Book Title: Mai Bhi Ek Kaidi Hu
Author(s): Padmsagarsuri
Publisher: Jivan Nirman Kendra
Catalog link: https://jainqq.org/explore/009998/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAR ममा एक कदा -आचार्य पद्मसागरसूरि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मैं भी एक कैदी हूँ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org रक्षावन के दिन साबरमती सेन्ट्रल जेल में सद्विचार परिवार द्वारा आयोजित प्रवचन के मननीय अंश. ************ प्रवक्ता आचार्य प्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D संप्रेरक : मुनि देवेन्द्रसागर संकलन/सम्पादन : मुनि विमलसागर - प्रकाशक : जीवन निर्माण केन्द्र, ए/५, सम्भवनाथ एपार्टमेन्ट, उस्मानपुरा उद्यान के पास, अहमदाबाद : ३८००१३. दूरभाष : ४४८७४०/४२५५६०. अष्टमंगल फाउण्डेशन, एन/५, मेघालय फ्लेट्स, सरदार पटेल कॉलोनी के पास, नारणपुरा, अहमदाबादः३८००१३. दूरभाष : ४४६६३४. प्रथम प्रकाशन : जनवरी, १९९३. प्रतियाँ : चार हजार : तीन रुपये D मुद्रक : पार्श्व कन्सल्टेन्टस, पालडी, अहमदाबाद. दूरभाष : ४१२३६७. मूल्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वस्वर श्रमण - जगत् में जिनशासन के ओजस्वी प्रवक्ता के रूप में एक मशहूर नाम है : आचार्य प्रवर श्री पद्यसागरसूरीश्वरजी म. का. अपार लोकप्रियता हासिल की है आपके माधुर्यपूर्ण प्रवचनों ने. जहाँ - जहाँ भी आप जाते हैं, जन-मेदिनी उमड़ पड़ती है आपको सुनने. आप बोलते हैं तो लगता हे जेसे होठों से मोती झरते हों सचमच www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपको सुनना अपने आप में एक निराला अहसास है. यहाँ प्रस्तुत है सन् १९८६ में रक्षाबन्धन के दिन साबरमती सेन्ट्रल जेल में दिये गये आपके प्रवचन के मननीय अंश, जिनको हमारे लिए सम्पादित किया है मेरे परम श्रद्धेय मुनि श्री विमलसागरजी म. ने. आशा है आचार्यश्री के प्रवचनों को जिस तन्मयता से सुना जाता है, उसी भाँति यह प्रकाशन भी पढ़ा जाएगा. कृपया इसे उन लोगों तक पहुँचाइये, जहाँ इसकी सार्थकता है. १ जनवरी, १९९३. - जिगर जे. शाह उस्मानपुरा, अहमदाबाद. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि पद्मविमलसागरजी म. की प्रेरणा से चन्द्रकान्त चिमनलाल राजुलावाला, ७७/१०, मरीनड्राईव, पाटण जैन मण्डल मार्ग, बम्बई : ४०००२० के सौजन्य से प्रकाशित. फोन : २०८८९७७. www.kobatirth.org प्रतिष्ठान राजुलावाला एण्ड सन्स/ दीना टूल्स कोर्पोरेशन, ११, नारायण दुरु क्रोस लेन, दूसरी मंजिल, बम्बई : ४००००३. फोन : ३४२७३१६ / ३४३३११७. For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मात्र आप ही नहीं, मैं भी एक कैदी हूँ. आप सरकार और कानून के गुनहगार हैं कि इस सेन्ट्रल जेल में आए हैं. और हम कर्म के गुनहगार हैं, इसीलिए संसार की सेन्ट्रल जेल में पैदा हुए हैं. बाकी जेल और जीवन में कोई विशेष अन्तर नहीं है. जन्म से मृत्यु तक हम सभी बन्धन में हैं. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीभ खतरनाक है. उससे सम्भलना जरा ! अपने शरीर की संरचना को देखो. आँखें दो हैं, पर उनका काम एक है : देखना. कान दो हैं, किन्तु उनका काम एक है : सुनना. नाक के छिद्र दो हैं, परन्तु उनका काम एक ही है : श्वास लेना. हाथ दो हैं, पर उनका काम एक है : वस्तु को स्थानान्तरित करना. पैर दो हैं, किन्तु उनका काम एक ही है : चलना. लेकिन संयोग है कि जीभ एक है और उसके काम दोः ब्रॉडकास्टिंग (बोलना) एण्ड फुड - सप्लाय (खाना). दोनों खतरनाक डिपार्टमेन्ट (विभाग) हैं. गलत बोलकर कर्म-बन्धन और गलत खाकर कर्म-बन्धन. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपनी आँखों के लिए कोई सिक्योरिटी नहीं है. कान पर भी कोई होमगार्ड तैनात नहीं है. नाक के लिए भी चौकीदार लगाया नहीं गया है, किन्तु जीभ पर गज़ब का पहरा है. दाँतों के रूप में ३२-३२ एस. आर. पी. गार्ड (पहरेदार) लगाए गए हैं. ऊपर से होठों की दीवार दी गई है. सोचिये ! कितनी खतरनाक है जीभ. जरा - सा गलत बोलती है और संघर्ष खड़ा हो जाता है. फिर तो इस कदर आग उठती है कि उसमें जीवन की सारी शान्ति जलकर खाक हो जाती है. इसीलिए यह परम आवश्यक है कि वाणी पर विवेक का नियंत्रण हो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाय चाहे पीली हो, काली हो या चितकबरी हो, उसका दूध तो श्वेत - धवल ही होगा. उसे अमृत समझो, धर्म चाहे हिन्दु हो, इस्लाम हो, जैन हो या ईसाई हो, यदि वह आत्मोत्थान का पथ प्रशस्त करता है तो मानव जाति के लिए वरदान है. पेकिंग और लेबल चाहे जैसा हो, माल तो असली ही होना चाहिए, १० www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्वान और मूर्ख में इतना ही अन्तर है कि विद्वान बोलने से पहले सोचता है और मूर्ख बोलने के बाद पछताता है. विद्वान की वाणी में विवेक का अंकुश होता है, वह सद्भावना के धरातल पर बोलता है, जबकि मूर्ख की भाषा बेकाबू होती है. वह बोलने के बाद गणित करता है. इसीलिए मूर्ख ठोकरें खाता है जबकि विद्वान अपना पथ बना लेता है. ११ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवान महावीर के उद्गार हैं कि प्रेम के द्वारा लाया गया परिवर्तन स्थायी होता है. कोई चाहे जितना भी दुष्ट व कठोर हृदय का व्यक्ति क्यों न हो, प्रेम के आधार पर उसे पिघाला जा सकता है. प्रेम पगडंडी है सामने वाले के हृदय तक पहुँचने की. १२ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं. प्राणीमात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है. मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सबक के लिए हूँ. मैं ईसाइयों का पादरी, मुसलमानों का फकीर, हिन्दुओं का संन्यासी और जैनों का आचार्य हूँ जो जिस रूप में चाहें, मुझे देख सकते हैं १३ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म तो एक व्यवस्था है. फिर भले ही वह अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित हो. वास्तविक धर्म का तो एक ही लक्ष्य होता है : प्राणी - मात्र का कल्याण हो, साम्प्रदायिक भेदभाव मलिन मानसिकता के प्रतिफल हैं, आत्म-धर्म का तो कोई भेद नहीं हो सकता. १४ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह शरीर और संसार - सभी कुछ छोड़कर एक दिन चले जाना है. मृत्यु जीवन की वास्तविकता है. संसार की जिन भौतिक उपलब्धियों के लिए अथक पुरुषार्थ कर रहे हो, उन्हें कल खो देना पड़ेगा. समस्त जागतिक उपलब्धियों को मृत्यु व्यर्थ बना देगी. १५ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दु सञ्चा हिन्दु बने और गीता के आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करे. मुसलमान पाक मुसलमान बन जाए और कुरान की अयातों को जीवन में उतारे. जैन सञ्चा जैन बन जाए और आगमोक्त जीवन जीए. ईसाई वास्तविक ईसाई बने और बाईबल के बतलाए पथ पर चले - इस प्रकार सभी अपने-अपने धर्मग्रन्थों के अनुसार जीवन जीएँ तो देश की अधिकांश समस्याएँ पल-भर में हल हो सकती है. फिर यह देश रामराज्य ही नहीं, स्वर्ग बन सकता १६ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस जगत् में सम्पूर्णतया स्वतंत्र तो कोई भी नहीं है. जन्म से पहले नौ माह तक माँ के गर्भ की कैद रहती है, जन्म के बाद भी माँ की नज़रबन्दी में दिन गुज़रते हैं, उसके बाद पिता के अंकुश में जीवन रहता है, विवाह के बाद हवाला हस्तान्तरित होता है, पत्नी का बन्धन आता है. बुढ़ापा पुत्रों के बन्धन में कटता है. बताओ ! कहाँ है स्वतंत्रता ? सचमुच जगत् का हर-एक मनुष्य कैदी है. १७ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्व वो है, जो जीवन को प्रकाशित करे. ऐसे पर्वो से प्रेरणा मिलती है. इसीलिए उनका आयोजन मात्र औपचारिक नहीं होना चाहिए. जीवन की वास्तविकता को मद्दे नज़र रखकर पवित्र पर्वो की इस प्रकार उपासना कीजिये कि वे अपनी भीतरी वासनाओं को नष्ट करने में सहायक बनें. १८ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपनी सुरक्षा स्वयं ही करनी है. गैर कोई आपको बचाए - इस बात में दम नहीं है. सब संयोग - साथी हैं. स्वयं के कदमों से चलकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं. केवल इतना खयाल रखें कि जीवन के इस यात्रा-पथ में सद्विचार और सदाचार का पाथेय अपने साथ हो. १९ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब तक अपने पापों के प्रति रुदन प्रकट न हो, तब तक भीतरी मलिनता का प्रक्षालन नहीं होगा. और जब तक चित्त की शुद्धि नहीं हो जाती, साधना की सिद्धि असम्भव है. अतः आज यह अत्यन्त उपादेय है कि परमात्मा के पथ की जिज्ञासा तीव्र बने, संसार की आसक्ति कम हो और अपने पापों के प्रति भय व रुदन हो. २० www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेक अथवा ड्राफ्ट में यदि कोई तकनिकी भूल हो तो बैंक उसे स्वीकार नहीं करती. उसे लौटा देती है. ठीक इसी प्रकार प्रार्थना में पश्चात्ताप न हो, संसार की याचना और वासना रूपी तकनिकी भूल हो तो वह भी अस्वीकृत होती है. ऐसी कितनी ही प्रार्थनाएँ आज तक लौट आई हैं. उन पर रिमार्क लगा है : "कृपया सुधार कर भेजिये !” www.kobatirth.org २१ For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौत से न अपने परिजन बचा सकते हैं, न ही अपना मकान. मजबूत दीवारें भी मौत को रोक नहीं सकतीं, न चौकीदार हाथ पकड़ सकता है मौत का. न कोई डॉक्टर मौत के भय से मुक्त कर सकता है और ना ही कोई वकिल मौत के समक्ष स्टेऑर्डर (स्थगन-आदेश) ला सकता है. जीवन मृत्यु से घिरा है. केवल धर्म ही उसे सुरक्षा प्रदान कर सकता है. २२ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपके पास अपार बुद्धि हो, अद्भुत शारीरिक शक्ति हो, अखूट धन सम्पत्ति हो, खूबसूरती और यौवन हो, फिर भी इतना स्मरण में रखना : www.kobatirth.org - “उछल लो कूद लो, जब तक है जोर इन नलियों में; याद रखना इस तन की, उड़ेगी खाक गलियों में." २३ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम के माध्यम से जीवन की शुद्धता को प्राप्त करो. जीवन को मन्दिर जैसा पवित्र बना दो. अपनी वाणी में इतनी मिठास भर दो कि उसे सुनने वाला प्रेम के बन्धन में बन्ध जाय. २४ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब दूसरे का दुःख-दर्द अपना लगने लगे तो मानना कि अब साधना के पथ पर प्रयाण हुआ है. ऐसी भावदशा आदमी को महापुरुष बनाती है. वे सौभाग्य के क्षण होंगे. www.kobatirth.org २५ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगर कुत्ता हमें काटे और हम भी कुत्ते को काटने के लिए तत्पर बन जाएँ तो फिर हमारे और कुत्ते में क्या फर्क रहेगा! अपकारी के प्रति भी उपकार की वर्षा करना भगवान महावीर का आदर्श था. मैं समझता हूँ यही आदर्श हमें सुख-शान्ति और आनन्द दे सकता है. प्राणी - मात्र के प्रति परम मैत्री की अभिलाषा ही हमें सब दुःखों से मुक्त करेगी. २६ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कब्र में सोए एक मुर्दे ने आवाज दी : "मुझे यहाँ कौन छोड़ गया ? मेरे पास धन - मकान - सब कुछ था. मुझे यहाँ अकेला कौन छोड़ गया ?" वहीं से गुज़रते एक कवि ने प्रत्युत्तर दिया : “शब कर, तुझे छोड़ने कोई तेरा दुश्मन यहाँ नहीं आया. जिनके लिए तू सब - कुछ छोड़ आया है, वे ही तेरे परिजन तुझे यहाँ लाकर छोड़ गए हैं !" २७ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि तीव्र आवेश में आकर आदमी गलत कार्य कर बैठता है, परन्तु गलत काम कर देने के बाद यदि हृदय में अपने पाप के प्रति पश्चात्ताप का भाव न हो, अपनी गलती का इकरार न हो तो समझो कि वह हृदय नहीं, पत्थर है. उसके लिए परमात्मा के द्वार बन्द रहेंगे २८ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जब विचारों में पाप का प्रवेश हो, तब तब यह गहन चिन्तन करना कि मैं प्रतिपल मृत्यु की ओर आगे बढ़ रहा दर कदम मेरी जीवन- यात्रा रही है. मेरे पापों के क्या हूँ. कदम मौत की ओर हो दुष्परिणाम होंगे ? मृत्यु का चिन्तन पाप मय प्रवृत्ति को विलम्बित करेगा और इस प्रकार सम्भव है आदमी पाप से बच जाय. www.kobatirth.org जब - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - २९ For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकृति के इस अटल नियम को सदा याद रखो कि किसी को रुलाकर आप हँस नहीं सकते. औरों को दुःखी बनाकर सुखी बनने की कल्पना मात्र भ्रम है. दूसरों को मारकर इस जगत् में कोई शान्ति से जी नहीं सका है. ३० www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूलों के संस्कार लेकर ही हम जगत् में आए हैं. हर आदमी भूलों से भरा है, परन्तु वह सचमुच महान व होनहार है जो भूलों से कुछ - न - कुछ सीखता है और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करता है. ३१ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिश्री द्वारा लिखित / सम्पादित / अनूदित साहित्य - आलोक के आंगन में (हिन्दी) १-०० रु. 0 आ. कैलाससागरसूरिजी म., जीवन-यात्रा : एक परिचय (हिन्दी) २-५० रु. - सुवास अने सौन्दर्य (गुज.) अप्राप्य 0 स्वाध्याय - सूत्र (हिन्दी) अप्राप्य 0 स्वाध्याय - सूत्रो (गुज.) २-५० रु. - आ. पद्मसागरसूरिजी म., जीवन-यात्रा : एक परिचय (हिन्दी) अप्राप्य - चिन्ता : प्राची, चिन्तन : सूरज (हिन्दी) ५-० रु. - चिन्ता : प्राची, चिन्तन : सूरज (गुज.) ५-० रु. - मनस्-क्रान्ति (हिन्दी) ५-० रु. - मानसिक क्रान्ति (गुज.) ५-० रु. में भी एक कैदी हूँ (हिन्दी) ३-० रु. लालगन्नन्ना (हिन्दी) ३-० रु. सपना यह संसार (हिन्दी) प्रेस में सा. जूठी जगनी माया (गुज.) प्रेस में INSTI . . www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन निर्माण केन्द्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only