यश्री की आत्मा बोलती है । इनकी रचनाएँ केवल रचना के लिए नहीं हैं, अपितु उनमें शुद्ध, पवित्र एवं संयमी जीवन का अन्तर्नाद मुखरित है । साहित्य समाज का दर्पण होता है, ठीक है, परन्तु इतना ही नहीं, वह स्वयं लेखक के अन्तजीवन का भी दर्पण होता है । पूज्यश्री का साहित्य आत्मानुभूति का साहित्य है, व्यक्ति एवं समाज के ( ११ ) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र-निर्माण का साहित्य है । पूज्यश्री की साहित्य गंगा में कहीं सैद्धान्तिक तत्त्व चर्चा की गहराई है, तो कहीं चरित्र ग्रन्थों की उत्तगं तरंगे हैं, कहीं स्तुति, भजन और उपदेश पदों का भक्ति प्रवाह है तो कहीं आध्यात्मिक भावना का मधुर घोष है । आपके द्वारा रचित व अनेक विध स्फुट अध्यात्मपद आज भी सहस्र जनकण्ठों से मुखरित होते रहते हैं । साहित्य-सेवा- पूज्यश्री के द्वारा लिखित साहित्य का अधिकांश भाग अभी अप्रकाशित पड़ा है । आपके द्वारा रचित साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है आगम साहित्य १: ग्यारह अंग सूत्र - १- आचारांग २- सूत्रकृतांग ३- स्थानांग ४- समवायांग ५- व्याख्याप्रज्ञप्ति ६- ज्ञाता-धर्मकथा ७-उपासकदशांग - अन्तकृद्दशांग - अनुत्तरोपपातिक दशांग १०- प्रश्नव्याकरण ११ - विपाकसूत्र ३. मूल (४) १- उत्तराध्ययन २- दशवकालिक * टीका के नाम आचारचिंतामणि समयार्थबोधिनी सुधाख्या भावबोधनी प्रमेय - चन्द्रिका अनगारधर्मामृतवर्षिणी अगारधर्म संजीविनी मुनि कुमुद चन्द्रिका अर्थबोधिनी टीका सुदर्शनीटी का विपाकचन्द्रिका प्रियदर्शिनी आचारमणिमञ्जूषा २: बारह उपांग सूत्र १ - औपपातिक २- राजप्रश्नीय ३- जीवाभिगम ४- प्रज्ञापना ५- सूर्य प्रज्ञप्ति ६- चन्द्र प्रज्ञप्ति ७ - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - निरावलिका (कल्पिका) ६- कल्पावतंसिका १० - पुष्पिका ११- पुष्पचूलिका १२- वृष्णिदशांग ४: छेद सूत्र ( ४ ) १ - निशीथ २- बृहद्कल्प ३- व्यवहार ४-दशाश्रु तस्कन्ध १. न्यायरत्नसार (न्याय प्रथमा परीक्षोपयोगी ग्रन्थ) अध्याय १-६ तक २. न्याय रत्नावली (न्याय मध्यमा परीक्षोपयोगी ) अध्याय १-६ तक ( १२ ) पीयूषवर्षणी सुबोधिनी प्रमेयद्योतिका प्रमेयबोधिनी सूर्य प्रज्ञप्ति प्रकाशिका चन्द्रप्रज्ञप्तिका प्रकाशिकाव्याख्या सुन्दरबोधिनी 11 "3 भाष्य ” 33 " चूर्णि भाष्य अवचूरि टीका ज्ञानचन्द्रिका ३ - नन्दी सूत्र ४- अनुयोगद्वार अनुयोगचन्द्रिका १ आवश्यक सूत्र आपने इन बत्तीस सूत्रों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी हैं । हिन्दी और गुजराती भाषाओं में बिस्तृत विवेचन के साथ इनका अनुवाद भी किया है। ये आगम प्रकाशित हो चुके हैं । २- तत्त्वार्थ सूत्र (संस्कृत प्राकृत) १- कल्पसूत्र : यह आपकी स्वतन्त्र रचना है न्याय "" 33 मुनिहर्षिणी टीका मुनितोषिणी Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. न्यायरत्नावली (स्याद्वादमार्तण्डटीका सहित) (शास्त्री परीक्षोपयोगी ) अध्याय १-६ तक ४. न्यायरत्नावली (स्याद्वादमार्तण्डटीका सहित ) ( न्यायाचार्य परीक्षोपयोगी ) अध्याय १-६ तक व्याकरण १. प्राकृत चिन्तामणि (प्राकृत व्याकरण ) प्रथमा परीक्षोपयोगी २. प्राकृत कौमुदी ( प्राकृत भाषा पर सम्पूर्ण प्रकाश डालने वाला पंचाध्यायी ग्रन्थ) १. आर्हतु व्याकरण (संस्कृत व्याकरण ) लघु सिद्धांत कौमुदी के समकक्ष ग्रन्थ २. आर्हतु व्याकरण (सिद्धांत कौमुदी के समकक्ष ग्रन्थ ) कोष १. श्रीलाल नाममाला कोष २. नानार्थोदयसागर कोष (पाठकों के हाथों में) ३. शिवकोष ( अमर कोष की तरह का ग्रन्थ । श्रीलाल नाममाला कोश यह आधुनिक शब्दकोष है । इसमें पूज्यश्री ने अनेक प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का वैज्ञानिक पद्धति से संस्कृतीकरण किया है । इस विशिष्ट भाषा कोश को देखकर कई विद्वान बड़े प्रभावित हुए | उन विद्वानों में कुछ विद्वानों की सम्मतियाँ इस प्रकार है सर्वतन्त्र स्वतन्त्र श्रीयुत पं० बालकृष्णशास्त्री, न्याय - वेदान्त, प्रधानाध्यापक, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस - " श्रीलाल नाममालानामधेयं नूतनं नामलिङ्गानुशासनं निर्माणकर्तरि व्याकरणप्रवीणतां प्रकाशयदवयवयोग- समन्वय स्पृशा दृशा संस्कारकर्मीकृताधुनिकव्यवहारप्रथित-परदा- दरवारीत्यादिपदकदम्बकावेदनेन प्रभूतेषु संस्कृताभिभाषण प्रभृतिकार्येषु परमोपयोगितामावहतीति । प्रधानाचार्य आत्मारामजी महाराज (लुधियाना पंजाब ) - "मनोरमा कृतिरेषा सानन्दनस्माभिरवलोकिता । इदानींतन शैल्यामनोहरा उत्तमा उपयोगिनश्च शब्दा अत्र निबद्धाः सन्ति । संस्कृत प्राथमिकशिक्षायां पुस्तिकेयं परमोपयोगिनी भविष्यतीत्याशास्महे । उत्साह रहितानामुत्साहप्रदम्भूयात् कृत्यमिदं । को जानाति चिरसुप्तस्यास्मदीयसमाजस्य जागृतेः सुचिह्न ' स्यात्कृत्यमेतत् । अस्तु प्रशंसनीयश्चायं भवदीयः परिश्रमो, धन्यवादार्हो हि भवान् !........ इनके अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने भी इस ग्रन्थ की बड़ी प्रशंसा की है । सिद्धान्त ग्रन्थ १. गणधरवाद – - ( मूल, प्राकृत गाथा, उनकी संस्कृत छाया, उन पर संस्कृत में विशद टीका की रचनाकार गणधरों के प्रश्नों का एवं उनके उत्तरों का सुन्दर विवेचन किया है । १. गृहिधर्म कल्पतरु (मूल प्राकृत गाथा उसकी संस्कृत छाया और उन पर हिन्दी गुजराती विवेचन २. जैनागमतत्त्व दीपिका (जैनपारिभाषिक शब्दों का सुन्दर हिन्दी विवेचन ) ३. तत्वदीपिका ( नवतत्त्व का विशद विवेचन मूल प्राकृत गाथाएँ उसकी संस्कृत छाया और उनका हिन्दी में विवेचन ) काव्य ग्रन्थ - १ - लोकाशाह महाकाव्य ( १४ सर्ग युक्त) २ - शान्ति सिन्धु महाकाव्य ( १४ उल्लासयुक्त) ( १३ ) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ - मोक्षपद ( धम्मपद की तरह का ग्रन्थ) प्राकृत गाथा, संस्कृत छाया और उनका हिन्दी गुजराती में अनुवाद) ४- श्री लक्ष्मीधर चरित्र ( प्राकृत संस्कृत - हिन्दी कविता सहित ) स्तोत्र स्तुतियाँ १. जवाहिर गुण किरणावली २. नव स्मरण ३. कल्याण मंगल स्तोत्र ४. महावीर अष्टक ५. जिनाष्टक ६. वर्द्धमान भक्तामर ७. नागाम्बरमञ्जरी ८. लवजीस्वामी स्तोत्र ६. माणक्य अष्टक १०. पूज्य श्रीलालकाव्य ११. संकटमोचनाष्टक १२. पुरुषोतमाष्टक १३. समर्थाष्टक १४. जैन दिवाकर स्तोत्र १५. वृत्तबोध - १६. जंनागम - तत्वदीपिका १७. सूक्तिसंग्रह १८. तत्वप्रदीप इत्यादि इस विपुल ग्रन्थराशि पर से इसके निर्माता की बहुश्र ुतता, सागरवरगम्भीरता विद्वत्ता और सर्वतोमुखी प्रतिभा का सरल परिचय मिलता है । आगमों के गूढ से गूढ विषयों का भावोद्घाटन करने वाली टीकाएँ आध्यात्मिक विवेचन करने वाले प्रकरण, विस्तृत दार्शनिक चर्चाओं के साथ अनेकान्त का विवेचन करने वाले न्याय ग्रन्थ, इनके प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचय कराने के लिए पर्याप्त है । आचार्यश्री घासीलालजी महाराज ने तो स्थानकवासी समाज के साहित्य को पूर्णता के उच्च शिखर पर पहुँचा दिया है । इस प्रकार व्याकरण, काव्य, छन्द, धर्मशास्त्र, नीति आदि विषयों पर विविध ग्रन्थ लिखकर आपने स्थानकवासी जैन समाज पर महान उपकार किया है। स्थानकवासी समाज के इस महान ज्योतिर्धर सन्त से स्थानकवासी साहित्य का इतिहास सदा जगमगाता रहेगा । आचार्यश्री ने साहित्य - सेवा के अतिरिक्त भी जैनधर्म की महती प्रभावना की है। आपने हजारों मनुष्यों को अहिंसा धर्मानुयायी बनाया, एक चतुर कलाकार मिट्टी के लोंदे को जिस तरह अपनी अंगुलियों की करामात से जी चाहा रूप देता है उसी तरह पूज्यश्री को लोगों के दिल अपने अनुकुल बना लेने की दिव्य शक्ति प्राप्त थीं । आपके उपदेश में एक खास विशेषता थी कि आपका उपदेश सर्व-साधारण के लिए ऐसा रोचक और उपयोगी होता था कि जिससे ब्राह्मण, जैन, क्षत्रिय, मुसलमान और पारसी आदि समस्त लोग मुग्ध हो जाते थे । आपने सैकडों राजा-महाराजाओं को उपदेश देकर लाखों मूक पशुओं को अभयदान दिलवाया और देव देवियो के नाम पर होने वाली बलि को सदा-सदा के लिए बन्द करवाई । समाज के उत्थान के लिए आप सतत जागृत और प्रयत्नशील थे । आप दिन-रात समाज्य के ही स्वप्न देखते रहते थे । समाज कल्याण के कार्यों में आप इतने संलग्न रहते थे कि आपको अपने शरीर के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता था । आपके परोपकारमय जीवन को देखकर एक कवि की ये पंक्तियाँ याद आती हैं तुम जीवन की दीप शिखा हो, जिसने केवल जलना जाना । तुम जलते दीपक की लो हो, जिसने जलने में सख माना ॥ ( १४ ) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप उच्चकोटि के विद्वान भी थे और गहरे दार्शनिक भी थे। संस्कृत, प्राकृत, उर्दू फारसी, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि १६ भाषाओं में पारंगत थे । जैनागमों का आपने तलस्पर्शी अध्ययन किया था और अन्य धर्मों के भी आप गहरे अभ्यासी थे। विद्वत्ता के साथ आप एक अच्छे वक्ता थे। सिर्फ आप में विद्वता ही नहीं थी, किन्तु चारित्र भी बहुत उच्चकोटि का था। आपके स्वभाव में सरलता, व्यवहार में नम्रता, वाणी में मधुरता, मुख पर सौम्यता, हृदय में गम्भीरता, मन में मृदुता, भावों में भव्यता और आत्मा में दिव्यता आदि अनेक गुण सौरभ से आप सुवासित थे। जीवन परिचय ___आपका जन्म मेवाड़ के एक छोटे से किन्तु सुरम्य लहलहाते खेतों व विशाल पर्वतों की परिधि से घिरे 'बनोल' नामक गाँव में एक वैरागी कुटुम्ब में वि. सं. १९४१ में हुआ। आपके पिता का नाम प्रभुदत्त जी और माता का नाम श्रीमती विमलाबाई था। आपने १६ वर्ष की बाल्य अवस्था में वैराग्यमय जैन समाज के ख्यातनामा आचार्य पूज्य जवाहरलालजी महाराज के पास मेवाड़ प्रान्त के जसवन्तगढ़ में वि.सं. १९५८ में दीक्षा ग्रहण की। गुरु की अनन्य कृपा से आपने आगम, संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण आदि का अध्ययन कर उच्चकोटि की विद्वता प्राप्त की। आपकी विशिष्ट विद्वता से प्रभावित होकर कोल्हापुर के महाराजा ने आपको कोल्हापुर राजगुरु एवं शास्त्राचार्य की पदवि से विभूषित किये । आपकी त्याग, तपस्या, संयम की उत्कृष्टता देखकर करांची संघ ने 'जैन दिवाकर' और 'जैन आचार्य' पद देकर अपने आपको गौरवान्वित किया। पूज्यश्री जितने महान थे, उतने ही विनम्र भी थे। आप एक पुष्पित एवं फलित विशाल वृक्ष की तरह ज्यों-ज्यों महान प्रख्यात एवं प्रतिष्ठित होते गये त्यों-त्यों अधिकाधिक विनम्र होते चले गये । गुरु जनों के प्रति ही नहीं अपने से लघुजनों के प्रति भी आपका हृदय प्रेम से छलकता रहता था। छोटे से छोटे साधुओं को भी रोगादि कारणों में आपने वह सेवा की है, जो आज भी यशोगाथा के रूप में गाई जा रही है। सुन्दरी उषा का प्रत्येक चरण-विन्यास बहुरंगी संध्या में विलीन हो जाता है । अथ के साथ इति लगी रहती है। विक्रम सं. २०२६ में पौषवदि १४ को ता०२/१/७३ को संथारा ग्रहण किया और पोषवदि अमावस्या को ता० ३/१/७३ के दिन जन जीवन को आलोकित करने वाला वह दिव्य आलोक दिव्य लोक का यात्री हो गया । ज्ञान एवं विवेक का प्रखर भास्कर जो मेवाड़ के क्षितिज पर उदय हुआ था, वह गुज रात के अस्ताचल पर अस्त हो गया । सरसपुर अहमदाबाद के स्थानकवासी जैन उपाश्रय में संथारा विधि वत् पूर्ण करके आचार्यप्रवर श्री घासीलाल जी महाराज ने इस असार संसार को छोड़कर अमर पद प्राप्त कर लिया। जन्म, जीवन और मरण यह कहानी है मनुष्य की। किन्तु पूज्यश्री का जन्म था कुछ करने के लिए । उनका जीवन था, परहित साधना के लिए। उनका मरण था फिर न मरने के लिए। बचपन, जवानी और वृद्धावस्था-यह इतिहास है मानव का । किन्तु इस इतिहास को उन्होंने नया मोड़ दिया ।उनका बचपन खेल-कूद के लिए नहीं था, वह था ज्ञान की साधना के लिए। उनकी जवानी भोगविलास के लिए नहीं, वह थी संयम की साधना के लिए। उनकी वृद्धावस्था अभिशाप नहीं, वह था एक मंगलमय वरदान । पूज्य श्री ने अपने जीवन का सर्वस्व समर्पित कर दिया था सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय । [ १५ ] Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष NANA-ARTHODAYA-SAGAR-KOSHA (A Dictionary of Sanskrit Words with Hindi Commentry) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ एसो पंच णमुक्कारो । सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि । पढम हवइ मंगलं ॥ ॥ नानार्थोदयसागरकोष : हिन्दी टीका सहित । मूल : अंशुः प्रभायां किरणे लेशे वेशे विवस्वति । असमञ्जस पुत्रेऽऽशुमानंशुयुते त्रिषु ॥१॥ हिन्दी टीका-अंशु शब्द पुल्लिग है और उसके निम्न प्रकार पांच अर्थ होते हैं-१. प्रभा (प्रकाश), २. किरण, ३. लेश (किञ्चिन्मात्र, अल्प), ४. वेश (पोशाक) और ५. विवस्वान् (सूर्य) । और अंशुमान शब्द तीनों लिंगों (पुल्लिग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग) में प्रयुक्त होता है, और इसके तीन अर्थ हैं-१. असमंजस (अनुचित, खराब), २. पुत्र (लड़का), ३. अर्क (सूर्य) । अंशयुक्त अर्थों में अंशुमान शब्द के प्रयोग होते हैं इसलिए तीनों लिंगों में उसका प्रयोग होता है क्योंकि अशु से युक्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग शब्दार्थ हो सकता है जैसे - अंशु से युक्त सूर्य अंशुमान् कहलाता है और सूर्य पुल्लिग है इसलिए अंशुमान् शब्द सूर्य अर्थ में पुल्लिग माना जाता है। एवं अंशु से युक्त कोई देवी या देवी शक्ति वगैरह शब्दों का अ स्त्रीलिंग है अतः उस अर्थ में प्रयुक्त अंशुमती शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता और अंशुयुक्त कोई नपुंसक शब्दार्थ अंशुमत् शब्द से प्रयुक्त होता है इसलिए अंशुमत् शब्द नपुंसक माना जाता है जैसे भगवान् वर्द्धमान महावीर का स्वरूप अंशुमत् कहलाता है इत्यादि। मूल : अंहतिः स्त्री वितरणे रोगे त्यागेऽभिधीयते । अकूपारः कूर्मराजे पाषाणादि सरित्पतौ ॥२॥ हिन्दी टीका - अंहति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके निम्न प्रकार तीन अर्थ होते हैं-१. वितरण (दान), २. रोग (व्याधि) और ३. त्याग । (अभिधीयते) यह क्रिया पद 'उच्यते' का पर्याय है अर्थात् अंहति शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त होते हैं-वितरण, रोग, और त्याग में । अकूपार शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ हैं-१. कूर्मराज (कच्छप, काचवा) २. पाषाण (पत्थर) वगैरह और ३. सरित्पति (समुद्र)। मूल : अग: सूर्ये भुजंगे च पर्वतेऽपि महीरुहे। अग्निर्भल्लातके स्वर्णे पित्तनिम्बुकवह्निषु ॥ ३ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित --अग्र शब्द हिन्दी टीका - अग शब्द पुल्लिंग है और उस के चार अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. भुजङ्ग, ३. पर्यंत ( पहाड़) और ४. महीरुह (वृक्ष, झार) । अग्नि शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. भल्लातक (भाला - बर्फी) २. स्वर्ग (सोना) ३. पित्त ४. निम्बुक (निम्ब) और ५. वह्नि (आग) । इस प्रकार अग्नि शब्द के पाँच अर्थ हैं । मूल : अग्रोऽधिके प्रधाने च प्रथमेऽपि त्रिलिंगकः । अग्रजो ब्राह्मणे ज्येष्ठ भ्रातर्यग्रजनौ त्रिषु ॥ ४ ॥ हिन्दी टीका - अग्र शब्द त्रिलिंग (पुल्लिंग स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग ) है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. अधिक (बहुत), २. प्रधान (मुख्य) और ३. प्रथम (पहला ) । अग्रज शब्द भी त्रिलिंग माना जाता हूँ और उसके भी तोन अर्थ हैं - १. ब्राह्मण, २. ज्येष्ठ भ्राता (बड़ा भाई) और ३. अग्रजनु अथवा अग्रजनि (पहला जन्म - उत्पत्ति) । यहाँ पर संस्कृत में अग्रजनि और अग्रजनु इन दोनों शब्दों का भी सप्तमी विभक्ति में 'अजनी' ऐसा रूप होता है जैसे 'विधौ' शब्द से विधि और विधु दोनों शब्दों का ग्रहण होता है इसी प्रकार यहाँ पर समझना चाहिए ! मूल : अङ्कः क्रोडेऽपवादे च चिन्हे भूषणरेखयोः । . नाटकांशे चित्र युद्धे समीपे स्थान - देहयोः ॥ ५ ॥ हिन्दी टीका - अंक शब्द पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ हैं - १. क्रोड (गोद), २. अपवाद ( कलंक, लोकनिन्दा ), ३. चिन्ह, ४. भूषण (अलंकार, जेबर), ५. रेखा ( लकीर ), ६. नाटकांश ( नाटक का एक अंश, एक भाग), ७. चित्रयुद्ध ( अद्भुत संग्राम, लड़ाई) = समीप ( नजदीक) ६. स्थान ( जगह - पद) और १०. बेह (शरीर ) । इस प्रकार अंक शब्द के दश अर्थ हैं । मूल : अंकुरोलोम्नि रुधिरे सलिलेऽभिनवोद्भिदि । अंगो देशान्तरे पुंसि निकटे काय-चित्तयोः ॥ ६ ॥ हिन्दी टीका - अंकुर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. लोमन् (रोम ), २. रुधिर ( शोणित, खून), ३. सलिल (पानी, जल) और ४. अभिनवउद्भिद् ( नया तरु वृक्ष, गुल्म लता पौधा) । अंग शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. देशान्तर ( दूसरा देश, अन्य देश). २. निकट ( नजदीक), ३. काप (शरीर ) और ४ चित्त ( मन ) इस प्रकार अंकुर शब्द के तीन और अंग शब्द के चार अर्थ हैं । अंगजस्तनये कामे मदे कुन्तल - रोगयोः । मूल : अंगणं चत्वरे याने गमनेऽङ्गनमित्यपि ॥ ७ ॥ हिन्दी टीका - अङ्गज शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. तनय (लड़का ) २. काम ( विषय वासना ), ३. मद ( नशा - अहंकार), ४. कुन्तल ( केश, वाल) और ५. रोग ( व्याधि) | अंगण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चश्वर (चौराहा, अंगना), २. यान ( रथ वगैरह सवारी) और ३. गमन ( जाना ) । इस प्रकार अंगज शब्द के पाँच और अंगण शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए | किन्तु गमन अर्थ में 'अङ्गन' शब्द भी व्यवहृत होता है । मूल : अंगना सार्वभौमाख्य दिग्गजस्त्री स्त्रियोर्मता । अंसः स्कन्धे विभागेऽथ दुःखैनोव्यसनेष्वघम् ।। ८ ।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अजप शब्द | ३ हिन्दी टीका-अंगना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सार्वभौम (चक्रवर्ती राजा), २. दिग्गज-स्त्री (दिग्गज हथिनी) और ३. स्त्री (महिला)। अंस शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्कन्ध (कन्धा) और २. विभाग । अघ शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दुःख (कष्ट), २. एनस् (पाप) और ३. व्यसन ।। अजपस्त्वसदध्येतृच्छागपालकयोर्द्वयोः । __ अतुलस्तिलवृक्ष स्यात्तुलना रहिते त्रिषु ॥ ६ ॥ हिन्दी टीका -अजप शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं --१. असवध्येता (अच्छा नहीं, खराबपढ़ने वाला) और २. छाग-पालक (बकरा का रक्षक, रक्षा अर्थात् पालन करने वाला)। अतुल शब्द तिल वृक्ष (तिल का पौधा) में पुल्लिग है और तुलना (उपमा) रहित अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि तीनों लिंगों में भी तुलना रहित अर्थ हो सकता है। इस प्रकार अजप शब्द के दो और अतुल शब्द के भी दो अर्थ होते हैं। मूल : अत्ययोऽतिक्रमे मृत्यौ दण्डे दोषे कलाकले । अत्याहितं जीवनाशाशून्यकृत्ये महाभये ॥ १० ॥ हिन्दी टीका-अत्यय शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. अतिक्रम (उल्लंघन), २. मृत्यु (मरण), ३ बण्ड (दण्ड देना), ४. दोष और ५. कलाकल (कष्ट) । अत्याहित नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. जीवनाशाशून्यकृत्य (जीवन को आशा रहित कार्य) और २. महामय (अत्यन्त भय)। इस प्रकार अत्यय शब्द के पांच और अत्याहित शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए। मूल : मान्ये पूज्ये श्लाघनीये स्मयतेऽत्रभवांस्त्रिषु । अथो अथेत्यव्यये द्वे प्रारम्भे प्रश्नकात्स्ययोः ॥ ११ ॥ हिन्दी टीका-'अत्रभवान्' यह शब्द त्रिलिंग है क्योंकि यह शब्द अत्यन्त आदरणीय व्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है इसलिए पुरुष, स्त्री या अन्य किसी भी अत्यन्त महत्वपूर्ण वस्तु के विषय में भी इस शब्द का प्रयोग हो सकता है । इसीलिए इसको त्रिलिंग माना गया है और यह शब्द १. मान्य २. पूज्य, ३. श्लाघनीय (प्रशंसनीय) और ४. स्मरणीय । इस प्रकार चार अर्थों में इस शब्द का प्रयोग होता है । 'अथो' और 'अथ' ये दो शब्द अव्यय हैं और इनके तीन अर्थ हैं—१. प्रारम्भ (आरम्भ करना), २. प्रश्न (पूछना) और ३. कात्स्न्य (सारा) । इस तरह 'अत्रमवान्" शब्द के चार और 'अयो' 'अय' इन दो अव्यय शब्दों के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : विकल्पे संशये चार्थेऽधिकारेऽनन्तरे शुभे । __ अदृष्टं भागधेये स्याज्जलाग्नि जनिते भये ॥ १२ ॥ हिन्दी टीका-'अयो' और 'अथ' शब्दों के और भी पांच अर्थ होते हैं-१. विकल्प (अथवा), २. संशय (सन्देह), ३. अधिकार (आगे सम्बन्ध), ४. अनन्तर (व्यवधान रहित) और ५. शुभ । अदृष्ट शब्द नपुसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. भागधेय (भाग्य या अभाग्य) और २. जल-अग्निजनित-भय (पानी अथवा आग से होने वाला भय-डर) । इस प्रकार महष्ट शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये । मूल : . जन्मान्तरीयसंस्कारेऽवीक्षिते वायलिंगभाक् । अद्रिः पुंसि गिरौ सूर्ये परिमाणान्ते च तरौ ॥ १३ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-अधस् शब्द हिन्दी टीका-जन्मान्तरीय संस्कार अन्य जन्म के संस्कार को भी अदृष्ट कहते हैं, इसी प्रकार अवीक्षित नहीं देखे हुए पदार्थ को भी अदृष्ट कहते हैं किन्तु इस अवीक्षित अर्थ में मुख्य पदार्थ के अनुसार ही अदृष्ट शब्द का भी लिंग होता है जैसे- अदृष्टः पुरुषः, अदृष्टा नारी, अष्टं वस्तु । इन तीन वाक्यों में क्रमशः पुरुष, नारी और वस्तु शब्दों के पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुसक होने से अदृष्ट शब्द में विशेषण होने के कारण क्रमशः पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग होता है। क्योंकि- "या विशेष्येषु दृश्यन्ते लिंगसंख्या विभक्तयः । प्रायस्ता एव तंव्याः समानाश्रयविशेषणे ॥" इस संस्कृत नियम के अनुसार ही लिंग की व्यवस्था मानी जाती है। अद्वि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-गिरि (पहाड़), २. सूर्य ३. परिमाण (बाँट) विशेष (अद्वैया ढाई सेर) और ४. तरु (वृक्ष-पौधा)। इस प्रकार अदृष्ट शब्द के चार और अद्रि शब्द के भी चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अधोऽव्ययं तलेऽना योनि-पातालयोरपि । अधरस्त्रिषु हीने स्यादधोदेशाधऽरोष्ठयोः ॥ १४ ॥ हिन्दी टोका--अधस् शब्द अव्यय है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. तल (नीचे), २ अनुवं (ऊपर नहीं, अर्थात् भूतल), ३. योनि (उत्पत्ति स्थान) और ४. पाताल (रसातल)। अधर शब्द हीन (न्यून) अर्थ में त्रिलिंग (पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसक) माना जाता है। किन्तु अधोदेश (नीचा भाग) और अधरोष्ठ (नीचे का ओठ) इन दो अर्थों में पुल्लिग माना जाता है। इस प्रकार अधः शब्द के चार और अधर शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल: __ अधिकारः प्रकरणे स्वामित्वे प्रक्रियादिके । तथाऽधिकृतदेशादौ दन्तरोगेऽधिमांसकः ॥ १५ ॥ हिन्दी टीका-अधिकार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ मुख्य रूप से होते हैं-१. प्रकरण (परिच्छेद) २. स्वामित्व (मालिकपना), ३. प्रक्रिया (प्रारम्भ) और ४. अधिकृत (अपने कब्जे में) वगैरह । अधिमांसक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-- दन्तरोग (दाँत का रोग) माना जाता है । इस प्रकार अधिकार शब्द के चार और अधिमांसक शब्द का एक अर्थ समझना चाहिए। अधिवासो निवासे स्यात संस्कारे धपनादिभिः । अधिष्ठानं पुरे चक्र प्रभावेऽध्यासने स्थितौ ॥ १६ ॥ हिन्दी टोका-अधिवास शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. निवास (ठहरने का स्थान) और २. धूपन वगैरह (अगर-धूपन-गुग्गल-अगरबत्ती) के द्वारा संस्कार (खुशबू) और अधिष्ठान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पुरीचक (मूलाधार चक्र) जिस मूलाधार चक्र में कुण्डलिनी भगवती शक्ति विराजमान है । अथवा पुर (नगर) को भी अधिष्ठान कहते हैं क्योंकि अधिष्ठान शब्द का अर्थ निवास स्थान भी माना जाता है और लोग नगर में भी रहते हैं इस प्रकार अधिष्ठान शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. पुर (नगर), २. चक्र (मूलाधार चक्र), ३. प्रभाव (प्रभुत्व सामर्थ्य विशेष), ४. अध्यासन (बैठने का आधारभूत आसन विशेष) और ५. स्थिति (ठहरना)। इस तरह अधिष्ठान शब्द के पाँच अर्थ मूल : हुए। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अधिक्षिप्त शब्द | ५ मूल : अधिक्षिप्त: प्रणिहिते प्रेरिते भत्सिते त्रिषु । अभिष्यन्दोऽति वृद्धौ स्यास्रावे लोचनामये ॥ १७ ॥ - हिन्दी टीका-अधिक्षिप्त शब्द प्रणिहित (प्रेषित) एवं प्रेरित तथा भत्सित अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि यह शब्द विशेष्य निघ्न होने से पुरुष, स्त्री और नपुंसक इन सभी में प्रणिहित, प्रेरित और भत्सित शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। अभिष्पन्द शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. अतिवृद्धि (अत्यधिक), २. आस्राब (स्रवित होना), ३. लोचन (नेत्र) और ४. आमय (रोग)। इस प्रकार अधिक्षिप्त शब्द के तीन और अभिष्यन्द शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अधीरश्चञ्चले भीरौ त्रिषु विद्युति तु स्त्रियाम् । अध्वगः पथिके सूर्ये खेसरे च क्रमेलके ॥१८।। हिन्दी टीका - अधीर शब्द चंचल (चपल) और भीरु (डरपोक) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री और नपुंसक ये तीनों ही चंचल और भीरु हो सकते हैं। किन्तु विद्युत (बिजली) अर्थ में अधीर शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है क्योंकि विद्युत स्त्रीलिंग है इसलिए उसका विशेषणभूत अधीर शब्द भी विशेष्यनिघ्न होने से स्त्रीलिंग ही माना जाता है। अध्वग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पथिक (राही, राहगीर), २. सूर्य, ३. खेसर (आकाश में चलने वाला) अथवा खेचर शब्द भी उसो अर्थ का वाचक है इसलिए खेचर भी पाठ हो सकता है । और ४. क्रमे लक (ऊँट) को भी अध्वग कहते हैं क्योंकि रेगिस्तान वगैरह में ऊंट अत्यन्त अधिक विचरता है जहाँ कि जल का भी मिलना कठिन होता है फिर भी ऊँट वहां भी चलने में समर्थ होता है इसलिए उस को भी अध्वग शब्द से लिया जाता है। अध्वरः सावधाने स्याद् वसुभेदे सवे पुमान् । अध्वा संस्थान-समय-स्कन्ध-शास्त्रेषु वर्त्मनि ॥१६।। हिन्दी टीका-अध्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सावधान (सचेत), २. वस विशेष, ३. सव (याग) । अध्वन् शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. संस्थान (ठहरने का या रखने का स्थान), २. समय (काल), ३. स्कन्ध (कन्धा), ४. शास्त्र और ५. वर्त्म (रास्ता, मार्ग)। इस प्रकार अध्वर शब्द के तीन और अध्वन् शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : अनो नपुंसकं जन्म-जनन्योः शकटेऽन्धसि । अनघो निर्मलेऽपापे मनोज्ञ वायलिंगभाक् ॥२०॥ हिन्दी टीका-अनस् शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. जन्म (उत्पत्ति), २. जननी (माता), ३. शकट (गाड़ी) और ४. अन्धस् (भात-ओदन)। अनघ शब्द वालिंगभाक् (विशेष्यनिधन होने से) त्रिलिंग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्मल (मलरहित-स्वच्छ), २. अपाप (पापरहित-निष्पाप) और ३. मनोज्ञ (रमणीय) । इस प्रकार अनस् शब्द के चार और अनघ शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। (न-अघः=अनघः) इस व्युत्पत्ति से अघ पाप को कहते हैं, उसका अभाव अनघ कहलाता है। मूल : अनंगं गगने चित्ते कामदेवे त्वसौ पुमान् । अनन्तो बलदेवे स्याच्चतुर्दशजिनेऽच्युते ॥२१॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अनंग शब्द वासुको शेषनागे च सिन्दुवारतरौ पुमान् । अनन्तमभ्रके व्योम्नि निस्सीमे त्वभिधेयवत् ॥२२॥ हिन्दी टीका--न अंग यस्य स अनंगः। इस व्युत्पत्ति से जिसका अंग आकार नहीं हो उसको अनंग कहते हैं। अनंग शब्द गगन (आकाश) और चित्त (मन) अर्थ में नपुंसक माना जाता है। किन्तु कामदेव (मदन) अर्थ में पुल्लिग है, इस प्रकार अनंग शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। अनन्त शब्द पुल्लिग है और उसके छः अर्थ होते हैं-१. बलदेव (बलराम), २. चतुर्दश जिन (चौदहवाँ तीर्थकर), ३. अच्युत (विष्णु), ४. वासुकि (सर्प विशेष), ५. शेषनाग (सर्प विशेष) और ६. सिन्दुवार तरु (निर्गुन्डी का वृक्ष) । और अभ्रक (मेघ) और व्योम (आकाश) इन दो अर्थों में अनन्त शब्द नपुंसक माना जाता है किन्तु निस्सीम (सीमा रहित) अर्थ में तो अनन्त शब्द अभिधेयवत् (वाच्यलिंग-विशेष्यनिघ्न होने से) तीनों लिंग माना जाता है। इस प्रकार अनंग शब्द के तीन और अनात शब्द के तोह अर्थ माने जाते हैं। मूल : अनन्ताऽग्निशिखा वृक्ष-गुडूची-पिप्पलीषु च । पार्वती-भूमि-दुर्वासु यवासाऽनन्तमूलयोः ॥२३।। दुरालभाऽऽमलक्योश्च हरीतक्यामपि स्मृता । अनयो व्यसने दैवेऽमंगले ना विपद्यपि ॥२४॥ हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग अनन्ता शब्द के बारह अर्थ होते हैं-१. अग्निशिखा (आग की ज्वाला), २. वृक्ष (वृक्ष विशेष-पिपर का वृक्ष), ३. गुडूची (गिलोय का झाड), ४. पिप्पली (पीपरि), ५. पार्वती (गौरी), ६. भूमि (पृथिवी), ७. दूर्वा (दूर्वादल-दूब), ८. यवास (वृक्ष विशेष), ६. अनन्तमूल (अनन्त नामक पिपर के झाड़ का मूल भाग), १०. दुरालभा (दुर्लभ), ११. आमलकी (धात्रीआमला) और १२. हरीतकी (हरें)। इसी प्रकार अनय शब्द पल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. व्यसन (दःख), २.देव (अदृष्ट भाग्य), ३. अमंगल (अकल्याण) और ४. विपत्ति भी व्यसन शब्द का अर्थ माना जाता है । इस तरह अनन्ता शब्द के १२ और अनय शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अनलो वसुभेदेऽग्नौ पित्ते भल्लातके पुमान् । अनुबन्धः प्रकृत्यादौ बन्धे लेशे विनश्वरो ।।२५।। मुख्यानुगुशिशौ पश्चाद्बन्धने प्रकृतान्वये । दोषोत्पत्तौ तथाऽऽरम्भे सम्बन्धादिचतुष्टये ॥२६॥ हिन्दी टीका-अनल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वसुभेव (वसु विशेष), २. अग्नि (आग), ३. पित्त (धातु वैषम्य से विकार विशेष) और ४. भल्लातक (भाला बर्थी)। इसी प्रकार अनुबन्ध शब्द भी पुल्लिग है और उसके ११ अर्थ होते हैं-१. प्रकृत्यादि (प्रकृति-स्वामी-अमात्य प्रभृति आठ), २. बन्ध (बन्धन), ३. लेश (अल्प), ४. विनश्वर (विनाश पाने वाला), ५. मुख्यानुगुशिशु (मुख्य के पीछे चलने वाला शिशु-बालक), ६. पश्चाबन्धन (पीछे बाँधना), ७. प्रकृतान्वय (प्रस्तुत का अन्वय) ८. दोषोत्पत्ति (दोष पैदा होना) तथा इसी तरह ६. आरम्भ (प्रारम्भ होना या करना) और १०. सम्बन्धादिचतुष्टय (सम्बन्ध-अधिकारी-प्रयोजन और विषय) इन सम्बन्धादि चारों को भी अनुबन्धचतुष्टय कहते हैं। इस तरह अनल शब्द के चार और अनुबन्ध शब्द के १० या ११ अर्थ समझना चाहिए। क्योंकि मुख्यानुगुशिशु यहाँ पर जब मुख्यानुगु और शिशु ऐसा पदच्छेद से दो अर्थ हो सकते हैं तब ११ अर्थ और जब समस्त एक ही शब्द मुख्यानुगुशिशु मानने पर १० अर्थ होते हैं। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-अनुराग शब्द | ७ मूल : अनुरागः पुमान् स्नेहे व्यासक्तावपि कीर्तितः ॥२७॥ ढेषेऽनुतापेऽनुशयोऽनुबन्धेपि पुमान् मत: । अनुकूलं स्वभावे स्यात्कुले च गतजन्मनि ॥२८॥ हिन्दी टीका-अनुराग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्नेह (प्रेम) और व्यासक्ति (आसक्ति विशेष) ।। २७ ।। इसी तरह अनुशय शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. द्वेष (अप्रीति-डाह), २ अनुताप (पीछे पछताना) और ३. अनुबन्ध (प्रयोजन बगैरह) । इसी तरह अनुकूल शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. स्वभाव (आदत), २. कुल (खानदान, वंश) और ३. गतजन्म (पहला जन्म)। इस प्रकार अनुराग शब्द के दो और अनुशय के तीन तथा अनुकूल शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : अन्तःस्वरूपे सीमायां निश्चयेऽवयवेऽन्तिके । रम्ये समाप्तौ निधने स्वभावेऽवसितेऽपि च ॥२६॥ अन्तरं छिद्र-तादर्थ्य-भेदेष्वन्तद्धि-मध्ययोः । आत्मीयेऽवसरे तुल्ये परिधानेऽन्तरात्मनि ॥३०॥ हिन्दी टोका-अन्तः शब्द अव्यय माना जाता है और इसके १० अर्थ होते हैं-१. स्वरूप (चेहरा), २. सीमा (हद-अवधि), ३. निश्चय (निर्णय), ४. अवयव (एकदेश), ५. अन्तिक (निकट), ६. रम्य (रमणीय-मनोहर), ७. समाप्ति (पूरा होना), ८. निधन (मृत्यु), ६. स्वभाव (आदत) और १०. अवसित (निश्चित) ॥ २६ ॥ अन्तर शब्द नपुंसक है और उसके भी दश अर्थ होते है -१. छिद्र (सुराक, बिल), २. तादर्थ्य (उसके निमित्त), ३. भेद, ४. अन्तद्धि (छिप जाना, अन्तर्धान) ५. मध्य (बीच), ६. आत्मीय (अपना-निज), ७. अवसर (मौका), ८. तुल्य (समान), ६. परिधान (पहनने का कपड़ा, वस्त्र) और १०. अन्तरात्मा (हृदय) । इस प्रकार अन्तः शब्द के दश और अन्तर शब्द के भी दश अर्थ माने जाते हैं। मूल : बहिविनाऽवधि-प्रान्ता-वकाशेषु नपुंसकम् । अन्तरा वर्जने मध्ये विनार्थे निकटेऽव्ययम् ॥३१।। अपकारोऽपक्रियायां द्रोहे निःक्षेपकर्मणि । पूजायां निष्कृतौ हानौ व्ययेऽप्यपचितिः स्त्रियाम् ॥३२॥ हिन्दी टीका-बहिस् शब्द भी अव्यय होने से नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं१. बिना (नहीं, निषेध), २. अवधि (हद-सीमा), ३. प्रान्त (एक देश-एक भाग) और ४. अवकाश (खाली)। अन्तरा शब्द भी अव्यय है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१ वर्जन (छोड़ना-त्याग), २. मध्य (बीच), ३. विनार्थ निषेध अर्थ में) और ४ निकट (नजदीक) ॥ ३१ ॥ अपकार शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अपक्रिया (अपकार-नुकसान-हानि), २. द्रोह (शत्रुता-ईर्ष्या-द्वेष) और ३. निःक्षेपकर्म (थाती रखना, धरोहर के रूप में रखना) । अपचिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं१. पूजा (सत्कार-पूजन), २. निष्कृति (उऋणता), ३. हानि (नुकसान) और ४. व्यय (खर्च) ॥ ३२ ॥ इस प्रकार बहिस शब्द के चार एवं अन्तरा शब्द के भी चार तथा अपकार शब्द के तीन और अपचिति शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-अपध्वस्त शब्द मूल : चूर्णीकृते परित्यक्तेऽपध्वस्तो निन्दिते त्रिषु । शमी-शेफालिका-दुर्गा शङ्खिनीष्वपराजिता ॥३३।। विष्णुक्रान्ता-स्वप्नफला-ह पुष्पेषु च कीर्तिता। अचलः कीलके शैले पुंस्यकम्पे त्रिषु स्मृतः ॥३४॥ हिन्दी टीका-अपध्वस्त शब्द चूर्णीकृत (चूर्ण किये हुए) अर्थ में और परित्यक्त छोड़ दिये गये) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु निन्दित अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि निन्दित शब्द का अर्थ (निन्दा के पात्र) होने से उसका विशेषणभूत अपध्वस्त शब्द भी विशेष्यनिघ्न होने से तीनों लिंगों में प्रयुक्त हो सकता है, क्योंकि पुरुष, स्त्री या नपुंसक कोई भी वस्तु निन्दा के पात्र हो सकते हैं, इसलिये उसका विशेषण के रूप में प्रयुक्त अपध्वस्त शब्द भी त्रिलिंग ही समाना चाहिए ॥ ३३ ॥ अपराजिता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके मात अर्थ होते हैं -१. शमी (शमी नाम का वृक्ष विशेष), २. शेफालिका (सिंहर हार फूल, मन्दार पुष्प), ३. दुर्गा भगवती को भी अपराजिता कहते हैं क्योंकि वह किसी से भी पराजित नहीं होती। ४. शङ्खिनो नाम के पुष्पविशेष को भी अपराजिता कहते हैं। ५. विष्णुक्रान्ता को भी अपराजिता कहते हैं । ६. स्वप्नफला को भी अपराजिता कहते हैं। ७. इसी प्रकार शणपर्णो पुष्प को भी अपराजिता कहते हैं । इस तरह अपराजिता शब्द के सात अर्थ समझना चाहिए। अचल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं। उनमें १. कीलक (खील, काटी) अर्थ और २. मैल (पहाड़) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु अकम्प (कम्प रहित निष्कम्प) अर्थ में त्रिलिंग है क्योंकि अकम्प शब्द विशेष्य (मुख्यार्थ) वाचक है और उसी का विशेषणभूत अचल शब्द विशेषण होने से विशेष्यनिघ्न होने के कारण त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री या नपुंसक किसी भी वस्तु में भी अकम्प हो सकता है। इस प्रकार अपराजिता के सात और अचल शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : अच्छो निर्मल: भल्लूक-स्फटिकेष्वच्छमव्ययम् । अञ्जनं म्रक्षणे व्यक्तीकरणे कज्जले गतौ ।।३५।। हिन्दी टीका-अच्छ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्मल (मल रहित), २. भल्लक (रीछ, भाल) और ३. स्फटिक (संगमर्मर पत्थर वगैरह)। इसी प्रकार नपंसक अ अव्यय भी अच्छ शब्द माना गया है उसके भी ऊपर के ही तीन अर्थ होते हैं । अंजन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. म्रक्षण (साफ करना) २. व्यक्तीकरण (स्पष्ट करना), ३. कज्जल (काजल) और ४. गति (गम करना) । इस प्रकार अच्छ शब्द के तीन और अंजन शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। अच्छ शब्द निर्मल वाचक त्रिलिंग समझना। मूल : अट्टस्त्वतिशये क्षौमे हट्टे हादिवेश्मनि । अजो ब्रह्मणि कन्दर्पे शिवे विष्णौ रघो:सुते ॥३६॥ हिन्दी टीका-अट्ट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अतिशय (अत्यधिक), २, क्षोम (रेशम वस्त्र, पट्ट वस्त्र), ३. हट्ट (हाट) और ४. हादिवेश्म (महल-अटारो वगैरह) इसी प्रकार अज शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. ब्रह्म (परमात्मा), २. कन्दर्प (कामदेव), ३. शिव (शङ्कर), ४. विष्णु (नारायण) और ५. रघुपुत्र (राघव, रघु का बालक)। इस प्रकार अट्ट शब्द के चार और अज शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिए। (न जायते इति अजः) यह अज शब्द की व्युत्पत्ति है । तदनुसार बाद में कहना चाहते हैं। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अज शब्द | | मूल : मेषे माक्षिकधातौ च जन्महीने त्वसौ त्रिषु ॥ हिन्दी टीका- १. मेष (भेड़ा-घेटा) को भी अज कहते हैं यहाँ मेष यह उपलक्षण है-बकरा भी मेष शब्द से लिया जाता है, क्योंकि वास्तव में वकरे को भी अज कहते हैं। इसी प्रकार माक्षिकधातु (मधु) को भी अज कहते हैं । किन्तु जन्महीन (जन्मरहित) अर्थ में अज शब्द त्रिलिंग माना जाता क्योंकि जन्म नहीं लेने वाले भी पुरुष, स्त्री, नपुंसक साधारण सभी को अज कह सकते हैं । इस तरह अज शब्द के आठ अर्थ हुए अपवर्गः कर्मफले क्रियान्ते त्याग - मोक्षयोः ॥३७॥ क्रियावसानसाफल्ये पूर्णतायामपि स्मृतः । हिन्दी टीका-अपवर्ग शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं - जैसे-१. कर्मफल (उन्नति या अवनति, सुख या दुःख वगैरह) २. क्रियान्त (क्रिया की समाप्ति) ३. त्याग, ४. मोक्ष (मुक्ति) ५. क्रिया ऽवसान (क्रिया का अवसान (अन्त) ६. साफल्य (सफलता-फल प्राप्ति) और ७. पूर्णता (सम्पन्नता) इस प्रकार अपवर्ग शब्द के ७ सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : अपवादस्तु विश्वासे निदेशे गर्हणे तथा ॥३८॥ विशेषे बाधकेऽपष्ठु विपरीते च शोभने । अथापसर्जनं दाने परित्यागे ऽपवर्गके ॥३६।। हिन्दी टीका-अपवाद शब्द पुंलिंग है और उसके ८ आठ अर्थ होते हैं-जैसे-१. विश्वास (यकीन) २. निदेश (आदेश, आज्ञा हुकूमत) तथा एवम् ३. गर्हण (निन्दा) ४. विशेष (असाधारण) ५ बाधक (बाधा करने वाला) और ६. अपष्ठ (खराब) ७. विपरीत (उलटा परिणाम) को भी अपवाद कहते हैं। ८. शोभन (अच्छा) को भी अपवाद कहते हैं। और अपसर्जन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. दान २. परित्याग, ३. अपवर्ग (छुटकारा पाना) इस प्रकार अपवाद शब्द के ८ आठ और अपसर्जन शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए ।। ३६ ॥ मूल : अमृता तुलसी दूर्वा-पिप्पली मदिरासु च । गो-रक्ष - दुग्धाऽतिविषाऽभया-रक्तत्रिवृत्स्वपि ॥ ४० ॥ हिन्दो टोका-अमृता शब्द स्त्री-लिंग है और उसके दश अर्थ होते हैं जैसे-१. तुलसी, २. दूर्वा (दुब) ३. पिप्पली (पीपर) ४. मदिरा (आसव-शराब) ५. गो (गाय) ६. रक्षा (रक्षा करना) ७. दुग्ध (दूध) ८. अतिविषा (आमलकी-धात्री) ६. अभया (हरीतकी) और १० अरक्तत्रिवृत् (इलाइची) अथवा 'गोरक्ष दुग्धा' यह एक ही शब्द गुडूची (गिलोय) का वाचक है अर्थात गुडूची को भी अमृता कहते हैं इसलिये गोरक्ष दुग्धा शब्द से गुडूची (गिलोय) ली जाती है उसका अर्थ-गो की तरह रक्षा करने वाली, यह दूध के समान देखने में सफेद ही होती है ॥ ४० ॥ मूल : अम्बरम् वस्त्र आकाशे कासे गिरिजामले । अम्बरीषः शिवे विष्णौ भास्करे नरकान्तरे ॥ ४१ ।। अनुतापे किशोरेऽपि सूर्यवंश्यनृपे पुमान् । क्लीबं भर्जनपात्रेस्यात्संग्रामेऽपि प्रकीर्तितः ॥ ४२ ॥ हिन्दी टोका-अम्बर शब्द नपंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं जैसे-१. वस्त्र (कपड़ा) Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अये शब्द २. माकाश, ३ कास (कपास-रुई) और ४. गिरिजामल (अभ्रख)। अम्बरीष शब्द पुल्लिग है और उसके ६ अर्थ होते हैं जैसे-१. शिव (शंकर) २. विष्णु (नारायण) ३. भास्कर (सूर्य) ४. नरकान्तर (नरक विशेष) ५. अनुताप (पश्चात्ताप-पीछे पछताना) ६. किशोर (बच्चा) ७. सूर्यवंश्यनृप (सूर्य वंशी राजा) इस अर्थ में अम्बरीष शब्द पुंलिंग है किन्तु ८. भर्जनपात्र (भूजने का बर्तन भ्राष्ट्र) अर्थ में और ६. संभ्राम (युद्ध-लड़ाई) अर्थ में नपुंसक लिंग माना जाता है। इस प्रकार अम्बर शब्द के चार और अम्बरीष शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिये। मूल : अये सम्बोधने कोपे विषादे संभ्रमे स्मृतौ । अयोगो विधुरे कूटे विश्लेषे कठिनोधमे ॥ ४३ ॥ अयनं गमने शास्त्रे सूर्यसंक्रमणान्तरे । सूर्यगत्यन्तरे मार्गेऽनुनय - प्रश्नयोरपि ॥ ४४ ॥ हिन्दी टोका-'अये' यह अव्यय शब्द है और इसके पाँच अर्थ होते हैं- १. सम्बोधन (अपनी तरफ बुलाना) २. कोप (गुस्सा) ३. विषाद (ग्लानि) ४. संभ्रम (भयजन्य त्वरा-जल्द बाजी) और ५. स्मृति (स्मरण याद करना)। अयोग शब्द पुल्लिग है और इसके चार अर्थ होते हैं -१. विधुर (विरही-विछुड़ा हुआ) २. कूट (घन, पहाड़ की चोटी रहस्य ३. विश्लेष (विछराव-वियोग) और कठिनोद्यम (घोर परिश्रम) (कठिन उद्योग) ॥ ४३ । 'अयन' शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. गमन (जाना) २. शास्त्र ।. सूर्यसंक्रम (सूर्य का संक्रमण विशेष; एक राशि से दूसरे राशि में जाना) ४. सूर्यगत्यन्तर (सूर्य की गति विशेष) ५. मार्ग (राम्ता) ६. अनुनय (खुशामद करना) और ७. प्रश्न (पूछना, प्रश्न करना) इस प्रकार 'अये' शब्द के चार और अयोग शब्द के भी चार एवं अयन शब्द सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : अरः पुमान् कालचक्रद्वादशांशे जिनान्तरे। अरं नपुंसके शीघ्र चक्राँगे शीघ्रगे त्रिषु ॥ ४५ ॥ अरिः पुमान् स्मृतश्चक्र विपक्षे खदिरान्तरे। अरिष्टमशुभे मृत्युचिन्होपद्र वयोरपि ।। ४६ ।। हिन्दी टीका-अर शब्द १. काल (समय) २. चक्र ३. द्वादशांश (बारहवाँ भाग) और ४. जिनान्तर (तीर्थकर विशेष) इन चार अर्थों में पुंलिंग है किन्तु -१. शीघ्र. २. चक्रांग (गाड़ी के पहिये का आरा) और ३. शीघ्रग (जल्दी से जाने वाला) इन तीन अर्थों में अर शब्द नपंसकही माना जाता है। इसी प्रकार अरि शब्द भी १. चक्र २. विपक्ष (शत्रु) और ३. खदिरान्तर (कत्था विशेष) इन तीन अर्थों में पुल्लिग माना जाता है किन्तु १ अशुभ (अमंगल-अकल्याण) २. मृत्युचिन्ह (मरण सूचक चिन्ह विशेष) और ३. उपद्रव इन तीन अर्थों में नपुंसक ही माना जाता है। इस तरह अर शब्द के सात और अरि शब्द के छह अर्थ जानना चाहिये ॥ शुभे प्रसूतिकागेहे क्लीबमुक्त मनीषिभिः । अरिष्ट: पुंसि लशुने वायसे वृषभासुरे ॥ ४७ ॥ निम्बे फेनिलवृक्षे मद्यभेदे कङ्कपक्षिणि । अरिष्टनेमि-विशे तीर्थङ्करजिने पुमान् ॥ १८ ॥ मूल : Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - अरिष्ट शब्द | ११ हिन्दी टीका - मनीषियों ने १. शुभ (मंगल-कल्याण) और २. प्रसूतिका गृह (प्रसूति का घर ) इन दोनों अर्थों में अरिष्ट शब्द को नपुंसक कहा है किन्तु १. लशुन, २. वायस (काक - कौवा) और ३. वृषभासुर (राक्षस विशेष) इन तीन अर्थों में अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । इसी प्रकार १. निम्ब (नीम का झाड़) २. फेनिल वृक्ष (रीठा जिससे ऊनी वस्त्र धोया जाता है) । तथा २. मद्यविशेष ( शराबआसव) और ४. कङ्कपक्षी ( कङ्क नाम का पक्षी विशेष) इन तीन अर्थों में भी अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है। इसी तरह ५. अरिष्टनेमि (बाइसवाँ तीर्थङ्कर भगवान् ) के लिए प्रयुक्त अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । इस प्रकार अरिष्ट शब्द के अनेक अर्थ हैं । मूल : अरुणो भास्करेऽनूरौ कुष्ठभेदेऽर्कपादपे । सन्ध्यारागेऽव्यक्तरागे पुन्नागे कपिले गुडे ॥ ४६ ॥ अरुणाऽतिविषा- गुञ्जा - मञ्जिष्ठा त्रिवृतासु च । अलंबुषेन्द्रवारुण्योः श्यामायामपि कीर्तिता ।। ५० ।। हिन्दी टीका - पुंल्लिंग अरुण के ९ अर्थ होते हैं - १. भास्कर (सूर्य) २. अनुरू ( सूर्य का सारथी ) जिसको उरु = जंघा नहीं हो उसे अनुरू कहते हैं ( सूर्य के सारथि को जंघा नहीं थी कट गई थी इसीलिए सूर्य सारथि को अनुरू कहते हैं) । ३. कुष्ठविशेष ( लाल वर्ण का कुष्ठ) ४. अर्कपादप ( औंक का वृक्ष ) ५. सन्ध्याराग (सायंकालीन सूर्य की रक्तिमा ) ६. अव्यक्तराग - - (किञ्चिन्मात्र रक्तिमा) ७. पुन्नाग केसर ) ८. कपिल (भूरा रंग) और ६. गुड, इस प्रकार अरुण शब्द के नौ अर्थ हैं । स्त्रीलिङ्ग अरुणा शब्द के आठ अर्थ होते हैं -- -- १. अतिविषा (मेंहदी ) २. गुडजा २. मञ्जिष्ठा ( मजीठा ) ४. त्रिवृता ५. अलम्बुष ६. इन्द्र वारुणी (शराब विशेष) और ७. श्यामा (भगवती) को भी अरुणा शब्द से प्रयोग करते हैं । इस तरह अरुण के और अरुणा शब्द के ७ सात अर्थ माने जाते हैं । इनमें कुछ योगरूढ़ और कुछ रूढ़ शब्द है । मूल : अरोको दीप्ति रहिते रन्धहीने त्रिलिंगकः । अर्कः पुरन्दरे ताम्र े पण्डिते ज्येष्ठ भ्रातर्यर्कवृक्षे निर्यासे स्फटिकेरवी ॥५१॥ रविवासरे । अर्घः पूजाविधौ मूल्येऽर्चिष्मान् वैश्वानरे रवौ ॥५२॥ हिन्दी टीका–अरोक शब्द दीप्तिरहित और रन्ध्रहीन (छेद रहित ) अर्थ में त्रिलिङ्ग (पुंलिंग स्त्रीलिंग और नपुंसक) माना जाता है और अर्क शब्द पुंलिंग है और उसके अर्थ होते हैं - १. पुरम्बर (इन्द्र) २. ताम्र (ताम्र धातु विशेष ताम्बा ) ३. पण्डित (विद्वान् ) ४. स्फटिक और ५. रबि (सूर्य) एवं ६. ज्येष्ठ भ्राता (बड़ा भाई) ७. अकंवृक्ष (ओंक का वृक्ष ) ८. निर्यास (लस्सा गोंद) और ६. रविवासर (रविवार) । इसी प्रकार अर्ध शब्द भी पुंलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. पूजाविधि ( पूजा सामग्री, जल चन्दन पुष्पादि ) २. मूल्य (कीमत ) ३ अचिर्मान् (तेजस्वो) ४. वंश्वानर ( अग्नि विशेष ) और ४. रवि (सूर्य) इस तरह अरोक शब्द के दो और अकं शब्द के ६ एवं अर्ध शब्द के ५ अर्थ जानना चाहिए । मूल : अर्जुनस्तु मयूरे स्यात् कार्तवीर्यार्जुने सिते । मध्यमे पाण्डवे मातुरेकपुत्रे द्रुमान्तरे ॥ ५३ ॥ अर्थः प्रयोजने वित्ते वाच्ये विषयवस्तुनोः । निवृत्तौ याचनायां च प्रकारे कारणेऽपि च ॥ ५४ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित--अर्जुन शब्द हिन्दी टीका-अर्जुन शब्द पुलिंग है और उसके पांच अर्थ होते हैं। १. मयूर (मोर) २. कातवीर्यार्जुन (सहस्रबाहु) ३. सित (सफेद रंग) ४. मध्यम पाण्डव (अर्जुन) जो कि माता कुन्ती का एक पुत्र (वीर पुत्र) कहा जाता है । और ५. द्रमान्तर (अर्जुन नाम का वृक्ष विशेष) (धववृक्ष)। इसी प्रकार अर्थ शब्द पुंलिंग है और उसके ६ अर्थ होते हैं-१. प्रयोजन (उद्देश्य निमित्त) २. वित्त (धन) ३. वाच्य (शब्दार्थअभिधेय) ४. विषय ५. वस्तु, ६. निवृत्ति, ७. याचना और ८. प्रकार (भेद-विशेषण) एवं ६. कारण (हेतु, निमित्त । इस तरह अर्जुन शब्द के पांच और अर्थ शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये - मूल : अर्थी सहाये धनिके विवादिनि च याचके । सेवकेऽपि बुधैः प्रोक्त: प्रयोजनवति त्रिषु ॥ ५५ ॥ हिन्दी टीका-अर्थी शब्द के ६ अर्थ होते हैं- उनमें १. सहाय, २. धनिक, ३. विवादी और ४. याचक एवं ५. सेवक इन पाँच अर्थों में पुल्लिग है और ६. प्रयोजनवान् (प्रयोजन वाला) इस छ8 अर्थ में तीनों ही लिंग में प्रयुक्त होता है क्योंकि पुरुष स्त्रो नपुंसक सभी में याचक होते हैं। मूल : याचने पीडने गत्यां हनने गमनेऽर्दनम् । अर्द्धचन्द्रश्चन्द्रखण्डे गलहस्ते नखक्षते ॥ ५६ ॥ पुमान् वाणविशेषेऽपि चन्द्रकेऽपि प्रयुज्यते । अर्भक: सदृशे स्वल्पे शिशौ मूर्खे कृशे पुमान् ॥ ५७ ॥ हिन्दी टीका-अर्दन शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. याचन (माँगना) २. पोडन (सताना) ३. गति (जाना-गमन करना) ४. हनन (मारना) ५. गमन (जाना) इस प्रकार अर्दन शब्द का पांच अर्थ समझना चाहिये अर्धचन्द्र शब्द पुलिंग है और उसके ५ अर्थ होते हैं - १. चन्द्रखण्ड (चन्द्रमा का आधा भाग) २. गलहस्त (गला पर हाथ देकर बाहर निकालना) ३. नखक्षत (नाखून से क्षत करना) इसी प्रकार अर्धचन्द्र शब्द का ४. वाण विशेष भी अर्थ है जोकि अर्धचन्द्र के समान होता है, एवं ५. चन्द्रक (अर्धचन्द्राकार रजत तांबा वगैरह का बना हुआ यन्त्र विशेष) । अर्भक शब्द पुंलिंग है और उसके भी पांच अर्थ होते है-१. सदृश (सरखा) २. स्वल्प (लेश मात्र) ३. शिशु (बच्चा) ४. मूर्ख, ५. कृश (पतला) इस प्रकार अर्दन शब्द का पाँच अर्धचन्द्र का ५ एवं अर्भक शब्द का भी ५ अर्थ समझना चाहिए । मूल : अर्हः पुरन्दरे पुंसि त्रिषु योग्योपयुक्तयोः । अलमत्यर्थपर्याप्त - निरर्थकनिवारणे ॥ ५८ ॥ शक्तिभूषणयोरेतदव्ययं विदुषां मतम् । अलिः स्त्रीपुंसयो: काके वृश्चिके भ्रमरे पिके ॥ ५६ ।। हिन्दी टीका-पुंलिंग अर्ह शब्द का १. पुरन्दर (इन्द्र) अर्थ होता है और २. योग्य एवं ३. उपयुक्त (युक्त-लायक) अर्थों में अर्ह शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नपुंसक अलम् शब्द के चार अर्थ होते हैं१. अत्यर्थ (अत्यन्त) २. पर्याप्त (पुष्कल-समर्थ) ३. निरर्थक (फजूल व्यर्थ) ४. निवारण (हटाना) किन्तु ५. शक्ति और ६. भूषण (अलंकार-जेबर) इन दोनों अर्थों में 'अलम्' यह अव्यय माना जाता है। इसी प्रकार अलि शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसका चार अर्थ होता है-१. काक (कौवा) २. वृश्चिक बिच्छ और वृश्चिक राशि) ३. भ्रमर (भौंरा) और ५. पिक (कोयल) को भी अलि कहते हैं। इस तरह अर्ह शब्द का तोन अलम् शब्द का छह और अलि शब्द का चार अर्थ समझना चाहिये। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अलीक शब्द | १३ मूल : अलीकमप्रिये स्वर्गे ललाटे वितथेऽपि च। अवग्रहोवृष्टिरोधे स्वभावे प्रतिबन्धके ॥६० ॥ शापे ज्ञान विशेषे च गजता हस्ति - भालयोः । अवटोगतखिलयो: कूपे कुहकजीविनि ॥ ६१ ॥ हिन्दी टोका-अलोक शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अप्रिय (कटु खराब) २. स्वर्ग, ३. ललाट (भाल मस्तक) ४. वितथ (मिथ्या झूठ) भी अलीक कहा जाता। अवग्रह शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- . वृष्टिरोध (वर्षा न होना) २. स्वभाव, ३. प्रतिबन्धक (रोकने वाला ४. शाप (अभिशाप देना) ५. ज्ञानविशेष । गजता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ हैं - १. हस्ति (हाथी) और २. भाल (ललाट) को भी गजता कहते हैं । अवट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. गर्त (खड्ढा) २. खिल (खाली शून्य) ३. कूप (कुआँ) ४. कुहकजीवी (इन्द्रजाल विद्या से जीविका चलाने वाला)। मूल : अवनं रक्षणे शक्तौ कामेऽवगमने वधे । प्रीणने शोभने तृप्तौ स्पृहायां श्रवणे गतौ ॥६२॥ सत्तायां करणे बुद्धौ श्लेषे प्राप्तौ प्रवेशने । याचने ग्रहणे भागे स्वाम्यर्थे च नपुंसकम् ॥६३॥ हिन्दी टीका-अवन शब्द नपुंसक है और उसके २१ अर्थ होते हैं-१. रक्षण (रक्षा करना) २. शक्ति (ताकत सामर्थ्य) ३. काम (कन्दर्प-इच्छा) ४. अवगमन (समझना और समझाना) ५. वध (हिंसा करना) ६. श्रीगन (तृप्त करना खुश करना) ७. शोभन (सुन्दर, अच्छा) ८. तृप्ति (इच्छा को पूर्ति) ६. स्पृहा (अभि लाषा) १०. श्रवण (सुनना) ११. गति (जाना) १२. सत्ता (अस्तित्व) १३. करण (मन-इन्द्रिय वगैरह) १४. बुद्धि (ज्ञान) १५. श्लेष (आलिंगन-जोड़ना) १६. प्राप्ति, १७. प्रवेशन (प्रवेश करना कराना) १८. याचन (मांगना) १६. ग्रहण (लेना) २०. भाग. (हिस्सा-एक देश) २१. स्वाम्यर्थ (स्वामी के लिए) इस प्रकार २१ अर्थ अवन शब्द के होते हैं । “अव, रक्षण-कान्ति-गति" इस अवधातु से ल्युट् प्रत्यय करके अवन शब्द बनता है, तदनुसार उक्त सभी अर्थ हो सकते हैं। अवलेपस्त्वहंकारे संगभूषणलेपने । अवश्यायो हिमे गर्वे कुज्झतौ च प्रयुज्यते ॥६४॥ अथोऽवष्टम्भ आरम्भे सुवर्णे स्तम्भ उच्यते । अवष्टब्धोऽन्तिके बद्ध आक्रान्ते रुद्ध आश्रिते ॥६५॥ हिन्दी टीका-अवलेप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अहंकार (घमण्ड-दर्पमिथ्याभिमान) २. संग (संगति) ३. भूषण (अलंकरण) ४. लेपन (चन्दन वगैरह का लेप करना) और अवश्याय शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. हिम (पाला बर्फ) २. गर्व (घमण्ड) ३. कुज्झटिका (झारी) और अवष्टम्भ शब्द पुल्लिग ही है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं । १. आरम्भ (शुरू करना) २. सुवर्ण (सोना) ३. स्तम्भ (खम्भा) और अवष्टब्ध शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. अन्तिक (निकट) २. बद्ध (बान्धा हुआ) ३. आक्रान्त (दवाया हुआ) ४. रुद्ध (रोका हुआ) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - - अवष्टम्भ शब्द ५. आश्रित (आश्रय शरण में रहने वाला) इस प्रकार अवलेप शब्द के चार; अवश्याय शब्द के तीन; अवष्टम्भ शब्द के भी तीन और अवष्टब्ध शब्द के पाँच अर्थ हुए । मूल : सौष्ठवे । अवष्टम्भो स्तम्भ - हेम प्रारम्भेषु च अवष्टम्भस्तु प्रारम्भे स्तम्भे हेमनि प्रस्तावे वर्षणे मन्त्रविशेषे वत्सरे सौष्ठवे ॥६६॥ क्षणे । अवकाशेऽप्यवसरोऽवस्करो गुह्य - गूथयोः ॥ ६७ ॥ हिन्दी टीका - अवष्टभ शब्द पुल्लिंग है उसके चार अर्थ होते हैं - १. स्तम्भ (खम्भा ) २. हेम (सोना) ३. प्रारम्भ ४. सौष्ठव (सुन्दरता - रमणीयता) इस श्लोक का उत्तरार्ध भी पूर्वाद्ध का ही रूपान्तर प्रतीत होता है इसलिए इस उत्तरार्ध का अर्थ भी पूर्वाद्ध के समान ही समझना चाहिए केवल शब्दों को आगे पीछे मात्र कर दिया गया है । अवसर शब्द पुल्लिंग है और उसके छँ अर्थ होते हैं - १. प्रस्ताव (प्रस्तावना) २. वर्षण (वरसना) ३. मन्त्र विशेष (मन्त्रणा ) ४. वत्सर (वर्ष) ५. क्षण ( मिनट ) ६. अवकाश भी अवसर शब्द का अर्थ है । अवस्कर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. गुह्य (गुप्तइन्द्रिय विकार) २. गूथ ( विष्ठा) । मूल : जिनकालविशेषे स्त्री चोत्सर्पिण्यवसर्पिणी । अवसानं विरामे स्यान्मृत्यो सीमनि चेष्यते ॥ ६८ ॥ अवसायः पुमान् शेषे समाप्तौ निश्चयेऽपि च । अविर्मेषे गिरौ सूर्ये नाथे मूषिक- कम्बले ||६६|| हिन्दी टीका - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी ये दोनों शब्द स्त्रीलिंग माने जाते हैं और इन दोनों शब्दों के जिन भगवान् तीर्थङ्कर प्रभु के द्वारा संकेतित काल विशेष होते हैं उन में भी धर्मादि वृद्धि - उन्नति काल को उत्सर्पिणी कहते हैं और धर्मादि हास काल (अवनतिकाल ) को अवसर्पिणी कहते हैं । भगवती सूत्र में सुधर्मा स्वामी ने इन दोनों का विश्लेषण करके बतलाया है । अवसान शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. विराम (समाप्ति) २. मृत्यु ( मरण) ३. सीमा (हद - अवधि ) | अवसाय शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. शेष ( बचा हुआ भाग ) २. समाप्ति ( पूरा हो जाना) और ३. निश्चय (निर्णय) अवि शब्द भी पुल्लिंग माना जाता है और उसके छं अर्थ होते हैं - १. मेष ( घंटा - भेड़ा) २. गिरि ( पहाड़ ) ३. सूर्य, ४. नाथ (स्वामी मालिक) ५. मूषिक ( चूहा - उन्दर) ६ कम्बल । इस प्रकार उत्सर्पिणी ( वृद्धि काल ) अवसर्पिणी ( ह्रास काल ) एवं अवसान शब्द के तीन; अवसाय शब्द के भी तीन और अवि शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिए । मूल : प्राचीरे मारुते पुंसि पुष्पवत्यां स्त्रियां मता । अब्दः संवत्सरे मेघे मुस्तायां पर्वतान्तरे ॥७०॥ अव्यक्तः पुंसि कन्दर्पे शिवे कृष्णेऽस्फुटे त्रिषु । अव्यक्तं महदादौ च प्रकृतौ परमात्मनि ॥ ७१ ॥ हिन्दी टीका -- इसी प्रकार १० - प्राचीर (किले की ऊंची दीवार ) और २. मारत (पवन) इन Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अष्टापद शब्द | १५ दोनों अर्थों में भी अवि शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। किन्तु १. पुष्पवती (रजस्वला स्त्री) अर्थ में स्त्री लिंग अवि शब्द को समझना चाहिए । अब्द शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके चार अर्थ होते हैं१. संवत्सर (वर्ष) २. मेघ और ३. मुस्ता (मोथा) भी अब्द शब्द का अर्थ है । और ४. पर्वत विशेष । पुल्लिग अव्यक्त शब्द का १, कन्दर्प (कामदेव) २. शिव (शङ्कर) ३. कृष्ण अर्थ हैं इस प्रकार पुल्लिग अव्यक्त शब्द का तीन अर्थ समझना चाहिए किन्तु १. अस्फुट (अस्पष्ट) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री या नपंसक कोई भी अस्फुट (स्पष्ट नहीं) पदार्थ कहा जा सकता है। किन्तु नपुंसक अव्यक्त शब्द का १. महत्तत्व (सांख्य शास्त्र का बुद्धि तत्व) (आदि शब्द से अहंकार तत्व और पंच तन्मात्र तत्व लिया जा सकता है और २. प्रकृति (मूल प्रकृति तत्व) को भी अव्यक्त कहते हैं । इसी प्रकार परमात्मा (पुरुष तत्व) को भी अव्यक्त शब्द से लिया जाता है इस तरह नपुंसक अव्यक्त शब्द महत् अहंकार प्रकृति और परमात्मा का भी बोधक माना जाता है। अष्टापदं शारिफले स्वर्ण - धत्तुरयोयोः । अचिरा स्त्र्यहतां मातृविशेष कीर्तितो बुधैः ॥७२।। अभीक: कामुके क्र रे निर्भयोत्सुकयोस्त्रिषु । अभीषुः प्रग्रहे कामेऽनुरागे किरणे पुमान् ॥७३।। हिन्दी टीका-१. शारिफल (पाशा चौपड़-मोतियों के रखने का आधारभूत काष्ठ या कपड़े का बनाया हुआ पात्र विशेष 'बिसात' भी उसे कहते हैं ।) अर्थ में अष्टापद शब्द नपुंसक माना जाता है और २. स्वर्ण तथा ३. धतूर इन दो अर्थों में अष्टापद शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी माना जाता है । अचिरा शब्द भगवान शान्तिनाथ तीर्थंकर की माता का वाचक है इसलिये यह शब्द स्त्रीलिंग माना गया है। अभीक शब्द १. कामुक (विषयी) और २. क्रूर (दुष्ट निर्दय) इन दो अर्थों में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ३. निर्भय तथा ४. उत्सुक अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है । अभीषु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रग्रह (लगाम) २. काम (कन्दर्प) ३. अनुराग (प्रेम) ४. किरण (रश्मि) इस प्रकार अष्टापद शब्द के तीन एवं अचिरा शब्द का एक और अभीक तथा अभीषु शब्द के चार चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अभ्यागमोऽन्तिके युद्धे वैराभ्युत्थान-मारणे । अभ्यासोऽभ्यसनाऽऽवृत्ति-शराभ्यासान्तिकेष्वपि ॥७४॥ अमरः पारदे देवेऽस्थिसंहारे मृत्युवजिते । अमरा नाभिनालायां स्थूिणा जरायुषु ॥७॥ हिन्दी टीका -अभ्यागम शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं -१. अन्तिक (निकट) २. युद्ध (लडाई) ३. वैर (शत्रुता) ४. अभ्युत्थान (उन्नति) ५. मारण (मरवाना) अभ्यास शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. अभ्यसन (अभ्यास करना-प्रैक्टिश करना) २. आवृत्ति (बार बार आवर्तन) ३. शराभ्यास (बाण चलाने का प्रेक्टिश करना) ४. अन्तिक (पास निकट)। पुल्लिग अमर शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. पारद (पारा) २. देव, ३. अस्थि संहार (हड्डियों का संहरण करना, ले जाना) और ४. मृत्युवजित (नहीं मरना) अमरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. नाभिनाला (नाभिकूप) २. पूर्वा (दूब) ३, स्थूण (खूटा-स्तम्भ-खम्भा) ४. मराय (गर्भ को Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - अमृत शब्द वेस्टन करने वाला चर्म पुटक) इस तरह अभ्यागम शब्द के ५ और अभ्यास शब्द के भी ५ एवं अमर शब्द के ४ और अमरा शब्द के भी ४ अर्थ होते हैं ॥ ७५ ॥ मूल : गुडूच्याममरावत्यां महानीली वीरौ । अमृतं भेषजे स्वादु द्रव्ये हृद्येऽन्नवित्तयोः ॥ ७६ ॥ हिन्दी टीका- १. गुडूची (गिलोय) को तथा २. अमरावती ( इन्द्र नगरी) को भी अमरा कहते हैं । इसी प्रकार ३. महानीलो को भी अमरा कहते हैं । एवं ४. वटी (रस्सी) डोरी रज्जु तथा ५ तरु (वृक्ष) को भी अमरा कहते हैं । इस तरह अमरा शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये | अमृत शब्द नपुंसक है और उसके निम्न प्रकार से १७ अर्थ होते हैं - १. मैषज ( औषध - दबा ) २. स्वादुद्रव्य ( स्वादिष्ट वस्तु) ३. हृद्य (अत्यन्त रमणीय) ४. अन्न (अनाज) ५. वित्त (धन) इसी प्रकार आगे के श्लोकों द्वारा भी अमृत शब्द के अर्थ कहेंगे । मूल : यज्ञशेषद्रव्येऽयाचितवस्तुनि । जले घृते कैवल्ये विषसामान्ये सुधायां पारदे घने ॥७७॥ क्षीरे स्वर्णे भक्षणीयद्रव्ये नित्यनपुंसकम् । पुमान् धन्वन्तरौ देवे वाराहीकन्दरुच्ययोः ॥ ७८ ॥ | हिन्दी टीका - इसी प्रकार १. जल, २. घृत ३. यज्ञ शेष द्रव्य ( याग का बचा हुआ द्रव्य) ४. आयाचित वस्तु (बिना माँगने पर प्राप्त वस्तु) ५. कैवल्य (मोक्ष) ६. विष सामान्य ( सामान्य जहर) ७. सुधा (पीयूष ) ८. पारद (पारा) . धन (वित्त ) इन सबों को भी अमृत कहते हैं । इसी प्रकार १०. क्षीर (दूध) ११. स्वर्ण (सोना) १२. भक्षणीयद्रव्य ( खाद्य खाने लायक वस्तु) को भी अमृत कहते हैं । इन सारे ही १७ अर्थों में अमृत शब्द नित्य नपुंसक है किन्तु १. धन्वन्तरि (वैद्य) २. देव, ३. वाराहीकन्द ( वराह शूकर का अत्यन्त प्रिय कन्द विशेष को वाराही कन्द कहते हैं) और ४. रुच्य (मनोज्ञ - सुन्दर) इन चारों अर्थों में अमृत शब्द पुल्लिंग माना जाता है । मूल : अपवर्गः कर्मफले क्रियान्ते त्यागमोक्षयोः । क्रियावसानसाफल्ये पूर्णतायामपि स्मृतः ॥७६॥ अपवादस्तु विश्वासे निदेशे गर्हणे पुमान् । विशेषे बाधकेऽपष्ठु विपरीते च शोभने ॥ ८० ॥ हिन्दी टीका - अपवर्ग शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. कर्मफल, २. त्रियान्त ( क्रिया का अन्त-समाप्ति) ३. त्याग, ४. मोक्ष, ५. क्रियाऽवसान (क्रिया का अवसान-विराम ) ६ साफल्य (सफलता) ७. पूर्णता ( सम्पन्नता) इसी प्रकार अपवाद शब्द भी पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ होते । १. विश्वास ( यकीन ) २. निदेश (आज्ञा- हुकुम) ३. गर्हण ( निन्दा ) ४. विशेष ( असाधारण ) ५. बाधक (बाधा करने वाला) ६. अपष्ठ ( खराब ) ७. विपरीत (उल्टा ) ८. शोभन (सुन्दर) को भी अपवाद कहते हैं । मूल : परित्यागेऽपवर्गके । अथापसर्जनं दाने अपहारस्त्वपचये चौर्ये संगोपनेपि च ॥ ८१ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - अपसर्जन शब्द | १७ अफेनो महिफेने स्यात्फेनहीने त्रिलिंगकः । अब्जं नपुंसकं पद्मे शतकोटावपि स्मृतम् ॥ ८२ ॥ हिन्दी टीका - अपसर्जन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. दान २. परित्याग ( छोड़ देना) और ३. अपवर्ग (छुटकारा ) । अपहार शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं१. अपचय ( ह्रास) २. चौर्य (चोरी करना) और ३. संगोपन ( छिपाना ) । इस प्रकार अपरार्जन के तीन और अपहार शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिए। अफेन शब्द महोफेन ( पृथ्वी का फेन) अर्थ में पुल्लिंग है किन्तु फेनहीन अर्थ में त्रिलिंग है क्योंकि फेनहीन सभी हो सकता है । नपुंसक अब्ज शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. पद्म और २. शतकोटि (वज्र ) । इस प्रकार अपसर्जन शब्द के तीन, अपहार शब्द के भी तीन एव अकेन शब्द के दो और नपुंसक अब्ज शब्द के दो अर्थ जानना चाहिए । मूल : पुमान् धन्वन्तरौ चन्द्रे शंखे निचुलपादपे । अभ्रमभ्रात स्यान्मेघे गगनमुस्तयोः ॥ ८३ ॥ योजनाऽभिग्रहोद्यमे । अभियोगोऽपराधादि अभिरूपः शिवे विष्णौ चन्द्रे कामे पुमान् स्मृतः ॥ ८४ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग अब्ज शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. धन्वन्तरि ( वैद्य) २. चन्द्र, ३. शंख, ४. निलवृक्ष (जल स्थित वेतस, बेंत ) । इस प्रकार पुल्लिंग अब्ज शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । अभ्र शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. अभ्रक धातु (अवरख) २. मेघ, ३. गगन ( आकाश ) और ४. मुस्ता (मोथा) । इस प्रकार अभ्र शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । अभियोग शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. अपराध ( गुनाह ) (आदि शब्द से फरियाद करना, मुकद्दमा चलाना वगैरह भी अभियोग कहलाता है) २ योजना ( कार्यक्रम ) ३. अभिग्रह ( युद्धादि में ललकारना - भर्त्सना) ४. उद्यम (उद्योग व्यवसाय) इस प्रकार अभियोग शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। अभिरूप शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १ शिव (शंकर) २. विष्णु (नारायण) ३. चन्द्र, और ४. काम (कामदेव) इस तरह अभिरूप शब्द के भी चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : पण्डिते रमणीये च कथितो वाच्यलिंगकः । अभिषंगस्तु शपथ - आक्रोशे च पराजये ॥ ८५ ॥ मिथ्यापवादे संश्लेषे भूतावेशे पुमान् मतः । नाकः स्वर्गेऽन्तरिक्षे च खड्गे बाणे च सायकः ।। ८६ ।। हिन्दी टीका - अभिरूप शब्द पण्डित और रमणीय (सुन्दर) अर्थों में वायलिंगक (विशेष्य निघ्न मुख्य अर्थानुसार लिंग वाला तीनों लिंग) माना जाता है । अभिषंग शब्द भी पुल्लिंग है और उसके छ अर्थ होते हैं - १ शपथ ( सौगन्ध - कसम खाना) २. आक्रोश (चिल्लाना - निन्दा करना) ३. पराजय ( हराना पराजय प्राप्त करना हार जाना ) ४. मिथ्याऽपवाद (झूठा आरोप कलंक) ५. संश्लेष (आलिंगन ) ६. भूतावेश ( ग्रहावेश-भूत लगना) । इस प्रकार अभिषंग शब्द के छह अर्थ जानना । नाक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. स्वर्ग, २. अन्तरिक्ष (आकाश मध्य) । सायक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. खड्ग (ढाल) २. बाण । इस तरह नाक शब्द के दो और सायक शब्द के भी दो अर्थ होते हैं । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवयाः। १८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-श्लोक शब्द मूल : श्लोकः पद्ये यशसि च लोकस्तु विष्टपे जने । जम्बुको वरुणे नीचे शृगालेपि स्मृतो बुधैः ॥ ८७ ।। हिन्दी टीका-श्लोकः शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. पद्य (छन्दोबद्ध) २. यश (कीर्ति) । लोक शब्द भी पुल्लिग है उसके भी दो अर्थ होते हैं--१. विष्टप (जगत्-भुवन) २. जन (जनता) । इस प्रकार श्लोक शब्द के और लोक शब्द के भी दो-दो अर्थ समझने चाहिए। जम्बुक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वरुण, २. नीच (अधम) और ३. शृगाल (सियार-गीदड़)। इस तरह जम्बुक के तीन अर्थ हैं। मूल : पृथुकश्चिपिटे पुंसि शावकेत्वभिधेयवत् । आलोको दर्शने द्योते बन्धु क्ति जयशब्दयो ।। ८८ ॥ आनकस्तु मृदंगे स्यात् भेर्यां पटहमेघयोः । अंक: क्रोडेऽपवादे च रेखाचिन्हविभूषणे ।। ८६ ॥ हिन्दी टीका-पृथुक शब्द चिपिट (पौंमा-चूरा) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु शावक (शिशु-बच्चा) अर्थ में अभिधेयवत् (वायरिंगक-विशेष्यनिघ्न) त्रिलिंगक माना जाता है। आलोक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. दर्शन (देखना) २. द्योत (प्रकाश) ३. वन्दी-उक्ति (भाट चारण की चाटूक्तिप्रशंसा) और ४. जय । आनक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ है -१. मृदंग, २. भेरी (पखावज) ३. पटह (ढक्का) ४. मेघ । इस प्रकार आनक शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। अंक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं--१. क्रोड (गोद) २. अपवाद (कलंक) ३. रेखा (लकीर) ४. चिन्ह, ५. विभूषण (अलंकार) । इस तरह अंक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। नाटकांगे चित्रयुद्ध समीपे स्थानदेहयोः । अर्कस्ताम्र भास्करे च स्फटिकेऽर्कदलेपि च ॥ ६० ।। कलंकश्चिन्हेऽपवादे कालायसमले स्मृतः । पुलाकोऽन्नावयवे रिक्तधान्ये ह्यविस्तरे ।। ६१ ॥ हिन्दी टीका-अंक शब्द के और भी छह अर्थ होते हैं - १. नाटकांग (नाटक का भाग) २. चित्रयुद्ध (आश्चर्यकारक संग्राम) अथवा चित्र और ३. युद्ध । ४. समीप (निकट) ५. स्थान और ६. देह (शरीर)। इस प्रकार अंक शब्द के ११ अर्थ समझने चाहिए। अर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. ताम्र (ताम्र धातु विशेष) २. भास्कर (सूर्य) ३. स्फटिक और ४. अर्कदल (आक का पता)। इस तरह अर्क शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। कलंक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. चिन्ह. २. अपवाद ३. कालायसमल (काला पत्थर का मल-जंग काट)। पुलाक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. अन्नावयव (भात वगैरह का एक दाना) २. रिक्तधान्ये (धान्य रहित खाली) ३. अविस्तर (संकुचित थोड़ा) इस तरह कलंक और पुलाक के तीन-तीन अर्थ हुए। करको दाडिमे पक्षिविशेषे च कमण्डलौ। वृश्चिकोऽष्ट्रमराशौ च शूककीठे च कर्कटे ॥ ६२ ॥ मूल : Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-करक शब्द | १९ हिन्दी टीका-करक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दाडिम (बेदाना) २. पक्षिविशेष, ३. कमण्डलु (पात्र विशेष)। वृश्चिक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं१. अष्टमराशि (वृश्चिक राशि) २. शूककोट (क्रीड़ा विशेष) ३. कर्कट (ककरा, कांकोर)। मूल : कोशातक: पटोल्यां च घोषके चिकुरेपि च । सोमवल्क: कट्फले च घबले खदिरे स्मृतः ॥ ६४ ॥ पिण्याकस्तिलकल्के च सिल्हकेपि प्रकीर्तितः । कौशिको नकुले शक्र व्यालग्राहे च गुग्गुलौ ।। ६५ ॥ हिन्दो टोका-कोशातक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं --१. पटोलो (परबल) २. घोषक (नेनुआ-घिउरा गलका) और ३. चिकुर (केश)। इस प्रकार कोशातक शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । सोमवल्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. कटफल (कायफल-जायफल) २. घबल (पाकर वृक्ष) और ३. खदिर (कत्था का वृक्ष) । इस प्रकार सोमवल्क शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । पिण्याक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. तिलकल्क (तिल का शेष भाग छिलका) २. सिल्हक (सिलाख्य गन्ध द्रव्य विशेष) लोबान । इस प्रकार पिण्याक शब्द के दो अर्थ सम ने चाहिए। कोशिक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. नकुल (न्यौला-सपनौर) २. शक्र (इन्द्र) ३. व्याल (सर्प), ४. ग्राह (मकर-गोह) और ५. गुग्गुलि (गुग्गूल)। इस तरह कौशिक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। मूल : उलूके कोशविज्ञ च विश्वामित्रपि कीर्तितः । आतङ्को रोग-सन्ताप-शङ्कासु मुरजध्वनौ ।। ६६ ॥ क्षुल्लकस्त्रिषु नीचेऽल्पे कनिष्ठे दुर्गतेऽपि च । आयुष्मतीन्दौ कर्पू रेऽगदे जैवातृक: सुते ।। ६७ ॥ हिन्दी टीका-कौशिक शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं --१. 'उलूक (उल्लू-घूक) २. कोशविज्ञ (कोश का जानकार) और ३. विश्वामित्र (ऋषि विशेष, जो कि क्षत्रिय होते हुए भी ब्रह्मर्षि माने जाते हैं)। इस तरह कौशिक शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझना चाहिए। आतंक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. रोग (व्याधि) २. संताप (पीड़ा) ३. शंका (सन्देह) और ४. मुरजध्वनि (पखाउज की आवाज)। इस तरह आतंक शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए। क्षुल्लक शब्द त्रिलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं --१. नीच (अधम) २. अल्प (थोड़ा) ३. कनिष्ठ (छोटा भाई) और ४. दुगत (दीन-दुःखी)। जैवातृक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. आयुष्मान् (चिरंजीव-दीर्घजीव) २. इन्दु (चन्द्रमा) ३. कपूर (कपूर) ४. अगद (नीरोग) और ५. सुत (पुत्र बालक) इस तरह क्षुल्लक शब्द के चार और जैवातृक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। मूल : वर्तकः पक्षिभेदे च तुरगस्य शफेपि च । पुण्डरीकं सिताम्भोजे श्वेतच्छत्रेऽगदान्तरे ॥ ६८ ॥ हिन्दी टीका-वर्तकः शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं --१. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) २. तुरगशफ (घोड़े का खुर, खरी)। नपुंसक पुण्डरीक शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सिताम्भोज (सफेद Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : ३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--पुण्डरीक शब्द कमल) २. श्वेतच्छत्र (सफेद छाता) और ३. अगदान्तर (अन्य रोग नहीं नीरोग) इस प्रकार वर्तक शब्द के दो और पुण्डरीक शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। पुण्डरीको गणधरे सहकारे गजज्वरे । कोषकारान्तरे व्याघ्र राजिले दिग्गजान्तरे ।। ६६ ।। कमण्डलौ कुष्ठभेदे तरौ दमनकाभिधे । शालावृकः शृगाले स्याद् वानरे कुक्कुरेपि च ॥१०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पुण्डरीक शब्द के दस अर्थ होते हैं-१. गणधर (गौतम वगैरह) २, सहकार (आम का विशेष वृक्ष) ३. गजज्वर (हाथी का विशेष बुखार) ४. कोषकारान्तर (अन्य कोषकार विशेष) ५. ध्याघ्र (बाघ) ६. राजिल (गनगुआरि साँप विषरहित दुमुखी सांप) ७. दिग्गजान्तर (दिग्गज हाथी विशेष) इसी प्रकार पुल्लिग पुण्डरोक शब्द के और भी तीन अर्थ हैं जैसे-८. कमण्डलु (पात्र विशेष) ६ कुष्टभेद (सफेद कुष्ठ रोग) और १० दमनक नाम का तरु (वृक्ष विशेष) इस तरह पुण्डरीक शब्द के कुल मिलाकर तेरह अर्थ जानना । शालावृक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ हैं - १ शृगाल (सियार-गीदड़) २. वानर (बन्दर) और ३. कुक्कुर (कुत्ता) भी। अलीकमप्रियेऽसत्ये स्वर्गे भाले नपुंसकम् । व्यलीकं पीडनेऽकार्ये वैलक्ष्याप्रिययोरपि ॥१०१॥ निष्कः पले च दीनारे वक्षःस्थलविभूषणे । अष्टाधिकशते स्वर्णकर्षाणां स्वर्णमात्रके ॥१०२।। हिन्दी टीका- अलीक शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं ---१. अप्रिय (कटु खराब) २. असत्य (झूठ) ३. स्वर्ग, ४. भाल (ललाट मस्तक)। इस तरह अलोक शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। ध्यलोक शब्द भी नपुंसक ही माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१. पीड़न (सताना) २. अकार्य (अनुचित कार्य, नहीं करने लायक) ३. वैलक्ष्य (निर्लज्जता) ४. अप्रिय (बुरा) भी। निष्क शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. पल (चार तोला का माप विशेष) २. दीनार (असर्फी, लाल) ३. वक्षस्थलस्य आभूषणं (छाती पर का अलंकार विशेष हार मोहर वगैरह) ४. स्वर्णकर्षाणाम अष्टाधिकशतम (१०८ असर्फी) और ५. स्वर्णमात्र (सोना मात्र को भी) निष्क कहते हैं। इस प्रकार निष्क शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : कल्को बिभीतके दम्भे पापे विट किट्टयोरपि । आरं मुण्डायसे कोणे पित्तल-प्रान्तभागयोः ॥१०३॥ हिन्दी टीका-कल्क शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी पांच अर्थ होते हैं१. बिभीतक (बहेड़ा) २. दम्भ (छल आडम्बर) ३. पाप, ४. विट् (विष्ठा) ५. किट्ट (काट जंग) नपुंसक । आर शब्द के चार अर्थ होते हैं -१. मुण्डायस (गोलाकार लोहा) २. कोण, ३. पित्तल और ४. प्रान्तभाग। इस प्रकार कल्क शब्द के पाँच और नपुंसक आर शब्द के चार अर्थ हुए। मूल : आरः कुजे वृक्षभेदे पित्तले च शनि ग्रहे । आरम्भ - उद्यमे दर्षे वध - आद्यकृतावपि ॥१०४॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-आर शब्द | २१ प्रस्तावनायां शैघ्ये चाभ्यादानेऽपि पुमानयम् । आराधनं साधने स्यात्पचने प्राप्ति-तोषयोः ॥१०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग आर शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कुज (मंगल ग्रह) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ३. पित्तल (पित्तल धातु) और ४. शनिग्रह (शनैश्चर) । आरम्म शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. उद्यम (उद्योग-व्यवसाय) २. दर्प (घमण्ड-अहंकार) ३. वध (मारना) ४. आकति (पहला यत्न अध्यवसाय) ५. प्रस्तावना (भूमिका) ६. शैध्य (जल्दी) और ७. अभ्यादान (प्रारम्भ) इस प्रकार सात हुए। आराधन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. साधन (सिद्धि का उपकरण) २. पचन (पकाना) ३. प्राप्ति और ४. तोष (खुशी)। मूल: आरोहस्तु गजारोहे वरस्त्रीश्रोणि दैर्घ्ययोः । परिमाणान्तरारोहनितम्बेषु समुच्छये ॥१०६।। आरोहणं समारोहे सोपानेऽङ कुरनिर्गमे । आर्तस्तु पीडितेऽसुस्थेऽप्यातिस्तु रोगपीडयोः ॥१०७॥ हिन्दी टीका-आरोह शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं- १. गजारोह (हाथी पर चढ़ना) २. वरस्त्री श्रोणि (युवती का नितम्ब) ३. दैर्घ्य (लम्बाई) ४. परिमाणान्तर (चौड़ाई) ५. आरोह (चढ़ना) ६. नितम्ब (चूतर) और ७. समुच्छ्रय (ऊँचाई) इस प्रकार सात हुए। नपुंसक आरोहण शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. समारोह (समारम्भ) २. सोपान (सीढ़ी पगथिया) और ३. अंकुरनिर्गम (अंकुर निकलना) । आर्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पीड़ित (सताया हुआ) २. असुस्थ (अस्वस्थ बीमार) । आति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. रोग (व्याधि-बीमारी) और २. पीड़ा (दुःख) इस प्रकार आर्त शब्द के तथा आति शब्द के भी दो-दो अर्थ हुए। मूल : धनुष्कोटावथाऽऽय॑स्तु संगते श्रेष्ठ पूज्ययोः । बुद्ध सत्कुलजाते च त्रिषु मित्रे प्रभो पुमान् ॥१०८।। आलानं बन्धने रज्जौ गजबन्धनदारुणि। आलिः पंक्तौ वयस्यायां सतौ च संततौ स्त्रियाम् ॥१०६।। हिन्दी टोका–धनुष्कोटि (प्रत्यंचा) को भी आति कहते हैं । आर्य शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ हैं – १. संगत (मैत्री) २. श्रेष्ठ (बड़ा) ३. पूज्य (आदरणीय) ४. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) किन्तु सत्कुलजात (उत्तम कुलोत्पन्न) अर्थ में आर्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष-स्त्री साधारण ही कुलीन हो सकता है इसलिए कुलीना स्त्री के लिये आर्या और कुलीन पुरुष के लिये 'आर्यः' एवं कुलीन आचरण के लिये 'आर्यम्' आचरणम् ऐसे प्रयोग हो सकते हैं अतः सत्कुलजात अर्थ में आर्य शब्द त्रिलिंग माना गया है। एवं मित्र अर्थ में भी आर्य शब्द त्रिलिग माना जाता है और प्रभु (राजः) अर्थ में पुल्लिग ही माना गया है। आलान नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. बन्धन (बांधना) २ रज्जु (रस्सी डोरी) ३. गजबन्धन (हाथी का बन्धन बेड़ी) और ४. दारु (लकड़ी)। आलि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. पक्ति (लाइन) २. वयस्या (सखी सहेली) ३. सेतु (बाँध) और ४. संतति (सन्तान पुत्रादि)। इस प्रकार आलान और आलि के चार-चार अर्थ हुए। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वृश्चिक शब्द मूल : पुमान् स्याद् वृश्चिके भृङ्ग त्रिषु स्याद् विशदाशये । आलोको दर्शने द्योते गवाक्षे वन्दि भाषणे ।।११०॥ आवर्तः सलिलभ्रान्तौ चिन्ता मेघाधिपान्तरे । राजावर्ताऽऽख्योपरत्ने पुमान् आवर्तनेपि च ॥१११॥ हिन्दी टीका-वृश्चिक राशि और वृश्चिक (बिच्छ्) अर्थ में तथा भृङ्ग (भ्रमर) अर्थ में आलि शब्द पुल्लिग माना जाता है किन्तु विशद आशय (स्पष्ट अभिप्राय) अर्थ में आलि शब्द त्रिलिंग समझना चाहिए। आलोक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दर्शन, २. द्योत (प्रकाश) ३. गवाक्ष (वारणाखिड़की) और ४. वन्विभाषण (भाट चारण का चाटु वाक्य) । आवर्त शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सलिल भ्रान्ति (पानी को भ्रमि-भवर) २. चिन्ता, ३. मेघाधिप (मेघ का राजा) को भी आवर्तक कहते हैं, ४. राजावर्त नाम का उपरत्न (रत्न विशेष) और ५. आवर्तन (घूमना) । इस तरह आलोक शब्द के चार और आवतं शब्द के पाँच अर्थ होते हैं । और आलि शब्द के सात अर्थ समझना चाहिए । मूल : आदानं ग्रहणे रोगलक्षणेऽश्वविभूषणे। आदीनवः पुमान् दोषे दुरन्त - क्लेशयोरपि ॥११२॥ आधिर्व्यसनप्रत्याशा मनःपीडासु बन्धके । आध्मातः संयते दग्धे वातरोगेपि शब्दिते ॥११३।। हिन्दी टोका-आदान शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. ग्रहण (लेना) २. रोगलक्षण (रोग का चिन्ह) ३. अश्वविभूषण (घोड़ा का आभूषण) । आदीनव शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दोष, २. दुरन्त (खराब परिणाम, नतीजा) और ३. क्लेश (तकलीफ)। आधि शब्द पुल्लिग थं होते हैं --१. व्यसन (आपत्ति) २. प्रत्याशा (आशा-इन्तजार करना) ३. मनःपीडा (मानसिक तकलीफ) और ४. बन्धक (प्रतिबन्धक, रोकने वाला)। आध्मात शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ हैं-१. संयत (संयमशील-संयमी) २. दग्ध (आग से तपा कर शोधा हुआ) ३. बातरोग (वायु का फसाद) और ४. शब्दित (शंखादि का शब्द)। आप्तः प्रत्ययिते प्राप्ते सम्बद्ध स्यात् त्रिलिंगकः । आप्तिाभे च सम्बन्धेऽप्याऽऽप्यमम्मयो ॥११४॥ आबन्धो भूषणे योक्त्रे बन्धन-स्नेहयोः पुमान् । आभोगे वरुणच्छत्रे परिपूर्णत्वयत्नयो ॥११५।। हिन्दी टीका-आप्त शब्द त्रिलिंग (पुल्लिग, स्त्रीलिंग, नपुंसक) है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. प्रत्ययित (विश्वस्त, प्रामाणिक) २. प्राप्त (मिल जाना) ३. सम्बद्ध (सम्बन्ध युक्त) । आप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. लाभ, २. सम्बन्ध (कनैक्शन-Connection)। 'अम्मय' जलमय वस्तु (जोत, हल के को आप्य कहते हैं । आबन्ध शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. भूषण (जेबर) २. योक्त्र पालों में बांधी जाने वाली रस्सी) ३. बन्धन, ४. स्नेह (प्रेम)। आभोग शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वरुणच्छत्र (वरुण देवता का छाता) २. परिपूर्णत्व और ३. यत्न (अध्यवसाय)। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-आमिष शब्द | २३ मूल : आमिषं मञ्जुलाकार-रूपादौ भोग्यवस्तुनि । लोभ-संचय - उत्कोच - संभोगे-मांसलाभयोः ॥११६।। लाभे कामगुणे रूपे भोजनेऽस्त्री प्रयुज्यते । आमोदः सुमहद् गन्धे हर्षे गन्धेऽतिदूरगै ॥११७।। हिन्दी टीका-आमिष शब्द नपुंसक है और उसके बारह अर्थ होते हैं-१. मञ्जुलाकार (सुन्दर आकृति) २. मञ्जुल रूपादि (सौन्दर्य वगैरह) ३. भोग्यवस्तु (भोग करने योग्य वस्तु) ४. लोभ, ५. संचय (संग्रह इकट्ठा करना) ६. उत्कोच (घूस लांच देना) ७. संभोग (विषय भोग) ८. मांस, ६. लाभ, उनमें लाभ और १०. काम-गुण, ११ रूप (सौन्दर्य) और १२. भोजन इन तीन अर्थों में आमिष शब्द पुल्लिग और नपुंसक माना जाता है । आमोद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सुमहद् गन्ध (अत्यन्त खुशबू) २. हर्ष (आनन्द) और ३. अतिदूरग गन्ध (अत्यधिक दूर तक जाने वाली खुशबू)। इस प्रकार आमिष शब्द के बारह और आमोद शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : आम्नाय - आगमे वंशे सम्प्रदाये कुलक्रमे । आयो धनागमे लाभे पुमान् स्त्रीगृहरक्षिणि ॥११॥ आयतिः प्रापणे दैर्घ्य भविष्यत्काल-संगयोः । आयत्ति शयने स्नेहे भविष्यत्काल दैर्घ्ययोः ॥११॥ हिन्दी टीका - आम्नाय शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं --१. आगम (वेद) २. वंश (कुल) ३. संप्रदाय (मजहब) और ४. कुलक्रम (वंश परम्परा) । आय शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं –१. धनागम (धन प्राप्ति) २. लाभ, ३. स्त्री, ४. गृह (घर) और ५. रक्षक (रक्षा करने वाला) आयति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रापण (प्राप्त करना) २. दैर्ध्य (लम्बाई) ३. भविष्यत्काल (आगामी काल) और ४. संग (संगति)। इसी प्रकार आयत्ति शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं- १. शयन (शयन करना, सोना) २. स्नेह (प्रेम) ३. भविष्यत्काल और ४. देयं (विस्तार)। इस तरह आयति और आयत्ति इन दोनों शब्दों के चार-चार अर्थ जानना। आङ- पूर्वक यम् धातु से क्तिन् प्रत्यय करने से आयति शब्द और आङ पूर्वक यत् धातु से क्तिन् प्रत्यय करने से आयत्ति शब्द बनता है। प्रभावे वासरे सीम्नि स्त्रियां शक्ति वशित्वयोः । आयोगो गन्धमाल्योपहारे व्यापार-रोगयोः ॥१२०॥ आकरः पुंसि सन्दोहे श्रेष्ठे खनौ बुधैः स्मृतः। आकर्षः शारिफलके देवने पाशके पुमान् ॥१२१॥ हिन्दी टीका-आयत्ति शब्द के और भी छह अर्थ होते हैं-१. प्रभाव (प्रभुत्व-आधिपत्य) २. वासर (दिन-वार) ३. सीमा (हद-अवधि) ४. स्त्री (महिला) ५. शक्ति (सामर्थ्य) और ६. वशित्व (अधीनता)। आयोग शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. गन्ध, २. माल्य (माला) ३. उपहार (भेंट) ४. व्यापार (उद्योग धन्धा) और ५. रोग (व्याधि)। आकर शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं.-१. सन्दोह (समूह) २. श्रेष्ठ (बड़ा पूज्य) ३. खनि (खान)। आकर्ष शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन मूल : Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - आकर्ष शब्द अर्थं होते हैं - १. शारिफलक (पाशा गोटी रखने का काष्ठ या कपड़े का चौपड़) २. देवन (जुआ खेलना ) ३. पाशक (गोटी ) । इस प्रकार आयोग शब्द के पाँच, आकर शब्द के तीन और आकर्ष शब्द के भी तीन अर्थ समझना । मूल : इन्द्रिये धनुरभ्यासवस्तुन्याकर्षणेऽपि च । आकल्पो मण्डने वेषे रोग- कल्पनयो पुमान् ॥। १२२ ।। आक्रन्दो रोदने नाथे भ्रातर्याह्वानमित्रयोः । ध्वनौ दारुण - संग्रामे पाष्णिग्राहात्परे नृपो ॥ १२३॥ हिन्दी टोका - आकर्ष शब्द के और भी तीन अर्थ हैं - १. इन्द्रिय (आँख वगैरह ) २. धनुरभ्यास वस्तु (धनुविद्या के अभ्यास करने का साधन) और ३. आकर्षण ( खींचना ) । इस प्रकार कुल मिलाकर आकर्ष शब्द के छह अर्थ समझना चाहिए। आकल्प शब्द भी पुल्लिंग ही है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. मण्डन (भूषण) २. वेष (पोशाक) ३. रोग ( व्याधि) ४. कल्पन ( कल्पना करना) । इसी तरह आनन्द शब्द भी पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ होते हैं - १. रोदन ( रोना, रोदन करना) २. नाथ (स्वामी मालिक) ३. भ्राता (भाई) ४. आह्वान (बोलाना ) ५. मित्र (दोस्त) ६. ध्वनि (आवाज) ७. दारुण संग्राम (घोर युद्ध लड़ाई) ८. पाणिग्राहनृप (पीछे से शत्रु पर आक्रमण - चढ़ाई करने वाला राजा) । इस प्रकार आकल्प शब्द के चार और आॠन्द शब्द के नौ अर्थ हुए। मूल : आखुश्चौरे - देव तालवृक्षे शूकर- उन्दुरौ । आग्रहो ग्रहणासक्त्योराक्रमेऽनुग्रहे पुमान् ॥ १२४॥ कुञ्जरगर्जिते । संमदे पुमान् ॥ १२५ ॥ आडम्बरस्तु पटहे तुर्ये आरम्भे पक्ष्मणि क्रोधे भुजंगे हिन्दी टीका - आखु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. चौर (तस्कर) २. देव (देवता) ३. ताल वृक्ष, ४. शूकर (शूकर-शूगर ) ५. उन्दुरु ( चूहा - उन्दर ) । इसी प्रकार आग्रह शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. ग्रहण ( ग्रहण करना लेना) २. आसक्ति (फँसावट, टेब) ३ आक्रम (आक्रमण चढ़ाई करना) और ४. अनुग्रह ( दया करना) । इसी तरह आडम्बर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं - १. पटह ( नगाड़ा ढक्का) २. तुयं (वाद्य बाजा विशेष ) अथवा तुर्य शब्द का अर्थ चतुर्थ ( चौथा ) भी होता है । ३. कुंजरगजित ( हाथी का चीत्कार चिंघाड़ना) ४. आरम्भ (प्रारम्भ करना) ५. पक्ष्म (आँख का पलक) ६. क्रोध (गुस्सा) ७. भुजंग (सर्प) और ८. संमद (हर्ष आनन्द) । इस तरह आखु शब्द के पाँच आग्रह शब्द के चार और आडम्बर शब्द के आठ अर्थ जानना । मूल : आयस्त्रिलिंगो धनिके विशिष्टेपि च वाच्यवत् । आतङ्कः पुंसि शंकायां सन्तापे मुरजध्वनौ ॥ १२६ ॥ आमयेज्वर आणिस्तु सीम्नऽध्यऽक्षाग्रकीलयोः । आत्मभूर्ब्रह्मण शिवे कन्दर्पे गरुडध्वजे ।।१२७॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - आढ्य शब्द | २५ हिन्दी टीका अय शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. धनिक (धनी) और २. विशिष्ट ( गरिष्ठ-श्रेष्ठ वगैरह ) यह आढ्य शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) होने से त्रिलिंग माना जाता है । इसी तरह आतङ्क शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. शङ्का (सन्देह ) २. सन्ताप ( पीड़ा ) ३. सुरज ध्वनि (पखावज - मृदंग की आबाज ) ४. आमय (रोग) और ५. ज्वर (बुखार) । इसी प्रकार आणि शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. सीमा (हद) २. अश्रि (नोंक) ३. अक्ष (पाशा जुआ गोटी ४. अग्र (अग्र भाग) ५ कील (खील काँटी) । इसी तरह आत्मभू शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१ ब्रह्म (परमेश्वर ) २. शिव (शंकर) ३. कन्दर्प (कामदेव ) और ४. गरुड़ध्वज (गरुड़ का ध्वज पताका । इस तरह आढ्य शब्द के दो, आतङ्क शब्द के पाँच, आणि शब्द के पाँच और आत्मभू शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । मूल : - आत्मा जीवे धृतौ बुद्धौ पुत्रे ब्रह्मणि मानसे । यत्ने स्वभावे मार्तण्डे परव्यावर्तनेऽनले ॥ १२८ ॥ आदर्शः पुंसिटीकायां दर्पणे प्रतिपुस्तके अष्टापदस्तु शरभे लूतायां कीलके कृमौ ॥ १२६ ॥ हिन्दी टीका - आत्मन् शब्द पुल्लिंग है और उसके ११ अर्थ होते हैं - १. जीव ( जीवात्मा) २. धृति (धैर्य) ३. बुद्धि (ज्ञान) ४. पुत्र ५. ब्रह्म (परमात्मा ) ६. मानस ( मन ) ७ यत्न (अध्यवसाय पुरुषार्थ वगैरह ) ८. स्वभाव मार्तण्ड (सूर्य) १०. परव्यावर्तन ( अन्य की व्यावृत्ति हटाना ) ११. अनले (आग) । आदर्श शब्द भी पुल्लिंग ही है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. टीका (व्याख्या विशेष) २. दर्पण (आइना) और ३. प्रतिपुस्तक ( पुस्तक की प्रति ) । अष्टापद शब्द भी पुल्लिंग ही है और उसके ४ अर्थ होते हैं - १. शरभ (पशु जाति विशेष) २. लूता (मकर) ३ कीलक (खील कांटी) और ४. कृमि (कीड़ा ) । इस प्रकार आत्मा शब्द के ११, आदर्श शब्द के तीन और अष्टापद शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : कैलासपर्वते चन्द्रमल्ल्यां शाखामृगे पुमान् । असत् मूर्खेऽविद्यमानेऽनित्येऽसाधौ च निष्फलें ॥१३०॥ निन्दिते जडवर्गेऽपि त्रिष्वसन् पुंसिवासवे । असितः कृष्णपक्षे च कृष्णवर्णे शनिग्रहे ॥ १३१ ॥ हिन्दी टीका - ५. कैलास पर्वत, ६. चन्द्रमल्ली (माली पात्र विशेष) और ७ शाखामृग ( वानर ) इन अर्थों में भी अष्टापद शब्द का व्यवहार होता है। इस तरह अष्टापद शब्द के ७ अर्थ हुए। असत् पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसक शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. मूर्ख (अनपढ़ ) २. अविद्यमान ३. अनित्य ( विनाशी) ४. असाधु ( अच्छा नहीं ) ५. निष्फल ( निरर्थक वगैरह ) ६ निम्बित (गर्हित- निन्दा का पात्र) और ७. जडवर्ग (अचेतन समूह) और पुल्लिंग असत् शब्द का वासव (इन्द्र) अर्थ होता है इस तरह असत् शब्द के आठ अर्थ हुए। अति शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कृष्णपक्ष (वदि) २. कृष्णवर्ण (काला रंग) और ३. शनिग्रह ( शनैश्चर) इस प्रकार असित शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल : अस्त्वव्ययमसूयायां पीडा - स्वीकारयोरपि । अहाऽव्ययं प्रशंसायां नियोगे निग्रहेऽसने ॥ १३२॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अस्तु शब्द अहहेत्यद्भूते खेदे परिक्लेश - प्रकर्षयोः । अहिविधुन्तुदे सूर्ये पथिके वृत्र - सर्पयोः ॥१३३।। हिन्दी टीका-अस्तु अब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. असूया (डाह-निन्दा-ईा) २. पीड़ा (तकलीफ-वेदना) और ३. स्वीकार (मजूर)। 'अह' शब्द भो अव्यय ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रशंसा (बड़ाई),२. नियोग (प्रेरणा-आज्ञा) ३. निग्रह (कैद करना, बांधना) और ४. असन (फेंकना) । असु क्षेपणे इस अस धातु से असन शब्द बनता है इसलिये असन शब्द का फेंकना अर्थ समझना चाहिये। अहह शब्द भी अव्यय ही माना जाता और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. अद्भुत (आश्चर्य-अचम्भा) २. खेद (दुःख शोक वगैरह) ३. परिक्लेश और ४. प्रकर्ष (उन्नति-प्रगति)। अहि शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं---१. विधुन्तुद (राहु) २. सूर्य. ३. पथिक राही) ४. वृत्र (राक्षस विशेष वृत्रासुर) और ५. सर्प । मूल : अहोऽव्ययं प्रशंसायां संबोधन - विषादयोः । न्यक्कार - विस्मयाऽसूया वितर्क-पदपूरणे ।।१३४।। हिन्दी टोका-अहो शब्द भी अव्यय ही माना जाता है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं१. प्रशंसा (बड़ाई) २. सम्बोधन (अपनी ओर पुकारना) ३. विषाद (ग्लानि-खेद वगैरह) ४. न्यक्कार (धिक्कार अपमान वगैरह) २. विस्मय (आश्चर्य-अचम्भा) ३. असू (तिरस्कार-ईर्ष्या डाह वगैरह) ४, वितर्क (कल्पना करना) और ५. पदपूरण (पाद पूर्ति) के लिये भी अहो शब्द का प्रयोग किया जाता है। मूल : अक्षं सौवर्चले तुत्थ - इन्द्रियेऽपि नपुंसकम् । अक्षो रुद्राक्ष-इन्द्राक्षे शकटे सर्पचक्रयोः ॥ १३५ ॥ पाशके गरुडे ज्ञाने ज्ञातार्थे रावणात्मजे । कर्ष-आत्मनि जातान्धे व्यवहारे बिभीतके ।।१३६ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक अक्ष शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सौवर्चल (मधुर लवण-मीठा नीमक सौंचर-संचर शब्द से व्यवहार किया जाने वाला नमक विशेष) २. तुत्य (छोटी इलायची नील गड़ी) ३. इन्द्रिय । और पुल्लिग अक्ष शब्द के पन्द्रह अर्थ होते हैं--१. रुद्राक्ष (रुद्राक्ष गुटका) २. इन्द्राक्ष (इन्द्र को आँख) ३. शकट (गाड़ी) : . सर्प, ५. चक्र (गाड़ी का पहिया, सुदर्शन चक्र वगेरह) ६. पाशक (पाशा चौपड़ की गोटी) ७. गरुड़, ८ ज्ञान (बुद्धि) ६. ज्ञातार्थ (ज्ञात पदार्थ) १०. रावणात्मज (रावण का पुत्र अक्षकुमार) ११. कर्ष (एक तोला भर, एक रुपया भर) परिमाण को कर्ष कहते हैं और अक्ष भी उसको कहते हैं। १२. आत्मा, १३. जातान्ध (जन्मान्ध) १४. व्यवहार और १५. विभौतक (बहेड़ा)। इस तरह कुल मिलाकर अक्ष शब्द के अठारह अर्थ जानना । आवापो वलये पात्रे परिक्षेपाऽऽलवालयोः । निम्नोन्नतावनौ भाण्डपचने शत्रु - चिन्तने ।। १३७ ॥ संयोजने पानभेदे बीजवापोग्रयज्ञयोः । आविर्भावः प्रकाशे स्यादु देवावतरणेऽपि च ॥ १३८ । मूल : Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -आवाप शब्द | २७ हिन्दी टीका-आवाप शब्द पुल्लिग है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं - १. वलय (गोलाकार, बल या चूड़ी वगैरह) २. पात्र, ३. परिक्षेप (परिवेष्टन बाँट वगैरह) ४. आलबाल (कियारी) ५. निम्नोन्नतावनि (ऊँची नीची भूमि, उबड़ खाबड़ जमीन) ६. भाण्डपचन (पकाने का भाण्ड विशेष) और ७. शत्रुचिन्तन (शत्रु के रहस्य की जानकारी प्राप्त करना) एवं ८. संयोजन (जोड़ना) ६. पानभेद (पान विशेष) १०. वीजवाप (बीज बोना, बीज वपन) और ११. उग्रयज्ञ (विशिष्ट याग-रुद्रयाग वगैरह)। आविर्भाव शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं- १. प्रकाश (उजियाला या प्रकट होना) २. देवावतरण (देवों का अवतार लेना)। मूल : आविर्भू तो जन्मयुक्त ऽवतीर्णे च प्रकाशते । आविर्भावविशिष्टे च त्रिलिंगोऽयमधिष्ठते ॥ १३६ ॥ आवेशो भूतसंचारेऽहंकाराभिनिवेशयोः । अपस्मारे तथाऽऽसक्तौ संरम्भेऽपि पुमान् स्मृतः ॥ १४० ॥ हिन्दी टीका-आविर्भूत शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. जन्म युक्त (जन्म लेने वाला जन्मा हुआ) २. अवतीर्ण (अवतार लेकर आया हुआ) ३ प्रकाशित (प्रकटित प्रकटीभूत) ४. आविर्भावविशिष्ट (आविर्भाव प्रकट से युक्त) और ५. अधिष्ठित (अधिष्ठान-युक्त)। आवेश शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भूतसंचार (भूतों का प्रवेश) २. अहंकार (घमण्ड) 3. अभिनिवेश (दुराग्रह) ४. अपस्मार (मृगी रोग हिस्टीरिया) ५. आसक्ति (फंसावट) और ६. संरम्भ (क्रोध. गुस्सा वगैरह)। आवेशनं शिल्पिगृहे भूतावेश - प्रवेशयोः । __ अमर्षे परिवेशे चाऽप्याशादिक् दीर्घतृष्णयोः ॥ १४१ ।। हिन्दी टीका-आवेशन शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. शिल्पिग्रह (कारीगरी का घर) २. भूतावेश (भूतों का शरीर में प्रवेश) ३. प्रवेश (प्रवेश करना) ४. अमर्य (सहन नहीं होना, बर्दाश्त नहीं कर सकना) ५. परिवेश (पोशाक वगैरह) ६. आशाविक (आशा लगाये रहना) और ७. दीर्घतष्णा (विशाल तृष्णा वगैरह) । इस प्रकार आवेशन शब्द के सात अर्थ समझना चाहिए। मूल : आशयः पनसे ऽजीर्णे ऽदृष्टेऽभिप्रायचेतसोः । कोष्ठागारे किम्पचाने विभवाधारयोरपि ॥ १४२ ॥ आश्रमो ब्रह्मचर्यादिचतुष्के कानने मठे । आश्रयो व्यपदेशे च सामीप्याधारयोरपि ॥ १४३ ॥ हिन्दी टोका-आशय शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. पनस (कटहल) २. अजीर्ण (अनपच, नहीं पचा हुआ) ३. अदृष्ट (भाग्य) ४. अभिप्राय, ५. चेतस् (चित्त) ६. कोष्ठागार (भण्डार) ७. किंपचान (कृपण-कङ्ग्स) ८. विभव (सम्पत्ति) और ६. आधार (अधिकरण)। इस प्रकार आशय शब्द के नौ अर्थ जानना । आश्रम शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. ब्रह्मचर्यादि चतुष्क, (ब्रह्मचर्य-गार्हस्थ्यवानप्रस्थ और संन्यास) २. कानन (वन-जंगल) और ३. मठ (मन्दिर)। इस तरह आश्रम शब्द के तीन अर्थ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--आश्रय शब्द समझना चाहिये । आश्रय शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. व्यपदेश (व्यवहार) २. सामीप्य (नजदीक) ३. आधार (आलम्बन)। इस तरह आश्रय शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिये। मूल : राज्ञां गुणान्तरे गेहे पुंसि संश्रयणेऽपि च । आसंगं क्लीबमासक्तौ सौराष्ट्रमृदिसन्तते ।। १४४ ॥ आसत्ति: संगमे लाभे पदसन्निधिकारणे। आसनं कुञ्जरस्कन्धदेशे यात्रानिवर्तने ॥ १४५ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग आश्रय शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. राज्ञांगुणान्तर (राजाओं का गुण विशेष) २. गेह (घर) और ३. संश्रयण (आश्रयण करना)। इस तरह कुल मिलाकर आश्रय शब्द के . छह अर्थ समझना चाहिए । नपुसक आसङ्ग शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. आसक्ति (फंसावट) २. सौराष्ट्रमृद् (सौराष्ट्र की मिट्टी) और ३. सन्तत (हमेशा लगातार) । इस तरह आसङ्ग शब्द के तीन अर्थ समझना। आसक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. संगम (मिलाप-मिलन) २. लाभ और ३. पदसन्निधिकारण (सहकारि कारण) जैसे शाब्द बोध में शक्ति ज्ञान को सहकारि कारण माना जाता है। न्यायशास्त्र में इसका विवेचन किया गया है। आसन शब्द नपंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं -१.५ञ्जरस्कन्धदेश (हाथी का हौदा-पृष्टास्तरण कुथ) और २. यात्रा निवर्तन (यात्रा नहीं करना, बैठ जाना)। मूल : राज्ञां गुणान्तरे पीठे योगांगेऽपि नपुंसकम् । आसनो नाजीवकद्रौ स्यात् स्त्रियां विपणौ स्थितौ ॥ १४६ ।। आसन्दी लघुखट्वायां नासन्नोनिकटे त्रिषु । आसारो धारा सम्पात सैन्यव्याप्तौ सुहृबले ॥ १४७ ।। हिन्दी टोका-१. राज्ञांगुणान्तरे राजाओं का शत्रु के आक्रमण होने पर दुर्ग किला वगैरह के भूगर्भ (सुरंग) में जाकर छिप जाने को भी आसन कहते हैं (षड्गुणाः आसनं द्वधमाश्रयः) इत्यादि। इसी प्रकार २. पीठ (पाट चौकी वगैरह) को भी आसन कहते हैं। और ३. योगाङ्ग (योग सिद्धि के लिए किया जाने वाला पद्मासन वगैरह) को भी आसन कहते हैं। इस तरह नपुंसक आसन शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिये । किन्तु पुल्लिग आसन शब्द को १. जीव कद्र (वन्धूक पुष्प दोपहरिया फूल का वृक्ष) अर्थ होता है और स्त्रीलिंग आसन शब्द का १. विपणि (दुकान) अर्थ होता है एवं २. स्थिति (बैठना) भी अर्थ होता है । इस प्रकार आसन शब्द के कुल आठ अर्थ समझना चाहिये । आसन्दी शब्द स्त्रीलिंग है उसका एक ही है -१. लघ खट्वा (छोटी चारपाई कुरसी वगैरह) और आसन्न शब्द निकट अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पूरुष, स्त्री या कोई भी वस्तु निकटवर्ती हो सकते हैं इसलिये तदनुसार ही विशेष्य निघ्न होने से आसन्नः पुरुषः, आसन्ना स्त्री और आसन्न वस्तु इस प्रकार तीनों लिंगों में प्रयोग हो सकता है। आसार शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं ---१. धारासंपात (मूसलधार वर्षा) २. संन्य ज्याप्ति (अधिक सेना का जमावट) और ३. सुहृद्बल (मित्र का बल–सेना) इस प्रकार आसार शब्द के तीन अर्थ हैं। . मूल : आस्कन्दनं शोषणेऽपि तिरस्कारे रणे त्रिषु । आस्था स्त्री यत्न आस्थानेऽपेक्षाऽऽलम्बनयोरपि ॥ १४८ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-आस्कन्दन शब्द | २६ आस्पदं प्रभुता कृत्यस्थानेषु स्यान्नपुंसकम् । आहतो गुणिते ज्ञाते मिथ्योक्तताडिते त्रिषु ॥ १४६ ॥ हिन्दी टोका-आस्कन्दन शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शोषण (शोषण करना, सुखाना) २. तिरस्कार (अपमान) और ३. रण (संग्राम युद्ध लड़ाई)। आस्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. यत्न (उद्यम-अध्यवसाय) २. आस्थान (सभा मण्डप) ३. अपेक्षा (प्रतीक्षाइन्तजार) और ४. आलम्बन (सहारा) । इस प्रकार आस्कन्दन शब्द के तीन और आस्था शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये । आस्पद शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रभुता (सामर्थ्य) २. कृत्य (कर्तव्य) और ३. स्थान (जगह) । आहत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ हाते हैं-१. गुणित (गुणा किया हुआ) २. ज्ञात (जाना हुआ) ३. मिथ्योक्त (झूठा कहना) और ४. ताडित (आघात किया हुआ)। इस प्रकार आस्पद शब्द के तीन और आहत शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये। आह्निक भोजने नित्यकृत्य - ग्रन्थविभागयोः । आक्षेपो निन्दने काव्यालंकारे भत्सने पुमान् ॥ १५० ॥ निन्दक व्याधयोस्त्रिष्वाक्षेपको नाऽनिलाऽऽमये । इज्यादानेऽध्वरे संगे कुट्टन्यां गविपूजने ॥ १५१ ।। हिन्दी टीका-आह्निक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भोजन, २. नित्य कृत्य (दैनिक कार्य सन्ध्यावन्दन सामायिक वगैरह) और ३. ग्रन्थ विभाग (ग्रन्थ का एक हिस्सा भाग वगैरह) । आक्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. निन्दन (निन्दा करना) २. काव्यालंकार (काव्य का अलंकार विशेष) और ३. भर्सन (फटकारना, भर्त्सना करना) इस प्रकार आह्निक शब्द के तथा आक्षेप शब्द के तीन-तीन अर्थ होते हैं । आक्षेपक शब्द १. निन्दक तथा २. व्याध (व्याधा) इन दो अर्थों में त्रिलिंग माना जाता जाता है किन्तु १. अनिल (पवन-वायु) और २. आमय (रोग) इन दो अर्थों में ना (पुल्लिग) ही माना जाता है । इज्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. दान, २. अध्वर (यज्ञ) ३. संग (संगति) ४. कुट्टनी, ५. गो, और ६. पूजन । इस प्रकार आह्निक शब्द के तीन एवं आक्षेप शब्द के भी तीन और आक्षेपक शब्द के चार तथा इज्या शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये । मूल : इडा भूमौ गवि स्वर्गेवाङ नाड्योबुंधयोषिति । हेतौ प्रकारे प्रकाश इति प्रकरणेऽव्ययम् ॥ १५२ ॥ आदौ समाप्तौनिदर्शे परकृत्यनुकर्षयोः । त्रिष्त्विरः क्रू रकृत्ये दुविधेऽध्वग - नीचयोः ॥ १५३ ।। हिन्दी टीका- इडा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भूमि (पृथ्वी) २. गो (गायपृथ्वी वगैरह) ३. स्वर्ग, ४. वाक् (वाणी) ५. नाडी (धमनी नस) और ६. बुधयोषित् (बुद्धिमती स्त्री)। इति शब्द अव्यय है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. हेतु (कारण) २. प्रकार (सदृश-तरह) ३. प्रकाश, ४. प्रकरण (अवसर वगैरह) ५. आदि, ६. समाप्ति, ७. निदर्श (दृष्टान्त निर्देश) ८ परकृति (पश्चात्कालिक कृति कार्य वगैरह) और ६. अनुकर्ष (पीछे से आगे लाना वगैरह) । इत्वर शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. फरकृत्य (कठोर कार्य दुष्ट कार्य, वगैरह) २. दुर्विध (खराब भाग, दुर्भाग्य वगैरह) ३. अध्वग Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-इद्ध शब्द (राही पथिक) ४. नीच (अधम) । इस प्रकार इडा शब्द के छह तथा इति शब्द के नौ और इत्वर शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : इद्ध नपंसकं दीप्तौ विस्मयाऽऽतपयोरपि । त्रिषु स्यान्निर्मलेऽपीघ्ममग्नि दीपनदारुणि ॥ १५४ ।। इनो नृपान्तरे सूर्ये प्रभौ पत्यावपीष्यते। इन्दिन्दिरो द्विरेफः स्यादिन्दिरा मन्दिरे हरौ ॥ १५५ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक इद्ध शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. दीप्ति (प्रकाश लाइट ज्योति वगैरह) २. विस्मय (आश्चर्य-अचम्भा) और ३. आतप (तड़का-धूप-ताप)। किन्तु निर्मल (मल रहित-स्वच्छ) अर्थ में इद्ध शब्द त्रिलिंग माना जाता है । इध्म शब्द भी त्रिलिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं१. अग्निदीपन (आग का सुलगना, ज्वाला) और २. दारु (लकड़ी-काष्ठ)। इन शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. नृपान्तर (राजा-विशेष) २. सूर्य, ३. प्रभु (मालिक स्वामी) और ४. पति (स्वामी)। इन्दिन्दिर शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. द्विरेफ (भ्रमर-भौंरा) २. इन्दिरामन्दिर (लक्ष्मी गृह) और हरि (भगवान् विष्णु वगैरह) । इस तरह इद्ध शब्द के चार एवं इध्म शब्द के दो तथा इन शब्द के चार और इन्दिन्दिर शब्द के दो अर्थ होते हैं ऐसा जानना चाहिये ।। मूल : इन्दुः सुधांशौ कर्पू र इन्दुरोऽपि च मूषिके । इन्द्रः पुमान् देवराजे कुटजे परमेश्वरे ॥ १५६ ।। उपद्वीपान्तरे सूर्ये रजन्यामन्तरात्मनि । इन्द्रकोषस्तुनि! हे पर्यङ्कऽपि तमङ्गके ॥ १५७ ॥ हिन्दी टीका-इन्दु शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. सुधांशु (चन्द्रमा) २. कर्पूर (कपूर) । इन्दुर शब्द भी पुल्लिग ही है और उसका मूषिक (चूहा-उन्दर) अर्थ होता है। इसी प्रकार इन्द्र शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. देवराज (इन्द्र) २. कुटज (पुष्प विशेष, जूही) ३. परमेश्वर (परमात्मा) ४. उपद्वीपान्तर (छोटा द्वीप विशेष) ५. सूर्य, ६. रजनी (रात) और ७. अन्तरात्मा (जीवात्मा का साक्षी) । इन्द्रकोष शब्द भी पुल्लिग हो माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते है-१. नियूंह (लस्सा गोंद खुटी पुष्प विशेष वगैरह) और २. पयंक (चारपाई-पलंग) और ३. तमङ्गक (प्राणी विशेष क्षद्र-जीव) । इस प्रकार इन्दु शब्द के दो, इन्दुर शब्द का एक, इन्द्र शब्द के सात और इन्द्रकोष शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल : इन्द्राणी सेन्दुवारे स्याद् दुर्गायां मातृकान्तरे । शची स्त्रीकरण-स्थूल - सूक्ष्मैलासु प्रयुज्यते ॥ १५८ ।। इरा भूमौ सरस्वत्यां वाक्ये सलिल-मद्ययोः । कश्यप स्त्रीविशेषेऽपि गोभूवाक्येष्विलास्त्रियाम् ॥ १५६ ।। हिन्दी टीका-इन्द्राणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. सेन्दुवार (पुष्प-विशेष निर्गुडी वगैरह) २. दुर्गा (पार्वती) ३. मातृकान्तर (मातृका विशेष) ४. शची (इन्द्र की पत्नी) ५. स्त्रीकरण Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित इषीका शब्द | ३१ (स्त्री विशेष बनाना ) ६. स्थूलएला (बड़ी इलाइची ) ७. सूक्ष्मला (छोटी इलाइची ) । इरा शब्द स्त्रीलिंग ही है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. भूमि (पृथ्वी) २. सरस्वती, ३. वाक्य (पद समूह) ४. सलिल (पानी, जल) ५. मद्य ( शराब मदिरा) ६. कश्यपस्त्री विशेष ( कश्यप की धर्मपत्नी ) । इसी प्रकार इला शब्द भी स्त्रीलिंग ही है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. गो ( पृथ्वी- गाय वगैरह ) २. भू (पृथ्वी) और ३. वाक्य । इस तरह इन्द्राणी शब्द के सात तथा इरा शब्द के छै तथा इला शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : sutar तूलिका - काशतृण - हस्त्यक्षिगोलके । इष्टं यथेप्सिते क्लीबं संस्कारे यज्ञकर्मणि ॥ १६० ॥ इष्टिर्यागेऽभिलाषेऽपि श्लोक संग्रहणे स्त्रियाम् । ईति: प्रवासे स्त्री डिम्बकृष्युपद्रवषऽकयोः ।। १६१ ।। हिन्दी टीका - इषीका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. तूलिका (ब्रश-कूंची ) २. काशतृण (काश डाभ का घास मूंज वगैरह ) और ३. हस्त्यक्षिगोलक (हाथी की आँख की पुतली, कनी • निका) । इष्ट शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. यथेप्सि (मनोभिलषित वस्तु) २. संस्कार और ३. यज्ञकर्म (याग क्रिया) । इष्ट शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तोन अथं होते हैं१. याग (यज्ञ) २. अभिलाषा ( इच्छा) और ३. श्लोकसंग्रह (श्लोकों का संग्रह ) । इति शब्द भी स्त्रीलिंग है। और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. प्रवास (परदेश गमन ) २ डिम्ब (बच्चा) और ३. कृष्युपद्रवषड्क ( १. अति वृष्टि, २. अनावृष्टि, ३. चूहे का उपद्रव, ४ शलभ-टिड्डी, ५. शुक (पोपट) और ६. अत्यासन्न राजा (राजा का आक्रमण ) ये छह कृषि खेती के उपद्रव कहे गये हैं (अतिवृष्टिरनावृष्टि षिकाः शलभाः शुकाः (खगाः ) अत्यासन्नाश्च राजान षडेता ईतयः स्मृताः एवं स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैताः इतयः स्मृताः ऐसा भी पाठ आता है) । इस तरह इषीका शब्द के भी तीन एवं इष्ट शब्द के भी तीन तथा इष्टि शब्द के भी तीन और ईति शब्द के भी तीन अर्थ हुए । मूल : ईशा लांगलदण्डे स्त्री दुर्गायामपि कीर्त्यते । ईश्वर: शिव - कन्दर्प केशवैश्वर्यशालिषु ।। १६२ ॥ ईश्वरा पार्वती लक्ष्मी-सरस्वत्यादि शक्तिषु । उग्रः केरलदेशेऽपि शोभाञ्जनतरौ शिवे ।। १६३ ।। हिन्दी टीका - ईशा ( ईषा) शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. लाङ्गलदण्ड (हल को पकड़ने का दण्ड विशेष - लागनि) और २. दुर्गा (पार्वती) को भी ईशा कहते हैं । ईश्वर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. शिव (शङ्कर) २. कन्दर्प (कामदेव ) ३. केशव (विष्णु) और ४. एश्वर्यशाली (ऐश्वर्य युक्त) । इसी प्रकार ईश्वरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. पार्वती (महाकाली) २. लक्ष्मी (महालक्ष्मी) और ३. सरस्वती ( महासरस्वती) । ४. आदिशक्ति से ऐन्द्री - ब्राह्मी वैष्णवीमाहेश्वरी - नारसिंही- कौमारी - वाराही वगैरह शक्ति लिए जाते हैं । उग्र शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. केरलदेश (बरार देश के पास केरल देश विशेष) २. शोभांजनतर (शोभावर्द्धक अञ्जन का वृक्ष (विशेष) और ३. शिव (शङ्कर ) । इस तरह ईशा ( ईषा) शब्द के दो एवं ईश्वर शब्द के चार तथा ईश्वरा शब्द के भी चार और उग्र शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-उग्रगन्ध शब्द मूल : उग्रगन्धस्तु लशुने चम्पकेऽर्जकपादपे। ___ कटफले च पुमानुक्तस्त्रिषुतूत्कटगन्धिनि ॥ १६४ ॥ हिन्दी टीका-उग्रगन्ध शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. लशुन (लहसुन) २. चम्पक (चम्पा पुष्प) ३. अर्जकपादप (सफेद बवई पर्णास) और ४. कट फल (कायफल जायफल)। किन्तु उत्कट गन्ध (अत्यन्त गन्ध युक्त) अर्थ में उग्रगन्ध शब्द त्रिलिंग है। मूल : उग्रगन्धाऽजगन्धायां यवान्यां चिक्किकौषधौ । वचायामजमोदायामुग्रगन्धा स्त्रियां मता ॥ १६५ ।। उग्रा वचायां धान्याके उग्र जाति स्त्रियामपि । तीव्र स्वभावयोषायां यवान्यां छिक्किकौषधे ॥ १६६ ।। हिन्दी टीका-उग्रगन्धा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अथ होते हैं--१. अजगन्धा (पोरईशाक विशेष पोई-बवई) २. यवानी (जमाइन-अजमाइन) ३. छिविकोकषध (छींक कराने वाला औषध विशेष) ४. वचा (घडवच-वच नाम का औषध विशेष) और ५. अजमोदा (अजमाइन)। इस प्रकार उग्रगन्धा शब्द के पाँच अर्थ हुए । उग्रा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं -१. वचा (वच) २. धान्याक (कंजी) ३. उग्रजातिस्त्री (शूद्र की स्त्री और क्षत्रिय के पुरुष से उत्पन्न स्त्री सन्तान) ४. तीवस्वभाव योषा (उग्र कठोर स्वभाव वाली स्त्री) ५. यवानी (अजमाइन) और ६. छिक्किकोषध (छिक्का-छींक कराने वाली औषध विशेष) । इस प्रकार उग्रगन्धा शब्द के पांच और उग्रा शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। उचितं विदिते न्यस्ते ग्राह्ये परिमितेयुते । उच्चता चक्रला गुञ्जाचर्यादम्भेषु कीर्तिता ॥ १६७ ॥ भूम्यामलक्यां नादेयी लशुनान्तरयोः स्त्रियाम् । उच्छ्रितं त्रिषु संजाते समुन्नद्ध-प्रवृद्धयोः ॥ १६८ ॥ हिन्दी टीका-उचित शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. विदित (ज्ञात) २. न्यस्तस्थापित (रक्खा हुआ) ३. ग्राह्य (ग्रहण कर लेने लायक) ४. परिमित (सीमित माप किया हुआ) और ५. युत (युक्त)। उच्चता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. च कला (मोथा घास) २. गुंजा (करजनी) ३ चर्या (सेवा कार्य) और ४. दम्भ (आडम्बर) इस तरह उचित शब्द के पाँच और के आठ अर्थ समझना चाहिये। जिनमें बाकी चार अर्थ अग्रिम लोक में कहे जाते हैं -- ५. भूमि (जमीनपृथ्वी) ६. अलकी (ललाटिका) ७. नादेयी (भुई जामुन) और ८. लशुनान्तर (लशुन विशेष)। इस प्रकार उच्चता शब्द के आठ अर्थ हुए । उच्छ्रित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. संजात (उत्पन्न) २. समुन्नद्ध (सम्बद्ध सन्नद्ध तत्पर वगैरह) और ३. प्रवृद्ध (बढ़ा हुआ ऊँचा)। इस तरह उच्छ्रित शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये। मूल : उच्चेत्यक्त ऽथोडुपोऽस्त्री मेलके चन्दिरे पुमान् । उत्कटविषमे तीव्र मत्ते त्रिषु गुडत्वचित् ॥ १६६ ॥ मूल: Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उडुप शब्द | ३३ उत्कटो मद संजातमदकुञ्जरयोः शरे । उत्कण्ठा-कलिका-हेला-वीचिषूत्कलिका स्त्रियाम् ॥ १७० ॥ हिन्दी टीका---४. उच्च (ऊँचा) और ५. त्यक्त (छोड़ा हुआ) अर्थ भी उच्छित शब्द के होते हैं। अथ उडुप शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. मेलक (मिलन-मिलाप कराने वाला) और २. चन्दिर (चन्द्रमा) । इन दोनों अर्थों में उडुप शब्द पुल्लिग माना जाता है । त्रिलिंग उत्कट शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. विषम (कठिन परिस्थिति) २. तीव्र (अत्यन्त घोर) ३. मत्त (उन्मत्त पागल) और ४. गुडत्वच् (दाल चीनी काठी, जिसके छिलके मीठे होते हैं। पुल्लिग उत्कट शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मद (नशा) और २. संजातमदकुंजर (मतवाला हाथी जिसको मद उत्पन्न हो गया है) और ३. शर (बाण)। उत्कण्ठा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. उत्कण्ठा (उत्सुकता) २. कलिका (कली कोरक ३ हेला (इच्छा विशेष) और ४. वीचि (तरंग-लहरी) एवम् उत्कलिका शब्द के इस प्रकार -चार अर्थ होते हैं। मूल : उत्तालो मर्कटे श्रेष्ठे कराल त्वरितोत्कटे । उत्थानं पौरुषे युद्धे सैन्ये पुस्तक उद्गमे ॥१७१॥ वास्त्वन्ते हर्ष उद्योगो गात्रोत्तोलन-चैत्ययोः । मलोत्सर्गेऽङ्गने तन्त्रे सन्निविष्टेऽपि दृश्यते ॥१७२।। हिन्दी टीश-उत्ताल शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं- १. मर्कट (वानर बन्दर) २. श्रेष्ठ (अच्छा) ३ कराल (घोर) ४ त्वरित (शीघ्र जल्दी और ५ उत्कट (तीव्र)। उत्थान शब्द नपुंसक है और उसके १४ अर्थ होते हैं --१. पौरुष (पुरुषार्थ) २. युद्ध (संग्राम लड़ाई) ३. सैन्य (सेना समूह) ४. पुस्तक, ५. उद्गम (प्रादुर्भाव ६. वास्त्वन्त (वासा का अन्त भाग) ७. हर्ष (आनन्द) ८. उद्योग (व्यवसाय उद्यम) ६. गात्रोत्तोलन (शरीर को ऊपर उठाना) १०. चैत्य (जैन मन्दिर/बौद्ध स्तूप) ११. मलोत्सर्ग (मल-विष्ठा करना) १२. अंगन (प्रांगण अंगना) १३. तन्त्र (व्यवस्था नियम वगैरह) १४. सन्निविष्ट (सन्निवेश किया गया)। इस तरह उत्ताल शब्द के पांच और उत्थान शब्द के १४ अर्थ समझना चाहिए। मूल : उत्पलं नीलकमले कुष्ठौषध - हिमाब्जयोः । पुष्पे कुवलये क्लीबमांसशून्ये त्रिलिङ्गकम् ।।१७३।। उत्प्रेक्षाऽनवधाने च काव्यालंकरणान्तरे । उत्सर्गोवर्जने त्यागे सामान्यविधि - दानयोः ।।१७४॥ हिन्दी टोका-नपुंसक उत्पल शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. नीलकमल (नीला कमल) २. कुष्ठीषध (कुष्ठ रोग को औषध-दवा) ३. हिमाब्ज (हिमकमल-श्वेतकमल) ४. पुष्प (फूल) ५. कुवलय (सामान्य कमल या श्वेत कमल) किन्तु मांस-शून्य अर्थ में उत्पल शब्द त्रिलिंग माना जाता है इस तरह उत्पल शब्द के छह अर्थ समझना चाहिए। उत्प्रेक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं- १. अनवधान (असावधान विशेष ज्ञान रहित) २. काव्यालंकरणान्तर (काव्यालंकार विशेष)। उत्सर्ग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं १. वर्जन (छोड़ना) २ त्याग (त्याग करना, दान देना) ३. सामान्य विधि (साधारण विधि - जनरल) और ४. दान (दान देना) इस तरह उत्प्रेक्षा शब्द के दो और उत्सर्ग शब्द के ४ अर्थ होते हैं ऐसा समझना चाहिए। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--उत्साह शब्द मूल : उत्साह उद्यमे सूत्रे कल्याणे ध्रुवकान्तरे । क्षेपणं तालवृन्ते स्याद् धान्यमदनवस्तुनि ॥१७५॥ ऊर्ध्वप्रक्षेपणे क्लीवं पणे षोडशकेऽपि च । उदन्तः पुंसि वृत्तान्ते साधो स्याद् वृत्तियाजने ॥१७६।। हिन्दी टीका-उत्साह शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. उद्यम (व्यवसाय) २. सूत्र (योजना) ३. कल्याण (मंगल) और ४. ध्रुवकान्तर (ध्रुव) । क्षेपण शब्द नपुंसक है-उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. तालवृन्त (पंखा) २. धान्यमर्दन वस्तु (धान-डांगर को समेटने का साधन फरुआ-काष्ठ निर्मित पात्र विशेष) ३. ऊर्ध्वप्रक्षेपण (ऊपर की ओर फेंकना) और ४. षोडश पण (सोलह पैसा-चार आने अथवा पच्चीस नये पैसे का सिक्का) उदन्त शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ वृत्तान्त (समाचार) २. साधु (परहितकारक) और ३. याज नवृत्ति (याग कराने की वृत्ति जीविका पौरोहित्यादि क्रिया)। इस तरह उत्साह शब्द के चार एव क्षेपण शब्द के भी चार और उदन्त शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : उदयो मंगले दीप्तावुदयाद्रौ समुन्नतौ। उदर्क आगामिकालफले मदनकण्टके ॥१७७।। हिन्दो टोका-उदय शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मंगल, २. दीप्ति (प्रकाश) ३. उदयाद्रि (उदयाचल पहाड़) और ४. समुन्नति (उन्नति करना) । इसी प्रकार उदर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ आगामिकालफल (भविष्य काल में होने वाला फल-परिणाम) और २. मदनकण्टक (धतूरे का काँटा)। मूल : त्रिषूदात्तो दयायुक्त हृद्ये महति दातरि । त्यागिन्यप्यथ दानेऽपि स्वर वाद्यान्तरे पुमान् ॥१७८।। उदान उदरावर्ते पक्ष्म सर्पविशेषयोः । पुलिंगोनाभिदेशे स्यात् कण्ठदेशस्थ मारुते ।।१७६।। हिन्दी टीका -त्रिलिंग उदात्त शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. दयायुक्त (दयालु) २ हृद्य (मनोहर) ३. महान् (विशाल बड़ा। ४. दाता (दान देने वाला) ५. त्यागी (त्याग करने वाला) और ६. दान । किन्तु पुल्लिग उदात्त शब्द का १. उदात्त स्वर और २ वाद्यान्तर (वाद्य विशेष) इस प्रकार दो अर्थ समझने चाहिए। उदान शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. उदरावर्त (उदर की भ्रमि-भंवर कुक्षि का आवर्त) २ पक्ष्म (पलक) ३. सर्पविशेष ४. नाभिदेश (नाभिस्थान) और ५. कण्ठदेशस्थमारुत (गले में स्थित पवन) । इस तरह उदान शब्द के पांच अर्थ जानना। मूल : उदारो दातृ महतो दक्षिणेऽपि त्रिलिङ्गकः । उदास्थितः पुमान् नष्टसंन्यास-द्वारपालयोः ॥१८०॥ अध्यक्षे गूढपुरुषेऽथोद्गारः कण्ठगजने । शब्द उवमने चाथोद्ग्राहो विद्याविचारणे ॥१८१॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उदार शब्द | ३५ हिन्दी टीका-उदार शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं. १. दाता (दानशील, देने वाला) २. महान और ३. दक्षिण (सरल सीधा स्वभाव वाला) इस तरह उदार शब्द के ३ अथ जानना उदास्थित शब्द भी पुल्लिग है और उसके ४ अर्थ होते हैं १. नष्ट संन्यास (उदासीन) २. द्वारपाल (द्वार पर रहने वाला सेवक ३. अध्यक्ष (मालिक) और ४. गढ पुरुष (गुप्तचर-सी. आई.डी.)। इस तरह उदास्थित शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । इसी प्रकार उद्गार शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. कण्ठगजन (डकारना) २ शब्द (आवाज)। इसी प्रकार उद्ग्राह शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं १. उद्धन (उल्टो-करना) और २. विद्याविचारण (विद्या सम्बन्धी विचार चर्चा)। इस तरह उद्गार शब्द के २ और उद्ग्राह शब्द के भी दो अर्थ हुये। मूल : उद्घाटनं घटीयन्त्र उत्तोलन - विकासयोः । उद्घातो मुद्गरे तुङ्गारम्भयोः समुपक्रमे ॥१८२॥ शास्त्रे ग्रन्थपरिच्छेदे चरणस्खलने पुमान् । उद्दानं वाडवे चुल्ल्यां बंधने मध्यलग्नयोः ॥१८३॥ हिन्दी टीका-उद्घाटन शब्द नपुंसक है उसके तीन अर्थ होते हैं-१. घटी यन्त्र (कंए से पानी निकालने का साधन-रेहट) २. उत्तोलन तोलना) ओर ३. विकास (उद्योग प्रगति वगैरह)। उद्घात शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. मुद्गर २. तुंग (ऊँचा) ३. आरम्भ ४. समुपक्रम (तैयारी) ५. शास्त्र ६. ग्रन्थ परिच्छेद (पुस्तक का एक-एक भाग) और ७ चरण स्खलन (गिरना-पांव का फिसलना)। उद्दान शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं --१. वाडव (घोड़ा) २. चुल्ली (चूल्हा-सिगड़ी) ३. बन्धन (बाँधना) ४. मध्य (कमर) और ५. लग्न (सम्बद्ध-बन्धा हुआ)। इस प्रकार उद्घाटन शब्द के तीन, उद्घात शब्द के सात एवं उद्दान शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : उद्दामो वरुणे पुंसि स्वतन्त्रे महतित्रिषु । उद्धवो, यज्ञवह्नौ स्यादुत्सवे यादवान्तरे ॥१८४॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग उद्दाम शब्द का वरुण अर्थ होता है और त्रिलिंग उद्दाम शब्द के दो अर्थ होते हैं--१. स्वतन्त्र (अ-पराधीन, पराधीन नहीं, स्वाधीन) और २. महान् (विशाल)। इस प्रकार उद्दाम शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये। उद्धव शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. यज्ञवह्नि (याग की आग विशेष-आह्वनीय अग्नि वगैरह) २. उत्सव (महोत्सव) और ३. यादवान्तर (यादव विशेष-भगवान कृष्ण के चाचा उद्धव)। इस तरह उद्धव शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : उद्भटः कच्छपे सूर्ये महेच्छे प्रवरे त्रिषु । उद्यान - क्लीवमाक्रीडे निर्गमे च प्रयोजने ॥१८५।। उद्रस्तु जलमार्जारेऽथोद्रेकौ वृद्धयुपक्रमौ । उद्वर्तनं स्याद्विलेपे घर्षणोत्पातयोः ॥१८६॥ हिन्दी टीका-उद्भट शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कच्छप (काचवाकछुआ) २. सूर्य और ३. महेच्छा (महत्वाकांक्षा) किन्तु १. प्रवर (श्रेष्ठ) अर्थ में उद्भट शब्द त्रिलिंग माना जाता है। उद्यान शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. आक्क्रीड (बगीचा-फुलवाड़ी) Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उन्माथ शब्द २. निर्गम (निकलने का स्थान) और ३. प्रयोजन। इस तरह उद्भट शब्द के चार और उद्यान शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये। उद्र शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. जलमार्जार (जलजन्तु मगर वगैरह) होता है। उद्रक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वृद्धि (आधिक्य) और २. उपक्रम (आरम्भ करना)। उद्वर्तन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विलेप (लेपन करना-लेप लगाना) २. घर्षण (घिसना) और ३. उत्पात (उपद्रव)। इस तरह उद्र शब्द के एक और उद्रेक शब्द के दो और उद्वर्तन शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये। मूल : उन्माथः कूटयन्त्रे स्यान्मारणे घातके पुमान् । उन्मादश्चित्तविभ्रान्तौ मनोरोगान्तरेपि च ॥१८७॥ उपकण्ठन्तु निकटे ग्रामान्ते शीतगौ तु ना। कण्ठान्तिकास्कन्दितयोः क्लीबं हि सविधे पुमान् ॥१८॥ हिन्दी टीका-उन्माथ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कूटयन्त्र (पशु पक्षियों को फंसाने का यन्त्र विशेष) २. मारण (मारना-मरवाना) और ३. घातक (घात करना) । उन्माद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. चित्तविभ्रान्ति (विभ्रम) और २. मनोरोगान्तर (मानसिक रोग विशेष) । नपुंसक उपकण्ठ शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. निकट (नजदीक) २. ग्रामान्त (ग्राम का अन्त भाग) ३. कण्ठान्तिक (गले का निकट भाग) और ४. आस्कन्दित (दबाया हुआ) किन्तु पुल्लिग उपकण्ठ शब्द के दो अर्थ होते हैं-१ शीतगु (चन्द्रमा) और २. सविध (निकट) । इस तरह उन्माथ शब्द के तीन एवं उन्माद शब्द के दो तथा उपकण्ठ शब्द के कुल मिलाकर छह अर्थ हुए। मूल : उपकारिकोपकर्त्यां कुशूले राजवेश्मनि । उपक्रमश्चिकित्सायां ज्ञात्वारम्भे पलायने ॥१८६।। उपधा-प्रथमारम्भ - विक्रमेषु पुमानयम् । उपतापोऽशुभे रोगे पीडोत्ताप - त्वरासु च ॥१६॥ हिन्दी टोका-उपकारिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. उपकी (उपकार करने वाली) २. कुशूल (कोठी-वखारी वगैरह) और ३ राजवेश्म (राजा का घर-महल) उपक्रम शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. चिकित्सा (इलाज) २. ज्ञात्वारम्भ (समझकर आरम्भ करना) ३. पलायन (भाग जाना) ४. उपधा (मन्त्री के धर्मादि की परीक्षा करना) ५. प्रथमारम्भ (प्रथम आरम्भ) और ६. विक्रम (पराक्रम)। उपताप शब्द पुल्लिग है और उसके ५ अर्थ होते हैं१. अशुभ (अमंगल) २. रोग (व्याधि) ३. पीड़ा (कष्ट-तकलीफ) ४. उत्ताप (दुःख) और ५. त्वरा (जल्दो)। इस तरह उपकारिका शब्द के तीन एवं उपक्रम शब्द के छह और उपताप शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए । मूल : उपदंशो मेढ़रोगविशेषे मद्यप्राशने । उपदेशस्तु दीक्षायां शिक्षायां हितभाषणे ॥ १६१ ॥ उपधानं विषे गण्डौ व्रतप्रणययोरपि । उपपत्तिः समाधाने सिद्धान्ते निर्वतावपि ॥ १६२ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उपदंश शब्द | ३७ हिन्दी टीका-उपदंश शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं.-१. मेढ़रोग विशेष (खुजली कलकलि) और २. मद्यप्राशन (शराब का लेशमात्र पान)। उपदेश शब्द पुल्लिग है और उसके तोन अर्थ होते हैं-१. दीक्षा (मन्त्र ग्रहण) २. शिक्षा (पढ़ाना) और ३. हित भाषण (हितकथन)। उपधान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विष (जहर) २. गण्डु (जलचर प्राणो विशेष केंचुवा) ३. व्रत (उपवास-यम नियम वगैरह) और ४. प्रणय (स्नेह प्रेम)। उपपत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. समाधान (युक्तिपूर्ण उत्तर) २. सिद्धान्त (निश्चय, निर्णय वगैरह) और ३. निर्वृति (शान्ति सुख विशेष) । इस तरह उपदंश शब्द के दो, उपदेश शब्द के तोन एवं अधान शब्द के चार और उसपति शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : हेतौ युक्तौ संगतौ च स्त्रियां सद्भिरुदाहृता । उपरागः पुमान् राहुग्रस्ते चन्दिरसूययौः ।। १६३ ॥ दुर्णये ग्रहकल्लोले परीवाद - विगानयोः । व्यसनेऽथोपसर्गस्तु रोगभेद उपप्लवे ।। १६४ ॥ हिन्दी टीका-उपरोक्त उपपत्ति शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं -१. हेतु (कारण) २. युक्ति (तर्क) और ३. सगति (समन्वय) इस प्रकार कुल मिलाकर उपपत्ति शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। उपराग शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. राहुग्रस्त चन्द्र-सूर्य (ग्रहण, चन्द्र-ग्रहण सूर्य-ग्रहण) २. दुर्णय (खराब नीति) ३. ग्रह कल्लोल (सूर्यादि ग्रहों का परस्पर मुठभेड़) ४. परीवाद (लोक में निन्दा) ५. विगान (निन्दा) और ६. व्यसन (विपत्ति) इस तरह उपराग शब्द के कुल छह अर्थ समझना चाहिये । इसी प्रकार उपसर्ग शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. रोगभेद (रोगविशेष) और २. उपप्लव (विप्लव-विद्रोह) इस तरह उपसर्ग शब्द के दो अर्थ हुए ऐसा समझना । मूल : उपस्थो निकटे लिंगे भगे क्रोडे गुदेऽपि च । उपस्थितः समीपस्थे मृष्ट-शोधितयोस्त्रिषु ।। १६५ ।। उपाधिर्धर्मचिन्तायां कुटुम्बव्यापृते छले । विशेषणे नामचिह्न ऽथोपायः साधने पुमान् ॥ १६६ ॥ हिन्दी टीका-उपस्थ शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. निकट (नजदीक) २. लिंग (मूत्रेन्द्रिय) ३ भग (योनि) ४. क्रोड (गोद) और ५. गुद (गुदा) इस तरह उपस्थ शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिये । उपस्थित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. समीपस्थ (निकटवर्ती) २. मृष्ट (शुद्ध-समाजित) और ३. शोधित (शोध किया हुआ पदार्थ) इस तरह उपस्थित शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । इसी प्रकार उपाधि शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. धर्मचिन्ता (धर्म को चर्चा) २. कुटुम्ब व्यापृत (कौटुम्बिक व्यवहार) ३ छल (कपट) ४. विशेषण (प्रकार) और ५. नाम चिन्ह (नाम का परिचय ज्ञान कराने वाला चिन्ह विशेष) जिससे अपना या दूसरे का पता लग सकता है । उपाय शब्द १. साधन (कारण) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है। इस तरह उपस्थ, उपस्थित, उपाधि, उपाय शब्दों का अर्थ जानना । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उपाय शब्द मूल : स्वार्थसम्पादके सामादिचतुष्के गतावपि । शुश्रूषाऽऽसनहिंसासु बाणाभ्यास - उपासनम् ।। १६७ ॥ उमा दुर्गाऽतसी कान्ति-हरिद्रा-कीर्तिषु स्त्रियाम् । उष्णीषोऽस्त्री शिरोवेष्टे चिह्नान्तर-किरीटयोः॥ १६८ ॥ हिन्दी टीका-उपाय शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. स्वार्थ सम्पादक (स्वार्थ सिद्धिकारक) २. सामादि चतुष्क (साम-दाम-दण्ड-भेद) और ३. गति (रास्ता)। इस तरह कुल मिलाकर उपाय शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । उपासन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं --१.शुश्रूषा (मेवा करना) २. आसन (पद्मासन सिद्धासन वगैरह) ३. हिंसा (मारना) और ४ बाणाभ्यास (शर चलाने को प्रैक्टिस) इस तरह उपासन शब्द के चार अर्थ जानना। उमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. दुर्गा (पार्वती) २. अतसी (अलसी-तीसी) ३. कान्ति (तेज वगैरह) ४. हरिद्रा (हलदीहलद) और ५. कीर्ति (यश) इस प्रकार उमा शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिये । उष्णीष शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शिरोत्रष्ट (शिरस्त्राण-टोप) २. चिन्हान्तर (चिन्ह विशेष) और ३. किरीट (मुकुट) इस तरह उष्णीष शब्द का तीन अर्थ समझना चाहि।। ऊतिर्लीला जवनयोः स्यूतौ क्षारणरक्षणे । ऊोंबल - प्राणनयोत्रुसाहे कार्तिके पुमान् ॥ १६६ ।। ऊर्णा भ्र वोरन्तरालाऽऽवर्ते मेषादिलोमनि । ऊर्णायुरूर्णनामे स्यान्मेषे तल्लोमकम्बले ।। २०० ॥ हिन्दो टीका-ऊति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं.-१ लीला (मायाजाल) २. जवन (वेग) ३. स्यूति (कपड़ा वगैरह का सीन) और ४. क्षारणरक्षण (झरने से बचाना) इस प्रकार ऊति शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । ऊर्ज शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. बल (ताकत) २ प्राणन (जोना प्राण साँस लेना) ३. उत्साह और ४. कार्तिक (कार्तिक महीना) इस तरह ऊर्ज शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । ऊर्णा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. भ्र वोरन्तरालाऽवर्त (भौंहों के बीच के घूमे हुए बाल) और २. मेषादिलोम (गेटा-भेड़ा वगैरह के बाल) इस तरह ऊर्णा शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए। उर्णायु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. ऊर्ण नाम (मकरा-करोलिया) २. मेष (भेड़-गेटा) और ३. लोमकम्बल (ऊन का कम्बल) इस तरह ऊर्णायु शब्द के तीन अर्थ समझना। ऊमिः स्त्रीपुंसयोः पीडावस्त्रसंकोच - रेखयोः । तरङ्गोत्कण्ठयोर्वेगे प्रकाशेऽथोर्मिका मुदि ॥ २०१ ॥ वीच्युत्कण्ठा भृङ्गनाद - भङ्गष्वप्यंगुलीयके । ऋतमुञ्छशिले सत्ये जले त्रिष्वच्यदीप्तयोः ॥ २०२ ॥ हिन्दी टीका-मि शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. पीड़ा (दुःख-दर्द) २. वस्त्र संकोच रेखा (प्रेस इस्तरी) से सजाये गये कपड़े को टेढ़ी-मेढ़ी रेखा) ३. तरंग (लहर) मूल : Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-ऋति शब्द | ३६ ४. उत्कण्ठा (उत्सुकता) ५. वेग और ६. प्रकाश । इस तरह मि शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये । ऊर्मिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी छह अर्थ होते हैं – १. मुद (आनन्द-हर्प) २. बीचि (तरंग लहर) ३. उत्कण्ठा (उत्सुकता) ४.भृङ्गनाद (भ्रमर का गुंजन) और ५. भंग (टेढ़ा मेढ़ा कपड़ा) और ६. अंगुलीयक (मुद्रिका अंगूठी) इस तरह ऊमिका शब्द के भी छह अर्थ जानना चाहिये। नपुंसक ऋत शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. उच्छशिल (एक-एक धान्य कणों को बीनकर जीवन निर्वाह करना) २. सत्य और ३. जल (पानी) किन्तु १ अर्च्य (पूज्य) और २. दीप्त इन दोनों अर्थों में ऋत शब्द त्रिलिंग माना जाता है इस तरह ऋत शब्द के कुल पाँच अर्थ जानना ।। मूल : ऋतिर्वम नि कल्याणे जुगुप्सा-स्पर्द्धयोर्गतौ । ऋतु: स्त्री-कुसुमे दीप्तौ मासे सुग्रीव कालयोः ।। २०३ ॥ ऋद्ध समृद्ध सम्पन्नधान्य - सिद्धान्तयोरपि । ऋद्धिः समृद्धौ पार्वत्यां सिद्धिनामौषधे स्त्रियाम् ॥ २०४॥ हिन्दी टोका-ऋति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १ वर्त्म (रास्ता) २. कल्याण (मंगल) ३. जुगुप्सा (निन्दा) ४. स्पर्धा (कम्पिटीशन) और ५. गति (गमन) इस तरह ऋति शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए । ऋत शब्द पल्लिग है और उसके भी पांच अर्थ होते हैं-१. स्त्रीकुसुम (मासिक धर्म) २. दीप्ति (प्रकाश) ३. मास (महीना) ४. सुग्रीव और ५. काल (वसन्तादि काल विशेष) इस तरह ऋतु शब्द के भी पाँच अर्थ जानना। ऋद्ध शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. समृद्ध (भरपूर-धनाढ्य) २. सम्पन्न धान्य (अत्यन्त धन दौलत) और ३. सिद्धान्त (निचोर वगैरह) इस प्रकार ऋद्ध शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए । ऋद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. समृद्धि (धनाढ्यता) २. पार्वती (काली दुर्गा) और ३. सिद्धिनामौषध (सिद्धि नाम का औषध विशेष) इस तरह ऋद्धि शब्द के भी तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : ऋभुक्षः पुंसिर्कुलिशे सुरलोके पुरन्दरे । । ऋषभः पुंसि वृषभेकर्णरन्ध्य स्वरान्तरे । २०५ ॥ आदितीर्थङ्करे विष्णोरवतारान्तरेऽपि च।। वराहपुच्छ कुम्भीरपुच्छ्यौः पर्वतान्तरे ॥ २०६ ॥ हिन्दी टोका-ऋभुक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. कुलिश (वज्र) २. सूरलोक (स्वर्ग) और ३. पुरन्दर (इन्द्र) इस तरह ऋ मुक्ष शब्द के तीन अर्थ जानना। ऋषभ शब्द भी पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१. वृषभ (बैल वरद) २. कर्णरन्ध्र (कान का छेद) ३. स्वरान्तर (सा-रे-ग-म-प-ध-नि इन सात स्वरों में दूसरा स्वर विशेष) ४. आदितीर्थकर (ऋषभदेव भगवान) ५. विष्णु अवतारान्तर (ऋषभदेव नाम के विष्णु का अवतार) ६ वराहपुच्छ (शूकर का पूंछ) और ७. कुम्भीरपुच्छ (मकरग्राह का पूंछ) और ८. पर्वतान्तर (पहाड़) इस तरह ऋषभ शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझना चाहिये । मूल : श्रेष्ठोऽप्यौषधभेदे स्यात्तथैवेप्सितवर्षिणि । ऋषिः पुंसि मुनौ वेदे ज्ञान-संसारपारगे ॥ २०७ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - श्रेष्ठ शब्द एक: साधारणे स्वल्पे केवले प्रथमाऽन्ययोः । प्रधानेऽप्यादिसंख्यायां विद्वद्भिस्त्रिषु कीर्त्यते ॥ २०८ ॥ हिन्दी टीका - श्रेष्ठ शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. औषध भेद ( औषध विशेष) और २. ईप्सितवर्षी (अभीष्ट वस्तु को वर्षाने वाला) इस प्रकार श्रेष्ठ शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए । ऋषि शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१ मुनि (साधु) २. वेद (श्रुति) ३. ज्ञानपारग (तत्ववेत्ता ) ४. संसारपारग (संसार का रहस्य ज्ञाता) इस तरह ऋषि शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। एक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. साधारण (जनरल ) २. स्वल्प (किंचित् ) ३. केवल ( अकेला ) ४. प्रथम (पहला ) ५. अन्य ( दूसरा वगैरह ) ६. प्रधान (मुख्य) ७. आदि संख्या (एक) इस तरह एक शब्द का सात अर्थ जानना । मूल : एडमूक: शठे मूके बधिरेऽपि त्रिलिङ्गकः । एन: पापे च निन्दायामपराधे नपुंसकम् ॥ २०६ ॥ ऐन्द्रिः पुमान् जयन्ते स्याद् बालिन्यर्जुन- काकयोः । ऐन्द्री स्त्रियां शची दुर्गालक्ष्मी पूर्व दिशासु च ।। २१० ।। हिन्दी टीका - एडमूक शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. शठ (दुर्जन- धूर्त शैतान) २. मूक ( गूंगा) और ३ बधिर (बहरा) इस प्रकार एडमूक शब्द के तीन अर्थ समझना । एन शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. पाप, २ निन्दा, और ३. अपराध । इस तरह एन शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिए। पुल्लिंग ऐन्द्रि शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. जयन्त ( इन्द्र का पुत्र जयन्त) २. बाली, ३. अर्जुन और ४. काक (कौवा) और स्त्रीलिंग ऐन्द्री शब्द के भी चार अर्थ होते हैं - १. शची ( इन्द्राणी इन्द्र की धर्मपत्नी ) २. दुर्गा (पार्वती " ऐन्त्राद्याः सप्तमातरः" ऐन्द्री ब्राह्मी वगैरह सप्त माता । ३. अलक्ष्मी और ४. पूर्वदिशा को भी ऐन्द्री कहते हैं । इन्द्र ही उस दिशा का स्वामी है । इस तरह ऐन्द्रि शब्द के चार और ऐन्द्री शब्द के भी चार अर्थ समझना । मूल : एलायामिन्द्रवारुण्यामैन्द्रज्येष्ठा वनार्द्रयोः । ऐरावतः पुमान् इन्द्रकुञ्जरे पूर्व दिग्गजे ॥ २११ ॥ लकुचद्रौ नागरंगे क्लीवन्त्विन्द्रायुधे मतम् । वटपत्रीतरावपि ॥ २१२ ॥ ऐरावती सरिद्भेदे हिन्दी टीका - १ एला (इलाइची ) और २. इन्द्रवारुणी (उज्जयिनी) को भी ऐन्द्री कहते हैं । नपुंसक ऐन्द्र शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. ज्येष्ठा (गृहगोधा और ज्येष्ठा नक्षत्र) और २ वनार्द्र ( औषध विशेष) को भी ऐन्द्र शब्द से व्यवहार करते हैं । पुल्लिंग ऐरावत शब्द के दो अर्थ होते हैं १. इन्द्रकुञ्जर (ऐरावत हाथी) और २. पूर्व दिग्गज (पूर्व दिशा का दिग्गज हाथी) को भी ऐरावत कहते हैं । इसी प्रकार पुल्लिंग ऐरावत शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं १. लकुचद्र ( लीची का वृक्ष) और २. नागरंग (नारंगी दाडिम) नपुंसक ऐरावत शब्द का १ इन्द्रायुध ( इन्द्रचाप इन्द्रधनु) अर्थ होता है । स्त्रीलिंग ऐरावती शब्द के दो अर्थ होते हैं--१ सरिद्भेद (नदो विशेष इरावती) और २. वटपत्रीतरु Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ऐरावती शब्द । ४१ (वट वृक्ष विशेष) इस तरह एन्द्र शब्द के कुल मिलाकर १२ अर्थ होते हैं और ऐरावत शब्द के कुल मिलाकर सात अर्थ होते हैं ऐसा समझना वाहिए। ऐरावत स्त्रियां विद्युद्विशेषे तडिति स्त्रियाम् । ओकमोको गृहे क्लीवमाश्रये यूकओकणिः ॥ २१३ ॥ ओघः पुंस्युपदेशे स्यात् समूहे जलवेगयोः । परम्परायां शीघ्रनृत्य - गीतवाद्येऽपि कीत्यते ।। २१४ ।। हिन्दी टीका-ऐरावत हथिनी को एवं विद्युद् विशेष तडित् को भी ऐरावती शब्द से व्यवहार करते हैं। नपुंसक ओक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. गृह (घर) और २. आश्रय । पुल्लिग ओकणि शब्द का १. यूक (जौंक) अर्थ होता है जो कि विकृत पानी में रहने वाला जल जन्तु विशेष कहलाता है। ओघ शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१ उपदेश , २. समूह, ३. जलवेग, ४. परम्परा (बहुत दिनों से आती हुई परिपाटी) ५ शीव्र. ६. नृत्य, ७. गीत और ८. वाद्य (पखाउज) नाम के वाद्य विशेष को भी ओघ कहते हैं। इस प्रकार ऐरावती शब्द के और भी दो एवं ओक शब्द के दो और ओकणि शब्द के एक एवं ओघ शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए। ओजः प्रकाशेऽवष्टम्भे बले दीप्तौ नपुंसकम् । ओड्रो देशविशेष स्याद् जपापुष्पतरौ पुमान् ॥ २१५ ॥ औशीरं चामरे दण्डे नपुंसकमुशीरजे । शयनासन औशीरः पुमान् चामरदण्डके ॥ २१६ ॥ हिन्दी टीका-ओजस शब्द सकारान्त नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रकाश, २. अवष्टम्भ (रोकना) ३. बल (सामर्थ्य) और ४. दीप्ति (प्रकाश, ज्योति वगैरह)। ओड्र शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ देश विशेष, और २ जपापुष्पतरु (बन्धुकफूल दोपहरिया फूल का वृक्ष)। उशीर (खस-खस से बना हआ शयन आसन । इस अर्थ में औशोर शब्द नपुंसक माना जाता है और चामर दण्ड को भी औशीर कहते हैं किन्तु विशेष्यनिघ्न होने से दण्ड शब्द पुल्लिग है इसलिए उसका विशेषणभूत औशीर शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है। इस तरह ओजः शब्द के चार एवं ओड़ शब्द के दो और औशोर शब्द के कुल मिलाकर चार अर्थ होते हैं। कंसोऽस्त्रीतैजसद्रव्ये पान-भाजन - कांस्ययोः । परिमाण विशेषेऽथकंसः श्रीकृष्णमातुलो ।। २१७ ।। ककुदो राजचिन्हेऽस्त्री प्राधान्य वृषभाङ्गयोः । शैलानेऽथवृषे शैले ककुद्मानृषभौषधौ ॥ २१८ ॥ हिन्दी टीका-कंस शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. तैजस द्रव्य (कांसा) २. पान भाजन (प्याला) ३. कांस्य (पात्र विशेष गिलास) और ४. परिमाण-विशेष (केवल पुल्लिग कंस शब्द का श्रीकृष्ण भगवान का मातुल मामा) अर्थ होता है। ककुद शब्दं पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं ---१. राज-चिन्ह (राजा का चिन्ह विशेष जैसे सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र मूल : Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कुप, शब्द : काकुद कहलाते हैं) २. प्राधान्य (मुख्य) ३. वृषभांग (बैल की पीठ पर ऊँचा गोलाकार मांसपिण्ड) और ४. शैला (पर्वत की चोटी) इसीलिए ककुद्मान् १. वृषभ (बैल) और २ शैल (पर्वत) तथा ३. ऋषऔषधि विशेष को भी कहते हैं । मूल : ककुप् चम्पकमाला-दिक् प्रवेणी शास्त्रदीप्तिषु । ककुभो रागभेदेऽपि वीणाग्रेऽर्जुनपादपे ॥ २१६ ॥ कङ्कश्छद्द्मद्विजे कंसासुरभ्रातरि बाहुजे । लोहपृष्ठे महाराजचूते पुंसि युधिष्ठिरे ।। २२० ।। हिन्दी टीका -- ककुप् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. चम्पकमाला, २. दिक् (प्राची वगैरह दिशा ) ३. प्रवेणी (जटा ) ४. शास्त्र और ५. दीप्ति (तेज वगैरह ) ककुभ शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं १. रागभेद (गान राग विशेष) २. वीणाग्र ( वीणा का अग्र भाग ) और ३. अर्जुन पादप (धव वृक्ष विशेष, पाकर ) । कङ्क शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं १. छद्म द्विज (दाम्भिक ब्राह्मण ) २. कंसासुर भ्राता (कंस का भाई ) ३. वाहुज (क्षत्रिय) ४. लोहपृष्ठ (इस्पात ) ५. महाराजचूत (राजापुरी केरी, कच्चा आम ) और ६ युधिष्ठिर । - मूल : कङ्कणं करभूषायां हस्तसूत्रेऽपि मण्डने । शेखरे चाथ किङ्कियां कङ्कणीत्युच्यते स्त्रियाम् ।। २२१ ॥ हिन्दी टीका - कङ्कण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. करभूषा ( कंगन व लय वाला चूड़ी) २ हस्त सूत्र (नाड़ा) ३ मण्डन (भूषण) और ४. शेखर (शिरोभूषण) । किन्तु किङ्किणी ( नूपुर घुंघरू ) अर्थ में कङ्कणी शब्द का प्रयोग होता है । इस प्रकार कङ्कण शब्द के चार और कङ्कणी शब्द का एक ही अर्थ समझना चाहिये । मूल : स्त्रियां कङ्कतिका नागवलायां केशमार्जने । कंकालः पुंसि देहास्थिपञ्जरे सद्भिरुच्यते ॥ २२२ ॥ कचः शुष्कव्रणे केशे बृहस्पतिसुते घने । कच्छो जलाशय प्रान्तदेशनौकाङ्गयोः पुमान् ॥ २२३ ॥ हिन्दी टोका कंकतिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. नागवला (गंगेरन ) और २ केशमार्जन (कंकही) । कंकाल शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ- देहास्थिपञ्जर (अस्थिपञ्जर, हाड़का) है | कच शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १ शुष्कव्रण (सूखा हुआ घाव का चिन्ह ) २. केश (बाल) ३. बृहस्पतिसुत (वृहस्पति का पुत्र) और ४ घन (निविड अन्धकार, मेघ वगैरह ) कच्छ शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो हो अर्थ होते है १. जलाशय प्रान्त देश ( तालाब वगैरह का तट प्रान्त भाग) और २. नौकांग (नाव का एक अंग ) । मूल : परिधानाञ्चले तुन्नवृक्षेऽनूपस्थलेऽपि च । कच्छपोमदिरायन्त्रविशेष निधिभेदयोः ॥ २२४ ॥ मल्लबन्धान्तरे कूर्मे नन्दीवृक्षे पुमान् स्मृतः। कच्छी भारती वीणा - कुर्मीकच्छपिकागद ॥ २२५ ॥ - Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थौदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कच्छ शब्द | ४३ हिन्दी टीका - कच्छ शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. परिधानांचल (साड़ी का अञ्चल आँचल) २. तुन्नवृक्ष (नन्दी वृक्ष, तूणी नाम का झाड़) और ३. अनूपस्थल (जलप्रायद्वीप स्थल) । कच्छप शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. मदिरा यन्त्रविशेष ( शराब बनाने का यन्त्र विशेष ) और २. निधिभेद (नव-निधियों में एक निधि का नाम ) ३. मल्ल बन्धान्तर ( मल्ल को पछाड़ने का एक दाव-पेच) ४. कूर्म (काचवा काछ ) ५. नन्दी वृक्ष ( तूणी नाम का झाड़) । कच्छपी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं १. भारती वीणा (सरस्वती को वीणा को कच्छपी कहते हैं) २. कुर्मी (काचवी . काछवे की स्त्री जाति) और ३. कच्छपिका गद (कछपी नाम के रोग विशेष को भी कच्छपी कहते हैं ।) इसी प्रकार कुल मिलाकर कच्छप- कच्छपी दोनों शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिये । मूल : कच्छुरा ग्राहिणीवृक्षे शूकशिम्बी यवासयोः। शट्यां दुरालभायां स्त्रीकच्छुरः पामनि त्रिषु ।। २२६ ।। कञ्चिका वेणु शाखायां क्षुद्रस्फोटे स्त्रियां मता । कञ्चुको वारबाणेऽस्त्री निर्मोके चोलकेपिच ॥ २२७ ॥ हिन्दी टीका - कच्छुरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. ग्राहिणी वृक्ष ( कपित्थ-कैथ-कदम्ब का वृक्ष) २ शूकशिम्बी (केवांच-कवा छु, जिसको शरीर में लगाते ही अत्यन्त खुजली पैदा हो जाती है उसको मैथिली भाषा में कवाछु कहते हैं) ३. यवास ( यवासा) और ४. शटी ( पलाश - आमाहल्दी) और ५. दुरालभा (यवासा) । कच्छुर शब्द त्रिलिंग है और उसका १. पामा (खर्जू - खुजली ) अर्थ होता है । इस तरह कच्छुरी कच्छुर शब्दों के छह अर्थ समझना चाहिये । कञ्चिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. वेणु शाखा (बाँस की करची) और २. क्षुद्र स्फोट (छोटी आवाज जिससे हो उसे भी कंचिका कहते हैं) । कंचुक शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक भी है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. वार-वाण (कवच ) २. निर्मोक (केंचुल केचुआ सर्प के शरीर से निकला हुआ त्वचा) और ३. चोलक (चोली) इस तरह कांचिका शब्द के दो और कंचुक शब्द का तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : वस्त्रमात्रके । वर्द्धापकगृहीताङ्गवसने कञ्चुकी सौविदल्ले स्यात् चणके यवसर्पयोः ॥ २२८ ॥ खिङ्ग जोङ्गकवृक्षे च पुमान् सद्भिरुदाहृतः । कञ्ज पद्मेऽमृते कञ्जश्चिकुरे ब्रह्मणि स्मृतः ॥ २२६ ॥ हिन्दी टीका – कंचुक शब्द का १. वर्द्धापक गृहीतांगवसन ( महोत्सव विशेष में गृहीत अंग वस्त्र ) भी अर्थ होता है और वस्त्र मात्र (केवल वस्त्र ) भी अर्थ होता है । कंचुकी शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हें – १. सौविदल्ल (राज दरबार में रक्षा के लिए रहने वाला वृद्ध पुरुष विशेष) २. चणक (चना) ३. यव (जौ) और ४. सर्प (साँप ) एवं ५. खिंग (वृक्ष विशेष) और ६. जोंगक वृक्ष ( अगर - अगरू का वृक्ष) । कंज शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. पद्म (कमल) और २. अमृत, किन्तु पुल्लिंग कंज शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १ चिकुर (केश) और २. ब्रह्म (परमात्मा ) भी । कञ्जारः कुञ्जरे सूर्ये विरिञ्चौ जठरे मुनौ । कट: किलिञ्जके हस्ति गण्डदेश श्मशानयोः ॥ २३० ॥ मूल : Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कञ्चार शब्द समयेऽतिशये पुंसि शवे शवरथे तृणे। कटौ तक्षितकाष्ठेपि क्रियाकारे च भेषजे ।। २३१ ।। हिन्दी टीका-कार शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुञ्जर (हाथी) २. सूर्य, ३. विरिञ्चि (ब्रह्म) ४. जठर (उदर पेट) और ५. मुनि (योगी)। कट शब्द भो पुल्लिग है और उसके बारह अर्थ होते हैं-१. किलिञ्जक (बाँस की बनी हुई पिटारी-झांपी) २. हस्तिगण्डदेश (हाथी का कपोल गण्डस्थल) और ३. श्मशान, ४. समय (काल) ५. अतिशय (अत्यन्त) ६. शव (मुर्दा) ७. शवरथ (मुर्दे को श्मशान में ले जाने वाला रथ विशेष) ८. तृण (मोथी) ६. कटि (कमर) १०. तक्षित काष्ठ (वसूला वगैरह से छिला लकड़ी का पीठ वगैरह) ११ क्रियाकार (क्रिया करने वाला) और १२. भेषज (औषध)। मूल : कटकोऽस्त्री नितम्बेऽद्रेःसानौ वलय चक्रयोः । राजधान्यां नगरी हस्तिदन्तमण्डनयोरपि ॥ २३२ ॥ सैन्ये सामुद्रलवणे पर्वतीयसमावनौ । कटतः शंकरे विद्याधरे कीटेऽक्षदेवनै ।। २३३ ।। ... हिन्दी टीका-कटक पुल्लिग तथा नपुंसक भी है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं-१. नितम्ब (कटि-कमर-चूतड़) २. अद्रिसानु पहाड़ की चोटी) ३. वलय (कंकण कंगन चूड़ी) ४. चक्र (गाड़ी का पहिया) ५. राजधानी, ६. नगरी, ७. हस्तिदन्तमण्डन (हाथी के दाँत का भूषण विशेष) ८. सैन्य (सेना समूह) ६. सामुद्रलवण (समुद्र का नमक) १०. पर्वतीय समावनि (पहाड़ की समतल भूमि) इस तरह, कटक शब्द का बारह अर्थ समझना चाहिये। कटघू शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. शंकर (शिवजी) २. विद्याधर (गन्धर्व जाति विशेष) ३. कीट (क्रीड़ा जन्तु विशेष) ४. अक्षदेवन(जुआ खेलने की गोटी पाशा चौपड़)। मूल : कटभंगस्तु शस्यानां हस्तच्छेदे नृपात्यये । कटभी तरुभिज् ज्योतिष्मती कैडयंपादपे ॥ २३४ ॥ हिन्दी टीका-कटभंग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अथ होते हैं -- १. शस्यानां हस्तच्छेद (शस्यों-फसलों को हाथ से काटना) और २. नृपात्यय (राजा का नाश) । कटभी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. तरुभिद् (वृक्ष काटने वाला) २. ज्योतिष्मती (लता विशेष-मालकांगनी नाम की लता) और ३. कैडर्यपादप (कायफल-जायफल) । इस प्रकार कटभंग शब्द के दो और कटभी शब्द के तीन अर्थ होते हैं। मूल : कटम्भरा राजवला - वर्षाभू-रोहिणीषु च । मूर्वा प्रसारणी-गोला कलम्बी हस्तिनीष्वपि ।। २३५ ॥ कटाहो नरके कूपे क— रे कूर्मकर्पू रे । जायमान विषाणाग्रमहिषी शावकेऽर्भ के ।। २३६ ॥ हिन्दी टीका-कटम्भरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-राजवला (आकाश बेल बम्वर नाम की लता विशेष) २. वर्षाभू (गजपुरैन) ३. रोहिणी गाय) ४. मूर्वा (धनुर्ध्या प्रत्यञ्चा) Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - द्वीपप्रभेद शब्द | ४५ : ५. प्रसारिणी (आकाशबेल) ६. गोला ( मनःशिला मैनशिल पत्थर विशेष ) ७. कलम्बी (करमी शाक विशेष, जिसकी बेल जमीन तथा पानी के ऊपर फैल जाती है) और ८. हस्तिनी (हथिनी ) | कटाह शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. नरक, २. कूप (आ) ३. कर्बुर (सोना, चितकाबर वगैरह ) ४. कूर्मकर्पूर (काचवा का पृष्ठ भाग काछु का खप्पर) ५. जायमान विषाणाग्रमहिषी शावक (भैंस का बच्चा जिसका सींग पैदा ही हो रहा है) और ६ अर्भक ( शिशु बच्चा ) । इस तरह कटाह शब्द के छह अर्थ समझना । मूल : द्वीपप्रभेदे तैलादिपाकपात्रेऽपि कीर्तितः । कटुः कट्वीलतायां स्यात् पटोले चम्पकद्रुमे ॥ २३७ ॥ पुमान् कटुरसे चीनकर्पूरेऽथ कटु स्त्रियाम् । प्रियंगुवृक्ष कटुकी कटुकी राजिकास्वथमत्सरे ॥ २३८ ॥ हिन्दी टीका - १. द्वीपप्रभेद (द्वीप विशेष) को और २ तैलादिपाकपात्र ( कड़ाह ) को भी कटाह कहते हैं । कटु शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं- - १. कट्वी लता ( कड़वी बेल लता) २. पटोल (परबल) ३. चम्पकद्र ुम (चम्पक वृक्ष) ४ कटुरस ( तिक्तरस नीमड़ा या लाल मिरचाई) ५. चीन कर्पूर ( कर्पूर विशेष ) । स्त्रीलिंग कटु शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. प्रियंगु वृक्ष (फलिनी, ककुनी, टोंगुन, काउन मुनि अन्न मोरैया) २. कटुकी ( फल विशेष) और ३. राजिका ( राई काला सरसों) और ४. मत्सर ( ईर्ष्यालु) को भी कटु कहते हैं । इस प्रकार कटु शब्द के दस अर्थ जानना । मूल : तीक्ष्णेऽप्रिये कटुरसयुक्त त्रिषु कटुः स्मृतः ॥ कणोऽतिसूक्ष्मे धान्यांशे पुंसि स्यवनजीरके ॥ २३६ ॥ कणा स्त्रीपिप्पली श्वेतजीरकाऽल्पेषु जीरके । . कणिकः शुष्कगोधूमचूर्णे शत्रौ कणे पुमान् ॥ २४० ॥ हिन्दी टीका - १. तीक्ष्ण ( तीखा ) २. अप्रिय और ३. कटुरसयुक्त (कड़वा रस से युक्त वस्तु) इन तीनों अर्थों में कटु शब्द त्रिलिंग माना जाता है । कण शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. अति सूक्ष्म धान्यांश (चावल का छोटा-छोटा टूटा हुआ भाग खुद्दी) और २. वनजीरक (जंगली जीरा वन जीरा) । कणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते है -१. पिप्पली (पीपरि ) २. श्वेत जीरक (सफेद जीरा) और ३ अल्प ( लेशमात्र ) । इसी प्रकार कणिक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. शुष्क गोधूमचूर्ण (चोकर) २. शत्रु, ३. कण और ४. जीरक (जीरा) । इस तरह कुल मिलाकर कण, कणा और कणिक शब्द के नौ अर्थ जानना चाहिये । मूल : नीराजनविधौ स्यात्तु कणिका तण्डुलांशके । अग्निमन्थ कणाऽत्यन्तसूक्ष्मवस्तुषु कीर्तिता ॥ २४१ ॥ हिन्दी टीका - स्त्रीलिंग कणिका शब्द का १. नीराजन विधि ( आरती ) एवं २. तण्डुलांशक (चावल का टुकड़ा खुद्दी) और ३. अग्निमन्थकण ( लकड़ी के मन्थन घर्षणजन्य अग्निकण) और ४. अत्यन्त सूक्ष्म वस्तु भी अर्थ होते हैं । इस तरह कणिका शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --कण्टक शब्द मूल : कण्टकोऽस्त्री क्षुद्र शत्रौ-केन्द्र रोमाञ्चयोरपि । नैयायिकादि दोषोक्तौ मत्स्याद्यस्थिद्रुमाङ्गयोः ।। २४२ ॥ पुमांस्तु लोमहर्षे स्यात् रेणु सूच्यग्रभागयोः । कर्मस्थाने क्षुद्रशत्रौ दोषे मकर केन्द्रयोः ।। २४३ ॥ हिन्दी टोका-कण्टक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी है और उसके १४ अर्थ होते हैं उनमें नपुंसक कण्टक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं जैसे (१) क्षुद्र शत्रु (छोटा शत्रु) (२) केन्द्र (सेन्टर) ३. रोमाञ्च (रोम खरा होना) ४. नैयायिकादिदोषोक्ति (नैयायिक वगैरह के द्वारा दिये गये दोष कथन) ५. मत्स्याद्यस्थि (मछली वगैरह की अस्थि-हाड़का) और ६ दुमांग (बबूल वगैरह वृक्षों का कांटा) और पुल्लिग कण्टक शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. लोमहर्ष (रोमाञ्च) २. रेणु (कण) ३. सूच्यग्रभाग (सूई की नोंक) ४. कर्मस्थान ५. क्षुद्र शत्रु ६. दोष ७. मकर और ८. केन्द्र। इस तरह कण्टक शब्द से १४ अर्थ जानना चाहिए। मूल : कण्टकी वदरे मत्स्ये वंशे मदनपादपे। गोक्षुरे खदिरे पुंसि स्त्रियाँ तु कङ्गणे मता ॥ २४४ ॥ पुमान् कण्टकफल: क्षुद्र गोक्षुरे पनसेऽपि च । लता करज एरण्डे तेजः फलमहीरुहे ।। २४५ ।। हिन्दी टीका --पुल्लिग कण्टकी शब्द के छह अर्थ होते हैं- १. वदर (बोर-बेर) २. मत्स्या (मछली) ३. वंश (वांस का झाड़) ४. मदन पादप (धतुर का वृक्ष) ५. गोक्षुर (गोखुरु-गोखरु) और ६. खदिर (कत्था खैर) और स्त्रीलिंग कण्टकी शब्द का १ कंगण (कंगण-वूड़ी) अर्थ होता है। कण्टक फल शब्द पुल्लिग माना जाता है, यद्यपि केवल फल शब्द नपुंसक तथापि जिसके फल में कांटा हो उसे कण्टक फल कहते हैं इस प्रकार बहुब्रीहि समास होने से कण्टक फल शब्द पुल्लिग समझना चाहिए। और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. क्षुद्र गोक्षुर (छोटा गोखरु) २. पनस (कटहल) ३. लता करज (इंगुदी वृक्ष-डिठ. वरन का झाड़ जिसका फल चापत होता है और उस चापत फल से तेल निकाला जाता है जो कि वात रोग में काम आता है) और ४. एरण्ड (अण्डी का वृक्ष) एवं ५. तेज फल महीरुह (तरिसात का झाड़जिसके पत्ते दाल वगैरह के बघारने-छोंकने के काम में आते हैं। इस तरह कण्ट की शब्द के सात और कण्टक फल के पाँच अर्थ जानना। कण्ठो ग्रीवापुरोभागे त्रिलिगो निकटे ध्वनौ । पुमान् मदनवृक्षे स्यात् कुण्डादु बाह्य स्थलेपि च ॥२४६॥ कण्ठालः शूरणे गोणीप्रभेदे युद्धनौक्रयौः । क्रमेलके खनित्रेऽथ कण्ठिका कण्ठभूषणौ ॥ २४७ ॥ हिन्दी टोका-कण्ठ शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. ग्रोवापुरोभाग (गला) २. निकट (नजदीक) और ३ ध्वनि (आवाज-अव्यक्त शब्द) किन्तु १. मदन वृक्ष (धत्तूर) और २. कुण्डाद्बाह्मस्थल (कुण्ड से बाहर का स्थान) इन दोनों अर्थों में कण्ठ शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। कण्ठाल Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कण्ठीरव शब्द | ४७ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. शूरण (ओल) .. गोणीप्रभेद (कन्तान-सपटा वगैरह) ३. युद्ध ४. नौका ५ क्रमेलक (ऊँट) और ६. खनित्र (खन्ती-दराती) किन्तु कण्ठिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका कण्ठभूषण (गले का हार) अर्थ होता है । इस तरह कण्ठ शब्द के पाँच और कण्ठाल शब्द के छह और कण्ठिका शब्द का एक अर्थ समझना चाहिए। मूल : कण्ठीरवः पुमान् सिंहे कपोते मत्तकुञ्जरे। प्रबन्धकल्पनांस्तोक सत्यां प्राज्ञा: कथां विदुः ॥ २४८ ॥ कथाप्रसंगो वार्तायां वातूल विष-वैद्ययोः । कदनं मारणे युद्ध मर्दे पापे नपुंसकम् ॥ २४६ ।। हिन्दी टीका कण्ठीरव शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सिंह (शेर) २. कपोत (कबूतर) और ३. मत्तकुञ्जर (मतवाला हाथी) । कथा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका - स्तोक सत्य प्रबन्ध कल्पना (थोड़े सत्य भाग से युक्त प्रबन्ध कल्पना) अथं माना जाता है । जैसे-कादम्बरी कथा काव्य मानी जाती है क्योंकि उसके कुछ हिस्से में मौलिक बात भी आधार रूप से आती है। इसी प्रकार तिलकमञ्जरी भी कथा काव्य मानी जाती है। कथा प्रसंग शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १ वार्ता (कथानक) २. वातूल (बात व्याधि वाला) और ३. विषवैद्य (जहर उतारने वाला वैद्यराज)। कदन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. मारण (मारना) २. युद्ध ३. मर्द (मर्दन करनासताना) और ४ पाप । इस प्रकार कण्ठीरव शब्द के तीन, कथा शब्द का एक एवं प्रसंग शब्द के तीन और कदन शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : कदम्ब: सर्षपे नीपे देव ताड-समूहयोः । कदरः श्वेतखदिरे क्रकच-व्याधिभेदयोः ॥ २५० ॥ प्रकाशांकुशयोः पुंसि कदर्यः कृपणे त्रिषु । कदली स्त्री पताकायां रम्भायां हरिणान्तरे ॥ २५१ ।। हिन्दी टोका-कदम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सर्षप (सरसों) २. नीप (तमाल वृक्ष) ३. देवताड (देवताल नाम का गुजराती वृक्ष विशेष) और ४. समूह। कदर शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. श्वेत खदिर (सफेद कत्था-खैर) २. क्रकच (आरा) और ३ व्याधि भेद (रोग विशेष) को भी कदर कहते हैं। प्रकाश और अंकुश अर्थ में कदर्य शब्द पुल्लिग माना जाता है और कृपण ( कम) अर्थ में कदर्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी मनुष्य कृपण हो सकते हैं । कदली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तोन अर्थ होते हैं-१. पताका (ध्वज) २. रम्भा (केला) और ३ हरिणान्तर (हरिणी विशेष) । कनकः काञ्चनाले स्यात् लाक्षातरु-पलाशयोः । धुस्तूरे चम्पके नागकेशरे कणगुग्गुले ॥२५२॥ कालीये कासमदं च पुमान् क्लीवन्तु काञ्चने । कन्था मृन्मय भित्तौ स्यात् स्त्रीलिंगः स्यूतकर्पटे ॥२५३॥ मूल : Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टोका सहित-कनक शब्द हिन्दी टीका- कनक शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं---१. काञ्चनाल (कचनौर) २. लाक्षातरु (लाख का वृक्ष. जिससे लाख बनता है) ३. पलाश (ढाक, किंशुक) ४. धुस्तूर (धतूर) ५. चम्पक (चम्पा पुष्प) ६ नागकेशर (केशर) और ७. कणगुग्गुल (गुग्गुल का चूर्ण)। इसी प्रकार कालीय नाग भी पुल्लिग कनक शब्द का अर्थ होता है और कासमर्द (गुल्म विशेष, वेसवार एक प्रकार का मसाला या छौंक) भी पुल्लिग कनक शब्द का अर्थ होता है और नपुंसक कनक शब्द का १. काञ्चन (सोना) अर्थ होता है। कन्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मृन्मय भित्ति (मिट्टी की दोवाल) और २. स्यूत कर्पट (सिला हुआ कपड़ा विशेष, केथड़ी, गुदड़ी, चेथड़ी)। इस तरह कनक शब्द के १० और कन्था शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये। मूल : कन्दमस्त्री शस्यमूले गृञ्जने शूरणे स्मृतम् । योनिरोगान्तरे मेघे पुमानेव सदा मतः ।। २५४ ॥ कन्दलन्तूपरागे स्यादपवादे नवांकुरे । कलध्वनौ कपाले च त्रिलिंगोऽथ मृधे पुमान् ।। २५५ ।। हिन्दी टीका-कन्द शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं उनमें तीन अर्थों में उभयलिंग और अन्तिम दो अर्थों में नित्य पूल्लिग माना जाता है-१. शस्यमूल (धान का जड़ भाग) २. गृञ्जन (गजरा) ३. शूरण (ओल) इस तीनों अर्थों में उभयलिंग जानना और ४. योनिरोगान्तर (प्रदर वगैरह) और ५. मेघ (बादल) इन दोनों अर्थों में नित्यपुल्लिग जानना। त्रिलिंग कन्दल शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. उपराग (सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण) २. अपवाद (कलंक) ३. नवांकुर (नया अंकुर) ४. कलध्वनि (मधुर कलरव) और ५. कपाल (खप्पर घट का एक भाग) किन्तु ६. मृध (युद्ध) अर्थ में कन्दल शब्द नित्य पुल्लिग है। इस तरह कन्द शब्द के पांच और कन्दल शब्द के छह अर्थ समझना चाहिए। कपाले तपनीयेऽथ कन्दली हरिणान्तरे। पद्मबीजे वैजयन्त्यां रम्भा गुल्मप्रभेदयोः ॥ २५६ ।। कपिल: कुक्कुरे वह्नौ पिङ्गले सिलके मुनौ। कपिला पुण्डरीकाख्यदिग्गज स्त्री नदी भिदेः ॥ २५७ ।। हिन्दी टोका-कन्दली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं --१. कपाल (घट का आधा भाग खप्पर वगैरह) २ तपनीय (सोना) ३. हरिणान्तर (मृग विशेष) ४. पद्म बीज (कमल का बीज-कमलगट्टा) ५. वैजयन्ती (पताका वगैरह) ६. रम्भा (केला) और ७. गुल्मप्रभेद (तरु गुल्म विशेष)। कपिल शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुक्कुर (कुत्ता) २. वह्नि (आग) ३. पिंगल (भूरा वर्ण, बन्दर का रंग) ४ सिंह्लक (लोहवान गन्ध द्रव्य विशेष) ५. मुनि । कपिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अथ होते हैं -१. पुण्डरीकाख्य दिग्गज स्त्री (पुण्डरीक नाम की दिग्गज हथिनी) और २. नदीभिदा (नदी विशेष) को भी कपिला कहते हैं। इस तरह कपिल और कपिला शब्द के पांच-पाँच अर्थ समझना चाहिए। गृहकन्या भस्मगर्भा रेणुका राजरीतिषु । गोविशेषेऽथ कपिशः पुमान् श्यावे च सिलके ॥ २५८ ॥ मूल : Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कपिला शब्द | ४६ कपीतने गर्दभाण्डवृक्षेऽश्वत्थ - शिरीषयोः । आम्रातके गुवाकद्रौ पुमान् बिल्वमहीरुहे ॥ २५६ ॥ हिन्दी टीका कपिला शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं-१. गृहकन्या २. भस्मगर्भा (शीशमशिशो का वृक्ष) ३. रेणुका (परशुराम की माता, जमदग्नि की धर्मपत्नी) ४. राजरीति (राजा की रीतिरिवाज) और ५. गो विशेष (कपिला गाय, भूरे रंग की गाय)। कपिश शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. श्याव (कृष्ण पीत-फोका रंग) २. सिल्हक (लोहवान गन्ध द्रव्य विशेष) ३. कपीतन (अमड़ा शिरीस इमली) ४. गर्दभाण्ड वृक्ष (लाही पीपल) ५. अश्वत्थ (पीपल) ६. शिरीष (शिरीस, शिरीस नाम का वृक्ष विशेष) ७ आम्रातक (आमड़ा) ८. गुवाकद्र (सुपारी का वृक्ष) और ६. बिल्ब महीरुह (वेल का वृक्ष)। इस तरह कपिश शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिए। मूल : कफः श्लेष्मणि हिण्डीरे लालायां कफकूचिका । कमठः कच्छपे वंशे शल्लकी दैत्यभेदयोः ॥ २६० ॥ मुनीनां जलपात्रेऽथ प्लक्षे कुण्ड्यां कमण्डलुः । कमलं सलिलो पद्मे क्लोम्नि भेषज-ताम्रयोः ।। २६१ ॥ हिन्दी टीका-कफ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. श्लेष्मा (कफ) और २. हिण्डीर (फेन) । कफकूचिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका एक अर्थ ही माना जाता है-१. लाला (लाललेर)। कमठ शब्द पुल्लिग है और इसके चार अर्थ होते हैं--१. कच्छप (काचवा-काछु) २. वंश (कुलपरम्परा ३. शल्लकी (शाही) और ४ दैत्यभेद (दैत्य विशेष)। इस प्रकार कफ शब्द के दो एवं कफकूचिका शब्द का एक और कमठ शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । कमण्डलु शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मुनीनां जलपात्र (मुनियों का जलपात्र) २. प्लक्ष (पाकर नाम का वृक्ष विशेष) और ३. कुण्डी (खल) । कमल शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं--१. सलिल (पानी-जल) २. पद्म (कमल) ३. क्लोम (पेट में जल रहने का स्थान, उदरगत जलाशय) ४. भेषज (औषध) और ५. ताम्र (तांबा)। इस तरह कमण्डलु शब्द के तीन और कमल शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : सारसे मृगभेदे तु कमलो ध्रुवकान्तरे । कमला निम्बुके लक्ष्म्यां श्रेष्ठ नार्यामपीष्यते ॥ २६२ ॥ कम्बलो रल्लके नागराज-प्रवारयोः कृमौ । सास्नायामुत्तरासंगे मृगभेदे करस्त्वसौ ॥ २६३ ।। करकायां वलौ हस्ते गभस्ति गजशुण्डयोः । करको दाडिमे राजकरे लट्वा पलाशयोः ।। २६४ ।। हिन्दी टीका-पुल्लिग कमल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सारस (सारस नाम का पक्षी) २. मृगभेद (मृग विशेष) और ३. ध्र वकान्तर (ध्र व तारा विशेष)। कमला शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं --१. निम्बुक (निम्बू) २. लक्ष्मी और ३. श्रेष्ठ नारी (पद्मिनी नायिका)। इस तरह पुल्लिग कमल शब्द के तीन और स्त्रीलिंग कमला शब्द के भी तीन अर्थ समझना Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-करक शब्द चाहिए । कम्बल शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं- १. रल्लक (कम्बल) २. नागराज (कृष्ण सर्प) ३ प्रावार (चादर) ४. कृमि (कीड़ा) ५. सास्ना (गाय कम्बल) ६. उत्तरासंग (कपास की चादर विशेष) और ७. मृगभेद (मृग विशेष) । कर शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. करका (ओला) २. वलि (टैक्स-राजकर) ३. हस्त (हाथ) ४. गभस्ति (किरण) और ५. गजशुण्ड (हाथी की शुण्ड-संड)। करक शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. दाडिम (बेदाना, अनार) २. राज कर (टैक्स) ३. लट्वा (लहू) और ४. पलाश । - मूल : नारिकेलास्थ्नि बकुले कोविदार-करीरयो। वर्षोपले स्त्रियां क्लीबं कमण्डलु करङ्कयोः ॥ २६५ ॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग करक शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. नारिकेलास्थि (नारियल का खोपरा) २. बकुल (मोलसरी फूल) ३. कोविदार (कचनार) और ४. करोर (करील वृक्ष) किन्तु वर्षोपल (ओला) अर्थ में करका शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और नपुंसक करक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. कमण्डलु और २. करंक (पात्र विशेष-झारी)। इस तरह करक शब्द के ११ अर्थ जानना चाहिए । मूल : करटो दुर्दु रूटे स्याद् वायसे निन्द्यजीवने ।। कुसुम्भे द्रविणे श्राद्ध वाद्यभेदेभगण्डयोः ॥ २६६ ॥ करणं साधने क्षेत्रे गात्रे कारण-कर्मणोः । तिथियोगे हस्तलेपेन्द्रिय गीत - क्रियास्वपि ॥ २६७ ।। मुन्यासने च सुरते कायस्थे तु पुमानसौ । करुणः करमर्दै ना स्याद् बुद्ध-रसभेदयोः ॥ २६८ ।। हिन्दी टीका-करट शब्द पूल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. दुर्दु रूट (कर्कश-एकाढ़) २. वायस (कौआ) ३. निन्द्य जीवन (गहित जीवन वाला) ४. कुसुम्भ (वसन्ती रंग-कुसुम्भी वर्ण) ५. द्रविण (धन) ६. श्राद्ध (श्रद्धा वाला) ७. वाद्यभेद (बाजा विशेष) और ८. इभगण्ड (हाथी का गण्डस्थल-कपोल प्रान्त) । करण शब्द नपुंसक है और उसके १४ अर्थ होते हैं --१. साधन (उपकरण) २. क्षेत्र ३. गात्र (शरीर) ४. कारण (हेतु) ५. कर्म ६. तिथियोग (तैतिल वगैरह) ७. हस्त (हाथ) ८. लेप (लेप विशेष) ६. इन्द्रिय (आंख नाक वगैरह) १०. गति ११. क्रिया १२. मुन्यासन (मुनि का आसन विशेप) १३. सुरत (विषय भोग) और १४. कायस्थ अर्थ में करण शब्द नपुंसक समझना चाहिए। करुण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. करमर्द (हस्त मर्दन) २. बुद्ध (बुद्ध भगवान) और ३. रसभेद (रस विशेष-अलंकार शास्त्र का करुण रस)। मूल : कर्कटः पद्मकन्दे च तुम्ब्यां कर्के कुलीरके । वृक्षभेदे पक्षिभेदे क्षुद्रधात्र्यां भुजंगमे ॥ २६६ ॥ कर्कशस्त्रिषु दुःस्पर्शे कृपणे साहसान्विते । पुमानिक्षौ कासम खड्गे काम्पिल्य-पादपे ॥ २७० ॥ हिन्दी टोका-कर्कट शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. पद्मकन्द (कमल का Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-कर्कोटक शब्द | ५१ मूल) २. तुम्बी (तुमरा) ३. कर्क (कर्क नाम की राशि) ४. कुलीरक (ककरा, कर्कोटक) ५. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ६. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) ७. क्षुद्र धात्री (आमला) और ८. भुजंगम (सर्प विशेष, करैत सांप)। कर्कश शब्द त्रिलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं उनमें-१. दुःस्पर्श (कठोर), २. कृपण (कङ्ग्स), और ३. साहसान्वित (साहसी)-इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है और १. इक्षु (गन्ना-शेरडीकोशियार) २. कासमर्द (गुल्म विशेष-वेसवार-बघारने का मसाला) ३. खड्ग (तलवार) और ४. काम्पिल्य पादप (कबीला नाम का वृक्ष विशेष)। इन चार अर्थों में कर्कश शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। कर्कोटको नागराज इक्षौ बिल्बे सुगन्धके । कर्णः कुन्तीसुते श्रोत्रे सुवर्णालि महीरुहे ॥ २७१ ॥ कणिका कर्णभूषायां करिहस्तांगुलौ तथा। पूगच्छतांशे लेखिन्यामग्निमन्थे वराटको ।। २७२ ॥ हिन्दी टोका-कर्कोटक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं --१. नागराज (कृष्ण सर्प) २. इक्षु (गन्ना) ३. बिल्ब ४. सुगन्धक (लता विशेष)। कर्ण शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. कुन्तीसुत (कुन्ती का पुत्र-कर्ण) २. श्रोत्र (कान) ३. सुवर्ण (सोना) ४. अलि (भ्रमर-भौंरा) और ५. महोरुह (वृक्ष)। कर्णिका शब्द स्त्रीलिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. कर्णभूषा (एरंडझूम्मक वगरह) २. करिहस्तांगुलि (अंगुलित्रय संयोग विशेष - मैथुन का साधन विशेष) ३. पूगच्छतांश (सुपारी का अंश) ४. लेखिनी (कलम) ५. अग्निमन्थु (आग मन्थन का साधन विशेष) और ६. वराटक (कौड़ी) । इस तरह कर्कोटक शब्द के पांच और कणिका शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये। मूल : कलशो मण्डने वाठे खड्गकोशे च विग्रहे। कला मूलधनोच्छाये शिल्पादावंशमात्रके ।। २७३ ॥ चन्द्रषोडशभागे स्यादातवे कपटे तरौ। कलिबिभीतके शूरे विवादेऽल्पयुगे रणे ॥ २७४ ।। हिन्दी टोका-कलश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं. १. मण्डन (भूषण) २. वाट (रास्ता वगैरह) ३. खड्गकोश (म्यान तरकस) और ४. विग्रह (संग्राम वगैरह)। कला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. मूलधनोच्छ्राय (मूल धन की वृद्धि) २. शिल्पादि (हुनर-कौशल वगैरह) और ३. अंशमात्र (एक भाग) एवं ४. चन्द्रषोडश भाग (चन्द्र का सोलहवाँ भाग) ५. आर्तव ट (छल) और ७. तरु (वृक्ष)। कलि शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. बिभीतक (बहेड़ा) २. शूर (वीर) ३. विवाद (मतभेद वगैरह) ४. अल्पयुग (कलियुग) और ५. रण (संग्राम)। इस तरह कलश शब्द के चार, कला शब्द के सात और कलि शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिये। कलिका कोरके वीणामूले पदनिबन्धने । कलितं घृत आप्ते च विदिते गणिते त्रिषु ॥ २७५ ॥ कलिंगः पूतिकरजे धूम्याटेप्लक्षपादपे । शिरीषे कुटजे देशविशेषे भूम्नि पुंसि च ॥ २७६ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - कलिका शब्द हिन्दी टीका - कलिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कोरक (कली) २. वीणामूल (वीणा का मूल भाग) और पदनिबन्धन (पद की रचना वगैरह ) । कलित शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - घृत (घी) २. आप्त (प्रामाणिक पुरुष ) ३. विदित (ज्ञात) और ४. गणित (गिना हुआ ) । कलिंग शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. पूतिकरज ( करञ्ज) २. धूम्याट (भृंग के समान काला रंग का भेंम) ३. प्लक्ष पादप (पाकर का वृक्ष) ४. शिरीष (शिरीष नाम का वृक्ष विशेष ) ५. कुटज ( जूही फूल) और ६. देश विशेष (उड़ीसा देश ) किन्तु इस प्रकार उड़ीसा देश के लिए पुल्लिंग बहुवचन में हो कलिंग शब्द का प्रयोग समझना चाहिये ! मूल : कलिंगो भास्करे शैलविशेषे च बिभीतके । कल्को बिभीतके दम्भ घृततैलादिशेषयोः ॥ २७७ ॥ अस्त्री पुरीषे कलुषे त्रिषु पापाशये स्मृतः । कल्पो ब्राह्मदिने न्याये प्रलये विधिशास्त्रयोः ॥ २७८ ॥ हिन्दी टीका - कलिंग शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. भास्कर (सूर्य) २. शैल विशेष ( पर्वत विशेष को भी कलिंग कहते हैं) और ३. बिभीतक ( बहेड़ा) को भी कलिंग शब्द से व्यवहार होता है इस तरह कलिंग शब्द के कुल मिलाकर नौ अर्थ समझना चाहिये । कल्क शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. बिभीतक ( बहेड़ा ) २. दम्भ ( आडम्बर वगैरह ) और ३. घृततैलादिशेष (घृत तेल वगैरह स्नेह पदार्थ का शेष ) । इसी प्रकार ४. पुरीष (विष्ठा ) और ५. कलुष (पाप) इन दो अर्थों में कल्क शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है किन्तु पापाशय ( कुत्सित विचार ) अर्थ में कल्क शब्द त्रिलिंग समझा जाता है । कल्प शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. ब्राह्म दिन (ब्रह्मा का एक दिन ) २. न्याय (इन्साफ ) ३. प्रलय (संहार) ४. विधि और ५. शास्त्र इस तरह पाँच अर्थ जानना । मूल : विकल्पे कल्पवृक्षे च व्याकृतिप्रत्ययान्तरे । कल्पनाऽनुमितौहस्तिसज्जना गुम्फयोः स्त्रियाम् ॥ २७६ ॥ कल्माषो राक्षसे श्यामे गन्धशालौ च कर्बु रे । कल्यो निरामये सज्जे दक्षे वाक्श्रुतिवर्जिते ॥ २८० ॥ हिन्दी टीका - कल्प शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. विकल्प ( अथवा ) २. कल्पवृक्ष ( कल्पतरु ) और ३. व्याकृति प्रत्ययान्तर ( व्याकरण का दूसरा प्रत्यय) | कल्पना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. अनुमिति ( अनुमान करना) २. हस्तिसज्जना ( हाथी को सजाना) और ३. गुम्फन ( गूथना) । कल्माष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - राक्षस (दैत्य दानव) २. श्याम (श्याम वर्ण) ३. गन्ध शालि (खुशबूदार चावल - कामोद वगैरह ) और ४. कर्बुर (चितकबरा) । कल्य शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. निरामय (नीरोग) २. सज्ज ( सन्नद्ध, तैयार, सावधान वगैरह) ३. दक्ष (निपुण-तत्पर) और ४. वाक् श्रुति वर्जित ( गूंगा बहरा ) इस तरह कल्माष शब्द के चार और कल्य शब्द के भी चार अर्थ जानना । मूल : उपायवचने भद्रवचनेऽपि कल्याणं मंगले स्वर्णे त्रिलिंगस्तु त्रिलिंगकः । शुभान्विते ॥ २८१ ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कवि शब्द | ५३ कल्लोलस्तु महावीचि-हर्षयोस्त्रिषु वैरिणि । कवचोऽस्त्री कन्दराले सन्नाहे पटहे स्तुते ॥ २८२ ॥ हिन्दी टीका-किन्तु १. उपाय वचन (उपाय अर्थ) और २. भद्रवचन (कल्याण अर्थ) में कल्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कल्याण शब्द १ मगल (कल्याण) और २. स्वर्ण (सोना) है और ३. शुभान्वित (शुभ से युक्त) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है । कल्लोल शब्द १. महावीचि (अत्यन्त तरंग) अर्थ और २. हर्ष (आनन्द) अर्थ में पुल्लिग हो माना जाता किन्तु ३. वैरी (शत्रु) अर्थ में त्रिलिंग कहा गया है । कवच शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१, कन्दराल (लाही पीपर-पाकर) २. सन्नाह (कवच लोहे का बना हुआ शरीर रक्षक साधन विशेष) ३. पटह (ढक्का) और ४. स्तुति (स्तुति विशेष) इस तरह कल्लोल शब्द के तीन और कवच शब्द के चार अर्थ समझना । मूल : कविः काव्यकरे सूर्ये वाल्मीकिमुनि-शुक्रयोः । विरिञ्चौ पण्डिते कल्कि ज्येष्ठ भ्रातरि तस्करे॥२८३ ॥ कविका कवयीमीने खलीने केविका सुमे । कश्यं मद्येऽश्वमध्येऽपि कशा तु त्रिलिंगकः ॥ २८४ ॥ हिन्दी टोका-कवि शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. काव्यकर (काव्य बनाने वाला) २. सूर्य, ३. वाल्मीकि मुनि, ४. शुक्र (शुक्राचार्य वर्गरह) ५. विरिञ्चि (ब्रह्मा) ६. पण्डित ७. कल्कि ज्येष्ठ भ्राता (कलि का बड़ा भाई) और ८. तस्कर (चोर) इस तरह कवि शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए। कविका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कवयी मीन (कबै नाम की मछली) और २ खलीन (घोड़े का लगाम)। केविका शब्द भी स्त्रीलिंग है, उसका १. सुम (फूल) अर्थ होता है। कश्य शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मद्य (शराब) और २. अश्वमध्य (घोड़े का मध्य भाग) किन्तु ३ कशाह (चाबुक से ताड़ने के योग्य) अर्थ में कश्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि घोड़ा घोड़ी सभी चाबुक से ताड़न के लायक हो सकते हैं। इस तरह कविका शब्द के दो एवं केविका शब्द का एक और कश्य शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल : कश्यपोमद्यपे मत्स्य - मृगभेदे मरीचिके । कषायोऽस्त्री पाचनादौ वङ्गरागे विलेपने ॥ २८५ ॥ निर्यासे तुवरेऽपि स्यात्रिषु तूवरवत्यपि । पुमान् श्योनाकवृक्षे स्याद् रागे कलियुगे स्मृतः ॥ २८६ ।। हिन्दी टीका-कश्यप शब्द पुल्लिग है और इसके चार अर्थ होते हैं-१. मद्यप (शराब पीने वाला) २. मत्स्य (मछली विशेष) ३. मृगभेद (हिरण विशेष) और ४. मरीचिज (मरीचि ऋषि का पुत्र कश्यप)। कषाय शब्द पुल्लिग और नपुंसक है उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पाचनादि (पाचन के लिए क्वाथ काढ़ा) २. वंग राग (गेरुआ रंग) और ३ विलेपन (लेप का साधन) । इस तरह कश्यप शब्द के चार और कषाय शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। कषाय शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं--१. निर्यास (काढ़ाक्वाथ) २. तुवर (कसैला रस) किन्तु ३. तूवरवत् (कसैला रस से युक्त) अर्थ में कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुल्लिग स्त्रीलिंग तथा नपुंसक साधारण कषाय रस से युक्त हो Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -कक्ष शब्द ५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहितसकती है । किन्तु ४. श्योनाक वृक्ष ( सोना पाठा) अर्थ में और ५. राग राग विशेष) एवं ६. कलियुग अर्थ में कषाय शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है, इस तरह मिलाकर कषाय शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए । मूल : त्रिलिंगो लोहिते रक्त पीत - मिश्रितवर्णके । सुरभौ धववृक्षेऽथ कक्षस्तृणे बाहुमूलेकच्छे वीरुधि कल्मषे । वने शुष्कवने पार्श्वे भित्तौ शुष्कतृणे पुमान् ॥ २८८ ॥ · कसिपुर्वसनान्नयोः ।। २८७ ।। हिन्दी टीका - इसी प्रकार लोहित (लाल वर्ण युक्त) अर्थ में तथा १०. रक्तपीत मिश्रित वर्ण अर्थ में कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है एवं ११. सुरभि ( खुशबूदार ) अर्थ एवं १२. धववृक्ष ( पाकर का वृक्ष) अर्थ में भी कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कसिपु शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. वसन (वस्त्र- कपड़ा) और २. अन्न (अनाज) । इस तरह कुल मिलाकर कषाय शब्द के बारह अर्थ और कसिपु शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए। कक्ष शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ होते हैं१. तृण (घास का ढेर ) २. बाहुमूल (कांख) ३. कच्छ (अत्यन्त अधिक जलमय भूमि) ४. वीरुध (तरुलता गुल्म) ५. कल्मष (पाप) ६. वन (जंगल) ७ शुष्कवन (सूखा हुआ वन ) ८. पार्श्व ( बगल ) ६. भित्ति ( दीवाल) और १०. शुष्कतृण (सूखा हुआ घास) । इस प्रकार कक्ष शब्द के कुल मिलाकर दस अर्थ समझना चाहिये । मूल : कक्षा स्पर्द्धापदे काञ्च्यां भित्तौ गेहप्रकोष्ठके । क्षुद्र रोगान्तरे साम्ये कक्ष्या स्पन्दन-भागयोः ॥ २८६ ॥ स्यात् कक्षावेक्षकोरङ्गाजीव- शुद्धान्तपालयोः । उद्यानरक्षके द्वारपाल के कविषिङ्गयोः ॥ २६० ॥ हिन्दी टीका - कक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. स्पर्द्धापद (कम्पिटीशन ) २. काञ्ची (करधनी मेखला ) ३. भित्ति ( दीवाल) ४ गेह प्रकोष्डक ( घर का प्रकोष्ठ देहली कमरा) । कक्ष्या शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं - १. क्षुद्ररोगान्तर ( खुजली कलकलि) २. साम्य ( सरखापन ) ३ स्पन्दन (क्रिया) ४. भाग (एक देश ) ५. कक्षावेक्षक (एक पक्ष का निरीक्षक) ६. रंगाजीव (चित्रकार) ७. शुद्धान्तपाल (अन्तःपुर का रक्षक ) ८. उद्यानरक्षक ६. द्वारपालक, १०. कवि और ११. पिंग (हिजड़ा नपुंसक ) । इस तरह कक्षा शब्द के चार और कक्ष्या शब्द के ग्यारह अर्थ समझना चाहिये । मूल : कक्ष्या काञ्च्यां चर्मरज्जौ सादृश्येऽन्तर्गृ हे स्त्रियाम् । कक्षरज्जौवरत्रायां गुञ्जायामुद्य काकोऽतिधृष्टे तिलके वायसे शिरोऽवक्षालने द्वीविशेषे स्मृता ।। २६१ ॥ पादपान्तरे । पीठसर्पिणि ।। २६२ ॥ हिन्दी टीका-कक्ष्या शब्द के और भी आठ अर्थ होते हैं - १. कांची ( करधनी मेखला कन्दोरी) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-काकपक्ष शब्द | ५५ २. चर्मरज्जु (चमड़े की डोरी चाबुक वगैरह) ३. सादृश्य (सरखापन) ४. अन्तगृह (अन्तःपुर राजा की हवेली) ५. कक्षरज्जु (बगल को बांधने की डोरी) ६. वरत्रा (चाबुक) ७. गुजा (चनौटी, करजनी) और ८. उद्यम (व्यवसाय उद्योग) इस तरह कुल मिलाकर कक्ष्या शब्द के उन्नीस अर्थ समझना चाहिए । काक शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. अतिधृष्ट (अत्यन्त धीठ) २. तिलक, ३. वायस (कौवा) ४ पादपान्तर (वृक्ष विशेष) ५. शिरोऽवक्षालन (कंगही) ६. द्वीप विशेष और ७. पीठसी (पीछे पीछे अनुसरण करने वाला) इस तरह काक शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये । मूल : परिमाणविशेषेऽथ काकपक्षः शिखण्डके। काकरूकः पुमान् दम्भेस्त्रीजिते घूकपक्षिणि ॥ २६३ ॥ दिगम्बरे दरिद्रे च भीरुकेस्यात्त्रिलिङ्गकः।। काकिणी पणतुर्यांशे कृष्णला मानदण्डयोः ॥ २६४ ॥ हिन्दी टीका-१. परिमाणविशेष को भी काक कहते हैं। कुल मिलाकर काक शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिये । काकपक्ष शब्द पुल्लिग है और उसका १. शिखण्डक (बच्चों का चोटला-चूड़ा, जुल्फी, शिखा सामान्य) अर्थ समझना चाहिए। काकरूक शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. दम्भ (आडम्बर) २. स्त्रीजित् (स्त्रो से जीता हुआ, स्त्रीवश) ३. घूकपक्षी (उल्लू) किन्तु ४. दिगम्बर . भीरुक (डरपोक) इन तीन अर्थों में काकरूक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। काकिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पणतुर्यांश (कौड़ी, वराटिका, पैसे का चौथा भाग) २. कृष्णला (करजनी, चनौटी, मूंगा) और ३. मानदण्ड (आढक का पचासवाँ हिरसा)। इस तरह काकिणी शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : काकोलो द्रोणकाके स्यात् काकोल्याख्यौषधान्तरे । भुजङ्गमे कुम्भकारे पुमान् स्यात् सूकरान्तरे ॥ २६५ ॥ काञ्चनं कनके वित्ते किजल्के नागकेशरे । पुमांस्तु कोविदारे स्यान्नागकेशर - पादपे ॥ २६६ ॥ हिन्दी टीका-काकोल शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. द्रोणकाक (काला कौवा कारकौवा) २. काकोल्याख्यौषधान्तर (काकोली नाम का औषध विशेष) ३. भुजंगम (सांप) ४. कुम्भकार (कुम्हार) और ५. सूकरान्तर (वनया सूगर)। इस तरह काकोल शब्द के पांच अर्थ जानना चाहिए । नपुंसक कांचन शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. कनक (सोना) २. वित्त (धन) ३ किंजल्क (पुष्प पराग) और ४. नागकेशर (केशर चन्दन)। किन्तु पुल्लिग कांचन शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. कोविदार (कचनार) और २. नागकेशर पादप (नागकेशर का वृक्ष)। इस तरह मिलाकर कांचन शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। मूल : उदुम्बरे च धुस्तूरे चम्पकेऽपि प्रयुज्यते । स्त्रीकट्याभरणे कांची मोक्षदायि पुरान्तरे ।। २६७ ॥ काण्डोऽस्त्री कुत्सिते बाणे दण्डे नीर समूहयोः । वर्गे रहसि प्रस्तावे श्लाघायांस्तम्ब-चन्द्रयोः ॥ २६८ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-काञ्चन शब्द हिन्दी टीका-काञ्चन शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. उदुम्बर (गूलर) २. धुस्तूर (धतूरे) और ३. चम्पक (चम्पा फूल)। काञ्ची शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्त्रीकट्याभरण (करधनी-मेखला-कन्दोरी) २ मोक्षदायिपुरान्तर (मोक्षपुरी विशेष) क्योंकि "काशी काञ्ची अवन्तिका" इस वचन से काञ्ची को भी मोक्षपूरी कहा गया है। काण्ड शव्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके ११ अर्थ होते हैं -१. कुत्सित (निन्दित) २. बाण, ३. दण्ड, ४. नीर (जल) ५ समूह, ६. वर्ग (समुदाय) ७. रहसि (एकान्त) ८. प्रस्ताव (प्रस्तावना) ६. श्लाघा (प्रशंसा) १०. स्तम्ब (गुच्छा) और ११. चन्द्र । इस तरह कुल मिलाकर काञ्चन शब्द के है और काञ्ची शब्द के दो तथा काण्ड शब्द के ११ अर्थ जानना चाहिए। मूल : पापीयसि तरुस्कन्धे काणो विकल लोचने । कादम्ब: कलहंसे स्यात् कदम्बतरु बाणयो ॥२६६।। कादम्बरी सरस्वत्यां मदिरा ग्रन्थभेदयोः । कोकिलायां शारिकाख्य पक्षिण्यामपि कीर्तिता ॥३०॥ हिन्दी टीका-काण्ड शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं १ पापीयान् (पापी) और २. तरु स्कन्ध (वृक्ष का कन्धा :- मध्य भाग)। काण शब्द का १. विकललोचन (अन्धा) अर्थ होता है। कादम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कलहस (हंसपक्षी) २. कदम्ब तरु (कदम्ब का वृक्ष) और ३. बाण (शर)। कादम्बरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सरस्वती, २. मदिरा (शराब) ३. ग्रन्थ विशेष (कादम्बरी नाम का गद्य महाकाव्य) ४. कोकिला (कोयल) और ५. शारिकाख्यपक्षी (मेना) । इस तरह काण्ड शब्द के कुल मिलाकर १३ और काण शब्द का एक तर्थ कादम्ब शब्द के तीन एवं कादम्बरी शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : काननं भवनेऽरण्ये ब्रह्मणो वदने स्मृतम् । कान्तः पुमान् चन्द्रमसि श्रीकृष्णे हिज्जलद्रुमे ॥३०१॥ पत्यौ वसन्ते क्लीवन्तु कुङ्क मे त्रिषु शोभने । कान्ता नागरमुस्तायां रेणुका स्त्री विशेषयोः ॥३०२।। हिन्दी टीका-कानन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भवन (मकान, गृह) २. अरण्य (वन जंगल) और ३. ब्रह्मवदन (ब्रह्म का मुख)। कान्त शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. चन्द्रमा, २. श्रीकृष्ण, ३. हिज्जलद्रुम (जल बेंत-स्थल बेंत) ४. पति, ५. बसन्त (ऋतु विशेष) ६. कंकुम अर्थ में नपुंसक और शोभन अर्थ में त्रिलिंग समझना चाहिए। कान्ता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ नागरमुस्ता (नागर मोथा) २. रेणुका (जमदग्नि की स्त्री) और ३. स्त्रीविशेष (पतिप्रिया)। इस तरह कानन शब्द के तीन और कान्त शब्द के सात तथा कान्ता शब्द के भी तीन अथा समझना चाहिए। मूल : पोषायां बृहदेलायां प्रियङ्ग, पादपे स्त्रियाम् । कान्तार इक्षुभेदे स्याद् वंशे कुद्दाल-पादपे ॥३०३॥ कान्तारोऽस्त्रीबिले दुःखगम्यमार्गे महावने । कान्तिर्घतौस्त्री शोभायां दुर्गायां वाञ्छनेपि च ॥३०४॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कान्ता शब्द | ५७ हिन्दी टीका - कान्ता शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. योषा (स्त्री) २. बृहदेली (बड़ी इलाइची) और ३. प्रियंगु पादप ( प्रियंगुलता नाम का वृक्ष विशेष ) । इस तरह कुल मिलाकर कान्ता शब्द के छह अर्थ समझना चाहिए। पुल्लिंग कान्तार शब्द के तोन अर्थ होते हैं - १. इक्षु भेद ( गन्ना विशेष ) २. वंश कुल, खानदान) और कुद्दाल पादप (कचनार नाम का वृक्ष) और पुल्लिंग नपुंसक उभयलिंगक कान्तार शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं - १. बिल, २. दुःखगम्य मार्ग ( बीहड़ रास्ता ) और ३. महावन ( बड़ा जंगल) । कान्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. द्युति (दीप्ति, ज्योति वगैरह ) २. स्त्री शोभा (स्त्री का सौन्दर्य विशेष लावण्य) ३. दुर्गा (पार्वती) और ४. वांछन ( इच्छा) 1 इस प्रकार कान्तार शब्द के छह और कान्ति शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । मूल : कामं रेतस्यनुमितौ निकामे काम्य बाढयोः । कामोऽभिलाषे कन्दर्पे काम्ये संकर्षणे पुमान् ॥ ३०५ ॥ कामिनी गाढकन्दर्प योषा - सामान्य योषितोः । मदिरा - वन्दयोर्दारु हरिद्रायामपि स्त्रियाम् ॥ ३०६ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक काम शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. रेतस् (वीर्य) २. अनुमिति ( अनुमान) ३. निकम (अत्यन्त ) ४. काम्य ( वांछनीय) और ५. बाढ ( बहुत अच्छा ) । किन्तु पुल्लिंग काम शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. अभिलाषा (इच्छा) २. कन्दर्प (कामदेव ) ३. काम्य ( कमनीय वस्तु) और ४. संकर्षण (बलराम) । इस तरह कुल मिलाकर काम शब्द के नौ अर्थ जानना चाहिए । कामिनी शब्द स्त्रीलिंग हैं। और उसके छह अर्थ होते हैं - १. गाढ़ कन्दर्प योषा ( अत्यन्त काम वासना वाली स्त्री) २. सामान्य योषित (साधारण स्त्री) ३. मदिरा (शराब) ४. वन्दा ( वांदा-वाँझ, वृक्ष के ऊपर होने वाली लता विशेष जिसको वाँदी कहते हैं ।) ५. दारु (लकड़ी) और ६. हरिद्रा (हल्दी) । इस तरह कामिनी शब्द के छह अर्थ समझना । मूल : कामी पारावते चन्द्रे कामुके चटके पुमान् । चक्रवाके सारसाख्य पक्षि- भेषजभेदयोः ॥ ३०७ ॥ कायो मूलधने संघ प्राजापत्यविवाहयोः । स्वभावे ब्राह्म तीर्थे च मूर्तौ लक्ष्ये पुमान् स्मृतः ॥ ३०८ ॥ हिन्दी टीका - कामी शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. पारावत ( कबूतर - पारेवा) २. चन्द्र (चन्द्रमा) ३. कामुक ( कामी पुरुष ) ४. चटक ( चकली - बगड़ा पक्षी) ५. चक्रवाक (चकवा पक्षी विशेष ) ६. सारसाख्य पक्षी (सारस पक्षी) और ७. भेषज भेद ( औषध विशेष, जिससे काम वासना बढ़ती है) । इस तरह कामी शब्द के सात अर्थ समझना चाहिए। काय शब्द पुल्लिंग है और उसके भी सात अर्थ होने हैं - १. मूलधन, २. संघ ( समुदाय) ३. प्राजापत्य विवाह ( प्राजापत्य नाम का विवाह ) ४. स्वभाव ( नेचर) ५. ब्राह्म तीर्थ (अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य भाग को ब्राह्मकायतीर्थ कहते हैं ) ६. मूर्ति, और ७. लक्ष्य (उद्देश्य) को भी काय कहते हैं । इस तरह काय शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये । मूल : कारो वधेतुषाराद्रौ निश्चयेबलियत्नयोः । पत्यौ तौ क्रियायां स्यादथ कारणमिन्द्रियो ॥ ३०६ ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कार शब्द वाद्यभेदे वथे देहे कर्मगीतप्रभेदयोः। कायस्थे करणे हेतौ साधनेऽपि प्रयुज्यते ॥ ३१० ॥ हिन्दी टीका-कार शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं --१. वध (हिंसा) २. तुषाराद्रि (हिमालय) ३. निश्चय (निर्णय) ४. बलि. ५. यत्न, ६. पति, ७. यति (संन्यासी) और ८. क्रिया (क्रिया करना) । कारण शब्द नपुंसक है और उसके नौ अर्थ होते है --१. इन्द्रिय, २. वाद्यभेद (बाजा विशेष) ३. वध, ४. देह ५. कर्म (क्रिया) और ६. गीतप्रभेद (गीत विशेष) ७. कायस्थ करण (शरीर के अन्दर विद्यमान मन वगैरह करण) ८. हेतु (कारण) और ६. साधन। इस तरह कारण शब्द के नौ अर्थ जानना। मूल : कारा प्रसेवके दूत्यां पीडायां बन्धनालये । सुवर्णकारिकायां च बन्धनेऽपि स्त्रियां मता ॥ ३११ ॥ कारिका यातना वृद्धि शिल्पेषु नट योषिति । कृतौ विवरणश्लोके क्लीबं कर्मादिकारके ॥ ३१२ ॥ हिन्दी टोका-कारा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं -१. प्रसेवक (सेवा करने वाला) २. दूती, ३. पीड़ा (दुःख कष्ट वगैरह) ४. बन्धनालय (जेल खाना) ५. सुवर्णकारिका (सोना बनाने वाली) और ६. बन्धन (बाँधना)। इस तरह कारा शब्द के छह अर्थ जानना। कारिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं- १. यातना (वेदना, अत्यन्त दुःख) २. वृद्धि, ३. शिल्प (कला-हुनर) ४. नट योषित (नटभार्या-नटी) ५. कृति (यत्न) ६. विवरण श्लोक (अनुवाद पद्य) किन्तु ७. कर्मादिकारक (कर्ता कर्म करण वगैरह कारक) अर्थ में पुल्लिग ही माना जाता है । इस तरह कारिका शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : कारुजो गैरिके शिल्पि चित्रे वल्मीक फेनयोः । स्वयंजाततिले नागकेशरे करभे पुमान् ॥ ३१३ ॥ कार्तिक: कार्तिकेये स्याद् बाहुले हायनान्तरे । कार्मण मन्त्र - तन्त्रादियोजने मूलकर्मणि ॥ ३१४ ।। कर्मठे तु त्रिलिंगः स्यादथ स्यात् पुंसि कार्मुकः । हिज्जले कदरे वंशे महानिम्बे क्रियाक्षमे ॥ ३१५ ।। हिन्दी टोका-कारुज शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं -१. गैरिक (गैरिक धातु) २. शिल्पी चित्र (शिल्पि का चित्र) ३. वल्मीक (दीमक) ४. फेन, ५. स्वयंजात तिल (स्वयम् वन में उत्पन्न तिल) ६. नागकेशर और ७. करभ (ऊँट के बच्चे को बाँधने का काष्ठ की बनी हुई बेड़ी पाद बन्धन)। इस तरह कारुज शब्द के सात अर्थ समझना। कार्तिक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. कार्तिकेय, २. बाहुल (कार्तिक मास) ३. हायनान्तर (वर्ष का मध्य)। कार्मण शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. मन्त्र तन्त्रादि योजन (मन्त्र-तन्त्रादि का प्रयोग टोना-टापर) और २. मूल कर्म, किन्तु ३. कर्मठ (कर्म निपुण) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। कामुक शब्द भी पुल्लिग है और Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कार्य शब्द ! ५६ उसके पाँच अर्थ होते हैं—१. हिज्जल (जल बेंत-स्थल बेत) २. कदर (सफेद कत्था) ३. वंश (कुल) ४. महानिम्ब, और ५. क्रियाक्षम (क्रिया करने में समथ)। इस तरह कार्तिक शब्द के तीन और कार्मण शब्द के तीन एवं कामुक शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिये। मूल : कार्य प्रयोजने हेतौ विवादे प्रत्ययादिषु । उन्मत्ते क्षपणेऽनर्थकरे कार्यपुट: पुमान् ॥ ३१६ ॥ हिन्दी टोका-कार्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. प्रयोजन (उद्देश्य) २. हेतु (कारण) ३. विवाद, ४. प्रत्ययादि (व्याकरणशास्त्रप्रसिद्ध सुतिङ वगैरह प्रत्यय) आदि शब्द से आगम वगैरह समझना चाहिये । कार्यपुट शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. उन्मत्त (पागल) २. क्षपण (संन्यासी) और ३. अनर्थकर (अनर्थजनक वस्तु) इस प्रकार कार्य शब्द के तीन और कार्यपुट शब्द के भी तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : कार्यः कचूर - लकुच-कृशता - सालपादपे । काषिकेषोडशपणे प्रोक्त: कार्षापणेऽस्त्रियाम् ॥ ३१७ ॥ कालः क्षणादिसमये कासम शनौ यमे । मृत्यौ राले महाकाले कोकिले रक्तचित्रके ॥ ३१८ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कार्य शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कचूर (वनस्पति विशेष) २. लकुच (लोची) ३. कृशता (पतलापन) और ४. सालपादप (सांखु का वृक्ष) । कार्षापण शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसका १. षोडशपण (सोलह पैसा का बना हुआ सिक्का विशेष) कार्षिक अर्थ माना जाता है। काल शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं -१. क्षणादि समय (क्षण पल मिनट घण्टा वगैरह) २. कासमर्द (गुल्म विशेष-वेसवार छौंकने का साधन विशेष) ३. शनि, ४. यम (धर्मराज) ५. मृत्यु, ६. राल (धूप) ७. महाकाल, ८. कोकिल (कोयल) और ६. रक्तचित्र (लाल चित्र) । इस तरह कार्य शब्द के चार एवं कार्षापण शब्द का एक और काल शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिये। मूल: कृष्णवर्ण त्रिलिंगस्तु मत: कृष्णगुणान्विते । कालकण्ठोः महादेवे मयूर कलविङ्कयोः ॥ ३१६ ॥ पीतसारे खंजरीटे पुमान् दात्यूहपक्षिणि । कालंजरो योगिचक्रमेलके पर्वतान्तरे ॥ ३२० ॥ हिन्दी टोका -पुल्लिग काल शब्द का कृष्ण वर्ण (काला वर्ण) भी अर्थ होता है किन्तु कृष्ण गुणान्वित (काला वर्ण से युक्त) अर्थ में काल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कालकण्ठ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. महादेव, २. मयूर, ३. कलविंक (चकली, गौरैय्या) ४. पीतसार (वृक्ष विशेष) ५ खरीट (खञ्जन पक्षी) और ६. दात्यूह पक्षी (धूये से रंग वाला कौवा -कारकौवा)। काल जर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १ योगि चक्र मेलक (योगियों का षट् चक्र मेलक ध्यान काल विशेष) और २. पर्वतान्तर (पर्वत विशेष) को भी कालजर कहते हैं । इस प्रकार कालकण्ठ के छह और कालंजर शब्द के दो अर्थ हुए। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- कालज्ञ शब्द मूल : देशभेदे भैरवेऽथ कालज्ञः कुक्कुटे पुमान् । मंजिष्ठा-त्रिवृतोः सोमवल्ल्यो कालमषी स्त्रियाम् ॥३२१॥ कालरात्रिर्भीमरथी शक्तिभेद कल्पनिशास्वपि। कालस्कन्धो दुष्खदिरे तमाले जीवकद्रुमे ॥ ३२२ ॥ हिन्दी टीका-१. देशभेद (देश विशेष) को, २. भैरव (काल भैरव) को भी कालजर कहते हैं। कालज्ञ शब्द पुल्लिग है और उसका १. कुक्कुट (मुरगा) अर्थ होता है। कालमषी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मञ्जिष्ठा (मजीठा रंग) २. त्रिवृत् (काला निशीथ) और ३. सोमवल्ली (सोमलता) । कालरात्रि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. भीमरथी, २. शक्तिभेद (शक्ति विशेष) और ३. कल्पनिशा (प्रलय रात्रि)। कालस्कन्ध शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. दुष्खदिर (खराब कत्था) २. तमाल (गुल्मलता विशेष) और ३. जीवकद्र म (बन्धन वृक्ष)। इस तरह कालमषी शब्द के तीन एवं कालरात्रि शब्द के भी तीन और कालस्कन्ध शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं। मूल : उदुम्बरे तिन्दुकेऽथ कालसूत्रं तु नारके । काला कुलिकवृक्षेऽश्वगन्धा-मंजिष्ठयोः स्त्रियाम् ॥३२३॥ नीलिनी पाटलावृक्ष-पालिन्दी सुषवीष्वपि । कालानुनादी भ्रमरे कलविङ्क कपिजले ॥ ३२४ ॥ हिन्दी टीका-कालस्कन्ध शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. उदुम्बर (गलर) और २. तिन्दुक (कोचिला-उरकुसी, जिसको खिला देने से प्राणी मर जाते हैं)। कालसूत्र शब्द नपुंसक है और उसका १. नारक (नरक) अर्थ होता है । काला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं · कुलिक वक्ष (रेंगनी कटया) २. अश्वगन्धा (वृक्ष विशेष, जिसका गन्ध घोड़े के सरखा होता है) ३. मंजिष्ठा (मजीठा) ४. नीलिनी (नील) ५. पाटला वृक्ष (गुलाब) ६. पालिन्दी (काला निशीथ, श्याम त्रिधारा) और ७. सूषवी (करैला-करैल)। कालानुनादी शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भ्रमर (भौंरा) २. कलविङ्क (चकली, गोरैया, फुद्दी वगैरह) और ३. कपिजल (पक्षी विशेष, कचवचिया-हरिया वगैरह) । इस तरह काला शब्द के सात और कालानुनादी शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : चातकेऽप्यथ कालिङ्ग कालिन्दक फल स्मृतम् । कालिङ्गो भूमिकूष्माण्डेसर्पे लोहान्तरेगजे ॥ ३२५ ॥ कावेरी स्त्री हरिद्रायां वेश्यायां सरिदन्तरे । ग्रन्थे रसात्मके वाक्ये काव्यं शुक्र तु पुंस्ययम् ॥ ३२६ ॥ हिन्दी टीका-कालानुनादी शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. चातक (पक्षी विशेष)। नपंसक कालिङ्ग शब्द का १. कालिन्दक फल (जामुन) अर्थ होता है, पुल्लिग कालिंग शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. भूमिकूष्माण्ड (कोहला-कदीमा, कुम्हर) २. सर्प (साँप) ३. लोहान्तर (इस्पात) और १. गज (हाथी)। कावेरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१.हरिद्रा (हलदी) २. वेश्या (वारांगना Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-काव्या शब्द | ६१ रण्डी) और ३. सरिदन्तर (नदी विशेष) नपुंसक काव्य शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. ग्रन्थ (पुस्तक) और २. रसात्मक वाक्य (रसमय वाक्य विशेष) किन्तु शुक्र अथ में काव्य शब्द पुल्लिग माना जाता है। मूल : काव्या स्त्री पूतनायां स्यात् धीषणायामपीष्यते । काष्ठा दारुहरिद्रायामुत्कर्षे स्थिति सीमयोः ॥३२७।। अष्टादश निमेषात्मकालेदिशि मता स्त्रियाम् । कासः शोभाञ्जने काशतृणरोगविशेषयोः ॥३२८॥ हिन्दी टीका- काव्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पूतना (राक्षसी विशेष) और २ धीषणा (बुद्धि विशेष) । काष्ठा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. दारुहरिद्रा (काष्ठ विशेष), २. उत्कर्ष, ३. स्थिति, ४. सीमा, ५. अष्टादश निमेषात्मक काल (काल विशेष) और ६. दिशा (प्राची वगैरह दिशा) । कास शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शोभाजन (अञ्जन विशेष) २. काशतृण (कासमुंज वगेरह तृण विशेष) और ३. रोग विशेष (कास श्वास)। मूल : कासूविकलवाग् बुद्धि-रोग-शक्त्यास्त्रदीप्तिषु । काहलस्तु पुमान् वाद्यभाण्डभेदविडालयोः ॥३२६॥ हिन्दी टीका-कासू शब्द के पांच अर्थ होते हैं-१. विकलवाक् (गंगा) २. बुद्धि, ३. रोग (ब्याधि) ४. शक्त्यस्त्र (शक्ति नाम का अस्त्र विशेष) और ५. दीप्ति (प्रकाश प्रभा वगैरह)। इस तरह कासू शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिए । काहल शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. वाद्यभाण्ड भेद (ढोल वगैरह) २. विडाल (बिल्ली) शेष पाँच अर्थ आगे बतलाये जाते हैं। मूल : शब्दमात्रे कुक्कुटेऽथभृशे शुष्के खले त्रिषु । काहारकस्तु शिविकावाहके किंकरः पुमान् ॥३३०॥ घोटके कोकिले कामदेव इन्दिन्दिरेऽपि च । किङ्किरातः शुकेऽशोके कन्दर्पे पीतभद्रके ॥३३१॥ हिन्दी टीका-काहल शब्द के और भी पांच अर्थ निम्न प्रकार जानना चाहिए-१. शब्दमात्र, २. कुक्कुट (मुर्गा) और ३. भृश (अत्यन्त) एवं ४. शुष्क (सूखा हुआ) तथा ५. खल (दुष्ट शत्रु) इन तीन अर्थों में काहल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। काहारक शब्द का १. शिविकावाहक (कहार) अर्थ होता है। किङ्कर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. घोटक (घोड़ा) २. कोकिल (कोयल) ३. कामदेव और ४. इन्दिन्दिर (भ्रमर)। किकिरात शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते शुक (तोता, सूगा) २. अशोक (अशोक नाम का वृक्ष विशेष) ३. कन्दर्प (कामदेव) और ४. पीतभद्रक (वृक्ष विशेष)। मूल : रक्ताम्लाने कोकिलेऽथ किजल्कः केशरे पुमान् । किट्टालस्तु पुमान् ताम्रकलशे लोहगूहके ॥३३२॥ किणिः स्त्रियामपामार्गेमांसग्रन्थौ घुणे पुमान् । कितवौ वाचके मत्ते द्यूतकृतु खलयोः पुमान् ॥३३३॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --किकिरात शब्द हिन्दी टीका-किकिरात शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१ रक्ताम्लान (फल विशेष) और २. कोकिल (कोयल)। किञ्जल्क शब्द पुल्लिग है और उसका एक अर्थ होता है-१. केशर । किट्टाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. ताम्र कलश (ताँबे का घड़ा) और २. लोहगूथक (लोहे का जंग-कीट) । स्त्रीलिंग किणि शब्द के दो अर्थ होते हैं-अपामार्ग (चिरचीरी) और २. माँसग्रन्थि (मांस का गाँठ ढेला वगैरह) किन्तु ३. घुण (घुन दीमक) अर्थ में किणि शब्द पुल्लिग है। कितव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-वंचक (ठगने वाला) २. मत्त (पागल) ३. द्यूतकृत् (जूआ खेलने वाला जुआरी) ४. खल (दुष्ट-शत्रु)। मूल : किन्नरोऽस्त्री किंपुरुषस्याज्जिनोपासकान्तरे । किरणो भास्करे रश्मिसामान्ये सूर्यतेजसि ॥ ३३४ ॥ किरातोऽल्पतनौम्लेच्छे भूनिम्बे वाजिरक्षके। किराती-जाह्नवी-दुर्गा-स्वर्गङ्गा कुट्टिनीषु च ।। ३३५ ॥ हिन्दी टीका-किन्नर शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. किम्पुरुष (गन्धर्व विशेष) और २. जिनोपासकान्तर (जिन भगवान का सेवक विशेष) । किरण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं ... १. भास्कर (सूर्य) २. रश्मि सामान्य (किरण) और ३. सूर्य तेज (सूर्य की किरण)। पुल्लिग किरात शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. अल्प तनु (नाटा वामन) २. म्लेच्छ (यवन वगरह) ३. भूनिम्ब (लीमड़ा) और ४. वाजिरक्षक (घोड़े का सेवक) । स्त्रीलिंग किराती शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. जाह्नवी (गंगा) २. दुर्गा, ३. स्वगंगा (आकाश गंगा) और ४. कुट्टनी स्त्री (स्त्रियों को फुसलाकर कुमार्ग में प्रेरित करने वाली स्त्री)। इस तरह किन्नर शब्द के दो और किरण शब्द के तीन तथा किरात-किराती शब्द के मिलाकर छह अर्थ होते हैं। किशोरोऽश्वशिशौ तेलपर्ध्या तरुणसूर्ययोः । किष्कुः प्रकोष्ठे हस्ते च वितस्तौ कुत्सिते त्रिषु ॥ ३३६ ॥ कीचकोऽनिलसंबन्ध-ध्वनवंशे दुमान्तरे । नले विराट श्याले च राक्षसान्तर दैत्ययोः ॥ ३३७ ॥ हिन्दी टोका-किशोर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. अश्वशिशु (घोड़े का बच्चा) २. तैलपर्णी (सफेद ठण्डा चन्दन) ३. तरुण (नवयुवक) और ४ सूर्य । किष्कु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १ प्रकोष्ठ (कमरा) २. हस्त (हाथ) ३. वितस्ति (बीत्ता विलस्त) किन्तु ४. कुत्सित( निन्दित) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। कीचक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं – १. अनिल सम्बन्ध-ध्वनद् वंश (पवन के सम्बन्ध से अव्यक्त ध्वनि शब्द युक्त बाँस का पेड़) २. द्र मान्तर (वृक्ष विशेष) ३. नल, ४. विराट श्याल (विराट राजा का शाला) ५. राक्षसान्तर (राक्षस विशेष) और ६. दैत्य (दानव)। मूल : कीनाशः कर्षके क्षुद्रे पशुघातिनि वाच्यवत् । यमे वानरभेदेऽथ कीरः शुकविहङ्गमे ॥ ३३८ ॥ मूल : Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कीनाश शब्द | ६३ कीतिर्यशसि विस्तारे प्रसादे मातृकान्तरे । शब्द कर्दमयोर्दीप्तौ कीलो वैश्वानराचिषि ॥ ३३६ ॥ तम्भे कफोणिनिर्घात कफोणौशंकू-लेशयोः । कीशः सूर्ये खगे पुंसि वानरे त्रिष्ववाससि ॥ ३४० ॥ हिन्दी टीका-कीनाश शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कर्षक (खींचकर ले जाने वाला) २. क्षुद्र (नीच विचार वाला) किन्तु ३. पशु घाती अर्थ में वायलिंग (त्रिलिंग) माना जाता है, ४. यम (धर्मराज) ५. वानरभेद (लंगूर)। कीर शब्द भी पुल्लिग है और उसका १. शुकविहंगम (तोता पोपट पक्षी) अर्थ होता है। कीर्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. यश (ख्याति) २ विस्तार ३. प्रसाद (प्रसन्नता) ४. मातृकान्तर (मातृका विशेष) ५. शब्द ६. कर्दम (कीचड़) और ७. दीप्ति (ज्योति प्रकाश वगैरह।। कोल शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं --- १. वैश्वान राचिष (अग्नि ज्वाला) २. तम्भ (खम्म) ३. कफोणि निर्घात (केहुनी का आघात) ४. कफोणि (केहुनी) ५. शंकु (खूटा) ६. लेश (अल्प) । कीश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-सूर्य, २. खग (पक्षी) ३. वानर किन्त ४. अवासस (दिगम्बर) अर्थ में कीश शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि वस्त्र रहित पुरुष स्त्री साधारण कोई भी हो सकता है । कुक्कुटोऽस्त्री तृणोल्कायां स्फुलिंग चरणायुधे । कुक्कुभे शूद्रपुत्रेपि निषादतनये स्मृतः ॥ ३४१ ॥ कुक्कुरः सारमेये स्यात् कुक्कुरी कुक्कुरस्त्रियाम् । कुञ्चिका वंशशाखायां गुञ्जायां कृष्णजीरके ॥ ३४२ ॥ हिन्दी टीका-कुक्कुट शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं–१. तृणोल्का(तृण का उल्का) २. स्फुलिंग (आग की चिनगारी) ३. चरणायुध (मुरगा) ४. कुक्कुभ (पक्षी विशेष) ५. शूद्रपुत्र और ६. निषादतनय (धीवर मल्लाह का लड़का)। कुक्कुर शब्द पुल्लिग है और उसके १. सारमेय (कुत्ता) अर्थ होता है । कुक्कुरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका १. कुक्कुर स्त्री (कुतिया) अर्थ होता है। कुञ्चिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वंश शाखा (करची) २. गुजा (मूंगा-करजनी) और ३. कृष्णजीरक (काला जीरा)। इस तरह कुक्कुट शब्द के छह और कुक्कुर कुक्कुरी शब्द के मिलाकर दो एवं कुञ्चिका शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : मत्स्यभेदे मिथिकायां कूचिका(कुञ्जिका) यामपि स्त्रियाम् । कुञ्जोऽस्त्रियां लतागेहे हनु - कुञ्जरदन्तयोः ॥ ३४३ ॥ हिन्दो टीका-१. मत्स्य भेद (मत्स्यविशेष मछली विशेष को भी कंचिका कहते हैं) इसी प्रकार २. मेथिका (मेथी) और ३. कूचिका (कूची) को कुंचिका कहते हैं। (कूचिका के बदले कुंजिका) भी पाठ मिलता है । कुंज शब्द अस्त्री पुल्लिग और नपुंसक भी माना जाता है और तीन र्थ होते हैं --- १. लतागेह (कुंजगली लताओं का बना हुआ गृह) २. हनु (दाढ़ी) और ३. कुंजरदन्त (हाथी का दाँत)। इस तरह कंज शब्द के तीन अर्थ हैं। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कुंजर शब्द मूल : कुञ्जरो देशभेदे स्यात् केशे दन्तावले पुमान् । कुटः कोट्टे शिला कुट्टे वृक्षपर्वतयोः पुमान् ॥ ३४४ ॥ हिन्दी टीका - किन्तु पुल्लिंग कुंजर शब्द के तीन अर्थ माने जाते है - १. देशभेद (देश विशेष) २. केश (बाल) और ३. दन्तावल (हाथी) । इस तरह पुल्लिंग कुंजर शब्द के तीन अर्थ हैं । कुट शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. कोट्ट (परकोटा, दुर्ग - किला) २. शिला कुट्ट (पत्थर की चट्टान ) ३. वृक्ष (तरु) और ४. पर्वत ( पहाड़ ) । मूल : कुटुम्बः पोष्यवर्गेऽस्त्री - ज्ञाति - सन्ततिनामसु । कुट्टनं छेदने क्लीबं कुत्सने च प्रतापने ॥ ३४५ ।। हिन्दी टीका - कुटुम्ब शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पोष्यवर्ग (सेवक वर्ग) २. ज्ञाति (सम्बन्धी) ३. सन्तति ( सन्तान) और ४ नाम । कुट्टन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. छेदन (छेद करना) २. कुत्सन ( निन्दा करना) और ३. प्रतापन ( आग पर तपाना) । मूल : . कुट्टिमोऽस्त्री कुटीरे स्यात् सुधाघटितभूतले । मणिभूमी दाडिमेऽथ कुठारः परशौ द्वयोः ॥ ३४६ ॥ हिन्दी टीका - कुट्टिम शब्द पुल्लिंग एवं नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१ कुटीर (पर्णकुटी-झोंपड़ी) २. सुधा घटित भूतल (चूना से लिप्त भूमि अथवा सफेद पत्थरों से जड़ी हुई जमीन ) ३. मणिभूमि (फर्श ) और ४. दाडिम (वेदाना अनार) । परशु ( फर्शा के लिए) कुठार शब्द पुल्लिंग और नपुंसक माना जाता है । मूल : कुड्यं कौतूहले भित्तौ लेपने च नपुंसकम् । कुपः शवे शस्त्रभेदे पूतिगन्धौ त्वसौ त्रिषु ॥ ३४७ ॥ हिन्दी टीका - कुड्य शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कौतूहल, २. भित्ति ( दीवाल) और ३. लेपन (लिपना ) । पुल्लिंग कुणप शब्द का दो अर्थ होते हैं - १. शव (मुर्दा ) २. शस्त्रभेद ( शस्त्रविशेष) किन्तु पूतिगन्धि ( दुर्गन्ध - बदबू ) के लिए शव शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मूल : कुण्डं मानान्तरे नीराधारभेदे होमीयाग्न्यालये देवसलिलाशय हिन्दी टीका - कुण्ड शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. मानान्तर (बटमापने का बटवारा) २. नीराधार भेद (पानी रखने की कुण्डी ) ३. होमीयाग्न्यालय (होम करने के लिए अग्नि का कुण्डा) और ४. देवसलिलाशय (देवों का तालाब कूवाँ बाबरी विशेष ) । मूल : नपुंसकम् । इष्यते ॥ ३४८ ॥ हिन्दी टीका स्थाली ( वटलोही या थाली) माना जाता है और पुल्लिंग कुण्ड शब्द का अर्थ "पत्यौ स्थाल्यां क्लीबे स्त्रियां कुण्डः पत्यौ जीवति जारजे । कुण्डलं वलये पाशे श्रवणाऽऽभरणेऽपि च ॥ ३४६ ॥ अर्थ में कुण्ड शब्द नपुंसक और स्त्रीलिंग भी जीवति जारजे" (पति के जीवित रहने पर भी Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कुण्डली शब्द | ६५ जार पुरुष से उत्पन्न सन्तान होता है । कुण्डल नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वलय (वाला -चूड़ी) २. पाश (पाशा) और ३. श्रवणाऽऽभरण (कान का कुण्डल)। इस तरह कुण्डल शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : कुण्डली वरुणे सर्प मयूरे चित्तलेमृगे। त्रिषु कुण्डलयुक्त ऽथ-कुण्डी स्थाल्यां कमण्डलौ ॥ ३५० ॥ हिन्दो टोका-कुण्डली शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वरुण, २. सर्प, ३. मयूर (मोर) और ४. चित्तल मृग (मृग विशेष) किन्तु कुण्डल युक्त अर्थ में तो कुण्डली शब्द त्रिलिंग माना जाता है -क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी कुण्डल धारण कर सकता है। इसी तात्पर्य से कहा है-"त्रिषु कुण्डल युक्ते' इति । स्त्रीलिंग कुण्डी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. स्थाली (वटलोही-थाली) और २. कमण्डलु (जल पात्र विशेष) । इस तरह कुण्डी शब्द के दो अर्थ समझना। मूल : कुतपोऽस्त्री कुशतृणे छागलोमजकम्बले। वाद्य दौहित्रयोरहऽष्टशेमोऽपि कीर्तितः ।। ३५१ ॥ हिन्दी टोका -- कुतप शब्द अस्त्री (पुल्लिग तथा नपुंसक) माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुशतृण (दर्भ-कुश) २. छागलोमजकम्बल (छाग या गेटा के लोमों का बना हुआ कम्बल) ३. वाद्य (वाद्य विशेष) ४. दौहित्र (नाती -लड़की का लड़का) और ५. अह्नोऽष्टमोऽश (दिन का आठवाँ भाग-दिन के बारह बजे से दो बजे तक काल विशेष को भी कुतप कहते हैं ।) द्वौ यामौ घटिका न्यूनौ द्वौ यामौ घटिकाधिकौ इत्यादि । मूल : पुमान् सूर्येऽतिथौवह्नौ भागिनेये द्विजे गवि ।। कुतुपश्चर्मरचिते लघूनि स्नेह भाजने ॥ ३५२ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कुतप शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. अतिथि (अभ्यागत) ३. वह्नि (आग) ४. भागिनेय (भाञ्जा) ५. द्विज (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) और ६. गौ (गाय बैल) । कुतुप शब्द पुल्लिग है और उसका एक ही अर्थ माना गया है-चर्मरचित लघु स्नेह-भाजन (चमड़े का बना हुआ छोटा-सा तैल पात्र)। मूल : कुतूः स्त्री चर्मरचिते महति स्नेहभाजने । कुथो गजपृष्ठास्तरणे चासनेऽपि प्रकीर्तितः ॥ ३५३ ॥ हिन्दी टोका-कुतू शब्द स्त्रीलिंग है और उसका भी एक ही अर्थ होता है - चर्मरचित महत् स्नेह-भाजन (चमड़े का बना हुआ बड़ा तैल पात्र)। कुथ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. गजपृष्ठास्तरण (हाथी के पीठ पर रखा जाने वाला हौदा) और २. आसन भी कुथ शब्द से व्यवहृत होता है। प्ल: कुद्दाल: कोविदारद्रु भूमिदारण - शस्त्रयोः । कुन्ते । भल्लास्त्रचण्डत्व - क्षुद्रजन्तु-गवेधुषु ॥ ३५४ ।। .. हिन्दी टीका-कुद्दाल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कोविदारद् (कोविदार नाम का वृक्ष विशेष) और २. भूमिदारण शस्त्र (पृथ्वी को खोदने का साधन विशेष-कुदाल, खनती Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-कुन्तल शब्द इत्यादि । कुन्त शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके चार अर्थ होते हैं-१. भल्लास्त्र, २. चण्डत्व (प्रचण्ड-उग्र तीव्र इत्यादि) ३. क्षुद्र जन्तु (क्षुद्र जन्तु विशेष) और ४. गवेधु (मुनि-अन्न)। मूल : कुन्तलो लाङ्गले केशे ह्रीवेरे चषके यवे । कुन्ती स्त्री पाण्डुभार्यायां शल्लक्यां गुग्गुलुद्रुमे ।। ३५५ ।। हिन्दी टीका- कुन्तल शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं -१. लांगल (हलका दण्ड लागन) २. केश (बाल) ३. ह्रीवेर नेत्र वाला) ४. चषक (शराब पीने का प्याला) और ५. यव (जो नाम का धान्य विशेष)। ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१ पाण्डुभार्या (कून्ती नाम की युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन की माता) २. शल्लकी (शाही नाम का पशु-जन्तु विशेष जिसके सम्पूर्ण शरीर में कांटे ही कांटे होते हैं) और ३. गुग्गुलुद्र म (गुग्गल का वृक्ष)। मूल : ब्राह्मण्यामप्यथो कुन्थुश्चक्रवर्ति जिनान्तरे। कुन्दोऽस्त्री माध्य पुष्पे स्यात् निध्यन्तरे स्मृतः ॥ ३५६ ॥ हिन्दी टीका-१. ब्राह्मणी को कुन्थु शब्द से व्यवहार करते हैं और २. चक्रवर्ती जिनान्तर (चक्रवर्ती सार्वभौम राजा जिनेश्वर विशेष) को भी कुन्थु शब्द से व्यवहार किया जाता है। इस तरह कुन्थु शब्द का अर्थ जानना-ब्राह्मणी और चक्रवर्ती जिन। कुन्द शब्द पुल्लिग एवं नपुंसक भी माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. माध्य पुष्प (जूही) और २. निध्यन्तर (निधि विशेष)। किन्तु निधि विशेष अर्थ में कुन्द शब्द पुल्लिग ही माना गया है । मूल : कुन्दुरौ भ्रमियन्त्रेऽपि करवीरमहीरुहे। कब्जस्त्रिलिंगो गडुले खड्गापामार्गयोः पुमान् ॥ ३५७ ॥ हिन्दी टोका-१. कुन्दुरु (पालक का साग) एवं २. भ्रमियन्त्र (भ्रमियन्त्र विशेष) और ३. करवीर महीरुह (करवीर नाम का फूल का वृक्ष विशेष) को भी कुन्द शब्द से व्यवहार किया जाता है। कुब्ज शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं। उनमें १. गडुल अर्थ में त्रिलिंग और २. खड़ग और ३. अपामार्ग (चिरचिरी) इन दोनों अर्थों में पुल्लिग ही माना गया है । गडुल -जल जन्तु विशेष को कहते हैं, वे जल में ही पाये जाते हैं। मूल : कुत्रं तन्तौ वने कुण्डे कुण्डले शकटेंऽनसि । कुमारः कार्तिकेये स्यात् पञ्चवर्षीय बालके ।। ३५८ ॥ हिन्दो टोका-कुब्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. तन्तु (धागा-सूत्र) २. वन (जंगल) ३. कुण्ड, ४. कुण्डल, ५. शकट, और ६. अनस् (गाड़ो विशेष वगैरह) । कुमार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कार्तिकेय और २. पंचवर्षीय बालक (पांच वर्ष के बालक को भी कुमार कहते हैं)। मूल : शुक्रऽश्ववारके सिन्धुनदे वरुणपादपे। जिनोपासकभेदेऽपि युवराजे प्रकीर्त्यते ।। ३५६ ॥ - हिन्दी टीका-१. शुक्राचार्य एवं २. अश्ववारक (कोचवान्) तथा ३. सिन्धुनद और ४ वरुणपादप (वरुण नाम के वृक्ष विशेष को भी) कुमार शब्द से व्यवहार किया जाता है । इसी प्रकार ५. जिनो Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-कुमारी शब्द | ६७ पासक भेद (भगवान् जिनेश्वर के उपासक विशेष भक्त को भी कुमार शब्द से कहा जाता है) और ६. युवराज को भी कुमार कहा जाता है। इस तरह कुल मिलाकर कुमार शब्द के आठ अर्थ जानने चाहिये। मूल : कुमारी पार्वती-सीता-सरिभेद सहासु च। श्यामा द्वादशवर्षीयकन्ययोस्तरुणीसुमे ॥ ३६० ।। हिन्दी टीका-कुमारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं --१. पार्वती (गौरी) २. सीता (जानकी) ३. सरिभेद (नदी विशेष) ४. सहा (वनीय मूंग) ५. श्यामा (स्त्री नवयुवती) ६. द्वादश वर्षीय कन्या, ७. तरुणी (युवती) और ८. सुम (पुष्प विशेष) । इन आठों को भी कुमारी शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : स्थूलैला-मेदिनी पुष्पबन्ध्या कर्कोटकीष्वपि । अपराजितायां वासन्त्यां जम्बुद्वीपेऽपि कीर्तिता ॥ ३६१ ॥ हिन्दी टीका -१. स्थूलैला (बड़ी इलायची) २. मेदिनी (पृथ्वो) ३. पुष्प बन्ध्या (रजस्वला होकर बन्ध्या स्त्री) ४. कर्कोटकी (कर्कटी ककुरो) ५. अपराजिता (पुष्पलता विशेप) ६. वामन्ती (मागधी पूष्प) और ७ जम्बूद्वीप (एशिया द्वीप) को भी कुमारी शब्द से व्यवहृत करते हैं। इस तरह कुल मिलाकर कुमारी शब्द के पन्द्रह अर्थ जानना ।। मूल : कुमुदं श्वेतोत्पले रक्तपद्म रूप्ये नपुंसकम् । पुमान् नैऋतकोणस्थ दिग्गजे वानरान्तरे ॥ ३६२ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक कुमुद शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ श्वेतोत्पल (सफेद कमल) २ रक्तपद्म (लाल कमल) ३. रूप्य (रुपया) और पुल्लिग कुमुद शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. नैऋतकोणस्थ दिग्गज (नैऋत्यकोण में रहने वाला दिग्गज हाथी) और २. वानरान्तर (वानर विशेष लंगूर)। मूल : सितोत्पले दैत्यभेदे कर्पू रे ध्र वकान्तरे । स्त्रियां कट्फल-गम्भारी धातकी कुम्भिकास्वपि ॥३६३।। हिन्दी टीका-कुमुद शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. सितोत्पल (सफेद कमल विशेष भेंट पुष्प कुई) २. दैत्यभेद (दानव विशेष) ३. कर्पूर (कपूर) और ४. ध्रुवकान्तर (ध्र वतारा)। स्त्रीलिंग कमुदा शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. कट्फल (कायफर) २ गम्भारी (गभारि नाम का वृक्ष विशेष) ३. धातकी (धवा नाम का वृक्ष विशेष) ४. कुम्भिका (कोई कुम्भी) को कुमुदा शब्द से या कुमुवती शब्द से व्यवहार होता है । मूल : कुम्भो गजशिरःपिण्डे कुम्भकर्णसुते घटे । वेश्यापतौ राशिभेदे प्राणायामाङ्गकुम्भके ॥ ३६४ ॥ हिन्दी टोका-कुम्भ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं १. गजशिर सिंण्ड (हाथी का मस्तक भाग) २. कुम्भकर्ण-सुत (कुम्भकर्ण का पुत्र) ३. घट (घड़ा) ४. वेश्यापति (वेश्या का स्वामी) ५. राशि भेद (कुम्भ नाम को राशि विशेष) और ६. प्राणायामाङ्ग कुम्भक (कुम्भक नाम का Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - कुम्भ शब्द प्राणायाम) । पूरक, कुम्भक और रेचक इस प्रकार प्राणायाम के तीन भेद माने जाते हैं - उनमें मध्यम प्राणायाम को कुम्भ शब्द से व्यवहार होता है । मूल : द्रोणयुगल परिमाणेऽप्सौ राक्षसे पुमान् । गुग्गुल त्रिवृति क्लीवं कुम्भकारस्तु कुक्कुभे ।। ३६५ ।। हिन्दी टीका - पुल्लिंग कुम्भ शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. राक्षस, और २. द्रोणयुगल परिमाण (दो द्रोण परिमाण २० सेर) किन्तु नपुंसक कुम्भ शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. गुग्गुलु ( गुग्गल) और २. त्रिवृत् (सफेद निशोथ, छोटी सफेद इलाइची ) । कुम्भकार शब्द पुल्लिंग माना जाता है और उसका एक अर्थ कुक्कुभ माना गया है (कुक्कुभ पक्षी विशेष को कहते हैं) । कुलालेऽप्यथ कुम्भी स्त्री, कट्फले पाटलोखयोः । दन्तीतरौ वृक्षभेदे, हस्ति कुम्भीरयोः पुमान् ॥ ३६६ ॥ मूल : हिन्दी टीका - कुलाल (घट बनाने वाला) को भी कुम्भकार कहा जाता है । कुम्भी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. कट्फल (कायफर ) २. पाटल (गुलाब) ३. उखा ( वटलोही) ४. दन्तीतरु (दन्ती नामक औषषि विशेष का वृक्ष) और ५. वृक्ष भेद (वृक्ष विशेष) को भी कुम्भी कहते हैं किन्तु ६. हस्ति (हाथी) और ७. कुम्भीर (नक्र-मकर-ग्राह) इन दो अर्थों में तो पुल्लिंग ही इन् प्रत्ययान्त कुम्भी शब्द व्यवहृत होता है । मूल : कुरुर्वर्षान्तरे भक्ते कण्टकार्यां नृपान्तरे । कुरुविन्दः पुमान् माषे मुस्तकेऽथ नपुंसकम् ॥ ३६७ ॥ हिन्दी टीका - कुरु शब्द पुल्लिंग है और इसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. वर्षान्तर ( कुरुक्षेत्र) २. भक्त, ३. कण्टकारी (कटार नाम का औषधि विशेष) और ४. नृपान्तर ( कुरु नाम का राजा जिसकी सन्तान कौरव हुए) । कुरुविन्द शब्द माष ( उड़द) अर्थ में एवं मुस्तक (मोथा) अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु अगले श्लोक द्वारा कहे जाने वाले तीन अर्थों में नपुंसक ही माना जाता है । मूल : काचलवणे कुल्माषे कुलं वंशे स्वजातीयगणे अग्र े जनपदे क्लीवं पुमान् पद्मरागमणावपि । गृह- शरीरयोः ॥ कुलक नागयोः || ३६८ ।। हिन्दी टीका - १. कुल्माष ( कदन्न कोदों) २. काच, ३. लवण (नमक) और ४. पद्मरागमणि इन चार अर्थों में कुरुविन्द शब्द नपुंसक ही माना जाता है। कुल शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. वंश (कुल) २. स्वजातीयगण ( ज्ञाति परिवार) ३. गृह (घर) ४. शरीर (देह) ५. अग्र ( अगला ) और ६. जनपद (देश) इन छह अर्थों में कुल शब्द नपुंसक ही माना जाता है किन्तु १. कुलक ( शिल्पी कुल प्रधान) अर्थ में और २. नाग (सर्प विशेष) इन दो अर्थों में कुल शब्द पुल्लिंग ही जानना चाहिये । इस तरह कुल शब्द के आठ अर्थ जानना । मूल : कुलकस्तु कुलश्रेष्ठे वल्मीके काकतिन्दुके । पिण्डीतके मरुबके हरिदुवर्ण भुजङ्गमे ॥ ३६६ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-कुलक शब्द | ६६ हिन्दी टोका-कुलक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. कुलश्रेष्ठ (कुल में प्रधान) २. वल्मीक (दीमक) ३. काकतिन्दुक (कुचिला) ४. पिण्डीतक (मदनवृक्ष-मयनफल नाम का प्रसिद्ध वृक्ष) ५. मरुबक (मयनफल) और ६. हरिद्वर्ण भुजङ्गमे (हरे वर्ण का साँप-सर्प, सूगा साँप) । इस तरह कुलक शब्द के अर्थ छह जानना। मूल : कल्माषे यावके रोग-भेदे वोरवधान्ययोः । कृशराऽद्ध स्विन्नधान्य - राजमाषेषु काञ्जिके ॥ ३७० ॥ हिन्दी टोका-कुल्माष शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. यावक (अलता) २. रोगभेद (रोग विशेष) ३. वोरवधान्य (वोरा नाम का धान्य विशेष, फली) ४. कृशर (खिच्चर) ५. अर्धस्विन्न धान्य (अधपका धान्य) ६. राजमाष (राजा के लिए माष उड़द) और ७. काजिक (कांजी नाम का प्रसिद्ध धान कण) । कुल्यमामिषसूर्पाऽष्ट - द्रोणमानेषु कीकसे । कुल्यस्त्रिषु कुलीने स्यान् मान्ये कुलहितेऽपि च ॥ ३७१ ।। हिन्दी टोका-कुल्य शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. आमिष (मांस) २. सूर्प (सूपकोनिया) ३. अष्ट (आठ संख्या) ४. द्रोणमान (दस सेर) और कोकस (हड्डी अस्थि)। किन्तु त्रिलिंग कुल्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुलोन (उच्च खानदानी) २. मान्य (आदरणीय) और ३. कुलहित (कुल का हितकारक व्यक्ति) को भो कुल्य कहते हैं। कल्या स्त्री कृत्रिम स्वल्प-नद्यां जीवन्तिकौषधे । कलस्त्रियां नदीमात्रे प्रणाल्यां स्थूलवङ्गणे ॥ ३७२ ॥ हिन्दी टीका-कुल्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. कृत्रिम स्वल्प नदी (बनावटी छोटी नदी-नहर) २. जीवन्तिकौषध (गुडुची वांदा गिलोय) ३. कुल स्त्रो (कुलीन स्त्री) ४. नदी मात्र, ५. प्रणाली (नाला) और ६. स्थूलवङ्गण (वङ्गणी)। मूल : कुबेरो धनदे नन्दीवृक्षेऽर्हत्सेवकान्तरे। कुशो रामसुते द्वीपभेदे योकत्रे पुमान् मतः ॥ ३७३ ॥ हिन्दी टीका-कुबेर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धनद (अलकापुरी के राजा इन्द्र का कोषाध्यक्ष) २. नन्दी वृक्ष (तुणी शब्द से ख्यात) ३. अहँत् सेवकान्तरे (तीर्थङ्कर भगवान का सेवक विशेष) । कुश शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं--१. रामसुत (रामचन्द्रजी का पुत्र) २. द्वीप भेद (द्वीप विशेष) ३. योकत्र (जोती)। मूल : . दर्भेऽस्त्रियां स्यात् पापिष्ठ मत्तयोस्तु त्रिलिङ्गकः । कुशलं मंगले पुण्ये पर्याप्ते शिक्षिते त्रिषु ॥ ३७४ ॥ हिन्दी टोका-दर्भ (कुश) अर्थ में कुश शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी माना जाता है और पापिष्ठ (अत्यन्त पापी) और मत्त (पागल) इन दो अर्थों में तो कुश शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कुशल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मंगल, २. पुण्य, ३. पर्याप्त (पुष्कल) और ४. शिक्षित मूल : Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कुशा शब्द (पढ़ा हुआ)। किन्तु शिक्षित अर्थ में कुशल शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी शिक्षित हो सकते हैं। मूल : मधुकर्कटिकारज्जु बलासु च कुशा स्त्रियाम् ।। कुशिको मुनिभेदे स्यात् जरणद्रुमफालयोः ॥ ३७५ ॥ हिन्दो टीका-कुशा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. मधुकर्कटिका (मीठी काकड़ी) २. रज्जु (रस्सी) और ३. बला (बलियारी सोंफ)। कुशिक शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. मुनिभेद (मुनिविशेष विश्वामित्र ऋषि) २. जरणद्रुम (सफेद जीरा का वृक्ष) और ३. फाल (हल में लगाया हुआ लोहे का फाल-फार) को भी कुशिक कहते हैं। मूल : बिभीतके तैलशेषे सर्जेऽपि त्रिषु केकरे । कुशूलो व्रीह्यगारे स्यात् तुषवह्नावपि स्मृतः ।। ३७६ ॥ हिन्दी टोका-१. बिभोतक (बहेड़ा) २. तैलशेष, और ३. सर्ज (सखुआ) इन तीन अर्थों में भी कशिक शब्द का प्रयोग होता है। किन्तु १. केकर (ऐचकर देखने वाला - एक भौं को ऊंचा कर एक भौं को नीचा कर देखने वाला)। इस अर्थ में तो कुशिक शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी भ्र को ऊँचा-नीचा करके देखने वाले हो सकते हैं । कुशूल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. व्रीह्यगार (धान्य रखने की बुखारी कोठी इत्यादि) और २. तुष वह्नि (भुस्से की आग) जो कि धीमे-धीमे सुलगती रहती है। कुष्ठं विषान्तरे रोगे-भेदे-भेषजभेदयोः । कुष्माण्डोऽस्त्रीभ्र ण भेदे कारु-गण भेदयोः ॥ ३७७ ।। हिन्दी टीका - कुष्ठ शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विषान्तर (जहर विशेष) २. रोगभेद (गलित-श्वेत-कुष्ठ रोग विशेष) और ३. भेषजभेद (औषध विशेष) को भी कष्ठ कहते हैं । कुष्माण्ड शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भ्र ण भेद (गर्भस्थ बालक) २. कर्कारु (कोहड़ा) और ३. गणभेद (गणविशेष) को भी कुष्माण्ड शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : कुष्माण्ड्युमा घृणावास-यज्ञ कर्मान्तरौषधे । कसुमं स्त्रीरज: पुष्प-फल-नेत्राऽऽमयान्तरे ॥ ३७८ ॥ हिन्दी टीका-कुष्माण्डी शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. उमा (पार्वती, भांग) २. घृणावास (घृणित स्थान) ३. यज्ञकर्मान्तर (याग क्रिया विशेष) और ४. औषध (दवा) कुसुम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. स्त्रीरज (मासिक धर्म) २. पुष्प, ३. फल और ४. नेत्राऽऽमयान्तर (नेत्र का रोग विशेष) को भी कुसुम शब्द से व्यवहार किया जाता है। कुहरं विवरे कर्णे कण्ठशब्दे गलेऽन्तिके । कूटोऽस्त्री निश्चले दम्भे कैतवे लौहमुद्गरे ।। ३७६ ॥ हिन्दी टोका-कुहर शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. विवर (छिद्र) २. कर्ण (कान) ३. कण्ठ शब्द (गले की आवाज) ४. गल (गला) और ५. अन्तिक (नजदीक)। कूट शब्द मूल : मूल : Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-यन्त्र शब्द | ७१ अस्त्री-(पुल्लिग और नपुंसक) माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं--१. निश्चल (स्थिर) २. दम्भ (आडम्बर) ३. कैतव (छल) और ४. लौह मुद्गर (लोहे का बनाया हुआ मुद्गर)। मूल : यन्त्रेऽनृते भग्नशृङ्ग षण्डे-पुजेऽपिकीर्त्यते । कूपः पुंस्युदपाने स्याद् गर्तमृण्मानयोरपि ॥ ३८० ॥ हिन्दी टोका-१. यन्त्र (मशीन वगैरह) २. अनृत (मिथ्या प्रचार) ३. भग्न-शृङ्ग (टूटा हुआ सींग) ४. षण्ड (नपुंसक) और ५. पुञ्ज (समूह)। इन पाँच अर्थों में भी कूट शब्द का प्रयोग किया जाता है। कूप शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. उदपान (कूआ) २. गर्त (गड्ढा) और ३. मृण्मान (परिमित मिट्टी) को भी कूप कहते हैं। __कूपको गुणवृक्षे स्यात् तैलपात्रे ककुन्दरे । चिताया मुदपानेऽथ कूपी पात्रान्तरे स्मृता ॥ ३८१ ॥ हिन्दी टोका-कूपक शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं -१. गुण वृक्ष (नौका के मध्य बन्धन रज्जु का काष्ठ, नौ बन्धन कीलक जोकि मस्तूल शब्द से प्रसिद्ध है) २. तैल पात्र (कुप्पी) को भी कूपक कहते हैं। इसी प्रकार ३. ककुन्दर को भी कूपक कहते हैं। एवं ४. चिता (शव को जलाने की चिता) तथा ५. उदपान (कूवाँ) को भी कूपक कहते हैं। कूपी शब्द स्त्रीलिंग माना आता है और उसका पात्रान्तर (पात्र विशेष कुप्पी) अर्थ होता है ।। मूल : कू!ऽस्त्री कठिने दम्भे कुशमुष्टौ विकत्थने । मयूरपुच्छमुष्टौ च श्मश्रुणि भ्र युगान्तरे ॥ ३८२ ॥ हिन्दी टोका-कूर्च शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके सात अर्थ होते हैं१. कठिन (कठोर) २ दम्भ (आडम्बर) ३. कुशमुष्टि (दर्भ की मुष्टि) ४. विकत्थन (आत्म-प्रशंसा) ५. मयूरपुच्छमुष्टि (मोर के पाँख की मुष्टि - गुच्छा) एवं ६. श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ) और ७. भ्र युगान्तर (दोनों भौं का मध्य भाग) इस प्रकार सात अर्थ जानना।। मूल : बीजे कैतवे क्षिप्रोपरिभागे च शीर्षके । कूचिका क्षीरविकृति-सूचिका-तूलिकास्वपि ।। ३८३ ॥ हिन्दी टोका-१. हुंबीज (हुं नाम का बीज मन्त्र को) २. कैतव (छल को) ३. क्षिप्रोपरिभाग (क्षिप्रा नदी के ऊपर का भाग) ४. शीर्षक (मस्तक भाग) को भी कूर्चक शब्द से व्यवहार किया जाता है। कूर्चिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ क्षीरविकृति सूचिका तूलिका (दुग्ध के विकार का सूचक कूची) को भी कूचिका कहते हैं। मूल : कुञ्चिकायां कुड्मलेऽथ कूर्पासः कञ्चुके पुमान्। कूर्मो मुद्रान्तरे बाह्यवायु भेदेऽपि कच्छपे ॥ ३८४ ॥ हिन्दी टे'का १ कुञ्चिका (चाभी) और २. कुड्मल (कली) अर्थ में भी कूचिका शब्द का प्रयोग होता है । कूर्पास शब्द पुल्लिग माना जाता है, और उसका अर्थ कञ्चुक (कुर्ता) होता है । कूर्म शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मुद्रान्तर (कूर्म नाम का मुद्रा विशेष Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कूर्म शब्द जोकि जप ध्यान काल में प्रयुक्त होता है। और २. बाह्य वायुभेद (शरीर के भीतर बाहर निकलने वाला वायु विशेष) को भी कूर्म शब्द से व्यवहार किया जाता है एवं ३. कच्छप (काचवा-काछु) को भी कूर्म शब्द से व्यवहृत करते हैं । मूल : . अवतारान्तरे विष्णोः कूलं स्तूप-तडागयोः । प्रतीरे सैन्यपृष्ठेऽथ कृकरः कृकणे शिवे ॥ ३८५ ॥ हिन्दी टीका-विष्णोः अवतारान्तर विष्णु भगवान् के एक अवतार विशेष) को भी कूर्म कहा जाता है । कूल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. स्तूप (मिट्टी का भिण्डा) और २. तडाग (तालाब) ३. प्रतीर (नदी तालाब वगैरह का तट किनारा) और ४. सैन्य पृष्ठ-सेना के पृष्ठ भाग को भी कूल शब्द से व्यवहार किया जाता है। कृकर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कृकण (अशुभ बोलने वाला पक्षी विशेष) २. शिव (शङ्कर भगवान्)।। चव्यके करवीरेऽथ कूवरोऽस्त्री युगन्धरे । कृकवाकुस्तु सरट मयूरे कुक्कुटे पुमान् ॥ ३८६ ॥ हिन्दी टोका-१. चव्यक (गज पीपरि) को भी कृकर कहते हैं, एवं २. करवीर-करवीर नाम के प्रसिद्ध पुष्प विशेष को भी कृकर कहते हैं । कूवर शब्द अस्त्री-पुल्लिग और नपुंसक भी माना जाता है और उसका एक अर्थ युगन्धर (पर्वत विशेष) होता है । कृकवाकु शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं--१. सरट (बड़ा गिरगिट) २. मयूर (मोर) और ३. कुक्कुट (मुर्गा)। इस प्रकार तीन अर्थ जानना। मूल : कृतं फलेऽलमर्थेऽपि पर्याप्त युगभेदयोः। ___ कृतान्तो यम सिद्धान्त देवेष्वशुभ कर्मणि ।। ३८७ ॥ हिन्दो टोका-कृत शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. फल (प्रयोजन) २. अलमर्थ (व्यथं) ३. पर्याप्त (पुष्कल) और ४. युगभेद (सत्ययुग) । कृतान्त शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१. यम (यमराज) २. सिद्धान्त (निर्णीत) और ३. देव (भाग्य) एवं ४. अशुभ कर्म (अनिष्ट)। मूल : कृती साधौ पुण्यवति पण्डिते निपुणे त्रिषु । कृतिश्चर्मणि भुर्जत्वक्-कृत्तिका-तारकास्वपि ।। ३८८ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कृतिन् शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. साधु (महात्मा) २. पुण्यवान् (धर्मात्मा) और ३. पण्डित (विद्वान)। किन्तु निपुण (कुशल) अर्थ में कृतिन् शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी निपुण (प्रवीण-क्रिया कुशल) हो सकते हैं। कृति शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चर्म (चमड़ा) २. भुर्जत्वक् (भोज पत्र) और ३ कृत्तिका तारा (कृत्तिका नक्षत्र)। मूल : . कृत्यो धनादिभिर्भेद्ये विद्विष्टे प्रत्ययान्तरे । कार्ये त्रिष्वथ कृत्या स्यात् क्रियायां देवतान्तरे। ३८६ ॥ . हिन्दी टोका-पुल्लिग कृत्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धनादिभिर्भेद्य (धन वगैरह के द्वारा भेद पारने योग्य) २. विद्विष्ट (शत्रु) और ३. प्रत्ययान्तर (सुतिङ वगैरह प्रत्यय) किन्तु कार्य पो . । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कृपण शब्द | ७३ अर्थ में कृत्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि करने योग्य कार्य विशेष्यनिघ्न होने से तीनों लिंगों में प्रयुक्त हो सकता है । स्त्रीलिंग कृत्या शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. क्रिया और २. देवतान्तर (यज्ञ देवता विशेष)। ___ कृपणस्तु कदर्ये स्यात् दीन-कुत्सितयोः कृमौ । कृपीटं विपिने नीरे कुक्षो काष्ठे नपुंसकम् ॥ ३६० ॥ हिन्दी टोका - कृपण शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कदर्य (कायरकञ्जूस) २. दोन (गरीब) ३. कुत्सित (निन्दित) और ४. कृमि (क्षुद्र जन्तु कीड़ा) । कृपीट शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ होते हैं—१. विपिन (जंगल) २. नीर (जल) ३. कुक्षि (उदर-पेट) और ४. काष्ठ (लकड़ी)। मूल : कृपीटपाल: पवने केनिपात - समुद्रयोः । कृमिः कीटे खरे कुक्षिजातकीटाऽऽमये पुमान् ॥ ३६१ ॥ हिन्दी टीका-कृपीटपाल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पवन (वायु) २. केनिपात (पतवार-नौका को चलाने वाला काष्ठ विशेष) ३. समुद्र । कृमि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कीट (कीड़ा) २. खर (तीक्ष्ण) और ३. कुक्षिजातकीटाऽऽमय (उदर में उत्पन्न कोट से रोग विशेष) । कृपीटपाल शब्द के और भी दो अर्थ आगे कहते हैं। मूल : लाक्षायां कृमिलेऽथ स्यात् कृषका वृष फालयोः । कृष्णं नीलाञ्जने लौहे कालागुरु-मरीचयोः ।। ३६२ ॥ हिन्दी टीका-१. लाक्षा (लाख) अर्थ में तथा कृमिल (कीड़ायुक्त) अर्थ में भी कृपीटपाल शब्द का प्रयोग होता है । कृषका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. वृष (बैल) और २. फाल (हल का फाल)। कृष्ण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. नीलाञ्जन (कज्जल) २. लौह (लोहा) ३. कालागुरु (कालागर) और ४. मरोच (कालीमरी) । इस तरह नपुंसक कृष्ण शब्द के चार अर्थ जानना। कृष्णः काकेऽर्जुने व्यासे केशवे करमर्दके। श्यामलेऽथस्त्रियां द्राक्षा-पिप्पली द्रौपदीषु च ॥ ३६३ ॥ हिन्दी टीका-कृष्ण शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. काक (कागराकौवा) २. अर्जुन, ३. व्यास, ४ केशव, ५. करमर्दक (करौंना, करौदा) और ६. श्यामल (शामला)। किन्तु स्त्रीलिंग कृष्णा शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. द्राक्षा (दाख, मुनक्का) २. पिप्पली (पीपरि) और ३. द्रौपदी । इस तरह कुल मिलाकर कृष्ण शब्द के तेरह अर्थ जानना चाहिये जिनमें पुल्लिग, स्त्रीलिंग, नपुंसक सभी आ जाते हैं। मूल : गम्भारी-कटका - नीली-वृक्षेषु राजसर्षपे। कृष्णजीरक - काकोली - पर्पटी सारिकान्तरे ॥ ३६४ ॥ .... हिन्दी टीका-कृष्णा शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं-१. गम्भारी (गम्भार, खम्भारी, Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-केतन शब्द काश्मरी) २. कटुका, ३. नीली वृक्ष (गरी) ४. राजसर्षप (सरसों) ५. कृष्णजीरक (काला जीरा) ६. काकोली (द्रोण काक, काला कौवा) ७. पर्पटी (पपरी शाक विशेष) और ८. सारिकान्तर (मैना)। इस प्रकार कृष्णा शब्द के ये आठ अर्थ हुए । मूल : चिह्न निमन्त्रणे स्थाने ध्वजे वेश्मनि केतनम् । केदार आलवाले स्यात् क्षेत्रे शैलान्तरे शिवे ।। ३६५ ॥ हिन्दी टीका-केतन शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. चिह्न, २. निमन्त्रण, ३. स्थान, ४. ध्वज (पताका) ५. वेश्म (घर)। केदार शब्द पुल्लिग है और चार अर्थ माने जाते हैं१. आलवाल (कियारी) २. क्षेत्र (खेत) ३. शैलान्तर (पर्वत विशेष-हिमालय, जहाँ केदार शङ्कर रहते हैं) और ४. शिव (शङ्कर, केदार महादेव)। मूल : केवली केवलज्ञानी तीर्थङ्कर उदाहृतः । ___ केश: कचे दैत्यभेदे ह्रीवेरे वरुणे हरौ ॥ ३६६ ॥ हिन्दी टीका - केवली शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं १. केवलज्ञानी (तत्त्व ज्ञानी) २. तीर्थङ्कर (भगवान् जिनेश्वर) । केश शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. कच (केश-बाल) २. दैत्यभेद (दानव विशेष) ३. ह्रीवेर (नेत्र वाला) ४. वरुण (वरुण देवता) और ५. हरि (विष्णु भगवान्)। मूल : केशरी बकुले सिंहजटायां हिंगुपादपे । नागकेशरवृक्षेऽपि पुमान् पुन्नागपादपे ॥ ३६७ ॥ हिन्दी टोका-केशर शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं - १. वकुल (मोलशरीभालशरी फूल) २. सिंह जटा (सिंह का बाल) ३. हिंगुपादप (हिङ्ग का वृक्ष) ४. नागकेशर वृक्ष (केशर चन्दन) और ५. पुन्नागपादा (नागकेशर)। इस प्रकार पाँच अर्थ जानना। मूल : केशरी घोटके सिहे नागे बीजपूरके। नागकेशरवृक्षेऽपि हनुमज्जनके पुमान् ॥ ३६८ ॥ हिन्दी टोका-केशरी शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके छह अर्थ होते हैं --१. घोटक (घोड़ा) २. सिंह (शेर) ३. पुन्नाग (केशर) ४ बीजपूरक (बिजौरा) ५. नागकेशर वृक्ष (नागकेशर) और ६. हनुमज्जनक (हनुमान जी का पिता) । इस तरह छह अर्थ जानना। केतु द्युतौ पताकायामुत्पाते चिह्नरोगयोः । विपक्षे ग्रहभेदेऽथ केतु शब्दः प्रकीर्तितः ॥ ३६६ ॥ हिन्दी टीका-केतु शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. द्युति (प्रकाश) २. पताका (ध्वज) ३. उत्पात (अनिष्टसूचक उल्कापातादि) ४. चिन्ह, ५. रोग (रोग विशेष) ६. विपक्ष (विरुद्ध पक्ष) और ७. ग्रहभेद (ग्रह विशेष) । इन सात अर्थों में केतु शब्द का प्रयोग होता है । मूल : केवलं निश्चिते कृत्स्नेऽसहाये ज्ञानशुद्धयोः । केसर हिंगुकासीस-स्वर्णेषु नागकेशरे ॥ ४०० ॥ मूल : Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-केवल शब्द | ७५ हिन्दी टोका-केवल शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. निश्चित (निर्णीत) २. कृत्स्न (सारा) ३. असहाय (अकेला) ४. ज्ञान (तत्त्व ज्ञान) और ५. शुद्ध (विशुद्ध निर्मल)। केसर शब्द भी नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. हिंगु (हिङ्ग) २. कासीस (औषध विशेष) ३. स्वर्ण (सोना) और ४. नागकेशर (केशर चन्दन) । इस तरह केसर शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये। मूल : केसरो वकुले सिंह-तुरंगस्कन्ध कुन्तले (रोमणि)। पुन्नागवृक्षे किञ्जल्के नागकेशरपादपे ॥४०१ ॥ हिन्दो टीका-केसर शब्द पुल्लिग है और उसके भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. वकुल (मोलशिरो-भालशरी फूल) २. सिंहस्कन्ध कुन्तल (सिंह के कन्धे का बाल) ३. तुरंग स्कन्ध कुन्तल (घोड़े के कन्धे का बाल) ४. पुन्नाग वृक्ष (नागकेशर वृक्ष) ५. किजल्क (केशर) और ६. नागकेशर पादप (हरिचन्दन केशर)। मूल : केसरी घोटके सिंहे पुन्नागे नागकेशरे । हनुमज्जनके रक्त-शिग्रो च बीजपूरके ॥ ४०२ ॥ हिन्दी टोका-केसरी शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके सात अर्थ होते हैं-१. घोटक (घोड़ा) २ सिंह (शेर) ३. पुन्नाग (नागकेशर) ४. नागकेशर (हरिचन्दन) ५. हनुमज्जनक (हनुमान जी का पिता) ६. रक्तशिग्रु (भाजी) और ७. बीजपूरक (बिजौरा)। इस तरह केसरी शब्द के सात अर्थ जानना चाहिये। कैतवं द्यूत-वैदूर्यमणि-च्छद्मसु नद्वयोः । कोको विष्णौ बुके भेके खजूं री चक्रवाकयोः ॥ ४०३ ॥ हिन्दी टीका-कैतव शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. द्यूत (जुआ) २. वैदूर्यमणि (मणि विशेष) ३. छद्म (कपट) ४. नद्वय (दो नकार-बहाना करना) । कोक शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं -१ विष्णु, २. वृक (भेड़िया, हुड़ाड़) ३. भेक (मेढ़क एड़का) ४. खजुरी (खजूर) और ५. चक्रवाक (चक्रवाक नाम का पक्षी विशेष, जिसको दिन में ही संयोग होता है)। मूल : कोणो वाद्यप्रभेदे स्यात् लगुडे मंगलग्रहे । गृहादेरेकदेशेऽपि शनौ वीणादि वादने ॥ ४०४ ॥ हिन्दी टोका-कोण शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. वाद्यप्रभेद (वीणा वगैरह बाजा की तन्त्री) २. लगुड (दण्डा) ३. मगलग्रह, ४. गृहादेरेकदेश (घर वगैरह का एक कोण) ५. शनि (शनिग्रह) और ६. वीणादि वादन (वीणा वगैरह के बजाने का एक साधन विशेष) । इस प्रकार छह अर्थ जानना। मूल : दिशोर्मध्येऽथ मृदुले मञ्जुले कोमलस्त्रिषु । कोरकोऽस्त्री मृणाले स्यात् कक्कोले मुकुलेऽपि च ॥ ४०५ ।। हिन्दी टोका-१. दिशोर्मध्य (दो दिशाओं के मध्य भाग को भी कोण कहते हैं)। कोमल शब्द मूल : Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कोमल शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मृदुल (कोमल) २. मञ्जुल (सुन्दर-अच्छा)। कोरक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मृणाल (कमल नाल तन्तु। २. कक्कोल (गहुलाफल कर्पूर) और ३. मुकुल (कोरक कली)। मूल : कोलं घोण्टाफले चव्ये मरिचे तोलके स्मृतम् । कोलः शनौ प्लवे चित्रे क्रोड-देशविशेषयोः ॥ ४०६ ॥ अङ्कपाली - वराहाऽस्त्रभेद जात्यन्तरेष्वपि । कोषोऽस्त्री चषके दिव्ये योनौ शब्दादि संग्रहे ॥ ४०७ ॥ हिन्दी टीका-नपंसक कोल शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. घोण्टाफल (सुपारी) २. चव्य (चाभ) ३. मरिच (कालीमरी) और ४. तोलक (माप विशेष)। पुल्लिग कोल शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं—१. शनि, २. प्लव (नौका), ३. चित्र, ४. क्रोड (गोद) ५. देश विशेष (आकोला)। कोल शब्द के और भी चार अर्थ होतेहैं- १. अङ्कपाली, २. वराह (सूगर) ३. अस्त्रभेद (अस्त्र विशेष) और ४. जात्यन्तर (भील कोल किरात) कोष शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं१. चषक (प्याला) २. दिव्य (अपूर्व वस्तु) ३. योनि (गर्भाशय) ४. शब्दादि संग्रह (डिक्शनरी-कोश) इस तरह कोष के चार अर्थ जानना।। मूल : अण्डे खड्गपिधानेऽर्थसमूहे पात्रशिम्बयोः । जातीफले कुड्मले च भाण्डागारेऽपि कीर्तितः ॥ ४०८ ॥ हिन्दी टोका-कोष शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं—१. अण्ड (अण्डा) २. खड्गपिधान (म्यान-तरकस) ३. अर्थ समूह, ४. पात्र (बर्तन विशेष) ५. शिम्ब (छिमी) ६. जातीफल (जायफर) ७. कुड्मल (कली) और ८. भाण्डागार (अन्नालय-कोष्ठागार) को भी कोष कहते हैं। पनसादिफलस्यान्ते हिरण्ये धनसंहतौ । कौतुकं भोगसमये नर्म - गीतादिभोगयोः ॥ ४०६ ॥ हर्षे परम्परायात मंगलेपि कुतूहले । वैवाहिके हस्तसूत्रेऽभिलाषोत्सवयोरपि ॥ ४१० ॥ हिन्दी टीका-१. पनसादिफलस्यान्त (कटहल वगैरह फलों का अन्त भाग) तथा २. हिरण्य (सोना चांदी रूपा) और ३. धन संहति (धन समुदाय) को भी कोष शब्द से व्यवहार होता है। इस प्रकार कोष के पन्द्रह अर्थ जानना चाहिये । कौतुक शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भोग समय (भोग) २. नर्म (केलिक्रीड़ा) ३. गीतादि भोग (नाच गान वगैरह) ४. हर्ष (आनन्द) ५. परम्परायातमंगल (कुल परम्परागत आनन्द भोग) और ६. मंगल (शुभ कार्य) के लिए भी कुतूहल का प्रयोग होता है । वैवाहिक हस्त सूत्र (विवाह काल में हाथ में बाँधे जाने वाला सूत) २. अभिलाष (मनोरथ) और ३. उत्सव (महोत्सव) को भी कुतूहल कहते हैं । कौपीनं कल्मषे चीरेऽकार्य - गुह्यप्रदेशयोः । कौमुदी चन्द्रिकायां स्यादुत्सवे कार्तिकोत्सवे ॥ ४११ ॥ मूल : Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कौपीन शब्द | ७७ हिन्दी टोका-कौपीन शब्द नपंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. कल्मष (पाप) २. चीर (वस्त्र) ३. अकार्य (निषिद्ध कार्य, खराब कार्य) और ४. गुह्य प्रदेश (मूत्रेन्द्रिय)। कौमुदी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चन्द्रिका (चाँदनी) २. उत्सव और ३. कार्तिकोत्सव (कार्तिक महीने का उत्सव विशेष दीपावली-लक्ष्मी पूजा को जागरण, देवोत्थान वगैरह)। मूल : कार्तिकाऽऽश्विनमासीय पौर्णमास्यामपीष्यते । कौलीनं लोकवादे स्यादु जन्ये गुह्ये कुकर्मणि ॥ ४१२ ॥ हिन्दी टीका-कार्तिकाऽऽश्विनमासीय पौर्णमासी (कार्तिक आश्विन मास की पूर्णिमा को भी) कौमुदी कहते हैं । कोलीन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. लोकवाद (लोकापवाद) २. जन्य (वरपक्षीय, कन्यापक्षीय, इष्ट बन्धु, पालकी ढोने वाला या युद्ध या उत्पात विशेष) ३. गुह्य (गुप्तेन्द्रिय मूत्रेन्द्रिय आदि) और ४. कुकर्म (नीच अधर्म कर्म)। कौलेयके कुलीनत्वे युद्ध पश्वहिपक्षिणाम् । कौशिको नकुले घूके व्यालग्राहिणि गुग्गुलौ ॥ ४१३ ॥ हिन्दी टीका-कौलीन शब्द के और भी तीन अर्थ माने हैं-१. कौलेयक (कुत्ता) २. कुलीनत्व (कुलीनता, उच्च खानदान) और ३. पश्वहिपक्षिणाम्-युद्ध (पशु पक्षी और सर्प का परस्पर युद्ध) को भी कोलीन कहते हैं । कौशिक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नकुल (न्यौला, सपनौर) २. घूक (उल्लू पक्षी) ३. व्यालग्राही (सपेरा) और ४. गुग्गुलि (गुग्गल) इस तरह कौशिक शब्द का चार अर्थ जानना। विश्वामित्रमुनौ शक्र मज्जा शृङ्गारयोरपि । अश्वकर्णतरौ कोशकार-कोशज्ञयो द्वयोः ॥ ४१४ ॥ हिन्दी टीका-कौशिक शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. विश्वामित्र मुनि (विश्वामित्र ऋषि) २. शक्र (इन्द्र) ३. मज्जा, और ४. शृंगार (शृङ्गार) को भी कौशिक कहते हैं। किन्तु १. अश्वकर्णतरु (सखुआ) २. कोशकार और ३. कोशज्ञ (कोश का जानकार) इन तीन अर्थों में कौशिक शब्द पुल्लिग और नपुंसक माना जाता है। कौस्तुभो विष्णुवक्षस्थमणि-मुद्राविशेषयोः । क्रकच: करपत्रे स्यात्-अस्त्री ग्रन्थिलपादपे ॥ ४१५ ॥ हिन्दी टीका-कौस्तुभ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णुवक्षस्थमणि (विष्णु भगवान की कौस्तुभमणि) और २. मुद्रा विशेष (सिक्का विशेष) को भी कौस्तुभ कहते हैं। क्रकच शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. करपत्र (आरा) और २. ग्रन्थिल पादप (अधिक गांठ वाला वृक्ष) अर्थ में पुल्लिग नपुंसक है। क्रतुमुन्यन्तरे यज्ञ - विश्वदेव - विशेषयोः । क्रन्दनं रुदिते योधसंरावाऽऽह्वानयोरपि ॥ ४१६ ॥ मूल : Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ऋतु शब्द हिन्दी टोका-क्रतु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. मुन्यन्तर (मुनि विशेष) २. यज्ञ और ३. विश्वदेव विशेष । क्रन्दन शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं१. रुदित (रोदन) २. योधसंराव (योद्धाओं का चिल्लाना) और ३. आह्वान । मूल : क्रन्दितं रोदनाऽऽह्वान - योधचित्करणादिषु। क्रम आक्रमणे शक्तौ चरणेऽनुक्रमे विधौ ॥ ४१७ ।। हिन्दी टोका-कन्दित शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. रोदन (रोना) २. आह्वान (स्पर्द्धापूर्वक बोलना) और ३. योधा चित्करणादि (योद्धाओं का चीत्कार) । क्रम शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. आक्रमण, २. शक्ति, ३. चरण (पैर) ४. अनुक्रम (अनुक्रमणिका) और ५. विधि । मूल : क्रमकः पट्रिका लोध्र पुगे कासिका फले । ब्रह्मदारुतरौ भद्र-मुस्तके स्मर्यते पुमान् ॥ ४१८ ॥ हिन्दी टोका-क्रमुक शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. पट्टिका लोध्र (पठानी लोह) २ पूग (सुपारी) ३. कार्पासिका फल (कपास की फली) ४. ब्रह्मदारु तरु (सहतूत, तूत) ५. भद्रमुस्तक (मोथा)। मूल : क्रव्यादो राक्षसे सिहे श्येने मांसाशिनि त्रिषु । क्रियाकर्मणि चेष्टायां पूजने सम्प्रधारणे ॥४१६ ॥ हिन्दी टीका-क्रव्याद शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. राक्षस, २. सिंह, ३. श्येन (बाज पक्षी) किन्तु ४. मांसाशी (मांसभक्षणशील) अर्थ में त्रिलिंग है। क्रिया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कर्म, २. चेष्टा, ३ पूजन, ४. सम्प्रधारण (निर्धारण)। मूल : उपायारम्भशिक्षासु चिकित्सायां च निष्कृतौ। व्यवहारान्तरे श्राद्ध धात्वर्थे हेतु शौचयोः ॥ ४२० ॥ हिन्दी टीका-क्रिया शब्द के और भी दस अर्थ होते हैं --१. उपाय, २. आरम्भ, ३. शिक्षा, ४. चिकित्सा, ५. निष्कृति (प्रतिशोध) ६. व्यवहारान्तर, ७. श्राद्ध, ८. धात्वर्थ, ६. हेतु और १० शौच (पवित्रता)। क्र रो नृशंसे कठिने घोर उष्णे त्रिलिंगकः । क्रोडं भुजान्तरोत्संगभोगेषु स्त्रीनपुंसकम् ।। ४२१ ॥ क्रोड: शनैश्चरे कोले वाराहीकन्द ईरितः । क्रोशो मुहूर्ते गव्यूते दण्डे युगसहस्रके ॥ ४२२ ॥ हिन्दी टीका-क्रूर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. नृशंस (घातक) २. कठिन (कठोर) ३. घोर । किन्तु उष्ण अथ में त्रिलिंग है । क्रोड शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. भुजान्तर (बाहुमध्य) २.उत्संग (गोद) ३. भोग । क्रोड शब्द पुल्लिग है उसके तीन अर्थ होते हैं मूल : Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-क्रूर शब्द | ७६ १. शनैश्चर, २. कोल. ३. वाराहीकन्द । क्रोश शब्द पुल्लिग है उसके चार अर्थ होते हैं -१. मुहूर्त, २. गव्यूत (दो कोश) ३. दण्ड और ४. युग सहस्र । मूल : क्रोष्ट्री शृगालिका कृष्ण-विदारी लाङ्गलीषु च। क्रौञ्चो जिनध्वजे द्वीपे खगे राक्षसशैलयोः ।। ४२३ ॥ हिन्दी टीका-क्रोष्टी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शृगालिका (गीदड़नी) २, कृष्णविदारी (कृष्णभूमि कूष्माण्ड) और ३. लाङ्गली (जल पीपरि) इस तरह क्रोष्ट्री शब्द के तीन अर्थ जानना । क्रौञ्च शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. जिनध्वज (जिन भगवान का पताका) २. द्वीप (क्रौञ्च नाम का द्वीप विशेष) ३. खग (पक्षी) ४. राक्षस (दानव विशेष) और ५. शैल (पर्वत विशेष जिसको कार्तिकेय ने बाण से विदीर्ण कर दिया था, वह क्रौञ्च नाम का पहाड़)। मूल : क्रौञ्चादनन्तुघेञ्चुल्यां चिञ्चोटक मृणालयोः । क्लेशोऽविद्यादि दु:ख स्यादमर्ष-व्यवसाययोः ॥ ४२४ ॥ हिन्दो टीका-क्रौञ्चादन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. घेञ्चुली (पेंचुल पक्षी विशेष) २. चिञ्चोटक (पक्षी विशेष) और ३. मृणाल (कमल नाल तन्तु) इस प्रकार क्रौंचादन के तीन अर्थ जानना क्योंकि क्रौञ्च पक्षी भी मृणाल को ही खाकर जीवन बिताता है इसीलिए मृणाल को भी क्रौञ्चादन शब्द से व्यवहृत किया जाता है। क्लेश शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अविद्यादि दुःख (अविद्या-अस्मिता राग-द्वेष-अभिनिवेश ये पाँच क्लेश माने जाते हैं) २. अमर्ष (असहन, वरित नहीं करता) और ३. व्यवसाय (सांसारिक व्यवहार) को भी क्लेश माना जाता है। मूल : व्यसने द्रव्य निष्पाके दुःखेऽपि क्वाथ ईरितः । खगो वायौ ग्रहे सूर्ये वाणे शलभपक्षिणोः ॥ ४२५ ॥ हिन्दी टीका-१. व्यसन (आपत्ति) २. द्रव्य निष्पाक (निम्ब वकसा वगैरह द्रव्य का पाक) और ३. दुःख इन तीनों को भी क्वाथ कहते हैं । इस तरह क्वाथ शब्द के व्यसन, द्रव्य निष्पाक और दुःख ये तीन अर्थ हुए । खग शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. वायु (पवन), २. ग्रह (सूर्यादि ग्रह नक्षत्र), ३. सूर्य, ४. वाण (शर-तीर), ५. शलभ (पतंग) और ६. पक्षी। इस तरह खग शब्द के छह अर्थ जानना। खचरो राक्षसे मेघे वायौ सूर्येऽपि रूपके । खजा स्त्रियां प्रहस्ते स्याद् दयां मारणमन्थयोः ॥ ४२६ ॥ हिन्दी टीका-खचर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. राक्षस (दानव) २. मेघ (बादल) ३. वायु (पवन) ४. सूर्य और ५. रूपक । खजा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रहस्त (थप्पड़) २. दर्वी (करछी) ३. मारण (मारना) और ४. मन्थ (मन्थन दण्ड वगैरह)। खटोऽन्धकूपतृणयोः प्रहारान्तरटयोः । कफलाङ्गलयोः प्रोक्तः कर्तणेऽपि पुमानसौ ॥४२७ ॥ मूल : मूल : Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-खट शब्द हिन्दी टीका-खट शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं --१. अन्ध कूप (अन्धकार से व्याप्त कुवा) २. तृण (घास विशेष) ३. प्रहारान्तर (तलवार विशेष) ४. टङ्क (टाँकी, छेनी, घन वगैरह पत्थर को तोड़ने वाला) ५. कफ (जुकाम) ६. लाङ्गल (हल दण्ड, लागन) और ७. कत्तृण (खराब घास) इस तरह खट शब्द के सात अर्थ जानना चाहिये। मूल : खट्वा प्रेङ्खा कोलशिबी पर्यऋषूदिता स्त्रियाम्। . खड्गोऽसौ गण्डके बुद्ध-भेद-गण्डकशृङ्गयोः ॥ ४२८ ॥ हिन्दी टीका-खट्वा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रेङ्खा (दोला, डोली, झूला) २. कोलशिम्बी (छिमी) और ३. पर्यङ्क (पलंग) । खड्ग शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गण्डक (गेंडा) २. बुद्ध भेद (बुद्ध विशेष) और ३. गण्डक शृङ्ग (गेंडे का सींग)। मूल : खण्डनं भजने छेदे निराकरण-भेदयोः । खण्डपशुश्चूर्णलेप्यां भग्नदन्तगजे शिवे ॥ ४२६ ।। राही परशुरामे च खण्डामलकभेषजे । हिन्दी टोका-खण्डन शब्द नपुंसक माना जाता और उसके चार अर्थ होते हैं १. भजन (तोड़मा) २ छेद (छेदना) ३. निराकरण (पराजय. दूर करना) और ४. भेद (भेदन करना) इस तरह खण्डन शब्द के चार अर्थ हुए। खण्ड पशु शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. चूर्णलेपी (चूर्ण लेप) २. भग्नदन्त गज (दन्तहीन हाथी) ३. शिव (शंकर) ४. राहु, ५. परशुराम और ६. खण्डा. मलक भेषज (खण्ड आमला का चूर्ण) । मूल : खदिरो जिह्म शल्ये स्यात् चन्दिरे च पुरन्दरे ॥ ४३० ॥ ___ हिन्दी टीका-खदिर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जिह्म शल्य (टेढ़ा शल्य बाण) २. चन्दिर (चन्द्रमा) और ३. पुरन्दर (इन्द्र)। मूल : खद्योतो भास्करे व्योम-प्रकाशे ज्योतिरिङ्गणे । खनको भूमिवित्तज्ञ मूषिके सन्धितस्करे ॥ ४३१ ॥ हिन्दी टीका-खद्योत शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. भास्कर (सूर्य) २. व्योम प्रकाश (आकाश का प्रकाश विशेष) और ३. ज्योतिरिङ्गण (जुगनू)। खनक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भूमि वित्तज्ञ (भूगर्भ धनवेत्ता) २. मूषिक (चूहा उन्दर) और ३. सन्धि तस्कर (सैन्ध देने वाला चोर, दीवाल में सेंध देकर चुराना)। मूल : खरस्तु निष्ठुरे कंके काके गर्दभघर्मयोः । दैत्ये कण्टकिवृक्षेऽपि कुररे राक्षसान्तरे ॥ ४३२॥ हिन्दी टीका --खर शब्द पल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. निष्ठुर (कठोर) २. कङ्क (सफेद चील) ३ काक. ४ गर्दभ, ५. धर्म (गर्मी उनाला) ६. दैत्य, ७. कण्टकि वृक्ष (रेबणी कटैया) ८. कुरर (कुकर पक्षी) और ६. राक्षसान्तर (राक्षस विशेष)। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - खरु शब्द | ८१ मूल : खरुः शिवे सिते. दर्पे कामे दन्ते तुरङ्गमे । त्रिषुश्वेते निषिद्ध करुचौ निर्बोध तीक्ष्णयोः ।। ४३३ ।। हिन्दी टीका-खरु शब्द पुल्लिग है और उसके दस अर्थ होते हैं-१. शिव, २. सित (सफेद) ३. दर्प, ४. काम, ५. दन्त, ६. तुरङ्गम (घोड़ा) ७. श्वेत त्रिषु (अत्यन्त सफेद अर्थ में त्रिलिङ्ग है) ८. निषिद्धक रुचि (विचित्र स्वभाव) ६. निर्बोध (बोध रहित) और १०. तीक्ष्ण (उग्र स्वभाव वाला)। मूल : खजूं रं रौप्य-खलयोः हरिताले फलान्तरे । खर्जू रीपादपेऽक्लीवं वृश्चिकेऽपि प्रकीयते ॥ ४३४ ॥ हिन्दी टोका-खजूर शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. रौप्य २. खल (दुष्ट) ३. हरिताल (हरताल नाम का औषध विशेष) ४. फलान्तर (फल विशेष) ५. खजूरी पादप (खजूर का वृक्ष) और ६. वृश्चिक (बिच्छू)। खप रस्तस्करे छत्रे भिक्षा पात्रे-कपालयोः । धूर्तेऽथ कुब्जके खो दशवृन्देऽपि शेवधौ ॥ ४३५ ॥ हिन्दी टीका-खर्पर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. तस्कर (चोर) २. छत्र (छाता) ३. भिक्षा पात्र (खप्पर) ४. कपाल (खप्पर विशेष) ५. धूर्त (वञ्चक)। खर्व शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कुब्जक (कुब्जा) २. दश वृन्द (खर्व नाम का संख्या विशेष) और ३. शेवधि (खजाना)। मूल : खलं कल्के खलाधाने भूमौ स्थाने नपुंसकम् । पुमान् तमालवृक्षे स्यात् सूर्यधुस्तूर वृक्षयोः ॥ ४३६ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक खल शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. कल्क (पाप) २. खलाधान (खलिहान) ३. भ्रमि, ४. स्थान, किन्तु पूल्लिग खल शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. तमाल वृक्ष, २. सूर्य और ३. धुस्तूर वृक्ष (धतूर का वृक्ष) इस तरह नपुंसक पुल्लिग खल शब्द के सात अर्थ हुए। मूल : त्रिलिंगो दुर्जने नीचे खल्वाटे खलतिः पुमान् ।। खल्लो वस्त्रप्रभेदे स्यात् जायुमर्दन भाजने ।। ४३७ ।। हिन्दी टीका -त्रिलिंग खल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. दुर्जन ओर २. नोच (अधम)। खल्ल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. वस्त्रप्रभेद (वस्त्र विशेष) २. जायुमर्दन भाजन (दवा-औषध के मर्दन का पात्र विशेष, खल-खली शब्द से प्रसिद्ध है)। मूल : अवटे नर्मपुटके च चर्म-चातकपक्षिणोः । खुर: शफे कोलदले क्षुरे खट्वादिपादुके ॥ ४३८ ।। हिन्दी टोका-खल्ल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. अवट (गड्ढा-गत) २. चर्मपुटक (चमड़े का पूरा) ३. चर्म (चमड़ा) और ४. चातक पक्षी। खुर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. शफ (खर-खरी) २. कोलदल (शूकर का झुण्ड) ३. क्षुर (छुरा) और ४. खट्वादिपादुका (चारपाई पलंग वगैरह की पादुका)। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-खर शब्द मूल : गन्धद्रव्ये नखीनाम्नि पुमान् छेदन वस्तुनि । खुल्लको निष्ठुरे निःस्वे खले नीच-कनिष्ठयोः ॥ ४३६ ।। हिन्दो टीका-पुल्लिग खुर शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. गन्धद्रव्य (सेण्ट-इत्र) २. नखी नाम और ३. छेदन वस्तु (छेदन करने का साधन खनित्र छैनी वगैरह) । खुल्लक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. निष्ठुर (कठोर) २. निःस्व (गरीब) ३. खल (दुर्जन) ४. नीच (अधम) और कनिष्ठ (छोटा भाई) इस प्रकार खुल्लक शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : खुल्लतात पुमान् पितृ-कनिष्ठ भ्रातरि स्मृतः ।। खेचरः पारदे विद्या-धरे शम्भौ नभश्चरे ।। ४४० ॥ हिन्दी टोका-खुल्लतात शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. पितृकनिष्ठभ्राता (पिता का छोटा भाई-चाचा) होता है। खेचर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. पारद (पारा) २. विद्याधर (देव योनि) ३. शम्मु (शङ्कर) और ४. नभश्चर (आकाश में विचरने वाला)। मूल : खेटः ग्रहे पुमान् नीचे हये त्रिषु सुनन्दके । अस्त्रियां मृगया ग्राम-भेद-चर्म-कफेषु च ॥ ४४१ ।। हिन्दी टोका-खेट शब्द पुल्लिग है और उसका १. ग्रह अर्थ होता है किन्तु २. नीच (अधम) ३. हय (घोड़ा) और ४. सुनन्दक इन तीन अर्थों में खेट शब्द त्रिलिंग माना जाता है; १. मृगया (शिकार) २. ग्रामभेद (ग्रामविशेष, छोटा गाँव झौंपड़ी वगैरह) ३. चर्म और ४. कफ (जुकाम) भी खेट शब्द का अर्थ माना जाता है किन्तु खेट शब्द मृगया-ग्रामभेद-चर्म-कफ इन चारों अर्थों में पुल्लिग नपुंसक है। मूल : खेटको ग्रामभेदे स्यात् फलके वसुनन्दके । खोलक: शीर्षके पूगकोषे बल्मीक पाकयोः ॥ ४४२ ॥ हिन्दी टोका-खेटक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. ग्रामभेद (ग्रामविशेष छोटा गाँव) २. फलक (पाट) और ३. वसुनन्दक (आठ वसुओं का नन्दक आनन्ददायक)। खोलक शब्द पूल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. शीर्षक (मस्तक) २. पूग कोष (सुपारी का खजाना भण्डार) ३. वल्मीक (दीमक) और ४. पावक । मूल : गज औषधपाकार्थ-गर्तभेदे मतङ्गजे । हस्तद्वयात्मके माने वास्तु स्थानान्तरे पुमान् ॥ ४४३ ॥ हिन्दी टोका---गज शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. औषध पाकार्थ गर्तभेद (औषध पकाने का खड्डा विशेष) २. मतङ्गज हाथी, ३. हस्तद्वयात्मकमान (दो हाथों का मापदण्ड विशेष गज) और ४. वास्तुस्थानान्तर (वास्तु का स्थान विशेष) । मूल : गजो गोष्ठगृहे भाण्डागार-ऽवज्ञाऽऽकरेष्वपि । गजा खनौ मद्य भाण्डे मदिरानीचवेश्मनि ॥ ४४४ ।। हिन्दी टीका-गञ्ज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गोष्ठगृह (गोशाला) गज आप Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानाथादयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-गड शब्द | ८३ २. भाण्डागार, ३. अवज्ञाऽऽकर (निन्दाक आकर खान)। गञ्जा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. खनि (खान) २. मद्य भाण्ड (शराब का घड़ा) २. मदिरावेश्म (शराबखाना) और ४. नीच. वेश्म (अधम का गृह) । मूल : गडो देशान्तरे मत्स्यविशेष व्यवधानयोः । परिखायामन्तराये गडुः शल्यास्त्र कुब्जयोः ।। गण्डूपदे पृष्ठगुडेऽसमग्रन्थौ पुमान् स्मृतः ।। ४४५ ॥ हिन्दी टोका-गड शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. देशान्तर (देश विशेष-अन्य देश) २. मत्स्यविशेष, ३. व्यवधान, ४. परिखा (खाई-खड्डा) ५. अन्तराय (विघ्न बाधा)। गडु शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी पाँच अर्थ होते हैं---१. शल्यास्त्र (भाला) २. कुब्ज (कुब्जा) ३. गण्डूपद (केंचुआ) ४. पृष्ठ गुड (पीठ पर घेघ जैसा गोला) और ५. असम ग्रन्थि (बेजोड़ गाँठ)। मूल : मूल : गणो गणेशे प्रमथे सेनासंख्यान्तरे चये। __ गन्धद्रव्ये चोरनाम्नि संख्या धातृ समूहयौः ॥ ४४६ ॥ हिन्दी टीका-गण शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. गणेश, २. प्रमथ (शङ्कर का गण विशेष) ३. सेना संख्यान्तर (सेना का समूह) ४. चय (समुदाय) ५. गन्धद्रव्य (सेण्ट वगैरह) ६. चोर नाम (चोर) ७. संख्या (संख्या सामान्य) और ८. धातृ समूह (धाता समूह)। गणिका यूथिका-वेश्या-कणिका-हस्तिनीषु च। गणितं गणने क्लीवमङ्कशास्त्रेऽपि युज्यते ॥ . अङ्कशास्त्रे च संख्याते गणने गणितं विदुः ॥ ४४७ ॥ हिन्दी टीका-गणिका शब्द स्त्रोलिंग है ओर उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. यथिका (झुण्ड विशेष) २. वेश्या (वाराङ्गना-रण्डी) ३. कणिका (कणा) और ४. हस्तिनी (हथिनी) गणित शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गणन (गिनना) २. अङ्कशास्त्र (गणितशास्त्र) और ३. संख्यात (गिना हुआ) इन्हीं को दूसरे प्रकार से कहा है-अङ्कशाप्त्रे इत्यादि । गणेशो विघ्नराजे च शिवेऽपि क्वचिदीरितः । गण्ड: कपोले पिटके स्फोटके हयभूषणे । वीथ्यङ्ग बुद्बुदे ग्रन्थो कटे विक्रान्त लक्ष्मणोः ।। ४४८ ॥ हिन्दी टीका-गणेश शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. विघ्नराज (गणपति) और २. शिव (शङ्कर) को भी कहीं पर गणेश कहा जाता है । गण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके दस अर्थ माने जाते हैं-१. कपोल (गाल) २. पिटक (पिटारी) ३. स्फोटक (फोड़ा) ४ हयभूषण (घोड़े का भूषणअलंकार विशेष) ५. वीथ्यङ्ग (वीथी नामक नाटक विशेष का भाग अथवा गली का भाग) ६. बुद्बुद (परपोटा-बुलबुला) ७. ग्रन्थि (गाँठ) ८. कट (चटाई) ६. विक्रान्त (चाल विशेष) और १०. लक्ष्म (चिह्न)। मूल : Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : गतिमी ८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-गण्डक शब्द मूल : गण्डकस्त्वन्तराये स्यात् खङ्गि विद्याविशेषयोः । संख्या प्रभेदेऽवच्छेदे गण्डकी सरिदन्तरे ॥ ४४६ ॥ हिन्दी टोका-गण्डक शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. अन्तराय • (विघ्न बाधा) २. खङ्गो (गैण्डा) ३. विद्याविशेष, ४. संख्याप्रभेद (सख्याविशेष) और ५. अवच्छेद (एकदेश) । गण्डकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-सरिदन्तर (नदीविशेष--गण्डकी नदी) है। गतिर्नाडीव्रणे ज्ञाने मार्गे यात्राऽभ्युपाययोः । दशायां गमने प्राप्तौ गत्वरः शीघ्रगे त्रिषु ॥ ४५० ॥ हिन्दी टीका-गति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. नाडीव्रण (नाड़ी धमनी का घाव) २. ज्ञान, ३. मार्ग, ४. यात्रा, ५. अभ्युपाय (मार्गदर्शन) ६. दशा (अवस्थाविशेष) ७. गमन, ८. प्राप्ति । गत्वर शब्द शीघ्रग (जल्दी वेग से चलने वाला) अर्थ में त्रिलिंग है। मूल : गदं विषे गदो रोगे कृष्णभ्रातरि भाषणे । गन्धः शोभाञ्जने गर्वे सौरभे घृष्टचन्दने ॥ ४५१ ।। आमोदे गन्धके लेशे सम्बन्धे गन्धमोदने । हिन्दी टोका-गद शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. गद (विषविशेष) २. गद (रोगविशेष) ३. कृष्णभ्रातरि (कृष्ण का भाई) और ४. गद (भाषणविशेष-गदगद वाणी में बोलना)। गन्ध शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं - १. शोभाजन (अञ्जन विशेष) २. गर्व (घमण्ड) ३. सौरभ (खुशबू) ४. घृष्ट चन्दन (मलयज चन्दन) ५. आमोद (विशेष खुशबू) ६. गन्धक (गन्धक द्रव्य) ७. लेश (अल्पमात्र) ८. सम्बन्ध और ६. गन्ध मोदन (उपधातु विशेष) इस तरह गन्ध शब्द का नौ अर्थ जानना चाहिये। मूल : गन्धनं सूचनोत्साह-हिंसासु च प्रकाशने ॥ ४५२ ॥ गन्धपत्रो मरुवके बर्बरे श्रीफलद्र मे । नारंगे श्वेतवृन्दायां शटीभेदे त्वसौ स्त्रियाम् ॥ ४५३ ।। हिन्दी टोका-गन्धन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सूचन (चुगली करना) २. उत्साह, ३. हिंसा और ४. प्रकाशन (अभिप्राय सूचित करना)। गन्धपत्र शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. मरुबक (मदन, मयन फल नाम का प्रसिद्ध वृक्ष) २. बर्बर (ब्रह्मनेटी, भारङ्गी, शाक विशेष) ३. श्रीफलद्र म (नारियल वृक्ष-बिल्ब फल वृक्ष) ४. नारङ्ग (नारङ्गी) ५. श्वेतवृन्दा (सफेद तुलसी पत्र)। किन्तु गन्धपत्र शब्द शटीभेद (साड़ी विशेष) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है। मूल : गन्धपुष्पोऽङ्कोठतरौ वेतसे बहुवारके । स्त्रियान्तु केतकी-नीली-गणिकारीष्वसौ मतः ॥ ४५४ ॥ हिन्दो टोका-गन्धपुष्प शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अकोठतरु (अङ्कोल, ढेरा नाम का प्रसिद्ध वृक्ष) २. वेतस (बेत) ३. बहुवारक (बहुआर-लसोड़ा नाम से प्रसिद्ध वृक्ष Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-गन्धर्व शब्द | ८५ विशेष) । किन्तु गन्धपुष्पा शब्द १. केतकी (केबड़ा) २. नोली (नीलगरी) और ३. गणिकारी (जयपर्णअरणी नाम से प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) को भी गन्धपुष्पा कहते हैं। गन्धर्वो मृगभेदे स्यात्पुंस्कोकिल-तुरङ्गयोः । अन्तराभवसत्वे च गायके दिव्य गायने ॥ ४५५ ।। हिन्दी टोका-गन्धर्व शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं.--१. मृगभेद (मृग विशेष) २. पुस्कोकिल (कोयल) ३. तुरङ्ग (घोड़ा) ४. अन्तराभवसत्त्व (जिसके अन्दर में सत्त्व है उसको भी गन्धर्व विशेष कहते हैं) ५. गायक (गान करने वाला) और ६. दिव्य गायन (गन्धर्व योनि विशेष -- विद्याधर गण)। इस प्रकार गन्धर्व शब्द के कुल छह अर्थ जानना। मूल : गान्धिको गन्धवणिजि गन्धविक्रेतरि स्मृतः । अथ गन्धवती पृथ्वी वनमल्ली-सुरासु च ।। ४५६ ।। मुरायां वायुपुर्याञ्च व्यासमातरि कीर्तिता ।। ४५७ ।। हिन्दी टीका-गान्धिक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धवणिक (सेण्ट वगैरह का व्यापारी) और २. गन्धविक्रेता (अतर विक्रेता)। गन्धवती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. पृथ्वी, २. वनमल्ली (जू ही) ३. सुरा (मदिरा-शराब) ४. मुरा (मुरा नाम का सुगन्ध द्रव्य विशेष) ५. वायुपुरी (वायु की पुरी विशेष) और ६. व्यासमाता (व्यास की माता योजनगन्धा मत्स्योदरी मत्स्यगन्धा से प्रसिद्ध)। . मूल : गमो जिगीषुगमने प्रस्थानाक्षविवर्तयोः । अपर्यालोचिते मार्गे सहपाठेऽपि कीर्तितः ॥ ४५८ ॥ हिन्दी टीका-गम शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. जिगीषु गमन (विजय चाहने वाले का गमन), २. प्रस्थान (यात्रा), ३. अक्षविवर्त (पाशा का उल्टा परावर्तन), ४. अपर्यालोचित मार्ग (अविचारित मार्ग) और ५. सहपाठ (समान पाठ) । इस तरह गम शब्द के ५ अर्थ हैं । गमक: स्वश्रुतिस्थानाच्छायां श्रुत्यन्तराश्रयाम् । स्वरो यो मूर्च्छनामेति गमकः स इहोच्यते ।। ४५६ ।। हिन्दी टीका-गमक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-जो स्वर (सा रे ग म प ध नी) अपने श्रुतिस्थान से दूसरी श्रुति की छाया-अनुरणन को प्राप्त करता हुआ मूच्र्छना-आरोह-अवरोहरूप ताल लयाश्रित भेद को प्राप्त करता है उसे गमक कहते हैं-इसो तात्पर्य से कहा है-स्वश्रुति इत्यादि । गयो राजर्षिभेदेऽपि भेदे वानर दैत्ययोः । गया तु गयराषिपुरी प्रोक्ता मनीषिभिः ॥ ४६० ॥ हिन्दी टीका-गय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. राजर्षिभेद (राजर्षिविशेष) २. वानरभेद (वानरविशेष) और ३. दैत्यभेद (दैत्यविशेष)। गया शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थगय राषिपुरी (गय नामक प्रसिद्ध राजर्षि की नगरी विशेष) जिसको अभी गया शब्द से व्यवहार किया जाता है जो कि दक्षिण विहार प्रान्त में पितरों का तीर्थस्थान मानी जाती है। मूल : मूल : Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गरल शब्द मूल : ४६१ ॥ गरलं परिमाणेऽपि विषे च तृणपूलके । गर्तः ककुन्दरे श्वभ्र रोगभेद - त्रिगर्तयोः ॥ हिन्दी टीका - गरल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. परिमाण (माप विशेष ), २. विष (जहर) और ३. तृणपूलक (घास का पूला ) । गर्त शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. ककुन्दर (खड्डा ) २. श्वभ्र (बिल - छेद), ३. रोगभेद (रोगविशेष) और ४. त्रिगर्त । इस तरह गर्त शब्द के कुल चार अर्थ जानना चाहिए । मूल : गर्दभो रासभे गन्धे विडङ्ग कुमुदे द्वयोः । गर्दभाण्ड: प्लक्षवृक्षे कन्दरालतरावपि ।। ४६२ ।। हिन्दी टीका-गर्दभ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. रासभ (गदहा), २. गन्ध, ३. विडङ्ग (बायविडङ्ग कृमिघ्न) और ४. कुमुद (सफेद कमल - भेंट, कोई) अर्थ में पुल्लिंग नपुंसक है । गर्दभाण्ड शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. प्लक्ष वृक्ष ( पाकर वृक्ष) और २. कन्दरालतरु (लाही पीपल) इस प्रकार गर्दभाण्ड शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : गर्भोऽपवरके भ्र ूणे सन्धौ पनसकण्टके । कुक्षौ मध्येऽर्भके वह्नौ सरित्सन्निहित स्थले ।। ४६३ ।। हिन्दी टीका -- गर्भ शब्द पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं - १. अपवयक ( हटाने वाला, नाटक में 'अपवार्य, ऐसा प्रयोग दूसरे को हटाकर इस अर्थ में प्रयुक्त होता है जिसको गर्भाङ्क शब्द से भी व्यवहार किया जाता है) २. भ्रूण (गर्भस्थ बालक) ३. सन्धि ( जोड़) ४. पनसकण्टक (कटहल का कांटा) ५. कुक्षि (उदर पेट ) ६. मध्य (बीच) ७. अर्भक ( बच्चा शिशु) ८. वह्नि (आग) और ६. सरित्सन्नि - हितस्थल (नदी का निकटवर्ती स्थल) को भी गर्भ कहते हैं । मूल : गलः सर्जरसे कण्ठे वाद्यभेदे गलग्रहो मत्स्यघण्टे तिथिभेदेऽपि झषान्तरे । कीर्तितः ।। ४६४ ॥ हिन्दी टीका- गल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -- १. सर्जरस ( सखुआ वृक्ष का रस या वृक्ष विशेष) २. कण्ठ (गला) ३. वाद्यभेद (बाजा विशेष ) ४. झषान्तर ( जलचर जन्तु मछली मगर वगैरह ) । गलग्रह शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मत्स्य घण्ट ( मछली का भेद ) और २ तिथिभेद ( तिथि विशेष ) । मूल : गल्वको मद्यपात्रे स्यादिन्द्रनीलमणावपि । गवेधुका नागवला - तृणधान्य विशेषयोः ।। ४६५ ।। हिन्दी टीका - गल्वक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. मद्यपात्र ( शराब का प्याला) और २. इन्द्रनीलमणि ( मरकतमणि विशेष ) । गवेधुका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-- १. नागवला (गंगेरन, बला, कंकही ) और २ तृणधान्य विशेष ( नागरमोथा) | गोहिते त्रिषु गव्यं स्यात् गो सम्बन्धि घृतादिषु । मूल : गव्या गोरोचना - गोत्रा - गव्यूति - ज्यासु कीर्तिता ।। ४६६ ॥ हिन्दी टीका - गव्य शब्द नपुंसक है और दो अर्थ माने जाते हैं - १. गोहित (गो के लिये हितकारक) और २. गो सम्बन्धि घृतादि (गाय का दूध, दही, गोबर, गोमूत्र और गोघृत) । गव्या शब्द Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित - गव्यूति शब्द | ८७ स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. गोरोचना (गोलोचन), २. गोत्रा (पृथिवी ) ३. गव्यूति ( दो कोश) और ४. ज्या (प्रत्यञ्चा - धनुष की डोरी ) । मूल : गव्यूतिः स्त्री क्रोशयुगे गव्यूतं गोरुतं तथा । गहनं कान दुःखे कलिले ( सघने) गह्वरेऽसुगे ।। ४६७ ।। हिन्दी टोका-गव्यूति शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ- क्रोशयुग (दो कोश) होता है । गव्यूत शब्द नपुंसक है और उसका भी अर्थ - क्रोशयुग (दो कोश) होता है । गोरुत शब्द नपुंसक है आर उसका भी अर्थ क्रोशयुग (दो कोश) ही होता है ( क्योंकि गो पशु की आवाज दो कोश तक जा सकती है) । गहन शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं - १. कानन ( वन जंगल ) २. दुःख (कष्ट) ३. कलिल (पाप) ( सघन को भी गहन कहते हैं) इसीलिए कहीं पर ( सघन ) ऐसा भी पाठ पाया जाता है । ४. गव्हर ( गुफा, बिल) और ५. असुग को भी गहन कहते हैं जो कि सुगम्य (सरल रीति से जाने लायक ) नहीं हो ऐसा बीहड़ मार्ग को असुग कहा जाता है इसलिए गहन शब्द का पाँचवाँ अर्थ असुग कहा गया है । मूल : गह्वरं रोदने दम्भे गुहायां वन कुञ्जयोः । गांगेय भद्रमस्तायां स्कन्दे भीष्मे झषान्तरे ।। ४६८ ।। हिन्दी टीका - गह्वर शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. रोदन ( रोना) २. दम्भ (आडम्बर) ३. गुहा (गुफा) ४. वन (जंगल - विपिन) और ५. कुञ्ज (झाड़ी) । गांगेय शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. भद्रमुस्ता (मोथा विशेष ) २. स्कन्द ( कार्तिकेय) ३. भीष्म ( भीष्म पितामह क्योंकि वह भी गंगा के पुत्र माने जाते हैं, कार्तिकेय को भी गांगेय कहा गया है क्योंकि वह भी गंगा के पुत्र माने जाते हैं) और ४. झषान्तर (मछली वगैरह जलचर जन्तु को भी) गांगेय कहा जाता है । वे सब मकर ग्राह मछली वगैरह गंगा वगैरह नदी में रहते हैं । मूल : क्लीवं काञ्चने-धूस्तूर - मुस्तकेषु कशेरुणि । गातु हिन्दी टीका - क्लीव नपुंसक गांगेय शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. काञ्चन (सोना) २. धूस्तूर (धतूर) ३. मुस्तक (मोथा) और ४. कशेरु (केशौर) । गातु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. गायन ( गानकर्ता ) २. गन्धर्व (देवयोनि विशेष ) ३. रोषण ( गुस्सा करना ) ४. अलि (भ्रमर) और ५. पिक (कोयल) । इस प्रकार गातु शब्द के पाँव अर्थ समझना चाहिये क्योंकि गायक- गन्धर्व भ्रमर-कोयल गान करते हैं । मूल : र्गायन - गन्धर्व - रोषणाऽलि पिकेष्वपि ॥ ४६६ ॥ गाथा श्लोके संस्कृतान्य-भाषायां गेयवृत्तयोः । गान्धारी धृतराष्ट्रस्त्री - जिनशासन देवता ॥ ४७० ॥ हिन्दी टीका - गाथा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. श्लोक (पद्य बन्ध) २. संस्कृतान्य भाषा (संस्कृत से भिन्न भाषा हिन्दी - बंगाली - मैथिली मागधी-शौरसेनी - महाराष्ट्री-गुजराती आदि) ३. गेय (गान करने योग्य) और ४. वृत्त (छन्दोमय पद्य ) को सो गाथा कहते हैं) । गान्धारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. धृतराष्ट्र-स्त्री (धृतराष्ट्र की पत्नी) और २. जिनशासन देवी (जिनधर्म देवी) | Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-गजा शब्द . मूल : गजा दुरालभा प्रोक्ता-गान्धारः स्वरदेशयोः ।। गालोडित स्त्रिषून्मत्त मूर्ख रोगार्तयोः स्मृतः ।। ४७१ ॥ हिन्दी टोका-गजा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-दुरालभा (जवासा, यवासा, धन्वयास) होता है । गान्धार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. स्वर (स्वर विशेष सा रे ग म प ध नि) में एक स्वर नाम जैसे कि कहा भी (निषादर्षभ-गान्धार घड्ज मध्यम-दैवताः) इत्यादि और २. देश (देश विशेष को भी गान्धार शब्द से व्यवहार होता है। पजाब को भी गान्धार कहा गया है, (गान्धार देश की होने से ही धृतराष्ट्र-पत्नी गान्धारी कहो जाती है)। गालोडित शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके तोन अर्थ होते-१. उन्मत्त (पागल) २. मूर्ख (अनपढ़) ३. रोगात (रोग पीड़ित) ये तीन अर्थ समझना। मूल : गिरिः पारददोषे स्यात् पर्वते गेण्डुके पुमान् । सन्न्यासिपद्धतौ चक्षुरोग भेदे स्त्रियान्त्वसौ ॥ ४७२ ॥ हिन्दी टोका-गिरि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पारद दोष (पाड़ा का दोष विशेष) २. पर्वत (पहाड़) ३. गेण्डुक और ४. संन्यासि पद्धति (सन्यासियों का आचार-विचार, वेषभूषा प्रभृति शिष्टाचार) किन्तु ५. चक्षु रोग भेद (आँख का रोग विशेष) अर्थ में तो गिरि शब्द स्त्रीलिंग माना गया है इस प्रकार गिरि शब्द के पाँच अर्थ जानना । मूल : गिरिजं गैरिके लोहे शिलाजतुनि शैलजे । अभ्रके गौर शाकेऽथ गिरिजा पार्वती स्मृता ॥ ४७३ ।। हिन्दी टोका-गिरिज शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. गैरिक (गेरू रंग) २. लोह (लोहा) ३. शिलाजतु (शिलाजीत) ४. शैलज (पर्वत से उत्पन्न पदार्थ) ५ अभ्रक (अबरख) और ६. गौर शाक (शाक विशेष) इस प्रकार गिरिज शब्द के कुल छह अर्थ जानना। गिरिजा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-पार्वती (गौरी) समझना चाहिये। इसी तरह पर्वतं नदी शिला वगैरह को भी गिरिजा कहते हैं। मूल: गिरीशः शङ्करे जीवे हिमालय गिरावपि । गिरिसारः पुमान् रगे लोहे मलयपर्वते ॥ ४७४ ।। हिन्दी टोका-गिरीश शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शङ्कर, २. जीव (बृहस्पति) और ३. हिमालय गिरि (हिमालय पहाड़)। गिरिसार शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी तीन ही अर्थ माने जाते हैं -१. रंग (रंग विशेष) २. लोह (लोहा) और ३. मलय पर्वत (मलयाचल पहाड़) इस प्रकार गिरीश-गिरिसार के तीन-तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : गीष्पतिः पण्डिते जीवे गुच्छः स्तम्बकलापयोः । द्वात्रिशद्यष्टिकेहारे मुक्ताहारे सुमोच्चये ॥ ४७५ ॥ हिन्दी टीका-गीष्पति शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पण्डित (विद्वान्) और २. जीव (बृहस्पति) । गुच्छ शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. स्तम्ब (गुच्छा) २. कलाप (समुदाय) ३. द्वात्रिंशद्यष्टिकहार (बत्तीस लड़ी का हार) ४. मुक्ताहार (मोती का हार) और ५. सुमोच्चय (फूलों का गुच्छा-समूह) । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गुच्छफला | ८६ स्त्रियां गुच्छफला द्राक्षा निष्पावी कदलीषु च । वल्लिकण्टारिका-काकमाच्योरथ पुमान् असौ ।। ४७६ ।। हिन्दी टीका - गुच्छफला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. द्राक्षा (दाख, मुनक्का) २. निष्पावी (धान आदि अन्न को साफ करके भूसा रहित करना) और ३. कदली (केला) ४. वल्लिकण्टारिका ( कटार की लतावल्ली) और ५. काकमाची (मकोय, काकप्रिया ) । रीठाकरञ्जे कतके राजादन्यामपि स्मृतः । मूल : गुञ्जा कलध्वनौ चर्चा - गोधूमद्वयमानयोः ॥। ४७७ ।। हिन्दी टीका - गुच्छफल शब्द १. रीठा करञ्ज (इंगुदी, डोठवरन रीठा ) अर्थ में और २. कतक ( मल को दूर करने वाला औषधि विशेष अरीठा) और ३. राजादनी (चिरौंजी ) इन तीन अर्थों में पुल्लिंग ही माना जाता है । गुञ्जा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कलध्वनि (अव्यक्त मधुर ध्वनि, कलरव ) २. चर्चा ( विचारणा) और ३. गोधूमद्वय मान (दो रत्ती, मासा, चनौटी मूंगा आदि) को भी गुञ्जा कहते हैं । इस तरह गुञ्जा शब्द के तोन अर्थ जानना । मूल : काकचिञ्च्यां चतुर्धान्यमान- त्रियवमानयोः । पटहे मदिरागारे गुडो गोक्षुपाकयोः || ४७८ ॥ हिन्दी टीका - गुञ्जा शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. काकचिञ्ची ( करजनी मूंगा) २. चतुर्धान्यमान (चार धान भर मान विशेष, मासा) और ३. त्रियवमान (तीन जो प्रमाण, तीन जो भर का मान विशेष ) |पह (भेरी बाजा) और मदिरागार (शराबखाना) और गोल, एवं इक्षुपाक (गुड गोड) इन चार अर्थों में गुड शब्द जानना । मूल : कार्पासी हस्तिन्नाह - ग्रासेषु च प्रयुज्यते । . गुण रूपादि - शुक्लादि शौर्याद्या ऽऽवृत्तिरज्जुषु ॥ ४७६ ॥ हिन्दी टीका - गुड शब्द और भी तीन अर्थ में प्रयुक्त होता है - १. कार्पासो (कपास, वाड) २. हस्तिन्नाह (हाथी का बन्धन रज्जु, डोरी, रम्सो) और ३. ग्रास ( कवल) इन तीन अर्थों में गुड शब्द IT प्रयोग किया जाता है । गुण शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. रूपादि (रूपरस-गन्ध-स्पर्श वगैरह चौवीस) गुण कहा जाता है, इसी प्रकार २ शुक्लादि (शुक्ल-नील- पीत- हरित-रक्तकपिशचित्र) को भी गुण विशेष कहते हैं एवं २. शौर्यादि (शौर्य-शूरता वीरता, पराक्रम आदि) को भी गुण कहते हैं, और ४ आवृत्ति ( आवर्तन दुहराना) को भी गुण शब्द से व्यवहार किया जाता है, अथवा ५. आवृत्ति रज्जु (रस्सी डोरी की बांट आवर्तन) को भी गुण कहते हैं, इस प्रकार गुण शब्द पाँच अर्थ हो सकते हैं । चार या मूल : त्यागेऽप्रधाने सत्त्वादौ सन्ध्यादौ सूद- इन्द्रिये । मौव्य तन्तौ भीमसेने दोषेतरविशेषणे ॥ ४८० ॥ हिन्दी टीका - गुण शब्द के और भी दस अर्थ माने जाते हैं - १. त्याग ( त्यागना) २. अप्रधान ( गौण ) ३. सत्त्वादि (सत्व रज-तम) ४. सान्ध्यादि (सन्धि विग्रह-यान - आसन द्वैध आश्रय - ये छह भी गुण कहलाते हैं ) ५. सूद (ब्याज ) ६. इन्द्रिय (चक्षु श्रोत्र प्रभृति) ७ मौत्र (धनुष की डोरी) ८. तन्तु (सूत्र Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --गुणनिका शब्द धागा) ६. भीमसेन (भीम) और १० दोषेतर विशेषण (दोष से भिन्न विशेषण) को भी गुण कहा जाता है। गुण शब्द के इस तरह कुल पन्द्रह अर्थ होते हैं। मूल : नृत्ये गुणनिका माल्ये शून्याङ्क पाठनिर्णये । गुण्डको धूलि-मलिन - स्नेहपात्र-कलोक्तिषु ॥ ४८१ ।। हिन्दी टोका-गुणनिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नृत्य (नाच) २. माल्य (माला) ३. शून्याङ्क (शून्य संख्या) ४. पाठ निर्णय (पाठ का निश्चय करना)। गुण्डक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. धूलि (धूल कण) २. मलिन (मैला) ३. स्नेहपात्र (तैलभाजन, कुप्पी) और ४. कलोक्ति (कला विषयक कयन)। मूल : गुप्तं स्याद् रक्षिते गूढे संगते वैश्यपद्धतौ । गुप्तिर्गोपन - भूगत - कारागारेषु रक्षणे ॥ ४८२ ॥ हिन्दी टोका-गुप्त शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. रक्षित (सुरक्षित) २. गूढ़ (अत्यन्त गुप्त) ३. मंगन (योग्य उचित) ओर ४. वैश्य पद्धति (वैश्य का उपाधि अवटंक जैसेब्राह्मण को उपाधि-शर्मा मिश्र वगैरह क्षत्रिय की-वर्मा, शूद्र की दास. वैसे ही वैश्य की गुप्त)। गृप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. गोरन (रक्षण) २. भूगर्त (भौंपरा. भूगर्भ जमीन के अन्दर) ३. कारागार (जेलखाना) और ४. रक्षण (रक्षा करना) इस तरह गुप्ति शब्द के चार अर्थ जानना। अन्तकेऽवकरस्थाने नौकाछिद्रेऽपि कीर्तिता । गुम्फ: श्मश्रुणि सन्दर्भे भुजालंकरणेऽपि च ॥ ४८३ ॥ हिन्दी टीका-गुप्ति शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. अन्तक (यमराज) २. अवकर स्थान (कूड़ा-कचरा रखने की जगह) और ३. नौका-छिद्र (नौका का छिद्र सूराख)। गुम्फ शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ) २. सन्दर्भ (प्रकरण) और ३. भुजालंकरण (बाँह का आभरण-भूषण विशेष)। मूल : गुरु निषेकादिकरे गीष्पतौ धर्मदेशके । कपिकच्छौ द्विमात्रेऽपि मन्त्रदातरि दुर्भरे ।। ४८४ ।। हिन्दी टोका--गुरु शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. निषेकादिकर (निषेक-गर्भाधान वगैरह सोलह संस्कार कराने वाले पुरोहित) २. गीष्पति (वृहस्पति) ३. धर्मदेशक (धर्मोपदेष्टा) ४. कपिकच्छ (कवाँछु -जिसको शरीर में लगा देने से अत्यन्त खुजली होने लगती है। ५. द्विमात्रा (द्विमात्रा को भी गुरु कहते है) ६. मन्त्रदाता (मन्त्र गुरु) और ७. दुर्भर (जिसका भरण करना कठिन है उसको भी गुरु कहते हैं)। मूल : दुर्जरेऽध्यापके श्रेष्ठे गुल्मी वसनवेश्मनि । आमलक्यां वनी - गृधनखी गुल्मयुतेष्वपि ॥ ४८५ ॥ गुहो विष्णौ कार्तिकेय राममित्रे तुरङ्गमे । गुहा गर्ते सिंह पुच्छी लतायां गह्वरेऽपि च ॥ ४८६ ॥ मूल : Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --गुरु शब्द | ६१ हिन्दी टीका-गुरु शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. दुर्जर (जिसको पचाना कठिन है उसको भी गुरु कहते हैं। इसी प्रकार २. अध्यापक को भी गुरु कहते हैं। एवं ३. श्रेष्ठ (बड़े आद 'दमी को भी गुरु कहते हैं)। इस तरह कुल मिलाकर गुरु शब्द के दस अर्थ जानना चाहिये। गुल्मी शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -- १. बसन वेश्म (कपड़े का घर, तम्बू, कनात) २. आमलको (आमला) ३. वनी (छोटा वन जंगल) ४. गृध्रनखी (गोध के नख जैसा अस्त्र) और ५. गुल्मयुत (गुल्म तरु-लताओं से युक्त को भी) गुल्मी कहते हैं। गुह शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णु, २. कार्तिकेय, ३. राम-मित्र (रामचन्द्र भगवान का गुह नाम का मित्र) और ४. तुरङ्गम (घोड़ा)। गुहा शब्द स्त्रीलिंग है ओर उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गर्त (गड्ढा) २. सिंह पुच्छोलता (पीठवनीपीठिवनी नाम को लता विशेष) और ३. गह्वर (गुफा)। मूल : गृञ्जनो रक्तलशुने रसोनेऽथ नपुंसकम् । विष दिग्ध पशोमांसे ग्रन्थिमूलेऽपि कीर्तितम् ।। ४८७ ।। हिन्दी टीका-पुल्लिग गृञ्जन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. रक्तलशुन (लाल लहसुन और २. सौन (लहसुन) और नपुंसक गृञ्जन शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. विषदिग्ध पशुमांस (जहर से मिला हुआ पशु-माँस) और २. ग्रन्थिमूल (बाँस वर्गरह का पोर-गांठ का मूल भाग) इस प्रकार कुल मिलाकर गृञ्जन शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये। मूल : गृहं कलत्रे भवने नामधेये बुधैः स्मृतम्। स्मृतो गृहपतिर्धर्मे गृहस्थे सचिवे पुमान् ॥ ४८८ ।। गृहीतं स्वीकृते प्राप्ते धृते ज्ञाते त्रिलिंगकम् । गोकर्णोऽश्वतरे सर्पविशेषे हरिणान्तरे ॥ ४८६ ॥ हिन्दी टीका-गृह शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. कलत्र (स्त्री) कहा भी है-(न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते) इत्यादि । २ भवन (घर) और ३. नामधेय (नाम का भी गृह शब्द से व्यवहार किया जाता है) । गृहपति शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते है१. धर्म, २. गृहस्थ, और ३. सचिव (मन्त्री)। गृहीत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. स्वीकृत (स्वीकार किया हुआ पदार्थ) २. प्राप्त, ३. धृत (धारण किया हुआ) ४. ज्ञात (जाना हुआ पदार्थ) । गोकर्ण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. अश्वतर (खच्चर) २. सर्पविशेष (सूगा सांप) और ३. हरिणान्तर (मृगविशेष कृष्ण मृग)। इस तरह गृह शब्द के तीन और गृहपति के तीन, गृहीत के चार और गोकर्ण शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये। तीर्थान्तरे मानभेद - गणदेव विशेषयोः । गोकुलं गो समूहे स्याद् गोस्थाने नन्द संस्थितौ ॥ ४६० ।। जैन श्रमणभिक्षायां गोचरी गोचरक्षितौ । गोत्रं कुले धने छत्रे संघेवम॑नि कानने ॥ ४६१ ॥ हिन्दी टीका-गोकर्ण शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. तीर्थान्तर (तीर्थ स्थान विशेष) २. मानभेद (माप विशेष, एक बलाश, बोत, दो फुट) और ३. गणदेव विशेष (गण देवता विशेष) मूल : Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ । नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - गोत्र शब्द को भी गोकर्ण कहते हैं । गोकुल शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. गोसमूह ( गाय का झुण्ड समुदाय) २. गोस्थान ( गोष्ठ ) और ३ नन्द संस्थिति (नन्द राजा का निवास स्थान ब्रजभूमि) । गोचरी शब्द स्त्रोलिंग है और उसके दो अथ होते हैं - १. जैन श्रमण भिक्षा ( जैन साधुओं की भिक्षा) और २. गोचरक्षिति ( गोचर भूमि ) । गोत्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं१. कुल (वंश) २. धन (सम्पत्ति) ३. छत्र (छाता) ४. संघ, ५. वर्त्म ( रास्ता, मार्ग) और ६. कानन ( वनजंगल) इस तरह गोकुल के तीन और गोचरी के दो एवं गोत्र शब्द के छह अथं जानना । संभावनीयबोधेऽपि वृद्धौ क्षेत्राभिधानयोः । मूल : गोत्र : शैले स्त्रियामेषा - पृथिवी-गो समूहयोः ॥ ४६२ ॥ गोधास्त्रियां निहाकाऽऽख्य जन्तौज्याघातवारणे । गोधूमो नागरंगेऽपि भेदे भेषजसस्ययोः ।। ४६३ ।। हिन्दी टीका - नपुंसक गोत्र शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं--१ संभावनीय बोध (भावी ज्ञान बोध) २. वृद्धि, ३. क्षेत्र और ४. अभिधान (नाम को भी गोत्र कहते हैं) । पुल्लिंग गोत्र शब्द का शैल (पहाड़) अर्थ होता है और स्त्रीलिंग गोत्रा शब्द के दो अर्थ होते हैं - पृथिवी और २. गो-समूह ( गो समुदाय) क्योंकि समूह अथ में भी गो शब्द से त्रल् प्रत्यय का विधान किया गया है । गोधा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. निहाकाऽख्यजन्तु - ( गोह ) और २. ज्याघातावारण (धनुष प्रत्यंचा के आघात का निवारण करने वाला) । गोधूम शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. नागरंग भेद (नारंगी का रंग विशेष को भी गोधूम कहा जाता है) और २. भेषज ( औषध विशेष ) और ३. सस्य ( धान्य विशेष गेहूँ को भी गोधूम कहते हैं) इस तरह गोधूम शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए । मूल : गोपो राजनि गोपाले बोले गोष्ठाधिपे स्मृतः । रक्षके बहुलग्रामाधिपतावुपकारके ॥ ४६४ ॥ गोपतिः शंकरे सूर्ये राज्ञि सण्डेऽगदान्तरे । गोपनं व्याकुलत्वे स्यात् कुत्सनेऽपहवे द्युतौ ॥ ४६५ ॥ हिन्दी टीका - गोप शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. राजा (नृपति) २. गोपाल (गो-रक्षक) ३ बोल (गन्ध-रस शब्द से प्रसिद्ध ) और ४ गोष्ठाधिप ( गोष्ठ का मालिक) ५. रक्षक (रक्षा करने वाले को भी गोप कहते हैं ।) और ६. बहुलग्रामाधिपति ( अनेक ग्रामों का मालिक) को भी गोप कहते हैं । और ७. उपकारक ( उपकार करने वाले को भो ) गोप शब्द से व्यवहार किया जाता है | गोपति शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. शंकर (शिवजी महादेव ) २. सूर्य, ३. राजा, ४ सण्ड हिजड़ा नपुंसक) और ५. अगदान्तर ( औषध विशेष ) । गोपन शब्द नपुंसक माना जाता, और उसके चार अर्थ होते हैं - १. व्याकुलत्व ( व्याकुलता आकुल) २. कुत्सन ( निन्दा ) ३. अपह्नव (अपलाप, छिपाना) और ४. द्युति (कान्ति, प्रकाश, लाइट. ज्योति इत्यादि) । मूल : गोपी प्रकृति - गोपस्त्री - रक्षिका शारिवासु च । गोपालकः शिवे कृष्णे गोपे गोरक्षकेऽपि च ॥ ४६६ ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-गोपी शब्द | ६३ गोपुरं नगरद्वारे द्वारमात्रेऽपि कीर्तितम् । कैवर्तीमुस्तके दुर्गपुरद्वारे नपुंसकम् ॥ ४६७ ॥ हिन्दी टोका-गोपो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. प्रकृति (माया, प्रधानपद वाच्य) २. गोप स्त्री (गोर को स्त्रो) ३ रक्षिका (रक्षा करने वाली) और ४ शारिवा (ग्वार) गुली सर शब्द से प्रसिद्ध । गोपालक शब्द पुलिं नग है और उसके भो चार अर्थ माने जाते हैं-१. शिव (शंकर महादेव) २. कृष्ण (भगवान् कृष्ण) ३ गोप (यादव ग्वाला) और ४. गोरक्षक (गाय की रखवाली करने वाला) । गोपुर शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -नगरद्वार (नगर का द्वार भाग, दरवाजा) २. द्वार मात्र (द्वार सामान्य) ३. कैवर्तीमुस्तक (छोटा नागरमोथा. जलमोथा) और ४. दुर्गपुर द्वार (किला-परकोटा का द्वार या चारदोवारी का तथा पुर का द्वार दरवाजा को भी) गोपुर कहते हैं। मूल : गोमुखं कुटिलागारे वाद्यभाण्डे विलेपने । चौर - कार्य - सुरंगायां वस्त्रनिर्मितयन्त्रके ।। ४६८ ॥ पुमान् यक्षान्तरे नक्र स्त्री तु स्यात् सरिदन्तरे । हिमाद्रि गंगापतनगोमुखाकार गह्वरे ।। ४६६ ॥ हिन्दी टीका-गोमुख शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. कुटिलागार (तिरछा घर विशेष) २. वाद्य माण्ड (पखाउज) ३. विलेपन (चन्दन विशेष, गोपी चन्दन) ४. चोर कार्य सुरङ्गा (चोरी करने के लिए खोदा हुआ भूगर्भ भाग सुरंग) और ५. वस्त्रनिर्मित यन्त्र (कपड़े का बनाया हुआ यन्त्र विशेष को भी) गोमुख कहते हैं। किन्तु पुल्लिग गोमुख शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. यक्षान्तर (यक्ष विशेष) २. नक (मगर, गोह) एवं स्त्रीलिंग गोमुख शब्द के दो अर्थ होते हैं१. सरिदन्तर (नदी विशेष) और २. हिमाद्रि गंगापतन गोमुखाकार गह्वर (हिमालय से निकली गंगा नदी के पतन का गोमुख आकार वाली गुफा विशेष को भी) गोमुख कहते हैं। मूल : गोरसो दघ्नि दुग्धे च छच्छिकायामपि स्मृतः । गोल: खगोले भूगोले सर्ववतु ल-बोलयोः ॥ ५०० ॥ मुचुकुन्दतरौ जाराविधवायाः सुतेऽपि च । गोलकोऽलिजरे पिण्डे मृते भर्तरि जारजे ॥ ५०१ ।। हिन्दी टीका-गोरस शब्द पुल्लिग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं - १. दधि (दही) २. दग्ध (दूध) और ३. छच्छिकका (मक्खन, छालो) इस तरह गोरस शब्द के तीन अर्थ हैं। गोल शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. खगोल (आकाश) २. भूगोल (पृथिवी) ३. सर्ववतुल (सभी गोलाकार वस्तु को भी गोल कहते हैं) ४. बोल (गन्धरस, बोर, गोपरस) और ५. मुचुकुन्दतरु (मुचुकुन्द नाम वृक्ष विशेष) और ६. जाराद्विधवायाः सुत (जार-परपुरुष से विधवा स्त्री का पुत्र) को भी गोल कहते हैं। गोलक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं- १. अलिजर (कुण्डी, भांड) २. पिण्ड, ३. मृतेभर्तरि जारजः (पति के मर जाने पर भी जार-परपुरुष से उत्पन्न सन्तान को भी) गोलक कहते हैं, ४. कलाय (मटर, वटाना) और ५. गुड (गोड) तथा ६. गन्धरस (बोल, गोपरस) को भी गोलक कहते हैं। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ । नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गोला शब्द मूल : गोला गोदावरी- दुर्गा कुनटी- मण्डलष्वपि । पत्राञ्जनेऽलिञ्जरे च बाल क्रीड़न दारुणि ॥। ५०२ ॥ गोलोमी श्वेतदुर्वायां - षड्ग्रन्था-भूतकेशयोः । गोलोमिकाऽभिधक्षुद्रक्षुपे वारस्त्रियामपि ॥ ५०३ ।। हिन्दी टीका - गोला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. गोदावरी (नदी विशेष) २. दुर्गा (पार्वती) ३. कुनटी मण्डल (बरहरूपिया ४. पत्राञ्जन ( अञ्जन विशेष ) ५. अलिञ्जर (कुण्डा, भाँड) ६. बाल क्रीडनदारु (बच्चों का खेलने का लकड़ी का खिलौना, रमकड़ा) । गोलोमी शब्द स्त्रीलिंग है। और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) २. षड्ग्रन्था (गोलोमकृत षड्ग्रन्थ विशेष को भी गोलोमी कहते हैं । ३. भूतकेश (जटामांसी) और ४. गोलोमिकाभिध क्षुद्र क्षुप ( शाखोट वगैरह छोटी शाखा डाल वाला वृक्ष, गाँछी) और ५. वार- स्त्री ( वेश्या, वाराङ्गना रण्डी) । मूल : गोविन्दः परमब्रह्म - कृष्णयो गधिपे गुरौ । गोष्ठी सभायां संलापे पोष्यवर्गेऽपि कीर्तिता ।। ५०४॥ गोष्पदं गोखुर श्वभ्र क्लीबं गोसेवित स्थले । गौः पुमान् चन्दिरे सूर्ये किरणे स्वर्गवज्रयोः ।। ५०५ ।। हिन्दी टोका - गोविन्द शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. परमब्रह्म (परमेश्वर) २. कृष्ण (भगवान कृष्ण ) ३. गोऽधिप ( गोस्वामी) और ४. गुरु (आचार्य उपाध्याय वगैरह ) । गोष्ठी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सभा, २ संलाप (वार्तालाप) और ३. पोष्यवर्ग (सेवक वर्ग, नौकर समुदाय) | गोष्पद शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. गोखुरश्वभ्र (गोखुर प्रमाण सूराख जिसमें गाय के खुर पड़ने से जमीन गहरी हो जाती है) और २. गोसेवित स्थल (गोष्ठ, जहाँ गाय बैल जमा होकर रहते हैं— बैठते हैं) । गो शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. चन्दिर (चन्द्रमा) २. सूर्य, ३. किरण, ०. स्वर्ग और 1. वज्र ( कुलिश) । मूल : क्रतुभेदे बलीवर्दे ऋषभाभिधभेषजे । स्त्री स्यात् लोचने भूमौ दिशि वाचि शरे जले ॥ ५०६ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग गो शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं - १. क्रतुभेद ( गो मेधयज्ञ) २. बलीवर्द ( सांड़) ३. ऋषभाभिध भेषजे (ऋषभ नाम का औषधि विशेष ) किन्तु स्त्रीलिंग गो शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. लोचन (नेत्र) २. भूमि, ३. दिशा, ४. वाक् (वाणी) ५. शर (बाण) और ६. जल (पानी) । मूल : जनन्यां सौरभेय्यां च न स्त्रियां लोमनीरयोः । गोतमो गणभृद्भेदे शतानन्दे महामुनौ ॥ ५०७ ।। गौरश्चैतन्य देवे स्यात् चन्दिरे श्वेत सर्षपे । धववृक्षे श्वेत पीतारुण वर्णेषु कीर्तितः ॥ ५०८ ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-गो शब्द | ६५ हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग गो शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं --१. जननी (माता) २. सौरभैया (सुरभि कामधेनु गाय) किन्तु लोम (रोम) और नोर (जल) इन दो अर्थों में गो शब्द स्त्रीलिंग नहीं माना जाता, अर्थात इन दो अर्थों में गो शब्द पुल्लिग नपुंसक है । गोतम शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. गणभृद् (गणधर विशेष, गोतम नाम के जैन साधु गणधर हुए थे) और २. शतानन्द महामुनि (शतानन्द नाम के महामुनि को भी गौतम कहा जाता है जोकि जनक के गुरु माने जाते हैं। गौर शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं --१. चेतन्यदेव (कृष्ण चैतन्य नाम के गौर महाप्रभुजी) (चन्द्रमा) ३. श्वेतसर्षप (सफेद सरसों) ४. धववृक्ष (पाकर-पोपर वृक्ष) और ५. श्वेतपीत अरुण वर्ण (सफेद पीला और लाल वर्ण विशेप को भी) गोर शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : गौरीत्वसंजातरज: कन्यायां वरुण स्त्रियाम् । मल्लिका - तुलसी-दारु हरिद्रा वसुधासु च ।। ५०६ ॥ सुवर्णकदली . श्वेतदूर्वा - गोरोचनास्वपि । आकाशमांसी-मञ्जिष्ठा-सरिभेद प्रियङ्गषु ॥ ५१० ।। हिन्दी टीका-गौरो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. असंजातरजकन्या (मासिकधर्मरहित कन्या) २. वरुण-स्त्री (वरुण को स्त्रो) ३. मल्लिका (मालतो-जूही पुष्प विशेष) ४. तुलसी, ५. दारु (लकड़ी) ६. हरिद्रा (हलदो) और ६. वसुधा (पृथिवी)। गोरो शब्द के और भी सात अर्थ माने हैं-१. सुवर्णकदली (कदली विशेष) २. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) ३. गोरोचना (गोरोचन) ४. आकाशमांसी ५. मञ्जिष्ठा (मजीठा) ६. सरिभेद (नदी विशेष) और ७. प्रियंगु (प्रियंगुलता)। मूल : प्रसेनजित् स्त्रियां बुद्धशक्तिभेद-हरिद्रयोः । पार्वत्यां रागिणीभेदे गौरीजं क्लीवमभ्रके ॥ ५११ ॥ ग्रन्थः शास्त्रे धने गुम्फे ग्रन्थनायामनुष्टभि । ग्रन्थिः पिण्डालु-रुग्भेद-भद्रमुस्तासु पर्वणि ॥ ५१२ ॥ हिन्दी टीका-गौरी शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. प्रसेनजित्-स्त्री (प्रसेनजित् की स्त्री) २. बुद्धशक्तिभेद (भगवान बुद्ध को शक्ति विशेष) ३. हरिद्रा (हलदी) ४. पार्वती ५. रागिणीभेद (रागिणी विशेष) को भी गौरी कहते हैं। गीरीज शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. शास्त्र, २. धन (सम्पत्ति) ३. गुम्फ (गुम्फन) ४. ग्रन्थना (गॅथना) ५. अनुष्टुप् (छन्द विशेष ३२ अक्षरों का छन्द)। ग्रन्थि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. पिण्डालु (पिण्डेच्छु) २. रुग्भेद विशेष गांठ विशेष) ३. भद्रमुस्ता (मोथा, जलमोथा) और ४. पर्व (पव-गोर ग्रन्थि)। इस प्रकार ग्रन्थ के पाँच और ग्रन्थि शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : वस्त्रादिबन्धे कौटिल्ये ग्रन्थिलो ग्रन्थिपर्णयोः । ग्रन्थिकं पिप्पलीमूले गग्गुलु ग्रन्थिपर्णयो । ५१३ ।। हिन्दी टोका-ग्रन्थि शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं -.. वस्त्रादिबन्ध (वसन ग्रन्थि गांठ) २. कौटिल्य । ग्रन्थिल शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. ग्रन्थि और २. पर्ण (पत्ता । ग्रन्थिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पिप्पली मूल २. गुग्गुलु (गुग्गल) ३. ग्रन्थिपर्ण । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-ग्रन्थिक शब्द मूल : पुमान् करीरे दैवज्ञ सहदेवाख्य पाण्डवे । ग्रन्थिलस्तु हितावल्यां विकतकरीरयोः ।। ५१४ ॥ पिण्डालौ गणहासे च तण्डुलीये विकण्टके । ग्रन्थियुक्त त्रिषु वलीवं पिप्पलीमूल आद्रके ।। ५१५ ॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग ग्रन्थिक शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. करोर (करीर, करील नाम का वृक्ष विशेष, जिसके वसन्त में सभी पत्ते गिर जाते हैं) २. दैवज्ञ (ज्योतिषी) और ३. सहदेवाख्य पाण्डव (सहदेव-माद्रीपुत्र)। ग्रन्थिल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं हितावली (हित समूह) २. विकत (कटाय, कटेर शब्द से विख्यात वृक्ष विशेष) ३. करीर (करील वृक्ष विशेष) । पुल्लिग ग्रन्थिल शब्द के और भो तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. पिण्डालु (पिण्डेच्छुक) २. गणहास (चोरा नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) और ३. तण्डुलीय विकण्टक (तण्डुल कण) किन्तु ग्रन्थियुक्त अर्थ में ग्रन्थिल शब्द त्रिलिंग माना जाता है और १. पिप्पलीमूल और २. आर्द्रक (आइआद) इन दो अर्थों में ग्रन्थिल शब्द नपुंसक ही माना गया है। मूल: मालार्वा-गण्डदूर्वा-भद्रमुस्तासु तु स्त्रियाम् । ग्रहोऽनुग्रह - निर्बन्ध - सूर्यादिषु - विधुन्तुदे ॥ ५१६ ॥ ग्रहणे पूतनादौ स्याद् उपरागे रणोद्यमे । ग्रहणं स्वीकृतौ शब्दे कर-आदर-इन्द्रिये ॥ ५१७ ।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग ग्रन्थिला शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं—१. मालादूर्वा (दूभी विशेष) २. गण्डदूर्वा (सफेद दूभी) और ३. भद्रमुस्ता (मोथा, जलमोथा)। ग्रह शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१. अनुग्रह (कृपा, दया), २. निर्बन्ध (स्नेह) ३. सूर्यादि (सूर्यादि नवग्रह) ४. विधुन्तुद (चन्द्रमा) ५. ग्रहण ६. पूतनादि (पूतना आदि राक्षसी) ७. उपराग (ग्रहण—सूर्य चन्द्र ग्रहण) और ८. रणोद्यम (युद्ध के लिये उद्यम) । ग्रहण शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं --१. स्वीकृति (स्वीकार करना) २. शब्द, ३. कर (हस्त या टैक्स) ४. आदर और ५. इन्द्रिय (आँख वगैरह इन्द्रिय)। मूल : उपरागे चोपलब्धौ बन्दियपि प्रकीर्तितः । ग्रहराज: सूर्य चन्द्र बृहस्पतिषु कीर्त्यते ॥ ५१८ ।। ग्राम: स्वरे संवसथे वृन्दे शब्दादि पूर्वके । ग्रामणी: केशवे यक्षे नापिते पुंस्यथ स्त्रियाम् ॥ ५१६ ॥ हिन्दी टीका-ग्रहण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं- १. उपराग (ग्रहण-सूर्यग्रहण चन्द्रग्रहण) २. उपलब्धि (प्राप्ति) ३. वन्दी । ग्रहराज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. चन्द्र और ३. बृहस्पति ये तीनों ग्रहराज कहे जाते हैं। ग्राम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. स्वर (ग्राम नाम का स्वर-विशेष), सा रे ग म प ध नी इन सात स्वरों के समुदाय को ग्राम कहा जाता है । २. संवसथ (गांव) ३. शब्दादिपूर्वक वृन्द (शब्द रूप रस गन्ध स्पर्श समुदाय) को भी ग्राम शब्द से व्यवहार किया जाता है । ग्रामणी शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग (उभयलिंग) माने जाते हैं Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ग्रामणी शब्द | ६७ और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. केशव (विष्णु भगवान) २. यज्ञ (देवयोनि विशेष) और ३. नापित (नौआ) । इस तरह ग्रामणी शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल : वारस्त्रियां ग्राम्यनार्यां नीलिकायामपि स्मृता । त्रिलिंगस्तु प्रधाने स्याद् भोगिकेऽधिपतावपि ॥ ५२० ॥ हिन्दी टोका १. वारस्त्री (वेश्या) २. ग्रामनारी (ग्राम को स्त्री, देहाती औरत) ३. नीलिका (नीली) इन तीन अर्थों में भी ग्रामणी शब्द का प्रयोग होता है। किन्तु १. प्रधान (मुख्य) २. भोगिक और ३. अधिपति (स्वामी मालिक) इन तीन अर्थों में ग्रामणी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । ग्रामीणः कुक्कुरे ग्राम्यशूकरे वायसे पुमान् । ग्रामोत्पन्ने त्रिलिंगोऽथस्त्रियां पालंक्य नीलयोः॥ ५२१ ।। ग्राम्यो ग्रामेयकेऽश्लीले भण्ड्यादि वचने त्रिषु । ग्रावा पुमान् मेघ शैल-प्रस्तरेषु दृढे त्रिषु ॥ ५२२ ॥ हिन्दी टीका-ग्रामीण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुक्कुर (कुत्ता) २. ग्राम्यशूकर (गांवरिया शूकर) और ३. वायस (काक-कौवा) किन्तु ग्रामोत्पन्न (ग्राम में उत्पन्न) अर्थ में तो ग्रामीण शब्द त्रिलिंग माना जाता है। स्त्रीलिंग ग्रामीणा शब्द के तो दो अर्थ कहे गये हैं१. पालंक्य (पालक साक) और २. नील (नोलरङ्ग या गरी)। ग्राम्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. ग्रामेयक (ग्राम में होने वाला या रहने वाला इत्यादि) २. अश्लोल (बोभत्स-गम्दा) किन्तु भण्ड्यादि वचन (भण्डी-मजीठा रङ्ग) वगैरह का वाचक । इस अर्थ में तो ग्राम्य शब्द त्रिलिंग माना गया है । ग्रावन शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मेघ (बादल) २. शैल (पहाड़) और ३. प्रस्तर (पत्थर) किन्तु दृढ़ (मजबूत) अर्थ में तो ग्रावा शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार ग्रावन् (ग्रावा) शब्द के चार अर्थ जानना। ग्राहोऽवहारे ग्रहणे शिशुमारेऽपि कीर्तितः। ग्राहको हिस्रविहगे ग्रहीतरि सितावरे ॥ ५२३ ॥ व्याल ग्राहिण्यथो ग्रीष्मो निदाघेऽप्युष्ण आतपे। घटोहस्तिशिरः कूटे कुम्भेराश्यन्तरे स्मृतः ॥ ५२४ ॥ हिन्दो टोका-ग्राह शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. अवहार (घड़ियाल-मगर) २ ग्रहण (ग्रहण करना, लेना) ३. शिशुमार (उद्र-जलचर मकर आदि)। ग्राहक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. हिंस्रविहग (घातक पक्षी बाज वगरह) २. ग्रहीता (ग्रहण करने वाला), ३. सितावर और ४. व्यालग्राही (सपेरिया, सर्प को पकड़ने वाला) । ग्रीष्म शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. निदाघ (उनाला, गरमो ऋतु) २ उष्ण (गर्मा) और ३. आतप (तड़का, धूप)। घट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. हस्तिशिरः (हाथी का मस्तक कुम्भ) २. कूट (पहाड़ की चोटी) ३. कुम्भ (घड़ा) और ४. राश्यन्तर (कुम्भ राशि) को भी घट कहते हैं। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--घट शब्द मूल : कुम्भकाख्य समाधौ च कुम्भमानेऽपि कीर्तितः । घटा समूहीकरणे सभायां घटनेवये ॥ ५२५ ॥ घटिका तु मुहूर्ते स्यात् चरण ग्रन्थिदण्डयोः । घट्टः तीर्थावतारेऽथ घट्टगा सरिदन्तरो ॥ ५२६ ।। हिन्दी टीका- घट शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं -१. कुम्भकाख्य समाधि (कुम्भक नाम की समाधि प्राणायाम विशेष) और २. कुम्भमान (एक घड़ा भर)। घटा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. समूहीकरण (समुदाय) २. सभा, ३. घटन (संघटन करना) और ४. चय (समूह) । घटिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मुहूर्त (दो घड़ी ४८ मिनट) २. चरण ग्रन्थि और ३. दण्ड (पल) । घट्ट शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ तीर्थावतार (तालाब वगैरह का घाट) है । घट्टगा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ सरिदन्तर (नदी विशेष) है। मूल : घण्टा स्त्रियां नागवला-कांस्यवाद्य विशेषयोः । घण्टा पाटलिवृक्षेऽथ घण्टाकर्णो गणान्तरे ।। ५२७ ।। घण्टापथो राजमार्गे दशधन्वन्तरे स्मृतः । घनं मध्यमनृत्ये स्यात् लौहवाद्य विशेषयोः ॥ ५२८ ॥ हिन्दी टीका-घण्टा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं.-१. नागवला (औषध विशेष, बला, गंगेरन, कंकही) २. कांस्य वाद्य विशेष (घण्टा) और ३. घण्टापाटलि वृक्ष (गुलाब का विशेष वृक्ष) । घण्टाकर्ण शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ गणान्तर (गण विशेष, शङ्कर भगवान् का प्रमथादि गण विशेष का नाम घण्टाकर्ण) है। घण्टापथ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. राजमार्ग (मेन रोड) और २. दशधन्वन्तर । घन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. मध्यमनृत्य (नृत्य विशेष) और २. लौह वाद्य विशेष (लोहा का बाजा विशेष)। मूल: घनः शरीरे विस्तारे मुद्गरे वारिदेऽभ्रके । लोहे समूहे मुस्तायां दृढे दाढ्ये निरन्तरे ।। ५२६ ।। सम्पुटे पूर्ण-कफयोः सजातीयाङ्कपूरणे । पुमान् घनरसोनीरे पीलुपयर्यां च मोरटे ॥ ५३० ।। हिन्दी टीका-- धन शब्द पुल्लिग है और उसके ग्यारह अर्थ माने जाते हैं – १. शरीर (देह) २. विस्तार (फैलाव) ३. मुद्गर (गदा) ४. वारिद (मेघ) ५. अभ्रक (अबरख, बादल) ६. लोह (लोहा) ७. समूह (संघ, समुदाय) ८. मुस्ता (मोथा) ६. दृढ़ (मजबूत) १०. दाढ्य (दृढ़ता) और ११. निरन्तर (सघन, निबिड, लगातार) । इसी प्रकार और भी चार अर्थ घन शब्द के माने जाते हैं-१. सम्पुट (पनवट्टा) २. पूर्ण (पूरा) ३. कफ (जुखाम) और ४. सजातीयाङ्कपूरण (सजातीय एक प्रकार की संख्या का पूर्ण करने वाले अङ्क को भी कहते हैं)। धनरस शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. नीर (पानी, जल) २. पीलुपर्णी (चिनार, चुरनहार धनुष के लिए उपयोगी लता विशेष) और ३. मोरट (गन्ने की जड़, इक्षु का मूल, शेरडी का जड़ भाग) इस लरह धनरस शब्द के तीन अर्थ जानना। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : सम्यक् सिद्धरसे सान्द्र- निर्यास घनसारयोः । घनसारोवृक्षभेदे दक्षिणावर्तपारदे ॥ ५३१ ॥ कर्पूरे सलिलेचाऽथ वर्षु काब्दे घनाघनः । अन्योन्यघट्टने शक्र े घातुकोन्मत्तकुञ्जरे ।। ५३२ ।। हिन्दी टोका - घनरस शब्द के और भी तीन माने जाते हैं - १. सम्यक् सिद्धरस (परिपक्व सिद्धरस विशेष ) २. सान्द्र निर्यास ( सघन गोंद, निविडलस्सा) और ३ घनसार (कर्पूर, कपूर ) इस तरह घनरस शब्द के कुल मिलाकर छह अर्थ जानना चाहिये। घनसार शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-वृक्षभेद (वृक्ष विशेष, जिसके सार का कर्पूर बनता है उस वृक्ष विशेष को घनसार कहा जाता है) और २. दक्षिणावर्तपारद (दक्षिणावर्तपारद, अत्यन्त विशिष्टपारद - पाड़ा विशेष) एवं ३. कर्पूर (कपूर को भी घनसार कहते हैं) और ४. सलिल (जल, पानी को भी घनसार शब्द से व्यवहार करते हैं। । घनाघन शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ १. वर्षा काब्द ( अत्यन्त जल बरसाने वाला बादल) है एवं घनाघन शब्द का २. अन्योन्यघट्टन ( परस्पर टकराना भी) अर्थ होता है । इसी प्रकार ३. शक्र (इन्द्र) और ४. घातुक उन्मत्त कुञ्जर (अत्यन्त भयानक - हिंसक ) मतवाला हाथी भी घनाघन शब्द का अर्थ जानना चाहिये । मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - घनरस शब्द | हε त्रिषु स्यादु घातुके सान्द्रे काकमाच्यां घनाघना | घरट्टः घर्घरः पुंसिपेषण्यां घटस्तु झषान्तरे ।। ५३३ ॥ पर्वतद्वारे द्वारमात्रे उलूकध्वनि हास्येषु स्वरभेदे तुषा । नदान्तरे ॥ ५३४ ॥ हिन्दी टीका - घनाघन शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. धातुक ( अत्यन्त घातक हिंसक प्राणी और २. सान्द्र (सघन, निविड, गाढ़ा ) किन्तु स्त्रीलिंग घनाघन शब्द का अर्थ - १. काक माची (मकोय, काकप्रिया) होता है । घरट्ट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. पेषणी (चक्की) होता है । घर्घट शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है किन्तु उसका अर्थ -- १. झषान्तर (मछली विशेष) होता है जिसको गगरी या गागर मछली कहते हैं उसी का नाम घर्घट है । घर्घट शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं - १. पर्वतद्वार (पहाड़ का द्वार भाग - प्रवेश मार्ग ) २. द्वार मात्र (द्वार सामान्य को भी) घर्घट कहते हैं । और ३. तुषानल (बुस्से की आग ) एवं ४. उलूक ध्वनि (उल्लू-घूक पक्षी की ध्वनि आवाज) और ५. हास्य (हास, हँसी) को भी घर्घट शब्द से व्यवहार किया जाता है । और ६. स्वरभेद (स्वर विशेष को भी) घर्घट कहते हैं, इसी प्रकार ७ नदान्तर (नद झील विशेष, महाहद) को भी घर्घट शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : स्त्रियांघर्घरिका क्षुद्रघण्टिका भृष्टधान्ययोः । नदी विशेषे वादित्रदण्ड वाद्यप्रभेदयोः ॥ ५३५ ।। धर्मः स्वेदाम्भसि ग्रीष्म आतपेऽप्यष्मणि स्मृतः । घर्षणालः शिलापुत्रे संघर्षेघर्षणं स्मृतम् ।। ५३६ ।। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-घघरिका शब्द हिन्दी टोका-घर्षरिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. क्षुद्रघण्टिका (क्षुद्र घण्टी, धुंघरू) और २. भृष्टधान्य (भुना हुआ धान्य-चना वगैरह) एवं ३. नदी विशेष (घर्घरी नाम की नदी) ४. वादित्रदण्ड (बाजा-ढोल वगैरह बाजा को बजाने का दण्ड) ५. वाद्यप्रभेद (बाजा विशेष) को भी घरिका कहते हैं । धर्म शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. स्वेदाम्भस् (पसीना) २. ग्रीष्म (उनाला, गर्मी) ३. आतप (तड़का-धूप) और ४. ऊष्मा (गर्मी) । घर्षणाल शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. शिलापुत्र (कठपुतली) है । घर्षण शब्द का अर्थ १. संघर्ष (घिसना) होता है। मूल : घातोऽङ्कपूरणे काण्डे प्रहारे प्रतिघातने । घुणः काष्ठकृमौ घाति: प्रहारे पक्षिबन्धने ।। ५३७ ॥ घुघुरो यमकीटेऽथ मृत्किरायां घुघुरी। घुसृणं कुकुमे क्लीवं घुष्टन्तु त्रिषु शब्दिते ।। ५३८ ।। हिन्दी ट'का-घात शब्द पूल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. अपरण (संख्या को पूर्ण करना) २. काण्डे (बाण) ३. प्रहार (आघात) ४. प्रतिघातन (प्रतिघात करना) । घुण शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. काष्ठकृमि (लकड़ी का कीड़ा विशेष) को घुण (घून) कहते हैं। घाति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं १. प्रहार और २. पक्षिबन्धन (पक्षी को बाँधने-फंसाने का साधन) । घुघुर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ - १. यमकीट (घुड़घूड़ा) होता है। घुघुरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. मृत् किरा (मिट्टी को बिखेरने वाला कीड़ा विशेष, भुरभुरी पारने वाला गुह कीड़ा को घुघुरी कहते हैं)। घुसृण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-कुकुम (सिन्दूर) होता है। घुष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थ-शब्दित (शब्द युक्त) होता है। इस तरह घात शब्द के चार और घुण शब्द का एक एवं घाति शब्द के दो और घुघुर शब्द एक तथा घुघुरी शब्द का भी एक ही अर्थ जानना चाहिये। मूल : घूकारिर्वायसे घूक उलूके च प्रयुज्यते । घृणा स्त्रियां जुगुप्सायां कारुण्येऽथधृणिः पुमान् ॥ ५३६ ॥ भास्करे किरणे नीरे घृतमाज्ये नपुंसकम् । त्रिषु स्यात् सेचके दीप्ते घृतपूरस्तु घातिके ॥ ५४० ॥ हिन्दी टीका-घूकारि शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. वायस (काक, कौवा) २. घूक (उल्लू) और ३. उलूक (उल्लू पक्षी) के लिए भी घूकारि शब्द का प्रयोग होता है । घृणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. जुगुप्सा (निन्दा) होता है। घृणि शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. कारुण्य (दया कृपा) होता है । घृत शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. भास्कर (सूर्य) २. किरण ३. नीर (जल, पानी) ४. आज्य (घी) इन चारों अर्थों में घृत शब्द का प्रयोग होता है उनमें घी अर्थ में नपुंसक समझना । किन्तु त्रिलिंग घृत शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. सेचक (सींचने वाला) और २. दीप्त (प्रदीप्त) । घृतपूर शब्द का-१. घार्तिक (घृत की धारा) होता है । घोटक: पुंसि तुरगे तुरंगी पादपे स्त्रियाम् । घोण्टा गुवाकवृक्षस्याद् घस्तिकोलितरावणि ।। ५४१ ॥ मूल : Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-घोटक शब्द | १०१ घोष आभीर पल्ल्यां स्याद् गोपाले ध्वनि कांस्ययोः । मशके स्तनिते धामार्गवे कायस्थ पद्धतौ ॥ ५४२ ॥ हिन्दी टीका-घोटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. तुरग (घोड़ा) होता है किन्तु स्त्रीलिंग घोटिका शब्द का अर्थ-१. तुरङ्गी पादप (तुरङ्गी नाम का वृक्ष विशेष)। घोण्टा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. गुवाक वृक्ष (सुपारी का वृक्ष) और–२. हस्तिकोलितरु (वृक्ष विशेष) । घोष शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. आभीरपल्ली (झौंपड़ी) २. गोपाल, ३. ध्वनि (आवाज, शब्द विशेष) और ४. कांस्य (कांसा का बर्तन) एवं ५. मशक (चरस या मच्छर) तथा ६. स्तनित (शब्द गर्जन) ७. धामार्गव (अपामार्ग, चिरचोरी) और ८. कायस्थपद्धति (कायस्थ का शिष्टाचार, या रहन-सहन रीतिरिवाज) इस तरह घोष शब्द के आठ अर्थ समझने चाहिये। मूल : लोक विज्ञापनायोच्चैः शब्दिते घोषणा स्मृता। घोषयित्नु ब्राह्मणे स्यात् कोकिले स्तुतिपाठके ॥ ५४३ ॥ घ्राणं क्लीवं नासिकायां स्यात् त्रिलिंगस्तु शिघिते । चकोरः चन्द्रिकापानशील - शालिविहङ्गमे ॥ ५४४ ॥ हिन्दी टीका-घोषणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. लोकविज्ञापनाय उच्चैः शब्दित लोक समाज में किसी भी बात की सूचना देने के लिए ऐलान करना) होता है। घोषयित्नु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ब्राह्मण (वेदादि मन्त्रों को रटने-अभ्यास करने वाले ब्राह्मण) और २. कोकिल (कोयल) एवं ३. स्तुतिपाठक (स्तुति पाठ करने वाले) को भी घोषयित्नु कहा जाता है। घ्राण शब्द नपुंसक है और उसका अथ-१. नासिका (नाक) होता है। किन्तु त्रिलिंग घ्राण शब्द का अर्थ-१..शिचित (नाक का मल, नकटी, पोटा वगैरह) है । चकोर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ--- १. चन्द्रिका पान शील शालि विहंगम (चाँदनी को पीने का स्वभाव वाला पक्षी विशेष को चकोर कहते हैं जो कि चन्द्र का प्रिय माना जाता है और चन्द्र भी उसका प्रिय होता है उसका नाम चकोर है। चक्र सैन्ये जलावर्ते ग्राम जाल-रथाङ्गयोः । राष्ट्र व्यूह विशेषेऽपि तैल यन्त्रास्त्रभेदयोः ॥ ५४५ ॥ हिन्दी टोका-चक्र शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं -१. सैन्य (सेना समूह) २. जलावर्त (जल का भंवर भ्रमि) ३. ग्राम जाल (ग्राम समूह) ४. रथाङ्ग (गाड़ी का पहिया) ५. राष्ट्र (देश) ६. व्यूह विशेष (चक्रव्यूह) ७. तैलयन्त्र (तेल पीलने को मशीन) और ८. अस्त्रभेद (अस्त्र विशेष) इस प्रकार चक्र शब्द के आठ अर्थ जानने चाहिये । मूल : कुम्भकारोपकरणे दम्भभेद . समूहयोः । चक्रवर्ती सार्वभौमे वास्तूकेऽथस्त्रियामसौ ॥ ५४६ ।। अलक्तके जटामांसी गन्धद्रव्यविशेषयोः। चक्रवाको द्वयो रात्रि विश्लेषिणि विहंगमे ॥ ५४७ ॥ मूल : Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-चक्र शब्द हिन्दी टोका- चक्र शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. कुम्भकारोपकरण (कुम्भकार का उपकरण, घट बनाने का साधन विशेष, जिसको चक्की कहते हैं जिस पर घड़ा बनाया जाता है उसको भी) चक्र कहते हैं । और २. दम्भभेद (छल कपट चक्र चालि कूटनीति वगैरह) और ३. समूह (संघ समुदाय) को भी चक्र शब्द से व्यवहार करते हैं। चक्रवर्ती शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. सार्वभौम (चक्रवर्ती राजा) और २. वास्तूक (वथुआ साक विशेष) किन्तु स्त्रीलिंग चक्रवर्तिणी शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अलक्तका (अलता, मेंहदो) २. जटामांसी और ३. गन्धद्रव्य विशेष । चक्रवाक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. रात्रि विश्लेषी विहङ्गम (रात में बिछुड़ने वाला पक्षी विशेष जिसको चकवा चकवी कहते) हैं । मूल : चक्रवाटस्तु पर्यन्ते क्रियारोहे शिखातरौ । चक्रवातस्तु वात्यायां चक्रवालन्तु मण्डले ॥ ५४८ ॥ वृद्ध रपि पुनर्वृद्धौ चक्रवृद्धिरुदाहृता । चक्राङ्गी कटुरोहिण्यां हंसीमञ्जिष्ठयोरपि ॥ ५४६ ॥ हिन्दी टोका-चक्रवाट शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पर्यन्त (अन्तिम सीमा अवधि) २. क्रियारोह (क्रिया परम्परा) और ३. शिखातरु (वृक्ष विशेष) । चक्रवात शब्द भी पुल्लिग है और उसका अर्थ- १. वात्या (आँधी तूफान) होता है । चकवाल शब्द का अर्थ-१. मण्डल (गोलाकार) होता है । चक्रवृद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ वृद्ध: पुनर्वृद्धिः (ब्याज का ब्याज सूद-दर-सूद जिसको चक्रवर्ती ब्याज कहते हैं)। चकाङ्गो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कटुरोहिणी (कुटको) २. हंसी (मराली) और ३. मञ्जिष्ठा (मजीठा रंग)। इस प्रकार चक्राङ्गी के तीन अर्थ हुए । मूल : हिलमोच्यां कुलिंग्यां वृषपर्ध्यामपि स्मृता । चक्री विष्णौ चक्रवाके वायसे ग्रामजालिके ।। ५५० ॥ तिनिशे सूचके सर्प चक्रवर्तिनि गर्दभे । चक्रमर्दे व्यालनखे तैलिके चक्र संयुते ।। ५५१ ।। अजं च कुम्भकारेऽथचङ्गः शोभन दक्षयोः । चञ्चरीको मधुकरे चञ्चरी भ्रमरा स्त्रियाम् ॥ ५५२ ।। हिन्दी टीका-चक्राङ्गी शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हिलमोची (हिल साल) २. कुलिङ्गी और ३. वृषपर्णी (लता विशेष) । चक्रो शब्द पुल्लिग है और उसके तेरह अर्थ माने जाते हैं१. विष्णु (भगवान विष्णु) २. चक्रवाक (चकवा पक्षी) ३. वायस (काक) ४. ग्रामजालिक (ग्राम समूह) ५. तिनिश (वजुल, तिनिश शब्द प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) ६. सूचक, ७, सर्प, ८. चक्रवर्ती (सार्वभौम राजा) ६. गर्दभ (गदहा रासभ) १०. चक्र मर्द, ११. व्याल नख १२. तैलिक (तेली, घांची) और १३. चक्रयुत (चक्र पहिया से युक्त गाड़ी रथ वगैरह)। इस प्रकार चक्रो शब्द के कुल तेरह अर्थ जानना चाहिये । इसी प्रकार चक्री शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. अज (बकरा) और २. कुम्भकार (कुम्हार कुलाल)। चङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शोभन (सुन्दर अच्छा बढ़िया) और २. दक्ष (निपुण, कुशल)। चञ्चरीक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. मधुकर (भ्रमर) होता है। चञ्चरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. भ्रमर-स्त्री (भ्रमर को स्त्री-भ्रमरी) होता है। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चंचल शब्द | १०३ मूल: चञ्चलं चपले क्लीबं मारुते तु पुमान् स्मृतः । चञ्चला कमला विद्युत पिप्पली पुंश्चलीषु च ॥ ५५३ ।। चञ्चा तृणमये पुंसि स्त्रियां खलु प्रकीर्तिता। चञ्चुर्नाडीच शाके स्यात् मृगेपञ्चांगुले पुमान् ॥ ५५४ ॥ स्त्रियां त्रोटौ पत्र शाक विशेषेऽपि प्रयुज्यते । हिन्दी टीका- चञ्चल शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. चपल (चञ्चल) होता है किन्तु पुल्लिग चंचल शब्द का ---१. मारुत (पवनसुत हनुमान बन्दर) अर्थ होता है। चंचला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं ---१. कमला (लक्ष्मी) २. विद्युत (बिजली, एलेक्ट्रिक) ३. पिप्पली (पीपरि) और ४. पुंश्चली (व्यभिचारिणी स्त्री) इस प्रकार चञ्चला शब्द के चार अर्थ हुए। चंचा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-तृणमय पुमान् (घास पात का बनाया हुआ पुरुषाकार) है । चञ्चु शब्द का नाडीच शाक (शाक विशेष) अर्थ होता है और २. मृग (हरिण) तथा ३. पञ्चांगुल (पांच अंगुल को) भी चञ्चु कहते हैं किन्तु इन तीनों अर्थों में इसको पुल्लिग ही माना जाता है। स्त्रीलिंग चञ्चु शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. त्रोटि (चोंच ठोर) और २. पत्र शाक विशेष (नोनी शाक या पालक शाक वगैरह)। चटक: कलविके स्यात् चटका चटक स्त्रियाम् ॥ ५५५ ॥ श्यामायां पिप्पलीमूले चटुलः सुन्दरे चले ॥ ५५६ ॥ चटुः प्रियोक्तौ जठरे वतिनामासनान्तरे ।। ५५७ ॥ चणको हरिमन्थाख्य शस्ये मुन्यन्तरे स्मृतः । चण्डो दैत्य विशेषे स्यात्तितिण्ड्या यमकिकरे ॥ ५५८ ॥ हिन्दी टीका-चटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ- १. कलविक (चकली, छोटी चिड़िया) है। चटका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-२. चटक स्त्री (चकली) होता है। चटका शब्द का ३. श्यामा अर्थ भी होता है और ४. पिप्पलीमुल (पीपरि का मूल भाग भी) चटका शब्द का अर्थ होता है। चटुल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. सुन्दर और २. चल (चंचल चपल)। चटु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रियोक्ति (नर्म वचन, चापलूसी, खुशामद) २. जठर (उदर, पेट) और ३. वतिनाम् आसनान्तर (व्रती योगियों का आसन विशेष को भी) चटु कहते हैं। चणक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. हरिमन्थाख्यशंस्य (हरिमन्थ नाम का शस्य विशेष, चना) और २. मुन्यन्तर (मुनि विशेष)। चण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते है-१. दैत्य विशेष (चण्ड नाम का दानव विशेष) २. तितिण्डी (तेतड़ि इमली) और ३. यमकिंकर (यमराज का नौकर)। मूल : अर्थोरुके वरस्त्रीणामस्त्री चण्डातकः स्मृतः । चण्डाल: पुक्कशे क्रूरकर्मण्यपि प्रकीर्तितः ॥ ५५६ ॥ चण्डिलो नापिते रुद्रेवास्तूके स्त्री नदीभिदि । चण्डी दाक्षायणी देव्यां कोपनायामपि स्मृतः ॥ ५६० ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चण्डातक शब्द हिन्दी टीका-चण्डातक शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसका अर्थ-वरस्त्रीणाम् अोरुक (लहंगा, सारी) । चण्डाल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. पुवकश (भील कोल किरात) २. क्रूरकर्मा (अत्यन्त कठोर कर्म करने वाला)। चण्डिल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नापित (हज्जाम) २. रुद्र (क्रूर) ३. वास्तूक (वथुआ शाक) और ४. नदीभिद् (नदी विशेष) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है। चण्डी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दाक्षायणीदेवी (दुर्गा पार्वती देवी) और २. कोपना (कोपनशीला क्रोध स्वभाव वाली)। मूल: मार्कण्डेयपुराणोक्त देवी माहात्म्य हिंस्रयोः ॥ ५६१ ।। चतुरो निपुणे दक्षे त्रिषु लोचनगोचरे । पुमांस्तु हस्तिशालायां चक्रगण्डावपीष्यते ॥ ५६२ ।। हिन्दी टीका-चण्डी शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं -१. मार्कण्डेयपुराणोक्त देवी माहात्म्य (माकण्डेय ऋषिप्रोक्त देवी दुर्गा का माहात्म्य विशेष सप्तशती) और २. हिंस्रा (घातक स्वभाव वाली स्त्री) । त्रिलिंग चतुर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं –१. निपुण (प्रवीण) २. दक्ष (कुशल) ३. लोचनगोचर (नयन का प्रत्यक्ष) इन तीन अर्थों में चतुर शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुरुष, स्त्री साधारण नयनगोचर (आँखों से देखे जा सकते हैं) और निपुण (प्रवीण) और दक्ष (कुशल तत्पर) हो सकते हैं किन्तु १. हस्तिशाला (हथिसार) और २. चक्रगण्डि इन दो अर्थों में चतुर शब्द पुल्लिग ही माना जाता है । इस तरह चतुर शब्द के कुल पाँच अर्थ जानना । मूल: चतुष्पथः पुमान् विप्रे क्लीवं श्रृङ्गाटके स्मृतम् । चतुष्पदी स्त्रियां पद्ये पुमांस्तु करणे पक्षौ ॥ ५६३ ॥ चन्दनाऽगरु-कस्तूरी कुकुमे तु चतु:समम् । चदिरो भुजगे चन्द्रे कर्पू रे कुञ्जरे पुमान् ॥ ५६४ ॥ हिन्दी टीका-चतुष्पथ शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-विप्र (ब्राह्मण) होता है क्योंकि उसके (ब्राह्मण के) चतुष्पथ चार मार्ग (धर्म अर्थ काम और मोक्ष होते हैं) किन्तु नपुंसक चतुष्पथ शब्द का अर्थ-२. श्रृंगाटक (चौराहा) होता है । चतुष्पदो शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. पद्य (श्लोक, चार पाद का पद्य) कहलाता है किन्तु पुल्लिग चतुष्पद शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. करण और २. पशु । इस तरह चतुष्पथ शब्द के दो और चतुष्पद शब्द के तीन अर्थ हुए। चतुःसम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. चन्दन, २. अगरु (अगरबत्तो) ३. कस्तूरी और ४. कुंकुम (सिन्दूर)। चदिर शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. भुजग (सर्प) २. चन्द्र, ३. कर्पूर और ४. कुञ्जर (हाथी)। चन्दनोऽस्त्री भद्रसारे क्लीबन्तु रक्तचन्दने । चन्दिरः कञ्जरे चन्द्र चन्दनी सरिदन्तरे ॥ ५६५ ॥ चन्द्रश्चन्द्रमसिस्वर्णे काम्पिल्ये बर्हचन्द्रके। शोणमुक्ताफले द्वीपविशेष कमनीययोः ॥ ५६६ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-चन्दन शब्द | १०५ हिन्दी टीका-चन्दन शब्द अस्त्री-पुल्लिग और नपुंसक है और उसका अर्थ-१. भद्रसार चानन (चन्दन) होता है किन्तु २. रक्तचन्दन (रक्त चानन) अर्थ में चन्दन शब्द केवल नपुंसक ही माना जाता है। चन्दिर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. कुञ्जर (हाथी) और २. चन्द्र (चन्द्रमा)। चन्दनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. सरिदन्तर (नदी विशेष) होता है। चन्द्र शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. चन्द्रमस् (चन्द्रमा) २. स्वर्ण (सोना) ३. काम्पिल्य (कबीलाकपीला) ४. बर्हचन्द्रक (मोर का पांख) और ५. शोणमुक्ताफल (लाल मोती) और ६. द्वीप विशेष एवं ७. कमनीय (रमणीय सुन्दर) इस तरह चन्द्र शब्द के सात अर्थ समझना। आह्लादजनकद्रव्ये विसर्गे सलिले पुमान् ।। ५६७ ॥ चन्द्र को मत्स्यभेदेस्यान्न खरे बहमेचके । अथचन्द्रकला वाचमत्स्य - द्रगडवाद्ययोः ।। ५६८ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग चन्द्र शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. आह्लादजनकद्रव्य (अलौकिक आनन्दजनक द्रव्य विशेष) तथा २. विसर्ग (त्याग) और ३. सलिल (जल)। चन्द्रक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. मत्स्यभेद (मछलो विशेष) २. नखर (नाखून, जिसका आकार अर्ध चन्द्र के समान टेढ़ा होता है इसीलिए नखर (नाखून, नख, नह) को चन्द्रक शब्द से व्यवहार किया जाता है। और ३. बर्हमेचक-मोर के पिच्छ में भी अर्ध चन्द्राकार श्यामल चिह्न होता है इसीलिए बर्हमेचक (मोर की श्याम पांख) को भी चन्द्रक शब्द से व्यवहार किया जात है। चन्द्रकला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. वाचमत्स्य (मत्स्य विशेष) और २. द्रगडवाद्य (वाद्य विशेष)। चन्द्रस्य षोडशे भागे भेदे भूषण-पुष्पयोः । चन्द्रकान्तश्चन्द्रमणौ करवे रजनौ स्त्रियाम् ॥ ५६६ ॥ चन्द्रपल्यामथो चन्द्रप्रभस्तीर्थङ्करान्तरे । चन्द्रशाला स्मृता ज्योत्स्ना प्रासादोपरिगेहयोः ॥ ५७० ॥ हिन्दी टीका-चन्द्रकला शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं- चन्द्रस्य षोडश भाग (चन्द्रमा का सोलहवां भाग हिस्सा अंश) और २. भूषणभेद (भूषण अलंकार विशेष जिसको चन्द्रहार शब्द से व्यवहार किया जाता है उसको भी चन्द्रकला कहते हैं) तथा ३. पुष्पभेद (फूल विशेष) को भी चन्द्रकला कहते हैं। चन्द्रकांत शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. चन्द्रमणि (चन्द्रकांतमणि) और २. कैरव (कुमुद, भेंट, सफेद कमल) को भी चन्द्रकांत कहते हैं। किन्तु ३. रजनि (रात) अर्थ में चन्द्रकांता शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । इसी प्रकार ४. चन्द्रपत्नी अर्थ में भी चन्द्रकांता शब्द स्त्रीलिंग ही माना जाता है। चन्द्रप्रभ शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. तीर्थङ्करांतर (तीर्थङ्कर विशेष, जिनका नाम चन्द्रप्रभ है, उनको भी चन्द्रप्रभ कहते हैं।) चन्द्रशाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. ज्योत्स्ना (चाँदनी) और २. प्रासादोपरिगेह (महल के ऊपर भाग का छोटा-सा घर) को भी चन्द्रशाला कहते हैं इस प्रकार चन्द्रशाला शब्द के दो अर्थ जानना। .. मूल : . चन्द्रशेखरईशाने भैरवे पर्वतान्तरे। . .. चन्द्रा गुडूच्यामेलायां वितानेऽपि स्मृतां स्त्रियाम् ॥५७१।। मूल : Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - चन्द्रशेखर शब्द चन्द्रातपश्चन्द्रिकायामुल्लोचेऽपि प्रकीर्तितः । चन्द्रिका मल्लिका ज्योत्स्ना सूक्ष्मैलामेथिकासु च ॥५७२॥ हिन्दी टीका - चन्द्रशेखर शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. ईशान ( भगवान शंकर) २. भैरव (काल भैरव) और ३. पर्वतान्तर (पर्वत विशेष ) | चन्द्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. गुडूची (गिलोय) २. एला (इलाइची) और ३ वितान (चन्दवार, कपड़े का बनाया हुआ चंदवार) । चन्द्रातप शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चन्द्रिका (चाँदनी) २. उल्लोच (उलोच, वितान शामियाना) । चन्द्रिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मल्लिका ( जूही फूल विशेष ) २. ज्योत्स्ना (चाँदनी) ३. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) और ४. मेथिका (मेथी) को भी चन्द्रिका कहते हैं । मूल : स्थूलैलायां चन्द्रशूर - क्षुद्रवार्ताकिनीष्वपि । कर्णस्फोटा चन्द्रभागा चन्द्रकेषु प्रकीर्तिता ॥ ५७३ ।। चपलश्चोरके मत्स्ये पारदे प्रस्तरान्तरे । क्षवेऽप्यथ त्रिलिंगस्तु विकले चिकुरे चले ।। ५७४ ।। हिन्दी टीका - १. स्थूलैला (बड़ी इलाइची ) २. और चन्द्रशूर और ३. क्षुद्रवार्ताकिनी (छोटा बेंगन वन भटा, छोटा रिंगण) इसीप्रकार ४. कर्णस्फोटा ५. चन्द्रभागा ( इरावती नदी विशेष ) और ६. चन्द्रक ( मोर के पिच्छ में नेत्राकार चमकदार चिह्न विशेष को भी) चन्द्रिका शब्द से व्यवहार किया जाता है । इस प्रकार चन्द्रिका शब्द के दस अर्थ जानना । चपल शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. चोरक (चुराने वाला चोर) २. मत्स्य (मछली) तथा ३. पारद (पाड़ा) और ४. प्रस्तरांतर (पत्थर विशेष) और क्षव ( राई, काला सरसों) को भी चपल शब्द से व्यवहार किया जाता है किंतु त्रिलिंग चाल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. विकल, २. चिकुर (केश बाल) और ३. चल ( चलायमान, चंचल, अस्थिर) इन तीन अर्थों में चपल शब्द त्रिलिंग है । क्लीबं स्यात्क्षणिके शीघ्र चपेटः प्रतले पुमान् । चपलात्विन्दिरा जिह्वा विजया मदिरासु च ॥ ५७५ ।। सौदामिन्यां पांशुलायां पिप्पल्यामपि कीर्तिता । मूल : डमरौ चित्तविस्तारे चमत्कारो मयूरके ।। ५७६ ।। हिन्दी टीका - नपुंसक चपल शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. क्षणिक ( क्षण मात्र रहने वाला, क्षणभंगुर ) और २. शीघ्र (जल्दी ) इन दो अर्थों में भी चपल शब्द नपुंसक है । चपेट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. प्रतल (थप्पड़, चपेटा) होता है । चपला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. इन्दिरा (लक्ष्मी) २. जिह्वा (जीभ) ३. विजया (भांग) ४. मदिरा (शराब) ५. सौदामिनी (बिजली) ५. पांशुला (व्यभिचारिणी) और ७. पिप्पली (पीपरि ) इस तरह चपला शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये । चमत्कार शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं १. डमरू (भगवान् शङ्कर का प्रसिद्ध डमरू ) २. चित्तविस्तार (चित्त- मन का विस्तार फैलाव, आनंद विशेष, ब्रह्मानंद सरखा साहित्यिक रस विशेष) और ३. मयूरक (अपामार्ग - चिरचोरी) इस प्रकार चमत्कार शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - चमस शब्द | १०७ लड्डुके पिष्टभेद-पर्पटयोरपि । चमसो चमसी मुद्ग माषादि शुष्कचूर्णेऽभिधीयते ॥ ५७७ ।। चमूः सेना विशेषेऽपि सेनामात्रेऽपि कीर्तिता । गद्यपद्यमयी वाणी - चम्पूरित्यभिधीयते ॥ ५७८ ॥ हिन्दी टोका - चमस शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. लड्डुक (लड्डू लाडवा) २. पिष्ट भेद (पिष्टातक गोला पिठार) और ३. पर्पट (पपरी ) । चमसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - ४. मुद्गमाषादि शुष्क चूर्ण (मूंग उड़द वगैरह धान्य विशेष का शुष्क चूर्ण) को चमसी शब्द से व्यवहार किया जाता है । चमू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. सेना विशेष ( हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल सेना विशेष को) चमू कहते हैं और २. सेना मात्र (साधारण सेना) को भी वमू शब्द से व्यवहार किया जाता है । चम्पू शब्द का अर्थ - गद्यपद्यमय वाणी (गद्य और पद्य इन दोनों का समूह विशेष) होता है । मूल : चयः समूहे प्राकारे पीठे वप्रे चरः कपर्दके भौमे खञ्जरीटे अक्षद्यूतप्रभेदेऽथ चरकः पर्पटे समाहृतौ । स्पशे चले ।। ५७६ ॥ मुनौ । गमनाऽऽचार - भक्षणेषु नपुंसकम् ॥ ५८० ॥ चरणं हिन्दी टीका -- चय शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. समूह संघ, समुदाय) २. प्राकार (परकोटा, चारदीवारी, किला) ३. पीठ (आसन विशेष, चौकी, पीढ़ी इत्यादि) ४. वप्र ( भींड स्तूप, मिट्टी का ढेर ) और ५. समाहृति (समाहार, एकत्रीकरण इत्यादि) । चर शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. कपद्द क ( कौड़ी, छदाम) २. भौम (मंगल) ३. खञ्जरीट ( खञ्जन चिड़िया ) ४. स्पश (गूढ़चर, गुप्त पुरुष सी० आई० डी० ) और ५. चल. ( चलायमान वस्तु) एवं ६. अक्षद्यूतप्रभेद (पाशा चौपड़) इस तरह चर शब्द के छह अर्थ जानना । चरक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. पर्पट (पपरी) और २. मुनि (ऋषि विशेष जिन्होंने चरक नाम का आयुर्वेद ग्रंथ बनाया है । चरण शब्द नपुंसक है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं - १. गमन ( गमन करना) २. आचार (शिष्टों का आचरण) और ३. भक्षण (भोजन करना) । मूल : अस्त्रियां बहृवृचादौ स्यान्मूलेऽपि पद गोत्रयोः । चराचरं स्याद् भुवने जङ्गमाजङ्गमे दिवि ॥ ५८१ ॥ इष्टे कपर्दके पुंसि चरित्रं चरिते स्मृतम् । चर्चरीको महाकाले केश विन्यास शाकयोः ॥ ५८२ ॥ हिन्दी टीका - अस्त्री- पुल्लिंग और नपुंसक चरण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं१. बह्वृचादि (ऋग्वेद-यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद की शाखा को ) चरण कहते हैं । २. पद मूल (पद का मूल) और ३ गोत्र मूल (वंश का मूल ) इस प्रकार चरण शब्द के कुल मिलाकर छह अर्थ जानना चाहिए। चराचर शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. भुवन (संसार, जगत) २. जंगमा Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चर्चा शब्द जंगम (स्थावर जंगम) और ३. दिव (लोक, स्वर्गलोक) किन्तु पुल्लिग चराचर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. इष्ट (अभीष्ट, मनोऽभिलषित) और २ कपर्दक (कौड़ी, वराटिका)। चारित्र शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. चरित (चरित्र, करेक्टर) होता है। चर्चरीक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. महाकाल (काल भैरव) और २ केशविन्यास (केश की सजावट) एवं ३. शाक (शाक विशेष) को भी चर्चरीक शब्द से व्यवहार किया जाता है। इस तरह चर्चरीक शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। .... मूल : चर्चा विचारणा दुर्गा चिन्तासु स्थासकेऽपि च । चर्माऽजिने च फलके शरीरावरणेन्द्रिये ॥ ५८३ ॥ पुंसिस्याच्चर्म पुटकश्चर्म निर्मित भाजने । ईर्ष्यापथस्थितौ चर्याचर्वणं दन्तचूर्णने ।। ५८४ ।। हिन्दी टोका-चर्चा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. विचारणा (मनन परस्पर चिन्तन) २. दुर्गा (पार्वती) ३. चिन्ता, ४. स्थासक (शरीरादि में लगाने का चन्दन) और ५. चर्माजिन (मृगचर्म) ६. फलक (पट्टिका, पीढ़ी इत्यादि) एवं ७. शरीरावरणइन्द्रिय (शरीर का आवरणभूत इन्द्रिय विशेष) को भी चर्चा शब्द से व्यवहार करते हैं। चर्मपुटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ१. चर्मनिर्मित भाजन (चमड़े का बनाया हुआ भाजन पात्र विशेष, कुप्पी) । चर्या शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता है और उसका अर्थ-१. ईर्यापथस्थिति (ईर्यापथ नाम के योग समाधि की स्थिति अवस्था विशेष) होता है। चर्वण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. दन्त वूर्णन (दन्तचूर्ण-दांत से चर्वण करना चबाना) होता है । इस तरह चर्या शब्द का और चर्वण शब्द का भी एक-एक अर्थ जानना चाहिए । मूल : चलं लोले चलः कम्पे कम्पयुक्त त्वसौ त्रिषु । चषकोऽस्त्री सुरापात्रे मधु मद्य विशेषयोः ॥ ५८५ ॥ चक्षा जीव उपाध्याये चक्षुः क्लीबं विलोचने । चक्षुष्पं खर्परी तुत्थ सौवीराजनयोरपि ।। ५.८६ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक चल शब्द का अर्थ-१. लोल (चञ्चल) होता है और पुल्लिग चल शब्द का अर्थ -२. कम्प (काँपना) होता है किन्तु ३. कम्पयुक्त अर्थ में चल शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुरुष स्त्री साधारण कम्पयुक्त हो सकता है इसीलिए कम्पयुक्त अर्थ में चल शब्द को तीनों लिंगो में प्रयोग किया जाता है । चषक शब्द भी अस्त्री--पुल्लिग नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सुरापात्र (शराब का पात्र भाजन, प्याला) और २. मधु (शहद) और ३. मद्यविशेष (शराब विशेष) को भी चषक शब्द से व्यवहार किया जाता है। चक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जीव और २. उपाध्याय । चक्षुः शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. विलोचन (नेत्र) होता है । चक्षुष्प शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. खर्परी तुत्थ (छोटी इलाइची और नील गड़ी) और २. सौवीराजन (अञ्जन विशेष, सुरमा) इस तरह चक्षुष्प शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये। मूल : प्रपौण्डरीकेऽथ पुमान् पुण्डरीके रसाञ्जने । शोभाञ्जने केतकेऽथ रम्ये चक्षुर्हिते त्रिषु ॥ ५८७ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चक्षुष्प शब्द | १०६ औज्ज्वल्ये चाकचक्यं स्यात् चाक्रिको घाण्टिकार्थके। तैलकारे शाकटिके चाटश्चौरे प्रतारके ॥ ५८८ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक चक्षुष्प शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है -१. प्रपोण्डरीक (गन्ना, ईख, शेरडी, इक्षु) किन्तु पुल्लिग चक्षुष्प शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं- १. पुण्डरीक (कमल विशेष, श्वेत कमल) २. रसाञ्जन (अञ्जन विशेष सुरमा) और ३. शोभाजन और ४. केतक (केवड़ा फूल) इन चार अर्थों में चक्षुष्प शब्द पुल्लिग माना गया है किन्तु -१. रम्य (रमणीय) और २. चक्षुहित (आँखों के लिये हितकारक) इन दो अर्थों में चक्षुष्प शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस तरह कुल मिलाकर चक्षुष्प शब्द के नौ अर्थ जानना । चाकचक्य शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ१. औज्ज्वल्य (उज्ज्वलता) होता है । चाकिक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. घाण्टिकार्थक (घण्टी वाला, चक्की वाला) और २. तैलकार (तेली घांची) और ३. शाकटिक (गाड़ी वाला) । चाट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-चौर (चोर दस्यु) और २. प्रतारक (ठगने वाला, ठगहारा) । इस तरह चाक्रिक शब्द के तीन और चाट शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : चाटुः स्त्रीपुंसयोमिथ्याप्रियवाक्ये प्रियोदिते । स्फुटवादिन्यथो चाटुपटुः कामुक भण्डयोः ।। ५८६ ।। चारः स्पशे गतौ बन्धकारागार प्रियालयोः । चारकोऽश्वादिपाले स्याद् बन्धे संचारके पटे ॥ ५६० ॥ हिन्दी टीका-चाटु शब्द स्त्रीलिंग पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मिथ्याप्रियवाक्य (मिथ्यायुक्त प्रिय मधुर वचन, खुशामद, चापलूसी) २. प्रियोदित (प्रिय कथन) और ३. स्फुटवादी (स्पष्टवक्ता) । चाटुपटु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कामुक (स्त्रीलम्पट) और २. भण्ड (भडुआ धूर्त) । चार शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. स्पश (गुप्तचर. खुफिया पुलिस) २. गति (गमन करना) ३ बन्ध, ४. कारागार (जेलखाना) और ५. प्रियालय (प्रियगृह-रतिगृह-केलिघर)। चारक शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ हैं-१. वादिपाल (घोड़ा वगैरह का परिचारक) २. बन्ध, ३. संचारक और ४. पट (कपड़ा)। वस्त्रादौ कुकुमादीनां छटा चाचिक्यमुच्यते । चिकुरस्तरले केशे पक्षिभेदे भुजङ्गमे ॥ ५६१ ॥ गृहबभ्रौ वृक्षभेदे चपले तु त्रिलिंगकः । चितिश्चितायां दुर्गायां समूहाङ्कविशेषयोः ।। ५६२ ॥ हिन्दी टीका - चाचिक्य शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-वस्त्रादौ कुकुमादीनां छटा (वस्त्र कपड़ा वगैरह में कुकुम सिन्दूर वगैरह की छटा चिह्न छाप) होता है। चिकुर शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. तरल, २. केश, ३. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) ४. भुजंगम (सर्प) ५. गृहबभ्र (नकूल न्यौला) ६. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) किन्तु ७. चपल (चञ्चल) अर्थ में चिकुर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। चिति स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ हैं-१. चिता (चिता भूमि, मुर्दे को जलाने का स्थान विशेष) २. दुर्गा (पार्वती) ३. समूह (समुदाय) और ४. अङ्क विशेष (दीवाल वगैरह में ईंटें वगैरह को गिनने की संख्या विशेष) को भी चिति कहते हैं। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित -- चित्र शब्द मूल : चित्रं कुष्ठप्रभेदे स्यादालेख्ये तिलकेऽद्भुते । योनि कर्बुरवर्णेऽथ त्रिषु तद्वति कीर्तितः ॥ ५६३ ॥ चित्रोयमान्तरेऽशोके एरण्डे चित्रद्रुमे । स्त्रियां चित्रफला मत्स्यभेद चिभिटयोः स्मृतः ॥ ५६४ ॥ हिन्दी टीका - चित्र शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं— कुष्ठभेद (सफेद कुष्ठ श्वेत कोढ़) २. आलेख्य (चित्र, फोटो, मूर्ति) ३. तिलक ( चन्दन ) ४. अदभुत (आश्चर्य) एवं ५. व्योमन् (आकाश) और ६. कुर्बु रवर्ण (चितकबरा रंग ) किन्तु ७ तद्वति (कर्बुरवर्ण युक्त) अर्थ में तो चित्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिंग चित्र शब्द के तो चार अर्थ माने जाते हैं - १. यमान्तर ( यमराज धर्मराज विशेष) २. अशोक (अशोक वृक्ष) ३. एरण्ड (वृक्ष विशेष) और ४. चित्रकद्रम (एरण्ड रेड़ का वृक्ष, जिसको अण्डी कहते हैं) । चित्रफला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं— १. मत्स्यभेद (मछली विशेष ) और २ चिभिट (लता विशेष) इस प्रकार चित्रफला शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : मृगेवरौ कण्टकारी वार्ताकी - लिङ्गिनीषु च । महेन्द्र वारुणीवल्ल्यां चित्रभानुस्तु भास्करे ।। ५६५ ।। चित्रभानुः पुमान् सूर्येऽनले चित्रकपादपे । भैरवेऽर्कतरौ चित्ररथो गन्धर्व सूर्ययोः ॥ ५६६ ।। हिन्दी टीका - चित्रफला शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. मृगेर्वारु (लता विशेष ) २. कण्टकारी (रेगनी कटैया ) ३. वार्ताकी (रिंगना, बैंगन भाटा) और ४. लिंगिनी (लता विशेष) और ५. महेन्द्र वारुणी वल्ली ( महेन्द्र वारुणी नाम का लता विशेष ) चित्रभानु शब्द का अर्थ - सूर्य होता है इसी तात्पर्य से कहा है- "चित्रभानुस्तु भास्करे" || इति ॥ | चित्रभानु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. अनल (अग्नि आग ) ३. चित्रक पादप (एरण्ड - रेड़- अण्डी का वृक्ष) और ४. भैरव ( काल भैरव) ५. अर्कतरु ( आंक का वृक्ष) । चित्ररथ शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गन्धर्व (देव योनि विशेष ) और २. सूर्य इस प्रकार चित्रभानु शब्द के पाँच और चित्ररथ शब्द के दो अर्थ हुए। मूल : चित्राऽप्सरो विशेषे स्यात् मञ्जिष्ठा - गण्डदूर्वयोः । सुतश्रेणी मृगेर्वारु सुभद्रादन्तिकासु च ।। ५६७ ॥ सर्पान्तरे सरिद्भेदे माया छन्दो विशेषयोः । कृष्णसख्यां गवादन्यां ताराभेदेऽपि कीर्तिता ॥ ५६८ ॥ हिन्दी टीका - चित्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ चित्रा नाम की अप्सरा ) २. मञ्जिष्ठा ( मजीठा रंग) ३. गण्ड दूर्वा (मूसाकर्णी) एवं ५. मृगेर्वारु (लता विशेष) और ६. सुभद्रा (दन्तिका सुभद्रादन्ती नाम का औषधि विशेष ) चित्रा शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं - १. सर्पान्तर (सर्प विशेष) २. सरिभेद (नदी विशेष ) माने जाते हैं - १. अप्सरो विशेष (दुभी विशेष) और ४. सुत श्रेणी Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदय सागर कोष: हिन्दी टोका सहित - चित्राङ्ग शब्द | १११ ३. माया, और ४. छन्दो विशेष (चित्रा नाम का छन्द) एवं ५. कृष्ण सखी (चित्रा नाम की कृष्ण की सखी - योगमाया) और ६. गवादनी (लता औषधि विशेष) और ७ ताराभेद (तारा विशेष, चित्रा नाम का नक्षत्र) को भी चित्रा शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : चित्राङ्गो भुजगे रक्तचित्रके चित्रद्रुमे । हिंगुले हरिताse चित्रापूपश्चरुव्रणे ।। ५६६ ॥ हृदयाला ज्ञानमये चिद्रूपः स्फूर्तिमत्यपि । चित्रिणी स्त्रीविशेषे स्यात् चितावेश्यान्तरे स्मृता ॥ ६०० ॥ हिन्दी टीका - चित्राङ्ग शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. भुजग (सर्प) २. रक्तचित्रक (वृक्ष विशेष ) ३. चित्रकद्रम (एरण्ड रेड़ अन्डी का वृक्ष ) ४. हिंगुल ( हिंग) और ५. हरिताल ( हरताल नाम का औषध विशेष ) । चित्रापूप शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ चरुव्रण (चरु विशेष ) होता है । चिप शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हृदयालु ( दयालु) २. ज्ञानमय (तत्त्वज्ञानी) और ३. स्फूर्तिमान प्रतिभाशाली । चित्रिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. स्त्री विशेष (चित्रिणी नाम की स्त्री जाति विशेष - ( पद्मिनी चित्रिणी हस्तिनी और शङ्खिनी-इन चार प्रकार की स्त्रियों में दूसरी स्त्री को चित्रिणी कहते हैं) । चिन्ता शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. वेश्यान्तर ( वेश्या विशेष ) है । मूल : चिन्तामणि : स्पर्शमणौ बुद्धे मण्यन्तरे विधौ । चिपिटोधान्यचमसे दीर्घसूत्रे चिरक्रियः ॥ ६०१ ॥ चिरजीवी पुमान् विष्णौ मार्कण्डेये हनूमति । व्यासे परशुरामे च कृपाचार्ये विभीषणे ।। ६०२ ।। हिन्दी टीका - चिन्तामणि शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. स्पर्शमणि ( पारसमणि ) २ बुद्ध (भगवान बुद्ध) ३. मण्यन्तर (मणि विशेष) और ४. विधि ( भाग्य विधाता ) । चिपिट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. धान्य चमस (पौंहा, चिवड़ा) है और चिरक्रिय शब्द भी पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. दीर्घसूत्र (आलसी) होता है क्योंकि चिरक्रिय शब्द का यौगिक अर्थ - चिर - विलम्ब से क्रिया - कार्य करने वाला होता । चिरजीवी शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं -- १. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. मार्कण्डेय (मार्कण्डेय मुनि) ३ हनुमान, ४. व्यास, ५. परशुराम ६. कृपाचार्य और ७. विभीषण । इस प्रकार चिरजीवी शब्द के सात अर्थ जानना चाहिये । अश्वत्थाम्निबलौ काके शाल्मलौ जीवकद्रुमे । मूल : एष्वर्थेषु चिरञ्जीवी त्रिषु स्यात् चिरजीविनि ॥ ६०३ ॥ प्रसह्य चौरे चिल्लाभश्चिल्ल आतायिपक्षिणि । चिल्लीलो झिल्लिकायामोष्ठाधाश्चिबुकंमतम् ॥६०४॥ हिन्दी टीका - चिरंजीवी शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. अश्वत्थामा, २. बलि ( राजा वलि) ३ काक, ४. शाल्मलि (सेमर का वृक्ष) और ५. जीवकद्र ुम ( बन्धूक पुष्प विजयसार) इन पाँच अर्थों में चिरंजीवी शब्द का प्रयोग होता है, किन्तु चिरजीविनि - ( अधिक दिन जीने वाला) इस अर्थ में Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - चिन्ह शब्द तो चिरजीवी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । चिल्लाभ शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. प्रसह्य चोर (हठात् चोरी करने वाला) होता है । चिल्ल शब्द भी पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. आततायी पक्षी ( शैतान पक्षी, चिल्ह चिल्होर) होता है । चिल्ली शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. लोघ्र ( वृक्ष विशेष) और २. झिल्लिका (झाल) । चिबुक शब्द का अर्थ - १. ओष्ठाधः (ओठ का नीचा भाग ) । इस प्रकार चिल्ली शब्द के दो और चिबुक शब्द का एक अर्थ जानना चाहिये । मूल : चिह्नमंके वैजयन्त्यां चिह्नितो लक्षितेऽङ्किते । चीनो मृगान्तरे तन्तौ देशभेदेंऽशुकान्तरे ।। ६०५ ॥ शस्यप्रभेदे क्लीबं तु पताकायां च सीसको । चीनकश्चीनकर्पूरे चीनधान्येsपि कीर्तितः ।। ६०६ ॥ हिन्दी टीका - चिह्न शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. अङ्क (चिह्न) और २. वैजयन्ती ( पताका) । चिह्नित शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. लक्षित (ज्ञान) और २. अङ्कित । चीन शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मृगान्तर (मृग विशेष) २. तन्तु ( ऊन का धागा ) ३. देशभेद (देश विशेष चीन देश) और ४. अंशुकान्तर (पट्ट वस्त्र विशेष, रेशम का कपड़ा ) किन्तु नपुंसक चीन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शस्य प्रभेद (शस्य विशेष चीना माढ़) २. पताका (ध्वजा ) और ३. सीसक (सीसा) । चीनक शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. चीन कर्पूर (चीनी कपूर) और २. चीन धान्य (चीना माढ़) इस तरह चीन शब्द के सात और चीनक शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : चीरं वस्त्रे तद्विशेषे रेखाभेदे च गोस्तने । चूडायां सीसके जीर्णवस्त्रखण्डे तरुत्वचि ॥ ६०७ ॥ लेखभेदे चीरकस्तु विक्रिया लेखने स्मृतः । चुसन्धान भेदे स्यात् तितिण्डीकेऽम्लवास्तुके ।। ६०८ ॥ हिन्दी टीका - चीर शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ होते हैं - १. वस्त्र (कपड़ा) २. तद्विशेष (वस्त्र विशेष, वस्त्राञ्चल ) ३. रेखाभेद (रेखा विशेष ) ४. गोस्तन ( चार लड़ी का हार विशेष) एवं ५. चूडा (चोटला ६. सीसक (शीशा) ७. जीर्णवस्त्र खण्ड ( पुराने कपड़े का टुकड़ा) और 5. तरुत्वच (वल्कल छिलका) । चीरक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. लेख भेद (लेख विशेष ) और २. लेखने विक्रिया (विकृत लेख) को भी चीरक कहते हैं । चुक्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - - १. सन्धान भेद (सन्धान विशेष अभिषव) २ तितिण्डीक (तेतरि) ३. अम्लवस्तुक (खटाई) इस प्रकार चुक्र शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : काञ्जिकेऽथ पुमान् अम्लवेतसेऽम्लरसेऽपि च । चुञ्चुली तिन्तिडी द्यूते चूचूकं तु कुचानने ॥ ६०६ ॥ चुम्बकः कान्त (लोहे स्यात्) पाषाणे घटस्योर्द्धावलम्बने । बहु ग्रन्थक देशज्ञ धूर्ते चुम्बनतत्परे ॥ ६१० ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चुक्र शब्द | ११३ हिन्दो टीका-नपुंसक चुक्र शब्द का और भी एक अर्थ होता है-१. काजिक (कांजी) किन्तु पुल्लिग चुक्र शब्द के और दो अर्थ होते हैं - १. अम्लवेतस (खट्टा वेतस लता विशेष) और २. अम्लरस (खट्टा रस विशेष, कोकन, आमिल वगैरह) । चुञ्चुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-तिन्तिडी द्यूत (इमली तेतरि का द्यूत जुआ)। चूचूक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. कुचानन (स्तन का अग्र भाग) है । चुम्बक शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. कान्त पाषाण (चुम्बक लोहा) २. घटस्य ऊर्ध्वालम्बन (घड़ा को ऊपर भाग में आलम्बन करने वाला थामकर रखने वाला लोहे का जंजीर विशेष) और ३. बहु ग्रन्थैकदेशज्ञ (अनेक ग्रन्थों के एक देश भाग का ज्ञाता) एवं ४. धूर्त (शैतान वञ्चक) और ५. चुम्बनतत्पर (चुम्बन करने वाला)। मूल : चुलुको भाण्डभेदे स्यात् प्रसृतौ घनकर्दमे । चूडा शिखाग्रवडभी कूप बहिशिखासु च ॥ ६११ ।। हिन्दी टीका - चुलुक शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. भाण्डभेद (बर्तन विशेष) २. प्रसृति (तलेटी तरहत्थी) ३. घनकर्दम (सघन कीचड़) ४. चूड़ा (चोटी) ५. शिखा (चोटला, टीक) ६. अग्रवल भी (धरनि) ७. कूप, ८. बहिशिखा (मोर का पिच्छ)। मूल : बाहुभूषण - संस्कारभेदयोरपि कीर्तिता। चूडामणिः शिरोरत्ने काकचिञ्चाफले पुमान् ॥ ६१२ ॥ वंगीय पण्डितोपाधौ योगभेदे स्मृतो बुधैः । चूर्ण क्षोदे वासयोगे धूलि-क्षार-विशेषणे ।। ६१३ ।। हिन्दी टोका-चूडा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. बाहुभूषण (बाँह का अलंकार विशेष बाजूबन्ध, केयूर वगैरह) और २. संस्कारभेद (संस्कारविशेष)। चूडामणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने हैं -१ शिरोरत्न (शिरोभूषण विशेष) २. काकचिचाफल (करजनी, चनौटी, मंगा) ३. वंगीय पण्डितोगधि (बंगाली पण्डितों को उपाधि विशेष, अवटङ्क) और ४. योगभेद (योग समाधि विशेष) को भी चूडामणि कहते हैं । चूर्ण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. क्षोद (चूर्ण) २. वासयोग (पटवास विशेष पाउडर वगैरह) ३. धूलि (गर्दा) और ४. क्षार विशेषण (राख) इस तरह चूर्ण शब्द के चार अर्थ जानना। चैत्यो देवतरौ बुद्ध ऽश्वत्थे जिनसभातरौ । क्लीवश्चितागृहे यज्ञगृहे ज्ञानिनि तु त्रि षु ॥ ६१४ ॥ चैत्रं मृते देवकुले पुमांस्तु बुद्धभिक्षुके । वर्ष पर्वतभेदे मासभेदे बुधात्मजे ॥ ६१५ ॥ हिन्दी टोका-चैत्य शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. देवतरु (कल्पवृक्ष) २. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) ३. अश्वत्थ (पीपल का वृक्ष) ४. जिनसभातरु (जिन भगवान तीर्थङ्कर का सभा वृक्ष) किन्तु क्लीव नपुंसक चैत्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. चितागृह (मुर्दा जलाने का घर) और २. यज्ञगृह (यज्ञ मण्डप विशेष) परन्तु १. ज्ञानी (ज्ञानवान्) अर्थ में चैत्य शब्द त्रिलिग माना जाता है। चैत्र शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मृत (मरा हुआ) और देवकुल (देव मन्दिर) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चोच शब्द किन्तु पुल्लिग चैत्र शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं—१. बुद्ध भिक्षुक (बौद्ध संन्यासी) २. वर्ष पर्वत भेद (वर्ष-इलावृत पर्वत विशेष) ३. मासभेद (चैत मास) और ४. बुधात्मज (पण्डित पुत्र) इस तरह चैत्र शब्द के चार अर्थ हुए। मूल: चोचं तालफले चर्म-वल्कयोः कदलीफले । उपभुक्तफलोद्वर्ते नारिकेले गुडत्वचि ॥ ६१६ ।। चोरः स्तेने कृष्णशटी-गन्ध द्रव्य विशेषयोः । चोलः कञ्चुलिकार्या स्यात् प्रभेदे म्लेच्छदेशयोः ।। ६१७ ॥ ___ हिन्दी टीका --चोच शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. तालफल (ताड़ वृक्ष का फल) २. चर्म (चमड़ा) ३. वल्क (छिलका, वल्कल) ४. कदलीफल (केला) और ५. उपभुक्त फलोद्वर्त (खाया हुआ फल का उद्वर्त भाग) एवं ६. नारिकेल (नारियल) और ७. गुडत्वच् (काठी, जिसकी त्वचा छिलका) मीठी होती है । चोर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. स्तेन (चोर) २. कृष्ण शटी (काली साड़ी) ३. गन्ध द्रव्य विशेष (सुगन्धित द्रव्य विशेष) । चोल शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कंचुलिका (चोली, ब्लाउज) २. म्लेच्छप्रभेद (चोल नाम का म्लेच्छ जाति विशेष) और ३. देश प्रभेद । देश विशेष, जोकि चोल शब्द से प्रसिद्ध है। मूल : चोक्षस्तीक्ष्णे शुचौ गीते मनोज्ञ चतुरे त्रिषु । चौरी दस्यौ चोरपुष्पी सुगन्धिद्रव्य-भेदयोः ।। ६१८ ।। हिन्दी टोका-चोक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. तीक्ष्ण (कठोर) २. शुचि (पवित्र) ३. गीत (गान) ४. मनोज्ञ (सुन्दर) और ५. चतुर अर्थ में चोक्ष शब्द त्रिलिंग माना जाता है । चौरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. दस्यु (डाकू) २. चोरपुष्पी (पुष्पविशेष) और ३. सुगन्धि द्रव्यभेद (सुगन्ध द्रव्य विशेष) इस तरह चौरी शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल : च्युतिर्भगे गुदद्वारे क्षरणेऽपि मता स्त्रियाम् । च्योतं घृतादिक्षरणे च्यौलस्त्याज्येऽण्डजे गमे ॥ ६१६ ॥ छटा दीप्तौ छटाभास्यात् सौदामिन्यां बुधैः स्मृता। आतपत्रे स्मृतं छत्रमतिच्छत्रे तृणान्तरे ॥ ६२० ॥ हिन्दी टीका-च्युति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. भग (योनि, गर्भाशय) २. गुदद्वार (गुदामार्ग) ३. क्षरण (झड़ना) । च्योत शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ १. घृतादि क्षरण (घी वगैरह का पिघलना. टघरना) है। च्यौल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. त्याज्य (छोड़ने योग्य वस्तु) २. अण्डज (अण्डे से उत्पन्न होने वाला) और ३. गम (ज्ञान, शास्त्र, गमन वगैरह)। छटा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसका अर्थ १. दीप्ति (प्रकाश ज्योति) होता है। छटाभा शब्द भी स्त्रीलिंग ही माना जाता है और उसका अर्थ-१. सौदामिनी (बिजली) होता है। छत्र शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. आतपत्र (छाता) होता है इसी प्रकार छत्र शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं- १. अतिछत्र (पानी में होने वाले तृण विशेष) और २. तृणान्तर (गोबरछत्ता) इस प्रकार छत्र शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - छत्रपत्र शब्द | ११५ छत्रपत्रो मानकचौ भूर्जे सप्तच्छद्रुमे । छत्रभंगस्तु वैधव्ये स्वातन्त्र्य-नृपनाशयोः ।। ६२१ ॥ छत्रा शिलीन्ध्र मञ्जिष्ठाऽतिच्छत्रासु धनीयके । छदः पत्रे ग्रन्थिपर्णे तमालतरु- पक्षयोः ।। ६२२ ।। हिन्दी टीका - छत्रपत्र शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. मानकच २. भूर्ज (भोज पत्र ) और ३. सप्तच्छद द्रुम (सप्तपर्ण नाम का वृक्ष विशेष जिसके एक पत्ते में सात-सात पते होते हैं इसलिए वह छाता जैसा भासित होने से छत्रपत्र कहलाता है) । छत्रभंग शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. वैधव्य ( विधवा योग, पतिरहित होना) २. स्वातन्त्र्यनाश (स्वतन्त्रता का नाश और ३. नृपनाश ( राजा का नाश होना) । छत्रा शब्द स्त्रीलिंग है। और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. शिलीन्ध्र (गोबर छत्ता ) २. मञ्जिष्ठा ( मजीठा रंग) और ३. अतिछत्रा ( पानी में होने वाला घास विशेष) एवं ४. धनीयक ( धन को चाहने वाला) । छद शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. पत्र (पत्ता) २. ग्रन्थिपर्ण ( गठिवन, कुकरौन्हा ) ३. तमालतरु (तमाल वृक्ष) और ४. पक्ष (पांख) इस तरह छद शब्द के चार अर्थं जानना । छदनं तमालपत्रे स्यात् पक्षे दलपिधानयोः । छन्दोऽभिलाषेऽभिप्राये वशे रहसि तु त्रिषु ॥ ६२२ ॥ विषेऽथ सान्त छन्दस्तु वेदे पद्ये मनोरथे । छवि दीप्तावजे छाग छात्रोऽन्तेवासिनि स्मृतः ॥ ६२४ ॥ मूल : मूल : हिन्दी टीका - छदन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. तमाल पत्र ( तमाल का पत्ता) २. पक्ष (पाँख) ३. दल (पत्ता) और ४ पिधान (ढाकन, आच्छादन) । अदन्त छन्द शब्द के पाँच अर्थ हैं - १. अभिलाष ( मनोरथ ) २. अभिप्राय ( आशय ) ३. वश ( अधीनता) और ४. रहस् (एकान्त) और ५. विष (जहर) । सकारान्त छन्दस् शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये - १. वेद (श्रुति) २. पद्य (श्लोक) और ३. मनोरथ (अभिलाषा) । छवि शब्द का अर्थ - १. दीप्ति (प्रकाश ज्योति) होता है । छाग शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. अज ( बकरा ) होता है। छात्र शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. अन्तेवासी (विद्यार्थी) होता है । मूल : छादनं छदने पत्रेऽन्तर्द्धाऽऽच्छादनयोरपि । छाया कान्तौ सूर्यपत्न्यामुत्कोच प्रतिबिम्बयोः ॥ ६२५ ॥ पालनेनातप-पङ क्तौ तमः सादृश्ययोरपि । कात्यायन्यां सुशोभायामथच्छायासुतः शनौ ।। ६२६ ॥ हिन्दी टीका -छादन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. छदन (आच्छादन) २. पत्र (पत्ता) ३. अन्तर्द्धा ( व्यवधान अन्तर्धान, तिरोधान छिप जाना) और ४. आच्छादन (ढाकन) । छाया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. कान्ति (तेज) २. सूर्य पत्नी ( सूर्य की स्त्री) ३. उत्कोच (घूस लांच देना) और ४. प्रतिबिम्ब । इसी प्रकार छाया शब्द के और भी सात अर्थ होते हैं१. पालन (रक्षा करना) २. अनातप ( आतप रहित छाया ) ३. पंक्ति (कतार ) ४. तमः (अन्धकार) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ११६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-छित्वर शब्द ५ सादृश्य (सरखापन) ६. कात्यायनी (दुर्गा पार्वती) और ७. सुशोभा । छायासुत शब्द का अर्थ शनि होता है। छित्वरश्छेदनद्रव्ये धूर्ते वैरिणि चेष्यते । छिदिरः परशौ रज्जौ निस्त्रिशे हव्यवाहने ॥ ६२७ ॥ छिदुरस्तु सपत्ने स्याच्छेदन द्रव्य धूर्तयोः । छिद्रं बिलेदूषणे च रन्ध्र छिन्नन्तु खण्डिता ॥ ६२८ ।। हिन्दी टीका-छित्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. छेदन द्रव्य (काटने का साधन खनित्र खनती कुठार वगैरह) २. धूर्त (वञ्चक) और ३. वैरी (शत्रु) भी छित्वर शब्द का अर्थ समझा जाता है। छिदिर शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. परशु (फर्शा) २. रज्जु (रस्सी-डोरी) ३. निस्त्रिश (अस्त्र विशेष) और ४. हव्यवाहन (अग्नि देवता)। छिदुर शब्द पहिलग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. सपत्न (शत्र) २. छेदनद्रव्य (छैनी खनती कठारी वगैरह) और ३. धूर्त (वञ्चक) । छिद्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. बिल (सूराख) २. दूषण ओर ३. रन्ध्र (सुराख) । छिन्न शब्द का अर्थ-१. खण्डित (कटा हुआ) होता है। मूल : . छुपो युद्ध क्षुपे स्पर्श चपलेऽपि निगद्यते । छुछुन्दरी स्त्रियां गन्धमूषिकायामथो छुरा।। ६२६ ॥ चूर्णे सुधायां छुरिकाऽसिपुत्र्यां गदिता बुधैः । छेको गृहासक्त खगमृगयो गरे त्रिषु ॥ ६३० ।। हिन्दी टीका-छुप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. युद्ध (संग्राम) २.क्षप (कियारी) ३. स्पर्श, और ४. चपल (चचल)। छछन्दरा शब्द स्त्रीलिग है और उसका अर्थ-गन्धमूषिका- छछुन्दरी है । छुरा शब्द भी स्त्रीलिंग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. चूर्ण, और २. सुधा (चूना) । छुरिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. असि पुत्री (छुरी) होता है। छेक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं .. १. गृहासक्त (गृह में आसक्त पुरुष स्त्रंण २. खग (पक्षी विशेष) और ३. मृग (हरिण अथवा पशु) किन्तु १. नागर (नागरिक) अर्थ में छेक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : छेदनं कर्तने भेदे छोरणं परिवर्तने । जगत् क्लीवं च संसारे ना वायौ त्रिषु जंगमे ॥ ६३१ ॥ जगती भुवने छन्दो विशेषे धरणौ जने । जम्बूवप्रेऽथ जगलो धूर्ते मदनपादपे ॥ ६३२ ॥ हिन्दी टोका-छेदन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कर्तन (काटना) २. भेद (भेदन करना)। छोरण शब्द भी नपुंसक ही माना जाता है और उसका अर्थ- १. परिवर्तन (पलटना) होता है । जगत् शब्द भी नपुंसक है और उसका अर्थ-१. संसार (दुनिया) होता है किन्तु २. वायु (पवन) अर्थ में जगत् शब्द को पुल्लिग माना जाता है परन्तु ३. जंगम (गमनशील गति वाला) अर्थ में त्रिलिग माना जाता है। जगती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. भुवन (संसार) २. छन्दो विशेष (जगती छन्द) ३. धरणि (पृथिवी) ४. जन और ५. जम्बूवप्र (जम्बू का वप्र-- Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जगल शब्द | ११७ स्तूप टीला) । जगल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - धूर्त (वञ्चक) और २. मदनपादप (अर्कवृक्ष आँक का पौधा)। मूल : पिष्टमद्ये सुराकल्के कवचे गोमयेऽपि च । जग्धं भुक्त स्त्रियां जग्धिभक्षणे सहभोजने ॥ ६३३ ॥ नारीकटिपुरोभागे क्लीवं जघनमुच्यते । जघन्यो मेहने शूद्रे गर्हिते चरमेऽधमे ॥ ६३४ ॥ हिन्दी टोका-जगल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. पिष्टमद्ये (पीसा हुआ शराब, पिष्टकमद्य) २. सुराकल्क (शराब का मल, मला शराब) ३. कवच, और ४. गोमय (गोबर) को भी जगल कहते हैं । जग्ध शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-भुक्त (खाया हुआ) होता है । जग्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. भक्षण (खाना) और २. सह-भोजन (साथ भोजन, पार्टी)। जघन शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-नारी कटि पुरो-भाग (स्त्री की नाभि का नीचे भाग) को जघन कहते हैं । जघन्य शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. मेहन (मूत्रन्द्रिय) २, शूद्र, ३. गर्हित (निन्दित) ४. चरम (अन्तिम) और ५. अधम (नीच) इस तरह जघन्य शब्द के पांच अर्थ जानना। मूल : जङ्गलं निर्जन स्थाने त्रिलिंगः पिशिते स्त्रियाम् । जंघालोऽतिजवे जंघात्राणन्तु मंक्षुणे स्मृतम् ॥ ६३५ ॥ जटा शतावरी-मासी-मूल-व्रतिशिखासु च । मूले रुद्र जटायां च कपिकच्छावपि स्मृतम् ॥ ६३६ ॥ हिन्दी टीका-जंगल शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थ-१. निर्जन स्थान (एकान्त स्थान) होता है किन्तु २. पिशित (माँस) अर्थ में जंगल शब्द स्त्रीलिंग माना गया है। जंघाल शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१ अतिजव (अत्यन्त वेग) होता है। जंघात्राण शब्द. नपुंसक है और उसका अर्थ१. मंक्षुण होता है । जटा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. शतावरी मूल (शतावर का मूल भाग) २. मूल मासी (औषधि लता विशेष का मूल भाग) और ३. व्रतिशिखा (व्रती योगी की शिखा चोटी) को भी जटा कहते हैं । ४. मूल (मूल भाग) और ५. रुद्रजटा (शंकर की जटा) एवं ६. कपिकच्छु (कवाछु)। मूल : जटाजूटो जटापुजे कपर्देऽपि पिनाकिनः । जटालो वट-क- र-क्षार वृक्षेषु गुग्गुलौ ॥ ६३७ ॥ त्रिलिंगस्तु जटायुक्त जटि: प्लक्ष समूहयोः। जटिलः पुंसि पञ्चास्ये जटायुक्त त्रिषु स्मृतः॥ ६३८ ॥ हिन्दी टीका-जटाजूट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१ जटापुञ्ज (जटासमूह) और २. पिनाकिनःकपर्द (शंकर का कपर्द - जटाजूट)। जटाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं ---१. वट (वट वृक्ष) क्योंकि उसमें बहुत से बड़ जटा होते हैं और २ कचूर (पलाश-आमाहल्दी) ३. क्षार वृक्ष (खार वृक्ष विशेष) और ४. गुग्गुलु (गुग्गल) किन्तु १. जटायुक्त (जटा से युक्त) अर्थ में Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ | नानर्योदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जटिला शब्द जटाल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जटि शब्द के दो अर्थ होते हैं—१. प्लक्ष (पाकर का वृक्ष) और २. समूह (समुदाय) । जटिल पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. पंचास्य (सिंह) होता है । किन्तु २. जटायुक्त अर्थ में जटिल शब्द भी त्रिलिंग माना जाता है । इस प्रकार जटिल शब्द के दो अर्थ जानना चाहिए। मूल : जटिला राधिकाश्वश्रू-जटामांसी वचासु च। पिप्पल्यामुच्चटायां च स्मृता दमनकद्रु मे ।। ६३६ ॥ हिन्दी टोका-जटिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. राधिकाश्वश्रु (राधा की सास) २ जटामांसी (जटामांसी तपस्विनी लता विशेष) ३. वचा (वच) और ४. पिप्पली (पीपरि) ५. उच्चटा (मोथा घास) और ६. दमनक द्रम (दमनक नाम का वृक्ष विशेष) इस तरह जटिला शब्द के छह अर्थ जानना चाहिए। मूल : जठरं कठिने बद्ध त्रिषुस्यादुदरेद्वयोः । जडोऽप्रज्ञ हिमग्रस्ते मूके त्रिषु जलेऽद्वयोः ॥ ६४० ॥ इष्टानिष्टाऽपरिज्ञाने यत्र प्रश्नेष्वनुत्तरम् । दर्शनश्रवणाभावो जडिमा सोऽभिधीयते ।। ६४१ ।। हिन्दी टोका-जठर शब्द १ कठिन (कठोर) और २. बद्ध (बंधा हुआ) इन दो अर्थों में त्रिषु-- त्रिलिंग माना जाता है और ३. उदर (पेट) अर्थ में द्वयोः-पल्लिग और नपंसक माना जाता। जड शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं--१. अप्रज्ञ (मूर्ख-प्रज्ञाहीन) और २. हिमग्रस्त (पाला बर्फ से व्याप्त) किन्तु ३. मूक (गूंगा) अर्थ में जड शब्द त्रिलिंग माना जाता है और ४ जल (पानी) अर्थ में तो अद्वयोः केवल नपुंसक ही माना जाता है । जडिमा शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. इष्टाऽनिष्टाऽपरिज्ञान (इष्ट और अनिष्ट का अपरिज्ञान--ज्ञान रहित) और २. 'यत्र प्रश्नेषु अनुत्तरम्' (जहाँ पर प्रश्न करने पर भी उत्तर नहीं दे सकना उसको भी) जडिमा-स्तब्धता कहते हैं । और ३. दर्शन-श्रवणाभाव (दर्शन और श्रवण के अभाव को भी जडिमा कहते हैं, इस प्रकार जडिमा शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : जतुकाऽजिनपक्षायां पर्पटी वल्लिभेदयोः । जनो लोके महर्लोकादूर्ध्वलोके च पामरे ॥ ६४२ ॥ जनकस्तु विदेहे स्यात् पितर्युत्पादके स्मृतः। जनता जनसमूहेऽपि जननं वंश जन्मनोः ॥ ६४३ ॥ हिन्दी टीका--जतुका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अजिनपक्षा (चमगादड़-बादुर) २. पर्पटी (पपरी) और ३. वल्लिभेद (लता विशेष) को भी जतुका कहते हैं । जन शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ लोक (लोक विशेष) और २. महर्लोकाद् ऊर्ध्वलोक(महर्लोक से ऊपर के लोक को भी) जनलोक कहते हैं। और ३. पामर (कायर) को भी जन कहते हैं। जनक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विदेह (राजा जनक) और २ पिता, एवं ३ उत्पादक (उत्पन्न करने वाला) को भी जनक कहते हैं। जनता शब्द स्त्रीलिग है और उसका अर्थ--- जनसमूह (जन-समुदाय) होता है । जनन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वंश (कुल) और २. जन्म । इस प्रकार जनन शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जननी शब्द | ११६ मूल: जननी मातृ मञ्जिष्ठा-जटामांसी दयास्वपि । कटुका - यूथिका - चर्म चटिकाऽलक्तकेषु च ॥ ६४४ ॥ देशे जने जनपद: किंवदन्त्यां जनश्रुतिः । जनिर्यािं जनीनाम गन्ध द्रव्ये च मातरि ॥ ६४५ ॥ हिन्दी टीका--जननी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं- १. माता, २. मजिष्ठा (मजीठा रंग) ३. जटामांसी (जटामांसी नाम का लता औषध विशेष) ४. दया (कृपा अनुकम्पा) ५. कटुका (कटुकी) ६. यूथिका (जूहो) ७. चर्मचटिका (चमड़े की चट्टी) और ८. अलक्तक (अलता-मेंहदी)। जनपद शब्द पल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. देश और २. जन (लोक)। जनश्रुति शब्द है और उसका अर्थ किंवदन्ती होता है। जनि शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. नारी (स्त्री) २. जनीनाम गन्ध द्रव्य (जनी नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) और ३. माता। इस तरह जनि शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल : जनी पुत्रवधू नारी जननेष्वौषधान्तरे । जन्यं क्लीबं परीवादे हट्ट संग्रामयोरपि ॥ ६४६ ॥ हिन्दी टीका - जनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पुत्रवधू, २. नारी, ३. जनन (जन्म लेना) और ४. औषधान्तर (औषध विशेष)। जन्य शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. परीवाद (निन्दा) २. हट्ट (हाट दुकान) और ३. संग्राम (युद्ध) इस प्रकार जन्य शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल : जन्यो जनहिते ताते नवोढा ज्ञाति भृत्ययोः । जामातृस्निग्ध मित्रादातुणोऽपि त्रिलिंगकं ॥ ६४७ ॥ हिन्दी टीका-जन्य शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१ . जनहित (जन कल्याण) २. तात (पिता, मित्र) ३. नवोढा ज्ञाति (नूतन विवाहिता नवयुवति का ज्ञाति) और ४. नवोढ़ा भृत्य (नवीन विवाहित युवति का नौकर-चाकर-परिचारक-वाहक-कहार) एवं ५. जामाता स्निग्ध मित्रादि (जामाता का स्नेही-मित्र-दोस्त-फण्ड) और ६. उत्पाद्य (उत्पन्न किया जाने वाला) इस प्रकार जन्य शब्द के छह अर्थ हुए। जन्या मातृवयस्यायां प्रीतावपि निगद्यते । जन्युर्वैश्वानरे धातृ-प्राणिनोः पुंस्यथो जपा ॥ ६४८ ॥ ओड्रपुष्पेऽथ जम्बाल: शैवाले पङ्क मेध्ययोः । जम्बीरः स्यान्मरुबकेऽर्जके जम्भे सितार्जके ।। ६४६ ।। हिन्दी टीका-जन्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. मातृवयस्या (माता की वयस्या-सखी सहेली) और २. प्रीति (स्नेह प्रेम)। जन्यु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वैश्वानर (अग्नि-आग) २. धाता (विधाता ब्रह्मा) और ३. प्राणी (प्राणीमात्र)। क्योंकि जन्यु शब्द का यौगिक अर्थ उत्पन्न होने वाला होता है इसीलिये प्राणीमात्र को जन्यु शब्द से व्यवहार हो सकता मूल : Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जम्बूक शब्द है। जपा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. ओड्रपुष्प (बन्धूक फूल दोपहरि या फूल) है । जम्बाल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. शैवाल (लीलू-शिमार) २. पङ्क (कीचड़) और ३. मेध्य (केतक वृक्षा--केवड़ा)। जम्बीर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. मरुबक (मयनफल नाम का वृक्ष विशेष जिसको मदनवृक्ष भी कहते हैं) और २ अर्जक (श्वेत पर्णास, बबई) ३. जम्भ (निम्बू-नेबी) और ४. सितार्जक (सफेद बबई) । इस प्रकार जम्बीर शब्द के चार अर्थ जानना चाहिए। मूल : जम्बूको वरुणे नीचे शृगाले पादपान्तरे । जम्बूद्वीपो द्वीपभेदे जम्बूर्जम्बुफलद्रुमे ॥ ६५० ॥ जम्भोंऽशे भक्षणे दन्ते जम्बीरे हनुतूणयोः । दैत्यभेदेऽथ जम्भारिर्वह्नौ वज्र पुरन्दरे ॥ ६५१ ॥ हिन्दी टीका -जम्बूक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. वरुण २. नीच (अधम) ३. शृगाल (सियार गीदड़) और ४. पादपान्तर (वृक्ष विशेष - जामुन का वृक्ष)। जम्बूद्वीप भी पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. द्वीपभेद (द्वीप विशेष-एशिया द्वीप)। जम्बू शब्द का अर्थ-१. जम्बुफलद्रुम (जामुन का वृक्ष) है । जम्भ शब्द भी पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं—१. अंश (भाग) २.भक्षण ३. दन्त (दांत) ४. जम्बीर (निम्बू) ५. हनु (दाढ़ी) ६ तूण (तरकस म्यान) और ७. दैत्यभेद (दैत्य विशेष)। जम्भारि शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वन्हि (अग्नि-आग) २. वज्र (कुलिश-वज्र) और ३. पुरन्दर (इन्द्र) । इस तरह जम्भारि शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल : जयोऽग्निमन्थे विजये युधिष्ठिर-जयन्तयोः । इक्ष्वाकुवंश्यनृपतौ श्रीनारायणपार्षदे ।। ६५२॥ हिन्दी टोका-जय शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं- १. अग्निमन्थ (आग का मन्थन) २. विजय, ३. युधिष्ठिर, ४. जयन्त (इन्द्र का पुत्र) ५. इक्ष्वाकुवंश्यनृपति (सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र वगैरह राजा) और ६ श्रीनारायण पार्षद (विष्णु भगवान का पार्षद--पर्षद सभा में रहने वाला)। मूल : जयन्त: शंकरे चन्द्रे पाकशासनि-भीमयोः । जयन्ती पार्वती-देव्यामिन्द्रपुत्री पताकयोः ॥ ६५३ ॥ नादेयीपादपे योगविशेषेऽपि प्रकीर्तिता। जयपत्रं विवादाप्तजयबोधक लेखने ॥ ६५४ ॥ हिन्दी टीका-जयन्त शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१ शंकर (भगवान शिव) २. चन्द्र (चन्द्रमा) ३. पाकशासनि (इन्द्र का पुत्र-जयन्त) और ४. भीम (भीमसेन)। जयन्ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. पार्वतीदेवी (दुर्गा भवानी) २. इन्द्रपुत्री (इन्द्र की लड़की जयन्ती) और ३. पताका (ध्वज) एवं ४. नादेयीपादप (जलबेंत) और ५ योगविशेष (समाधि विशेष) को भी जयन्ती कहते हैं । जयपत्र शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. विवादाप्त जयबोधक लेखन विवाद स्थल में विजयी व्यक्ति के लिए आप्त प्रामाणिक व्यक्ति का जयबोधक लेख) है । इस प्रकार जयपत्र शब्द का अर्थ विजय सूचक पत्र विशेष समझना । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - जयपाल शब्द | १२१ जयपालो विधौ विष्णौ भूपाले बीजरेचने । दुर्गायां पार्वती- सख्यां विजयातिथिभेदयोः ॥ ६५५ ॥ शान्ता वृक्षे हरीतक्यामग्निमन्थे द्रुमान्तरे । नील दूर्वा-वैजयन्तीभेदयोश्च जया स्मृता ॥ ६५६ ॥ ८. हिन्दी टीका - जयपाल शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं - १. विधि (विधाता ) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. भूपाल (राजा) ४. बीजरेचन (बीजवपन आदि) ५. दुर्गा (पार्वती भवानी) ६. पार्वती सखी ( दुर्गा भवानी का सखी-सहेली विशेष) ७. विजया और तिथि भेद (तिथि विशेष अथवा विजया तिथि आश्विन शुक्ल दशमी तिथि) को भी जयपाल शब्द से व्यवहार किया जाता है । जया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. शान्तावृक्ष ( वृक्ष विशेष) २. हरीतकी (हरें ) ३. अग्निमन्थ ( आग का मन्थन ) ४. द्र मान्तर ( वृक्ष विशेष) और ५. नील दूर्वा (नील दूभी; हरी दूर्वा ) ६. वैजयन्ती भेद ( पताका झण्डा विशेष ) । मूल : मूल : जरठो जीर्ण - कठिन जरा-कर्कश पाण्डुषु । जरणो जीरके कासमर्दे सौवर्चले स्मृतः ।। ६५७ ।। जरद्गवो जीर्णवृक्ष - गृध्रपक्षि - विशेषयोः । जरा स्याद् राक्षसीभेदे वार्द्धक्ये क्षीरिका द्रुमे ॥ ६५८ ॥ हिन्दी टीका - जरठ शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. जीर्ण (जूना पुराना ) २. कठिन (कठोर) ३. जरा ( बुढ़ापा ) ४. कर्कश (कड़ा) और ५. पाण्डु (पाण्डु रंग) । जरण शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. जीरक (जीरा-जीर) २. कासमर्द (वेसवार, एक प्रकार का मसाला या छौंक गुल्म विभेद, तरिपात वगैरह ) ३. सौवर्चल ( संचर नमक अथवा सज्जी खार या सोचर खार, क्षार विशेष नमक विशेष ) । जरद्गव शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. जीर्णवृक्ष (पुराना वृक्ष) और २. गृध्र पक्षि विशेष ( गीध पक्षी) । जरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. राक्षसीभेद (राक्षसी विशेष) २. वार्धक्य ( बुढ़ापा) और ३. क्षीरिका द्रुम (खिरनी का वृक्ष) इस प्रकार जरा शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये । मूल : जरन्तो महिषे वृद्धे जरसानस्तु मानवे । गर्भाशये जरायु: स्यात् अग्निजारमहीरुहे ।। ६५६ ॥ हिन्दी टीका - जरन्त शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. महिष (भैंसा ) २. वृद्ध (बुड्ढा) | जरसान शब्द का अर्थ १. मानव ( मनुष्य मात्र) होता है । जरायु शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. गर्भाशय (योनि, गर्भ का वेष्टन - लपेटने वाला चर्पपुटक ) और २. अग्नि जार महीरुह ( अग्नि जार नाम का वृक्ष विशेष) इस तरह जरायु शब्द के दो अर्थ हुए । मूल : जर्जरः शैलजे शक्रध्वजे शीर्णे जर्जरीको बहुच्छिद्रद्रव्ये त्रिषु जरातुरे । जरातुरे ।। ६६० ।। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जर्जर शब्द जलं गोकलने नीरे ह्रीबेरेऽथ जडे त्रिषु । जलगुल्मो जलावर्ते कमठे नीरचत्वरे ।। ६६१ ।। हिन्दी टोका-जर्जर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शैलज (पहाड़ से उत्पन्न) २. शक्रध्वज (इन्द्र की पताका) ३. शीर्ण (जीर्ण, पुराना, नष्ट-भ्रष्ट) और ४. जरातुर (जर्जरित, अत्यन्त वृद्ध)। जर्जरीक शब्द भी पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. बहुच्छिद्र द्रव्य (अनेक छिद्र वाला घटादि द्रव्य विशेष) किन्तु २. जरातुर (अत्यन्त वृद्ध) अर्थ में तो जर्जरीक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१ गोकलन, २. नीर (पानी) ३. ह्रीबेर (नेत्र वाला) और ४. जड (मूर्ख) क्योंकि संस्कृत साहित्य में ड और ल का ऐक्य माना गया है इसलिए जल कहने से जड भी लिया जा सकता है इसीलिए जल से जड अर्थ भी समझना चाहिए। किन्तु इस जड (मूर्ख) अर्थ में जल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जलगुल्म शब्द पुल्लिग माना गया है और उसके तीन अर्थ होते हैं --१. जलावर्त (भंवर, पानी की भ्रमि, जहाँ पानी चक्कर देता रहता है और उसमें पड़कर प्राणी खतरे में पड़ जाते हैं) २. कमठ (कच्छा, काचवा-काछ) और ३. नीर चत्वर (सलिलाजिर -- पानी का अंगन - आंगन) इस प्रकार जलगुल्म शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये । मूल : जलजं कमले शंखे लवणाकरजेऽद्वयोः । पुमान् शैवाल-वानीर - मीन-शंख - कुपीलुषु ॥ ६६२ ॥ जलदो मुस्तके मेघे जलदानविधायिनि । मेघे जलधरः सिन्धौ-मुस्तके जलधारिणि ॥ ६६३ ।। हिन्दी टोका – जलज शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कमल, २. शंख, और ३ लवणाकरज (लवण समुद्र-क्षार समुद्र में उत्पन्न होने वाला) किन्तु पुल्लिग जलज शब्द के तो पांच अर्थ होते हैं---१ शैवाल (लीलू, शेमार) २ वानीर (बेंत, वेतसलता) ३. मीन (मछली) ४. शंख और ५ कुपील । जलद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. मुस्तक (मोथा) २. मेघ (बादल) और ३. जलदानविधायी (जल दान करने वाला)। जलधर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. मेघ (बादल) २. सिन्धु (सागर) ३. मुस्तक (मोथा) और ४. जलधारी (पानी को धारण करने वाला)। मूल : जलप्रायमनूपेऽथ चातकेऽपि जलप्रियः । जलयन्त्रगृहं प्रोक्त जलयन्त्रनिकेतने ।। ६६४ ॥ जलरुण्डो जलावर्ते पयोरेणौ भुजंगमे । जल व्यालोऽलगर्दै स्यात् क्रूरकर्मणि यादसि ॥ ६६५ ॥ हिन्दी टोका-जलप्राय शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-अनूप (जहाँ पर चारों तरफ पानी ही पानी रहता है उसको अनूप कहते हैं)। जलप्रिय शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-चातक (चातक नाम का पक्षी विशेष होता है जोकि स्वाति नक्षत्र के पानी को ही चाहता है) यहाँ पर श्लोक में अपि शब्द का भी प्रयोग किया गया है इसलिए अपि शब्द से मत्स्य (मछली) भी लिया जाता है। जलयन्त्रगृह शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. जलयन्त्रनिकेतन (जल निकालने की मशीन का घर)। जलरुण्ड Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जलसूचि शब्द | १२३ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. जलावर्त (पानी का भंवर) २. पयोरेणु (जल कण) और ३. भुजंगम (सर्प) । जलव्याल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अलगद (ढोड़ साँप या पानी में रहने वाला सर्प-मछगिद्धी) और २. क्रूरकर्मा (कठोर -खराब कर्म करने वाला) और ३. यादस् (जलचर जन्तु मगर घड़ियाल सोंस वगैरह)। जलसूचिर्जलौकायां शृङ्गाट - शिशुमारयोः। कङ्कत्रोटेऽथ शैवाले स्रोतस्यापि जलाञ्चलम् ॥ ६६६ ।। जलाशयो जलाधारे शृङ्गाटक समुद्रयोः । जलेन्द्रो वरुणे सिन्धौ जम्भलेऽपि निगद्यते ॥ ६६७ ॥ हिन्दी टीका-जलसूचि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. जलौका (जोंक) २. शृङ्गाटक (सिंघरहार) और ३. शिशुमार (सोंस घड़ियाल) ४. कङ्कत्रोट (कंकहरा सफेद चील का चोंच) । जलांचल शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. शैवाल (लीलू-शिमार) और २. स्रोतस् (जल प्रवाह)। जलाशय शव्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जलाधार (तालाब वगैरह) २. शृङ्गाटक (सिंघरहार) और ३. समुद्र । जलेन्द्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. वरुण (वरुण देवता) २. सिन्धु (नदी वगैरह) ओर ३. जम्भल (निम्बू, नेबो) । जवनो वेगयुक्ताश्वे वेग - देशविशेषयोः । म्लेच्छ जात्यन्तरे पुंसि वेग युक्त त्वसौ त्रिषु ॥ ६६८ ॥ जातवेदाः स्मृतो वह्नौ चित्रकाख्यौषधे पुमान् । जातरूपन्तु धुस्तूरे काञ्चनोत्पन्नरूपयोः ॥ ६६६ ॥ हिन्दी टीका-जवन शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वेगयुक्ताश्व (वेगशाली घोड़ा) २. वेग और ३. देश विशेष (जवन नाम का प्रसिद्ध देश, अरब वगैरह) ४ म्लेच्छ जात्यन्तर (मुसलमान जाति) किन्तु ५. वेगयुक्त (वेगशाली) अर्थ सामान्य में तो जवन शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि वेगयुक्त पुरुष स्त्री साधारण सभी हो सकते हैं। जातवेदस् शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१ वन्हि (आग) २. चित्रकाख्य औषध (एरण्ड, रेड, अण्डी)। जातरूप शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. धुस्तूर (धत्तूर-धथूर) २. काञ्चन (सोना चाँदी) और ३ उत्पन्न रूप (रूपा)। जातिरश्मन्तिका-जन्म-सामान्याऽऽमलकीषु च।। गोत्रे जातीफले छन्दो विशेष मालती सुमे ।। ६७० ॥ काम्पिल्लतरु-गीत्वाद्योर्जात्यः श्रेष्ठ कुलीनयोः । जावालस्त्रिष्वजाजीवे मुनिभेदे पुमानसौ ॥ ६७१ ॥ हिन्दी टोका-जाति शब्द के नौ अर्थ माने जाते हैं-१. अश्मन्तिका (चुल्ही) २. जन्म सामान्य (उत्पत्ति सामान्य) ३. आमलकी (आमला, धात्री) ४. गोत्र (वंश कुल परम्परा) ५ जातीफल (जायफल जाफर) ६. छन्दो विशेष (जाति नाम का मात्रा छन्द) और ७. मालती सुम (मालती फूल) और ८. काम्पिल्ल तरु (कबीला, कपीला नाम का वृक्ष विशेष) और ६. गीत्वादि । जात्य शब्द मूल : Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-जामाता शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. श्रेष्ठ (अच्छा, बड़ा महान) और २. कुलीन (उच्च खानदानी)। जाबाल शब्द - १. अजाजीव (गड़रिया, भेड़हारा) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है और पुल्लिग जाबाल शब्द का २. मुनिभेद (मुनि विशेष जाबालि ऋषि) अर्थ होता है। इस प्रकार जाबाल शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : जामाता दुहितुःपत्यौ सूर्यावर्ते धवेऽपि च । जाम्बूनदं स्वर्णभेदे धुस्तूर स्वर्णमात्रयोः ॥ ६७२ ॥ जाया स्त्रियां जायकन्तु पीत गन्धाढ्य दारुणि । जायानुजीवी दुःस्थे स्याद् बके वेश्यापतौ नटे ॥ ६७३ ॥ हिन्दी टीका-जामाता शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दुहितुःपति (लड़की का पति) २, सूर्यावर्त (सूर्य का आवर्त-गोलाकार परिवेष) और ३. धव (वट वृक्ष)। जाम्बूनद शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ स्वर्णभेद (स्वर्ण विशेष वीटर सोना) २. धुस्तूर (धत्तूर धथूर) और ३. स्वर्णमात्र (सोना)। जाया शब्द का अर्थ स्त्री होता है, जायक शब्द का अर्थ - १. पीत गन्धाढ्य दारु (पीले रंग का अधिक गन्ध वाला दारु वृक्ष विशेष) और २. जायानुजीवीदुःस्थ (जाया स्त्री का अनुसरण कर जीने वाला दुःस्थ दयनीय पुरुष को भी जायक कहते हैं) और ३. बक (बगला) भी जायक शब्द से व्यवहृत ना है, तथा ४. वेश्यापति (वेश्या का पति भडुआ) को भी जायक कहते हैं और ५. नट को भी जायक शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : जालं वातायने दम्भे इन्द्रजाल-समूहयोः । आनेये क्षारके क्लीवं कदम्बे तु पुमानसौ ॥ ६७४ ॥ जालकं कोरके दम्भे कुलाय-समुदाययोः । कूष्माण्डादि क्षुद्रफले क्षारकाऽऽनाययोरपि ॥ ६७५ ॥ हिन्दी टीका-जाल शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. वातायन (खिड़की, वारना) २. दम्भ (आडम्बर) ३. इन्द्रजाल (माया जादूगरी) ४. समूह (समुदाय) ५. आनेय (पाशा चौपड़ को गोटी विशेष) ६. क्षारक (लवण नमक) किन्तु ७. कदम्ब (समूह) अर्थ में जाल शब्द पुल्लिग ही माना जाता है । जालक शब्द भी नपुंसक है और उसके भी सात अर्थ माने जाते हैं-१. कोरक (कली) २. दम्भ (आडम्बर) ३. कुलाय (घोंसला, खोतानीर) ४. समुदाय (समूह) ५. कूष्माण्डादि क्षुद्र फल (कोहरा आदि छोटा फल) और ६. क्षारक (नमक) तथा ७. आनाय (पाशा चौपड़ का विपरीत गोटी अथवा मछली वगैरह को फंसाने का जाल) इस तरह जाल शब्द तथा जालक शब्द के सात-सात अर्थ हुए। मूल : स्याज्जालिको वागुरिके कैवर्ते ग्रामजालिनि ।। ऊर्ण नाभे जालिका तु गिरिसारेंऽशुकान्तरे ॥ ६७६ ।। भटानामश्मरचिताऽङ्गरक्षिण्यां जलौकसि । विधवास्त्रियामथोजालीस्मृता ज्योत्स्नीपटोलयोः ॥६७७॥ हिन्दी टीका---जालिक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वागुरिक (जाल Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - जाल्म शब्द | १२५ वाला) २. कैवर्त ( धीवर मलाह) ३. ग्राम जाली (ग्राम जाल वाला ) ४. ऊर्णनाभ (कड़ोलिया, मकड़ा) । जालिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गिरिसार और २. अंशुकान्तर ( जाली - दार कपड़ा) । जालिका शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. भटानाम् अश्मरचिताङ्गरक्षिणी (सेना के लोहा पत्थर सोमेण्ट का बनाया हुआ कवच शिरस्त्राण टोप विशेष) और २. जलौकस ( जोंक) तथा ३. विधवा स्त्री । जाली शब्द भी स्त्रीलिंग ही है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. ज्योत्स्नी (तोरई नाम का शाक विशेष, झिमली) और २. पटोल (परबल का शाक) इस तरह दो अर्थ हुए । जालमस्तु पामरे क्रूरेऽप्यसमीक्ष्यविधायिनि । जाहको घोंघ मार्जार-खट्वा कारुण्डिकासु च ॥ ६७८ ।। जिनोऽर्हति हृषीकेशे बुद्धेऽपि त्रिषु जित्वरे । जिष्णु विष्णौ शुनासीरेऽर्जुने जेतरितु त्रिषु ॥ मूल : ६७६ ॥ हिन्दी टीका - जाल्म शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पामर (कायर) २. क्रूर (नीच निर्दय) और ३ असमीक्ष्य विधायो ( बिना विचारे काम करने वाला, मूर्ख ) । जाहक शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. घोंघ (डोका, घोंघरी) और २. मार्जार ( बिडाल बिल्ली) तथा ३. खट्वा (चारपाई) और ४. कारुण्डिका । जिन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. अर्हन् (भगवान् तीर्थङ्कर) २. हृषीकेश (भगवान् विष्णु) और ३. बुद्ध ( भगवान बुद्ध ) किन्तु ४. जित्वर (जयशील) अर्थ में तो जिन शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष स्त्री साधारण जयशील हो सकता है इसीलिए इस अर्थ में जिन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । जिष्णु शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. विष्णु (विष्णु भगवान्) २. शुनासीर (इन्द्र) और ३. अर्जुन । किन्तु ४ जेता (विजेता) अर्थ में तो जिष्णु शब्द त्रिलिंग ही माना जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष स्त्री साधारण विजेता हो सकता है | मूल : जिह्मगो मन्दगे सर्पे जिह्मः कुटिलमन्दयोः । जिह्वलो लोलुपे लोले जिह्वा स्याद् रसनेन्द्रिये ॥ ६८० ॥ जिह्वाप: कुक्कुरे व्याघ्र भल्लू के वृषदंशके । देवताडद्रुमे गिरौ ॥ ६८१ ॥ जीमूतो वासवे मेघे हिन्दी टीका-जिह्मग शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १ मन्दग (धीमे-धीमे चलने वाला मन्दगामी) २ सर्प (साँप ) क्योंकि सर्प भी जिह्म बाँका टेढ़ा चलता है इसीलिए उसे जिह्मग कहते हैं । जिह्म शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. कुटिल और २ मन्द । जिह्वल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. लोलुप (लोभी) और २. लोल ( चंचला ) । जिह्वा शब्द का अर्थ – १. रसनेन्द्रिय (जीभ) होता है । जिह्वाप शब्द पुल्लिंग है और चार अर्थ माने जाते हैं१. कुक्कुर (कुत्ता) २. व्याघ्र (बाघ) ३. भल्लूक ( भालू - रोछ) और ४ वृषदंशक ( बिडाल - बिल्ली ) । जीमूत शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. वासव (इन्द्र) २. मेघ (बादल) ३. देवताडद्र म ( देवताड नाम का वृक्ष विशेष) और ४ गिरि ( पहाड़ ) । मूल : कुरुविन्दे भृतिकरे घोषकेऽपि प्रकीर्तितः । जीरः स्याज्जीरके खड्गे जीर्णो वृद्ध पुरातने ॥ ६८२ ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जीमूत शब्द जीवोऽसूधारणे वृत्तौ शरीरिणि बृहस्पतौ। क्षेत्रज्ञ कर्णयोवृक्ष विशेषेऽथौषधान्तरे ॥ ६८३ ॥ हिन्दी टीका -जीमूत शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं- १. कुरुविन्द (मोथा) और २. भृतिकर (नौकर) तथा ३. घोषक (सफेद फूल वाली तोरई-झिमनी) । जोर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. जीरक (जोरा) और २. खड्ग (तलवार)। जीर्ण शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१ वृद्ध (बुड्ढा) २. पुरातन (पुराना) । जीव शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं -१. असुधारण (प्राण को धारण करने वाला) २. वृत्ति (जीविका) ३. शरीरी (शरीरधारी आत्मा) और ४. बृहस्पति, ५. क्षेत्रज्ञ (जीवात्मा) ६ कर्ण (कान) और ७. वृक्ष विशेष (बन्धूक पुष्प)। जीवक शब्द का एक अर्थ-१. औषधान्तर (औषध विशेष) को भी समझना चाहिए। मूल : प्राणके क्षपणे पीतशालेऽपि जीवकः पुमान् । जीवि-सेवक-वृद्धाशि-व्यालग्राहिष्वसौ त्रिषु ॥ ६८४ ॥ जीवंजीवश्चकोराख्यपक्षि - वृक्ष विशेषयोः । जीवथः कच्छपे प्राणे मयूरे धामिकेऽम्बुदे ॥ ६८५ ।। हिन्दी टोका -पुल्लिग जीवक शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं.-१. प्राणक (प्राण धारण करने वाला) २. क्षपण (संन्यासी) और ३. पोतशाल (बन्धूक पुष्प)। किन्तु–१. जीवी (जीने वाला) २. सेवक (भृत्य नौकर) ३. वृद्ध (बुढ्ढा) ४. अशी (भोजन करने वाला) और ५. व्यालग्राही (सर्प को पकड़ने वाला - सपेरिया) इन पाँच अर्थों में जो वक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जीवंजीव शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ चकोराख्य पक्षी (चकोर पक्षी जोकि चन्द्र का प्रिय होता है) और २. वृक्ष विशेष (जीवंजीव नाम का वृक्ष विशेष) । जीवथ शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कच्छप (काचवा, काछु) २. प्राण, ३. मयूर (मोर) ४ धार्मिक (धर्मात्मा पुरुष) और ५. अम्बुद (मेघ बादल)। मूल : चिरायौ जीवदो वैद्ये रिपो जीवनदातरि । जीवनं सलिले वृत्तौ मज्ज हैयङ्गवीनयोः ॥ ६८६ ॥ जीवितेऽथ पुमान् वाते पुत्रे क्षुद्रफलद्रुमे । जीवन्तिका हरीतक्यां गुडूची जीवशाकयोः ।। ६८७ ॥ हिन्दी टीका-जीवद शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. चिरायु (दीर्घजीवी) २. वैद्य, ३. रिपु (शत्र ) ४. जीवन दाता (प्राण दाता)। जीवन शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. सलिल (जल, पानी) २. वृत्ति (जीविका) ३. मज्ज (मज्जा) और ४. हैयङ्गवीन (मक्खन) तथा ५. जीवित । पुल्लिग जीवन शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. वात (पवन) २. पुत्र, ३. क्षुद्रफलद्र म (छोटा फल वाला वृक्ष)। जीवन्तिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. हरीतको (हरे) २. गुडूची (गिलोय) और ३. जीवशाक (जीव नाम का शाक विशेष) शरच्ची शाक जोकि अत्यन्त पथ्यकारक होता है) उसको भी जीवन्तिका कहते हैं। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जीवन्ती शब्द | १२७ मूल : वन्दायामथ जीवन्ती शमी वन्दास्रवासु च । जीवा वचायामवनौशिञ्जिते जीवनीतरौ ॥ ६८८ ॥ मौर्वी जीवितयोरस्त्री जीवातुर्जीविनौषधौ । ओदने जीवितेचाथो जीवात्मा स्यात् शरीरिणि ॥६८६॥ हिन्दी टोका-जीवन्ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. वन्दा (वृक्ष के ऊपर उत्पन्न लता विशेष बन्दा, बाँदा, बाँझ) को भी जीवन्ती कहते हैं और २. शमी (शमी वृक्ष विशेष) को भी जीवन्ती शब्द से व्यवहार किया जाता है। और ३. बन्दा (बाँझ) को भी जीवन्ती कहते हैं। जीवा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. वचा (वचा नाम का औषध विशेष) और २. अवनि (पृथ्वी) एवं ३. शिञ्जित (नूपर की ध्वनि आवाज) और ४. जीवनी तरु (जीवनी नाम का वृक्ष विशेष) ५. मौर्वी (धनुष की डोरी प्रत्यञ्चा) को भी जीवा कहते हैं एवं ६. जीवित (जीवन) को भी जीवा कहते हैं किन्तु इन दोनों अर्थों में स्त्रीलिंग नहीं माना जाता । जीवा शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. जीवनौषध, २. ओदन (भात) और ३. जीवित । जी गत्मा शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. शरीरी (जीव) होता है। इस तरह जीवा शब्द के नौ और जीवात्मा का एक अर्थ हुए। मूल : जीवितेशः सहस्रांशौ चन्दिरे जीवितेश्वरे । प्रिये कृतान्ते जीवातौ जूटककेशबन्धने ॥ ६६० ॥ जूणि ब्रह्मणि मार्तण्डे वेगेज्वर-शरीरयोः । जृम्भस्त्रिषु विकाशे स्यात् जृम्भणे स्फारितेऽपि च ॥६६१॥ हिन्दी टीका-जीवितेश शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. चन्दिर (चन्द्रमा) ३. जीवितेश्वर (प्राणनाथ) ४. प्रिय, 1. कृतान्त (धर्मराज) ६. जीवातु (जीवात्मा)। जूटक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. केश बन्धन (जूड़ा धम्मिल्ल) होता है। जूणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. ब्रह्म (परब्रह्म परमात्मा) २. मार्तण्ड (सूर्य) ३. वेग, ४. ज्वर, ५. शरीर । जुम्भ शब्द त्रिलिंग है और उसके अर्थ-१. विकास होता है, और २. जृम्भण (मुंह फाड़ना) अर्थ में भी जुम्भ शब्द का प्रयोग होता है तथा ३. स्फारित (मुख को फारना) भी जुम्भ शब्द का अर्थ माना जाता है। मूल : जम्भितं तु प्रवृद्ध स्यात् स्फुटितं च विचेष्टिते । जृम्भे स्त्रीकरणे जैनो जिनोपासक-बौद्धयोः ॥ ६६२ ॥ आयुष्मतीन्दौ कर्पू रे सुते जैवातृकोऽगदे । ज्ञः स्मृतः पण्डिते सौम्ये सदानन्दे महीसुते ॥ ६६३ ॥ हिन्दी टीका-जम्भित शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. प्रवृद्ध (बढ़ा हआ) २. स्फुटित (स्पष्ट) २. विचेष्टित (विशेष चेष्टा) ४. जृम्भ (मुंह फाड़ना) और ५. स्त्रीकरण (स्त्रीकरण) । जैन शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जिनोपासक (भगवान जिन का उपासक भक्त) और २. बौद्ध (भगवान बुद्ध का उपासक) । जैवातृक शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. आयुष्मान, Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - ज्ञाति शब्द २. इन्दु (चन्द्र) ३. कर्पूर, ४. सुत और ५. अगद ( नीरोग ) । ज्ञ शब्द के चार अर्थ होते - १. पण्डित, २. सौम्य (भद्र) ३. सदानन्द ( पूर्ण आनन्द) और ४ महीसुत (मंगल) । ज्ञातिस्ताते सपिण्डादौ प्राग्जिने ज्ञानदर्पणः ॥ ६६४ ॥ हिन्दी टीका - ज्ञाति शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. तात (पिता) और २. सपिण्डादि (गोतिया ) | ज्ञान दर्पण शब्द का अर्थ - - १ प्राग्जिन ( पूर्व भव का जिन भगवान) होता है । ज्ञानं मोक्षधियि ज्ञानी दैवज्ञ ज्ञानयुक्तयोः । मूल : ज्या शिञ्जिन्यां जनन्यां वसुधायामपि स्मृता ॥ ६६५ ।। ज्यानिन जीर्णतायां तटिन्यामपि कीर्तिता । ज्येष्ठोऽग्रजे ज्येष्ठमासि श्रेष्ठेऽधिकवयोयुते ॥ ६६६ ॥ हिन्दी टीका - ज्ञान शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. मोक्षधी (मोक्ष विषयक ज्ञान --तत्व ज्ञान, केवल ज्ञान ) है । ज्ञानी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. दैवज्ञ ( ज्योतिषी) और २. ज्ञानयुक्त (ज्ञान सम्पन्न) । ज्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. शिञ्जिनी (प्रत्यञ्चा, धनुष की डोरी, मौर्वी) २. जननी (माता) और ३. वसुधा ( पृथिवी ) । ज्यानि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. हानि, २. जीर्णता (पच जाना) और ३. तटिनी (नदी) । ज्येष्ठ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. अग्रज ( बड़ा भाई) २. ज्येष्ठमास (जेठ महीना ) ३. श्रेष्ठ (बड़ा, आदरणीय) और ४. अधिकवयोत (अधिक अयु वाला) इस प्रकार ज्येष्ठ शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : ज्योतिः प्रकाशे नक्षत्रे दृष्टावपि नपुंसकम् । पुमान् वैश्वानरे सूर्ये मेथिकायामपीष्यते ॥ ६६७ ॥ ज्योतिश्चक्र' राशिचक्र खद्योते ज्योतिरिङ्गणः । ज्योत्स्ना पटोलिका दुर्गा चन्द्रिकोल्लासि रात्रिषु ॥ ६६८ ॥ कौमुद्यां श्वेतघोषायां ज्वरो ज्वरण-रोगयोः । ज्वल दीप्तियुते दीप्तौ ज्वालो वैश्वानराचिषि ॥ ६६६ ॥ हिन्दी टीका - ज्योति शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. प्रकाश ( उजियाला ) २. नक्षत्र (सूर्यादि ग्रह नक्षत्र मण्डल) और ३. दृष्टि (दर्शन- प्रत्यक्ष वगैरह ) को भी ज्योति शब्द से व्यवहार किया जाता है । किन्तु पुल्लिंग ज्योतिः शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं १. वैश्वानर (अग्नि- आग ) २. सूर्य और ३. मेथिका (मेथी) । ज्योतिश्चक्र शब्द भी नपुंसक है और उसका एक अर्थ होता है१. राशिचक्र ( मेष वृष मिथुन वगैरह बारह राशि ) २ खद्योतक (जुगनू - मगजोगनी) अर्थ में ज्योतिरिङ्गण शब्द का व्यवहार होता है । ज्योत्स्ना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. पटोलिका (परबल) २. दुर्गा (पारवती ) ३. चन्द्रिकोल्लासि रात्रि (चाँदनी से उल्लसित सुशोभित रात) और ४. कौमुदी (चाँदनी) ५. श्वेतघोषा (सफेद झोंपड़ी, कपड़े की बनायी हुई खोपरी झोंपड़ी ) । ज्वर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. ज्वरण (जलना) और २. रोग ( रोग विशेष - बुखार) को भी ज्वर शब्द से लिया जाता है । ज्वल शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दीप्तियुत Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ज्वाल शब्द | १२६ (प्रकाशमान्) और २. दीप्ति (प्रकाश) । ज्वाल शब्द भी पुल्लिग है और उसका अर्थ--१. वैश्वानराचिष् (आग की ज्वाला) होता है । इस तरह ज्वाल शब्द का एक अर्थ जानना।। मूल : दीप्तियुक्त ऽथ दग्धान्ने ज्वाला वह्नचिषि स्त्रियाम् । झम्प: सम्पातपतने लम्फे झम्पी तु मर्कटे ॥ ७०० ॥ शैलावतीर्णसलिल - प्रवाहे झरं निर्झरौ। झर्झरः स्यात् कलियुगे झल्लीवाद्ये नदान्तरे ॥ ७०१ ॥ हिन्दी टोका-ज्वाल शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है-१. दीप्तियुक्त (प्रकाशमान)। ज्वाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. दग्धान्न (जला हुआ अनाज) और २. बह्न चिष् (आग की ज्वाला) । झम्प शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. सम्पातपतन (जलधारा का पतन-मूसलाधार वर्षा होना) और २. लम्फ । झम्पी शब्द भी पुल्लिग माना जाता है और उसका अर्थ-१ मर्कट (बन्दर) होता है । झर और निर्झर शब्द का अर्थ शैलावतीर्ण सलिल प्रवाह (पर्वत पर से जल की धारा गिरना) होता है । झर्झर पुल्लिग है और तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कलियुग, २. झल्ली वाद्य (झाल नाम का वाद्य विशेष) और ३. नदान्तर (नद झील विशेष) इस प्रकार झर्झर शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : झल्लकं कांस्यरचित-करतालक उच्यते । झल्लरी झल्लकी वाद्ये वालचक्र-हुडुक्कयोः ॥ ७०२ ॥ शुद्ध क्लेदेऽथ झल्लोलस्त' लासक ईरितः । झषो वैसारिणेतापे मीनराशौ च कानने ॥ ७०३ ॥ हिन्दी टोका-झल्लक शब्द नपुंसक पुल्लिग है और उसका अर्थ-१ कांस्यरचित करतालक (झाल) होता है । झल्लरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. झल्लकी वाद्य (झाल) २. वालचक्र (वाल समूह) ३. हुडुक्क और ४. शुद्ध और ५. क्लेद (पसीना) । झल्लोल शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ- १. तलासक होता है। झष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वैसारिण (मछली विशेष) २. ताप, ३. मीन राशि ४. कानन (जंगल)। इस तरह झल्लक शब्द का एक और झल्लरी शब्द के पांच एवं झल्लोल शब्द का एक और झष शब्द के चार अर्थ समझना। मूल: झाटो निकुञ्ज कान्तारे व्रणादीनां च मार्जने । दग्धेष्टका झामकं स्यात् त' शाणे तु झामरः ॥ ७०४ ॥ झिल्ली स्यात् झिल्लिकाकीटे वामुद्वर्तनेशुके। स्थाली संलग्नदग्धान्ने स्यादातपरुचावपि ।। ७०५ ॥ हिन्दी टोका-झाट शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं--१. निकुञ्ज (झाड़ी) २. कान्तार (वन) और ३. व्रणादीनां मार्जन (घाव वगैरह व्रणों का मार्जन साफ करना)। झामक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-दग्धेष्टका (जला हुआ ईंटा) होता है। झामर शब्द पुल्लिग है और उसका Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -- टंक शब्द अर्थ - कुशाण होता है । झिल्ली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. झिल्लिकाकीट ( झींगुर ) २. वत्ति (वाती) ३. उद्वर्तन ( उबटन शरीर के मल को दूर करने का चूर्ण विशेष) और ४. अंशुक (लहँगा साया ) एवं ५. स्थाली संलग्नदग्धान्न ( वटलोही में लगा हुआ दग्धान्न-जला हुआ अन्न) और ६. आतप रुचि (तड़का - धूप की रुचि कान्ति- प्रकाश तेज) । मूल : टङ्कोऽवलेपे जंघायां कोपे पाषाणदारणे । परिमाणान्तरे कोषे करवाले पुमान् स्मृतः ।। ७०६ ॥ अस्त्री नीलकपित्थे टङ्कणे दर्प- खनित्रयोः । टङ्कको रुप्यके टङ्ककशाला रुप्यकालये ।। ७०७ ।। हिन्दी टोका - पुल्लिंग टङ्क शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. अवलेप ( घमण्ड दर्प अथवा लेप विशेष) २. जंघा (जाँघ ) ३. कोप, ४. पाषाणदारण (पत्थर को तोड़ने का लोहे का साधन विशेष ) और ५. परिमाणान्तर ( परिमाण विशेष) एवं ६. कोष ( तिजोरी) और ७. करवाल (तलवार) और पुल्लिंग तथा नपुंसक टङ्क शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये - १. नील कपित्थ (नीला-हरा- कपित्थकदम्ब) २. टङ्कण (टांकण, पीन, आलपीन) और ३. दर्प (घमण्ड अहंकार ) ४. खनित्र ( खन्ती ) । टङ्कक शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. रूप्यक ( रुपया ) है । टङ्ककशाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. रुप्यकालय (रुपये बनाने का घर, जहाँ रुपये बनाये जाते हैं) । टङ्कारस्तु प्रसिद्धौ स्यादाश्चर्ये शिञ्जिनीध्वनौ । मूल : टङ्गोऽस्त्रियां खनित्रे स्यात् जंघानिस्त्रिंशभेदयोः ||७०८ ॥ टिट्टिभ: पक्षिभेदे स्यादु इन्द्रारिदानवान्तरे । टीका विवरणग्रन्थे टीकायां टिप्पनी स्मृता ॥ ७०६ ॥ हिन्दी टोका-टङ्कार शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. प्रसिद्धि ( ख्याति) २. आश्चर्य, ३. शिञ्जिनी ध्वनि (धनुष टङ्कार ) । टङ्ग शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. खनित्र (खन्ती) २. जंघा (जाँघ ) और ३. निस्त्रिश भेद (तलवार विशेष ) । टिट्टिभ शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. पक्षि भेद ( पक्षो विशेष टिटही नाम का पक्षी) और २. इन्द्रारिदानवान्तर (इन्द्र का शत्रु राक्षस विशेष ) । टीका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - विवरण - ग्रन्थ ( विवरण खुलासा करने वाला ग्रन्थ विशेष जिससे मूल ग्रन्थ का तात्पर्य या आशय समझ में आ जाता है उसको टीका कहते हैं) और १. टिप्पनी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. टीका (विवरण) होता है । मूल : टुण्टुकः कृष्णखदिरे भेदे श्योनाकपक्षिणोः । क्रूरे नीचे त्रिलिंगोऽसौटङ्गिणी पादपे स्त्रियाम् ।। ७१० ।। ठक्कुरो देवतायां स्याद् ठेरो वृद्ध े त्रिलिंगकः । डमरू: स्याच्चमत्कारे-कपालियोगि वाद्ययोः ।। ७११ ॥ डल्लकं वंशरचित पात्रादौ लकुचे डहुः । डिङ्गरः सेवके धूर्ते क्षेप- डङ्गरयोः खले ॥ ७१२ ।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-टुण्टुक शब्द | १३१ हिन्दी टीका-टुण्टुक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. कृष्ण खदिर (काला कत्था) २. श्योणाक और ३. पक्षी (पक्षी विशेष, टिटही) किन्तु क्रूर अर्थ और नीच (अधम) अर्थ में टुण्टुक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और टङ्गिणी पादप (टङ्गिणी नाम का वृक्ष विशेष) अर्थ में टुण्टक शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। ठक्कुर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ देवता होता है। ठेर शब्द पलिग स्त्रीलिंग और नपंसक माना जाता है एवं उसका अर्थ वृद्ध बडदा) होता । इसका पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. चमत्कार (आश्चर्यजनक कला विशेष) और २. कपालियोगि वाद्य (भगवान् शङ्कर का डमरू) । डल्लक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. वंशरचित पात्रादि (बांस का बनाया हुआ पात्र विशेष, डाला वगैरह) है । डहु शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. लकुच (लीची) होता है । डिंगर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. सेवक (दास) २. धूर्त (वञ्चक) ३. क्षेप (दूर फेंकना) ४. डंगर (डाँगर) और ५. खल (दुष्ट)। डिण्डिमो वाद्यभेदे स्यात् कृष्णपाकफलेऽपि च । डित्थो गजे काष्ठमये सुलक्षणयुते नरि ।। ७१३ ॥ डिम्बो भयध्वनौ डिम्भे प्लीहायां विप्लवाण्डयोः। नपुंसकं तु कलले डमरे फुस्फुसे भये ।। ७१४ ।। हिन्दी टीका-डिण्डिम शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. वाद्यभेद (विशेष वाद्य डिडिम नाम का बाजा) और २. कृष्णपाकफल, इस प्रकार डिण्डिम शब्द के दो अर्थ जानने चाहिये । डित्थ शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. काष्ठमय गज (लकड़ी का बनाया हुआ हाथी) और २. सुलक्षणयुत नर (उत्तम लक्षणों से युक्त पण्डित विद्वान पुरुष) है। कहा भी है-"श्याम रूपो युवा विद्वान् सुन्दरः प्रियदर्शनः। सर्वशास्त्रार्थवेत्ता च डित्थ इत्यभिधीयते ॥ इत्यादि । डिम्ब शब्द पूल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. भय ध्वनि (भयजनक शब्द) २. डिम्भ (बच्चा शिशु) ३. प्लीहा पिल्हीजकृत) ४. विप्लव (विशेष उपद्रव) और ५. अण्ड (अण्डा) किन्तु नपुंसक डिम्ब शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. कलल (गर्भाशय में शुक्र शोणित के जमावट से उत्पन्न गर्भस्थ बच्चे का प्राग रूप) २. डमर (डमरू) ३. फुस्फुस (छाती का माँस विशेष या अन्दर का रचना विशेष को) फुस्फुस कहा जाता है और उस फुस्फुस को भी डिम्ब कहते हैं । और ४. भय भी नपुंसक डिम्ब शब्द का अर्थ होता है। इस तरह डिम्ब शब्द के कुल मिलाकर नौ अर्थ जानने चाहिये। मूल : डिम्बिका जलबिम्बे स्यात् कामुक्यां शोणकद्रुमे । डिम्भो मूर्खे शिशौ डीनं विहङ्गमगतौ मतम् ॥ ७१५ ॥ ड्रण्डुभो राजिले सर्प क्षुद्रोलूके तु डुण्डुलः । डोमः स्वनामप्रथिताऽस्पृश्यजातौ प्रकीर्तितम् ।। ७१६ ॥ हिन्दी टीका-डिम्बिका शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. जलबिम्ब, २, कामुकी और ३. शोणकद्र म (शोणक वृक्ष-सन)। डिम्भ शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. मूर्ख और २. शिशु (बच्चा)। डीन शब्द का-१. विहंगमगति (पक्षी का उड़ना)। डुण्डुभ शब्द का अर्थ -१. राजिल सर्प (ढोर साँप) होता है। डुण्डुल शब्द का अर्थ-१. क्षुद्रोलूक होता है। डोम शब्द का अर्थ-१. स्वनामप्रथिताऽस्पृश्यजाति (डोम भंगी) होता है। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - डोर शब्द : मूल : हस्तादिबन्धने सूत्रे डोरं डोरकमित्यपि । ढक्को देशविशेषे स्याद् ढक्का विजयमर्दले ।। ७१७ ।। ढालं तु फलके ढाली त्रिलिंगो ढालसंयुते । दुण्ढिगणेशे ढोलस्तु स्वनामख्यातवाद्यके ॥७१८ ॥ हिन्दी टीका - डोर और डोरक शब्द नपुंसक है और उन दोनों का अर्थ - हस्तादि बन्धन सूत्र ( हाथ वगैरह को बाँधने वाला सूत-धागा) होता है जिसको डोरा भी कहते हैं । ढक्क शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. देशविशेष (ढाका, जो कि अभी बंगला देश की राजधानी है) । ढक्का शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. विजयमर्दल (विजय का डंका ) होता है । ढाल शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ – १. फलक (ढाल फरि) होता है । ढाली शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थ - १. ढालसंयुत (ढाल से युक्त) होता है । दुण्ढि शब्द का अर्थ – १. गणेश (गणपति) होता है । ढोल शब्द का अर्थ - १. स्वनामख्यात वाद्यक ( ढोल शब्द से प्रसिद्ध बाजा विशेष) होता है । - मूल : " तगरः पुष्पतरु भिन्मदनद्रुमयोः स्मृतः । तटं नपुंसकं क्षेत्रे तीरे तु स्यादु त्रिलिंगकः ॥ ७१६॥ पद्माकरे तडागोऽस्त्री यन्त्रकूटक इष्यते । उच्चैः करिकराक्षेपे तडाघातं विदुर्बुधाः ॥ ७२० ॥ हिन्दी टीका - तगर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. पुष्पतरुभिद् (फूल का वृक्ष विशेष) और २. मदनद्र ुम ( धत्तूर का वृक्ष ) । तट शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. क्षेत्र होता है किन्तु तीर अर्थ में तट शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिंग तडाग शब्द का अर्थ - १. पद्माकर ( तालाब विशेष ) होता है, किन्तु २. यन्त्र कूटक अर्थ में तडाग शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है । तडाघात शब्द भी पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. उच्चः करिकराक्षेप ( हाथी के शुण्ड- सूंड़ का ऊपर उठाना होता है । मूल : तडिद् विद्युल्लतायां स्यात् तडित्वान् मुस्तकेऽम्बुदे । तण्डकस्तु तरुस्कन्धे समास प्रायवाचि च ।। ७२१ ।। मायायां बहुले फेने खञ्जने गृहदारुण । अस्त्रियां तु परिष्कारे तण्डुः शिवगणान्तरे ॥ ७२२ ॥ हिन्दी टीका -- तडित् शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. विद्युल्लता (बिजली) होता है । तडित्वान् शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुस्तक (मोथा) और २ अम्बुद (बादल, मेघ) इस तरह तडित् शब्द का एक और तडित्वान् शब्द के दो अर्थ जानने चाहिये । तण्डक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. तरुस्कन्ध ( वृक्ष का मध्यम भाग) और २. समास प्रायवाची । इसी प्रकार पुल्लिंग तण्डक शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं - १. माया, २. बहुल (अधिक) ३. फेन, ४. खञ्जन और ५. गृह दारु ( घर का धरनि) किन्तु ६ परिष्कार (परिष्करण) अर्थ में तण्डक शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है । तण्डु शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. शिवगणान्तर Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-तण्डुल शब्द | १३३ (भगवान् शङ्कर का गण विशेष, प्रमथादि गणों में एक गण का नाम तण्डु समझना चाहिये)। इस प्रकार तण्डक शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ जानना और तण्डु शब्द का एक अथ जानना । मूल : तण्डुलो धान्यसारांशे तण्डुलीय विडङ्गयोः । तण्डुलौघो वेष्टवंशे धान्यसारांशसंचये ॥ ७२३ ॥ ततं वीणादिके वाद्ये व्याप्त विस्तृतयोस्त्रिषु । मारुते पुंसि तत्वं तु याथार्थ्ये परमात्मनि ॥ ७२४ ॥ हिन्दी टीका-तण्डुल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धान्य सारांश (धान का सार भाग) एवं २. तण्डुलीय (तण्डुल सम्बन्धी कण वगैरह) और ३. विडङ्ग (डांगर) को भी तण्डुल शब्द से व्यवहार किया जाता है । तण्डुलोघ शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वेष्टवंश (वेष्टित बाँस) और २. धान्य सारांश संचय (धान्यसार-चावलों का समुदाय-ढेर) इस तरह तण्डुलौघ शब्द के दो अर्थ जानना । तत शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. वीणादिक वाद्य (वीणा बाजा) होता है किन्तु २. व्याप्त और ३. विस्तृत इन दोनों अर्थों में तत शब्द त्रिलिंग माना जाता है परन्तु मारुत (पवन या पवनसुत हनुमान) अर्थ में तो तत शब्द पुल्लिग ही जानना चाहिये। तत्त्व शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. याथार्थ्य (यथार्थता, वास्तविक सच्चाई) और २. परमात्मा (परमब्रह्म परमेश्वर) इस तरह तत्त्व शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : स्वरूपे वाद्यभेदेऽपि नृत्ये वस्तुनि चेतसि । तनुस्त्वचि शरीरे च वनितायामपि स्त्रियाम् ।। ७२५ ॥ त्रिलिङ्गस्तु अल्प-विरल-कृशेषु कथितो बुधैः । तनूरुहोऽस्त्री गरुति रोम्णि पुत्रे तु पुंस्यसौ ॥ ७२६ ॥ हिन्दी टीका-तत्व शब्द के और भी पांच अर्थ माने जाते हैं-१. स्वरूप (निजरूप) २. वाद्यभेद (वाद्य विशेष) ३. नृत्य (नाच) ४. वस्तु (वस्तु मात्र) तथा ५. चेतस् (चित्त) इस तरह तत्त्व शब्द के कुल मिलाकर सात अर्थ जानने चाहिए। तनु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. त्वचा, २. शरीर और ३. वनिता (स्त्री)। किन्तु त्रिलिंग तनु शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए१. अल्प (थोड़ा) २. विरल और ३. कृश (पतला)। तनुरुह शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गरुत् (पक्ष, पांख) और २. रोग, किन्तु ३. पुत्र (लड़का) अर्थ में तनुरुह शब्द पुल्लिग ही माना जाता है इस प्रकार तनुरुह शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए । मूल : तन्तुः सूत्रे पुमान् ग्राहे संततावपि कीर्तितः । तन्तुभः सर्षपे वत्से तन्तुवायः कुविन्दके ॥ ७२७ ॥ तन्त्रेऽपि तन्तुवायस्तु तन्त्रवायोर्णनाभयोः । तन्तुशाला गर्तिकायां स्यूते तु तन्तुसन्ततम् ॥ ७२८ ॥ हिन्दी टीका-तन्तु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सूत्र (धागा) २. ग्राह (मकर) और ३. संतति (सन्तान) । तन्तुभ शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. सर्षप (सरसों) २. वत्स Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित -तन्त्र शब्द : (बछड़ा) । तन्तुवाय शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कुविन्दक ( जुलाहा - कपड़ा बुनने वाला) २ तन्त्र (तन्त्र विशेष कार्यक्रम) एवं ३. तन्त्रवाय (तन्त्र - कार्यक्रम का संचालक) और ४. ऊर्णनाभ (मकरा, कड़ोलिया) । तन्तुशाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. गर्तिका (खड्ढा) होता है । और १. स्यूत (सिला हुआ) अर्थ में तन्तुसन्तत शब्द का प्रयोग होता है । मूल : तन्त्रं परिच्छदे हेतौ तन्तुवायेऽर्थसाधके । सैन्ये स्वराष्ट्रचिन्तायां परच्छन्दे धने गृहे ॥ ७२६ ॥ कुटुम्ब कृत्ये सिद्धान्ते कुले वपनसाधने । प्रधाने भेषजे तन्तु - श्रुतिशाखा विशेषयोः ॥ ७३० ॥ ८. धन हिन्दी टीका -- तन्त्र शब्द नपुंसक है और उसके सतरह अर्थ माने जाते हैं - १. परिच्छद (परिवार) २ हेतु (कारण) ३. तन्तुवाय ( जुलाहा ) ४. अर्थसाधक ( अर्थ का साधक) ५. सैन्य ( सेना समूह ) ६. स्वराष्ट्र चिन्ता (अपने राष्ट्र के रक्षण करने की चिन्ता) ७. परच्छन्द ( दूसरे का अनुवर्तन) ६. गृह (घर) १०. कुटुम्बकृत्य (परिवार सम्बन्धी कर्तव्य ) ११. सिद्धान्त १२. कुल ( वंश खानदान) १३. वपन साधन (बीज बोने का साधन विशेष अथवा काटने का साधन विशेष ) १४. प्रधान (मुख्य) १५. भेषज (औषध) १६. तन्तु (धागा) और १७. श्रुति शाखा विशेष (वेद की शाखा विशेष ) को भी तन्त्र शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : शपथे करणे राष्ट्र उभयार्थ प्रयोजके । इति कर्तव्यतायां च तन्त्रशास्त्र प्रबन्धयाः ।। ७३१ । तन्त्रवापस्तन्त्रवायः कुविन्दे तन्त्रभूतयोः । तन्त्री वीणा गुणे रज्जौ गुडूच्यां सरिदन्तरे ।। ७३२ ॥ हिन्दी टीका -- तन्त्र शब्द के और भी सात अर्थ माने गये हैं - १. शपथ (सौगन्ध खाना) २ करण ( क्रिया करने के साधन इन्द्रिय वगैरह ) ३. राष्ट्र (देश) ४. उभयार्थ प्रयोजक (उभयार्थ अर्थ और काम अथवा धर्म और मोक्ष का प्रवर्तक) को भी तन्त्र शब्द से व्यवहार किया जाता है ५. इतिकर्तव्यता (कार्य करने की पद्धति) ६. तन्त्र शास्त्र तथा ७. प्रबन्ध (कार्य करने का उपाय) को भी तन्त्र शब्द से प्रयोग किया जाता है । तन्त्रवाप और तन्त्रवाय शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. कुविन्द ( जुलाहा ) २. तन्त्र तथा ३. लूता (मकरा कड़ोलिया) । इस प्रकार तन्त्रवाय और तन्त्रवाप शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए । तन्त्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. वीणागुण ( वीणा की तन्त्री डोरी ) २. रज्जु (रस्सी - डोरी) ३. गुडूची (गिलोय, गुडीच) और ४: सरिदन्तर (नदी विशेष) इस तरह तन्त्री शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए । मूल : शिरायां युवती भेदे तन्द्रा निद्रा प्रमीलयोः । तन्वी कृश शरीरायां शालपर्णी महीरुहे ।। ७३३ ॥ तपो लोकान्तरे धर्मे कृच्छ्र चान्द्रायणादिके । पुमानदन्तो ग्रीष्मेऽथ तपनः सूर्य तापयोः ॥ ७३४ ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित -तन्त्री शब्द | १३५ हिन्दी टीका - तन्त्री शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. शिरा (नस, धमनी) और २. युवतीभेद ( युवती स्त्री विशेष) को भी तन्त्री कहते हैं । तन्द्रा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. निद्रा (नींद) और २. प्रमीला (ऊँघना) । तन्वी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. कृश शरीर (पतली स्त्री) और २. शालपर्णीमहीरुह ( शालपर्णी नाम का वृक्ष विशेष ) । नपुंसक तपस् शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. लोकान्तर (परलोक) २. धर्म, ३. कृच्छ्रचान्द्रायणादिकव्रत, किन्तु ग्रीष्म ऋतु अर्थ में तप शब्द अदन्त है । और तपन शब्द के अर्थ १. सूर्य और २. ताप ( तड़का - धूप ) होता है । मूल : सूर्यकान्तमण ग्रीष्मे नरकं महीरुहे । क्षुद्राग्नि मन्थवृक्षे च भल्लातकतरावपि ।। ७३५ ।। तपस्या व्रतचर्यायां तपस्यः फाल्गुनेऽर्जुने | तपस्वी नारदे मत्स्यविशेषे घृतपर्णके ।। ७३६ ॥ हिन्दी टीका - तपन शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं - १. सूर्यकान्तमणि, २. ग्रीष्म (ग्रीष्म ऋतु) ३. नरक, ४ अर्कमहीरुह (आँक का वृक्ष) ५. क्षुद्राग्नि मन्थवृक्ष (वृक्ष विशेष जिसके मन्थन से आग की चिनगारी निकलती है) और ६. भल्लातकतरु ( भल्लातकी - भेलावा नाम का वृक्ष विशेष ) । तपस्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ १. व्रतचर्या (व्रत उपवासादि करना) होता है । तपस्य शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. फाल्गुन (फागुन मास) और २. अर्जुन। तपस्वी शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. नारद (नारद ऋषि) २. मत्स्यविशेष ३. घृतपर्णक (घी कुमारि नाम का वृक्ष विशेष) जिसके पत्ते में घृत की तरह गुद्दे होते हैं । मूल : जैन साध्वी जटामांसी तपाः शिशिरकाले च अनुकम्प्ये जैनसाधौ तापसेऽथ तपस्विनी । कटुका लोचनीषु च ॥ ७३७ ॥ माघमास - निदाघयोः । तमो विधुन्तुदे पापे ध्वान्ते शोके तमो गुणे ।। ७३८ ।। हिन्दी टीका - तपस्वी शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अनुकम्प्य (अनुकम्पा - दया करने योग्य) २. जैन साधु (जैन महात्मा) तथा ३ तापस ( मुनि) इस प्रकार कुल मिलाकर तपस्वी शब्द के सात अर्थ जानने चाहिए। तपस्विनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. जैनसाध्वी २. जटामांसी (जटामांसी नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष ) ३. कटुका तथा ४. लोचनी ( लोचनी नाम की प्रसिद्ध औषधि) । पुल्लिंग तपस शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. शिशिरकाल (शिशिर ऋतु सियाला, जाडमहीना ) २. माघमास तथा ३. निदाघ ( उनाला, ग्रीष्म ऋतु) । तमस शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. विधुन्तुद (राहु ) २. पाप, ३. ध्वान्त (अन्धकार) ४. शोक और ५ तमोगुण । इस तरह तमस शब्द के पाँच अर्थ जानना चाहिए । मूल : तमालस्तिलके खड्गे वंशत्वक् कृष्णखदिर तापिच्छे वरुणद्रुमे । वृक्षभेदेषु कीर्तितः ।। ७३६ ॥ तमाल: कृष्णखदिरे तिलके वरुण । कालस्कन्धे च निस्त्रिंशे वंशत्वचि तु न स्त्रियाम् ॥ ७४०|| Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तमाल शब्द हिन्दी टोका-तमाल शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. तिलक (तिलक नाम का वृक्ष विशेष) २. खड्ग (तलवार) ३. तापिच्छ (तमाल वृक्ष) ४. वरुणदु म (वरुण नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) ५. वंशत्वक् (वांस की त्वचा-छिलका) एवं ६. कृष्णखदिर (काला कत्था) ७. वृक्षभेद (वृक्षविशेष) को भी तमालशब्द से व्यवहार किया जाता है। किन्तु १. कृष्ण खदिर, २. तिलक ३. वरुणद्र म, ४. वंशत्वक्, ५. कालस्कन्ध और ६. निस्त्रिश, इन ६ अर्थों में तमालशब्द पुल्लिग और नपुंसक माना जाता है स्त्रीलिंग नहीं माना जाता। मूल : तमिस्र तिमिरे क्रोधे तमिस्रा तु तमस्ततौ । दशरात्रौ तमोयुक्तरात्रिमात्रोऽपि कीर्तिता ।। ७४१ ॥ तमी रात्रौ हरिद्रायां तमोघ्नः सूर्य-चन्द्रयोः । नारायणे महादेवे बुद्धदेवे धनञ्जये ॥ ७४२ ।। हिन्दी टोका--तमिस्र शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. तिमिर-अन्धकार और २. क्रोध । तमिस्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं-१. तमस्तति (घोर अन्धकार) २. दर्शरात्रि (अमावास्या) और ३. तमोयुक्त रात्रिमात्र (अन्धकार से युक्त रात्रि मात्र) को भी तमिस्रा कहते हैं । तमी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. रात्रि (रात) और २. हरिद्रा (हलदी)। तमोघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सूर्य, २. चन्द्र, ३. नारायण, ४. महादेव और ५. बुद्धदेव (भगवान बुद्ध) इस तरह तमोघ्न शब्द के पाँच अर्थ जानना। तमोनुद भास्करे चन्द्रे दीपे वैश्वानरे पुमान् । तरोऽदन्तः पुमान् वृक्षे तरुणे जातवेदसि ॥ ७४३ ॥ तरः सान्तं बले कूले वेग-प्लवगयोरपि । तरङ्गो वसनेऽश्वादि-समुत्फाले जलोमिषु ॥ ७४४ ॥ हिन्दी टीका-तमोनुत् शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं--१. भास्कर (सूर्य), २. चन्द्र, ३. दीप, ४. वैश्वानर (अग्नि, आग)। अदन्तर शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वृक्ष २. तरुण, (जवान) और ३. जातवेदस् (अग्नि) । सकारान्त तरस् शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं.-१. बल, २. कूल (तट), ३. वेग, और ४. प्लवग (वानर)। तरङ्ग शब्द पुल्लिग हैं और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वसन (वस्त्र कपड़ा) २. अश्वादि समुत्फाल (घोड़ा वगैरह का छलांग-कूदना) और ३. जलोमि (जल की लहर)। मूल : तरणं पारगमने द्रुतप्लुतगतावपि । तरणिः किरणे सूर्ये भेलकेऽर्कमहीरुहे ॥ ७४५ ॥ तरणी पद्मचारिण्यां कुमारी-नौकयोः स्त्रियाम् । तरण्डोऽस्त्री प्लवेकुम्भतुम्बी रम्भादिसंचरे ॥ ७४६ ।। हिन्दी टीका-तरण शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. पारगमन (नदी तालाब वगैरह को तैरकर पार करना) और २. द्र तप्लुतगति (अत्यन्त वेग से कूदना) । तरणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. किरण, २. सूर्य, ३. भेलक और ४. अर्कमहीरुह (आंक का वृक्ष)। स्त्रीलिंग-तरणी शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१.पद्मचारिणी (स्थल कमलिनी) और २. कुमारी मूल: Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -तरण्ड शब्द | १३७ तथा ३. नौका (नाव) । तरण्ड शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १ प्लव (तैरना) और २. कुम्भतुम्बीरम्भादि संचार (कुम्भ, घड़ा, तुम्बी-तुम्मा, और रम्भादि केला के स्तम्भ वगैरह का संचार -- तैरना ) इस तरह तरण्ड शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : नौकायां वडिशी सूत्रबद्ध काष्ठादिके स्मृतः । आतरेतरपण्यं स्यात् फलभेदे तरम्बुजम् ॥ ७४७ ॥ हिन्दी टीका - तरण्ड शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १ नौका और २. वडिशी सूत्रबद्ध काष्ठादिक (बंशीका तरेगन ) । तरपण्य शब्द का अर्थ - १. आतर ( करुआरि ) होता है और तरम्बुज शब्द का अर्थ - १ फलभेद (फल विशेष तरबूज ) होता है । मूल : तरलो हारतलयोर्हारमध्यमणौ पुमान् । त्रिषु स्याद् भास्वरे मध्य शून्यद्रव्ये चले द्रुते ।। ७४८ ।। षिगेऽथ तरलामद्य यवागू सरघासु च । तरस्वी गरुडेवायौ त्रिषु स्याद्वेगि- शूरयौः ॥ ७४६ ॥ हिन्दी टीका - तरल शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हार (मुक्ताहार) वगैरह ) २. तल (नीचा भाग) और ३. हारमध्यमणि ( हार का मध्यमणि) किन्तु त्रिलिंग तरल शब्द के चार अर्थ होते हैं - १ भास्वर ( देदीप्यमान ) २. मध्य शून्यद्रव्य ( द्रव्य विशेष, जिसका मध्य भाग खाली रहता है इस प्रकार के द्रव्य विशेष को भी तरल कहते हैं । ) ३. चल ( चंचल) और ४. द्रुत (पिघला हुआ पदार्थ घृत वगैरह को भी तरल कहते हैं । इसी प्रकार त्रिलिंग तरल शब्द का पाँचवाँ अर्थ - ५ . षिङ्ग (हिजड़ा - नपुंसक ) भी होता है। तरला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. मद्य (शराब) २. यवागू (हलवा, लापसी) और ३ सरघा (मधुमक्खी) । तरस्वी शब्द नकारान्त पुंल्लिंग माना माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. गरुड़ ( पक्षो विशेष, विष्णु भगवान का वाहन) और २ वायु (पवन) । किन्तु त्रिलिंग तरस्वी शब्द का अर्थ - १. वेगो (वेगशाली पदार्थ) और २. शुर (वीर, पराक्रमी) होता है । इस प्रकार तरस्वी शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : तरिर्दशायां लौकायां वस्त्र - भूषादि पेटके । तरी गदा - दशा-द्रोणी - नौका वस्त्रादि पेटके ।। ७५० ॥ तरीष: शोभनाकारे समर्थव्यवसाययोः । स्वर्गे सिन्धौ भेलकेऽथ शक्रपुत्र्यामपि स्त्रियाम् ।। ७५१ ।। हिन्दी टोका - तरि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. दशा ( कपड़े की किनारी पाढ़ि) २. नौका (नाव) और ३. वस्त्रभूषादि पेटक (मञ्जूषा पेटो) । तरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. गदा. २. दशा ( अवस्था - हालत अनेक प्रकार दीप की बत्ती ) ३. द्रोणी ( काष्ठ की - लकड़ी की बनाई हुई छोटी सी नाव, डोंगी) और ४. नौका (नाव) तथा ५ वस्त्रादि पेटक (कपड़े तथा जेबर रखने की पेटो मञ्जूषा ) । तरीष शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं१. शोभनाकार (सुन्दर, दर्शनीय) २. समर्थ, ३. व्यवसाय ( उद्योग धन्धा ) ४. स्वर्ग, ५. सिन्धु (नदी, समुद्र) और ६. भेलक । किन्तु ७. शक्र पुत्री (इन्द्र की कन्या) अर्थ में तरीष शब्द स्त्रीलिंग माना गया है । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: १३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तरुण शब्द तरुणो नूतने यूनिचित्रके स्थूलजीरके। तरुणी गृहकन्यायां युवत्यां सेवतीसुमे ॥ ७५२ ॥ गन्धद्रव्यान्तरे दन्तीपादपेऽपि प्रकीर्तिता। तर्को वितर्क ऊहादावाकांक्षा हेतुशास्त्रयोः ।। ७५३ ॥ हिन्दी टीका-तरुण शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. नूतन (नया) २. युवा (जवान) और ३. चित्रक (चितकबरा) तथा ४. स्थूलजीरक । तरुणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ होते हैं -१. गृह कन्या, २. युवती ३. सेवती सुम (फूल विशेष) ४. गन्ध द्रव्यान्तर (गन्ध द्रव्य विशेष) और ५. दन्तीपादप (दन्ती नाम का औषध)। तर्क शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. वितर्क, २. ऊहादि, ३. आकांक्षा और ४. हेतु शास्त्र (वैशेषिक)। मूल : न्यायशास्त्रे कर्मभेदे तर्दूः स्याद् दारुहस्तके । तर्पणं प्रीणने तृप्तौ यज्ञकाष्ठे जलार्पणे ॥ ७५४ ॥ तर्षोऽभिलाषे तृष्णायां सूर्येप्लव - समुद्रयोः । तलं स्वरूपेऽनूर्वेऽस्त्री, क्लीवं ज्याघातवारणे ॥ ७५५ ॥ हिन्दी टीका -तर्क शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. न्यायशास्त्र और २. कर्मभेद (कर्म विशेष) । तर्दू शब्द का अर्थ-१. दारुहस्तक (डम्बुक भात, दाल, शाक परोसने का बर्तन विशेष) है। तर्पण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. प्रीणन (खुश करना) २. तृप्ति (तृप्त होना) ३. यज्ञकाष्ठ (तर्पणी) और ४. जलार्पण (पितरों को जल देना)। तर्ष शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. अभिलाष, २. तृष्णा, ३ सूर्य, ४. प्लव (तैरना) और ५. समुद्र । पुल्लिग तथा नपुंसक तल शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. स्वरूप और २. अनुवं (नीचा) किन्तु ३. ज्याघातवारण (धनुष को प्रत्यंचा डोरो के आघात चोट का वारण हटाना) अर्थ में तल शब्द नपुंसक ही माना गया है । कार्यबीजे वने गर्ते मध्ये पादतलस्य च । तलः स्वभाव आधारे तन्त्रीघात चपेटयोः ॥ ७५६ ॥ ताल वृक्षेत्सरौ पुंसि तडागे तलकं स्मृतम् । तलिनो दुर्बले स्तोके विरल स्वच्छयोस्त्रिषु ॥ ७५७ ॥ हिन्दी टीका --नपुंसक तल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कार्य बीज (कार्य का मूल कारण) २. वन, ३. गर्त (खढ्ढा) और ४. पादतल मध्य (पाँव के तल भाग का मध्य)। पुल्लिग तल शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. स्वभाव (आदत) २. आधार, ३. तन्त्रीघात (वीणा की तन्त्रो डोरी का आघात) और ४. चपेट (थप्पड़) किन्तु–१. ताल वृक्ष (ताड़ का वृक्ष) और २. त्सरु (खड्ग को मुष्टि) इन दो अर्थों में भी तल शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। तलिन शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. दुर्बल और २. स्तोक (थोड़ा) किन्तु १. विरल और २. स्वच्छ इन दोनों अर्थों में तलिन शब्द त्रिलिंग माना गया है। इस प्रकार तलिन शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : नपुंसकं तु शय्यायां तलुनो यूनिमारुते । तलिमंकुट्टिमे चन्द्रहासे तल्पे वितानके ।। ७५८ ॥ मूल : Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष ! हिन्दी टीका सहित-तलिन शब्द | १३६ तल्पमट्टालिका-शय्या-दारेष्वस्त्री प्रकीर्तितम् । तस्करः श्रवणे चौरे स्पृक्कायां मदनद्रुमे ॥ ७५६ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक तलिन शब्द का अर्थ - शय्या (पलंग चारपाई) होता है। तलुन शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. युवा (जवान) और २. मारुत (पवन वायु)। तलिम शब्द नपंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१. कुट्टिम (फर्श) २ चन्द्रहास (तलवार विशेष) और ३. तल्प (शय्या) तथा ४. वितानक (उलीच)। पुल्लिग तथा नपुंसक तल्प शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं१. अट्टालिका (अटारी) २. शय्या और ३. दार (स्त्री)। तस्कर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ श्रवण (कान या सुनना) २. चौर और ३. स्पृक्का (अस्यर नाम का शाक विशेष) तथा ४. मदनद्र म (धतूर) इस प्रकार तस्कर शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए । मूल : ताडोऽद्रौ ताडने शब्दे मुष्टिमेय तृणादिकौ । ताडङ्कः कर्णभूषायामाघाते ताडनं स्मृतम् ।। ७६० ॥ हिन्दी टोका-ताड शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. अद्रि (पहाड़) २. ताडन (मारना) ३. शब्द और ४. मुष्टिमेय तृणादिक (मुष्टि मात्र घास) । ताडङ्क शब्द का अर्थ-१. कर्णभूषा (कान का आभूषण) होता है । ताडन शब्द का अर्थ-१. आघात (पीटना) होता है। मूल : ताण्डवं तृणभेदेऽस्त्री नर्तनोद्धतनृत्ययोः । तातोऽनुकम्प्ये जनके पुमान् पूज्यत्वसौ त्रिषु ।। ७६१ ॥ तान्त्रिकस्तन्त्रशास्त्रज्ञ शास्त्रतत्वज्ञ इष्यते । तापनस्तापजनके सूर्यकान्तमणौ रवौ ॥ ७६२ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग तथा नपुंसक ताण्डव शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. तृणभेद (घास विशेष) २. नर्तन (नाच) और ३. उद्धत नृत्य (भगवान शंकर का प्रसिद्ध ताण्डव नृत्य)। तात शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. अनुकम्प्य (अनुकम्पा दया के पात्र, कृपा करने योग्य) और २. जनक (पिता) किन्तु ३. पूज्य (पूजनीय) अर्थ में तात शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण सभी पूजनीय हो सकते हैं । तान्त्रिक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. तन्त्रशास्त्रज्ञ (तन्त्रशास्त्र का ज्ञाता जानकार) और २. शास्त्रतत्वज्ञ (शास्त्र का मर्मज्ञ-रहस्यवेत्ता)। तापन शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. तापजनक, २. सूर्यकान्तमणि और ३. रवि (सूर्य)। कामवाणे तामरन्तु-घृते सलिल इष्यते। अथ तामरसं स्वर्णे सारसे पदुमताम्रयोः ॥ ७६३ ॥ स्यात्तामसी जटामांसी-दुर्गा कृष्ण निशासु च । ताम्रकूटं तमाखौ स्यात् ताम्रकारस्तु ताम्रिके ॥ ७६४ ॥ हिन्दो टोका-तापन शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. कामबाण । तामर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. घृत (घो) और २. सलिल (जल-पानी)। तामरस शब्द नपंसक Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म १४० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ताम्रपट्ट शब्द है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. स्वर्ण (सोना) २. सारस (सारस नाम का पक्षी विशेष) और ३. पद्म (कमल) तथा ४. ताम्र । तामसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. जटामांसी, २. दुर्गा और ३. कृष्णनिशा (काली रात)। ताम्रकूट शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ१. तमाखु (तम्बाकू जर्दा) होता है । ताम्रकार शब्द का अर्थ-ताम्रिक (ताम्र को बनाने वाला) इस प्रकार ताम्रकूट और ताम्रकार शब्द का एक-एक अर्थ होता है। मूल : ताम्रपट्ट ताम्रपत्रस्ताम्रनिर्मितपत्रके । ताम्रिकः कांस्यकारे स्यात् त्रिलिंगस्ताम्रनिर्मिते ॥ ७६५।। ताम्बूल पात्रे ताम्बूलकरङ्कः सद्भिरीरितः। तारं रूप्ये च मुक्तायां तारः स्यात् शुद्ध मौक्तिके ।। ७६६ ॥ हिन्दी टीका नपुंसक ताम्रपट्ट और पुल्लिग ताम्रपत्र शब्द का अर्थ–१. ताम्रनिर्मितपत्रक (ताँबे का बनाया हुआ पत्र विशेष होता है जिसको ताम्रपत्र कहते हैं)। ताम्रिक शब्द पुल्लिग है और उमका अर्थ -कांस्यकार (कांसा को बनाने वाला) होता है, किन्तु ताम्र निर्मित अर्थ में ताम्रिक शब्द त्रिलिग माना जाता है । ताम्बूलकरङ्क शब्द का अर्थ-ताम्बूल पात्र (पनबट्टो) होता है। नपुंसक तार शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. रूप्य (रुपया) और २. मुक्ता (मोती) किन्तु पूल्लिग तार शब्द का अर्थ१. शुद्धमौक्तिक (शुद्ध मोती) होता है । इस प्रकार तार शब्द का तीन अथ जानना। मूल : मुक्ता विशुद्धौ प्रणवे तरणे वानरान्तरे । कूर्च बीजे त्रिलिंगस्तु निर्मलाऽत्युच्च शब्दयोः ॥ ७६७ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग तार शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं-१. मुक्ताविशुद्धि, २. प्रणव (ओंकार) ३. तरण (तैरना) और ४. वानरान्तर (वानर विशेष) और ५. कूर्च बोज। किन्तु १. निर्मल और २. अत्युच्च शब्द (अत्यन्त शोर) इन दोनों अर्थों में तार शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : तारको भेलके कर्णधारे दैत्यान्तरे पुमान् । कनीनिकायां नक्षत्रे नना क्लीवं तु लोचने ।। ७६८ ॥ ताराऽक्षिमध्ये नक्षत्रे मुक्तायां बालियोषिति । बृहस्पतिस्त्रियां बुद्धदेवताभेद - चीडयोः ॥ ७६६ ॥ हिन्दी टीका-तारक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ भेलक २. कर्णधार (नाविक केवट) और ३. दैत्यान्तर (दैत्य विशेष) किन्तु ४. कनीनिका (आँख की पुतली) ५. नक्षत्र (तारागण) इन दोनों अर्थों में तारक शब्द स्त्रीलिंग तथा नपुंसक माना जाता है परन्तु ६. लोचन (आंख) अर्थ में तारक शब्द नपुंसक माना गया है। तारा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं१. अक्षिमध्य (आँख का मध्य भाग) २. नक्षत्र (अश्विनी वगैरह) ३. मुक्ता (मोती) ४. बालियोषित् (बालि की स्त्री) एवं ५. बृहस्पति-स्त्री (बृहस्पति की स्त्री) तथा ६. बुद्ध देवता भेद (भगवान बुद्ध देवता विशेष) और ७ चीड । इस प्रकार तारा शब्द के सात अर्थ जानना। मूल उग्रताराभिधानायां शक्तौ तारापतिः शिवे । चन्दिरे बालि-सुग्रीव बृहस्पतिषु कीर्तितः ।। ७७० ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तारा शब्द | १४१ ताय॑स्तुरङ्गमे सर्प गरुडे गरुडाग्रजे । अश्वकर्णतरौ शालवृक्षे रथ सुवर्णयोः ॥ ७७१ ॥ हिन्दी टीका-तारा का और भी एक अर्थ माना जाता है-१. उग्रताराभिधान शक्ति (उग्रतारा नाम की शक्ति विशेष) । तारापति शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. शिव (शंकर भगवान) २. चन्दिर (चन्द्रमा) ३. बालि, ४. सुग्रीव और ५. बृहस्पति । तार्क्ष्य शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१ तुरङ्गम (घोडा) २. सर्प, ३. गरुड़, ४. गरुडाग्रज (गरुड़ का बड़ा भाई) एवं ५. अश्वकर्णतरु (सखुआ वृक्ष) और ६. शाल वृक्ष एवं ७. रथ और 5. सुवर्ण (सोना) इस प्रकार तार्क्ष्य शब्द के आठ अर्थ जानना। मूल : तालं तालफले तालीशपत्र हरितालयोः । दुर्गा सिंहासने क्लीवं पुमांस्तु तालपादपे ॥ ७७२ ॥ गीतकाल क्रिया मानेऽङ्गष्ठ मध्यम संमिते । करास्फाले कांस्यवाद्य भाण्डे करतलेत्सरौ ॥ ७७३ ॥ हिन्दी टोका-ताल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. तालफल, २. तालीश पत्र (आमलकी, आँवला) और ३. हरिताल (हरिताल नाम का औषध विशेष) और ४. दुर्गा सिंहासन (दुर्गा का सिंहासन) किन्तु पुल्लिग ताल शब्द का अर्थ ५. ताल पादप (ताल का वृक्ष) होता है। पुल्लिग ताल शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. गीतकाल क्रिया मान (गान गोष्ठी काल के व्यापार विशेष) और २. अंगुष्ठ मध्यम संमित करास्फाल (अंगूठा और मध्यम अंगुलि परिमित करास्फाल-हाथ का फैलाव) एवं ३. कांस्यवाद्य भाण्ड (झाल मृदंग) और ४. करतल तथा ५. त्सरु (खड्ग की मुष्टि)। मूल : तालकं द्वारयन्त्रे स्यात् तुवरी हरितालयोः । तालाङ्क शंकरे शाकविशेष करपत्रयोः ॥ ७७४ ॥ हिन्दी टीका-तालक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. द्वार यन्त्र (ताला) २. तुवरी (अरहर, राहरि, तुअर) और ३. हरिताला । तालाङ्क शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. शङ्कर, १. शाक विशेष, और ३. करपत्र (आरा) । इस प्रकार तालक शब्द के तीन और तालाङ्क शब्द के भी तीन अर्थ जानना चाहिए। महालक्षणसम्पूर्ण पुरुषे पुस्तके बले। तालिका ताम्रवल्ल्यां स्यात् तालमूली चपेटयोः ॥ ७७५ ॥ प्रसारितांगुलिकर-काचन क्योस्त्वसौ पुमान् । ताली तुवरिका तालमूली पत्रद्रुमेषु च ॥ ७७६ ॥ हिन्दी टीका-तालाङ्क शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. महालक्षण सम्पूर्ण पुरुष (विशिष्ट गुणसूचक चिह्न विशेष से परिपूर्ण पुरुष विशेष जैसे महावीर स्वामी) और २. पुस्तक एवं ३. बल, इन तीन अर्थों में भी तालाङ्क शब्द का प्रयोग होता है। तालिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ताम्रवल्ली (लता विशेष) २. तालमूली (मूसलीकन्द) और ३. चपेटा (थप्पड़) Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ताली शब्द किन्तु ४. प्रसारितांगुलिकर (थप्पड़) और ५. काचनकी (लिखित निबन्ध) इन दो अर्थों में तालिका शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। ताली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. तुवरिका (तुवर-अरहर-राहरि) एवं २. तालमूली मूसलीकन्द) इन दोनों के पत्रद्र म (पत्ते और वृक्ष) को ताली कहते हैं। इस तरह ताली शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : प्रतिताली-सुराभेद - कुञ्चिकाऽऽमलकीष्वपि । ताम्रवल्ल्यामथोतिक्त: सुगन्धे करणद्रुमे ।। ७७७ ।। कुटजे रसभेदेऽपि त्रिषु तिक्तरसान्विते । तिक्तक: कृष्णखदिरे चिरतिक्त - पटोलयोः ॥ ७७८ ।। हिन्दी टीका- ताली शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. प्रतिताली (चाभी) २. सूराभेद (शराब विशेष) ३ कुञ्चिका (ताला) ४. आमलकी (आँवला-धात्री) तथा ५. ताम्रवल्ली (लता विशेष) को भी तालो कहते हैं । तिक्त शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सुगन्ध (खुशबू) २. करुणद्र म (वृक्ष विशेष, करौना) ३. कुटज (गिरिमल्लिका, कुरैया, कौरेया नाम का प्रसिद्ध फूल विशेष) और ४. रसभेद (रस विशेष, तीता रस, नीमड़ा वगैरह) किन्तु ५. तिक्तरसान्वित (तिक्त रस से युक्त) अर्थ में तिक्त शब्द त्रिलिंग है । तिक्तक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कृष्णखदिर (काले रङ्ग का कत्था) २. चिरतिक्त (चिरैता) तथा ३. पटोल (परबल)। मूल : इंगुदी पादपे तिक्ता षड्भुजा-पाठयोरपि । यवतिक्ता लता-घ्राण दुःखदा कटुकीषु च ।। ७७६ ।। तिथः कालेऽनले कामे प्रावृट् काले तिथिईयोः । कर्मवाटयामथो मीने समुद्रेऽपि तिमिः स्मृतः ॥ ७८० ॥ हिन्दी टीका-तिक्ता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं --१. इंगुदीपादप (डिठ वरन) २. षड्भुजा (छह हाथ वाली भगवती काली दुर्गा) ३. पाठ, ४. यव, ५. तिक्तालता (लता विशेष जो कि कड़वी होती है उसको भी तिक्ता कहते हैं), और ६. घ्राण दुःखदा कटुको (नाक को दुःख देने वाली कटुकी छोंकनी नोसि वगैरह का वृक्ष)। तिथ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. काल, २. अनल (अग्नि) ३. काम (कामदेव) और ४. प्रावृट्काल (वर्षा ऋतु)। तिथि शब्द १. कर्मवाटी (बगीचा विशेष)। तिमि शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. मीन (मछली) और २ समुद्र। इस प्रकार तिमि शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : तिरोऽन्तौँ तिरस्कारे तिर्यगर्थेऽव्ययं मतम् । तिर्यङ त्रिषु विहङ्गादौ पशौ कुटिलगामिनि ।। ७८१ ॥ हिन्दी टीका-तिरस् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अन्तद्धि (तिरोहित होना, छिप जाना) २. तिरस्कार (अपमान) और तिर्यक् अर्थ (टेढ़ा)। तिर्यङ शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विहंगादि (पक्षी वगैरह) २. पशु और ३. कुटिलगामी। मूल : तिलः शस्यविशेषेऽपि तिलकालक उच्यते । तिलकोऽश्वान्तरे रोगप्रभेदे तिलकालके ॥ ७८२ ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तिल शब्द | १४३ वृक्षभेदे मरुवके प्रधाने ध्रुवकान्तरे। अस्त्रियां पुण्ड्रके क्लीवं क्लोम्नि सौवर्चलेऽसिते ॥ ७८३॥ हिन्दी टीका-तिल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. शस्य विशेष (तिल, तिल्ली) और २. तिलकालक (तिलवा, शरीर में काला तिल का चिह्न विशेष)। तिलक शब्द भी पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. अश्वान्तर (घोड़ा विशेष) २ रोग प्रभेद (रोग विशेष) ३. तिल कालक (तिल का चिह्न) और ४. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ५. मरुवक (मदन-मयनफल नाम क ६. प्रधान (मुख्य) और ७. ध्र वकान्तर (ध्र वक विशेष) किन्तु १. पुण्ड्रक (कुन्द फूल या माधवी लता) अर्थ में तिलक शब्द त्रिलिंग माना जाता है, परन्तु १. क्लोमन् (पेट में जल रहने का स्थान विशेष) और २. सौवर्चल (क्षार नमक विशेष, संचर) और ३. असित (काला) इन तीनों अर्थों में तिलक शब्द नपुंसक ही माना जाता है। तिष्यः कलियुगे पुष्यनक्षत्रे पौषमासि च । तीरं वाणे नदीकूले गङ्गातीरे च सीसके ॥ ७८४ ॥ तीर्णोऽभिभूत उत्तीर्ण-प्लुतयो स्त्रिषु कीर्तितः। तीर्थ पात्रेऽध्वरे क्षेत्रे पुण्यस्थान-निदानयोः ॥ ७८५ ॥ हिन्दी टीका-तिष्य शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कलियुग, २. पुष्यनक्षत्र, ३. पौषमास । तीर शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. वाण (शर) २. नदीकूल (नदी का तट-किनारा) और ३. गंगातीर तथा ४. सीसक (शीशा विशेष) । तीर्ण शब्द १. अभिभूत (पराजित) २. उत्तीर्ण और ३. प्लुत (कूदकर चलना) इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है । तीर्थ शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. पात्र (योग्य) २. अध्वर (यज्ञ) ३. क्षेत्र (खेत, स्थान) ४. पुण्य स्थान (धर्म स्थान, शत्रुञ्जय, गिरनार वगैरह) तथा ५. निदान (आदि कारण, मूल निदान)। उपाये दर्शने घ8 नारीरजसि मन्त्रिणि । ऋषिजुष्टजले शास्त्रे उपाध्यायावतारयोः ॥ ७८६ ॥ आगमे ब्राह्मणे यौनौ साध्वादि समुदायके । तीर्थङ्कर स्तीर्थकर स्तीर्थकृद् भगवज्जिने ॥ ७८७ ॥ हिन्दो टोका-तीर्थ शब्द के और भी तेरह अर्थ माने जाते हैं-१. उपाय, २. दर्शन, ३. घट्ट (घाट) ४. नारी रज (रजोधर्म, मासिकधर्म) ५. मन्त्री, ६. ऋषिजुष्टजल (मुनि महर्षियों से सेवित जल विशेष) ७. शास्त्र, ८. उपाध्याय (अध्यापक विशेष) ६. अवतार (नदी, तालाब में उतरने का सोपान) और १०. आगम (वेद, भगवती सूत्र वगैरह) ११. ब्राह्मण तथा १२. योनि एवं १३. साध्वादि समुदाय (साधु मुनि मण्डली)। इस तरह कुल मिलाकर तीर्थ शब्द के अठारह अर्थ जानना चाहिए। तीर्थंकर तथा तीर्थकर और तीर्थकृत इन शब्दों का अर्थ–१. भगवजिन (भगवान जिन आदिनाथ से लेकर महावीर स्वामी पर्यन्त) होता है । इस तरह तीर्थङ्कर तीर्थकर तीर्थकृद् इन तीनों शब्दों का एक ही अर्थभगवान जिन समझना चाहिए। मूल : Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तीव्र शब्द मूल : तीव्र त्रपुण्यतिशये तीरे तीक्ष्णाऽश्मसारयोः । त्रिलिङ्गस्तुमतोऽत्युष्णे हरे कटु-नितान्तयोः ॥ ७८८ ॥ हिन्दी टोका-तीव्र शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१, पू (रांगा, कलई) २. अतिशय (अत्यन्त) ३. तोर (तट-किनारा) ४. तीक्ष्ण (कटु) और ५. अश्मसार (इस्पात) किन्तु त्रिलिंग तीव्र शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं - १. अत्युष्ण (अत्यन्त गरम) २. हर (महादेव) और ३. कटु (कठोर) और ४. नितान्त (अत्यन्त)। मूल : तीवा स्यात् कटुरोहिण्यां तुलस्यां तरदीतरौ । महाज्योतिष्मतीवल्ल्यां राजिका गण्डदूर्वयोः ।। ७८६ ॥ तीक्ष्णं विषे खरे शस्त्रे मरणे युद्धलौहयोः। सामुद्रलवणे शीघ्र घण्टापाटलि-चव्ययोः ॥ ७६० ॥ मरकेऽपि यवक्षारे श्वेतवहिषि कुन्दरौ। तीक्ष्ण स्त्रिषु निरालस्ये सुबुद्धौ तिग्म-योगिनोः ॥ ७६१ ॥ हिन्दी टीका-तीव्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. कटुरोहिणी (कुटकी) २. तुलसी, ३. तरदीतरु (वृक्ष विशेष) और ४. महाज्योतिष्मतीवल्लो (माल कांगणी नाम की प्रसिद्ध लता विशेष) तथा ५. राजिका (राई, काला सरसों) और ६. गण्डदूर्वा (दूर्वा विशेष, सफेद दूभी) इस तरह तीव्रा शब्द के छह अर्थ जानना । तीक्ष्ण शब्द नपुंसक है और उसके चौदह अर्थ होते हैं --- १. विष (जहर) २. खर (तीव्र) ३. शस्त्र (अस्त्र) ४. मरण (मृत्यु) ५. युद्ध, ६ लौह, ७ सामुद्र लवण (समुद्री नमक) ८. शीघ्र (जल्दी) 8. घण्टापाटलि (काला पाढर या लोध विशेष, लोध्र विशेष) और १०. चव्य (चाभ नाम का प्रसिद्ध काष्ट विशेष) ११. मरक १२. यवक्षार (ज वाखार) और १३. श्वेतवहिष् (सफेद कुश-दर्भ विशेष) तथा १४. कुन्दुरु (पालक नाम का प्रसिद्ध शाक विशेष) इस प्रकार तीक्ष्ण शब्द के चौदह अर्थ जानना चाहिए। त्रिलिंग तीक्ष्ण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. निरालस्य (आलस्य रहित, चुस्त, सुस्त नहीं) २. सुबुद्धि (उत्तम बुद्धि) और ३. तिग्म (तीखा) तथा ४. योगी (मुनि महात्मा) इस तरह तीक्ष्ण शब्द के अठारह अर्थ जानना। आत्मत्यागिन्यथो तीक्ष्णकर्माऽऽयःशूलिके त्रिषु। तीक्ष्णगन्धा तु सूक्ष्मैला जीवन्ती राजिकासु च ।। ७६२ ॥ कन्थारी - श्वेतवचयोर्वनायामपि कीर्तिता। तीक्ष्णावचाऽत्यम्लपर्णीमहाज्योतिष्मतीषु च ॥ ७६३ ॥ हिन्दी टीका-तीक्ष्ण शब्द का एक और भी अर्थ माना गया है-१. आत्मत्यागी (महात्मा) इस तरह कुल मिलाकर तीक्ष्ण के उन्नीस अर्थ समझना चाहिए। तीक्ष्णकर्मा शब्द १. आयःशूलिक (लोहे के शूल पर चढ़ाकर किया जाने वाला घातक कर्म को करने वाला) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री विशेष क्रूर कर्म करने वाला हो सकता है। तीक्ष्णगन्धा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) और २. जीवन्ती (दोडी) तथा ३. राजिका (राई, काला सरसों) इसी तरह तीक्ष्णगन्धा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कन्थारो (वनस्पति मूल : Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित- तीक्ष्णा शब्द | १४५ लता विशेष) और २. श्वेतवचा (सफेद वचा) तथा ३ वचा, इन तीनों अर्थों में भी तीक्ष्णगन्धा शब्द का प्रयोग होता है । इस प्रकार कुल मिलाकर तीक्ष्णगन्धा शब्द के छह अर्थ जानने चाहिए । तीक्ष्णा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. वचा, २ . अत्यम्लपर्णी ( लता विशेष, जिसका पत्ता अत्यन्त अम्ल - खट्टा होता है) और ३. महाज्योतिष्मती ( मालकांगनी नाम की प्रसिद्ध लता विशेष ) इस तरह तीक्ष्णा शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल : सर्पकङ्कालिकावृक्षे कपिकच्छावपि स्मृता । तुङ्गी बुधग्रहे शैले नारिकेले च गण्डके ॥ ७६४ ॥ हिन्दी टीका - तीक्ष्णा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. सर्पकङ्का लिका वृक्ष (वृक्ष विशेष) और २ कपिकच्छु (कवाछु जिसको शरीर में लगा देने से अत्यन्त खुजली होने लगती है) । तुंग शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. बुध ग्रह, २. शैल ( पहाड़ ) ३. नारिकेल ( नारियल) और ४. गण्डक ( गेंडा ) इस तरह तुंग शब्द के चार अर्थ समझना । मूल : योगप्रभेदे पुन्नागवृक्षेऽसौ त्रिषु तन्नते । प्रधाने क्लीवंतु किंजल्के विबुधैः स्मृतः ॥ ७६५ ॥ तुच्छं पुलाकजे क्लीबं हीने शून्यात्पयो स्त्रिषु । तुत्थं नीलाञ्जने वह्नौ पाषाणे च रसाञ्जने ॥ ७६६ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग तुङ्ग शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं । १. योगप्रभेद (योग विशेष, तुङ्ग नाम का समाधि विशेष) और २. पुन्नाग वृक्ष (नागकेशर का वृक्ष ) किन्तु १. उन्नत (ऊँचा) अर्थ में तुङ्ग शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी पदार्थ ऊँचा हो सकता है। इसी तरह २. उग्र (तीव्र) और ३. प्रधान अर्थों में भी तुंग शब्द त्रिलिंग ही माना गया है । परन्तु १. किंजल्क (पराग पुष्प रज) अर्थ में तुंग शब्द नपुंसक ही माना गया है। तुच्छ शब्द १. पुलाकज ( धान का भुस्सा) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. हीन और ३ शून्य तथा ४. अल्प (थोड़ा ) इन तीनों अर्थों में तुच्छ शब्द त्रिलिंग माना जाता है । तुत्थ शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १ नीलाञ्जन, २. वह्नि (अग्नि- आग) ३. पाषाण (पत्थर) तथा ४. रसाञ्जन (आँख में लगाने का अञ्जन विशेष ) । मूल : नीलीवृक्ष - महानीली- क्षुद्रैलासु स्त्रियां मता । अस्त्रियां तुम्बुरुः स्वर्गगायके ऽर्हदुपासके || ७६७ ॥ गन्धर्वे फल वृक्षेऽथ तुरगश्चित्त-वाजिनोः । तुरुष्क: सिल के म्लेच्छ्जाति - देशविशेषयोः ॥ ७६८ ॥ हिन्दी टोका - स्त्रीलिंग तुत्थ शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-- १. नीलीवृक्ष २. महानीली और ३. क्षुद्रएला (छोटी इलाइची ) । तुम्बुरु शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ हैं - १. स्वर्गगायक (स्वर्गलोक का गवैया - गन्धर्व विशेष) और २. अर्हत् - उपासक (भगवान अर्हन् तीर्थङ्कर का उपासक) । इसी प्रकार ३. गन्धर्व और ४ फलवृक्ष (टिमरू) इन दोनों अर्थों में भी तुम्बुरु शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना गया है । तुरग शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चित्त (मन Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तुरुष्क शब्द अन्तःकरण) और २. वाजी (घोड़ा)। तुरुष्क शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सिरक २. म्लेच्छ जाति और ३. देश विशेष (तुर्की वगैरह देश विशेष) । । मूल : श्रीवासकद्रुमे तुर्यश्चतुर्थे वेगिते तुरः । तुला भाण्डे पलशते राशौ सादृश्य-मानयोः ।। ७६६ ॥ तुलाकोटिनिभेदे मजीरार्बुदयोः स्त्रियाम् । तुलाधरस्तुलाराशौ वाणिजे च तुलागुणे ॥ ८०० ॥ हिन्दी टीका-तुरुष्क शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. श्रीवासकद्र म (देवदारु का वृक्ष)। तुर्य शब्द का अर्थ-१. चतुर्थ (चौथा) होता है। तुर शब्द का अर्थ-१ वेगित (वेगयुक्त) होता है । तुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. भाण्ड (बर्तन) २. पलशत एक तोला) ३. राशि (तुला राशि) ४. सादृश्य (सरखामन) तथा ५. मान (परिमाण विशेष, छह मासा)। तुलाकोटि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मानभेद (मान विशेष), २. मजीर (मजीरा) और ३. अर्बुद (एक अरब)। तुलाधर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. तुलाराशि, २ वाणिज (बनिया व्यापारी) और ३. तुलागुण (तराजू की डोरी) इस तरह तुलाधर के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल: तुषारः सीकरे देशविशेषे शीतले हिमे । भेदे कर्पूर-हिमयो रथ तूणिः पुमान् मले ॥ ८०१ ॥ त्वरायां मनसि श्लोके तूलू: कासितूलके । तूलं तुदतरौ व्योम्नि पिञ्जले तूलकार्मुकम् ॥ ८०२ ॥ हिन्दी टोका-तुषार शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१ सीकर (बंद) २. देश विशेष, ३. शीतल (ठण्डा), ४. हिम (बर्फ, पाला), ५. कर्पूर और ६ हिमभेद (हिम विशेष)। तूणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मल, २. त्वरा, ३. मनस् (चित्त) और ४. श्लोक । तूल शब्द भी पुल्लिग है और उसका अर्थ-कासितूलक (रूई) होता है। नपुंसक तूल शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. तूदतरु (सहतूत या तूत का वृक्ष) और २. व्योम (आकाश)। तूलकामुक शब्द का अर्थ१. पिञ्जल (अत्यन्त व्याकुल सेना) है, इस तरह तूलकामुक शब्द का एक अर्थ जानना चाहिए। मूल : शय्योपकरणे वल्मीषिकायां च तूलिका। तूवरस्तु पुमान् कालेऽजातशृंगे गवादिके ॥ ८०३ ॥ पुरुषव्यञ्जनत्यक्त निःश्मश्रुपुरुषेऽपि च । स्यात् कषायरसे प्रौढ़ा शृंगारेऽथ तृणद्रुमः ॥ ८०४ ॥ हिन्दी टोका-तूलिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. शय्योपकरण (गद्दी) २. वत्ति (वत्ती) और ३. ईषिका (गजनेत्र गोलक-हाथी की आँख का गोलाकार)। पुल्लिग तूवर शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं-१. काल, २ अजातशृंगगवादिक (बछड़ा वगैरह) ३. पुरुषव्यञ्जनत्यक्त (पुरुषत्व का अभिव्यञ्जक चिन्ह से रहित-हिजड़ा नपुंसक) ४. निःश्मश्रुपुरुष (मूंछ दाढ़ी रहित पुरुष Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तूवर शब्द | १४७ विशेष) को भी तूवर कहते हैं । इसी प्रकार ५. कषाय रस और ६. प्रौढ़ाशृंगार (युवती का श्रृंगार) को भी तूवर शब्द से व्यवहार किया जाता है । तृणद्र म शब्द पुल्लिंग है। मूल : खर्जू रे केतकी-ताल्यो रिकेल - गुवाकयोः । खजूं रीवृक्ष-हिन्ताल - तालवृक्षेषु कीर्तितः ॥ ८०५ ॥ तृषा लांगलिकी वृक्षे कामकन्येच्छयोस्तृषि । तेजो वैश्वानरे दीप्तौ नवनीते पराक्रमे ॥ ८०६॥ हिन्दी टोका-तूवर शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं-१. खजूर (खजूर) २. केतकी (केवड़ा फूल) ३. ताली (ताल का वृक्ष, तार) ४. नारिकेल (नारियल) ५. गुवाक (सुपारी) ६. खजूं रीवृक्ष (खजूर का पेड़) ७. हिन्ताल, और ८. तालवृक्ष को भी तूवर कहते हैं। तृषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. लाङ्गलिकी वृक्ष (करिहारी का वृक्ष) २. कामकन्या, ३. इच्छा, ४. तृट् (प्यास) इस तरह तृषा शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये । तेजस् शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये १. वैश्वानर (अग्नि, आग) २. दीप्ति, ३. नवनीत (मक्खन) और ४. पराक्रम (पुरुषार्थ)। रेतस्यसहने पित्ते प्रभावे मज्जिन-काञ्चने । महाभूतान्तरेऽपि स्यात् अथ तेजनकः शरे ॥ ८०७ ॥ तिलादिस्निग्धवस्तूनां स्नेहे तैलं च सिहके। तोयदो मुस्तके मेघे जलदातरि सर्पिषि ॥८०८ ॥ हिन्दी टीका-तेजस् शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं -१. रेतस् (वीर्य) २. असहन (बर्दाश्त न होना) ३. पित्त, ४. प्रभाव, ५. मज्जन (सारिल लकड़ी) ६. काञ्चन (सोना) और ७. महाभूतान्तर (महाभूत विशेष पृथिव्यादि पञ्च महाभूतों में तेजस् नाम का महाभूत)। तेजनक शब्द का अर्थ- १. शर (बाण) होता है । तैल शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. तिलादि स्निग्धवस्तूनां स्नेहः (तिल वगैरह स्निग्धपदार्थ का स्नेह) को तैल कहते हैं और २. सिलक (देश विशेष) को भी तैल कहते हैं । तोयद शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं -१. मुस्तक (मोथा) २. मेघ, ३. जलदाता और ४. सर्पिष् (घृत, घी) इस तरह तोयद शब्द के चार अर्थ समझना। मूल : त्यागी वर्जनशीले स्याच्छूरे दातरि च त्रिषु । त्रपा स्त्रीपुंसयोर्लज्जा कुलटा कुलकीर्तिषु ॥ ८०६ ॥ त्रयी वेदत्रये दुर्गा - पुरन्धी-सुमतिष्वपि । सोमराजीतरौ त्रस्तो भीते त्रिषु द्रुतेऽद्वयोः ॥ ८१० ॥ हिन्दी टीका-त्यागी शब्द नकारान्त त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वर्जनशील (त्यागशील) २. शूर (वीर) और ३. दाता। त्रपा शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. लज्जा, २. कुलटा (व्यभिचारिणी स्त्री) और ३. कुलकीति (कुल वंश को कीर्ति-ख्याति)। त्रयी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१ वेदत्रय (ऋग्वेद-यजुर्वेद और सामवेद) २. दुर्गा, ३. पुरन्ध्री (युवती सुहागिन स्त्री) और ४. सुमति तथा ५. सोमराजोतरु (वाकुची नाम की Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १४८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–त्राण शब्द प्रसिद्ध सोमवल्ली लता) । त्रस्त शब्द १. भीत (डरपोक) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है और २. द्रत (पलायित) अर्थ में नपुंसक ही माना जाता है। मूल : त्राणन्तु त्रायमाणायां रक्षणे त्रिषु रक्षिते । त्रिकं त्रिपथसंस्थाने पृष्ठवंशाधरे त्रये ॥ ८११ ॥ त्रिफलायां त्रिकटुनि त्रिमदे कण्टकत्रये । त्रिपुटो गोक्षुरे तीरे हस्तभेदे सतीनके ॥ ८१२॥ हिन्दी टोका-नपुंसक त्राण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. त्रायमाणा (रक्षा करने वाली) और २. रक्षण (रक्षा करना) किन्तु ३. रक्षित (रक्षा किया गया) अर्थ में त्राण शब्द त्रिलिंग माना जा। है। त्रिक शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं -१. त्रिपथ संस्थान (तेबटिया) जहाँ पर तीनों तरफ रास्ता जाता है उसको त्रिपथ संस्थान कहते हैं। २. पृष्ठ वंशाधर (पीठ के रीढ़ का नीचा भाग) और ३. त्रय (तीन) तया ४ त्रिफला (आँवला, हर बहेड़ा का चूर्ण विशेष) एवं ५. त्रिकटु (त्रिकटुकी चूर्ण विशेष) तथा ६. त्रिमद (तीन मद विशेष) और ७. कण्टकत्रय । (त्रिकण्टक) । त्रिपुट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. गोक्षुर (गोखूरू, गोखरू) २. तीर (बाण या नदी तट) ३. हस्तभेद (हस्त विशेष) और ४. सतीनक (मटर, वटाना) इस तरह त्रिपुट के चार अर्थ जानना। तालके त्रिपुटा तु स्यात् त्रिवृन्मल्लिकयोः स्त्रियाम् । कर्णस्फोटा रक्तत्रिवृद्देवीभेदेष्वपि स्मृता ॥ ८१३ ॥ त्रियामा यमुना - नीली - हरिद्रा-रजनीषु च । त्रिशंकुः सूर्यवंशीयनृपभेदे च चातके ॥ ८१४ ॥ हिन्दी टोका-त्रिपुट शब्द का १. तालक (ताल फल) भी अर्थ होता है क्योंकि तालफल में भी त्रिपुट-तीन भाग रहता है । त्रिपुटा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं१. त्रिवृत (सफेद निशोथ, शुक्ल त्रिधारा शब्द से प्रसिद्ध औषध विशेष) २. मल्लिका, ३ कर्णस्फोटा और ४. रक्त त्रिवत् (लाल निशोथ, रक्त त्रिधारा) और ५. देवीभेद (देवी विशेष, त्रिपुरा भगवती)। त्रियामा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. यमुना (यमुना नदी विशेष) २ नीलो (गड़ी) और ३. हरिद्रा (हलदी) तथा ४. रजनी (रात)। त्रिशंकु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं१. सूर्यवंशीयनृपभेद (सूर्यवंशी राजा) और २. चातक (चातक नाम का पक्षी विशेष, जोकि स्वाती नक्षत्र के जल का पिपासु होता है)। मार्जारे शलभे पुंसि खद्योतेऽपि प्रकीर्तितः । त्रुटिरल्पे कालभेदे सूक्ष्मैलायां च संशये ॥ ८१५ ।। हिन्दी टीका-त्रिशंकू शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-मार्जार (विड़ाल) २. शलभ (पतंग) और ३. खद्योत (जुगनू) । त्रुटि शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ अल्प (लेशमात्र) २. कालभेद (काल विशेष ___ क्षण, मिनट पल) और ३. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) और ४. संशय (सन्देह)। इस प्रकार त्रुटि शब्द के चार अर्थ जानना। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नार्थीयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित -त्वक् शब्द | १४६ त्वगिन्द्रिये त्वचे चर्म-वल्कयोस्त्वक् गुडत्वचि । त्वक्सारो रन्ध्रवंशे स्याच्छोणवृक्षे गुडत्वचि ॥ ८१६ ॥ विट् जिगीषा - प्रभा - शोभा व्यवसायेषु वाचि च । खड्गमुष्टत्सरुर्दीप्तौ त्विषासूर्ये त्विषाम्पतिः ।। ८१७ ॥ हिन्दी टीका - त्वक् शब्द स्त्रोलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. त्वगिन्द्रिय, २. त्वच (त्वचा) ३. चर्म ( चमड़ा ) ४. वल्क (वल्कल, छिलका) और ५. गुडत्वच् (गुडुची गिलोय) । त्वक् सार शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रन्ध्रवंश ( रन्ध्रयुक्त वांस) और २. शोणवृक्ष (सोनापाठा) और ३. गुडत्वच् (गुडूची, गिलोय ) । त्विट् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. जिगीषा ( जीतने की इच्छा ) २. प्रभा ( कान्ति प्रकाश ) ३. शोभा, ४. व्यवसाय (उद्योग) और ५. वाक् (वचन) । त्सरु शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १ खड्गमुष्टि होता है । त्विषा शब्द का अर्थ१. दीप्ति होता है और त्विषाम्पति शब्द का १. सूर्य अर्थ माना गया है । दंश: सर्पक्षते दोषे दन्तेमर्मणि खण्डने । मूल : मूल : अरण्यमक्षिका - वर्म- दंशनेषु मतः पुमान् ॥ ८१८ ॥ दंशितो वर्मितेदष्टे दंष्ट्री शूकर- सर्पयोः । त्रिषु दंष्ट्राविशिष्टेऽसौ सलिले दकमीरितम् ॥ ८१६ ॥ हिन्दी टीका - दंश शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. सर्पक्षत (सर्प का काटना) २. दोत्र ( दुर्गुण) ३. दन्त (दाँत) ४. मर्म, ५. खण्डन, ६. अरण्यमक्षिका (मधुमक्खी ) ७. वर्ष (कवच ) और ८. दंशन (कड्डना, काटना) । दंशित शब्द के दो अर्थ होते हैं १. वर्मित (कवचयुक्त) और २. दष्ट (सर्पादि से काटा हुआ ) । दंष्ट्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-सर्प और २. शूकर (शूअर ) किन्तु ३. दंष्ट्रा विशिष्ट (दंष्ट्रायुक्त) अर्थ में दंष्ट्री शब्द त्रिलिंग माना जाता है । दक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - - १. सलिल (जल पानी) होता है। इस तरह दक शब्द का एक अर्थ है । दण्डोsस्त्री शरणापन्नरक्षणादौ दमे यमे । मूल : मन्थाने ग्रहभेदेऽश्वे चण्डांशोः पारिपार्श्वके ॥ ८२० ॥ प्रकाण्डे लगुडे सैन्ये व्यूहभेदाऽभिमानयोः । ऊर्ध्वस्थितौ मानभेदे कोण कालविशेषयोः ॥ ८२१ ॥ हिन्दी टीका - दण्ड शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं१. शरणापन्न रक्षणादि (शरण में आये हुए का रक्षण करना इत्यादि) २. दम (इन्द्रियों को वश में करना) और ३. यम (संयम - मन को वश में रखना) तथा ४ मन्थान (मथने का दण्ड विशेष) और ५. ग्रहभेद (ग्रह विशेष) ६. चण्डाशोः अश्व ( सूर्य का घोड़ा) और ७ पारिपार्श्वक ( बगल में रक्षण करने वाला या परिपार्श्व बगल में रहने वाला) । दण्ड शब्द के और भी नो अर्थ माने जाते हैं - १. प्रकाण्ड ( लग्गा ) २. लगुड (दण्डा) ३. सैन्य तथा ४ व्यूह भेद (व्यूह विशेष ) ५. अभिमान ( घमण्ड ) ६. ऊर्ध्वस्थिति (ऊपर रहना) ७. मानभेद ( परिमाण विशेष ) तथा ८. कोण और ६. काल विशेष (२४ मिनट) । इस तरह कुल मिलाकर दण्ड शब्द के सोलह अर्थ जानना चाहिए । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-दण्ड शब्द मूल : इक्ष्वाकुराजपुत्रेऽथ दण्डक: श्लोकवृत्तयोः । अथदण्डधरोराज्ञियमे लगुडधारके ।। ८२२ ॥ हिन्दी टीका-दण्ड शब्द का-१. इक्ष्वाकुराजपुत्र (इक्ष्वाकुवंश का राजपुत्रविशेष भी) अर्थ होता है । दण्डक शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. श्लोक (पद्य, छन्दोबद्ध) २. वृत (छन्द विशेष) । दण्डधर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. राजा, २. यम, और ३. लगुडधारक (दण्ड धारी पुरुष) इस तरह दण्डधर शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : दण्डनीतिस्तु दुर्गायामर्थशास्त्रे स्त्रियां मता। दण्डपालः पुमानर्द्ध शफर द्वारपालयोः ।। ८२३ ॥ दण्डयात्रा दिग्विजये संयान वरयात्रयोः । दण्डयामो दिनेऽगस्त्ये यमेऽथ शरयन्त्रके ।। ८२४ ॥ कुलाल चक्र दण्डारो वाहने मत्तकुञ्जरे । दण्डी जिनान्तरे द्वास्थे यमे दमनकद्रुमे ।। ८२५ ॥ हिन्दी टीका-दण्डनीति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. दुर्गा और २. अर्थशास्त्र । दण्डपाल शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. अर्द्धशफर और २. द्वारपाल । दण्डयात्रा शब्द भी स्त्रोलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. दिगविजय (दिग् विजय के लिए प्रस्थान) और २. संयान (विशिष्ट प्रस्थान, चढ़ाई) तथा ३. वर यात्रा। दण्डयाम शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दिन, २. अगस्त्य (ऋषि विशेष) और ३. यम । दण्डार शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. शरयन्त्रक, २. कुलाल चक्र (घट बनाने की चक्की) और ३. वाहन तथा ४. मतकुञ्जर (मतवाला हाथी) । दण्डी शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. जिनान्तर (भगवान जिन विशेष) २. द्वास्थ (द्वारपाल) ३, यम (धर्मराज) और ४. दमनकद्र म (वृक्ष विशेष - दमनक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष) । मूल : त्रिलिंगो दण्डयुक्त ऽसौ चतुर्थाश्रमि मानवे । दद्रूः कूर्मे दद्रुरोगे दद्रुणो दद्रुरोगिणि ॥ ८२६ ।। दधि क्षीरोत्तरावस्थाभाव श्रीवासयोः पठे। दन्तोऽद्रिकटके शैल शृङ्ग दशन-कुञ्जयोः ॥ ८२७ ॥ हिन्दी टीका-१. दण्डयुक्त (दण्डधारी) अर्थ में दण्डी शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष, स्त्री, साधारण दण्ड धारण कर सकता है, एवं २. चतुर्थाश्रामिमान (चतुर्थ आश्रम संन्यास आश्रमवासी साधु महात्मा) को भी दण्डी शब्द से व्यवहार किया जाता है। दद्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कूर्म (कच्छप, काचवा, काछु) और २. दद्र रोग (दिनाय) । दद्र ण शब्द का अर्थ- १. दद्र रोगी (दद्रु -दिनाय रोग वाला) होता है । दधि शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. क्षीरोतरावस्थाभाव (दूध का उत्तरकालीन अन्तिम परिणाम घनीभाव) को दधि (दही) कहते हैं। और २. श्रीवास (सुगन्धित द्रव्यविशेष, सरल देवदारु का तरल चूर्ण विशेष द्रव) तथा २. पट (कपड़ा) । दन्त शब्द पुल्लिग Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- दन्तशठ शब्द | १५१ है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं --१. अद्रिकटक (पर्वत की चोटी या मध्य भाग) २. शैलशृङ्ग (पहाड़ का ऊपरी भाग) ३. दशन (दाँत) और ४. कुञ्ज (झाड़ी वन विशेष लताओं से वेष्टित वन)। मूल : स्मृतो दन्तशठो नागरंगके कर्मरंगके । अम्ले कपित्थे जम्बीरे चोङ्गरी चिञ्चयोः स्त्रियाम् ॥ ८२८ ॥ दन्ती वृक्षान्तरे पुंसि कुञ्जरे तु द्वयोरसौ। तपःक्लेशसहिष्णुत्वे बहिरिन्द्रिय निग्रहे ॥ ८२६ ॥ हिन्दी टीका-दन्तशठ शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये है -१. नागरङ्गक (नारङ्गी) २. कर्मरंगक (वृक्ष विशेष) ३. अम्ल (धात्री या खट्टा पदार्थ) ४. कपित्थ (कदम्ब) 1. जम्बीर (नीबू) किन्तु ६. चोंगरी और ७. चिञ्चा (इमली, तेतरि) इन दोनों अर्थों में दन्तशठ शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । दन्ती शब्द १. वृक्षान्तर (वृक्ष विशेष अर्थ में) पुल्लिग ही माना जाता है किन्तु २ कुञ्जर (हाथी) अर्थ में तो दन्ती शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है, एवं ३. तपःक्लेशसहिष्णुत्वे (तपोजन्य क्लेश का सहनशीलता) और ४. बहिरिन्द्रिय निग्रह (चक्षुरिन्द्रिय वगैरह बहिरिन्द्रिय को वश में रखना) इन दोनों अर्थों में भी दन्ती शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग माना जाता है क्योंकि हाथी और हथिनी, तपस्वी या तपस्विनी ये सभी क्रमशः दन्तवाले और तपःक्लेशसहिष्णु और इन्द्रियनिग्रही हो सकते हैं। मूल : दण्ड-कर्दमयोः पुंसि दम इत्यभिधीयते । वीरोपशान्तयोः कुन्दे दमनः पुष्पचामरे ॥ ८३० ॥ दम्भस्तु कपटे कल्के साटोपाहंकृतावपि । अभीष्टे दयितं पत्यौ दयितो दयिता स्त्रियाम् ।। ८३१ ॥ हिन्दी टोका–दम शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. दण्ड (दण्ड करना) और २. कर्दम (कीचड़)। दमन शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. वीर (शूर) २. उपशान्त (धीर गम्भीर) ३. कुन्द (कुन्द नाम का फूल विशेष) और ४. पुष्प चामर । दम्भ शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कपट, २. कल्क (पाप) और ३. साटोपाहंकृति (आडम्बर पूर्वक अहंकार भावना) । नपुंसक दयित शब्द का अर्थ-१. अभीष्ट (ईप्सित) होता है और पुल्लिग दयित शब्द का १. पति (स्वामी) अर्थ होता है और स्त्रीलिंग दयिता शब्द का अर्थ-१. स्त्री (महिला) जानना चाहिये। दरोऽस्त्रियां भये गर्ते शंखेऽसौ कन्दरद्वयोः । दरत् स्त्रियां म्लेच्छजातौ प्रपाते भयतीरयो ॥ ८३२ ॥ हृदि शैलेऽथ दरदो म्लेच्छे देशान्तरे भये।। दर्दु रो राक्षसे भेक - वाद्यभाण्डविशेषयोः ॥ ८३३ ॥ हिन्दी टीका-दर शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. भय, २. गर्त (खड्ढा) और ३. शंख, किन्तु ४. कन्दर (गुफा) अर्थ में दर शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना मूल : Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-दर्दुर शब्द जाता है । दरत् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. म्लेच्छ जाति, २. प्रपात (झरना गिरने का स्थान) ३. भय और ४. तीर (तट) और भी दरात् शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. हृदय (मन) और २ शैल (पहाड़) । अदन्त दरद शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ म्लेच्छ (यवन) २. देशान्तर (देश विशेष) और ३. भय । दर्दुर शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं --१. राक्षस, २. भेक (मेढक) और ३. वाद्य भाण्ड विशेष (डफली) इस तरह दर्दुर शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : शैलभेदे दर्दु रा तु चण्डिकायां प्रयुज्यते । दर्प उच्छङ्खलत्वे स्यात् कस्तूर्यां गर्व उष्मणि ॥ ८३४ ॥ दर्पणो मुकुरे शैलविशेष - नदभेदयोः । क्लीबं सन्दीपने नेत्रे दो राक्षस-हिंस्रयोः ॥ ८३५ ।। हिन्दी टीका-दर्दुर शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है --१. शैलभेद (पर्वत विशेष) दर्दुरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१ चण्डिका (दुर्गा काली) होता है। दर्प शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. उच्छृङ्खलत्व (उच्छृङ्खलता) २. कस्तूरी और ३. गर्व (अहंकार) तथा ४. उष्मा (गर्मी उष्णता)। दर्पण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मुकुर (एनक दर्पण) २. शैल विशेष, ३. नदभेद (झील विशेष) । नपुंसक दर्पण शब्द का अर्थ-१. संदीपन और २. नेत्र (नयन आँख) होता है । दर्व शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. राक्षस और २. हिंस्रक (घातक) होता है। दविका स्यात् खजाकायां कज्जलेऽपि बुधैःस्मृता । दर्भ: काशे कुशे दर्शोऽमवास्यायां विलोकने ।। ८३६ ॥ दर्शको द्रष्टरि द्वास्थे दर्शयितृ प्रवीणयोः । दर्शनं दर्पणे शास्त्रे बुद्धि धर्मोपलब्धिषु ॥ ८३७ ॥ हिन्दी टीका-दविका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. खजाका (करछुल्ली, करछु) और २. कज्जल (काजल)। दर्भ शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं—१. काश, (दाभ) २. कुश (दर्भ)। दर्श शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी दो अर्थ होते हैं—१. अमावास्या और २. विलोकन (देखना) । दर्शक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. द्रष्टा (देखने वाला) २. द्वास्थ (द्वारपाल) और ३. दर्शयिता (दिखलाने वाला) तथा ४. प्रवीण (निपुण-दक्ष) । दर्शन शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१. दर्पण (ऐनक ऐना) २. शास्त्र (दर्शनशास्त्र न्याय वगैरह) ३. बुद्धि (ज्ञान) और ४. धर्म तथा ५. उपलब्धि (प्राप्ति शोध अनुसन्धान) । मूल : स्वप्ने निरीक्षणे वर्णे नयनेऽपि नपुंसकम् । दलं शस्त्रीच्छदे खण्डे घनउत्सेध-पत्रयोः ॥ ८३८ ॥ तमालपत्रेऽपद्रव्ये दलितं खण्डितेस्फूटे । दवो दावानलेऽरण्य उपतापेऽग्निमात्रके ॥ ८३६ ॥ हिन्दी टोका - नपुंसक दर्शन शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं-१. स्वप्न, २. निरीक्षण मूल : Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- -- दशा शब्द | १५३ (अच्छी तरह देखभाल करना) तथा ३. वर्ण और ४. नयन (नेत्र) । दल शब्द भी नपुंसक ही है और उसके सात अर्थ माने गये हैं - १. शस्त्रीच्छद (छुरी का एक भाग) २. खण्ड (टुकड़ा) ३. घन (निविड़ सघन या मेघ) ४. उत्सेध (ऊँचाई, पेड़ वगैरह की ऊँचाई ) ५. पत्र । नपुंसक दल शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. तमालपत्र ( तमाल नाम का प्रसिद्ध पहाड़ी वृक्ष विशेष का पत्ता) और २. अपद्रव्य ( खराब द्रव्य ) । दलित शब्द भी नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. खण्डित और २. स्फुट ( स्पष्ट ) । दव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. दावानल (वनाग्नि ) २. अरण्य (जंगल) ३. उपताप और ४. अग्निमात्र (साधारण आग ) । इस तरह दव शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : दशा चेतस्यवस्थायां दीपवर्ति पटान्तयोः । दस्मो हुताशने स्तेने यजमाने खले पुमान् ॥ ८४० ॥ दस्युर्महासाहसिके तस्करे दहनश्चित्रके वह्नौ कपोते परिपन्थिनि । दुष्टचेतसि ॥। ८४१ ॥ हिन्दी टीका - दशा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं १. चेतस् (चित्त) २. अवस्था (परिस्थिति) ३. दीपवर्ति (दोप की वाती ) तथा ४. पटान्त ( कपड़े का छोर या किनारा, कोर) । दस्म शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१ हुताशन (अग्नि- आग ) २. स्तेन (चोर) ३. यजमान और ४. खल (दुष्ट) । दस्यु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. महा साहसिक (अत्यन्त साहसी डाकू वगैरह ) २ तस्कर (चोर) और ३. परिपन्थो ( शत्रु ) | दहन शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. चित्रक (चितकबरा) २. वह्नि (अग्नि- आग) ३. कपोत (कबूतर ) और ४. दुष्टचेतस् (दुष्ट चित्त वाला, दुष्ट मनुष्य ) । इस तरह दहन शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । मूल : भल्लातकेऽथ दहनं भस्मीकरण कर्मणि । दह भ्रातरि सूक्ष्मे बालके मूषिका -ऽल्पयोः ॥ ८४२ ॥ हिन्दी टीका - दहन शब्द का भल्लातक ( भाला ) भी अर्थ होता है । दहन शब्द का अथ - भस्मीकरण कर्म (जला देना) होता है । दहर शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. भ्राता (भाई) २. सूक्ष्म (पतला ) ३. बालक, ४. मूषिका ( चूहा उन्दर) और ५. अल्प (थोड़ा) । दह्रो दावानले कुक्षौ नरके वरुणेऽनले । मूल : दक्षो महेश्वरे वह्नि प्रजापतिविशेषयोः ॥ ८४३ ॥ मुनिभेदे हरवृषे ताम्रचूडे द्रुमान्तरे । चतुरे तु त्रिलिंगोऽसौ दक्षा स्याद्वनौ स्त्रियाम् ॥ ८४४ ॥ हिन्दी टीका - दह्रौ शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. दावानल (वनाग्नि ) २. कुक्षि (उदर-पेट) ३. नरक, ४ वरुण और ५. अनल (अग्नि- आग ) । दक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं—१ महेश्वर, २. वन्हि (अग्नि) ३. प्रजापति विशेष (ब्रह्मा विशेष ) ४. मुनिभेद (मुनि विशेष ) ५. हरवृष (वसहा -- शंकर का वाहन ) ६. ताम्रचूड (मुर्गा) तथा ७. द्रुमान्तर ( वृक्ष विशेष ) किन्तु ८. चतुर (बुद्धिमान) अर्थ में दक्ष शब्द त्रिलिंग माना जाता है । दक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ१. अवनि (पृथ्वी) होता है । इस प्रकार कुल मिलाकर दक्ष शब्द के नौ अर्थ समझने चाहिए । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - दक्षिण शब्द मूल : दक्षिणो दक्षिणोद्भूते परच्छन्दानुवर्तिनि । आरामे सरले दक्षेऽपसव्ये नायकान्तरे ।। ८४५ ।। दक्षिणा नायिकाभेद-यज्ञादि विधिदानयोः । दिगन्तरे प्रतिष्ठायां दाडिमः करकैलयोः ॥ ८४६ ॥ हिन्दी टीका - दक्षिण शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. दक्षिणोद्भुत ( दक्षिणा से उत्पन्न ) २. परच्छन्दानुवर्ति (दूसरे का अनुयायी - अनुसरण कर चलने वाला) ३. आराम ( बगीचा - उद्यान) ४. सरल (सीधा या देवदारु वृक्ष) ५. दक्ष (निपुण ) ६. अपसव्य ( बायाँ भाग) तथा ७. नायकान्तर (नायक विशेष दक्षिण नायक ) । दक्षिणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- नायिकाभेद ( नायिका विशेष - दक्षिण नायिका) २. यज्ञादिविधिदान (यज्ञादि कर्म की दक्षिणा ) ३. दिगन्तर (दक्षिण दिशा) और ४. प्रतिष्ठा ( इज्जत, ख्याति ) । दाडिम शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. करका (अनार) और २. एला (बड़ी इलाइची ) । इस तरह दाडिम अर्थं जानना चाहिए | मूल : शब्द के दो स्त्रीपुंसयोः स्याद् दात्यूहश्चातके कालकण्ठके । जलका के वारिवाहे लवित्रे दात्रमुच्यते ॥ ८४७ ॥ दानं गजमदे शुद्धौ छेदने त्याग - रक्षयोः । दानुर्दातरि विक्रान्ते मारुते शर्मणि त्रिषु ॥ ८४८ ॥ हिन्दी टीका - दात्यूह शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. चातक (चातक नाम का पक्षी विशेष, जो कि स्वाती नक्षत्र के जल की बूंद चाहता है) २. कालकण्ठक (नीलकण्ठ पक्षी विशेष ) ३. जलकाक (जल जन्तु पक्षी विशेष) और ४. वारिवाह (मेघ बादल) । दात्र शब्द का अर्थ - १. लवित्र ( खन्ती, दरांती) होता है। दान शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. गजमद (हाथी का मदजल) २. शुद्धि (पवित्रता) २. छेदन, ४. त्याग और ५. रक्षा (रक्षा करना) । दानु शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. दाता, २. विक्रान्त (पराक्रमी ) ३. मारुत (वायु, पवन) और ४. शर्म (सुख)। इस तरह दानु शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : दमिते दातरि त्रिषु । दान्तस्तपः क्लेश सहे वित्तायत्तीकृते दाम रज्जु - संदानयो र्नना ॥ ८४६ ॥ हिन्दी टीका - दान्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. तपः क्लेशसह (तपस्याजन्य क्लेश को सहन करने वाला) २. दमित ( वश में किया हुआ) ३. दाता और ४ वित्तायत्तीकृत (वित्त के अधीन किया हुआ) । दामन् शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. रज्जु (डोरी) और २. संदान (बन्धन रज्जु) । मूल : दायो दाने यौतुकादौ स्थाने सोल्लुण्ठ भाषणे । विभक्तव्य पितृद्रव्ये लय - खण्डनयोरपि ।। ८५० ॥ दारदः पारदे सिन्धौ हिंगुले गरलान्तरे । दार्वी दारु हरिद्रायां देवदारु-हरिद्रयोः ॥ ८५१ ॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-दाय शब्द | १५५ हिन्दी टीका-दाय शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. दान, २ यौतुकादि (दान द्रव्य), ३. स्थान, ४. सोल्लुण्ठ भाषण (हँसी मखौलपूर्वक बोलना) ५. विभक्तव्य पितृद्रव्य (बाँटने योग्य पैतृक सम्पत्ति) ६. लय (विलय करना) तथा ७. खण्डन (खण्डन करना)। दारद शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पारद (पाड़ा) २. सिन्धु (नदी, समुद) ३. हिंगुल (हिंग) ४. गरलान्तर (गरल विशेष, जहर)। दारू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दारुहरिद्रा (हलदी विशेष) २. देवदारु (वृक्ष विशेष) और ३. हरिद्रा (हलदी)। इस तरह दारू शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। दारु काष्ठे नना क्लीवं पित्तले देवदारुणि । त्रिष्वसौ दारके दातृ-शिल्पिनो रथ दारुक: ।। ८५२ ॥ श्रीकृष्ण सारथौ क्लीवं देवदारुण्यथो स्त्रियाम् । दारुका शालभञ्ज्यां स्याद् दार्दुर जतु-नीरयोः ।। ८५३ ।। हिन्दी टीका-दारु शब्द १. काष्ठ अर्थ में पुल्लिग नहीं है अपितु स्त्रीलिग तथा नपुंसक है किन्तु २. पित्तल (पीतल द्रव्य) तथा ३. देवदारु (देवदारु वृक्ष) इन दोनों अर्थों में दारु शब्द नपुंसक ही माना जाता है परन्तु ४. दारक (बच्चा, शिशु) अर्थ में दारु शब्द त्रिलिंग माना गया है । दारुक शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. दाता (देने वाला) और २. शिल्पी (कारीगर)। दारुक शब्द का ३. श्रीकृष्ण सारथि (कृष्ण भगवान् का सारथी) भी अर्थ होता है । परन्तु ४. देवदारु (देवदारु नाम की लकड़ी काष्ठ विशेष) अर्थ में दारुक शब्द नपुंसक ही माना गया है। स्त्रीलिंग दारुका शब्द का अर्थ-१. शालभजी (कठपुतली) होता है। दादुर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जतु (लाख) और २. नीर (पानी)। दासः शूद्रे दानपात्रे धीवरे शूद्रपद्धतौ। ज्ञातात्म-प्रेष्ययोर्दासी भुजिष्या-काकजंघयोः ।। ८५४ ॥ कैवर्तपत्नी - शूद्रस्त्री वेदीष्वार्तगलेऽपि च । दासेरो दासिकापत्ये उष्ट्र कैवर्त दासयोः ।। ८५५ ॥ हिन्दी टोका-दास शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. शूद्र, २. दानपात्र (देने योग्य) ३. धीवर (मलाह-मच्छीमार) और .ज्ञातात्मा और ६. प्रेष्य (दूत)। दासी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी छह अर्थ माने गये हैं-१. भुजिष्या (परिचारिका-नौकरानी) २. काकजंघा (औषधि) ३. कैवर्त पत्नी (मलाहिन) ४. शूद्र स्त्री (शूद्र की स्त्री) और ५. वेदी तथा ६. आर्तगल (नोल झिंटिका-निगुण्डी-कटसरैया)। दासेर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दासिकापत्य (दासी का पुत्र) २. उष्ट्र (ऊँट) ३. कैवर्त (धीवर मलाह) और ४. दास (शूद्र) इस तरह दासेर शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये। मूल : दाक्षिण्यमनुकूलत्व . दक्षिणाचारयोरपि । दक्षिणा त्रिलिंगोऽसौ दिक्पतिदिगधीश्वरे ॥ ८५६ ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -- दाक्षिण्य शब्द दिगम्बरः शिवे नग्ने तमः क्षपणयोरपि । दिग्धो विषाक्तवाणेऽग्नौ प्रबन्ध-स्नेहयोरपि ।। ८५.७ ।। हिन्दी टीका - दाक्षिण्य शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. अनुकूलत्व ( अवैपरीत्य ) २. दक्षिणाचार (उदार आचार विचार ) किन्तु दक्षिणार्ह ( दक्षिणा देने योग्य) अर्थ में दाक्षिण्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । दिक्पति शब्द का अर्थ - दिगधीश्वर ( दिशा का मालिक) होता है । दिगम्बर शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शिव, २. नग्न (नंगा) ३. तमः (अन्धकार) और ४. क्षपणक ( संन्यासी) । दिग्ध शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. विषाक्त वाण ( जहर से लिपा हुआ वाण) २. अग्नि (आग) और ३. प्रबन्ध तथा ४. स्नेह ( प्रेम प्रीति ) । मूल : दिति नृपविशेषे च खण्डने दैत्यमातरि । दिवं स्वर्गे वने व्योम्नि दिवसेऽथ दिवाकरः ।। ८५८ ।। सूर्यवायसयोरर्क वृक्ष - पुष्प विशेषयोः । दिवाकीर्तिस्तु चण्डाले नापितोलूकयोः पुमान् ॥ ८५६ ॥ हिन्दी टीका - दिति शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग है उनमें पुल्लिंग दिति शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. नृप विशेष और २ खण्डन और स्त्रीलिंग दिति शब्द का अर्थ - १. दैत्यमाता (दिति नाम की दैत्यमाता) है । दिव शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. स्वर्ग, २. वन, और ३. व्योम (आकाश) । दिवाकर शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अथ होते हैं - १. दिवस ( दिन) २. सूर्य, ३. वायस ( कौवा, पक्षी विशेष ) ४. अर्कवृक्ष (ऑक का वृक्ष) और ५. पुष्प विशेष । दिवाकीर्ति शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. चण्डाल ( भंगी - डोम- दुसाध - हलाल खोर) २. नापित (हजाम) और ३. उलूक (उल्लूपक्षी विशेष जिसको रात में ही सूझता है) । मूल : दिवाभीत उलूके स्यात्तस्करे कुमुदाकरे | स्यादु दिवौका दिवोकाश्च सुरे चातकपक्षिणि ॥। ८६० ।। दिव्यं लवंगे शपथे मनोज्ञ हरिचन्दने । दिव्यो यवे दिविभवे गुग्गुलौ नायकान्तरे ॥ ८६१ ॥ हिन्दी टीका - दिवाभीत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. उलूक (उल्लू पक्षी विशेष) २ तस्कर (चोर) और ३. कुमुदाकर । दिवौकस् और दिवोकस शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. सुर (देवता) २. चातक पक्षी (जोकि स्वातीनक्षत्र के जल का पिपासु होता है) । नपुंसक दिव्य शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १ लवंग, २. शपथ (सौगन्ध ) और ३. मनोज्ञ (सुन्दर) और ४. हरिचन्दन (नागकेशर) | पुल्लिंग दिव्य शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. यव (जौ) २. दिविभव (अलौकिक अपूर्व अद्भुत वगैरह ) ३. गुग्गुलु (गूगल) और ४. नायकान्तर (नायक विशेष, दिव्य नायक) 1 मूल : भावभेदेऽप्यथो दिव्य चक्षुः सुन्दर लोचने । स्वर्गीय चक्षुषि ज्ञान चक्षुष्यन्धोपचक्षुषोः ॥ ८६२ ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - दिव्य शब्द | १५७ मनोरथ प्रसिद्ध्यर्थं देवेभ्यो यत् प्रदीयते । उपयाचितकं हिन्दी टीका - दिव्य शब्द का एक और भी अर्थ माना गया है - १. भावभेद ( भाव विशेष ) | दिव्य चक्षु के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. सुन्दर लोचन, २. स्वर्गीय चक्षु और ३. ज्ञान चक्षु तथा ४. अन्ध (अन्ध ( ) एवं ५. उपचक्षु ( चश्मा ) । अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये देवों को जो दिया जाता है उसको उपयाचितक और दिव्यदोहद कहते हैं। इस तरह दिव्य चक्षु शब्द के पाँच अर्थ जानना । मूल : दिव्या शतावरी - धात्री - वन्ध्याकर्कोटकीषु च । श्वेत दूर्वा गन्धकुटी ब्राह्मीषु स्थूलजीरके ॥ ८६४ ।। हरीतक्यां महामेदा नायिकाभेदयोरपि । दिष्टो दारुहरिद्रायां काले भाग्ये नपुंसकम् ॥ ८६५ ।। हिन्दी टीका - दिव्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ माने जाते हैं - १. शतावरी (शतावर) २. धात्री (आँवला) ३. वन्ध्या ४. कर्कोटकी (सर्प विशेष करेंत सात ) ५. श्वेत दूर्वा (सफेद दूभी) ६. गन्धकुटी (ममोरफली - मुरा नाम का सुगन्ध द्रव्य विशेष) ७. ब्राह्मी (सोमलता) और ८. स्थूलजीरक तथा 8. हरीतको (हर्रे) १०. महामेदा ( महामज्जा) और ११ नायिकाभेद ( नायिका विशेष ) । दिष्ट शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. दारुहरिद्रा ( हलदी विशेष) और २. काल, किन्तु ३. भाग्य अर्थ में दिष्ट शब्द नपुंसक माना जाता है। इस तरह दिष्ट शब्द के कुल तीन अर्थ जानना । दिव्यदोहदं तदुविदुर्बुधाः ॥ ८६३ ॥ त्रिषूपदिष्टे दिष्टिस्तु प्रमोद - परिमाणयोः । दीनं तगरपुष्पे स्यात् त्रिषु भीतदरिद्रयोः ॥ ८६६ ॥ दोनार : स्वर्णभूषायां मुद्रायां मानवस्तुनि । स्वर्णकर्षद्वये हेम्नि द्वात्रिशक्तिकामिते ॥। ८६७ ।। हिन्दी टीका -- उपदिष्ट (उपदेश दिया हुआ ) अर्थ में दिष्ट शब्द त्रिलिंग माना जाता है ।। दिष्टि शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. प्रमोद (आनन्द) और २. परिमाण ( माप विशेष ) । नपुंसक दीन शब्द का अर्थ - १. तगरपुष्प, किन्तु २. भीत ( डरपोक, भीरु ) और दरिद्र, इन दोनों अर्थों में दीन शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण कोई भी प्राणी भीरु तथा दरिद्र हो सकता है । दीनार शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. स्वर्णभूषा (सोने का आभूषण अशर्फी वगैरह ) २. मुद्रा (मोहर) ३. मानवस्तु ( परिमाण विशेष एक तोला ) ४. स्वर्णकर्षद्वय (एक तोला भर सोना) और ५. द्वात्रिंश क्तिकामितेन (बत्तीस रत्ती भर सोना – गिन्नी ) । इस तरह दीनार शब्द के पाँच अर्थ मानना । निष्केऽथ दीपोवर्तिस्थज्वलद् वैश्वानराचिषि । मूल : दीपकं कुंकुमेवाक्यालंकारे दीप्ति कारके || ८६८ ॥ दीपको रागभेदे स्याद् यमान्यां लोचमस्तके | दीपे शशादने दीपट्टि स्याद् दीपकज्जले ॥ ८६६ ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - दीनार शब्द हिन्दी टीका - दीनार शब्द का और भी एक अर्थ होता है - १. निष्ठ (गिन्नी, आठ आना भर स्वर्णभूषण) । दीप शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. वर्तिस्थ ज्वलद्वैश्वानराचिष (जलते हुए दीप की बत्ती के अन्दर आग की अर्चिष् - ज्योतिशिखा ) । नपुंसक दीपक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं१. कुंकुम ( सिन्दूर) २. वाक्यालंकार ( काव्य का अलंकार विशेष, दीपकालंकार) और ३. दीप्तिकारक (प्रकाश करने वाला पदार्थ) और पुल्लिंग दीपक शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. रागभेद ( रोग विशेष, दीपक नाम का प्रसिद्ध राग ) २. यमानी ( जमाइन) और ३. लोचमस्तक ( अजमोदा नाम का औषध विशेष) एवं ४. दीप और ५. शशादन (बाज पक्षी) । दीपकज्जल को दीपकिट्ट (दीपमल) कहते हैं । दीपनो बहिचूडायां पलाण्डौ कासमर्दके । शालिञ्च तगरमूल- कुंकुमयोरपि ॥ ८७० ॥ मूल : शाके दीपनी मेथिका पाठा - यमानीषु स्मृता स्त्रियाम् । दीप्त स्त्रिलिंगो ज्वलिते दग्धे निर्भासितेऽप्यसौ । ८७१ ।। हिन्दी टीका - पुल्लिंग दीपन शब्द के छह अर्थ माने गये हैं - १. बहिचूडा ( मोर की पाँख) २. पलाण्डु (प्याज डुंगरि) और ३: कासमर्दक ( गुल्म विशेष, एक प्रकार का वैसवार- मसाला छौंक, तरिपात तेजपत्र वगैरह ) एवं ४. शालिञ्चशाक (शरहच्ची शाक विशेष ) और ५. तगरमूल तथा ६. कुंकुम । स्त्रीलिंग दीपनी शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. मेथिका (मेथी) २. पाठा और ३ यमानी ( अजमा, जमाइन) । दीप्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. ज्वलित और २. दग्ध तथा निर्भा - सित ( प्रकाशित) । इस प्रकार दीप्त शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए । मूल : क्लीवं स्याद् हिगुनिस्वर्णे पुमान् निम्बूक सिंहयोः । लाङ्गलिका वृक्षे सातलापिण्ययोः स्त्रियाम् ||८७२ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक दीप्त शब्द का अर्थ - १. हिंगु ( हींग ) और पुल्लिंग दीप्त शब्द का अर्थ सोना होता है एवं निम्बुक और सिंह इन दोनों अर्थों में भी दीप्त शब्द पुल्लिंग ही माना गया है । स्त्रीलिंग दीप्ता शब्द के अर्थ तीन होते हैं - १. लाङ्गलिका वृक्ष (करिहारी) और २. सातला (सेहड़ शहर) तथा ३. पिण्य ( मालकांगनी) होता है । मूल : दीप्तिः प्रभायां लाक्षायां कांस्य - लावण्ययोरपि । वाणवेगस्य तीव्रत्वे गुणे स्त्रीणामयत्नजे ॥ ८७३ ॥ दीर्घग्रीवोये नीलक्रौञ्चपक्षि- क्रमेलयोः । दीर्घदर्शी बुधे गृध्रो भल्लू के दूरदर्शके ॥। ८७४ ।। हिन्दी टीका - दीप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. प्रभा (प्रकाश ज्योति) २. लाक्षा (लाख) ३. कांस्य (कांसा) ४. लावण्य ( सौन्दर्य विशेष ) ५. वाणवेगस्य तीव्रत्व (तीव्र वाण-वेग) और ६. स्त्रीणामयत्नज गुण (स्त्री का स्वाभाविक गुण कान्ति विशेष ) । दीर्घग्रीव शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. हय (घोड़ा) २. नीलक्रौञ्च पक्षी (नीले रंग का क्रौञ्च पक्षी विशेष ) और ३. क्रमेलक (ऊँट ) । दीर्घदर्शी शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थं माने गये हैं - १. बुध, २. गृध्र (गीध) ३. भल्लूक ( रीछ, भालू) और ४. दूरदर्शक ( दूरदर्शी - अत्यन्त बुद्धिमान ) । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : दीर्घपत्रो विष्णुकन्दे कुपीलु हरिदर्भयोः । ताले राजपलाण्डौ च स्यादथो दीर्घपत्रकः ।। ८७५ ।। एरण्डे रक्तलशुने करवीरे च हिज्जले । जलजात मधूके च लशुने वेतसे पुमान् ॥ ८७६ ॥ हिन्दी टीका – दीर्घपत्र शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -- - १. विष्णुकन्द (कन्द विशेष) २. कुलु (कुत्सित पीलु, खराब पीलु नाम का वृक्ष विशेष) और ३. हरिदर्भ (दर्भ विशेष ) ४. ताल (ताल वृक्ष) तथा ५. राजपलाण्डु ( पलाण्डू विशेष बड़ी डुंगरी) । दीर्घपत्रक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं - १. एरण्ड (अण्डी का वृक्ष) २. रक्तलशुन (लाल लहसुन ) ३. करवीर, ४. हिज्जल (स्थलबेंत, जलबेंत ) ५. जलजात मधूक (महुआ) और ६. लशुन (लहसन) तथा ७. वेतस (बेंत ) इस तरह दीर्घपत्रक शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - दीर्घपत्र शब्द | १५ε दीर्घायुः शाल्मलीवृक्षे वायसे जीवकद्रुमे । मार्कण्डेयमुनौ पुंसि चिर जीवनि तु त्रिषु ॥ ८७७ ॥ दीक्षा स्याद् यजने पूजा व्रतसंग्रहयोरपि । श्रीमद्गुरुमुखात् स्वेष्टदेवमन्त्रग्रहे स्त्रियाम् ॥ ८७८ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग दीर्घायु शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. शाल्मली वृक्ष (सेमर का पेड़) २. वायस (कौवा) ३. जीवकद्र ुम ( बन्धूक पुष्प का वृक्ष) और ४. मार्कण्डेय मुनि, किन्तु ५. चिरजीवी अर्थ में दीर्घायुः शब्द त्रिलिंग माना जाता है । दीक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. यजन (यज्ञ करना) २. पूजा (पूजन करना) ३. व्रत संग्रह ( जपतप ध्यान वगैरह ) और ४. श्रीमद्गुरुमुखात्स्वेष्ट देव मन्त्रग्रह ( गुरुमुख से इष्टदेव का मन्त्र ग्रहण करना, गुरु से मन्त्र लेना) । मूल : दुःखं व्यथायां संसारे दुःस्थो दुर्गतमूर्खयोः । दुकूलं पट्टवसने सूक्ष्मवस्त्रेऽशुके स्मृतम् ॥ ८७६ । दुग्धं क्षीरे दोहनेऽपि कृतदोहे प्रपूरिते । दुग्धा दुग्धतालीयं दुग्धाग्र-क्षीरफेनयोः ॥ ८८० ॥ हिन्दी टोका - दुःख शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. व्यथा ( पीड़ा, कष्ट, क्लेश) और २. संसार (दुनियाँ) । दुःस्थ शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं - १. दुर्गत (दुःखी, दीन) और २. मूर्ख । दुकूल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. पट्टवसन (रेशमी कपड़ा) २. सूक्ष्मवस्त्र (मलमल झोना कपड़ा) और ३ अंशुक (दोपट्टा, अञ्चल, आँचड़) । दुग्ध शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. क्षोर (दूध) २. दोहन (दुहना ) ३. कृतदोह (किया हुआ दोहन, दूहा हुआ, दोहन किया हुआ) और ४ प्रपूरित (पूर्ण किया हुआ) तथा ५ दुग्धाम्र । दुग्धतालीय शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. दुग्धाग्र (मलाई) और २. फेन । मूल : दुन्दुभिर्वरुणे रक्षोभेद - दैत्यविशेषयोः । भेरी-गरलयोरक्ष बिन्दुत्रिकद्वये ।। ८८१ ॥ अक्षे Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–दुन्दुभि शब्द दूरोदरः पणे द्यूतकृति, छूते नपुंसकम् । दुर्ग कोट्ट पुमान् दैत्ये गुग्गुलौ त्रिषु दुर्गमे ॥ ८८२ ॥ हिन्दी टोका-दुन्दुभि शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. वरुण, २. रक्षो भेद (राक्षस विशेष) ३. दंत्यविशेष और ४. अक्ष (पासा चौपड़) तथा ५. भेरी (वाद्य विशेप धू-धू) ६. गरल (जहर विष) तथा ७. अक्ष बिन्दुत्रिकद्वय (अक्ष पाशा का दो बिन्दुत्रिक)। दुरोदर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. पण (जुआ खेलने की बाजी लगाना) २. द्यूतकृत् (जुआ खेलने वाला) किन्तु ३. द्यूत (जुआ) अर्थ में दुरोदर शब्द नपुंसक है। १. कोट्ट (परकोटा, किला) अर्थ में दुर्ग शब्द नपुंसक माना जाता है किन्तु २. दैत्य (दानव) और ३. गुग्गुलु (गूगल) इन दोनों अर्थों में दुर्ग शब्द पुल्लिग कहा गया है परन्तु ४. दुर्गम अर्थ में दुर्ग शब्द त्रिलिंग है। दुर्गाऽपराजिता-नीली - पार्वती-शारिवासु च। दुर्जातं व्यसनेऽसम्यग्जाते त्रिष्वसमञ्जसे ॥ ८८३ ॥ दुर्दान्त: कलहे वत्सतरेऽशान्ते त्वसौ त्रिषु । मेघाच्छन्न दिने वृष्टौ दुदिनंकवयो विदुः ॥ ८८४ ।। हिन्दी टोका-दुर्गा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. अपराजिता (औषधि विशेष) २. नीली (गड़ी) ३. पार्वती (काली-अम्बा) ४. शारिवा (ग्वार, गुलीसर) । दुर्जात शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. व्यसन (विपत्ति) और २. असम्यग्जात (बुरी तरह उत्पन्न होना) किन्तु ३. असमञ्जस (अनुचित, अयोग्य) अर्थ में दुर्जात शब्द त्रिलिंग ही माना जाता है। दुर्दान्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कलह (झगड़ा)२. वत्सतर (बछड़ा) किन्तु ३. अशान्त अर्थ में दुर्दान्त शब्द त्रिलिंग है। दुर्दिन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मेघाच्छन्न दिन (बादल को घटा से व्याप्त विकराल दिन) और २. वृष्टि (वर्षा) इस प्रकार दुर्दिन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं। मूल : दुर्द्धरः पुंसि नरकप्रभेद ऋषभौषधौ । महिषासुर सेनानी - सूत - भल्लातकेषु च ॥ ८८५ ॥ त्रिषु स्याद् दुःखसन्धार्ये दुर्मुखोऽप्रियवादिनि । दुर्लभोऽतिप्रशस्ते स्यात् प्रिय दुष्प्रापयोस्त्रिषु ॥ ८८६ ।। __ हिन्दी टोका-दुर्द्ध र शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. नरक प्रभेद (नरक विशेष) २. ऋषभौषधि (ऋषभ नाम का औषध विशेष, काकरासिंगी) ३ महिषासुर सेनानी (महिषासुर का मुख्य सैनिक) ४. सूत (पारद, पाड़ा) और ५. भल्लातक (भाला) किन्तु ६. दुःखसन्धार्य (कष्ट से धारण करने योग्य) अर्थ में दुर्द्धर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। दुमुख शब्द का अर्थ१. अप्रियवादी (कटु भाषी) है । दुर्लभ शब्द का अर्थ-१. अतिप्रशस्त (अत्यन्त प्रशंसनीय) है किन्तु २. प्रिय और ३. दुष्प्राप्य इन दोनों अर्थों में दुर्लभ शब्द त्रिलिंग हैं। मूल : दुर्विधो निर्द्धने मूर्खे दुर्जनेऽपि त्रिलिंगकः । दूतो वार्ताहरे, दूती सारिकायां मता स्त्रियोः ॥ ८८७ ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-दुर्विध शब्द | १६१ दौत्यव्यापारपारीण - दौत्यकर्म नियुक्तयोः । दूत्यं दूतस्वभावेऽपि दूतस्यभाव कर्मणोः ॥ ८८८ ॥ हिन्दी टीका-दुविध शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्धन (गरीब) २. मूर्ख, ३ दुर्जन । दूत शब्द का अर्थ-१. वार्ताहर (संवाद पहुँचाने वाला) है। दूती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सारिका (मैना) २. दौत्यव्यापारपारीण (दूतकर्म सम्बन्धी व्यागार पारंगत) ३. दौत्यकर्मनियुक्त (दूत कर्म के लिए नियुक्त) । दूत्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. दूतस्वभाव और २. दूतस्य भाव (दौत्य) तथा ३. कर्म (क्रिया)। दूतस्त्रिपतप्ते स्यादध्वजातश्रमान्विते । दूषिका तूलिकायां च मले स्याल्लोचनस्य च ॥ ८८६ ॥ दुष्यं वस्त्रे दूषणीये पूये वस्त्रगृहेऽपि च । दृक् दर्शने मतौ नेत्रे वीक्षके ज्ञातरि त्रिषु ॥ ८६० ॥ हिन्दी टीका-त्रिलिंग दूत शब्द का अर्थ १. अध्वजातश्रमान्वित-उपतप्त (मार्ग में गमनजन्य परिश्रमयुक्त होने के कारण दुःखी सन्तप्त) होता है। दूषिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अथ माने जाते हैं-१. तूलिका (कंची, ब्रश) और २. लोचन मल (नेत्रमल कांची) । दूष्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वस्त्र २ दुषणीय (दूषण करने योग्य) ३. पूय (अपवित्र वस्तु-पीप, पीज) और ४. वस्त्रगृह (तम्बू, कनात, उलोच) । दृक् शब्द त्रिलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - . दर्शन (देखना) २. मति (बुद्धि) ३. नेत्र (नयन, आँख) ४. वीक्षक (देखने वाला) ५. ज्ञाता (जानकार)। इस तरह हक शब्द के पाँच अर्थ समझना। दृढं लोहे त्रिषु स्थूले प्रगाढे बलशालिनि । कठिनेऽतिशये पुंसि स्यादसौ रूपकान्तरे ॥ ८६१ ॥ दृढमूलो नारिकेले मुजे मन्थानके तृणे । दृतिश्चर्मपुटे मत्स्ये इन्भूः स्त्री-सर्प-चक्रयोः ॥ ८६२ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक दृढ़ शब्द का अर्थ–१. लोह (लोहा) होता है किन्तु त्रिलिंग दृढ़ शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं-२. स्थूल (जाड़ा-मोटा) ३. प्रगाढ़ (सघन) ४. बलशाली (बलवान) ५. कठिन (कठोर) और ६. अतिशय (अत्यन्त) परन्तु ७ रूपकान्तर (रूपक विशेष) अर्थ में दृढ़ शब्द पुल्लिग माना जाता है । दृढ़मूल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. नारिकेल (नारियल) २. मुञ्ज (मंज) ३. मन्थानक (मन्थन दण्ड) और ४. तृणदूर्वा (घास विशेष) को भी दृढ़मूल कहते हैं। दृति शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. चर्मपुट (मशक, चरस) और २. मत्स्य (मछली विशेष)। दृन्भू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अथ माने गये हैं-१. सर्प और २. चक्र (पहिया)।। मूल : पुमानसौ सहस्रांशौ नृपतौ कुलिशेऽन्तके । दृशानः पुंस्युपाध्याये लोकपाले विरोचने ।। ८६३ ।। आचार्ये ब्राह्मणे क्लीवन्त्वसौ ज्योतिषि कीर्तितम् । , दृषद् निष्पेषण शिलापट्ट-पाषाणयोः स्त्रियाम् ॥ ८६४ ॥ मूल : Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - हन्भू शब्द हिन्दी टीका - पुल्लिंग हन्भू शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. सहस्रांशु (सूर्य) २. नृपति (राजा) ३. कुलिश (वज्र ) और ४. अन्तक (यमराज) । दृशान शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं१. उपाध्याय २. लोकपाल ३. विरोचन ( अग्नि और चन्द्रमा) ४. आचार्य ५. ब्राह्मण । किन्तु नपुंसक दृशान शब्द का अर्थ ज्योतिष (प्रकाश) होता है । दृषत् शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. निष्पेषण शिलापट्ट (पीसने का शिलापट्ट ) और २. पाषाण (शिला) । मूल : हिन्दी टीका दृष्टान्त शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. मरण, २. उदाहरण, और ३. शास्त्र । दृष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. विलोचन (आँख) २. बुद्धि ३. ग्रहदृष्टि (सूर्यादि ग्रहों की दृष्टि) और ४. दर्शन । देव शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. ब्राह्मणोपाधि (ब्राह्मण का अटक ) २. त्रिदश (देवता) ३. पारद (पाड़ा ) ४. घन (मेघ) ५. कायस्थ - पद्धति ( कायस्थ का शिष्टाचार) और ६. राजा, किन्तु ७ इन्द्रिय (आँख वगैरह इन्द्रिय) अर्थ में देव शब्द नपुंसक माना जाता है। इस तरह कुल मिलाकर देव शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : दृष्टान्तः पुंसिमरण उदाहरण - शास्त्रयोः । दृष्टिविलोचने बुद्धौ ग्रहदृष्टौ च दर्शने ॥ ८६५ ॥ देवः स्याद् ब्राह्मणौपाधौ त्रिदशे पारदे घने । कायस्थपद्धतौ राज्ञि देवमाख्यातमिन्द्रिये ॥ ६६ ॥ - देवखातं गुहायां स्याद् अकृत्रिम जलाशये । देवालये देवगृहं ज्योतिबिम्बेडर्क चन्द्रयोः ॥ ८६७ ॥ चैत्यवृक्षे देवतरुर्मन्दारे हरिचन्दने । सन्ताने पारिजाते च कल्पवृक्ष महीरुहे ॥ ६८ ॥ हिन्दी टीका - देवखात शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गुहा (गुफा) और २. अकृत्रिम जलाशय (स्वाभाविक जलाशय - तालाब वगैरह ) । देवगृह शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. देवालय (देव मन्दिर) और २. अर्कज्योतिबिम्ब ( सूर्य का ज्योतिबिम्ब) तथा ३. चन्द्रज्योतिबिम्ब (चन्द्र का ज्योतिबिम्ब ) । देवतरु शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. चैत्यवृक्ष (उद्द ेश्य पादप, यज्ञ स्थान वृक्ष) २. मन्दार ( सिंहरहाल फूल का वृक्ष ) ३. हरिचन्दन ( नाग केशर) ४. सन्तान ( कल्पवृक्ष विशेष ) ५. पारिजात ( कल्पवृक्ष विशेष) और ६. कल्पवृक्ष महीरुह ( कल्प वृक्ष) इस तरह देवतरु शब्द के छह अर्थ जानने चाहिये । मूल : देवताडोऽनले राहौ घोषे जीमूतकद्रुमे । देवदेवः पद्मनाभे महादेवे जिनेश्वरे ॥ ८६६ ॥ देवनं कमले द्यूते व्यवहारे गतौ तौ । लीलोद्याने जिगीषायां क्रीडायां स्तुति-शोकयोः ॥ ६०० ॥ हिन्दी टीका - देवताड शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. अनल (अग्नि) २. राहु, ३. घोष (झोंपड़ी) ४. जीमूतकद्र ुम ( देवताड़ वृक्ष विशेष ) । देवदेव शब्द पुल्लिंग है और उसके Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - देवन शब्द | १६३ तीन अर्थ होते हैं -- १. पद्मनाभ (विष्णु) २. महादेव (शंकर) और ३. जिनेश्वर ( भगवान तीर्थङ्कर ) । देवन शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ होते हैं - १. कमल, २. द्यूत (जुआ), ३. व्यवहार, ४. गति, ५. द्युति (कान्ति) ६. लीलोद्यान (क्रीड़ा का बगीचा) ७. जिगीषा ( जीतने की इच्छा ) ८. फ्रीड़ा, ६. स्तुति और १०. शोक, इस प्रकार देवन शब्द के दस अर्थ जानना । मूल : कान्तौविलापे स्यात् क्लीवं देवनः पाशके पुमान् । देवना वरिवस्यायां क्रीडायामपि कीर्तिता ॥ १०१ ॥ देवयुर्धार्मिके लोकयातृके त्रिदशे स्मृतः । देवलो नारदे देवाजीवे मुन्यन्तरे पुमान् ॥ ६०२ ॥ शब्द के दो अर्थ हिन्दी टीका - नपुंसक देवन शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. कान्ति, और २. विलाप किन्तु पुल्लिंग देवन शब्द का अर्थ पाशक (पाशा चौपड़) होता है । स्त्रीलिंग देवना माने जाते हैं - १. वरिवस्या (पूजा) और २. क्रीड़ा ( खेलना ) । देवयु शब्द पुल्लिंग है अर्थ माने गये हैं—१. धार्मिक (धर्मात्मा ) २. लोकयातृक और ३. त्रिदश (देवता) । है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. नारद (नारद ऋषि) २. देवाजीव (पुजारी) ३. मुन्यन्तर ( मुनि विशेष ) । और उसके तीन देवल शब्द पुल्लिंग मूल : देवोपजीविजीवे च धार्मिके देवरे स्मृतः । देववृक्षस्तु मन्दारे सप्तपर्णे च गुग्गुलौ ॥ ६०३ ॥ हिन्दी टीका — देवल शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. देवोपजीविजीव (देव का उपजीवी जीव (पुजारी वगैरह ) और २. धार्मिक (धर्मात्मा) तथा ३. देवर ( पति का छोटा भाई ) । देववृक्ष शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. मन्दार ( फूल विशेष ) २. सप्तपर्ण ( वृक्ष विशेष) और ३. गुग्गुलु ( गुग्गल ) । मूल : अथ देवश्रुतः शास्त्रे ईश्वरे नारदेमुनौ । देवी कृताभिषेकायां दुर्गायां देवयोषिति ॥ ६०४ ॥ स्पृक्कायां ब्राह्मणी नामोपपदे मुस्तकान्तरे । बन्ध्या कर्कोटकी - मूर्वाऽऽदित्यभक्ताऽतसीषु च ॥ ६०५ ॥ हिन्दी टीका - देवश्रुत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं -- १. शास्त्र, २. ईश्वर (भगवान) ३. नारद मुनि । देवी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ माने जाते हैं - १. कृताभिषेका (पट्टमहिषी) २. दुर्गा, ३. देवयोषित (देवांगना ) ४. स्पृक्का (शाक विशेष ) ५. ब्राह्मणी नामोपपद (ब्राह्मणी के लिए उपनाम के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला ) ६. मुस्तकान्तर (मोथा) ७. बन्ध्या ८ कर्कोटकी ( ककुरी, कांकोर स्त्री जाति) ६. मूर्वा ( भी ) १०. आदित्य भक्ता और ११. अतसी (अलसी ) | मूल : शालपर्ण्य हरीतक्यां लिङ्गिनी - पाठयोरपि । महाद्रोणी मृगेवरु शारिवा पक्षिजातिषु ॥ ६०६ ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ | नानार्थोदयमागर कोष : हिन्दी टीका सहित-देवी शब्द दैत्या चण्डौषधौ मद्ये मुरायां दैत्ययोषिति । दोलो हिन्दोलके प्रेङ्खा-नीलिन्योरपि कीर्तिता ॥ ६०७ ॥ हिन्दी टोका-देवी शब्द के और भी आठ अर्थ होते हैं-१. शालपर्णी (वृक्ष विशेष गम्भार) २. हरीतकी, ३. लिङ्गिनी (योगिनी) ४. पाठ, ५. महाद्रोणी (नील, गरी) ६. मृगेरु (मृगनाभि, कस्तूरी) ७. शारिवा (ग्वार फली) और ८. पक्षिजाति (पक्षी जाति विशेष) । इन आठों को देवी कहते हैं। दैत्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. चण्डौषधि (चोरा नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) २. मद्य (शराब) ३. मुरा (ममोरफली मुरा नाम का सुगन्ध द्रव्य विशेष) और ४. दैत्ययोषित (दैत्य की स्त्री) । दोला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. हिन्दोलक (झूला) २. प्रेङ्खा (हिन्दोला, डोली) और ३. नीलिनी (नील, गरी)। मूल: दोषो दूषण-गोवत्स-कल्मलेषु कफादिके । दोषज्ञ: पण्डिते दोषज्ञानयुक्त चिकित्सके ।। ६०८ ।। दोषा स्त्रियां भुजे रात्रौ रात्रौ रात्रिमुखेऽव्ययम् । दोषांकरश्चन्द्रमसि दोषाणामाकरेऽप्यसौ ॥ ६०६ ॥ हिन्दी टीका-दोष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. दूषण, २. गोवत्स (बछड़ा) ३. कल्मल (पाप) और ४. कफादिक (कफ पित्त वात)। दोषज्ञ शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पण्डित (विद्वान्) २. दोषज्ञानयुक्त (दोष को जानने वाला) और ३. चिकित्सक (वैद्य, डाक्टर) । दोषा स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. भुज (बाहु) २. रात्रि (रात) ३. राधि री रात) किन्तु ४. रात्रिमुख (सायंकाल) अर्थ में दोषा शब्द अव्यय माना जाता हैं। दोषाकर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. चन्द्रमस् (चन्द्रमा) और २. दोषाणाम् आकर (दोषों का भण्डार खजाना)। दोस्थः स्यात् सेवके सेवा क्रीड़यो: क्रीड़के पुमान् । दो:स्थिते तु त्रिलिंगोऽसौ दोहदो गर्भलक्षणे ॥ १० ॥ हिन्दी टीका - दोस्थ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सेवक, २. सेवा, ३. क्रोड़ा, ४. क्रीड़क (खेलने वाला) किन्तु ५. दोःस्थित (बाहुस्थित) अर्थ में दोस्थ शब्द त्रिलिंग माना जाता है। दोहद शब्द का अर्थ–१. गर्भ लक्षण (गर्भ का चिन्ह) होता है। वाञ्छायां गर्भिणीच्छायां धुस्वर्गे गगने दिने । द्युतिः प्रभायां शोभायां रश्मौ द्यौ फ्रेमनाकयोः । द्रविणं काञ्चने वित्त बले द्युम्नं धने बले ॥ ६११ ॥ हिन्दी टीका-दोहद शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. वाञ्छा (इच्छा) और २. गर्भिणीच्छा (गर्भिणी-गर्भवती स्त्री की इच्छा)। द्यु शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. स्वर्ग, २. गगन (आकाश) और ३. दिन । द्युति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. प्रभा, २. शोभा, और ३. रश्मि (किरण) । द्यौ शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. व्योम (आकाश) और २. नाक मूल : Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - द्रावक शब्द | १६५ (स्वर्ग) । द्रविण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. काञ्चन (सोना) २. वित्त (धन) और ३. बल । द्युम्न शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. धन और २. बल । द्रावको हृदयग्राहि - षिङ्गयोर्द्रवकारके । रसभेदे विदग्धे च मोषके प्रस्तरान्तरे मूल : ।। ६१२॥ क्लीवन्तु सिवयक - प्लीहरोग भेषजभेदयोः । द्रुघणः द्रुहिणे भूमिचम्पके च परश्वधे ।। ६१३ ॥ हिन्दी टीका - द्रावक शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. हृदयग्राही ( हृदय प्रिय) २. षिङ्ग (नपुंसक) ३. द्रवकारक ( पिघलने वाला ) ४. रसभेद ( रसविशेष) ५. विदग्ध (चतुर) ६ मोषक (चुराने वाला) और ७. प्रस्तरान्तर (पत्थर विशेष ) नपुंसक द्रावक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सिक्यक (शीक छींका, जिस पर दही दूध वगैरह का बर्तन रखा जाता है) और २. प्लीहरोग भेषज भेद (प्लीह-यकृत रोग का औषधि विशेष ) । द्र ुघण शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते- १. द्रुहिण (ब्रह्म) और २. भूमिचम्पक (स्थल चम्पा का फूल ) और ३. परश्वध ( फरशा ) । मूल : मुद्गरेऽस्त्रविशेषेऽथ द्रुणो वृश्चिक भृङ्गयोः । - द्रुतं जातद्रवीभाव घृत स्वर्णादि शीघ्रयोः ॥ ६१४ ॥ विद्राण शीघ्रलययोद्रुमो वृक्ष कुबेरयोः । द्रोणोऽस्त्रियामाढकेऽपि स्यात् आढकचतुष्टये ॥ ६१५ ॥ हिन्दी टीका - द्र ुघण शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुद्गर (गदा) और २. अस्त्र विशेष । द्र ुण शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. वृश्चिक (बिच्छू) और २. भृ ंग (भ्रमर) । द्र ुत शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. जातद्रवी भाव घृत स्वर्णादि (पिघला हुआ घृत और सोना वगैरह ) और २. शीघ्र द्रुत शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. विद्राण ( पलायन -- भाग जाना) और २. शीघ्रलय (जल्दी विलीन होना) । द्रुम शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. वृक्ष और २ कुबेर । द्रोण शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं - १. आढक (ढाई सेर) और २. आढकचतुष्टय (दस सेर) इस प्रकार द्रोण शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : द्रोणाचार्ये दग्धकाके वृश्चिके मेघनायके । द्रुमान्तरे ॥ ६१६ ॥ जलाशय - श्वेतवर्ण - क्षुद्रपुष्प हिन्दी टीका - द्रोण शब्द के और भी स्मात अर्थ होते हैं - १. द्रोणाचार्य, २ . दग्धकाक ( काक विशेष ) ३. वृश्चिक (बिच्छू ) ४. मेघनायक (इन्द्र) ५. जलाशय (तालाब) ६. श्वेत वर्ण (शुक्ल रूप) और ७. क्षुद्रपुष्पद्र ुमान्तर (छोटा फूल वाला वृक्ष विशेष ) । इस तरह द्रोण शब्द के कुल मिलाकर नौ अर्थ होते हैं । मूल : द्रोणी काष्ठाम्बुवाहिन्यां गवादन्यां सरिदुभिदि । शैलसन्ध शैलभेदे द्विसूर्पपरिमाणके ।। ६१७ ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - द्रोणी शब्द नीली वृक्षे देशभेद-द्रोणी लवणयोरपि । इन्द्रचिर्भ टिकायां च द्रोहाटो मृगलुब्धके ॥ ६१८ ॥ हिन्दी टीका - द्रोणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दस अर्थ माने गये हैं - १. काष्ठाम्बुवाहिनी ( डेंडी छोटी नौका) २. गवादिनी । ३ सरिद्भिद् ( नदी विशेष ) ४. शैलभेद (पर्वत विशेष ) ५. शैलसन्धि (पहाड़ का सन्धि जोड़ स्थान ) ६. द्विसूर्पपरिमाणक ( दो सूप प्रमाण पाँच सेर) ७ नीली वृक्ष (गड़ी) . देशभेद (देश विशेष) ६. द्रोणीलवण (नमक विशेष, मीठु विशेष) और १० इन्द्रचिर्भटिका । द्रोहाट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. मृगलुब्धक ( मृग का शिकारी - व्याध ) है । इस प्रकार द्रोणी शब्द के दस अर्थ और द्रोहाट का एक एक जानना | 5. मूल : वैडालव्रतिके गाथाप्रभेदेऽपि मतः पुमान् । द्वन्द्व रहस्ये कलहे युग्मे मिथुन दुर्गयोः ॥ ६१६॥ पुमान् समास भेदे च रोगभेदेऽपि कीर्तितः । द्वारुपाये द्वारदेशे द्वापरः संशये युगे ॥ २० ॥ - हिन्दी टीका - पुल्लिंग द्रोहाट शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. वैडालव्रतिक ( पाखण्डी, ढोंगी वञ्चक) और २. गाथाप्रभेद ( गाथा विशेष ) । नपुंसक द्वन्द्व शब्द के पाँच अर्थ होते हैं१. रहस्य (एकान्त) २. कलह (झगड़ा) ३. युग्म (जोड़ा ) ४. मिथुन (परस्पर) और ५. दुर्ग ( किला, परकोटा) किन्तु ६. समासभेद (समासविशेष, द्वन्द्व समास) और 9 रोगभेद ( रोगविशेष द्वन्द्व नाम का ज्वर विशेष) इन दोनों अर्थों में द्वन्द्व शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । द्वार् शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. उपाय और २. द्वारदेश ( घर का द्वार -- दरवाजा ) । द्वापर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. संशय और २. युग ( द्वापर नाम का युगविशेष) । मूल : द्वारयन्त्रं तालकेऽपि द्विकः स्यात् काक कोकयोः । द्विजो विप्रेऽण्डजे दन्ते द्विजते तुम्बुरुद्रुमे ।। ६२१ ॥ द्विजन्मा ब्राह्मणे दन्ते खगे क्षत्रिय-वैश्ययोः । द्विजराजस्तुकर्पूरे गरुडेऽनन्त चन्द्रयोः ।। ६२२ ॥ हिन्दी टीका -द्वार यन्त्र शब्द का अर्थ - तालक (ताला) होता है । द्विक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. काक ( कौवा) और २. कोक (चक्रवाक पक्षी विशेष, जोकि सूर्यप्रिय होता है) । द्विज शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- १. विप्र (ब्राह्मण) २. अण्डज (अण्डा से उत्पन्न होने वाला पक्षी तथा सर्प वगैरह सरीसृप ) ३. दन्त (दाँत) ४. द्विजत (दो बार उत्पन्न होने वाला -- अण्डज पक्षी सर्प, दाँत, ब्राह्मण वगैरह ) और ५. तुम्बुरुद्रम (तुम्बुरु नाम का वृक्ष विशेष ) । द्विजन्मा शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके भी पाँच अर्थ माने गये हैं- १. ब्राह्मण, २. दन्त (दाँत) ३. खग (पक्षी) ४. क्षत्रिय (राजपूत) और 2. वैश्य ( बनिया गाँधी ) । द्विजराज शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. कर्पूर (कपूर) २. गरुड (पक्षी विशेष विष्णु भगवान का वाहन) और ३ अनन्त ( विष्णु वगैरह ) तथा ४. चन्द्र (चन्द्रमा) | मूल : द्विजिह्वः सूचके सर्पे खले दुःसाध्य चोरयोः । द्विजाति ब्राह्मणे वैश्ये क्षत्रियाऽण्डजयो पुमान् ॥ ६२३ ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - द्विजिह्व शब्द | १६७ हिन्दी टीका - द्विजिह्न शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. सूचक (चुगलखोर चारिया) २. सर्प, ३ खल, ४. दुस्साध्य ( कष्टसाध्य ) ५. चोर । द्विजाति शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. ब्राह्मण, २. वैश्य, ३. क्षत्रिय, ४. अण्डज ( पक्षी, सर्प वगैरह ) इस प्रकार द्विजाति शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : द्वितीया सहधमण्यां तिथिभेदे पुमान् सुते । द्विपः स्त्रीपुंसयोर्नागे स्यात्पुमान् नागकेशरे ।। ६२४ ॥ द्विपदस्त्रिदशे मर्त्ये राक्षसे च विहंगमे । द्वीपोऽस्त्रियामन्तरीपे जम्बुद्वीपादिके स्मृतः ।। ६२५ ।। हिन्दी टीका - द्वितीया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. सहधर्मिणी (धर्मपत्नी) और २. तिथिभेद (तिथिविशेष द्वितीय तिथि दूज ) किन्तु ३. सुत (पुत्र) अर्थ में द्वितीय शब्द पुल्लिंग माना जाता है। पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग द्विप शब्द का अर्थ - १. नाग (हाथी) होता है एवं २. नागी (हथिनी ) भी अर्थ है | किन्तु ३. नागकेशर (केशर चन्दन ) अर्थ में द्विप शब्द केवल पुल्लिंग ही माना जाता है । द्विपद शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. त्रिदश (देवता) २. मर्त्य (मनुष्य) ३. राक्षस और ४. विहंगम (पक्षी) । द्वीप शब्द १. अन्तरीप ( टापू ) अर्थ में पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है और द्वीप का दूसरा अर्थ - जम्बूद्वीपादिक ( जम्बूद्वीप एशिया, आदि शब्द से यूरोप अफ्रीका वगैरह कुल सात द्वीप लिये जाते हैं । इस तरह द्वीप शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : नद्यां भूमौ द्वीपवती द्वीपी व्याघ्र च चित्रके । द्वैमातुरो गणेशे स्यात् जरासन्धे द्विमातृजे ॥। ६२६ ।। धट: तुलापरीक्षायां तुलायां च तुलाधरे । घटी स्त्री चीरवस्त्रे स्यात् कौपीनेऽपि प्रयुज्यते ।। ६२७ ।। हिन्दी टीका -- द्वीपवती शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. नदी और २. भूमि । द्वीपी शब्द भी नकारान्त पुल्लिंग माना जाता है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-- १. व्याघ्र (बाघ) और २. चित्रक ( चीता - व्याघ्र विशेष ) । द्वैमातुर शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. गणेश, २. जरासन्ध और ३. द्विमातृज (दो माताओं से उत्पन्न होने वाला जिसकी एक माता जन्मदात्री और दूसरी माता प्रतिपालन कर्त्री होती है उसे द्विमातृज कहते हैं जैसे— गणपति वगैरह ) । धट शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. तुला परीक्षा (तराजू पर चढ़ाकर परीक्षण करना) २. तुला (तराजू) और ३. तुलाधर ( तुला राशि ) । धटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. चीरवस्त्र ( अञ्चल वस्त्र ) और २. कौपीन ( भगवा, धरिया) । मूल : धनं वित्ते स्नेहपात्र - जीवनोपाय गोधने । धनञ्जयोऽर्जुने वह्नौ चित्रके देह मारुते ॥ १२८ ॥ नाग भेदेऽर्जुनतरौ धनदो गुह्यकेश्वरे । हिज्जले त्रिषु वित्तादि प्रदातरि प्रकीर्तितः ॥ २६ ॥ हिन्दी टीका- धन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. वित्त (सम्पत्ति ) २. स्नेह Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धन शब्द पात्र (तैल भाजन-तेल का बर्तन विशेष) और २. जीवन-उपाय (जीवन निर्वाह का साधन) तथा ४. गोधन । धनञ्जय शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. अर्जुन (तृतीय पाण्डव) २. वन्हि (अग्निआग) ३. चित्रक (चीता) और ४. देहमारुत (शरीर के अन्दर रहने वाला धनञ्जय नाम का वायु विशेष) तथा ५ नागभेद (नागविशेष, सर्पविशेष) एवं ६. अर्जुनतरु (धव वृक्ष--पिप्पल का वृक्ष)। धनद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं–१. गुह्यकेश्वर (कुबेर) और २. हिज्जल (जलबेंत-स्थलबेंत) किन्तु ३. वित्तादि प्रदाता (धन वगैरह का दाता) अर्थ में धनद शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी धनदाता हो सकता है। धनाध्यक्षः किन्नरेश - धनाधिकृतयोरपि । धनिकः पुंसि धन्याके धवे धनवति त्रिषु ॥ ६३० ॥ साधौ च धनिका साधु स्त्रियां तरुण योषिति । वध्वां प्रियंगु वृक्षेऽथ धनुराशौ च कामु के ॥ ६३१ ।। हिन्दो टोका–धनाध्यक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --किन्नरेश (गन्धर्व विशेष का मालिक कुवेर) और २. धनाधिकृत (धन का अधिकारी) । धनिक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. धन्याक (धनिया, धाना) और २. धव (पिप्पल का वृक्ष या वट का वृक्ष अथवा पाकर का वृक्ष) किन्तु ३. धनवान् (धनी) अर्थ में धनिक शब्द त्रिलिंग माना गया है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी धनिक हो सकता है और ४ साधु (अच्छा) अर्थ में भी धनिक शब्द त्रिलिंग ही माना जाता है, क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण कोई भी साधु हो सकता है। धनिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. साधू स्त्री (अच्छी औरत २. तरुण योषित (युवती स्त्री) ३. वधू (नवोढ़ा नवयुवती) और ४. प्रियंगुवृक्ष (ककुनी-टाँगुन-फली वृक्ष विशेष) । धनुष शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. राशि (धनु राशि) और २. कामुक (धनुष)। मूल: भल्लातके धनुर्वक्षो धन्वनेऽश्वत्थ-वंशयोः । धन्वन्तरिदिवोदासे देववैद्ये कवौ स्मृतः ।। ६३२ ॥ धन्वी दुरालभा - पार्थ - बकुलेष्वर्जुनद्रुमे । क्र रे भस्त्राध्मापके च त्रिषु स्याद् धमनो नले ॥ ६३३ ॥ हिन्दी टीका–धनुष शब्द का और भी एक अर्थ माना जाता है-१. भल्लातक (भाला)। धनुर्वृक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. धन्वा (मरुस्थल, मरुभूमि, रेगिस्तान) २ अश्वत्थ (पिप्पल का वृक्ष) और ३. वंश (बांस)। धन्वन्तरि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. दिवोदास (दिवोदास नाम के प्रसिद्ध वैद्य विशेष) २. देववैद्य (धन्वन्तरि वैद्य देवताओं के वैद्य माने जाते हैं) और ३. कवि भी धन्वन्तरि शब्द का अर्थ माना जाता है। धन्वो शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है और उसके छह अर्थ होते हैं—१. दुरालभा (जवासा-यवासा) २. पार्थ (अर्जुन) ३. वकुल (मोलशरी, भालसरी) और ४. अर्जुनद्र म (अर्जुन कौपीतक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) तथा ५. क्रूर (घातक) एवं ६. भस्त्राध्मापक (भस्त्रा-धौंकनी-भाथी को फूंकने वाला) । धमन शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थनल (नली-नलिका) होता है। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धमनी शब्द | १६६ मूल: धमनी कन्धरा-नाडी - हरिद्रा - नलिकासु च । गुहा हट्टविलासिन्यो धरः कासितूलके ॥ ६३४ ॥ वसुभेदे कूर्मराजे शैलेऽथ धरणो रवौ। सेतावद्रिपतौ धान्ये लोक वक्षोजयोः पुमान् ॥ ६३५ ॥ हिन्दी टीका-धमनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं—१. कन्धरा (कन्धा, गला) २. नाडी (नस) ३. हरिद्रा (हलदी) ४. नलिका (नली) ५. गुहा (पिठिवन, पिठवनी) ६. हट्ट (हाट) ७. विलासिनी (विलास करने वाली स्त्री) । धर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. कासितूलक (रुई कपास का गद्दा) होता है । धर शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. वसुभेद (वसु विशेष, आठ वसु में एक वसु) और २. कूर्मराज (कच्छप) तथा ३. शैल (पर्वत)। धरण शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. रवि (सूर्य) २. सेतु (बाँध) ३. अद्रिपति (पहाड़ का पति राजा) ४. धान्य, ५. लोक और ६. वक्षोज (स्तन)। मूल : क्लीवन्तु धारणे माने दशमांशे पलस्य च । धरणी पृथिवी - नाडी - कन्दभेदेषुशाल्मलौ ॥ ६३६ ॥ नारायणे महीधे च कच्छपे धरणीधरः।। धरा गर्भाशये भूमौ धमनी - मेदसोरपि ॥ ६३७ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक धारण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. धारण (धारण करना) २. मान (परिमाणविशेष) और ३. पलस्य दशमांश (पल का दशवां हिस्सा-भाग) । धरणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. पृथिवी, २. नाडी (नस) ३. कन्दभेद (कन्द विशेष) और ४. शाल्मलि (शेमर का वृक्ष) तथा ५. नारायण और ६. महीध्र (पर्वत)। धरणीधर शब्द का अर्थ१. कच्छप (काचवा, काछु) है । धरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. गर्भाशय, २. भूमि, ३. धमनी (नस) ४. मेदस् (मेद स्मज्जा)। मूल : महादानविशेषेऽथ विष्णौ शैले धराधरः । धरुणो ब्रह्मणि स्वर्गे सम्मते सलिले पुमान् ॥ ६३८ ॥ धर्तव्यं धारणीये स्यात् स्थातव्य-पतनीययोः । धर्मोऽस्त्रीस्यादहिंसायामाचारे न्याय पुण्ययोः ॥ ६३६ ॥ हिन्दी टोका-धरा शब्द का और भी एक अर्थ होता है-१. महादान विशेष (तुलादान वगैरह) । धराधर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१ विष्णु (विष्णु भगवान्) और २. शैल (पर्वत) । धरुण शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. ब्रह्म (परमात्मा परमेश्वर परब्रह्म) २. स्वर्ग ३. सम्मत और ४. सलिल (जल)। धर्तव्य शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१ धारणीय (धारण करने योग्य) २. स्थातव्य (ठहरने योग्य) और ३. पतनीय (पतन योग्य) । धर्म शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. अहिंसा (हिंसा नहीं करना) २. आचार (सदाचार) ३. न्याय (इन्साफ) और ४ पुण्य (धर्म) इस प्रकार धर्म शब्द के चार अर्थ जानना। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -- धर्म शब्द मूल : स्वभावोपमयोः सप्ततन्तूपनिषदोरपि । दानादिकेत्वसौ क्लीवं पुमान् स्याद् भगवज्जिने ॥ ६४० ॥ कृतान्ते सोमपे चापे सत्संगे देवतान्तरे । धर्मराजो जिने दण्डधरे भूपे युधिष्ठिरे ॥ ६४१ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक धर्म शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. स्वभाव ( नेचर - प्रकृति आदत वगैरह ) २. उपमा ( सादृश्य) ३. सप्ततन्तु ( यज्ञ - क्रतु) और ४. उपनिषद् ( वेदान्त, ब्रह्मविद्या) तथा ५. दानादिक (दान पूजन वगैरह ) किन्तु ६. भगवज्जिन (भगवान् जिन ) अर्थ में धर्म शब्द पुल्लिंग माना जाता । धर्मराज शब्द पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं -- १. कृतान्त (यमराज) २. सोमप (सोमरस का पान करना वाला) ३. चाप (धनुष ) ४. सत्संग, ५ देवतान्तर ( देवता विशेष ) ६. जिन (भगवान् जिनेश्वर तीर्थङ्कर) और ७. दण्डधर तथा ८. भूप और ६ युधिष्ठिर (युधिष्ठिर धर्म राज ) । मूल : मरीचे धर्मपुर्यां च धर्मपतनमीरितम् । धर्माध्यक्षः प्राड्विवाके कुल - शील- गुणान्विते ॥ ९४२ ॥ धर्षोऽमर्षे प्रगल्भत्वे हिंसायां शक्तिबन्धने । धर्षणि त्यां धर्षणं रति रीढयोः ॥ ६४३ ।। - हिन्दी टीका - धर्मपतन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. मरीच और २. धर्मपुरी । धर्माध्यक्ष शव्द के भी दो अर्थ होते हैं - ३ - प्राडविवाक (वकील) और २. कुल शील गुणान्वित ( सत्कुलीन) । धर्षं शब्द के चार अर्थ हैं - १. अमर्ष ( सहन नहीं करना) २. प्रगल्भत्व ( ढिठाई, अहिंसा) और ४. शक्तिबन्धन । धर्षणि शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. वृषल ( शूद्र) और २. असती (व्यभिचारिणी स्त्री) । धर्षंण शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. रति ( रति क्रीडा ) और २. रीढ़ (पोठ के मध्य की हड्डी) इस तरह रति शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये । मूल : धवः पत्यौ नरे धूर्ते स्वनामख्यात पादपे । धवलश्चीनकर्पूरे वृषश्रेष्ठे द्रुमे ॥ ४४ ॥ शुक्ले रागविशेषेऽसौ त्रिषु सुन्दर - गौरयोः । क्लीवं स्याच्छ्वेतमरिचे धाः स्याद् ब्रह्मणि धारके ॥१४५॥ हिन्दी टीका - धव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. पति (स्वामी) २. नर (मनुष्य) ३. धूर्त (वञ्चक) और ४. स्वन ( मख्यातपादप (धव नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष पिप्पल) । धवल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. चीनकपूर (कर्पूर विशेष अत्यन्त स्वच्छ कपूर) २. वृषश्रेष्ठ (श्रेष्ठ बैल - वसहा -- वरद) ३. धवद्र ुम (पिप्पल वृक्ष ) ४. शुक्ल (श्वेत सफेद) एवं ५. राग विशेष (पाउडर) किन्तु ६. सुन्दर और ७. गौर इन दोनों अर्थों में धवल शब्द नपुंसक माना जाता है परन्तु ८. श्वेतमरीच (सफेद मरीच) अर्थ में धबल शब्द नपुंसक माना गया है। धा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. ब्रह्म (परमेश्वर) और २. धारक ( धारण करने वाला) । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धाता शब्द | १७१ मूल : धाता प्रजापतौ विष्णौ मरुद्भेदे भृगोः सुते । त्रिष्वसौ धारके रक्षाकरे सदुभिः प्रयुज्यते ।। ६४६ ॥ धातु "भू" प्रभूतौ ग्रावविकृिताविन्द्रियेऽस्थनि । श्लेष्मादौ रसरक्तादौ शब्दादौ काञ्चनादिके ॥ ६४७ ।। हिन्दी टीका-पुल्लिग धाता शब्द के चार अर्थ माने गये हैं –१. प्रजापति (ब्रह्मा) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. मरुद्भेद (मरुद् विशेष) और ४. भृगुसुत (भार्गव शुक्राचार्य) किन्तु ५. धारक (धारण करने वाला) और ६. रक्षाकर (रक्षा करने वाला) अर्थ में यह त्रिलिंग है। धातु शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं-१. भू प्रभृति (पृथ्वी वगैरह)२. ग्रावविकृति (पत्थर का विकार-इस्पात लोहा वगैरह) ३. इन्द्रिय (चक्ष-श्रोत्र वगैरह इन्द्रिय) ४. अस्थि (हड्डी) ५. श्लेष्मादि (कफ पित्त वाय) ६. रसरक्तादि (रस रक्त मज्जा वगैरह) ७. शब्दादि (शब्द रूप रस गन्ध स्पर्श) और ८. काञ्चनादिक (सोना, चांदी, पित्तल, कांसा वगैरह)। मूल : महाभूतेषु लोहेषु धात्री स्यादुपमातरि । भूमावामलकी वृक्षे जनन्यामपि कीर्तिता ॥ ६४८ ॥ धाना भृष्टयवेभिन्ने धन्याकेऽभिनवेऽङ कुरे। चूर्ण सक्तुष्वथो धानी स्त्र्याधारे पीलुपादपे ॥ ६४६ ॥ हिन्दी टीका-धातु शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. महाभूत (पृथ्वी-जल-तेज-वायूआकाश) और २. लोह (लोहा)। धात्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. उपमाता (धाय) २. भूमि, ३. आमलकीवृक्ष (आँवला का वृक्ष) और ४. जननी (माता)। धाना शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भृष्टयव (भुना हुआ जौ, लावा, ममरा वगैरह) २. भिन्न, ३. धन्याक (धाना-धनियाँ) ४. अभिनव (नूतन-नया) ५. अंकुर तथा ६. चूर्णसक्तु (सतुआ)। धानी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. आधार और २. पीलुपादप (पीलु नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) । मूल : धान्यं धनीयके व्रीहौ तिलमाने कुटन्नठे। धाम स्थाने गृहे देहे प्रभावे रश्मि जन्मनोः ॥ ६५० ॥ धामार्गवस्त्वपामार्गे घोषके पीतघोषके। धारो जलधरासारवर्षणे प्रस्तरान्तरे ॥ ६५१ ॥ हिन्दी टीका-धान्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. धनीयक जिन चाहने वाला) २. व्रीहि, ३. तिलमान (चतुस्तिल परिमाण चार तिल भर) और ४. कुटन्नट (कैवर्तीमस्तक -नागरमोथा-जलमोथा) । धाम शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. स्थान २. गृह. ३. देह. ४ प्रभाव (वर्चस्व) ५. रश्मि (किरण) और ६. जन्म (उत्पत्ति)। धामार्गव पट है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अपामार्ग (चिरचीरी) २. घोषक (सफेद फूल वालो तरोई-शिमनी ३. पीतघोषक (पीले फूल वाली तरोई-झिमनी) । धार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं। १. जलधरासारवर्षण (मेघ की मूसलाधार वर्षा) और २. प्रस्तरान्तर (पत्थर विशेष पारस पत्थर वगैरक्षा इस प्रकार धार शब्द के दो अर्थ जानना। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १७२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धार शब्द मूल : ऋणे प्रान्ते च गम्भीरे स्यादथो धारणा मतौ। मर्यादायां च योगांगे ब्रह्मणि स्वान्त धारणे ॥ ६५२ ॥ धारणी नाडिकायां च श्रेणी-बुद्धोक्तमन्त्रयोः । धारा सैन्याग्रिमस्कन्धे समूह-रथ चक्रयोः ॥ ६५३ ॥ हिन्दी टीका-धार शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ऋण, २. प्रान्त और ३. गम्भीर । धारणा शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. मति (बुद्धि) २. मर्यादा (सीमा अवधि) ३. योगाङ्ग (यम नियमादि आठ योगों का पांचवां धारणा नाम का अङ्ग) ४. ब्रह्म (परमात्मा) और ५. स्वान्तधारण (अपने हृदय में धारण करना) । धारणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. नाडिका (नस) २. श्रेणी (पंक्ति) और ३. बुद्धोक्तमन्त्र (भगवान बुद्ध से उक्त मन्त्र विशेष) । धारा शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं—१. सैन्य अग्रिम स्कन्ध (सेनाओं का अगला स्कन्ध) २. समूह (समुदाय) और ३. रथचक्र (गाड़ी का पहिया) । इस तरह धारा शब्द के तीन अर्थ जानना। सन्ततौ सदृशे कीर्ती जीमूतासारवर्षणे । • द्रवप्रपाते उत्कर्ष - खड्गादिनिशिताग्रयोः ।। ६५४ ।। अतिवृष्टौं घटच्छिद्रे वाजिनां पञ्चधागतौं । धारांकुरः शोकरे स्यान्नाशीरे च घनोपले ॥ ६५५ ॥ हिन्दी टोका-धारा शब्द के और भी दस अर्थ माने जाते हैं-१. सन्तति (सन्तान) २. सदृश (सरखा) ३. कीर्ति ४. जीमूतासारवर्षण (मेघ का मूसलाधार वर्षण) ५. द्रवप्रपात (झग्ना) ६ उत्कर्ष उन्नति) ७. खड्गादिनिशिताग्र (तलवार की तीखी धार) ८. अतिवृष्टि (अत्यन्त वर्षा) ६. घटच्छिद्र (घड़ा का छेद-सूगख) तथा १०. वाजिनां पञ्चधागति (घोड़े की पांच प्रकार की चाल)। धारांकुर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. शीकर (बूंद) २. नाशीर और ३ घनोपल (मेघ का ओला)। मूल : धाराटो घोटके मेघे चातके मत्तकुञ्जरे। धाराधरो घने खड्गे धाराङ्गस्तीर्थ-खड्गयोः ॥ ६५६ ॥ हिन्दी टीका-धाराट शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. घोटक (घोड़ा) २ मेघ (बादल) ३ चातक ४. मत्तकुञ्जर (मतवाला हाथी)। धाराधर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. धन (मेघ) और २. खड्ग (तलवार) । धाराङ्ग शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. तीर्थ और २. खड्ग (तलवार) । इस तरह धाराङ्ग शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : धारिणी धरणौ देवस्त्रीगणे शाल्मलतरौं । धार्तराष्ट्रो हंस - सर्पभेदे दुर्योधनादिके ॥ ६५७ ॥ धावनं गमने शुद्धौ पृश्निपण्यां तु धावनी। धातकी-कंटकार्योश्च धावितो माजिते गते ॥ ६५८ ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धारिणी शब्द | १७३ हिन्दी टीका–धारिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. धरणि (पृथिवी) २. देवस्त्रीगण (गन्धर्वाङ्गना विशेष) और ३. शाल्मलीतरु (शेमर का वृक्ष)। धार्तराष्ट्र शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हंस, २. सर्पभेद (सर्पविशेष) और ३. दुर्योधनादिक (दुर्योधन वगैरह) । धावन शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं—१. गमन, २. शुद्धि और ३. पृश्निपर्णी (पिठिवन-पिठवनी, लता विशेष)। धावनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. धातकी (धव नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. कण्टकारी (रेंगणी कटैया)। धावित शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. माजित (शुद्ध किया हुआ) और २. गत (गया हुआ) । मूल: धिषणो विबुधाचार्ये धिषणा तु मतो मता। धिष्ण्यं शक्तौ गृहे स्थाने नक्षत्रे जातवेदसि ॥ ६५६ ॥ धीमान् बृहस्पतौ प्राज्ञ बुद्धिमत्यां तु धीमती। धीरस्त्रिषु बुधे मन्दे विनीते बलशालिनी ।। ६६० ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग धिषण शब्द का अर्थ-१. विबुधाचार्य (बृहस्पति) होता है । और स्त्रीलिंग धिषणा शब्द का अर्थ-१. मति (बुद्धि) होता है । धिष्ण्य शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. शक्ति (सामर्थ्य) २. गृह (घर-मकान) ३. स्थान (जगह) ४. नक्षत्र (अश्विनी भरणी वगैरह) और ५ जातवेदस् (अग्नि-आग) । धीमान् शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. बहस्पति, २. प्राज्ञ (पण्डित-बुद्धिमान) किन्तु स्त्रीलिंग धीमती शब्द का अर्थ - १. बुद्धिमती (ज्ञानवती स्त्री) होता है। धीर शब्द विलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं --१. बुध (पण्डित) २. मन्द, ३. विनीत और ४. बलशाली (बलवान) । इस तरह धीर शब्द के चार अर्थ जानना। स्वैरे धैर्यान्विते पुंसि बलौ क्लीवन्तु कुकुमे। धीरा स्त्रीभेद-काकोली-महाज्योतिष्मतीषु च ॥ ६६१ ॥ धीवरी मत्स्यवेधिन्यां कैवल् धीवर स्त्रियाम् । धीवरः पुंसि कैवर्ते धुतस्त्यक्त - विधूतयोः ॥ ६६२ ॥ हिन्दी टोका-धीर शब्द-१. स्वैर (इच्छानुसार मनमानी विचरने वाला) २. धैर्यान्वित (धैर्यशाली) और ३. बलि इन तीनों अर्थों में पुल्लिग माना जाता है। किन्तु ४. कुकुम (सिन्दूर) अर्थ में धीर शब्द नपंसक माना गया है। धीरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. स्त्रीभेद (स्त्री विशेष,--धीरा, अधीरा, धीराऽधीरा इन तीन प्रकार की स्त्रियों में प्रथम स्त्रीभेद को धीरा कहते हैं) और २. काकोली (डौम कौवी या विष का स्थावर वृक्ष विशेष) और ३. महाज्योतिष्मती (मालकागनी नाम की प्रसिद्ध लता विशेष) । धीवरी शब्द स्त्रोलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मत्स्यवेधिनी (मछली को वींधने मारने वाली स्त्री) और २. कैवर्ती (केवट स्त्री जाति) तथा ३. धीवर स्त्री (मलाहिन । धीवर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. कंवर्त (केवट) होता है। धुत शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. त्यक्त (परित्याग किया गया) और २. विधूत (अपमानित या कम्पित)। धुन्धुमारः शक्रगोपे बृहदश्वनृपात्मजे । पदालिके गेहधूमे धुरीणे तु धुरन्धरः ॥ ६६३ ॥ मूल : Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धुन्धुमार शब्द धववृक्षेऽप्यथो धर्यो धूर्वहे वृषभे पुमान् । धूः स्त्री रथाद्यग्रभागे भार चिन्तनयोरपि ।। ६६४ ॥ हिन्दी टोका-धुन्धुमार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शक्रगोप (कीट विशेष) २. बृहदश्वनृपात्मज (बृहदश्व नामक राजपुत्र) और ३. पदालिक तथा ४ गेहधूम (घर का धुंआ)। धुरन्धर शब्द का "धुरीण" अर्थ होता है (धुरीण अर्थात् भार वहन समर्थ)। धुरन्धर शब्द का "धववृक्ष" (पिप्पल वृक्ष) भी अर्थ होता है । धुर्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. धूर्वह (भारवहन समर्थ) और २. वृषभ (बड़ा बैल)। धू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. रथाद्यग्रभाग) रथ-गाड़ी वगैरह का अग्रभाग, जिसको धुरी कहते हैं) २. भार (बोझा) और ३. चिन्तन (चिन्तन करना)। इस प्रकार धू शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल : कम्पिते भत्सिते त्यक्ते तकिते धूत इष्यते । शुम्भासुरस्य सेनान्यां कपोते धूम्रलोचनः ॥ ६६५ ॥ धूर्तो द्यूतकरे षिङ्ग वञ्चके च त्रिलिंगकः । क्लीवं विड्लवणे लौह-किट्ट पुंसि तु चोरके ॥ ६६६ ॥ हिन्दी टीका–धूत शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ कम्पित, २. भत्सित, ३. त्यक्त, ४. तकित । धूम्रलोचन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. शुम्भासुरस्य सेनानी (शुम्भासुर का सेनापति) और २. कपोत (कबूतर)। धूर्त शब्द–१. द्यूतकर (जुआरी) २. षिङ्ग (नपुंसक-हिजड़ा) और ३. वञ्चक (ठगने वाला) इन तीनों अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है किन्तु ४. विड्लवण (विड्नमक) और ५. लौहकिट्ट (लोहे का कीट-जंग-मल) इन दोनों अर्थों में धूर्त शब्द नपुंसक माना गया है और ६. चोरक (चुराने वाला) अर्थ में पुल्लिग ही माना जाता है। धुस्तूरे जम्बुके धूलीकदम्बो वरुणद्रुमे । नीपेऽथ धूसरः किञ्चित् पाण्डुवर्णे क्रमेलके ॥ ६६७ ॥ पारावते तैलकारे गर्दभे कीर्तितः पुमान् । त्रिष्वीषत्पाण्डुवर्णाढ्ये स्त्री तु स्यातु किन्नरीभिदि ॥६६८।। हिन्दी टीका-धूर्त शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. धुस्तूर (धत्तूर) और २. जम्बुक (गीदड़-सियार) । धूलीकदम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. वरुणद्र म (वरुण नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. नीप (कदम्बवृक्ष)। धूसर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. किञ्चित् पाण्डु वर्ण (थोड़ा सा पिंगल वर्ण, भूरा रंग) २. क्रमेलक (ऊंट) ३. पारावत (कबूतर) और ४. तैलकार (तेली-घांची) तथा ५. गर्दभ (गदहा) किन्तु ६. ईषत्पाण्डुवर्णाढ्य (कुछ अधिक भूरा रंग वाला) अर्थ में धूसर शब्द त्रिलिंग माना जाता है परन्तु स्त्रीलिंग धूसरा शब्द का अर्थ-किन्नरोभिद् (किन्नरांगना विशेष) है। धृतराष्ट्रो नागभेदे पक्षिभेदे सुराजनि । दुर्योधनस्य जनके स्त्रीष्वसौ हंसयोषिति ॥ ६६६ ॥ मूल : Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धृतराष्ट्र शब्द | १७५ हिन्दी टीका-पुल्लिग धृतराष्ट्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. नागभेद (नाग विशेष) २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष - कौवा) ३. सुराजा (उत्तम राजा) तथा ४. दुर्योधनस्य जनकः (दुर्योधन का पिता) को भी धृतराष्ट्र कहते हैं किन्तु ५. हंसयोषित (हंसी) अर्थ में धृतराष्ट्र शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। मूल : धृतिर्योगान्तरे यज्ञ सन्तोषे धारणे सुखे । धारणा-धैर्ययोश्छन्दोविशेषे मातृकान्तरे ।। ६७० ॥ धष्ट: प्रगल्भे निर्लज्जे पतिभेदे त्रिलिंगकः। धेनुका गवि हस्तिन्यां धैनुकं धोनुसंहतौ ॥ ६७१ ॥ हिन्दी टीका धृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. योगान्तर (योग विशेष) २. यज्ञ (याग) ३. सन्तोष, ४. धारण. ५. सुख, ६. धारणा, ७. धैर्य, ८. छन्दोविशेष (पद्यबन्ध विशेष) और ६. मातृकान्तर (मातृका विशेष)। धृष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. प्रगल्भ (ढीठ) २. निलंज्ज और ३. पतिभेद (पतिविशेष, धष्ट नाम का नायक)। धेनुका शब्द स्त्रीलिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ गो (गाय) २. हस्तिनी (हथिनी) । धेनुक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. धेनुसंहति (गो समुदाय) होता है। मूल : ध्वाङक्षस्तु तक्षके काके बक-भिक्षुकयोरपि । ध्यानं ब्रह्मात्मचिन्तायां चिन्तने संप्रकीर्तितम् ॥ ६७२ ॥ ध्रुवः पुमान् शिवे विष्णौ नासान ध्र वके वटे। शरारिपक्षिणि स्थाणौ प्रभेदे वसु-योगयोः ।। ६७३ ॥ हिन्दी टीका-- ध्वाङक्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. तक्षक (सर्प विशेष) २. काक (कौवा) ३. बक और ४. भिक्षुक (भिखारी)। ध्यान शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं १. ब्रह्मात्मचिन्ता (जीवात्म-परमात्म विषयक चिन्तन-मनन) और २. चिन्तन (विचारना)। ध्र व शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. शिव (शंकर महादेव) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. नासाग्र (नाक का अग्र भाग) ४. ध्र वक ५. वट (वट का वृक्ष) ६. शरारिपक्षी (आडी नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) ७. स्थाणु ८. वसुभेद (ध्र व नाम का वसु) और ६. योग (योग समाधि)। उत्तानपादतनये ताराभेदेऽप्यसौ स्मृतः । त्रिलिगो निश्चिते नित्ये निश्चले सन्ततेऽपि च ।। ६७४ ॥ नपुंसकन्तु गगने वितर्केऽथ ध्रुवा स्त्रियाम् । स्र विशेषे शालपयां मूर्वा-गीतिप्रभेदयोः ॥ ६७५ ॥ हिन्दी टीका-ध्रुव शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं.-१. उत्तानपादतनय (उत्तानपाद का पुत्र--ध्रुव) २. ताराभेद (तारा विशेष ध्र वतारा) किन्तु ३. निश्चित, ४. नित्य, ५. निश्चल और ६. सन्तत (लगातार हमेशा) इन चार अर्थों में ध्र व शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक ध्र व शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. गगन (आकाश) और २. वितर्क (ऊहापोह)। ध्र वा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ / नानार्थोदयसागर कोष :हिन्दी टीका सहित-ध्र वा शब्द अर्थ होते हैं-१. स ग विशेष (स्र ब विशेष, ध्र वा नाम का चमस) २. शालपर्णी (सरिवन, गभारी) ३. मूर्वा (मोथा) और ४. गीति प्रभेद (ध्र वा नाम की गीति) इस तरह ध्र वा के चार अर्थ जानना। साध्वी स्त्रियामथ स्थाणौ गीतांगे ध्र वको मतः । ध्वंसनं स्यादध:पाते विनाशे गमने क्वचित् ॥ ६७६ ॥ ध्वजोऽस्त्री पूर्वादिग्गेहे खट्वांगे चिह्न शेफसोः । शौण्डिके वैजयन्त्यां च पताकादण्ड गर्वयोः ।। ६७७ ।। हिन्दी टीका-ध्र वा शब्द का एक और भी अर्थ होता है - १. साध्वी स्त्री (पतिव्रता नारी)। ध्रुवक शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ स्थाणु और २. गीतांग (गीत का अंग विशेष) ध्वंसन शब्द भी नपुंसक ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अधःपात (अधःपतन) २. विनाश (सर्वनाश) और ३. गमन भी कहीं पर ध्वंसन शब्द का अर्थ होता है। ध्वजा शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं- . पूर्वदिग्गेह (पूवरिया घर) २. खट्वांग (चारपाई का अंग) ३. चिन्ह और ४. शेफस् (मूत्रेन्द्रिय) और ५. शौण्डिक, ६. वैजयन्ती, ७. पताका दण्ड और ८. गर्व (घमण्ड) । मूल : ध्वजी स्याद् ब्राह्मणे शैले मयूरे घोटके रथे । शोण्डिके भुजगे पुंसि ध्वनिः स्यात् काव्य उत्तमे ॥ ६७८।। मृदंगादिस्वने शब्दे ध्वस्तं नष्टे च्युते त्रिषु । नकुलः शंकरे माद्रीतनये बभ्र -पुत्रयोः ॥ ६७६ ।। हिन्दी टीका-ध्वजी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. ब्राह्मण २. शैल (पर्वत) ३. मयूर (मोर) ४. घोटक (घोड़ा) ५. रथ, ६. शौण्डिक (तेली सूरी घांची) ७. भुजग (सर्प) । ध्वनि शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. उत्तम काव्य (ध्वनि नाम का उत्तम काव्य) होता है। ध्वनि शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. मृदंगादिस्वन (मृदंग वगैरह वाद्य बाजा का ध्वन्यात्मक शब्द) और २. शब्द (वर्णात्मक या ध्वन्यात्मक शब्द विशेष)। ध्वस्त शब्द विलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. नष्ट (विनष्ट वस्तु) और २. च्युत (पतित गिरा हुआ पदार्थ)। नकुल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. शंकर (महादेव) २. माद्रीतनय (माद्री का पुत्र-नकुल नाम का प्रसिद्ध चौथा पाण्डव) ३. बभ्र (बभ्र नाम का प्रसिद्ध राजा विशेष) और ४. पुत्र । इस तरह नकूल शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : नकुली कुक्कुटी मांसी शङ्खिनी-कुंकुमेषु च । हकारे बभ्र भार्यायां कुलहीने त्वसौ त्रिषु ॥ ६८० ॥ नक्तञ्चरो राक्षसे स्यात् गुग्गुलौ चौर घूकयोः । अथ सिंहे च शार्दूले कुक्कुटे नखरायुधो ॥ ६८१ ॥ हिन्दो टीका-नकुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं--१. कुक्कुटी (मुर्गी) २. मांसी, ३. शङ्खिनी (शंखाहुली नाम का प्रसिद्ध लता विशेष) ४. कुंकुम (सिन्दूर) ५. हकार (हकार Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नगौकस् शब्द | १७७ वर्ण) और ६. बभ्र भार्या (बभ्र राजा की धर्मपत्नी स्त्री) तथा ७. कुलहीन (कुलरहित जिसके कुल वंश का कोई पता या ठिकाना नहीं है) किन्तु इस कुलहीन अर्थ में नकुली शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नक्तञ्चर पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. राक्षस, २. गुग्गुलि (गुग्गल) ३. चोर, ४. धक (उल्लू नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) । नखरायुध शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ हैं-१ सिंह, २. शार्दूल नाम का प्रसिद्ध सबसे बड़ा पक्षी और ३. कुक्कुट (मुर्गा)। मूल : नगौकाः पुंसि पञ्चास्ये शरभे वायसे खगे। त्रिषु स्यान्नगवास्तव्ये नग्नस्त्रिषु दिगम्बरे ॥ ६८२ ॥ पुमांस्तु स्यात् क्षपणके राजादि स्तुतिपाठके । नटः कुशीलवेऽशोके रागिण्यां किष्कुपर्वणि ।। ६८३ ।। हिन्दी टोका-पुल्लिग नगौकस् शब्द के चार अर्थ माने गये हैं--१. पञ्चास्य (सिंह) २. शरभ (शरभ नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) ३. वायस (काक-कौवा) ४. खग (पक्षी) किन्तु ५. नगवास्तव्य (पर्वतवासी, पहाड़ पर रहने बसने वाला) इस अर्थ में नगौकस् शब्द त्रिलिंग माना गया है। नग्न शब्द १. दिगम्बर (नंगा) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है किन्तु २ क्षपणक (संन्यासी) और ३. राजादि स्तुति पाठक (राजा वगैरह की स्तुति करने वाला भाट चारण वगैरह) में पुल्लिग माना जाता है। नट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. कुशीलव (सूत्रधार वगैरह) २. अशोक ३. रागिणी और ४. किष्कपर्व (हाथ का पर्व--पोर या अंगुलि का पर्व--पोर) इस तरह नगौकस् शब्द के कुल मिलाकर पाँच और नग्न शब्द के तीन तथा नट शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए। शौनिक्यां शौण्डिकाज्जाते वर्णसंकर मानवे । नटी नटस्त्रियां वेश्या-गन्धद्रव्य विशेषयोः ॥ ६८४ ॥ नदीकान्तः समुद्रे स्यात् हिज्जले सिन्धुवारके। . नदीन वरुणे सिन्धौ नदीजोऽर्जुनपादपे ॥ १८५॥ हिन्दी टीका-नट शब्द का एक और भी अर्थ माना गया है-शौचिक्यां शौण्डिकाज्जाते वर्ण संकर मानव (शौण्डिक-कलवार से शौचिकी-ब्राह्मणी में उत्पन्न वर्णसंकर मनुष्य विशेष) को भी नट शब्द से व्यवहार किया जाता है । नटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. नटस्त्री (नट भार्या नट्टिन) २. वेश्या (वारवधू, रण्डी) और ३. गन्ध द्रव्य विशेष । नदीकान्त शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ हैं-१ समुद्र २. हिज्जल (स्थलबेंत या जलबेंत) और ३. सिन्धुवारक (सिन्दुवार निगुण्डो, स्योंडी) । नदीन शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं--१. वरुण और २. सिन्धु (समुद्र)। नदीज शब्द का अर्थ-१. अर्जुनपादप (अर्जुन नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) है। इस तरह नदीन शब्द के दो और नदीज शब्द का एक अर्थ जानना। नदीजाते यावनालशर-हिज्जल वृक्षयोः । नन्दो नारायणे गोपविशेष - नृपभेदयोः ॥ ६८६ ॥ आनन्दे निधिभेदे च वेणु भेदेऽप्यसौमतः।। नन्दको विष्णु निस्त्रिशे हर्षके कुलपालके ॥ ९५७ ॥ हिन्दी टोका-नदीज शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं--१. नदीजात (नदी में उत्पन्न) और मूल : मूल : Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नन्दक शब्द २. यावनालशर और ३. हिज्जल वृक्ष (जलबेंत या स्थलबेंत का वृक्ष बेतस वृक्ष) । नन्द शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. नारायण, २. गोप विशेष (गोप) और ३. नृपभेद (नृपविशेष नन्द नाम का राजा) तथा ४. आनन्द (हर्ष) और ५. निधिभेद (निधि विशेष) ६. वेणुभेद (बांस विशेष) । नन्दक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विष्णुनिस्त्रिश (भगवान विष्णु का अस्त्र विशेष) और २. हर्षक (आनन्दित होने वाला) तथा ३. कुलपालक (कुलरक्षक)। मूल : आनन्दे कृष्णजनके नन्दनं शक्रकानने । नन्दनः केशवे शैलप्रभेदे हर्षकारके ॥ ६८८ ॥ पुत्रे भेकेऽथ नन्दन्तः पुत्रे मित्रे महीपतौ। नन्दा सम्पदि पार्वत्यां तिथिभेदे ननान्दरि ॥ ६८६ ॥ हिन्दी टीका-नन्दक शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. आनन्द (हर्ष) २. कृष्णजनक (भगवान कृष्ण का पिता)। नन्दन शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. शक्रकानन (इन्द्र का प्रसिद्ध नन्दन वन) किन्तु पुल्लिग नन्दन शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. केशव (भगवान् विष्णु) २. शैलप्रभेद (पर्वत विशेष) ३. हर्षकारक (आनन्ददायक) और ४ पुत्र तथा ५. भेक (मेंढक)। नन्दन्त शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पुत्र, २. मित्र और ३. महीपति (राजा)। नन्दा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१ सम्पद् (धन-दौलत) २. पार्वती (दुर्गा) ३. तिथिभेद (तिथि विशेष प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी, इन तीन तिथियों को नन्दा कहते हैं) और ४. ननान्दा (ननद - पति की बहन) को भी नन्दा कहते हैं। मूल : विष्णौ द्यूताङ्ग आनन्दे नन्दिके नन्दिरस्त्रियाम् । नन्दिकालिञ्जरे शक्र क्रीडा स्थाने तिथौस्त्रियाम् ॥ ६६० ॥ नन्दिनी पार्वती गङ्गा रेणुकासु ननान्दरि । वशिष्ठ धेनौ नन्दी तु वटे शिव गणान्तरे ।। ६६१ ॥ हिन्दी टीका-नन्दि शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. धूताङ्ग (जुआ का एक अंग विशेष) ३. आनन्द और ४. नन्दिक (नन्दिकेश्वर)। नन्दिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अथ माने जाते हैं-१. अलिञ्जर (कुण्डा-भांड) २. शक्रकीड़ास्थान (इन्द्र का क्रीड़ा स्थान) ३. तिथि (तिथिविशेष, प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी) । नन्दिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. पार्वती. २. गंगा, ३. रेणुका (परशुराम की माता) और ४. ननान्दा (ननदि-पति की बहन) तथा ५. वसिष्ठ धेनु (नन्दिनी नाम की वसिष्ठ की गाय) । नन्दी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं --१. वट (वट वृक्ष) और २. शिव गणान्तर (महादेव का गण विशेष, नन्दी गण)। मूल: शालङ्कायन पुत्रे च गर्दभाण्डद्रुमेऽपि च । नन्दिवर्द्धन ईशाने पक्षान्ते मित्र पुत्रयोः ।। ६६२ ॥ नन्द्यावर्तो राजसद्मप्रभेदे तगरद्रुमे । नभश्चरो घने वायौ विद्याधर-विहङ्गयोः ॥ ६६३ ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नन्दिवर्द्धन शब्द | १७६ हिन्दी टोका-नन्दिवर्द्धन शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. शालकायनपुत्र (शालकायन ऋषि का पुत्र) २. गर्दभाण्डद्र म (लाही पीपल) ३. ईशान (भगवान् शङ्कर) ४. पक्षान्त (पक्ष का अन्त भाग) और ५. मित्र तथा ६. पुत्र (लड़का) भी नन्दिवर्द्धन शब्द का अर्थ होता है। नन्द्यावर्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -- १. राजसद्मप्रभेद (राजा का महल विशेष) और २. तगरद्र म (अगर वृक्ष) । नभश्चर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. घन (मेघ) २. वायु, ३. विद्याधर (गन्धर्वादिदेव गण विशेष) और ४. विहंगम (पक्षी)। नभो व्योम्नि नभामेघे श्रावणे च पतद्ग्रहे । घ्राणे मृणालतन्तौ च प्रावृट् पलितशीर्षयोः ॥ ६६४ ॥ नमितो नामिते जात नमस्कारे मतस्त्रिषु । नमुचिर्मदने दैत्ये नयनं प्रापणेऽक्षिणि ॥ ६६५॥ हिन्दी टीका-नपुंसक सकारान्त नभस् शब्द का अर्थ - व्योम (आकाश) होता है, और पुल्लिग नभस् शब्द के सात अर्थ माने गये हैं—१. मेघ (बादल) २.श्रावण (सावन महीना) ३. पतद्ग्रह (पीकदानी) ४. घ्राण (नाक) ५. मृणालतन्तु (कमल नालतन्तु) और ६. प्रावृट् (वर्षाकाल) तथा ७. पलित शीर्ष (सफेद केश वाला मस्तक)। नमित शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ माने गये हैं—१. नामित झुकाया हुआ) और २. कृतनमस्कार (नमस्कृत व्यक्ति)। नमुचि शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मदन (कामदेव) और २. दैत्य (दानव विशेष) । नयन शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. प्रापण (पहुँचाना) और २. अक्षि (आँख) । इस प्रकार नमुचि और नयन शब्द के दो-दो अर्थ जानना। नरन्तु रामकर्पू रे नरो नारायणेऽर्जुने । मनुष्ये पुरुषे शङ्कौ नरको निरयेऽसुरे ॥ ६६६ ।। नरेन्द्रो विषवैद्ये स्याद् वार्तिके पृथिवीपतौ।। नर्तक: केलके नागे नल चारणयोर्नटे ॥ ६६७ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक नर शब्द का अर्थ–१. रामकर्पूर (कपूर विशेष) होता है, पुल्लिग नर शब्द के पांच अर्थ होते हैं-१. नारायण, २. अर्जुन, ३. मनुष्य, ४. पुरुष, ५. शंकु (स्तम्भ खुंटा)। नरक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. नरय (नरक) और २. असुर (राक्षस)। नरेन्द्र शब्द के तीन अर्थ होते हैं१. विषवैद्य (जहर उतारने वाला प्रसिद्ध विषवैद्य विशेष) और २. वार्तिक तथा ३. पृथिवीपति (भूमिपति राजा)। नर्तक शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं -१. केलक, २. नाग, ३. नल, ४. चारण (भाट चारण) और ५. नट । इस तरह नर्तक शब्द के पाँच अर्थ समझना। मूल: नर्तकी करिणी नृत्यकारिणी नलिकासु च । नर्मठस्तु परीहासनिरते चूचुके विटे ॥६९८ ॥ नर्मदा नर्मसख्यां च स्पृक्का-मेकलकन्ययोः । नलः पोटगले दैत्य विशेषे वानरान्तरे ॥ ६ ॥ हिन्दी टीका-नर्तकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. करिणी (हथिनो) २. नृत्यकारिणी (नाच करने वाली नटी) और ३. नलिका (नली)। नर्मठ शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. परीहास निरत (हँसी मखौल करने वाला) और २. चूचुक (स्तन का अग्र भाग) मूल : Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- -नल शब्द तथा ३. विट (भड़ आलम्पट ) | नर्मदा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन ही अर्थ माने जाते हैं१. नर्म सखी (रतिकेलिक्रीडा के लिये मदद करने वाली सहेली ) २. स्पृक्का (अस्य र अम्यरक नाम का प्रसिद्ध शाक विशेष) और ३. मेकलकन्यका (नर्मदा नाम की नदी विशेष ) । नल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. पोटगल (नरकट नरई) और २. दैत्य विशेष तथा ३. वानरान्तर ( वानर विशेष ) । मूल : वीरसेननृपात्मजे । नलदं सुमनोरसे ॥१०००॥ नैषधे पितृदेवे च नपुंसकन्तु पद्मेऽथ जटामास्यामुशीरे च त्रिलिंगो नलदातरि । नलिनं कमले नीरे नलिकायां पुमांस्त्वसौ ॥ १००१ ॥ हिन्दी टीका - नल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. नैषध (निषध देश का राजा ) २. पितृदेव ( पितरों का देव विशेष) और ३. वोरसेन नृपात्मज (वीरसेन नृप का आत्मज लड़का ) तथा ४. पद्म (कमल) किन्तु इस पद्म अर्थ में नल शब्द नपुंसक माना जाता है । नलद शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. सुमनोरस (पुष्प रस विशेष ) २. जटामांसी (जटामांसी नाम की प्रसिद्ध औषधि लता विशेष) और ३. उशीर (खसखस ) तथा ४. नलदाता । नपुंसक नलिन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. कमल, और २. नीर (जल, पानी) किन्तु ३. नलिका (नली, नल) अर्थ में नलिन शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । मूल : विहंगमे सारसाख्ये कृष्णपाकफलद्रुमे । व्योमगंगायामब्जिन्यां कमलाकरे ॥१००२ ॥ नलिनी पद्मसन्दोहनलिका नारिकेल सुरासु च । - - पद्मयुक्त प्रदेशे च सामान्यकमलेऽप्यसौ ||१००३ || हिन्दी टीका - नलिन शब्द के ओर भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. सारसाख्य विहंगम (सारस पक्षी) और २. कृष्णपाकफलद्र ुम (करौंना का वृक्ष, जिसका फल करीना पकने पर काला हो जाता है) । नलिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. व्योम गंगा (आकाश गंगा) २. अब्जिनी ३. कमलाकर (कमल समूह) ४. पद्मसन्दोह नलिका (कमल समुदाय को नलिका, नली, कमल दण्ड की नली) ५. नारिकेल ( नारियल) और ६. सुरा (शराब) तथा ७. पद्मयुक्त प्रदेश (कमल सहित प्रदेश स्थल) और ८. सामान्य कमल (साधारण कमल) को भी नलिनो शब्द से व्यवहार किया जाता है, इस तरह नलिनी शब्द के आठ अर्थ समझने चाहिये । मूल : नवः पुनर्नवायां स्यात् स्तवेऽसौ त्रिषु नूतने । नष्टो नाशाश्रये नाशे मूर्च्छायां नष्टचेष्टता ॥ १००४ ॥ नस्यन्तु नासिकाग्राह्यचूर्णादौ भेषजान्तरे । नासिकायाहिते रज्जौ नासा सम्बन्धिनि त्रिषु ॥ १००५॥ हिन्दी टीका - नव शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पुनर्नवा ( गजपुरैन ) २. स्तव (स्तुति) और ३. नूतन (नवीन) किन्तु इस नूतन अर्थ में नव शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नष्ट शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१ नाशाश्रय (नष्ट वस्तु) २. नाश ( ध्वंस) । नष्टचेष्टता शब्द का अर्थ -- मूर्छा (बेचैनी) होता है । नस्य शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. नासिकाग्राह्य Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित नहुष शब्द | १८१ चूर्णादि (नोसि-छींकनी) और २. भेषजान्तर (औषधि विशेष) तथा ३. नासिकाहित (नाक के लिये हितकारक) और ४. नासा सम्बन्धि रज्जु (नाथ) इस तरह नस्य शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये। नहुषो नागभेदे स्याच्चन्द्रवंश्यनृपान्तरे।। नक्षत्र मोक्तिके तारा-दाक्षायण्योश्च कीर्तितम् ॥१००६॥ नक्षत्रनेमिविष्णो स्याद् रेवत्यां ध्र व-चन्द्रयोः । नाक: स्वर्गेऽन्तरिक्षे च नाकुर्वल्मीक-शैलयोः ॥१००७॥ हिन्दी टीका-नहुष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. नागभेद (सर्प विशेष अजगर साँप) और २. चन्द्रवंश्यनृपान्तर (चन्द्रवंशी राजा विशेष) । नक्षत्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मौक्तिक (मोती) २. तारा और ३ दाक्षायणी (दुर्गा) । नक्षत्रनेमि शब्द भी पुल्लिग है-और उसके चार अर्थ होते हैं -१. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. रेवती (रेवती नाम का नक्षत्र विशेष) और ३.ध्र व (ध्र वतारा) तथा ४. चन्द्र । नाक शब्द पल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. स्वर्ग, और २. अन्तरिक्ष क्षितिज आकाश का अन्तस्तल) । नाकु शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. वल्मीक (दीमक, देवार) और २. शैल (पर्वत)। मूल : नाकुली कुक्कुटीकन्दे चविका-यवतिक्तयोः । क्षुद्रवार्ताकिनी-रास्ना-कन्दभेदेष्वपि स्त्रियाम् ॥१००८।। नागः पन्नग-पुन्नाग - क्र राचारिषु कुञ्जरे । सीसके मुस्तके वंगे वारिदे नागदन्तके ॥१००६।। हिन्दी टीका-नाकुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं ---१ कुक्कुटीकन्द (कन्ट विशेष) २. चविका (चाभ नाम का वृक्ष विशेष) ३. यवतिक्त और ४. क्षद्रवार्ताकिनी (छोटा रिंगनाबैंगन) ५. रास्ना (तुलसी पत्र) और ६. कन्दभेद (कन्द विशेष) । नाग शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. पन्नग (सर्प) २. पुन्नाग (नागकेशर का वृक्ष) ३. क्रूराचारी (क्रूर आचरण करने वालादुष्ट पुरुष) ४. कुञ्जर (हाथी) ५. सीसक (सोसा) ६. मुस्तक (मोथा) ७. वङ्ग (रांग, कलई) ८. वारिद (मेघ) तथा ६. नागदन्त (खूरी)। इस प्रकार नाग शब्द के नौ अर्थ जानने चाहिए । मूल : देहानिल प्रभेदे च ताम्बूल्यां नागकेशरे । नागजं त्रिषु नागोत्थे क्लीवं सिन्दूर-रंगयोः ॥१०१०॥ हिन्दी टीका-नाग शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. देहानिलप्रभेद (शरीर के अन्दर रहने वाला नाग नाम का वायु विशेष) २. ताम्बूली (पान) और ३. नागकेशर (केशर)। नागज शब्द१. नागोत्थ (नाग-सर्प या हाथी से उत्पन्न) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। किन्तु २. सिन्दूर और ३ रंग (रांगा) अर्थ में नपुंसक माना जाता है। मूल : नागदन्तो हस्तिदन्ते भित्तिसंलग्नदारुणि । नागदन्ती तु वारस्त्री-श्रीहस्तिन्योः प्रकीर्तिता ॥१०११॥ नागपुष्पस्तु पुंनागे चम्पके नागकेशरे । हस्तितुल्यबले भीमसेने नागबलो मतः ॥१०१२॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-नागदन्त शब्द हिन्दी टोका-नागदन्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१ हस्तिदन्त (हाथी का दांत) २. भित्ति संलग्नदारु (खूटी)। नागदन्ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. वारस्त्री (वारांगना- वेश्या) और २. श्रीहस्तिनी (शाक विशेष जिसका पत्ता हाथी के कान के समान होता है) । नागपुष्प शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पुंनाग (नागकेशर का वृक्ष) २. चम्पक (चम्पाफूल) और ३. नागकेशर (केशर चन्दन)। नागबल शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. हस्तितुल्यबल (हाथी के समान बल वाला) और २. भीमसेन (द्वितीय पाण्डव) । मूल : नागरं मुस्तके शुण्ठ्यां रतिबन्धेऽक्षरान्तरे । नागरो नागरंगे स्याद् विदग्धे नगरोद्भवे ॥१०१३।। देवरे नागराजस्तु स्यादनन्ते च वासुकौ । नागरी तु विदग्धस्त्री-नागरस्त्री-स्नुहीषु च ॥१०१४॥ हिन्दी टोका-नागर शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मुस्तक (मोथा नागर मोथा) २. शुण्ठी (सौंठ) ३. रतिबन्ध (रतिकालिक बन्ध आसन विशेष) और ४. अक्षरान्तर (अक्षर विशेष देव नगरी लिपि)। पुल्लिग नागर शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. नागरंग (नारंगी) २. विदग्ध (चतुर) ३. नगरोद्भव (नगर शहर में उत्पन्न) और ४. देवर (पति का छोटा भाई)। नागराज शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. अनन्त (भगवान् विष्णु) और २. वासुकि (शेषनाग नाम का सर्प विशेष)। नागरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विदग्ध स्त्री (चतुर स्त्री) २. नागर स्त्री (शिक्षित महिला, पढ़ी लिखी स्त्री) और ३. स्नुही (सेहुण्ड-सेंहुड नाम की लता विशेष)। मूल : नाटको नर्तके शैले नाटकं रूपकान्तरे । नाडी व्रणान्तरे नाले शिरा-कुहनचर्ययोः ।।१०१५॥ षट्क्षणे गण्डदूर्वायां नाडी जङ घस्तु वायसे । नाडीतरङ्गः काकोले हिण्डके रतहिण्डके ॥१०१६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग नाटक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. नर्तक (नाचने वाला, नटुआ) और २. शैल (पर्वत)। नपुंसक नाटक शब्द का अर्थ–१. रूपकान्तर (रूपक विशेष, दशरूपक नाम का दृश्यकाव्य का एक नाटक नाम का रूपक विशेष)। नाडी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं--१. व्रणान्तर (घाव विशेष) २. नाल (नाल तन्तु) और ३. शिरा (धमनी, नस) और ४. कुहनचर्या (ईर्ष्यालु व्यक्ति का आचरण खराब कार्य) और ५. षट्क्षण (छह पल मिनट) को भी नाड़ी कहते हैं तथा ६. गण्डदूर्वा (दुभी विशेष) को भी । नाडीजंघ शब्द का अर्थ---वायस (कौवा काक) होता है। नाडीतरंग शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. काकोल (जहर और डोम काक) और २. हिण्डक (भटकने वाला) तथा ३. रतहिण्डक (रति क्रीड़ा करने वाला)। मूल : नादः शब्देऽर्द्धन्दुवर्णे ब्रह्मघोषान्तरे स्मृतः । नादेयः काशवानीरवृक्षयोः संप्रकीर्तितः ॥१०१७॥ हिन्दी टीका-नाद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं –१. शब्द (ध्वनि तथा वर्ण) २. अद्धन्दुवर्ण (अर्ध चन्द्र के समान वर्ण विशेष) और ३. ब्रह्म घोषान्तर (शब्द ब्रह्म)। नादेय शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. काश (डाभ) और २. वानीर वृक्ष (बेंत का वृक्ष)। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - नादेयी शब्द | १८३ नादेयी स्त्री काकजम्बू- नागरङ्ग-जवासु च । वैजयन्त्यां भूमिजम्ब्यामग्निमन्थेऽम्बुवेतसे ।।१०१८ ।। नाभि र्मुख्यनृपे गोत्रे प्रियव्रत नृपात्मजे । क्षत्रिये चक्रमध्ये च प्राण्यंगे तु द्वयोरसौ ॥ १०१६ ॥ हिन्दी टीका - नादेयी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं - १. काकजम्बू ( जम्बू विशेष जामुन ) २. नागरंग ( नारंगी सन्तरा ) ३. जवा (यवासा ) ४. वैजयन्ती ( पताका) ५. भूमि जम्बू (स्थल जामुन ) ६. अग्निमन्थ (अरणी, अग्नि को मन्थन करने को लकड़ी विशेष) और ७. अम्बुवेतस ( जलबेंत ) । नाभि शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. मुख्यनृप (प्रधान राजा ) २. गोत्र (वंश) ३. प्रियव्रत नृपात्मज (प्रियव्रत राजा का लड़का ) ४. क्षत्रिय (राजपूत) ५. चक्रमध्य ( गाड़ी का मध्य भाग) और ६. प्राण्यंग ( प्राणी का अंग विशेष - नाभि नामक प्रसिद्ध अंग - ढोंड़ी) इस प्रकार नाभि शब्द के छह अर्थ जानना । मूल : कस्तूरिकायां स्त्रीलिंगो नाभीलं वंक्षणे स्त्रियाः । गर्भाण्डे नाभिगाम्भीर्ये कष्टेऽपि कवयो विदुः || १०२० ॥ नाम लिंगे नामधेये नामशेषो मृतेऽत्यये । नायको सरे सेनापतौ शृङ्गार साधके ॥ १०२१ ॥ हिन्दी टीका- १. कस्तूरिका (मृग नाभि ) अर्थ में नाभि शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । नाभील शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. स्त्रियाः वंक्षण (स्त्री का वंक्षण - जंघा का सन्धि जोड़ - ऊरुसन्धि- ठेहुन ) २. गर्भाण्ड (गर्भाशय) और ३. नाभि गाम्भीर्य (नाभि की गहराई ) तथा ४. कष्ट (दुःख) भी नाभील शब्द का अर्थ होता है । नाम शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. लिंग (पुंस्त्व वगैरह ) और २. नामधेय (संज्ञा चैत्र-मैत्र जिनदास - जिनदत्त वगैरह ) । नामशेष शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. मृत (मरा हुआ) और २. अत्यय ( नाश) । नायक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं – १. अग्र ेसर (मुखिया) २. सेनापति ( कमाण्डर) और ३. शृंगार साधक (श्रृंगार का साधक, श्रृंगार का प्रधान आश्रय) इस प्रकार नायक शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : हार मध्यमणौ श्रेष्ठे नेतर्यपि बुधैः स्मृतः । नारं नर समूहे स्यान्नर सम्बन्धिनि त्रिषु ॥ १०२२॥ नारस्तु तर्णके नीरे नरकस्थेऽपि नारकः । नार कीटोsश्मकीटे स्यात्स्वदत्ताशा विहन्तरि ॥। १०२३ ॥ किन्तु २. नर सम्बन्धि हिन्दी टीका नायक शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हार मध्यमणि (मुक्ताहार वगैरह हार का मध्यमणि- गुटका - सुमेरु) और २. श्रेष्ठ (बड़ा ) तथा ३ नेता ( नेतृत्व करने वाला) । नार शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. नर समूह ( नर समुदाय) होता है (पुरुष सम्बन्धी ) अर्थ में नार शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पुल्लिंग नार शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. तर्णक (नया बछड़ा) और २. नीर (जल, पानी) । नारक शब्द का अर्थ - नरकस्थ ( नरकवासी) होता है । नारकीट शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. अम्मकीट (पत्थर Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नारंग शब्द का कीड़ा) और २. स्वदत्ताशा विहन्ता (स्वयं दिये हुए आशा-आश्वासन का विहन्ता स्वयं नाश करने वाला)। मूल : नारङ्गो यमजे बिगे सरंगे पिप्पली रसे । नारायणी शतावर्यां गौर्यां भागीरथीश्रियोः ॥१०२४।। हिन्दी टीका -नारंग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. यमज (युग्म जात) २. पिंग (नपुंसक हिजड़ा) और २. सरंग (नारंगी सन्तरा) तथा ४. पिप्पली रस (पिपरिका का रस-सत्व) । नारायणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. शतावरी (शतावर नाम का प्रसिद्ध औषध विशेष) २. गौरी (पार्वती) ३. भागीरथी (गंगा) और ४. श्रीः (लक्ष्मी) इस प्रकार नारायणी शब्द के चार अर्थ जानना। श्रीमुद्गल मुनिभार्यायां, विष्णौ नारायणः स्मृतः । नालं पद्मादिदण्डे स्यान्मृणाले जलनिर्गमे ॥१०२५॥ हरिताले गले काण्डे नालः पोटगले मतः । 'नाली घटी - हस्तिकर्णवेधनी - धमनीषु च ॥१०२६।। हिन्दी टोका - नारायणी शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. श्रीमुद्गल मुनिभार्या (मुद्गल मुनि की धर्मपत्नी)। नारायण शब्द का अर्थ–१, विष्णु (भगवान् विष्णु) होता है। नपुंसक नाल शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. पद्मादिदण्ड (कमल नालदण्ड) २. मृणाल (कमल नाल तन्तु) ३. जलनिर्गम (नाला) ४. हरिताल (हरिताल नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) ५. गल (गला कण्ठ) और ६ काण्ड (वर्ग-समुदाय वगैरह) । पुल्लिग नाल शब्द का अर्थ-१. पोटगल (नरकट-नरई) होता है। नाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. घटी (छोटा घड़ा) २. हस्ति कर्णवेधनी (हाथी के कर्ण को वेधने वाला अंकुश विशेष) और ३. धमनी (नस)। पद्म शाक कडम्बेऽथ नालिको महिषेऽम्बुजे । नालीको विशिखे शल्ये नालीकं कमले स्मृतम् ॥१०२७।। नाशो मृत्यौ परिध्वंसेऽनुपलम्भे पलायने । नासा तु नासिकायां स्यात्काष्ठे द्वारोपरिस्थिते ॥१०२८॥ हिन्दी टीका-नकारान्त नाली शब्द के दो अर्थ होते हैं---१. पद्म (कमल) और २. शाककडम्ब (कडम्ब-करभी शाक विशेष)। नालिक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. महिष (भैस-भैंसा) और २. अम्बुज (कमल)। पुल्लिग नालीक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१ विशिख (बाण) और २. शल्य (अस्त्र विशेष) और नपुंसक नालीक शब्द का अर्थ-१. कमल होता है। नाश शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. मृत्यु (मरण) २. परिध्वंस (सर्वनाश) ३. अनुपलम्भ (नहीं मिलना) और ४. पलायन (भाग जाना)। नासा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. नासिका (नाक) और २. द्वारोपरिस्थित काष्ठ (द्वार के ऊपरी भाग में स्थापित काष्ठ विशेष) इस प्रकार नासा शब्द के दो अर्थ समझने चाहिये। निःशेषं शेषरहिते समग्रेऽपि त्रिलिंगकम् । निःश्रेयसं शुभे भक्तौ मुक्तौ विद्याऽनुभावयोः ॥१०२६॥ मूल : मूल : Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नार्मोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित निःशेष शब्द | १८५ निःसंग: संगरहिते फलाऽनभिनिवेशिनि । अथ निःसरणं मृत्यौ निर्वाणोपाययोरपि ॥१०३०॥ हिन्दो टोका-निःशेष शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. शेष रहित (अशेष कुछ भी परिशेष नहीं) और २. समग्र (सारा)। निःश्रेयस शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. शुभ (मंगल कल्याण) २. भक्ति ३. मुक्ति ४. विद्या (तत्वज्ञान) और ५. अनुभाव (विशेष श्रद्धा वगैरह) को भी निःश्रेयस कहते हैं। निःसंग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. संगरहित (आसक्ति रहित) और २ फलानभिनिवेशो (कर्मफल को चाह नहीं करने वाला)। निःसरण शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मृत्यु (मरण) २. निर्वाण (मोक्ष) और ३. उपाय (साधन)। इस प्रकार निःशेष शब्द के दो और निःश्रेयस शब्द के पाँच तथा निःसंग शब्द के दो एवं निःसरण शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये। मूल : निर्गमे भवनादीनां प्रवेशादि पथेऽपि च । नि:स्रावः स्याद् भक्तरसे मण्डे भक्त समुद्भवे ॥१०३१।। निकरः शेवधौ सारे न्यायदेयधने चये । निकायो भवने लक्ष्ये संहतौ परमात्मनि ॥१०३२॥ हिन्दो टीका-निःसरण शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं --१. निर्गम (प्रस्थान निकलना) और २. भवनादीनां प्रवेशादि पथ (मकान गृह वगैरह में प्रवेश करने का मार्ग)। निःस्राव शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. भक्तरस (भात का रस-तत्व भाग) और समुद्भवमण्ड (भात का मण्ड-मांड़)। निकर शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं १. शेवधि (खजाना) २. सार (तत्व) ३ न्यायदेय धन (न्याय पूर्वक देने योग्य धन वित) और ४. चय (समुदाय) भी निकर शब्द का अर्थ समझना चाहिये । निकाय शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. भवन (गृह मकान, महल) २. लक्ष्य (ध्येय उद्देश्य) ३. संहति (समुदाय) और ४. परमात्मा (परमेश्वर) इस तरह निकाय शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : निकारः स्यात् खलीकारे धान्योर्ध्वक्षेपणेऽपि सः । धिक्कारे विप्रकारेऽथ मारणेऽपि निकारणम् ॥१०३३॥ निकुञ्चकस्तु वानीरे तुर्यांशे कुडवस्य च । निकृतो वञ्चिते नीचे प्रत्याख्याते शठे त्रिषु ॥१०३४॥ हिन्दी टोका-निकार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. खलीकार (दुष्टता करना) २. धान्योर्ध्वक्षेपण (धान्य को ऊपर ओसाकर साफ करना) को भी निकार कहते हैं और ३. धिक्कार (भर्त्सना) तथा ४ विप्रकार (अपमान) को भी निकार कहा जाता है। निकारण शब्द का अर्थ ---१. मारण (मारना) होता है । निकुञ्चक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वानीर (बेंत) २. कुडवस्य तुर्याश (पाव का चौथा भाग एक छटाँक) को भी निकुञ्चक कहते हैं। निकृत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१ वञ्चित (ठगा गया) २. नीच (अधम) ३. प्रत्याख्यात (बहिष्कृत) और ४. शठ (दुर्जन) । इस प्रकार निकृत शब्द के तीन अर्थ जानना। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निकृति शब्द मूल : निकृतिर्भर्त्सने दैन्ये क्षेपे शाठ्य शठे स्त्रियाम् । निकृष्टस्त्रिषु नीचे स्यात् जात्याचारादि निन्दिते ॥। १०३५ ॥ निकेतनः पलाण्डौ स्यात् आलये तु निकेतनम् । निगदस्तु जनैर्वेद्ये जपे च कथनेऽपि च ।। १०३६॥ हिन्दी टीका - निकृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. भर्त्सन ( धिक्कारना) २, दैन्य ( दीनता) ३. क्षेप ( निन्दा ) ४. शाठ्य ( शठता) और ५. शठ (धृष्ट दुर्जन) । निकृष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. नीच (अधम ) और २. जात्याचारादि निन्दित (जातिआचार-आचरण वगैरह जिसका खराब | पुल्लिंग निकेतन शब्द का अर्थ - १. पलाण्डु (प्याज- डुंगरी) होता है किन्तु आलय (गृह) अर्थ में निकेतन शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । निगद शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. जनैर्वेद्य ( जनता के जानने योग्य) और २. जप तथा ३. कथन । इस तरह निगद शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : " निगमो वाणिजे हट्ट पुरी - निश्चययोः कटे । वेदे मार्गेऽप्यथो होमधूमे निगरणो गले ।।१०३७।। हिन्दी टीका - निगम शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. वाणिज ( बनिया, वैश्य ) २. हट्ट (हाट बाजार) ३. पुरी (नगरी) ४. निश्चय (निर्णय) ५. कट (चटाई ) ६. वेद और ७. मार्ग ( रास्ता ) । निगरण शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. होमधूम (हवन का धुंआँ) और २. गल (गला) । मूल : निगुर्मूले मले चित्ते चित्रकर्म मनोज्ञयोः । निग्रहोऽनुग्रहाभावे भर्त्सने सीम्नि बन्धने ॥१०३८ || नारायणे चिकित्सायां निघ्नोऽधीनेऽङ्कपूरणे । निचितं पूरिते व्याप्ते निचयो निश्चये चये ||१०३६|| हिन्दी टीका - निगु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. मूल (निदान वर्गरह) २. मल (विकार) ३. चित्त ( मन ) ४. चित्रकर्म (चित्रकला) और ५. मनोज्ञ (सुन्दर) । निग्रह शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अनुग्रहाभाव (दया न करना, नंष्ठुर्य- निर्दयता) २. भर्त्सन ( धिक्कारना) ३ सीमा ( अवधि, हद) और ४. वन्धन बाँधना ) । निग्रह शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. नारायण (भगवान विष्णु ) और २. चिकित्सा ( इलाज ) । निघ्न शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. अधीन (परतन्त्र) और २ अङ्कपूरण ( संख्या को पूर्ण करना) । निचित शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. पूरित (पूर्ण किया गया, पूरा किया) और २. व्याप्त (परिपूर्ण) । निचय शब्द के दो अर्थ होते हैं१. निश्चय (निर्णय) और २. चय ( समुदाय ) । मूल : निघृष्वो मारुते मार्गे खर- शूकरयोः खुरे । निचुल: कविभेदेस्यान्निचोले स्थलबेतसे ।। १०४०|| वानीरे हिज्जले चाथ निजं नित्य-स्वकीययोः । नितम्बः स्त्रीकटी पश्चादुभागे कटक - रोधसोः ।। १०४१॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निघृष्व शब्द | १८७ हिन्दी टीका-निघृष्व शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. मारुत (पवन) २. मार्ग (रास्ता) ३. खरखुर (गदहा का खुर-खरी) और ४. शूकरखुर (शूगर का खुर-खरी)। निचुल शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. कविभेद (कवि विशेष, निचुल नाम का प्रसिद्ध कवि) २. निचोल (प्रच्छद पट चादर-खोल वगैरह) ३. स्थलबेतस (स्थल बेत) ४. व.नीर (बेंत) एवं ५. हिज्जल (जलबेंत)। निज शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१ नित्य और २. स्वकीय (अपना)। नितम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. स्त्री कटो पश्चाद् भाग (चूतड़, पोन) और २. कटक (सेना) तथा ३. रोधस् (तट किनारा) इस प्रकार नितम्ब शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : स्कन्धो च कटिमात्रेऽथ स्त्रीमात्रेऽपि नितम्बिनी। नित्यः सदातने सिन्धौ नित्यन्त्वविरते मतम् ॥१०४२॥ नित्या तु मनसादेव्या दुर्गा शक्ति विशेषयोः । निदर्शनन्तु दृष्टान्ते काव्यालंकरणे स्त्रियाम् ॥१०४३॥ हिन्दी टीका-नितम्ब शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. स्कन्ध (कन्धा मध्य भाग) और २. कटिमात्र (कमर-डार)। नितम्बिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. स्त्री मात्र (सभी स्त्री) होता है, अपि शब्द से सुन्दरी स्त्री समझी जाती है। पुल्लिग नित्य शब्द के दो अर्थ होते हैं१. सदातन (हमेशा रहने वाला सतत विद्यमान) और २. सिन्धु (समुद्र-नदी) किन्तु नपुंसक नित्य शब्द का अर्थ-१. अविरत (लगातार-निरन्तर) होता है । स्त्रीलिंग नित्या के तीन अर्थ होते हैं-१. मनसादेवी (देवी विशेष) २. दुर्गा और ३. शक्ति विशेष । निदर्शन शब्द का अर्थ-१. दृष्टान्त (उदाहरण) होता है किन्तु २. काव्यालंकरण (काव्य का अलंकार विशेष) अर्थ स्त्रीलिंग माना जाता है। इस प्रकार नपंसक निदर्शन शब्द का अर्थ-दृष्टान्त और स्त्रीलिंग निदर्शना शब्द का अर्थ काव्य का अलंकार विशेष समझना चाहिए। मूल : निदानमवसाने स्याद् वत्स दाम्न्याऽऽदिकारणे। तपःफलार्थने शुद्धौ कारणे कारणक्षये ॥१०४४॥ रोगहेतावथैलायां कण्टकार्यां निदिग्धिका । निदेशः कथनोपान्त भाजनाऽऽज्ञासु कीर्तितः ॥१०४५॥ हिन्दी टीका-निदान शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं --१. अवसान (अन्त) २. वत्सदाम्नी (बछड़े की डोरी रस्सी) ३. आदिकारण (मूलकारण) ४. तपःफलार्थन (तपस्या के फल की इच्छा करना) और ५. शुद्धि (पवित्रता) ६. कारण (हेतु) ७ कारणक्षय (कारण का नाश-ध्वंस) और ८. रोगहेतु (रोग का मूल कारण) को भी निदान कहते हैं। निदिग्धिका शब्द के दो अर्थ होते हैं१. एला (इलाइची) और २. कण्टकारी (रेंगणी कटैया)। निदेश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. कथन, २. उपान्त (निकट-नजदीक) ३. भाजन (पात्र बर्तन) और ४. आज्ञा । मूल : निधनो वधतारायां निधनं कुल-नाशयोः । निधानं निधि कार्यान्त प्रवेशस्थानयोरपि ।।१०४६॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १८८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निधन शब्द आधारेऽथ निधिः सिन्धावाधारे जीवकोषधौ। अज्ञात स्वामिके पृथ्वी निखातेऽर्थे च शेवधौ ॥१०४७॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग निधन शब्द का अर्थ--१. वधतारा (पातक तारा १-३-५-७-१० वगैरह तारा वधतारा) कहलाता है। नपुंसक निधन शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. कुल (वंश) और २. नाश (ध्वंस) । निधान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. निधि (खान) २. कान्ति (काम को पूरा करना) और ३. प्रवेश स्थान तथा ४. आधार । निधि शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं—१. सिन्धु (समुद्र) २. आधार, ३. जीवकोषधि (जीवक नाम का प्रसिद्ध ओषधि विशेष-अष्ट वर्ग के अन्तर्गत जीवक को भी निधि शब्द से व्यवहार किया जाता है)। और ४. अज्ञात स्वामिक पृथिवी निखातअर्थ (भूमि के अन्दर छिपा हुआ धन जिसके मालिक का पता नहीं रहता है ऐसा धन विशेष, अशर्फी वगैरह) तथा ५. शेवधि (निधि-खजाना-खान) इस प्रकार निधि के पाँच अर्थ समझना । अथो निधुवनं केलौ कल्पे नर्मणि मैथुने । निन्दाऽपवादे गर्दायां दुष्कृतौ सदुभिरीरिता ॥१०४८।। निपात: पतने मृत्यौ निपो घट कदम्बयोः । निपातनं खलीकारेऽवनाये पदसाधने ॥१०४६॥ हिन्दी टीका-निधुवन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. केलि (केलिक्रीड़ा) २. कल्प (प्रलय सृष्टि अथवा वेशभूषा) ३. नर्म (केलि सम्बन्धी मधुर कोमल वचन) ४. मैथुन (रति)। निन्दा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अपवाद (कलंक-आरोप वगैरह) २. गर्दा (निन्दा करना) ३. दुष्कृति (पाप)। निपात शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पतन, और २. मृत्यु (मरण) । निप शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ घट (घड़ा) और २. कदम्ब (कदम्ब का वृक्ष) । निपातन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. खलीकार (दुष्टआचरण) २. अवनाय (नीचे झुकना) और ३. पद साधन। मूल : क्लीवं निपान माहावे स्याद् गोदोहन भाजने । निबन्धो बन्धने ग्रन्थ वृत्तावानाह निम्बयोः ॥१०५०॥ हिन्दी टोका-नपुंसक निपान शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. आहाव (गाय वगैरह को पानी पीने के लिये बनाया हुआ हौज) २. गोदोहन भाजन (दूध निचोड़ने के लिए पात्र विशेष, डावा)। निबन्ध शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. बन्धन, २. ग्रन्थवृत्ति (ग्रन्थ की टोका विशेष) और ३. आनाह (मल-मूत्र निरोधक रोग विशेष अथवा कपड़े की लम्बाई) और ४. निम्ब (निमड़ा निम्ब का वृक्ष) को भी निवन्ध कहते हैं। निबन्धनं कारणे स्यादुपनाहे च बन्धने । निभः पुमान् मतो व्याजे प्रकाशे सदृशे त्रिषु ॥१०५१।। निमित्तं शकुने चिह्न कारणेऽपि नपुंसकम्। निमिषः कालभेदे स्यादु विष्णौ चक्षुनिमीलने ॥१०५२॥ मूल : Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निबन्धन शब्द | १८६ हिन्दी टीका - निबन्धन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कारण (हेतु) २. उपनाह (वीणा तन्त्री का बना हुआ ऊपर भाग) ३ बन्धन (बाँधना ) । निभ शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. व्याज (छल बहाना ) २. प्रकाश और ३. सदृश ( सरखा) किन्तु इस सदृश अर्थ में निभ शब्द त्रिलिंग माना जाता है । निमित्त शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. शकुन (शुभ लक्षण विशेष) २. चिह्न (अंक) और ३. कारण (हेतु) । निमिष शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कालभेद (काल विशेष संकण्ड-क्षण-पल-मिनट वगैरह ) और २. विष्णु ( भगवान् विष्णु) और ३. चक्षुर्निमीलन (आँख बन्द करना) । Stu मूल : निमीलनन्तु मरणे निमेषेऽथ निमीलिका | व्याजे निमीलने चाथो निमेषः समयान्तरे ।। १०५.३ ।। नियतः संयति नित्ये नियति नियमे विधौ । नियन्ता शासके सूते चार्गलिते नियन्त्रितः ॥ १०५४।। हिन्दी टीका -- निमीलन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं- - १. मरण (मृत्यु) २. निमेष ( पलक बन्द करना) । निमोलिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. व्याज (छल - बहाना) और २. निमीलन (आँख बन्द करना) । निमेष शब्द का अर्थ - १. समयान्तर (समय विशेष क्षण-पल वगैरह ) होता है । नियत शब्द दो अर्थ होते हैं - १. संयत् (संग्राम-युद्ध लड़ाई) और २. नित्य (हमेशा रहने वाला) । नियति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. नियम ( रूढी नियन्त्रण) और २. विधि ( भाग्य देव ) । नियन्ता शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १ शासक ( शासन करने वाला) और २ सूत (सारथि ) । नियन्त्रित शब्द का अर्थ - १. अलित (नियमबद्ध और अर्गला जंजीर से बँधा हुआ) है इस तरह नियन्त्रित शब्द का एक अर्थ जानना चाहिये । मूल : नियमो निश्चये शौचे सन्तोषे तपसि व्रते । ईश्वरप्रणिधाने च सिद्धान्त श्रवणे जपे ॥१०५५॥ मन्त्रणायां प्रतिज्ञायां स्वाध्याये हुतदानयोः । आस्तिक्ये ह्री- धीषणयोः कमर्ण्यागन्तु साधने ॥। १०५६ ।। हिन्दी टीका - नियम शब्द पुल्लिंग है और उसके अठारह अर्थ माने जाते हैं - १. निश्चय (निर्णय) २. शौच (पवित्रता ) ३. सन्तोष, ४ तपस् (तपस्या) ५. व्रत (उपवास वगैरह ) ६. ईश्वरप्रणिधान ( ईश्वर का ध्यान मनन- चिन्तन) ७. सिद्धान्त श्रवण ( सिद्धान्त का श्रवण ) और ८. जप तथा & मन्त्रणा ( विचार विमर्श ) १०. प्रतिज्ञा, ११. स्वाध्याय, १२. हुत (आहुति दिया गया) और १३. दान एवं १४. आस्तिक्य ( ईश्वर धर्मादि को मानना ) १५. हो ( लज्जा शर्मं ) १६. घोषणा (बुद्धि) १७. कम (कर्म करना) और १८. आगन्तुक साधन ( आगामी भावी कार्य को सिद्ध करने की भावना या साधन सामग्री) इस तरह नियम शब्द के अठारह अर्थ समझने चाहिये । मूल : सत्यादिपञ्चकेऽर्चायां यज्ञ इन्द्रियनिग्रहे । नियामक: पोतवाहे कर्ण धारे नियन्तरि ॥ १०५७।। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : १६० / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-नियम शब्द निरञ्जना पूर्णिमायां स्त्री त्रिष्वजनजिते । वो निरसनं प्रत्याख्याने निष्ठीवने स्मृतम् ॥१०५८॥ हिन्दी टोका-१. सत्यादि पञ्चक (सत्य अहिंसा-अस्तेय-अपरिग्रह-ब्रह्मचर्य) और २. अर्चा (पूजा) ३. यज्ञ तथा ४. इन्द्रियनिग्रह (आँख वगैरह ज्ञानेन्द्रिय और पायु उपस्थ वगैरह कर्मेन्द्रिय को वश में करना) इन चारों को भी नियम शब्द से व्यवहार किया जाता है । नियामक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पोतवाह (जल जहाज स्टीमर को चलाने वाला) २. कर्णधार (केवट नाव को चलाने वाला) और ३. नियन्ता (सारथि) को भी नियामक कहते हैं । निरञ्जना शब्द १. पूर्णिमा (पौर्णमासी) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है और २. अञ्जनवजित (आंजन रहित) अर्थ में त्रिलिंग माना गया है । निरसन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-- १. वध, २. प्रत्याख्यान और निष्ठीवन (थूकना) इस तरह निरसन शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये। निरस्तस्त्यक्त विशिखे निष्ठ्यूतेत्वरितोदिते । प्रत्याख्याते प्रतिहते सन्त्यक्ते प्रेषिते त्रिषु ।।१०५६।। निरामय स्त्रिषूल्लाघे इडिक्के शूकरे पुमान् । निरीहो विष्णु जिनयोरीहाशून्येत्वसौ त्रिषु ॥१०६०॥ हिन्दी टीका-त्रिलिंग निरस्त शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. त्यक्त विशिख (परित्यक्त बाण जिसने शर छोड़ा है उसको त्यक्त विशिख कहते हैं । २. निष्ठयूत (थूक दिया है) ३. त्वरितोदित (शोघ्र जल्दी उदित-कथन किया है) ४. प्रत्याख्यात (तिरस्कृत) ५. प्रतिहत (मारा गया है) ६. सन्त्यक्त (परित्यक्त) और ७. प्रेषित (भेजा गया)। निरामय शब्द १. उल्लाघ (नीरोग-रोगरहित) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है एवं २. इडिक्क (जंगली बकरा वन छाग) और ३. शूकर (सुगर) पूल्लिग है। पूल्लिग निरीह शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. विष्णु (भगवान विष्णु) और २. जिन (भगवान तीर्थंकर) किन्तु ३. ईहाशून्य (इच्छारहित-निःस्पृह) अर्थ में निरोह शब्द त्रिलिंग माना जाता है। क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण कोई भी निःस्पृह हो सकता है।। मूल : निरुक्त वेद शास्त्रांगे कथिते पदभजने । निरूपणं विचारे स्याद् आलोके च निदर्शने ॥१०६१॥ निरूपितो नियुक्त स्यादसौ कृतनिरूपणे । निरूहो निश्चिते तर्क वस्तिभेदे च निग्रहे ॥१०६२।। हिन्दी टीका-निरुक्त शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वेदशास्त्राङ्ग (वेदशास्त्र का अङ्ग-पोषक व्याख्या विशेष) २. कथित (उक्त) और ३. पदभजन (पद प्रत्येक पद को टुकड़ा करके व्याख्या करना) । निरूपण शब्द के भो तोन अर्थ माने गये हैं-१. विचार (परामर्श करना) २. आलोक (प्रकाश) और ३. निदर्शन (दिखलाना)। निरूपित शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. नियुक्त (स्थापित) और २. कृतनिरूपण (निरूपण किया गया)। निरूह शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. निश्चित, २. तर्क (ऊह कल्पना करना) और ३. वस्तिभेद (वस्ति विशेष-मूत्राशय-नाभि का नीचा भाग) तथा ४. निग्रह (रोकना, निरोध करना)। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निरूह शब्द | १९१ मूल : ऊह शून्ये निरोधस्तु निग्रहे रोधा-नाशयोः । निर्ऋतिः पुंस्यलक्ष्म्या स्यात् नैऋते निरुपद्रवे ॥१०६३॥ __ हिन्दी टीका-निरूह शब्द का १ ऊहशून्य (तर्कशून्य) अर्थ भी होता है। निरोध शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. निग्रह, २. रोध (रोकना) और ३. नाश। निऋति शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अलक्ष्मी (दरिद्रा) २. नैऋत (राक्षस) और ३. निरुपद्रव (उपद्रव रहित) इस प्रकार निऋति शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल: निर्गुणः परमेशाने विद्यादिगुण वजिते । निर्ग्रन्थो वालिशे निस्स्वे मुनौ क्षपणके जिने ॥१०६४॥ निवृत्तहृदयग्रन्थौ द्यूतकर्तरि नग्नके । निर्ग्रन्थक: क्षपणके निष्फले चापरिच्छदे ॥१०६५॥ हिन्दी टीका - निर्गुण शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. परमेशान (परमात्मा) और २. विद्यादिगुणजित (विद्या आदि - दया दाक्षिण्य वगैरह गुणों से रहित) । निर्ग्रन्थ शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं१. वालिश (मूर्ख-अज्ञ) २. निस्स्व (निर्धन-गरीब) ३. मुनि (महात्मा साधु) ४. क्षपणक (संन्यासी) तथा ५. जिन (भगवान तीर्थंकर) । निर्ग्रन्थ शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. निवृत्तहृदयग्रन्थि (जिसके हृदय की ग्रन्थि-गाँठ अविद्या अज्ञानता नष्ट हो गई है - तत्वज्ञानी) २ द्यूतकर्ता (जुआ खेलने वाला) तथा ३. नग्नक (दिगम्बर) । निर्ग्रन्थक शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. क्षपणक (संन्यासी) २. निष्फल (फलरहित-सांसारिक आसक्ति रहित) और ३. अपरिच्छद (परिच्छद परिवार रहित) इस तरह निर्ग्रन्थक शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। निर्घण्टने स्थानिर्घन्टो निघण्टौ गणसंग्रहे । निर्जरस्त्रिदशे पुंसि सुधायां तु नपुंसकम् ॥१०६६॥ त्रिलिंग: स्याज्जरात्यक्ते गुडूची-मुरयो: स्त्रियाम् । निजितस्त्रिषु विज्ञयः पराभूते वशीकृते ॥१०६७।। हिन्दी टोका-निर्घण्ट शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. निर्घण्टन (घण्टारहित) २. निघण्टु (निघण्टु नाम का वैदिक कोष) तथा ३. गणसंग्रह । निर्जर शब्द-१. त्रिदश (देवता) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु २. सुधा (अमृत) अर्थ में नपुंसक है । १. जरात्यक्त (जरा-वृद्धावस्थारहित) और २. गुडूची (गिलोय) तथा ३. मुरा (मुरा नाम का प्रसिद्ध सुगन्ध द्रव्य विशेष)। इन तीन अर्थों में निर्जर शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । निजित शब्द-१. पराभूत (पराजित) और २. वशीकृत (वश में किया हुआ) इन दो अर्थों में त्रिलिंग है। निर्जीवः प्राणरहिते जीवात्मरहिते त्रिषु । निर्झरः सूर्यतुरगे झरे पुंसि तुषानले ॥१०६८।। निर्दटस्तु दयाशून्ये निष्प्रयोजन - तीव्रयोः । परापवादनिरते मतेऽपि कविभिः स्मृतः ॥१०६६।। हिन्दी टीका-निर्जीव शब्द १. प्राणरहित (प्राणशून्य) और २. जीवात्मरहित (जीवात्मा रहित) इन दोनों अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है। निर्झर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सूर्य मूल : मूल : Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निर्दर शब्द तुरग (सूर्य का घोड़ा) २. झर (झरना) और ३. तुषानल (बुस्सा का अग्नि)। निर्दट शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. दयाशून्य (निर्दय) २. निष्प्रयोजन (प्रयोजनरहित) ३. तीव्र (अत्यन्त घोर) ४. परापवाद निरत (दूसरों के अपवाद-मिथ्यारोप कलंक निन्दा वगैरह में निरत-तत्पर) और ५. मत (बुद्धि भी निर्दट कहते हैं। इस प्रकार निर्दट शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : निर्दर कठिने सारे निर्भये विगतत्रपे। निर्देशः कथनोपान्तशासनेषु पुमान् मतः ॥१०७०॥ हिन्दी टोका-निर्दर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. कठिन (कठोर) २. सार (तत्व भाग) ३. निर्भय (भयरहित) और ४. विगतत्रप (त्रपा-लज्जारहित)। निर्देश शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कथन, २. उपान्त (निकट-समीप) और ३. शासन (शासन करना) इस प्रकार निर्देश शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल: निध तं खण्डिते त्यक्त कम्पिते च प्रकीर्तितम् । निर्बन्धीऽभिनिवेशे स्यात् शिशूनामाग्रहान्तरे ॥१०७१।। निर्मलं स्यात्तु निर्माल्येऽभ्रके त्रिषु मलोज्झिते । निर्माणं निर्मितौ सारे कर्मभेदे समञ्जसे ॥१०७२।। हिन्दी टीका-निर्धूत शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. खण्डित (टुकड़ा किया हुआ) २. त्यक्त (परित्यक्त परित्याग किया हुआ) और ३. कम्पित । निर्बन्ध शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं १. अभिनिवेश (अभिमान) और २. शिशूनाम् आग्रहान्तर (बच्चों का दुराग्रह, हठ)। निर्मल शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्माल्य (निर्माल) २. अभ्रक (अबरख) और ३. मलोज्झित (मलरहित)। निर्माण शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. निर्मिति (रचना) २. सार (तत्त्व) ३. कर्मभेद (क्रिया विशेष) और ४. समजस (उचित-योग्य) इस तरह निर्माण शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : निर्मितं कृतनिर्माणे गठिते रचिते त्रिषु । निर्मुक्तस्त्यक्तसंयोगे त्यक्तनिर्मोकपन्नगे ॥१०७३।। त्रिषुस्यात्त्यक्त संयोगे निर्मुटं तु कचङ्गने । निर्मुट: खर्परे सूर्येऽपुष्पवृक्षेऽपि कीर्तितः ॥१०७४॥ हिन्दी टोका-निर्मित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. कृतनिर्माण (निर्माण किया गया) २. गठित (संगठित) और ३. रचित (रचा गया)। निर्मुक्त शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. त्यक्तसंयोग (निष्परिग्रह-परिग्रह-परिवार वगैरह सांसारिक झंझट रहित) २. त्यक्तनिर्मोकपन्नग (केञ्चुल रहित सर्प) और ३. कचङ्गन (कर—टैक्सशून्य हट्ट-हाट) इनमें त्यक्तसंयोग अर्थ में निमुक्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है और कचङ्गन अर्थ में निर्मुट शब्द नपुंसक माना जाता है किन्तु १. खर्पर (खप्पर) २. सूर्य और ३. अपुष्पवृक्ष (फूलरहित वृक्ष) अर्थों में निर्मुक्त शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। मूल : निर्मोको व्योम्नि सन्नाहे मोचने सर्पकञ्चुके । निर्याणं कुञ्जराऽपाङ्गभागे मोक्षेऽध्वनिर्गमे ।।१०७५।। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निर्मोक शब्द | १९३ निर्यातने वैरशुद्धौ दाने न्यासार्पणे वध्धे । ऋणादिशुद्धौ निर्यासो वृक्षक्षीर- कषाययोः ॥ १०७६ ॥ हिन्दी टीका --निर्मोक शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. व्योम (आकाश) २. सन्नाह (कवच ) ३. मोचन ( छोड़ाना) और ४. सर्पकञ्चुक (सांप का केञ्चल - केचुआ ) । निर्याण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कुञ्जराऽपाङ्गभाग ( हाथी का अपांगभाग - नेत्रकोण) २. मोक्ष तथा ३. अध्वनिर्गम (मार्ग) | निर्यातन शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. वैरशुद्धि ( शत्रुता का बदला लेना) २. दान, अर्पण करना वापस करना ) ४. वध तथा ५ ऋणादि शुद्धि (ऋण वगैरह दो अर्थ होते हैं - १. वृक्षक्षीर ( वृक्ष का लस्सा) और २. कषाय रस । निर्यूहः शेखरे द्वारे निर्यासे नागदंतके । आपीड़-क्वाथरसयो निर्लेपः ३. न्यासार्पण ( थाती को चुकाना ) । निर्यास शब्द के मूल : पापवर्जिते ॥ १०७७॥ आसङ्गरहिते लेपशून्ये चासौ त्रिलिंगकः । निर्वाणं निर्वृतौ मोक्षे निश्चले गजमज्जने ॥ १०७८ || हिन्दी टीका - निर्यूह शब्द के छह अर्थ होते हैं- १ शेखर (शिरोभूषण) २. द्वार, ३. निर्यास (लस्सा ) ४. नागदन्तक ( खूंटी) ५. आपीड़ ( मस्तकमाला) और ६. क्वाथरस - ( उकाला ) । निर्लेप शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पापवर्जित (पापरहित) २. आसंगरहित ( अनासक्ति) ३. लेपशून्य ( लेप - घमण्डरहित ) । निर्वाण शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. निर्वृति ( आनन्द विशेष) २. मोक्ष, ३. निश्चल (स्थिर) और ४. गजमज्जन (हाथी का स्नान - डूबना ) | मूल : विद्योपदेशने शून्ये विश्रान्तौ संगमेऽपि च । अस्तंगतौ नाभि जप्यमूलमंत्र नपुंसकम् ॥१०७६॥ त्रिष्वसौ वाणरहिते निमग्ने नष्ट मुक्तयोः । निर्वादो निश्चिते वादे ऽवज्ञा लोकापवादयोः ॥१०८० ।। हिन्दी टीका - नपुंसक निर्वाण शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं - १. विद्योपदेशन (विद्यो - पदेश ) २. शून्य (खाली) ३. विश्रान्ति ( विश्राम, शान्ति) ४. संगम ( मिलाप ) ५. अस्तं गति (अस्त हो जाना) और ६. नाभिजप्यमूलमन्त्र (नाभि में जप करने योग्य इष्ट मन्त्र ) किन्तु १. वाणरहित, २. निमग्न, ३. नष्ट और ४. मुक्त इन चारों अर्थों में निर्वाण शब्द त्रिलिंग माना जाता है। निर्वाद शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. निश्चित (निर्णीत) २. वाद ( विवाद ) ३. अवज्ञा ( निन्दा अपमान) और ४. लोकापवाद (कलङ्क) इस प्रकार निर्वाद शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : वादाभावे परीवादे दाने निर्वापणं वधे । नगरादेर्बहिष्कारे वधे निर्वासनं मतम् ।। १०८१ ॥ कृताग्निहोत्रे निर्विष्टः स्थिते प्राप्ते विवाहिते । निर्वृत्तिः सुस्थितौ मृत्यौ मोक्षेऽस्तंगमने सुखे ॥१०८२ ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निर्वाद शब्द हिन्दी टीका निर्वाद शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. वादाभाव (निर्विवाद) और २. परीवाद ( निन्दा) । निर्वापण शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. दान और २. वध (हत्या) । निर्वासन शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. नगरादेर्बहिष्कार ( नगर वगैरह से बहिष्कार - बायकाट) और २. वध (हिंसा) । निर्विष्ट शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. कृताग्निहोत्र ( अग्निहोत्री ) २. स्थित (विद्यमान ) ३. प्राप्त और ४. विवाहित। निर्वृत्ति शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. सुस्थिति (शान्ति) २. मृत्यु (मरण) ३. मोक्ष, ४. अस्तंगमन (अस्त) और ५. सुख भी निर्वृत्ति शब्द का अर्थ जानना । मूल : निर्वृत्तिर्जीविकाहीने निष्पत्तावपि कीर्तिता । हिन्दी टीका - निर्वृत्ति शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. जीविकाहीन (निर्जीविक) और २. निष्पत्ति ( सम्पन्नता) । निर्वेद शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. परवैराग्य ( दूसरे सांसारिक प्राणि वगैरह से वैराग्य प्राप्त करना) २ वैराग्य ( अनासक्ति) तथा ३. स्वावमानन (अपने को धिक्कारना) । निर्वेश शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं—१. वेतन, २. भोग, ३ परिणीति (परिणय विवाह) और ४. मूर्च्छन (मूर्च्छा प्राप्त करना) । नपुंसक निर्वेष्टन शब्द का -- १. नाडिचीर अर्थ होता है किन्तु २. वेष्टनोज्झित (वेष्टनरहित) अर्थ में निर्वेष्टन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । इस प्रकार निर्वेष्टन शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए । ए निर्हारो मलमूत्रादित्यागे चाभ्यवकर्षणे । यथेष्टविनियोगेऽपि दाहे सूरिभिरीरितः ।। १०८५ || वस्त्रे गृहे निवसनं निवहो मारुते चये । निवात आश्रयेऽवाते निवासेऽभेद्यवर्मणि ॥१०८६ ॥ हिन्दी टीका – निर्धार शब्द के चार अर्थ होते हैं - मलमूत्रादित्याग ( मलमूत्र परित्याग ) २. अभ्यवकर्षण (खींचना) ३. यथेष्ट विनियोग (इच्छानुसार खर्च करना) और ४. दाह । निवसन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. वस्त्र और २. गृह । निवह शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. मारुत (पवन) और चय ( समुदाय ) । निवात शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. आश्रय, २. अवात (वायुरहित) ३. निवास और ४. अभेद्यवर्म (अभेद्य कवच ) । इस प्रकार निवात शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : मूल : निर्वेदः पर-वैराग्ये वैराग्ये स्वावमानने ॥१०८३ || निर्वेशो वेतने भोगे परिणीतौ च मूर्च्छने । निर्वेष्टनं नाडिचीरे त्रिष्वसौ वेष्टनोज्झिते ॥१०८४ ॥ निवापः पितृदाने स्याद् दानमात्रेऽपि चेष्यते । निवीतमुपवीते स्यादाच्छादनपटे त्रिषु ॥ १०८७॥ निवृत्तिः स्यादुपरम प्रवृत्ति प्रागभावयोः । समर्पणा ssarat निवेदनमितीरितम् ॥१०८८ ॥ हिन्दी टीका-निवाप शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. पितृदान ( पितर निमित्तक दान - श्राद्ध तर्पण वगैरह ) और २. दानमात्र ( साधारण दान) । निवीत शब्द - १. उपवीत (उपनयन – यज्ञोपवीत) अर्थ में नपुंसक माना जाता है और २. आच्छादनपट ( ओढ़ने का कपड़ा) अर्थ में Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निवेश शब्द | १६५ त्रिलिंग माना गया है । निवृत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. उपरम (विराम उपरति) और २. प्रवृत्तिप्रागभाव ( प्रवृत्ति का आरम्भ - तैयारी करना) । निवेदन शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं - १. समर्पण (अच्छी तरह अर्पण करना) और २. आवेदन ( अभिप्राय सूचित करना ) | मूल : निवेश: शिविरोद्वाह - विन्यासेषु निवेशने । निवेशनं प्रवेशे स्यान्नगरे च निकेतने ॥ १०८ ॥ मूल : निशा दारुहरिद्रायां वासतेयी - हरिद्रयोः । मेष वृषे च मिथुने कर्क - धन्वि मृगेष्वपि ॥ १०६० ॥ हिन्दी टीका - निवेश शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -- १. शिविर ( सेना का निवास स्थान विशेष) २. उद्वाह (विवाह) ३. विन्यास और ४. निवेशन ( प्रवेश कराना) । निवेशन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. प्रवेश ( प्रवेश करना) २. नगर और ३. निकेतन (गृह) । निशा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ होते हैं - १. दारुहरिद्रा (दारुहलदी ) २. वासतेयी (रात) ३. हरिद्रा ( हलदी) ४. मेष ( मेष राशि ) ५. वृष (वृष राशि ) ६. मिथुन ( मिथुन राशि ) ७. कर्की (कर्कराशि) ८. धन्वी (धनु राशि) और ६. मृग (मृर्गशीर्ष - मृगशिरा ) इस प्रकार निशा शब्द के नौ अर्थ जानना । - निशाचरश्चक्रवाके राक्षसे सर्प - भूतयोः । चोरके जम्बुके घूके रजनीचरमात्रके ।। १०६१।। निशाचरी तु राक्षस्यां कुलटायामपीष्यते । निशान्तं भवने कल्के क्लीवं शान्ते त्वसौ त्रिषु ॥ १०६२ ।। हिन्दी टीका - निशाचर शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं- १ चक्रवाक ( चकवा पक्षी विशेष ) २ राक्षस, ३. सर्प, ४. भूत (प्रेत) ५. चोरक (चोर) ६. जम्बुक (सियार - गीदड़ ) ७. घूक (उल्लू) तथा ८. रजनीचरमात्र (निशाचर प्राणी विशेष जो कि रात में ही विचरता है उसको रजनीचर कहते हैं ।) निशाचरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. राक्षसी और २. कुलटा (व्यभिचारिणी स्त्री) । नपुंसक निशान्त शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. भवन (गृह) और २ कल्प (सृष्टि–सर्गारम्भ ) किन्तु ३. शान्त अर्थ में निशान्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है । आलोचन - श्रवणयोर्दर्शनेऽपि निशामनम् । मूल : निशारणं रात्रियुद्धे रात्रिशब्दे च मारणे ।। १०६३॥ निशीथः स्यादर्धरात्रे रात्रिमात्रेऽपि कीर्त्यते । निश्चलाङ्गो बके स्पन्दरहिते पर्वतादिके ॥ १०६४ || हिन्दी टीका - निशामन शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. आलोचन (आलोचना करना) २. श्रवण ( सुनना ) और ३. दर्शन (देखना) । निशारण शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. रात्रियुद्ध ( रात में युद्ध - लड़ाई) २. रात्रि शब्द ( रात में शब्द - कोलाहल) और ३. मारण ( मारना - मरवाना) । निशीथ शब्द पुल्लिंग है है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. अर्द्ध रात्र ( आधी रात - मध्य रात) और २. रात्रिमात्र ( साधा Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निश्चुक्कण शब्द रण रात) और निश्चलाङ्ग शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. बक (बगुला) २. स्पन्दरहित (क्रियाशून्य) तथा ३. पर्वतादि (पर्वत वगैरह) इस प्रकार निश्चलांग शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : निश्चुक्कणं दन्तशाणे निषङ्गः संग-तूणयोः । निषङ्गथि स्तृणे स्कन्धे संश्लेषे सारथौरथे ॥१०६५॥ आपणे क्षुद्र खट्वायां निषद्या सद्भिरीरिता । निषध: कठिने शैले देशे राज्ञि स्वरान्तरे ॥१०६६॥ हिन्दी टीका-निश्चुक्कण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. दन्तशाण (दांत का शाण) होता है । निषंग शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. संग (सम्बन्ध) और २. तूण (तरकस म्यान)। निषंगथि शब्द भी पल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. तण (घास) २. स्कन्ध (कन्धा) ३. संश्लेष (आलिंगन) ४. सारथि और ५. रथ (गाड़ी)। निषद्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं--१. आपण (दुकान) और २. क्षुद्रखट्वा (छोटी चारपाई)। निषध शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं.-१. कठिन (कठोर) २. शैल (पर्वत) ३. देश, ४. राजा और ५. स्वरान्तर (स्वर विशेष—निषध नाम का स्वर) । मूल : निष्कः स्वर्णपले हेम्नि सौणिक चतुष्ट्ये । कंठभूषा स्वर्णकर्ष वक्षोलंकरणेषु च ॥१०६७॥ दीनारे षोडश द्रव्ये स्वर्णसाष्टशतेपले । आधारे नष्टवीर्ये च ब्रह्मणि विषु निष्कलम् ॥१०६८।। हिन्दी टीका-निष्क शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. स्वर्णपल (आधा तोला का स्वर्ण भूषण विशेष) २. हेम (सोना) ३. सौवणिक चतुष्टय (सोना का बनाया हुआ चार मोहर लाल) ४. कंठभूषा (गले का भूषण विशेष-अशर्फी) ५. स्वर्णकर्ष (पाँच आना भर सोना) तथा ६. वक्षोलंकरण (वक्षस्थल-छाती का अलंकरण-भूषण विशेष)। निष्क शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. दीनार (अशर्फी-लाल) २. षोडशद्रव्य (सोलह मिला हुआ द्रव्य) तथा ३. स्वर्णसाष्टशतपल (एक सौ आठ आना भर सोने का बनाया हुआ भूषण विशेष)। निष्कल शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. आधार, २. नष्टवीर्य (पराक्रम रहित) और ३. ब्रह्म (परब्रह्म परमात्मा) । निष्कला निष्कलीवत् स्याद् वृद्धा-विगतपुष्पयोः । निष्कासितो निर्गमितेऽधिकृताहितयो स्त्रिषु ॥१०६६।। कवाट-क्षेत्र - पत्न्याट - गृहा रामेषु निष्कुटः । निष्क्रमो बुद्धि सामर्थ्य निर्गमे दुष्कुले तथा ॥११००॥ हिन्दी टोका-निष्कला शब्द के निष्कली शब्द के समान दो अर्थ माने गये हैं.--१. वृद्धा और २. विगतपुष्पा (जिस स्त्री को मासिक धर्म बन्द हो गया है उसको विगतपुष्पा कहते हैं)। निष्कासित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. निर्गमित (निकाला गया) २. अधिकृत (अधिकार प्राप्त) और ३. अहित । निष्कुट शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कवाट, २. क्षेत्र, ३. पत्न्याट और ४. गृहाराम मूल : Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निष्क्रम शब्द | १९७ (गृहोद्यान)। निष्क्रम शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. बुद्धिसामर्थ्य (प्रतिभा-नौलेज) २. निर्गम (निकलना) और ३. दुष्कुल (नीच कुल) । इस प्रकार निष्क्रम शब्द के तीन अर्थ समझना । स्यान्निष्क्रमण संस्कारे, निस्तारेऽपि च निष्कृतिः । निष्क्रयो निर्गतौ बुद्धियोग - प्रत्युपकारयोः ॥११०१॥ भृतौ विनिमये शक्तौ निष्क्रियं ब्रह्मणि स्मृतम् । निष्ठा निर्वहणे नाशे निष्पत्तावन्त याञयोः ।।११०२।। हिन्दी टीका-निष्क्रम शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है-१. निष्क्रमण संस्कार (शिशु -नवजात बालक का निष्क्रमण नामक संस्कार)। निष्कृति शब्द का अर्थ--१. निस्तार (पूरा करना या समाप्त करना) । निष्क्रय शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं—१. निर्गति (निकलना) २. बुद्धियोग (ध्यान देना) ३. प्रत्युपकार (प्रत्युपकार करना) ४. भृति (सेवाकर्म) ५. विनिमय (परस्पर बदला करना) और ६. शक्ति (सामर्थ्य) । निष्क्रिय शब्द का अर्थ--१. ब्रह्म (परमात्मा) होता है। निष्ठा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-- १. निर्वहण (वहन करना) २. नाश (ध्वंस) ३. निष्पत्ति (निष्पन्न होना) ४. अन्त (समाप्ति) और ५. याच्या (याचना करना) इस तरह निष्ठा शब्द के पांच अर्थ समझना। मूल : व्याकृतिप्रत्यये प्राप्ये श्रद्धायामपि कीर्तिता। निष्पक्वं पक्वताशून्ये क्वथितेऽपि त्रिलिंगकम् ।।११०३।। सिद्धौ समाप्तौ निष्पत्तिविद्वद्भिः परिकीर्तिता । निष्पावो राजशिम्ब्यां स्यात् सूर्पवायौ समीरणे ॥११०४॥ हिन्दो टीका - निष्ठा शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं—१.व्याकृतिप्रत्यय (व्याकरण शास्त्र का प्रत्यय-क्त-क्तवतु नाम के दो प्रत्ययों को पाणिनीय व्याकरण में निष्ठा संज्ञा की गई है) और २. प्राप्य (ध्येय वस्तु-प्राप्तव्य पदार्थ) ३. श्रद्धा (आस्तिक भावना-विश्वास वगैरह) को भी निष्ठा कहते हैं। निष्पक्व शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पक्वताशून्य (अपरिपक्व) और २. क्वथित (उकाला हुआ)। निष्पत्ति शब्द के दो अर्थ माने गये हैं--१. सिद्धि (सफलता) और २. समाप्ति (समाप्त होना)। निष्पाव शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. राजशिम्बी (बड़ा सेम मटर छिमी बटाना) २. सूर्पवायु (सूप का पवन) और ३. समीरण (वायु) इस तरह निष्पाव शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : धान्यादि निस्तुषीकार्य बहुलीकरणादिषु । राजमाषे शिम्बिकायां निर्विकल्पे कडङ्गरे ॥११०५।। निसर्गस्तु स्वभावे स्यात्सर्गे रूपेऽपि कीर्तितः । निसृष्टे न्यस्त मध्यस्थे निसृष्टार्थो नरोत्तमे ।।११०६॥ हिन्दी टीका-निष्पाव शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं--१. धान्यादि निस्तुषी कार्य बहुलीकरणादि (धान वगैरह अन्न का छिलका–बुस्सा उड़ाना और फैलाना) २. राजमाष (उड़द) ३. शिम्बिका (शेम मटर छिमी बटाना) ४. निर्विकल्प (निःसन्देह) और ५. कडंङ्गर (बुस्सा-भुस्सा(छिलका) । निसर्ग शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं- १. स्वभाव २. सर्ग (सृष्टि रचना) Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निसृष्टार्थ शब्द ३. रूप ( सौन्दर्य) और ४. निसृष्ट (भेजा गया) तथा ५ न्यस्त मध्यस्थ (मध्यस्थ रूप में निर्धारित किया गया) | निसृष्टार्थ शब्द का अर्थ - १. नरोत्तम (उत्तम पुरुष ) होता है । इस तरह निसर्ग शब्द के पाँच और निसृष्टार्थ का एक अर्थ जानना । मूल : धनायव्ययरक्षादि नियुक्त दूत्यकृद्भिदि । त्रिषु निस्तुषितं त्यक्ते त्वग्विहीने लघूकृते ॥। ११०७।। निस्त्रिशो निर्दये खड्गे त्रिशत्शून्येऽपि कीर्तितः । नवोsपतौ गुप्तेऽविश्वासे निकृतावपि ॥। ११०८ ॥ हिन्दी टीका - निसृष्टार्थ शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. धनायव्ययरक्षादि नियुक्त ( धन के आय-व्यय की रक्षा वगैरह करने के लिए नियुक्त) और २. दूत्यकृद् भेद (दृत्य - दूत कर्म करने वाला ) | निस्तुषित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. व्यक्त (परित्यक्त) २. त्वग्विहीन (छिलका रहित करना) और ३ लघुकृत ( हलका करना) । निस्त्रिश शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. निर्दय (कठोर ) २. खड्ग (तलवार) ३. त्रिंशत् शून्य ( तीस से रहित ) । निह्नव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. अपह्न ुति (अपलाप) २. गुप्त (रहस्य) ३. अविश्वास ( विश्वास नहीं करना) और ४. निकृति ( निकार - पराभव) इस तरह निह्नव शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये । मूल : निक्षेपः क्षेपणे त्यागे स्यात् समर्पित वस्तुनि । नीकाश उपमायां स्यात् तुल्य- निश्चययोरपि ॥ ११० ॥ नीचः स्यात् पामरे नम्र वामने चोरके स्मृतः । नीचगः पामरे नीरे क्लीवं सरिति नीचगा ।। १११० ।। हिन्दी टीका - निक्षेप शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. क्षेपण (फेंकना) २ . त्याग (त्याग करना) और ३. समर्पित वस्तु ( थाती - न्यास के रूप में रखी हुई वस्तु ) । नीकाश शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१ उपमा ( सादृश्य) २. तुल्य ( सदृश सरखा) और ३. निश्चय (निर्णय) । नीच शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. पामर (कायर) २. नम्र (विनीत) ३. वामन (नाटा) और ४. चोरक (चोर) । नोचग शब्द भी १ पामर (कायर) अर्थ में पुल्लिंग है और २. नीर (जल, पानी) अर्थ में नपुंसक है और ३. सरित् (नदी) अर्थ में स्त्रीलिंग नीचगा शब्द जानना चाहिये । मूल : नीड: कुलाये स्थानेऽस्त्री नीतिः स्त्रीप्रापणे नये । नीध्र चन्द्रे वने नेमौ रेवती भ-वलीकयोः ॥ ११११ ॥ नीपः कदम्बे बन्धूकेऽशोक-धारा कदम्बयोः । नीरं जले रसेऽपि स्यात् नीरजन्तु सरोरुहे ।। १११२ ।। हिन्दी टीका - नीड शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. कुलाय ( नीड़ - घोंसला खोंता ) २. स्थान ( जगह ) । नीति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. प्रापण (पहुँचाना) और २ नय ( नीति विद्या) । नीघ्र शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नीरज शब्द | १६६ हैं-१. चन्द्र २. वन, ३. नेमि (गाड़ी के पहिया का अग्र भाग) ४ रेवतीभ (रेवती नक्षत्र) और ५. अलीक (मिथ्या-असत्य-अप्रसिद्ध वगैरह) । नीप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कदम्ब का वृक्ष) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल विशेष) ३. अशोक (नील अशोक का वृक्ष) और ५. धारा कदम्ब (कदम्ब वृक्ष की धारा श्रेणी)। नीर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. जल और २. रस (मधुरादि रस साधारण) नपुंसक नीरज शब्द का अर्थ-१. सरोरुह (कमल) होता है। मूल : कुष्ठौषधौ च मुक्तायां जलजाते त्वसौ त्रिषु । नीरजो जल मार्जारे लघुकाशेऽपि कीर्तितः ।।१११३॥ हिन्दी टीका -- नीरज शब्द १. कुष्ठौषधि (कूठ नाम का औषधि विशेष) और २. मुक्ता (मोती) तथा ३. जलजात (जलोत्पन्न) इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है। किन्तु पुल्लिग नीरज शब्द के दो अर्थ होते हैं—१. जलमार्जार (जल जन्तु विशेष) और २. लघुकाश (छोटा काश डाभ) । मूल : नीरदो मुस्तके मेघे रदहीने त्वसौ त्रिषु । नीरन्ध्र छिद्ररहिते सान्द्रेप्युक्त विलिगकम् ।।१११४।। नीरसो दाडिमे पुंसि त्रिलिंगो रसजिते । कुष्ठौषधौ नीरुजं स्यात् उल्लाघे नीरुजत्रिषु ॥१११५॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग नीरद शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं--१. मुस्तक (मोथा-जलमोथा) और २. मेघ (बादल) किन्तु ३. र दहीन (दाँत रहित) अर्थ में नीरद शब्द त्रिलिंग है । नीरन्ध्र शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. छिद्ररहित (छेद रहित निश्छिद्र) और २. सान्द्र (सघन, निविड)। नोरस शब्द १. दाडिम (अनार बेदाना) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. रसवर्जित (रसशून्य) अर्थ में नीरस शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नीरुज शब्द १. कुष्ठौषधि (कूठ नाम का औषधि विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. उल्लाघ (नीरोग) अर्थ में नीरज शब्द त्रिलिंग माना गया है । नीलं स्यात् काचलवणे सौवीराजन तुत्थयोः । नृत्याङ्ग करणे नील्यां विष-तालीश पत्रयोः ।।१११६॥ नीलो नीलौषधौ शैलविशेषे वानरान्तरे । इन्द्र नीलमणौ श्यामे मञ्जुघोषे च लाञ्छने ॥१११७॥ हिन्दी टोका-नपुंसक नील शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं -१. काचलवण (क्षार लवण) २. सौवीराञ्जन (अञ्जन विशेष-सुरमा) ३. तुत्थ (छोटी इलाइची) ४. नृत्यांगकरण (एक सौ आठ नृत्य के अंगों में करण नाम का नृत्य का अंग) ५. नीली (नील-गड़ी) ६. विष (जहर) और ७. तालीशपत्र । पुल्लिग नील शब्द के सात अर्थ होते हैं--१. नीलौषधि (नीलौषधि विशेष) २ शैल विशेष (पर्वत विशेषनीलगिरि नाम का पहाड़ जोकि मैसूर के पास है) और ३. वानरान्तर (वानर विशेष) तथा ४. इन्द्र नीलमणि (इन्द्रनील नाम का नीलरंग का मणि विशेष) ५. श्याम (श्याम रंग - शामला) ६. मञ्जुघोष (कोमल शब्द अथवा सुन्दर झोंपड़ी) और ७. लाञ्छन (चिन्ह विशेष) । न्यग्रोधे निधिभेदेऽपि नीलवर्णवति त्रिषु । नीलकं काचलवणे वर्तलोहेऽसने पुमान् ॥१११८।। मूल : Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - नील शब्द नीलकण्ठ : शिवे पीतसारे खञ्जन - बहिणोः । दात्यूहे ग्रामचटके मूलके तु नपुंसकम् ॥ १११६॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग नील शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. न्यग्रोध ( वट वृक्ष ) २. निधिभेद (निधि विशेष) और ३. नील वर्णवान (नील वर्ण वाला) इन तीनों अर्थों में नील शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नपुंसक नीलक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. काचलवण (क्षार लवण) और २. वर्त - लोह (इस्पात ) किन्तु ३ असन (बन्धूक फूल) अर्थ में नीलक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । पुल्लिंग नीलकण्ठ शब्द के छह अर्थ माने गये हैं- १. शिव ( शंकर भगवान् महादेव) २. पीतसार (पीतसार नाम का वृक्ष विशेष जिसका सार भाग पीला होता है) और ३. खञ्जन ( खञ्जन पक्षी विशेष ) ४. बर्ही ( मयूर - मोर) और ५. दात्यूह (जल कौवा, धूएँ से रंग वाला कौवा अत्यन्त काला काक, डोम काक — कारकौवा) तथा ६. ग्रामचटक (चकली, बगड़ा) किन्तु ७ मूलक (मूली-मुरें ) अर्थ में नीलकण्ठ शब्द नपुंसक माना जाता है । इस प्रकार नीलकण्ठ शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : नीलपत्रो गुण्ड दाडिमेऽश्मन्तकद्रुमे । नीलासने नीलपद्मे त्रिषु नील पलान्विते ।।११२०॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग नील पत्र शब्द के पाँच अर्थ होते हैं १. गुण्डतृण ( घास विशेष ) २. दाडिम ( बेदाना) ३. अश्मन्तकद्र म ( अश्मन्तक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ४. नीलासन (नीलवर्ण वाला बन्धूक फूल) और ५. नीलपद्म (नीलकमल ) किन्तु ६. नील पलान्वित अर्थ में त्रिलिंग है । नीलंगु र्भम्भराल्यां स्त्री कृमौ च शुषिरे पुमान् । नीलाञ्जसाऽप्सरोभेदे सौदामिन्यां नदीभिदि ॥११२१॥ नीलाम्बरे नीलवर्णवस्त्र - तालीशपत्रयोः । नीलाम्बरः प्रलम्बघ्ने राक्षसे च शनिग्रहे ॥। ११२२|| मूल : हिन्दी टीका - स्त्रीलिंग नीलंगु शब्द का अर्थ - १. भम्भराली (भ्रमर पंक्ति) होता है और पुल्लिंग नीलंगु शब्द का अर्थ २ कृमि (छोटा-छोटा कीड़ा) और ३. शुषिर (बिल) होता है । नीलाञ्जसा शब्द के तोन अर्थ माने जाते हैं - १. अप्सरोभेद ( अप्सरा विशेष) और २ सौदामिनी ( बिजली एलेट्रिक) तथा ३. नदीभिद (नदी विशेष ) । नपुंसक नीलाम्बर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. नोल वर्ण वस्त्र (नील वर्ण का कपड़ा) २. तालीशपत्र (तालीश नाम के वृक्ष का पत्ता) और पुल्लिंग नीलाम्बर शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. प्रलम्बघ्न (बलराम) और २. राक्षस तथा ३. शनिग्रह ( शनैश्चर, शनि) । नीलिका नेत्ररोगे स्यात् क्षुद्र रोगे जलज्वरे । मूल : शेफाली - नीलिनी-नील सिन्दुवारेषु कीर्तिता ॥ ११२३॥ नीवी स्त्रियां मूलधने राजपुत्रादि बन्धके । नारीकटी वस्त्रबन्धे पुंस्कटी वस्त्र - बन्धने ॥। ११२४ ॥ हिन्दी टीका - नीलिका शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं- १ . नेत्ररोग (आँख का रोग विशेष - फूला ) २. क्षुद्ररोग (छोटा रोग विशेष) ३. जलज्वर (जल की कुम्भी) ४. शेफाली (सिंहर हार का फूल --- पारिजात) ५. नीलिनी (शैवाल-सेमार) और ६. नीलसिन्दुवार (निर्गुण्डी - सिन्धुआर - स्यौंडी ) । नीवी शब्द स्त्रीलिंग Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नीशार शब्द | २०१ है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मूलधन, २. राजपुत्रादिबन्धक और ३. नारीकटीवस्त्रबन्ध (स्त्री के कमर का वस्त्र बन्धन - कोंचा) तथा ४. पंस्कटी वस्त्र बन्धन (पुरुष के कमर का वस्त्र बन्धन - कपड़े की गाँठ)। मूल : प्रच्छादने स्यान्नीशारो हिमानिल निवारणे । काण्डपट्टऽथ पूजायां स्तुतौ च नुतिरिष्यते ॥११२५।। नेता त्रिषु प्रभौ निम्बवृक्षे प्रापयितर्यपि । नेत्रं मन्थगुणे नाडी-वृक्षमूलजटाऽक्षिषु ॥११२६।। हिन्दी टोका-नीशार शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. प्रच्छादन (चादर) २. हिमानिलनिवारण (शीत पवन का निवारण) और ३. काण्डपट्ट (नौका के दण्ड में लगा हुआ कपड़ा वगैरह) । नुति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. पूजा और २. स्तुति। नेतृ शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रभू (स्वामी राजा) २. निम्बवृक्ष (नीम का वृक्ष) और ३. प्रापयिता (पहुँचाने वाला)। नेत्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. मन्थगुण (मन्थन दण्ड की डोरी) २. नाडी (नस) ३. वृक्षमूल जटा (वृक्ष के मूल की जटा - सोर-वड़) और ४. अक्षि (आँख)। मूल : रथे वस्तिशलाकाया मंशुके त्रिषु नेतरि । नेत्री प्रापणकर्त्यां स्याल्लक्ष्मी-नाडी-नदीषु च ।।११२७।। नेदिष्ठमन्तिकतमे विज्ञऽङ्कोटतरौ पुमान् । नेपथ्यं स्यादलंकारे रंगभूमौ प्रसाधने ॥११२८॥ हिन्दी टीका-नेत्र शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं - १. रथ, २. वस्तिशलाका (नाभि नीचे की रेखा) ३. अंशुक (वस्त्र का अञ्चल) तथा ४. नेता (ले जाने वाला) किन्तु इस नेतृ अर्थ में नेत्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नेत्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. प्रापणकर्ची (पहुंचाने वाली) २. लक्ष्मी ३. नाड़ी (नस) और ४. नदी । नेदिष्ठ शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. अन्तिकतम (अत्यन्त नजदीक) २. विज्ञ (अत्यन्त बुद्धिमान मेधावी) किन्तु ३. अङ्कोटतरु (ढेरा नामक वृक्ष विशेष - अङ्कोल) अर्थ में नेदिष्ठ शब्द पुल्लिग ही माना जाता है । नेपथ्य शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं -- १. अलंकार (भूषण) २. रङ्गभूमि (नाट्यशाला का पृष्ठ भाग) ३. प्रसाधन (वेशभूषा सजाना)। नेमो गर्तेऽवधौ काले सायंकालेऽर्द्ध मूलयोः । प्राकारे कपटे खण्डे नाट्यादावूज़ भिन्नयोः ॥११२६।। नेमिः स्त्री चक्रपरिधौ कूपान्तिक समस्थले । कूपो परिस्थ पट्टान्ते त्रिकायामपि कीर्तितः ।।११३०।। हिन्दो टोका-नेम शब्द के बारह अर्थ माने जाते हैं - १. गर्त (खड्ढा) २. अवधि, ३. काल, .. ४. सायंकाल, ५. अर्द्ध (आधा) ६. मूल (मूल-जड़ भाग) ७. प्राकार (परकोटा-चाहरदीवारी) ८. कपट मूल : Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित नेमि शब्द — (छल) C. खण्ड (टुकड़ा) १०. नाट्यादि (नाट्य वगैरह ) ११. ऊर्ध्व (ऊपर) और १२ भिन्न । नेमि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. चक्रपरिधि ( चक्की की चौड़ाई तथा लम्बाई) २. कृपान्तिक समस्थल (कूप के निकट की समतल भूमि) ३. कूपोपरिस्थपट्टान्त ( कप के ऊपर स्थापित पताका का अन्त छोर भाग तथा ४. त्रिका (कूप के अन्दर रज्जु वगैरह को धारण करने के लिये दारु यन्त्र विशेष ) । मूल : नेमिः पुमान् रथद्रौ स्याद् मतः तीर्थङ्करान्तरे । नैगम स्तूप निषदि वाणिजे नागरे नये ||११३१ ॥ न्यग्रोधः स्यादुवटे व्योम परिमाणे शमीतरौ । विषपर्णी लतायां च मोहनाख्यौषधावपि ।।११३२॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग नेमि शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. रथद्र (वजुल - तिनिश नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. तीर्थङ्करान्तर (भगवान् तीर्थङ्कर विशेष नेमिनाथ ) । नैगम शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. उपनिषद् (वेदान्त ब्रह्म विद्या) २. वाणिज ( वणिग् व्यापार ) ३. नागर (नागरिक नगरवासी) और ४. नय (द्रव्याथिक - ऋजुसूत्रादि सात नयों में नैगम नाम का प्रसिद्ध नय विशेष ) । न्यग्रोध शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. वट ( वट वृक्ष) २ व्योमपरिमाण (आकाश का परम महत् परिमाण) ३. शमीतरु (शेमर का वृक्ष) ४. विषपर्णीलता (विषपर्णी नाम की लता विशेष) और ५. मोहनाख्य औषधि ( मोहन नामक प्रसिद्ध औषधि विशेष) इस तरह न्यग्रोध शब्द के पाँच अर्थ समझना । मूल : न्य नीचे वामने निम्ने न्यंकुस्तु हरिणे मणौ । न्यक्षं कात्स्न्यें तृणे क्लीवं निकृष्टेऽसौ त्रिलिंगकः ।। ११३३ ॥ जामदग्न्ये लुलापे च पुमान् सद्भिरुदाहृतः । न्यायो विष्णौ तर्क शास्त्रे वाक्य भेदे समंजसे ||११३४ || हिन्दी टीका - न्यङ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. नीच (नीच अधम) २. वामन (नाटा) और ३. निम्न ( नोचा- गहरा ) । न्यंकु शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. हरिण (मृग ) २. मणि (मणि विशेष ) नपुंसक न्यक्ष शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. कात्स्य (सारा) और २. तृण (घास) किन्तु ३. निकृष्ट अर्थ में न्यक्ष शब्द त्रिलिंग माना जाता है । परन्तु ४. जामदग्न्य (परशुराम) और ५. लुलाप (भैंसा) अर्थ में न्यक्ष शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । न्याय शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-.. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. तर्कशास्त्र (न्यायशास्त्र) और ३. वाक्य भेद (पञ्चावयव वाक्य) ४. समञ्जस । मूल : युक्तिमूलक दृष्टान्त विशेषेऽपि प्रकीर्तितः । न्यासो ग्रन्थान्तरे त्यागे सन्न्यासे स्थाप्यवस्तुनि ।।११३५ ।। विन्यासेऽन्तर्बहि र्देहवर्णादिन्यास ईरितः । न्युब्जस्त्रिषु रुजाभुग्ने कुब्जा - धोमुखयोरपि ॥ ११३६॥ हिन्दी टीका - न्याय शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है - १. युक्तिमूलक दृष्टान्त विशेष | न्यास शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-- १. ग्रन्थान्तर (न्यास नाम का ग्रन्थ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-न्युब्ज शब्द | २०३ विशेष, जोकि काशिका ग्रन्थ का विवरण माना जाता है) २. त्याग, ३. सन्न्यास और ४. स्थाप्यवस्तु, (थाती, धरोहर) तथा ५. विन्यास और ६. अन्तर्बहिर्देहवर्णादिन्यास (शरीर के अन्दर तथा बाहर अकारादि वर्गों का न्यास विशेष, जोकि 'अं नमः आं नमः' इत्यादि रूप से मुख वगैरह का स्पर्श)। न्युब्ज शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं--१. रुजाभुग्न (लकवा वगैरह बात व्याधि के कारण जिसका अंग बाँका हो गया है) और २. कुब्ज तथा ३. अधोमुख इस प्रकार न्युज शब्द के तीन अर्थ समझना। पुमांस्त्वसौ दर्भमयस्र चि जु चि कुशेऽपि च । न्यूनमूने तथा गडें त्रिलिगः परिकीर्तितः ।।११३७।। पक्वं दृढ़े परिणत-प्रत्यासन्न विनाशयोः । पङ्कोऽस्त्री कर्दमे पापे पङ्कजं कमले मतन् ।।११३८।। हिन्दी टोका-पुल्लिग न्युब्ज शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. दर्भमय स्र च् (कुश का स्र चि) तथा २. स च (काष्ठ लकड़ी का स्र चि) और ३. कुश (दर्भ) । न्यून त्रिलिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. ऊन (कमती) और २. गद्य (निन्द्य)। पक्व शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं.-१. दृढ़ (मजबूत) २. परिणत (परिपक्व, पका हुआ) और ३. प्रत्यासन्नविनाश (जिसका विनाश निकट काल में होने वाला है)। पङ्ग शब्द पूल्लिग तथा नपंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. कर्दम (कीचड़) और २. पाप । पङ्कज शब्द का अर्थ–१ कमल होता है । पङ्कारः सेतु-शैवाल - सोपानेष -अम्बुकुब्जके । पंक्तिर्दशाक्षरच्छन्दोविशेष गौरवेऽवनौ ।।११३६।। पाके पञ्चाक्षरच्छन्दो दश संख्याऽऽवलीष च । पंगुः शनैश्चरे पुंसि जंघाहीने त्वसौ त्रिषु ॥११४०॥ हिन्दी टीका-पङ्कार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. सेतु (बाँध) २. शैवाल ३. सोपान (सीढ़ी-पगथिया) ४. अम्बु कुब्जक (भंवर, जल को भ्रमि विशेष) । पंक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं --१. दशाक्षरच्छन्दो विशेष (दश अक्षरों का छन्द विशेष) २. गौरव, ३. अवनि (पृथिवी) ४. पाक, ५. पञ्चाक्षरच्छन्दः (पाँच अक्षरों का छन्द विशेष) और ६. दशसंख्या तथा ७. आवली (श्रेणी)। पंगु शब्द १. शनैश्चर (शनि) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ८. जंधाहीन (जाँघ रहित) अर्थ में पंगु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार पंगु शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : पाके स्यात्पचनं वह्नौ पचन: पाककर्तरि । पचेलिमोऽर्के ज्वलने स्वयं पक्वे त्वसौ त्रिषु ॥११४१।। हिन्दी टीका-नपुंसक पचन शब्द का अर्थ -१. वन्हि (अग्नि) होता है। और पुल्लिग पचन शब्द का अर्थ-१. पाककर्ता (पकाने वाला) होता है। पुल्लिग पचेलिम शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. अर्क (सूर्य) और २. ज्वलन (वन्हि अग्नि) किन्तु ३. स्वयंपक्व (खुद पका हुआ) अर्थ में पचेलिम शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित–पञ्चगुप्त शब्द मूल : पञ्चगुप्तस्तु चार्वाकदर्शने कच्छपे स्मृतः । अथ पंचजनो दैत्य विशेषे पुरुषे मतः ॥११४२।। भण्डे पञ्चजनीनः स्यात् त्रिषु पञ्चजनीप्रभौ । पञ्चतत्वं स्मृतं पञ्चभूत पञ्चमकारयोः ॥११४३।। हिन्दी टीका–पञ्च गुप्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चार्वाक दर्शन (नास्तिक दर्शन शास्त्र) और २. कच्छप (काचवा, काछु) । पञ्चजन शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. दैत्य विशेष और २. पुरुष । पुल्लिग पञ्चजनीन शब्द का अर्थ-१. भण्ड (भाण्डघड़ा बर्तन) होता है । किन्तु २. पञ्चजनी प्रभु (पञ्चजन का प्रभु-मालिक) अर्थ में पञ्चजनीन शब्द विलिंग माना जाता है। पञ्चतत्व शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. 'पञ्चभूत (पृथिवी-जल-तेज-वायुआकाश) और २. पञ्चमकार (मत्स्य-मांस-मदिरा-मैथुन-मन्त्र) इस प्रकार पञ्चतत्व शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : मरणे पञ्चभावे च पञ्चत्वं पञ्चता स्त्रियाम् । - अथ पंचनख: कूर्मे शार्दूले कुञ्जरे पुमान् ॥११४४॥ पंचमो रुचिरे दक्षे पंचानां पूरणे त्रिषु । स्वरान्तरे रागभेदे तन्त्रीकण्ठोत्थितस्वरे ॥११४५॥ हिन्दी टीका-नपुंसक पञ्चत्व शब्द के और स्त्रीलिंग पञ्चता शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. मरण (मृत्यु निधन) और २. पञ्चभाव (पृथिवी-जल-तेजो-वायु-आकाश तत्व) । पञ्चनख शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. कूर्म (कच्छप-काचवा-काछु) २. शार्दूल (शार्दूल नाम का सबसे बड़ा पक्षी विशेष) और ३. कुञ्जर (हाथी)। पुल्लिग पञ्चम शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. रुचिर (सुन्दर) २. दक्ष (निपुण) किन्तु ३. पञ्चानां पूरण (पाँचवाँ) अर्थ में पञ्चम शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पञ्चम शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. स्वरान्तर (स्वरविशेष, निषाद-ऋषभगान्धार वगैरह सप्त स्वरों में पञ्चम नाम का सातवाँ स्वर विशेष) २. रागभेद (राग विशेष) और ३ तन्त्रीकण्ठोत्थित स्वर (वीणा तन्त्री के सहारे कण्ठोत्थित स्वर विशेष)। पञ्चमी शारिफलके द्रौपदी-तिथिभेदयोः । पञ्चसूना गृहस्थस्य चुल्ली पेषण्युपस्करः ॥११४६॥ कण्डनी चोदकुम्भश्च वध्यते याश्चवाहयन् । पञ्चाङ्ग पंजिकायां स्यात् पुरश्चरण कर्मणि ।।११४७।। __ हिन्दी टोका-पञ्चमी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं—१. शारिफलक (पाशा-चौपड़-शतरंज का फलक-घर) और २. द्रौपदी और ३. तिथिभेद (तिथिविशेष-पञ्चमी तिथि)। पञ्चसूना शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ मिले जुले माने जाते हैं-१. चुल्ली (चूल्हा) २. पेषणी (चक्की जांत लोढ़ी सिलौट) ३. उपस्कर (मार्जनी झारू) ४. कण्डनी (चालनी) और ५. उदकुम्भ (पानी का घड़ा) ये पाँच गृहस्थों के लिए दोष विशेष माना जाता है क्योंकि इन पांचों से प्राणी हिंसा होती है। पञ्चाङ्ग शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. पञ्जिका और २. पुरश्चरण कर्म (पूजा जप अनुष्ठान आदि)। मूल: Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-पञ्चांग शब्द | २०५ मूल : पंचाङ्गवे पंचभद्राश्वे प्रणामान्तर-कूर्मयोः । पंचाननो महादेवे सिहेऽत्युग्रे बुधैः स्मृतः ॥११४८॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पञ्चांग शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पञ्चभद्राश्व (पञ्चभद्र नाम का घोड़ा) २. प्रणामान्तर (प्रणाम विशेष—दण्डवत् प्रणाम) और ३. कूर्म (कच्छप-काचवा)। पञ्चानन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. महादेव, २. सिंह और ३. अत्युग्र (अत्यन्त क्रोध)। मूल : पंचामृतं सिता-दुग्ध-दध्याऽऽज्य मधुसंयुते । पंचाली शारिफलके पुत्तली - गीतभेदयोः ।।११४६॥ श्रोत्रत्वक नेत्ररसन घ्राणे पंचेन्द्रियं विदुः । पंजरः पुंसि कङ्काले गवां नीराजना विधौ ॥११५०॥ हिन्दी टीका-पञ्चामृत शब्द का अर्थ-मिले जुले १. सिता-दुग्ध-दध्याज्यमधुसंयुत (खांड़, चीनी-दूध-दही घृत और मधु शहद) अर्थ होता है । पञ्चाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. शारिफलक (पाशा चौपड़ का घर) २. पुत्तली (कठपुतली) और ३. गीतभेद (गीत विशेष) । पञ्चेन्द्रिय शब्द का अर्थ-श्रोत्र-कान त्वक्-त्वचा नेत्र-आँख रसन-जिह्वा और ध्राण-नाक इन पाँचों इन्द्रियों को पंचेन्द्रिय कहते हैं। पंजर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गवांकङ्काल (गौ बैल का अस्थि पञ्जर) और २. नीराजना विधि (आरती)। इस प्रकार पञ्जर शब्द के दो अर्थ जानना। कलौ शरीरे क्लीवन्तु पक्ष्यादिबन्धनालये। पंजिका त्वग्र सन्धानी-तूल नालिकयोरपि ॥११५१॥ टीका विशेषे पंचांगे व्ययाय लिपि पुस्तके । कायस्थे पंजिकाकारे पंजिकारक ईरित: ॥११५२॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पञ्जर शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं—१. कलि (कलह या कलियुग) और २. शरीर किन्तु नपुंसक पञ्जर शब्द का अर्थ ३. पक्ष्यादि बन्धनालय (पक्षी वगैरह का बन्धन गृह) । पञ्जिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. अग्रसन्धानी (आगे के साथ सम्बन्ध जोड़ने वाली) और २. तूल नालिका (कपास की नली) तथा ३. टीका विशेष और ४. पञ्चाङ्ग तथा ५. व्ययआय लिपि पुस्तक (आय-व्यय-आमद-खर्च लिखने की पुस्तक डायरी)। पञ्जिकारक शब्द के दो अर्थ होते हैं--१. कायस्थ और २. पञ्जिकाकार। मूल : पंजी स्त्री पंजिकायां स्यात् नालिका-ग्रन्थभेदयोः । पटोऽस्त्री कर्पटे चित्रपटे शोभनवाससि ।।११५३॥ पुमान् प्रियाल वृक्षेऽसौ त्रिलिंग: स्यात् पुरस्कृते । स्त्रियां पटकुटी वस्त्रगृहे प्राज्ञ : प्रयुज्यते ॥११५४॥ हिन्दी टीका-पजी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पञ्जिका, २. नालिका और ३. ग्रन्थभेद (ग्रन्थविशेष)। पट शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं मूल : Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल: २०६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--पटच्चर शब्द १. कर्पट (रोटी) २. चित्रपट (फोटो) ३. शोभनवासस् (सुन्दर कपड़ा) और ४. प्रियालवृक्ष (प्रियाल नाम का वृक्ष विशेष) किन्तु ५. पुरस्कृत (सत्कृत) अर्थ में पट शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पटकुटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-- १. वस्त्रगृह (कपड़े का घर-तम्बू कनात) होता है । पटच्चरं जीर्णवस्त्रे तस्करे तु पुमानसौ । शाटिकायां वस्त्रगेहे प्राज्ञा: पटमयं विदुः ॥११५५।। पटलं तिलके चाले नेत्ररोगे परिच्छदे । समूहे पिटके ग्रन्थे दृष्टेरावरके तरौ ।।११५६।। हिन्दी टीका-नपुंसक पटच्चर शब्द का अर्थ-१. जीर्णवस्त्र (फटा पुराना कपड़ा) होता है किन्तु २. तस्कर (चोर) अर्थ में पटच्चर शब्द पुल्लिग माना जाता है । पटमय शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. शाटिका (सारी) और २. वस्त्रगेह (कपड़े का घर) । पटल शब्द के नौ अर्थ माने गये हैं-१. तिलक (चन्दन) २. चाल (कम्पन) ३. नेत्र रोग (आंख का रोग विशेष) और ४. परिच्छद (परिवार) ५. पिटक (पिटारी) ६. ग्रन्थ, ७. दृष्टेरावरक (नजर का प्रतिबन्धक) और ८. तरु (वृक्ष) तथा ६. समूह (समुदाय) इस प्रकार पटल शब्द के नौ अर्थ जानना । आडम्बरे समारम्भे हिंसने पटहः पुमान् । अस्त्रियां मानके वाद्ये पटि तु कुम्भिकाद्रुमे ॥११५७॥ वागुलौ पटभेदेऽथ काण्डपटयां पटे पटी। पटीरं चन्दने तुङ्ग केदारे खदिरेऽम्बुदे ॥११५८।। हिन्दी टोका--पुल्लिग पटह शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं—१. आडम्बर (दिखावा) २. समारम्भ (तैयारी) और ३. हिंसन (हिंसा-वध करना) किन्तु ४. मानक वाद्य (नगाड़ा ढोल वगैरह वाद्य-बाजा विशेष) अर्थ में पटह शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। पटि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. कुम्भिका द्रम (पुर इनया जल कुम्भी अथवा कुम्भिका नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. वागुलि तथा ३. पटभेद (वस्त्र विशेष)। पटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -- १ काण्डपटी (पताका) और २. पट (कपड़ा वस्त्र)। पटोर शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं१. चन्दन (श्रीखण्ड चन्दन) २. तुंग (ऊँचा) ३. केदार (खेत, क्यारी) ४. खदिर (कत्था) और ५. अम्बुद (बादल मेघ) इस प्रकार पटोर शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : तितऔ वेणुसारे च मूलके वातिके स्मरे । उदरे हरणीयेऽथ छत्रा - लवणयोः पटु ॥११५६।। पटुः पुमान् पटोले स्यात् कारवेल्ले च चोरके । पटोल पत्रे काण्डीर लतायां च प्रयुज्यते ॥११६०।। हिन्दी टीका--पटीर शब्द के और भी सात अर्थ माने नये हैं-१. तितउ (चालनी) २. वेणुसार (बाँस का सार भाग) ३. मूलक (मूलो, मुरै) और ४. वातिक (पटुआ सन) तथा ५. स्मर (कामदेव) ६. उदर (पेट) और ७. हरणीय (रमणीय) । नपुंसक पटु शब्द के दो अर्थ माने गये हैं—१. छत्रा (सोंफ या Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - पटु शब्द | २०७ TO सोआ) और २. लवण (नमक) । पुल्लिंग पटु शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं -- १. पटोल ( परबल ) २. कारवेल्ल (करेला) और ३. चोरक (चोर) तथा ४. पटोलपत्र ( परबल का पत्ता) और ५. काण्डीरलता ( काण्डीर नाम की लता विशेष) इस प्रकार पटु शब्द का कुल मिलाकर सात अर्थ जानना चाहिये । पटुस्तीक्ष्णे स्फुटे धूर्ते दक्ष नीरोगयोस्त्रिषु । निष्ठुरेऽथ पटोलं स्याद् वस्त्रभेदे लताफले ॥११६१॥ पट्टः पेषण पाषाणे फलके ब्रणबन्धने । चतुष्पथे च कौशेये राजादेः शासनान्तरे ॥। ११६२।। मूल : हिन्दी टीका - पुल्लिंग पटु शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. तीक्ष्ण (तीव्र) २. स्फुट (स्पष्ट ) और ३. धूर्त (वञ्चक) किन्तु ४, दक्ष (निपुण) और ५. नीरोग अर्थ में तथा ६. निष्ठुर (कठोर) अर्थ में पटु शब्द त्रिलिंग माना गया है । पटोल शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. वस्त्र भेद (वस्त्र विशेष - पटोर) और २ लताफल ( परबल) । पट्ट शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं१. पेषण पाषाण (पीसने का पत्थर) २. फलक ( चौकी) और ३. ब्रणबन्धन ( घाव बांधने की पट्टो ) तथा ४. चतुष्पथ (चौराहा) ५. कौशेय (रेशम बस्त्र) और ६ राजादे: शासनान्तर ( राजा वगैरह का शासन विशेष) इस प्रकार पट्ट शब्द के छह अर्थ समझना । मूल : संव्यानोष्णीषयोः रक्तकौशेयोष्णीष- पीढयोः । पट्टी ललाटभूषायां कमु तलसारके ॥११६३।। पणः कार्षापणे द्यूते गृहे कार्षिक ताम्रि । निर्वेशे शौण्डिके मूल्ये धने विशति गण्डके ||११६४॥ हिन्दी टीका-पट्ट शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं- १. संव्यान ( चादर ) २. उष्णीष ( पगड़ी) और ३ रक्तकौशेयोष्णीष (लाल रेशम की पगड़ी) तथा ४. पीठ (आसन विशेष ) | पट्टी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. ललाट भूषा ( ललाट का भूषण) २. क्रमुक ( पट्टिका लोध्र या सुपारी) ३. तलसारक (घोड़े के वक्षस्थल का बन्धन रज्जु डोरी) । पण शब्द पुल्लिंग है और उसके तेरह अर्थ माने जाते हैं - १. कार्षापण (चौवन्नी, रुपये का चतुर्थांश) २. द्यूत (जुआ) ३. गृह ( मकान ) और ४. कार्षिक ताम्रिक (पैसा) ५. निर्देश ( वेतन, तनखाह या मजदूरी) ६. शौण्डिक (सूरी, तेली, घांची कलवार) ७. मूल्य (कीमत दाम) ८. धन, ६. विंशतिगण्डक (बीसगण्डा चार आना) । मूल : क्रय शाकाट्टिकायां च व्यवहारे भृतो ग्लहे । पणितं त्रिषु विक्रीते स्तुते व्यवहृतेऽपि च ।। ११६५।। पण्यविक्रय शालायां हट्ट े स्यात् पण्यवीथिका । पतङ्गो भास्करे शालि प्रभेदे शलभे खगे ॥११६६॥ हिन्दी टीका - पण शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. क्रय्य शाकाट्टिका (खरीदने लायक, खरीद किये जाने वाले शाक-भाजी का हाट बाजार दुकान ) २. व्यवहार और ३. भृति ( मजदूरी) तथा ४. ग्लह (जुआ) इस प्रकार कुल मिलाकर पण शब्द के तेरह अर्थ जानना चाहिये । पणित शब्द Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–पतन शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं .. १. विक्रीत (बेचा गया) २. स्तुत (पूजित) ३. व्यवहृत (व्यवहार किया गया) तथा ४. पण्य विक्रय शाला (वस्तु बेचने का घर) और ५. पण्यवीशिका शब्द का अर्थ१. हट्ट (हाट बाजार) होता है। पतंग पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. भास्कर (सूर्य) २. शालि प्रभेद (धान विशेष) ३. शलभ (टिड्डी पतंग) और ४. खग (पक्षी) इस तरह पतंग शब्द का चार अर्थ जानना। मूल : पतनं कल्मषे पाते तथा नीच गतावपि । पताका नाटकांगेऽङ्क केतु-सौभाग्ययोर्ध्वजो ॥११६७।। पतिर्धवे गतौ मूलेऽधिपतौ तु मतस्त्रिषु । पातित्ययुक्त चलिते गलिते पतनाश्रये ॥११६८।। हिन्दी टोका-पतन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. कल्मष (पाप) और २. पात (गिरना) तथा ३. नीचगति (अधः पतन) । पताका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. नाटकांग-(नाटक का एक पताका नाम का अंग विशेष) २. अङ्क (चिन्ह वगैरह) ३. केतु (ध्वजा का कपड़ा) ४. सौभाग्य और ५. ध्वज पताका)। पुल्लिग पति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. धव (स्वामी) २. गति (गमन) और ३. मूल (आदिकारण) किन्तु ४. अधिपति (मालिक) अर्थ में पति शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पति शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. पातित्ययुक्त (पतित) २. चलित, ३. गलित और ४. पतनाश्रय । मूल : स्वधर्म विच्युतेऽपि स्यात् पतितः सर्वलिंगभाक् । पत्तनं स्यान्महापुर्यां मृदङ्ग पुटभेदने ॥११६६।। पत्ति: पदातिके नीरे गतौ सेनान्तरे स्त्रियाम् । पत्रं स्याद् वाहने पर्णे पत्रिका-शरपक्षयोः ।।११७०॥ हिन्दी टोका--त्रिलिंग पतित शब्द का अर्थ ---१ स्वधर्मविच्युत (अपने धर्म से रहित) होता है । पत्तन शब्द के तीन अर्थ होते हैं- १. महापुरी (नगर-शहर) २. मृदंग और ३. पुटभेदन (नगर)। पत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पदातिक (पैदल सेना) २. नीर (पानी) ३. गति और ४ सेनान्तर (सेना विशेष चतुरंग सेनाओं में पदातिक सेना)। पत्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं.–१. वाहन (सवारी) २. पर्ण (पत्ता) ३. पत्रिका (चिट्ठी) और ४. शरपक्ष (बाण का पक्ष-पंख)। मूल : हैमपत्राकृति द्रव्ये पक्षिपक्षेक्षराश्रये । पत्राङ्ग पद्मके भूर्जे रक्तचन्दनदारुणि ॥११७१।। पत्रां पुमान् गिरौ वाणे श्येने वृक्षे विहंगमे । रथिके श्वेतकिणिही पाच्योः पत्रयुते त्रिषु ॥११७२।। हिन्दी टीका-पत्र शब्द के और भो तोन अर्थ माने जाते हैं-१. हैम पत्राकृति द्रव्य (सुवर्ण पत्र के समान आकृति वाला द्रव्य विशेष) २. पक्षिपक्ष (पक्षी की पाँख) और ३. अक्षराश्रय (अक्षरों का Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–पथ्य शब्द | २०६ आश्रयभूत पत्रिका चिट्ठी) । पत्राङ्ग शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पद्मक (हाथियों के मुख में कमल के समान छोटे-छोटे लाल चिन्ह) २. भूर्ज (भोजपत्र नाम का प्रसिद्ध कागज विशेष) और ३. रक्तचन्दनदारु (रक्त चन्दन की लकड़ी)। पुल्लिग नकारान्त पत्री शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं--१. गिरि (पहाड़) २. बाण (शर) ३. श्येन (बाज पक्षी) ४. वृक्ष, ५. विहंगम (पक्षी) ६. रथिक (रथवाहक) और ७. श्वेतकिणिही (सफेद चिरचीड़ी-चिड़ीहा अपामार्ग) ८. पाचीर (पकाने की कड़ाही) किन्तु इ. पत्रयत (पत्र से युक्त) अर्थ में नकारान्त पत्री शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार पत्रिन शब्द के कुल नौ अर्थ जानना। मूल : पथ्यं त्रिषु हिते क्लीवं सैन्धवेऽथ पुमानसौं । हरीतकोद्रुमे पथ्या वन्ध्या कर्कोटकीद्रुमे ॥११७३॥ चिभिटायां मृगेर्वारौ हरीतक्यामपि स्मृता । पदं शब्दे श्लोकपादे वस्तुनि त्राण-चिह्नयोः ।।११७४॥ हिन्दी टीका-त्रिलिंग पथ्य शब्द का अर्थ-१. हित होता है। और नपुंसक पथ्य शब्द का अर्थ-२. सैन्धव (घोड़ा) होता है। और पुल्लिग पथ्य शब्द का अर्थ-३. हरीतको म (हरे का वृक्ष) होता है । स्त्रीलिंग पथ्या शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. वन्ध्याकर्कोटकीद्रुम (फलरहित कर्कोटकी नाम का वृक्ष विशेष) २. चिभिटा (चिरचीड़ी-चिड़ीहा-अपामार्ग) ३. मृगेर्वारि तथा ४. हरीतकी (हरें)। पद शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. शब्द, २. श्लोकपाद (श्लोक का चरण) ३. वस्तु और ४. त्राण तथा ५. चिन्ह । व्यवसाये पादचिन्हे प्रदेशेस्थान वाक्ययोः । चरणेऽपि मतं क्लीवं किरणे तु पुमानसौ ॥११७५॥ पद्धतिर्वर्त्मनि श्रेण्यां ग्रन्थे ग्रन्थार्थबोधके । पद्मं स्यात् कमले व्यूहे पद्मकाष्ठौषधौनिधौ ॥११७६।। हिन्दी टीका-पद शब्द के और भी सात अर्थ होते हैं-१. व्यवसाय (उद्योग) २. पादचिह्न, ३. प्रदेश, ४. स्थान ५. वाक्य, ६. चरण (पाद-पैर) तथा ७. किरण । इस किरण अर्थ में पद शब्द पुल्लिग है और व्यवसाय वगैरह छह अर्थों में पद शब्द नपुंसक है। पद्धति शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. वर्त्म (रास्ता) २ श्रेणी, ३. ग्रन्थ और ४. ग्रन्थार्थबोधक (ग्रंथार्थ का बोधक)। पद्म शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कमल, २ व्यूह, ३. पद्मकाष्ठौषधि (पद्मकाष्ठ नाम का औषधि विशेष) और ४. निधि । पद्मके सीसके संख्याभेद - पुष्करमूलयोः । पद्मो दाशरथौ नाग - विशेषे - बलदेवयोः ॥११७७।। पद्मोत्तरात्मजे स्त्रीणां रतिबन्धान्तरे पुमान् । पद्मकं पद्मकाष्ठे स्याद् बिन्दु जालक-कुष्ठ्ययोः ।। ११७८।। हिन्दी टोका-नपुंसक पद्म शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. पद्मक (हाथी के मूल : मूल : Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–पद्मनाभ शब्द मुख में कमल के समान छोटे-छोटे लाल बिन्दु) २. सीसक (शीशा) ३. संख्याभेद (संख्या विशेष) और ४. पुष्करमूल (कमल का नाल दण्ड) । पुल्लिग पद्म शब्द के पांच अर्थ होते हैं—१. दाशरथि २ नागविशेष ३. बलदेव, ४. पद्मोत्तरात्मज (पद्मोत्तर का पुत्र) और ५. स्त्रीरतिबन्धान्तर (स्त्री का रतिभोगकालिक बन्धन विशेष)! पद्मक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं—१. पद्मकाष्ठ २. बिन्दुजालक (हाथी के मुख में कमल के समान छोटे-छोटे लाल बंद) और ३. कृष्ठ। इस प्रकार पद्मक शब्द के तीन अर्थ सम ने चाहिए। मूल : पद्मनाभो हृषीकेशे भावितीर्थङ्करान्तरे । पद्मप्रभः पद्मतुल्यप्रभायुक्ते जिनान्तरे ॥११७६।। ब्रह्म - सूर्य - कुवेरेषु नृपतौ पद्मलाञ्छनः। इन्दिरायां सरस्वत्यां तारायां पद्मलाञ्छना ।।११८०॥ हिन्दी टोका-पदमनाभ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -- १. हृषीकेश (भगवान कृष्ण) २. भावितीर्थङ्करान्तर (पद्मनाभ नाम के भावी तीर्थङ्कर विशेष) । पद्मप्रभ शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. पद्मतुल्यप्रभायुक्त (कमल के समान प्रभायुक्त) और २. जिनान्तर (पद्मप्रभ नाम के तीर्थङ्कर विशेष)। पुल्लिग पद्मलाञ्छन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. ब्रह्म (परमात्मा) २. सूर्य, ३. कुबेर और ४. नृपति (राजा)। स्त्रीलिंग पद्मलाञ्छना शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. इन्दिरा (लक्ष्मी) २. सरस्वती और ३. तारा (भगवती तारा) इस तरह पद्मलाञ्छन शब्द के सात अर्थ जानना। मूल : पद्मा लक्ष्म्यां लवंगे च व्यतीतजिनमातरि । बृहद्रथसुता - पद्मचारिणी- पञ्जिकासु च ॥११८१॥ कुसुम्भपुष्पे मनसादेव्यामपि सतां मता। पद्यं कविकृतौ शाम्य पद्या मार्गे स्तुतावपि ॥११८२॥ हिन्दो टोका-स्त्रीलिंग पद्मा शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं-१. लक्ष्मी, २. लवङ्ग, ३. व्यतीतजिनमाता (अतीत तीर्थंकर विशेष पद्मप्रभ की माता) ४. बृहद्रथसुता (बृहद्रथ-राजा की कन्या) ५. पद्मचारिणी (स्थलकमलिनी) ६ पञ्जिका (टीका-पद्धति वगैरह) । ७. कुसुम्भपुष्प (कुसुम वरे, कुसुम्भ नाम का प्रसिद्ध फूल विशेष) तथा ८. मनसादेवी (भगवती मनसा देवो) को भी पद्मा कहते हैं। नपुंसक पद्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं ----१. कविकृति (कवि की रचना) और २. शाठ्य (शठता)। स्त्रीलिंग पद्या शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. मार्ग (रास्ता) और २. स्तुति (प्रशंसा)। इस प्रकार पद्य शब्द के चार अर्थ समझना। पद्मिनी हस्तिनी-पद्म-मृणालेषु सरोवरे । स्त्रीविशेषे पद्मयुक्तदेशे - पद्म समूहयोः ॥११८३॥ पन्नगो भुजगे पद्मकाष्ठ - भेषजभेदयोः । पपी: स्याच्चन्दिरे सूर्ये पयः सलिल दुग्धयोः ॥११८४॥ हिन्दो टोका-पद्मिनो शब्द के सात अर्थ माने गये हैं --१. हस्तिनी (हथिनी) २. पद्म (कमल) मूल : Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित पयस्विनी शब्द | २११ ३. मृणाल (कमल नाल तन्तु) ४. सरोवर (तालाब) ५. स्त्रीविशेष (पद्मिनी चित्रणी हस्तिनी और शंखिनी - इस चार प्रकार की स्त्रियों में पद्मिनी नाम की स्त्री विशेष ) ६. पद्मयुक्तप्रदेश (कमलयुक्त स्थान) तथा ७. पद्मसमूह ( कमल समूह) को भी पद्मिनी कहते हैं । पन्नग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- - १. भुजग (सर्प) २. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष) और ३. भेषजभेद ( औषध विशेष ) । पपी शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. चन्दिर (चन्द्रमा) और २. सूर्य । पयस् शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. सलिल (जल - पानी) और २ दुग्ध (दूध) । इस प्रकार पयः शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : पयस्विनी नदी - क्षीरविदारी धेनु - रात्रिषु । जीवन्ती-क्षीर काकोली - दुग्ध फेनीषु कीर्तिता ॥११८५ ॥ पयोधरः स्तने मेघे नारिकेले कशेरुणि । परं स्यात्केवले मोक्षे परो ब्रह्मायु वैरिणोः ||११८६।। 4 हिन्दी टीका - पयस्विनी शब्द के सात अर्थ माने गये हैं- १. नदी, २. क्षीरविदारी ( शुक्ल भूमि कूष्माण्ड- सफेद कोहला – कुम्हर) ३. धेनु (दुधारु गाय ) ४. रात्रि (रात) ५. जीवन्ती (दोरो - जीवन्ती नाम की प्रसिद्ध औषधि विशेष ) ६. क्षीरकाकोली (लता विशेष अथवा औषध विशेष) और ७. . दुग्ध (दूध का फेन) । पयोधर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. स्तन, २ मेघ, ३. नारिकेल और ४. कशेरू (केशौर) । नपुंसक पर शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं- १. केवल ( अकेला ) और २. मोक्ष । पुल्लिंग पर शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. ब्रह्मायु (ब्रह्मा की आयु — कोटियुग सहस्र ) और २. वैरी (शत्रु) को भी पर कहते हैं । मूल : परस्त्रिषूत्तरे श्रेष्ठे शत्रावितरदूतयोः । परञ्ज स्तैलयन्त्रे स्यात् क्षुरिकाफल - फेनयोः ।। ११८७ ॥ परभागो गुणोत्कर्षे शेषांशे च सुसम्पदि । आद्ये प्रधान उत्कृष्टेऽग्रसरे परमस्त्रिषु ।। ११८८ ।। हिन्दी टीका - त्रिलिंग पर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. उत्तर (उत्तरकाल या उत्तरदेश) २. श्रेष्ठ (महान्) ३. शत्रु ४. इतर ( अन्य दूसरा ) तथा ५, दूत ( सन्देशहारक) । परञ्ज शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. तैलयन्त्र (कल- कोल्हू तैल निष्कासक यन्त्र विशेष ) २. क्षुरिकाफल ( फल विशेष ) तथा ३. फेन । परभाग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. गुणोत्कर्ष ( प्रशंसनीय गुण ) २. शेषांश (बचा हुआ भाग) और ३. सुसम्पद् (सुन्दर सम्पत्ति ) । परम शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. आद्य (पहला) २. प्रधान (मुख्य) ३. उत्कृष्ट (बढ़िया) और ४. अग्रेसर ( मुखिया नेता) । इस प्रकार परम शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : नारायणे शिवे तीर्थंकरे च परमेश्वरः । परमेष्ठी जिने ब्रह्म - शालग्रामविशेषयोः ॥ ११८६ ॥ परम्पर: प्रपौत्रादौ प्रपोत्रतनये मृगे । परम्परा स्त्री सन्ताने परिपाट्यां वधेऽपि च ।।११६०॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-परमेश्वर शब्द हिन्दी टीका-परमेश्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नारायण (विष्णु भगवान) २. शिव (महादेव) ३. तीर्थङ्कर (भगवान अर्हन्) । परमेष्ठी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. जिन (भगवान अर्हन्) २. ब्रह्म (परमात्मा) और ३. शालग्रामविशेष (शालग्राम)। पुल्लिग परम्पर शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्रपौत्रादि (प्रपौत्र वगैरह) २. प्रपौत्रतनय (प्रपौत्र का लड़का-वृद्ध प्रपौत्र) तथा ३. मृग (हरिण)। स्त्रीलिंग परम्परा शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं—१. सन्तान (सन्तान परम्परा) २. परिपाटी और ३. वध (हिंसा)। इस तरह परम्पर शब्द के कुल छह अर्थ जानना । मूल : परक्षेत्रं त्वन्यदेहे परभूमौ परस्त्रियाम् । पराक: क्षुद्र - निस्त्रिश - रोग-जन्तु- व्रतेषु च ।।११६१॥ पराक्रमः समुद्योगे निष्क्रान्तौ विक्रमे बले । परागश्चन्दने रेणौ पुष्परेणू - परागयोः ।।११६२॥ हिन्दी टोका - परक्षेत्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अन्यदेह (परशरीर) २ परभूमि (दूसरे का खेत) तथा ३. परस्त्री (पराई स्त्री)। पराक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१ क्षुद्र (अधम) २. निस्त्रिश (तलवार) ३. रोग (व्याधि) ४. जन्तु (छोटा प्राणी) और ५. व्रत (उपवास वगैरह) । पराक्रम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. समुद्योग, २. निष्क्रांति (निष्क्रमण, निकलना) ३. विक्रम (शूरता) और ४. बल । पराग शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. चन्दन, २. रेणु (धूलि) ३. पुष्परेणु (फूल का रेणु) और ४. उपराग (ग्रहण, सूर्यग्रहण वगैरह)। मूल : स्वच्छन्दगमने ख्याति स्नानीयद्रव्ययो गिरौ। आश्रये तत्परेऽभीष्ट आसंगे च परायणा ॥११६३॥ परिवारे समारम्भे विवेक - सहकारिणोः । प्रगाढ गात्रिका बन्धे मञ्चे परिकरश्चये ॥११६४॥ हिन्दी टोका-पराग शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं ---१. स्वच्छन्दगमन (स्वेच्छानुसार गमन) २. ख्याति (यश प्रतिष्ठा वगैरह) ३. स्नानीय द्रव्य (स्नान के लिए चूर्ण द्रव्य विशेष) और ४. गिरि (पर्वत) । परायण शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. आश्रय (शरण) २. तत्पर (तल्लीन) ३. अभीष्ट (अपना प्रिय) और ४. आसंग (आसक्ति)। परिकर शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. परिवार (कुटुम्ब) २. समारम्भ (तैयारी) ३. विवेक (विचार) ४. सहकारी (सहयोग मदद करने वाला) और ५. प्रगाढगात्रिकाबन्ध (अत्यन्त मजबूत शरीर का बन्धन विशेष) ६. मञ्च (मचान) और ७. चय (समूह) इस तरह परिकर शब्द के सात अथ जानना। मूल : परिकर्माऽङ्गसंस्कारे क्लीवं स्यात् सेवके पुमान् । विस्मृते वेष्टिते ज्ञाते प्राप्ते परिगतस्त्रिषु ॥११६५।। परिग्रहः परिजने राहुवक्त्रस्थभास्करे । स्वीकारे शपथे कन्दे सैन्यपृष्ठे स्त्रियामपि ॥११६६।। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - परिकर्मन शब्द | २१३ हिन्दी टीका - नपुंसक परिकर्मन शब्द का अर्थ - १. अंगसंस्कार (शरीर का संस्कार ) होता है और पुल्लिंग परिकर्मन शब्द का अर्थ - २. सेवक (परिचारक) होता है । त्रिलिंग परिगत शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. विस्मृत ( भूल जाना) २. वेष्टित ( लपेटा हुआ ) ३. ज्ञात (विदित) और ४. प्राप्त । परिग्रह पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. परिजन (परिवार कुटुम्ब ) २. राहुवक्त्रस्थभास्कर (राहुग्रस्त सूर्य) और ३. स्वीकार तथा ४ शपथ (सौगन्ध ) ५. कन्द (मूल) और ६. सैन्यपृष्ठ, तथा ७. स्त्री (महिला) । मूल : परिघो मुद्गरे शूले गोपुरे कलशेऽर्गले । लोह सम्बद्धलगुडे योगे काचघटे गृहे ॥। ११६७॥ परिघोषस्तु शब्दे स्यात् अवाच्ये मेघगर्जिते । संस्तवे स्यात् परिचयः समन्ताच्चयने स्मृतः ||११६८॥ हिन्दी टीका - परिघ शब्द पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ माने गये हैं- १. मुद्गर ( गदा विशेष ) २. शूल (त्रिशूल ) ३. गोपुर (पुरद्वार) ४. कलश ( घड़ा ) ५. अर्गल (अर्गला ) ६. लोहसम्बद्धलगुड (लोहे से जड़ा हुआ लगुड - यष्टि ) ७. योग तथा ८ काच घट (काच का घड़ा) और ६. गृह (घर) । परिघोष शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. शब्द, २. अवाच्य (अवक्तव्य ) और ३ मेघगर्जित । परिचय शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. संस्तव (ओलखान) और २. समन्तात् चयन (चारों तरफ से चयन- एकत्रित करना) । मूल : परिच्छिन्नोऽवधिप्राप्ते परिच्छेदयुते त्रिषु । परिच्छेदोsar ग्रन्थविच्छेदे कृति निश्चये ॥ ११६ ॥ परिवारे परिजन : समीप स्थितसेवके । तिर्यग् दन्त प्रहारेभे पक्वे परिणतं त्रिषु ॥ १२००॥ हिन्दी टीका - परिच्छिन्न शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. अवधिप्राप्त (पूर्ण अवधि) और २. परिच्छेदयुत (सीमित) । परिच्छेद शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. अवधि, २. ग्रन्थविच्छेद (ग्रन्थ का विभाग) और ३. कृति निश्चय (कार्य निर्णय ) । परिजन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. परिवार (कुटुम्ब ) और २. समीप स्थित सेवक (निकटवर्ती नौकर ) । परिणत शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थ - १. पक्व (परिपक्व ) होता है । किन्तु २ तिर्यग्दन्त प्रहार इभ ( मिट्टी के भिण्डा वगैरह में टेढ़ा दन्त प्रहार करने वाला हाथी ) अर्थ में परिणत शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । इस तरह परिणत शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : परिणामस्तु चरमे विकारेपि मतः पुमान् । परितापो भये कम्पे नरकान्तर- दुःखयोः ॥ १२०१॥ परित्राणन्तु रक्षणे | अत्युष्णतायां शोके च परिधायः परिच्छेदे जनस्थान - नितम्बयोः ॥ १२०२ ॥ हिन्दी टीका - परिणाम शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चरम (अन्तिम) Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-परिधि शब्द और २. विकार (विकृति)। परिताप शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. भय (डर) २. कम्प (काँपना) ३. नरकान्तर (नरक विशेष) और ४. दुःख तथा ५. अत्युष्णता (अत्यन्त गरमी) और ६. शोक । परित्राण शब्द का अर्थ- १. रक्षण (रक्षा करना) होता है। परिधाय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. परिच्छेद (वर्ग, प्रकरण, काण्ड, अध्याय वगैरह) और २. जनस्थान तथा ३. नितम्ब । इस तरह परिधाय शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : परिधिस्तु पुमान् सूर्यचन्दिरासन्नमण्डले । यज्ञीय द्रुम शाखायां स्याद् भूगोलादि वेष्टने ।।१२०३॥ नैपुण्ये परिपक्वत्वे परिपाकः प्रकीर्तितः । परिबों राजयोग्यवस्तुजाते परिच्छदे ॥१२०४॥ हिन्दी टीका-परिधि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्यचन्दिरासन्न मण्डल (सूर्य और चन्द्र को घेरने वाला गोलाकार रेखा विशेष जिसको परिवेष भी कहते हैं) और २. यज्ञीयद्र म शाखा (यज्ञ सम्बन्धी वृक्ष की शाखा) तथा ३. भूगोलादिवेष्टन (भूगोल वगैरह का वेष्टन)। परिपाक शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. नैपुण्य (चातुर्य) और २. परिपक्वत्व (परिपक्वता)। परिबह शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. राजयोग्य वस्तूजात (राजा के लायक वस्तुजात) और २. परिच्छद (हाथी, घोड़ा, वस्त्र आदि)। आलापे नियमे निन्दा दुर्वादे परिभाषणम् । परित्राणे मलत्यागे परिमोक्षो बुधैः स्मृतः ॥१२०५।। मारणे च परित्यागे परिवर्जनमीरितम् । परिवर्तो विनिमये कूर्मराजेऽपवर्तने ।।१२०६॥ हिन्दी टोका- परिभाषण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. आलाप (बोलना) २. नियम (रूलिंग) और ३. निन्दादुर्वाद (निन्दासूचक दुर्वाक्य)। परिमोक्ष शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. परित्राण (रक्षा करना) २. मलत्याग । परिवर्जन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. मारण (मारना) और २. परित्याग । परिवर्त शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं . १. विनिमय (अदला बदली) और २. कूर्मराज (कच्छप का राजा) तथा ३. अपवर्तन (परिवर्तन)। युगान्ते ग्रन्थविच्छेदे मृत्यपौत्रान्तरेऽपि च । परिवादोऽपवादे स्याद् वीणावादन वस्तुनि ॥१२०७॥ परिवापो जलस्थाने मुण्डने च परिच्छदे । परिवारः परिजने खड्गकोषे परिच्छदे ।।१२०८।। हिन्दी टीका-परिवर्त शब्द के और भी तोन अर्थ माने गये हैं-१. युगान्त (प्रलय काल) और २. ग्रन्थ विच्छेद (ग्रन्थ का विच्छेद-विभाग) तथा ३. मृत्युपौत्रान्तर (मृत्यु यमराज का पौत्रान्तर-पौत्र विशेष) । परिवाद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ अपवाद (कलंक) और २. णावी. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - परिवेदन शब्द | २१५ वादन वस्तु (वीणा बजाने का साधन ) । परिवाप शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. जलस्थान (कुंआ बावड़ी ) २. मुण्डन और ३. परिच्छद (परिवार ) । परिवार शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. परिजन ( सम्बन्धी वर्ग) २. खड्गकोष ( म्यान) और ३. परिच्छद । अग्न्याधाने परिज्ञाने विवाहे परिवेदनम् । मूल : परिवेषः परिवृतौ परिधौ परिवेषणे ॥ १२० ॥ परिष्कारस्त्वलंकारे शुद्धि - संस्कारयोरपि । भूषिताऽऽहित संस्कार - वेष्टितेषु परिष्कृतः ॥१२१०॥ हिन्दी टीका - परिवेदन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. अग्न्याधान (अग्निस्थापन ) २. परिज्ञान (सम्यग्ज्ञान) और ३. विवाह । परिवेष शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. परिवृति (वेष्टन घेरना) २. परिधि ( सूर्यचन्द्र मण्डल को घेरने वाला गोलाकार रेखा विशेष) और ३. परिवेषण (परोसना ) । परिष्कार शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. अलंकार (भूषण) २. शुद्धि ( पवित्रता) और ३. संस्कार । परिष्कृत शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं- १. भूषित( अलंकृत) २. आहित संस्कार (संस्कार से सम्पन्न युक्त) और ३. वेष्टित । मूल : पर्यन्तभूमौ मृत्यौ च विधौ परिसरो मतः । परिसर्याऽन्तसरणे सर्वतोगमने स्त्रियाम् ॥१२११॥ परिस्पन्दः परिकरे रचना - परिवारयोः । परीवाहो जलोच्छ्वासे राजयोग्ये च वस्तुनि ।। १२१२ ।। हिन्दी टीका - परिसर शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. पर्यन्त भूमि ( आस पास की भूमि ) २. मृत्यु ( मरण) और ३. विधि | परिसर्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. अन्तसरण (निकट तक जाना) और २. सर्वतोगमन (चारों तरफ जाना ) । परिस्पन्द शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. परिकर (आरम्भ, मन्त्री वगैरह परिजन समूह ) २. रचना (यत्न, क्रिया वगैरह ) और ३. परिवार । परीवाह शब्द भी पुल्लिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. जलोच्छ्वास ( पानी का प्रवाह वृद्धि) और २. राजयोग्य वस्तु (राजा के लायक वस्तुजात) | मूल : परीष्टिः परिचर्यायां प्राकाम्येऽन्वेषणे स्त्रियाम् । ग्रन्थि - पर्व तयोरपि ॥। १२१३॥ परुः समुद्रे स्वर्लोके परुषं निष्ठुरे वाक्ये नीलझिण्ट्यां परूषके । परुषं त्रिषु रूक्षे स्याद् निष्ठुरोक्तौ च कर्बु रे ।। १२१४ ।। हिन्दी टीका - परीष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं--१. परिचर्या (सेवा) २. प्राकाम्य (इच्छानुसार - यथेच्छ ) और ३. अन्वेषण ( ढूँढ़ना) । परु शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. समुद्र, २. स्वर्लोक (स्वर्गलोक ) परुष शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते ३. ग्रन्थि (गांठ बन्धन) तथा ४. पर्वत ( पहाड़ ) । - १. निष्ठुर वाक्य (कठोर वाक्य) २ नीलझिण्डी Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-परेत शब्द (नील रङ्ग का कटसरैया वृक्षलता विशेष) और ३. परूषक (कठोर) किन्तु त्रिलिंग परुष शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. रूक्ष (रूखा-सूखा) और २. निष्ठुरोक्ति (निष्ठुर वचन) तथा ३. कर्बुर (चितकबरा)। इस प्रकार परुष शब्द के कुल छह अर्थ जानना। मूल : मृते त्रिषु परेतः स्यात् भूतभेदे त्वसौ पुमान् । परैथितः पिके पुंसि परसंवर्धिते त्रिषु ॥१२१५।। हिन्दी टीका-त्रिलिंग परेत शब्द का अर्थ-१. मृत (मरा हुआ) होता है। किन्तु २. भूतभेद (भूत विशेष) अर्थ में परेत शब्द पुल्लिग माना जाता है । पुल्लिग परैधित शब्द का अर्थ-१. पिक (कोयल) होता है। किन्तु २. परसंवर्धित (दूसरों से परिवर्धित) अर्थ में परैधित शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : पर्जन्यो वासवे मेघे स्तनिते ध्वनदम्बुदे । स्त्री स्याद् दारु हरिद्रायां पर्ण ताम्बूलपत्रयोः ॥१२१६॥ पर्णसि: कमले शाके भूषणे जलसद्मनि । पर्दः. केशचयेऽपानवायूत्सर्गेऽपि कीर्तितः ॥१२१७।। हिन्दी टीका-'पर्जन्य शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वासव (इन्द्र) २. मेघ (बादल) ३. स्तनित (घन गर्जन) और ४. ध्वनदम्बुद (गरजता हुआ मेघ) किन्तु ५. दारुहरिद्रा (हलदो विशेष) अर्थ में पर्जन्य शब्द स्त्रीलिंग (पर्जन्या) माना जाता है। पत्र और ताम्बूल (पान) इन दोनों अर्थों में नपुंसक पर्ण शब्द का प्रयोग किया जाता है अर्थात् पर्ण शब्द का अर्थ--१. पत्र और २. ताम्बूल होता है। पर्णसि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. कमल, २. शाक, ३. भूषण (अलंकार-जेबर) और ४. जलसद्म (समुद्र या बादल)। पर्द शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. केशचय (केश समूह) और २. अपानवायूत्सर्ग अपानवायु का त्याग)। इस प्रकार पर्द शब्द के दो अर्थ जानना । पएं गृहे खजवाह्यशकटे ऽभिनवे तृणे । पर्पट: पुंसि तृष्णारिवृक्ष - पिष्टकभेदयोः ।।१२१८॥ पर्पटी जतुकृष्णायां सौराष्ट्रमृदि पिष्टके । पर्परीकः सहस्रांशौ पावके च जलाशये ॥१२१६॥ हिन्दी टोका-पर्प शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१ गृह (मकान, घर) २. खजवाह्यशकट (लंगड़ा पुरुष के द्वारा वहन करने योग्य शकट-गाड़ो) ३. अभिनव (नूतन, नया) और ४. तृण (घास) । पर्पट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं ... १. तृष्णारिवृक्ष (तृष्णा का नाशक वृक्ष विशेष-सोमलता वगैरह) और २. पिष्टकभेद (पिष्टकविशेष-पाउडर)। पर्पटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. जतकृष्णा (काला लाख) २. सौराष्टमद (सौराष्ट्र की मृत्तिकामिट्टी विशेष) और ३. पिष्टक (पिठार)। पर्परीक शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. पावक (वन्हि-अग्नि) और ३ जलाशय (तालाब वगैरह) । मूल: पर्याप्तं वारणे तृप्तौ प्राप्तौ शक्ति-यथेष्ट्योः । पर्याप्तिः स्यात् स्त्रियां प्राप्तौ परित्राण प्रकाशयोः ॥१२२०॥ मूल : Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-पर्याप्त शब्द | २१७ पर्यायोऽवसरे द्रव्यधर्म - निर्माणयोः क्रमे । प्रकार-सम्पर्क भिदोः पर्यासः पतने हतौ ॥१२२१॥ हिन्दी टीका-पर्याप्त शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वारण (निषेध, निवारण करना, हटाना) २. तृप्ति, ३. प्राप्ति, ४. शक्ति (सामर्थ्य) और ५. यथेष्ट (इच्छानुसार) । पर्याप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्राप्ति, २. परित्राण (रक्षा करना) और ३. प्रकाश (ज्योति)। पर्याय शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. अवसर (मौका) २. द्रव्यधर्म (पर्यायाथिक नय) ३. निर्माण (रचना) ४. क्रम (बारी से) ५. प्रकार (तद्भिन्न तत्सदृश) और ६. सम्पर्कभिद् (सम्पर्क विशेष)। पर्यास शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. पतन और २. हति (हनन, मारना)। मूल : पर्व क्लीवं क्षणे ग्रन्थौ प्रकारे लक्षणान्तरे । दर्श प्रतिपदोः सन्धौ ग्रन्थविच्छेद ईरितम् ॥१२२२॥ हिन्दी टीका- पर्वन् शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. क्षण (सैकिण्ड, मिनट, पल) २. ग्रन्थि (गांठ) ३. प्रकार (सदृश) ४ लक्षणान्तर (लक्षण विशेष) ५. दर्श (अमा. वस्था) और प्रतिपदा (प्रतिपद्) की सन्धि को भी पर्व कहते हैं और ६. ग्रन्थविच्छेद (ग्रन्थ का विभाग)। इस प्रकार पर्व शब्द के छह अर्थ समझना। पर्वतोऽद्रौ तरौ मीने शाक-देवर्षि-भेदयोः । आकाशमांस्यां गायत्र्यां काल्यां पर्वतवासिनी ॥१२२३॥ शरभे शैलवास्तव्ये पर्वताश्रय ईरितः। पर्वरीणोऽनिले गर्वे पर्णवृन्तरसे स्मृतः ॥१२२४॥ हिन्दी टोका - पर्वत शब्द पूल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. अद्रि (पहाड) २. तरु (वृक्ष) ३. मीन (मछली) ४ शाक, ५ देवर्षिभेद (देवर्षि विशेष) । पर्वतवासिनो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. आकाशमांसी (आकाशमांसी नाम की औषधि विशेष) २. गायत्री (गायत्री मन्त्र) और ३. काली (द)। पर्वताश्रय शब्द भी पल्लिग माना जाता है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. शरभ (शरभ नाम का सबसे बड़ा पक्षी विशेष) २. शैल वास्तव्य (पर्वत पर बसने वाला)। १. अनिल (वायु) २. गर्व (घमण्ड-दर्प) और ३. पर्णवन्तरस (पर्णवृन्त नाम के वृक्ष विशेष का रस)। इस तरह पर्वरीण शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल: पत्रचूर्णरसे द्यूतकम्बले मृतकेऽपि च। पलं विघटिकायां स्यात् साष्टरक्तिद्विमाषके ॥१२२५।। तोलकत्रितये मांसे चतुष्कर्ष - पलालयोः । मुण्डीरी-मक्षिका - लाक्षा - क्षुद्र गोक्षुरकेषु च ॥१२२६॥ हिन्दी टोका-पर्वरीण शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं—१. पत्रचूर्णरस (पत्रचूर्ण नाम के वृक्ष विशेष का रस) २. द्यूतकम्बल, ३. मृतक (मुर्दा)। पल शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ माने Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित—पलंकषा शब्द जाते हैं-१. विघटिका (क्षण-मिनट) २. साष्टरक्तिद्विमाषक (दो मासा और आठ रत्ती) ३. तोलकत्रितय (तीन तोला) ४. मांस ५. चतुष्कर्ष (चार कर्ष) ६. पलाल (पुआर-धान का डन्ठल) ७. मुण्डीरी ८. मक्षिका (मधुमक्खी) ६. लाक्षा (लाख) तथा १०. क्षुद्र गोक्षुरक (छोटा गोखरू-गोखुर-गोक्षुर)। इस तरह पल शब्द के दस अर्थ जानना। मूल : किंशुके गुग्गुली रास्नाद्रुमे स्त्री स्यात्पलंकषा। पललं तिलचूर्णे स्यात् सैक्षवे पङ्क-मांसयोः ॥१२२७॥ पलाशः किंशुके शट्यां हरिते मगधेऽसुरे । क्लीवं पत्रे त्रिलिंगस्तु हरिद्वर्णयुतेऽदये ॥१२२८॥ हिन्दी टीका-पलंकषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. किंशुक (पत्ता अथवा पलाश) २. गुग्गुलि (गुगल - गुगुल) ३. रास्नाद्र म (तुलसीवृक्ष) । पलल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं--१. तिलचूर्ण (तिल का चूर्ण) २. संक्षव (इक्षु-गन्ने का रस वगैरह) ३. पङ्क (कीचड़) और ४. मांस । पलाश शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं--१. किंशुक (पत्ता या ढाक पुष्प) २. शटी (कचूर-आमा हल्दी) ३. हरित (हरा रंग) ४. मगध और ५. असुर (राक्षस) किन्तु ६. पत्र (पत्ता) अर्थ में पलाश शब्द नपुंसक माना जाता है परन्तु ७. हरिद्वर्णयुतं (हरा रंग वाला) अर्थ में और ८. अदय (दयारहित-निर्दय) अर्थ में पलाश शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : पलाशी क्षीरिवृक्षे स्यात् वृक्ष-राक्षसयोः पुमान् । पलाशी सुरपर्त्यां स्याल्लाक्षायां स्त्री प्रकीर्तिता ॥१२२६।। हिन्दी टीका-नकारान्त पलाशिन् शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. क्षीरिवृक्ष (दूध वाला गूलर का वृक्ष वगैरह) २. वृक्ष तथा ३. राक्षस । स्त्रीलिंग पलाशी शब्द के दो अर्थ माने गये हैं—१. सुरपर्णी (लता विशेष) और २. लाक्षा (लाख)।। मूल : पलिघः काचकलशे प्राकारे गोपुरे घटे । पलितं कर्दमे तापे केशपाशे च शैलजे ॥१२३०॥ केशादिशौक्ल्ये जरसा वृद्धयोः पलितो द्वयोः । पल्लवोऽस्त्री किसलये शृङ्गारे विस्तरे बले ॥१२३१।। हिन्दी टीका-पलिघ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. काचकलश (कांच का घड़ा) २. प्राकार (परकोटा, चाहरदीवारी, दुर्ग-किला) ३. गोपुर (नगर का दरवाजा) और और ४. घट (घड़ा) । नपुंसक पलित शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. कर्दम (कीचड़) २. ताप (गर्मी) ३. केशपाश और ४. शैलज (पर्वत से उत्पन्न) तथा ५. जरसा केशादि शौक्ल्य (बुढ़ापे के कारण पका हुआ सफेद बाल--केश)। पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग पलित शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. वृद्ध (बुड्ढा पुरुष) तथा २. वृद्धा (बुड्ढी स्त्री)। पल्लव शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं१. किसलय (नूतन पत्र-नया पत्ता) २. शृंगार, ३. विस्तर (फैलाव) और ४ बल (सामर्थ्य, शक्ति)। मूल : विटपे नवपत्रादियुक्त शाखाग्रपर्वणि । अलक्तरागे वलये चापलेऽपि प्रकीर्तितः ॥१२३२॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पल्लव शब्द | २१६ वेश्यापतौ मत्स्यभेदे पुमान् पल्लवको मतः। विस्तृते पल्लवाये च त्रिषु पल्लवितः स्मृतः ॥१२३३॥ हिन्दी टीका-पल्लव शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. विटप (शाखा-डाल) २. नवपत्रादियुक्त शाखाग्रपर्व (नये पते वगैरह से युक्त डाल का अगला पोर) ३. अलक्तराग (अलता का रंग) ४. वलय (कंगण) एवं ५. चापल (चंचल)। पल्लवक शब्द पुल्लिग माना गया है और उसके दो अर्थ होते हैं-५. वेश्यापति (वेश्या का पति-भडुआ) और २. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष)। त्रिलिंग पल्लवित शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. विस्तृत (विस्तार) और २. पल्लवाढ्य (अधिक पल्लव) । पल्ली स्त्री गृहगोधायां कुटी-नगरभेदयोः । स्थाने ग्रामटिकायां च गृह ग्रामे कुटीचये ॥१२३४॥ आपाके प्रयते नीरे पावने पवनं मतम् । पवनो मारुते राजमाषे पावयितर्यपि ।।१२३५।। हिन्दी टीका-पल्ली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. गृहगोधा (गिरगिट) २. कुटी ३. नगरभेद (नगरविशेष) ४. स्थान, ५. ग्रामटिका (छोटी बस्ती) ६ गृह (घर) ७. ग्राम तथा ८. कुटीचय (झोंपड़ी समुदाय) । नपुंसक पवन शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. आपाक (कुछ पका हुआ) २. प्रयत (पवित्र) ३. नीर (जल, पानो) और ४. पावन (पवित्रता) किन्तु पुल्लिग पवन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मारुत (पवन, वायु) २. राजमाष और ३. पावयिता (पवित्र करने वाला) । इस तरह पवन शब्द के सात अर्थ जानना। पवमानो गार्हपत्यवह्नि - मारुतयोः स्मृतः । पवितस्त्रिषु पूते स्यात् क्लीवन्तु मरिचे मतम् ॥१२३६॥ पवित्रं वर्षणे ताम्र कुशे पयसि घर्षणे । मधन्य?पकरणे घृत - यज्ञोपवीतयोः ॥१२३७॥ हिन्दी टीका-पवमान शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. गार्हपत्यपवह्नि (गार्हपत्य नाम का अग्नि विशेष) और २. मारुत (पवन)। १. पूत (पवित्र) अर्थ में पवित शब्द त्रिलिंग माना जाता है किन्तु २. मरिच (काली मरी-मरीच) अर्थ में पवित शब्द नपुंसक ही माना गया है। पवित्र शब्द नपुंसक है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. वर्षण, २. ताम्र (तांबा) ३. कुश (दर्भ) ४. पयस (दूध या पानी) ५. घर्षण (घिसना) ६. मधु (शहद) ७. अर्घोपकरण (पूजा की सामग्री) ८. घृत (घी) और ६. यज्ञोपवीत (जनेऊ) । इस प्रकार पवित्र शब्द के नौ अर्थ जानना। मूल : पवित्रः प्रयते शुद्धद्रव्ये त्रिषु प्रकीर्तितः। पुमांस्तु तिलवृक्षेऽसौ पुत्रजीवतरावपि ॥१२३८॥ पवित्रको दमनकेऽश्वत्थे कुश उदुम्बरे । पवित्रकन्तु जाले स्याच्छण सूत्रेऽपि कीर्तितम् ॥१२३६॥ हिन्दी टोका-१. प्रयत (शुचि) और २. शुद्धद्रव्य अर्थ में पवित्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है मूल : Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - पवित्रा शब्द किन्तु ३. तिलवृक्ष ( तिल का वृक्ष) अर्थ में पवित्र शब्द पुल्लिंग ही माना गया है इसी प्रकार ४. पुत्रजीवतरु ( पुत्रजीव - पितौझिया नाम का वृक्ष विशेष ) अर्थ में पवित्र शब्द पुल्लिंग ही माना गया है। पुल्लिंग पवित्रक शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. दमनक, २. अश्वत्थ (पीपल) ३. कुश (दर्भ ) तथा ४. उदुम्बर ( गूलर ) किन्तु नपुंसक पवित्रक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. जाल और २. शणसूत्र (शण की डोरी) इस तरह पवित्रक शब्द के कुल छह अर्थ जानना । मूल : पवित्रा स्याद् हरिद्रायां तुलस्यां सरिदन्तरे । पशुः स्यात् प्रमथे देवे यज्ञोडुम्बर-यज्ञयोः || १२४० || सिंहादि जन्तौ छगले प्राणिमात्रेऽपि कीर्तितः । पक्षः सहाये मासार्थे चुल्लीरन्ध्र विहङ्गमे ।। १२४१।। हिन्दी टीका - स्त्रीलिंग पवित्रा शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. हरिद्रा ( हलदी ) २. तुलसी और ३. सरिदन्तर (नदी विशेष ) । पशु शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. प्रमथ ( प्रमथ नाम का शङ्कर भगवान का गण विशेष, जोकि प्रमथादिगण शब्द से प्रसिद्ध है) २. देव, ३. यज्ञ, ४. उडुम्बर यज्ञ ( उदुम्बर यज्ञ) उदुम्बर नाम का यज्ञ विशेष को भी पशु कहते हैं ) ५. सिंहादि जन्तु ( सिंह वगैरह प्राणी) ६. छगल (बकरा छागर) और ७. प्राणिमात्र (साधारण प्राणी) को भी पशु कहते हैं । पक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. सहाय, २. मासार्धं ( मास का आधा, १५ दिन) ३ चुल्लीरन्ध्र (चुल्हे का छेद ) तथा ४. विहङ्गम (पक्षी) । इस प्रकार पक्ष शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : वर्गे विरोधे वलये देहाङ्ग े राजकुञ्जरे । पिच्छे साध्ये बले पार्श्वे पतत्र - शरपक्षयोः ॥१२४२॥ सख्यौ गृहे ग्रहे शुद्धे कल्पे केशात् परश्चये । पक्षकः पार्श्वमात्रे स्यात् पक्षद्वार - सहाययोः ॥ १२४३ ॥ हिन्दी टीका - पक्ष शब्द के और भी सत्रह अर्थ माने गये हैं- १. वर्ग ( समुदाय) २. विरोध, ३. वलय ( कंगण ) ४. देहाङ्ग (आधा शरीर ) ५. राजकुञ्जर ( राजा का हाथी) ६. पिच्छ (पांख, बर्ह) ७. साध्य (साधने योग्य) ८. बल (सामर्थ्य ) ६. पार्श्व ( बगल ) १०. पतत्र (पक्षी) ११. शरपक्ष (बाण का पुंख) १२. सखा (मित्र) १३. गृह (घर) १४. ग्रह, १५. शुद्ध (विशुद्ध-निर्मल) १६. कल्प ( रचना, वेश विन्यास, विकल्प वगैरह ) और १७. केशात्परश्चय (केश से ऊपर का समुदाय) । पक्षक शब्द के तीन अर्थ होते हैं१. पार्श्वमात्र (बगल) २. पक्षद्वार ( मुख्य द्वार ) और ३. सहाय ( मददगार ) । मूल : पक्षतिः स्त्री पक्षिपक्षमूले च प्रतिपत्तिथौ । अन्याय्यसाहाय्यकृतौ पक्षपातः खगज्वरे ॥१२४४॥ अमायां पौर्णमास्यां च पक्षान्तः कीर्तितो बुधैः । पक्षिणी शाकिनीभेदे पूर्णिमायां खगस्त्रियाम् ।।१२४५।। हिन्दी टीका - क्षति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं— १, पक्षिपक्षमूल Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पक्षिणी शब्द | २२१ (पक्षी के पांख का मूल भाग) २. प्रतिपत्तिथि (प्रतिपदा पड़वा तिथि) और ३. अन्यान्य साहाय्यकृति (अन्यायपूर्वक सहायता करना) । पक्षपात शब्द का अर्थ-१. खगज्वर होता है। पक्षान्त शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. अमा (अमावस्या) और २. पौर्णमासी (पूर्णिमा)। पक्षिणी शब्द के तीन अर्थ होते हैं१. शाकिनीभेद (डाकिनी विशेष) २. पूर्णिमा और ३. खगस्त्री। मूल : आगामिवर्तमानाहर्युक्तायां रजनावपि । पक्ष्म क्लीवं नेत्रलोम्नि किजल्क-खगपक्षयोः ॥१२४६॥ सूत्रादेः स्वल्पभागेऽपि पांशवो लवणान्तरे । पांशुर्ना पर्पटे धूलौं चिरसंचितगोमये ॥१२४७।। हिन्दी टीका-पक्षिणी शब्द का और भी एक अर्थ माना जाता है—१. आगामिवर्तमानाहयुक्ता रजनी (आगामी और वर्तमान दिन से युक्त रात) को भी पक्षिणी कहते हैं । पक्ष्मन् शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. नेत्रलोम (पलक) २. किञ्जल्क (पराग) और ३. खगपक्ष (पक्षी का पांख)। बहवचनान्त पांशु शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. सूत्रादेःस्वल्पभाग (धागे का सूक्ष्म तन्त) और २. लवणान्तर (नमक विशेष)। पुल्लिग पांशु शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पर्पट (पपड़ी) २. धूलि (रेण) और ३. चिरसंचितगोमय (बहुत दिनों से सञ्चित-एकत्रित किया हुआ-गोमय-गोबर)। दोषे कर्पूरभेदेऽथ पांशुरौ खज-दंशकौ । वर्धापके प्रशंसायां पिष्टाते धूलिगुच्छके ॥१२४८॥ दूर्वांञ्चिततटी भूमौ पुरोटौ पांशुचामरः । पांशुलः पुंश्चले शम्भु खट्वाङ्ग-कलिमारके ॥१२४६॥ हिन्दी टीका-पूल्लिग पांशु शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. दोष, २. कपरभेद (क' र विशेष)। पांशुर शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. खञ्ज (लङ्गड़ा) २. दंशक (काटने वाला दंश डंक मारने वाला) ३. वर्धापक (बढ़ाने वाला) ४. प्रशंसा, ५. पिष्टात (पिठार-पाउडर) और ६. धलिगुच्छक (धूलि का ढेर)। पांशुचामर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. दूर्वाञ्चिततटीभूमि (दुभी से युक्त नदी तट भूमि) और २. पुरोटि । पांशुल शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पुंश्चल (व्यभिचारी) २. शम्भुखट्वाङ्ग (भगवान शङ्कर का खट्वांग-चारपाई का पौआ) और ३. कलिमारक (कांटेदार करजी)। मूल : हरे पापिन्यसौ पुंसि पांशुयुक्त त्वयं त्रिषु । पांशुला केतकी-भूमि-पुष्पिणी-कुलटासु च ॥१२५०॥ पाक: परिणते दैत्ये रन्धने पेचके शिशौ । स्थाल्यादौ साध्वसे भंगे राष्ट्रादौ पानकर्तरि ॥१२५१॥ हिन्दी टीका-पांशुचामर शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. हर (शङ्कर) २. पापी (पापयुक्त) और ३. पांशुयुक्त (रेणु से भरा हुआ) इनमें हर और पापी अर्थों में पांशुचामर शब्द पुल्लिग है और पांशुयुक्त अर्थ में त्रिलिंग समझना। पांशुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. केतकी (केवड़ा) २. भूमि (पृथिवी) ३. पुष्पिणी (रजोवती स्त्री अथवा फूल से युक्त) और ४. कुलटा (व्यभिचारिणी) । पाक शब्द के दस अर्थ होते हैं-१. परिणत (पका हुआ) २. दैत्य, ३. रन्धन (रांधना-पकाना) Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २२२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पाक शब्द ४. पेचक (पाककर्ता) ५. शिशु (बालक) ६. स्थाल्यादि (स्थाली-बटलोही वगैरह) ७. साध्वस (भय) ८. भंग (नाश) ६. राष्ट्रादि (राष्ट्र वगैरह) और १०. पानकर्ता । जरसा केश शौक्ल्येऽथ पाकलं कुष्ठभेषजे । पाकलो बोधनद्रव्ये पावके कुञ्जरज्वरे ॥१२५२॥ मारुतेऽपि त्रिलिगस्तु व्रणादेः पाककर्तरि । पाकलिः स्त्री वृक्षभेदे कर्कट्यां पाकली मता ॥१२५३॥ हिन्दी टीका-पाक शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. जरसा केशशौक्ल्य (बुढ़ापे से सफेद बाल)। नपुंसक पाकल शब्द का अर्थ-१. कुष्ठभेषज (कुष्ठ रोग का औषध विशेष) और पुल्लिग पाकल शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. बोधनद्रव्य २. पावक (अग्नि) तथा ३. कुञ्जरज्वर । मारुत और व्रणादे: पाककर्ता व्रण (घाव वगैरह को पकाने वाला) पाकल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पाकलि शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-वृक्षभेद (वृक्ष विशेष पाकड़ि) होता है। किन्तु कर्कटी (कांकड़ि) अर्थ में पाकली शब्द दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग माना गया है । पाक्यः पुमान् यवक्षारे क्लीवं विड्लवणोषयोः । पाचक: सूपकारेऽग्नौ पित्तभेदेषु पाचकं ॥१२५४॥ प्रायश्चित्ते पाचनं स्यात् त्रिषु पाचयितर्यसौ । पाचनोऽम्लरसे वह्नौ रक्त रण्डे च टङ्कणो ॥१२५५॥ हिन्दी टीका --पुल्लिग पाक्य शब्द का अर्थ-१. यवक्षार (यवाखार) होता है। और नपुंसक पाक्य शब्द का अर्थ-२. विड्लवण और ३. ऊष (पांशुलवण जिसको ऊष शब्द से व्यवहार किया जाता है) । पुल्लिग पाचक शब्द का अर्थ-१. सूपकार (रसोइया, रसोई करने वाला) और २. अग्नि होता है । किन्तु ३. पित्तभेद (पित्त विशेष) अर्थ में पाचक शब्द नपुंसक माना जाता है । १. प्रायश्चित्त अर्थ में पाचन शब्द नपुंसक माना गया है किन्तु २. पाचयिता (पकवाने वाले) अर्थ में पाचन शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पुल्लिग पाचन शब्द के चार अर्थ होते हैं- १. अम्लरस (खट्टा) २. वह्नि (आग) ३. रक्त रण्ड (लाल एरण्ड) तथा ४ टङ्कण (छैनी वगैरह पत्थर तोड़ने वाला हथियार)। इस प्रकार पाचन शब्द के कुल छह अर्थ समझने चाहिए। पाचनी स्याद् हरिद्रायां पाचलं पाचने मतम् । . पाचलो रन्धनद्रव्ये पाचके मारुतेऽनले ॥१२५६॥ पाञ्चजन्यो विष्णु शङ्खजातवेदस्यपि स्मृतः। पांचालं नद्वयोः शास्त्रे त्रिषु पंचालदेशजे ॥१२५७।। हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग पाचनी शब्द का अर्थ-१. हरिद्रा (हलदी) होता है। नपुंसक पाचल शब्द का अर्थ-१. पाचन (पकवाना) होता है । पुल्लिग पाचल शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. रन्धन द्रव्य (रांधने का द्रव्य- बटलोही वगैरह) होता है । २. पाचक (पकाने वाला) भी पाचल शब्द का अर्थ जानना चाहिए, एवं ३. मारुत (पवन) भी पाचल शब्द का अर्थ है और ४. अनल (अग्नि) को भी पाचल कहते हैं । पाञ्चजन्य शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. विष्णुशंख (पाञ्चजन्य नाम का भगवान विष्णु का मूल : Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पाञ्चाली शब्द | २२३ शंख) और २. जातवेदस् (अग्नि)। पाञ्चाल शब्द १. शास्त्र अर्थ में नपुंसक माना जाता है। और २. पञ्चालदेशज (पंजाब देश प्रान्त में उत्पन्न) अर्थ में त्रिलिंग पाञ्चाल शब्द माना गया है । मूल : पांचाली शालभञ्ज्यां स्याद् द्रौपद्यामपि कीर्तिता। पाटक: स्यान्महाकिष्कौ वाद्य-ग्रामैकदेशयोः ।।१२५८।। अक्षादिचालने मूल द्रव्यापचय - रोधयोः । पाटलः स्यादाशु धान्य-श्वेतलोहित वर्णयोः ॥१२५६।। हिन्दी टोका-पाञ्चाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शालभजी (कठपुतली) और २. द्रौपदी। पाटक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. महाकिष्कु (२४ अंगुल या १२ अंगुल का प्रमाण विशेष) २. वाद्य (बाजा ३. ग्रामैकदेश (ग्राम का एक ४ अक्षादिचालन (पाशा चौपड़ खेलना) ५. मूलद्रव्यापचय (मूल धन का अपचय-हास) तथा ६. रोध (रोकना)। पाटल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. आशुधान्य (शीघ्र होने वाला धान विशेष) और २. श्वेतलोहितवर्ण (सफेद लाल वर्ण)। दुर्गायां कृष्णवृन्तायां रक्तलोध्र च पाटला। आरोग्ये पटुतायां च पाटवं क्लीवमीरितम् ॥१२६०॥ धूर्ते पटौ पाटविकः पाटी वाट्यालके क्रमे । पाठीनः पाठके मत्स्यविशेषे गुग्गुलुद्रुमे ॥१२६१।। हिन्दी टोका-पाटला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. दुर्गा (पार्वती) २. कृष्णवृन्ता (पाढरी, पाडरी) और ३. रक्तलोध्र (लाल लोध)। पाटव शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. आरोग्य और २. पटुता (दक्षता, चतुरता)। पाटविक शब्द के भी दो अर्थ होते हैं१. धूर्त, और २. पटु (चतुर)। पाटी शब्द के भी दो अर्थ होते हैं -१. वाट्यालक (सोंफ बलियारी) और २. क्रम । पाठीन शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं – १. पाठक (पाठ करने वाला) और २. मत्स्यविशेष (रहु नाम की मछलो) और ३. गुग्गुलुद्र म (गूगल का पेड़)। मूल : कुलिकद्रौ करे पाणिः पाणिघः पाणिवादके । गैरिके कुन्दपुष्पे च पाण्डरं क्लीवमीरितम् ॥१२६२॥ पुमान् मरुबके शुक्लवर्णे तद्वति तु त्रिषु । पाण्डुर्नू पान्तरे रोगे पटोले श्वेतकुञ्जरे ॥१२६३॥ हिन्दी टीका-पाणि शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. कुलिकद्र, (कुलिक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. कर (हाथ) । पाणिघ शब्द का अर्थ–१. पाणिवादक (हाथ को बजाने वाला, ताली पीटने वाला)। पाण्डर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गरिक (गेरू रंग) और २. कुन्दपुष्प (कुन्द नाम का फूल विशेष)। पुल्लिग पाण्डर शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. मरुबक (मदन, मयनफल) और २. शुक्लवर्ण और ३. शुक्लवर्णयुक्त अर्थ में पाण्डर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पाण्डु शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. नृपान्तर (नृपविशेष - पाण्डु नाम का राजा) २. रोग (पाण्डुरोग) ३. पटोल (परबल) और ४. श्वेतकुञ्जर (सफेद हाथी)। इस तरह पाण्डु शब्द के चार अर्थ जानना। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - पाण्डु शब्द मूल : पीतभागार्द्धे केतकीधूलिसन्निभे । वर्णे च सितवर्णे नागभेदे स्यात्पाण्डुरफलीक्षुपे ॥ १२६४॥ पाण्डुः स्त्रीमाषपय स्यात् पाण्डुवर्ण स्त्रियामपि । श्वेतप्रावार- दृषदोः कम्बले पाण्डुकम्बलः ।। १२६५।। हिन्दी टीका - पाण्डु शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. पीतभागार्द्ध - केतकी धूलि - सन्निभवर्ण (आधा पौतभाग वाला और केतकीधूलि - केवड़े का पराग सदृश वर्ण विशेष) को भी पाण्डु कहते हैं । और २. सितवर्ण (सफेद वर्ण) ३. नागभेद ( नागविशेष) और ४. पाण्डुरफलीक्षुप (पाण्डुर फली नाम की लता विशेष ) । स्त्रीलिंग पाण्डु शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. माषपर्णी (वन उड़द ) और २. पाण्डुवर्णस्त्री (पाण्डु वर्ण वाली स्त्री) । पाण्डुकम्बल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. श्वेतप्रावार (सफेद चादर ) २. हृषद् (पत्थर) और ३. कम्बल । मूल : पातो विधुन्तुदे त्राते पतने पातकं त्वघे । पातालं नागलोके स्याद् विवरे वडवानले ।। १२६६।। लग्नाच्चतुर्थस्थाने च जायुपाकार्थयन्त्रके । पातालनिलयो दैत्ये सर्पे पातालवासिनि ॥ १२६७ ॥ हिन्दी टीका - पात शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. विधुन्तुद (राहु) २. त्रात (रक्षित) ३. पतन ( गिरना ) । पातक शब्द का अर्थ - १. अघ (पाप) होता है । पाताल शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. नागलोक, २. विवर ( बिल, छिद्र) और ३ वडवानल (वडवाग्नि) तथा ४. लग्नाच्चतुर्थस्थान (लग्न से चौथा स्थान) को भी पाताल कहते हैं । और ५. जायुपाकार्थयन्त्रक (दवा पकाने का यन्त्र विशेष ) । पातालनिलय के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. दैत्य, २. सर्प और ३. पातालवासी ( पाताल में रहने वाला) को भी पातालनिलय कहते हैं । मूल : पातिली स्त्री वागुरायां नारी - मृत्पात्रभेदयोः । पातुकः पतयालौ स्यात् प्रयाते जलहस्तिनि ॥१२६८ ॥ पात्रं मापकमाने स्यात् त्र वादौ राजमन्त्रिणि । तीरद्वयान्तरे पर्णे योग्ये नाट्यानुकर्तरि ॥१२६६॥ हिन्दी टीका - पातिली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. वागुरा (पाश जाल) २. नारी (स्त्री) और ३. मृत्पात्रभेद (मिट्टी का बर्तन विशेष - पातिल ) । पातुक शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं - १. पतयालु (पतनशील; गिरने की इच्छा वाला) २. प्रयात (प्रस्थित) और ३. जलहस्ती (जलजन्तु विशेष ) । पात्र शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. मापकमान ( माप करने वाला परिमाण विशेष ) २. स्रवादि (स्रवत्रच वगैरह पात्र विशेष ) ३. राजमन्त्री और ४. तीरद्वयान्तर (तीरद्वय विशेष ) ५. पर्ण (पत्ता) ६. योग्य (लायक) और ७. नाट्यानुकर्ता (नाट्य का अनुकरण करने वाला) । इस प्रकार पात्र शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : भाजने पात्रटीरस्तु युक्तव्यापारमंत्रिणि । कांस्यपात्रे लौहपात्रे कङ्क े राजतभाजने ॥ १२७०॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -पात्र शब्द | २२५ सिंहाणे वायसे वह्नौ पिङ्गाशेऽपि प्रकीर्तितः । पाथोऽनले सहस्रांसौ पाथन्तु सलिले मतम् ।।१२७१॥ हिन्दी टीका-पात्र शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. भाजन (बर्तन)। पात्रटीर शब्द के नौ अर्थ माने गये हैं-१. युक्तव्यापारमन्त्री (अत्यन्त बुद्धिमान् मन्त्री, योग्य व्यापारवान् मन्त्री) २. कांस्यपात्र (कांसे का बर्तन) ३. लौहपात्र (लोहे का बर्तन) ४. कङ्क (कङ्कहर नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष, जिसका पांख बाण में लगाया जाता है।) ५. राजतभाजन (चाँदी का बर्तन) ६. सिंहाण (नकटी–नाक का मल) ७. वायस (काक) ८. वह्नि (आग) और ६. पिङ्गाश (भूरा रंग वाला)। सकारान्त नपुंसक पाथस् शब्द का अर्थ --१. अनल (अग्नि) और २. सहस्रांशु (सूर्य) होता है। किन्तु अदन्त नपुंसक पाथ शब्द का अर्थ ३. सलिल (पानी) हो मूल : पाथेयं शम्बले कन्या राशौ पाथोजमम्बुजे । पादः श्लोकचतुर्थांशे शैलप्रत्यन्तपर्वते ।।१२७२॥ चतुर्थभागे चरणे किरण - द्रुममूलयोः । पारी स्त्रियां पानपात्रे परागे जलसंचये ॥१२७३॥ हिन्दी टोका-पाथेय शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. शम्बल (पाथेय रास्ते की भोजन सामग्री) और २. कन्या राशि । पाथोज शब्द का अर्थ–१. अम्बुज (कमल) होता है। पाद शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं--१. श्लोकचतुर्थांश (श्लोक का चतुर्थाश-चौथा भाग, चौथाई) २. शैलप्रत्यन्तपर्वत (पहाड़ के इर्दगिर्द निकटवर्ती पर्वत) ३. चतुर्थ भाग (चौथाई) ४. चरण (पांव, पद, पैर) ५. किरण और ६. द्र ममूल (वृक्ष का मूल जड़ भाग) । पारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पानपात्र (ताम्बूल का बर्तन अथवा पीने का बर्तन) २. पराग (पुष्परेणु) तथा ३. जलसंचय (पानी का समुदाय)। मूल : दोहपात्रे प्रवाहे च कर्कर्यां करिशृखले। पावो जिनविशेषे त्रिष्वन्तिकेऽथा स्त्रियामसौ ॥१२७४॥ पार्वास्थि संघे कक्षाऽधोभागे पशुगणे तथा । पाणिः स्त्रियामुन्मदस्त्री कुन्ती स्त्रीपुंसयोस्त्वसौ ॥१२७५॥ हिन्दी टीका-पारी शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं- १. दोहपात्र (दूध दुहने का बर्तन विशेष) २. प्रवाह (धारा) ३. कर्करी (गड़आ-हथहर या झंझरा, करवती शब्द प्रसिद्ध बर्तन विशेष) और ४. करिशृंखल (हाथी की जजीर)। पुल्लिग पार्श्व शब्द का अर्थ-१. जिनविशेष (पार्श्वनाथ भगवान) किन्तु २. अन्तिक (निकट) अर्थ में पार्श्व शब्द त्रिलिंग माना गया है परन्तु पुल्लिग तथा नपुंसक पार्श्व शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पार्वास्थिसंघ (दोनों बगल की हड्डी समुदाय) २. कक्षाऽधोभाग (कक्षा- कांख या कक्ष का नीचा भाग) तथा ३. पशुगण (हाड़ पञ्जर)। पाणि शब्द स्त्रीलिंग है और उसका एक अर्थ होता है-१. उन्मद स्त्री (पागल स्त्री) किन्तु २. कुन्ती अर्थ में पाणि शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना गया है। मूल : पादग्रन्थ्यधरः पृष्ठे सैन्यपृष्ठे जयस्पृहा । पाशीना वरुणे व्याधे यमे पाशधरे त्रिषु ॥१२७६॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पादग्रन्थ्यधर शब्द पाक्षिक स्यात् पक्षभवे पक्षपातिनि च त्रिषु । पक्षाघातान्विते पक्षसंयुते पक्षिघातके ॥१२७७॥ हिन्दी टोका-पादग्रन्थ्यधर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. पृष्ठ (पृष्ठ भाग) २. सैन्यपृष्ठ और ३. जयस्पृहा (विजय की इच्छा)। पाशी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वरुण, २. व्याध (व्याधा, शिकारी) ३. यम (धर्मराज) किन्तु ४. पाशधर (पाश को धारण करने वाला) अर्थ में पाशी शब्द त्रिलिंग माना गया है। पाक्षिक शब्द त्रिलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. पक्षभव (पक्ष में होने वाला) २. पक्षपाती (पक्षपात करने वाला) ३. पक्षाघातान्वित (पक्षाघात- अर्धाङ्ग रोग विशेष, जिससे शरीर का आधा भाग शून्य हो जाता है उससे युक्त) ४. पक्षसंयुत (पांख से युक्त) और ५. पक्षिघातक (पक्षी को घात करने वाला)। इस प्रकार पाक्षिक शब्द के पांच अर्थ जानना। मूल : पिङ्गलो नागभेदे स्यात् ना रुद्रेऽग्नौ कपिले कपौ। निधिभेदे स्थावराख्य विषभेदर्षिभेदयोः ।।१२७८॥ क्षुद्रोलू के वर्षभेदे पिशङ्ग तद्वति त्रिषु । नाडीभेदे पक्षिभेदे बलाकायामसौ त्रिषु ॥१२७६।। हिन्दी टीका-पिंगल शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. नागभेद (नागविशेष-पिंगल नाम का सर्प विशेष) २. रुद्र (शंकर) ३. अग्नि, ४. कपिल (पिंगल वर्ण) ५. कपि (वानर) ६. निधिभेद (निधि विशेष) ७. स्थावराख्यविषभेद (स्थावर नाम का जहर विशेष) तथा ८. ऋषिभेद (ऋषि विशेष, पिङ्गलाचार्य)। पुल्लिग पिंगल शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं -१. क्षुद्रोलूक (छोटा उल्लू, पक्षी विशेष जिसको दिन में नहीं सूझता है ।) २. वर्षभेद (वर्ष विशेष, पिंगल नाम का प्रसिद्ध वर्ष विशेष) तथा ३. पिशङ्ग (पिंगल-भूरा वर्ण) किन्तु ४. तद्वति (पिंगलवर्णयुक्त) अर्थ में पिंगल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इसी प्रकार १. नाडीभेद (नाडी विशेष, पिंगल नाम का नस) २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) और ३. बलाका (सारस पक्षी या वक पंक्ति) इन तीनों अर्थों में भी पिंगल शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। मूल : शिशया-कणिका-राजरीति-वेश्याभिदासु च । पिच्छा छटायां मोचायां चोलिका फणिलालयोः ॥१२८०॥ भक्तमण्डे तथा पूगे पङक्तावश्वपदामये । शाल्मलीवेष्टने कौषे चामरे शिशपातरौ ॥१२८१॥ हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग पिंगला शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. शिंशया (शीशो का पेड़) २. कणिका (ऐरन झूमक कर्णफूल वगैरह कान का भूषण) ३. राजरीति (राजाओं के रीतिरिवाज) तथा ४ वेश्याभिदा (वेश्या विशेष—पिंगला नाम की वेश्या)। पिच्छा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके बारह अर्थ माने जाते हैं-१. छटा (ढंग) २. मोचा (कदली, केला) ३. चोलिका (चौलाई या कञ्चुक चोली) ४. फणिलाल (सर्प का बच्चा वगैरह) ५. भक्तमण्ड (भात का मांड) ६. पूग (संघ) ७. पंक्ति ८. अश्वपदामय (घोड़े के पाद का रोग) ६. शाल्मलीवेष्टन (शेमर वृक्ष का वेष्टन-लपेट) १०. कोष, ११ चामर एवं १२. शिशपातरु (शीशो का पेड़)। इस प्रकार पिच्छा शब्द के बारह अर्थ जानना। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पिञ्जर शब्द | २२७ मूल : पिञ्जरं हरिताले स्यात् सुवर्णे नागकेशरे । पक्ष्यादिबन्धनागारे शरीरास्थि कदम्बके ॥१२८२।। अश्वभेदे वर्णभेदे पुंसि तद्वत्यसौ त्रिषु । पिण्डो बोले बले सान्द्रे निवापे गोल-देशयोः ॥१२८३॥ हिन्दी टीका-नपुंसक पिञ्जर शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं-१. हरिताल (हरिताल नाम का औषध विशेष) २. सुवर्ण (सोना) ३. नागकेशर, ४. पक्ष्यादिबन्धनागार (पक्षी वगैरह को बांधने का घर) ५. शरीरास्थिकदम्बक (शरीर का अस्थिपञ्जर - हड्डी-हाड़ का समुदाय)। किन्तु पुल्लिग पिञ्जर शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. अश्वभेद (घोड़ा विशेष) तथा २. वर्णभेद (वर्ण विशेष) परन्तु वर्ण विशेष से युक्त अर्थ में पिञ्जर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पिण्ड शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. बोल (गन्धरसवोर) २. बल (सामर्थ्य) ३. सान्द्र (सघन निविड) ४. निवाप (पितरों का श्राद्धादि कर्म) ५. गोल (गोलाकार) तथा ६. देश (देश विशेष) । सिल्हके स्यात् जपापुष्पे वृन्दे मदनपादपे। गेहैकदेशे कवले देहमात्रे भ - कुम्भयोः ॥१२८४॥ पिशाचे पुंसि पिण्डालुः पिण्डमूले तु न द्वयोः । पीयूषममृते दुग्धे नवदुग्धे तु पुंस्यपि ॥१२८५।। हिन्दी टीका-पिण्ड शब्द के और भी नौ अर्थ माने गये हैं - १. भिल्हक (सिल्ह नाम का गन्ध द्रव्य विशेष-लोहवान) २. जपापुष्प (बन्धूक पुष्प) ३. वृन्द (समूह) ४. मदनपादप (धत्तूर का वृक्ष) ५. गेहैकदेश (घर का एक देश) ६. कवल (ग्रास-कौर) ७. देहमात्र (शरीर) ८. भ (नक्षत्र) और १. कुम्भ (घड़ा या कुम्भ राशि)। पुल्लिग पिण्डालु शब्द का अर्थ-१. पिशाच होता है किन्तु २. पिण्डमूल अर्थ में पिण्डालु शब्द नपुंसक माना जाता है। नपुंसक पीयूष शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. अमृत २. दुग्ध (दूध) किन्तु नवदुग्ध अर्थ में पीयूष शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है। पुण्यं धर्मे व्रते सत्ये पावने शुद्धकर्मणि । सुगन्धौ सुन्दरे पूतात्मनि चोक्त त्रिलिगकम् ॥१२८६॥ पुत्रक: शरभे धूर्ते शैल - पादपभेदयोः । पुराऽव्ययं चिरातीते भीरा वासन्नभाविनि ॥१२८७॥ हिन्दी टीका- नपुंसक पुण्य शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. धर्म, २. व्रत, ३. सत्य, ४. पावन (पवित्रता) ५. शद्धकर्म, ६. सगन्धि, ७. सन्दर, किन्त ८. प्रतात्मा (पवित्रात्मा) अर्थ में ण्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुत्रक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं—१. शरभ (सबसे बड़ा पक्षी, शरभ नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) २. धूर्त (वञ्चक) ३. शैल (पर्वत) और ४. पादपभेद (वृक्ष विशेष) । पुरा शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चिरातीत (बहुत प्राचीन) २. भीरु (डरपोक) ३. आसन्नभावी (निकट भविष्य में होने वाला) भी पुरा शब्द का अर्थ माना जाता है। पुलको गन्धर्व भेदे रोमाञ्चे पानभाजने । हरिताले रत्नदोषविशेषो पलभेदयोः ॥१२८८॥ मूल : Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पुलक शब्द पुष्करं कमले वाद्य भाण्डास्ये गगने जले। कोषे करिकराग्रे चौषधि - तीर्थविशेषयोः ॥१२८६॥ हिन्दी टीका -- पुलक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धर्वभेद (गन्धर्व विशेष) २. रोमाञ्च ३. पानभाजन (पीने का बर्तन) ४. हरिताल (हरिताल नाम का प्रसिद्ध औषध विशेष) ५. रत्नदोषविशेष और ६. उपलभेद (पत्थर विशेष) । पुष्कर शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं--१. कमल, २. वाद्यभाण्डास्य (वाद्य भाण्ड विशेष का मुख-अग्रभाग) ३. गगन (आकाश) ४ जल, ५. कोश. ६. करिकराग्र (हाथी के शुण्ड का अग्रभाग) और ७. औषधि तथा ८. तीर्थ विशेष (पुष्कर क्षेत्र जो कि अजमेर से १५ माइल की दूरी पर है)। पुष्करः - सारसे नागभेदे नलसहोदरे । रोग द्वीपाद्रिभेदेषु जीमूते वरुणात्मजे ॥१२६०॥ करेणौ स्थलपद्मिन्यां खाते पुष्करिणी मता। सरोजिन्यां पुष्कराहतीर्थभू - कुष्ठमूलयोः ॥१२६१।। हिन्दी टीका - पुष्कर शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं -१. सारस (सारस नाम का पक्षो विशेष) २. नागभेद (नाग विशेष) ३. नलसहोदर (नल का सहोदर भाई) ४. रोगभेद (रोग विशेष) ५. द्वीपभेद (द्वीप विशेष) ६. अद्रिभेद (पर्वत विशेष) ७. जीमूत (मेघ) और ८. वरुणात्मज (वरुण का पुत्र)। पुष्करिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. करेणु (हथिनी) २ स्थलपद्मिनी (स्थलकमलिनी) ३. खात (खोदा हुआ) ४. सरोजिनी (कमलिनी) ५. पुष्कराह्वतीर्थभू (पुष्कर नाम का तीर्थ स्थल) ६. कुष्ठमूल (कूठ नाम के औषधि का मूल भाग)। मूल : पुष्पकं मृत्तिकाऽङ्गारशकट्यां रत्नकङ्कणे। काशीसे श्रीदविमाने नेत्ररोगे रसाञ्जने ॥१२६२।। पुष्पदन्तस्तु दिङ नागे जिनभेदे गणान्तरे । पुष्पः कलियुगे पौषमास - नक्षत्र - भेदयोः ॥१२६३॥ हिन्दी टोका-पुष्पक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. मृत्तिकाऽङ्गारशकटि (मिट्टी की गाड़ी) २. रत्नकङ्कण (रत्न सोने का कङ्गन-वलय-चूड़ी) ३. काशीस (कासपुष्प) ४ श्रीदविमान (कुबेर का विमान) ५. नेत्ररोग (आँख का रोग विशेष) ६. रसाञ्जन (नेत्र में लगाने का अञ्जन विशेष)। पुष्पदन्त शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. दिङ्नाग (बौद्धाचार्य) २. जिनभेद (जिनविशेष, पुष्पदन्त नाम के तीर्थङ्कर, जिनका सुविधिनाथ नाम भी प्रसिद्ध है) और ३. गणान्तर (गणविशेष-पुष्पदन्त नाम का प्रथमादि गण का विशेष व्यक्ति)। पुल्लिग पुष्प शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. कलियुग. २. पौषमास और ३. नक्षत्र भेद (नक्षत्र विशेष) इस प्रकार पुल्लिग पुष्पदन्त शब्द के तीन अर्थ जानना। पूगः कण्टकिवृक्षे स्याद् गुवाके व्यूह-भावयोः । पूतना दानवीभेदे गन्धमांस्यां गदान्तरे ॥१२६४॥ पूरणं पूरके पिण्डप्रभेदे वानतन्तुषु । पृथग्जनो भिन्नलोके मूर्खे नीचे च पापिनि ॥१२६॥ मूल : Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पूग शब्द | २२६ हिन्दी टीका-पूग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-कण्टकिवृक्ष (कटार वगैरह का पेड़) २. गुवाक (सुपारी) ३. व्यूह (समूह वगैरह) ४. भाव (विद्वान्, मानसिक विकार वगैरह)। पूतना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. दानवीभेद (दानवी विशेष-पतना म की राक्षसी) २. गन्धमांसी (गन्धमांसी नाम की राक्षसी विशेष) और ३. गदान्तर (गदविशेष-रोग)। पूरण शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पूरक (पूर्ण करने वाला) २. पिण्डप्रभेद (पिण्ड विशेष) और ३. वानतन्तु (कपड़े बुनने का धागा- तन्तु) । पृथग्जन शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. भिन्नलोक (दूसरा-अन्य मनुष्य) २. मूर्ख, ३. नीच (अधम) और ४. पापी (पाप करने वाला) इस तरह पृथग्जन शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : पृदाकुर्भुजगे व्याघ्र वृश्चिके कुञ्जरे तरौ। पेचको वायसा रातौ पर्यः मेघ-यूकयोः ॥१२६६॥ पेशलः कोमले दक्षे धूर्त सुन्दरयोस्त्रिषु । पोतो वस्त्रे गृहस्थाने दशवर्षीय हस्तिनि ॥१२९७॥ हिन्दी टीका-पृदाकु शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. भुजग (सर्प) २. व्याघ्र (बाघ) ३. वृश्चिक (बिच्छू) ४. कुञ्जर (हाथी) और ५. तरु (वृक्ष) । पेचक शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. वायसाराति (वायस काक का अराति-शत्रु-खजनचिरैया घनछुहा) २. पर्यङ्क (पलंग चारपाई) ३. मेघ (बादल) और ४. यूक (जू-लीख)। त्रिलिंग पेशल शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कोमल, २. दक्ष (निपुण) ३. धूर्त (वञ्चक) और ४. सुन्दर । पोत शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वस्त्र (कपड़ा) २. गृहस्थान और ३. दश वर्षीय हस्ती (दस वर्ष का हाथी) इस प्रकार पोत शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। पोत्रं शूकरवक्त्राग्रे लाङ्गलाग्र वहित्रयोः । पौण्ड्र इक्षुप्रभेदे स्यात् शंख देश प्रभेदयोः ॥१२६८।। हिन्दी टोका-पोत्र शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं—१. शूकरवक्त्राग्र (शूकर का मुखाग्र) और २ लाङ्गलाग्र (हल का अग्र भाग) तथा ३. वहित्र (नौका का पतवार)। पौण्ड्र शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. इक्षुप्रभेद (गन्ना विशेष) २. शंख और ३. देशप्रभेद (देश विशेष)। पौरुषं पुरुषस्योक्तो भावे कर्मणि पौरुषे । पौरुषेयो वधे संघे पुरुषस्य पदान्तरे ॥१२६६॥ प्रकाण्डो विटपे दण्डे शस्ते चोत्तरसंस्थिते । प्रकाशो अतिप्रसिद्ध स्यात् प्रहासे व्यक्त आतपे ॥१३००। हिन्दी टोका-पौरुष शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. पुरुषस्योक्त (पुरुष से कहा गया, पुरुष वाक्य) २. भाव (पुरुषत्व) ३. कर्म (पुरुष कर्म) और ४. पौरुष (पुरुषार्थ)। पौरुषेय शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वध, २. संघ (समूह) और ३. पुरुषस्य पदान्तर (पुरुष का पद शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. विटप (डाल, शाखा) २ दण्ड (दण्डा, यष्टि, लाठी) ३. शस्त (प्रशस्त) और ४. उत्तरसंस्थित (उत्तर संस्थान आगे की ओर प्रस्थान)। प्रकाश शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. अतिप्रसिद्ध (अत्यन्त विख्यात) २. प्रहास (अट्टहास या हंसी मखौल) और ३. व्यक्त (स्पष्ट) तथा ४. आतप (धूप, तड़का) इस प्रकार प्रकाश शब्द के चार अर्थ समझना। मूल : Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० | नानार्थीदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - प्रकीर्णक शब्द मूल : विस्तारे चामरे ग्रन्थ विच्छेदे च प्रकीर्णकम् । प्रकृतिः पञ्चभूतेषु प्रधाने मूलकारणे ॥१३०१॥ प्रखरो हयसन्नाहे कुक्कुरेऽश्वतरे खरे । प्रघणस्ताम्रकुण्डे स्यात् प्रघाणे लौहमुद्गरे । १३०२॥ हिन्दी टीका - प्रकीर्णक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. विस्तार, २. चामर और ३. ग्रन्थविच्छेद ( ग्रन्थ का विभाग ) । प्रकृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. पञ्चभूत ( पृथिवो जल-तेज- वायु आकाश ) २. प्रधान (मुख्य) और ३. मूल कारण (आदिकारण, निदान) । प्रखर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. हयन्नाह (घोड़े का सन्नाह- कमरकस) २. कुक्कुर (कुत्ता) ३. अश्वतर ( खच्चर) तथा ४. खर (गदहा) । प्रघण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. ताम्रpus (ताँबे की कुण्डी, बड़ा घड़ा ) २. प्रघाण (पटदेहर - अलिन्द चौकख का बाहर प्रदेश) और ३. लौहमुद्गर (लोहे का मुद्गर - गदा विशेष ) । मूल : प्रचालकः शराघाते भुजङ्गम - शिखण्डयोः । प्रजापतिर्महीपाले जामातरि दिवाकरे ।। १३०३ ॥ पितरि त्वष्टरि ब्रह्म- दक्षादि दहनेषु च । प्रज्ञानं लाञ्छने बुद्धौ पण्डिते तु त्रिषु स्मृतम् ॥१३०४॥ हिन्दी टीका-प्रचालक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. शराघात ( बाण का आघात चोट) २. भुजंगम (सर्प) ३. शिखण्ड ( मोर की पांख, बर्हपिच्छ) । प्रजापति शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं - १. महीपाल (राजा) २. जामाता (दामाद) ३. दिवाकर (सूर्य) ४. पिता ५. त्वष्टा (सुतार - बढ़ई) ६. ब्रह्म (ब्रह्मा) ७. दक्षादि (दक्ष वगैरह जो कि महादेवजी के श्वसुर और सती पार्वती के पिता थे ) और ८. दहन (अग्नि) । प्रज्ञान शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. लाञ्छन ( कलंक, चिन्ह ) २. बुद्धि, किन्तु ३. पण्डित अर्थ में प्रज्ञान शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस तरह प्रज्ञान शब्द के तोन अर्थ जानना । मूल : प्रणयः प्रश्रये प्रोम्णि याञ्चानिर्वाणयोरपि । प्रणाय्योऽसंमते साधावभिलाष विवर्जिते ।। १३०५ ॥ प्रतापो ऽर्कतरौ तापे कोषदण्डजतेजसि । प्रतिग्रहः स्वीकरणे सैन्यपृष्ठे पतदुग्रहे ।। १३०६।। हिन्दी टीका - प्रणय शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. प्रश्रय (विनय ) २. प्रेम ३. याञ्चा ( याचना ) ४. निर्वाण (मोक्ष) । प्रणाय्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. असंमत (अनभिप्रेत) २. साधु और ३. अभिलाषविवर्जित ( इच्छा रहित ) । प्रताप शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अर्कतरु (आँक का वृक्ष) २. ताप, ३. कोषदण्डजतेज (राजा का प्रताप ) । प्रतिग्रह शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं - १. स्वी करण (स्वीकार करना) २. सैन्यपृष्ठ (सेना का पीठभाग) और ३. पतद्ग्रह ( पीकदानी ) । द्विजेभ्यो विधिवद्देये तद्ग्रह - ग्रहभेदयोः । प्रतिपद् द्रगडे वाद्ये धिषणा - तिथिभेदयोः ।। १३०७।। मूल : Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - प्रतिग्रह शब्द | २३१ प्रतिपन्न तु विक्रान्ते ऽङ्गीकृतेऽवगते त्रिषु । प्रतिपक्षस्तु सादृश्ये विपक्षे प्रतिवादिनि ॥१३०८ ॥ हिन्दी टीका - प्रतिग्रह शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्विजेभ्यो विधिवद्देय (ब्राह्मणों को विधिविधान पूर्वक देना) २ तद्ग्रह (अमुक ग्रह तद्ज्ञान विशेष) और ३. ग्रहभेद ( ग्रहविशेष ) । प्रतिपद् शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. द्रगड २. वाद्य (वाद्य बाजा विशेष ) ३. धिषणा (बुद्धि) और ४. तिथिभेद ( तिथि विशेष - प्रतिपदा तिथि) । प्रतिपन्न शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. विक्रान्त (विक्रमी - पराक्रमी ) २. अंगीकृत ( स्वीकृत) और ३. अवगत (ज्ञात ) । प्रतिपक्ष शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. सादृश्य ( सरखापन ) ६. विपक्ष ( प्रतिपक्ष-विरोधी ) और ३. प्रतिवादी (प्रतिवाद विरोध करने वाला) इस तरह प्रतिपक्ष शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए । मूल : बोधने प्रतिपत्तौ च दानेऽपि प्रतिपादनम् । प्रतिभा तु मतौ दीप्ति प्रत्युत्पन्नमतित्वयोः ।। १३०८॥ प्रतिमा गजदन्तस्यबन्धे प्रतिकृतावपि । प्रतियत्नो निग्रहादौ संस्कारे च प्रतिग्रहे ॥ १३१०॥ हिन्दी टीका - प्रतिपादन शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. बोधन (बोध- ज्ञान कराना) २. प्रतिपत्ति (प्रभुत्व) और ३. दान । प्रतिभा शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. मति, २. दीप्ति ( तेज प्रकाश) और ३. प्रत्युत्पन्नमतित्व ( तात्कालिक तुरत स्फूर्ति विशेष ) । प्रतिमा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-- १. गजदन्तस्यबन्ध (हाथी के दांत का बन्धन) और २. प्रतिकृति (मूर्ति) । प्रतियत्न शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. निग्रहादि (निग्रह - कैद करना वगैरह ) और २. संस्कार तथा ३. प्रतिग्रह (प्रतिग्रह लेना) । मूल : प्रतिष्कसः सहाये स्याद् वार्ताहर-पुरोगयोः । प्रतिष्ठा गौरवे स्थाने पद्य-संस्कारभेदयोः ।।१३११ ।। प्रातःकाले चमूपृष्ठे माल्ये प्रतिसरः पुमान् । अस्त्रियां मण्डलाऽऽरक्ष - हस्तसूत्रेषु कीर्तितः ॥१३१२॥ हिन्दी टीका - प्रतिष्कस शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. सहाय, २. वार्ताहर (दूत - सन्देश पहुंचाने वाला) और ३. पुरोग (अग्रगामी) । प्रतिष्ठा शब्द के चार अर्थ माने गये हैं- १. गौरव, २. स्थान, ३. पद्य (श्लोक) और ४. संस्कारभेद (संस्कार विशेष ) । प्रतिसर शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. प्रातःकाल (सुबह) २. चमूपृष्ठ (सैन्यपृष्ठ - पीठभाग) और ३. माल्य (माला) । पुल्लिंग तथा नपुंसक प्रतिसर शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. मण्डल ( जिला समुदाय) २. आरक्ष (अच्छी तरह रक्षा करने वाला) और ३ हस्तसूत्र (हाथ का मांगलिक सूत्र बन्धना - नाड़ा) । मूल : त्रिषु प्रतिहतौ द्विष्टे प्रतिस्खलित - रुद्धयोः । प्रतीकार श्चिकित्सायां वैरनिर्यातनेऽपि च ॥१३१३॥ प्रतीतस्त्रिषु विख्याते सादरे ज्ञात-हृष्ट्योः । प्रतीहारो द्वारपाले द्वार - सन्धि विशेषयोः ॥१३१४॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - प्रतिहत शब्द हिन्दी टीका - प्रतिहत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्विष्ट (शत्रु) २. प्रतिस्खलित ( गिर पड़ना) ३. रुद्ध ( रुका हुआ या रोका गया) । प्रतीकार शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चिकित्सा ( इलाज ) २. वैरनिर्यातन (शत्रुता का बदला चुकाना ) | प्रतीत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. विख्यात, २. सादर (आदरपूर्वक) ३. ज्ञात, ४. हृष्ट (प्रसन्न ) । प्रतीहार शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्वारपाल, २. द्वार और ३. सन्धि विशेष । मूल : प्रत्यक् पश्चिमदिक् देश - कालेष्वव्ययमीरितम् । प्रत्ययः शपथे ऽधीने ज्ञानविश्वास हेतुषु ।। १३१५ ।। प्रत्यूषो भास्करे कल्ये वसुभेदेऽपि कीर्तितः । प्रधानं प्रकृतौ बुद्धौ प्रशस्ते परमात्मनि ॥१३१६ ॥ हिन्दी टीका - प्रत्यक् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पश्चिमदिक् (पश्चिम दिशा) २. पश्चिमदेश और ३. पश्चिमकाल (अतीतकाल, बीता हुआ काल ) । प्रत्यय शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. शपथ (सौगन्ध ) २. अधीन (परतन्त्र) ३ ज्ञान, ४. विश्वास और ५. हेतु (कारण) । प्रत्यूष शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. भास्कर (सूर्य) २. कल्य ( कल्ह) ३. वसुभेद (वसु विशेष ) । प्रधान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-- १. प्रकृति (सांख्यशास्त्राभिमत मूल प्रकृति) २. बुद्धि, ३. प्रशस्त और ४. परमात्मा (परमेश्वर) इस प्रकार प्रधान शब्द के चार अर्थं जानना । प्रबुद्धस्त्रिषु संफुल्ले पण्डिते जागृतेपि च । मूल : प्रभवो मुनिभेदे स्याद् जन्महेतौ पराक्रमे ।। १३१७।। प्रभु नारायणे शब्दे जिन पारदयोरपि । प्रमाणं नित्य - मर्यादा - शास्त्र हेतु प्रमातृषु ।। १३१८ || हिन्दी टीका - प्रबुद्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. संफुल्ल (पुष्पित) २. पण्डित और ३. जागृत ( जगा हुआ ) । प्रभव शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. मुनिभेद ( मुनि विशेष) २. जन्महेतु (जन्म का कारण ) तथा ३. पराक्रम । प्रभु शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. नारायण (भगवान विष्णु ) २. शब्द, ३. जिन, ४. पारद (पारा) । प्रमाण शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. नित्य, २. मर्यादा ( अवधि सीमा) ३. शास्त्र, ४. हेतु (कारण) और ५. प्रमाता ( प्रमापक यथार्थवक्ता) | मूल : प्रमुखः प्रथमे मान्ये समवाय प्रधानयोः । प्रयागस्तुरगे शक्र े प्रलम्बस्त्रपुषे दैत्ये - यज्ञ - तीर्थविशेषयोः ।। १३१६ ॥ हारभेदे प्रलम्बने । प्रवणः प्रगुणे प्रह्व क्षीणे स्निग्धे प्लुते क्षणे ॥१३२०॥ हिन्दी टीका - प्रमुख शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. प्रथम (पहला) २. मान्य (आदरणीय) ३. समवाय (संघ वगैरह) और ४. प्रधान (मुख्य) । प्रयाग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. तुरग (घोड़ा) २. शक्र (इन्द्र) ३. यज्ञ (याग ) ४. तीर्थविशेष (प्रयाग तीर्थ ) । प्रलम्ब शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं - १. त्रपुष् (रांगा कलई) २. दैत्य (दानव) ३. हारभेद (हार विशेष - मोती हार वगैरह ) और Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–प्रसाद शब्द | २३३ ४. प्रलम्बन (लटकना)। प्रवण शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. प्रगुण (अधिक) २. प्रत (अधीन - प्रसन्न वगैरह) ३. क्षीण (कमजोर) ४. स्निग्ध (मित्र) ५. प्लुत (कूदकर चलने वाला) और ६. क्षण (पल मिनट)। मूल : प्रसादोऽनुग्रहे स्वास्थ्ये प्रसन्नत्वे गुणान्तरे। प्रस्तावः स्यात् प्रकरणे प्रसंगेऽवसरे पुमान् ॥१३२१॥ प्राप्तिः स्त्रीप्रापणे भूतौ लाभेऽभ्युदय-संघयोः । प्रामाणिकस्तु शास्त्रज्ञ मर्यादाहे च हैतुके ।।१३२२॥ हिन्दी टीका-प्रसाद शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं—१. अनुग्रह (कृपा-अनुकम्पा) २ स्वास्थ्य (स्वस्थता) ३. प्रसन्नता, ४. गुणान्तर (गुण विशेष प्रसाद गुण)। पुल्लिग प्रस्ताव शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. प्रकरण, २. प्रसंग और ३. अवसर । प्राप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं१. प्रापण (पहुंचाना) २ भूति (ऐश्वर्य वगैरह) ३. लाभ (मुनाफा) ४. अभ्युदय (उन्नति) तथा ५. संघ (समूह) । प्रामाणिक शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. शास्त्रज्ञ, २. मय दाह (मर्यादा के योग्य-लायक) और ३ हैतुक (हेतुयुक्त) । इस प्रकार प्रामाणिक शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : प्रायोऽनशनमृत्यौ स्यान्मृत्यौ बाहुल्य-तुल्ययोः । प्राथितो याचिते शत्रु संरुद्धेऽभिहिते हते ॥१३२३॥ प्रियो मृगान्तरे पत्यौ हृद्ये च जीवकोषधे । प्रियंवदस्तु गन्धर्वे खेचरे प्रियभाषिणि ॥१३२४॥ हिन्दी टोका-प्राय शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ अनशनमृत्यु (नहीं भोजन करने के कारण मरण) २ मृत्यु (मरण) ३. बाहुल्य (आधिक्य) तथा ४. तुल्य (सरखा)। प्रार्थित शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१ याचित (मांगा हुआ) २. शत्रुसंरुद्ध (शत्रु से रोका हुआ) ३. अभिहित (कथित) और ४. हत (मारा गया)। प्रिय शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. मृगान्तर (मृग विशेष) २. पति, ३. हृद्य (मनोरम सुन्दर) और ४. जीवकोषध (संजीवनी बूटी)। प्रियंवद शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. गन्धर्व, २. खेचर (आकाश में विचरने वाला) और ३. प्रियभाषी (प्रियवक्ता) इस तरह प्रियंवद शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : प्रिया नार्यां मल्लिकायां वार्तायां मदिरैलयोः । प्रेङ्खा स्त्रियां स्याद् दोलायां नृत्ये संवेशनान्तरे ॥१३२५॥ प्रेतोमृते नारकीयप्राणि - भूतप्रभेदयोः । प्रेक्षा नृत्येक्षणे बुद्धौ शाखायामीक्षणेऽपि च ॥१३२६॥ हिन्दी टीका-प्रिया शब्द के पाँच अर्थ होते हैं- १. नारी (स्त्री) २. मल्लिका (जूही फूल विशेष) ३. वार्ता (समाचार वगैरह) ४. मदिरा (शराब) और ५. एला (बड़ी इलाइची)। प्रेखा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. दोला, (डोली झूला) २. नृत्य (नाच) और ३. संवेशनान्तर (संवेशनविशेष, शयन) । प्रेत शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मृत, २. नारकीय प्राणी और ३. भूतप्रभेद (भूत Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - प्रोथ शब्द विशेष) । प्रेक्षा शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. नृत्य ( नाच ) २. क्षण (मिनट) ३. बुद्धि (ज्ञान) ४. शाखा ( डाल) और ५. ईक्षण (देखना) | मूल : प्रोथ: कट्यामश्वमुखे स्त्रीगर्भे भीषणे स्फिचि । प्लवः प्रतिगतौ भेके कपौ प्लवन भेलयोः || १३२७|| अवौ जलान्तरे शत्रौ श्वपचे जलवायसे । प्लवगो वानरे भेके शिरीषे सूर्यसारथौ ॥ १३२८ ॥ हिन्दी टीका - प्रोथ शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. कटि (कमर ) २. अश्वमुख (घोड़े का मुख) ३. स्त्रीगर्भ, ४. भीषण ( भयंकर) और ५. स्फिच् (स्त्र व स्र ुचि वगैरह यज्ञ पात्र विशेष ) । प्लव शब्द के भी पाँच अथ माने गये हैं- १. प्रतिगति ( कूदकर चलना) २. भेक (मेढ़क एड़का ) ३. कपि (बन्दर) ४. प्लवन ( कूदना ) और ५. भेल ( जन्तु विशेष ) । प्लव शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं - १. अवि (मेड़ा) २. जलान्तर (जल विशेष ) ३. शत्रु, ४. श्त्रपच (चांडाल) और ५. जलवायस ( जल काक ) | प्लवग शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. वानर, २. भेक (मेढ़क, एड़का ) ३. शिरीष ( शिरीष फूल) और ४. सूर्यसारथि (अरुण) इस प्रकार प्लवग शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : प्लक्षो द्वीपान्तरे ऽश्वत्थे पक्षके पर्कटिद्रुमे । फटा फणायां कितवे कपटेsपि स्त्रियां मता ।। १३२६ ॥ फलं जातीफले लाभे शस्ये वाणाग्र आर्तवे । कक्कोले फलके व्युष्टौ दाने फाले फलत्रिके ॥ १३३०॥ हिन्दी टीका - प्लक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. द्वीपान्तर (द्वीप विशेष) २. अश्वत्थ (पीपल वृक्ष ) ३. पक्षक (पक्ष, पाख) तथा ४. पर्कटिद्र ुम ( पाकड़ का वृक्ष) । फटा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. फणा, २. कितव ( धूर्त) और ३. कपट ( छल । फल शब्द के ग्यारह अर्थ माने जाते हैं -- १. जातीफल (जायफल) २. लाभ, ३. शस्य (प्रशंसनीय ) ४. बाणा (बाण का नोक भाग) ५ आर्तव ( मासिक धर्म) ६. कक्कोल, ७. फलक, ८. व्युष्टि (फल या समृद्धि) ९. दान, १०. फाल ११. फलत्रिक त्रिफला । मूल : फलोदयः फलोत्पत्तौ हर्षे लाभे सुरालये । फाल: शिवे प्रलम्बघ्ने कृषिके त्रिषु वाससि ॥१३३१ ॥ फाल्गुनस्तु गुडाकेशे नदीजा - ऽर्जुनपादपे । तपस्यसंज्ञमासे तत्पूर्णिमायान्तु फाल्गुनी ॥ १३३२॥ हिन्दी टीका - फलोदय शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. फलोत्पत्ति, २ . हर्ष, ३. लाभ, ४ सुरालय (स्वर्ग) । पुल्लिंग फाल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १ . शिव, २. प्रलम्बघ्न (कार्ति केय) ३. कृषिक (खेती) किन्तु ४. वासस् ( कपड़ा) अर्थ में फाल शब्द त्रिलिंग माना जाता है । फाल्गुन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. गुडाकेश (अर्जुन) २. नदीजार्जुनपादप (जल में उत्पन्न होने वाला अर्जुन नाम का वृक्ष विशेष, जिसको कौपीतक भी कहते हैं) और ३. तपस्यसंज्ञमास ( तपस्य संज्ञा Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - फेरव शब्द | २३५ वाला - फाल्गुन मास) किन्तु ४. तत्पूर्णिमा (फाल्गुन पूर्णिमा के लिये फाल्गुनी--फाल्गुनी पूर्णिमा) शब्द का प्रयोग होता है। फेरवो राक्षसे फेरौ त्रिलिंगो हिस्र-धूर्तयोः । वडवा वाडवाग्नौ स्याद् घोटक्यां तारकान्तरे ॥१३३३॥ शृगाल कोलौ वदरं कासिफल कोलयोः । वधूर्नार्यां स्नुषायां च शारिवौषधि-पृक्कयोः ॥१३३४॥ हिन्दी टीका-फेरव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१ राक्षस, २. फेरू फकसियार-गीदड़ विशेष) ३. हिंस्र (घातक) तथा ४. धूर्त (वञ्चक) किन्तु हिंस्र और धूर्त इन दोनों अर्थों में फेरु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वडवा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं१. वाडवाग्नि (वडवानल) २. घोटकी (घोड़ी) ३. तारकान्तर (तारा विशेष) ४. शृगाल (सियार-गोदड़) और ५. कोल (शूकर)। वदर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कासिफल (कपास) और २. कोल (शूकर) । वधू शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं--१. नारी, २. स्नुषा (पुत्रवधू) ३. शारिवौषधि (शारिवा नाम का औषध विशेष) तथा ४. पृक्क (पृक्क नाम का वृक्षलता विशेष)। उद्दामनि वधे रज्जौ हिसायां बन्धनं स्मृतम् । बन्धुः सगोत्रे बन्धू के मित्रे भ्रातरि कीर्तितः ॥१३३५।। बन्धूको बन्धुजीवे स्यात् खधूपे तु नपुंसकम् । बन्थूर-बन्धुरौ रम्ये नम्र हंसे तु बन्धुरः ॥१३३६॥ हिन्दी टीका-बन्धन शब्द के चार अर्थ होते हैं -१. उद्दाम (उद्दण्ड-उद्धत) २. वध (मारना) ३. रज्जु (डोरी) और ४. हिंसा (कष्ट देना) । बन्धु शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं१. सगोत्र (एक गोत्र-वंश में उत्पन्न) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल) ३. मित्र और ४. भ्राता । पुल्लिग बन्धूक शब्द का अर्थ–१. बन्धुजोव (बन्धूक पुष्प- दोपहरिया फूल) किन्तु २. खधूप (आकाश की धूप) अर्थ में बन्धूक शब्द नपुंसक है । बन्धूर और बन्धुर शब्दों के दो अर्थ माने गये हैं-१. रम्य (रमणीय-सुन्दर) और २. नम्र (विनीत) किन्तु ३. हंस अर्थ में केवल बन्धुर शब्द का ही प्रयोग होता है, बन्धूर शब्द का नहीं। मूल : बभ्र विशाले नकुले केशवे पावके शिवे । बरो जामातरि श्रेष्ठे देवतादेरभीप्सिते ॥१३३७।। बलं गन्धरसे रूपे स्थौल्ये सामर्थ्य-सैन्ययोः । बलः संकर्षणे काके दैत्ये वरुण-पादपे ॥१३३८॥ हिन्दी टीका-बभ्र शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं - १. विशाल, २. नकुल (न्यौला, सपनौर) ३. केशव (विष्णु) ४. पावक (अग्नि) और ५. शिव । बर शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. जामाता (दामाद) २. श्रेष्ठ (बड़ा, महान्) और ३. देवतादेरभीप्सित (देवता वगैरह के अभिप्रेत)। नपुंसक बल शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धरस (वोर - गन्धयुक्त रस) २. रूप ३. स्थौल्य (स्थूलता) ४ सामर्थ्य (शक्ति) और ५. सैन्य (सेना)। पुल्लिग बल शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. संकर्षण (बलराम - बलदेव) Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - बलज शब्द २. काक, ३. दैत्य (बल नाम का दैत्य विशेष) और ४. वरुण पादप ( वरुण नाम का वृक्ष विशेष ) । इस प्रकार बल शब्द के नौ अर्थ जानना । मूल : केदारे बलजं नगरद्वारे शस्य- युद्धयोः । बलभद्रः प्रलम्बघ्ने शेषे गवय - लोध्रयोः ॥ १३३६|| बलाहको गिरौं मेघे दैत्य - नागविशेषयोः । बलि दैत्ये भागधेये पूजोपकरणेऽपि च ॥ १३४० ॥ हिन्दी टीका - बलज शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. नगरद्वार ( नगर का दरवाजा) २. केदार (खेत की क्यारी) ३. शस्य ( हरी फसल) और ४. युद्ध (संग्राम- लड़ाई ) । बलभद्र शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. प्रलम्बघ्न ( बलराम बलदेव) २. शेष ( शेषनाग ) ३. गवय (जंगली गाय - गो सदृश नील गाय विशेष) और ४. लोध (लाल लोध नाम का वृक्ष विशेष ) । बलाहक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भो चार अर्थ होते हैं - १. गिरि (पर्वत, पहाड़ ) २. मेघ (बादल) ३. दैत्य (राक्षस) और ४. नागविशेष (सर्प विशेष ) । बलि शब्द भी पुल्लिंग है - १. दैत्य (दानव विशेष बलि नाम का राजा जिससे दामन भगवान ने तीन डग पृथ्वी माँगकर सारा राज्य ले लिया था) २. भागधेय ( भाग्यवान ) और ३. पूजोपकरण (पूजा का उपकरण विशेष) को भी बलि कहते हैं । इस प्रकार बलि शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : बली तालाङ्क - महिष - क्रमेलक कफेषु च । बल्यं प्रधान छातौ स्याच्छ्र क्र बलकरे त्रिषु ।। १३४१ ॥ अनेके विपुले त्र्यादिसंख्यायां च बहु त्रिषु । बहुकः कर्कटे सूर्ये दात्यूहे जलखातके ॥ १३४२॥ हिन्दी टीका - नकारान्त बलिन् शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. तालाङ्क (बलराम ) २. महिष, ३. क्रमेलक (ऊँट) और ४. कफ ( जुखाम ) । नपुंसक बल्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. प्रधान धातु ( मुख्य धातु - सोना वगैरह ) २. शुक्र (धातु-वीर्य) किन्तु ३. बलकर ( बलकारक) अर्थ में बल्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । बहु शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. अनेक ( बहुत अधिक ) २. विपुल (प्रचुर ) और ३. त्र्यादिसंख्या (तीन वगैरह संख्या) । बहुक शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. कर्कट (कांकोर) २. सूर्य, ३. दात्यूह (धुएँ जैसे रंग वाला कौवा, कारकौवा, डोमकाक) और ४. जलखातक (जल की खाई) इस प्रकार बहुक शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : बहुरूपः शिवे विष्णौ कन्दर्पे केश-सर्जयोः । वाणी व्यूतौ सरस्वत्यां वाक्येऽपि क्वचिदिष्यते ॥१३४३ ।। - बान्धवः सुहृदि ज्ञातौ बालो मूर्खेऽर्भके त्रिषु । बालोऽश्वशावके केशे तुरंग करिव ॥ १३४४॥ हिन्दी टीका -- बहुरूप शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. शिव (भगवान शंकर) २. विष्णु (भगवान विष्ण) ३. कन्दर्प (कामदेव ) ४. केश और ५. सर्ज (शाल - सखुआ ) । वाणी शब्द स्त्री Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-बालक शब्द | २३७ लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं--१. व्यूति (कपड़े आदि को बुनना-बान) २. सरस्वती और ३. वाक्य (शब्द) । बान्धव शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. सुहृद् (मित्र) २. ज्ञाति (बन्धु परिवार कटम्ब वगैरह)। पल्लिग बाल शब्द का अर्थ मूर्ख होता है। किन्तु २. अर्भक (बच्चा) अर्थ में बाल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। बाल शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. अश्वशावक (घोड़े का बच्चा) २. केश और ३. तुरंगकरिबालधि (घोड़ा और हाथी की पूंछ के केशवाला अगला भाग)। बालकोऽज्ञ शिशौ केशे वलये चांगुरीयके । बाला नार्यां हरिद्रायामेलायां भूषणान्तरे ॥१३४५॥ बालिका बालुका-कन्या-त्रुटिषु श्रुति भूषणे । बालुका कर्कटी - यन्त्रप्रभेद - सिकतासु च ।।१३४६॥ हिन्दी टोका-बालक शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. अज्ञ (ज्ञानरहित मूर्ख) २. शिशु (बालक बच्चा) ३. केश, ४. वलय (कंगन चूड़ी) और ५. अंगुरीयक (अँगूठी-मुद्रिका)। बाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. नारी (स्त्री) २. हरिद्रा (हलदी) ३. एला (बड़ी इलाइची) और ४. भूषणान्तर (भूषण विशेष, कान का कुण्डलाकार वाला नाम का भूषण) । बालिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. बालुका (रेती, बालु) २. कन्या (लड़की) ३. त्रुटि (छोटी इलाइची) तथा ४. श्रुतिभूषण (कर्णभूषण वाला)। बालुका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कर्कटी (कांकड़ो-काँकड़ि-फूटि) २. यन्त्रप्रभेद (यन्त्रविशेष) और ३. सिकता (रेती-बालु) इस प्रकार बालुका शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल : बालेयो गर्दभे दैत्यभेदे चाणक्यमूलके । बीभत्सो विकृतौ करे घृणात्मनि रसान्तरे ॥१३४७॥ बुधो वृन्दारके सौम्ये विपश्चिति नृपान्तरे। बुध्नः शिवे वृक्षमूले बुबुधानः सुरे बुधे ॥१३४८॥ हिन्दी टीका- बालेय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गर्दभ (गदहा) २. दैत्यभेद (दैत्य विशेष) और ३. चाणक्यमूलक (राजनीति)। बीभत्स शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. विकृति (विकार) २. क्रूर (घातक) ३. घृणात्मा (घृणायुक्त आत्मा) और ४. रसान्तर (रस विशेष-बीभत्स रस) । बुध शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. वृन्दारक (देवता) २. सौम्य (भद्र) ३. विपश्चित (विद्वान्) और ४. नृपान्तर (नृप विशेष, बुध नाम का राजा)। बुध्न शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शिव (भगवान शंकर) २. वृक्षमूल (वृक्ष का मूल भाग)। बुबुधान शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं---१. सुर (देव) और २. बुध (विद्वान पण्डित)। मूल: विज्ञापने वेदने च बोधनं गन्धदीपने । ब्रघ्नः सूर्ये शिवे वृक्षमूल - रोगविशेषयोः ॥१३४६॥ ब्रह्म वेदे च तपसि तत्त्वे विप्रे विधौ पुमान् । ब्रह्मण्यः केशवे ब्रह्मदारुवृक्षे शनैश्चरे ॥१३५.०॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-बोधन शब्द हिन्दी टोका-वोधन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विज्ञापन (विज्ञप्ति करना) २. वेदन (ज्ञान करना या ज्ञान कराना) ३. गन्धदोपन (सुगन्ध को उद्दीपित करना)। ब्रघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. सूर्य, २. शिव (भगवान शंकर) ३. वृक्षमूल (वृक्ष का मूल भाग) और ४. रोगविशेष (ब्रघ्न नाम का रोग)। ब्रह्म शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. वेद, २. तपस् (तपस्या) ३. तत्त्व (सार) और ४. विप्र (ब्राह्मण) किन्तु ५. विधि (विधाता ब्रह्म) अर्थ में ब्रह्मन् शब्द पुल्लिग माना जाता है। ब्रह्मण्य शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. केशव (भगवान कृष्ण) २. ब्रह्मदारुवृक्ष (शहतूत या तूत का वृक्ष विशेष) और ३. शनैश्चर (शनिग्रह)। इस प्रकार बोधन शब्द के तीन और ब्रन शब्द के चार तथा ब्रह्म शब्द के चार और ब्रह्मण्य शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए मूल : ब्रह्मपुत्रः क्षेत्रभेदे नदभेदे विषान्तरे । ब्रह्मबन्धुरधिक्षेपे निर्देशे निन्दितद्विजे ॥१३५१।। ब्राम्ह्यं दृश्ये विस्मये च ब्रह्म सम्बन्धिनि त्रिषु । भक्ति विभागे श्रद्धायां गौणवृत्तौ च सेवने ॥१३५२॥ हिन्दी टीका ब्रह्मपुत्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. क्षेत्रभेद (क्षेत्रविशेष) २. नदभेद (नद विशेष ब्रह्मपुत्र नाम का महानद) तथा ३. विषान्तर (विष विशेष)। ब्रह्मबन्धु शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं—१. अधिक्षेप (निन्दा) २. निर्देश (उल्लेख) और ३. निन्दितद्विज (निन्दित ब्राह्मण) । ब्राह्मय शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ दृश्य (देखने योग्य) २. विस्मय (आश्चर्य) किन्तु ३. ब्रह्म सम्बन्धी अर्थ में ब्राम्ह्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । भक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. विभाग (विभाजन करना, जुदा पाड़ना) २. श्रद्धा ३. गौणवृत्ति (लक्षणा नाम की गौणी वृत्ति को भी भक्ति कहते हैं) तथा ४. सेवन (सेवा करना)। इस तरह भक्ति शब्द के चार अर्थ हुए। मूल : भगं यशसि सौभाग्ये वैराग्ये ज्ञान-वीर्ययोः । श्रियां स्त्रियां सूर्य चन्द्र यत्न माहात्म्य कान्तिषु ।।१३५३।। योनौ धर्मे च कैवल्ये स्पृहा नक्षत्रभेदयोः । भटो वीरे म्लेच्छभेदे पामरे रजनीचरे ॥१३५४।। हिन्दी टीका-भग शब्द नपुंसक है और उसके बारह अर्थ माने जाते हैं-१. यशस् (यशख्याति) २. सौभाग्य, ३. वैराग्य, ४. ज्ञान, ५. वीर्य (पराक्रम) ६. श्री (लक्ष्मी) ७. स्त्री, ८. सूर्य, ६. चन्द्र, १०. यत्न, ११. माहात्म्य (महिमा) और १२. कान्ति (तेज विशेष)। भग शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं-१. योनि, २. धर्म, ३. कैवल्य ४. स्पृहा (अभिलाषा) तथा ५. नक्षत्र भेद (नक्षत्र विशेष)। भट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. वीर २. म्लेच्छभेद (म्लेच्छ विशेष) ३. पामर (अधम) और ४. रचनीचर (राक्षस)। मूल : नाट्योक्त्या नृपतौ देवे पूज्ये भट्टारको मतः । भद्रः शिवे खजरीठे वृषभे च कदम्बके ॥१३५५।। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - भट्टारक शब्द | २३६ हस्तिजातिविशेषे च भद्रं तु मंगले स्मृतम् । भद्रा प्रसारिणी रास्ना - नीली - व्योमनदीषु च ॥१३५६॥ हिन्दी टीका - नाट्योक्ति नाट्यशास्त्र की परिभाषा के अनुसार भट्टारक शब्द का निम्न तीन अर्थों में प्रयोग किया जाता है - १. नृपति (राजा) २. देव, और ३. पूज्य, इन तीनों अर्थों में भट्टारक शब्द का नाट्यशास्त्र में प्रयोग होता है । पुल्लिंग भद्र शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. शिव (भगवान शंकर ) २. खञ्जरीट (खञ्जन नाम का पक्षी विशेष ) ३. वृषभ (बैल) ४. कदम्बक (समूह) तथा ५ हस्तिजाति विशेष (भद्र नाम का प्रसिद्ध हाथी जाति विशेष ) किन्तु नपुंसक भद्र शब्द का अर्थ ६. मंगल होता है । भद्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं – १, प्रसारिणी (कुब्ज प्रसारिणी, वंवर, आकाशबेल) २. रास्ना (तुलसी) ३. नीली (गड़ी) ४. व्योम नदी (आकाश गंगा) । मूल : वचा ऽपराजिता ऽनन्ता - काकोदुम्बरिकासु च । तिथिभेदे हरिद्रायां कट्फले सारिवान्तरे ।।१३५७।। बुद्धशक्त्यन्तरे दन्त्यां काश्मरी - श्वेत दूर्वयोः । भयानकस्तु शार्दूले रसभेदे विधुन्तुदे ।। १३५८ ॥ 5. हिन्दी टीका-भद्रा शब्द के और भी बारह अर्थ माने गये हैं- १. वचा, २. अपराजिता, ३. अनन्ता, ४. काकोदुम्बरिका (कठूमर, काला गूलर ) ५. तिथिभेद (सप्तमी द्वादशी और द्वितीया तिथि) को भी भद्रा कहते हैं । ६. हरिद्रा (हल्दी) ७. कट्फल (कायफल - जाफर) सारिवान्तर (सारिवा विशेषसारसपक्षी ९. बुद्धशक्त्यन्तर (भगवान बुद्ध का शक्ति विशेष) १०. दन्ती (दन्ती नाम का औषध विशेष ) ११. काश्मरी (खंभारी - गंभार) और १२. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) । भयानक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. शार्दूल, २. रसभेद ( रस विशेष - भयानक रस) तथा ३. विधुन्तुद (राहु) । मूल : भरण्यं वेतने मूल्ये भरणं पोषणे भृतौ । भरतः शवरे क्षेत्रे दौष्मन्ति - मुनिभेदयोः ॥१३५६॥ रामानुजे नाट्यशास्त्रे तन्तुवायेऽपि कीर्तितः । भर्म नाभौ च धुस्तु काञ्चने वेतनेऽद्वयोः ॥ १३६०॥ हिन्दी टीका - भरण्य शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. वेतन, २. मूल्य (कीमत ) । भरण शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. पोषण (रक्षण) और २. भृति (सेवा, जीविका ) । भरत शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. शबर (भील जाति ) २. क्षेत्र, ३. दौष्मन्ति (दुष्यन्त राजा का पुत्र) ४. मुनिभेद (मुनि विशेष, नाट्यशास्त्र का कर्ता भरत नाम का प्रसिद्ध मुनि) ५. रामानुज ( भगवान रामचन्द्र का छोटा भाई भरत ) ६. नाट्यशास्त्र और ७. तन्तुवाय ( जुलाहा कपड़ा बुनने वाला) । भर्म शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. नाभि, २. धुस्तूर ( धत्तूर ) और ३. काञ्चन (सोना) किन्तु ४. वेतन अर्थ में भर्म केवल पुल्लिंग ही माना जाता है । मूल : भवो जन्मनि संसारे क्षेमे प्राप्तौ महेश्वरे । भव्यं त्रिषु शुभे योग्ये सत्ये भाविनि चेष्यते ।। १३६१।। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - भव शब्द कर्मरङ्ग तरौ पुंसि रसभेदे ऽस्त्रियामसौ | भव्या स्याद् गजपिप्पल्यां दुर्गायां रम्यवस्तुनि ॥१३६२ ॥ हिन्दी टीका - भव शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. जन्म, २. संसार, ३. क्षेम (कल्याण) ४. प्राप्ति और ५ महेश्वर ( परमेश्वर या भगवान शंकर ) । त्रिलिंग भव्य शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शुभ, २. योग्य, ३. सत्य और ४. भावी ( होने वाला) । किन्तु ५ कर्मरङ्गतरु ( कर्म रङ्ग वृक्ष ) अर्थ में भव्य शब्द पुल्लिंग माना जाता है परन्तु ६. रसभेद ( रस विशेष ) अर्थ में भव्य शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है । भव्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. गजपिप्पली ( गजपीपरि) २. दुर्गा (पार्वती) और ३. रम्य वस्तु ( रमणीय पदार्थ ) | मूल : भसत् स्त्री भास्करे योनौ काले कारण्डवे प्लवे । भस्मकं कलधौते स्यात् रोगभेद - विडङ्गयोः ।।१३६३॥ भस्मतुलं ग्रामकूटे तुषारे पांशुवर्षणे । भागो रूपयार्ध भाग्ये राशेस्त्रिशांशकेऽशके ॥ १३६४ ।। हिन्दी टोका - भसत् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. भास्कर (सूर्य) २. योनि, ३. काल, ४ कारण्डव (वत्तक) ५. प्लव (बन्दर वगैरह ) । भस्मक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. कलधौत (सोना या चाँदी ) २. रोगभेद ( रोग विशेष -- भस्मक नाम का रोग ) तथा ३. विडङ्ग (वायविडङ्ग) । भस्मतूल शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. ग्रामकूट, २. तुषार (बर्फ) और ३. पांशुवर्षण ( धूलि की वर्षा ) । भाग शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. रुप्यार्धक (आठ आना) २. भाग्य, ३. राशित्रिंशांश ( रात का तीसवां भाग - एक दण्ड) और ४. अंशक ( हिस्सा भाग ) । मूल : भाग्ये क्लीवं भागधेयं दायादकरयोः पुमान् । योग्य आढकमाने च पात्रे भाजनमीरितम् ॥१३६५।। हिन्दी टीका - भागधेय शब्द १ भाग्य अर्थ में नपुंसक है किन्तु २ दायाद (गोतिया ) और ३. कर (टैक्स) अर्थों में भागधेय शब्द पुल्लिंग माना जाता है। भाजन शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं१. योग्य ( लायक) २. आढकमान (अढैया ) और ३. पात्र (बर्तन) । मूल : भाण्डं पात्रे भाण्डवृत्तौ वणिङ, मूलधने मतम् । भानुदिवाकरे रश्मौ वृत्तार्हज्जनके प्रभौ ॥ १३६६॥ भामः क्रोधे सहस्रांशौ दीप्तौ च भगिनीपतौ । भारती वाचि वृत्तौ च सरस्वत्यां खगान्तरे ।। १३६७॥ हिन्दी टीका - भाण्ड शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. पात्र (बर्तन) २. भाण्डवृत्ति ( बर्तन बनाना) और ३. वणिङ मूलधन (बनिया का मूल धन) । भानु शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. दिवाकर (सूर्य) २. रश्मि (किरण) ३. वृत्तार्हज्जनक ( अतीत भगवान अर्हन्त का पिता - भानु नाम का, तीर्थङ्कर विशेष का पिता) और ४. प्रभु (स्वामी) । भाम शब्द पुल्लिंग Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-भारद्वाज शब्द | २४१ है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. क्रोध (गुस्सा) २. सहस्रांशु (सूर्य) ३. दीप्ति (प्रभा ज्योति, कान्ति वगैरह) और ४. भगिनीपति (बहन का पति-बहनोई)। भारती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. वाच् (शब्द-वाणी) २. वृत्ति (जीविका वगैरह) ३. सरस्वती तथा ४. खगान्तर (खग विशेष-भारती नाम का पक्षी विशेष)। भारद्वाजः कुजेऽगस्त्ये द्रोणाचार्ये गुरोःसुते । भार्गवः कुञ्जरे पशुराम - देशविशेषयोः ॥१३६८।। भार्गवी पार्वती-लक्ष्मी-श्वेतदूर्वासु कीर्तिता। भालाङ्को रोहिते मीने शाकभित्करपत्रयोः ॥१३६६॥ हिन्दी टीका-भारद्वाज शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. कुज (मंगलग्रह) २. अगस्त्य (अगस्त्य ऋषि) ३. द्रोणाचार्य और ४. गुरोःसुत (बृहस्पति का पुत्र)। भार्गव शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कुञ्जर (हाथो) २. पशुराम और ३. देशविशेष (भार्गव नाम का देश विशेष)। भार्गवी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं – १. पार्वती (दुर्गा) २. लक्ष्मी, ३. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी)। भालाङ्क शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. रोहित (इन्द्रधनुष वगैरह) २. मीन (मछली) ३. शाकभित् (शाक-भाजी को काटने का साधन विशेष हांसू-दरांता वगैरह) और ४. करपत्र (आरी वगैरह अस्त्र विशेष, जिससे लकड़ी काटी जाती है)। महालक्षणसम्पन्न - पुरुषे कच्छपे हरे । भावः स्वभावेऽभिप्राये पदार्थेऽभिनयान्तरे ॥१३७०॥ बुधो विभूतौ चेष्टायां सत्तायां योनि-लीलयोः । क्रियायां जनने जन्तौ रत्यादिव्यभिचारिणि ॥१३७१।। हिन्दी टीका-भालाङ्क शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. महालक्षण सम्पन्न पुरुष (अत्यन्त भाग्यशाली महापुरुष) २. कच्छप (काचवा-काछु) और ३. हर (भगवान शङ्कर)। भाव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. स्वभाव (नेचर) २. अभिप्राय (आशय) ३. पदार्थ और ४. अभिनयान्तर (अभिनय विशेष)। भाव शब्द के और भी दस अर्थ माने गये हैं-१. बुध (पण्डित) २. विभूति (ऐश्वर्य वगैरह) ३. चेष्टा, ४. सत्ता (अधिकार) ५. योनि, ६. लीला, ७. क्रिया, ८. जनन (उत्पत्ति) ६. जन्तु (प्राणी) और १०. रत्यादिव्यभिचारी (रति वगैरह व्यभिचारी भाव) को भी अलंकारशास्त्र में भाव शब्द से व्यवहार किया जाता है । इस प्रकार भाव शब्द के कुल चौदह अर्थ जानना। मूल : भावाटो भावके साधौ निवेशे कामुके नटे। ध्यानेऽधिवासने पर्यालोचने भावना मता ॥१३७२॥ हिन्दी टीका-भावाट शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. भावक (अभिभावक) २. साधु ३. निवेश (प्रवेश) ४. कामुक (विलासी-विषयी) और ५. नट । भावना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. ध्यान, २. अधिवासन (अधिवास करना) और ३. पर्यालोचन (अच्छी तरह विमर्श करना या पर्यालोचना करना)। मूल : Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - भावित शब्द मूल : भावितो वासिते प्राप्ते चिन्तिते मिश्रिते त्रिषु । भास दीप्तौ शकुन्ते च कुक्कुटे गृध्र-गोष्ठ्ययोः ॥। १३७३।। भासन्त: चन्दिरे सूर्ये नक्षत्रे भासपक्षिणि । भास्करोऽहस्करे वह्नौ भास्कराचार्य - वीरयोः ।। १३७४॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग भावित शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. वासित ( वासनायुक्त) २. प्राप्त, ३. चिन्तित, किन्तु ४. मिश्रित ( मिला हुआ) अर्थ में भावित शब्द त्रिलिंग माना जाता है । भास शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. दीप्ति ( ज्योति, प्रकाश) २. शकुन्त (पक्षी) ३. कुक्कुट (मुर्गा ) ४. गृध्र ( गीध ) और ५. गोष्ठ (समूह वगैरह ) । भासन्त शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थं माने गये हैं—१. चन्दिर (चन्द्रमा) २. सूर्य, ३. नक्षत्र और ४. भासपक्षी (भास नाम का पक्षी विशेष ) । भास्कर शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. अहस्कर (सूर्य) २. वह्नि (अग्नि) ३. भास्कराचार्य और ४. वीर । इस प्रकार भास्कर शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : भासुरो दिवसे सूर्ये दीप्तियुक्त त्वसौ त्रिषु । भास्वान् सूर्येऽर्कवृक्षे च वीरे दीप्तियुते त्रिषु ।। १३७५ ।। भित्ति: कुड्ये प्रदेश संविभागा - ऽवकाशयोः । भिदुरं कुलिशे क्लीवं प्लक्षवृक्षे त्वसौ पुमान् ॥ १३७६।। हिन्दी टीका - भासुर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. दिवस (दिन ) २. सूर्य किन्तु ३. दीप्तियुक्त (प्रकाशवान ) अर्थ में भासुर शब्द त्रिलिंग माना जाता है । भास्वान् शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. सूर्य, २. अर्कवृक्ष (आंक का वृक्ष) और ३. वीर, किन्तु ४. दीप्तियुत (दीप्तियुक्त) अर्थ में भास्वान् शब्द त्रिलिंग माना गया है । भित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कुड्य ( दीवाल) २. प्रदेश ( एकदेश) ३. संविभाग (विभाजन) और ४. अवकाश । भिदुर शब्द - १. कुलिश (वज्र ) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. प्लक्षवृक्ष ( पाकर का वृक्ष) अर्थ में भिदुर शब्द पुल्लिंग ही माना गया है । मूल : भिन्नो विदारिते फुल्ले संगते - तरयो स्त्रिषु । भिक्षा भृतौ च सेवायां याञ्चा - भिक्षितवस्तुनि ॥१३७७।। भिक्षु जैनमुनौ बुद्धप्रभेद - कोकिलाक्षयोः । भीमो भयानकरसे शिवे मध्यम पाण्डवे ||१३७८ || हिन्दी टीका - पुल्लिंग भिन्न शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. विदारित (विदीर्ण किया गया ) २. फुल्ल ( विकसित ) किन्तु ३. संगत ( मिला हुआ) अर्थ में और ४. इतर ( भिन्न अन्य) अर्थ में भिन्न शब्द त्रिलिंग माना गया | भिक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. भृति (जीविका ) २. सेवा, ३. याञ्चा (याचना ) और ४. भिक्षित वस्तु ( याचित पदार्थ ) । भिक्षु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. जैन मुनि (जैन साधु) २. बुद्धप्रभेद ( भगवान बुद्ध विशेष) और ३. कोकिलाक्ष ( कोयल की आँख ) । भीम शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. भयानकरस, २. शिव (भगवान शंकर) और ३. माध्यमपाण्डव (भीम नाम का दूसरा पाण्डव ) । इस प्रकार भीम शब्द के तीन अर्थ जानना । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-भीरु शब्द | २४३ मूल : भीरुः स्त्री भयशीलायां स्त्रियां सामान्ययोषिति । शतावरी - कण्टकारी -छायाऽजा सुप्रकीर्तिता ॥१३७६।। पुमान् शृगाले शार्दू ले भयशीले त्वसौ त्रिष। भीरुक: कातरे घूके काननेक्षुविशेषयोः ॥१३८०॥ हिन्दो टीका-भीरु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. भयशीला स्त्री (डरपोक स्त्री) २. सामान्ययोषित् (साधारण स्त्री) ३. शतावरो (शतावर) ४. कण्टकारी (रेंगनी कटया) ५. छाया और ६. अजा (बकरी) किन्तु पुल्लिग भीरु शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. शृगाल (सियार) और २. शार्दूल (पक्षी विशेष) परन्तु ३. भयशील अर्थ में भीरु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भीरुक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. कातर (कायर) २. घूक (उल्लू नाम का पक्षी विशेष) ३. कानन (जंगल, वन) और ४. इक्षुविशेष (गन्ना शेर्डी) इस तरह भीरुक शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : शिवे कपोते हिन्ताले शल्लक्यां भीषणेरसे। भीष्मो भयानकरसे गाङ्ग ये राक्षसे शिवे ॥१३८१॥ भुक्तिः स्त्री भोजने भोगे भुजङ्गः षिङ्ग-सर्पयोः । भुजिष्यो हस्तसूत्रे स्याद् रोगे दास-स्वतन्त्रयोः ॥१३८२॥ हिन्दो टोका-भीरुक शब्द के और भी पांच अर्थ माने जाते हैं--१. शिव (भगवान शकर) २. कपोत (कबूतर) ३. हिन्ताल (हिन्ताल नाम का तृणद्र म विशेष) ४. शल्लकी (शाही-शहरी) और ५. भीषणरस (भयानक रस) को भो भीरुक शब्द से लिया जाता है। भीष्म शब्द के चार अर्थ होते हैं१. भयानक रस, २. गांगेय (भीष्म पितामह) ३. राक्षस और ४. शिव (भगवान शंकर)। भुक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं –१. भोजन, २. भोग। भुजंग शब्द के भो दो अर्थ होते हैं१. पिंग (नपुंसक-हिजड़ा) ओर २. सर्प । भुजिष्य शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. हस्तसूत्र (मांगलिक विवाहादिकालिक हस्तसूत्र) २. रोग ३. दास (नौकर) और ४. स्वतन्त्र । इस प्रकार भुजिष्य शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : भुवनं सलिले व्योम्नि जन-विष्टपयोरपि । भुवन्युस्तु सहस्रांशौ वह्नौ चन्द्रमसि प्रभौ ॥१३८३॥ भूः स्त्रियां पृथिवी स्थानमात्र-यज्ञाग्निषु स्मृता। भूकाकः स्वल्पकङ्क स्यात् क्रौञ्च नीलकपोतयोः ॥१३८४॥ हिन्दी टीका-भुवन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सलिल (जल) २. व्योम (आकाश) ३. जन और ४. विष्टप (जगत)। भुवन्यु शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. वह्नि (अग्नि) ३. चन्द्रमस् (चन्द्रमा) और ४. प्रभु (मालिक)। भू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पृथिवी (भूमि) २ स्थानमात्र और ३. यज्ञाग्नि । भूकाक शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. स्वल्पकङ्क (छोटा सफेद चील-कंकहरा) २. क्रौञ्च (क्रौञ्च नाम का पक्षी विशेष) तथा ३. नीलकपोत (नीले रङ्ग का कबूतर)। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-भूत शब्द भूतं क्ष्मादौ पिशाचादौ न्याये सत्ये नपुंसकम् । त्रिषु प्राणिन्यतीते च सदृशे चोत्तरस्थिते ॥१३८५॥ भूतोघ्नो लशुने भूर्जपादपे च क्रमेलके । भूतात्मा शंकरे विष्णौ शरीरे परमेष्ठिनि ॥१३८६॥ हिन्दी टीका-भूत शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१.क्ष्मादि (प्रथिवो वगैरह-पृथिवी जल तेज वायु और आकाश) २. पिशाचादि (पिशाच वगैरह-भूतप्रेत पिशाच आदि) ३. न्याय और ४. सत्य, किन्तु ५. प्राणी. ६. अतीत (भूतकाल) ७. सदृश और ८. उत्तरस्थित इन चार अर्थों में भूत शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भूतघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. लशुन, २. भूर्जपत्र (भोजपत्र) ३. क्रमेलक (ऊंट)। भूतात्मा शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शंकर (भगवान महादेव) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. शरीर और ४. परमेष्ठी (ब्रह्माप्रजापति) । इस प्रकार भूतात्मन् शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए और भूत शब्द के आठ अर्थ जानना, एवं भूतघ्न शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : भूतिर्भस्मनि सम्पत्तौ वृद्धिनामौषधे स्त्रियाम् । भूतिकं कट्फले प्रोक्त यमानी-घनसारयोः ॥१३८७॥ भूमिः क्षितौ स्थानमात्रे जिह्वायामपि कीर्तिता। भूमिका रचनायां स्याद् वेशान्तर परिग्रहे ॥१३८८॥ हिन्दी टीका-भूति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. भस्म (विभूति) २. सम्पत्ति (धनादि सम्पदा) और वृद्धिनामौषध (वृद्धि नाम का औषध विशेष)। भूतिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं -१. कट्फल (कायफर-जाफर) २. यमानी (जमाइन-आजमा) तथा ३ घनसार (कपूर)। भूमि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. क्षिति (पृथिवी) २. स्थानमात्र ३. जिह्वा (जोभ) । भूमिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. रचना, २. वेशान्तरपरिग्रह (वेश पोशाक विशेष का ग्रहण करना) । इस प्रकार भूमिका शब्द के दो अर्थ जानना। भूरि विष्णौ शिवे शक्र ब्रह्मणि प्रचुरे त्रिषु । भृगु Mनिविशेषे स्यात् सानौ शुक्रग्रहे शिवे ॥१३८६॥ भृङ्गः कलिंगविहगे भृङ्गारे भ्रमरे विटे । भृतिः स्त्री वेतने मूल्ये भरणेऽपि निगद्यते ॥१३६०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग भूरि शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं --१. विष्णु (भगवान विष्णु) । २. शिव (भगवान शङ्कर) ३. शक्र (इन्द्र) ४ ब्रह्म (परब्रह्म परमात्मा) किन्तु ५. प्रचुर (अधिक) अर्थ में भूरि शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भृगु शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. मुनि विशेष (भृगु नाम का मुनि) २. सानु (पर्वत को चोटी) ३. शुक्रग्रह और ४. शिव (भगवान शंकर)। भृङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कलिंगविहग (भूचेंगा पक्षी) २. भृगार (झारी. हथहर) ३. भ्रमर और ४ विट (भरुआ)। भृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वेतन (पगारदरमाहा) २. मूल्य (कीमत) और ३. भरण (रक्षण-- भरण पोषण करना)। मूल: Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-भृश शब्द | २४५ मूल: भृशं त्वतिशये क्लीवं प्रकर्षे 'शोभनेऽव्ययम् । भेदो विदारणे द्वैधे उपजाप - विशेषयोः ॥१३६१॥ भोगः सुखे भाटके च भुजंगफण - देहयोः । भोगवान् भुजगे नाट्ये गाने भोगयुते त्रिषु ॥१३६२॥ हिन्दी टोका-भृश शब्द-१. अतिशय (अत्यन्त) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. प्रकर्ष (उत्कर्ष) और ३. शोभन (सुन्दर) अर्थ में भृश शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भेद शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. विदारण (विदारण करना) २. द्वैध (भेदभाव) ३. उपजाप (चुगली, चारियापन) और ४. विशेष । भोग शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. सुख, २. भाटक (भाड़ा) ३. भजंगफण (सर्प का फण) और ४. देह (शरीर)। पूल्लिग भोगवान शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं१. भुजग (सर्प) २. नाट्य और ३. गान किन्तु ४. भोगयुत (भोग वाला) अर्थ में भोगवान् शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : भोगी सर्प ग्रामपात्रे वैयावृत्तिकरे नृपे। भोग्यं धान्ये धने क्लीवं भागयोग्ये त्वसौ त्रिषु ॥१३६३।। हिन्दी टोका-भोगी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. सर्प, २. ग्रामपात्र (ग्राम के योग्य या ग्राम का पात्र वगैरह) ३. वैयावृत्तिकर (सेवा करने वाला) तथा ४. नृप (राजा)। नपुंसक भोग्य शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. धान्य और २. धन, किन्तु ३. भागयोग्य अर्थ में भोग्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भ्रामको जम्बुके धूर्ते सूर्यावर्ते शिलान्तरे। भ्रूणो गर्भेऽर्भके भ्रषो गतौभ्रशे यथोचितात् ॥१३६४॥ मकरन्दः पुष्परसे किंजल्के कुन्दपादपे। कुलालदण्डे वकुले दर्पणे मुकुरः स्मृतः ॥१३६५॥ हिन्दी टीका-भ्रामक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. जम्बुक (सियार) २. धर्त (वञ्चक चालाक) ३. सूर्यावर्त (सूर्य का आवर्त-घेरावा, परिवेष) और ४. शिलान्तर (प्रस्तर विशेष)। भ्रण शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. गर्भ और .२. अर्भक (बच्चा)। भ्रष शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. गति (गमन) और २. यथोचितात्भ्रश (योग्य उचित कर्तव्य से गिर जाना)। मकरन्द शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पुष्परस २. किंजल्क (केशर) और ३. कुन्दपादप (कुन्द नाम का सफेद पुष्पविशेष)। मकुर शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुलालदण्ड (कुम्हार का दण्डा) २. वकुल (मोलशरी) ३. दर्पण (आइना, मुकुर)। मूल : मंगला पार्वती शुक्लदूर्वा साध्वीषु कीर्तिता। मंगले कुशले क्लीवं मंगलोऽङ्गारके पुमान् ॥१३६६॥ मंगल्यं चन्दने दध्नि स्वर्ण सिन्दूरयोरपि । मज्जाऽस्थिसारे वृक्षादेरुत्तमस्थिरभागके ॥१३६७।। मूल : Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मंगला शब्द हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग मंगला शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पार्वती (दुर्गा) २. शुक्ल. दूवी (सफेद दूभी) और ३. साध्वी। और नपुंसक मंगल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मंगल (शुभ) और २. कुशल किन्तु पुल्लिग मंगल शब्द का अर्थ ३. अंगारक (कुज-मंगलग्रह) होता है। मंगल्य शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. चन्दन, २. दधि, ३. स्वर्ण (सोना) और ४. सिन्दूर (कुंकुम)। मज्जा शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. अस्थिसार (हड्डी का सार भाग) और २. वृक्षादेः उत्तमस्थिर भाग (वृक्ष आदि का सारिल भाग)। मूल : कर्णवंशे च खट्वायां मञ्च: स्यादुच्चमण्डपे । मञ्जरी तुलसी-मुक्ता-लता-वल्लरीषु स्मृता ।।१३६८॥ मठश्छात्रादिनिलये देवतायतनेऽपि सः। मणिः स्त्री पुंसयोरश्मजातौ मुक्तादिकेऽपि च ॥१३६६।। हिन्दी टीका-मञ्च शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. कर्णवंश, २. खट्वा (चारपाई) तथा ३. उच्चमण्डप (मचान)। मञ्जरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. तुलसी, २. मुक्ता (मोती) ३. लता और ४. वल्लरी (वेल)। मठ शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. छात्रादिनिलय छात्रावास) और २. देवतायतन (मन्दिर)। मणि शब्द पूल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. अश्म जाति (शंखमर्मर पत्थर विशेष) और २. मुक्तादिक (मोती वगैरह) । मूल : विद्रुमेऽलिजरे नागविशेष - मणिबन्धयोः । मणिमाला स्त्रियां लक्ष्म्यां दीप्तौ हारे रदक्षते ।।१४००॥ मण्डो मस्तुनि भूषायामेरण्डे सार-पिच्छ्योः । शाकभेदे भक्तरसे दर्दुरेऽपि पुमान् स्मृतः ॥१४०१।। हिन्दी टीका-मणि शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-५. विद्रम (मंगा चनोटी) २. अलिजर ३. नाग विशेष और ४. मणिबन्ध (पहुँचा)। मणिमाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. लक्ष्मी, २. दीप्ति (प्रकाश) ३. हार (कण्ठी) और ४. रदक्षत (दन्त क्षत)। मण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. मस्तु (मण्ड-मांड) २. भूषा (जेबर) ३. एरण्ड (अण्डी) ४. सार (तत्वसार भाग) ५. पिच्छ, ६. शाकभेद (शाक विशेष) ७. भक्तरस (भात का सार भाग) और ८. दर्दुर (मेंढ़क, एड़का)। देवादिदत्तभवने मण्डपोऽस्त्री जनाश्रये । मण्डलं परिधौ चक्रवाले द्वादशराजके ॥१४०२॥ कोठरोगे जनपदे गोले बिम्बे त्वसौ त्रिषु । अथ मण्डलकं बिम्बे कुष्ठभेदे च दर्पणे ॥१४०३।। हिन्दी टोका-मण्डप शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. देवा. दिदत्तभवन (देवादि के लिए दिये हुए भवन–मन्दिराकार मण्डप विशेष) और २. जनाश्रय (जन का आश्रय-निवास स्थान विशेष) । मण्डल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. परिधि मूल : Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मण्डली शब्द | २४७ (परिवेष नाम का सूर्य के चारों तरफ वाला घेरा और गोलाई) २. चक्रवाल (लोकालोक नाम का पर्वत, जोकि सप्तद्वीप वाली पृथिवी को घेरे हुए हैं) तथा ३. द्वादशराजक (बारह राजाओं का समूह) । किन्तु त्रिलिंग मण्डल शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कोठरोग (गजकर्ण रोग जिससे शरीर में गोले गोले चकते पड़ जायँ उस रोग को कोठरोग कहते हैं) २. जनपद (देश) ३. गोल और ४. बिम्ब। मण्डलक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. बिम्ब, २. कुष्ठभेद (कुष्ठरोग विशेष-सफेद कुष्ठ) और ३. दर्पण (आइना)। मण्डली जाहके सर्प मार्जारे क्टपादपे। मण्डूकः शोणके भेके मुनि-बन्धविशेषयोः ॥१४०४॥ मण्डूकी भेकभार्यायां ब्राह्मी-धृष्टास्त्रियोरपि । मतिर्बुद्धौ शाकभेदे स्पृहायां स्मरणे स्त्रियाम् ॥१४०५॥ हिन्दी टीका नकारान्त मण्डली शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. जाहक (खट्वाश) २. सर्प, ३. मार्जार (बिल्ली) और ४. वटपादप (वटवृक्ष) । मण्डूक शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. शोणक (सोनापाठा) २. भेक (मण्डूक-एड़का) ३. मुनि (मुनि विशेष-मण्डूक नाम के प्रसिद्ध ऋषि विशेष, जिन्होंने मण्डूक कारिका लिखी है) और ४. बन्धविशेष (आसन विशेष जो कि मण्डूकासन कहलाता है)। मण्डूकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. भेकभार्या (मण्डूक-एड़का की स्त्री) २. ब्राह्मी (भारती-सरस्वती वगैरह) और ३. धृष्टस्त्री (धीठ औरत)। मति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. बुद्धि, २. शाकभेद (शाक विशेष) ३. स्पृहा (वाञ्छा-अभिलाषा) और ४. स्मरण (याद करना) इस प्रकार मति शब्द के चार अर्थ मानना। मूल : मत्तो लुलाये धुस्तूरे क्षरन्मदमतङ्गजे । कोकिले च पुमान् क्षीब-मत्तयोस्तु त्रिषु स्मृतः ॥१४०६॥ प्रांगणावरणे पूगचूर्णे स्यान्मत्तवारणम् । मत्स्यो नारायणे मीने राशौदेश-पुराणयोः ॥१४०७॥ हिन्दी टोका-मत्त शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. लुलाय (लुलापमहिष) २. धुस्तूर (धत्तूर) ३. क्षरन्मदमतंगज (मत्तवाला हाथी) तथा ४. कोकिल (कोयल) किन्तु ५. क्षीब (उन्मत्त) और ६. मत्त अर्थ में मत्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मत्तवारण शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं--१. प्रांगणावरण (अँगना का घेरावा) और २. पूगचूर्ण (सुपारी का चूर्ण विशेष)। मत्स्य शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. नारायण (भगवान विष्णु) २. मीन (मछली) ३. राशि (मीन राशि) और ४. देश (मत्स्य नाम का देश विशेष) तथा ५. पुराण (मत्स्य नाम का पुराण विशेष) इस प्रकार मत्स्य शब्द के पाँच अर्थ समझने चाहिए। मूल : मदो रेतसि कस्तयाँ हस्तिगण्डजले नदे। मद्येऽभिमाने कल्याणवस्तु - मत्ततयोरपि ॥१४०८॥ मदनः सिक्यके कामे वसन्ते पिचुकद्रुमे । धुस्तूरे खदिरे माषे श्वसने बकुलद्रुमे ॥१४०६॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मद शब्द हिन्दी टीका-मद शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. रेतस् (वीर्य) २. कस्तूरी, ३. हस्तिगण्डजल (हाथी का मद) ४. नद (बहुत बड़ा झील) ५. मद्य (शराब) ६. भिमान (घमण्ड) ७. कल्याणवस्तु (कल्याणकारक वस्तु) और ८. मत्तता (उन्माद)। मदन शब्द भी पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. शिक्य (शिक्का-छींका) २. काम (कामदेव) ३. वसन्त (वसन्त ऋतु) ४ पिचुकद्रुम (रुई-कपास का वृक्ष) ५. धुस्तूर (धतूर) ६. खदिर (कत्था) ७. माष (उड़द) ८. श्वसन (पवन-वायु) और ६. बकुलद्र म (मोलशरी का वृक्ष-भालशरी)। मूल: मदयित्नुः पुमान् कामे शौण्डिके मत्त-मेघयोः । मदारः कुञ्जरे धूर्ते कामुके शूकरे मृगे ॥१४१०॥ मदिरा मादकद्रव्यविशेषे मत्तखञ्जने । मधु मद्ये जले क्षीरे क्षौद्रे पुष्परसे स्मृतम् ।।१४११॥ हिन्दी टीका-मदयित्नु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. काम (कामदेव - मदन) २. शौण्डिक (शूरी-कलवार-घांची) ३. मत्त (उन्मत्त-पागल) और ४. मेघ (बादल) । मदार शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुञ्जर (हाथी) २. धूर्त (वञ्चक-ठग) ३. कामुक (मैथुनाभिलाषी) ४. शूकर और ५. मृग (हरिण)। मदिरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं१. मादकद्रव्य (शराब) और २. मत्तखञ्जन (मतवाला खञ्जन चिड़िया)। मधु शब्द और उसके भी पाँच अर्थ होते हैं--१. मद्य (शराब) २. जल, ३. क्षीर (दूध) ४. क्षौद्र (शहद-मधु) और ५. पुष्परस (मकरन्द)। मूल : पुमान् मधुद्रुमे दैत्ये ऽशोके चैत्र-वसन्तयोः । मधुको वन्दिभेदे स्याद् यष्टयाव्हे विहगान्तरे ।।१४१२।। मधुरो जीरके शालौ गुडे मिष्ठरसे प्रिये । स्त्रियां मधु रसा द्राक्षा-गम्भारी-दुग्धिकासु च ॥१४१३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग मधु शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. मधुद्र म (महुआ वृक्ष) २. दैत्य (मधु नाम का दैत्य विशेष, जिसको भगवान विष्णु ने मारा है) ३. अशोक (अशोक वृक्ष) ४. चैत्र (चैत मास) और ५. वसन्त (वसन्त ऋतु)। मधुक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वन्दिभेद (बन्दी विशेष) २. यष्टयान्ह (जेठी मधु-मुलहठी) और ३. विहगान्तर (विहग विशेष-मधुक नाम का पक्षी)। मधुर शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. जीरक (जीरा) २. शालि (चावल, धान, चोखा वगैरह) ३. गुड़, ४. मिष्ठरस (मिष्टान्न) और ५. प्रिय (मनोरम)। मधुरसा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. द्राक्षा (मुनक्का-दाख-किसमिस) २. गम्भारी (गभारि) और ३. दुग्धिका (दूधिया घास-दूधी) इस प्रकार मधुरसा शब्द के तीन अर्थ समझना। मध्यं दशान्त्यसंख्यायां लयभेद-विरामयोः । अस्त्री शरीरमध्ये स्यात् त्रिषु न्याय्येऽन्तरेऽधमे ॥१४१४॥ मन्तुः पुमान् मनुष्ये स्यादपराधो प्रजापतौ। मन्थो दिवाकरे मन्थदण्डके साक्तवे करे ॥१४१५।। मूल: Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मध्य शब्द | २४६ हिन्दी टोका-नपुंसक मध्य शब्द के तीन अर्थ होते हैं –१. दशान्त्यसंख्या (इग्यारह) २. लयभेद (लय विशेष) और ३. विराम (समाप्ति) किन्तु ४. शरीरमध्य अर्थ में मध्य शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है परन्तु ५. न्याय्य (योग्य) और ६. अन्तर (मध्य) तथा ७. अधम (नीच) इन तीनों अर्थों में मध्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मन्तु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ मनुष्य, २. अपराध (गल्ती) और ३. प्रजापति (ब्रह्मा)। मन्थ शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. दिवाकर (सूर्य) २. मन्थदण्ड (मन्थनदण्ड) और ३. साक्तव (सतुए का विकार वगैरह) और ४. कर (हाथ)। नेत्रामये नेत्रमले मारणे च विलोडने । मन्थरः सूचकेऽमर्षे मन्थाने मन्दगामिनि ॥१४१६॥ मन्दोऽतीव्रखले स्वल्पे रोगिणि स्वर-मूर्खयोः । मन्दरो मन्थशैले स्यात् स्वर्गे मन्दारपादपे ॥१४१७।। हिन्दी टीका–मन्थ शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. नेत्रामय (आंख का रोग विशेष) २. नेत्रमल (आंख का मल-कांची) ३. मारण (मारना) तथा ४. विलोडन (मन्थन करना)। मन्दर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. सूचक (चुगलखोर) २. अमर्ष (सहन नहीं करना) ३. मन्थान (मन्थन दण्ड) और ४. मन्दगामी (धीमे-धीमे चलने वाला)। मन्द शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं -१. अतीव्र (अनुत्कट-मन्द) २. खल (दुष्ट शत्रु) ३. स्वल्प (थोड़ा) ४. रोगी (बीमार) ५. स्वैर (मनमानो विचरने वाला) और ६. मूर्ख । मन्दर शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मन्थशैल (मन्दराचल पहाड़) २. स्वर्ग तथा ३. मन्दारपादप (सिंहरहार फूल का वृक्ष)। मन्दारोऽर्कतरौ धूर्ते पारिभद्रतरौ शये। मन्दुरा वाजिशालायां शयनीयार्थ वस्तुनि ॥१४१८।। मन्मथः कामचिन्तायां कपित्थगुम कामयोः । मन्युर्दैत्ये क्रतो क्रोधे शोका-हंकारयोः पुमान् ॥१४१६।। हिन्दी टोका-मन्दार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अर्कतरु (आँक का वृक्ष) २. धूर्त (वञ्चक-ठग) ३. पारिभद्रतरु (बकायन) तथा ४. शय (हाथ)। मन्दुरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. वाजिशाला (घुड़साला) २. शयनीयार्थवस्तु (शयन करने योग्य वस्तुजात)। मन्मथ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं --१. कामचिन्ता (कामवासना) २. कपित्थद्र म (कपित्थवृक्ष) और ३. काम (कामदेव)। मन्यु शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. दैत्य (दानव) २. क्रतु (यज्ञ) ३. क्रोध, ४. शोक, ५. अहंकार। मयूखः किरणे दीप्तौ ज्वालायां कील-शोभयोः । मरालः कज्जले राजहंसे कारण्डवे हये ।।१४२०॥ मरुर्दशेरके धन्वदेशे मरुवकद्रुमे । मरुतस्त्रिदशे वायौ घण्टापाटलि पादपे ॥१४२१।। मूल : Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - मयूख शब्द हिन्दी टीका - मयूख शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. किरण, २. दीप्ति (ज्योति) ३. ज्वाला, ४. कील (खील - काँटी) और ५. शोभा । मराल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कज्जल ( काजर) २. राजहंस ३ कारण्डव ( बक विशेष - सारस पक्षी वत्तक वगैरह ) और ४. हय (घोड़ा) । मरु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. दशेरक (ऊँट ) २. धन्वदेश ( मरुभूमि) और ३. मरुवकद्र ुम ( मरुवक नाम का वृक्ष विशेष ) । मरुत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. त्रिदश (देवता) २. वायु (पवन) और ३ घण्टापाटलिद्र ुम (काला पाढर या लोध्र विशेष) इस प्रकार मरुत शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए । मूल : मरुद् वायौ मरुवके त्रिदश ग्रन्थि-पर्णयोः । अथ मर्कटकः शस्यभेदे वानर-लुतयोः ।।१४२२।। मर्कटी स्यादपामार्गे कपिकच्छू-करञ्जयोः । मर्करा स्त्री दरी - भाण्ड-सुरङ्गा - निष्कलासु च ।। १४२३।। हिन्दी टीका - मरुत शब्द के चार अर्थ माने गये हैं- १. वायु (पवन) २. मरुवक ( मरुवक नाम . का वृक्ष विशेष ) ३. त्रिदश (देवता) तथा ४. ग्रन्थिपर्ण ( कुकरौन्हा या गठिवन) । मर्कटक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. शस्यभेद ( शस्य विशेष, धान्य विशेष) २. वानर (बन्दर) और ३. लूता (मकरा) । मर्कटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अपामार्ग (चिर. चिरी ) २. कपिकच्छू (कबाछु - कबाछं) और ३. करञ्ज (दिठवरन - इंगुदीवृक्ष) । मर्करा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दरी ( कन्दरा गुफा) २. भाण्ड (बर्तन) ३. सुरंगा (सुरंग) तथा ४. निष्कला ( मासिक धर्मरहित स्त्री) । मूल : संवाहने चूर्णने च मर्दनं क्लीवमीरितम् । मर्म क्लीवं स्वरूपे स्यात् संधिस्थान- सतत्त्वयोः ॥ १४२४ ।। मलोsस्त्री पाप-विट् - किट्ट-वात-पित्त-कफेषु च । मलयश्चन्दनगिरौ शैलांगे हिन्दी टीका - मर्दन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. संवाहन (हाथ पाद शरीर दबाना) और २ चूर्णन ( चूर्ण करना) । मर्म शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. स्वरूप, २. सन्धिस्थान और ३. सतत्त्व (तत्त्वपूर्ण) । मल शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं- १. पाप, २. विट् (विष्ठा) ३. किट्ट (जग, बीझ) ४. वात (वायु) ५. पित्त और ६. कफ (जुखाम ) । मलय शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चन्दनगिरि (मलयाचल पहाड़ ) २. शैलाङ्ग (पहाड़ का एकदेश) और ३. नन्दनवन (इन्द्र का स्वर्गीय वन विशेष ) । मूल : नन्दनवने || १४२५॥ मलिनं दूषिते कृष्णे मलसंयुक्तवस्तुनि । मलिम्लुचोऽनले चौरे मलमासे प्रभञ्जने ॥। १४२६॥ मल्लः कपोले पात्रे च बलिष्ठे बाहुयोधिनि । मल्लिजिनान्तरे पुंसि मल्लिकायां त्वसौ स्त्रियाम् ॥ १४२७|| Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - मलिन शब्द | २५१ हिन्दी टीका - मलिन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. दूषित (दोषयुक्त) २. कृष्ण (काला) ३. मलसंयुक्तवस्तु (मलिन वस्तु) । मलिम्लुच शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अनल (अग्नि) २. चौर ३. मलमास ( पुरुषोत्तम महीना ) तथा ४. प्रभञ्जन (वायु-झंझावात ) । मल्ल शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. कपोल ( गाल ) २. प त्र ( बर्तन विशेष - माली) ३. बलिष्ठ (अत्यन्त बलवान) और ४. बाहुयोधी (मल्लयुद्ध करने वाला) । मल्लि शब्द - १. जिनान्तर ( जिन विशेष ) अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २ मल्लिका ( जूही फूल) अर्थ में मल्लि शब्द स्त्रीलिंग माना गया है । मूल : मल्लिका भूपदीपुष्पे मीन - मृत्पात्रभेदयोः । मसिः शेफालिकावृन्त - लेखनद्रव्ययोर्द्वयोः || १४२८॥ महोऽध्वरे च महिषे तेज - उत्सवयोः पुमान् । महाधनं चारुवस्त्रे बहुमूल्ये च वस्तुनि ॥१४२॥ / हिन्दी टोका - मल्लिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. भूपदीपुष्प (छोटी बेला) २. मोन (मछली और ३. मृत्पात्रभेद (मिट्टी का बर्तन विशेष - माली) । मसि शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. शेफालिकावृन्त ( सिंहरहार फूल का डण्ठल ) और २. लेखनद्रव्य ( स्याही - मसी) । मह शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. अध्वर (यज्ञ) २. महिष, ३. तेज और ४. उत्सव । महाधन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. चारुवस्त्र (उत्तम कपड़ा) और २. बहुमूल्य वस्तु (अधिक कीमत वाली वस्तु) इस प्रकार महाधन शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए | मूल : महानादो महाशब्दे वर्षाकाम्बुद हस्तिनोः । महानीलो भृङ्गराजे मणिनाग - विशेषयोः ।। १४३०।। · महामुनिर्जिने sगस्त्ये व्यासे तुम्बुरुपादपे । महारसः पारदेक्षु खर्जू रेषु कशेरुणि ॥१४३१॥ हिन्दी टीका - महानाद शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. महाशब्द ( अत्यन्त विशाल ध्वनि) २. वर्षु काम्बुद (जल बरसाने वाला बादल) और ३. हस्ती (हाथी) । महानील शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. भृङ्गराज, २. मणि और ३. नागविशेष (नाग (सर्प) । महामुनि शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. जिन (जिन भगवान ) २. अगस्त्य ( अगस्त्य मुनि ) ३. व्यास और ४. तुम्बुरुपादप (तुम्बुरु नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) । महारस शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. पारद (पारा) २. इक्षु (गन्ना, शेर्डी) ३. खर्जूर (खजूर) और ४. कशेरु (केशौर) इस प्रकार महारस शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : महालयो विहारे स्यात् तीर्थे च परमात्मनि । महावीरस्तु गरुड़े हनुमति मखानले ॥१४३२॥ चतुर्विंश जिने सिहे शूरे वज्र धनुर्धरे । महाशङ्खो बृहत्कम्बौ निधिभेदे नरास्थिन || १४३३॥ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-महालय शब्द हिन्दी टीका-महालय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विहार, २. तीर्थ और ३. परमात्मा । महावीर शब्द भी पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं-१. गरुड़, २. हनुमान, ३ मखानल (यज्ञवह्नि) ४. चतुर्विशजिन (चौबीसवां तीर्थङ्कर भगवान वर्द्धमान प्रभु) ५. सिंह, ६. शूर (वीर) ७. वज्र तथा ८. धनुर्धर (धनुषधारी)। महाशङ्ख शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. बृहत्कम्बु (बड़ा शंख) २. निधिभेद (निधि विशेष) और ३. नरास्थि (मनुष्य की हड्डी) इस प्रकार महाशंख शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : महानुभावेऽकूपारे त्रिलिंगः स्यान्महाशयः । महासाहसिकः स्तेने बलपूर्वापहारके ॥१४३४॥ महासेनः कार्तिकेये महासेनापतौ शिवे । मातंगः कुञ्जरेऽश्वत्थे श्वपचेर्हदुपासके ।।१४३५।। हिन्दी टीका-महाशय शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. महानुभाव (महाभाग) और २. अकूपार (समुद्र)। महासाहसिक शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. स्तेन (चौर) और २. बलपूर्वापहारक (बलपूर्वक-जबरदस्तो अपहरण करने वाला) । महासेन शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. कार्तिकेय, २. महासेनापति (महासेना का पति) और ३. शिव (भगवान शंकर)। मातंग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. कुञ्जर (हाथी) २. अश्वत्थ (पीपल) ३. श्वपच (चाण्डाल) और ४. अर्हद्-उपासक (भगवान तीर्थङ्कर का उपासक भक्त)। मूल : मात्रा परिच्छदे स्वल्पे वित्ते श्रवणभूषणे । अक्षरावयवे कालविशेषे - परिमाणयोः ॥१४३६।। मादो दर्प मत्ततायां प्रमोदेऽपि प्रकीर्तितः । वसन्ते कृष्ण मुद्गे च वैशाखे माधवो हरौ ॥१४३७।। हिन्दी टीका-मात्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. परिच्छद (परिवार) २. स्वल्प, ३. वित्त (धन) ४. श्रवणभूषण (कर्णभूषण) ५. अक्षरावयव (ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत) ६. कालविशेष और ७. परिमाण (माप करने का साधन विशेष)। माद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१ दर्प (घमंड) २. मत्तता और ३. प्रमोद (आनन्द)। माधव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वसन्त (वसन्त ऋतु) २. कृष्णमुद्ग (काला मग-मूंग) ३. वैशाख और ४. हरि (भगवान विष्णु)। मूल : दुर्गायां पुण्ड्रके मद्ये कुट्टन्यां माधवी मता। मानसं सरसि स्वान्ते त्रिलिंगन्तु मनोभवे ॥१४३८॥ माया कृपायां पद्मायां कपटे बुद्धमातरि । दुर्गायां विष्णुमायायां मायः पीताम्बरेऽसुरे ॥१४३६॥ हिन्दी टोका-माधवी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. दुर्गा (पार्वती) २. पुण्ड्रक (कुन्द नाम का फूल विशेष) ३. मद्य (शराब) ४. कुट्टनी (व्यभिचारिणी स्त्री को दूती)। नपुंसक Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मार शब्द | २५३ मानस शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. सरस (तालाब) और २ स्वान्त (हृदय-मन) किन्तु ३. मनोभव (कामदेव) अर्थ में मानस शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार मानस शब्द के तीन अर्थ जानना। माया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. कृपा (दया-अनुकम्पा) २. पद्मा (लक्ष्मी) ३. कपट (छल) ४. बुद्धमाता भगवान बुद्ध की माता) ५. दुर्गा (पावती) और ६.विष्णमाया (भगवान विष्ण की लीला)। माय शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पीताम्बर (पीत वस्त्र वाला) और २. असुर (दानव) । इस प्रकार माया शब्द के छह और माय शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : मारोऽन्तराये कन्दर्पे धुस्तूरे मारणे मृतौ । मारुण्ड: पथि सर्पाण्डे पुमान् गोमयमण्डले ॥१४४०।। मार्गो मृगमदे मार्गशीर्षमासे गवेषणे। अध्वन्य पाने नक्षत्रे विष्टर-श्रवसि स्मृतः ॥१४४१॥ हिन्दी टीका-मार शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. अन्तराय (विघ्न बाधा) २ कन्दर्प (कामदेव) ३. धुस्तूर (धतूर) ४. मारण (मारना) ५. मृति (मरना)। मारुण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पथ (मार्ग रास्ता) २. सपण्डि (सर्प का अण्डा) और ३. गोमयमण्डल (गोबर का समूह)। मार्ग शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. मृगमद (कस्तूरी) २. मार्गशीर्ष मास (अग्रहण महीना) ३. गवेषण (ढूंढ़ना) ४. अध्व (मार्ग रास्ता) ५. अपान (पान नहीं करना) ६. नक्षत्र (तारा) और ७. विष्टरश्रवस् (भगवान विष्णु)। इस प्रकार मार्ग शब्द के सात अर्थ समझना । मूल : मार्तण्ड: स्यात् सहस्रांशौ शूकरेऽर्कमहीरहे। मालं क्षेत्रे च कपट वन उन्नतभूतले ॥१४४२।। मालती जातिकुसुमे युवती ज्योत्स्नयो निशि । माला पंक्तौ पुष्पदाम्नि जपमालादिकेऽपि च ॥१४४३।। हिन्दी टोका—मार्तण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. शूकर (शूगर) ३. अर्कमहीरुह (ऑक का वृक्ष)। माल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. क्षेत्र (खेत वगैरह) २. कपट (छल-छद्म) ३. वन (जंगल) और ४. उन्नत भूमि (ऊँची भूमि)। मालती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. जातिकुसुम (मोगरा फूल) २. युवती (जवान औरत) ३. ज्योत्स्ना (चांदनी-चन्द्रिका) और ४. निशा (रात)। माला शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पंक्ति (श्रेणी कतार) २. पुष्पदाम (पुष्पमाला) और ३. जपमालादिक (जप करने की माला वगैरह)। मूल: मालाकारे पक्षिभेदे रजके मालिकः स्मृतः। मिहिरो ऽर्कतरौ सूर्य-चन्द्रे मेघे च मारुते ॥१४४४॥ मीनो राश्यन्तरे मत्स्ये मुकुन्द: केशवे निधौ। मुकुरो मल्लिकापुष्पवृक्षे बकुलपादपे ॥१४४५।। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - मालिक शब्द हिन्दी टीका मालिक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. मालाकार (माली २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष, मालिक नाम का पक्षी) और ३. रञ्जक (रंगरेज वगैरह ) को भी मालिक कहते हैं । मिहिर शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. अर्कतरु ( ऑक का वृक्ष) २. सूर्य, ३. चन्द्र, ४, मेघ (बादल) और ५. मारुत (पवन वायु) । मीन शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. राश्यन्तर ( राशि विशेष, मीन राशि) २. मत्स्य (मछली) । मुकुन्द शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. केशव (भगवान विष्णु ) और २. निधि (खनि, खान) । मुकुर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. मल्लिका पुष्पवृक्ष (मोगरा फूल का वृक्ष) और २. बकुलपादप (मोलशरी फूल का वृक्ष) इस प्रकार मुकुर शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए । मूल : कुलालदण्ड आदर्शे कोरके कुलपादपे । मुक्ताफलं स्यात् कर्पूरे मौक्तिके लवलीफले ॥१४४६।। मुखं प्रधाने प्रारम्भे वक्त्रे शब्दे च नाटके | उपाये सन्धिभेदे च वेदे निःसारणा ssद्ययोः ॥१४४७ ।। हिन्दी टीका - मुकुर शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. कुलालदण्ड (कुम्हार का दण्ड) २. आदर्श (दर्पण) ३. कोरक (कली) और ४. कुलपादप ( कुल नाम का वृक्ष विशेष ) । मुक्ताफल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कर्पूर, २. मौक्तिक (मोती) और ३. लवलीफल (लवली नाम का पर्वतीय लता विशेष का फल ) । मुख शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ माने जाते हैं१. प्रधान (मुख्य) २. प्रारम्भ ( आरम्भ, शुरुआत ) ३. वक्त्र (मुख) ४. शब्द, ५. नाटक, ६. उपाय, ७. सन्धिभेद (सन्धि विशेष, मुख नाम की सन्धि ) और ८. वेद (ऋग्वेद वगैरह ) तथा ६. निःसारण (निकालना) और १०. आद्य ( पहला ) । ---- मूल : मुण्डो राहुग्रहे दैत्ये नापित-स्थाणुवृक्षयोः । . अस्त्रियां मस्तके प्रोक्तस्त्रिषु मुण्डितमूर्द्धनि ॥१४४८ ॥ मुद्रा प्रत्ययकारिण्यां रुप्यके सीसकाक्षरे । मुनि जिने वशिष्ठादौ पियाले किशुकद्रुमे || १४४६ ॥ हिन्दी टीका - मुण्ड शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. राहुग्रह, २. दैत्य (मुण्ड नाप का राक्षस विशेष ) ३. नापित (हज्जाम, नोआ) ४. स्थाणुवृक्ष ( डाल-पात रहित सूखा वृक्ष विशेष) किन्तु ५. मस्तक अर्थ में मुण्ड शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है और ६. मुण्डितमूर्धा (मुड़ाया हुआ मस्तक) अर्थ में मुण्ड शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मुद्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. प्रत्ययकारिणी ( विश्वास कराने वाली मोहर छाप ) २. रुप्यक ( रुपया) और ३. सीसकाक्षर ( शीशा का अक्षर, मुद्रण- टाइप) । मुनि शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-- १. जिन (भगवान तीर्थंङ्कर) २. वशिष्ठ आदि (वशिष्ठ वगैरह महर्षि) ३. पियाल (चिरौंजी ) और ४. किंशुकद्र म ( पलाश वृक्ष ) । मूल : मुष्कोऽण्डकोशे संघाते तस्करे मोक्षकद्रुमे । मुष्टिः पलवमाने स्यात् त्सरौ संपिण्डितांगुलौ ॥१४५०।। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मुष्क शब्द | २५५ मुहूर्तमल्पकाले स्याद्घटिकाद्वितयेऽस्त्रियाम् । मूर्तिः स्वरूपे काठिन्ये प्रतिमान शरीरयोः ॥१४५१।। हिन्दी टोका-मुष्क शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अण्डकोश, २. संघात (समूह) ३. तस्कर (चोर) ४. मोक्षकद्र म (काला पाढर या लोध्र विशेष वृक्ष)। मुष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पलवमान (परिमाण विशेष) २. त्सरु (खड्गमुष्टि) तथा ३. संपिण्डितांगुलि (बाँधी हुई अंगुलि)। मुहूर्त शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. अल्पकाल (थोड़ा काल) २. घटिकाद्वितय (दो घड़ी ४८ मिनट)। मूर्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. स्वरूप, २. काठिन्य (कठोरता) ३. प्रतिमान (प्रतिमा) तथा ४. शरीर । इस तरह मूर्ति शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : मूलं ब्रध्ने मूलवित्ते निजे कुज-समीपयोः । मृगो मृगमदे राशौ मार्गशीर्ष कुरङ्गयोः ॥१४५२॥ पशुमात्रे हस्तिभेदे यात्रा नक्षत्रभेदयोः । मृगयुः पुंसि गोमायौ व्याधो च परमेष्ठिनि ॥१४५३॥ हिन्दी टीका-मूल शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं—१. बध्न (सूर्य) २. मूल वित्त (मूल धन) ३. निज (अपना स्वकीय) ४. कुञ्ज (विपिनी झाड़ी) और ५. समीप (निकट)। मृग शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं -१. मृगमद (कस्तूरी) २. राशि, ३. मार्गशीर्ष (अग्रहण मास) ४. कुरङ्ग (हरिण) ५. पशुमात्र (साधारण पशु) ६. हस्तिभेद (हाथी विशेष) ७. यात्रा (याचना) और ८. नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष, मृगशिरा नक्षत्र) । मृगयु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. गोमायु (गीदड़) २. व्याध (व्याधा-शिकारी) और ३. परमेष्ठी (पितामह-ब्रह्मा) । मृगाङ्कश्चन्दिरे वायौ कर्पूर-मृगचिह्नयोः । मृगारिः सिंह शार्दूल-कुक्कुरेषु मतः पुमान् ॥१४५४॥ मृगी पुलहभार्यायां छन्दोभेदे मृगस्त्रियाम् । । मृतं स्यात् प्राप्तपञ्चत्वे त्रिषु याचितवस्तुनि ॥१४५५।। हिन्दी टीका-- मृगाङ्क शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं--१. चन्दिर (चन्द्रमा) २. वायु (पवन) ३. कपूर (कपूर) ४ मृगचिन्ह (हरिण का चिन्ह विशेष)। मृगारि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सिंह, २. शार्दूल (सबसे बड़ा पक्षी विशेष) और ३. कुक्कुर (कुत्ता)। मृगी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. पुलहभार्या (पुलस्त्य की भार्या) २. छन्दोभेद (छन्द विशेष) और ३. मृगस्त्री (हरिणी)। नपुंसक मृत शब्द का अर्थ-१. प्राप्तपञ्चत्व (मरण) होता है किन्तु २. याचित वस्तु के अर्थ में मृत शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार मृत शब्द के दो अर्थ समझना। मूल : मृतकं मरणाशौचे कुणपेऽपि नपुंसकम् । मृत्युः पुमान् यमे कसे त्रिषु प्राणवियोजने ॥१४५६॥ शिवे बिल्वद्रुमे दण्डकाके च मृत्युवञ्चनः ।। - मृदुच्छदो भूर्जवृक्षे श्रीताले कुक्कुरद्रुमे ॥१४५७।। मूल : Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-मृतक शब्द हिन्दी टोका-मृतक शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ मरणाशौच (छूतक) २. कुणप (मुर्दा) । मृत्यु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. यम (यमराज) २. कंस (कृष्ण का मामा) किन्तु ३. प्राणवियोजन (प्राणत्याग) अर्थ में मृत्यु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार मत्यु शब्द के तीन अर्थ जानना । मृत्युवञ्चन शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. शिव (भगवान शङ्कर)२ विल्वद्र म (बेल का वृक्ष) और ३. दण्डकाक (डोम कौवा)। मृदुच्छद शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. भुर्जवृक्ष (भोजपत्र का वृक्ष) २. श्रीताल (श्रीताल नाम का वृक्ष विशेष) और ३. कुक्कुरद्रुम (कुकरौन्हा-गठिवन) इस तरह मृदुच्छद शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : मेघनादस्तु वरुणे स्तनिते रावणात्मजे । मेचक: श्यामले बर्हिचन्द्रिके मेघ धूमयोः ॥१४५८।। मेधावी पण्डिते व्याडौ मदिरा-शुकपक्षिणोः । मेषो राश्यान्तरे मेढे लग्न भेषजभेदयोः ॥१४५६।। हिन्दी टोका-मेघनाद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. वरुण, २. स्तनित (गर्जन) और ३. सवणात्मज (रावण का लड़का)। मेचक शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. श्यामल (श्याम वर्ण) २. बहिचन्द्रिक (मोर) ३. मेघ और ४. धूम । मेधावी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. पण्डित (विद्वान) २. व्याडि (भगवान पाणिनि का वाचा) ३. मदिरा (शराब) और ४. शुकपक्षी (पोपट शूगा) । मेष शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. राश्यन्तर (राशि विशेष-मेष नाम की राशि) २. मेढ़ (शिश्न-मूत्रेन्द्रिय) और ३. लग्न (मेष लग्न) तथा ४. भेषजभेद (औषध विशेष)। मूल : मेहः प्रमेहरोगे स्यान्मेष - प्रस्रावयोरपि । मोचनं कल्कने दम्भे शाम्य कैवल्ययोरपि ॥१४६०॥ कस्तूर्यामजमोदायां मल्लिकायां च मोदिनी। मोहो दुःखे च मूर्छायामविद्यायामपि स्मृतः ॥१४६१।। हिन्दी टीका-मेह शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रमेहरोग, २. मेष (गेटा, मेड़ा) और ३. प्रस्राव (पेशाब)। मोचन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कल्कन (पाप) २. दम्भ (आडम्बर) ३. शाठ्य (शठता दुर्जनता) और ४. कैवल्य (मोक्ष)। मोदिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कस्तरी २. अजमोदा (अजमाइन-जमानि) और ३. मल्लिका (जही)। मोह शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. दुःख, २. मूर्छा और ३. अविद्या । इस प्रकार मोह शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : मोक्षः पाटलिवृक्षे स्यान्मुक्तौ मृत्यौ च मोचने । मौलिः किरीटे धम्मिल्ले चूडायामनपुंसकम् ॥१४६२।। म्रक्षणं स्नेहने तैले राशीकरण इष्यते । म्लेच्छोऽपभाषणे पापरक्त - पामरभेदयोः ॥१४६३।। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मोक्ष शब्द | २५७ हिन्दी टोका-मोक्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. पाटलिवृक्ष (पाढला, पाढर वृक्ष विशेष) २. मुक्ति, ३. मृत्यु और ४. मोचन (छोड़ाना)। मौलि शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. किरीट (मुकुट विशेष) २. धम्मिल्ल (केश'पाश) किन्तु ३. चूडा (मस्तक) अर्थ में मौलि शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना गया है। म्रक्षण शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. स्नेहन (चिक्कण) २. तैल और ३. राशीकरण (इकट्ठा करना) । म्लेच्छ शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं—१. अपभाषण (अपशब्द बोलना) २. पापरक्त (पापलीन) और ३. पामरभेद (कायर विशेष)। मूल : यतिजितेन्द्रियग्रामे निकारे विरतौ पुमान् । यतिः स्त्री पाठविच्छेदे विधवा-रागयोरपि ॥१४६४॥ यन्ता हस्तिपके सूते प्रोक्तो विरतिकारके । यन्त्रं देवाद्यधिष्ठाने दारुयन्त्रे नियन्त्रणे ॥१४६५।। हिन्दी टोका-पुल्लिग यति शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं --१. जितेन्द्रियग्राम (जितेन्द्रिय का समुदाय अथवा इन्द्रियों को जीतने वाला) २. निकार (पराभव) और ३. विरति (विराग)। स्त्रीलिंग यति शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. पाठविच्छेद (पाठ का विच्छेद) २. विधवा स्त्री और ३. राग (अनुराग वगैरह) । यन्ता शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हस्तिपक (महतवाहफिलमान) २. सूत (सारथि)और ३. विरतिकारक (विच्छेद करने वाला) । यन्त्र शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. देवादि अधिष्ठान (देव वगैरह का मन्दिर) २. दारुयन्त्र (लकड़ी का यन्त्र विशेष) और ३. नियन्त्रण (नियन्त्रण करना)। मूल: यमो दण्डधरे ध्वाङक्षे संयमे यमनेऽपि च । यमक: संयमे शब्दालंकारे यमजे त्रिषु ॥१४६६॥ यवनो जातिभेदे स्याद् वेग-वेगाधिकाश्वयोः । प्लक्षवृक्षे जटामांस्यां वंशे यवफलो मतः ॥१४६७॥ हिन्दी टीका-यम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१ दण्डधर (दण्डधारो) २. ध्वाङक्ष (काक) ३. संयम (धारणा ध्यान समाधि वगैरह) और ४. यमन (बांधना)। पुल्लिग यमक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. संयम (नियमपूर्वक रहना) और २. शब्दालंकार (यमक नाम का शब्दालंकार) किन्तु ३. यमज (एक साथ पैदा होने वाला) अर्थ में यमक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। यवन शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. जातिभेद (जाति विशेष—यवन जाति-मुसलमान) २. वेग और ३. वेगाधिकाश्व (अधिक वेगशाली घोड़ा)। यवफल शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं—१. प्लववृक्ष (पाकर का पेड़) २. जटामांसी (जटामांसी नाम की औषधि विशेष) ३. वंश (वांस)। मूल : दुरालभायां खदिरे यवासः कण्टकी क्षुपे । यशः शक्रगृहे श्रीदे गुह्यके धनरक्षके ॥१४६८॥ याज्ञिको दर्भभेदे स्यात् पलाशे यज्ञकर्तरि । उपायोत्सवयोर्यात्रा प्राणने यापने गतौ ॥१४६६॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५= | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -यवास शब्द हिन्दी टीका - यवास शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- दुरालभाजवासा २. खदिर ( कत्था ) और ३. कण्टकीक्षुप (कटीला छोटी डाल अथवा पत्र वाला वृक्ष विशेष) । यक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. शक्रगृह ( इन्द्र का घर ) २. श्रीद (लक्ष्मीदाता) ३. गुह्यक ( यक्षेश्वर ) और ४. धनरक्षक (धन का रक्षण करने वाला) । याज्ञिक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. दर्भभेद (दर्भ विशेष कुश) २. पलाश, ३. यज्ञकर्ता (यज्ञ करने वाला) । यात्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १ उपाय २. उत्सव, ३. प्राणन ( श्वास लेना) और ४. यापन ( बिताना) और ५. गति ( गमन करना) इस प्रकार यात्रा शब्द के पाँच अर्थ समझना । मूल : त्रिषु याप्यो ऽधमे निन्द्ये यापनीये रुगन्तरे । संयमे हरे यामो याम्यो ऽगस्त्ये च चन्दने ॥। १४७० ॥ यावत् तावच्चाव्ययं स्यान्माने कात्र्त्स्न्येऽवधारणे । पक्षान्तरे प्रशंसायामवधौ निश्चये तथा ॥। १४७१ ॥ हिन्दी टीका --- याप्य शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अधम (नीच) २. निन्द्य ( निन्दनीय ) ३. यापनीय ( बिताने योग्य) और ४. रुगन्तर ( रुग् विशेष- रोग विशेष) । याम शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. संयम (नियम निष्ठापूर्वक रहना) और २ प्रहर (तीन घण्टा ) । याम्य शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. अगस्त्य (अगस्त्य ऋषि) और २. चन्दन । यावत् शब्द और तावत् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. मान (परिमाण) २. कार्त्स्य (सारा) और ३. अवधारण ( निश्चय करना) । यावत् तावत् शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं- १. पक्षान्तर ( दूसरा पक्ष ) २. प्रशंसा ( बड़ाई) ३. अवधि (सीमा) और ४. निश्चय । मूल : परिच्छेदे तु वत्वन्तारेतौ स्तो वायलिंगकौ । त्रिषु युक्तो न्याययुक्त मिलिते योगशालिनि ॥१४७२ ॥ युगं कृतादौ युगले रथाद्यङ्ग े त्वसौ पुमान् । गिरिभेदे रथादीनां युगकाष्ठे युगन्धरः ॥। १४७३।। हिन्दी टीका - किन्तु १. परिच्छेद (प्रकरण वगरह) अर्थ में यावत् शब्द और तावत् शब्द वत्वन्त (वत् प्रत्ययान्त) वाच्यलिंगक ( विशेष्यनिघ्न) समझे जाते हैं । युक्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. न्याययुक्त (न्यायोचित, योग्य न्याय्य ) २. मिलित ( मिला हुआ) और ३. योगशाली (योगी) । नपुंसक युग शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१ कृतादि (सत्ययुग, द्वापर, त्र ेता और कलियुग ) और २. युगल (मिले जुले दो) किन्तु ३. रथाद्यङ्ग ( रथ वगैरह का युग पालो ) अर्थ में युग शब्द पुल्लिंग माना जाता है । युगन्धर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गिरिभेद (गिरि विशेष - पर्वत विशेष - युगन्धर नाम का पहाड़) और २. रथादीनां युगकाष्ठ ( रथ- गाड़ी वगैरह का युगकाष्ठ पालो) । मूल : युतकं यौतुके मैत्रीकरणे चलनाके । संशये संश्रये युक्त नारी वस्त्राञ्चले युगे ।। १४७४ || Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-युतक शब्द | २५६ युवराजो भावि बुद्धभेदे राजात्मजोत्तमे। योगो नैयायिके द्रव्ये कार्मणे धन-सूत्रयोः ॥१४७५॥ हिन्दी टोका-युतक शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. यौतुक (दहेज) २. मैत्रीकरण (मित्रता करना) ३. चलनायक (चलन का अग्र भाग) ४. संशय (सन्देह) ५. संश्रय (आश्रय) ६. युक्त (मिला हुआ) ७. नारीवस्त्राञ्चल (स्त्री का वस्त्राञ्चल, आँचल) और ८. युग (जोड़ा वगैरह)। युवराज शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. भाविबुद्धभेद (भावो-होने वाले बुद्ध विशेष) और २. राजात्मज उत्तम (राजा का सबसे बड़ा लड़का)। योग शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं नैयायिक (न्यायशास्त्रवेत्ता) २. द्रव्य ३. कार्मण (जड़ी बूटी वगैरह से उच्चाटन, मारण, मोहन आदि) ४. धन और ५. सूत्र (सूत) इस प्रकार योग शब्द के पाँच अर्थ समझने चाहिए। मूल : उपाये संगतौ युक्तौ ध्याने सन्नहने तथा । चारे ऽपूर्वार्थसम्प्राप्तौ वपुःस्थैर्ये च भेषजे ॥१४७६॥ विश्रब्धघाते विष्कम्भाऽऽदौ प्रयोगेऽपि कीर्तितः । योगिनी योगयुक्ता स्यात् तथाऽऽवरणदेवता ।।१४७७।। हिन्दी टोका-योग शब्द के और भी नौ अर्थ माने जाते हैं-१. उपाय, २. संगति, ३. युक्ति, ४. ध्यान, ५. सन्नहन (बन्धन) ६. चार (दूत) ७. अपूर्वार्थसम्प्राप्ति (अपूर्व वस्तु की प्राप्ति) ८. वपुःस्थैर्य (शरीर की स्थिरता) और ६. भेषज (औषध)। योग शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. विश्रब्धघात (विश्वासघात) २. विष्कम्भादिप्रयोग (विष्कम्भ वगैरह नाट्य प्रयोग)। योगिनी शब्द का अर्थ१. योगयुक्ता (योग से युक्त) होता है । तथा योगिनी शब्द का एक और भी अर्थ-२. आवरण देवता (नारायण वगैरह चौंसठ देवता) होता है। इस प्रकार योगिनी शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। योग्यः प्रवीणे योगार्हे संशक्तोपाययोस्त्रिषु । सम्बन्धबाधाभावे च क्षमतायां च योग्यता ॥१४७८॥ योनिः स्त्रीपुंसयोरम्भस्याकरे कारणे भगे। प्राचीनाऽऽमलके रक्त रुधिरे पद्म-ताम्रयोः ॥१४७६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग योग्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. प्रवीण (निपुण दक्ष) और २. योगार्ह (योग के लायक) किन्तु ३. संशक्त (सम्बद्ध) और ४. उपाय अर्थ में योग्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। योग्यता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१ सम्बन्धबाधाभाव (सम्बन्ध बाध न होना) और २. क्षमता (समर्थता)। योनि शब्द पूल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. अम्भस् (पानी) २. आकर (खान) ३. कारण (हेतु) और भग (गर्भाशय)। रक्त शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं -१ प्राचीन आमलक (पुराना आँवला) २. रुधिर (शोणित) ३. पद्म (कमल) तथा ४. ताम्र (तांबा) इस प्रकार रक्त शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : सिन्दूरे कुंकुमे हिंगुले कुसुम्भे च हिज्जले । रक्तवर्णो दाडिमे स्याद् बन्धूके च निशाद्वये ॥१४८०॥ मूल : Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित -रक्त शब्द कुसुम्भपुष्पे लाक्षायां मञ्जिष्ठायाञ्च किंशुके । रक्तबीजो दाडिमे स्यात् शुम्भासुर चमूपति ॥ १४८१ ॥ हिन्दी टीका - रक्त शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. सिन्दूर, २. कुंकुम, ३. हिंगुल ( हींग ) ४. कुसुम्भ (कुसुम-वरें कमलगट्टा) और, ५. हिज्जल ( जलबेंत ) । रक्तवर्ण शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. दाडिम (अनार - बेदाना) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल ) ३. निशाद्वय ४. कुसुम्भ पुष्प (कुसुम का फूल ) ५. लाक्षा ( लाख) ६. मञ्जिष्ठा ( मजीठा रंग) और ७. किंशुक ( पलाश) । रक्तबीज शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दाडिम (अनार, बेदाना) और २. शुम्भासुरचमूपति (शुम्भ नाम के असुर का सेनापति) को भी रक्तबीज कहते हैं । मूल : रक्ताङ्गो मत्कुणे किञ्च प्रवाते मंगलग्रहे । रक्ताक्षो महिषे क्रूरे पारावत-चकोरयोः ॥ १४८२ ॥ सारसे रक्तवर्णाक्षे मानवे वायलिंगवान् । रजो रजोगुणे क्लीवं परागार्तव रेणुषु ।।१४८३ || हिन्दी टीका - रक्ताङ्ग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. मत्कुण (माकण, खटमल - उरीस) २. प्रवात और ३. मंगलग्रह | रक्ताक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १ महिष, २. क्रूर (घातक) ३. पारावत ( कपोत कबूतर ) और ४ चकोर । रक्ताक्ष शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. सारस (सारस नाम का पक्षी विशेष ) किन्तु २. रक्तवर्णाक्षमानव ( लाल आँख वाला मनुष्य) अर्थ में रक्ताक्ष शब्द वाच्यलिंगवान् (विशेष्यनिघ्न ) माना जाता है । रजस् शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रजोगुण, २. पराग (पुष्परज) और ३. आर्तवरेणु ( मासिक धर्म - रजस्वला स्त्री के रजःकण) । मूल : रजतं धवले रूपये हृदे हारे च शोणिते । शैले स्वर्णे हस्तिदन्ते शुक्लवर्णानि तु त्रिषु ॥ १४८४ ॥ रागे गुह्ये रते कामपत्न्यामपि रतिः । रत्नं मुक्ताद्यश्मजातौ स्वजातिप्रवरेऽपि च ।। १४८५ ।। रथ्या रथसमूहे स्यात् प्रतोल्यामपि चत्वरे । रन्तुः स्त्री वर्त्मसरितो रदो दन्ते विलेखने ॥ १४८६॥ हिन्दी टीका - रजत शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थं माने गये हैं - १. धवल (सफेद) २. रूप्य (रूपा) ३. ह्रद (तालाब) ४. हार (मुक्ताहार वगैरह ) ५. शोणित ६. शैल (पर्वत) ७. स्वर्ण (सोना) और ८. हस्तिदन्त (हाथी का दाँत ) किन्तु ६. शुक्लवर्णी (सफेद वर्णयुक्त) अर्थ में रजत शब्द त्रिलिंग माना जाता है । रति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. राग, २. गुह्य (रहस्य) ३. रत (रति, भोग-विलास) और ४. कामपत्नी (कामदेव की स्त्री) । रत्न शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुक्तादि - अश्मजाति (मुक्ता वगैरह पत्थरजाति विशेष) और २. स्वजातिप्रवर (पद्मरागमणि हीरा जवाहरात वगैरह ) । रथ्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रथसमूह Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-रभस शब्द | २६१ .२ पतोली (गली) और ३. चत्वर (चौराहा)। रन्तु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वर्त्म (रास्ता) और २. सरित् (नदी)। रद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. दन्त (दांत) और २. विलेखन (दांत गड़ाना-दांत से क्षत करना)। औत्सुक्य - वेग - हर्षेषुरभसो निर्विचारणे। पटोलमूले जघने मैथने रमणे स्मृतम् ॥१४८७॥ गर्दभे वृषणे पत्यौ रमणौ मीनकेतने । रमा लक्ष्मी-कल्किराजपत्नी-शोभासु कीर्तिता ॥१४८८॥ हिन्दी टीका-रभस शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. औत्सुक्य (उत्सुकता-उत्कंठा) २. वेग, ३. हर्ष (आनन्द) और ४. निर्विचारण (विचार नहीं करना)। नपुंसक रमण शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. पटोलमूल (परबल का मूल भाग) २. जघन (जंघा का ऊपर भाग) और ३. मैथुन (रति, भोगविलास)। किन्तु पूल्लिग रमण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. गर्दभ (गदहा) २. वृषण (अण्डकोश) ३. पति और ४. मीनकेतन (कामदेव) । रमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. लक्ष्मी, २. कल्किराजपत्नी (कलियुग की राजपत्नी) और ३. शोभा। इस प्रकार रमा शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : काले कामे नायके ना रमतिः स्वर्ग-काकयोः । रम्भा तु कदली-गौर्यो वेश्याभेदे च गोध्वनौ ॥१४८६॥ मृगभेदे कम्बले च रल्लको रवणस्त्वसौ। चञ्चले भण्डके तीक्ष्णे शब्दने कोकिले त्रिषु ॥१४६०।। हिन्दी टोका-रमति शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं—१. काल, २. काम, ३. नायक, ४. स्वर्ग और ५. काक । रम्भा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कदली (केला) २. गौरी (पार्वती) ३. वेश्याभेद (वेश्या विशेष) और ४. गोध्वनि (गाय-बैल की आवाज) । रत्नक शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. मृगभेद (मृग विशेष) २. कम्बल । रवण शब्द त्रिलिंग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१. चञ्चल (चपल) २. भण्डक (भाण्ड-वर्तन वगैरह) ३. तीक्ष्ण (तीखा) ४. शब्दन (शब्द करना) और ५. कोकिल (कोयल)। मूल : रविरर्के ऽर्केवृक्षे च रश्मिर्ना प्रग्रहोस्रयोः । रसो वीर्ये गुणे रागे द्रवे गन्धरसे जले ॥१४६१।। पारदे षड्रसे शृगारादि - काव्यरसे विषे । रसा स्त्रियां रसमयी-द्राक्षा-कंगूषु कीर्तिता ॥१४६२॥ हिन्दी टोका-रवि शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. अर्क (सूर्य) और २. अर्कवृक्ष (ऑक का वृक्ष)। रश्मि शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. प्रग्रह (लगाम) और २. उस्र (किरण)। स अर्थ माने गये हैं-१. वीर्य, २. गण, ३. राग, ४. द्रव (तरल) ५. गन्धरस (वोर) ६. जल (पानी) ७. पारद (पारा) ८. षड्रस (छह रस-आम्ल, लवण, मधुर, कषाय, तिक्त, कटु) ६. शृङ्गारादि काव्य रस (शृङ्गार-वीर-करुण-हास्य-भयानक-रौद्र-बोभत्स-अद्भुत और शान्त रस) तथा १०. विष Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-रसा शब्द (जहर)। रसा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. रसमयी (पृथिवी) २. द्राक्षा (दाख-. मुनाका किसमिस) और ३. कंगू (मुनि अन्नविशेष-कांगु-मोरैया)। मूल : पृथिवी-रसना-पाठा-काकोली - शल्लकीष्वपि । रसाल इक्षावानं च गोधूमे कण्टकीफले ॥१४६३।। रसाला रसना-दूर्वां - द्राक्षा-शिखरिणीष्वपि । राग इन्दौ रवौ प्रीतौ रतौ राजनिरञ्जने ॥१४६४॥ हिन्दी टोका-रसा शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. पृथिवी (भूमि) २. रसना (जिह्वा) ३. पाठा (ग्वारपाठा) ४. काकोलो (विष विशेष या डोम काक को स्त्री जाति) और ५. शल्लकी (शाही) । रसाल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१. इक्षु (गन्नाशेर्डी) २. आम्र (आम, केरी) ३. गोधूम (गेहुम) और ४. कण्टकीफल (रेवणी कटेया का फल)। रसाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. रसना (जिव्हा) २. दूर्वा (दुभी) ३. द्राक्षा (दाख मुनाका-किसमिस) ४. शिखरिणी (पहाड़ी)। राग शब्द के छह अर्थ माने गये हैं-१. इन्दु (चन्द्रमा) २. रवि (सूर्य) ) ३. प्रीति (प्रेम) ४. रति (भोग विलास) ५. राजा और ६. रजन। इस प्रकार राग शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए। मूल : क्लेशादौ लोहितादौ च गानरागेषु मत्सरे । धानस्यादौ विदग्धायामिन्दिरायां च रागिणी ॥१४६५॥ राघवो रामचन्द्रे स्यान्मत्स्यभेदे सरित्पतौ । राजन्यः क्षीरिकावृक्षे क्षत्रियेऽग्नौ नृपात्मजे ॥१४६६॥ हिन्दी टीका-राग शब्द के और भी पांच अर्थ माने गये हैं-१. क्लेशादि (क्लेश आदि-कष्ट वगैरह) २. लोहितादि (लाल वगैरह रंग) ३. गानराग (गान का रंग-भैरवी वगैरह) ४. मत्सर (मत्सरता ईर्ष्या) तथा ५. धानस्यआदि (धान का आरम्भ)। रागिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. विदग्धा (विदुषी) और २. इन्दिरा (लक्ष्मो)। राघव शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं१. रामचन्द्र (भगवान राम) २. मत्स्यभेद (मत्स्यविशेष-रहु नाम की मछली) और ३. सरित्पति (समुद्र)। राजन्य शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं-१. क्षीरिकावृक्ष (खिड़नी का पेड़) २. क्षत्रिय (राजपूत) ३. अग्नि और ४. नृपात्मज (राजा का लड़का)। मूल : करिण्यां क्षत्रियाज्जाते राजपुत्रो बुधग्रहे । राजपुत्री राजसुता - जात्योर्मञ्जुलताजुषि ॥१४६७।। हिन्दी टीका-राजपुत्र शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. करिण्यां क्षत्रियाज्जात (करिणी में क्षत्रिय से उत्पन्न) और २. बुधग्रह । राजपुत्री शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. राजसुता (राजकन्या) २. जाति विशेष और ३. मजुलताजुष (मञ्जुला कोमला)। मूल : मालती-रेणुका-राजरीति - च्छुच्छुन्दरीष्वपि । इन्द्रे चन्द्रे प्रभौ पक्षे राजा क्षत्रिय-भूभृतोः ॥१४६८॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - राजपुत्री शब्द | २६३ रेखा - केदारयोः पंक्तौ राजिका कृष्णसर्षपे । राज्ञी राजप्रिया -सूर्यपत्न्यो र्नील्यां च कांस्यके ॥ १४६६ ॥ राढा सूक्ष्मे पुरीभेदे शोभायामपि कीर्तिता । विष्णुक्रान्ताऽऽमलक्योः स्याद् राधा धानुष्कचित्रके ।। १५००। हिन्दी टीका- राजपुत्री शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. मालती (मालती नाम का पुष्प विशेष, मोंगरा ) २. रेणुका (परशुराम की माता) ३. राजरीति ( राजा की रीति-रिवाज ) और ४. छुच्छुन्दरी (छुछुन्दर) को भी राजपुत्री कहते हैं। राजन शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके छह अथ माने जाते हैं - १. इन्द्र (देवराट् ) २. चन्द्र (चन्द्रमा) ३. प्रभु (मालिक) ४. पक्ष, ५. क्षत्रिय तथा ६. भूभृत (भूपति राजा) । राजिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. रेखा ( लकीर ) २. केदार (खेत की क्यारी) ३. पंक्ति (कतार ) और ४ कृष्णसर्षप (काली राई) । राज्ञी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. राजप्रिया ( राजा की प्रेयसी ) २. सूर्यपत्नी ( सूर्य की धर्मपत्नी ) ३. नीली (गड़ी) और ४. कांस्यक ( कांसा) । राढा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सूक्ष्म राधा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. विष्णुक्रान्ता (अपराजिता ) २. आमलकी (धात्री -आँवला) और ३. धानुष्कचित्रक (धनुषधारी का चित्र - फोटो ) । ( पतला, जीणा ) २. पुरीभेद ( पुरीविशेष) और ३. शोभा । मूल : गोपीविशेषे नक्षत्रभेदे विद्युति हंसने । तमालपत्रे वास्तूके कुष्ठे रामं नपुंसकम् ॥। १५०१। सितेऽसिते मनोज्ञ े च त्रिषु रामः पुमान् हये । भार्गवे पशुभेदे च राघवे हलि- पाशिनोः ॥ १५०२ ॥ हिन्दी टीका --राधा शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं - १. गोपीविशेष ( राधा नाम की कृष्ण भगवान की प्रेयसी) २ नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष - अनुराधा नक्षत्र) ३. विद्युत (बिजली) तथा ४. हिंसन ( मारना) । नपुंसक राम शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. तमालपत्र, २. वास्तूक (वथुआ साक) और ३. कुष्ठ (कुठ नाम का औषधि विशेष ) । त्रिलिंग राम शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. सित (सफेद) २. असित (काला) तथा ३. मनोज्ञ (सुन्दर) किन्तु ४. हय (घोड़ा) अर्थ में राम शब्द पुल्लिंग माना जाता है एवं ५. भार्गव (परशुराम ) ६. पशुभेद ( पशु विशेष) ७. राघव (रामचन्द्र ) तथा ८ हाभी ( बलराम ) ६. पाशी (वरुण) अर्थों में भी राम शब्द पुल्लिंग माना जाता है । मूल : रासः कोलाहल-ध्वान-क्रीड़ा - भाषासु शृङ्खले । परिहासे रसावासे रासे रासे रसः पुमान् ॥१५०३॥ षष्ठी जागरके गोष्ठ्यां शृङ्गारोत्सवयोरपि । रससिद्धौ चाथ राहुस्त्याग - ग्रहविशेषयोः ॥ १५०४ ॥ हिन्दी टीका - रास शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं - १. कोलाहल ( शोरगुल) २. ध्वान (आवाज) ३. क्रीड़ा, ४. भाषा (शब्द) ५. शृङ्खल (जञ्जीर) ६. परिहास (हँसी मखौल) Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २६४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-राक्षसी शब्द ७. रसावास तथा ८. रास (रासलीला)। पुल्लिग रस शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. रास, २. षष्ठीजागरक ३. गोष्ठी, ४. शृङ्गार, ५. उत्सव और ६. रससिद्धि । राहु शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. त्याग और २. ग्रहविशेष (राहुग्रह)। मूल : राक्षसी कौणपी दंष्ट्रा-चण्डा-सन्ध्यामुकीर्तिता । रिष्टं शुभाशुभभाव पापेषु खड्गे स्यात्पुमान् पुनः ॥१५०५॥ रीतिः स्त्रियां लोहकि स्यन्दे गत्यारकूट्योः । प्रचारे लवणे सीम्नि परिपाटी-स्वभावयोः ॥१५०६॥ हिन्दी टीका-राक्षसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. कौणपी, २. दंष्ट्रा (दाढ़) ३. चण्डा (चण्ड नामक राक्षस की पत्नी) और ४. सन्ध्या (सायंकाल, सन्धि काल)। रिष्ट शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शुभ, २. अशुभ भाव, ३. पाप तथा ४. खड्ग (तलवार)। रीति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. लोहकिट्ट (लोह का बीझजंग) २. स्यन्द (टगरना) ३. गति (गमन) ४. आरकूट (पित्तल वगैरह धातु विशेष) ५. प्रचार (प्रचार करना) ६. स्रवण (प्रस्रवित होना) ७. सीमा (हद) और ८. परिपाटी (क्रम विशेष परम्परा) तथा ६. स्वभाव (नेचर) । इस प्रकार रीति शब्द के नौ अर्थ माने जाते हैं। रुचकं सर्जिकाक्षारे माङ्गल्यद्रव्य-माल्ययोः । विडङ्गोत्कट्योः स्वाद्यरसेऽश्वाभरणे तथा ॥१५०७॥ सौवर्चले रोचनायां लवणे रुचकस्त्वयम् । दन्ते पारावते बीजपूरे निष्केऽपि कीर्तितः ।।१५०८।। हिन्दी टोका-रुचक शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. सर्जिकाक्षार २. माङ्गल्यद्रव्य (मांगलिकद्रव्य विशेष) ३. माल्य (माला) ४. विडङ्ग (वायविडंग) ५. उत्कट (अत्यन्त तीव्र) ६. स्वाद्यरस (स्वादिष्ट रस विशेष) और ७. अश्वाभरण (घोड़े का आभूषण)। किन्तु पुल्लिग रुचक शब्द के भी सात अर्थ माने जाते हैं--१. सौवर्चल (सोचर नमक, संचर नमक, क्षार नमक विशेष) २. रोचना (रक्तकल्हार-लाल कमल विशेष) ३. लवण (साधारण नमक) ४. दन्त, ५. पारावत (कबूतरकपोत) ६. बीजपूर (मातुलुग-मातुलिंग) और ७. निष्क (गिन्नी, शुक्की)। इस प्रकार रुचक शब्द के चौदह अर्थ जानना। मूल: रुचा दीप्तौ तथेच्छायां शारिका-शुकवाच्यपि । रुचि: स्त्रियामभिष्वङ्गानुरागेच्छा गभस्तिषु ॥१५०६।। शोभा-बुभुक्षयोः किञ्च रोचनाऽऽलिंगभेदयोः । रुद्रः शिवे वृक्षभेद - गणदेवविशेषयोः ॥१५१०॥ हिन्दी टीका-रुचा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. दीप्ति, २. इच्छा, ३. शारिकावाच् (मैना की बोली) और ४. शुकवाच् (पोपट शूगा की बोली)। रुचि शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. अभिष्वंग (आसक्ति) २. अनुराग (स्नेह-प्रेम) ३. इच्छा और Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-रूप शब्द | २६५ ४. गभस्ति (किरण) एवं ५. शोभा, ६. बुभुक्षा (भूख-खाने की इच्छा) ७. रोचना (लाल कमल विशेष -रक्तकल्हार) और ८ आलिंगभेद (आलिंगन विशेष) । रुद्र शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. शिव (भगवान शंकर) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) और ३. गणदेव विशेष (रुद्रगण-प्रमथादिगण देवता विशेष)। मूल : रूपं स्वभावे सौन्दर्ये पशावाकार-शब्दयोः । ग्रन्थाऽवृत्तौ नाटकादौ श्लोक-शुक्लादि वर्णयोः ॥१५११॥ रूपकं , नाटके मूर्ते संख्याऽलंकारभेदयोः। रेको भेके च तथा शंकायां नीचे विरेचने ॥१५१२॥ हिन्दी टोका-रूप शब्द नपुंसक है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. स्वभाव (नेचर) २. सौन्दर्य, ३. पशु, ४. आकार (सकल-स्वरूप) ५. शब्द, ६. ग्रन्थावृत्ति (ग्रन्थ का आवर्तन) ७. नाटकादि (नाटक--ईहामृग-भाण वगैरह) ८. श्लोक (पद्य) और- ६. शुक्लादि वर्ण । रूपक शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. नाटक, २. मूर्त, ३. संख्या और ४. अलंकारभेद (अलंकार विशेष - रूपकालंकार)। रेक शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. भेक (मेंढ़क) २. शंका (सन्देह) ३. नीच (अधम) और ४. विरेचन (रेचन)। मूल : छद्मोल्लेखनयो रेखा स्यादाभोगाल्पयोरपि । लिलके जयपाले च यवक्षारेऽपि रेचकः ॥१५१३॥ . जलनिःक्षेपयन्त्रे च प्राणायाम विधावपि । रेणुका भस्मगान्धिन्यां जमदग्नेश्चयोषिति ॥१५१४॥ हिन्दी टोका-रेखा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. छद्म (छल कपट) २. उल्लेखन (उल्लेख करना, रेखा खींचना) ३. आभोग (परिपूर्णता, सेवा-शुश्रूषा वगैरह सब प्रकार के उपचारों से परिपूर्ण) ४. अल्प (लेशमात्र, थोड़ा सा) । रेचक शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं १ तिलक (तिलक नाम का वृक्ष विशेष, तिलकालक-मनोज्ञ-धनिक वगैरह) २. जयपाल (द्वारपाल विशेष) ३. यवक्षार (जवाखार) ४. जलनिःक्षेपयन्त्र (पानी फेंकने का यन्त्र विशेष) और ५ प्राणायाम विधि (रेचक नाम का प्राणायाम विशेष रेणका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. भस्मगन्धिनी (रेणका बीज -हरेणुका) और २. जमदग्नियोषित (जमदग्नि ऋषि की धर्मपत्नी-परशुराम की माता, जिनका परशुराम ने पिता की आज्ञा से सिर काट डाला था)। इस प्रकार रेणुका शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : पुच्छे प्रधाने भूषायां रम्ये चिह्न ध्वजे हये। पुण्ड्र प्रभावे शृङ्गऽश्वे ललामञ्च ललाम च ॥१५१५॥ अभीप्सिते सुन्दरे च चलिते ललितस्त्रिषु । ललिता सप्तमीभेदे कस्तूर्यां सरिदन्तरे ॥१५१६॥ हिन्दी टीका-नपुंसक ललाम शब्द के ग्यारह अर्थ माने जाते हैं-१. पुच्छ (लङरी, लांगल) २. प्रधान (मुख्य) ३. भूषा (अलंकरण) ४. रम्य (सुन्दर-रमणीय) ५. चिह्न (लाञ्छन) ६. ध्वज (पताका) ७. हय (घोड़ा) ८. पुण्ड (इक्षु-गन्ना-शेर्डी-कुशियार) ६. प्रभाव (सामर्थ्य विशेष) १०. शृंग (सींग) ११. अश्व (शीघ्रगामी घोड़ा)। त्रिलिंग ललित शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. अभीप्सित (मनोऽभिलषित) Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-लव शब्द २. सुन्दर (रमणीय) और ३. चलित (विचलित चलायमान) किन्तु स्त्रीलिंग ललिता शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं -१. सप्तमीभेद (सप्तमी विशेष) २. कस्तूरी तथा ३. सरिदन्तर (सरिद् विशेष-नदी विशेष) को भी ललिता कहते हैं। मूल : लामज्जके लवङ्ग ऽल्पे लवं जातीफलेऽपि च । लवो लेशे रामपुत्रं विलासे छेद-नाशयोः ।।१५१७॥ कालभेदे पक्षिभेदे लवणस्तु रसान्तरे । रक्षाभेदे सिन्धुभेदे छेदके लवणासुरे ॥१५१८॥ - हिन्दी टोका-नपुंसक लव शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. लामञ्जक (खश) २. लवङ्ग (लौंग) ३. अल्प (थोड़ा सा) और ४. जातीफल (जायफल)। पुल्लिग लव शब्द के छह अर्थ माने गये हैं१. लेश (थोड़ा सा) २. रामपुत्र (भगवान रामचन्द्रजी का लड़का) ३. विलास (विलास करना) ४. छेद (छेद करना) ५. नाश (ध्वंस) तथा ६. कालभेद (काल विशेष, निमेष काल)। लवण शब्द के पांच अर्थ होते हैं - १. रसान्तर (रस विशेष - लवण-नमक नाम का रस) २. रक्षोभेद (राक्षस विशेष) ३. सिन्धुभेद (लवण समुद्र) ४. छेदक (छेद करने वाला) और ५. लवणासुर (लवणासुर नाम का राक्षस विशेष)। मूल : क्रीडायुक्त शिल्पयुक्त श्लिष्टे लस्तस्त्रिलिंगकः । दशायुत प्रसंख्यायां लक्षं स्याद् व्याज-लक्ष्ययोः ।।१५१६।। लक्षणं दर्शने वस्तु स्वरूपे नामचिह्नयोः । लक्षणा शक्य सम्बन्धे हंस्यां सारसयोषिति ॥१५२०॥ हिन्दी टीका-लस्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. क्रीडायुक्त (क्रीड़ा करने वाला) २. शिल्पयुक्त (शिल्पकलायुक्त कारीगर) ३. श्लिष्ट (मिला हुआ, संयुक्त आश्लिष्ट) । लक्ष शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. दशायुतप्रसंख्या (दस हजार) २. व्याज (छल कपट) ३. लक्ष्य (उद्देश्य)। लक्षण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. दर्शन (देखना, पहचानना वगैरह) २. वस्तुस्वरूप ३. नाम (संज्ञा) और ४. चिह्न । लक्षणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. शक्य सम्बन्ध (शक्य-वाच्य अर्थ के सम्बन्ध को लक्षणा कहते हैं) २. हंसी और ३. सारसयोषित् (सारस पक्षी की स्त्री जाति)। मूल : सौमित्रो सारसे च स्याल्लक्ष्मणो लक्षणस्तथा । सारस्यां लक्ष्मणा श्वेत कण्टकारी वनस्पतौ ॥१५२१॥ दुर्योधनस्य कन्यायां पुत्रकन्दौषधावपि । लक्ष्मी-दुर्गा-शमी-मुक्ता-सीता सम्पत्तिषूच्यते ॥१५२२।। हिन्दी टोका-पुल्लिग लक्ष्मण और लक्षण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. सौमित्रि (लक्ष्मण) २. सारस (सारस नाम का पक्षी विशेष)। स्त्रीलिंग लक्ष्मणा शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. सारसी (सारस पक्षी की स्त्री जाति विशेष) २. श्वेतकण्टकीवनस्पति (सफेद कण्टकारि नाम की वनस्पति विशेष) ३. दुर्योधनस्य कन्या (दुर्योधन की लड़की) और ४. पुत्रकन्दौषधि (पुत्रकन्द नाम का औषधि विशेष) । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-लक्ष्मी शब्द | २६७ लक्ष्मी शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. दुर्गा (पार्वती) २. शमी (शमी लता) ३. मुक्ता (मोती) और ४. सीता (जानकी) और ५. सम्पत्ति (इमारत)। मूल : स्थलाब्जायां हरिद्रायां मोक्षाऽऽप्तौ फलिनीतरौ । ऋढ्यौषधे तथा द्रव्ये गुणाढ्यवरयोषिति ॥१५२३॥ लक्ष्मीतालस्तालभेदे श्रीतालाऽऽख्यमहीरुहे । शौरो लवंगे नृपतौ पूगे लक्ष्मीपति-पुमान् ॥१५२४॥ हिन्दी टीका-लक्ष्मी शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं-१. स्थलाब्जा (थलकमलिनी) २. हरिद्रा (हलदी) ३. मोक्षाप्ति (मोक्ष की प्राप्ति) ४ फलिनीतरु (ग्वारफली वगैरह का वृक्ष) ५. ऋद्ध - योषध (ऋद्धि नाम का औषध विशेष)६. द्रव्य (रुपया वगैरह) तथा ७. गुणाढ्यवरयोषित (गुणाढ्य की श्रेष्ठ पत्नी या गुणाढ्यवर की स्त्री विशेष) । लक्ष्मीताल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. तालभेद ताल विशेष) और २. श्रीतालाख्यमहीरुह (श्रीताल नाम का वक्ष विशेष)। लक्ष्मीपति शब्द पल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. शौरि (भगवान कृष्ण) २. लवंग (लौंग) ३. नृपति (राजा) ४. पूग (सुपारी)। इस प्रकार लक्ष्मीपति शब्द के चार अर्थ समझना। मूल: लक्ष्मीपुत्र: कामदेवे घोटके च कुशे लवे । त्रिषु लक्ष्यो दर्शनीये लक्ष्यार्थोद्दश्ययोरपि ॥१५२५॥ ला स्त्रियां ग्रहणे दाने लांगलन्तु हले तथा । लिंगे तालतरौ पुष्पभेदे च गृहदारुणि ॥१५२६॥ हिन्दो टोका-लक्ष्मीपुत्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. कामदेव, २. घोटक (घोड़ा) ३. कुश (भगवान रामचन्द्र का लड़का) और ४. लव (भगवान रामचन्द्र का पुत्र)। लक्ष्य शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. दर्शनीय (देखने योग्य) २. लक्ष्यार्थ और ३. उद्देश्य (लक्ष्य) । ला शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. स्त्री (स्त्रीजाति) २. ग्रहण (लेना) और ३. दान (देना)। लांगल शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. हल (खेत जोतने का साधन विशेष) २. लिंग (मूत्रेन्द्रिय) ३. तालतरु (ताल का वृक्ष) ४. पुष्पभेद (पुष्प विशेष) और ५. गृहदारु (घर का काष्ट विशेष) । इस प्रकार लांगल शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। बलरामे नारिकेले सपै स्याल्लांगली पुमान् । शेफे कुशूले लांगूलं पुच्छे लांगुलमित्यपि ॥१५२७।। लाटो देशान्तरे जीर्ण-भूषणादौ च वाससि । लालाविशिष्टे व्यासक्तियुक्ते लालायितस्त्रिषु ॥१५२८॥ हिन्दी टोका- लांगली शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. बलराम, २. नारिकेल (नारियल) ३. सर्प। लांगूल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. शेफ (मूत्रन्द्रिय) २. कुशूल (कोठी) और ३. पुच्छ (लङरी, बाङरि)। किन्तु इस पुच्छ अर्थ में ह्रस्व उकार घटित (लांगुल) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। लाट शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित – लावण्य शब्द अर्थ होते हैं - १. देशान्तर (देश विशेष, लाट नाम का देश ) २. जीर्णभूषणादि ( जीर्णभूषण वगैरह ) तथा ३. वासस् ( कपड़ा) । लालायित शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. लालाविशिष्ट (लाला - लाड़ से युक्त) और २. व्यासक्तियुक्त (विशेष आसक्तियुक्त, लालसा करने वाला) को भी लालायित शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : लवणत्वे सुन्दरत्वे लावण्यमपि कीर्तितम् । लासकं सट्टके लास्यकरे बर्हिणि लासकः ||१५२६।। लिगुर्मूर्खे भूप्रदेशे मृगे लिगु तु मानसे । लिंगं सामर्थ्येऽनुमाने प्रकृतौ शेफ - चिह्नयोः ॥। १५३०॥ हिन्दी टोका – लावण्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. लवणत्व (नमकपना) और २. सुन्दरत्व (सौन्दर्य) । नपुंसक लासक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सट्टक ( सट्टक नाम का रूपक विशेष, नाटक) और २. लास्यकर (हावभावपूर्वक नाचने वाला) किन्तु ३ बर्ही ( मयूर ) अर्थ में लासक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । लिगु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. मूर्ख, २. भूप्रदेश और ३. मृग किन्तु ४. मानस अर्थ में नपुंसक लिगु शब्द का प्रयोग किया जाता है। लिंग शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. सामर्थ्य (शक्ति) २. अनुमान (अनुमिति का करण ) ३. प्रकृति (मूल प्रकृति ) ४. शेफ ( श्वान का मूत्रेन्द्रिय) तथा ५. चिन्ह । इस प्रकार लिंग शब्द के पाँच अर्थ समझना । शिवमूर्तिविशेषे च व्याप्ये पुंस्त्वादिलक्षणे । मूल : त्रिषु लिप्तं लेपयुक्त भक्षिते मिलितेऽपि च ॥ १५३१॥ लीनस्त्रिषु लयप्राप्ते श्लिष्टे किञ्च तिरोहिते । लीला के विलासे च खेलयामपि कीर्तिता ।। १५३२ ।। हिन्दी टीका - लिंग शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. शिवमूर्तिविशेष (भगवान शंकर की लिंगाकार मूर्ति) २. व्याप्य ( व्याप्ति विशिष्ट, जैसे 'पर्वतोवह्निमान् धूमात्' इस प्रकार के अनुमान में धूम व्याप्तियुक्त होने से व्याप्य लिंग कहलाता है) और ३. पुंस्त्वादिलक्षण ( पुरुष का पुंस्त्व चिन्ह मूत्रेन्द्रिय) भीलिंग कहते हैं । लिप्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१ लेपयुक्त (लेपन से युक्त) २. भक्षित ( खाया हुआ ) तथा ३ मिलित ( मिला हुआ ) । लीन शब्द भी त्रिलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. लयप्राप्त ( तल्लीन ) २. श्लिष्ट (आलिंगित ) तथा ३. तिरोहित ( छिप गया ) । लीला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. केलि, २. विलास और ३. खेला ( क्रीड़ा करना) । मूल : लोकनाथो जिने विष्णौ शिवे बुद्धे प्रजापतौ । राज्ञि लोकस्तु भुवने जने च परिकीर्तितः ॥ १५३३॥ लोकेशः स्याद् बुद्धभेदे तथा ब्रह्मणि पारदे । लोचकः कज्जले कर्णपूरे निर्बुद्धि - रम्भयोः || १५३४॥ हिन्दी टीका - लोकनाथ शब्द के छह अर्थ माने गये हैं- १. जिन (भगवान तीर्थङ्कर) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. शिव ( भगवान शंकर ) ४. बुद्ध (भगवान बुद्ध) ५. प्रजापति (ब्रह्मा) और ६. राजा । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -लोचक शब्द | २६६ लोक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. भुवन, २. जन (मनुष्य) । लोकेश शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. बुद्धभेद (भगवान बुद्ध विशेष ) २. ब्रह्म परमात्मा तथा ३. पारद (पारा) । लोचक शब्द के चार अर्थं माने गये हैं– १. कज्जल (काजर) २. कर्णपूर (कान का भूषण विशेष ) ३. निर्बुद्धि (बुद्धिहीन, मूर्ख) तथा ४. रम्भा (केला) । इस प्रकार लोचक शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : स्त्रीभालाऽऽभरणे मूर्व्यां निर्मोके श्लथचर्मणि । मांसपिण्डेऽक्षितारायां तथा नीलवाससि ।। १५३५ ॥ मयूरे जैनसाधौ च स्याद्द्द्वयोर्लोचमस्तक: । लोतश्चिन्हे ऽश्रुपाते च लवणे लोचनाम्भसि ॥। १५३६॥ हिन्दी टीका - लोचक शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं - १. स्त्रीभालाऽऽभरण (स्त्री का शिरोभूषण विशेष, मनटीक्का) २. मूर्वी (धनुष की डोरी) ३. निर्मोक (सर्प का केंचुल ) ४. श्लथचर्म (ढीला चमड़ा) ५. मांसपिण्ड, ६. अक्षितारा (नेत्र की कनीनिका) और ७. नीलवासस् (नील कपड़ा) । पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग लोचमस्तक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. मयूर (मोर) २. जैन साधु तथा जैन साध्वी के लिये लोच मस्तका शब्द समझना । लोत शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. चिन्ह, २. अश्रुपात, ३. लवण (नमक) और ४. लोचनाम्भस् (नयन जल) । इस प्रकार लोत शब्द के चार अर्थ जानना । लोमशो मुनिभेदे स्यात् मेषेऽपि परिकीर्तितः । लोला लक्ष्म्यां च जिह्वायां किञ्च चञ्चलयोषिति ॥ १५३७॥ लोर्होस्त्री जोङ्गके लौहे रुधिरे सर्वतैजसे । लोहार्गल स्तीर्थभेदे लौहकीलेत्वसौ मूल : नना ।। १५३८ ।। हिन्दी टीका - लोमश शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. मुनिभेद ( मुनि विशेष - लोमश मुनि) और २. मेष ( गेटा – भेड़ा) । लोला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. लक्ष्मी, २. जिह्वा और ३. चञ्चलयोषित् ( चञ्चल स्त्री) । पुल्लिंग तथा नपुंसक लोह शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. जोंगक (अगरु) २. लौह (लोहा) ३. रुधिर (शोणित) और ४. सर्वतेजस (सभी तेजस पदार्थ ) । पुल्लिंग लोहार्गल शब्द का अर्थ – १. तीर्थभेद (तीर्थ विशेष ) होता है किन्तु २. लौहकील (लोहे का खील, काँटी) अर्थ में लोहार्गल शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिंग माना जाता है, पुल्लिंग नहीं माना जाता । - मूल : रेत्रं रेतसि पीयूषे पटवासे सूत रेतः शुक्र े पारदे च रेपः क्रूर-कदर्ययोः ।। १५३६॥ रेफस्त्रिष्वधमे क्रूरे तथा दुष्ट - कदर्ययोः । रेवट : शूकरे रेणौ वातुले विषवैद्यके ॥। १५४० ॥ हिन्दी टीका - रेत्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. रेतस् (वीर्य) २. पीयूष (अमृत) ३. पटवास (कुंकुम) और ४. सूतक (अशौच ) । सकारान्त रेतस् शब्द भी नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. शुक्र (वीर्य) और २. पारद (पारा) । रेफस् शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. क्रूर (घातक विचार वाला दुष्ट) और २. कदर्य (कठोर निर्दय ) । रेफ शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० | नानार्थौदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - रेवती शब्द होते हैं - १. अधम (नीच) २. क्रूर ३. दुष्ट (खल) तथा ४. कदर्य ( निर्दय ) । रेवट शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. शूकर (शूगर ) २. रेणु (धूलि ) ३. वातूल (वात व्याधिग्रस्त ) और ४. विषवैद्यक (विषवैद्य ) । इस प्रकार रेवट शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : रेवती नक्षत्रभेदे स्त्रीगव्याँ बलयोषिति । दुर्गायां मातृकाभेदे शैलभेदे तु रैवतः ।। १५४१।। स्वर्णालु पादपे शम्भो रोकस्तु क्रय रोचिषोः । रोकं छिद्रे चले नावि रोचकस्तु पुमान् क्षुधि ।। १५४२॥ हिन्दी टीका - रेवती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष – रेवती नक्षत्र) २. स्त्रीगवी (गाय) ३. बलयोषित् ( बलराम की धर्मपत्नी का नाम "रेवती” था ) ४. दुर्गा (पार्वती) तथा ५. मातृकाभेद (मातृका विशेष, चौदह मातृकाओं में रेवती नाम की मातृका - माता) किन्तु ६. शैलभेद ( शैल विशेष ) अर्थ में रैवत नाम का पर्वत विशेष जोकि अभी जूनागढ़ के पास गिरनार शब्द से व्यवहृत होता है। रैवत शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. स्वर्णालुपादप (स्वर्णालु सोनालू नाम का वृक्ष विशेष अमलतास) और २. शम्भु (भगवान शङ्कर ) । पुल्लिंग रोक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. क्रय ( खरीदना) और २. रोचिष् ( कान्ति-दीप्ति) । नपुंसक रोक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. छिद्र (बिल) २. चल (चलायमान) और ३. नो (नौका-नाव) । रोचक शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. क्षुध् (भूख) होता है । इस प्रकार रोक शब्द के कुल मिलाकर पाँच और रोचक शब्द का एक अर्थ जानना । मूल : कदल्यामवदंशे च त्रिषु स्याद् रुचिकारके । आरग्वधे करञ्जे च रोचनः कूटशाल्मलौ ॥ १५.४३ ॥ पलांड्वङ्गोठ करक रोचक श्वेत शिग्र ुषु । रोचना रक्त कहलारे गोपित्ते वरयोषिति ॥१५४४ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग रोचक शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. कदली (केला) २. अवदंश (शराब वगैरह का पान करने के लिये रुचिवर्द्धक नमकीन चना वगैरह का भक्षण करना) किन्तु ३. रुचिकारक (रुचिजनक) अर्थ में रोचक शब्द त्रिलिंग माना जाता है । रोचन शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं- १. आरग्वध (अमलतास - सोनालू) २. करञ्ज ( करञ्ज नाम का वृक्ष विशेष) ३. कूटशाल्मलि (काला सेमर ) । पलाण्डु ( प्याज - डुंगरी) ५. अङ्गोठ (अङ्कोट — ढेरा नाम का वृक्ष विशेष) ६. करक (अनार - दाडिम वगैरह ) ७. रोचक ( रुचिवर्द्धक) और ८. श्वेत शिगु (सफेद सहिजनमुनगा) । रोचना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. रक्तकहलार (लाल कमल विशेष) २. गोपित्त ( गोपित नाम का वृक्ष विशेष वगैरह ) और ३. वरयोषित् (सुन्दरी स्त्री) को भी रोचना कहते हैं । मूल : रोदः क्लीवं स्वर्गभुवो रोदनं क्रन्दनेऽश्रुणि । विमोहे रोपणं प्रादुर्भावे स्याज्जनने ऽञ्जने ॥१५४५॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-रोदस् शब्द | २७१ रोमकं पांशुलवणेऽयस्कान्तेऽपि प्रकीर्तितम् । पिण्डालौ शूकरे कुम्भि-मेषयोः पुंसि रोमशः ॥१५४६॥ हिन्दी टीका-रोदस् शब्द सकारान्त नपुंसक है और उसके दो अर्थ-१. स्वर्ग और २. भू (स्वर्गलोक और भूलोक) दोनों मिले जुले अर्थ होते हैं। रोदन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. क्रन्दन (रोना) २. अश्रु (अश्रुपात) और ३. विमोह (मोह में पड़ना)। रोपण शब्द भी नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. प्रादुर्भाव (प्रकट होना) २. जनन (पैदा होना) और ३. अञ्जन (आँजन)। रोमक शब्द भी नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पांशुलवण (चूर्ण नमक) और २. अयस्कान्त (अयस्कान्त मणि) । रोमश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पिण्डालु (पिण्डेच्छु) २. शूकर (शूगर) ३. कुम्भी और ४. मेष (गेटा)। मूल : रोहिनी धामिके बीजे वृक्षे स्यादथ रोहिणः । भूतृणे वटवृक्षे च तथा रोहितकद्रुमे ॥१५४७॥ कालभेदे त्वसौ क्लीवो मञ्जिष्ठायां तु रोहिणी। सोमवल्के लोहितायां विद्यादेव्यां तडित्यपि ॥१५४८॥ हिन्दी टीका-रोहिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. धार्मिक (धर्मात्मा) २. बीज तथा ३. वृक्ष । रोहिण शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. भूतृण (जमीन का घास विशेष) २. वटवृक्ष तथा ३. रोहितकद्र म (रोहितक नाम का वृक्ष विशेष)। किन्तु १. कालभेद (कालविशेष) अथ में रोहिण शब्द नपुंसक माना जाता है । परन्तु २. मञ्जिष्ठा (मजीठा रंग) अर्थ में स्त्रीलिंग रोहिणी शब्द का प्रयोग किया जाता है । रोहिणी शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. सोमवल्क (सफेद खदिर-सफेद कत्था) २. लोहिता (लाल) ३. विद्यादेवी (जिन सम्बन्धिनी देवी) और ४. तडित् (विद्युत-बिजली)। मूल : कटम्भरायां स्त्रीगव्यां काश्माँ बलमातरि । ताराभेदे हरीतक्यां कन्या - रोगविशेषयोः ॥१५४६।। रोहितं कुंकुमे रक्ते ऋजु शक्र शरासने । वर्णभेदे मत्स्यभेदे रोहित् पुंसि दिवाकरे ॥१५५०॥ हिन्दी टोका-रोहिणी शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं-१. कटुम्भरा (कुटकी-कर्टवरा) २. स्त्रीगवी (गाय) ३. काश्मरी (गंभारी,गभारि) ४. बलमाता (वलराम की माता) को भी रोहिणी कहते हैं ५. ताराभेद (तारा विशेष-रोहिणी नक्षत्र) ६. हरीतकी, ७ कन्या ८. रोग विशेष । नपंसक रोहित शब्द के पांच अर्थ होते हैं - १. कुंकुम (सिन्दूर) २. रक्त (लाल) ३. ऋजुशक्रशरासन (इन्द्र का सीधा धनुष) ४. वर्णभेद (वर्णविशेष-लाल वर्ण) तथा ५. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष-रहु नाम की मछली) किन्तु ६. दिवाकर (सूर्य) अर्थ में तकारान्त रोहित शब्द पुल्लिग माना जाता है। इस प्रकार रोहित और रोहित् शब्द के छह अर्थ जानना । मूल : स्त्रियां रोहिल्लताभेदे मृग्यामप्यथ रोहितः । वृक्षभेदे वर्णभेदे मीनभेदे मृगान्तरे ॥१५५१॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - रोहित् शब्द रोहीना रोहिताश्वत्थ वटवृक्षेषु कीर्तितः । हेमन्ते ना यमे रौद्रो रसभेदे ऽर्कतेजसि ।। १५५२ ।। हिन्दी टोका—स्त्रीलिंग रोहित शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. लताभेद (लता विशेष) और २. मृगी (हरिणी) | पुल्लिंग रोहित शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष ) २. वर्णभेद (वर्ण विशेष - लाल वर्ण) ३ मीनभेद ( मीन विशेष – रहु नाम की मछली) और ४. मृगान्तर ( मृग विशेष ) । रोही शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. रोहित (लाल) २. अश्वत्थ (पीपल) और ३. वटवृक्ष । रौद्र शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. हेमन्त ( हेमन्त ऋतु ) २. यम ( धर्मराज या यमराज) ३. रसभेद ( रस विशेष - रौद्र नाम का रस ) तथा ४. अर्क - तेजस् (सूर्य का तेज — किरण - धूप-तड़का ) | मूल : तीव्र विभीषणे किञ्च रुद्र सम्बन्धिनि त्रिषु । त्रिषु धूर्ते चञ्चले च रौरवो नरके पुमान् ॥ १५५३।। लग्नं राश्युदये लग्नः सूते बन्दिन्यथ त्रिषु । आसक्ते लज्जिते च स्याल्लघुः पृक्कौषधौ स्त्रियाम् ॥१५५४ || हिन्दी टीका - रौद्र शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. तीव्र (घोर) २. विभीषण ( अत्यन्त भयंकर) और ३. रुद्र सम्बन्धी अर्थ में रौद्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है । ४. धूर्त और ५. चञ्चल अर्थ में भी रौद्र शब्द त्रिलिंग माना गया है । नरक अर्थ में गौरव शब्द पुल्लिंग माना जाता है। नपुंसक लग्न शब्द का अर्थ – १. राश्युदय (मेष आदि लग्नों का उदय) किन्तु पुल्लिंग लग्न शब्द का अर्थ - २. सूत (सारथी) होता है, परन्तु ३. बन्दी अर्थ में लग्न शब्द त्रिलिंग माना जाता है । त्रिलिंग लघु शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. आसक्त (संसक्त - सटा हुआ ) और २. लज्जित (शर्मिन्दा) अर्थ में लघु शब्द पुल्लिंग माना गया है और लघु शब्द पृक्कौषधि (पृक्का नाम की औषधि - वनस्पति शाक विशेष ) अर्थ में स्त्रीलिंग मना जाता है । इस प्रकार लघ शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए ।. अल्पिष्ठे ह्रस्व निःसार- मनोज्ञागुरुषु त्रिषु । मूल : कृष्णा गुरुणि शीघ्र े च तथा लामज्जके लघु ॥१५५५।। लवो नर्तकभेदे स्याद् रागभेदे तुरङ्गमे । लजे पुच्छे पदे कच्छे लट्वातु स्यात् करञ्जके ॥ १५५६ ॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग लघु शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. अल्पिष्ठ ( अत्यन्त थोड़ा) २. ह्रस्व (छोटा) ३. निःसार ( सारहीन ) ४. मनोज्ञ ( रमणीय) और ५. अगुरु ( अगरु) किन्तु ६. कृष्णागुरु (काला अगरु ) ७. शीघ्र और ८. लामज्जक (खश) इन तीनों अर्थों में लघु शब्द नपुंसक ही माना जाता है । पुल्लिंग लट्व शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. नर्तकभेद (नर्तक विशेष नटुआ ) २. रागभेद (राग विशेष) ३. तुरंगम (घोड़ा) ४. लञ्ज ५. पुच्छ, ६. पद और ७. कच्छ (तून – तूणी नाम का वृक्ष विशेष) किन्तु स्त्रीलिंग लट्वा शब्द का अर्थ - ८. करञ्जक ( करञ्ज ( करकरेजा नाम का वृक्ष) होता है । मूल : कुसुम्भे चटके वाद्य भेदे भ्रमरकेऽपि च । रतिभेदे देशभेदे लतावेष्टः प्रकीर्तितः ।। १५५७ ।। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - लतावेष्ट शब्द | २७३ लम्बः क्षेत्रफले दीर्घे कान्तेऽङ्गे नर्तके तथा । उत्कोचे लम्बनेऽपि स्याल्लम्ब केशस्तु विष्टरे ॥। १५५८ ।। हिन्दी टीका -- लतावेष्ट शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. कुसुम्भ (कुसुम वर्रे का फूल या कमण्डलु ) २. चटक (गवरा, वगरा) ३. वाद्यभेद (वाद्यविशेष) ४. भ्रमरक ( ललाट पर लटके हुए बाल केश) ५. रतिभेद (रतिविशेष) तथा ६. देशभेद (देश विशेष) को भी लता वेष्ट कहते हैं । लम्ब शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं - १. क्षेत्रफल ( खेत की लम्बाई-चौड़ाई) २. दीर्घ (लम्बा ) ३. कान्त (सुन्दर) ४. अंग (हाथ-पाँव वगैरह ) ५. नर्तक ( नाचने वाला नटुआ) ६. उत्कोच (घूस पेंच) और ७. लम्बन । किन्तु लम्बकेश शब्द का अर्थ - १, विष्टर ( आसन विशेष - कुश का आसन) होता है । इस प्रकार लम्बकेश का एक अर्थ जानना । मूल : त्रिषु दीर्घकचे लम्बा तु लक्ष्मी - दक्षकन्ययोः । लम्बमानस्त्रियां गौर्यां तिक्ततुम्ब्याञ्च लम्बने ।। १५५६ ॥ संसिते शब्दिते लम्बान्विते स्याल्लम्बितस्त्रिषु । तौर्यत्रिकस्य साम्ये स्याल्लयः श्लेषे विनाशने ।। १५६० ।। हिन्दी टीका - त्रिलिंग लम्बकेश शब्द का अर्थ - १. दीर्घकच (लम्बा केश) भी होता है किन्तु स्त्रीलिंग लम्बा शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. लक्ष्मी, २. दक्षकन्या (दक्ष प्रजापति की कन्या) ३. लम्बमान स्त्री (लम्बी औरत ) ४. गौरी (पार्वती) ५. तिक्ततुम्बी (तिक्त रस वाली तुम्बी दुद्धी) और ६. लम्बन (लम्बायमान) । त्रिलिंग लम्बित शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. संसित ( गिरा हुआ ) २. शब्दित (शब्दायमान) और ३ लम्बान्वित ( लम्बयुक्त) । लय शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. तौर्यत्रिकस्य साम्य (तौयंत्रिक नाम वाद्य विशेष का ताल) २. श्लेप (आलिंगन, मिलना ) तथा ३. विनाशन ( विध्वंस) । इस तरह लम्बित शब्द के कुल मिलाकर तीन और लय शब्द के भी तीन अर्थ जानना । किन्तु लम्बा शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए । मूल : वायलिंगो ललत् क्षेपविशिष्टे भाषणान्विते । वीप्साविशिष्टे जिह्वाले विलासोन्मन्थनान्विते ॥ १५६१।। ललज्जिह्न कुक्कुरे स्यात् उष्ट्र े हिस्र े त्वसौ त्रिषु । ललनं चालने केलौ तथेप्सायामपीष्यते ।। १५६२ ॥ हिन्दी टीका - ललत् शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. क्षेपविशिष्ट (क्षेपयुक्त) २. भाषणान्वित (भाषण करने वाला) ३. वीप्सा विशिष्ट (वीप्सा विशिष्ट सारा ) ४ जिह्वाल (बड़ी जीभ वाला) एवं ५. विलासोन्मन्यनान्वित (विलास -- रति क्रीड़ा सम्बन्धी उन्मन्थन करने वाला) । पुल्लिंग ललज्जिह्व शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. कुक्कुर (कुत्ता) और २. उष्ट्र (ऊँट ) किन्तु ३. हिंस्र (घातक) अर्थ में ललज्जिह्व शब्द त्रिलिंग माना जाता है । ललन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-- १. चालन (जीभ को चलाना ) २. केलि ( रतिक्रीड़ा) तथा ३. ईप्सा ( अभिलाषा, प्राप्त करने की इच्छा ) । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--ललन शब्द मूल : बाले साले प्रियाले च ललनः कामनान्विते । लोहितो भुजगे भौमे रक्तवर्णे मृगान्तरे ॥१५६३॥ रक्तशालौ मसूरे च रक्तालू - बलभेदयोः । रोहिताख्यझषे तद्वद् नदभेदे सुरान्तरे ॥१५६४॥ हिन्दी टोका--पुल्लिग ललन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. बाल (शिशु बच्चा) २. साल (साल-शाखोट वृक्ष) ३. प्रियाल (चिरौंजी, पियार) और ४. कामनान्वित (कामनायुक्त)। लोहित शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. भुजग (सर्प) २. भौम (मंगलग्रह। ३. रक्तवर्ण (लाल वर्ण) तथा ४. मृगान्तर (मृग विशेष, प्रशस्त हरिण) । लोहित शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं-१. रक्तशालि (लाल धान-राङो वगैरह धान विशेष) २. मसूर (मसुरी) ३. रक्तालू (रतालू) ४ बलभेद (बल विशेष बल नाम का राक्षस विशेष वगैरह) ५. रोहिताख्यझष (रोहित रहु नाम की मछली) इसी प्रकार ६. नदभेद (नद विशेष - शोण नाम का नद विशेष) और ७. सुरान्तर (सुर विशेष)। मूल : वंश इक्षौ सालवृक्षे वाद्यभाण्डान्तरे कुले । स्यात् पृष्ठावयवे वेणु-गानस्वर विशेषयोः ।।१५६५॥ वक्रः शनैश्चरे चन्द्रे रुद्रे पर्पट-भौमयोः। वक्र च स्यान्नदीवंके त्रिषु तु क्रूर-भुग्नयोः ॥१५६६॥ हिन्दी टीका-वंश शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. इक्षु (गन्ना शेर्डी) २. सालवृक्ष (शाखोट वृक्ष वगैरह) ३. वाद्यभाण्डान्तर (वाद्य भाण्ड विशेष) ४. कुल (खानदान वंश) ५. पृष्ठावयव (पीठ का रीढ) ६. वेणु (बांस) और ७ गानस्वर विशेष (गान का स्वर विशेष) । पुल्लिग वक्र शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-'. शनैश्चर (शनिग्रह) २. चन्द्र, ३. रुद्र (भगवान शंकर) ४. पर्पट (पर्पट नाम का वृक्ष विशेष) और ५. भौम (मंगलग्रह) किन्तु नपुंसक वक्र शब्द का अर्थ-१. नदीवंक (नदी का टेढ़ा भाग) परन्तु त्रिलिंग वक्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं –१. क्रूर (घातक) और २. भुग्न (टेढ़ा)। मूल : वचण्डी शारिका-वर्ति-शस्त्र भेदेषु च स्त्रियाम्। वज्रधात्र्यां लौहभेदे काजिके बालके पवौ ॥१५६७।। वज्रपुष्पे हीरकेऽथ वज्रः सेहुण्डपादपे । कोकिलाक्ष तरौ कृष्णप्रपौत्रे श्वेत बहिषि ॥१५६८।। हिन्दी टीका-वचण्डी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शारिका (मैना) २. वति (वत्ती) ३. शस्त्रभेद (शस्त्र विशेष) । नपुंसक वज्र शब्द के सात अर्थ होते हैं-१. धात्री (आमलकी आमला) २. लोहभेद (लौह विशेष, इस्पात) ३. काजिक (कांजी) ४. बालक, ५. पवि (वज्र) तथा ६. वज्रपुष्प (तिल का फूल) और ७. हीरक । पुल्लिग वज्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. सेहुण्डपादप (सेहुण्ड नाम का वृक्ष विशेष) २. कोकिलाक्षतरु (ताल मखाना का वृक्ष) ३. कृष्णप्रपौत्र (भगवान कृष्ण का प्रपौत्र-उसका भी वज्र नाम था) और ४. श्वेतबर्हिष् (सफेद कुश) को भी वज्र कहते हैं । मूल : स्नुहोवो कोकिलाक्षवृक्षे स्याद् वज्रकण्टकः । गणेशे मशके वज्रतुण्डो गरुड - गृध्रयोः ॥१५६६।। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वज्रकण्टक शब्द | २७५ इन्द्रे जिनेन्द्र प्रभेदे पुमान् वज्रधरः स्मृतः । वञ्जुलः स्थलपद्मे स्यादशोके तिनिशद्रुमे ॥१५७० ।। हिन्दी टीका - वज्रकण्टक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. स्नुहीवृक्ष (सेड - सेन्ड नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. कोकिलाक्षवृक्ष (ताल मखाना का वृक्ष) । वज्रतुण्ड शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. गणेश (भगवान गणपति) २. मशक (मच्छर ) ३. गरुड तथा ४. गृध्र ( गीध ) । वज्रधर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. इन्द्र और २. जिनेन्द्रप्रभेद ( जिनेन्द्र विशेष भगवान तीर्थंकर वज्रधर ) । वञ्जुल शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. स्थलपद्म (स्थल कमल) २. अशोक और ३. तिनिशद्रम ( तिनिश नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) । मूल : वेतसे पक्षिभेदे च वटुको भैरवे शिशौ । वठरः पुंसि मूर्खे स्याद् वक्र ऽम्बष्ठे त्रिषु त्वसौ ॥१५७१॥ शठे मन्देऽथ वडभी वडिशाऽऽगारचूडयो: । बण्टो भागे दात्रमुष्टा वकृतोद्वाहकर्मणि ।। १५.७२ ॥ हिन्दी टीका - वञ्जुल शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. वेतस (बेंत) २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष ) । वटुक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. भैरव ( काल भैरव या महाकाल भैरव) और २. शिशु (बच्चा) । वठर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मूर्ख और २. वक्र किन्तु ३. अम्बष्ठ ( वैश्य वर्ण की स्त्री और ब्राह्मण वर्ण के पुरुष से उत्पन्न सन्तान को अम्बष्ठ कहते हैं । इस अम्बष्ठ अर्थ में वठर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इसी प्रकार १. शठ (दुर्जन) और २. मन्द (शिथिल धीमी चाल वाला) अर्थ में भी वठर शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वडभी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. वडिश ( वंसी - मछली को मारने का साधन विशेष) और २ आगार चूड़ा ( मकान - गृह का धरणि) । वण्ट शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. भाग ( हिस्सा अंश) २. दात्रमुष्टि (दरांती की मुष्टि) और ३. अकृतोद्वाहकर्म (अविवाहित पुरुष ) । मूल : वण्ठः कुम्भायुधे खर्वे निर्विवाहक्रियेऽपि च । वण्ठरः स्थगिकारज्जौ श्वपुच्छे तालपल्लवे ।। १५७३।। पयोधरे चाश्वमारकोऽपि परिकीर्तितः । वण्ठालः शूर संग्रामे खर्वे नावि खनित्रके ।। १५७४ ।। हिन्दी टीका - वण्ठ शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कुम्भायुध (कुम्भघड़ा जिनका आयुध - अस्त्र है उसको कुम्भायुध कहते हैं) २ खर्व (नाटा, छोटा) तथा ३. निर्विवाहक्रिय (विवाह क्रियारहित - अविवाहित ) । वण्ठर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. स्थगिकारज्जु (स्थगिका की डोरी) २. श्वपुच्छ ( कुत्ते की पूँछ ) ३. तालपल्लव, ४. पयोधर ( स्तन या मेघ) तथा ५. अश्वमारकोष । वण्ठाल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. शूरसंग्राम (वीरों का युद्ध) २. खर्व (नाटा) ३. नौ (नौका) और ४. खनित्रक ( खनती) इस प्रकार वण्ठाल शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वण्ड शब्द मूल : वण्डोऽनावृतमेढ़े ना त्रिषु हस्तादिवजिते ॥१५७५।। बतेत्यव्ययं खेद-सन्तोषयोः स्याद् दयायां तथाऽऽमन्त्रणे विस्मये च । वतः पुंसि मार्गेऽक्षिरोगे प्रयुक्तो वरैः सत्यवाग्देवनद्योः सुधीभिः ।।१५७६॥ हिन्दी टीका-दण्ड शब्द-१. अनावृतमेढ़ (दिगम्बर नग्न) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है और २. हस्तादिवजित (हाथ वगैरह से रहित) अर्थ में वण्ड शब्द त्रिलिंग माना गया है। बत यह अव्यय है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. खेद (दुःख) २. सन्तोष, ३. दया, ४. आमन्त्रण (बुलाना या निमन्त्रण) और ५. विस्मय (आश्चर्य)। वतू शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. मार्ग (रास्ता) २. अक्षिरोग (आँख का रोग विशेष) ३. सत्यवाक् (सत्य - यथार्थ वाणी) तथा ४. देवनदी (गगा) इस प्रकार वत् शब्द शब्द के पाँच और वतू शब्द के चार अर्थ जानना । मूल: स्याद्वत्सो गोशिशौ वर्षे पुत्रादौ वायलिंगकः । वधूः स्नुषायां शट्यां च पृक्कायां शारिवौषधौ ॥१५७७॥ वनं निवासे विपिने जले प्रस्रवणे गृहे । वनजो मुस्तके दन्ताबले च वन शूरणे ॥१५७८।। हिन्दी टोका-पुल्लिग वत्स शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. गो शिशु (गाय का बछड़ा) और २. वर्ष, किन्तु ३. पुत्रादि (पुत्र वगैरह) अर्थ में वत्स शब्द वाच्यलिंगक (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। वधु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं.-१. स्नुषा (पुत्रवधू) २. शटी (कचूर-आमा हल्दी) ३ पृक्का (शाक विशेष) तथा ४. शारिवौषधि (ग्वार गुलीसर नाम का औषधि-वनस्पति बिशेष)। वन शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. निवास (निवास स्थान) २. विपिन (जंगल) ३, जल (पानी) ४. प्रस्रवण (झरना) और ५. गृह (मकान)। वनज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मुस्तक (मोथा) २. दन्ताबल (हाथी) और ३. वनशूरण (जंगली शूरण या पानी का शूरण-ओल) इस प्रकार वनज शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल: वन्दनी याचने वट्यां जीवातौ प्रणतावपि । वपा स्यान्मेदसि च्छिद्रे वप्ता तु जनके कवौ ॥१५७६।। प्राकाराध:स्थले वप्रं पाटीर-क्षोणि-रेणुषु । तटेऽथ वप्रः प्राकारे जनके च प्रजापतौ ॥१५८०॥ हिन्दी टीका-वन्दनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं --१. याचन (मांगना) २. वटी (गुटिका) ३ जीवातु (जिलाने वाली दवा) और ४. प्रणति (प्रणाम)। वपा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं--१. मेदस् (मज्जा-मांस) और २. छिद्र (बिल-- सूराख)। किन्तु वप्ता शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. जनक (पिता) और २. कवि । वप्र शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. प्राकार-अधःस्थल (प्राकार किला परकोटे का नोचा भाग) २. पाटोर (चन्दन वृक्ष) ३. क्षोणि (पृथिवी) ४ रेणु (धूलि) अथवा पाटीर-क्षोणि-रेणुषु का अर्थ-चन्दन तथा पृथिवी का Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वयः शब्द | २७७ कण) भी हो सकता है। और ५. तट (नदी-तालाब का किनारा) को भी वप्र कहते हैं किन्तु पुल्लिग वा शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्राकार (किला) २. जनक (पिता) और ३. प्रजापति (ब्रह्मा) । मूल : वयः पतले बाल्यादौ यौवनेऽपि नपुंसकः । वयःस्था सोमवल्लर्यां गुडूच्यां शाल्मलिद्रुमे ॥१५८१॥ सूक्ष्मैलाऽऽली- हरीतक्यामलकी - युवतीष्वपि । अत्यम्ल पर्णी-मत्स्याक्षी काकोलीष्वप्युदीर्यते ॥१५८२।। हिन्दी टोका-नपुंसक वय शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. पतङ्ग (पक्षी) २. बाल्यादि (बाल्यप्रभृति) और ३. यौवन (जवानी) । वयःस्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं -१. सोमवल्लरी (सोमलता) २. गुडूची (गिलोय) ३. शाल्मलिद्रुम (शेमर का वृक्ष) ४. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) ५. आली (सखी) ६. हरीतकी, ७. आमलकी (धात्री) ८. युवती ६. अत्यम्लपर्णी १०. मत्स्याक्षी (ब्राह्मीसोमलता) और ११. काकोली (डोमकाक की स्त्रीजाति विशेष, डोमकौवी-डोमकाकी)। __ मूल : कुसुम्भबीजे हंस्याञ्च वरटा वरला तथा । वेष्टनाऽर्चनयोः कन्यादिवृतौ वरणं न ना ॥१५८३॥ प्राकारे वृक्षभेदे च वरणः संक्रमोष्ट्रयोः । वरण्डस्त्वन्तरावेद्यां समूहे च मुखाऽऽमये ।।१५८४॥ हिन्दी टोका-वरटा तथा वरला शब्द स्त्रीलिंग है उनमें वरटा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. कुसुम्भबीज (कुसुम वर्षे का बोज) और २. हंसी (मरालो) और वरला शब्द के भी दो अर्थ होते हैं१. वेष्टन (लपेटना) और २. अर्चन (पूजन)। वरण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-कन्यादिवृति (कन्या वगैरह का वरण-पसन्दगी)। किन्तु पुल्लिग वरण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. प्राकार (परकोटा, किला) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ३. संक्रम (संक्रमण) और ४. उष्ट्र (ऊंट)। वरण्ड शब्द भी पल्लिग है और उसके तोन अर्थ माने गये हैं.--१. अन्तरावेदी (वेदी के अन्दर) २. समूह और ३. मुखाऽऽमय (मुख का आमय-रोग विशेष)। मूल : वरण्डको हस्तिवेद्यां भित्तौ यौवनकण्टके । वर्तुले त्रिषु तु क्षुद्रे विपुले भयसंकुले ॥१५८५॥ वर्ति-सार्योः शस्त्रभेदे वरण्डा गृहपावके । वरदा त्वादित्यभक्ता ऽश्वगन्धा कन्यकास्वपि ॥१५८६॥ हिन्दी टीका-वरण्डक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हस्तिवेदी (हौदा) २. भित्ति (दोवाल) ३. यौवनकण्टक (जवानी का कण्टक-कांटावर - मुख में फोड़ा) किन्तु त्रिलिंग वरण्डक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. वर्तुल (गोलाकार) २. क्षुद्र ३. विपुल (प्रचुर-अधिक) और ४. भयसंकुल (भयभीत)। वरण्डा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. वति (वत्ती) २. सारी (मैना) ३ शस्त्रभेद (शस्त्र विशेष) तथा ४. गृहपार्श्वक (घर का पार्श्व भाग–बरामदा)। वरदा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. आदित्यभक्ता (सूर्य की भक्ता) २. अश्वगन्धा और ३. कन्यका (लड़की) को भी वरदा कहते हैं। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वरा शब्द मूल : वरा फलत्रिके ब्राह्मी-पाठा-मेदा-ऽमृतासु च विडङ्ग रेणुकागन्धे हरिद्रा - श्रेष्ठ्योरपि ॥१५८७।। वराङ्ग मस्तके यौनौ तथा गुह्ये गुडत्वचि । वराङ्गः कुञ्जरे विष्णौ सुन्दरांगे त्वसौ त्रिषु ॥१५८८।। हिन्दी टोका-वरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. फलत्रिक (त्रिफला) २. ब्राह्मी (सोमलता) ३. पाठा (ग्वार पाठा) ४. मेदा (मज्जा मांस) ५. अमृता (वचा) ६. विडङ्ग (वायविडङ्ग) ७. रेणुकागन्ध (हरेणुका नाम का वृक्ष विशेष) ८. हरिद्रा (हलदी) तथा ६ श्रेष्ठ (उत्तम)। नपुंसक वरांग शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. मस्तक, २. योनि (गर्भाशय) ३. गुह्य (रहस्य गोपनीय) और ४. गुडत्वच् (दालचीनी–काठी) और पुल्लिग वरांग शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. कुञ्जर (हाथी) और २. विष्णु (भगवान विष्णु ईश्वर) किन्तु ३. सुन्दरांग (सुन्दर-अंग शरीर) अर्थ में वरांग शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार वरा शब्द के नौ और वरांग शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझने चाहिए। मूल : वराटकः पद्मबीजे रज्जौ किञ्च कपदके । वर्णः कुथे ब्राह्मणादौ शुक्लादावक्षरे गुणे ॥१५८६।। भेदे गीतक्रमे चित्रे तालभेदांग - रागयोः । रूपे स्वर्णे व्रते कीतौं स्तवने च विलेपने ।।१५६०॥ हिन्दी टीका-वराटक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पद्म बीज (कमलगट्टा) २. रज्जु (डोरी) और ३. कपर्दक (कौड़ी)। वर्ण शब्द भी पुल्लिग है और उसके सोलह अर्थ माने गये हैं--१. कुथ (दर्भ-कुश या हाथी का आस्तरण झूला) २. ब्राह्मणादि (ब्राह्मण आदि क्षत्रिय-वैश्य और शूद्र वर्ण) ३. शुक्लादि (शुक्ल आदि-नील पीत हरित रक्त कपिश वगैरह वर्ण) ४. अक्षर (लिपि) ५. गुण, ६ भेद, ७. गीतक्रम (गान परिपाटी) ८. चित्र, ६. तालभेद (ताल विशेष) १०. अंगराग (शरीर का राग पाउडर) ११. रूप. १२. स्वर्ण (सोना) १३. व्रत, १४. कीर्ति, १५. स्तवन (स्तुति) और १६. विलेपन (चन्दन वगैरह का लेप करना) इस प्रकार वर्ण शब्द के सोलह अर्थ जानना। वर्णकं लेपनद्रव्ये हरितालेऽपि चन्दने । वर्णनं दीपने वर्णीकृतौ विस्तरणे स्तुतौ ॥१५६१॥ वर्णमाला जातिमाला-ऽक्षरश्रेण्योः प्रकीर्तिता। पुमान् वर्णी चित्रकरे लेखके ब्रह्मचारिणि ॥१५६२॥ हिन्दी टोका-वर्णक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. लेपनद्रव्य (पाउडर वगैरह) २. हरिताल (हरिताल नाम का औषध विशेष-दूवी वगैरह) और ३. चन्दन । वर्णन शब्द भी नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. दीपन (प्रकट करना) २. वर्णीकृति (वर्णयुक्त करना) ३. विस्तरण (पल्लवित-विस्तार करना) और ४. स्तुति (स्तुति प्रशंसा करना) । वर्णमाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. जातिमाला और २. अक्षर श्रेणी (अक्षर पंक्ति)। वर्णी शब्द नकारान्त मूल : Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - वर्णी शब्द | २७३ पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. चित्रकर (चित्रकार - फोटोग्राफर, चित्र बनाने वाला) २. लेखक (लेख करने वाला) तथा ३. ब्रह्मचारी । इस प्रकार वर्णी शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । मूल : स्तुतियुक्ते च शुक्लादिवर्ण सम्बन्धिनि त्रिषु । वर्तनं तूलनालायां तर्कपीढे च जीवने ॥। १५६३।। वर्तरुको नदीभेदे काकनीडे जलाऽऽवटे । द्वारपाले वर्तनी तु स्यात् पदव्यां च पेषणे ॥ १५६४॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग वर्णी शब्द का एक और भी अर्थ होता है - १. स्तुतियुक्त (स्तुति करने वाला) किन्तु २. शुक्लादिवर्ण सम्बन्धी (शुक्ल नील पीत वगैरह वर्णयुक्त) अर्थ में वर्णी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वर्तन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. तुलनाला (तूल- कपास की नाला-पीरपींज) २. तर्क पीठ और ३. जीवन । वर्तरुक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. नदी - भेद (नदी विशेष ) २. काकनीड (कौवे का घोंसला ) और ३. जलाssवट (पानी का गड्ढा ) | वर्तनी शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्वारपाल, २. पदवी (पदस्थान रास्ता वगैरह ) और ३. पेषण (पीसने का साधन ) । मूल : वतिः स्त्रियां दीपदशा-लेखयो नयनाञ्जने । द्वीपे भेषज निर्माण गात्रानुलेपने । १५६५ ॥ तथा हिन्दी टीका - वर्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. दीपदशा (दीप की वत्ती ) २. लेख, ३. नयनाञ्जन (आँख का आँजन ) ४. दीप, ५. भेषज निर्माण और ६. गात्रानुलेपन ( शरीर का अनुलेपन - पाउडर वगैरह ) । मूल : वर्द्धनं छेदने वृद्धौ वर्द्धिष्णौ वर्द्धनास्त्रिषु । वर्द्धनी शोधनी- घट्योः सनालजलभाजने ॥। १५६६॥ वर्धमानो देशभेदे धनिनां भवनान्तरे । विष्णौ शरावेऽन्त्यजिने पशुभेदोरुवूकयो ॥ १५६७॥ वर्वरः पामरे मत्ते केश-देश विशेषयोः । चक्रले पञ्जिकायां च गन्धपत्रतरावपि ॥ १५६८ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक वर्द्धन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. छेदन (छेदन करना) २. वृद्धि ( बढ़ना) किन्तु ३. वर्द्धिष्णु (वृद्धि चाहने वाला बढ़ने की इच्छा करने वाला) अर्थ में वर्द्धन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । स्त्रीलिंग वर्द्धनी शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं- - १. शोधनी (मार्जनी - झाड) और २. घटी (छोटा घड़ा) और ३. सनालजलभाजन (वधना ) । वर्द्धमान शब्द भी पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. देशभेद ( देश विशेष-वर्धमान नाम का विहार में एक प्रान्त है ) २. धनिनां भवनान्तर ( धनिकों का भवन विशेष - हर्म्य) ३ विष्णु ( भगवान विष्णु ) ४ शराव ( प्याला) : अन्त्यजिन (अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी) ६. पशुभेद (पशु विशेष) और ७. उरुवूक (एरण्ड - अण्डी) । वर्वर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी सात अर्थ माने गये हैं - १. पामर (नीच अधम कायर) २. मत्त ( पागल ) Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २८० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वर्वर शब्द ३. केश, ४. देश विशेष, ५. चक्रल (मोथा घास) ६ पञ्जिका (पद्धति) और ७. गन्धपत्रतरु (गन्धपत्र नाम का वृक्ष विशेष) को भी वर्वर कहते हैं। क्लीवं स्याद् वर्वरं बोले हिंगूले पीतचन्दने । पुष्पभेदे शाकभेदे वर्वरा मक्षिकान्तरे ॥१५६६।। वर्ष संवत्सरे वृष्टौं जम्बूद्वीपे च वादले । पुनर्नवायां भेक्यां स्त्रीवर्षाभूस्तद्भवे त्रिषु ॥१६००॥ हिन्दी टोका-नपुंसक वर्वर शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. बोल (गन्ध रस-बोर) २. हिंगूल (हिंग) ३. पीत चन्दन (गोपी चन्दन) ४. पुष्पभेद (फूल विशेष) और ५ शाकभेद (शाक विशेष)। स्त्रीलिंग वर्वरा शब्द का अर्थ - १. मक्षिकान्तर (मक्षिका विशेष) होता है । नपुंसक वर्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. संवत्सर, २. वृष्टि (वर्षा) ३. जम्बूद्वीप (एशिया) और ४. वादल (बादल) किन्तु वर्षाभू शब्द - १. पुनर्नवा (गजपुरैन) और २. भेकी (एडकी-वेङ की स्त्री जाति) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है और ३. तद्भव (बर्षा में उत्पन्न होने वाला) अर्थ में वर्षाभू शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : वलयो गलरोगे स्याद् वेला-कङ्कणयोरपि । वला विद्या विशेषे स्यात् तथा वाट्यालकौषधौ ॥१६०१॥ वलाहको गिरौ मेघे मुस्ते कृष्णहयान्तरे। दैत्यभेदे नागभेदे वल्गुस्तुच्छाग - कान्तयोः ॥१६०२।। हिन्दी टोका-वलय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. गलरोग (गले का रोग विशेष) २. वेला (नदी तट) और ३. कङ्कण (कंगन चूड़ी)। वला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विद्याविशेष और २. वाट्यालक औषधि (वलियारी सौंफ)। वलाहक शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. गिरि (पर्वत) २. मेघ (बादल) ३. मुस्त (मोथा घास) ४. कृष्णहयान्तर (काला घोड़ा विशेष) ५. दैत्यभेद (दैत्य विशेष) तथा ६. नागभेद (नाग विशेष)। वल्गु शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. छाग (बकरा) और २. कान्त (रमणीय)। मूल : वल्गुकं चन्दनेऽरण्ये पणे स्याद् रुचिर त्रिषु । निशाचरी पतंगे च वाकुच्यामपि वल्गुला ॥१६०३॥ वल्मीकोऽस्त्री वामलू रे ना वाल्मीकौ गदान्तरे । वल्लरे मञ्जरौ कृष्णागुरौ कुन्जे च कानने ॥१६०४॥ हिन्दी टोका-नपुंसक वल्गु शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं -१. चन्दन (श्रीखण्ड चन्दन वगैरह) २. अरण्य (वन-जंगल) ३. पण (पैसा वगैरह) किन्तु ४. रुचिर (सुन्दर) अर्थ में वल्गु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वल्गुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं ---१. निशाचरी (राक्षसी) २. पतंग (पक्षी) और ३. वाकुची (वकुची-सोमवल्लिका)। वल्मीक शब्द १. वामलूर (दिमकाण-दीमक द्वारा इकट्ठी की हुई मिट्टी, दिवरा भीड़) अर्थ में पुल्लिग तथा नपुंसक है किन्तु २. वाल्मीकि (वाल्मीकि महर्षि) और ३. गदान्तर (गद विशेष, रोग विशेष) अर्थ में वल्मीक शब्द पुल्लिग माना जाता है। वल्लर शब्द Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वल्लव शब्द | २८१ नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. मरि (मञ्जर, बोर) २. कृष्णागुरु (काला अगर) ३. कुञ्ज (गली विशेष) और ४. काननवन–जंगल)। भीमे गोपे वल्लवो ना सूपकारे त्वसौ त्रिषु । वल्लिः स्याद् वह्निदमनीक्षपे क्ष्मा-लतयोः स्त्रियाम् ॥१६०५॥ वल्ली कवतिका चव्या-जमोदा-व्रततिष्वपि । वल्लूरं मञ्जरी-क्षेत्र-कुजारण्येषु शाद्वले ॥१६०६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग वल्लव शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. भीम (दूसरा पाण्डव) और २. गोप (ग्वाला) किन्तु ३. सूपकार (रसोइया) अर्थ में वल्लव शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वल्लि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वह्निदमनीक्षुप (आग को शान्त करने वाला वृक्ष विशेष, की डाल और मूल छोटा होता है ऐसा वृक्ष-शाखोट वगैरह) को वह्निदमनीक्षप वल्लि कहते हैं। २. क्षमा (पृथिवी) तथा ३. लता को भी वल्लि कहते हैं। वल्ली शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कैवर्तिका (नागरमोथा, जलमोथा) २ चव्या (चाभ) ३. अजमोदा (अजमाइन-जमानि)। वल्लूर शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं -१ मञ्जरी (मञ्जर, मज्जर, बौर) २. क्षेत्र (खेत) ३. कुञ्ज (लताओं से वेष्टित झाड़ी) ४. अरण्य (वन–जंगल) और ५. शाद्वल (हरी घास) को भी वल्लूर कहते हैं । मूल : त्रिषूषरक्षितौ शुष्कमांस - सूकर-मांसयोः । वाहने च वशं त्विच्छा-प्रभुताऽऽयत्ततास्वपि ॥१६०७॥ वशो वेश्यागृहे स्वेच्छा ऽऽयत्ततैश्वर्यजन्मसु । वशा बन्ध्या-सुता-योषा-स्त्रीगवी-करिणीषु च ॥१६०८।। हिन्दी टीका-वल्लूर शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. ऊषरक्षिति (ऊषर भूमि) २. शुष्कमांस (सूखा मांस) ३. सूकरमांस (शूगर का मांस) तथा ४. वाहन (सवारी) । नपुंसक वश शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. इच्छा, २. प्रभुता (सामर्थ्य-प्रभाव-आधिपत्य वगैरह) और ३. आयत्तता (अधीनता)। किन्त पल्लिग वश शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. वेश्यागृह (रण्डीखाना) २. स्वेच्छा, ३. आयत्तता (अधौनता) ४ ऐश्वर्य (सामर्थ्य विशेष) और ५. जन्म (उत्पत्ति)। परन्तु स्त्रीलिंग वशा शब्द के भी पांच अर्थ माने गये हैं-'. बन्ध्या (बाँझ) २. सूता (कन्या-लड़की) ३. योषा (स्त्री) ४. स्त्रीगवी (गाय) और ५. करिणी (हथिनी) इस प्रकार वश शब्द के कुल तेरह अर्थ जानना। मूल : वशिरो गजपिप्पल्यां वचाऽपामार्गयोस्तथा। चव्येऽथ वशिनी वन्दा-शमीपादपयोः स्त्रियाम् ।।१६०६।। यामिन्यां सदने वासे वसति सतीत्युभे । वसन्तदूत आम्र स्यात् पिक-पञ्चमरागयोः ॥१६१०॥ हिन्दी टीका-वशिर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. गजपिप्पली (गजपिपरि) २. वचा (वचा नाम का औषधि विशेष जो कि अत्यन्त बुद्धिवर्द्धक होती है) ३. अपामार्ग (चिर. चोरी) तथा ४. चव्य (चाभ)। वशिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वन्दा Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: २८२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वसु शब्द (वांदा-वन्दा-बाँझ-वृक्ष के ऊपर उत्पन्न लता विशेष, जिसको मैथिली भाषा में बाँझ कहते हैं) २. शमीपादप (शेमर का वृक्ष) तथा ३. यामिनी (रात) को भी वशिनी कहते हैं । वसति और वसती इन दोनों शब्दों के दो अर्थ होते हैं—१. सदन (गृह) और २. वास (आवास)। वसन्तदूत शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. आम्र (केरी-आम) २. पिक (कोयल) और ३. पंचमराग (पंचम स्वर) इस प्रकार वसन्तदूत शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। वसु वृद्धौषध-श्याम - धन . रत्नाऽम्बुभर्मसु । वसुकोऽर्कतरौ पाशुपतेऽथ वसुदः पुमान् ॥१६११॥ कुबेरे वाच्यलिङ्गस्तु धन - धान्यप्रदातरि । वसुधारा जैनशक्ति-चेदिराजाऽऽज्य धारयोः ॥१६१२॥ हिन्दी टीका-वसु शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. वृद्धौषध (शिलाजीत) २. श्याम, ३. धन (सम्पत्ति) ४. रत्न (हीरा जवाहरात वगैरह) ५. अम्बु (जल) और ६. भर्म (सोना या वेतन-मजदूरी)। वसुक शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. अर्कतरु (ऑक का वृक्ष) और २. पाशुपत (पाशुपतास्त्र)। पुल्लिग वसुद शब्द का अर्थ- १. कुवेर होता है किन्तु २. धनधान्य प्रदाता (धनधान्य को देने वाला) अर्थ में वसुद शब्द वायलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। वसुधारा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जैनशक्ति (तारा नाम की जैन शक्ति विशेष) २. चेदिराजा (शिशुपाल) और ३. आज्यधारा (वसुधारा) । इस प्रकार वसुधारा शब्द के तीन अर्थ समझना। अलकायां च वस्तिस्तु नाभ्यधो-वस्त्रखण्डयोः । वस्नं मूल्ये भृतौ द्रव्ये वेतने वसने धने ॥१६१३।। त्वचि वस्वौकसारा तु पुर्यामिन्द्र-कुबेरयोः । वहो वृषस्कन्धदेशे वायावश्वे नदे पथि ॥१६१४॥ हिन्दी टीका-वस्ति शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. अलका (कुबेर की राजधानी) २. नाभिअधः (नाभि का नीचा भाग) को भी वस्ति कहते हैं और ३. वस्त्रखण्ड (कपड़े का टुकड़ा) को भी वस्ति कहते हैं । वस्न शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. मूल्य (कीमत) २. भृति (जीविका) ३. द्रव्य (रुपया पैसा) ४. वेतन (पगार) ५. वसन (वस्त्र) और ६. धन (सम्पत्ति)। वस्वौकसारा शब्द के तीन अर्थ होते हैं --१. त्वच् (त्वचा) २ इन्द्रपुरी (स्वर्गपुरी) और ३ कुबेरपुरी (अलकापुरी)। वह शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. वृषस्कन्धदेश (बैल का स्कन्ध ककुद कल्हौड़) २. वायु (पवन) ३. अश्व (घोड़ा) ४. नद (झील) और ५. पथ ।रास्ता) इस प्रकार वह शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : सचिवे पवने किञ्च गवि स्याद् वहतिः पुमान् । वह्नि भल्लातके निम्बावग्नौ चित्रक-रेफयोः ॥१६१५॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग वहति शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. सचिव (मन्त्री) २. पवन, ३. गौ। बन्हि शब्द के पांच अर्थ होते हैं-१. भल्लातक (भाला) २. निम्बु (नेबो) ३. अग्नि, ४. चित्रक (चीता) ५. रेफ (रकार)। मूल : वागरो वारके शाणे निर्णये वाडवे वृके । वावदूके त्यक्तभये मुमुक्षौ पण्डितेऽपि च ॥१६१६॥ मूल : Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वागर शब्द | २८३ वाङमती मिथिनद्यां वाङ न्यासयुतयोषिति ।। वाचकः कथके शब्दे वाचनं तूक्ति-पाठयोः ॥१६१७।। हिन्दी टीका -वागर शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. वारक (हटाने वाला) २. शाण, ३. निर्णय, ४ वाडव (घोड़ा) ५. वृक (भेड़िया) ६. वावदूक (अत्यन्त अधिक बोलने वाला) ७. त्यक्तभय (भयरहित, निर्भीक, निडर) ८. मुमुक्षु (मोक्ष चाहने वाला, मुक्तिपथारूढ़) और ६. पण्डित (विद्वान) । वाङमतो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मिथिला नदी (वाङमती नाम की नदी, जो कि मिथिला देश में बहती है) और २. वाङ न्यासयुतयोषित् (बोलने में अन्त चतुर स्त्री)। वाचक शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. कथक (कथा कहने वाला) और २. शब्द । वाचन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं- १. उक्ति (कथन) और २. पाठ। इस प्रकार वाचन शब्द के दो अर्थ समझने चाहिए। मूल: कुत्सिते वचनाहे च स्याद् वाच्यं शक्य-हीनयोः । अन्ने यज्ञ घृते तोये वाजं वाजस्तु निस्वने ॥१६१८॥ शरपक्षे मुनौ वेग-पक्षयो र्गमनेऽपि च । वाजीपुमान् हये बाणे वासके च विहंगमे ॥१६१६।। हिन्दी टोका-वाच्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कुत्सित (निन्दित) २. वचनाह (बोलने योग्य) ३. शक्य (अर्थ) तथा ४. हीन । नपुंसक वाज शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. अन्न, २. यज्ञ, ३. घृत और ४. तोय (पानी, जल) किन्तु पुल्लिग वाज शब्द का अर्थ-१. निस्वन (आवाज) होता है । पुल्लिग वाज शब्द के और भी पाँच अर्थ माने गये हैं-१ शरपक्ष (बाण का पुख) २. मुनि (महर्षि) ३. वेग (त्वरा, जल्दबाजी) ४. पक्ष (पाँख) और ५. गमन (चलना)। नकारान्त पुल्लिग वाजिन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ हय (घोड़ा) २. बाण (शर, तीर) ३. वासक (अडूसा) और ४. विहंगम (पक्षी, बाज नाम का पक्षी विशेष)। मूल : वाटो मार्गे वृतिस्थाने गमने धारणेऽपि च । वाटी वाट्यालके कुट्यां तथा वास्तुनि च स्त्रियाम् ॥१६२०॥ त्रिषु बाढं दृढेऽत्यन्ते स्वीकारे त्वेतदव्ययम् । बाणोऽग्नौ गोस्तने दैत्यभेदे कविवरे शरे ॥१६२१।। हिन्दी टीका-वाट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. मार्ग (रास्ता) २. वृतिस्थान (वाड़ी घिरा हुआ स्थान) ३. गमन और ४. धारण (धारण करना)। वाटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं--१. वाट्यालक (बरियार) २. कुटी (झोंपड़ी) और ३. वास्तु (निवास स्थान)। बाढ़ शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. दृढ़ (मजबूत) और २. अत्यन्त किन्तु ३. स्वीकार (स्वीकार करना) अर्थ में बाढ़ शब्द अव्यय माना जाता है । बाण शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. अग्नि २. गोस्तन (एक लड़ी का हार विशेष) ३. दैत्यभेद (दैत्य विशेष बाणासुर नाम का दैत्य) ४. कविवर (बाण कवि, जिन्होंने कादम्बरो और हर्षचरित नाम के दो प्रसिद्ध महाकाव्य लिखे हैं) और ५. शर (बाण) को भी बाण शब्द से व्यवहार किया जाता है । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - बाण शब्द मूल : काण्डाद्यवयवे भद्रमुजे तद्वच्च केवले । वाणी स्त्री वाग्देवतायां वचने वपनेऽपि च ॥१६२२॥ हिन्दी टोका-बाण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. काण्डाद्यवयव (धनुष काण्ड का एक भाग–अंग) २. भद्रमुञ्ज तथा ३. केवल (मुञ्जवाला) । वाणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वाग्देवता (सरस्वती) २. वचन (वाक्य शब्द) और ३. वपन (बीज बोना या काटना) इस प्रकार वाणी शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : वातघ्नी शालपमेश्वगन्धयोः शिमृडीक्षुपे । वातपुत्रो महाधूर्ते भीमसेने हनूमति ॥१६२३॥ वातरायण उन्मत्ते निष्प्रयोजनपूरुषे । करपात्रे कूटकाण्ड - द्विट-क्रान्ति - सरलद्रुषु ॥१६२४॥ हिन्दी टोका-वातघ्नो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शालपर्णी (सरिवन) २. अश्वगन्धा (अश्वगन्धा नाम का लता वक्ष विशेष) और ३. शिमडीक्षण न (शिमृडी नाम की छोटो डाल मूल वाली लता विशेष)। वातपुत्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. महाधूर्त (महावञ्चक) २. भीमसेन (वायुपुत्र भीम) और ३. हनुमान । वातरायण शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१ उन्मत्त (पागल) २. निष्प्रयोजन पुरुष (प्रयोजनरहित पुरुष) ३. करपात्र (तपस्वी) ४. कूट (कूटनीति तथा पहाड़ की चोटी वगैरह) ५. काण्ड (धनुषकाण्ड वगैरह) ६. द्विट् (शत्र) ७ क्रान्ति (आक्रमण) और ८. सरलद्र (देवदारु वृक्ष वगैरह) को भी वातरायण कहते हैं । वातरूषस्तु वातूलोत्कोचयोरिन्द्रधन्वनि । वाताटः स्याद् वातमृगे सूर्याश्वे पन्नगेऽपि च ॥१६२५।। वातारिरेरण्डतरौ शतमूल्यां च शूरणे । भल्लातके पुत्रदायां भाग्यर्यां स्नुह्यां विडङ्गके ॥१६२६॥ शैफालिकायां यवान्यां जतुका - तैलभेदयोः । वातिः पुमान् वायु-सूर्य-चन्द्रेषु गमने स्त्रियाम् ।।१६२७।। हिन्दी टोका-वातरूष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वातूल (वातव्याधिवाला) २. उत्कोच (घूस वगैरह) और ३. इन्द्रधन्वा (इन्द्रधनुष)। वाताट शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१ वातमृग (हरिण विशेष) २. सूर्याश्व (सूर्य का घोड़ा) और ३. पन्नग (सर्प) । वातारि शब्द भी पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. एरण्डतरु (अण्डी का वृक्षदीबेल का वृक्ष) २ शतमूली (शतावर) ३. शूरण (ओल) ४. भल्लातक (भाला) ५. पुत्रदात्री (पुत्र को देने वाली लता विशेष) ६. भार्गी (ब्रह्मनेटी-भारङ्गी) ७. स्नुही (सेहुण्ड) और ८. विडङ्गक (वायविडङ्गवायभृङ्ग) । वातारि शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं-१. शेफालिका (सिंहरहार का वृक्ष या फूल) २. यवानी (अजमानि, जमानि) ३. जतुका (चामचिरयि) और ४. तैलभेद (तैल विशेष)। पुल्लिग वाति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. वायु, २. सूर्य, ३, चन्द्र, किन्तु ४. गमन अर्थ में वाति शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। मूल : Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वातूल शब्द | २८५ वातूलः पुंसि वात्यायां मत्ते वातासहे त्रिषु । वानं शुष्कफले शुष्के वन सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६२८॥ क्लीवं वाटे सुरङ्गायां स्यूतिकर्मणि सौरभे । जलसंप्लुतवातोर्मों तवक्षीरे गतावपि ॥१६२६॥ वानप्रस्थो मधूकद्रौ तृतीयाश्रम-पर्णयोः । वानीरः स्यात् परिव्याधद्रुमे वेतसपादपे ॥१६३०॥ हिन्दी टीका-वातूल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. वात्या (आंधी) २. मत्त (उन्मत्त-पागल) किन्तु ३. वातासह (वात को सहन नहीं करना) अर्थ में वातूल शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नपुंसक वान शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शुष्कफल (सूखा फल) और २. शुष्क (सूखा) किन्तु ३. वन सम्बन्धी अर्थ में वान शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नपुंसक वान शब्द के और भी सात अर्थ माने गये हैं -१ वाट (रास्ता) २. सुरङ्गा (सुरङ्ग) ३. स्यूतिकर्म (सीना) ४. सौरभ (खुशबू) ५. जलसंप्लुतवातोमि (जल से भरा हुआ वायु तरङ्ग) ६. तवक्षीर (तवक्षीर नाम का वृक्ष विशेष) और ७. गति (गमन)। वानप्रस्थ शब्द के तीन अर्थ होते हैं --१. मधूकद्र (मधूक वृक्ष) २. तृतीयाश्रम (वानप्रस्थाश्रम) और ३. पर्ण (पलाश)। वानीर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. परिव्याधद्र म (कठ चम्पा कणिकरि) और २. वेतसपादप (जलबेंत)। मूल : वापितं मुण्डिते बीजाकृते त्रिषु मतं सताम् । वामं वास्तूक-धनयो: क्लीवं पुंसि पयोधरे ॥१६३१॥ महादेवे कामदेवे त्रिषु वल्गु - प्रतीपयोः । सव्येऽधमे वामगते वक्रऽथो वामनो हरौ ।।१६३२।। हिन्दी टीका-वापित शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. मुण्डित (मुडाया हुआ) और २. बीजाकृत (बीज बोया हुआ या बीज बोने के लायक तैयार किया हुआ खेत)। वाम शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वास्तूक (वथुआ) और २. धन, किन्तु पुल्लिग वाम शब्द का अर्थ-३. पयोधर (स्तन या मेघ) होता है। परन्तु त्रिलिंग वाम शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. महादेव (भगवान शंकर) २. कामदेव, ३. वल्गु (सुन्दर) ४. प्रतीप (प्रतिकूल-विपरीत-शत्रु वगैरह) ५. सव्य (वामभाग) ६ अधम (नीच) ७. वामगत (वाम भागवर्ती) और ८ चक्र (टेढा बांका)। वामन १. हरि (भगवान विष्णु) होता है। अङ्कोठपादपे खर्वे स्मृतो दक्षिणदिग्गजे । वामा स्मृतेह दुर्गायां तथा सामान्ययोषिति ।।१६३३।। वामी शृगाल्यां करभी रासभी-वडवासु च । वायसोऽगुरुवृक्षे स्यात् काक-श्रीवासयोरपि ॥१६३४॥ हिन्दो टोका-वामन शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अकोठपादप (अंकोलढरा नाम का वृक्ष) २. खर्व (नाटा, छोटा) तथा ३. दक्षिणदिग्गज (प्रशस्त हाथी विशेष)। वामा शब्द मूल : Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-वायसादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. दुर्गा (पार्वती) और २. सामान्ययोषित् (साधारण स्त्री) को भी वामा कहते हैं । वामी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. शृगाली (गीदड़नी) २. करभी (ऊँट की स्त्री जाति ऊँटिन) ३. रासभी (गदही) तथा ४. वडवा (घोड़ो)। वायस शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. अगुरुवृक्ष (अगर का वृक्ष विशेष) २. काक तथा ३. श्रीवास (सरल-देवदारु वृक्ष के गोंद से बना हुआ सुगन्धित द्रव्य विशेष) इस प्रकार वायस शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : महाज्योतिष्मती काकतुण्ड्यो:स्त्री वायसादनी । काकादनी-काकमाची-महाज्योतिष्मतीषु च ॥१६३५।। काकोदुम्बरिकायां च वकवृक्षेऽपि वायसी। वारः समूहेऽवसरे द्वारे सूर्यादिवासरे ॥१६३६।। हिन्दी टीका-वायसादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं – १ महाज्योतिष्मती (माल कांगड़ी) २ काकतुण्डी (काकतुण्डी नाम की लता औषधि विशेष) ३. काकादनी (काकादनी नाम की लता विशेष) और ४. काकमाचो (मकोय) । १. महाज्योतिष्मती (माल कांगनी) अर्थ वायसी शब्द का भी होता है । वायसी शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. काकोदुम्बरिका (कठूमर काला गूलर) और २. बकवृक्ष (बक पुष्प का वृक्ष विशेष)। वार शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. समूह, २. अवसर (मौका) ३. द्वार और ४. सूर्यादिवासर (रवि-सोम-मंगल वगैरह दिन)। मूल : हरे क्षणे कुब्जवृक्षे वारं मैरेयभाजने । वारकोऽश्वविशेषेऽश्वगतौ, त्रिषु निषेधके ॥१६३७॥ नपुंसकं स्यात् ह्रीवेरे कष्टस्थानेऽपि कीर्तितः । सिन्धौ सपत्ने चित्राश्वे पर्णाजीविनि वारकी ॥१६३८॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग वार शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. हर (भगवान शंकर) २. क्षण (पल) ३. कुब्जवृक्ष (टेढ़ा वृक्ष)। नपुंसक वार शब्द का अर्थ-मैरेयभाजन (शराब का बर्तन) होता है। पुल्लिग वारक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. अश्वविशेष (घोड़ा विशेष) और अश्वगति (घोड़े की चाल) किन्तु ३. निषेधक (निषेध करने वाला) अर्थ में वारक शब्द त्रिलिंग है। किन्तु नपुंसक वारक शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. ह्रीवेर (नेत्र वाला) और २. कष्टस्थान। वारकी शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. सिन्धु (समुद्र या नदो विशेष) २. सपत्न (शत्रु) ३. चित्राश्व (घोड़ा विशेष) और ४. पर्णाजीवी (पर्णपत्ता खाकर ही जीवन निर्वाह करने वाला वगैरह) को भी वारकी कहते हैं । वारकीरस्तु यूकायां वाडवे च जलौकसि । नीराजितहये श्याले वारग्राहिणि तु त्रिषु ॥१६३६।। वारणः कुञ्जरे बाणवारे क्लीवं निषेधने ।। वारिःस्त्री गजबन्धिन्यां सरस्वत्यामुपग्रहे ।।१६४०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग वारकीर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. यूका (M-ढील-लीख) २. वाडव (वडवानल और घोड़ियों का झुण्ड वगैरह) ३. जलोकस् (जोंक) ४. नीराजितहय (अत्यन्त प्रशस्त घोड़ा, जिसकी नीराजना-आरती की गयी है) ५. श्याल (शाला-शार) किन्तु ६. वारग्राही (समूह मूल : Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वारि शब्द | २८७ का ग्राही या अबसर का ग्राही अथवा रवि वगैरह दिनों का ग्राही) अर्थ में बारकीर शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिग वारण शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कुञ्जर (हाथी) और बाण (कवच) किन्तु ३. निषेधन (मना करना) अर्थ में वारण शब्द नपुंसक माना जाता है । वारि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं--१. गजबन्धिनी (बेड़ी) २. सरस्वती और ३. उपग्रह (कैदीबंदीगृह-गिरफ्तार वगैरह) इस प्रकार स्त्रीलिंग वारि शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : नपुंसकं स्यात् सलिले ह्रीवेरेऽपि प्रकीर्तितम् । वारिजं तु लवङ्ग स्यात् पद्म-गौरसुवर्णयोः ॥१६४१॥ वारिजौ कम्बु-शम्बूको सूर्याब्दौ वारि तस्करौ। वारिदो मुस्तके मेधे बालायां तु नपुंसकम् ।।१६४२।। हिन्दी टोका-नपुंसक वरि शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. सलिल (जल) और २. हीवेर (नेत्रवाला) । नपुंसक वारिज शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. लवङ्ग (लौंग) २. पद्म (कमल) और ३. गौरसुवर्ण (स्वच्छ सोना)। पुल्लिग वारिज शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. कम्बु (शंख) २. शम्बूक शितआ) ३. सर्य ४. अब्द (वर्ष) ५. वारि (पानी) तथा ६. तस्कर (चोर)। पुल्लिग वारिद शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मुस्तक (मोथा) और २. मेघ (बादल) किन्तु ३. बाला (लड़की) अर्थ में वारिद शब्द नपुंसक माना जाता है। मूल: वारिनाथो वारिवाहे वरुणे यादसांपतौ। पद्म वारिरुहं क्लीवं जलजाते त्रिलिंगकम् ॥१६४३॥ लवङ्गोशीर सौवीराजनेषु वारिसंभवम् । वारुण्डोऽस्त्री श्रोत्रनेत्रमले नौसेकभाजने ॥१६४४॥ हिन्दी टोका-वारिनाथ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वारिवाह (मेघ) २. वरुण (जल देवता विशेष) और ३. यादसांपति (समुद्र)। नपुंसक वारिरुह शब्द का अर्थ-१. पद्म (कमल) होता है, किन्तु २. जलजात (पानी में उत्पन्न) अर्थ में वारिरुह शब्द त्रिलिंग माना गया है । वारिसंभव शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. लवङ्ग २. उशीर (खस) ३. सौवीर (शुरमा) और ४. अञ्जन (आंजन)। वारुण्ड शब्द पल्लिग तथा नपंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. श्रोत्रनेत्रमल (कान का मल-गुज्जी और आँख का मल कौंची) और २. नौसे कभाजन (नौका का सेचन पात्र) इस प्रकार वारुण्ड शब्द के दो अर्थ जानना। मूल: आरोग्याऽसारयोर्वतिं वृत्तिमत्कल्पयोस्त्रिषु । वार्ता वातिङ्गणे वृत्तौ वृत्तान्ते च जनश्रुतौ ॥१६४५॥ वार्तावहो वैवधिके त्रिषु संवादवाहके । वार्तिकः स्यात् प्रवृत्तिज्ञ वैश्ये वार्तिकपक्षिणि ॥१६४६।। हिन्दी टीका-नपुंसक वार्त शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. आरोग्य और २. असार (सारहीन)। किन्तु त्रिलिंग वार्त शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं—१. वृत्तिमत् (वृत्ति से युक्त) और २. कल्प । स्त्रीलिंग Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ । नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वादर शब्द वार्ता शब्द के चार अर्थ होते हैं- १. वातिङ्गण, २. वृत्ति (टोका) ३. वृत्तान्त और ४. जनश्रुति (किंवदन्ती) । पुल्लिग वार्तावह शब्द का अर्थ-१. वैवधिक (वीवध-अन्नपानवस्त्रादि को लाने ले जाने वाला) होता है और २. संवादवाहक (संवाद-सन्देश का वाहक ले जाने वाला) अर्थ में वार्तावह शब्द त्रिलिंग माना गया है। पुल्लिग वार्तिक शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. प्रवृत्तिज्ञ (प्रवृत्ति को जानने वाला) २. वैश्य (वैश्य जाति) और ३. वर्तिकपक्षी (वटेर नाम का पक्षी विशेष)। मूल: वार्दरं कृष्णलाबीजे काकचिञ्चाऽऽम्रबीजयोः । भारती दक्षिणावर्त - शंखयोः कृमिजे जले ॥१६४७॥ वार्दलं दुर्दिने क्लीवं मसीपात्रे पुमानसौ। वार्द्धकं वृद्धसंघाते वृद्धस्य भावकर्मणोः ॥१६४८।। हिन्दी टोका-वार्दर शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं—१. कृष्णलाबीज (गुंजा मूंगा घुघुची चनूठा का बीज) २. काकचिञ्चा (करजनी-चनौठी) ३. आम्रबीज (आम केरी का बीज - गुठली) ४. भारती (सरस्वती) ५. दक्षिणावर्तशंख, ६. कृमिज (कृमि-क्रीड़ा से उत्पन्न) और ७. जल (पानी) । वार्दल शब्द - १. दुर्दिन (मेघ से ढका हुआ दिन) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. मसीपात्र (मसिधानी) अर्थ में वार्दल शब्द पूल्लिग माना जाता है। वार्द्धक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. वृद्धसंघात (वृद्धों का संघ) और २. वृद्धस्यभाव (वृद्धत्व) तथा ३. वृद्धस्यकर्म (वार्द्ध क्य) इस प्रकार वार्द्धक शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : बार्हस्पत्यो नास्तिके स्यात् नीतिशास्त्रे नपुंसकम् । वार्यमुक्तं वने क्लीवं वृक्ष सम्बन्धिनि त्रिषु ।।१६४६।। वालकोऽस्त्री पारिहार्ये त्रिलिंगस्त्वङ गुलीयके । चतुष्पथे मन्दिरे च वाध घ्रस्रत्वसौ पुमान् ॥१६५०॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग बार्हस्पत्य शब्द का अर्थ--१. नास्तिक (वेदादि को नहीं मानने वाला) किन्तु २. नीतिशास्त्र अर्थ में बार्हस्पत्य शब्द नपुंसक माना जाता है। नपुंसक वाक्ष्य शब्द का अर्थ१. वन (जंगल) होता है किन्तु २. वृक्ष सम्बन्धी अर्थ में वाय शब्द त्रिलिंग माना गया है। पुल्लिग तथा नपुंसक वालक शब्द का अर्थ-१. पारिहार्य (वलय-कड़ा-कंगण) किन्तु २ अङ्गरीयक (अँगुठी-मुद्रिका) अर्थ में बालक शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक वाश्र शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. चतुष्पथ (चौराहा) और २. मन्दिर किन्तु ३. घस्र (दिन) अर्थ में वाश्र शब्द पुल्लिग माना जाता है इस तरह वाश्र शब्द के कुल मिलाकर तीन अर्थ माने जाते हैं। मूल : वाष्पो नेत्रजले लोह उष्मण्यपि बुधैः स्मृतः। वासोऽवस्थानगृहयोः सुगन्धौ वासके पटे ॥१६५१।। वासनं धूपने वस्त्रे निक्षेपाधार-वासयोः । तथा ज्ञाने वारिधान्यां वस्त्रसम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६५२॥ हिन्दी टोका-वाष्प शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नेत्रजल (नयन Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वासना शब्द | २८६ जल आंसू) २. लोह (लोहा) और ३. उष्मा (गर्मी)। वास शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. अवस्थान (ठहरना) २. गृह (घर) ३. सुगन्धि (खुशबू) ४. वासक (अडूसा) और ५. पट (कपड़ा)। वासन शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. धूपन (धूप देना) २. वस्त्र, ३. निक्षेपाधार (वासन) ४. वास (निवास स्थान) ५. ज्ञान और ६. वारिधानो (समुद्र) किन्तु ७. वस्त्र सम्बन्धी अर्थ में वासन शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : वासना भावना-ज्ञान - प्रत्याशासु निगद्यते ।। दुर्गा-देहात्म-बुद्धिजन्य मिथ्या संस्कारयोरपि ।।१६५३।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग वासना शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१ भावना (विचार चिन्तन वगैरह) २. ज्ञान, ३. प्रत्याशा (इन्तजार) ४. दुर्गा (पार्वतो) और ५. देहात्मबुद्धिजन्यमिथ्या संस्कार (शरीरादि में आत्मबुद्धि होने से उत्पन्न मिथ्या ज्ञान-भ्रमजन्य संस्कार विशेष) को भी वासना कहते हैं । मूल : वासन्तः कोकिले कृष्णमुद्गे मलयमारुते । उष्ट्र मुद्गे च मदनद्रुमे ऽप्यवहिते त्रिषु ॥१६५४॥ वासन्ती माधवी - यूथी - पाटलासु मधूत्सवे । नेपाली गणिकार्योश्च वासरो दिन-नागयोः ॥१६५५।। वासितं ज्ञानमात्रे स्याद विहंगमरवे रुते । त्रिलिंगः ख्यात-सुरभीकृतयो वस्त्रवेष्टिते ।।१६५६॥ हिन्दी टीका-वासन्त शब्द त्रिलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. कोकिल (कोयल) २. कृष्णमुद्ग (काला मूंग) ३. मलयमारुत (मलयाचल पवन) ४. उष्ट्र (ऊंट) ५. मुद्ग (मंग-मूंग) और ६. मदनद्र म (ऑक-धतूर का वृक्ष) और ७. अवहित (सावधान)। स्त्री वासन्ती शब्द के भी छह अर्थ होते हैं-१. माधवी (माधवीलता २. यूथी (जूही) ३. पाटला (गुलाब) ४. मधूत्सव (मद्य वगैरह का उत्सव) ५. नैप नपालो (मनशिला-पत्थर) और ६. गणिकारी (अरणी-दो लकड़ी का मन्थन विशेष, जिससे आग पैदा होती है) । वासर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. दिन और २. नाग । वासित शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ज्ञानमात्र, २. विहंगमरव (पक्षी की आवाज) और ३. रुत (शब्द)। त्रिलिंग वासित शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ख्यात (विख्यात) २. सुरभीकृत (सुगन्धित) और ३. वस्त्रवेष्टित । मूल : स्त्री धेनुकायां स्त्रीमात्रे वाहो भारचतुष्ट्येः । तुरङ्गमे भुजेवायौ वृषे त्रिषु तु वाहके ॥१६५७।। वाहसो वारि निर्याणेऽजगरे सुनिषण्णके । वाहिको भारिके ढक्का-गोवाह-शकटादिषु ॥१६५८।। हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग वासिता शब्द के तीन अर्थ होते हैं – १. स्त्री (औरत विशेष) २. धेनुका (हथिनी) और ३. स्त्रीमात्र (साधारण स्त्री) को भी वासिता कहते हैं। वाह शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१. भार चतुष्टय (पलशत) २. तुरङ्गम (घोड़ा) ३. भुजबाहु, ४. वायु, ५. वृष (बैल) Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २९० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वाहिनी शब्द किन्तु ६. वाहक (वहन करने वाला) अर्थ में वाह शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वाहस शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं- १. वारिनिर्याण (जलस्रोत) २. अजगर (अजगर-सर्प विशेष) और ३. सुनिषण्णक (अच्छी तरह बैठा हुआ) । वाहिक शब्द के चार अर्थ होते हैं- १. भारिक (भार वहन करने वाला) २. ढक्का (बड़ा ढोल नगाड़ा वगैरह) ३. गोवाह (बैल से वहन किया जाने वाला) ४. शकटादि (गाड़ी वगैरह) को भी वाहिक कहते हैं। सेना-तद्भेदयोनद्यां वाहिनी प्रोच्यते स्त्रियाम् । सेनापतौ समुद्रेच कीर्तितो वाहिनीपतिः ।।१६५६॥ वाहुल: कार्तिकेमासि तथा शाक्यमुनेः सुते । वाह्यं याने मतं क्लीवं वहनीये बहिस्त्रिषु ॥१६६०॥ हिन्दी टीका-वाहिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सेना, २. तभेद (सेना विशेष) और ३. नदी। वाहिनीपति शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. सेनापति (सेना का चीफ कमाण्डर) और २. समुद्र । वाहुल शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं१. कार्तिकमास, २. शाक्यमुनिसुत (शाक्य मुनि का पुत्र)। वाह्य शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ१. यान (सवारी गाड़ी वगैरह) होता है किन्तु १. वहनीय (वहन करने योग्य) अर्थ में बहि शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : विकचः क्षपणे केतौ खलति-स्फुटयो स्त्रिषु । विस्फोटके साकुरुण्डपादपे विकटः पुमान् ॥१६६१।। हिन्दी टोका-पुल्लिग विकच शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. क्षपण (बिताना) और २. केतु (पताका) किन्तु ३. खलति (वृद्ध) और ४. स्फुट अर्थ में विकच शब्द त्रिलिंग माना जाता है । विकट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विस्फोटक और २. साकुरुण्डपादप (साकुरुण्ड नाम का वृक्ष विशेष)। मूल : विशाले विकराले च विकृते दन्तुरे त्रिषु । बौद्धदेवी प्रभेदे तु कीर्तिता विकटा स्त्रियाम् ॥१६६२।। त्रिषु स्वभाव रहिते विह्वले विकलः स्मृतः । विकला निकली च द्वे ऋतुनर्जितयोषिति ।।१६६३।। हिन्दी टोका-त्रिलिंग विकट शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. विशाल, २. विकराल (भयंकर) ३. विकृत (विकारयुक्त) और ४. दन्तुर (उन्नत दाँत वाला) किन्तु ५. बौद्धदेवीप्रभेद (बौद्धदेवी विशेष) अर्थ में विकटा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । त्रिलिंग विकल शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. स्वभावरहित (निःस्वभाव) और २. विह्वल (व्याकुल) । स्त्रीलिंग विकला और विकली शब्द का अर्थ-१. ऋतुवजित(ऋतु-मासिक धर्मरहित स्त्री) इस प्रकार विकल शब्द के कुल मिलाकर तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : विकल्पो भ्रान्ति-विविधकल्पयोः समुदाहृतः । विकषा मांसरोहिण्यां मञ्जिष्ठायामपि स्त्रियाम् ॥१६६४॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विकल्प शब्द | २९१ विकारो विकृतौ रोगे विकाशो रहसि स्फुटे। विकृतं त्रिषु बीभत्से ऽसंस्कृते रोगसंयुते ॥१६६५॥ हिन्दी टोका-विकल्प शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. भ्रान्ति (भ्रम) और २. विविधकल्प (अनेक कल्प-पक्ष नाना संकल्प विकल्प)। विकषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. मांसरोहिणी और २. मञ्जिष्ठा (मजीठा)। विकार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. विकृति (विकार) और २. रोग (व्याधि)। विकाश शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं--१. रहस् (एकान्त स्थान) और २. स्फुट (स्पष्ट-प्रकट) । विकृत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. बीभत्स (घृणित) २. असंस्कृत (संस्काररहित) और ३. रोगसंयुत (रोगयुक्त-रोगी) इस प्रकार विकृत शब्द के तीन अर्थ मानना। डिम्भे विकारे मद्यादौ रोगे च विकृती स्त्रियाम् । विक्रमः केशवे शक्तौ चरण-क्रान्तिमात्रयोः ॥१६६६॥ विक्रमादित्यनृपतौ शौर्यातिशय - वर्षयोः । विक्लिन्नो जरसा जीर्ण शीर्ण आद्रे त्रिलिंगभाक् ॥१६६७॥ हिन्दी टीका-विकृती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. डिम्भ (बच्चा, शिशु) २. विकार, ३. मद्यादि (मद्य-शराब वगैरह) और ४. रोग (व्याधि)। विक्रम शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. केशव (वामन भगबान) २. शक्ति (सामर्थ्य) ३. चरण (पाद) ४. क्रान्तिमात्र (क्रमण-गमन करना) ५. विक्रमादित्यनृपति (विक्रमादित्य राजा) ६. शौर्यातिशय (अत्यन्त पराक्रम) और ७. वर्ष (विक्रम नाम का संवत)। विक्लिन्न शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. जरसाजीर्ण (बुढ़ापा के कारण जीर्ण वृद्ध) २. शीर्ण (विशीर्ण) और ३. आर्द्र (गीला) इस प्रकार विक्लिन्न शब्द के तीन अर्थ मानना। विग्रहः पुंसि विस्तारे शरीर-प्रविभागयोः । समासवाक्ये युद्धे तु विग्रहोऽस्त्री मतः सताम् ॥१६६८।। मल्लीभेदे मदनकद्रुमे विचकिलः पुमान् । विच्छित्तिः स्त्री हारभेदे गेहावधि-विनाशयोः ॥१६६६॥ हिन्दो टोका-पुल्लिग विग्रह शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. विस्तार, २. शरीर, ३. प्रविभाग (विशेष विभाग) और ४. समासवाक्य (संक्षिप्त वाक्य) किन्तु ५. युद्ध (संग्राम) अर्थ में विग्रह शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है। विचकिल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मल्लीभेद (छोटी बेला) और २. मदनकद्र म (धत्तूर वगैरह)। विच्छित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. हारभेद (हार विशेष) २. गेहावधि (गृह पर्यन्त) और ३. विनाश, इस प्रकार विच्छित्ति शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : अंगरागेऽङ्गहारे च विच्छदेऽपि प्रकीर्तिता। विच्छिन्नस्त्रिषु वक्र स्यात् समालब्ध-विभक्तयोः ॥१६७०॥ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विच्छिन्न शब्द विच्छेदो विरहे भेदे विच्युतः क्षरिते गते । विजयः कल्कितनये कल्पराजसुतेऽर्जुने ॥१६७१।। हिन्दी टीका-विच्छित्ति शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. अंगराग (शरीर का राग सजावट) और २ अंगहार (नृत्य विशेष) । विच्छिन्न शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. वक्र (टेढ़ा) २. समालब्ध (प्राप्त) और ३. विभक्त (विभाजित)। विच्छेद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं--१. विरह (वियोग) और २. भेद (अलग)। विच्युत शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. क्षरित (संचलित) और २. गत (गया हुआ)। विजय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कल्कितनय (कलि का पुत्र) और २. कल्पराजसुत (कल्पराजा का पुत्र) और ३. अर्जुन (तृतीय पाण्डव) इस तरह विजय शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : विमाने बलदेवे च केशवानुचरे जये। विज्ञानं कर्मणि ज्ञाने कार्मणे द्विजलक्षणे ॥१६७२।। विटः शैलान्तरे धूर्ते नारङ्गतरु-षिङ्गयोः । - कामुकानुचरे कामतन्त्रविज्ञ च मूषिके ॥१६७३।। हिन्दी टोका-विजय शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. विमान, २. बलदेव, ३. केशवानुचर (भगवान विष्णु का अनुचर-सेवक) और ४. जय । विज्ञान शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१ कर्म, २. ज्ञान, ३. कार्मण (जड़ी बूटी वगैरह से मारण मोहन उच्चाटन करना) और ४. द्विजलक्षण (ब्राह्मण सम्बन्धी ज्ञान) को भी विज्ञान कहते हैं। विट शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. शैलान्तर (पर्वत विशेष) २. धूर्त (वञ्चक) ३. नारङ्गतरु (अनार दाडिम का वृक्ष) ४. षिङ्ग (नपुंसक) ५. कामुकानुचर (कामुक-मैथुनाभिलाषो का अनुचर-भडुआ) ६. कामतन्त्रविज्ञ (कामशास्त्र का जानकार) और ७. मूषिक (चूहा-उदर),। मूल : विटपोऽस्त्री स्तम्ब-शाखा-विस्तारेषु च पल्लवे । पुमान् विटाधिपे पारदारिकाग्रेसरेऽपि च ॥१६७४॥ प्रवेशे मनुजेवैश्ये विट् कन्या-विष्ठयोः स्त्रियाम् । प्रतारणेऽनुकरणे स्त्रियां क्लीवे विडम्बनम् ॥१६७५।। हिन्दी टोका-विटप शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. स्तम्ब (खम्भा) २. शाखा (डाल) ३. विस्तार और ४. पल्लव (नया पत्ता—किसलय), किन्तु पुल्लिग विटप शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विटाधिप (भडुआ का मालिक) और २. पारिदारिकाग्रेसर (परदारगमन व्यभिचारी का शिरोमणि) । विट् शब्द-१. प्रवेश, २. मनुज (मनुष्य) और ३. वैश्य अर्थ में पुल्लिग है और ४. कन्या और ५. विष्ठा अर्थ में स्त्रीलिंग है। विडम्बना शब्द-१. प्रतारण (वञ्चना ठगना) अर्थ में स्त्रीलिंग है और २. अनुकरण (नकल करना) अर्थ में नपुंसक माना जाता है। इस प्रकार विडम्बन शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : विडालो नेत्रपिण्डे स्यात् मार्जारे लोचनौषधौ। विततं त्रिषु वीणादिवाद्ये व्याप्ते च विस्तृते ॥१६७६।। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विडाल शब्द | २९३ हिन्दी टीका-विडाल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. नेत्रपिण्ड (नयन का आकार-प्रकार) २. मार्जार (बिल्ली) तथा ३. लोचनौषधि (नेत्र का औषध विशेष)। वितत शब्द विलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. वीणादिवाद्य (वीणा वगैरह बाजा) २. व्याप्त तथा ३. विस्तृत (फला हुआ-विस्तार) इस प्रकार वितत शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : वितर्कः संशय-ज्ञानसूचकाऽध्याहारयोरपि । अस्त्री वितान मुल्लोचे यज्ञ विस्तारयोः स्मृतम् ॥१६७७॥ क्लीवन्त्ववसरे वृत्तौ त्रिलिंगो मन्द-शून्ययोः । वित्तो विचारिते लब्धे विज्ञाते न द्वयोर्धने ।।१६७८।। हिन्दी टोका-वितर्क शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. संशय (सन्देह) २. ज्ञानसूचक अध्याहार (ज्ञानसूचक शब्द का अध्याहार-अनुवृत्ति) को भी वितर्क कहते हैं। वितान शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. उल्लोच (चांदवा-चंदवा वगैरह) २ यज्ञ तथा ३. विस्तार (फैलाव) किन्तु ४. अवसर (मौका) और ५. वृत्ति अर्थ में वितान शब्द नपुंसक माना जाता है। परन्तु ६ मन्द और ७. शून्य अर्थ में वितान शब्द त्रिलिंग माना गया है । पुल्लिग वित्त शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. विचारित (सोचा हुआ) २. लब्ध (प्राप्त) और ३. विज्ञात किन्तु ३. धन अर्थ में वित्त शब्द (नद्वयोः) नपुंसक ही माना गया है। वित्तिः संभावना-लाभ-विचारेषु स्त्रियां मता। विदग्धो नागरे विज्ञ पण्डिते त्रिषु कीर्तिता ॥१६७६।। विदर्भजाऽगस्त्यपत्न्यां दमयन्त्यामपि स्मृता । विदारः स्याद् जलोच्छ्वासे युंगेऽपि च विदारणे ॥१६८०॥ हिन्दी टोका-वित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. संभावना, २. लाभ तथा ३. विचार। विदग्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नागर (नागरिक) २. विज्ञ (बुद्धिमान) और ३. पण्डित (विद्वान)। विदर्भजा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. अगस्त्यपत्नी (अगस्त्य मुनि की धर्मपत्नी) और २. दमयन्ती। विदार शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जलोच्छ्वास (जल का उछलाव वगैरह) २. युङ्ग और ३. विदारण (विदीर्ण करना या विदीर्ण कराना-मारना या मरवाना) इस प्रकार विदार शब्द के तीन अर्थ जानना। विदारणं मारणे स्याद् विडंगे भेदने मतम् । स्त्रीपुंसयोः सम्पराये कर्णिकारतरौ पुमान् ॥१६८१।। विदारी भूमिकुष्माण्डे शालपर्यों गलाऽऽमये । विदुरो नागरे धीरेकौरवाणां च मन्त्रिणि ॥१६८२॥ हिन्दी टीका-नपुंसक विदारण शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मारण (मारना) २. विडङ्ग (वायविडङ्ग) और ३. भेदन (विदारण करना) किन्तु ४. सम्पराय (संग्राम-युद्ध) अर्थ में विदारण शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है परन्तु ५. कणिकारतरु (कठचम्पा) अर्थ में विदारण शब्द पुल्लिग मूल : मूल : Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २९४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - विद्ध शब्द माना जाता है । विदारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. भूमिकुष्माण्ड (भूमि पर होने वाला सफेद कोहला-कुम्हर) २. शालपर्णी (सरिवन) और ३. गलाऽऽमय (गले का रोग)। विदर शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. नागर (नागरिक) २. धीर और कौरवाणांमन्त्री (कौरवों का मन्त्री-अमात्य) । विद्धः क्षिप्ते कृतच्छिद्रे बाधिते ताडिते त्रिषु । विद्या ज्ञया ज्ञान-दुर्गा-शास्त्राष्टादशकेषु च ॥१६८३॥ विद्रवः क्षरणे बुद्धौ निन्दायां च पलायने । रत्नवृक्षे किशलये प्रवाले विद्रुमः पुमान् ॥१६८४॥ हिन्दी टीका-विद्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. क्षिप्त, २. कृतच्छिद्र (छेद किया हुआ) ३. बाधित और ४. ताडित । विद्या शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. ज्ञा, २. दुर्गा और ३. शास्त्राष्टादशक (अठारह शास्त्र)। विद्रव शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. क्षरण, २. बुद्धि, ३. निन्दा और ४. पलायन (भाग जाना)। विद्र म शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. रत्नवृक्ष, २. किशलय और ३. प्रवाल (मूंगा चनौठी)। विधः प्रकारे हस्त्यन्ने विमान-वेधद्धिषु । विधा स्त्री गज देयान ऋद्धौ कर्म-प्रकारयोः ॥१६८५।। वेधने वेतने चाथो विधानं करणे विधौ । विधि ब्रह्मणि गोविन्दे विधाने क्रम-भाग्ययोः ॥१६८६॥ गजान्ने विधिवाक्ये च नियोगे काल-कर्मणोः । यागोपदेशकग्रन्थे प्रकारे च चिकित्सके ॥१६८७।। हिन्दी टीका-विध शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं—१. प्रकार (तरीका वगैरह) २. हस्त्यन्न (हाथी के लिये अन्न) ३. विमान, ४ वेधन (बांधना) और ५. ऋद्धि (सम्पत्ति वगैरह।। विधा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. गजदेयान (हाथी के लिये देने योग्य अन्न ज) २. ऋद्धि (समृद्धि) ३. कर्म (क्रिया) ४. प्रकार (तरीका वगैरह) ५. वेधन (वोंधना) तथा ६. वेतन (पगार)। विधान शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. करण (कार्य का साधन या क्रिया वगैरह) और २. विधि (विधान करना) । विधि शब्द पुल्लिग है और उसके दस अर्थ माने जाते हैं-१. ब्रह्म (ब्रह्मा-विधाता) २. गोविन्द (भगवान विष्णु) ३. विधान, ४ क्रम (परिपाटी रीति वगैरह) ५. भाग्य (अदृष्ट) ६. गजान्न (हाथी के लिये अन्न) ७. विधिवाक्य (प्रेरणा सूचक वाक्य विशेष स्वर्गकामो यजेत' इत्यादि) ८. नियोग (आज्ञा वगैरह) ६. काल और १०. कर्म क्रिया करना) । इस प्रकार विधि शब्द के दस अर्थ समझने चाहिए। विधि शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. यागोपदेशकग्रन्थ (याग करने का तरीका बतलाने वाला ग्रन्थ विशेष–'विधि विवेक' वगैरह) २. प्रकार (तरीका वगैरह) और ३. चिकित्सक (इलाज करने वाला, वैद्य, डाक्टर)।। विधुर्नारायणे चन्द्रे कर्पू रे वायु-रक्षसोः । विधुरं तु प्रविश्लेषे कैवल्ये विकले त्रिषु ॥१६८८।। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -विधु शब्द | २६५ हिन्दी टीका-विधु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. नारायण ( भगवान विष्णु) २. चन्द्र, ३. कर्पूर, ४. वायु और ५. रक्षस् (राक्षस) । विधुर शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. प्रविश्लेष (वियुक्त, विरही ) २. कैवल्य (मोक्ष) और ३. विकल । विनत स्त्रिषु भुग्ने स्यात् प्रणते शिक्षितेऽपि च । मूल : स्त्रियां स्यात् पिटकाभेदे तथा गरुडमातरि ॥१६८६ ॥ विनयः प्रणतौ दण्डे शिक्षायामपि कीर्तितः । विनायकस्तु हेरम्बे गुरौ गरुड़ - बुद्धयोः ॥ १६६०॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग विनत शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. भुग्न ( वक्र टेढ़ा) २. प्रणत (नमा हुआ) और ३. शिक्षित (पढ़ा लिखा ) किन्तु स्त्रीलिंग विनता शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. पिटकाभेद (पिटका विशेष - पिटारी वगैरह ) और २. गरुडमाता (गरुड़ की माता) को भी विनता कहते हैं । विनय शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं- १. प्रणति ( नमना, झुकना) २. दण्ड और ३. शिक्षा (पढ़ाई ) । विनायक शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. हेरम्ब ( भगवान गणेश ) २. गुरु, ३. गरुड़ और ४. बुद्ध (भगवान बुद्ध) | मूल : विनिपातो निपतने दैव व्यसन - रीढ़योः । विनीतः सुवहाश्वे स्याद् वणिग्-दमनवृक्षयोः ॥१६६१॥ त्रिष्वसौ निभृते क्षिप्ते कृतदण्डे जितेन्द्रिये । विनीयः कल्मषे कल्के विनेता राज्ञि देशके ।।१६६२|| हिन्दी टीका - विर्निपात शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. निपतन ( गिर जाना) २. दैव (भाग्य) ३. व्यसन (आपत्ति वगैरह ) और ४ रीढ़ (पीठ की मध्य हड्डी) । पुल्लिंग विनीत शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. सुवहारव (वहन समर्थ घोड़ा) २. वणिक् (बनिया) और ३. दमनवृक्ष (दमन नाम का वृक्ष विशेष ) किन्तु त्रिलिंग विनीत शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. निभृत (अत्यन्त ) २. क्षिप्त, ३. कृतदण्ड ( दण्डित) और ४. जितेन्द्रिय । विनीय शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. कल्मष ( मलिनता ) २. कल्क (पाप) । विनेता शब्द का अर्थ -- १. राजा और २. देशक है । मूल : विनेय स्त्रिषु नेतव्ये दण्डनीयेऽपि कीर्तितः । विनोदः कौतुके क्रीडा - परिष्वङ्ग विशेषयोः ॥ १६६३॥ बिन्दुः पुमान् रूपकार्थप्रकृति - ज्ञानशीलयोः । अनुस्वारे भ्र ुवोर्मध्ये दशनक्षत- विप्रुषोः ॥१६६४॥ हिन्दी टीका - विनेय शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. नेतव्य ( ले जाने लायक ) और २. दण्डीय (दण्ड करने योग्य) । विनोद शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. कौतुक ( कुतूहल ) २. क्रीडा और ३. परिष्वङ्ग विशेष (आलिंगन विशेष ) । विन्दु शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. रूपकार्थप्रकृति (नाटकादि दृश्य काव्य की पाँच अर्थ प्रकृतियों में दूसरी विन्दु नाम की प्रकृति विशेष ) २. ज्ञानशील (ज्ञानी) ३. अनुस्वार, ४. भ्र मध्य, ५. दशनक्षत ( दांत के काटने से उत्पन्न क्षत व्रण विशेष) और ६. विप्रुट् ( थूक) इस प्रकार विन्दु शब्द के कुल छह अर्थ समझना चाहिए । Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - विन्दु शब्द मूल : त्रिलिंगोऽसौ वेदितव्ये दातरि ज्ञातरि स्मृतः । विन्ध्यः शैलान्तरे व्याधे लवलीपादपे स्त्रियाम् ॥ १६६५॥ विन्नस्त्रिषु स्थिते ज्ञाते तथा प्राप्ते विचारिते । आपणे पण्यवीथ्यां च पण्येऽपि विपणिद्वयोः || १६६६ ॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग विन्दु शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. वेदितव्य ( जानने योग्य) २. दाता तथा ३. ज्ञाता । पुल्लिंग विन्ध्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. शैलान्तर (शैल विशेषविन्ध्याचल पर्वत) और २. व्याध ( व्याध शिकारी) किन्तु ३ लवलीपादप ( लवली नाम की पर्वतीय लता विशेष ) अर्थ में विन्ध्या शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । विन्न शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. स्थित (विद्यमान ) २. ज्ञात, ३. प्राप्त और ४. विचारित (निर्धारित निश्चित ) । विपणि शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना गया है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. आपण (दुकान) २. पण्यवीथी (हाट बाजार की गली) और ३ पण्य (खरीद बिक्री करने योग्य वस्तु) को भी विपणि कहते हैं । इस प्रकार विपणि शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । मूल : विपत्तिः स्त्री यातनायां विनाशे विपदि स्मृतः । विपन्न विपदाक्रान्ते विनेष्ट वाच्यलिंगभाक् ॥१६६७॥ विपाको दुर्गतौ भोगे कर्मणो विसदृक्फले । परिणामे च पचने स्वादौ स्वेद च जीविते ॥१६६८॥ हिन्दी टीका - विपत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. यातना ( वेदना दुःख दर्द ) २. विनाश और ३. विपद् (विपत्ति - दुःख की दिनदशा ) । विपन्न शब्द वाच्यलिंगभाक् (विशेष्य निघ्न) माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. विपदाक्रान्त ( आपद्ग्रस्त - विपत्ति में पड़ा हुआ) और २. विनष्ट (ध्वस्त) । विपाक शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं - १. दुर्गति (विपत्ति वर्ग - रह) २. भोग (कर्मफल का भोग) ३. कर्मणोविसदृक्फल ( कर्म का विपरीत प्रतिकूल फल ) ४. परिणाम ( अन्तिम फल ) ५. पचन ( पकाना ) ६. स्वादु ( स्वादिष्ट - मीठा फल परिणाम ) ७. स्वेद ( पसीना ) और ८. जीवित ( जिन्दा ) । इस तरह विपाक शब्द के आठ अर्थ समझना । मूल : विप्रकार स्तिरस्कारे ऽपकारेऽपि स्मृतः पुमान् । रोषे ऽनुतापे कौकृत्ये विप्रतीसार उच्यते ॥ १६६६ ॥ विप्रलापो विरोधोक्तौ वाक्ये चानर्थकेऽप्यसौ । विप्लव: परचक्रादिभये राष्ट्राद्युपद्रवे ।। १७००॥ हिन्दी टीका - विप्रकार शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. तिरस्कार, २ . अपकार । विप्रतिसार शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रोष (क्रोध) २. अनुताप ( पश्चात्ताप) और ३. कोकृत्य ( दुष्कर्म) । विप्रलाप शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. विरोधोक्ति (विरुद्ध कथन) और २. अनर्थक वाक्य (अर्थहीन वाक्य) । विप्लव शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं - १. परचक्रादिभय ( शत्रु राज्य वगैरह का भय - आतङ्क) और २. राष्ट्राद्युपद्रव ( राष्ट्र वगैरह का उपद्र ) इस प्रकार विप्लव शब्द के दो अर्थ समझने चाहिए । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- विप्रलम्भ शब्द | २९७ विप्रलम्भो विसंवाद - श्रृंगाररसभेदयोः । प्रतारणे विप्रयोगे विच्छेदेपि पुमानयम् ॥ १७०१ ॥ - विफलं वाच्यवद् व्यर्थे केतव्यां विफला स्मृता । पर्याहारेऽयनेभावे विवधो वीवधो पि च ।।१७०२ ॥ हिन्दी टीका - विप्रलम्भ शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं- १. विसंवाद ( मिथ्या वाक्य वगैरह ) २. शृंगाररसभेद (विप्रलम्भ नाम का श्रृंगार विशेष ) ३. प्रतारण ( वंचना ) ४. विप्रयोग (वियोग ) और ५. विच्छेद ( अलग होना) । विफल शब्द - १. व्यर्थ अर्थ में वाच्यवद् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । और २. केतकी (केवड़ा) अर्थ में विफला शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । विवध और वीवध शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. पर्याहार ( दूसरे राष्ट्र से अपने राष्ट्र में सैनिक सामग्री - आहार अन्नपानादि को लाना) और २ अयनभाव (अपने राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में उक्त आहार विहार अन्न पान वस्त्रादि सामग्री को पहुँचाना) । गुल : विबुधश्चन्दिरे देवे पण्डितेऽपि स्मृतो बुधैः । विभवो मोक्ष ऐश्वर्ये द्रविणे वत्सरान्तरे ।। १७०३ || विभा प्रकाशे शोभायां किरणेऽपि स्त्रियां मता । विभाकर: सूर्यवह्नि - चित्रकार्कद्रुमेषु च ॥ १७०४॥ हिन्दी टीका - विबुध शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चन्दिर (चन्द्रमा) २. देव और ३. पण्डित ( विद्वान ) । विभव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -- १. मोक्ष (मुक्ति) २. ऐश्वर्य ( सामर्थ्यं विशेष वगैरह ) ३. द्रविण (वित्त-धन) और ४. वत्सरान्तर (वत्सर विशेष ) । विभा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. प्रकाश, २. शोभा और ३. किरण । विभाकर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १ सूर्य, २. वह्नि, ३. चित्रक ( चीता) और ४. अकेंद्र म ( ऑक का वृक्ष) इस प्रकार विभाकर शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : विभावरी हरिद्राभ्यां कुट्टन्यां वक्रयोषिति । रात्रौ मौखर्यनिरत स्त्रियां मेदा महीरुहे ।।१७०५ | विभावसुः सूर्य चन्द्रमसोश्चित्रकपादपे । वैश्वानरेऽर्कवृक्षे च हारभेदेऽपि कीर्तितः ।। १७०६ ॥ हिन्दी टीका - विभावरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. हरिद्रा ( हलदी ) २. कुट्टनी (व्यभिचार के लिये पटाने वाली स्त्री) ३. वक्रयोषित् (कुटिल स्त्री) ४. रात्रि (रात) ५. मौखर्यनिरतस्त्री ( अत्यन्त बोलने में चपल स्त्री) और ६. मेदा महीरुह (मेदा नाम का वृक्ष विशेष ) । विभावसु शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. चन्द्र, ३. चित्रक पादप (एरण्डअण्डी का वृक्ष) ४. वैश्वानर (अग्नि) ५. अर्कवृक्ष (ऑक का वृक्ष) तथा ६. हारभेद (हार विशेष) इस प्रकार विभावसु शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए । मूल : विभु विष्णौ सुरज्येष्ठे शिवे सर्वगते जिने । प्रभौ नित्ये व्यापके च दृढे भृत्ये प्रकीर्तितः ॥ १७०७ ॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : २९८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विभु शब्द विभ्रमः संशये हारभेदे भ्रमण-शोभयोः । विमानोऽस्त्री व्योमयाने यानमात्रे तुरङ्गमे ॥१७०८।। __हिन्दी टोका-विभु शब्द पुल्लिग है और उसके दस अर्थ माने गये हैं-१. विष्णु (भगवान विष्णु) २ सुरज्येष्ठ (बृहस्पति) ३. शिव (भगवान शंकर) ४. सर्वगत, ५. जिन (भगवान तीर्थङ्कर) ६. प्रभु (राजा वगैरह) ७. नित्य, ८. व्यापक, ६. दृढ़ (मजबूत) और १०. भृत्य (नौकर)। विभ्रम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. संशय, २. हारभेद (हार विशेष) ३. भ्रमण और ४. शोभा। विमान शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. व्योमयान (विमान) २. यानमात्र (साधारण सवारी) और ३. तुरंगम (घोड़ा)। बिम्बन्तु प्रतिबिम्बे स्यात् तुण्डिकेयर्यां कमण्डलौ। अस्त्रियां सूर्य-शुभ्रांशुमण्डले विबुधैः स्मृतः ॥१७०६॥ विरोचनो भास्करे ऽर्कद्रुमे चन्द्रे धनञ्जये । प्रह्लादतनये रोहिद्रुम - श्योनाक - भेदयोः ॥१७१०॥ हिन्दी टोका-नपुंसक बिम्ब शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. प्रतिबिम्ब, २. तुण्डिकेरी (कपास या तु दरु) और ३. कमण्डलु किन्तु पुल्लिग तथा नपुंसक बिम्ब शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. सूर्य और २. शुभ्रांशुमण्डल (चन्द्रमण्डल)। विरोचन शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं ... १. भास्कर (सूर्य) २. अर्कद्र म (ऑक का वृक्ष) ३. चन्द्र, ४. धनञ्जय (अर्जुन या धनञ्जय नाम का पवन) ५. प्रह्लादतनय (भक्त प्रहलाद का पुत्र) ६. रोहिद्र म (गुलनार या लाल करज अथवा वटवृक्ष वगैरह) और ७. श्योनाकभेद (सोना पाठा)। मूल : बिलं गुहायां विवरे शक्राश्वे वेतसे पुमान् । विलासी केशवे चन्द्रे हरे वैश्वानरे स्मरे ॥१७११॥ भुजङ्गमे भोगिनि च विलासो हारलीलयोः । बिलेशयः शशे सर्पे गोधाऽऽखु शल्लकीषु च ॥१७१२॥ हिन्दी टोका-नपुंसक बिल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. गुहा (गुफा) २. विवर (बिल, छेद) और ३. शक्राश्व (इन्द्र का घोड़ा) किन्तु ४. वेतस (बेंत) अर्थ में बिल शब्द पुल्लिग है। विलासी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं---१. केशव (भगवान विष्णु) २. चन्द्र, ३. हर (भगवान शंकर) ४. वैश्वानर (अग्नि) और ५. स्मर (कामदेव) । विलास शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. भुजङ्गम (सर्प) २. भोगी (भोग विलास करने वाला) ३. हार (मुक्ताहार वगैरह) और ४. लीला । बिलेशय शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने गये है -१. शश (खरगोश) २. सर्प, ३ गोधा (गोह) ४. आखु (चूहा) और ५. शल्लकी (शाही-शेहुड़) इस प्रकार बिलेशय शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : विवरं तु बिले दोषे विवर्तः संघ-नृत्ययोः । विवस्वान् भास्करेऽर्कद्रौ वैवस्वतमनौ सुरे ॥१७१३।। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवक्षा वक्तुमिच्छायां शक्तावपि निगद्यते । विवक्षितो वक्तुमिष्टे शक्यार्थेऽपि मत स्त्रिषु ॥। १७१४॥ हिन्दी टीका-विवर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. बिल (छेद- सूराख) और २. दोष । विवर्त शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. संघ ( समुदाय) २. नृत्य ( नाच ) । विवस्वान् शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. भास्कर (सूर्य) २. अर्कद्र (ऑक का पेड़) और ३. वैवस्वतमनु (वैवस्वत नाम का मनु विशेष) और ४. सुर (देव) । विवक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. वक्तुमिच्छा ( बोलने की इच्छा) और २. शक्ति (सामर्थ्य) । विवक्षित शब्द त्रिलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. वक्तुम् इष्ट ( बोलने की इच्छा का विषय ) और २. शक्यार्थ ( वाच्यार्थ ) । मूल : विविक्त निर्जने पूते ऽसंपृक्त े वाच्यलिङ्गयुक् । विवेकः पृथगात्मत्वे जलद्रोणी विचारयोः ।। १७१५ ।। विशदो निर्मले व्यक्त शौक्ल्यवत्यभिधेयवत् । विशल्या ऽग्निशिखावृक्षे दन्तीवृक्षाऽजमोदयो। ॥। १७१६॥ नानार्थौदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -विवर शब्द | २६६ हिन्दी टीका - विविक्त शब्द वाच्यलिंगयुक् विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके तीन अर्थ हैं - १. निर्जन ( एकान्त) २. पूत (पवित्र) और ३. असंपृक्त (सम्पर्क रहित ) । विवेक शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं - १. पृथगात्मत्व ( शरीरादि से आत्मा की भिन्नता) २. जलद्रोणी (बडेङी) तथा ३. विचार । विशद शब्द – १. निर्मल और २. व्यक्त अर्थ में पुल्लिंग है किन्तु शौक्ल्यवति (सफेद युक्त) अर्थ में अभिधेयवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । विशल्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. अग्निशिखावृक्ष ( करिहारी या इन्द्रपुष्पी नाम का वृक्ष विशेष) और २. दन्तीवृक्ष (दन्ती नाम का औषधवनस्पति विशेष ) तथा ३. अजमोदा (अजमानि जमानि आजमा) अर्थ भी विशल्या शब्द का होता है । कलिकारी गुडुच्योश्च विशाखौ स्कन्द- याचकौ । विशारदस्त्रिषु श्रेष्ठे प्रगल्भे विश्रुते बुधे ।।१७१७॥ बकुलेऽसौ पुमान् स्त्रीत दुरालभा महीरुहे । मूल : विशालः पक्षि- नृपति मृग - वृक्षभिदासु च ॥ १७१८ ॥ मूल : - हिन्दी टीका - विशल्या शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. कलिकारी (कलिकारी नाम की लता) और २. गुडुची (गिलोय) को भी विशल्या कहते हैं । विशाख शब्द के दो अर्थ होते हैं -१ स्कन्द (कार्तिकेय) और २. याचक ( मांगने वाला ) । विशारद शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. श्रेष्ठ, २. प्रगल्भ (ढीठ) ३. विश्रुत (विख्यात) और ४. बुध (पण्डित) किन्तु ५. बकुल ( मौलशरी) अर्थ में विशारद शब्द पुल्लिंग माना जाता है और ६. दुरालभामहीरुह ( जवासा का वृक्ष) अर्थ में विशारद शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । विशाल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. पक्षी, २. नृपति (राजा) ३. मृग (हरिण) और ४. वृक्षभिदा ( वृक्ष विशेष) इस प्रकार विशाल शब्द के चार अर्थ जानना । विशालात्विन्द्रवारुण्यां तीर्थभिद् दक्षकन्ययोः । उज्जयिन्यामुपोदक्यां विशालं बृहति त्रिषु ॥ १७१६ ॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० j नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विशाला शब्द विशालाक्षः शिवे ताये सुनेत्रे त्वभिधेयवत् । विशालाक्षी तु पार्वत्यां नागदन्त्यां वरस्त्रियाम् ॥१७२०॥ हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग विशाला शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं -१. इन्द्रवारुणी (इनारुन) २. तीर्थभिद् (तीर्थ विशेष) ३. दक्षकन्या (दक्ष प्रजापति की लड़की) ४. उज्जयिनी और ५. उपोदकी (पोई का शाक) किन्तु ६. बृहत् (बड़ा) अर्थ में विशाल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। विशालाक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शिव (भगवान शंकर) और २. तामू (गरुण) किन्तु ३. सुनेत्र (विशाल नयन) अर्थ में विशालाक्ष शब्द अभिधेयवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। किन्तु स्त्रीलिंग विशालाक्षी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. पार्वती (दुर्गा) २. नागदन्ती (खूटी) और ३. वरस्त्री (श्रष्ठ स्त्री) अर्थ भी होता है। मूल : विशिख स्तोमरे बाणे शिखाहीने त्वसौ त्रिषु । विशिखा नालिकायां स्यात् खनित्री-रथ्ययोः स्त्रियाम् ॥१७२१॥ विशुद्धं विशदे सत्ये चक्र च निभृते त्रिषु। विशेषस्तिलके व्यक्तौ काव्यालंकरणेऽपि च ।।१७२२।। हिन्दी टीका--पुल्लिग विशिख शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. तोमर (शस्त्र विशेष) २. बाण किन्तु ३. शिखाहीन (चोटी रहित) अर्थ में विशिख शब्द त्रिलिंग माना जाता है। स्त्रीलिंग विशिखा शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. नालिका (बन्दूक की नली) २. खनित्री (खनती) और ३. रथ्या (गली) । विशुद्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विशद (स्वच्छ) २. सत्य, ३. चक्र (पहिया वगरह) और ४. निभत (एकान्त) । विशेष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. तिलक (तिलक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) २. व्यक्ति (जाति भिन्न) और ३. काव्यालंकरण (काव्य का अलंकार विशेष, जिसको विशेषालंकार) कहते हैं । इस प्रकार विशेष शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : प्रकारे च प्रभेदे च पदार्थान्तर एव च। विश्रम्भः केलिकलहे विश्वासे प्रणये वधे ॥१७२३।। विश्रुतस्त्रिषु संहृष्ट प्रसिद्ध - ज्ञातयोरपि । विश्वं तु भुवने शुण्ठ्यां बोले पुंसि तु नागरे ॥१७२४॥ हिन्दी टीका-विशेष शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रकार (तद्भिन्न तत्सदृश) २.प्रभेद (प्रकार) और ३. पदार्थान्तर (पदार्थ विशेष, वैशेषिक न्यायाभिमत विशेष नाम का पदार्थ)। विश्रम्भ शब्द पूल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. केलिकलह (रतिकालिक प्रणय कलह) २. विश्वास (यकोन) ३. प्रणय (प्रेम) और ४. वध (हिंसा--मारना)। विश्रुत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. संहृष्ट (प्रसन्न) २. प्रसिद्ध (विख्यात) और ३. ज्ञात (विज्ञात)। नपुंसक विश्व शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. भुवन (संसार-जगत) २. शुण्ठी (सोंठ) और ३. बोल (वोर - गन्धरस) किन्तु ४. नागर (नागरिक) अर्थ में विश्व शब्द पुल्लिग माना जाता है । मूल : गणदेव विशेषे च मानभेदेऽखिले त्रिषु । विश्वकर्मा सहस्रांशौ त्रिदशानां च शिल्पिनि ॥१७२५।। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विश्व शब्द | ३०१ विश्वंभरो हरौ शक्र पृथिव्यां तु स्त्रियामसौ। विषं जले वत्सनाभे गरले पद्मकेशरे ॥१७२६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग विश्व शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. गणदेवविशेष (प्रमथादिगणों में विश्व नाम का गणदेव विशेष) और २. मानभेद (मान विशेष - परिमाण विशेष, विशवा नाम का परिमाण) किन्तु ३ अखिल (सारा) अर्थ में विश्व शब्द त्रिलिंग माना जाता है । विश्वकर्मा शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं- १. सहस्रांशु (सूर्य) और २. त्रिदशानां शिल्पी (देवों का सुतार, विश्वकर्मा नाम के प्रसिद्ध कारीगर)। पुल्लिग विश्वंभर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. हरि (भगवान विष्णु) २. शक्र (इन्द्र) किन्तु ३. पृथिवी (भूमि) अर्थ में विश्वंभरा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। विष शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. जल (पानी) २. वत्सनाम (बछड़े की नाभि) ३. गरल (जहर) और ४. पद्मकेशर (कमल का किजल्क) इस प्रकार विष शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : नियामके जनपदे कान्तादौ नित्य सेविते । रूपादौ विषयो ऽव्यक्त आरोपाश्रय-शुक्रयोः ।।१७२७॥ विषयी राज्ञि कन्दर्पे ध्वनौ वैषयिके पुमान् । त्रिलिङ्गो विषयासक्ते हृषीके तु नपुंसकम् ॥१७२८॥ हिन्दी टोका-विषय शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. नियामक (नियम करने वाला) २. जनपद (देश) ३. कान्तादि (कान्त-पति वगैरह) ४. नित्यसेवित (सतत सेवायुक्त) ५. रूपादि (रूप-रस-गन्ध-स्पर्श शब्द तथा आशय) ६. अव्यक्त (अस्पष्ट-स्पष्ट नहीं) ७. आरोपाश्रय (आरोप का आश्रय-आधार) तथा ८. शुक्र । विषयी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं--- १. राजा, २. कन्दर्प (कामदेव) ३. ध्वनि (शब्द) और ४. वैषयिक (विषय सम्बन्धी) किन्तु त्रिलिंग विषयी शब्द का अर्थ-१. विषयासक्त (विषयलम्पट) होता है । परन्तु २. हृषीक (विषयेन्द्रिय चक्षु वगैरह) अर्थ में विषयी शब्द नपुंसक माना जाता है । इस प्रकार विषयी शब्द के छह अर्थ जानना। मूल : विषाणं गजदन्ते स्यात् कुष्ठभेषज-शृङ्गयोः । विषाणिका मेषशृङ्गी-सातलाऽऽवर्तकीषु च ॥१७२६॥ हिन्दी टीका-विषाण शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. गजदन्त (हाथी का दांत) २. कुष्ठभेषज (कोठ नाम का औषध विशेष) और ३. शृंग । विषाणिका शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. मेषशडी. २. सातला (सेहुड़-थहर) और ३. आवर्तकी को भी विषाणिका कहते हैं। मूल : विष्कम्भः प्रतिबन्धे स्यात् विस्तारे ऽर्गल-वृक्षयोः । योगिबन्धान्तरे योग - रूपकाङ्ग - प्रभेदयोः ॥१७३०॥ विष्टम्भः प्रतिबन्धे स्याद् आनाहरुजि कीर्तितः। विष्टरो दर्भमुष्टौ स्यात् पीठाद्यासन-शाखिनोः ॥१७३१॥ विष्टिः स्त्री वेतने वृष्टौ भद्रा ऽऽजू-कर्मसु स्मृता । त्रिषु कर्मकरे विष्टिर्दू रस्थाने तु बिष्ठलम् ॥१७३२॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-विष्कम्भ शब्द हिन्दी टीका-विष्कम्भ शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. प्रतिबन्ध (रोक) २. विस्तार ३. अर्गल (खील-बिलैया) और ४. वृक्ष, ५. योगिबन्धान्तर (योगो का आसन बन्ध विशेष) ६. योग (समाधि) तथा ७. रूपकाङ्गप्रभेद (रूपक-दृश्य काव्य नाटक वगैरह का एक भाग विशेष)। विष्टम्भ शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं.-१. प्रतिबन्ध (रोक) और २. आनाहरुज् (मल मूत्र निरोध, जिस रोग में मल और मूत्र बन्द हो जाता है उस रोग को आनाहरुज् कहते हैं) । विष्ट र शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं—१. दर्भमुष्टि (कुश की मुष्टि) २. पीठाद्यासन (पीढ़ी वगैरह आसन) और ३. शाखी (वृक्ष)। स्त्रीलिंग विष्टि शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वेतन (पगार) २. वृष्टि (वर्षा) ३. भद्रा (दुर्गा विशेष वगैरह) ४. आजू (बलात्कार-हठ से नरक में ढकेलना) तथा ५. कर्म (क्रिया) किन्तु ६. कर्मकर (कर्म करने वाला अर्थ में) विष्टि शब्द त्रिलिंग है और १. दूरस्थान अर्थ में विष्ठल शब्द का प्रयोग होता है। मूल : विष्णु नारायणे वह्नौ शुद्धे मुन्यन्तरे वसौ। पद्मेऽन्तरिक्ष क्षीरोदे क्लीवं विष्णुपदे स्मृतम् ॥१७३३।। विसरः प्रसरे संघे विसर्गो मलनिर्गमे । विसर्जनीये कैवल्ये दाने त्याग-विसृष्ट्ययोः ।।१७३४॥ हिन्दी टीका-विष्णु शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१ नारायण (भगवान लक्ष्मीनारायण) २. वह्नि (अग्नि) ३. शुद्ध (पवित्र) ४. मुन्यन्तर (मुनि विशेष) ५. वसु (धन वसु वगैरह) ६. पदम (कमल) ७. अन्तरिक्ष (गगनतल) और ८. क्षीरोद (क्षीर सागर)। किन्तु ६. विष्णुपद (बैकुण्ठ धाम) अर्थ में विष्णु शब्द नपुंसक माना जाता है । विसर शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. प्रसर (शीघ्रगमन वगैरह) २. संघ (समूह)। विसर्ग शब्द भो पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. मलनिर्गम (मल त्याग-शौच) २. विसर्जनीय (दो बिन्दु ':') और ३. कैवल्य (मुक्ति वगैरह) ४. दान, ५. त्याग और ६. विसृष्ट (भेजा गया)। विसर्जनं परित्यागे दाने सम्प्रेषणे मतम । विसृत्वरो विसरणे गतिभेदे त्रिलिंगभाक् ॥१७३५॥ विस्तरो वाकप्रपञ्चे विस्तारे प्रणये चये । विस्तारो विटपे स्तम्बे विस्तीर्णत्वेऽपि कीर्तितः॥१७३६।। हिन्दी टोका-विसर्जन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. परित्याग, २ दान और ३. संप्रेषण (भेजना) । विसृत्वर शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विसरण (गतिशील) और २. गतिभेद (गति विशेष) । विस्तर शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वाक्प्रपञ्च (वाणी का विस्तार) २. विस्तार ३. प्रणय (प्रेम) और ४. चय (समूह) । विस्तार शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. विटप (डाल, शाखा) २. स्तम्ब (खूटा वगैरह) और ३. विस्तीर्णत्व (फैलाव)। मूल: विस्मापनस्तु कुहके गन्धर्वनगरे स्मरे । विहगो भास्करे चन्द्र ग्रहेभे पक्षि-वाणयोः ॥१७३७॥' मूल : Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विस्मापन शब्द | ३०३ हिन्दी टीका-विस्मापन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. कुहक (इन्द्रजाल विद्या) २. गन्धर्वनगर (बनावटी गन्धर्वो का नगर) तथा ३. स्मर (कामदेव) । विहग शब्द के छह अर्थ होते हैं-१ भास्कर (सूर्य) २. चन्द्र, ३. ग्रह, ४. इभ (हाथी), ५. पक्षी और ६. बाण । इस प्रकार विहग शब्द के छह अर्थ जानना । मूल : विहङ्गश्चन्दिरे सूर्ये मेघे वाणे पतत्रिणि । विहङ्गमा भारयष्टौ स्त्री खगे तु विहंगम ॥१७३८॥ उक्तं विहननं हिंसा-विघ्नयो स्तूलपिञ्जरे । विहस्तः पुंसि पण्डे स्यात् पण्डिते व्याकुले त्रिषु॥१७३६॥ विहारो भ्रमणे स्कन्धे विन्दुरेखकरक्षिणि । परिक्रमे वैजयन्ते च लीलायां सुगतालये ॥१७४०॥ हिन्दी टीका-विहङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं—१. चन्दिर (चन्द्रमा) २. सूय, ३ मेघ (बादल) ४. बाण (शर) ५. पतत्रो (पक्षी)। विहङ्गमा शब्द -१. भारयष्टि (पट) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है किन्तु २. खग (पक्षी) अर्थ में विहंगम शब्द पुल्लिग है । विहनन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं --१. हिंसा (वध) २ विघ्न (बाधा) और ३. तूलपिञ्जर (कपास-रुई का ढेर)। विहस्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. पण्ड (नपुंसक, हिजड़ा) और २. पण्डित (विद्वान्) किन्तु ३. व्याकुल (घबड़ाया हुआ) अर्थ में विहस्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। विहार शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. भ्रमण (परिभ्रमण करना) २. स्कन्ध (कन्धा) ३. विन्दुरेखकरक्षी (बिन्दु रेखा का रक्षक) ४. परिक्रम (प्रदक्षिणा करना) ५. वैजयन्त (पताका) ६. लीला और ७. सुगतालय (बौद्ध मन्दिर)। मूल : विहेठनं विबाधायां हिंसायां च विडम्बने । विक्षेपः प्रेरणे त्यागे पुमान् विक्षेपणेऽप्यसौ ॥१७४१।। वीको वायौ खगे चित्ते वीकाशो रहसि स्फुटे । वीङ्खा स्त्री शूकशिम्ब्यां स्यात् सन्धौ नृत्ये गतेभिदि ॥१७४२॥ हिन्दी टोका-विहेठन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं---१. विबाधा (विशेष बाधा) २. हिंसा और ३. विडम्बन (विडम्बना)। विक्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. प्रेरण (प्रेरणा करना) २. त्याग और ३. विक्षेपण (फेंकना)। वीक शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१ वायु (पवन) २. खग (पक्षी) और ३. चित्त (मन)। वीकाश शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. रहस् (एकान्त) और २. स्फुट (स्पष्ट व्यक्त)। वीङ्खा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. शूकशिम्बी (कबाँच-कबाछु. जिसको शरीर में लगा देने से अत्यन्त खुजली उठती है) २. सन्धि (मेल मिलाप जोड़) ३. नृत्य (नाच) तथा ४. गतेभिद् (गतिविशेष) को भी वीङ्खा कहते हैं। मूल : वीचिः स्त्रीपुंसयोः स्वल्पतरङ्ग किरणाल्पयोः । अवकाशे सुखे भंगे वीची वीचिरिमावपि ॥१७४३॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : ३०४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वीचि शब्द बीजं शुक्रऽङ्क रे मन्त्र कारणे गणितान्तरे । तत्त्वाधाने बीजकस्तु सर्जके मातुलुगके ।।१७४४॥ हिन्दो टीका-वीचि शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. स्वल्पतरङ्ग (थोड़ी लहर) २. किरण और ३. अल्प (थोड़ा) किन्तु १. अवकाश और २. सुख तथा ३. भंग (छटा वगैरह) अर्थ में वीची और वीचि दोनों शब्दों का प्रयोग होता है। बीज शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. शुक्र (वीर्य) २. अंकुर, ३. मन्त्र, ४. कारण ५. गणितान्तर (गणित विशेष) और ६. तत्त्वाधान (मूल तत्त्व का स्थापन) किन्तु पुल्लिग बीजक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. सर्जक (सांखु -सखुआ) और २. मातुलुङ्गक (रुचक)। वीजनं व्यजने क्लीवं पुमान् कोक-चकोरयोः । वीजी पितरिना बीजविशिष्टे त्वभिधेयवत् ॥१७४५॥ हिन्दी टीका-वीजन शब्द-१. व्यजन (पंखा) अर्थ में नपुंसक है और पुल्लिग वीजन शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. कोक (चक्रवाक) और २. चकोर । नकारान्त वीजी शब्द १. पितरि (पिता) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु २. वीजविशिष्ट (बीजयुक्त) अर्थ में अभिधेयवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । सुसज्जीकृतताम्बूले वीटी वीटिश्च वीटिका । विपञ्ची-विद्युतो र्वीणावीतः शान्तगते त्रिषु ॥१७४६॥ वीतरागो जिने बुद्धे रागहीने त्वसौ त्रिषु । वीतशोको ऽअशोकवृक्षे शोकहीने त्वसौ त्रिषु ॥१७४७।। हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग वीटी वीटि और वी टिका इन तीनों शब्दों का अर्थ-१. सुसज्जीकृतताम्बूल (कथा-वूना-मशाला वगैरह से बनाकर तैयार किया हुआ पान-ताम्बूल) होता है । वीणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विपञ्ची (वीणा) और २. विद्युत (बिजली, एलेक्ट्रिक)। पुल्लिग वीत शब्द का अर्थ-१. शान्त होता है किन्तु २. गत (बीता हुआ) अर्थ में वीत शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पल्लिग वीतराग शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. जिन (भगवान तीर्थकर) और २. बुद्ध (भगवान बुद्ध) किन्तु ३. रागहीन (रागरहित) अर्थ में वीतराग शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पुल्लिग वीतशोक शब्द का अर्थ-१. अशोकवृक्ष होता है किन्तु २. शोकहीन (शोकरहित) अर्थ में वीतशोक शब्द त्रिलिंग माना गया है । क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण कोई भी शोकरहित हो सकता है। . वीतिः स्त्री प्रजने दीप्तौ भोजने धावने गतौ । वीति: पुमान् हये वीतिहोत्रो वह्नौ दिवाकरे ॥१७४८॥ गृहांगे वर्त्मनि श्रेण्यां वीथि :थी च वीथिका । वीध्र व्योम्न्यनले वायौ निर्मले तु त्रिलिंगभाक् ॥१७४६।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग वीति शब्द के पांच अर्थ होते हैं-१. प्रजन (प्रयम गर्भ धारण) २. दीप्ति (प्रकाश) ३. भोजन, ४. धावन (दौड़ना) ५. गति (गमन करना) किन्तु पुल्लिग वीति शब्द का अर्थ-६. हय (घोड़ा) होता है। वीतिहोत्र पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१, वह्नि (अग्नि) मूल : Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वीर शब्द | ३०५ और २. दिवाकर (सूर्य) । समानार्थक वीथि, वीथी और वीथिका-इन तीनों शब्दों के तोन अर्थ होते हैं१. गृहाङ्ग (घर का एक अङ्ग-भाग) २. वर्त्म (रास्ता) तथा ३. श्रेणी (पंक्ति)। नपुंसक वीध्र शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं—१. व्योम (आकाश) २. अनल (आग) और ३. वायु (पवन) किन्तु ४. निर्मल (स्वच्छ) अर्थ में वीध्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : वीरं तु तगरो-शीर-काफिकेषु विषौषधौ । आरूके मरिचे पोटगल - पुष्करमूलयोः ॥१७५०॥ वीर: पंसि जिने विष्णौ हनुमति रसान्तरे । करवीरे यज्ञवह्नौ - चर्जुने सुभटे नटे ॥१७५१।। हिन्दी टोका-नपुंसक वीर शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं-१ तगर (अगरबत्ती) २. उशोर (खश) ३. कांजिक (कांजी) ४. विषौषधि (जहर का औषध) ५. आरूक (वनस्पति विशेष) ६. मरिच (कालीमरी-मरीच) ७. पोटगल (नरकट या कास नाम का तृण विशेष) तथा ८. पुष्करमूल (कमलनाल दण्ड)। किन्तु पुल्लिग वोर शब्द के नौ अर्थ माने गये हैं - १. जिन (भगवान तीर्थकर) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. हनुमान, ४. रसान्तर (रस विशेष-वीर रस) और ५ करवीर, ६. यज्ञवह्नि, ७. अर्जुन, ८. सुभट और ६. नट। लताकरजे वाराहकन्द - तान्त्रिकभावयोः । वालिगस्त्वसौ श्रेष्ठ वीराचारविशिष्ट्योः ॥१७५२॥ वीरास्त्रियां तामलकी-शिशपा-ऽतिविषासु च । पतिपुत्रवती - क्षीरकाकोली - कदलीष्वपि ॥१७५३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग वीर शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. लताकरञ्ज (करञ्जलता) २. वाराहकन्द (कन्द विशेष) और ३. तान्त्रिकभाव (जन्तर मन्तर) किन्तु ४. श्रेष्ठ और ५ वीराचारविशिष्ट (आचार विचारवान्) इन दोनों अर्थों में वीर शब्द वायलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। स्त्रीलिंग वीरा शब्द के छह अर्थ माने गये हैं-१. तामलकी (भूमि की आमलकी) २. शिशपा (शीशो का वृक्ष)३. अतिविषा (अतीस) ४. पतिपुत्रवती (पूर्ण सौभाग्यवती) ५. क्षीरकाकोली (क्षीरकाकोली नाम की लता विशेष) और ६. कदली (केला)। मूल : एलावालुक-गम्भारी - गृहकन्या - सुरासु च । मुरो-दुम्बरिका क्षीरविदारी - दुग्धिकास्वपि ॥१७५४॥ काकोदुम्बरिका-ब्राह्मी-विदारीष्वपि कीर्तिता। कोकिलाक्षे नदी सर्जे वह्नौ वीरतरुः पुमान् ॥१७५५॥ हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग वीरा शब्द के और भी ग्यारह अर्थ माने गये हैं-१. एलावालुक (एलुआ वालुक नाम का प्रसिद्ध गन्ध द्रव्य विशेष) २. गम्भारी (गम्भारि) ३. गृहकन्या ४. सुरा (मदिरा) ५. मुरा (ममोरफली-मुरा नाम का प्रसिद्ध सुगन्धि द्रव्य विशेष) ६. उदुम्बरिका (गूलर-गुल्लरि) ७. क्षीरविदारी (सफेद भूमि कूष्माण्ड-कुम्हार) ८. दुग्धिका (दुधी) ६. काकोदुम्बरिका (कठूमर-काला गूलर) Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३०६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वीरभद्र शब्द १०. ब्राह्मी (सोमलता) और ११ विदारी (कृष्ण भूमि कूष्माण्ड-काला कौहला)। वीरतरु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कोकिलाक्ष (ताल मखाना) २. नदीसर्ज (अर्जुन वृक्ष) और ३. वन्हि (अग्नि कोण का स्वामी)। वीरभद्रो ऽश्वमेधाश्वे वीरश्रेष्ठे त्रिहिग्गणे । वीर्यं बले प्रभावे च शक्तौ चेतसि रेतसि ॥१७५६॥ दीप्तावतिशयोत्साहे वीक्ष्यं विस्मय-दृश्ययोः । वीक्ष्यो ना लासके वाहे दर्शनीये त्वसौ त्रिषु ॥१७५.७।। हिन्दी टीका-वीरभद्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अश्वमेधाश्व (अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा) २. वीरश्रेष्ठ (वीर शिरोमणि) तथा ३. त्रिदृग्गण (त्रिनयन भगवान शंकर का गण विशेष) को भी वीरभद्र कहते हैं। वीर्य शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. बल (सामर्थ्य) २. प्रभाव, ३. शक्ति, ४. चेतस् (चित्त) और ५. रेतस् (वीर्य)। नपुंसक वीक्ष्य शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. दीप्ति (तेज वगैरह) २. अतिशयोत्साह (अतिशय-उत्साह) ३. विस्मय (आश्चर्य) और ४. दृश्य (देखने योग्य) किन्त पल्लिग वीक्ष्य शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. लासक (लास्य करने वाला) २. वाह (सवारी वगैरह) किन्तु ३. दर्शनीय (देखने योग्य) अर्थ में वीक्ष्य शब्द त्रिलिंग माना गया है। मूल : वकः शृगाले सरलद्रवे काके वकद्रुमे । ईहामृगे ऽनेकधूपे क्षत्रियेऽपि पुमानसौ ॥१७५८।। अम्बष्ठायां वृका प्रोक्ता, पाठायां तु वकीमता। वृजिनाश्चकुरे पुंसि कुटिले तु त्रिलिंगकः ॥१३५६।। हिन्दी टीका- वृक शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. शृगाल (गीदड़) २. सरलद्रव (सरल देवदारु का सुगन्धित चूर्ण द्रव विशेष) ३. काक (कौवा) ४. वकद्रुम (वक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) ५. ईहामृग (भेड़िया हुड़ाड़) ६. अनेकधूप (अनेक प्रकार का धूप) और ७. क्षत्रिय (राजपूत) । १. अम्बष्ठा (जूही फूल) अर्थ में वृका शब्द का प्रयोग होता है और २. पाठा (पाठा या पाढर) अर्थ में वृकी शब्द का प्रयोग होता है । १. चिकुर (केश) अर्थ में पुल्लिग वृजिन शब्द का प्रयोग होता है और २. कुटिल (टेढ़ा) अर्थ में त्रिलिंग वृजिन शब्द का प्रयोग होता है। मूल : कल्मषे कुटिले रक्तचर्मण्यपि नपुंसकम् । वृति: स्त्री वेष्टने गुप्तौ वरणे प्रार्थनान्तरे ॥१७६०॥ वृत्तं पद्ये चरित्रे च शास्त्रोक्ताचारपालने । वृत्तस्त्रिषु दृढेऽतीते मृतेऽधीते च वर्तुले ॥१७६१॥ हिन्दी टीका-नपुंसक वृजिन शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. कल्मष (पाप) २. कुटिल (टेढ़ा) और ३. रक्तचर्म (लाल चमड़ा) । वृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. वेष्टन (लपेटना) २. गुप्ति (रक्षण) ३. वरण (पसन्द करना) और ४. प्रार्थनान्तर (प्रार्थना विशेष) । नपुंसक वृत्त शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पद्य (श्लोक) २. चरित्र, ३. शास्त्रोक्ताचारपालन (शस्त्र प्रतिपादित आचार Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वृत्त शब्द | ३०७ का पालन करना) । त्रिलिंग वृत्त शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १ दृढ़ ( मजबूत) २. अतीत ( बीता हुआ ) ३. मृत, ४. अधीत और ५. वर्तुल (गोलाकार) । मूल : कृताssवृतौ च कूर्मे तु पुल्लिगोऽथ स्त्रियामसौ । प्रियंगौ मांस रोहिण्यां रेणुका - झिञ्झिरिष्टयोः ।। १७६२॥ शिरीषे कुब्जके वृत्तपुष्पो वानीर- नीपयोः । वृत्तान्तः, प्रक्रिया - भाव - कात्स्येष्वेकान्तवाचके ॥। १७६३॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग वृत्त शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. कृताऽऽवृति (आवरणघेराव किया हुआ) और २. कूर्म ( कच्छप - काचवा - काछु ) । किन्तु स्त्रीलिंग वृत्ता शब्द के चार अर्थ माने, गये हैं - १. प्रियंगु (प्रियंगु नाम की प्रसिद्ध लता विशेष - ककुनी- टांगुन) २. मांसरोहिणी (मांस रोहिणी नाम की लता विशेष ) ३. रेणुका (हरेणुका रेणुका बीज) तथा ४. झिञ्झिरिष्ट (झिञ्झिरिष्ट नाम का प्रसिद्ध वनस्पति विशेष ) | वृत्तपुष्प शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं - १ शिरीष ( शिरीष नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) २. कुब्जक (टेढ़ा कुब्जा कुबड़ा या कुब्ज नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) ३. वानीर ( बेतस वृक्ष- बेंत) और ४. नीप ( कदम्ब) । वृत्तान्त शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. प्रक्रिया, २. भाव (अभिप्राय ) ३. कार्त्स्य (सारा) तथा ४. एकान्त ( रहस्य निर्जन ) का वाचक प्रतिपादक अर्थ में भी वृत्तान्त शब्द का प्रयोग होता है । मूल : वार्ताप्रभेदे संवादे प्रस्तावेऽवसरे तथा । वृत्तिः स्त्रियां विवरणे जीविकायां प्रवर्तने ॥१७६४॥ कौशिक्यादौ च विधृतौ वार्तायामपि कीर्तिता । वृत्रः पुरन्दरे मेघे सपत्ने दानवान्तरे ।। १७६५ ।। हिन्दी टीका - वृत्तान्त शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. वार्ताप्रभेद ( वार्ता विशेष, समाचार वगैरह ) २. संवाद (सन्देश) ३. प्रस्ताव (प्रस्तावना, पृष्ठभूमि - भूमिका) और ४. अवसर ( मौका ) । वृत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. विवरण (हकीकत या व्याख्या वगैरह ) २. जीविका, ३. प्रवर्तन, ४. कौशिक्यादि ( कौशिकी नाम की नदी विशेष तथा दुर्गा वगैरह ) ५. विधृति (योग या करण ) ६. वार्ता (समाचार) । वृत्र शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पुरन्दर (इन्द्र) २. मेघ (बादल) ३. सपत्न (शत्रु) और ४. दानवान्तर ( दानव विशेष - वृत्र नाम का असुर) । इस प्रकार वृत्र शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : शैलभेदेऽन्धकारे च शब्देऽपि कथितः क्वचित् । वृन्तं प्रसवबन्धे स्यादु घटीधारा कुचाग्रयोः || १७६६॥ वृन्दारकः पुंसि यूथपातरि त्रिदशे स्मृतः । त्रिलिंगः सुन्दरे श्रेष्ठे वृशो वासक उन्दरौ ॥१७६७॥ हिन्दी टोका - वृत्र शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. शैलभेद (शैल विशेष - पर्वत विशेष) को भी वृत्र कहते हैं २. अन्धकार (अंधियारा) तथा ३. शब्द को भी वृत्र कहते हैं । वृन्त शब्द Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वृश्चिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रसवबन्ध (डण्ठल) २. घटीधारा (घटी यन्त्र) तथा ३ कुचान (स्तन का अग्रभाग चूचुक) । वृन्दारक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. यूथपाता (यूथझुण्ड का पाता-पालक) और २. त्रिदश (देवता) किन्तु त्रिलिंग वृन्दारक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. सुन्दर (रमणीय) और २. श्रेष्ठ (बड़ा)। वृश शब्द भी पुल्लिग है और उसके भो दो अर्थ माने जाते हैं-१. वासक (अडूसा) और २. उन्दुर (चूहा-उन्दर-मूषक) । इस प्रकार वृश शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : वृश्चिकः शूककीटेऽलौ कर्कटे भेषजान्तरे। आग्रहायणिके हाले हालिके मदनद्रुमे ॥१७६८॥ हिन्दी टोका-वृश्चिक शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं- १. शूककीट (ऊनी वस्त्र को काटने वाला कीट विशेष) २. अलि (वृश्चिक राशि या भ्रमर) ३ कर्कट (काकड़ा काकोड़) ४. भेषजान्तर (भेषज विशेष) ५. आग्रहायणिक (मार्गशीर्ष) ६. हाल (शालिवाहन राजा) ७. हालिका (हलवाह वगैरह) और ८. मदनद्र म (धत्तूर)। मूल : राशौ गोमयकीट ना, नखपयां स्त्रियामसौ। वृषो ना वृषभे धर्मे मूषिके शुक्रले रिपौ ॥१७६६।। श्रीकृष्णे मदने वास्तु स्थानभेदे च वासके। वलिष्ठ ऋषभौषध्यां श्रेष्ठे चोत्तर संस्थिते ॥१७७०॥ हिन्दी टोका-पूल्लिग वश्चिक शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. राशि (राशि विशेषवृश्चिक राशि) २. गोमयकीट (बिच्छू) और स्त्रोलिंग वृश्चिक शब्द का अर्थ- १. नखपर्णी (नखपर्णी नाम को लता विशेष) । वृष शब्द पुल्लिग है और उसके तेरह अर्थ होते हैं -१. वृषभ (बैल) २. धर्म, ३. मूषिक (चूहा-उन्दर) ४. शुक्रल (शुक्रल नाम का वनस्पति विशेष) ५. रिपु (शत्रु) ६. श्रीकृष्ण (भगवान श्रीकृष्ण) ७. मदन (कामदेव या धत्तूर) ८. वास्तुस्थानभेद (वास्तु का स्थान विशेष) ६. वासक (अडूसा) १०. वलिष्ठ (अत्यन्त बलवान) ११. ऋषभौषधि (काकरासींगी, ऋषभ नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) १२. श्रेष्ठ (बड़ा-महान) और १३. उत्तरसंस्थित (श्रेष्ठ)। मूल : वृषध्वजो हरे विघ्नराजे च पुण्यकर्मणि । वृषपर्वा शिवे दैत्यभेदे भृङ्गारुपादपे ॥१७७१॥ वृषभो ना बलीवर्द - वैदर्भीरीतिभेदयोः । आद्यतीर्थंकरे श्रेष्ठे कर्णरंध्र'ऽगदान्तरे ॥१७७२।। हिन्दी टोका-वृषभध्वज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हर (भगवान शंकर) २. विघ्नराज (गणेश) और ३. पुण्य कर्म (पवित्र कर्म)। वृषपर्वन् शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-1. शिव (भगवान शंकर) २. दैत्यभेद (दैत्य विशेष-वृषपर्वा नाम का दैत्य) और ३. भृङ्गारुपादप (भृङ्गारु नाम का वृक्ष विशेष)। वृषभ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. बलीवर्द (साँढ़ बड़ा बैल) २. वैदर्भीरीतिभेद (वैदर्भी नाम की रीति विशेष) ३. आद्यतीर्थङ्कर (प्रथम तीर्थंकर भगवान) ४. श्रेष्ठ (बड़ा-महान) ५. कर्णरन्ध्र (कान का रन्ध्र-छेद-बिल) और ६. अगदान्तर (अगद-रोगनाशक औषध विशेष) । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वृषल शब्द | ३०६ वृषलोsधार्मिके शूद्रे चन्द्रगुप्तनृपे हये । शूद्र्यां सार्तवकन्यायां वृषली परिकीर्त्यते ||१७७३॥ वृषा पुमान् शुनाशीरे वेदनाज्ञान- दुःखयोः । घोटके श्रवणे भद्रे कपिकच्छ्वां वृषा स्त्रियाम् ॥१७७४॥ हिन्दी टीका - वृषल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. अधार्मिक (पापी पुरुष) २. शूद्र, ३. चन्द्रगुप्तनृप (चन्द्रगुप्त नाम का राजा) और ४. हय (घोड़ा) । स्त्रीलिंग वृषली शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. शूद्री (शूद्र की स्त्री या शूद्र स्त्री जाति) और २. सार्तवकन्या (रजस्वला कन्या) को भी वृषली कहते हैं । नकारान्त वृषा शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. शुनाशीर (इन्द्र) २. वेदनाज्ञान (अनुभवात्मक ज्ञान ) ३. दुःख, ४. घोटक (घोड़ा) ५. श्रवण (कान) ६. भद्र ( वलीवर्द कुशल वगैरह ) किन्तु ७. कपिकच्छू (कवोंच कवाछु ) अर्थ में वृषा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । इस प्रकार वृषा शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : मूल : वृषाकपायी गौरी श्री शची स्वाहासु कीर्तिता । वृषाकपिः शिवे विष्णौ शक्र े वैश्वानरे पुमान् ॥१७७५।। वृषाङ्कः शंकरे षण्डे साधौ भल्लातके स्मृतः । वृष्णि कृष्णे यदौ गोपे मेषे पाषण्ड - चण्डयोः ।।१७७६॥ हिन्दी टीका - वृषाकपायी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार ३. शची (इन्द्राणी) और ४. स्वाहा । वृषाकपि शब्द पुल्लिंग है और उसके २. विष्णु, ३. शक्र (इन्द्र) और ४. वैश्वानर (अग्नि) । वृषाङ्क शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. शंकर, २. षण्ड (नपुंसक हिजड़ा ) ३. साधु (मुनि) ४. भल्लातक ( वृक्ष विशेष वगैरह ) । वृष्णि शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. कृष्ण २. यदु, ३. गोप, ४. मेष (गेटा) ५. पाषण्ड ( पाखण्डी ) तथा ६. चण्ड (प्रचण्ड) | मूल : अर्थ होते हैं - १. गौरी, २. श्री, भी चार अर्थ होते हैं - १. शिव बृहती स्त्री वारिधानी भण्टाकी - महतीषु च । संव्याने कण्टकारी - वाक् - छन्दोभेदेषु कीर्तिता ॥ १७७७॥ कटुतुम्बी महाजम्बू - कूष्माण्डीषु बृहत्फला । इन्द्रे मन्त्रे यज्ञपात्रे सामांशेऽपि बृहद्रथः ।। १७७८ ।। हिन्दी टीका - बृहती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. वारिधानी (समुद्र) २. भण्टाकी (रिंगन, बंगन, भण्टा ) और ३. महती ( महती नाम की वीणा ) को भी बृहती कहते हैं। ४. संव्यान (चादर दोपट्टा वगैरह ) ५. कण्टकारी ( रेंगनी कटैया ) ६. वाक् (वाणी) और ७. छन्दोभेद (छन्द बिशेष, बृहती नाम का मात्रा छन्द) । बृहत्फला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते - १. कटुतुम्बी ( कड़वी दुद्धी ) २. महाजम्बू ( बड़ा जामुन ) ३. कूष्माण्डी (कोहला, कुम्हर या कदीमा) । बृहद्रथ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१ इन्द्र, २. मन्त्र, ३. यज्ञपात्र (यज्ञ सम्बन्धी पात्र विशेष ) और ४. सामांश ( सामवेद भाग ) को भी बृहद्रथ कहते हैं । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : ३१० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-बृहन्नल शब्द बहन्नलो गुडाकेशे महानड उदुम्बरे । वृक्षादनो मधुच्छत्रे कुठारे वृक्षभेदिनि ॥१७७६।। प्रियाले पिप्पलेऽसौ स्त्री विदारीकन्द-वन्दयोः । वेगो महाकालफले जवे रेतः प्रवाहयोः ।।१७८०॥ हिन्दी टोका-बृहन्नल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गुडाकेश (अर्जुन) २. महानड (पटेढ़-पटेर) । वृक्षादन शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. मधुच्छत्र (मधु का छाता-मधुमक्खी का छत्ता) २. कुठार (कुहलार) ३. वृक्षभेदि (वृक्ष विशेष को काटने वाला वसूला वगैरह) ४. प्रियाल (चिरौंजी, पियार) और ५. पिप्पल, किन्तु ६. विदारीकन्द (शालपर्णी का कन्द या कूष्माण्डक का कन्द) और ७. वन्दा (बांदा वन्दा) को भी वृक्षादनी कहते हैं। वेग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. महाकालफल (महाकाल का फल) २. जव, ३. रेतः (वीर्य) और ४. प्रवाह । वेगी शशादने जंघाकरिके च त्रिलिंगकः । वेडा स्त्री नावि वेडं तु सान्द्रविच्छिन्नचन्दने ॥१७८१।। वेणिः स्त्रियां विरहिणी बद्धकेशे जलोच्चये । वेणी स्त्री देवताऽद्रौ प्रवाहे सरिदन्तरे ॥१७८२।। हिन्दी टीका-वेगी शब्द नकारान्त त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. शशादन (बाज पक्षी जिसको श्येन पक्षी) भी कहते हैं और २. जंघाकरिक (लेटर-डाक ढोने वाला) । बेड़ा शब्द-१. नावि (नौका) अर्थ में स्त्रीलिंग है किन्तु नपुंसक वेड शब्द का अर्थ–१. सान्द्रविच्छिन्नचन्दन (सघन खण्ड चन्दन) होता है । वेणि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विरहिणीबद्धकेश (विरहणी नायिका का बँधा हुआ केश) और २. जलोच्चय (अत्यधिक जल)। दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग वेणी शब्द के तोन अर्थ माने गये हैं-१. देवताडद्र (देवताड नाम का वक्ष विशेष) २. प्रवाह और ३. सरिदन्तर (सरिद विशेष त्रिवेणी नदी, जो कि प्रयाग में बहती है)। इस प्रकार वेणी शब्द के कुल पाँच अर्थ समझना । मूल : प्रवेण्यामथ वेणा वंशे वंश्यां नृपान्तरे । वेतनं जीवनोपाये रुप्य कर्मण्ययोरपि ॥१७८३॥ वेतालो मल्लभेदे स्यात् द्वास्थे शिवगणाधिपे । भूताधिष्ठितकुणपे वेत्रोऽसुर - सुदण्डयोः ॥१७८४॥ हिन्दी टोका-वेणी शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. प्रवेणी (जूड़ा)। वेणु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वंश (बांस) २. वशी (वांसुरी) और. ३. नृपान्तर (नृप विशेष वेण नाम का राजा)। वेतन शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. जीवनोपाय (जीवन का साधन) २. रूप्य (रूपारुपया) और ३. कर्मण्य (कर्मठ)। वैताल शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. मल्लभेद (मल्ल विशेष) २. द्वास्थ (द्वारपाल) ३. शिवगणाधिप (भगवान शंकर के प्रमथादिगण का राजा) और ४. भूताधिष्ठितकुणप (भूत वैताल से सेवित कुणप मुर्दा) । वेत्र शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. असुर (राक्षस) और २. सुदण्ड (वेत्रवृक्ष-बेंत का वृक्ष)। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वेद शब्द | ३११ मूल : वेदो नारायणे वृत्ते यज्ञाङ्काऽऽम्नाययोरपि । नेदना स्त्री परिणयेऽनुभने ज्ञान-दुःखयोः ॥१७८५॥ नेदिः पुमान् बुधे नेदिर्वेदी स्त्री संस्कृतावनौ । अपि चांगुलिमुद्रायां सरस्वत्यामपि स्मृता ॥१७८६॥ हिन्दो टीका-वेद शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. नारायण, २. वृत्त (गोलाकार वगैरह) ३. यज्ञाङ्ग और ४. आम्नाय (श्रुति)। वेदना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१. परिणय (विवाह) २. अनुभव, ३. ज्ञान (स्मरण) और ४. दुःख । वेदि शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. बुध (पण्डित) होता है। किन्तु स्त्रीलिंग वेदि और वेदी शब्द के तीन अर्थ होते हैं१. संस्कृतावनि (परिष्कृत भूमि) और २. अंगुलिमुद्रा और ३. सरस्वती। इस प्रकार वेदो शब्द के कुल चार अर्थ समझना। वेदी पुमान् कोविदे स्याद् ब्रह्मणि ज्ञातरि त्रिषु । वेधो व्यधे गभीरत्वो धकं धान्यके मतम् ।।१७८७॥ चन्द्रेऽम्लनेतसे पुंसि वेधकर्तरि तु त्रिषु । वेधनी मेथिका-हस्ति-कर्णवेधनशस्त्रयोः ॥१७८८।। हिन्दी टीका-पुल्लिग वेदी नकारान्त शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कोविद (पंडित) और २. ब्रह्म (परब्रह्म-परमेश्वर) किन्तु ३ ज्ञाता अर्थ में नकारान्त वेदी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वेध शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. व्यध (वेधन करना, बींधना) २. गभीरत्व (गभीरता)। नपंसक वेधक शब्द का अर्थ १. धान्यक (धान-सम्पत्ति) होता है। किन्तु पुल्लिग वेधक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं – १. चन्द्र और २. अम्लवेतस (अमल बेंत) और ३. वेधकर्ता (वेधन करने वाला) अर्थ में शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वेधनो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. मेथिका (मेथो) और २. हस्तिकर्णवेधनशस्त्र (हाथी के कान को वेध करने वाला अस्त्र विशेष) को भी वेधनो शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : मेधा ब्रह्मणि गोविन्दे सहस्रांशौ विपश्चिति । . अनन्तपुत्रे श्वेतार्क पादपेऽपि पुमानयम् ॥१७८६॥ वेरं कुंकुम वार्ताकु - शरीरेषु नपुंसकम् । बेला क्षणादि समये मर्यादा-दन्त मांसयोः ॥१७६०॥ हिन्दी टीका-वेधा शब्द सकारान्त पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. ब्रह्मा (प्रजापति) २. गोविन्द (भगवान कृष्ण) ३. सहस्रांशु (सूर्य) ४. विपश्चित् (पण्डित) ५. अनन्तपुत्र (भगवान अनन्त का पुत्र) और ६. श्वेतार्कपादप (सफेद ऑक का वृक्ष)। वेर शब्द नपुंसक है ओर उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. कुंकुम (कंकु) २. वार्ताकु (वनभंट) और ३ शरोर को भी वेर कहते हैं । वेला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं १. क्षणादिसमय (क्षण पल मिनट वगैरह समय) २. मर्यादा और ३. दन्तमांस (दांत का मांस)। इस प्रकार वेला शब्द के तीन प्रर्थ माने गये हैं। Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वेला शब्द मूल : अक्लिष्टमरणे वाचि रोगे रागे बुधस्त्रियाम् । अब्ध्यम्बुविकृतौ सिन्धुकूले चेश्वरभोजने ॥१७६१।। वेल्लमस्त्री विडङ्ग स्याद् गमने तु पुमानसौ। वेल्लनं लुण्ठनेऽश्वादे रोढी निर्माण दारुणि ॥१७६२॥ हिन्दी टोका--वेला शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं-१. अक्लिष्टमरण (बिना क्लेश का अनायास मरण) २. वाक् (वाणी) ३. रोग, ४. राग, ५. बुधस्त्री (बुध की धर्मपत्नी) ६. अब्ध्यम्बुविकृति (समुद्र के जल का विकार) ७. सिन्धुकूल (नदी या समुद्र का तट) और ८. ईश्वरभोजन को भी वेला कहते हैं। पुल्लिग तथा नपुंसक वेल्ल शब्द का अर्थ - १. विडङ्ग (वायविडङ्ग) होता है और २. गमन अर्थ में वेल्ल शब्द पुल्लिग माना जाता है । वेल्लन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. अश्वादेःलुण्ठन घोड़ा वगैरह का लोटन और २. रोढीनिर्माणदारु (रोढी का निर्माण को लकड़ी स्थूल गोलाकार काष्ठ विशेष --बेलन)। इस प्रकार वेल्लन शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : वेल्लितं गमने क्लीवं कुटिले कम्पिते त्रिषु । • वेशः प्रवेशे नेपथ्ये वेश्यावश्मनि सद्मनि ॥१७६३॥ वेशको भवने पुंसि त्रिलिंगो वेशकारके । वेशन्तः पल्वले वह्नौ वेशरोऽश्वतरेऽपि च ॥१७६४।। हिन्दी टोका-वेल्लित शब्द-१. गमन अर्थ में नपुंसक है और २. कुटिल (खल दुष्ट) और ३ कम्पित अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। वेश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रवेश, २. नेपथ्य (वंशभूषा-पोशाक) ३. वेश्यावेश्म (वेश्या का घर-रण्डीखाना) और ४ सद्म (घर) । वेशक शब्द-१. भवन अर्थ में पुल्लिग माना जाता है और २. वेशकारक (वेषभूषा पोशाक करने वाला) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है । वेशन्त शब्द का अर्थ - १. पल्वल (खबोचिया खट्टा) होता है । १. वह्नि (अग्नि) और २. अश्वतर (खच्चर) अर्थ में वेशर शब्द का प्रयोग होता है। मूल : वेष्ट: श्रीवेष्ट-निर्यास - वेष्टनेषु निगद्यते । वेष्टनं कर्णशष्कुल्यां गुग्गुलौ मुकुटे वृतौ ॥१७६५।। उष्णीषेऽप्यथ रुद्ध स्याद् वेष्टितं करणान्तरे । नैकुण्ठस्तु हृषीकेशे विडोजसि सितार्जके ॥१७६६।। हिन्दी टीका-वेष्ट शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. श्रीवेष्ट (सरल देवदारु वृक्ष के गोंद से बने हुए सुगन्ध द्रव्य विशेष) २. निर्यास (गोंद) और ३. वेष्टन (लपेटना)। वेष्टन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कर्णशष्कुलि (कान) २. गुग्गुलु (गूगल) ३. मुकुट (किरीट वगैरह) और ४. वति (घेराव) । वेष्टन शब्द का और भी एक अर्थ होता है--१. उष्णीष (पगडी) । वेष्टित शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. रुद्ध (रोका हुआ) और २. करणान्तर (करण विशेष वगैरह)। वैकुण्ठ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. हृषीकेश (भगवान विष्णु) २. विडोजा (इन्द्र) और ३. सितार्जक (सफेद अर्जक-वबई) । • Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-वैजयन्त शब्द | ३१३ मूल : वैजयन्तो गुहे शक्रप्रासाद - ध्वजयोरपि । पताकायामग्निमन्थे नादेय्यां वैजयन्तिका ॥ १७६७ ॥ वैजयन्ती पताकायामग्निमन्थे जपाद्रुमे । माला भेदे वैजिकन्तु शिग्र तैलाऽऽत्महेतुषु ।। १७६८ ।। हिन्दी टीका-पुल्लिग वैजयन्त शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. गुह (निषाद वगैरह) २. शक्रप्रासाद (इन्द्र का महल) और ३. ध्वजा (पताका) । वैजयन्तिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. पताका, २. अग्निमन्थ (अग्निमन्थन दण्ड वगैरह) और ३. नादेयी (जलबेंत वगैरह) । वैजयन्ती शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पताका, २. अग्निमन्थ और ३. जपाद्र म (जपा नाम का वृक्ष विशेष, जिसका फूल अत्यन्त लाल होता है। वैजिक शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मालाभेद (माला विशेष) २. शिग्रुतैल (सहिजन का तेल वगैरह) ३. आत्म और ४ हेतु (कारण)। पुमान् सद्योऽङ कुरे बीज सम्बन्धिनि तु वाच्यवत् । वैतालिकः खेट्टिताले पुसिबोधकरे त्रिषु ॥ १७६६ ॥ वैदेहकः सार्थवाहे शूद्राद् वेश्यासुतेऽपि च । वैदेही पिप्पली-सीता रोचनासु वणिस्त्रियाम् ॥१८००॥ हिन्दी टोका-सद्यः अंकुर (ताजा अंकुर) अर्थ में वैजिक शब्द पुल्लिग है किन्तु बीज सम्बन्धी अर्थ में वाक्यवत विशेष्यनिघ्न माना जाता है। पूल्लिग वैतालिक शब्द का अर्थ-१. खेदिताल होता है किन्तु २. बोधकर में त्रिलिंग माना जाता है । वैदेहक शब्द के दो अर्थ हैं-१. सार्थवाह (झुण्ड) और २. शूद्र से वेश्या में उत्पन्न सन्तान । वैदेही शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. पिप्पली, २. सीता ३. रोचना (गोरोचन) और ४. वणिक स्त्री (वेश्या)। मूल : वैद्योबुधेऽगदंकारे सम्बन्धीये श्रुते स्त्रिषु । वैनतेयोऽरुणे तार्थे विद्वदुभिः परिकीर्तितः ॥ १८०१।। वैनाशिकः पराधीने लूतायां क्षणिके स्मृतः । वैरोचनिर्बलौ बुद्धे सिद्धे सूर्याऽनलात्मजे ॥ १८०२ ॥ हिन्दी टोका वैद्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. बुध (पण्डित) और २. अगदंकार (भिषक् डाक्टर) किन्तु ३. श्र तेः सम्बन्धीय (वेद का सम्बन्धी) अर्थ में वैद्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वैनतेय शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. अरुण (सूर्य सारथि) और २. तार्य (गरुड़)। वैनाशिक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पराधीन (परतन्त्र) २. लूता (मकड़ा करोलिया) और ३. क्षणिक (क्षणिकवादी बौद्ध) को भी वैनाशिक कहते हैं)। वैरोचनि शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. बलि (राजा बलि) २. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) ३. सिद्ध (सिद्ध पुरुष) और ४. सूर्यानलात्मज (सूर्य और अनल-अग्नि का आत्मज-पुत्र सूर्य अग्नि का सुत) को भी वैरोचनि कहते हैं। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वैल्व शब्द मूल: वैल्वं बिल्वफले क्लीवं विल्व सम्बन्धिनि त्रिषु। वैवस्वतो यमे रुद्रे शनौ च सप्तमे मनौ ॥ १८०३ ॥ दक्षिणाशा-यमुनयोः स्मृता वैवस्वती स्त्रियाम् । पैशाख: पुंसि मन्थानदण्ड-माधवमासयोः ॥ १८०४ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक वैल्व शब्द का अर्थ-१. विल्वफल होता है और २. विल्व सम्बन्धी अर्थ में वैल्व शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिग वैवस्वत शब्द के चार अर्थ होते है-१. यम (धर्मराज) १. रुद्र (भगवान् महादेव) और ३. शनि (शनिग्रह) तथा ४. सप्तम मनु । (सातवाँ मनु) स्त्रीलिंग वैवस्वती शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. दक्षिणाशा (दक्षिण दिशा) और २. यमुना (कालिन्दी) । वशाख शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. मन्थानदण्ड (मन्थनदण्ड) और २ माधवमास (वैशाख महीना)। कुबेरपुर्यां न्यग्रोधे स्मृतो वैश्रवणालयः । वैश्वानरो वीतिहोत्रे चित्रकाख्यौषधावपि ॥ १८०५ ॥ वैष्णवो विष्णु भक्त ना विष्णु सम्बन्धिनि त्रिषु । वैष्णवी स्याद् विष्णु शक्ति-दुर्गा-भागीरथीषु च ॥१८०६।। हिन्दी टीका-वैश्रवणालय शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ कुबेरपुरी (अलका. पुरी) और २. न्यग्रोध (वटवृक्ष) । वैश्वानर शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं. वीतिहोत्र (अग्नि) और २. चित्रकाख्यौषधि (चित्रक नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष-एरण्ड-अण्डी-दीबेल वगैरह) । वैष्णव शब्द १. विष्णुभक्त अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. विष्णु सम्बन्धी अर्थ में त्रिलिंग माना गया है और स्त्रीलिंग वैष्णवी शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णु शक्ति, २. दुर्गा और ३. भागीरथी (गंगा) इस प्रकार विष्णु शब्द के कुल मिलाकर पांच अर्थ समझना चाहिये। अपराजिता-तुलस्योः शतावर्यामपि स्त्रियाम् । बीड़ी स्त्री पणतुर्यांशे बोड्रो गोनासमत्स्ययोः ।। १८०७॥ वोढा पुमान् बलीव सारथौ परिणेतरि । ऋषभेभारिके मूढ़े व्यक्तः प्राज्ञ स्फुटे त्रिषु ।। १८०८ ॥ हिन्दी टोका-वैष्णवी शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. अपराजिता (पटुआ पटसन या अपराजिता) २. तुलसी और ३. शतावरी (शतावर) बीड़ी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ १. पणतुर्यांश (पैसा का चौथा हिस्सा) है । वोडू शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. गोनास (छोटा जाति का सर्प विशेष) और २. मत्स्य । वोढा शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. बलीवर्द (बड़ा बैल साँढ़) २. सारथि, ३. परिणेता (विवाह करने वाला) ४. ऋषभ (बैल) ५. भारिक (भारवहन करने वाला) और ६. मूढ़ (मूर्ख) । पुल्लिग व्यक्त शब्द का अर्थ--१. प्राज्ञ होता है और २. स्फुट (स्पष्ट) अर्थ में व्यक्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : व्यक्तिः स्त्री पृथगात्मत्व स्पष्टतायां जनेऽपि च । न्यग्रो नारायणे पुंसि व्यासक्त ब्याकुले त्रिषु ॥ १८०६ ॥ मूल : Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–व्यक्ति शब्द | ३१५ व्यङ्गो मण्डूक-हीनाङ्ग - मुखरोगभिदासु च । व्यञ्जनं सूप-शाकादौ दिने चिह्नऽर्धमात्रिके ॥ १८१० ॥ हिन्दी टीका-व्यक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. पृथगात्मत्व (शरीरादि आत्मा की भिन्नता) २. स्पष्टता (स्फुटता) और ३ जन। पुल्लिग व्यग्र शब्द का अर्थ१. नारायण (भगवान् विष्णु) होता है किन्तु २. व्यासक्त (अत्यन्त आसक्त) और ३. व्याकुल अर्थ में व्यग्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है । व्यङ्ग शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. मण्डूक (मेढक-एड़का) २. हीनाङ्ग (अङ्गहीन) और ३. मुखरोगभिदा (मुख रोग विशेष)। व्यञ्जन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सूपशाकादि (दाल शाक वगेरह) २. दिन, ३. चिह्न और ४. अर्धमात्रक (आधो मात्रा वाला क्योंकि व्यञ्जन अक्षर ककारादि को आधी मात्रा होती है)। स्त्रीपुंसयोर्गुह्यदेशे श्मश्रुण्यऽवयवे स्मृतम् । व्यतिषङ्ग व्यतिकरः सम्बन्धे व्यसने चये ॥ १८११ ।। व्यतीपातो महोत्याते योगभेदापयानयोः । व्यपदेशो नामधेये छल-वाक्य विशेषयोः ॥ १८१२।। हिन्दी टीका-व्यञ्जन शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं -१. स्त्रीपुंसयो" ह्यदेश (स्त्री और पुरुष का गुह्यप्रदेश-गुह्याङ्ग-मूत्रन्द्रिय) और श्मश्रु (दाढ़ी) और ३. अवयव (अङ्ग) को भी व्यञ्जन कहते हैं । व्यतिकर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. व्यतिषङ्ग (सम्पर्क) २. सम्बन्ध (संयोग वगैरह) और ३. व्यसन (आपत्ति) तथा ४. चय (समुदाय) । व्यतोपात शब्द के भो तीन अर्थ होते हैं-१. महोत्पात (अत्यन्त उपद्रव) २. योगभेद (योग विशेष विष्कम्भादि २७ सत्तावीश योग के अन्तर्गत सत्रहवाँ योग विशेष) और ३. अपयान (कुमार्गगमन) । व्यपदेश शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. नामधेय (संज्ञा) २. छल (कपट) और ३. वाक्य विशेष (व्यपदेश-आरोपात्मक वाक्य) । मूल : व्यभिचारः कदाचार-शास्त्रान्तर्गत-दोषयोः । व्यलीकमप्रियेऽकार्य - कामजन्यापराधयोः ॥ १८१३ ॥ वैलक्ष्ये पीडने ब्यंग्ये तथा गतिविपर्यये । व्यवच्छेदः पृथक्त्वे स्याद् व्यावृत्तौ बाणमोक्षणे ॥१८१४॥ हिन्दी टीका-व्यभिचार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कदाचार (कुत्सित आचरण, दुराचार) और २. शास्त्रान्तर्गतदोष (न्यायशास्त्र का व्यभिचार नाम का हेत्वाभास विशेष)। व्यलीक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. अप्रिय (खराब) २. अकार्य (अकर्तव्य) और ३. कामजन्यापराध (काम भावना जन्य गलती) को भी व्यलीक कहते हैं। व्यलीक शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. वैलक्ष्य (निर्लज्जता) २. पीडन (सताना) और ३. व्यंग्य (व्यंग्यार्थ) और ४. गतिविपर्यय (गमन का विपर्यास वगैरह) व्यवच्छेद शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पृथक्त्व (अलग, जुदाई) २. व्यावृत्ति (व्यावर्तन) और ३. बाणमोक्षण (शर को छोड़ना, चलाना) को भी व्यवच्छेद कहते हैं। मूल : व्यवसायो जीविकायामनुष्ठाने च निश्चये। ब्यवहार: पणे न्याये विवादे पादपे स्थितौ ॥१८१५॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-व्यवसाय शब्द शोधन्यां लोकयात्रायामिगुदे व्यवहारिका । व्यवासो मैथुनेऽनाौं शुद्धौ क्लीवन्तु तेजसि १८१६ हिन्दी टोका-- व्यवसाय शब्द के तीन अर्थ होते हैं- १. जीविका, २. अनुष्ठान और ३. निश्चय । व्यवहार शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं-१. पण (पैसा वगैरह) २. न्याय (इन्साफ) ३. विवाद और ४. पादप (वृक्ष) तथा ५. स्थिति (ठहरना)। व्यवहारिका शब्द के तीन अर्थ होते हैं -- १. शोधनी (झाडू) २. लोकयात्रा और ३. इंगुद (डिठवरन)। पुल्लिग व्यवाय शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं -१. मैथुन (विषय रति भोग) २. अन्र्ताद्ध (अन्तर्धान, लीन होना) और ३. शुद्धि (पवित्रता) किन्तु नपुंसक व्यवाय शब्द का अर्थ तेज होता है। मूल : व्यसनं किल्विषे भ्रशे विपत्तौ निष्फलोद्यमे । दैवानिष्टफलेऽभद्रे दोषे कामज - कोपजे ॥१८१७॥ विपरीते त्रिषु व्यस्तः प्रत्येकं व्याकुले तते । व्याघात: प्रहृतौ विघ्ने योगे साहित्यभूषणे ॥१८१८।। हिन्दी टीका- व्यसन शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. किल्विष (पाप) २. भ्रश (पतन, नाश) ३. विपत्ति और ४. दैवानिष्ट फल (दुर्भाग्यजन्य खराब फल-परिणाम) ५. निष्फलोद्यम (निरर्थक प्रयास) ६. अभद्र (खराब) और ७. कामज-कोपजदोष (मृगया द्यूत स्त्री मद्यपान स्वरूप चतुर्वर्ग में प्रसक्ति को कामज दोष कहते हैं और वाक् पारुष्य, दण्डपारुष्य, अर्थपारुष्य रूप त्रिवर्ग को कोपज दोष कहते हैं काम क्रोध जन्य दोष विशेष । व्यस्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. विपरीत (उलटा) और २. व्याकुल तथा ३. तत (फैला हुआ व्याप्त) । व्याघात शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. प्रहृति (प्रहार) २. विघ्न और ३. योग (विष्कम्भादि सप्तविंशति योग के अन्तर्गत त्रयोदश योग विशेष) तथा ४. साहित्यभूषण (अलंकार शास्त्रोक्त व्याघात नाम का अलंकार विशेष) को भी व्याघात शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : व्याघ्रः करजे शार्दूले चञ्चौ श्रेष्ठ पुर:स्थिते । व्याजोऽपदेशे कपटे व्याडोहौ वञ्चके हरौ ॥१८१६॥ व्याधो मृगवधाजीवे दुष्टेऽथ व्याधिरामये । कुष्ठे कामव्यथातापजन्य कार्येऽप्यसौ पुमान् ।।१८२०॥ हिन्दी टीका- व्याघ्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. करज (करञ्ज नाम का वृक्ष विशेष करौना) २. शार्दूल (बाघ वगैरह) ३ चञ्चु (लाल एरण्ड वृक्ष) और ४. श्रेष्ठ पुरःस्थित (श्रेष्ठ शिरोमणि) अर्थ में भी व्याघ्र शब्द का प्रयोग होता है। व्याज शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. अपदेश (उपचार बहाना वगैरह) २. कपट (छल) । व्याड शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. अहि (सर्प) २. वञ्चक (ठग, धूर्त) और ३. हरि (भगवान विष्णु) । व्याध शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मृगवधाजीव (पशु पक्षी को मारकर जीवन निर्वाह करने वाला) और २. दुष्ट (शैतान दुर्जन)। व्याधि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. आमय (रोग) २. कुष्ठ ३. कामव्यथातापजन्य कार्य (काम वासना जन्य व्यथा और ताप से उत्पन्न कृशता-क्षीणता-पतलापन) । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - व्यापी शब्द | ३१७ व्यापी व्यापक-गोविन्दाऽऽच्छादकेषु त्रिलिंगकः । व्यापृतः कर्मसचिवे त्रिषु व्यापारसंयुते ॥१८२१॥ व्याप्तं पूर्णे समाक्रान्ते स्थापितेऽपि त्रिलिंगभाक् । व्याप्तिः साध्यवदन्यस्मिन्न सम्बन्धे च लम्भने ।। १८२२ ।। हिन्दी टीका - व्यापी शब्द नकारान्त त्रिलिंग माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. व्यापक २. गोविन्द और ३. आच्छादक ( ढाँकने वाला) । पुल्लिंग व्यापृत शब्द का अर्थ१. कर्मसचिव (कर्म करने में व्यासक्त मन्त्री) होता है किन्तु २. व्यापार संयुत ( व्यापार युक्त) अर्थ में व्यापृत शब्द त्रिलिंग माना गया है । त्रिलिंग व्याप्त शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. पूर्ण, २. समाक्रान्त (युक्त) और ३. स्थापित । व्याप्ति शब्द स्त्रोलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं- - १. साध्यवदन्यस्मिन्न सम्वन्ध (साध्यवद् - भिन्नावृत्ती - साध्यवद् से भिन्न में नहीं रहना) और २. लम्भन ( प्राप्ति) । मूल : व्यापने भूति भेदेऽपि स्त्रियां सद्भिरुदाहृता । व्यायतं तु दृढे दैर्ध्य व्यापृतेऽतिशये त्रिषु ॥ १८२३॥ व्यायामो दुर्गसंचार- मल्ल क्रीडा - श्रमेषु च । विषमे पौरुषे व्यामे श्रमेऽपि कथितः पुमान् ॥ १८२४ || हिन्दी टीका - १. व्यापन ( व्याप्त करना) और २. भूतिभेद (भूतिविशेष ऐश्वर्य) अर्थ में भी व्याप्ति शब्द को स्त्रीलिंग माना जाता है । त्रिलिंग व्यायत शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. दृढ़ ( मजबूत ) २. दैर्घ्यं (लम्बाई) ३. व्यापृत (तन्मय तल्लीन) और ४. अतिशय ( अत्यन्त ) | पुल्लिंग व्यायाम शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं -१ दुर्ग संचार (किले के अन्दर विचरना) २. मल्लक्रीड़ा ( मल्लों का परस्पर लपटान) और ३. आश्रम, ४. विषम और ५. पौरुष (पुरुषार्थ ) ६. व्याम ( डेढ़ गज दोनों हाथों को फैलाकर नापने से प्रमाण विशेष) और ७ श्रम (परिश्रम मेहनत ) । मूल : व्यालो दुष्टगजे व्याघ्र श्वापदेऽहौ च चित्रके । नृपेsपि त्रिष्वसौतुच्छठे धूर्तेऽपि कीर्तितः ॥ १८२५।। व्यावृत्तिः स्त्री व्यवच्छेदेऽवृत्ति खण्डनयोरपि । व्यासो द्वैपायने मानविशेषे पाठक द्विजे ।। १८२६ ॥ हिन्दी टीका - व्याल शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. दुष्टगज (दुष्ट हाथी) २. व्याघ्र (बाघ) और ३. श्वापद ( जानवर ) तथा ४. अहि (सर्प) और ५. चित्रक ( चीता) तथा ६. नृप (राजा) किन्तु ७ शठ (दुर्जन) तथा ८. धूर्त (शैतान) अर्थ में व्याल शब्द त्रिलिंग माना जाता है । व्यावृत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. व्यवच्छेद (व्यावर्तन करना, हटाना) और २. अवृत्ति (वृत्तिहीन, वृत्तिरहित) और ३. खण्डन (खण्डन करना) । व्यास शब्द पुल्लिंग है ओर उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्वैपायन (व्यास) और २. मान विशेष (परिमाण विशेष ) तथा ३. पाठक द्विज (पाठक ब्राह्मण) को भी व्यास कहते हैं । मूल : गोलस्य मध्यरेखायां विस्तारेऽपि प्रयुज्यते । व्यासक्त स्त्रिषु संसक्त विशेषा संगवत्यपि ॥। १८२७॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-व्यास शब्द विरोधाचरणे नृत्यप्रभेदे प्रतिरोधने । समाधिपारणे स्वैरवृत्तौ व्युत्थानमीरितम् ॥१८२८॥ हिन्दी टोका- व्यास शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. गोलस्य मध्य रेखा (भूगोल खगोल, पृथिवी की मध्य रेखा) और १. विस्तार । व्यासक्त शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं--१. संसक्त (संलग्न) और २. विशेषासंगवत् (विशिष्ट आसंग वाला)। व्युत्थान शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. विरोधाचरण (विरुद्धाचरण) २. नृत्यप्रभेद (नृत्य विशेष) ३. प्रतिरोधन (प्रतिरोध करना) ४. समाधिपारण (समाधि को पूरा करना) ५. स्वैरवृत्ति (यथेष्ट आचरण) को भी व्युत्थान कहते हैं। मूल : शक्तिज्ञाने च संस्कारे व्युत्पत्तिः स्त्री प्रकीर्तिता। व्युदासो ना व्यवच्छेदे परित्याग-निवासयोः ॥१८२६॥ व्युष्टं प्रभाते दिवसे फले क्लीवं त्रिषुत्वसौ । मतः पर्युषिते दग्धे व्युष्टिः स्त्री स्यात्फले स्तुतौ ॥१८३०॥ हिन्दो टोका-व्युत्पत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शक्तिज्ञान (अभिधा नाम की शक्ति का ज्ञान) २. संस्कार । व्युदास शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. व्यवच्छेद (दूर करना) और २. परित्याग (त्याग करना) और ३. निवास (निवास स्थान)। नपंसक व्यष्ट शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. प्रभात (प्रातःकाल) २. दिवस (दिन) और ३. फल, किन्तु त्रिलिंग व्युष्ट शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. पर्युषित (वसिया) और २. दग्ध (जला हुआ)। व्युष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. फल, २. स्तुति को भी व्युष्टि कहते हैं। ऋद्धौ व्यूढस्तु विन्यस्ते पृथुले संहते त्रिषु । व्यूहो ना सैन्य विन्यासे तर्के देहे कृतौ चये ॥१८३१॥ व्योम नीरेऽभ्रकेऽभ्र च भास्करस्यार्चनाश्रये । व्योमचारी खगे देवे द्विजाते चिरजीविनि ॥१८३२।। हिन्दी टोका--व्यूढ शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. ऋद्धि (समद्धि) २. विन्यस्त (स्थापित) ३. पृथुल (विशाल) और ४. संहत (एकत्रित) । व्यूह शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं -१. सैन्यविन्यास (सेना को व्यूह रचना) २. तक, ३. देह ४. कृति और ५. (समूह)। व्योमन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. नीर (जल) २. अभ्रक (अबरख या मेथ) ३. अभ्र (आकाश) और ४. भास्करस्यार्चनाश्रय (सूर्य का अर्चनाश्रय) । व्योमचारिन् शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. खग (पक्षी) २. देव ३. द्विजात (चन्द्र) और ४. चिरजीवी को भी व्योमचारी कहते हैं। व्योमचारी पुमान् देवे विहंगे चिरजीविनि । व्रजो ना निवहे मार्गे गोष्ठ-देशप्रभेदयोः ॥१८३३।। व्रज्या स्त्री गमने रङ्ग-विजिगीषु प्रयाणयोः । वर्गे पर्यटने ज्ञया व्रणोऽस्त्री स्यात् क्षतेऽरुषि ॥१८३४॥ मूल : मूल : Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - व्योमचारिन शब्द | ३१६ हिन्दी टीका - व्योमचारिन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-- १. देव, २. विहंग (पक्षी) ३. चिरजीवी । व्रज शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. निवह (समूह) २. मार्ग (रास्ता) ३. गोष्ठ (गोशाला वगैरह ) और ४. देशप्रभेद (देशविशेष - अग्रवन और मथुरा के अगल-बगल पार्श्ववर्ती भूमि जिसको ब्रजभूमि कहते व्रज्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. गमन ( जाना) २. रङ्ग (रङ्गस्थान) और ३ विजिगीषु प्रयाण (विजिगीषु का प्रस्थान ) ४. वर्ग (समूह) और ५. पर्यटन (भ्रमण) । व्रण शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. क्षत (घाव ) और २. अरुष (मर्मस्थल) । मूल : वल्ली - विस्तारयो बध्ये व्रततिव्रं तती स्त्रियौ । व्रश्चनः पत्रपरशु द्रुम निर्यासयोः पुमान् ॥ १८३५॥ आशुधान्ये धान्यमात्रे पुमान् व्रीहि रुदाहृतः । प्रियंगु-धान्ये चीना के कथितो व्रीहिराजिकः || १८३६।। हिन्दी टीका - व्रतति और व्रतती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. वल्ली (लता) और २. विस्तार । ब्रश्चन शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. पत्रपरशु (फर्शा-आरा वगैरह ) और २. द्रमनिर्यास (वृक्ष का लस्सा- गोंद) । व्रीहि शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने हुए हैं - १. आशु धान्य ( आंशु सठिया गरि वगैरह ) और २. धान्यमात्र (साधारण धान ) व्रीति राजिक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. प्रियंगुधान्य (ककुनी- टांगुन, क्राउन) और २. चीनाक (चीना) इस प्रकार व्रीहिराजिक शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये । मूल : शम्बो ना मुशलाग्रस्थ लोहमण्डल-वज्रयोः । लोहमय्यां शृङ्खलायां त्रिलिंगस्तु शुभान्विते ।। १८३७॥ शम्बरं सलिले क्लीबं दैत्यभेदेत्वसौ पुमान् । शंसा वाक्ये प्रशंसायां वाञ्छायामप्यसौ स्त्रियाम् ॥ १८३८ ॥ हिन्दी टीका - शम्ब शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मुशलाग्रस्थ लोहमण्डल (मुशल के अग्र भाग में लगा हुआ लोहे का मूशर) और २. वज्र ३. लोहमयी शृंखला (लोहे को जञ्जीर) और ४. शुभान्वित (शुभ-मंगल से अन्वित युक्त किन्तु शुभान्वित अर्थ में शम्ब शब्द त्रिलिंग है) । शम्बर शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ -- १. सलिल (पानी) होता है । किन्तु २. दैत्य भेद ( दैत्य विशेषशम्बर नाम प्रसिद्ध राक्षस) अर्थ में शम्बर शब्द पुल्लिंग माना गया है । शंसा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. वाक्य, २. प्रशंसा और ३. वाञ्छा (इच्छा अभिलाषा) इस प्रकार शंसा शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : शंसित स्त्रिषु निर्णीत स्तवने हिंसितेऽप्यसौ । शको देशान्तरे म्लेच्छजातो च शालिवाहने || १८३६|| शकटोsस्त्री विष्णुवध्यासुरेऽनः शाकटीनयोः । शकलं वल्कले शल्के खण्ड- त्वग्- रागवस्तुषु ।। १८४० ।। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित --शंसित शब्द : हिन्दी टीका - शंसित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. निर्णीत (निश्चित ) २. स्तवन (स्तुति) और ३. हिंसित (मारित) । शक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं- १ देशान्तर ( देश विशेष - शक नाम का देश ) २. म्लेच्छ्जाति (यवन जाति वगैरह ) और ३. शालिवाहन (शालिवाहन नाम का राजा) । शकट शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. विष्णु वध्यासुर ( भगवान विष्णु से वध्य शकट नाम का असुर विशेष ) । अन: ( शकट गाड़ी) और ३. शाकटीन (गाड़ी को खींचने वाला बैल) । शकल शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. वल्कल (छाल) २. शल्क (टुकड़ा) ३. खण्ड ४. त्वक् (त्वचा) और ५. रागवस्तु । मूल : अस्त्रियामेकदेशेऽसौ भित्तेऽपि शकली झषे । शुभशंसि निमित्ते स्यात् शकुनं फललक्षणे ॥। १८४१ ॥ शकुनः पुंसि विहगें महगीते द्विजान्तरे । शकुनिः पुंसि विहगे चिल्लपक्षिणि सौवले ।। १८४२ ।। हिन्दी टीका - पुल्लिंग तथा नपुंसक शकल शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. एक देश (एक भाग) और २. भित्त (दोवाल ) । नकारान्त शकली शब्द का अर्थ - १. झष (मछली) होता है । नपुंसक शकुन शब्द का अर्थ - १. फल लक्षण शुभ शंसिनिमित्त (सफलतासूचक शुभ चिह्न - अक्षि सन्दन वगैरह ) किन्तु पुल्लिंग शकुन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. विहग (पक्षी) २. महगीत ( उत्सव में गाया गया) और ३. द्विजान्तर ( द्विज विशेष ) । शकुनि शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. विहग (पक्षी) २. चिल्ल पक्षी (चिल्होर, चील) और ३. सौवल (दुर्योधन वर्गरह कौरव का मातुल) को भी शकुनि कहते हैं । इस प्रकार शकुनि शब्द का तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : विकुक्षिपुत्रे करणप्रभेदे दुस्सहात्मजे । शकुन्तः कीटभेदे ना विहगे भासपक्षिणि ।। १८४३ ॥ कट्फले जल पिप्पल्यां मांसी- कश्चट शाकयोः । चक्राङ्गी - गज पिप्पल्योः स्यात् स्त्रियां शकुलादनी ॥। १८४४ ॥ हिन्दी टीका - शकुनि शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. विकुक्षि पुत्र और २. करणप्रभेद (करणविशेष-ववादि एकादशकरणान्तर्गत अष्टम करण ) को भी शकुनि कहते हैं और ३. दुःसहात्मज (दुःसह राजा का पुत्र) को भी शकुनि कहते हैं । शकुन्त शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. कीटभेद (कीट विशेष ) २. विहग (पक्षी) और ३. भास पक्षी (भास नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष ) । शकुलादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. कट्फल (कायफल ) २. जल पिप्पली ( जल पीपरि) ३. मांसी (जटामांसी) और ४. कञ्चटशाक ( कञ्चट नाम का शाक विशेष ) और ५. चक्रांगी (कुटकी) और ६. गजपिप्पली ( गजपीपरि ) । मूल : शक्वरी स्त्री सरिभेदे मेखला - वृत्तभेदयोः । शक्रः शक्ति: स्त्री प्रकृती गौर्या लक्ष्म्यामस्त्रान्तरे बले ।। १८४५ ॥ पुरन्दरे ज्येष्ठानक्षत्रे कुटजद्रुमे । शक्रिर्ना कुलिशे मेघे मतङ्गज- महीघ्रयोः ॥ १८४६ ॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शक्वरी शब्द | ३२१ हिन्दी टीका-शक्वरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. सरिभेद (सरिद् विशेष) नदी विशेष को शक्वरी कहते हैं। २. मेखला (करधनी कन्दोड़ा) और ३. वृत्तभेद (वृत्त विशेषशक्वरी नाम का छन्द)। शक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. प्रकृति (मूल प्रकृति वगैरह) २. गौरी, ३. लक्ष्मी, ४. अस्त्रान्तर (शस्त्र विशेष, शक्ति नाम का अस्त्र) और ५. बल (ताकत सेना वगैरह)। शक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पुरन्दर (इन्द्र) २. ज्येष्ठानक्षत्र और ३. कुटजद्र म (कुटज नाम का पर्वतीय फल का वृक्ष) । शक्रि शब्द पल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. कुलिश (वज्र) २. मेघ, ३. मतंगज (हाथी) और ४. महीघ्र (पर्वत)। शंकरां ना महादेवे त्रिषु मंगलकारके । कर्पू रभेदे कैलाशे शङ्करावास ईरितः ॥१८४७।। शंकरी स्त्री शक्तुफला-मञ्जिष्ठा-पार्वतीषु च । शङ्कितस्तकिते भीते विष पुंसि तु चोरके ॥१८४८॥ हिन्दी टीका-शंकर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ -१. महादेव होता है । २. मंगलकारक अर्थ में शंकर शब्द त्रिलिंग माना गया है । शंकरावास शब्द का अर्थ-१. कर्पूरभेद (कर्पूर विशेष) और २. कैलाश होता है । शकरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शक्त फला (शमी) २. मजिष्ठा और ३. पार्वती । शंकित शब्द-१. तकित और २. भीत अर्थ में त्रिलिंग है किन्तु ३. चोरक (चोरक नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है। मूल: शंका त्रासे वितर्के च संशये समुदाहृता। शंकुर्ना स्थाणु-शल्यास्त्र-संख्याभेदेषु कीलके ॥१८४६॥ कीले पत्रशिराजाल - द्वादशांगुलमानयोः । गन्धद्रव्ये नखीसंज्ञ मेढ़ मत्स्यान्तरेऽस्रपे ॥१८५०॥ हिन्दी टीका--शंका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. त्रास, २. वितर्क और ३. संशय शंकु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. स्थाणु (खूटा) २. शल्यास्त्र, ३. संख्या भेद (संख्या विशेष दश लक्षकोटि) और ४. कीलक (दीप और सूर्य की छाया परिमाणार्थ काष्ठादि निर्मित क्रमशः सूक्ष्माग्र द्वादशांगुलपरिमित कीलक संज्ञक वस्तु विशेष खीला, काँटी वगैरह)। शंकु शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. कील (कांटी वगैरह) २. पत्रशिराजाल (पत्ता और शिरा का जाल) और ३. द्वादशांगुलमान (बारह अंगुलि प्रमाण) ४. नखीसंज्ञ गन्ध द्रव्य (नख नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) और ५. मेढ़ (मूत्रेन्द्रिय) तथा ६. मत्स्यान्तर (मत्स्य विशेष) और ७. अस्रप (राक्षस)। मूल महादेवे च कलुषे यादस्यप्यथ शंकुला। कथिता पूग कर्तन्यां पत्र्यां कुवलयस्य च ॥१८५१।। शंखोऽस्त्रियां ललाटास्थ्निकम्बौ संख्यान्तरे निधौ । दन्तिदन्तान्तराले च रणवाद्यान्तरे मुनौ ॥१८५२॥ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३२२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शंकु शब्द हिन्दी टीका-शंकु शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. महादेव, २. कलुष (पाप) और ३. यादस् (जलचरजन्तु) । शंकुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पूगकर्तनी (सुपारी को काटने वाला श रौता-छुरी) और २. कुवलय पत्री (कमल की पत्ती)। शंख शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. ललाटास्थि (ललाट-भाल की अस्थि हड्डी) २. कम्बु (शंख) और ३. संख्यान्तर (संख्या विशेष-शंख नाम की बड़ी संख्या दशनिखर्व-लक्षकोटि संख्या) और ४. निधि (खान) तथा ५. दन्ति दन्तान्तराल (हाथी के दाँत का मध्य भाग) तथा ६ रणवाद्यान्तर (रणवाद्य विशेष समर भूमि का नगारा) और ७. मुनि (मुनि विशेष शंख नाम के ऋषि)। शंखकं वलयेऽस्त्री तु कम्बौ पुंसि शिरोरुचि । क्षुद्रशंखे बृहन्नख्यां स्मृतः शंखनखः पुमान् ।।१८५३।। शंखिनी श्वेत पुन्नागे स्त्रीभेद-यवतिक्तयोः । चोरपुष्पी-श्वेतवृन्दा - श्वेतचुक्रासु कीर्तिता ।।१८५४।। हिन्दी टीका-पुल्लिग तथा नपुंसक शंखक शब्द का अर्थ - १. वलय (कंगण) होता है किन्तु २. कम्बु (शंख) और ३. शिरोरुज् (मस्तक का रोग विशेष) अर्थ में शंखक शब्द पुल्लिग माना जाता है । शंख नख शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. क्षुद्रशंख (अत्यन्त छोटा शंख) और २. बृहन्नखी। शंखिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. श्वेतपुन्नाग (सफेद केशर) २. स्त्रीभेद (स्त्री विशेष) ३. यवतिक्त, ४. चोरपुष्पी (पुष्प विशेष) ५. श्वेतवृन्दा (सफेद तुलसी) और ६. श्वेतचुका (सफेद नोनी नाम का शाक विशेष) को भी शंखिनी कहते हैं। मूल : उपदेवता विशेषे बुद्ध - शक्त्यन्तरेऽप्यसौ । शंखी ना केशवे सिन्धौ शांखिके त्रिषु शंखिनि ॥१८५५॥ शची स्त्री शक्रभार्यायां वाँ स्त्रीकरणान्तरे । शठं तु तगरे लोहे कुंकुमेऽपि नपुंसकम् ॥१८५६।। हिन्दी टीका-शंखिनी शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. उपदेवता विशेष (अंग देवता विशेष) २. बुद्ध शक्त्यन्तर (भगवान बुद्ध की शक्ति विशेष) । शंखी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. केशव, २. सिन्धु और ३. शांखिक (शंख सम्बन्धि) किन्तु ४. शंखी अर्थ में शंखी शब्द त्रिलिंग है । शची शब्द का अर्थ-१. शक्रभार्या (इन्द्र की धर्मपत्नी) और २. वरी (शतावरी) ३. स्त्रीकरणान्तर (स्त्रीकरण विशेष) होता है । शठ शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. तगर (अगर) २. लोह और ३. कुंकुम (कंकु सिन्दूर)। मूल : शठी ना धूर्त-धुस्तूर-मध्यस्थपुरुषेषु च । शण्ड-शण्ढौ समौ वन्ध्यपुरुषऽन्तर्महल्लिके ॥१८५७॥ उन्मत्ते गोपतौ क्लीवे शतकुम्भोऽचलान्तरे। कुलिशे वृन्दसंख्यायां शतकोटि: पुमान् स्मृतः ॥१८५८।। __ हिन्दी टोका-पुल्लिग शठ शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. धूर्त (वञ्चक वगैरह) २. धुस्तूर (धतूर) और ३. मध्यस्थपुरुष । शण्ड और शण्ढ शब्द समानार्थक है और इन दोनों के दो अर्थ होते हैं Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - शतघ्नी शब्द | ३२३ १. वन्ध्यपुरुष (नपुंसक, बाँझ पुरुष) और २. अन्तर्महल्लिक ( अत्यन्त अन्तर्महल्लक - हिजड़ा ) । शण्ड और शण्ठ शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. उन्मत्त (पागल) २. गोपति और ३. क्लीब ( नपुंसक ) । शतकुम्भ शब्द का अर्थ - अचलान्तर (पर्वत विशेष ) होता है । शतकोटि शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. कुलिश (वज्र ) २ वृन्द संख्या ( अरब संख्या) इस प्रकार शतकोटि शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : शतघ्नी स्त्री कण्ठरोगे शस्त्रभेदे करञ्जके । वृश्चिकाल्या मथो काष्ठकुट्ट े पदुमे शतच्छदः ।। १८५६ ।। अथ ब्रह्मणि सूत्राणि स्वर्गे शतधृतिः पुमान् । शतपत्रं पद्मे स्यात् शतपत्रः शिखावले || १८६०॥ हिन्दी टीका - शतघ्नी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. कण्ठरोग ( गले का रोग विशेष) २. शस्त्रभेद ( शस्त्र विशेष तोप ) और ३. करञ्जक ( करञ्ज, करौना वगैरह ) तथा ४. वृश्चिकाली (बिच्छू की पंक्ति) । शतच्छद शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. काष्ठकुट्ट (कठखोदी नाम का पक्षी विशेष) और २. पद्म (कमल) । शतधृति शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. ब्रह्म (प्रजापति) २. सूत्रामा (इन्द्र) और ३. स्वर्ग । नपुंसक शतपत्र शब्द का अर्थ -- १. पद्म (कमल) होता है और पुल्लिंग शतपत्र शब्द का अर्थ २. शिखावल (मोर-मयूर ) होता है । मूल : पुष्करा राजकीरे दावीघाट विहंगमे । कर्णकीटी - शतावर्योः प्रोक्ता शतपदी स्त्रियाम् ।। १८६१ ।। शतपर्वा पुमान् इक्षु विशेष - त्वचिसारयोः । स्त्रियां त्वसौ वचा दूर्वा-शारदी- कटुकासु च ॥१८६२॥ हिन्दी टीका - शतपत्र शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. पुष्कराहु ( सारस पक्षी विशेष ) २. राजकीर (राजकीय पोपट - शूगा विशेष ) ३. दावीघाट विहंगम (कठखोदी) । शतपदी शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. कर्णकीटी (कनगोजर कनखजूरा) और २. शतावरी (शतावर ) । शतपर्वा शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके दो अर्थं होते हैं - १. इक्षु विशेष (गन्ना, शेर्डी, कोसिआर विशेष ) और २. त्वचिसार (बाँस) । स्त्रीलिंग शतपर्वी शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. वचा (अमृता) २. दूर्वा (भी) ३. शारदी ( जल पीपरि ) और ४. कटुका (कुटकी) । मूल : यवे वचायां दूर्वायां स्यात् स्त्रियां शतपविका । काकोल्यां कर्णकीट्यां च स्यात् स्त्रियां शतपादिका ॥। १८६३ ॥ शतपुष्पा सितच्छत्रा - सूक्ष्मपत्रिकायोः स्त्रियाम् । कुलिशे दक्षकन्यायां विद्युति स्त्री शतह्रदा ।। १८६४।। हिन्दी टीका - शत पत्रिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. यव (जौ) २. वचा (अमृता) ३. दूर्वा (दुभी) । शतपादिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. काकोली (डोम काक वगैरह ) २. कर्णकीटी (कनगोजर) । शतपुष्पा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शतानन्द शब्द अर्थ होते हैं-१. सितच्छत्रा (सोंफ) और २. सूक्ष्मपत्रिका । स्त्रीलिंग शतह्रदा शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. कुलिश (वज्र) २. दक्षकन्या (सती) और ३. विद्युत । मूल : शतानन्दः सुरज्येष्ठे देवकीनन्दने मुनौ । गौतमे केशवरथे शताङ्ग स्तिनिशे रथे ॥१८६५।। शतानीको राजभेदे प्रवयो-मुनिभेदयोः । सुदासराजपुत्रेऽथ शक्रपत्न्यां शतावरी ॥१८६६।। हिन्दी टीका-शतानन्द शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. सुरज्येष्ठ (बृहस्पति) २. देवकीनन्दन (भगवान कृष्ण) और ३. मुनि (राजा जनक का पुरोहित)। शताङ्ग शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. गौतम (महर्षि गौतम) २. केशवरथ (कृष्ण भगवान का रथ) और ३. तिनिश (तिनिश नाम का वृक्ष विशेष, वञ्जु भी उसे कहते हैं) और ४. रथ (गाड़ी)। शतानीक शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. राजभेद (राजविशेष) २. प्रवयाः (वृद्ध) और ३. मुनिभेद (मुनि विशेष) तथा ४. सुदास राजपुत्र (सुदास नाम के राजा का पुत्र)। शतावरी शब्द स्त्रीलिंग है ओर उसका अर्थ-१. शक्रपत्नी (इन्द्र की धर्म पत्नी-इन्द्राणी शची) होता है। इन्दीवरी-गन्धशट्योः शतेरः शत्रु-हिंसयोः । शताह्वा शतपुष्पायां शतावर्यामपि स्त्रियाम् ।।१८६७॥ शताक्षी शतपुष्पायां पार्वत्यां रजनावपि । शपो निर्भत्सने गालिप्रदाने शपथे पुमान् ॥१८६८।। हिन्दी टीका-शतावरी शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. इन्दीवरी (कमलिनी) २. गन्धशटी (आमा हल्दी)। शतेर शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं --१. शत्रु और २. हिंसा (हिंसा वध)। शताह्वा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं -१. शतपुष्पा (सोंफ) और २. शतावरी (शतावर) । शताक्षी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. शतपुष्पा (सोंफ) २. पार्वती और ३. रजनि (रात) । शप शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. निर्भर्त्सन (फटकारना) २. गालिप्रदान (गाली देना) और ३. शपथ (सौगन्ध)। सत्यावधारणे दिव्ये कारे च शपथः पुमान् । शपनं शपथे गालौ वृक्षमूले खुरे शफम् ॥१८६९।। शब्दभेदी शब्दवेधी समौ दाशरथेऽर्जुने । शमः शान्तौ करे मुक्तावन्तरिन्द्रियनिग्रहे ॥१८७०॥ हिन्दी टीका-शपथ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अथ माने जाते हैं-१, सत्यावधारण (सत्य का निश्चय करना २. दिव्य (अपूर्व) और ३. कार (जेल कारागार)। शपन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. शपथ (सौगन्ध) और २. गालि (गाली देना)। शफ शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. वृक्षमूल (वृक्ष का जड़ भाग) और २. खुर (खरी-खूर)। शब्दभेदी और शब्दवेधी शब्द नकारान्त पुल्लिग माने जाते हैं और उसके दो अर्थ होते-१. दशरथ और २. अर्जुन । शम शब्द Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शम शब्द | ३२५ पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. शान्ति २. कर (टैक्स वगैरह) ३. मुक्ति और ४. अन्तरिन्द्रियनिग्रह (मन को वश में करना)। विक्षेपकर्मोपरमे क्रियायां चित्तसंयमे । शमनं चर्वणे शान्तौ यज्ञार्थपशुघातने ॥१८७१॥ हिंसायां चाथ शमनः कृतान्ते हरिणान्तरे । शमथः सचिवे शान्तौ समलं गूथ-पापयोः ॥१८७२॥ हिन्दी टीका-शम शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं.-१. विक्षेपकर्मोपरम (विक्षेप कर्म की शान्ति) २ क्रिया (रोग का प्रतीकार इलाज) और ३. चित्तसंयम (चित्त का निरोध)। शमन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-'. चर्वण (चवित चर्वण करना) शान्ति और ३. यज्ञार्थपशुघातन (यज्ञ के लिए पशु की हिंसा करना) और ४. हिंसा (वध करना) भी नपुंसक शमन शब्द का अर्थ होता है, किन्तु पुल्लिग शमन शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कृतान्त (यमराज) और २. हरिणान्तर (हरिण विशेष) । पुल्लिग शमथ शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१ सचिव (मन्त्री) और २. शान्ति । शमल शब्द के भी दो अर्थ होते हैं—१. गूथ (गंह-विष्ठा पाखाना) और २. पाप। इस तरह शमल शब्द का दो अर्थ जानना चाहिये। शमी स्त्रियां वल्गुलिका-शिम्बा-शक्तुफलासु च। शम्पाको ना यावके स्यात् आरग्वध विपाकयोः ॥१८७३॥ शम्बोना मुशलाग्रस्थ लोहमण्डले ऽधने । वज्रऽनुलोमकृष्टौ च लौहकाञ्च्यामपीष्यते ॥१८७४॥ हिन्दी टीका-शमी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं—१. वल्गुलिका (लता विशेष) २. शिम्बा (छिमी) और ३. शक्तुफला (लता विशेष)। शम्पाक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अथ माने गये हैं-१. यावक (अलता) २. आरग्वध (अमलतास) और ३. विपाक (अच्छी तरह पाक)। शम्ब शब्द पल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. मुशलाग्रस्थलोहमण्डल (मशर का अग्र भागस्थ लोह का बना हुआ शामा) २. अधन (धनहीन -निर्धन) ३. वज्र ४. अनुलोमकृष्टि (अनुलोम कर्षण करना खेत जोतना वगैरह) और ५. लौहकाञ्ची (लोहे की जंजीर ।) शुभान्विते भाग्यवति त्रिलिंगोऽयमुदाहृतः । शम्बरं सलिले चित्रे वित्ते बौद्धव्रते व्रते ॥१८७५॥ शम्बरो ना जिने शैले दैत्ये मत्स्येऽर्जुनद्रुमे । चित्रकद्रौ मृगे लोघ्र युद्धे श्रेष्ठे त्वसौ त्रिषु ॥१८७६।। हिन्दी टोका-त्रिलिंग शम्ब शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. शुभान्वित (शुभयुक्त) और २. भाग्यवान (भाग्यशाली)। नपुंसक शम्बर शब्द के पाँच अर्थ होते हैं—१. सलिल (पानी) २. चित्र ३. वित्त ४. बौद्धव्रत और ५. व्रत (साधारण व्रत)। पूल्लिग शम्बर शब्द के नौ अर्थ होते हैं-१. जिन, २. शैल, ३. दैत्य, ४ मत्स्य, ५ अर्जुनद्र म (अर्जुनवृक्ष वटवृक्ष) ६. चित्रकद्र (चित्रक नाम का वृक्ष विशेष) ७. मृग ८. लोध्र और ६. युद्ध किन्तु १०. श्रेष्ठ अर्थ में शम्बर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - शम्बल शब्द मूल : पाथेयेऽन्य शुभद्वेषे कूले च शम्बलोऽस्त्रियाम् । शम्बूको ना दैत्यभेदे शूद्रतापस- शंखयोः ॥। १८७७॥ गजकुम्भान्तरेऽथ स्त्रीपुंसयो शुक्तिषु । शम्भुर्ना शंकरे विष्णौ विरिञ्चौ बुद्ध-सिद्धयोः ।।१८७८ || शम्भुप्रिया तु पार्वत्या मामलक्यामपि स्मृतः । कार्तिकेये गणेशे च कीर्तितः शम्भुनन्दनः || १८७६ ॥ हिन्दी टीका - शम्बल शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. पाथेय ( रास्ते का भोजन ) २. अन्यशुभद्वेष (दूसरे के कल्याण का द्वेष करना) और ३. कूल (तट किनारा) । शम्बूक शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दैत्यभेद ( दैत्य विशेष) २. शूद्रतापस ( शम्बूक नाम का शूद्रतापस ) ३. शंख और ४ गजकुम्भान्तर (हाथी का मस्तक) किन्तु ५. जल और शुक्ति (सितुआ) अर्थ में शम्बूक शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना गया है । शम्भु शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. शंकर, २. विष्णु ३. विरञ्चि (ब्रह्मा) ४. बुद्ध तथा ५. सिद्धमुनि । शम्भुप्रिया शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. पार्वती और २. आमलकी (आँवला) । शम्भुनन्दन शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. कार्तिकेय और २. गणेश । इस प्रकार शम्भुनन्दन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं । मूल : शयो भुजंगे शय्यायां निद्रायां पणहस्तयोः । शयथ स्त्रिषु निद्रालौ पुमान् अजगरे मृतौ ॥१८८०॥ शयनं मैथुन स्वापे शय्यायामपि कीर्तितम् । शयनीयं तु शय्यायां शयनार्ह त्वसौ त्रिषु ॥ १८८१ ॥ हिन्दी टीका - शय शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं- भुजंग (सर्प) २ शय्या ( चारपाई वगैरह ) ३. निद्रा (नींद) और ४. पण (पैसा) तथा ५ हस्त (हाथ) । त्रिलिंग शयथ शब्द का अर्थ - १. निद्रालु (निद्राशील) होता है किन्तु २. अजगर (सर्प विशेष) और ३. मृति ( मरण) अर्थ में शयथ शब्द पुल्लिंग माना गया है । शयन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. मैथुन ( विषय भोग ) २. स्वाप (शयन) और ३. शय्या ( पलंग वगैरह ) । शयनीय शब्द १. शय्या अर्थ में नपुंसक माना गया है। किन्तु २. शयनार्ह ( शयन करने योग्य) अर्थ में शयनीय शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मूल : शयानकस्त्वजगरे कृकलासे च कीर्तितः । शयालु स्त्रिषु निद्रालौ शयित स्त्रिषु निद्राणे कुकरेऽजगरे पुमान् ॥१८८२ ॥ वसन्तकुसुमे पुमान् । शयने तु स्मृतं क्लीवमथ क्लीवं शरं जले || १८८३ ॥ हिन्दी टीका - शयानक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. अजगर (सर्प विशेष) और २. कृकलास ( गिरगिट ) । शयालु शब्द १. निद्रालु (निद्राशील) और २. कुकर (टेढ़े हाथ वाले ) अर्थ में त्रिलिंग माना गया है किन्तु ३. अजगर (सर्प विशेष) अर्थ में शयालु शब्द पुल्लिंग है । शयित शब्द १. निद्राण (सोता Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शर शब्द | ३२७ हुआ) अर्थ त्रिलिंग माना गया है और २. वसन्तकुसुम (वसन्ती फूल) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ३. शयन अर्थ में शयित शब्द नपुंसक माना गया है । शर शब्द १. जल अर्थ में नपुंसक माना जाता है । शरोना गुन्द्रके बाणे हिंसा-दध्यग्रभागयोः । सन्तानिकायां नलदे महापिण्डीतरावपि ॥१८८४॥ हैयङ्गवीने शरजं नवनीतेऽपि कीर्तितम् । कुसुम्भ शाके शरटः कृकलासेऽप्यसौ स्मृतः ।।१८८५।। हिन्दी टीका---पुल्लिग शय शब्द के सात अर्थ होते हैं -१. गुन्द्रक (गोंद) २. बाण, ३. हिंसा और ४ दध्यग्रभाग (छाल्ही) ५. सन्तानिका (सन्तति परम्परा) और ६. नलद (शरकण्डा) तथा ७. महापिण्डीतरु (महापिण्डी नाम का वृक्ष विशेष) । शरज शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं१. हैयङ्गवीन (मक्खन) और २. नवनीत (नया ताजा मक्खन) । शरट शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. कुसुम्भशाक (कुसुम्भ नाम का शाक विशेष) और २. कृकलास । (बड़ा गिरगिट) इस प्रकार शरट शब्द के दो अर्थ जानना मूल : शरणे रक्षके गेहे रक्षणे घातके वधे । शरणा तु प्रसारिण्यां शरणिः स्त्री क्षितौ पथि ॥१८८६॥ शरणी स्त्री प्रसारिण्यां जयन्ती-मार्गयोरपि । शरण्डः कामुके धूर्ते शरटे भूषणे खगे ॥१८८७॥ हिन्दी टोका-नपुंसक शरण शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. रक्षक (रक्षा करने वाला) २. गेह (घर) ३. रक्षण (रक्षण करना) ४. घातक (मारने वाला) और ५. वध (हिंसा करना)। स्त्रीलिंग शरणा शब्द का अर्थ-प्रसारिणी (फैलने वाली सेनाएँ) स्त्रीलिंग शरणि शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. क्षिति (पृथिवी) और २. पथ (मार्ग रास्ता)। स्त्रीलिंग शरणी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. प्रसारिणी (सब जगह व्याप्त होने वाली सेना) और २. जयन्ती (जाही-अरणि-गनियार) और ३. मागं (रास्ता) शरण्ड शब्द पुल्लिग माना गया है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कामुक (विषय लम्पट) २. धूर्त (वञ्चक) ३. शरट (बड़ा गिरगिट) और ४. भूषण (अलंकरण जेबरात) और ५. खग (पक्षी) इस तरह शरण्ड शब्द का पाँच अर्थ जानना चाहिये । शरणुः पुंसि जीमूते भरण्यौ मातरिश्वनि । शरत् स्त्री वत्सरे कालप्रभाते स्त्रीरजस्यपि ॥१८८८॥ शरभो ना महासिंहे करभे वानरान्तरे । क्रमेलके च शलभे शरमल्लस्तु पक्षिणि ।।१८८६।। हिन्दी टोका-शरणु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जीमूत (मेघ वगैरह) २. भरण्यु (नौकर) और ३. मातरिश्वा (पवन)। शरत् शब्द त्रिलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. वत्सर (वर्ष) २. काल प्रभात (आश्विन कार्तिक मासद्वय रूप ऋतु विशेष) और ३. स्त्रीरजस् (स्त्री का मासिक धर्म) । शरभ शब्द पुल्लिग है और उसके भो पाँच अर्थ होते हैं-१- महासिंह, २. करभ मूल : Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शरवाणि शब्द (हाथ का ऊपर भाग विशेष वगैरह) और ३. वानरान्तर (वानर विशेष) तथा ४. क्रमेलक (ऊंट) और ५. शलभ (पक्षी विशेष)। शरमल्ल शब्द का अर्थ पक्षी होता है। मूल : शरवाणिः पुमान् पद्म बाणाने चिरजीविनि । शालाजिरे शेटके च शरावोऽस्त्री प्रकीर्तितः ॥१८६०॥ शरीरजः स्मरे पुत्रे रोगे त्रिषु तु देहजे । शरीरावरणं चर्म - काय वेष्टनयोरपि ॥१८६१॥ हिन्दी टीका-शरवाणि शब्द पुमान् है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. पद्म (कमल) २. बाणाग्र (बाण का अग्र भाग नोक) और ३. चिरजीवी (अधिक दिनों तक जीवित रहने वाला)। शराब शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. शालाजिर (शाला का अजिर-प्रांगण) और २. शेटक (शेर)। शरीरज शब्द १. स्मर (कामदेव) और २ पुत्र अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ३. देहज रोग (शरीर में उत्पन्न होने वाले रोग विशेष) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। शरीरावरण शब्द भी नपुंसक है उसके दो अर्थ होते हैं-१. चर्म और २. कायवेष्ठन (शरीर का आच्छादन)। मूल : शरुर्ना कुलिशे क्रोधे विशिखाऽऽयुधयोरपि । * शर्करा स्त्री कर्परांशे शकल-व्याधि भेदयोः ॥१८६२॥ सितोपलायां पाषाण शर्करान्वितदेशयोः । शवः शिवे हृषीकेशे शर्वरं तमसि स्मरणे ।।१८६३॥ हिन्दी टीका - शरु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. कुलिश (वज्र) २. क्रोध, ३. विशिख (धनुष वाण) और ४. आयुध (तलवार)। शर्करा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. कर्परांश (पत्थर का छोटा टुकड़ा) २. शकल (खण्ड-भित्ति-दीवाल) और ३. व्याधिभेद (व्याधि विशेष) तथा ४ सितोपला (सफेद उपल-पत्थर का टुकड़ा) और ५. पाषाण (पत्थर) तथा शर्करान्वितदेश (कंकड़ों से युक्त स्थान)। शर्व शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं -- १. शिव और २. हृषीकेश (विष्णु) । शर्वर शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं—१. तमस् (अन्धकार) और २. स्मरण (याद करना) इस प्रकार शर्वर शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये। मूल : शर्वरी स्त्री हरिद्रायां नारी-सन्ध्या-निशासु च । शर्शरीक: खले हिंस्र वीतिहोत्रे तुरंगमे ॥१८६४॥ शलो ब्रह्मणि कुन्तास्त्रे क्षेत्रभेदे क्रमेलके । भृङ्गरीटेऽथ शलली शल्लकीलोम्नि शल्यके ॥१८६५॥ हिन्दी टोका-शर्वरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. हरिद्रा (हलदी) २. नारी, ३. सन्ध्या और ४ निशा (रात)। शर्शरीक शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. खल (दुष्ट) २. हिंस्र (घातक) ३. वीनिहोत्र (अग्नि) और ४. तुरंगम (घोड़ा)। शल शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं - १. ब्रह्म (परमेश्वर) २ कुन्तास्त्र (भाला) ३. क्षेत्रभेद (खेत विशेष) ४. क्रमेलक (ऊंट) और ५. भृङ्गरीट । शलली शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. शल्लकीलोम (शाही-शाहुर का लाम) और २. शल्यक (हड्डी)। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शलाका शब्द | ३२६ मूल: शलाका शारिकाऽऽलेख्य कूचिका-शल्लकीषु च। छत्रादिकोष्ठी-मदनद्रु-शल्येषु शरेऽस्थिन च ॥१८६६॥ शलाटु ना मूलभेदे बिल्वेऽपक्वफले त्रिषु । शल्कं स्याद् वल्कले मत्स्य त्वचि खण्डेऽपि नद्वयोः ॥१८६७॥ हिन्दी टीका-शलाका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. शारिका (मैना) २. आलेख्य कूचिका (चित्र लिखने की कूची) और ३. शल्लकी (शाहुर-शाही) ४. छत्रादिकोष्ठी (सोआ-वनसोंफ या धनियां-धानावा गोवर छत्ता वगैरह की कोष्ठी) और ५. मदनद्र (धतूर का वृक्ष) तथा ६. शल्य (हाड़का काँटा) एवं ७. शर (बाण) और ८. अस्थि (हड्डी)। पुल्लिग शलाटु शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं मूलभेद (मूल विशेष) और २. बिल्व (बेल-बिल्वफल) किन्तु ३. अपक्व फल (कच्चा आम वगैरह का फल) अर्थ में शलाटु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। शल्क शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. वल्कल (छिलका छाल) २. मत्स्यत्वक् (मछली की त्वचा) और ३. खण्ड (टुकड़ा) भी शल्क शब्द का अर्थ है। मूल : शल्यं कीकस-दुर्वाक्य-बाणेषु किल्विष विषे । तोमरे दुःसहे वंशकम्बिकायां नपुंसकम् ॥१८६८॥ शल्यो ना शल्लकी-सीमा-शलाका-मदनद्रष । मत्स्यप्रभेदे मालूरद्रुमे पाण्डवमातुले ॥१८६६६।। हिन्दी टीका - नपुंसक शल्य शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं ---१. कीकस (हड्डी) २. दुर्वाक्य (कटुवचन) ३. बाण (शर) ४. किल्विष (पाप) ५. विष (जहर) ६. तोमर (अस्त्र विशेष) ७. दुसह (दुःखपूर्वक सहन करना) और ८. वंशकम्बिका (बांस की करची या बांस की कमची) और पुल्लिग शल्य शब्द के सात अर्थ माने गये हैं--१, शल्लकी (शाही-शाहुर) २. सीमा (हद) ३. शलाका (कंची वगैरह) और ४. मदनद्र (धतूर का वृक्ष) तथा ५. मत्स्यप्रभेद (मत्स्य विशेष) एव ६. मालूरद्र म (बेल का वृक्ष-बिल्व वृक्ष) और ७. पाण्डव मातुल (युधिष्ठिर वगैरह पाण्डव का मामा) को भी शल्य कहते हैं। मूल : कुन्तास्त्रे त्वस्त्रियां श्वाविन्मदनद्रवोश्यस्तु शल्यकः । शल्लकीगजभक्ष्यायां शल्यकेऽपि स्त्रियामसौ ॥१६००॥ शबं स्यात् सलिले क्लीवं कुणपे पुनपुंसकम् । शबरः सलिले म्लेच्छजातौ शास्त्रान्तरे करे ॥१६०१॥ हिन्दी टीका- १. कुन्तास्त्र (भाला) अर्थ में शल्य शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। शल्यक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. श्वाविध (साही-साहुर) और २. मदनद्र (धतूर का वृक्ष)। शल्लकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. गज भक्ष्या (हाथी का खाद्य-शल्लको नाम का वृक्ष विशेष) और २. शल्यक (साही वगैरह) । शब शब्द १. सलिल (जल) अर्थ में नपुंसक है किन्त २. कुणप (मुर्दा) अर्थ में पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। शवर शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. सलिल (पानी) २. म्लेच्छ जाति (भील किरात) ३ शास्त्रान्तर (शास्त्र विशेष-मीमांसा भाष्य) और ४. कर (हाथ) इस प्रकार शवर शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-शश शब्द मूल : शशो मृगान्तरे लोध्र बोले चन्दिरलाञ्छने । पुंविशेषेऽथ कर्पू रे चन्द्रे शशधरः स्मृतः ॥१६०२॥ हिन्दी टीका-शश शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं१. मृगान्तर (मृग पशु विशेष-खरगोश) २. लोध्र (लोध नाम का वृक्ष विशेष) और ३. बोल (वोर-गन्ध रस) और ४. चन्दिरलाञ्छन (चन्द्रमा का कलंक रूप चिन्ह विशेष) को भी शश कहते हैं और ५. विशेष (पुरुष विशेष) को भी शश शब्द से व्यवहार किया जाता है। शशधर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. कर्पूर और २. चन्द्र। मूल : शशविन्दुः पुमाँश्चित्ररथपुढे त्रिविक्रमे । चन्दिरे घनसारे च शशाङ्क: समुदाहृतः ॥१६०३।। शशिकान्तं तु कुमुदे चन्द्रकान्तमणौ तु ना। मौक्तिके कुमुदे चन्द्रप्रभायुक्त शशिप्रभम् ॥१६०४॥ शशिलेखा वृत्तभेद - गुडूचीन्दुकलासु च । * महादेवे बुद्धभेदे शशिशेखर ईरितः ॥१६०५।। हिन्दी टोका---शश विन्दु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. चित्ररथपुत्र (चित्ररथ का पुत्र) और २ त्रिविक्रम (वामन भगवान)। शशाङ्क शब्द भी पुल्लिग माना जाता है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. चन्दिर (चन्द्रमा) और २. घनसार (कपर)। शशिकान्त शब्द १. कमद (भेंट नाम का फूल विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. चन्द्रकान्तमणि अर्थ में शशिकान्त शब्द पुल्लिग माना गया है । शशिप्रभ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मौक्तिक (मुक्तामणि) २. कुमुद (कैरव) और ३. चन्द्रप्रभायुक्त (चन्द्रमा की कान्ति से युक्त) को भी शशिप्रभ कहते हैं। शशिलेखा शब्द स्त्रीलिंग हैं और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वृत्तभेद (वृत्तविशेष शशिलेखा नाम का छन्द विशेष) और २. गुडूची (गिलोय) तथा ३. इन्दुकला (चन्द्रमा की कला) को भी शशिलेखा कहते हैं। शशिशेखर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. महादेव और २. बुद्धभेद (बुद्ध विशेष) को भी शशिशेखर कहते हैं । मूल : . शष्कुली स्त्री कर्णरन्ध्र यवागू-मत्स्यभेदयोः । शष्पः स्यात् प्रतिभाहानौ शष्पं बालतृणे स्मृतम् ।।१६०६।। शस्तं देहे शुभे शस्त स्त्रिषु शंयु-प्रशस्तयोः । शस्त्र प्रहरणे लोहे निस्त्रिशे तु पुमानसौ ॥१६०७॥ हिन्दी टोका-शष्कुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कर्णरन्ध्र (कान का बिल) २. यवागू (हलवा लापसी) और ३. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष)। पुल्लिग शष्प शब्द का अर्थ-१. प्रतिभा हानि (प्रतिभा रहित-निष्प्रभ) होता है और नपुंसक शष्प का अर्थ २. बाल तृण (हरा नया घास) होता है । नपुंसक शस्त शब्द का अर्थ-देह (शरीर) होता है और पुल्लिग शस्त शब्द का अर्थ-शुभ होता है तथा त्रिलिंग शस्त शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शंयु (कल्याण वाला) और २. प्रशस्त (विहित वगैरह)। नपंसक शस्त्र शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. प्रहरण (आयध त २. लोह, किन्तु निस्त्रिश (अस्त्र विशेष) अर्थ में शस्त्र शब्द पुल्लिग हो माना जाता है । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--शस्त्री शब्द | ३३१ मूल: शस्त्री स्त्री छुरिकायां स्यात् नान्तस्त्रिष्वस्त्रधारिणि । शस्यं क्षेत्रस्थ धान्यादौ वृक्षादीनां फले तथा ।।१६०८॥ शाको द्वीपान्तरे शक्तौ शरपत्र शिरीषयोः । नृपान्तरे शकाब्देऽसौं पत्रपुष्पादिकेऽस्त्रियाम् ॥१६०६।। हिन्दी टोका-शस्त्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. छुरिका छुरी या वसूला बगैरह) होता है किन्तु त्रिलिंग नकारान्त श स्त्रिन शब्द का अर्थ-२. अस्त्रधारी (अस्त्र को धारण करने वाला) होता है । शस्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. क्षेत्रस्थ धान्यादि (खेत में लगी हुई हरी फसल) और २. वृक्षादि फल (वृक्ष वगैरह का फल) को भी शस्य कहते हैं। पुल्लिग शाक शब्द के छह अर्थ माने गये हैं१. द्वीपान्तर (द्वीप विशेष-शाकद्वीप) २. शक्ति (सामर्थ्य) ३. शरपत्र (शरकण्डा-नरकठि) और ४. शिरीष (शिरीष नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ५. नृपान्तर (नृप विशेष-शाक नाम का राजा) तथा ६. शकाब्द (शक वर्ष) किन्तु ७. पत्रपुष्पादि (पत्ता फूल वगैरह) अर्थ में शाक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है, इस प्रकार कुल मिलाकर शाक शब्द के सात अर्थ समझने चाहिये । शाखश्छित्तौ कार्तिकेये शाखा पक्षान्तरेऽन्तिके । वेदभागेग्रन्थभेदे पादपाङ्ग विधुन्तुदे ॥१६१०॥ शाखी वेदे राजभेदे तुरुष्काख्यजने तरौ। निकषे करपत्रे च शाणो माषचतुष्टये ॥१६११॥ हिन्दी टीका-शाख शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. छिति (छेदन २. कार्तिकेय । शाखा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं—१. पक्षान्तर (दूसरा पक्ष वगैरह) २. अन्तिक (पास निकट) ३. वेद भाग (वेद का भाग) और ४. ग्रन्थभेद (ग्रन्थ विशेष) तथा ५. पादपाल (वृक्ष का अङ्ग एक देश डाल) और ६. विधुन्तुद (राहु) । शाखो शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. वेद (ऋग्वेद वगैरह) २. राजभेद (राज विशेष) ३. तुरुष्काख्यजन (तुरुक देशवासी) और ४. तरु (वृक्ष)। शाण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. निकष (कसौटी पत्थर) २. करपत्र (आरा, आरी वगैरह अस्त्र विशेष) और ३. माषचतुष्टय (चार माशा)। मूल : शाण्डिल्यो मुनिभेदे स्यात् बिल्ववृक्षेऽनलान्तरे । शाणी स्त्री छिद्रवस्त्रस्यादिङ्ग प्रावरणान्तरे ॥१६१२।। शातः स्यात् पुंसि धुस्तुरे सुखे तु स्यान्नपुंसकम् । दुर्बले निशिते शर्म शालिनि त्रिषु कीर्तितः ॥१६१३।। हिन्दी टोका-शाण्डिल्य शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मुनिभेद (मुनि विशेष-शाण्डिल्य मुनि) २. बिल्व वृक्ष (बेल का वृक्ष) और ३. अनलान्तर (अनल विशेष अग्नि विशेष)। शाणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. छिद्रवस्त्र (छेदयुक्त कपड़ा, फटा कपड़ा) २. इङ्ग (त्रस-चलने फिरने वाले मनुष्य पशु पक्षी कीट पतङ्ग वगैरह) और ३. प्रावरणान्तर (प्रावरण विशेष चादर-दुपट्टा वगैरह) । पुल्लिग शात शब्द का अर्थ-१. धुस्तूर (धतूर) होता है किन्तु २. सुख अर्थ में शात शब्द नपुंसक माना Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३३२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शात्रव शब्द जाता है परन्तु ३. दुर्बल (कमजोर) ४. निशित (तीखा) और ५. शर्मशाली (सुखी) इन तीनों अर्थों में शात शब्द त्रिलिंग माना गया है । शात्रवं शत्रुसंघाते शत्रुभावे पुमान् रिपौ। शातनं नाशने कार्ये शाद: कर्दम-शष्पयोः ॥१६१४॥ रसान्तरेऽभियुक्त ना शान्तस्त्रिषु शमान्विते । शान्तिः स्त्री प्रशमे भद्रे दुर्गायां गोपिकान्तरे ॥१६१५॥ हिन्दी टीका-नपुंसक शात्रव शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- शत्रुसंघात (शत्रुमण्डल) और २. शत्रुभाव (शत्रुता) किन्तु ३. रिपु अर्थ में शात्रव शब्द पुल्लिग हो माना जाता है। शातन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ होते हैं---१. नाशन (नाश करना) और २. कार्य (कृशता, क्षीणता)। शाद शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं—१. कर्दम (कीचड़) और २. शष्प (हरा नया घास) । पुल्लिग शान्त शब्द के दो अर्थ रेते हैं- . रसान्तर (रस विशेष-शान्त रस) और २. अभियुक्त (श्रेष्ठ) किन्तु ३. शमान्वित (शम-शाल्ति युक्त) अर्थ में शान्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है । शान्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं--१. प्रशम (वैराग्य) २. भद्र (कुशल) और ३. दुर्गा (पारवती) और ४. गोपिकान्तर (गोपिका विशेष)। मूल : शापो ना दिव्य आक्रोशे शामनं मारणे शमे । ___ घनसारे शम्भुपुत्रे गुग्गुलौ शम्भुपूजके ॥१६१६॥ हिन्दी टीका-शाप शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. दिव्य (भव्य) और २. आक्रोश (निन्दा)। शामन शब्द के छह अर्थ माने गये हैं-१. मारण (मारना) २. शम (शान्ति) ३. घनसार (कपूर) ४. शम्भुपुत्र (शम्भु का पुत्र) और ५. गुग्गुलु (गूगल) तथा ६. शम्भुपूजक (शम्भु का पूजक) इस प्रकार शामन शब्द के छह अर्थ समझने चाहिये। विषभेदे शाम्भवो ना, शम्भु सम्बन्धिनि त्रिषु । शाम्भवी नीलदूर्वायां दुर्गायामपि कीर्तिता ।।१६१७॥ शिवमल्ल्यां शम्भु भक्त शाम्भवं देवदारुणि । शारो ना ऽक्षोपकरणे हिंसने शबलेऽनिले ॥१९१८॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग शाम्भव शब्द का अर्थ-१. विषभेद (विष विशेष) होता है किन्तु २.शिवसम्बन्धी अर्थ में शाम्भव शब्द त्रिलिंग माना जाता है और स्त्रीलिंग शाम्भवी शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. नीलदूर्वा (हरी दूभी) और २. दुर्गा (पार्वती)। किन्तु नपुंसक शाम्भव शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. शिवमल्ली (गुल्मा, बकपुष्प) और २. शम्भुभक्त (भगवान शंकर का भक्त) तथा ३. देवदारु (सरल वृक्ष) को भी शाम्भव कहते हैं। शार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं१. अक्षोपकरण (जूआ पाशा-चौपड़ का साधन-गुटका गोली वगैरह) २. हिंसन (मारना) ३. शबल (चितकबरा) और ४. अनिल (पवन) इस प्रकार शार शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं। शारङ्गो ना मृगे भृङ्ग मयूरे चातके गजे । शारङ्गी स्त्री वाद्ययन्त्रे शारङ्ग स्त्रिषु चित्रिते ॥१६१६।। मूल : मूल : Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शारङ्ग शब्द | ३३३ शारदो ना हरिन्मुद्गे कासेऽब्दे बकुलेऽगदे । पीतमुद्गे सप्तपर्णे क्लीवं शस्ये सिताम्बुजे ॥१६२०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग शारङ्ग शब्द के पांच अर्थ होते हैं-१. मृग (हरिण) २. भृङ्ग (भ्रमर वगैरह) ३. मयूर (मोर) ४. चातक और ५. गज (हाथी)। स्त्रीलिंग शारङ्गी शब्द का अर्थ-वाद्ययन्त्र (बाजा विशेष) और त्रिलिंग शारङ्ग शब्द का अर्थ-चित्रित (चितकाबर-कबूर) होता है । पुल्लिग शारद शब्द के सात अर्थ होते हैं-१. हरिन्मुद्ग (हरा मंग, मूंग) २. कास ३. अब्द (वर्ष) ४. बकुल (मौलशरी) ५. अगद (नीरोग) ६. पीतमुद्ग (पीला मूंग) ७. सप्तपर्ण (सप्तपर्ण नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) किन्तु नपुंसक शारद शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. शस्य (फसल वग रह) और २ सिताम्बुज (सफेद कमल) इस प्रकार शारद शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिये। मूल : त्रिष्वसौ नूत्न-शालीनाऽप्रतिभेषु शरद्भवे । शारदा स्यात् सरस्वत्यां दुर्गा-वीणा विशेषयोः ॥१६२१।। सारिवा शाक-वैधात्री शाकयोरपि कीर्तिता। शारदी तोयपिप्पल्यां कौमुदीचार ईरिता ॥१६२२॥ हिन्दी टीका-त्रिलिंग शारद शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. नूत्न (नूतन, नया) २. शालीन (सलज्ज जो ढीठ नहीं हो) और ३. अप्रतिभ (प्रतिभाहीन-निष्प्रभ) तथा ४. शरद्भव (शरद् ऋतु में उत्पन्न होने वाला)। शारदा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सरस्वती २. दुर्गा और ३. वीणा विशेष (सरस्वती की वीणा) । शारदा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं१. सारिवा शाक (सारिवा नाम का शाक विशेष) और २. वैधात्रीशाक (वैधात्री नाम का शाक विशेष)। शारदी शब्द के भी दो अर्थ होते हैं--१. तोयपिप्पली और २. कौमुदीचार (आश्विन पूर्णिमा को जागरण) । मूल : शारि: स्यात् सारिकायां व्यवहारान्तरे छले । युद्धार्थ गजपर्याणे शारिपट्टे त्वसौ पुमान् ।।१६२३।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग शारि शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. सारिका (मना) २. व्यवहारान्तर (व्यवहार विशेष) और ३. छल (कपट) तथा ४. युद्धार्थगजपर्याण (युद्ध के लिए हाथी का पर्याण) किन्तु ५. शारिपट्ट (पाशा चौपड़ की पट्टी) अर्थ में शारि शब्द पुल्लिग माना गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर शारि शब्द के पाँच अर्थ समझने चाहिये । मूल : शारिका पीतपादायां तथा वीणादिवादने । शार्ककः शर्करापिण्डे दुग्धफेने त्वसौ पुमान् ॥१६२४॥ शार्करो ना क्षीरफेन-शर्करान्वित - देशयोः । शार्दूलो राक्षसे व्याघ्र सरभे विहगान्तरे ॥१६२५॥ हिन्दी टीका-शारिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने हैं-१. पीतपादा (मदनशारिवा पक्षी) और २. वीणादिवादन (वीणा वगैरह का वादन सामग्री) को भी शारिका कहते हैं । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शार्दूल शब्द शार्कक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शर्करापिण्ड (कंकड़ का समूह) और २. दुग्धफेन (दूध का फेन) को भी शार्कक कहते हैं । शार्कर शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. क्षीर फेन (दूध का फेन) और २. शर्करान्वितदेश (पत्थर के टुकड़ा कंकड़ से युक्त स्थान) को भी शार्कर कहते हैं । शार्दूल शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गय हैं-१. राक्षस, २. व्याघ्र, ३. शरभ (सबसे बड़ा पक्षी विशेष) और ४. विहगान्तर (पक्षी विशेष) इस प्रकार शार्दूल शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये। मूल : चित्रके पुरतः स्थोऽसौ मत: श्रेष्ठे ऽन्यलिंगभाक् । शालो मत्स्ये वृक्षमात्रे प्राकारे शस्यसम्बरे ॥१६२६॥ शालिवाहनराजे च नदभेदेऽप्यसौ मतः । पाञ्चालिकायां वेश्यायां कीर्तिता शालभञ्जिका ॥१६२७॥ हिन्दी टीका-शार्दूल शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं--१. चित्रक (चीता) और २. श्रेष्ठ (उत्तम) इनमें चीता अर्थ में शार्दूल शब्द पुल्लिग है और श्रेष्ठ अर्थ में विशेष्यनिघ्न माना जाता है। शाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. मत्स्य (मछली) और २. वृक्षमात्र (वृक्ष) ३. प्राकार (परकोटा, ढुंग, किला वगैरह) और ४. शस्यसम्बर (हरी फसल में पानी या हरी फसल को खाने वाला हरिण) और ५. शालिवाहन राजा (शालिवाहन नाम के प्रसिद्ध राजा को भी शाल कहते है। ) तथा ६. नदभेद (नद विशेष) को भी शाल कहते हैं। शालभञ्जिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. पाञ्चालिका (द्रौपदी) और २. वेश्या । के मूल : शाला गृहे स्कन्ध शाखा - गेहैकदेशयोः । शालाकी नापिते शैलधारकेऽस्त्रचिकित्सके ।।१६२८॥ आरोहणे हस्तिनखे शालारं पक्षिपञ्जरे । शालावृको मृगे कीशे मार्जारे जम्बुके शुनि ॥१६२६॥ हिन्दी टीका-शाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. गृह (घर) २. स्कन्ध शाखा (सबसे पहले फूटने निकलने वाली डाल) और ३. गेहैकदेश (घर का एक भाग)। शालाकी शब्द के भो तीन अर्थ माने जाते हैं-१ नापित (हज्जाम) २. शैलधारक (पर्वत धारक) और ३. अर चिकित्सक (अस्त्र द्वारा चिकित्सा करने वाला)। शालार शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. आरोहण (च २. हस्तिनख (हाथी का नख) और ३. पक्षिपञ्जर (पक्षी का पिंजरा)। शालावृक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. मृग, २. कोश (वानर) ३. मार्जार (बिल्ली) ४. जम्बुक (सियार गीदड़) और ५. श्वा (कुत्ता) को भी शालावृक कहते हैं। मूल : शालि र्ना गन्ध मार्जारे षष्टिका-कलमादिके । शालीनः कथिनोऽधृष्ट शाला सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६३०॥ हिन्दी टोका-शालि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धमार्जार और २. षष्टिका (साड़ी) तथा ३. कलमादि (कलम वगैरह धान विशेष)। पुल्लिग शालीन शब्द का अर्थ१. अधृष्ट (सलज्ज-डरपोक) किन्तु २. शाला सम्बन्धी अर्थ में शालीन शब्द त्रिलिंग है। Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - शालूक शब्द | ३३५ जातीफलेऽब्जादिकन्दे शालूकं दर्दुरे पुमान् । शावः शिशौ पुमान् बोध्यः शव सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६३१ ॥ शावर: शवर स्वामिकृतभाष्ये च किल्विषे । तन्त्रान्तरे लोध्रवृक्षेऽपराधेपि पुमानसौ ॥१६३२॥ हिन्दी टीका - नपुंसक शालूक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. जातीफल (जायफल जाफर) और २. अश्वादि कन्द (कसल वगैरह का कन्द कशेरु - केशौर ) किन्तु ३. दर्दुर ( मेढ़क एड़का ) अर्थ में शालूक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । शाव शब्द - १. शिशु (बच्चा) अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. शवसम्बन्धी अर्थ में शाव शब्द त्रिलिंग माना गया है । शावर शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. शवरस्वामिकृतभाष्य ( शवर स्वामी का बनाया हुआ शावर भाष्य ) और २. किल्विष (पाप) ३. तन्त्रान्तर (तन्त्र विशेष) और ४. लोध्रवृक्ष (लोध नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ५. अपराध ( दोष वगैरह ) को भी शावर शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : राजदत्तक्षितौ शास्त्रे लेखा - शास्त्योश्च शासनम् । शास्ता बुद्ध उपाध्याये पितरि क्षितिपालके ॥१६३३॥ शास्त्रं ग्रन्थे निदेशेऽथ शिखण्डो बर्ह-चूडयो: । शिखण्डकः काकपक्षे बहिपिच्छे तु नद्वयोः ॥ १६३४॥ हिन्दी टीका - शासन शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. राजदत्त क्षिति ( राजा द्वारा दी हुई पृथिवीभूमि) २. शास्त्र ३. लेखा (रेखा - लकीर ) और ४. शास्ति ( शासन करना) । शास्ता शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. बुद्ध (भगवान बुद्ध) २. उपाध्याय और ३. पिता तथा ४ क्षितिपालक (पृथिवी का पालन करने वाला राजा) । शास्त्र शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. ग्रन्थ और २. निदेश (आज्ञा हुकुम) । शिखण्ड शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. बर्ह (पिच्छ) और २. चूडा (मस्तक मौलि) । शिखण्डक शब्द १. काकपक्ष (लड़कों का जुड़ा जुल्फो शिखा ) अथ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. बर्हिपिच्छ ( मयूर मोर की पाँख) अर्थ में शिखण्डक शब्द नपुंसक ही माना गया है । मूल : शिखण्डकस्ताम्रचूडे शिखायां तु शिखण्डिका 1 शिखण्डिनी यूथिकायां मयूरी - गुञ्जयोरपि ॥१६३५॥ शिखण्डी पुंसि गोविन्दे विशिखे चरणायुधे । गांगेयारौ स्वर्णयूथी-गुञ्जयोः प्रचलाकिनि ॥१६३६।। हिन्दी टोका - पुल्लिंग शिखण्डक शब्द का अर्थ - १. ताम्रचूड (मुर्गी) भी होता है किन्तु २. शिखा (चोटी) अर्थ में शिखण्डिका शब्द का प्रयोग होता है । स्त्रीलिंग शिखण्डिनी शब्द के तोन अर्थ होते हैं - १. यूथिका ( जूही ) और २. मयूरी तथा ३. गुञ्जा (करजनी मूंगा चनौठी) । पुल्लिंग शिखण्डी शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. गोविन्द २. विशिख (धनुष बाण ) ३. चरणायुध (मुर्गा ) और ४. गांगेयारि (शिखण्डी जोकि द्रपद राजा का पुत्र था और जिसको आगे करके अर्जुन ने पीछे से भीष्म पर बा Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३३६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--शिखरिणी शब्द चलाया था) तथा ५. स्वर्णयूथो (पीले फूल वालो जूही) और ६. गुजा (चनौठो मूंगा) तथा ७. प्रचलीकी (मयूर-शिखायुक्त शिखा वाला)। मूल : छन्दोभेदे शिखरिणी रोमावल्यां वरस्त्रियाम् । मृद्वीका-मल्लिका-मूर्वा-रसाला सप्तलासु च ॥१६३७।। हिन्दी टीका-शिखरिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं-१. छन्दोभेद (छन्द विशेष-शिखरिणी छन्द) २. रोमावली (रोमपंक्ति) और ३ वरस्त्री (उत्तम नारी) ४ मृद्वीका (मुनाका-दाख) ५. मल्लिका (पवंतोय पुष्प विशेष) ६. मूवी (धनुष की डोरी) और ७. रसाला (दही खाँड़ घी मिर्च और सोंठ से बनाई हुई चटनी जिसको गुजरात में सिखरन या सिकरन कहते हैं तथा ८. सप्तला (बसन्ती नेवारी नवमालिका)। शिखरी ना तरौ शैले वन्दाके जलकुक्कुभे । कोट्टऽपामार्ग - कौलीरा-यावनालेषु कुन्दुरौ ।।१६३८॥ शिखा मयूरचूडायां केश पाश्यां स्मरज्वरे । प्रधाने प्रपदे रश्मौ शाखायां लाङ्गलीतरौ ॥१६३६।। हिन्दी टीका शिखरी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने गये हैं -१. तरु (वृक्ष) २. शैल (पर्वत) ३. वन्दाक (बाँदा, वन्दा -वृक्ष के ऊपर उत्पन्न बाँझ नाम का लता विशेष) और ४. जलकुक्कुभ (जल जन्तु विशेष वगैरह) तथा ५. कोट्ट (पुर का दुर्ग) ६. अपामार्ग (चिरचीरी) ७. कौलीर (कुलीर-कर्कट-काकोर का बच्चा) और ८. यावनाल (अलता का नाल) तथा ६. कुन्दुरु (पालक शाक)। शिखा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं—१. मयूर-चूडा (मोर को चूडा) २. केशपाशी (जूडा) ३. स्मरज्वर (कामज्वर) ४. प्रधान, ५. प्रपद (पाद का अग्र भाग) ६. रश्मि (किरण) ७. शाखा और ८. लाङ्गलीतरु (नारियल का वृक्ष या जलपीपरि का वृक्ष) इस प्रकार शिखा शब्द के आठ अर्थ जानने चाहिये। अग्रमात्र शिफायां च कीर्तिता दहनाचिषि । शिखावान् चित्रके केतुग्रहेऽग्नौ शिखिनि त्रिषु ॥१६४०॥ शिखी ना ब्राह्मणे वह्नौ घोटके कुक्कुटे शवे । केतुग्रहे बलीवर्दे मयूरे चित्रक द्रुमे ॥१६४१॥ हिन्दी टोका-शिखा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अग्रमात्र, २. शिफा (डाल की जड़ मूल भाग) और ३. दहनाचिष् (अग्नि की अचिष् ज्योति शिखा)। पुल्लिग शिखावान् शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ चित्रक (चीता) २. केतुग्रह, ३. अग्नि, किन्तु ४. शिखी (शिखायुक्त) उ.र्थ में शिखावान् शब्द त्रिलिंग माना जाता है । शिखी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने गये हैं१. ब्राह्मण, २. वह्नि (अग्नि) ३. घोटक (घोड़ा) ४. कुक्कुट (मुर्गा) ५. शव (मुर्दा) ६. केतुग्रह ७. बलीवर्द (साँड़) ८. मयूर और ६. चित्रकद्र म (एरण्ड का वृक्ष या चीता नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) को भी शिखा कहते हैं। मूल : पर्वते पादपे दीपे मेथिकायां सितावरे । अजलोमद्रुमे चासौ शिखा युक्त तु वाच्यवत् ।।१६४२॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शिखी शब्द | ३३७ शिन : शोभाञ्जने शाके पुमान् प्राज्ञ : प्रयुज्यते । काचपात्र तु शिघाणं नासिका-लोहयोर्मले ॥१६४३।। हिन्दी टीका-पुल्लिग शिखा शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं--१. पर्वत, २. पादप (वृक्ष) ३. दीप, ४. मेथिका (मेथी) ५. सितावर (सतावर नाम का औषध विशेष) और ६. अजोमद्रुम (अजलोम नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) किन्तु ७. शिखायुक्त अर्थ में शिखी शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) समझा जाता है। शिग्रु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शोभाजन (सुरमा) और २. शाक । शिघाण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. काचपात्र (मालो वगैरह) २. नासिकामल (श्लेष्म) और ३. लोहमल (किट्ट/जंग) को भी शिंघाण कहते हैं। शिजा शरासनज्यायां तथा ऽलंकरणध्वनौ । शिञ्जिनी नूपुरे चापगुणेऽपि भणिता बुधैः ॥१६४४॥ शितं वाच्यवदाख्यातं दुर्बले निशिते कृशे । शिति भूर्जद्रुमे पुंसि सारे कृष्णे सिते त्रिषु ॥१६४५॥ हिन्दी टीका-शिञा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शरासनज्या (प्रत्यंचा) २. अलंकरणध्वनि (नूपुर वगैरह का गुञ्जन)। शिञ्जिनी शब्द के भी दो अर्थ होते हैं—१. नूपुर और २. चापगुण (धनुष की डोरी)। शित शब्द विशेष्यनिघ्न है और उसके तीन अर्थ हैं-१. दुर्बल २ निशित (तीक्ष्ण) और ३. कृश (पतला)। पुल्लिग शिति शब्द का १. भूर्जद्रुम (भोजपत्र का वृक्ष) अर्थ होता है किन्तु त्रिलिंग शिति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सार २. कृष्ण (काला) और ३. सित (सफेद)। मूल : संयोगभेदे मान्थर्ये शिथिलं मन्दबन्धने । श्लथे वाच्यवदाख्यातं शिपिस्तु किरणेपि ना ॥१६४६॥ शिपिविष्टः शिवे विष्णौ खलतौ दुष्ट चर्मणि । शिफा वृक्षजटाकारमूले सरिति मातरि ॥१६४७।। हिन्दी टोका-नपुंसक शिथिल शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. संयोगभेद (संयोग विशेष) २. मान्थर्य (मन्थरता-शैथिल्य) और ३. मन्दबन्धन (ढीला बन्धन) किन्तु ४. श्लथ (ढीला) अर्थ में शिथिल शब्द वाच्यवद् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। शिपि शब्द-१. किरण अर्थ में भी पुल्लिग है। शिपिविष्ट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१. शिव, २. विष्णु, ३ खलति (वृद्ध) और ४. दुष्टचर्म (खराब चमड़ा)। शिफा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वृक्षजटाकारमूल (वृक्ष का जटा सरीखा मूल भाग) २. सरित् (नदो) और ३. माता। इस प्रकार शिफा शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : पद्मकन्दे हरिद्रायां मांसिका शतपुष्पयोः । शिरो ना पिप्पलीमूले शय्यायां मस्तके शयौ ॥१६४८॥ सेनाग्रे शिखरे मूनि प्रधाने च नपुंसकम् । शिरस्कं तु शिरस्त्राणे शिरः सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६४६॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - शिफा शब्द हिन्दी टीका-शिफा शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. पद्मकन्द (कमल का कन्दमूल) २. हरिद्रा (हल्दी) ३. मांसिका (मांस बेचना) और ४. शतपुष्पा (सोंफ) । पुल्लिग शिरस् शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. पिप्पलीमूल (पीपरि का मूल) २. शय्या, ३. मस्तक और ४. शयु (अजगर सांप) किन्तु नपुंसक शिरस् शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. सेनान (सेना का अग्र भाग) २. शिखर (पर्वत की चोटी) ३. मूर्धा (मस्तक) तथा ४. प्रधान (मुख्य) । नपुंसक शिरस्क शब्द का अर्थ- १. शिरस्त्राण (टोप) होता है किन्तु २. शिरः सम्बन्धी अर्थ में शिरस्क शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार शिरस्क शब्द के दो अर्थ समझने चाहिए। मूल : शिरि र्ना विशिखे हिंस्र निस्त्रिशे शलभे मतः । शिलं स्याज्जीवनोपायभेद उञ्छे तु न स्त्रियाम् ॥१६५०॥ शिला मन:शिला-ग्राव-द्वाराधः स्थितदारुषु । कर्पू रे स्तम्भशीर्षेऽथ शिलाज गिरिजेऽयसि ॥१६५१॥ हिन्दी टीका-शिरि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विशिख (धनुष बाण) २. हिंस्र (घातक) ३. निस्त्रिश (खडग) और ४. शलभ (पतंग पक्षी वगैरह)। नपंसक शिल शब्द का अर्थ१. जीवनोपायभेद (जीवनोपाय विशेष) किन्तु २. उञ्छ (कण-कण बांधना, चुनना) अर्थ में शिल श पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है । शिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. मनःशिला (मनशिल शंख, मर्मरपत्थर) २. ग्राव (पत्थर) ३. द्वाराधःस्थितदारु (द्वार के नीचे के भाग की लकड़ी) ४. कपूर और ५. स्तम्भशीर्ष (खम्भे का ऊपरी भाग)। शिलाज शब्द का एक अर्थ होता है-१. गिरिजा अयस् (शिलाजीत पत्थर या लोहा) इस प्रकार शिलाज शब्द का एक ही अर्थ समझना चाहिए। शिलासनं तु शैलेये पाषाणरचितासने । शिलीन्ध्र करका-रम्भा-कुसुम-त्रिपुटासु च ॥१६५२॥ शिलीन्ध्री मृत्तिका-गण्डूपद्योः शकुनिकान्तरे । शिलीमुखो जडीभूते विशिखे भ्रमरे मृधे ॥१९५३॥ हिन्दो टोका-शिलासन शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शैलेय (शिलाजीत) और २. पाषाणरचितासन (पत्थर का बनाया हुआ आसन विशेष-चबूतरा)। शिलीन्ध्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं–१ करका (ओला) २. रम्भा (केला) ३ कुसुम (फूल) और ४. त्रिपुटा (इलायची । स्त्रीलिंग शिलीन्ध्री शब्द के तीन अर्थ होते हैं -१. मृत्तिका (मट्टी) २. गण्डूपयो (केंचुए की छोटी जाति) और ३. शकुनिकान्तर (शकुनिका विशेष पक्षी) । शिलीमुख शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. जडोभूत (स्तब्ध क्षुब्ध) २. विशिख (बाण) ३. भ्रमर और ४. मृध (संग्राम) इस प्रकार शिलीमुख शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। मूल : शिवं शुभे सुखे नीरे सैन्धवे श्वेतटङ्कणे । शिवो महेश्वरे वेदे पारदे कीलकग्रहे ॥१६५४॥ वालुके कृष्णधुस्तूरे पुण्डरीकद्रुमे सुरे। मोक्षे योगान्तरे लिंगे गुग्गुलौ च प्रकीर्तितः ॥१६५५॥ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शिव शब्द | ३३६ हिन्दी टोका-नपुंसक शिव शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. शुभ, २. सुख, ३. नीर (जल) और ४. सैन्धव (घोड़ा या नमक) तथा ५. श्वेतटङ्कण (सफेद टांकण)। पुल्लिग शिव शब्द के बारह अर्थ माने गये हैं-१. महेश्वर (भगवान शंकर) २. वेद, ३. पारद (पारा) ४. कीलकग्रह (खील काँटी वगैरह) ५. वालुक (रेती) ६. कृष्ण धुस्तूर (काला धतूर) ७. पुण्डरीकद्र म (कमल का या औषध विशेष का वृक्ष) ८. सुर (देवता) ६. मोक्ष, १०. योगान्तर (योग विशेष) ११. लिंग (मूत्रेन्द्रिय) और १२. गुग्गुलु । विष्णौ शैवे भङ्गरीटे शिवकीर्तन ईरितः । शिवा गौर्यां हरीतक्यां मुक्तौ दूर्वा-हरिद्रयोः ॥१६५६।। गोरोचना - तामलकी - शृगालेषु शमीतरौ । आमलक्यां बुद्धशक्ति विशेषे च प्रकीर्तिता ॥१६५७॥ हिन्दी टीका-शिवकीर्तन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. विष्णु, २. शैव (शिवभक्त) और ३. भृङ्गरीट (भृङ्गरीट नाम का पक्षी विशेष) । स्त्रीलिंग शिवा शब्द के ग्यारह अर्थ माने जाते हैं१. गौरी (पार्वती) २. हरीतकी (हरे) ३. मुक्ति (मोक्ष) ४. दूर्वा (दूभी) ५. हरिद्रा (हलदी) ६. गोरोचना (गोलोचन) ७. तामलकी (भूई आंवला, छोटा आँवला) ८. शृगाल (गीदड़नी) और ६. शमीतरु (शमी का वृक्ष) तथा १०. आमलकी (आँवला) और ११. बुद्ध शक्ति विशेष (भगवान बुद्ध की शक्ति विशेष) को भी शिवा कहते हैं। मूल : शिवि नपान्तरे भूर्जतरौ हिस्रपशौ च ना । शिबिरो ना निवेशे स्यात् क्लीवन्तु रणसमनि ॥१६५८।। शिशिरो ना हिमे प्रोक्तः शीत” त्वस्त्रियामसौ। शिशुकः शिशुमारे स्यादु वृक्षभेदे च बालके ॥१६५६॥ हिन्दी टीका-शिवि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नृपान्तर (नृप विशेष-शिवि राजा) २. भूर्जतरु (भोज पत्र का वृक्ष) ३. हिंस्रपशु (घातक पशु विशेष) । पुल्लिग शिबिर शब्द का अर्थ १. निवेश (निवास स्थान वगैरह) किन्तु नपुंसक शिबिर शब्द का अर्थ २. रण सद्म (सेनाओं के ठहरने का स्थान) है । पुल्लिग शिशिर शब्द का अर्थ–१. हिम (बर्फ पाला) होता है किन्तु २. शीत ऋतु (शियाला) अर्थ में शिशिर शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना गया है। शिशुक शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. शिशुमार (जलचर उद्र मगर वगैरह) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष शिंशप वगैरह) तथा ३. बालक (बच्चा) को भी शिशुक कहते हैं। शिशुमारोऽम्बु सम्भूतजन्तौ तारात्मकाच्युते । सभ्ये शान्ते सुबुद्धौ च धीरे शिष्ट स्त्रिषु स्मृतः ॥१६६०॥ शिक्षा वेदाङ्ग भेदे स्यात् शिक्षणे शोणकद्रुमे । शिक्षितास्त्रिषु निष्णाते शिक्षायुक्त ऽप्यसौ मतः॥१९६१।। हिन्दी टीका-शिशुमार शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. अम्बुसम्भूतजन्तु (जल में उत्पन्न जलचर जन्तु विशेष-उँद्र मगर वगैरह) और २. तारात्मकाच्युत (तारक भगवान्) । शिष्ट शब्द त्रिलिंग मूल : Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३४. | नानार्थोदयसागर कोष :हिन्दी टीका सहित-शीकर शब्द है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सभ्य, २. शान्त, ३. सुबुद्धि (बुद्धिमान) और ४. धीर । शिक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वेदाङ्ग भेद (वेदाङ्ग विशेष-व्याकरणादि षड् वेदाङ्गों में शिक्षा नाम का वेदाङ्ग) २. शिक्षण और ३. शोणकद्र म (शोणक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष)। शिक्षित शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. निष्णात (पारंगत) और २. शिक्षायुक्त (शिक्षित पढ़ा लिखा मनुष्य)। शीकरो मारुते वायुप्रेरिताम्बुकणासु च। शीघ्र लामज्जके तूर्णे शीघ्रगो नाऽनिले हये ।।१६६२।। असौ वाच्यवदाख्यातस्त्वविलम्बित गामिनि । शीतं हिमगुणे नीरे त्वचेऽपि क्लीवमीरितम् ॥१९६३॥ हिन्दी टोका-शीकर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. मारुत (पवन) और २. वायु प्रेरिताम्बुकण (पवन के द्वारा उड़ाया गया जल कण)। शीघ्र शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. लामज्जक (खश) और २. तूर्ण (जल्दी)। शीघ्रग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं१. अनिल (पवन) और २. हयं (घोड़ा) किन्तु ३. अविलम्बितगामी (शोघ्र जाने वाला) अर्थ में शीघ्रग शब्द वाच्यवत् विशेष्यनिघ्न त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक शीत शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं१. हिमगुण (शैत्य ठण्डक) २. नीर (पानी) और ३. त्वच (त्वचा) किन्तु पुल्लिग शीत शब्द के दस अर्थ आगे कहे जायेंगे। शीतो ना पर्पटे निम्बे कर्पू रे बहुवारके । वेतसेऽशनपर्यों च हेमन्तेऽपि प्रकीर्तितः ॥१६६४॥ वाच्यवतूदितः सद्भिः शीतले क्वथितेऽलसे । शीतक: सुस्थिते शीतसमये दीर्घसूत्रिणि ॥१६६५।। हिन्दी टोका-पुल्लिग शीत शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. पर्पट (पपरी) २. निम्ब (लिमड़ा) ३. कर्पूर ४. बहुवारक (बहुआर, लसोड़ा, उद्दाल) और ५. वेतस (वेत) और ६. अशनपर्णी (असनपर्णी नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ७ हेमन्त (हेमन्त ऋतु)। किन्तु ८. शीतल (ठण्डा) और ६. क्वथित (उकाला हुआ) तथा १०. अलस (आलसी)--इन तीनों अर्थों में शीत शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । शीतक शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सुस्थित, २. शीत समय (शियाला) और ३. दीर्घसूत्री (आलसी)। मूल : प्रदीपे दर्पणे सद्भिः प्रोक्तो ना शीतचम्पकः । महा समंगा काकोल्योः प्रोक्ता स्त्री शीतपाकिनी॥१६६६।। शीतलं पुष्पकासीसे शैत्य - चीरणमूलयोः । मौक्तिके पदुमके शीत शिवे श्रीखण्ड-चन्दने ॥१६६॥ हिन्दो टोका-शीत चम्पक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. प्रदीप, २. दर्पण। शीतपाकिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं--१. महासमंगा (वृक्ष मूल : Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - शीतल शब्द | ३४१ : विशेष कगहिया) २. काकोली (काकोली नाम की प्रसिद्ध औषधि लता विशेष ) । शीतल शब्द नपुंसक है। और उसके सात अर्थ होते हैं - १. पुष्पकासीस (पुष्पकासीस नाम का वृक्ष विशेष) २. शैत्य ( ठण्डक ) और ३. वीरणमूल (डाँगर घास का मूल भाग ) ४. मौक्तिक (मुक्ता) ५. पद्मक ( कमल वगैरह ) ६. शीतशिव ( शैलेय नाम गन्ध द्रव्य - रन्दूच - छलिया ) और ७. श्रीखण्ड चन्दन । इस प्रकार शीतल शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : शीतल: पुंसि कर्पूरप्रभेदे चम्पकेऽशनपर्यां च चन्द्रे राले व्रतान्तरे चासौ त्रिषु शीतगुणान्विते । शीता मन्दाकिनी - दूर्वा ऽतिबला जानकीषु च ॥१६६६ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग शीतल शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं - १. कर्पूरप्रभेद (कर्पूर विशेष ) २. बहुबारक (बहुआर वगैरह ) ३. चम्पक ४. असनपर्णी, ५. चन्द्र और ६. तीर्थंकरान्तर (तीर्थंकर विशेष ) ७. राल (राल धूप) और 5. व्रतान्तर (व्रत विशेष ) किन्तु ७. शीत गुणान्वित (ठण्डा) अर्थ में शीतल शब्द त्रिलिंग माना गया है । शीता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. मन्दाकिनी ( आकाश गंगा) २. दूर्वा (दूभी) ३. अतिबला और ४. जानकी (सीता) । मूल : बहुवार | तीर्थंकरान्तरे ॥ १८६८ ॥ कुटुम्बिनी शिल्पिकाSSख्य तृणयो हेलपद्धतौ । शीनं त्रिषु घनाऽऽज्यादौ वैधेयेऽजगरे पुमान् ॥१६७०॥ शीर्णं स्थौणेयके क्लीवं वाच्यवत् कृश - शुष्कयोः । शीर्णपत्रः कर्णिकारे पट्टिकालोध्र - निम्बयोः ॥१६७१॥ हिन्दी टीका - शीता शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. कुटुम्बिनी, २. शिल्पिकाssख्यतृण और ३. हलपद्धति (सिराउर ) । त्रिलिंग शीन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. घनाऽऽज्यादि ( जमा हुआ घी वगैरह) २. वैधेय (मुर्ख) किन्तु ३. अजगर अर्थ में शीन शब्द पुल्लिंग माना जाता है। नपुंसक शीर्ण शब्द का अर्थ १. स्थौणेयक (कुकरौन्हा या गठिवन ) किन्तु २. कृश ( पतला ) और ३. शुष्क अर्थ में शीर्ण शब्द विशेष्यनिघ्न माना जाता है । शीर्णपत्र शब्द का अर्थ - १. कर्णिकार (कनैल) और २. पट्टिकालोध्र तथा ३. निम्ब होता है । मूल : मस्तके च शिरोऽस्थनि । शिरो रक्षणसन्नाहे जय-पराजयपत्रे शीर्षकं ना विधुन्तुदे ॥ १६७२ ॥ शीर्षण्यं शीर्ष रक्षेऽसौ पुल्लिंगो विशदे कचे । शीलं भावे ब्रह्मचर्ये रागद्वेष विवर्जने ॥ १९७३ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक शीर्षक शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शिरोरक्षणसन्नाह (टोप) २. मस्तक, और ३. शिरोऽस्थि ( मस्तक की हड्डी) तथा ४. जयपराजयपत्र ( हार जीत सूचक प्रमाण पत्र ) किन्तु ५. विधुन्तुद (राहु) अर्थ में शीर्षक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । नपुंसक शीर्षण्य शब्द का अर्थ१. शीर्ष रक्ष (टोप) होता है किन्तु २. विशद (स्वच्छ ) और ३. कच ( केश) अर्थ में शीर्षण्य शब्द पुल्लिंग माना गया है । नपुंसक शील शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. भाव (स्वभाव) २. ब्रह्मचर्य और ३. रागद्वेषविवर्जन ( रागद्वेष को छोड़ना) । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-शील शब्द मूल : ब्रह्मण्यतादौ सद्वत्ते शीलो नाऽजगरे स्मृतः । शुकं वस्त्रे शिरस्त्राणे ग्रन्थिपणे पटाञ्चले ॥१९७४॥ शोणकेऽथ शुकः कीरे व्यासपुत्रे मान्तरे। शिरीष पादपे लंकापति मन्त्रिण्यापि स्मृतः ।।१६७५।। हिन्दी टीका-पुल्लिग शील शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. ब्रह्मण्यतादि (ब्रह्मनिष्ठता ब्राह्मणपना वगैरह) २ सवृत्त (समीचीन आचरण वाला) और ३. अजगर (अजगर सर्प) इन तीनों अर्थों में शील शब्द पुल्लिग माना गया है । नपुंसक शुक शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वस्त्र, २. शिरस्त्राण (टोप) ३ ग्रन्थिपर्ण (कुकरौन्हा या गठिवन) और ४. पटाञ्चल (वस्त्र का अञ्चल) तथा ५. शोणक (सोना पाठा)। पुल्लिग शुक शब्द के भी पाँच अर्थ माने गये हैं-१. कीर (पोपट शूगा) २. व्यास पुत्र (शुकाचार्य) ३. द्रमान्तर (वृक्ष विशेष) और ४. शिरीषपादप (शिरीष का वृक्ष) तथा ५. लंकापतिमन्त्री (लंकापति-रावण का मन्त्री) को भी शुक शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : शुक्त मांसे द्रवद्रव्य विशेषे काजिकेऽपि च । । त्रिष्वसौ निष्ठुरे श्लिष्टे पूतेऽम्ले निर्जने मतः ॥१९७६।। चुक्रिकायां तु शुक्ता स्त्रीशुक्तिमौक्तिकमातरि । मुक्तास्फोटे चुक्रिकायां शुक्तिका कीर्तितास्त्रियाम् ॥१६७७।। हिन्दी टीका-नपुंसक शुक्त शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. माँस, २. द्रवद्रव्यविशेष और ३. काजिक (काँजी-खट्टा) । किन्तु त्रिलिंग शुक्त शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. निष्ठुर (कठोर) २. श्लिष्ट (श्लेषयुक्त परस्पर सम्वद्ध) ३. पूत (पवित्र) ४. अम्ल (खट्टा) और ५. निर्जन । स्त्रीलिंग शुक्ता शब्द का अर्थ-१. चुक्रिका (नोनी शाक जो कि स्वयं कुछ नमकीन होता है)। स्त्रीलिंग शुक्ति शब्द का अर्थ - २. मौक्तिकमाता (मुक्तामणि की जननी) होता है क्योंकि शुक्ति में मौक्तिक मणि पैदा होता है । शुक्तिका शब्द भी स्त्रीलिंग माना गया है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. मुक्तास्फोट (सीप) और २. चुक्रिका (नोनी शाक) इस प्रकार शुक्तिका शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। शुक्रो दैत्यगुरौ वह्नौ ज्येष्ठे चित्रकपादपे । शुक्रतु लोचनव्याधि विशेषे रेतसि स्मृतम् ॥१९७८।। शुक्लं स्याद् रजते नेत्ररोगाविशेष-नवनीतयोः । शुक्लो ना धवले शक्रयोग-पाण्डरपक्षयोः ॥१६७६।। हिन्दी टोका-पुल्लिग शुक्र शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं -१. दैत्यगुरु (शुक्राचार्य) २. वह्नि (अग्नि) ३. ज्येष्ठ (जेठ मास) और ४. चित्रकपादप (चीता नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष)। नपुंसक शुक्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. लोचनव्याधिविशेष (आँख का रोग विशेष) और २. रेतस् (वीर्य) । नपंसक शुक्ल शब्द के तीन अर्थ होते हैं ....१. रजत (चाँदी) २. नेत्ररोग विशेष और ३. नवनीत (मक्खन)। पुल्लिंग शुक्ल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. धवल (सफेद) २. शनयोग (इन्द्रयोग वगैरह) और ३. पाण्डरपक्ष (शुक्ल पक्ष) इस प्रकार शुक्ल शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए। मूल : Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शुक्ल शब्द | ३४३ मूल : असौ वाच्यवदाख्यातः सद्भिः शुक्लगुणान्विते । शुक्लपक्षे श्वेतवर्णे शुक्लकः परिकीर्तितः ॥१६८०॥ रजते नवनीते ऽक्षिरोगे शुक्लं नपुंसकम् । शुक्लो ना धवले शक्रयोगाऽतिस्वच्छपक्षयोः ॥१९८१॥ हिन्दी टोका- शुक्लगुणान्वित (शुक्ल गुणयुक्त) अर्थ में शुक्ल शब्द वाच्यवद् (विशेष्यनिधन) माना जाता है। शुक्लक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं—१. शुक्लपक्ष और २. श्वेतवर्ण । नपुंसक शुक्ल शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. रजत (चाँदी) २. नवनीत (मक्खन) और ३. अक्षिरोग (आँख का रोग विशेष भाग) को भी शुक्ल शब्द से व्यवहार किया जाता है। पुल्लिग शुक्ल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धवल (सफेद) २. शक्रयोग (इन्द्रयोग विशेष) और ३. अतिस्वच्छपक्ष (अत्यन्त सफेदयुक्त पक्षशुक्लपक्ष) इस प्रकार पुल्लिग और नपुंसक शुक्ल शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए । मूल : श्वेतैरण्डे ध्यानभेदे त्रिषु शुक्लगुणान्विते । शुक्ला विदार्यां काकोली-भारती-शर्करासु च ॥१६८२॥ स्नुह्यां धवलवर्णायां शुङ्गस्तु वट-शूकयोः । आम्रातकेऽथ शुङ्गा स्यात् प्लक्ष धान्यादिशूकयोः ॥१६८३॥ हिन्दो टोका-त्रिलिंग शुक्ल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. श्वेतैरण्ड (सफेद एरण्डदीबेल) २. ध्यानभेद (ध्यान विशेष-शुक्लध्यान) और ३. शुक्लगुणान्वित (श्वेत गुणयुक्त)। स्त्रीलिंग शुक्ला शब्द के छह अर्थ माने गये हैं-१. विदारी (कृष्ण भूमि कूष्माण्ड-कोहला कुम्हर) २. काकोली नाम की प्रसिद्ध औषधि विशेष) ३. भारती (सरस्वती) ४. शर्करा (खांड शक्कर चीनी) ५. स्नुही (सेहुण्ड) और ६. धवलवर्णा (सफेद वर्ण वाली वस्तु) । शुङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वट (वटवृक्ष) २ शूक (शूङ) और ३. आम्रातक (आमड़ा)। स्त्रीलिंग शुङ्गा शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. प्लक्ष (पाकर) और २. धान्यादिशूक (धान वगैरह का शूङ) को भी शुङ्गा कहते हैं। मूल : नवपल्लव कोश्यां च शुङ्गी-प्लक्षे वटेऽपि ना। शुचि ीष्मे ज्येष्ठमासे सौराग्नौ चित्रकद्रुमे ॥१९८४॥ शुद्धमन्त्रिणि शृङ्गाररसे भास्कर-चन्द्रयोः । आषाढ़मासे शुक्र च शुक्लवर्णे द्विजन्मनि ॥१६८५॥ हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग शुङ्गी शब्द का अर्थ-१. नवपल्लवकोशी (नूतन पल्लव का कोश) किन्तु २. वट और ३. प्लक्ष (पाकर) अर्थ में शुङ्ग शब्द पुल्लिग माना जाता है। शुचि शब्द पुल्लिग है और उसके बारह अर्थ होते हैं-१. ग्रीष्म, २. ज्येष्ठमास (जेठ महीना) ३. सौराग्नि (सूर्य सम्बन्धी अग्नि) और ४. चित्रकद्र म (चीता नाम का वृक्ष) तथा ५. शद्धमन्त्री (पवित्र विचार वाला मन्त्री) और ६. शङाररस तथा ७. भास्कर (सूर्य) एवं ८. चन्द्र ६. आषाढ़मास, १०. शुक्र (वीर्य वगैरह) ११. शुक्लवर्ण और १२. द्विजन्मा (ब्राह्मण वगैरह द्विजाति) को भी शुचि कहते हैं। मूल : शुद्धेऽनुपहते शुक्लवर्णयुक्त शुचि स्त्रिषु । शुण्डा नलिन्यां कुट्टन्यां मदिरा-वारयोषितोः ।१६८६॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - शुचि शब्द हस्तिहस्तेऽम्बु हस्तियां मद्यपानगृहेऽपि च । मरिचे सैन्धवे शुद्धे शुद्धस्तु त्रिषु केवले ।।१६८७॥ हिन्दी टोका –त्रिलिंग शुचि शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शुद्ध २. अनुपहत (ताजा) और ३. शुक्ल वर्ण युक्त । शुण्डा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. नलिनी (कमलिनी) २. कुट्टनी ( खराब चाल चलन की स्त्री) ३. मंदिरा (शराब) और ४. वारयोषित् (वेश्या) तथा ५ हस्ति हस्त (हाथो का सूड़ और ६. अम्बुहस्तिनी और ७. मद्यपान गृह ( शराब खाना ) । नपुंसक शुद्ध शब्द का अर्थ - १. मरीच और २. सैन्धव (घोड़ा या नमक ) होता है किन्तु पुल्लिंग शुद्ध शब्द का अर्थ - १. केवल (विशुद्ध या अकेला ) होता है । मूल : मरिचे सैन्धवे शुद्धं शुद्धस्तु त्रिषु केवले । शुक्ले पवित्रे निर्दोषे रागे रागान्तरायुते || १६८८॥ शुन्यं शुनी समूहे स्याद् रिक्तऽसौ वाच्यवत् स्मृतम् । शुभंश्वः श्रेयसे पदुमकाष्ठे योगान्तरेतु ना ॥१६८६॥ हिन्दी टीका - नपुंसक शुद्ध शब्द के अर्थ माने गये हैं - १. मरिच (कालीमरी) और २. सैन्धव (नमक या घोड़ा ) किन्तु त्रिलिंग शुद्ध शब्द के छह अर्थ होते हैं - ३. केवल ( अकेला ) ४. शुक्ल (सफेद) ५. पवित्र, ६. निर्दोष (दोष रहित) ७. राग और ८. रागान्तरायुत (अन्यराग से असम्बद्ध) । नपुंसक शुन्य शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) समझा जाता है । नपुंसक शुभ शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. श्वः श्रेयस् (कल्याण) और २. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष ) किन्तु ३. योगान्तर (योग विशेष) अर्थ में शुभ शब्द पुल्लिंग माना जाता है । मूल : त्रिष्वसौ व्योमसंचारिपुरे कल्याणशालिनि । शुभा देवसभा - शोभा - वाञ्छा - गोरोचनासु च ॥ १६६०॥ शमीद्रुमे श्वेत दूर्वा - वंशरोचनयोरपि । प्रियंगो पार्वती सख्यां मांगलिक्यामपि स्मृता ॥ १६६१ ॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग शुभ शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. व्योमसंचारिपुर (आकाश में संचरण शील नगर गन्धर्व नगर) और २. कल्याणशाली (कल्याण से युक्त) को भी शुभ कहते हैं । स्त्रीलिंग शुभा शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. देवसभा ( देवों की सभा ) २. शोभा, ३. वाञ्छा (अभिलाषा) और ४. गोरोचना (गोलोचन) को भी शुभा कहते हैं । शुभा शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं- १. शमीद्रम ( शमी का वृक्ष) २. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) और ३. वशरोवना (वंशलोचन ) तथा ४. प्रियंगु ( प्रियंगु नाम की लता विशेष) और ५. पार्वतीसखी (शुभा नाम की पार्वती को सहेली ) और ६. मांगलिकी (कल्याणमयी) i मूल : शुभमभ्रक - कासीस- रोप्य - गड्लवणेषु च । शुभ्रोना चन्दने शुक्लवर्णेऽसौ वाच्यवत् सिते ।।१६६२॥ शुल्कोऽस्त्रियां वरादर्थग्रह - घट्टादिदेययोः । शुल्वं तामे जला सन्ने रज्ज्वा वध्र्वरकर्मणि ॥ १६६३ || Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शुभ्र शब्द | ३४५ हिन्दी टोका-नपुंसक शुभ्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१ अभ्रक (अबरख) २. कासीस (कासीस नाम का गुल्म विशेष) ३. रोप्य (रूपा) और ४. गड्लवण (विट् नमक)। पुल्लिग शुभ्र के दो अर्थ होते हैं- १. चन्दन और २. शुक्लवर्ण किन्तु ३. सित (सफेद) अर्थ में शुभ्र शब्द वाच्यवत (विशेष्य निघ्न) माना जाता है । शुल्क शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. वरादर्थग्रह (वर से अर्थ-धन-रुपया लेना) और २. घट्टादिदेय (खेबा वगैरह)। शुल्व शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ ताम्र (तांबा) २. जलासन्न (पानी के निकट) और ३. रज्जु (डोरी) और ४. अध्वर कर्म (यज्ञ कर्म) को भी शुल्व कहते हैं। मूल : शुश्रूषा श्रोतुमिच्छायामुपास्तौ कथनेऽप्यसौ। शुषो ना शोषण गर्ते शुषिः स्त्री बिल-शोषयोः ॥१६६४॥ वंश्यादि वाद्ये विवरे शुषिरं छिद्रिते त्रिषु । शुषिरः पुंसि दहने मूषिके: शुषिरा क्षितौ ॥१६६५।। हिन्दी टोका-शुश्रूषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. श्रोतुमिच्छा (सुनने की इच्छा) २. उपास्ति (सेवा-उपासना) और ३. कथन । १ शोषण (शोषित करना) और २. गर्त (खड्ढा) अर्थ में शुष शब्द पुल्लिग माना जाता है । शुषि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. बिल (छेद) और २. शोष (शोषण करना, सुखाना) । नपंसक शषिर शब्द के दो अर्थ होते हैं१. वंश्यादिवाद्य (बंशी बांसुरी वगैरह वाद्य विशेष) और २. विवर (छिद्र-बिल) किन्तु ३. छिद्रित (छिद्रयुक्त) अर्थ में शुषिर शब्द त्रिलिंग माना गया है। पुल्लिग शुषिर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. दहन (आग) और २. मूषिक (चूहा) किन्तु स्त्रीलिंग शुषिरा शब्द का अर्थ-१. क्षिति (पृथिवी) होता है। तरंगिण्यां नलीनामगन्धद्रव्येऽप्यसौ मता। शुष्मः सूर्येऽनले वाया वचिष्यपि विहंगमे ॥१६६६॥ शूकोऽस्त्री श्लक्ष्ण तीक्ष्णाने जलजन्तावनुग्रहे । शूनाऽधोजिबिकायां स्यात् वधस्थाने शरीरिणाम् ॥१६६७।। हिन्दो टोका-स्त्रीलिंग शुषिरा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं -१. तरंङ्गिणी (नदी) और २. नली नाम गन्ध द्रव्य (मालकांगणी-विद्र मलता)। शष्म शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. अनल (अग्नि) ३. वायु (पवन) ४. अचिष् (ज्योति किरण वगैरह) और ५. विहंगम (पक्षी) । शुक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. श्लक्ष्ण-तीक्ष्णाग्र (चिक्कण) और तीक्ष्ण का अग्र भाग) २. जलजन्तु (जलचर प्राणी) और ३. अनुग्रह (कृपा) । शूना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. अधोजिबिका (नीचे की तरफ जीभ वाले प्राणी) और २. शारीरिणां वध स्थान (प्राणियों का वध स्थान-शूली) को भी शूना कहते हैं । मूल : शून्यं नभसि विन्दौ च शून्यो निर्जन-रिक्तयोः । शून्यमध्यो नले शून्यगर्भवस्तुनि तु त्रिषु ॥१६६८॥ शुन्यवादी सौगते ना नास्तिके च प्रयुज्यते । शून्या महाकण्टकिन्यां नलिका-बन्ध्ययोरपि ॥१६६६।। मूल : | Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - शून्य शब्द हिन्दी टीका - नपुंसक शून्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. नभस् (आकाश) और २ बिन्दु । पुल्लिंग शून्य शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं- १. निर्जन ( एकान्त) और २. रिक्त (खाली) । पुल्लिंग शून्यमध्य शब्द का अर्थ - १ नल (नल राजा होता है क्योकि उसकी कमर अत्यन्त पतली थी ) किन्तु २. शून्यगर्भवस्तु (गर्भ शून्य पदार्थ) अर्थ में शून्य मध्य शब्द त्रिलिंग माना गया है । शून्यवादी नकारान्त पुल्लिंग शब्द का अर्थ - १. सौगत (बौद्ध) होता है और २ नास्तिक (वेद को नहीं मानने वाला) अर्थ ' भी शून्यवादी शब्द का प्रयोग किया जाता है । स्त्रीलिंग शून्या शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. महाकण्टकिनी (कटाढ़ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष जिसमें अत्यन्त नुकीले काँटे होते हैं) और २. नालिका (नली) को भी शून्या कहते हैं और ३. बन्ध्या (बाँझ स्त्री) को भी शून्या कहा जाता है । मूल : शूरः सूर्ये भटें सिंहे श्रीकृष्णस्य पितामहे । शूकरे लकुचे साले मसूरे चित्रकद्रुमे ॥२०००|| शूर्पेस्त्रियां द्रोणयुग्ममाने प्रस्फोटनेऽपि च । शूर्पी शूर्पणखायां स्यात् लघु शूर्पेऽप्यसौ मता ॥ २००१ ॥ हिन्दी टीका - शूर शब्द के नौ अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. भट, ३. सिंह, ४. श्रीकृष्ण-पितामह ( भगवान कृष्ण के दादा) और ५. शूकर ६. लकुच (लीची) ७. साल (साँखु ) ८. मसूर और चित्रकद्रम (चीता नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) । पुल्लिंग तथा नपुंसक शुत्र शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. द्रोण युग्ममान (आधा मन) और २. प्रस्फोटन (सूप) । स्त्रीलिंग शूर्पी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. शूर्पणखायां ( शूर्पणखा नाम की राक्षसी) और २. लघु शूर्प (छोटा सूप) को भी शूर्पी कहते हैं । मूल : शूलावारस्त्रियां दुष्टवधार्थे कीलकेऽप्यसौ । शूलिकः शशके पुंसि शूलयुक्त े त्वसौ त्रिषु ||२००२॥ श्रृङ्गन्तु शिखरे चिह्न वाद्यभेद-विषाणयोः । जो विशिखे पुंसि क्लीवन्तु अगरुणि स्मृतम् ।।२००३॥ हिन्दी टीका - शूला शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. वारस्त्री (वेश्या) २. दुष्टवधार्थ कीलक (दुष्ट के वध के लिये शूली ) । १. शशक ( खरगोश ) अर्थ में शूलिक शब्द पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. शूलयुक्त अर्थ में शूलिक शब्द त्रिलिंग माना जाता है । श्रृङ्ग शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शिखर (चोटी) २. चिह्न ३ वाद्यभेद (वाद्यविशेष) और ४. विषाण (सींग ) । श्रृंगज शब्द १. विशिख (बाण) अर्थ पुल्लिंग है किन्तु २. अगुरु (अगुरु तगर ) अर्थ में श्रृंगज शब्द नपुंसक माना जाता है । मूल : श्रृंगाटकं खाद्यभेदे जलसूच्यां चतुष्पथे । शृङ्गारमार्दके चूर्णे कालागुरु - लवंगयोः ॥२००४॥ सिन्दूरेऽसौ तु पुल्लिंगः सुरते गजभूषणे । तथा नाट्यरसेऽप्युक्तः शृंगारी गज - पूगयोः || २००५ ।। हन्दी टीका - श्रृङ्गाटक शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. खाद्यभेद (खाद्य विशेष सिंहरहार ) २. जल सूची और ३. चतुष्पथ ( चौराहा ) । नपुंसक श्रृङ्गार शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. आर्द्रक Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शृंगिणी शब्द | ३४७ (अदरख-आदू) २. चूर्ण, ३. कालागुरु (काला अगरु) और ४. लवंग किन्तु पुल्लिग श्रृगार शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं—१. सिन्दर (कम) २. सरत (संभोग) ३. गजभूषण (हाथी का भूषण विशेष) तथा ४. नाट्यरस (श्रृगार नाम का रस विशेष) । श्रृंगारी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गज (हाथी) और २. पूग (सुपारी कसैली या समूह) इस प्रकार शृंगारी शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : शृगिणी मल्लिकावृक्षे गवि ज्योतिष्मतीतरौ । शृंगी गजे गिरौ वृक्षे शृगयुक्तत्वसौ त्रिषु ॥२००६॥ शृगी स्त्री मद्गुरीमत्स्यां तथा मण्डन हेमनि। शेखरस्तु शिखामाल्ये तथा गीत-ध्र वान्तरे ॥२००७॥ हिन्दी टोका-शृंगिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. मल्लिका वक्ष, २. गौ और ३. ज्योतिष्मती तरु (मालकांगनी का वृक्ष विशेष)। पुल्लिग नकारान्त शृंगी शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. गज (हाथी) २. गिरि (पर्वत) ३. वृक्ष किन्तु ४. शृंगयुक्त अर्थ में शृंगी शब्द त्रिलिंग माना गया है। स्त्रीलिंग शृंगी शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. मद्गुरीमत्स्यी (मद्गुरी नाम की मछलीमोमरी) और २. मण्डनहेम (भूषण सुवर्ण)। शेखर शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते है१. शिखामाल्य (शिरोमाला) और २. गीत ध्र वान्तर (गीत का ध्रुव ताल विशेष)।। मूल : शेखरं तु लवंगे स्यात् शिग्न मुलेऽपि कीर्तितम् । शेषः संकर्षणेऽनन्ते वधेऽपि मतंगजे ॥२००८॥ शैलाटो देवले सिहे शुक्ल-काच-किरातयोः । शूलोऽस्त्रीकेतने योग-रोग - शस्त्रान्तरेषु च ॥२००६॥ हिन्दी टीका-- नपुंसक शेखर शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. लवंग और २. शिग्रमूल (सहिजन का मूल भाग)। शेष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. संकर्षण (बलराम) २. अनन्त (शेषनाग) ३ वध और ४. मतंगज (हाथी)। शैलाट शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. देवल (पुजारी) २. सिंह, ३. शुक्लकाच (सफेद काच) और ४. किरात (भील-कोल)। शूल शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. केतन (पताका) २. योग, ३. रोग (शूल नाम का रोग विशेष-आमवात) और ४. शस्त्रान्तर (शस्त्र विशेष-त्रिशूल)। मूल : मृत्यौ शूली तु ना शम्भौ शशे शूलास्त्रधारके । शूलरोगयुते चासौ वाच्यवत् कथितो बुधैः ॥२०१०॥ शृगालो जम्बुके भीरौ निष्ठुरे पिशुने मतः। शृगालजम्बूः स्त्री घोण्टा फले ज्ञ या तरम्बुजे ॥२०११॥ हिन्दी टीका-शूल शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है—१. मृत्यु (मरण)। पुल्लिग नकारान्त शूली शब्द के तीन अर्थ होते हैं- १. शम्भु (भगवान शंकर) २. शश (खरगोश) और ३. शूलास्त्र धारक (शूल-त्रिशूल अस्त्र को धारण करने वाला) किन्तु ४. शूलरोगयुक्त (शूल रोग वाला) Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३४८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-श्रृगालिका शब्द अर्थ में शूली शब्द वाच्यवत् (विशेष्य निघ्न) माना जाता है। श्रृगाल शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. जम्बुक (सियार) २. भीरु (डरपोक) ३. निष्ठुर (निर्दय कठोर) और ४. पिशुन (चुगलखोर, चारिया)। (श्रृगालजम्बू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ घोण्टाफल (सुपारी-कसली) और २. तरम्बुज (तरबूज) इस तरह श्रृगालजम्बू शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : शृगालिका क्षुद्र फेरौ शृगाल्यां च पलायने । भूकूष्माण्डे शृगाली तु विदारी-कोकिलाक्षयोः ॥२०१२।। त्रासात्पलायने क्रोष्टुस्त्रियामपि प्रकीर्तिता। शृङ्खलस्त्रिषु विज्ञयः पुंस्कटीवस्त्रबन्धने ॥२०१३॥ हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग श्रृगालिका शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. क्षुद्रफेरू (छोटी गीदड़नी) २. श्रृगाली (गीदरनी) ३. पलायन (भाग जाना) और ४. भूकूष्माण्ड (सफेद कोल्हा कुम्हर) । स्त्रीलिंग श्रृगाली शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं- १. बिदारी (काला भूमि कूष्माण्ड, काला कोल्हा) और २. कोकिलाक्ष (तालमखाना) तथा ३. त्रासात् पलायन (डर के मारे भाग जाना) और .. क्रोष्टुस्त्री (गीदड़नी)। तथा १. पुंस्कटीवस्त्रबन्धन (पुरुष के कमर का वस्त्र बन्धन) अर्थ में शृंखल शब्द त्रिलिंग माना जाता है । इस प्रकार श्रृङ्खल शब्द का एक अर्थ समझना चाहिये। अंदुके लौहरज्जौ च बन्धनेऽपि प्रकीर्तितः । शृगं तु शिखरे सानौ विषाणे चिह्न-तीक्ष्णयोः॥२०१४॥ क्रीडार्थजनीरयन्त्रेऽपि प्रभुत्वे सरसीरुहे। उत्कर्षे वाद्यभेदे च शृङ्गो मुन्यन्तरे द्रुमे ॥२०१५॥ हिन्दी टीका-श्रृङ्खल शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. अन्दुक (हाथी की बेड़ी) २. लौहरज्जु (लोह की जंजीर) और ३. बन्धन (बाँधने का साधन) । नपुंसक श्रृंग शब्द के दस अथ माने जाते हैं-१. शिखर (पर्वत की चोटी) २. सानु (पर्वत का तट) ३. विषाण (सिंह) ४. चिह्न, ५. तीक्ष्ण (कठोर) और ६. क्रीडार्थजनीरयन्त्र (क्रीडा करने के लिये बनाया हुआ पानी का यन्त्र विशेष, डेङी नौका विशेष) तथा ७. प्रभुत्व ८. सरसीरुह (कमल) ६. उत्कर्ष (प्रगति) और १०. वाद्यभेद (वाद्य विशेष) । पुल्लिग श्रृङ्ग शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. मुन्यन्तर (मुनि विशेष) और २. द्रम (वृक्ष) इस प्रकार कुल मिलाकर श्रृङ्ग शब्द के बारह अर्थ जानना चाहिये । मूल : शैलूषः श्रीफले धूर्ते नटे च तालधारके । शैलेयं सैन्धवे तालपां च गिरि पुष्पके ॥२०१६।। शैलेयो भ्रमरे सिंहे शैलेयी-शंकरस्त्रियाम् । शैवो धुस्तूर आचार विशेष वसुके पुमान् ॥२०१७।। हिन्दी टोका-शैलूष शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. श्रीफल (नारियल या (बिल्वफल बेल) २. धूर्त (वञ्चक) ३. नट और ४. तालधारक (ताल लय का धारण करने वाला)। नपुंसक शैलेय शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सैन्धव (सिन्धा नमक) और २. तालपर्णी (ममोरफली-मुरा नाम का Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शैव शब्द | ३४६ प्रसिद्ध सुगन्धि द्रव्य विशेष) और ३. गिरिपुष्पक (गिरिमल्लिका) किन्तु पुल्लिग शैलेय शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. भ्रमर, २. सिंह । स्त्रीलिंग शैलेयी शब्द का अर्थ-१. शङ्करस्त्री (भगवान शङ्कर की पत्नी पार्वती) होता है। पुल्लिग शैव शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. धुस्तूर (धतूर) और २. आचार विशेष (शिव भक्ति विशेष) तथा ३. वसुक (वसु)। शैवं शिवपुराणे स्यात् शैवालेऽपि बुधे स्मृतः। शैवलं पद्मकाष्ठे स्यात् शैवाले तु पुमानसौ ॥२०१८॥ शोठो मूर्खेऽलसे धूर्ते नीचे पापरते त्रिषु । शोणं रक्त च सिन्दूरे शोणो वह्नौ नदान्तरे ॥२०१६॥ हिन्दी टीका-नपुंसक शैव शब्द के दो अर्थ होते हैं –१. शिवपुराण और २. शैवाल (लोलू शिमार) नपुंसक शैवल शब्द का अर्थ - १. पद्मकाष्ठ किन्तु २. शैवाल अर्थ में शैवल शब्द पुल्लिग माना गया है। पुल्लिग शोठ शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. मूर्ख, २. अलस (आलसी) ३. धूर्त (वञ्चक) और ४. नोच (अधम) किन्तु ५. पापरत (पापी) अर्थ में शोठ शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नपुंसक शोण शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. रक्त (लाल) और २. सिन्दूर (कुंकुम)। पुल्लिग शोण शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं -१. वन्हि (अग्नि) और २. नदान्तर (नद विशेष-शोण नाम का प्रसिद्ध नद विशेष, जोकि दक्षिण बिहार में बहता है)। श्योनाके लोहिताश्वे च रक्तोत्पलनिभच्छवौ। समुद्र भेदे रक्त क्षौ श्योनाकभिदि कीर्तितः ।।२०२०।। शोण झिण्टी कुरुबके शोणितं कंकुमेऽसृजि । . कंकुष्ठे शोधनं क्लीवं त्रिलिंगः शुद्धि कारके ॥२०२१॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग शोण शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. श्योनाक (सोना पाठा) २. लोहिताश्व (अग्नि) और ३. रक्तोत्पल निभच्छवि (लाल कमल के समान कान्ति) तथा ४ समुद्रभेद (समुद्र विशेष) और ५. रक्तक्षु (लाल गन्ना; शेर्डी) और ६. श्योनाकभिद् (श्योनाक विशेषसोनापाठा) । शोणझिण्टी शब्द का अर्थ-१. कुरुबक (लाल कट सरैया) है। शोणित शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. कुंकुम (सिन्दूर) और २. असृज् (खून-रुधिर) । नपुंसक शोधन शब्द का अर्थ-१. कंकुष्ठ होता है किन्तु २. शुद्धि कारक (शुद्धि करने वाला) अर्थ में शोधन शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : शोधनं शौच विष्ठायां कासीसे विहिताविहित मासादि विचारणे धातु निर्दोषीकरणे, व्रणादि परिष्करणे. लिखितपत्रादेः प्रमाणीकरणे, विरुद्धलिखितस्य शुद्धीकरणे अङ्कपूरणे ॥२०२२॥ हिन्दी टीका-नपंसक शोधन शब्द के और भी नौ अर्थ माने गये हैं.-१. शौच (पवित्रता वगैरह) २. विष्ठा (मल) ३. कासीस, ४. विहिताविहितमासादि विचारण (विहित तथा अविहित मास वगैरह का विचार करना) ५. धातु निर्दोषीकरण (धातु को दोष रहित शुद्ध करना) और ६. व्रणादि मूल : Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : ३५० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शोधन शब्द परिष्करण (घाव वगैरह का परिष्करण धो-धाकर-मल्हम पट्टी करना) तथा ७. लिखितपत्रादेः प्रमाणीकरण (लिखित पत्र वगैरह को प्रमाणित करना) और ८. विरुद्ध लिखितस्य शुद्धीकरण (अपने विरुद्ध लिखित लेख को शुद्ध करना) तथा ६. अङ्कपूरण (अङ्क-संख्या को पूर्ण करना) इस प्रकार शोधन शब्द के ग्यारह अर्थ जानना। शोधनः पुंसि निम्बूके त्रिलिंग: शुद्धिकर्तरि । शोधनी जैन साधूनां प्रमार्जन्यां प्रयुज्यते ॥२०२३।। संमार्जन्यां ताम्रवल्ल्यां नील्यामपि बुधैः स्मृता। शोभनं पङ्कजे क्लीवं ग्रहे ना सुन्दरे त्रिषु ॥२०२४॥ हिन्दी टीका-१. निम्बू (नेबो) अर्थ में शोधन शब्द पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. शुद्धिकर्ता (शुद्धि करने वाला) अर्थ में शोधन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । स्त्रीलिंग शोधनी शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. जैन साधूनां प्रमार्जनी (जैन साधुओं की प्रमार्जनी-ओघा) और २. संमार्जनी (झाडू) ३. ताम्रवल्ली नाम की लता विशेष) और ४. नीली (गरी या लीलू) । नपुंसक शोभन शब्द का अर्थ-१. पङ्कज (कमल) होता है किन्तु २. ग्रह अथ में शोभन शब्द पुल्लिग माना गया है और ३. सुन्दर (रमणीय) अर्थ में शोभन शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस तरह शोभन शब्द के तीन अर्थ जानना । स्त्रियां गोरोचनायां च हरिद्रायामपि स्मृता । शोभा गोरोचनायां स्यात् कांतौ गोपी-हरिद्रयोः ॥२०२५।। शोषणे यक्ष्मरोगे च शोषो ना परिकीर्तितः। शोषणः स्नेहरहितीकरणे च महौषधौ ॥२०२६।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग शोभना शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. गोरोचना (गोलोचन) और २. हरिद्रा (हलदी)। शोभा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. गोरोचना (गोलोचन) २. कान्ति, ३. गोपी और ४. हरिद्रा (हलदी)। पुल्लिग शोष शब्द के दो अर्थ होते हैं१. शोषण (शोषण करना सुखाना) और २. यक्ष्मरोग (टी. बी.)। शोषण शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. स्नेह रहितीकरण (स्नेह रहित करना-रूखा सूखा बनाना या करना) और २. महौषधि (महौषधि विशेष)। मूल : पुमांस्तु कामविशिखे तथा श्योनाकपादपे। शोषापहा क्लीतनके त्रिष्वसौ शोषनाशके ॥२०२७॥ शौकं शुकगणे स्त्रीणांकरणे च प्रकीर्तितम् । शौक्त यं स्यात्तु मुक्तायां शुक्ति सम्बन्धिनि त्रिषु ॥२०२८।। वीरे त्यागिनि शौटीरो ना स्याद् गर्वान्विते त्रिषु । पिप्पली-च व्ययोः शौण्डी शौटीयं वीर्य गर्वयोः ॥२०२६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग शोषण शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. कामविशिख (कामदेव का बाण) और २. स्योनाकपादप (सोनापाठा का वृक्ष)। शोषापहा शब्द पुल्लिग है और उसका Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शौनिक शब्द | ३५१ अर्थ-१. क्लीतनक (नील या जेठी मधु वगैरह) है किन्तु त्रिलिंग शोषण शब्द का अर्थ-१. शोषनाशक होता है । शोक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. शुकगण (पोपट का समूह) और,२. स्त्रीणांकरण (स्त्रियों का करण-इन्द्रिय विशेष)। नपुंसक शौक्तय शब्द का अर्थ-१. मुक्ता (मोती) होता है किन्तु २. शुक्ति सम्बन्धी अर्थ में शौक्त य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पुल्लिग शौटीर शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. वीर और २. त्यागी किन्तु ३. गर्वान्वित (गर्व युक्त) अर्थ में शौटीर शब्द त्रिलिंग माना गया है। शौण्डी शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-पिप्पली (पीपरि) और २. चव्य (चाभ नाम का वृक्ष विशेष) । शोटीर्य शब्द के भी दो अर्थ होते हैं--१. वीर्य और २. गर्व (घमण्ड)। मूल : शौनिको मृगयायां स्यात् मांसविक्रयकर्तरि । शौभं हरिश्चन्द्रपुरे शौभो देव-गुवाकयोः ॥२०३०॥ शौर्यमारभटी-शक्तोः शौरिविष्णौ शनैश्चरे । श्यामं तु सिन्धुलवणे मरिचेऽपि नपुंसकम् ॥२०३१॥ हिन्दी टीका-शौनिक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. मृगया (शिकार-आखेट) और २. मांसविक्रयकर्ता (मांस बेचने वाला)। नपुंसक शौभ शब्द का अर्थ-१. हरिश्चन्द्रपुर (सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र का नगर) किन्तु पुल्लिग शौभ शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. देव (देवता) और २. गुवाक (सुपारी-कसैली)। शौर्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. आरभटी, और २. शक्ति। शौरि शब्द के भी दो अर्थ माने हैं-१. विष्णु (भगवान विष्णु) और २. शनैश्चर (शनि ग्रह) । पुल्लिग श्याम शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. सिन्धुलवण (सैन्धा नमक) और २. मरिच (काली मरी)। श्यामो वटे प्रयागस्य वारिदे वृत्तदारके । पिके हरिति कृष्णे च श्यामाके पीलुपादपे ॥२०३२॥ धुस्तूरे स्याद् दमनकद्रुमेऽपि परिकीर्तितः। श्यामकण्ठः शिवे पक्षिविशेषे च शिखावले ॥२०३३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग श्याम शब्द के दस अर्थ माने गये हैं-१. प्रयागस्य वटः (प्रयाग का वट वृक्ष अक्षय वट) २. वारिद (मेघ) ३. वृद्धदारक (बुड्ढा लड़का या भेद करने वाला बुड्ढा) और ४. पिक (कोयल) ५. हरित् (हरा वर्ण) ६. कृष्ण (काला वर्ण या भगवान कृष्ण) ७. श्यामाक (शामा कंगू बाजरा वगैरह) और ८. पीलुपादप (पीलु नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष, जिसका फल भी पीलु कहलाता है) और ६. धुस्तूर (धतूर) तथा १०. दमनकद्र म (दमनक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष)। श्यामकण्ठ शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. शिव (भगवान शङ्कर) और २. पक्षि विशेष (नीलकण्ठ चष नाम का प्रसिद्ध पक्षी, जोकि यात्रा काल में दिखाई देने पर शुभ शकुन माना गया है) और ३. शिखावल (मोर)। मूल : श्यामलः पिप्पले कृष्णवर्णे कृष्ण गुणान्विते । श्यामला कटभी-जम्बू-कस्तूरीष्वपि कीर्तिता ॥२०३४॥ श्येनः शशादने यागप्रभेदे पाण्डुरेऽपि ना। श्रथनं मोक्षणे यत्ने शिथिलीकरणे वधे ॥२०३५॥ मूल : Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-श्यामल शब्द हिन्दी टीका-श्यामल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पिप्पल, २. कृष्णवर्ण और ३. कृष्ण गुणान्वित (काला वर्ण वाला)। श्यामला शब्द के भी तोन अर्थ होते हैं-१. कटभी (माल कांगनी) २. जम्बू (जामुन) और ३. कस्तूरी। पुल्लिग श्येन शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं-शशादन (बाज पक्षी) २. याग प्रभेद (याग विशेष-श्येन याग) और ३. पाण्डुर (सफेद वर्ण)। श्रथन शब्द के चार अर्थ होते हैं१. मोक्षण, २. यत्न, ३. शिथिलीकरण (ढीला करना) और ४. वध (मारना) । मूल : श्रद्धा संप्रत्यये शुद्धौ स्पृहायामादरे तथा । चेतः प्रसादे श्रद्धालुः स्त्री दोहदवती स्त्रियाम् ॥२०३६॥ श्रद्धायुक्त त्वसौ प्राज्ञ च्यिवत् परिकीर्तितः। श्रन्थितो ग्रथिते बद्धे मुक्त कृतवधे त्रिषु ॥२०३७॥ हिन्दी टोका-श्रद्धा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. संप्रत्यय (विश्वास) २. शुद्धि (पवित्रता वगैरह) ३. स्पृहा (वाञ्छा) ४. आदर और ५. चेतः प्रसाद (चित्त की प्रसन्नता)। स्त्रीलिंग श्रद्धालु शब्द का अर्थ-१. दोहदवती स्त्री (गर्भावस्था के कारण विशेष स्पृहा वाली स्त्री) किन्तु ३. श्रद्धायुक्त (श्रद्धा वाला) अर्थ में श्रद्धालु शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। त्रिलिंग श्रन्थित शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. ग्रथित (गूथा हुआ) २. बद्ध (बँधा हुआ) ३. मुक्त (छोड़ा हुआ) और ४. कृतवध (वध करने वाला या जिसका वध किया गया है)। श्रमः परिश्रमे खेदे शस्त्राभ्यासे तपस्यपि । श्रमणो जैनसाधौ ना, निन्द्य जीविन्यसौ त्रिषु ।।२०३८॥ सुदर्शनायां मुण्डीरी-शवर्योः श्रमणा मता। श्रवणं न स्त्रियां कर्णे नक्षत्रे श्रवणाभिधे ॥२०३६।। हिन्दी टोका-श्रम शब्द के चार अर्थ होते हैं- १. परिश्रम (मेहनत) २. खेद (दुःख) ३. शस्त्राभ्यास (अस्त्र-शस्त्र का अभ्यास करना) और ४. तपस् (तपस्या करना)। पुल्लिग श्रमण शब्द का अर्थ१. जैन साधु होता है किन्तु २. निन्द्यजीवी (गहित जीवन) अर्थ में श्रमण शब्द त्रिलिंग माना गया है। स्त्रीलिंग श्रमण शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. सुदर्शना (सुन्दरी स्त्री वगैरह) २. मुण्डीरी और ३. शवरी (भीलनी)। पुल्लिग तथा नपुंसक श्रवण शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कर्ण (कान) और २. श्रवणाभिध नक्षत्र (श्रवणा नक्षत्र) इस प्रकार श्रवण शब्द का दो अर्थ समझना चाहिये । मूल : क्लीवं कर्णेन्द्रियज्ञाने श्रवः क्षरण-कर्णयोः । श्रान्तो जितेन्द्रिये शान्ते श्रमयुक्ते त्वसौ त्रिषु ॥२०४०॥ श्रामो मासे च काले च मण्डपेऽपि प्रकीर्तितः। श्रायस्त्वाश्रयणे पुंसि श्रीसम्बन्धिन्यसौ त्रिषु ॥२०४१॥ हिन्दी टीका-नपंसक श्रवण शब्द का एक और भी अर्थ माना गया है-१. कर्णेन्द्रियज्ञान (श्रावण प्रत्यक्ष)। श्रव शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. क्षरण (झरना) और २. कर्ण (कान)। पुल्लिग श्रान्त शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. जितेन्द्रिय और २. शान्त, किन्तु ३. श्रमयुक्त अर्थ में श्रान्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। श्राम शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मास, २. काल और ३. मण्डप । श्राय शब्द Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - श्रावक शब्द | ३५३ १. आश्रयण अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. श्रीसम्बन्धी अर्थ में श्राय शब्द त्रिलिंग माना गया है । मूल : श्रमणोपासके काके श्रावकः श्रोतरि त्रिषु । श्रावणः पुंसि पाखण्डे मासे श्रावणिका भिधे ॥२०४२ ॥ श्रीबिल्ववृक्षे नलिने वृद्धिनामौषधौ मतौ । वृत्तार्हज्जननी - कीर्त्योः प्रभायां सरलद्रुमे ॥२०४३॥ हिन्दी टोका - पुल्लिंग श्रावक शब्द के दो अथ माने गये हैं - १. श्रमणोपासक (श्रमण- साधु का उपासक सेवक) और २. काक, किन्तु ३. श्रोता अर्थ में श्रावक शब्द त्रिलिंग माना गया है । पुल्लिंग श्रावण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. पाखण्ड (नास्तिकता) और २. श्रावणिकाभिध मास (श्रावण मास)। श्री शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं - १. बिल्व वृक्ष (बेल का वृक्ष) २. नलिन ( कमल) ३. वृद्धि नामौषधि ( वृद्धि नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) और ४. मति (बुद्धि) तथा ५. वृत्तार्हज्जननो (भूतकालिक भगवान तीर्थङ्कर की माता) और ६. कीर्ति (यश) एवं ७. प्रभा (प्रकाश ज्योति वगैरह ) और ८. सरलद्र ुम ( देवदारु वृक्ष) इस प्रकार श्री शब्द के आठ अर्थ समझने चाहिये । मूल : सिद्धौ वृद्धौ विभूतौ च लक्ष्म्यां शोभा त्रिवर्गयोः । श्रीधरो माधवे शालग्रामेऽतीतजिनान्तरे ॥ २०४४॥ श्रीपतिः पृथिवीनाथे केशवेऽपि प्रकीर्तितः । श्रीपर्णी शाल्मलीवृक्षे गम्भारी कट्फलद्रुमे ॥२०४५॥ हिन्दी टीका - श्री शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं- १. सिद्धि २. वृद्धि ३. विभूति ( ऐश्वर्य ४. लक्ष्मी, ५. शोभा और ६ त्रिवर्ग (धर्म- अर्थ - काम) । श्रीधर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं १. माधव, २. शालग्राम और ३. अतीत जिनान्तर (भूतकालिक भगवान् तीर्थङ्कर ) | श्रीपति शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. पृथिवीनाथ ( राजा भूपति) २. केशव (भगवान विष्णु ) । श्रीपर्णी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शाल्मली वृक्ष (पाकर का वृक्ष) २. गम्मारी ( गम्भारि ) और ३. कट्फलद्र ुम ( काफर का वृक्ष) । मूल : हठवृक्षेऽग्निमन्द्रौ श्रीपर्णं कमलेऽपि च । श्रीमान् पुंसि शिवे विष्णौ पिप्पले तिलकद्रुमे ॥२०४६॥ असौ वाच्यवदाख्यातो मनोज्ञ े धनिके बुधैः । श्रीवत्सोऽर्हध्वजे विष्णौ तद्वक्षः स्थितलाञ्छने ॥२०४७॥ हिन्दी टीका नपुंसक श्रीपण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हठ वृक्ष ( हठ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) २. अग्नि मन्थद्र (अग्निमन्थ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ३ कमल को भी श्रीपर्ण कहते हैं । पुल्लिंग श्रीमान् शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं -१ शित्र (भगवान् शंकर) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. पिप्पल और ४. तिलकद्रुम ( तिलक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) को भी श्रीमान् कहते हैं । किन्तु ५. मनोज्ञ (सुन्दर) और ६ धनिक ( धनवान् ) अर्थ में श्रीमान् शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । श्रीवत्स शब्द के तीन अर्थ होते हैं १. अहंध्वज (भगवान् तीर्थंङ्कर का ध्वज Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३५४ । नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--श्रीवास शब्द पताका) और २. विष्णु (भगवान् विष्णु) तथा ३. तद्वक्षःस्थितलांछन (भगवान् विष्णु के वक्षस्थल में श्रीवत्स नाम का चिन्ह विशेष) इस प्रकार श्रीवत्स शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : श्रीवासो माधवे शम्भौ कमले सरलद्रवे । श्रुतिः स्त्री श्रवणे वेदे वार्ता नक्षत्रभेदयोः ॥२०४८॥ षड्जाद्यारम्भिकायां च श्रोत्र कर्मण्यपि स्मृता। प्रोक्तः श्रुतिकटः प्राञ्चल्लोहेऽहौ पापशोधने ॥२०४६।। हिन्दी टीका-श्रीवास शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-माधव (भगवान् कृष्ण) २. शम्भु (भगवान् शङ्कर) ३. कमल और ४. सरल द्रव (सरल नाम का वृक्ष विशेष का द्रव चूर्ण वगैरह) । श्रुति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. श्रवण (कर्ण) २. वेद, ३. वार्ता और ४. नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष) तथा ५. षड्जाद्यारम्भिका (षड्ज वगैरह सप्तस्वर का आरम्भक-अवयव विशेष) तथा ६. श्रोत्रकर्म (सुनना) । श्रुतिकट शब्द के तीन अर्थ होते हैं -१ प्राञ्चल्लौह (नमता हुआ लोहा) ओर २. अहि (सर्प) तथा ३. पापशोधन (निष्पाप)। , कठोर शब्दे साहित्य-दोषे श्रुतिकटुः पुमान् । श्रेणिः स्त्रीपुंसयोः पंक्तौ समान शिल्पि संहतौ ॥२०५०।। श्रेयो मुक्तौ शुभे धर्मेऽति प्रशस्ते त्वसौ त्रिषु । श्रेयसी स्त्री हरीतक्यां रास्ना-कल्याणयुक्तयोः॥२०५१।। हिन्दी टोका-श्रतिकटु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं.-१. कठोर शब्द (सुनने में कटु) और २. साहित्यदोष (श्रुति कटु नाम का दोष विशेष) । श्रेणि शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं - १. पंक्ति (श्रेणी) और २. समान शिल्पि संहति (सरखे शिल्पियों का समुदाय)। नपुंसक श्रेयस शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. मुक्ति, २. शुभ और ३. धर्म, किन्तु ४. अति प्रशस्त अर्थ में श्रेयस् शब्द त्रिलिंग माना जाता है। श्रेयसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. हरीतकी, २. रास्ना (तुलसी) और ३. कल्याण युक्त । मूल : पाठायां करिपिप्पल्यां, श्रेयान् श्रेष्ठे शुभान्विते । श्रेष्ठोविष्णौ महीपाले कुबेरे च द्विजन्मनि ॥२०५२।। त्रिषु ज्येष्ठे वरे वृद्ध क्लीवं गोपयसि स्मृतम् । श्रेष्ठा स्त्री स्थल पद्मिन्यां मेदायामुत्तमस्त्रियाम् ॥२०५३।। हिन्दी टीका-श्रेयसी शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. पाठा (सोनापाठा) और २. करि पिप्पली (गजपीपरि)। श्रेयान् शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. श्रेष्ठ और २. शुभान्वित (शुभयुक्त) । पुल्लिग श्रेष्ठ शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. विष्णु (भगवान् विष्णु) और २. महीपाल (राजा) ३. कुबेर और ४. द्विजन्मा (ब्राह्मण) किन्तु १. ज्येष्ठ (बड़ा) २. वर तथा ३. वृद्ध अर्थ में श्रेष्ठ शब्द त्रिलिंग माना जाता है परन्तु १. गोपयस् (गोदुग्ध-गाय का दूध) अर्थ में श्रेष्ठ शब्द नपुंसक माना गया है । स्त्रीलिंग श्रेष्ठा शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. स्थल पद्मिनी (स्थल कमलिनी) २. मेदा और ३. उत्तमस्त्री (पद्मिनी स्त्री) को भी श्रेष्ठा कहते हैं । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- श्रेष्ठी शब्द | ३५५ मूल : श्रेष्ठी व्याहियते धीरैरोसवालवणिग्जने । श्रोतः क्लीवं नदीवेगे कर्ण इन्द्रिय मात्रके ॥२०५४।। श्रोत्रं श्रोत्रियतायां स्यात् कर्णेऽपि क्लीवमीरितम्। श्रोत्रं श्रोत्रियतायां स्यात्कणे च श्रोत्रकर्मणि ॥२०५५।। हिन्दी टोका-श्रेष्ठी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. ओसवाल वणिग्जन (ओसवाल बनिया) होता है । श्रोतस् शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नदीवेग (नदी का प्रवाह) २. कर्ण (कान) और ३. इन्द्रिय मात्र । नपुंसक श्रोत्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. श्रोत्रियता (वेदाभिज्ञता वगैरह या वेदानुसार कर्म सदाचार निपुणता) और २. कर्ण (कान) को भी श्रोत्र कहते हैं । श्रोत्र शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. श्रोत्रियता (वेद निपुणता) २. कर्ण (कान) और ३. श्रौत्रकर्म (वेद विहित कर्म) को भी श्रौत्र कहते हैं। मूल : श्लक्ष्णं मनोहरे सूक्ष्मे दुर्बले शिथिले श्लथः । श्लाघा स्त्री परिचर्यायामभिलाषे प्रशंसने ॥२०५६।। शिलकुर्ना किकरे पिगे ज्योतिःशास्त्रे शिलकु स्मृतम् । श्लेष आलिंगने दाहे संयोगेऽलंकृतौ कवेः ।।२०५७।। हिन्दी टीका-इलक्ष्ण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मनोहर और २. सूक्ष्म (पतला झीणा)। श्लथ शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. दुर्बल (क्षीण कमजोर) और २. शिथिल (ढीला)। श्लाघा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. परिचर्या (सेवा) १. अभिलाष और ३. प्रशंसन (प्रशंसा करना)। पुल्लिग श्लिक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. किंकर (नौकर) और २. षिङ्ग (हिजड़ा नपुंसक) किन्तु ३. ज्योतिःशास्त्र अर्थ में शिलकु शब्द नपुंसक माना गया है। श्लेष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. आलिंगन, २. दाह, ३. संयोग और ४. कवेः अलंकृति (काव्य में श्लेष नाम अलंकार)। मूल : श्लोको यशसि पद्येऽथ शुभे श्व श्रेयसं विदुः । परमात्मनि कल्याणे कल्याणवति तु त्रिषु ॥२०५८।। श्वशुर्यो देवरे श्याले श्वसनो वायु-शल्ययोः । श्वासो रोग विशेषे स्यात् श्वसिते च समीरणे ॥२०५६।। हिन्दी टीका-श्लोक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. यशस् (कोति) और २. पद्य (छन्दोबद्ध)। नपुंसक श्वश्रेयस शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शुभ (मंगल) २. परमात्मा तथा ३ कल्याण किन्तु ४. कल्याणयुक्त अर्थ में श्वश्रेयस शब्द त्रिलिंग माना गया है। श्वशुर्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. देवर (पति का छोटा भाई) और २. श्याल (पत्नी का भाई)। श्वसन शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. वायु (पवन) और २. शल्य (मदन नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष)। श्वास शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. रोगविशेष (कास श्वास नाम का रोग विशेष) २. श्वसित (मांस लेना) तथा ३. समीरण (पवन) को भी श्वास शब्द से व्यवहार किया जाता है। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-श्वेत शब्द श्वेतः शुक्र द्वीपभेदे शुक्लवर्णे कपर्दके । श्वेताभ्रे जीरके शंखे शैलभेदे नृपान्तरे ॥२०६०॥ शिवाववतारभेदेऽसौ क्लीवं तु रजते स्मृतम् । शुक्लवर्णयुते चायं कथितौ वायलिंगकः ॥२०६१।। हिन्दी टीका-पुल्लिग श्वेत शब्द के दस अर्थ माने गये हैं-१. शुक्र (वीर्य) २. द्वीपभेद (द्वीपविशेष--श्वेत द्वीप) ३ शुक्लवर्ण (सफेद) ४. कपर्दक (कौड़ी-उषा) ५. श्वेताभ्र (सफेद बादल) ६. जीरक (जीर) ७. शंख, ८. शैलभेद (पर्वत विशेष - हिमालय पहाड़) ६. नृपान्तर (राजा) तथा १०. शिवावतार (भगवान शंकर) को भी श्वेत शब्द से व्यवहार किया जाता है किन्तु ११. रजत (चाँदी) अर्थ में श्वेत शब्द नपुंसक माना जाता है परन्तु १२. शुक्लवर्णयुत (सफेद वर्ण वाला) अर्थ में श्वेत शब्द नपुंसक माना जाता है । इस प्रकार श्वेत शब्द के कुल बारह अर्थ जानना। मूल : केतुग्रहे तथा बुद्धे श्वेतकेतुः पुमान् मतः । श्वेतधामा पुमानिन्दौ कर्पू रेऽब्धिकफे स्मृतः ।।२०६२।। अर्जुने मकरे चन्द्रे पुल्लिग: श्वेतवाहनः । श्वेता वराटिका-काष्ठपाटलाऽति विषासु च ॥२०६३॥ हिन्दी टोका-श्वेतकेतु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. केतुग्रह (केतु नाम का प्रसिद्ध नवमा ग्रह विशेष) और २. बुद्ध (भगवान बुद्ध)। श्वेतधामन् शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. इन्दु (चन्द्रमा) २. कर्पूर और ३. अब्धिकफ (समुद्र का फेन)। श्वेतवाहन शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं--१. अर्जुन (तृतीय पाण्डव) २. मकर (मगर) और ३. चन्द्र । स्त्रीलिंग श्वेता शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. वराटिका (कौड़ी) २. काष्ठपाटला (लकड़ी की पाटला चौकी वगैरह) और ३. अतिविषा (अतीस)। मूल : शंखिनी क्षुरिकापत्री तुगा पाषाणभेदिषु । वलक्षबृहती श्वेतकण्टकार्योरपि स्मृता ॥२०६४।। इन्दिन्दिरे च यूकायां पुमान् षट्चरणोमतः । षट्पदोऽलिनि यूकाया मलिन्यां षट्पदी स्मृता ॥२०६५।। ___ हिन्दी टीका-शंखिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं---१. क्षुरिकापत्री (छुरी आरा वगैरह) २. तुगा और ३. पाषाणभेदी (पत्थर को भेदने वाली) ४. वलक्षबृहती (सफेद वीणा) और ५. श्वेतकण्टकारी (सफेद कण्टकारि) । षट्चरण शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. इन्दिन्दिर (भ्रमर) २. यूका (लीख-जू-ढील)। पुल्लिग षट्पद शब्द का अर्थ --१. अलि (भ्रमर) होता है किन्तु स्त्रीलिंग षट्पदी शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. यूका (जू-लीख-ढील) और २. अलिनो (भ्रमरी)। मूल : षट्प्रज्ञः कामुके धर्म-काम-शास्त्रज्ञमानवे । षण्डः स्याद्गोपतौ वर्षवरे पद्मादिसंहतौ ॥२०६६॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-षट्प्रज्ञ शब्द | ३५७ गजे धान्यविशेषे च कथितः षष्टिहायनः । षाडवो ना रसे गाने रागजात्यन्तरेऽपि च ।।२०६७।। हिन्दी टोका-षट्प्रज्ञ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. कामुक (विषयी) और २. धर्म-कामशास्त्रज्ञ मानव (धर्म कामशास्त्र का ज्ञाता मनुष्य) । षण्ड शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गोपति (गोस्वामी) २. वर्षवर (नपुंसक-हिजड़ा) और ३. पद्मादिसंहति (कमल वगैरह का समूह)। षष्टिहायन शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं---१. गज (हाथी) और २. धान्यविशेष (सठिया धान आंसु वगैरह)। षाडव शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. रस, २. गान और ३. रागजात्यन्तर (राग जाति विशेष) इस प्रकार षाडव शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : संग्राही पुंसि कुटजद्रुमे त्रिषु तु धारके । संज्ञ क्लीवं पीतकाष्ठे त्रिष्वसौ लग्नजानुके ।।२०६८।। विज्ञापने मारणे च क्लीवं संज्ञपनं विदुः । संज्ञा स्यात् चेतना नाम्नो हस्ताद्यैश्चार्थसूचने ॥२०६६।। हिन्दी टीका-१. कुटजद्र म (गिरिमल्लिका) अर्थ में संग्राही शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. धारक (धारण करने वाला) अर्थ में संग्राही शब्द त्रिलिंग माना गया है। संज्ञ शब्द --१. पीतकाष्ठ (पीले रंग का काष्ठ विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. लग्नजानुक (संलग्न जुटे हुए जानु-घुटना वाला) अर्थ में संज्ञ शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक संज्ञपन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विज्ञापन (सूचित करना) और २. मारण (वध करना)। संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जा ते हैं-१. चेतना (चैतन्य, होश) और २. नाम तथा ३. हस्ताद्यःअर्थसूचन (हाथ वगैरह के द्वारा अर्थ-तात्पर्य को सूचित करना)। संयतो वाच्यल्लिगो बद्धे च कृतसंयमे । वाग्यते जन्तुनिवहे संयत्वर उदीरितः ॥२०७०॥ चतुः शाले व्रते बन्धे क्लीवं संयमनं स्मृतम् । संयमी ना मुनौ प्रोक्तो निगृहीतेन्द्रिये त्रिषु ॥२०७१॥ हिन्दी टीका-संयत शब्द -१. बद्ध (बंधा हुआ) और २. कृतसंयम (संयमी) अर्थ में वाच्यवत् लिंग (विशेष्यनिघ्न-त्रिलिंग) माना जाता है । संयत्वर शब्द-१. वाग्यत (वाणी का संयम करने वाला) और २. जन्तुनिवह (प्राणियों का समूह) अर्थ में पुल्लिग माना गया है । नपुंसक संयमन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. चतुःशाल (चौतरफा घर वाला स्थान) और २. व्रत तथा ३. बन्ध (बन्धन, बांधना) को भी संयमन कहते हैं। संयमो शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. मुनि (साधु) कहा गया है किन्तु २. निगृहीतेन्द्रिय (इन्द्रिय को निग्रह-वश में करने वाला) अर्थ में त्रिलिंग माना गया है। इस प्रकार संयमी शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : संयोजनं तु संयोगे मैथुनेऽपि प्रकीर्तितम् । संरम्भः क्रोध उत्साह आटोपे च निगद्यते ॥२०७२॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संयोजन शब्द आलोचने वशीकारे प्राज्ञैः संवेदनं स्मृतम् । संरोधो रोधने क्षेपे संलयः प्रलयेऽपि च ॥२०७३॥ __ हिन्दी टीका-संयोजन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं.---१. संयोग और २. मेथुन (विषयभोग)। संरम्भ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. क्रोध, २. उत्साह और ३. आटोप (आडम्बर)। संवेदन शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. आलोचन (आलोचना करना) ओर २. वशीकार (वश में करना) । संरोध शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं - १. रोधन (रोकना) और २. क्षेप (फेंकना या आक्षेप करना) । सलय शब्द का अर्थ-१. प्रलय होता है । मूल : संवरं सलिले दैत्यभेदे बौद्धव्रतान्तरे । जैनानां षष्ठतत्त्वे च तथैव हरिणान्तरे ॥२०७४॥ संवर्तो मुनिभेदे स्यात् कल्पे कर्षफलद्रुमे । मेघनायकभेदे च वारिवाहेऽपि कीर्तितः ॥२०७५॥ हिन्दी टीका-संवर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. सलिल (जल) २. दैत्यभेद (दैत्य विशेष --संवर नाम का राक्षस) ३. बौद्धव्रतान्तर (बौद्धों का व्रत विशेष) ४. जैनानांषष्ठतत्त्व (जैन मुनि महात्माओं का छठा तत्त्व संवर नाम का छठा तत्त्व) ५. हरिणान्तर (हरिण विशेष--मग विशेष) संवर कहा जाता है । संवर्त शब्द के भी पाँच अर्थ माने गये हैं-१. मुनिभेद (मूनि विशेष) २. कल्प (सृष्टि) ३. कर्षफलद्र म (बहेड़ा का वृक्ष) ४ मेघनायकभेद (मेघ का नायक विशेष) को भी संवर्त कहते हैं और ५. वारिवाह (मेघ) को भी संवर्त कहा जाता है । मूल : आलये संनिवेशे च संवासः सद्भिरीरितः । संवाहनं तु भारादिवहने ऽप्यङ्गमर्दने ॥२०७६॥ संवित्तिस्तु स्त्रियां बुद्धौ प्रतिपत्ताविपीष्यते । संवित् स्त्री तोषणे नाम्नि ज्ञाने संभाषणेरणे ॥२०७७।। हिन्दी टीका-संवास शब्द के दो अर्थ माने गये हैं.१. आलय (गृह) और २. संनिवेश (छोटा नगर) । संवाहन शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं--१. भारादिवहन (भार वगैरह का वहन करना) और २. अंगमर्दन (हाथ पाद वगैरह अगों का मर्दन करना) । संवित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. बुद्धि और २. प्रतिपत्ति (ख्याति वगैरह)। सवित् शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. तोषण (संतुष्ट करना) २. नाम (संज्ञा) ३. ज्ञान ४. संभाषण (बोलना --भाषण करना) और ५. रण (सग्राम)। मूल : प्रतिज्ञायां क्रियाकारे संकेते संयमेऽपि च । संवेशः सुरते पीठे निद्रायामपि कीर्तितः ।।२०७८।। सव्यानं वस्त्रमा स्यात् उत्तरीये च वाससि । संसिद्धिः स्त्रीस्वभावे स्यान्मोक्ष सिद्धिविशेषयोः ।।२०७६।। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संवित् शब्द | ३५६ हिन्दी टोका-संवित् शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. प्रतिज्ञा, २. क्रियाकार (क्रिया करना) ३. संकेत और ४. संयम । संवेश शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सुरत (विषयभोग) २. पीठ (आसन) ३. निद्रा । संव्यान शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं१ वस्त्रमात्र और २. उत्तरीयवासस् (चादर) । संसिद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. स्त्रीस्वभाव (स्त्रियों का स्वभाव विशेष) और २. मोक्ष तथा ३. सिद्धिविशेष को भी संसिद्धि कहते हैं। संस्कारः प्रतियत्ने ऽनुभवे मानसकर्मणि । संस्कृतः कृत्रिमे शस्ते पक्व भूषितयो स्त्रिषु ॥२०८०॥ संस्त्यायो विस्तृतौ गेहे संस्थाने संनिवेशके। संस्थाव्यक्तौ व्यवसायौ सादृश्ये निधने स्थितौ ॥२०८१॥ हिन्दी टोका-सस्कार शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं---१. प्रतियत्न (दूसरे के गुण का आधान ग्रहण करना) २. अनुभव तथा ३. मानसकर्म (अनुभवजन्य मानसिक संस्कार)। पुल्लिग संस्कृत शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कृत्रिम (क्रिया द्वारा निष्पन्न) और २. शस्त (प्रशस्त) किन्तु ३. पक्व (पकाया हआ) और ४. भूषित (अलंकृत) अर्थ में संस्कृत शब्द त्रिलिंग माना जाता है। संस्त्याय शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. विस्तति (विस्तार) २. गेह (घर) ३. संस्थान (संस्था) और ४. संनिवेशक (छोटा ग्राम)। संस्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. व्यक्ति २. व्यवस्था ३. सादृश्य (सरखापन) ४. निधन (मृत्यु) और ५. स्थिति (ठहरना)। मूल : समाप्तौ क्रतुभेदे च नाशे कल्पचतुष्टये । संस्थानं निधने चिह्न संनिवेशे चतुष्पथे ॥२०८२।। संस्थितिः स्त्रीगृहे मृत्यौ संस्थानेऽपि निगद्यते । दृढ़सन्धौ च मिलिते दृढे स्यात् त्रिषु संहतः ॥२०८३॥ हिन्दी टोका-संस्था शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. समाप्ति २. ऋतुभेद (क्रतु विशेष) ३. नाश और ४. कल्प चतुष्टय । संस्थान शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. निधन (मृत्यु) २. चिह्न ३. संनिवेश (छोटा ग्राम) ओर ४. चतुष्पथ (चौराहा)। संस्थिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. गृह (घर) २. मृत्यु और ३. संस्थान (ठहरना या प्रस्थान करना वगैरह)। संहत शब्द त्रिलिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं---१. दृढ़सन्धि (मजबूत सन्धि स्थल) २. मिलित और ३. दृढ़। मूल : संघातने शरीरे च प्राज्ञः संहननं स्मृतम् । संहर्षो ना प्रमोदे स्यात् स्पर्धयां मातरिश्वनि ॥२०८४॥ संहारो नरकेऽपि स्यात् संक्षेपे प्रलये ह्रतो । सखा मित्रे सहायेऽथ सगरो भूपतौ जिने ॥२०८५॥ हिन्दी टोका-संहनन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-संघातन (संघ) और २. शरीर (देह)। सहर्ष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रमोद (आनन्द विशेष) २. स्पर्धा (कम्पीटिशन) और ३. मातरिश्वा (पवन) । संहार शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. नरक २. संक्षेप (शौर्ट) ३. प्रलय और Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: ३६० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संकट शब्द ४. हृति (हरण) । सखा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. मित्र (दोस्त स्नेही) और २. सहाय (मदद करने वाला) । सगर शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. भूपति (राजा विशेष - सगर नाम का राजा) और २. जिन (भगवान तीर्थङ्कर)।। संकटस्त्रिषु संबाधे दुःखे तु क्लीवमीरितम् । संकरोऽग्निचटत्कारे मिश्रत्वेऽवकरे तथा ॥२०८६॥ वर्णसंकरजातौ च संकरी क्षितस्त्रियाम् । संकर्षणः प्रलम्बध्ने क्लीवन्त्वाकर्षणे स्मृतम् ॥२०८७॥ हिन्दी टोका - त्रिलिंग संकट शब्द का अर्थ--१. संबाध (विघ्न बाधा) होता है किन्तु २. दुःख अर्थ में संकट शब्द नपंसक माना जाता है। पल्लिग संकर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं--१. अग्निचटत्कार (अग्नि का चटत्कार शब्द) २. मिश्रत्व (मिलावट) ३. अवकर (कूड़ा-कचरा विष्ठा वगैरह) और ४. वर्णसंकरजाति (वर्णसंकर नाम का दूषित जाति विशेष)। स्त्रीलिंग संकरी शब्द का अर्थ--१. दूषित स्त्री (व्यभिचारिणी स्त्री) होता है । पुल्लिग संकर्षण शब्द का अर्थ-१. प्रलम्बघ्न (बलराम) होता है किन्तु २. आकर्षण (खींचना) अर्थ में संकर्षण शब्द नपुंसक माना गया है। मूल : . संकीर्णे दुर्बले मन्दे ऽस्थिरे संकसुकस्त्रिषु । संकुलं समरे वाक्ये परस्परपराहते ॥२०८८॥ संकीर्णे वाच्यवत् प्रोक्त संकोचं स्यात्तु कुंकुमे । संकोचो ना मत्स्यभेदे जडीभावे च बन्धने ।।२०८६।। हिन्दी टोका-त्रिलिंग संकसुक शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं--१. संकीणं (व्याप्त) २. दुर्बल, ३. मन्द और ४. अस्थिर (चचल)। नपुंसक संकुल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. समर (संग्राम) २ वाक्य और ३. परस्पर पराहत (आपस में पराहत) किन्तु ४. संकीर्ण अर्थ में संकुल शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहा गया है। नपुंसक संकोच शब्द का अर्थ-१. कुंकुम (कंकु सिन्दूर) होता है किन्तु पुल्लिग संकोच शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष) २ जड़ीभाव (स्तब्धता) और ३. बन्धन। मूल : संक्रन्दनः पुमान् इन्द्रे रोदने तु नपुंसकम् । संक्रमः क्रमणे सम्यग्राशिसंचारवस्तुनि ॥२०६०॥ सख्यं तु समरे क्लीवं संख्येये त्वभिधेयवत् । संख्यकत्वादिके बुद्धौ चर्चायां गणिते त्रिषु ।।२०६१॥ हिन्दी टोका -पुल्लिग संक्रन्दन शब्द का अर्थ - १. इन्द्र होता है किन्तु २. रोदन (रोना) अर्थ में संक्रन्दन शब्द नपंसक माना गया है। संक्रम शब्द के दो अथ माने गये हैं १.क्रमण ।चलना आक्रमण करना वगैरह) और २. सम्यग्राशिसंचारवस्तु (अच्छी तरह राशि में संचरण करने वाली वस्तु)। संख्य शब्द १. समर (संग्राम) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. संख्येय (संख्या करने योग्य) अर्थ में अभिधेयवत्-वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । स्त्रीलिंग संख्या शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं१. एकत्वादि (एकत्व द्वित्व वगैरह संख्या) २. बुद्धि और ३. चर्चा (विचारना) किन्तु ४. गणित अर्थ में साख्या शब्द त्रिलिंग माना गया है। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संग शब्द | ३६१ मूल : संग: स्याद् मेलने रागे संगतिर्ज्ञान - संगयोः । नद्यादिमेलके संगे संगमोऽस्त्री प्रकीर्तितः ।।२०६२।। संगरोऽङ्गीकृतौ युद्धे क्रियाकारे च संविदि । गरले संगरं तु स्यात् शमीवृक्ष फलेऽद्वयोः ॥२०६३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग संग शब्द के दो अर्थ माने गये हैं.-१. मेलन (मिलाना) और २. राग (आसक्ति) । संगति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भो दा अर्थ होते हैं-१. ज्ञान और २. संग (सम्पर्क)। संगम शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. नद्यादिमेलक (नदी वगैरह का संगम) और २. संग (सम्पर्क वगैरह)। पुल्लिग संगर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. अङ्गीकृति (अङ्गीकार-स्वीकार) २ युद्ध (संग्राम) ३. क्रियाकार और ४. संविद् (ज्ञान) किन्तु ५. गरल (विष जहर) अर्थ में सगर शब्द नपुंसक माना गया है और ६. शमीवृक्षफल (शमी वृक्ष का फल) अर्थ में भी संगर शब्द नपुंसक ही माना जाता है। मूल : संगुप्तो बुद्धभेदेना त्रिषु संगोपनाश्रये । संग्रहो ग्रहणे मुष्टौ महोद्योगे समाहतौ ॥२०६४॥ बृहत संक्षेपयोरङ्गीकृतौ संचय-तुङ्गयोः । संघट्टोऽन्यविमर्दे स्याद् गठनेऽपि निगद्यते ॥२०६५।। हिन्दी टीका पुल्लिग संगुप्त शब्द का अर्थ-१. बुद्धभेद (बुद्ध विशेष) किन्तु २. संगोपनाश्रय (गुप्त रखने लायक) अर्थ में संगुप्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। संग्रह शब्द के नौ अर्थ माने गये हैं१. ग्रहण करना) २. मुष्टि ३ महा उद्योग (बड़ा उद्योग धन्धा) और ४. समाहति (आघात मारना) ५. बृहत् (बड़ा) ६. संक्षेप (छोटा करना) और ७. अङ्गीकृति (अंगीकार-स्वीकार करना) तथा ८. संचय (इकट्ठा करना) एवं ६. तुङ्ग (ऊँचा) । संघट्ट शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. अन्यविमर्द (ठहराना) और २. गठन-संगठन)। मूल: संघाटिका युगे घ्राणे कुट्टिन्यां जलकण्टके । संघातो हनने वाते कफे च नरकान्तरे ॥२०६६।। सचिवः कृष्ण धत्तूरे सहाये मन्त्रिणि स्मृतः। सन्नद्धे निभृते सज्जो वाच्यवत् संभृतेऽपि च ॥२०६७॥ हिन्दी टीका-संघाटिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं..-१. युग (जोड़ा) २. घ्राण (नाक) ३. कुट्टिनी (व्यभिचार के लिए मिलाने वालो) और ४. जलकण्टक । संघात शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. हनन (मारना) २. वात (समूह) और ३. कफ (जुखाम) तथा ५. नरकान्तर (नरक विशेष)। सचिव शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं--१. कृष्णधत्तर (काला धतर) ३. मन्त्री । पुल्लिग सज्ज शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. सन्नद्ध (सावधान तैयार। और २. निभृत (अत्यन्त निर्भर) किन्तु ३. संभृत (भेंट या पूरा) अर्थ में सज्ज शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । सज्जा वेशे च सन्नाहे संचयः संग्रहे गणे। संचारो गमने दुगसंचरे ग्रहसंक्रमे ॥२०६८।। मूल: Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--सज्जा शब्द कुट्टन्यां युगले घ्राणे दूत्यां संचारिका स्मृता । सटा तु स्त्री शिखायां स्यात् जटा केशरयोरपि ॥२०६६।। हिन्दी टीका-सज्जा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. वेश (पोशाक) और २. सन्नाह (पूर्ण तैयारी)। संचय शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. संग्रह (इकट्ठा करना) और २. गण (समूह)। संचार शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. गमन (जाना) २. दुर्गसंचर (दुर्ग-किला के अन्दर विचरना) और ३. ग्रहसंक्रम (ग्रहों का संक्रमण)। संचारिका शब्द के भी तोन अर्थ होते हैं१. कुट्टनी (ब्यभिचार के लिये मिलाने वाली) २. युगल (जोड़ा) ३. घ्राण (नाक) और ४. दूती । सटा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. शिखा २. जटा तथा ३, केशर । मल: सती पतिव्रता-दुर्गा - सौराष्ट्री-मृत्तिकासु च । सावित्र्यां विद्यमानायां तथा दानाऽवसानयोः ॥२१००॥ सतीलो मारुते वंशे कलायेऽपि प्रकीर्तितः । सत्ये धीरे विद्यमाने साधौ शस्ते च सत् त्रिषु ॥२१०१।। हिन्दी टीका --सती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. पतिव्रता स्त्री, २. दुर्गा(पार्वती) ३. सौराष्टीमत्तिका (उत्तम राष्ट्र की मिट्टी) ४. सावित्री और ५. विद्यमाना में रहने वाली) ६. दान और ७. अवसान (समाप्ति)। सतील शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मारुत (पवन) २. वंश, ३. कलाय (मटर, वटाना) । सत् शब्द त्रिलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सत्य, २. धीर, ३. विद्यमान, ४. साधु और ५. शस्त (प्रशस्त) इस प्रकार सत् शब्द के पाँच अर्थ जानना । मूल : ___ संमाने संस्क्रियायां च सक्रिया स्त्री निगद्यते। सत्रं गृहे धने दाने कानने कपटेऽध्वरे ॥२१०२॥ हिन्दी टोका- सक्रिया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं--१. सम्मान (आदर) और २. संस्क्रिया (संस्कार) । सत्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. गृह, २. धन, ३. दान, ४. कानन (बन) ५. कपट (छल) और ६ अध्वर (याग)। मूल : सत्कृतः कृतसत्कारे पूजितेऽप्यभिधेयवत् । सत्वं बले पिशाचादौ व्यवसाय-स्वभावयोः ॥२१०३।। द्रव्ये चित्ते च प्राणेषु गुणे जन्तौ तु न स्त्रियाम् । सत्यं कृते च सिद्धान्ते यथार्थे तद्वति त्रिषु ।।२१०४।। सदस्यः पुंसि सभ्ये स्यात् तथैव विधिदशिनि । सदाप्रसूनो नाऽर्कद्रौ कुन्दे रोहितकद्रुमे ॥२१०५॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग सत्कृत शब्द का अर्थ-१. कृतसत्कार (संमानित) होता है किन्तु २. पूजित अर्थ में सत्कृत शब्द अभिधेयवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। नपुंसक सत्व शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं-१. बल (सामथ्यं, ताकत) २. पिशाचादि (पिशाच वगैरह) ३. व्यवसाय (उद्योग धन्धा) । ४. स्वभाव (नेचर-प्रकृति) ५. द्रव्य, ६. चित्त (मन) ७. प्राण और ८. गुण (सत्वगुण) किन्तु ६. जन्तु अर्थ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित --सदाफल शब्द | ३६३ में सत्व शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है । नपुंसक सत्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. कृत (सत्ययुग - कृतयुग) २. सिद्धान्त और ३. यथार्थ ( वास्तविक ) किन्तु ४. तद्वति (यथार्थ ज्ञान युक्त) अर्थ में सत्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिंग सदस्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सभ्य और २. विधि - दर्शी (विधिकाद्रष्टा देखने वाला) । पुल्लिंग सदाप्रसून शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. अकेंद्र, (ऑक का वृक्ष) २. कुन्द (कुन्द नाम का प्रसिद्ध फूल विशेष) और ३. रोहितकद्र ुम ( गुलनार या लाल करञ्ज) इस प्रकार सदाप्रसून शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल : सदाफलो नारिकेले बिल्बे स्कन्दफले तथा । सदृशस्तुचिते तुल्ये वाच्यलिङ्ग उदाहृतः ॥ २१०६ ।। देशान्विते सन्निकृष्टे सदृशस्त्रिषु कीर्तितः । सनातनः शिव विष्णौ ब्रह्म - दिव्यमनुष्ययोः ॥ २१०७ ।। हिन्दी टीका --- सदाफल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. नारिकेल ( नारियल) २. बिल्व ( बेल का वृक्ष) और स्कन्दफल ( गूलर वगैरह ) । सदृश शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं ? उचित (योग्य) और २ तुल्य (सरखा) किन्तु २. देशान्वित (देशयुक्त) और ४. सन्निकृष्ट (निकट) अर्थ में सदृश शब्द त्रिलिंग माना जाता है। सनातन शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. शिव (भगवान शंकर) २. विष्णु (भगवान विष्णु) और ३. ब्रह्म (परमात्मा) और ४. दिव्य मनुष्य (मुनि रामकृष्ण वगैरह ) । मूल : असौ वाच्यवदाख्यातो नित्ये तद्वत् सुनिश्चले । दुर्गायामिन्दिरायां सरस्वत्यां सनातनी ||२१०८ ।। सनाभिः स्यात् सपिण्डे ना तूल्ये स्नेहयुते त्रिषु । सन्ततिर्गोत्रविस्तार-पंक्ति - कन्या सुतेषु च ॥२१०६॥ हिन्दी टीका - १. नित्य और २. सुनिश्चल (स्थिर) अर्थ में सनातन शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । स्त्रीलिंग सनातनी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. दुर्गा (पार्वती) २. इन्दिरा (लक्ष्मी) और ३. सरस्वती । पुल्लिंग सनाभि शब्द का अर्थ १ सपिण्ड (गोतिया सगोत्र ) होता है किन्तु २. तुल्य (सदृश सरखा) और ३. स्नेहयुत (स्नेही ) अर्थ में सनाभि शब्द त्रिलिंग माना जाता है । सन्तति शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. गोत्रविस्तार (वंश वृद्धि) और २ पंक्ति (श्रेणी) और ३. कन्यासुत (कन्या लड़की का सुत - पुत्र) । मूल : सन्धिर्ना भेद-संश्लेष - सुरुङ्गामु संघ सावकाशेऽक्षर भगे तथा । द्वितयमेलने ॥ २११०॥ सन्धितो मिलिते सन्धियुक्त त्रिष्वासवादिके । सन्धिला मदिरा-नद्योः सुरुङ्गायामपि स्मृता ।।२१११।। हिन्दी टीका - सन्धि शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. भेद ( जुदा ) २. संश्लेष (मेल) ३. सुरुङ्गा (सुरङ्ग) और ४. भग (योनि) तथा ५ संघट्टन ( टकराना) एवं ६. सावकाश Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ | नानादियसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सन्तति शब्द और ७. अक्षर द्वितय मेलन (दो अक्षरों का मेल)। सन्धित शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१ मिलित, २. सन्धि यक्त और ३. त्रिष्वासवादिक । सन्धिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मदिरा (शराब) २. नदी और ३. सुरुङ्गा (सुरङ्ग) इस प्रकार सन्धिला शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : प्रणतौ नम्रतायां च ध्वनौ स्यात् सन्ततिः स्त्रियाम् । पृष्ठस्थायिबले वृन्दे सन्नयः परिकीर्तितः ॥२११२।। आश्रये निकटे क्लीवं सन्निधानं प्रकीर्तितम् । सन्निधिः स्त्री सन्निकर्षे तद्वदिन्द्रियगोचरे ॥२११३।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग सन्तति शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रणति (प्रणाम) २. नम्रता . (विनय) और ३. ध्वनि । सन्नय शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पृष्ठ स्थायिबल (पीछे रहने वाली सेना) और २. वृन्द (समूह) । नपुंसक सन्निधान शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. आश्रय और २. निकट । स्त्रीलिंग सन्निधि शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. सन्निकर्ष (निकट या सम्बन्ध विशेष) और २. तद्वदिन्द्रियगोचर (सन्निकर्षयुक्त इन्द्रिय विषय) आँख वगैरह इन्द्रियों का घटादि विषयों के साथ संयोगादि सम्बन्ध को (सन्निधि-सन्निकर्ष) कहते हैं और सन्निकर्षयुक्त घटादि विषय को भी सन्निधि कहते हैं। मूल : सप्तला पाटला-चर्मकषा-गुञ्जासु कोर्तिता। सप्ताचिर्नाऽनले तद्वद् शनौ चित्रकपादपे ।।२११४।। वाच्यवत्तु स्मृतोऽसौ च क्रू र चक्षुषि कोविदः। सभासानाजिके द्यूते समितौ निवहेगृहे ॥२११५।। हिन्दी टोका-सप्तला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पाटला (गुलाब) २. चर्मकषा (सेहुंड़, थूहर) और २. गुजा (चनौठो-मूंगा)। पुल्लिग सप्तचिः शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अनल (अग्नि) २. शनि (शनि ग्रह विशेष) और ३. चित्रकपादप (चीता नाप का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) किन्तु ३. क्रूरचक्षु (अत्यन्त क्रूर आँख वाला) अर्थ में सप्ताचि: शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । सभा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. सामाजिक (समाज सम्बन्धी) २. द्यूत ३. समिति और ४. निवह (समूह) तथा ५. गृह (मकान) को सभा कहते हैं । मूल : सभ्यो ना सभिके साधौ सभासदि मत: सताम् । साधु-सर्व-समानेषु समो वाच्यवदीरितः ॥२११६।। समजो ना पशुवाते मूर्खवृन्दे वनेऽद्वयोः । समज्या समितौ की”उचिते तु समञ्जसम् ।।२११७।। हिन्दो टोका-सभ्य शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. सभिक (जुआ खेलाने वाला) २. साधु (मुनि महात्मा) और ३. सभासद् (सदस्य-सभा में रहने वाला)। सम शब्द १. साधु, २. सर्व (सारा) और ३. समान (सदृश-सरखा) इन तीनोंअर्यों में वाच्यवत्(विशेष्यनिघ्न) माना Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - समञ्जस शब्द | ३६५ जाता है । पुल्लिंग समज शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. पशुव्रात (पशु का समूह ) और २. मूर्ख वृन्द ( मूर्खों को मण्डली) किन्तु ३. वन अर्थ में समज शब्द नपुंसक माना जाता है । समज्या शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. समिति (सभा) और २ कीर्ति ( ख्याति ) । नपुंसक समञ्जस शब्द का अर्थ - १. उचित (योग्य) अर्थ माना गया है। इस प्रकार समज्या शब्द के दो और समञ्जस शब्द का एक अर्थ समझना | मूल : समञ्जस: समीचीनेऽभ्यस्ते वाक्यवदीरितः । समयः शपथे काले क्रियाकारे च संविदि ।।२११८ ॥ सिद्धान्तेऽवसरे सम्पद् - विपदो नियमे तथा । निर्देशाऽऽचार भाषासु संकेते च बुधैः स्मृतः ॥ २११६॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग समञ्जस शब्द का अर्थ - १. समीचीन ( अत्यन्त योग्य) होता है किन्तु २. अभ्यस्त अर्थ में समञ्जस शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहा गया है। समय शब्द पुल्लिंग है और उसके तेरह अर्थ माने गये हैं -- १. शपथ (सौगन्ध ) २ काल (समय) ३. क्रियाकार (क्रिया करने वाला) और ४. संविद् (ज्ञान) तथा ५. सिद्धान्त एवं ६. अवसर (प्रसंग) ७. सम्वत् और विपत्, ६. नियम, १०. निर्देश (कथन) ११. आचार (सदाचार) और १२ भाषा (वचन) तथा १३. संकेत ( इच्छा विशेष ) इस प्रकार समय शब्द के तेरह अर्थ जानना चाहिये । मूल : समया निकटे मध्ये काल ं विज्ञापनेऽव्ययम् । समर्थो हित शक्तिष्ठ सम्बन्धार्थेषु वाच्यवत् ॥२१२० ।। समर्यादः समीपे ना मर्यादासहिते त्रिषु । समलं त्रिष्वनच्छे स्याद् विष्ठायां तु नपुंसकम् ॥ २१२१ ॥ हिन्दी टीका - समया शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. निकट ( समीप ) २. मध्य (बीच ) और ३. काल विज्ञापन ( समय को सूचित करना) । समर्थ शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न ) माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. हित, २. शक्तिष्ठ ( शक्तिशाली ) और ३. सम्बन्धार्थं ( एकार्थीभाव रूप सम्बन्ध अर्थ ) को भी समर्थ कहते हैं। पुल्लिंग समर्याद शब्द का अर्थ - १. समीप (निकट) होता है किन्तु २ मर्यादासहित अर्थ में समर्याद शब्द त्रिलिंग माना जाता है । त्रिलिंग समल शब्द का अर्थ - १. अनच्छ ( स्वच्छ नहीं, मैला - कुचला ) किन्तु नपुंसक समल शब्द का अर्थ - २. विष्ठा (मल) होता है । मूल : समवायस्तु सम्बन्धविशेषे निवहेऽपि च । समष्ठिलो ना भण्डीरे गण्डीरे तु समष्ठिला ॥२१२२।। समागमस्तु सम्प्राप्तौ सम्यगागमनेऽपि च । समाजः पशु भिन्नानां संघे समिति हस्तिनोः ॥ २१२३ ॥ हिन्दी टीका - समवाय शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. सम्बन्ध विशेष (समवाय नाम का सम्बन्ध) और २. निवह (समूह) । पुल्लिंग समष्ठिल शब्द का अर्थ - भण्डीर ( मंजीठ ) किन्तु गाण्डीर Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दो टीका सहित - समदान शब्द ( गांडर नाम का शाक विशेष गडिन) अर्थ में स्त्रीलिंग समष्ठिला शब्द का प्रयोग किया जाता है । समागम शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. सम्प्राप्ति (मिलन) और २. सम्यगागमन (समीचीन आगमन) । समाज शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - पशुभिन्नानां संघ (पशु से भिन्नों का समूह ) और २. समिति (सभा) और ३. हस्ती (हाथी) को भी समाज कहते हैं । मूल : समादानं समीचीन ग्रहणे सौगताह्निके । नासमाधाः समाधाने विरोधस्य च भञ्जने ॥ २१२४ ॥ चित्तैकाग्र समाधानं पूर्वपक्षोत्तरेऽपि च । समाधिः पुंसि नीवाके ध्यान इन्द्रियरोधने ॥ २१२५॥ हिन्दी टीका - समादान शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. समीचीन ग्रहण (समीचीन योग्य का ग्रहण करना) और २. सौगतान्हिक (बुद्ध का आह्निक- दैनिक कार्य विशेष ) । समाधा शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अथ माने जाते हैं - १. समाधान ( चित्त को एकाग्र करना) और २. विरोधस्य च भञ्जनं ( विरोध को दूर करना) । नपुंसक समाधान शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं१. चित्तैकाग्र (चित्त को एकाग्र करना) और २ पूर्वपक्षोत्तर ( पूर्व पक्ष का उत्तर देना) : समाधि शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. नोवाक (धान्य वगैरह को एकत्रित करना) २. ध्यान और ३. इन्द्रियरोधन (इन्द्रिय को वश में करना) । मूल : समर्थनेऽङ्गीकरणे योगे काव्यगुणान्तरे । समापन्नं त्रिषु प्राप्ते वधे क्लिष्ट समाप्तयोः ॥ २१२६ ॥ समाप्तिः स्त्री परिप्राप्ता ववसाने समर्थने । समवाये समायोगः संयोगे च प्रयोजने ॥२१२७॥ हिन्दी टीका-समाधि शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. समर्थन ( अनुमोदन करना) २. अङ्गीकरण (स्वीकार करना) ३. योग (समाधि) और ४. काव्य गुणान्तर ( काव्य का गुणान्तर -गुण विशेष-समाधि नाम का काव्य गुण) । त्रिलिंग समापन्न शब्द के चार अर्थ माने गये हैं- १ प्राप्त, २. वध ( मारना ) ३. क्लिष्ट ( अत्यन्त कठिन) और ४ समाप्त । समाप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. परिप्राप्ति २ अवसान ( विराम) और ३. समर्थन ( समर्थन करना) । मूल : स्यात् समालम्भनं स्पर्शे मारणे च विलेपने । समासः स्यात्समाहारे संक्षेपे च समर्थने ॥ २१२८ ॥ ऐकपद्येऽथ संक्षेपे समाहारः समुच्चये । समाहितः समाधिस्थे निष्पन्नाऽऽहितयो स्त्रिषु ॥ २१२६ ॥ हिन्दी टीका - समालम्भन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. स्पर्श (स्पर्श करना) २. मारण (मारना) और ४. विलेपन ( लेप करना) । समास शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. समाहार ( समाहरण, इकट्ठा करना) २. सक्षे ( शौर्ट ३. समर्थन ( अनुमोदन) और ४. ऐकपद्य (एक पद होना) । समाहार शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. संक्षेप (शौर्ट) Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--समिति शब्द | ३६७ और २. समुच्चय (अधिक) । समाहित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. समाधिस्थ (समाधि में लगा हुआ) २. निष्पन्न (सम्पन्न) और ३. आहित (स्थापित किया हुआ)। मूल : प्रतिज्ञातोक्तसिद्धान्त निर्विवादी कृतेष्वपि । आयोधने सभायां च संगेऽपि समितिः स्त्रियाम् ।।२१३०॥ समीरणो मरुवके पथिके मातरिश्वनि । सम्प्रेक्षणे सांख्य शास्त्रे समीक्षणमितीरितम् ॥२१३१॥ हिन्दी टोका--समिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. प्रतिज्ञात (प्रतिज्ञा का विषय) २. उक्तसिद्धान्त (कथित सिद्धान्त) और ३. निर्विवादीकृत (विवाद रहित वाला) तथा ४. आयोधन (संग्राम) एवं ५. सभा और ६. संग । समीरण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मरुवक (मयनफल या मरुवा) २. पथिक (राहगीर) और ३. मातरिश्वा (पवन)। समीक्षण शब्द के दो अर्य माने गये हैं-१. संप्रेक्षण (देखना) और २. सांख्यशास्त्र (कपिल मुनि कृत सांख्य शास्त्र)। मूल : समीक्षा धिषणायां स्यात् तत्वे यत्ने निभालने । पर्यालोचन - मीमांसा शास्त्रयोरप्युदीरिता ॥२१३२॥ समुच्छ्य-समुच्छायौ विरोधोत्सेधयोः स्मृतौ । समुद्गमे दिने युद्धे वृन्दे समुदयः स्मृतः ॥२१३३।। हिन्दी टोका-समीक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं--१. धिषणा (बुद्धिमेधा २. तत्व (वास्तविकता) ३. यत्न (उद्योग अध्यवसाय) ४. निभालन (देखना-समीक्षा करना) ५. पर्यालोचन (आलोचना करना) और ६. मीमांसाशास्त्र (जैमिनी मुनि कृत मीमांसा शास्त्र) । समुच्छ्य और समुच्छ्राय शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. विरोध (विरोध करना) और २. उत्सेध (परिधि-विस्तार वगैरह)। समुदय शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. समुद्गम (प्रादुर्भाव) २. दिन, ३. युद्ध (संग्राम) और ४. वृन्द (समूह)। मूल : समुदायः समूहे स्यात् पृष्ठस्थायिबले रणे । समुद्धतः समुद्गीर्णे दुविनीतेऽपि वाच्यवत् ॥२१३४॥ समुद्धतं समुत्कीर्णा - पनीतोत्थापिते त्रिषु । समुद्रनवनीतं तु चन्द्रमस्यमृते स्मृतम् ।।२१३५॥ हिन्दी टोका-समुदाय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. समूह २. पृष्ठस्थायिबले (पीछे से रहने वाली सेना) और ३. रण (संग्राम)। समुद्धत शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके गे अर्थ माने गये हैं--१. समुद्गोण (उगला हुआ) और २. दुर्विनील (शठ) समुद्ध त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. समुत्कीर्ण (खोदा गया) २. अपनीत (हटाया गया) और ३. उत्थापित (उठाया गया)। समुद्रनवनीत शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. चन्द्रमा और २. अमृत (सुधा)। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-समुद्रारु शब्द मूल : कुम्भीरे सेतु बन्धे च समुद्रारुस्तिमिङ्गिले । गविते पण्डितम्मन्ये समुद्भूतोद्ध बन्धयोः ॥२१३६।। हिन्दी टोका-समुद्रारु शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं -१. कुम्भीर (नक्रग्राह) २. सेतुबन्ध (सेतु बाँध) ३. तिमिगिल (मछली विशेष ४. गर्वित (घमण्डी) ५. पण्डितम्मन्य (अपने को पण्डित मानने वाला) और ६ समुद्भूत (उत्पन्न) और ७. ऊर्ध्वबन्ध (ऊपर बन्धन)। मूल : प्रभौं च वाच्यवल्लिगः समुन्नद्ध उदाहितः। समूढ़ो वाच्यवद् भुग्ने सद्योजाते विवाहिते ॥२१३७॥ दमिते मूढसहिते शोधिते चानुपप्लुते । । समुह्यः पुंसि यज्ञाग्नौ सम्यगृहोचिते त्रिषु ॥२१३८।। सम्पत् स्त्रियां गुणोत्कर्षे विभवोत्कर्ष-हारयो । सम्पन्नस्त्रिषु सम्पत्तिशालि शोधितयोः स्मृतः ॥२१३६।। हिन्दी टीका-१. प्रभु (स्वामी) अर्थ में समुन्नद्ध शब्द वाच्यवलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । समूढ शब्द–१. भुग्न (टेढ़ा) २. सद्योजात (तुरत उत्पन्न) और ३. विवाहित अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है । समूढ शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. दमित (वश में किया हुआ) २. मूढसहित ३. शोधित (परिमार्जित) तथा ४. अनुपप्लुत (उपद्रव रहित)। समुह्य शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-. यज्ञाग्नि (यज्ञ की अग्नि) (अच्छी तरह ऊह-उचित तर्क वितर्क करने योग्य) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। सम्पत् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गुणोत्कर्ष (गुणों का उत्कर्ष उन्नति) २. विभवोत्कर्ष (विभव-धन का उत्कर्ष-उन्नति) और ३. हार (मुक्ताहार वगैरह)। सम्पन्न शब्द-१. सम्पत्तिशाली और २. शोधित (परिमार्जित) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। मूल : सम्परायस्तु संग्राम आपदुत्तरकालयोः । सम्पर्कः पुंसि विज्ञ यः संसर्गे मेलके रतौ ॥२१४०॥ सम्पाको लम्पटे धृष्टे तर्ककेऽल्पे च वाच्यवत् । सम्प्रयोगस्तु सम्बन्धे मैथुने कार्मणेऽथिते ॥२१४१॥ हिन्दी टीका-सम्पराय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सग्राम (युद्ध) २. आपत् (विपत्ति) और ३. उत्तरकाल (भविष्य काल)। सम्पर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके भो तीन अर्थ माने गये हैं-१. संसर्ग (सम्बन्ध) २. मेलक (मिलाने वाला) और ३. रति (मैथुन)। सम्पाक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. लम्पट (विषयो) २. धृष्ट (शठ) ३. तर्कक (तर्क करना) किन्तु ४. अल्प (थोड़ा) अर्थ में सम्पाक शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। सम्प्रयोग शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सम्बन्ध (संसर्ग) २. मैथुन (विषयभोग) ३. कार्मण (जड़ी बूटी आदि से उच्चाटन मारण मोहन करना) और ४. अर्थित (प्रार्थित याचित)। मूल : संप्रयोगी कलाकेलो कामुके संप्रयोजके । सम्प्रहारस्तु गमने संग्रामे हननेऽपि च ॥२१४२॥ सम्यगाव Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - संप्रयोगी शब्द | ३६६ सम्बद्धस्त्रिषु सम्पर्के बद्ध-सम्बन्धयुक्तयोः । सम्बन्धो न्यायसम्पर्क समृद्धिषु निगद्यते ॥२१४३॥ - हिन्दी टीका - संप्रयोगी शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. कलाकेलि (केलि कलाकौशल) २. कामुक ( विषय लम्पट) और ३. संप्रयोजक (संप्रयोग करने वाला) । सम्प्रहार शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. गमन ( जाना) २. संग्राम (युद्ध) और ३. हनन (वध-मारना) । त्रिलिंग सम्बद्ध शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सम्पर्क, २. बद्ध (बँधा हुआ) और ३. सम्बन्धयुक्त (सम्बन्धी ) । सम्बन्ध शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ म हैं - १. न्याय, २. सम्पर्क और ३. समृद्धि (सम्पत्ति ) । मूल : विशेषयोः । सम्बरं संयमे नीर - बौद्धव्रत भेदे दैत्यस्य मीनस्य हरिणस्य च पुंस्ययम् ॥२१४४॥ सेतौ शैलान्तरे भावितीर्थकृत्यपि कीर्तितः । आखुप शतावर्यां सम्बरी स्त्री प्रकीर्तिता ॥ २१४५॥ हिन्दी टीका - नपुंसक सम्बर शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. संयम २. नीर (जल) ३. बौद्धव्रतविशेष और पुल्लिंग सम्बर शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. दैत्यभेद ( दैत्य विशेष ) २. मीनभेद ( मीन विशेष) और ३. हरिणभेद (हरिण विशेष ) । पुल्लिंग सम्बर शब्द के ओर भी तीन अर्थ होते हैं१. सेतु (बाँध) २. शैलान्तर (शैल विशेष) और ३. भावितीर्थंकृत् (भावी तीर्थङ्कर) । स्त्रीलिंग सम्ब शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-- १. आखपर्णी (आखुपर्णी नाम की लता विशेष) और २. शतावरी (शतावर ) । इस प्रकार सम्बर शब्द के कुल मिलाकर ग्यारह अर्थ जानना । मूल : सम्बलं सलिले क्लीवं पाथेये सम्बलोऽस्त्रियाम् । संबाधः संकटे भीतौभगे नरकवर्त्मनि ॥ २१४६॥ सम्बाधनं स्मरद्वारे शूलाग्र - द्वारपालयोः । सम्भवो मेलकेऽपाये संकेतोत्पत्ति-हेतुषु ॥ २१४७॥ हिन्दी टीका - १. सलिल (पानी) अर्थ में सम्बल शब्द नपुंसक माना जाता है और २. पाथेय अर्थ में सम्बल शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है। पुल्लिंग संबाध शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. संकट २. भीति (भय) ३. भग (योनि) और ४. नरकवर्त्म ( नरक का रास्ता ) । नपुंसक संबाधन शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. स्मरद्वार (कामदेव का द्वार) ३. शूलाग्र (शूल का अग्र भाग) तथा ३० द्वारपाल । सम्भव शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. मेलक (मेल कराने वाला) २. अपाय (नाश) ३. संकेत ४. उत्पत्ति तथा ५. हेतु (कारण) इस प्रकार सम्भव शब्द के पाँच अर्थ जानना । आधारानतिरिक्तत्व आधेयस्य जिनान्तरे । सम्भावः सर्व पूर्णत्वे सम्भूति- समवाययोः ॥ २१४८ ॥ स्फुटने मेलने प्रोक्तः सम्भेद: सिन्धु संगमे । सम्भोगः सुरते भोगे प्रमोदे केलि नागरे ॥ २१४६॥ मूल : Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित- - सम्भव शब्द हिन्दी टीका - सम्भव शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. आधेयस्य आधारानतिरिक्तव ( आधेय को आधारस्वरूप मानना) तथा २. जिनान्तर (जिन विशेष ) । सम्भाव शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सर्व पूर्णत्व २. सम्भूति ( ऐश्वर्य ) ३. समवाय । सम्भेद शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. स्फुटन (स्फुटित होना) २. मेलन (मेल कराना) और ३. सिन्धुसंगम ( नदी संगम ) । सम्भोग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. सुरत ( विषय भोग ) २. भोग (सुख) ३. प्रमोद (आनन्द) और ४. केलिनागर (केलि करने वाला नागर पुरुष विशेष ) । मूल : जिनशासन शृङ्गार - भेदयोरप्युदीरितः । संम्भ्रमः स्याद्भये सूत्रे संवेगे च महाभ्रमे ॥ २१५० ।। सम्मतिः स्यादनुज्ञायामात्मज्ञानाभिलाषयोः । संमिश्रस्त्रिषु संयुक्त मिश्रितेऽपि प्रयुज्यते ।।२१५१ ।। हिन्दी टीका - सम्भोग शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. जिनशासन (भगवान् तीर्थङ्कर का शासन) और २. शृङ्गारभेद (शृङ्गार विशेष ) । सम्भ्रम शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. भय, २. सूत्र और ३ संवेग (त्वरा) और ४ महाभ्रम (अत्यन्त बड़ा भय) को भी सम्भ्रम कहते हैं । सम्मति शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. अनुज्ञा (अनुमति) २. आत्मज्ञान और ३. अभिलाषा ( मनोरथ स्पृहा ) त्रिलिंग संमिश्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. संयुक्त ( जुटा हुआ ) और २. मिश्रित ( मिला हुआ ) । मूल : संमूर्च्छनमभिव्याप्तौ तद्वदुच्छ्राय - मोहयोः । सम्यक् स्याद् वाच्यवल्लिग: संगते सत्यवाच्यपि ।। २१५२ ।। रम्ये प्रथम कल्पादौ सम्यक् समुदयेऽव्ययम् । सरो ना लवणे बाणे दध्यग्र े च गतावपि ।। २१५३ ।। हिन्दी टोका - सम्मूर्च्छन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-- १. अभिव्याप्ति ( व्यापकता ) और २. उच्छ्राय (ऊँचाई) तथा ३. मोह । सम्यक् शब्द - १. संगत और २ सत्यवाक् अर्थ में वाच्यवत्लंग ( विशेष्यनिघ्न) माना जाता है किन्तु अव्यय सम्यक् शब्द के तीन अर्थ सुन्दर) २. प्रथम कल्पादि (सृष्टि का आदि) और ३. समुदय (उन्नति ) । चार अर्थ माने गये हैं - १. लवण (नमक) २. बाण, ३. दध्यग्र (दही का अगला भाग मक्खन मलाई) और ४. गति ( गमन) इस प्रकार सर शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । माने गये हैं - १. रम्य ( रमणीय सर शब्द पुल्लिंग है और उसके मूल : निर्झरे तु द्वयोः प्रोक्तः सारके गन्तरि त्रिषु । सरं स्यात् सरसा सार्द्धं तडागे सलिलेऽपि च ।।२१५४ ॥ सरकोsस्त्री शीधुपान - शीधुभाजनयोरपि । अच्छिन्नाध्वगपंक्तौ च स्यान्मद्य परिवेषणे ।। २१५५ ।। - हिन्दी टीका - १. निर्झर (झरना) अर्थ में सर शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना गया है किन्तु २. सारक ( ले जाने वाला) और २. गन्ता ( जाने वाला) अर्थ में सर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नपुंसक Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष ः हिन्दी टीका सहित-सरक शब्द | ३७१ सर शब्द तथा सरस शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. तडाग (तालाब) और २. सलिल (पानी)। पुल्लिग तथा नपुंसक सरक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. शीधुपान (शराब पीना) और २. शीधुभाजन (शराब का पात्र) तथा ३. अच्छिन्नाध्वग पंक्ति (राहगीर की लगातार पंक्ति) एवं ४. मद्यपरिपेषण (शराब का परिवेषण परोसना) इस प्रकार सरक शब्द का चार अर्थ समझना चाहिये । मूल : त्रिष्वसौ गतिशीले च क्लीवमभ्र सरोवरे । सरणिः स्त्री प्रसारिण्यां पंक्तौ मार्गेऽपि चेष्यते ॥२१५६॥ सरण्डः सरटे धूर्ते कामुके भूषणे खगे। सरण्युर्ना जले वायौ मेघे बह्नि-वसन्तयोः ॥२१५७॥ हिन्दी टीका-१. गतिशील (गमनशील) अर्थ में सरक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और २. अभ्र (मेघ) ३. सरोवर (तालाब) अर्थ में सरक शब्द नपुंसक माना गया है। सरणि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्रसारिणी (आकाश बेल-बंबर) २. पंक्ति (कतार लाइन) और ३. मार्ग (रास्ता) । सरण्ड शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं --१. सरट (गिरगिट) २. धूर्त (ठग, वञ्चक) ३. कामुक (विषय भोग लम्पट) ४. भूषण (अलंकरण) और ५. खग (पक्षी)। सरण्यु शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी पाँच अर्थ माने जाते हैं – १. जल (पानी) २. वायु (पवन) ३. मेघ (बादल) ४. बह्नि (अग्नि) और ५. वसन्त ऋतु को भी सरण्यु कहते हैं इस प्रकार सरण्यु शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : सरल: पूतिकाष्ठे स्यात् बुद्ध वैश्वानरे पुमान् । वाच्यलिङ्गस्त्वसौ प्रोक्त उदारेऽकुटिलेऽपि च ॥२१५८।। सरस्वती स्याद् भारत्यां दुर्गायां सरिदन्तरे । मनुपत्न्यां सरिभेदे बुद्धशक्त्यन्तरे गवि ॥२१५६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग सरल शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१, पूतिकाष्ठ (देवदारु वृक्ष) २. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) और ३. वैश्वानर (अग्नि) किन्तु ४. उदार और ५. अकुटिल (सरल सीधा) अर्थ में सरल शब्द वायलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना गया है। सरस्वती शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं- १. भारती, २. दुर्गा, ३. सरिदन्तर (सरिद् विशेष-नदी विशेष) ४. मनुपत्नी (मनु की पत्नी) और ५. सरिभेद (सरिद् विशेष सरस्वती नदी) और ६. बुद्ध शक्त्यान्तर (भगवान् बुद्ध की शक्ति विशेष) और ७. गौ (गाय) को भी सरस्वती कहते हैं। ज्योतिष्मती-सोमलता-नदीमात्रेषु वाचि च। सरस्वान् ना नदे सिन्धौ रसिके त्वभिधेयवत् ।।२१६०॥ सरोजिनी पद्मखण्डे कमले कमलाकरे । सर्गः स्यात् निश्चयेऽध्याये स्वभावे सृष्टि-मोहयोः ॥२१६१॥ हिन्दी टोका-सरस्वती शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. ज्योतिष्मती (माल कांगनी नाम की लता विशेष) और २. सोमलता तथा ३. नदीमात्र एवं ४. वाक् (वाणी) को भी सरस्वती कहते हैं । सरस्वान् शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. नद (बड़ी नदी या झील) तथा मूल : Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित - सर्ग शब्द २. सिन्धु (समुद्र) किन्तु ३. रसिक अर्थ में सरस्वान् शब्द अभिधेयवत् ( वाच्यलिंग - विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । सरोजिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. पद्मखण्ड (कमल नाल) २. कमल और ३. कमलाकर ( कमल समूह ) । सगे शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं१. निश्चय, २. अध्याय ३. स्वभाव (नेचर) और ४. सृष्टि तथा ५. मोह, इस प्रकार सर्ग शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए । मूल : उत्साहेनुमतौ त्यागे मोचनेऽपि प्रकीर्तितः । सर्जः शालद्रुमे पीतशाले सर्जरसे पुमान् ॥२१६२।। सृष्टौ विसर्गने सैन्यपश्चाद्भागेऽपि सर्जनम् । अथ सर्वरसो वीणा विशेषे धूनके बुधे ॥२१६३॥ हिन्दी टीका - सर्ग शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. उत्साह, २. अनुमति (स्वीकार समर्थन ) ३. त्याग और ४. मोचन ( छोड़ाना) । सर्ज शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. शालद्र ुम ( शाखोट का पेड़ ) २. पीलशाल (पीले रंग का शाखोट शाँख) और ३. सर्जरस (विजय सार वृक्ष का रस ) । सर्जन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. सृष्टि, २. विसर्जन और ३. सैन्यपश्चाद् भाग (सेनाओं का पीछा भाग ) । सर्वरस शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. वीणा विशेष, २. धूनक (रुई धुनने वाला, धुनियाँ) और ३. बुध (पण्डित) । सवश्चन्द्रे सहस्रांशौ यज्ञ - सन्तानयोरपि । मूल : सवेशो वाच्यवल्लिंगो वेशान्वित समीपयोः ।। २१६४ ।। हिन्दी टीका-सव शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. चन्द्र, २. सहस्रांश (सूर्य) ३. यज्ञ और ४. सन्तान । सवे शब्द १. वेशान्वित (वेश पोशाकयुक्त) और २. समीप (निकट) अर्थ में वाच्यवत्लिंग ( विशेष्यनिघ्न) माना जाता है (विशेष्य-मुख्य के अनुसार जो विशेषण का लिंग हो उसे विशेष्यनिघ्न) कहते हैं । मूल : सव्यस्तु त्रिषु वामे स्यातु दक्षिण प्रतिकूलयोः । सस्यं धान्ये गुणे शस्त्रे वृक्षादीनां फलेऽपि च ।। २१६५।। साधनं मृतसंस्कारे कारके गमने वधे । उपाये दापने शिश्ने प्रमाणे सिद्धि-सैन्ययोः । २१६६ ॥ निषेधेऽनुगमे वित्ते योनौ निष्पादने जवे । साधिष्ठो वाच्यवन्न्याय्येऽत्यायें दृढ़तमेऽप्यसौ ॥२१६७॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग सव्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. वाम (वायां भाग - डावा) और २. दक्षिण (दहिना जमणा) तथा ३. प्रतिकूल (विपरीत) । सस्य शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. धान्य (फसल) २. गुण (कला-हुनर ) ३. शस्त्र (तलवार) और ४. वृक्षादीनां फल ( वृक्ष वगैरह का फल ) को भी सस्य कहते हैं । साधन शब्द के सोलह अर्थ माने गये हैं- १. मृतसंस्कार (मृतक का दाहादि संस्कार ) २. कारक (निष्पादक) ३. गमन, ४. वध, ५. उपाय, ६. दापन ( दिलाना) ७. शिश्न (मूत्रेन्द्रिय) ८ प्रमाण Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-साधु शब्द | ३७३ (सबूत) ६. सिद्धि (सिद्धाई) १०. सैन्य ११. निषेध (मना करना, ना पाड़ना) १२. अनुगम (संक्षेप) १३. वित्त (धन) १४. योनि (भग) १५. निष्पादन (निष्पन्न करना) और १६. जव (वेग)। साधिष्ठ शब्द १. न्याय्य (न्यायोचित) २. अत्यार्य (अत्यन्त श्रेष्ठ) तथा ३. दृढ़तम (अत्यन्त मजबूत) अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। मूल : साधुर्मु नौ जिने सभ्ये पुंस्युत्तमकुलोद्भवे । साधुवाहो विनीताश्वे तथा सुन्दरवाहने ।।२१६८।। साध्यः पुंसि सुरे योगविशेषे गणदेवते । वायलिंगस्त्वसौ मन्त्रविशेष-साधनीययोः ।।२१६६।। हिन्दी टीका-साधु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं--१. मुनि, २. जिन (भगवान तीर्थकर) ३. सभ्य (शिष्ट) और ४. उत्तमकलोदभव (उत्तम कल में उत्पन्न-कलीन)। साधवाह शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं---१. विनीताश्व (विनीत-शान्त घोड़ा) और २. सुन्दर वाहन (सुन्दर सवारी)। पुल्लिग साध्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. सुर (देवता) २. योगविशेष और ३. गणदैवत (गन्धर्वादि गण देवता) किन्तु ४. मन्त्रविशेष और ५. साधनीय (सिद्ध करने योग्य) अर्थ में साध्य शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । विधे येऽनुमितेः पक्षे साधनार्हतया मते । सानन्दः स्यात्पुमान् गुच्छ करजे ध्रुवकान्तरे ॥२१७०॥ वायलिंगस्त्वसौ प्रोक्तः सनिरालादसंयुते । सानु: स्त्रीपुंसयोः प्रस्थे वात्यायां पल्लवे वने ॥२१७१।। हिन्दी टीका-साध्य शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. विधेय (विधान करने योग्य) और २. अनुमितेः पक्षे साधनार्हतया मत (अनुमिति अनुमान के पक्ष में साधन करने योग्य) को भी साध्य कहते हैं। सानन्द शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. गुच्छकरज (करज करौने का गुच्छा) और २. ध्रुवकान्तर (ध्र वक विशेष) किन्तु ३. आह्लादसंयुत (आनन्द युक्त) अर्थ में सानन्द शब्द वायलिंग (विशेष्यनिन) माना जाता है । सानु शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं१. प्रस्थ (पर्वत का तट या चोटी) २. वात्या (आँधी) और ३ पल्लव और ४. वन । मूल : अर्केऽगे कोविदे मार्गे दर्शितः शब्दवेदिभिः । सान्द्रं वने त्रिलिंगस्तु स्निग्धे रम्ये घने मृदौ ॥२१७२॥ सामग्री कारणवाते द्रव्ये च कथिता स्त्रियाम् । सायो दिनान्ते वाणे ना सायाह्न सायमव्ययम् ॥२१७३।। हिन्दी टोका-सानु शब्द के चार अर्थ बतलाये गये हैं--१. अर्क (सूर्य या ऑक का वृक्ष) २. अग्रे (आगाँ) ३. कोविद (पण्डित) और ४. मार्ग (रास्ता)। नपुंसक सान्द्र शब्द का अर्थ--१. वन होता है किन्तु त्रिलिंग सान्द्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. स्निग्ध (चिक्कण) २. रम्य (रमणीय) ३. घन (सघन-निविड) और ४. मृदु (कोमल)। सामग्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं । Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित --सार शब्द १. कारणवात (कारण समूह) और २. द्रव्य । पुल्लिंग साय शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. दिनान्त (दिन का अन्त भाग, सायंकाल) और २. बाण, किन्तु १. सायान्ह (सायंकाल ) अर्थ में साथ शब्द अव्यय माना जाता है, इस प्रकार साथ शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । मूल : सारं न्याय्ये जले लौहे नवनीते वने धने । सारो दध्युत्तरे वायौ पाशकेऽतिदृढे बले ॥ २१७४॥ वज्रक्षारे स्थिरांशे च रुजायां मज्जिना स्मृतः । सारङ्गश्चातके भृंगे राजहंसे मतङ्गजे ।।२१७५ ।। हिन्दी टीका - नपुंसक सार शब्द के छह अर्थ माने गये हैं - १. न्याय्य ( न्याय युक्त) २. जल ३. लौह (लोहा) ४ नवनीत (मक्खन) ५. वन और ६. धन किन्तु पुल्लिंग सार शब्द के पांच अर्थ बतलाये गये हैं - १. दध्युत्तर (मलाई ) २. वायु ३. पाशक (पाश) ४. अतिदृढ़ ( अत्यन्त मजबूत ) और ५. बल (सामर्थ्य शक्ति ताकत) । पुल्लिंग सार शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. वज्रक्षार २. स्थिरांश (स्थिर भाग) ३. रुजा (रोग) और ४ मज्जन् ( लकड़ी का सारिल भाग ) । सारङ्ग शब्द के भी चार अर्थ होते हैं - १. चातक ( चातक पक्षी) २. भृंग (भ्रमर) ३. राजहंस और ४. मतङ्गज (हाथी) इस प्रकार सारङ्ग शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : मयूरे हरि सिंहे सुवर्णे चन्दने कचे । चापे चित्रमृगे वाद्यविशेषे च विभूषणे ।।२१७६ ।। कोकिले कमले पुष्पे छत्रे शंखे घनेंऽशुके । सारस्वतः कल्प - देशभेदे व्याकरणान्तरे ॥ २१७७।। ८. हिन्दी टीका-सारङ्ग शब्द के और भी दश अर्थ बतलाये गये हैं - १. मयूर (मोर) २. हरिण ३. सिंह, ४. सुवर्ण (सोना) ५. चन्दन ६. कच (केश) ७. चाप (धनुष) चित्रमृग (चितकबरा हरिण ) ६. वाद्यविशेष (सारङ्गी) तथा १०. विभूषण । सारङ्ग शब्द के और भी सात अर्थ माने गये हैं- १. कोकिल (कोयल) २. कमल, ३. पुष्प (फूल) ४. छत्र (छाता) ५. शंख ६. धन (मेघ) और ७ अंशुक (वस्त्र विशेष ) । सारस्वत शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कल्पभेद (कल्प विशेष, वेशभूषा वगैरह ) २. देशभेद (देश विशेष-- सारस्वत देश) तथा ३. व्याकरणान्तर ( व्याकरण विशेष - सारस्वत व्याकरण) को भी सारस्वत कहते हैं । मूल : सारी स्त्री सारिकायां स्यात् सप्तलायां च पाशके । सार्थः समूहमात्रे स्यात् जन्तुसंघे वणिग्वजे ॥ २१७८ ॥ सार्वो बुद्धे जिने पुंसि सर्व सम्बन्धिनि त्रिषु । सालो रातरौ सर्जे मत्स्य प्राकारयोः पुमान् ॥२१७६ ॥ हिन्दी टीका - सारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. सारिका (मैना) और २. सप्तला (नवमालिका वगैरह ) तथा ३. पाशक (पाशा - गोटी) । सार्थ शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं—१. समूहमात्र २. जन्तुसंघ (प्राणियों का झुण्ड ) और ३. वणिग्वज (बनिया का समूह ) । पुल्लिंग सार्व Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - शालभञ्जिका, शब्द ! ३७५ शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. बुद्ध (भगवान बुद्ध) और २. जिन ( भगवान तीर्थंकर) किन्तु ३. सर्व सम्बन्धी अर्थ में सार्व शब्द त्रिलिंग माना जाता है । साल शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ बतलाये गये हैं१. राल (धूप) २. तरु (वृक्ष) ३. सर्ज (साखोट - सांखु ) ४. मत्स्य (मछली) और ५. प्राकार ( दुर्ग-किलापरकोटा) को भी साल कहते हैं । मूल : पाञ्चालिकायां वेश्यायां कथित शालभञ्जिका । तरक्षौ कुक्कुरे फेरौ कपौ सालावृकः स्मृतः ॥ २१८०॥ सावनो यज्ञकर्मान्ते भेदे दिवस - मासयोः । वरुणे यजमाने च वर्षभेदेऽप्यसौ मतः ॥ २१८१ ॥ हिन्दी टीका - शालभञ्जिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ बतलाये गये हैं - १. पाञ्चा लिका (द्रौपदी) और २. वेश्या । शालावृक शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. रक्षु (बाघ या हुरार-भेड़िया) २. कुक्कुर (कुत्ता) ३. फेरू (सियार या फकसियार ) ४. कपि (बन्दर) को भी सालाक कहते हैं। सावन शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-- १. यज्ञकर्मान्त ( यज्ञ क्रिया के अन्त में होने वाला अवभृथ स्नान वगैरह ) और २. दिवसभेद ( दिवस विशेष ) और ३. मासभेद (मासविशेष) को भी सावन कहते हैं तथा ४. वरुण ( वरुण नाम का जल देवता) ५. यजमान और ६ बर्षभेद ( वर्ष विशेष) को भी सावन कहते हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर सावन शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये । मूल : लोध्र ऽपराधे पापे सावरः परिकीर्तितः । साहसं स्यात् बलात्कार कृतकार्यादिके दमे ।।२१८२॥ अविमृश्यकृतो द्वेषे धाष्टर्ये दुष्करकर्मणि । असत्यभाषणे स्तेये परदाराभिमर्षणे ॥ २१८३॥ हिन्दी टीका- सावर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. लोध्र (लोध्र नाम का वृक्ष विशेष ) २. अपराध और ३. पाप । साहस शब्द के नौ अर्थ बतलाये गये हैं - १. बलात्कारकृतकार्यादि ( जबरदस्ती से किया गया कार्य वगैरह ) और २. दम, ३. अविमृश्यकृति (बिना विचारे कार्य करना ) ४. द्वेष, ५. धाष्टर्य (धृष्टता) ६. दुष्कर कर्म (असाध्य कर्म) और ७. असत्यभाषण (झूठ बोलना) और ८. स्तेय (चोरी करना) तथा ६. परदाराभिमर्षण ( दूसरे की स्त्री पर आक्रमण करना) को भी साहस कहते हैं । मूल : पारुष्ये नहिसायां क्लीवं बह्वयन्तरे पुमान् । सिहलं स्यात्त्वचे रंगे रीतौ देशान्तरे द्वयोः ॥ २१८४॥ सिघाणं नासिकालौहमले स्यात् काचभाजने । सिहास्यो वासके पुंसि सिंहतुल्यमुखे त्रिषु ॥। २१८५ ।। हिन्दी टीका - नपुंसक साहस शब्द के और भी दो अर्थ बतलाये गये हैं - १. पारुष्य ( कठोरता ) और २. नरहिंसा (मनुष्य या पुरुष की हिंसा करना) किन्तु ३. बन्ह्यन्तर ( वन्हि - अग्नि विशेष ) अर्थ में साहस शब्द पुल्लिंग माना जाता है । नपुंसक सिंहल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. त्वचा, २. रङ्ग Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - सिंही शब्द (राङा) और ३. रीति (गौड़ीया वगैरह रीति) किन्तु ४ देशान्तर (देश विशेष सिंहल देश) अर्थ में सिंहल शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। सिंघाण शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. नासिकामल (नकटी) और २. लौहमल (जंग, किट्ट) और ३: काचभाजन (काच का बर्तन) को भी सिंघाण कहते हैं। सिंहास्य शब्द १. वासक (अडूसा) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. सिंहतुल्य मुख (सिंह सदृश मुख वाला) अर्थ में त्रिलिग माना गया है इस प्रकार सिंहास्य शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये। सिंही राहु जनन्यां स्यात् मुद्गपर्यों च वासके। वार्ताकी-बृहती - सिंहपत्नीषु परिकीर्तिता ॥२१८६।। सिकता-बालुकायुक्तभूमि-बालुकयोः स्त्रियाम् । सिक्त नील्यां मधूच्छिष्टे त्रिलिंगः कृतसेचने ॥२१८७॥ हिन्दो टीका-सिंही शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. राहुजननी (राग्रह की माता) २. मुदगपर्णी (वनमंग) और ३. वासक (अडसा) ४. वार्ताकी (बैंगन भण्टा रिंगना) ५. बहती (वनकटैया रिंगनो) और ६. सिंहपत्नो (सिंहिन)। सिकता शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. बालुकायुक्तभूमि (रेतीली भूमि) और २. बालुका (रेती)। नपुंसक सिक्त शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. नीली (गड़ी नील) और २. मधूच्छिष्ट । शहद से निकाला हुआ मोम) किन्तु ३. कृतसेचन (सेचन किया गया) अर्थ में सिक्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मूल : ना ग्रासेऽथ पटे जीर्णपटे च सिचयः स्मृतः । चन्दने मूलके रौप्ये सितं क्लीवं प्रकीर्तितम ॥२१८८।। शुक्राचार्ये शुक्लवर्णे विशिखे च पुमान् मतः। त्रिष ज्ञाते निबद्धे च समाप्ते सैत्यवत्यपि ।।२१८६॥ हिन्दी टीका --- सिचय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ग्रास (कवल, कोर) और २. पट (कपड़ा) तथा ३. जीर्णपट (पुराना कपड़ा)। नपुंसक सित शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. चन्दन २. मूलक (मूली) और ३. रौप्य (रूपा) किन्तु पुल्लिग सित शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं.---१. शुक्राचार्य, २. शुक्लवर्ण (सफेद) और ३. विशिख (बाण) किन्तु १. ज्ञात, २. निबद्ध (रचित) और ३. समाप्त तथा ४. सैत्यवत् (शीतल या सैत्ययुक्त) इन चारों अर्थों में सित शब्द त्रिलिंग माना जाता है, इस प्रकार सिचय शब्द के तीन और सित शब्द के कुल मिलाकर दस अर्थ जानना चाहिये । शुक्लपक्षे बके हंसे सितपक्षः उदाहृतः । तगरे सितपुष्पः स्यात् स्वेतरोहित-काशयोः ।।२१६०।। सुग्रीवः शकरे शक्र तीर्थकृज्जनकेऽसरे । राजहंसे ऽस्त्रभेदेऽपि विशेषे नाग-शैलयोः ॥२१६१॥ हिन्दो टोका-सितपक्ष के तीन अर्थ होते हैं-१. शुक्लपक्ष. २. वक और ३. हंस । सितपुष्प शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं.-१. तगर, २. श्वेतरोहित (सफेद हरिण) और ३. काश (मुंज दर्भ वगैरह)। सुग्रीव शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. शंकर (भगवान् शंकर) २. शक (इन्द्र) ३. तीर्थकृज्जनक (भगवान् Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सुग्रीव शब्द | ३७७ , तीर्थकर का पिता) और ४. असुर (राक्षस) ५. राजहंस, ६. अस्त्रभेद (अस्त्र विशेष) और ७. नाग विशेष (शेषनाग वगैरह सर्प विशेष) तथा ८. शैल विशेष (पर्वत विशेष) को भी सुग्रीव कहा जाता है । वानराधिपतौ विष्णु रथाश्वे च पुमान् मतः ।। वायलिंगस्त्वसौ चारुग्रीवाशालिनिसंमतः ॥२१६२।। सुतीक्ष्णः श्वेतशिग्रौ ना मुनौ शोभाञ्जने खरे। सुदर्शनो विष्णुचक्र' सुमेरौ जम्बुपादपे ॥२१६३॥ हिन्दो टोका-पूल्लिग सुग्रीव शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. वानराधिपति (वानरों का अधिपति राजा सुग्रीव) और २. विष्णुरथाश्व (भगवान् विष्णु के रथ का घोड़ा) किन्तु ३. चारुग्रीवाशाली (सुन्दर ग्रीवा-गरदन-गला से युक्त) अर्थ में सुग्रीव शब्द वायलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। सुतीक्ष्ण शब्द १. श्वेतशिग्रु (सफेद-सहिजन सफेद-मुनिगा) और २. शोभाञ्जन (सुरमा) और ३. खर (तीक्ष्ण) । इन तीनों अर्थों में पुल्लिग माना गया है। सुदर्शन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. विष्णु चक्र (भगवान् विष्णु का चक्र-सुदर्शन नाम का चक्र) और २. सुमेरु (सुमेरु पर्वत) तथा ३. जम्बुपादप (जामुन का वृक्ष) को भी सुदर्शन कहते हैं। जिनानां बलदेवे च वृत्तार्हज्जनके पुमान् । असौ तु वाच्यवल्लिगः सुदृश्ये संमतः समाम् ॥२१६४॥ सुदर्शना सोमवल्ल्यामाज्ञायामौषधान्तरे । सुदामास्यात्पुमान् मेघे गोपभेद - समुद्रयोः ॥२१६५।। हिन्दी टीका-पुल्लिग सुदर्शन शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. जिनानां बलदेव (भगवान तीर्थंकरों का बलदेव) और २. वृत्ताहज्जनक (व्यतीत तीर्थकर का पिता) को भी सुदर्शन कहते हैं किन्तु ३. सुदृश्य (अत्यन्त दर्शन योग्य) अर्थ में सुदर्शन शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना गया है। स्त्रीलिंग सुदर्शना शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सोमवल्ली (सोमलता) २. आज्ञा और ३. औषधान्तर (औषध विशेष सुदर्शन नाम का चूर्ण विशेष)। सुदामा शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. मेघ (बादल) २. गोपभेद (गोप विशेष) और ३. समुद्र को भी सुदामा कहते हैं। ऐरावते च श्रीकृष्णशरणप्राप्त ब्राह्मणे । सुधा गंगा-स्नुही-मूर्वा-धात्री च सलिलेऽमृते ॥२१६६॥ सुन्दरो ना स्मरे वृक्षभेदे त्रिषु तु मञ्जुले। सुन्दरी स्याद् हरिद्रायां स्त्रीविशेषे द्रुमान्तरे ॥२१६७॥ हिन्दी टीका--नकारान्त सुदामा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१ ऐरावत (ऐरावत नाम का हाथी) और २. श्रीकृष्णशरणप्राप्तब्राह्मण (भगवान् श्रीकृष्ण के शरण में आये हुए ब्राह्मणभगवान् कृष्ण के मित्र) । सुधा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. गंगा (गंगा नाम की प्रसिद्ध नदी विशेष) २. स्नुही (सेंहुड) ३. मूर्वा (धनुष के लिये उपयोगी लता विशेष वगैरह) और ४. धात्री (आँवला) ५. सलिल (जल) और ६. अमृत (पीयूष) को भी सुधा कहते हैं। पुल्लिग सुन्दर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. स्मर (कामदेव) और २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) किन्तु ३. मञ्जुल (रमणीय) अर्थ में मूल : Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३७८ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सुपर्ण शब्द सुन्दर शब्द त्रिलिंग माना गया है। स्त्रीलिंग सुन्दरी शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१.हरिद्रा (हलदी) २. स्त्री विशेष (सुन्दरी स्त्री) और ३. द्रमान्तर (द्र म विशेष वृक्ष-विशेष को भी सुन्दरी कहते हैं) इस प्रकार सुन्दर शब्द के कुल छह अर्थ समझना। मूल : सुपर्णो गरुडे स्वर्णचूडेतु कृतमालिके । सुपर्वा ना सुरे धूमे वंशे विशिख-पर्वणोः ॥२१६८॥ सुपात्रं तु स्मृतं योग्य व्यक्तौ शोभनभाजने । सुपुष्पं क्लीव बाहुल्य-लवङ्ग-स्त्रीरजस्सु च ॥२१६६॥ हिन्दी टोका-सुपर्ण शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं -१. गरुड़, २. स्वर्णचूड (सुवर्ण की चूडा वाला) और ३. कृतमालक (मालाकार)। सुपर्वा नकारान्त पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं१. सुर (देवता) २. धूम (धुंआ) ३. वंश (बांस का वृक्ष) और ४. विशिख (बाण) तथा ५. पर्व (पोर)। सुपात्र शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. योग्य व्यक्ति और २. शोभन भाजन (सुन्दर बर्तन)। सुपुष्प शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. आहुल्य, २. लवङ्ग (लौंग) और ३. स्त्रीरजः (स्त्रियों का मासिक धर्म रजोदर्शन)। प्रपौण्डरीके तुलेऽसौ पुंसि स्याद् रक्तपुष्पके । हरिद्रु-राज तरुणी - शिरीषेष्वपि कीर्तितः ॥२२००॥ सिद्धो व्यासादिके योग-देवयोनि विशेषयोः । व्यवहारे गुडे कृष्ण धुस्तूरे च पुमानयम् ॥२२०१।। हिन्दी टीका-सुपुष्प शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. प्रपौण्डरीक (पुण्डरीक नाम का वृक्ष विशेष) और २. तूल (रुई कपास) तथा ३. रक्तपुष्पक (लाल फूल वाला वृक्ष विशेष) ४. हरिद्र, (दारु हल्दी या पीत चन्दन) ५. राजतरुणी (राजमहिषो) और ६. शिरीष (शिरीष का वृक्ष विशेष) । सिद्ध शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. व्यासादिक (व्यास वगैरह) २. योग (समाधि) और ३ देवयोनि विशेष-यक्ष गन्धर्व किन्नर (विद्याधर सिद्धगण विशेष) ४. व्यवहार, ५. गुड और ६. कृष्ण धुस्तूर (काला धतूर) को भी सिद्ध कहते हैं। मूल : वायलिंगस्त्वसौ नित्ये प्रसिद्ध-परिपक्वयोः । मन्त्रसिद्धि विशिष्टे च मुक्त-निष्पन्नयोरपि ॥२२०२॥ सिद्धियुक्त सैन्धवे तु लवणे सिद्धमीरितम् । सिद्धिः स्त्री मोक्ष-सम्पत्ति-दुर्गा-निष्पत्ति बुद्धिषु ॥२२०३॥ हिन्दी टीका-१. नित्य, २. प्रसिद्ध (प्रख्यात) ३. परिपक्व (पका हुआ) ४. मन्त्रसिद्धि विशिष्ट (मन्त्र की सिद्धाई से युक्त) और ५. मुक्त तथा ६. निष्पन्न इन छह अर्थों में सिद्ध शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिध्न) माना जाता है । १. सिद्धियुक्त और २. सैन्धवलवण (सिन्धा नमक) इन दोनों अर्थों में भी नपुंसक सिद्ध शब्द का प्रयोग किया जाता है। सिद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं१. मोक्ष (मुक्ति) २. सम्पत्ति, ३. दुर्गा (पार्वती) ४. निष्पत्ति और ५. बुद्धि को भी सिद्धि कहते हैं। मूल: ऋद्धि नामौषो योगभेदेऽन्तर्धावपि स्मृता । सिन्दूरो धातकी-रक्त चेलिका रोचनीषु च ॥२२०४॥ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - सिद्धि शब्द | ३७६ सिन्धः पुंसि समुद्रे स्यात् सिन्दुवारे नदान्तरे । रागे देशविशेषे च वमथौ श्वेतटङ्कणे ।।२२०५।। हिन्दी टीका - सिद्धि शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. ऋद्धिनामऔषध (ऋद्धि नाम का औषध विशेष) २. योगभेद (योग विशेष) और ३ अन्तद्धि ( अन्तर्धान-तिरोधान ) । सिन्दूर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. धातकी (धव या धवा) २. रक्तचेलिका (लाल वस्त्र विशेष) और ३. रोचनी (सफेद निशोथ ) । सिन्धु शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. समुद्र, २. सिन्दुकर (सिन्दुआर - निर्गुण्डी) और ३. नदान्नर (नद विशेष, बड़ी झील ) ४. राग (सिन्धु नाम का राग विशेष ) ५. देशविशेष (सिन्ध देश) और ६. वमथु (वमन उलटी) तथा ७. श्वेत टङ्कण (पत्थर को फोड़ने वाला टङ्क विशेष वगैरह ) को भी सिन्धु कहते हैं । मूल : मतङ्गज मदे नद्यां त्वसौ स्त्रीलिंगतां गतः । सिप्रो निदाघसलिले धर्म-चन्द्र मसोरपि ॥२२०६ ॥ सीता स्यात् जानकी-गंगा भेदयो हेलपद्धतौ । सीरः पुंसि हले सूर्ये तद्वदर्क महीरुहे ||२२०७॥ हिन्दी टीका - सिन्धु शब्द १. मतङ्गज मद (हाथी का मद) और २. नदी इन दोनों अर्थों में सिन्धु शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। सिप्र शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. निदाघसलिल (गर्मी ऋतु का पानी) २. धर्म (गर्मी) और ३. चन्द्रमस् ( चन्द्रमा) । सीता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. जानकी ( जनक नन्दिनी) २. गंगाभेद (गंगा विशेष) और ३. हल पद्धति (सिरारु - हल जोतना) । सीर शब्द पुंलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हल २. सूर्य और ३. अर्क महीरुह (ऑक का वृक्ष) । मूल : सुकुमारस्तु पुण्ड्रेक्षौ श्यामाके वनचम्पके । क्षवे दैत्यविशेषे ना कोमले त्वभिधेयवत् ॥२२०८ ॥ कदली-मालती-जाती - पृक्कासु भणिता स्त्रियाम् । सुकृतं स्यात् शुभे पुण्ये क्लीवं सुविहिते त्रिषु ॥ २२० ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग सुकुमार शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. पुण्ड्र ेक्षु (गन्ना विशेष ) २. श्यामाक (शामा ) ३. वनचम्पक ४. क्षव (छीक) और ५. दैत्यविशेष किन्तु ६ कोमल अर्थ में सुकुमार शब्द अभिधेयवत् (वाच्यलिङ्ग - विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । १. कदली (केला) २. मालती ३. जाती (मल्लिका जूही ) तथा ४. पृक्का (असवरग - अस्यरग एक प्रकार का शाक विशेष) इन चारों अर्थों में सुकुमारी शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । नपुंसक सुकृत शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. शुभ और २. पुण्य (धर्म) किन्तु ३. सुविहित अर्थ में सुकृत शब्द त्रिलिंग है । मूल : सुखाशो राजतिनिशे वरुणे सुखभोजने । सुगन्धं चन्दने क्षुद्रजीरक - ग्रन्थिपर्णयोः ।।२२१०।। नीलोत्पले गन्धतृणे क्लीवं पुंसि तु गन्धके । सुप्तिः स्त्री स्पर्शता - स्वाप - विश्रम्भ- शयनेषु च ।।२२११।। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित -- सुखाश शब्द हिन्दी टीका - सुखाश शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १ राजतिनिश (राजा का तिनिशवञ्जुल) २. वरुण ( वरुण देवता) और ३ सुखभोजन । नपुंसक सुगन्ध शब्द के पाँच अर्थ बतलाये गये हैं१. चन्दन, २. क्षुद्रजीक (छोटा जीरा) और ३ ग्रन्थिपर्ण (कुकरौन्हा या गठिवन ) ४. नीलोत्पल (नीलकमल) तथा ५. गन्धतॄण (तृण विशेष) किन्तु पुल्लिंग सुगन्ध शब्द का अर्थ - १. गन्धक होता है । सुप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. स्पर्शता (स्पर्श करना) २. स्वाप ( नींद ) ३. विश्रम्भ (विश्वास) और ४. शयन ( सोना शयन करना) को भी सुप्ति कहते हैं । सुफलः पुंसि वदरे कर्णिकार - कपित्थयोः । मूल : मुद्ग- दाडिमयोः सुष्ठुफलयुक्त त्वसौ त्रिषु ॥ २२१२ ।। सुफला कपिलद्राक्षा कूष्माण्डी - कदलीषु च । काश्मर्यामिन्द्र वारुण्यां सद्भिः स्त्री समुदाहृता ।। २२१३ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग सुफल शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. वदर ( वैर या बनबैर ) २. कर्णिकार (कनैल) ३. कपित्थ ( कदम्ब) ४. मुद्ग (मूंग) और ५. दाडिम (अनार बेदाना) किन्तु ६. सुष्ठफलयुक्त (सुन्दर फल वाला) अर्थ में सुफल शब्द त्रिलिंग माना गया है । स्त्रीलिंग सुफला शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. कपिलदाक्षा ( भूरा रङ्ग का दाख - मुनाका किसमिस ) २ कुष्माण्डी (कोहला कुम्हर) ३. कदली (केला) ४. काश्मीरी (पुष्कर मूल) और ५. इन्द्रवारुणी (इनारुन) को भी सुफला कहते हैं। इस प्रकार सुफला शब्द के पाँच अर्थ जानना । मूल : सुभगष्टङ्कणेऽशोके रक्ताम्लाने च चम्पके । वाच्यलिंगः सुदृश्ये च शोभनैश्वर्यशालिनि ॥ २२१४ ॥ सुभगा स्याद् हरिद्रायां प्रियङ्गी तुलसीतरी । वनमल्ली - शालपर्णी सुवर्णदीवपि ॥ २२१५।। - हिन्दी टीका - सुभग शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके पाँच अर्थ माने हैं - १. टङ्कण (पत्थर को तोड़ने वाला टक) २. रक्ताम्लान अशोक (लाल अम्लान अशोक पुष्प) ३. चम्पक ४. सुदृश्य (सुन्दर दृश्य) तथा ५. शोभनैश्वर्यशाली (सुन्दर ऐश्वर्ययुक्त) । स्त्रीलिंग सुभगा के छह अर्थ बतलाये गये हैं - १. हरिद्रा ( हलदी ) २. प्रियंगु (प्रियंगुलता ) ३. तुलसीतरु (तुलसी का वृक्ष ) ४. वनमल्ली ५. शालपर्णी (सरिवन) और ६. सुवर्णकदली । मूल : पतिप्रियायां कस्तु सुरः स्यादमरे सूर्ये सुरभि र्ना वसन्तर्तौ कैवर्ती - नीलदूर्वयोः । मदिरायां सुरा मता ॥२.२१६॥ चैत्रे जातीफले गवि । सुगन्धौ चम्पके राले जातीफल महीरुहे ॥ २२१७॥ हिन्दी टीका - सुभगा शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. पतिप्रिया ( पति को अत्यन्त प्रिय लगने वाली ) २. कस्तूरी ३. कैवर्ती ( धीवर की स्त्री, मलाहिन) तथा ४. नीलदूर्वा (नीला दूभी) । पुल्लिंग सुर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. अमर (देवता) और २. सूर्य, किन्तु स्त्रीलिंग सुरा शब्द का . मदिरा (शराब) होता है। सुरभि शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. वसन्त अर्थ – ३. Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सुरस शब्द | ३८१ ऋतु, २. चैत्र (चैत मास) ३. जातीफल (जायफल) ४. गौ, ५. सुगन्धि, ६. चम्पक, ७. राल (धूप सरर) और ८. जातीफलमहीरुह (जायफल का वृक्ष विशेष)। मूल : सुरसं तुलसी - बोल - त्वच - गन्धतृणेषु च । सुरस: स्यात् पुमान् सिन्धुवारे मोचरसे स्मृतः ॥२२१८॥ सुरसा तुलसी-रास्ना-मिश्रेयः नागमातृषु । महाशतावरी ब्राह्मी दुर्गासु सरिदन्तरे ॥२२१६।। हिन्दी टीका-नपुंसक सुरस शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. तुलसी २. बोल (गन्धरस) ३. त्वच (त्वचा) और ४. गन्धतृण (तृण विशेष)। पुल्लिग सुरस शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. सिन्धुवार (सिन्दुवार-निर्गुण्डी) और २. मोचरस । स्त्रीलिंग सुरसा शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं-१. तुलसी २ रास्ना (श्याम तुलसी) ३. मिश्रेय (सोआ या वन सौंफ) ४. नागमाता ५. महाशतावरी (बड़ा शतावर) ६. ब्राह्मी (भारती वगैरह) ७. दुर्गा (पार्वती) एवं ८. सरिदन्तर (नदी विशेष)। मूल : वायलिगस्त्वसौ स्वादौ स्यात् सुष्ठुरसवत्यपि । सुरूपः पण्डिते चारौ मेरौ स्वर्गे प्रकीर्तितः ॥२२२०॥ सुरालयः सुमेरौ स्यात् त्रिदिवे मदिरागृहे ।। सुवर्चला सूर्यमुखीपुष्पे सूर्यस्ययोषिति ॥२२२१॥ हिन्दी टोका-१. स्वादु (स्वादिष्ट) और २. सुष्ठुरसवत् (सुन्दर रस वाला) अर्थ में सुरसा शब्द त्रिलिंग माना जाता है। सुरूप शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पण्डित २. चारु (सुन्दर) तथा ३. स्वर्ग । सुरालय शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. सुमेरु (सुमेरु पर्वत) २. त्रिदिव (स्वर्ग) और ३. मदिरागृह (शराबखाना)। सुवर्चला शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. सूर्यमुखीपुष्प (सूर्यमुखी नामक फल विशेष) और २. सूर्ययोषित (सूर्य पत्नी)। ब्राम्ह्यांमादित्यभक्तायां क्षुमायां पुंसि नीवृति । सुवर्णः पुंसि धुस्तूरे सुष्ठुवर्णे तु वाच्यवत् ॥२२२२॥ हेम्नोऽक्षे त्वस्त्रियां प्रोक्तः काञ्चने तु नपुंसकम्। सूकः स्यात् पुंसि विशिखे मारुतोत्पलपुष्पयोः ॥२२२३॥ ला शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. ब्राह्मी और २. आदित्य भक्ता और ३. क्षुमा (अलसी-तिली) किन्तु ३. नीवृत् (ग्राम नगर) अर्थ में सुवर्चल शब्द पुल्लिग माना जाता है। पुलिग सुवर्ण शब्द का अर्थ-१. धुस्तूर (धतूर) होता है किन्तु २. सुष्ठुवर्ण (सुन्दर वर्ण) अर्थ में सुवर्ण शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है। किन्तु २. हेम्नोऽक्ष (सोना का अक्ष-एक मोहरअस्सी रत्ती भर या १६ आना भर सोना) अर्थ में सुवर्ण शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है परन्तु ३. काञ्चन (सोना) अर्थ में सुवर्ण शब्द नपुंसक माना जाता है। सूक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विशिख (बाण) २. मारुत (पवन) और ३. उत्पल पुष्प (कमल)। मूल : सूचक: सीवनद्रव्ये विडाले वायसे शुनि । सूत्रधारे पिशाचे च कथके सिद्ध-बुद्धयोः ।।२२२४॥ मूल : Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सूचक शब्द सूचना व्यधने दृष्टौ गन्धनेऽभिनये स्त्रियाम् । सूचिर्नृत्य प्रभेदे च व्यधनी-शिखयोः स्त्रियाम ॥२२२५॥ हिन्दो टोका-सूचक शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. सीवनद्रव्य (सीने का द्रव्य-सूई वगैरह) २. विडाल और ३ वायस (काक) और ४. श्वा (कुत्ता) तथा ५. सूत्रधार (नाटक का प्रधान पात्र) और ६. पिशाच (राक्षस) ७. कथक (कहने वाला-सूचना देने वाला) और ८. सिद्ध (सिद्ध पुरुष विशेष) और ६. बुद्ध (भगवान् बुद्ध)। सूचना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ बतलाये गये हैं-१. व्यधन (बीधना, वेधन करना) २. दृष्टि और ३. गन्धन (चुगली करना) और ४. अभिनय (एक्टिङ्ग करना) । सूचि शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. नृत्यप्रभेद (नृत्य विशेष) और २. व्यधनी (वेधन करने वाली) तथा ३. शिखा (चोटी) इस प्रकार सूचि शब्द का तीन अर्थ समझना। मूल : सूतः स्यात् पारदे त्वष्ट-वन्दिनोः सारथौ पुमान् । असौ तु वाच्यवल्लिगः प्रसूते प्रेरिते त्रिषु ॥२२२६॥ सूत्रं तन्तौ व्यवस्थायां ग्रन्थे शस्त्रादि सूचके । सूत्रकण्ठः कपोते स्यात् खञ्जरीटेऽग्रजन्मनि ॥२२२७॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग सूत शब्द के चार अर्थ बतलाये गये हैं-१. पारद (पारा) २. त्वष्टा (बढ़ई) ३. बन्दी और ४. सारथि किन्तु ५. प्रसूत (उत्पन्न) अर्थ में सूत शब्द वाच्यवल्लिग (विशेष्यनिघ्न) बतलाया जाता है। किन्तु ६. प्रेरित अर्थ में सूत शब्द त्रिलिंग माना गया है। सूत्र शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. तन्तु (धागा) २. व्यवस्था ३. ग्रन्थ और ४. शास्त्रादिसूचक (शास्त्र वगैरह का सूचन करने वाला)। सूत्रकण्ठ शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. कपोत (कबूतर) २. खञ्जरीट (खजन) और ३. अग्रजन्मा (ब्राह्मण) को भी सूत्रकण्ठ कहते हैं, इस तरह सूत्रकण्ठ शब्द के तीन अर्थ समझना । सूनः सूर्येऽनुजे पुत्रे तद्वदर्कमहीरुहे । सुनृतं मंगले सत्य प्रियवाक्ये च कीर्तितम् ॥२२२८॥ सूपस्तु सिद्धदालौ स्यात् सूदे भाण्डे च शायके । सूमं क्षीरे जले व्योम्नि सूरः सूर्येऽकंपादपे ॥२२२६॥ हिन्दी टीका-सू नु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. अनुज (छोटा भाई) ३. पुत्र (बालक) और ४ अर्कमहीरुह (आंक का वृक्ष)। सुनृत शब्द नपुंसक माना गया है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मंगल और २ सत्यप्रियवाक्य (सत्य और प्रिय वचन)। सूप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ बतलाये गये हैं-१. सिद्धदालि (सीझी हुई दाल) २. सूद (पाचक रसोईया) और ३. भाण्ड (बर्तन) तथा ४. शायक (बाण)। सूम शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. क्षीर (दूध) २. जल और ३. व्योम (आकाश) । सूर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य और २. अर्कपादप (आंक का वृक्ष) को भी सूर कहते हैं। मूल : सूक्ष्म स्यात् कैतवेऽध्यात्म सूक्ष्मोऽणौ कतकद्रुमे। सृष्टं स्याद् वाच्यवत्यक्त निर्मिते निश्चिते युते ॥२२३०॥ सेचनं क्षरणे सेके नौकायाः सेकभाजने । सैरिभो महिषे स्वर्गे सोमं स्वर्गे च काजिके ॥२२३१॥ मूल : Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - सूक्ष्म शब्द | ३८३ हिन्दी टीका - नपुंसक सूक्ष्म शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. कैतव ( छल कपट ) और २. अध्यात्म (आत्म विषयक ज्ञान वगैरह ) । पुल्लिंग सूक्ष्म शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. अणु (परमाणु) और २. कतकद्र म (कतक का वृक्ष - रीठा का वृक्ष) । वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) । सृष्ट शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. व्यक्त (परित्यक्त) २. निर्मित, ३. निश्चित और ४ युत (युक्त) । सेचन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. क्षरण ( झरना) २. सेक (सिञ्चन करना सीचना) और ३. नौकायाः सेक भाजन (नौका के सिञ्चन का पात्र) । सौरिभ शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. महिष (भैंस) और २ स्वर्ग । नपुंसक सोम शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. स्वर्ग और २. काञ्जिक ( कांजी) । मूल : सोमश्चन्द्रे कुबेरे च कर्पूरे मारुते यमे । वसुभेदे शिवे नीरे कीशे सोमलतौषधौ ॥ २२३२॥ सौगन्धिकं स्यात् कह्लारे पद्मरागे च कत्तृणे । नीलोत्पले पुमोंस्तु स्यात् सुगन्ध व्यवहारिणी ॥२२३३॥ हिन्दी टीका - सोम शब्द पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ बतलाये गये हैं - १. चन्द्र (चन्द्रमा) २. कुबेर, ३. कर्पूर, ४. मारुत (पवन) ५. यम (धर्मराज) और ६. वसुभेद (वसु विशेष) ७. शिव ( भगवान् शंकर) ८. नीर (पानी) ६. कीश (बन्दर) और १०. सौमलतौषधि ( सोमलता नाम का औषधि विशेष ) । नपुंसक सौगन्धिक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कलार (सफेद कमल) और २. पद्मराग (पद्मराग नाम का मणि विशेष ) और ३. कत्तृण ( खराब घास) किन्तु सौगन्धिक शब्द ३. नीलोत्पल (नीलकमल ) अर्थ में और ४. सुगन्ध व्यवहारी (सुगन्ध द्रव्य विशेष ) अर्थ में पुल्लिंग माना गया है । मूल : सौधोऽस्त्री राजसदने सुधा सम्बन्धिनि त्रिषु । सौभाग्यं टंकणे योगभेद - सिन्दूरयोरपि ॥ २२३४ ॥ सौम्यो बुधग्रहे विप्रे सौम्यं कृच्छ्रव्रतेऽपि च । सौरभ्यं स्याद् मनोज्ञत्वे सौगन्ध्ये गुण गौरवे ॥२२३५|| हिन्दी टीका - पुल्लिंग तथा नपुंसक सौध महल) होता है और २. सुधा सम्बन्धी (चूना से पोत है । सौभाग्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं- टंकण ३. सिन्दूर (कुकुम) को भी सौभाग्य कहते हैं । पुल्लिंग सौम्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. बुधग्रह और २. विप्र (ब्राह्मण) नपुंसक सौम्य शब्द को अर्थ २. कृच्छ्रव्रत ( चान्द्रायण व्रत वर्गरह) होता है । सौरभ्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. मनोज्ञत्व (मनोज्ञता रमणीयता) और २. सौगन्ध्य सुगन्धता, सौरभ ) और ३. गुण-गौरव (गुणगरिष्ठता) को भी सौरभ्य शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : शब्द का अर्थ - १. राजसदन ( राजभवन या राजकिया हुआ) अर्थ में सौध शब्द त्रिलिंग माना गया (टांकण ) और २. योगभेद (योग विशेष) और सौरभं कुंकुमे बोले सदुगन्धेऽपि निगद्यते । स्कन्धः काये समूहेंऽशे प्रकाण्डे नृपतौ रणे ॥२२३६॥ स्तननं कुन्थिते मेघगर्जित-ध्वनि मात्रयोः । स्तनयित्नुः पुमान् मेघे मुस्तके मृत्युरोगयोः ॥२२३७॥ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -सौरभ शब्द हिन्दी टीका-सौरभ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुकुम (सिन्दूर) २. बोल (गन्धरस) और ३. सद्गन्ध (सुगन्ध) । स्कन्ध शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. काय (शरीर) २. समूह, ३. अंश (एक देश) ४. प्रकाण्ड (धुरन्धर या शाखा प्रशाखा) ५. नृपति (राजा) और ६. रण (संग्राम)। स्तनन शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुन्थित (कथित) २. मेघगजित (मेघ गर्जन) और ३. ध्वनिमात्र (ध्वन्यात्मक शब्द) । स्तनयित्नु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मेघ (बादल) २. मुस्तक (मोथा) ३. मृत्यु और ४. रोग (व्याधि) इस प्रकार स्तनयित्नु शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये । मूल : स्तनितं मेघ निर्घोषे करतालिध्वनावपि । स्तम्बः प्रकाण्ड रहितद्रुमे गुच्छे तृणादिनः ।।२२३८॥ स्तबको गुच्छके ग्रन्थ परिच्छेदे चये स्तुतौ । स्तोमः स्तबे समूहे च सप्ततन्तावपीष्यते ।।२२३६।। हिन्दी टीका-स्तनित शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मेघनिर्घोष (बादल का गर्जन) और २. करतालिध्वनि (हाथ के द्वारा ताली बजाने से उत्पन्न ध्वनि विशेष) को भी स्तनित कहते हैं। स्तम्ब शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं-१. प्रकाण्डरहित म (शाखा प्रशाखा-डालों से रहित वृक्ष विशेष) और २. तृणादि गुच्छ (घास वगैरह का गुच्छा)। स्तबक शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. गुच्छक (गुच्छा) २. ग्रन्थ परिच्छेद (ग्रन्थ का एक परिच्छेद-प्रकरण) ३. चय (समूह) और ४. स्तुति । स्तोम शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. स्तव (स्तुति) २. समूह और ३. सप्ततन्तु (सात तन्तु)। स्यानं स्निग्धे प्रतिध्वाने घनताऽऽलस्ययोरपि । स्थानं स्यान्निकटे ग्रन्थ सन्धौ स्थित्यवकाशयोः ।।२२४०॥ सन्निवेशे च सादृश्ये वसतौ भाजने स्थितौ। स्थानेऽव्ययं कारणार्थे सत्ये सादृश्ययोग्ययोः ।।२२४१॥ हिन्दी टोका-स्यान शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. स्निग्ध (चिक्कण) २. प्रतिध्वान (प्रति ध्वनि) ३. घनता (निविडता सघनता) और ४. आलस्य । नपुंसक स्थान शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं- १. निकट (समीप) २. ग्रन्थ सन्धि (ग्रन्थ की सन्धि जोड़) और ३. स्थित तथा ४. अवकाश, ५. सन्निवेश, ६. सादृश्य (सरखापन) ७. वसति (आवास) ८. भाजन पात्र) किन्तु स्थिति अर्थ में स्थान शब्द अव्यय माना जाता है और ६. स्थान अर्थ में भी स्थान शब्द अव्यय ही जानना चाहिये । इसी प्रकार १०. कारणार्थ (कारण अर्थ में) और ११. सत्य अर्थ में तथा १२. सादृश्य अर्थ में एवं १३. योग्य अर्थ में भी स्थान शब्द अव्यय ही समझना।। मूल : स्थितिः स्त्री धारणायां स्याद् अवस्थाने छ सीमनि । स्थिरः पुंसि सुरे शैले कार्तिकेये द्रुमे शनौ ॥२२४२॥ स्थिरदंष्ट्रो ध्वनौ सर्प वराहाकृतिमाधवे । स्थेयो विवादपक्षस्य निर्णेतरि पुरोधसि ॥२२४३॥ हिन्दी टीका-स्थिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धारणा (धारण करना) और २. अवस्थान (स्थिर होना) तथा ३. सीमा (हद)। स्थिर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच मूल : Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-स्पर्शन शब्द | ३८५ अर्थ माने जाते हैं-१. सुर (देवता) २. शैल (पर्वत) ३. कार्तिकेय और ४. द्रम (वृक्ष) तथा ५. शनि (शनिग्रह) । स्थिरदंष्ट्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. ध्वनि, २. सर्प और ३. वराहाकृतिमाधव (शूकर अवतार रूप भगवान् विष्णु को भी स्थिरदंष्ट्र कहते हैं)। स्थेय शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विवादपक्षस्य निर्णता (विवाद पक्ष का निणय करने वाला) और २ पुरोधस् (पुरोहित)। मूल : स्पर्शनो मारुते पुंसि क्लीवं तु स्पर्श-दानयोः । हंसः सूर्ये शिवे विष्णौ निर्लोभनृपतौ गुरौ ॥२२४४।। पक्षिभेदे मन्त्रभेदे मत्सरे परमात्मनि । हंसकः पादकटके राजहंसे च तालके ।।२२४५।। हिन्दी टोका-स्पर्शन शब्द ---१. मारुत (पवन) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. स्पर्श और ३. दान अर्थ में नपुंसक माना जाता है। हंस शब्द के नौ अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. शिव, ३. विष्णु, ४ निर्लोभनृपति और ५. गुरु, ६. पक्षिभेद (पक्षी विशेष हंस नाम का पक्षी जोकि अधिक काल मानससरोवर में रहता है और ७. मन्त्रभेद (मन्त्र विशेष) ८. मत्सर (डाह करने वाला) और ६. परमात्मा को भी हंस कहते हैं । हंसक शब्द के तीन अर्थ बतलाये गये हैं --१. पाद-कटक (नूपुर वगैरह) और २. राजहंस तथा ३. तालक (ताल) इस प्रकार हंस शब्द के नौ और हंसक शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : हनु: कपोलावयवे स्त्रियां पुंसि च कीर्तितः । स्त्री स्याद् हट्ट विलासिन्यां रोगेऽस्त्रे मरणेऽपि च ॥२२४६।। हरः शिवेऽनले पुंसि हरकः शिव-चौरयोः । हरिविष्णौ शिवे सूर्ये विरिञ्चौ चन्दिरेऽनले ॥२२४७।। हिन्दो टोका-१. कपोलावयव (कपोल-गाल का एकदेश) अर्थ में हनु शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है किन्तु २. हविलासिनी (हट हाट में विलास करने वाली) अर्थ में और ३. रोग ४. अस्त्र एवं मरण अर्थों में हनु शब्द स्त्रीलिंग माना गया है । हर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. शिव (भगवान शंकर) और २ अनल (आग) । हरक शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. शिव और २. चौर (तस्कर) । हरि शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णु (भगवान विष्णु) २. शिव (भगवान शंकर) ३. सूर्य ४. विरिञ्चि (ब्रह्मा) ५. चन्दिर (चन्द्रमा) और ६. अनल (अग्नि) को हरि कहते हैं, इस प्रकार हरि शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। मूल : इन्द्रे यमेऽनिले सिहे किरणे तुरगेऽपि च । शुके भुजङ्गमे हंसे मयूरे मकंटे प्लवे ।।२२४८।। हालिके बलदेवे च प्राज्ञ हलधरः स्मृतः । हला सख्यां जले मद्ये पृथिव्यामपि कीर्तिता ॥२२४६॥ हिन्दी टीका- हरि शब्द के और भी बारह अर्थ माने जाते हैं-१. इन्द्र २. यम ३. अनिल (पवन) ४. सिंह ५. किरण ६. तुरग (घोड़ा) ७. शुक (पोपट-शूगा) ८. भुजङ्गम ६. हंस, १०. मयूर (मोर) ११. मर्कट (बन्दर) १२ प्लव (नौका बगैरह) । हलधर शब्द के दो अर्थ होते हैं.-१. हालिक Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - हलाहल शब्द : मूल : ( हलवाह) और २. बलदेव ( बलराम ) । हला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ हैं - १' सखी ( सहेली ) २. जल ३. मद्य (शराब) और ४. पृथिवी । इस प्रकार हला शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । हलाहलो ब्रह्मसर्पेऽञ्जना - बुद्धविशेषयोः । आज्ञायामध्वरे होमे आह्वानेऽपि हवः पुमान् ॥२२५०॥ हस्तिमल्लः शंखनागे ऐरावत - गणेशयोः । हायनोऽग्निशिखा व्रीहिभेदयोर्वत्सरे पुमान् ॥२२५१॥ हिन्दी टीका - हलाहल शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. ब्रह्मसर्प (भूतसप्पा बगैरह ) २. अञ्जना (आँजन) और ३. बुद्ध-विशेष (भगवान बुद्धदेव विशेष ) । हव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. आज्ञा २. अध्वर (यज्ञ) 3. होम (हवन) और ४. आह्वान (बुलाना या स्पर्द्धापूर्वक आह्वान करना) । हस्तिमल्ल शब्द के तीन अर्थ होते हैं -- १. शंखनाग (नाग विशेष) २. ऐरावत ( इन्द्र का हाथी ) और ३. गणेश । हायन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. अग्निशिखा ( अग्नि ज्वाला) २. व्रीहिभेद (व्रीहि विशेष - सठिया वगैरह ) और ३. वत्सर ( वर्ष - संवत्सर) को भी हायन कहते हैं । हारो मुक्तावली युद्धे हरि सम्बन्धिनि त्रिषु । हारक: कितवे गद्यभेद विज्ञानभेदयोः || २२५२।। तस्करे भाजकाङ्क े च शाखोटेऽपि निगद्यते । हारीतः कैतवे पक्षिविशेष - मुनिभेदयोः ।। २२५३ ।। मूल : · हिन्दी टीका - हार शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुक्तावलि (मुक्ताहार) २. युद्ध (संग्राम) किन्तु ३. हरि सम्बन्धी अर्थ में हार शब्द त्रिलिंग माना जाता है । १. हारक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. कितव ( धूर्त) २. गद्यभेद ( गद्य विशेष ) ३. विज्ञानभेद ( विज्ञान विशेष ) ४. तस्कर (चोर) ४. भाजक अङ्क ( भाग देने वाला अङ्क - संख्या) ५. शाखोट (सांखु शाख - शाल लकड़ी) भी हार कहते हैं । हारीत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. कैतव ( छल कपट ) २. पक्षिविशेष (हात नाम का पक्षी विशेष) और ३ मुनिभेद ( मुनि विशेष - हारीत नाम का मुनि । मूल : हालो हले प्रलम्बघ्ने शालिवाहनभूपतौ । हिस्रा काकादनी नाडी - जटामांसी- गवेधुषु ॥२२५४॥ हितं त्रिषु गते मित्रे मंगले घृत - पथ्ययोः । हिमं स्यात्तुहिने रंगे पद्मकाष्ठे च मौक्तिके ॥२२५५॥ हिन्दी टीका - हाल शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. हल, २. प्रलम्बघ्न (बलराम) और ३. शालिवाहनभूपति (शालिवाहन नाम का राजा) । हिंस्रा शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. काकादनी (काकमाची) २. नाडी ( धमनी, नस) २. जटामांसी (जटामांसी नाम का औषधि विशेष) और ४. गवेधु ( मुनियों का अन्न विशेष) । हित शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- १. गत ( गया हुआ ) २. मित्र, ३. मंगल (कल्याण) ४. घृत (घो) और ५. पथ्य । हिम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ बतलाये गये हैं - १. तुहिन (बर्फ-पाला तुषार) २. रंग (रांगा - कलई) ३. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष ) तथा ४. मौक्तिक (मुक्तामणि या मोती वगैरह ) इस प्रकार हिम शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानाथोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-हिम शब्द | ३८७ चन्दने नवनीते च क्लीवं शीते तु वाच्यवत् । हिमश्चन्द्रे च कर्पूरे हेमन्ते चन्दनद्रुमे ॥२२५६॥ हिमजा क्षीरणी-गौरी-शटीषु कथिता स्त्रियाम् । हिमा नागरमुस्तायां सूक्ष्मैला-भद्र मुस्तयोः ॥२२५७॥ हिन्दी टीका-नपुंसक हिम शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं- १. चन्दन, २. नवनीत (मक्खन) किन्तु ३. शीत अर्थ में हिम शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है परन्तु पुल्लिग हिम शब्द के भी चार अर्थ और भी माने जाते हैं-१. चन्द्र, २. कपूर, ३. हेमन्त (हेमन्त ऋतु) और ४. चन्दनद्रुम (चन्दन का वृक्ष)। हिमजा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. क्षोरणी (खिरनी) २. गौरी (पार्वती) और ३. शटी (आमा हल्दी)। हिमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नागरमुस्ता (नागरमोथा) २. सूक्ष्मएला (छोटी इलाइची) और ३. भद्रमुस्ता (जलमोथा) को भी हिमा कहते हैं । पृक्कायां चणिकायां चरेणुकायामपि स्त्रियाम् । हिरण्यं काञ्चने वित्ते धुस्तूरे च वराटके ॥२२५८॥ अक्षये मानभेदे च रजताऽकुप्ययोरपि । हिरण्यगर्भः श्रीविष्णौ प्राणात्मनि चतुर्मुखे ॥२२५६।। हिन्दी टीका-हिमा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पृक्का (स्पृक्का-असवरगअस्यरग-एक प्रकार का शाक विशेष) २. चणिका (चना वगैरह) और ३. रेणुका (रेणु वगैरह)। हिरण्य शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. काञ्चन (सोना) २. वित्त (धन) ३. धुस्तूर (धतूर) ३. बराटक (कौड़ी) ५. अक्षय (क्षयरहित) ६. मानभेद (मानविशेष-परिमाण विशेष) ७. रजत (चांदी) तथा ८. अकूप्य (अमूल्य महार्घ्य धन वित्त विशेष)। हिरण्यगर्भ शब्द के तीन अर्थ बतलाये गये हैं१. श्रीविष्ण (भगवान श्रीविष्ण ) २. प्राणात्मा (सूक्ष्म शरीर समष्ट्युपहित चैतन्य) तथा ३. चतुर्मुख (ब्रह्मा-प्रजापति) को भी हिरण्यगर्भ कहते हैं। मूल : हिरण्यरेताः सूर्येऽग्नौ शंकरे चित्रकद्रुमे । हीन स्त्रिष्वधमे गर्खे रहिते प्रतिवादिनि ॥२२६०॥ हुडुक्को मदमत्ते स्याद् दात्यूह-वाद्यभेदयोः । हुण्डः स्याद् राक्षसे व्याघ्र वालिशे ग्राम्यशूकरे ॥२२६१॥ हिन्दी टोका-हिरण्यरेतस् शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१. सूर्य, २. अग्नि ३. शंकर और ४. चित्रकद्र म (चीता नाम का वृक्ष विशेष)। हीन शब्द त्रिलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं- १. अधम (नीच) २. गद्य (निंद्य) ३. रहित और ४. प्रतिवादी। हुडुक्क शब्द के तोन अर्थ माने जाते हैं---१. मदमत्त (उन्मत्त मतवाला) २ दात्यूह (जल कौआ, धुंये से रंग वाला कौआ-कारकोआ) और ३. वाद्यभेद (वाद्य विशेष) । हुण्ड शब्द के चार अर्थ माने जाते है-१. राक्षस, २. व्याघ्र (बाघ) और ३. बालिश (मूर्ख) और ४. ग्राम्य शूकर (ग्रामीण शूकर) को भी हुण्ड कहते हैं । मूल: हृदयं मानसे वृक्के वक्षस्यापि प्रकीर्तितम् । हृद्यो मनोरमे हजे हृप्रिये हृहिते त्रिषु ॥२२६२।। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-हृदय शब्द औत्सुक्ये स्यात्तु हल्लेखा हल्लेखो ज्ञान-तकयोः । हृषितं वाच्यवल्लिगं प्रणते हृष्टरोमणि ॥२२६३॥ हिन्दी टीका-हृदय शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मानस (मन) २. वुक्क (गुल्मा-वकपुष्प) और ३. वक्षस् (वक्षस्थल-छाती)। पुल्लिग हृद्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मनोरम (सुन्दर) २. हृञ्ज और ३. हृप्रिय (अत्यन्त प्रिय) किन्तु ४. हृहित (हृदय का हित कारक) अर्थ में हृद्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । १. औत्सुक्य (उत्सुकता उत्कण्ठा) अर्थ में स्त्रीलिंग हल्लेखा शब्द का प्रयोग होता है किन्तु पुल्लिग हल्लेख शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. ज्ञान और २. तर्क । हृषित शब्द १. प्रणत और २. हृष्टरोम (रोमाञ्च युक्त) अर्थ में वाच्यवल्लिग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। मूल : वमिते विस्मृते प्रीते प्रहतेऽपि बुधैः स्मृतम् । हृष्ट स्त्रिषु प्रतिहते जातहर्षे च विस्मिते ॥२२६४॥ रोमाञ्चितेऽपहसित . प्रीतयोरप्युदाहृतः । विहेठे बाधायां हृष्टि: स्त्री मानहर्षयोः ॥२२६५।। हिन्दी टीका-हृषित 'शब्द के और भी चार अर्थ पाने गये-१. वमित (कवच से आच्छादित) २. विस्मृत (भूला हुआ) ३. प्रीत (प्रसन्न)। हृष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं१. प्रतिहत और २. जातहर्ष (उत्पन्न हर्ष वाला) तथा ३. विस्मित (विस्मय युक्त) एवं ४. रोमाञ्चित (रोमाञ्च युक्त) ५. अपहसित और ६. प्रीत (प्रसन्न) । हेठ शब्द के दो अर्थ होते हैं--१. विहेठ (विशेष हठ वाला) और २. बाधा। हृष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ बतलाये जाते हैं-१. मा (आदर) २. हर्ष (आनन्द) को भी दृष्टि कहते हैं। इस प्रकार हष्टि शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये। मूल : हेति: स्त्री सर्यकिरणे तेजोमात्रे च साधने । अस्त्रे बह्निशिखायां च कौशिकः परिदर्शिता ॥२२६६।। हेम धुस्तूर- किजल्क-काञ्चनेषु हिमेऽपि च । हेम: स्यात् कृष्णवर्णाश्वे बुध-माषकमानयोः ।।२२६७।। हिन्दी टोका-हेति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ कोशिकाचार्य ने बतलाये हैं१. सूर्यकिरण, २. तेजोमात्र, ३. साधन, ४. अस्त्र और ५. बह्निशिखा (आग की ज्वाला)। नकारान्त नपुंसक हेम शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. धुस्तूर (धतूर) २. किजल्क (केशर या कमल वगैरह का मध्य भाग स्थित पराग या पुष्प रेण) और ३. काञ्चन (सोना) और . हिम (वर्फ)। पुल्लिग हेम शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. कृष्णवर्णाश्व (काला वर्ण वाला घोडा) और २. बुध तथा ३. माषकमान (पांच आना भर) को भी हेम कहते हैं। इस प्रकार हेम शब्द के सात अर्थ जानना। मूल : हेरम्बो महिषे शौर्यगविते गणनायके । अथ हैमवती गौरी-गंगा-श्वेतवचासु च ॥२२६८।। रेणुका-कपिलद्राक्षा:स्वर्ण क्षीरी - क्षमास्वपि । हरीतक्यामथो होत्रं होमे हविषि कीर्तितम् ॥२२६६।। हिन्दी टोका-हेरम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. महिष (भैंस) २. शौर्यगर्वित (घमण्डी शूर) और ३. गणनायक (गणेश)। हैमवती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - होरा शब्द । ३८६ अर्थ माने गये हैं - १. गौरी (पार्वती) २ गंगा और ३. श्वेतवचा (सफेद वचा) । हैमवती शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं—१. रेण ुका, २. कपिलद्राक्षा (भूरा रंग वाला दाख) और ३. स्वर्णक्षीरी (मकोय, मको) और ४. क्षुमा (अलसी तीसी) तथा ५. हरीतकी । होत्र शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. होम (हवन) और २. हविष् (चरु घृत वगैरह ) । मूल : होरा लग्ने शास्त्रभेदे तथा राश्यर्द्ध-रेखयो: । ह्रस्वः खर्वे द्वयो रेकमात्रवर्णे त्वसौ पुमान् ॥२२७०॥ हादिनी शल्लकी - विद्युत्-सरित्सु कुलिशेस्त्रियाम् । पर्वण्यवत्सरे मध्ये परतन्त्रत्व उत्सवे ॥२२७१। हिन्दी टीका - होरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ बतलाये गये हैं- - १. लग्न (मेष लग्न वगैरह ) २. शास्त्रभेद (शास्त्र विशेष होरा नाम का ज्योतिष शास्त्र) ३. राशि (मेष वगैरह राशि ) और ४. अर्द्ध रेखा । ह्रस्व शब्द १ खर्व (नाटा) अर्थ में पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है किन्तु २. एकमात्रवर्ण में ह्रस्व शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है। ह्रादिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. शल्लकी ( शाहुर शाही या लता विशेष ) २. विद्युत ( बिजली इलैक्ट्रिक ) और ३. सरित् (नदी) तथा ४. कुलिश (वज्र ) को भी ह्रादिनी कहते हैं । १. पर्व ( पूर्णिमा संक्रान्ति वगैरह ) और २. अवसर (मौका) तथा ३. मध्य (बीच ) और ४. परतन्त्रत्व ( परतन्त्रता - पराधीनता) अर्थ में और ५. उत्सव (उजवणी) अर्थ में क्षण शब्द का प्रयोग किया जाता है, यहाँ पर आगामी श्लोक से क्षण शब्द का अध्याहार कर लेना चाहिये । निर्व्यापार स्थितौ कालविशेषेऽपि क्षणः पुमान् । मूल : क्षत्तादासीसुते द्वाःस्थे नियुक्त सारथौ विधौ ॥ २२७२।। क्षत्रियायां द्विजात् जाते मीनेऽपि कथितो बुधैः । क्षमं युक्त क्षमः शक्त हितेऽपि त्रिषु कीर्तितः ॥२२७३॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग क्षण शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. निर्व्यापारस्थिति ( व्यापार शून्य स्थिति) और २. काल विशेष (मिनट पल) को भी क्षण कहते हैं इस प्रकार कुल मिलाकर क्षण शब्द के सात अर्थ जानने चाहिये । क्षत्ता शब्द पुल्लिंग ऋकारान्त माना जाता है और उसके भी सात अर्थ माने गये हैं- १. दासी सुत ( दासी का पुत्र) २. द्वाःस्थ (द्वारपाल ) ३. नियुक्त (सेवक नौकर ) और ४. सारथि तथा ५. विधि और. ६ क्षत्रियायां द्विजात्जात (ब्राह्मण से क्षत्रिय में उत्पन्न सन्तान) को भी क्षत्ता कहते हैं तथा ७. मीन (मत्स्य) नपुंसक क्षम शब्द का अर्थ १. युक्त होता है और पुल्लिंग क्षम शब्द का अर्थ २. शक्त (समर्थ) होता है किन्तु ३. हित अर्थ में क्षम शब्द त्रिलिंग है । मूल : क्षमा रात्रौ क्षितौ क्षान्तौ दुर्गायां गोपिकान्तरे । क्षयो लये गृहे कास रोगेऽपचय-वर्गयोः ॥२२७४॥ क्षरं जले क्षरो मेघे क्षरो नश्वर वस्तुनि । क्षवः क्षुधाभि जनने क्षुते कासेऽप्यसौ पुमान् ।।२२७५।। हिन्दी टीका - क्षमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. रात्रि, २. क्षिति ( पृथिवी ) ३. क्षान्ति ( माफ करना ) ४. दुर्गा (पार्वती) ५. गोपिकान्तर (गोपिका विशेष ) । क्षय शब्द के भी Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-क्षवणु शब्द पांच अर्थ माने जाते हैं-१. लय, २. गृह, ३. कास रोग (कास श्वास दमा) और ४. अपचय (ह्रास) तथा ५. वर्ग । नपुंसक क्षर शब्द को अर्थ १. जल होता है और पुल्लिग क्षर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मेघ और २. नश्वर वस्तु (विनाशी पदार्थ) पुल्लिग क्षव शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. क्षुधाभिजनन (भूख लगना) २.क्षत (छींक) और ३. कास (कास श्वास दमा रोग) को भी क्षव कहते हैं इस प्रकार क्षव शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : कण्ठकण्डूयने कासे क्षुतेऽपि क्षवथुः पुमान् । क्षारः स्यात् टङ्कणे धूर्ते गुडे काचे च भस्मनि ॥२२७६॥ लवणे सजिका क्षारे रसभेदेऽप्यसौ पुमान् । क्लीवं विड्लवणे तद्वद् यवक्षारेऽपि कीर्तितम् ॥२२७७॥ हिन्दी टोका-क्षवथु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ बतलाये गये हैं—१. कण्ठकण्डूयन (गला को खुजलाना) २. कास (दमा) और ३. क्षुत (छींक)। क्षार शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं—१. टङ्कण, २. धूर्त (वञ्चक) ३. गुड और ४. काच और ५ भस्म (राख)। पुल्लिग क्षार शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. लवण (नमक) २. सजिकाक्षार (सज्जी क्षार सोचरखार क्षार विशेष को सजिका क्षार कहते हैं) और ३. रसभेद (रस विशेष) को भी क्षार कहते हैं किन्तु नपुंसक क्षार शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विड्लवण और २. यवक्षार (जवाखार) को भी क्षार कहते हैं । मूल : क्षारको जालके पक्षिमत्स्यादि पिटकेऽपि च । क्षितिर्वासे क्षये भूमौ रोचनायांलये स्त्रियाम् ॥२२७८॥ क्षिप्तः स्याद् वाच्यवत् त्यक्ते वायुग्रस्तेऽप्यसौ मतः। क्षीरं स्यात् सलिले दुग्ध-सरलद्रव्ययोरपि ॥२२७६।। हिन्दी टोका-क्षारक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं--१. जालक (जाल) और २. पक्षिमत्स्यादिपिटक (पक्षी और मछली वगैरह का पिटक-पिटारो)। क्षिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वास (वासा) २ क्षय नाश) ३. भूमि, ४. रोचना और ५. लय । क्षिप्त शब्द १. त्यक्त और २. वायु ग्रस्त (वात रोग वाला) अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न, माना जाता है । क्षीर शब्द के तीन अर्थ बतलाये जाते हैं-१. सलिल (जल) २. दुग्ध (दूध) और ३ सरलद्रव (धूप) । क्षुण्णं स्यात् वाच्यवत् चूर्णीकृत-प्रहतयोरपि । क्षुद्र स्त्रिषु लघौ क्र रे दरिद्रे कृपणेऽधमे ।।२२८०॥ क्षुद्रा स्याद् स्त्री नटी हिंस्रा-व्यङ्ग वादर तासु च। गवेधौ मक्षिका मात्र-कण्टकारि कयोरपि ॥२२८१॥ हिन्दी टोका-क्षुण्ण शब्द १. वूर्णीकृत (चूर्ण किया हुआ) और २. प्रहत (मारा गया) अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है। त्रिलिंग क्षुद्र शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं --१. लघु (हलका आदमी) २. क्रू र (दुष्ट विचार वाला) ३. दरिद्र (गरीब) और ४. कृपण (कजूस) तथा ५. अधम (नीच) । स्त्रीलिंग क्षुद्रा शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. नटी, २. हिंस्रा (घात करने वाली) और ३. व्यङ्गा (अङ्गविकल-विकल अङ्ग वाली) और ४. वादरता (वाद-विवाद में रत-लीन रहने वाली) तथा ५. गवेधु (मुनियों का अन्न विशेष) एवं ६. मक्षिकामात्र (मधुमक्खी वगैरह) और ७. कण्टकारिका (रेंगणी कटैया वगैरह) को भी क्षुद्रा कहते हैं। मूल : Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल: नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-क्षुद्रा शब्द | ३६१ चाङ्ग रिकायां वेश्यायां सरघायामपीष्यते । क्षुपः शैलान्तरे कृष्णपुत्रे क्षुद्रद्रुमे पुमान् ॥२२८२।। क्षुभितश्चलिते भीते वायलिंगः प्रकीर्तितः। क्षुमाऽतसी लताभेद-नीलिकासु शणे स्त्रियाम् ॥२२८३॥ हिन्दी टोका-क्षुद्रा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चाङ्गेरिका (नोनी शाक विशेष-चुकशाक) २. वेश्या (रण्डी) ३. सरघा (मधुमक्खी) । क्षुप शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शैलान्तर (शैल विशेष-पर्वत विशेष) और १. कृष्ण पुत्र (भगवान् कृष्ण का पुत्र) और ३. क्षुद्रद्रम (छोटा वृक्ष) को भी क्षुप कहते हैं। क्षुभित शब्द १. चलित (चलायमान) और २. भीत (डरा हुआ) अर्थ में वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । क्षमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अतसी (अलसी तीसी) २. लताभेद (लता विशेष) को भी क्षुमा कहते हैं तथा ३. नीलिका (नीली) और ४. शण को भी क्षुमा कहते हैं। मूल : क्षुरः शफे कोकिलाक्षे गोक्षुरे क्षुरकः पुमान् । क्षुल्लकस्त्रिषु निस्खेऽल्पे कनिष्ठे पामरे खले ॥२२८४॥ हिन्दी टोका-क्षुर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शफ (खुर-खरी) और २. कोकिलाक्ष (ताल मखाना) और ३. गोक्ष र (गोखरू) अर्थ में क्ष रक शब्द पुल्लिग माना जाता है । क्ष ल्लक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं --१. निस्ख (गरीब) २. अल्प (थोड़ा) ३. कनिष्ठ (छोटा) ४. पामर (कायर-अधम) और ५. खल (दुष्ट) को भी क्ष ल्लक कहते हैं, इस प्रकार क्ष ल्लक शब्द का पांच अर्थ मानना चाहिये। दुःखिते नीचक क्षुद्रे कोशज्ञ : परिकीर्तितः। क्षेत्रं शरीरे नगरे सिद्धस्थाने च वेश्मनि ।।२२८५॥ तथा कलत्रे केदारे प्राज्ञः प्रोक्त नपुंसकम् । क्षेत्रज्ञः पुंसि कृषके छेके वटुकभैरवे ॥२२८६।। देहाधिदैवते शेषद्वयार्थे त्वभिधेयवत् । क्षेपः स्यात् पुंसि विक्षेपे निन्दायां च विलम्बने ।।२२८७॥ हिन्दी टीका-क्ष ल्लक शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. दुःखित २. नीचक (नीचअधम) और ३. क्ष द्र (संकुचित विचार वाला) । क्षेत्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. शरीर २. नगर ३. सिद्ध स्थान (सिद्ध पीठ) ४. वेश्म (घर) ५. कलत्र (स्त्री) और ६. केदार (खेत) । क्षेत्रज्ञ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. कृषक (किसान, खेरुत) २. छेक (घर में पाले हुए तोता-मैना मोर वगैरह पक्षी) ३. वटुक, भैरव तथा ४. देहाधिदैवत (देह की अधिदेवता)। किन्तु ५. शेषद्वयार्थ (शेषनाग और अनन्त) इन दो अर्थों में क्षेत्रज्ञ शब्द अभिधेयवत् (वाच्यवत्-विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । क्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विक्षेप (फेंकना) २. निन्दा और ३. विलम्बन (विलम्ब करना) इस प्रकार क्षेप शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल: लंघने प्रेरणे गुच्छे लेपने गर्व-हेलयोः । क्षेपणं यापने यन्त्रविशेषे प्रेरणेऽपि च ॥२२८८।। मूल : Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल : ३६२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-लंघन शब्द क्षेमोऽस्त्री कुशले मोशे लब्धस्य परिरक्षणे । क्षेमं मठान्तर - प्लक्षद्वीपवर्ष - विशेषयोः ॥२२८६।। हिन्दी टोका-लंघन शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. प्रेरणा (प्रेरणा करना) २. गुच्छ (गुम्छा) ३. लेपन (लेप करना) ४. गर्व (घमण्ड करना) और ५ हेला (विलास या अवहेलना)। क्षेपण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. यापन (समय बिताना) २. यन्त्र विशेष और ३. प्रेरण । क्षेम शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -- १. कुशल २. मोक्ष और ३. लब्धस्यपरिरक्षण (लब्ध का परिरक्षण करना)। नपुंसक क्षेम शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मठान्तर (मठ विशेष) और २. प्लक्षद्वीप बर्ष विशेष (प्लक्ष द्वीप नाम का देश विशेष) को भी क्षेम कहते हैं । क्षोदः स्याद् पेषणे चूर्णे रजस्यपि पुमानतः । क्षोभः संचलने चित्तचाञ्चल्ये क्षोभणे पुमान् ॥२२६०।। क्षोद्रंमधुनि पानीये क्षौद्रश्चम्पकपादपे । वर्णसंकरभेदे च क्षुद्रतायामपीष्यते ॥२२६१।। हिन्दी टीका-क्षोद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. पेषण (पीसना) २. चूर्ण और ३. रज (धूलि)। क्षोभ शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. संचलन (संचलित-विचलित होना) २. चित्तचाञ्चल्य (चित्त की चञ्चलता) और ३. क्षोभण (क्षुब्ध होना) । नपुंसक क्षौद्र शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मधु (शहद) और २. पानीय (जल) पुल्लिग क्षौद्र शब्द का अर्थ-१. चम्पकपादप (चम्पक पुष्प का वृक्ष) होता है। इसी प्रकार पुल्लिग क्षौद्र शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. वर्णसंकरभेद (वर्णसंकर विशेष) और २. क्षुद्रता (हलकापन)। क्षौद्रेयं सिक्यके क्लीवं क्षौद्र सम्बन्धिनि त्रिषु । क्षौमोऽस्त्री स्याद् दुकूलेऽहऽतसीजे शणजे पटे ।।२२६२॥ क्ष्वेडः कर्णामये पीत घोषावृक्षे विषेध्वनौ । वायलिंगस्त्वसौ ज्ञयः कुटिले च दुरासदे ॥२२६३।। क्ष्वेडा कोषातकी-सिंह नादयोर्भणिता स्त्रियाम् । समाप्तः खलु ग्रन्थोऽयं नानार्थोदयसागरः ॥२२६४॥ हिन्दी टीका-क्षौद्रय शब्द १. सिक्यक (सीक) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. क्षौद्रसम्बन्धी अर्थ में त्रिलिंग माना गया है । क्षोम शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. दुकूल (चादर-दुपट्टा) और २. अट्ट (हाट-बाजार दुकान) और ३. अतसीज (अलसी-तीसी से उत्पन्न) और ४. शणज (शण से उत्पन्न) पट (वस्त्र-कपड़ा) भी क्षौम शब्द का अर्थ होता है। क्ष्वेड शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं --१. कर्णाऽऽमय (कान का आमय रोग) और २. पीतघोषावृक्ष (पीत घोषा का वृक्ष) और ३ विष (जहर) तथा ४. ध्वनि किन्तु ५. कुटिल (खल) अर्थ में और ६. दुरासद (दुर्लभ) अर्थ में क्ष्वेड शब्द वाच्य लिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। स्त्रीलिंग क्ष्वेडा शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. कोषातकी (गलका, नेनुआ, घेड़ा) और २. सिंहनाद (सिंह का गर्जन) इस प्रकार नानार्थोदय सागर नाम का कोश समाप्त हो गया। ॥ नानार्थोदयसागर कोष समाप्त । मूल : Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________