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सुकवि-माधुरी-माला-पंचम पुष्प
मिश्रबंधु-विनोद
अथवा
हिंदी साहित्य का इतिहास तथा कवि-कीर्तन
' लेखक
"मिश्रबंधु"
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४॥
उषा
साहित्य की सुंदर पुस्तकें बिहारी-रत्नाकर ) सौंदरनंद महाकाव्य ), ३) हिंदी-नवरत्न . ४॥), १) साहित्यालोचन देव और विहारी ॥), २)) सतसई-संजीवन भाष्य
१), २) (पद्मसिंह शर्मा पराग
॥"," काव्य-निर्णय na)
कालिदास और शेक्सभारत-गीत __ __ पीयर २), २॥) वात्मार्पण
मेघनाद-वध निबंध-निचय १), १m) भाषा-भूषण विश्व-साहित्य १॥), २): जायसी-ग्रंथावली भवभूति
॥2), 2) भूषण-ग्रंथावली वेणीसंहार
2), श्रालम-केति अद्भुत अालाप ), )
शिवसिंह-सरोज साहित्य-सुमन ), 2) व्रज-माधुरी-सार सौ अजान और एक काव्य-प्रभाकर
सुजान . १), १) | साहित्य-प्रभाकर प्राचीन पंडित और
सूक्ति-सरोवर कवि =), 2). विद्यापति की पदावली मतिराम-ग्रंथावली २१), ३) सूरसागर . साहित्य-संदर्भ
संक्षिप्त सूरसागर (द्विवेदीजी) १॥), २) हिंदी-काव्य में नवरस सुकवि-संकीर्तन ), ry | जरासंध-महाकाव्य । मिलने का पताप्रबंधक, गंगा-पुस्तकमाला-कार्यालय
२६-३०, अमीनाबाद-पार्क, लखनऊ
ECCEE UPeeCE EE
Page #3
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*AMMA
मिश्रबंधु-विनोद
अथवा
हिंदी-साहित्य का इतिहास तथा कवि-कीर्तन -1
(तृतीय भाग)
लेखक
गणेशविहारी मिश्र माननीय रा० ब० श्यामविहारी मिश्र एम० ए०
रा० ब० शुकदेवविहारी मिश्र बी० ए० "ते सुकृती रससिद्ध कबि बंदनीय जग माहिं ; जिनके सुजस-सरीर कहँ जरा-मरन-भय नाहिं ।"
प्रकाशक
गंगा-पुस्तकमाला-कार्यालय
२९-३०, अमीनाबाद पार्क .. लखनऊ .
द्वितीयावृत्ति । सजिल्द २७ } सं० १९८५ { सादी २) ।
Vacancy
Page #4
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प्रकाशक
श्रीदुलारेलाल भार्गव अध्यक्ष गंगा-पुस्तकमाला - कार्यालय
लखनऊ
मुद्रक श्रीदुलारेलाल भार्गव
अध्यक्ष गंगा- फाइन आर्ट प्रेस
लखनऊ
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विषय-सूची
अज्ञात-कालिक प्रकरण
पृष्ठ अध्याय ३१-अज्ञात काल
९५१-१०१३ कलस
१५१-६५२ खमनियाँ
१५२-६५२ व्रजमोहन
६५३-६५३ भवानीप्रसाद पाठक
१५३-१४ मनसा
१५४-६५४ राम कवि
१५४-१४ वहाब
१५४-६५५ सबलश्याम
१५५-६५५ इस अध्याय के शेष कविगण अचरतलाल नागर
१५५-६५६ अजीतसिंह
१५६-६५६ अनुरागीदास
६५६-६५६ ओंकार
६१८-६१८ पोरीलाल
६५८-९५८ उत्तमराम
६५६-६५६ ऋणदान चारण
१६०-१६० । कविमद पंडित
१६०-१६० करनेश
६६०-६६०
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पृष्ठ
१६१-६६१
१६२-६६२ १६२-६६२ ६६२-६६३ ६६३-६६३ १६४-६६४
करुणानिध कालिकाप्रसाद कालीदीन काशी क़ासिम किशोरीलाल राजा कुंजविहारी केशोदास कृष्णलाल वाकीपुर गजेंद्रशाह गुरुदीन गोपालसिंह गोपीचंद गंगाधर बुंदेलखंडी जयनारायण जैमलदास महाराजा टामसन टोडरमल्ल तस्वकुमार मुनि दयाकृष्ण देवराय देवीदत्त देवीदत्त राय देवीप्रसाद धरणीधर
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६६७-६६७ १६८-६६८ ६६८-६६८ १६१-६६६ १७३-६७३ . १७४-६७४ १७४-१७४ १७५-६७५
१७५-६७५
१७८-१७८
१७८-१७८
१७८-९७८ १७८-१७८
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नेही पलटू साहब पूरण मिश्र पृथ्वीनाथ प्रियादास केरन बाबा साहब नेपाल बालकृष्णदासजी वासुदेवलाल वाहिद विनायकलाल विहारीलाल
• पृष्ठ १८१-१८ १८३-१८३ १८३-१८३ १८४-१८४ १८४-९८४ ९८५-१८१ ཊིད༦-ཊིད༦ १८७-९८७
१८८-८८
དད་དད་ १८८-१८८ १८९-९८१
बिंदादत्त
१८९-९८६
९९०-९१०
-
६६२-११२ ९६२-६६२ १९४-११४ ६६५-६६५
वृंदावन ब्रह्मबिलास भड्डरी शाहाबाद भवन कवि मतिरामजी मीरन मिश्र मोहनदास रणछोड़जी रामजीमल्ल भट्ट रामबख्श उपनाम राम लोरिक मगही कवि
०
१९८-९९८
००-१००० १००१-१००१ १००५-१००५
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पृष्ठ श्रीधर स्वामी
..: १००६-१००६ सरूपदास
... १००८-१००८ हरिसिंह
... १०१२-१०१२ परिवर्तन-प्रकरण अध्याय ३२-परिवर्तन-कालिक हिंदी १०१४-१०२० अध्याय ३३-द्विजदेव-काल १०२०-१११४
महाराजा मानसिंह ... १०२०-१०२२ महाराजा विश्वनाथसिंह ... १०२२-१०२३ उमादास
२४-१०२४ जीवनलाल
२४-१०२५ शकर कवि
२६-१०२७ देव कवि काष्ठजिह्वा
१०२८-१०२८ किशोरदास
१०२६-१०२६ कृष्णानंद
२६ -१०३० गणेशप्रसाद
३०-१०३३ नवीन
१०३१-१०३३ ब्रजनाथ
३३-१०३४ माधव रीवा-निवासी
३५-१०३५ कासिम शाह
१०३५-१०३५ जानकीचरण
३५-१०३६ परमानंद
३६-१०३६ गिरिधरदास
३६-१०३७ पजनेस
३८-१०३६ सेवक
१०३१-१०४२
::::::::::::::::::
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ܝ
ܝ
१०४९
पृष्ठ प्रतापकुँवरि
१०४२-१०४३ महाराजा रघुराजसिंहजूदेव रीवाँ-नरेश १०४३-१०४० शंभुनाथ मिश्र
४८-१०४८ दलपतिराय
-१०४१ सरदार
-१०५० बिरेजीवरि
१०५१-१०५१ जानकीप्रसाद
१०११-१०५२ बलदेवसिंह क्षत्रिय
१०१२-१०५२ पंडित प्रवीन ठाकुरप्रसाद ... १०५२-१०५३ अनीस
१०५३-१०५४ शिवप्रसाद राजा सितारेहिंद १०५४-१०१५ गुलाबसिंहजी
१०१५-२०१६ बाबा रघुनाथदास रामसनेही १०५६-१०५८ लेखराज (नंदकिशोर मिश्र) १०५८-१०६० ललित किशोरीशाह ललित माधुरीशाह
१०६१-१०६५ उन्नडजी
१०६५-१०६५ उदयचंद
१०६५-१०६५ संतोषसिंह
१०६६-१०६६ भावन पाठक
१०६७-१०६७ अजबेस भाट
१०६७-१०६७ कृष्णदत्त
१०६७-१०६८ बेनीदास
१०६८-१०६८ राम कवि
१०६८-१०६८ गदाधर दतिया-वासी
...
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(..)
:::::::::
पृष्ठ १०६६-१०६६ १०७०-१०७० १०७१-१०७२ १०७२-१०७३ १०७३-१०७३ १०७५-१०७५ १०७५-१०७६ १०७६-१०७६ १०७६-१०७६ १०७७-१०७७
0
.
१०७७-१०७७
बालकृष्ण चौबे गणेश रेवाराम हरिदास बिहारीलाल त्रिपाठी हरिप्रसाद धीरजसिंह रसानंद भट्ट उद्धव उपनाम औघड़ कृपा मिश्र खेम भाण - लच्छनदास राजा शंकर कायस्थ हरिदनसिंह उमापति त्रिपाठी गोकुल कायस्थ दुलीचंद चतुर्भुज मिश्र प्रधान बनादास बंसगोपाल भारतीदान मदनगोपाल शुक्ल रतनसिंह
-
:::::::::::::
१०७९-१०७६ १०८१-१०८१ १०८१-१०६१ १०८२-१०८२ १०८२-१०८३ १०८४-१०८४ १०८२-१०८१ १०८५-१०८५ १०८६-१०८६ १०८६-१०८६ १०८७-१०८७ १०८७-१०८७ १०८७-१०८७ १०८८-१०८८
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रामनाथ उपाध्याय
लक्ष्मण
हरिजन कायस्थ
( 99 )
रामजू जय कवि
वंशीधर वाजपेयी रामगुपाल द्विवेदी
गजराज उपाध्याय
जुलफ्रिकारख़ाँ अमीर बुँदेलखंडी चंद कवि
कर्पूर विजय
फ़ाज़िल शाह हरिभक्तसिंह
रामलाल
नंदन पाठक छत्रपती
ठाकुरप्रसाद
भानुनाथ झा धीरजसिंह महाराजा
सदासुख
पन्नालाल चौधरी
भागचंद्र
श्रीधर भट्ट अजबेस
:: :
:
:
:
:
::
...
:
...
:
पृष्ठ
१०८८-१०८८
१०८५१०८८
१०८६ -- १०८६
१०८६ - १०८६
१०६० - १०६०
१०६० - १०६०
१०६०-१०६१ १०६२ - १०६२
१०६२ - १०६२
१०६३ - १०६३ १०६३ – १०६३ १०३४ – १०६४
१०६५- १०६५ १०६५ – १०६५ १०६५- १०६५
१०६६- १०३६ १०६६ – १०६६ १०६६ – १०६६
१०६७- १०६७
१०६७-१०६७ १०६८ - १०६८ १०६८ - १०६६
१०६६ - १०६६
११००-११०० ११००-११००
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________________
पृष्ठ
औघड़ ईश्वरीप्रसाद गणेश गुणसिंधु दास नाथूराम शुक्ल मंगलदास किशोरीशरण टीकाराम बिहारीलाल वैश्य छत्रधारी नरेंद्रसिंह महाराज पटियाला ब्रजजीवन उरदाम काशी गणेशपुरी राजपूताना कृपालुदत्त मनोहरवल्लभ गोस्वामी ...
महेशदास अध्याय-३४ दयानंद-काल
महर्षि दयानंद सरस्वती बचमणसिंह राजा शंकरसहाय गदाधर भट्ट बाबदत्त मिश्र
.११०१-११०१ ११०१-११०१ ११०२-११०२ ११०१-११०२ ११०३-११०३ ११०४-११०४ ११०५-११०५ ११०७-११०७ ११०१-११०६ ११०१-११०४ १११०-१११० १११०-१११० १११०-१११०
११११-१११२ १११२-१११२ १११३-१११३ १११४-१११४ १११५-११७० .१११५-११२० ११२०-११२३ ११२३-११२५ ११२५-११२६ ११२६-११२८
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________________
( १३ )
सीतारामशरण रूपकला
फेरन
मोहन
मुरारिदास
प्रभुराम
श्रध (अयोध्याप्रसाद )
राम भट्ट
...
व्रज
शिवदयाल पांडे ( भेष ) इस समय के अन्य कविगण सकंदगिरि बाँदा
गोपालजी
चंपाराम
...
...
...
बलदेव
द्विज गंग
बड़दसिंहजी उपनाम माधव लखनेस
डॉक्टर रुडाल्फ़
नवीनचंद्र राय
बालकृष्ण भट्ट
आत्माराम
:
भानुप्रताप महाराजा बिजावर
माधवसिंह अमेठी के राजा मुनि आत्माराम
अमृतराय
...
...
ପୃଷ୍ଠ
११२८- ११२८
११२८-११३०
११३०–११३०
११३० - ११३१
११३२ - ११३२
११३२ - ११३४
११३४ - ११३६
११३६ – ११४१
११३६ – ११४१
११४१-११४१
११४२-११४३
११४३ – ११४३
११४४ – ११४४
११४४ – ११४५
११४५११४५
११४५ - ११४६ ११४६ – ११४६
११४६ – ११४७
११४७-११४७
११४७ - ११४७
११४८-११४६
११४६ - ११४६
११४६ -- ११४३ ११४६ - ११४६
Page #14
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________________
पृष्ठ ११५१-११५१ ११५१-११५१ ११५२-११५२ ११५२-११५२ १५२-१९५३ १५३-११५३ १५४-११५४ १५५-११५५ १५५-११५५ ११५६-११५६
खूबचंद राठ गंगाराम बुंदेलखंडी नाथूलाल दोसी पारसदास फतहलाल जयपुरी व्रजचंद जैन मिहिरचंद दिल्ली-वासी युगलप्रसाद कायस्थ लक्ष्मणसिंह शिवप्रकाशसिंह मदनसिंह कायस्थ दीपकुँअरि रानी • ... ठाकुरप्रसाद त्रिपाठी ... स्वामी हरिसेवक साहब अदितराम काठियावाड़ ... गुलाबसिंह धाऊजी परमेश बंदीजन मथुराप्रसाद महेशदत्त शुक्ल रघुनंदन भट्टाचार्य गुमानसिंह औघड़ उर्फ़ उद्धव गोपालजी शिवप्रकाश दीपसिंह
:::::::::::::::
११५७-११५७ ११५६-११५६ ११६०-११६१ ११६३-११६३ ११६३-११६४ ११६४-११६४ ११६४-११६५ ११६५-११६५ ११६५-११६५ ११६६-११६६ ११६६-११६७ ११६७-११६८ ११६८-११६८ ११६८-११६८
Page #15
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(१५)
W
पृष्ठ रस अानंद
११६८-११६६ रणमल सिंह
११६६-१७० हिरदेश झाँसी
११७.-११७० वर्तमान प्रकरण अध्याय ३५--वर्तमान हिंदी एवं पत्र-पत्रिकाएँ ११७१-११९१ अध्याय ३६-पूर्व हरिश्चंद्र-काल ... ११९१ -१२४४ भारतेंदु हरिश्चंद्रजी
१९६१-११६५ तोताराम
१५-११६५ देवीप्रसाद मुंशी
१५-११६७. जगमोहनसिंह : ... १७-११३७ गदाधरसिंह बाबू .... १८-१११८ श्रीनिवासदास लाला ... । ११११-११88 रामपालसिंहजी राजा कालाकाँकर ११६१-१२०१ गोविंद गिल्ला भाई
... १२
०१-१२०२ रसिकेश उपनाम रसिकविहारी १२ ०२-१२०२ नृसिंहदास
०३-१२०३ महारानी वृषभानु कुँअरि १२०३-१२०४ ललिताप्रसाद त्रिवेदी ललित १२०४-१२०५ गोविंदनारायण मिश्र
०५-१२०१ सहजराम
१२०६-१२०८ जीवनराम भाट
०८-१२०६ शिव कवि भाट
१२०९-१२०६ हनुमान
१२०8--१२०६ . नंदराम
१२१०-१२१
.
.
.
.
.
.
.
.
Page #16
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________________
(१६ )
...
पृष्ठ लक्ष्मीशंकर मिश्र .. १२११-१२११ गौरीदत्त
१२१२-१२१२ मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या १२१२-१२१३ राधाचरण गोस्वामी
१२१३-१२१३ जगदीशलालजी
१२१३-१२१४ कार्तिकप्रसाद खत्री
१२१४-१२१५ केशवराम भट्ट
१२१५-१२१५ तुलसीराम शर्मा
१२१५-१२१५ गोविंद कवि
१२१५-१२१६ अयोध्याप्रसाद खत्री
१२१६-१२१७ मुंशीराम महात्मा
१२१७-१२१८ रणजोरसिंह महाराज ... १२१८-१२१८ शिवसिंह सेंगर
१२१८-१२२० इस समय के अन्य कविगण देवकीनंदन त्रिपाठी
१२२३-१२२४ बलभद्र कायस्थ
१२२४-१२२४ रत्नचंद बी० ए०
१२२४-१२२५ सरयूप्रसाद मिश्र
१२२६-१२२६ परमानंद कायस्थ
१२२७-१२२८ खड्गबहादुर मल्ल
१२२८-१२२६ जानी विहारीलाल
१२२६-१२३० जानी मुकुंदनाल
१२३०-१२३० दामोदर शास्त्री
१२३०-१२३० देवकीनंदन तेवारी
१२३०-१२३० द्विज कवि
१२३१-१२३१
:::::::::::
Page #17
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(१७)
महानंद वाजपेयी रघुनाथप्रसाद लक्ष्मीनाथ हनुमंतसिंह हरिदास साधु दूलनदास जालिमसिंह बलदेवप्रसाद साधोगिर कृष्णसिंह राजा भिनगा देवदत्त शास्त्री भगवानदास जदुदानजी जनकेस बंदीजन
रविदत्त शास्त्रो अध्याय ३७-उत्तर हरिश्चंद्र-काल
भीमसेन शर्मा बलदेवदास फ्रेडरिक पिनकाट अंबिकादत्त व्यास बदरीनारायण चौधरी ... लक्ष्मीनारायण सिंह ... त्रिलोकीनाथजी ( भुवनेश) डॉ. सर जी० ए० ग्रियर्सन गदाधरजी ब्राह्मण
पृष्ठ १२३२-१२३२ १२३३-१२३३ १२३४-१२३४ १२३१-१२३५ १२३५-१२३५ १२३७-१२३७ १२३७-१२३७ १२३८-१२३६ १२३१-१२३६ १२४०-१२४० १२४०-१२४० १२४१-१२४१ १२४३-५२४३ १२४३-१२४३ १२४३-१२४४ १२४४-१३१४ १२४४-१२४५ १२४५-१२४५ १२४६-१२४६ १२४६-१२४७ १२४७-१२४८ १२४१-२४६ १२५०-१२५० १२५०-१२५५ १२५१-१२५२
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________________
.
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( १८ )
नाथूरामशंकर शर्मा चंडीदान राव अमान दुर्गाप्रसाद मिश्र नकछेदी तिवारी रामकृष्ण वर्मा जानकीप्रसाद पवार लालविहारी मिश्र (द्विजराज) सुधाकर द्विवेदी रामशंकर व्यास जामसुता जाड़ेचीजी आर्य मुनिजी महेश राजा बस्ती प्रतापनाराय जगन्नाथप्रसाद भानु शिवनंदन सहाथ उमादत्तजी रामनाथजी कविराज सीताराम बी. ए. फतेहसिंहजी राजा पवाँया दीनदयालु शर्मा महावीरप्रसाद द्विवेदी ... नंदकिशोर शुक्ल रत्नकुँवरि बीबी ज्वालाप्रसाद मिश्र
पृष्ठ १२५२-१२५२ १२५२-१२५३ १२५३-१२५३ १२५४-१२५४ १२५४-१२५५ १२५५-१२५६ १२५६-१२५६ १२५६-१२५७ १२५७-१२५८ १२५८-१२५८ १२१८-१२५६ १२५६-१२५६ १२५१-१२६० १२६०-१२६२ १२६३-१२६३ १२६४-१२६५ १२६५-१२६६ १२६६-१२६६ १२६७--१२६६ १२६६-१२६६ १२६६ -१२७० १२७०-१२७१ १२७१-१२७१ १२७१-१२७२ १२७२-१२७२
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( १
)
पृष्ठ
...
माननीय मदनमोहन मालवीय १२७२-१२७३ माधवप्रसाद मिश्र
१२७३-१२७४ जुगुलकिशोर मिश्र ... १२७४-१२७६ गोपालरामजी गहमर ... १२७६-१२७७ अमृतलाल चक्रवर्ती ... १२७७-१२७७ श्रीधर पाठक
१२७७-१२७६ गौरीशंकर-हीराचंद श्रोझा रायबहादुर१२ 8-१२७६ विनायकराव पंडित
१२७१-१२७६ विशाल कवि
१२८०-१२८४ रामराव चिंचोलकर
१२८४-१२८४ शिवसंपत्तिसुजान
१२८४-१२८५ लाजपतराय लाला
१२८५-१२८१ जगन्नाथसहाय
१२८६-१२८६ देवीसिंह राजा
१२८६-१२८७ मथुराप्रसाद ब्राह्मण
१२८७-१२८७ महाराजा विजयसिंह शिवपुर-बड़ौदा १२८७-१२८७ भोलानाथ लाल
१२८६-१२८१ कुंजलाल
१२६३-१२६३ जगन्नाथ अवस्थी
१२६४-१२६४ ठाकुरप्रसाद त्रिवेदी
५-१२६५ नारायणराय
१२६५-१२६५ वृदावन सेमरीता
१२६६-१२६६ बंदन पाठक
१२६६-१२६६ ब्रजभूषणलाल
१२१७-१२६७ रणजीतसिंह राजा ईसानगर १२१८-१२१८
Page #20
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( २० )
पृष्ठ
:
:
रूपलालसिंह शर्मा ... १२१८-१२६१ सुमेरसिंह साहबजादे-पटना १३००-१३०० पत्तनलाल
१३०१-१३०२ रामरत्न सनाढ्य
१३०२-१३०२ गुप्तरानी बाई
१३०३-१३०३ रत्नचंद्र
१३०४-१३०५ हीरालाल काव्योपाध्याय १३०६-१३०६ राय बहादुर हीरालाल बी०ए० एम्० प्रार० ए० एस०
१३०६-१३०७ जीवाराम शर्मा
१३०८-१३०८ अयोध्याप्रसाद औध
१३११-१३११ माधुरीशरण
१३१२-१३१३ मंगलदीन उपाध्याय
१३१३-१३१३
...
..
Page #21
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________________
मिश्रबंधु - विनोद
अज्ञात -कालिक प्रकरण
इकतीसवाँ अध्याय
अज्ञात काल
बहुत-से कवियों के विषय में प्रयत्न करने पर भी काल-निरूपण नहीं हो सका, परंतु इसी कारण उन्हें छोड़ देना अनुचित समझकर हमने उनके लिये यह श्रध्याय नियत कर दिया है। इनमें खगनिया की कविता कुछ अच्छी प्रतीत होती है । इन कवियों में दो-चार का सूक्ष्मतया हाल समालोचनाओं द्वारा लिखकर चक्र-द्वारा शेष का वर्णन कर देवेंगे । इस संस्करण में जिनका हाल विदित हो सका उनके नाम यथास्थान रख दिए गए हैं, परंतु नंबर न बिगड़ने के कारण नहीं हटाए गए । नाम – ( 32 ) अनंत कवि । फुटकर छंद गोविंदगिल्लाभाई के पुस्तकालय में हैं ।
नाम —- ( १३२२ ) कलस । देखो नं० ( ५३५ ) विवरण — कवि कलस शंभाजी के काव्य-गुरु और प्रधान अमात्य थे । शंभाजी इनकी बड़ी इज़्ज़त करते थे । यह और कलस साथ-ही-साथ पकड़े गए और मार डाले गए । कलस वीर पुरुष पर विषयी था । कहते हैं, शंभाजी की दुर्दशा और अधःपतन इसो के कारण हुआ । महाराष्ट्र लोग शंभाजी को घृणा की दृष्टि से देखते हैं
Page #22
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मिश्रबंधु-विनोद देखो पूर्वालंकृत प्रकरण (५३५ ) संवत् १७५६ इनकी कविता तोष की श्रेणी की है। उदाहरणअंग भरसौहै छषि अधरन सौहैं,
चढ़ी आलस की भौं हैं धरे आमा रतिरोज की ; सुकबि कलस तैसे लोचन पगे हैं नेह,
जिनमैं निकाई अरुनोदय सरोज की। माछी छवि छाकि मंद-मंद मुसकान नागी,
बिचल बिलोकि तन भूषन के फोज की; राज रद मंडली कपोल मंडली मैं, मानो रूप के खजाने पर मोहर मनोज की।
(१३२३) खगनिया उन्नाव-ज़िल्ले में रणजीतपुरवा-नामक एक कस्बा है । इसी में बासूनामक एक तेली रहता था, जिसकी पुत्री खगनिया ने ग्रामीण भाषा में बहुत-सी अच्छी पहेलियाँ बनाई हैं । हैं तो ये बहुत ही साधारण भाषा में, परंतु इनमें कुछ ऐसा स्वाद है कि ये कविगण को भी पसंद भाती हैं । इसके समय का निरूपण हम नहीं कर सके हैं, उदाहरणार्थ इस स्त्री-कवि की तीन कहानियाँ हम नीचे लिखते हैं
आधा नर आधा मृगराज ; जुद्ध बिधाहे आवै काज । प्राधा दूटि पेट माँ रहै ; बासू केरि खगनिया कहै। (नरसिंहा) लंबी-चौड़ी आँगुर चारि ; दुहू ओर ते डारिनि फारि । जीव न होय जीव का गहै ; बासू केरि खगनिया कहै । (कंघी) भीतर गूदर ऊपर नाँगि ; पानी पियै परारा माँगि। तिहि की लिखी करारी रहै ; बासू केरि खगनिया कहै । (दावात) नाम-(१३२३ ) ख्यालीलाल । इनके छंद गोविंदगिल्ला
भाई के पुस्तकालय में हैं।
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अज्ञात -कालिक प्रकरण
२३
१३२३
नाम – ( ३३ ) खूबी । फुटकर रचनाएँ संग्रहों में पाई
जाती हैं ।
नाम - ( १३२३ ) गजानंद । इनके फुटकल छंद गोविंदfreeभाई के पुस्तकालय में हैं 1
नाम- - ( १३२३ ) गिरिधारन । परमानंद के षट्ऋतु हज़ारा में इनके छंद हैं।
४
नाम - ( १३२४ ) ब्रजमोहन |
विवरण - इनकी कविता सरस है । इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में की जाती है ।
केसरि को मुख राग धरे जेहि की उपमा न कोऊ समतुल्यो ; जोबन मैं बिकसै बिलसै लखि मीत सुगंध पियै अलि भूल्यो । कोमल अंग मनोहर रंग सुपौन की झोक लगे वन मूल्यो ; नारि नई निरखी ब्रजमोहन नारि नहीं मनौं पंकज फूल्यो ॥१॥ नाम - ( १३२५ ) पंडित, बिगहपूर ।
विवरण - साधारण श्रेणी के कवि थे । इन्होंने ग्रामीण भाषा में अच्छी पहेलियाँ कहीं हैं ।
यथा
गहनु पठ चइत के प्याट ; तेहि पर पंडित करें प्याट । है नेरे पइहौ ना हेरे ; पंडित कहैं बिगहपुर केरे । ( कचौरी )
नाम
--
- ( १३२६ ) भवानीप्रसाद पाठक ।
विवरण – ये महाशय मौज्ञा मौरावाँ जिला उन्नाव के वासी थे । इन्होंने काव्यशिरोमणि - नामक काव्य का रीतिग्रंथ
तथा काव्य-कल्पद्रुम बनाया । इसमें कुल ३०० छंद हैं, जिनमें लक्षणा, व्यंजना, ध्वनि, व्यंग्य इत्यादि के वर्णन हैं । इनकी भाषा बैसवाड़ी तथा व्रजभाषा
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मिश्रबंधु-विनोद मिश्रित है। इनको गणना साधारण श्रेणी में की
जाती है । उदाहरणबाम धरे सम देखिकै मारग ऊँच ौ नीच परै पग नाहिन ; एकहि हाथ कठोर करी कृति एक करौट परे कहैं पाहिन । पूरन प्रेममई अनुकूलता देखि लगै मन मैं रुचि काहि न ; भावन भावती के सुखदायक और कहूँ हर सो हर ताहिन । नाम-(१३२७) मनसा। विवरण-तोष श्रेणी। उदाहरणमलयज गारा करें अंगन सिंगारा करें,
गहि उर डारा करें माल मुकतान की; आरती उतारा करें पंखा चौर ढारा करें,
छाँ हैं बिसतारा करै बिसद बितान की। मुख सो निहारा करें दुख को बिसारा करें, ___मनसा इसारा करें सारा अँखियान की; मानिक प्रदीपन सों थारा साजि ताराजू की,
भारती उतारा करैं दारा देवतान की ॥ १ ॥ नाम-( १३२८) राम कवि । देखो नं० ( १८३२ ) ग्रंथ-रसिकजीवनसंग्रह । हनुमान् नाटक [ द्वि० ० रि०] विवरण-इस संग्रह में दस महात्माओं की वाणी तथा पद
संग्रह किए गए हैं। यह एक बड़ा ग्रंथ है, परंतु किसी का भी समय इसमें नहीं कहा गया है । यदि समय इत्यादि भी दे दिए जाते, तो बड़ा ही उपयोगी
हो जाता । यह संग्रह हमने दरबार छतरपूर में देखा है। नाम-(१३२९) वहाब । ग्रंथ-बारहमासा।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण विवरण-बारहमासा की रचना खड़ी बोली में अच्छी है।
साधारण श्रेणी के कवि थे। उदाहरण
असाढ़ब साजि के दल मुझको घेरा ; कहौ घनश्याम से जा हाल मेरा । नगारे मेघ के बाजे गगन पर; बिरह की चोट मारी मेरे मन पर । जगे झींगुर नफीरी-सी बजावन ;
पिया बिन कान की चिनगी उड़ावन । नाम-(१३३०) सबल श्याम । विवरण-इन महाशय का बरवै षट्ऋतु हमने देखा है, जिसमें
१२२ छंद हैं । इनका इससे विशेष हाल नहीं मालूम है । इस कवि की भाषा व्रजभाषा है और काव्य-गरिमा
में ये तोष-श्रेणी के हैं। उदाहरण
तपन सपै रितु ग्रीषम तीखन धाम । ताकि तरुनि तन सीतल सोवै काम ॥ १॥ छाँह सघन तरु भावै बालम साथ । की प्रिय परम सरोवर सीतल पाथ ॥२॥
इस अध्याय के शेष कविगण नाम-(१३३१ ) अखयराम । देखो नं० ( १२१०) ग्रंथ-स्फुट कविता। नाम-(१३३२) अग्निभू । ग्रंथ-भक्तिभयहर स्तोत्र [ खोज १६..] नाम-(१३३२) अचरतलाल नागर । ग्रंथ-प्रेम-प्रवाह ।
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मिश्रबंधु-विनोद विवरण-नरियाद-निवासी। नाम-(१३३३) अजीतसिंह । ग्रंथ-बंसावली सोमवंशीरी। विवरण-राजपूताने के कवि हैं। नाम-(333) अत्ता कवि । ग्रंथ–स्फुट काव्य । विवरण-आपकी कविता भड़ौवा-संग्रह में मिलती है। उदाहरणबैठिए न पनघटा पैठिए न जल धाय,
रोधिए न बल पाय विद्या को सुधारिए ; गाइए न मग राग छाइए न परदेश,
जाइए न सूम द्वार बृथा गुन हारिए । बोलिए न फँठी बात खोलिए न ऐबन को,
डोलिए न खेत चढ़ि साहस सँभारिए ; अपने पराए को सिखाय चहे यारो कवि,
अत्ता को बचन यह मन में बिचारिए । नाम-(१३३४ ) अधीन (भागीरथीप्रसाद ), बाँकीभौली। ग्रंथ-शंभुपचीसी। विवरण-साधारण श्रेणी के कवि थे। नाम-(१३३४ ) अनुरागीदास । ग्रंथ-(१) डगडंडी, (२) दीनविरुदावली, (३) जुगल
विरुदावली, (४) गुरुविरुदावली, (५) भक्तविरुदावली । विवरण-आप कृष्णगढ़-राज्यांतर्गत गोध्याणा ग्राम-निवासी चारण
मनोहरदास के पुत्र थे। नाम-(१३३५) अनंगचूर पंडित । ग्रंथ-नवमंगल ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण नाम-(१३३६) अभय । ग्रंथ-स्फुट कविता । नाम-(१३३७ ) अमीचंदजी यती । ग्रंथ-जोतिसार । नाम-(१३३८) अर्जुन ( उपनाम ललित)। ग्रंथ-स्फुट कविता [द्वि० त्रै० रि०] विवरण-साधारण श्रेणी नाम-( १३३९) अर्जुन चारण । ग्रंथ-(१) कवित्त सलंखी जीवराजाजी रा, (२) महकमसिंह
जीरा कवित्त । विवरण-राजपूतानी भाषा। नाम-(१३४०) अर्जुनसिंह क्षत्रिय, काशी। ग्रंथ-कृष्णरहस्य (पृष्ठ १४ पद्य)। नाम-(१३४१) आडाकिसना चारण, मारवाड़ । ग्रंथ-फुटकर गीत। विवरण-वीररस। नाम-(१३४२ ) आत्मादास । देखो नं० (६६०) ग्रंथ-हरिरस । नाम-(१३४२) आनंदघन दूसरे । ग्रंथ स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभीय बेटी के वंशज । नाम-(१३४२) आनंददास । ग्रंथ-आनंद-विलास । [ तृ. १० रि०] विवरण-निंबार्क-संप्रदाय के वैष्णव थे। नाम-(१३४२) आनंदघन । ग्रंथ-कृपाकंद, वियोगबेली।
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मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(१३४२ ) आनंदबिहारी । अंथ–स्फुट छंद। नाम-(१३४३) ओंकार, मुक़ाम अष्टा (मालवा ), भट्ट
ज्योतिषी। ग्रंथ-भूगोलसार (पृ० ७४ गद्य )। [द्वि० ० रि०] विवरण-भूपाल के पोलिटिकल एजेंट करनल विलकिनसन की
आज्ञानुसार रचा। नाम-(१३४४) ओरीलाल कायस्थ, अलीपुर, जिला
प्रतापगढ़। ग्रंथ-शैवी निधि, शिवशाक्त । नाम-(१३४५) औघड़ । देखो नं० २०२४ । ग्रंथ-तुरंगविलास । विवरण-काशी-नरेश की आज्ञा से ग्रंथ बना। नाम-(१३४५) औसेरी। ग्रंथ-स्फुट रचना। नाम-(१३४५) अंगदप्रसाद । ग्रंथ-स्फुट कविता। उदाहरण
राम नाम लीन्हो नाहिं दान कछु दीनो नाहि, ' संतन को चीन्हो नाहिं माया के गुमान में ; कूप जिन खोदे नाहिं वृक्ष जिन रोपे नाहि,
विप्रन जिमाय रहे तापै अतिमान में । ऋषि-ऋण, देव-ऋण, पितृ-ऋण, तोरे नाहि,
बीत गई वय सबै स्वार्थ के सयान में ; अंगदप्रसाद कहे ईश्वर के ध्यान बिना,
पैहे मुख मेरो सो कलम कह कान में ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
१५ नाम-(१३४६) अंछ । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३४७) इनायतशाह मुसलमान । ग्रंथ-भजन । नाम-(१३४७ ) इश्कदीन, गुजराती। ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३४७ ) ईश्वरमुनि । ग्रंथ स्फुट कविता। नाम-(१४७) उत्तमराम, गुजरात, अहमदाबाद । ग्रंथ-बाबी-विलास । नाम-(१३४८) इंदु । विवरण-निम्न-श्रेणी। नाम-(१३४८) इंदु ( जानकीप्रसाद तिवारी), सूर्यपुरा,
अहमदाबाद के निवासी। ग्रंथ-फुटकर रचना। नाम-(१३४८ ) उजियारेलाल । ग्रंथ-गंगालहरी [च. त्रै० रि०] नाम-(१३४९) उदयभानु कायस्थ । ग्रंथ-गणेशकथा । नाम-( १३४६ ) उदयमणि। विवरण-भदौवा-संग्रह में इनके छंद हैं। नाम-(१३५०) उदितप्रकाशसिंह, बनारस । ग्रंथ-गीतशत्रुजय । [ खोज १६०४ ] नाम-(१३५०) उम्मरदान चारण, जोधपुर । ग्रंथ-स्फुट भड़ौवा तथा मदिरा-निषेध के छंद । नाम-(१३५१) उमादत्त ।
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ग्रंथ
-
- बारहमासा । [ खोज १६०३ ]
नाम - (१३५१ ) उमापति शर्मा ।
ग्रंथ - पद । [ च० त्रै०रि० ]
नाम – ( १३५१ ) ऊधवदास, पटियाला के बाबा रामदास
के शिष्य ।
ग्रंथ - गणप्रस्तार - प्रकाश ।
नाम - ( १३५२ ) ऊमा ।
ग्रंथ - स्फुट कविता |
नाम - ( १३५३ ) ऋणदान चारण ।
ग्रंथ - सिद्धराय सतसई ।
मिश्रबंधु विनोद
नाम
- (१३५४ ) कनकसेन । कवित्त 1
ग्रंथ - फुटकर
नाम - ( १३५५ ) कनीराम । ग्रंथ - फुटकर कवित्त 1
नाम - (१३५५) कविमद पंडित ।
विवरण — ये करौली के ब्राह्मण थे और गोस्वामी - भक्ति- प्रकाश ग्रंथ
की रचना की है।
नाम – ( ग्रंथ - फुटकर कविता |
नोम – ( १३५६ ) कमोदसिंह कायस्थ,
१३५५
ર
ग्रंथ-स्फुट ।
नाम- - (
) कमनीय ।
बिजावर |
१ ३५६ ) करनेश ।
१
विवरण - काठियावाड़ के रहनेवाले "श्रौधड़” के शिष्य थे ।
ग्रंथ - कर्णमंजुमणि ।
नाम- - ( १३५६ ) कलक ।
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ক্ষমাবাজি মক্ষ্য ग्रंथ—स्फुट रचना। नाम-(१३५७ ) करुणानिधि । विवरण-भक्तकवि। नाम--(१३५८ ) कर्ताराम । ग्रंथ-दानलीला। नाम-(१३५८ ) कान्हीराम । विवरण-नागर-समुच्चय में इनकी कविता पाई जाती है। राजा
मझौली के यहाँ थे। नाम-(१३५९) कामताप्रसाद, असोथर । ग्रंथ-नखशिख । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १३६०) कालिकाप्रसाद, लखनऊ । ग्रंथ-प्रफुल्ला। विवरण-गद्य-लेखक। नाम-(१३६१) कालिका बंदीजन । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१३६२) कालिदास । ग्रंथ-भ्रमर-गीत। [द्वि० ० रि०] नाम-( १३६३ ) कालीदीन । ग्रंथ-दुर्गा-भाषा। विवरण-दुर्गा-भाषा बड़ी ओजस्विनी भाषा में लिखी है और
स्फुट छंद भी इनके सुनने में आते हैं। इनकी गणना
तोष कवि की श्रेणी में की जाती है। नाम-(१३६४) कालूराम । ग्रंथ-फुटकर कविता।
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२६२
मिश्रबंधु-विनोद नाम-( १३६५ ) काशी। ग्रंथ-ज्ञानसहेली। विवरण-चिंतामणि के साथ बनाया। [प्र० त्रै० रि० ] नाम-( १३६५ ) काशी। ग्रंथ–अलंकार-प्राशय, कविरत्नमालिका । नाम-(१३६६) काशीराज-बलवानसिंह । देखो नं० १२४४ नाम-(१३६७ ) क़ासिम। ग्रंथ-(१) रसिकप्रिया की टीका। (२) कुंडलिया [प्र.
त्रै रि०] दूसरी त्रैवार्षिक खोज की रिपोर्ट में यह पुस्तक संवत् १६४८ की लिखी होना लिखा है, परंतु यह अशुद्ध है; क्योंकि केशवदास ने संवत् १६४८ से १६५५ तक
रसिकप्रिया लिखी थी। विवरण-वाजिद के पुत्र थे। नाम-(१३६७ ) किंकरसिंह। ग्रंथ-छंद-प्रभाकर । नाम-(१३६८ ) किलोल । ग्रंथ–ढोला मारू रा दोहा । [ खोज १६०२ ] नाम-(१३६८ ) किशनसिंह गुणावत । ग्रंथ-गंगाष्टक । [प्र. त्रै रि०] नाम-(१३६९ ) किशोरीजी। ग्रंथ-बानी। विवरण-यह पुस्तक हमने दरबार छतरपूर में देखी। साधारण श्रेणी। नाम-(१३७०) किशोरीदास । देखो नं० (६०५) नाम-(१३७१ ) राजा किशोरीलाल कायस्थ, घनश्यामपूर
जिला जौनपुर।
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श्रज्ञात-कालिक प्रकरण
ग्रंथ - युगुलशतक
विवरण - पिता का नाम अयोध्याप्रसाद था ।
नाम - ( १३७२ ) किशोरीशरण । ग्रंथ - (
१ ) अष्टयामपदप्रबंध, ( २ ) अभिलाषमाला [ द्वि० ० रि० ], (३) विशुद्ध रसदीपिका-नाम्नी भागवत की टीका । विवरण - इनका प्रथम ग्रंथ हमने दरबार छतरपूर में देखा । कविता साधारण श्रेणी की है। कुल ५६ पद इस ग्रंथ में हैं ।
-
नाम - ( १३७३ ) किसनिया चाकर, मारवाड़ । ग्रंथ - किसनिया रा दोहा ( श्लोक संख्या २०० )। विवरण — उपदेश ।
नाम – ( १३७४ ) कुलपति सिक्ख, आगरा ।
-
ग्रंथ - स्फुट ।
नाम - ( १३७५) कुलमणि ।
ग्रंथ-स्फुट |
नाम - ( १३७६ ) कुबेर |
TEX
इनका ठीक नंबर ( २१०६) है।
ग्रंथ - महाभारत भाषा ।
नाम - ( १३७७ ) कुशल सिंह ।
ग्रंथ–नखशिख ( पृ० २० ) । [ द्वि० त्रै०रि० ]
नाम - ( १३७८) कुंज गोपी, जयपुरवासी, गौड़ ब्राह्मण । नाम - ( १३७६ ) कुंजविहारीलाल कायस्थ, दिल्ली ।
ग्रंथ - ( १ ) चित्तविनोद, ( २ ) ब्रह्मदर्शन, (३) प्रेमसरोवर, ( ४ ) सिद्धांतसरोवर, ( ५ ) ब्रह्मप्रकाश, (६) ब्रह्मानंद, (७) ज्ञानसागर, (८) सर्वसंग्रह, ( 8 ) निर्णय सिद्धांत |
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मिश्रबंधु-विनोद नाम-(१३८० ) कूबो । विवरण-भक्त कवि थे। नाम -( १३८° ) केवल। ग्रंथ-फुटकर छंद। नाम-(५३८०) केशव । ग्रंथ-प्रेम-छतीसी तथा शब्द-विभूषण । नाम-(935) केसर। ग्रंथ-फुटकर । नाम-( १३८१ ) केशव कवि । देखो नं० ( १८३६) नाम-( १३८२ ) केशवगिरि । देखो नं० (२१३७) नाम-(१३८३) केशवमुनि । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३८४ ) केशवराम । ग्रंथ-भ्रमर-गीत । विवरण-हीन श्रेणी। नाम-(१३८५ ) केशवराय, बुंदेलखंड, कायस्थ । ग्रंथ-गणेशकथा। [प्र. ० रि०] नाम-( १३८६ ) केशोदास, ग्राम पिचीयाक (मारवाड़)। ग्रंथ—केशवबावनी। विवरण-ज्ञान-विषय । नाम-(१३८६ ) कोक । इनकी फुटकर कविता गोविंदगिल्लाभाई
के संग्रह में हैं। नाम-(१३८६) कोसल । ग्रंथ-इश्क-मंजरी । [प्र० त्रै० रि०] नाम-( १३८६ ) कोविद कविमित्र ।
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अशात-कालिक प्रकरण ग्रंथ-इन्होंने 'भाषा-हितोपदेश' ग्रंथ बनाया है। नाम-(१३८७ ) कृपानाथ । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३८८) कृपा सखी। ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३८६) कृपा सहचरी । ग्रंथ-रहस्योपास्य ग्रंथ [प्र. त्रै० रि०] विवरण-वैष्णव, सखी-उपासना। नाम-( १३६९) कृष्णदासभावुकजी। ग्रंथ-स्फुट पद । विवरण-राधावबभी। नाम-(१३६६) कृष्णदास राधा बालहित । ग्रंथ स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(358) कृष्णदास साधु । ग्रंथ-ज्ञान-प्रकाश । नाम-(१३६६) कृष्णविहारी शुक्ल । ग्रंथ-ज्ञानाभूषण ।. नाम-(१३६०) कृष्णलाल, बाँकीपूर । ग्रंथ-(.) मुद्राकुलीन, (२) समुद्र में गिरींद्र । विवरण-गद्य-लेखक। नाम-(१३६०) कृष्णावती । ग्रंथ-विवाह-विजास । [ तृ• त्रै रि०] नाम-( १३६१) खुसाल पाठक, रायबरेलीवाले । नाम-(१३६२) खूखी ।
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- मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१३६३ ) खूबचंद । विवरण साधारण श्रेणी । राजा गंभीरसिंह ईदरवाले के समय
नाम- ( १३६४ ) खेतल । नाम-( १३६५) खेमराय कायस्थ, बाँदा । ग्रंथ-स्फुट कविता । नाम-(१३६५) खैराशाह । ग्रंथ-बारहमासा । [तृ० त्रै० रि० ] नाम-( १३६६ ) खोजी साधु, पालडी (गाँव), मारवाड़। ग्रंथ-फुटकर बानी। विवरण-धर्मोपदेश । नाम-( १३६७ ) गजेंद्रशाह गजराजसिंह, हल्दी । ग्रंथ-रामायण । नाम--(१३६७ ) गणेशदत्त। ग्रंथ-भगवत अवतरणिका । [च० ० रि०] नाम-(१३६८) गयाप्रसाद कायस्थ । ग्रंथ-(१) मालाविरुदावली । नाम-(१३६८) गंगाप्रसाद । ग्रंथ-कलिकाल-चरित्र । [च० ० रि०] नाम-(१३६६ ) गिरिधर । देखो नं० १०५४ नाम-(१४००) गिरिधर गोस्वामी । ग्रंथ-मुहूर्तमुक्तावली।[प्र. ० रि०] विवरण-जादूनाथ गोस्वामी के वंशज । नाम-(१४०१ ) गिरिधारी ब्राह्मण, सुलताँपुर।
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श्रज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम - ( ४०१ ) गिरिधारी, सातनपुर ।
१
暴
विवरण - शांत और श्रृंगाररस के अच्छे कवि थे
I
नाम - ( १४०२ ) मिरिवरदान, चारण, मारवाड़ । • ग्रंथ - डिंगलभाषा के फुटकर गीत कवित्त । नाम - ( १४०३ ) गीध ।
विवरण - पहेली वगैरह छंदों में कही हैं । नाम - ( १४०४ ) गुणसागर जैन ।
ग्रंथ - श्रीसत्रहभेद पूजा । [ खोज ११०० ] . नाम - ( १४०५ ) गुमानी, पटनाबासी । नाम --- ( १४०६ ) गुरुदास । ग्रंथ - रत्नपरीक्षा । [ प्र० त्रै०रि० ]
नाम - ( १४०७ ) गुरुदीन ।
ग्रंथ - ( १ ) श्रीरामचरित्र राग सैरा । [ खोज १६०५ ( २ ) रामाश्वमेध यज्ञ 1. [ द्वि० बै०रि० ] विवरण—श्राल्हा-छंद में वर्णन है । साधारण श्रेणीं । नाम - ( १४०८ ) गुलाबराम । विवरण- साधारण श्रेणी ।
नाम - ( १४०९ ) गुलाबलाल । ग्रंथ–सभामंडलसार । अष्टक [ तृ० त्रै रि० ] विवरण- - गोस्वामी ।
६६
नाम - ( १४१० ) गुलालसिंह । नाम - ( १४११ ) गोडीदास साधु ।
ग्रंथ- -भजन ।
नाम - ( १४,११ ) गोपाल ।
ग्रंथ -- परमादी बिनती । [ च० त्रै०रि० ]
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मिश्र बंधु विनोद
नाम - ( १४१२ ) गोपालदत्त ।
ग्रंथ - शृंगारपचीसी । [ प्र० त्रै०रि० ] नाम - ( १४१३ ) गोपालसिंह व्रजवासी । ग्रंथ - ( १ ) तुलसीशब्दार्थप्रकाश, ( २ ) अष्टछाप संग्रह | नामम - ( १४१४ ) गोपीचंद मगही कवि ।
३६८
विवरण - इनका नाम डॉक्टर ग्रियर्सन साहब ने लिंग्विस्टिक सर्वे में लिखा है ।
नाम - ( १४१५ ) गोवर्धनदास कायस्थः ।
ग्रंथ - स्फुट ।
नाम - ( १४३५ ) गोविंदप्रभु ।
ग्रंथ -- गीतचिंतामणि । [ तृ० त्रै०रि० ]
विवरण – गौड़ संप्रदाय के वैष्णव थे ।
नाम - ( १४१६ ) गोविंदसहाय कायस्थ, सिकंदराबाद | ग्रंथ -- श्यामकेलि ।
नाम – ( १४१७ ) गोसाईं राजपूतानावाले ।
विवरण - निम्न श्रेणी ।
नाम - ( १४१८ ) गौरी | देखो नं० ( १६१४ ) ग्रंथ - आदित्यकथा बड़ी । [ खोज १६०० 1 -( ) गंग ।
१४१८
नाम:
ग्रंथ -- सुदामाचरित । [ खोज १६०० ]
विवरण – दादूपंथी ।
नाम - ( १४१९) गंगन ।
ग्रंथ - फुटकर कविता ।
नाम - ( १४२० ) गंगल ।
ग्रंथ -- फुटकर कविता ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण नाम-(१४२१ ) गंगा। ग्रंथ-(१) सुदामाचरित्र, (२.) विष्णुपद । [प्र. ० रि•] विवरण-स्त्री-कवि बुंदेलखंड की। नाम-(१४२२) गंगाधर, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-उपसतसैया ( सतसई पर कुंडलिया लिखी है)। विवरण-साधारण श्रेणी के कवि हैं। नाम-(१४२३) घमरीदासजी साधु । ग्रंथ-नाममाहात्म्य । नाम-( १४२४) घमंडीराम साधु । ग्रंथ-भजन । नाम-( १४२५ ) घाटमदास साधु । । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम--( १४२६ ) घासी भट्ट । नाम-(१४२७ ) घासीराम उपाध्याय, समथर, बुंदेलखंड । ग्रंथ-ऋषिपंचमी को कथा । [प्र. त्रै० रि] विवरण-(दोहा चौपाई ) साधारण । नाम-(१४२८).चक्रपाणि मैथिल । नाम-(१४२८ ) चतुरअलि । ग्रंथ–समयप्रबंध । [ तृ० त्रै० रि०.] . विवरण-गोस्वामी धनश्यामलान के शिष्य तय
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सप्रदाय
नाम-(१४२९) चतुर्भुज मैथिल । : ग्रंथ-भवानीस्तुति । [प्र० ० रि०] : नाम-(१४२६ ) चतुर सुजान। . ग्रंथ-फूल चेतावनी। [प्र. त्रै० रि० ]
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- मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(४३६ ) चतुरसाल । ग्रंथ-इनके बनाए हुए निम्नलिखित दो ग्रंथ हैं-(१) वृत्ता
लकारमंजरी, (२) पद्यसारोदर । नाम-(१४३०) चरपट जोगी। ग्रंथ-फुटकर बानी ज्ञानमार्ग की। नाम-(१४३१ ) चानी। ग्रंथ-दोहे। नाम-(१४३२) चालकदान चारण । . ग्रंथ-श्राबू राठौर का यश । विवरण-आबू राठौरजी का यश और इतिहास का वर्णन । नाम-(१४३३ ) चिंतामणि । ग्रंथ-ज्ञानसहेला। गीतगोविंदार्थ सूचनिका । बत्तीस अक्षरी ।
[प्र० त्रै० रि०] विवरण-काशी के साथ बनाया । नाम-(१४३३ ) चिम्मनसिंह । ग्रंथ-प्रश्नोत्तर नीतिशतक । [प्र० त्रै० रि०] नाम-(१४३४ ) चेतनदासजी स्वामी । ग्रंथ-बानी। नाम-(१४३४ ) चेन। ग्रंथ–स्फुट दोहा । [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१४३५) चोखे। . ग्रंथ-निम्न श्रेणी। नाम-(१४३६ ) चंद । ग्रंथ-पिंगल । [खोज १६०५ ] विवरण-साधारण श्रेणी।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम-(१४३७ ) चंद्रदास । ग्रंथ-रामायण भाषा (पृ० १० पद्य) नाम-(१४३८) चंद्ररसकुंद । ग्रंथ-गुणवतीचंद्रिका (पृ० १६४ ) ( शृंगार ) [द्वि० ० रि०] विवरण-हीन श्रेणी । । नाम-(१४३९) चंद्रावल । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(१४४०) चिंतामणिदास । ग्रंथ-अंबरीषचरित्र । [ द्वि० ० रि०] विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-(१४४१ ) छत्तन । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१४४२) छत्रपति । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१४४३) छेम। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १४४४ ) छेमकरन अंतर्वदी । इनका ठीक
नं० (११३७ ) है। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१४४५)छोटालाल। . ग्रंथ–फुटकर कविता । . नाम-(१४४६ ) छोटूराम, बाँकीपूर । ग्रंथ–रामकथा । विवरण-गद्य-लेखक। नाम-(१४४७) जगनेस ।
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. 'मिनबंधु-विनोद नाम-(१४४८ ) जगन्नाथ । ग्रंथ-चौरासीबोल। नाम-(१४४८ ) जगन्नाथ भट्ट । .ग्रंथ-रसप्रकाश । [च० ० रि०] नाम-(१४४६ ) जगन्नाथ मिश्र, जौनपुर । ग्रंथ-राजा हरिचंद्र की कथा (पृ० ३६ पद्य)।[द्वि० ० रि०] नाम-(१४५०) जगन्नाथप्रसाद कायस्थ, कुसी जि० मथुरा। ग्रंथ-१० वर्ष की फलरीति । नाम-(१४५१) जगन्नाथप्रसाद कायस्थ, समथर (बँ०ख०) ग्रंथ-व्रजदरशमाला। विवरण-इस ग्रंथ में समथर-नरेश की व्रजयात्रा का वर्णन है। नाम-(१४५१ ) जगवंशराय । ग्रंथ-संग्रह । [च. त्रै० रि०] नाम-(१४५१ ) जतना स्वामी । ग्रंथ-पद्यावली। विवरण--राधावल्लभी। नाम-(१४५२) जनगूजर । ग्रंथ-कृष्णपचीसी। [प्र० त्रै० रि०] . नाम-(१४५३) जनछीतम । विवरण-कवि व भक्त थे। नाम-( १४५४) जनजगदेव । ग्रंथ–ध्रुवचरित्र । [प्र. ० रि०] नाम-(१४५५ ) जनतुलसी। विवरण-भक्त व कवि थे। नाम-(१४५६) जन हमीर।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण ग्रंथ-रामरहस्य । [प्र० ० रि०] नाम-(१४५७) जनहरजीवन साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(१९५७) जपुजी साहब । ग्रंथ-शब्द हज़ारा । [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१४५८) जयनंद मैथिल कायस्थ । नाम--(१४५९ ) जयराम। .. प्रथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१४६० ) जयमंगलप्रसाद । ग्रंथ-गंगाष्टक । [ द्वि० त्रै० रि०] नाम-(१४६१) जयनारायण । ग्रंथ-काशीखंड भाषा। [द्वि० ० रि०] . नाम-(१४६२) जयानंद कायस्थ। ग्रंथ-मैथिल भाषा में स्फुट रचना की है। नाम-(१४६२ ) जादो भक्त । ग्रंथ-फुटकर बानी। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१४६३ ) जानराय साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(२४६३ ) जिनदास पंडित । । ग्रंथ-योगीरासा। [च० ० रि०] नाम-(१४६४) जीवनदास । ग्रंथ-ककहरा। [द्वि० ० रि०] नाम-(१४६५) जुगराज । विवरण-निम्न श्रेणी।
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मिश्रबंधु विनोद
नाम -- (१४६६ ) जुगल किशोर ।
ग्रंथ - जुगल श्राह्निक । [ प्र० त्रै०रि० ] नाम - ( १४६७ ) जुगलदास । इनका ठी ह नं० ( ग्रंथ - निम्न श्रेणी की पद्य रचना की है।
I
नाम – ( १४६७ ) जुगलप्रसाद चौबे ग्रंथ - रामचरित्र दोहावली । [ प्र० त्रै०रि० ] नाम - ( १४६८) जैमलदांस महाराजा । ग्रंथ - ( १ ) जैमलदास ( २ ) जैमलजीरा- पद ।
नाम – ( १४६९ ) जोधाचारण, मारवाड़ ।
ग्रंथ - फुटकर गीत कवित्त ।
३७४
नाम - ( १४६६ ) जंत्रीजी ।
१
ग्रंथ -पद्यावली |
विवरण- राधावल्लभी ।
६२८ १
महाराजाजीरी पदबंध
नाम
ग्रंथ – स्फुट ।
नाम - ( १४७१ ) ज्वालास्वरूप कायस्थ,
- ( १४७० ) ज्वालासहाय ( सेवक ) कायस्थ |
ग्रंथ - रामायण |
नाम – ( १४७ १
१
) है ।
) भंडूदास |
ग्रंथ - बारामासा । [ प्र० त्रै०रि० ]
नाम - ( १४७२ ) टहकन, पंजाबी । इनका ठीक नं ०
ग्रंथ - पांडव का यज्ञ ।
बानी,
सिकंदराबाद |
(४५२) है
नाम - ( १४७३ ) टामसन ।
ग्रंथ - ( १ ) गोलाध्याय, [ खोज १६०४ ] ( २ ) हिंदी - अँग
रेजी कोष ।
·
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प्रज्ञात-कालिक प्रकरण .. नाम-(१४७३ ) टुडरस कवि पुरबिया । ... . चतुरनायिका शिशिर ऋतुमध्ये क्रीडा करत ततच्छन ऐन ; अायो सुभम चहूँ दिसि चितवत कर गहे कनक बनक सुखदैन । रोके मास प्रवास अंबुधर सारंग भवनन् ' पर बैन ; टुडरस कवि अचरज यह दीठो फिरि गयो चतुर समझकर बैन। नाम-(१४७३ ) टोडरमल्ल। ग्रंथ-शृंगार सौरभ, रसचंद्रिका । [च० ० रि• ] नाम-(१४७४) ठाकुरराम । विवरण-हीन श्रेणी। नाम-(१४७५) ढाकन विवरण-साधारण श्रेणी के कवि हैं। नाम- (१४७५ ) तत्त्वकुमार मुनि । ग्रंथ-श्रीगल चौपाई। उदाहरण___श्रादि पुरुष श्रादीसरू, श्रादि राय श्रादेय ;
परमात्मा परमेसरू, नमो-नमो नाभेय। . तासि सीस मुनि तत्त्वकुमार ; तिन ए गायो चरित रसाल । नाम-( १४७६) तार ( ताहर) खान मुसलमान । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-( १४७७ ) तारपानि । ग्रंथ-भागीरथी-लीला। [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१४१० ) ताराचंद राव । ग्रंथ-ब्रजचंद्र चंद्रिका । [च. त्रै० रि०] नाम-(१४७८) तीकम (टीकम ) दास साधु । ग्रंथ-फुटकर कवित्त ।
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१७. .
मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(१४७९) तुलछराय । नाम-(१४८०) तेजसी राजपूत, मारवाड़। अंथ-फुटकर गोत कवित्त । नाम-(१४८१ ) तैलंग भट्ट, जैसलमेर। ग्रंथ-रणजीत-रत्रमाला वैद्यक । विवरण-ये महारावल रणजीतसिंह जैसलमेर-नरेश के दरबार में
थे। साधारण श्रेणी संवत् १८२० तक वहाँ कोई महाराजा रणजीतसिंह नहीं हुए । शायद इसके
पीछे के हों। नाम- (१४८१ ) त्रिविक्रमदास । ग्रंथ-वसंतराज शकुन शास्त्र भाषा । नाम--(१४८२) दत्त । इनका ठीक नंबर (६१७ ) है। ग्रंथ-स्वरोदय । नाम-(१४८३) दयाकृष्ण । [प्र० त्रै० रि० ] ग्रंथ-(१) पदावली, (२) स्फुट कवित्त । पिंगल, बलदेव
तिलास सं० १६०२ में मरे । ग्रंथ सं० १८६८ में रचा। नाम-(१४८४) दयादास । ग्रंथ-(१) जनकपचासा, (२) विनयमाला [प्र. त्रै • रि.] नाम-(१४८४) दयानिधि । ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१४८५ ) दयाल कायस्थ, बनारस । ग्रंथ-राशिमाला। नाम-(१४८६) दयासागर सूरि । ( देखो नं० 35 ) ग्रंथ-धर्मदत्तचरित्र।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण विवरण-जैन कवि हैं। [खोज १६..] विवरण-गद्य-लेखक थे। नाम-(१४८७ ) दर्शनलाल कायस्थ । ग्रंथ-रामायण तुलसी-कृत । [वि. त्रै० रि०] विवरण-बनारस-नरेश महाराजा ईश्वरीप्रसादसिंह के यहाँ ।
नौकर थे। नाम-(१५८८ ) दसानंद । ग्रंथ-हरदौलजी को ख़्याल । नाम-(१४८९) दाक । विवरण खेती-संबंधी काव्य है। नाम-( १४९०) दास अनंत । नाम-( १४९१ ) दास गोविंद । विवरण-भक्त व कवि थे। नाम-( १४९२) दासी। विवरण-भक्तिन कवि । नाम-(१४६३ ) दिवाकर । नाम-(१४९३ ) दीनदास । (देखो नं. १२२१) ग्रंथ-गोकुल्नकांड [प्र. ० रि०] नाम-(१४६३ ) दीहल । विवरण-कुंडला ग्राम काठियावाड़-निवासी । जोति के मुसल
मान थे। नाम-(१४९४) दुर्गाप्रसाद । ग्रंथ-अजीतसिंह फतेहरस अर्थात् नायकरासो। [खोज १६०० ] नाम-(१४९५) दुर्जनदास साधु । ग्रंथ–रागमाला [प्र. त्रै० रि०] .
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६७८
मिश्र बंधु - विनोद
नाम - ( १४९६ ) दूलनदास ।
ग्रंथ—शब्दावली ( पृ० १५४ ) इनका ठीक नं० ( २३०३ ) है ।
विवरण - रामनाममाहात्म्य |
नाम - ( १४९७ ) देवनाथ |
नाम - ( १४९८ ) देवमणि ।
ग्रंथ - (१) चाणक्यनीति भाषा ( १६ अध्याय तक ), [ प्र० ०रि० ] ( २ ) चरनायके [ द्वि० त्रै०रि० ] ( पृ० १२ ) । विवरण - राजनीति |
नाम - ( १४९९ ) देवराम |
ग्रंथ - फुटकर कवित्त ।
धुनिक संग्रह ग्रंथों में इनकी कविता बहुत छपी है । जैसे कि हफ़ीज़ लाख़ाँ का हज़ारा । सुंदरी सर्वस्व । नखशिख हज़ारा । षट् ऋतु हज़ारा । मनोजमंजरी | मनोरंजन संग्रह आदिक छुपे हुए ग्रंथों इनकी कविता बहुत I
नाम - ( १५०० ) देवीदत्त ।
ग्रंथ — नरहरिचंपू |
-
नाम - ( १५०१ ) देवीदत्तराय ।
ग्रंथ — महाभारत भाषा ।
नाम - ( १५०२ ) देवोदास । (देखो नं०__
१२६०
१
ग्रंथ - ( १ ) भाषा भागवत द्वादश स्कंध, [ खोज १३०४ ]
(२) दामोदर - लीला ( पृ० ६६ पद्य ) ।
विवरण - कृष्ण - विषयक |
नाम - ( १५०३ ) देवीप्रसाद मुजफ़्फ़रपुर ।
ग्रंथ - प्रवीण - पथिक ।
विवरण – गद्य लेखक थे ।
°)
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अज्ञात-कालिक प्रकरण नाम-( १५०४ ) द्वारिकादास साधु राधावल्लभी। ग्रंथ--फुटकर भजन । नाम-(१५०५ ) द्वारिकेश (ब्रज)। ग्रंथ -द्वारिकेशजी की भावना । [प्र. त्रै० रि० ] नित्य कृत्य
[तृ• त्रै० रि०] नाम-(१५०६ ) द्विजकिशोर । ग्रंथ-तेरहमासी। नाम-(१५०७ ) द्विजनदास । ग्रंथ-रागमाला। नाम-( १५०८) द्विजनंद । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-(१५०६ ) द्विजराम । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-( १५१० ) धरणीधर । ग्रंथ-शब्दप्रकाश (पृ. २७०)। [द्वि० त्रै० रि०] विवरण-ज्ञान-भक्ति का वर्णन है। नाम-(१५११) धरमपाल । ग्रंथ-छछदरि रायसो। नाम-(१५१२.) धोंधी। ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१५१३ ) ध्यानदास साधु । [ खोज १९०१] ग्रंथ-(१) हरिचंदशत, (२) दानलीला, (३) मानलीला ।
[प्र० त्रै० रि०] नाम-(१५१४) नकुल । ग्रंथ-सालिहोत्र । [ द्वि० त्रै० रि०]
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मित्रवधु-विनोद विवरण-१८वीं शताब्दी के ज्ञात होते हैं । ' नाम-(१५१५ ) नजमी। नाम-(१५१६ ) नरपाल । ग्रंथ—समरसिंधु । नाम-(१५१७ ) नरमल । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-( १५१८ ) नरहरिदास बख्शी । ग्रंथ-बारहमासी । [प्र० त्रै० रि० ] नाम-( १५१९) नरिंद। . ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-( १५२० ) नवनिधि-शिष्य कबीर। ग्रंथ-संकटमोचन (पृ० १२, पद्य )। [द्वि० त्रै० रि० ] नाम-(१५२१ ) नवलकिशोर । विवरण-साधारण श्रेणी।। नाम-(१५२१ ) नवलसखी । ग्रंथ-पद्यावली। विवरण-राधावल्लभी। नाम-( १५२२) नापाचारण, मारवाड़ । ग्रंथ–फुटकर गीत, कवित्त । नाम-( १५२३) नारायणदास साधु । ग्रंथ-भजन । . नाम-(१५२४ ) नारायणराव भट्ट, बनारस । ग्रंथ-भाषाभूषण का तिलक । विवरण-ये भट्ट सरदार कवि के शिष्य थे। इनका समय सरदार
कवि के कविता काल के कुछ पीछे है ।
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EN
प्रशात-बाविक करत
___ नामः-(१५२५ ) नित्यनाथ । देखो ने. (२४११) ग्रंथ-मंत्रखंड-रसरत्नाकर। विवरण-तंत्र। [खोज १६०३ ] नाम-( १५२६ ) निर्गुण साधु । ग्रंथ-भजनकीर्तन । नाम-( १५२७ ) नेही। - विवरण-तोष-श्रेणी । संभव है, यह नेही वही हों, जिनका छंद
अलंकाररत्नाकर में पाया है। नाम-( १५२८ ) नैनूदास साधु । ग्रंथ-भजन । नाम-( १५२९) नौबतराय कायस्थ । ग्रंथ-तत्त्वज्ञानदर्शावनी। नाम-(१५२६ ) नंदकवि ।। ग्रंथ-सगारथ लीला। [प्र. त्रै० रि०] नाम-( १५२६ ) । नंदकुमार गोस्वामी । प्रेममंजरी
[तृ• त्रै० रि०] नाम-(१५३०) नंदकिशोर । ग्रंथ–रामकृष्ण-गुणमाल । विवरण-तोष-श्रेणी। नाम-(१५३० ) नंददास । ग्रंथ-रूपमंजरी । [प्र.श्रे. रि०] नाम~~(१५३१) नंदीपति । ग्रंथ-मैथिल कवि। नाम-(१५३२) पखान । नाम-( १५३३ ) पजन कुँवरि ।
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१८२
• मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-बारहमासी [प्र. त्रै० रि० ] विवरण-बुंदेलखंडी बोली। नाम-(१५३३) पदुमदास ।
इनका बनाया हुअा "काव्य-मंजरी" नाम का एक छोटा-सा ग्रंथ है। नाम-(१५३३ ) पधान । "शालिहोत्र" ग्रंथ बनाया नाम-( १५३४ ) पनजी चारण, मारवाड़ । ग्रंथ-फुटकर गीत, कवित्त । नाम-(१५३४) परबत धर्मार्द्ध। ग्रंथ-समाधितंत्र। [च. त्रै० रि०] नाम-(१५३५ ) परमल्ल, शंकर के पुत्र । ग्रंथ-श्रीपालचरित्र । नाम-(१५३६ ) परमानंद भट्ट । ग्रंथ-~-सूदनचरित्र नाम-(१५३७) परशुराम महाराजा । इनका ठीक
नं. (३०६ ) है। ग्रंथ-(१) हरियशभजन, (२) बालनचरित्र, (३) महा
राजा परसरामजी की बानी, (४) नखशिख (१) खोज
१६०२ (२) खोज १६०३ नाम-(१५३.८ ) परागीलाल कायस्थ । ग्रंथ-भवानीस्तोत्र। नाम-( १५३९ ) परिपूर्णदास। ग्रंथ-तिरजा ( साखी हिंडोला आदि का गद्यानुवाद है ) [द्वि०
त्रै रि०]
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१८३
अज्ञात-कालिक प्रकरण
१८३ विवरण-कबीरपंथी। नाम-(१५४०) पलटू साहब ( कबीरपंथी)। ग्रंथ-कुंडलिया पलटू साहब (पृ० १०)[ द्वि० ० रि० ] बानी । विवरण-कबीरपंथी हैं। नाम-(१५४१) पाडषान चारण, आड़ा, मारवाड़। ग्रंथ-गोगादेल्पक। विवरण–राठौर गोगादे राजा का यश । नाम-(१५४२) पारसराम । ग्रंथ-नखशिख । नाम-(१५४३) पीथो चारण । ग्रंथ-फुटकल गीत, कवित्त। नाम-(१५४४ ) पीपाजी। ग्रंथ-पीपाजी की बानी । [ द्वि० ० रि०] विवरण-दादूपंथी । ये १४५७वाले पीपाजी से पृथक् जान
नाम-(१५४४ ) पुरुषोत्तम । ग्रंथ-उत्सवे, भक्तमाल माहात्म्य । विवरण-राधावल्लभी थे। नाम-(१५४५) पूरन चंद । ग्रंथ–रामरहस्य रामायण। नाम-(१५४६ ) पूरण मिश्र । ग्रंथ-(१) रागनिरूपण [ खोज १६०४ ], (२) नादोदधि
(नादार्णव )। नाम-(१५४६ ) पूरण मिश्र । इन्होंने 'राजनिरूपण' नामक
ग्रंथ बनाया है।
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१८४
मिश्रबंधु-विनोद नाम-(१५४७ ) पृथ्वीनाथ । ग्रंथ-(.) सिसमोध अात्मप्रचार परिचय [ खोज १६०२]
योगग्रंथ, (२) फुटकर छंद । नाम-(१५४८) पृथ्वीराज चारण । ग्रंथ-गण अभयविलास। नाम- ( १५४९) पृथ्वीराज प्रधान कायस्थ, बुंदेलखंडी । ग्रंथ-शालिहोत्र। विवरण-हीन श्रेणी । [प्र० ० रि०] नाम-( १५५०) प्रधान केशवराय । ग्रंथ-शालिहोत्र भाषा। नाम-( १५५० ) प्रयागदत्त । ग्रंथ-रामचंद्र के विवाह का बारहमासा । [तृ० त्रै रि०] विवरण-हीन श्रेणी। नाम-( १५५१) प्रिया सखी। ग्रंथ-रसरत्नमंजरी । [ द्वि० त्रै० रि० विवरण-अयोध्या के महंत, रामानुजी संप्रदाय के थे। नाम-(१५५२) प्रियादास । (राधावल्लभी संप्रदाय) ग्रंथ-(१) प्रियादासजी की वार्ता, (२) स्फुट पद टीका, (३)
सेवादर्पण, (४) तिथिनिर्णय, (५) भाषावर्षोत्सव,
[द्वि० ० रि०] (६) चाहबेल । विवरण-पिता का नाम था श्रीनाथ । पहले पटना में रहते थे
फिर वृदावन में रहने लगे। नाम-(१५५३) प्रेमकेश्वरदास । ग्रंथ-द्वादश स्कंध भागवत भाषा । नाम-( १५५४ ) प्रेमनाथ इंद्रावती ।
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९८५
अज्ञात-कालिक प्रकरण ग्रंथ-पदावली (पृ. २७६ पद्य)। विवरण-आप योगी थे। आपकी समाधि रियासत पन्ना में है। नाम-(१५५४ ) फ़क़ीरुद्दीन । ग्रंथ—स्फुट कवित्त । विवरण-सूरतवासी सिपाही थे। नाम-(१५५५ ) फतेहसिंह। नाम-( १५५६ ) फूली बाई, उपनाम अनंतदास । ग्रंथ-फूली बाई की परची। नाम-(१५५७ ) फेरन । विवरण-तोष-श्रेणी। नाम-( १५५८) बकसी। विवरण-हीन श्रेणी। नाम-(१५५९) वखताजी चारण, (खिडिया) मारवाड़। ग्रंथ-फुटकर गीत। नाम-(१५६०) बजरंग। विवरण-हीन श्रेणी। नाम-(१५६१ ) वजहन । विवरण-साधारण श्रेणा । नाम-(१५६२) बद्रीदास साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(१५६३) बनानाथ जोगी। अथ-बानी ( एक छंद)। विवरण-श्लोक-संख्या २८७ । विषय उपदेश ज्ञान । नाम-(१५६३ ) बनारसी। ग्रंथ-साधुवंदना । [च० ० रि०]
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१८६ .
मिश्रबंधु-विनोद नाम-( १५६४ ) बरगराय । ग्रंथ-गोपाचलकथा। विवरण-ग्वालियर की कथा इसमें है । नाम-(१५६५) बरजोर प्रधान कायस्थ, लुगासी बुंदेलखंड । ग्रंथ-रुक्मिणीमंगल। नाम-( १५६६ ) बलदेवप्रसद कायस्थ, मॅझोली, जिला
. गोरखपुर । ग्रंथ-चित्रगुप्तपचीसी। नाम-(१५६६ ) बल्लभ । ग्रंथ-गूढ़ शतक । [च० ० रि०] नाम-(१५६६ ) बलवंतसिंह । ग्रंथ-चित्रविनोद । [प्र० ० रि०] विवरण-अजयगढ़वासी। नाम-(१५६७ ) बलिदास । ग्रंथ-दानलीला [प्र. ० रि०] नाम-(१५६८ ) बल्लू चारण, मारवाड़। ग्रंथ-फुटकर गीत । नाम-(१५६९) बाघा चारण, मारवाड़ । ग्रंथ-फुटकर गीत। नाम-(१५७०) बाज । ग्रंथ-फुटकर कविता । नाम-( १५७१ ) बाजाराम । ग्रंथ-भजन । नाम-( १५७२ ) वाजिदजी। अंथ-वाजिदजी के भरला।
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अज्ञात कालिक प्रकरण
) बानी ।
१५७२ १
नाम – (
ग्रंथ - भूपाल भूषण ।
विवरण – उनियारा जयपूर के ठाकुर भूपालसिंह के यहाँ थे ।
-
नाम - ( १५७३ ) बाबासाहब, नेपाल |
१८५०
ग्रंथ - ( १ ) उपदंशारि ( पृ० ७० गद्य ), (२) अमृतसंजीवनी ( पृष्ठ ४६ गद्य ), ( ३ ) ज्वरचिकित्साप्रकरण ( पृ० २५२ गद्य ), ( ४ ) स्त्रीरोगचिकित्सा ( पृ० १४७ गद्य ) । विवरण – वैद्यक विषय श्रापने कहा है ।
नाम - ( १५७४ ) बाबू भट्ट ।
नाम - ( १५७५ ) बालकदास साधु ।
ग्रंथ - (१) फुंटकर भजन, (२) सुदामा चरित्र ( ग्रंथ - काल अज्ञात । ग्रंथ का लेखन काल १८३३ A. D.) सामुद्रिक
विवरण - क़दम के शिष्य । [ प्र० त्रै०रि० ]
नाम - ( १५७६ ) बालकृष्णदासजी साधु ।
ग्रंथ - राजप्रशस्ति का उल्था ।
विवरण - ये विष्णुस्वामी - संप्रदाय के वैष्णव थे ।
नाम - ( १५७७ ) बालगोविंद कायस्थ, इलाहाबाद ।
ग्रंथ - श्रीमानंदलहरी ।
विवरण - जिला जौनपुर के मौजे परशुरामपुर में ज़मींदारी । इनकी प्राचीन जागीर थी ।
नाम - ( १५७८ ) बालचंद जैन । देखो नं० (६७) ग्रंथ - रामसीताचरित्र |
नाम – (१५७८) बालसनेहीदास ।
ग्रंथ - सहज मानलीला । [ तृ० त्रै०रि० ]
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.. मिश्रबंधु-विनोद विवरण-गोस्वामी समझ पड़ते हैं। नाम--(१५७८) बावरी सखी। ग्रंथ-पद्यावली। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१५७९) वासुदेवलाल । ग्रंथ-हिंदी-इतिहाससार । नाम-(१५८०) वाहिद । विवरण-तोष-श्रेणी। नाम-(१५८१ ) विट्ठल कवि । विवरण-शृंगाररस की कविता की है, जो निम्न श्रेणी की है। नाम-(१५८२ ) विद्यानाथ अंतर्वेदी । नाम-(१५८३) विनायकलाल कायस्थ, छपरा सिउनी,
मध्यप्रदेश। ग्रंथ-(१) चंद्रभागा, (२) वीरविनोद उपन्यास । नाम-(१५८४) विश्वनाथ बंदीजन, टिकई जिला राय
बरेली। विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-( १५८५ ) विश्वेश्वर । विवरण-निम्न श्रेणी, वैद्यक का ग्रंथ बनाया है। नाम-(१५८६ ) विश्वेश्वरदत्त पाँडे, बिलासपुर । ग्रंथ-(१) हितोपदेशसार, (२) दत्तात्रेयोपदेश, (३) हनु
मानस्तोत्र, (४) रामरक्षा । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१५८७ ) विष्णुदत्त महापात्र, विंध्याचल । ग्रंथ-दुर्गाशतक (पृ. २८ पद्य )। [द्वि० ० रि०]
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अज्ञात-कालिक प्रकरण नाम-( १५८८ ) विष्णुस्वामी बालकृष्णजी। ग्रंथ-अजितोदय-भाषा । नाम-( १५८९ ) बिसंभर । नाम-(१५८६ ) विहारीलाल । ग्रंथ-सतसई पुस्तक खंडित है। केवल नखशिख वर्णन का भाग
उपलब्ध है। विवरण-आप जाति के खरे कायस्थ हैं । आपके पिता का नाम
मोहनलाल है। आपके वंश-नायक लाहरजी, शाहजहाँ
के दरबार में दीवान थे। उदाहरणलै सुमना सुत चीकनी, कारे बार सँवारि । मन बिछलन मन हरन बखि, गॅथी बेनी नारि ॥ १ ॥ सव मुख अरु शशि में सखी, रह्यो एक ही चीन्ह । श्याम बिंदु दैकै सनिक, भलो इंदु सम कीन्ह ॥२॥ भली करी चूंघट अरी, लोपन गोपन काज। चटक चौगुनो होत है, ढपे आँखते बाज ॥ ३ ॥ रवि शशि औ तव रूप को, तौल्यो तौलनहार । तूं गंभीर जग में रही, उठिगे श्रोछे भार ॥ ४ ॥ नहिं बचात चुभि जात हिय, अधिक चुभात सोहात । बलि तव चितवन बान की, नई अनोखी बात ॥५॥ नाम- १५८६ ) विहारीदास । ग्रंथ-राधाकृष्ण की रति । नाम-(११९ ) विहारीलाल भट्ट । ग्रंथ-संगीतदर्पण। विवरण-दतियावासी। नाम-(१५९०) बिंदादत्त ।
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६६०
मिश्रबंधु-विनोद माम-(१५९१) बीठू (जी) चारण, ग्राम जागलू, जिला
बीकानेर । ग्रंथ-राव खीमसी और कवरसी की वार्ता । विवरण-आश्रयदाता राव खीमसी ( साखल ) नाम-( १५९२ ) बुद्धिसेन । विवरण-निम्न श्रेणी के कवि थे। नाम-(१५९३ ) बुधानंद । ग्रंथ-फुटकर कविता। विवरण-भक्त थे। नाम-(१५९४ ) बुलाकीदास । नाम-(१५९५ ) बेनीमाधव भट्ट । नाम-(१५९६ ) बेसाहूराम । ग्रंथ-नाममाला । [ खोज १६०३] नाम-(१५९७ ) बैजनाथ दीक्षित, बदरका बैसवाड़ा । विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-(१५९८ ) बैन । नाम-(१५९९) बोध । विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-(१६०० ) वृदावन कायस्थ, ताईकुआँ, झाँसी। ग्रंथ-(१) कृष्णचरितावनी, (२) दोहावलीप्रदीपिका,
(३) रामचरितावली । नाम-(१६०१ ) बंका। . ग्रंथ-कृष्णविलास (पद्य)। [प्र. ० रि०] विवरण साधारण श्रेणी ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम-(१६०२) व्यकटेशजू। ग्रंथ-प्रात्माप्रबोध । नाम-(१६०२ ) ब्रजगोपालदास । ग्रंथ-(१) राधासुधानिधि की टीका, (२) हित फुटकर पाणी
की टीका। विवरण-राधावल्लभी। नाम-( १६०३) व्रजनंद । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम---( १६०४ ) ब्रजवल्लभदास । ग्रंथ-(.) प्रहलादचरित्र, (२) सुदामाचरित्र, (३) अजा
मिलचरित्र । [ द्वि० त्रै० रि०] विवरण-हीन श्रेणी। नाम-(१६०४) व्रजभानु दीक्षित । ग्रंथ-वल्लभाख्यान की टीका । [च. त्रै० रि०] नाम-( १६०५ ) ब्रजेश, बुंदेलखंडी। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१६०६) ब्रह्मदास । ग्रंथ-ब्रह्मदासजी के छंद । नाम-(१६०६ ) ब्रह्मविलास । ग्रंथ-ब्रह्मविलास के कवित्त । [च० ० रि०] नाम-(१६०७) ब्रह्मज्ञानेंद्र । ग्रंथ-ब्रह्मविलास । [ द्वि० ० रि०] विवरण-हीन श्रेणी। . नाम-(१६०८) भगत । ग्रंथ-भक्तचालीसा । (पृ०६)[द्वि० ० रि०]
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मिश्रबंधु-विनोद
नाम-( १६०९) भगवानदास । नाम-( १६१० ) भड्डरी, शाहाबाद (विहार)। ग्रंथ-मडुरीपुराण। विवरण-ज्योतिष शकुनावली बनाई । इनकी भाषा अवधी
ग्रामीण है। इस कारण ये बिहार के नहीं जान पड़ते ।
निम्न श्रेणी । [ खोज १६००] नाम-(१६११) भद्र। ग्रंथ-नखशिख । [खोज १६० नाम-(१६१२ ) भद्रसेन । ग्रंथ-छंदसंग्रह । चंदन मलयागिर वार्ता । [खोज १६०२ ] नाम-( १६१३ ) भरथ (भरत)। ग्रंथ-हनूमानबिरदावली ( पृ. २४ पद्य) । उषा अनिरुद्ध
की कथा। विवरण-साधारण श्रेणी। [द्वि० ० रि०] नाम-(१६१३ ) भवन कवि, बेंती । ग्रंथ-शृंगाररत्नाकर। नाम-(१६१४ ) भवानीदत्त । ग्रंथ–दुघरिया मुहूर्त भाषा। नाम-(१६१४ ) भाऊ कवि । ग्रंथ-श्रादित्य कथा बड़ी। विवरण-मलूक के पुत्र जैन थे। इनकी माता का नाम
गौरी था। नाम-( १६१५ ) भाऊदास साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(१६१५) भिखंजन दास ।
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अज्ञात-कालिंक प्रकरण ग्रंथ-सौरंग की कथा। [प्र. ०.रि०] नाम-(१६१६ ) भीखजन ब्राह्मण । ग्रंथ-बावनी। विवरण-नीति, ज्ञानोपदेश । श्लोक-संख्या १००। नाम-(१६१७) भीखूजी। ग्रंथ-हुडीराबोल। विवरण-राजपूतानी भाषा के कवि। . नाम-( १६१८) भूधरमल । ग्रंथ-भूपाल चौबीसी। [खोज १६०० ] नाम-(१६१६ ) भूप, शहजादपुर । ग्रंथ-चंपू सामुद्रिक भाषा । [खोज १९०३ ] नाम-(१६२०) भेख। ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१६२१ ) भैरौं कवि, लुहार सीकर। ग्रंथ-स्फुट । विवरण-खेतड़ी के राजा बाघसिंह की प्रशंसा में बहुत-से छंद
बनाए थे । साधारण श्रेणी। नाम-( १६२१ ) भोरी सखी। ग्रंथ-पद्यावली। विवरण-राधावल्लभी। नाम-( १६२२ ) भोलानाथ, कन्नौज। ग्रंथ-(१) बैतालपचीसी, (२) भाषा लीलावती [प्र० ० रि०] विवरण-दीक्षित थे। नाम-(५६३३ ) मकसूदन गिर गोस्वामी। ग्रंथ-वैद्यकसार । [पं० त्रै० रि०]
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( १६२३ ) मतिरामजी ।
ग्रंथ - कविरत्नमालिका ।
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नाम - ( १६२४ ) मदनगोपाल, चरखारीवाले । विवरण - हीन श्रेणी ।
नाम - ( १६२५ ) मदनसिंह कायस्थ, अजयगढ़ ।
ग्रंथ — स्फुट ।
विवरण - राजकुमारों के संरक्षक थे।
नाम - ( १६२६ ) मननिधि |
' विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( १६२६ ) मनमोहन ।
१
ग्रंथ - रसशिरोमणि । [ पं० त्रै०रि० ]
नाम - ( १६२७ ) मनरस ।
ग्रंथ — फुटकर कवित्त ।
नाम - ( १६२८ ) मन्य ।
ग्रंथ - रसकुंड । [ द्वि० त्रै०रि० ]
विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( १६२९ ) महावीरप्रसाद कायस्थ, भागलपूर 1
ग्रंथ - ज्ञानप्रभाकर ।
नाम - ( १६३० ) महासिंह राजपूत । ग्रंथ - स्फुट कविता |
नाम - ( १६३१ ) महीपति मैथिल ।
नाम - ( १६३२ ) मातादीन कायस्थ, लखनऊ ।
ग्रंथ - ( १ ) ख़यालात मातादीन, ( २ ) ख़याल राजा भरथरी ।
नाम - ( १६३३ ) माधवप्रसाद ।
ग्रंथ - काशीयात्रा । [ द्वि० त्रै०रि० ]
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम-( १६३४) माधवराम । ग्रंथ-माधवराम-कुंडलिया (पृ० १८०)। नाम-( १६३५ ) माधवनारायण, उपनाम केशन मैथिल । विवरण-राजा प्रतापसिंह के यहाँ थे । नाम-( १६३६) मानिकदास माथुर कवि । ग्रंथ-(१) मानिकबोध, (२) कवित्तप्रबंध । [खोज ११०] विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१६३६ ) मीरन। इनकी कविता छपे हुए बहुत-से संग्रह ग्रंथों में है। इनकी कविता का नमूनाहों मनमोहन सों मिलि कै करती उहाँ केलि धनी तरु छाही; सो सुख "मीरन" कासों कहौं मन मारि मिसूसनि ही मुरमाहीं। पात गए झरि धूम के पुंजन कूह परी सिगरे बन माहीं; ग्राम के लोग महा निरदै जो पलासन कोड बुझावत नाहीं।
"मीरन" बिछुरत ही पिया, उलट गयो संसार ;
चंदन, चंदा, चाँदिनी, भए जरावनहार । नाम-(१६३६ ) मिश्र । ग्रंथ-शाहनामा । [खोज १९०४ ] विवरण-युधिष्ठिर से शाहमालम पर्यंत राज्य-परंपरा तथा उसका
समय निरूपण । नाम-(१६३६) मीठाजी। ग्रंथ-पद्यावली। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१६३७ ) मुकुंदलाल ( जौहरी ) कायस्थ
काकोरी, लखनऊ
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मिश्रबंधु-विनोद
ग्रंथ-करीमा भाषा पद्य । विवरण-फारसी के दो-दो पद्यों के अनंतर हिंदी का एक-एक
दोहा मन प्रसन्नकारक बनाया है। नाम-(१६३८ ) मुनि, ब्राह्मण फतेहपुर । ग्रंथ-राम-रावण का युद्ध । सीताराम विवेक । [ द्वि० ० रि०] नाम-(१६३९) मुनिलाल । इनका ठीक नंबर अब
नाम-(१६४०) मुनी। ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१६४१ ) मुरलीदास साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन। नाम-(१६४१ ) मुरलीधर । ग्रंथ-श्रीसाहिबजी की कविता । [प्र० ० रि० ] विवरण-प्रनामी संप्रदाय के थे। नाम-( १६४२ ) मुरलीराम साधु । ग्रंथ-(१)चितावनी सारबोध, (२)साखियाँ ज्ञान ब्रह्म को अंग। नाम-(१६४३ ) मुरलीराम । ग्रंथ-महाराज मुरलीराम जीरा पद । [ खोज १६०२] नाम-(१६४३ ) मुरली सखी। ग्रंथ-भावनाशतक। विवरण-राधावल्लभी। नाम-( १६४४ ) मुरारोदास साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन-कीर्तन । नाम-(१६४५) मूरतिराम । अंथ-सार्धा श्रीमूरतिराम जीरा पद । [खोज १६०२]
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३१७
অবাৱিক সক नाम-(१६४६) मेघराज मुनि, मु० फगवाड़ा। ग्रंथ-मेघविनोद (पृ० ४१८ पद्य ) [द्वि० ० रि०] विवरण-वैद्यक । नाम-(१६४७ ) मेणा भाट । ग्रंथ-फुटकर कवित्त। नाम-(१६४७ ) मोलवी साहब । ग्रंथ-दूषण उल्लास । [प्र. ० रि०] . नाम-(१६४८) मोहकम । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१६४९) मोहनदास । ग्रंथ-(.) कृष्णचंद्रिका, (२) भागवत दशम स्कंध भाषा। विवरण-शायद राजा मधुकरशाह के वंशधरों के पुरोहित थे। नाम-(१६५० ) मोहनदास भंडारी । ग्रंथ-पद। [प्र. त्रै० रि०] नाम-( १६५० ) मोहन मत्त । ग्रंथ-माँझ। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१६५१) मोहनलाल कायस्थ, हरिद्वार । ग्रंथ-गोरक्षा में सर्वसम्मति । नाम--(१६५२) मंगद । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १६५३ ) मंगलराज । ग्रंथ-महाभारत भाषा । नाम-( १६५४ ) मंगलीप्रसाद कायस्थ, फैजाबाद । ग्रंथ-रामचरित्र नाटक ।
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__मिश्रबंधु-विनोद नाम-(१६५५ ) युगलप्रसाद चौबे । ग्रंथ-दोहावली। विवरण-निम्न श्रेणी। नामं-(१६५६ ) रघुनाथदास । ग्रंथ-हरदास की परचई (पृ० २०)। [द्वि० त्रै० रि०] विवरण- १८वीं शताब्दी। नाम-(१६५७ ) रघुवर। विवरण-फुटकर कवित्त । नाम-( १६५८ ) रघुवरशरण । इनका ठीक नं० ( २३०२)
ग्रंथ-(१) जानकी जू को मंगलाचरण, (२) बना।
[प्र. ० रि० नाम-(१६५९ ) रघुकुल । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१६६० ) रघुश्याम । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१६६० ) रणछोड़जी। ग्रंथ-(१)शिवरहस्य, (२)शिवपुराण भाषा, (३) काम
दहन, (४) सदाशिव विवाह, (५) शिवस्तुति । विवरण-जाति के नागर शैवमतानुयायी जूनागढ़ के नवाबों के
दरबार में प्रधानाध्यक्ष थे। इनका समय १६८००
१८६० के अंदर है। नाम-( १६६१ ) रसकटक । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१६६२ ) रसटूक ।
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अज्ञात कालिक प्रकरग्र
ग्रंथ --- फुटकर कवित्त |
नाम - ( १६६३ ) रसनेश ।
ग्रंथ - फुटकर कवित्त ।
नाम - ( १६६४ ) रसिकनाथ ब्राह्मण ।
ग्रंथ - रसिकशिरोमणि ।
नाम - ( १६६५ ) रसिक प्रवीन ।
ग्रंथ - फुटकर कवित्त ।
नाम - ( १६६५ ) रसिकमुकुंद ।
9
ग्रंथ - श्रष्टका । [ तृ० त्रै०रि० ]
विवरण - गोस्वामी विठ्ठलदास के शिष्य राधावल्लभी वैष्णव थे ।
नाम - ( १६६५ ) रसिकलाल ।
ग्रंथ - चौरासी की टीका । [ तृ० त्रै० रि० ]
विवरण - राधावल्लभी थे ।
नाम - ( १६६६ ) राघवजन ।
ग्रंथ - रामायण । [ द्वि० त्रै०रि० ]
विवरण - अयोध्या के महंत ।
३३
नाम - ( १६६७ ) किशोरीलाल कायस्थ राजा, घनश्यामपुर जिला जौनपूर | देखो नं० १३७१
ग्रंथ --- जुगुलशतक ( पृ० ४८ पद्य ) । [ द्वि० त्रै०रि० ] विवरण - पिता का नाम अयोध्याप्रसाद था ।
नाम - ( १६६८ ) राजा मुसाहब, बिजावरवाले |
ग्रंथ - ( १ ) विनयपत्रिका पर टीका, ( २ ) रसराज पर टीका । - ( १६६८) राजेंद्रप्रसाद ।
नाम-
ग्रंथ - दानलीला । [ प्र० त्रै०रि० ]
नाम - ( १६६६ ) राधिकाप्रसाद कायस्थ,
बिजावर |
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१०००
मिश्रबंधु - विनोद
ग्रंथ - स्फुट |
विवरण - रियासत बिजावर में नाज़िम थे ।
नाम - ( १६७० ) रामकरण ।
ग्रंथ - हम्मीररासो का उल्था ।
नाम - ( १६७१ ) रामचरण ब्राह्मण, गणेशपुर बाराबंकी । ग्रंथ - ( १ ) कायस्थकुल भास्कर ( संस्कृत ), ( २ ) कायस्थकुलभूषण ।
विवरण[- साधारण श्रेणी ।
नाम - ( १६७१) रामजीमल्ल भट्ट ।
ग्रंथ - शृंगारसौरभ, रसचंद्रिका । तोष कवि की श्रेणी के ।
नाम - ( १६७२ ) रामचंद्र स्वामी ।
ग्रंथ - ( १ ) पांडवगीता, (२) राधाकृष्ण विनोद । [ प्र०
०रि० ]
नाम - ( १६७३ ) रामदत्त ।
नाम -- ( १६७४ ) रामदया । ग्रंथ - रागमाला, सभाजीतसार । विवरण - साधारण श्रेणी । नाम - ( १६७५ ) रामदान । ग्रंथ - फुटकर कवित्त ।
नाम - (१६७६ ) रामदेव ।
ग्रंथ - अयोध्या बिंदु ( पृ० ८२) । [ द्वि० ०रि० ]
नाम - ( १६७७ ) रामदेवसिंह, खँडासावाले । विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( १६७७ ) रामनारायण उपनाम विष्णुसखी । ग्रंथ - युगलकिशोर सहस्रनाम । [ च० त्रै०रि० ] ।
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श्रज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम - ( १६७८ ) रामप्रसाद कायस्थ, कड़ा, जिला इलाहाबाद । देखो नं० (६५१ )
ग्रंथ - स्फुट ।
नाम – ( १६७८
१
ग्रंथ - गीतामाहात्म्य |
विवरण – चुनार वासी, ठाकुर के पुत्र थे ।
) रामप्रसाद ।
नाम - ( १६७९ ) रामबख्श उपनाम राम ।
ग्रंथ - (१) रससागर, ( २ ) बिहारी सतसई की टीका । विवरण- पद्माकर - श्रेणी, राना शिरमौर के यहाँ थे । नाम- ( १६८० ) रामभरोसे, ब्राह्मण बहराइच । -पद्य व्याकरणसार ( पृ० ३१ ) ।
ग्रंथ
नाम
- ( १६८०) रामरत्न
ग्रंथ - सियालालरसवर्द्धिनी कविता- दाम । [ च० त्रै०रि० ] नाम - ( १६८१ ) रामराय ।
ग्रंथ - लैला मजनू । [ प्र० त्रै०रि० ]
नाम - ( १६८२ ) रामरंग खान । ग्रंथ - फुटकर कवित्त ।
कई
नाम - ( १६८३ ) रामसज्जनजी ।
ग्रंथ - ज्ञानरसिक गुणविलास ।
नाम - ( १६८४ ) रामसनेही, चरणदास के पुत्र । ग्रंथ - हठजोगचंद्रिका ( २४० पृष्ठ ) ।
विवरण – छत्रपुर में देखा । साधारण कवि ।
बलिया ।
१००१
नाम - ( १६८५ ) रामसहाय कायस्थ, ग्रंथ - भजनावली ।
- नाम - ( १६८६ ) रामसिंह कायस्थ, बुंदेलखंड ।
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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-दस्तूरमालिका । [प्र. ० रि०] विवरण साधारण । नाम-(१६८७) रामसिंहराव ब्रह्मभट्ट, मंडला, मध्य
प्रदेश। ग्रंथ-नर्मदापच्चीसी। विवरण-विषय नर्मदा नदी की महिमा । प्राश्रयदाता राजा
अदमशाह। नाम-(१६८८ ) रामसेवक । ग्रंथ-अखरावली (पृ० २४)। [द्वि० ० रि०] नाम-(१६८९) रामा। विवरण-भक्त कवि थे। नाम-(१६९० ) रामाकांत । नाम-(१६९१) रामचंद्र ब्राह्मण नागर । ग्रंथ-विचित्रमालिका (पृ० ८२)।[द्वि० ० रि०] विवरण-ब्रजविलासकथा। नाम-( १६९२ ) रायजू । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१६९३) राहिब । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१६६३ ) रायसाहिबसिंह । ग्रंथ-कोष । [ च० ० रि०] नाम-(१६९४ ) रिवदान चारण, मारवाड़। ग्रंथ-फुटकर गीत। नाम-(१६९५) रूघा साधु । ग्रंथ-ब्रह्मस्तुति ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम-(१६९६)रूप। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१६९७ ) रूपमंजरी। ग्रंथ-अष्टयाम । [द्वि० ० रि०] विवरण-चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी वा सखीसंप्रदाय के थे। नाम-( १६९८) रूपसखी वैष्णव । ग्रंथ-होरी। [प्र. ० रि०] नाम-(१६९९) रंगखानि । विवरण-इन्होंने कोई ग्रंथ बनाया है, पर उसका नाम याद
___ नहीं।
नाम-( १७००) लक्ष्मण । ग्रंथ-निर्वाणरमैनी। [प्र० त्रै० रि०] विवरण-कबीरपंथी मालूम होते हैं। नाम-( १७०१ ) कृष्णशरण साधु, अयोध्या । ग्रंथ-रामलीलाविहारनाटक (पृ० २७० गद्य पद्य)। नाम-( १७०१ ) लक्ष्मणशरण । ग्रंथ-रामलीलाविहारनाटक । [ द्वि० त्रै० रि०] विवरण-अयोध्या के महंत थे । नाम-(१७०२) लक्ष्मी। नाम-( १७०३ ) लक्ष्मीनारायण, ग्राम भयहरनगर (वितस्ता
नदी के तीर ) सारस्वत ब्राह्मण । देखो नं ( २६८०) ग्रंथ-(१) विद्यार्थी बाललीला (पृ० ६ पथ), (२)
गोरक्षाशतक (पृ० ३६ पद्य)। नाम-(१७०४) लक्ष्मीप्रसाद कायस्थ, कड़ा जिला
इलाहाबाद।
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१०.४ . मिश्रबंधु-विनोद
ग्रंथ-स्फुट । नाम-(१७०५ ) लघुकेशव साधु । ग्रंथ-फुटकर भजन । नाम-(१७०६ ) लघुमति । ग्रंथ-चरनायके । [प्र० ० रि०] नाम-(१७०७ ) लघुराम । ग्रंथ-(१) कवित्त, (२) भक्तविरुदावली । [प्र. ० रि० ] नाम-(१७०८) लघुलाल । ग्रंथ-स्फुट भजन । नाम-(१७०८) ललितादिकजी। ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१७०९) ललिता सखी। ग्रंथ-भजन । नाम-( १७१०) लाजब। नाम-(१७११) लाभवर्द्धन जैनी। ग्रंथ-उपपदी (जैनशिक्षा)। नाम-(१७११) लाल । ग्रंथ-लालख्याल । [च. त्रै० रि०] नाम-(१७१२) लाल गोपाल । ग्रंथ-फुटकर कविता । नाम-(१७१२ ) लालचंद । ग्रंथ–नाभिकुँअरजी की आरती । [च० ० रि० ] नाम-( १७१३ ) लालबुझक्कड़ । ग्रंथ-किस्से।
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अज्ञात-कालिकं प्रकरण
१.०५ नाम-( १७१४ ) लालसिंह भाउ । ग्रंथ-फुटकर कविता। विवरण-प्राश्रयदाता सिवनी के कायस्थ तथा मुसलमान और
अमीर । सिवनी छपरा (मध्यप्रदेश)। नाम-( १७१५) शंकराचार्य । ग्रंथ-(,) बद्रीनाथ स्तोत्र, (२) ब्रजभूषण स्तोत्र, (३)
भवानी स्तोत्र। नाम-(१७१६) लुकमान मुसलमान । ग्रंथ-वैद्यक (पृ० ५६ गद्य)। [द्वि० ० रि० ] नाम-(१७१७)लेखराज कायस्थ, अकबरपूर ( कानपूर )। ग्रंथ-चित्रगुप्त-उत्पत्ति । नाम-( १७१८ ) लोरिक, मगही कवि । विवरण-इनका नाम डॉक्टर प्रियर्सन साहब ने लिंग्विस्टिक सर्वे
में लिखा है। नाम-(१७१९) शंभुप्रसाद । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१७२०) शिवचरण । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१७२१ ) शिवदान, चारण, मारवाड़। ग्रंथ-फुटकर गीत। नाम-(.१७२२ ) शिवदीन कायस्थ, गौरहार । ग्रंथ-स्फुट । नाम-( १७२३) शिवराज । विवरण-साधारण श्रेणी।
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१००६
मिश्रबंधु विनोद नाम-(१७२४) शिवरास, जयपुरवाले । ग्रंथ-(.) रत्नमाल, (२) शिवसागर । नाम-(१७२५) शिवानंद ब्राह्मण, हल्दी । ग्रंथ-शिवरामसरोज । नाम-(१७२५ ) शीलमणि राजकुमार । ग्रंथ-इश्कलतिका । [च. त्रै० रि०] नाम-(१७२६) शेख सुलेमान । ग्रंथ-खालिकनामा । [द्वि० ० रि०] विवरण-मुहम्मद साहब का हाल । नाम--- (१७२७ ) शोभ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १७२८) श्रृंगारचंद्र। ग्रंथ-बलदेवदासमाला। नाम-(१७२९) श्यामराय कायस्थ, जयपुर। ग्रंथ-दुर्गा-विनोद । विवरण-दुर्गाजी की स्तुति । नाम-(१७२६ ) श्यामलाल, अजयगढ़ । ग्रंथ-(१) वयानस्वर, (२) नीतिसार । [प्र. त्रै रि० ] नाम-( १७३० ) श्यामसनेही । ग्रंथ-(१) ध्यान, ( २ ) ध्यानस्वरोदय, (३) स्वरोदययोग
वर्णन। विवरण-छत्रपूर में ये छोटे-छोटे ग्रंथ देखे । साधारण श्रेणी। नाम-(१७३१) श्रीधर स्वामी। ग्रंथ-श्रीमद्भागवत प्रथम से सप्तम स्कंध तक, हरिदेव सनेह के
कवित्त ।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
नाम-(१७३२) श्रीराम । अंथ-छंद-मंजरी । [प्र० त्रै० रि०] नाम-(१७३३) सतीदास साधु ग्रंथ-भजन । नाम-(१७३४ ) सतीप्रसाद । ग्रंथ-जयचंदवंशावली। [प्र० ० रि०] विवरण-कमोली जिला बनारस के जमींदार बटुकबहादुरसिंह
इनके आश्रयदाता थे। नाम-(१७३५ ) सतीराम । ग्रंथ-सतगीता। [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१७३६) सदाराम, चित्रकूट । देखो नं० (१२१३) नाम-(१७३७ ) सबलजी। ग्रंथ-इंदरसिंहरी कमाल । विवरण-राजपूतानी कविता । नाम-( १७३८) सबलश्याम । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१७३८ ) समर । ग्रंथ-रामसुजसपताका । [ तृ• त्रै० रि० ] नाम-(१७३९) समोरल रसराज । ग्रंथ-मॉड और टप्पे । [खोज १६०२] नाम-(१७४०) समुद्र । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१७४०) सरयूदास उपनाम सुधामुखी । ग्रंथ-(.) पदावली, (२) सर्वसारोपदेश, (३) रसिक
वस्तुप्रकाश । [च० ० रि०]
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१००
मिश्रबंधु-विनोद नाम-(१५४० ) सर्वसुखदास। ग्रंथ-(१) चौरासी की टीका, (२) स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१७४१ ) सरसदास । ग्रंथ-बानी। विवरण-स्वामी हरिदास या बिहारिनदास के अनुयायी। नाम-(१७४२) सरसराम । विवरण-मैथिल कवि । नाम-(१७४३) सरूपदास । ग्रंथ-पांडव-यश-चंद्रिका । विवरण-महाभारत का सार । आश्रयदाता राजा बलवंतसिंह
रतलाम । नाम-(१७४४ ) सरूपराम । नाम-(१७४४ ) सहचरीसुख । ग्रंथ—स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। नाम-(१७४४) सहजराम नाजिर । ग्रंथसहजरामचंद्रिका ( कविप्रिया की टीका)। [ खोज
१६०४ ] नाम-(१७४५ ) साधुराम साधु । ग्रंथ-भजन । नाम-(१७४६ ) साह । ग्रंथ–स्फुट। नाम-(१७४६ ) स्वामीदास बाँदावासी। ग्रंथ-रामअक्षरी । [प्र. ० रि०]
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अज्ञात-कालिक प्रकरण
१०.8
नाम-(१७४७ ) सिकदार । ग्रंथ-फुटकर कविता। . नाम-( १७४७ ) सियारामशरण । ग्रंथ-ज्ञानोपदेश । [च. त्रै० रि०] नाम-(१७४८ ) सिंगार। ग्रंथ-बलदेवरासमाला । [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१७४९ ) सिंगीमेघराज । ग्रंथ-फुटकर कवित्त । नाम-(१७४६ ) सीतारामानन्यशील । ग्रंथ-सियाकरमुद्रिका । [च० त्रै० रि० ] नाम-(१७५०) सुखनिधान । ग्रंथ-दोहे और पद । [प्र. त्रै० रि०] नाम-(१७५१) सुखशरण । ग्रंथ-मीराबाई री परची। राजपूतानी भाषा। नाम-(१७५२) सुजान । ग्रंथ-शिखनख । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १७५३) सुथरा नानकसाही। ग्रंथ-चौबोला ( फुटकर कविता)। मलूक परचयी। नाम-(१७५४) सुंदरकली। ग्रंथ-(१) बारह बारु । (२) सुंदर कली की कहानी। विवरण-यवनी थीं। नाम-( १७५५) सुंदर बंदीजन, असनी जिला फतेहपुर । ग्रंथ-(१) बारहमासी, (२) रसप्रबोध । नाम-(१७५६) सुमतगोपाल ।
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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-( १७५६ ) सुर्जन। ग्रंथ-बत्तीसवरी। नाम-(१७५६ ) सूरकिशोर । ग्रंथ-छप्पय । [ च० ० रि०] नाम-( १७५७ ) सूरसिंह । ग्रंथ-भजन । नाम-(१७५७) सेमजी। ग्रंथ–सेमजी की चेतावनी ( खोज १६०२)। नाम-( १७५८) सेवकराम परमहंस । ग्रंथ-(१) परमहंसजी की वाणी, (२) झूलना।। नाम-(१७५९) सेवादास । देखो नं० (९२८) ग्रंथ-(१) सेवादास की वाणी (पृ० २४४), (२) परब्रह्म की
बारामासी, (३) परमार्थरमैनी । [प्र. त्रै० रि०] विवरण-कड़ा-मानिकपूरवासी मलूकदास के शिष्य । नाम-(१७६०) सोमदेव । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१७६१) सोहनलाल । ग्रंथ-व्रजगोपिका-विनय । [ द्वि० ० रि० ] विवरण-माथुर चौबे। नाम-( १७६२) संग्रामदास । ग्रंथ संग्रामदासजी की फुटकर कुंडलिया । नाम-(१७६३) संतोष वैद्य । ग्रंथ-विषनाशन । [प्र० त्रै० रि० ] नाम-(१७६४) स्कंद गिरि ।
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१.
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अज्ञात-कालिक प्रकरण ग्रंथ-रसमोदक । विवरण-ग्रंथ देखा। नाम-(५७६४ ) स्वयं प्रकाश । ग्रंथ-नाम राम माहात्म्य । [च० ० रि०] नाम-( १७६५) हकीम फरासीस । ग्रंथ-अंजुलीपुरान । [ खोज १६०२ ] नाम-(१७६६ ) हनुमानप्रसाद कायस्थ, मैहर। ग्रंथ-हनुमाननखशिख । नाम-( १७६७ ) हरतालिकाप्रसाद त्रिवेदी। ग्रंथ-हनुमानअष्टक । [ द्वि• त्रै० रि०] - विवरण-भोजपुर-निवासी। नाम-(१७६८) हरदयाल । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-(१७६९) हरराज । देखो नं० (७२) ग्रंथ-(१) ढोलामारू बानी, (२) चौपही । रचनाकाल
१६०७। विवरण-यादोराज की आज्ञा से बनाई। नाम-(१७७०) हरिचंद बरसानेवाले । ग्रंथ-(१) छंदस्वरूपिणी पिंगल, (२) हरिचंद्रशतक । विवरण-निम्न श्रेणी। [द्वि० त्रै० रि० ] नाम-(१७७१ ) हरिजीवन । पोर बंदरवासी। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१७७२) हरिभानु । ग्रंथ-नंदभानु । विवरण-साधारण श्रेणी।
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मिश्रबंधु-विनोद नाम-( १७७३ ) हरिया। ग्रंथ-फुटकर कविता । नाम- ( १७७४ ) हरिराम। देखो नं० (१६") नाम-(१७७४) हरिसिंह । ग्रंथ-ज्ञानकटारी। विवरण-खान कोटडा कच्छ-निवासी जडेवा ठाकुर थे। नाम-(१७७५ ) हितनंद राधावल्लभी।, विवरण-यमकयुक्त काव्य है । इनकी गणना साधारण श्रेणी
नाम-(१७७५ ) हितप्रसाद । ग्रंथ-हितपंचक । [तृ० ० रि० ] विवरण-राधावल्लभी थे। नाम-(१७७५) हितवल्लभअली। ग्रंथ-पथावली। विवरण-राधावल्लभी। नाम-( १७७६ ) हिम्मतराज । ग्रंथ-फुटकर कविता। नाम-(१७७७ ) हरिसूरि जैनी। ग्रंथ-फुटकर ढाल (गीत)। नाम-(१७७८) हेमचारण । ग्रंथ-महाराजा गजसिंह जीरा गुण रूपक । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१७७६ ) हेमनाथ । विवरण-कल्याणसिंह खीरी के यहाँ थे । साधारण श्रेणी के
कवि हैं।
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अज्ञात-कालिक प्रकरण नाम-( १७८० ) हंसविजय जती। ग्रंथ-कल्पसूत्र की टीका। विवरण-जैन । नाम-(१७८१) ज्ञानविजय जती । ग्रंथ-महवमलयाचरित्र। . नाम-(१७८२) ज्ञानीराम । अंथ-स्फुट कविता।
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परिवर्तन प्रकरण ( १८९०-१९२५) बत्तीसवाँ अध्याय
परिवर्तन-कालिक हिंदी बों तो प्रौढ़ माध्यमिक काल ही में हिंदी भाषा परिपक्क हो चुकी थी, पर अलंकृत काल में उसे हमारे कविजनों ने प्राभूषणों से सुसजित कर ऐसी मनमोहिनी बना दी कि उसमें किसी प्रकार की कमी न रह गई, बरन् यों कहना चाहिए कि उत्तरालंकृत काज में भूषणों की ऐसी भरमार मच गई कि उसके कोमल कलेवर पर उनका बोझ प्रायः असा प्रतीत होने लगा। हम स्वीकार करते हैं कि कोई शशिबदनी चाहे जितनी स्वरूपवती हो, पर कुछ आभूषण पिन्हा देने से उसकी शोभा बढ़ जाती है । फिर भी कहना ही पड़ता है कि जैसे अंग-प्रत्यंगों को प्राभरणों से आच्छादित कर देने से कुछ ग्रामीणता एवं भद्दापन बोध होने लगता है, उसी प्रकार कविता को भी विशेष रूप से अलंकृत करने पर उसकी नैसर्गिक सुघराई में बट्टा लग जाना स्वाभाविक ही है । अन्य भाषाओं में प्रायः माध्यमिक कान के पीछे ही परिवर्तन समय आ जाता, और कुछ ही दिनों के बाद उनकी वर्तमान दशा का वर्णन होने लगता है, पर हिंदी में यह विलक्षण विशेषता है कि माध्यमिक और परिवर्तन काज के बीच में दो शताब्दियों से भी कुछ अधिक समय तक हमारे कविजन भाषा को अलंकृत करने ही में लगे रहे। इसका परिणाम यह अवश्य हुआ कि हिंदी-जैसी मधुर एवं अलंकारयुक्त
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परिवर्तन-प्रकरण
१०४ दूसरी भाषा का ढूँढना कठिन है, और इस अंग की प्रौढ़ता हमारी भाषा में प्रायः एकदम अद्वितीय और अभूतपूर्व है, तो भी मानना ही पड़ेगा कि कम-से-कम उत्तरालंकृत काल में इस अंग की पूर्ति में आवश्यकता से कहीं अधिक श्रम कर डाला गया । इसके अतिरिक्त उस समय कवियों का झुकाव शृंगार-रस की ओर इतना अधिक रहा कि उनमें से अधिकांश का रुझोन दूसरे विषयों पर न हो सका । हमारी समझ में पूर्वालंकृत काल तक हिंदी को जितने आभूषण पिन्हाए जा चुके थे, उन पर यदि हमारे कविजन संतोष कर लेते, और शृंगार-रस को छोड़ उपकारी बातों का उचित आदर करते, तो भाजदिन हमें अपने भाषा-भंडार में नूतन विषयों की न्यूनता पर शोक न प्रकट करना पड़ता । स्मरण रखना चाहिए कि उत्तरालंकृत काल में, जब कि हमारे यहाँ लोग भाषा को बाह्याडंबरों से ही सुसज्जित करने में विशेष रूप से बद्धपरिकर थे । अन्य देशी भाषाएँ और ही छटा दिखलाने लगी थीं । बंगला में भी हमारे पूर्वालंकृत काल एवं उत्तरा.. लंकृत काल के विशेषांश में भाषा अलंकृत रही, परंतु वहाँ संवत् १८७५ में ही श्रीरामपुर के पादरियों द्वारा एक समाचार-पत्र निकला और इसी समय से गद्य का प्रचार बढ़ने लगा। संवत् १८८५ के लगभग मृत्युंजय-नामक लेखक ने बँगला का प्रबोधचंद्रिका-नामक प्रथम, गद्य-ग्रंथ लिखा । इसी कवि ने पुरुष-परीक्षा-नामक एक द्वितीय गद्यग्रंथ रचा । इसी समय ईश्वरचंद्र गुप्त ने संवाद-प्रभाकर-नामक एक उत्कृष्ट पत्र निकाला, और राजा राममोहन राय ने सुधावर्षिणी. लेखनी से संसार को पवित्र किया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर और अक्षयकुमारदत्त बंगाली गद्य के मुख्य उनायक हो गए हैं। इनका रचनाकाल १११० के लगभग था। इन्होंने बहुत ही उत्कृष्ट गद्यग्रंथ रचे, और इनके समय से प्रायः सभी विषयों में बँगला भाषा ने बहुत अच्छी उन्नति की । इसी समय के बंकिमचंद्र चटर्जी, मधुसूदन
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मिश्रबंधु-विनोद दत्त और दीनबंधु बड़े भारी लेखक और कवि थे। रमेशचंद्रदत्त ने भी अच्छे ग्रंथ रचे । अाजकल रवींद्रनाथ टैगोर बहुत बड़े कवि हैं,
और उनके भाई द्विजेंद्रनाथ तथा यतींद्रनाथ परमोत्कृष्ट गद्य-लेखक तथा नाटक-रचयिता हैं। बँगला ने वर्तमान उन्नत विषयों में बड़ी अच्छी उन्नति कर ली है। गुजराती एवं मराठी भाषाएँ भी उन्नत दशा में हैं । अस्तु ।
चंद के समय से उन्नति करते-करते इतने दिनों में हिंदी ने वह उत्कर्ष प्राप्त कर लिया था कि जिसके सहारे अन्य भाषाओं की अपेक्षा उसके काव्यांग इतने दृढ़तर हैं कि प्रायः उन सभों को इसके सामने सिर झुकाना पड़ता है। पर नवीन उपयोगी विषयों की अब तक कुछ भी संतोषदायक उन्नति नहीं हो पाई थी। इस परिवर्तन-काल में अनेक लेखकों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ, और विविध विषयों पर लेखनी चंचल करने की प्रथा पड़ने लगी। यों तो प्राजदिन तक अन्य भाषाओं को देखते हिंदी में इस विभाग की न्यूनता अगत्या स्वीकार करनी ही पड़ती है। पर जो प्रथा परिवर्तन-काल के कतिपय विचारशील हिंदी-हितैषियों ने चलाई, उस पर क्रमशः उन्नति होती ही आई है। उत्तरालंकृत काल में कथा-प्रासंगिक ग्रंथों के लिखने की रीति प्रायः जैसी-की-तैसी जोरों पर रही थी। पर परिवर्तन-काल में उसका कुछ हास हो चला । श्रृंगार-रस एवं रीति-ग्रंथों का प्राधान्य भी अब घटने लगा, पर उसी के साथ काव्योत्कर्ष में भी विशेष न्यूनता आ गई, और ठाकुर, दूलह, सूदन, बोधा, रामचंद्र, सीतल, थान, बेनीप्रबीन और परसाप के जोड़वाले प्रायः कोई भी कवि इस परिवर्तनकाल में दृष्टिगोचर नहीं होते । इतना ही नहीं, बरन् यों कहना चाहिए कि लेखराज, ललितकिशोरी, पजनेस आदि को छोड़ प्रायः कोई भी वास्तव में बढ़िया कवि इस समय में न हुआ। इसी के साथ इतना अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि यह परिवर्तन-काल केवल ३६ वर्ष का है और उत्तरालंकृत काल प्रायः एक सौ वर्ष पर विस्तृत है।
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परिवर्तन-प्रकरण
१०७ भक्ति-पक्ष की कविता प्रौद-माध्यमिक काल में पूरे जोरों पर थी, और तत्पश्चात् उसमें कमी हो चली । पूर्वालंकृत समय की अपेक्षा उत्तरालंकृत काल में उसने फिर कुछ-कुछ उन्नति की, पर परिवर्तन-काल में सिवा महाराजा रघुराजसिंहजी, लेखराज और ललितकिशोरी के और किसी भी नामी कवि ने उसकी ओर ध्यान न दिया । इस काल में ललितकिशोरी ( साह कुंदनलालजी) ने उस ढंग की कविता की, जो प्रायः तीन सौ वर्ष पहले प्रचलित श्री। वीर-काव्य अब बंद-सा हो गया, और गद्य लिखने की प्रथा पहलेपहल जोरों के साथ चली। टीका लिखने की रीति सबसे पहले प्रसिद्ध महाराणा कुंभकर्ण ने चलाई थी, और उनके बहुत दिनों पीछे अलंकृत काल में इस पर कतिपय लोगों ने ध्यान दिया था। कृष्ण और सूरति मिश्र ने बिहारी-सतसई पर अनेक प्रकार से टीकाएँ की, पर अब तक दो-चार को छोड़ किसी दूसरे भाषा-कवि को उत्कृष्ट टीकाकार बनने का गौरव नहीं प्राप्त हुआ था। इस परिवर्तन काल में सरदार कवि ने सूर, केशव आदि अन्य नामी कवियों के उत्तमोत्तम ग्रंथों पर भी टीकाएँ बनाई, और अन्य अनेक लेखकों ने भी टीकाओं पर श्रम किया।
इस काल में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि हिंदी-साहित्य से चार-पाँच सौ वर्ष के बाद व्रजभाषा और पद्य-विभाग का आधिपत्य हटने लगा । जहाँ तक हमको विदित है, सबसे पहले सारंगधर ने संवत् १३५० के लगभग ब्रजभाषा का हिंदी-कविता में प्रयोग किया । प्रायः तीस वर्ष पीछे अमीर खुसरो ने भी इसे अपनाया, पर वे पहलेपहल खड़ी बोली में भी कविता करते थे। १४५० के आसपास नारायण देव ने व्रजभाषा ही में हरिश्चंद्रपुराण-नामक ग्रंथ रचा, और १४८० में नामदेव ने उसमें अनेक ग्रंथ निर्माण किए । इनके पश्चात् चरणदास और वल्लभाचार्यजी ने व्रजभाषा को ही प्रधानता दी और तदनंतर सूरदास और अष्टछाप के अन्य कवीश्वरों ने
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मिश्रबंधु-विनोद उसका सिक्का हमारी भाषा पर मानो अटल कर दिया। अवश्य ही बीचबीच में कोई-कोई लेखक अवधी, खड़ी बोली और अन्य प्रकार की भाषाओं में कविता करते रहे, और स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी अधिकांश रचनाओं में अवधी भाषा को ही विशेष आदर दिया, तो भी प्रायः ६० सैकड़े कविजन बराबर व्रजभाषा ही से अनुरक्त रहे । उत्तरालंकृत काल में लल्लूलाल ने प्रेमसागर की रचना व्रजभाषामिश्रित खड़ी बोली में की, पर उसमें भी उन्होंने छंद ब्रजभाषा ही के रक्खे । उन्हीं के साथ सदल मिश्र ने खड़ी बोली में उत्तम रचना की। परिवर्तन-काल में गणेशप्रसाद, राजा शिवप्रसाद, राजा मचमणसिंह, स्वामी दयानंद, बालकृष्ण भट्ट आदि महानुभावों के प्रयत्न से लोगों को समझ पड़ने लगा कि हिंदी गद्य एवं पद्य तक में यह आवश्यकता नहीं कि ब्रजभाषा का ही सहारा लिया जाय । पद्य में तो कछ-कुछ अाजदिन तक व्रजभाषा का प्रभुत्व कई अंशों में वर्तमान है, और अभी कुछ समय तक हमारे पुरानी प्रथा के कविजन इसकी ममता छोड़ते नहीं दिखाई पड़ते । पर गद्य में इसी परिवर्तनकाल से खड़ी बोली का पूर्ण प्रभुत्व जम गया और पद्य में भी उसका यथेष्ट आदर होने लगा है।
अँगरेजी साम्राज्य स्थापित होने से जहाँ देश को अन्य अनेक लाभ हुए, वहाँ साहित्य ही कैसे विमुख रह जाता । जीवन-होड़ के प्रादुर्भाव से ही उन्नति का सुविशाल द्वार खुना करता है । जब तक किसी को विना हाथ-पैर हिलाए मिलता जाता है, तब तक विशेष उन्नति की ओर उसका चित्त नहीं आकर्षित होता, पर जब मनुष्य देखता है कि अब तो विना परिश्रम के काम नहीं चलता और आलसी बने रहने से अन्य उन्नत पुरुषों के सामने उसे नित्यप्रति नीचे ही खिसकना पड़ेगा, तभी उसमें उन्नति के विचार जागृत होते हैं, और जातीय एवं व्यक्तिगत होड़ में उसे क्रमशः सफलता प्राप्त होने लगती
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. परिवर्तन-प्रकरण है। जब हम लोगों में अँगरेजी राज्य स्थापित होने पर अन्य प्रकार के उन्नत विचार आने लगे, तभी अपनी भाषा की उपयोगी उन्नति की इच्छा भी अंकुरित हुई । बस, भाषा में परिवर्तन-काल उपस्थित हो जाने का यही एक प्रधान कारण था। __इस समय में महाराजा मानसिंह, शंकर दरियाबादी, नवीन, पजनेस, सेवक, लेखराज, ललितकिशोरी, गदाधर भट्ट, औध, लछिराम, बलदेव प्रभृति प्राचीन प्रथा के सत्कवियों में हुए, तथा उमादास, निहाल, जीवनलाल, सूरजमल, माधव, कासिम, गिरिधरदास, प्रतापकुँअरि, महाराजा रघुराजसिंह, शंमुँनाथ मिश्र और रघुनाथदास रामसनेही ने कथा-प्रासंगिक कविता की । ललितकिशोरीजी ने एक बार सौर काल की छटा फिर से दिखला दी, और कासिम ने अपने हंस जवाहिर में जायसी के पैरों पर पैर रखना चाहा, पर कासिम की रचना तादृश प्रशंसनीय नहीं है। महाराजा रघुराजसिंहजी ने अनेक विषयों पर अनेक भारी ग्रंथ निर्माण करके हिंदी का अच्छा उपकार किया । स्वामी काष्ठजिह्वा, बाबा रघुनाथदास और महंत सीतारामशरण इस समय के उन महात्माओं में हैं, जिन्होंने हिंदी को अपनी लेखनी द्वारा पुनीत किया । कृष्णानंद व्यास ने पदों का एक संग्रह ग्रंथ बनाया। गणेशप्रसाद फर्रुखाबादी के खड़ी बोलीवाले पद और लावनियाँ प्रसिद्ध हैं, और उनका एतद्देश में अच्छा प्रचार है । टीकाकारों में सरदार और गुलाबसिंह का श्रम विशेषतया प्रशंसनीय है । ये दोनों महाशय अच्छे कवि भी थे। राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद, महर्षि दयानंद सरस्वती, डॉक्टर रुडाल्फ हार्नली, नवीनचंद्रराय और बालकृष्ण भट्ट नवीन प्रकार के लेखकों में हैं, और सच पूछिए, तो विशेषतया ऐसे ही महानुभावों के श्रम का यह फल हुआ कि हिंदी में प्राचीन अलंकृत काल दूर होकर परिवर्तन होते-होते वर्तमान उन्नति का समय हम लोगों को नसीब हुआ।
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मिश्र बंधु विनोद
राजा शिवप्रसाद का हिंदी पर यह ऋण सदा बना रहेगा कि यदि वह समुचित उद्योग न करते, तो संभव है कि शिक्षा विभाग में हिंदी बिलकुल स्थान ही न पाती, और नितांत आधुनिक भाषा उर्दू ही उत्तरीय भारतवर्ष की एक मात्र देशी भाषा बन बैठती | महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश और जाति का जो महान् उपकार किया, उसे यहाँ पर लिखने की कोई श्रावश्यकता नहीं है । अनेक भूलों और पाखंडों में फसे हुए लोगों को सीधा मार्ग दिखलाकर उन्होंने वह काम किया है, जो अपने-अपने समय में महात्मा गौतम बुद्ध, स्वामी शंकराचार्य, रामानंद, कबीरदास, बाबा नानक, बल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु और राजा राममोहन राय समय-समय कर गए। हम आर्यसमाजी नहीं हैं, तो भी हमारी समझ में ऐसा आता है कि हम लोगों का जो वास्तविक हित इस ऋषि के प्रयत्नों द्वारा हुआ और होना संभव है, उतना उपर्युक्त महात्माओं में से बहुतों ने नहीं कर पाया । दयानंदजी ने हिंदी में सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, इत्यादि अनुपम ग्रंथ साधु और सरल भाषा में लिखकर उसकी भारी सहायता की, और उनके द्वारा स्थापित श्रार्य-समाज से उसका दिनोंदिन हित हो रहा है ।
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तेंतीसवाँ अध्याय द्विजदेव काल
(१८९० - १९१५ )
( १७८३ ) महाराजा मानसिंह, उपनाम द्विजदेव ये महाराजा अयोध्या - नरेश तथा अवध प्रदेशांतर्गत ताल्लुक्रेदारों की एसोसिएशन ( सभा ) के सभापति थे । इनका स्वर्गवास संवत् १६३० में संभवतः पचास वर्ष की अवस्था में हुआ था । ये महाशय कवियों के कल्पवृक्ष थे । इनके श्राश्रय में बहुत-से
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परिवर्तन-प्रकरण
०२१ कवि रहते थे । इसी कारण बहुतेरे द्वेषी मनुष्यों ने उड़ा दिया था कि ये महाराज स्वयं कवि न थे, बरन् लछिराम कवि से बनवाकर अपने नाम से कविता प्रकाशित करते थे। यह बात सर्वथा अशुद्ध थी और इससे ऐसी बातें उड़ानेवालों की चुद्रता प्रकट होती है। वास्तव में इनकी कविता के बराबर लछिराम का कोई भी ग्रंथ या छंद नहीं पहुँचता । ये महाराज शाकद्वीपी ब्राह्मण थे। अपने मरण-काल में ये अपने दौहित्र महामहोपाध्याय महाराजा सर प्रतापनारायणसिंह के० सी० आई०ई० उपनाम 'ददुश्रा साहब' को अपना उत्तराधिकारी नियत कर गए थे। कुछ समय बीता, जब महाराज ददुश्रा साहब ने 'रसकुसुमाकर' नामक एक भाषा-साहित्य का मनोरंजक सचिन संग्रह प्रकाशित किया था। इसमें द्विजदेवजी के बहुत से छंद हैं। इनके भतीजे भुवनेशजी ने लिखा है कि इन्होंने शृंगार-बत्तीसी और श्रृंगारलतिका-नामक दो ग्रंथ बनाए । इनका द्वितीय ग्रंथ हमारे पास वर्तमान है, जिसमें १०५ पृष्ठ हैं। ये महाराज व्रजभाषा में ही कविता करते थे। इनकी भाषा बड़ी ललित और कविता परममनोहर होती थी। इन्होंने अनुप्रास का अच्छा प्रयोग किया है । इनका षट्ऋतु बहुत ही बढ़िया बना है, और शेष ग्रंथ में श्रृंगार-रस के स्फुट छंद हैं। इनकी कविता में बहुत-से परमोत्तम छंद हैं, जिनके बराबर बड़े-बड़े कवियों के अतिरिक्त साधारण कवियों के छंद नहीं पहुँचते। इनके शेष छंद भी बुरे नहीं हैं। हम इनको पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरण लीजिएसोंधे समीरन को सरदार, मलिंदन को मनसा फलदायक ; किंसुक-जालन को कलपद्रुम, मानिनी बालन हूँ को मनायक । कंत इकस अनंत कलीन को, दीनन के मन को सुखदायक ; साँचो मनोभव राज को साज, सु श्रावत आजु इतै ऋतुनायक ।
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मिश्रबंधु-विनोद चहकि चकोर उठे सोर करि भौंर उठे ,
बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सोहावने ; खिलि उठी एकै बार कलिका अपार ,
हिलि-हिलि उठे मारुत सुगंध सरसावने । पलक न लागी अनुरागी इन नैनन पै, .
पलटि गए धौं कबै सरु मन भावने ; उमॅगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघा लगे,
फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने । इनका कविता-काल संवत् १९०६ के इधर-उधर था। इनकी भाषा बहुत अच्छी थी। नाम- (१७८४) चंद कवि । संवत् १८६० के लगभग थे
कोई-कोई इन्हें शाह जहाँगीर के समय का समझते हैं । नाम-(१७८४ ) महाराजा विश्वनाथसिंह
श्राप महाराजा जयसिंह के पुत्र और महाराजा रघुराजसिंह के पिता थे। अपने पिता के पीछे आप संवत् १८६१ (सन् १८३३) में बांधव (रीवाँ )-नरेश हुए और संवत् १९११ (सन् १८४) तक राज करते रहे । ये महाराज अच्छे कवि थे और कवियों एवं विद्वानों का इन्होंने अच्छा सम्मान किया। इनकी भाषा व्रजभाषा और कविता प्रशंसनीय है। इन्होंने अनेक ग्रंथ बनोए, जिनके नाम नीचे लिखे जाते हैं
(१) अष्टयाम का आह्निक, (२) आनंदरघुनंदन नाटक, (३) उत्तम काव्यप्रकाश, (४) गीता रघुनंदनशतिका, (५) रामायण, (६) गीता रघुनंदन प्रामाणिक, (७) सर्वसंग्रह, (८) कबीर के बीजक की टीका, (6) विनय पत्रिका की टीका, (१०) रामचंद्र की सवारी, (११) भजन, (१२) पदार्थ, (१३) धनुविद्या, (१४) परमतत्त्वप्रकाश, (१५) आनंदरामायण, (१६)
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परिवर्तन-प्रकरण
१०२३ परमधर्मनिर्णय, (१७) शांतिशतक, (१८) वेदांतपंचकशतिका, (१६) गीतावली पूर्वार्द्ध, (२०) ध्रुवाष्टक, (२१) उत्तम . नीतिचंद्रिका, ( २२ ) अबाध नीति, ( २३ " पाखंडखंडिनी, (२४) आदि मंगल, (२५) वसंत, (२६) चौंतीसी, (२७) . चौरासी रमैनी, (२८) कहरा, (२६) शब्द, (३०) विश्वभोजनप्रकाश और (३१) साखी।
आपका केवल एक कवित्त दिया जाता है, जिससे कविता-चमत्कार प्रकट है। उदाहरण
बाजी गज सोर रथ सुतुर कतारे जेते,
. प्यादे ऐंडवारे जे सबीह सरदार के; कुँअर छबीले जे रसीले राजवंशवारे,
सूर अनियारे अति प्यारे सरकार के । केते जातिवारे केते-केते देशवारे जीव,
श्वान सिंह आदि सैलवारे जे शिकार के ; डंका की धुकार द्वै सवार सबै एक बार,
राजै वार पार कार कोशल कुमार के । नाम-( १७८५ ) गोस्वामी गुलाललाल, वृदावनवासी,
अनन्य संप्रदायवाले । ग्रंथ-अनन्य सभामंडल । कविताकाल-संवत् १८६२ । विवरण-पहले पूजा इत्यादि का वर्णन किया। उसके पीछे साल.
भर के उत्सव कहे हैं । ग्रंथ ७०० श्लोकों के बराबर है। यह हमने दरबार छतरपुर में देखा । काव्य इसका निम्न श्रेणी का है। समय जाँच से मिला है।
[द्वि० ० खो०]
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१०२४
मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(१७८६ ) उमादास । ग्रंथ-(१):महाभारत-भाषा, (२) कुरुक्षेत्र-माहात्म्य (१८६४),
(३) नवरत्न, (४) पंचरत्न, (५)पंचयज्ञ, (६) माला
( १८६४) कविताकाल-१८६४ । [ खोज १९०४ ] विवरण-महाराजा करणसिंह पटियाला नरेश के यहाँ थे। इनकी
कविता साधारण श्रेणी की है। उदाहरणकृपाहू के पारावार गुण जाके हैं अपार,
सुंदर विहार मन हार है उदार है; जाके बल को निहार चीर ना धरै सँभार,
अरिन की नार बेग चढ़त पहार है। श्रीगुरु गोविंदसिंह सोढ़ बंस महा बाहु,
बार-बार सेवक को सदा रखवार है। नराकार निराकार निराधार असधार,
भू-उधार जगधार धर्म धार धार है। नाम-(१७८७ ) जीवनलाल ब्राह्मण नागर, बूंदी। ग्रंथ-(१) उषाहरण, (२) दुर्गाचरित्र, (३) भागवत-भाषा,
(४) रामायण, (१) गंगाशतक, (६) अवतारमाला,
(७) संहिता-भाष्य। जन्मकाल-१८७०। रचनाकाल-१८६५। मृत्यु-१६२६ । विवरण---ये संस्कृत, फारसी और भाषा के अच्छे ज्ञाता थे । संवत्
१८१८ में ये रावराजा बूंदी के प्रधान नियुक्त हुए, जिस पद का काम इन्होंने बड़ी योग्यता से किया। संवत्
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१०२५ १६१४ के ग़दर में इन्होंने बहुत अच्छा प्रबंध किया, जिस पर दरबार से इनको ताजीम हाथी, कटारी इत्यादि मिली । संवत् १९१६ में आगरे में दरबार हुआ, जिसमें इन्हें जी० सी० एम० आई० का खिताब मिला । संवत् १९२३ में दरबार में महारुद्रयाग हुआ, जिसका प्रबंध आपने उत्तम किया । आप दस्तकारी में भी बढ़े चतुर थे। कविता भी आपकी सरस तथा प्रशंसनीय होती थी, आपकी गणना तोष की श्रेणी में की
जाती है। उदाहरणबदन मयंक पै चकोर है रहत नित,
पंकज नयन देखि भौंर लौं गयो फिरै अधर सुधारस के चाखिबे को सुमनस ,
पूसरी है नैनन के तारन छयो फिरै । अंग-अंग गहन अनंग को सुभट होत ,
बानि गान सुनि ठगे मृग लौं उयो फिरै ; तेरे रूप भूप आगे पिय को अनूप मन ,
धरि बहु रूप बहुरूप सो भयो फिरै ॥ १ ॥ चंद्र मिस जा को चंद्रसेखर चढ़ावें ,
सीस पट मिस धारै गिरा मूरति सबाब की ; चंदन के मिस चारु चर्चत अगर मार ,
रमा मिस हरि हिय धारै सित प्राव की। भूप रामसिंह तेरी कीरति कला की काँति ,
भाँति-भाँति बढ़े छबि कवि के किताब की; मित्र सुख संगकारी प्राब माहताब की त्यौं ,
सत्रु-मुख-रंगहारी ताब आफताब की ॥ २ ॥
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मिश्रबंधु विनोद
( १७८८ ) शंकर कवि
ये महाशय कवि धनीराम के पुत्र और कवि सेवकराम के ज्येष्ठ भ्राता, असनी निवासी थे । आप बाबू रोमप्रसन्नसिंह रईस काशी के यहाँ रहे। इनका जन्मकाल निश्चित रूप से विदित नहीं है, परंतु सेवकराम के पूर्वज होने से अनुमान किया जा सकता है। कि ये लगभग संवत् १८६६ में उत्पन्न हुए होंगे । इनके वंश इत्यादि का विशेष विवरण कवि सेवकराम के वर्णन में द्रष्टव्य है । इनका कोई ग्रंथ हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ, परंतु सेवकज़ी की जीवनी से विदित होता है कि इन्होंने ग्रंथ भी बनाए हैं । यह समालोचना इनकी स्फुट कविता के आधार पर लिखी गई है। इनकी रचना रस- पूर्ण एवं भाषा प्रशंसनीय है । ये महाशय तोष कवि की श्रेणी के हैं। उदाहरण-स्वरूप तीन छंद उद्धृत किए जाते हैंसोहत प्रकास मैं श्रनिंद इंदु रूप साजि,
संकर बखानै दीह दुति को धरत सीतल बिमल गंग-जल है महीतल मैं, परम पुनीत पाप-पंजनि दरत है । पैठि के पताल मैं रसाल सेस रूप राजै,
कहाँ लौं गनाऊँ यौं समंत बिहरत रावरो सुजस भूप रामपरसनसिंह,
श्रोक भोक तीनो लोक पावन करत है ॥ १ ॥ कैधौं तेज बाड़व की सोहै धूम धार कैधौं,
दीन्हीं उपहार बज्र बासव प्रमोन की; संकर बखानै डसै खल को भुअंगिनी-सी,
देखी चारु कीरति निकेत या विधान की । तारिबे को सुर-पुर जान की;
१०२६
कैधौं तेरे बैरिन के बंस रन-सागर मैं सेतु मग
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परिवर्तन - प्रकरण
रामपरसन तेरे कर मैं कृपान
फते की फरमान राखै सान हिंदुशान की ॥ २ ॥ मंजु मलयाचल के पौन के प्रसंगन ते, लाल-लाल पल्लव लतान लहकै लगे; फूलै लगे कमल गुलाब श्राबवारे घने, संकर पराग भू - अकास बहकै लगे । बोलै लगे कोकिल भनंत भौंर डोलै लगे, चोप सों अमोलै मकरंद चहकै लगे नेकौ ना अटक चढ़यों काम को कटक चारु,
चारयौ श्रोर चटक सुगंध महकै लगे ॥ ३ ॥ 'विवरण- -इनका कविताकाल १८६५ जान पड़ता नाम - ( १७८९ ) निहाल ।
ग्रंथ - (1) महाभारत भाषा, ( २ ) साहित्यशिरोमणि (१८६३), (३) सुनीतिपंथप्रकाश (१८१६ ), (४) सुनीतिरत्नाकर ( १६०२ ) ।
-रचनाकाल - १८१६ । [ खोज, १६०३, १६०४ ]
विवरण - ये राजा, करमसिंह और नरेंद्रसिंह दोनों पटियालानरेशों के यहाँ थे । हम इन्हें साधारण श्रेणी में रक्खेंगे ।
उदाहरण
-
१०२७
जल बिनु सर जैसे, फल बिनु तरु जैसे,
सुत बिनु घर जैसे, गुन बिनु रूप है; सन बिनु बीर जैसे, फर बिनु तीर जैसे,
खाँड़ बिनु खीर जैसे, दिन बिनु धूप है। - दया बिनु दान, गुन बिनु ज्यों कमान, जैसे तान बिनु गान, जैसे
नीरहीन कूप है;
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मिश्रबंधु-विनोद बुधि बिनु नर जैसे, पंछी बिनु पर जैसे,
सेवा बिनु डर जैसे, नीति बिनु भूप है। (१७९०) देव कवि काष्ठ-जिह्वा, बनारसी ये महाराज संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् थे । आपने एक दफ़े गुरु से विवाद करके प्रायश्चित्तार्थ अपनी जीभ पर काष्ठ की खोल चढ़ाकर सदा को बोलना बंद कर दिया। इन्होंने ये ग्रंथ बनाएविनयामृत, रामलगन [प्र० त्रै० रि० ], रामायणपरिचर्या [ खोज १६०४ ], वैराग्यप्रदीप और पदावली सात कांड । (खोज ११०१) (१८९७)। इनकी कविता विशेषतया भगवद्भक्ति के विषय पर होती थी। वह प्रशंसनीय है । इनकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है । महाराजा बनारस के यहाँ इनका बड़ा आदर होता था। उदाहरण
___ जग मंगल सिय जू के पद हैं । ( टेक) जस तिरकोण यंत्र मंगल के अस तरवन के कद हैं। मजहि गमावहिं ते तन मन के जिनकी अटक विरद हैं। मंगन हू के मंगल हरि जह सदा बसे ए हद हैं ॥१॥ नाम-(१७९१) रत्नहरि। ग्रंथ-सत्योपाख्यान, अर्थात् रामरहस्य का भाषा उल्था । रचनाकाल-१८६६ । विवरण-साधारण श्रेणी | ग्रंथ दोहा, चौपाइयों में है। कहीं
कही और छंद भी है। इसमें १२५ पृष्ठ हैं । यह ग्रंथ हमने दरबार पुस्तकालय छतरपुर में देखा। च० त्रै० रि० में इनके दाशरथी दोहावली, रारार्थ दोहावल्ली, जमक-दमकदोहावली, रामरहस्य पूर्वार्द्ध तथा
रामरहस्य उत्तरार्द्ध-नामक ग्रंथ मिले हैं। उदाहरण
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परिवर्तन-प्रकरण
यह रामराय रहस्य दुरलभ परम प्रतिपादन कियो; श्रीराम करुना करि लहिय । बिन सासु नहिं पावन बियो। श्रुतिसार सर्वसु सर्व सुकृत बिपाक जिय जानो यही; रघुबीर ब्यास प्रसाद ते पायो कह्यो |तुमसों सहीं। नाम-(१७६१) कृष्णसिंह । १८६५, के पूर्व-ग्रंथ उदधि
मंथिनी टीका। नाम-( १७९२) किशोरदास, पीतांबरदास के शिष्य
.. निंबार्क संप्रदाय के । ग्रंथ-(1) निजमनसिद्धांतसार, (२) गणपतिमाहाल्य, ' (३) अध्यात्मरामायण । [प्र. ० रि०] रचनाकाल-११००। विवरण-प्रथम ग्रंथ में भक्तों के विस्तारपूर्वक. कथन, एवं मन के
सिद्धांत वर्णित हैं। इसके तीन खंड १५८ सना फुलस्कैप साइज़ के हैं। यह ग्रंथ हमने दरबार छतरपूर
में देखा है। काव्य-लालित्य साधारण श्रेणी का है। उदाहरण
लखि दारा सब सार सुख, परसत हसत उदार;
मरकट जिमि निरतत हसत सिकिलि उतारि-उतारि । बढ़त अधिक ताते रस रीती; घटत जात गुरुजन पर प्रीती। सीखत सुनत विषय की बातें; ऐंठत चलत निरखि निज गातें। बल दै बाँधत पाग बिसाला; पंच रँग कुसुम गुच्छ उर माला ।
हास करत पितु मातु ते, अटत करत उतपात
धन दै करि निज बाम को, पितु जननी सजि भ्रात । नाम-( १७६३ ) कृष्णानंद व्यास, गोकुल। ग्रंथ-रागसागरोद्भव रागकल्पद्रुम संग्रह । रचनाकाल-११००।
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१०३०
... मिश्रबंधु-विनोद इन महाराज ने संवत् १६०० के लगभग रागसागरोद्भव-नामक एक बृहत् ग्रंथ संगृहीत करके कलकत्ते में मुद्रित कराया था, जिसमें २०५ भक्त तथा कवियों के पद संगृहीत थे । इसमें बहुत-से ऐसे कवियों के पद संगृहीत हैं, जिनकी कविता अन्यत्र प्रायः नहीं मिलती । इस संग्रह से इतिहास-साहित्य का ,भी बड़ा उपकार हुआ है । यदि यह संग्रह न हुआ होता, तो शायद इतने सब कवियों के नामों का मिलना असंभव था। इनकी कविता तोष कवि की श्रेणी की समझनी चाहिए। उदाहरण____सैननि बिसरै बैननि भोर । बैन कहत कासों, पिय हिय ते बिहसत काहि किसोर । दुख मेटत भेटत तुमको नहि चुंबन देत न थोर ।
(१७९४) गणेशप्रसाद फरुखाबादी ये महाशय जाति के कायस्थ थे और फर्रुखाबाद में हलवाई का व्यापार करते थे। ऐसा साधारण व्यापार करके भी इन्होंने कविता की ओर ध्यान दिया । ये परमोत्तम रचना करने में समर्थ हुए। इन्होंने फ्रिसानेचमन, बारहमासा, ऋतुवर्णन, शिखनख और छंदलावनीनामक ग्रंथ रचे हैं, जो प्रायः सब प्रकाशित हो चुके हैं और सभी पुस्तक बेचनेवालों के यहाँ मिलते हैं । इनकी समस्त कविता बहुत करके पदों में है, और उसका विशेषांश खड़ी बोली को लिए हुए है। इनकी लावनियाँ इतनी प्रसिद्ध हैं कि उतने बड़े-बड़े कवियों तक के काव्य नहीं हैं। उनमें अलौकिक स्वाद, अनूठापन एवं बल है। ऐसी सजीव कविता बड़े-बड़े कवि रचने में समर्थ नहीं हुए हैं। हमने इनके कई ग्रंथ देखे हैं, पर इस समय हमारे पास इनका फ्रिसानेचमन-मात्र है। इनकी रचना के हमने बड़े-बड़े चमत्कारिक तथा उड़ते हुए पद देखे हैं, पर इस समय साधारण ही पद हमें उपलब्ध हैं । आपके छंद बहुत
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· परिवर्तन-प्रकरण प्रचलित हैं, सो हमने उत्कृष्ट उदाहरण ढूँढ़ने का श्रम भी नहीं किया। इनकी भाषा साधारण बोल-चाल को लिए हुए बड़ी ज़ोरदार है । हम इनको पद्माकर कवि की श्रेणी में रखते हैं । संवत् १९३० के लगभग तक ये विद्यमान थे । इनका कविताकाल संवत् १६०० से १६३० तक समझना चाहिए । इनका हाल इनके मिलनेवालों ने सरायमीरा में हमसे कहा था। उदाहरण
किया पिय किन सौतिन घर बास ;
बिकल उन बिन जिय बारह मास । गरज अाली असाढ़ पाया ; घटा ना ग़म दुख दिखलाया। अबर हो बर बिदेस छाया. ; कहीं बरसा कहिं तरसाया ॥१॥ जोबन पर जिसके शम्सोकमर वारी है;
हर गुल्शन में उस गुल की गुलज़ारी है। जंजीर जुल्फ़ जाना ने लटकाली है;
काली है फ़िदा जिस पर नागिन काली है। अबरू कमान क़ुदरत ने परका की है।
वह आँख, आँख पाहू ने झपका ली है। बदन ससि मदनभरी प्यारी ; अदा की बाँकी ब्रजनारी । सीस धर गोरस की गगरी रूप रस जोबन की अगरी। बजा छमछम पायल पगरी ; गई ग्वालिनि गोकुल-नगरी ॥२॥
(१७९५ ) नवीन ये महाशय नाभा-नरेश महाराजा देवेंद्रसिंहजी के यहाँ थे। इन्होंने अपने को ब्रजवासी कहा है, परंतु कुल-कुटुंब का कुछ भी हाल नहीं लिखा । इन्होंने नाभा-नरेश के यहाँ गज, ग्राम एवं रुपया-पैसा सभी कुछ पाया । इनका वहाँ पूरा सम्मान हुआ । इन्होंने महाराजा साहब की प्राज्ञा से भाषा-साहित्य के सुधासर, सरसरस, नेहनिदान [ खोज १६०५ और रंगतरंग-नामक चार ग्रंथ बनाए । हमारे पास
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१०३२
मिश्रबंधु-विनोद इनका तृतीय ग्रंथ है और उसी में उपर्युक्त बातों का वर्णन है । यह रंगतरंग संवत् १८६६ में सबसे पीछे बना था।
नवीन कवि ने इस ग्रंथ में रसों का वर्णन किया है । इसमें अनुप्रासों का बाहुल्य है । इस कवि की कविता-शैली पद्माकर से बहुत कुछ मिलती है, और उत्तमता में भी उसी कवि के समान है। इस कवि की रचना बहुत ही प्रशंसनीय है । हम इन्हें पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरणार्थ इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं
राजै गजराज ऐसे दारुन दराज दुति,
जिनकी गराज परै बैरी के तहलके ; सुंडादंड मंडित जंजीर झकझोरै गुन,
जीरन लौं तो जे झरैया मद जल के। श्रीमनि नरिंद मालवेंद्र देव इंद्रसिंह,
तेरी पौरि पेखिए हजारन के हलके ; अोज के सिँगार बड़ी मौज के सिंगार,
निज फौज के सिँगार जैतवार पर-दल के ॥३॥ सूरज के रथ के से पथ के चलैया चारु,
न थके थिराहिं थान चौकरी भरत हैं; फाँदत अलंगैं जब बाँधत छलंगैं,
जिन जोनन ते जाहिर जवाहिर झरत हैं। मालवेंद्र भूप की सवारी के अनूप रूप,
गौन मैं दपेटि पौनहू को पकरत हैं ; करि-करि बाजी जिन्हैं लाजै चपलाजी देखि,
तेरे तेज बाजी पर-बाजी-सी करत हैं ॥ २ ॥ चपक के चौसर चमेलिन की चंपकली,
गजरे गुलाबन के गलते उमाह के ; कदम तरौना तरे किंजलक झूमका की,
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परिवर्तन-प्रकरण
१०३३ झलक कपोलन पै बाजू जुही जाह के। बेनी बीच माधुरी एगुही है बार-बार ताप,
रंग पहिराए हैं बसन अंग लाह के; बीन-बीन कुसुम-कलीन के नवीन सखी, भूखन रचे हैं ब्रजभूषन की चाह के ॥ ३ ॥
( १७९६) रसरंग ये महाशय लखनऊ के रहनेवाले थे। इनका समय संवत् १६०० के लगभग था । इनकी कविता सरस और मनोहर है। इनका कोई ग्रंथ हमने नहीं देखा है, परंतु स्फुट छंद देखने में आए हैं। इनकी रचना-श्रेणी साधारण कवियों में है । इन्होंने ब्रजभाषा में कविता की है।
सुखमा के सिंधु को सिंगार के समुंदर ते, ___मथि कै सरूप सुधा सुखसों निकारे हैं; करि उपचारे तासों स्वच्छता उतारे तामैं,
सौरभ सोहाग श्री सो हास-रस डारे हैं। कबि रसरंग ताको सत जो निसारे,
तासों राधिका बदन बेस बिधि ने सँवारे हैं; बदन सँवारि बिधि धोयो हाथ जम्यो रंग,
तासों भयो चंद, करझारे भए तारे हैं। नाम- १७९७) ब्रजनाथ बारहट चारण, जयपुर। रचना-स्फुट । कविताकाल-१६०० । मृत्यु-१९३४ । विवरण-ये जयपुर-दरबार के कवि महाराज रामसिंह के समय
में थे । कविता इनकी साधारण श्रेणी की है । नीचे लिखा कवित्त इन्होंने महाराज तखतसिंह जोधपुर के मरने पर बनाया था।
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मिश्रबंधु-विनोद आजु छिति छत्रिन को भानु सो असत भयो,
आजु पात पंछिन को पारिजात परिगो ; आजु भान सिंधु फूटो मंगन मरालन को, ___ श्राजु गुन गाढ़ को गरीस गंज गरिगो । प्राजु पंथ पुन्नि को पताका टूटो बिजैनाथ,
श्राजु हौस हरख हजारन को हरिगो; .. हाय-हाय जग के अभाग तखतेस राज,
आजु कलिकाल को कन्हैया कूच करिगो। नाम-( १७९८ ) बाबा रघुनाथदास महंत, अयोध्या ।
ब्राह्मण पाँड़े पैतेपुर, जिला बाराबंकी। ग्रंथ-हरिनामसुमिरनी। जन्मकाल-१८७३ । मरणकाल-१९३९ । कविताकाल-१६००। विवरण-ये महाराज बड़े तपस्वी, भगवद्भक्त, महात्मा हुए हैं।
इनकी सिद्धता की बहुत-सी जनश्रुतियाँ विख्यात हैं । ये सरयूजी के निकट छावनी में रहा करते थे । इन्होंने भक्ति
संबंधी काव्य किया है, जो साधारण श्रेणी का है। उदाहरणमारा-मारा कहे ते मुनीस ब्रह्मलीन भयो,
राम-राम कहे ते न जानौं कौन पद्द है; जमन हराम कह्यो रामजु को धाम पायो,
प्रगट प्रभाव सब पोथिन में गद्द है । कासिहू मरत उपदेसत महेस जाहि,
सूझि न परत ताहि माया मोह मद्द है ; ऐसहू समुझि सीताराम नाम जो न भने, . जन रघुनाथ जानौ तासों फेरि हद है।
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परिवर्तन-प्रकरणः (१७९९) माधव रीवा-निवासी इन्होंने प्रादिरामायण-नामक ग्रंथ संवत् १६० के लगभग रीवानरेश महाराज विश्वनाथसिंह की आज्ञानुसार बनाया । माधवजी ने अपने को काशीराम का पुत्र और गंगाप्रसाद का नाती कहा है। इनका ग्रंथ छतरपुर में है। इसमें ३१६ बड़े पृष्ठ हैं। यह ग्रंथ पनपुराण के आधार पर बना है। इसमें ब्रह्मा और काकभुशुंड का संवाद है। ग्रंथ सुंदर है । ये छत्र कवि की श्रेणी में हैं।
उदाहरणअति सुंदर नैन सुरंग रंगे मद झूमत नीके सनींद सैं; अंगिरात जम्हात औ तोरत गात दोऊ झकि जात निहारि हसें। अरुझी नथ कुंडल मालनि मैं मुकता मनि फूलनि औलि खसैं ; लघु ब्रह्म सुखौ तिनको दरसात लुभात जे प्रात के ध्यान रसैं ।
(१८००) कासिमशाह इन्होंने हंसजवाहिर ग्रंथ संवत् १६०० के लगभग बनाया । आप दरियाबाद, जिला बारहबंकी के निवासी थे । ग्रंथ की वंदना जायसी-कृत पद्मावत की भाँति उठी है । काशी-नागरीप्रचारिणी सभा को इसकी अपूर्ण प्रति खोज (१६०२) में प्राप्त हुई है, जिसमें अल्सकैप आकार के २०० पृष्ठ हैं । ग्रंथ दोहा-चौपाइयों में कहा गया है, जिसमें रचना-चमत्कार मधुसूदनदास की श्रेणी का है। इसमें एक प्रेम-कहानी वर्णित है।
(१८०१) जानकीचरण उपनाम प्रिया सखी . इन्होंने 'श्रीरामरत्नमंजरी' नामक ११५ पृष्ठों का एक ग्रंथ रचा, जो छतरपुर में है । इसमें कई छंद हैं, पर विशेषतया दोहे हैं। इसमें साधारण कविता में राम का वर्णन है। इनका कविताकाल जाँच से संवत् १६०० जान पड़ा । इन्होंने जुगलमंजरी और भगवानामृतकादंबिनी-नामक दो ग्रंथ और रचे थे, जो छतरपुर में हैं। इनमें चतुर्थ
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मिश्रबंधु-विनोद त्रैवार्षिक रिपोर्ट में इनका एक और ग्रंथ प्रेमप्रधान भाव-संबंध रसकरण मिला है। इनमें भी रामचंद्र का ही रसात्मक वर्णन है।
उदाहरण- नाना विधि लीला ललित, गावत मधुरे रंग ;
नृत्य करत सखि सुंदरी, बाजत ताल मृदंग । चंदन चरचे अंग सब, कुंकुम अतर कपूर ; रचि सुमनन को माल बहु, पहिराई भरपूर ।
(१८०२ ) परमानंद इनके केवल दो छंद हमने देखे हैं। इनका कोई भी हाल हमें ज्ञात न हुआ। इनकी कविता और बोलचाल अच्छी है। सुनते हैं कि इस नाम के दो कवि हो गए हैं, एक अजयगढ़ रियासत (बुंदेलखंड) के रहनेवाले संवत् १६०० के अासपास हुए हैं, और दूसरे पद्माकरवंशी दतिया में संवत् १९३० में रहते थे। प्रथम त्रैवार्षिक रिपोर्ट में अजयगढ़वाले परमानंद का हनुमन्नाकट दीपिका-नामक ग्रंथ लिखा है। जो कवित्त हमने देखे हैं, वे किस परमानंद के हैं, सो हम नहीं कह सकते । ये महाशय साधारण श्रेणी के कवियों में हैं। छाई छवि अमल जुन्हाई-सी बिछौनन पै,
तापर जुन्हाई जुदी दीपति रही उमंग ; कवि परमानंद जुन्हाई अवलोकियत,
जहाँ-तहाँ नील कंज पंजन परै प्रसंग । सोनजुही माल किधौं माल मालती की,
पहिचानियत कैसे सनी पंकज सुगंध संग ; आवत निहारी हौंतिहारे सेज प्यारे, - पग धरत चुभोई परै गहब गुलाबी रंग ॥१॥
(१८०३ ) गिरिधरदास सुप्रसिद्ध बाबू हरिश्चंद्र के पिता काशी-निवासी बाबू गोपालचंद्रजी
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' परिवर्तन-प्रकरण. इस उपनाम से काव्य करते थे। कहीं-कहीं इन्होंने अपना नाम गिरिधारी एवं गिरिधारन भी रक्खा है । यह हिंदी के अच्छे कवि थे। छोटे-बड़े सब मिलाकर इन्होंने चालीस ग्रंथ रचे हैं, जैसा कि हरिश्चंद्रजी ने भी लिखा है- "जिन श्री गिरिधरदास कवि रचे ग्रंथ चालीस ।" इनके ग्रंथों में "जरासंधबध" प्रसिद्ध है। इन्होंने देशावतार, भारतीभूषण, बारहमास, षट्ऋतु एवं अन्य अनेक विषयों पर ग्रंथ निर्माण किए हैं। इनकी कविता सरस और अच्छी होती थी। इन्हें यमक का बहुत ज्यादा शौक था, जिससे कभी-कभी पद्माकरजी की भाँति अपने भाव तक बिगाड़ देने एवं भरती पदों के रखने में भी । कोई संकोच न होता था। इनका समय संवत् १६०० के लगभग था। इनका देहांत २६ या २७ वर्ष की ही अवस्था में हो गया। ये काशी के प्रतिष्ठित रईसों में से थे। हम इन्हें तोष की श्रेणी का कवि मानते हैं। उदाहरणआनन की उपमा जो आनन को चाहे सऊ,
भान न मिलैगी चतुरानन बिचारे को ; कुसुमकमान के कमान को गुमान गयो,
करि अनुमान भौंह रूप अति प्यारे को। गिरिधरदास दोऊ देखि नैन बारिजात,
बारिजात बारिजात मान सर वारे को; राधिका को रूप देखि रति को लजात रूप,
जातरूप जातरूप जातरूप वारे को.॥१॥ बाल गुलाल समेत अरी जब सों यह अंबर ओर उठी है ; देखत हैं तब सों तितही लखि चंद चकोर की चाह झुठी है। डारत ही गिरिधारन दीठि अबीरन के कन साथ लुठी है; मोहन के मनमोहन को भटू मोहन मूठि-सी तेरी मुठी है ॥२॥
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मिश्र बंधु विनोद
और
दो ग्रंथ
१०४) पजनेस शिवसिंहजी ने लिखा है कि ये महाशय पन्ना ठाकुर इन्होंने मधुप्रिया [ खोज १६०५ ] और नखशिख-न - नामक बनाए हैं । उन्होंने इनका जन्म संवत् १८७२ लिखा है । इनका कविताकाल १६०० जान पड़ता है । बुंदेलखंड में जाँच करने से भी जान पड़ा कि ये महाशय पन्ना के रहनेवाले थे । हमने इनके उपर्युक्त ग्रंथों में एक भी नहीं देखा है और न ये ग्रंथ अब साधारणतया मिलते हैं । भारतजीवन- प्रेस के स्वामी ने इनके ५६ छंदों का एक ग्रंथ पजनेसपचासा नाम से प्रकाशित किया था। फिर बहुत खोज करके पीछे उन्होंने पजनेसप्रकाश में इनके १२७ छंद छापे । इससे अधिक इनके छंद देखने में नहीं आते। इनकी कविता बड़ी sोजस्विनी है । इतनी उद्दंडता बहुत कम कवियों में पाई जाती है, परंतु इन्होंने उद्दंडता के स्नेह में मधुर भाषा को तिलांजलि दे दी, और इसी कारण इनकी कविता में टवर्ग एवं मिलित वर्णों का बाहुल्य है । इन्होंने अनुप्रास का बड़ा आदर किया तथा जमकानुप्रास का भी विशेष प्रयोग इनकी रचना में हुआ है, परंतु भाषा व्रजभाषा ही है । फिर भी एकाध स्थान पर फ़ारसी मिली कविता भी श्रापने बनाई। इनकी रचना देखने से विदित होता है कि ये फ़ारसी और संस्कृत के पंडित थे । इनकी कविता में अश्लीलता की मात्रा विशेष है । इन्होंने उपमाएँ बहुत अच्छी खोज-खोजकर दी हैं । कुल मिलाकर हम इनको सुकवि समझते हैं, क्योंकि इनके छंद बहुत ललित बने हैं । इतने कम छंदों में इतने उत्तम छंद बहुत कम कविजन बना सके हैं। हम इनको पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं। इनके छंद थोड़े होने पर भी बहुत फैले हुए हैं, अतः हम इनका एक ही छंद यहाँ लिखते हैंमानसी पूजा मई पजनेस मलिच्छन हीन करी ठकुराई; रोके उदोत सबै सुर गोत बसेरन पै सिकराली बसाई ।
१०३८
में
हुए
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परिवर्तन-प्रकरण
;
जानि परैन कला कछु श्राजु कि काहे सखी श्रजया यक लाई पोसे मराल कहौ केहि कारन एरी भुजंगिनि क्यों पोसवाई । इनके छंद देखने से अनुमान होता है कि इन्होंने एक नखशिख भी बनाया होगा ।
१०३६
( १८०३ ) सेवक
इनका जन्म संवत् १८७२ वि० में हुआ था और छाछठ वर्ष की अवस्था भोगकर संवत् ११३८ में काशीपुरी में इन्होंने स्वर्गवास पाया । ये महाशय असनी के ब्रह्मभट्ट थे । इनके पूर्व पुरुष देवकीनंदन सरयूपारीण पयासी के मिश्र थे, परंतु उन्होंने राजा मँझौली के यहाँ बरात में भाटों की भाँति छंद पढ़े और उनका पुरस्कार भी लिया, अतः उनके स्वजनों ने उन्हें जातिच्युत कर दिया । इस पर विवश होकर उन्होंने सनी के भाट नरहरि कवि की लड़की के साथ अपना विवाह करके असनी में ही रहना स्वीकार किया । उस समय से वे और उनके वंशज सचमुच भाट हो गए। उन्हीं के वंश में ऋषिनाथ कवि परम प्रसिद्ध हुए । इन्हीं महाशय के पुत्र सुप्रसिद्ध ठाकुर कवि हुए । ठाकुर कवि काशी के बाबू देवकीनंदन के यहाँ रहते थे । ठाकुर ने इन्हीं के नाम पर सतसई का तिलक बनाया था । ठाकुर के पुत्र धनीराम हुए, जो देवकीनंदन के पुत्र जानकीप्रसाद के कवि थे और जिन्होंने उन्हीं के यहाँ रामचंद्रिका तथा रामायण के तिलक एवं रामाश्वमेध तथा काव्यप्रकाश के उल्था बनाए । इन्होंने बहुत-से स्फुट छंद भी रचे । इनके शंकर, सेवकराम, शिवगोपाल और शिवगोविंदद-नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए । शंकरजी भी अच्छे कवि थे । सेवक के पुत्र मान और उनके काशीनाथ हुए, जो आजकल असनी में वैद्यक करते हैं । शिवगोपाल के पुत्र मुरलीधर और पौत्र देवदत्त हुए । शिवगोविंद के श्रीकृष्ण, नागेश्वर और मूलचंद नामक तीन पुत्र हुए। इन्हीं श्रीकृष्ण ने सेवक- कृत वाग्विलास और ग्रंथ में उनका
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१०४० . मिश्रबंधु-विनोद जीवनचरित्र और उपर्युक्त वंश-वर्णन लिखा है । स्वयं सेवक ने भी अपने कुटुंब का वर्णन निम्न छद द्वारा किया हैश्रीऋषिनाथ को हौं मैं पनाती औ नाती हौं श्री कवि ठाकुर केरो; श्रीधनीराम को पूत मैं सेवक शंकर को लघु बंधु ज्यों चेरो । मान को बाप बबा कसिया को चचा मुरलीधर कृष्ण हू हेरो ; अश्विनी मैं घर काशिका मैं हरिशंकर भूपति रच्छक मेरो ।
सेवक उपर्युक्त जानकीप्रसाद के पौत्र हरिशंकर के यहाँ रहते थे। सो इन पाश्रयदाता एवं प्राश्रयी, दोनों के कंटुबों की स्थिरचित्तता प्रशंसनीय है कि जिन्होंने चार पुश्तों तक अपना संबंध निबाह दिया। सेवक महाशय हरिशंकरजी को छोड़कर किसी भी अन्य राजा-महाराजा के यहाँ नहीं जाते थे। यहाँ तक कि महाराजा काशी नरेश वहीं रहते थे, परंतु इस कुटुंब ने उनसे आश्रयदाता से भी संबंध कभी नहीं जोड़ा । सेवक का यह भी प्रण था कि काशी में चाहे जिता बड़ा महाराज भी आवे, परंतु ये उससे मिलने नहीं जाते थे, और बाबू हरिशंकरजी के ही श्राश्रय से संतुष्ट रहते थे। एक बार काशी के प्रसिद्ध ऋषि स्वामी विशुद्धानंदजी सरस्वती ने इनके ऊपर कृपा करके अपने शिष्य महाराजा कश्मीर के यहाँ इन्हें ले जाने को कहा। स्वामीजी कहते थे कि सेवक की बिदाई वहाँ पच्चीस हजार रुपए से कम की न होगी, परंतु सेवक ने अपने बाबू साहब के रहते वहाँ जाना उचित न समझा । धन्य है, इस संतोष को।
इन्होंने वाग्विलास-नामक नायिका भेद का एक बड़ा ग्रंथ बनाया है, जिसमें १९८ पृष्ठ हैं। इसमें नृपयश, रस-रूप, भावभेद और उसके अंतर्गत नायिकाभेद, नायकभेद, सखी, दूती, षट्ऋतु, अनुभाव
और दश दशाओं का वर्णन किया गया है। सेवक ने नायिका. भेद की भाँति बड़े विस्तार पूर्वक नायकभेद भी कहा है, और उसमें भी लगभग उतने ही भेद लिखे हैं, जितने कि नायिकाभेद में । इनके
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परिवर्तन प्रकरण
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बनाए हुए पीपाप्रकाश, ज्योतिषप्रकाश और बरवै नखशिख ग्रंथ भी हैं । इनमें से वाग्विलास और बरवै नखशिखं हमारे पास प्रस्तुत हैं । ara नायिकाभेद भी अच्छा है । इसमें ६८ छंदों में नायिकाभेद का संक्षेप में वर्णन है । पंडित अंबिकादत्त व्यास ने लिखा है कि ये महाशयः एक छंदोग्रंथ भी लिखते थे, परंतु उसका कहीं पता नहीं है ।
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इन्होंने सब विषयों पर अच्छी कविता की है। इनका पटऋतु तो बहुत ही प्रशंसनीय है । ये अपने पितामह ठाकुर की भाँति प्राशिक न थे, और इनकी कविता में वैसी तल्लीनता नहीं देख पड़ती, परंतु इनके सवैया ठाकुर की भाँति प्रसिद्ध हैं, एवं बहुत लोग इन्हें वैसा ही आदर देते हैं । इनकी भाषा व्रजभाषा है और वह सराहनीय है । ये महाशय अपने ग्रंथों में टीका के ढंग पर वार्ताओं में शंकाएँ लिखलिखकर उनका समाधान भी करते गए हैं। इनके ग्रंथों में चमत्कारिक छंद भी पाए जाते हैं, परंतु उनकी बहुतायत नहीं है। इनकी कविता में प्रशस्त छंदों की अपेक्षा साधारण छंद बहुत अधिक हैं । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थं इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं
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उनए घन देखि रहैं उनए दुनए से लताद्रुम फूलो करें सुनि सेवक मत्त मयूरन के सुर दादुर ऊ अनुकूलो करें | तर दर दfar दामिनि दीह। यही मन माँह कबूलो करें ; मनभावती के सँग मैनमई घनस्याम सबै निसि भूलो करें ॥ १ ॥ दधि प्राछत- श्राछत भाल मैं देखि गए अँग के रँग छीन से है दुख औचक वारो कहे न बनै बिधु सेवक सौंह: श्ररीन से है । मृगराज के दाबे बिंधे बनसी के बिचारे मले मृगमीन से है हरि
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बिदा को भटू के तहीं भरि आए दोऊ हग दीन से ह्वै ॥ २ ॥ बंसी बजावत श्रानि कढ़े बनिता धनी देखन को अनुरागीं ; हौं हूँ प्रभाग भरी डगरी मगरी गिरे चौंकि सबै डरि भागीं ।
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मिश्रबंधु-विनोद बागै कलंक सेवक सों इन्हैं फोरि हौं सौति सुभाव लै जागी; हाय हमारी जरै अँखियाँ विष बान है मोहन के उर लागीं ॥ ३ ॥ जहाँ जोम कै अनीन कीन कठिन कनीन कन,
लोहे मैं बिलीन जिन्हैं घूमत विमान ; जहाँ धोपन धमकि घाव बोलत बमकि नहीं,
लोहू की लमकि लेन लागी लहरान । जहाँ रुंडन पै रुंडमुंड मुंडन के झुंड करें,
कोटिन बितुंड बिंध्य बंधु की समान ; तहाँ सेवक दिसान भीम रुद्र के समान,
हरिशंकर सुजान झुकि झारी किरवान ॥ ४ ॥
( १८०६) प्रतापकुँवरि बाई। ये जाखण गाँव परगना जोधपुर के भाटी ठाकुर गोयंददासजी की पुत्री और माड़वार के महाराजा मानसिंहजी की रानी थीं। इनका विवाह संवत् १८८६ में हुआ था। इन्होंने कई मंदिर बनवाए और ये बहुत दान-पुण्य किया करती थीं । ७० वर्ष की अवस्था में, संवत् १६४३ में, इनका स्वर्गवास हुआ । इन्होंने अपने पिता के यहाँ शिक्षा प्राप्त की थी और संवत् १६०० में विधवा हो जाने पर देवपूजन तथा काव्य की ओर अधिक ध्यान लगाया । इनकी कविता देवपक्ष की है, जो मनोहर है। इनके निम्नलिखित ग्रंथ हैं
ज्ञानसागर, ज्ञानप्रकाश, प्रतापपच्चीसी, प्रेमसागर, रामचंद्रनाममहिमा, रामगुणसागर, रघुवरस्नेहलीला, रामप्रेमसुखसागर, रामसुजसपच्चीसी, पत्रिका संवत् १९२३ चैत्रबदी ११ की, रघुनाथजी के कवित्त और भजनपदहरजस । इनकी गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में है। उदाहरणार्थ हम इनके कुछ छंद नीचे देते हैं
धरि ध्यान रटौ रघुबीर सदा धनुधारि को ध्यानु हिए धरु रे ; पर पीर में जाय कै बेगि परौ करते सुभ सुकृत को करु रे ।
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१.४३
परिवर्तन-प्रकरण तरु भवसागर को भजि के बजि कै अघ औगुन ते उरु रे . परतापकुँवारि कहै पदपंकज पाव घरी जनि बीसरे ।
होरी खेलन की रितु भारी ॥ टेक ॥ नर तन पाय भजन करि हरि को है औसर दिन चारी।
अरे अब चेतु अनारी। ज्ञान गुलाल अबीर प्रेम करि प्रीत तणी पिचकारी ; सास उसास राम रँग भरि-भरि सुरति सरी सी नारी ।
खेल इन संग रचारी। सुलटो खेल सकज जग खेलै उलटो खेल खेलारी; सतगुर सीख धारु सिर ऊपर सतसंगति चलि जारी।
__ भरम सब दूरि गँवारी। ध्रुव पहलाद विभीखन खेले मीराँ करमा नारी ; कहे प्रताप कुँवरि इमि खेले सो नहिं आवै हारी।
सीख सुनि लेहु हमारी। ( १८०७ ) महाराजा रघुराजसिंहजू देव जी० सी०
एस्० आई० रीवाँ-नरेश रीवाँ-नरेशों में महाराजा जयसिंह, उनके पुत्र महाराजा विश्वनाथ सिंह और तत्पुत्र महाराजा रघुराजसिंह तीनों बहुत अच्छे कवि थे। ये महाराजागण बघेल ठाकुर थे।
महाराजा वीरध्वज सोलंकी के पुत्र महाराजा व्याघ्रदेव ने गुजरात से आकर भोरों, गोडों, लोधियों आदि से बघेलखंड जीतकर वहाँ शासन जमाया। कहते हैं कि इस कुटुंब के पूर्व पुरुष ब्रह्मचोलक अंजली के पानी एवं सूयींश से उत्पन्न हुए थे और इसीलिये सूर्यवंशी कहलाए । ब्रह्मचोलक से करणशाह पर्यंत ५०७ पुश्तेंचोलकवंशी कहलाती रहीं। करणशाह का पुत्र सुलंकदेव हुआ। तब से वीरध्वज पर्यंत १८२ पीढ़ियाँ सोलंकी कहलाई। वीरध्वज के पुत्र
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१०४४
मिश्रबंधु-विनोद व्याघ्रदेव से वर्तमान महाराजाधिराज श्रीव्यंकटरमण रामानुजप्रसादसिंहजू देव बहादुर तक ३२ पुश्तें हुई हैं । ये लोग बघेल कहलाते हैं। ब्रह्मचोलक से अब तक ११२१ पीढ़ियाँ हुई हैं। __महाराजा व्याघ्रदेव का जन्म संवत् ६०६ में हुआ और आप संवत् ६३१ में गद्दी पर बैठे । इनके उत्पन्न होने पर ज्योतिषियों ने इनके प्रतिकूल बहुत कुछ कहा था, और ये जंगल में छोड़ दिए गए थे। कहते हैं कि वहाँ यह शिशु एक बाघिनी का स्तन पान करता पाया गया था। इसी से यह बघेला कहलाया । वास्तव में यह नाम बाघेल ग्राम से निकला है, जो रियासत बरोदा में है, जहाँ से यह वंश बघेलखंड गया था । व्याघ्रदेव ने अपना पैतृक राज्य अपने भाई सुखदेव को देकर कठेर देश को जीता, जो इनके नाम पर बघेलखंड कहलाने लगा । कहते हैं कि यहाँ के राजा रामचंद्र ने एक दिन में प्रसिद्ध गायक तानसेन को दस करोड़ रुपए दिए थे। महाराजा विक्रमादित्य ने बांधवगढ़ छोड़कर रीवाँ को राजधानी बनाया।
महाराजा जयसिंह ज देव ( नंबर ११३२) का जन्म संवत् १८२१ में हुश्रा, और सं० १८६५ में आप गद्दी पर बैठे । संवत् १८६०. वाली बसीन की संधि द्वारा पेशवा ने बघेलखंड का वह भाग अँगरेज़ों को दिया जो बाँदा के नवाब अलीबहादुर ने जीता था। अँगरेजों ने कहा कि इस संधि द्वारा रीवा-राज्य भी उन्हें मिल गया था. किंतु उन्हें यह दावा छोड़ना पड़ा और सं० १८६६ से दो वर्ष तक तीन संधियाँ अँगरेज़ों से हुईं, जिनसे रीवा-राज्य स्थिर हुआ। महाराजा जयसिंह ने सं० १८६६ में नामछोड़ राज्य के प्रायः सब अधिकार अपने पुत्र विश्वनाथसिंह को दे दिए । राज्य में पहली अदालत (धर्मसभा ) सं० १८८४ में कचहरी मिताक्षरा के नाम से स्थापित हुई। उसका मान बढ़ाने को एक बार स्वयं विश्वनाथसिंह
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१०४५ देव प्रतिवादी के स्वरूप में उसमें पधारे । महाराजा जयसिंह का स्वर्गवास सं० १८६१ में हुआ।
महाराजा विश्वनाथसिंह जू देव ( नंबर १८७४ ) का जन्म संवत् १८४६ में हुआ था और अपने पिता के स्वर्गवास होनेपर आप सं० १८९१ में गद्दी पर बैठे । आपने संवत् १९९१ तक राज्य किया। आप प्रसिद्ध राधावल्लभीय प्रियदास के शिष्य थे। इन महाराज के समय में उत्कोच की चाल फैली और कई कारणों से इनके पुत्र रघुराजसिंह से इनका वैमनस्य हो गया । झगड़ों . से इन्होंने कई बड़े सरदारों को देशनिकाले का दंड दिया । अंत को संवत् १८६६ में आपने अपने पिता की भाँति राज्य-प्रबंध अपने पुत्र रघुराजसिंह को दे दिया, जो बड़ी-बड़ी बातों में इनकी सम्मति ले लेते रहे । रघुराजसिंह ने देशनिर्वासित सरदारों को लौटने की आज्ञा दी
और क्षत्रियों में कन्यावध की प्रथा हटाई । आपका विवाह उदयपूर के महाराणा सरदारसिंह की पुत्री से हुआ। आपके शासन से क्रूर दंड और सती की प्रथाएँ उठ गई। ___ नंबर (१८७४) के नीचे लिखे हुए ग्रंथों के अतिरिक्त महाराजा विश्वनाथसिंह ने परमतत्त्व, संगीतरघुनंदन, गीतरघुनंदन, तत्वमस्य सिद्धांत भाषा, ध्यानमंजरी और विश्वनाथप्रकाश-नामक अन्य ग्रंथ भी रचे । श्रापने निम्नलिखित ग्रंथ संस्कृत भाषा में भी बनाए-राधावल्लभभाष्य, सर्वसिद्धांत, श्रानंद रघुनंदन (दूसरा), दीक्षानिर्णय, भुक्तिमुक्तिसदानंदसंदोह, रामचंद्राह्निक सतिलक, रामपरत्व, धनुर्विद्या
और संगीतरघुनंदन (दूसरा ), भाषा आनंदरघुनंदन बनारस में छप चुका है। इन महाराज के ग्रंथ अप्रकाशित बहुत हैं । आपका विशाल पांडित्य अनेकानेक उत्कृष्ट हिंदी और संस्कृत-ग्रंथों से प्रकट है, और इतने अधिक ग्रंथों की रचना से आपका भारी साहित्य-प्रेम एवं श्रमशीलता प्रत्यक्ष प्रमाणित होती है। आप बड़े दानी थे और
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मिश्रबंधु-विनोद कवियों का सदैव अच्छा मान करते थे। अपने पुत्र रघुराजसिंह के जन्मोत्सव में आपने सोने की ज़ंजीर समेत एक भारी हाथी दे डाला था।
महाराजा रघुराजसिंह का जन्म संवत् १८८० में हुआ था और अपने पिता के स्वर्गवास पर आप सं० १६११ में गद्दी पर बैठे। आपकी मृत्यु १६३६ में हुई । आपके बारह विवाह हुए थे। श्राप पूर्ण पंडित, हिंदी और संस्कृत के अच्छे कवि और मगयाव्यसनी थे। आपने अनेकानेक छोटे-बड़े ग्रंथ बनाए और ११ शेर, एक हाथी, १६ चीते और हज़ारों अन्य मृग भी अपने हाथ से मारे । आप बड़े दानी और भारी भक्त भी थे और २०००० विष्णुनाम नित्यप्रति जपते थे । उपयुक्त बातों में समय अधिक लगाने के कारण आप राज्यप्रबंध कम कर सकते थे। मरणकाल के ५ वर्ष पूर्व आपने राज्यप्रबंध बिलकुल छोड़ दिया और अँगरेजी सरकार की ओर से प्रबंध होने लगा । सिपाहीविद्रोह में आपने सरकार का साथ दिया था। रीवाँ के वर्तमान महाराजा का जन्म सं० १९३३ में हुआ।
महाराजा रघुराजसिंहजी बड़े ही कवितारसिक और कवियों के कल्पवृक्ष हो गए हैं। इन्होंने कविता प्रकृष्ट बनाई है। इनके रचे हुए ग्रंथों के नाम ये हैं
सुंदरशतक (सं० १६०३ ), विनयपत्रिका (१९०६), रुक्मिणीपरिणय ( १९०६ ), श्रानंदांबुनिधि (१९१०), भक्तिविलास (१९२६), रहस्यपंचाध्यायी, भक्तमाल , राम-स्वयंवर ( १९२६), यदुराजविलास (१९३१), विनयमाला, रामरसिकावली ( १६२१), [ खोज १०६४ ] गद्यशतक, चित्रकूट-माहात्म्य, मृगया-शतक, पदावली, रघुराजयिलास, विनयप्रकाश, श्रीमद्भागवत-माहात्म्य, रामअष्टयाम, भागवत-भाषा, रघुपतिशतक, गंगाशतक, धर्मविलास, शंभुशतक, राजरंजन, हनुमतचरित्र, भ्रमर-गीत, परमप्रबोध और जगन्नाथशतक । [खोज १६०४ ] इनमें से सब ग्रंथ इन्हीं महाराज ने नहीं बनाए हैं, किंतु
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१०४७ दो-एक के कुछ भाग इन्होंने स्वयं रचे और कुछ उनके आश्रित कवीश्वरों ने बनाए, जिनके नाम रसिकनारायण, रसिकविहारी, श्रीगोविंद, बालगोविंद, और रामचंद शास्त्री हैं। इन लोगों का पता इनके लिखित ग्रंथों तथा नागरीप्रचारिणी-सभा के खोज की रिपोर्ट [१६०० ] से लगा है । इनमें से कई ग्रंथ बहुत बड़े-बड़े हैं।
इनकी कविता बहुत विशद और मनमोहनी होती है। इन्होंने विविध छंदों में कविता की है। उपर्युक्त ग्रंथों में से कई हमने देखे हैं।
रुक्मिणीपरिणय में रास, शिखनख, जरासंध और दंतवक्र के युद्ध अच्छे हैं । फाग आदि भी बढ़िया कहे गए हैं ।
ये महाराज राम के भक्त थे, सो इनका रामाष्टयाम रुक्मिणीपरिणय से बढ़कर है । इनकी भक्ति दास भाव की थी। इनकी कविता में छंदों की छटा और अनुप्रास दर्शनीय हैं, सथा युद्ध, मृगया और भक्ति के वर्णन सुंदर हैं । ये परम प्रशंसनीय कवि थे। इनके अनेकानेक ग्रंथ बड़े ही सुंदर हैं।
अनल उदंड को प्रकाश नव खंड छायो,
ज्वाला चंड मानो ब्रहमंड फोरै जाय-जाय ; पुरी ना लखात ज्वालमालै दरसाति एक,
लोहित पयोधि भयो छावा एक छाय-छाय । देवता मुनीस सिद्ध चारण गंधर्ब जेते,
मानि महापले वेगि व्योम ओर धाय-धाय; देखि रामराय हेत दीन्ही लंक लाय सबै,
चाय भरे चले कपि राय यश गाय-गाय ॥१॥ बसुधा धर मैं बसुधा धर मैं त्यौं सुधाधर मैं त्यौ सुधा मैं लसै; अलि बुंदन मैं अलि बूंदन मैं अलि बूंदन मैं अतिसै सरसै। हिय हारन मैं हर हारन मैं हिमि हारन मैं रघुराज बसै ; ब्रज बारन बारन बारन बारन बारन बार बसंत बसै ॥२॥
मा
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१.४८
मिश्रबंधु-विनोद
( १८०८ ) शंभुनाथ मिश्र ये महाशय कान्यकुब्ज ब्राह्मण खजुरगाँव के राना यदुनाथसिंह के यहाँ थे, और उन्हों को आज्ञानुसार इन्होंने शिवपुराण के चतुर्थ खंड का भाषानुवाद संवत् १९०१ में विविध छंदों में किया । शिवसिंहसरोज में इनका एक ग्रंथ बैसवंशावली का बनाना लिखा है । यह हमने नहीं देखा । शिवपुराण को भाषा बहुत उत्तम व मधुर है, जिसमें व्रजभाषा व बैसवाड़ी मिश्रित हैं। यह ग्रंथ बहुत ही ललित
और विविध छंदों में शिवकथा-रसिकों व काव्य-प्रेमियों के पढ़नेयोग्य है । हम इस ग्रंथ को कथा-विषयक ग्रंथों में बहुत ही बढ़िया समझते हैं । इस ग्रंथ में १००० अनुष्टुप् छंदों का श्राकार है । हम इन महाशय की गणना कवि छत्र की श्रेणी में करते हैं । उदाहरण के लिये कुछ छंद यहाँ उद्धृत किए जाते हैं
इंद्रवज्रा द्वैगो तुरंतै सोइ बाल नीको ; जाके लखे लागत चंद फीको । अनूप जाके सब अंग सोहै ; बिलोकि के रूप अनंग मोहै । ऐसे महा सुंदर नैन राजै ; जाके लखे खंजन कंज लाजै । निकासि कै सार मनौ ससी को ; रच्यो बिधातै निज हाथ जी को।
हरिगीती शुभ श्रवन नैन कपोल कुंतल भृकुटि बर नासा बनी; अति अरुन अधर बिसाल चिबुक रसालफल सम छबि घनी । कर चरन नवल सरोज तहँ नख जोति उड़गन राजहीं ; जनु पदुम बैर बिचारि उर करि सरन तिनकी भ्राजहीं । नाम-( १८०८ ) दलपतिराय । कविताकाल-१६००-१९६० तक । दलपतिराय डामा भाई सी० आई० ई० काठियावाड़ के देशांतर्गत झालावाड़ प्रांत में षढवाण-शहर में दलपतिरायजी संवत्
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परिवर्तन-प्रकरण १८७६ में जन्मे थे । स्वामी नारायणधर्म के साधु श्रीदेवानंदजी से कविता पढ़ी। उसके बाद अहमदाबाद में इनके गुरु ने अपने मंदिर में संस्कृत पढ़ाने के लिये रख दिया। अहमदाबाद के जज साहब अलेक्जेंडर किवलों के फारवर्ड साहब को इस देश की कविता जानने की इच्छा हुई । भोलानाथ साराभाई के ज़रिए से दलपतिराय को साहब ने रख लिया और इनकी सहायता से साहब ने गुजरात देश का इतिहास लिखना शुरू किया और 'राशमाला' नाम से छपाकर प्रकट किया और ईस्वी सन् १८८८ ई० में अहमदाबाद में 'गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी' की स्थापना कर कवि को उनका सेक्रेटरी बनाया और हिंदी भाषा की कविता छुड़ाके अपनी देशभाषा ( गुजराती |भाषा) में कविता करने को कहा। तब से ये अपनी भाषा में कविता करने लगे। दलपतिराय का 'काव्यसंग्रह' नाम से बृहत् ग्रंथ छपाया है। इन्हीं महाशय ने स्वामी नारायण के मूलपुरुष सहजानंद स्वामी के नाम से उनका 'पुरुषोत्तममाहात्म्य' नाम का ग्रंथ बनाया है। तथा दूसरा बलरामपुर के महाराजा के लिये 'श्रवणाख्यान' नाम का ग्रंथ हिंदी में अच्छा बनाया है।
(१८०९) सरदार ये महाशय महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायणसिंह काशी-नरेश के यहाँ थे। इनका कविताकाल संवत् १६०२ से १९४० पर्यंत रहा। इन्होंने कविप्रिया, रसिकप्रिया [खोज १६०४ ], सूर के दृष्टकूट और बिहारीसतसई पर परमोत्तम टीकाएँ गद्य में लिखी हैं। पद्य में इन्होंने साहित्यसरसी, व्यंग्यविलास ( १६१६ ), षट्ऋतु, हनुमतभूषण, तुलसीभूषण, मानसभूषण, गारसंग्रह।(१९०५), रामरनरत्नाकर, रामरसजंत्र, [ खोज १६०४ ] साहित्यसुधाकर ( १९०२ ) और रामलीलाप्रकाश [ खोज १६०३ ] ( १६०६ )-नामक अद्भुत ग्रंथ बनाए हैं । इनकी रचना में एक अलौकिक स्वाद मिलता
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मिश्र बंधु - विनोद
है । इनके भाव और भाषा दोनों प्रशस्त हैं। इनकी काव्यपटुता टीकाओं से विदित होती है । वर्तमानकाल में इन्होंने अपनी कविता पुराने सत्कवियों में मिला दी है । इनके शृंगारसंग्रह में घनश्रानंद के क़रीब १५० बाँके छंद मिलेंगे । इन्होंने अश्लील विषय के भी दो-चार छंद कहे हैं। हम इनकी गणना पद्माकर की श्रेणी में करेंगे ।
उदाहरण
वा दिन ते निकसो न बहोरि कै जा दिन आगि दै अंदर पैठो ; हकित हूँकत ताकत है मन माखत मार मरोर उमैठो । पीर सहीं न कहौं तुम सों सरदार विचारत चार कुटैठो ; ना कुच कंचुकी छोरौ लला कुच कंदर अंदर बंदर बैठो । मनि मंदिर चंद्रमुखी चितवै हित मंजुल मोद मवासिन को कमनीय करोरिन काम कला करि थामि रही पिय पासिन को । सरदार चहूँ दिसि छाय रहे सब छंद करा रस रासिन को मन मंद उसासन लेन लगी मुख देखि उदास खवासिन को ।
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( १८१० ) पूरनमल भाट उपनाम पूरन इनका जन्म संवत् १८७८ के लगभग हुआ । ये दरबार अलवर के कवि थे । कविता अच्छी की है। इनके पौत्र जयदेवजी अभी अलवर - दरबार में हैं। इनकी कविता साधारण है
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उदाहरण
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ललित लवंग लवलीन मलयाचल की, मंजु मृदु मारुत मनोज सुखसार मौलसिरी मालती सुमाधवी रसाल मौर, फौरन पै गुंजत मलिंदन को भार है । कोकिल कलाप कल कोमल कुलाहल कै,
पूरन प्रतिच्छ कुहू कुहू किलकार है ;
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बाटिका बिहार बाग बीथिन बिनोद बाल, बिपिन बिलोकिए बसंत की बहार है ॥१॥
(१८११ ) बिरंजीकुँवरि ये गाँव गढ़वाद ज़िले जमनपूर के दुर्गवंशी ठाकुर साहबदीन की धर्मपत्नी थीं। इन्होंने संवत् १६०५ में सतीविनास [ खोज १९०४]नामक ग्रंथ सती स्त्रियों के विषय में बनाया, जिससे विदित होता है कि इन्होंने उसी भाषा में कविता की है, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास ने की। इनकी रचना प्रायः दोहा-चौपाइयों में है। सवैया आदि में इन्होंने व्रजभाषा भी लिखी है । इनकी कविता का चमत्कार साधारण है और हम इन्हें मधुसूदनदासजी की श्रेणी में रखते हैं । इनका एक सवैया नीचे लिखा जाता है
होय मलीन कुरूप भयावनि जाहि निहारि घिनात हैं लोग ; सोऊ भजे पति के पदपंकज जाय करै सति लोक मैं भोग । ताहि सराहत हैं विधि शेष महेश बखान बिसारि कै जोग : याते बिरंजि बिचारि कहै पति के पद की तिय किंकरि होजू ।
(१८१२ ) जानकीप्रसाद ये महाशय भवानीप्रसाद के पुत्र पँवार ठाकुर जिला रायबरेली के निवासी थे। शिवसिंहजी ने इन्हें विद्यमान लिखा है। इनका "नीतिविनास" नामक ग्रंथ हमने देखा है, जो सं० १६०६ का छपा हुआ है। इसमें अनेक छंदों में नीति वर्णित है । इसमें ४६ पृष्ठ और ३६१ छंद हैं । इस ग्रंथ की कविता-छटा साधारण है । शिवसिंहजी ने इनके रघुवीरध्यानावली, रामनवरत्न, भगवतीविनय, रामनिवास रामायण और रामानंदविहार-नामक ग्रंथ और लिखे हैं । इन्होंने उर्दू में एक हिंदुस्तान की तारीख भी लिखी है। हम इनको साधारण श्रेणी का कवि समझते हैं । उदाहरणार्थ एक छंद नीचे देते हैं
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मिश्र बंधु - विनोद
बीर बली सरदार जहाँ तहँ जोति बिजै नित नूतन छाजै ; दुर्ग कठोर सुडौर जहाँ तहँ भूपति संग सो नाहर जै 1 पालै प्रजाहि महीपै जहाँ तहँ संपति श्रीपति-धाम-सी राजे है चतुरंग चमू सवार पँवार तहाँ छिति छत्र बिराजै । नाम - ( १८१३) बलदेवसिंह क्षत्रिय, अवध ।
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१०२२
रचनाकाल - १६३०७ ।
विवरण - ये द्विजदेव महाराजा मानसिंह और राजा माधवसिंह अमेठी के कवितागुरु थे। इनकी कविता तोष की श्रेणी की है, जो बड़ी उत्तम, मनोहर, सानुप्रास एवं यमक-युक्त हैचंदन चमेली चोप चौसर चढ़ाय चारु,
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मधु मदनारे सारे न्यारे रस कारे हैं ; सुगति समीर मद स्वेद मकरंद बुंद,
बसन पराग सों सुगंध गंध धारे हैं। बारन बिहीन सुनि मंजुल मलिंद धुनि,
बलदेव कैसे पिकवारे लाज हारे हैं ; फूलमालवारे रति बल्लरी पसारे देखौ,
कंत मतवारे कै बसंत मतवारे हैं । (१८१४ ) ( पंडित प्रबीन ) पं० ठाकुरप्रसाद मिश्र ये महाशय अवध प्रदेशांतर्गत पयासी के निवासी ब्राह्मण थे और महाराजा मानसिंह अयोध्या- नरेश के यहाँ रहते थे। इनकी कविता जोरदार और सरस । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा । [ द्वि० त्रै०रि० ] से इनके सारसंग्रह - नामक ग्रंथ का पता चलता 1
उदाहरण-
भाजे भुजदंड के प्रचंड चोट बाजे बीर,
सुंदरी समेत सेवें मंदर की कंदरी ;
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मुगल पठान सेख सैयद असेष धरि,
श्रावत हजारन बजार कैसे चौधरी । पंडित प्रबीन कहै मानसिंह भूपति,
कमान पै अरोपत यों तीखो तीर कैबरी ; सिंघ के ससेटे गज बाज के लपेटें लवा, तैसे भूलै भूतल चकत्तन की चौकरी ॥ १ ॥ यो रितुराज आजु देखत बनैरी श्राली, छायो महामोद सों प्रमोद बनभूमि-भूमि नाचत मयूर मन मुदित मयूरनि को, मधुर मनोज सुख चाखै मुख चूमि - चूमि । पंडित प्रवीन मधुलंपट मधुप पुंज,
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कुंजनि मैं मंजरी को चा रस घूमि - धूमि हेली पौन प्रेरित नबेली-सी द्रुमन बेली,
फैली फूल दोलन मैं भूल रहीं भूमि-भूमि ॥ २ ॥ सानी शिवराज की न मानी महाराज भयो,
१०३
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दानी रुद्रदेव सो न सूरत सितारा लौं दाना मवलाना रूम साहिबी मैं बब्बर लौं,
श्राकिल श्रकब्बर लौं बलख बुखारा लौं । पंडित प्रबीन खानखाना लौं नबाब,
नवसेरवाँ लौं श्रादिल दराजदिल दारा लौं ; बिक्रम समान मानसिंह सम साँची कहौं,
प्राची दिसि भूप है न पारावार धारा लौं ॥ ३ ॥ नाम - ( १८१५ ) अनीस ।
रचनाकाल - १६११ ।
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विवरण - इनके छंद दिग्विजयभूषण में हैं । कविता सरस और प्रशंसनीय है। इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में
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मिश्रबंधु-विनोद है। इनका निम्नलिखित अन्योक्ति का छंद परम
प्रसिद्ध हैसुनिए बिटप प्रभु सुमन तिहारे संग,
राखिही हमैं तो सोभा रावरी बढ़ाय हैं ; सजिही हरखि कै तौ बिलगु न मानें कछू,
जहाँ-जहाँ जैहैं तहाँ दूनो जसु छाय हैं। सुरन चढ़ेंगे नर सिरन चढ़ेंगे बर,
सुकवि अनीस हाट-बाट मैं विकाय हैं; देस मैं रहेंगे परदेस मैं रहेंगे,
काहू बेस मैं रहेंगे तऊ रावरे कहाय हैं। (१८१६) शिवप्रसाद राजा सितारे हिंद, काशी ये महाशय संवत् १८८० में उत्पन्न हुए थे और १९५२ में इनका स्वर्गवास हुआ । इन्होंने सिक्ख-युद्ध के समय अँगरेज़ों की सहायता जी तोड़कर की थी। इस पर आप शिक्षा-विभाग के सरकारी उच्च कर्मचारी अर्थात् इंस्पेक्टर नियत हुए, और इन्हें राजा तथा सी० एस० आई० की उपाधियाँ मिलीं । ये महाशय हिंदी के बड़े ही पक्षपाती थे, विशेषतया उर्दू और संस्कृत मिश्रित खिचड़ी हिंदी के। इसी खिचड़ी हिंदी का उन्नत स्वरूप खड़ी बोली है। इन्होंने अनेकानेक पाठ्य-पुस्तकें लिखों और शिक्षा विभाग में हिंदी को स्थिर रखकर उसका बड़ा ही उपकार किया। उस समय यह विचार उठा था कि शिक्षा विभाग से हिंदी उठा ही दी जाय । ऐसे अवसर पर राजा साहब के ही परिश्रम से वह रुक गई । इनको रची हुई पुस्तकों को नामावली यह है
वर्णमाला, बालबोध, विद्यांकुर, बामामनरंजन, हिंदी-व्याकरण, भूगोलहस्तामलक, छोटा हस्तामलक भूगोल, इतिहास-तिमिर-नाशक, गुटका, मानवधर्मसार, सैंडफोर्ड ऐंड मारटिस स्टोरी, सिक्खों का
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१०५५ उदय और अस्त, स्वयंबोध उर्दू, अँगरेज़ी अक्षरों के सीखने का उपाय, बच्चों का इनाम, राजा भोज का सपना और वीरसिंह का वृत्तांत । इन ग्रंथों में से कई संग्रह-मात्र हैं, और अधिकतर राजा साहब के ही बनाए हैं । राजा साहब की भाषा वर्तमान भाषा से बहुत मिलती है, केवल वह साधारण बोल-चाल की ओर अधिक झुकती है, और उसमें कठिन संस्कृत अथवा फारसी के शब्द नहीं हैं । उसमें उर्दू-शब्दों का भी कुछ प्राधिक्य है । इन्होंने कुछ छंद भी बनाए हैं, पर विशेष. सया गद्य ही लिखा है । ये महाशय जैनधर्मावलंबी थे।
(१८१७) गुलाबसिंहजी कविराव (गुलाब) इनका जन्म सं० १८८७ में बूंदी में हुआ । ये संस्कृत के बड़े विद्वान् तथा डिंगल, प्राकृत और भाषा के अच्छे ज्ञाता, बूंदी दरबार के राजकवि एवं कामदार थे । ये बूंदी के स्टेट कौंसिल और वाल्टर-कृत राजपुत्रहितकारिणी सभा के सभासद तथा रजिस्टरी के हाकिम थे। भाप भाषा की कविता सरस और मधुर करते थे । इनके रचित ये ग्रंथ हैं
गुलाबकोष १ नामचंद्रिका २ नामसिंधुकोष ३ व्यंग्यार्थचंद्रिका ४ बृहद्व्यंग्यार्थचंद्रिका ५ भूषणचंद्रिका ६ ललितकौमुदी ७ नीतिसिंधु ८ नीतिमंजरी १ नीतिचंद्र १० काव्यनियम ११ वनिताभूषण १२ बृहद्वनिताभूषण १३ चिंतातंत्र १४ मूर्खशतक १५ कृष्णचरित्र १६ आदित्यहृदय १७ कृष्णलीला १८ रामलीला १६ सुलोचनालीला २० विभीषणलीला २१ नक्षणकौमुदी २२ कृष्णचरित्र में गोलोक-खंड, वृदावन-खंड, मथुरा-खंड, द्वारिका-खंड, विज्ञान-खंड
और सूची २३ तथा ६ छोटे-छोटे अष्टक तथा पावस और प्रेमपचीसी इत्यादि । इनकी कविता सरस तथा मनोहर होतो थी । इनकी गणना पद्माकर की श्रेणी में की जाती है। संवत् १९५८ में इनका देहांत हुआ। .
उदाहरण
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मिश्रबंधु विनोद पूरन गंभीर धीर बहु बाहिनी को पति,
धारत रतन महा राखत प्रमान है। जखि दुजराज करै हरष अपार मन, .
पानिप विपुल अति दानी छमावान है। सुकवि गुलाब सरनागत अभयकारी,
हरि उरधारी उपकारी हू महान है; बलाबंध शैलपति साह कवि कौल भानु,
रामसिंह भूतलेंद्र सागर समान है ॥ १ ॥ मृदुता बलाई माँहि पल्लव कतल करें,
___ सुचिसुभतानें करे कमल निकाम हैं; लाली ने लुटाय दियो लालन प्रबालन को,
सुखमानै सोखे थल कमल तमाम हैं। सुकवि गुजाब तो सी तुही है तिलोक माँह,
सुमिरत तोहि घनश्याम पाठौ जाम हैं; कीरति किसोरी तेरी समता करै को श्रान,
चरन कमल तेरे कमला के धाम हैं ॥२॥ छैहैं बकमंडली उमड़ि नभ मंडल मैं,
जूगुनू चमक ब्रजनारिन जरैहैं री; दादुर मयूर झीने झींगुर मचैहैं सोर,
दौरि-दौरि दामिनी दिसान दुख दैहै री। सुकवि गुलाब हैहैं किरचै करेजन की,
चौंकि-चौंकि चोपन सों चातक चिचैहैं री; हंसिनि लै हंस उदि जै हैं रितु पावस मैं, ..
ऐहैं घनश्याम घनश्याम जो न ऐहैं री ॥३॥
(१८१८ ) बाबा रघुनाथदास रामसनेही इन महाशय ने संवत् ११११ विक्रमीय में विश्रामसागर-नामक
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१०१७ एक बृहत् ग्रंथ बनाया। ये महाशय रामानुज संप्रदाय के महंत थे। इस संप्रदाय के महंत गोविंदराम अग्रदास के द्वारा में हुए । उनके शिष्य संतराम, उनके कृपाराम, उनके रामचरण, उनके रामजन, उनके कान्हर और उनके हरीराम हुए । रघुनाथदास के गुरु देवादासजी इन्हीं महात्मा हरीरामजी के शिष्य थे। इन्होंने फकीर होने के प्रतिरिक्त अपने कुल गोत्र आदि का कुछ ब्योरा नहीं लिखा है । ये सब महात्मा अयोध्या में बड़े महंत थे। अयोध्या में रामघाट के रास्ते पर रामनिवास-नामक एक स्थान है। उसी पर ये लोग रहते थे और उसी स्थान पर इस महात्मा ने यह ग्रंथ बनाना प्रारंभ किया । इन्होंने भाषा का लक्षण और अपने ग्रंथ का संवत् इस प्रकार कहा है
संस्कृत प्राकृत फारसी, बिबिध देस के बैन । भाषा ताको कहत कवि, तथा कीन्ह मैं ऐन । संवत् मुनि वसु निगम शत, रुद्र अधिक मधु मास ;
शुक्ल पक्ष कवि नौमि दिन, कीन्हीं कथा प्रकास । विश्रामसागर रायल अठपजी आकार में छपा हुआ ६१३ पृष्ठों का एक बड़ा ग्रंथ है। इसमें तीन प्रधान खंड हैं, अर्थात् पृष्ठ २८६ तक इतिहास, ३७४ तक कृष्णायन और ६०८ तक रामायण । इसके पीछे पृष्ठ ६१३ तक प्रश्नावली है । प्रथम खंड में मंगलाचरण के अतिरिक्त नारद, कृष्णदत्त, वाल्मीकि, गज, गणिका, यवन, अजामिल, यमदूत, वधिक कपोत, यमपुरी, कर्मविपाक, सुबर्ता, गौतमी सुबर्ता, मुद्गल, बीरभद्र, हरिश्चंद्र, सुधन्वा, शिवि, देवदत्त, सुदर्शन, बहुला, मोरध्वज, ध्रुव, प्रह्लाद, नृसिंह, ब्रह्मा, अयोध्या, स्वायंभुव मनु, ससद्वीप नवखंड, गंगा-उत्पत्ति, एकादशी-तुलसी, युधिष्ठिर-यज्ञ, जाजुल्य तुलाधार, मक्की दत्तात्रेय, पितापुत्र, शयनजीत, सत्संग, अंबरीष, चंद्रहास, संतलक्षण, कास नवधा भक्ति और षट्शास्त्र का वर्णन है। द्वितीय में कृष्ण की उत्पत्ति से लेकर रुक्मिणी-विवाह और प्रद्यम्न
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मिश्रबंधु-विनोद उत्पत्ति एवं विवाह तक की कथा वर्णित है । तृतीय खंड में रावण की उत्पत्ति और विजय तथा राम की उत्पत्ति से लेकर राम-राज्य तक का वर्णन है।
प्रत्येक खंड के अंत में इस कवि ने उस खंड के छदों की संख्या कह दी है । यह ग्रंथ विशेषतया दोहा-चौपाइयों में कहा गया है। इसमें यत्र-तत्र और छंद भी हैं । रघुनाथदास ने बंदना में गोस्वामी तुलसीदास का अनुकरण किया है, यहाँ तक कि कई स्थानों पर गोस्वामीजी के भाव भी विश्रामसागर में आ गए हैं । इस ग्रंथ के पढ़ने से जान पड़ता है कि रघुनाथदासजो पूरे भक्त थे, और उन्होंने भक्तों के विनोदार्थ यह ग्रंथ बनाया था। इसकी रचना व्रजविलास और रामाश्वमेध के समान है । इन तीनों ग्रंथों का रचनाचमत्कार साधारण है, परंतु इनमें कथाएँ रोचक वर्णित हैं । इस ग्रंथ के उदाहरणस्वरूप हम कुछ छंद नीचे लिखते हैंपैहैं सुख संपति यश पावन ; हैहैं हरि हरि जन मन भावन । कल्पित ग्रंथ कहै जो कोऊ ; याचौं ताहि जोरि कर दोऊ । रामकथा शुभ चिंतामनि-सी ; दायक सकल पदारथ जन-सी । अभिमत फलप्रद देव धेनु-सी ; स्वच्छ करन गुरुचरन-रेनु-सी । हरिभय हरणि बिभाव सुता-सी ; दुखद अविद्या तूल हुता-सी। धर्म कर्म बर बीज रसा-सी ; सुमति बढ़ावन सुख सुदसा-सी।
इस महात्मा ने संस्कृत के ग्रंथों की बहुत-सी कथाएँ लिखी हैं और कुछ श्लोक भी बनाए हैं। इससे विदित होता है कि ये संस्कृत के जाननेवाले थे। इनकी भाषा गोस्वामी तुलसीदास की भाषा से मिलती-जुलती है और उत्तमता में व्रजविलास के समान है। इनके वर्णन साधारण उत्तमता के हैं।
(१८१९ ) लेखराज (नंदकिशोर मिश्र ) ये महाशय भगवंतनगर के मिश्र संवत् १८८८ में उत्पन्न हुए थे।
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इनकी पितामही लखनऊ के वाजपेयियों के घराने की थीं । उनके मातामह भट्टाचार्य पाँड़े थे जो अवध के बादशाह के यहाँ से इलाहाबाद प्रांत के शासक नियत थे । जब वह प्रांत अँगरेज़ों को मिल गया तब वह लखनऊ में रहने लगे। उनके दोनों पुत्र बड़े विख्यात चकलेदार थे । इनके यहाँ करोड़ों की संपत्ति थी । कोई अन्य उत्तराधिकारी न होने से लेखराज की पितामही इस संपत्ति की उत्तराधिकारिणी हुईं। इनका महल वहीं था जहाँ अब विक्टोरिया पार्क बना हुआ है । समय पाकर यह सब धन लेखराज के हाथ आया और ये महाशय सुखपूर्वक लखनऊ में रहते रहे । संवत् १६१४ वाले सिपाही विद्रोह की गड़बड़ में इन्हें लखनऊ से बाहरी ज़िमींदारी गँधौली जिला सीतापुर में सब संपत्ति छोड़ कुछ दिनों को भाग जाना पड़ा । दैववश विद्रोहियों ने इनका महल खोदकर सघ प्रज्ञाना तथा माल असबाब रक्षकों के रहते हुए भी लूट लिया । इनके हाथ जो कुछ धन ये ले गए थे वही लगा और गँधौली तथा सिंहपूर की ज़िमींदारी इनके पास रह गई। फिर भी ये महाशय ऐसे शांतचित्त और संतोषी थे कि कभी यह इस आपत्ति का नाम भी नहीं लेते थे ।
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इनको कविता का सदैव शौक रहा और बहुत प्रकार के उत्तम पदार्थ अपने हाथ से ये बना सकते थे । इनके यहाँ कविगण प्रायः आया करते थे । ये तथा इनके अनुज बनवारीलाल काव्य के पूर्ण ज्ञाता थे । इन्होंने रसरत्नाकर ( नायिकाभेद ), राधानखशिख, गंगाभूषण श्रौर लघुभूषण- नामक चार ग्रंथ बनाए थे । गंगाभूषण में इन्होंने गंगाजी की स्तुति में ही सब श्रलंकार निकाले हैं । लघुभूषण में बरवै छंदों द्वारा अलंकारों के लक्षण तथा उदाहरण कहे गए हैं । इन ग्रंथों के अतिरिक्त स्फुट छंद बहुत हैं । इनका शरीरपात काशीजी में मणिकर्णिका घाट पर शिवरात्र के दिन संवत् १६४८ में हुआ । इनके लालविहारी ( द्वजराज कवि ) जुगुल किशोर ( ब्रजराज
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मिश्रबंधु-विनोद कवि) और रसिकविहारी-नामक तीन पुत्र हुए, जो अब तीनों ही स्वर्गवासी हो गए । इनके तीनों पुत्र कविता में पूर्णज्ञ हुए और प्रथम दो ने उत्कृष्ट कविता भी की। हमारे पिता के ये महाशय मित्र थे और इनके पितामह हमारे पितामह के विमात्र भाई थे। हमको कविता की बहुत बातें ये महाशय बताया करते थे। इनको गणना हम किसी श्रेणी में नहीं कर सकते। उदाहरण
राति रतिरंग पिय संग सो उमंग भरि, ____ उरज उतंग अंग-अंग जंबूनद के ललकि ललकि लपटात लाय-लाय उर,
बलकि-बलकि बोल बोलत उलद के। लेखराज पूरे किए लाख लाख अभिलाष,
लोयन लखात लखि सूखे सुख स्वद के ; दोऊ हद रद के सुदेत छद रद के,
बिबस मैन मद के कहै मैं गई सदके । गाजि कै घोर कढ़ो गुफा फोरिक पूरि रही धुनि है चहुँ देस री; दोऊ कगार बगारिकै पानन पाप मृगान को खात जु बेसरी । तापै अघात कबौ न लख्यो गनि नेकु सकै नहिं सारद सेस री; सो लेखराज है गंग को नोर जो अद्भुत केसरी बेसरी केसरी।
(१८२०) रघुवरदयाल ये महाशय मध्यप्रदेशांतर्गत दुर्ग जिला रायपूर के वासी थे । इन्होंने संवत् १९१२ में छंदरत्नमाला-नामक एक ग्रंथ बनाया, जिसमें प्रत्येक छंद का लक्षण तथा उदाहरण उसी छंद में कह दिया । इनकी भाषा संस्कृत-मिश्रित है और कहीं-कहीं इन्होंने श्लोक भी कहे हैं। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर १६२ छंद हैं । ये महाशय अच्छे पंडित थे। हम इन्हें साधारण श्रेणी में रक्खेंगे।
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मालती सवैया
उदाहरण
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सुंदर सात निवास जहाँ गण इंदु अमंगल कर्ष लिवैया है पुन कर्ण सबै पद अंतनि मो मन नाचत मोद दिवैया । तेइस वर्ण पदक शुभ्राजत यो बिधि चारिहु चर्ण रचैया ; काव्य चिच्छन ते सुक हैं यह लच्छन मालति छंद सवैया । ( १८२१ ) ललितकिशोरी साह कुंदनलाल
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( १८२२ ) तथा ललित माधुरी साह फुंदनलाल इनका जन्म-स्थान लखनऊ था । ये जाति के वैश्य प्रसिद्ध साह विहारीलालजी के पौत्र थे । ये संवत् १६१३ में श्रीवृंदावन चले गए और वहाँ गोस्वामी राधागोविंदजी के शिष्य हो गए । संवत् १६१७ में इन्होंने वृंदावन में प्रसिद्ध साहजी का मंदिर बनवाना आरंभ किया, जिसकी स्थापना सं० १९२५ में हुई । सं० १६३० कार्तिक शु० २ को इनका स्वर्गवास हुआ । इन्होंने कई बड़े-बड़े ग्रंथ निर्मित किए, जिनका वर्णन नीचे किया जायगा । उनमें विषय प्रायः एक ही है । सबमें श्रीकृष्णचंद्र का अष्टयाम या समयप्रबंध विशेषतया वर्णित है । समय प्रबंध व अष्टयाम में यह भेद है कि अष्टयाम में श्रीकृष्णचंद्रजी के हर घड़ी और पहर का शृंगारपूर्ण वर्णन है और समयप्रबंध में दिन की पृथक्-पृथक् पूजा और उपासनाओं का सविस्तर कथन है । इसके अतिरिक्त श्रीकृष्णजी की विविध लीलाओं का वर्णन भी इन्होंने विस्तारपूर्वक किया है । श्रीसूरदासजी के व इन लोगों के कथनों में यह भेद है कि सूर ने सूक्ष्मतया समस्त भागवत की और मुख्यतया पूर्वार्द्ध दशम स्कंध की कथाएँ कही हैं, जिससे उनके ग्रंथ में विविध विषय आ गए हैं, परंतु इन लोगों ने सिवा व्रज-वर्णन के और कुछ भी नहीं कहा, और उसमें भी कृष्ण की बाल लीला इत्यादि की -कथाएँ छोड़ दी हैं । इस कारण इनके कथनों में सिवा प्रेमालाप,
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मिश्रबंधु विनोद
मान, मानमोचन, रास, भोजन, सोने, जागने आदि के और विषय बहुत कम आए हैं। ये कविगण विशेष भक्त तथा भक्ति-विषय में लीन थे, सो इनको इतने ही विषय अलम् थे, परंतु सर्वसाधारण तो इस लीला तथा विहार में उतना श्रानंद नहीं पा सकते, अतः इन गोसाईं संप्रदायवाले कवियों की कविता उतनी रुचिकर नहीं होती । इन लोगों की रचनाओं से सर्वसाधारण को क्या शिक्षा मिलती है ? इस प्रश्न पर विचार करने से शोकपूर्वक कहना ही पड़ता है कि इस कविता समुदाय से साधारण जनों के चरित्र शुद्ध होने की जगह बिग
ने की अधिक संभावना है । इस प्रथा के संचालक लोग बहुधा भक्त और विरक्त थे । उनको ये वर्णन बाधा नहीं कर सकते थे, परंतु सर्व - साधारण तो इन वर्णनों को पठन करके अपने चित्तों को वश में नहीं रख सकते । हम लोग संसारी जीव हैं । हमारे वास्ते जो कविता या प्रबंध रचे जायँ, वे शिक्षापूर्ण होने चाहिए । ऐसा न होकर यह काव्य उसका उलटा प्रभाव हम लोगों पर छोड़ता है । तिस पर भी भाषासाहित्य को इन लोगों से लाभ ही हुआ, क्योंकि यदि इस संप्रदाय के कविगण इतनी काव्य-रचना न किए होते, तो हिंदी - साहित्य आज इतना परिपूर्ण तथा मनोरंजक न होता, अस्तु । इनके छोटे भाई साह फुंदनलाल भी कवि थे और इनके जो ग्रंथ अपूर्ण रह गए थे उनकी पूर्ति उन्होंने कर दी थी, परंतु उन्होंने अपना नाम पृथक् कहीं नहीं लिखा, न कोई ग्रंथ ही अलग बनाया। उनकी यह महानुभावता प्रशंसनीय है । किसीकिसी छंद में ललितमाधुरी नाम पड़ा है । यही उनका उपनाम था ।
ललित किशोरीजी का काव्य बड़ा ही सरस, मधुर और प्रेमपूर्ण है । इनकी रचना से जान पड़ता है कि ये भाषा, फ़ारसी तथा संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। जगह-जगह पर इन्होंने फ़ारसी, अरबी और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग किया है। खड़ी बोली की भी कविता इन्होंने यत्र तत्र की है और कहीं-कहीं कूट भी कहे हैं । सब बातों पर निगाह
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परिवर्तन-प्रकरण
१०६३ करने से इनकी रचना बहुत ही उस्कृष्ट और प्रशंसनीय है। हम इनको दास की श्रेणी का कवि मानते हैं । इनके रचे ये ग्रंथ हैं
अष्टयाम १ से ६तक १ जिल्द) अष्टयाम ७ से ११ तक २., लीलासंग्रह अष्टयाम ३ .. १०८६ पृष्ठ ज्वालादिक मानलीला ४ ,, रसकलिकादल १ से २४ तक ४ जिल्द १७ पृष्ठ फलस्कैप साइज । कहीं-कहीं गद्य भी इन्होंने लिखा है । द्वि० ० रि० में इनका एक और ग्रंथ स्फुट पद-नामक मिला है। उदाहरण
ग़ज़ल मटकी को आबरू की चट चौरहे में फोड़े ; क्या भाई-बंद गुरजन सब दुर्जनों को छोड़े। उल्फत जहाँ कि तिन-सी ललिताकिशोरी तोहै; चंचल छबीले जालिम जानाँ से नैन जोड़े। इस रस के पावे चसके जेहि लोकलाज खोई ; मैं बेंचती हूँ मन के माखन को लेवे कोई ॥१॥
चालिस है अध चंद थके। चंचल चारु चारि खंजन बर चितै परसपर रूप छके । दामिनि तीनि अनेक मधुपगन ललित भुजंगम संग जके; अष्टादस अरबिंद अचल अलि ललितकिशोरी भाजु टके ॥२॥
दोहा अंग-अंग सों अंबुकन झरि-झरि श्रीवत नीर । चंद स्रवन पीयूष के बरसत दामिनि बीर ॥ ३ ॥ नील बरन जल जमुन तिय चपल इतै उत जाहिं। धसीं अनेकन दामिनी सिंधु स्याम घन माहि ॥ ४ ॥
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मिश्रबंधु-विनोद
पद
कमल मुख खोलौ अाजु पियारे। बिकसित कमल कुमोदिनि मुकुलित अलिगन मत्त गुंजारे ; प्राची दिसि रबि थार अारती लिए ठनी निवछारे । ललितकिशोरी सुनि यह बानी कुरकट बिसद पुकारे ; रजनी राज बिदा माँगै बलि निरखौ पलक उघारे ॥५॥ केको कोर कोकिला कोयल सामुहि करै जुहार ; परसन हुगनि कंज हित बोलैं भृगी जैजै कार । म दो रंध्र बेगि प्राची दिसि इति अब कहत पुकार ;
ललितकिशोरी निरख्यो चाहत रबि नव कुंज बिहार ॥ ६ ॥ लाभ कहा कंचन तन पाए। बचननि मृदुल कमलदललोचन दुखमोचन हरि हरखि न ध्याए। तन मन धन अरपन नहिं कीनो प्रान प्रानपति गुननि न गाए ; योबन धन कलधौत धाम सब मिथ्या सिगरी आयु गँवाए । गुरजन गरब विमुख रंग राने डोलत सुख संपति बिसराए । ललितकिशोरी मिटै ताप नहिं बिन दृढ़ चिंतामनि उर लाए ॥७॥
प्रिया मुख राजत कुटिली अलकैं। मानहुँ चिबुक कुंड रस चाखन द्वै नागिनि अति उमगीं थनके। बेनी छुटि परी एंडी लौं बिथुरि ल₹ घुघुरारी हलके ; यह अरविंद सुधारस कारन भँवर वृद जुरि मानहुँ ललकैं। चंदन भाल कुटिल भ्र मोरी ता पर यक उपमा है झलकै ; गै चढ़ि अरध चंद तट अहिनी अमी लूटिबे मन करि चलकैं। पुहुप सचित उरमाल बिराजत चरनकमल परसत ढलढलके; मनहुँ तरंग उठत पुनि ठिठुकत रूप सरोवर माहिँ बिमलकै । ललित माधुरी बदनसरोजहि राम करत पिय श्रमकन झलक ; भंग गनि पिय छबि मकरंदहि खूटत मुदित परत नहिँ पलकें ॥८॥
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परिवर्तन-प्रकरण मधुकर मेरे ढिग जनि प्राय । से हरजाई बंसकलंकी सब फूलन बसिजाय । कारे सबै कुटिज जग जाने कपटी निपट लवार ; अमृत पान करें विष उगिलैं अहिकुल प्रतछ निहार। देखत चिमनी सुभग चमकनी राखी मंजु बनाय; . . कारी अनी बान की पैनी लगत पार है जाय। कारी निसि चोरन को प्यारी औगुन भरी अनेक ; ललितकिशोरी प्रीति न करिहौं कारे सों यह टेक ॥ १ ॥
- इस समय के अन्य कविजन नाम-(१८२२ ) उन्नडजी। ग्रंथ-(1) भगवत पिंगल, (२) मेघाडंबर, (३) खुसवो कुमारी,
(४) भगवद्गीता भाषा, (५) उन्नड बावनी, (६)
ब्रह्मछत्तीसी, (७) ईश्वरस्तुति, (८) नीतिमर्यादा । रचनाकाल-१८६० के पूर्व। विवरण-कच्छ देशांतर्गत खाखरग्राम के ठाकुर थे । इनका
स्वर्गवास सं० १८९२ में हुआ था। नाम-(१८२३) आजम । ग्रंथ-(.) षट्ऋतु, (२) नखशिख। कविताकाल-१८६०।.. नाम-( १८२४ ) उदयचंद ओसवाल भंडारी। ग्रंथ-(१) रसनिवास, (२) रपशृंगार, (३) दूषणदर्पण)
(४) ब्रह्मप्रबोध, (५) ब्रह्मविलास, (६) भ्रमविहंडन । कविताकाल-१८६० । विवरण-आश्रयदाता महाराजा मानसिंह नाम -(१८२५) दासदलसिंह । ग्रंथ-दलसिंहानंदप्रकाश ।
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०६६
मिश्रबंधु-विनोद कविताकाल-१८६० । [खोज १६०३ ] नाम-(१८२६ ) परमेश्वरीदास कायस्थ, कालिंजर ग्रंथ- स्फुट । कवित्तावली । [च० त्रै० रि०] जन्मकाल-१८६० । मृत्यु १६१२ । कविताकाल-१८६०। विवरण-चौबे नाथूराम जागीरदार मालदेव के बुंदेलखंड के
दरबारी कवि थे। नाम-(१८२६ ) राधेकृष्ण। ग्रंथ-औषधिसंग्रह । [ पं० त्रै० रि०] रचनाकाल-10 नाम-(१८२७) लक्ष्मणसिंह, बिजावर के राजा । ग्रंथ-(.) नृपनीतिशतक, (२) समयनीतिशतक, (३)
भक्तिशतक, (४) धर्मप्रकाश । जन्मकाल-१८६७ । रचनाकाल-१८९० से १९०४ तक । [प्र. ० रि०] विवरण-साधारण श्रेणी।। नाम-(१८२८ ) संतोषसिंह, पटियाला। ग्रंथ-वाल्मीकीय रामायण भाषा । रचनाकाल-१८६०। नाम-( १८२९) गणेशबख्श, रामपूर मथुरा, जिला .. सीतापूर । प्रथ-प्रियाप्रीतमविलास । रचनाकाल-१८६१ के पूर्व । [ खोज १६०३ ] विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१८३०) नवलसिंह प्रधान । ग्रंथ-अद्भुत रामायण ।
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परिवर्तन-प्रकरण
१०६०
रचनाकाल-१८६१ । विवरण-मधुसूदनदास-श्रेणी। । नाम-( १८३१) भावन पाठक, मौरावा, जिला उन्नाव। ग्रंथ-काव्यशिरोमणि या ( काव्यकल्पद्रुम)। रचनाकाल--१८११ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(८३१) अजबेस भाट (द्वितीय)। ग्रंथ-बघेलवंशवर्णन । (१८९२) कविताकाल-१८१२ । [खोज १६..] विवरण-महाराजा विश्वनाथसिंह बांधव-नरेश के यहाँ थे। तोष
श्रेणी। नाम-(१८३१) पं० कृष्णदत्त पांडेय । ग्रंथ-कृष्णपद्यावली, भारत का ग़दर । जन्मकाल-१८६२ । मृत्यु काल १६१६ । रचनाकाल-१८१२। विवरण-आपका जन्म भोजपुरं ग्राम में हुआ था। आपके
दोनों ग्रंथ जलकर नष्ट हो गए हैं। आप बड़े शिवभक्त थे। उदाहरण
लंबोदर की मातु के पति जो भंजनहार ; '
कर जोरे तेहि विनय करूँ जिनने मारा मार । कलि के कराल वर व्याल सम दुःखहू से,
नेकह न तन मन • मेरो घबरात है; पुन्य पाठ तजि के पढ़ाय पाठ पापहू को,
व्याल सम कलि मेरो घातक अपार है। मेरो मन तन अपनाय यह कलि नीच,
बड़ों से छोड़ाय साथ नीचहूँ ते बायो है,
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१०६८
मिश्रबंधु-विनोद अरे कलि छली छलि बलि न सकेग मोंको,
मेरो नाथ शिव अब मोपर खुश राजी है। नाम-( १८३२) बेनोदास बंदीजन । जन्मकाल-१८६५ । रचनाकाल-१८६२। विवरण-मेवाड़ इतिहास के लेखक थे । नाम-(१८३२ ) राम कवि । ग्रंथ-(१) विजय सुधानिधि, (२) हितामृतजतिका,
(३) हनुमाननाटक, (४) रसिकजीवनसंग्रह । [च.
त्रै रि०] रचनाकाल-१८६२ के बगभग । नाम-(१८३३) शंकर पांडे । ग्रंथ—सारसंग्रह पृ० ८० । रचनाकाल-१८६२ । [ द्वि० ० रि०] विवरण-नीति । नाम-(१८३४ ) शंकरदयाल दरियाबादी। ग्रंथ-अलंकृतमाला । [ द्वि० ० रि०] रचनाकाल-१८१२। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१८३४ ) गंगाराम । ग्रंथ-शब्द ब्रह्म जिज्ञासु । [च. त्रै रि०]. रचनाकाल-१८९३ के पूर्व । नाम-(१८३५ ) नैनयोगिनी। ग्रंथ-सावरतंत्र। [द्वि० ० रि०] रचनाकाल-१८६३ के पूर्व । नाम-(१८३६) शिवदयाल खत्री, प्रयाग ।
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परिवर्तन-प्रकरण .
१०६६. ग्रंथ-() सिद्धिसागरतंत्र (१८९३ सं०)(२), शिवप्रकाश
(१६१०-३२) [ द्वि० त्रै० दि.] कविताकाल-११३ । विवरण-तंत्र और आयुर्वेद । नाम-(१८३६ ) केशव कवि । ग्रंथ-हनुमानजन्मलीला, बालचरित्र । [ द्वि० ० रि०] . रचनाकाल-१८१४ के पूर्व । नाम-(१८३६ ) गदाधर दतियावासी। ग्रंथ-(१) वृत्तचंद्रिका ( १८६४ ), (२) कामंदक
(१८९५), (३) बिरुदावली ( १८९८), (४) विजेंद्रबिलास ( १९०३), (५) कैसरसभाविनोद (१९३६),
(६) देशाटनविनोद । [प्र. ० रि• ] रचनाकाल-१८६४। विवरण-पद्माकर के पौत्र थे। नाम-( १८३७ ) बालकृष्ण चौबे, बूंदी। ग्रंथ-स्फुट काव्य । कविताकाल-१८९४ । विवरण-विहारीलाल के वंशज । नाम-(१८३८ ) सोतलराय बंदीजन, बौंडी, बहरायच । कविताकाल-१८६४ । विवरण-साधारण श्रेणी । राजा गुमानसिंह के यहाँ थे। . नाम-(१८३९) उत्तमदास मित्र । ग्रंथ-(१) स्वरोदय, (२) शालिहोत्र [प्र. त्रै० रि०]
सामुद्रिक । कविताकाल-११५ के पूर्व ।
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मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(१८४०) घनश्यामदास कायस्थ । ग्रंथ-(.) अश्वमेधपर्व, (२) वसुदेवमोचिनीलीला, (३)
साँझी। कविताकाल-१८६५। [प्र. त्रै० रि०] विवरण-महाराजा रत्नसिंह चरखारीवाले के यहाँ थे। नाम-(१८४०) नत्थासिंह । ग्रंथ-पद्मावत । [ तृ० त्रै० रि०] रचनाकाल-१८१५ । नाम-( १८४१ ) प्राणसिंह कायस्थ, चरखारी। ग्रंथ-स्फुट । जन्मकाज-१८७० । मृत्यु १६०७ । कविताकाल-१८९५ विवरण-रियासत चरखारी में फौज के बख़्शी थे। नाम-- (१८४१) गणेश । करौली के चौबे गणेश कवि ने मध्य संप्रदाय के गोस्वामी श्रीहरिकिशोर के पुत्र मुकुंदकिशोर के कहने से संवत् १८६५ में एक बड़ा 'रसचंद्रोदय' नाम का ग्रंथ सत्रह अध्याय का बनाया और भी कई ग्रंथ है, जिनमें १-रसचंद्रोदय, २-कृष्णभक्तिचंद्रिका नाटक, ३सभासूर्य, ४-माहात्म्य, ५-नम्रशतक नाभा के राजा देवेंद्रसिंह के लिये रचा है। करौली के यदुवंशी महाराजा श्रीमदनपालसिंहजी के समय में गणेश कवि हुए और संवत् १९११ में स्वर्गवासी हुए । नाम-(१८४२ ) विष्णुदत्त, चैमलपुरा । ग्रंथ-(१) राजनीतिचंद्रिका (खोज १६०४ ), (२) दुर्गा
शतक । कविताकाल-१८ विवरण-ठाकुर जैगोपालसिंह के यहाँ थे।
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परिवर्तन-प्रकरण नाम-(१८४३ ) बुधजन जैन । ग्रंथ-योगींद्रसार भाषा। [ खोज १६०० ] कविताकाल-१८१५ नाम--(१८४३ ) लघुमति । ग्रंथ-(१) विवेकसागर, (२) चरनायके । रचनाकाल-८९५ नाम-(१८४४) लालदास । अंथ-(१) उषाकथा, (२) वामनचरित्र । [वि० ० रि० ] कविताकाल-१८९६ के पूर्व । विवरण-मनोहरदास के पुत्र । नाम-(१८४५) गणेशप्रसाद । ग्रंथ-हनुमतपच्चीसी (पृ०१२)। [द्वि० ० रि०] कविताकाल-१८१६ । विवरण-श्रीकाशी-नरेशजी की आज्ञा से रचना की। ' नाम-(१८४६) बलदेव ब्राह्मण, चरखारी। ग्रंथ-विचित्र रामायण (१९०३)।[च. त्रै० रिं०] कविताकाल-१८६६। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१८४७) भोलासिंह, पन्ना । कविताकाल-१८६६ । नाम-( १८४७) रेवाराम । ग्रंथ-(१) विक्रमविलास (१८६६), (२) दोहावली
(१६०३), (३ ) रामाश्वमेध, (४) ब्राह्मणस्तोत्र, (५) नर्मदाष्टक, (६) गंगालहरी, (७) रत्नपरीक्षा, (८) माता के भजन, (१) कृष्णलीला के गीत, (१०) रखपुर का इतिहास, (११)बोकलावण्य वृत्तांत ।
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१०७२
मिश्रबंधु-विनोद
जन्मकाल-१८६०। मृत्युकाल-१९३० । रचनाकाल-१८६६ । विवरण-आप रत्नपुर-निवासी जैमिनी गोलीय कायस्थ थे। नाम-( १८४८ ) हरिदास कायस्थ, पन्ना। ग्रंथ-(1) नखशतक, (२) रसकौमुदी (१८९७)
[प्र० ० रि० ], (३) राधिकाभूषण, ( ४ ) इतिहाससूर्यवंश, (५) अलंकारदर्पण (१८६८) [प्र०.० रि०] (६) श्रीराधाकृष्णजी को चरित्र, (७) लीला महिमा
समय बरसैन को, (८) गोपालपच्चीसी। [प्र० ० रि०] जन्मकाल-१८७६ । मृत्युकाल-१६००। कविताकाल-१८६६ । विवरण-पन्ना-नरेश महाराजा हरवंशराय के यहाँ थे।
संवत् १८८हवाले सूर्यमल्ल-नामक कवि ने नीचे लिखे हुए कवियों के नाम अपने १८६७ में बने हुए ग्रंथ में लिखे हैं । इससे प्रकट होता है कि ये कवि १८६७ तक हुए थे । नाम ये हैं(१८४६) अजिता, ( १८५०) अतीत, ( १८५१) प्रास, ( १८५२) उदय, (१८५३) कमलानाथ, (१८५४) करनी, (१८५५) कलंक, (१८५६) कल्यानपाल, (१८५७) कृपान चारण, (१८५८) कंकाली, (१८५६) कंजुली, (१८६०) गजानन, (१८६१ ) चक्रधर, (१८६२) चामुंड, (१८६३) चिमन, (१८६४) दयालाल, (१८६५) दान, (१८६६) देवक, ( १८६७) देवमणि (आपने १६ अध्याय तक चाणक्यनीति भाषा रची), (१८६८) धनपति, (१८६६) धनसुख, (१८७०) धनंजय, (१८७१) धराधर, (१८७२ ) धर्मसिंह यती (स्फुट
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परिवर्तन-प्रकरण
१०७३ काव्य), (१८७३) नल, (१८७४) नाज़िर, (१८७५) निर्मल [खोज १६०५] (भक्ति कविता), (१८७६) नंदकेसरीसिंह (सगारथलीला रची, जिसमें साधारण श्रेणी का काव्य है ), (१८७७ ) परिचारण, (१८७८) पुरान, ( १८७६) बोरी, (१८८०) भगंड, (१८८१) भरतेस, (१८८२ ) भागु, ( १८८३) भैरव चारण ( बटुकपचासा), (१८८४) मदन, (१८८५) मधुकर, (१८८६) मधुप, (१८८७) रन्छणल, (१८८८) रामकृष्ण की वधू, (१८८१) शिवपाल, (१८९०) सरूपदास, (१८६१) सवाईराम, (१८९२) सिरा, (१८९३) सुंदरिका, (१८६४) हरिसुख, (१८६५) हून और (१८६६) हृदयानंद, ( १८६७ ) जयलाल का भी नाम सूर्यमल ने लिखा है। ये उनके भाई थे। इनका समय १८१७ समझना चाहिए।
नाम-(१८९७) बंदावली । ग्रंथ-कोकसार वैद्यक । [पं० त्रै० रि०] । रचनाकाल-१८६७ के पूर्व । नाम-(१८९८) विहारी उपनाम भोजराज ( भोज )। ग्रंथ-(1) भोजभूषण, (२) रसविलास । कविताकाल-१८६७ । विवरण-साधारण श्रेणी । महाराजा रतनसिंह चरखारी-नरेश
के यहाँ थे। ना—(१८९९) बिहारीलाल त्रिपाठी, टिकमापुर, जिला
कानपूर । कविताकाल-१८१७ । विवरण-ये मतिराम कवि के वंशधर हैं । तोष-श्रेणी। नाम-(१९००) बुद्धसिंह कायस्थ, बुंदेलखंडी।
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1०७४
मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-(१) सभाप्रकाश [प्र. त्रै० रि० ], (२) माधवानल । कविताकाल-१८६७ । नाम-( १९०१) रामदीन त्रिपाठी तिकवापूर, कानपूर । कविताकाल-१८६७ । विवरण-मतिरामवंशी साधारण कवि । नाम-( १९०२) रावराना बंदीजन । कविताकाल-१८६७। विवरण-साधारण श्रेणो । रतनसिंह चरखारी-नरेश के यहाँ थे। नाम-(१९०३) शिवराम । ग्रंथ-तत विलास । कविताकाल-१८६७ । [ खोज १६०२ ] नाम-(१९०४) साहबरामजी जोशी। ग्रंथ-(.) रोज़नामचा, (२) लाला साहब री मुलाखात । कविताकाल-१८६७ ।। नाम-(१६०५ ) सीतल, तिकवाँपूर, कानपूर । कविताकाल-१८६७ । विवरण-साधारण श्रेणी । मतिरामवंशी । नाम-(१९०५) सुदर्शन। ग्रंथ-बारहमासा । [च० ० रि०] नाम-(१९०६) सेवक, चरखारीवाले । कविताकाल-१८१७ । विवरण--राजा रतनसिंह चरखारी-नरेश के यहाँ थे। नाम-(१९०७) हरप्रसाद कायस्थ, पन्ना तथा टीकमगढ़। ग्रंथ-(१) रसकौमुदी [ खोज १६०५ ], (२) हिसाब ।
[प्र.रि०1
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परिवर्तन-प्रकरण कविताकाल-11 . विवरण-साधारण श्रेणी । कड़ा में जन्म हुआ था। हिसाब का
__ ग्रंथ बनाया। नाम- ( १९०८) अजितदास जैन, जौनपर । ग्रंथ-जैनरामायण । कविताकाल-१८९८ । विवरण-वृदावन, जैन कवि के पुत्र। , नाम-(१९०९) बादेराय भाट, डलमऊ, जिला रायबरेली। जन्मकाल-१८८२। कविताकाल-१८९८ । विवरण-राजा दयाकृष्णराय लखनउवाले के यहाँ थे। साधारण
श्रेणी। नाम-(१९०६) मोहन । ग्रंथ-(.) चित्रकूट माहात्म्य, (२) केनिकलोल । [च.
त्रै० रि० ] रचनाकाल-१८१८ । नाम-(१९१०) हरिप्रसाद । ग्रंथ-अलंकारदर्पण। कविताकाल-१८१८ । विवरण-महाराजा हरिवंश के यहाँ थे। नाम--(१९११:) श्रीनिवास । ग्रंथ-जानकीसहस्रनाम । [प्र. ०रि०] वर्षोत्सव मानंदनिधि । कविताकाल-१८१६ के पूर्व । नाम-(१९१२ ) धीरजसिंह कायस्थ । ग्रंथ-(१) गणितचंद्रिका [प्र० ० रि० ], (२) दस्तुर
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मिश्रबंधु विनोद
चितामणि [ प्र० ०रि० ], (३) दफ़्तरमोदतरंग | - १८६६ के पूर्व ।
विवरण- घोरवाई उरछा राज्य । आप दसिया में भी थे ।
१०७६
कविताकाल - १
नाम - (१९१३ ) रसानंद भट्ट ।
ग्रंथ - संग्रामरत्नाकर || द्वि० त्रै०रि० ] ( रसानंदघन १८८५) । कविताकाल – १८६६ ।
विवरण - भरतपुर- नरेश महाराजा बलवंतसिंह की श्राज्ञानुसार रचा। - ( १९१४ ) आशुतोष ।
नाम
कविताकाल - १६०० के पूर्व ।
विवरण - इनके पद रागसागरोद्भव में हैं ।
नाम–( १६१४ ) उद्धव उपनाम औघड़ ।
१
ग्रंथ - ( १ ) कर्णजक्तमणि, (२) कुकविकुठार ।
कविताकाल - १६०० के पूर्व ।
विवरण - लखतर काठियावाड़वासी प्रौदीच्य ब्राह्मण थे ।
नाम - (१९१५) कमलाकर ।
कविताकाल - १३०० के पूर्व । विवरण - इनके पद रागसागरोद्भव में हैं ।
नाम - ( १९१६ ) करतालिया ।
कविताकाल - १६०० के पूर्व । विवरण - इनके पद रागसागरोद्भव में हैं 1 नाम- - ( १९१७ ) करुणानिधान ।
कविताकाल – १६०० के पूर्व ।
विवरण - इनके पद रागसागरोद्भव में हैं ।
नाम - (१९१८) कल्यान स्वामी राधावल्लभी । ग्रंथ - स्फुट पद ।
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१०७७
परिवर्तन-प्रकरण कविताकाल-१६०० के पूर्व । नाम-(१९१९) कृपा मिश्र । ग्रंथ-(१) रसपद्धति, (२) सवैयाप्रबोध । कविताकाल-१६०० के पूर्व । नाम-( १९२०) कृपासिंधुलाल । ग्रंथ-स्फुट पद । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण- साधारण श्रेणी । राधावल्लभी संप्रदाय के प्राचार्य । नाम-(१६२०) खेम। कविताकाल-१६०० के पूर्व । ग्रंथ-भक्तसारचंद्रिका । इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९२१) गोपालनायक । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम- (१९२२) गोपीलाल । ग्रंथ- स्फुट पद। कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९२३) चंदसखी। ग्रंथ-स्फुट पद। कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-जयपूरवासी । संभव है कि ये १६३८वाली चंद
सखी हों। नाम-( १९२४) जगराज । कविताकाल-१६०० के प्रथम ।
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१०७८
मिश्रबंधु-विनोद नाम-( १९२५ ) जनार्दन भट्ट । ग्रंथ-(१) कविरत्न (२) वैद्यरत्न, [खोज १९०२], (३)
बालविवेक, (४) हाथी को सालिहोत्र । [प्र. ० रि०] कविताकाल-१६०० के प्रथम । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९२६ ) जितऊ । कविताकाल-१६०० के पूर्व । नाम-(१९२६) जीवाभक्त राजपूत । ग्रंथ-स्फुट छंद। कविताकाल-११०० के पूर्व । विवरण-भावनगर-निवासी। विवरण-इनके पद रागसागरोगव में हैं। नाम-(१९२७ ) ठंढी सखी । कविताकाल-१९०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९२८) धुरंधर । ग्रंथ-शब्दप्रकाश । कविताकाल-१९०० के पूर्व । विवरण-इनकी रचना दिग्विजयभूषण में है। साधारण श्रेणी। नाम-(१९२९) नरसिंहदयाल । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में है । नाम-( १९३०) नीलमणि । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं।
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परिववंच-पास नाम-(१६३. ) पीतमलाल । ग्रंथ-स्फुट पद। रचनाकान-१६.. के पूर्व । विवरण-राधावल्लभीय बेटी-बंशज । नाम--(१९३१) भरथरी। कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में संगृहीत हैं। नाम-(१९३५) भाण। ग्रंथ-(.) भाण-विलास, (२) भागवावनी । कविताकाल-१६०० के पूर्व ।। विवरण-मांडवी-निवासी, गिरिनारा ब्राह्मण मौनजी के पुत्र थे। नाम-(१९३२) माननिधि । कविताकाल-१६०० के पूर्व । नाम-(१९३३ ) मीठाजी। ग्रंथ–स्फुट पद। कविताकाल-१९०० के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १९३४ ) मुरारीदास । ग्रंथ-गुणविजय विवाह । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९३५) मंदिनि श्रीपति । ग्रंथ-जनकपचीसी। कविताकाल-१९०० के पूर्व । नाम-(१९३६) युगलमंजरी।
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१०८०
मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-भावनामृत । [प्र. त्रै. रि०] नृपकेलि कादंबिनी ।
[च० ० रि०] कविताकाल-१६०० के पूर्व । नाम-(१६३६ ) रमणलाल गोस्वामो । ग्रंथ-हितमार्गगवेषिणी । रचनाकाल--.१६०० के पूर्व । विवरण-राधावल्लभाय संप्रदायाचार्य । नाम-(१९३७) रघु महाशय । कविताकाल-१४०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं । नाम-(१९३८ ) रामजस । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९३९) रामराय राठौर। कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९४०) रायमोहन । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-( १९४१ ) रूप सनातन । ग्रंथ-श्रृंगारसुख । कविताकाल-१६०० के पूर्व । [प्र० ० रि०] विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। कहते हैं कि रूप और
सनातन दो भाई थे । रूप रहते थे राधाकुंड पर और सनातन वृंदावन में।
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परिवर्तन-प्रकरण नाम-(१९४२) रंगीला प्रीतम । कविताकाल-१६०० के पूर्व । . विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९४३) रँगीली सखी । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९४४) लच्छनदास राजा खेमपाल' राठौर
के पुत्र। कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी । पद-रचयिता । . नाम-( १९४५) शिवचंद्र । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम-(१९४६) शंकर कायस्थ, बिजावर । ग्रंथ-स्फुट । कविताकाल-१६०० के कुछ पूर्व । विवरण-कवि ठाकुर के पौत्र । नाम-( १९४७ ) श्याममनोहर । कविताकाल-१६०० के पूर्व । विवरण-हीन श्रेणी । नाम-( १९४८ ) श्यामसुंदर । कविताकाल--१६०० के पूर्व ! विवरण----इनके पद रागसागरोद्भव में हैं। नाम---(१९४९) सगुणदास । कविताकाल-१६०० के पूर्व ।
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१०८१
मिश्रकंधु-विनोद
विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - (१९५०) साँवरी सखी ।
ग्रंथ - भजन |
कविताकाल- - १३०० के पूर्व ।
विवरण- इनके पद रागसागरोद्भव में हैं।
नाम - ( १९५१ ) सोनादासी । कविताकाल - १६०० के पूर्व । विवरण - इनके पद रागसागरोद्भव में हैं।
नाम - (१९५२) हरिदत्तसिंह ब्राह्मण । ग्रंथ - राधाविनोद | [ प्र० त्रै०रि० ] कविताकाल - १६०० के पूर्व ।
विवरण- शाकद्वीपी ब्राह्मण, महाराजा प्रयोध्या के वंशज ।
नाम - ( १९५३ ) अंबुज ।
ग्रंथ–नखशिख ।
4
जन्मकाल - १८७२ ।
कविताकाल - १६०० ।
विवरण -- इनके नीति के छंद भी अच्छे हैं । साधारण श्रेणी । नाम - ( १९५४ ) इच्छाराम कायस्थ, छतरपूर ।
ग्रंथ - (१) द्रौपदीविनय, (२) राधामाधवशतक ।
जन्मकाल - १८७६ । मृत्यु १६४५ ।
कविताकाल - १६०० ।
नाम - (१९५५) उमापति त्रिपाठी, उपनाम कोविद । ग्रंथ - (१) दोहावली, ( २ ) रत्नावली |
कविताकाल - १६०० ।
विवरण - साधारण श्रेणी । ये महाशय अयोध्या में रहते थे
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परिवर्तनश्राव . इनकी संस्कृत की कविता है। महाराज महात्मा अषियों की तरह माने जाते थे और ये संवत् १९२५ तक जीवित रहे हैं। अतः इनका कविताकाल संवत् ११.. हो सकता है। भाषा-कविता भी भक्ति-पत्र में उत्तम की है। खोज [...] में इनका प्रयोध्या
माहात्म्य-नामक एक और ग्रंथ मिला है। जिसका रचनाकाल १९२४ है। नाम-( १९५६ ) ऋषिजू । जन्मकाल-१८७२ । कविताकाल-१..। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( १९५७ ) कमलेश । ग्रंथ-नायिकाभेद का एक ग्रंथ । जन्मकाल-१८७० । कविताकाल-१६००। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९५८) कृष्ण । ग्रंथ-विदुरप्रजागर। जन्मकाल-१८७०। कविताकाल-१६००। विवरण साधारण श्रेणी । यह कृष्ण कवि बिहारीसतसई के
टीकाकार की रचना है। नाम-(१९५९) गुलाल । ग्रंथ-शालिहोत्र। जन्मकाल-१९७५ कविताकाल-११.. ।
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मिश्र बंधु विनोद
विवरण- साधारण श्रेणी ।
नाम - (१९६०) गोकुल कायस्थ, बलरामपुर ।
ग्रंथ - (१) नामरत्नाकर ( पृ० ६२ ), ( २ ) बाम - विनोद | ( पृ० २०४ ) ( १६२६ )
कविताकाल – १६०० । [ द्वि० त्रै०रि० ]
विवरण - धर्म एवं नीति कही ।
नाम - ( १९६१ ) गोपाल कायस्थ, रीवाँ । देखो नं० १३०४ ।
ग्रंथ - गोपालपचीसी ।
कविताकाल - १६०० । विवरण - महाराज
में थे ।
विश्वनाथसिंह रीवाँ- नरेश के समय
नाम - (१९६२) गोपाल कायस्थ, पन्ना |
ग्रंथ - (१) शालिहोत्र, ( २ ) गज-विलास । [ प्र० त्रै०रि० ]
कविताकाल - ११०० । मृत्यु १६२० ।
विवरण - पन्ना- नरेश हरवंशराय और नरपतिसिंह के समय थे । ये जयगढ़ में भी रहे थे ।
नाम - ( १९६३ ) गोपालराय भाट ।
ग्रंथ - दंपतिवाक्यविलास, रससागर, वन-यात्रा, वृंदावन-माहात्म्य, धुनिविलास, रासपंचाध्यायी, भावविलास, दूषणविलास, भूषणविलास, सीलीला, वर्षोत्सव, वृंदावनधामानुरागावली | [ तृ० ०रि० ]
कविताकाल - १६०० । विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - (१९६४) चतुर्भुज मिश्र, आगरा । ग्रंथ - (१) व्रजपरिक्रमा सतसई, ( २ ) वंशविनोद | कविताकाल – १६०० ।
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परिवर्तन-प्रकरण विवरण-ये महाशय प्रसिद्ध कवि कुलपति मिश्र के वंशजथे।
कविता साधारण श्रेणी की है। नाम-(१९६५) जवाहिरसिंह कायस्थ, पन्ना । इनका ठीक ' - नं० (८३५) है। ग्रंथ-वैद्यप्रिया। कविताकाल-१६००। विदरण-महाराजा मानसिंह के समय में थे। नाम-(१९६६) दीनानाथ अध्वर्यु, मोहार । ग्रंथ----ब्रह्मोत्तरखंड भाषा। जन्मकाल-१८७६ । कविताकाल-१९००। नाम-( १९६७ ) दुलीचंद, जयपूर । ग्रंथ-महाभारत भाषा। कविताकाल-११०० के लगभग। विवरण-महाराज रामसिंह जयपूर-नरेश की आज्ञा से बनाया था। नाम- (१६६७) चतुर्भुज मिश्र । विवरण-भरतपुर-निवासी ने भरतपुर के महाराजा बलवंतसिंहजी
की आज्ञानुसार सं० १८१६ में संस्कृत ग्रंथ कुवलयानंद का हिंदी-कविता में भाषांतर किया है, जिसका नाम
"अलंकार आभा" रक्खा है। उसके दोहासंवत रस निधि वसु शशी, शिशिर मकरगत भानु । माघ असित तिथि पंचमी, सुरु गुरु समे प्रमान ॥ १ ॥ मैन पठ्यौ भाषा विशद, पै ढिठौन चितवानि । भूप सुमस अरु बालहित, लखि बरन्यो रसमानि ॥२॥ नाम-(१९६८ ) नंदकुमार कायस्थ, बादा।
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foet
कविताकाल - १६०० के लगभग ।
विवरण - पन्ना से कुछ पेंशन पाते थे । नाम - (१९६९) परमबंदीजन महोबावाले । ग्रंथ - नखशिख |
निबंधु विनोद
जन्मकाल - १८०१ ।
कविताकाल - १६०० ।
विवरण -तोष श्रेणी ।
नाम - ( १९७० ) प्रधान ।
ग्रंथ - कवित्त राजनीति |
जन्मकाल - १८७२ ।
कविताकाल - ११०० । [ द्वि० ० रि० ] विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम – (१६०) बनादास ।
ग्रंथ - (१) विवेकमुक्तावली, ( २ ) अरजपत्रिका, (३) नामनिरूपण, ( ४ ) रामछटा, (५) मात्रा मुक्तावली, ( ६ ) हनुमद्विजय, (७) सारशब्दावली, (८) इनछावली, ( 8 ) ब्रह्मज्ञानविज्ञानछत्तीसा, (१०) परमात्मबोध, (११) ब्रह्मज्ञानपराभक्तिपरत्व, ( १२ ) ब्रह्मज्ञानशांतिसुषुप्ति, (१३) ब्रह्मज्ञानज्ञानमुक्तावली, (१४) ब्रह्मज्ञानतत्त्वनिरूपण, (१५) खंडनखाद्य, ( १६ ) ब्रह्मज्ञानद्वार, (१७) आत्मबोध, (१८) उभयप्रबोधक रामायण । [ पं० त्रै०रि० ]
रचनाकाल
- १६०० ।
नाम - ( १९७१ ) बलिरामदास ।
ग्रंथ - चित्तविलास ।
जन्मकाल - १८७० ।
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कविताकाल-१६..। विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-(१ ) ब्रजगोपालदास। . ग्रंथ-फुटकरवानी की भावनाबोधिनी टीका। [तृ• त्रै० रि.] रचनाकाल-११००। विवरण-गोस्वामी रासबिहारीलाल के शिष्य थे। नाम-( १९७२ ) बसगोपाल, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-भाषासिद्धांत (गद्य ब्रजभाषा)। कविताकाल-१६००। विवरण-साधारण भाषा । ग्रंथ छतरपुर में है, जालवन-वासी
बंदीजन । नाम-(१९७३) भारतीदान, जोधपूरवासी । कविताकाल-१६००। विवरण-ये महाशय मुरारिदान के पिता थे। इनकी कविता अनु.
प्रासविभूषित साधारण श्रेणी की थी। नाम-(१९७४) मदनगोपाल शुक्ल, फतूहाबादी । ग्रंथ-(१) अर्जुनविलास, (२) वैद्यरत्न । जन्मकाल-१८७६ । कविताकाल-१६००। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९७५) माखन । जन्मकाल-१८७० । कविताकाल-१६००। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९७६) रणजीतसिंह धंधेरे क्षत्रिय, पंचमपुर ।
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मिश्र बंधु विनोद
ग्रंथ - कालभास्कर । [ प्र० त्रै०रि० ]
कविताकाल -- १६०० ।
विवरण - हीन श्रेणी ।
नाम - ( १६७६ ) रतनसिंह । ग्रंथ - नटनागर - विनोद |
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रचनाकाल - १६०० ।
विवरण - सीतामऊ - नरेश महाराज रामसिंह के पुत्र थे । ( खोज
१६०२ )
नाम - ( १९७७ ) रामनाथ उपाध्याय ।
ग्रंथ - ( १ ) रसभूषण ग्रंथ ( खोज १९०३ ), ( २ ) महाभारत भाषा, (३) जानकीपच्चीसी [ च० त्रै०रि० ] ( ४ ) श्रीरामसुधानिधि |
कविताकाल - १६०० ।
विवरण - महाराजा नरेंद्रसिंह पटियालेवाले के समय में थे ।
नाम - ( १९७८ ) लक्ष्मण ।
ग्रंथ - (१) धर्म प्रकाश (११०५), (२) भक्तप्रकाश (१६०२ ), (३) नृपनीतिशतक (१००), (४) समयनीतिशतक ( १९०१ ), ( ५ ) शालिहोत्र, (६) रामलीला नाटक, (७) भावनाशतक, (८) मुक्तिमाल ( १३०७ ) । कविताकाल - १६०० ।
विवरण - भावनाशतक व शालिहोत्र हमने दरबार छतरपुर के पुस्तकालय में देखे हैं ।
नाम - ( १९७९ ) लक्ष्मणप्रसाद उपाध्याय, बाँदा ।
ग्रंथ - नामचक्र | [ द्वि० त्रै०रि० ]
कविताकाल - १३०० ।
विवरण – गुन्नूलाल के पुत्र ।
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परिवर्तन-प्रकरण नाम-(१९८०) लोने बंदीजन, बुंदेलखंडी। जन्मकाल-१८७६ । कविताकाल-१६००। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९८०) शिवप्रसाद । ग्रंथ टेक-चरित्र । [च. त्रै० रि० ] रचनाकाल-१६००। नाम-( १९८१ ) संपति । जन्मकाल-१८७०। कविताकाल-११००। विवरण-हीन श्रेणी। नाम--(१९८२) हरिजन कायस्थ, टीकमगढ़ । ग्रंथ-(१) कविप्रिया टीका, (२) तुजसीचिंतामणि [प्र.
त्रै० रि०] (१९०३)। कविताकाल-१६००। नाम-(१९८३) हिमंचलसिंह कायस्थ, छतरपूर । ग्रंथ-सतसई की टीका। कविताकाल-१६००। नाम-(१९८४) रामजू । ग्रंथ-बिहारीसतसई टीका । कविताकाल-१६०१ के पूर्व । नाम-( १९८५ ) अवधेस, चरखारी बुंदेलखंड । कविताकाल-१६०।। विवरण-ये महाराज रतनसिंह चरखारी-नरेश के यहाँ थे।
सरोजकार ने भूपावाले बुंदेलखंडी का एक और नाम
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मिश्रबंधु-विनोद दिया है। जान पड़ता है कि ये दोनों नाम एक ही है।
साधारण श्रेणी। नाम-(१९८५) गोपालसिंह। ग्रंथ-अजब मंजरी । [प्र. त्रै० रि० ] रचनाकाल-११०।। नाम-(१९८६) जय कवि । कविताकाल-०१। विवरण-लखनऊ के नवाब वाजिदअलीशाह के यहाँ थे। ब्रजभाषा
व खड़ी बोली मिश्रित रचना की है । साधारण श्रेणी। नाम-( १९८७ ) वंशोधर वाजपेयी, चिंताखेड़ा जिला
रायबरेली। जन्मकाल-१८७४। कविताकाल-१६०। विवरण-स्फुट काव्य । नाम-(१९८८) वंशीधर भाट, बनारसी। ग्रंथ-(1) बिदुर प्रजागर ( साहित्य वंशीधर )। जन्मकाल-१८७० । कविताकाल-१६०१ । नाम-(१९८९) बंसरूप, बनारसी । जन्मकाल-१८७४। कविताकाल-११०१। विवरण-स्फुट कविता काशीराज महाराज की है, और नायिकाभेद
भी कहा है । साधारण श्रेणी । नाम-(१९९०) रामगुलाम द्विवेदी। ग्रंथ-(.)संकटमोचन, (२१) प्रबंधरामायण, (३) किष्किंधा
कांड,[द्वि० ० रि०] (४) विनयनवपंचक। [प्र. ० रि०]
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परिवर्तक पका कविताकाल-१६०। विवरण-मिरज़ापुर निवासी। पाप तुलसी-कृत रामायण के प्रसिद
अनुसंधानकर्ता है। आपके पद रागसागरोद्भव में भी है। नाम-(१६६० ) हरदेवगिरि । ग्रंथ-गोता भाषा । [च० ० रि० । रचनाकाल-१६०१ । नाम-(१९९१) चैनदान चारण । ग्रंथ-बिसू (मरसिया)। कविताकाल-१६०२ के प्रथम ।। नाम-(१९९२) भैरववल्लभ । ग्रंथ-युद्धविलास । [ द्वि० ० रि०] कविताकाल-१६०२ के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणी । ' नाम-(१९९३ ) अयोध्याप्रसाद शुक्ल, गोला गोकरणनाथ,
जिला खीरी। कविताकाल-१९०२ । विवरण-ये राजा भूब के यहाँ थे। कविता साधारण श्रेणी की है। नाम-(१९९४ ) कालीचरण वाजपेयी, बिगहपुर, जिला
उन्नाव। ग्रंथ-वृदावनप्रकरणी कविताकाल-१६०२ । ( खोज १६०४) नाम -(१६६४ ) नारायणदास । ग्रंथ–नारी-परीक्षा । [प्र. रि० ] रचनाकाल-१६०२। नाम-(१९९५) भवानीदास ।
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मिमबंधु-विनोद
जन्मकाल-१८७५ । कविताकाल-१६०२। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(१९९६) सुखलाल भाट, ओड़छा। ग्रंथ-(1) दस्तूरअमल, (२) नसीहतनामा, (३) राधा
कृष्ण-कटाक्ष । कविताकाल-१९०२ । [प्र. त्रै० रि० विवरण-साधारण श्रेणी।। नाम-( १९९७ ) हरी आचार्य । ग्रंथ-अष्टयाम । [प्र. त्रै० रि०] कविताकाल-१९०३ के पूर्व । नाम-( १९९८ ) गजराज उपाध्याय । ग्रंथ-(.) वृत्ताहार पिंगल, (२) सुवृत्तहार, (३) रामायण । जन्मकाल-१८७४। कविताकाल-१९०३ । ( खोज १९०३) विवरण-साधारण श्रेणी । बनारस-वासी । नाम-(१९९९) सर्वसुखशरण । ग्रंथ-तस्वबोध । [ द्वि० ० रि० ] बारामासाविनय । कविताकाल-१९०३ के पूर्व । विवरण-अयोध्या के महंत ज्ञात होते हैं। नाम-( १६६६ ) जुलफिकारखाँ । ग्रंथ-जुलफ्रिकारसतसई । ( खोज १९०४) रचनाकाल-१९०३। विवरण- देलखंड के शासक अलीबहादुर के पुत्र थे । नाम-(२०००) नरेंद्रसिंह ।
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परिवर्तन प्रकरण ग्रंथ-बालक-चिकित्सा कविताकाल-१९०३ । नाम-(२००१) अमीर, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-रिसालातीरंदाजी। कविताकाल-१६०४ । [प्र० त्रै० रि०] नाम-(२००२) अवधबक्स । जन्मकाल-१८८०। कविताकाल-१९०४ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२००३) चंद कवि । ग्रंथ-भेदप्रकाश । [प्र. ० रि० ] महाभारत भाषा (१९१९)
(खोज १६०४) कविताकाल-१९०४ । विवरण-सवाई राजा रामसिंह जयपूर-नरेश इनके श्राश्रयदाता थे। नाम-(२००४ ) जनकलाडिलीशरण साधु, अयोध्या । ग्रंथ-(.) नेहप्रकाशिका [द्वि० ० रि०] (पृ०८४), (२)
नेहप्रकाश, बालअली रचित पर टीका, (३) ध्यानमंजरी। कविताकाल-१६०४। नाम-(२००४ ) नंदराम । ग्रंथ-(१) योगसारक्चनिका, (२) यशोधरचरित्र, (३) .. त्रैलोक्यसार पूजा। रचनाकान-१६०४। नाम-(२००५) भीषमदास । ग्रंथ-रामरत्न दोहाई । [प्र. त्रै० रि०] कविताकाल-१९०११
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मि-विनोद नाम-(२००५) हृदेश, झाँसी। ग्रंथ-विश्ववशकरन । रचनाकाल-१९०४। उदाहरणघोर घन सघन मदांध मतवारे फिरे,
धुरवा धुकारन सों धरा धमकत है; गरज गरजकर लरजत भूमि चूमि,
झूमत झुकत मद बुंद झमकत है। भनत हृदेश लखै लाडिली अटा पै चदि,
अंग-अंग नग जगमग दमकतं है; नीलपट उमरि घटा-सी बहरात काम,
तरफ छटा-सी चंचला-सी चमकत है। नाम-(२००५ ) कर्पूर विजय या चिदानंद । ग्रंथ-स्वरोदय, माध्यास्मिक स्फुट पद । रचनाकाल-१६०५ के पूर्व । विवरण-संवेगी साधु तथा अपने रंग में मस्त रहा करते थे।
उदाहरण- जौ लौ तत्त्व न सूझ पड़ेरे।। सौ बौं मूढ़ भरम बस भूल्यौ मत समता गहि जग सों बहेरे । अकर रोग शुभ कंप अशुभ लख भवसागर इण भाँति मढेरे। धान काज जिम मूरख खितहड़ उसर भूमि को खेत खदेरे। उचित रीति अोलख बिन चेतन निस दिन खोटो घाट घरे ; मस्तक मुकुट उचित मणि अनुपम पग भूषण प्रज्ञान जडैरे । कुमता वश मन वक्र तुरग जिम गहि विकल्प मग माँहि अरे ; चिदानंद निज रूप मगन भया तब कुसर्क मोहि नाहिं नरे।
नाम-(२००६) परमसुख ।
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परिवर्तन-प्रकरण
ग्रंथ-सिंहासनबत्तीसी। कविताकाल -११०५ के पूर्व । (खोज ११००) नाम-(२००७) कृष्णाकर चारण, करौली। ग्रंथ-स्फुट। कविताकाल-१९०५ के लगभग । नाम-(२००८), थानसिंह ( कान्ह ) कायस्थ, चरखारी। ग्रंथ-हयग्रीव नखशिख । जन्मकाल-१८८२। कविताकाज-१६५५ । मृत्यु १६१४१ विवरण-चरखारी-नरेश रतनसिंह के समय में थे। नाम--(२००९) फ्राजिलसाह बनिया, छतरपुर। • अंश-प्रेमरन। । कविताकाल-१९०५ । (खोज १९०५) विवरण-मधुसूदनदास श्रेणी। नाम-(२०१०) हरिभक्तसिंह, भिनगा-नरेश। ग्रंथ-(1) ज्ञानमहोदधि [द्वि० ० रि० ] (५० ४०),
(२) दानमहोदधि । कविताकाल-११०१। नाम-(२०११) अलखसनेही नैनदास । ग्रंथ-गीतासार। कविताकाल-१०६ के पूर्व । [प्र. ० रि•] , नाम-(२०११) रामलाल । ग्रंथ-रुक्मिनीमंगल । [तृ० ० रि०] रचनाकाल-१९०६ के पूर्व । नाम-(२०११) जयदयाल ।
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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-कृष्णप्रेमसागर । [च० ० रि०] रचनाकान-१९०६ । नाम-(२०११) नंदन पाठक । ग्रंथ-मानसशंकावली । [पं० ० रि. ] रचनाकाल-१६०६। नाम-(२०१२) सुखविहार साधु ! ग्रंथ-सुखविहार । कविताकाल-१९०६ । नाम-( २०१२ ) गंगाप्रसाद व्यास । ग्रंथ-विनयपत्रिका तिलक । [च० ० रि०] रचनाकाल-१९०७ के लगभग । नाम-(२०१२) अमजद । ग्रंथ-सगुनबत्तीसी। [पं० ० रि०] रचनाकाल-१६०७ । नाम-( २०१२ ) छत्रपती ( पद्मावती पुखार ) ग्रंथ-(१) द्वादशानुप्रेक्षा ( १६०७ ), (२) मनमोदनपंचा
शिका (१९१६), (३) उद्यमप्रकाश (१९२२),
(४)शिक्षाप्रधान। रचनाकाल-१६०७। नाम-(२०१२ ) जिनराज महंत । ग्रंथ-(१) पदावली, (२) अष्टयाम । (च० ० खोज) रचनाकाल-१९०७ । नाम-(२०१३) ठाकुरप्रसाद ( उपनाम पंडित प्रवीन )
पयासी। कविताकाल-१९०७ ।
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परिवर्तन-प्रकरण विवरण-तोष-श्रेणी। अयोध्या के महाराजा मानसिंह के यहाँ थे। नाम-(२०१४) भानुनाथ झा । ग्रंथ-प्रभावतीहरण ।
.
जन्मकाल-१८८० ।' .. कविताकाल-१६००। .
..
विवरण-महाराजा महेश्वरसिंहजी दरभंगा के यहाँ थे। मैथिली
भाषा में कविता की है। .. नाम-(२०१५) रमैया बाबा।। ग्रंथ-(१) रमैया की कविता, (२) रमैया पाषा की कविता,
(३) रमैया के कवित्त । (खोज १६०४ ) सेव्य स्वरूप । कविताकाल-१९०७ । नाम-(२०१६) साहबदीन साधु, बनारसी । ग्रंथ-संदेहबोध । कविताकाल-१९०७ । (खोज १९०४) विवरण-महाराजा ईश्वरीप्रसाद नारायणसिंह, काशी के
समय में थे । नाम-( २०१६ ) हरबख्शसिंह । ग्रंथ-(१) रामायणशतक (१९०७), (२) रामरमावली ।
[च० ० रि०] रचनाकाल-१९०७ । नाम-(२०१७) धीरसिंह, महाराजा। ग्रंथ-अलंकारमुक्तावली। कविताकाल-१६०८ के पूर्व । (खोज १६०५) . विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२०१७) बालकृष्ण भट्ट, गोकुलवासी।
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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-वैद्यमातंग । [ तृ• त्रै० रि०] रचनाकाल-१९०८ के पूर्व । नाम-(२०१७ ) गोपालदास । ग्रंथ-रामायणमाहात्म्य । [ च० ० रि०] रचनाकाल-१९०८ । नाम-(२०१८) विष्णुसिंह चारण, करौली । ग्रंथ--स्फुट । कविताकाल-१६०८। विवरण-ये भाषा तथा संस्कृत के अच्छे कवि और पंडित थे।
करौली दरबार के आप वंशपरंपरा से कवि थे। नाम-(२०१८) सदासुख । ग्रंथ-(१) रत्नकरंड श्रावकाचार, (२) अर्थप्रकाशिका, (३)
भगवती आराधना की टीका, ( ४ ) समयसार की टीका,
(५) नित्यपूजा टीका, (६) अकलंकाष्टक की टीका । रचनाकाल-१९०८। विवरण-बीसवीं शताब्दी के पुराने ढंग के प्रसिद्ध लेखक । नाम-(२०१९) देवीदत्त । ग्रंथ-अरकपचीसी। कविताकाल-१६०। नाम-(२०१९ ) दौलतराम । ग्रंथ-(1) छहढाला, (२) स्फुट पद । रचनाकाल-बीसवीं शताब्दी का प्रारंभ । विवरण-सासनी-निवासी पल्लीवाल थे। नाम-( २०१६ ) पत्रालाल चौधरी। ग्रंथ-(१) वसुनंदिश्रावकाचार, (२) सुभाषितार्णव, (३)
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परिवर्तन-प्रकरण प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, (४) जिनदत्तचरित्र, (५) तत्वाथसार, (६) सद्भाषितावली, (७) भक्तामरकथा, (८) अाराधनासार, () धर्मपरीक्षा, (१०) यशोधरचरित्र, (१) योगसार, (२)पांडवपुराण, (१३) समाधिशतक, (१४) सुभाषितरत्नसंदोह, (१५) प्राचारसार, (१६ ) नवतख, (१७) गौतमचरित्र, (१८) जंबूचरित्र, (११) जीवंधरचरित्र, (२०) भविष्यदत्तचरित्र, (२१) तस्वार्थसारदीपक, (२२) श्रावकपतिप्रकाश, ( २३ ) स्वाध्यायराठ, (२४ ) विविध भक्तियाँ
एवं स्तोत्र । रचनाकाल-बीसवीं शताब्दी का प्रारंभ । विवरण-संस्कृत ग्रंथों के बड़े भारी अनुवादक थे। नाम-(२०१६) भागचंद्र। ग्रंथ-(11) ज्ञानसूर्योदय, (२) उपदेशसिद्धांतरत्नमाला, (३)
अमितगतिश्रावकाचार, (४) प्रमाणपरीक्षा, (१) नेमि
नाथ पुराण। रचनाकाल-बीसवीं शताब्दी का प्रारंभ। विवरण-ईसागढ़, ग्वालियर-निवासी श्रोसवाल जैन थे। नाम-(२०२०) मनराज । ग्रंथ-स्फुट । कविताकाल-११०१ । विवरण-भंगारसंग्रह में काव्य है। नाम-(२०२१) लक्ष्मीप्रसाद । ग्रंथ-(१) श्रृंगारकुंडली (खोज १९०१), (२) नायिका
भेद। कविताकाल-१९०६ ।
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मिश्रबंधु-विनोद विवरण-साधारण श्रेणी । ये महाराजा भानुप्रताप छत्रसालवंशी
के मुसाहब थे। नाम-(२०२१) श्रीधर भट्ट, जयपूरवासी। ग्रंथ-(.) भारतसार (१९०१), (२) राजेंद्रचितामणि । रचनाकाल-१६०६ । [प्र. ० रि०] विवरण-पद्माकर-वंशज । नाम-(२०२२ ) सुंदरलाल ( उपनाम रसिक ) जयपुर
निवासी। ग्रंथ-(१) सुंदरचंद्रिकारसिक, (२) कुंजकौतुक, (३) पूजा
विभास । कविताकाल-१६०६ । (खोज १६००) विवरण-साधारण श्रेणो। नाम-(२०२२ ) नारायणदास (उपनाम रसमंजरी) ग्रंथ-अष्टयाम । [ तृ• त्रै० रि०] रचनाकाल-१६१० के पूर्व । नाम-(२०२२ ) रामनेवाज तिवारी। ग्रंथ-रसमंजरी वैद्यक । [च० ० रि०] रचनाकाल-१६१० के पूर्व । नाम-(२०२३) अजबेश (द्वितीय) भाट । ग्रंथ-बघेलवंशवर्णन। जन्मकाल-१८८६ । कविताकाल-१६१०। विवरण-महाराजा विश्वनाथसिंह बांधव-नरेश के यहाँ थे । तोष
कवि की श्रेणी । माम-( २०२३ ) अब्दुलहादी मौलवी ।
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परिवर्तन-प्रकरण
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ग्रंथ-वसंतविहारनीति। रचनाकाल-१६१०। (खोज १९०४)' विवरण-नं० २०२६ के साथ यह ग्रंथ बनाया। नाम-(२०२४ ) औघड़ । ग्रंथ-तरंगविलास । कविताकाल-१९१० के लगभग । [प्र. ० रि०] विवरण-काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायणसिंह के यहाँ थे। नाम-(२०२५ ) ईश्वरीप्रसाद कायस्थ, कन्नौज । ग्रंथ-(१) बिहारीसतसई पर कुंडलिया, (२) जीवरक्षावली,
(३) व्याकरणमूलावनी, (४) नाटकरामायण, (१)
उषा-अनिरुद्ध नाटक, (६) तवारीख महोवा । जन्मकाल-१८८६ । कविताकान-1810 नाम-(२०२६) ऋतुराज । ग्रंथ-वसंतविहारीनीति । कविताकाल-१६१०। (खोज १९०४) नं० (२०२१) के
साथ यह ग्रंथ बनाया। नाम-( २०२७ ) ऋषिराम मिश्र, पट्टीवाले । ग्रंथ-वंशीकल्पलता। कविताकान-१६१ विवरण-साधारण श्रेणी। खखनऊ के महाराजा बालकृष्ण के
यहाँ थे। माम-(२०२८) कुँवर रानाजी क्षत्रिय, बलरामपुर । ग्रंथ-फ्रीलानामा (१०६ गय, तथा पृ० ४६ पच)। [द्वि.
त्रै रि०]
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मिश्रबंधु-विनोद
कविताकाल-१६१०। नाम-(२०२८) गणेश । ग्रंथ-व्याहविनोद । [च. त्रै० रि०] रचनाकाल-१६१०। नाम-(२०२९) गदाधरदास, समोगरावाले । ग्रंथ-द्विग्विजयचंपू (पृ. २७८)। [द्वि० ० रि०] कविताकाल-१६१०। विवरण-आश्रयदाता बलरामपुर के महाराज दिग्विजयसिंह। नाम-(२०३० ) गुणसिंधु, बँदेलखंड । जन्मकाल-१८८२। कविताकाल-१६१० । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम- (२०३१ ) गौरचरण गोस्वामी, श्रीवृंदावन । ग्रंथ-(१) जालीकुंजलाल, (२) भूषणदूषण,(३) विचित्र
जाल, (४) श्रीगौरांगचरित्र, (५) चोरी है कि दगाबाजी, (६) चैतन्यविजय की समालोचना पर आलोचना, (७) अभिमन्यु-वध, (८) भवानी।
पापका ठीक नं० (२८६३ ) है। कविताकाल-१६१० । वर्तमान । नाम-(२०३२) चैनसिंह खत्री, लखनऊ ( उपनाम · हरचरण) ग्रंथ-(१) भंगारसारावली, (२) भारतदीपिका, (३)
बृहत्कविवल्लभ । कविताकाल-१९१०। विवरण-निन्न श्रेणी।
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परिवर्तन-प्रकरण
११०३
।
नाम-(२०३३) जदुनाथ । जन्मकाल-१८८१ । कविताकाल-१६१०। विवरण-इनके कवित्त तुलसी के संग्रह में हैं । साधारण श्रेणी। नाम-(२०३३) जमुनाचार्य । ग्रंथ-रमल भाषा । [पं० त्रै० रि०] रचनाकाल-१६१०। नाम-(२०३४) दास। ग्रंथ-केदारपंथ प्रकाश । कविताकान-१९१० । (खोज १६०३ ) विवरण-राजा नरेंद्रसिंह पटियालावाले की केदारनाथ-यात्रा का
वर्णन है। नाम-(२०३५ ) द्रोणाचार्य त्रिवेदी । ग्रंथ-प्रियादासचरितामृत । कविताकाल-१६१० । (खोज १९०१) विवरण-महाराष्ट्र ब्राह्मण वासुदेव के पुत्र तथा बांधव-नरेश . विश्वनाथसिंह के गुरु थे। नाम-(२०३५) नित्यवल्लभ । ग्रंथ-(1) धर्मार्थदर्शन, ( २ ) स्फुट पद । रचनाकाल-१६१०। विवरण-राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम-(२०३६ ) बलदेवदास माथुर। । कविताकाल-१९१०। ग्रंथ-(१) कृष्णखंड भाषा, (२) करीमा हिंदी। [प्र..रि.] नाम-(२०३७ ) भैरवप्रसाद कायस्थ, पन्ना ।
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ग्रंथ - स्फुट । जन्मकाल -
- १८८४ ।
मिश्रबंधु विनोद
कविताकाल - १६१० ।
नाम - ( २०३७ ) नाथूराम शुक्ल ।
विवरण - भाजावाड़ प्रांत के बीकानेर स्थान के निवासी झाला
वाड़ी श्रदीच्य ब्राह्मण थे, यह ईग्वी सन् १८६१ में जन्मे थे और ईस्वी सन् १९१३ में गुज़र गए। इनकी कविता का नमूना ---
प्रोषितपतिका नायिका
छाय छाय बादर सुरंगवारे श्रय श्राय,
धाय धाय श्रावत धुंधारे कारे पुरवा ; झिल्ली नकारे विकरारे चहुँओोर होत,
ठौर-ठौर बोलत डरावने ददुरवा | कहे 'नाथूराम' भूम धूम-सी दिखात प्राली, अजहू न आए दलालजू निठुरवा ; पुरवा निहार साथ लागी पंचसर वाकी,
मुरवा के सुरवा तें फाट जात उरवा । नाम—(२०३८) मकरंद राय, पुवाँयाँ, शाहजहाँपुर ।
ग्रंथ - हास्यरस ।
जन्मकाल - १८८० ।
कविताकाल - १६१० ।
नाम - (२०३८) मनोरथलाल ।
ग्रंथ - (१) पद्यावली, (२) स्फुट पद ।
रचनाकाल १६१० /
विवरण - राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम
२०३८
२
- ) मोहनलाल गोस्वामी ।
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परिवर्तन-प्रकरण ग्रंथ-(१.) हित शिक्षासार, (२) स्फुट पद । : रचनाकाल-१११०। विवरण- राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम-(२०३९) मंगलदास कायस्थ, पैंतेपुर जि० बाराबंकी। ग्रंथ-(१) ज्ञानतरंग, (२) विजय-चंद्रिका, (३) कृष्ण
प्रिया, (४) सहस्रसाखी। जन्मकाल-१८ कविताकाल-१६०० । मृत्यु १६६४ । विवरण-ये ठाकुर महेश्वरबख्श ताल्लुकेदार रामपुर मथुरा के
यहाँ थे। इन्होंने छोटे-बड़े ४८ ग्रंथ निर्मित किए थे।
साधारण श्रेणी। नाम-(२०४०) रसाल, बिलग्राम हरदोई। ग्रंथ-(.) बरवै अलंकार, (२) नखशिस्त्र, (३) बारह
मासा । (१८८६) अन्मकाल-१८८० । कविताकाल-१९१० । विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-(२०४° ) रसिकसुंदर कायस्थ, जयपूर । नाम-(२०४१ ) रामप्रसाद अगरवाल, मिर्जापूर । ग्रंथ-(1) धर्मतत्वसार, (२) चौंतीस प्रहरी, (३) श्रीभक्त
रसचौंतीसी। कविताकाल---१६१०। नाम-(२०४१ ) लालवल्लभजी। ग्रंथ-स्फुट पद। रचनाकाल-१९१० ।
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मिश्रबंधु-विनोद
विवरण-राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम-( २०४२ ) हलधर । ग्रंथ-सुदामाचरित्र । [द्वि० त्रै रि०] कविताकाल-१९११ के पूर्व । नाम-(२०४२) गुमानीलाल । ग्रंथ-भक्त-मालमहिमा । [च० ० रि०] रचनाकाल-६ । नाम- ( २०४३ ) तुलसीराम अगरवाल, मीरापुर । ग्रंथ-भक्तमाल ( उर्दू अक्षरों में )। कविताकाल-१९११ । नाम-( २०४४ ) दीनानाथ, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-भक्तिमंजरी । [ द्वि० ० रि० ] कविताकाल--१९११ । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-(२०४४) विहारीप्रसाद । ग्रंथ-(१) नीतिप्रकाश, (२) दंपतिध्यानतरंगिणी।
[प्र० ० रि०] विवरण--नौ गाँव एजेंसी में रियासत ओरछा की तरफ से
वकील थे। नाम-( २०४५) भूमिदेव । कविताकाल-१९११ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२०४६) भूसुर । जन्मकाल-१८८५। कविताकाख-१६११॥
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परिवर्तन-प्रकरण .. .. विवरण-साधारण श्रेणी। , नाम-(२०४७) किशोरीशरण (उपनाम रसिक वारसिक
विहारी) ग्रंथ-(.) रघुवर का कर्णाभरण [प्र. ० रि० ], (२)
सीतारामरसदीपिका [प्र. ० रि०], (३) कवितावली [प्र. ० रि०], (४) सीतारामसिद्धांतमुक्तावली
[प्र. त्रै० रि०], (५) बारहखड़ी (खोज १९०४)। कविताकाज-१६१२ के पूर्व । विवरण-सुदामापुर के गुजराती ब्राह्मण, सखी-संप्रदाय के वैष्णव
___ थे । अयोध्या में बसे थे। नाम-(२०४८) रसिकसंदर। ग्रंथ-प्रियाभक्तिरसबोधिनी राधामंगल । कविताकाल-११२ के पूर्व (खोज ११००) विवरण-राधाउल्लभी। नाम-(२०४९) गुरुप्रसाद क्षत्रिय, आजमगढ़ । ग्रंथ-सनिपातचंद्रिका । (पृ० ५० पद्य) [ द्वि० त्रै• रि०] कविताकाल-१६१२। विवरण-वैद्यक। नाम-(२०५०) नरहरिदास । ग्रंथ-(.) नरहरिप्रकाश, (२) नरहरिदास की बानी
[प्र. त्रै• रि० ], (३) नरहरिमाला । कविताकाल-१९१२ ।
' विवरण-राधावल्लभी। नाम-(२०५१) मृगेंद्र। ग्रंथ-(१) प्रेमपयोनिधि ( १६१२), (२) कवि त्तकुसुम
वाटिका (१६१७)
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M.. . मिनबंधु-विनोद कविताकाल-१२ । (खोज ११०४) नाम-(२०५१) रघुवंशवल्लभदेव । ग्रंथ-मनसंबोध [च० त्रै० रि० ] रचनाकाल-१६१२ । नाम-(२०५२) रामनाथ मिश्र, आजमगढ़वाले । ग्रंथ-प्रस्तुतचिकित्सा । [द्वि० त्रै० रि०] कविताकाल-१९१२ नाम-(२०५२ ) शंकरराम । ग्रंथ-राममाला । [च० ० रि० ] रचनाकाल-१९१२ । नाम-(२०५२ ) हरिविलास । ग्रंथ-(१) नामावली, (२) रोगाकर्षण । [च० त्रै० रि०] रचनाकान-१६१२ । नाम-(२०५३) ध्यानदास । ग्रंथ-(.) दानलीला, (२) मानलीला, ( ३ ) हरि
चंदशत। कविताकाल-१९१३ के पूर्व । नाम-(२०५३ ) भवानी बक्सराय । ग्रंथ-ज्योतिषरत । [पं त्रै० रि०] रचनाकाल-१९१३ के पूर्व । नाम-(२०५४) दामोदरजी (दास) तैलंगभट्ट, अलवर। ग्रंथ--स्फुट काव्य । जन्मकाल-१८८७ । कविताकाल-१९३। विवरण-ये अलवर दरबार के आश्रित थे । साधारण श्रेणी।
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परिवर्तन-प्रकरण नाम-(२०५४ ) टीकाराम, फीरोजाबादी। ग्रंथ—स्फुट । रचनाकाल-१११४ के पूर्व । विवरण-बोधा फ्रीरोजाबादी के भतीजे थे। उदाहरणचोप सो काम गढ़ौ चित दै निज पंकज से कर कुंदन नायौ; जंत्रन-मंत्रन तंत्र बड़े करि मुक्तनि गुदि के भोप बढ़ायो। बाल की नासिका बीच बड़ी नथ ताहि मूनि उरोजन छायौ; सो उपमा कहै टीकम मानहु, ईश के सीस पै छत्र चढ़ायो । नाम-(२०५४ ) बिहारीलाल वैश्य । जन्म-१८६० मृत्यु-१९३७ । ग्रंथ-(१) अमृतध्वनिछंदावनी, (२) प्रहेनकादि रवाकर,
(३) रसायनानंद, (४) वाणीभूषण, (५) वृत्त-. " कल्पतरु, (६) छंदार्णव, (७) छंदप्रकाश, (८) वैद्यानंद, (६) नामप्रकाश, (१०) दोषनिवारण (१९१३), (११) गणेशखंड (१९१३), (१२)
गंगाष्टक (१९१६)। [च० ० रि०] . कविताकाल-१६१३। नाम-(२०५५) देवीसिंह । [प्र. त्रै० रि०] ग्रंथ-(१) अर्बुदविलास, (२) देवीसिंहविलास, (३)
मायुर्वेदविलास, (४) रहसलीला, (५) नृसिंहलीला। कविताकाल-11 के पूर्व । नाम-(२०५६) गोविंद, गोपालपूर, जिला गोरखपुर । ग्रंथ-विलासतरंग (कोकसार)।
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मिश्रबंधु-विनोद
कविताकाल-१६१४ । विवरण-बजवे में मारे गए। नाम-(२०५७ ) घनश्याम ब्राह्मण, आजमगढ़। ग्रंथ-वैद्यजीवन (पृ. ४४)। [द्वि० ० रि० ] कविताकाल-१९१४ । नाम-(२०५८ ) छत्रधारी, रामजीवन के पुत्र । ग्रंथ-वाल्मीकीय रामायण भाषा । कविताकाल-१९१४ । (खोज १६०४) नाम-(२०५९) थिरपाल, सामर गाँव, मारवाड़। ग्रंथ-गुलाबचंपा। कविताकाल-१६१४ । विवरण-कहानी (श्लोक-संख्या ४१०)। नाम-(२०६०) नरेंद्रसिंह, पटियाला के महाराज । कविताकाल-१९१४ । नाम-(२०६१ ) ब्रजजीवन । ग्रंथ-(१) भक्तरसमाल, (२) अरिल्लभक्तमाल, (३)
चौरासीसार, (४) चौरासीजी को माहात्म्य, (५) छदमचौवनी, (६) हितजी महाराज की बधाई, (७)। हरिसहचरीविलास, (८) हरिरामविलास, (१) माझभक्तमाज, (१०) प्रियाजी की बधाई,
(११) रामचंद्रजी की सवारी, (१२) सतसंगसार । कविताकाल-१६१४ । [द्वि० ० रि०1 विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२०६२) शालिग्राम चौबे, बूंदी। ग्रंथ-स्फुट ।
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परिवर्तन-प्रकरण
कविताकाल - १६१४ ।
विवरण - बूंदी - दरबार में थे । साधारण श्रेणी । नाम – (२०६३) अच्छेलाल भाट,
कन्नौज।
-१८८६ ।
-
११११
जन्मकाल
कविताकाल -- १६१५
नाम - ( २०६३ ) उरदाम ।
१
विवरण - मथुरा के चौधरी अटक के चौबे । व्यास कवि के शिष्य ।
इनका 'उरदामप्रकाश' ग्रंथ बनाया हुआ है । ये संवत्
१९१५ तक जीते थे । ग्वाल कवि के शिष्य थे ।
जोबन मुलक लही मदन मोन छाप देकें राखे
महीपजू ने, भटजुग जोरदार ; उरज - बुरज में मवासी छल राशि मानों, प्रियमन अंतर बनक नीके और दार | 'उरदाम' शिशुता शहर चढ़ि लूटि लिए,
शरम धरम कढ़यो एकहू न श्रौर दार; ये न कंज खंजन, चकोर भौंर गंजन ये, करत कजाकी कजरारे नैन
कोरदार |
नाम - ( २०६४ ) काशी ।
ग्रंथ - ( १ ) गदर रायसो, (२) घूँसा रायसो, (३) छछ - दर रायो ।
कविताकाल – १६११ । [ प्र० औ०रि० ] नाम - ( २०६४ ) गणेशपुरी ।
विवरण - जोधपुर अंतर्गत पर्वतसन प्रगना के 'चारवास' नामक ग्राम के हिस्सेदार और वहीं के रहनेवाले । रोहडिया वारहट यतावत खांय के पदमजी चारन के दो पुत्र भए । बड़े का नाम 'रूपदान' और छोटे का 'गुप्तजी' यह
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२
मिश्रबंधु-विनोद गुप्त जी संवत् १८८३ में जन्मे थे । जब इनकी उमर २७ वर्ष की हुई, तब साधु हो गए और अपना नाम 'गणेशपुरी' रक्खा, और काशी में जाके संस्कृत पढ़ी। ये भाषा में अच्छी कविता करते थे । सुनने में आता है कि 'काव्यप्रकाश' सारा ग्रंथ उनके जिह्वाग्र था। इन्हीं महाशय ने महाभारत के कर्णपर्व को भाषा में 'वीरविनोद' नाम से छपाया है। कविता में अपना नाम न रखके अपने
पिता श्रीपद्मजी के नाम कविता करते थे। गणेशपुरीजी सारे राजपूताने में प्रख्यात हैं । परंतु जोधपुर और उदयपुर में विशेष रहते थे। क्योंकि जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह इनको बहुत मानते थे। नाम-( २०६५ ) कृपालुदत्त, काशी-वासी। कविताकाज-१९१५ । विवरण-ये महाशय महामहोपाध्याय पं० सुधाकर द्विवेदी के
पिता और एक अच्छे कवि थे। नाम-(२०६६) कृष्ण । जन्मकाल-१८८ कविताकाल-१६११ । नाम-(२०६७) गयादीन कायस्थ, बाँदा । ग्रंथ-चित्रगुप्तवृत्तांत । जन्मकाल--१८६०। कविताकाल-१६१५। विवरण-फतेहपुर में तहसीलदार थे। यह ग्रंथ ज्ञानसागर प्रेस
में छपा है। नाम-(२०६८ ) गोमतीदास, अवध ।
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परिवर्तन-पकरण
१३ ग्रंथ रामायण । कविताकाल-१६१५ । (खोज १९०३) नाम-(२०६९) गुरुदत्त । जन्मकाल-१८८७ । कविताकाल-१६१५ ।
विवरण-शिवसिंह सवाई के पुत्र के परकार में थे । साधारण श्रेणी। ' नाम-(२०७०) खुमानसिंह कायस्थ, अकुरास के पुत्र,,
चरखारी। ग्रंथ-() राममयम, (-२) गोबर्द्धनलीला। [प्र० ० रि०] जन्मकाल-१८६० के लगभग । मृ० सं० १९५५ । कविताकाल-१६१६ । विवरण-श्रीमान् चरखारी-नरेशजी ने कविता पर-प्रसन्न होकर
. पारितोषिक दिया था। नाम--(२०७० ) जौहरीलाल शाह । ग्रंथ-पद्मनंदपंचविंशतिका की वचनिका । रचनाकाल-१६१५।। नाम-(२०५१) तुलसीराम मिश्र, कानपूर । ग्रंथ-सत्यसिंधु । जन्मकाल-१८८८। कविताकाल-१९१५ से २८ तक । नाम-(२०७२) निर्भयानंद स्वामी। ग्रंथ-शिक्षा विभाग की कुछ पुम्सकें। कविताकाल-१६१५ । नाम-( २०७२ ) मनोहरवल्लभ गोस्वामी । ग्रंथ-(1) राधाप्रेमामृततरंगिणी, (२) कीरदूत, (३)
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१११४
मिश्रबंधु विनोद
गोपिकागीत, (४) छंदपयोनिधि, (५) अलंकारमयूख, (६) हितभाषा, (७) हितशिक्षा, (८) श्रास्तिकनास्तिक-संवाद, ( 8 ) चौरासी की टीका ।
रचनाकाल --- १६१५ ।
विवरण - राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम - (२०७३) महेशदास ।
ग्रंथ - एकादशीमाहात्म्य | [ द्वि० त्रै०रि० ]
कविताकाल - १६१५ ।
नाम - (२०७४) शिवदीन, भिनगा, बहराइच ।
ग्रंथ - कृष्णदत्तभूषण ।
कविता काल - १६१५ ।
विवरण - राजा भिनगा के नाम ग्रंथ रचा । साधारण श्रेणी ।
नाम - ( ) शिवलाल कायस्थ,
ओरछा |
ग्रंथ - (१) अन्नपूर्णास्तुति ( १६१५ ), ( २ ) नीतिशृंगार
मंजरी | [ प्र० ०रि० ]
२०७४
१
रचनाकाल - १६१५ ।
नाम - (२०७५) हरिदास बंदीजन, बाँदा ।
ग्रंथ - राधाभूषण ।
जन्मकाल -- १८६१ ।
कविताकाल - १६१५ । विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( २०७५ ) टीकाराम |
१
ग्रंथ - वैद्यसिकंदरी । [ तृ० त्रै०रि० ] रचनाकाल - १६१६ के पूर्वं ।
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परिवर्तन-प्रकरण चौंतीसवाँ अध्याय
दयानंद-काल
( १९१६-२५) (२०७६) महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य-समाज स्वामीजी का जन्म संवत् १८८१ में औदीच्य ब्राह्मण अंबाशंकर के यहाँ मोरवी शहर काठियावाद प्रदेश में हुआ था जहाँ पर इनका नाम मूलशंकर रक्खा गया । इनके पिता ने २१ बरस की अवस्था में इनका विवाह करना चाहा, परंतु इन्होंने छिपकर घर से प्रस्थान कर दिया। एक ब्रह्मचारी ने इनको शुद्ध चेतन नाम का ब्रह्मचारी बनाया। पीछे से श्रीपूर्णानंद सरस्वती से संन्यास लेकर स्वामीजी ने दयानंद सरस्वती नाम धारण किया । इन्होंने कृष्ण शास्त्री से व्याकरण पढ़ा और योगानंद स्वामी तथा दो और महात्माओं से योग सीखकर प्राबू पर्वत पर उसका अभ्यास किया। इधर-उधर भ्रमण करते हुए ये ३० वर्ष की अवस्था में हरिद्वार पहुँचे और बहुत दिन तक हिमालय पर्वत पर घूमते रहे । जहाँ-जहाँ जो कोई विद्वान् इनको मिला, उससे ये विद्या ग्रहण करते गए। इन्होंने सं० १६१७ से २० तक स्वामी विरजानंदजी शास्त्री से मथुरापुरी में विद्याध्ययन किया और उन्हीं के उपदेश से लोक-सुधार का बीड़ा उठाया।
सं० १९२० से इन्होंने लोगों से शास्त्रार्थ करना प्रारंभ किया। आपने शैव, वैष्णव, वल्लभीय, जैन, रामानंदी आदि मतों का खंडन और इन मतों के बहुत-से पंडितों को परास्त करके सं० १९२३ तक निम्न बातों को अशुद्ध ठहराया-मूर्तिपूजा, वाममार्ग, वैष्णव-मत, चोलीमार्ग, बीजमार्ग, अवतार, कंठी, तिलक, छाप, पुराण, गंगा आदि तीर्थ स्थानों की पवित्रता और नाम स्मरण तथा व्रत आदि । इसके पीछे १९२३ में हरिद्वारवाले कुंभ मेले के अवसर पर
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मिश्रबंधु-विनोद पाखंड-खंडिनी ध्वजा स्थापित करके आपने बहुत-से पंडितों और साधुओं को शास्त्रार्थ में पराजित किया। इसके बाद फर्रुखाबाद, कानपूर इत्यादि में स्वामीजी से बड़े-बड़े शास्त्रार्थ होते रहे, जहाँ हर जगह इनकी जीत होती रही । अंततोगत्वा सं० १९२६ में इस महात्मा ने आर्यावर्त की केंद्रस्वरूपा श्रीकाशीपुरी में पहुँचकर वहाँ के महात्माओं
और पंडितों को शास्त्रार्थ के वास्ते ललकारा । आप तीन वर्ष के भीतर ५ या ६ दफ़ा काशी धाम में गए । काशी के भारी शास्त्रार्थ में हिंदू लोग विशुद्धानंद स्वामी को और समाजी लोग इन स्वामीजी को जीता हुअा कहते हैं । इसके बाद स्वामीजी पटना, कलकत्ता, मुंगेर इत्यादि पूर्वी शहरों में घूम-घूमकर शास्त्रार्थ करते रहे । अनंतर इन्होंने दक्षिण की यात्रा की, और ये जबलपूर, पूना इत्यादि होते हुए बंबई होकर काठियावाड़ पहुँचे। वहाँ भी खूब शास्त्रार्थ हुए । इनका विचार बहुत दिनों से “आर्यसमाज" स्थापित करने का था, परंतु उसके स्थापन में विघ्न पड़ते रहे । अंत में चैत्र शु० ५ सं० १९३२ को बंबई के मुहल्ला गिरगाम में डॉक्टर मानिकचंदजी की वाटिका में पहले-पहल आर्य-समाज की स्थापना हुई और उसके २८ नियम बनाए गए। फिर वहाँ से पूना आदि घूमते हुए ये महाशय दिल्ली पहँचे । वहाँ से पंजाब के प्रायः सभी शहरों में आपने शास्त्रार्थ करके हर जगह विजय पाई । इसके बाद आपने मध्यप्रदेश, राजपूताना इत्यादि में घूम-घूमकर धर्म-प्रचार किया। इस समय तक अन्य धर्मवाले कुछ कट्टर मूर्ख इनके घोर शत्र हो गए। उनके षड्यंत्रों से २६ सितंबर सं० १९४० को स्वामीजी को दूध में पीसकर काँच दिया गया । जिससे बहुत व्यथित होकर ये अजमेर को चले गए और बहुत समय तक पीड़ित रहे । अंत को यह भारत-भानु कार्तिक बदी १५ सं० १९४० को ५६ बरस तक भारत को प्रकाशित रखकर इस असार संसार को छोड़ ६ बजे संध्या को अस्त हो गया।
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परिवर्तन-प्रकरण
इन महाशय की रचना के ये ग्रंथ हैं— सत्यार्थप्रकाश, वेदांग - प्रकाश, पंचमहायज्ञविधि, संस्कारविधि, गोकरुणानिधि, श्रार्योद्देश्यरत्नमाला, भ्रमोच्छेदन, भ्रांतिनिवारण, श्रार्याभिविनय, व्यवहारभानु, वेदविरुद्ध मतखंडन, स्वामीनारायणमतखंडन, वेदांतध्वांतनिवारण, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, ऋग्वेदभाष्य और यजुर्वेदभाष्य । इन्होंने जितने भाषा-ग्रंथ लिखे, उनमें वर्तमान शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया । श्रापकी भाषा बहुत ही सरल होती थी ।
१:१.१७
संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् होने पर भी आपने विशेषतया हिंदी को श्रादर दिया और अपने प्रायः सभी ग्रंथ हिंदी में लिखे ।
ऐसे महात्मा पुरुष इस संसार में बहुत कम हुए हैं । इन्होंने यावजीवन अखंड ब्रह्मचर्य व्रत रक्खा और सदैव परोपकार तथा देश-सेवा की। अपने उपदेशों में आप भारतोन्नति का बहुत बड़ा ध्यान रखते थे । यदि इनका मत पूरा-पूरा स्थिर हो जावे, तो भारत की बहुत-सी अवनतिकारिणी रस्में एकबारगी मिट जावें । जैसे महात्मा बुद्धदेव ने अपने समय की भारतमूलोच्छेदनकारिणी सभी चालों को हटाकर सीधा-सादा बौद्धधर्म चलाया था, उसी प्रकार इस महर्षि ने भारतमुखोज्ज्वलकारी श्रार्य-समाज के सिद्धांतों को स्थिर किया है । यह एक ऐसी औषध है, जिसके भले प्रकार सेवन से भारत के सभी भारी रोग-दोष शांत हो सकते हैं । अर्थशास्त्र को धर्मसिद्धांतों से मिलाकर इहलोक और परलोक दोनों में सुखद मत स्थापित करने में यह महात्मा समर्थ हुआ । वेदों को इसी महात्मा ने पुनर्जन्म- सा दिया । भारतवर्ष में बुद्धदेव, शंकर स्वामी और स्वामी दयानंद यही तीन मुख्य धर्मप्रचारक हुए हैं । इस महात्मा से संस्कृत तथा हिंदी प्रचार को भी बहुत बड़ा लाभ पहुँचा और आर्य समाज के
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मिश्रबंधु-विनोद नियमानुसार हिंदी की उन्नति करना भी एक धर्म है। ये महाशय गुजराती थे, तथापि राष्ट्र-भाषा समझकर इन्होंने हिंदी ही को आदर दिया । यदि संसार के सर्वोत्कृष्ट महानुभावों की गणना की जावे, तो उसमें स्वामी दयानंदजी का नंबर अच्छा होगा। इस प्रबंध के लेखक
आर्य-समाजी नहीं हैं और प्रतिमा पूजन तथा श्राद्ध इत्यादि पर पूरा विश्वास रखते हैं, तथापि उन्होंने औचित्य न छोड़ने के कारण उपर्युक्त बातें कही हैं।
४२ वर्षों में ही आर्य-समाज ने बहुत बड़ी उन्नति कर ली है, और इस समय लाखों मनुष्य पंजाब, युक्तप्रांत, राजपूताना, मध्यदेश आदि में पायें-समाजी हैं। इस मत को विशेष उन्नति पंजाब में है। पंजाबियों ही ने थोड़े दिन हुए काँगड़ी में गुरुकुल स्थापित किया, जिसमें प्राचीन प्रथा के अनुसार शिक्षा दी जाती है। दयानंद-ऐंग्लो-वैदिक कॉलेज भी स्वामीजी के अनुयायियों का स्थापित किया हुआ बहुत ही उत्तमता से चल रहा है। उसमें बहुत बड़ी संख्या में विद्यार्थी विद्याध्ययन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त बहुत-से स्कूल, अनाथालय, कन्या-पाठशाला, समाज द्वारा स्थापित और परिचालित हो रहे हैं। भारतोन्नति में समाजियों ने खूब अच्छा काम किया है और कर रहे हैं । जाति को कर्मभव मानकर स्वामीजी और समाज ने पतित जातियों के उद्धार में बहुत सहायता दी। भारतधर्ममहामंडल को भी हिंदुओं ने स्वामोजी एवं आर्य-समाज ही के कारण स्थापित किया, जिससे संस्कृत और भाषा-प्रचार को बहुत लाभ हुआ और होने की आशा है । यदि समाज द्वारा हिंदू-धर्म की बुराइयों का कथन न होता, तो हिंदू उसके रक्षणार्थ कोई उपाय कभी न करते,
और न सनातनधर्ममहामंडल स्थापित होता । इस मंडल की उत्ते. जना से हरिद्वार में एक ऋषिकुल खोला गया है, जिसमें हिंदू-धर्म के अनुसार विद्यार्थियों की शिक्षा होती है। समाज एवं मंडल ने
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उपदेशकों द्वारा सर्वसाधारण के ज्ञान-वृद्धि की रीति चलाई है, जिससे हिंदी में वक्तृता देनेवालों और वक्तृता-शक्ति की अच्छी उन्नति हो रही है । इस प्रथा के कारण बहुत-से उपदेशक और व्याख्यानदाता हुए हैं, जिनका वर्णन यथास्थान किया जावेगा । हमें खेद के साथ यह भी लिखना पड़ता है कि ऐसे बड़े-बड़े प्रसिद्ध एवं प्रवीण व्याख्यानदाताओं में भी पंडितमोहिनी विद्या के स्थान पर मूर्खमोहिनी विद्या अधिक पाई जाती है। इसका कारण शायद भारतवर्ष के साधारण जनसमुदाय की मूर्खता ही हो, और उनके युक्तिपूर्ण व्याख्यान न समझने के कारण हो मूर्खमोहक व्याख्यान दिए जाते हों, परंतु फिर भी बड़े-बड़े विद्वानों के व्याख्यानों में भी मूर्खमोहिनी शक्ति का प्रयोग देखकर परम शोक होता है । उपदेशकों की प्रशंसा में इतना अवश्य कहना चाहिए कि बहुतों की जिह्वा में ईश्वर ने इतना बल दिया है कि वे अपने श्रोताओं को रुला तक सकते हैं। समाज और मंडल दोनों के सहायक हिंदी की अच्छी उन्नति कर रहे हैं, और उन्होंने अच्छे-अच्छे ग्रंथ भी रचे हैं । समाज और मंडल द्वारा कई अच्छे-अच्छे पत्र भी परिचालित हो रहे हैं । इस निबंध को हम स्वामीजी की भाषा का एक नमूना देकर समाप्त करते हैं ।
उदाहरण
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जो असंभूति अर्थात् अनुत्पन्न अनादि प्रकृति कारण की ब्रह्म के स्थान में उपासना करते हैं, वे अंधकार अर्थात् श्रज्ञान और दुःखसागर में डूबते हैं और संभूति जो कारण से उत्पन्न हुए कार्यरूप पृथ्वी आदि भूति, पाषाण और वृक्ष आदि अवयव और मनुष्यादि के शरीर की उपासना ब्रह्म के स्थान में करते हैं, वे उस अंधकार से भी अधिक अंधकार अर्थात् महामूर्ख चिरकाल घोर दुःखरूप नरक में गिरके महाश भोगते हैं। जो सब जगत् में व्यापक है, उस निराकार
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११२०
मिश्रबंधु-विनोद परमात्मा की प्रतिमा परिमाण सादृश्य वा मूर्ति नहीं है। जो वाणी की इयत्ता, अर्थात् यह जल है लीजिए, वैसा विषय नहीं और जिसके धारण और सत्ता से वाणी की प्रवृत्ति होती है, उसी को ब्रह्म जान
और उपासना कर, और जो उससे भिन्न है, वह उपासनीय नहीं । जो मन से इयत्ता कर मन में नहीं पाता, जो मन को जानता है, उसी ब्रह्म को तू जान और उसी की उपासना कर, जो उससे भिन्न जीव और अंतःकरण है, उसकी उपासना ब्रह्म के स्थान में मत कर ।
(२०७७ ) लक्ष्मणसिंह राजा ___ ये महाशय आगरा के रहनेवाले थे । इनका कविताकाल संवत् १६१६ के इधर-उधर है। ये संवत् १६१३ में डिपुटी कलेक्टर नियत हुए, और १६४६ में इन्हें पेंशन मिली । संवत् १६२७ में सरकार से इन्हें राजभक्ति के कारण राजा की पदवी मिली। इनका जन्म संवत् १८८३ में हुआ, और १९५३ में इनका स्वर्गवास हुश्रा । राजा साहब ने पहलेपहल खड़ी-बोली में कालिदास-कृत "शकुंतलानाटक" का अनुवाद गद्य में करके संवत् १६१६ में प्रकाशित किया। इस पुस्तक का हिंदी-रसिकों में बहुत बड़ा सम्मान हुआ, और प्रथम संस्करण की सब प्रतियाँ बहुत जल्द बिक गई । राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने शिक्षा-विभाग के लिये बने हुए अपने गुटका में इसे भी उद्धत किया । संवत् १९३२ में विलायत के प्रसिद्ध हिंदी-प्रेमी फ्रेडरिक पिनकाट महाशय ने इसे इंगलिस्तान में छपवाया । इस पुस्तक को इंगलैंड में यहाँ तक अादर मिला कि यह इंडियन सिविलसर्विस की परीक्षा-पुस्तकों में सम्मिलित की गई । संवत् १९५३ में यह फिर प्रकाशित की गई । इस बार राजा साहब ने मूल श्लोकों का अनुवाद गद्य के स्थान पर पद्य में कर दिया । संवत् १९३४ में राजा साहब ने रघुवंश का अनुनाद गद्य में मूल श्लोकों के साथ प्रकाशित किया। यह एक बहुत बड़ी पुस्तक है। इसके अनुवाद की
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११२१ भाषा सरल एवं ललित है, और उसमें एक विशेषता यह भी है कि अनुवाद शुद्ध हिंदी में किया गया है। यथासाध्य कोई शब्द फारसीअरबी का नहीं आने पाया है । संवत् १९३८ में इन महाशय ने प्रसिद्ध मेघदूत के पूर्वार्द्ध का पद्यानुवाद छपवाया और संवत् १६४० में उसके उत्तरार्द्ध का भी अनुवाद प्रकाशित करके ग्रंथ पूर्ण कर दिया। यह ग्रंथ चौपाई, दोहा, सोरठा शिखरिणी, सवैया, छप्पै, कुंडलिया और घनाक्षरी छंदों में बनाया गया है, जिनमें सवैया
और घनाक्षरी अधिक हैं। इन्होंने दोहा, सोरठा और चौपाइयों में तुलसीदास की भाषा रक्खी है और शेष छंदों में व्रजभाषा । इनके गध में भी दो-चार स्थानों पर व्रजभाषा मिल गई है, परंतु उसकी मात्रा बहुत ही कम हैं। इनकी भाषा मधुर एवं निर्दोष है, परंतु इनका पद्य-भाग उतना अधिक प्रशंसनीय नहीं है, जितना कि गद्यभाग । इनके पद्य-भाग को गणना छत्र कवि की श्रेणी में की जाती है, और गद्य के लिये इनकी जितनी प्रशंसा की जाय, वह सब योग्य है। वर्तमान हिंदी-भाषा का प्रचार जब तक मारतवर्ष में रहेगा, तब तक विद्वन्मंडली में राजा साहब का नाम बड़े आदर के साथ लिया जावेगा। इनकी रचना में से कुछ उदाहरण नीचे उद्धृत किए जाते हैं
शकुंतला नाटक "अनसूया-(हौले प्रियंबदा से ) सखी, मैं भी इसी सोचविचार में हूँ। अब इससे कुछ पूछ गी-(प्रकट ) महात्मा, तुम्हारे मधुर वचनों के विश्वास में प्राकर मेरा जो यह पूछने को चाहता है कि तुम किस राजवंश के भूषण हो? और किस देश की प्रजा को विरह में व्याकुल छोड़ यहाँ पधारे हो ? क्या कारण है, जिससे तुमने अपने कोमल गात को इस कठिन तपोवन में आकर पीड़ित किया है ?"
"(१७२) पृथ्वी ऐसी जान पड़ती है, मानो उपर को उठते हुए
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मिश्रबंधु-विनोद पहाड़ों की चोटी से नीचे को खिसलती जाती है । वृक्षों की पीड़ें जो पत्तों में ढकी हुई सी थों, खुलती पाती हैं । नदियों का पतलापन मिटता जाता है और भूमंडल हमारे निकट आता हुआ ऐसा दीखता है, मानो किसी ने ऊपर को उछाल दिया है।"
मेघदूत रस बीच मैं लै चलियो निर विंध को जो मग तेरो निहारती हैं; कटि किंकिन मानो विहंगम पाँति तरंग उठे झनकारती हैं। मनरंजनि चाल अनोखी चलें अरु भौंर सी नाभि उघारती हैं। बतरात है मीत सों आदि यही तिय विभ्रम मोहनी डारती हैं। मीत के मंदिर जाति चली मिलिहैं तहँ केतिक राति में नारी; मारग सूझ तिन्हैं ।न परै जब सूचिका-भेद झुकै अँधियारी । कंचन रेख कसौटी-सी दामिनि त चमकाइ दिखाइ अगारी; कीजियो ना कहुँ मेह की घोर मरें अबला अकुलाइ बिचारी ।
___ रघुवंश
मूल वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये । जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥ १ ॥
अनुवाद वाणी और अर्थ की सिद्धि के निमित्त मैं वंदना करता हूँ । वाणी और अर्थ की नाईं मिले हुए जगत् के माता-पिता शिव पार्वती को ॥१॥
__क सूर्यप्रभवो वंशः क चाल्पविषया मतिः । सितीर्घटुंरतरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम् ॥ २ ॥
अनुवाद कहाँ वह वंश जिसका पिता सूर्य है और कहाँ थोड़े व्यवहारवाली ( मेरी) बुद्धि, मैं अज्ञानता से कठिन समुद्र को फूस की नाव से उतरना चाहता हूँ॥ २॥
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११२३
मूल मन्दः कवियशःप्रार्थी गमिष्याम्युपहास्यताम् । प्रांशु लभ्ये फले लोभादुद्बाहुरिव वामनः ॥ ३ ॥
अनुवाद
कवियों के यश का अभिलाषी मैं मंदबुद्धि हँसी को पहुँचूँगा, जैसे लंबे मनुष्य के हाथ लगने योग्य फल की ओर लोभ से ऊँची बाँह करनेवाला बौना ॥३॥
(२०७८ ) शंकरसहाय अग्निहोत्री (शंकर ) ये महाशय दरियाबाद जिला बारहबंकी-निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं । इनका जन्म संवत् १८९२ विक्रमीय का है। छः सौ वर्ष से इनके पूर्व-पुरुष इसी ग्राम में रहे । इनके पिता का नाम पंडित बच्चूलाल और मातामह का पं० रामबक्स तिवारी था । ११ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हुआ । इनके कोई पुत्र नहीं है, परंतु दो पुत्री व दो दौहित्र वर्तमान हैं, जिनके नाम संगमलाल और कृष्णदत्त हैं । ये दोनों इन्हीं के साथ रहते हैं। संगमलाल कविता भी करते हैं । शंकरसहायजो ने ३२ वर्ष की अवस्था से काम करना प्रारंभ किया। पहले १६ वर्ष तक इन्होंने पाठशालाओं में अध्यापकी की और फिर २२ वर्ष पर्यंत राय शंकरबली तअल्लुकदार के यहाँ ज़िलेदारी को । अब तीन साल से पेंशन पाते हैं । इन्होंने कविता-मंडन-नामक एक अलंकार-ग्रंथ बनाया है, जिसमें ३७८ छंद हैं, जिनमें सवैया बहुतायत से हैं और घनाक्षरी कम । यह ग्रंथ अभी मुद्रित नहीं हुआ है और न क्रमबद्ध लिखा ही गया है। हम इनसे मिलने दरियाबाद गए थे, जहाँ उपर्युक्त हाल इन्हीं महाशय के द्वारा हमें विदित हुआ, परंतु अपना ग्रंथ ये हमें नहीं दिखा सके । इसके अतिरिक्त इन्होंने स्फुट छंद भी बनाए हैं। इस कवि में समालोचनाशक्ति बहुत तीव्र है। हमारे करीब ३ घंटे बातचीत करने में अग्नि
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मिश्रबंधु-बिनोद होत्रीजी ने बहुत कम कवियों के विषय पूज्य भाव प्रकट किया। ये महाशय तुलसीदास और सेनापति को बहुत अच्छा समझते और पद्माकर एवं ठाकुर को बहुत निंद्य मानते थे । इनकी समालोचना में रियायत का नाम नहीं है। आप प्रत्येक विषय पर अपना स्वतंत्र विचार प्रकट किए विना नहीं रहते थे. चाहे वह श्रोता को अप्रिय ही क्यों न हो। कविता के इतने प्रेमी थे कि जब ॥ बजे दिन को हम इनके यहाँ गए, तब आप स्नान के लिये जा रहे थे, परंतु विना स्नान किए ही ३ घंटे तक हमारे पास बैठे रहे और हमारे बहुत कहने पर भी हमारे चले आने के प्रथम आपने स्नान करना स्वीकार न किया । इनसे बात करने में हमें निश्चय हुआ कि इनके चित्त में कविता-प्रेम-पादप का सच्चा अंकुर है, परंतु इन सब बालों के होते हुए भी इनको प्राचीन कवियों के पद तथा भाव उड़ा लेने की ऐली कुछ बानि सी पड़ गई है कि इनके उत्तम छंदों में भी चोरी का संदेह उपस्थित रहता है। फिर भी इनकी भाषा उत्तम
और कविता प्रशंसनीय है। हम इनकी गणना कवि तोष की श्रेणी में करते हैं।
उदाहरणअँग पारसी से जुपै भाखत हौ हरि पारसी ही को मिहारा करौ; सम नैन जो खंजन जानत तौ किन खंजन ही सों इसारा कसै। भनि संकर संकर से कच तो कर संकर ही पर धारा करौ; मुख मेरो कहौ जो सुधाकर सो तो सुधाकर क्यों न निहारा करौ ॥१॥ प्रवाल से · पायें चुनी-से लला नख दंत दिपैं मुकतान समान ; प्रभा पुखराज-सी अंगनि मैं बिलसै कच नीलम से दुसिमान । कहै कवि संकर मानिक से अधरारुन होरक-सी मुसकान ; विभूषन पान के पहिरे बनिता बनी जौहरी की-सी दुकान ॥२॥ क्रोध में पाकर इस कवि ने बहुत-से भँडोत्रा भी बनाए हैं। थोड़े
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११२५ दिनों से ये बेचारे कुछ बिपित से हो गए थे और संवत् १६६७ में स्वर्गवासी हुए।
(२०७९) गदाधर भट्ट ये महाशय मिहीलाल के पुत्र और प्रसिद्ध कवि पद्माकर के पौत्र , थे। इनका स्वर्गवास दतिया में, ८० वर्ष की अवस्था में, संवत् १९५५ के लगभग हुआ था । जयपुर, दतिया और सुठालिया के महाराजाओं के यहाँ इनका विशेष मान था। जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह की इच्छानुसार इन्होंने संवत् १९४२ में कामांधक-नामक संस्कृत-नीति का भाषा-छंदों में अनुवाद किया । अलंकारचंद्रोडय, महाधर भट्ट की बानी, कैसरसभाविनोद, और छंदोमंजरी-नामक इनके ग्रंथ प्रसिद्ध है। अंतिम ग्रंथ कविजी ने सुठालिया के राजा माधवसिंह के आश्रय में बनाया। इसकी कवि ने वार्तिक व्याख्या भी लिखी थी। गदाधरजी का काय परम प्रशंसनीय और मनोहर है। इनकी भाषा खूब साफ, सानुप्रास और अतिमधुर है। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रक्खेंगे। उदाहरणचारों ओर अटवी अटूट श्रवनी पै बनी,
सटिनी तड़ाग धेनुसिंहन मगर है। गदाधर कहै चारु आश्रम बरन चार,
सील सत्यवादी दानी भूपति सगर है। श्रापगा दुरग गज बाजि स्थ प्यादे घने,
अंबिका महेस प्रभु भक्ति में पगर है, ऊमट नरेश माधवेश महाराज जहाँ,
बैरिन को मारिया सुठारिया नगर है ॥ जौलौं जन्हुकन्यका कलानिधि कलानिकर,
जटिल जटानि बिच भाल छबि छंद ३ गदाधर कहै जौलौं अश्विनी कुमार,
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- मिश्रबंधु-विनोद
हनुमान नित गा राम सुजस अनंद पै। जौजौं अलकेस बेस महिमा सुरेस सुर,
___सरिता समेत सुर भूतल फनिंद पै; ___ बिजै-नृप नंद श्रीभवानीसिंह भूप मनि
बखत बिलंद तौलौं राजौ मसनंद पै ॥२॥
(२०६०) बालदत्त मिश्र (पूरन ) आपका जन्म संवत् १८६५ में भगवंतनगर जिला हरदोई में प्रसिद्ध माँझगाँव के मिश्रोंवाले देवमणि-वंश में हुआ था। आपके पिता पंडित बालगोविंद मिश्र बड़े ही दृढ़ आचरण के मनुष्य थे और प्राचीन प्रथा के ऐसे विकट अनुयायां थे कि गुरुजनों की लाज निभाने को इनसे उन्होंने यावज्जीवन संभाषण नहीं किया । इनके बड़े भाई मुखलालजी के कोई पुत्र जीवित नहीं रहा, सो इनकी स्त्री ने अपने एक-मात्र पुत्र बालदत्तजी को अपनी जेठानी को दे दिया। इस समय
आपकी अवस्था सात वर्ष की थी। इसी समय से अपने काका के साथ आप इटौंजा ज़िला लखनऊ में रहने लगे । काका के पीछे आपने उनका काम-काज सँभाला और अपनी व्यापारपटुता से थोड़ी सी संपत्ति को बढ़ाकर अच्छा धन उपार्जन किया। आपने संवत् १९५६ में अपने मृत्युकाल तक साधारणतया बड़ी ज़िमींदारी पैदा कर ली। यावजोवन आपने गंभीरता को निबाहा । सुरलोक-यात्रा से ३ वर्ष प्रथम श्राप इटौंजा छोड़ सकुटुंब लखनऊ में रहने लगे थे । बालकपन में आपने हिंदी तथा संस्कृत का कुछ अभ्यास किया और कुछ गीता को भी पढ़ा, परंतु इनके काका को इनका गीता पढ़ना इस कारण अरुचिकर हुआ कि गंभीर स्वभाव को बढ़ाकर कहीं ये संसार-स्यागी न हो जावें । काका की आज्ञा मानकर इन्होंने गीता छोड़ दिया। गधौली के लेखराज कवि इनके एक अन्य काका के पौत्र थे । गधौली इटौंजा से केवल १२ मील पर है, सो इन दोनों महाशयों में प्रीति
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परिवर्तन-प्रकरण . बहुत थी, और जाना-माना भी बहुधा रहता था । लेखराजजी इनसे ३ वर्ष बड़े थे। इन कारणों एवं स्वभावतः रुचि होने से आपका कविता की ओर भी रुझान हो गया और सैकड़ों छंद बन गए, पर पीछे से व्यापार में विशेष रूप से पड़ जाने के कारण भापकी कवितारचना बिलकुल छूट गई, यहाँ तक कि प्राचीन छंदों के रक्षित रखने का भी आपने प्रयत्न न किया । फिर भी प्राचीन कवियों के ग्रंथ देखने की रुचि श्रापकी वैसी ही रही । और हम लोगों को काव्य-तस्व बताने में आप सदैव चाव रखते रहे। आपकी रचना में अब केवल थोड़ेसे छंद सुरक्षित हैं, जिनमें से उदाहरण-स्वरूप दो छंद यहाँ लिखे जावेंगे। आपके चार पुत्र और दो कन्याएँ दीर्घजीवी हुई खेद है कि अब आपके बड़े पुत्र और बड़ी कन्या का देहांत हो गया है। शेष छोटे तीन पुत्र इस इतिहास-ग्रंथ के लेखक हैं। विशाल कवि आपके छोटे जामात थे । इनकी बड़ी पुत्री के दो पुत्र हैं, जिनमें छोटा भाई अनंतराम वाजपेयी गद्य-लेखन का बड़ा उत्साही है। वह कोआपरेटिवसोसाइटी में नौकर है । इनका पौत्र लक्ष्मीशंकर मिश्र बैरिस्टर है। वह भी कुछ-कुछ छंद बनाने और गद्य लिखने में रुचि रखता है। आप कविता में अपना नाम पूर्ण अथवा पूरन रखते थे।
उदाहरणलान-से लाल बने ग लाल के, जावक माल बिसाल रह्यो फबि; स्यों अधरान मैं अंजन लीक है, पीक भरे कहि देत महाबि । पीत पटी बदली कटि मैं लखि, नारि सकोच नहीं सो रही दबि; पूरन प्रीति की रीति यही पिय, दच्छिन झूठ कहैं तुमको कवि । पानी धूम इंधन मसाला संग भातस के,
हिकमति कोठरी अनूप हहरानी है; उठत प्रभंजन के धन घहरात ठौर
ठौर ठहरात जात जोर की निसानी है।
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मिश्र बंधु - विनोद
चाल की न थाह जाकी पूरन विचारि कहै,
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पवन विमान बान गति तरसानी है नर लै समूह जूह भार लै अपार कूह, करत न रूह फेरि ताकी दरसानी है । ( २०८१ ) सीतारामशरण भगवानप्रसाद ( रूपकला ) आपका जन्म संवत् १८६७ में, सारन जिला के अंतर्गत गोवा परगने के सुबारकपूर ग्राम में, कायस्थ - कुल में हुआ । इन्होंने फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अँगरेज़ी की शिक्षा पाई । ये पहले ही शिक्षा विभाग के सब-इंस्पेक्टर नियत हुए। आप रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव थे । इन्होंने सन् १८६३ ई० तक बहुत योग्यता के साथ असिस्टेंटइंस्पेक्टरी का काम किया । उस समय आपका मासिक वेतन ३०० ) था । इसी समय आपने पेंशन ले ली । आपके कोई संतान न थी, गृहिणी का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था और चित्त में भगवद्भक्ति तथा वैराग्य की मात्रा पहले ही से अधिक थी, श्रतः पेंशन लेने के पश्चात् श्राप श्रीअयोध्याजी में जाकर साधुनों की तरह वास करने लगे । इनके बनाए कुल १३ ग्रंथ हैं, जिनमें से ४ उर्दू के हैं और शेष 8 हिंदी के। आप बड़े ही मिलनसार तथा सरल हृदय और भक्त हैं । आपके रचित ग्रंथों के नाम ये हैं- १ तन मन की स्वच्छता, २ शरीर पालन, ३ भागवत गुटका, ४ पीपाजी की कथा, ५ भगवद्वचनामृत, ६ भक्तमाल की टीका, ७ सीताराममानसपूजा, ८ भगवन्नामकीर्तन, ६ श्रीसीतारामीय प्रथम पुस्तक, १० मीराबाई की जीवनी | ( २०८२ ) फेरन
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इनका जन्म-स्थान, समय इत्यादि कुछ ज्ञात नहीं है, परंतु इनकी कविता से विदित होता है कि ये महाराज विश्वनाथसिंहजी बांधव नरेश के कवि थे । कविता इनकी सारगर्भित और प्रशंसनीय है। हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं। महाराजा
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१.१२१ विश्वनाथसिंहली सं० १९२० में राज्य पर थे। उसी समय यह भी विद्यमान थे। इनका कविताकाल १६२० के लगभग समझना चाहिए।
अमल अनार अरबिंदन को बूंद वारि,
बिबाफल बिद्रुम निहारि रहे तूलि-तूलि . गेंदा औ गुलाब गुललाला गुलाबास, श्राव
जामैं जीव जावक जपा को जात भूलि-भूनि । फेरन फबत तैसी पायन ललाई बोल,
इंगुर भरे से डोल उमड़त भूलि-यूलि ; चाँदनी-सी चंदमुखी देखौ ब्रजचंद उठे,
चाँदनी बिछौना गुलचाँदनी-सी फूलि-फूलि ॥१॥ गृहिन दरिद्र गृह-स्यागिन बिभूति दियो,
पापिन प्रमोद पुन्यवंतन छलो गयो; . : असित ग्रहेश कियो सनि को सुचित्त, लघु ।
ब्यालन अनंद शेष भारन दलो गयो। फेरन फिरावत गुनीन नित नीच द्वार,
गुनन विहीन तिन्हैं बैठे ही भलो भयो, कहाँ नौ गनाऊँ दोख तेरे एक प्रानन सों,
नाम चतुरानन पै चूकतै चलो गयो ॥२॥ जनम समै मैं ब्रज-रच्छन समै मैं, सजि
समर समै मैं ज्ञान यज्ञ जप जूट मैं ; देव देवनाथ रघुनाथ विश्वनाथ करी,
फूल जल दान बान बरखा अटूट मैं । फेरन विचारपो शुभ बृष्टि को बिचार यश,
पारिहू जनेन को प्रसिद्ध चारि खूट मैं ; अवध अकूट मैं गोबरधन कूट मैं,
सुतरन त्रिकूट मैं विचिन्न चित्रकूट मैं ॥३॥
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मिनबंधु-विनोद चंदन चहल चोवा चाँदनी चंदोका चार,
घनो घनसार धेर सींच महबूबी के; अतर उसीर सीर सौरभ गुलाब नीर,
गजब गुजारे अंग अजब अजूबी के। फेरन फबत फैलि फूलन फरस तामैं,
फूज-सी फबी है बाल सुंदर सु खूबी के ; विसद बिताने ताने सामैं तहखाने बीच, बैठी खसखाने मैं खजाने खोलि खूबी के ॥४॥
(२०८३ ) मोहन इस नाम के चार कवि हुए हैं, जिनमें से हम इस समय चरखारीवाले मोहन का वर्णन करते हैं, जिन्होंने १९१६ में शृगारसागर नामक ग्रंथ बनाया । यह ग्रंथ हमने देखा है। इनकी कविता अच्छी होती थी। ये साधारण श्रेणी के कवि हैं। चंद-सो बदन चारु चंद्रमा-सी हाँसी परि
पूरन उमा-सी खासी सुरति सोहाती है। नीति प्रीति रीति रति रीति रस रीति गीत,
गीत गुन गीत सीन सुख सरसाती है। मोहन मसाल दीप माल मनि माल जाति, ___ जाल महताब बाब दुरि-दुरि जाती है; माछो अति अमल अनूप अनमोल तन,
अतन अतोल आमा अंग उफनाती है।
(२०८४ ) मुरारिदासजी कविराज ये सूरजमल कविराज के दत्तक पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १८९५ में, बूंदी में, हुआ और मृत्यु संवत् १६६४ में । ये संस्कृत, प्राकृत, डिंगल तथा हिंदी भाषा के अच्छे ज्ञाना और कवि थे। इन्होंने बूंदी-नरेश रामसिंहजी की प्राज्ञा से वंश-भास्कर को पूरा
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1 किया, जिस पर इन्हें बड़ा पुरस्कार दिया गया। इनकी जागीर में पाँच गाँव थे। इन्होंने वंशसमुच्चय तथा डिंगलकोष-नामक ग्रंथ बनाए । इनकी कविता प्राकृत-मिश्रित व्रजभाषा में होती थी। इनकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है। उदाहरणकीरति तिहारी सेत सत्रुन के आनन मैं,
ठौर-ठौर अहो निसि मेचक मिलावै है; बहुत प्रताप सप्त साधु जन मानस को,
ऐसो सीर मृत ज्यों सीतल करावे है। प्रभु से प्रतापी प्रजापालन प्रचंड दंड,
उत्तम प्रजाद चित्त सजन चुरावै है; महाराव राजा श्रीदिवान रघुबीर धीर,
रावरे गुन के रवि लच्छन स्वभावै है ॥ १ ॥ सेस अमरेस औ गनेस पार पावैं नहिं, . जाके पद देखि-देखि आनंद लियो करें; अक्षर है मूल फेरि व्यक्त औ अव्यक्त भेद,
ताही के सहाय सब उपमा दियो करें। अव्यय है संज्ञा तीनौ काल मैं अमोघ क्रिया,
वाके रसलीन होय पीयुष पियो करें; रचना रचावै केहि भाँति से मुरारिदास,
ऐसे शब्द ईश्वर को मनन कियो करें ॥२॥ नाम-(२०८५) शालिग्राम शाकद्वीपी (ब्राह्मण ) कोपा.
गंज, जिला आजमगढ़ । ग्रंथ-(.) काव्यप्रकाश की समालोचना, (२) भाषाभूषण की
समालोचना। विवरण-इनका जन्म संवत् १८१६ में हुमा था, और ११६. में
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मिश्रबंधु-विनोद स्वर्गवास हो गया । कविता साधारण श्रेणी की है । इनका कविताकाल संवत् १६२० मानना
चाहिए। उदाहरणरहुरे बसंस सोहि पावस करौंगी अाजु, ____ कोकिल के रचना के मोर सों नचावौंगी ; टूक-टूक चंद्र कै के जुगुनू उड़ाय देहौं,
तानि नभलीलपट घटा दरसावौंगी। कहैं शालिग्राम यह चंद्रिका धनुष ज्योति, ___स्वेदन के कनिका से बुंद झरिलायौंगों ; कपटी कुटिल जिन भाल में लिखो है ऐसौ,
____ आज करतार-मुख कारख लगावौंगी। नाम-(२०८५) प्रभुराम । विवरण-ये काठियावाड़ में झालावाड़ प्रांत के धाँगधरा-राज्य के
रहनेवाले थे, उन्हीं ने धाँगधरा के श्रीमानसिंहजी के नाम से "मानविनोद" नामक ग्रंथ बनाया है। दूसरा ग्रंथ वीर समाज के धनाढ्य राववंदीजन त्रिकमदास के नाम से "त्रिकमप्रकाश" बनाया है । यह प्रभुराम संवत् १८६० में जन्मे थे और संवत् १६४९ में
स्वर्गवासी हुए।
(२०८६ ) औध ( अयोध्याप्रसाद वाजपेयी) .. ये महाशय सातन पुरवा, जिला रायबरेली के रहनेवाले महाकवि
और सभा-चतुर हो गए हैं । इनका स्वर्गवास वृद्धावस्था में अभी सं० १९५० के लगभग हुआ है। इन्होंने साहित्य-सुधासागर, छंदानंद, राससर्वस्व, रामकवितावली, और शिकारगाह-नामक उत्तम ग्रंथ बनाए हैं। इनको अनुप्रास से विशेष प्रेम था। इनके मिलनेवालों ने हमसे
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परिवर्तन-प्रकरण
"३३ इनके विषय में बहुत-सी मज़ाक की बातें कही है । एक बार एक राजा ने इन्हें मखमली अचकन और पायजामा दिया, पर सर के लिये कोई वस्तु टोपी अादि का देना वह भूल गए । इस पर आपने कहा कि “वाह महाराज ! आपने मुझे ऐसा सिरोपाव दिया है कि घटा टोप।" इस पर लोगों ने झट टोप का भी घटा पूरा कर दिया। इनका काव्य प्रशंसनीय और सरस होता था। हम इन्हें पद्माकर कवि की श्रेणी में रक्खेंगे। उदाहरणबाटिका बिहंगन पै, बारि गात रंगन पै,
. वायु वेग गंगन पै बसुधा बगार है; बाँकी बेनु तानन पै, बँगले बितानन पै,
- बेस औध पानन पै बीथिन बजार है। बृदाबन बेलिन पै, बनिता नबेलिन पै,
ब्रजचंद केलिन पै बंसी बट मार है; बारि के कनाकन पै, बहलन बाँकन पै ,
बीजुरी बलाकन पै बरषा ‘बहार है॥१॥ चारो ओर राज औध राजै धर्मराजै,
दुसमन की पराजै है सदाजै खतरान की , ब्राह्मयच वासी भगवान ते उदासी कहैं,
बीबियाँ मियाँ है तुम्हें खता खफकान की। जानकी जहान की इमान की खराबी हाय,
डूबा मनसूवा तूबा कसम कुरान की; रामजी की सादी फिरगान की मनादी,
हिंदुवान की प्रबादी बरबादी तुरकान की॥ २॥ आई देखि गुय्याँ मैं नरेश अँगनैया जहँ,
खेलें चारौ भैया रघुरैया सुख पाय-पाय;
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मिश्रबंधु -विनोद
लोनी लरिकैया दै कैया मैं बलैया जाउँ, बैयाँ बैंयाँ चलत चिरैयाँ गर्दै धाय धाय । पीछे-पीछे मैया हेत लैया जैने गैया हाथ,
मेवा मिठया गहि देतीं मुख नाय नाय ; वारें नोन रैया औध श्रानंद बदैया, मेरे निधनी के छैया दुलरात्रें गुन गाय-गाय ॥ ३ ॥ इनका राससर्वस्व हमने छत्रपुर में देखा है । उसमें १३ बढ़िया बंद हैं ।
११३४
(२०५७) लविराम ब्रह्मभट्ट
ये महाशय संवत् १८६८ में स्थान श्रमोदा, जिला बस्ती में उत्पन्न हुए थे । इनके पिता का नाम पलटनराय था । इनका एक २६ पृष्ठ का जीवन चरित्र डुमरावँ निवासी पंडित नकछेदी तिवारी ने लिखा है, जो हमारे पास वर्तमान है। दस वर्ष की अवस्था में लछिरामजी ने लासाचक, जिला सुलतानपूर-निवासी ईश कवि से काव्य सीखना आरंभ किया । सोलह वर्ष की अवस्था में ये श्रवध- नरेश महाराजा मानसिंह के यहाँ गए और उन्होंने कृपा करके इन्हें कविता में और भी परिपक्क किया। महाराजा साहब की इन पर उसी समय से बड़ी कृपा रहती थी । उन्होंने पीछे से इन्हें कविराज की पदवी भी दी और सदैव इनका मान किया । यों तो लछिरामजी बहुत-से राजाओं-महाराजाओं के यहाँ गए, परंतु ये महाराजा अयोध्या और राजा बस्ती को अपनी सरकार समझते थे । राजा सीतला बख़्शसिंह ( राजा बस्ती ) ने इन्हें ५०० बीघा का चरथी ग्राम, हाथी श्रादि भी दिया । इनका मान बड़े-बड़े महाराजाओं के यहाँ होता था और इन्होंने निम्न महाशयों के नाम ग्रंथ भी बनाए
I
१ मानसिंहाष्टक, २ प्रतापरत्नाकर ( महाराजा प्रतापनारायणसिंह अयोध्या नरेश के नाम ), ३ प्रेमरत्नाकर ( राजा बस्ती के नाम ),
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४ लक्ष्मीश्वररत्नाकर ( महाराजा दरभंगा के नाम ), ५ रावणेश्वर कल्पतरु ( राजा गिद्धौर के नाम ), ६ महेश्वरविलास ( ताल्लुक़दार रामपुर मथुरा जिला सीतापुर के नाम ), ७ मुनीश्वर - कल्पतरु ( राव मल्लापुर के नाम ), ८ महेंद्रभूषण ( राजा टीकमगढ़ के नाम ), रघुवीर - विलास ( बाबू गुरुप्रसादसिंह गिद्धौर के नाम ), और १० कमलानंदकल्पतरु ( राजा पूर्निया के नाम ) । इन् ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने नीचे लिखे हुए और भी ग्रंथ बनाए
११ रामचंद्रभूषण, १२ हनुमतरातक, १३ सरयूलहरी, १४ रामरत्नाकर, और १२ नायिकाभेद का एक और अपूर्ण ग्रंथ ।
इनमें से बहुत-से रीति, अलंकार, भाव-भेद, रसभेद तथा स्फुट विषयों पर बड़े-बड़े ग्रंथ हैं । प्रेमरत्नाकर में इन्होंने बस्ती के राजा पटेश्वरीप्रसादनारायण का भी नाम लिखा है । इनका स्वर्गवास संवत् १६६१ में, श्रयाभ्या में हुआ था । इनके एक पुत्र भी है ।
"
लछिराम की भाषा व्रजभाषा है और वह सराहनीय है । इनके वर्तमान कवि होने के कारण इनकी ख्याति बड़ी विस्तीर्ण है। इनकी कविता उत्तम और ललित होती थी । हम इनको तोष, कवि की श्रेणी में रखते हैं ।
उदाहरण
पन्नालाल माले गज-गौहर दुसाल साले, हीरालाल मोती मनि माले परसत हैं महा मतवाले गजराजन के जाले बर,
बाजी खेतवाले जड़े जीन दरसत हैं। afe लहिराम सनमानि कै लुटावै नित,
सावन सुमेघ साहिबी ते सरसत महाराज सीतला कस कर मौजन सों, बारिद लौं बारहौ महीने बरसत हैं ।
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मिश्रबंधु-विनोद
चैत चंद चाँदनी प्रकाश छोर छिति पर, ___मंजुल मरीचिका तरंग रंग बरसो; कोकनद, किंसुक, अनार, कचनार, लाल,
बेला, कंद, बकुल, चमेली, मोतीलर सो । श्रीपति सरस स्याम सुंदरी विहारथल, ____ लछिराम राजै दुज अानंद अमर सो; योंही व्रजबागन विथोरत रतन फैल्यो,
____नागर बसंत रतनाकर सुघर सो । लछिरामजी के ग्रंथ प्रायः सब प्रकाशित हो चुके हैं, और वे बहुत करके भारतजीवन प्रेस में मुद्रित हुए हैं। हमारे पास इनके प्रेमरत्नाकर और रामवंद्रभूषण-नाम दो ग्रंथ वर्तमान हैं । ये दोनों बड़े ग्रंथ हैं। प्रथम त्रैवार्षिक रिपोर्ट में इनके एक और ग्रंथ प्रतापरसभूषण का पता चलता है, तथा [ पं० ० रि० ] में सियारामचरणचंद्रिका का।
(२०८८ ) बलदेव . (२०८८ ) द्विज गंग पंडित बलदेवप्रसाद अवस्थी उपनाम द्विज बलदेव कान्यकुब्ज ब्राह्मण कार्तिक बदी १२ संवत् १८६७ को मौजा मानपूर ज़िला सीतापुर में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम व्रजलाल था। वे कृषि-कार्य करते थे । बलदेवजी के तीन विवाह हुए, जिनसे इनके छः पुत्र और तीन कन्याएँ हुई। इनके गंगाधर-नामक एक और पुत्र था जो द्विज गंग के उपनाम से कविता करता था और जिसने शृंगार. चंद्रिका, महेश्वरभूषण, और प्रमदापारिजात-नामक तीन ग्रंथ संवत् १९११, १९५४ और १९५७ में बनाए थे। परंतु दुर्भाग्यवश संभवतः संवत् १६६१ में करीब ३५ वर्ष की अवस्था में अपने पिता के सामने वह गोलोकवासी हुआ । इन तीन ग्रंथों में से प्रथम में
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१३. स्फुट रस-काव्य, द्वितीय में अलंकार एवं तृतीय में भावभेद और रसभेद का वर्णन है। प्रथम में २० और द्वितीय में ११४ पृष्ठ हैं। तृतीय ग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है । द्विज बलदेवजी ने प्रथम ज्योतिष, कर्मकांड और व्याकरण को पढ़ा था। इनके चित्त में प्रेम की मात्रा विशेष थी, इसी कारण इनको काव्य करने का शौक हुा । इन्होंने १८ वर्ष की अवस्था में दासापुर की भक्तेश्वरी देवी पर अपनी जिह्वा काटकर चढ़ा दी थी। अपनी जिह्वा का कटा हुश्रा शेष भाग भी इन्होंने हमें दिखाया है। अब वह ठीक हो गई है, परंतु उसमें काटने का चिह्न अब भी बना हुआ है। इन्होंने काशी-वासी स्वामी निजानंद सरस्वती से ३२ वर्ष की अवस्था में काव्य पढ़ा। इसके पहले भी ये महाशय काव्य करते थे । संवत् १६२६ में भारतेंदु हरिश्चंद्र, बंदनपाठक, शास्त्री बेचनराम, सरदार, सेवक, नारायण, रत्नाकर, गणेशदत्त व्यास आदि कवियों ने इन्हें उत्तम कवि होने की सनद दी। इस पर इन सब महाशयों के हस्ताक्षर हैं और यह अवस्थीजी ने हमें दिखाई है। संवत् १९३३ में इनके पिता का देहांत हुश्रा । ये महाशय काव्य से ही अपनी जीविका प्राप्त करते थे और बड़े-बड़े राजा-महाराजों के यहाँ जाते थे । ये महाशय काशिराज, रीवाँनरेश, महाराजा जयपूर और महाराजा दरभंगा के यहाँ क्रम से गए हैं और उन सबके यहाँ इनका सम्मान हुआ । रामपुर मथुरा (ज़िला सीतापुरवाले) और इटौंजा (जिला लखनऊ) के राजाओं ने इनका विशेष सम्मान किया। इन राजाओं के नाम बलदेवजी ने ग्रंथ भी बनाए । इनकी कविता से प्रसन्न होकर बहुत-से राजाओं ने इन्हें भूमि
और अन्य वस्तुओं का पुरस्कार दिया । बस इसी प्रकार पाई हुई दो हजार बीघा भूमि इन्होंने पैदा की, जिसमें से ५०० बीघा बारा लगाने को मिली। रामपुर के ठाकुर महेश्वरबख्शजी ने संवत् १९५४ में एक हाथी भी इन्हें दिया था। बहुत स्थानों पर इन्हें हजारों रुपए
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मिश्रबंधु-विनोद मिले । वर्तमान अथवा थोड़े ही दिनों के मरे हुए कवियों में निम्न. लिखित कविगण इनके मित्र अथवा मुलाकाती थे—ोध, लछिराम, सेवक, सरदार, हरिश्चंद्र, लेखराज, द्विजराज, व्रजराज, दीन, प्रानंद, अनिरुद्धसिंह, विशाल, लच्छन, देवीदत्त, जंगली, महाराज रघुराजसिंह (रीवा), गुरुदीन इत्यादि । ये महाशय हम लोगों पर भी कृपा करते थे और अपने बनाए हुए सब ग्रंथों को एक-एक प्रति आपने हमें दी थी। आप जब लखनऊ आते थे तब हमारे ही यहाँ ठहरने की कृपा करते थे। अपना उपर्युक्त वृत्तांत एवं अपने ग्रंथों का हाल हमें इन्हीं ने बताया था, जो यथातथ्यरूपेण हमने यहाँ लिख दिया। खेद है, अब इनका स्वर्गवास हो गया । इनके दो पुत्र चक्रधर और पद्मधर भी कविता करते हैं। शोक का विषय है कि पद्मधर का देहांत हाल में हो गया । इनके ग्रंथों का हाल हम नीचे लिखते हैं
(१) प्रताप-विनोद में पिंगल, अलंकार, चित्रकाव्य, रसभेद और भावभेद का वर्णन है। यह १७६ पृष्ठ का ग्रंथ संवत् १६२६ में रामपूर मथुरा जिला सीतापुर के ठाकुर रुद्रप्रतापसिंह के नाम पर बना था।
(२) शृंगार-सुधाकर में शृंगाररस, शांतरस, सजनों और असजनों का वर्णन है। यह हथिया के पवार दलथंभनसिंह की आज्ञा से संवत् १९३० में बना था। इसमें पचास पृष्ठ हैं । इन दलथंभनसिंह के पुत्र बजरंगसिंह हमारे मित्र थे। ये महाशय भी अच्छा काव्य करते थे और काशी-कोतवाल की पचीसी-नामक एक ग्रंथ भी इन्होंने बनाया है। .. (३) मुक्तमाल में शांतिरस के १०८ छंद हैं। यह संवत् १९३१ में रानी कटेसर जिला सीतापुर के कहने से बना था। इसी ग्रंथ के साथ इन्हीं रानी साहबा की आज्ञा से रागाष्टयाम और समस्याप्रकाश-नामक ५८ सने के दो ग्रंथ और भी बनकर तीनों एक ही ग्रंथ
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परिवर्तन-प्रकरण की भाँति ६७ पृष्ठ में छपे थे । रागाष्टयाम में आठ पहर के चौंसठ राग हैं और यह संवत् १९३१ में बना था। समस्याप्रकाश संवत् १९३२ में छपा था और इसमें स्फुट समस्याओं की पूतियाँ है।
(४) भंगारसरोज ११ पृष्ठ का एक छोटा-सा ग्रंथ है, जिसमें शृंगाररस के कवित्त हैं और जो संवत् १९१० में बना था।
(५) हीराजुबिली में १३ पृष्ठों द्वारा संवत् १९५३ में महारानी के साठ वर्ष राज्य करने का प्रानंद मनाया गया है।
(६) चंद्रकलाकाव्य में बूंदी की चंद्रकला बाई की प्रशंसा है। यह भी संवत् १९५३ में बना था और इसमें २० पृष्ठ हैं।
(७) अन्योक्तिमहेश्वर संवत् १९५४ में रामपुर मथुरा के ठाकुर महेश्वरबख़्श के नाम पर बना था। इसमें ५६ पृष्ठों द्वारा अन्योक्तियाँ कही गई हैं।
(८) वजराजविहार २७० पृष्ठ का एक बड़ा ग्रंथ इटौंजा के राजा इंद्रविक्रमसिंह की आज्ञानुसार संवत् १९५४ में समाप्त हुमा । इसमें श्रीकृष्णचंद्र की कथा विविध छंदों में सविस्तर वर्णित है।।
(१) प्रेमतरंग बलदेवजी की कविता का संग्रह-सा है। इसमें २३ पृष्ठ हैं, और यह संवत् १९१८ में बना था । इस ग्रंथ में स्फुट विषयों की कविता है।
(१०) बनदेवविचारार्क एकसौ पृष्ठ का गद्य-पद्यमय ग्रंथ संवत् १९६५ में बना था। इसमें पद्य का भाग बहुत ही न्यून है। इस ग्रंथ में अवस्थीजी ने बहुत-से विषयों पर अपनी अनुमति प्रकट की है, और सब विषयों में इनका यही मत है कि असंभव बातों के दिखानेवाले, ज्योतिष के कहनेवाले, बड़ी-बड़ी भड़कीली दवाइयों के बेचनेवाले आदि प्रायः वंचक हुआ करते हैं । इन्होंने यत्र-तत्र ऐसे लोगों से बचने के भी अच्छे उपाय लिखे हैं। यद्यपि अवस्थीजी अँगरेज़ी नहीं पढ़े हैं, तो भी यह ग्रंथ वर्तमान कान के
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मिश्रबंधु-विनोद
विचारों के अनुकूल है । इससे अवस्थीजी की स्वाभाविक बुद्धि-प्रखरता प्रकट होती है।
अवस्थीजी ने समस्या पूर्ति पर भी बहुत-सी रचना की है। श्राशु कविता का भी इन्हें अच्छा अभ्यास था, यहाँ तक कि इन्होंने बीस-पच्चीस साल से यह दर्पोक्ति का वचन कह रक्खा था कि
"देइ जो समस्या तापै कवित बनाऊँ चट; कलम रुकै तौ कर कलम कराइए ।" इस कथन के पुष्टयर्थ इन्होंने बहुत-से छंद बहुत स्थानों पर बनाए, परंतु कहीं इनकी कलम नहीं रुकी । इन्होंने ब्रजभाषा में कविता की है और वह अच्छी है। इनकी कविता के उदाहरण नीचे लिखे जाते हैं
(द्विज बलदेव-कृत) कहा द्वै है कछू नहिं जानि परै सब अंग अनंग सों जोरि जरे ; उतै बीथिन मैं बलदेव अचानक दीठि प्रकाशक प्रेम परे । हषि कै गे अयान दया न दई है सयान सबै हियरे के हरे ; चले कौन ये जात लिए मन मो सिर मोर की चंद्रकला को धरे। सागर सनेह सील सज्जन सिरोमनि त्यों,
हंस कैसो न्याव लोक नायक के लेख्यो है ; गुन पहिचानिवे को कंचन कसौटी मनौ,
द्विज बलदेव विश्व विशद विशेख्यो है। माछे रहो जौलों लोक लोमस सुजस जूह, ___ धरम धुरंधर रुचिर रीति रेख्यो है; राधाकृष्ण प्रेमपात्र महाराज राजन मैं,
___इंद्रविकरमसिंह जंबूदीप देख्यो है। खुर्द घटै बदै राहु गसै बिरही हियरे घने धाय घला है; ‘सो तौ कलंकित त्यों विष बंधु निसाचर बारिज बारि बला है।
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t
प्रेम समुद्र बदै बलदेव के चित्त चकोर को चोप चला है काव्य सुधा बरषै निकलंक उदै जससी तुही चंद कला है ( द्विज गंग-कृत ) दमकत दामिनी लौं दीपति दुचंद
3
दुति,
तैं
दरसै श्रमंद मनि मंदिर के दर भाँति झरोखे चलि बाज ब्रजराजजू को, सारी सेव सुंदरि सरकि गई सर द्विज गंग अंग पर अलकेँ कुटिल लुरें, मुक्तमाल सहित सुधारे कंज कर तैं मानो कदयो चंद लै के पन्नग नछत्र बृ ंद, मंद-मंद मंजुल मनोज मानसर हैं ।
हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करेंगे । *
( २०८९ ) बिड़द सिंहजी ( उपनाम माधव )
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था । श्राप जाति के अलवर से मिले हैं, कविता सरस होती है।
इनका जन्म संवत् १८६७ में अलवर के अंतर्गत किशुनपुर में हुआ चौहान हैं। आपके पूर्वजों को ३ गाँव दरबार जो अब तक इनके अधिकार में हैं । आपकी
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उदाहरण
कोयल कूकतै हुक हिए उठि है चपलान तैं प्रान डरेंगे 3 देखि कै बुंदन की झरि लोचन सोचन सों सुबान करेंगे । माधव पीव की याद दिवाय पपीहरा चित्त को चेत हरेंगे ; प्रीति छिपी अब क्यों रहिहै सखिए बदरा बदनाम करेंगे ॥ १ ॥ कलंक धरै पुनि दोष करै निसि मैं बिचरे रहि बंक हमेस ; उदै लखि मित्र को होत मलीन कमोदिनि को सुखदानि बिसेस | रखै रुचि माधव बारुनी की बपुरे बिरहीन को देत कलेस ; न जानिए काह विधारि बिरंचि धरयो यहि चंद को नाम दुजेस ॥२॥
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मिश्रबंधु विनोद
( २०९० ) लखनेस
पांडे लक्ष्मणप्रसादजी उपनाम लखनेम कवि रीवा- नरेश महाराजा विश्वनाथसिंह के मंत्री पंडित बंसीधर पांडेय सरयूपारीण ब्राह्मण के पुत्र थे । ये पंडितजी महाराजा के बड़े ही कृपा पात्र थे और इन्हें सेनापति और मित्र का भी पद प्राप्त था। महाराजा विश्वनाथसिंहजी के पुत्र प्रसिद्ध कवि महाराजा रघुराजसिंहजी हुए । इन्हीं के श्राश्रय में लखने सजी रहते थे ।
इन्होंने संवत् १९२१ में रसतरंग नामक ११६ पृष्ठों का एक ग्रंथ कृष्णचरितामृत के गान में बनाया, जिसमें कुल मिलाकर ५७२ छंद हैं । यद्यपि यह कथाप्रासंगिक ग्रंथ है, तथापि इस रीति से बनाया गया है । कि श्रृंगाररस के अन्य काव्यों में इससे बहुत अंतर नहीं है । इसमें विविध छंद है, जैसे कि केशवदास की रामचंद्रिका में पाए जाते हैं, परंतु फिर भी सवैयानों और घनाक्षरियों का प्राधान्य है । इसकी भाषा व्रजभाषा की ओर अधिक झुकती है, यद्यपि इसमें अवध की भाषा भी मिल जाती है । ग्रंथारंभ में कवि ने अपने
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श्रयदाता को प्रशंसा की है, और फिर क्रमशः राजनगर और श्रीकृष्ण की उत्पत्ति से लेकर उद्धव-संदेश- पर्यंत कथा का अच्छा वर्णन किया है। रास का भी वर्णन बड़ा विशद हुआ है। इनकी कविता में जहाँ कहीं अलंकार अथवा रस आ गए हैं, वहाँ उनका नाम लिख दिया गया है । इन्होंने चित्र काव्य भी थोड़ा-सा किया है, और उसे भी एक प्रकार से कथा में ही सम्मिलित कर दिया है। इनकी भाषा अच्छी और कविता प्रशंसनीय है । भाषा में रीति काव्य और कथाप्रसंग बनाने की दो भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं, परंतु लखनेसजी ने उन दोनों को मिला दिया है। इनके ग्रंथ से कोरी कविता और कथा प्रसंग, दोनों का स्वाद मिलता है । इनका परिश्रम संतोषदायक है । हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरण नीचे लिखते हैं
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परिवर्तन-प्रकरण
११४३ राजै जैतवार रघुराज नर नाहन मैं,
चाहत पनाह मुख साह हू सके हैं; विचरै प्रफुल्लित प्रजानि-पुंज बाँधौ राज, ___दुष्ट की कहा है बनराज हू जके हैं। बरनै को पार लखनेस कृपा कोर जन,
पोत सम पाय दुखसिंधु के थके रहैं; जासु कर कंज मकरंद दान पान के के,
हमसे मलिंद गुन गान मैं छके रहैं। कुंजनि मैं, बन पुंजनि मैं, अलि गुंजनि मैं सुभ सब्द सुहात हैं; धेनु धनी, धरनी, धन, धाम मैं को बरनै जखनेस विख्यात हैं। थावर जंगम जीवन को दिन जामिनि जानि न जात बिहात हैं। है गयो कान्हमई ब्रज है सब देखें तहाँ नंदनंद देखात हैं।
खोज में लक्ष्मीचरित्र-नामक इनके एक दूसरे ग्रंथ का भी वर्णन है।
(२०९१ ) डॉक्टर रुडाल्फ हार्नली सी० आई० ई० इनका जन्म संवत् १८१८ में, प्रागरा जिले में, सिकंदरा के पास हना था। ये महाशय कॉलेजों में अध्यापक रहे, और अंत में सरकार ने इन्हें पुरातत्व की जाँच पर भी नियत किया। इनका उत्तरीय भारतवर्षीय भाषा समुदाय के व्याकरणोंवाला लेख परम प्रसिद्ध एवं विद्वत्तापूर्ण है। इन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि हिंदी संस्कृत एवं प्राकृत से निकली है और अनार्य भाषाओं की शाखा नहीं है । इन्होंने बिहारी-भाषा का कोष एवं चंद-कृत रासो का भी संपादन किया, पर ये ग्रंथ अपूर्ण रह गए। डॉक्टर साहब ने जैन ग्रंथ "उवासगदसरावो" भी प्रकाशित किया । इनका हिंदी-भाषा से प्रगाढ़ प्रेम है और व्याकरण एवं भाषाओं की उत्पत्ति के विषय में इनका प्रमाण माना जाता है ? अब ये विलायत चले गए हैं।
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मिश्रबंधु-विनोद (२०९२) आनंद कवि ठाकुर दुर्गासिंह आप डिकोलिया ज़िला सीतापूर-निवासी हिंदी के एक प्राचीन और प्रसिद्ध कवि थे। आपने ७० वर्ष की अवस्था भोग की । आपने कुछ ग्रंथ रचे थे, और स्फुट छंद सैकड़ों बनाए हैं। आपकी कविता अच्छी है। काव्यसुधाधर में आपकी समस्या-पूर्तियाँ छपा करती थीं। आप साधारणतया एक बड़े ज़मींदार थे । हमें आनंदजी ने अपने बहुत-से छंद सुनाए थे।
" ( २०९३ ) नवीनचंद्र राय इनका जन्म संवत् १८६४ में हुआ था। पिता की शैशवावस्था में ही मृत्यु हो जाने से इनकी शिक्षा अच्छी न हो सकी, पर इन्होंने अपने ही कौशल से १६) मासिक से लेकर ७००) मासिक तक का वेतन भोगा, और विद्याव्यसन के कारण अँगरेज़ी के अतिरिक्त संस्कृत और हिंदी की भी बहुत अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली । नवीन बाबू ने इन दोनों भाषाओं में प्रकृष्ट ग्रंथ बनाए और विधवा-विवाह पर भी एक पुस्तक रची । इन्होंने पंजाब में स्त्री-शिक्षा-पादप का बीज बोया और लाहौर में नार्मल फ्रीमेल-स्कूल स्थापित किया। हिंदी में आपने ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका भी निकाली। परोपकार में ये सदा लगे रहे। इनका देहांत संवत् १९४७ में हुआ।
' (२०९४ ) बालकृष्ण भट्ट भट्टजी का जन्म संवत् १६०१ में, प्रयाग में, हुआ था । ये महाशय संस्कृत के अच्छे विद्वान् और भाषा के एक परम प्राचीन लेखक थे। भारतेंदुजी इनके लेख पसंद करते थे । संवत् १९३४ में प्रयाग से हिंदी-प्रदीप-नामक एक सुंदर मासिक पत्र प्रायः ३२ वर्ष तक निकलता रहा । भट्टजी उसके सदैव संपादक रहे । इनकी गद्यलेखन-पटुता एवं गंभीरता सर्वतोभावेन सराहनीय है। कलिराज की सभा, रेन का विकट खेल, बाल-विवाह नाटक, सौ अजान का एक
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परिवर्तन-प्रकरण सुजान, नूतन ब्रह्मचारी, जैसा काम वैसा परिणाम प्रादि देख इनके चमत्कारिक हैं । पद्मावती, शर्मिष्ठा और चंद्रसेन-नामक उत्तम नाटकग्रंथ भी भट्टजी ने रचे ।
नाम-(२०९५ ) आत्माराम । ग्रंथ-शृंगारसप्तशती (संस्कृत)। विवरण-१६२५ के पीछे इन्होंने बिहारीसतसई का संस्कृत में
अनुवाद किया । भारतेंदुजी ने इनको १००) उसकी :: पारितोषिक भी दिया । अतः इनका रचनाकाल संवत्
१६२५ के लगभग है। यथा
अपनय भवबाधाभयं राधे त्वं कुशतासि । हरिरपि धरति हरियुर्ति यदि माधवमुपयासि । .
(२०९६) ब्रज . गोकुल उपनाम ब्रज कायस्थ का जन्म संवत् १८७७ में हुमा तथा संवत् १९६२ में ये स्वर्गवासी हुए । इनका 'संवत् १६४८ के लगभग कविताकाल है । ये बलरामपूरं ज़िला गोंडा में हुए हैं । ये महाराजा दिग्विजयसिंह के यहाँ रहे । इन्होंने पंचदेवपंचक ( १९२४), नीतिमातंड (१९२६), सुतोपदेश (१९३०),वामाविनोद, (१९३०), चौबीस अवतार (१९३१), शोकविनाश (१९३२), शक्तिप्रभाकर (१९३६), टिट्टिभ पाख्यान (१९३७), सुहृदोपदेश, (१९३७), मृगयामयंक (१९३७), दिग्विजयप्रकाश ( १९३६), महारानीधर्मचंद्रिका, एकादशोमाहात्म्य, कृष्णदत्तभूषण, अचलप्रकाश, महावीरप्रकाश, दिग्विजयभूषण संग्रह (१९२५), अष्टयामप्रकाश (१९१८), चित्रकलाधर ( १९२३ ), दूतीदर्पण, नीतिरत्नाकर (१९२१), और नीतिप्रकाश-नामक २२ ग्रंथ बनाए हैं । इनका कोई ग्रंथ हमारे देखने में नहीं पाया. पर पूछ-पाँछ से इन ग्रंथों के नाम निश्चय-पूर्वक बान
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११४६
मिश्रबंधु-विनोद पड़े। इनकी कविता अनुप्रास-पूर्ण परम विशद होती थी । हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखते हैं।
उदाहरणतम नासि प्रवास प्रकास करै गुन एक गनै नहिं औगुन सारै ; दिन अंत पतंग दई प्रभुता इन संग पतंग अनेक न जारै। अति मित्र के द्रोही बिछोही सनेह के याते सखा सिख मेरी विचारै ; मनि मंजु धरै ब्रज मंदिर मैं रजनी मैं जनी जनि दीपक बारै । नाम- ( २०९७ ) शिवदयाल कवि पांडे ( उपनाम भेष)
लखनऊ। ग्रंथ-(१) स्फुट कविता (२) दशम स्कंध भागवत भाषा
करीब १००० विविध छंदों में अपूर्ण । जन्मकाल-१८६६ । कविताकाल-१६२५। विवरण-ये लखनऊ रानीकटरा निवासी कान्यकुब्ज पांडे थे।
इन्हें ज्योतिष में अच्छा अभ्यास था और श्राप कविता भा सोहावनी करते थे । इनकी गणना तोष कवि की
श्रेणी में है। चित की हम ऊधौ जु बातें कहैं अवकास प्रकास न पाइ है जू; यह तुंग के तुंग तरंगन के उमहे मन कौन समाइ है जू । दुरि है हग कोर जु भेष कहूँ तो अब ब्रज फेरि बहाइ है जू , सिगरी यह रावरी ज्ञानकथा कहि कौन को कौन सुनाइ है जू ॥१॥
इस समय के अन्य कविगण नाम-(२०६८ ) असकंदगिरि, बाँदा । ग्रंथ-(१) असकंदविनोद, (२) रसमोदक (खोज १९०५)
(१९०१)। कविताकाल-१६१६ ।
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१
परिवर्तन-प्रकरण
११४७ विवरण-साधारण श्रेणी । ये महाराज हिम्मतबहादुर गोसाई
बाँदा के शिष्य व नवाब ग़नीबहादुर बाँदा के नौकर
थे । कविता भी अच्छी करते थे। नाम-(२०६८) गोपालजी । जन्मकाल-१८८२ । रचनाकाल-१६१६ । ग्रंथ-चंडीविलास । विवरण-काठियावाड़ के भट्ट कवि थे। नाम-(२०६८) गोवर्धनलाल । ग्रंथ-स्फुट पद। रचनाकाल-१६१६ । विवरण-राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम-(२०६८) चंपाराम, पाटन-निवासी। ग्रंथ-(१) गौतमपरीक्षा, (२) वसुनंदिश्रावकाचार, (३)
योगसार, (४) चर्चासागर । रचनाकाल-१६१६ । नाम-(२०९९ ) दिलीप, चैनपुर । ग्रंथ-रामायण टीका। कविताकाल-१९१६ । । नाम-(२०६६) वृदावनदास । ग्रंथ-सामुद्रिक । [च. त्रै० रि०] रचनाकाल-२६१६ । नाम-(२०६६ ) भवानीप्रसाद शुक्ल । ग्रंथ-(1) दीनव्यंगशत, (२) उपालंभशत । [च० त्रै• रि०] रचनाकाल-१९१६।
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मिश्रबंधु-विनोद माम-(२०६६) मन्नालाल, बैनाड़ा। ग्रंथ-प्रद्युम्नचरित्रवचनिका। रचनाकाल-१९१६। नाम-( २१००) लल्लू ब्राह्मण (पांडे), गाजीपुर। ग्रंथ-उषाचरित्र (पृ० ११०), लालरत्न । कविताकाल-१९१६ । ( खोज १९०३) नाम-( २१०१ ) हीरालाल चौबे, बूंदी। ग्रंथ-स्फुट । कविताकाल-१९१६ । विवरण-ये भी ब दो-दरबार में थे । नाम-(२१०१) गंगाप्रसाद, भदावर । ग्रंथ-विश्वभोजनप्रकाश । (च. त्रै० रि०) रचनाकाल-१९१७ के पूर्व । नाम-(२१०२ ) सुदामाजी । ग्रंथ-(१) बारहखड़ी, (२) स्फुट । कविताकाज-१९१७ के पूर्व । नाम-(२१०३) हाजी। अंथ-प्रेमनामा । [प्र० त्रै रि०] कविताकाल-१९१७ के पूर्व । नाम-(२१०४) गंगादत्त ब्राह्मण राजापूर, जिला बाँदा । ग्रंथ-विष्णोदविशदस्तोत्र। जन्मकाल-१८६२। कविताकाल-१९१७ । नाम-(२१०५) भानुप्रताप, बिजावर महाराज । ग्रंथ-(१) शृंगारपचासा,(२) विज्ञानशतक । [प्र० ० रि०]
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परिवर्तन-प्रकरयु
कविताकाल - राजस्वकाल १६१७ से १९५८ तक |
नाम - ( २१०५ ) माधवसिंह, अमेठी के राजा ।
१
विवरण- -बड़े कविता- प्रेमी थे, इन्हीं की सहायता से महाभारतदर्पण नवलकिशोर- प्रेस में छपा ।
नाम- - ( २१०५
) मुनि आत्माराम ।
२
ग्रंथ - ( १ ) जैनतस्त्वादर्श, (२) तत्वनिर्णयप्रसाद, (३)
श्रज्ञानतिमिर भास्कर ।
११४६
रचनाकाल - १६१८ ।
जन्मकाल - १८६३ ।
मृत्युकाल - १६२३ ।
नाम- - ( २१०६ ) सुंदरलाल कायस्थ, राजनगर, छत्रपुर ।
ग्रंथ —– स्फुट |
कविताकाल - १६१८ ।
नाम - ( २१०६ ) अमृतराय ।
१
ग्रंथ - महाभारत भाषा । ( खोज १६०४ )
रचनाकाल - १६१६ के पूर्वं ।
विवरण - नरेंद्रसिंह पटियाला- नरेश के यहाँ थे । इन्होंने यह अनुवाद उमादास, कुबेरचंद्र, देवीदत्तराय, निहाल, मंगलराय,
रामनाथ तथा हंसराज के साथ मिलकर किया।
नाम – ( २१०६ ) कुबेर ।
२.
ग्रंथ - महाभारत भाषा । ऊपर लिखा हुआ । कई लोगों के साथ रचा।
रचनाकाल – १११३ के पूर्व ।
नाम - ( १०६) देवीदत्त राय ।
ग्रंथ—महाभारत भाषा । उपर्युक्त ।
रचनाकाल – १६१६ के पूर्व ।
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मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(२१०६ ) मंगलराय । ग्रंथ-महाभारत भाषा उपर्युक्त । रचनाकाल-१६१६ के पूर्व । नाम-(२१०६ ) हंसराज । ग्रंथ-महाभारत भाषा । उपर्युक्त । रचनाकाल-१६१६ के पूर्व । नाम-( २१०७ ) गोपालगव हरी, फर्रुखाबाद । ग्रंथ-दयानंददिग्विजयार्क। जन्मकाल-१८६४ । कविताकाल-१६१६ । रचनाकाल-1६१६ के पूर्व । नाम-(२१०७ ) भवानीदीन । विवरण-तअल्लुकदार सीतापूर । नाम-( २१०८ ) लालचंद । ग्रंथ-सत्कर्म, उपदेश-रत्नमाला । कविताकाल-१६१६ । नाम-(२१०८) हरिदेव । नाम-(२१०९) कृष्णदास ब्राह्मण, उज्जैन । ग्रंथ-सिंहासनबत्तीसी । [प्र. त्रै० रि०] कविताकाल-११२० के पूर्व । .. विवरण-आश्रयदाता राजा भीम । नाम-(२११० ) माखन चौबे, कुलपहाड़, जिला हमीरपूर । ग्रंथ-(१) श्रीगणेशजी की कथा, (२) श्रीसत्यनारायण कथा । कविताकाल-१९२० के पूर्व । [प्र० त्रै० रि०] विवरण-कुलपहाड़, हमीरपूरवाले ।
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परिवर्तन-प्रकरण नाम-(२१११) खूबचंद राठ, हमीरपुर । ( उपनाम
रसोले, रसेश) ग्रंथ-तेरहमासी । [प्र० त्रै० रि०] अंगचंद्रिका, होरीपंकज, प्रेम
पत्रिका, अवधसागर, कृष्ण कुसुमाकर, माखनचोरी, घोड़ा
वृषभ-विवाद, वाक्यविलास, रसिकबसीकरणं । कविताकाल-१९२० । नाम-(२११२ ) गणेशप्रसाद कायस्थ, ऐंचवारा, जिला
बाँदा । ग्रंथ-स्फुट । जन्मकाल-१८६६ । कविताकाल-१६२० । मृत्यु १९५६ । नाम-( २११३ ) गंगाराम, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-(1) सिंहासनबत्तीसी, (२) देवीस्तुति, (३) राम
चरित्र । (खोज १६०३) [ द्वि० ० रि०] जन्मकाल-१८६४ । कविताकाल-१९२० । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-(२११४ ) टेर, मैनपुरी। जन्मकाल-१८८८। कविताकाल-१९२० । नाम-( २११५) दीनदयाल कायस्थ, कोयल, जिला - अलीगढ़। ग्रंथ-स्फुट । जन्मकाल-१८६५ । कविताकाल-१९२० ।
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मिश्रबंधु-विनोद नाम-(२११६ ) नरोत्तम, अंतर्वेद । जन्मकाल-1८६६।
कविताकाल-१९२० । • विवरण-साधारण कवि ।
नाम- (२०१६) नाथूलाल दोसी । ग्रंथ-(१) सुकमाजचरित्र, (२) महीपालचरित्र, (३)
समाधितंत्र, (४) दर्शनसार, (१) परमात्माप्रकाश, (६) सिद्धप्रियस्तोत्र, (१) रखकरंडश्रावकाचार । जैन
संप्रदाय की स्त्री थी। रचनाकाल-१९२० के लगभग । नाम- ( २११७ ) परमानंदलल्ला पौराणिक, अजयगढ़,
बँदेलखंड। ग्रंथ-(१) नखशिख, (२) हनुमाननाटकदीपिका । जन्मकाल-१८६७। कविताकाल-१९२० । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२११७) पन्नालाल, दूनीवाले । ग्रंथ-(१) विद्वज्जनबोधक, (२) उत्तरपुराणवचनिका । रचनाकाल-१९२० के लगभग । नाम-- ( २११७) पारसदास, जयपूर-वासी। ग्रंथ-(१) पारसविलास, (२) ज्ञानसूर्योदय, (३) सार
चतुर्विशनिका की वचनिका ।
रचनाकाल-१९२० के लगभग । नाम-(२११७ ) फतहलाल, जयपुरी। ग्रंथ-(१) विवाहपद्धति, (२) दशावतार नाटक, (३)
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परिवर्तन-प्रकरण
.११५३ राजवार्तिकालंकार, (४) रत्नकरंडन्यायदीपिका, (५)
तस्वार्थसूत्र की वचनिका। रचनाकाल-१९२० के लगभग । जैन लेखक थे। नाम-(२१.१७ ) बख्तावरमल ( उपनाम रतनलाल) . ग्रंथ-(3) जिनदत्तचरित्र, (२) नेमिनाथपुराण, (३)
चंद्रप्रभापुराण, (४) भविष्यदत्तचरित्र, (५) प्रीति
करचरित्र, (६) प्रद्युम्नचरित्र, (७) व्रत कथा कोष । रचनाकाल-१९२० के लगभग । जैन कवि थे। नाम-(२०१७) शिवचंद्र ।। ग्रंथ-(१) नीतिवाक्यामृत, (२) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार,
(३) तरवार्थसूत्र की वचनिकाएँ। रचनाकाल-१९२० अंदाज़ी। जैन कवि थे। नाम-(२११७) शिवजीलाल, जयपूरवासी। ग्रंथ-(१) रत्नकरंड, (२) चर्चासंग्रह, (३) बोधसार,
(४) दर्शनसार, (१) अध्यात्मतरंगिणी। रचनाकाल-१९२० अंदाज़ी । नाम-(२११८) ब्रजचंद जन । ग्रंथ-श्रीरामलीला कौमुदी। जन्मकाल-१८६० । कविताकाल-१९२० से १९६० तक । विवरण-इनका यह ग्रंथ वार्तिक है और कहीं-कहीं इसमें छंद
भी हैं। ७० बड़े पृष्ठों का व्रजभाषा का ग्रंथ है। साधारण
श्रेणी के कवि थे । ग्रंथ हमने छतरपुर में देखा है। नाम-(२११८ ) स्वरूपचंद जैन। ग्रंथ-(.) मदनपराजयवचनिका, (२) त्रैलोक्यसार ।
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१९५४
मिश्रबंधु-विनोद रचनाकाल-१९२० अंदाज़ी। नाम-(२११८) हीराचंद्र अमोलक । ग्रंथ-(.) पंचपूजा, (२) स्फुट पद । रचनाकाल-१६२० अंदाज़ी । नाम-(२११६ ) मदनमोहन । जन्मकाल-१८१८ । कविताकाल-१९२० । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम- ( २१२० ) मनीराम मिश्र, साठी, कानपूर । ग्रंथ-सीता का दर्पण । जन्मकाल-१८६६ । कविताकाल-१६२० । नाम-(२१२०) महाचंद्र जैन । ग्रंथ-(१) महापुराण, (२) सामयिक पाठ, (३) स्फुट
पद। रचनाकाल-१६२० । नाम-( २१२१) माखन लखेरा, पन्नावाले । ग्रंथ-दानचौंतीसी। [प्र. त्रै० रि० ] जन्मकाल-1८९१ । कविताकाल-१९२० । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२१२१ ) मिहिरचंद्र, दिल्लीवासी । ग्रंथ-(१) सज्जनचित्तविलास, (२) गुलिस्ताँ का अनुवाद,
(३) बोस्ताँ का अनुवाद । रचनाकाल-१९२० ।
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परिवर्तन-प्रकरण
११५५
नाम-(२१२२) युगलप्रसाद कायस्थ, रीवाँ । ग्रंथ-बघेलवंशावली, विनयवाटिका । कविताकाल-१९२० । विवरण-रामरसिकावली रघुराजसिंह रीवाँ-नरेश-कृत की वंशावली
इन्हीं की रचना है । नाम-(२१२३) रामकृष्ण । ग्रंथ-नायिकाभेद । जन्मकाल-१८८६ । कविताकाल-१६२० । [खोज १६०५ ] में नायिकाभेद की
संवत् १९०७ की प्रति मिली है। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२१२४) रामदीन बंदीजन, अलीगंज, इटावा। जन्मकाल-१८१०। कविताकाल-१९२० । , विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-(२१२५) लक्ष्मणसिंह (प्रतीतराय) कायस्थ,
दतिया। ग्रंथ-(१) जैमिनि-अश्वमेधभाषा, (२) रामभूषण, (३)
लोकेंद्रव्रजोत्सव । जन्मकाल-१८९६ । कविताकाल-१९२० । विवरण-महाराज भवानीसिंह दतिया-नरेश के यहाँ थे। नाम-(२१२६) लेखराज । ग्रंथ-रामकृष्णगुणमाना। कविताकाल-१९२० ।
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मिश्रबंधु-विनोद नाम-(२१२७ ) लोनेसिंह, मितौली, खीरी। ग्रंथ-दशम स्कंध भागवत भाषा । जन्मकाल-१८६२ । कविताकाल-११२० । विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-( २१२८ ) शिवप्रकाशसिंह बाबू, डुमराव, शाहा.
बादवाले। ग्रंथ-रामतत्त्वबोधिनी ( टीका विनयपत्रिका की)। । जन्मकाल-१८६५ । कविताकाल--- १६२० । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२१२९) कुशलसिंह । ग्रंथ-नखशिख । रामरत्नगीता। कविताका-१९२१ के पूर्व । विवरण-शिवनाथ के साथ लिखा । नाम-(२१२० ) दंपताचार्य । ग्रंथ-रसमंजरी। कविताकाल-१९२१ के पूर्व । [ द्वि० त्रै० रि० ] नाम-(२१३१ ) द्वारिकादास । ग्रंथ-माधवनिदान भाषा ( वैद्यक ग्रंथ)। कवितकाल-१९२१ के पूर्व । ( खोज १६००) नाम-(२१३२ ) अनुनैन । ग्रंथ-नखशिख । जन्मकाल-१८८६ । कविताकाल-१९२१ ।
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परिवर्तन-प्रकरण विवरण-कविता सानुप्रास और यमकयुक्त उत्तम है। साधारण
श्रेणी। नाम-(२१३२ )गोपाल कवि। ग्रंथ- समस्या-चमन । [च. त्रै• रि० ] रचनाकाल-१९२१॥ नाम-( २१३२ ) मदनसिंह कायस्थ । ग्रंथ-(१) मदनचंद्रिका (१९२१), (२) मदनमुद्रिका
(१९२३), (३) हम्मीरप्रकाश (१९२३), (४) मदनप्रताप शालिहोत्र (१९३१), (५) फारसी की
बात । [प्र० ० रि०] रचनाकाल-१६२१ । विवरण-ओरछा-नरेश हम्मीरसिंह तथा प्रतापसिंह के यहाँ थे। नाम-(२१३३ ) राधाचरण कायस्थ, राजगढ़, बुंदेलखंड । ग्रंथ-(१) यमुनाष्टक, (२) राधिकानखशिख, COME
पचासा।
जन्मकाल-१८१६ ।
कविताकाल-११२१ । मृत्यु १९५१ । नाम-(२१३४ ) श्रीकृष्णचैतन्यदेव । ग्रंथ-सौंदर्यचंद्रिका । [ द्वि० ० रि०] कविताकाल-१९२२ के पूर्व । नाम-(२१३४ ) दीपकुँअरि रानी । ग्रंथ-दीपविलास । [प्र. ० रि० ] रचनाकाल-१६२२ । विवरण-अजयगढ़-नरेश महाराजा माधवसिंह की रानी थीं। नाम-(२१३५ ) बख्तावरखाँ, बिजावर । ग्रंथ-धनुषसवैया।
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मिश्रबंधु-विनोद कविताकाल-१६२२ । [प्र. त्रै० रि०] . नाम-(२१३६ ) बेनी, भिंड-निवासी। ग्रंथ-शालिहोत्र । [प्र. त्रै० रि०] कविताकाल-१६२३ के प्रथम । विवरण-खगेश के पुत्र । नाम-( २१३७ ) मानसिंह अवस्थी, गिरवाँ, जिला बाँदा । ग्रंथ-शालिहोत्र । कविताकाल-१९२३ के पूर्व । [प्र० त्रै० रि०] विवरण-साधारण । नाम-(२१३७ ) केशवगिरि । ग्रंथ-(१) आनंदलहरी, ( २ ) प्रमोदनाटक। [प्र० त्रै० रि० ] रचनाकाल-१९२३ । नाम-(२१३७ ) मजबूतसिंह, बुंदेलखंडी। ग्रंथ-नीतिचंद्रिका । [प्र० ० रि०] रचनाकाल-१९२३ । नाम-(२१३८ ) रामचरन चिरगाँव । ग्रंथ-(१) हिंडोलकुंड, (२) रहस्यरामायन, (३) सीताराम
दंपतिविलास । [ द्वि. त्रै० रि०] नाम-(२९३८ ) लोचनसिंह कायस्थ । ग्रंथ-लोचनप्रकाश । [च. त्रै० रि०] रचनाकाल-१९२३ । कविताकाल-१९२३ । विवरण-मैथिलीशरण गुप्त के पिता। नाम-(२१३९) भूरे, बिजावर । ग्रंथ-बारहमासा । [प्र. त्रै० रि०]
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११५१
परिवर्तन-प्रकरण कविताकाल-१९२४ के वं। नाम-( २१३६ ) केशवदास, टीकमगढ़वासी। ग्रंथ-(१) मुहूर्तप्रदीप (१९२४), (२) गणितसार
(१९३०), [प्र. त्रै० रि०] रचनाकाल-१९२४ । विवरण-महाराजा हमीरसिंह मोरछा-नरेश के यहाँ थे। नाम-(२१४०) जयगोविंददास । ग्रंथ-हनुमत्सागर (पृ. ३२६ )। [द्वि० ० रि०] कविताकान-१९२४ । नाम-(२१४१) ठाकुरप्रसाद त्रिपाठी, किशुनदासपूर,
रायबरेली। ग्रंथ-रसचंद्रोदय, ( कोई संग्रह भी)। जन्मकाल-१८८२। कविताकाल-१९२४ तक । विवरण-साधारण श्रेणी । इनके पास भाषा-साहित्य का अच्छा
पुस्तकालय था। नाम-(२१४२) दलपतिराम । ग्रंथ-श्रवणाख्यान । कविताकाल-१९२४ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२१४३) पंचम, डलमऊ, रायबरेली। कविताकाल-१९२४ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२१४३ ) रसरूप । ग्रंथ-(.) श्यामविलास (१९२४), (२) विनयरसामृत,
(३) राधिकाजू को नखशिख । [प्र० त्रै० रि०]
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मिनबंधु-विनोद
रचनाकाल-१९२४ । विवरण-पिपरी-राज्य छत्रपूरवासी। नाम-(२१४३ ) शंकरलाल । ग्रंथ-कृष्णचंद्रिका । [प्र. ० रि०] रचनाकाल-१९२४ । विवरण-रजधान जिला कानपूरवासी। नाम-(२१४३ ) स्वामो हरिसेवक साहब संत । ग्रंथ--सेवकबहर, सेवकतरंग । रचनाकाल-१६२४ । जन्मकाल-सं० १८८६ । मृत्युकाल-१९५६ । विवरण-आप बलिया-निवासी शिवगोपाल के पुत्र थे । आप
योगशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। उदाहरणबचन विस्वास दो मदद गुरु श्रासले,
त्रिगुण पिस्तौल बंधूम करु ग्राम को; लोप संतोष अरु ज्ञान गोला बना,
बीर ना गने रण शीत और धाम को। बंधु सुत नारि परिवार सब बहर बनो है,
ढाल कर बाल अरह जाम को; कहें हरिसेवक पद शीश दे गरू' को,
विषय को मारि ललकारि ले राम को। जै जै जै वालमीक बलिया जो प्रकट कियो, ___चारों दिशि खाई जाकी चौकी मुनीश्वर की ; पूरब पराशर दक्षिण गंगागर्ग दर दर भृगु,
दक्षिण हैं कपिलदेव उत्तर दे कुलेश्वर की।
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परिवर्तन-प्रकरण
मध्यपुरी राजे विपुल साधु संत गाजे तामें,
धाम छबि छाजें हुक्म रानी बलेश्वर की; गादी है वजार बंस कायस्थ, वजीरापुर,
तामह हरिसेवक खास किंकर परमेश्वर की। नाम-(२१४४) खान । कविताकाल-१९२५ के पूर्व । विवरण-साधारण श्रेणो । नाम-(२१४५) हनुमानदास । ग्रंथ-गातमाला। कविताकाल-१६२५ के पूर्व । नाम-(२१४६) कमलाकांत वकील, गोरखपुर । ग्रंथ-हालाविहार । जन्मकाल-१६००। कविताकाल-१९२५ वर्तमान । नाम-(२१४७ ) कमलेश्वर कायस्थ,मंदरा, जिला गाजीपूर। ग्रंथ-(१) सत्यनारायण, (२) स्फुट । कविताकाल-१९२५ । मृत्यु १६६८। नाम-(२१४७) कालिदास चारण । कविताकाल-१६२५। विवरण-मूली काठियावाद के निवासी तथा राजा यशवंत
सिह के यहाँ थे। इनकी कविता वीररस-पूर्ण है। नाम-(२१४७ ) केसरीसिंह । कविताकाल-१६२५।। विवरण-भ्रोल-निवासी भूपसिंह के पुत्र थे । पालीताने में
भी रहे।
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११६२
मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(२१४८) चंडीदत्त । जन्मकाल-१८६८। कविताकाल-१९२५ । विवरण-महाराजा मानसिंह के दरबारी कवि थे। साधारण
श्रेणी। नाम-(२१४९ ) चंडीदान कविराजा चारण, कोटा । ग्रंथ-स्फुट कविता। कविताकाल-१६२५। विवरण-ये भी अच्छी कविता करते थे और देवीजी का एकाध
कवित्त रोज़ बना लेते थे, तब भोजन करते थे। इस कारण देवीजी के कवित्त इनके हज़ारों हैं । साधारण
श्रेणी। नाम-(२१४६ ) ज्येष्ठालाल । कविताकाल-१९२५ । विवरण-बीजापूर-निवासी चारण थे। नाम-(२१४६ ) ठाकुरप्रसाद लाला । ग्रंथ-(१) प्रश्नचंद्रिका (१९२५), (२) माधवविलास
(१९२५), (३) भाषेदुरश्मि (१९३८)। रचनाकाल-१६२५ । [प्र. त्रै रि०] विवरण-ओरछावासी। नाम-(२१५०) तपसीराम कायस्थ, मुबारकपूर, सारन । ग्रंथ-(१) रमूज़ महरवना, (२) प्रेमगंगतरंग, (३)
बनाया देहली। कविताकाल-१६२५ । मृत्यु १६४२ । नाम-( २१५१ ) देवीप्रसाद कायस्थ, मऊ, छत्रपूर ।
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परिवर्तन-प्रकरण
ग्रंथ-वैद्यकल्प । जन्मकाल-१८६७ । कविताकाल-१२५ । मृत्यु १६४६ । नाम-(२१५२) नारायणदास भाट । ग्रंथ-ऊधवव्रजगमनचरित्र । [ द्वि० त्रै० रि० ] कविताकाल-१९२५ । विवरण-बनारस । नाम- (२१५२ ) आदितराम ।
यह काठियावाड़ के देशांतर्गत 'नवानगर'-शहर के निवासी.. प्रश्नोरा ब्राह्मण थे । इन्होंने "संगीत्यादित" नामक बहुत अच्छा ग्रंथ बनाया है । इनका स्वर्गवास सं० १९४५ में हुआ।
कवित्त यह जगजाल माँहि मगन रहो हों ताहि,
देके सतसंग भक्त जन भाव कीजिए, मन की ए वासना विनासना करामो कछु,
होऊँ यह सुमति कुमति मति छीजिए। कहत 'अदितराम' सुनो यह मेरी पास,
छोरि जग पास खास दासपद दीजिए; एहो ब्रजनाथ मोहिं कीजिए सनाथ भव,
पाथ साथ हॉथ गहि, नाथ गहि लीजिए। नाम-(२१५२ ) गुलाबसिंह धाऊजी।
भरतपूर के रहनेवाले जाति के गूजर थे। यह संवत् १८७८ में जन्मे और संवत् ११४५ में स्वर्गवासी हुए। ये भरतपुर के महा. राजा जसवंतसिंह के धाभाई होने से भरतपूर राज्य के बड़े उमराव थे। उनके बनाए ग्रंथों के नाम -प्रेमसतसई सात सौ दोहा में
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मिश्रबंधु विनोद
छपे हैं । २ – कार्त्तिकमाहात्म्य । फुटकर छप्पय ५०० और फुटकर पद ५०० बनाया है । और कवि रसश्रानंद के पास 'हितकल्पद्रुम' (हितोपदेश भाषा ) बनाके छपवाया है तथा 'सामुद्रिकसार ' ग्रंथ नरोत्तम कवि के पास बनाकर छुपाया है ।
रचनाकाल - १६२५ ।
नाम - ( २१५३ ) परमेश बंदोजन, सतावाँ, रायबरेली । ग्रंथ - कृष्णविनोद ( पृ० ७८ ) ।
जन्मकाल - १८६६ ।
कविताकाल - १६२५ | थोड़े दिन हुए स्वर्गवास हुआ ।
विवरण -तोष श्रेणी ।
नाम - ( २१५४ ) प्रेमसिंह उदावत राठोड़, खडेला गाँव,
मारवाड़ |
ग्रंथ - राजा कामकेतु की वार्ता ( इतिहास ) ।
कविताकाल - १६२५ । मृत्यु १६५६ ।
विवरण - श्राश्रयदाता महाराज यशवंत सिंह । श्लोक सं० ६०० । नाम - ( २१५५ ) बुधसिंह ( रसीले ) कायस्थ, बेरी ।
ग्रंथ — स्फुट ।
जन्मकाल - १६०० ।
कविताकाल - १६२५ । मृत्यु १६५० ।
नाम - ( २१५६ ) मथुराप्रसाद ( उपनाम लंकेश) कायस्थ,
कालपी ।
ग्रंथ - ( १ ) रावणदिग्विजय, (२)
रावणवृंदावनयात्रा,
( ३ ) रावण शिवस्वरोदय, ( ४ ) दोहावली ।
जन्मकाल - १८६६ । कविताकाल – १६२५ ।
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परिवर्तन-प्रकरण
१९९५ विवरण-आप कालपी में वकील थे। रामलीला के रसिक ही न
थे, बरन् रावण बनते भी थे, और अपने को रावण का
अवतार कहते थे । उपनाम भी लंकेश रक्खा था। नाम-(२१५७ ) महेशदत्त शुक्ल अवधराम के पुत्र
धनौली, जिला बारहबंकी। ग्रंथ-(१) विष्णुपुराण भाषा गद्य-पद्य, (२) अमरकोष
टीका, (३ ) देवी भागवत, (४) वाल्मीकीय रामायण, (५) नसिंहपुराण. (६) पद्मपुराण,(.) काव्यसंग्रह, (८) उमापति दिग्विजय, (६) उद्योगपर्व भाषा, (१०)
माधवनिदान, (१) कवित्तरामायण टीका । जन्मकाल-१८१७ । कविताकाल-१९२५ । मृत्यु ११६० । नाम-(२१५८) मूलचंद कायस्थ, खैराबाद, जिला
सीतापूर । ग्रंथ-(.) धर्म-सागर, (२) भजनावली ७ भाग । जन्मकाल-१६००। कविताकाल-१९२५ । मृत्यु १९५०।। नाम-(२१५९ ) रघुनंदन भट्टाचार्य। ग्रंथ-(.) सनातनधर्मसिद्धांत, (२) धर्मसिद्धांतसंहिता,
(३) दिग्विजयाश्वमेध, (४) पाखंडमुंडिनिदर्शन, (५) कृत्यवाद, (६) शब्दार्थनिरूपण, (७) दाननिरूपण, (८)
लक्षणावाद, (६) सदूषण, (१०) सदाशिवास्तुति । जन्मकाल-१८१६ । कविताकाल-१६२५ । नाम-(२१६०) रघुनंदनलाल कायस्थ, बनारस ।
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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-चित्रगुप्त श्वर पुराण । जन्मकाल-१८६७ । कविताकाल-१६२५ । नाम-(२१६० ) गुमानसिंह । विवरण- मेवाड़ उदयपूर राज्यांतर्गत बाटरडा गाँव निवासी,
उदयपूर राज्य के पटावत, बाटरडा गाँव के पास ठाकुर के भयात थे। लक्षनपुरा गांव निवासी गुमानसिंहजी का जन्मकाल संवत् १८६७ का था। इनका रचनाकाल संवत् १९२५ है। इनके बनाए हुए ग्रंथों के नाम(१) मनिषालक्षचंद्रिका, (२) मोक्षभुवन, नव खंडों में, (३) योगभानुप्रकाशिका ( भगवद्गीता की टीका ), (४) गीतासार (भागवत अध्याय ५० श्लोक की टीका। (५) पातंजल सूत्र पर छंदबद्ध टीका । ये पाँच छपे हुए हैं और बाकी (६) योगांगशतक,
(७) राजनीति, (८) जंत्री इत्यादि ग्रंथ बनाए हैं। नाम- (२१६१ ) रामकुमार कायस्थ, बाँदा । ग्रंथ-स्फुट । जन्मकाल-१६००। कविताकाल-१९२५ । मृत्यु १६५५ । नाम-(२१६२ ) रामप्रतापजी, जयपूर । ग्रंथ-स्फुट । कविताकाल-१९२५। नाम-( २१६२ ) औघड़ उर्फ उद्धव । विवरण-इनका जन्मस्थान काठियावाड़ के झालावाड़ प्रांत के
सखतर गाँव में हुआ । जाति के औदीच्य । जन्म संवत् १८१७ वैशाख सुदी १ बुधवार । इन्होंने सखतर दरबार
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परिवर्तन-प्रकरण । में श्रीकरणसिंहजी के नाम से एक ग्रंथ कर्ण-जत्त. मणि-नामक बनाया है । दूसरा ग्रंथ कुकविकुठार
नामक है। कविताकाल-१६२५ ।
स्वयं दूतिका दिन है घरीक एक नेक तो बटोही सुन,
मेरी कही मान ना तौ पाछे पछिताइ है। नस्कर चहूँघा फिरे तस्कर तमाम धाम, ___रहत अकेली धाम काहू न सहाइ है। बालम बिदेस छायो जोबन नरेश उधौ,
पायो ना सँदेस याते मागत सहाइ है। आखिर करोगे कहूँ रजनि निबेरा डेरा,
__याते इत रहो बेरा डेरा चित चाइ है। नाम-( २१६३ ) राजभजनबारी, गजपुर, जिला
गोरखपुर। ग्रंथ-स्फुट काव्य । कविताकाल-१९२५ । विवरण-राजा बस्ती के यहाँ थे। नाम-(२०६३) गोपालजो। विवरण-काठियावाड़ देशांतर्गत जेहिसवार प्रांत में स्वस्थान
भावनगर राज्य के तावे सिहोर-नामक किस्सा में थे। राव (भाट) मालसिंह के गोपाल नाम का पुत्र हुआ । इन्होंने लोका गच्छ के जैनसाधु पानाचंदजी की संगति से कविता सीखी। इनका जन्मकाल १८८२ का था । और संवत् १६२० में स्वर्गवासी हुए । इनका चंडीविलास-नामक देवी-स्तुति का ग्रंथ है।
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. मिश्रबंधु-विनोद नाम-( २१६४) शिवप्रकाश कायस्थ, अपहर, जिला
. छपरा। ग्रंथ-(1) उपदेशप्रवाह, (२) भागवतरससंपुट, (३)
लीलारसतरंगिणी, (४) सतसंगविलास, (५) भजनरसामृतार्णव, (६) भागवततस्वभास्कर, ( ७ ) विनयपत्रिका टीका, (८) गीतावली टीका, (६) रामगीता टीका, (१०) वेदस्तुति की टीका, (११) इतिहास
लहरी । जन्मकाल-१६००। कविताकाल-१६२५ । विवरण-डुमराव के प्रसिद्ध दीवान जयप्रकाशलाल के लघु
भ्राता थे। नाम-(२१६५ ) श्याम कवि मिश्र, आगरा । ग्रंथ-स्फुट । कविताकाल-1१२५। विवरण-ये कुलपति मिश्र के वंशधर हैं। नाम-( २१६५ ) दोपसिंह। विवरण-कुँवरदीपसिंहजी धावई करौली के गुजारेदार (मारवाड़)
थे। यह संवत् १९३६में गुज़र गए। उनके बनाए हुए ग्रंथ(१) दीपसागर, (२) जगन्नाथध्यानमंजरी, (३) ध्यानपंचाशिका, (४) करुणापचीसी, (५) ज्ञान
शतक। नाम-( २१६५ ) रसआनंद । विवरण-भरतपुर तावा के वेशया ग्राम के रहनेवाले जाति के जाट
थे। यह संवत् १८९२ में पैदा हुए और संवत् १९२६
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परिवर्तन-प्रकरण में स्वर्गवासी हुए अर्थात् ७७ वर्ष की आयु भोग
कर मरे। ग्रंथ--(१) हितकल्पद्रुम (संस्कृत हितोपदेश भाषा में किया
है), (२) संग्रामकलाधर (विराटपर्व ), (३) समररत्नाकर (अश्वमेध ), (४) विजयविनोद (करौली के राजा की लड़ाई के विषय में ), (१) मौजप्रकाश,
(६) शिखनख, (७) गंगा भू भागमन । इनकी कविता का नमूना
कवित्त केकी भेकी कठिनहु टीको मरि जैयो शिर,
और परगात जरि जैयो कोकिलान को; केतकी सकुल कुल अनल वितल जैयो,
हूजियो कतल कुल ललित लतान को । भने “रसानँद" यों बीज निरबीज जैयो,
तेज हत विक्रम निगोड़े पंचबान को; पिय रटि-रटि पपिहा को कंठ कटि जैयो,
. यश मिटि जैयो बजमारे बदरान को। नाम-(२१६६) हनुमानदोन मिश्र, राजापुर, जिला बाँदा। ग्रंथ-(१) वाल्मोकाय रामायण, (२) दीपमालिका । जन्मकाल-१८१२। कविताकाल-१९२५। नाम-(२१६६ ) रणमलसिंह राजा साहब । विवरण-झालावाड़ प्रांत में ध्रांगधरा स्थान के झाला राजा साहब
श्रीरणमलसिंह जी अमरसिंह के कुमार थे। अमरसिंह सन् १८४८ में स्वर्गवासी हो गए। पीछे उनके कुमारजी ३२ वर्ष की प्रायु में गद्दी पर बैठे और सन् १८६६ में
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१९७०
मिश्रबंधु-विनोद २६ वर्ष राज्य करके स्वर्गवासी हुए। राजा साहब अच्छे
विद्वान् थे। नाम-( २१६७ ) हरीदास भट्ट, बाँदा।। ग्रंथ-राधाभूषण । व्याधहरन । [प्र. त्रै० रि०] जन्मकाल-११०१। कविताकाल-१६२५। विवरण-शृंगारविषय । नाम-(२१६८ ) हिरदेस बंदीजन, मासी। ग्रंथ---शृंगारनौरस। जन्मकाल-१६०१ । कविताकाल-१९२५। विवरण-इनकी कविता उत्तम और मनोहर है, तोष श्रेणी के
कवि हैं।
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वर्तमान प्रकरण
पैंतीसवाँ अध्याय
वर्तमान हिंदी एवं पत्र-पत्रिकाएँ. ( १९२६ – १९४५)
भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के अतिरिक्त कोई परमोत्तम कवि इस समय में नहीं हुआ । उनके अतिरिक्त उत्कृष्ट कवियों की गणना में महाराजा रघुराजसिंह और सहजराम ही के नाम आ सकते हैं, पर ये भी प्रथम श्रेणी के न थे, यद्यपि इनकी कविता आदरणीय अवश्यः है । इनके अतिरिक्त साधारणतया उत्कृष्ट कवियों में गोविंद गिल्लाभाई, द्विजराज, व्रजराज, विशाल, पूर्ण, श्रीधर पाठक, हनुमान्, मुरारिदान और ललित की भी गणना हो सकती है । इस समय में चंद्रकला आदि कई स्त्रियों ने भी मनोहारिणी कविता की है, जैसा कि श्रागे समालोचनाओं से प्रकट होगा। प्राचीन प्रथा के कवियों में नायिकाभेद, अलंकार, षट्ऋतु और नखशिख के ही ग्रंथों के बनाने की कुछ परिपाटी-सी पड़ गई थी। अच्छे कविगण प्रायः इन्हीं विषयों पर रचना करते थे और कथाप्रसंग अथवा अन्य विषयों पर कम ध्यान देते थे । इस काल में प्राचीन प्रथानुयायी कविगण तो पुराने ही ढर्रे - पर विशेषतया चल रहे हैं, पर बहुत-से नवीन प्रथा के लोग इस रीति को अनुचित समझने लगे हैं। थोड़े ही विषयों को ले लेने से शेष उत्तम विषय छूट जाते हैं और कविता का मार्ग संकुचित हो जाता है । आजकल रेल, वार, ढाक, छापेख़ानों आदि के विशद
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मिश्रबंधु-विनोद प्रबंधों के कारण हम लोगों को दूर-दूर के मनुष्यों तक से मिलने और भाव-प्रकाशन का पूरा सुभीता हो गया है। अँगरेज़ो राज्य के पूर्ण रीति से स्थापित हो जाने से भी कविता को बड़ा लाभ पहुंचा है। इस राज्य ने अच्छी शांति स्थापित कर दी, जिससे भाषा ने भी उन्नति पाई । इतने पर भी कुछ पूर्व-प्रथानुयायियों ने नई सुभोतावाली बातों से केवल समस्यापूर्ति के पत्र चलाने का काम लिया । समस्यापूर्ति में चमत्कारिक काव्य प्रायः कम मिलता है । पाँच-छ: वर्षों से अब समस्यापूर्ति के पत्रों का बल क्षीण होता देख पड़ता है।
और विविध विषयों के पत्रों की उन्नति दिखाई देती है । बहुन दिनों से हिंदी में बारहमासानों के लिखने की चाल चली आती है । इनमें प्रत्येक मास में विरहिणी स्त्रियों की विरह-वेदना का वर्णन होता है। सबसे पहला बारहमासा खुसरो का कहा जाता है और दूपरा, जहाँ तक हमें ज्ञात है, केशवदास ने बनाया। इनके पीछे किसी भारी प्रचीन कवि ने बारहमासा नहीं कहा । इधर श्राकर वजहन, वहाब, गणेशप्रसाद आदि ने मनोहर बारहमासे लिखे हैं। ऐसे ग्रंथों में खड़ी-बोली का विशेष प्रयोग होता है । इनके अतिरिक्त सैकड़ों बारहमासे बने हैं, पर इनकी रचना अधिकतर शिथिल है । बहुतों में रचयिताओं के नामों तक का पता नहीं लगता।
अब तक कविता भी विशेषतया व्रजभाषा में ही होती थी, पर अब पंडितों का विचार है कि एक प्रांताय भाषा परम मनोहारिणी होने पर भी समस्त देशीय हिंदी-भाषा का स्थान नहीं ले सकती। उनका मत है कि केवल ऐसो साधु बोली जो एकदेशीय न हो और जो उन सब प्रांतों में व्यवहृत हो, जहाँ हिंदी का प्रचार है, वास्तव में हमारी भाषा कहलाने की योग्यता रख सकती है । उनके मत में खड़ीबोलो ऐसी है और कविता इसी में लिखी जानी चाहिए। १७वीं शताब्दी में गंग एवं जटमल ने खड़ी-बोली में गद्य लिखा । पर गद्य
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वर्तमान प्रकरण काव्य में इसका प्रचार जल्लूलान्न तथा सदल मित्र के समय से विशेष हुा । राजा लघमामह तथा राजा शिवप्रसाद ने इसे और भी उन्नति दो। भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा प्रतापनारायण मिश्र के समय से गद्य की बहुत ही संतोषदायिनी उन्नति हुई, और इस समय सैकड़ों उत्कृष्ट गद्य-लेखक वर्तमान हैं। इनमें बदरीनारायण चौधरी, गंगाप्रसाद अग्निहोत्री, भुवनेश्वर मिश्र, मेहता नजाराम, शिवनंदनसहाय, व्रजनंदनसहाय, साधुशरणप्रसादसिंह, किशोरीलालगोस्वामी श्यामसुंदरदास, गोविंद नारायण मिश्र, गदाधरसिंह, अमृतलाल चक्रवर्ती, अयोध्यासिंह, देवीप्रसाद, जगन्नाथदास (रत्नाकर), गौरीशंकर-हीराचंद अोझा, गोपालराम, महावीरप्रसाद द्विवेदी, मदनमोहन मालवीय, सोमेश्वरदत्त सुकुल एवं अन्यान्य अनेक परम प्रतिभाशाली लेखक हैं । प्रायः साठ वर्षों से हिंदी में समाचार-पत्र भी निकलने लगे हैं।
और इनकी दिनोंदिन उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है । इस समय कई दैनिक पत्र भी हिंदी में निकल रहे हैं । गद्य में विविध प्रकार के अच्छे और उपकारो ग्रंथ लिखे गए, और अनुवादित हुए तथा होते जाते हैं । अँगरेज़ो राज्य का प्रभाव अब बैठ चुका है। इससे भाँतिभाँति के नवागत लाभकारी भाव देश में फैल रहे हैं। अँगरेजी-शिक्षा का भी यही प्रभाव पड़ता है । इसने देशभक्ति की मात्रा बहुत बढ़ा दी है। अँगरेज़ा राज्य से जीवन-होड़-प्राबल्य दिनोंदिन बढ़ता जाता है। इससे देशवासियों का ध्यान उपयोगी विषयों की ओर खिंच रहा है। इन कारणों से हिंदी में नवीन विचारों का समावेश खूब' होता जाता है और विविध विषयों के ग्रंथ दिनोंदिन बनते जाते. हैं। यदि यही हाल स्थिर रहा, जैसी कि दृढ़ पाशा की जावीत पचास वर्ष के भीतर हिंदी की बहुत बड़ी उन्नति हो जावेगी और इसमें.. किसी प्रकार के ग्रंथों की कमी न रहेगी। पद्य में खड़ी-बोली का कुछ-कुछ प्रचार बहुत काल से चला आता है, जैसा कि ऊपर स्थान
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मिश्रबंधु-विनोद
स्थान पर दिखलाया गया है, पर पूर्णबल से पहलेपहल खड़ी-बोली की पद्य-कविता सीतल कवि ने बनाई । इस महाकवि ने अपने 'गुल्जार-चमन' नामक ग्रंथ में सिवा खड़ी-बोली के और किसी भाषा का प्रयोग ही नहीं किया। इसके तीनों चमन मुद्रित हमारे पास हैं। सीतल के पीछे श्रीधर पाठक ने खड़ी-बोली की प्रशंसनीय कविता की, और महावीरप्रसाद द्विवेदी, अयोध्यासिंह उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त, सनेही, बालमुकुंद गुप्त, नाथूरामशंकर, मन्नन द्विवेदी आदि ने भी इसी प्रथा पर अच्छी रचनाएँ की हैं। हमने भी 'भारतविनय'-नामक प्रायः एक सहस्र छंदों का ग्रंथ एवं एक अन्य छोटी-सी पुस्तक खड़ी-बोली में बनाई है। अभी कुछ कवि खड़ी-बोली में कविता नहीं करते और कुछ को इसमें उत्तम कविता बन सकने में अब भी संदेह है, पर इसकी भी उन्नति होने की अब पूर्ण प्राशा है।
थोड़े दिनों से हिंदी में उपन्यासों की बड़ी चाल पड़ गई है। इनसे इतना उपकार अवश्य है, कि इनकी रोचकता के कारण बहुत-से हिंदी न जाननेवाले भी इस भाषा की ओर झुक पड़ते हैं ! उपन्यासलेखकों में देवकीनंदन खत्री, गोपालराम, किशोरीलाल गोस्वामी, गंगाप्रसाद गुप्त आदि प्रधान हैं । इस समय प्रेमचंदजी के उपन्यास और कहानियाँ बहुत लोकप्रिय हैं।
नाटक-विभाग हिंदी में बहुत दिनों से स्थापित नहीं है और न इसकी अभी तक अच्छी उन्नति हुई है। सबसे पहले नेवाज कवि ने शकंतला नाटक बनाया, पर वह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है, बरन् विशेषतया कालिदास-कृत शकुंतला नाटक के आधार पर लिखा गया है। यह पूर्णरूप से नाटक के लक्षणों में भी नहीं पाता, क्योंकि इसमें यवनिकादि का यथोचित समावेश नहीं है। ब्रजवासीदास-कृत प्रबोधचंद्रोदय नाटक भी इसी तरह का है। केशवदास-कृत विज्ञानगीता भी नाटक
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वर्तमान प्रकरण
१९७५ के ढंग पर लिखा गया है, पर उसमें इन ग्रंथों से भी कम नाटकपन है, यहाँ तक कि उसे नाटक कहना ही व्यर्थ है । देवमायाप्रपंच नाटक में भी यवनिका श्रादि के प्रबंध नहीं हैं। इसे देव कवि ने बनाया। प्रभावती और आनंदरघुनंदन भी पूर्ण नाटक नहीं हैं। सबसे पहला. नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता गिरधरदास ने सं० १९१४ में बनाया, जिसका नाम "नहुष नाटक' है। राधाकृष्णदास ने उसका संपादन किया। इसके पीछे राजा लक्ष्मणसिंह ने शकुंतला का भाषानुवाद किया। नाटकों का प्रचार हिंदी में प्रधानतया हरिश्चंद्र ही ने किया । उन्होंने बहुत-से उत्तम नाटक बनाए, जिनमें से कई का अभिनय भी हुआ । इनके अतिरिक्त श्रीनिवासदास, तोताराम, गोपालराम, काशीनाथ खत्री, पुरोहित गोपीनाथ, लाला सीताराम आदि ने भी नोटक बनाए और अनुवादित किए हैं। पं० रूपनारायण पांडे ने टी० एल० राय के बहुत-से नाटकों के अनुवाद किए हैं। बाबू जयशंकर प्रसाद ने कई उत्तम मौलिक नाटक लिखे हैं। श्रीयुत जी० पी० श्रीवास्तव और पं० बदरीनाथ भट्ट के हास्यरसात्मक नाटक लोग पसंद करते हैं। राधाकृष्णदास, प्रतापनारायण मिश्र, देवकीनंदन त्रिपाठी, बालकृष्ण भट्ट, गणेशदत्त, राधाचरण गोस्वामी, चौधरी बदरीनारायण, गदाधर भट्ट, जानी बिहारीलाल, अंबिकादत्त व्यास, शीतलप्रसाद तिवारी, दामोदर शास्त्री, ठाकुरदयालसिंह, अयोध्यासिंह उपाध्याय, गदाधरसिंह, ललिताप्रसाद त्रिवेदी, राय देवीप्रसाद पूर्ण, बालेश्वरप्रसाद, महाराजकुमार खड्ग लालबहादुर मल्ल प्रादि कविगण इस समय के नाटककार हैं। शोक है कि इनमें कुछ महाशय अब नहीं हैं।
बिहार-प्रांत में हिंदी-भाषी अन्य प्रांतों के देखते नाटक-विभाग बहुत दिनों से अच्छी दशा में है । स्वयं विद्यापति ठाकुर ने 'द्रहवीं शताब्दी में दो नाटक-ग्रंथ लिखे । लाल झा ने सं० १८३७ में गौरी-परिणय
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मिश्रबंधु-विनोद नाटक बनाया, तथा सं० १९०७ में भानुनाथ झा ने प्रभावतीहरण नाटक निर्माण किया, जिसमें मैथिल भाषा के अतिरिक्त प्राकृत तथा संस्कृत का भी प्रयोग किया गया । हर्षनाथ झा ने भी इसी समय कई ग्रंथ बनाए, जिनमें ऊषाहरण मुख्य है । व्रजनंदनसहाय और शिवनंदनसहाय ने भी नाटक रचे हैं । ___ फिर भी कहना ही पड़ता है कि हिंदी में नाटक-विभाग अभी बिलकुल संतोषदायक दशा में नहीं है । भारतेंदु, श्रीनिवासदास
आदि के रचित नाटकों के अतिरिक्त अधिकांश शेष उत्तम नाटक-ग्रंथ या तो नाटक हैं ही नहीं, अथवा केवल अनुवाद-मात्र हैं।
हिंदी-इतिहास-विषयक अभी तक कोई अच्छा ग्रंथ नहीं है। सबसे प्रथम प्रयत्न इस विषय में भूषण के समकालिक कालिदास कवि ने किया। पर उन्होंने केवल हज़ार छंदों का हज़ारा-नामक एक संग्रह बनाया । इस ग्रंथ से इतना लाभ अवश्य हुआ कि जिन कवियों के नाम इसमें आए हैं, उनके विषय में ज्ञात हो गया कि वे या सो कालिदास के समकालिक थे, अथवा पूर्व के। बहुत-से कवियों की रचनाएँ भी इसी ग्रंथ के कारण सुरक्षित रहीं। संवत् १६६० के लगभग प्रवीण कवि ने सारसंग्रह-नामक एक ग्रंथ संगृहीत किया, जिसमें प्रायः ११० कवियों की कविता पाई जाती है । यह अमुद्रित ग्रंथ पंडित युगलकिशोर के पास है । दलपतिराय बंसीधर ने संवत् १७६२ में अलंकाररत्नाकर-नामक एक संग्रह बनाया, जिसमें उन्होंने अपने अतिरिक्त ४४ कवियों के छंद लिखे । भक्तमाल, कविमाजा (१७१८), सत्कविगिराविलास (१८०३), विद्वन्मोदतरंगिणी (१८७४) और रागसागरोद्भव (१६००) भी कुछ प्राचीन संग्रह हैं । सूदन ने भी प्रायः ११० कवियों के नाम लिखे हैं । भाषाकाव्यसंग्रह स्कूलों की एक पाठ्य-पुस्तक-मात्र थी। संवत् १९३० के लगभग ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने शिवसिंहसरोज-नामक एक अनमोल ग्रंथ बनाया, जिसमें
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वर्तमान प्रकरण उन्होंने प्रायः एक सहस्र कवियों का सूक्ष्म हाल प्रचुर श्रम द्वारा एकत्र किया । दि माडर्न व. कुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान और 'कविकीर्तिकलानिधि' को भी डॉक्टर ग्रियर्सन तथा पंडित नकछेदी तिवारी ने लिखा । पर ये ग्रंथ विशेषतया 'सरोज' पर ही अवलंबित हैं । सरकार हाल में आर्थिक सहायता देकर काशीनागरी-प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी पुस्तकों की खोज सं० १९५७ से करा रही है। इससे बहुत-से उत्तम ग्रंथों और कवियों का पता लग रहा है । खोज पूरे इस प्रांत तथा राजस्थान इत्यादि में हो जाने पर उससे इतिहास की उत्तम सामग्री मिल सकेगी।
हिंदी में समालोचना की चाल बहुत थोड़े दिनों से चली है। प्राचीन प्रथा के लोग समझते थे कि समालोचना करने में किसी भी कवि की निंदा न करनी चाहिए। इस विचार के कारण समालोचना की उन्नति प्राचीन काल में न हुई । सबसे प्रथम हिंदी में महाकवि दास ने समालोचना की भोर कुछ ध्यान दिया, पर बहुत दबी कलम से कहने के कारण उन्होंने किसी के विषय में अधिक न कहा। भारतेंदुजी भी इस ओर कुछ झुके थे, यहाँ तक कि उत्तरी हिंद के वे एक-मात्र वर्तमान समालोचक कहलाते थे। समालोचक-नामक एक पत्र भी निकला था, और छत्तीसगढ़-मित्र भी समालोचना पर विशेष ध्यान देता था, पर काल-गति से ये दोनों पत्र अस्त हो गए। अन्य पत्रपत्रिकाएँ भी समय-समय पर समालोचना करती हैं। ब्रजनंदनप्रसाद एवं महावीरप्रसाद द्विवेदी ने कुछ समालोचनाएँ लिखी हैं । "हिंदीनवर' नामक समालोचना ग्रंथ थोड़े ही दिन हुए हमने भी बनाया था। इस समय मासिक पत्रों में समालोचना लिखी जाती है और दो साल से कृष्णविहारी मिश्र हिंदी समालोचक नाम का एक पत्र निकाल रहे हैं । यदि उसका श्राकार कुछ बढ़ाकर उसे मासिक कर दिया जाय, तो उससे इस अंग के पूर्ण होने की विशेष प्राशा है।
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मिश्रबंधु-विनोद
आजकल रामलीला और रासलीला से भी हिंदी का प्रचार कुछ-कुछ होता है। इनमें राम और कृष्ण की कथाओं का अभिनय किया जाता है । रामलीला प्रथम तो साधारण जनों के ही द्वारा विजयदशमी के अवसर पर और कहीं-कहीं दीवाली पर्यंत की जाती थी, पर थोड़े दिनों से रास-मंडलियों की भाँति रामलीला की भी अभिनय मंडलियाँ स्थिर हुई हैं, जिन्होंने रास-मंडलियों से बहुत अधिक उन्नति कर ली है
और जो वर्तमान थिएटरों के कुछ-कुछ बराबर पहुँच गई हैं । रासमंडलियाँ भी प्राचीन रीति पर थिएटर की-सी लीलाएँ करती हैं; यद्यपि इनसे अब तक बहुत कम उन्नति हो सकी है। समय-समय पर ग्रामों में कहीं-कहीं बहुत दिनों से वर्षा ऋतु में आल्हा गाने की परिपाटी चली आती है । इसका छंद तुकांतहीन बड़ा ही अोजकारी होता है। इसमें महोबे के राजा परिमाल तथा वीरवर आल्हा-ऊदन का वर्णन होता है, जो प्रायः लड़ाइयों से भरा है । पाल्हा की प्रतियाँ थोड़े ही दिनों से छपी हैं । यह नहीं ज्ञात है कि इसकी रचना किस कवि ने कब की थी। कहा जाता है कि चंद के समकालीन जगनिक वंदीजन ने पहले-पहल आल्हा बनाया, पर उस समय की भाषा का कोई अंश भी अब आल्हा में नहीं है । कहते हैं कि कन्नौज के किसी कवि ने वर्तमान आल्हा बनाया, पर इसका कोई प्रमाण नहीं है। जो कुछ हो,
आल्हा की कविता स्थान-स्थान पर परम प्रोजस्विनी और मनोहर है। पँवारा भी एक प्राचीन काव्य समझ पड़ता है। पर इसके रचयिता का भी पता नहीं है और न इसकी कोई मुद्रित अथवा लिखित प्रति ही मिलती है । पँवारा विशेषतया पासी लोग गाते हैं और उसमें देशीय राजाओं एवं ज़िमींदारों का हाल रहता है । जहाँ जो पँवारा प्रचलित है वहाँ के बड़े आदमियों का यश उसमें वर्णित होता है । यह पँवार राजाओं के यशोवर्णन से प्रारंभ हुअा जान पड़ता है, जैसा कि इसके नाम से प्रकट होता है। यदि कोई मनुष्य श्रम करके पासी
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प्रकरण
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वर्तमान प्रकरण . १९७६ आदिकों से इसे एकत्र करे, तो विदित हो कि इसकी रचनाएँ कैसी हैं। अभी तो पँवारा ऐसा नीरस समझा जाता है कि लोग निंदा करने में किसी नीरस और लंबे प्रबंध को पँवारा कहते हैं।
हिंदी के सौभाग्य से पिछले ३० या ३५ वर्ष के अंदर पाँच-सात सभाएँ भी काशी, मेरठ, जौनपूर, बारा, प्रयाग, कलकत्ता आदि में स्थापित हुई। काशी-नागरीप्रचारिणी सभा ने संवत् १९५० में जन्म | ग्रहण किया। तभी से इसकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जाती है । यह बराबर नागरीप्रचारिणी पत्रिका निकालती रही है और अब ग्रंथमाला एवं लेखमाला भी निालकने लगी है । ग्रंथमाला में अच्छे-अच्छे ग्रंथ निकल गए और निकालते जाते हैं । हिंदी को युक्तप्रांत के न्यायालयों में जो स्थान मिला है, वह अधिकांश में इसी के प्रयत्नों का फल है। इसने तुलसी-कृत रामायण और पृथ्वीराज रासो की परम शुद्ध प्रतियाँ प्रचुर श्रम द्वारा प्रकाशित की और २८ साल से सरकार से सहायता लेकर हिंदी के प्राचीन ग्रंथों की खोज में यह बड़ा ही सराहनीय श्रम कर रही है। इसने पदकों, प्रशंसापत्र प्रादि के द्वारा उत्तम लेख-प्रणाली चलाने का प्रबंध किया और लेखकों को बहुत प्रोत्साहन दिया। अनेकानेक प्रयत्नों से इसने हिंदी-भाषा और नागरी अक्षरों का प्रचार बढ़ाया। बहुत-से विद्वानों की सहायता से यह एक वैज्ञानिक कोष तैयार कर चुकी है, अब एक बृहत् कोष भी बना रही है, जो पूर्ण होने पर आ चुका है, इस समय तक इसके ४० खंड निकल चुके हैं । यह इतिहास भी इसी की प्रेरणा से बना है। . __ श्रारा-नागरीप्रचारिणी सभा प्रायः २५ वर्षों से बिहार में स्थापित है । इसने भी हिंदी के प्रचार में परम प्रशंसनीय श्रम किया है। अब तक हिंदी का कोई सर्वमान्य व्याकरण नहीं था । इस सभा ने एक ऐसा व्याकरण भी तैयार करा लिया है।
मेरठ-सभा ने भी हिंदी-प्रचार में अच्छा श्रम किया ; पर दुर्भाग्य
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मिश्रबंधु - विनोद
वश पंडित गौरीदत्त का स्वर्गवास हो जाने से वह अब सुषुप्तावस्था को प्राप्त हो गई है । जौनपूर-सभा का भी परिश्रम अच्छा है; पर इसकी भी दशा संतोषदायिनी नहीं है। प्रयाग की नागरीप्रवर्द्धिनी सभा अभी थोड़े ही दिनों से स्थापित हुई है, पर तो भी इसके उत्साह से हिंदी के विशेष उपकार होने की आशा है । कलकत्ते की एक लिपि-विस्तार परिषद् ने भी कई साल तक अच्छा काम किया था । rent स्तित्व हिंदी के लिये बड़े गौरव का था, परंतु श्रीशारदाचरण जज हाईकोर्ट का देहांत हो जाने से उसका लोप हो गया । इसी अभिप्राय से इस सभा ने देवनागर- नामक पत्र निकाला था, जिसमें सभी भाषाओं के लेख नागरी लिपि में लिखे जाते थे, वह भी बंद हो गया । भाषाओं के एकीकरण में यह सभा परमोपयोगिनी थी । देश में बहुत काल से नागरी लिपि का प्रचार चला आता है । अब मदरास एवं बंगाल के विद्वानों ने भी इसी लिपि को ग्राह्य माना है, और गुजरात में भी इसका प्रचार बढ़ता देख पड़ता है । यहाँ तक कि श्रीमान् बड़ौदा- नरेश ने नागराक्षरों की शिक्षा श्रावश्यक कर दी है । नागरीप्रचारिणी सभा के प्रयत्नों से १६६७ के नवरात्र में काशी में प्रथम हिंदो - साहित्य-सम्मेलन- नामक एक महती सभा हुई थी, जिसमें अन्य विषयों के साथ एक लिपि-विस्तार के उपायों पर विचार हुआ था । प्रयाग और कलकत्ते में भी इसके अधिवेशन हुए । अब तो सम्मेलन एक प्रतिष्ठित संस्था है । इसके १८ अधिवेशन हो चुके हैं । एक अधिवेशन के सभापति महात्मा गांधी थे । इसके द्वारा परीक्षाएँ होती हैं ! उससे हिंदी का बड़ा हित है। इसकी ओर से प्रतिवर्ष १२००) का मंगलाप्रसाद पुरस्कार हिंदी के उत्कृष्ट लेखक को दिया जाता है सम्मेलन पुस्तक - प्रकाशन का भी काम करता है । इसके द्वारा हिंदीविद्यापीठ नाम का एक शिक्षालय भी चलता है। इसकी ओर से सम्मेलन पत्रिका भी निकलती है। इसका काम बहुत व्यापक है ।
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वर्तमान प्रकरण
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पौष १६६७ में इसी बात के पुष्ट्यर्थं प्रयाग में एक लिपि-विस्तार-सम्मेलन हुआ, जिसमें भारतवर्ष के सभी देशों से विद्वान् महाशयों ने मदरास के जस्टिस कृष्णा स्वामी ऐयर के सभापतित्व में नागराक्षरों के प्रचारार्थ योग दिया, और उन्हें सारे देश के लिये सर्वमान्य ठहराया। अब हिंदी के सुदिन-से आते देख पड़ते हैं। इन सभात्रों के अतिरिक्त और भी छोटी-बड़ी सभाएँ यत्र-तत्र नागरी प्रचारार्थ स्थापित हुई हैं। भारतधर्म-महामंडल और आर्य समाज श्रादि धार्मिक सभाएँ भी व्याख्यानों, लेखों, पत्रों एवं ग्रंथों द्वारा हिंदी-प्रचार में अच्छी सहायता कर रही हैं। इन सभाओं ने सबसे अधिक उपकार व्याख्यानदाता उत्पन्न करके किया है। बहुत-से सनातनधर्मी और आर्य-समाजी उपदेशक धारा बाँधकर उत्तम हिंदी में घंटों व्याख्यान दे सकते हैं। इनके नाम समालोचनाओं, चक्र एवं नामावली में मिलेंगे। सामाजिक तथा जातीय सभाएँ भी हिंदी-प्रचार को अनेक प्रकार से लाभ पहुँचा रही हैं।
आजकल हिंदी-भाषा के छापेखाने बहुत हैं और उनकी छपाई भी बढ़िया होती है। उनमें वेंकटेश्वर, लचमोवेंकटेश्वर, निर्णय-सागर, इंडियन-प्रेस, भारतमित्र, नवलकिशोर-प्रेस, भारतजीवन, भारत, हरिप्रकाश, खड्गविलास, वैदिक-यंत्रालय, लहरी-प्रेस काशी, वर्मनप्रेस, गंगा-फ्राइनमार्ट-प्रेस, लक्ष्मीनारायण-प्रेस, बेलवेडियर-प्रेस, हिंदी-प्रेस, रामनारायण-प्रेस, अभ्युदय-प्रेस, हिंदोस्तान-प्रेस, प्रताप. प्रेस, वर्तमान-प्रेस ब्रह्म-प्रेस इटावा, सनातनधर्म-प्रेस मुरादाबाद, ज्ञानमंडल-प्रेस काशी, ओंकार-प्रेस, कृष्ण-प्रेस मादि प्रसिद्ध हैं । हिंदी में एफ-मात्र कानूनी पुस्तकें तथा नज़ीरें छापनेवाला कानून-प्रेस, कानपुर भी प्रशंसनीय काम करता है। ___ समय-समय पर समस्यापर्ति के लिये स्थान-स्थान पर कवि-समाज सथा मंडल भी स्थापित हुए हैं। उनमें से प्रधान-प्रधान नाम नीचे लिखे जाते हैं
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मिश्र बंधु विनोद
काशी- कविमंडल, काशी- कविसमाज, बिसवाँ- कविमंडल, रसिकसमाज कानपूर, हल्दी- कविसमाज, फ़तेहगढ़ - कविसमाज, कालाकाँकरकविसमाज इत्यादि ।
ये सब समाज प्रायः ५० वर्ष के भीतर स्थापित हुए हैं | इन सबमें अधिकांश वही कविगण पूर्तियाँ भेजते थे ! इनके पत्रों से वर्तमान कवियों के नाम ढूँढ़ने में हमें बड़ी सुविधा मिली है । इन सबमें समस्यापूर्ति की जाती थी, और इनमें बहुत-से छंद प्रशंसनीय भी बनते थे । पर इस प्रथा से स्फुट छंद लिखने की रीति चलती है, जो विशेषतया श्रृंगार रस के होते हैं । अब भाषा में शृंगार - कविता की आवश्यकता बहुत कम है, क्योंकि भूतकाल में कविता का यह अंग उचित से अधिक ऐसे ही ऐसे स्फुट छंदों द्वारा भर चुका 1 sa हिंदी गद्य में वर्तमान प्रकार के विविध उपकारी विषय पर रचना की आवश्यकता है, और नाटक विभाग की पूर्ति और भी आवश्यक है । स्फुट छंदों के लिये अब स्थान बहुत कम है। फिर भी यह समस्यापूर्ति की प्रथा स्फुट छंदों हो की रचना बढ़ाती है। इन्हीं एवं अन्य कारणों से हमने संवत् १६५७ में एक लेख द्वारा समस्यापूर्ति की रीति को परम निंद्य कहा था । उस समय इस प्रथा का खूब ज़ोर था, पर अब उतना नहीं है । फिर भी इस रीति को उठाकर उन पत्रों के बंद कर देने से लाभ नहीं है, और लाभकारी विषयों पर छंदोबद्ध प्रबंध या कविता का छपना हमारी तुच्छ बुद्धि में उचित है। इस हेतु कई समाजों का टूट जाना और उनके पत्रों का बंद हो जाना बड़े दुःख की बात है, जैसा कि आजकल हुआ है, और अधिकांश समाज व समस्या के पत्र बंद भी हो गए ।
बरन् उन्हीं में उत्तम
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हमने स्थान-स्थान पर शृंगार - कविता एवं अन्य अनुपयोगी विषयों की रचनाओं की निंदा की है। फिर भी ऐसे ग्रंथों के रचयिताओं की
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वर्तमान प्रकरण
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प्रशंसा भी इसी ग्रंथ में पाई जावेगी । इससे कुछ पाठकों को ग्रंथ में परस्पर विरोधी भावों के होने की शंका उठ सकती है। बहुत-से वर्तमान लेखकों का यह भी मत है कि श्रृंगार-काव्य ऐसा निंद्य है कि हिंदी में उसका होना न होने के बराबर है, और यदि ऐसे ग्रंथ फेंक भी दिए जावें, तो कोई विशेष हानि नहीं । इन कारणों से उचित जान पड़ता है कि इस विषय पर हम अपना मत स्पष्टतया प्रकट कर देवें ।
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सबसे पहले पाठकों को कविता के शुद्ध लक्षण पर ध्यान देना चाहिए। पंडितों का मत है कि अलौकिक आनंद देना काव्य का मुख्य गुण है । कुलपति मिश्र ने काव्य का लक्षण यह कहा है"जगते अद्भुत सुखसदन शब्दरु अर्थ कंवित्त ; यह लक्षण मैंने कियो समुझि ग्रंथ बहु चित्त । " इसी आशय का एक लक्षण हमने भी कहा था
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" वाक्य अरथ वा एकहू [ जहँ रमनीय सु होय शिरमौर शशिभाल मत काव्य कहावै सोय ।"
इन लक्षणों के अनुसार उपर्युक्त प्रकार के ग्रंथ भी आदरणीय हैं । जो प्रबंध जैसा ही श्रानंद देता है, वह वैसा ही अच्छा काव्य है, चाहे जो विषय उसमें कहा गया हो। फिर वर्णन जैसा ही उत्कृष्ट होगा, कविता भी उसकी वैसी ही प्रशंसनीय होगी । विषय की उपयोगिता भी काव्योत्कर्ष को बढ़ाती है, पर साहित्य- चमत्कार-वर्द्धन की वह एकमात्र जननी नहीं है । इस कारण अनुपयोगी विषयवाले चमत्कृत ग्रंथों को हम तिरस्करणीय नहीं समझते । किसी प्रसिद्ध श्राचार्य ने भी ऐसे ग्रंथों के प्रतिकूल मत प्रकट नहीं किया है । इन ग्रंथों से भी साहित्य-भंडार खूब भरा हुआ देख पड़ता है और वास्तव में है । अभी उपयोगी विषयों के प्रभाव से बहुत लोगों को ये ग्रंथ सौत के से लड़के समझ पड़ते हैं, परंतु जिस समय लाभकारी विषयों के ग्रंथ
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मिश्रबंधु-विनोद प्रचुरता से बन जावेंगे, जैसा शीघ्र हो जाने की दृढ़ पाशा की जाती है, उस समय इन ग्रंथों के बाहुल्य से भी हिंदी की महिमा एवं गौरव में खूब सहायता मिलेगी । अाजकल भी ग्रंथ-भंडार की बहुतायत से हिंदी भारत की सभी वर्तमान भाषाओं से बहुत आगे बढ़ी हुई है । हम अनुचित विषयों पर शोक अवश्य प्रकट करते हैं, परंतु हिंदी के सभी उत्कृष्ट ग्रंथों का समादर पूर्णरूप से करना बहुत उचित समझते हैं।
निदान इस वर्तमान काल में हिंदी ने बहुत अच्छी उन्नति की है और उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि होने के चिह्न चारों ओर से दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अब हम इस अध्याय को इसी जगह समाप्तप्राय कर इस काल के लेखकों के कुछ विस्तृत वृत्तांत आगे समालोचना, चक्र और नामावली द्वारा लिखते हैं । जिन महाशयों के नाम चक्र अथवा नामावली-मात्र में पाए हैं, उन्हें भी हम न्यून नहीं समझते । केवल विस्तार-भय से ऐसा करने को हम बाध्य हुए हैं। इनमें से कतिपय महानुभावों के ग्रंथ देखने अथवा विशेष हाल जानने का भी सौभाग्य हमें नहीं प्राप्त हुश्रा। ___ इस भाग में संवत् १९२६ से अब तक का हाल लिखा गया है। इसे हमने दो भागों में विभक्त किया है, अर्थात् प्रथम हरिश्चंद्र काल (१६४५ तक ) और द्वितीय गद्य-काल ( अब तक ) । इन दोनों भागों के पूर्व और उत्तरा-नामक दो-दो उपविभाग किए गए हैं । ___ इस प्रकरण के मुख्य विषय को उठाने से प्रथम हम पत्र-पत्रिकाओं का भी कुछ वर्णन करना उचित समझते हैं।
समाचारपत्र एवं पत्रिकाएँ हिंदी में प्रेस के प्रभाव से समाचारपत्रों का प्रचार थोड़े ही दिनों से हुअा है । वारन हेस्टिंग्स के समय में संवत् १८३७ के लगभग बनारस जिले में किसी स्थान पर खोदने से दो प्रेस निकले थे. जिनमें
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वर्तमान प्रकरण
वर्तमान समय की भाँति टाइप इत्यादि सब सामान था और टाइप जोड़ने का क्रम भी प्रायः श्राजकल के समान ही था । पुरातत्ववेत्ता अँगरेज़ों का यह मत है कि यह प्रेस कम-से-कम एक हज़ार वर्ष का प्राचीन है । इस हिसाब से स्वामी शंकराचार्य के समय तक में प्रेस होने का पता चलता है, फिर भी छापे का प्रचार यहाँ अँगरेज़ी - राज्य के पूर्व बिलकुल न था, और इसी कारण समाचारपत्र भी प्रचलित न थे । "हिंदी भाषा के सामयिक पत्रों का इतिहास"नामक एक ग्रंथ बाबू राधाकृष्णदास ने सन् १८१४ ( संवत् १९५१ में प्रकाशित कराया था, जो नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से अब भी मिलता है। इसमें प्राचीन पत्र-पत्रिकाओं के वर्णन पाए जाते हैं । आशा है, सभा इसका एक नया संस्करण निकालकर आगे का हाल भी पूरा कर देगी ।
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सबसे पहला हिंदी - पत्र " बनारस अख़बार" था, जो संवत् १९०२ में राजा शिवप्रसाद की सहायता से निकला । इसकी भाषा खिचड़ी थी और सभ्य समाज में इसका आदर नहीं हुआ। इसके संपादक गोविंदरघुनाथ थत्ते थे । साधु हिंदी में एक उत्तम समाचारपत्र निकालने के विचार से कई सज्जनों ने काशी से 'सुधाकर' पत्र निकाला । सबसे पहले परमोत्कृष्ट पत्र जो हिंदी में निकला, वह भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र द्वारा संपादित 'कविवचनसुधा' था, जो संवत् १६२५ से प्रकाशित होने लगा । सुधा पत्र पहले मासिक था, पर थोड़े ही दिनों बाद पाक्षिक होकर साप्ताहिक हो गया। इसकी लेखन शैली बहुत गंभीर तथा उन्नत थी । इसमें गद्य तथा पद्य में लेख निकलते थे, और वह सभी तरह से संतोषदायक थे । संवत् ११३७ के पीछे भारतेंदुजी ने यह पत्र पंडित चिंतामणि को दे दिया, जिनके प्रबंध से यह संवत् १६४२ तक निकलकर बंद हो गया । संवत् १६२६ में बाबू कार्त्तिकप्रसाद ने कलकत्ते से 'हिंदी- दीप्ति प्रकाश' निकाला । यह पत्र
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मिश्रबंधु-विनोद प्रसिद्ध पत्र हिंदी-प्रदीप से अलग था। इसी साल बिहार से 'बिहारबंधु' का जन्म हुआ। भारतेंदुजी ने संवत् १९३० में "हरिश्चंद्र मैगजीन" निकाली, जिसका नाम बदलकर दूसरे साल 'हरिश्चंद्रचंद्रिका' कर दिया, जो संवत् १६४२ तक किसी प्रकार निकलती रही । संवत् १६३४ में भारतमित्र, मित्रविलास, हिंदी-प्रदीप और आर्यदर्पण-नामक प्रसिद्ध पत्रों का जन्म हुआ । 'भारतमित्र' पं० दुर्गाप्रसाद तथा अन्य महाशयों ने निकाला। यह पहला साप्ताहिक पत्र है, जो बड़ी उत्तमता से निकाला गया, और जिसकी प्रणाली बड़ी गौरवान्वित रही है। इसके संपादकों में हरमुकुंद शास्त्री और बालमुकुंद गुप्त प्रधान हुए । गुप्तजी के लेख बड़े ही हँसी-दिल्लगी-पूर्ण तथा गंभीर होते थे। कुछ दिनों से इसका एक दैनिक संस्करण भी निकलने लगा है। परंतु कुछ दिनों से भारतमित्र में उस रोचकता तथा उच्च विचार का अभाव देख पड़ता है। 'मित्रविलास' पंजाब का एक बढ़िया हिंदी पत्र था । "हिंदीप्रदीप' प्रयाग से पंडित बालकृष्णजी भट्ट ने निकाला । इसमें बड़े ही गंभीर तथा उच्च कोटि के लेख निकलते रहे । यह पत्र हिंदी-भाषा का गौरव समझा जाता था, और घाटा खाकर भी भट्टजी उदारभाव से इसे बहुत दिनों तक निकालते रहे । परंतु हाल में कुछ राजनैतिक अड़चन पड़ी, जिस पर विवश होकर भट्टजी ने इसे बंद कर दिया। संवत् १९३५ में कलकत्ता से 'सारसुधानिधि' और 'उचित वक्ता'. नामक पत्र निकले। उचित वक्ता को स्वर्गीय पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र ने निकाला और 'सारसुधानिधि' के संपादक प्रसिद्ध लेखक पंडित सदानंदजी थे । संवत् १९३६ में उदयपुराधीश महाराणा सजन. सिंहजू देव ने प्रसिद्ध पत्र 'सजनकीर्तिसुधाकर' निकाला । महाराणाजी के अकाल मृत्यु से हिंदी की बड़ी ही क्षति हुई। संवत् १९३६ में पंडित प्रतापनारायण मिश्र ने कानपूर से प्रसिद्ध ब्राह्मण पत्र निकाला, जिसने पठित समाज में अपने लेखों के चटकीले.
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वर्तमान प्रकरण पन से बहुत ही आदर पाया, परंतु ग्राहकों की अनुदारता से यह . स्थायी न हो सका । संवत् १६४० में हिंदी का प्रसिद्ध पत्र 'हिंदोस्तान' पहले-पहल प्रायः दो वर्ष अँगरेज़ी में निकला, फिर प्रायः दो मास अँगरेजी तथा हिंदी में निकलकर एक बरस तक अँगरेजी, हिंदी और उर्दू में छापा गया। उस समय तक यह मासिक था । इसके पीछे यह दस महीने तक साप्ताहिक रूप से अँगरेजी में इंगलैंड से निकला । १ नवंबर सं० १९४२ से यह पत्र दैनिक कर दिया गया। इस पत्र के स्वामी राजा रामपालसिंह सदा इसके संपादक रहे और सहकारी संपादकों में बाबू अमृतलाल चक्रवर्ती, पंडित मदनमोहन मालवीय और बाबू बालमुकुंद गुप्त-जैसे प्रसिद्ध लोगों की गणना है । राजा साहब के मृत्यु के साथ-ही-साथ यह पत्र भी विलीन हो गया । कुछ दिन पश्चात् उनके उत्तराधिकारी हमारे मित्र राजा रमेशसिंहजी ने 'सम्राट' पत्र को पहले साप्ताहिक
और फिर दैनिक रूप में निकाला, परंतु हिंदी के अभाग्य से राजा रमेशसिंहजी की असामयिक मौत के कारण वह भी बंद हो गया। सं० १९४० से प्रसिद्ध पत्र 'भारतजीवन' बाबू रामकृष्ण वर्मा ने साप्ताहिक रूप में काशी से निकाला, जिसमें बहुत दिन तक नागरीप्रचारिणी सभा की कार्यवाही छपती रही और अभी तक वह किसी तरह चल रहा है । संवत् १६४२ में कानपुर से भारतोदय दैनिक पत्र बाबू सीताराम के संपादकत्व में निकला, जो एक ही साल चलकर बंद हो गया। संवत् १९४४ व ४६ में 'आर्यावर्त' और 'राजस्थान'नामक दो पत्र आर्य समाज की तरफ से निकले । संवत् १६४५ में 'सुगृहिणी' मासिक पत्रिका हेमंतकुमारीदेवी ने निकाली । सं०१९४६ में श्रीमती हरदेवी ने 'भारतभगिनी' मासिक रूप में निकाली । संवत् १६४७ में सुप्रसिद्ध पत्र 'हिंदी-वंगवासी' का जन्म हुआ, जो कुछ दिन बड़ी उत्तमता से चलता रहा था और जिसकी ग्राहक-संख्या
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मिश्रबंधु विनोद
शायद सब हिंदी-पत्रों से अधिक थी । परंतु अब उसमें रोचकता का अभाव- सा हो गया है। पंडित कुंदनलाल ने संवत् १६४८ से कुछ दिन " कवि व चित्रकार" पत्र निकाला, पर उनके स्वर्गवास होने पर वह बंद हो गया ।
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बंबई का श्रीवेंकटेश्वर - समाचार भी एक नामी साप्ताहिक पत्र है, जो प्रायः ३५ वर्ष से हिंदी की अच्छी सेवा कर रहा है । इधर प्रयाग से अभ्युदय पत्र बहुत अच्छा निकल रहा है । यह पहले साप्ताहिक था, फिर अर्द्ध साप्ताहिक रूप में निकलता रहा और इसके पीछे कुछ समय तक दैनिक रहकर अब फिर साप्ताहिक निकल रहा है । इसके लेख तथा टिप्पणियाँ सारगर्भित होती हैं। वर्तमान भी कानपूर से दैनिक निक
ता है। कुछ दिन से लखनऊ का आनंद भी दैनिक कर दिया गया है। कानपूर का प्रताप बहुत अच्छी श्रेणी का पत्र है । यह कुछ दिन तक दैनिक निकलता रहा । असहयोग के समय में इसने बहुत ही स्वतंत्रता से काम किया, इसी कारण सरकार का कोप भाजन हो जाने से उसे - दैनिक से साप्ताहिक हो जाना पड़ा । लखनऊ के बालमुकुंद वाजपेयी ने लक्ष्मण- नामक पत्र निकाला था, जो कुछ दिन बहुत स्वाधीनता से चलकर बंद हो गया । कलकत्ते से स्वतंत्र, विश्वमित्र, मतवाला, हिंदूपंच, श्रीकृष्ण-संदेश इत्यादि कई अच्छे पत्र निकलते हैं । श्रागरे का 'श्रार्यमित्र' दिल्ली के हिंदू-संसार, तथा अर्जुन बढ़िया पत्र हैं । महात्मा गांधीजी का 'हिंदी - नवजीवन' पत्र भी बड़ा प्रतिष्ठित पत्र है । लखनऊ से बाबू कृष्ण बलदेव वर्मा ने "विद्याविनोद" नामक साप्ताहिक पत्र कुछ दिन प्रकाशित किया था । "हिंदीकेसरी" तथा कर्मयोगी को गरम दलवालों ने निकाला । कुछ दिन भारतमित्र के अतिरिक्त सर्वहितैषी पत्र भी दैनिक निकलता रहा । इनके अतिरिक्त अन्य पत्र भी अच्छा काम कर रहे हैं । बनारस का " श्राज" अच्छा दैनिक पत्र 1
संवत् १६५६ से सुप्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती का विकास
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वर्तमान प्रकरण
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प्रयाग से हुआ और प्रायः सभी तत्कालीन नामी लेखक उसमें लेख देने लगे । इसके संपादन का भार पहले पाँच सज्जनों की एक समिति पर रहा और पीछे से केवलं बाबू श्यामसुंदरदास बी० ए० को यह काम सँभालना पड़ा । अंत में पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने संपादन-भार उठाया और एक वर्ष को छोड़, जब कि पंडित देवीप्रसाद शुक्ल बी० ए० संपादकत्व के काम पर रहे, द्विवेदीजी इसे बड़ी योग्यता के साथ चलाते रहे, द्विवेदीजी के अवसर ग्रहण करने पर अब इसे पदुमलाल पुन्नालाल बक्सी तथा देवीदत्त शुक्ल उत्तमता से चला रहे हैं। कमला, लक्ष्मी, सुदर्शन, समालोचक, छत्तीसगढ़-मित्र, राघवेंद्र, मर्यादा, इंदु, यादवेंद्र इत्यादि कई पत्र-पत्रिकाएँ इसी ढंग पर निकलीं, पर स्थिर न रह सकीं । स्त्रियों के उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भारतभगिनी, स्त्रीधर्मशिक्षक,
महिला, गृहलक्ष्मी और स्वा दर्पण हैं । स्त्रियोपयोगी पत्र पत्रिकानों में चाँद बढ़िया है । काशी - नागरीप्रचारिणी सभा एक मासिक पत्रिका, एक त्रैमासिक ग्रंथमाला और एक लेख - माला प्रकाशित करती थी, परंतु अब त्रैमासिक पत्रिका बहुत अच्छे रूप में निकल रही है । देवनागर ने अनेक भाषाओं के लेखों को नागरी अक्षरों में प्रकाशित कर और अन्य उपायों द्वारा हिंदी भाषा और विशेषतया नागरी लिपि का अच्छा उपकार किया । परंतु हिंदी के दुर्भाग्य से वह स्थायी न हो सका । चित्रमय जगत् हिंदी - पत्रों में बड़े ही गौरव का है । कविता-संबंधी पत्रों में रसिकवाटिका, रसिकमित्र, काव्यसुधाधर, हल्दी-कविकीर्तिप्रचारक, व्यास पत्रिका, काव्य- कौमुदी, कवि इत्यादि कई पत्र निकले, जिनमें कतिपय कवियों की रचनाएँ अच्छी कही जा सकती हैं। जासूस, व्यापारी, खेतीबारी, देहाती, निगमागमचंद्रिका, सद्धर्मप्रचारक, लक्ष्मी, सनातनधर्मपताका, श्रवधसमाचार, अमृत, अबला हितकारक, श्रार्यप्रभा,
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मिश्रबंधु - विनोद
आशा,
श्रार्यमित्र, उपन्यास, उपन्यासबहार, कला कुशल, उपन्यास लहरी, कबीरपंथी, साहित्य, भविष्य, आर्य, शंकर, महावीर, भ्रमर, भगीरथ, तरंगिणी, कान्यकुब्ज, कान्यकुब्ज हितकारी, कान्यकुब्ज सुधारक, कुर्मी हितैषी, • खत्रीहितकारी, गढ़वाली, जीवदयाधर्मामृत, जैनगज़ट, टाडनामा, जैनप्रदीप, दारोगादस्तर, तंत्रप्रभाकर, हिंदी मनोरंजन, नागरीप्रचारक, दीनबंधु, पांचाल पंडिता, रस्तोगी, जागीडा समाचार, डांगीमित्र, विलासिनी, बड़ा बाज़ारगज़ट, बाल प्रभाकर, वीरभारत, ब्राह्मणरसिकलहरी, पीयूषप्रवाह, सारस्वत, खत्रीसर्वस्व, भूमिहार ब्राह्मण- पत्रिका, भारतवासी, मारवाड़ी, मिथिलामिहिर, सरयूपारीण, पाटलिपुत्र, शिक्षा, नारद, यंगविहार, राजपूत, रसिकरहस्य, राजस्थान केसरी, उषा, सेवा, मालवमयूर, नवनीतसद्धर्म, सत्यसिंधु, सारस्वत, सोलजर - पत्रिका, साहित्यसरोज, कमला, शक्ति, स्वदेशबांधव, हितवर्ता, सुधानिधि, हिंदीप्रकाश, हिंदीसाहित्य, हिंदूबांधव, शारदा, क्षत्रियमित्र, वीरसंदेश, विद्या, समन्वय, हिंदी-प्रचारक (मद्रास), युगप्रवेश ( मद्रास ), शुद्धिसमाचार, श्रोसवाल गजट, कलवारकेसरी, हयहयमित्र, रँगीला, भूत आदि ऐसे सामयिक पत्र हैं, जो बाबू राधाकृष्णदास कृत इतिहास के लिखे जाने के बाद प्रकाशित होने लगे। इनमें से कतिपय बंद भी हो गए, पर अधिकांश अब तक चल रहे हैं और उनसे हिंदी की अच्छी सेवा हो रही हैं । तो भी कहना ही पड़ता है कि इनसे और भी विशेष लाभ हो सकता है और हमें दृढ़ आशा है कि इनके विज्ञ संपादकगण इस ओर क्रमशः समुचित प्रकार से ध्यान देंगे, समयोपयोगी विचारों और विषयों की ओर पूर्ण झुकाव हुए विना अब काम नहीं चल सकता। इधर 'माधुरी' पत्रिका ने हिंदी संसार में युगांतर उपस्थित करदिया । इसले हिंदी साहित्य की बड़ी सेवा हुई । 'आज' और 'स्वतंत्र ' दैनिक भी परमोपयोगी हैं। 'साहित्य समालोचक' पत्र की विद्वानों में प्रतिष्ठा है । इधर सुधा और मनोरमा पत्रिकाएँ भी अच्छी निकल
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वर्तमान प्रकरण रही हैं। थोड़े दिन से महारथी, वीणा, त्यागभूमि, विशाल भारत, सम्मेलन-पत्रिका भी सम्मेलन से निकलती है, परंतु उसकी और पत्रिकाओं के समान उन्नत होने की आवश्यकता है।
छत्तीसवाँ अध्याय . पूर्व हरिश्चंद्र-काल
(१९२६-३५ )
(२१६९) भारतेंदु हरिश्चंद्रजी इनका जन्म संवत् १९०७ में भाद्र शुक्ल ७ को काशीजी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र ( उपनाम गिरधरदास) था । ये अग्रवाल वैश्य थे । इन्होंने बाल्यावस्था में पढ़ने में अधिक जी नहीं लगाया। केवल ११ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने विद्याध्ययन किया, परंतु पीछे से शौकिया बहुत-सी भाषाओं तथा विद्याओं का अभ्यास कर लिया था। इन्होंने बहुत-से स्वदेश-प्रेम के काम किए और हिंदीगद्य को इनसे बहुत सहायता मिली । इनका चित्त बहुत ही मज़ाकपसंद था। पहली एप्रिल एवं होली को ये विना कुछ दिल्लगी किए नहीं रहते थे। उदारता इनकी बहुत ही बढ़ी-चढ़ी थी, यहाँ तक कि इन्होंने अपने भाग की पैत्रिक संपत्ति बहुत जल्द स्वाहा कर दी। इनका शरीर पात संवत् १९४१ में, काशी में, हुआ। __ सत्रह वर्ष की अवस्था से इन्होंने काव्य-रचना प्रारंभ कर दी थी
और अंत समय तक ये काव्यानंद ही में मग्न रहे । इनकी रचनाओं का संग्रह छः भागों में खगविलास-प्रेस से प्रकाशित हुआ है । सब मिलकर इनके छोटे-बड़े १७५ ग्रंथ इस संग्रह में हैं । प्रथम भाग में 15 नाटक और १ ग्रंथ नाटकों के नियमों का है। इनमें सत्यहरिश्चंद्र, मुद्राराक्षस, चंद्रावली, भारतदुर्दशा, नीलदेवी, और प्रेमयोगिनी प्रधान हैं । भारसदुर्दशा और नीलदेवी में भारतेंदुजी का स्वदेश-प्रेम
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मिश्रबंधु-विनोद दर्शनीय है। चंद्रावली से इनके असीम प्रेम और भक्ति का अच्छा परिचय मिलता है। सत्यहरिश्चंद्र भारतेंदुजी की कविस्व-शक्ति का एक अद्भुत नमूना है। प्रमयोगिनी में इन्होंने अपने विषय की बहुतसी बातें लिखी हैं । इसमें हँसी-मज़ाक़ का अच्छा चमत्कार है। द्वितीय भाग इनके रचित इतिहास-ग्रंथों का संग्रह है, जिसमें काश्मीरकुसुम, बादशाहदर्पण और चरितावली प्रधान हैं । चरितावली में इन्होंने अच्छे-अच्छे महानुभावों के चरित्रों का वर्णन किया है। तृतीय भाग में राजभक्तिसूचक काव्य है । इसमें १३ ग्रंथ हैं, परंतु उनकी रचना उत्कृष्ट नहीं हुई है। चतुर्थ भाग का नाम भक्तिसर्वस्व है । इसमें १८ भक्तिपक्ष के ग्रंथ हैं, जिनमें वैष्णवसर्वस्व, वल्लभीयसर्वस्व, उत्तरार्द्ध भक्तमाल तथा वैष्णवता और भारतवर्ष उत्तम रचनाएँ हैं। पंचम भाग का नाम काव्यामृतप्रवाह है। इसमें १८ प्रेमप्रधान ग्रंथ हैं, जिनमें प्रेमफुलवारी, प्रेमप्रलाप, प्रेममालिका और कृष्णचरित्र प्रधान हैं। नाटकावली के अतिरिक्त भारतेंदुजी का यह भाग प्रशंसनीय है। छठे भाग में हँसी-मजाक के चुटकुले और छोटे-छोटे कई निबंध तथा अन्य लोगों के बनाए हुए कई ग्रंथ हैं, जो इनके द्वारा प्रकाशित हुए थे।
इनकी कविता का सर्वोत्तम गुण प्रेम है। इनके हृदय में ईश्वरीय एवं सांसारिक प्रेम बहुत अधिक था; इसी कारण इनकी रचना में प्रेम का वर्णन बहुत ही अच्छा आया है। भारतेंदुजी अपने समय के प्रतिनिधि कवि थे । इनको हिंदूपन तथा जातीयता का बहुत ही बड़ा ध्यान रहता था । हास्य की मात्रा भी इनकी रचनाओं में विशेषरूप से पाई जाती है। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, अंधेरनगरी और प्रेमयोगिनी में हास्यरस का अच्छा समावेश है। इनकी कविता बड़ी सबल होती थी और विविध विषयों के वर्णनों में इस कवि ने अच्छी शक्ति दिखलाई है। सौंदर्य को यह सभी स्थानों
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वर्तमान प्रकरण
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पर देखता और अपनी कविता में उसे हर स्थान पर सन्निविष्ट करता था । रूपक भी भारतेंदुजी ने बहुत विशद लिखे हैं। राजनीतिक तथा सामाजिक सुधारों पर इन्होंने अपने विचार जगह-जगह पर सबल भाषा में प्रकट किए हैं । इस कविरत्न ने पद्य में व्रजभाषा का और गद्य में खड़ी बोली का विशेषतया प्रयोग किया है, परंतु उर्दू, खड़ी बोली, व्रजभाषा, माड़वारी, गुजराती, बँगला, पंजाबी, मराठी,. राजपूतानी, बनारसी, अवधी आदि सभी भाषाओं में उत्कृष्ट और सरस रचनाएँ की हैं । इन्होंने सद्य और पद्य प्रायः बराबर लिखे हैं । ग्रंथों के अतिरिक्त बाबू साहब ने कई समाचारपत्र और पत्रिकाएँ चलाई | वर्तमान हिंदी की इनके कारण इतनी उन्नति हुई कि इनको इसका जन्मदाता कहने में भी अत्युक्ति न होगी । यदि इनका विशेष वर्णन देखना हो, तो हमारे रचित नवरत्न में देखिए ।
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उदाहरण
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हम हूँ सब जानतीं लोक की चालन क्यों इतनो बतरावती हौ हित जामैं हमारो बनै सो करौ सखियाँ तुम मेरी कहावती हौ हरिचंदजू या मैं न लाभ कछू हमैं बातन क्यौं बहरावती हौ सजनी मन हाथ हमारे नहीं तुम कौन को क्रा समुझावती हौ ॥ १ ॥ पचि मरत वृथा सब लोग जोग सिरधारी ;
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साँची जोगिन पिय बिना वियोगिन नारी । बिरहागिनि धूनी चारों ओर लगाई ; कानों पहिराई | लटकारी ; वियोगिन नारी ।
बंसीधुनि की मुद्रा लट उरझि रही सोइ लटकाई साँची जोगिन पिय बिना
है यह सोहाग का अटल
सगुन की मूरति ख़ाक सिर सेंदुर देकर चोटी गूथ
हमारे बाना ;
न कभी चढ़ाना |
बनाना ;
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मिश्रबंधु विनोद
सिवजी से जोगी को भी जोग सिखाना । पीना प्याला भर रखना वही खुमारी ; साँची जोगिन पिय बिना वियोगिन नारी ॥२॥ X
X
थोर
भरित नेह नव नीर नित बरसत सुरस जयति पूरब घन कोऊ लखि नाचत मन मोर ॥ ३ ॥
X
X
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X
X
उठहु बीर रणसाज साजि जय ध्वजहि उड़ान; लेहु म्यान सों खङ्ग खींच रन रंग जमाओ । परिकर कसि कटि उठौ धनुष सों धरि सर साधौ ;
सँभा I
केसरिया बानो सजि-सजि रनकंकन बाँधौ । जो श्ररजगन एक होय निज रूप विचार; तजि गृह कलहहिं अपनी कुल मरजाद तौ श्रमरखाँ नीच कहा याको बल भारी सिंह जगे कहूँ स्वान ठहरिहै समर मँझारी । चींटिहु पद तल परे डसत है तुच्छ जंतु इक ;
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ये प्रतच्छ रि इन्हें उपेछै जौन ताहि धिक । धिक तिन कहँ जे आर्य होय यवनन को चाहैं ;
धिक तिन कहँ जे इनसों कछु संबंध निबाहैं । उठहु बीर सब साजि माड़हु घन संगर ;
लोह- लेखनी लिखहु जबल दुवन हृदै पर ॥ ४ ॥
X
X
X
सब भाँति दैव प्रतिकूल होय यहि नासा ; अब तजहु बीरबर भारत की सब श्रासा । अब सुख-सूरज को उदै नहीं इत है है
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सो दिन फिर अब इत सपनेहूँ नहिं ऐ है ।
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वर्तमान प्रकरण स्वाधीनपनो बल बीरज सबै नरी है
मंगलमय भारत भुव मसान है जै है। सुख तजि इत करि है दुःखहि दुःख निवासा,
अब तजहु बीरबर भारत की सब आसा ॥॥ यहाँ कवि ने स्वाधीनपनो आदि शब्दों से मानसिक स्वतंत्रता का भाव लिया है न कि राजनीतिक का । यह कवि भारत का अँगरेज़ों से संबंध मंगलकारी समझता था, और राजभक्ति के इसने कई ग्रंथ रचे। इसके विलाप भारतीय मानसिक दुर्बलता-विषयक हैं।
(२१७०) तोताराम __ इनका जन्म संवत् १९०४ में, कायस्थ-कुल में, हुआ था। कुछ दिन सरकारी नौकरी करके इन्होंने अलीगढ़ में वकालत जमाई, जहाँ इनकी आय प्रायः अयुत मुद्रा सालाना थी। आप प्रकृति से परम सुशील थे। अलीगढ़ में हम लोगों का इनसे परिचय हुआ था, और इन्हें हमने अपना लवकुश-चरित्र सुनाया था। इन्होंने कुछ दिन भारतबंधु-नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला । केटो-कृतांत-नामक इन्होंने एक नाटक-ग्रंथ बनाया और वाल्मीकीय रामायण का श्राप राम-रामायण-नामक एक उत्था स्वच्छ दोहा-चौपाइयों में बनाते थे, पर वह पूर्ण न हो सका । उसका बालकांड इन्होंने हमें दिया था। हम इनकी गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में करेंगे। संवत् १९५६ में इनका शरीर-पात हुश्रा।
(२१७१ ) देवीप्रसाद मुंशी ये महाशय गौड़ कायस्थ मुंशी नस्थनलाल के पुत्र थे। इनका जन्म नाना के घर जयपुर में माघ सुदी १४ संवत् १६०४ को हुआ था। संवत् ११२० से १९३४ पर्यंत ये नवाब टोंक के यहाँ नौकर रहे और संवत् ११३६ से महाराज जोधपुर के यहाँ कर्मचारी हो गए। ये महाशय बहुत दिनों तक मुंसिन रहे, और मनुष्य-गणना आदि का
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मिश्रबंधु-विनोद काम करके दरबार की ओर से प्राचीन शिलालेखों श्रादि की खोज का भी काम करते रहे । प्रत्येक पद पर अपने ऊँचे अफसरों को इन्होंने अच्छे काम से सदैव प्रसन्न रक्खा । पहले इन्हें उर्दू गद्य
और पद्य लिखने का चाव था, पर पीछे से ये हिंदा-गद्य के भी अच्छे लेखक हो गए । इन्होंने उर्दू की बहुत-सी पुस्तकें बनाई और हिंदी में भी दरबार की आज्ञा से कानून तथा मनुष्य-गणना आदि से संबंध रखनेवाले छोटे-बड़े कई उपयोगी ग्रंथ रचे । इन्होंने सबसे अधिक श्रम इतिहास पर किया और बहुत छान-बीन करके इस विषय पर बहुतसे परमोपयोगी ग्रंथ रचे, जिन्हें इन्होंने ऐपी सरल भाषा में लिखा है कि प्रत्येक हिंदी पढ़ लेनेवाला परम स्वल्पज्ञ मनुष्य भी समझ सकता है । इतिहास के विषय पठित समाज में इनका प्रमाण माना जाता था। महिलामृवाणी तथा राजरसनामृत-नामक दो काव्य-ग्रंथ भी इन्होंने संगृहीत किए और कवियों की एक नामावली संकलित की थी। इनके रचे हुए ऐतिहासिक जीवन-चरित्रों के नायक ये हैं
अकबर, शाहजहाँ, हुमायूँ, तुहमास्प (ईरान का शाह ), बाबर, शेरशाह, साँगा (राणा), रतनसिंह, विक्रमादित्य ( चित्तौर ), वनवीर, उदयसिंह, प्रतापसिंह, पृथ्वीराज ( जयपुर ), पूरनमल, रतनसिंह, श्रासकरण, राजसिंह (जयपुर ), भारामल, भगवानदास, मानसिंह, बीकाजी, नराजी, लूणकरण, जैतसी, कल्याणमल, मालदेव, बीरबल (दो भागों में), मीराबाई, जसवंतसिंह (मारवाड़), खाननाना और औरंगज़ेब ।
इनजीवनियों के अतिरिक्त नीचे लिखे हुए मुंशीजी के अन्य ग्रंथ हैं
जसवंत स्वर्गवास, सरदारसुखसमाचार, विद्यार्थीविनोद, स्वप्न राज. स्थान, मारवाड़ का भूगोल तथा नक्शा, प्राचीन कवि, बीकानेर राजपुस्तकालय, इंसाफ़संग्रह, नारीनवरत्न, महिलामृदुवाणी, मारवाड़ के प्राचीन शिलालेखों का संग्रह, सिंध का प्राचीन इतिहास, यवनराज
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वंशावली, मुग़लवंशावली, युवतीयोग्यता, कविरत्नमाला,अरबी भाषा में संस्कृत-ग्रंथ, रूठी रानी, परिहारवंशप्रकाश और परिहारों का इतिहास।
इन ग्रंथों का हाल हमें स्वयं मुंशीजी से ज्ञात हुआ है। आपने कविरत्नमालावाले कवियों के नामों की एक हस्त-लिखित सूची भी हमारे पास भेजने की कृपा की। इसमें ७५४ नाम हैं। उपर्युक्त ग्रंथों में बहुतसे हमने देखे हैं और उनमें से बहुत-से हमारे पास वर्तमान भी हैं। इन्होंने इतिहास-ग्रंथों में गद्य-काव्य न लिखकर सीधी-सादी इबारत में सत्य घटनाएँ लिखने का प्रयत्न किया । रूठी रानी एक प्रकार से उपन्यास भी है। इनके अच्छे गद्य-लेखों की भाषा सुलेखकों की-सी होती थी। इनके प्रयत्नों से हिंदी में इतिहास-विभाग की अच्छी पूर्ति
उदाहरण
"दूपरे चित्र में एक सिंहासन बना था । ऊपर शामियाना तना था। उस सिंहासन पर एक भाग्यवान् पुरुष पाँव-पर-पाँव रक्खे बैठा था ; तकिया पीठ से लगा था, पाँच सेवक आगे-पीछे खड़े थे और वृक्ष की शाखा उस सिंहासन पर छाया किए हुए थी।"
जहाँगीरनामा (पृष्ठ १४४) आपने ऐतिहासिक कामों की उन्नति के लिये नागरीप्रचारिणी सभा काशी को प्रायः १००००) रु० का दान दिया। थोड़े दिन हुए कि आपका शरीर-पात हो गया। आपके प्रयत्नों से हिंदीसाहित्य-विभाग की अच्छी पूर्ति हुई है।
(२१७२ ) जगमोहनसिंह इनका जन्म संवत् १९१४ में, विजयराघवगढ़ में, हुश्रा । ठाकुर सरयूसिंहजी इनके पिता एक राजा थे, पर संवत् १९१४.१श्वाले विद्रोह में उनका राज्य सरकार ने जब्त कर लिया । जगमोहनसिंहजी ने काशी में विद्या पढ़ी, जहाँ इनसे भारतेंदुजी से स्नेह हुआ।
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मिश्रबंधु-विनोद ये १६ वर्ष की ही अवस्था से कविता करने लगे थे। पहले इन्हें सरकार ने तहसीलदार नियत किया और दो ही वर्ष में, संवत् १६३६ में, यक्स्ट्रा असिस्टैंट कमिश्नर कर दिया । यह वही पद है जो यहाँ डिपुटी कलेक्टर के नाम से प्रख्यात है। इन्होंने सरकारी नौकरी के समय भी साहित्य-रचना को नहीं भुलाया और अवकाश पाकर ये बराबर ग्रंथ-रचना करते रहे । इनका शरीर-पात थोड़ी ही अवस्था में, संवत् १९५५ में, हो गया। इन के बनाए हुए अंथ ये हैं-श्यामास्वप्न, श्यामसरोजिनी, प्रेमसंपत्तिलता, मेघदूत, ऋतुसंहार, कुमारसंभव, प्रेमहजारा, सज्जनाष्टक, प्रलय, ज्ञानप्रदीपिका, सांख्य ( कपिल ) सूत्रों की टीका, वेदांतसूत्रों (वादरायण ) पर टिप्पणा और बानी वार्ड विलाप । हमारे देखने में इनके ग्रंथ नहीं आए, पर सुनते हैं कि वे उत्कृष्ट हैं । उदाहरण
आई शिशिर बरोरु शालि अरु ऊखन संकुल धरनी ; प्रमदा प्यारी ऋतु सोहावनी क्रौंच रोर मनहरनी । मूंदे मंदिर उदर झरोखे भानु किरन अरु भागी ; भारी बसन हसन मुख बाला नवयौवन अनुरागी ।
(२१७३ ) गदाधरसिंह (बाबू) इनका जन्म संवत् १६०५ में हुआ था । इन्होंने कुछ दिन व्यापार किया, पर उसके न चलने से सरकारी नौकरी कर ली और अंत तक उसे करते रहे । हिंदी की इन्हें बड़ी रुचि थी और इन्होंने अंत समय अपना पुस्तकालय एवं सब धन काशी-नागरीप्रचारिणी सभा को दे दिया । इन्होंने कादंबरी, वंगविजेता, दुर्गेशनंदिनी, और पोथेलो के भाषानुवाद किए, तथा रोमन उर्दू की पहली पुस्तक, एवं भगवद्गीतानामक पुस्तकें बनाई । ये ऐतिहासिक और पौराणिक विवरण की डायरी-नामक एक अच्छी पुस्तक लिख रहे थे; पर वह असमाप्त रह गई और संवत् १९५५ में इनका शरीर-पात हो गया ।
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प्रकरण
(२१७४) श्रीनिवासदास लाला ये महाशय अजमेरा वैश्य वाला मंगीलाल के पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १६०८ कार्तिक सुदी परिवा को मथुरा में हुआ था। राजा लक्ष्मणदास की ओर से ये महाशय उनकी दिल्लीवाली कोठी के संचालक और एक बड़े रईस थे । इनकी कविता अमृत में डुबोई होती थी। भारतेंदु के अतिरिक्त इन्हीं ने हिंदी में उत्कृष्ट नाटक बनाए हैं। सप्ता संवरण, संयोगिता स्वयंवर, तथा रणधीर प्रेममोहनी-नामक इन्होंने तीन नाटक-ग्रंथ बनाए, जिनका पूर्ण समादर हिंदी-पठित समाज में हुआ, विशेषतया अंतिम दोनों का। इनके अंतिम नाटक के अनुवाद उर्दू और गुजराती में हुए और वह खेला भी गया । इन्होंने परीक्षागुरु-नामक एक उपन्यास भी बनाया, पर वह ऐसा अच्छा नहीं है जैसे कि इनके अन्य ग्रंथ हैं। हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करेंगे। इनको अकालमृत्यु संवत् १९४४ में हो गई, जिससे हिंदी के नाटक-विभाग को बड़ी क्षति पहुंची। (२१७५ ) रामपालसिंहजी राजा कालाकाँकर
जिला प्रतापगढ़ इनके पिता का नाम लाल प्रतापसिंह और पितामह का राजा हनुमंतसिंह था । इनका जन्म संवत् १६०५ में हुआ । इनके पिता ग़दर के समय अँगरेज़ों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। राज साहब की शिक्षा का प्रबंध इनके दादा राजा हनुमंतसिंह ने किया। इन्होंने अठारह वर्ष की अवस्था तक हिंदी, फारसी और अँगरेज़ी में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली थी। राजा हनुमंतसिंह के और कोई उत्तराधिकारी न होने तथा इनके पिता के लड़ाई में मारे जाने के कारण वे इन पर विशेष प्रेम रखते थे । अतः राजा हनुमंतसिंहजी ने अपने जीते जी इनको कालाकाँकर की अपनी रियासत का मालिक कर दिया । राजा रामपालसिंहजी के विचार ब्राह्मो-धर्म के
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मिश्रबंधु-विनोद
समान "एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति' पर थे और हिंदू-धर्म के रस्मरवाजों पर वे ध्यान नहीं देते थे; इस कारण समय पर राजा हनुमंतसिंह और उनके बिरादरीवाले इनसे बहुत ही नाराज़ हुए । राजा रामपाल सिंह ने उनका क्रोध शांत करने को अपना राज्याधिकार फिर उन्हें वापस दे दिया। थोड़े दिन के बाद ये अपनी रानी समेत इंगलैंड गए । वहाँ इनकी रानी का देहांत हो गया। इंगलैंड में राजा साहब ने विद्योपार्जन में अच्छा श्रम किया और फ्रेच सथा जर्मन भाषाएँ भी सीखीं तथा गणित एवं तर्क-शास्त्र में अभ्यास किया। वहीं इन्होंने संवत् १८८३ से १८८५ तक हिंदोस्थान-नामक एक त्रैमासिक पत्र निकाला, जिसने कई अँगरेज़ों में हिंदी-प्रेम जाग्रत् किया। इसी समय राजा हनुमंतसिंह का देहांत हो गया, अतः ये कालाकाँकर पाए और रियासत का उचित प्रबंध करके दुबारा इंगलैंड गए । अब की बार ये वहाँ से एक मेम को अपनी रानी बनाकर लाए। ये रानी साहबा भी संवत् १९५४ में है ज़े से मर गई। इसके बाद राजा साहब ने एक विवाह और किया। संवत् १९४२ से आप हिंदोस्थान को दैनिक करके कालाकाँकर से निकालने लगे। तब से बहुत अर्थ-हानि होने पर भी ये बराबर उसे यावजीवन निकालते रहे । राजा साहब हिंदी तथा फारमी के अच्छे कवि थे।
आपके विचार प्राधुनिक विद्वानों के समान बड़े ही निडर थे। बहुत दिन तक ये काँगरेस में शरीक होते रहे । राजा साहब के हिंदी प्रेम तथा उन्नत विचारों का यहाँ के राजा लोगों को अनुकरण करना चाहिए। आपने कालाकाँकर में एक हनमंत-स्कूल भी खोला था, जो अच्छी दशा में था। उसे कॉलेज करने की इनकी इच्छा थी, जैसा कि इन्होंने अपने वसीयतनामे में लिखा था । राजा साहब का देहांत १८ साल हुए हो गया। सभी से उक्त दैनिक पत्र हिंदोस्थान बंद हो गया । इनके उत्तराधिकारी साहित्य-प्रेमी राजा रमेशसिंहजी ने एक
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वर्तमान प्रकरण
दैनिक पत्र सम्राट् नामक जारी किया था, परंतु कुटिल काल की गति से वह भी रमेशसिंहजी के साथ ही अस्त हो गया। ( २१७६ ) गोविंद गिल्लाभाई
इनका जन्म सिहोर रियासत भावनगर में श्रावण सुदी ११ संवत् १६०५ को हुआ था । आपके पिता का नाम गिल्ला भाई है । श्राप गुजराती हैं, और इसी भाषा में रचना करते थे, परंतु पीछे से हिंदी में भी करने लगे । आपके पास बहुत-से ग्रंथ हैं और आप हिंदी के बड़े प्रेमी तथा उत्साही हैं । आपने नीति-विनोद, शृंगार - सरोजिनी (१६६५ ), षट्ऋतु ( १६६६ ), पावस - पयोनिधि ( १६६२ ) समस्यापूर्ति प्रदीप, वक्रोक्तिविनोद, श्लेषचंद्रिका ( १६६७ ), गोविंद ज्ञानबावनी ( १६६० ), प्रारब्ध-पचासा ( १६६६ ) और प्रवीन सागर की बारहलहरी - नामक चौदह पद्य ग्रंथ बनाए हैं, जो प्रकाशित हो चुके हैं । इनमें काव्य अच्छा है । बहुत दिनों तक श्राप सरकारी नौकरी करते रहे । खेद है कि हाल ही में आपका स्वर्गवास हो गया । श्रापकी कविता व्रजभाषा में है । आपने निम्न लिखित ग्रंथ और भी रचे हैं—
( १ ) विवेक - विलास, ( २ ) लक्षण - बत्तीसी (१६२६ ), (३) विष्णु - विनय-पचीसी ( १६३७ ), ( ४ ) परब्रह्मपचीसी ( १६३७ ), (५) प्रबोधपचीसी ( १६३७ ), (६) शिखनखचंद्रिका ( : ६४१ ), ( ७ ) राधारूपमंजरी ( १६४१ ), ( ८ ) भूषणमंजरी (१६४५ ), ( 4 ) श्रृंगारषोडशी ( ११४५ ), (१०) भक्ति कल्पद्रुम ( १४५ ), ( ११ ) राधामुखषोडशी ( ११५० ), ( १२ ) पयोधरपचीसी ( १९५१ ), (१३) नैनमंजरी (१६५३ ), (१४) छबिसरोजिनी ( १६२४ ), ( १२ ) प्रेमपचीसी ( १६२४ ) (१६) साहित्यचिंतामणि प्रथम भाग ( १६६५ ), ( १७ ) रत्नावलीरहस्य ( १६७१ ), (१८) बोधबत्तीसी ( १६७३ ), ( १६ ) शब्द -
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मिश्रबंधु-विनोद विभूषण (१९७४), (२०) गोविंदहज़ारासंग्रह (१९७५), (२१) अन्योक्ति गोविंद (१९७७), (२२) अलंकारअंबुधि (अपूर्ण), (२३) प्रेम-प्रभाकरसंग्रह (अपूर्ण)।
(२१७७ ) रसिकेश ( उपनाम रसिकविहारीजी) इनका जन्म संवत् १६०१ में हुआ था। आप कुछ समय में वैरागी होकर अयोध्या में कनकभवन के महंत हो गए और अपना नाम आपने जानकीप्रसाद रक्खा । वैरागी होने के पूर्व श्राप पन्ना में दीवान थे। आपने रामरसायन (६०८ पृष्ठ ), काव्य-सुधाकर (पृष्ठ १४७), इश्क़ अजायब, ऋतुतरंग, विरहदिवाकर, रसकौमुदी, सुमतिपच्चीसी, सुयशकदम, कानून मजमूत्रा, रागचक्रावली, संग्रहबित्तावली, मनमंजन, संगृहीतसंग्रही, गुप्तपच्चोसो आदि २६ ग्रंथ रचे हैं। इनके प्रथम दो ग्रंथ हमारे पास इस समय प्रकाशित रूप में वर्तमान हैं। रामरसायन में रामायण की कथा है और काव्य-सुधाकर में छंद, रस, भाव, अलंकार आदि काव्यांगों का अच्छा वर्णन है । इनका शरीर-पात हुए थोड़े दिन हुए हैं। आपका काव्य चमत्कारिक है । हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखते हैं । इन्होंने उर्दू-मिश्रित भाषा में भी रचना की है । इनकी रामायण भी अच्छी है। उदाहरणझूमैं हैं चहूँघा गजराज-से रसाल भू मैं,
घूमैं हैं समीर तेज तरल तुरंग ज्यों ; किंसुक गुलाब कचनार श्रौ अनारन के,
प्यादे भाँति-भाँति लसैं सहित उमंग त्यों । छाई नव बल्ला छटा छहरि रही है धनी,
तेई रथ राज मोर भ्रमत अभंग क्यों : रसिकबिहारी साज साजि ऋतुगत प्रायो,
छायो बन बाग सेना लीन्हे चतुरंग यों।
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१२.३
वर्तमान प्रकरण ( २१७८) नृसिंहदास कायस्थ ये संवत् १६६६ में प्रायः ६५ वर्ष की अवस्था पाकर छतरपूर में मरे । इनकी संतान वर्तमान हैं। ये प्रथम कालिंजर में रहते थे, पर पीछे छतरपूर में रहने लगे। ये वैद्यक करते थे। इनका ग्रंथ 'संतनाममुक्तावली' इन्हीं के हाथ का लिखा हमने देखा है । इसमें ६० छंद हैं, जिनमें दोहे व पद प्रधान हैं। ये साधारण कवि थे। उदाहरण
संत-नाम-मुकतावली, निज हिय धारन हेत; रची दास नरसिंह ने, श्रद्धा भक्ति समेत । हौं नहिं काव्यकलाकुशल, विनय करौं कर जोरि ; छमहु संत अपराध मम, काव्य कलित अति थोरि ।
( २१७९ ) महारानी वृषभानुकुँवरिजी देवी ये उर्जा के वर्तमान महाराजा की पहली महारानी थीं । इनका छोटा पुत्र बिजावर का महाराज है । और इनकी कन्या छतरपूर की महारानी थीं। इनके बड़े पुत्र टीकमगढ़ ( उर्चा का राजस्थान ) में थे। इनका शरीर-पात प्रायः ६० वर्ष की अवस्था में हुआ था । इन्होंने पदों में रामयश का गान किया है। इनकी कविता बढ़िया है। छतरपूर में इनके दंपति-विनोद-लहरी (४६ पृष्ठ), बधाई (९ पृष्ठ), मिथिलाजी की बधाई (१४ पृष्ठ ), बना (२१ पृष्ठ ), होरीरहस ( १६ पृष्ठ ), झूलनरहस ( २१ पृष्ठ ), और पावस (७ पृष्ठ )-नामक ग्रंथ प्रस्तुत हैं । इन सबमें सीताराम का ही वर्णन है। [प्र. त्रै० रि०] में इनके भक्तविरुदावली (१९४२), औरंगचंद्रिका (१९६०) तथा दानलीला (१९६३) नामक तीन और ग्रंथों का पता चलता है। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरण
रघुबर दीन बचन सुनि लीजै।
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१२०४
मिश्रबंधु-विनोद भवसागर को पार नहीं है तदपि पार मोहिं कीजै । जो कोउ दीन पुकारै प्रभु को अमित दोष दलि दीजै ; सुनि बिनती बृषभानुकुंवरि की अब प्रभु मेहर करीजै ।
(२१८०) ललिताप्रसाद त्रिवेदी ( ललित ) यह मल्लावाँ जिला हरदोरी अवधप्रदेश के वासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे और प्रायः कानपूर में रहा करते थे । इन्होंने काव्य से जीविका नहीं की, किंतु उसे अपने चित्तविनोदाथ पढ़ा था। यह कानपूर में ग़ल्ले की दुकान पर मुनीबी का काम करते थे । काव्य का बोध इनको बहुत अच्छा था। हम इनसे दो-एक बार कानपूर में मिले हैं। इन महाशय ने रामलीला के वास्ते एक जनकफुलवारीनामक ३० पृष्ठ का ग्रंथ निर्माण किया था और इसी के अनुसार गुरुप्रसादजी शुक्ल रईस कानपूर के यहाँ धनुषयज्ञ में लीला होती थी। इन्होंने इसमें ग्रंथ निर्माण का समय नहीं दिया, परंतु हमको अनुमान से जान पड़ता है कि यह संवत् १६४० के लगभग बना होगा। ललितजी का लगभग ६० वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ। द्वि० त्रै खोज में “ख्यालतरंग"-नामक इनका एक ग्रंथ और मिला है। इनकी कविता रोचक और सरस है । उसकी रचना रामचंद्रिका के समान विविध छंदों में की गई है, और कविता प्रशंसनीय है, परंतु रामचंद्र और विश्वामित्रजी की बातचीत जो अंत में कराई गई है वह अयोग्य हुई है। ऐसी बातें गुरु और शिष्य नहीं कर सकते । ललितजी के कुछ स्फुट छंद और समस्यापूर्तियाँ देखने में आती हैं । इन्होंने दिग्विजयविनोद-नामक एक ग्रंथ नायिकाभेद का महाराजा दिग्विजयसिंहजी के नाम पर संवत् ११३० में बनाया था, जो मुद्रित भी हो गया है, परंतु महाराजा साहब के यहाँ से इनको | कुछ पारितोषिक इत्यादि नहीं मिला । शायद इसी कारण रुष्ट होकर इन्होंने काव्य से जीविका चलाना निंद्य
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वर्तमान प्रकरण
समझकर नौकरी कर ली । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । इनके कुछ छंद नीचे दिए जाते हैं ।
उदाहरण
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सुखद सुजन ही के मान के करनहार, दीनन के दारिद- दवा को जलधर हौ ; कहै कबि ललित प्रभाव के प्रभाकर से, बस रहा के जसही के सुधाकर हौ । आछे रहौ राजन के राज दिगबिजैसिंह, धीर-धुरधर सुखमा के मानसर सोभा सील बर हौ परम प्रीति पर हौ,
निगम नीतिधर हौ हमारे देववर हौ ॥ १ ॥ बंगरे लतान युत सगरे बिटप बर,
सुमन समूह सोहैं अगरे सुबेस को ; भौंरन के भार डार-द्वार पै अपार दुति, कोकिल पुकार हरै त्रिविध कलेस को । कहत बनै न कछू ललित निहारिबे मैं,
उमहो परत सुख मानौ देस- देस को ; जनक सो राजत जनकजू को बाग ताको,
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नंदन सो लागै वन नंदन सुरेस को ॥ २ ॥ मार-लजावनहार कुमार हौ देखिबे को हग ये ललचात हैं भूले सुगंध सों फूले सरोज से श्रानन पै लिहू मड़रात हैं । नेक चले मग मैं पग द्वै ललिते श्रम- सीकर से सरसात हैं तोरिहौ कैसे प्रसून लला ये प्रसूनहु ते अति कोमल गात हैं ॥३॥ ( २१८१ ) गोविंदनारायण मिश्र
;
ये भाषा के एक अच्छे विद्वान् तथा सुयोग्य लेखक थे । श्रापका जन्म में हुआ था, आपने कई पत्रों का संपादन कार्य उत्तमता से
१६१६
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मिश्र बंधु विनोद
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किया, आप संस्कृत तथा हिंदी में अच्छी योग्यता रखते थे । द्वितीय हिंदी - साहित्य सम्मेलन के सभापति होकर आपने एक सारगर्भित एवं प्रशंसनीय वक्तृता दी । श्रापका कविताकाल संवत् १९३० से समझना चाहिए। इनका एक ग्रंथ “विभक्तिविचार" हमने देखा है, जिससे इनकी विद्वत्ता प्रकट होती है । पर इस विषय में हम इनसे सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि हिंदी यद्यपि अधिकांश में संस्कृत एवं प्राकृत से निकली है, तथापि उसका रूप उक्त भाषाओं से बहुत कुछ भिन्न है और हर बात में हम उसे संस्कृत-व्याकरण से नियमबद्ध नहीं करना चाहते। आपका प्राकृत विचार- नामक लेख भी दर्शनीय है । आपने शिक्षा-सोपान और सारस्वत सर्वस्व - नामक दो ग्रंथ भी लिखे हैं और सैकड़ों अच्छे लेख आपके वर्तमान हैं। थोड़े ही दिन हुए आपका शरीरांत हो गया ।
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( २१८२ ) सहजराम
ये महाशय अवध प्रदेशांतर्गंत जिला सुलतानपूर के बँधुवा ग्रामनिवासी सनाढ्य ब्राह्मण थे । शिवसिंहजी ने इनका जन्म संवत् १९०२ दिया है । इनका बनाया हुआ प्रह्लाद चरित्र नामक ४५ पृष्ठ का एक उत्कृष्ट ग्रंथ हमारे पास वर्तमान है और इनकी रामायण के भीती कांड ( किकिधा, सुंदर और लंका ) हमने देखे हैं । अपने ग्रंथों में इन्होंने समय का कोई ब्यौरा नहीं दिया है । इनका कविताकाल १९३० समझना चाहिए। इन ग्रंथों की भाषा और रचना सब गोस्वामी तुलसीदासजी की भाँति है । इस सत्कवि ने अपनी कविता बिलकुल गोस्वामीजी में मिला दी है । ऐसी उत्तम कविता दोहा-चौपाइयों में गोस्वामीजी और लाल के अतिरिक्त शायद कोई भी कवि नहीं कर सका है । इसके भक्ति, ज्ञान आदि के विचार सब गोस्वामीजी से मिलते से हैं, और रचनाशैली भी वही है । प्रह्लाद चरित्र की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी
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१२..
वर्तमान प्रकरण है। हम इस कवि को कथा-प्रासंगिक कवियोंवाली छन कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणार्थ इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैंरामनाम जिंखि बाँचन लागे ; धिक-धिक करि दोउ भूसुर भागे। सुनि पहलाद बचन कह दीना ; मोंहि धिक कत महिदेव प्रबीना। धिक नरेस जो प्रजा सतावै ; धिक धनवंत उथिरता पावै। धिक सुरलोक सोकप्रद सोई ; पुनरागमन जहाँ ते होई। धिक नर देह जरापन रोगा; राम भजन बिन धिक पंजोगा। कोउ कह धिक जीवन गुनहीना ; धौं कह सुत कोउ बिभवं बिहीना। सबै असत्य सत्य मत एहा ; राम भजन बिनु धिक नर देहा। धिक छत्री जो समर सभीता; बैखानस बिषयन मन जीता।
धिक धिक तपसी तप करहि, तन कसि मन बस नाहि; परमारथ पथ पाउ धरि, फिरि स्वारथ लपटाहि । हटकि-हटकि हारे निपट, पटक-पटकि महि पानि ; जाय पुकारे राउ पहँ, बालक सठ हठ खानि ।
रंध्र मास बीते यहि भाँती ; महा बायु किय प्रकट कहाँती। भयो अधीर पीर तन माहीं ; छिन मुर्छित छिन.. रुदन किराही । रूप चतुरभुज दीख न आगे ; कहाँ-कहाँ कति रोवन लागे। . कीन्हेउ जबहिं पयोधर पाना ; भूली सुमति मोह, लपटाना। जननी उबटन तेल करावा ; अति पुनीत. पलना पौढ़ावा । कादहि कीट दुसह, दुख पावा ; रहै रोय मुख बचन न भावा । कीड़ा' करत बालपन बीता ; तरुन भए तरुनी मन जीता। भूखन बसन अलंकृत सोहैं ; चलै बाम पुनि-पुनि जग मोहैं।
फूले फिरत बिम्मेह बस, भूले विषय बिलास ; . बहु ममता समता बिगत, लखै न खल निज नास ।
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१२०८
मिश्रबंधु-विनोद
जो कदाचि धन धाम बिलोका ; तिन समान मानै त्रैलोका । जे धन हीन दीन मुख बाए ; जहँ-तहँ जाहिं पेट खलाए । नहिं जप जोग भोग मन लावा ; यह वह करत जरापन आवा। तन भा अबल बदन रदहीना ; तृष्णा तरुन होय तन छीना।
अन इच्छित आई जरा, सहज राम सित केस ;
मनहुँ बिसिख सित पुंख ते, भेदेउ काल नरेस । जिमि-जिमि देह जरापन अावा ; तिमि-तिमि तृष्णा तरुन कहावा । अन इच्छित तन बसी बुढ़ाई ; नीच मीच-भगनी दुखदाई। थके चरन कर कंपन लागे; प्रिय बालक जल देइ न माँगे। खाँसि-खाँ सि थूकहि महि माहीं । सुन सुत-बधू देखि अनखाँहीं।
चिंता मगन न लगन कछु, हरिपद पंकज धूरि ; पाइ गँवायो जनम जड़, मगन मनोरथ भूरि ।
(२१८३ ) जीवनराम भाट ये खजुरहरा जिला हरदोई-निवासी थे। इनका शरीर-पात प्रायः ६० वर्ष की अवस्था में हुआ था। ये अन्य भाटों की भाँति इधरउधर घूम-फिर कर छंद पढ़कर ही अपना निर्वाह करते थे । जगन्नाथ पंडितराज-कृत गंगा-लहरी का भाषा पद्यानुवाद इन्होंने किया था। इनकी रचना साधारण श्रेणी की थी। उदाहरणदेखी मैं बरात रामलीला की इटौंजा मध्य,
__शोभा रूप धाम राजा राम को विवाह है; बोलें चोपदार धूम धौंसा की धुकार सुनि,
चित्त नर नारिन के चौगुनो उछाह है। भारी भीर भूधर गयंदन की भीम घटा,
साजे गजराज पै बिराजे सीता-नाह है ;
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वर्तमान प्रकरण
जीवन सुकवि प्रेम अंतर विचार कहै,
___ आपु महराज सीस कीन्हे छत्र छाँह है। नाम-(२१८३ ) शिवकवि भाट, असनी। ग्रंथ-स्फुट । रचनाकाल-१९३१ । विवरण-साधारण श्रेणी के कवि थे । इनके भड़ौवा सुने गए हैं।
देखिए नं. ७३५ । (२१८४) बेनीसिंह ठाकुर परसेहँड़ी, सीतापुर श्रापका जन्म संवत् १८७६ में हुआ था। आप हिंदी-साहित्य के अच्छे मर्मज्ञ थे। कविजन आपके यहाँ प्रायः आया-जाया करते थे। आपने सं० १६३१ में शृंगाररत्नाकर-नामक एक संग्रह बनाया था, जो एक लेखक की असावधानी से लुप्त हो गया। आपका देहांत १६४१ में हुअा। आपके पुत्र रामेश्वर बख्शसिंह भी एक सुकवि थे। इनका भी स्वर्गवास हो गया ।
(२१८५ ) हनुमान . ये महाशय प्रसिद्ध कवि मणिदेव वंदीजन के पुत्र और काशी के रहनेवाले थे। हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा है, परंतु इनके स्फुट छंद बहुतायत से मिलते हैं। इन्होंने शृंगाररस की कविता की है । इनकी भाषा व्रजभाषा है और वह संतोषदायिनी है । इनकी कविता मनोहर और सरस है। हम इन्हें तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणार्थ इनके दो छंद नीचे लिखे जाते हैंननदी औ जेठानी नहीं हँसती तौ हितू तिनहीं को बखानती मैं ; घरहाई चवाव न जो करती तो भलो औ बुरो पहिचानती मैं। हनुमान परोसिनि हू हित की कहतीं तौ अठान न ठानती मैं ; यह सीख तिहारी सुनौ सजनी रहती कुलकानि तौ मानती मैं ॥१॥ निज चाल सों और जे बाल तिन्हें कुल की कुलकानि सिखावती हैं; ननदी ौ जेठानी हँसावे तऊ हँसी अोठन ही लौं बितावती हैं।
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१२..
मिश्रबंधु-विनोद हनुमान न नेकौ निहाएँ कहूँ हग नीचे किए सुख पावती हैं; बड़भागिनि पी के सोहाग भरी कबौं आँगन हू लौं न आवती हैं ॥२॥
इनके पुत्र कविवर सीतलाप्रसादजी से विदित हुआ कि इनका शरीर-पात संवत् १९३६ में, ३८ वर्ष की अवस्था में, हुआ । द्विज कवि मन्नालाल से हनुमान की घनिष्ठ मैत्री थी।
(२१८६ ) नंदराम ये महाशय कान्यकुब्ज ब्राह्मण मौज़ा सालेहनगर ज़िला लखनऊ के रहनेवाले थे । यह स्थान गोमताजी के बसहरी घाट से ४ मील और हमारे जन्मस्थान इटौंजा ग्राम से ८ मील की दूरी पर स्थित है। संवत् १९३४ में ये महाशय हमसे इटौंजा में मिले थे। शृंगारदर्पण की एक हस्त-लिखित प्रति भी इनके पास थी, जिसके बहुत-से छंद इन्होंने हमको सुनाए । इनकी अवस्था उस समय लगभग चालीस वर्ष की थी और उसके प्रायः दश वर्ष के पीछे इनका शरीर-पात हुश्रा । अतः इनके जन्म और मरणकाल संवत् १८६४ और १६४४ के आसपास हैं।
इन्होंने शृंगारदर्पण-नामक १५४ पृष्ठों (मॅझोली साँची) का एक बड़ा ग्रंथ भावभेद और रसभेद के वर्णन में संवत् १९२६ में बनाया, जिसकी रीति प्रणाली पद्माकरजी के जगद्विनोद से मिलती है । इसमें दोहा, सवैया और घनाक्षरी छंद बहुतायत से हैं, परंतु कहीं छप्पय श्रादि दो-एक अन्य प्रकार के भी छंद आ गए हैं। इन्होंने अपनी भाषा में बाह्याडंबरों को स्थान नहीं दिया है और वह मधुर एवं निर्दोष है। इनके भाव भी साधारणतः अच्छे हैं । इनकी पुस्तक भारसजीवन यंत्रालय में मुद्रित हो चुकी है, जिसके अंत में इनके सात स्फुट छंद भी लिखे गए हैं। शिवसिंहसरोज में शांतरस के कवित्त बनानेवाले एक नंदराम का नाम लिखा है, पर उनके समय के निश्चय में कुछ भी नहीं कहा गया है । जान
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१२११ .
वर्तमान प्रकरण पड़ता है कि ये नंदराम ' दूसरे थे, क्योंकि श्रृंगारदर्पण के रचयिता नंदराम ने शांतरस के अच्छे छंद नहीं कहे हैं। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रक्खेंगे।
मोर किरीट मनोहर कुंडल मंज कपोलन पै अलकाली; पीत पटी लपटी तन साँवरे भाल पटीर की रेख रसाली। त्यों नंदरामजू बेनु बजावत आजु लखे बन मैं बनमाली ; नैन उघारिबे को मन होत न मोहन रूप निहारि कै आली। ( २१८७ ) लक्ष्मीशंकर मिश्र, एम० ए० रायबहादुर
ये महाशय सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनका जन्म संवत् १९०६ में हुआ था और संवत् १९६३ में इनका स्वर्गवास हुा । पहले ये बना रस कॉलेज में गणित के अध्यापक थे, पर संवत् १६४२ में सरकार ने इन्हें शिक्षा-विभाग में इंस्पेक्टर नियत कर दिया। इन्होंने गणितकौमुदी-नामक एक पुस्तक हिंदी में बनाई और बहुत दिन तकाकाशीपत्रिकाचलाई । बहुत दिनों तक ये नागरीप्रचारिणी सभा के सभापति रहे और यथाशक्ति सदैव हिंदी की उन्नति करते रहे। बहुतेरी पाठ्य-पुस्तकें भी इन्होंने शिक्षा-विभाग के लिये संपादित की।
(२१८८) रोमद्विज आपका नाम रामचंद्र था और आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। आपका जन्म संवत् १६०७ में हुआ था । आप हाई स्कूल अलवर के अध्यापक थे। आपकी कविता सरस, अनुप्रास-पूर्ण और श्रेष्ठ होती थी। इनके जानकीमंगल-नामक ग्रंथ से नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं ।
उदाहरण-- __ राम हिय सिय मेली जैमाल । ( टेक) मानहु धन बिच रच्यो चंचला सुरपतिचाप विशाल । लखिकै सकल भूप तन झरसे ज्यों जवास जलकाल; कह दुज राम बाम सुर गावत जनु कल कंठन जाल ॥ १ ॥
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१२१२
मिश्रबंधु-विनोद
सवैया भौरन मौर मनोहर मौलि अमोल हरा हिय मोतिया भायो ; नूतन पल्लव साजि अँगा पटुका कटि सोन जुही छवि छायो। कोकिल गायन भौंर बराती चढ़ो पवमान तुरंग सुहायो ; छाइ उछाह दिगंतन राम ललाम बसंत बनो बनि आयो ॥ २ ॥
(२१८९) गौरीदत्त सारस्वत ब्राह्मण पंडित गौरीदत्तजी का जन्म संवत् १८६३ में हुआ था। ४५ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने अध्यापक का काम किया
और फिर अपना पद छोड़ कर ये परमार्थ में प्रवृत्त हुए । उसी दिन अपनी सारी संपत्ति इन्होंने नागरी-प्रचार में लगा दी और अपनी शेष आयु-भर ये स्वयं भी इसी काज में लगे रहे । इन्होंने ग्राम-ग्राम और नगर-नगर फिरकर निरंतर नागरी-प्रचार पर व्याख्यान दिए और नागरी पढ़ाने को पाठशालाएँ स्थापित की । पंडितजी ने बहुत. से ऐसे खेल और गोरखधंधे बनाए, जिनमें लोगों का जी लगे और वे इसी प्रकार से नागरी लिपि जान जायँ । मेलों, तमाशों आदि में जहाँ अन्य लोग अपनी दूकानें ले जाते थे, वहाँ ये अपना नागरी का झंडा जाकर खड़ा करते थे । नागरी-प्रचार में ये महाशय इतने तल्लीन थे कि जयराम के स्थान पर लोग भेंट होने पर इनसे 'जय नागरी' कहते थे । मेरठ का नागरी स्कूल इन्हीं के प्रयत्नों से बना था । यह अब तक भली भाँति चल रहा है। इन्होंने मेरठ-नागरीप्रचारिणी सभा भी अपने उत्साह से चलाई और स्त्री-शिक्षा पर तीन पुस्तकें बनाई। इनका बनाया हुआ गौराकोष भी प्रसिद्ध है । आपका गद्य मनोहर होता था । इनका स्वर्गवास संवत् १९६२ में हुआ । इनकी समाधि पर मोटे अक्षरों में 'गुप्त संन्यासी नागरोप्रचारानंद' अंकित है।
(२१९० ) मोहनलाल विष्णुलाल पांड्या इनका जन्म संवत् १९०७ में हुआ था। ये भारतेंदु हरिश्चंद्र
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- वर्तमान प्रकरण
१२१३ के मित्र थे। थोड़ी अँगरेज़ी पढ़कर इन्होंने देशी रियासतों में नौकरी की और अंत में पेंशन पाकर मथुरा में रहते थे। इन्होंने हिंदी पर सदैव विशेष रुचि रक्खी और उसमें १२ पुस्तकें बनाई । पुरातत्त्व पर इनकी बहुत अधिक रुचि रही है, और चंद-कृत पृथ्वीराज रासो को संपादित करके ये प्रकाशित कराते थे। जिसे पीछे से सभा ने पूर्ण कराया । रासो के विषय में इनका प्रमाण माना जाता था। थोड़े दिन हुए इनका शरीर-पात हो गया।
(२१९१ ) राधाचरण गोस्वामी इनका जन्म संवत् १९१५ में, वृदावन में, हुआ था। इन्हें हिंदी तथा संस्कृत में अच्छी योग्यता थी और थोड़ी-सी अँगरेज़ी भी इन्होंने पढ़ी थी। ये महाशय वल्लभीय संप्रदाय के गोस्वामी थे और हिंदी पर इनका सदैव भारी प्रेम रहा । संवत् १९३२ में आपने कविकुलकौमुदी-नामक एक सभा स्थापित की। इन्होंने गद्य के सैकड़ों उत्तम लेख लिखे और भारतेंदु-नामक एक मासिक पत्र भी निकाला था, पर वह बंद हो गया। ये महाशय वृदावन के एक प्रतिष्ठित रईस थे। सरोजिनी-नामक इनका एक नाटक भी उत्तम है । आपने और भी कई छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी हैं, १ विधवाविपत्ति, २ विरजा, ३ . जावित्री, ४ यमलोक की यात्रा, ५ स्वर्गयात्रा, ६ मृण्मयी, ७ कल्पलता, ८ बालविधवा इत्यादि पुस्तकें आपकी रची हैं । आप बड़े सज्जन और योग्य पुरुष थे । श्रापके साथ बैठने में बड़ी प्रसन्नता होती थी। खेद है, आपका भी देहांत हो गया। नाम-( २१९२ ) जगदीशलालजी गोस्वामी (जगदीश),
दी। ग्रंथ-(१) व्रजविनोद नायिकाभेद, (२) साहित्य-सार, (३)
प्रस्तारप्रकाश पिगंल, (४) नृपरामपचीसी, (५) लालबिहारीप्रागट्यपचीसी, (६) लालबिहारीअष्टक,
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मिश्रबंधु विनोद
(७) करुणाष्टक, (८) महावीराष्टक, ( 8 ) नीति अष्टक, (१०) घटउपदेश, (११) ध्यानषटपदी, ( १२ ) कृष्णशत, ( १३ ) विनयशत, ( १४ ) गुरुमहिमा, (१५) अश्वचालीसा, (१६) संप्रदाय सार, (१७) उत्सवप्रकाश, (१८) पदपद्मावली | विवरण - सं० १६७० में वर्तमान थे । आप प्रसिद्ध गोस्वामी गदाधरलालजी के वंश में हैं । उस समय आपकी अवस्था लगभग ६५ साल की होगी। इनकी कविता प्रशंसनीय होती है ।
सरसावैरी ;
सरद सरोज सी सुखात दिन द्वैक हीतैं, हेरिर हिय मैं हिमंत कहै जगदीस बात सिसिर सुहात नाहिं, सुमति बसंत सुखकंत बिसरावैरी । ग्रीम बिखम ताप तन को तपाय तिय,
बोलत न बैन मन मैन मैन मुरझावैरी; पावस पयान पिय सुनिकै सयानि श्रज, अंबुज अनूप द्रग बुंद
बरसावैरी ॥ १ ॥
कमल नैन कर कमल कमल पद कमल कमल कर ; श्रमल चंद मुख चंद विकट सिर चंद चंद धर । मधुर मंद मुसक्यानि कान कुंडल प्रति सोभित ;
,
बसन पीत मनि माल माल गुंजन मन लोभित । जगदीस भौंह अलकें श्रधर मंद-मंद मुरली बजत ब्रजचंद मंद अलोकि अलि श्रावत लखि मनमथ लजत ॥२॥ ( २१९३ ) कार्त्तिकप्रसाद खत्री
इनका जन्म संवत् १६०८ में कलकत्ते में हुआ था । इनके माता-पिता का देहांत इनकी बाल्यावस्था में हो गया, सो इनका
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वर्तमान प्रकरण पढ़ना भली भाँति न हो सका । इन्होंने बहुत-से व्यापार किए, पर जमकर ये कोई व्यापार न कर सके । अंत में काशीजी में रहने लगे। हिंदी का इन्हें सदैव से बड़ा प्रेम था और इन्होंने अनुवाद मिलाकर प्रायः २० पुस्तकें रचों । प्रेमविलासिनी और हिंदी-प्रकाश-नामक दो पत्र भी आपने निकाले और प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती की प्रथम संपादक-समिति में यह भी सम्मिलित थे। इनका देहांत संवत् १६६१ में, काशीजी में, हुआ। ये महाशय हिंदी के एक बहुत अच्छे लेखक थे और इनका गद्य परम रुचिर होता था। इनके ग्रंथों में से इला, प्रमिला, मधुमालती और जया हमारे पास प्रस्तुत हैं।
.: (२१९४ ) केशवराम भट्ट इनका जन्म संवत् १९१० में, महाराष्ट्र-कल में, हुआ था। इन्होंने १९३१ में बिहारबंधु पत्र निकाला । पीछे से ये शिक्षा विभाग में नौकर हो गए। ये हिंदी के अच्छे लेखक और परम प्रेमी थे। विद्या की नींव, भारतवर्ष का इतिहास ( बँगला से अनुवादित), शमशाद सौमन नाटक, सज्जाद संबुल नाटक, हिंदी-व्याकरण, एक जोड़ अँगूठी, और रासेलस (अनुवाद) नामक पुस्तकें इन्होंने लिखीं । इनका देहांत सवत् १९६२ के लगभग हुश्रा । ये बिहार के रहनेवाले थे। .
(२१९५ ) तुलसीराम शर्मा __ ये परीक्षित गढ़ ज़िला मेरठ-निवासी थे । इनका जन्म संवत् १९१४. में हुआ । श्राप संस्कृत के बड़े भारी पंडित एवं आर्य-समाज के प्रधान उपदेशकों में थे। अापने सामवेदभाष्य, मनुभाष्य, न्यायदर्शनभाष्य, श्वेताश्वतरोपनिषत्भाष्य, ईश, केन, कठ, मुंडक-भाष्य, हितोपदेश भाषा, सुभाषितरत्नमाला और दयानंदचरितामृत-नामक ग्रंथ बनाए ।
(२१९६) गोविंद कवि ये महाशय पिपलोदपुरी के राजा दूलहसिंह के श्राश्रय में रहते थे, और उन्हीं की आज्ञा से संवत् १९३२ में इन्होंने हनुमन्नाटक का भाषा
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१२१६
मिश्रबंधु-विनोद छंदानुवाद किया । ये महोशय कवि टीकाराम के पुत्र जाति के ब्राह्मण थे। आपने संस्कृत-मिश्रित भाषा को आदर दिया है, इस कारण उसमें मिलित वर्ण बहुत आ जाने से प्रोज की प्रधानता और प्रसाद एवं माधुर्य की कमी हो गई है। इन्होंने अपने छंदों के चतुर्थ पदों में कहीं-कहीं पर हाँ' शब्द बिलकुल बेकार लिख दिए हैं, जो न तो अर्थ का समर्थन करते हैं और न छंद का । उन्हें छोड़कर पढ़ने से छंद और अर्थ दोनों पूरे होते हैं। तो भी इस ग्रंथ की कविता बहुत जोरदार है और इसमें प्रभावशाली छंद बहुत पाए जाते हैं । नाटक में १३२ पृष्ठ हैं और सब प्रकार के छंद रामचंद्रिका एवं गुमान-कृत नैषध की भाँति रक्खे गए हैं। ग्रंथ बहुत सराहनीय बना है। इस कवि ने अनुप्रास को भी आदर दिया है । हम गोविंदजी को छत्र कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणफुल्लित गल्ल करें फुतकार प्रफुल्ल नसापुट कोटर आयो; ओघ अहंकृत पावक पुंज हलाहल घूमि तितै प्रगटायो। अंध समान किए सब लाकन अंबर लौं छिति छोरन छायो ; लोयन लाल कराल किए ततकाल महा बिकराल लखायो।
निखिल नरेंद्र निकाय कुमुद जिमि जानिए ; तिनको मुद्रित करन मिहिर मोहि मानिए । कार्तवीर्य प्रति कढ़े यथा मम बोल हैं;
पर हाँ ! सो सुनि लीजै राम श्रवण जुग खोल हैं। इस ग्रंथ में राम के राज्याभिषेक तक का वर्णन है।
(२१९७ ) अयोध्याप्रसाद खत्री ये महाशय बलिया के रहने वाले थे, पर इनका बाल्यावस्था से ही इनके पिता मुज़फ़्फ़रपूर (बिहार) में रहने लगे। कुछ दिन इन्होंने अध्यापक का काम किया और पीछे से कलेक्टर के
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वर्तमान प्रकरण
१२. पेशकार हो गए ; जिस पद पर ये मृत्यु पर्यत रहे । इनका स्वर्गवास ४ जनवरी संवत् १९६१ में, ४७ वर्ष की अवस्था में, हो गया। इन्होंने यावज्जीवन खड़ी-बोली का पद्य में प्रचार करने और छंदों से व्रजभाषा उठा देने का प्रयत्न किया। इस विषय में इन्हें इतनी उत्साह था कि कुछ कहा नहीं जाता । खड़ी-बोली के आंदोलन पर एक भारी लेख भी छपवाकर इन्होंने उसे बेदाम वितरण किया था। उसकी एक प्रति इन्होंने अपने हाथ से हमें भी काशी में सभा के गृहप्रवेशोत्सव में दी थी। जिस लेखक से ये मिलते थे उससे खड़ी-बोली के विषय में भी बातचीत अवश्य करते थे। खड़ी-बोली के प्रचार को ही ये अपना जीवनोद्देश्य समझते थे। ऐसे उत्साही पुरुष बहुत कम देखने में आते हैं। इस विषय पर आपने इंगलैंड में भी एक लेख छपवाया था। संवत् १९३४ में इन्होंने एक हिंदीव्याकरण प्रकाशित किया। इनके अकाल-स्वर्गवास से खड़ी-बोली के
आंदोलन को बड़ी क्षति पहुँची । इस आंदोलन को पूर्ण बल के साथ पहलेपहल इन्हीं ने उठाया । आपने इसमें इतना उत्साह दिखाया कि श्रापको देखते ही खड़ी-बोली की याद आ जाती थी।
(२१९८) मुंशीराम महात्मा इनका जन्म संवत् १६१५ में हुअा था। श्राप बड़े ही धर्मात्मा पुरुष थे। श्राप गुरुकुल काँगड़ी के अध्यक्ष थे । आपने भारी प्राय की वकालत छोड़कर कोरी को अपनाया और भारत की प्राचीन पठन-पाठन-शैली का सजीव उदाहरण गुरुकुल स्थापित किया। वहाँ महात्मा बनाए जाने को बालक पढ़ाए जाते हैं। आप हिंदी के भी लेखक थे। पं० लेखराम का जीवनचरित्र, आदिम सत्यार्थप्रकाश एवं धर्म-विषयक कई छोटे-छोटे निबध और अपना जीवन वृतांत लिखे हैं। आपका जीवन धन्य था। आर्य-समाज के एक भारी दल के श्राप नेता थे। सद्धर्मप्रचारक-नामक एक भारी पत्र भी
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मिश्रबंधु-विनोद
आप बहुत दिनों तक निकालते रहे। आपने नेपोलियन का जीवनचरित्र लिखा है । आप हिंदी के एक बड़े अच्छे व्याख्यानदाता और बड़े ही उत्साही पुरुष थे। चतुर्थ हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के श्राप सभापति हुए थे। श्रद्धानंद के नाम से आप संन्यासी हो गए थे। शुद्धि-संस्कार में श्रापने बड़ा सराहनीय प्रयत्न किया था। देश के बड़े भारी नेताओं में से आप एक थे। सन् १९२६ ई० में एक मुसलमान ने आपको गोली से मार डाला। नाम- ( २१६८ ) रणजोरसिंह महाराजा । ग्रंथ-(१) उष्ट्रशालिहोत्र, (२) श्वानचिकित्सा, (३)
गजशालिहोत्र, (४) विहंगविनोद, (५) मृगयाविनोद, (६) बकरी भड़ पालन, (७) बनिजप्रकाश, (८) उपवनविनोद, (६) मखजनी हिंदा. (१०) कायदे जहर, (११) गृहविद्या, (१२) किताब जर्राही, (१३) वैद्यप्रभाकर, (१४) संतानशिक्षा, (१५) संगीत.
संग्रह, (१६) दायागरी। [प्र० त्रै० रि० ] रचनाकाल-१६२६ ।। विवरण-आप अजयगढ़ के महाराजाथे। आपका जन्म संवत् १६०५
में हुआ तथा संवत् १९१६ में आप गद्दी पर बैठे।
(२१६६ ) शिवसिंह सेंगर ये महाशय मौज़ा काँथा ज़िला उन्नाव के ज़िमींदार रंजीतसिंह के पुत्र और बखतावरसिंह के पौत्र थे। इनका जन्म संवत् १८६० में हुआ था और ४५ बरस की अवस्था में इनका स्वर्गवास हुअा। आप पुलीस में इंस्पेक्टर थे। इनको काव्य का बड़ा शौक था और इन्होंने भाषा, संस्कृत और फारसी का अच्छा पुस्तकालय संगृहीत किया था, जो इनके अपुत्र मरने के कारण अब इनके भतीजे नौनिहालसिंह के अधिकार में है। हमने इसे वहाँ जाकर देखा है।
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वर्तमान प्रकरण इन्होंने ब्रह्मोत्तरखंड और शिवपुराण का भाषा गद्य में अनुवाद किया और शिवसिंहसरोज नामक एक बड़ा ही उपयोगी ग्रंथ संवत् १९३४ में बनाया । उसमें प्रायः एक सहस्र कवियों के नाम, जन्मकाल और काव्य के उदाहरण लिखे हैं। इन्होंने कविता भी अगली की है।
इनका नाम शिवसिंहसरोज लिखने के कारण भाषा-साहित्य में चिरकाल तक अमर रहेगा । जिस समय में कोई भी सुगम उपाय कवियों के समय व ग्रंथों के जानने का न था, उस समय ये । बड़ी मेहनत और धन व्यय से इस ग्रंथ को बनाकर भाषा-साहित्यइतिहास के पथ-प्रदर्शक हुए। हिंदी-प्रेमियों और भाषा पर मापका अगाध ऋण है।
इनकी कविता सरस व मनोहर है और कविता की दृष्टि में हम इनको साधारण श्रेणी में रक्खेंगे।
उदाहरण
महिख से मारे मगरूर महिपालन को,.
बीज से रिपुन निरबीज भूमि के दई; शुंभ औ निशुंभ से सँघारि झारि म्लेच्छन को, .
दिल्ली दल दलि दुनी देर बिन लै लई । प्रवल प्रचंड भुजदंडन सों खग्ग गहि,
चंड मुंड खलन खेलाय खाक के गई ; रानी महरानी हिंद लंदन की ईसुरी से,
ईश्वरी समान प्रान हिंदुन के है गई ॥ १ ॥ कहकही काकली कलित कलकंठन की,
कंजकली कालिंदी कलोल कहलन मैं ; सेंगर सुकवि ठंढ लागती ठिठोर वारी,
ठाठ सब उटे ठगि लेत टहलन मैं ।
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मिश्रबंधु-विनोद
मि फहरै फुहारे फबि रही सेज फूलन सों
फेन-सी फटिक चौतरा के पहलन मैं ; चाँदनी चमेली चारु फूले बीच बाग अाजु, बसिए बटोही मालती के महलन मैं ॥ २ ॥
(२२०० ) श्रीकृष्ण जोशी ये एक बड़े सज्जन पहाड़ी ब्राह्मण थे । श्राप पहले बोर्ड माल के दफ्तर में नौकर थे, पर वहाँ से पेंशन लेकर बाराबंकी जिला में राजा पृथ्वीपालसिंह की रियासत के मैनेजर हुए। श्रापका जन्म संवत् १६१० के इधर-उधर हुआ होगा। आपकी बुद्धि बड़ी कुशाग्र थी।
आपने सूर्य की गरमी ले शीशों द्वारा भोजन पकाने की भानुतापनामक मशीन ईजाद की थी । आप हिंदी के लेखक और बड़े ही सजन पुरुष थे। थोड़े दिन हुए अापका शरीरांत हो गया।
(२२०१ ) चंद्रिकाप्रसाद तेवारी ये रायसाहब ज़िला उन्नाव के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं । आपकी अवस्था प्रायः ७३ साल की है। आप बहुत दिनों से अजमेर में रहते थे। इनकी पुत्री इंगलैंड के प्रसिद्ध बैरिस्टर पंडित भगवानदीन दुबे को ब्याही है । तेवारीजी रेल के ऊँचे कर्मचारी थे । आपने एक नौकरी से पेंशन ले ली और दूसरी में फिर आप अच्छा वेतन पाते थे। अब आपने उसे भी छोड़ दिया है । श्राप बड़े उत्पाही पुरुष हैं। स्वामी दादूदयाल के ग्रंथ आपने शुद्धतापूर्वक प्रकाशित किए हैं । आप गद्य के अच्छे लेखक हैं। नाम- ( २२०२ ) ज्ञारसोराम चौबे, बूंदी। ग्रंथ-(१) वंशप्रदीप, (२) सर्वसमुच्चय, (३) ललितलहरी,
(४) रघुवीरसुयश-प्रकाश । जन्मकाल-१६१०। कविताकाल-१९३५।
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वर्तमान प्रकरण
विवरण – ये महाशय बूँदी दरबार में वंश-परंपरा से कवि हैं। आपकी कविता प्रशंसनीय होती है ।
उदाहरण
राजत गंभीर मरजाद मैं कुसन धीर, करत प्रताप पुंज प्रगटित आठौ जाम ; चहुवान-मुकुट प्रकासित प्रबल श्राजु,
तेरे त्रास त्रसित नसाए सत्रु धाम-धाम ! नीति निपुनाई धरि पालत प्रजा को नित,
साहिबी मैं सुंदर अमंद है बदायो नाम ; पारावार सदृश प्रियव्रत प्रभाकर से,
पारथ से पृथु से पुरंदर से राजा राम । ( २२०३ ) रुद्रदत्तजो शर्मा
इनका जन्म सं० १६०३ में हुआ था । योगदर्शन- भाष्य, स्वर्ग में महासभा. स्वर्ग में सबजेक्ट कमेटी नामक पुस्तकें श्रापने लिखीं । आप 'श्रार्यमित्र' के संपादक थे । इनकी रचना से धर्म-संबंधी वर्तमान विचारों का अच्छा ज्ञान होता है। हाल में इनका स्वर्गवास हो गया । इस समय के अन्य कविगण
समय संवत् १९२६ के पूर्व
नाम - ( २२०४ ) छेदालाल ब्रह्मचारी, कानपूर । ग्रंथ - कई ग्रंथ ।
नाम - ( २२०५ ) तुलसी ओझा ।
विवरण - साधारण श्रेणी । नाम - (२२०६ ) नरेश ।
ग्रंथ - नायिकाभेद का कोई ग्रंथ । विवरण - तोष श्रेणी । नाम - (२२०७ ) नवनिधि |
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१२२२ .
मिश्रबंधु-विनोद 'ग्रंथ-संकटमोचन । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-( २२०८ ) पारस । विवरण-निम्न श्रेणी। नाम-( २२०६ ) विद्याप्रकाश, कन्नौज । ग्रंथ-मनखेलवार। जन्मकाल-१८१८ । विवरण-कुछ समय के लिये आप ब्रह्मचारी हो गए थे। आप बड़े
जिंदादिल पुरुष हैं । नाम-(२२१०) मथुरादास कायस्थ, फीरोजपूर । ग्रंथ--(१) जड़तत्त्वविज्ञान, (२) जगत्पुरुषार्थ । जन्मकाल-१८६६ । नाम- ( २२११) मंगलदेव आररी संन्यासी। ग्रंथ-(१) कुरातिनिवारण, (२) विधवासंताप । जन्मकाल-१८६६ । नाम- ( २२१२ ) रसिया ( नजीब )। विवरण-महाराजा पटियाला के यहाँ थे। नाम- ( २२१३ ) लक्ष्मणानंद संन्यासी । ग्रंथ-ध्यानयोगप्रकाश । नाम-(२२१४ ) शिवप्रसाद मिश्र, सचेंडी, कानपूर । ग्रंथ-संध्याविधि । जन्मकाल-१८६६ । नाम-(२२१५ ) शेखर । विवरण-साधारण श्रेणी।
समय संवत् १६२६ नाम-( २२१६ ) चरणदास, कँदैली, जिला नरसिंहपुर।
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वर्तमान प्रकरण
१२२३
ग्रंथ - (१) धर्मप्रकाश, ( २ ) विनयप्रकाश, (३) गुरुमहात्म,
( ४ ) धन- संग्रह |
जन्मकाल - १६०१ ।
नाम - ( २२१७ ) रामनाथसिंह राजा उपनाम नरदेव | ग्रंथ - देवीस्तुति आदि स्फुट छंद ।
जन्मकाल - १८६६ । १६२१ तक ।
नाम - (२२१८ ) सूर्यप्रसाद ( हंस), पन्हौना, उन्नाव ।
जन्मकाल १६०२ ।
विवरण - आपका ३० वर्ष की अवस्था में शरीरपात हो गया । समय संवत् १६२७
नाम - ( २२१९ ) गोपाललाल ।
ग्रंथ—नसीहतनामा | द्वि० त्रै० स्०ि ], क्षेत्र कौमुदी । विवरण - बस्ती के इंस्पेक्टर मदारिस |
नाम - ( २२२० ) ठाकुर लक्ष्मीनाथ मैथिल । नाम- - ( २२२० ) दलपति ।
नाम - ( २२२१ ) दुर्गादत्त व्यास, काशी ।
ग्रंथ - कवितासंग्रह । [ द्वि० त्रै०रि० ]
विवरण - सुप्रसिद्ध अंबिकादत्त व्यास के पिता थे । साधारण श्रेणी । नाम - ( २२२१ ) देवकीनंदन त्रिपाठी ।
१
ग्रंथ - नंदोत्सव ( १६२७ ), ( २ ) सैकर्ष में दस-दस प्रहसन ( १३३३ ), ( ३ ) सीता हरण, ( ४ ) बेला चातक का नाटक, (५) रुक्मिणी- हरण, 1 ( ६ ) रक्षाबंधन, (७) एक-एक के तीन-तीन, (८) प्रचंड गोरक्षा नाटक, ( 8 ) गोबध-निवारण नाटक, (१०) बाल-विवाह नाटक, ( ११ ) लक्ष्मी-सरस्वती मेलन । [ च० त्रै०रि० ]
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१३२४
मिश्रबंधु-विनोद
रचनाकल-१९२७ । नाम-(२२२२ ) नवीन भट्ट, बिलगराम, जि० हरदोई। ग्रंथ-(१) शिवतांडव भाषा, (२) महिम्न भाषा । जन्मकाल-१८१८। विवरण-कविता बड़ी सरस और मनोहर करते थे। नाम-(२२२२) बलदेवसिंह वैश्य । ग्रंथ-रससिंधु । [ तृ० त्रै० रि०] विवरण-सपेरी, जिला मथुरा के निवासी थे । नाम-(२२२३) बलभद्र कायस्थ, पन्ना। जन्मकाल-१६०१ । विवरण-एन्ना के महाराज नरपतिसिंह के यहाँ थे । मालूम
पड़ता है कि इन्होंने भी कोई नखशिख बनाया है । कविता
तोष कवि की श्रेणी की है। नाम-(२२२३) बालकृष्ण चौबे । ग्रंथ-(१) कपिला ज्ञान, (२) तत्त्व बोध, (३) नीति सार,
(४) ब्रह्म स्तुति, (५) आत्मबोध । [च० ० रि० ] नाम-( २२२४) बालकृष्णदास । ग्रंथ-सूरदासजी के दृष्टकूट पर टीका । विवरण-गिरधरलालजी के शिष्य थे । भक्ति-रस की कविता की
है। साधारण श्रेणी के कवि थे। (खोज १६००) नाम-( २२२५ ) भगवंतलाल सोनार, अकौना, जिला
बहरायच। ग्रंथ-(१) बेचूऽष्टक, (२) उत्सवरत्न । विवरण-वर्तमान । नाम-(२२२६) रत्नचंद बी० ए०, जसवंतनगर, इटावा ।
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वर्तमान प्रकरण
१२२५ ग्रंथ-(१) न्यायसभा नाटक, (२) भ्रमजाल, (३) चातुर्य
तार्णव, (४) नूतनचरित्र, (५) हिंदी-उर्दू-नाटक,
(६) कांग्रेस-संवाद । जन्मकाल-१८६७ (१९६८ तक) नाम-( २२२७ ) रामरसिक साधु । ग्रंथ-विवेकविलास। विवरण-झाँसी के रहनेवाले । गुरु का नाम गंगागिरि ।
[प्र० ० रि०] नाम-(२२२७ ) रामवल्लभाशरण। ग्रंथ-भक्तिसार सिद्धांत । [पं० त्रै० रि०] रचनाकाल-१९२७ । नाम- ( २२२७) शरणकिशोरजी । नाम-(२२७ ) शंकरलाल कायस्थ । नाम-(२२२७ ) सूरजदास । ग्रंथ-(१)रामजन्म, (२) एकादशी माहात्म्य । [च० ० रि०]
समय संवत् १६२८ नाम-(२२२८) इंद्रमलजी भाट, अलवर । जन्मकाल-१९०३ । विवरण-अलवर-दरबार के कवि हैं। नाम-(२२२९) दुर्गाप्रसाद । ग्रंथ-गजेंद्रमोक्ष (खोज १९०५), हफ़्तख़्वान शौकत [प्र. ०रि०] नाम-( २२३०) फूलचंद्र ब्राह्मण, वैसवारेवाले । ग्रंथ-अनिरुद्धविवाह । [ द्वि० ० रि०] विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२२३० ) रामदयाल ।
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१२२६
मिश्रबंधु - विनोद
ग्रंथ - परमधाम बोधिनी, राम नाम तत्वबोधिनी,
रबोधिनी ।
रचनाकाल - १८२६ के पूर्वं । नाम - ( २३३० ) रसिक बिहारी ।
नाम - ( २२३० ) सरयू प्रसाद मिश्र ।
3
ग्रंथ - ( १ ) श्राख्यान मंजरी भाषानुवाद, (२) मातृशिक्षा, (३) दिव्यदंपती, (४) प्रस्थानभेद, ( ५ ) धर्मप्रशंसा, (६) जयदेवचरित, (७) पाणिनी, (८) नेपाल का इतिहास, ( 8 ) मानवचरित्र, (१०) प्राकृत प्रकाश, ( ११ ) श्रीमदन भूति विवरण, ( १२ ) तत्वत्रय ।
जन्मकाल - १६०६ । मृत्युकाल १६६४ ।
रचनाकाल १६२६ लगभग ।
1
विवरण- - श्राप संस्कृत के पंडित और हिंदी के अच्छे लेखक थे नाम - ( २२३१) हनुमंत ब्राह्मण,
बिजावर |
ग्रंथ - गीत माला ।
( ३ ) भक्ति
जन्मकाल -- १६०३ ।
विवरण - राजा भानुप्रतापसिंह बिजावर के यहाँ थे | कविता साधारण श्रेणी की है 1
समय संवत् १६२६
नाम - ( २२३२ ) हीरालाल कायस्थ, बिजावर, छत्रपूर 1 ग्रंथ - नर्मदा जागेश्वर विलास ।
जन्मकाल - १६०४ ।
कविताकाल—१६३४ । [ प्र० त्रै०रि० ]
समय संवत् १९३० के लगभग ।
नाम - ( २२३३ ) कालिकाप्रसाद । ग्रंथ - प्रेमदीपिका । [ द्वि० त्रै०रि० ]
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१२२७
वर्तमान प्रकरण नाम-( २२३३ ) जोगजीत । ग्रंथ-पंच मुद्रा । [पं० त्रै० रि०] नाम-(२२३४ ) परमानंद कायस्थ, ललितपुर । ग्रंथ-(१) रामायणमानसतरंगिणी, (२) अपराधभंजिनी
चालीसी । प्रथम त्रैवार्षिक खोज रिपोर्ट से इनके (१) प्रमोदरामायण ( १९४२ ), ( २ ) विक्रमविलास (१९४२), (३) हनुमत पैंतीसी (१९४४), (४) नीतिसुधा मंदाकिनी (१९४८), (५) जानकीमंगल (१६४८), (६) मंजुरामायण (१९४६), (७) हनुमत विरुदावली (१९१०), (८) रामायण मानसदर्पण (१९१०) (१) प्रतिपालप्रभाकर ( १९५१), (१०) प्रताप चंद्रोदय (१९५६), (११) रामायण मानसचंद्रिका (१९५८), (१२) मृगया चरित्र ( १९५८), (१३) मंजावली रामायण (१६६०), (१४) वर्णचौंतीसी (१९६०), (१५) महेंद्र धर्म-प्रकाश (१९६१), (१६) सामंत रत्न ( १९६१), (१७) प्रताप नीतिदर्पण (१९६१), (१८) ब्रह्मकायस्थकौमुदी (१९६३), (१६) पद्माभरणप्रकाश (१९६४), (२०) राजभृत्यप्रकाश (१९६४), (२१) नीतिमुक्तावली (१६६४), (२२) राजनीतिमंजरी (१९६४), (२३) माधवविलास (१९६४), (२४) नीति सारावली, ( २५) लक्ष्मण पचीसा, ( २६) हनुमत सुमिरनी, (२७) रामचंद्र पचासा, (२८) जानकीशृंगाराष्टक, (२६) गणेशाष्टक, (३०) विश्वंभर सुमिरनी, (३१) महेंद्रमृगयादर्श, (३२) रंभाशुकसंवाद, (३३ ) रत्नपरीक्षानामक ग्रंथों का पता चलता है।
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१२२८
मिश्रबंधु-विनोद विवरण-आश्रयदाता प्रोडछानरेश महाराजा महेंद्र रुद्रप्रताप
सिंह थे । इनका राजत्वकाल १६२७ से १६५० तक था। नाम-(२२३५ ) शंभूनाथ कायस्थ । ग्रंथ--सुहितशिष्य । विवरण-झाँसी में डाक-इंस्पेक्टर थे।
समय १९३० नाम-( २२३६ ) कान्ह बैस, बैसवाड़े के । ग्रंथ–देवीविनय । [प्र० त्रै० रि० ] जन्मकाल-१६०० विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( २२३७ ) कामताप्रसाद ( सेवक) कायस्थ, तारा
पूर, जिला फतेहतर । ग्रंथ-(१) राघोबत्तीसी, (२) हरिनामपचीसी । जन्मकाल-१९०४ । नाम-( २२३८ ) कालीप्रसाद कायस्थ, बिजावर । ग्रंथ-लीलावती के एक भाग का छंदोबद्ध अनुवाद । जन्मकाल-१९०५ । नाम--(२२३९) काशीप्रसाद कायस्थ, पन्ना। जन्मकाल -१६०५ । नाम- ( २२४० ) केदारनाथ त्रिपाठी, सरायमीरा। जन्मकाल-१६०४ । १९३८ तक । नाम-(२२४१ ) खड्गबहादुर मल्ल महाराजकुमार । ग्रंथ-(१) महारस नाटक, (२) बालविवाह विदूषक नाटक,
(३) भारत-भारत नाटक, (४) कल्पवृक्ष नाटक, (५) हरतालिका नाटिका, (६) भारतललना नाटक, (७) रसिकविनोद, (८) फागअनुराग, ( 8 ) बालोप
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वर्तमान प्रकरण
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देश, (१०) बालविवाह विषयक लेक्चर, ( ११ ) सद्धर्मनिर्णय, (१२) रतिकुसुमायुध, (१३) सपने की संपत्ति, ( १४ ) वेश्या पंचरत्न |
विवरण - नाटककार हैं । खड्गविलास प्रेस क़ायम किया, जिससे बहुत-से हिंदी के उत्तम ग्रंथ प्रकाशित हुए ।
नाम -- ( २२४२ ) गणेशदत्त ।
ग्रंथ - सरोजनी नाटक |
नाम
- ( २२४३ ) गणेशभाट ।
विवरण - महाराजा बनारस ईश्वरीप्रसाद नारयण सिंह के दरबार में थे । साधारण श्रेणी ।
नाम - ( २२४४ ) गदाधर भट्ट ।
ग्रंथ - मृच्छकटिक |
विवरण - अनुवाद |
नाम – (२२४५ ) गुणाकरत्रिपाठी काँथा, जिला उनाव विवरण -- साधारण श्रेणी ।
नाम - ( २२४६ ) गुरदीनबंदीजन पैंतेपुर, जिला सीतापुर ।
विवरण - साधारण श्रेणी ।
नोम – (२२४७ ) गोकुलचंद |
ग्रंथ - बूढ़े मुँह मुँहासे लोग चले तमाशे ( नाटक ) . नाम - ( २२४८) चोवा हरिप्रसाद बंदीजन होलपुर । विवरण - इनकी स्फुट रचना अच्छी है । साधारण श्रेणी । नाम - ( २२४९) छितिपाल राजा माधवसिंह, अमेठी । - (१) मनोजलतिका, ( २ ) देवीचरित्र सरोज, ( ३ ) त्रिदीप |
देखो नं० ( २१०५ )।
नाम - ( २२५० ) जानी विहारीलाल ( १९६७ तक ) ।
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मिश्रबंधु-विनोद
ग्रंथ - विज्ञान विभाकर आदि कई ग्रंथ |
विवरण - नाटककार थे । आप भरतपूर राज्य के दीवान थे और
आपको रायबहादुर की पदवी मिली थी । नाम - ( २२५१ ) जानी मुकुंदलाल ।
ग्रंथ - मुकुंदविनोद |
बिवरण - श्राप उदयपुर कौंसिल के मेंबर थे ।
नाम - (२२५२ ) ठग मिश्र, डुमराव, जानकीपूसाद के पुत्र ।
जन्मकाल - १६०३ ।
नाम - ( २२५३ ) ठाकुरदयालसिंह |
ग्रंथ – ( १ ) मृच्छकटिक, ( २ ) वेनिस का सौदागर । विवरण नाटक अनुवादित किए हैं ।
नाम - (२२५४) दलेलसिंह, दुरजनपुर ।
जन्मकाल - १६१५ ।
नाम - ( २२५५ ) दामोदर शास्त्री |
ग्रंथ - ( १ ) रामलीला, (२) मृच्छकटिक, (३) बालखेल, ( ४ ) राधामाधव, ( ५ ) मैं वही हूँ, ( ६ ) नियुद्ध शिक्षा, (७) पूर्वदिग्यात्रा (८) दक्षिणदिग्यात्रा, ( ६ ) लखनऊ का इतिहास, (१०) संक्षेप रामायण, (११) चित्तौरगढ़ । विवरण - नाटककार थे ।
नाम - ( २२५६) दीनदयाल (दयाल), बेंती, जिला रायबरेली। विवरण - भौन कवि के पुत्र, साधारण श्रेणी । नाम - ( २२५७ ) देवकीनंदन तेवारी | ग्रंथ -- ( १ ) जयनरसिंह की, ( २ ) होलीखगेश, विवरण - अच्छे नाटककार थे ।
नाम - ( २२५८ ) देवीप्रसाद ब्रह्मभट्ट, बिलगराम, जिला
हरदोई |
(३) चक्षुदान
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१२३४
जन्मकाल-१६००। नाम-(२२५९) द्विजकवि मन्नालाल बनारसी। ग्रंथ-प्रेमतरंगसंग्रह। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( २२६० ) नीलसखी, जैतपुर, बुंदेलखंड । जन्मकान-१९०२। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम- ( २२६१ ) नैसुक, बुंदेलखंड । जन्मकाल-१९०४ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम- ( २२६२ ) नौने बंदीजन, बाँदा । जन्मकाल-१६०१। विवरण-तोषश्रेणी। हरिदास के पुत्र । नाम-(२२६२ ) परमानंदजी गोस्वामी। ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य । नाम-( २२६३ ) परागीलाल चरखारी । देखो नं० ८८६ । ग्रंथ-रसानुराग । नाम-( २२६४) कालिकाराव ग्वालियरवाले। ग्रंथ-कविप्रिया पर टीका । जन्मकाल-१९०१ । नाम- ( २२६५ ) बल्लभ चौबे, जयपुर । विवरण-जयपुर दरबार के राजकवि हैं। काव्य अच्छा करते हैं। नाम-(२२६६ ) बल्ल लाल कायस्थ, (जन ब्रजचंद)
तेलिया नाला, बनारस । (१९६० तक)
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१२३२
मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथ-रामलीलाकौमुदी। नाम-(२२६७ ) बालेश्वरप्रसाद । ग्रंथ-वेनिस का सौदागर।। विवरण-म.ट ऑफ़ वेनिस का अनुवाद है। नाम-(२२६८) विजयानंद शर्मा, बनारस । ग्रंथ-सच्चा सपना। विवरण-गद्य-लेखक थे। नाम-(२२६९ ) महानंद वाजपेयी, बैसवारेवाले । ग्रंथ-बृहच्छिवपुराण भाषा । जन्मकाल-१६०१। विवरण-मधुसूदनदास श्रेणी । . नाम- (२२६६ ) मन्नालाल । ग्रंथ-तत्त्वबोधमोक्षसिद्धि । [च० ० रि० ] नाम-(२२७०) माधवानंद भारती, बनारसी। ग्रंथ-शंकरदिग्विजय भाषा । जन्मकाल-१९०२। विवरण-मधुसूदनदास की श्रेणी । नाम-( २२७१ ) मानिकचंद्र कायस्थ, जिला सीतापुर । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-( २२७२ ) मिहीलाल, उपनाम मलिंद, डलमऊ, राय
बरेली। जन्मकाल-१९०२। विवरण-साधारण श्रेणी। गौरा के तअल्लुक्नेदार भूपालसिंह के
कवि । नाम-( २२७३ ) मीतूदास गौतम, हरधौरपुर, फतेहपूर ।
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वर्तमान प्रकरण
जन्मकाल-१९०१ । विवरण-हीनश्रेणी। नाम-(२२७४) मुन्नाराम । ग्रंथ-संतनकल्पनतिका । [ द्वि० ० रि०] विवरण-ज़िला प्रतापगढ़-निवासी। नाम-(२२७५) रघुनाथप्रसाद कायस्थ, चरखारी। ग्रंथ-(१) शृंगारचंद्रिका, (२) षट्ऋतुदर्पण, (३) काव्य
सुधारत्नाकर, (४) रसिकबसीकर, (५) संगीतसुधानिधि, (६) मोदमहोदधि, (७) दुर्गाभक्तिप्रकाश, (८) मनमौजप्रकाश, (६) शांतिपचासा, (१०) राधिकानखशिख, (११) रसिकमनोहर, (१२)
राधाकृष्णपचासा। जन्मकाल-१९०४ । १९४८ तक रहे । नाम-(२२७६ ) रसरंग, लखनऊ । ग्रंथ-हनुमंतजस तरंगिनी, सीताराम नखशिख । [प्र० त्रै० रि०] जन्मकाल-१६०१ ।। विवरण-साधारण श्रेणी । नाम-( २२७७ ) रामनाथ कायस्थ (राम) ग्रंथ-हनुमन्नाटक, महाभारत भाषा [खोज १६०४ ], नल-चरित्र । जन्मकाल-१८६८। विवरण-साधारण श्रेणी । सरोज में इस नाम के दो कवि दिए
हैं, पर दोनों एक जान पड़ते हैं। नाम-(२२७८ ) रामगोपाल सनाढ्य, अलवर । जन्मकाल-१८६६ । विवरण-आप अलवर-दरबार में वैद्य थे। कविता भी उत्तम करते थे।
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१२३४
मिश्रबंधु-विनोद
नाम-( २२७९ ) रोमभजन, गजपूर, गोरखपूर । विवरण-राजा बस्ती के यहाँ रहे थे। नाम-(२२८०) लक्ष्मीनाथ । ग्रंथ-लक्ष्मीविलास । विवरण-आप महाराज मानसिंह के भतीजे थे। नाम-(२२८१) लछिराम बंदीजन, होलपूरवाले । ग्रंथ-शिवसिंहसरोज नायिका भेद । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२२८२ ) शीतलप्रसाद तेवारी। ग्रंथ-जानकीमंगल । विवरण-नाटक रचयिता हैं। नाम-(२२८३ ) शंकर त्रिपाठी, बिसवाँ, सीतापूर । ग्रंथ-(१) रामायण, (२) बज्रसूची ग्रंथ । [द्वि० त्रै० रि०] विवरण-हीन श्रेणी । अपने पुत्र सालिक के साथ बनाई। नाम-( २२८४) शंकरसिंह तालुक्कदार, चंड़रा,
सीतापूर । ग्रंथ-काव्याभरण सटीक, महिम्नादर्श । [ तृ० त्रै० रि० ] विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२२८५ ) श्रीमती। ग्रंथ-अद्भुत चरित्र या गृहचंडी नाटक । नाम-(२२८६ ) सालिक, बिसवाँ, सीतापूर । ग्रंथ-रामायण । विवरण-हीन श्रेणी । अपने पिता शंकर के साथ बनाई। नाम-(२२८७ ) साँवलदासजी साधु, उदयपूर । ग्रंथ-भजन ।
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वर्तमान प्रकरण
१२३५
नाम-(२२८७ ) सियारघुनंदनशरण उपनाम झूमकलाल । ग्रंथ-(१) पंचदशी, (२) नवरसविहार, (३) सिया
प्रीतमरहस्यसार । [च. त्रै० रि०] नाम-(२२८८) सुखदीन। जन्मकाल-१९०१ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२२८९) सुदर्शनसिंह राना, चंदापूर । ग्रंथ-सुदर्शनकविता संग्रह । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२२९० ) सूखन । जन्मकाल-१६०१ । विवरण-साधारण श्रेणी नाम-( २२९१) हनुमतसिंह हाड़ा, किला नैणवे । जन्मकाल-११०५। विवरण-ये महाशय राजा बँदी के २०००० सालाना आमदनी
के जागीरदार तथा किलेदार हैं । संस्कृत तथा भाषा के अच्छे ज्ञाता हैं। इनकी कविता साधारण श्रेणी
नाम-(२२९२ ) हरखनाथ झा, बिहार । ग्रंथ-ऊषाहरण नाटक । जन्मकाल-१९०४ । नाम- ( २२९३ ) हरिदास साधु निरंजनी। ग्रंथ-(१) रामायण, (२) भस्थरी गोरख संवाद [ खोज
१९०२ ], (३) दयालजी का पद । [ खोज १६०२] जन्मकाल-१६०१ ।
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( २२९४) हिमाचलराम, ब्राह्मण शाकद्वीपी भटौली, जिला फैजाबाद ।
ग्रंथ - कालीनाथन लीला, दधिलीला ।
जन्मकाल - १६०४ ।
विवरण — निम्नश्रेणी के कवि । इनकी पुस्तक हमने देखी है । नाम - ( २२९५ ) होमनिधिशर्मा |
ग्रंथ - (१) हुकादोपदर्पण, ( २ ) जाति - परीक्षा ।
जन्मकाल - १६०५ ।
नाम - (२२९६) मदनपाल ।
ग्रंथ — निघंट भाषा । [ द्वि० त्रै०रि० ] कविताकाल - १९३१ के पूर्व ।
समय संवत् १९३१
नाम - ( २२९७ ) फुतूरीलाल, ग्रंथ - कवित्त अकाली ।
- ( २२९८ ) रामचंद्र |
नामग्रंथ - मामक़ीमा भाषा ।
नाम- ( २२९९ ) अली ।
ग्रंथ — अष्टयाम | [ द्वि० ०रि० ] कविताकाल - ११३२ के पूर्व ।
मिथिला ।
समय संवत् १९३२
नाम -- ( २३०० ) कन्हैयालाल अग्निहोत्री, गोंड़वा, जिला
हरदोई ।
ग्रंथ - ( १ ) ज्योतिषसारावली, (२) अवतारपचीसी, (३)
साठिका |
जन्मकाल – १६०७ वर्तमान |
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वर्तमान प्रकरण
१२३० नाम-( २३०० ) बंसीधर । ग्रंथ-मोज प्रबंधसार । [पं० त्रै० रि० ] रचनाकाल-१९३२ । नाम-( २३०१) रामचरण कायस्थ, गौहार, बुंदेल
खंड। ग्रंथ-हनुमतपचासा । जन्मकाल-१९०७ । नाम-( २३०२ ) रामसेवक शुक्ल, बलसिंहपूर, सीतापूर। ग्रंथ- (१) स्फुट, (२) अनरावली, (३) ध्यानचिंतामनि । जन्मकाल-१६०८। । नाम-(२३०२) दूलनदास । ग्रंथ-शब्दावली [ पृ० १५४ ] । [ दि० त्रै० रि०] रचनाकाल-१९३३ के पूर्व । नाम-(२३०२ ) रघुबरशरण । ग्रंथ-(१) जानकीजू को मंगलाचरण, (२) बना, (३) राम
मंत्र रहस्य । [प्र० तथा च० ० रि०] रचनाकाल-१९३३ के पूर्व ।
समय संवत् १९३२ नाम-(२३०३) अलीमन । नाम-( २३०४ ) केशवराम विष्णुलाल पंडा। ग्रंथ-गणेशगंज आर्य समाज का इतिहास । नाम-( २३०४ ) जगतेश । ग्रंथ-रसिक समाज अथवा माला भूषण । [च. त्रै० रि०] रचनाकाल-१९३३ । जन्मकान-१६०८।
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१२३८
मिश्रबंधु-विनोद
नाम-(२३०५ ) जालिमसिंह कायस्थ, अकबरपूर, जिला,
फैजाबाद। ग्रंथ-(१) तर्कसंग्रहपदार्थादर्श, (२) गीता टीका, (३) कई
उपनिषदों की टीका। विवरण-ये महाशय लखनऊ में पोस्टमास्टर थे। अब पेंशन ले ली।
इसके पीछे रियासत ग्वालियर में रहे,अब वहाँ से चले गए। नाम- ( २३०६ ) तारानाथ । विवरण-आप महाराज मानसिंह के भतीजे थे। नाम-(२३०७ ) धनुर्धरराम ब्राह्मण, मु० डगडीहा, राज
रीवा। जन्मकाल-१९०८। नाम-(२३०८ ) परमहंस, इलाहाबाद । ग्रंथ-भारत भजन । नाम-(२३०८ ) बद्रीविशाल उपनाम लाल ब लबीर । ग्रंथ-व्रजविनोद हजारा। कविताकाल-१९३३ । जन्मकाल-१६१२।। विवरण-माधव संप्रदाय के अनुयायी। नाम-(२३०९) बलदेवप्रसाद कायस्थ, मौजा खटवारा,
डा० राजपूर, जिला बाँदो । ग्रंथ-(१) रामायण रामसागर, (२) शक्ति चंद्रिका, (३)
विष्णुपदी रामायण, (४) भारसकल्पद्रुम, (५) हनुमंतहाँक, (६) हनुमानसाटिका, (७) बज्रांगबीसा, (८) चंडीशतक, (६) बलदेवहजारा, (१०) कान्हवंशावली, (११) उक्तिपरीक्षा, (१२) ज्ञानप्रभाकर ।
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* वर्तमान प्रकरण
१२३३
जन्मकाल-१९०८। विवरण-सब छोटे-बड़े ३२ ग्रंथ आपने बनाए हैं । महाराजा
प्रतापसिंह कटारीवाले के यहाँ थे । नाम-(२३०६ ) बालकराम । ग्रंथ-बालकराम के कवित्त । [च० ० रि०] नाम-(२३०६ ) वृंदावन, अग्रवाल । ग्रंथ-कराबादीन सनाई। नाम-(२३०६) मर्दनसिंह राजकुमार । ग्रंथ-छंदमाल । [पं. त्रै० रि०] नाम-( २३०६) शीतलादीन मिश्र ( उपनाम द्विजचंद) ग्रंथ-स्फुट छंद। विवरण-सजेथू निवासी सोनेसिंह के पुत्र हैं। नाम-(२३१०) साधोगिरि गोसाई, मकनपूर, जिला
मिरजापूर । ग्रंथ-(१) कान्यशिक्षक, (२) साधो संगीत सुधा, (३)
नीतिशृंगारवैराग्यशतक, (४) कवित्तरामायण, (५)
हनुमान अष्टक, (६) वर्णविलास, (७) गंगास्तोत्र । जन्मकाल-१६०८। नाम-(२३११) रामानंद । ग्रंथ-(१) भगवद्गीता भाषा, (२) भजनसंग्रह ।
[द्वि० ० रि०] विवरण-पहले फौज में सूबेदार थे । पेंशन लेकर संन्यासी
हो गए। नाम-(२३१२) सुखविहारीलाल । ग्रंथ-सुखदावली।
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( २३१३ ) हरदेवबरूश कायस्थ, पैंतेपूर, जिला
बारहबंकी |
१२४०
जन्मकाल १६०८ ।
नाम - ( २३१४ ) हरिविलास खत्री, लखनऊ | ग्रंथ - गोविंदविलास ( पृ० २६८ ) । [ द्वि० ० रि० ] नाम - ( २३१५) अर्जुनसिंह, बनारस ।
ग्रंथ —कृष्णरहस्य ।
कविताकाल - १९३४ के पूर्वं ।
विवरण - हीन श्रेणी । नारायण के शिष्य । समय संवत् १९३४
( २३१६ ) अजीतसिंहजी महाराज |
नाम
जन्मकाल - १६०६ ।
विवरण - ये महाराज खेतड़ी-नरेश थे, जो हाल ही में अकबर के रौज़े से गिरकर मर गए। ये कविता भी करते थे ।
नाम – (२३१७ ) कृष्णसिंह राजा भिनगा, जिला बहरायच । ग्रंथ - गंगाष्टक |
जन्मकाल -- १६०६ ।
विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( २३१८) जनकधारीलाल कुर्मी, दानापूर । ग्रंथ - सुनीतिसंग्रह |
जन्मकाल -- १६०६ ।
नाम -- ( २३१९) देवदत्त शास्त्री, कानपूर । ग्रंथ — वैशेषिक दर्शन - भाष्य, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिकेंदुपराग ।
जन्मकाल - १६०३ ।
विवरण - श्राप गुरुकुल मथुरा के श्रध्यापक रहे हैं ।
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वर्तमान प्रकरण
१२.
नाम- (२३२०) भगवानदास, मु० ईचाक, जिला हजारी.
बारा। ग्रंथ-(१) प्रेमशतक, (२) गोविंदशतक, (३) कृष्णाष्टक,
(४) पंचामृतकल्याण, (५) गीतामाहात्म्य, (६)
गौरोस्वयंवर, (७) गोविंदाष्टक आदि अनेक ग्रंथ रचे हैं। जन्मकाल-१९०६ ।। नाम-(२३२१ ) भैरवदत्त त्रिपाठी, सरायमीरा । ग्रंथ-वाल्मीकीय अयोध्याकांड भाषा। नाम-( २३२२ ) मातादीन शुक्ल, मौज़ा अजगर, जिला
प्रतापगढ़। ग्रंथ- (१) रससारिणी, (२) नानार्थनवसंग्रहावली । विवरण-साधारण कवि हैं । इनकी रससारिणी हमारे पास
है। दोहों में रस व नायिकाभेद कहा है। . नाम-(२३२३) मंगलसेन शर्मा, अँबहटा-सहारनपुर । ग्रंथ-श्राद्धविवेक। जन्मकाल-१९०९। नाम-(२३२४) रघुनाथप्रसाद ब्राह्मण, मु० विरसुनपूर,
राज्य पन्ना। जन्मकाल-१६०६ । नाम-(२३२५ ) रमादत्त त्रिपाठी, नैनीताल । ग्रंथ-(१) शिक्षावली, (२) बालबोध, (३) गणितारंभ,
(४) नीतिसार। जन्मकाल-१९०६ । नाम-(२३२६ ) रामप्रकाश शर्मा, मिर्जापूर । ग्रंथ-(.) विवाहपद्धति, (२) सत्योपदेश । ' .
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१२४२
मिश्रबंधु - विनोद
जन्मकाल - १६०६ ।
नाम - ( २३२७ ) लतीफ़ ।
विवरण - साधारण श्रेणी ।
नाम - ( २३२७) सूरजबली । ग्रंथ - जैमिनिपुराण भाषा । [ पं० त्रै०रि० ] नाम - ( २३२८ ) हीरा प्रधान । ग्रंथ - नर्मदा जागेश्वर विलास ।
समय संवत् १९३५ के पूर्व
नाम-- - ( २३२९ ) जमुनादास । ग्रंथ - जमुनालहरी । [ प्र० • ०रि० ]
नाम - ( २३३० ) दयाराम वैश्य ।
ग्रंथ - (१) सीताचरित्र उपन्यास, ( २ ) मनुस्मृति श्रल्हा |
जन्मकाल - १६०६ ।
नाम - ( २३३१ ) फ़रासीसी वैद्य । ग्रंथ - अंजुलिपुरान, इंजीलपुरान ।
नाम- -( 2339 ) रविराज | ग्रंथ - नर्मदालहरी |
१
मृत्युकाल - १६५१ ।
रचनाकाल - - १६३५ के लगभग ।
विवरण - मूली काठियावाड़ के चारण थे । इन्होंने जाडेजा ठाकुर केसरीसिंह की प्रशंसा में कविता की है ।
नाम - ( २३३१ ) राधासर्वेश्वरीदास ( उपनाम हितस्वामिनी
शरण)
ग्रंथ - हितस्वामिनी अष्टक, स्फुट पद ।
जन्मकाल - १६१० के लगभग ।
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वर्तमान प्रकरण
१२४३
विवरण-राधावल्लभीय महात्मा पुरुष ।
समय संवत् १९३५ नाम-(२339) गंगाधर भट्ट, ओरछावासी। ग्रंथ-(१) प्रतापमातंड (१९३५), (२) व्यवहारकौस्तुभ,
(३) रत्नपरीक्षा। [प्र. त्रै० रि०] रचनाकाल-१९३५। नाम-( २३३२ ) चिम्मनलाल वैश्य, तिलहर, शाह
____ जहाँपूर । प्रथ-(१) गृहस्थाश्रम, (२) दयानंदजीवनचरित्र, (३)
नीतिशिरोमणि श्रादि २० ग्रंथ हैं । जन्मकाल-१६१०। नाम-(२३३३) जदुदानजी चारण। ग्रंथ-(१) ज़िमींदारी री पीदियान रौनचाकरो ज़ेर चाकरी री
विगति, (२) ताजीमी सरदारी रान री खलगति । विवरण-राजपूतानी कवि । नाम-( २३३४) जनकेस बंदीजन, मऊ, बुंदेलखंड । जन्मकाल-१३१२। विवरण ये कवि महाराज छतरपूर के यहाँ थे। इनकी कविता
तोष कवि की श्रेणी की है। नाम-(२३३५ ) मोहनलाल, चरखारीवासी। . . ग्रंथ-(१) शालिहोत्र, (२) श्रीनरसिंहजू को अष्टक ।
[प्र. त्रै० रि०] नाम-(२३३५) युगलकिशोर । विवरण-लिंबडी-राज्य के चारण थे। नाम-(२३३६) रविदत्त शास्त्री वैद्य, बेरी, जिला रोहतक ।
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१२४४
मिश्रबंधु विनोद
ग्रंथ-वैद्यक के ४६, ज्योतिष के १६, व्याकरण के ४, न्याय के
७ ग्रंथ । जन्मकाल-१९११ । विवरण-आप गौड़ ब्राह्मण हैं । आप ग्रंथ-रचना में विशेष रुचि
रखते हैं। नाम-(२३३६ ) रविराम । ग्रंथ-संगीतादित्य। विवरण-जामनगर-निवासी प्रश्नोरा नागर ब्राह्मण थे। नाम-(२३३७ ) श्रोहर्षजी ब्राह्मण, काशी । ग्रंथ-(१) राधाकृष्ण होरो (पृ. १८), (२) राधाजी को ____ ब्याह (पृ० १२)। [द्वि० ० रि०] नाम-(२३३८) सीताराम वैश्य, पैतेपूर, जिला बारहबंकी। ग्रंथ-ज्ञानसारावली। जन्मकाल-१९०७ ।
सैंतीसवाँ अध्याय उत्तर हरिश्चंद्र-काल (१९३६-४५)
(२३३९ ) भीमसेन शर्मा इनका जन्म संवत् १९११ में, एटा जिले में, हुआ था । संस्कृत विद्या में अच्छा अभ्यास करके ये महाशय काशी में आर्यसमाजी हो गए और बहुत दिन तक समाज के अच्छे उपदेशकों में रहे । पीछेसे इनका मत बदल गया और ये फिर सनातनधर्मी होकर ब्राह्मणसर्वस्व-नामक एक पत्र निकालने लगे। ये महाशय एक अच्छे उपदेशक और पूर्ण पंडित हैं । हिंदी और संस्कृत में ये बड़ी सुगमता के साथ उत्तम व्याख्यान देते हैं । ये अपनी धुन के बड़े पक्के हैं। इनका यंत्रालय इटावे में है और वहीं से ब्राह्मणसर्वस्व निकलता है।
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वर्तमान प्रकरण
१२४९ सन् १९१२ से ये कलकत्ता की युनिवर्सिटी के कॉलेज में वेदव्याख्याता के पद पर काम कर रहे हैं। .
(२३४०) बलदेवदास ये महाशय श्रीवास्तव कायस्थ, मौज़ा दौलतपूर, परगना कल्यानपूर, जिला फ्रतेहपूर के रहनेवाले थे। स्वामी छीतूदासजी इनके मंत्रगुरु थे, जिनकी आज्ञा से इन्होंने संवत् १९३६ में जानकीविजय-नामक २३ पृष्ठ का एक ग्रंथ बनाया। इसकी कथा अद्भुत रामायण के आधार पर कही गई है । वास्तव में यह कथा बिलकुल निर्मूल है, क्योंकि अद्भुत रामायण कोई प्रामाणिक ग्रंथ नहीं है । बलदेवदास ने प्रधानतः दोहा-चौपाइयों में यह ग्रंथ लिखा है, परंतु कहीं-कहीं
और भी छंद लिखे हैं । इन्होंने गोस्वामीजी के मार्ग का अधिकतर अवलंब लिया है, यहाँ तक कि दो-चार जगह उन्हीं के पद अथवा भाव भी इन्होंने अपनी कविता में रख दिए हैं। इनकी गणना कथाप्रसंग के कवियों में मधुसूदनदास की श्रेणी में की जा सकती है। राम रजाय सुनत सब बीरा ; सजे सबेग सेन रनधीरा । चले प्रथम पैदल भट भारी; निज-निज अस्त्र-शस्त्र सब धारी। मनिगनजटित चली रथ पाँती ; भरे बिपुल श्रायुध बहु भाँती। चले तुरूंग बहु रंगबिरंगा; जुग पदचर प्रति सूरन संगा। असित बिसाल गात मातु महाकाल की सी,
पीतपट देखि कै छटा की छबि छपकत ; रा0 मंडमाल रुंडजाल भुजदंड बाजू,
. भाल खग्ग खप्पर कृपान सान लपकत । छूटे बिकराल बाल नैन बलदेव लाल,
दिव्य मुख देखि कै दिनेस छबि झपकत ; सालक के घालिबे को काली ने निकाली जीह,
लाल-लाल लोहू ते लपेटी लार टपकत ।
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मिश्रबंधु-विनोद
( २३४१) फ्रेडरिक पिनकाट
इनका जन्म संवत् १८६३ में, इंगलैंड देश में, हुआ, और वहीं ये प्रायः अपने जीवन पर्यंत रहे । पर भारतीय भाषाओं पर आपका इतना प्रेम था कि श्रार्थिक दरिद्रता होते हुए भी आपने संस्कृत, उर्दू, गुजराती, बँगला, तामिल, तैलंगी, मलायलम और कनाड़ी भाषाएँ सीखीं। अंत में इनको हिंदो से भी प्रेम हुआ और इसे सीखकर इनका अन्य भाषाओं से प्रेम इसके माधुर्य के श्रागे फीका पड़ गया । इन्होंने हिंदी में सात पुस्तकें संपादित कीं, जिनमें कुछ इन्हीं की बनाई हुई भी थीं। आपने यावज्जीवन हिंदी का हित और हिंदी - लेखकों का प्रोत्साहन किया । अंत में संवत् १९५२ में ये भारत को पधारे, पर इसी संवत् के फ़रवरी में इनका शरीर पात लखनऊ में हो गया। आप हिंदी के अच्छे जाननेवालों में से थे ।
( २३४२ ) अंबिकादत्त व्यास साहित्याचार्य इनका जन्म संवत् १९१५ चैत्र सुदी ८ को जयपूर में हुआ था । ये महाशय गौड़ ब्राह्मण थे और काशी इनका निवासस्थान था । संस्कृत के ये अच्छे विद्वान् थे, और यावज्जीवन पाठशालानों एवं कॉलेजों में संस्कृत पढ़ाने का काम करते रहे । इनके अंतिम पद का वेतन १००) मासिक था । अपनी नौकरी के संबंध से ये महाशय बिहार में बहुत रहे । इनका स्वर्गवास संवत् १६५७ में हुआ । ये महाशय संस्कृत तथा भाषा गद्य-पद्य के अच्छे लेखक थे, और इन्होंने चार नाटक-ग्रंथ भी बनाए हैं । यत्र-तत्र इन्हें बहुत-से प्रशंसापत्र तथा उपाधियाँ मिलीं, और इनकी आशुकविता की भी सराहना हुई । इन्होंने संस्कृत और हिंदी मिलाकर ७८ ग्रंथ निर्माण किए हैं, जिनके नाम सन् १६०१वाली सरस्वती के पृष्ठ ४४४ पर लिखे हैं । ललिता नाटिका, गोसंकट नाटक, मरहट्टा नाटक, भारतसौभाग्य नाटक, भाषाभाष्य गद्यकाव्य-मीमांसा, विहारी- विहार, विहारीचरित्र, शीघ्र
१२४६
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वर्तमान प्रकरण
१२४७
लेख- प्रणाली और निज वृत्तांत इनके ग्रंथों में प्रधान हैं। विहारीबिहार में बिहारी सतसई के दोहों पर कुंडलियाँ लगाई गई हैं। इसकी रचना प्रशंसनीय होने पर भी कुछ शिथिल है । गद्यकाव्यमीमांसा बहुत ही विद्वत्तापूर्ण पुस्तक है । कविता की दृष्टि से इनकी गणना साधारण श्रेणी में की जा सकती है। इनकी अकालमृत्यु से हिंदी में गवेषणा-विभाग की बड़ी क्षति हुई। इनकी कविता का महत्व जैसा इनके गद्य से है, वैसा पद्य से नहीं ।
उदाहरण
"अब गद्य-विभाग की परीक्षा की जाती है । यहाँ साहित्यदर्पणकार के कथनानुसार तीन गद्य तो असमास, अल्पसमास, दीर्घसमास हैं, और चौथा वृत्तगंधि है । परंतु यह विचारना है कि प्रथम ही तीन गद्यों से सरस्वती का सारा गद्यभंडार भर जाता है, फिर कौन-सा स्थान शेष रह जाता है, जहाँ वृत्तगंधि गद्य स्थिर हो !! हाँ, वृत्तगंधि गद्य जब होगा, तब उन्हीं तीन में से कोई-सा होगा । इसलिये इसे प्रविभाग कहें तो कहें, पर गद्य-विभाग में तो रख ही नहीं सकते । "
परनिंदा ठगपनो कबहुँ नहिं चोरी करिहैं ;
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जंतुन को दै पीर कबहुँ नहिं जीवन हरिहैं । मिथ्या अप्रिय बचन नाहिं काहू सन कहि हैं। पर उपकारन त सबै बिधि सब दुख सहिहैं । (२३४३) बदरीनारायण चौधरी (प्रेमघन )
आपके पिता का नाम गुरचरण लाल था । ये पहले मिर्ज़ापुर में रहते थे, परंतु पीछे विशेषतया शीतलगंज, जिला गोंडा में रहते थे । इनका जन्म संवत् १९१२ भाद्रकृष्ण ६ को मिर्जापूर में हुआ | ये सरयूपारीण ब्राह्मण उपाध्याय भरद्वाजगोत्री थे । श्राप बहुत दिन तक नागरीनीरद तथा श्रानंदकादंबिनी नामक मासिक पत्र निकालते रहे । ये भारतेंदुजी
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मिश्रबंधु-विनोद
के साथियों में थे और भाषा के बड़े प्राचीन लेखक तथा कवि थे। एक बार हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति नियत किए गए थे। आपके रचित निम्न-लिखित ग्रंथ हैं
(१) भारतसौभाग्य नाटक, (२) प्रयाग-रामागमन नाटक, (३) हार्दिकहर्षादर्श काव्य, (४) भारतबधाई, (५) आर्याभिनंदन, (६) मंगलाश, (७) क़लम की कारीगरी, (८) शुभसम्मिलन काव्य, (६) श्रानंदअरुणोदय, (१०) युगलमंगल स्तोत्र, (११ ) वर्षाविदुगान, (१२) वसंत-मकरंद बिंदु, (१३) कजली-कादंबिनी, (१४) वारांगनारहस्य महानाटक, (१५) संगीतसुधासरोवर, (१६) पीयूषवर्षा, (१७) श्रानंदबधाई, (१८) पितरप्रलाप, (१६) कलिकालतर्पण, (२०) मन की मौज, (२१) युवराजाशिष, (२२) स्वभावबिंदुसौंदर्य गद्यकाव्य, (२३) शोकाश्रुबिंदु पद्य, ( २४ ) विधवाविपत्तिवर्षा गद्य, ( २५) भारतभाग्योदय काव्य, (२६) कांता कामिनी उपन्यास, (२७) वृद्धविलाप प्रहसन, (२८) आत्मोल्लास काव्य, (२६) दुर्दशा दत्तापुर।
पटरानी नृप सिंधु की त्रिपथागामिनी नाम ; तुहि भगवति भागीरथी बारहिं बार प्रनाम । बारहिं बार प्रनाम जननि सब सुख की दाइनि ; पूरनि भक्तन के मनोरथनि सहज सुभाइनि । ब्रह्मलोकहू लौं करि निज अधिकार समानी ;
पूरी मम मन-पास सिंधु नृप की पटरानी ॥ १ ॥ कौन भरोसे अब इत रहिए कुमति प्राय घर घाली ; फूट्यो फूट बैर फलि फैल्यो बिधि की कठिन कुचाली।
चलिए बेगि इहाँ ते प्राली। जिन कर नाँहि छड़ी ते करिहैं कहा करद करवाली ; छमा-कवच-धारी ये बिहँसत खाय लात औ गाली ।
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वर्तमान प्रकरण जिनसों सँभरि सकत नहिं सन की धोती ढीलीढाली; देश-प्रबंध करेंगे वे यह कैसी खामखयाली। दास वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली ; करत खुसामद झूठ प्रसंसा मानह बने ढफाली ॥२॥ इनका गद्य और पद्य पर अच्छा अधिकार था, और ये हिंदी के बड़े लेखकों में से थे । इनको हिंदी का सदैव से अच्छा शौक था। थोड़े दिन हुए इनका शरीर-पात हो गया । नाम-(२३४४) लक्ष्मीनारायणसिंह कायस्थ, सिकंदराबाद,
जिला बुलंदशहर । ग्रंथ-तैलंगबोध । रचनाकाल-१९३७ । विवरण-ये महाशय हैदराबाद में नौकर थे। इन्होंने खालकबारी
की तरह तैलंग भाषा के शब्दों का कोष बनाया है, जिसमें तैलंगी शब्दों के अर्थ हिंदी में कहे हैं। यह
पुस्तक मतबा निज़ामी हैदराबाद में छपी है। नाम-(२३४५) ईश्वरीसिंह चौहान ( ईश्वर ), किसुनपुर,
राज्य अलवर। रचना-स्फुट काव्य । जन्मकाल-१६१३ । रचनाकाल-११३८ । विवरण-इनके बड़े भाई माधव भी अच्छे कवि थे और आपकी
भी कविता सरस होती है। उदाहरण देखिएकबहूँ नहिं साधी समाधि की रीति न ब्रह्म की जीव मैं जोति जगी; कबहूँ परजंक मैं अंक न जीनी मयंकमुखी रस प्रेम पगी। कबि ईसुर प्यारी की बातन हूँ कबहूँ नहिं चित्त की चाह ठगी ;
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मिश्र बंधु - विनोद
यह आ गई सब हाय बृथा गर सेली लगी न नबेली लगी ॥१॥ ( २३४६ ) त्रिलोकीनाथजी, ( उपनाम भुवनेश कवि ) ये महाशय शाकद्वीपी ब्राह्मण महाराजा मानसिंह प्रयोध्या- नरेश के भतीजे थे। महाराजा मानसिंह के पुत्र अवस्था में स्वर्गवास होने पर उनके दौहित्र महाराज सर प्रतापनारायण महामहोपाध्याय और इनसे राज्यप्राप्त्यर्थं बहुत बड़ी लड़ाई अदालतों में हुई, जिसमें इनकी पराजय हो गई । ये महाशय भाषा के अच्छे कवि थे और इन्होंने पहले चाणक्यनीति का एकादश अध्याय पर्यंत भाषा छंदों में अनुवाद किया, और फिर संवत् ११३७ में भुवनेशभूषणनामक ५० पृष्ठों का स्फुट शृंगार कविता का एक स्वतंत्र ग्रंथ बनाया । इस ग्रंथ के अंत में कुछ चित्र कविता भी की गई है। भुवनेश• विलास, भुवनेशक प्रकाश, भुवनेशयंत्रप्रकाश नामक इनके और ग्रंथ हैं । इनके भाई नरदेव, लक्ष्मीनाथ और तारानाथ भी कवि थे। इनके कुटुंब में और दो-तीन महाशय भी काव्य-रचना करते थे । इनके पितृभ्य महाराजा मानसिंहजी उपनाम द्विजदेव अच्छे कवि हो गए हैं। भुवनेशजी का स्वर्गवास हुए क़रीब ३७ वर्ष के हुए हैं। इनके ग्रंथों का एवं इनके कुटुंबियों के कवि होने का हाल भुवनेशभूषण ग्रंथ में इन्होंने लिखा है । इन्होंने व्रजभाषा में कविता की है, जो सरस और मनोहर है । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थ इनका केवल एक छंद नीचे लिखा जाता है
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कर कंज केवार पैराजि रहे छहरी छिति लौं छुटिकै अलकें ; अँगिराति जम्हाति भली बिधि सों धनैननि श्रानि परों पलकें भुवनेशजू भाषे बनै न कछू मुख मंजुल अंबुज से झलकै ; मनमोहन नैन मलिंदन सों रस लेत न क्यों कढ़िकै कलकें । ( २३४७ ) डॉक्टर सर जी० ए० प्रियर्सन सी० आई० ई० इनका जन्म विलायत में, संवत् १६१३ में, हुआ था । श्राप सिविल
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वर्तमान प्रकरण
१२११ सर्विस पास करके भारत में १९१५ पर्यंत रहे । इनको हिंदी से बड़ा प्रगाढ़ प्रेम था, और सदैव इनके द्वारा हिंदी का उपकार होता रहा है। इन्होंने मैथिली भाषा का व्याकरण, विहारी-कृषक-जीवन, और विहारी बोलियों का व्याकरण-नामक ग्रंथ बनाए, तथा विहारी-सतसई, पद्मावती, भाषाभूषण, तुलसी-कृत रामायण आदि ग्रंथों को संपादित किया। इन ग्रंथों के अतिरिक्त आपने माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान-नामक इतिहास-ग्रंथ शिवसिंहसरोज एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर भाषा-साहित्य के विषय बनाया। इसमें प्रायः सब बड़े कवियों के नाम आ गए हैं । आजकल भी ये महाशय भाषाओं की खोज का ग्रंथ लिंग्वस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, कई भागों में लिखी है, जो पूरी प्रकाशित हो चुकी है। इसमें इन्होंने हिंदी की बड़ी प्रशंसा की है। अब ये महाशय विलायत में रहकर पेंशन पाते हैं। आपका हिंदी-प्रेम एवं श्रम सर्वथा सराहनीय है।
नाम-(२३४८) गदाधरजी ब्राह्मण, बाँसी। ग्रंथ-(१) घृतसुभातरंगिणी (पद्य, १६ पृ० १६१६),
(२) देवदर्शनस्तोत्र (पद्य, १० पृ० १९१८), (३) काव्यकल्पद्रम (गद्य, १२ पृ. १६५६), (४)कामांकुशमदतरंगिणी (गद्य, ४२ पृ० १६५६), (५) बदरीनाथमाहात्म्य (पद्य, २२ पृ० १९५६), (६) गजशालाचिकित्सा (गद्य, १२ पृ० १९६०), (७) वैद्यनाथमाहात्म्य (पद्य, १४ पृ० १६६०), (८) अश्वचिकित्सा (पद्य, ३३८ पृ० १६६१), (६) हरिहरमहात्म्य (पद्य, १० पृ० १९६२), (१०) साधुपचीसी (पद्य, १० पृ० १६६३), (११) नारीचिकित्सा (गद्य, १२८ पृ० १६६२), (१२) जगन्नाथमाहात्म्य, (१३) नयनगदतिमिरभास्कर, (१४) तैल-सुधातरंगिणी, (१५) तैन
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मिश्रबंधु-विनोद घृतसुधातरंगिणी, (१६) चूरनसंग्रह, (१७) प्रमेहतैलसुधातरंगिणी, (१८) बृहत्रसराजमहोदधि, (१६) रामेश्वरमाहात्म्य, (२०) अयोध्यातीर्थयात्राज्ञान, [द्वि० ०
रि० ] (२१) जर्राहीप्रकाश । विवरण-वर्तमान । ये महाशय अच्छे वैद्य हैं, और कविता भी
करते हैं । आपकी अवस्था इस समय लगभग ७८ साल के होगा।
(२३४९ ) नाथूरामशंकर शर्मा ये हरदुआगंज अलीगढ़ के निवासी हिंदी के एक प्रसिद्ध सुकवि हैं। आप समस्यापूर्ति अच्छी करते थे, और आजकल खड़ी बोली की भी ललित रचना करते हैं । आपकी अवस्था इस समय प्रायः ७८ साज की है। आपने 'अनुरागरत्न', 'गर्भरंडारहस्य', वायसविजय आदि अनेक उत्तम ग्रंथ बनाए हैं।
(२३५०) भगवानदास खत्री, लखनऊ ये हिंदी के पुराने लेखक तथा शुभचिंतक हैं । इन्होंने कई पुस्तकें गद्य तथा पद्य की हिंदी में लिखा हैं। इनके बनाए और अनुवादित पश्चि. मोत्तर देश का भूगोल, ब्रेडलास्वागत, योगवासिष्ठ इत्यादि हमने देखे हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत-से ग्रंथ अापने रचे तथा अनु. वादित किए हैं। नाम-(२३५१) चंडोदान कविराजा मोशन चारण, बूंदी। ग्रंथ-(१) सारसागर, (२) बलविग्रह, (३) वंशाभरण,
(४) तीजतरंग, (१) विरुदप्रकाश । जन्मकाल-१८४८। कविताकाल-१९३९ । मृत्यु-१९४६ । विवरण-महाराव राजा विष्णुसिंह बूंदी-नरेश के दरबार में थे।
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वर्तमान प्रकरण
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इनकी कविता प्रशंसनीय है । इनकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है ।
उदाहरण
घूमत घटा से घनघोर से घुमँड़ घोख,
उमड़त आए कमठान तैं अधीर से ; चपट चपेट चरखीन की चलाचल तैं,
धूरि धूम धूसत धकात बलि बीर से । मसत मतंग रामसिंह महिपालजू के,
डाकिन डराए मदद्दाकिनी छकीर से ; साजे साँटमारन अखारन के जैतवार,
आरन के अचल पहारन के पीर से । नाम – ( २३५२ ) राव अमान ।
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ग्रंथ - ( १ ) लाल बाबा - चरित्र, (२) लालचरित्र, (१) महाराज तनतसिंहजी की कविता, ( ४ ) महाराज तव्रतसिंहजी का जस ।
कविताकाल - १६३६ तक |
विवरण - इनकी रचना देखने में नहीं आई ।
( २३५३ ) कालीप्रसाद त्रिवेदी
ये बनारसवाले हैं। इनका रचनाकाल १६४० के लगभग
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आपने भाषा -रामायण और सीय-स्वयंवर के अतिरिक्त अनेक मदरसो की पुस्तकें रचीं ।
नाम - ( २३५३) गुलाबसिंह धाऊजी ।
जन्मकाल -१८७८ ।
कविताकाल - १६४० ।
ग्रंथ - प्रेमसतसई, कात्तिकमाहात्म्य, फुटकर छप्पय, फुटकर पद, हितकल्पद्रुम, सामुद्रिकसार ।
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मिश्रबंधु-विनोद विवरण-ये भरतपूर के महाराज जसवतसिंह के धा भाई थे और
संवत् १९४५ में इनका स्वर्गवास हुआ ।
(२३५४) दुर्गाप्रसाद मिश्र पंडित इनका जन्म संवत् १६१६ में, रियासत कश्मीर में, हुआ था । ये महाशय संस्कृत, हिंदी और बँगला में परमप्रवीण थे, और अँगरेज़ी भी जानते थे । जीविकार्थं ये सकुटुंब कलकत्ते में रहते थे। इन्होंने कई पत्र चलाए तथा संपादित किए । प्रसिद्ध पत्र भारतमित्र इन्हीं का चलाया हुआ है । इसके अतिरिक्त सारसुधानिधि, उचितवक्ता और मारवाड़ीबंधु-नामक पत्र भी इन्होंने चलाए । इन्होंने २०-२२ पुस्तकें अनुवाद आदि मिलाकर लिखीं। इनका स्वर्गवास १९६७ में हो गया । ये महाशय हिंदी के परमोत्तम लेखकों में से थे । नाम-( २३५५ ) मातादीन द्विवेदी (हरिदास ), गजपूर
.. गोरखपूर । रचना-स्फुट काव्य, २०० छंद । जन्मकाल-१९११ । रचनाकाल-१६४०। 'विवरण-कविता सरस है।
उदाहरणटेसू पजासन औ कचनार अनार की बार अंगार लखायगो; तापर पौन प्रसंगन ते रज के कन धूम के धार सो छायगो। त्यों ही कछारन मैं सरसों के प्रसूनन पै जरदी दरसायगो; हाय दई हरिदास न पाए बसंत बिसासो कसाई सो श्रायगो । नाम-(२३५६) नकछेदो तेवारी ( उपनाम अजान कवि) ग्रंथ-(१) कविकीर्तिकलानिधि, ( २ ) मनोजमंजरीसंग्रह,
(३) भँडौमासंग्रह, (४) वीरोल्लास, (५) खड्गावली, (६) होरीगुलाल, (७) लछिराम की जीवनी ।
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वर्तमान प्रकरण
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जन्मकाल-१६१६ । कविताकाल-११४०। विवरण-ये महाशय हल्दी-ग्राम-निवासी त्रिपाठी थे। इन्होंने
स्फुट काव्य तथा गद्य-रचना की और बहुत-सी साहित्यसंबंधी पुस्तकें भी प्रकाशित कराई । आपने कविकीर्तिकलानिधि-नामक ग्रंथ भी रचा, जिसमें भाषा के कवियों का हाल और ग्रंथ इत्यादि जिखे । यह ग्रंथ विशेषतया शिवसिंहसरोज के आधार पर लिखा गया। आपके भाषा-प्रेम और गवेषणा आदरणीय थे।
थोड़े दिन हुए आपका देहावसान हो गया। परभात लौं केलि करी ललना बगरे कच ऐंडिन जौं छहरै ; रसरातो उनींदी भई अँखियाँ रद लागे कपोलन मैं छहरें । दरकी अंगिया में उरोज बसें बट तापै अजान परी लहरै ; मनौ केसरि कुंभ के शृंग पै सुंदर सॉपिनि के चेटुवा विहरौं ।
(२३५७ ) रामकृष्ण वर्मा। इनका जन्म संवत् १६१६ में, काशीपुरी में, हुआ था। इनके पिता हीरालाल खत्री थे । रामकृष्णजी ने बी० ए० तक पढ़ा था; पर आप उस परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सके। ये गद्य और पद्य दोनों के लेखक थे। इन्होंने ११४० में भारतजीवन पत्र निकाला। इनके भारतजीवन-प्रेस में कविता के अच्छे-अच्छे ग्रंथ छपे, पर ये उनका मूल्य अधिक रखते थे । नाटकों की भी रचना इन्होंने की है। इनका शरीर-पात संवत् १९६३ में हो गया । इनके रचित तथा अनुवादित ग्रंथ ये हैं
(१) कृष्णकुमारी नाटक, (२) पद्मावती नाटक, (३) वीर नारी, (४) अकबर उपन्यास, प्रथम भाग, (५) अमलावृत्तांतमाला, (६) कथासरित्सागर, १२ भाग अपूर्ण, (७) कांस्टेबुल
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१२५६ . मिश्रबंधु-विनोद वृत्तांतमाला, (८) ठग-वृत्तांतमाला, चार भाग, (६) पुलीसवृत्तांतमाला, (१०) भूतों का मकान, (११) स्वर्ण बाई उपन्यास, (१२) संसारदर्पण, (१३) बलबीरपचासा, (१४) बिरहा, (१५) ईसाईमत-खंडन, (१६) चित्तौरचातकी । नाम-(२३५८ ) जानकीप्रसाद पँवार, जोहबेनकटी, जिला
रायबरेली। ग्रंथ-(1) शाहनामा ( उर्दू में भारत का इतिहास ), (२)
रघुवीरध्यानावली, (३) रामनवरत्न, (४) भगवतीविनय, (५)रामनिवास रामायण, (६) रामानंद-विहार,
(७) नीति-विलास। कविताकाल-१९४० । विवरण-इनकी कविता उत्कृष्ट यमक एवं अन्य अनुप्रास-युक्त है ।
____ इनकी गणना तोष की श्रेणी में हैबंदत अनंदकंद कीरति अमंद चंद,
दरन कफंद बूंद घायक कमति के सिधि-बुधि-दायक बिनायक सकल लोक,
सो हैं सब लायक त्यों दायक सुमति के । कोमल अमल अति अरुन सरोज प्रोज,
____लज्जित मनोज बरदानि सुभ गति के; बिधनहरन मुद मंगल करनहार,
___ असरन सरन चरन गनपति के । (२३५९ ) लालविहारी मिश्र ( उपनाम द्विजराज) ये महाशय प्रसिद्ध कवि लेखराज, गधौली, जिला सीतापुर निवासी के बड़े पुत्र थे । इनका जन्म संवत् १९१५ के लगभग हुआ था
और संवत् १९६२ में इनका स्वर्गवास हुा । इनके दो पुत्र और एक कन्या विद्यमान हैं, पर उनका ध्यान कविता की ओर नहीं है।
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वर्तमान प्रकरण
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१२५७
द्विजराजजी बाल्यावस्था से ही कविता के प्रेमी थे और उन्होंने सदैव उत्तम छंद बनाने को ओर ध्यान रक्खा । इनकी कविता परम सरस
और गंभीर भावों से भरी होती थी। और इनकी भाषा सानुप्रास, मनोहर, एवं टकसाली होती थी। इनके ग्रंथ अभी मुद्रित नहीं हुए हैं, पर वे इनके पुत्रों के पास सुरक्षित हैं। वे सब ग्रंथ इस समय हमारे पास मौजूद हैं। उनके नाम ये हैं-श्रीरामचंद्रनखशिख, दुर्गास्तुति, भव्यावलहरी, वासुदेवपंचक, नामनिधि, प्यारीजू को शिखनख, वर्णमाला, विजयमंजरीलतिका, विजयानंदचंद्रिका और स्फुट काव्य । दुर्गास्तुति, भव्याणवलहरी। विजयमंजरीलतिका और विजयानंदचंद्रिका में दुर्गादेवी की स्तुति की गई है और शत्रु-विनाश की प्रार्थना भी है। नामनिधि और वर्णमाला में इन्होंने प्रत्येक अक्षर लेकर अखरावट की भाँति उस पर रचना की है। ये ग्रंथ अपूर्ण हैं। इनके ग्रंथ प्राकार में सब छोटे-छोटे हैं, और कल मिलाकर इनकी रचना प्रायः २०० पृष्ठों की होगी। पर इन्होंने थोड़ा बनाकर आदरणीय तथा सारगर्भित कविता करने का प्रयत्न किया, और उसमें ये सफल-मनोरथ भी हुए । हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखेंगे। फरकै लगी खंजन-सी अँखियाँ भरि भावन भौं हैं मरोरै लगी; अंगिराय कळू अँगिया की तनी छवि छाकि छिनौ छिन छोरै लगी। बलि जैबे परै द्विजराज कहै मन मौज मनोज हलोरै लगी ; बतियान में आनँद घोरै लगी दिन द्वैते पियूष निचोरै लगी। मनि मंगल देवन देस दुरे लखि बारिज साँझ बजाने रहैं ; किसलै न प्रबाल कै बिंब जपा जड़ताई के जोगन प्राने हैं। अरुनाई सियावर पाँयन ते उपमान सबै अपमाने रहैं ; द्विजराज जू देखौ दिनेस अजौं अरुनोपल आड़ लुकाने हैं।
(२३६० ) सुधाकर द्विवेदी महामहोपाध्याय । इनका जन्म संवत् १९१७ में, काशीपुरी में, हुआ और उसी पुरी
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मिश्रबंधु-विनोद में १६६७ में अकस्मात् इनका शरीर-पात हो गया। ये ज्योतिष के बहुत बड़े पंडित थे, और भाषा एवं संस्कृत का बहुत अच्छा ज्ञान रखते थे। इनकी कीर्ति विलायत तक फैली थी। इन्होंने १७ ग्रंथ हिंदी में रचे । ये कुछ कविता भी करते थे और गद्य के बहुत भारी लेखक थे। जायसी की पद्मावत बड़े श्रम से इन्होंने संपादित की थी। ये सरल हिंदी के पक्षपाती थे। काशी-नागरीप्रचारिणी सभा के आप सभापति भी रहे हैं।
( २३६१ ) रामशंकर व्यास ( पंडित ) __आपका जन्म संवत् १९१७ में हुआ था। आपने कई स्थानों पर नौकरी की और २५०) मासिक पर एक रियासत के मैनेजर रहे । आपने कई वर्ष कविवचनसुधा और आर्यमित्र का संपादन किया । अाप भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के अंतरंग मित्रों में थे । और उन्हें वह उपाधि पहले इन्हीं ने दी थी। व्यासजी ने खगोल-दर्पण, वाक्यपंचाशिका, नैपोलियन की जीवनी, बात की करामात, मधुमती, वेनिस का बाँका, चंद्रास्त, नूतनपाठ, और राय दुर्गाप्रसाद का जीवनचरित्रनामक ग्रंथ रचे । श्राप गद्य के एक अच्छे लेखक थे।
(२३६२ ) जामसुता जाड़ेचीजी श्रीप्रताप बाला ये महारानी जामनगर के महाराज रिड़मलजी की राजकुमारी तथा जोधपुर के भूतपूर्व महाराज श्रीतखतसिंह की महारानी थीं। इनका जन्म संवत् १८६१ और विवाह संवत् १६०८ वैक्रमीय में हुआ था। ये बड़ी ही उदारहृदया और प्रजा को पुत्रवत् माननेवाली थीं। इन्हें स्वधर्म पर बड़ी ही श्रद्धा थी। इन्होंने अकाल में बड़ी उदारता से भोजन वितरण किया था और कई मंदिर भी बनवाए । यद्यपि काल की कराल गति से इनको कई स्वजनों की अकाल मौत के असह्य दुःख भोगने पड़े, तथापि इन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा और धर्म पर अपना पूर्ववत् विश्वास दृढ़ रक्खा । ये बड़ी विदुषी थीं और इन्होंने बहुत
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वर्तमान प्रकरण
१२५६ स्फुट भजन बनाए हैं। इनके बहुत-से पद "प्रतापांवरि रनावली". नामक पुस्तक में छपे हैं । इनकी रचना बहुत सरस और भक्तिपूर्ण है,
और वह सुकवियों कृत कविता की समानता करती है। उदाहरणार्थ इनके दो पद उद्धृत किए जाते हैं
वारी थारा मुखड़ा री श्याम सुजान । (टेक) मंद-मंद मुख हास बिराजै कोटिन काम बजान ; अनियारी अँखियाँ रसभीनी बाँकी भौंह कमान । दादिम दसन अधर अरुनारे बचन सुधा सुख खान ; जामसुता प्रभुसों कर जोरे हौ मम जीवन प्रान । ___ दरस मोंहि देहु चतुरभुज श्याम । (टेक) करि किरपा करुनानिधि मोरे सफल करौ सब काम । पाव पलक बिसरूं नहिं तुमको याद करूँ नित नाम ;
जामसुता की यही बीनती प्रानि करौ उर धाम । इनका कविताकाल १९४१ जान पड़ता है।
(२३६३) आर्यमुनिजी इनका जन्म संवत् १६१६ में हुआ था। पाप दयानंद-ऐंग्लोवैदिक कॉलेज, लाहौर के एक सुयोग्य अध्यापक हैं। वेदांतार्यभाष्य, गीताप्रदीप और न्यायाय-भाष्य ग्रंथ आपके निर्मित किए
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(२३६४ ) महेश राजा शीतलाबख़्शबहादुरसिंह उपनाम महेश बस्ती के राजा थे । ये महाशय कवियों के बड़े आश्रयदाता थे और कवि लछिराम का इनके यहाँ बढ़ा सत्कार था। इनका शृंगार-शतक नामक एक ग्रंथ हमारे देखने में आया है। ये संवत् १९४१ के लगभग तक जीवित थे । इनकी कविता अच्छी हुई है । हम इनको साधारण श्रेणी में रखते हैं।
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मिश्रबंधु-विनोद
सुनि बोल सुहावन तेरे अटा यह टेक हिये मैं धरौं पै धरौं ; मढ़ि कंचन चोंच पखौवन मैं मुकताहल गदि भरौं पै भरौं । सुख-पीजर पालि पढ़ाय घने गुन-ौगुन कोटि हरौं पै हरौं ; बिछुरे हरि मोहिं महेश मिले तोहि काग ते हंस करौं पै करौं ॥१॥
(२३६५ ) प्रतापनारायण मिश्र इनके पिता का नाम संकटाप्रसाद था । ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण बैजेगाँव, जिला कानपूर के मिश्र थे । इनका जन्म संवत् १९१३ आश्विन शुक्ल १ को हुआ। इन्होंने पहले अपने पिता से कुछ संस्कृत पढ़ी, फिर स्कूल में नागरी तथा अँगरेज़ी की शिक्षा पाई और उसी के साथ-साथ उर्दू और फारसी का भी अभ्यास किया । इनका मन पढ़ने में नहीं लगता था, अतः ये कोई भाषा भी अच्छी तरह नहीं पढ़ सके। हिंदी पर इनका विशेष प्रेम था और जातीयता भी इनमें कूट-कूटकर भरी थी। ये गो-भक्त भी बड़े थे, और हरिश्चंद्रजी को पूज्य दृष्टि से देखते थे। काँगरेस के ये बड़े पक्षपाती थे। इनका मत यह था कि-चहहु जु साँचौ निज कल्यान ; सौ सब मिलि भारतसंतान । जपो निरंतर एक जबान ; हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान । काव्य करना इन्होंने ललित त्रिवेदी मल्लावाँ-निवासी से सीखा था।
ये महाशय एक उत्तम कवि और बड़े ही जिंदादिल मनुष्य थे । प्रतिभा इनमें बहुत ही विलक्षण थी । इनका स्वर्गवास संवत् १९५१ में, ३८ वर्ष की अवस्था में, हो गया । ये महाशय मज़ाक की कविता बहुत चटकीली करते थे, जो कभी-कभी ग्रामीण भाषा में भी होती थी। 'अरे बुढ़ापा तोहरे मारे अब तौ हम नकन्याय गयन' श्रादि इनके छंद बड़े मनोहर हैं । ये कानपुर में रहते थे और इन्होंने ब्राह्मण-नामक एक पत्र भी सन् १८८३ से निकाला था, जो दस वर्ष तक चलता रहा । इनके रचित तथा अनुवादित निम्नलिखित ग्रंथ हैं-पर कोई बृहत् ग्रंथ बनाने के पहले ही ये
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वर्तमान प्रकरण
१२६१ कुटिल काल के वश हो गए । तृप्यताम् में इन्होंने १० छंदों में तर्पण के कुल नामों पर एक-एक छंद देशहितैषिता का लिखा था। इनके असमय स्वर्गवास से हिंदी का बड़ा अपकार हुमा । ये महाशय व्रजभाषा के प्रेमी थे, और खड़ी बोली की कविता को प्रादर नहीं । देते थे। इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में है।
अपने समाचार-पत्र के ग्राहकों के प्रति कविताअाठ मास बीते जजमान, अब तो करौ दच्छिना दान ।
हर गंगा। जो तुम चाहो बहुत खिझाय, यह कौनिउ भलमंसी प्राय ।
हर गंगा ॥१॥
लोगन को सुख चैन मैं राखति लच्छिमी नौं सुभ लच्छन खानी; शत्रु विनाशत देरन लावति कालिका-सी बनि काल-निसानी। विद्या बढ़ावति चारिहु ओर सरस्वति के समतूल सयानी ; एकहि रूप मैं राजै त्रिदेवि द्वै जैति जै श्रीविकटोरिया रानी ॥२॥
अरे बुढ़ापा तोहरे मारे अब तो हम नकन्याय गयन ; करत धरत कछु बनत नाही, कहाँ जान औ कैस करन । दाढ़ी नाक याक मा मिलिगै बिन दाँतन मुँह अस पोपलान; ददिही पर बहि-बहि आवति है कबौ तमाखू जो फाँकन । बार पाकिगे रीरौ झुकिगै मूड़ी सासुर हालन लाग; हाँथ पाँय कुछ रहे न श्रापनि केहि के आगे दुखु र्वावन ॥३॥
गैया माता तुमका सुमिरौं कीरति सब ते बड़ी तुम्हारि ; करौ पालना तुम लरिकन के पुरिखन बैतरनी देउ तारि । तुम्हरे दूध दही की महिमा जानै देव पितर सब कोय ;
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मिश्रबंधु-विनोद को अस तुम बिन दूसर जेहिका गोबर लगे पबित्तर होय ॥ ४ ॥
आगे रहे गनिका गज गीध सुतौ अब कोऊ दिखात नहीं हैं; पाप-परायन ताप भरे परताप समान न पान कहीं हैं। हे सुख-दायक प्रेमनिधे जग यों तो भले औ बुरे सबहीं हैं ; दीनदयाल औ दीन प्रभो तुमसे तुमही हमसे हमहीं हैं ॥ ५ ॥
सिर चोटी गुंधावती फूलन सों मेहँदी रचि हाथन पावन मैं ; परताप त्यों चूनरी सूही सजी मनमोहनी हावन भावन मैं । निसियोस बितावतीं पीतम के सँग झूलन मैं औ झुलावन मैं ; उनहीको सुहावन लागत है धुरवान की धावन सावन मैं ॥६॥ अनुवादित ग्रंथ-(१) राजसिंह, (२) इंदिरा, (३) राधारानी,
(४) युगलांगुरीय (बंकिमचंद्र के बँगला उपन्यासों से), (५) चरिताष्टक, (६) पंचामृत, (७) नीतिरत्नावली, (८) कथामाला, (९) संगीत शाकुंतल, (१०) वर्ण
परिचय, (११)सेनवंश, (१३) सूबे बंगाल का भूगोल। रचित ग्रंथ-(1) कलिकौतुक (रूपक), (२) कलिप्रभाव
(नाटक), (३) हठी हमीर (नाटक), ( ४ ) गोसंकट (नाटक), (५) जुआरी खुवारी (प्रहसन ), (६) प्रेमपुष्पावली, (७) मन की नहर, (८) शृंगारविलास, (१) दंगलखंड (पाल्हा), (१०) लोकोक्तिशतक, (११) तृप्यताम्, (१२) ब्रैडला-स्वागत, (१३) भारतदुर्दशा ( रूपक), (१४) शैव-सर्वस्व, (१५)
मानस विनोद, (१६ ) सौंदर्यमयी।। संगृहीत ग्रंथ-(.) रसखानशतक, (२) प्रतापसंग्रह । उर्दू का ग्रंथ-(१)दीवान बिरहमन ।
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वर्तमान प्रकरण
२३६६ ) जगन्नाथप्रसाद (भानु)
आपका जन्म श्रावण शुक्ल १० संवत् १६१६ को नागपूर में हुआ था। आप बिलासपूर मध्य-प्रदेश में असिस्टेंट बंदोबस्त अफ़सर रहे हैं; जहाँ आपको ७००) मासिक मिलता था, अब ये पेंशन पाते हैं। आप काव्य-विषय का बहुत अच्छा ज्ञान रखते हैं । पिंगल तथा दशांग काव्य के श्राप श्रच्छे ज्ञाता हैं । आपके रचित छंदः प्रभाकर तथा काव्यप्रभाकर इस बात के साक्षि-स्वरूप हैं । श्राप गद्य के अच्छे लेखक हैं, और पद्य रचना भी अच्छी करते हैं । आपके रचित निम्न लिखित ग्रंथ हैं । आप संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, प्राकृत, उड़िया, मराठी, अँगरेजी आदि भाषाओं के अच्छे ज्ञाता हैं ।
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( १ ) छंदः प्रभाकर, (२) काव्यप्रभाकर, (३) नवपंचामृत रामायण, ( ४ ) कालप्रबोध, (५) दुर्गा सान्वय भाषा टीका, (६) गुलज़ार सखुन उर्दू, (७) काव्य-कुसुमाजंलि, (८) छंदसारावली, ( 8 ) हिंदी - काव्यालंकार, (१०) अलंकारप्रश्नोत्तरी, रसरत्नाकर, काव्यप्रबंध इत्यादि । गवर्नमेंट ने श्रापको रायसाहब की. पदवी से विभूषित किया है ।
छंद को प्रबंध त्योंही व्यंग्य नायकादि भेद,
उद्दीपन भाव अनुभाव पति बामा के ; भाव सनचारी अस्थायी रस भूषन है,
दूषन प्रदूषन जे कविता ललामा के । काव्य को विचार भानु लोक उक्ति सार कोष,
काव्य परभाकर में साजि काव्य सामा के ; कोबिद कबीसन को कृष्ण मानि भेंट देत,
अंगीकार कीजै चारि चाउर सुदामा के ॥ १ ॥ नाम - ( २३६७) मानालाल ( द्विजराम ) त्रिवेदी, मल्लावां जिला हरदोई।
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मिश्रबंधु-विनोद
ग्रंथ—(1) साहित्यसिंधु, (२) नखशिख । जन्मकाल-१९१७ । कविताकाल-१६४२ । मृत्युकाल-संवत् १९८३ । विवरण-आप सुकवि थे।
कीधौं कंज मंजु ये बनाए हैं बिरंचि जुग,
___ लोचन भँवर हित मुदित मुरारी के; कीधौं पारिजात के हैं लोहित नवल पात,
दुति दरसात यों प्रबाल लाल भारी के । कवि द्विजराम कीधौं पिय अनुराग लसै ,
देखि मन फँसै अति आनँद अपारी के; जावक जपा गुलाब आब के हरनहार,
सोहत चरन वृषभानु की दुलारी के ॥१॥
( २३६८ ) शिवनंदनसहाय आप आरा ज़िला अख्तियारपूर ग्राम के कानूनगो-वंशी एक कायस्थ महाशय के यहाँ संवत् १९१७ में उत्पन्न हुए। अँगरेजी में एंट्रेंस पास करके आपने दीवानी में नौकरी कर ली थी। श्राप फारसी भी अच्छी तरह जानते हैं। आप गद्य तथा पद्य के प्रसिद्ध और अच्छे लेखक हैं। नाटक-रचना भी आपने की है। आपका रचित हरिश्चंद्रजीवन-चरित्र हमने देखा है । यह बड़ा ही प्रशंसनीय ग्रंथ है । भाषा में शायद इससे अच्छे जीवन-चरित्र कम होंगे। आपकी भाषा और समालोचना बहुत अच्छी होती है एवं कविता भी आपने अच्छी की है। आपके रचित ग्रंथ ये हैं
(१) बंगाल का इतिहास, (२) विचित्र संग्रह स्वरचित पद्य, (३) कविताकुसुम (पद्य), (४) सुदामा नाटक (गद्य-पद्य), (१) कृष्ण-सुदामा (पद्य), (६) भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र की
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वर्तमान प्रकरण
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जीवनी, (७) बाबू साहबप्रसादसिंह की जीवनी, (८) | श्रीसीतारामशरण भगवानप्रसाद की जीवनी, (६) बाबा सुमेरसिंह साहबजादे की जीवनी, (१०) गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी । आप उर्दू की भी शायरी करते और समस्यापूर्ति भी मंडलों और समाजों में भेजते हैं ।
( २३६९ ) उमादत्तजी ( उपनाम दत्त )
ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण दरबार अलवर के कवियों में हैं। आपकी अवस्था इस समय लगभग ६० साल की होगी। इनकी कविता बड़ी ही सरस तथा सोहावनी होती है ।
उदाहरण
गेह ते निकसि बैठि बचत सुमनहार, देह-दुति देखि दीह दामिनि लजा करै ; मदन उमंग नव जोबन तरंग उठें,
बसन सुरंग अंग भूषन सजा करै । दत्त कवि कहै प्रेम पालत प्रवीननं सों,
बोलत अमोल बैन बीन-सी बजा करें; गुजारत बजार मैं नचाय नैन, मंजुल मजेज भरी मालिनि मजा करै ॥ १ ॥ मूक जातीं सौतें सब दीरघ दिमाक देखि,
रसिक बिलोकि होत बिकल निहारे मैं ; भरत न झारे थके गाड़रू बिचारे जरी, तंत्र-मंत्र बिबिध प्रकार उपचारे मैं 1 दत्त कवि कहै मन धरत न धीर जौं, कैसे बचें कुटिल कटाच्छ फुसकारे मैं ; विषधर भारे नाग कारे नैन कामिनि के,
काटि छिपि जात हाय पलक पिटारे मैं ॥ २ ॥
गजब
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मिश्रबंधु-विनोद ( २३७०) रामनाथजी कविराव, बूंदी। ये कविराव गुलाबसिंह के भतीजे तथा दत्तक पुत्र हैं । आप संस्कृत तथा भाषा के अच्छे पंडित और कवि, दरबार बूंदी के आश्रित हैं। कविता अच्छी करते हैं । इस समय आपकी अवस्था लगभग ६० वर्ष की होगी। आपने छोटे बड़े ११ ग्रंथ बनाए, जिनके नाम समस्यासार, सती-चरित्र, रामनीति, नीतिसार, शंभुशतक, परमेश्व राष्टक, गणेशाष्टक, सूर्याष्टक, दुर्गाष्टक, शिवाष्टक, और नीतिशतक हैं। उदाहरणबंदन बलित अति मंडित बिचित्र भाल,
तम के समूह सम भ्रात गिरिराज के; मदजल भरत चलत लचकत भूमि,
पर दल मलत सुनत गल गाज के । कहै रामनाथ भननात भौंर चारौ श्रोर, ___ लखि अभिलाख होत मन सुख साज के ; कज्जन ते कारे बलवारे दिग दंतिन ते,
उन्नत दतारे भारे रामसिंह राज के ॥ १॥ ( २३७१ ) सीताराम बी० ए०, ( उपनाम भूप कवि)
ये महाशय कायस्थ-कुलोद्भव अयोध्या-निवासी लाला शिवरत्न के पुत्र हैं। इन्होंने बी० ए० पास करके फ़ैजाबाद स्कूल में द्वितीय शिक्षक का पद ग्रहण किया। थोड़े दिनों के पीछे आप डेपुटी कलेक्टर नियत हुए और आजकल पेंशनर हैं। इनकी अवस्था प्रायः ७० वर्ष की है । ये महाशय संस्कृत और भाषा के अच्छे विद्वान् हैं, और इनकी प्रकृति ऐसी श्रमशील रही है कि ये अपने सरकारी कार्य के अतिरिक्त देशोपकारार्थ भी कुछ-न-कुछ लिखा ही करते हैं । इन्होंने संवत् १६४३ तक कालिदास-कृत रघुवंश के सात सर्गों का भाषा
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वर्तमान प्रकरण
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नुवाद किया था और फिर संवत् १६४६ में उसे पूर्ण किया। फिर क्रमशः इन्होंने कालिदास-कृत मेघदूत, कुमारसंभव, ऋतुसंहार और शृंगारतिलक का अनुवाद किया । रघुवंश और कुमारसंभव की रचना दोहा-चौपाइयों में, मेघदूत की घनाक्षरियों में, और शेष दोनों छोटे-छोटे ग्रंथों की विविध छंदों में हुई है। इस कवि ने कालिदास की कविता का चमत्कार लाने का उतना प्रयत्न नहीं किया जितना कि सीधी-सादी कथा कहने का । इसी कारण योरपियन समालोचकों ने तो इनकी मुक्त-कंठ से प्रशंसा की, परंतु हिंदी के सब समालोचकों ने इनकी कविता को उतना पसंद नहीं किया। इन्होंने कविसम्मानित शब्दों को विशेष आदर नहीं दिया है, और जहाँ ऐसे शब्द पा सकते थे, वहाँ भी कहीं-कहीं अव्यवहृत शब्द रख दिए हैं। यह भी एक कारण था जिससे कि कविजनों ने इनकी कविता बहुत पसंद नहीं की । इन्होंने कालिदास की रीति पर चलक एक अध्याय में एक ही छंद रक्खा है और जैसे अंत के दो-एक छंदोंर में कालिदास ने छंद बदल दिए हैं, उसी तरह इन्होंने भी किया है। यह रीति आदरणीय है, परंतु बहुत उत्कृष्ट काव्य न होने से एक ही छंद लिखने से वर्णन प्रायः अरुचिकर हो जाता है। इन सब बातों के होते हुए भी इन्होंने परिश्रम बहुत किया है और संस्कृत से अनभिज्ञ पाठकों का इनके ग्रंथों द्वारा उपकार अवश्य हुआ है। इन सब ग्रंथों में कोई विशेष दोष नहीं है, और इनकी भाषा श्रुतिकटु-दोष से रहित और मधुर है। इन सबमें मेघदूत और ऋतुसंहार की रचना अच्छी है। हमारे लाला साहब ने संस्कृत के कुछ नाटकों का भी उल्था किया है, जिनमें से मृच्छकटिक, महावीरचरित, उत्तर रामचरित, मालतीमाधव, मालविकाग्नि मित्र,
और नागनंद हमने देखे हैं। इनकी रचना गद्य और पद्य दोनों में हुई है । हमको इनके अन्य ग्रंथों की अपेक्षा नाटक-रचना
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मिश्रबंधु-विनोद अधिक रुचिकर हुई । गद्य में इन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग किया है, और वह सर्वथा अादरणीय है । गद्य में हम लाला साहब को उत्तम लेखक समझते हैं । दोहा-चौपाइयों में इन्होंने अवध की भाषा का प्राधान्य रक्खा है, परंतु घनाक्षरी श्रादि में अवधी और व्रजभाषा का मिश्रण कर दिया है । इन्होंने पद्य में खड़ी बोली का प्रयोग नहीं किया। इन महाशय ने गद्य के भी ग्रंथ लिखे हैं, जिनमें सावित्री का वर्णन हमारे पास मौजूद है । आपने और भी बहुतसे छोटे-छोटे ग्रंथ बनाए हैं, जिनको यहाँ लिखने की कोई श्रावश्यकता नहीं है, इधर इन्होंने कलकत्ता-विश्वविद्यालय के लिये हिंदी कविता का एक विशाल और उत्कृष्ट संग्रह तैयार किया है। इनकी गणना हम मधुसूदनदास की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थ इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैंमहाकाल जो बसत महेसा ; यह रहि तासु समीप नरेसा । पाख अँधेरेहु करत बिहारा , शुक्लपक्ष सुख लहत अपारा ॥ १ ॥ राखत सँयोग पास प्रान सों पियारि आजु,
करहुँ मनोरथ अनेक जिय धीर धरि । आपन सोहाग मम जीवन अधार जानि,
होहु ना निरास कछु चित्तहि उदास करि । यहि जग कौन सुख भोगत सदैव भूप,
काहि पुनि दुःख एक रहत जनम भरि ; ऊपर उठावत गिरावत धरनि पर,
चक्र-कोर-सरिस नचावत सबहिं हरि ॥२॥ सुनत अप्सरन गीत मनोहर ; भए समाधि भंग नहिं शंकर ; जिन-निज चित्त-वृत्ति धरि साधी । सके तोरि को तासु समाधी ॥ ३ ॥
बन नगत डादा प्रबल चहुँ दिसि भूमि सब लखियत जरी; लू चनत इत-उत उड़त सूखे पात रूखन सन झरी।
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वर्तमान प्रकरण
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दिननाथ तेज प्रचंड बस नहिं नीर देखिय ताल में ; . डर लगत देखत बन सकल यहि कठिन ग्रीषम काल में ॥ ४ ॥ नाम-( २३७२) फतेहसिंहजी ( चद ) राजा, पवाया,
जिला शाहजहाँपूर। ग्रंथ-(१) चंद्रोपदेश, (२) वर्णव्यवस्था, (३) फलित
ज्योतिष सिद्धांत, ( ४ ) प्लेग-प्रतिकार, (२) स्फुट काव्य,
समस्यापूर्ति इत्यादि। कविताकाल-वर्तमान । विवरण-ये पवाँया के राजा हैं। कविता अच्छी करते हैं और काव्य
तथा कवियों के बड़े प्रेमी हैं । आपकी अवस्था इस समय लगभग ६५ साल के होगी। यह ग्रंथ हमने देखे हैं । इनके अतिरिक्त शायद आपके और भी ग्रंथ हों।
(२३७३) बलवंतराव ये सेंधिया (प्रिंस ) ग्वालियर-निवासी हैं ! ये भी हिंदी-गद्य लिखते हैं। आपका एक लेख सरस्वती पत्रिका की छठी संख्या में है। आपकी अवस्था इस समय लगभग ६४ साल के होगी।
(२३७४) सूर्यप्रसाद मिश्र . ये मकनपूर जिला फर्रुखाबाद के निवासी हैं। आप हिंदी के अच्छे व्याख्यानदाता एवं प्रार्य-समाजी हैं । अापने कान्यकुब्ज सभा के हित में विशेष यत्न किया, और बहुत-से लेख भी लिखे । कुछ दिन के लिये श्राप मातंडानंद नाम-धारण करके फकीर भी हो गए थे, परंतु अब फिर गृहस्थ हैं । आपकी अवस्था प्रायः ६४ वर्ष की होगी।
सुकरात की मृत्यु और मार-पूजा-नामक दो ग्रंथ आपके हैं ।
(२३७५ ) दीनदयालु शर्मा व्याख्यान-वाचस्पति ये भारतधर्ममहामंडल के सबसे बड़े व्याख्यानदाता हैं। आपकी वाणी में बड़ा बल है, और आप बहुत उत्तम व्याख्यान देते हैं । आप
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मिश्रबंधु-विनोद की अवस्था प्रायः ७० वर्ष की होगी। आपने घूम-घूमकर भारत में सभी प्रांतों में व्याख्यान दिए हैं, और अच्छी सफलता प्राप्त की है।
(२३७६ ) महावीरप्रसाद द्विवेदी द्विवेदीजी का जन्म १६२१ में हुआ था। श्राप दौलतपूर, जिला रायबरेली के निवासी हैं। आप पहले जी० आई० पी० रेल के झाँसी में हेडक्लॉर्क थे, जहाँ आपका मासिक वेतन १९०) था, परंतु हिंदी-प्रेम के कारण आपने वह नौकरी छोड़कर संवत् १९६० से सरस्वती का संपादन प्रारंभ किया, और तब से बराबर बड़ी योग्यता से आप उसे सं० १९७६ तक चलाते रहे। आपके संपादकत्व में सरस्वती ने बड़ी उन्नति की है। केवल एक साल अस्वस्थता के कारण आपने इस काम से छुट्टी ले ली थी। हिंदी की उन्नति का कार्य श्राप सदैव बड़े उत्साह से करते रहे। दो साल से
आपने अस्वस्थ रहने के कारण सरस्वती का काम छोड़ दिया है, फिर भी कुछ-न-कुछ लोग इनसे लिखवा ही लेते हैं। आपने अपना अमूल्य पुस्तकालय नागरीप्रचारिणी सभा को दान कर दिया है, और अपनी संपत्ति का भी एक भाग हिंदी-प्रचार के लिये नियत कर दिया है। कुछ लोगों का विचार है कि आप वर्तमान समय में सर्वोत्कृष्ट गद्य. लेखक हैं। आपने बहुतेरे छोटे-बड़े ग्रंथों का गद्यानुवाद किया है। आपने कई समालोचना-ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें नैषधचरितचर्चा और विक्रमांकदेवचरितचर्चा प्रधान हैं। कालिदास की भी समालोचना अापने लिखी है । आपने खड़ी बोली की कुछ कविता भी की है, जो प्रायः २०० पृष्ठों के ग्रंथ-स्वरूप में छपी है। आजकल श्राप अपने जन्म स्थान दौलतपूर में रहते हैं। आपके ग्रंथों में हिंदी. भाषा की उत्पत्ति, शिक्षा, संपत्तिशास्त्र, वेकनविचाररत्नावली, स्वतंत्रता, सचित्र हिंदी-महाभारत, जलचिकित्सा आदि हमने देखे हैं । इधर आपके लेखों के कुछ पुस्तकाकार संग्रह और निकले हैं ।
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बानी बसै सुकवि भानन मैं सयानी; .
मानी जु जाय यह बात कही परानी। तौ सत्य-सत्य कविता कविरत्न तेरी
वाही त्रिलोकपरिपूजित देवि प्रेरी ॥१॥
तेजोनिधान रवि-बिंब सुदीप्ति-धारी;
श्राह्लादकारक शशी निशिताप हारी। जो थे प्रकाशमय पिंड न ये बनाए :
तो व्योम बीच कब ये किस भाँति पाए ? ॥२॥ समालोचना लिखने में द्विवेदीजी ने दोषों का वर्णन खूब किया है। आपकी रचनाओं में अनुवाद ग्रंथों की प्रचुरता है।
(२३७७) नंदकिशोर शुक्ल ये टेढ़ा, जिला उन्नाव के निवासी हैं । आपने राजतरंगिणी-नामक काश्मीर के प्रसिद्ध इतिहास-ग्रंथ के प्रथम भाग का हिंदी-गद्य में अनुवाद किया है। इनके और भी कई ग्रंथ अनुवादित तथा रचित हैं । आपकी अवस्था ६४ साल की होगी। आपके ग्रंथों में सनातनधर्म वा दयानंदी मर्म, उपनिषद् का उपदेश और भारतभक्ति प्रधान हैं। अापने कुल १३ ग्रंथ रचे । श्राप भारतधर्ममहामंडल के महोपदेशक हैं।
(२३७८ ) रत्नकुँवरि बीबी। ये महाशया मुर्शिदाबाद के जगत्सेठ घराने में जन्मी थीं और इन्होंने वृद्धावस्था तक बहुत सुखपूर्वक पुत्र-पौत्रों में अपना समय व्यतीत किया । बाबू शिवप्रसाद सितारोहिंद इनके पौत्र थे। ये संस्कृत और फारसी की अच्छी ज्ञाता थीं और योगाभ्यास में मी इन्होंने श्रम किया था । इनका आचरण बहुत प्रशंसनीय और अनुकरणीय था । इन्होंने संवत् १९४४ में प्रेमरत्न-नामक ग्रंथ बनाकर उसमें "श्रीकृष्ण व्रजचंद आनंदकंद की लीलाओं का उल्लेख परम
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मिश्रबंधु-विनोद प्रेम और प्रचुर प्रीति से किया है।" इनकी कविता अच्छी है। इनको गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में की जाती है। उदाहरणार्थ दो छंद नीचे दिए जाते हैं
अविगत आनंदकंद, परम पुरुष परमात्मा ; सुमिरि सु परमानंद, गावत कछुह रि-जस बिमल ॥ १ ॥ भगत हृदय सुखदैन, प्रेम पूरि पावन परम ; लहत श्रवन सुनि बैन, भववारिधि तारन तरन ॥ २ ॥
__ ( २३७९ ) ज्वालाप्रसाद मिश्र इनका जन्म संवत् १९१६ में, मुरादाबाद में, हुश्रा था। ये महाशय संस्कृत तथा हिंदी के बहुत अच्छे विद्वान् थे और स्वतंत्र ग्रंथ तथा अनुवाद मिलाकर कितने ही ग्रंथ इन्होंने बनाए । भारतधर्ममहामंडल के ये उपदेशक थे और मंडल ने इन्हें विद्यावारिधि एवं महोपदेशक की उपाधियाँ प्रदान की थीं। हिंदी में ये महाशय बहुत उत्तमतापूर्वक धारा बाँधकर व्याख्यान देते थे और सारे भारत में घुम-घूमकर सनातनधर्म पर व्याख्यान देना इनका काम था। कई सभाओं में आर्य-समाजी पंडितों से इन्होंने शास्त्रार्थ में जय पाई। आपने शुक्ल यजुर्वेद पर 'मिश्रभाष्य'-नामक एक विद्वत्तापूर्ण टीका रची । इसके अतिरिक्त तीस उत्कृष्ट संस्कृत ग्रंथों का आपने भाषानुवाद भी किया। तुलसी-कृत रामायण एवं बिहारी-सतसई की टीकाएँ भी पंडितजी की प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त दयानंदतिमिरभास्कर, जातिनिर्णय, अष्टादशपुराण, सीतावनवास नाटक, भक्तमाल
आदि कई अच्छी पुस्तकें भी इन्होंने लिखीं । इनकी विद्वत्ता तथा लेखनशक्ति बड़ी प्रशंसनीय है । कुछ दिन हुए आपका स्वर्गवास हो गया।
(२३८०) माननीय मदनमोहन मालवीय इन महानुभाव का जन्म संवत् १९१६ में, प्रयाग में, हुआ था।
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वर्तमान प्रकरण
१२७३ आपने २२ वर्ष की अवस्था में बी० ए० पास किया और संवत् ११४४ से ढाई वर्ष हिंदोस्तान-नामक हिंदी दैनिक पत्र का संपादन किया। इस पत्र के लेख देखने से मालवीयजी की हिंदी की योग्यता का परिचय मिलता है । संवत् १६४६ में आपने एल० एल० बी० परीक्षा पास कर ली और तभी से आप प्रयाग हाईकोर्ट में वकालत करते थे। आपने वकालत में लाखों रुपए पैदा किए और फिर भी देश हित की ओर प्रधानतया ध्यान रक्खा । श्राप छोटे तथा बड़े लाट की सभामों के सभ्य हैं और युक्तप्रांतों के राजनीतिक विषय में नेता हैं। १९६६ में लाहौर की कांग्रेस के श्राप सभापति हुए थे। प्रयाग में हिंदू-बोडिंगहाउस केवल आपके प्रयत्नों से बन गया। आपने सदैव लोकहितसाधन को अपना एकमात्र कर्तव्य माना है, और वकालत से बहुत अधिक ध्यान उस ओर रक्खा है। अब आप वकालत छोड़कर लोक-हित ही में लगे रहते हैं । आप अँगरेज़ी के बहुत बड़े व्याख्यानदाताओं में हैं और शुद्ध हिंदी में धारा बाँधकर उत्तम व्याख्यान
आपके बराबर कोई भी नहीं दे सकता । वर्तमान समय के बड़े-बड़े व्याख्यानदाताओं के व्याख्यानों में हमें बहुधा मूर्खमोहिनी विद्या ही देख पड़ी, पर मालवीयजी के व्याख्यानों में पंडित-मोहिनी विद्या पूर्णरूपेण पाई जाती है। आपका जन्म धन्य है और आपका जीवन वास्तव में सार्थक है । मालवीयजी ने कोई हिंदी का ग्रंथ नहीं रचा, पर आप लेखक बहुत अच्छे हैं । हिंदू-विश्वविद्यालय आप ही के परिश्रम का फल है। आप जिस समय उसकी अपील करने निकलते हैं तब लाखों ही रुपए इकट्ठे कर लाते हैं । ईश्वर आपको चिरायु करे ।
(२३८१) माधवप्रसाद मिश्र ये झज्झर जिला रोहतक के निवासी थे । प्रायः १८ साल हुए करीब ४० वर्ष की अवस्था में स्वर्गवासी हुए । पाप सुदर्शन मासिक पत्र के संपादक और गद्य हिंदी के बड़े ही प्रबल लेखक थे। आपने
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मिश्रबंधु-विनोद कुछ छंद भी कहे हैं । आपने दर्शन-शास्त्र पर दो-एक लेख लिखे थे और स्फुट विषयों पर अनेकानेक गंभीर प्रबंध रचे । आप संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे और प्रायः गंभीर विषयों ही पर लेख लिखते थे। आपका रहना विशेषतया काशी में होता था। आपकी अकाल मृत्यु से हिंदी को बड़ी हानि हुई। (२३८२) जुगुलकिशोर मिश्र, ( उपनाम ब्रजराज कवि )
श्रापका जन्म संवत् १६१८ में, गँधौली, जिला सीतापुर में, हुआ था। आपके पिता पंडित नंदकिशोर मिश्र उपनाम लेखराज एक परम प्रसिद्ध हिंदी के कवि थे । बाल्यावस्था में व्रजराजजी ने फ़ारसी तथा हिंदी पढ़कर अपने चचा बनवारीलालजी से कविता सीखी, जो महाशय रचना तो नहीं करते थे, परंतु दशांग कविता में बड़े ही निपुण थे। लेखराजजी साधारणतया एक बड़े ज़िमींदार थे। इनकी प्रथम स्त्री से द्विजराज का जन्म हुआ और द्वितीय से व्रजराज और रसिकविहारी उपनाम साधू का । लेखराजजी रईसों की भाँति रहते थे और अपना प्रबंध कुछ भी नहीं देखते थे। इस कारण इनके ज्येष्ठ पुत्र द्विजराजजी सब प्रबंध करते थे। इनके बहुव्ययी होने के कारण सब प्राय उड़ जाती थी और कुछ ऋण भी हो गया । व्रजराजजी अच्छे प्रबंधकर्ता थे, सो ये बातें इनको बहुत अरुचिकारिणी हुईं। अतः अपने पिता से कहकर इन्होंने संपत्ति का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। इस बात से द्विज. राजजी से इनसे मनोमालिन्य हो गया, जो दिनोंदिन बढ़ते-बढ़ते प्रचंड शत्रुता की हद तक पहुँच गया। कभी इनके हाथ में प्रबंध रहता था, कभी द्विजराज के । इस प्रकार प्रबंध ठीक कभी न हुआ
और ऋण बना ही रहा । कुछ दिनों में इन्हें पेशाब रुकने का रोग हो गया, जिससे ये मरणप्राय अवस्था को पहुँच गए । २८ वर्ष की अवस्था में डॉक्टर के शस्त्राघात से इनके प्राण बचे, परंतु रोग कुछ
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वर्तमान प्रकरण
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कुछ बना ही रहा । संवत् १९४६ में इनके पिता का स्वर्गवास हुआ। मृत्यु के पूर्व उन्होंने अाधी रियासत द्विजराजजी को दे दी और प्राधी ब्रजराजजी एवं साधू को। व्रजराजजी अपुत्र थे और साधू से इनसे विशेष मेल था, इसी कारण लेखराजजी ने ऐसा बटवारा किया कि उनके दोनों पुत्रवान् लड़कों के संतान अंत में आधा-आधा पावें । अपने पिता के पीछे इन्होंने तो प्रबंध करके तीन ही वर्ष में सब अपने भाग का पैत्रिक ऋण चुका दिया, पर द्विजराजजी का ऋण बहुत बढ़ गया।
ब्रजराजजी दशांग कविता में बड़े ही निपुण थे । हमने आज तक ऐसा हिंदी-कविता-रीति-निपुण मनुष्य नहीं देखा । सब कविता के जाननेवालों में रीति-नैपुण्य में हम इन्हीं को सिरे मानते हैं । बड़े-बड़े कविगण इनके शिष्य हैं । हममें से शुकदेवविहारी मिश्र ने भी इन्हीं से कविता-रीति पढ़ी। सं० १९६६ में ये ऐसे अस्वस्थ हो गए थे कि इनको जीवन की आशा नहीं रही थी। उस समय इन्होंने साधू
और शुकदेवविहारी से यही कहा था कि "मरने का मुझे कुछ भी पश्चात्ताप नहीं है, परंतु केवल इतना खेद है कि मेरे पास जो कविता-रत्न है वह तुममें से किसी ने न ले लिया और वह अब मेरे ही साथ जाता है।" ईश्वर ने इन्हें फिर नीरोग कर दिया और फिर ये पूर्ववत् अच्छे हो गए । केवल रोग का थोड़ा-सा खटका, जो इनका चिरसाथी था, वर्तमान रहा । इनके पास हस्त-लिखित हिंदी के उत्तम ग्रंथों का अच्छा संग्रह था । ग्रंथावलोकन का इन्हें अच्छा शौक था, पर ये स्वयं रचना बहुत नहीं करते थे। फिर भी समस्यापूर्ति आदि पर सैकड़ों छंद आपने बनाए हैं। समस्यापूर्ति के पत्रों की प्रथा
आप ही के अनुरोध से निकली थी। श्राप साहित्य-पारिजात-नामक एक दशांग कविता का ग्रंथ बना रहे थे, जो पूर्ण नहीं हुआ था। देव-कृत शब्द-रसायन पर आप काव्यात्मक-टिप्पणी भी लिखते थे।
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मिश्रबंधु-विनोद
दुर्भाग्य वश वह भी अपूर्ण ही रही। आपकी कविता बढ़ी ही सरस होती थी और उसमें ऊँचे-ऊँचे भाव बहुत रहते थे। हम इनकी गणना तोष की श्रेणी में करते हैं । सन् १९१७ में इनका भी शरीरपात हो गया।
उदाहरणसमुहातहि मैली प्रभा को धरै नित नूतन प्रानि कै फोस्यो करें ; सरसी ढिग जात में देई लखात न या डर सोंग जोरयों करें । ब्रजराज हितै नभ ओर चितै नहिं तू भरमै यों निहोरयो करें ; तऊ पारसी कंज ससी सकुचें इनसों कबलौं मुख मोरयो करें ॥१॥ सारी सिर बैंजनी मैं कंचन बुटी की श्रोप,
मुकुत किनारी चहुँ पोरन गसत हैं ; जरबीली जरित जरी की जाफरानी पाग,
कोर मैं जमुरंदी जवाहिर लसत हैं। रतन-सिंहासन पै दीन्हे गल बाही,
मुख-चंद मुसुकाय भवताप को नसत हैं ; या बिधि अनंद-भरे राधा ब्रजचंद सदा,
दंपति चरण मेरे हिय मैं बसत हैं ॥ २ ॥ (२३८३ ) गोपालरामजी गहमर, जिला गाजीपूर-निवासी
आपका जन्म १६१३ में हुआ था । आप हिंदी गद्य के प्रसिद्ध लेखक हैं। कई वर्षों से आप जासूस-पत्र के संपादक हैं । अच्छे उपन्यास भी आपने कई लिखे हैं। चतुरचंचला, माधवीकंकण, भानमती, सौभद्रा, नए बाबू, मैं और मेरा दाता तथा अनेक जासूसी उपन्यास आपके बनाए हुए भाषा-संसार को चमस्कृत कर रहे हैं । श्रापका कविताकाल संवत् १६४५ से समझना चाहिए। आपकी बनाई हुई प्रायः १०० पुस्तकें हैं । चित्रांगदा, सोना शतक तथा वसंतविकास. नामक तीन पद्य ग्रंथ भी आपने रचे हैं।
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वर्तमान प्रकरण
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उदाहरण
जा कहँ रति कहि पूत खिलाई ; पय निज छातिन केर पिलाई । सोई प्रद्युम्न्न पती रति नारी ; भाल लिखी लिपि को सकटारी ( २३८४ ) ज्वालाप्रसाद वाजपेयी
इनका उपनाम मखजातक था। ये तार गाँव जिला उन्नाव के निवासी थे । आपका रचनाकाल संवत् १६४५ के लगभग समझ पढ़ता | श्राप साधारण श्रेणी के कवि थे ।
( २३८५ ) अमृतलाल चक्रवर्ती
ये नावरा जिला चौबीस परगना के निवासी संवत् १३२० में उत्पन्न हुए थे | श्राप एक प्रसिद्ध प्राचीन लेखक हैं और समय-समय पर हिंदी गवासी, वेंकटेश्वर एवं हिंदोस्तान का संपादन किया, तथा आपकी रची हुई पुस्तकों के नाम ये हैं- गीता की हिंदी टीका, सिखयुद्ध, महाभारत, सामुद्रिक, गीत-गोविंद गद्यानुवाद, देश की बात, विलायत की चिट्ठी, भरतपुर का युद्ध, सती सुखदेई, हिंदू-विधवा और चंदा । आप धन्य हैं कि बंगाली होकर भी हिंदी पर इतना अनुराग रखते हैं । वृंदावन में होनेवाले सोलहवें साहित्य सम्मेलन के सभापति आप ही थे । ( २३८६ ) श्रीधर पाठक
ये महाशय पत्नी गल्ली आगरा के रहनेवाले और नहर विभाग में उच्च पदाधिकारी थे । अब पेंशन लेकर लूकरगंज प्रयाग में रहने लगे हैं । इनका जन्म १९१६ में हुआ था । ये बहुत दिनों से कविता करते हैं, और उजड़ ग्राम, इवैजिलाइन, श्रांतपथिक तथा एकांतवासी योगी - नामक चार ग्रंथ अँगरेज़ी कविता के पद्यानुवाद खड़ी बोली में बना चुके हैं, और अपनी स्फुट कविता का संग्रह-स्वरूप मनोविनोद-नामक एक ग्रंथ प्रकाशित कर चुके हैं। इसमें कुछ संस्कृत कविता के अच्छी व्रजभाषा में भी मनोहर अनुवाद हैं। श्राराध्य शोकांजलि, गोखले गुणाटक, गोखले प्रशस्ति, गोपिका गीत देहरादून, भारत गीत, वनाष्टक,
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मिश्रबंधु-विनोद जगत-सचाई-सार तथा पद्यसंग्रह-नामक इनकी नौ कविता-पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस सरफ़ कुछ और छोटे-छोटे ग्रंथ आपने रचे हैं । पाठकजी ने खड़ी बोली तथा व्रजभाषा दोनों की कविता परम विशद की है, और इनका श्रम सर्वतोभावेन प्रशंसनीय है। गद्य के भी लेख इनके अच्छे होते हैं। इन्होंने अपनी रचना में पदमैत्री की प्रधानता रक्खा है, और कुछ चित्रकाव्य भी किया है। आपने प्राचीन श्रृंगार-रस-वर्णन की प्रणाली छोड़कर साधारण कामकाजी बातों का वर्णन अधिक किया है । उद्योग, परिश्रम, वाणिज्थ आदि की प्रशंसा इनकी रचना में बहुत है । सामाजिक सुधारों पर भी इनका ध्यान है । इनकी रचना में अनुवादों की संख्या स्वतंत्र-रचना से बहुत अधिक है, पर इनके अनुवाद स्वतंत्र-रचनाओं का-सा स्वाद देते हैं। श्राप लखनऊ के साहित्य सम्मेलन में प्रधान रह चुके हैं।
उदाहरणए धन स्यामता तो मैं घनी तन बिज्जु छटा को पितंबर राजै ; दादुर-मोर-पपीहा-मई अलबेली मनोहर बाँसुरी बाजै । सौ बिधि सों नवला अबला उर पास बिलास हुलास उपाजै ; जो कछु स्याम कियो ब्रजमंडल सो सब तू भुवमंडल साजै ॥१॥
उस कारीगर ने कैसा यह सुंदर चित्र बनाया है; कहीं पै जलमै कहीं रेतमै कहीं धूप कहिं छाया है।
नव जोबन के सुधा सलिल में क्या बिष-बिंदु मिलाया है ; अपनी सौख्य बाटिका में क्या कंटक-वृक्ष लगाया है ॥२॥ प्रानपियारे की गुन-गाथा साधु कहाँ तक मैं गाऊँ; गाते-गाते नहीं चुकै वह चाहै मैं ही चुक जाऊँ ॥३॥
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वर्तमान प्रकरण
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चंचल जो सफरी फरक मनु मंजु नसी कटि किंकिनि डोरो ; सेत बिहंगनि की सुठि पंगति राजति सुंदर हार जौं गोरी। तीर के बृच्छ बिसाल नितंब सुमंद प्रबाह भई गति थोरी; राजति या ऋतु मैं सरिता गजगामिनि कामिनि सी रसबोरी ॥४।। ( २३८७ ) गौरीशंकर-हीराचंद ओझा रायबहादुर
इन पंडितजी का जन्म संवत् १९२० में, सिरोहीराज्यांतर्गत रोहिड़ा ग्राम में, हुआ था । श्राप सहस्र औदीच्य ब्राह्मण हैं । आपने संस्कृत तथा भाषा की अच्छी योग्यता प्राप्त की है, और आप अँगरेज़ी भी जानते हैं। पुरातत्त्व-अनुसंधान में श्रापको बड़ी रुचि है ; इस विषय में आप परम प्रवीण हैं। ये अजमेर अजायब-घर के अध्यक्ष हैं। आपने प्राचीन लिपिमाला, कर्नल टाड का जीवन-चरित्र, सिरोही का इतिहास, टाड राजस्थान के अनुवाद पर टिप्पणियाँ और सोलंकियों का इतिहास-नामक राजपूताना का इतिहास-ग्रंथ रचे हैं। प्राचीन लिपिमाला के पढ़ने से प्राचीन लिपियों के जानने में योग्यता प्राप्त हो सकती है । पंडितजी ऐतिहासिक ग्रंथमाला-नामक एक पुस्तकावनी प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इतिहास-ग्रंथ छपते हैं। आप एक सुलेखक
और परम सतोगुणी प्रकृति के मनुष्य हैं, और आपके प्रयत्नों से भाषा में इतिहास-विभाग के पूर्ण होने की आशा है । आप हिंदी-साहित्यसम्मेलन से १२००) पुरस्कार पा चुके हैं।
___ (२३८८ ) विनायकराव (पंडित ) आपका जन्म १९१२ में हुआ था । आप १००) मासिक पर होशंगाबाद के हेड मास्टर थे। अंत में २२०) के वेतन से आपने पेंशन पाई । आपने हिंदी की प्रायः २० पुस्तकें रची, जो विशेषतया शिक्षा विभाग की हैं। आपने रामायण की विनायकी टीका की है, जो प्रशंसनीय है और काव्य-रचना भी की है।
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मिश्रबंधु-विनोद (२३८९ ) विशाल कवि ( भैरवप्रसाद वाजपेयी) इनका जन्म संवत् १९२६ में, लखनऊ-शहर, मोहल्ला खेतगली में, हुआ था। आपके पिता का नाम पंडित कालिकाप्रसाद था । पाप उपमन्युगोत्री चूड़ापतिवाले अाँक के वाजपेयी थे। आपका विवाह हमारी दूसरी बहन के साथ संवत् १९३८ में हुआ था और उसी समय से आप हमारे यहाँ विशेष आने-जाने लगे तथा कुछ वर्षों के पीछे हमारे ही यहाँ रहने भी लगे। इन कारणों से इनसे हम लोगों का विशेष प्रेम हो गया था। आपने अँगरेज़ी-मिडिल पास किया, पर उसकी प्रसन्नता में एंट्रेंस में अच्छा परिश्रम न किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि इस परीक्षा में श्राप उत्तीर्ण न हो सके । हमारे पिताजी कवि थे, तथा गधौली-निवासी लेखराजजी और उनके पुत्र लालविहारी और जुगुलकिशोर भी कविता करते थे । ये लोग हमारी बिरादरी में हैं और इनके यहाँ जाना-बाना सदैव रहता था। शिवदयालु पांडेय उपनाम भेष कवि भी हमारे संबंधी थे
और हमारे यहाँ पाया-जाया करते थे। इन कारणों से हमारे यहाँ कविता की सदैव चर्चा रहती थी। सो विशालजी को भी बाल्या. वस्था से ही काव्य-रचना का शौक हो गया। पहले तुलसी-कृत रामायण एवं काशिराज का भाषा-भारत इन्होंने पढ़ा और पीछे हमारे पिताजी से केशवदास की रामचंद्रिका पढ़ी। इसी के पीछे श्राप काव्य-रचना करने लगे। लालविहारीजी ने इनका कविता का नाम विशाल रख दिया और तभी से ये इसी नाम से रचना करने लगे। एंट्रेस फेल हो जाने के पीछे इनके माता-पिता का देहांत हो गया। इनके भाई-बहन आदि कोई निकट का संबंधी न था । इधर जीविका-निर्वाह की कोई चिंता न थी। सो इनका मन काम-काज से छटकर कविता ही में लग गया। अब आपने गंधौली में प्रायः डेढ़ साल रहकर पंडित जुगुलकिशोर मिश्र से दशांग कविता सीखी।
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वर्तमान प्रकरण यह हाल संवत् १९५३ के इधर-उधर का है । इसके पूर्व सिसेंडी के राजा चंद्रशेखर के इलाके में कुछ दिन आपने जिलेदारी की थी, पर उससे आपका जी इतना ऊबा था कि उसे छोड़कर भाप भाग गए थे। गधौली से कविता सीखकर आप फिर लखनऊ में हमारे यहाँ रहने लगे। आपकी कई पुश्तों से कुछ संकल्प की भूमि ठाकुर रामेश्वरबख़्श रईस परसेहँड़ी के इलाके में चली आती है। उसी के संबंध से आप ठाकुर साहब के यहाँ जाने-आने लगे और ठाकुर साहब के भी कविता-प्रेमी होने के कारण आपका उनसे प्रेम विशेष बढ़ गया। उनकी प्रशंसा के आपने बहुत-से छंद बनाए हैं । आपके पूर्व-पुरुष ठाकुर साहब के पूर्व-पुरुषों के गुरु थे, सो ठाकुर साहब इनमें भी गरु-भाव रखते थे। इसी भाव का एक विशालाष्टक रचकर ठाकुर साहब ने इनकी बड़ी प्रशंसा की है। कुछ काम न होने से आप उस प्रांत के कुछ अन्य रईसों के यहाँ भी जाने-माने लगे। इनमें से ठाकुर दुर्गाबख्श के आपने उत्तम छंद रचे । ठाकर अनिरुद्धसिंह
और दीन कवि से प्रापका विशेषतया मित्र-भाव था । विशालजी प्रकृति से कुछ आलसी भी थे, सो कोई अन्य कार्य न होने पर भी आपने कविता बहुत नहीं बनाई । आपके कई पुत्र और कन्याएँ हुई, पर दुर्भाग्य-वश उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहीं । इनके मरणकाल में एक चार वर्ष का पुत्र था, पर वह भी इन्हीं के केवल २० दिन पीछे विस्फोटक रोग से मर गया। विशालजी विशेषतया मधुरप्रिय थे। संवत् १९६१ में आपको कुछ खाँसी पाने लगी, जो मधुर भोजन के कारण शांत न हुई । दूसरे वर्ष एक भारी फोड़ा हो गया जो इन्हें बेहोश करके चीरा गया। उसकी दवा में फट साल्ट आदि खाने से फोड़ा तो अच्छा हो गया, परंतु खाँसी कुछ बढ़ गई । आपने इस पर कुछ विशेष ध्यान न दिया और इसकी साधारण दवा होती रही। इसी के साथ कुछ हलका बुखार भी प्रायः छः मास के
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मिश्र बंधु विनोद
पीछे आने लगा, पर किसी ने उसे जान नहीं पाया। शरीर से आप स्थूल थे, सो अस्वस्थता में भी अच्छे देख पड़ते थे । संवत् १६६३ में खाँसी शांत न होते देखकर हम लोगों ने इन्हें बहुत समझाया कि ये भोजन में पूरा बराव करें और दवा जमकर की जावे । उसी समय से श्रापने दवा पर अच्छा ध्यान दिया और पथ्य का भी पूरा विचार रक्खा, परंतु लाख-लाख दवा करने पर भी ईश्वरेच्छा के आगे कोई वश न चला और प्रायः एक वर्ष और रुग्ण रहकर संवत् १६६४ में २५ दिसंबर सन् १९०७ ई० को इनका शरीर-पात हो गया ।
विशालजी की प्रकृति बड़ी शांत थी, और इन्हें क्रोध आते हमने कभी नहीं देखा । आपसे मज़ाक़ में कोई पेश नहीं पाता था। बड़ेबड़े उस्ताद जानिए आपसे पराजित हो गए। आपके साथ बैठने में चित्त सदैव प्रसन्न रहता था, चाहे जितना बड़ा दुःख ही क्यों न हो । आपमें सभाचातुरी की मात्रा बहुत थी और हास्य रस के तो आप आचार्य ही थे । हमारी कविता ये सदैव बड़े प्रेम से सुनते और हमें अपनी सुनाते थे। दूसरे की रचना श्राप इतनी पसंद करते थे कि यद्यपि लवकुशचरित्र एक परम साधारण ग्रंथ था, तथापि उसकी प्रशंसा में आपने एक छोटा-मोटा प्रायः १५० छंदों का ग्रंथ ही रच डाला । होली से संबंध रखनेवाले अश्लील विषयों पर भी आपने बहुत रचना की है। होलिका भरण- नामक एक अलंकारग्रंथ आपने ऐसा रचा, जिसके प्रत्येक दोहे में अलंकार अश्लील वर्णन में निकाला । उसमें सब अलंकार आ गए हैं । इसी प्रकार नायिकाभेद के भी बहुत-से छंद इसी विषय में रचे गए । ये छंद सवैया एवं घनाक्षरी हैं और बहुत उत्तम बने हैं, परंतु कहीं पढ़ने योग्य नहीं हैं। आपने दोहा - चौपाइयों में एक श्रवणोपाख्यान बनाया था, परंतु वह गुम हो गया । पाप-विमोचन नामक ८४ सवैया कवित्तों का
पने एक शंकर-स्तुति का ग्रंथ रचा था, जो अच्छा है । अपने मित्रों
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वर्तमान प्रकरण
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एवं रईसों की प्रशंसा के आपने बहुस-से उत्कृष्ट छंद बनाए और भँडौला छंदों की भी अच्छी बहुतायत रक्खी । शृंगार-रस एवं अन्य विषयों के भी स्फुट छंद आपने सैकड़ों रचे । आपके अश्लील, भँडौमा
और प्रशंसा के छंद बहुत अच्छे बनते थे । हम आपको तोष की श्रेणी में समझते हैं।
उदाहरणअंगरेजी पढ़ी जब सों तब सों हमरो तुमपै बिसवास नहीं ; तुम हो कि नहीं यह सोचो करें परमान मिलै परकास नहीं । बिनु जाने न होत सनेह बिसाल सनेह बिना अभिलास नहीं ; यहि कारन ते हमको सिवजी तरिबे की रही कछु पास नहीं ॥१॥ जीव बधै न हरै परसंपति लोगन सों सति बैन कहै नित ; काल पै दान यथागति दै पर-तीय कथान मैं मौन रहै नित। तृष्णहि त्यागै बड़ेन नवै सब लोगन पै करुना को गहै नित ; शास्त्र समान गनै सिगरे सुखदा यह गैल बिसाल अहै नित ॥२॥ जो पर-तीय रम्यो न कबौं तौ कहा दुख झेलत गंग के भारन ; जो भवसूल नसावत हो तो करयो केहि हेत त्रिसूल है धारन । देत जु माल बिसाल सदा तौ लपेटे रहौ कत ब्याल हजारन ; कामहि जारयो जु हे सिव तौ गिरिजा अरधंग धरयो केहि कारन ॥३॥ आवत हैं परभात इतै चलि जात हैं रात उतै निज गोहैं ; मोढिग जो पै रहैं कबहूँ तबहूँ उसही की लिए हैं टोहैं । सौहैं बिसाल करें इत लाखन पै अभिलाषि उतै मन मोहैं ; होति परी हित हानि खरी तऊ लालची लोचन लाल को जोहैं ॥४॥ कैलिया कूकन लागी बिसाल पलास की आँच सों देह दहै लगी; बौरन लागे रसाल सबै कल कंजन को अलि भीर चहै लगी। जीव को लेन लगे पपिहा तिय मान की बात क्यों मोसों कहै लगी ; श्राजु इकंत मिलै किन कंत सों बीर बसंत बयारि बहै लगी ॥३॥
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मिश्रबंधु-विनोद
जलदान की दृष्टि भई चहुँघा महिमंडल को दुख दूरि गयो ; खल पास जवास नसी छिन मैं बक ध्यानिन बास प्रकास नयो । दुज दादुर बेद मैं सुख सों मन साल बिहाय बिसाल भयो । पिक मागध गान करें जस को ऋतु पावस कै नृप नीति मयो ॥६॥
(२३९० ) रामराव चिंचोलकर । इनका संवत् १९६० के लगभग प्रायः ४० वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया। अापकी प्रकृति बड़ी ही सौजन्यपूर्ण और सरल थी। श्राप पंडित माधवराव सप्रे के साथ छत्तीसगढ़-मित्र का संपादन करते थे। एक बार हमने मज़ाक में कहा कि इस पत्र को 'नाऊगढ़मित्र' भी कह सकते हैं, क्योंकि 'नाऊ' को छत्तीसा कहते हैं । इस पर अापने केवल इतना ही कहा कि "ऐसा !" और ज़रा भी बुरा न माना । आप छत्तीसगढ़-निवासी महाराष्ट्र ब्राह्मण थे। नाम-(२३९१) शिवसंपति सुजान भूमिहार, उदिया,
जिला आजमगढ़। ग्रंथ-(१) शतक, (२) शिक्षावली, (३) शिवसंपति
सर्वस्व, (४) नीतिशतक, (५) शिवसंपतिसंवाद, (६) नीतिचंद्रिका, (७) आर्यधर्मचंद्रिका, (८) वसंतचंद्रिका, () चौतालचंद्रिका, (१०) सभामोहिनी, (११) यौवनचंद्रिका, (१२ ) जौनपुर-जलप्रवाहविलाप, (१३) मनमोहिनी, (१४) पचरा-प्रकाश, (११) भारतविलाप, (१६) प्रेमप्रकाश, (१७) ब्रजचंदबिलास, (८) प्रयागप्रपंच, (१६) सावनबिरहबिलाप, (२०) राधिका-उराहनो, (२१) ऋतुविनोद, (२२) कजलीचंद्रिका, (२३) स्वर्ण कुँवरिविनय, (२४) शिवसंपतिविजय, ( २५) शत्रुसंहार, (२६) शिवसंपति साठा, (२७) प्राणपियारी, (२८)
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वर्तमान प्रकरण
१२८१ कलिकालकौतुक, (२६) उपाध्यायी-उपद्रव, (३०) चितचुरावनी, (३१) स्वारथी संसार, (३२) नए बाबु, (३३) पुरानी लकीर के फकीर, (३४) शतमूर्ख प्रकाशिका, (३५) भूमिहारभूषण, (३६) कलियुगोपकार-ब्रह्म
हत्या जन्मकाल-१९२०। कविताकाल-१९४५।
(२३९२) लाजपतराय ( लाला) इनका जन्म संवत् १९२२ में, ज़िला लुधियाना के जगरन नाम नगर में, एक अग्रवाल वैश्य-घराने में, हुआ था । आपने वकालत में अच्छी ख्याति पाई और आर्य-समाज एवं देशहित-साधन के कार्यों के कारण आपको बहुतेरे भारतवासी ऋषिवत् पूज्य समझते हैं । लाला साहब ने दयानंद-कॉलेज को अच्छी सहायता दी और अकाल-पीड़ितों के लिये श्लाघय श्रम किया। एक बार राजद्रोह के संदेह में आप प्रायः छः मास तक बर्मा में कैद कर दिए गए थे। हिंदी-गद्य-लेखन की ओर भी आपका ध्यान रहता है । आपने अच्छे-अच्छे लेख लिखे हैं । आपने भारतवर्ष का इतिहास-नामक एक इतिहास-ग्रंथ लिखा है। आपकी आयु का अधिक समय देश-हित के कामों में लगता है। आजकल देश-नेताओं में आपका नंबर बहुत अच्छा माना जाता है।
इस समय के अन्य कविगण
समय सं० १९३६ नाम-( २३६२ ) आदिलराम । संगीतादित्य ग्रंथ भाषा में .
बनाया। रचनाकाल-संवत् १६३६ । नाम-(२३९३) दयानिधि ब्राह्मण, पटना ।
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मिश्रबंधु-विनोद विवरण-कविता बहुत रोचक और उत्तम है । इनकी गणना तोष
__की श्रेणी में है। नाम-(२३९४ ) साधोराम कायस्थ, मौजा पनगरा, जिला
बाँदा। ग्रंथ-(.) रामविनयशतक, (२) चित्रकूटमाहात्म्य ।
समय सं० १९३७ नाम-( २३९५) कालीचरण ( सेवक ) कायस्थ, नरवल,
कानपूर । विवरण-कायस्थ कानफ्रेंस गज़ट के संपादक थे । नाम-(२३९६ ) जगन्नाथसहाय कायस्थ, बड़ा बाजार,
हजारीबारा। ग्रंथ-(१) आनंदसागर, ( २ ) प्रेमरसामृत, (३) भक्त
रसनामृत, (४) भजनावली, (५ ) कृष्णबाललीला, (६) मनोरंजन, (७) चौदह रत्न, (८) गोपालसहस्र
नाम । नाम-(२३९७ ) ठकुरेशजी। ग्रंथ- स्फुट छंद लगभग १००० । जन्मकाल-१९१२ । नाम-(२३९८ ) ठाकुरदास । ग्रंथ-(१) भक्तकवितावली (१९१०), (२) रुक्मिणीमंगल
[प्र० त्रै० रि], (३) कृष्णचंद्रिका (१९३७), (४) - श्रीजानकीस्वयंवर (१९४८), (५) गोवर्द्धनलीला मेला
सदन (१६४०)। नाम-( २३९९) देवीसिंह राजा, चँदेरी। ग्रंथ-(१) नृसिंहलीला, (२) आयुर्वेदविलास, (३) रहस
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वर्तमान प्रकरण
१२९७ • लीला, (४) देवीसिंहविलास, (.) अर्बुदविनास,
(६) बारहमासी। विवरण-मधुसूदनदास की श्रेणी में। नाम-( २४०० ) द्वारिकाप्रसाद ब्राह्मण, बस्ती । ग्रंथ–चौतालवाटिका । [द्वि० ० रि०] नाम-(२४०१) नारायणदास, वृंदावन । जन्मकाल-१६१२। नाम--(२४०१) प्रियादास भटनागर, सिकंदराबाद, देहली। नाम-(२४०२) मथुराप्रसाद ब्राह्मण, सुकुलपुर । ग्रंथ--(1) गोपानशतक, (२) मथुराभूषण, (३) हनुमत
विरदावली, (४) फागविहार । जन्मकाल- "। नाम-(२४०३) रघुनाथप्रसाद कायस्थ, काशी। ग्रंथ -राधानखशिख (पृ. ७६ )। [द्वि० त्रै• रि•] नाम-(२४०४) रामचरित्र तेवारी, आजमगढ़। ग्रंथ-जंगल में मंगल । नाम-(२४०४) महाराजा विजयसिंह, शिवपुर, बड़ोदा। ग्रंथ-(.) विजयरसचंद्रिका। कविताकान-१९३७ । जन्मकाल-१६१६ । विवरण-राधावल्लभी। नाम-(२४०५) सन्नूलाल गुप्त, बुलंदशहर । ग्रंथ-(.) खीसुबोधिनी, (२) बालाबोधिनी, (३) सुरमि
संताप। जन्मकाल-१९१२ ।
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( २४०६ ) सीताराम ब्राह्मण, शंकरगंज, राज्य रीवाँ ।
जन्मकाळ - १६१२ ।
नाम - (२४०७ ) हरदेवबख्श ( हरदेव ) कायस्थ । ग्रंथ - (१) पिंगल भास्कर, (२) ऊषाचरित्र, (३) जानकीविजय, ( ४ ) लत्रकुशी ।
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जन्मकाल - १६६२ ।
समय सं० १९३८ के पूर्व
नाम - ( २४०८ ) किनाराम, बाबा रामनगर, बनारस । ग्रंथ - रामरसाल । [ द्वि० ०रि० ]
नाम - ( २४०९ ) बोधीदास ।
ग्रंथ - बोधीदास कृत भूलना । [ द्वि० ०रि० ] नाम - ( २४०६ ) भैरवनाथ मिश्र । ग्रंथ - चंडीचरित्र । [ तृ० त्रै०रि० ] रचनाकाल - १६३८ के पूर्व ।
विवरण - चेतराम के पुत्र थे 1
समय सं० १९३८
नाम - ( २४१० ) गिरिजादत्त शुक्ल, महेशदत्त के पुत्र, धनौली, जिला बारहबंकी ।
ग्रंथ - (१) श्रीकृष्णकथाकर, (२) संस्कृतव्याकरणाभरण ।
जन्मकाल - १६१३ ।
विवरण - ये तहसीलदारी की पेंशन पाते थे और अच्छे पंडित तथा भाषाप्रेमी थे ।
नाम - ( २४११ ) गुलाबराम राव । ग्रंथ-नीतिमंजरी 1
नाम - ( २४११ ) दासानंद, छत्रपूरवासी ।
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___ वर्तमान प्रकरम
१२८१ ग्रंथ-हरदौलत को ज्याल। [प्र० त्रै० रि०] .. नाम-(२४१२) दरियाव दौवा । इनका ठीक नंबर
(१२८१) है। नाम-(२४१३) दुर्गाप्रसाद कायस्थ, चरखारी, बुंदेल
खंड। ग्रंथ-(.) भानुपुराण, (२) गोबर्धनलीला, (३) भक्ति
श्रृंगारशिरोमणि, (४) ध्यानस्तुति, (५) मिलाफ
लीला, (६) राधाकृष्णाष्टक । जन्मकाल-१९१३ । नाम-(२४१४) पंचदेव पांडे, रेवती, बलिया। ग्रंथ-पंचदेव रामायण ग्रंथ । विवरण-आप अध्यापक थे और पाठ्य-पुस्तकें भी आपने
बनाई हैं। नाम-( २४१४ ) बिहारी, दतियावासी। .. . अंथ-गणितचंद्रिका । [प्र० त्रै० रि०]
नाम-(२४१४ ) बोधिदास बाबा। ग्रंथ-भक्तिविवेक । [ च० ० रि•] नाम-(२४१५) भोलानाथलाल ब्राह्मण गोस्वामी, मुक्काम
श्रीवृंदावन, हालवारी राज्य रीवाँ। अंथ-(.) प्रेमरत्नाकर, (२) राधावरविहार, (३) चंद्रधर
चरितचिंतामणि, (४) गंगापंचक, (५) गोपीपचीसी, (६) कृष्णाष्टक, (७) हरिहराष्टक, (८) प्रातःस्मर
णीय (आदि कई अष्टक रचे हैं), (६) कृष्णपचासा। मन्मकाल-१९१३। विवरण-श्रीहिताचार्य महाप्रभु की कन्या के वंशज ।..
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( २४१५ ) महरामणजी ।
१
१२३०
: ग्रंथ -- प्रवीणसागर ।
विवरण - राजकोट - निवासी । यह ग्रंथ समाप्त होने के पूर्व ही
आपकी मृत्यु हो गई । अतः सं० १९४५ में कविवर गोविंद गल्ला भाई ने इसे पूर्ण किया ।
नाम - ( २४१६ ) राघवदास साधु ।
ग्रंथ -- गुरुमहिमा |
नाम
-(
ग्रंथ – (१) मंत्रखंडरसरत्नाकर, (२) उड्डीश तंत्र | ( खोज ११०३) रचनाकाल - १६३६ के पूर्वं ।
विवरण -- तंत्रविषयक |
२४१६
१
) नित्यनाथ |
समय संवत् १९३९
नाम - ( २४१७ ) देवराज खत्री, जालंधर |
ग्रंथ - ( १ ) अपरदीपिका, ( २ ) शब्दावली, (३) बालविनय, ( ४ ) बालोद्यान संगीत, (५) सावित्रीनाटक, (६) कथाविधि ( ७ ) पाठावली, (८) सुबोधकन्या, ( 8 ) पत्रकौमुदी, (१०) गणितभूषण, (११) गृहप्रबंध ।
नाम - ( २४१८ ) परमेश्वरीदास कायस्थ,
ग्रंथ — दस्तूरसागर ।
1
विवरण -- यह लीलावती का छंदोबद्ध अनुवाद है नाम – ( २४१९ ) विंध्येश्वरी तिवारी, सहगौरा, जिला
गोरखपुर ।
ग्रंथ - मिथिलेशकुमारी नाटक ।
जन्मकाल - १६१४ ।
बाँदा ।
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वर्तमान प्रकरण नाम-(२४२०) श्रीवीरबल, श्रीवृंदावनवासी। ग्रंथ-(.) वृंदावनशतक, (२) राधाशतक। . . जन्मकाल-१९१४ । नाम-(२४२१) बैजनाथप्रसाद, इखलासपुर । जन्मकाल-१९२४ । नाम-(२४२२) मन्नूलाल कायस्थ, बुलंदशहर। ग्रंथ-स्त्रीसुबोधिनी । नाम-(२४२३ ) मेलाराम वैश्य, भिवानी, जिला हिसार । ग्रंथ-गंदे सीठनों की अपील, गृहस्थविचारसुधारक काव्य । नाम-(२४२४) रामगयाप्रसाद (दीन), अयोध्या। ग्रंथ-(1) रामलीला नाटक, (२) प्रहलादचरित्र नाटक, (३)
प्रेमप्रवाह, (४) पावसप्रवाह । जन्मकाल-१९१४ । विवरण-श्राप टॉड़ा, जिला फ़ैज़ाबाद के रहनेवाले अच्छे भक्त थे। नाम-(२४२५ ) रामधारीसहाय कायस्थ, डीही, जिला
सारन । ग्रंथ-(१) गुरुभक्तिपचीसी, (२) गोरक्षाप्रहसन, (३)
महिमाचालीसी, (४) शिवमाला, (५) कुमारसंभव
अनुवाद । जन्मकाल-१९१४।। विवरण-ये मधुवनी में वकालत करते थे। नाम-(२४२६) साधोसिंह महाराज। ग्रंथ-काव्यसंग्रह। नाम---( २४२६ ) काशीप्रसादसिंह। ग्रंथ-देवीमजन मुक्तावली।....
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१२६२
मिश्रबंधु विनोद
समय संवत् १९४० के पूर्व
नाम - ( २४२७ ) छतर ।
विवरण - श्रृंगारसंग्रह में काव्य 1
नाम - ( २४२८ ) जगतनारायण शर्मा, काशी 1 ग्रंथ - (१) ईसाईमतपरीक्षा, (२) गोरक्षा, (३) दबानंदियों की अपार महिमा, (४) यवनों की दुर्दशा ।
जन्मकाल - १६१५ ।
नाम - ( २४२९ ) तुलाराम ।
विवरण - शृंगारसंग्रह में 'काव्य है 1 नाम - ( २४३० ) देवन । विवरण — शृंगारसंग्रह में काव्य है ।
नाम - ( २४३१ ) धनेश । विवरण - श्रृंगारसंग्रह में काव्य 1
नाम – ( २४३१ ) परमेश कवि भाट ।
१
ग्रंथ - कृष्णविनोद | [ द्वि० त्रै०रि० ] विवरण - होलपूर, जिला बारहबंकी निवासी ।
नाम - ( २४३२) भीम ।
विवरण - शृंगारसंग्रह में काव्य हैं। भक्त कवि थे !
नाम - ( २४३३ ) मिथिलेश ।
विवरण - श्रृंगारसंग्रह में काव्य है।
1
1
नाम - ( २४३४ ) रतिनाथ । विवरण - श्रृंगारसंग्रह में काव्य है नाम - ( २४३५ ) समाधान । विवरण - श्रृंगारसंग्रह में काव्य है ।
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वर्तमान प्रकरण
१२३ ____समय संवत् १९४० नाम-(२४३६ ) अंबर भाट, चौजीतपूर, बुंदेलखंड। नाम-(२४३७ ) अंबिकाप्रसाद, जिला शाहाबाद बिहार। नाम-(२४३८) कन्हैयालाल ( कान्ह) कायस्थ,
___ सोठियावाँ, जिला हरदोई । ग्रंथ-चंद्रभानशतक । जन्मकाल-१९१५ नाम-(२४३९) कान्ह कायस्थ, राजनगर, बुंदेलखंड । ग्रंथ-नखशिख। जन्मकाल-१९१४ । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४४० ) कुंजलाल, मऊ रानीपूर, झाँसी। जन्मकाल-१९१८ । विवरण-तोष-श्रेणी। नाम-(२४४१) गिरधारी भाट, मऊ रानीपुर, झाँसी। नाम-(२४४२) गुरदयाल कायस्थ, पदारथपूर, बाँदा । नाम-(२४४२ ) गोकुलनाथ भट्ट। जन्मकाल-१९१४ । विवरण-मैहर में वकील हैं। नाम-(२४४२) गौरीशंकर चौबे । ग्रंथ-~~(१) दामरीलीला, (२) बाँसुरीलीला, (३) माननीला,
(४) उद्धवलीला। [तृ० त्रै० रि०] नाम-(२४४३) गंगादयाल दुबे, निसगर, जिला
रायबरेली। विवरण-संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे । साधा
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१२६४
मिश्रबंधु-विनोद नाम-( २४४४) गंगादास नैमिषारण्य, कायस्थ । ग्रंथ-विनयपत्रिका।
विवरण-हीन श्रेणी के कवि थे। .: नाम-(२४४५) गंगाप्रसाद (गंग ), सपौली, जिला
सीतापुर। ग्रंथ-दूतीविलास। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४४६) चंद्र झा। ग्रंथ-रामायण। विवरण-महाराजा दरभंगा के यहाँ थे। नाम-(२४४७) जगन्नाथ अवस्थी, सुमेरपुर, जिला उन्नाव। विवरण-ये संस्कृत के बड़े विद्वान् थे और कई ग्रंथ भी बनाए
हैं। भाषा में इनके स्फुट छंद मिलते हैं। ये राजा अयोध्या और अलवर के यहाँ रहे । इनकी गणना तोष
कवि की श्रेणी में की जाती है। नाम-(२४४७) जगन्नाथ ( उपनाम सुखसिंधु ) ग्रंथ-पीयूषरत्नाकर। नाम- ( २४४८) जगन्नाथप्रसाद कायस्थ, छतरपूर । विवरण-ये महाशय दरबार छतरपूर में हेड अकौंटेंट थे, और
भाषा के बड़े प्रेमी हैं । आपके यहाँ पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। श्राप भाषा के उत्तम लेखक हैं। आजकल पाप झाँसी में अपने लड़के के पास रहते हैं, जो वहाँ
वकील है। नाम- ( २४४९ ) जबरेस बंदीजन, बुंदेलखंड । विवरण-ये महाराज रीवा-नरेश के यहाँ थे।
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वर्तमान प्रकरण
१२६२ नाम-( २४५० ) जवाहिर, श्रीनगर, बुंदेलखंड। जन्मकाल-१९१५ । विवरण-साधारण श्रेणी । नाम- ( २४५१) जान ईसाई, अँगरेज । ग्रंथ-मुक्तिमुक्तावली छंदोबद्ध । विवरण-ईसाईभजन एवं ईसाचरित्र इसमें वर्णित है। नाम-(२४५२) ठाकुरप्रसाद (पूरन) कायस्थ, बिजावर।
[प्र० त्रै० रि०] ग्रंथ-दशमस्कंध भागवत का पद्यानुवाद । जानकीस्वयंवर भक्त
कवितावली। नाम-( २४५३ ) ठाकुरप्रसाद त्रिवेदी, अलीगंज, खीरी। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४५४) दुःखभंजन । ग्रंथ-चंद्रशेखर काव्य । विवरण-राजा चंद्रशेखरजी त्रिपाठी ताल्लुक़दार सिसेंडी की __माज्ञानुसार बनाया । उसमें कुछ खंरित हो गया था,
जिसकी पूर्ति रघुवीर कवि ने की। नाम-( २४५५ ) देवसिंह, मु० वराज, राज्य रीवाँ। जन्मकाल-१९१७ । नाम-(२४५६) देवीदीन, बिलग्रामी। ग्रंथ-(.) नखशिख, (२) रसदर्पण । नाम-(२४५७ ) नारायणराय बंदीजन, बनारसी। ग्रंथ-(.) टीका भाषाभूषण (छंदोबद्ध), (२) टीका
कविप्रिया (वार्तिक)। विवरण-साधारण श्रेणी।
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मिनबंधु-विनोद नाम-( २४५७ ) नीलकंठ, बड़ौदावासी। नाम-(२४५८) पंचम, बुंदेलखंडी। जन्मकाल-१६११ विवरण-गुमानसिंह राजा अजयगढ़ के यहाँ थे । निम्न श्रेणी के
कवि थे। नाम-(२४५९) प्रभुदयाल कायस्थ, अजयगढ़, बुंदेलखंड । ग्रंथ-ज्ञानप्रकाश। जन्मकाल-१९१५ । नाम-(२४६०) बच्चूलाल, बछरावाँ । नाम-(२४६१ ) विश्वनाथ, टिकारी, रायबरेली । नाम-(२४६२ ) विश्वेश्वरानंद महात्मा। ग्रंथ-चतुरा की चतुराई । विवरण-आपने कई और ग्रंथ भी रचे हैं। नाम-(२४६२ ) विहारीलाल । ग्रंथ-उमठकुलभास्कर वा बहार विहारी । [च० ० रि०] नाम-( २४६३ ) वृंदावन सेमरौता, जिला गयबरेली। ग्रंथ-(१) देवीभागवत भाषा (१९५३)। नाम-(२४६४ ) वंदन पाठक, काशीवासी । ग्रंथ-मानसशंकावली। जन्मकाल-१९१५। विवरण-ये महाशय रामायण के अच्छे टीकाकार थे। आपने
महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायणजी की आज्ञा से ग्रंथ बनाया । रामायण तुलसी-कृत पर इनका प्रमाण माना जाता है।
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वर्तमान प्रकरण
१२. नाम-(२४६५) बंदीदीन दीक्षित, मसवासी, जिला उन्नाव। ग्रंथ-सुदामाचरित्र नाटक । वविरण-मातादीन सुकुल के साथ यह नाटक बनाया है। नाम-(२४६५ ) ब्रजभूषणलाल, अहमदाबादवासी । ग्रंथ-स्फुट पद। नाम-(२४६६) मातादीन मिश्र, सरायमीरों, फर्रुखाबाद । ग्रंथ-(.) कविरत्नाकर (१९३३), (२)शाहनामा भाषा । नाम-(२४६७ ) मातादीन शुक्ल, सरोसो, जिला उन्नाव । ग्रंथ-सुदामाचरित्र नाटक (गद्य-पद्य)। विवरण-बंदीदीन दीक्षित के साथ मिलकर सुदामाचरित्र
नाटक बनाया। नाम-(२४६८) माधवसिंह । इनका नाम नं० ( २१०५ )
में आ चुका है। नाम-(२४६९) मार्कडेय (चिरंजीवी)कोपागंज, आजम
गढ़। ग्रंथ-(१) झूला, ठुमरी, कजली इत्यादि, (२) लघमीश्वर
विनोद । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम--(२४७०) मुन्नालाल कायस्थ, मैहर । जन्मकाल-१९१५ । नाम-(२४७१) युगलप्रसाद . कायस्थ, जतारा,
टीकमगढ़। नाम-(२४७१ ) युगलवल्लभ गोस्वामी। ग्रंथ-(.) हितमालिका, (२) हितचंद्रिका, (३) राधा
सुधानिधि की तरंगिणी की टीका, (४) द्वादशयश की टीका, (१) स्फुट पद।
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मिश्रबंधु विनोद
" विवरण - राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य ।
नाम - ( २४७२ ) रघुनाथ ( शिवदीन) पंडित, रसूलाबादी ।
ग्रंथ-भवमहिम्न |
विवरण - साधारण श्रेणी । नाम -- ( २४७३ ) रघुवीर ।
ग्रंथ - चंद्रशेखर काव्य ।
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विवरण- - राजा चंद्रशेखरजी त्रिपाठी ताल्लुक़दार सिसेंडी जिला लखनऊ की आज्ञानुसार दुःखभंजन कवि ने बनाया था । उसमें कुछ खंडित हो गया, जिसकी पूर्ति की है ।
नाम - (२४७४ ) रणजीतसिंह जाँगरे राजा ईसानगर, खीरी ।
ग्रंथ - हरिवंशपुराण भाषा ।
नाम – ( २४७५ ) राधाचरण गौड़ ब्राह्मण । इनका नाम नं० २१६१ में आ चुका है 1
नाम – ( २४७५ ) राधालाल गोस्वामी ।
१
ग्रंथ - स्फुट पद ।
विवरण - राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य ।
नाम - ( २४७५ ) रूपलालसिंह शर्मा ( उपनाम रूपालि ) ग्रंथ - (१) श्रृंगारहार, (२) हजारा, ( ३ ) महामारीपंचदशी, (४) तथा कई स्फुट एवं अपूर्ण ग्रंथ ।
जन्मकाल - १६१३ ।
कविताकाल – १६४० ।
मृत्युकाल - १६७५ ।
विवरण - आप खरगपूर पटना- निवासी भूमिहार ब्राह्मण बाबू
जवाहिरसिंह के
पुत्र थे I
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वर्तमान प्रकरण
उदाहरण
नवल शिकारी नवल सर, नवल शरासन तून ; नवली सावज रूपअलि, होत नवल निस खून । खंजन उड़ि झष बूड़िगे, मृगमद तजिगे दूर ; अलिन नलिन कलिरूपअलि, लखि सियपिय चख नूर । दयादृष्टि दृगकोरघन विभव दृष्टि धन बुंद ;
सूखत शाली पालिए मनहु सुदाम मुकुंद । नाम-(२४७६ ) राधेलाल कायस्थ, राजगढ़, बुंदेलखंड । जन्मकाल-११११ । नाम-(२४७७ ) रामनारायण कायस्थ, अयोध्या । ग्रंथ-(.) स्फुट छंद, (२) षट्ऋतुवर्णन । [वि. त्रै० रि०] विवरण-महाराजा मानसिंह के मंत्री । साधारण श्रेणी । नाम-(२४७८ ) रामलाल स्वामी, बिजावर। ग्रंथ-(१) अमरकंटकचरित्र (१९४३), (२) भवानीजी की
स्तुति, (३) महावीरजू को तीसा,(४) रामसागर (रामविलास) (१९४३), (१) श्रीब्रह्मसागर (१९४४),
(६) श्रीकृष्णप्रकाश (१९४४)।[प्र. ० रि०] विवरण-राजा भानुप्रकाश विजावर के गुरु थे। नाम-( २४७९) रामेश्वरदयाल कायस्थ, सरैयाँ, जिला
गाजीपूर । ग्रंथ-चित्रगुप्तचरित्र । जन्मकाल-१९१४। मृत्युकाल-१९५६ । नाम-(२४८० ) लालसिंह ( उपनाम रसिकेंद्र )
मुकाम घूरडोंग, राज्य रीवाँ ।
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मिनबंधु-विनोद
ग्रंथ-ग्रंथ रचा है, स्फुट कविता भी है। अन्मकाल-१६१५। नाम-(२४८१) शिवदत्त ब्राह्मण, बनारसी। बंध-१६"। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४८२) शिवप्रसन्न ब्राह्मण, रामनगर, रायबरेली। ग्रंथ-सतीचरित्र । विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४८३ ) सतीदासजी पांडे, श्रीकांत के पुत्र,
सुमेरपुर, जिला उन्नाव। ग्रंथ-(१) मनोष्टक, (२) अयोध्याष्टक, (३) विश्व.
नाथाष्टक, (४) सारस्वत भाषा। जन्मकाल-१६१६। मृत्युकाल-१९५४ । विवरण-इनका कोई ग्रंथ हमने नहीं देखा । नाम --(२४८४) सुखरामदास ब्राह्मण, स्थान चहोतर,
उन्नाव। ग्रंथ-नृपसंवाद । . विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४८५ ) सुमेरसिंह साहबजादे (सुमिरेसहरी),
पटना। ग्रंथ-बिहारीसतसई के दोहों पर बहुत-से कवित्त बनाए है।
अच्छे कवि थे। नाम-(२४८६ ) सूर्यनारायणलाल कायस्थ । विवरण-ये कोढ़, मिर्जापुर में सरकारी वकीन हैं।
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वर्तमान प्रकरण
१३.. नाम-( २४८७ ) संतबकस बंदीजन,होलपुर, बारहबंकी। विवरण-साधारण श्रेणी। नाम-(२४८८) हजारीलाल त्रिवेदी, अलीगंज, जिला खीरी। विवरण-नीति-संबंधी काव्य है, निम्न श्रेणी।। नाम-( २४८८ ) करुणानिधि वैद्य, करुणानिधि-बिहार, १९४१ के पूर्व ।
समय संवत् १९४१ नाम- (२४८९) कौलेश्वरलाल कायस्थ, मदरा, जिला
गाजीपुर। अंथ-(.) सत्यनारायणकथा (पृ. ३८), (२) राम
शब्दावली (पृ. १६),(३)सरितावर्णन (पृ. २४),
(४) कविमाला (पृ. २२)। [वि. त्रै० रि०] नाम-(२४९०) गणेशीलाल (देव) ब्राह्मण, मथुरा । ग्रंथ-(१) श्रीयमुना (नदी) माहाम्य, (२) श्रीशिवाष्टक
आदि। जन्मकाल-१६१५। नाम-(२४९१ ) गुलाबदास हलवाई, पटना । जन्मकाल-१९१६ । नाम-(२४९२ ) चतुर्भुज ब्राह्मण, वृदावन । जन्मकाल-१९१६। नाम-( २४९३ ) पत्तनलाल ( सुशील ) बाबू मोहनलाल
___ अगरवाल के पुत्र, दाऊदनगर, गया। ग्रंथ-(१) रोनारामायण, (२) जुबिलीसाठिका (पच),
(३) भर्तृहरिनीतिशतक भाषा ( पद्य), (४) साधु ( पद्य), (५) उजाड़ गाँव (पद्य), (६) यात्री
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१३०२
मिश्रबंधु-विनोद . (पद्य), (७) ग्रियर्सन साहब की बिदाई (पद्य),
(८) देशी खेल दो भागों में (गद्य)। जन्मकाल-१६१६ । विवरण-कविता उत्तम है। आजकल श्राप कलकत्ते में काम
करते थे। नाम- (२४६३ ) लक्ष्मीचंद । ग्रंथ-मोरध्वज नाटक । [पं० त्रै० रि०)
समय संवत् १९४२ नाम-(२४९४ ) कन्हैयादास ( कान्ह ), वृदावन । ग्रंथ-छंदपयोनिधि (भाषा) (पिंगल )। जन्मकाल-१९१७। नाम-(२४६४ ) पं० रामरत्न सनाढ्य 'रतनेश' । ग्रंथ-(.) सनाढ्यवंशावली, (२) लक्षणा व्यंजना गद्य
पद्यात्मक । जन्मकाल-१११८ । विवरण-आप उरई-निवासी पं० गिरिधरलालजी के पुत्र है।
आप संस्कृत-ज्योतिष के विद्वान् तथा व्रजभाषा के योग्य
उदाहरणकोज कवि राहु के प्रहार को बतावै घाव,
कोज कहे विष को बसायो जानि मेली है; कोऊ शश शावक बतावै कोऊ छोनी छाँह,
कोऊ छिद्र द्वारा तम नीलता ढकेली है। रतनेश श्यामता निहार · के निशेश बीच,
जाको जैसी रुचि तैसी सुषमा सकेली है ;
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वर्तमान प्रकरण परतीय गामिन में नामी निज नाह जान,
उर लिपटाय रही रजनी नवेली है। . नाम-(२४९५ ) गुप्तरानी बाई ( दासी) कायस्थ । ग्रंथ-भजनावली। जन्मकाल-१९१७ । नाम-( २४९६ ) बेनीमाधो दुबे, हुसैनगंज, फतेहपूर । ग्रंथ-सांकेतिकमाला। [द्वि० ० रि०] नाम-(२४९७ ) रामदयाल कायस्थ, छिबरामऊ। ग्रंथ-(१) प्रेमप्रकाश, (२) राधिकाबारहमासी। नाम-(२४९८) संत कविराज, रीवाँ । 'थ-लक्ष्मीश्वरचंद्रिका । रचनाकाल-१६४२ । [ खोज १६०० ] नाम-(२४६८ ( कुंजविहारी, वृंदावनवासी। ग्रंथ-भजनपत्रिका । [प्र. त्रै० रि०] रचनाकाल-१९४३ के पूर्व ।
__ समय सं० १९४३ नाम-( २४९९ ) कन्हैयालाल गोस्वामी, बूंदी। विवरण-श्रापकी अवस्था इस समय लगभग ६० साल की
होगी। आप कुछ काव्य भी करते हैं। नाम-(२५०० ) प्रकाशानंद संन्यासी, देहरादून । ग्रंथ-श्रीरामजी का दर्शन । जन्मकाल-१९१८ । नाम-(२५०१ ) वृंदावन कायस्थ, मैहर। ग्रंथ-सीयस्वयंवर । जन्मकाल-१९१८ ।
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१५०४
मिश्रबंधु-विनोद नाम-( २५०२ ) भवानीप्रसाद कायस्थ, देउरी सागर ।
वर्तमान । नाम-( २५०२ ) रघुनाथप्रसाद मिश्र । ग्रंथ-(१) आर्याचारादर्श, (२) उद्धवचंपू, (३) रस
मंजूषा, (४) सुभाषितभूषण । जन्मकाल-१६२५ । मृत्युकाल-१९६२ । रचनाकाल-१६४३ । विवरण-आप राघवपुर पाजा-निवासी पं० वैद्यनाथप्रसाद मिश्र
के पुत्र थे । आपका सं० १९६२ में स्वर्गवास हुआ।
श्राप संस्कृत एवं हिंदी दोनों में कविता करते थे। नाम-( २५०२ )रघुवरप्रसाद द्विवेदी राय साहब । ग्रंथ-(१) सफलतारहस्य, (२) दासव्यापार का इतिहास,
(३) शाहजादा फकीर, (४) उमरा की बेटी, (५) बलिवेदिका, (६) सदाचारदर्पण, (७) भारत का
इतिहास, (८) साधारण ज्ञान । रचनाकाल-१६४३ । जन्मकाल १९२१ । ववरण-गढाजबलपूर-निवासी । आप कस्तूरचंद्रहितकारिणी
सभा के प्रिंसिपल थे। हाल में आपका देहांत हो गया। नाम-(२५०३ ) रघुवीरप्रसाद ठठेर, पैतेपुर, जिला
बारहबंकी। ग्रंथ-(१) आरोग्यदर्पण, (२) नैमिषारण्य-माहास्य । जन्मकाल-१९१८ । मृत्युकाल-१९६५ ।
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वर्तमान प्रकरण
नाम-(२५०४ ) रत्नचंद्र, प्रयाग। ग्रंथ-(१) नूतन ब्रह्मचारी, (२) नूतन चरित्र, (३) गंगा
गोविंदसिंह, (४) वीरनारायण, (५) इंदिरा । विवरण-गद्य-लेखक। नाम-( २५०५) रामप्रताप, जयपुर । नाम-( २५०५ ) शीतलप्रसाद उपाध्याय ।। ग्रंथ-(१) दूरदर्शी योगी, (२) शीतल समीर, (३) शीतल
सुमिरनी, (४) राजा रामसिंह की बानी, (२) राजा रामपालसिंह की योरपयात्रा, (६) शीतल संहार, (७) धर्म
प्रकाश । जन्मकाल-१९१७ । रचनाकाल-१९४३ । विवरण-श्राप पं० दिक्पाल उपाध्याय के पुत्र हैं । आप हिंदी . के अच्छे लेखक हैं, और हिंदोस्तान तथा सम्राट का
वर्षों संपादन किया है। उदाहरणपाए हो ऊधो सिखावन योग तो या ब्रज की सगरी ब्रजबाला ; लावेंगी भूति सबै तन में औ रचेंगी त्रिपुंड सुधारि सुमाला । धारेंगी भेसहू योगिन को कर लेकै कमंडल औ मृगछाला; जाएँगी शीतल माधव द्वार जपेंगी वही हरि नाम की माला ॥ कुंजवन सघन अकेली हाय भूली मृग,
मिलो एक युवक अचानक डगर में; मटुकि हमारी फोरि सारी को बिगारि दीन्हीं,
कंचुकी को फारि दीन्हीं शीतल झगर में । गति जो हमारी भई कहत बनत नाहि,
ऐसी तो ढिठाई देखी काहू न लँगर में ;
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१३०६
मिश्रबंधु-विनोद कीन्हीं बरजोरी मोरी बाहन मरोरी माय,
बेचन न जैहों दधि गोकुल नगर में ॥ कहाँ है कहाँ है कस बाजत सुरीली राग,
मुरली कलिंदी तट प्यारी ब्रजराज की ; मधुप उड़े हैं कह शीतल पराग लेन ?
बौरे हैं रसाल जहँ बारी नंदराज की। काहे को बिहाल बन बिहँग भ्रमे हैं आज ?
निकसी सवारी कहुँ मार महराज की ; काहेरी सखिन मन उमँग बढ़े हैं आज,
जानत न भोरी है अवाई रघुराज की ॥३॥ नाम-( २५०६) शंकर । ग्रंथ-(१) भाषाज्योतिष, (२) ज्ञानचौंतीसी। [प्र० ० रि०]
सत्यनारायणकथा । कविताकाल-१९४४ के पूर्व । नाम-(२५०६ ) हीरालाल काव्योपाध्याय । ग्रंथ-(१) नवकांडदुर्गायन, (२) शालागीतचंद्रिका, (३)
गीतरसिका, (४) छत्तीसगढ़ी व्याकरण । जन्मकाल-१६१२। मृत्युकाल-१६४६ ।। विवरण-श्राप बाबू बालारामचंद नाहू के पुत्र तथा उच्च कोटि
के गणितज्ञ थे। नाम-( २५०६ ) रायबहादुर होरालाल बी० ए० एम्।
आर० ए० एस०, रिटायर्ड डिप्टी कमिश्नर । ग्रंथ-(१) मध्यप्रदेश भौगोलिक गमार्थ परिचय, (२) दमोह
दीपक, (३) जबलपुरज्योति, (४) सागरसरोज, (५) सागरभूगोल, (६) इमसाबाग ।
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वर्तमान प्रकरण
१३०
जन्मकाल-१९२३ ।। विवरण-आप इतिहास और पुरातत्त्व के प्रसिद्ध विद्वान् हैं।
आप कुछ पद्य-रचना भी करते हैं। श्राप राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' के सहपाठी एवं मित्र हैं । आप काशी-नागरी
प्रचारिणी सभा के सभापति रहे हैं। उदाहरण
एक घड़ी प्राधी घड़ी श्राधी ते पुनि प्राधि;
कीन्हें संगति कवित की उपजत कविता व्याधि । आदि गुप्त कलचूरि पडिहार ; चंदेला गोहिल्ल विहार । तुगलक लोदी गोंड मुगल ; बुंदेला मरहट्ठा दल । डेढ़ सहस बरसे किय भोग ; तब गोरन को प्रायो योग।
समय संवत् १९४४ नाम-(२५०७ ) अमानसिंह कायस्थ, देवरा छतरपुर। जम्मकाल-१६१६ । वर्तमान । नाम-(२५०८) कृष्णराम ब्राह्मण, जयपुर । ग्रंथ-सारशतक। विवरण-ये संस्कृत की भी कविता करते हैं । नाम-( २५०९) कृपाराम शर्मा, जगरावाँ, जिला
लुधियाना। . .. ग्रंथ-(.) कर्मव्यवस्था, (२) न्यायदर्शन भाषा, (३)
सांख्यदर्शन भाषा, (४) वैशेषिकदर्शन भाषा। जन्मकाल-१६१४। माम-(२५१०) गजराजसिंह ठाकुर, खरिहानी, जिला
बारहबंकी। अंध-(.) अलंकारादर्श, (२) व्यंग्यार्थविनोद, (३) षट्
ऋतुविनोद, (४) काव्यादर्शसंग्रह।
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१०८ .
मिश्रबंधु-विनोद
जन्मकाल-१९१६ । नाम-( २५११) गणेशप्रसाद शर्मा, फर्रुखाबाद । ग्रंथ-(1) भागवतव्यवस्था, (२) ईश्वरभक्ति, (३) वृक्षों
में जीवनिर्णय, ( ४ ) गुरुमंत्रव्याख्या । जन्मकाल-१६१६ ।। विवरण-आप 'भारत-सुदशाप्रवर्तक' के संपादक रहे हैं। नाम-( २५१२ ) छोटूराम तेवारी, बनारसी। ग्रंथ-रामकथा। जन्मकाल-१८६७ । नाम-(२५१३) जीवाराम शर्मा, मुरादाबाद । ग्रंथ-(१) अष्टाध्यायी, (२) माघ, (३) रघुवंश, (४)
कुमारसंभव, (५) सर्कसंग्रह इत्यादि का भाषाभाष्य । विवरण-श्राप बलदेव आर्यपाठशाला में अध्यापक रहे हैं। नाम-(२५१४ ) दयालदासजी चारण । ग्रंथ-आर्य-आख्यान कल्पद्रुम । नाम-( २५१५ ) नित्यानंद ब्रह्मचारी। अंथ-(१) पुरुषार्थप्रकाश, (२) सनातनधर्म, (३) वेदानु
क्रमणिका । जन्मकाल-१६१९ । नाम-(२५१६) पंकजदास ( कमालदास )। ग्रंथ-सत्यनारायण की कथा । [प्र० त्रै० रि०] नाम-( २५१७ ) बदरीप्रसाद शर्मा दुबे, कानपूर । ग्रंथ-(१) ईश्वरनाममाला (२) गोविनय । [ पं० ० रि० ] जन्मकाल-१९१६ । नाम-( २५१८) बलदेवसिंह चौहान, मकरंदपूर, मैनपुरी।
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वर्तमान प्रकरण
।
जन्मकाल-१९१९ । नाम-(२५१९) बालकृष्णसहाय वकील कायस्थ, रांची। ग्रंथ-समुद्रयात्रा। जन्मकाल-१६११ । नाम-( २५२० ) वृंदावन ( वन ) कायस्थ, पन्ना। ग्रंथ-(१) कायस्थकुल चंद्रिका, (२) देवी भागवत । [प्र.
त्रै० रि०] जन्मकाल-१६१६ । नाम-(२५२१) भानुप्रताप तेवारी, चुनार । ग्रंथ-(१) विहारीसतसई सटीक, (२) भानुप्रताप का जीवन
चरित्र, (३) भक्तमालदीपिका, (४) जीवनी गुरु नानक
शाह, (५) कबीर साहब का जीवन, (६) राय बहा.. दुर शालग्राम की जीवनी, (७) भक्तमालदृष्टांतदर्पण, . (८) तुलसीसतसई सटीक । [ द्वि० ० रि०] नाम-(२५२२ ) मदारीलाल शर्मा, बुलंदशहर । जन्मकाल-११११ । नाम-( २५२३ ) मातादीन शुक्ल, बिसवाँ । ग्रंथ-जन्मशतक। जन्मकाल-१६१६ । नाम-(२५२४ ) मंगलीप्रसाद दुबे बरधा, होशंगाबाद । जन्मकाख-१९१९ । नाम-( २५२५) रघुनाथदास जड़िया, खत्री। . अंथ-नवधा भक्तिरसावली।
जन्मकाल. नाम-(२५२६.) रघुनंदनप्रसादसिंह ( रघुवीर ),हल्दी।
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मिश्रबंधु-विनोद
२
ग्रंथ-सभातरंग। जन्मकाल-१९१९ । नाम-( २५२६ ) चौधरी रघुनंदनप्रसादसिंह, धर्मभूषण। ग्रंथ-(१) साधनसंग्रह दो भाग, (२) उपासनाप्रकाश,
(३) अहिंसातत्त्व । जन्मकाल-१९२४ । विवरण-श्राप मुहम्मदपूर सुस्ताग्रामवासी चौधरी रामअनुग्रह
सिंहजी के पुत्र हैं। आप बड़े धार्मिक पुरुष हैं तथा
रचना भी आपने इसी विषय पर की है । नाम-(२५२६ ) रामनाथ । ग्रंथ-भक्ति-विषयक लावनियाँ । जन्मकाल-१६१४ । विवरण-श्राप सरदार किशोरीसिंह के पुत्र तथा कवर्धा-राज्य
मध्यप्रदेश के दरबारी कवि थे। नाम-( २५२६ ) रामप्रताप मिश्र ( उपनाम प्रताप )। ग्रंथ- (१)वर्षाबहार, (२) रघुवरबालचरित्र । रचनाकाल-१९४४। जन्मकाल-१९२४ । विवरण-आप पं० शीतलादीन मिश्र के पुत्र तथा डुमरियागंज,
बस्ती में पोस्टमास्टर थे। उदाहरणदास की ओर उठाय के कोर कृपा करि जानकीनाथ तकीजै ; सोक के सिंधु में बूड़त हौं गहि बाँह उबारि प्रभो मोहिं लीजै। होहिं मनोरथ सिद्ध सदा दशरथ के लाल यही बर दीजै ; सेवक आपनो जानि प्रताप को नाथ दया करि दुःख हरीजै । नाम-( २५२७ ) शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ ।
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वर्तमान प्रकरण
ग्रंथ-(१) त्रिदेवनिर्णय, (२) ओंकारनिर्णय, (३) वैदिक
इतिहासार्थ, (४) वशिष्ठनंदिनीनिर्णय, (२) चतुर्दशभुवन, (६) अलौकिकमाला, (७) बृहदारण्यक तथा
छांदोग्य भाषा। नाम-( २५२८ ) शीतलाप्रसाद तेवारी, बनारसी। . ग्रंथ-(.) जानकीमंगल, (२) रामचरितावली नाटक,
(३) विनयपुष्पावली, (४) भारतोन्नतिस्वप्न । नाम-(२५२९) चंद्र ।। ग्रंथ-(१) चंद्रप्रकाश सटीक, (२) अनन्यभंगार । [ द्वि०
त्रै रि०] कविताकाल-१६४५ के पूर्व। विवरण-साधारण श्रेणी।
समय संवत् १९४५ नाम-( २५३०) अयोध्याप्रसाद (औध ) कायस्थ,
बिजावर। नाम-(२५३१ ) उदितनारायणलाल, बनारस ।
ग्रंथ-दीपनिर्वाण । ' विवरण-पद्य-लेखक थे।
नाम-(२५३२ ) कालिकाप्रसादसिंह ( कालिका ), हल्दी । जन्मकाल-१६२, नाम-(२५३२ ) कमलापति । जन्मकाल-१६२।। विवरण-सुकवि हनुमान के शिष्य थे । नाम-(२५३३) कृष्णदत्तसिंह । जन्मकाल-११११.
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मिश्रबंधु विनोद
विवरण - राजा भिनगा के यहाँ थे । नाम - ( २५३३ ) चौरामल्ल |
ग्रंथ - भारतदुर्दशा पर कुछ कवित्त । विवरण - काठियावाद - निवासी ।
१३१२
नाम – (२५३४) जगन्नाथ वैश्य, पैंतेपुर, जिला बारहबंकी । ग्रंथ - ( १ ) कालिकाष्टक, (२) स्फुट काव्य ।
जन्मकाल - १६२० ।
मृत्युकाल - ११३८ ।
नाम - ( २५३५ ) दूधनाथ, दया,
बलिया ।
ग्रंथ --- (१) हरेरामपच्चीसो, (२) हरिहरशतक, भरती के गीत, (३) गोविलाप छंदावली, (४) गोचिटुकी प्रकाशिका | जन्मकाल - १६२३ ।
नाम - ( २५३६ ) नारायणप्रसाद मिश्र, शाहजहाँपूर || ग्रंथ - ( १ ) विश्रामसागर, (२) नूतन सुखसागर, (३)
पथपंचाशिका टीका, (४) वंशावली, ( ५ ) बृह द्वंशावली, (६) रसराजमहोदधि, (७) जातका भरण भाषा टीका ।
नाम - ( २५३७ ) बाबूरामजी शुक्ल, नुनिहाई कटरा, फ़र्रुखाबाद |
ग्रंथ - (१) हरिरंजन, (२) सावित्रीविनोद, (३) मानसमणि, (४) शालीन सुधाकर आदि १० पुस्तकें रची हैं।
जन्मकाल - - १६२४ ।
विवरण - भूतपूर्व संपादक कान्यकुब्ज ।
नाम - ( २५३८ ) बिहारीलाल चौबे ।
ग्रंथ - बिहारी - तुलसी - भूषण - बोध |
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वर्तमान प्रकरण
- १३३ विवरण-पटना-कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर थे। नाम-(२५३८ ) माधुरीशरण । ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। जन्मकाल-१९२० । नाम-( २५३९) मंगलदीन उपाध्याय सरयूपारी, राजा
पूर, जिला बाँदा। ग्रंथ-(१) सिंहावलोकनशतक, (२) बारहमासा ३, (३)
भक्ति-विलास, (४) हनुमानपचासा, (५) देवीचरित्र, (६) फाग-रनाकर, (७) हनुमानबत्तीसी, (८) समस्याशतक, (६) कृष्णपचासा,(१०) षट्ऋतुपचासा,
(१) रामायणमाहात्म्य । नाम-(२५४०) रमाकांत, पंडितपुरा, जिला बलिया। ग्रंथ-(१) साहित्यजुगलविलास, (२) प्रेमसुधारत्नाकर । जन्मकाल-१९२० । रचनाकाल-१९४२ । नाम-(२५४१ ) रघुवरदयाल पांडे, कानपूर। . ग्रंथ-(१) कृष्णकलिचरित्र, (२) कृष्णमार्ग नाटक ।
[द्वि० ० रि०] नाम-( २५४१) राधिकाशरण । ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण-राधावल्लभी। जन्मकाल-१९२० । नाम-(२५४२ ) रामकुमार खंडेलवाल बनिया, अलवर। जन्मकाल-१९२० ।
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मिश्रबंधु विनोद
नाम - ( २५४३ ) ललितराम ।
ग्रंथ — छुटकसारखी छंद ।
नाम - ( २५४४) मुकुंदीलाल कायस्थ, मोहनसराय, जिला
१३१४
बनारस ।
ग्रंथ - ( १ ) फागचरित्र, (२) मुकुंदविलास, ( ३ ) देवीपैज ।
जन्म - १६२० ।
नाम - ( २५४५ ) सरयूप्रसाद कायस्थ, पिहानी, जिला हरदोई ।
ग्रंथ - ( १ ) रामायण, (२) कृष्णायन, (३) सरयूलहरी, ( ४ ) अलिफ़नामा, ( ५ ) नसीहतनामा |
जन्मकाल - १६५६ ।
नाम - ( २५४६ ) हंसराम ( हंस ) क्षत्रिय, ग्राम करांदी, जिला उन्नाव |
ग्रंथ - रामप्रातःस्मरणीय पंचक आदि ।
जन्मकाल - १६२० ।
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कधि-नामावली
नाम
१५५
नाम
पष्ठ
अभय खयराम ८६२,६५५
६५७ अग्रअली
१२३६
अमजद अग्निभू
अमानसिंह
१३०७ अचरतलाल नागर
अमीचंदजी यती । १५७ अच्छेलाल भाट ११११
अमीर (बुंदेलखंडी) १०६३ : अजवेस भाट (द्वितीय) ११००
अमृतराय
११४१ अर्जुन
अमृतलाल चक्रवर्ती . १२७७ अर्जुनचारणं
अयोध्याप्रसाद
१३॥ अर्जुनसिंह
१२४०
अयोध्याप्रसाद खत्री १२१६ अजितदास जैन
'अयोध्याप्रसाद शुक्ल १०६१ अजीतसिंह
अलख सनेही नेनदास १०६५ अजीतसिंह महाराज, १२४०
अलीमन भत्ता कवि
अवधेस चरखारी १०८१ अधीन
अवधवक्स १०५३
असकंदगिरि अनुरागीदास
माज़म
१०६५ अनुनैन
प्राडा किसना अनंगचूर पंडित
(मारवाड़) १५७ अनंत
प्रात्मादास ६१६,६५७ अब्दुलहादी मौलवी ११०० । मात्माराम ... ११४५
WMG * ... CMM
अनीस
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________________
पृष्ठ
१०६५
उद्धव उदितप्रकाश उदितनारायण उन्नडजी उम्मरदान चारण उमादत्तजी उमादत्त उमापति शर्मा उमापति त्रिपाठी उमादास उरदाम
१२६५
१६.
१०८२
१०२४
ऊधवदास
नाम
पृष्ठ मादितराम
११६३ पादिलराम १२८१ आनंदघन (दूसरे) १५७ पानंददास प्रानंदघन आनंद विहारी श्रानंद
११४४ आर्य मुनिजी १२५६ आशुतोषजी १०७६ इच्छाराम कायस्थ १०८२ इंद्रमलजी भाट १२२५
१५८ इंदु (जानकीप्रसाद .
तिवारी) ११८ इनायत शाह मुसलमान ६५८ इश्कदीन (गुजराती) ६१८ ईश्वर मुनि ईश्वरीप्रसाद कायस्थ ११०१ ईश्वरीसिंह चौहान १२४६ उजियारेलाल उत्तमदास मिश्र उत्तमराय (गुजरात) ९५६ उदयभानु कायस्थ उदयमणि
88 उदयचंद ओसवाल १०६५
ऊमा ऋणदान चारण ऋतुराज ऋषिजू
१०८३ ऋषिराम मिश्र
ओंकार श्रोरोलाल औघड़ औघड़ उळ उद्धव ११६६ औघड़ ६५८,११०१ औध (अयोध्याप्रसाद
वाजपेयी) ११३२ श्रौसेरी
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________________
MR.ka
अंक
दि
नाम
नाम अंगदप्रसाद
करुणानिधि १३."
करुणानिधान अंबर भाट १२६३ कलक
६६० अंबिकाप्रसाद १२६३
कविमद पंडित अंबिकादत्त व्यास
कल्याण. स्वामी १०७६ (साहित्याचार्य) १२४३ कान्ह अंबुज १०८२ कान्ह बैस
१२:२८ कनकसैन
१६० कान्हीराम कनीराम
कामताप्रसाद कन्हैयालाल
१३०३ कामताप्रसाद
१२६१ कन्हैयालाल
कार्तिकप्रसाद खत्री १२१४ कन्हैयालाल
१२९३ कालिकाप्रसाद कमलापति
कालिका बंदीजन कमनीय
कालिकाप्रसाद १२२६ कमलाकांत
कालिदास कमलाकर
कालिदास चारण कमलेश
कालिकाराव कमलेश्वर
कालिकाप्रसाद कमोदसिह
कालीदीन करनेस
कालीप्रसाद त्रिवेदी १२५३ करतालिया
कालीप्रसाद १२२८ कर्परविजय १०६४ कालीचरण
१२३७ कर्णराम
६६१ कालीचरण वाजपेयी १०११ कलस
५२४,१५१ कालूराम करुणानिधि
६६. | काशी
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________________
कुशलसिंह
११५६
६६३ ११०१
कूबो
१६४
१०७७
00
१३०७
१११२
नाम
पृष्ठ - नाम काशी
कुलमणि काशीराज बलवानसिंह ६२७,६६२
कुशलसिंह काशी
कुँवर राना काशीप्रसाद १२२८ काशीप्रसाद सिंह १२६१
कृपानाथ कासिम
६६२ कृपा सखी कासिम साह
कृपासहचरी किंकरसिंह
कृपा मिश्र किनारीराम
१२१८ कृपाराम किलोल
कृपासिंधु लाल किशनसिंह गुणावत ९६२ कृपालु दत्त किशोरदास
कृष्णदत्त पांडे किशोरीजी
कृष्णदत्त किशोरीदास ६६२,५६५ कृष्णदास भावुकजी किशोरीलाल राजा १६२,६६६ कृष्णराम किशोरीशरण
कृष्णदास राधा किशोरीशरण ११०७ कृष्णसिंह राजा किसनियाँ चाकर ६६२ कृष्णविहारी शुक्ल कुंज गोपी जयपुरवासी कृष्णसिंह कुंज लाला १२६३ कृष्णदास साधु कंजविहारी
कृष्ण कंजविहारी लाल १३०३ कृष्णलाल
१६३.११११ कृष्णाकर चारण कुलपति सिक्ख
कृष्ण
१०६७
१६२
१३११
१६५
१२४०
६६३
१११२
१०६५
१०८३
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________________
नाम
कृष्णशरण
कृष्णावती
६६५
कृष्णानंद व्यास, गोकुल १०२६
केदारनाथ
१२२८
૩૪
६४
६६४, १०६६
६६४, ११५८
६६४
६६४
६६४
केवल
केशव
केशव कवि
केशव गिरि
केशव मुनि केशवराम
केशव राय कायस्थ
केशवराम विष्णुलाल
पंडा
केशवदास टीकम
गढ़-वासी
केशवराम भट्ट
केशोदास माड़वार
केसर
केसरीसिंह
कोक
कोविद कविमित्र
कोसल
( * )
कौलेश्वरलाल
गनिया
खड्ग बहादुरमल
पृष्ठ
१००३
१२३७
१२६
१२१५
६६४
३६४
११६१
६६४
૨૬૪
६६४
१३०१
૨૨
१२२८
नाम
ख्यालीराम
खान
खुमानसिंह कायस्थ
खुसाल पाठक
खूखी
खूबचंद राठ
खूबचंद
खूबी
खेतल
खेमराय
खेम
खैराशाह
खोजी
पृष्ठ
३५२
११६१
१११३
गजराज उपाध्याय
गजराजसिंह
३६१.
५३
६६६
६६६
१०३२
१३०७
गजानंद
५३
गजेंद्रशाह
६६६
गणेशदत्त
६६६
गणेशप्रसाद फ़र्रुखाबादी १०३०
गणेशबख़्श
१०६६
गणेश करौली
१०७०
गणेशप्रसाद काशी
१०७१
गणेश
११०२
गणेशपुरी
११११
गणेशप्रसाद
११५०
1989
६६६
२१३
६६६
६६६
१०७७
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________________
ब
,
गणेशीलाल
M . . - wr
m . . .
नाम
पृष्ठ । नाम गणेशदत्त
१२२१ गुमानी गणेश भाट १२२६ गुमानीलाल १३०१ गुमानसिंह
११६६ गदाधर दतिया-वासी १०६६ गुरुदास
१६७ गदाधरसिंह बाबू १११८ गुरुदीन पैंतेपुर १२२६ गदाधर भट्ट
११२५ गुरुदत्त
१११३ गदाधर भट्ट
१२२६ गुरुदीन गदाधरदास
११०२ गुरुप्रसाद क्षत्रिय गदाधरजी ब्राह्मण
गुरुदयाल कायस्थ १२६३ गयाप्रसाद
गुलाबराम गयादीन कायस्थ १११२ गुलाबलाल गिरधर
८२६.६६६ गुलालसिंह गिरधारी ब्राह्मण १६६ गुलाबसिंह कविराज १०५५ गिरिधारन
गुलाल
१०७१ गिरिधर स्वामी
गुलाबसिंहधा-ऊजी११६३१२५३, गिरिधारी सातनपुर
गुलाबराम राय १२८८ गिरिधरदास
गुलाबदास गिरिवर दान
गोकुलनाथ भट्ट गिरिजादत्त शुक्ल १२८८ गोकुलचंद
१२२६ गिरिधारी भाट
१२६३
गोकुल कायस्थ १०८४ गीध
गोडीदास गुणसागर जैन
गोपाल गुणसिंधु ११०२ गोपालदत्त
१६८ गुणाकर त्रिपाठी १२२६ गोपालसिंह ब्रजवासी १६८ गुप्तरानी बाई १३०३ । गोपाल नायक १०७७
१६६
مم
w
ه
im
w
م
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०
w
م
०
१६७
०
r
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________________
नाम
गोपाल कायस्थ पन्ना गोपालजी काठिया
वार
गोपाल कायस्य
गोपालराय भाद
गोपालसिंह
(0)
११४७, ११६७
६४५-१०८४
गोविंद गिल्लाभाई
गोविंद कवि
गोसाई राजपूतानेवाले
पृष्ठ
१०८४
गोपालदास
गोपालराव
गोपाल कवि
गोपाललाल
गोपालराम गहमर गोपीचंद मगही कवि
गोमतीदास
गोवर्धनलाल
गोवर्धनदास कायस्थ
गोविंदप्रभु
गोविंदसहाय
६६८
गोविंदनारायण मिश्र १२०५
१२०१
गौरचरण
गौरीशंकर- हीराचंद
१०८४
१०६०
१०६८
११५०
११५७
१२२३
१२७६
६६८
१११२
११४७
६६८
६६८ :
१२१५
६६८
गोस्वामी गुलाबलाल १०२३
गोविंद
११०६
११०२
नाम
श्रोफा
गौरीशंकर
गौरी- भाऊ
गौरीदत्त
गंग
गंगन
गंगल
गंगा
गंगाधर बुंदेलखंडी
गंगाप्रसाद
गंगाराम
गंगाधर भाट
गंगाप्रसाद (गंग )
गंगाप्रसाद व्यास
गंगादत्त
गंगाराम
गंगादयाल
गंगादास
घनश्याम ब्राह्मय
घनश्यामदास कायस्थ घमरीदासजी साधु
घमंडीराम साधु
घाटमदास साधु
घासी भट्ट
घासीराम उपाध्याय
पृष्ठ
१२७६
१२६३
६६८
१२१२
६६८
६६८
६६८
६६८
६६८
६६६
१०६८
१२२६
१२६४
१०६६
११४८
११२१
१२६३
१२६४
१११०
१०७०
६६६
६६६
६६३
६६३
६६६
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________________
नाम
चक्रपाणि
चतुरश्रलि
चतुर्भुज मैथिल
चतुर्भुज ब्राह्मण
चतुर सुजान
चरणदास
चानी
( 5 )
चालकदान
चिंतामणि
चिंतामणिदास
चिम्मन सिंह
चिम्मनलाल
चेतनदास
पृष्ठ
६६६
चतुरलाल
१०८४
चतुर्भुज मिश्र आगरा चतुर्भुज मिश्र भरतपुर १०८५
चरपट जोगी
६७०
१२२२
६७०
६७०
६७०
६७१
६६६
१२४३
६७०
चेन
६७०
चैनसिंह खत्री
११०२
चैनदास चारण
१०६१
चोखे
६७०
चोवा हरिप्रसाद
१२२६
चौधरी रघुनंदनप्रसाद १३०६
चौरामल
१३११
चंडीदत्त
११६२
६६
६६६
१३०१
६६६
६७०
नाम
पृष्ठ
चंडीदान चारण कोटा ११६२
चंदन बूँदी
१२५२
चंद कवि
१०२२
चंद
६७०
चंद्र झा
१२६४
चंद्रदास
६७१
चंद्ररस कुंद
६७१
चंद्र
चंद्र कवि जयपुर
चंद्र सखी
१३११
५०६३
१०७७
६७१
११४७
चंद्रिकाप्रसाद तिवारी १२२०
१२६२
६७१
६७१
६७१
६७१
चंद्रावल
चंपाराम
छतर
छत्तन
'छत्रपति
छत्रपती
छत्रधारी
छितिपाल
छेदालाल ब्रह्मचारी
छेमकरन
छेम
छोटालाल
छोटूराम बाँकीपुर
छोटूराम तेवारी
१२२६
१२२१
६७१
६७१
६७१
६७१
१३०८
Page #393
--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम नगनेस
बगनाथ
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0
0
CCWMG . . minum
१२१३
जगन्नाथ भट्ट
१७२ जगन्नाथ मिश्र जगन्नाथप्रसाद कायस्थ कोसी
१७२ जगन्नाथप्रसाद समथर ९७२ जगवेशराय जगमोहनसिंह जगदीश लालजी जगतेश
१२३७ जगराज
१०७७ जगनाथसहाय १२८६ जगन्नाथप्रसाद (भानु) १२६३ जगतनारायण १२६२ जगन्नाथ अवस्थी १२६४ जगन्नाथप्रसाद कायस्थ
छतरपुर ६७२ जगन्नाथ वैश्य १३१२ जगन्नाथ (सुखसिंधु) जतना स्वामी ६७२ जदुनाथ जन गूजर जन छोतम जन जगदेव
नाम जन तुलसी जन हमीर जनहरजीवन साधु जनकलाड़िलीशरण १०९३ जनकधारीलाल जनकेस
१२४३ जनार्दन भट्ट
१०७८ जपुजी साहब जबरेस
१२१४ जमुनाचार्य जमुनादास
१२४२ जयनंद मैथिल जय कवि जयराम जयदयाल जयमंगलप्रसाद जयनारायण जयगोविंदसिंह ११५३ जयानंद कायस्थ ज्येष्ठालाल जवाहिर
१२९५ ज्वालाप्रसाद मिश्र १२७२ ज्वालाप्रसाद वाजपेयी १२७७ ज्वालासहाय ( सेवक) १७४ ज्वालास्वरूप
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१२९४
११०३ ।
९७४
Page #394
--------------------------------------------------------------------------
________________
१११३
१०५१
१२३०
.
(..) नाम
पृष्ठ । नाम जवाहिरसिंह ७०५,१०८५ जैमलदास
६७४ जादों भक्त
६७३ जोधा चारण जानराय
जौहरीलान शाह जान
१२६५ जंत्री
६७४ जानकीचरण १०३५ झंडदास जानकीप्रसाद पँवार
टहकन पंजाबी ५००,६७४ जानकीप्रसाद कुर १२५६ टामसन जानी विहारीलाल १२२६ टीकाराम
११०६ जानी मुकुंदलाल
टोकाराम
१११४ जामसुता
१२५८ टुडरस जालिमसिंह १२३८ टेर मैनपुरी
११५१ जितऊ
१०७० टोडरमल्ल जिनदास पंडित
ठकुरेशजी
१२८६ जिनराज
ठग मिश्र
१२३० जीवनदास
ठाकुरराम
६७४ जीवनलाल
ठाकुरप्रसाद (पंडित जीवनराम भाट
प्रवीन) जीवा भक्त (राजपूताना) १०७८ ठाकुरप्रसाद त्रिपाठी १९५६ जीवाराम
१३०८ ठाकरप्रसाद लाला ११६२ जुगराज
६७३ ठाकुर लक्ष्मीनाथ जुगलकिशोर साधु ६७४ मैथिल
१२२३ जुगलदास ७७०-६७४ ठाकुरदयाल सिंह १२३० जुगलप्रसाद १७४ ठाकुरदास
१२८६ जगुलकिशोर मिश्र १२७४ | ठाकुरप्रसाद (पूरन ) १२९५ জুলফিক্কা
ठाकुरप्रसाद त्रिवेदी १२६५
० ०G MG Gk Ww nn
१२०८
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१०१२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम
ठंडी सखी
डॉ०
० रुडाल्फ़ हार्नली
सी० आई० ई० ११४३
डॉ० सर जी० ए० ग्रियर्सन
. मी० आई० ई० १२५०
६७२
६७५
११६५
१७५
३७५
१७५
१२३८
६७६
११०६
१२१५
१२२१
ढाकन
तवकुमार मुनि
तपसीराम कायस्थ
तार ( ताहर )
तारपानि
ताराचंद राव
तारानाथ
तीक्रम (टीकम) दास
पृष्ठ
१०७८
तुलसीराम अगरवाल
तुलसीराम शर्मा
तुलसी का
तुलसीराम मिश्र
कानपुर
तुलाराम
तेजसी
तैलंग भट्ट
तोताराम
थानसिंह
थिरपाल
दत्त
१११३
१२६५
६७६
६७६, ११०८
११६५
१०६५
१११०
१६८-६७६
11 )
नाम
दयाकृष्ण
दयादास
दयानिधि
दयाल कायस्थ
दयासागर सूरि
दयाराम वैश्य दयानिधि ब्राह्मण
दयालजी चारण
दरशनलाल कायस्थ
दरियाव
दलपतिराय डाह्याभाई
झालावार
दलपतिराम
दलपति
दलसिंह
दसानंद
दाक
दाजी
२२४-६७६
१२४२
१२८१
१३०८
३७७
१२८६
द्वारिकाप्रसाद ब्राह्मण
द्वारिकादास साधु
द्वारिकादास
द्वारिकेस
पृष्ठ
१७६
१७६
६७६
३७६
दामोदर शास्त्री
दामोदरजी (दास)
दास अनंत
१०४८
११५६
१२२३
१२३०
६७७
१२८७
६७६
११५६
६७६
६७७
११४२
१२३०
११०८
६७७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
4
११०३
६७७
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.
१८०
९८०
(१२) नाम पृष्ठ । नाम
पष्ठ दासगोविंद
९७७ दुर्गाप्रसाद कायस्थ १२८६ दासदलसिंह
दुर्जनदास साधु दास
दुलीचंद
१०८५ दासानंद (छत्रपुरवासी) दुःखभंजन दासी
दूधनाथ द्विजकिशोर
१८० दूलनदास १७८,१२३७ द्विजनदास
देवनाथ
१७८ द्विजनंद
देवमणि द्विजराम १८० देवराम
१७८ द्विजगंग
देवकीनंदन त्रिपाठी १२२३ द्विजकवि
१२३० देवकीनंदन तेवारी १२३० दिवाकर
१७७ देवदत्त शास्त्री १२४० दीनदास
८६४-६७७ देवकवि काष्ठजिह्वादीनदयाल
स्वामी
१०२८ दीनदयाल १२३० देवराज
१२६० दीनदयाल शर्मा (ब्याख्यान देवसिंह
१२६५ वाचस्पति) १२६६ । देवीदत्त
१७६ दीनानाथ बुंदेलखंडी १०६ देवीदत्त राय १७८-११४६ दीनानाथ मोहार १०८५ देवीदास ६४२-१७८ दीपकुरि रानी ११५७
देवीप्रसाद
१७८ दीपसिंह ११६८ देवीदत्त वैद्य
१०१८ दीहल
देवीप्रसाद कायस्थ मऊदुर्गाप्रसाद
१७७ छत्रपूर दुर्गादत्त व्यास १२२३ देवीप्रसाद मुंशी जोधपुर ११६५ दुर्गाप्रसाद मिश्र कलकत्ता १२५४ | देवीप्रसाद भाट बिलगराम १२३०
९७७
Page #397
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१३)
पृष्ठ
पृष्ठ । १२८६
५२६५
नाम देवीसिंह देवीसिंह देवीदीन द्रोणाचार्य त्रिवेदी दौलतराम दंपताचार्य धनुर्धर राम
११०३
१०१८ ११५६ १२३८ १२१२
धनेश
c
9
धरणीधर धरमपाल ध्यानदास धीरजसिंह कायस्थ धीरजसिंह महाराज धुरंधर धोंधी नकछेदी तिवारी
नाम नरेश
१२२१ नरेंद्रसिंह महाराज,
पटियाला नरोत्तम अंतरवेद ११५२ नवनिधि
१२२१ नवनिधि शिष्य कबीर १८० नवलकिशोर
१८० नवलसखी नवलसिंह प्रधान १०६६ नवीन व्रजवासी नवीनचंद्र राय ११४४ नवीन भट्ट
१२२४ नाथूराम शुक्ल
११०४ नाथूजाल दोसी ११५२ नाथूराम शंकर शर्मा १२५२ नापा चारण मारवाड़ १८० नारायणप्रसाद १३१२ नारायणदास साधु १८० नारायण राव भट्ट १८० नारायणदास नारायणदास रसमंजरी ११०. नारायणदास भाट ११६३ नारायणदास वृंदावन १२८७ नारायणबंदीजन १२९५ नारायणप्रसाद मिश्र १३१२
१.६७
१०७८
१२५४ १७६
.
.
.
नजमी नस्थासिंह नरपान नरमल नरहरिदास बकसी नरसिंह दयाल नरहरिदास साधु नरिंद
१८.
१०७८
Page #398
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१४)
नाम
नाम नित्यवल्लभ ११०३ नंदीपति
१८. नित्यनाथ १८१-१२६० पखान
१८१ नित्यानंद ब्रह्मचारी १३०८
पजनकुरि निर्गुण साधु १८१ पजनेस
१०३८ निर्भयानंद स्वामी १११३ पत्तनलाल (सुशील) १३०१ निहाल १०२७ पदुमलाल
१८२ नील मणि १०७८ पधान
१८२ नीन सखी १२३१ पनजी चारण
१८२ नीलकंठ (बड़ौदावासी)१२६६ पन्नालाल नृसिंहदास १२०३ पन्नालाल चौधरी १०१८ नेही
१८१ परबत नैनूदास साधु
परमल्ल
९८२ नैनयोगिनी
१०६८ परम बंदीजन (महोवानैसुख १२३१ वाले)
१०८६ नोने
१२३० परमानंद भट्ट . १८२ नौबतराय
१८१ परमानंद गोस्वामी १२३१ नंदकुमार गोस्वामी १८१ परशुराम महाराज १८२ नंद कवि १८१ परमानंद
१०३६ नंदकिशोर
१८१ परमसुख नंददास
परमेश्वरीदास नंदकुमार कायस्थ १०८५ परमानंद कायस्थ १२२७ नंदराम
१०६३ परमानंद लल्ला ११५२ नंदन पाठक
परमेश्वर बंदीजन ११६४ नंदराम सालेहनगर १२१० परमहंस इलाहाबाद १२३८ नंदकिशोर शुक्ल १२७१ । परमेश्वरदास १२६०
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Page #399
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८२
१८३
१८३
नाम परमेश कवि परागीलाल (तीर्थ- राज) ७५६-१२३१ परागीलाल कायस्थ १८२ परिपूर्णदास पलटूसाहब
१८३ पाषान चारण पारसराम
१८३ पारस
१२२२ पीतमलान पीथो चारण पीपाजी पुरुषोत्तमदास १८३ पूरनचंद पूरण मिश्र
१८३ परनमल पृथ्वीनाथ
१८४ पृथ्वीराज चारण 8८४ पृथ्वीराज प्रधान १८४ पंकजदास
१३०८ पंचम बुंदेलखंडी १२९६ पंचदेव पांडे
१२८२ पंचम डलमऊ ११५१ पंडित बिगहपुर १५३ ( पंडित प्रवीन ) ठाकुर
नाम
पृष्ठ प्रसाद
१०५२ प्रकाशानंद संन्यासी १३०३ प्रताप कुँअरिबाई १०४२ प्रतापनारायण मिश्र १२६० प्रधान केशवराम १८४ प्रधान
१०८६ प्रभुराम प्रभुदयाल प्रयागदत्त
१८४ प्राणसिंह कायस्थ प्रिया सखी प्रियादास भटनागर १२८७ प्रियादास राधावल्लभी १८४ प्रेमसिंह उदावत ११६४ प्रेमनाथ इंद्रावती १८४ प्रेमकेश्वरदास फकीरुद्दीन फतहलाल जयपुरी ११५२ फतूरीलाल मिथिला १२३६ फतेह सिंह
१८५ फतेहसिंहजी राजापवायाँ १२६६ फरासीसी वैद्य १२४२ फाजिनशाह १०६५ फूलचंद ब्राह्मण १२२५ फूली बाई
१८३
१८५
१८५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
(१६)
१२४६
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नाभ
नाम फेरन रीवा
११२८ बलदेवदास कायस्थ १२४५ फेरन
१८५ बलवंत राव ऋडरिक पिनकाट
बलदेवसिंह चौहान १३०८ बकसी
१८५ बलिदास बख्तावरस्ताँ
बल्लभ चौबे बख्तावरमल ११५३ बल्लूचारण
१८६ बच्चूलाल १२६६ बाघा चारण
१८६ बजरंग
१८५ बाज बदरीदास
९८५ बाजाराम
१८६ बदरीनारायण चौधरी १२४७ बादेराय भाट बद्रीविशाल १२३८ बानी
१८७ बनानाथ जोगी १८५ बाबा रघुनाथदास रामबनादास १०८६ सनेही
१०५६ बरगराय
१८६
बाबा रघुनाथदास महंत १०३४ बरजोर प्रधान
१८६
बाबूरामजी शुक्ल १३१२ बलदेवप्रसाद
१८६
बाबू भट्ट बल्लभ १८६ बालकदास साधु
१८७ बलवंतसिंह
बालकृष्णदासजी साधु १८७ बलदेवसिंह क्षत्रिय १०५२ बालगोविंद कायस्थ १८७ बलदेव ब्राह्मण
बालचंद जैन
१८७ बलदेवदास माथुर ११०३ बालसनेहीदास १८७ बलदेव द्विज दासापुर ११३६ बाल कृष्ण चौबे १०६१ बलदेवसिंह वैश्य १२२४ बालकृष्ण भट्ट ( गोकुल बलभद्र कायस्थ पन्ना १२२४ बासी) बलदेवप्रसाद
१२३८ ।
बालदत्त मिश्र १२२६ .
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम
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बेनामाधव दुबे बेसाहूराम बैजनाथ दीक्षित बैजनाथप्रसाद
.
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नाम
पृष्ठ बालकृष्ण भट्ट प्रयाग ११४४ बालकृष्ण चौबे
१२२४ बालकृष्णदास
१२२४ बालकराम
१२३६ बालकृष्णसहाय बालेश्वरप्रसाद
१२३२ बावरी सखी
१८८ बिड़दसिंहजी उपनाम (माधव). ११४१ बिंदादत्त
१८९ बिरंजी कुँवर बिसंभर
१८१ बिहारीलाल त्रिपाठी बिहारी दतियावासी १२८६ बिहारीलाल चौबे १३१२ बीटूजी चारण बुदसिंह
१०७३ बुर्दासह
११६४ बुधानंद बुद्धिसेन बुलाकीदास बेनीमाधव भट्ट बेनीदास बंदोजन १०६८ बेनी भिडवासी बेनीसिंह ठाकुर १२०३
बोध बोधिदास बाबा
१२८१ बोधीदास
१२८८ बंका बंदावली
१०७६ बंदीदीन
१२६७ बंसगोपाल बुंदेलखंडी १०८७ बंसरूप बनारसी बंसीधर बजबलभदास ब्रज
११५५ ब्रजचंद जैन ब्रजनाथवारहट
१०३३ ब्रह्मदास ब्रह्मविलास ब्रह्मज्ञानेंद्र भगत भगवानदास भगवानदास ईचाक
जि० हजारीबाग़ १२४१
.
88.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
(15)
पृष्ठ
भीम
१२६२
१२४१
१६३
११०६
भेख
१२४. १२८८
नाम
नाम भगवंतलाल सोनार १२२४ । भीखूजी भगवानदासजी खत्री १२५२ भडुरी शाहाबाद
भीमसेन शर्मा भद्र
११२ भीषमदास भद्रसेन
१९२ भूधरमन भरथ
भूप भरथरी
भूमिदेव भवनकवि
भूसुर भवानीदत्त भवानीदास
भैरवप्रसाद भवानीबक्सराय ११०८ भैरवदत्त त्रिपाठी भवानीप्रसाद शुक्ल ११४७ भैरवनाथ मिश्र भवानीप्रसाद पाठक १५३ भैरों कवि लोहारभवानीदीन नीलगाँव के
तअल्लुकदार ११५० भोरी सखी भाऊ कवि
भोलानाथ भाऊदास साधु
भोला भाण
१०७६ भोलानाथ मिश्र भानुप्रसाद
११४६ मकरंदराय भानुनाथ का १०६७ मकसूदन गोस्वामी भानुप्रताप त्रिवेदी १३०६ मजबूतसिंह कायस्थ भारतीदीन
१०८७ मतिरामजी भावन पाठक
मथुराप्रसाद भिखंजन साधु
मथुराप्रसाद भीखजन ब्राह्मण
मथुरादास
सीकर
१०११ १२८६ ११०४
६६३ ११५८ ११४
१२८७
१२
११६४ १२२२
Page #403
--------------------------------------------------------------------------
________________
(1)
।
११५७ १२३६
नाम
पृष्ठ मदनगोपाल चरखारीवाले मदनसिंह कायस्थ मदनगोपाल
१०८७ मदनमोहन
११५४ मदनसिंह मदनपाल मदारीलाल शर्मा मननिधि
१३४ मनमोहन
११४ मनरस मनराज मनसा मन्य
११४ मन्नालाल बैनाड़ा
११४८ मजावाल
१२३२ मनीराम मनूलाल मनोहरलाल
११०४ मर्दनसिंह
१२३६ महरामणजी
१२६० महावीर महासिंह राजपूत महाराज रघुराज
सिंहदेव १०४३
नाम महाचंद्र जैन १९९४ महाराज विश्वनाथसिंह १०२२ महारानी वृषभानु कुँवर १२०३ महानंद वाजपेयी १२३२ महावीरप्रसाद द्विवेदी १२७० महाराज विजयसिंह १२८७ महोपति मैथित महेशदास
१११४ महेशदत्त शुक्ल १७६१ महेश
१२५१ माखन
१०८७ माखन चौबे ११५० माखन लखेरा . ११५४ मातादीन कायस्थ मातादीन शुक्ल अजगर
प्रतापगढ़ १२४१ मातादीन द्विवेदी १२५४ मातादीन मिश्र
१२६७ मातादीन शुक्ल सरोसी.
उन्नाव १२९७ मातादीन शुक्ल बिसवाँ १३०१ माधवप्रसाद माधवराम माधव नारायण माधव रीवाँ
११५४
१२.
१०३५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
(२.)
नाम
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मुनी
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१२३२
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पृष्ठ । नाम माधवसिंह राजा
मुनि ब्राह्मण अमेठी ११४६-१२९७ मुनिलाल माधवानंद भारती
१२३२
मुनिश्रात्माराम ११४६ माधवप्रसाद मिश्र १२७३ माधुरीशरण १३१२ मुरलीधरसाधु माननिधि
१०७६ मुरलीधर मानसिंह
मुरलीराम साधु माननीयमदनमोहन
मुरलीराम मालवीय
१२७२ मुरलीसखी मानालाल
१२६३
मुरारीदास मानिकचंद
मुरारिदास मानिकदास माथुर
मुरारिदासजी ११३० मार्कंडेय
१२९७ मुंशीराम महात्मा १२१७ मर्दनसिंह
मूरतिराम
१२८२ मूलचंद मिश्र
मृगेंद्र मिहिरचंद्र दिल्लीवाले
मेघराज मिहीलाल
मेणा भाट मीठाजी
मेनाराम वैश्य १२६१ मीतूदास
१२३२ मोलबी साहब मीरन
मोहन
१०७५ मुकुंदलाल
मोहकम मुकुंदीलाल
मोहनदास मुन्नाराम
मोहनलाल चरखारी १२४३ मुन्नालाल कायस्थ मैहर १२६७ । मोहनदास भंडारी १६७
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________________
(२१)
नाम .
पृष्ठ ।
नाम मोहनमत्त
रघुनाथदास
११८ मोहनलाल कायस्थ १९७ रघुनाथदास जदिया १३.६ मोहनलाल गोस्वामी ११०४ रघुमहाशय . १०५० मोहन
११०३ रघुनाथप्रसाद मिश्र १३०४ मोहनलाल विष्णुलाल
रघुनाथप्रसाद पना राज्य १२४१ पांड्या
१२१२
रघुवरदयाल मंगद
रघुनाथप्रसादकायस्थ मंगलराम ११५० काशी
१२८७ मंगलराज
रघुनंदनवाल मंगलदेव
१२२२ रघुनंदन भट्टाचार्य मंगलसेन
२४१ रघुनंदनप्रसाद . मंगलदास कायस्थ ११०५ रघुवर
११८ मंगलीप्रसाद दुबे १३०३
रघुवरदयाल
१३३ मंगलदीन
रघुवरप्रसाद १३०४ मंगलीप्रसाद कायस्थ
रघुवरशरण ११८, १२३० मंदिन श्रीपति
रघुराजसिंहजू देव युगलप्रसाद चौबे
महाराज रीवा
१०४३ युगल मंजरी
रघुश्याम युगलप्रसाद कायस्थ रीवा ११५५ रघुवीर
१२९८ युगलकिशोर १२४३
रघुवीरप्रसाद
१३०१ युगलप्रसाद टीकमगढ़ १२९७ रघुवंश वलभदेव ११.८ युगलवलम
१२१७ रणमलसिंह रघुमुख
रणजोरसिंह
१२१८ रघुनाथ
१२१८ रणजीतसिंह धंधेरे रघुनाथप्रसाद
रणछोड़जी
११८
Page #406
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२२)
पृष्ठ
888
११॥
०
०
११०५
वाले
नाम
पृष्ठ । नाम रणजीतसिंह राजाईसानगर १२६८ | रसिकनाथ रत्नकुवरि बीबी १२७१ रसिकप्रवीन रत्रचंद्र
रसिकसुंदर ११०७ रत्नचंद्र बी० ए०. १२२४ रसिकमुकुंद रत्नहरि
१०२८ रसिकसुंदर कायस्थ रतनसिंह
१०८८
रसिकलाल रतिनाथ
१२६२ राघवजन रमणलाल गोस्वामी १.८० राघवदास
१२१० रमादत्त
राजा मुसाहब बिजावररमाकांत
१३१३ रमैया बाबा
राजेंद्रप्रसाद रविदत्त शास्त्री १२४३
राधाचरण कायस्थ ११५७ रविराम
१२४४ राधाचरण गोस्वामी १२१३ रविराज १२४१ বাঘাৰাৰ
१२१८ रसरूप
राधासर्वेश्वरीदास १२४२ रसत्रानंद
राधाचरण गौड़ १२१३,१२६८ रसिकेश
१२०२ राधिकाशरण रसरंग १०३३,१२३३ राधिकाप्रसाद रसकटक ६१८ राधेकृष्ण
१०६६ रसटूक
रामकरण रसनेश
रामचरण ब्राह्मण रसानंद भट्ट
१०७६ रामजीमल्ल भट्ट रसाल
११०५ रामचंद्र स्वामी रसिकविहारी १२३६ रामदत्त रसिया
१२२२ | रामराव चिंचोलकर १२८४
Page #407
--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम
नाम
पृष्ठ
रामनाथ
१०८८.
०
०
०
०
११५५
रामदया रामदान रामदेव रामदेवसिंह रामनारायण उपनाम
विष्णुस्वामी १००० रामप्रसाद कायस्थ ६१७,१००१ रामबख़्श
१००१ रामभरोसे ब्राह्मण रामरता रामराय रामरंग खान
१००१ रामसज्जनजी
१००१ रामसनेही
१०." रामसहाय कायस्थ रामसिंह कायस्थ १००० रामसिंह राव मंडला १००२ रामसेवक रामचंद्र ब्राह्मण १००२ रामकवि १५४, १०६८ रामदीन त्रिपाठी
तिकमापूर १०७४ रामराय राठौर
१०८० रामजस
१०८० राममोहन
१०८०
रामजू रामगुलाम द्विवेदी रामलाल रामकुमार रामनाथ मिश्र ११.८ रामकृष्ण रामदीन बंदीजन इटावा ११५५ रामचरन चिरगाँव ११५८ रामकुमार कायस्थ रामप्रताप जयपुर रामभजन बारी रामपालसिंह रामद्विज रामनाथसिंह रामरसिक साधु १२२५ रामबल्लभाशरण १२२५ रामदयाल रामनाथ
१२३३ रामगोपाल
१२३३ रामभजन
१२३३ रामचरण कायस्थ गौहार १२३० रामसेवक
१२३. रामप्रकाश
१२५१ रामराव
१२५३
१२२३
१२२५
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________________
(२४)
पृष्ठ
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नाम
नाम रामशंकर व्यास १२१८ रुघा साधु
१००२ रामनाथजी कविराज १२६६ रूप रामगयाप्रसाद
रूपमंजरी
१००३ रामधारीसहाय १२६१ रूपसखी रामनारायण कायस्थ १२६८ रूपसनातन
१०८० रामलाल स्वामी
रूपलालसिंह शर्मा रामप्रसाद
(रूपनलि) १२१८ रामरत
१३०२
रेवाराम रामदयाल
रंगखानि
१००३ रामप्रताप
रंगीला प्रीतम १०८१ रामनाथ
१३१० रंगीला सखो १०८१ रामप्रताप
लखनेस
११४२ रामसज्जनजी
लघुकशव साधु १००४,१०७१ रामा
१००२ लघुमति
१००४ रामाकांत १००२ लधुराम
१०.४ रामेश्वरदयाल १२१८ लघुलाल
१००४ रामानंद
लच्छ नदास राठोर १०८१ रायजू
लाछ ."ह्मभट्ट रायबहादुर हीरालाल है। ए. नौकरा दीजन एम्० श्रार० ए० एस० ५३०६ हातपूर १२३४ रायसाहिबसिंह १००२ लताफ
१२४२ रावराना वंदीजन १०७४ ललितादिकजी राहिब
१००२ लल्लू ब्राह्मण ११४८ रिबदास चारण
ललिता सखी १०.४ रुद्रदत्त शर्मा १२२१ । ललितकिशोरी साह १०६१
०
०
०
०
०
०
१९३४
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________________
दतिया
नाम
पृष्ठ नाम. . ललित माधुरी साह १०६१ नानन्यान रचयिता००४ ललितराम
बालगोपाल बलिताप्रसाद त्रिवेदी नाबचंद जैन
(ललित) १२०४ बालबुझक्कड़ बचमण कबीरपंथी १.०३ बालसिंह भाट १.०५ लषमणशरण
ভালবাজী ११०५ लक्ष्मणसिंह राजा
बालदास * बिजावर
लालचंद नक्ष्मणप्रसाद उपाध्याय १०८८ नालविहारी मिश्र १२५६ लक्ष्मणसिंह कायस्थ
लाजपतराय माला १२८५ ११५५
नालसिंह रीवा राज्य १२९६ वक्ष्मणानंद संन्यासी १२२२
लुकमान
१.०५ लक्ष्मण
१.८८ लेखराज वक्ष्मी
लेखराज मिश्र लक्ष्मीनारायण
लेखराज कायस्थ लक्ष्मीप्रसाद कायस्थ
लोचनसिंह कायस्थ १५५८ १००३
लोनेसिंह लक्ष्मीप्रसाद महाराजा नोनेवंदीजन १०८६ भानुप्रताप के मुसाहब १०॥ लोरिक मगही कवि १००५ सचमीशंकर मिश्र
१२११
बखताजी चारण नक्ष्मीनाथ
वजहन
१८५ समीनारायणसिंह
वाजिदजी
१८६ बचमीचंद १३०२ वासुदेवनाल १८८ बाजब १००४ वाहिद
१८८ साभवदन जैनी १.०४ / विजयानंद शर्मा १२६२
१२३४
१२४३
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________________
( २६ )
१८८
.
.
-
नाम विट्ठल कवि ཅདང विद्यानाथ विद्याप्रकाश १२२२ विध्येश्वरीप्रसाद तिवारी १२६० विनायकलाल १८८ विनायकराव पंडित १२७६ विश्वनाथ वंदीजन विश्वेश्वर
१८८ विश्वेश्वरदत्त पांडे १८८ विश्वनाथ
१२६६ विश्वेश्वरानंद
१२९६ विशाल कवि १२८० विष्णुदत्त महापात्र ८ विष्णुदत्त चैमलपुरा १०७० विष्णुस्वामी बालकृष्णजी १८९ विष्णुसिंह चारण १०८ विहारीलाल कायस्थ १८६ विहारीदास
१८६ विहारीलाल भट्ट १८६ विहारी उपनाम भोजराज:०७३ विहारीप्रसाद विहारीलाल १२३६ वृदावनदास वृंदावन सेमरीता
रायबरेली
नाम वृदावन कायस्थ १३०३ वृंदावन (वन) पना १३०९ वंदन पाठक
१२९६ वंशीधर भाट
१०१. वंशीधर वाजपेयी १०१० व्यकटेशजू ब्रजगोपालदास व्रजनंद व्रजवल्लभदास व्रजभानु दीक्षित व्रजजीवन
१११० बजगोपालदास १०८७ व्रजभूषणलान १२१७ व्रजेश बुंदेलखंडी शरणकिशोर शालिगराम चौबे शालिगराम शाकद्वीपी ११३१ शिवचरण
१००५ शिवदान
१००५ शिवराज शिवरास
१००६ शिवप्रसाद (राज) १०५४ शिवदयाल खत्री १०६८ शिवराम
१०७१
*
शिवदीन
*
.
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________________
(२७)
शोभ
शिवचंद्र
११२३
.
१२३४
नाम
पृष्ठ । नाम शिवचंद्र
१०८१ शेख्न सुलेमान शिवप्रसाद १०८३ शेखर
१२२२ शिवदीन भिनगा १११४ शिवलाल कायस्थ १११४ शंकरलाल कायस्थ १२२५ शिवदयाल कवि (भेष) ११४६ शंकर कवि
१०२६
शंकरदयाल दरियाबादी १०६८ शिवजीलाल
११५३ शंकर कायस्थ १०८१ शिवप्रकाशसिंह
शंकरराम (शंकर) ११०८ शिवप्रकाश
११६८ शंकरसहाय शिव कवि भाट १२.६ शंकरलाल
११६० शिवसिंह सेंगर १२१८ शंकर पांडे शिवप्रसाद मिश्र १२२२ शंकर त्रिपाठी शिवनंदन सहाय १२६४ शंकरसिंह
१२३४ शिवसंपति १२८४ शंकर
१३.६ शिवदत्त ब्राह्मण
शंकराचार्य शिवप्रसन्न ब्राह्मण
शंभुप्रसाद शिवशंकर
१३१० शंभुनाथ मिश्र १०४८ शिवानंद
शंभुनाथ कायस्थ १२३८ शीतलप्रसाद तिवारी १२३४ श्यामलाल
१००६ शीतलप्रसाद उपाध्याय १३०१ श्याम सनेही शीतलादीन (द्विजचंद) १२३६ श्याम कवि शीतजाप्रसाद तेवारी
श्याम मनोहर १.८" काशी १३." श्यामसुंदर
१०८" शीलमणि
श्रीकृष्ण चैतन्यदेव भंगारचंद्र
श्रीकृष्ण जोशी
.
. .
. .
.
.
.
.
.
१२२०
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________________
(२८)
नाम
.
१००८
१०४६
१०१२
१३१४
. ०
१००८
१००८
१२०६
१००६
१२८६
नाम - श्रीधरस्वामी १००६ भीधरभट्ट
११०० श्रीधर पाठक १२७७ श्रीनिवासदास श्रीनिवास
१०७५ श्रीमती
१२३ श्रीराम श्रीवीरवल
१२६१ श्रीहर्षजी
१२४४ सगुणदास
१०८. सतीदास साधु सतीप्रसाद सतीराम
१००७ सतीदासजी पांडे सदाराम सदासुख
१०१८ सबलजी सबन श्याम ११५, १००७ समर समाधान
१२६२ समीरन रसराज १००७ समुद्र सरयूप्रसाद मिश्र १२२६ सरयूदास सर्वसुखदास
सरसदास सरसराम सरदार सर्वसुख शरण सरयूप्रसाद सरूपदास सरूपराम सहचरीसुख सहजराम नाज़िर सहजराम साधूराम साधु साधोराम साधोगिरि साधोसिंह सालिक साहबराय साहबदीन साधु साह साँवलदासजी साँवरी सिकदार सिंगार सिंघी मेघराज सियारामशरण सियारघुनंदनशरण
१२३६
१२३४ १०७४
•
WC G
m
१०८२
१००१
०
०
०
१२३४
C
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________________
नाम
.
.
.
.
MH
सुखन
(२६) नाम
पृष्ठ | नाम सीतलराय वंदीजन १०६६ जयपुर सीतल
१०७४ सुंदरनाल राजनगर सीतारामशरण
छत्रपूर (रूपकला)
११२८ सुमतगोपाल सीताराम
१२८८ सुमेरसिंह सीताराम बी. ए.
सुर्जन सीतारामानन्य
१२३५ सीताराम वैश्य १२४४ सूरकिशोर
१.१.. सुखलाल भाट १०३२ सूरसिंह सुखनिधान
सूरजदास
१२२५ सुखशरण
सूरजबली सुखरामदास
सूर्यप्रसाद
१२२३ सुखविहार साधु
सूर्यप्रसाद मिश्र १२६६ सुर्खाबहारी
सूर्यनारायणलाल सुखदीन
१२३५ सेमजी सुजान ..
सेवक
१०७४ सुथरा नानकसाही
सेवकराम सुदर्शन १०७४
१०३३ सुदर्शनसिंह
सेवादास ०७०,१०१० सुदामाजी ११४८ सोनादासी
१०८२ सुधाकर द्विवेदी महामहो- सोमदेव
१.१०. पाध्याय
सोहनलाल सुंदरकली
सन्नूलाल गुप्त १२८७. सुंदर वंदीजन
संग्रामदास सुंदरलाल (रसिक)
संतबकस
१३.१
M. M
सेवक
१२३५
Page #414
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________________
१०१०
हरिभानु
. १०८
(३०) नाम
पृष्ठ । नाम संत कविराज रीवा १३०३ हरिजीवन संतोष वैद्य संतोषसिंह
१०६६ हरिया संपति
हरिराम ३५६,१०१२ स्कंदगिरि १०१० हरिसिंह
१०१२ स्वरूपचंद जैन ११५३ हरिसूरि जैनी १०१२ स्वयंप्रकाश
हरिदास
११७१ स्वामीदास बाँदा-वासी १००८ हरिप्रसाद स्वामी हरिसेवक ११६० हरिदत्तसिंह ब्राह्मण हकीम फरासीसी १०११ हरिजन कायस्थ १०८१ हजारीलाल १३०१ हरिविलास
११०० हनुमानप्रसाद मैहर १०११ हरिदास
१११४ हनुमान काशी १२०६ हरिदेव
११५० हनुमंत ब्राह्मण
१२२६
हरिदास साधु हनुमानदास
११६१ हरी प्राचार्य हनुमंतसिंह
१२३५ हरीदास भट्ट हरतालिकाप्रसाद १०११
हलधर हरदयाल
१०११ हरराज
१०११ हितप्रसाद हरप्रसाद
हितवल्लभ अली १०१२ हरदेव गिरि
हिम्मतराज
१०१२ हरिबख़्शसिंह
हिमंचन हरखनाथ झा ११३५ हिमाचलराय हरदेववश
१२४० हरिचंद
१.११ । हीरालाल चौवे ११४८
.
.
हाजी
س
.
.
1
.
ه
-
ة
हिरदेस
-
Page #415
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________________
नाम
हीराचंद अमोलक
हीरा प्रधान
हीरालाल काव्यो
पाध्याय
हृदेश
पृष्ठ
११२४
१२४२
१३०६
१०३४
३१ )
नाम
हेम चारण
हेमनाथ
होमनिधि शर्मा
हंसविजय नती
हंसराज
पृष्ठ
१०१२
१०१२
१२३६
१०१३
११२०
Page #416
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Page #417
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________________
शुद्धि-पत्र
पूछ १६८ १०.
पंक्ति अशुद्ध
. ०,१८ इनका ठीक नं.
भाऊ निकाल दो
२०६
२ (१) ९ विलास
(1)
विखास
देखो नं० (
)
१८० २१ (६५) १८१ ५ बोपन १९९८ [ १
५ ... कोट
[११.] कोक
१०॥
॥
(..)
(4)
१.१५
१.१४
१५ असपार
पाप-पंजनि
१.२६
१०॥ १.३०
प्रसिधार पाप-पुजनि गुही भाग भी इन्हें
१ भान . भी
.
Page #418
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________________
पृ
पंक्ति अशुद्ध
१०३३ १२ नरहरि
१०३६
२६
१०४०
१३
१०४२
१
१०४२
५ नहीं
१०४३
१ तरु
१०४१
••**
और
जिता
१०५३
१०६२
१०७०
१०७१
१०७३
१०७६
कलंक
( २ )
प्रयदास
विलास
२३
१०४८ २५ काठियावाड़ के
११३२
११४६
११४०
१०४३ १३ छुपाया
१०४६ २३
गारसंग्रह
२६ (द्वजराज कवि )
२१
श्रृंगार
१५ मध्य
४
२५ हैं
११
गिरिनारा
१०८३
१७
१०३२ २५ देलखंड
१०३४ ५
११००
१६
मदांध
प्रवेश द्वितीय भाट
१३ अयाध्या
१६ भा
४
शुद्ध
मरहरिवंशी किसी
निकाल दो
जितना
कलंकन
नदी
तरुरे
प्रियादास
बिलास
काठियावाड़
छुपा
श्रृंगारसंग्रह
( द्विजराजकवि )
रसश्रृंगार
माध्य
देखो नं० (१००६)
थे
गिरिनारी
देखो नं० (६५२ )
बुंदेलखंड
मदंध
अजवेश द्वितीय भाट
देखो नं० ( 1521 )
अयोध्या
भी
देखो नं० (*१६*)
Page #419
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________________
पृष्ठ
पंक्ति अशुद्ध ११४६४
मनोज गतिका, देवीचरित्र तथा त्रिदीप भी इन्होंने बनाए हैं। बंदूख क्रस्वा
११६० १६ बंधूस १७६७ . किस्सा ११६८ २६ १९२६ ११७६ " निकालते
- २५ द्रहवीं ११८४ २० उत्तरा११८७१ के १११ . ,
निकलते पंद्रहवीं उत्तर
भी अच्छे निकलने लगे हैं।
१२०८
१० सुन २४ निबंध
नं. ८८६ । १४ रसरंग, लखनऊ
१२३१
. - MM
१२३३
निबंध नं. ८८६ तीर्थराज । रसरंग लखनऊ देखो नं० (१.६६) राम नाम माहात्म्य । पांख्या देखो नं. ( २१५३)
१२३० १२३. १२५३ १२६०
१२ २. पंडा २२ ४ छंदोरं
छंदों
११८९
प्राचीनलिपिमाला पर हाल बारी साधारण भेवी बबद गाँव
१६ हानवारी २६ साधा २५ उबारगाँव
१२१३
Page #420
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________________ पृष्ठ 3.0 पंक्ति अशुद्ध / कलचूरि कलचुरि माति-निर्णय, श्राद्धनिर्णय, वैदिक विज्ञान, वैज्ञानिक सिद्धांत और कृष्ण-मीमांसा इत्यादि