Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैनस्मारक। २ ( C जैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजी। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0000000000000000000000000000000 ICC5.... MANO Secene बम्बई प्रान्त प्राचीन जैन स्मारक ००००००००००60b00000000000000000000000000000000000000000000 संग्रहकर्ताःजैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी, ऑ० सम्पादक “जैनमित्र"-सूरत । 30०००००००००००००००००००००००००००००००००००००00000000000eos प्रकाशक:---- माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी, १६० जौहरो बाजार-बम्बई ।। वीर सं० २४॥ पनि क्रम सं० १९८२ प्रथमावृत्ति सन् १९२५ सन् १९२५ । संख्या १००० मूल्य:-बारह आने लागतमात्र । 8300०००००००००००००००००००००००००००००००००० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकमाणिकचन्द पानाचन्द जौहरी, १६० जौहरी बाजार, बम्बई । मुद्रकमलचन्य किसनदास कापडिया, “जैनविजय" प्रि० प्रस-सूरत । comaman00000 ccccccm . Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) उपोद्घात । इस पुस्तकके लिखनेके प्रयासमें मुख्य कारण सेठ वैजनाथ सरावगी (मालिक फर्म सेठ जोखीराम मूंगराज नं० १७३ हैरिसन रोड कलकत्ता) मंत्री प्राचीन श्रावकोडारिणी सभा कलकत्ता हैं। उनकी प्रेरणा हुई कि जो मसाला सर्कारी पुरातत्त्व विभागका यत्र तत्र फैला हुआ है उसको संग्रह करके यदि पुस्तकाकार प्रकाश कर दिया जावे तो जैन इतिहासके संकलनमें बहुत सहायता प्राप्त हो । उनकी इस योग्य सम्मतिके अनुसार बंगाल बिहार उड़ीसाके और युक्त प्रांतके गजेटियरोंको देखकर इन दोनोंके स्मारक सन् १९२३ में प्रकाशित किये गए । अब यह बम्बई प्रांतका जैन स्मारक नीचे लिखी पुस्तकोंको मुख्यतासे देखकर लिखा गया है। (1) Imperial Gazetteer of Bo'n'ay Presidency Vol. I and II (1909 ). (2) Revised list of antiquarian remains in Bombay Presidency by Cousins ( I897), A. S. of India Vol. XVI. (3) Report of Elura Brahm and Jain caves in Western India ( 1880) by Burgess A. S. of India Vol. V. (4) Belgaum Gazetteer (1884) Vol. XXI. (5) Dharwar , Vol. XXII. (6) Architecture of Ahmedabad by Hope Fergusson (186). Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) (7) Thana Gazetteer Vol. XIII. (8) Bijapur Vol. XXIII. (9) Kolhapur , (1886) Vol. XXIV. (10) Sholapur , (1884) Vol. xx. (11) Nasik " (1883) Vol. XVI. (12) Baroda (1883) Vol. III. (13) Rewakantha etc.G (1880) Vol. VI. (14 Ahmedabad G. (1879) Vol. III. (15) Khandesh G. (1880) Vol. XII. इनके सिवाय और भी कुछ पुस्तकें देखी गई। कुछ वर्णन दिगम्बर जैन डाइरेक्टरीसे लिया गया। हमको पुस्तकोंकी प्राप्तिमें Imperial Library of Calcutta 37 Bombay Royal Asiatic Society Library Bombay से बहुत सहायता प्राप्त हुई है जिसके लिये हम उनके अति आभारी हैं । जो कुछ वर्णन हमने पढ़ा वही संग्रहकर इस पुस्तकमें दिया गया है । जहां कहीं हम स्वयं गए थे वहां अपना देखा हुआ वर्णन बढ़ा दिया है । जहां दि० जैन मंदिर व प्रतिमाका निश्चय हुआ वहां स्पष्ट खोल दिया है । जहां दिग० या श्वे० का नाम नहीं प्रगट हुआ वहां जहां जैसा मूलमें था वैसा जैन मंदिर व प्रतिमा लिखा गया है । इस बम्बई प्रांतके तीन विभाग हैं-गुजरात, मध्य और दक्षिण, जिनमेंसे गुजरात विभागमें अधिकांश श्वेताम्बर जैन मंदिर हैं तथा मध्य और दक्षिणमें मुख्यतासे दिगम्बर जैन मंदिर हैं ऐसा अनुमान होता है। इस बम्बई प्रांतमें जैन राजाओंने अपनी अपनी वीरताका यशस्तम्भ बहुत कालतक स्थापित रक्खा, यह बात इस पुस्तकके Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) . पढ़नेसे विदित होगी । जबसे जैन राजाओंने धर्मकी शरण छोड़ी और संसार वासना के वशीभूत हुए तबसे ही उनकी श्रद्धा शिथिल हो गई । इस शिथिलता अवसरको पाकर अजैन धर्मगुरुओंने उन्हें अपना अनुयायी बना लिया और उन्हीं के द्वारा बहुत कुछ जैन धर्मको हानि पहुंचाई गई - राजा के साथ बहुत प्रजा भी अजैन हो गई । उदाहरण - कलचूरी वंशज जैन राजा वज्जालका है जिसको सन् १९६१ - १९८४ के मध्यमें वासव मंत्रीने शिख धर्मी बनाया और लिंगायत पंथ चलाया । इससे लाखों जैनी लिंगायत हो गए देखो टट ११३ || इस कारण बहुतसे जैन मंदिर शिव मंदिर में बदल दिये गए जिसके उदाहरण पुस्तकके पढ़नेसे विदित होंगे । जैन राजागगोंने बहुतसे सुन्दर २ जैन मंदिर निर्मापित कराए और उनके लिये भूमि दान दी ऐसे शिलालेखों का संकेत भी पुस्तक से मिलेगा । कादम्ब, कलचूरी, राष्ट्र व गंग तथा होसाल वंशी अनेक राजा जैन धर्म के माननेवाले हुए हैं । राष्ट्रकूट वंशी जैन राजाओंने गुजरात और दक्षिण में बहुत प्रशंसनीय राज्य किया है । गुजरातमें सोलंकी वंशधारी मूलराजसे लेकर कर्णदेव (सन् ९६१ से १३०४) तक जो राजा हुए हैं वे प्रायः सब ही जैन धर्मधारी थे इनमें सिद्धराज और कुमारपाल प्रसिद्ध हुए हैं । हैदराबाद में एलूरा गुफाके जैन मंदिर व वीजापुर में ऐहोली और बादामीकी जैन गुफाएं दर्शनीय हैं - शिल्पकलाका भी उनमें बहुत महत्त्व है । 1 मुसलमानोंने बल पकड़कर कितने जैन मंदिरोंको मसजिदों में बदला यह बात भी पुस्तकसे मालूम पड़ेगी । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) हरएक इतिहासप्रेमी व्यक्तिको उचित है कि इस पुस्तकको आदिसे अंततक पढ़कर इससे लाभ उठावे और हमारे परिश्रमको सफल करे । तथा जहां कहीं हमारे लेखमें अज्ञान और प्रमादके वश भूल हो गई हो वहां विद्वान पाठकगण सुधार लेवें तथा हमें भी सूचना करनेकी कृपा करें । जैन जातिके भारतीय इतिहास संकलनमें यह पुस्तक बहुत कुछ सहायता प्रदान करेगी। ___ इसका प्रकाश जैन धर्मकी प्रभावनामें सदा उत्साही सेठ माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी (नं० ३४० जौहरी बाजार, बंबई) की आर्थिक सहायतासे हुआ है तथा प्रचारके हेतु लागत मात्र ही मूल्य रक्खा गया है। जैन धर्मका प्रेमी बम्बई, ..... ब्र. सीतलप्रसाद । ता० ७-११-१९२५.J Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) प्रदश बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक की भूमिका बम्बई भारतवर्षका सबसे बड़ा प्रान्त है । यथार्थमें वह कई प्रदेशोंका समूह है। उसके मुख्य बम्बई प्रांत और उसकी विभाग ये हैं:-सिन्ध, गुजरात, ऐतिहासिक महत्ता। काठियावाड़, खानदेश, बम्बई, कोकन _ और कर्नाटक । इसमें लगभग एकलाख तेईसहजार वर्गमील स्थान है । यह प्रान्त जितना लम्बा चौड़ा है उतना महत्वपूर्ण भी है। जैसा वह आज देशके प्रान्तोंका सिरतान है वैसा ही प्राचीन इतिहासमें भी वह प्रसिद्ध रहा है । ईस्वीसन्से हजारों वर्ष पूर्व इस प्रान्तका बहुत दूर रके पूर्वी और पश्चिमी देशोंसे समुद्रद्वारा व्यापार होता था । भृगुकच्छ (भरोच), सोपारा, सूरत आदि बड़े प्राचीन बन्दर स्थान हैं। इनका उल्लेख आजसे अढ़ाई हजार वर्ष पुराने पाली ग्रंथोंमें पाया जाता है । अधिकांश विदेशी शासक, जिन्होंने इस देशपर स्थायी प्रभाव डाला, समुद्र द्वारा इसी प्रान्तमें पहले पहल आये । सिकन्दर बादशाह सिन्धसे समुद्र द्वारा ही वापिस लौटा था। अरब लोगोंने आठवीं शताब्दिके प्रारम्भमें पहले पहल गुजरात पर चढ़ाई की थी। ग्यारहवीं शताब्दिके प्रारम्भमें महमूद गजनवीकी गुजरातमें सोमनाथके मंदिरकी लूटसे ही हिंदू राजाओंकी सबसे भारी पराजय हुई और हिन्दू राज्यकी नींव उखड़ गई। सत्रहवीं शताब्दिके प्रारम्भमें ईस्टइंडिया Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) कंपनीने पहले पहल इसी प्रांतमें सुरत, अहमदाबाद और केम्बेमें अपने कारखाने खोले थे । मुगलोंके समयमें हिन्दूराष्ट्रको पुनर्जीवित करनेवाला शेर शिवाजी इसी प्रांतमें पैदा हुआ था और वर्तमानमें राष्ट्रीय भावोंको जागृत करनेका अधिकांश श्रेय बम्बई प्रांतको ही है । इस प्रकार भारतीय इतिहासकी कई एक धारायें इसी प्रांतसे प्रारंभ होती हैं । भारतवर्ष के प्राचीनतम जैन, हिन्दू और बौद्धधर्मोंका इस प्रांतसे घनिष्ट सम्बन्ध रहा है । बई प्रान्तसे जैन, हिंदू और हिंदुओंका परम पवित्र तीर्थक्षेत्र, बौद्ध धर्मोंका पौराणिक कृष्ण महारानकी द्वारिकापुरी इसी __ सम्बंध । प्रान्तमें है और बनवासके समयके रामचन्द्र के अनेक लीला-स्थान जनस्थान आदि नासिकके आसपास इसी प्रांतके अन्तर्गत हैं। महात्मा बुद्धने अपने पूर्व भवोंमें कई बार इस प्रांतके सुपारा आदि स्थानों में जन्म लिया था। ईसासे कई शताब्दी पूर्व इस प्रांतमें बौद्ध धर्मका प्रचार हो चुका था । यह धर्म यहांसे अब लुप्त हो गया है पर उसकी कीर्ति अक्षय बनाये रखने के लिये इस प्रांतमें सैकड़ों प्राचीन गुफायें आज भी विद्यमान हैं जो अपनी कारीगरीसे संसारको आश्चर्यान्वित कर रही हैं । अजन्टा, कन्हेरी, एलोरा, पीतलखोरा, भाजा आदि स्थानोंकी गुफायें तो संसारमें अपनी उपमा नहीं रखतीं। प्रति वर्ष दूर२से हजारों देशी और विदेशी यात्री इन स्थानोंकी भेंटकर अपने नेत्र सफल करते हैं । जैन धर्मका तो इस प्रान्तसे असन्त प्राचीन और बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) बिहार प्रांतको छोड़ अन्य और किसी प्रांतमें बम्बई के बराबर जैनियोंके सिद्धक्षेत्र नहीं हैं। पुराणोंसे विदित होता है कि पूर्वकालमें यह प्रांत करोड़ों जैन मुनियोंकी विहार भूमि थी । बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथके पांचों ही कल्याणक इसी प्रांतमें हुए हैं। उनका मुक्ति स्थान गिरनार आज अनेक जैन मंदिरोंसे अलंकृत हो रहा है जिसकी बन्दना कर प्रतिवर्ष सहस्रों यात्री अपने पापोंका क्षय करते हैं। यह वही ऊर्जयन्त पर्वत है जिसका सुन्दर वर्णन माघ कविने अपने शिशुपाल वध काव्यमें किया है । पावागिरि, तारंगा, शत्रुंजय वा पालीताणा, गजपंथा, मांगीतुंगी, कुंथलगिरि क्षेत्रों को करोड़ों मुनियोंने अपनी तपस्या और केवलज्ञानसे पवित्र किया है । ये स्थान हजारों वर्षोंसे जैनियों द्वारा पूजे जा रहे हैं । इनसे अनेक स्थानोंके मंदिरोंकी कारीगरीने अपनी विलक्षणताने भारतके कला कौशल सम्बंधी इतिहास में चिरस्थायी स्थान प्राप्त कर लिया है । जब कि जैन ग्रन्थोंमें इस प्रांतके विषय में उपर्युक्त समाचार मिलते हैं तब यह प्रश्न उठाना निरइतिहासकार में बंबई प्रांतका र्थक है कि बंबई प्रांत से जैनधर्मका जैन धर्म से सम्बन्ध | संबन्ध कब प्रारंभ हुआ । निस्सन्देह यह संबन्ध इतिहासातीत कालसे चला आरहा है । भारतके प्राचीन इतिहास में मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्तका काल बहुत महत्त्वपूर्ण है । इस देशका वैज्ञानिक इतिहास उन्हींके समयसे प्रारंभ होता है । वैज्ञानिक इतिहासके उस प्रातः कालमें हम जैनाचार्य भद्रबाहुको एक भारी मुनिसंघ सहित उत्तर से दक्षिण Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१० भारतकी यात्रा करते हुए देखते हैं । उन्होंने मालवा प्रांतसे मैसूर प्रांतकी यात्रा की और श्रवणबेल्गुलमें अपना स्थान बनाया । उनके शिष्य चारों ओर धर्मप्रचार करने लगे । आगामी थोड़ी ही शताब्दियोंमें उन्होंने दक्षिण भारतमें जैन धर्मका अच्छा प्रचार कर डाला, अनेक रानाओंको जैनधर्मी बनाया, अनेक द्राविण भाषा ओंको साहित्यका रूप दिया, अनेक विद्यालय और औषधिशालाएं आदि स्थापित कराई । बम्बई प्रांतके प्रायः सभी भागोंमें भद्रबाहुस्वामीके शिष्योंने विहार किया और जैनधर्मकी ज्योति पुनरुद्योतित की। ईसाकी पांचवीं छटवीं शताब्दीमें भी यहां अनेक प्रसिद्ध जैन मंदिर बने थे । इनमेंका एक मंदिर अबतक विद्यमान है। वह है ऐहोलका मेघुती मंदिर । इस मंदिरमें जो लेख मिला है वह शक सं० २५६ का है । उससे बहुतसी ऐतिहासिक वार्ताएं विदित होती हैं । उसका लेखक जैन कवि रविकीर्ति अपनेको कालिदास और भारविकी कोटिमें रखता है । यह लेख इस पुस्तकमें दिया हुआ है। ईसाकी दशवीं शताब्दितक जैन धर्म दक्षिण भारतमें बराबर उत्तरोत्तर उन्नति करता गया। यहांके बंबई प्रांतमें जैन धर्मका कदम्ब, रट्ट, पल्लव, सन्तार, चालुक्य, उन्नति । राष्ट्रकूट, कलचुरि आदि राजवंश जैन धर्मावलम्बी व जैनधर्मके बड़े हितैषी थे। यह बात उस समयके अनेक शिलालेखोंसे सिद्ध है। इन्होंने जैन कवियोंको आश्रय दिया और उत्साह दिलाया । उन्होंने अनेक धार्मिक बाद कराये जिनमें जैन नैयायिकोंने विजय Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११) श्री प्राप्तकर यश लूटा और धर्मप्रभावना की दिगंबर जैनियोंके बड़े२ आचार्य इन्हीं राजवंशोंसे संबन्ध रखते थे। पूज्यपाद, समंतभद्र, अकलंक, वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, नेमिचन्द्र, सोमदेव, महावीर, इन्द्रनंदि, पुष्पदन्त आदि आचार्योंने इन्हीं राजाओंकी छत्रछायामें अपने काव्योंकी रचना की थी और बौद्ध और हिंदू वादियोंका गर्व खर्व किया था । इसी समृद्धिकालमें जैनियोंके अनेक मंदिर गुफायें आदि निर्मापित हुई । इस प्रकार दशवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत और विशेष ___ कर बम्बई प्रांतमें जैनधर्म ही मुख्य बम्बई प्रांतमें जैनधर्मका ह्रास । धर्म था । पर दशवीं शताब्दिके पश्चात जैनधर्मका ह्रास प्रारम्भ हो गया और शैव, वैष्णव धर्मोका प्रचार बढ़ा । एक एक करके जैन धर्मावलंबी राजा शैव होते गये। राष्ट्रकूट राजा जैनी थे और उनकी राजधानी मान्यखेटमें जैन कवियोंका खूब जमाव रहता था । म्यारहवीं शताब्दिके प्रारम्भमें राष्ट्रकूट वंशका पतन होगया और उसके साथ जैन धर्मका जोर भी घट गया । इसका पुष्पदंत कविने अपने महापुराणमें बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है । यथादीनानाथधनं सदाबहुधनं प्रोस्फुल्लवल्लीवनं । मान्याखेटपुरं पुरंदरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् ॥ धारानाथनरेन्द्रकोपशिखिना दग्धं विदग्धप्रियं । केदानी वसतिं करिष्यति पुनः श्री पुष्पदन्तः कविः॥ अर्थात्-जो मान्यखेटपुर दीन और अनाथोंका धन था, Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जहांकी फूल वाटिकायें नित्य हरी भरी रहती थीं, जो अपनी शोभासे इंद्रपुरीको भी जीतता था वही विद्वानोंका प्यारा पुर आज धाराधीशकी कोपाम्निसे दग्ध होगया । अब पुष्पदंत कवि कहां निवास करेंगे ? उधर कलचुरि राजा वजाल जैनधर्मको छोड़ शैव धर्मी हो गया और जैनियोंपर भारी अत्याचार करने लगा। यही हाल होय्सल नरेश विष्णुवईनका हुआ, जिसने अनेक जैन मंदिर बनवाकर और उनको भारी २ दान देकर जैनधर्मकी प्रभावना की थी वही उस धर्मका कट्टर शत्रु होगया। कहा जाता है कि कई राजाओंने तो शैवधर्मी होकर हजारों जैन मुनियों और गृहस्थोंको कोल्हूमें पिरवा डाला। गुजरातके राजदरबार जैनियोंका प्रभाव कुछ अधिक समयतक रहा पर अंतमें वहां भी उनका पतन होगया। इस प्रकार राजाश्रयसे विहीन होकर और राजाओं छारा सताथे जाकर यह धर्म क्षीण हो गया । जिन स्थानोंमें लाखों जैनी थे वहां धीरे२ एक भी जैनी नहीं रहा । कई स्थानोंमें जैन मंदिरों आदिके ध्वंस अबतक विद्यमान हैं पर कोसोंतक किसी जैनीका पता नहीं है । बेलगांव, धारवाड़, बीजापुर आदि मिले जैन सावशेषोंसे भरे पड़े हैं । अनेक जैन मंदिर शिवमंदिरोंमें परिवर्तित कर लिये गये । कुछ कालोपरान्त जब मुसल्मानोंका जोर बढ़ा तब और भी अवस्था खराब होगई । उन्होंने जैन मंदिरोंको तोड़कर मसनिदें बनवाई। कई मसजिदोंमें जैन मंदिरोंका मसाला अब भी पहचाननेमें आता है । बौद्धोंके समान जैनियोंने भी अनेक कलाकौशलसे पूर्ण गुफायें बनवाई थीं। प्रायः जहां२ बौद्ध गुफायें हैं वहां थोड़ी बहुत जैन Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) गुफायें भी हैं । इनपरसे अब या तो जैनधर्मकी छाप ही उठ गई या जैनियोंने उनको सर्वथा भुला दिया है। ऊपर हमने जो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्त कमें पाये जायगे । धर्महितैषी और उपसंहार। जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त कका अच्छी तरह अवलोकन करना चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा और अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे । उनको यह बात नोट करना चाहिये कि कहां२ पुराने जैन मंदिर व मंदिरोंके ध्वंसावशेष हैं, कहां२ जैनमंदिर शैवमंदिरों और मसनिदोंमें परिवर्तित कर लिये गये हैं और कहां जैन गुफायें अरक्षित अवस्थामें हैं। जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानों को अवश्य देखें और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित करावें । बम्बई प्रांतमें अनेक स्थानों जैसे पाटन, ईडर आदिमें बड़े२ प्राचीन शास्त्र भंडार हैं। इनका सूक्ष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है । भारतवर्षके जैनियोंकी लगभग आधी जन संख्या बम्बई प्रांतमें निवास करती है । इन भाइयोंका सर्वोपरि कर्तव्य है कि वे इस पुस्तककी सहायतासे अपने प्रांतकी धार्मिक प्राचीनताको समझें और जैनधर्मके पुनरुत्थानमें भाग लें । पुस्तकके लेखकका यही अभिप्राय है । गांगई। हीरालाल कार्तिक वदी ३० [हीरालाल जैन एम० ए० सं० प्रोफेसर नि. सं. २४५१ ) किंग एडवर्ड कालेज अमरावती-बरार ] Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) बम्बई प्रान्त | " शहर (२) अहमदाबाद जिला ... (१) नगर ४ ४ 19 जैन शिल्पपर फर्गुसन का मत ... का जन्मस्थान (+) घोलका (४) गोधा द्वीप (३) खेड़ा जिला (1) कपड़वंज (२) मतार (३) महुधा (४) महमदाबाद (५) मड़ियाद (६) उमरेठ (०) दाहोद (५) गोदरा ४ करणवती, प्राचीन नाम ७ (२) धन्धूका - हेम चन्द्र इवे० आ० ९ ... ... ... ... सूचीपत्र । पृ० | ૧ २ ... ... ... ... ... ... ... :: (४) संभात राज्य (५) पंचमहाल जिला (1) पावागढ़ सिद्धक्षेत्र (२) चांपानेर (3 ) देखार ... ... ... ... ... : ... ... ... .... ... ૧૦ 18 ૧૧ ૧૨ 29 "" 33 "" १३ १४ 13 13 १ " (६) भदच जिला (1) मरूच शहर की प्राचीनता व "2 कपड़ेका शिल्ल गोलश्रृंगार जातिके ब० अजित नीली सतीका जन्म (६) शाहाबाद (७) काबी (७) सूरत जिला (1) सुरत शहर (२) रदिर (३) पाल (४) मांडी ... ( २ ) शुकतीर्थमे मौर्य ... ... ... ... ... ... (८) राजपीपला राज्य (६) थाना जिला (1) अमरनाथ (२) बोरीवली (3) वाहनूं ... चन्द्रगुप्त (3) अंकलेश्वर- घपला दे प्रन्थोंकी प्रथम पूजा 39 (४) सजोतके श्री शीतलनाथ २३ (५) गांध र ૨૪ ... ... .०६ ... ... ... 0.0 ... ... ... ... : पृ० १६ ... 19 २० ૨૧ "P ૨૨ "" 39 २५ 39 २६ २७ 38 २१ 29 ३० " Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) कल्याण (५) कन्हेरी गुफाएँ ... , (१) सोपारा-बहुत प्राचीन स्थान ... ... (७) तारापुर ... ... (८) बज्राबाई ... " (१) वशाली ... ... " (१०) बड़ौधा राज्य ... (१) नवसारी (२) महुआ ... ... (२) अनहिलवाड़ा पाटन (1) चुनासामा ... (५) उन्झा ... ... (6) बड़नगर ... ... (७) सगेत्री या सरोत्रा ,. (८) राहो ... ... (९) मंजपुर ... ... (१०) संकेश्वर ... (11) पंचापुर (१२) चन्द्रावती (18) मोघेरा नगर (१४) सोजित्रा ... (११) महोकांठा एजन्सी । (१) र मगर ... (२) संमात राज्य ... , (७) मिलोड़ा ... , (४) पोसीना सब्जी ... १८ (५)तिवा या वारंगा सिद्धक्षेत्र ३८ (९) कुम्भरिया ... २८ (७) बड़ाली वा अमीजरा पार्श्वनाथ ... ... ३९ (१२) पालनपुर एजन्सी ४० (१) दीसा ... ... , (२) पालनपुर नगर ... , (१३) काठियावाड़ राज्य [सौराष्ट्रदेश] ४१ (1) पालीताना या सेव॒जय सिद्धक्षेत्र ... ... ४२ (२) गिरनार या उर्जयंत सिद्धक्षेत्र ... ... ४३ जुनागढ़ शहर ... ४५ अमरकोटमें गुफाएँ (3) सोमनाथ (४) वधधान ... ... ४७ (५) गोरखमढ़ी . ... , (6) वाडियावाड़ या मुबालबेट ... ७ (७ पालू या वूल्य वल्लभीपुर ४४ (८) लुमाकी गुफाएँ ४४ (९) द्वारिकापुरीमें दिन मंदिर व परम दिश [१४] कच्छ राज्य ... । (1) भद्रेश्वर (मावती) (२) भंवार ... .. १७) गेदी .. ... (.) यकोर .. .. , Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : : : : : ': : [१५] महमदनगर जिला (१) चम्भारलेना या श्री (१) पेड़गांव ... ... . मपंव सिबक्षेत्र १ (२) मिरी ... ... , (.) सिनार ... ... १२ (२) संगमनेर ... ५२ (८) मांगीतुंगी सिबक्षेत्र , (४) मेहेकरी x सेतवाल नासिकनगरकी प्राचीनता ६० दि. जैन ... [१८] पूना जिला ... (५) घोटान ... " (१) जुन्नार ... ... [२६] सानदेश जिला ... ५३ (२) बेड़सा ... ... (१) नंदुरबार (3) भांजा ... ... (२) तुरनमाल (.) भवसारी (भोजपुर) (३) यावरनगर ... (४) भामेर ... ... (५) कारली ... ... (५) निजामपुर ... , (६ शिवनेर ... ... (९) पाटन या पीतलखोग (७) बामचन्द्र गुफा ... जैन गुफाएँ ... , [१६] सतारा जिला ... (७) अजन्टा गुफाएँ (१) करादनगर ... दि. जैन मूर्तिये - ५५ | (२; बाई ... ... (८) एरंजेल ... ... ५६ (३) घूमलवाड़ी जैन गुफा [१७] नासिक जिला ... ५७ (४ फलटन ... ... (१) अंजनेरी (अंजिनी) २० शोलापुर जिला ... जैन गुफाएँ ... , (1) बेलापुर ... ... (२) अकई तंकई) (२ दहीगांव ... ... , जैन गुफाएँ ... ५८ [२१] बेलगाम जिला ... ६६ (३) चोदाड़ेनगर जैन गु० ५९ इतिहाप-माहवंशी (४) त्रिंगलवाड़ी (इगतपुरी) जैन राजा ... " जैन गुफाएँ ... ६० जैनोंका महत्व ... ७० (५) नासिक नगर पांडु. राहवंशके जैन गजालेनामें जैन भूति , भोंका कुल वृक्ष Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० (१) बेलगाम शहर व किला दर्शनीय जैन मन्दिर 3 बेलगामका अपूर्व इति • ७४ ७७ (२) हालसी (इलसिगे ) (३) होंगल (बेल होंगल) कादम्ब वंशावली वृक्ष ७८ "" ८० (४) हुली (५) कोन्नूर (६) नान्दीगढ़ (७) नैसर्गी (८) बुक्कुन्ड (९) देगुलवली (१०) कडरोली ( 11 ) इन्निकेरी (१२) कळहोले ... ... ... ... (१५) ताबन्दी (१६) कोकतनूर (१७) बादगी (१८) कागबाद (१८) रायबाग [२२] बीजापुर जिला ... ... ... ... ... यादव राजाओंकी बंशावली ... ... ... ... ( १७ ) ... ... "" ૮૧ ... "9 (१३) मनोली (१४) सौन्दत्ती जैन शिलालेख, ८५ 22 ૮૨ " "" " ८३ "" " ८७ 19 ... ८८ (१) ऐवल्ली (ऐहोली) प्राचीन जैन मंदिर व गुफा ८८. मेघुती दि०जैन मंदिर ८१ का सबसे प्राचीन जैन शिलालेख ९२ 22 नकल लेख मेघुती मंदिर संस्कृत में उल्था लेख मेघुती मंदिर हिन्दी में अरसीबीड़ी (२) बादामी - प्रसिद्ध जैन गुफा,, ८७ १०३ (3) बागलकोट ૧૦૫ (४) हुनगुंड ... (५) पट्टदकल - प्राचीन जैन मंदिर (५) तालीकोटा ( 9 ) सलतगी (८) अलमेली (९) वागेवाड़ी (१०) वासुकोड (१३) हल्लूर (१४) देव्वल ( 14 ) जैनपुर ... ... (२०) सिंदगी (२१) सिरूर ... ... ... (१६) करड़ीग्राम (१) कुन्टो जी (१८) मुद्देबिहाळ (१८) संगम ... ... (११) बीजापुर किले में दि० जैन मूर्ति (१२) धनूर ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... पृ० (२२) बाबानगर (२३) पनाला का किला ९३ 33 ૧૦૬ " " ૧૦૭ 22 "9 " ૧૦૮ 93 ૧૦૨ 19 19 ૧૧૦ 39 " "" 33 ૧૧૧ " Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३] धाड़वाड़ जिला कदम्ब जैन वंश कलचूरी लिंगायत प्रा० जैनी ११४ 93 ११३ "9 ... (१) वंकापुर प्राचीन जैन विद्या केन्द्र बकापुर में गुणभद्राचार्य म लोकादित्य जैन (१) नारंगल नगर पृ० .११२ (०) रक्तीहल्ली (6) रोननगर (९) शिरगांव ... ૧૧૭ सामन्त जिनसेनाचार्य कालि दाससे उच्च कवि राजा अमोघवर्ष जैन ११ (२) भाइबाड़ नगर (3) हॉगल नगर (४) लाकडी या लक्कीगुंडी ११९. 19 (५) मूलगुंडनगर (१०) अमिनभवी (११) हेब्बक्की (१२) चब्बी (13) आदरगुंची (१४) हुबली (१५) सोगतूर (१५) भरतलू (१७) कल्लुकेरी (१८) यलबत्ती (१८) कर गुद्रीकोप ... ૧૧૫ ... ... जैन शिलालेख ...१२० .. १२१ ... ... ... ... (१८) ... ... ... ... ... 13 99 ... १२२ 40 "" " " 23 $9 " 31 39 . १२३ (२०) मुत्तूर (२१) भैरवगढ़ प्राचीन सिंधुनगर (२२) लक्ष्यमेश्वर प्राचीन पुलि लक्ष्मेश्वर के प्राचीन जैन मंदिर व शिला गंगवंशी मारसिंह जैन राजा कुल चालुक्यवंशी जैन राजा द्वारा जीर्णोद्धार (२३) आदुर (२४) दम्बल (२५) देवगिरि कादम्ब राजा जैन भक्त (२६) इत्ती मत्तूर (२७) निदगुन्डी (२८) आरटाल ... ... 99 ... "" ... ... .. ... ... ... (२९) सुन्ही जैन शिला • वंश वृक्ष पश्चिम गंग राजा ... पृ० ૧૨૩ 33 ... ૧૨૪ 39 ૧૨૫ " 18 ૧૨ ... 19 [२४] उत्तर कनड़ा जिला १३० 33 १२७ ૧૩૧ जैनधर्मका मुख्य स्थान, (1) बनवासी, प्राचीन कादम्ब राज्यधानी (२) भटकल, या सुसगडी या मणिपुर भटकल के प्राचीन जैन १३२ मंदिर " " के शिलालेख १३३ के जैन राजकुमारी धन्न भैरवदेवी १३४ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) पृ० ५० ... १४८ ___... १४९ .. १५. ___... १५२ (७) चितकुल [२७] सिंधप्रांत (6) जरसप्पा-प्राचीन जैन मंदिर (1) भाम्बोर (२) गोरी (५) मनकी १३७ (3) नगरपार्कर ... (५) सोनडा-उडपी अनमठ , (४) विराबह ... (७) उलवी प्राम ...१३८२ कोल्हापुर राज्य (८) विदरकन्नी १५१ (4) विलगी या प्राचीन (१) अटली ग्राम ... १५१ श्वेतपुर (२) कोल्हापुर शहर " , (1.) हादवल्ली (३) पावल गुफाएं प्राचीन (11) होनावर या हनुरुह जैन कालेज ... द्वीप ...१३४ (४) रायबाग (१२) कलटी गुडड ... , (१३) कुमता बंदर ... , (५) खेद्रापुर (६) विड या बेरद (१४) मुन्देश्वर ...१३८ (१५) कुलेटार ...१४. (७) हेरले [२५] कोलावा जिला १४१ (८) सावगांव का प्राचीन व्यापार १४२ (९) बमनी (१) चिवल या खेड १४४ (१०) करवीर प्राचीन जैनियों का (११) बदगांव चारित्र ... " (१२) कुन्डल श्री पाव. (२) गोरेगांव नाथजी ... (3) कड़ा गुफाएं ... , (१३) कुम्भोज बाहुबलि (४) महाड़ ... " ... १५७ (५) पाले ___... १४६ (१४) स्तवनिधि अतिशय (6) कोल गुफाएं ... , क्षेत्र (७) रायगढ़ ... , कोल्हापुरके जैन मंदि. (८) रामधरण पवते ... , रका शिलालेख , [२६] रत्नागिरी जिला ...१४७ (१) दामल कोल्हापुरके जैन कि(२) खारे पाटन ... , स नों की प्रशंमा १५४ ...१४५ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... " कोल्हापुरका अंबाबाई मंदिर प्राचीन जैन मंदिर है १५५ खेद्रापुर ...१५९ [२६] मोरज राज्य ...१५७ [३०] सांगलो स्टेट [३१] गोआ ( पुर्तगाल ) कादम्ब जन राजा ... , [३२] हैदराबाद राज्य ...१५८ (1) आतन् . ...१५८ (२) भाष्टे (3) उखलद ...१५८ (४) कचनेर (५) कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र , (१) कुलपाक (७) तड़कल ....६० (४) धाराशिव प्राचीन गुफाएं करकुन्ड पाश्वनाथ ... " (१०) बंकुर ...१९१ (११) मलखेड राजा अमोघ वर्ष भाचार्य जिनसेन , अकलंकदेव जन्म १९२ (१२) सावरगांव ... , (१३) होनसेलगी ... , (१४) एलुग या चरणाद्रिकी,, जन गुफाएं ... , इन्द्रसभाकी दि. जन मूर्तिये ...१९३ जगन्नाथ गुफाकी जैन मूर्तिएं ... ११९ (१५) वोधान ... १७१ (१६) पाटन रेक ... , गुजगतका इतिहास 1७७ के प्राचीन विभाग ... १७५ गुजगतका म्लेच्छ देश हिंदू शानोंमें १७. मौर्योकी प्रशंसा , क्षत्रपोंका राज्य १८. गुतंवश ... १८४ राजा यशोधर्मन मालवाका १८८ वल्लभीवंश , का प्रबन्ध ... चालुक्य वंश ... गष्ट कूट वंशावली ... १९९९ अनहिलवाडा राज्य ... चावड़वंश सोलंकीवंश ... २७३ आबूका प्रसिद्ध जैन मंदिर २०५ आचार्य श्वे. हेमचन्द्र २०९ दिगम्बर श्वेतांवर बाद सभा राजा कुमारपाल ... २०९ वस्तुपाल तेलपाल आबूके जैन मंदिर ... २११ अरब लेखकों का मत गजरातपर ... २13 (८) तेर र ___... २०७ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10€€€330 मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक DECCAD3000 (१) बंबई प्रात व नगर । 2000 331€1 बम्बई प्रांतकी चौहद्दी इस प्रकार है =00088 उत्तर-उत्तर पश्चिममें बलूचिस्तान, पंजाब, राजपूताना । पूर्वमें मध्यभारत, मध्यप्रांत, वरार और हैदराबाद, निजाम । दक्षिणमें मदरास, मैसूर । पश्चिममें अरबसमुद्र । बृटिश बम्बई सिंधु लेकर १२,२९८४ वर्ग मील है । देशी राज्य ६५७६१ वर्ग मील है । इतिहास - सन् ई० से १००० वर्ष पूर्वतक पूर्वी आफ्रिकाके मार्गसे लाल समुद्रतक तथा ७५० वर्ष पूर्वतक फारस की खाडीसे वेविलानके साथ व्यापार होता था । सन् ई० के बहुत पहलेसे जैनधर्म दक्षिणमें भी फैला हुआ था । सन ६०० से ७५० तव - चालुक्य राजाओंने दक्षिणमें राज्य किया, उस समय दक्षिणमें जैनधर्म बहुत उन्नतिमें था । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गुजरात शाखा में ७५० से ९८० तक गूजर और राष्ट्रकूटोंने साहित्त्यकी बहुत उन्नति की तथा खासकर जैनियोंको बहुत महत्त्व दिया । इनमें राजा अमोघवर्ष प्रथम (८१४ - ८७७) जैन साहित्य का खास संरक्षक हुआ है। इसकी उदारताने अरबोंके दिलोंमें बड़ा असर किया था वे इसे वल्लभराज कहते थे । राष्ट्रकूटकी दूसरी शाखा दक्षिणमें ( ८०० से १००८ तक ) राज्य करती थी । सन् ७७५ में पारसी लोग फारसकी खाड़ीसे व्यापारको आए । इन राजाओंने जो 'जैनधर्म, शैव, विष्णु तीनों धर्मोपर माध्यस्थभाव रखते थे ' इनका बहुत आदर किया । सन् ९७३ में दक्षिण में बलवा हुआ तब प्राचीन चालुक्य वंशीय तैलने राष्ट्रकूटोंको दवाकर नया चालुक्य राज्य स्थापित किया व राज्यधानी ( दक्षिण में ) कल्याणी में रक्खी। इसके पीछे वैरप्याने अपना राज्य दक्षिण गुजरात में जमाया, परन्तु दूर दक्षिणमें शिलाहार लोग समुद्रतटतक राज्य करते रहे । दक्षिण में ९७३ से १११६ तक कल्याणीके चालुक्योंने राज्य किया । इन्होंने कांचीके चोलोंसे युद्ध किया तथा मालवा के परमारोंको व त्रिपुरा (जबलपुर) के कलचूरियोंको विजय किया । हलेविका होयसाल वंश मैसूरमें राज्य करता रहा ( ११२० ) व सिंधाणुके नीचे यादव दक्षिणके राज्य रहे (१२१२) । बम्ब र वर्तमान बम्बई में सात भिन्न २ टापू गर्भित हैं । जो राजा अशोक के समय में गंत या उत्तर कोंकणका एक विभाग था । पीछे दूसरी शताब्दीमें यहां शतबाद्दन लोग राज्य Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्त व नगर। [ ३ करते थे। उसके पीछे मौर्य फिर चालुक्य फिर राष्ट्रकूटोंने राज्य किया । मौर्य और चालुक्योंके समयमें (सन् ४५० से ७५०) पुरीनगर या एलीकैन्टा टापू बम्बईबंदरमें मुख्य स्थान था। कोंकणके शिलाहार राजाओंके नीचे (८१० से १२६०) बम्बई प्रसिद्ध हुआ तथा वालकेश्वरका मंदिर बनाया गया था, परन्तु राजा भीमके समयमें यह नगर हुआ था यह देवगिरिके यादववंशमें था। इसने महिकावती ( महिम ) को मुख्यस्थान बनाया था। जिसपर अलाउद्दीन खिलजीने सन् १२९४ में हमला किया। यहां हिन्दूओंका राज्य १३४८ तक रहा । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गुजरात विभाग | (२) अहमदाबाद जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम और दक्षिण, काठियावाड | उत्तर- बड़ौधा । उत्तर पूर्व - महीकांठा । पूर्व - बालसिनोर और खेड़ा । दक्षिण पूर्व-कम्बेकी खाडी । यह ३८१६ वर्गमील है । मुख्य स्थान (१) अहमदाबाद नगर - जब मुसल्मान लोगोंने इस नगर पर अधिकार किया तब उन्होंने जैनियोंके ढंगके मकान बनाए । उनकी मसजिदें भी प्रायः जैन रीतिकी हैं। जेम्स फार्गुसन साहब लिखते हैं: ४] Mohamedans had here forced themselves upon the most civilised and the most essentially building race at that time in India, and the Chalukyas Conquered their conquerors, and forced them to adopt forms and ornaments which; were superior to any the invaders knew or could have introduced. The result is in style which combines all the degance and finish of Jain or Chalukyan art with a certain largeness of conception, which the Hindu never quite attained, but which is characteristic of people who at this time were subjecting all India to their sway. (R. A. S. J. 1900 & Ahm, Surwey 1896 Vol. VI) भावार्थ — भारतमें उस समय एक बहुत ही सभ्य और बहुत ही उपयोगी मकान निर्माण करानेवाली जाति पर मुसलमानोंने जब अधिकार किया तब चालुक्य लोगोंने अपने जीतनेवालोंको भी जीत लिया अर्थात् उनपर यह असर डाला कि वे उन रीतियों को Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला। व भूषणोंको स्वीकार करें जो सबसे बढ़िया थे व जिनका इन आक्रमणकर्ताओंको ज्ञान न था । इसका फल यह है कि मकानोंमें जैन या चालुक्यकलाकी सुन्दरता समागई। उसमें कुछ अधिकता की गई जिसको हिन्दू कभी नहीं पासके थे, परन्तु जो उन लोगोंके व्यवहारमें थी जो इस समय सर्व भारतको अपने अधिकारमें कर रहे थे ।" नोट-इससे जैनियोंके महत्त्वका अच्छा ज्ञान होता है । इस नगरके बाहर रखियाल ग्राममें मलिक शाबानकी बड़ी कब है उसमें जो खभे व नक्कासी किये हुए पत्थर भीतर चबूतरोंके बनानेमें लगे हैं वे सब कुछ जैन व कुछ हिन्दू मंदिरोंसे लिये हुए मालूम होते हैं ( A. S. of India W. for. 1921 ) दिहली और दर्यापुर दरवाजोंके बीचमें फूटी मसजिद है। यह एक बड़ी पत्थरकी मसजिद है जिसमें ५ गुम्बज हैं । सामने खुली है इसमें २२ खंभे हैं । इनमेंसे कुछ जैन कुछ हिन्दू मंदिरोंके हैं । इस नगरमें दर्शनीय जैन मंदिर हाथीसिंह का है (बना सन १८४८) व चिंतामणिका जैन मंदिर है जो नगरसे पूर्व १॥ मील सरसपुरमें है । इसको शांतिदासने नौ लाख रुपयेसे सन् १६३८ में बनाया था । इसको बादशाह औरङ्गजेबने नष्ट किया । अब भुला दिया गया है । ( A. S. of India Vol XVI Cousins ) इसी शांतिदासजीके मंदिरके सम्बंधमें जो 'रेलवे स्टेशनसे बाहर है' अहमदावाद गजेटियर ( जिल्द ४ छपा १८७९ ) में है कि यह ऐतिहासिक वस्तु है । यह नगरमें सबसे सुन्दर रचनाओंमें एक थी। यह मंदिर एक बड़े हातेके मध्यमें था । हातेके चारों तरफ एक पत्थरकी ऊंची दीवाल थी जिसमें सब तरफ छोटे २ मंदिर थे। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इस हरएकमें नग्न मूर्तियां कृष्ण या श्वेत संगमर्मरकी थीं । द्वारके सामने दो बड़े आकारके काले संगमर्मरके हाथी थे इनमेंसे एकपर शांतिदासकी मूर्ति बनी थी । १६४४ से ४६ के मध्यमें औरङ्गजेबने मंदिरको नष्ट किया, मूर्तियोंको तोड़ डाला व इस मंदिरको मसजिदमें बदल दिया । इस बातसे दुःखित होकर जैनियोंने बादशाह शाहजहांको प्रार्थना की जो औरङ्गजेबके इस कत्यसे बहुत अप्रसन्न हुआ, तब बादशाहने आज्ञा दी कि इसको मंदिरकी दशामें ही पलट दिया जावे । अब भी वहां जैन मूर्तियें मिलती हैं यद्यपि उनकी नाक भंग है । भीतोंपर मनुष्य व पशुओंके चित्र हैं । शांतिदासने खास मूर्तिको वहांसे बचाकर नगरमें रक्खा और इसलिये जौहरीबाड़ामें एक दूसरा मंदिर बनवाया । ___अहमदावाद जैनियोंका मुख्य स्थान है । १२० जन मंदिरोंसे अधिक हैं जिनमें हाथीसिंहके मंदिरके सिवाय १८ प्रसिद्ध हैं, १२ मंदिर दर्यापुर, ४ खांदीजत व २ जमालपुरमें हैं। "Arechetcture of Ahmedabad by Hope and Fergusson 1866." में नीचेका कथन है । पृष्ठ ६९ में है कि ईसाकी प्रथम शताब्दीसे अबतक गुजरातवासी भारतवर्षभरकी जातियों से एक बहुत उपयोगी, व्यापारी और समृद्धिशाली समाज है। कृषि कर्ममें भी वे इतने ही परिश्रमी हैं, जितने ही वे युद्धमें वीर हैं तथा स्वतंत्रता रखनेमें देशभक्त हैं। उनकी चित्रकला भी सदा पवित्र और सुन्दर रही है । तथा इन लोगोंका धर्म भी जैन धर्म है। यह सच है कि इस प्रांतमें विष्णु और शिवकी पूजाकी भी अज्ञानता नहीं रही है तथा बहुत समय तक बौद्धमत भी इसकी Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला । [ ७ पूर्वीय सीमामें स्थापित रहा है, परंतु बौद्ध गुफाएं इस प्रांतकी सीमामें ही हैं । यह धर्म प्रांतके भीतर नहीं घुसा । यह मालूम नहीं कि जैनधर्म गुजरात में पैदा हुआ या कहींसे आया, किन्तु जहांतक हमारा ज्ञान जाता है यह प्रांत इस धर्मका बहुत उपयोगी घर व मुख्यस्थान रहा है । भारतमें जितनी धर्मोकी शकले हैं उन सबमें शायद यह जैनधर्म सबसे पवित्र और उत्तम है "Of the Indian forms cf religion it is, on the whole, perhaps the purest and the best " यह धर्मं उस स्थूल व अमाननीय अन्धश्रद्धासे दूर है जो बहुधा शिव व विष्णुकी पूजाके साथ रहती है और न यह बहुत अधिक पुजारी साधुओंसे दबा हुआ है जैसा कि बौद्धधर्म मालूम होता है । न इसका मुकाबला वेदांतके ब्राह्मणधर्मसे होता है test आर्य लोग अपने साथ भारतमें लाए। यह धर्म जैसा सुंदर व पवित्र है वैसा दूसरा नहीं मालूम होता है । There seems none other so elegant and pure. जबसे मुसलमानोंने गुजरातपर अधिकार किया उन्होंने इसके उखाड़ने की शक्तिभर चेष्ठा की, किन्तु यह बराबर जीता रहा तथा इसके माननेवाले अब भी बहुत हैं । जैनियोंकी चित्रकला व शिल्पने अपनी सुन्दरताके कारण मुसल्मानोंपर असरडाला जिससे उन्होंने इसको स्वीकार किया । अहमदावादमें बहुतसी मुसलमानोंकी इमारतोंमें जैनचित्रकला झलकती है । अहमदावादका प्राचीन नाम करणवती था । अहमदशाहने सन् १४९२ में इसका नाम अहमदावाद रक्खा । उस समय यहां Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जैन शिल्पकला खूब फैली हुई थी। इसी समय उनहिळवाड़ा नगर भी बहुत समृद्धिशाली था जो मंदिरोंसे व दूसरी बड़ी २ इमारतोंसे पूर्ण था । इतिहास - यह है कि यह करणवती नगरी ग्यारहवीं शताब्दी में स्थापित हुई थी । वल्लभीका राजा शिलादित्य था जिसने पांचवीं शताब्दी में जैनधर्म धारण किया । जैन लोग बौद्धोंसे पहले की एक बहुत प्राचीन जाति है । इन्होंने अपना सिक्का गुजरात और मैसूर में अच्छी तरह जमाए रक्खा । अब भी इन लोगों के हाथमें भारतका बहुत व्यापार व बहुत धन है । अपने मंदिरोंकी सुन्दरता मूल्यता के लिये ये लोग प्रसिद्ध हैं । मैसूर और धाड़वाड़ में भी इनकी बहुत संख्या है । वल्लभीके पतन होनेपर पंचासूरके राजा जयशेषरको दक्षिणके सोलंकी राजपूतोंने हरा दिया तब उसने अपनी गर्भस्था स्त्री रूपसुन्दरीको उसके भाई सूरपालके साथ जंगल में भेज दिया । वहां उसके पुत्र हुआ जिसको उसकी माता एक जैन साधुके पास गई । साधुने बालकको भाग्यवान जाना तब उसका नाम वनराज रक्खा गया । सन् ७४६ में जब वह ५० वर्षका हुआ तब उसने सोलंकीको भगा दिया और उनहिल - वाडा नगरकी नींव डाली । उसका मुख्य मंत्री चम्पा हुआ । ६०० वर्ष तक गुजरातका राज्यस्थान उनहिलवाड़ा रहा । वनराजने आफ्रिका व अरबसे व्यापार चलाया व इसने बहुतसे मंदिर बनवाए। इसके पीछे इसके पुत्र योगराज, फिर खेमराज, भोगराज, श्री वैरसिंहने राज्य किया, फिर रत्नादित्य राजा हुआ, फिर सामंतसिंह हुए । इसने मूलराज सोलंकीको गोद लिया जो सन् ई० ९४२ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद जिला । में राजा हुआ । उसका पुत्र चामुण्ड ( सन् ९९७) व उसका पोता दोनों साधु होगए । दुर्लभका पुत्र भींडर प्रथम सन् १०२४ में राज्यपर बैठे, सन् १०७२ में वह और उसका बड़ा पुत्र क्षेमराज साधु होगए तब छोटे पुत्र करणने राज्य किया । उसने गिरनार पर्वतपर एक सुन्दर जैन मंदिर बनवाया व इसीने करणवतीनगरी स्थापित की। इसके पीछे इसके पुत्र सिद्धराज ( सन् १०९४ ) फिर कुमारपालने सन् १९४३ में राज्य किया । अहमदावाद इतना बड़ा नगर था कि एक विदेशी यात्री Mard slac मैन्डेस्लाक लिखता है कि जिसने सन् १६३८ में अहमदाबादको देखा था। "एसियाकी ऐसी कोई जाति व ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो इस नगर में न दिखलाई पड़े । यहां २० लाख आदमी हैं तथा ३० मीलके घेरे में वसा हुआ है " ० ७६ मेंमुसलमानी मसजिदोंमें जैन मंदिरोंका बहुतसा मसाला लगाया गया है | अहमदशाहकी मसजिदमें भीतर जैन गुम्बज है और बहुतसा मसाला किसी मंदिरका है । हैवतखांकी मसजिद में भी भीतर जैन गुम्बज है । सय्यद आलम की मसजिद में जैनियोंके खंभे हैं। जिस समय उदयपुरके खुम्बोरानाने सादरामें जैन मंदिर बनवाया था उसी समय अहमदशाहने जुम्मामसजिद बनवाई थी। जैसे उस जैन मंदिर में २४० खंभ हैं वैसे ही इस मसजिद में हैं । धन्दूका - भाधर नदीके दाहने तटपर, अहमदावादसे उत्तर पश्चिम ६२ मील | यह श्वे ० जैनियोंके आचार्य हेमचन्द्रका जन्म स्थान है। हेमचन्द जातिके मोड़वनिये थे । इनके घरमें राजा कुमारपालने एक मंदिर बनवा दिया था जिसको विहार कहते हैं । Ε Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । घोळका - अहमदाबादसे पश्चिम दक्षिण २२ मील। यहां प्रसिद्ध राजा सिद्धराजजी ( सन् १०९४ - ११४३ ) की माता व करण राजाकी विधवा मीनलदेवीने ११ वीं शताब्दीमें एक झील मालव झील नामकी ४०० गज व्यासकी बनवाई थी । यह स्थान १३वीं शताब्दी में वाघेल वंशके स्थापक वीरधचलके अधिकार में था । गोधाद्वीप - काठियावाड़ से दक्षिण पूर्व ४० मील । बम्बई से १९३ मील | यह गुंडीगढका एक बन्दर है जो वल्लभीराज्य ( सन् ४८० से ७२०) का एक उपयोगी स्थान रहा है । इस नगरके निवासी बहुत बढ़िया मल्लाह भारतमें माने जाते थे । यहां जहाजों द्वारा बहुतसा माल आता जाता था । यह धन्दूका तालुकामें है । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेड़ा जिला । (३) खेड़ा जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें अहमदावाद, महीकांठा । पश्चिममें अहमदावाद, खंभात । दक्षिण पूर्व में नदी माही और बड़ौधा । यहां १५७५ वर्गमील स्थान है । खेडा - अहमदाबाद से दक्षिण २० मील यह बहुत ही प्राचीन नगर है । यह प्रसिद्ध है कि इसका नाम चक्रवती नगरी था। इसके राजा मोरध जको पांडवोंने हरा दिया था। कैरासे २ मील सुखड़ और रतनपुर इस प्राचीन नगरके भाग हैं। यहां सन् १८३२ में मोरियां खोदी गई थीं तब बहुतसे सिक्के व बहुतसी संगमर्मर की मूर्तियें पाई गई थीं । [ ११. Brigg's cities of Gujarashtra 195-196. इन सिक्कों में कैराका नाम खेहरा ९वीं शताब्दी में प्रसिद्ध था । देखो सिक्का Cunn ancient Geography India I 316. The ins. inJ Re A. S. n. S. I, 270-277. १८३२ से १०० वर्ष पहले यह एक बड़ा नगर था । यही राजा शिलादित्य वल्लभीके विजयिताका जन्मस्थान था ( रासमाला नं १७–२०-२४ ) वल्लभीके कई राजाओंके नाम शिलादित्य थे । जिनकी मिती सन् ४२१ से ६२७ तक है । यह कैरा जिला अनहिलवाड राज्यमें शामिल था । १४ वीं शताब्दी में मुसल्मान राजाओंने अधिकार किया । यहांकी कोर्टसे थोड़ी दूर एक जैन मंदिर है जिसमें बहुत सुन्दर काली लकड़ीपर चित्रकारी खुदी हुई है । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। कपडवंज-कैरासे उत्तर पूर्व ३६ मील यह बहुत प्राचीन स्थान है। वर्तमान नगरमें ५०० से ८०० वर्ष पुरानी इमारतें हैं। कोटकी भीतके पास एक बहुत ही प्राचीन नगरका स्थान है। इसका असली नाम कपटपुर था । यहां एक सुन्दर जैन मंदिर है इसमें १॥ लाखकी लागत लगी है। मतार-तालुका मतार । कैरासे दक्षिण पश्चिम ४ मील । यहां एक सुन्दर जैन मंदिर है जो ४ लाखसे सन् १७९७ में बनाया गया था। महुधा-नडियादमें एक नगर । इसको २००० वर्ष हुए एक हिन्दू राजकुमार मानधाताने वसाया था । मेहपदावाद-स्टेशन अहमदावादसे दक्षिण १८ मील । सन् १६३८ में एक छोटा नगर था । इसके निवासी हिन्दू सूत कातनेवाले व बड़े व्यापारी थे । १६६६ में यह गुजरात व निकटके स्थानोंको बहुतसा सूत भेजता था । नडियाद-यह १६३६में बहुत बड़ा नगर था । बहुतसा रुईका कपड़ा बनता था। सन् १७७५ में यहांके लोग महीन कपड़ा बनाते और पहनते थे । यहां भी जैनमंदिर है। ___ उमरेठ-तालुका आनन्द । आनन्दसे उत्तर पूर्व १४ मील नगरके पास एक बावड़ी ५०० वर्षकी प्राचीन है जिसमें ५ खन व १०९ सीढ़िया हैं । इसको अनहिलवाड़ाके राजा सिद्धराजने बनवाई थी। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंभातराज्य। (४) खंभातराज्य। खेड़ाजिलेके पास खंभातराज्य है--यहां एक जम्मा मसजिद है जिसको सन् १३२५में महम्मदशाह विन तुघलकने बनवाई थी। इसमें ४४ बड़े व ६८ छोटे गुम्बन व बहुतसे खंभे हैं । ये सब खंभे जैन मंदिरोंसे लाए गए हैं। यहां प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं। जैसे (१) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथका दंडरवाड़ामें जो सन् १५३८में बनाया गयाथा । इसमें दो भाग हैं १ जमीनके नीचे, एक ऊपर । (२) श्री आदीश्वर मंदिर निसको तेजपालने सन् १६०५में बनाया था । (३) श्री नेमिनाथ मंदिर नगरसे ३ मील पर येरलापाड़ामें । यह एक प्राचीन नगर है । भीमदेव द्वि० के राज्यमें (सन् १२४१) वस्तुपाल जो प्रसिद्ध जैन मंत्री भीमदेवके अधिकारी लवणप्रसाद और उसके पुत्र रानावीर धवलका था कुछ दिन खंभातका गवर्नर था उसने यहां जैनियोंके मंदिर पुस्तक भंडारादि बहुत बनाए। यह बात उसके मित्र पुरोहित सोनेश्वरने कीर्तिकौमदीमें लिखी है तथा जैन भंडारोंमें जो १३ वीं शताब्दीके प्रथम अर्द्धकालका पुरानासे पुराना लिखित ग्रंथ मिलता है उससे सिद्ध है । इन मंदिरोंमेंसे कुछोंको सन् १३०८ में तोड़कर जामा मसजिद बनाई गई थी। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (५) पंचमहाल जिला। इसके दो भाग हैं । पश्चिमीय भागकी चौहद्दी है । उत्तरमें राज्य लूनवाड़ा, संथ व संजीली, पूर्वमें वारिया राज्य, दक्षिणमें बड़ौधा, पश्चिममें बड़ौधा राज्य, पांड महवास और माही नदी । पूवीर्य भागकी चौहद्दी है । उत्तरमें चिलकारी, व कुशलगढ़ राज्य, पूर्वमें पश्चिम मालवा, दक्षिणमें पश्चिम मालवा, पश्चिममें सुन्थ, संजीली, वारिया राज्य । इसमें १६०६ वर्ग मील स्थान है-- यहां पावागढ़ पहाड़ बहुत प्रसिद्ध जैनियोंका तीर्थ है-यहांसे 'ध्यान करके इस कल्पकालमें श्री रामचन्द्रजीके पुत्र लवकुश तथा पांच कोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । पर्वतपर प्राचीन जैन मंदिर हैं। नीचे भी मंदिर व धर्मशालाएं हैं। इसका आगम प्रमाण यह है--- गाथा रामसुवा वेणि जणा, लाडणरिंदाण पंचकोडीओ। पावागिरिवरसिहरे, णिव्वाणगयो णमो तेसि ॥ ५॥ (निर्वाणकांड प्रारत) दोहा-रामचन्द्रके सुत दैवीर, लाड़नरिंद आदि गुणधीर । पांच कोड़ि मुनि मुक्ति मंझार, पावागिरि वंदों निरधार ॥६॥ (निर्वाणकांड भगवतीदासकृत रचा सं० १७४१ । ) यह गोधरासे दक्षिण २५ मील व बड़ौधासे पूर्व २९ मील है। यह पहाड २६ मीलके घेरेमें है । समुद्र तहसे २५०० फुट ऊंचा Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमहाल जिला। है। चांद नामका कवि अलहिलवाड़ाके भींडर प्रथमके वर्णनमें (१०२२-१०७२) पावागढके राजा रामगौर, तुआरका नाम लेता है । सन् १३००में चौहान राजपूतोंके हाथमें था ‘जो मेवाडके रणथांभोरसे भागकर आए थे' (१२९९-१३००)। सन् १४८४ तक इनके हाथमें रहा फिर सुलतान महमूद बेगड़ने इस तरह कबजा किया कि एक दफे पावापति श्री जयसिंहदेव पाताई रावल नौराहीमें अपनी राज्यधानी की स्त्रियोंका नृत्य देख रहे थे उस समय उन्होंने एक सुन्दर स्त्रीका कपडा पकड लिया, वह नाराज हो गई और यह बचन कहा कि तुम्हारा राज्य शीघ्र ही चला जायगा । थोडे दिन पीछे चांपानेरके ब्राह्मण जवालवने अहमदाबादके सुलतान महमूदसे मुलाकात की और चढ़ाई करवादी । जयसिंहने वीरता दिखाई, अंतनें संधि हो गई, जावा जयसिंहका मंत्री बन गया । सन् १५३५ में मुगल बादशाह हुमायूंने कबना किया ( देखो अकबर नामा )। सन् १७२७ में कृष्णानीने ले लिया। सन् १७६१ व १७७० में महाराज सिंधियाने कबजा किया । सन् १८५३ में बृटिशके हाथमें आया । इस पावागढ़के नीचे उत्तर पूर्वकी ओर राजशू चांपानेरके भग्न स्थान देखने योग्य हैं और दक्षिणकी तरफ गुफाएं हैं जहां थोड़े दिन पहले तक हिंदू साधु रहते थे । पर्वतपर पत्थरकी दीवाल महाराज सिंधियाने बनवाई थी। फाटकके आगे बढ़कर खास मार्गसे १०० गज दाहनेको जाकर १ खंदक है जो १०० फुट गहरी है, कोनेमें पत्थरकी भीतसे घिरा हुआ एक छोटासा कमरा है जो बिलकुल बंद है। भीतके छिद्रोंसे एक कबसी दिखलाई पड़ती है इसके Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लिये यहां एक दन्तकथा है कि एक राजपूत रानीको यहां जीता गाड़ दिया गया था। इस पहाड़ीके कोनेपर एक कब है उसके आगे सात महलके खंड हैं । इस सात खनके महलको चम्पावती या चम्पारानी या कवेर जहबरीना महल कहते हैं। ऊपरके चार खन गिर गए हैं फिर पुरानी दीवाल है फिर किलेके भग्न हैं फिर जुलन बुदन द्वार है । ऊपर नागरहवेली है। सदनशाह द्वारसे १०० गज ऊपर मांची हवेली है । यह लकड़ीका मकान है जहां सिंधियाका सेनापति रहता था। पासमें पुरानी माची हवेलीके भम्नांश हैं, एक तालाब है, १ खंडित मसनिद है, ५ कूप हैं जिनमेंसे ४ नष्ट है १में बहुत अच्छा पानी है । माची हवेलीसे पाव मील जाकर मकई कोठारका दरवाजा है । इसमें ३ गुम्बज हैं। दक्षिण पूर्वकी तरफ १ ० ० ० फुटकी उंचाई पर भग्न द्वार है, पुराने मकान हैं, एक भीत हैं । यहीं जयसिंहदेव अंतिम पाताई रावलका महल है (सन् १४८४) । कोठार दरवाजेसे पाव मील जाकर पाटिया पुल आता है फिर पाव मील चलकर ऊपरी भागके नीचे पहुंचना होता है। फिर १०० गज चलकर तारा द्वारपर जा फिर १०० गज चल एक इमारत आती है जिसके दो द्वार हैं। नगारखानाके सामने सुरज द्वार है । इसको इंग्रेजोंने सन् १८०३ में नष्ट किया था, पीछे सिंधियोंने बनवाया । बाहरी द्वारमें जैन मंदिरोंके पत्थर लगे हैं। नगारखाना द्वारके भीतर कालका माताके मंदिर तक २२६ सीढ़ियां हैं (इनमें दि० जैन प्रतिमाएं भी चस्पा हैं) जिनको महाराज सिंधियाने बनवायी थीं । कालका माताका मंदिर करीव १५० वर्षका है । पासमें ही मुसल्मान सदन पीरकी कब है। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.nhn.nnn.ornwww पंचमहाल जिला। [१७ पहाड़ीकी पश्चिम ओर सात नवलखा कोठार हैं जिनपर गुम्बन २१ फुट वर्ग है । उत्तरकी तरफ बहुतसे तालाव हैं और छोटे२ सुन्दर नकाशीदार जैन मंदिर हैं। ___यहां दिगम्बर जैनी प्रतिवर्ष अच्छी संख्या यात्रा करने आते हैं । प्रबन्धक सेठ लालचन्द्र काहानदास नवीपोल बड़ौदा हैं। पर्वतके नीचे भी दि० जैन मंदिर व धर्मशालाएं हैं। चांपानेर-पावागढ़ पर्वतके नीचे वसा हुआ था। इसको अनहिलवाडाके बनराज (सन् ७४६-८०६).के राज्यमें एक चंपा बनियेने बसाया था । पीछे १९३६ में बहादुरशाहके मरण तक यह गुजरात की राज्यधानी रहा । यहां हलाल सिकन्दर शाहका मकबरा (सन् १९३६ का) पुरानी इमारत है। पार-हलोलमें सोनीपुरके पास । यहां पुराना पत्थरका महादेवनीका मंदिर है उसकी घगलोंमें नीचेसे ऊपर तक जो सुन्दर खुदाई है वह पुराने गुजराती ब्राह्मण व जैन इमारतोंसे लगाई गई है। दाहोद-गोधरासे ४३ मील प्राचीन नगर था। सन् १ ४ १९ तक बाहरिया राजपूतोंके पास रहा। सुलतान अहमदने डूंगर राजाको हराकर ले लिया । सन् १९७३में बादशाह अकबर स्वामी हुए । सन् १७५०में सिंधियाके पास आया। यहां गवर्नर रहता था व १७८५ में एक बडा नगर था, सन् १८४३ में इंग्रेजोंने कवना किया। यहां औरंगजेब बादशाहके जन्मके सन्मानमें बादशाह शाहजहांने सन् १६१९में कारवा सराय बनवाई थी। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गोदरा - पंचमहालका मुख्य नगर रेलवे जंकशन है । बड़ौधा और दाहोद बीचमें है । यहां शेरा भागोलके रास्तेके ऊपर घेलीमाता नाम से प्रसिद्ध देवी है । मंदिर के पास पीपलका वृक्ष है । I जिसको घेलीमाता मानते हैं यह श्री पार्श्वनाथ भगवानकी कात्योसर्ग नग्न मूर्ति है अखण्डित है । सर्पके फण भी है । प्रतिमा बहुत ही सुन्दर ब तेजस्वी है । तीन प्रतिमा पीपल वृक्षके नीचे पड़ी हैं वे भी कायोत्सर्ग जिन प्रतिमा हैं। यहांसे कुछ पाषाण रेलवेके उस तरफ सिदुरीमाताके देवलके वहां गए हैं वहां भी भूमिपर नव जैन प्रतिमा बिराजित हैं । घेलीमाताके पीछे प्राचीन सरोवर है । उसकी सीढ़ियोंमें जिन मंदिरके पत्थर लगे हैं । इस सरोवर के पास जूनी जुम्मा मसजिद है । यह मसजिद वास्तवमें जैन मंदिर तोड़कर बनाई गई है इसमें संदेह नहीं । यह बहुत पुरानी मसजिद है । ( लेखक गोकुलदास नानजीभाई गांधी वीरशासन अहमदावाद ता० १०-१०-१९२४ । ) . Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ भयच जिला । (६) भरुच जिला । इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें माही नदी, पूर्वमें बड़ौधा और राजपीपला, दक्षिणमें कीन नदी, पश्चिममें खंभात खाड़ी। यहां १४६७ वर्ग मील स्थान है । इसका प्राचीन नाम भृगुकच्छ है । इसका इतिहास यह है कि यह एक दफे मौर्य राज्यका भाग था जिसका प्रसिद्ध राजा महाराज चन्द्रगुप्त (नोट- जो जैन धर्मी था ) यहां शुकतीर्थ पर आकर वास करता था । मौर्यौसे शाहक पास गया जिनको पश्चिमीय क्षत्रप कहते थे फिर गुर्जर और राजपूतोंने फिर कल्याणके चालुक्योंने बाद में राष्ट्रकूटोंने आधिपत्य किया । फिर यह अनहिलवाड़ाके राज्यमें शामिल होगया । पीछे सन् १२९८ में मुसल्मानोंने कबजा किया । (१) भरुच शहर - यहां जैन, हिंदू व मुसल्मानोंकी कारीगरीकी बढ़िया इमारतें शहरमें मिलेंगी, उनमें सबसे प्रसिद्ध जम्मामसजिद है जो जैन रीति से चित्रित और शोभित की गई है इसमें जो खम्भे हैं वे सब प्राचीन जैन और हिन्दू मंदिरोंसे लिए गए हैं। तथा जहां यह मसजिद है वहांपर पहले जैन मंदिर था । इसमें ७२ खंभे नक्काशीदार हैं। गुम्बज और उसकी पत्थर की छतें जैनियोंके ढंगकी हैं। यहां नीचे लिखे प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं (१) श्री आदिश्वर भगवानका मंदिर वीजलपुर पट्टीमें यह सन् १८६९ में बना था । फर्श संगमर्मरका है । (२) श्री मुनि सुव्रत भगवानका मंदिर पाषाणका जिसमें नक्काशी व चित्रकारी सन् १८७२ में की गई थी । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०] मुंब प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (३) एक देराशर भूमिके भीतर उंडी बखारमें । (४) श्री मालपोलमें मंदिर निसमें मूर्ति संवत १६६४ की है। (५) श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर जो १८४९ में बना । (६) श्री आदिश्वर जैन मंदिर जो संवत १४४३ में बना । भरुच भारतके सबसे प्राचीन बंदरोंमें से एक है। १८०० वर्ष हुए यह व्यापारका मुख्य स्थान था । तब भारतसे और पश्चिमीय एसियाके बंदरोंसे व्यापार चलता था । इतने . कालके पीछे भी इसने अपना गौरव बनाए. रक्खा । १७ सत्रहवीं शताब्दीमें यहांसे जहान पूर्वमें जावा सुमात्राको और पश्चिममें अदन और लाल समुद्रको जाते थे। कपड़ा-प्राचीनकालमें यहांसे मुख्य बाहर जानेवाली वस्तुओंमें कपड़ा था। सत्रहवीं शताब्दीमें जब पहले पहले इंग्रेज और डच लोग गुजरातमें बसे तब यहांके कपड़ा बनानेवालोंकी प्रसिद्धिके कारण उन लोगोंने भरुच अपनो कोठियें स्थापित की। यहांकी तनजेबें प्रसिद्ध थीं । सत्रहवीं शदीके मध्यमें यहां इतना बढ़िया महीन सुतका कपड़ा बनता था जैसा दुनियांके किसी हिस्सेमें नहीं बनता था बंगालको भी मात कर दिया था। (about middle of 16 tl: ccntury district is said to have educed more manufacturcs of those of the finest fabrics ihan the sam. extent of county in any part of the world ujot excepting Bengal.). यहां पर श्री नेमिनाथनी के दि. जैन मंदिरमें गोलश्रृंगार अंशधारी दि० जैन ब्रह्मचारी अजितने संस्कृत हनूमान चरित्र रचा श्लोक २००० सर्ग ११ इसकी एक प्राचीन प्रति लिखित Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुच जिला । [ २१ इटावा ( युक्तप्रांत) के पंसारी टोलाके मंदिरमें लाला विलासरायके संस्कृत ग्रन्थ भण्डारमें है जो संवत् १५६९की लिखित है उसकी प्रशस्तिमें ये वाक्य है “ इदं श्री शैलराजस्य चरितं दुरितापहं रचित भृगुकच्छे च श्री नेमिजिन मंदिरे । गोलश्रृंगारवंशेनभस्य दिनमणि वीर सिंहो विपश्चित् । भावी पृथ्वी प्रतीता तनुरूह विदितो ब्रह्म दीक्षां सुतोऽभूत् । तेनोच्चैरेष ग्रन्थः कृति इति सुतरां शैलराजस्य सूरेः । श्रीविद्यानंदि देशात् सुकृत विधिवशात् सर्वसिद्धि प्रसिद्धै ॥ भाव यह है कि वीरसिंह गोल श्रृंगारेके पुत्र अजित ब्रह्मचारीने श्री विद्यानंदिजीके उपदेशसे भरोचके नेमिनाथ जिन चैत्यालय में रचा । इस भृगुकच्छ नगरमें श्री महावीरस्वामीके समयके अनुमान राजा वसुपाल राज्य करते थे तब वहां एक जैनी सेठ जिनदत्त रहते थे उनकी स्त्री जिनदत्ता थी । उसकी कन्या नीटी सती शीलव्रतमें प्रसिद्ध हुई है। (देखो कथा २८वीं आराधना कथाकोश ब्र० नेमिदत्त कृत ) प्रमाण । क्षेत्रेऽस्मिन् भारते पूते लाटदेशे मनोहरे । श्रीमत्सर्वज्ञ नाथोक्त धर्म कार्यैरनुत्तरे ॥ २ ॥ पत्तने भृगुकच्छाख्ये सर्ववस्तु शतैर्भृते । राजाऽभूद्वसुत्पालाख्यो सावधानः प्रजाहिते ॥ ३ ॥ श्रेष्ठी श्रीजिनदत्तो भूणिक सन्दोहसुन्दरः । श्रीमज्जिनेन्द्र चंद्राणां चरणार्चन तत्परः || ४ ॥ तत्प्रिया जिनदत्ताख्या साध्वी सद्दानमंडिता | नीली नाम्नी तयोः पुत्री मुनीनामिव शीलता ॥ ५ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२) शुकतीर्थ - नरबदा नदीके उत्तर तटपर एक ग्राम है जो भरुच नगरसे १० मील है । यहीं मौर्यचन्द्रगुप्त और उसके मंत्री चाणक्य आकर वास किया करते थे । ग्यारहवीं शताब्दी में अनहिलवाड़ाका राजा चामुंड जो अपने पुत्रके वियोगसे उदास गया था यहीं आकर वास करता था । (३) अंकलेश्वर - यहां पहले कागज बननेका शिल्प होता था जो अब बंद होगया है । ( old paper manufacturing industry ). नोट- यहां दि० जैनियोंके ४ मंदिर है जिनमें बहुत प्राचीन व मनोज्ञ मूर्तियां हैं । संवत रहित एक मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवानकी पुरुषाकार भौंरेमें बिराजित है । यह भूमिसे मिली थीं । 1 अंकलेश्वर बहुत प्राचीन नगर है । मुड़बिद्री (दक्षिण कनडा) में जो श्रीजय धवल, धवल, व महाधवल ग्रन्थ श्री पार्श्वनाथ मंदिर में बिराजमान हैं उनके मूल ग्रन्थ इसी नगरमें श्री पुष्पदंत भूतबलि आचार्योंने रचे थे जिनको अनुमान २००० वर्षका समय हुआ । इसका प्रमाण पंडित श्रीधरकृत श्रुतावतार कथामें है । जैसे— तन्मुनिद्वयं अंकलेसुरपुरे गत्वा मत्वा षड़ंग रचनां । कृत्वा शास्त्रेषु लिखाप्य लेखकान् सन्तोप्य प्रचुर दानेन ॥ ज्येष्ठस्य शुक्ल पञ्चम्यां तानि शास्त्राणि संघसहितानि नरवाहनः पूजयिष्यति...." 66 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुच जिला । [ २३ भावार्थ- वे मुनि दो पुष्पदन्त और भूतबलि अंकलेश्वर नगरमें आए यहां षडंग शास्त्रकी रचनाकी शास्त्रोंमें लिखाया व ज्येष्ठ सुदी ५ को संघसहित भूतवलिनीने पूजन की । (सिद्धांतसारादि संग्रह माणकचन्द ग्रन्थमाला नं० २१ पत्रे ३१७) (नोट) - (४) सजोत--अंकलेश्वर ण्टेशनसे ६ मील । यह पहले बड़ा नगर होगा। यहां भौंरेमें श्री शीतलनाथ भगवानकी दि ० जैन मूर्ति पद्मासन २ हाथ ऊंची बहुत ही शांत, मनोज्ञ व उंची शिल्प कलाको प्रगट करनेवाली है । इसमें संवत नहीं है इससे बहुत प्राचीन कालकी निर्मापित है । इसकी अतिशय ऐसी है कि सर्व हिंदू जाति दर्शन करने को आती है । यह बात प्रसिद्ध है कि भरुच में एक दफे एक नाविकका जहाज अटक गया उसको स्वप्न हुआ कि तू सजोतमें शीतलनाथके दर्शन कर जहाज चल पडेगा । उसने आके दर्शन किये जहाज ठीक रीतिसे चल पडा। इस मूर्तिका दर्शन करते २ कभी मन तृप्त नहीं होता है । जैसे मैसूर श्रवणबेलगोलामें कायोत्सर्ग श्री बाहुबलिकी मूर्ति शिल्पकलामें अद्वितीय है वैसे इसको जानना चाहिये। इसकी पत्थरकी वेदीपर यह लेख है । " संवत १८३५ श्रावण वदी १ श्री मूल संघ हूबड ज्ञातीयसा सोमचन्द भुला तत्पुत्र काहनदास सोमचंद वाई देवकुंवरे तया श्री शीतलनाथस्य प्रतिष्ठापनं करापितं श्रीरस्तु " यह मूर्ति अंकलेश्वरके पश्चिम रामकुण्डको खोदते हुए निकली थी जिस रामकुण्का वर्णन हिंदुओंके संस्कृत नर्बदा पुराण में है । इसी मूर्तिके साथ वह मूर्ति भी निकली थी जो अंकलेश्वरके भौरेमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (५) गांधार-ता० वागरा जम्बूसर स्टेशनसे १२ मील-यहां प्राचीन जैन मंदिर हैं । १ जैन मंदिर सन् १६१९ में भौंरां सहित बनाया गया था। यह बहुत प्राचीन नगर था। यहां ३ मीलके घेरेमें पुराने टीले मिलते हैं। ... (६) शाहाबाद-भरुचसे उत्तर पूर्व १३ मील यहां श्री पार्श्वनाथनीका जैन उपासरा है। (७) कावी-ता० जंबूसर-यह माही नदीपर पुराना जैन पूज्यनीय स्थान है। दो जैन मंदिर सास बहूकी देहरीके नामसे प्रसिद्ध हैं। हरएकमें शिलालेख हैं। ( See Indian Antiquary V 109, 144). Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ सूरत जिला । (७) सूरत जिला । इसकी चौहद्दी इस तरह है- पूर्वमें बड़ौधा, राजपीपला, वांसदा धरमपुर, दक्षिणमें थाना जिला और दमान (पुर्तगालका ) पश्चिममें अरब समुद्र उत्तरमें भरुच और बड़ौधा राज्य । यहां १६५३ वर्ग मील स्थान है । इतिहास - यूनानी भूगोलविशारद प्टोलेमी 'tolemy (सन् १५० ) लिखता है कि यह पुलिपुला व्यापारका मुख्य केन्द्र था । शायद पुलिपुलासे मतलब फूलपाड़ा से है जो सूरत नगरका पवित्र स्थान माना जाता है । सूरत शहर से पूर्व १३ मीलपर कावरेज के किलेमें हिंदू राजा रहता था जो १३ वी शदीमें कुत्तबुद्दीन से हारकर भाग गया । यहांकी प्राचीनताकी बात यह है कि कुछ मसजिदें प्राचीन जैन मंदिरों को तोड़कर बनी हैं जैसे रांदेर में जम्मा मसजिद, मसजिद मियां व खारवा ब मुन्शीकी मसजिद । (१) सूरत शहर - - यह मोटे व रंगीन रुईके कपडोंके लिये व रेशमपर सुनहरी व रुपहरी फूल कामके लिये प्रसिद्ध था । किसी समय जहाज बननेका शिल्प बहुत चढा हुआ था और यह सब पारसियों के हाथ में था । बड़े २ जहाज जो ५०० से १००० टन बोझा ले जाते थे चीनके साथ व्यापारमें लगे रहते थे । सूरतके शाहपुरवाड्रामें घेरेके भीतर जो कड़ीकी मसजिद है वह भी जैनमंदिरके सामानसे बनी है। शाहपुरा, हरिपुरा, सय्यदपुरा व गोपीपुरा में बहुत जैन मंदिर हैं। नोट- यहां दि० व श्वे० के प्राचीन जैन मंदिर व शास्त्र हैं । सूरतके कतारगांवके पास वरतिया देवडी है जहां अनु Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । मान १०० के छोटी २ जैन साधुओंकी समाधियें हैं जिनपर लेख भी हैं । यह दि ० जैनियोंकी हैं । (२) रांदेर - सूरत शहर से २ मील तापती नदीके दाने तटपर । यह चौरासी तालुकेमें एक नगर है । दक्षिण गुजरातमें सबसे प्राचीनस्थानों में यह एक है । ईसाकी पहली शताब्दीमें यह एक उपयोगी स्थान था जब भरोच पश्चिमीय भारतमें व्यापारका मुख्य स्थान था । अलविरुनीने (सन् १०३१ में) लिखा है कि दक्षिण गुजरातकी दो राज्यधानी हैं एक रांदेर ( या राहन जौहर ) दूसरा भरोच । तेरहवीं शताब्दीके प्रारम्भमें अरब सौदागरों और मल्लाहोंके संघने उस समय रांदेर में राज्य करनेवाले जैनियोंपर हमला किया और उनको भगा दिया । तथा उनके मंदिरोंको मसजिदों में बदल लिया । जम्मा मसजिद जैन मंदिरसे बनी है । तथा कोर्टकी भीतें जैन मंदिरकी हैं। करवा या खारवाकी मसजिदमें जो लकड़ीके खम्भे हैं वे जैनियोंके हैं। मियां मसजिद भी असलमें जैन उपासरा था । वालीजीकी मसजिद भी जैन मंदिर कहा जाता है मुन्शीकी मसजिद भी जैन मंदिर था । अब वहां पांच जैन मंदिर पुराने हैं। रांदेरके अरब नायतोंके नामसे दूर दूर देशोंमें यात्रा करते थे । सन् १९१४ में यात्री बारवोसा Barboss वर्णन करता है कि यह रांदेर मूर लोगोंका बहुत धनवान व सुहावना स्थान था जिसमें बहुत बडे २ और सुंदर जहाज थे और सर्व प्रकारका मसाला, दवाई, रेशम, मुश्क आदिमें मलक्का, बङ्गाल, तनसेरी (Tenna serim) पीगू, मर्तवान और सुमात्रासे व्यापार होता था । हमने स्वयं रांदेर जाकर पता लगाया तो ऊपर लिखित मसजिदें जैन मंदि - Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरत जिला । [२७ रोंको तोड़कर बनी हैं यह बात सच पाई । दिरमें अब दि० जैन मंदिर एक है । (३) पाल - सूरतसे ३ मील यहां श्री पार्श्वनाथका बहुत बड़ा जैन मंदिर है। (४) मांडवी - ता० मांडवी यहां श्री आदिनाथजीका दि० जैन मंदिर दर्शनीय है । इस पर यह शिलालेख है " संवत १८१७ बर्षे वैशाख मासे कृष्ण पक्षे दश्यां तिथौ शनौ श्रीयुत संवत्सर सर - स्वती गच्छे बलात्कार गणे कुन्दकुन्दान्वये भट्टारक सकलकीर्ति तदनुक्रमेण भ० श्री विजयकीर्ति तत्पट्टे श्री भ० श्री नेमिचन्द्रदेव तत्पट्टे श्री चन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ० श्री रामकीर्ति देव, तत्पट्टे भट्टारक श्री यशकीर्ति उपदेशात्.... श्री मांडवी ग्रामे समस्त श्री संघ श्री मूलनायक श्री आदिनाथं नित्यं प्रणमति । शुभम् । यहां एक जैन श्वेतांबर मंदिर भी हैं जो संवत् ०१८४५ में बना था । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (८) राजपीपला राज्य । सूरत निलेके पास पूर्व राजपीपला राज्यमें लिमोदरा ग्राम है । यहां श्री ऋषभदेवका जैन मंदिर है जिसकी मूर्तिपर जो लेख है उसमें मिती मार्गसिर सुदी १४ सं० ११२० है । यह मूर्ति खो गई थी फिर १८६४ में एक खेतमें मिली यहां कार्तिक सुदी १५ और माघ सुदी ६ को मेला भरता हैं । बहुतसे जैनी एकत्र होते हैं। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाना जिला। [२६ atme (९) थाना जिला । इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें दमान, सूरत, पूर्व में पश्चिमीय घाट, दक्षिणमें कोलाबा, पश्चिममें अरब समुद्र। यहां ३५७३ वर्ग मील स्थान है। . यहांका इतिहास यह है कि सन् ई० से तीसरी शताब्दी पहले अशोकके शिलालेख सुपारामें अंकित किये गए थे। राना अशोकके पीछे थाना और कोंकनमें अभृत्यने राज्य किया था फिर शाहवंश या पश्चिमी क्षत्रपोंने फिर मौर्यवंशने पुनः राज्य स्थापित किया जिसको कल्याणके चालुक्योंने नष्ट किया । सन् ८१० से १२६० तक यहां शिलाहरोंका राज्य था जिन्होंने पुरी (वर्तमान एलीफेन्टा) को अपनी राज्यधानी बनाया था यही कोंकगामें मौर्योका पूर्वीय स्थान था। शिलाहार लोग द्राविड वंशके थे । फिर मुसल्मानोंका अधिकार होगया । यहां बौद्धोंकी गुफाएं कन्हेरी, कोंदीवती, सैलसिटीके मागाथन और लोनाद नामकी भुइवंडीमें हैं। (१) अमरनाथ-(अम्बरनाथ) ग्राम तालु० कल्याण। बम्बईसे ३८ मील अम्बरनाथ स्टेशनसे पश्चिम १ मील ग्रामसे पश्चिम १ मीलसे कम दूरीपर घाटीमें एक प्राचीन मंदिर है इसमें प्राचीन हिन्दू कारीगरीका बढ़िया नमूना है । इसमें एक शिलालेख शाका ९८२ (सन् १०६०) का पाया गया है जिससे मालूम हुआ कि इसे दक्षिण कल्याणके चालुक्योंके नीचे कोंकनके राजा महामंडलेश्वर चितराजदेवके पुत्र मानवानि राजाने बनवाया था। यहांके खम्भे और छत अजन्ताकी गुफाओंके समान है । बहुत सुन्दर Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नक्काशी है । भीतर लिंग है । जो कारीगरी भीतरके खंभोपर व बाहर दिख रही है वैसी इस बंबई प्रांत में कहीं नहीं है । यहां शिवरात्रि (माघ) को मेला भरता है । नोट - इसकी जांच होनी चाहिये । शायद जैन चिन्ह हो । (२) बोरीवली- सैलसिटी तालुका वंबईसे उत्तर २२ मील स्टेशन बी० बी० सी० आईसे करीब आध मील स्टेशनसे पूर्व पोनीसर और भागा घाटीके निकट बौद्धोंकी खुदी हुई गुफाएं हैं। इसके दक्षिण पूर्व करीब २ मीलके अकुलमें एक काले रङ्गका बडा टीला है । इसके ऊपर खुदाई है व २००० वर्ष पुरानेपाली अक्षर हैं। इसके दक्षिण २ मील जाकर जोगेश्वर नामकी ब्राह्मण गुफा ७ वीं शताब्दीकी है । गोरेगांव स्टे० से ३ मील गुफाएं हैं उनमें सबसे बड़ी नं० तीन २४०x२०० फुट है । (३) दाह नू - बन्दर ता० दाहानू - दाहानूरोड स्टे० (बी०बी०) से २ मील बम्बई से ७८ मील, पहले यह नगर था । इस स्थानका नाम नासिककी गुफाओंके शिलालेखों में आया है (सन् १०० ई० में) (४) कल्याण - बम्बई से दक्षिण पूर्व ३३ मील । इसका नाम पहलीसे छठी शताब्दी तकके शिलालेखों में आता है। दूसरी शता अन्तमें यह नगर बहुत उन्नतिपर था । कैस्मस इंडिका Casmas Indica कहता हैं कि छठी शताब्दीमें यह पश्चिम भार तके पांच मुख्य बाजारों में से एक था । यह बलवान राजाका स्थान था । यहां पीतल, कपड़ेका सामान तथा लकड़ीके लट्ठोंका व्यापार होता था । (५) कन्हेरी गुफाएं - थानासे ६ मील, जी० आई० पी० के भानदुव स्टेशनसे या बी० बी० के वोरिवली स्टे。 से निकट है । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाना जिला। [३१ इसका प्राकृत नाम कन्ह गरि संस्कृतमें कृष्णगिरि है उसकी पवित्रता बौद्धोंकी उन्नतिके समयसे है । १०० वर्ष पहलेसे ५० सन् ई० तककी गुफाएं हैं। कुछ गुफाएं चौथीसे छठी शताब्दी तककी हैं यहां ५४ शिलालेख हैं (देखो बम्बई गजेटियर जिल्द १५ वीं सफा १२१ से १९५)। (६) सोपारा-तालुका बसीन-बसीनरोड़ स्टे०से उत्तर पश्चिम ३॥ व बीरार स्टे० से दक्षिण पश्चिम ३॥ मील है । यह प्राचीन नगर था । यह सन् ई० से ५०० वर्ष पहलेसे लेकर १३०० इ० तक कोंकनकी राज्यधानी था । महाभारतमें व गुफाओंके लेखोंमें इसका नाम शुर्पारक है । यूनानी प्टोलिमीने सौपार, व प्राचीन अरब यात्रियोंने सुबार नाम लिखा है । महाभारतमें लिखा है कि यहां पांच पांडव ठहरे थे । गौतमबुद्ध अपने पूर्व जन्मोंमें यहां पैदा हुआ था । जैन लेखकोंने सुपाराका बहुत स्थानोंमें नाम लिया है। सन ई० से पहली व दूसरी शताब्दी पहलेके लेखोंमें इसका नाम सोपारक, सोपाराय व सोपारग पाया जाता है । पेरिप्लसके संपादकने लिखा है कि तीसरी शताब्दीमें औपधारा भरुच और कल्याणके मध्यमें समुद्र तटपर १ बानार था । (B. R. A S. 1882) सोलोमनने इसको ओपलायर नाम देकर लिखा है। यह ईसासे १००० वर्ष पहले व्यापारका मुख्य केन्द्र था, इतिहासके समयके पहलेसे इस थानाके किनारेसे फारस, अरब और अफ्रिकासे व्यापार होता था । जेनेसिस अध्याय २८में कहा है कि भारतीय मसालोंमें अरबके साथ व्यापार चलता था तथा मिश्र वासियोंमें भारतकी वस्तुएं प्राचीनकालमें व्यवहार की जाती थीं। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। new.mmmmmmmmmmm Wilkinson's ancient Egyptians II P. 237. ...फारशकी खाड़ीके नाकेसे भारतके साथ व्यापार बहुत ही पूर्वकालसे होता था। .नेवूचडनजर ( सन ई०से ६०६ से ५६१ वर्ष पहले ) ने फारसकी खाड़ीपर बैंक स्थापित किये थे और सीलोन व पश्चिमीय भारतसे व्यापार करता था । भारतको ऊन, जवाहरात, चूना, भट्टी, ग्लास, तेल भेजता था व भारतसे लकड़ी, मसाला, हाथीदांत, नवाहरात, सोना, मोती लाता था। Heeren's historical Researches II. P. 209, 247.... ... (७) तारापुर-या चिंचनी, महिम और दाहानू तालुका, महिमसे उत्तरसे १५ मील । यह बहुत प्राचीन नगर है। नासिककी गुफ़ाके पहली शताब्दीके लेखमें इसका नाम चे आया है ।.. (८) वजाबाई-तालुका भिवंडीमें पवित्र स्थल-भिवन्डीसे इत्तर १२ मील । यहां गर्म पानीके झरने हैं । इसके लिये प्रसिद्ध है । एक पहाड़ीपर सुन्दर देवीका मंदिर है। चैत्रमें मेला लगता है। .... (९) वशाली-मुखाड़में तालुका शाहापुर--एक छोटी पहाड़ीकी उत्तर और ढालमें एक चट्टानमें खुदा मंदिर है जो १२४१२ फुट है। इसके द्वारके सामने एक आलेके दोनों तरफोर्तिये हैं हरएक ३ फुट ऊंची है । ये ध्यानरूप हैं द्वारके ऊपर १ कोटी खंडित मूर्ति है। ये मूर्तियें व मंदिर जैनियों । मालूम होता। देखना चाहिये। .... नोट—इस जिलेमें और भी जैन ..अवश्य होंगे जांच होनेकी जरूरत है । जैन शास्त्रोंमें समााका कहां २ वणन है यह बात भी संग्रह करने लायक है। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ौधा राज्य । (१०) बड़ौधा राज्य । बड़ौका प्राचीन नाम एक दफे हिन्दुओंने चन्दनावती प्रसिद्ध किया था क्योंकि राजपूत दोरवंशके राजा चंदनने इसको जैनियोंसे छीना था । यह चंदन प्रसिद्ध मलियाधीका पति व मशहूर कन्या शिवरी और नीलाका पिता था पीछेसे इसे परावली फिर वतपत्र कहने लगे । (१) नवसारी - यहां श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर है । [ ३३ (२) महुआ - पूर्ण नदीपर - एक दि० जैन मंदिर है जिसमें सुन्दर कारीगरी है । प्रतिमाएं बहुत प्राचीन हैं । शास्त्रभंडार बहुत बढ़िया है, यहां श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति भौर में है जिसे विघ्नहर पार्श्वनाथ भी कहते हैं - सर्व अजैम भी पूजते हैं । यह मूर्ति कृष्ण पाषाण २ ॥ हाथ ऊंची पद्मासन वड़ी मनोज्ञ व प्राचीन है । यह सं० १३५३ में खानदेश जिलेके सुलतानपुरके पास तोड़ावा ग्राममें खेत खोदते हुए मिली थी। सेठ डाह्याभाई शिवदासने लाकर यहां विराजित की। ऊपर १ वेदीमें श्वेत पाषा का पट है २४ प्रतिमा हैं मध्य में ३ हाथ ऊंची कायोत्सर्ग श्री ऋषभदेवकी मूर्ति है जो नौसारीके दि० जैन मंदिरस्ते यहां सं १९११ में लाई गई थी । दर्शनीय है । प्रबन्धकर्ता इच्छाराम झवेरचंद नरसिंगपुरा हैं । (३) अनहिलवाड़ा पाटन - सिद्धपुर स्टेशनसे जाना होता है । यह चावड़ी और चालुक्य राजाओंकी पुरानी राज्यधानी है । इसको वनराजने सन् ७४६ में आबाद किया था । परन्तु मुसल Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। मानोंने इसे १३वीं शताब्दीमें ध्वंश किया। बहुतसे वर्तमानमें बने हुए मंदिरोंमें पुराने मंदिरोंके खण्ड व मसाले पाए जाते हैं। पंचासर पार्श्वनाथके जैन मंदिरमें एक संगमर्मरकी मूर्ति है जो पाटनके स्थापनकर्ता वनराजकी कही जाती है । इस मूर्तिके नीचे लेख है जिसमें बनराजका नाम व संवत् ८०२ अंकित है इसी मूर्तिकी बाई तरफ वनराजके मंत्री जाम्बकी मूर्ति है। श्री पार्श्वनाथके दूसरे जैन मंदिर में लकड़ीकी खुदी हुई छत बहुत सुन्दर है तथा एक उपयोगी लेख खरतर गच्छ जैनियोंका है । दूसरे एक जैन मंदिरमें वेदी संगमर्मरकी बहुत ही बढ़िया नक्कासीदार है जिसपर मूर्ति विराजित है। नोट-इस पाटनमें जैनियोंका शास्त्रभंडार भी बहुत बड़ा दर्शनीय है यहां दोआने जैनी बसते हैं । उनके सब १०८ मंदिर हैं प्रसिद्ध पंचासर पार्श्वनाथका है जिसमें २४ वेदियां हैं । ढांढरवाड़ामें सामलिया पार्श्वनाथका बड़ा मंदिर है जिसमें एक बडी काले संगमर्मरकी मूर्ति सम्पतीराजाकी है । वहीं श्री महावीरस्वामीका मंदिर हैं जिसमें बहुत अद्भुत और मूल्यवान पुस्तकोंके भंडार हैं । इनमें बहुतसे ताड़पत्रपर लिखे हैं । और बड़े २ संदूकोंमें रक्षित हैं। (४) चूनासामा-बड़बाली तालुका-यहां बड़ौधा राज्यभरमें सबसे बड़ा जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है इसमें बढ़िया खुदाईका काम है- इसी शताब्दीमें ७ लाखकी लागतसे बना है। , (५) उन्शा-सिद्धपुरसे उत्तर ८ मील । कोड़ावाकुनवीका Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ौधा राज्य । [ ३५ एक बड़ा मंदिर है जो जैन मंदिर के ढंगपर सन् १८१८ में बनाया गया था । (६) बडनगर - विसाल नगरसे उत्तर पश्चिम ९ मील । यहाँ दो सुन्दर जैन मंदिर हैं । (७) सरोत्री या सरोत्रा - सरोत्री ष्टे० से १ मील यहां कई पुराने जैन मंदिर हैं उनमें बहुतसे छोटे २ लेख हैं। एक बहुत प्राचीन व प्रसिद्ध सफेद संगमर्मर पत्थरका जैन मंदिर है । मध्य में एक है । चारों तरफ १२ मंदिर हैं जो गिरगए हैं। इसकी सर्व मूर्तियें अनुमान ६० के अन्यत्र भेज दी गई हैं । (८) राहो- सरोत्रा से उत्तर पूर्व ४ मील यहां प्राचीन सफेद संगमर्मर के जैन मंदिर के ध्वंस भाग हैं। एक बंगलेके बाहर द्वारपर पुराने मंदिर के खंभे भी लगे हैं । (९) मूंजपूर - पाटनसे दक्षिण पश्चिम २४ मींल । यहां प्राचीन इमारत एक पुरानी जमा मसजिद है । जो और गुजराती 1 पुरानी मसजिदोंके समान पुराने हिन्दू और जैन मंदिरोंके मसालेसे बनाई गई है। यहां एक संस्कृत में शिलालेख है परन्तु पढ़ा नहीं जाता । (१०) संकेश्वर - मुंजपुर से दक्षिण पश्चिम ६ मील - यह जैनियोंका प्राचीच स्थान है | यहां श्री पार्श्वनाथजीका पुराना जैन मंदिर है । इसके चारों तरफ छोटे २ मंदिर हैं। एक मंदिरके द्वारपर कई लेख सं० १६५२ से १६८६ के हैं । यह कहा जाता है कि प्राचीन मंदिर में जो श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति थी उसको उठाकर Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । नए मंदिरज़ी में ले गए हैं। इस मंदिरकी एक प्रतिमा पर संवत १६६६ है व नए मंदिरकी प्रतिमा पर सं० १८६८ है । (११) पंचासुर - संकेश्वर से दक्षिण ६ मील | यह गुजरातके सबसे प्राचीन नगरोंमेंसे एक है । ११०० वर्ष हुए यहां के प्रसिद्ध जयशेषर राजाको भुवर राजाके आधीन दक्षिणकी सेनाने घेर लिया था । यहां जमीन के नीचेसे बड़ी २ पुरानी ईंटे निकली हैं । (१२) चन्द्रावती - राहो से उत्तर पूर्व १५ मील । पर्वत आबूके नीचेसे थोड़ी दूर यह संगमर्मरका पुराना सुन्दर नगर था । यहां एक स्थानपर १३६ मूर्तियें बिराजमान हैं | नोट - देखना चाहिये । शायद जैन हों। -- (१३) मोघेरा नगर - छोटी पहाड़ीपर । जैन कथाओं में इसको मोधेरपुर या मुधर्व कपाटन लिखा है । (१४) सोजित्रा-यहां दि० जैन भट्टारकोंकी दो पुरानी गद्दियां हैं । मूलसंघ और काष्टासंघकी । तीन दि०जैन मंदिर हैं। यहां कुछ प्राचीन दि०जैन मूर्तियां खंभातके मंदिरसे लाकर विराजमान की गई हैं। यहां काष्टासंघके मंदिरजीमें प्राचीन जैन शास्त्र भण्डार है । · Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महीकांठा एज'सी। [३७ (११) महीकांठा एजंसी। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तर पूर्व उदयपुर और डूंगरपुर दक्षिण पूर्व रेवाकांठा, दक्षिण-खेड़ा, पश्चिम-बड़ौधा और अहमदावाद । यहां ३१२५ वर्गमील स्थान है। ईडर राज्य-यह सन् ८०० से ९७० तक गहलोटों व १००० से १२०० तक परमार राजपूतोंके आधीन रहा। (१) ईडर नगर-यहां गढ़में कुछ गुफाओंके जैन मंदिर ४०० वर्षके प्राचीन हैं एक भूमिके नीचे संगमर्मरका व एक ऊपर श्री शांतिनाथका है। नोट-यहां पहाड़पर दिगम्बर और श्वेताम्बर जैनियोंके मंदिर दर्शनीय हैं । नगरमें दोनोंके कई मंदिर हैं । दि० मंदिरोंमें बहुत प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं तथा जैन शास्त्रभंडार बहुत प्राचीन हैं । यहां दि० जैन भट्टारकोंकी गद्दी है । (२) खंभातराज्य-इसका वर्णन खेड़ा जिलेमें लिखा गया है यह अहमदावादसे ५२ मील है । यहां प्राचीन ध्वंश इमारतें बहुत हैं जो खंभातकी सम्पत्तिको दिखलाते हैं । जुमा मसजिदमेंके स्तंभ जैन मंदिरोंसे लेकर लगाए गए हैं जो बहुत ही शोभा दिखाते हैं। (३) भिलोड़ा-यहां सफेद संगमर्मरका जैन मंदिर श्री चन्द्रप्रभुका है जो ३८ फुट ऊंचा व ७०४४५ फुट है। इसमें ४ खनका मानस्तंभ है जो ७५ फुट ऊंचा है.। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ej मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (४) पोसीमा सबली-यहां श्री पार्श्वनाथ और नेमिनाथमीके जैन मंदिर हैं जो सफेद पाषाणके २६ फुट ऊंचे व १५०x१४० फुट हैं। (१) तिम्बा-जिला गोदवाड़ा। श्री तारंगा पहाड़ । नोट-यह जैनियोंका माननीय सिद्धक्षेत्र हैं । दिगम्बर जैन शास्त्रोंमें इसका प्रमाण इस तरह दिया है। गाथावरदत्तो य वरंगो सायरदत्तो य तारवरणयरे । आहुट्ठय कोड़ीओ णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ ३ ॥ (प्राकत निर्वाणकांड ) दोहा वरदत्तराय रु इंद मुनिंद, सायरदत्त आदि गुणवृन्द । नगर तारवर मुनि उठ कोड़ि, वंदों भाव सहित करजोड़ि॥४॥ ( भाषा निर्वाणकांड भगवतीदास कृत सं० १७४१ में ) भावार्थ-इस ताइवर क्षेत्रपर वरदत्त राजा, इन्द्र मुनि व सागरदत्त आदि साढ़े तीन कोड़ मुनि मुक्ति पधारे हैं। ___यहां बहुतसे जैन मंदिर हैं । उनमें श्री अजितनाथ और संभवनाथके मंदिर ७०० वर्ष हुए राजा कुमारपालके समयमें रचे हुए कहे जाते हैं । ( फोर्वसकृत रासमाला ) यहां अखंडित खंडित बहुतस्त्री दि० जैन मूर्तियां यत्र तत्र हैं। बहुत जैन यात्री पूजाको भाते हैं। (६) कुम्भरिया-दांतासे उत्तर पूर्व १४ मील । अम्बानीसे दक्षिण पूर्व १ मील । यहां सफेद संगमर्मरका श्री नेमिमायनीका Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ orammam महीकांठा एज सी। [३६ जैन मंदिर सबसे बड़ा है। पहले यहां ३६० मंदिर थे अब केवल ५ हैं । बहुतसे ज्वालामुखी पर्वतकी अग्निसे नष्ट होगए । एकमें शिलालेख सन् १२४९ का है कि कुमारपालके मंत्री चाहड़के पुत्र ब्रह्मदेवने कुछ इमारत इसमें जोड़ी, दूसरा सन् १२०० का है कि सर्व मंडलिकोंके तख्त अर्बुदके राजा श्रीधर वर्षदेवने जिनपर सदा सूर्य चमकता है इस अरसन पूरमें एक कूप बनवाया। दूसरे भी लेख हैं। कुछ मंदिर विमलशाहके बनवाए हुए हैं । एक पाषाण पर लेख है । " श्री मुनिसुव्रत स्वामी बिम्बम् अश्वावबोध स मलिकाविहार तीर्थोद्धार सहितम् ।” कुम्भरियामें ५ मंदिर जैनोंके शेष हैं । इस नगरको चितौड़के राजा कुंभने बसाया था। शिल्पकारीके खंभे बहुत बड़े नेमिनाथके मंदिरजीमें हैं। एक खंभेपर लेख है कि इसे सन् १२५३में आमपालने बनवाया। इस बडे मंदिरमें आठ वेदियां हैं जिनमें श्री आदिनाथ और पार्श्वनाथकी मूर्तिये हैं बीचमें श्री नेमिनाथकी मूर्ति है जिसमें सन १६१८का लेख हैं। मंडपमें जैन मूर्तियां सन् ११३४ से १४६८ तककी हैं। (७) बड़ाली या अभीजरा पार्श्वनाथ-ईडरसे १० मील । दि. जैन मंदिर प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ चतुर्थकालकी पद्मा ० है । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४.j मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१२) पालनपुर एजंसी। इसकी चौहद्दी इस तरह है । उत्तरमें उदयपुर, सिरोही, पूर्वमें महीकांठा, दक्षिणमें बड़ौधा राज्य और काठियावाड़, पश्चिममें कच्छकी खाड़ी। यह अनहिलवाड़ाके राजपूतोंके आधीन सन् ७४६ से १२९८ तक रहा। (१) दीसा-बम्बईसे ३०० मील पालनपुर दीसा रेलवेपर, यहां दो जैन मंदिर हैं। (२) पालनपुरनगर- यहां नगरके बाहर दो भाग हैं एक जैनपुरा दूसरा ताजपुरा बीचमें एक खाई २२ फुट चौड़ी व १२ फुट गहरी है । यह बहुत पुरानी वस्ती है । ८ वीं सदीमें यह वह स्थान है जहां अनहिल वाड़ाके चावड़ वंश स्थापक वनराज (७४६-८०) पाला गया था । १३ वीं शदीके प्रारम्भमें यह चन्द्रावतीके पोनवार घरानेके प्रल्हाद देवकी राज्यधानी थी। इसका नाम था प्रह्लादपाटन, १४ वी शदीमें पालन्सी चौहानोंने ले लिया जिससे इसका वर्तमान नाम है। यहां भी जैन मंदिर है । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। ४१ (१३) काठियावाड़ राज्य (सौराष्ट्र देश) इसमें २३४४५ वर्ग मील स्थान है। इसके ४ भाग हैं-झालावाड़, हालार, सोराठ और गोहेलवार । कच्छ और खभातकी खाड़ीके मध्य देशको काठियावाड़ कहते हैं। इतिहास-यहां मौर्या, यूनानी, तथा क्षत्रपोंने क्रमसे राज्य किया है । पीछे कन्नौजके गुप्तोंने राज्य किया जिन्होंने अपने सेनापति नियत किये । अन्तके सेनापति स्वयं सौराष्ट्रके राजा हो गए जिन्होंने अपने गवर्नर वल्लभीनगरमें रक्खे । यह वल्लभी वर्तमानमें दबा हुआ नगर बाला है जो भावनगरसे उत्तर पश्चिम १८ मील है । जब गुप्तोंका प्रभाव गिरा तब वल्लभीके राजाओंने जिनके वंशको गुप्तोंके सेनापति भट्टारकने स्थापित किया था अपना अधिकार कच्छ तक बढ़ा लिया और मेर लोगोंको हरा दिया जिन्होंने काठियावाड़पर सन् ४७० से ५२० तक अधिकार जमा लिया था। रामा ध्रुवसेन द्वि० के राज्य (सन् ६३२ से ६४०)में चीनी यात्री हुइनसांगने वलपी (वल्लभी) और सुलचा (सौराष्ट्र )की मुलाकात की थी-७४६ से १२९८ तक राज्यस्थान अणहिलवाडा हो गया। इस मध्यमें कई राज्य उठे और जेठवा लोग सौराष्ट्र के पश्चिममें एक बलवान जाति हो गए । अनहिलवाड़ा १२९८में ले लिया गया । तव झाला लोग उत्तर काठियावाडमें बस गए । प्राचीन स्मारक-प्रसिद्ध अशोकके शिलालेखके सिवाय जूनागढ़में बौद्धोंकी पहाड़में खुदी गुफाएं व मंदिर हैं निनका Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૨ ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । वर्णन हुइनसांगने ७वीं शदी में किया है । तथा कुछ सुन्दर जैन मंदिर गिरनार और सेडुंजय पर्वतपर है। घूमलीमें जो पहले जेठवा लोगोंकी राज्यधानी थी बहुतसी खंडित प्राचीन इमारते हैं । (१) पालीताना राज्य - सेअप पर्वत - मालूम हुआ है कि सौराष्ट्र में गोहेल सरदारोंके वसनेके पहलेसे ही जैन लोग सेडुंजय पर पूजा करते थे । शाहजादे मुरादबक्शने सन् १६५० में एक लिखित पत्रसे पालीतानेका ज़िला शांतिदास जौहरी और उसके संतानोंको दिया था । शांतिदासकी कोठीसे मुरादबख्शको युद्धके लिये रुपया दिया गया था जब वह दाराशिकोह से आगरा में लड़ने गया था । मुगलराज्यके नष्ट होनेपर पालीताना गोलके सरदारोंके हाथमें आ गया जो गायकवाड़ के नीचे रहते थे । यह सर्व पहाड़ धार्मिक है यहां जैन श्रावक हरवर्ष यात्रा करते हैं। यहां श्री युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन ये तीन पांडव मोक्ष प्राप्त हुए हैं व आठ कोड़ मुनि भी । इसी लिये जैन लोग पूजते हैं । दि० जैन आगम में प्रमाण यह हैपांडुआ तिणि जणा दविडणरिंदाण अटुकोड़ीओ । सेतुंजय गिरि सिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ ६॥ ( प्राकृत निर्वाणकांड ) पांडव तीन द्रविड़ राजान । आठ कोड़ मुनि मुक्ति प्रमाण । श्री सेतुंजयगिरिके शीस । भावसहित वन्दों जगदीश ॥ ७ ॥ ( भगवतीदास कृत ) भाषा Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौरप्रदेश) "। [ ४३ यहां पर्वतपर वर्तमान में दिगम्बर जैनोंका खास एक बड़। मंदिर है जहां वे लोग पुनने जाते है उसमें मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान १६ वें तीर्थंकरकी पुरुषाकार पद्मासन मूर्ति बहुत मनोज्ञ सं० वि० सं० १६८६ की है प्रतिष्ठाकारक बादशाह जहांगीर के समय में अहमदाबाद निवासी रतनसी हैं - देखो - Epigraphica Indica Vol II PXP. 72 श्वेतांबर जैनोंके बहुतसे विशाल मंदिर हैं। यह पर्वत समुद्र तहसे १९७७ फुट ऊंचा है मुख्य दो चोटियां हैं फिर उनकी घाटी धनवान जैन व्यापारियोंने बना दी है । कुल ऊपरका भाग मंदि - रोंसे ढका हुआ है जिनमें मुख्य मंदिर श्री आदिनाथ, कुमारपाल विमलशाह, सम्प्रति राजा और चौमुखा के नामसे प्रसिद्ध हैं । यह चौमुखा मंदिर सबसे ऊंचा है जिसको २५ मीलकी दूरीसे देखा जासक्ता है । इस चौमुखा मंदिर के सम्बन्ध में जो खरतरवासी टोंक में है ऐसा कहा जाता है कि यह विक्रम राजाका बनाया हुआ है परंतु यह नहीं बताया गया कि यह संवत ५७ वर्ष पहले सन् ई० का है या ५ • सन् इ० में हुए हर्ष विक्रमका है या अन्य किसीका है । परंतु वर्तमान रूपसे ऐसा मालूम होता है कि यह करीब सन् १६१९ के फिरसे बना है । अहमदावादके सेवा सोमनीने सुलतान नुरुद्दीन जहांगीर, सवाई विजय राजा, शाहजादे सुलतान खुशरो और खुरमाके समय में सं० १६७५में वैशाख सुदी १३ को पूर्ण कराया । देवराज और उनके कुटुम्बने जिसमें मुख्य सोमजी और उनकी स्त्री राजलदेवी थी उन्होंने यह चौमुखा आदिनाथजीका मंदिर बनवाया है । देखो - Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । Burgess notes of visit W. S. Hill Bombay 1869. इस सेजय पर्वतकी चौहद्दी इस प्रकार है: पूर्वमें-घोघाके पास कच्छखाड़ी, भावनगर । उत्तरमे सिहोर और चमारड़ीकी चोटियां, उत्तर पश्चिम व पश्चिम मैदान जहांसे श्री गिरनारजी दिखता है । यहां सेत्रुञ्जय नामकी नदी भी है। (२) गिरनार या उज्जयंत-यह मुख्यतासे जैनियोंका पवित्र पहाड़ है, परन्तु बौद्ध और हिन्दू भी मानते हैं। यह जूनागढ़के पूर्व १० मील है । ३५०० फुट ऊंचा है । चूडासमास राजाका पुराना महल और किला अभीतक बना हुआ है । यहां तीन प्रसिद्ध कुंड हैं-गौमुखी, हनुमानघोरा, कमण्डलकुण्ड । पर्वतके नीचेसे थोड़ी दूर जाकर वामनस्थली है । यह प्राचीन कालमें राज्यधानी थी तथा बिलकुल नीचे बलिस्थान है जिसको अब बिलखा कहते हैं। पर्वतका प्राचीन नाम उज्जयंत है । पर्वतके नीचे एक चट्टान है जिसमें अशोकका शिलालेख ( संवतसे २५० वर्ष पहलेका ) है । दूसरा लेख सन् १६० का है जिससे प्रगट है कि स्थानीय राजा रुद्रदमनने दक्षिणके राजाको हराया था। तीसरा सन ४५५ का हैं जिसमें लिखा है कि सुदर्शन झीलका वांध टूट गया था तथा तूफानसे नष्ट हुए पुलको फिरसे बनाया गया । देखो Fergusson History of India's architecture 1876 P. 230-2 पर्वतपर सबसे बड़ा और सबसे पुराना मंदिर श्रीनेमिनाथका है जो लेखसे सन् १२७८का बना मालूम होता है । इस मंदिरके पीछे तेजपाल वस्तुपाल दो भाइयोंका निर्मापित मंदिर है। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश) । [ ४५ नोट- यहां जैनियोंके बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथजीने तप करके मोक्ष प्राप्त की है। श्री कृष्णके पुत्र प्रदुम्नकुमार संबुकुमार आदि ने भी । इसके सिवाय बहुत से और मुनियोंने । इसीलिये भारत के सब जैन लोग बडी भक्तिसे दर्शन पूजा करने आते हैं । दि० जैन शास्त्रोंमें इसका प्रमाण यह है : मिसामि पण्णो सम्बुकुमारो तहेव अणिरुद्धो । वाहत्तरि कोडीओ उज्जते सत्तसया सिद्धा ॥ ४ ॥ ( प्राकृत निर्वाणकांड ) श्री गिरनार शिषर विख्यात । कोड़ि वहत्तर अरु सौ सात । शंबुप्रद्युम्न कुमर दो भाग । अनुरुद्धादि नमो तमु पाय ॥ ( भगवतीदास कृत ) भाषा यहां गढ़ गिरनारपर ३६ लेख हैं जो सब प्रायः सं. १२८८ के वस्तुपाल तेजपाल मंत्रियोंके हैं । नेमिनाथजी मंदिर के द्वारके दक्षिण हातेके पश्चिम एक छोटे मंदिरकी भीतपर दि ० जैन लेख है । न० १२ लेखके पश्चिम शब्द हैं । " स० १५२२ श्री मूलसंघे श्रीहर्षकीर्ति, श्रीपद्मकीर्ति भुवनकीर्ति...." (२) जूनागढनगर - गिरनार और दातार पहाड़ीके नीचे प्राचीनता और ऐतिहासिक सम्बन्धमें भारतवर्ष में यह अपने समान दूसरे को नहीं रखता । अपरकोट में बढ़िया बौद्धोंकी गुफाएं हैं । तमाम खाई और उसके निकट गुफाओं व उनके ध्वंश भागोंसे व्याप्त है । इसमें सबसे बढ़िया खापराकोड़िया है जो पहले ३ खनका मठ था । देखो 1 __ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६] मुंबईप्रान्तक प्राचीन जैन स्मारक । Dr. Burgess antiquities of Cutch Kathiawar अपर कोटमें दो कूप हैं जिनके लिये प्रसिद्ध है कि प्राचीन कालमें चूड़ासम रानाओंकी दासी कन्याओंने बनवाए थे। "Cave temples of India by fergusson and Burgess 1880." नामकी पुस्तकमें जूनागढ़ गिरनारके सम्बन्धमें लेख है कि नगरकी पूर्व तरफ गुफाएं देखने योग्य हैं खासकर बाबा धाराके मठकी तरफ भीतोंमें । ये गुफाएं बहुत प्राचीन कालकी हैं। मैदानमें एक चौकोर पाषाणके स्तम्भका नीचेका भाग है उसके पास एक छुटा पत्थर मिला था जिसके एक कोनेपर राना क्षत्रपके लेखका एक भाग था यह लेख स्वामी जयदमनके पोते शायद रुद्रसिंहके समयका है जो रुद्रदमनका पुत्र था निसका लेख राजा अशोकके लेखकी चट्टानके पीछे है । इस लेखमें केवलज्ञानी शब्द है जिससे डाक्टर बुहलरका खयाल है कि यह जैन लेख है और यह बहुत संभव है कि ये सब राजकुमार जैन धर्मसे प्रेम रखते थे। (३) सोमनाथ - (देव पाटन, प्रभास पाटन, वेरावल पाटन या पाटन सोमनाथ) काठियावाडके दक्षिण तटपर जूनागढ़ स्टेटमें एक प्राचीन नगर है। दो नगरोंके मध्य आधी दूर जाकर समुद्रकी नोकपर एक बड़ा और प्रसिद्ध शिव मंदिर है । जो पाटनसे करीब १८ मील है । उस विरावल पाटनमें एक जैन मन्दिर जुमा मसनिदके पास बाजार में हैं निसको मुसल्मानोंने अपना घर बना लिया है । इसके गुम्बन और खंभे खुदे हुए हैं। इसकी Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। [४७ इमारतके नीचे १ भौंरा है जो ३५ फुटसे ४७॥ फुट है इसके ६ कमरे हैं । यह पाषाणका बना है । नोट-इसको अच्छी तरह नांचना चाहिये । (४) वधवान-यहां नगरके पूर्व नदी तटपर श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर ११ वीं शदीका है । इसका प्राचीन नाम श्री वईमानपुर है। (५) गोरखमढ़ी-उत्तरकी तरफसे जानेपर एक गुफाका मंदिर आता है जिसमें गोरखनाथ और मच्छेन्द्रनाथकी मूर्तियें हैं। यह गुफा ३० फुट लम्बी चौडी है शायद यह गिरनार पहाड़पर है। (६) वाबडियावाड-या सुजालबेट-यहां बहुतसी ध्वंश वावडिया हैं खण्डित मकानोंकी वस्तुओं व लेखोंसे प्रगट होता है कि यह एक ऐश्वर्यशाली नगर था । इस द्वीपके खेतोंमें ४ संगमर्मरकी मूर्तियां पड़ी हैं जिनपर नीचेके लेख हैं। . (१) सं० १३०० वर्षे वैशाख वदी ११ बुधे सहजिगपुर वास्तव्य पल्लीनातीय ठ० देदाभार्या कड़ देविकुक्षि संभूत परी० महीपाल महीचन्द्र तत्सुत रतनपाल विजयपालै निज पूर्वज ठ० शंकर भार्या लक्ष्मी कुक्षि संभूतस्य संघपति मुधिगदेवस्य निज परिवार सहितस्य योग्य देव कुलिका सहित श्री मल्लिनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठित श्री चन्द्र गच्छीय श्री हरिभद्र सूरिशिष्यैः श्री यशोभद्रसूरिभिः ॥ छा" मङ्गलं भवतु ॥ छः । (२) संवत १३१५ वर्ष फागुण वदी ७ शनौ अनुराधा नक्षत्रेऽयेह श्री मधुमत्यां श्री महावीर देव चैत्ये प्राग्वाट ज्ञातीय Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । श्रेष्ठ आसवदेवसुत श्री सपालसुत गंधिबी बीकेन आत्मनः श्रेयाथै श्री पार्श्वदेव विवकारितं, चन्द्रगच्छे श्री यशोभद्रसूरीभिः प्रतिष्ठितं । (३) स० १२७२ बर्षे ज्येष्ठ वदी २ खौ अद्येह टिवानके मेहरराज श्री रणसिंह प्रतिपत्तौ समस्त सन्धेन श्री महावीर बिम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्री चन्द्र गच्छीय श्री शांतिप्रभ सूरिशिष्यैः श्री हरिप्रभ सूरिभिः । (४) सं० १३४३ माघ सुदी १० गुरौ गुर्जर प्रार्वाट ज्ञातीय ठ० पेथड श्रेयसे तत्सुत पाल्हणेन श्री नेमिनाथ बिम्बकारितं प्रतिष्ठित श्री नेमिचन्द्र सूरि शिष्य श्री नयचन्द्र सूरिभिः । (७) वालू या बूला - सोनगढ़ से उत्तर १६ मील व भरमा - रसे पश्चिम उत्तर २२ मील। इसीका प्राचीन नाम वल्लभीपुर था (नोट जहां देवर्द्धिगण साधुने ९०० वीर सं ० के अनुमान श्वेतांबर आगमों की रचना की थी ) कुछ ध्वंश स्थान हैं। शिक्के व ताम्रपत्र मिलते हैं । (८) तेलुजाकी गुफाएं - काठियावाड़ के दक्षिण पूर्व सेखुंजय पहाड़ीके मुखपर तेलगिरि नामकी पहाड़ी है । यहां बौद्धोंकी ३६ गुफाएं हैं। वर्तमान में यहां दो नवीन जैन मंदिर हैं । (९) द्वारिकापुरी - पोरबंदर स्टेशन उतरकर समुद्रतटसे जहाज पर थोडी दूर चलकर द्वारिका आती है टिकट ) है । जहाजसे उतरकर द्वारिकापुरीके स्थान मिलते हैं । यहां एक दिगम्बर जैन मंदिर है भगवान नेमिनाथजीकी प्रतिमा व चरण चिन्ह बिराजमान हैं । यह श्री नेमिनाथ भगवानका जन्मस्थान प्रसिद्ध है । (देखो तीर्थयात्रादर्शक ब्र० गेबीलाल कृत ) Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कच्छ राज्य । ४६ (१४) कच्छ राज्य । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तर और उत्तर पश्चिम सिन्धु, पूर्व - पालनपुर, दक्षिण - काठियावाड़ व कच्छ खाड़ी, दक्षिण पश्चिम भारतीय समुद्र । इसमें ७६१६ वर्गमील स्थान है । इतिहास यह है कि प्राचीनकालमें यह मिमन्दरके राज्यका भाग था पीछे शकोंके हाथमें गया । फिर पार्थियनोंने कबजा किया । सन् १४० और ३९० के मध्य में यहां सौराष्ट्रके क्षत्रपोंने राज्य किया फिर मगधके गुप्त राजाओंमें शामिल होगया और वल्लभी राजाओंने राज्य किया। सातवीं शताब्दी में यह सिन्धका भाग होगया । - (१) भद्रेश्वर (भद्रावती) अन्जारसे दक्षिण १४ मील समुद्र तटपर यह एक प्राचीन नगरका स्थान है । बहुतसा मसाला पत्थर बनानेके लिये हटा लिया गया है । परन्तु अब भी यहां जैन मंदिर देखने योग्य है । १७ वीं शताब्दी में इस मंदिरको मुसल्मानोंने लूट लिया और बहुतसी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियोंको खंडित कर दिया । १२ वीं और १३ वीं शताब्दीमें यह मंदिर प्रसिद्ध यात्राका स्थान था । यह जगडूशाहका मंदिर कहलाता है । इसकी भीत और भोपर कुछ लेख है । देखो ( Arch report W. India Vol. II ). यह मंदरासे पूर्वोत्तर १२ मील है । Y Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (२) अंजार-भद्रेश्वरसे उत्तर पूर्व १६ मील-यह भी देखने योग्य है । यह अजमेरके राजकुमार अजयपालका स्थान है। (३) गेदी-रापूरके उत्तर पूर्व १६ मील-यह एक प्राचीन वैराट नगरी है। पुराने सिक्के मिलते हैं। श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर है जिसमें श्री आदीश्वरकी मूर्ति सं० १५३४ की है। (४) कंथकोट- अनारसे उत्तर पूर्व ३६ मील, दावसे दक्षिण पश्चिम १६ मील यहां १३ वीं शताब्दीका एक जैन मंदिर है-जो अब ध्वंश होगया है। इसमें सं० १३४० का लेख है । यह श्री महावीरखामीका सोलखंभा मंदिर कहलाता है। AS अy Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५१ अहमदनगर जिला। (२) मध्यविमाग। (१५) अहमदनगर जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है उत्तर पश्चिम और उत्तर नाशिक, उत्तर पूर्व-निजाम राज्य, पूर्व निजाम, दक्षिण पूर्व और दक्षिण पश्चिम-शोलापुर और पूना-इसमें ६५८६ वर्ग मील स्थान है । इतिहास-इस निलेका शासन सन् ५५०से ७५७ तक वादामी जि० (बीजापुर) के पश्चिमीय चालुक्योंके हाथमें था फिर ९७३ तक राष्ट्रकूटोंके हाथमें गया फिर ११५६ तक कल्याणीके पश्चिमीय चालुक्योंने राज्य किया फिर ११८७ तक कलचूरियोंने फिर सन् १३१८ तक देवगिरि यादवोंने शासन किया । पीछे मुस ल्मानोंका राज्य होगया । मुख्य जैन प्राचीन चिह्न । (१) पेड़गांव--श्री गोंडासे दक्षिण ८ मील एक ग्राम है । कर्जातसे उत्तर पश्चिम फिर पश्चिम २० मील तथा अहमदनगरसे दक्षिण ३२ मील है । यह प्राचीन स्थान है। यहां भैरवनाथका मंदिर है जो असलमें जैन मन्दिर था। (२) मिरी तालुका नेवासा-नेवासासे.पूर्व दक्षिण १८ मील यहां एक हेमादपंथी कूप ध्वंश अवस्थामें है । ग्रामसे दक्षिण पश्चिम थोड़ी दूर एक चट्टानमें एक कूआ वना है जो बहुत पुराना है यह जब पानीसे भरा नहीं होता है तब वहांका जागीरदार कहता है कि उसने एक शिलालेख देखा है पासमें जैनमूर्ति है। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२) मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (३) संगमनेर तालुका-यहां दो ताम्रपत्र मिले हैं जिसमें एक संस्कृतमें शाका ९२२ का है जिसमें यह लेख है कि सुमदासके यादवोंके महासामंत भिल्लोनाने एक दान दिया था। (Ep. Ind, vol 11 part XII P. 42.) (४) मेहेकरी-अहमद नगरसे पूर्व ६ मील एक ग्राम । यहां एक पहाड़ीके नीचे एक प्राचीन जैन मंदिर है। अहमदावाद गैजेटियर जिल्द १७ छपा १८८४ में पृष्ठ ९९ से १०३ में जैन शिम्पियोंका हाल इस तरह दिया है । “ इनकी संख्या ३४५१ है । ये दरजीका काम करते हैं। जाति शैतवाल है । ये माड़वाड़से आकर बसे मालूम होते हैं। इनका रक्त क्षत्रियोंका है । इनका कुटुम्ब देवता श्री पार्श्वनाथ हैं। ये लोग स्वच्छ रहते हैं, परिश्रमी हैं, नियमसे चलनेवाले है तथा अतिथि सत्कार करते हैं किन्तु कुछ मायाचारी भी हैं । ये सब दिगम्बर जैन हैं । इनका धार्मिक गुरु विशालकीर्ति है जिसकी गद्दी वारसीके पास लाटूरमें है । इनके जातीय बन्धन दृढ़ हैं। ये अपने झगड़े जातीय पंचायतमें तयकर डालते हैं।" (५) घोटान-अहमदनगरसे औरङ्गाबाद जाते हुए खास सड़पर शिवगांव और पैथानके मध्यमें एक महत्व पूर्ण स्थान है । यहां ४ मंदिर हैं उनमें १ जैन है अब इसको हिंदू कर लिया गया है। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खानदेश जिला। (१६) खानदेश जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है:-उत्तरमें-सतपुरा पर्वत और नर्मदा नदी, पूर्वमें बरार और नीमाड़, दक्षिणमें-सातमाल, चांदोर या अनंटा पहाड़िया, दक्षिण पश्चिम-नासिक जिला । पश्चिममें बड़ौधा और रीवाकांठामें सागवाड़ा राज्य । इसमें स्थान १०० ४ १ वर्गमील है। इसका इतिहास यह है कि यहां १५० सन् ई०से पूर्वका शिला लेख मिला है-यहां यह दंतकथा प्रसिद्ध है कि सन् ई० से बहुत समय पहले यहां राजपूतोंका वंश राज्य करता था जिनके बड़े अवधसे आए थे। फिर अंधोंने फिर पश्चिमी क्षत्रपोंने राज्य किया। ५वीं शताब्दीमें चालुक्यवंशोंने बल पकड़ा फिर स्थानीय राजा राज्य करने लगे यहां तक कि जब इधर अलाउद्दीन आया था तब असीरगढ़के चौहान राना राज्य करते थे । मुख्य प्राचीन जैन चिन्ह___ (१) नंदुरबार नगर व तालुका-तापती नदीपर यह बहुत ही प्राचीन स्थान है । कन्हेरीकी गुफाके तीसरी शताब्दीके शिलालेखमें इसका नाम नंदीगढ़ हैं । इसको नंद गौलीने स्थापित किया था यहां शायद कोई जैन चिन्ह मिले । (२) तुरनमाल-तालुका तलोदा । पश्चिम खानदेश सतपुरा पहाड़ियोंकी एक पहाड़ी । यहां एक समय मांडूके राजाओंकी राज्यधानी थी । यह पहाड़ी ३३०० से ४००० फुट ऊंची है १६ वर्गमील स्थान है । पहाड़ीपर झील है और बहुतसे मंदिरोंके अवशेष हैं । इनको लोग गोरखनाथ साधुके मंदिर कहते हैं। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहाड़ीकी दक्षिण ओर एक श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर है जहां अक्टूबरमें वार्षिक मेला होता है। धूलियासे उत्तर पश्चिम ६२ मील तलोदा है। (३) यावलनगर-पूर्व खानदेश । सावदासे दक्षिण १२ मील । यह स्थान पहले मोटा देशी कागज़ बनाने में प्रसिद्ध था । (४) भामेर-तालुका पीपलनेर । निजामपुरसे ४ मील । पहले एक बड़ा स्थान था । पहाड़ीके सामने निजामपुरकी तरफ बहुतसी गुफाएं हैं जिनमें जाना कठिन बताया जाता है। ( Ind. Ant. Vol II P. 128 & Vol IV. P. 339 ) यह भामेर धूलियासे उत्तर पश्चिम ३० मील है । यहां गांवके ऊपर पश्चिममें १ गुफा है वरामदा ७४ फुट है तीन द्वार हैं कमरा २४ से २० फुट है ४ चौखुण्टे खम्भे हैं भीतोपर श्री पार्श्वनाथ व अन्य जैन तीर्थङ्करोंको मूर्तियां अङ्कित हैं। गांवके बाहर दो पहाड़ियोंके पश्चिम एक साधुका स्थान है । ___ (५) निजामपुर-पीपलनेरसे उत्तर पूर्व १० मील--यहां बहुतसे ध्वंश स्थान हैं। एक पाषाणका जैन मन्दिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है जो ७५ से ५९ फुट है । यह १७ वीं शताब्दीमें सूरत और आगराके मध्यमें पहला बड़ा नगर था । (६) पाटन तथा पीतल खोरा--तालुका चालिसगांव । चालिस गांव रेलवे प्टेशनसे दक्षिण पश्चिम १२ मील, यह एक पुराना ध्वंश नगर है। यहां १॥ मीलपर पहाड़िया हैं । यहीं पीतल खोरा गुफाएं हैं। पश्चिमकी घाटियोंमें नागार्जुनकी कोठरी, सीताकी न्हानी और श्रीनगर चावड़ी नामकी गुफाए हैं। ध्वंश मंदिरों में एक जैन मन्दिर है। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खानदेश जिला । [ ५५ ब्राह्मण मंदिरके आगे १०० गजकी दूरीपर एक ध्वंश जैम मन्दिर है जिसके द्वारपर एक पद्मासन जिन मूर्ति है । भीतर 1 वेदी खाली है परन्तु नक्काशीका काम अच्छा है । नागार्जुन की कोठरी नामकी जो तीसरी गुफा है जो गांवके ऊपर ही है उसमें वरामदा है भीतर गुफा है यह जैनियोंकी खुदाई हुई है इसमें बहुतसी दिगम्बर जैन मूर्तियां हैं । नागार्जुन कोठरीका वरामदा १८ फुटसे ६ फुट है दो स्तंभ हैं । भीतरका कमरा २० फुटसे १६ फुट है । गुफाके बाहर इन्द्र इन्द्राणी वैसे ही स्थापित हैं जैसे एलूराकी गुफामें हैं । पीछे की दीवालमें कुछ ऊंची वेदीपर एक जैनतीर्थंकर की मूर्ति है जो एक कमलपर बिराजित है । आसनके पीछे दो हाथियोंके मस्तक अच्छे खुदे हुए हैं। आसनमें दो खड़गासन जैन मूर्तियां हैं, दो चमरेन्द्र हैं । विद्याधरादि बने हैं । प्रतिमाजीके ऊपर तीन छत्र शोभायमान है । इस प्रतिमाके थोड़े पीछे एक पद्मासन जैन मूर्ति २ फुट ऊंची है। दक्षिण भीतपर कुछ पीछे एक पूरी मनुष्यकी अवगाहनामें कायोत्सर्ग जैन मूर्ति है भामण्डल, छत्रादि सहित है । यह गुफा एलूराकी सबसे पीछेके कालकी गुफाके समान है शायद यह ९ मी या १० मी शताब्दीकी होगी । पाटन ग्राममें कई ध्वंश मंदिर हैं जिनमें १२ वीं ब १३ वीं शताब्दी के देवगढ़ के यादवोंके लेख हैं । (७) अजन्टा गुफाएं - फर्दापुरसे २ || मील दक्षिण पश्चिम तथा पांचोरा रेलवे स्टेशनसे ३४ मील। यहां दूसरी शताब्दी पूर्वसे ८ वीं शताब्दी तककी गुफाएं हैं नं० ८ से १२ तक पांच गुफाएं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। बहुत पुरानी हैं। अंधभृत्य या शतकर्णी राजाओंने दूसरी या पहली शताब्दी पहले सन ई० के बनवाई थीं । गुफा १० में सबसे प्राचीन लेख है । नासिकके लेखोंमें प्रसिद्ध वसिट्ठ पुत्रने दान किया था उसका वर्णन है । इन गुफाओंसे यह मालूम होता है कि ७०० सन् ई० तक लोग कैसे वस्त्राभूषण पहनते थे व कैसी चित्रकला थी । बौद्ध साधुओंके जीवन अधिक चित्रित हैं परन्तु ब्राह्मण और जन साधुओंको भी दिखाया गया है । गुफा १३ वीं में दिगम्बर जैन साधुओंका एक संघ चित्रित है जिनमें केश नहीं हैं न वस्त्र हैं साथमें कुछ ऐसे भी हैं जिनके केश तथा वस्त्र हैं। नं० ३३ की गुफामें भी दाहनी तरह दिगम्बर जैन मूर्तियें हैं। यहांकी गुफा नं० १ बहुत ही सुन्दर है finest तथा नं० २ बहुत ही बढ़िया मठ है richest monastry है।। (८) एरंडोल-प्राचीन नाम अरुणावती। यहां पांडववाड़ा है। महां ५२ दि. जैन मंदिर थे। यहांसे १ अखंडित जैन प्रतिमा लेख सहित नगरके मंदिरमें विराजित है तथा एक मूर्ति जंगलसे लाकर भी जैन मंदिर में हैं ( दि. जैन डायरेकटरी) Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मासिक जिला । (१७) नासिक जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तर और उत्तर पूर्व - खानदेश, दक्षिण - पूर्व-- निजाम राज्य, दक्षिण-- अहमदनगर, पश्चिम थाना, धरमपुर, सरगाना-इसमें १८५० वर्ग मील स्थान है । इसका इतिहास यह है कि सन ई० के पहले दूसरी शताब्दीसे दूसरी शताब्दी तक यह अधोंका राज्य था जो बौद्ध थे । उनकी राज्यधानी नासिकसे दक्षिण पूर्व ११० मीलपर पैथन थी । फिर चालुक्य, राठौर, चांदोर और देवगिरि यादवोंने सन् १९९५ तक राज्य किया--पश्चात् मुसल्मानोंने कबजा किया। इस जिलेमें प्रसिद्ध गुफाओंके मंदिर बौद्धोंके पांडुलेन। नामसे हैं तथा जैनियोंके गुफाओंके मंदिर चम्भार और अंकईकी गुफाओं में तथा इगतपुरीके पास त्रिंगलवाड़ी में हैं । सन् ८०८ में मार्कंडेय किला राष्ट्रकूट राजाओं का बास स्थान था । इस जिलेके जैन स्मारक । (१) अजनेरी ( अंजिनी ) नासिक नगरसे १४ मील और त्रिम्बकसे भी १४ मील है- यह एक पहाडी ४२९५ फुट ऊंची इसमें ३ वर्ग मील स्थान है । ऊपर की चट्टानमें तालाब और बंगलेके ऊपर एक छोटी जैनगुफा है जिसमें एक पद्मासन जैन मूर्ति है - १ छोटा द्वार है दोनों तरफ मूर्तियें हैं- भीतर १ लम्बा बरामदा मंदिररूप में है । नीचेकी चट्टानमें दूसरी छोटी जैन गुफा है जिसके द्वार पर ही श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति है । (नोट- भीतर और भी दि ० जैन मूर्तियां हैं) Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । यहां अब एक पुजारी दिगम्बर जैनोंकी तरफसे रहता है जो पूजा करता है । अंजनेरीके नीचे कुछ बढ़िया मंदिरोंके अवशेष हैं। जो सैकड़ों वर्षों के प्राचीन हैं। ऐसा कहाजाता है कि ये मंदिर ग्वालियरके राजा अर्थात् देवगिरी यादवोंके समयके हैं (सन् ११५० से १३०८) इनमें बहुत जानने योग्य जैनियोंके मंदिर हैं। इनमेंसे एक मंदिरमें जिसमें जैन मूर्ति भी है एक संस्कृतका लेख शाका १०६३ व सन् ११४० ई०का है जिसमें यह कथन है कि सेणचंद्र तीसरे यादवराजाके मंत्री बानीने इस चंद्रप्रभनीके मंदिरके लिये तीन दूकानें भेट की तथा एक धनी सेठ वत्सराज, वलाहड और दशरथने उसीके लिये एक घर और एक दूकान दी । शायद यह पहाड़ी इसीलिये अंजनेरी कहलाती हो कि श्री हनूमानकी माता अंजनाने यहां ही श्री हनूमानको जन्म दिया था । ___ (२) अकई (तंकई )-तालुका येवला यहां दो पहाड़िया साथ २ हैं । यह मनमाड़ प्टेशनसे दक्षिण ६ मील है । ३१८२ फुट उंचाई है यहां ७ कोट किलेके हैं इस जिलेमें सबसे मजबूत किला है। तंकईकी दक्षिण तरफ सात जैन गुफाए हैं जिनमें बढ़िया नक्कासी है । इन गुफाओंका वर्णन इस प्रकार है (१) गुफा २ खनकी खंभोंके नीचे द्वारपाल बने हैं। (२) गुफा २ खनकी-नीचेके खनमें बरामदा २६ से १२ फुट है दोनों ओर बड़े आकार एक तरफ इन्द्रहाथी पर है दूसरी ओर इन्द्राणी है इसके पीछे कमरा २५ फुट वर्ग है उसमें वेदीका कमरा है उसके द्वारपर हर तरफ १ छोटी जैन तीर्थकरकी मूर्ति है । घेदीका कमरा १३ फुट वर्ग है वहां एक मूर्तिका आसन Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला। है उपरके खनमें कमरा २० फुट वर्ग है ४ खंभे हैं । वेदीका कमरा ९से ६ फुट है भीतर एक मूर्तिका आसन है । (३) गुफा-आगेका कमरा २५ फुरसे ९ फुट है । यहां इन्द्र और इन्द्राणी बने हैं । वेदीका कमरा २१ फुटसे २५ फुट है। इसमें ४ स्तंभ हैं। पीछेकी भीतपर हरएक तरफ पुरुषाकार कायोत्सर्ग नग्न दिगम्बर जैन मूर्ति है। बाईं तरफ श्री शांतिनाथ भमवानकी मूर्ति है मृगका चिन्ह है निमके दोनों तरफ श्री पार्श्वनाथ खड़गासन हैं । श्री शांतिनाथजीसे इनका आकार तीसरे भाग है । शायद यह १२ वी व १३ वीं शताब्दीकी गुफा हो। (४) इस गुफाके बरामदेके सामने दो बड़े साफ चौखुन्टे खंभे हैं हरएक ३० फुट ऊंचे हैं। इसका कमरा १८ फुट से २४ फुट है । बाएं खंभेपर एक लेख है जो पढ़ा नहीं जाता । इसके अक्षर शायद १२ वी व १३ वीं शताब्दीके होंगे। ___ दूसरी दो गुफाओंमें जो मंदिर हैं उनमें जैन तीर्थंकरकी मूर्तियें हैं । ( यह दर्शनीय स्थान है)। (३) चांदोडनगर-ता० चांदोर नासिकसे उत्तर पूर्व ३० मील व लासलगांव स्टेशनसे उत्तर १४ मील। यह नगर १ पहाडीके नीचे हैं जो ४००० से ४५०० फुट ऊन्ची है । इस नगरका प्राचीन नाम चन्द्रादित्यपुर शायद होगा निसको चांदोरके यादव वंशके संस्थापक द्रीधपत्रारने वसाया था (सन् ८०१-१०७३ यादववंश) सन् १६३५ में इसको मुगलोंने ले लिया । पहाड़ी पर रेणुकादेवीका मंदिर और कुछ जैन गुफाए हैं। चांदोर फिलेकी Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । चट्टानमें जो जैन गुफा है उसमें भी जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां हैं उनमें मुख्य श्री चन्द्रप्रभ भगवानकी है । 1 (४) त्रिंगलवाडी - तालुका इगतपुरी-इगतपुरीसे ६ मील । बम्बई से इगतपुरी ८५ मील है । पहाडीके किलेपर त्रिंगलवाडी गांव है । पहाडीके नीचे १ जैन गुफा है जो पहले बहुत सुन्दर गुफा थी । इसमें बड़ा कमरा ३५ फुट वर्ग हैं भीतरका कमरा व वेदका कमरा भी है । द्वारके सामने बरामदे की छतके मध्य में ५ मनुष्योंके आकार गुलाईमें खुदे हुए हैं मध्यकी मूर्तिको हरएक दोनों तरफ मदद दिये हुए है जब कि दो और नीचेको मदद दे रहे हैं द्वारके ऊपर मध्य में जिनमूर्ति है । कमरे के भीतर छत्तके चार चौरंखूंटे खंभे हैं । द्वारके ऊपर एक जिन मूर्ति तथा चौखटके ऊपर तीन जिन मूर्तियें हैं । वेदीके कमरे में जो बहुत स्वच्छ 1 तथा १३ से १२ फुट है वेदीके ऊपर भीतके सहारे एक पुरुषाकार जैन मूर्ति है । छाती, मस्तक और छत्र गिर गए हैं। पग और आसन रह गए हैं। आसनके मध्य में वृषभका चिन्ह है जिससे प्रगट है कि यह श्रीरिषभदेवकी मूर्ति है । इसके दोनों ओर लेख है जिसमें संवत १२६६ है । गुफाके उत्तर कोने में भीत पर एक बहुत सुन्दर लेख था । अब उसका थोड़ासा भाग बच गया है । गुफाका अग्र भाग व द्वारके भाग पहले चित्रित थे जिसके चिन्ह अवशेष हैं । (५) नासिकनगर - बम्बईसे १०७ मील - यहां देखने योग्य स्थान हैं (१) दसहरा मैदान - शहरसे दक्षिण पूर्व || मील (२) पंचवटी के पूर्व १ मीलके अनुमान सपो Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला । [ ६१ वन जिसमें गुफाएं हैं व रामचंद्रजीका मंदिर है । (३) पश्चिमकी तरफ ६ मील गोवर्द्धन या गङ्गापुरकी प्राचीन वस्ती जहां बहुत सुन्दर पानीका झरना है । (४) जैन चंभार लेन गुफाएं (यही श्री गजपंथजी तीर्थ है) (५) पांडु लेना या बौद्धों की गुफाएं ये एक पहाड़ीमें हैं । बम्बईकी सड़कके निकट । इनको शिलालेखों में त्रिरक्ष कहा गया है । ये बौद्ध गुफाएं सन् ई० २५० वर्ष पूर्वसे ६०० 1 ई० तककी हैं । इनमें बहुत से शिलालेख अन्ध्रों, क्षत्रपों व दूसरे वंशों के हैं । पश्चिमी भारतमें ये लेख मुख्य हैं व इनसे प्राचीन इतिहासका पता चलता है । इन्हीं पांडु लेना गुफाओंमें नं० ११ की जो गुफा है उसमें नीलवर्णकी श्री रिषभदेवकी जैन मूर्ति बिराजित है । पद्मासन २ फुट ३ इन्च ऊंची है। मालूम होता है ११ वीं शताब्दी में दि० जैनोंका यहां प्रभुत्व या । ( नासिक गनेटियर नं ० सोलह सफा १८१) (नोट- भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईको इस गुफाकी रक्षा करनी चाहिये ) | इसी गजटियरके सफा ५३५ में है कि ११ वीं व १२ वीं शताब्दीमें नासिक जैनधर्म के महत्वसे व्याप्त था । इस नासिकका प्राचीन नाम पद्मनगर और जनस्थान या । यही वह स्थान है जहां सुवर्णनखा खरदूषणकी स्त्रीका मिलाप श्री रामचंद्रजीसे हुआ था । प्राचीन कालमें यहां श्री चन्द्रप्रभु भगवानका जैन मंदिर था जिसको अव कुन्तीविहार कहते हैं । (६) चंभार लेना या श्री गजपंथा तीर्थ-नासिकनगरसे ५ या ६ मील एक पहाड़ी है जो ६०० फुट ऊंची है ऊपर जाने को १७६ सीढ़िया बनी हैं। यहां प्राचीन जैन गुफाएं हैं अब भी Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दि. जैन लोग इसको सिद्धक्षेत्र मानकर पूजने जाते हैं । उनके शास्त्रोंका प्रमाण इस भांति है। संत्ते जे बलभद्दा नदुवणरिंदाण अट्ठकोडीओ । गजपंथे गिरिसिहरे णिव्वाण गयाणमोतेसिं ॥७॥ ___ (प्राकृत निर्वाणफंड) भाषा जे बलिभद्र मुक्तिको गए । आठ कोड़ि मुनि और हु भये । श्री गजपंथ शिषर सुविशाल। तिनके चरण नमो तिहुंकाल ॥ (निर्वाणकांड भगवतीदास) (७) सिमार-सिन्नार तालुका-नासिकसे दक्षिण २० मील। शहरसे एक मील पूर्व खेतोंमें एक छोटा हेमादपंथी मंदिर है जो कुछ ध्वंश होगया है इसके पूर्वीय द्वारके ठीक बाहर एक कुएंके पास दो पुरुषाकार ने नमूर्तिये हैं । (८) मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र-इसी मनमाड़ नासिक जिलेमें मनमाड (G. I. P.) प्टेशनसे करीब ५० मील यह सिद्धक्षेत्र हैं । दो पवर्त साथमें जुड़े हैं। दोनों पर्वतों पर पांच छः गुफाओंमें प्राचीन दि. जैन मूर्तियां हैं-पर्वतपर बलदेवजी कृष्णजीके भाईने तप किया था उनका स्थान है तथा कृष्णजीकी दाह क्रिया यहीं हुई है उसका भी स्थान है । यहांसे श्री रामचन्द्रजी, हनुमानजी, सुग्रीवनी, गवयनी, गवाक्षनी, नीलनी और महानीलजी तथा निनानवेकरोड़ अन्य साधु गत चतुर्थकालमें मुक्ति पधारे हैं। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला। गाथारामहणू सुग्गीओ गवय गवाक्खोय णील महणीलो । णवणवदी कीडीओ तुण्गीगिरि णिव्वुदेवंदे ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड) रामहनू सुग्रीव सुडील, गव गवाक्ष्य नील महानील । कोड निनानवे मुक्ति प्रमाण, तुण्गीगिरि वंदोधरिध्यान ॥ (निर्वाणकांड भाषा) पर्वतके नीचे दि० जैन मंदिर व धर्मशालाएं हैं । कार्तिक सुदी १५ को मेला होता है । मुनीम रहता है नासिक नगरका वर्णन आराधना कथा कोश ब्र० नेमिदत्तकृत नागदत्ताकी कथामें आया है (नं० ५१में) आभीराख्य महादेशे नाशक्य नगरेवरे । वणिक सागरदत्तो भून्नागदत्ता च तत्प्रिया ॥ जह Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NNNNN - ६४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१८) पूना जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है। उत्तरमें अहमदनगर, पूर्वमें अहमदनगर और शोलापुर । दक्षिणमें नीर नदी, पश्चिममें कोलावा। इसमें ५३४९ वर्ग मील स्थान है। इसका इतिहास यह है कि इतिहासके पूर्व समयमें यह दंडकवनका एक भाग था । बहुत प्राचीन समयमें यह व्यापारका मुख्य मार्ग था । बोरघाट और नाना घाटियोंपर होकर कोंकनको माल जाता था। इसके बहुत प्रमाण उन लेखोंमें हैं जो पहाड़में खुदे हुए भाजा, वेडसा, कारली और नानाकी घाटियोंमें हैं। (१) जुन्नार-पूनासे उत्तर पश्चिम ५६ मील । एक प्राचीन स्थान है । सन ई० के १०० वर्ष पहले अन्ध्रराजा राज्य करते थे। वेडसामें एक लेखसे मरहठोंका सबसे प्राचीन नाम मिलता है । यहां पश्चिमी चालुक्योंने ५५०से ७६० ई०तक, राष्ट्रकूटोंने ७६० से ९७३ तक फिर पश्चिमी चालुक्योंने ९७३ से ११८४ तक फिर देवगिरिके यादवोंने १३४० तक राज्य किया पीछे मुसल्मानोंने कबजा कर लिया । (२) वेडसा-ता० मावल, खंडाला स्टेशनसे दक्षिण पश्चिम ५ मील एक ग्राम है-यहां पहली शताबीकी गुफाएं हैं । सुपाई पहाडियां ३००० कुट ऊंची हैं मैदानके ऊपर दो खास गुफाएं है एक गुफामें द्वारके ऊपर यह लेख है " नासिकके आनन्द सेठीके पुत्र पुश्यन्कका दान” बड़ी कोठरीके उपर एक कूएंके पास दूसरा लेख है “महाभोजकी कन्या सामज्ञिकाका धार्मिक दान" यह सामज्ञिका अयदेवनककी स्त्री महादेवी महारथिनी थी। यह लेख इसलिये Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नासिक जिला । [ ६५ बहुत ही उपयोगी है कि इसमें सबसे पहले शब्द महारथ आया है । (३) भाजा - मावल ता० में एक ग्राम, खड़कालासे दक्षिण पश्चिम ७ मील | ग्रामके ऊपर ४०० फुट ऊंची पहाडी है इसकी पश्चिम ओर पहली शताब्दी पहलेकी १८ बौद्ध गुफाएं हैं । बारहवीं गुफा जो १९ से २९ फुट है प्रसिद्ध कारीगरी है । यहां कई लेख हैं । (४) बमारी - (भोजपुर) - हवेली तालुका । पूना शहरसे योद्धाओं की मूर्तियें खुदी उत्तर ८ मील | यहां बड़े २ पाषाणों में हैं - यह ८५० ई० से पुराना है । (५) ली - ता० मावल | पूनासे बम्बई सड़कपर एक ग्राम कारलीसे २|| मील और लोनौली प्टेशनसे ५ मील प्रसिद्ध गुफाएं हैं। एक बड़ा और पूर्ण चैत्य है यह बहुत पवित्र है । तथा महाराज भू या देवदत्त (सन् ई० से ७८ वर्ष पहले) द्वारा खोदा गया । ऐसा लेखसे प्रगट है । देखने योग्य है— (६) शिवनेर -- जुन्नार ता का पहाड़ी किला, पूना शहरसे उत्तर ५६ गी | यह स्थान पहली से तीसरी शताब्दी तक बौद्धोंका मुख्य स्थान रहा है । यहां ५० कोठरियां व मठ है । (७) बालचन्द्र गुफा - पुनामे उत्तर पश्चिम २५ मील बामचंद्र ग्र हर एक चट्टान में मंदिर है तथा दो मंदिरोंकी है । यह शायद जैन गुफा ही है । अब इसमें खुदाईका लिंग स्थापित : । नोट मिला पर चिन्ह मिल के वर्णनमें खास जैन स्मारकका नाम कहीं नहीं दिये हुए स्थायी खोज करनेसे शायद कोई Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www ६६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१९) सतारा ज़िला इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तर भोर और फलटन राज्य, और नीरा नदी, पूर्वमें शोलापुर, दक्षिण वारण नदी, कोल्हापुर और सांगली, पश्चिम पश्चिमीय घाट, कोलाबा और रत्नागिरी निला । यहां ४ ८२५ वर्ग मील स्थान है। इस ज़िलेका इतिहास यह है कि यहां सन् ई से १०० वर्ष पूर्वसे २०८ ई. तक शतवाहन राजाओंने राज्य किया फिर इनकी कोल्हापुर शाखाने चौथी शताब्दि तक फिर पश्चिमीय चालु क्योंने ५५० से ७५० तक फिर राष्ट्रकूटोंने ९७३ तक फिर पश्चिम चालुक्योंने और उनके नीचे कोल्हापुरके शिलाहारोंने ११९० तक फिर देवगिरीके यादवोंने १३०० तक पश्चात् मुसलमानोंने अधिकार किया। यहां करादके पास, तासगांवमें भोसा पर बाईके पाम, भाउ तालुकामें मालाउदीमें, कुंडल, पाटन, पटेश्वरमें बौद्ध और ब्राह्मण गुफाएं है। (१) करादनगर- सतारानगरसे दक्षिण पश्चिम ३१ मील और फराद रेलवे स्टे०से दक्षिण पश्चिम १ मील। दक्षिण पश्चिमसे करीब ३ मील यहां ९४ बौद्ध गुफाएं हैं। (२) बाई-महाबलेश्वरके पूर्व १५ मील और सताराशहरसे दक्षिण पश्चिम २० मील। यहां पास लोहारी ग्राममें कुछ वौड गुफाएं हैं। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतारा जिला। [६७ (३) धूमलवाड़ी-सतारारोड रेलवे स्टेशनके निकट-तालुका कोरेगांव यहां एक गुफा है। जिसमें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी मूर्ति २॥ फुट ऊंची है मस्तक खंडित है। गुफामें पानी भरा रहता है । पहाड़ीपर आधी दूर जाकर एक खुदाई है जिसको खंभटोंक कहते हैं । एक गुफाका मंदिर है। मट्टी और पानीसे भरी है। पहाड़ीपर पुराने किलेके ध्वंश हैं। इम्पीरियल गजटियर बम्बई प्रांत भाग १ (सन १९०९) सफा १३९ पर लिखा है। “ The Jains in Salara dist represent a survival of carly Jainism, which was once the religion of the rulers of the Kingdom of carnatec." ____ भावार्थ-सतारा जिलेके जैनो प्राचीन जैनधर्मके अस्तित्वको बताते हैं । जो कर्नाटकके राजाओंका धर्म था । (४) फलटन नगरमें एक २००० वर्षका प्राचीन पाषाण जिन मंदिर है, नग्न मूर्तियां अंकित हैं । अभी महादेव पधरा दिये --- गए हैं जिनको जगेश्वर महादेव कहते हैं। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (२०) शोलापुर जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तरमें अहमदनगर, पूर्वमें निजाम राज्य, अकलकोट राज्य, दक्षिणमें बीनापुर और मिरज, पश्चिममें औंधराज्य, सतारा, फलटन, पूना, अहमदनगर । यहां स्थान ४५४१ वर्गमील है। यहां सन् ई० से ९० वर्ष पहलेसे लेकर २३० ई. तक शतवाहन या अध्रवंशने राज्य किया। जिनकी राज्यधानी गोदावरीपर पैथनपर थी जो शोलापुर नगरसे उत्तर-पश्चिम १५० मील है । सुसल्मानोंके दखलके पहले यहां क्रमसे चालुक्य, राष्ट्र, पश्चिम चालुक्य व देवगिरि यादवोंने राज्य किया था। यादवोंके समयकी कारीगरी बावी, मोहाल, मालसिरस, नातेपुते, बेलापुर, पंढरपुर, पुलमेन, कुंडलगांव, कासेगांव तथा मारडेके हेमदपंथी मंदिरोंमें पाई जाती है । (१) बेलापुर-पंढरपुरसे २२ मील ग्रामके मध्यमें सारवाड़ा प्राचीन मंदिर चालुक्योंके ढंगका है । यह जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है । द्वारके ऊपर आलेमें एक जैनमूर्ति है। मंडपकी छतमें चार खुदे हुए स्तम्भ हैं। (२) दहीगांव-दिकसाल स्टे० से २२ मील । यहां श्री महावीरस्वामीके मंदिर हैं अनेक प्रतिमाएं है यहां महतीसागर ब्रह्मचारी होगए हैं उनका समाधिमरणका स्थान है । जैन लोग वार्षिक मेला भरते हैं। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - बेलगाम जिला। [६६ (३) दक्षिण भाग। (२१) बेलगाम जिला। इसकी चौहदी इस प्रकार है उत्तर-मीरज और जथका राज्य, उत्तर पुर्व बीजापुर, पूर्वजमखंडी, मुधल, कोल्हापुर और रामदुर्ग राज्य, दक्षिण व दक्षिण पश्चिम-धाड़वाड़ और उत्तरकनड़ा, कोल्हापुर और गोआ, पश्चिम सावंतवाड़ी और कोल्हापुर राज्य ॥ इसमें ४६४९ वर्गमील स्थान है । इस निलेमें रिना, घटप्रभा और मलप्रभा मुख्य नदिये हैं । इतिहास-यहां सबसे प्राचीन स्थान हालसी है । जो नौ कादम्ब राजाओंकी राज्यधानी है। ७ ताम्रपत्र मिले हैं। प्राचीन चालुक्योंने ५५०से ६१० तक, फिर पश्चिमी चालुक्योंने ७६० तक, फिर १२५० तक राष्ट्रकूटोंने ज़िनकी शक्ति राट्ट महामंडलेश्वरोंमें जीवित रही जिन्होंने सन् ८७५ से १२५० तक राज्य किया । इनकी राज्यधानी पहले सौन्दत्ती थी तथा सन् १२१०में वेणुग्राम या बेलगाम हो गई। १२वीं और १३वीं शताब्दीके प्रारम्भमें गोआके कादम्ब रानाओंने सन् ९८० से १२५० तक हालसी ज़िलेके भाग और वेणुग्राम पर राज्य किया। तीसरे होसाल राजा विष्णुवर्द्धन या विट्टिदेवने (सन् ११०४-४१) हालसीके Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । १ भागको युद्धकी लूटमें लेलिया । राट्ट राजाओंने गोआको सन् १२०८ में अधिकारमें लिया। राहोंका अंतिम राजा लक्ष्मीदास हि हुआ जिसको देवगिरि यादव सिंघन द्वि०के मंत्री और सेनापति वाचनने परास्त किया फिर १३२०में दिहलीके मुसल्मान बादशाहोंने अधिकार किया। जैन मंदिरों का महत्त्व-जो यहां जखनाचा के नामसे मंदिर इधरउधर छितरे हुए पाए जाते हैं वे वास्तवमें चालुक्य राजाओंके हैं । उनमेंसे एक बहुत ही सुन्दर देगानवेमें हैं। कोन्नूरमें इतिहासके पहलेके समाधिस्थान हैं। बहुतसे मंदिर ११, १२ व १३ शताब्दीके जो इस जिलेमें फैले पड़े हैं वे असलमें जैन लोगोंके थे किन्तु उनको लिंग या शिव मंदिरोंमें बदल दिया गया है। उन जैन मंदिरोंमें जो बहुत प्रसिद्ध हैं वे नीचे स्थानोंपर हैं। (१) बेलगामका किला (२) संपगाव ता० के देगानवे, पाक्कुंड, नेसार्गी (३) पारसगढ़ ता० केहुली, मनोली, येळम्मा (४) चीकोड़ी ता० शंखेश्वर (५) अथनी ता० के रामतीर्थ और नांदगांव। जैनौका महत्व यहां बहुत जैन किसान और मजदूर हैं । जिससे यह विदित होता है कि प्राचीन कालमें इस बम्बई कर्णाटकमें जैन धर्मकी बहुत श्रेष्ठता थी Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [७१ mmm mmm (There are numurous cultivators and labourers indicating the former supremacy of the Jain religion in Bombay Carnatic) बेलगाम गनटियर निल्द २१ (सन् १८८४) से जो विशेष इतिहास प्रगट हुआ है वह इस तरह पर है । इस बेलगाम जिलेमें सबसे प्राचीन स्थान पालासिगे, हालासिगे या हालसी पर है जो खानापुरसे दक्षिण पूर्व १० मील व बेलगामसे दक्षिण २३ मील है । हालसीसे करीब ३ मील पर जो ७ ताम्रपत्र मिले हैं उनसे विदित होता है कि ५वीं शताब्दिके करीब यह नौकादम्ब राजाओंकी राज्यधानी था । प्रायः ये सबही प्राचीन कादम्बोंके ताम्रपत्र प्रारंभ और अंतमें जैन मंगलाचरणको प्रगट करते हैं और सिवाय एक ताम्रपत्रके जो एक साधारण मनुष्यको भूमिदानके सम्बन्धमें है शेष सब ताम्रपत्र जैन धर्मकी वृद्धिके लिये भूमि या ग्रामोंके दानके सम्बन्धमें हैं । पांच ताम्रपत्रोंमें पालासिग या हालसींका नाम है । एक बताता है कि हालसोमें जैम मंदिर बनाया गया । बेलगाममें जिन राहोंने राज्य किया था (सन् ८५० से १२५० तक) वे अपना सम्बन्ध राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वि० (सन् ८७५ से ९११)से बताते हैं । ये राट्टराजा जन धर्मके माननेवाले थे। इनकी उपाधि थी। लाहनूर पुरवर आधोश्वर अर्थात् लाडनूरके राना जो सब नगरोंमें प्रधान नगर था। राह वंशका कुलवृक्ष इस प्रकार है Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२] mm मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ! मेराड पृथ्वीवर्मा : शाका ७६७ या ६० ८०० ) पिटुग स्त्री नीजीदवे शांति या शांतिवर्मा 'शाका १०२ या ई. ६८० स्त्री चांदो कव्वे नन्न कार्तविद्या प्रशम या कत्त : दबारी या दायुम कन्नर प्रथम या कल प्रा अ- To ६७० शेन प्रथम या कालसेन प्र० सी मैललदेवी कनकर द्वि० शा० कार्तवीर्य हि या फन द्वि० प्रा० १०६० १००४ या ८ | या १०० स्त्रो मागलदेवी शेन द्वि० या कालसेन द्वि० रुता लक्षमी । देवो शा० ०५० कत्तम तृ० या कार्तवीर्य्य तृ० ( स्त्री पद्मलदेवी शा० १०८६) लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्रथम शा० ११३० या सन १२०८) __स्त्रो चलादेवी कार्तवीर्य चतुर्थ (शा० ११२४से ४१ मल्लिकार्जुन । स्त्री एचलादेवी (शा० ११२३ से ११३० लक्ष्मीदेव द्वि० (शा० ११५० या . सन् १२०१ या १२०८) सन् १२२८ ) Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [७३ नोट-मेराड या उसके पुत्र पृथ्वीवर्मा असलमें पवित्र मैलापतीथकी जैनकारेय जातिके आचार्य या गुरु थे (नोट मेलापतीर्थ कहां यह कारेय जाति कहां है, पता लगाना चाहिये)। राष्ट्रकूष्ट राजा कृष्ण द्वि० ने पृथ्वीवर्माको महासामन्त या महामंडलेश्वरकी उपाधि दी थी । सौन्दत्तीमें जो शिलालेख सन ९८० (शाका ९०२) का पाया गया है वह लिखता है कि राना शांतिवर्माने सौन्दत्तीमें एक जैन मंदिर के लिये भूमि प्रदान की थी। और उसीमें यह भी लेख है हरएक तेलकी चक्की चलानेवाला दीपावलीके उत्सवके लिये एक सेर तेल देगा । लक्ष्मीदेव प्रथमकी रानी चन्दलादेवी या चंद्रिकादेवी थी इसके नामको प्रगट करनेवाला एक शिलालेख सम्पगांवसे उत्तर पश्चिम ६ मील हनिकेरी पर है-यह लेख कहता है कि राहोंने अपनी राज्यधानी सौन्दत्तीसे वेणुग्राम या बेलगाममें बदली। मुख्य स्धान । (१) बेलगामशहर व किला-यहांका किला १०० एकड़ करीब भूमिमें है । इस किलेपर जब इंग्रेजोंने अधिकार किया तब वहां १० जैन कुटुम्ब रहते थे । इस किले में अब तीन जैन मंदिर हैं जो करीब १२०० सनके हैं नोट- इनमें से एक बहुत बढ़िया कारीगरीका है इसका हमने ता० २५ मई १९२३ को दर्शन किया है। छतोंपर कमलोंके आकार व खंभोंमें बेलें बहुत अपूर्व हैं । इस मंदिरको कमलवस्ती कहते हैं । चौकमें ७२ जिन प्रतिमाएं छतके वहां हैं उनमें २४ पद्मासन २४ मंदिरोंके आकारोंमें हैं-यह चौंक १४ खम्भों क Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इन खंभोंमें पालिश बहुत चमकदार है-द्वार पर देवताओंके चित्र बीचमें पनासनज नमूर्ति है। भीतर भी वेदीके बाहर कमल, भीतर कमल, वेदीके पीछे दो हाथी ऊपर दो सिंह २४ चिन्हव यहां बहुतसे कमल हैं-एकएकके भीतर कई कमल हैं । यहांकी पत्थरकी कारीगरी आबूनीके जिन मंदिरोंकी कारीगरीसे मिलती है। यहां जो मूलनायक श्री नेमिनाथजीकी बड़ी मूर्ति थी वह बेलगाम शहरकी बड़ी वस्तीमें विरानित है । वर्ण कृष्ण है-यह मंदिर देखने योग्य है-दूसरी चतुर्भुज वस्ती है । इन तीन मंदिरोंके सिवाय इस किलेमें और भी मंदिर थे क्योंकि किलेके बाहर और भीतर जो अब घर हैं उनमें द्वारके खंभे जो लगे हैं वे जनमदिरोंके लगे हैं । सन १८८४ में दो बहुत ही सुन्दर नक्काशीके पत्थर एक बागमें खोदनेपर निकले थे-इसी शताब्दीमें दो राट्ट राजाओंके शिलालेख किलेके मंदिरोंसे पाए गए हैं वे बम्बई रापल एसियाटिक सोसायटीको दे दिये गए हैं। यह प्राचीन कनड़ी भाषामें हैं । इनमेंसे एकमें राष्ट्रकूट या राट्ट वंशीय महाराज शेनवि०का नाम है-वंशावली कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक गई है जो करीव ११९९ से १२१८ तक यहां राज्य करते थे। तब एक वीचा राजाका और उसके पुत्रोंका वर्णन है । फिर वह लेख कहता है कि सन् १२०५ या शाका ११२७ में पौषसुदी २ के दिन जब राज्यधानी वेणुग्राममें कार्तिवर्मा और मल्लिकार्जुन राज्य कर रहे थे तब श्रीयुत शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें राजा वीचाके बनाए गए राहोंके जैन मंदिरके लिये भूमि दान किये गये थे-जो भूमि दी गई थी वे करवल्ली जिलेमें Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [७९ मम्बरवानी ग्राममें हैं। दूसरा शिलालेख उन्हीं ऐतिहासिक वातोंको प्रगट करता हुआ इसी मंदिरके लिये उसी दिन उन्हीं शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें दूसरी भूमियोंके दानको कहता है जो बेलगाममें थीं इसमें कार्तवीर्यकी स्त्रीका नाम पद्मावती है । इस किलेके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि इसको जैन राजाने बनवाया था। (नोट-बेलगामके जैनियोंसे मालूम हुआ कि एक दफे कोई जैन मुनिसंघ वेणुग्राममें आया था-तब खबर पाकर राजा और पञ्चलोग रात्रिको ही मशालें जलाकर दर्शन करनेके लिये गए । मुनि सब ध्यानस्थ मौन थे पीछे लौटते हुए अन्तमें जो मशालवाला था उसकी मशालकी लौ किसी वांससे लग गई। इस बातपर किसीने ध्यान न दिया सब चले आए वह आग बढ़ती हुई फैल गई और जिन वासोंके मध्यमें मुनि गण ध्यान कर रहे थे वहां तक फैल गई और उसने ध्यानस्थ मुनियोंके शरीरोंको दग्ध कर दिया । मुनियोंने ध्यान नहीं छोड़ा । दूसरे दिन जब यह खबर प्रगट हुई तो महान शोक व दुःख हुआ । इस प्रमादके दोषके मिटानेके लिये राना और पंचोंने यह प्रायश्चित लिया कि १०८ जैन मंदिर बनवाए जावें । कहते हैं इस किलेमें १०८निन मंदिर छोटे या बड़े बनवाए गए थे। बेलगाममें अब भी बहुत ज़ैनी हैं व कई जैन मंदिर हैं। इस किलेकी कमलवस्तीमें एक प्रतिमा विराजित है जिसकी सेवा पूना श्रीयुत देवेन्द्र लोकप्पा चौगुले लकड़ीके व्यापारी बेलगाम फोर्ट करते हैं। (Indian antiquary V. IV P. 34) में बेलगाम शहरके सम्बंधमें लिखा है कि प्राचीन बेलगामको जैन राजाने बसाया था। जैनकवि परसिज भवनंदन बेलगाम Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । निवासीने पुरानी कनड़ीमें एक यहांके राजाओंका इतिहास लिखा है उससे मालूम हुआ कि शाहपुर और बेलगामको जीर्ण शीतपुर कहते थे। यहां सामंतपट्टन नगरके अधिपति जैनीराजा कुन्तमराय रहते थे जो बडे धर्मात्मा तथा दयावान थे । इनके राज्यमें सब लोग प्रसन्न थे । एक दिन एकसौ आठ १०८ जैन साधु अनगोतू (जो हृखगिरिका प्राचीन नाम था)के वनमें दक्षिणसे आए और रात्रिको ध्यानस्थ बैठे । राजा कुन्तमराय अपनी रानी गुणवतीके साथ रात्रिको ही बंदनाके लिए गए । मसालोंकी लपकोंसे वनमें अग्नि लग गई वे साधु ध्यानसे न उठे अग्निमें ही दग्ध होगए । इसलिये राजाने यह दड लिया कि १०८ जैन मंदिर बनवाऊंगा । जहां किलेमें अब कुछ जैन मंदिर पाएजाते हैं वही उसने १०८ मंदिर बनवाए। उसकी स्त्री गर्भस्था थी उसने बेलगामका नाम वंसपुर रक्खा । कुछ काल पीछे वेलगाममें सावंतबडीका राजा कुन्तमका पुत्र शांत बहुत प्रसिद्ध हुआ। यह जैनधर्मका पंडित था, बहुत वीर तथा जैन साधुओंका रक्षक था । इसने जैन मंदिरोंमें बहुत धन लगाया । इसकी चौदह स्त्रिये थीं उनमें मुख्य पद्मावती थी जो बहुत प्रसिद्ध थी इसके पुत्रका नाम अनन्तवीर्य था। शांत एक दफे यातूरके पास सुदर्शन नदीमें स्नान करनेको गया वहां बिजली गिरनेसे मरणको प्राप्त हुआ। तब मंत्रियोंने अनंतवोर्थको राजा स्थापित किया। कुछ काल पीछे इसी वंशमें राना मल्लिकार्जुन हुआ। इसीके समयमें प्रसिद्ध मुसल्मान असदखाने कपटसे वेलगामका राज्य ले लिया और १० ८ मंदिरोंको ध्वंश करके किला बनाया । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [७७ (२) हालसी-(हलसिगे) ग्राम, ता. खानापुर, खानापुरसे दक्षिण पूर्व १०मील । हालसी एक बहुत प्राचीन स्थान पर है जो पूर्व समयके कादम्बों (सन ई० ५००) का मुख्यस्थान था तथा गोआके कुटुम्बोंका छोटा राज्यस्थान था जिन्होंने ९८०से १२५२ तक राज्य किया। यहांके सब ताम्रपत्र कादम्ब राजाओंके प्राचीन वंशको प्रगट करते हैं जो जैनी थे व निनकी राज्यधानी बनवासी और हालसीमें थी। यहां सन् १८६० में ६ ताम्रपत्र एक टीलेमें मिले थे जो चक्रतीर्थके कूएके पास हैं जो हालसीसे उत्तर ३ मील नांदगढ़की सड़कपर है। ये सब ५वीं शताब्दीके हैं और सब जैन कादम्ब राजाओंकी वंशावलीको प्रगट करते हैं । (३) होंगल (वेल होंगल) ग्राम ता० साम्पगांव-यहांसे पूर्व ६ मील ग्रामके उत्तर १ प्राचीन जैन मन्दिर है जिसको अब लिंग मंदिर बदल लिया गया । इसमें १२ वीं शताब्दीके दो लेख हैं । इनमेंसे एक लेखमें ता० ११६४ है । राज्य, राट्ट सर्दार कार्तवीर्य (११४३-११६४)-इसमें १ जैन मंदिरके बनने व उसको भूमि देनेका वर्णन है । इस शिला लेखके ऊपर मध्यमें पद्मासन श्री जिनेन्द्रकी मूर्ति है। उसकी दाहनी तरफ एक खडगासन मूर्ति है ऊपर चन्द्रमा है और वाई तरफ १ गाय और बछड़ा है ऊपर सूर्य है। ( Indian antiquary IV 115 Fleets Kanarese dynasties 82.) हागलके शिला लेखमेंसे Ind. Ant. x P. 249. से बनवासीके कादम्ब वंशकी वंशावली वंशस्थापक मयूरभंजसे दी जाती है। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं०१ मयूरभंज प्रथम ७८] २ कृष्णवर्मा ३ नागवर्माप्र० ४ विष्णुवर्मा ५ मृगवर्मा ६ सत्यवर्मा मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ७ विजयवर्मा ८ जयवर्मा प्र० ६ नागवर्मा द्वि० १० शांतवर्मा प्र० ११ कीर्तिवर्मा प्र० Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ आदित्यवर्मा १३ चट्टप, या चट्टया या चाट्ठग १४ जयवर्मा वि० या जयसिंह चौकी विक्रम मावली तैल या तैलप प्र० कीर्तिवर्मा द्वि० या कोर्तिदेव तैलनसिंह शा० ६EO-REE शांतिवर्मा द्वि० या शांत, शांतप । शा० १.१० तैल द्वि० शा० १०२१-२०७२ . जाकी विक्रमांक तैलम बेलगाम जिला। कोर्तिदेव द्वि० कामदेव या तौलमन अंकका शो० ११०३-१९९८ 30] Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१) हुली-ग्राम ता. पारसगढ़ । सौन्दत्तीसे पूर्व ५ मील । यहां खास देखने योग्य एक सुन्दर किन्तु ध्वंश मंदिर पंचलिंगदेवका है। यह असलमें जैन मंदिर था भीतर एक लिंगायत मूर्ति नागमूर्ति व गणपति विराजित है । जो शायद दूसरे मंदिरोंसे लाकर बिराजित किये गए हैं । यहां तीन शिला लेख हैं दो पश्चिमी चालुक्य राज्य विक्रमादित्य हि० (१० १८--४८) और सोमेश्वर (१०६९--७५) को बताते हैं व तीसरा कालाचूरी बजाल (सन् ११५५-११७७) को बताता है । (५) कोनूर-(कोंड नृरु शिलालेखमें) ग्राम ता० गोकाक । घटप्रभा नदीपर गोकाकसे उत्तर पूर्व ५ मील दक्षिणकी तरफ कुछ .. रेतीली पहाड़ियोंके नीचे ऐसी ही कोठरियां हैं जिसमें पाषाणकी दीवालें व छतें हैं ऐसी कोठरियां दक्षिण है। दराबाद तथा दक्षिणी भारतके अन्य स्थानोंमें पाई जाती हैं । इंग्लैंडमें प्राचीन पाषाणके कमरोंसे इनकी सदृशता होती है इससे ये देखने योग्य हैं । ये सब ५० से अधिक एक समुदायमें हैं । लोग इनको पांडवोंके पर कहते हैं । ये बहुत ही प्राचीन हैं । (नोट-ये सव जैन साधुओंके ध्यानके स्थान हैं ) ग्रामके जैन मंदिर में राट्ट राजाका लेख शाका १००९ का है। इस शिलालेखका भाव यह है इस लेखमें चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल या विक्रमादित्य द्वि० और उसके पुत्र जयकर्णका वर्णन है। जयकर्णके सिवाय इस लेखमें चामुण्ड दंडाधिप या सेनापतिका भी वर्णन है जो कुन्डी देशका शासन करता था और मण्डलेश्वर राना सेनका भी वर्णन है Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला । [ ८१ जो राहोंका राजा था । इसमें बलात्कारगणके वंशधरोंका वर्णन है नो कोंडनूरु और हिलेरुमें राजासेन के नीचे ग्राम के अधिपति थे । पहला दान सरिगंक वंशके निप्पियम गामण्डने उस जैन मंदिरको किया जो कोंडनुरुमें शाका १००९ में बनवाया गया था । उसी बडे चालुक्य राजा कोन्नने भी इसी मंदिरको दान किया यह राजा यहां पूजा करने आया था तथा एक दान शाका १०४३ में विक्रके प्रिय पुत्र जयकर्ण ने अपने पिताके राज्य में किया तथा निप्पियम गामण्डने कुण्डी में एक घर व १५० कम्माभूमि दी । गोकाक फाल जहां नदीका पानी गिरता हैं वहां जो मंदिर हैं वे मूलमें जैनमंदिर थे ! The temples near fall were originally Jain temples. तथा जो यहां गुफाएं हैं वे जैन साधुओंकी तपस्या के लिये हैं । यह कोनूर प्राचीनकालमें जैनियोंका महत्व स्थान था । अभी भी ग्रामका आधिपत्य लिंगायत वंशके साथ २ जैन वंशको है । (६) नान्दीगढ़ - ता० बीड़ी, बेलगामसे दक्षिण २० मील है । यहां एक प्राचीन नमूनेदार जैनम दिर जंगलमें है जहां अच्छी कारीगरी हैं । (७) नेगीं ता० सपगांव- सांपगांव से उत्तर ७ मील यहां एक वासवका शिव मंदिर है उसमें राह राजा कार्तवीर्यके समयका शिलालेख शाका ११४१ का है । (८) बु ता० सांपगाम - यहांसे दक्षिण पूर्व १० मील । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । यहां एक बहुत बड़ा सुन्दर प्राचीन जैन मंदिर मुक्तेश्वरका है जिसमें विशाल प्रदक्षिणा व बढ़िया खुदाव व शोभा है । (९) देगुलवल्ली-देगांवसे उत्तर पश्चिम १ मील व कित्तूरसे दक्षिण पश्चिम ३ मील । एक प्राचीन ईश्वरका मंदिर है जो मूलमें जैनियोंका था । ध्वंश होगया है । यहां १५ वीं शताब्दीका कनड़ी शिलालेख है। (१०) कडरोली-मलप्रभा नदीपर सांपगांवसे दक्षिण ६ मील । यहां पश्चिमी चालुक्य सोमेश्वर हि० का शिलालेख शाका ९९७ ( Ind. Ant, Vol. I P. 141 ) का है। (१) हन्निरो-सांपगावसे उत्तर पश्चिम ४ मील यहां एक प्राचीन स्वच्छ जैन मंदिर है जिसको अब शिवालय या ब्रह्मदेव मंदिर कहते हैं। (१२) कलहोले-घट प्रभा नदीपर । गोकाकसे करीब ७ मील । यहां एक प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें शिलालेख हैं । अब इसको लिंगायत मंदिर कर लिया गया है। शिलालेख राट्ट राजाओंका और कार्तवीय चतुर्थ और मल्लिकार्जुन दोनों भाइयोंका है (११९९--१२१८) जिनकी राज्यधानी बेलगाम थी। इसमें लेख है कि शाका ११२७ पौष सुदी २ शनिवारको १६वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवानका (जैन) मंदिर जो कलहोलीमें है उसीलिये कुछ भूमि व कुछ नगद दान राना कार्तवीर्य चतु० ने पुनारीको किया। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [ ८३ कलहोलेके शिलालेखमें यादव राजाओंकी वंशावली दी है रब्बा स्त्री होला देवी ब्रह्मा स्त्री चन्दलादेवो राजा प्रथम स्त्री मैललदेवी चंदलादेवी सिंह या सिंगिदेव स्त्री भागलदेवी . या चंद्रिकादेवी राजा द्वि० स्त्री चंदलदेवी और लक्ष्मीदेवी। नोट-राजा प्रथमकी कन्या चंद्रिकादेवी राट्ट राजा लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्रथमको विवाही गई थी। यही कार्तवीर्य चतुर्थ तथा मल्लिकार्जुनकी माता थी । निस मंदिरको दान किया गया उसको राजाद्वि० ने बनवाया था। मंदिरके गुरु श्री मूलसंघ कुन्दकुन्द आचार्यकी शाखा हणसांगी वंशके थे । इस हणसांगी वंशके तीन गुरु मलधारी हुए हैं जिनके एक शिष्य सैद्धांतिक नेमिचन्द्र थे । श्री नेमिचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्र थे। शुभचन्द्र चन्द्रके समान पवित्र थे। इन्हींने दिगम्बर धर्मकी बहुत उन्नति की थी। शुभचंद्रके शिष्य श्री ललितकीर्ति थे। (१३) मनोली-सौंदत्तीसे उत्तर ६ मील । यह मलप्रभा नदीपर १ बड़ा नगर है। नगरके पश्चिम मंदिर हैं । दोसे छोटा तीन गुम्बनका एक जैन मदिर है निसमें रंगावेज़ी अच्छी है । (१४) सौन्दत्ती-ता० पारशगढ़। बेलगामसे ४ ० मील पूर्व । यहां एक प्राचीन जैन मंदिर हैं। यहां ६ शिलालेख हैं जिनमें राट्ट वंशके राजाओंके लेख सन् ८७५ से १२२९ तकके हैं। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहला जैन मंदिरकी बाई तरफ भीतमें एक पाषाण लगा है । इसके ऊपर मध्यमें श्री जिनेन्द्र पद्मासन हैं दाहनी तरफ गाय वछड़ा है बाई तरफ सूर्य चन्द्र है । इस लेखमें पुरानी कनड़ी भाषाकी ५३ लाइन हैं जिनमें सौंन्दत्ती और बेलगामके तीन राट्ट राजाओं द्वारा दिये हुए दानोंका वर्णन है । इसमें कथन है कि सुगंधवर्ति (जो सौंदत्तीका प्राचीन नाम था ) में दो जैन मंदिरोंको प्रथम राट्ट राजा पृथ्वी वर्मा प्रथम और शेन प्रथमने जो ७ वें राट्ट राजा थे, बनवाया और ६ या ७ भूमियोंका दान कुछ राट्ट राजाओंके द्वारा दिया हुआ है ऐसा कथन है । तथा एक दान १०९७ में पश्चिमी चालुक्य महाराजा विक्रमादित्य छठे (त्रिभुवनमल्ल ) ने दिया ऐसा वर्णन है । इनमेंसे तीन दान जैन मंदिरोंको और चार दातारोंके गुरुओंको दिये गए हैं इनमेंसे दो में ता० ८७५ और १०९७ है। यह लेख यह भी बताता है कि पृथ्वीरामका स्वामी राजा राष्ट्रकूट महाराज कृष्ण थे (८७५ से ९११) तथा सुगन्धवर्ति नगरीके निकट मल्हारी ( मलप्रभा ) नदी बहती है । इसी लेखसे यह भी प्रगट हुआ कि पृथ्वीवर्मा मेरडका पुत्र था । यह राजा गद्दीपर आनेके पहले पवित्र मुनि मैलपतीर्थका धार्मिक शिष्य कारेय जातिमें था । इसने शाका ७९८ में मन्मथ संवत्सरमें यहां जैन मंदिर बनवाया और १८ निवर्त भूमि दान की । दूसरा शिला लेख एक पाषाणमें है जो इसी ही जैन मंदिरकी दाहनी भीतपर लगा है, इसके ऊपर मध्यमें एक पद्मासन जिन है, यक्ष यक्षिणी चमर कररहे हैं । दाहनी तरफ गाय वछड़ा है, ऊपर सूर्य है तथा Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [ ८५ चाई तरफ एक पद्मासन जिन हैं ऊपर चंद्रमा है । यह लेख ५१ लाइनमें है पुरानी कनड़ी भाषा है ता० ९८१ सन् है । इसमें कुन्दुर जैन जातिकी और उसके गुरुओंकी बहुत प्रशंसा दी है तथा यह वर्णन है कि चौथे राट्ट राजा शांतने १५० मत्तर भूमि उस जैन मंदिरको दी जो उसने सौंदत्तीमें बनवाया था और उतनी ही भूमि उसी मंदिरको उसकी स्त्री निजिकव्वेने दी । प्रारम्भमें भूमिकी माप है जो राह जिनके मंदिरके लिये अलग की गई थी। इसीमें यह भी आज्ञा है कि प्रत्येक तैल मिलवाला १ मन तैल दीपावलीके दिन मंदिरमें दीपके लिये देवे। (बम्बई राय० ए० सी० नं० १०) पांचवा लेख एक पाषाणमें है जो अब मामलतदारके दफ्तरमें है । यह इसी जैन मंदिरके सामने एक आंगनके खोदनेसे मिला है । इसमें ५३ लाइन हैं। वे ही चिन्ह हैं । इसमें पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वि० (सं० १०७७–१०८४ ) के आधीन ९ में राट्ट राजा कार्यवीर्य द्वि० की वंशावली राजा नन्नसे दी है। “ Indian antiquary Vol. IV P. 279-280 " से सौंदत्तीके लेखोंका विशेष वर्णन इस प्रकार और जानना चाहिये (१) मैलेयतीर्थकी कारेय शाखामें आचार्य श्री मूल भट्टारक हुए । उनके शिष्य विद्वान गणकीर्ति थे । इनके शिष्य इच्छाको जीतनेवाले इंद्रकीर्तिस्वामी थे । इनका शिष्य मेरड़का बड़ा पुत्र राजा पृथ्वी वर्मा था जो श्रीकृष्णराजदेवके आधीन था शाका ७९७॥ (२) राजाएरग-कन्नकेर प्र० का पुत्र गानविद्यामें निपुण था, (३) कन्नकैरद्वि० के धार्मिक गुरु श्री कनकप्रभ सिद्धांत औवे, Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । घदेव थे जो गणधरके समान थे (४) कालसेन राजाने सुगंधवर्तिमें जिनेन्द्र मंदिर बनवाया था ।(४) शांतिवर्मा राजाने शाका ९०२में आचार्य बाहुबलिदेवके चरणोंमें सुगन्धवर्तिके जैन मंदिरोंके लिये १५० मत्तर भूमि दी। यह बाहुबलि व्याकरणाचाय थे उस समय श्री रविचन्द्रस्वामी, अर्हनन्दी, शुभचन्द्र भट्टारकदेव, मौनीदेव, प्रभाचन्द्रदेव मुनिगण विद्यमान थे (५) भुवनैकमल्ल चालुक्य वंशीय सत्याश्रयके राज्यमें लट्टलूरपुरके महा मंडलेश्वर कार्तवीर्य द्वि० सेन प्रथमके पुत्र थे तब मुनि रविचन्द्रस्वामी व अरहनंदी मौजूद थे (६) राजा कत्तम्की स्त्री पद्मलादेवी जैनधर्मके ज्ञान व श्रद्धानमें इन्द्राणीके समान थी जिसका पुत्र लक्ष्मण था जो मल्लिर्काजुन और कार्तवीर्यका पिता था (७) सौंदत्तीके ( वें लेखमें जो चालुक्य विक्रमके १२ वें वर्ष राज्यमें लिखा गया आचार्योंके नाम दिये हैं बलात्कारगण मुनि गुणचन्द-शिष्य नयनंदि, शिष्य श्रीधराचार्य, शिष्य चन्द्रकीर्ति, शिष्य श्रीधरदेव, शिष्य नेमिचन्द्र और वासुपूज्य विद्यदेव, वासुपूज्यके लघुभ्राता मुनि विद्वान मलयाल थे वासुपूज्य के शिष्य सर्वोत्तम साधु पद्मप्रभ थे । सोरिंगका वंशका निधियामी गुरु वासुपूज्यका सेवक था। (१५) तावन्दी-बेलगाम-कोल्हापुर रोड़पर एक ग्राम चिकोडीके दक्षिण पश्चिम १५ मील । एक छोटा जैन मंदिर भरमप्पाके नामसे है । यहां कार्तिकमें एक मेला होता है तब करीब १००० जैनी एकत्र होते हैं। (१६) कोकतनूर ता० अथनी-अथनीसे पूर्व दक्षिण १० मील, वीजापुरसे ४५ मील यहां एक प्राचीन स्वच्छ जैन मंदिर है। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलगाम जिला। [८७ (१७) वादगी-अथलीसे पूर्व १३ मील, प्राचीन जैनमंदिर जो व्यवहारमें नहीं आता व जीर्ण है । (१८) कागवाद-अथनीसे पश्चिम २२ मील एक पहाड़में खुदाई है वहां सुन्दर जैन मूर्ति है तथा एक नैनमंदिर है। ___ (१९) रायबाग-प्राचीन नाम बागे या हवीनबागे बेलगामके देशी राज्योंमें एक नगर है । यहां संस्कृतमें शिलालेख है । इसमें पहले कृष्ण प्रथमका नाम है जिसने राहवंशको प्रसिद्ध किया । फिर राजासेन सेलेकर कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक नाम हैं। इनका समकालीन यादव वंशका राजा रेव्वा या जो कोपनपुरका अधिपति था । इसमें उस दानका वर्णन है जो कार्तवीर्यदेवने शाका ११२४ को शुभचन्द्र भट्टारकदेवको किया, वास्ते राहोंके जैन मंदिरोंके लिये जिनको उसकी माता चंद्रिकादेवीने स्थापित किया था। यहीं दूसरा लेख नरसिंहसेठीके जैन मंदिरमें है । संस्कृत में यह चालुक्य लेख है । (शायद) शाका १०६२ में नरसिंहसेठीके जैन मंदिरको महाराज जगदेकमल्लके राज्यमें दंडनायक दासिमरसुने दान किया। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२२) वीजापुर जिला इस जिलेकी चौहद्दी इस प्रकार है उत्तर-भीमा नदी, शोलापुर, अकलकोट । पूर्व और दक्षिण पूर्व-निजाम राज्य । दक्षिण-मलप्रभा नदी तटपर धाड़वाड़ और रामदुर्ग है । पश्चिम--मुधाल, जामखंडी और जथ राज्य । इस जिलेका प्राचीन नाम-कलादगी जिला है । सन् १८४५में इसका नाम वीजापुर पड़ा है। इतिहा-प्राचीन कथामें दंडकारण या दंडकवनके सम्बन्धमें इस जिलेके सात स्थानोंका वर्णन आया है-एवल्ली हंगुडमें, बदामी, बागलकोट, धूलखेड़ इंडीमें, गलगली वागलकोटमें, हिप्पर्गी, सिंदगीमें व महाकूट बदामीमें । दूसरी शताब्दीमें यहां तीन स्थान बहुत प्रसिद्ध थे जिनका वर्णन Ptolemy टोलमीकी सूचीमें है । (१) बदामी (२) इंडी (३) कलकेरी । जहांतक ज्ञात है बादामी इन सबमें प्राचीन जगह है। यहां पल्लव वंशका किला है । छठी शताब्दीके मव्यमें चालुक्य वंशीय राजा पुलकेशी ने पल्लवोंसे वादामी ले लिया। यहांसे मुसल्मानोंके आनेतक इतिहासके चार भाग हैं-पूर्वीय चालुक्योंने और पश्चिमीय चालुक्योंने ७६० सन् ई० तक, राष्ट्रकूटोंने ७६ ० से ९७३ तक फिर कलचूरी और होसाल वल्लालने ११९० तक जिसमें सिंदा राजा दक्षिण बीनापुरमें ११२० से ११८० तक रहे-देवगिरि यादवोंने ११९० से तेरहवीं शताब्दी मुसल्मानोंके आनेतक राज्य किया । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ ८६ सातवीं शताब्दीमें चीन- यात्री हुइनसांगने वादामीका दर्शन किया था तब यह चालुक्य वंशका स्थान था। वह वर्णन करता है कि “यहांके लोग लम्बे कदके, मानी, सादे, ईमानदार, कृतज्ञ, वीर और बहुत ही साहसी हैं । राजाको अपनी सेनाका अभिमान है, राज्यधानीमें बहुत मंदिर व मठ हैं, पुराने टीले व राजा अशोकके समयके स्तूप हैं । यहां हर प्रकारके साधु मिलते हैं । लोगोंको शिक्षाका बहुत प्रेम है और वे सत्य और धर्मके अनुसार चलते हैं । चहुंओर १२०० मठ इस राज्यमें हैं।" यहां बहुत प्राचीन शिल्पकला है व प्रसिद्ध शिलालेख अरसीबीडी, ऐवल्ली, और बादमी में हैं ( ६ से १६ वीं शताब्दी तकके ) व बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर ऐक्लो और पत्तदकलमें हैं। ऐवल्लीका मेघुती - मंदिर सादे पत्थरके कामके लिये प्रसिद्ध है। पत्तदकलके मंदिर द्राविड़ और उत्तरी चालुक्य ढंगके हैं । हुंगुड तालुकामें संगमपर संगेश्वरका मंदिर बहुत पुराना है । प्रसिद्ध स्थान। (१) ऐल्ली (ऐहोली)--प्राचीन ग्राम--ता० हुंडगुंड मलप्रभा नदीपर बसा है । हुनगुन्डसे दक्षिण पश्चिम १३ मील है । हम यहां ता० ३ जून १९२३को स्वयं गए थे। यह किसी समय बड़ा भारी नगर होगा क्योंकि पाषाणके मंदिर व मकान चारों तरफ टूटे फूटे पडे हैं जैनियोंके भी बहुतसे मंदिर हैं । कुछोंमें महादेवकी स्थापना है । एक छोटीसी पहाड़ी है उसके ऊपर जाते हुए मार्गमें मैदानमें एक दि० जैन मूर्ति खडित पड़ी है। ८० सीढ़ी ऊपर जाकर द्वारपर द्वारपालकी मूर्ति खड़ी है जिसकी ऊंचाई ६ हाथ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । होगी । ऊपर जाकर मेघुतिका प्रसिद्ध दि० जैन मंदिर दर्शनीय है, यह लम्बाईमें ५२ हाथ है। मंदिरके चारों तरफ बड़ा मैदान है । इसकी दाहनी तरफ भीतपर एक शिलालेख पुरानी कनड़ी लिपिमें बहुत बड़ा ऐतिहासिक है जो ५ फुट लम्बा व २ फुट चौड़ा है । यह लेख संस्कृत भाषामें है - इसकी नकल व इसका उल्था आगे दिया गया है । मंदिरके भीतर जाकर वेदीमें खंडित दि. जैन मूर्ति पल्पकासन ती हाथ ऊंची है। दो इन्द्र दोनों तरफ हैं, दोनों तरफ सिंह बना है । बीचकी वेदीके पीछे १ गुफा है व १ गुफा बगलमें है, यह मुनियोंके ध्यान करनेके योग्य है । ___मंदिरके ऊपर वेदी है, सिंह चिन्ह है प्रतिमा नहीं है । मंदिरके बाहर चित्रकारीमें हाथी व देव आदि निर्मित हैं । आगे थोड़ी दूर जाकर दि. जैन गुफा आती है जो बहुत ही बढ़िया शिल्पको बताती है व जहां प्राचीन द • जन मूर्तिणं दर्शनयोग्य हैं। सामने वेदीमें पल्यंकासन श्री महावीरस्वामीकी मूर्ति ३ हाथ ऊंची अखंडित है दोनों तरफ चमरेन्द्र हैं, व सिंह है, तीन छत्र सहित हैं । वेदीके द्वारपर दो इन्द्र हैं । वेदीके बाहर बीचके कमरेमें एक ओर महावीरस्वामीकी मूर्ति ३ हाथ ऊंची पल्यंकासन चमरेन्द्र सहित--इस प्रतिमानीके दोनों तरफ २४ स्त्री पुरुष हाथ जोड़े खड़े हैं । कमरेके बाहर दालानमें एक तरफ श्रीपाश्वनाथजीकी कायोत्सर्ग मूर्ति ३॥ हाथ ऊंची धर्णेन्द्र पद्मावती सहित हैं पासमें एक गृहस्थ हाथ जोड़े खड़े है । बांई तरफ श्री गोमटस्वामीकी कायोत्सर्ग मूर्ति है ३॥ हाथ ऊंची यक्ष यक्षिणी सहित । ये सब Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [६१ दि जैन मूर्तियां अखंडित और पूज्य हैं ( परंतु कोई पूजा करनेवाला नहीं ) इस दालानकी छतपर बहुतसे स्वस्तिक बड़ी कारीगरीसे रचे गए हैं । कमलोंके भीतर व बाहर छतपर अपूर्व शोभा है । इस गुफाका नं० ७० है । नीचे ग्राममें वीरुपक्ष मंदिरके सामने तीन दि जैन मंदिर हैं। एकमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूर्ति २॥ हाथ पद्मासन अखंडित विराजमान है। यहां एक चरन्ती मठ कहलाता है । यहां कई दि. जैन मंदिर हैं। एक हातेमें ६ मंदिर हैं, एक एक द्वारपर बारहबारह मूर्ति स्थापित हैं-१ वेदीमें २ हाथकी ऊंची मूर्ति है। . " Fergusson cave temqles of India 1880." में यहांकी जैन गुफाका हाल यह दिया है कि वरामदा ३२ फुटसे १७॥ फुट है जिसके चार चौकोर स्तम्भ हैं । इसकी भीतरकी वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ फणसहित वादामीके सामान है । दाहनी तरफ श्री बाहुबलि हैं । वेदीका मंदिर ८ फुट ३ इंच चौकोर है यहां एक तीर्थकरकी पल्यंकासन मूर्ति वदामीके समान है । बीचके कमरेमें श्री महावीर स्वामी हैं और दूसरी मूर्तियां हैं व हाथी हैं जो उनके नमस्कार करनेको आए हैं । यहांपर अवश्य कोई ऐतिहासिक घटना है। “ Archealojical survey report 1907-8 ” में यहांके मेघुती दि. जैन मंदिरका वर्णन इस भांति दिया है जो जानने योग्य है ऐहोल एक प्राचीन नगर है। बादामी ष्टेशनसे १४ मील व कटगेरीसे १०-१२ मील है। यह तेरह शताब्दियों तक Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । चालुक्य राजाओंका मुख्य नगर रहा है। प्राचीन शिलालेखमें इस नगरका नाम "आर्यपुर" या आय्यवले मिलता है । सातवीं व आठमी शताब्दीमें यह पश्चिमी चालुक्योंकी राज्यधानी थी। . यहां एक जैन गुफा है जिसकी कोई फिक्र नहीं लेता है ( uncared for ) मेधुती दि० जैन मंदिरमें जो शिलालेख है उससे विदित है कि यह मंदिर सन् ई० ६३४में किसी रविकीतिने चालुक्य राजा पुलकेशी द्वि०के राज्यमें बनवाया था । मंदिर उत्तरकी तरफ है। जो यहां वीरुपक्षका मंदिर दक्षिण मुख है निसमें लिंग स्थापित है यह मूलमें जैन मंदिर होगा। इस मंदिरके सामने प्राचीन जैन मंदिर है । चरन्ती मठमें जैन मंदिर हैं मेघुती मंदिरमें एक विशाल जैन मूर्ति है-यह मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है ( It is earliest dated temple. ) जैन गुफाके ऊपर बहुतसे कमरे ध्यानके हैं-(वीजापुर गजटियर)। ___ मेघुती दि० जैन मंदिरका प्रसिद्ध लेख । “ Indian antiquary Vol. V 1896 Page 67." में इस लेखकी नकल दी हुई है सो उल्था सहित नीचे प्रमाण है इस पाषाणकी ५९॥ इंच चौडाई व २६ इंच ऊंचाई है यह चालुक्य वंशका लेख है। इन दक्षिणी भागोंमें यह लेख सबसे पुराना व सबसे अधिक महत्वका है। (Oldest one and most important of all the stone tablest' of these parts. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६३ वीजापुर जिला। इसमें इस भांति राजाओंका वर्णन है जयसिंह प्रथम या जयसिंह वल्लभ रणराग पुलिकेशी प्रथम कीर्तिबर्मा प्रथम मंगलीशा या मंगलीश्वर पुलिकेशी द्वि० या सत्त्याश्रय इस लेखका अभिप्राय यह है कि शाका ५०७में पुलिकेशीके राज्यमें किसी रविकीर्तिने यह श्री जिनेन्द्रका मंदिर पाषाणका बनवाया । इस लेखसे इधरका बहुतसा इतिहास मालूम होता है । इस लेखमें बहुत महत्वकी बात यह है कि इसमें कदम्ब और कलचूरी राजाओंका, वनवासी नगरीका, कोकणके मौर्योंका, आप्पायिक-गोविन्दका वर्णन है जो शायद राष्ट्रकूटवंशका था । १२ वीं लाइनमें इधरके देशको महारापतु वातापिपुरी या वातापिनगरी (वर्तमान बदामी) के नामसे लिखा है नकल लेख मेघुती मंदिर । (१) जयति भगवान् जिनेन्द्रो....ज....र (?, क्ष) ण जन्मनो यस्य ज्ञान समुद्रांतर्गत मखिलञ्जगदन्तरी पमिव ॥ तदनु चिरमपरिचेयश्चलुक्य कुलविपुल जलनिधिर्जयति ॥ एथिवी मौली (लि) ललामो-यप्रभव-पुरुषरत्नानाम् ॥ शूरे विदुषि च विभजन्दानाम्मानश्च युगपदेकत्र (२) अविहित याथातथ्यो जयति च सत्याश्रयस्सुचिरम् ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पृथिवी बल्लभ शब्दो येषामन्वर्थताञ्चिरजातः तद्वंशेषु निगीपुपु तेषु बहुप्वप्यतीतेषु ॥ नानोहति शताभिघात पतितभ्रांताश्वपत्तिद्विपे, नृत्यदभीमकबन्ध खड्गकिरणज्वाला सहश्रेरणे (३) लक्ष्मी वित चापलादिव कता शौर्येण येनात्मसात् राजासीजय सिंघवल्लभ इति ख्यातश्चलुक्यान्वयः ॥ तदात्मनो भूद्रणरोग नामा दिव्यानुभावो जगदेकनाथः अमानुषत्त्वं किल यस्य लोक स्सुप्तस्य जानाति वपु प्रकर्षात् ॥ तस्याभवत्तनून-पुलिकेशि यःश्रितेन्द्रकांतिरपि (४) श्री वल्लभोप्ययासोद्वातापिपुरी वधूवरताम् ॥ यत्रिवर्ग पदवीमलं क्षितौ नानु गन्तुमधुनापि राजकम् । भूश्च येन हय मेधया जिना प्रापितावभृथमजना वभौ ॥ नलमौर्य कदम्ब कालरात्रिस्तनयस्तस्य वभूव कोर्तिवर्मा परदार निवृत्तचित्तवृत्तेरपि धीर्यस्य रिपु (५) श्रियानुसृष्टा ॥ रण पराक्रम लब्ध जयश्रिया सपदि येन विरुग्नमशेषतः नृपति गन्धगजेन महौजसा एथुकदम्बकदम्बकदम्बकम् ॥ तस्मिन् सुरेश्वरविभूति गताभिलाषे राजा भवत्तदनुज किल मंगलीशः य पूर्व पश्चिम समुद्र तटोषिताश्वः सेनारजः-पट विनिर्मित दिग्वितानः ।। स्फुरन्मयूखैरसि दीपिका शतैः (६) व्युदस्य मातङ्गतमिस्रसंचयम् । अवाप्तवान्यो रणरंगमंदिरे करच्चुरि श्री ललनापरिग्रहाम् ।। पुनरपि च निघृक्षोस्सैन्यमाक्रान्त सालम् रुचिर वहुपताकं रेवती द्वीप मागु आसपदि महदुदन्वतोप संक्रान्तबिम्बं वरुण वलमिवाभूदागतं यस्य वाचा !। तस्याग्रजस्य तनये नहषानुभागे लक्ष्म्या किला (७) मिलषिते पुलिकेशि नाम्नि सासूय मात्मनि भवन्त मतपितृव्यम् ज्ञात्वा परुद्ध चरितव्यवसाय बुद्धौ ॥ स यदुपचित मन्त्रोसाह शक्ति प्रयोग क्षपित बल विशेषो मंगलीशो स्समन्तात् स्वत Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला । [ ६५ नयगत राज्यारम्भयत्ने न सार्द्धं निजमतनु च राज्यं जीवितं चोज्झतिस्म ॥ तावच्छत्रभंगे जगदखिल मरात्यन्धकारोपरुद्धं (८) यस्यासह्य प्रताप द्युति ततिभिरिघाक्क्रान्त मासीत्प्रभातम् नृत्त्यद्विद्युत्पताकैः प्रजविनि मरुति क्षुण्ण पर्यंत भागैर्गर्जद्भिर्व्वारिवासै ( है ) रलिकुल मलिनं व्योमयातंकदावा || लब्ध्वा कालं भुवमुपगते जेतुमाप्यायिकाख्ये गोविन्दे च द्विरद निकरैरुत्तराम्भोधिरथ्याः यस्यानीकैर्युधि भय रसज्ञत्वमेक-प्रयातस्तत्रावाप्तम्फलमुपकृतस्या (९) परेणापि सद्यः ॥ वरदातुङ्ग तरङ्ग रंग विलस इंसानदीमेखला बनवासीमवमृद् नतस्सुरपुर प्रस्पर्द्धिनीं सम्पदा महता यस्य वलार्णवेन परितस्संछादितोर्व्वीतलं स्थलदुर्गञ्जलदुर्ग तामिवगतं तत्तत्क्षणे पश्यताम् ॥ गंगाम्बु--पीत्वा व्यसनानि सप्त हित्वा पुरोपार्जित संपदो पि यस्यानुभावोपनतास्सदा सन्ना - (१०) सन्नसेवामृतपान शौण्डाः कोंकणेषु यदादिष्ट चण्डदण्डाम्बुवीचिभिः उदस्तास्तरसा मौर्य पल्वलाम्बुसमृद्धयः । अपरजलधेर्लक्ष्मीं यस्मित्पुरम्पुरभित्प्रभे मदगजघंटाकोरे नवां शतैरवमृद्नति जलद पटलनीका कीर्णन्नवोत्पल मेचकज्जलनिधिरिव व्योम व्योज समो भवदम्बुनिधिः ॥ प्रतापोपनता यस्य लाट मालय गूर्ज्जराः दण्डोपनतसामन्त चर्य्या वर्य्या इवाभवन् ॥ अपरिमित विभूति स्फीत सामन्तसेना मुकुटमणि मयूखाक्क्रान्त पादारविन्दः युधि पतित गजेन्द्रानीक वीभत्सभूतो भयविगलित हर्षो येन चाकारि हर्षः ॥ भव मुरुभिरनीकै शशा (१२) सतो यस्य रेवा विविधपुलिन शोभा वन्ध्य बिन्ध्योपकंठा अधिकतर मराजत्स्वेन तेजो महिम्ना शिखरिभिरिभ वर्ज्या वर्ष्म णां स्पर्द्धयेव ॥ विधिवदुपचिता भिश्शक्तिभिश्शक्रकल्पस्तिसृभिरपि गुणौघैस्स्वैश्च Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । महाकुलाद्यैः अनमदधिपतित्त्वं यो महाराष्ट्रकाणां नवनवति सहश्र ग्रामभाजां त्रयाणां गृहिणां स्व (१३) स्व गुणैस्त्रिवर्गतुङ्गा विहितान्य क्षितिपाल मानभंगाः अभवन्नुपजात भीति लिंगा यदनीकेन सको (स) ला कलिङ्गाः पिष्टं पिष्टपुरं येन जातं दुर्गम दुर्गामञ्चित्रं यस्य कलेर्वृत्तं जातं दुर्गमदुर्गमम् ॥ सन्नद्ध वारण घटस्थ गितान्तरालम् नानायुधक्षतनर रक्षतजाङ्गरागम् आसीज्जलं यदव मर्दित मगर्भार्केणा लमम्बरमिवोर्ज्जित सान्ध्य रागम् || उद्धतामल चामरध्वज शतच्छात्रान्धकारैव्र्वलैः शौर्योत्साह रसोद्धतारि मथनैम्मलादि भिष्टविधैः आक्कान्तात्म बलोन्नतिम्बल रजस्सञ्छन्न कांचीपुर : प्राकारान्तरित प्रताप मकरोद्यः पल्लवानाम्पतिम् ॥ कावेरी दृत शफरी विलोल नेत्रा चोलानां सपदि जयोद्यतस्य यस्य प्रयोतन्मद् गजसे (१५) तुरुद्ध नीरा सस्पर्श परिहरतिस्म रत्नराशेः । चोलकेरल पाण्ड्यानाम् यो भूत्तत्र महार्द्धये पछवानीक नीहारतुहिनेतर दीधितिः ॥ उत्साह प्रभु मंत्र शक्ति सहिते यस्मिन्समंता दिशो जित्वा भुमिपतीन्विसृज्य महितानाराध्य देवद्विजान् वातापीन्नगरीम्प्रविश्य नगरीमेका मिवोर्व्वीमिमाम् चञ्चन्नीरधिनील नीर परिखां (१६) सत्याश्रये शासति || त्रिंशत्सु त्रिसहश्रेषु भारतादाहवादितः सप्ताब्द शत युक्तेषु तेष्ववेषु पञ्चसु ॥ पञ्चाशत्सु कलौ काले षट्सु पञ्च शतासु च । समासु समतीतासु शकानामपि भूभूजाम् ॥ तस्याम्बुधित्रय निवारित शासनस्य (१) । सत्त्याश्रयस्य परमाप्तवता प्रसादं शैलंजिनेन्द्र भवनम्भवनम्नहिम्नान्निर्म्मापितम्मतिमता रविकीर्तिनेदम् ॥ प्रशस्ते र्व्वसतेश्चास्याः जिनस्य त्रिजगद् गुरो कर्त्ता कारयिता चापि रविकीर्ति कृती स्वयम् ॥ ये नायोजितवेश्म स्थिर मर्त्यविधौ विवेकिना जिनवेश्म स विजयतां रविकीर्ति कविता (१८) श्रितकालिदास भारविकीर्त्तिः । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww घोजापुर जिला। [६७ उल्था श्री भगवान जिनेन्द्र जयवंत हो, जिनके ज्ञानसमुद्रमें सर्व जगत एक द्वीपके समान है।....उसके पीछे चालुक्य वंशरूपी समुद्र चिरकाल जयवंत हो, जिसकी महत्ताका परिचय नहीं हो सक्ता । जो पृथ्वीके मुकुटकी मणि है तथा पुरुषरत्नोंकी उत्पत्तिकर्ता है । तथा चिरकाल श्री सत्याश्रय जयवंत हो जो सत्यका आश्रय करनेवाला है तथा जो एक साथ वीर और विद्वानोंको दान और मान देता है । इनके वंशमें बहुतसे राना हो गए जो विजयके इच्छुक थे व जिनका पृथ्वीवल्लभ नाम सार्थक था । इसी चालुक्य वंशमें प्रसिद्ध राजा जयसिंहबल्लभ हो गए हैं जिन्होंने ऐसे युद्ध में अपनी शूरवीरतासे उस लक्ष्मीदेवीको जीत लिया है जो चपलतासे भरी हुई है कि जिस युद्ध में उसके सैकड़ों बाणोंसे घबड़ाए हुए अनेक घोड़े पैदल तथा हाथी गिराए गए थे व जहां नाचते हुए व भयमें भरे हुए मस्तकरहित शरीरोंकी व तलवारोंकी हजारों किरणें चमक रही थीं। उसका पुत्र देवसम प्रभावशाली व पृथ्वीका एक अकेला स्वामी रणराग नामका था जिसके शरीरकी उत्तमतासे उसकी निद्रावस्थामें भी उसका अद्वितीय मनुष्यपना लोकोमें प्रगट था। उसका पुत्र पुलिकेशी PuleKesi 1 था जिसने यद्यपि चंद्रमाकी क्रांति पाई थी व जो लक्ष्मीदेवीका प्रिय था तथापि वातापिपुरी नगरीरूपी वधूके वरपनेको प्राप्त था। उसके धर्म, अर्थ, कामरूप तीन वर्गके साधनकी बराबरी पृथ्वीमें कोई नहीं कर सक्ता था । उसके अश्वमेध करनेके पीछे पवित्र भेटसे यह पृथ्वी शोभा Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । यमान थी । उसका पुत्र कीर्तित्रर्श था जो नल, मौर्य और कदम्ब वंशों के लिये कालरात्रि था । यद्यपि वह परस्त्रीसे विरक्त था तथापि उस धीरका मन अपने शत्रुओंकी लक्ष्मीसे आकर्षित था । कदम्बों के वंशके विशाल कदम्बवृक्षको युद्धमें अपने पराक्रमसे विजयलक्ष्मीको प्राप्त करनेवाले महा तेजस्वी नृपके गजने खंड २ कर दिया था । जब इस राजाकी इच्छा इन्द्रसम विभूतिमें तृप्त हो गई थी तब उसके लघुभाई मंगलीश राजा हुए, जिन्होंने अपने घोड़े पूर्व पश्चिम समुद्रोंके तटोंपर ठहराए थे तथा अपनी सेनाकी रजसे चारों तरफ मंडप छा दिया था । जिसने मातंय जातिके अन्धकारको अपनी सैकड़ों चमकती हुई तलवारोंके दीपकोंसे दूर करके युद्धके मध्य में कटचूरियों (कलचूरियों) के वंशकी लक्ष्मीरूपी सुन्दर स्त्रीको अपनी स्त्री बना लिया था और फिर जब उसने शीघ्रही रेवतीद्वीप (द्वारका जहां रैवताचल या गिरनार है ) को लेना चाहां तब उसकी विशाल सेना जो सुन्दर पताकाओंसे शोभित व जिसने किलों को घेर लिया था समुद्र में ऐसी झलकती थी मानो वरुणकी सेना ही उसके वशमें हो गई है । जब उसके बड़े भाईके पुत्र पुलकेशीको - जो नहुष के समानप्रभावशाली था - लक्ष्मीदेवीने पसन्द किया तथा उसने अपने चारित्र व्यापार और बुद्धिमें यह समझा कि उसके चाचा उसकी तरफ ईर्षा भाव रखते हैं, तब पुलकेशी द्वारा संग्रहीत मंत्र, उत्साह तथा शक्तिके प्रयोगसे मंगलीशकी शक्ति बिलकुल नष्ट हो गई और उसके इस प्रयत्नमें कि वह राज्यको अपने ही पुत्रके लिये खखे, मंगलीशने अपना राज्य तथा जीवन खो दिया । जब इस तरह मंगलीशका Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। छत्र भंग हुआ तब सर्व जगत शत्रुओंके अन्धकारसे छागया, परन्तु उसके असह्य प्रतापके विस्तारसे पीड़ित होकर मानो प्रभात हो गया। उस आकाशमें जो भौरोंके समान काला था बहती हुई हवासे उड़ते हुए पताकाओंकी विजलीकी समान चमकसे तड़का हो गया । अवसर पाकर जब अप्पायिक पदधारी गोविन्द राजा (जो राष्ट्रकूटोंका राजा था ) जो उत्तर समुद्रका स्वामी था अपनी हाथियोंकी सेनाको लेकर पृथ्वीके विनय करनेको आया तब इस पुलकेशीकी सेनाओंके हाथोंसे-निसको पश्चिमके राजाओंने मदद दी थी-वह भयभीत हो गया और शीघ्र अपनी कृतिके फलका लाभ किया। ___ जब वह वनवासीको घेर रहा था जिसके किनारेपर *हंस नदी थी जो वरदा नदीके उच्च तरंगोंमें क्रीड़ा करती थी व जो नगर स्वर्गपुरीके समान था तब वह किला जो सूखी जमीनपर था चारों तरफसे उसकी सेनारूपी समुद्रसे ऐसा घिर गया मानों लोगोंको ऐसा मालूम होता था कि समुद्रके मध्यमें कोई किला है। वे लोग भी जिन्होंने गंगाका पानी पिया था और सात व्यसन त्याग दिये थे तथा लक्ष्मीको भी प्राप्तकर लिया था उसके प्रभावसे आकर्षित हो सदा उसके निकट सम्बन्धका अमृत पान करना चहते थे। कोंकणके देशोंमें उसकी आज्ञासे नियुक्त चंडदंडरूपी समुद्रकी तरंगोंसे मौर्यरूपी सरोवरके जलके भंडार शीघ्र ही वश करलिये ____* वर्तमानमें वरदा नदी वनवासी नगरके नीचे बहती है तथा हंस नदी किसी पुरानी धाराका पुराना नाम है। जो यहांसे ७ मील है व इसीकी उपनदी है। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गए थे । नगरको दग्ध करनेवाले शिवके समान उसने जब उस नगरको जो कि पश्चिम समुद्रकी लक्ष्मीदेवीके समान था मदोन्मत्त हाथियोंके समान सैकड़ों जहाजोंसे घेर लिया तब वह आकाश जो नए विकसित कमलके समान नील वर्ण था व मेघोंसे घिरा हुआ था समुद्रके समान हो गया और समुद्र आकाशके समान हो गया। उसके प्रभावसे पराजित होकर लाट, मालव और गुर्जर ऐसे योग्य आचरणवाले हो गए, जिसतरह दंडसे वशीभूत सामन्त लोग हों । राजा हर्षके चरणकमल उसकी अपरिमित विभूतिसे पाले हुए सामन्तोंके रत्नोंकी किरणोंसे ढके हुए थे जब युद्धमें उसके बलवान हाथियोंकी सेना इससे मारी गई तव उसका हर्ष भयमें परिणत हो गया । जब वह पृथ्वीको अपनी बड़ी सेनाओंसे शासित कर रहा था तब रेवा ( नदी ) जो विन्ध्याचलके निकट है व जिसके तट वालूसे शोभित हैं उसके प्रभावसे अधिक शोभायमान होगई । यद्यपि पर्वतोंके महत्वको देखकर उसके हाथियोंने ईर्षासे उस नदी के संगको छोड़ दिया था । इन्द्र तुल्य तीन शक्तियोंको रखनेवाले उस राजाने अपने उच्च कुल आदिक गुणों के समुदायसे तीन देशोंपर अपना अधिकार प्राप्त किया था जिनको महाराष्ट्रक कहते हैं जिसमें ९९००० निनानवे हजार ग्राम थे । कलिंग और कौशल देशवासी - जो गृहस्थोंके उत्तम गुणोंसे संयुक्त हो त्रिवर्ग साधनमें प्रसिद्ध थे और दिन्होंने दूसरे राजाओंका मान भंग किया था - इस राजाकी सेनासे तभयभी थे। उसके द्वारा वशीभूत हो पिष्ठपुरका किला दुर्गम न Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०१ रहा। इस वीरके कार्य सब दुर्लभ कार्यों में भी अति दुर्लभ थे । वह जल उसके द्वारा क्षोभित होकर जिसमें उसके हाथियोंकी महान सेनाने प्रवेश किया था व जो उसके अनेक युद्धोंमें मारे गए मनुप्योंके रक्तसे लाल वर्णका हो गया था उस आकाशके समान झलकता था जिसमें मेघोंके मध्यमें सूर्यके द्वारा संध्याका रंग छागया हो । अपनी उन सेनाओंसे जोकि निर्दोष चमरोंके हिलानेसे व सैकड़ों पताकाओं व छत्रियोंसे अंधकारमें आगई थीं और जिन्होंने अपने उत्साह और शक्तिसे उन्मत्त उसके शत्रुओंको पीड़ितकर दिया था और जिसमें छःप्रकार शक्तिये थीं उस राजाने अपनी शक्तिसे प्रसिद्ध पल्लवोंके राजाको उसका प्रभाव अपनी सेनाकी रजसे छिपे हुए उसके कांचीपुर नगरके कोटके भीतर ही छिपा दिया था । जब उसने चौलोंकी जीतके लिये शीघही तय्यारी की तब उस कावेरी नदीने जो मछलियोंके चंचल नेत्रोंसे भरी हुई थी अपना सम्बन्ध समुद्रसे छोड़ दिया क्योंकि उसके जलका प्रवाह उस राजाके मदोन्मत्त हाथियोंके पुलसे रुक गया था । वहां उसने चोलों, केरलों और पांष्योंको महाऋद्धियुक्त किया परन्तु पल्लवोंकी सेनाके पालेको गलानेके लिये सूर्या सम हो गया। जब राजा सत्याश्रयने अपने उत्साह, प्रभुत्त्व व मंत्रशक्तिसे सर्व निकटके देशोंको जीत लिया और परास्त राजाओंको विसर्जन कर दिया तथा देव और ब्राह्मणोंको आराधित किया और अपनी वातापी नगरी (वदामी) में प्रवेश किया तब उसने सर्व जगतको ऐसे नगरके समान शासित किया जिसके चारों तरफ नृत्य करते हुए समुद्रके जलसे पूरित नीलखाई बह रही हो । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ___३७३० तीन हजार सातसो तीस वर्ष भारतोंके युद्धके वीतनेपर व ३५९० तीनहजार पांचसौ पचास वर्ष कलियुगके जानेपर और शक राजाओंके ५०६ पांचसौ छः वर्ष होनेपर महिमापूर्ण यह पाषाणका जिनेन्द्रमंदिर विद्वान रविकीर्ति द्वारा निर्मापित किया गया था। जिस रविकीर्तिने उस सत्याश्रयके महान प्रसादको प्राप्त किया था जिसकी आज्ञा मात्र तीन समुद्रोंसे ही रोकी गई थी। इस तीन जगतके गुरुश्री जिनेन्द्र मंदिर की प्रशस्तिका लेखक तथा जिसने इस मंदिरको निर्मापित कराया वह यह स्वयं रविकीर्ति है । वह रविकीर्ति विजयको प्राप्त करे, जिसने अपनी कवितासे कालिदास और भैरवीकेसे यशको प्राप्त किया है व जो कार्यके करनेमें विवेकी है व जिसने यह महान जिनमंदिर बनवाया है । लेखके नीचे जो कनड़ी भाषामें है उसका उल्था । मुश्रीवल्लीका ग्राम, भेटिकवाड नगर तथा पर्वनूर, गंगबूर, पुलिगिरि और गंडव ग्राम इस देवताकी सम्पत्ति हैं। उत्तर और दक्षिणकी तरफ इस पर्वतके नीचे दक्षिण भीमवारी तक इस महापथांतपुर नगरकी सीमा है। ___ इस मेघुती मंदिरके ऊपरी भागके आंगनमें एक स्मारक पाषाण है जिसमें एक छोटासा लेख पुराने कनडी अक्षरों में है । इसके अक्षर १२वीं व १३वीं शताब्दीके हैं । जिसका भाव यह है कि यह रामशेठीकी निषिधिका है जो मूलसंघ बलात्कारगणके कमल थे व ऐभसेठीके पुत्र थे जो दुगलगड़ ग्राम वासी व रामवरग जिलेके संरक्षित व्यापारी थे। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला । [ १०३ अरसीबीडी - तालुका हुनगंडमें एक ध्वंश नगर - हुंनगडसे दक्षिण १६ मील । यहां प्राचीन चालुक्य राज्यधानी थी जिसका नाम विक्रमपुर था जिसको महान विक्रमादित्य चतुर्थने (१०७६११२६) में स्थापित किया था। उसके समय में पश्चिम चालुक्य ९७३ - १९९०) बहुत उन्नतिपर थे । कलचूरियोंने ११५१ में लेलिया तब भी यह एक महत्वका स्थान था। यहां दो ध्वरा जैन मंदिर हैं, दो बड़े चालुक्य और कलचूरी वंशके शिलालेख पुरानी कनडीमें हैं । (२) बादामी - ता० वादामी, एस०एम० रेलवेपर ष्टेशन । यह स्थान इस लिये प्रसिद्ध है कि यहां एक जैन गुफा सन ई० ६५० की है व तीन ब्राह्मण गुफाएं हैं। जिनमें एक में शिलालेख सन् ई० ५७९ का है । जैन गुफा ३१ फुट लम्बी व १९ फुट चौडी है । ता० १ जून १९२३ को हमने वादामीकी यात्रा की थी । गुफाके नीचे एक बडा रमणीक सरोवर है । यह जैन गुफा बहुत ही सुन्दर व अनेक अखंडित दि० जैन मूर्तियोंसे शोभित है । यह गुफा ५ दरकी है - इसके ४ स्तम्भ हैं । जो चौकोर हैंस्तम्भोंपर फूलपत्ती व गृहस्थ स्त्री पुरुष बने हैं । गुफाके बाहर पूर्व मुख १ प्रतिमा श्री महाबीर स्वामीकी पल्यंकासन है १ हाथ उंची। एक तरफ यक्ष है, दो चमरेन्द्र हैं, तीन छत्र हैं । सामने भीतपर सिंह व हरएक कोने के ऊपर व स्तंभपर सिंह है । वास्तवमें यह गुफा श्री महावीर स्वामीकी भक्तिमें अपनी वीतरागताको झलका रही है । भीतर जाकर बाहरी दालान में पूर्वमुख भीतपर श्री पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग ५ हाथ ऊंचे फणसहित, १ चमरेन्द्र खड़े, १ बैठे Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दोनोंओर, १ कोनेमें एक यक्ष। इसीके सामने भीतपर पश्चिम मुख श्री गोमटस्वामी ५ हाथ ऊंचे कायो० चार सर्प लिपटे केश ऊपरसे आगे आकर तपके कारण कंधेपर लटक रहे हैं। दो चमरेन्द्र इधर उधर हैं। नीचे दो गृहस्थ घुटनोंसे हाथ जोड़े बैठे हैं। वास्तवमें यह मूर्ति साक्षात् श्री बाहुबलि महाराजके एक वर्ष तपके दृश्यको दिखला रही है । इस दालानमें चार खंभे हैं। दो मध्यमें दो भीतके सहारे । इन चारोंमें अनेक पल्यंकासन और खड़गासन दि. जैन मूर्तियां अपनी वीतरागताको झलका रही हैं। इसके आगे वेदीके कमरेके बाहर भीतरी दालान है यहां भी अपूर्व प्रतिमाएं हैं। १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची खडगासन पूर्वमुख है ऊपर तीन छत्र हैं। इसके आसपास कई मूर्तियां हैं । सामने पश्चिम मुख १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची कायोत्सर्ग, दो यक्ष हैं व अनेक प्रतिमाएं आसपास हैं। वेदीके कमरेके द्वारके दोनों ओर मुख्य श्री पार्श्वनाथ फणसहित १। हाथ ऊंचे तथा अन्य मूर्तियें हैं । आगे ४ सीढ़ी चढ़कर वेदीका कमरा है। द्वारपर दोनों ओर दो इन्द्र हैं। भीतर मूल नायक श्री महावीर स्वामी पल्यंकासन ३ हाथ ऊंचे दो इन्द्र सहित व तीन सिंहसहित विरान्ति हैं। इस प्रांतमें यह दि जैन गफा दर्शनीय तथा पूज्यनीय है । ( Fergusson cave temples of India 1880 ) - में इस वाहामी जैन गुफाका इस तरह वर्णन दिया गया है कि यह वादामी कलादगी कलेकटरीमें कलादगीसे दक्षिण पश्चिम २३ मील है । मलप्रभा नदीसे ३ मील है । प्राचीन कालमें यह चालुक्य वंशी राजाओंकी बातापि नगरी थी। पुलकेशी प्र Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०५ थमने छट्ठी शताब्दीके प्रारंभमें इसको अपनी राजधानी किया था । यह जैन गुफा करीब ६५० ही में खोदी गई होगी। वरामदा ३१ फुटसे ६॥ फुट है गहराई १६ फुट है । पीछेका कमरा ६ फुट और २५॥ फुट है। यहांसे आगे ४ सीढी चढ़कर सिंहासनपर श्री महावीरस्वामी पल्यंकासन विराजित हैं। वरामदेके कोनोंमें दोनों तरफ ७॥ फुट ऊंचे श्री गोमटस्वामी और श्री पार्श्वनाथ की मूर्तिये शोभित हैं। स्तंभों और भीतों पर बहुतसी तीर्थकरोंकी मूर्तियां हैं। ___ नोट-यहां पूजन पाठ नही होती है। यहां इंडी निवासी श्री आदप्पा अनन्तप्पा उपाध्याय जैन सकुटुम्ब रहते हैं जो अस्पतालमें कम्पाउंडर हैं । इनके घरमें मूर्ति भी है। (३) वागलकोट नगर घटप्रभा नदी पर । यहां १ दि० जैन मंदिर है, जैनीलोग भी हैं। यहां १ जैन बाजार है जिसको जैनियोंने नवाब सावनूर (१६६४-१६७५) के राज्यमें बनवाया था । (४) हुनगुंड ग्राम-बागलकोटसे २९ मील । यह बीजापुरसे दक्षिण पूर्व ६० मील है । नगरके सामने जो पहाडी है उसपर १ जैन मदिरके अवशेष हैं निसको मेघुती मंदिर कहते हैं। मंदिरके स्तम्भ चौकोर हैं और बहुत मोटे हैं । एक खंभेमें बहुत अच्छी खुदाई है। पुराने सब डिविजनल आफिसके पास उसके उत्तरमें एक जीर्ण जैन गुफा है । यहांकी मूर्ति नहीं रहीं। नगरमें पर्वतके नीचे जो रामलिंगदेवका मंदिर है उसमें जैन मदिरोंके सोलह स्तम्भ चौकोर बढ़िया हैं। इस मंदिरके पास एक घरके आंगनमें एक छोटा मंदिर है जिसमें पुराने चौकोर खंभे जन मन्दिरोंके हैं । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (५) पट्टदकल-ता० वादामी, वादामीसे ९ मील । यहां बहुतसे प्राचीन मंदिर जैन और ब्राह्मणोंके हैं, उनमें ७ वीं व ९ वीं शताब्दीके शिलालेख हैं। ये सब मंदिर द्राविड़ शिल्पके नमूने हैं। शिव मंदिरके पश्चिममें एक पुराना जैन मंदिर है। द्राविड शिल्पमें रचित है । खुला हुआ कमरा है । निसके ८ स्तम्भ हैं । मंदिरके हरदोओर सवारसहित हाथीका आधा भाग है, दृष्टिके ऊपर ५ फणका सर्प है । भीतरके कमरेमें चार चौकोर स्तंभ हैं । इसके भीतरके कमरेमें दो गोल व दो चौकोर खंभे हैं। मंदिरजी मूर्तिरहित है। एक कायोत्सर्ग नग्न मूर्ति जिसपर सात फणका सर्प है आगे चट्टानपर घुटनोंसे खंडित विराजित है । (नोट-यही वेदी पर होगी) कमरेकी छतपर जानेको एक सीढ़ी है। मंदिरके ऊपर शिषर है । उसमें भी एक कमरा है तथा उसमें प्रदक्षिणा है । मंदिरके बाहर आश्चर्यजनक कारीगरीकी खुदाई है। यह बहुत प्राचीन नगर है । टोलमी, मिश्र भूगोलवेत्ता (सन् १९०)ने इसका नाम पेटिरगाला लिखा है। (६) तालीकोटा-ता० मुद्दे विहाल । एक नगर है। यहां जुमामसजिद एक ध्वंश मकान है जिसके खंभे जैनोंके हैं । एक शिवका मंदिर पुराना है । इसमें एक लिंगके सिवाय कुछ जैन मूर्तियां हैं इसके खंभे गोल हैं । उसपर जैन मूर्तियां बनी हैं । ... (७) सलतगी ता० इंडी। इंडीसे दक्षिण पूर्व ६ मील एक पाषाणके खंभे पर देव नागरी अक्षरोंमें एक लेख शाका ८६७ का राष्ट्रकूट वंशका है। इसमें लेख है कि कृष्ण चतुर्थे (९४५-९५६) ने कर्णपुरी जिलेके पाविट्टगामें एक विद्यालय स्थापित किया । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०७ (८) अलमेली ग्राम ता० सिंदगी-यहांसे उत्तर १२ मील । यह कहा जाता है कि यहां ग्रामके पश्चिम सरोवरपर एक बड़ा जैन मंदिर था । आसपास बहुतसी नग्न मूर्तियां पाई जाती हैं। (९) वागेवाडी-बीजापुरसे दक्षिण पूर्व २५ मील । यहां लिंगायत मठके स्थापक वासवका जन्म स्थान है । वासवेश्वरका मंदिर दक्षिण मुख है जिसमें आलोंपर जैन मूर्तियां हैं और बड़ी कारीगरीके द्वारपाल हैं । रामेश्वर मंदिर भी पुराना और जैन पद्धतिका है। ___ (१०) वासुकोड-मुद्देबिहालसे ६ मील उत्तर पश्चिम । यहां १ जैन मंदिर है जिसको जाखना चार्यने बनवाया था । (११) बीजापुर-फ्रांसीस यात्री मन्देलो-जिसने सन् १६३८ और ३९ में भारत यात्रा की थी-लिखता है कि सर्व एसिया भरमें जितने बडे २ नगर हैं उनमें एक यह भी है, इसका ऊंचा पाषाणकोट १५ मीलसे ऊपर है । चौडी खाई है । बहुत दृढ़ किला है,जहां १००० पीतल और लोहेके तोपखाने हैं। बादशाही मकानको अर्ककिला कहते हैं । मलिक करीमकी मसजिद को स्थानीय लोग कहते हैं कि यह एक जैन मंदिर था। (सं० नोट) अब भी यहां कई पुराने जैन मंदिर हैं व किलेमें प्राचीन दिजैन मूर्तियां अखंडित बिराजमान हैं। यहांसे २ मील एक प्राचीन जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है, प्रतिमा १ हाथ ऊंची है । किलेकी मूर्तियें चंदावावडीसे लाई गई हैं। उनका वर्णन___ एक श्री पार्श्वनाथ ३ हाथ पद्मासन संवंत १२३२ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ م له १०८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । २ प्रतिमा प० २॥ फुट ऊंची। १ शांतिनाथकी ३ मूर्तिये १ फुट ऊंची १ स्फटिक पाषाणकी एक प्रतिमामें सं० १ ००१ विजयसूरि प्रतिष्ठाचार्य सब प्रतिमाएं ९ हैं (दि. जैन डाइरेक्टरी)। हम जब २४ मार्च १९२५को किला देखने गए तो वहां हमें ६ मूर्तियें अखंडित दि० जैनकी नीचे प्रमाण मिलीं। (१) कायोत्सर्ग २ हाथ ऊंची नं० सी ६ (२) , २ , नं०६ सी ६ (३) , २ , पार्श्वनाथ सी ३ सी (१) " २ , कृष्णवर्णसी ४ (६) पल्यंकासन २ , पार्श्वनाथ सी १ अंतिम दो प्रतिमाओंपर सं० १२३२ शाका पौष सुदी ३ मूलसंघ आदि लिखा है। ___ (१२) धनूर- कृष्णा नदीपर । हुनगुंडसे उत्तर १० मील, ग्रामके बाहर एक छोटा मंदिर जैनके ढंगका है-इसमें लिंग है । धनेश्वरका कहलाता है। (१३) हल्लूर-वागलकोटसे पूर्व ९ मील-ग्रामके उत्तरमें पहाडीपर मेलगुडी अर्थात् पहाडी मंदिर है (मेल पहाडी, गुडी= मंदिर) जो ७६ फुट लम्बा ४३ फुट चौडा और २१ फुट ऊंचा है। यह दक्षिण मुख है, बहुतहो बढिया प्राचीन जैन मंदिर है। अब इसमें लिंग रख दिया गया है । भीतोंके सहारे व सामने له Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [ १०६ आठ खड़े आसन जैन मूर्तियां हैं, हरएक पांच फुट ऊंची है। इनमेंसे चारपर सात फणका सर्पमंडप है। दूसरे चारपर दो सर्पफण फैलाये हैं । हरएक चरणके पास सर्प है। (सं० नोट-ये सब श्री पार्श्वनाथकी अपूर्व मूर्तियां हैं) इनमें कुछ खंडित हैं । मंदिर बिजलीसे नष्ट हो गया है। नोट-शायद यह मंदिर तब बना था जब ११वीं शताब्दीके करीब यहां दिगम्बर जैन बहुत रहते थे। (१४) हेब्बल-वागेवाड़ीसे दक्षिण १२ मील। ग्रामसे ३०० गज जाकर वागेवाड़ो नीदगुडी सडक है । झाड़ियोंके पीछे एक ऊंची भीतसे छिपा हुआ एक सुन्दर जैन मंदिर है। जिसमें मंडप, वेदी व कमरा है । कमरेमें २२ खंभे हैं व ४ पिलैस्तर हैं चार बीचके खंभे ८ फुट ऊंचे हैं दूसरे ६ फुट ऊंचे हैं। भीतरकी वेदीका मंदिर २५ फुट चौकोर है। इसको भी लिंगमंदिर कर लिया गया है। (१५) जैनपुर-बागलकोटसे उत्तर पश्चिम २५ मील । यह बीजापुर, बागलकोटकी सडक पर कृष्ण नदीके वाएं तटपर है। यहां पहले बैन लोग रहते थे इसीलिये जैनपुर प्रसिद्ध है। (१६) करडीग्राम-हुनगुंडसे उत्तर पूर्व १० मील । यहां तीन मंदिर व तीन पुराने शिलालेख हैं। ये मंदिर मूलमें जैनियोंके दिखते हैं । एक लेख ११५३ व एक १५५३का है । यह दूसरा लेख ग्यारहवें विजयनगर राजा सदाशिवरायका है (१९४२१९७३) Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक । (१७) कुन्टोजी - मुद्देविहाल से उत्तरपूर्व २ मील । वासेश्वरका १२४ फुट । दो मंदिर जिसमें चौतीस जैन खंभे मंदिर चार कोनोंका है । ७० फुटसे मिले हैं, इनके मध्य में एक आंगन है हैं, २२ गोल १२ चौकोर । (१८) मुद्देविहाल - बीजापुरसे दक्षिण पूर्व ४५ मील । यहां नगरके आसपास कुछ जैन खंभे पड़े हुए हैं । (१९) संगम - हुनगुंडसे उत्तर १० मील । संगमेश्वर के मंदिरके २७ खंभे जैन ढंगके हैं । इस मंदिरको ८०० वर्ष हुए एक जैन ने बनवाया था, जिसका नाम था द्यावनायक गंजीपाल । सीढ़ियोंसे नीचे मंदिरसे नदीको जाते हुए एक पाषाणकी छत्री है जिसके भूरे हरे रंगके चार गोल खंभे जैनियोंके हैं। (२० सिंदगी - बीजापुरसे उत्तर पूर्व ३५ मील। यहां संगमेश्वरका मंदिर है जिसमें बहुतसी जैन मूर्तियां हैं, कुछ खंडित हैं । (२१) सिरूर - बागलकोटसे दक्षिण पश्चिम ९ मील । ग्रामके बाहर लक्ष्मीका खुला मंदिर है जिसमें जैन खंभे हैं । बडे सरोवर के दक्षिण तटपर १८ एकड़ मूमिमें एक प्राचीन और सुन्दर सिद्धेश्वर का मंदिर (६० से ३२ फुट ) है । यह मूलमें जैन मंदिर था । भीत और खंभोंपर अच्छी खुदाई है । मंदिरके दक्षिण तरफ शिलालेख हैं, जो संस्कृत और पुरानी कनड़ीमें हैं । इनमें कोल्हापुरवंशका वर्णन है जो चालुक्योंके आधीन थे । नामशाका ९७२ से १०२१तकके हैं। मंदिर के पूर्व द्वारपर एक चबूतरा है । एक पत्थरको दो जैन खंभे थांभे हुए हैं। ग्रामके आसपास बहुतसे जैन खंभे फैले पड़े हैं। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजापुर जिला। [१११ ____तलाचकोड या बासिलहिड-वादामीसे दक्षिण ३ मील, देवीके मंदिरके पास १ झील ३६२ फुट चौकोर व २५ फुट गहरी है । इसको सन् १६८०में दो जैन सेठ शंकरसेठ और चन्द्रसेठने बनवाया था। (२२) वाचनगर-नि० बीजापुर-बीनापुरसे २० मील । प्राचीन जैन मन्दिर श्री पार्श्वनाथ कायोत्सर्गवर्णहरा ॥ हाथ (दि. जैन डा० ) (२३) पनालाका किला-यहां अम्बाबाईका प्रसिद्ध मंदिर है । जिसके चारों ओर बहुतसे प्राचीन मंदिर हैं। एक दिगम्बर जैन मन्दिर है जिसमें अब विष्णुकी मूर्ति है । मंडपके गुम्बनके नीचे बहुतसी कायोत्सर्ग नग्न जैन मूर्तियां हैं । बमातरम Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२३) धाड़वाड़ जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें बेलगाम, बीजापुर । पश्चिममें निजाम और तुंगभद्रा नदी जो मदराससे जुदा करती है। दक्षिणमें मैसूर, पश्चिममें उत्तर कनड़ा । यहां ४६०२ वर्ग मील स्थान है। इसका इतिहास यह है । ताम्रपत्रोंसे यह बात प्रगट होती है कि सन् ई० के एक शताब्दी पहले धाड़वाड़के भागोंमें उत्तर कनड़ाके वनवासीके राजा लोग राज्य करते थे। वनवासीके अन्ध भृत्योंके पीछे गंग या पल्लव वंशके राजाओंने राज्य किया था, उन्होंने पूर्वीय कदम्बोंको स्थान दिया । कदम्ब एक जैन वंश था जिसने वनवासीमें छठी शताब्दी तक राज्य किया फिर पूर्वीय चालुक्यों और पश्चिमीय चालुक्योंने ७६० तक, राष्ट्रकूटोंने ९७३ तक फिर पश्चिमीय चालुक्योंने ११६५ तक फिर कलचूरी वंशने ११८४ तक फिर होयसोलियोंने १२०३ तक फिर देवगिरि यादवोंने १२९५ तक। इसके मध्यमें आधीन रहकर कादम्बोंने भी राज्य किया जिनके राज्य स्थान वनवासी और हांगलमें थे। फिर मुसलमानोंने अधिकार किया। कहते हैं कि हांगलमें पांडवोंने निवास किया था। धाड़वाड़ गजेटियरसे यह मालूम हुआ कि कादम्ब जैन राजाओंका वंश था । जिनकी राज्यधानी वनवासी थी जो उत्तर मैसूरमें हरिहरके पास उछंगी पर है, तथा बेलगाममें हालसो पर व धाड़वाड़में त्रिपर्वत या त्रिगिरि पर थी। उनके ताम्रपत्र जो करजगीसे पश्चिम ६ मील देवगिरि पर पाए गए हैं नौ राजाओंके नाम Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला । [ ११३ गिनाते हैं और खासकर लिखते हैं कि जैन मंदिरोंके लिये ग्राम और भूमिदान किये गए । ( Fleets' Canarese dynasties 7-10 . ) धारवाड़में प्राचीन चालुक्य राज्यका सबसे प्राचीन लेख हांगलसे पूर्व १० मील आदुरमें एक पाषाणपर पाया गया है । इसमें -लेख है कि छठे पूर्वीय चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा प्रथम (ता० १६७) 1 जैन मंदिरको दान किया जिसको एक नगरसेठने बनवाया था । कादम्बराज्य के मध्य में इस लेखका मिलना इस बातको पुष्ट करता है कि कीर्तिवर्माने कादम्बोंको हरा दिया । जो बात ऐहोलके प्रसिद्ध लेखमें है । वंकापुरसे २० मील लखमेश्वर में जो तीन लेख ता० ६८७, ७२९ व ७३४ के राजा विनयदित्त्य (६८० - ६९७), विजयदित्य (६९७ ७३३), राजा विक्रमादित्य द्वि० ( ७३३ - ७४७ ) के शासन कालके मिले हैं उनमें भी जैन मंदिरों और गुरुओंको दानका वर्णन है । कलचूरी (१९६१ - १९८४), यद्यपि कलचूरी लोग जैन थे, परन्तु बज्जालको शैवधर्मपर प्रेम होगया । उसका मंत्री वासव था, उसने ऐसा अवसर पाकर लिंगायत पंथ चलाया और बहुत अनुयायी बनाकर बज्जालको गद्दीसे उतारकर आप राजा होगया । जैनियोंके कथनानुसार वज्जालके पुत्र सोमेश्वरसे भय खाकर बासव उत्तर कनड़ाके उलबीमें भाग गया और सोमेश्वर राजा हुआ । कलचूरी या कालाचूर्य - इनकी उपाधि कालंजर - परवाराधीश्वर है। इनकी उत्पत्ति कालंजर नगरसे है । जो अब बुन्देल - खंडमें एक पहाड़ी किला है । कर्निकघम साहब ( A. R. IX) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । थनानुसार ९ मी, १० वीं, ११ मी शताब्दी में यह बुन्देल - खण्डमें एक बलवान शाखा चेदीवंशकी थी । उनके वंशका संवत कालाचूरी या चेदी संवत कहलाता है- जो सन् ई० २४९ से चलता है। उनकी राज्यधानी त्रिपुरा पर थी । जो जबलपुर से पश्चिम ६ मील है । कालाचूरीके त्रिपुरा वंशके लोगोंने बहुत दफे राष्ट्रकूट और पश्चिमी चालुक्योंसे विवाह सम्बन्ध किये थे । इसी वंशकी दूसरी शाखा छठी शताब्दीमें कोन्कनमें राज्य करती थी, जहांसे पूर्वी चालुक्य राजा भंगलीशने - जो पुलकेशी द्वि० (६१०६३४ ) का चाचा था-भगा दिया था । कालाचूरी अपनेको हैहय कहते हैं और अपनी उत्पत्ति यदुवंश से कार्यवीर्य या सहस्रबाहु अर्जुनसे बताते हैं । पुरातत्व-धाड़वाड़ चालुक्य राजाओंके ढंगसे भरा हुआ है । पुरातत्वके मुख्यस्थान हैं । गड़ग, लाकडी, दम्बल, हावेरी, हांगल, अन्निगेरी, बन्कापुर, चन्ददामपुर, लक्ष्मेश्वर, नारेगल । इन सबों में बहुत सुन्दर पाषाणके मंदिर हैं जो ९ मी से १३ वीं शताब्दी तकके हैं। इनको जखनाचार्यका ढंग कहते हैं । जखनाचार्य एक राजकुमार था जिनके द्वारा अचानक एक का बध होगया था । इसके प्रायश्चित्तमें उसने बनारस से प कमोरिन तक मंदिर २० वर्ष में बनवाये । लिंगायत- इस जिलेमें चारलाख सेतीसहजार हैं ४३७००० । यह बात साधारण रीति से मानी जाती है कि लिंगायतों की उत्पत्ति १२ बारहवीं शताब्दी से है । जब एक धार्मिक सुधारक हैदरावादके कल्याणीके निवासी बासवने इस जातिकी प्रसिद्धि की और इसको Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : धाड़वाड़ जिला। [ ११५ शिवभक्त बनाया । यह माना जाता है कि जैन लोग, अधिक संख्यामें लिंगायत होगए । उस समय जैन धर्म दक्षिण महाराष्ट्रमें फैला हुआ था । It is supposed that lingayats were largely converts from Jainism which was prevalent throughout southern Mahratta country where the sect first came with prominence. मुख्यस्थान। (१) बंकापुर-ता० बंकापुर। एकनगर । बंकापुरका सबसे पहले नाम कोल्हापुरके एक शिला लेखमें आया है जो सन् ८७८ का है । उसमें वर्णन है कि बंकापुर एक बड़ा प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नगर है । इसका नाम चेलेकितन राना बंकेयारसके नामसे पड़ा है जो राष्ट्रकूट राजा अमोघ वर्ष (८५१-६९) के नीचे धाडवाडका राजा था । सन् १०७१ में गंगवंशका राजा उदयदित्य इस नगरमें राज्य करता था । सन् १४०६में बहमनी सुलतान फीरोजशाहने इसे अधिकारमें किया । यहां एक सुन्दर जैन मन्दिर रङ्गखामीका है जिसमें कई शिला लेख हैं। उनमें एक लेख शाका ९७७ ( सन् १०५५) का है जब कि चालुक्य राजा गंग परमेश्वर विक्रमादित्य देव जो त्रैलोक्य मल्लदेवका पुत्र था व कुवलालपुर नगरका महाराजा व नन्दगिरिका स्वामी था । इसके मुकुटमें हाथीका चिन्ह था व जो गंगावादित ९६००० व वनवासी १२००० पर राज्य करता था और जब कि उसके आधीन बड़ा सर्दार कादम्ब कुलतिलक राजा मयूरवर्मा १२००० वनवासीमें राज्य कर रहा था, उस Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। समय जैन मंदिरके लिये हरिकेशरीदेव और उसकी स्त्री सच्चलदेवीने भूमि दी । यह वंकापुरके पांच धार्मिक महाविद्यालयोंके स्थापक थे, नगरसेठ थे, महानन थे और सोलह (The sixteen) थे । ( सोलह थे इसका भाव समझमें नहीं आया )। नगरेश्वरके अवत्तु खम्बद वस्तीके मंदिरमें एक पुराना कनडी लेख है नं० ६में १२ लाइन हरएक २३ अक्षरकी हैं इसका भाव यह है कि शाका १०१३ में त्रिभुवनमल्ल विक्रमादिस द्वि० के अफसरने एक दान किया । नं० ७ वाई तरफ जो लेख है वह २६ अक्षरोंकी लाइनवाला ३७ लाइनमें है। इसमें कथन है कि विक्रमके ४५ वर्षके राज्यमें शाका १०४२में किरिया बंकापुरके जैन मंदिरको दान किया गया। ( Ind. Avt: IV. 203 & V 203-5. ) धाडवाड गजटियरमें है कि वंकापुरको शाहाबाजार भी कहते हैं । यह धाडवाडसे ४० मील है। यहां कादम्बोंने १०५० से १२०० तक राज्य किया जो पश्चिमी चालुक्योंके आधीन थे (९७३-११९२) । उस समय यह जैनियोंके महत्वसे पूर्ण था । At that time Bankapur Seems to hve been an important Jain centre with a Jain temple and 5 religious colleges. एक बड़ा जैन मंदिर था ( शायद वही जो रंगखामीका मंदिर कहलाता है व जिसमें ६• खंभे हैं ) तथा पांच धार्मिक महाविद्यालय थे । सन् १०९१, ११२० और ११३८ में जैन मंदिरको दान किये गए थे जिसका वर्णन नगरेश्वरके मंदिरके लेखमें है । ये दान पश्चिमके चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वि. (१०७३ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। ११२६) और उसके पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ (११२६-११३८) के राज्यमें हुए थे। यहां ही वंकापुरमें श्री गुणभद्राचार्यने अपना उत्तरपुराण शाका ८२० व सन् ८९ (में पूर्ण किया जब यह वनबासी राज्यकी राज्यधानी थी व यहां राजा अकाल वर्षका सामन्त लोकादित्य राज्य करता था । यह जैन धर्मका भक्त था । श्री गुणभद्रकी गुरुवंशावली इस प्रकार है एलाचार्य वीरसेन विनयसेन जिनसेन । दशरथगुरु अमाघवषराजा गुणभद्र लोकसेन मंडल पुरुष। श्री जिनसेन बडे भारी आचार्य व कवि व विद्वान थे-जिनसेनने श्री जयधवल टीका शाका ७५९में पूर्ण की तथा पार्शम्युदय काव्यको मान्यखडमें राजा अमोघवर्षके राज्यमें पूर्ण किया। इस काव्यको इंग्रेज विद्वानोंने मेघदूत (कालिदासकृत)से बढ़िया लिखा है। Jinasen however claims to be considered a bigħor genius than the author of cloud nosso Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । nger ( मेघदूत) पार्श्वाभ्युदय is one of the curiosities of sanskrit literature. श्री जिनसेन के समकालीन राजा इस भांति थे । (१) राजा अमोघवर्ष - प्रथम (जैनधर्मी) नृपतुंगदेव, सार्वदेव । यह बड़ा विद्वान् था, इसने संस्कृत व कनडीमें अनेक जैन ग्रन्थ बनाए । प्रसिद्ध संस्कृतमें प्रश्नोत्तर रत्नमाला व कनड़ीमें कवि - राज मार्ग अलंकार ग्रन्थ है । राज्यकाल शाका ७६६ से ७९९ तक है । इनके समयमें ही श्री जिनसेनने शरीर त्यागा । राजा अमोघवर्ष भी अतमें मुनि होगए थे । इसके पीछे ८०११ वर्ष तक अमोघवर्षके पितृव्य इंद्रराजने फिर अमोघवर्षके पुत्र अकालवर्ष या द्वि० कृष्णने शाका ८११ से ८ ३३ तक राज्य किया यह बड़ा सम्राट था । (२) धाड़वाड़ नगर - नगरके बाहर काली मिट्टीके मैदान नवलगुंड की पहाड़ी तक पूर्वओर चले गए हैं व उत्तर पूर्व प्रसिद्ध येलम्मा और पारशगढकी पहाड़ी तक (दक्षिण - पूर्वकी तरफ मूलगंडकी पहाड़ी करीब ३६ मील दूर है ) । धाड़वाड़ के दक्षिण १ ॥ मील मैलारलिंग नामकी पहाड़ी है। उसकी चोटी पर एक पाषाणका मंदिर जैन ढंगका बना है । खंभे आदि बहुत बड़े भारी पत्थरके हैं तथा उसी पाषाणकी छत बहुत सुन्दर चित्रकलासे अंकित है । एक खम्भे में फारसीमें लेख है कि इस मंदिरको मसजिदके रूपमें बीजापुर सुलतानने सन् १६८० में बदल दिया । (३) हांगलनगर - धारवाड़से उत्तर १० मील । यहां ६०० गजके करीब चौड़ा एक टीला है जिसको कुन्तीनाडिव्वा या कुन्तीका Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ ११६ झोपड़ा कहते हैं । यहां यह विश्वास है कि विदेश भ्रमणमें पांडवोंने यहां निवास किया था । इसको शिलालेखोंमें विराटकोट, विराटनगरी, पानुन्गल भी लिखा है । पश्चिमी चालुक्योंके नीचे कादम्ब वंशके राजा यहां सन् १२०० तक राज्य करते थे फिर होयसाल राजा वल्लालने अधिकार जमाया। यहां एक पुराना किलाहै जिसमें कई पुराने जीर्ण जैन मंदिर हैं-इनमें शिलालेख भी हैं। एकमें पश्चिमी चालुक्य राजा विक्रमादित्य त्रिभुवनमल्लका लेख है। (४) लाकंडी-ता० गड़गमें एक प्राचीन महत्वका स्थान है। गड़ग शहरसे दक्षिण पूर्व ७ मील। यहां ५० मंदिर व ३५ शिलालेख हैं। ये सब जाखनाचार्यके बनवाए कहे जाते हैं । सबमें पुराना लेख सन् ८६८का है । सन् ११९२में होयसालराजा वल्लाल या वीरवल्लाल (११९२-१२११)ने अपनी राज्यधानी इसी स्थान पर की तब इसका नाम लक्कीगुंडी प्रसिद्ध था। यहीं बल्लालने यादव भिल्लानकी सेनाको हराया जो उसके पुत्र जैतुगीकी सेनापतित्वमें आई थी। ग्राममें दो जैन मंदिर हैं-पश्चिममें सबसे बड़ा है, इसमें बहुत बड़ी बैठे आसन जैन तीर्थकरकी मूर्ति *। इससे थोड़ी दूर एक छोटा जीर्ण जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है, इस जैन मंदिरके चारों तरफ बहुतसे जैन मूर्तियोंके खंड पड़े हैं। एक जैन मंदिरमें ११७२का लेख है । बड़ा मंदिर बहुत सुन्दर है, शिखर भी पूर्ण रक्षित है । सन् १०७०में चोल राजाने हमला किया था तब यहांके मंदिर व लक्ष्मणेश्वरके मंदिर नष्ट किये गए थे किन्तु फिरसे दुरुस्त किये गए थे। इस जैन मंदिरमें शिल्पकला बहुत सुन्दर है ऐसा फर्गुसन साहब कहते हैं । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (५) मूलगुंड नगर - गडगसे दक्षिण पश्चिम १२ मील । यहां ४ जैन मंदिर हैं। जिनमें ३ के नाम हैं- श्री चन्द्रप्रभु श्री पार्श्वनाथ, हीरी मंदिर । हीरी मंदिरमें दो शिलालेख हैं । एक सन् १२७५ का है । चौथे जैन मंदिरमें दो लेख सन् ९०२ और १०५३ के हैं । यह स्थान वेन्तुरसे दक्षिण पूर्व ४ मील है । गड़गका पुराना नाम क्रतुक है । चंद्रनाथके जैन मंदिरकी भीतें बाहरसे देखनेयोग्य हैं । यहां ७ शिलालेख हैं (१) चंद्रनाथ मंदिर में शाका ११९७ का । इसमें मूलगुंडके राजा मदरसाकी स्त्री भामत्तीकी मृत्युका वर्णन है । (२) इसी मंदिरके एक खंभे पर शाका १५९७ का है । (३) यहीं शाका ८२५का है । राष्ट्रकूट राजा कृष्णवल्लभके राज्यमें चंद्रार्य वैश्यने मूलगुंडमें एक जैन मंदिर बनवाया व भूमि दान की । इस मंदिरके पीछे एक बहुत बडी पहाड़ी चट्टान है, उसपर २५ फुट लम्बी एक मूर्ति पूर्ण कोरी गई है व लेख है जो कुछ मिट गया है । ( ४ ) वहीं एक पाषाण है उसमें छोटा लेख है । (५) एक जैन मंदिरकी भीत पर शाका ८२४का लेख है । (६) दूसरे जैन मंदिर में शाका ९७५ का है । (७) हीरी मंदिरमें शाका ११९७का है । मूलगुंडमें एक शिलालेख पर यह वर्णन है श्री चंद्रप्रभुको नमस्कार हो - चीकारी जिसने जैन मंदिर बनवाया था उसके पुत्र नागार्ग्यके छोटे भ्राता आसाने दान किया । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२१ यह आसार्य नीति और धर्मशास्त्रमें बड़ा विद्वान था इसने नगरके व्यापारियोंकी सम्मतिसे १००० पानके वृक्षोंके खेतको सेनवंशके आचार्य कनकसेनकी सेवामें मंदिरोंके लिये दान किया। यह कनकसेन मीरव व वीरसेनका शिष्य था । यह वीरसेनजी पूज्यपाद कुमारसेनाचार्यके संघके साधुओंके गुरु थे। __ (६) नारैगल नगर-ता० ऐन । धाडवाडसे पूर्व ५५ मील । यह प्राचीन नगर है। मंदिर हैं व लेख १२ से १३ शताब्दीके हैं। (७) रत्तीहल्ली-ग्राम ता० कोड-यहांसे दक्षिण पूर्व १० मील ३६ खंभोंका मंदिर जखनाचार्यके ढंगका है। यहां ७ शिलालेख ११७४से १५५• तकके हैं, एक ध्वंश किला है। (८) रोननगर-धाड़वाड़से ५५ मील । यहां सात काले पाषाणके मंदिर हैं एकमें लेख ११८०के अनुमानका है। (९) शिग्गांव-ता० बंकापुर-यहां वासप्पा और कलमेश्वरके मंदिरोंमें १. शिलालेख हैं। (१०) अमिनभवी-धाडवाइसे उत्तर पूर्व ७मील। यहां ग्रामके उत्तरमें एक प्राचीन जैन मंदिर श्री नेमिनाथनीका बहुत बड़ा है। ४० गज लम्वा है, बहुतसे खंभे हैं। यहां तीन शिलालेख हैं। (११) हेव्बल्ली-धाड़वाड़के उत्तर ८ मील पूर्व-व्यारहट्टीसे ५ मील । यहां गांवके दक्षिण संभूलिंगका मंदिर है जिनमें जैन रीतिका शिल्प है । यह करीब ५७ फुट लम्बा है। (१२) चब्बी-हुबलीसे दक्षिण ८ मील-इसका प्राचीन नाम सोभनपुर था । यह प्राचीनकालमें जैन राजाकी राज्यधानी था। उस समय यहां सात जैन मंदिर थे जिनमें अब प्रामके मध्यमें Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । एक रह गया है। विजयनगरके राजाओंने इसकी उन्नति की थी। तथा कृष्णराजा (सन् १९०९-१५२९) ने यहां और हुबलीमें किला बनवाया । इस छव्वीका वर्णन सबसे पहले यहांसे उत्तर ४ मील आदरगुंचीके एक पाषाणमें आया है जिसमें लेख सन् ९७१ का है। जिसमें एक दानका वर्णन आया है जो छन्वी (३०) के अधिपति पांचलने किया था । ( Ind. Antiquary XII 255.) (१३) आदरगुंची-छव्वीसे उत्तर ४ मील । यहां एक बड़ी जैन मूर्ति व शिलालेख है । __(१४) हुबली-यहां एक जीर्ण जैन मंदिर है । जिसका फोटो Dharwar and Mysore architeture नामकी पुस्तकमें दिया है। (१५) सोरातुर-सिरहट्टीसे पूर्व उत्तर २ मील व मूलगुंडसे पूर्वदक्षिण ६ मील । यहां एक जैन मंदिरमें शिलालेख शाका ९९३ का है। ( Ind. Ant. XII a56). (१६) अरतलू-ता० वंकापुर-शिग्गांवके पश्चिम ६ मील । यहां १ जैन मंदिर है जो सन् ११२०के अनुमान बना था। ___ (१७) कल्लुकेरी-हांगलसे दक्षिण पूर्व १२ मील व तिलिवल्लीसे पूर्व ६ मील । यहां वासरेश्वरका मंदिर जैन ढंगका है । भीतोंपर मूर्तियां व शिल्प दर्शनीय है। (१८) यलवत्ती-नीदसिंगीसे दक्षिण १॥ मील। यहां पुराना जैन मंदिर है। भीतपर नकाशी हैं। एक मूर्ति विना बनी पड़ी है। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२३ ___ (१९) कर गुद्री कोप-हांगलसे ५ मील । नारायणके मंदिरके दक्षिण या ग्रामके पश्चिम एक संरक्षित कादम्ब वंशावलीको पूर्ण दिखानेवाला शिलालेख १०३० का है । __ (२०) मुत्तूर-तडससे पश्चिम ३ मील । यहां जैन ढंगका मंदिर है। ___(२१) भैरवगढ़-हैतुरसे उत्तर, तुङ्गभद्रा नदीपर । रत्तीहल्लीसे १० मील दक्षिण पूर्व इसका प्राचीन नाम सिंधुनगर था । यह सिंधुवल्लाल वंशकी राज्यधानी था जिनका कुलदेवता भैरव था ( नोट-यहां जैनस्मारक मिल सक्ते हैं ) (२२) लक्ष्यमेश्वर-शिग्गांवसे उत्तर पूर्व २१ मील व करजगीसे उत्तर २० मील, इसका प्राचीन नाम पुलिकेरी है । यहां बडे महत्वके मंदिरोंका समूह है । जिनमें मुख्य है। (१) संखवस्ती-यह प्राचीन जैन मंदिर है । नगरक मध्यमें ३६ खंभोंसे छत थंभी हुई है । (२) हलवस्ती मह छोटा जैन मंदिर है । संख वस्तीमें ६ लेख हैं। ( Ind. Ant. VII. P. IoT III ). इन लेखोंका कुछ भाव यह है । __ लक्ष्मेश्वरके संखवस्तीके लेखोंका वर्णन (१) एक पाषाण ५ फुट ऊंचा २ फुट चौड़ा है इसमें पुरानी कनड़ीमें ८२ लाइन है। दशवीं शताब्दीका लेख है। इसमें तीन भिन्न २ लेख हैं। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नं० १-५१ लाईन तक है। गंगवंशीय मारसिंहदेव सत्त्यवाक्य कोंगनीवर्मा अर्थात् गंगकदर्पने शाका ८९० में विभवसंवत्सरमें जैन गुरु जयदेवके पुलिगेरी (लक्ष्मेश्वरका पुराना नाम) शहरके भीतरकी कुछ जमीनें राजा गंगकंदर्प (स्वयं) द्वारा निर्मित या जीर्णोद्धारित श्री जिनेन्द्रके जैन मन्दिरकी सेवाके लिये दी। वंशावली इस तरह दी है माधव कोंगनीवर्मा या माधव प्रथम माधव द्वि० हरिवर्मा मारसिंह नं० २-५१ ला०से ६१ तक-सेन्द्र वंशका लेख । इस लेखमें चालुक्य राजा रणपराक्रमांक और उसके पुत्र एरय्याका वर्णन है । तब राजा सत्त्याश्रयका कथन है फिर राजा सत्याश्रयका समकालीन राजा दुर्गाशक्ति था। जो भुजेन्द्र या नागवंशकी शाखा सेन्द्रवंशमें प्रसिद्ध विजयशक्तिके पुत्र कुन्दशक्तिका पुत्र था । राजा दुर्गाशक्तिने जिनेन्द्रके मंदिरके लिये पुलिगेरीमें भूमिदान दी। नं० ३-६१से अन्ततक-यह पश्चिमीय चालुक्य वंशीय विक्रमादित्य द्वि० (शाका ६५६) का लेख है जो इसने रक्तपुर अपने विजयस्थलसे प्रसिद्ध किया । इसमें कथन है कि पुलिगेरीके संखतीर्थ वस्तीका जीर्णोद्धार कराया व जिनपूजाके लिये कुछ भूमि दान की। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२५ नोट-पहले भागमें कथन है कि देवगणके सिद्धांत परगामी श्री देवेन्द्र भट्टारकके शिष्य मुनि एकदेवके शिष्य जयदेव पंडितको दान किया। नं० तीसरेमें है कि-मूलसंघ देवगणके श्री रामचंद्र आचार्यके शिष्य श्री विजयदेव पंडिताचार्यको दान किया गया जो जयदेव पंडितके गृहशिष्य थे। (२३) आदुर-हांगलसे पूर्व १० मील । यहां एक शिलालेख संस्कृतमें छठे चालुक्यराजा कीर्तिवर्मा प्रथम (सन् ५६७) का है जिसने जैन मंदिरको दान किया था। चौथा शिलालेख तेरहवें राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वि० (सन् ८७५ से ९११) या अकालवर्षका है । जैसा कि लेखमें हैं । इसमें चिलकेतन वंशके महासामंतका वर्णन है जो वनवासी (१२०००) का स्वामी था । एक शिलालेख सन् १०४४का पश्चिमी चालुक्यराज्य सोमेश्वर प्रथमका है । इनके समयके ४० लेख सन् १०४२ से १०६८ तकके मिले हैं (Fleet's Canarese Dynasty) (२४) दम्बल-गड़गसे दक्षिण पश्चिम १३ मील एक प्राचीन नगर है । दक्षिणमें एक जीर्ण पाषाणका किला है जिसके भीतर एक जीर्ण जैन मंदिर है। (२५) देवगिरि-करजगीसे पश्चिम ६ मील। इसको त्रिपर्वत भी कहते हैं। यहां एक सरोवरको खोदते हुए सन् १८७५७६में कई ताम्रपत्र मिले हैं । ये सब प्राचीन कादम्ब राजाओं के दानपत्र हैं जो पांचवीं शताब्दीके करीब हुए थे। अक्षर पुरानी Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । कनड़ी व भाषा संस्कृत है । एकमें है कि महाराजा कादम्ब श्री कृष्णवर्मा के राजकुमार पुत्र देववर्माने जैन मंदिरके लिये एक खेत दिया । इसमें यापनीय संघका वर्णन है और है कि श्री कृष्ण - कादम्ब वंशका शिरोमणी था तथा युद्धका प्रेमी था । दूसरा लेख कहता है कि काकुष्ठवंशी श्री शांतिवर्मा के पुत्र कादम्ब महाराज मृगेश्वर वर्माने अपने राज्यके तीसरे वर्ष कार्तिक वदी १० को परके एक जैन मंदिरके लिये खेत दिये। यह दान वैजयन्ती या वनवासी में किया गया । तीसरा ताम्रपत्र कहता है कि इसी मृगेश्वर वर्माने जैन मंदिरों और निर्ग्रन्थ तथा श्वेतपट दो जैन जातियोंके व्यवहार के लिये एक काल बंग नामका ग्राम अर्पण किया । ( Ind. Ant. VIl 33 34 ) (२६) हत्तीमत्तूर - करजगी से उत्तर ५ मील । यहां एक पाषाण मिला है । पुरानी कनडीमें लेख है । आठवें राष्ट्रकूट राजा इन्द्र चौथे या नित्य वर्ष प्रथमके राज्य सन् ९१६ (शा० ८३८) में शायद जैन संस्थाके लिये महा सामन्त लेन्देयरारने कच्छवर कादम्बका वुटवर ग्राम दान किया । यह सामन्त पुरीगेरी या लक्षमेश्वर ३०० का स्वामी व पल्टिय मल्टयूरका महाजन था । यह इस ग्रामका पुराना नाम था । (२७) निदगुन्डी - वंकापुरसे पश्चिम ५ मील । यहां ५ शिलालेख हैं । उनमें से एक चौथे राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम ( ८५१ - ८७७) के राज्यमें उसके आधीन चिलकेतन वंशके केरायोंके आधीन वनवासी (१२०००), वेलवाला (३०० ) Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२७ कुन्दूर (१००), पुरीगेरी या लक्ष्मेश्वर ३०० तथा कुन्दरगी (७०) का आधिपत्य था। . (२८) आरटाल-तहसील बंकापुर-हुबलीसे २४ मील । यहां जंगलमें एक प्राचीन पाषाणका मंदिर श्री पार्श्वनाथ स्वामीका है । मूर्ति बड़ी कायोत्सर्ग है । प्राचीन कनड़ीमें शिला लेख है । शाका १०४५में मंदिर बना सत्याश्रय कुल तिलक चालुक्य राजम् भुवनैकमलविजय राज्ये । (दि. जैन डाइरेक्टरी, नकल लेख भी दी है) __(२९) सुन्दी-ता० रोन यहां जैन मंदिरके सम्बन्धमें एक शिलालेख है जो ( Fleet's Canarese Dynasty ). में दिया है। उसका सार यह है कि इस लेखमें पश्चिमीय गंगवंशी राजकुमार बुटुगका वर्णन है । जिसने आतकूर-के शिलालेखके अनुसार चोल राजा दित्त्यको उस युद्ध में मारा था जो दित्त्यसे और राष्ट्रकूट राजा कृष्ण हि० से करीब सन् ९४९ में हुआ था । इस लेख में भूमिदान उस जैन मंदिरको है निसको उसकी स्त्री दिवलम्बाने सुन्दीके स्थापित किया था। यह राना बुटुग ९६००० ग्रामोंके गंग मन्डलपर राज्य करता था । पुरिकरमें राज्यधानी थी। शाका ८६० कार्तिक सुदी(को इसने जो कि श्रीमान् नागदेव पंडितका शिष्य था ६० निवर्तन भूमि अपनी स्त्री दिवलम्बाके बनाए हुए चैत्यालयके लिये दी । इस स्त्रीने छः आर्यिकाओंका समाधिमरण कराया था तथा इस प्रसिद्ध जैन मंदिरको बनवाया था। यह लेख संस्कृतमें है । वंशावली नीचे प्रकार है वंशक्ष पश्चिम गंगराजा। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (१) जान्हवी वंश कान्वायन गोत्रीय प्रसिद्ध कोंगुणी वर्मन् माधव प्रथम-जिसने दत्तकसूत्रपर टीका लिखी है। हरिवर्मन् विष्णुगोप माधव द्वि० परमेश्वर या अविनीति-यह माधवकी बहनका लड़का कादम्बवंशीय कृष्ण वर्मनका | पुत्र था। दुबिनीत-किरातार्जुनीयके १५ अध्यायोंका कता। मुश्कर श्रीविक्रम भूविक्रम शिवमार श्री पुरुषकोंगुणी वर्मन् शिवमार सैगोत्तकों गुणी वर्मन् विनयदित्य Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२६ विनयदित्य राजमल्ल सत्यवाक्य कोगुणी वर्मन् एरगंग नीतिमार्ग कोंगुणी वर्मन राजमल्ल सत्य वाक्यकों० गुणदत्तरंग वुटुग (इसने पल्लव राजाको लूटा व अमोघ वर्षकी कन्या अव्वलब्बा व्याही) कुमार वेदेंग-एरगंग नीतिमार्ग कोंगुणी वर्मन् (इसने पल्लवोंको जंतिप्पेरुपेअरु पर हराया) वीर वेदेंग नरसिंह सत्यवाक्य कोंगु० कच्छेयगंग राजमल्ल जयदत्तरंग, गंगगांगेय, गंगनारायण, नीतिमार्ग कों० वुटुग, सत्यनीति वाक्य को० सन् ९३८में इसकी स्त्री दिवलम्बा थी। इसी वुटुगने तंजापुर घेर लिया था और राजा दित्यको जीता था। - - Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२४) उत्तर कनड़ा जिला। उसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें बेलगाम, पूर्व धारवाड़, मैसूर; दक्षिणमें मदरास प्रांतीय दक्षिण कनड़ा; पश्चिममें अरब समुद्र ७६ मील रह जाता है । उत्तर-पश्चिम गोआ । यहां ३९४५ वर्ग मील भूमि है । शरवती नदी-होनावरसे पूर्व ३५ मीलके करीब ८२५ फुट ऊंची चट्टानके ऊपरसे गिरती है । यही प्रसिद्ध जरसोप्पा फाल Gorsoppa Fall कहलाता है । इतिहास-यहां सन् ई० के पहले तीसरी शताब्दीमें राजा अशोकने बनवासीको अपना दूत भेजा था। यहां जो बहुतसे शिलालेख मिले हैं उनसे प्रगट है कि यहां वनवास के कादम्बोंने, फिर राहोंने, फिर पश्चिमीय चालुक्योंने फिर यादवोंने क्रमसे राज्य किया । यह बहुत काल तक जैन धर्मका दृढ़ स्थान रह चुका है। It was 'for long a stronghold of Jain . religion. सन् १६००में यह विजयनगरके राजाओंके आधीन था । पुरातत्व-इस निलेमें विशेष महत्वके स्थान बनवासी जरसप्पा, और भटकलके जैन मंदिर हैं । वनवासीका मंदिर जिसके लिये यह प्रसिद्ध है कि यह जाखनाचार्यका बनाया हुआ है, बहुत बड़ा है। इसमें बहुत सुन्दर मूर्तियां व चित्रादि कोरे हुए हैं। इसके आंगनमें एक खुला पत्थर पड़ा है निसमें दूसरी शताब्दीका लेख है। ___ वर्तमान जरसप्पा नगरके पास नगर वस्तीकेरीने कई जैन मंदिर हैं जो इस बातको बताते हैं कि यह एक पुराना नगर था । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला । [ १३१ यद्यपि समयके फेरसे ये बहुत नष्ट होगए हैं, परन्तु इनमें २३ वें और २४ वें तीर्थंकरोंकी मूर्तियां अभीतक ठीक हैं। बड़े सुन्दर कृष्ण पाषाणकी हैं। भटकलमें अभी तक १४ जैन मंदिर मौजूद हैं जो पंद्रहवीं शताब्दीमें प्रसिद्ध चन्नभैखदेवीके राज्यके समयसे हैं। भटकल—जरसप्पा और वनवासीमें बहुत लेख कनड़ी भाषा में पाए गए हैं: मुख्यस्थान | (१) बनवासी ( बनवासी ) ग्राम तालु ० सिरसी, बरदा नदी तटपर, सिरसी से १४ मील । यह प्राचीनकालमें बड़े महत्वका स्थान था । यहां कादम्ब राजाओं की राज्यधानी रह चुकी है । जो जैन मंदिर पश्चिमकी तरफ बड़ा है उसमें १२ शिलालेख दूसरी शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक हैं । Ptolemy टोलमी ने इसका वर्णन किया है । सन् ई० से तीसरी शताब्दी पहले बौद्ध पुस्तकों में भी इसका नाम आया है । बनवासी (१२०००) को तेरहवीं शताब्दी में देवगिरि यादवोंने ले लिया । इसका प्राचीन नाम जयन्तीपुर था । पांचवीं शताब्दीमें कादम्ब वंशका राजा मयूरवर्मा बहुत प्रसिद्ध हुआ । उसने चालुक्य राजाओंसे मित्रता कर ली थी । सन् १०७५ में यह जिला भुवनैकमलके सेनापति उदयदिसके आधीन था, उस समय विक्रमादित्यने १०७६ में उसपर अधिकार किया । इसने इस जिलेको अपने भाई जयसिंहको दे दिया । उसने झगड़ा किया तब यह जिला वर्मदेवको दिया गया तथा ११५७ में कलचूरी लोगोंने चालुक्योंका विरोध किया तब चालुक्योंने अपना Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । अधिकार स्थिर रक्खा यहां बहुतसे शिलालेख विभु विक्रम धवलपरमादिदेव तथा कादम्ब सर्दार कीर्तिवर्मदेव शाका ९९०के हैं। ( India Antiquary IV Vol 205-6) भटकल या मुसगडी या मणिपुर-यह एक नगर तालुका होनावरमें हैं जो होनावरसे २४ मील दक्षिण हैं, यह एक नदीके मुख पर बसा है जो अरब समुद्रमें गिरती है । कारवारसे दक्षिण पूर्व ६४ मील है । चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दिमें यह व्यापारका स्थान था । कप्तान हौमिलटन (१६९०से १७२०)के कहनेके अनुसार यहां एक भारी नगरके अवशेष थे। तथा १८ वीं शताब्दिके प्रारंभमें यहां बहुतसे जैन और ब्राह्मणोंके मंदिर थे । ___उन मंदिरोंमेंसे जानने योग्य महत्वके जैन मंदिर नीचे भांति हैं। जैन मंदिरोंकी रचना बहुत प्राचीन कालकी है। उनमें अग्रसाला है, मंदिर है, ध्वजा स्तंभ है। (१) जत्तपा नायक चंद्रनाथेश्वर वस्ती-यह यहां सबसे बड़ा जैन मंदिर है। एक एक खुले मैदानमें हैं। चारों तरफ पुराना कोट है । इसमें अग्रसाला, भोगमंडप तथा खास मंदिर है। मंदिरमें दो खन हैं। हरएक खनमें तीन२ कमरे हैं, जिनमें श्री अरह, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि तथा पार्श्वनाथकी मूर्तियां हैं। परन्तु ये सब प्रायः खंडित हैं। इस मंदिरके पश्चिम भोगमण्डपकी दीवालोंमें सुन्दर खिडकियां लगी हैं । अग्रशालाका मंदिर भी दो खनका है हरएकमें दो कमरे हैं जिनमें श्री ऋषभ, अजित, संभव, आभनन्दन, तथा चद्रनाथेश्वरकी प्रतिमाएं हैं । द्वारपर द्वारपाल भी हैं। इसकी कुल लंबाई ११२ फुट है, आगे मंदिरकी चौड़ाई Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उत्तर कनड़ा जिला। [ १३३ ४० फुट है । तथा भीतर मंदिरकी चौडाई ५० फुट है । ध्वजा दंड-एक बहुत सुन्दर स्तंभ है जो १४ वर्ग फुट चबूतरेपर खडा है । इसका स्तंभ एक पाषाणका २१ फुट ऊंचा है ऊपर चौकोर गुंबज है। वस्तीसे पीछे एक छोटा स्तंभ है जिसको यक्ष ब्रह्म खंभा कहते हैं । इसका खंभा १९ फुट लम्बा है । यह एक चबूतरेपर हैं जिसके ऊपर चार कोनेमें चार छोटे खंभे हैं उनपर आले हैं । जत्तपा नायकने इस मंदिरकी रक्षाके लिये बहुतसी जमीनें दी थीं परन्तु उनको टीपू सुलतानने लेलिया । यह मंदिर भटकलमें सबसे सुन्दर पुराना मंदिर है तथा इसकी रक्षा अच्छी तरह करनी चाहिये । ग्रामवाले अपनी मरज़ीसे यहांके सुन्दर पाषाणोंको उठा ले जाते हैं। ____ (२) श्री पार्श्वनाथ बस्ती-५८ फुट लम्बी व १८ फुट चौडी है । शिलालेखके अनुसार यह शाका १४६५ में बना था। ध्वना स्तंभ-एक ऊंचे टीले पर सुन्दर स्तंभ है । ऊपर एक छोटा मंडप है जिसमें चौतरफ मूर्तियां हैं । (३) शांतेश्वर बस्ती-यह करीब२ चंद्रेश्वर बस्तीके समान है। तथा थेतवाल नारायण देवस्थान जो सुन्दर कारीगरीके साथ काले पाषाणका बना है तथा शांतप्पा नायक तिरुमल देवस्थान और रघुनाथ देवस्थान भी देखने योग्य है । . यहां बहुतसे शिलालेख हैं जैसे (१) चन्द्रनाभ बस्तीमें ७० लाइनका, (२) वहीं ७९ लाइनका, इसके पीछे ६३ लाइनका, ता० १४७९ नल संवत्सर, (३) इसीके आंगनके दक्षिण पूर्वकोने में जिसमें जैन चिन्ह हैं, (४) पार्श्वनाथ बस्तीमें शाका १४६८ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । विश्ववसु संवत्सर, (५) उसीमें, (६) उसीमें शा० १४६५ प्लव सं०, (७-८) उसीके पीछे, (९) शांतेश्वर मंदिरके आंगनमें इसमें बहुत सुन्दर विराट क्षेत्रपाल अंकित हैं ऊपर लेख शा० १४६५, (१०) एक छोटा, (११) वहीं दो पत्थर बड़े जो दब गए हैं, (१८) चतुर्मुख बस्तीमें जिसके पत्थरोंको गांववाले उठा ले गए हैं। एक झाड़ीमें एक सुन्दर बडा शासन है जिनमें जैन चिन्ह हैं, (१९) उसीके पास भाट कलसे दक्षिण पश्चिम आध मीलपर एक पाषाणका पुल है जिसको जैन राजकुमारी चन्नभैरवदेवीने १४५० में बनवाया था । पहाडीके ऊपर एक रोशनी घर है जो ८ मीलसे दिखता है। (३) चितकुल-ग्राम ता० कारबार। यहांसे उत्तर ४ मील यह समुद्र तटपर है । एक बडा स्थान रह चुका है । इसका नाम सिंधपुर, चिंतपुर, सिंतबुर सिंतकुल, सिंतकोरस, चित्तीकुल, चितिकुल भी प्रसिद्ध हैं। अरब यात्री मसौदी (९००के लगभग)से लेकर इंग्रेज भूगोल वेत्ता ओगिलवी (१६६० के लगभग) तक इसका वर्णन करते हैं । ( यहां जैन चिन्होंको तलाश करना चाहिये )। ___ (४) जरसप्पा नाम-तालु० होनावर । यहांसे पूर्व १८ मील शरावती नदीपर । जरसप्पा झरनेसे भी इतनी दूर है। इस मामसे १॥ मील नगरवस्तीकेरीके बहुत बडे जीर्ण मकान हैं । यह जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९-१६१० ) का राज्य स्थान था । स्थानीय लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि अपने महत्वके दिनोंमें यहां १ एक लाख घर तथा ८४ चौरासी मंदिर थे। सबसे बड़े महत्वका मंदिर एक चौमुखा जैन मंदिर है जिसके चार द्वार हैं Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [१३५ व उनमें चार प्रतिमाएं हैं। पांच और जीर्ण जैन मंदिर हैं जिनमें मूर्तियें व शिलालेख हैं। श्री वर्द्धमान या महावीरस्वामीके मंदिरमें एक सुन्दर कृष्ण पाषाणकी मूर्ति श्री महावीरस्वामी चौवीसवें तीर्थंकरकी है । इसमें ४ शिलालेख हैं । यह किम्वदन्ती है कि विजयनगरके राजाओं (१३३६-१५६५) ने जरसप्पाके जैन वंशको कनड़ामें उन्नत किया। बुचानन साहब कहते हैं कि हरिहरके वंशके राजा प्रतापदेवराय त्रिलोचियाकी आज्ञासे जरसप्पाके सरदार इचप्पा बौदियारु प्रतिनीने सन् १४०९में मनकीके पास गुणवंतीके जैन मंदिरको दान किया था । इचप्पा सरदारकी पोती विजयनगर राजाओंसे करीब २ स्वतंत्र हो गई। तबसे यहांका राजत्व प्रायः स्त्रियोंके हाथमें रहा है, क्योंकि करीबर सर्व ही १६ वी व १७ वीं शताब्दीके प्रथम भागके लेखक जरसप्पा या भटकलकी महारानीका नाम लेते हैं। १७ वीं शताब्दीके शुरूमें जरसप्पाकी अंतिम महारानी भैरवदेवी पर वेदनूरके राजा वेंकटप्पा नायकने हमला किया और हरा दिया। स्थानीय समाचारके अनुसार वह सन् १६०८ में मरी। सन् १६२३ में इटलीका यात्री डेलावैले Dellavalle इस स्थानको प्रसिद्ध नगर लिखता है। तथा उस समय नगर व राजमहल ध्वंश हो गया था, उनपर वृक्ष उग आए थे । यह नगर काली मिर्च pepper के लिये इतनाप्रसिद्ध था कि पुर्तगालोंने जरसप्पाकी रानीको "Rainbada. Pirnanta' अर्थात् pepper queen लिखा है । ऊपर लिखित चर्तुमुख मंदिरका विशेष वर्णन यह है कि यह बाहरके द्वारसे भीतरके द्वारतक ६३ फुट लम्बा है। मंदिर २२ फुट Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वर्ग है । बाहर २४ फुट है। चार बडे मोटे गोल खंभे हैं, उनपर टांडें लटक रही हैं । मंडप व मंदिरके द्वारोंपर हरतरफ द्वारपाल मुकुट सहित हैं। भूरे पाषाणका मंदिर है। इसके शिषरके पाषाणोंको होनावरके मामलतदारने दूसरे मंदिरमें ले लिया है। यहां नेमिनाथका मंदिर भी अच्छा है । मूर्ति बडी सुंदर व बडी अवगाहना की है। आसन गोल है । उसके पीछे शिल्पकारी अच्छी है आसनके किनारे कनड़ी अक्षरोंमें दो श्लोक हैं । श्री पार्श्वनाथके मंदिरमें बहुतसी मूर्तियां दूसरे मंदिरसे लाई गई हैं। उनमें एक पांच धातुकी बड़ी ही सुन्दर है। इसके पश्चिम एक बड़ा पाषाणका मकान है उसमें १२ दि० जैन मूर्तियें खड़गासन विराजमान हैं। कांदेवस्तीके मंदिरमें छत नहीं रही परंतु कृष्णवर्ण १पार्श्वनाथकी मूर्ति ४। फुट ऊंची है उस पर शेषफण बहुत ही सुन्दर कारीगरीके हैं। शिलालेखोंका वर्णन-श्री वर्धमान स्वामीके मंदिरमें (१) पाषाण ६ फुट ऊपर जिनमूर्ति है, दो पूजक हैं । नीचे गाय व बछडा है व लम्बा लेख है, (२) १ पाषाण ४ फुट लंबा ऊपर श्री जिनेन्द्र चमरेन्द्र सहित, बीचमें दो समुदाय पूजकोके हैं। हर तरफ १ ऊंची चौकी है। नीचे हर तरफ स्त्रियां पूजक हैं। वैसी ही चौकी है । (३) १ पाषाण ५ फुट लंबा दूसरेके समान करीब २ (४) मंदिरके पीछे भूमिमें दबी श्री पार्श्वनाथ मंदिरके पूर्वकोंनेमें तीन पाषाण खुदे हुए ऊपरके समान हैं । कादेवस्तीकी भीतके बाहर एक लेख ४ फुटका है। जरसप्पासे घाटकी तरफ जाते हुए ५ या ६ मीलपर एक Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [१३७ पुराना कनड़ी शिलालेख है जो सड़क किनारे खड़ा है। (५) मनकी-ग्राम, ता० होनावर, यहां बहुतसे जैन मंदिरोंके अवशेष हैं जो इस बातको बताते हैं कि किसी समय यहां जैनियोंका बडा जोर था ! बहुतसे शिलालेखोंसे यहांका महत्व झलक रहा है। (६) सोनडा-ग्राम, ता० सिरसी, यहांसे उत्तर १० मील यहांका पुराना किला बडे महत्वका है। यहां स्मार्त, वैष्णव और जैनके मठ हैं । सोंडाके राजा विजय नगरके राजाओंकी शाखा थी जो सोंडामें (१९७०-८०)में वसे। सोंडा ष्टेशनसे ३ मील पश्चिम त्रिविक्रमका मंदिर है। सामने लम्बा ध्वजास्तंभ है। यह बात प्रसिद्ध है कि दक्षिण कनड़ाके उड़पी मठके आठ साधुओंमें से एक श्री वादिराज स्वामी बड़े प्रसिद्ध थे-उन्होंने अपने तपके बलसे नारायण भूतकी सहायतासे इस मंदिरको बद्रिकाश्रमसे सोंडामें उठा मंगाया और आप स्वयं उसमें स्थापित होगए । उनका नाम त्रिविक्रम देव हुआ। (नोट-यह वादिराजस्वामी अवश्य जैनाचार्य विदित होते है। इस मंदिरको देखकर इस कथाका भाव समझना चाहिये। सं०) यहां जैनियोंका मठ आठवीं शताब्दीका है । एक पुराने आदीश्वर भगवानके जैन मंदिरमें बहुत ही पुराना शिलालेख है। इसमें यह लेख है कि राजा इमोदी सदाशिवरायने शाका ७२२ व सन् ७९९ में दान दिया। दूसरा लेख सन् ८०४का जैन मठमें था । जो चामुंडराय राजाके राज्यका था, जो चामुंडराय दक्षिणके सब राजाओंका मुख्य था । यह एक जैन राजा था । दानपत्रमें Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लेख है कि इस राजाके पुरुषाओंने अर्थात् सदाशिव और वल्लालने बौद्धोंको परास्त किया । तीसरा लेख सन् ११९८ का जैन मठमें सुद्धिपुरके सदाशिव राजाका है । (७) उलवी-ग्राम ता० हलियल । यहां बहुत प्राचीनकालके कुछ मंदिर हैं। (८) विदरकन्नी-या वेदकरनी-विलगीसे सिद्धापुरको जाते हुए सड़कपर एक छोटा जैन मंदिर है जिसमें बहुतसे पाषाण नक्काशीके हैं। (९) विलगी-सिद्धपुरसे पश्चिम पांच मील । यहां महत्वकी वस्तु श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार सन् १६५० में राझप्पराजाके पुत्र जैनकुमार घंटेवादियाने कराया था । इसमें श्री नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और श्री महावीरजीकी मूर्तियें स्थापित की । यह मंदिर बहुत बढ़िया नक्काशीका है। तथा द्राविडी ढंगका है। जैसा पश्चिम मैसूरके हलेविड या द्वार समुद्र में होयसाल वल्लाल मंदिर विष्णुका है । दो शिलालेखोंमें वर्णन है कि नौ ग्राम तथा चावल दान किये गए। विलगीका प्राचीन नाम श्वेतपुर था । ऐसा कहा जाता है कि इसको जैन राजा नरसिंहके पुत्रने स्थापित किया था जो विलगीसे पूर्व ४ मील होसूरमें १५९३ के अनुमान राज्य करता था। कहते हैं श्री पार्श्वनाथके मंदिरको नगर वसानेवाले जैन राजाने बनाया था । श्री पार्श्वनाथ मंदिरके द्वारके भीतर दो बड़े शिलालेख ६ फुट शाका १५१० व ६॥ फुट शाका १५५० के हैं । (१०) हादवल्ली-भटकलसे उत्तर पूर्व ११ मील । यहां Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर कनड़ा जिला। [ १३६ पुराने मकानोंके ध्वंश हैं। पहले यह बड़ा समृद्धिशाली जैन नगर था। यहां तीन जैन मंदिर भटकलके समान हैं उनमेंसे दोतो ग्राममें हैं व एक चन्द्रगिरि पर्वतपर जीर्ण है। (११) होनावर-एक व्यापारका प्राचीन स्थान । यह शिरावती या जरसप्पा नदीके तटसे दो मील है। यही हनुरुहद्वीप है। जिसका वर्णन पम्प (९०२-४३ ) ने जैन रामायणमें किया है । यूनान लोगोंने इसको नबुरके नामसे कहा है। (१२) कलटीगुडड-एक पर्वत २५०० फुट ऊंचा होनावरसे उत्तर पूर्व १० मील यह स्थान जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९१६१०) के आधिपत्यमें एक महत्व पूर्ण हाविग संस्थान था । (१३) कुम्ता-रूईको जहाजपर लादनेका खास बंदर । यह याद्री नदीसे ३ मील है । यह जैनवंशका मुख्य स्थान था जिनके हाथमें दक्षिण होनावर तक स्थान था । (Buchanan Mysore and Canara III 53 ) (१४) मुर्देश्वर-होनावरसे दक्षिण १३ मील । व वैलूरसे दक्षिण ३ मील । एक कंदुगिरि नामकी छोटी पहाड़ीपर एक जैन मंदिर है जिसको कहा जाता है कि कैकुरीके जैन राजाओंने बनवाया था । यहां बहुतसे पाषाणोंपर अच्छी नक्कासी बनी हैं । फसली १२२१ में सर्कार इस मंदिरको १४४०) वार्षिक देती थी। यहां ३१ शिलालेख शाका १३३६ और १३८१ के हैं । स्कूलके पश्चिम ५० गजपर १ जैन लेख ५४ लाइनका है हरएकमें ५० अक्षर हैं ।बंगलोंसे उत्तर पश्चिम दो मील एक जीर्ण जैन मंदिर वस्ती मकीके नामसे हैं । यहां बहुत सुन्दर लेख युक्त पाषाण हैं । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ___ (१५) कुलेटार-ता. सिरसी ग्राम, वनवासीसे ९ मील । यहां पुराना जैन मंदिर है । इसमें ४ पाषाण हैं हरएकमें जिनेन्द्रकी मूर्ति चमरेन्द्र सहित है ऊपर सूर्य और चंद्र है । दो बड़े पाषाणोंमें बहुत लेख हैं । तथा कृष्ण पाषाणकी ४ जैन मूर्तियां हैं नीचे आसनपर लेख हैं। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला। [१४१ (२५) कोलाबा जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तरमें बम्बई बन्दर, कल्याण । पूर्वमें पश्चिमी घाट, मोर राज्य व पूना, सतारा । दक्षिण पश्चिम रत्नागिरी । पश्चिममें जंजीरा राज्य व अरब समुद्र । यहां २१३१ वर्गमील स्थान है इतिहास-कोलाबामें बड़े महत्वकी बात यह है कि इसका व्यापारी संबंध विदेशी जातियोंसे रहा है । भारतीय समुद्र होकर मार्गथा । इतिहासके पहलेसे अरव और आफ्रिकासे व्यापार था । मिश्र और फैनीशिया (२५००से ५०० वर्ष सन् ई० से पहले)से मुख्य संबन्ध था। ग्रीक और पैथियन लोगोंके साथ (२०० सन् ई० से पहलेसे २०० सन् तक) मुसल्मान अरबोंके साथ मित्रके समान व्यवहार था जो यहां (सन् ७००-१२००) में आते रहे थे । कोलाबामें सर्वसे पुराने इतिहासके स्थान चिउल, पाल, कोल महाड़के पास, कुडाराजपुरीके पास जिनमें पहली शताब्दीकी बुद्ध गुफाएं हैं। कोलाबामें बौद्धोंका बहुत निवास रहा है, उनका महत्व था। चीन यात्री हुइनसांग (६४०) ने यहां चिमोलोके पूर्व कुछ मीलपर राजा अशोकका स्तंभ देखा था (सन् ई० से २२५ वर्ष पहले)। यहां अन्ध्र भृत्योंने भी राज्य किया है। सन् १६० में जब वहां यशश्री या गौतमी पुत्र द्वि० राज्य करते थे तब इनका बहुत प्राबल्य था । शतकर्णी राज्यके नीचे कोन्कनका व्यापार पश्चिमसे बहुत उन्नत पर था जब रोम लोगोंने मिश्रको ले लिया था (सन् ई० से ३० वर्ष पहले)। टोलिमी, यूनानी भूगोल वेत्ताको ( सन् .१३५--१५०) कोंकनका ज्ञान था। कन्हेरी, नाशिक, करली Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । और जुन्नत गुफाओंमें जो यादवोंने दान किये हैं उनसे पता चलता है कि कुछ यूनानी लोग यहां बस गए थे और उन्होंने बौद्धधर्म स्वीकार किया था। ( See Hough's chris to anity in India P. 51). ___ पहली शताब्दीमें यूनानी बुद्धिमान डिसमाइस मिश्रसे भारतको व्यापार केन्द्रोंको देखने आया था-अलेकनेंड्रियासे पन्टेनस ईसाई पादरी होकर सन् १३८ में आया था, वह कहता है कि यहां उसने श्रमण (नैन साधु), ब्राह्मण व बौद्ध गुरुओंको देखा जिनको भारतवासी बहुत पूजते थे क्योंकि उनका जीवन पवित्र था। ऐसा भी मालूम होता है कि उस समय भारतवासी अलेक जेंड्रियामें गए भी थे। सन् ई० से २०० वर्ष पूर्वसे २०० ई० तक मिश्र निवासी लाल जातिसे तथा भीतर पैथान और टागोरसे बंगालकी खाड़ी व और पूर्वी किनारोंतक खास व्यापार चलता था । जो वस्तु भारतसे भेजी जाती थीं वे ये थीं । भोजन, शक्कर, चावल, कपड़े रुईके, रेशमका सूत, हीरे, पन्ने, मोती, लोहा, सुवर्ण । भारतीय फौलाद (Steel) बहुत प्रसिद्ध था । फारसकी खाड़ीसे पैलमैरातक बहुत व्यापार था । कोंकनके व्यापारियोंने सन् १८७८में बहुतसे सुन्दर मठ बनवाए थे । ये उनकी उदारताके नमूने हैं, गुजरातके क्षत्रप राजाओंमें सबसे बड़े राजा रुदानने शतकर्णी लोगोंको दो दफे हराया और उत्तरकोंकण ले लिया (Indian Ant: VII 262 ). मसलीपटनके महीन कपड़े बहुत प्रसिद्ध थे। यह बड़ा भारी बाजार था अवीसीनियाकी राज्यधानी अदुलीसे भी व्यापार Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला । [ १४३ था । भारतीय जहाज कपड़ा, लोहा, रुई ले जाते थे व वहांसे हाथीदांत व सींग लाते थे । छठी शताब्दी में मौर्य लोग या नल सर्दार राज्य करते थे । चालुक्योंका प्रथम राजा कीर्तिवर्मा (सन् १५० से १६७ ) - जिसने कोंकणमें चढ़ाई की थी- नल और मौर्यो के लिये यमके समान वर्णन किया गया है। कीर्तिवर्माका पोता पुलकेशी द्वि० (६१०--६४०) था । जिसने कोन्कनको विजय किया । इसने लिखा है कि उसका सर्दार चंड-डंड मौर्योको भगानेके लिये समुद्रकी तरंग था (Arch S. R III. 26 ) थाना जिलेके वाडसे लाए हुए एक लेखयुक्त पाषाण (पांचवी या छुट्टी शताब्दी) से मालूम होता था कि उस समय कोंकण में सुकेतुवर्मा राज्य कर रहा था । इस चालुक्य सर्दार चंड- दंडने मौर्योकी राज्यधानी पुरी (अज्ञात) पर हमला किया था । यह नगर पश्चिमीय भारतकी लक्ष्मीदेवीका स्थान था । वीस शिलाहारोंने थाना और कोलाबा में सन् ई० ८१० से १२६० तक राज्य किया था। पांचवां राजा झंझा था जिसका वर्णन अरब इतिहासज्ञ ममूदीने लिखा है कि वह सन् ९१६ में चिवलमें राज्य करता था । तथा चौदहवां राजा अनन्तपाल या अनन्तदेव था (सन् १०९६) जिसने दो मंत्रियोंकी गाड़ियों पर कर माफ कर दिया था जो चिवल बंदरपर आती थीं। तेरहवीं शताब्दीमें देवगिरिके यादवोंने राज्य किया । सन् १३७७में विजयनगरके या आनेगुंडीके राजाओंने कोंकणके कुछ बंदर लेलिये । मुसल्मानोंके पहले दक्षिण कोंकण जिसमें वर्तमान कोलाबा है लिंगायतवंशी राजाओंके हाथमें था जिनको कड़ा राजा कहते थे जिनका मुख्यस्थान आनेगुंडी था । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। मुख्य स्थान । (१) चिवल या रेवडंड-बम्बईसे दक्षिण ३० मील, कुंडलिका नदीके उत्तर तटपर । यह बहुत ही प्राचीन स्थान है। कन्हेरी गुफाओंमें (सन् १३०-५००) में इसका नाम चेमुला लिखा है। हुइनसांगने चिमोलो लिखा है। पौराणिक समयमें-इसको चंपावती या रेवतीक्षेत्र कहते थे । ९१५ में अरब यात्री मसूदीने इसका नाम सैमूर दिया है-उस समय यहां राजा झंझा था। सन् ९४२ में यहांका वर्णन यह प्रसिद्ध है कि यहांके लोग मांस, मत्स्य व अंडे नहीं खाते थे । सन् १३९८ में वहमनी बादशाह फीरोजने यहांसे जहाज दुनियांकी सुन्दर वस्तुओंको लानेके लिये भेजे थे । सन १९८६ में यहां भारतीय तटसे नारियल, मसाले, औषधि, चीन व पुर्तगालसे चन्दन, रेशम आदि तथा यहांसे मलक्का, चीन, उर्मन, पूर्व अफ्रिका, पुर्तगालको लोहा, अन्न, नील, अफीम, रेशम, अनेक प्रकारके रुईके कपड़े, सफेद, रंगीन, छपे हुए भेजे जाते थे। There would seem to have been (about 1584 A. D.) a strong Jain and Gujrati Wani element among the merchants of Cheul as Fitch English man describes, the gentiles as having a very strange order among them. They killed nothing, they ate no flesh, but lived on roots, rice and milk In Cambay they had hospitals to keep lame dogs and cats and for the birds. They would give food to ants ( Fitch in Hakluyt's Voyage 384) ___ भावार्थ-सन् १९८४ के अनुमान यहां बहुतसे मैन और गुजराती बनिये व्यापारी थे । जैसे फिच इंग्रेज लिखता है कि जो किसीकी हिंसा नहीं करते थे, वनस्पति, चावल व दूध खाते थे। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलाबा जिला | [ १४५ मांस नहीं लेते थे, तथा इन लोगों में बहुत आश्चर्यकारक नियम हैं। कंबे (खंभात) में इन्होंने लंगडे कुत्ते व बिल्लियोंके लिये व चिड़ियोंके लिये अस्पताल बनादिये थे ये लोग चींटियों तक को भोजन देते थे । फ्रेंच यात्री फैब्कन पैरर्ड (१६०१ - १६०८) ने यहांका हाल देखकर लिखा है ( Bruce's Annal I 125 ) कि यहां बुननेका बहुत बड़ा शिल्प है, बहुत सुन्दर रुईके सूत मिलते हैं । चीनके रेशमसे भी बढ़िया रेशमका सामान बनता है । गोवामें यहांका माल बहुत खपता है । उत्तर पूर्वको बौद्ध गुफाएं हैं । (२) गोरेगांव - मनगांव तटमें बन्दर - दासगांवके उत्तर पश्चिम ६ मील बौद्ध गुफाएं हैं । 66 (३) कुड़ा गुफाएं - मानगांवके उत्तर-पश्चिम १३ मील कुड़ा ग्राम है। राजपुरी तटसे उत्तरपूर्व २ मील । यहां बौद्धोंकी २६ गुफाएं हैं। छठी गुफामें ५ लेख ५वीं या ६ठी शताब्दीके हैं शेष गुफाएं पहली शताब्दी की हैं । सबसे पुरानी गुफामें लेख यह है । एक गुफा बनानेका दान किया सिवमाने जो लेखक शिवभूतका छोटा भाई था जो सुलाशदत्तके पुत्रोंमें थे उसकी स्त्री उत्तरदत्ता थी । ये महाभोज मान्दव खंडपलीता के सेवक हैं जो महा भोज सदागिरि विजयका पुत्र है । चट्टानपर खुदाई कराई शिवमाकी स्त्री विजयाने और उसके पुत्र सुलासदत, शिवपालिता, शिवदत्त, सपिलने, खभे बनवाए उसकी कन्याओंने सपा, शिवपलिता, शिवदत्ता और सुलासदत्ताने । " (४) महाड - सावित्री नदीके दाहने तटपर, बांकट से पूर्व ३४ मील | यह दासगांव से ८ मील एक बंदर है । प्राचीन नाम Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । महिकावती है-यहां पाले पहाड़ीपर बौद्ध गुफा है । (५) पाले-महाड़से २ मील ग्राम । होलिमी (१४ वें) ने इसे वाल पाटना लिखा है तथा शिलाहर वंशके १४वें राजा अनन्तदेव (सन् १०९४ ) के ताम्रपत्रमें इसका नाम बलिपट्टन है, बौद्धगुफाएं हैं। (६) कोल गुफाएं-महाड़से दक्षिणपूर्व १ मील । यहां भी समूह बौहोंकी गुफाओंका है। (७) रायगढ़-राज्यकिला-प्राचीन नाम रायरी महाड़से उत्तर १६ मील । यह १ पहाड़ी २२५० फुट ऊंची है । शिवाजीकी राज्यधानी थी। बांडीसे चढ़नेमें तीन घंटे लगते हैं। (८) रामधरण पर्वत-अलीबागमें-अलीबागसे उत्तरपूर्व ५ मील । कार्ले पाससे उत्तर । यह पुरानी चट्टान है । गुफाएं १२ खुदी हैं, पता नहीं चलता है, किस धर्मकी हैं। ( नोट-यहां जैनियोंको खोजना चाहिये ) कार्ले पाससे पश्चिम मुखसे पश्चिमकी तरफसे जानेका मार्ग है। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नागिरी जिला | (२६) रत्नागिरी जिला । इसकी चौहद्दी इसप्रकार है- उत्तरमें जंजीरा कोलाबा, पूर्वसतारा, कोल्हापुर, दक्षिण- सावतवाड़ी, गोआ । पश्चिम - अरब समुद्र । इतिहास - यहां चिपतून और कोल गुफाएं यह प्रगट करती हैं कि सन् ई० से २०० वर्ष पूर्व से ५० सन् ई० तक यहां बौद्धोंका जोर था । पीछे यहां चालुक्य राजाओंका बहुत बल रहा । सन् १३१२ में मुस० ने कबज़ा किया । मुख्यस्थान । (१) दामल - समुद्रसे ६ मील, बम्बई से दक्षिण पूर्व ८५ मील | अजनबेल या विशिष्ट नदीके उत्तर तटपर यह बड़ा प्राचीन स्थान है । बहुतसे ध्वंश स्थान हैं । यहां एक चंडिका बाई का मंदिर नीचे भौर में हैं, यह उसी समयका है जिस समय बादामी (बीजापुर जिला) की गुफाओं के मंदिर बनाए गए थे । बरवार नामका स्थानीय इतिहास है । उसमें कहा है कि ग्यारहवीं शताब्दीमें दाभल बलवान जैन राजाका स्थान था और एक पाषाणका लेख शालिवाहन १०७८ का पाया गया है । यहांके लोगों का कहना है कि इसका प्राचीन नाम अमरावती था । (२) खारेपाटन - ता० देवगढ़ - इस नगरके मध्य में करनाटक जैनी रहते हैं । एक जैन मंदिर है, मंदिरमें एक छोटी पाषाणकी कृष्णमूर्ति है जो एक नदीकी खाड़ी में पाई गई थी । राष्ट्रकूट वंशके ताम्रपत्र भी यहां मिले हैं । ( Indian Ant: Val II 321 and IX 33 ). [ १४७ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२७) सिंध प्रात। उत्तर-बलूचिस्तान, बहावलपुर। पूर्व-राजपूताना राज्य जैसलमेर और जोधपुर । दक्षिण-कच्छखाडी अरब समुद्र । पश्चिम-जामकोलात, बलूचिस्तान । यहां ५३११६ वर्गमील स्थान है। इतिहास-मौर्य राज्यके पीछे यूनानियोंने पाबपर सन् ई० से २०० पूर्व हमला किया । अपोलोदातस व मेनन्दर यूनानियोंने सन् ई० के १०० वर्ष पूर्व तक सिंधुमें राज्य किया । फिर मध्यएसियासे बहुतसे हमले हुए । सफेद हन लोग यहां बस गए और रायवंशको स्थापित किया । अलोर और ब्राह्मणाबादमें दक्षिणमें बौद्धोंका जोर रहा। पुरातत्व-इन्दस नदीकी खाडीमें बहुतसे ध्वंश नगरोंके स्थान हैं जैसे लाहोरी, काकरबुकेरा, समुई, फतहबाग, कोटवांभन, जुन, थरी, बदिनतूर, थर और पारकर जिलेमें विरावह ग्रामके पास पारीनगर नामके एक बड़े महत्वशाली नगरके ध्वंश स्थान हैं । इस नगरको कहा जाता है कि सन् ४५६में बालमीरके जसोपरमारने स्थापित किया था। जिसको मुसल्मानोंने ध्वंश किया ऐसा माना जाता है। इन्हीं ध्वंश स्थानोंमें बहुतसे जैन मंदिरोंके खंड हैं। मुख्यस्थान। (१) भाम्बोर-( करांची जिला ) यह प्राचीन नगर है । प्राचीन नाम देवल है व मंसावर है। यहां जो सिक्के व ध्वंश मिले हैं उनसे प्रगट है कि यह पहले बहुत महत्वका स्थान था। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंध प्रांत। [१४६ थार और पार्कर जिला-उत्तरमें खैरपुर, पूर्वमें-जैसलमेर राज्य, मतानी, जोधपुर, कच्छखाड़ी; दक्षिण कच्छखाड़ी; पश्चिम हैदराबाद। (२) गोरी-इस जिलेके पार्कर भागमें कई प्राचीन मंदिर दिखलाई पड़ते हैं उनमें एक जैन मंदिर विरावहसे १४ मील उत्तर है । इस जैन मंदिरमें एक बड़ी पवित्र और प्रसिद्ध मूर्ति है जिसका नाम गोरी प्रसिद्ध है। यह जैन मंदिर १२५ फुटसे ५० फुट है। संगमर्नरका बना है । यह कहा जाता है कि ५०० वर्ष हुए एक मंगा ओसवाल पारीनगरका पाटन माल खरीदने गया था । उसको स्वप्न हुआ कि एक मुसल्मानके घरमें १ मूर्ति है । वह उसे पारीनगर ले आया। गाड़ीपर रख ली थी । जहां गाड़ी ठहर गई आगे न चली, वहीं उसको स्वप्न हुआ कि बहुत धन व संगमर्मर जड़ा है । उसने निकालकर संवत् १४३२में गौरीके नामसे इस मंदिरको बनवाया। इसमें बड़ी बढ़िया खुदाई है । सन् १८३५में मूर्ति गायव होगई। मंदिरमें शिला लेख सन् १७१५ का है, जब जीर्णोद्धार हुआ था। इसी जैन मंदिरके पास पारीनगर नामके पुराने नगरके ध्वंशस्थान हैं जो ६ वर्गमील तक स्थानमें हैं। जिसमें बहुत संगमर्मरके स्तम्भ फैले पड़े हैं। . यह नगर किसी समय बहुत धनशाली और जनसंख्यासे पूर्ण था। इसका ध्वंश १६ वीं शताब्दीमें हुआ था । अभी भी यहां पांच या छः पुराने मंदिरोंके ध्वंश मोजूद हैं जिनमें बहुत ही बढ़िया शिल्प व खुदाई है । ( नोट-किसी जैनीको यहां जाकर देखना चाहिये )-दूसरा ध्वंश नगर यहां रतकोट है। जो रानाहू Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ग्रामसे २० मील दूर खिप नगरसे दक्षिण नार नदीपर है । भीरपुर खासके पास कहसी नगरके ध्वंश हैं जो पहले ब्राह्मणावाद कहलाता था इसका नाश ८ वीं शताब्दीमें हुआ । यहां बहुत प्राचीन ध्वंश हैं। ( R. J. A S. of India I903-4 ) __(३) नगरपार्कर-ता० नगर । अमरकोटसे दक्षिण १२० . मील । प्राचीन नगर । नगरपार्करसे उत्तर पश्चिम भोदेश्वर है वहां तीन प्राचीन जैन मकानोंके ध्वंश हैं जो कहा जाता है कि सन् १३७५ और १४४९ में बनाए गए थे। (४) विरावह-के ध्वंशोंमें जो जैन मंदिरोंके शेषांश हैं उनमेंसे मि० गिल बहुतसे खुदे हुए पाषाण कराची अजायब घरमें ले गए हैं। यहां बहुत प्राचीन व महत्वकी रचनाएं हैं। ग्राममें दूसरा जैन मंदिर है जो हालका बना है । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर राज्य। [ १५१ (२८) कोल्हापुर राज्य । इसके मुख्यस्थान नीचे प्रकार हैं(१) अटला-ग्राम, कोल्हापुर शहरसे उत्तरपूर्व १२ मील, वरण नदीसे दक्षिण छ मील । यहां रामलिंगका जो गुफा मंदिर है वह वास्तवमें बौद्ध या जैनका होगा। अब वहां ब्राह्मण पूजा होती है। (२) कोल्हापुर शहर-यह बहुत प्राचीन स्थान है । यहां पासमें सन् १८८० के लगभग एक बड़े स्तूपके भीतर एक प्राचीन पिटारा मिला था जिसमें सन् ई० की तीसरी शताब्दीके राजा अशोकके समयके अक्षर हैं। यहां अम्बाबाई मंदिर, नवग्रह मंदिर, सेशासायी मंदिर जो आजकल हैं वे जैन मंदिरोंके भाग हैं । इनके पाषाण नगरके दूसरे स्थानोंसे लाए गए हैं उनमें खुदाई बहुत अच्छी है । नगारखाना-इसमें जैन मंदिरोंसे लाए हुए खुदाईके पाषाण हैं। जैन वस्ती-हेमदपंती ढंगका एक प्राचीन जैन मंदिर यह यह ७३ फुटसे ५३ फुट है। मंदिरजीके पास दो शिलाहार लेखके पाषाण शाका १०५८ और १०६५ के हैं । (३) पावल गुफाएं-जोतिबाकी पहाड़ीके पास कोल्हापुरसे ५ मील । यहां एक बड़ी गुफा ३४ फुट चौकोर है जिसमें १४ खम्भे हैं । अलटाके पास पूर्वकी तरफ एक प्राचीन जैन कालिज (old jain college) है जिसपर ब्राह्मणोंने अधिकार कर लिया है। (४) रायबाग-कोल्हापुरसे दक्षिण पूर्व ५० मील, चिकोड़ीसे उत्तर पूर्व १४ मील । कहा जाता है कि यह जैन राजाओंकी राज्यधानी ग्यारहवीं शदीमें थी। वैसे ही बेरूद खेलना, शंखे Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । श्वरमें भी थी। यहां जैनमन्दिर सबसे पुराना मकान है । यह काले पाषाणका है, ७६ फुट लम्बा ३० फुट चौड़ा, इसमें बहुत बडे खम्भे हैं । दो पाषाणोंपर लेख शाका ११२४ के हैं। (५) खेद्रापुर-या कृष्ण । कोल्हापुरसे पूर्व ३० मील और कुरुन्दवाड़से पूर्व ७ मील । ग्राममें एक छोटासा जैन मंदिर है । (६) बिड या बेरद-पंच गंगा नदीपर। कोल्हापुरसे दक्षिण पश्चिम ९ मील । यह एक राजाकी राज्यधानी थी जो कोल्हापुर और पनालाका स्वामी था । प्राचीन ध्वंश बहुत हैं। सुवर्णकी पुरानी मोहरें मिलती है। एक प्राचीन पाषाणका मंदिर सन् १२००के करीबका है। ( नोट-वहां जैन चिन्होंको ढून्ढना चाहिये )। (७) हेरले-कोल्हापुरसे उत्तरपूर्व ७ मील । मीरजकी सड़क पर यहां एक शिलाहार राजाका शिलालेख पुरानी कनडीमें शाका १०४ ०का है जिसमें एक जैन मंदिरको दान देनेकी बात है । (८) सावगांव-कागलसे पूर्व ३ मील । यहां एक जैन मंदिरमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूर्तिका आसन है। (९) बमनी-सिदमोर्लीके पास, कागलसे दक्षिण पश्चिम ४ मील । यहां एक जैन मंदिरमें शाका १०७३ का शिलालेख है । (१०) करवीर-कोल्हापुरके राज्यकी प्राचीन राज्यधानी । (११) बदगांव-कोल्हापुरसे उत्तर १० मील एक नगर । यहां एक जैन मंदिर है जिसको आदप्पा भगसेठीने १६९६ में ४००००) खर्चकर बनवाया था।. (१२) कुंडल-सर्दन मरहटा रेलवेके कुंडल स्टेशनसे २ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर जिला । [ १५३ मील । ग्राम निकट पहाड़ीपर दो प्राचीन जैन मंदिर, इनमें श्री पार्श्वनाथकी मूर्तियें है जो श्री गिरीपार्श्वनाथ और झरी पार्श्वनाथके नामसे प्रसिद्ध हैं। (१३) कुंभोज-बाहुबली पहाड-हाथकलंगड़ा प्टे०से ५ मील । पहाड़ी ॥ मील ऊंची है, यहां बाहुबलि नामके दि० जैन मुनि होगए हैं, व बाहुबलि मुनिकी चरणपादुका हैं । इससे पर्वत प्रसिद्ध है । यहां १६ भोका जैन मंदिर है। (१४) स्तवनिधि-कोल्हापुरसे व चिकोड़ी प्टेशनसे करीब ३० मील । यहांपर प्राचीन जैन मंदिर हैं । पहाड़ी मुनियोंके ध्यानके योग्य है। कोल्हापुर शहरके जैन मंदिरमें जो शिलाहारी शिलालेख शाका १०६५ का है उसका भाव यह है। शुक्रवारपेठमें यह जैन मंदिर है। शिलालेख संस्कृत भाषा पुरानी कनड़ी लिपिमें है । शिलाहार वंशके महामंडलेश्वर विजयदिसदेवने माघ सुदी १५ शाका १०६५को एक खेत और १ मकान १२ हस्त आजिर गेरवोल्ला जिलेके हाविन हीरिलगे ग्राममेंसे वहीं स्थापित श्री पार्श्वनाथजीके जैन मंदिरमें अष्टद्रव्यं पूजाके लिये दिया । इस मंदिरको मूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छके अधिपति माघनंदि सिद्धांतदेवके शिष्य सामंत कामदेवके आधीनस्थ वासुदेवने बनवाया था। तथा उस दानसे क्षुल्लकपुरमें पवित्र रूपनारायणके जैन मंदिरकी मरम्मत भी वहांके पुजारीके द्वारा हो यह भी लेख है, यह दातार विजयादसदेव तगार नगरके राजा जातिगके पुत्र गोकुल उसके पुत्र मारसिंह उसके पुत्र गंधारदित्यदेवका पुत्र था । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दानके समय राजाने श्री माघनंदि सिद्धांतदेवके शिष्य माणकनंदि पंडितके चरण धोए थे। इस दानको सर्व करसे मुक्त कर दिया गया। नोट-यहांके दोनों लेखोंकी नकल दि० जैन डाइरेक्टरीमें दी हुई है । नोट-क्षुल्लकपुर-कोल्हापुरका दूसरा नाम है । बमनी ग्राममें जो शाका १०७३ला लेख शिलाहार राजा विजयादित्यका है उसका भाव यह है __ जैन मंदिरके द्वारपर लेख है । संस्कृत भाषा पुरानी कनड़ी है। ४४ लाइन हैं । इसमें लिखा है कि राजाने चोडहोर-कानगावुन्ड के पास ग्रामके श्री पार्श्वनाथ भगवानके जैन मंदिरकी अष्टद्रव्य पूजा व मरम्मतके लिये नावुक गेगोल्ला निलेके भुदलुर ग्राममें एक खेत और घर दान किया । श्री कुंदकुंदान्वयी श्री कुलचंद्र मुनिके शिष्य श्री माघनंदि सिद्धांतदेवके शिष्य श्री अर्हनंदि सिद्धांतदेवके चरण धोकर ( Epigraphica Indica III ) | कोल्हापुर राज्यमें यह बड़े महत्त्वकी बात है कि वहां जैन किसान ३६०० ० हैं। ये बहुत प्राचीन कालके वसे हुए हैं । पहले यहां जैनोंका बहुत प्रभाव था इसके ये चिन्ह हैं । ये बड़े शांतप्रिय व परिश्रमी हैं। Kolhapur is remarkable in large number of Jain Cultivators ( 36000 ) who are evisidence of former predominance of Jain relic in south Marhatta country They are peaceful and Industrious peasentry. ( P. 51 ) Infi. Gaz, 1908 Vol II Bombay. कोल्हापुर-गजेटियरमें लिखा है कि यहांके जैन बडे निय Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोल्हापुर जिला। [१५५ मोंके पावन्द व आज्ञानुवर्ती हैं वे बहुत कम अदालतोंमें आते हैं। यहांके जैन जमीदार अपनी स्त्रियोंके साथ खेतका काम करते हैं। जैन मूर्तियें-कोल्हापुर शहर और आसपास बहुतसी खंडित जैन मूर्तियां मिलती हैं। मुसलमानोंने १३वीं व १४वीं शताब्दीमें जैन मंदिर तोड़ डाले थे । जब जैनलोग ब्रह्मपुरी पर्वतपर अंबाबाईका मंदिर बनवा रहे थे तब राजा जयसिंहने किला वनवाया था । यह राजा अपनी सभा कोल्हापुरसे पश्चिम ९ मील बीडपर किया करता था। __ १२वीं शताब्दीमें कोल्हापुरमें कलचूरियोंके साथ-जिन्होंने कल्याणके चालुक्योंको जीत लिया था और दक्षिणके स्वामी हो गए थे-चालुक्योंके आधीनस्थ कोल्हापुरके शिलाहारोंका युद्ध हुआ था। तब भोज राजा हि० (११७८-१२०९) शिलाहार राजाने कोल्हापुरको राज्यधानी बनाई और बहमनी राजाओंके आनेतक राज्य किया। यहां कुल २५० मंदिर हैं उनमें अंबाबाईका मंदिर सबसे बड़ा और सबसे महत्वका और सबसे पुराना शहरके मध्यमें है । यह काले पाषाणका दो खना है । जैनलोग कहते हैं कि यह मंदिर पद्मावती देवीके लिये बनवाया गया था। इस इमारतकी कारीगरी प्रमाणित करती है कि जैनलोग इसके मूल अधिकारी हैं (Jains to be orijinal possessors) जैसे हर एक ब्राह्मण मंदिरमें गणपतिकी मूर्ति होती है सो यहां नहीं है। भीत और गुंबजों पर बहुतसी पद्मासन जैन मूर्तियां हैं जो बहुतसी नग्न हैं । इससे यह जैन मंदिर था ऐसा प्रमाणित होता है । इसमें ४ शिलालेख शाका ११४० और ११५८ के हैं । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । _खिद्रापुर-कृष्ण नदी तट सेढ़वाल स्टेशनसे ४ मील । प्राचीन मंदिर श्रीऋषभदेव बड़ी मूर्ति है। यहां कोपेश्वरमहादेवका मंदिर है वह जैनियोंका विदित होता है। (दि. जैन डा० ) कोल्हापुरके आजरिका स्थानमें त्रिभुवनतिलक चैत्यालयमें श्री विशालकीर्ति पंडितदेव शिष्य शिलाहारकुलतिलक वीर भोजदेव राज्ये शाका ११२७में श्री सोमदेव आचार्यने शब्दार्णव चंद्रिका व्याकरण लिखी (देखो सं० प्रति इटावा दि० जैन मंदिर पंसारीटोला) Tech 432 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीरज राज्य। [ १५७ (२९) मीरज राज्य । यहां मुख्य स्थान हैं। (१) मुढौल-कलादगीसे पूर्व उत्तर १६ मील । दो प्राचीन मंदिर जैनियोंके ढंगके हैं । अब शिव स्थापित हैं। (२) पंदगांव-बेलगावसे कलादगीकी सड़कपर ग्रामके पश्चिम ४-५ मील । सड़कके किनारे एक छोटा जैन मंदिर है। (३०) सांगली स्टेट । यहां मुख्य स्थान हैं। (१) तेरदाल-यहां बड़े महत्वका एक जैन मंदिर श्री नेमिनाथ भगवानका है जो ११८७में बना था। (३१) गोआ (पुतगाल) इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें सावंतवाड़ी स्टेट, पूर्वमें पश्चिमीय घाट, वेलगाम, उत्तर कनड़ा, दक्षिण उत्तर कनड़ा, पूर्व में अरब समुद्र यहां १४७० वर्ग मील स्थान है । इसका प्राचीन नाम गोमनचल है। यहांके कुछ शिलालेख यह बताते हैं कि गोआमें वनवासीके कादम्बोंका राज्य था जिनका प्रथम राजा श्री त्रिलोचन कादंब सन् ई० ११९ व १२० के करीब हुआ है । इस वंशने ( सं० नोट-यह जैन वंश था ) यहां मुस० के आने तक सन १३१२ तक राज्य किया। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (३२) हैदराबाद राज्य । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: उत्तर--बरार । उत्तर पूर्व - खानदेश | दक्षिण- कृष्णा नदी और तुङ्गभद्रा नदी । पश्चिम - अहमदनगर, शोलापुर, बीजापुर, धारवाड़ । पूर्व में वर्धा और गोदावरी नदी। यहां स्थान ८२६९८ वर्गमील है । यहां अन्धोंने सन ई० से २२० पूर्वसे राज्य किया । फिर चालुक्योंने, ५५० ई० के करीब तक उनकी राज्यधानी कल्याणी रही । पुलकेशी द्वि० (६०८ - ६४२ ) ने प्रायः सर्व भारतमें नर्बदाके दक्षिण तक राज्य किया तथा यह कन्नौज के हर्षवर्द्धनसे भी मिला था । मलखेड़- के राष्ट्रकूटोंने आठवीं सदीमें फिर करीब ९७३ के चालुक्य वंशने पीछे ११८९ के अनुमान यादवोंने राज्य किया । राज्यधानी देवगिरि या दौलताबाद । सन् १३१८ में देवगिरि का राजा हरपाल मारा गया । मुहम्मद तुघलक दिहली ने राज्य किया । यहां जैनियोंकी वस्ती २०३४५ है । (हंटर गजटियर १९०८ ) मुख्यस्थान । (१) आतनू - ( चंद्रनाथ ) दुधनीसे ५ मील | ग्राम बाहर जैन मंदिर प्राचीन है । प्रतिमा श्री चन्द्रप्रभु २ हाथ पद्मासन है १ पाषाण २४ प्रतिमाका है । तीन प्रतिमा कायोत्सर्ग १ ॥ फुट ऊंची हैं । (२) आष्टे - आलंदसे १६ मील | मार्गमें अचलूर ग्राममें प्राचीन जैन मंदिर है । वर्तमान में महादेव पधरा दिये गए हैं। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विघ्नहर पाश्चनालद-जि० परमान मंदिर हैदराबाद राज्य। [ १५६ आष्टामें श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर शाका ५२८ का बना है । कृष्ण वर्णा २ फुट पद्मा० मूर्ति चौथे कालकी है । इनको विघ्नहर पार्श्वनाथ कहते हैं। . (३) उखलद-जि० परभणी किगेली स्टेशनसे ४ मील । पूर्णा नदीपर प्राचीन पाषाणका जैन मंदिर प्रतिमा श्री नेमिनाथ बडे आकार। (४) कचनेर-औरङ्गाबादसे २० मील । विशाल जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथनीका है। (५) कुन्थलगिरी-वारसी टाउनसे १६-१७ मील । यह जैन सिद्धक्षेत्र है । पर्वतपर बहुतसे जैन मंदिर हैं, सब दि० जैन हैं । श्री देशभूषण कुलभूषण मुनि यहांसे मोक्ष पधारे हैं उनके चरण चिन्ह हैं। दिगम्बर जैनोंमें प्रसिद्ध निर्वाणकांडमें इस क्षेत्रका इस तरह वर्णन हैगाथा वंसत्थलबरणियरे पच्छिमभायम्मि कुन्थुगिरिसिहरे । कुल देसभूषणमुणी णिचापगया णमो तेसिं ॥१७॥ (प्राकृत निर्वाण कांड ) भाषा वंशस्थल बनके ढिग होय, पश्चिम दिशा कंथगिरि सोय । कुलभूषण देशभूषग नाम, तिनके चरणां करों प्रणाम ॥ १८ ॥ (निर्वाणकांड भगवतीदास) (६) कुलपाक-(वज़वादा लाइन) अलरे स्टेशनसे ४ मील । प्राचीन जैन मंदिर, प्रतिमा श्री आदिनाथजीकी जिनको माणक स्वामी कहते हैं: (७) तडकत्व-(G. I. P. Ry.) गाणगापुरसे १२ मील । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जैन मंदिर प्रतिमा श्री शांतिनाथजीकी कृष्ण वर्ण ६ फुट ऊंची कोरी हुई है । (८) तेर-धारा शिवसे ८ मील। यहां प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें एक पद्मासन मूर्ति श्री महावीरस्वामीकी उन्हींके मूल आकार में विराजित है अन्य मूर्तियां है व लेख है जो पढ़ा नहीं जाता है । यह ग्राम प्राचीन कालमें तगर नामका नगर था और दक्षिणमें व्यापारका मुख्य स्थान था ऐसा यूनानी लेखकोंने लिखा है पहली शताब्दी तक इस मुख्य नगरका पता है । तथा १० वीं या ११वीं शताब्दीमें भी यह एक बड़ा महत्त्वका स्थान था ऐसा देशी राज्योंके लेखोंसे पता चलता है । यह बारसीसे पूर्व ३० मील है । तर्णा नदीके पश्चिम तटपर है। यहां जो उत्तरेश्वरका मंदिर है वह मूलमें जैन मंदिर था । उसकी कारनिशके नीचे जैन मूर्ति है । यहां बहुत प्राचीन और भी जैन मूर्तियां मिलती हैं । एक पुजारी रहता है । प्रबन्ध धाराशिवके दि० जैन पंचोंके आधीन है । मुख्य भाई सेठ नानचन्द नेमचन्द वालचन्दजी हैं । (९) धाराशिव - इसको अब उस्मानाबाद कहते हैं । वारसी लाइनके एडसी स्टेशनसे १४ मीलके करीब । यहां नगरसे २ - ३ मीलपर बहुत पुरानी ७ गुफाएं हैं। एक गुफा बहुत बड़ी है जिसमें श्री पार्श्वनाथजी की मूल अवगाहना की मूर्ति बैठे आसन बहुत सुन्दर सात फणके छत्र सहित बिराजमान है । दूसरी गुफा में भी ऐसी ही मूर्ति है । एक गुफामें मूर्ति खंडित होगई है । ये गुफाएं दर्शनीय हैं । इनको राजा करकंडुने बनवाया था । आराधनाकथाकोष में ११३ वीं (कथा राजा करकंडुकी है । उसमें तेर Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला | [ १६१ नगर व धाराशिवका वर्णन है व गुफाओंमें श्री पार्श्वनाथ स्थापनका कथन है प्रमाण अत्रैव भरते क्षेत्रे देशे कुन्तलसंज्ञके । पुरे तेरपुरे नीलमहानीलौ नरेश्वरौ || ४ || अस्मात्तेरपुरादस्ति दक्षिणस्यां दिशि प्रभो । गव्यूति कान्तरेचारुपर्वतोस्योपरि स्थितम् ॥ १४४ ॥ धाराशिवपुरं चास्ति सहस्रस्तंभसंभवम् । श्री मज्जिनेन्द्रदेवस्य भवनं सुमनोहरम् ।। १४५ ।। करकंडश्च भूपालो जैनधर्मधुरं धुरः । स्वस्य मातुस्तथा बालदेवस्योच्चैः सुनामतः ।। १९६ ॥ कारयित्वा सुधीस्तत्र लयणत्रभुत्तमम् । " तत्प्रतिष्ठां महाभूत्या शीघ्रं निर्माप्य सादरात् ॥ १९७॥ अर्थात् करकुंड राजाने धाराशिवमें अपने अपनी मां व बलदेवके नामसे तीन गुफाओं के मंदिर बनवाकर बड़ी विभूतिसे प्रतिधा कराई। (१०) बंकर - जि० गुलबर्गा - शहाबाद ( G 1. P. ) से २ मील | जैन मंदिर पाषाणका है-र गर्भालय हैं । अंतर्गर्भ में प्रतिमा ६ फुट कायोत्सर्ग । बाहर - पाकाय, आदिनाथ आदि । 1 (११) मलखेड़-बाड़ी के पास चितापुर से ४ मील - मलखेड़ रोड टेशन । प्राचीन नाम मलियाद्री यहां पहले १४ दि० जैन मंदिर थे | अब एक मंदिर स्थिर है कई मंदिर किलेमें दबे हैं । यही वह मान्यखेड है जो राजा अमोघवर्ष जैन चाटकीराज्यधानी थी । यहीं श्री जिनसेनाचार्यने गदयकाव्य पूर्ण Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । किया था। जो मंदिर - अब चालू है इसमें बहुत प्राचीन तथा मनोज्ञ दि० जैन मूर्तियें हैं। ... ____ यही वह मान्यखेड़ है जहां जैनियोंके प्रसिद्ध आचार्य श्री राजवार्तिकके कर्ता श्री अकलंकदेव हुए हैं। राजा शुभतुंगके मंत्री पुरुषोत्तम भार्या पद्मावतीके यह पुत्र थे । प्रमाणअत्रैव भारते मान्यखेाख्यनगरे वरे। राजाऽभूच्छुभतुंगाख्यस्त मंत्री पुरुषोत्तमः।। भार्या पद्मावती तस्यः तयोः पुत्रौ मनः प्रियौ । संजातावकलंकाख्य निष्कलंकौ गुणोज्वलौ ॥३॥ इन्होंने ही कलिंग देशाके रत्नसंचयपुरके राजा हिमशीतलकी सभामें बौद्धोंके गुरु संघश्रीसे वाद करके उनको परास्त किया था। यह राजा शुभतुंग अकालवध सन् ८६७ में यहां राज्य करते थे। जैसा राष्ट्रकूट वंशकी पट्टावलीसे प्रगट है । (१२) सांवरगांव-(नि० उसमानाबाद) वारसीसे २४ मील। शोलापुरसे १४ मील। हेमा हपंथी दि० जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथ ३॥ हाथ कृष्णवर्ण है। (१३) होलसलगी-नि० गुलबर्गा । होनसलगी स्टेशन है। साक्लजी (G. L P.)से २ मील-प्राचीन जैन मंदिरमें श्रीपार्श्वनाथ ४ फुट कार्योत्सर्ग व शांतिनाथ ४ फुट। शिलालेख कनडीमें हैं। (१४) एलुसकी जैन गुफाएं-दौलताबाद स्टेशनसे १२ मीलके करीब दर्शनीयः । यहां ३२-३३ गुफाएं हैं जिनमें ५ जैन गुफाएं बहुत बड़ी हैं। जिनमें बड़ी मनोज्ञ दि० जैन प्रतिमाएं हैं Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [ १६३ व बड़ी सुन्दर कारीगरी है तथा हजारों आदमियोंके बैठनेका स्थान है । हम देखनेको गए थे अपूर्व काम किया हुआ है। Arch S. of W. India Vol v Report of Elura by Bur. gess 1880). नाम पुस्तकमें जो वर्णन दिया हुआ है वह नीचे लिखे भांति है। इन्द्रसभा । यहां दो बहुत बड़ी जैन गुफाएँ हैं। दो खनकी हैं। एकका नाम इन्द्र गुफा दूसरीका नाम जगन्नाथ गुफा । इन गुफाओंका समय बौद्ध और ब्राह्मण गुफाओंके पीछे मालूम पड़ता है। क्योंकि राठोड़ वंशके नष्ट होनेके पीछे राष्ट्रकूटोंका राज्य गोविंद तृतीयके समयमें बट गया था जब उसके छोटे भाई इन्द्रने आठवीं शताब्दीके अन्तमें गुजरातमें भिन्न राज्य स्थापित किया था । जैनियोंने इस स्थानपर अधिकार कर लिया था और तब उन्होंने अपने धर्मका महत्व यहांपर स्थापित किया। जिसकी उन्होंने अन्य दो धर्मोके मुकाबले में आवश्यक्ता समझी थी। इन्द्रसभा-कैलाश गुफाके समान गुफाओंका समूह है । बीचमें दो खनकी गुफा है। सामने सभा है । हरएक तरफ छोटी २ गुफाएं हैं। गुफाका मुंह दक्षिण ओर है । सभाके बाहर हरतरफ एक छोटा कमरा १९ फुटसे १३ फुट है, जिसमें एक छोटी भीत परदेके तौरपर है । सामने दो खभे हैं, जो नीचे चौकोर हैं ऊपर गुम्बन हैं । इस कमरेके अन्तमें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी और तपस्या करते हुए गोमट्टस्वामी या बाहुबालकी मूर्तियें हैं । सभाके दक्षिण तरफ एक भीत है और एक द्वार है । यह सभाका कमरा Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ५६ फुट लम्बा दक्षिणसे उत्तर है व ४८ फुट पूर्व पश्चिम है। इसमें दाहनी तरफ एक हाथी आसनको छोड़कर १५ फुट ऊंचा है । जो गिर गया है । एक सुन्दर स्तम्भ २७ फुट ४ इंच ऊंचा है इसके ऊपर चतुरमुख प्रतिमा है और एक छोटा मंडप सामने शिवमंडपके समान है । यह आठ फुट ४ इंच चौकोर है । सभासे ८ सीढ़ियां हैं, हर तरफ द्वार है । चढ़ाई उत्तर व दक्षिण दोनों तरफसे है हरएक द्वारमें दो स्तम्भ हैं। इस कमरेके भीतर एक चौकोर पाषाणकी वेदी है जिसके हर तरफ सिंहासनपर श्री महावीरस्वामीकी मूर्ति कोरी हुई है। बरामदेको छोडकर नीचेका कमरा ७२ फुटसे ४८ फुट है। जिसके आगे दो स्तंभ हैं और दो स्तंभ उस मंदिरके कमरेके सामने हैं जो ४० फुटसे १५ फुट है। यह मंदिरका कमरा १७॥ फुटसे १३ फुट है । इसमें श्री महावीरस्वामी सिंहासनपर बिराजमान हैं । सामने धर्मचक्र है । इन चिन्होंसे यह प्रगट होता है कि ये गुफाओंके मंदिर दिगम्बर जैनोंके हैं । बरामदेको सीढ़ी गई है जो ऊपर बडे कमरेकी पूर्व तरफ है । यह ऊपरका कमरा बरामदेको छोडकर जिसके मध्यमें एक नीचीसी भीत है ५५ फुटसे ७८ फुट है। वरमदा ९४ फुटसे १ ० फुट है । इसके हर तरह इन्द्र और इन्द्राणी विराजमान हैं-पूर्व ओर इन्द्र हाथीपर और पश्चिम ओर इन्द्राणी सिंहासनपर है (नोट-ये बड़े ही सुन्दर सुसज्जित हैं)। कमरेकी बगलसे जाकर इन मूर्तियोंके पीछे एक छोटा कमरा ९ से ११ फुट है। इसमें होकर उन मंदिरोंमें जाना होता है जो सामनेके मंदिरके हरतरफ बगलमें हैं । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला । [ १६५ कुछ दूर जाकर हरएक बगलके कमरेसे एक छोटे कमरेमें पहुंचना होता है जहां सब तरफ जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां कोरी हुई हैं । ये कमरे बगलके कमरोंके वरामदेके अन्तमें हैं। पूर्व ओर वरामदेमें दो खंभे सामने व दो पीछे हैं। द्वारके सामने दक्षिण तरफ अंबिका देवी है । दाहनी तरफ इंद्र हैं । बाएं हाथमें एक थैली व दाहनेमें नारियल है। ये मुख्य जैन मूर्तियोंके सामने हैं। कमरा २५ फुटसे २३॥ फुट है। छतका आधार ४ चौकोर खंभोंसे है। जिसमें गोल गुम्बज हैं। इसमें दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामीकी मूर्ति है जो दिगम्बर जैनोंको बहुत प्यारी है, कनड़ा देशमें ऐसी कई बड़े२ आकारकी मूर्तियां स्थापित हैं। बाईं तरफ भी श्री पार्श्वनाथ भगवानकी नग्न मूर्ति चमरेन्द्र सहित है। छोटी वेदियोंमें पद्मासन श्री महावीरस्वामीकी मूर्तियें हैं। कमरेकी हर तरफकी भीतोंके सहारे बहुतसी नग्न जैन मूर्तियां हैं व बीचमें इधरउधर बहुतसी छोटी२ मूर्तियां हैं। भीतर सिंहासनपर पद्मासन श्री महावीर स्वामी विराजमान हैं। इस बड़े कमरेके दक्षिण पश्चिम कोनेमें दूसरा द्वार है जिस पर चार हाथकी देवी दाहनी तरफ है व नीचे वाई तरफ एक मोड़पर आठ हाथवाली देवी सरस्वती है। एक छोटे कमरेसे होकर कुछ कदम चलकर हम एक वरामदेमें आते हैं फिर एक छोटे कमरेमें जैसा पहले कह चुके हैं यहां भी अंबिका दाहनी ओर है और उसके सामने चार हाथकी देवी है, जिसके उठे हुए हाथोंमें दो गोल फूल हैं और जो हाथ घुटनेपर है उसमें वज्र है । वरामदेके पश्चिम ओर द्वारके सामने इन्द्रकी मूर्ति है । भीतर वेदीके Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। कमरेमें श्री महावीरस्वामी है, भीतोंमे कई कमरे हैं। इस कमरेके वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ भगवान और दाहनी तरफ श्री गोम्मटस्वामी पूर्व ओरके समान विराजित है । यहां जो चार मध्यके खंभे हैं उनमें खुदाई बहुत महीन है। इस पहाड़ी चट्टानके दाहने आधेमें दो खन हैं जब कि बाई तरफ एक खन है। दाहने दो खनोंमेंसे ऊपरके खन और बाई तरफके खनके मध्यमें बढ़िया खुदाई है। नीचली तरफ एक युद्धका चित्र है जिसमें तीन लेटे हुए शरीरोंके ऊपर चार शरीर पडे लड़ रहे हैं । इसके ऊपर एक आला है जिसमें एक चबूतरेकी बाई तरफ दो स्त्रियां और दाहनी तरफ दो पुरुष घुटनोंकेबल झुके हुए हैं तथा इसके ऊपर श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति पद्मासन सिंहासनपर है । सामने चक्र है। दाहनी तरफ एक पूजक है। हरतरफ मुकुट सहित चमरेन्द्र हैं । पीछे सात फणका सर्प छत्र किये हुए है । ऊपर बाई तरफ एक चित्र मंदिरका है । दाहनी तरफ जो सबसे नीचेका खन है वह हालमें ही मट्टीसे साफ किया गया है जिसमें सामने दो स्वच्छ खंभे हैं। दीवालके पीछे इन्द्र और अम्बिकाकी मूर्तियें हैं जो बहुत सुन्दर व सुरक्षित हैं । इसमें बाई तरफ श्री पार्श्वनाथ और दाहनी तरफ श्री गोमट्टस्वामी हैं जिनके चरणोंपर हिरण और कुत्ते बैठे हुए हैं और पीछे जाकर पद्मासन तीर्थंकर बिराजमान हैं। भीतर वेदीमें श्री महावीरस्वामी चमगेन्द्र छत्र तीन, और अशोक वृक्ष सहित हैं । इसके आगे एक दूसरा कमरा है जिसमें श्री पार्श्वनाथ बाईं तरफ व दाहनी तरफके आधे उपरके भागमें दो छोटी पद्मासन मूर्तियां है । मंदिर द्वारके हरतरफ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। इन्द्र और अम्बिका ( इन्द्राणी ) है और सामने सिंहासनपर पद्मासन चमरेन्द्र सहित तीर्थंकर बिराजमान हैं । इस मंदिरमें श्री गोमटस्वामीकी मूर्ति खास गुफा और इस मंदिरके मध्य सामने कोरी हुई है। इन दोनोंकी बाई तरफ और करीब २ इतना ऊँचा-जितने ये दोनों हैं-एक कमरा करीब ३० फुट चौड़ा व २५ फुट गहरा है । सामने एक भीत है जिसके ऊपर द्वारके हरतरफ एक खंभा है । भीतके ऊपरी भागपर बहुतसे कमलादि कोरे हुए हैं तथा हाथी बने हुए हैं जिनका मुख पुष्पोंपर है। भीतर चार खंभे हैं जिनकी जड़ चौकोर है, ऊपर गुम्बज हैं । सामनेके खभोंपर बहुत चित्रकारी है । पश्चिमकी तरफ बीचके कमरेमें श्री पार्श्वनाथ बिराजमान हैं। फणके छत्र सहित व चमरेन्द्र सहित है । पगमें दो नागनियां हैं और दो सुन्दर वस्त्र सहित पुजारी हैं । जबकि उनके चारों ओर देवतागण ध्यानमें उपसर्ग कर रहे हैं । ( नोट-यह कमठके जीव द्वारा उपसर्गका चित्र है)। पासवाले दूसरे कमरेमें पहलेकी भांति रचना छोटे मापमें है तथा एक पद्मासन तीर्थकर विराजमान है। पूर्वकी भीतकी तरफ मध्य कमरेमें श्री गोमटस्वामी हैं जिनके चरणोंपर हिरण और कुत्ते और कुछ स्त्रियां बैठी हुई हैं । इनके ऊपर गंधर्व आदि देव हैं जो वाजा, फूलादि लिये हुए हैं। इसके दाहनी तरफ कमरेमें एक छोटी मूर्ति श्री पार्श्वनाथजीकी है । वाई तरफ एक खड़ी मूर्ति है, जो आधी तड़क गई है, जिनके पास मृग, मकर, हस्ती, शूकर आदिके चिन्ह हैं। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । .. इसके ऊपर एक पद्मासन जिनकी मूर्ति है और भीतके पीछे इन्द्र और इन्द्राणी थे जो अब मिट गए हैं। मंदिर द्वारपर दो जैन द्वारपाल हैं । भीतर सिंहासनपर जिनेन्द्र हैं तीन छत्र व देवोंद्वारा दुर्बुभि आदि सहित हैं । तीन कमरोंके ऊपर दीवालके सामने एक कमरा बीचमें है जिसमें एक स्त्री पुरुष कोरे हुए हैं। जिनकी सेवामें पुष्प लिये दो छोटी स्त्रियां हैं। बगलमें मकर तोरण लिये हुए हैं । भीतोंकी तरफ हाथी पुष्पोंपर रमते व सार्दूल एक छोटे हाथीपर चढ़ा हुआ है-इसके ऊपर पानीके घड़े हैं। कमरेके ऊपर मालाएं लटक रही हैं । पासमें जो रचना है उसमें कई पशु बने हैं । इसके ऊपर छोटे२ मंदिर हैं हरएकमें मूर्ति है । बीचमें वाई तरफ इन्द्र है, दाहनी तरफ इन्द्राणी है। शेष आलोंमें श्री गोमटस्वामी, श्री पार्श्वनाथ तथा दूसरे तीर्थकर हैं । मध्यभागमें एक मकान छत सहित है जिसको चार झुकती हुई मूर्तियां थांभे हैं । एक तरफ श्री जिनेन्द्रदेव पद्मासन विराजित हैं उसीके ऊपर एक चैत्यकी खिड़कीमें दूसरे जिनेन्द्र हैं । इसके ऊपर कुछ आगे आकर इसकी रक्षाका उपाय है । बड़े कमरेमें लौटकर छतको थांभनेवाले खंभोंमें भिन्न २ प्रकारके नमूने हैं तथा भीतोंपर चित्रकारी है । मध्य कमरेमें पांच भिन्न २ नमूनोंके स्तंभ हैं । हरएक बगलकी भीतके मध्यमें जो बड़े कमरेमें हैं उनमें सिंहासनपर एक पद्मासन जिन है, सामने चक्र, हाथी व सिंह खुदे हैं, नीचे दो हाथी हैं, भामंडल, छत्र व अशोक वृक्ष व चमरेन्द्र हैं। दूसरे दो स्थानोंपर सिंहासनपर दो छोटी जैन मूर्तियां हैं। मंदिरके सामने हरएक खंभेके सामने तथा Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [१६६ हरएक तरफ भीतपर भी लम्बी नग्न मूर्तियां हैं जिनमें कुछ हानि आगई है । छतमें बड़ा कमल मध्यमें है तथा बहुत कुछ रंगावेजी है यद्यपि धूआं छा गया है। जगन्नाथ सभा । __ दूसरी बड़ी गुफा इस जैन समुदायमें जगन्नाथ गुफा है जो इन्द्र सभाके पास है । इस गुफाका सभास्थान ३८ फुट चौकोर है । इसमें जो रचना है वह बिलकुल नष्ट होगई है। सभास्थानसे एक जीना बड़े कमरेके दाहने कोनेकी तरफ गया है । यह कमरा ५७ फुट चौड़ा व ४४ फुट गहरा है। करीब १४ फुट ऊंचा है। १२ बड़े २ खंभे छतको संभालते हैं तथा दो खंभे सामने हैं । बाहर हरएक कोनेपर एक बड़े हाथीका मस्तक है । हरएक खंभेके सामने बीचमें मनुष्योंके व इधर उधर पशुओंके चित्र हैं, उपर छोटे२ वृक्षोंकी नांदे हैं उनपर मनुष्योंके व दूसरे चित्र हैं । इसके उपर और भी चित्रकारी हैं । इसकी नीचेकी चट्टान इन्द्रसभाके नमूनेकी है, परंतु छोटी है । कमरा नीचेका २४ फुट चौकोर व १३॥ फुट ऊंचा है । चार खंभे छतको थांभे हैं । सामने एक छोटा वरामदा है। भीतपर दो चौकोर खंभे हैं। दो खंभे वरामदेसे कमरेको जुदा करते हैं । जिसमें दो वेदियां हैं बाई ओर श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं ऊपर सर्पफण हैं व चमरेंद्र आदि हैं तथा दाहनीतरफ श्री गोम्मटस्वामी हैं। भीतके छः स्थानोंपर दूसरी पद्मासन तीर्थकरकी मूर्तियां हैं । वरामदेमें बाईं तरफ इंद्र है व दाहनी तरफ इन्द्राणी हैं । भीतरके मंदिरमें एक छोटे कमरेके द्वारा जाना होता है। द्वारपर सुन्दर तोरण है । यह कमरा ९ फुटसे ७ फुट व १० Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७०] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। फुट ८ इंच ऊंचा है । इसमें पद्मासन श्री महावीरस्वामी सिंहासनपर बिराजमान हैं। इस जगन्नाथ सभाके बाई तरफका हॉल २७ फुट चौकोर व १२ फुट ऊँचाई जिसमें मंदिर ९॥ फुटसे <॥ फुट व ९ फुट १॥ इंच ऊँचा है हर तरफ इसके कोठरी है । जिसके बाईं तरफ पासकी गुफामें जानेका मार्ग है । इस सभाकी दूसरी तरफ दो छोटे मंदिर हैं जिनमें जैन चित्रकारी है । गुफा नं० ३४ वीं आखरी गुफा जगन्नाथ सभाके पास है । बरामदा नष्ट हो गया है । इसमें हॉल २०० फुट चौड़ा, २२ फुट गहरा व ९ फुट ८ इंच ऊँचा है, ४ खभे हैं । भीतोंपर सुन्दर चित्रकारी है । छोटा कैलास-गुफा यह जैनियोंकी पहली गुफा है। हाल ३६ फुट चौकोर है । १६ खभे हैं । कुल गुफा ८० फुट चौड़ी व १०१ फुट लम्बी है । यहां खुदाई करनेपर कुछ मूर्तियां शाका ११६९ की मिली थीं। ____एल्लूरा पर्वतको चरणाद्रि भी कहते हैं। एलूरा पहाड़की गुफाओंका वर्णन भिन्न २ रचनाके चित्रों सहित जिनमें जैन मूर्तियोंके भी व खंभोंके भी चित्र हैं ( Cave templs of India by Fergusson and Burges 1880 ) में दिया है । उससे जो विशेष हाल मालूम हुआ वह यह है । कि इन्द्रसभाके पश्चिम बीचके कमरेमें दक्षिण भीतपर श्री पार्श्वनाथ हैं व सामने श्री गोमटस्वामी हैं । पीछे भीतके इंद्र, इन्द्राणी, भीतर मंदिरमें सिंहासनपर श्री महावीरस्वामी हैं नीचेके Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैदराबाद जिला। [ १७१ हॉलमें घुसते ही सामने वरामदेकी वाई तरफ दो बड़ी नग्न मूर्तियां श्री शांतिनाथ सोलहवें तीर्थंकरकी हैं। नीचे एक शिलालेख (वीं व ९मी शताब्दीके अक्षरोंमें है, लेख है “श्री सोहिल ब्रह्मचारिणा शांति भट्टारक प्रतिमेयम् " अथात् सोहिल ब्रह्मचारी द्वारा यह शांतिनाथ भगवानकी प्रतिमा। इसके आगे एक मंदिर है, इसके हालमें एक खंभा है, जिस पर एक नग्न मूर्ति विराजित है। उसके नीचे एक लाइन हैं "श्री नागवा कृत प्रतिमा ” अर्थात् नागवर्मा द्वारा निर्मित प्रतिमा । जगन्नाथ गुफा में विशेष कथन यह है कि इस गुफाके कुछ खंभोंपर पुरानी कनड़ीमें कुछ लेख है-जो सनई ० ८००से ८५० तकके होंगे। इन गुफाओंकी पहाड़ीकी दूसरी तरफ कुछ ऊपर जाकर एक मंदिरमें बहुत बड़ी मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवानकी है जो १६ फुट ऊंची है, इसके आसनपर लेख है-मिती फाल्गुण सुदी तीन संवत ११५६ है जो ता० २१ फर्वरी बुधवार सन १२३३ के बराबर है । लेखमें है कि श्री वर्द्धमानपुर निवासी रेणुगी थे, उनके पुत्र गेलुगी थे, उनकी स्त्री स्वर्णा थी। जिसके चार पुत्र थे । चक्रेश्वर आदि । उसने चारणोंसे निवासित इस पहाड़ीपर श्री पार्श्वनाथकी मूर्ति प्रतिष्ठा कराई । इसके नीचे बहुतसी छोटी २ जैन गुफाएं हैं जो बहुत नष्ट होगई हैं । तथा चोटीके पास एक खाली गुफा है जिसमें सामने दो चौकर खभे हैं। .. एक शिलालेख-एल्लूरामें एक दशावतार लेख है इसमें Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । महान राष्ट्रकूट वंशके दो प्राचीन राजाओंका वर्णन है अर्थात् दंतिवर्मा और इन्द्रराजका जो सातवीं शताब्दिके प्रारम्भमें जरूर राज्य करते होंगे इसमें वंशावली दी है जिसमें नाम है, गोविंद प्रथम, कर्क, इन्द्र, दंतिदुर्गा । दंतिदुर्गाने पश्चिमीय चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वि० को अपने अधिकारमें किया था तथा और भी राजाओंको विजय किया था इससे इसका नाम वल्लभ प्रसिद्ध था। इस राजाके प्रथम मंत्री मोरारजी सार्वकी भी प्रशंसा लिखी है। यह भी प्रगट होता है कि यह सेना लेकर यहां आया था और ठहरा था । दंतिदुर्गा सन ७२५से ७५५ तक राज्य करता होगा और इसने यहां यात्रा की। इससे प्रगट है कि शायद इसने दशावतार मंदिर बनवाया हो। इसका चाचा व उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम था । इसके सम्बंधमें प्रसिद्ध है कि इसने एलापुरा पहाड़ी पर अपनेको वसाया था । इस स्थानकी जांच नहीं हुई है शायद यह एलूरा गुफाओंके ऊपरकी पहाड़ी है। जहां वर्तमान रोजा नगरके बाहर प्राचीन हिन्दू नगरके ध्वंश हैं। बोधान-ता० निजामाबाद। यहां एक देवल मसजिद है जो मूलमें जैन मंदिर था क्योंकि तीर्थकरकी बैठी मूर्तियें कई पाषाणोंपर अंकित हैं । ( निजामपुरा रिपोर्ट १९१४-१५) __ पाटनचेरू-हैदराबादसे उत्तर पश्चिम १८ मील । यह स्थान जैन धर्मकी पूजाका बहुत प्रसिद्ध स्थान था । यहां नगरके कई स्थानोंपर श्री महावीरस्वामी और दूसरे तीर्थकरोंकी बड़ी२ मूर्तियें १० फुटसे १४ फुटतककी विराजमान हैं तथा हालमें भूमि खोदनेसे और भी मूर्तियें निकली हैं । दक्षिणके उत्तर भाग, एलोरा, Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १७३ बोधान, वारंगल आदि स्थानोंके स्मारकोंसे प्रगट है कि इन भागोंके शासक राजागण सातवींसे दशवीं शताब्दी तकके जैनधर्मसे प्रेम करते थे और यह धर्म बहुत उन्नतिपर था। पीछे शिव तथा विष्णु भक्तोंने जैन मंदिरोंको नष्ट किया । वही दशा पाटनचेरूके मंदिरोंकी हुई है। (हैदराबाद १९१५-१६). गुजरातका इतिहास । बम्बई गजेटियर जिल्द १ भागमें गुजरातका इतिहास सन् १८९६में छपा था। उसमेंसे लिखा गया। पं० भगवानलाल इंद्रनीने प्राचीन गुजरातका इतिहास सन् ई० ३१९ पहलेसे १३०४ तक तय्यार किया था जिसको जैकसन साहबने पूर्ण किया था । गुजरातकी चौहद्दी है-पश्चिममें अरब समुद्र, उत्तर पश्चिम कच्छ खाडी, उत्तर-मेवाड, उत्तरपूर्व-आबू, पूर्व-विन्ध्याका वन, दक्षिणमें तापती नदी । इसके दो भाग हैं-गुर्जरराष्ट्र और सौराष्ट्र या काठियावाड । गुर्जरराष्ट्रमें ४५००० वर्गमील व सौराष्ट्रमें २७००० वर्गमील स्थान है। यहां सन् ३०० ई० पहलेसे १०० ई० तक समुद्रद्वारा यूनानी, वैकटीरियावाले, पार्थियन और स्कैथियन आते रहे । सन् ६००से ८०० तक पारसी और अरब आए । सन् ९०० से १२०० तक संगानम् लुटेरे, सन् १५०० से १६०० तक पुर्त Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । गाल और तुर्क, सन् १६०० से १८०० तक अरब, आफ्रिकन, आरमीनियन, फ्रांसीसी, सन् १७५०से १८१२ तक वृटिश आए। ___तथा पृथ्वीद्वारा उत्तरसे सन् ई०से २०० वर्ष पूर्वसे सन् ५०० तक स्कैथियन और हून, सन् ४०० से ६०० तक गुर्जर, सन् ७५० से ९०० तक पूर्वीय जादव और काथी, सन् ११०० से १२०० तक अफगान और मुगल, पूर्वसे सन् ई० ३०० वर्ष पूर्व मौर्य लोग, सन् १०० पूर्वसे ३०० तक छत्रप और अर्ध स्कैथियम३०० में गुप्त लोग, सन् ४०० से ६०० तक गुर्जर, सन् १९३० में मुगल, सन् १७५० में मराठा । दक्षिणसे सन् १०० में शतकर्णी, ६५० से ९५० में चालुक्य और राष्ट्रकूट आए। शिलालेखोंसे यह प्रगट है कि गुर्जरोंका प्राचीन स्थान पंजाब व युक्त प्रान्त था वे मथुरामें सन् ई० ७८ में राजा कनिष्कके समयमें थे वहांसे वे सन् ३०० के अनुमान राजपूताना, मालवा, खानदेश और गुजरातमें आए जब गुप्तोंका राज्य था और सन् ४५० के अनुमान स्वतंत्र राजा होगए । सन ८९० में काश्मीरके राजा शंकर वर्मनने गुर्जर राजा अलखानापर हमला किया यह हार गया तब अलखानाने टक्कादेश या पंजाब देकर संधि करली । चीन यात्री हुईनसांगके समयमें सन् ६२० में गुर्जरों के दो स्वतंत्र राज्य थे। (१) उत्तरीय गुर्जर-जिसको चीनाने क्यूचलों लिखा है। इसकी राज्यधानी पिलोमो या भिनमाल या श्रीमाल थी। यह आबूसे उत्तर पूर्व ३० मील एक प्राचीन नगर है। एक जैन लेखक Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १७५ ( Indian Autiquary XIX 233 ) में लिखते हैं कि भिन माल भीमसेन राजाकी राज्यधानी थी तथा विद्याका मुख्य केन्द्र था । ( राज्यमाला भाग १ पत्र ५६ ) के अनुसार इस श्रीमालनगरका राजा मूलरजसोलखी (सन् ९४२-९९७)के साथ उस हमले ने था जो सोरठके विरुद्ध किया गया था। यहां बहुत बस्ती थी २ दक्षिण गुजरात-इसकी राज्यधानी नांदीपुरी थी वर्तमानमें नांदोद जो राजपीपला राज्यकी राज्यधानी है। सन् १८९ से ७३५ तक यह बहुत महत्वशाली नगर था जैसा प्राचीन शिलालेखसे प्रगट है। चौथीसे आठवीं शताब्दी तक उत्तर और दक्षिणके मध्यका गुजरात देश वल्लभियोंके अधिकारमें था जो मूलमें गुर्जर थे। - इस गुजरातके प्राचीन विभाग-तीन थे (१) आनन (२) सौराष्ट्र और (३) लाट-आनर्तकी राज्यधानी आनंदपुर या बड़नगर या आवर्तपुर थी जो नाम वल्लभी राजाओंने सन ५०० से ७०० तकमें व्यवहार किया है (Ird Ant: VII 73-77) रुद्रामन क्षत्रपके गिरनारके लेख ( सन १५० ) में आनर्स और सौराष्ट्रको भिन्न२ प्रांत लिखा है । स्कंध गुप्तके गिरनार लेख सन् ४९० में भी सौराष्ट्रका नाम है । नासिकके गौतमीपुराके लेखमें सोरठ नाम प्राकृतमें हैं (सन् १५०)। १३ वी व १४ वीं शताब्दीके श्री जिनप्रभसूरि रचित तीर्थकल्पमें सुराथूआ नाम है । विदेशियोंने भी इसका नाम लिखा है जैसे स्टेशनों (५० सन् ई० पहलेसे २० तक) ने व स्पिनी (सन् ७०) ने व टोलिमी मिश्र Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । भूगोल वेत्तामें (सन् १९०) व यूनानी लेखक पैरीप्लसने ( सन् २४०) चीनीहुईनसांगने भी सन् ६०० से ६४० में वल्लभी और सौराष्ट्रको भिन्नर प्रांत लिखा है। वल्लभीको वर्तमानमें गोहिलवाडा कहते हैं इसीको निनप्रभसूरिने सेव॒जय कल्पमें वल्लकवसाड़ लिखा है । (३) लाट प्रांत माही नदीसे ताप्ती तक है । टोलिमीने इसे लारिकी कहा है। तीसरी शताब्दीके वात्स्थापन रचित कामसूत्रमें मालवाके पश्चिम लाट देश आया है । छठी शताब्दीमें ज्योतिषी बराहमिहिरने भी लाटका नाम लिया है । अजंताके ५ वीं शदीके लेखमें है । मंदसोरका लेख (सन् ४३७) कहता है कि लाट देशमें रेशमके बुननेवाले थे । लाट निवासी राजाओंको राष्ट्रकूट वंशी कहते हैं । इस वंशका बडा राजा महाराजा अमोघ वर्ष था (सन् ८५१-८७९) उसने इसे राट्ट वंश कहा है । लाट लूर जो सौंदत्ती और बेलगामके राट्टोंका मूल नगर था इसी लाट देशमें होगा । भरुच और मालवाके धारके मध्यमें जो देश हैं जहां मुख्य नगर बाध और टांग है उसको अब भी राठ कहते हैं गुजरातमें गिरनार पर्वतकी चट्टानका लेख सबसे पुराना सन् ई० से २४० वर्ष पहलेका है दूसरा लेख वहीं क्षत्रप रुद्रादामनका सन् १३९ का है। इनमें मौर्य महाराज चन्द्रगुप्त (सन् ४० से ३०० वर्ष पहले) का वर्णन है। हेवट साहबने गुजरातका पता सन ई० से ६००० वर्ष पूर्व तक लगाया है । मिश्र देशमें जो कब खोदी गई हैं वे सन ई० से १७०० वर्ष पहलेकी हैं उनमें भारतीय तंजेव व नील पाई गई है (J. R. A, S. XX 206) सन् ई० से ४००० Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १७७ वर्ष पहले तक भारतकी लकड़ी तथा सिंधुमें अर्थात् भारतीय तन्जेवोंमें पश्चिमीय भारत और युफ्रटीज नदीके मुख तकके देशसे व्यापार होता था । द्राविड़ भाषा बोलनेवाले सुमरी लोगोंका संबंध सिनाई और मिश्रसे था, जिनका सम्बन्ध पश्चिम भारतसे ६००० वर्ष सन्के पूर्व तक था ( Compare Hibtert lectures J. R. A. S. XXI 326 ) हिन्दू धर्म शास्त्रोंमें गुजरातको म्लेच्छ देश लिखा है और मना किया है कि गुजरातमें न जाना चाहिये । ( देखो महाभारत अनुशासन पर्व २१५८-९ व अ० सात ७२ व विष्णुपुराण अ० हि० ३७) । भारतके पश्चिममें यवनोंका निवास बताया है (J. R. A.S. IV 468) प्रबोधचंद्रोदयका ८७ वां श्लोक कहता है कि जो कोई यात्राके सिवाय अंग, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र तथा मगधमें जायगा उसको प्रायश्चित लेकर शुद्ध होना होगा । (स० नोट-ऐसा समझमें आता है कि इन देशोंमें जैन राजा थे व जैन धर्मका बहुत प्रभाव था इसीलिये ब्राह्मणोंने मना किया होगा।) मौर्योके अधिकारके समयसे गुजरातका इतिहास ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन लेखोंमें मिलता है। मौर्य्य लोग बड़े उदार शासक थे, और इनकी प्रतिष्ठित मित्रता यूनान व मिश्र देशके राजाओंसे व अन्योंसे थी। (Mauryasere beneficent rulers and had also honorable alliances with Greek aad Egyptian Kings etc. ) इन कारणोंसे मौर्य वंश एक बड़ा बलवान व चिरस्मरणीय वंश था । शिलालेखोंसे यह वात विश्वास की जाती है कि मौर्य १२ . Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वंश संस्थापक महाराजा चंद्रगुप्त थे (सं० नोट - "यह राजा जैनधर्मानुयायी थे व श्री भद्रबाहु श्रुतकेवलीके शिष्य मुनि होगए थे" यह बात श्रवण बेलगोला आदिके शिलालेखोंसे प्रमाणित है) ने ( सन् ३१९ वर्ष पूर्व ) अपना शासन गुजरातपर भी बढ़ाया था । गिरनारकी चट्टानमें जो सन् १९० का रुद्रदामनका लेख है उससे यह प्रगट होता है । (देखो R. A. S. J 1891 P. 47 ) कि इस चट्टान के पास जो सुदर्शन झील है उसको मूलमें महाराज चंद्रगुप्तके साले वैश्यजातीय पुष्पगुप्तने बनवाया था । ( राजा अशोकने भी एक सेठकी कन्या देवीको विवाहा था । देखो Cunningham Bhilsa Topes 95 और Turnours maha vansa 76 ) इस लेख की भाषा से निःसंदेह यह प्रगट होता है कि चंद्रगुप्तका राज्य गिरनार के देशपर था तथा पुष्पगुप्त उसका राज्याधिकारी ( Governor ) था । यही लेख कहता है कि महाराज अशोकके राज्य में उसके राज्याधिकारी यवनराज तुशस्पने इस frost नालियोंसे भूषित किया था । राजा चंद्रगुप्त से लेकर अशोक तक मौर्य राज्य बहुत विस्तृत था । अशोकने अपने बड़े राज्यकी हद्दों पर स्तंभ गड़वा दिये थे। जैसे उत्तर पश्चिममें कपूर्दिगिरि पर या बाकूके शावाजगढ़ पर, जो पाली लिपिमें हैं तथा उत्तरमें कालसी पर, पूर्व में धौली और जंगदा पर, पश्चिममें गिरनार और सुपारा पर, दक्षिणमें मैसूर में, ये सब मौर्य लिपिमें हैं— मौर्योकी राज्यधानी गुजरातमें गिरिनगर या जूनागढ़ थी । क्षत्रपोंके राज्य ( सन् १०० से ३८० तक ) तथा गुप्तोंके राज्य ( ३८० से ४६० तक ) में यही राज्यधानी थी। मौय्यकी Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। . [ १७६ दक्षिणी राज्यधानी सोपारा थी जो वेसीनके पास है। जहाजोंके लिये बंदर है। यह कोंकण व दक्षिण गुजरातका मुख्य व्यापार केन्द्र था। बौद्ध और जैन लेखोंसे प्रगट है कि अशोकके पीछे उसकी गद्दीपर उसका अंधा पुत्र कुणाल नहीं बैठा था किन्तु उसके दो पोतोंने अर्थात् दशरथ और सम्प्रतिने राज्य किया था। गया जिलेके बराबर और नागार्जुन पहाड़ियोंके लेखोंमें दशरथका नाम है । जैन लेखोंमें सम्प्रतिकी बहुत अधिक प्रशंसा है ( देखो हेमचंद्रकृत परिशिष्ट पर्व व मेरुतुंगकृत विचारश्रेणी)। यह कहा जाता है कि करीब २ सब प्राचीन जैन मंदिर राजा सम्प्रतिके बनवाए हुए हैं। जिनप्रभमूरि जैनाचार्यने पाटलीपुत्र कल्पग्रंथमें पाटलीपुत्रकी कथाएं दी है । उनमें एक स्थानपर है " कुणालमनुत्रिखंडभरताधिपः परमार्हतो अनार्य्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्पति महाराजाऽसौऽभवत् ।" इसका भाव यह है कि कुणालके पुत्र सम्प्रति थे जो तीन खंड भरतके राजा थे, परम अर्हत भक्त जैन थे । जिन्होंने अनार्य देशोंमें भी मुनियोंका विहार कराया । अशोकके पीछे दशरथ तो पूर्व भारतमें व सम्प्रति पश्चिम भारतमें राज्य करते थे, जहां जैन जाति अब भी विशेष फैली हुई है । यह संप्रति उज्जैनका भी राजा था। इसके पीछे मौर्य राजाका नाम नहीं सुन पड़ता है । सन् ५०० में मौर्य राजाओंका नाम मालवा और उत्तरी कोंकणमें झलकता है । संप्रतिने सन् ई० से १९७ वर्ष पूर्व तक राज्य किया। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] मुंबईप्रान्तके प्राचान जैन स्मारक । इसके पीछे १७ वर्षका इतिहास अप्रगट है। यूनान लोगोंने गुजरात पर सन् ई० से १८० वर्ष पूर्वसे १०० वर्ष पूर्व तक राज्य किया । उनके दो प्रसिद्ध राजा हुए, मीनन्दर और अपोलोदोतस, इनके सिक्के पाए गए हैं। क्षत्रपोंका राज्य -यहां सन् ई० ७० पूर्वसे सन् १९८ तक रहा है । इसके वंशको शाहवंश भी कहते थे, जो सिंह वंशका अपभ्रंश है । इनको सेन महाराज भी कहते हैं । शिला1 लेखोंके अंत में सिंहका चिन्ह है । काठियावाड़के क्षत्रपोंके वंशका वंश चासथना (सन् १३० ) से होता है, जिनके बड़े राजा नहापन (सन् १२० ) और उनके जमाई शक उषभदत्त ( रिषभदत्त) के नाम नासिक के शिलालेखों में आते हैं कि वे शक, पहलवी और यवनोंके मुखिया थे । - कुशान संवत् (सन् ७८ ) को पश्चिमी क्षत्रपोंके पहले दो राजा चशथमा प्रथम और जयदमनने स्वीकार नहीं किया है जिससे प्रगट है कि वे कुशानोंसे पूर्वके हैं । क्षत्रपोंके दो वंश थे (१) उत्तरीय - जो काबुलसे जमना गंगा तक राज्य करते थे और (२) पश्चिमीय - जो अजमेरसे उत्तर कोंकण तक दक्षिण में और पूर्व में मालवासे पश्चिम अरब समुद्र तक राज्य करते थे । प्राकृत सिक्कों में नाम क्षत्रप, क्षत्रव व खतप मिलता है । ये लोग वास्तव में वैकट्रियासे भारतमें आए थे । यहां भारतीय धर्म और नाम धारण कर लिये । 1 उत्तरीय क्षत्रपोंका राज्य सन ई० से ७० वर्ष पूर्व राजा Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १८१ मनेसे शुरू होकर कुशान राजा कनिष्क (सन् ७८) तक समाप्त होजाता है । मनेस स्कैथियनके शाका वंशमें था । मनेस क्षत्रपका पुत्र क्षत्रप सुदासने मथुरामें राज्य किया फिर कनिष्कने । पश्चिमी क्षत्रपोंके राजा । (१) नहापान - प्रथम गुजरातका क्षत्रपा सिक्केपर है । " राज्ञो क्षहरातस नहपानस । " उषभदत्त - जमाई नहपानका इसको नहपानकी कन्या दहमित्रा विवाही गई थी । नासिक और करलेके शिलालेखोंसे प्रगट है कि उपमदत्तने नहपानके राज्य में बहुत लाभकारी काम किये थे । यह बड़ा भारी अधिकारी था । यह हर वर्ष लाखों ब्राह्मणोंको भोजन देता था । भृगुकच्छ ( भरुच ) और दशपुर ( मंदसोर) में धर्मशाला व दानशालाएं व गोवर्धन तथा सुपारामें बाग और कुएं बनवाये थे । अम्बिका, तापती, कावेरी, दाहानू नदीपर मुफ्तकी नौकाएं जारी की थीं व नदी तटपर सीढ़ियां व घाट बनाए थे । इन कामों में ब्राह्मण भक्ति झलकती है, परन्तु उसने नासिक में बौद्धगुफा बनवाई | गुफाओं में निवासी साधुओंके लिये ३०० कार्षपान और ८००० नारियल के वृक्ष व एक ग्राम पूनामें कारलेके पास दान किया । ऋषभदत्त ब्राह्मणधर्मी जब कि उसकी स्त्री बौद्धधर्मी मालूम होते हैं । (२) क्षत्रप चसथाना द्वि० - (सन् १३० से १४०), इसका पिता जन्नोतिक था, जैसा उसके शिक्कोंसे प्रगट है । ( इस चसथानाका पोता रुद्रदामन था जो जूनागढ़ लेखोंमें है । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (३) क्षत्रप तृ० जयदमन - सन् १४० से १४३ (४) क्षत्रप च० रुद्रदामन - सन् १४३ से १५८ सिक्केपर है " राज्ञो क्षत्रपस जयदामपुत्रसराज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामन !" इसका जो लेख सुदर्शन झील पर है उससे प्रगट होता है कि रुद्रदामनकी राज्यधानी उज्जैनमें थी तथा ये नीचे लिखे स्थानोंके खामी थे (१) अकरावंती ( पूर्व व पश्चिम मालवा), अनूप (गुजरातके पास), आनर्त, सुराष्ट्र, स्वाभ्रा (उत्तर गुजरात), मारू ( माड़वाड़), रच्छा, सिंधु सौवीर (सिंध और मुलतान), ककुर, अपरांत (उत्तर में माही दक्षिणमें गोआ ) निषाद (देश-पूर्व में मालवा, पश्चिममें सिंध, आबू उत्तरमें, उत्तर कोंकणतक, दक्षिणमें कच्छ और काठियावाड़)। रुद्रदामनने दो युद्ध किये थे, एक यौद्धेयोंसे, दूसरा दक्षिण पथके शतकरणीसे । दोनोंमें विजय पाई । यौद्धेयके सिक्के तीसरी शताब्दीके युक्त प्रांतमें मिले हैं । यह रुद्रदामन बड़ा विद्वान् था । व्याकरण, राज्यनीति, गान, व न्यायशास्त्रमें निपुण था । राजाओंके स्वयम्वरोंमें कई कन्याओंने वरमालाएं डाली थीं। उसको यह प्रतिज्ञा थी कि सिवाय युद्धके कोई मनुष्य किसी मनुष्यको न मारे । उसने सुदर्शन झीलको अपने ही खजानेसे बनवाई व कर नहीं लगाया । ५ - क्षत्रप पंचम दामाजद या दामाजदस्ती सन् - १५८ से १६८ तक । यह रुद्रदामनका पुत्र था । बीच में रुद्रदामनके भाई रुद्रसिंहने भी राज्य किया । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। ६-जीवदामन-सन् १७८ ___७-रुद्रसिंह द्वि०-जीवदामनका चाचा-सन् १८१-१९६ इसके समयका एक गौड़ शिलालेख उत्तर काठियावाड़के हालार स्थानमें पाया गया है । ( Indian Ant x. 157 ) जिसमें एक कूप खोदनेका वर्णन है। (८) क्षत्रप रुद्रसेन-रुद्रसिंहका पुत्र सन् २०३से २२० मध्यका वर्णन नही। (९)क्षत्रप-पृथ्वीसेन-रुद्रसेनका पुत्र सन् २२२ (१०) ,, संघदमन २२२-२२६ (११) ,, दामसेन संघदमनका भाई २२६-२३६ (१२) ,, दामाजदश्री पुत्र रुद्रसेन २३६ (१३) ,, वीरदमन दामसेनका पुत्र २३६-२३८ (१४) ,, यशदमन भ्राता वीरदमन २३९ ५) ,, विजयसेन ,, ,, २३९-२४९ (१६) ,, दामाजद श्री तृ० ,, विजयसेन २५०-२५५ ,, रुद्रसेन द्वि० पुत्र वीरदमन २५६-२७२ ८) ,, विश्वसिंह पुत्र रुद्रसेन २७२-२७८ (१९) ,, भर्तृदमन भ्राता विश्व० २७८-२९४ (२०) ,, विश्वसेन पुत्र भर्तृ २९४-३०० चस्थमा वंशका अंत ७ वर्ष पीछे (२१) क्ष० रुद्रसिंह पुत्र जीवदमनका सन ३०८-३११में सिक्का कहता है। स्वामि जीवदान पुत्रसक्षत्रपस रुद्रसिंहस । . (२२) क्ष० यशदमन पुत्र रुद्र० सन ३२० Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। ' (२३) ,, दामश्री, भ्राता यश ३२० फिर ३० वर्षका पता नहीं (२४) , स्वामी रुद्रसेन, पुत्र रुद्रदमन ३४८-३७६ (२५) रुद्रसेन च०-पुत्र सत्यसेनका ३७८-३८८ (२६) सिंहसेन भतीजा रुद्र (२७) स्कंध इसके पाससे राज्य गुप्तोंके हाथमें गया । त्रैकूटक-इस वंशकी राज्यधानी उत्तर पूनामें जुन्नारमें थी। इसका संस्थापक महाक्षत्रपस ईश्वरदत्त था । सन् २४ ८में इसको दामनदश्रीने हराया, सन् २५० में इन त्रैकूटकोंको जबलपुरसे पश्चिम ४ मील त्रिपुरा और कालंजरमें (जबलपुरसे उत्तर १४० मील) सन् २५६में भगा दिया गया था । ___इन लोगोंने अपने सम्वतका नाम चेदी सम्बत रक्खा । त्रैकूटक लोग हैहयन वंशके नामसे सन् ४५५में समृद्धिको प्राप्त हुए और अपनी शाखा अपने प्राचीन नगर त्रिकूटपर स्थापित की । तथा बम्बई बन्दरके बहुतसे भाग दक्षिण तथा दक्षिण गुजरातपर राज्य किया । क्षत्रपोंके पतन और चालुक्योंके महत्त्वके समयको ( सन् ४ १ ० से ५०० ) इन्होंने शायद पूर्ण किया। गुप्तवंश-क्षत्रपोंके पीछे गुजरात पर गुप्तोंने ४१० से ४७० तक राज्य किया। इन गुप्तवंशोंके राजा नीचे प्रमाण हुए हैं गुप्त संवत सन् ई० (१) एक छोटा राजा युक्त प्रांतमें १-१२ ३१९-३२२ (२) धटोटकच , १२-२९ ३२१-३४९ (३) चंद्रगुप्त प्रथम बलशाली , २९-४९ ३४९-३६९ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ १८५ (४) समुद्रगुप्त बड़ा , ५०-७५ ३७०-३९५ (५) चन्द्रगुप्त द्वितीय , ७६-९६ ३९६-४१५ यह बड़ा राजा था । इसने मालवाको गुप्त सं० ८० व गुजरातको गुप्त सं० ९० व सन् ई० ४ १ ०में विजय किया था। (६) कुमारगुप्त-गुजरात व काठियावाड़में राज्य किया था । गुप्त सं० ९१-१३३ । ई० स० ४ १६-४५३ (७) स्कंधगुप्त-गुजरात व कच्छ में राज्य किया था । गुप्त सं० १३३-१४९। ई० स० ४६४-४७० . इसने बहुत दिनोंसे विस्मृत अश्वमेध यज्ञको किया था । चंद्रगुप्त हि०, कुमारगुप्त व स्कंध० ब्राह्मणधर्म धारी थे। चंद्रगुप्त प्रथमने तिरहुतकी लिच्छवीवंशकी कन्याके साथ विवाह किया था । समुद्रगुप्तने अपनी माताका नाम कुमारदेवी सिक्कोंमें लिखा है (देखो स्कंधगुप्त जूनागढ़ लेख Ind. Ant. XIV) समुद्रगुप्तकी प्रशंसा अलाहाबादके खबके लेखमें है (देखो J. R. A. S. XXI) लाइन सातमें है कि इसने अच्युत नागसेनकी सेनाका विध्वंश किया । ला० १९-२०में है कि इसने नीचे लिखे प्रांतोंके राजाओं पर विजय पाई (१)कोशलका मनेन्द्र, (२) महाकांतार (रायपुर और छत्तीसगढ़के मध्य) का व्याघ्रराज, (३) कौंराहा (केरल) का मुंडराज, (४) पैष्ठपुर, महेन्द्रगिरी औटूरका राजा स्वामीदत्त, (५) ऐरंग पल्लकका दमन, (६) कांचीका राजा विष्णु, (७) सायाव मुक्तका राजा नीलराज, (८) वेंगीका हस्तिवर्मन, (९) पालकका उग्रसेन (१०) दैवराष्ट्रका कुवेर, (११) कौस्थलपुरका धनंजय । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लाइन २१ कहती है कि उसने आर्यावर्त्तके ९ राजाओंको नष्ट किया । वे राजा हैं-रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चंद्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नंदिन, बलदर्मन । इनमें गणपतिनाग ग्वालियरका राजा था। ला० २२-२३ कहती है कि नीचेके राजा उसको कर देते थे । समतत, गंगाखाड़ी, दायक (दक्षिण), कामरूप (आसाम), नैपाल, कात्रिक ( कटक ), मालवा, अर्जुनायन, यौद्धेय, मादक, आमीर, प्रार्जुन, सनकानिका, काफ, खरपरिक । नीचेके रानाओंने अपनी कन्याएं दी थीं-शाक, मुरुण्ड, सैंहलक द्वीपोंके कुशान राजा देव पुत्र, शाहव शाहानुशाहीने । यह लेख कहता है कि समुद्रगुप्तके राज्यमें मथुरा, अवध, गोरखपुर, अलाहाबाद, बनारस, विहार, तिरहुत, बंगाल, राजपूतानाका पूर्व भाग शामिल था। इसीका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वि० था । माता दलतादेवी थी। इसीका दूसरा नाम विक्रमादित्य था। इसने क्षत्रपोंसे गुजरात और काठियावाड़ लिया था । यह उज्जैनका राजा कहलाता था । उसके काठियावाडी सिक्कोंपर यह लेख है "परमभागवत महाराजाधिराज श्रीचंद्रगुप्त विक्रमादित्य इसीने गुप्त संवत चलाया । यह संवत सन् ४७० में जाता रहा, तब प्राचीन मालवाका संवत विक्रम (सन् ई० से ५७ वर्ष पूर्व) फिर चलने लगा। ____ इसका पोता स्कंधगुप्त था, जिसने सौराष्ट्रदेशका अधिपति पर्णदत्तको चुना था। इसका पुत्र चक्रपालित था। पर्णदत्तके सम Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १८७ यमें मुदर्शनझील फिर ठीक कीगई थी (सन् ४५७)। यह झील गिरनार पर्वतके पश्चिम भवनाथकी घाटीके पास है। ( B. R. A. S. XVIII. ) स्कंधगुप्तके राज्यकी तारीखें गिरनार लेख पर १३६-१३७ हैं । काहोन गोरखपुरके खंभेमें १४१ हैं, इन्डो-खेड़ा ताम्रपत्रमें १४६ है । शिक्कोंपर १४४, १४५, १४९ है। . इसके पीछे गुप्तोंका प्रभाव घट गया । गुप्तवंशमें बुधगुप्त सन् ४ ८५में हुआ । इसका नाम सागर जिलेके एरानक मंदिरके खभेमें है । इसका राज्य कालिंदी (जमना) और नर्बदाके मध्यमें था। तोरामन-सन् ४९७ बुधगुप्तके पीछे ग्वालियरके सिक्कोंमें नाम है । इसका पुत्र मिहिरकुल था (Inil Ait. III) भानुगुप्त-सन् ५११ यह, मालवाके किसी भाग पर राज्य करता था। इसके वंशका राज्य हर्षवर्धन (६०७-६९० ) के समय तक चलता रहा। हर्षचरितमें राज्यवर्द्धनका शत्रु मालवा देवगुप्त कहा गया है । पश्चिम भारतमें जब गुप्त गिरे तब गुप्तोंकी एक शाखा राजा नारगुप्त बालादित्यके नीचे मगधमें उठी थी। ___ पुष्पमित्र जैन वंश-स्कंध गुप्तका लेख जो भिटोरीके स्तंभ है उसमें लिखित है कि इसने पुष्पमित्रको विजय किया । यह पुप्पमित्र सन ४५५ में था । यह वंश सन ७८ से ९३७ तक चलता रहा । राजा कनिष्कके समयमें यह वंश बुलन्दशहरके पास बस गया था और अपनेको जैन धर्मानुयायी कहता था । ( देखो-Bhitari Ins. corp. Ins. Ind. III.) गुप्त-स्कंधगुप्तके पीछे उसके भाई पुरुगुप्तने, फिर उसके Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पुत्र नरसिंहगुप्त, फिर उसके पुत्र कुमारगुप्त द्वि० ने राज्य किया । यशोधर्मन - सन १३३ - ३४ मालवाका । इसने मिहिरकुलको हरा दिया था तौ भी ग्वालियरका राजा मिहिरकुल रहा था (यूनानी व्यापारी कोसमस इंडीकोव बुस्तेने सन १२० में उत्तर भारत में इसका राज्य मालूम किया था ) यशोधर्मनका राज्यस्थान मंदसोर था । (देखो - Fleet corps Ins. Ind. III). इसने ब्रह्मपुत्र महेंद्रगिरि तक व हिमालयासे दक्षिणसमुद्र तक विजय किया था । छठी शताब्दी में उज्जैनमें एक प्रसिद्ध वंश राज्य करता था । यशोधर्मन् स्वयं महान विक्रमादित्य था । वल्लभी वंश - (सन् १०९ - ७६६ ) - गुजरातमें गुप्तोंके पीछे वल्लभी वंशने राज्य किया । इनका राज्यस्थान वलेह या वल्लभी था जो भावनगर से पश्चिम २० मील है और शत्रुंजय पर्वतसे उत्तर २५ मील है । श्वे० श्री जिनप्रभसूरिकृत शत्रुंजयकल्प में जो तेरहवीं शताब्दी में लिखा गया था इसका नाम वल्लभी आया है व प्रांतका नाम वलाहक है । (सं० नोट - यहीं ९०० वीर सम्वतमें श्वे ० आचार्य देवर्द्धिगण श्वेतांबरी लोगों में पाए जानेवाले आचारांग आदि अंगों की रचना की थी इसलिए वर्तमान पाए जानेवाले श्वेताम्बरी अंग प्राचीन लिखित मूल अंग नहीं हैं ।) चीन यात्री हुईनसांग सन् ६४० में लिखता है कि इस समय यह एक नगर बड़ा धनवान व जन संख्यासे पूर्ण था । करोड़पति सौ से ऊपर थे (Over hundred merchant sowned 100 lacs ) । ६००० साधुओं के बहुत से संघाश्रम थे । राजा यहांका क्षत्री था जो मालवाके शिलादित्यका Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १८६ भतीजा तथा कान्यकुब्जके राजा शिलादित्यके लड़केका जमाई था। नाम उसका ध्रुवपद था । यह बौद्ध धर्मको मानता था । इसने बौद्धोंके लिये अर्हतप्रचार नामका मठ बनवादिया था। जहां बोधिसत्त्व साधु गुणमति और स्थिरमति रहते थे। इन्होंने शास्त्र बनाए थे। वल्लभीके ताम्रपत्र पाए गए हैं । यहां मंदिर व मकान ईटों और लकड़ीके होते थे, परन्तु एक ही मंदिरका यहां पता चला है जो गोपीनाथपर है । (Burges Kathiawar and Kutch 1897). एक ऐसा लकड़ी व ईंटोंका मंदिर शत्रुजय पर्वत व एक सोमनाथपर था ऐसा पता लगा है । कहते हैं कि अनहिलवाड़ाके राजा कुमारपाल सोलंकी (सन ११४३-११७४) का मंत्री शत्रुज्जय पर्वतपर श्री आदिनाथजीके जैन मंदिरमें पूजनको आया था तब तक चूहेने दीवेकी बत्तीसे मंदिरमें अग्नि लगा दी और लकड़ीका मंदिर भस्म होगया । तब मंत्रीने पाषाणके मंदिर बनानेका इरादा किया । ( कुमारपाल चरित्र ) सोमनाथमें भद्रकालीका मंदिर पहले लकड़ीका था फिर उसको भीमदेव (१०२२-१०७२ ) ने पाषाणका बनाया, ऐसा लेखसे प्रगट है। वल्लभी वंशके जो ताम्रपत्र हैं उनमें वृषभका चिन्ह है तथा भट्टारक शब्द आता है। ये सब संस्कृतमें हैं । वल्लभी संवत सन् ई० ३१९ में शुरू हुआ है । वल्लभी राजाओंके प्रबंधमें इस भांति नाम प्रसिद्ध थे। (१) आयुक्तिक या विनियुक्तिक-मुख्य अधिकारी । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक (२) द्रांगिक - नगरका अधिकारी (३) महत्तरि - ग्रामपति (४) चाटभट - पुलिस सिपाही (५) ध्रुव - ग्रामका हिसाब रखनेवाला वंशज अधिकारी तलाटी या कुलकरणी समान (६) अधिकरणिक - मुख्य जज (७) डंडपासिक - मुख्य पुलिस आफिसर । (८) चौरोडर्णिक - चोर पकड़नेवाला । (९) राजस्थानीय - विदेशी राजमंत्री । (१०) अमात्य - मंत्री । (११) अनुत्पन्नादान समुदूग्राहक - पिछला कर वसूल करनेवाला (१२) शौल्किक - चुंगी आफिसर Custom Officer (१३) भोगिक या भोगोद्धर्णिक -आमदनी या कर वसूल करनेवाला (१४) वर्त्मपाल - मार्ग निरीक्षक सवार । (१५) प्रतिसरक - क्षेत्र और ग्रामोंके निरीक्षक । (१६) विषयपति - प्रांतका आफिसर | (१७) राष्ट्रपति - जिलेका आफिसर । (१८) ग्रामकूट - ग्रामका मुखिया । विषयके नीचे आहार (जिला) फिर पथक ( उसका भाग) फिर स्थली (उसका भी भाग ) ऐसे भाग थे । राज्यधर्म अधिकतर शैव था । केवल ध्रुवसेन (५२६ ई०) परमभागवत वैष्णव था । इसका भाई और राज्याधिकारी धरपत्त - परमादित्यभक्त तथा गृहसेन बुद्धके उपासक थे । सब वल्लभी राजा परममहेश्वर कहलाते थे । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास । [ ११ ये लोग मालवासे आये और अपना संवत मालवाके समान कार्तिक गिनते थे । गुप्तलोग चैत्रसे गिनते थे । वल्लभीराजाग़ण | (१) सेनापति भट्टारक सन् १०९ - १२० । इसने मिहरवंशके माद्रिक (४७०–९०९) को हटाया था जिनका राज्य काठियावाडमें था । अब भी मिहर लोग काठियावाडके दक्षिण वर्दा पहाड़ी में पाए जाते हैं । पोरबंदर के जेठोर सर्दार मिहर राजा कहलाते हैं । सन् ४७० में गुप्तों और मिहरोंसे युद्ध हुआ था तब गुप्त हार गए थे । मिहिर और गुप्तोंके पंजाब विजई मिहिर कुल (११२५४०) में कुछ सम्बन्ध था । काठियावाड़ के उत्तर पूर्व मिहर लोग १३वीं शदी तक राज्य करते रहे ( राशमाला) | सेनापति भट्टारकके चार पुत्र थे । धरसेन, द्रोणसिंह, ध्रुवसेन और धरपत्ता १२० से २६ तकका पता नहीं । (२) ध्रुवसेन प्रथम (५२६ - २३९) ४ वर्षका पता नहीं । (३) ग्रहसेन ( ५३९ - ९६९ ) यह बड़ा राजा था । मंत्री स्कन्धभट था । (४) धरसेन द्वि० (१६९ - १८९) ग्रहसेनका पुत्र । (५) शिलादित्य नं ० १ (१९० - ६०९) पुत्र धर ० । इसको धर्मादित्य भी कहते थे | मंत्री - चंद्रभट्टी थे । (६) खरग्रह - (६१० - ६१५) भाई शिला ० (७) धरसेन तृ० (६२५ - ६२०) पुत्र ० ख ० (८) ध्रुवसेन द्वि० या बालादित्य (६२० - ६४० ) भ्राता धरसेन (९) धरसेन च ० (६४० - ६४९) पुत्र ध्रुव ० यह बहुत बलवान Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । था। ६४९का ताम्रपत्र कहता है कि यह परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर चक्रवर्ती थे। भट्टीकाव्य बल्लभीमें इसीके राज्यमें लिखा गया था। जैसा वाक्य है “काव्यमिदम् रचितम् मया वल्भ्याम् श्री धरसेन नरेन्द्र पालितायाम् " | (१०) ध्रुवसेन तृ० (६५०-६५६) धरसेन च० के दादाके लड़के देराभटका पुत्र । (११) खरग्रह (६५६-६६५ ) भ्राता ध्रुव । (१२) शिलादित्य तृ० (६६६-६७५) खरग्रहके बड़े भाई शिलादित्य द्वि०का पुत्र)। (नोट-शि० द्वि०का नाम ऊपर नहीं है) (१३) शिलादित्य च० (६७५-६९१) पुत्र शि० तृ० (१४) शिलादित्य पं० (६९१-७२२) पुत्र शि० च० (२५) शिलादित्य छ० (७२२-७६०) , शि० पं० (१६) शिलादित्य सप्तम धुवपद (७६०-६६६)पुत्र शि० छ । अरब लेखकोंने बलहारोंको, चालुक्यों (५००-७५३)को व राष्ट्रकूटों (७९३-९७२)-को जो पूर्व दक्षिणमें मालखेडमें राज्य करते थे-स्वीकार किया है। प्रोफेसर भंडारकर (Deccan history 565 ) कहते हैं कि पूर्वके कई चालुक्य व राष्ट्रकूट राना वल्लभ कहलाते थे और वल्लारोंके सम्बन्धमें लिखा है कि वे कर्णाटकमें राज्य करते थे, उनकी कनड़ी राज्यधानी मानकिर या मानखेडपर थी जो समुद्र तटसे ६४० मील है । जैनियोंके लेख बताते हैं कि मेवाड़के गोहिल या सेशोदिया लोग काठियावाड़की वाल या वल्लभीसे आए थे तथा अनहिलवाड़ामें (सन् ७४६) उन्होंने अपने गुजरात राज्यका मुख्य Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ १६३ स्थान बनाया । तथा इनही गोहिल लोगोंने मेवाड़ में वल्लीनगर वसाया जहां ये सन् ९६८ तक राज्य करते रहे, जिनकी उपाधि सेसोदिया सर्दार वल्लभी शिलादित्य रही । सेसोदिया लोग अपना नाम गोहेलाट होनेसे अपनी उत्पत्ति गुफामें उत्पन्न गुहसे बताते हैं । शायद यह गुहसेन (५५५ - ५५७ ) से उत्पन्न हों । अरबलोग कहते हैं कि वल्लभीकी एक शाखा बलेह में उस समय तक राज्य करती रही जबतक सन् ९५० में मूलराज सोलंकीने उसको जीत न लिया । वाला लोगोंका पुराना राज्यस्थान जूनागढ़ से दक्षिण पश्चिम ९ मील बंथली था । सेसोदिया या गोहिला लोग कहते हैं कि बालोंका संस्थापक कनकसेन सन् १५० में उत्तर भारतसे आया और घोलका तथा धांकमें वश गया । चालुक्यवंश (६३४ - ७४० ) - चालुक्योंने दक्षिणसे आकर गुजरातको विजय किया था । पहले इन्होंने पुरी अर्थात् राजूपुरी, या जंजीरा या एलीफैन्टाके कोंकण मौर्योको जीता था । पांचवीं सदीमें प्रसिद्ध बाड़ राजा सुकेतुवर्मनके राज्यसे प्रमाणित है कि यह मौर्यवंश कोंकणमें राज्य कर रहा था । पीछे कीर्तिafra अधिकार में चालुक्योंने इनको हराया था । उनकी अंतिम विजय पुलकेशी द्वि० (सन् ६१० - ६४० ) के अधिकारी चंड ssc की थी और उनकी राज्यधानी पुरी ले ली थी । ( Ind. Ant. VIII 243-4 ). फिर येही चालुक्य उत्तरकी तरफ बढ़ते गए । दक्षिण बीजापुरके रोहोलीके शिलालेखसे प्रगट है कि सन् ૧૩ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । ई० ० ६३४ तक लाड़, मालवा, और गुर्जरके राजा पुलकेशी द्वि० के आधीन हो गए थे । दक्षिण गुजरातमें चालुक्य राज्यकी बराबर स्थिति पुलकेशी द्वि० के पुत्र धाराश्रय जयसिंह वर्मनने जो विक्रमादित्य सत्याश्रय ( ६७०-६८० ) का छोटा भाई था - की थी । नौसारीमें जयसिंह वर्मनके पुत्र शिलादित्यके दानका लेख मिला है जिसमें लिखा है कि जयसिंह वर्मनने अपने भाईसे राज्य पाया । (१) जयसिंह वर्मन परम भट्टारक ( ६६६ - ६९३ ) --यह स्वतंत्र राजा था । इसके पांच पुत्र नौसारीमें राज्य करते थे । इसके एक पुत्र श्राश्रयने एक दान किया था जिसका लेख रतमें मिला है। इससे प्रगट है कि ६९१ में जयसिंह अपने पुत्र युवराज के साथ राज्यकर रहा था । (२) मंगलराज - पुत्र जयसिंहका (६९८-७३१) (३) पुलकेशी जनाश्रय- मंगलराजका छोटा भाई बलसर में विनयदित्य मंगलराज ( ७३१ - ७३८) व नौसारी में पुलकेशी जनाश्रय (सन् ७३८) के लेख मिले हैं । पुलकेशी जनाश्रयके समयमें अरब खलीफा हासमने हमला कर कष्ट दिया था । इस वंशका नाश राष्ट्रकूटवंशकी गुजरात शाखाने किया जो सन् ७५७–५८में गुजरात में राज्य कर रही थी । जयसिंहके पुत्र बुद्धवर्मन कैर में व तीसरे पुत्र नाग्रवर्द्धनने पश्चिम नाशिक में राज्य किया । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। गुर्जरवंश-(५८०-८०८) वल्लभी और चालुक्य वंशका जब महत्त्व मुनरातमें था तब एक छोटा गुर्जर राज्य भरुचके पास राज्य करता था। संस्कृतके ९ तामपन मिले हैं Ind. Ant. v. VII. XIII. XVII ). इनकी राज्यधानी नान्दीपुरी यानांदोद थी जो राजपीपला राज्य में है। भरुचसे पूर्व ३५ मील। इनकी उपाधि " समधिगत पंचमहाशब्द " थी अर्थात् जिन्होंने पांच पद प्राप्त किये थे। इनका राज्यवंश। (१) दहा प्रथम-(सन् ५८०-६०५) (२) जयभट्ट प्रथम-(६०५-६२०) (३) दहा द्वि० -(६२० -६५०) (४) जयभट्ट द्वि०-(६५०-६७५) (१) दद्दा ४०-(६७५-७००) (६) जयभट्ट तृ०-(७०४-७३४) खेडाके दान पात्रोंमें दद्दा प्रथमके पुत्र जयभट्ट प्रथमको विजयी और धर्मात्मा राजा लिखा है तथा उसकी उपाधिमें वीतराग शब्द है । उसके पुत्र दद्दा द्वि० की उपाधि प्रशांतराग थी इसने दो दान किये थे । (Ind. Ant. XIII). इन दानोंमें है कि जंबूसर और भरुचके कुछ ब्राह्मणोंको अक्रूरेश्वर (अंकलेश्वर) तालुकामें सिरोशपदक (या सिसोद्रा) ग्राम दान किया गया था । ७०४-५के दानपत्र ( Ind. Ant VIII ) में दद्दाके सम्बन्धमें लिखा है कि उसने वल्लभीके राजाकी रक्षा की थी जिसको प्रसिद्ध हर्षदेवने हरा दिया था। यह वही हर्ष है जो कन्नो Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जमें ६०७-८ में राज्य करता था । पुलकेशी द्वि०ने सन् ६३४ में नर्मदापर हर्षको विजय किया था। दद्दा तृ०को बाहुसहाय कहते थे । जयभट्ट तृ० को महासामंताधिपति कहते थे । इसके समयमें अरब लोगोंने हमला किया था जिसको नौसारीपर युद्ध करके पुलकेशी जनाश्रयने परास्त किया था । ७३४ के पीछे इनका पता नहीं चलता है। ___ (सं० नोट) इस वंशके राजाओंकी वीतराग आदिकी उपाधिसे अनुमान होता है कि शायद इस वंशके राजा जैनी हों। राष्ट्रकूटवंश-गुजरातमें ये लोग दक्षिणसे सन् ७४३में आए। ये अपनेको चंद्रवंशी या यदुवंशी कहते हैं। इनका मुख्यस्थान मान्यखेड (मलखेड) है जो शोलापुरसे दक्षिण पूर्व ६० मील है । इनका सबसे प्राचीन शिलालेख सन् ४५०का मिला है, जिस समय राजा अभिमन्यु राज्य करते हैं उसमें चार राजा दिये हुए हैं। मानान्केर देवराज भविष्य अभिमन्यु Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्रकूट वंशका दक्ष सन् ६३० से इस भाति है (१) दंतिवर्मन सन् ६३० (२) इन्द्र प्रथम सन् ६५५ (३) गोविन्द प्रथम सन् ६८० (४) कक्का प्रथम सन् ७०५ गुजरातका इतिहास। • (५) इन्द्र द्वि० ७३० ध्रुव (७) कृष्ण ७६५ (६) दंतिदुर्ग या दंति वर्मन ७५३ गोविन्द (८) गोविन्द द्वि० ७८० (९) ध्रुव, धारावर्ष, निरुपम, घोर ७९५ कक्का द्वि०७४७ (१०) गोविन्द तृ०, प्रभूतवर्ष, वल्लभनरेंद्र, जगत्तुंग, पृथ्वीवल्लभ ८०३ (१)इन्द्र-गुजरात शाखास्थापक [ १६७ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · १९८] (३) गोविन्द-प्रभूतवर्ष ८२७ (१०) गोविन्द तृ. (११) अमोघवर्ष, सार्वदुर्लभ, श्री वल्लभ, लम्बीवल्लभ (२) कर्क ८१२ व वल्लभस्कंध शाका ७७३-७९९ सन् ८१४-८७७ दंतिवर्मन (७) अकाल वर्ष-कृष्ण ८८८ (४) ध्रुव, धारावर्ष, निरुपम ८३५ (५) अकाल वर्ष-शुभतुंग ८६७ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। (१२) अकालवर्ष कृष्ण, कन्नर (६) ध्रुव द्वि० ८७१ जगतुंग ( राज्य न किया ) (१३) इन्द्र तृ० पृथ्वीवल्लभ, रत्तकंदर्प, कीर्तिनारायण नित्यंवर्ष, सन् ९१४ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) इन्द्र तृ० (१४) अमोघवर्ष शा० ८४० सन् ९१८ (१५) गोविंदराज-साहसांक सुवर्णवर्ष (१६) वदिग (१७) कृष्ण ९४५-९६६ (१८) कोटिग (१९) निरुपम गुजरातका इतिहास। (२०) कक्कल या कर्कराज सन् ९७२ ॥ ३४ ] Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। नोट-प्रसिद्ध नागवर्मनकी कन्या गोविंदको व्याही थी जिसका पुत्र कक्का द्वि० सन् ७४७में था। कका प्रथमका पोता दंतिदुर्गा एक बलवान राजा था। उसने माही और नर्मदाके मध्यके गुजरातको विजय किया था व लाट तथा मालवाका भी अधिकारी था । ___ दक्षिणको लौटते हुए दंतिदुर्गाके पीछे १०वें राजा गोविंद तृ० ने गुजरातदेश अपने छोटे भाई इन्द्रको सौंप दिया । जबसे गुजरातकी शाखा प्रारंभ हुई । इन्द्रको लाटेश्वर भी कहते थे इसने ८०८ से ८१२ तक फिर कर्क प्र० ने ८१२ से ८२१ तक राज्य किया था । इसको सुवर्णवर्ष तथा पातालमल्ल भी कहते थे। कर्कका सूरतका दानपत्र सन् ८२ १ का मिला है, जिससे प्रगट है कि कर्कने वंकिक नदी (बलसरके पास वांकी) के तटपर अपने राज्यस्थानसे नौसारीके एक जैन मंदिरको नागसारिकके पास अम्बापातक ग्राम भेट किया। इस दानपत्रका लेखक युद्ध और शांतिका मंत्री नारायण है जो दुर्गाभट्टका पुत्र है । ताप्ती नदीके दक्षिण यह पहला ही भूमिदान है जो गुजरात राष्ट्रकूट राजाने किया था। इससे यह पता चलता है कि राजा अमोघवर्षने कर्कके राज्यमें उत्तर कोंकणका भाग दे दिया था जो अब ताप्तीके दक्षिण गुजरात कहलाता है । शाका ८३२ व सन् ९१ ०के ताम्रपत्रसे प्रगट है कि वल्लभ अर्थात् अमोघवर्ष या प्रसिद्ध महास्कंधने एक सेना भेजकर कंथिक (बम्बई और खंभातका तट) को घेर लिया। इस युद्धमें ध्रुव जखमी होकर मर गया । कन्हेरी गुफाका लेख भी Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास | [ २०१ कहता है कि अमोघवर्ष शाका ७९९ व सन् ८७७ में जीवित था । ध्रुवके पीछे उसके पुत्र अकालवर्षने राज्य किया । जिसका नाम शुभतुंग भी था फिर उसके पुत्र ध्रुवद्धि ० ने फिर दंतिर्वमनके पुत्र अकालवर्ष, कृष्णने राज्य किया । इसी समय मान्यखेडमें राष्ट्रकूट अमोघवर्ष राज्य कर रहे थे जिन्होंने ६३ वर्ष राज्य किया । अब गुजरात राष्ट्रकूट वंश समाप्त हुआ, परंतु मान्यखेडके मुख्य वंश राष्ट्रकूटने फिर सन् ९१४ में दक्षिण गुजरातमें आधिपत्य माया । जैसा नौसारीके दो ताम्रपत्रोंसे प्रगट है । जिसमें यह कथन है कि कृष्ण अकालवर्ष के पोते व जगतुंगके पुत्र राजा नित्यमर्ष इन्द्रने लाड़ देशमें नौसारीके पास कुछ ग्राम दान किये । (B. R. A S. XVIII 253.; मान्यखेड़के अमोघवर्ष के पीछे अकालवर्षने ८८८ से ९१४ तक राज्य किया । मालूम होता है कि इस दक्षिणी कृष्णने गुजरातको लेलिया था, क्योंकि इस समयसे दक्षिण गुजरातको जो लड़के नामसे कहलाता था दक्षिण राष्ट्रकूटमें सदाके लिये शामिल कर लिया गया । शाका ८३२ का कपड़वंजका एक दानपत्र मिला है (Ep. Ind I 52 ) जिसमें लेख है कि महा सामंत कृष्ण अकालवर्ष प्रचंडके सेनापति चंद्रगुप्तके अधिकारमें प्रांतिके पास हर्षपुर या हर्सोल पर खेड़ा जिलेमें ७५० ग्राम थे । सन् ९७२ में गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पाके अधिकारमें चला गया जिसने वारप्पा या द्वारप्पा को सौंप दिया था । इसका युद्ध सोलंकी मूलराज अनहिलवाड़ा (९६१ - ९९७) के साथ हुआ था । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। अनहिलवाड़ा राज्य-७२० से १३०० तक | इसका वर्णन नीचे लिखे ग्रन्थोंके आधारपर इस गज़टियरमें लिखा है । हेमचंद्र कृत द्वाश्रयकाव्य, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिंतामणि और विचारश्रेणी, जिनप्रभसूरिकृत तीर्थकल्प, जिनमंडनोपाध्यायकृत कुमारपाल चरित्र, कृष्णर्षिकत कुमारपाल चरित्र, कृष्णभट्टकृत रत्नमाला, सोमेश्वरकृत कीर्तिकौमुदी, अरिसंहकृत सुकृतसंकीर्तन, राजेश्वरकृत चतुर्विशति प्रबन्ध, वस्तुपाल चरित्र । चावड़वंश-सन् ७२० से ९६१ तक । अनहिलवाड़ाकी स्थापनाके पहले चावड़ सर्दार पंचासेर ग्राममें राज्य करते थे, जो गुजरात और कच्छके मध्य वधियारमें एक ग्राम है । सन् ६९६में जयशेखर चावड़को कल्याणकटकके चालुक्य राजा भुवड़ने मार डाला । उसकी स्त्री रूपसुंदरी गर्भस्था थी। उसीका पुत्र वनराज था जिसने अनहिलवाड़ाको स्थापित किया । पंचासेरको अरब लोगोंने ७२०में नष्ट किया । प्रबन्ध चिंतामणिमें लिखा है कि गर्भस्था रूपसुंदरी बनमें रहती थी। वहां उसने एक पुत्रको जन्म दिया तब एक जैन यति ( नोट-श्वे० मालूम होते हैं । ) शीलगुणमूरिने उसकी मातासे पुत्र लेकर एक आर्यिका वीरमतीको पालनेके लिये दिया । साधुने उसका नाम वनराज रक्खा । इसके मामा मुरपालने इसे बड़ा किया । इसने अनहिलवाड़ा बसाया । सन् ७४६ से ७८० तक राज्य किया । इसकी आयु १०९ वर्षकी थी। इस वनराजने अनहिलवाड़ामें पंचासर पार्श्वनाथका जैन मंदिर बनवाया जिसमें मूर्ति पंचासरसे लाकर विराजमान की । इसी मूर्तिके सामने वनराजने नमन करते हुए अपनी मूर्ति Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास। [२०३ स्थापित की जो अब सिद्धपुरमें है। इसका चित्र रानमालामें दिया हुआ है। इस मंदिरका वर्णन सोलंकी और बाघेलके समयमें भी मिलता है। चावड़ राजा हुए । (१) वनराज ७८० तक २६ वर्षका पता नहीं फिर भाई (२) योगराज ८०६ से ८४१, फिर इसका पुत्र (३) क्षेमराज ८४१ से ८८०, फिर इसका पुत्र (४) चामुंड ८८० से ९०८, फिर इसका पुत्र (५) घघड़ ९०८ से ९३७ (६) नाम अप्रगट ९३७ से ९६१ तक । चालुक्य या सोलंकी-(९६४ से १२४२ तक ) चावडोंके पीछे सोलंकियोंने राज्य किया । ये लोग जैनधर्म पालते थे इसीसे जैन लेखकोंने इनका वर्णन अच्छी तरह लिखा है । सोलंकियोंके सम्बन्धमें सबसे प्रथम लेखक श्री हेमचन्द्र आचार्य (श्वे० सन् १०८९-११७३) है । इन्होंने अपने द्वाश्रय काव्यमें सिद्धराज (११४३) तक वर्णन दिया है । इस काव्यको हेमचन्द्रने सन् १९६० में शुरू किया था, परन्तु इसकी समाप्ति अभय तिलकगणि (श्वे० साधु) ने १२५५में की थी Ind Aut: IV. 710 VI 130 ). अंतिम अध्यायमें केवल राजा कुमारपालका वर्णन है। अंतिम चावड़ा राजा भूभत हुआ था। उसके पीछे चावड़ा राजाकी कन्याके पुत्र मूलराजने राज्य किया । (१) मूलराज (९६१-९९६) भूभतकी बहनका तथा महाराजाधिराज राजी चालुक्यका पुत्र था । - बहुत जैन लेखकोंने अनहिलवाडाका इतिहास मूलराजसे प्रारंभ किया है । यह सोलंकी Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वंशका गौरव था । इसने अपना राज्य काठियावाड और कच्छ पर बढ़ाया था । दक्षिण गुजरात या लाड़के राजा बारप्पासे तथा अजमेर राजा विग्रहराज से युद्ध किया था। अजमेर के राजाओं को सपादलक्ष कहते थे । अजमेरका नाम मेहर लोगोंसे पडा है जिन्होंने 1 ५वीं व ६ठी शताब्दी के मध्यमें वहां राज्य किया था । हम्मीरकाव्यमें प्रथम अजमेरका राजा चौहान वासुदेव सन् ७८० में था । इससे चौथा राजा अजयपाल ( ११७४ - ११७७ ) ब १० वां विग्रह राज था । मूलराजने अनहिलवाडा में एक जैनमंदिर बनवाया जिसको मूलवस्तिका कहते हैं । इसने कुछ शिवमंदिर भी बनवाए थे । मूलराजने अपना बहुतसा समय सिद्धपुरके पवित्र मंदिर में विताया था जो अनहिलवाड़ासे उत्तरपूर्व १५ मील है । (२) चामुड़ - मूलराजका पुत्र ( सन् ९९७ - १०१०) दूसरा राजा हुआ । यह यात्रा करने बनारसकी तरफ गया था । मार्ग में मालवाके राजा मुंजने युद्ध किया (सन् १०११) और इसका छत्र ले लिया तब यह छत्ररहित साधारण त्यागी के रूपमें यात्राको गया । मुंजके पीछे मालवामें राजा भोजने (सन् १०१४) तक राज्य किया । (३) दुर्लभ - (१०१०-१०२२) चामुंडका पुत्र इसको जगत झपक भी कहते थे । इसने दुर्लभ सरोवर बनवाया था । (४) भीम प्रथम - (सन् १०२२ - १०६४ ) यह दुर्लभका भतीजा था । यह बहुत बलवान था । भीमने सिंध और चेदी या बुन्देलखण्डके राजापर हमला किया । उसी समय मालवाके राजा भोजके सेनापति कुलचन्द्र ने अनहिलवाड़ापर हमला किया और Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [ २०५ जय प्राप्त की ( देखो भिलसाके पास उदयपुरके मंदिर में एक लेख राजा भोजके पीछे उदयादित्य राजाका ), परन्तु भीम राज्य करता रहा । १०२४ में महमूद गजनीने सोमनाथ महादेव मंदिरपर हमला किया। यह मंदिर वल्लभी लोगोंने बनवाया था (सन् ४८०) इसमें मूलराजने भी धन दिया था। इस मंदिरके लकडीके ९६ खंभे थे । महमूदने ५०००० हिन्दू मारे व २० लाख दीनार द्रव्य लूटा । महमूदके जानेके पीछे भीमने फिरसे सोमनाथके मंदिर को पाषाणका बनवा दिया । कुछ वर्ष पीछे आबूके सर्दार परमार धन्धुकासे भीमकी अनबन हो गई तब उसने अपने सेनापति विमलको उसे वश करनेको भेजा । धन्धुका वशमें हो गया, इसने आबूकी चित्रकूट पहाड़ी विमलको दे दी, जहां विमलशाहने प्रसिद्ध जैनमंदिर बन - वाया जिसको विमलवसही कहते हैं । (५) कर्ण - (१०६४ - १०९४) यह भीमका पुत्र था इस राजाके तीन मंत्री थे । मुंजाल, सांतु और उदय । उदय मारवाडके श्रीमाली बनिये थे । सांतुने सांतुवसही नामका जैनमंदिर बनवाया था ! उदयने कर्णद्वारा स्थापित करुणावती ( वर्तमान अमदावाद) में उदयवराह नामका जैनमंदिर बनवाकर उसमें ७२ मूर्तियें तीर्थंकरोंकी स्थापित की थीं । उदयके पांच पुत्र थे - आहड, चाहड, बाहड, अंबड और सोला । पहले चारने कुमारपाल राजाकी सेवा की । सोल्ला व्यापारी हो गया था । (६) सिद्धराज जयसिंह - कर्णका पुत्र । (१०९४ - ११४३) मुंजाल और सांतु मंत्री इसके भी रहे । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इसके एक दूसरे मंत्रीने सिद्धपुरमें प्रसिद्ध जैन मंदिर महाराज भुवन बनवाया उसी समय सिद्धराजने रुद्रमालाका मंदिर सिद्धपुरमें बनवाया । इसको सधारो जैसिंह कहते थे । यह बड़ा बलवान, धार्मिक व दानी था, सोमनाथ महादेवका भी भक्त था । यह मंत्र शास्त्र जानता था इसलिये इसको सिद्ध चक्रवर्ती कहते थे । इसने वर्द्धमानपुर (वधवान) आकर सौराष्ट्र राजा नोधनको विजय किया तथा सोरठदेश लेकर सज्जनको अधिकारी नियत किया ( देखो गिरनार लेख सम्वत ११७६ ) । सज्जनने श्री गिरनारमें नेमिनाथजीका जैन मंदिर बनवाया (लेख सन् ११२०)। सिद्धराज जैनधर्मका भी भक्त था। यह ब्राह्मणोंके भयसे भेष बदलकर श्री से@जयकी यात्राको भी गया था, वहां श्री आदिनाथनीकी भेट १२ ग्राम किये थे । सिद्धराजने सिंह संवत चलाया था जो सन् १११३से प्रभास और दक्षिण काठियावाड़के लेखोंमें है । उस समय मालवाका राजा नववर्मन परमार था (११०४-११३३) और उसका पुत्र युवराज यशोर्वमन (११४३) था। सिद्धराज १२ वर्ष तक मालवाके राजासे लड़ा। अंतिम विनय सन् ११३४ में सिद्धराजने पाई तबसे इसका नाम अवन्तिनाथ प्रसिद्ध हुआ। (Ind. Ant. VI 134) दूसरा युद्ध महोबाके चंदेलराजा मदनर्मनसे हुआ, उसमें सिद्धराजने भेट पाकर सन्धि करली । जैनलेखक इसको जैनधर्मी लिखते हैं, परंतु इसकी भक्ति महादेवमें भी थी। इसने सिद्धपुरमें रुद्रमहालय बनवाया तथा पाटनमें सहश्रलिंग नामकी झील बनवाई थी। इसी सिद्धराजके समयमें श्वे० जैनाचार्य हेमचंद्र प्रसिद्ध हुए थे । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास । [२०७ यह बड़े विद्वान् थे । राजा इनका बहुत सन्मान करता था। इनकी बहुत प्रसिद्धि राजा कुमारपालके समयमें हुई थी। इस समय धारके राजा भोजकी विद्वन्मान्यता बहुत प्रसिद्ध थी। उसकी सभामें पंडितगण बैठते थे। राजा भोजका एक संस्कृत विद्यालय धारमें था, जिसके खभे धारकी मसजिदमें हैं। इनमें संस्कृत प्राकृत व्याकरणके ४ : ० ० सूत्र खुदे हुए हैं। इसी कारण और राजाओंने भी विद्याकी मान्यता की थी गुजरात, सांभर व अन्य प्रांतोंके राजा भी विद्वानोंकी कदर करते थे । अजमेरमें जो अढ़ाई दिनका झोपड़ा है वह भी संस्कृत विद्यालय था-उसके पाषाणोंपर पूर्ण नाटक अंकित मिला है। सिद्धराजके एक कवि श्रीपालने सहश्रलिंग झीलपर एक प्रशस्ति लिखी है । इसी समय हेमचंद्राचार्यने सिद्धहेम व्याकरण और द्वाश्रय काव्य लिखा । दिगम्बर श्वेताम्बर बाद सभा-राजा सिद्धराजने एक बाद सभा बुलाई थी । करणाटकके एक दिगम्बर जैनाचार्य कुमादचंद्र करणावती या अहमदावादमें आए थे । तब श्वेताम्बर जैन आचार्य देवसूरि अरिष्टनेमिके जैन मंदिरमें रहते थे। दोनोंकी वार्तालाप हुई फिर दिगम्बर जैन साधु अनहिलवाइपाटन नग्नावस्थामें आए। सिद्धराजने उनका बहुत सन्मान किया क्योंकि वे उसकी माताके देशसे पधारे थे । सिद्धराजने हेमचंद्रसे कहा कि आप वाद करें। हेमचंद्रने कहा कि देवसूरिको वादके लिये बुलाना चाहिये । देवसूरि और कुमुदचंद्रका वाद सभामें हुआ। दिगंबरोंकी तरफसे कहा गया था कि स्त्री निर्वाण नहीं पासक्ती तथा वस्त्र सहित जैन निर्वाण नहीं पासक्ता। ये दोनों बातें राजाके श्वे० Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जैन मंत्रियोंको मान्य न थीं इस लिये वाद होते होते ब्राह्मणोंकी सभाओंके समान हुछड़ मच गया तब सिद्धराजने शांति कराई । श्वे ० लेखक कहते हैं कि देवसूरिने विजय प्राप्त की । देवसूरी हेमचंद्रका गुरु था । सिद्धराजके कोई पुत्र न था । भीमदेव प्रथमका पड़पोता त्रिभुवनपाल सिद्धराजके नीचे दहिलथी में अधिकारी था । उसकी स्त्री काश्मीरदेवी थी जिससे तीन पुत्र महीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल और दो कन्याएं प्रेमलदेवी और देवलदेवी हुए । ज्योतिषशास्त्र से जानकर कि कुमारपाल राजा होगा सिद्धराज उससे असंतुष्ट हो गया। तब कुमारपाल भाग गया। एक मित्र के साथ कुमारपाल खंभात गया वहां हेमचंद्राचार्य से मिलाहेमने कहा कि तू अवश्य राजा होगा । कुमारपालने आचार्यकी शिक्षा के अनुसार चलना स्वीकार किया । यहांसे कुमारपाल वटपद्रपुर (बड़ौधा) आया और एक बनियेसे मिला जिसका नाम कतक था, कहते हैं इसने भुने हुए चने खिलाकर कुमारपालका सन्मान किया । यहां से वह भृगुकच्छ या भरोंच गया फिर उज्जैन जाकर अपने कुटुम्बसे मिला, वहांसे वह कोल्हापुर भाग गया । वहांसे कांची या कंजीवरम् गया। वहांसे कालम्बपाटन गया | वहां के राजा प्रतापसिंहने उसे बड़े भाई के समान रक्खा और उसके सन्मान में एक मंदिर बनवाया । नाम रक्खा " शिवानंद कुमालपालेश्वर " तथा सिक्केमें कुमारपालका नाम खुदवाया । यहांसे वह चित्रकूट ( चित्तौर) आया फिर उज्जैन आया। यहांसे वह अपना कुटुम्ब लेकर सिद्धपुर आकर अनहिलवाड़ा आया व अपने साले कृष्णदेवसे मिला । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातको इतिहास। [२०६ उसी समय सिद्धराजका मरण सन् ११४३में हो गया तब मंत्रियोंने कुमारपालको राजा उसकी ५० वर्षकी उम्रमें बना दिया। __(७) कुमारपाल (पन् ११४३-११७४) इसकी पटरानी भृपालदेवी थी। कुमारपालने उदयनको मंत्री, उदयनके पुत्र बाहड़को महामात्य व जिस बनियेने चने दिये थे उस कतकको बडौधा ग्रामका राज्य दिया । जो मित्र कुमारपाल के साथ गया था उस बोसरीको लाट मंडलका राज्य दिया । सांभरके राजा आनाकसे युद्ध हुआ। कुमारपालने विनय पाई। उसने मालवाके राजा वल्लालको भी हरा दिया । कोंकणके राना मल्लिकार्जुन पर भी इपने विनय पाई। अंबड सेनापतिके इस कार्यसे प्रसन्न हो कुमारपालने उसे राजपितामहका पद दिया । मौगप्ट्रके राजा सुमीरसे भी युद्ध हुआ । उदयन मंत्रीने युटकर विजय पाई । उदयन पालीतानामें यात्राको आया । जब वह दर्शन कहा था एक चूहेने दीपकली बत्तीसे लकड़ीके मंदिर में अग्नि लगादी तब उसने इरादा करलिया कि इसको पापाणका बना देंगे। एक गुनगतके युद्ध में जैन मंत्री उदयन घायल हो गया और वह सन १९४२में मरा। तब वह अपने पुत्रोंको कह गया था कि सेव॒जयपर आदीश्वर मंदिर, भरुचमें सकुनिका विहार तथा गिरनारकी पश्चिम ओर मीढ़ियां बन राना। तदनुसार उसके दोनों पुत्र वाहड़ और अम्दड़ने मंदिरादि काला दि। जब सुकु निका विहारमें श्री मुनिनुप्रतनाथकी प्रति : हुई तब राजा कुमारपाल अपनी सभामंडली सहित पधारे थे । हेमनद्राचार्य भी मौजूद थे। गिरनारमें सीढ़ियां भी काटी गई थी ऐसा रन ११६६के लेखसे प्रगट है । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१०] मुबईप्रान्तके प्रावोन जैन स्मारक। इसमें ६३ लाख द्रम्मा खर्च हुए थे, (द्रम्मा= |-) सेतुन्जयपर आदीश्वर मंदिर सन् ११५६में बनवाया गया था । बाहडने सेजयके पास बाहड़पुर नामका नगर बसाया और त्रिभुवनपाल नामका जैनमंदिर बनवाया ( यह पालीतानाके पूर्व ) है । कुमारपालने पद्मपुरकी पद्मावतीको विवाहा था व सांभर और मालवाके राजाओंको जीता था । सोमनाथके मंदिरका भी जीर्णोडार किया था। खंभात या स्तंभतीर्थमें सागलवमहिकके जैन मंदिरका भी जीर्णोद्धार कराया था जहां हेमचंद्राचार्यने दीक्षा धारण की थी। इसने पाटनमें करम्बिक विदार, भूपालविहार नामके मंदिर बनवाए तथा हेमचंद्रके जन्मस्थान धंधको झोलिकाविहार बनवाया । इसके • सिवाय कहते हैं कि इसने १४४४ मंनिर बनवाए। इसकी सभामें रामचंद्र और उदयचंद्र दोन पंडित रहते थे। रामचन्द्रने प्रबन्धशतक बनाया था । हेमचंद्र चान्विग नामके मोड़ बनिया व पाहिनी माताका पुत्र मन । ० ८९में पैदा हुआ था । सिद्धरानके राज्यमें इसने सिद्ध हेभ व्याकरण, हेमनामनाला व अनेकार्थ नाममाला रचे । तथा द्वाश्रयकोषका प्रारंभ किया । हेमचन्द्राचार्यकी सम्मतिले कुनारपालने श्री शनिमारकी मूर्ति राज्यमहाट में स्थापित की थी। यह मांस नथ नहीं ले रा था। इसने अपने राज्यने शिकार खेलने व पशुवधको मनाई कर दी थी। इसने शिकारियों ने शिकार छुट्टाकर दूसरे कामों में लगा दिया था इसकी सेना के सब पशुओं को उना हुआ पानी दिया जाता था । मो विना पुरा मरना या उनकी जायदाद पर भी इसने अपना हक Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ २११ छोड़ दिया था। कुमारपालके समयमें हेमचंद्राचार्यने नीचे लिखे ग्रंथ लिखे-(१) आध्यात्मोपनिषद या योगशास्त्र १२००० श्लोक-१२ अध्यायमें, (२) त्रिशष्ठि शलाका पुरुषचरित्र परिशिष्ट पर्व ३५०० श्लोक, (३) श्री महावीरके पीछे स्थविर जीवनचरित्र, (४) प्राकृत शब्दानुशासन, (५) द्वाश्रय प्राकृतकाव्य, (६) छन्दोनुशासन ६००० श्लोक, (७) लिंगानुशासन, (८) प्राकृत देशी नाममाला, (९) अलंकार चूड़ामणि । हेमचंद्राचार्य ८४ वर्षकी आयुमें सन् ११७२में स्वर्ग प्राप्त हुए। राजा कुमारपालका मरण सन् ११७४में हुआ । कुमारपालके कोई पुत्र न था। उसके बाद उसके भाई महीपालका पुत्र अजयपालने राज्य किया । (८) अजयपाल-(११७४-- ११७७) यह जैनधर्मसे द्वेष रखता था । (९) मूलराज द्वि०-(१ . ७७.- १ १७९) यह अजयपालका पुत्र था । (१०) भीन द्वि०-१७९ - १२४२) भीमके पीछे वाघेलोंका बल प्रगट हुआ । वाघेल वंश-(५२१९-१३ ० ४) वाघेरवंश सोलंकी वंशकी एक शाखा थी जो कुमारपालकी माताकी बहनके पुत्र अर्ण राजा या आणकसे प्रगट हुई। (१) अर्णराज (११७०-१२००) इसने अनहिलवाड़ाके दक्षिण-पश्चिम १० मील वाघेला ग्रामका राज्य पाया था। (२) लवणप्रसाद (१२००-१२३३) इसका पुत्र वीरधवल था, इनके यहां वस्तुपाल और तेजपाल दो प्रसिद्ध जैन मंत्री थे, Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जिन्होंने आबूके प्रसिद्ध जैन मंदिर व शेव्रुनय तथा गिरनारके जैन मंदिर बनवाये । (३) वीरधवल-(१२३३-१२३८) इसका मंत्री तेजपाल जैन था । तेजपाल बड़ा वीर था इसने गोधराके सरदार धूधलको कैद कर लिया था। वस्तुपाल जैन भी बड़ा वीर था, इसने दिहलीके सुलतान मुहम्मद गोरी (११९१ - १२०५) की सेनाओंको विनय किया। तथ उससे संधि करली। ___ अपनी माताकी तथा अपनी स्त्री ललितादेवीकी सम्मतिसे वस्तुपालने श्री आबूनीका श्री नेमिनाथका मंदिर सन् १२३ १ में, श्री से@जयमें श्री पार्श्वनाथनीका तथा गिरनारमें श्री नेमिनाथजीका मंदिर सन् १२३ २में बनवाए। वस्तुपाल सेव॒नयकी यात्राको जाता था । मार्गमें प्राणान्त हुआ । तब उसके भाई तेजपाल व उसके पुत्र जयंतपालने वस्तुपालके देहकी दाह पहाड़पर की और उसकी यादगारमें स्वर्गारोहण प्रासाद बनवाया । (४) विशालदेव (१२४३-१२६१)-इसके समय में वधेलोंका अधिकार गुजरातमें होगया था । () अर्जुनदेव (१२६२-१२७४)-यह विशालदेवके भाई प्रतापमलका पुत्र था। (६) सारंगदेव (१२७५-१२९६) यह अर्जुनदेवका पुत्र था । वस्तुपालके आबूनीके मंदिर में सन् १२९४का एक शिलालेख है जो प्रगट करता है कि उस समय अनहिलवाड़ पाटनका राना सारङ्गदेव था तथा कुछ दान जैन मंदिरोंको किया गया । (७) कर्णदेव (१२९६-१३०४) इसके समयमें गुजरातको Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [ २१३ अलाउद्दीन खिलजीके भाई अलफ्तखांने नशरतखांके साथ १२९७ में ले लिया । __ अलफ्तखांने बहुतसे जैन मंदिरोंको तोड़कर अनहिलवाड़ामें मसजिदें बनवाई। मुसलमानलोग-(१२९७-१७६०) अहमद प्रथमने सन् १४१३ में वर्तमान अहमदाबाद वसाया व १४१९ में त्रिम्बकदाससे चांपानेर नगर लेकर ध्वंश किया तथा महमदशाहने पावागढ़को सन् १४८४ में लिया । नोट-आबू पर्वतसे ५० मील पश्चिम भिनमाल-जो ऐतिहासिक श्रीमाल है-छठीसे नौमी शताब्दी तक गुजरातकी राज्यधानी रहा । यहां चार जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीके हैं। यूनान लोगोंको पश्चिम भारतका ज्ञान था-ष्टैवो (सन् ६३ ई० पूर्वसे २३ सन् ई०) लिखता है कि सन् १४में पोरसके पाससे तीन भारतीय एलची भेट लेकर आगष्टस बादशाहके पास आए थे-उनहीके साथ भरुचसे एक जैन श्रमणाचार्य आए थे-- इन्होंने अथन्सनगरमें समाधिमरण किया था । अरब लेखकोंने गुजरातके सम्बन्धमें लिखा है अलविरुनी (सन् १०३०) वल्लभवंशके सम्बन्धमें लिखता है कि अनहिलवाड़ाके दक्षिण ९० मील वल्लभीनगर था जैन लेखक लिखते हैं कि वल्लभीका पतन सन् ८३० में हुआ। ___ सन् ८५०से १२५० तक जितने गुजरातके शासक हुए हैं उन सबमें जिस वंशका प्रभाव अरबोंपर पड़ा वह मान्यखेड़ वा बल्हारवंश है (सन् ६३०से ९७२) अरबोंने राष्ट्रकूटोंकी बहुत Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । प्रशंसा लिखी है । वे गोविन्द तृ• पृथ्वीमल्ल (८०३-८१४) को वल्लभ तथा उसके पीछे अमोघवर्ष वल्लभस्कंध (९१५-९४४) को परमवल्लभ कहते थे। एक व्यापारी सुलैमान (८१५) ने मान्यखेडके राजाको दुनियांके बड़े राजाओंमें चौथा नं० दिया है। अरबलोगोंने लिखा है "The Arabs found the Rastra Kutas kind and liberal rulers, there is ample evidence. In their territories property was secure; Theft or robbery was unknown, Commerce was encou. raged or Foreignes were treated with consideration and respect. The Rastrakutas, dominion was Vast, well-peopled, commercial and fertile. The people lived niostly on vegetarian diet, rice, peas, beans etc their daily food, suleman represents the people of Gujrat as steady abestenious, and sober abstaining from wine as well as from vinegar." "कि राष्ट्रकूट वंशके राना बड़े दयालु तथा उदार थे । इस बातके बहुत प्रमाण हैं । इनके राज्यमें मालको जोखम न थी, चोरी या लूटका पता न था । व्यापारकी बड़ी उत्तेजना दी जाती थी। परदेशी लोगोंके साथ बड़े विचार व सन्मानसे व्यवहार किया जाता था । राष्ट्रकूटोंका राज्य बहुत विशाल था । घनी वस्ती थी। ल्यापारसे भरपूर था व उपजाऊ था । लोग अधिकतर शाकाहारपर रहले थे। चावल चना मटर आदि उनका नित्त्यका भोजन था । सुलेमान लिखता है कि गुजरातके लोग पक्के संयमी थे मदिरा तथा ताड़ी काममें नहीं लेते थे। सन् १३००के अंतमें रशीउद्दीन वर्णन करता है कि गुजररत बहुत ऐश्वर्ययुक्त देश है-जिसमें ८०००० ग्राम हैं। लोग लड़े खुश हैं, पृथ्वी उपजाऊ है । तथा सबसे बड़ी बात जो अरब Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातका इतिहास। [२१५ लोगोंको पसंद आई वह राजा और प्रजाका उनके मुसल्मानी धर्मकी तरफ माध्यस्थ भाव है । सन् ९१६में आबू जईद लिखता है कि हिन्दू लोगोंमें परदेका रिवाज न था। राजाओंकी रानियां भी स्वतंत्रतासे दरबारमें आतीं व लोगोंसे मिलती थीं। ११ वीं शदीके अंतमें अलहद्रीसी लिखता है कि भारतवासी बड़े न्यायशील हैंअपने कारोव्यवहारमें नीतिका बहुत ध्यान रखते हैं। ___ इनकी ईनामदारी, सच्चा विश्वास व सत्यताके कारण ही विदेशी उनके देशमे बहुत मळ्यामें आते हैं और वाणिज्यकी उन्नति करते हैं। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयुक्त प्रांतकेप्राचीन जैन स्मारक। यह अपूर्व स्मारक भी पूज्य ब० शीतलप्रसादनीने ही बड़े परिश्रमसे पुराने सरकारी गैजेटियरपरसे तैयार किया है। इसमें संयुक्त प्रान्तक सभी जिलोंका वर्णन है । प्रत्येक ग्रामका वर्णन उसके निले परगने सहित स्पष्ट दिया गया है । इसमेंकी भूमिका ३२ पृष्ठोंमें का हीरालालनीने महत्वपूर्ण अनेक प्राचीन उदाहरणों सहित लिखकर इसकी महत्वता और भी बढ़ा दी है। इसमें 3 जिलोंका वर्णन है और अकारादि क्रमसे प्रत्येक ग्रामकी सूची भी दी है। जिससे किस ग्राममें कौन प्राचीन स्थान है यह तुरत निकल सक्ता है। संयुक्त प्रान्तके भाइयोंको इसकी १-१ प्रति मंगाकर अपने यहांके प्राचीन स्थानोंकी खोज कर अपनी प्राचीनता प्रकट करनी चाहिए। __ इलाहाबादकी सुन्दर छपाई व अच्छा कागज तथा एठ करीब १६० होते हुए मूल्य सिर्फ ।-) है । और भी सब जगहके छये सब प्रकारके मैन ग्रन्थ हमारे यहां हमेशा तैयार रहते हैं । कमीशन भी देते हैं। मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय, चन्दावाड़ी-मूरत । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अहमदाबाद जिला नगर "" भजित ब्रह्मचारी अंकलेश्वर अमरनाथ अनहिलवाड़ा पाटन अमझरा पार्श्वनाथ अमरकोट अंजार अहमदनगर जिला अजन्टा गुफाएं अजनेरी अकई तकई अरसीबीड़ी अलमेली अमोघवर्ष अमिनभवी अरतलू अटला ग्राम अक्षरवार सूची । अकलंक देव ४ | अनहिलवाड़ाराज्य अरब लेख 99 २१ अरसनपुर २२ असीरगढ़ २९ | अर्हनंदी ३३ | अकालवर्ष या ३९ ४५ अविनीति ५० अशोक ५१ अभिमन्यु राजा कृष्ण १२५-१९८ ५५ अजयपाल ५७ अर्णराज १८ अर्जुनदेव १०३ अकरावंती १०७ अपरांत ११७-२--११८ १६१ - १७६-१९८ आदर गुंची १२१ | आदुर १२२ आरटाल १५१ आतनू १६२ २०२ २१३ ३९ ५३ ८६-१४४ आ १२८ १७८ १९६ २११ २११ २१२ १८२ १८२ १२२ १२५ १२७ १५८ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आष्टे आदित्यवर्मा १५८ ७९ एरगंग नीतिमार्ग १७५ एरंडोल आनत एलुरा आर्यपुर या आय्यबले आसार्य १६२ इन्द्रसभा इन्द्रराज इन्द्रराजा प्र. दि. इन्द्रकीर्ति स्वामी इमोदी सदाशिवराम १२१ एरग एलाचार्य एक देव मुनि १६३ १७२ ऐवल्ली-ऐहोली औ औप्पारा १९७ ईडर नगर उमरेठ उन्झा उजयंत सिद्धक्षेत्र उत्तर कनडा जिला उड़पी जैन मठ उंलवी गाम उखलद उपभदत्त करणवती कपड़न कल्याण कन्हेरी गुफाएं कच्छ राज्य कन्थ कोट १३० कराद नगर १३७ कडरोली १३८ कलहोले १५९ करडी गाम १८० कलचूरी जैन वंश Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ (३) कल्लुकेरी १२२ ) कर्णदेव २१२ करगुद्रीकोप १२३ कलादगी निला कलटी गुडड १३९ कविराज मार्ग कड़ा गुफाएं १४६ ऋतुक १२० करवीर १५२ का कचनेर १५९ | काबी करकंडु पार्श्वनाथ १६० काठियावाड राज्य क्षत्रपोंका राज्य | कारली कत्त प्रथम ७२ कादम्ब वंशावली ७८ व ११२ कनकैर प्रथम | कागवाद कार्तविद्याप्रथम द्वि० त० च० ७२ कत्त हि. , कालसैन प्र. द्वि० , कारेय जैन जाति कृष्णवर्मा ७८ कामदेव कनकप्रभ सिद्धांत त्रैवेद्यदेव ८५ काकुष्ट वंशी कृष्णवल्लभ राजा कच्छेयगंग राजमल्ल स्कंध गुप्त १८५ | कीर्तिबर्मा प्र० वि० या कीर्तिदेव कका प्रथम हि. १९७ ७८-७९ कृष्ण १९८ कुम्मरिया कक्कल या कर्कराज १९९ कुन्टोनी - ११० २०५ कुमता बंदर १३९ , तृ. १९७ कर्क ३८ कर्ण Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलटार कुंडल कुम्भोज कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र कुलपाक कुमारपाल राजा कुमार वेदेंग क्षुल्लकपुर कुलचंद मुनि कुमार गुप्त कुलचंद्र कुन्दुर जैन जाति कुमार सेनाचार्य क्षेमराज कोन्नूर कोकतनुर कोलाबा जिला कोल गुफाएं कोल्हापुर राज्य के to "} कोगुणीवर्मन कोडिग को (8) १४० १५२ | खम्भात राज्य १९३ १५९ "" २०९ 99 खरग्रह 17 १२९ १५५ | खेडा जिला ११४ खेदापुर १८५ ख खानदेश मिला खारेपाटन खा ८० गान्धार ८६ १४१ गिरनार १४६ ग २०४ | गजपन्थ सिद्धक्षेत्र ८५ | गंगबंशी मानसिंह जैन १२१ गंग वंश २०३ ग्रहसेन गणकीर्ति स्वामी मा गि गु १५१ गुणभद्राचार्य १११ | गुजरातका इतिहास "" "" जैन मंदिर व लेख १५४ | गुप्त वंश १२८ | गुणचंद्र मुनि १९९ | गुणदत्तरंग वुटुग १३ ३७ १९१ ५३ १४७ ११२-१९६ ६१ १२४ १२७ १९१ ८५ २४ ४३ ११७ १७३ १८४ ८६-११७ १२९ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गेदी गोधा द्वीप गोदरा गोलश्रृंगार जाति गोरख मढ़ी गोरेगांव गोरी गोआ गोविन्द राजा "" गोहिलवाडा गोहिल घटोत्कच घघड़ घोटान घोर गे गो प्रथम द्वि० चन्द्रावती चम्भार लेना चली घ घो ( ५ ) ܘ ܐ १८ २१ ४७ चरणाद्रि चट्टप, चट्टया, चन्द्रकीर्ति चंद्रार्य वैश्य चन्न भैरव देवी चंद्रगुप्त महाराज चश्मा वंश चंद्रगुप्त प्रथम द्वि० १४५ १४९ १५७ ९९ | चाम्पानेर १९७ चांदोड़ नगर १७६ | चालुक्य वंश १९२ चावड वंश चाहूँग १८४ चामुंडराय "" २०३ | चामुंड चामुंड ५२ १९७ चितकुल चिबल घा चि ३६ चिलकेतन वंश ६१ चिंतपुर १२१ | चिंतीकुल १६२-१७० ७९ ८६ १२० १३४ १७६-१७८ १८३ १८४ १८५ १७ ५९ १९३ २०३ ७९ १३७ २०३ २०४ १३४ १४४ १२५ १३४ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ips चूनासामा ३३ जैनपुर जैन किसान चेदी सम्वत् १७५ १९७ १९४ १२९ १३४ टोलिमी जगत्तुंग तड़कल जयभट्ट प्र. द्वि० त० जयदत्त रंग | तारापुर जरसप्पा | तारंगा जगन्नाथ सभा १६९ तावन्दी जखनाचार्य ७० तालीकोटा जयवर्मा प्र० दि० या जयसिंह ७८ जयसिंह प्र. तिम्बा जयसिंह वर्मन त्रिंगलवाड़ी जान्हवी वंश त्रिभुवनमल राना । त्रिकूट जिनसेनाचार्य ११७-१६१ तीर्थकल्स जिनप्रभसूरि तुरनमाल . जीव दामन क्षत्रप | तेलुनाकी गुफाएं जूनागढ़ २३ १९४ ८०-८१ १७९ तेर जैनशिल्पपर फर्गुसन मैनोंका महत्व ४ तैल रामा ७. तैल बा तेलप, दि. ७९ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) तैलनसिंह कूटक ? ८४ दिगम्बर श्वेताम्बर बादसभा २०७ दिवलम्बा रानी तोरामन तौलमन बीता भाना जिला दुर्विनीत दुर्लभ दहीगांव देसार दम्बल दबारी देगुलवल्ली दशरथगुरु देवगिरि दंतिवर्मा १७२-१९७ देववर्माकुमार दंतिदुर्गा देवराज दशपुर ( मंदसोर ) १८१ | देवेन्द्र भट्टारक दद्दा प्र० द्वि० तृ. दा धन्धूका दाहोद धवलादि ग्रन्थ धनूर द्वारकापुरी धरसेन दि०, तृ., च० १९१ दामल धा दायुम ७२ धाड़वाड़ जिला ११२ दामसेन ११८ वामानदश्री , धाराशिव दाहनू 0 6 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) धाराश्रय जयसिंह वर्मन् १९४ | नागदेव पंडित भारावर्ष १९७ नान्दीपुरी, नांदाद नि ध्रुवसेन प्र०, ध्रुव धूमलवाड़ी धोलका नडियाद नवसारी नंदुरबार नगर पार्कर नन्न नयनन्दि नहापान "" धु द्वि० नासिक जिला नगर "7 धू धो न ना "" नान्दीगढ़ नारैगल नगर नागवर्मा प्र०, हि• १९१ निजामपुर १९७ निदगुंडी नित्यवर्ष या इन्द्र चौथा ६६ |निषाद निरुपम सर्गी १२ नेबूचड नजर ३३ नेमिचन्द्र ५३ ५७ ६० की प्राचीनता ६३ ८१ १२१ ७८ ने प १५० | पंचमहाल जिला ७२ पंचासुर ८६ पट्टदकल १८१ पनालाका किला १२७ १७५ प्रभाचंद्र देव परमेश्वर गंगवंशी प्रबोध चन्द्रोदय पृथ्वीसेन क्षत्रप प्रभूत वर्ष ५४ १२६ 99 १८२ १९७ १४ ३६ १०६ १११ पृथ्वी बर्मा ७२ परसिजभवनंदन जैन कवि ७५ ८६ १२८ १७७ १८३ १९७ ८१ ३२ ८६ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैरीप्लस awr . एथ्वीवल्लभ १९७ | पुष्पमित्र जैन वंश पद्मलादेवी ८६ पुलकेशी जनाश्रय पद्मप्रभ मुनि ___, पूना जिला पल्लवबंश प्रश्नोत्तर रत्नमाला ११८ पोसीना सवली प्रतापदेवराय त्रिलोचिया १३५ पा पेड़गांव पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पार्श्वीभ्युदय काव्य पाल पालनपुर एजन्सी | फलटन , नगर पालीताना बम्बई प्रान्त पाटन या पीतलखोरा ५४ , शहर पांडुलेना बजाबाई १४६ बड़ौधा राज्य पावल गुफाएं बड़नगर पाटन चेरू १६२ | बांकापुर पागल ११९ बनवासी पिटुग बदगांव पुलिकेरी १२३ पुलिकेसी प्र. हि. बर्द्धमानपुर पुष्पगुप्त वैश्य १७८ वनरान ६० १५१ बमनी १३१ १५२ बंकुर १७१ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बामचंद्र गुफा बाई बादगी बादामी बागलकोट बावानगर बाहुबलि देव वासुपूज्य बिड बीजापुर बि बी जैन मूर्ति 97 बीर बेरेंग उ बुटुग राजा गंगवंशी बेलापुर बेलगांव जिला " शहर व किल्ला बेल होंग पेरद वैरण्या (१०) ६५ बोरीवली ६६ बोधान ८७ १०३ | भरुच जिला १०५ शहर १११ भद्रेश्वर-भद्रावती भवसारी भटकल भर्तृदमन ८६ ८६ "9 १९२ | भविष्य ८८ भामेर १०७ भांजा १२९ | भाम्बोर भानुगुप्त ११७ भिलोड़ा ६८ भिनमाल ६९ | भिटोरा ७३ ७७ भीम प्रथम १९२ हिο "" बो २ / भुवनैकम भा मि मी ३० O १७२ १९ 99 ४९ ६५ १३२ १८३ १९६ ५४ ६५ १४८ १८७ ३७ १७४ १८७ २०४ १११ ८६ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूविक्रम भैरवगढ़ भैरवदेवी भोजपुर भोजराजा द्वि. मतार महुधा महमदाबाद भू भै भो महुआ महीकांठा एजन्सी मनोली मनकी मदरसा रामा मृगेश्वर वर्मा महाड़ मलखेड़ मल्लिकार्जुन मयूरभंज प्र• मृगवर्मा मंगलीश या मंगलीश्वर (११) १२८ | मंगलराज १२३ १३५ ६५ १५५ मसली पटम "" ३३ माण्डवी मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र मारसिंह जैन १२ माधव कोंगनीवर्मा माधव प्र० १२ | माधव द्वि० मलपाल मुनि मलियाद्रि ८३ १३७ ३७ मानान्केर मिरी १४५ मीरज राज्य १६१ ७२ मुद्दे विहाल ७८ | मुत्तूर ७८ मुंदेश्वर ९३ मुश्कर मा माघनंदि सिद्धांत देव माणकनंदि पंडित १२० १२६ । मुंजपुर मि मी शु १४२ १९४ ८६ १६१ २७ ६२ १२४ 27 99 १५३ १५४ १९६ ५१ १५७ •ܐܐ १२३ १३९ १२८ ૧ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रान्देर (१२) मूलगुंडनगर १२० मूलराज सोलंकी १७६-२०३ रत्तीहल्ली , दि० २११ रत्नागिरी जिला रखियाल मेहेकरी रविचंद्रस्वामी मेघुती जैन मंदिर रविकीर्ति मेराड़ रणराग मैलाप तीर्थ ७३ मो मोधेरा नगर ३६ राजपीपला राज्य मौ मौर्य चन्द्रगुप्त २१ राजवार्तिक मौर्योकी प्रशंसा १७७ राहवंशी मौनी देव ८६ , कुलवंश रायबाग १२२ रायगढ़ यशोधर्मन् रामधरण पर्वत - यशदमन् रामबाग राष्टकूट वंशावली यावल नगर | रामचन्द्र आचार्य यादव राजाओंकी वंशावली ७८ राजमल्ल यावनीय संघ योगराज २०३ रुद्रामन क्षत्रप राहो यलबत्ती ५४ १२५ १२९ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवडंड १२१ . (१३) रुद्रसिंह रुद्रसेन १८३॥ रूपसुन्दरी ८ वशाली वड़ाली १४४ वधवान रेवतीहीप, रेवताचल | वल्लभीपुर वल्लभी बंश रोननगर वस्तुपाल तेजपाल वज्जाल कलचूरी लक्की गुंडी वल्लभ नरेन्द्र लक्ष्यमेश्वर १२३ वल्लभ स्कंध लक्ष्मण या लक्ष्मीदेव प्र.द्वि० ७२ वट्टिग लंबी वल्लभ १९८ वा लवणप्रसाद वावड़ियावाड़ वालू ललितकीर्ति वागवाड़ी लाकंडी - वासुकोड वातापिपुरी लाट १७५-१७६ वादिराज स्वामी १३७ लिंगायत वाघेल वंश लिपनी वि, वी विदरकनी लेन्देयरार सामन्त विलगी १३८ विरावह १६. लोकादित्य ११७ | विराटकोट, विराटनगरी ११९ लोकसेन ,, | विष्णुवर्द्धन या विट्टिदेव ६९ २११ . ११९ .. २११ १२६ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ (१४) विष्णुवर्मा विशाल देव २१२ शाहाबाद विमलशाह शांतिदास सेठ शांतिवर्मा विश्वसिंह शांतिवर्मा प्र. द्वि. या शांत विनयसेन या शांतप ७८ विष्णु गोप १२८ श्राश्रय विजयदेव पंडिताचार्य १२५ विनय वर्मा शिवनेर ६५ विक्रमादित्त्य चालुक्य ८०-८४ शिग्गांव १२१ ११६ शिवमार राजा १२८ विनयदित्य ११३-१२८ शिलादित्य १९१-२ विमयदित्य श्रीधराचार्य विनयसेन श्रीधरदेव वीरसेन श्री विक्रम १२८ वीरदमन श्री पुरुष कोंगणी वर्मन् १२८ वीरधवल श्रीमाल १७४ श्रीवल्लभ ८६ TREATRE १९८ वूला शुकलतीर्थ वेडसा वेणु ग्राम शुभचंद्र भट्टारक ६९ शुभतुंग राजा १४२ श्वेतपुर १५६ शेन प्रथम श्रमण शब्दार्णव चंद्रिका Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ शोलापुर जिला सिन्भार ३५ (१५) सावं दुर्लग | सारंग देव . स्वाम्रा १८५ २३ सिन्दगी सिरूर सिंघ प्रांत सिंहसेन सिद्धराज २०३ ,, जयसिंह २०५-६ सिंधपुर, सितार, सिंतकुल १३४ १९३ सुमालवेट १२७ सुगंधवर्ति सुदर्शन झील १४८ १८४ समुद्रगुप्त सनोतके श्री शीतलनाथ सरोत्री या सरोत्रा संकेश्वर संगमनेर सतारा जिला सलतगी संगम स्तवनिषि सम्यवती राजा सत्यवर्मा सत्त्माश्रय सदाशिवराव रामा स्टेशनों सम्प्रति संघ दमन १०६ ܘܐܐ सुन्दी ८६ 5.४१ सूरत निला सरत पहर कंप सावगांव सांगली सावरगांव सेत्रुभय सिद्धोत्र सेनापति महारक १५७ सेन्द्रवंशा १६२ / सेशोदिया १९२ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सैतवाल दि. जैन |हणसंगी वंश ५२ हरिकेशरी देव सो ৩৩ ३१ हालसी | हांगल नगर ४६ हादवल्ली १२२ हिमशीतल राजा सोपारा सोनित्रा सोमनाथ सोरातूर सोनड़ा सोलंकी वंश सोमेश्वर चालुक्य सोमनपुर सोमदेव १६२ हुइन सांगवी १७६ हुली १२१ १५६ हुनगुंड हुबली १०८ सौराष्ट्रदेश सौन्दत्ती सौवीर ४१ हेब्बल ८३-८६ हेब्बल्ली हेरले हेमचंद्र १५२ २०६-७ ७७ १८४ हलसिगे हन्निकेरी हल्लूर हत्तीमत्तूर हनुरुहद्वीप . हर्ष राजा हरि वर्मा ८२ हैदराबाद राज्य १०८ हैहयन वंश १२६ १३९ होंगल १०० होनावर १२४-१२८ होनसलगी १३९ १६२ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OseOceae पूज्य ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजीकृत स्मारक ग्रन्थ D (1) बंगालविहार उड़ीसाके प्राचीन जैनस्मारक (पृष्ठ 150 मूल्य मात्र आठ आने) 2) संयुक्तप्रान्तके प्राचीन जैनस्मारक ION (पृष्ठ 160 मूल्य मात्र छह आने ) 3) बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैनस्मारक (पृष्ठ 255 मूल्य मात्र बारह आने) M (4) मध्यप्रांत, मध्यभारत व राजपूतानाके प्राचीन जैनस्मारक (पृष्ट करीब 200 मूल्य मात्र आठ आने) 12) मनास प्रांत के प्राचीन जैन स्मारक (तैयार हो रहा है) ये ग्रन्थ अतीव परिश्रम व खोजके साथ तैयार किये गये हैं। एक 2 प्रति अवश्य भंगाइये / मंगानेका पतामैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय-मूरत /