Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HER नगर • पी.एम.चौरडिया For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। । योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। ।। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोधसंस्थान एवं ग्रंथालय) पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक : १३६० न आराधना महावीर कन्द्रको कोबा. अमृतं तु विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079)23276252,23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर हॉटल हेरीटेज़ की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रो अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद् उद्देश्य एवं प्रवृत्तियां 0 जैन विद्या के अध्ययन-अध्यापन, अनुसंधान, संरक्षण, संवर्धन, लेखन-प्रकाशन, प्रचार-प्रसार आदि में सहयोग देना। - जैन विद्या में निरत विद्वानों, श्रीमन्तों, कार्यकर्ताओं व संस्थाओं में पारस्परिक सम्पर्क व सामञ्जस्य स्थापित करना। 0 जनसाधारण को जैन धर्म, दर्शन, इतिहास, साहित्य, संस्कृति आदि से परिचित कराने के लिए समयसमय पर व्याख्यानमालाओं, शिविरों, संगोष्ठियों, निबन्ध आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन करना व सम्बद्ध साहित्य प्रकाशित करना। जीवन-निर्माणकारी सद् साहित्य का निर्माण एवं प्रकाशन करना। ___ सदस्यता-श्रेणियां आजीवन विद्वत् सदस्यता १०१ रु० आजीवन सहयोगी सदस्यता आधार स्तम्भ ५००१ रु० स्तम्भ २५०१ रु० संरक्षक १००१ रु० संवर्धक ५०१ रु० ट्रैक्ट साहित्य सदस्यता १०१ रु० [सदस्य बनने पर १०८ पुस्तकें निःशुल्क भेजी जायेंगी] For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झान-प्रसार पुस्तकमाला-५० मृत्यु-चिन्तन पो० एम० चौरडिया चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट एवं वरिष्ठ स्वाध्यायो मद्रास प्रकाशक श्रो अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद् एवं सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल ज य पुर For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । मृत्यु-चिन्तन - लेखक : पी०एम० चौरड़िया D सम्पादक-संयोजक : सं० नरेन्द्र भानावत अर्थ-सहयोगी : श्री रिखबराज बागमार ३०, चन्द्रप्पा मुदलई स्ट्रीट, साहूकार पेठ, मद्रास-६०००७९ प्रकाशक : ● श्री अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद सी-२३५ ए, दयानन्द मार्ग, तिलकनगर जयपुर-३०२००४ (राज.) फोन : ४७४४४ एवं सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल बापू बाजार, जयपुर-३०२००३ फोन : ४८९९७ 0 प्रथम संस्करण : जुलाई, १९८८, ५३०० प्रतियाँ । मूल्य : दो रुपये - मुद्रक । अजन्ता प्रिन्टर्स जौहरी बाजार, जयपुर-३, फोन : ४४०५७ नोट-यह आवश्यक नहीं कि लेखक के विचारों से परिषद्, मण्डल अथवा सम्पादक की सहमति हो । mms For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जैन विद्वत् परिषद् ने 'कुआ प्यासे के पास जाए' अर्थात् विद्वानों, अनुभवी चिन्तकों और तपःपूत साधकों के विचार जनसाधारण तक पहुँचें, इस उद्देश्य से 'ज्ञान प्रसार पुस्तकमाला' का प्रकाशन आरम्भ किया है। इसके अन्तर्गत विभिन्न विषयों पर विविध विधाओं की १०८ पुस्तकें प्रकाशित करना तय किया गया। ३. पुस्तकें प्रकाशित होने के बाद सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के साथ आगे के प्रकाशन संयुक्त रूप से प्रकाशित किये जा रहे हैं ताकि इनका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल का लक्ष्य भी सामायिकस्वाध्याय के माध्यम से श्रुतज्ञान का प्रचार-प्रसार करना है। १०१ रुपये देकर कोई भी व्यक्ति या संस्था ट्रैक्ट साहित्य सदस्य बन सकते हैं। सदस्यों को इस योजना के सभी उपलब्ध प्रकाशन निःशुल्क प्रदान किये जाते हैं। सदस्यता राशि 'श्री अखिल भारतीय विद्वत् जैन परिषद् के नाम ड्राफ्ट या मनिआर्डर से भेजें। २५०० रुपये की राशि प्रदान कर कोई भी व्यक्ति या संस्था ट्रैक्ट प्रकाशन में सहयोगी बनकर श्रुतसेवा का लाभ उठा सकते हैं। प्रस्तुत प्रकाशन में मद्रास के प्रमुख समाजसेवी श्री रिखब राजजी बागमार ने विद्वत् परिषद् को अर्थ सहयोग प्रदान किया है। आप मूलतः मेड़ता सिटी के निवासी हैं और मद्रास में आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैं । प्राप धर्मनिष्ठ श्रावक और कर्मठ सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं। राजस्थान युवक वेलफेयर सोसायटी मद्रास के अध्यक्ष एवं भ. महावीर अहिंसा प्रचार संघ व स्वाध्याय समिति के कोषाध्यक्ष के रूप में आपकी सेवाएँ विशेष महत्वपूर्ण हैं | एस. एस. जैन युवक संघ मद्रास की विभिन्न प्रवृत्तियों से आपका सक्रिय जुड़ाव है। आपको धार्मिक संस्कार विरासत में मिले हैं । आपके पिताश्री हेमराजजी बागमार धार्मिक वृत्ति के निष्ठावान श्रावक हैं । प्रतिदिन ८-१० सामायिक करते हैं और प्रायः स्थानक में ही रहते हैं । आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के प्रति आपके पूरे परिवार की अगाध श्रद्धा-भक्ति है । आप मिलनसार, उदार हृदय और उत्साही व्यक्ति हैं । आपके सहयोग के प्रति हम विशेष आभारी हैं । इस पुस्तिका में मद्रास के प्रमुख चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट एवं वरिष्ठ स्वाध्यायी श्री पी. एम. चौरड़िया ने मृत्यु के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट जीवन सुधार के साधन रूप में मंगलमय दिया है । करते हुए उसे बनाने पर बल निबेदक देवेन्द्रराज मेहता अध्यक्ष चैतन्यमल ढड्ढा मन्त्री भंवरलाल कोठारी अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र भानावत महामन्त्री श्री अ.भा. जैन विद्वत् परिषद् सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्य- चिन्तन इस शरीर से जीवात्मा का अलग हो जाना ही मृत्यु है । शरीर से आत्मा के अलग हो जाने के बाद शरीर केवल जड़ रह जाता है । जब तक शरीर एवं आत्मा का सम्बन्ध है, तब ही तक जीवन कहलाता है, लेकिन मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है, यह तो केवल एक व्यक्तित्व के विकास का अन्त है । मृत्यु एक महा निद्रा है । हम प्रतिदिन परिश्रम के बाद विश्राम करते हैं, नींद लेते हैं। आखिर यह नींद क्या है का लघु मरण है । कुछ घन्टों के ताजगी पाकर उठ खड़े हो जाते कार्यक्रम में लग जाते हैं । मृत्यु को महा निद्रा इसलिए कहा गया कि यह नींद लम्बी होती है। आखिर सारे जोवन भर के परिश्रम के बाद उसे ग्रहण किया जाता है । ? हैं नींद भी एक प्रकार विश्राम के बाद हम और अपने दैनिक थकावट को मिटाने का एक और तरीका है। थके हारे लोग नदी, तालाब, समुद्र आदि अथवा नल के नीचे बैठकर स्नान करते हैं। गहरे पानी में डुबकियाँ लगाते हैं। स्विमिंग पुल में घन्टों स्नान का आनन्द लेते हैं और For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार अपनी थकावट को दूर करते हैं। इस प्रकार संसार के प्राणी कषायों से लिप्त होकर गोता लगाते हैं। जन्म से मृत्यु तक कषायों में इस प्रकार जकड़े हुए रहते हैं कि उन्हें सही चिन्तन का अवसर ही नहीं मिलता और अन्त में वे थक जाते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते हैं । अपने कर्मों के अनुसार वे पुनः नया जीवन धारण करते हैं। वास्तव में मृत्यु तो जीवन का सार है। व्यापारी साल भर व्यापार करता है, लेन-देन करता है लेकिन साल के अन्त में उसे यह पता चलता है कि उसे लाभ हुआ या हानि ? इस प्रकार मृत्यु होने पर जीवन का लेखा-जोखा देखा जाता है । वह व्यक्ति कैसा था, उसका जीवन कितना धर्ममय या पापमय था, उसमें कौन से २ सद्गुण विकसित हुए थे, धर्म, समाज एवं देश की उसने क्या सेवा की, इन सब बातों का निष्कर्ष या सार मृत्यु पर निकाला जाता है। इसीलिए मृत्यु जीवन की पूर्णता है, जीवन का निष्कर्ष है और यथार्थ की अभि व्यक्ति है। - इस संसार में जीने वाले हर व्यक्ति को एक दिन जाना होता है, किसी भी समय वह क्षण उपस्थित हो सकता है। इसीलिये व्यक्ति स्वयं को सम्भाले, अपने को धर्मराधना से जोड़कर रखे और भेद विज्ञान का अभ्यास For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करे । ऐसा करने वाला अपने जीवन की सार्थकता से दूसरों के लिये भी प्रेरणा स्रोत बन सकता है। मृत्यु का अर्थ है निर्वाण अर्थात् अनन्त जीवन प्रज्वलित करना । भगवान बुद्ध ने कहा “अपना निर्वाण करो, तभी संसार से सच्चा प्रेम कर सकीगे।" अपने को भूलना, अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाएँ, स्वार्थ और लोभ को भूल जाने से ही अमरता प्राप्त की जा सकती है। मृत्यु का भय . मनुष्य के जीवन को नष्ट करने वाले विचारों का सबसे बड़ा औजार है भय । भय के कारण चरित्र में गिरावर आती है, ऊँची आकांक्षाएँ नष्ट हो जाती हैं और सफलता प्राप्ति में बाधा पड़ जाती है। भय एक ऐसी घटना है, जो अब तक कभी नहीं घटी एवं जो केवल कल्पना की उपज है और उसके घटित होने की कल्पना करके हम उससे त्रस्त रहते हैं। आगम में सात भय बताये हैं :-लोक भय, परलोक भय, आजीविका भय, संरक्षण का भय, यश-अपयश का भय, अकस्मात भय और मृत्यु भय। इनमें मृत्यु-भय सबसे बड़ा भय है । सब प्रकार के भय की परिणति मृत्यु के समय होती है । वाल्मीकि रामायण में कहा गया है 'सदैव मृत्यु जति, सह मृत्युनिषीदति' For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् मृत्यु मनुष्य के साथ चलती है, साथ ही बैठती है, वह हर क्षण साथ लगी रहती है, पता नहीं कब दबोच ले ? 'सूत्रकृतांग' सूत्र में भी कहा गया है'सेणे जहा वट्यं हरे, एवं आउखयम्मि तुई' अर्थात् एक ही झपाटे में बाज जैसे बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है। प्रायः हम देखते हैं कि जो वीर, शूर, बली अपने आपको कहते हैं, लेकिन मृत्यु के समय वे भी बड़े भयभीत पाए जाते हैं। वे रोते, गिड़गिड़ाते अपने प्राणों को छोड़ते हैं, इससे स्पष्ट है कि भव की यह चरम सीमा है। मरण-भय को जिसने जीत लिया, फिर उसे किसी भी तरह का भय परेशान नहीं करता । मृत्यु सदा से हा एक रहस्य रही है। मृत्यु के भय से समस्त जीवन निर्जीव सा हो जाता है। जिस वस्तु से हमें भय लगे उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी की जाय, यही भय को दूर करने की रामबाण औषधि है। मृत्यु के बाद शरीर निर्जीव हो जाता है। उसे जलाने, गाढ़ने या कहीं डालने से किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता, यह तथ्य जानने के बाद भय को मन से For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निकाल देना चाहिए। पंच तत्त्वों का यह पुतला एक दिन पुनः पंच तत्त्वों में मिल जाएगा, अतः इससे भयभीत रहना बुद्धिमत्ता नहीं है। मत्यु का मुकाबला डर कर नहीं, लड़ कर करो मृत्यु का क्षण जीवन में केवल एक बार आता है, लेकिन मौत का भूत मन-मस्तिष्क पर सदा सवार रहता है। मृत्यु से डरने से, रोने-पीटने एवं हल्ला-गुल्ला करने से वह हमें छोड़ तो नहीं देगी? शत्रु का मुकाबला डर कर नहीं, लड़कर करना चाहिए। अतः मौत से डरना नहीं, बल्कि लड़ना चाहिए। शत्रु को पराजित करने के लिए यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि शत्रु के पास कितनी शक्ति है, वह किस प्रकार आक्रमण कर सकता है, उसके मित्र कौन हैं जो उसे सहायता पहुँचा रहे हैं ? हमें रणनीति तैयार करनी पड़ती है और किसी भी परिस्थिति में शत्रु की अनदेखी नहीं की जा सकती है। ठीक इसी तरह मृत्यु का सामना करने के लिए भी हर समय जाग्रत रहने की आवश्यकता है। हर समय मृत्यु को याद रखें । ऐसा करने से हम सही जीवन जी सकेंगे। जीवनमरण के चक्र से छुटकारा पाने के लिए आत्मा में लगे कषायों को दूर करना होगा, तभी हम मृत्यु का सामना कर सकेंगे। For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा-"हम मृत्यु का प्रिय अतिथि एवं मित्र की भांति स्वागत करने की कला भूल गए हैं, अतः हमें मृत्यु महान् शत्रु की भांति आती हुई प्रतीत होती है।" नोबल पुरस्कार विजेता एलबर्ट श्वीतजर कहते हैं- "किसी मनुष्य को मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है। उसे इस बात से अवश्य डरना चाहिए कि कहीं वह अपनी सबसे बड़ी शक्ति को बिना जाने हुए न मर जाये-दूसरों के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने की प्रबल इच्छा शक्ति ।" । मृत्यु का वरण करने के लिए हमें प्रतिपल तैयार रहने की आवश्यकता है। अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ न चला जाए । जीवन का प्रत्येक क्षण अमूल्य है। भगवान महावीर ने अपने प्रमुख शिष्य गौतम स्वामी को कहा 'समयं गोयम मा पमायए' हे गौतम ! एक समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। वास्तव में जो जीवन जीने की यह कला जानते हैं, वे मृत्यु को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। मृत्यु और शोक जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि जन्म के समय में तो खुशियाँ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनाई जाती हैं, मिठाइयाँ बांटी जाती हैं, चारों ओर हष, आनन्द और उल्लासमय वातावरण छा जाता है, दूसरी ओर जब मृत्यु होती है तो घर और परिवार में मातम छा जाता है, सभी उदास हो जाते हैं । निकट के सम्बन्धी व इष्टजन रोने-पीटने लग जाते हैं और घर में नाटकीय वातावरण छा जाता है। ऐसा सब क्यों होता है ? मृत्यु एक निश्चित घटना है। जो जन्म लेता है, वह कभी न कभो मृत्यु को प्राप्त अवश्य करेगा। अतः हम किसी सम्बन्धी या मित्र की मौत पर इसलिए चीखते हैं कि हमें उससे जो सुख मिलता था, अब कहाँ से मिलेगा ? आत्मा अजर, अमर है और शरीर तो एक दिन जरूर नष्ट होने वाला है, इसलिये मौत का शोक किसी तरह उचित नहीं है । 'गुरु ग्रन्थ साहब' में क्या ही सुन्दर कहा गया है चिंता ताकी कीजिए, जो अनहोनी होय । एह मार्ग संसार का, नानक थिर नहीं कोय ।। दूरदर्शन पर रामायण की एक सीरिज में श्रीराम द्वारा बाली को मारने का प्रसंग बताया गया। जब राम ने सुग्रीव के भाई बाली को तीर मारकर मौत के घाट उतार दिया, तो बाली की पत्नी तारामती विलाप करती हुई श्रीराम के पास आई । श्रीराम ने कहा- "देवी ! यह शरीर तो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के पांच तत्त्वों से बनता है और वह अब भी तुम्हारे सामने पड़ा है। अगर तुम को बाली के शरीर से प्रेम है तो ले जाओ इस शरीर को और रोना-धोना बन्द करो । अगर तुमको उसकी आत्मा से प्रेम है तो जान लो कि आत्मा अमर है । इसका कभी नाश नहीं होता। फिर तुम किसलिए इतना रो रही हो ?' श्रीराम का यह उपदेश सुनकर तारामती को सही ज्ञान हो गया । 'गीता' में श्री कृष्ण कहते हैं 'न जायते म्रियते वा कदा चित् ।' अजो नित्य शाश्वतोऽयं पुराणः ।' 3 शरीर जन्मता है, मरता है, किन्तु आत्मा न कभी जन्मती है और न कभी मरती है । वह तो अजर है, नित्य है, शाश्वत है । शरीर का जीवन मौत से घिरा है । आत्मा को तो मृत्यु कभी स्पर्श भी नहीं कर सकती । आत्मा मरती नहीं, केवल घर बदलती है । केवल शरीर का चोला बदलता है, पुराना वस्त्र उतारा और नया वस्त्र धारण कर लिया। इसमें रोने, विलखने और रंज करने की क्या बात है ? जीवन का सबसे सन्तोषप्रद सत्य यह है कि जीवन और मरण एक ही अनुभूति के दो पहलू हैं, अतः मृत्यु के प्रसंग पर शोक न करें । For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरना भी एक कला है जीना जैसे एक कला है, वैसे मरना भी एक कला है। जो लोग यह कला नहीं जानते, वे जीते हुए भी मृत हैं और जो यह कला जानते हैं, मृत्यु को प्राप्त होते हुए भी जीवित हैं। महत्त्व की बात यह है कि हम मरण को भी मंगलमय बनायें । सुख उपकारक है, दुःख उपकारक है, उसी तरह मरण भी उपकारक है। भीषण गर्मी के दिनों में यदि बिना बिजली के पंखे के किसी व्यक्ति को तंग बन्द कोठरी में कैद कर दिया जाए तो वह कितना परेशान होगा ? यदि कोई उसे उस भयंकर कारागार से छुड़ावे तो वह उसका महान् उपकार मानेगा। उसी प्रकार जर्जर और रोगों से ग्रस्त देह रूपी पिंजड़े से जीवात्मा को निकाल कर दिव्य देह प्रदान करने वाला मृत्यु से अधिक उपकारक और कौन होगा? इसीलिये संसार में ऐसा कोई नहीं जो अन्त में शांति से न मरना चाहता हो! मृत्यु की स्मृति मृत्यु एक ऐसी घटना है, जिसके बारे में मनुष्य को खूब सोचना चाहिए । 'साम्य सूत्र' में लिखा है 'मृति-स्मृतिः शुद्धये ।' मरण की स्मृति चित्त शुद्धि के लिए बहुत उपयोगी है, इसलिये मृत्यु का सतत स्मरण होना चाहिए। For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्यु की सदैव स्मृति से हम जीवन से सदा अलिप्त रहेंगे, दूसरों के कल्याण एवं भलाई में जीवन व्यतीत करेंगे, जीवन में सदा जागरूकता रहेगी शेक्सपियर का एक वाक्य है - 'अगर मेरा मित्र आज शाम को मरेगा, यह मुझे मालूम होता तो सुबह उसे कटु बोला, वह नहीं बोलता | मालूम हो कि यह शाम को मरने वाला है, तो सुबह उसके साथ झगड़ा नहीं करता ।' प्रायः संसार में देखा यही जाता है कि अधिकांश लोग अपने आपको अमर मानते हैं । यक्ष ने युधिष्ठिर को पूछा था कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? इसका उत्तर युधिष्ठिर ने दिया - " दूसरों को मरते देखकर और स्वयं क्षण-क्षण मृत्यु की ओर बढ़ रहा है, फिर भी मनुष्य मृत्यु को भूलकर अपने को अमर मानता है । इससे बढ़कर आश्चर्य दूसरा नहीं ।' जीवन लेकिन जो जागरूक हैं, जीने की कला जानते हैं, उनका चित्त मृत्यु की स्मृति से हमेशा प्रसन्न रहेगा । आत्मा के अमरत्व के विचार हमेशा रहेंगे, जिससे जीवन प्रेममय व्यतीत होगा । मृत्यु का सदैव स्मरण करने से उसका पूरा अभ्यास हो जायेगा । जिस प्रकार एक विद्यार्थी परीक्षा में बैठने के पूर्व अच्छी तैयारी करता है, जिससे वह अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सके, उसी प्रकार मृत्यु का सदैव स्मरण उसकी तैयारी है । जो व्यक्ति For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैयार है उसको किसी प्रकार घबराने की आवश्यकता नहीं है। घबराता वही है जो तैयार न हो। मृत्यु की स्मृति रखने से जीवन में समता आ जाती है। परिषह या कष्ट उपस्थित होने पर वह घबराता नहीं है । जागरूक रहने से वह निम्न पाठ बोलकर सागारी संथारा कर लेता है-- आहार शरीर अरु उपाधि, पचखू पाप अठार। मरण पाऊँ तो वोसिरे, जीऊँ तो आगार ॥ परिषह या कष्ट टल जाने पर वे नमस्कार मंत्र का स्मरण कर अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं। जागरूक साधक रात्रि को सोते समय भी उपर्युक्त पद्य बोलकर निद्रा लेते हैं ताकि यदि कदाचित् निद्रा में ही मृत्यु हो जाए, तो खाली नहीं मरते। महापुरुषों के मृत्यु सम्बन्धी विचार मृत्यु के प्रति हमारा दृष्टिकोण हो हमारे जीवन के प्रति तथा परिवार, समाज, धन, सत्ता, यश आदि के प्रति दृष्टिकोण का निर्धारण एवं निश्चय करता है। मृत्यु को सहज भाव से स्वीकार करने पर जीवन सरल और सुगम हो जाता है तथा हमारा दृष्टिकोण स्वस्थ एवं सही हो जाता है। अतः महान् व्यक्तियों ने मृत्यु का सहर्ष आलिंगन कर सही जीवन जीने की कला का उपदेश दिया है। For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्त दादू कहते हैंदादू मारग कठिन है, जीवत चलै न कोई। सोई चलि है बापुरा, जे जीवत मिरतक होई॥ दादू उपदेश करते हैं कि अन्त में तो हर किसी को मरना ही पड़ता है, परन्तु ज्ञानी पुरुष जीते जी मरने का अभ्यास करते हैं। सन्त कबीर दास ने कहामरता मरता जगु मुआ, मरि न जानिआ कोई। ऐसे मरने जो मरै, बहुरिन मरना होई ।। अर्थात् बार-बार जन्म और मरण के दुःखों से घिरे संसार के लोग जीते जी मरने का अभ्यास सीख लें तो सदा के लिये मुसीबत से छूट जाएँ और उन्हें अमर सुख की प्राप्ति हो। - अठाहरवीं शताब्दी के महान् सन्त पलटूदास ने कहा मरते मरते सब मरे, मरे न जाना कोय । पलटू जो जियत मरे, सहज परायन होय ॥ महापुरुषों के मृत्यु के समय के उद्गार अठारहवीं सदी के एक चिकित्सक ने मृत्यु के पूर्व के क्षणों में कहा था- "यदि मेरे हाथ में कलम पकड़ने की शक्ति होती तो मैं लिखकर बताता कि मृत्यु कितनी For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसान और सुखद है।" मरते समय गेटे ने कहा 'अधिक प्रकाश, अधिक प्रकाश !' तुकाराम महाराज 'राम कृष्ण हरि' गाते-गाते ही मर गये । गुरु समर्थदास ने कहा "क्यों रोते हो? मेरा 'दास बोध' तो है।" फ्रांसीसी कवि पाल स्केरन ने भी मृत्यु के अन्तिम क्षणों में कहा था- "मुझे ज्ञान न था कि मरना इतना आसान है। मैं मृत्यु पर हंस सकता हूँ।' लोकमान्य तिलक “यदा-यदा हि धर्मस्य' वाला श्लोक बोलते-बोलते ही चले गए। प्लेटो मर रहा था। सारे शिष्य व मित्र इकट्ठ थे। किसी ने पूछा'जीवन भर आप उपदेश देते रहे। आज अन्तिम समय उनका सार बताइये।' प्लेटो ने आँख खोली और कहा 'सारे जीवन मैंने एक ही बात सिखाई है और वह हैमरने की कला।' शम्स तबरंज साहब ने जो भाव अन्तिम समय में कहे, उसका भावार्थ है : "जब मेरा शरीर शान्त हो जाए और लोग मेरा जनाजा उठाकर चलें तो पल भर के लिए भी यह नहीं सोचना कि मुझे मरने का कोई दुःख या अफसोस हैं।" "जब तुम मेरा जनाजादेखो तो एक बार भी मेरे लिए जुदाई या फिराक का शब्द न कहना क्योंकि मैं तो खुदा से मिलने जा रहा हूँ, यह मेरे लिए जुदाई का नहीं विसाल का दिन है, खुदा से मिलने का दिन है।" For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "और जब मैं दुनिया से मुंह मोड़कर चला जाऊँगा तो मेरा रुख हकीकत की तरफ हो जाएगा, एक ऐसी हकीकत की तरफ, जो हमेशा से चली आ रही है और हमेशा रहेगी।" सुकरात ने कहा “Let us face death as we have faced life courageously. So, be of good, cheer and do not lament my passing. Be quiet and let me die in peace.” महापुरुष और मृत्यु महापुरुष सदैव मृत्यु का अतिथि की तरह स्वागत करते हैं और सदैव उसे सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार रहते हैं। यहां कुछ महापुरुषों की मृत्यु के सम्बन्ध में विवरण दिया जा रहा है १. हजरत ईसा यश मसीह को फांसी का दण्ड दे दिया गया। फांसी पर चढ़ने के पूर्व आपके ओठों पर मुस्कराहट थी और आपकी जुबान पर यह दुआ थी"ऐ खुदा ! तू जो चाहता है, वही होगा। इन लोगों को माफ करना । ये नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" २. सुकरात को देवताओं को लांछित करने और युवकों को पथ-भ्रष्ट करने के दोष में मृत्यु-दण्ड सुनाया For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ गया। उसने मृत्यु दण्ड को समाप्त कराने का बिल्कुल भी प्रयत्न नहीं किया। वह तीस दिन तक कारागार में रहा। उसने विष का प्याला पीते हुए आत्म-गौरव, आत्म-सम्मान एवं आत्म-विश्वास का. परिचय दिया। उसने जीवन-मरण के रहस्य को सही भांति समझ लिया था, इसलिए ऐसी घड़ी में भी उसके मुख-मण्डल पर निराशा और वेदना की कोई रेखा नहीं थी। उसने हँसतेहँसते अपने प्राण दे दिए। ३. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु भी एक ऐतिहासिक घटना है। एक बार स्वामीजी जोधपुर नरेश से मिलने गए। उस समय राज दरबार में वेश्या का नाच हो रहा था। स्वामीजी ने राजा से कहा कि कुतिया और शेर का मिलाप कैसा हो रहा है ? यह सुनकर वेश्या के दिल में स्वामीजी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया। उसने राजा के रसोइए को भारी लालच देकर स्वामीजी के भोजन में विष मिला दिया। भोजन करने के बाद स्वामीजी को विष का अहसास हुआ तो उन्होंने रसोइए को बुलाकर कहा-'देखो ! यदि राजा को इस बात का पता चल गया कि तुमने मेरे खाने में विष मिलाया तो तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे। इसलिये जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी यहां से भाग जाओ। मरते समय भी आपके ओठों पर यह दुआ थी—'भगवन ! आपकी इच्छा पूर्ण हो।' For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. महात्मा गांधी ने ७ नवम्बर, १९३२ को सेठ जमनालाल बजाज को जो पत्र लिखा, उसमें मौत के सम्बन्ध में निम्न विचार लिखे थे मौत, चाहे छोटा हो या बड़ा, गोरा हो या काला, यह सब के लिए आती है। उसका डर क्या और उसका अफसोस भी क्या ? मुझे तो बहुत बार ऐसा लगता है कि जिन्दगी के मुकाबले में मौत ज्यादा अच्छी होनी चाहिए। शरीर से पहले तो मुसीबत भोगनी पड़ती है और शरीर के बाद भी अनेक दुःख हैं जबकि मौत के बाद कुछ लोगों को ब्रह्म स्थिति प्राप्त हो जाती है। इसी मौत को पाने के लिए सारी उम्र निष्काम कामों में गुजारनी चाहिए। वास्तव में महात्मा गांधी ने मौत के सही स्वरूप को समझा और ३० जनवरी, १९४८ को नाथूराम गोडसे से गोलियों के शिकार होने पर भी विचलित नहीं हुए। उनके मुख से 'राम राम' शब्द ही निकले और अन्तिम समय में अपने हत्यारे नाथूराम गोडसे को माफ करने की अभिलाषा प्रकट की। ५. संत विनोबा भावे को जब यह अहसास हो गया कि अब उनका शरीर उनका साथ नहीं दे रहा है और उनकी मृत्यु निकट है तो उन्होंने स्व इच्छा से अन्न और जल का त्याग कर दिया। भारत की तत्कालीन For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी स्वयं दिल्ली से वर्धा उनके पास गई और उन्हें औषधि लेने की प्रार्थना की, लेकिन विनोबा भावे अपने देह से आसक्ति छोड़ चुके थे। उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार वे पण्डित मरण को प्राप्त हुए। ६. श्रीकृष्ण के छोटे भाई श्री गजसुकुमाल मुनि थे। बाल अवस्था में ही वे तीर्थंकर नेमिनाथ के समक्ष दीक्षित हो गए। दीक्षा के प्रथम दिवस ही वे प्रभु की आज्ञा प्राप्त कर रात्रि को श्मशान भूमि में जाकर अपने कर्मों की निर्जरा हेतु ध्यान में खड़े हो गए। उधर सोमिल ब्राह्मण ने, जिसकी कन्या के साथ श्रीकृष्ण ने गजसुकुमाल का सम्बन्ध तय कर दिया था, गजसुकुमाल को मुनि वेष में ध्यानस्थ खड़े देखा तो उसका पूर्व भव का बैर जाग उठा। उसने गीली मिट्टी इकट्ठी की और मुनि गजसुकुमाल के सिर के चारों ओर लगाई। फिर वह श्मशान भूमि में से जहां जगह-जगह आग लग रही थी, वहां से दहकते अंगारे लाया तथा उन्हें गजसुकुमाल मुनि के मस्तिष्क पर बनी हुई मिट्टी के पाल के अन्दर डाल दिए। गजसुकुमाल मुनि ने परिस्थिति को भांप लिया। घोर परिषह में घिर कर भी वे जरा भी विचलित नहीं हुए, बल्कि और अधिक सजग हो गए। मृत्यु उनके For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारों ओर मण्डरा रही थी, लेकिन फिर भी उनके भाव उन्होंने अपने विचारों को नया निकृष्ट नहीं हुए । आयाम दिया । वे चिन्तन करने लगे । आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता का उन्हें ज्ञान था । चिन्तन ने नया मोड़ लिया । अहो ! मेरे संसार पक्षीय ससुर मेरी सहायता करने आए हैं । ये मेरे कर्मों की निर्जरा कराने के लिए मेरे हितैषी हैं। शायद इन कर्मों को काटने में न जाने कितना समय लगता, लेकिन धधकते अंगारे मेरे सिर पर डालकर इन्होंने मेरा विशेष उपकार किया है । यह मेरी परीक्षा की घड़ी है। इसमें मुझे उत्तीर्ण होना है । घोर कष्ट एवं मरणांतिक वेदना के समय भी वे समता भाव में रहे। कुछ ही क्षणों में उनका सिर अग्नि पर रखी हुई खिचड़ी की तरह फदफद करने लगा । भावों के उच्चतम रसायन के कारण कुछ ही क्षणों में उन्होंने अपने सारे कर्मों को क्षय कर लिया और केवलज्ञान प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से सदासदा के लिए मुक्त हो गए । बाल मरण 1 जीवन में बिना तैयारी के बिना धम - पालन के दुःखित - पीड़ित होते हुए जो मरता है, उसकी मृत्यु बाल मरण है । बाल मरण का अर्थ है विवेकहीन होकर हायहाय करते हुए, खेद, पश्चाताप, दुःख, शोक और विकलता For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से आर्त ध्यान करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना । वाल मरण वाले का अन्तिम समय मोह-माया में उलझा हुआ और दयनीय बन जाता है। जिसने जिंदगी में कोई सत्कार्य नहीं किया, केवल पाप-कार्यों में ही रचा-पचा रहा, महारम्भ और महापरिग्रह में ही डूबा रहा, निश्चित ही उसकी मृत्यु भयावह और दुःखद होती है। बाल मरण का मुख्य कारण मृत्यु की पूर्व तैयारी का अभाव है। इसके अलावा भोगों के प्रति जो आसक्ति होती है, वह मृत्यु पर्यन्त दूर नहीं होती। फल स्वरूप वह अत्यन्त दुःखी रहता है और उन भोगों के वियोग के दुःख को सहन नहीं कर पाता। वह मेरा-मेरा करते संसार में इतना लिप्त हो जाता है कि मृत्यु की तो कल्पना भी नहीं करता। वह राग-द्वेष की प्रगाढ़ ग्रन्थियों से जकड़ा रहता है। वह काम-भोगों में रचा-पचा रहकर अत्यन्त क्रूर कार्य करने लग जाता है। अतः मनोभावना शुद्ध नहीं हो पाती तथा दुःख रूप मृत्यु को प्राप्त करता है। क्रोध में, सफलता हासिल न होने पर दुःखी होकर आवेश में आकर आत्महत्या करना बाल मरण है। क्रोधी व्यक्ति सत-असत्, विवेक से विकल, कर्त्तव्यअकर्त्तव्य से बेभान एवं मर्यादाओं का अतिक्रमण कर जाता है। उसके हृदय में स्नेह एवं प्रेम-धारा सूख जाती है। सहानुभूति एवं सहयोग की प्रवृत्ति भी दब For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाती है। उसकी सारी प्रवृत्तियाँ पागलों की तरह होती हैं। पागल किसी भी कार्य को करने की सूझ-बूझ नहीं रखता। ऐसी अवस्था में मृत्यु पाने वाला अपनी गति बिगाड़ देता है क्योंकि मरते समय उसके विचार शुद्ध नहीं होते। क्रोध से पीड़ित व्यक्ति कभी-कभी आग में कूदकर, रेल के नीचे आकर, समुद्र, तालाब के पानी में डूबकर किसी पहाड़ी की चोटी से गिरकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर देता है। अतः ऐसा मरण या आत्महत्या नादानगी में की जाती है जो निंदनीय है । आचार्यों ने बाल मरण १२ प्रकार का बतलाया है १. भूख और प्यास से छटपटाते मरना। २. इन्द्रियों के वशीभूत होकर दुःखी मरण । ३. शरीर में बाण, गोली, तीर आदि लगने से मृत्यु। ४. पवंत अथवा किसी ऊँचाई से गिरकर मरना। ५. अग्नि में कूदकर अथवा घासलेट आदि डालकर जलना। ६. जहर आदि विषैली चीजें खाकर मरना। ७. वृक्ष से गिरकर मरना । ८. पानी में डूबकर मरना। ९. गले में फांसी लगाकर मरना। १०. जंगली जानवरों का शिकार होकर मरना। For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. शल्य चिकित्सा में मरना । १२. नीच भावों में मरना । २१ पण्डित मरण और मृत्यु- महोत्सव भगवान महावीर ने मृत्यु को बुरा नहीं कहा । मृत्यु से भयभीत होना अज्ञान का फल है । मृत्यु कोई विकराल दैत्य नहीं है । मृत्यु मनुष्य का मित्र है । भगवान महावीर ने 'मृत्यु विज्ञान' का विशद विवेचन किया है । इन्द्रियाधीन, कषायाधीन, शोकाधीन, मोहाधीन होकर मृत्यु को प्राप्त करना उन्होंने ऐसा बताया जैसे किसी गृद्ध, वाज आदि ने किसी निरीह पशु को नोचदबोच लिया हो और उसे अपना ग्रास बना लिया है । समाधि मरण को उन्होंने श्रेष्ठ मरण बताया है । संन्यासपूर्वक और प्रभु स्मरण करते हुए मरना ही समाधि मरण आदि नामों से पुकारा जाता है । पण्डित मरण अथवा संथारा अंगीकार करने वाला साधक सब प्रकार की मोह-ममता को दूर करके शुद्ध आत्म-स्वरूप के चिन्तन में लीन होकर समय गुजारता है । वह संसार के सुखों की कामना, परलोक के सुखों की इच्छा, प्रतिष्ठा देखकर अधिक जीने की इच्छा, भूखप्यास रोग जनित व्याधि से घबरा कर जल्दी मरने की इच्छा तथा इन्द्रियों से भोगों की आकांक्षा नहीं करता । For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ वह आत्म-भाव में रमण करता है तथा सभी जीवों से मैत्री भाव और उनकी मंगल कामना करता है। संथारा अथवा समाधि मरण का पच्चक्खाण करने से पहले साधक ८४ लाख जीव योनि से क्षमायाचना करता है एवं अपने आपको शुद्ध एवं सरल बनाता है। तत्पश्चात् साधक जो प्रतिज्ञा या संकल्प धारण करता है, उसके भाव इस प्रकार होते हैं हे प्रभु ! जीवन के अन्तिम समय में मृत्यु पर्यन्त संलेखना का सेवन करता हूँ। मैं सभी प्रकार की हिंसा झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का तथा क्रोध, मान, माया, लोभ से मिथ्यादर्शन शल्य तक १८ पापों का, सभी अकरणीय कार्यों का यावज्जीवन तीन करण, तीन योग से त्याग करता हूँ। इन अठारह पापों का त्याग करके मैं यावज्जीवन तीनों अथवा चारों आहारों का त्याग करता है। इसके अलावा मैं अपने शरीर का भी त्याग करता हूँ जो शरीर मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, अनुकूल एवं प्रिय है। मैंने सदा ध्यान रखा कि इस शरीर को भूख, प्यास, रोग आदि कोई कष्ट न हो, उस शरीर पर भी ममत्व भाव का त्याग करता हूँ। कितना मंगलमय एवं पवित्र मरण है यह, जिसे साधक सहर्ष स्वीकार करता है इसलिये इस प्रकार के समाधि मरण को 'मृत्यु-महोत्सव' की भाव पूर्ण संज्ञा दी For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गई है। भगवान महावीर ने अपने अन्तिम समय में देशना देते हुए देह का त्याग किया। उनका मुत्यु-महोत्सव नौ मल्लवी, नौ लिच्छवी, काशी-कौशल देश के अठारह गण राजाओं ने मनाया । देवताओं ने रत्नों के दीपक जलाकर प्रकाश किया । देवताओं के गमनागमन से भूमंडल आलोकित हो गया। तीर्थंकरों के निर्वाण दिवस को मृत्यु कल्याणक दिवस कहते हैं और आज भी इसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति से निर्वाण कल्याणक के रूप में मनाते हैं। जो साधना में जागरूक हैं तथा मृत्यु को सदैव स्मरण रखते हैं, उनके परिणाम आसक्ति और शोक से रहित हो जाते हैं। उनके लिए मृत्यु का अवसर मृत्यु महोत्सव के रूप में परिणत हो जाता है। उनकी अन्तरात्मा यही कहती है जिस मरण से जग डरे, मेरे मन आनन्द । मरने ही ते पाइये, पूरन परमान्द ।। -संत कबीर जिस मृत्यु का नाम सुनकर सम्पूर्ण संसार भयभीत होता है, उसकी कल्पना से मुझे बड़ा आनन्द मिलता है। कब वह शुभ दिन होगा, जबकि मैं भी मरूँगा और एक अखण्ड' प्रानन्दमय बह्म को प्राप्त करूँगा। पंडित मरण ५ प्रकार का होता है : For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पादोपगमन-इसमें आत्मा वृक्ष की भांति स्थिर रहती हैं और सामायिक, ध्यान आदि साधनाओं में समाधिस्थ होती है। २. भक्त प्रत्याख्यान-इसमें तीन अथवा चार प्रकार के आहार का परित्याग किया जाता है। इसे संथारा और संलेखना भी कहा जाता है। संथारा में विवेकपूर्वक देह और कषाय को कृश किया जाता है। इसे समाधि भी कहते हैं। ३ इङ्गिनीमरण-यावज्जीवन चारों आहारों के त्याग के बाद निश्चित स्थान में हिलने-डुलने का आगार रखकर जो मृत्यु होती है, उसे इङ्गिनीमरण कहते हैं। इङ्गिनीमरण वाला अपने स्थान को छोड़कर नहीं जाता। वह दूसरों से अपनी सेवा नहीं करवाता। . ४. केवलीमरण-केवलीमरण, केवलज्ञान होने के बाद मरने पर होता है। ५. छद्मस्थ मरण-केवलज्ञान बिना प्राप्त किये छद्मस्थावस्था में ही मृत्यु हो जाना छमस्थ मरण है। पण्डित मरण ज्ञानी जीव का होता है जो मृत्यु को मित्र मानकर उससे मिलने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। मृत्यु उनके लिए विषाद का कारण नहीं होती। इसलिए वे मृत्यु को और उसके पश्चात् के जीवन को For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ अधिकाधिक सुन्दर और सुखद बनाने का प्रयत्न करते हैं। इसके लिए पण्डित मरण या समाधि मरण आवश्यक है। कहा भी हैएगम्मि भव ग्राहणे, समाधि मरणेण जो मइदिजीवो । ण हु हिंडदि बहुसो, सतठे भवे पमोत्तूण ।। अर्थात् एक भव में जो जीव समाधि मरण पूर्वक त्याग करता है, वह सात-आठ भवों से अधिक काल तक संसार में भ्रमण नहीं करता। मत्यु के समय निकट के सम्बन्धी एवं इष्ट मित्रों की जिम्मेदारियाँ कभी-कभी व्यक्ति लम्बी बीमारी के दौर से गुजरता है, इससे उसके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे निरन्तर गिरावट आती है। बीमार व्यक्ति स्वयं यह महसूस करने लगता है कि अब वह वापस स्वस्थ न हो सकेगा और उसका काल निकट है। ऐसी परिस्थिति में जो ज्ञानी हैं, जागरूक हैं, वे सही स्थिति का अन्दाजा कर लेते हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों से हल्के हो जाते हैं। परिग्रह का जो बोझ है, उसे भी वे अपने सम्बन्धियों या शुभ कार्यों में खर्च कर, हल्के हो जाते हैं। सभी से क्षमायाचना कर लेते हैं और मन को निशल्य कर लेते हैं। प्रभु-स्मरणमें तल्लीन रहते हैं। यद्यपि शरीर की जर्जर अवस्था तथा रोगों के आक्रमण के कारण उन्हें भयंकर कष्ट होता है लेकिन For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेद विज्ञान (शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं) की जानकारी होने से वे उन्हें समता भाव से सहन करते हैं तथा अपने पापों की आलोचना और कर्मों की निर्जरा करते हैं। जितना-जितना कषायों को क्षीण करते हैं तथा मोह राजा को जोतते हैं, उतने-उतने अंशों में गुणस्थानों की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं। वास्तव में यह पण्डित मरण की भूमिका का स्वरूप है। जब उन्हें यह पक्का विश्वास हो जाता है कि अब उनका जीवन कुछ ही दिनों एवं घंटों का है, तब उनका संकल्प मजबूत हो जाता है, वे संथारे का पच्चक्खाण कर लेते हैं तथा पण्डित मरण को अंगीकार करते हैं। लेकिन ऐसी परिस्थिति विरले भाग्यवान पुरुषों को ही मिलती है। प्रायः यह देखा जाता है कि जब व्यक्ति अन्तिम घड़ियां गिन रहा होता है, उस समय उसे ऐसे वातावरण में रखा जाता है, जहाँ पर उसके सगे-सम्बन्धी भी नहीं जा सकते । डाक्टरों की देख-रेख में उसे इन्टेनसिव केअर यूनिट में रखा जाता है। वहाँ न तो उसे बोलने दिया जाता है और न ही किसी से मिलने दिया जाता है। अपने अन्दर को व्यथा वह अन्दर ही अन्दर लेकर सदा के लिए चला जाता है। __ मृत्यु के समय पारिवारिकजनों एवं इष्ट मित्रों की विशेष जिम्मेदारियाँ हैं। मृत्यु के समय वह व्यक्ति For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ इतना निर्बल हो जाता है कि कुछ भी सहन नहीं कर सकता । ऐसे समय में उसके समक्ष रोते हुए बातें करना, दबी जबान से बोलना, दुःखी को और दुःखी करना है। उसमें हिम्मत जाग्रत करें, उसके भावों में सबलता लाएँ। उसे डिगाएँ नहीं। उसे उसकी स्थिति का भान कराते हुए, प्रभु-स्मरण में तल्लीन रहने की प्रेरणा करें। संसार की असारता एवं आत्मा की अमरता का सन्देश सुनाएँ ताकि उसका अज्ञान दूर हो जाए एवं शारीरिक वेदनाएँ वह समता भाव से सहन कर सके। जाप, भजन, सामूहिक प्रार्थना आदि आयोजन कर वैराग्यमय वातावरण तैयार करें। यदि उस व्यक्ति ने कुछ संकल्प ले रखे हों तो उन्हें दृढ़ता से पालन करने का साहस बढ़ावें । यदि डाक्टरों के परामर्श से अथवा ऐसा आभास होने लगे कि बीमार व्यक्ति कुछ ही घंटों का मेहमान है तो उसे सचेत करें एवं त्याग मार्ग की ओर बढ़ने की प्रेरणा करें। यदि वह व्यक्ति स्वेच्छा से किसी त्याग मार्ग के संकल्प की अथवा संथारे की भावना जाहिर करता हो तो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देखते हुए शीघ्र निर्णय लें, लेकिन किसी भी परिस्थिति में उसे डिगाएँ नहीं। यदि आसपास में संत-मुनिराज विराजते हों, तो उनके दर्शनों का लाभ उसे अवश्य दिलवाएँ तथा उनसे पच्चक्खाण वगैरा अवश्य करवाएँ तथा मांगलिक सुनवाएँ । आस-पास मौजूद व्यक्तियों की जरासी सूझबूझ से मरने वाले व्यक्ति का मृत्यु मंगलमय बन सकती है। For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ हमें यह पक्का विश्वास होना चाहिए कि जीवन की आयु का न तो एक क्षण घटाया जा सकता है और न ही बढ़ाया जा सकता है। इसलिए बार-बार हमें यह कहा जाता है कि भगवान महावीर का निर्वाण का समय निकट जानकर इन्द्र भगवान के समक्ष उपस्थित हो प्रार्थना करने लगा- "हे प्रभु ! आपके जन्मकाल में जो उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र था, उस पर इस समय भस्मक ग्रह संक्रान्त होने वाला है जो कि जन्म-नक्षत्र पर दो हजार वर्ष तक रहेगा। अतः उसके संक्रमण काल तक आप आयु को बढ़ालें तो वह निष्फल हो जायेगा।" भगवान ने कहा- इन्द्र ! आयु के घटाने-बढ़ाने की किसी में शक्ति नहीं है। ग्रह तो केवल आगामी काल में शासन की जो गति होने वाली है, उसके दिग्दर्शक मात्र हैं। जब हम भगवान की वाणी को पूर्ण रूप से हृदयंगम कर लेंगे, तब हमें मृत्यु का भय कभी नहीं महसूस होगा। मृत्यु और प्रचलित कुप्रथाएं मृत्यु आने पर वह व्यक्ति तो सबको छोड़कर चला जाता है। उसे परिवार से अथवा समाज से अब कोई लेना-देना नहीं है लेकिन मरने वालों के पीछे आज समाज For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में कुछ ऐसो प्रथाएँ चल गई हैं जिनका आज के युग में कोई महत्त्व नहीं है। १. पत्नी का बन्द कमरे के कोने में बैठना : पति की मृत्यु का यदि सबसे अधिक दुःख किसी को होता है तो उसकी पत्नी को होता है । यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि उसके जीवन का साया ही उठ जाता है। एक ओर पति की मृत्यु के कारण वह दुःखी है, दूसरी ओर कई महिनों तक बन्द कमरे के एक किनारे कोने में उसे बैठाना, कितना दुखद है। न खाने का समय है, न ही आवश्यक कार्यों का । जब देखो, मिलने वालों का जमघट लगा रहता है। दुःखी को और दुःखी करना कौनसी बुद्धिमानी है ? दुःख के समय मिलने आने वाले लोगों का कर्तव्य है कि वे समय का ख्याल रखें। वे ऐसी कोई चर्चा नहीं करें, जिससे दुःख और बढ़े। माहौल को बदलना चाहिए । धार्मिक एवं वैराग्यमय चर्चाएँ हों। जीवन में सद्गुणों का विकास करने वाली कथाएँ कही जाएँ। ऐसे प्रसंगों पर अच्छा तो यह होगा कि बैठक में कुछ मालाएँ रख दी जाएँ और आने वाले प्रत्येक को अपने-अपने इष्ट देवों का स्मरण करने को कहा जाए। अच्छे वैराग्यपूर्ण भजन के कैसेट भी टेप रिकार्ड से चलाने चाहिए। स्वाध्याय की छोटी-छोटी पुस्तकें जो For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन की क्षणभंगुरता, आत्मा की अमरता, मृत्युचिन्तन, पण्डित मरण आदि विषयों पर लिखी गई हों, रखी जा सकती हैं जिससे समय प्रमाद में नष्ट नहीं होगा और सही जीवन जीने की दृष्टि मिलेगी। २. पल्ला प्रथा : आज भी कई परिवारों में विशेषतः गांवों में यह प्रथा प्रचलित है। घर में किसी की मृत्यु होने पर दुःख होना स्वाभाविक है लेकिन जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर रोना ताकि आस-पड़ोस के लोगों को मालूम पड़े तथा मिलने आने वाले सम्बन्धियों को यह अहसास हो जाय कि ये बहत दुःखी हुए हैं। कभी-कभी तो ऐसा देखने में भी आता है कि आँखा में एक भी आँसू की बन्द नहीं होती, फिर भी चिल्लाए जा रहे हैं। यह केवल एक कुप्रथा का पोषण है। पल्ला प्रथा का यह माहौल कई दिनों तक चलता है। इस प्रथा को बढ़ावा देने वाले और कोई नहीं, बल्कि उनके निकट के सम्बन्धी ही होते हैं। मरने के बाद, जब एक सम्बन्धी किसी अन्य गांव या शहर से मिलने आता है तो गली के चौराहे या नुक्कड़ से ही जोरों से चिल्ला-चिल्लाकर दुःख प्रकट करता हुआ आता है, ताकि उसकी सूचना उस परिवार के अन्य सदस्यों को मिल जावे। बस, फिर घर की सारी औरतें चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगती हैं। क्या For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही दुःख प्रकट करने का या सान्त्वना देने का तरीका है ? चिन्तनशील समाज का कर्तव्य है, ऐसी प्रथाओं का समूल विनाश करे। ३. मृत्यु-भोज : यह आज की कैसी विडम्बना है कि मृत्यु होने पर मालमसाले उड़ाये जाएँ। घर में शोक का मातम छाया रहता है और दूसरी ओर शोक-मिलन अथवा स्वामी-वत्सल का नाम लेकर सैकड़ों, हजारों व्यक्तियों के भोज का आयोजन करना तथा उन्हें खिलानापिलाना ? अपने इष्ट मित्रों, परिवार तथा सम्बन्धियों को खिलाने-पिलाने के कई अवसर आते हैं, जिनमें उनको आमन्त्रित किया जा सकता है। इस प्रथा का सबसे बुरा असर सामान्य आय वाले गरीब परिवारों पर पड़ता है। आज हमारे देश में करोड़ों ऐसे परिवार हैं जो गरीबी के नोचे की रेखा में अपना जीवनयापन करते हैं लेकिन वे भी अपने परिवार के मुखिया का मृत्यु भोज तो अवश्य आयोजित करेंगे। उनको इस आयोजन के लिए अपने जमीन, जायदाद, गहने, बर्तन वगैरा तक धरोहर के रूप में रखने पड़ते हैं। एक बार ब्याज के बोझ से दबने के बाद जीवन भर यह बोझा ढोते रहते हैं और कर्जदार बने रहते हैं । इस प्रकार एक ओर उन परिवारों को For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपने परिवार के मुखिया की मृत्यु का दुःख है, तो दूसरी ओर अपनी इज्जत रखने को चिंता । जागरूक समाज का कर्तव्य है कि वह ऐसे मृत्यु भोज के प्रसंग को बढ़ावा न दे । जो परिवार मृत्य भोज का आयोजन करते हों, उन्हें समझाया जाए। फिर भी यदि कोई परिवार ऐसा आयोजन करे तो सामूहिक रूप से उसमें शामिल न हों, ताकि भविष्य में अन्य परिवार इसे स्वतः ही आयोजित नहीं करेंगे। सम्पन्न परिवारों को चाहिए कि वे अपनी धन राशि शुभ कार्यों में खर्च करें। यदि कोई बड़ी राशि खर्च करने को भावना हो तो मृतक व्यक्ति के नाम का परिवार में ट्रस्ट बनालें एवं उसका सहो विनियोग कर उससे अजित आय को शुभ कार्यों में खर्च करें। ऐसा करने से परिवार में दान का प्रवाह सदैव चालू रहेगा एवं मृतक आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, उसका नाम सदैव जीवित रहेगा। ४. सती प्रथा : सती प्रथा की आजकल बहत चर्चा है । आज भी कहीं-कहीं अपने पति के पीछे उसकी अर्थी के साथ बैठकर पत्नियों की जलने की घटनाएँ सुनने व समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं । यद्यपि सरकार ने इसके विरुद्ध कई For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कानून बनाए हैं, जिससे कोई भी पत्नो सता न हो। समाज में भी सती प्रथा के विरुद्ध काफी चेतना आई है। जब कभी किसी पत्नी का जीवन साथी मौत का शिकार हो जाता है तो पत्नी पर दुःख का पहाड़ आ गिरता है। उसकी विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है, उसे अपना जीवन निकृष्ट लगने लगता है और कभी-कभी तो आवेश में आकर वह स्वयं भी अपनी जीवन-लीला समाप्त करने के लिए तैयार हो जाती है। ऐसे समय में उसके निकट के सम्बन्धी या पास रहने वाले व्यक्तियों की विशेष जिम्मेवारी है। वे उस बहन को समझाएँ एवं सांत्वना दें। उसे अकेला नहीं छोड़ें। आवेश में आकर अपनी सूझ-बूझ खोना तथा मौत को धारण करना बाल मरण है, जो भावी जीवन को बिगाड़ता है। आज हम इक्कीसवी शताब्दी की ओर बढ़ रहे हैं, वैज्ञानिक युग में जा रहे हैं, लेकिन फिर भी उन प्रथाओं का पोषण कर रहे हैं जिनका आज के युग में कोई औचित्य नहीं है। समय के अनुसार हम बदलें अन्यथा समय हमें बदल देगा। बुद्धिमान वही है जो समय के प्रवाह को जानता है और उसके अनुरूप बदलता है। __ मृत्यु विषय पर विविध प्रकार से चिन्तन करने के पश्चात् हम अपना मानस इस प्रकार का बनायें कि मृत्यु का सामना हँसते-हँसते करें। हर समय उसके For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ स्वागत के लिए तैयार रहें। एक अच्छे ईश्वर भक्त आदमी से जब उसकी अन्तिम बीमारी में पूछा गया कि क्या वह मृत्यु का अनुभव कर रहा है ? तो उसने उत्तर दिया कि-'मित्र, मैं जीवित रहँगा या नहीं इसकी मुझको चिन्ता नहीं है क्योंकि यदि मैं बच गया तो मैं परमात्मा के साथ रहँगा और यदि मैं मर गया तो परमात्मा मेरे साथ रहेगा। अच्छे. आदमी नहीं मरते अपितु बुरे व्यक्ति ही मरते हैं। अच्छे व्यक्ति मरने पर धूल में से उठकर यश के सोपान पर पैर रखते हैं। अच्छे व्यक्ति संत कवि । तुलसीदासजी की इन पंक्तियों को सदा स्मरण रखते हैं"जब मेरा जन्म हुआ, तब मैं रोया तथा दूसरे हँसे थे। अब ऐसा जीवनयापन करूँ कि मृत्यु के समय मैं हँसू और दूसरे रोएँ।" ठीक इन्हीं भावों को दूसरे रूप में बंगाल की प्रचलित एक कहावत में इस प्रकार कहा गया है'यदि ठीक ठोक मरना जानो तो समझना कि तुम्हारा साधन-भजन भी ठीक-ठीक हुआ है।" मृत्यु जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को अमंगल एवं अशुभ कहकर न टाला जाय, बल्कि उसके सम्यक् चिन्तन की आवश्यकता है। यदि इसका सही चिन्तन तथा मनन किया जाए तो उससे मिलने वाले नवनीत से अवश्य ही हमारे जीवन को एक नई दिशा और ज्योति मिलेगी और हम मानव-जीवन को सफल कर सकेंगे। और अन्त में यह कविता, इसके भावों को आप हृदयंगम करें For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ) मृत्यु का भय है भयंकर, क्यों न उसे तुम तजते हो ? मरना ही निश्चित है तो फिर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डर-डर कर क्यों मरते हो ? ( २ ) मृत्यु से जो भय खाते हैं, रोज मरा वे करते हैं । जो निडर होकर जीते हैं, वे मरकर भी जीवित रहते || ( ३ ) मृत्यु सहज है, स्वाभाविक है, वह है जीवन का परिवर्तन । परिवर्तन से भय वह खाता, जो स्वभेद को नहीं जानता ॥ ( ४ ) मृत्यु अमरता का प्रवेश द्वार है, परमानन्द की सीढ़ी है । शोक करो नहीं, मृत्यु आने पर, ३५ और न करो मृत्यु की अभिलाषा । । For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्यु मंगलमय बन जाती, जब जीवन में समता आए । दिव्य ज्ञान की ज्योति प्रकटे, राग-द्वेष से नाता छूटे । मृत्यु जीवन का नवनीत है, जीवन का वह दर्पण है । उसको पाये बिना न मिलता, शिवपद का अनुपम आनन्द ।। मृत्यु जीवन की स्वर्णिम बेला, सहर्ष उसे अपनाएँ हम । राग-द्वेष से सम्बन्ध तजकर, समता को जीवन में लाएँ । For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टैक्ट साहित्य सदस्यता सूची-२२ १०१ रुपया प्रत्येक ९४३. श्री हीरालाल रामपुरिया, रायपुर ९४४. ,, पुखराज सुभाषचन्द, कवर्धा (म०प्र०) ९४५. ,, मनोज कुमार मेहता, मद्रास ९४६. ,, भंवरलाल समदड़िया, मद्रास ९४७. ,, गणेशलाल डांगी, रेलमगरा (उदयपुर) ९४८. मैसर्स-श्रीमल साकरचन्द, नन्दूरबार (महाराष्ट्र) ९४९. श्री वर्धमान जैन स्वाध्याय संघ, समदड़ी ९५०. ,, बाबूलाल एम० सुराना, बम्बई ५१. ,, जैनरत्न हितैषी श्रावक संघ, पावटा, जोधपुर ९५२. ,, सरदार उच्च माध्यमिक विद्यालय, जोधपुर ९५३. ,, अ०भा० जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, घोड़ों का चौक, जोधपुर ९५४. ,, जौहरीलाल पारख, निदेशक, सेवा मन्दिर, रावटी, जोधपुर ९५५. , नेमीचन्द जैन "भावुक', जोधपुर ९५६. ,, लालचन्द पूनमचन्द मूथा, ब्यावर ९५७. ,, भंवरलाल चोपड़ा, जावद १८. ,, मनोहरलाल जैन (खींदाबत), पीपलिया मण्डी ९५९. ,, जसवन्तसिंह मेहता, उदयपुर ९६०. , जसराज विजयलाल कोटडिया, कोंडा गांव (बस्तर) ९६१. , बसन्तीलाल सरूपरिया, चित्तौड़गढ़ For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६२. ,, तिलोकचन्द उत्तमचन्द बोरा, पारगांव (महाराष्ट्र) ९६३. ,, हिम्मतसिंह बाबेल, उदयपुर ९६४. ,, भूरालाल जवानमल, नवसारी (गुजरात) ९६५. ,, सोहनलाल कवाड़, जोधपुर ९६६. ,, गजेन्द्र बोडाना, इन्दौर ९६७. , नरेन्द्रमल सुराणा, जोधपुर ९६८. ,, अशोक छाजेड़, आबू रोड़ ९६९. ,, किशोर शाह, अहमदाबाद ९७०. ,, लालचन्द इन्दरचन्द बाफना, नेवरिया (राज.) ९७१. ,, पारसमल बिरदीचन्द कुचेरिया, धुलिया ९७२. ,, गौतमराज सुराना, मद्रास ९७३. ,, बाबुलाल बागमार, मालेगांव ९७४. एम. के. इन्जीनियर्स, ब्यावर ९७५. शाह दीपचन्द लक्ष्मीचन्द, बंगलौर ९७६. सी. हस्तीमल इन्दरचन्द जैन, बंगलौर ९७७. श्री सिरेमल किरनकुमार मरलेचा, बंगलौर ९७८. एच. बाबूलाल भण्डारी, बंगलौर ९७९. बी. प्रकाशचन्द जैन, बंगलौर ९८०. जे. पारसमल माणकचन्द कोठारी, बंगलौर ९८१. पी. शान्तिलाल खारीवाल, बंगलौर ९८२. श्री पदमचन्द बम्ब, बंगलौर ९८३. ,, शान्तिलाल अशोककुमार चौरड़िया, बंगलौर ९८४. जे.किस्तूरचन्द, बंगलौर ९८५. एच. नवरतनमल जैन, बंगलौर (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस शृंखला में अब तक प्रकाशित पुस्तकों की सूची : प्रत्येक का मूल्य दो रुपया १. चरित्र निर्माण और नारो-डॉ. शान्ता भानावत २. जैन धर्म : जीवन धर्म-कन्हैयालाल लोढ़ा ३. सुखी जीवन कैसे जिएँ-डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया ४. स्वाध्याय-आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ५. जैन परम्परा के अनुष्ठान–चाँदमल कर्णावट ६. श्रावक धर्म-कन्हैयालाल दक ७. धर्म और हम-डॉ. इन्दरराज बैद ८. भक्तामर स्तोत्र-कन्हैयालाल दक ६. सामायिक-आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. १०. सेवा करें : सुखी रहें-कन्हैयालाल लोढ़ा ११. जैन साधना में तप-सुभाष मुनि 'सुमन' १२. ध्यान-साधना-डॉ० शिव मूनि । १३. अपरिग्रह की प्रासंगिकता-डॉ. दयानन्द भार्गव १४. शाकाहार उत्तम ख्यों ?-डा. उम्मेदमल मुनोत १५. अहिंसा की कथाएँ-डॉ. प्रेमसुमन जैन १६. जोवन-मूल्य-डॉ. नरेन्द्र भानावत १७. तनावों से मुक्ति-सज्जनसिंह मेहता 'साथी' १८. गणधर इन्द्रभूति गौतम-अजित मुनि १९. समता का व्यावहारिक दर्शन-आचार्य श्री नानेश २०. पर्यावरण और धर्म-डॉ. प्रेमसुमन जैन २१. दूहा सतक-डॉ. नरेन्द्र भानावत २२. प्रेरक प्रसंग-राजकुमार जैन २३. वक्तृत्व-कला-कन्हैयालाल लोढ़ा २४. कर्म सिद्धान्त-कन्हैयालाल लोढ़ा For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mr Or mmm २५. अपनी पहचान-सुन्दरलाल बी. मल्हारा २६. इन्द्रिय से अतीन्द्रिय की ओर-आचार्य श्री नानेश २७. आधुनिक जीवन और अहिंसा-डॉ. प्रचण्डिया २८. क्षमा-पी. एम. चौरडिया २९. अहोभाग्य है मेरा-डॉ. इन्दरराज बैद ३०. करुणा की किरणें हीरालाल गाँधी 'निर्मल' ३१. क्षमासागर महावीर-सुन्दरलाल बी. मल्हारा ३२. कषाय-विजय-सम्पतराज डोसी ३३. विचार-वल्लरी-डॉ. नरेन्द्र भानावत ३४. जैन दीक्षा-कन्हैयालाल दक ३५. बाल-दर्शन : बाल महिमा-गिजु भाई ३६. जिन वचनामृत-चाँदमल कर्णावट ३७. योग-विज्ञान–डॉ. नरेन्द्र शर्मा 'कुसुम' ३८. विनयचन्द चौबीसी-नथमल लूणिया ३९. शील की कथाएँ–सरोज जैन । ४०. पर्युषण और दस लक्षण धर्म -तेजकरण डण्डिया ४१. साधना-स्वरूप-विधि-फूलचन्द मेहता ४२. मुक्तकमाला-चन्दनमल 'चाँद' ४३. सागर के पार-श्री गणेश मूनि शास्त्री ४४. जैन आगम साहित्य-उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि ४५. पच्चक्खाण : क्यों और कैसे ? –चाँदमल कर्णावट ४६. जैन समाज की एकता कन्हैयालाल दक ४७. चिन्तन-प्रसंग-डॉ. महावीर राज गेलड़ा ४८. दर्शन के क्षणों में--सुन्दरलाल बी. मल्हारा ४६. पथ-दीपिकाएं-गुलाबचन्द जैन ५०. मृत्यु-चिन्तन-पी. एम. चौरड़िया स्त्रिा For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञान प्रसार पुस्तकमाला के प्रचार-प्रसार में इस प्रकार सहयोगी बनें 0 १०१ रुपये देकर स्वयं सदस्य बनें और १०८ पुस्तकें प्राप्त करें। प्रत्येक माह औसतन एक पुस्तक का प्रकाशन । अपनी ओर से सार्वजनिक पुस्तकालयों, स्कूलों, धार्मिक पाठशालाओं, जैन स्थानकों, मन्दिरों, स्वाध्याय संघों को सदस्य बनाकर पुस्तकें भिजवायें । पुस्तकें हम आपके नाम की मोहर लगाकर परिषद् के डाक व्यय पर सम्बन्धित पुस्तकालयों व संस्थाओं को नियमित भिजवाते रहेंगे। - तपस्या, जयन्ती, पुण्यतिथि, विवाह, पर्वतिथियों व विशेष शुभ अवसरों पर प्रभावना के रूप में अधिक से अधिक पुस्तकें वितरित करें। १०० और उससे अधिक पुस्तकें मंगाने पर २५% कमीशन दिया जायेगा। २५०० रुपये, प्रति पुस्तक के प्रकाशन में अर्थ सहयोग प्रदान कर तथा तीसरे कवर पृष्ठ के लिए विज्ञापन देकर श्रुत-सेवा का लाभ उठावें। राशि मनिआर्डर या ड्राफ्ट से 'श्री अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद्' के नाम सी-२३५ ए, तिलकनगर, जयपुर-३०२००४ के पते पर भेजें। For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जा Flo श्री पी. एम. चौरड़िया प्रस्तुत पुस्तक के लेखक श्री पी. एम. चौरडिया का जन्म 17 अगस्त, 1939 को जोधपुर में हआ। वर्तमान में आप मद्रास में चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट के रूप में 'पी. एम. चौरडिया एण्ड कम्पनी' के संचालक हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में आपकी प्रारम्भ से ही विशेष रुचि रही है। आप वरिष्ठ स्वाध्यायी हैं। और गत कई वर्षों से पर्यषण के दिनों में देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आपका धामिक शास्त्रीय ज्ञान गहरा है और जीवन में उसे उतारने का बराबर आपका प्रयत्न रहता है। आपका जीवन सरल, सादा और विचार उच्च हैं। मद्रास की कई धामिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक कला संस्थाओं के आप पदाधिकारी एवं सक्रिय सदस्य हैं। आप अच्छे बक्ता, कुशल लेखक और उदार हृदय समाजसेवी हैं। मद्रास में 'प्रश्नमंच कार्यक्रम का शुभारम्भ कर आपने यूवापीढ़ी में धार्मिक नैतिक शिक्षण एवं जीवनमूल्यों के निमो Serving JinShasan to विविध पक्षों पर चिन्तन का दया है कि मृत्यु जीवन का अन्त020773 श-द्वार है अतः इससे भयभीत , gyanmandir@kobatirth.org समता-भाव में रमण करते हुए इसका स्वागत करना चाहिए। मृत्युसुधार ही जीवन-सूधार है। कोबा, For Private and Personal Use Only