Book Title: Mahabali Hanuman
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्र कथा 2008 Nepal महाबली हनुमान Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय जैन सुनो सुनायें कृति भारत देश महापुरुषों की जन्म भूमि रहा है। जैन पुराणों में 169 महापुरुषों का सच्चरित्र चित्रण रोचक एवं जीवन के उत्थान पतन का जीवन्त वर्णन वर्णित है। ये सभी चित्र महापुरुष तद्भव मोक्षगामी या निकट भभ्य होते हैं। पुण्यपाप का संयोग, उत्थान-पतन विभिन्न प्रकार के संकटो के बीच भी रक्षा, सहनशीलता आदि उत्तम गुणों को प्रकाशित करने का साहस धैर्य देने वाला महापुरुषों का सत्य जीवन माननीय अनुकरणीय एवं चिन्तनीय है। महाराजा प्रहलाद के कुल दीपक पुत्र राजकुमार पवनजय धर्म प्रिय महापुरुष थे। पवन कुमार का अंजना सत्य कथाएँ सुन्दरी से विधिवत विवाह संस्कार हुआ था, किन्तु पापोदय से 22 वर्ष तक मिलन नही हो पाया। पवन कुमार की कठोरता एवं अंजनादेवी की सहनशीलता को देखकर प्रकाशक __- आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला एवं परिवार आश्चर्य में था। अचानक अंजना का भाग्य जगा। भा. अनेकान्त विद्वत परिषद समय पा कर अंजना के पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बालक निर्देशक. -ब्र धर्मचंद शास्त्री हनुमान सूर्य के समान तेजस्वी था तथा जिस समय उसे - महाबली हनुमान मामा विमान में ले कर जा रहे थे उस समय वह बालक सम्पादक -ब्र रेखा जैन एम. ए. अष्टापद तीर्थ - 57 अचानक उछल कर विमान से नीचे एक विशाल शिला पर मूल्य - 25/- रुपये जा गिरा । वह शिला चूर-चूर हो गई तथा बालक एक शिला । चित्रकार - बने सिंह राठौड़ खण्ड पर सुख से अपना अंगूठा चूसता रहा। ऐसे महापुरुष प्राप्ति स्थान - 1. अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर कामदेव, चरम शरीरी, तद्भव मोक्षगामी, अंजनी पुत्र 2. जैन मन्दिर गुलाब वाटिका हनुमान की जीवन गाथा विचित्र घटनाओं से भरा हुआ है। इस चित्र कथा में उनके जीवन के कुछ अंशों को रेखांकित किया गया है। पाठक जन वास्तविक हनुमान को जाने तथा अपने को पहचाने। हनुमान जी अन्त समय में मुनि दीक्षा © सर्वाधिकार सुरक्षित धारण कर आठ कर्मों का नाश कर मांगीतुंगी से मोक्ष पधारे। अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर इनके चरणों में बार-बार वंदन। विलासपुर चौक, दिल्ली-जयपुर N.H. 8, गुड़गाँव, हरियाणा फोन : 09466776611 09312837240 ब्र डॉ. रेखा जैन अष्टापद तीर्थ जैन मंदिर पुष्प नं. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयार्ध पर्वत के दक्षिण में आदित्यपुर नाम की एक मनोहर नगरी थी। महाबली हनूमान चित्रांकन - बने सिंह रंगसञ्जा- व्हाईट लोटस PRIL IITES इस नगरी में अनेक जिन मन्दिर थे। यहां के लोग धर्म में विश्वास करते थे। जैन चित्रकथा Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदित्यपुर में उस समय प्राह्लाद नामक राजा का शासन था । उसकी रानी का नाम केतुमति था। 2 Morton ठठ badd कळoa राजा प्राह्लाद के वायुकुमार नामक एक पुत्र था। वह युवा हो गया था। वह अत्यंत सुन्दर और गुणवान था। HEEFT इसी प्रकार दंती पर्वत पर महेन्द्रपुर नामक एक नगर था। इसे राजा महेन्द्र विद्याधर ने बसाया था। राजा महेन्द्र की रानी का नाम था हृदयवेगा । V महाबली हनूमान Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा महेन्द्र के एक पुत्री थी-अंजना। वह अत्यंत सुन्दर थी। YEHIYA एक दिन दरबार में...... राजा महेन्द्र चिंतित था। सभासदों ! आप जानते हैं कि महाराज, लंकापति रावण या माता-पिता की सबसे बड़ी चिन्ता उसके पुत्र मेघराज या इंद्रजीत होती है, पुत्री का विवाह । मुझे योग्य वर हो सकते हैं। अंजना के लिए योग्य वर बताइए। मंत्री अमरनाथ का सुझाव ठीक नहीं है महाराज! रावण की पटरानी मंदोदरी है। उसके बेटे भी अंजना के योग्य नही है। नहीं महाराज ! वह तो अठारहवें वर्ष में वैराग्य ले लेगा। वह अंजना बेटी के लिए योग्य वर नहीं हो सकता। मेरा सुझाव है कि आदित्यपुर के राजा प्राह्लाद का पुत्र वायुकुमार, अंजना बेटी के लिए सर्वोत्तम योग्य वर होगा। महाराज! कनकपुर के राजा हिरण्यप्रभ के पुत्र सौदामिनीप्रभ से अंजना बेटी का ब्याह उत्तम रहेगा। | हां ! यह सुझाव हमें भी उत्तम लगता है। जैन चित्रकथा Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बसंत ऋतु का आगमन हुआ। फाल्गुन मास में | अष्टाह्निका पर्व आया। राजा महेन्द्र सपरिवार पूजन | वंदना के लिए नंदीश्वर दीप आकाशमार्ग से गए। नंदीश्वर द्वीप में राजा प्राहलाद भी वंदना के लिए आए थे। राजा महेन्द्र से उनकी भेंट हुई।। आजकल तो राजा प्राहलाद, बस एक ही चिन्ता है ! बेटी अंजना के राजा महेन्द्र! लिए योग्य वर की खोज .... सब कुशल तो है? यदि आप सहमत हों तो आपके पुत्र वायुकुमार को हम अपना दामाद बना लें। वायकुमार को जब यह समाचार मिला तो वह अंजना के रूप-सौन्दर्य को देखने के लिए लालायित हो उठा। (यह तो अति उत्तम सुझाव है, राजा) महेन्द्र। मैं भी वायुकुमार के लिए योग्य कन्या की खोज में था। आपने सारी चिन्ता दूर कर दी। मित्र प्रहस्त ! ज्योतिषियों ने तो तीन दिन बाद विवाह का मुहूर्त निकाला है। किन्तु अंजना को देखे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा। उसे देखने का कोई यत्न करो। JI A CK महाबली हनूमान Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रहस्त के सुझाव पर वायुकुमार काले कपड़े पहनकर | कुछ देर में अंजना सखियों के साथ कमरे में आई। वायु मार्ग से चलकर अंजना के सात खंडोवाले महल पर अपूर्व सुंदरी है, अंजना ! पहंचे और वे वहां अंजना के आने की प्रतिक्षा करने लगे। मित्र, इसके रूप का वर्णन करना कठिन है। . अंजना! तुम धन्य हो कि (वायुकुमार जैसा सुन्दर वर मिला। onnoma TRYAM000. लेकिन सौदामिनी प्रभ की बात ही और थी वायुकुमार उसके सामने कुछ भी नहीं है। मित्र प्रहस्त ! दूसरी सखी ने हमारी निन्दा की और अंजना ने उसका विरोध नही किया- यानी अंजना को मेरी निन्दा अच्छी लगी। मैं अभी तलवार से दोनों के सिर उड़ा दूंगा। नहीं, कुमार। वीरों की तलवार अबलाओं पर नहीं चला करती। चलो ! शांत हो जाओ। ooooooooo GOODC ODOOO 0 जैन चित्रकथा Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायुकुमार अपने मित्र प्रहस्त के साथ रात को ही अपने नगर को लौट आया। अगले दिन वह सेना लेकर चला। महेन्द्रपुर पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर दो। cac सेना की कूच का समाचार पाकर राजा महेन्द्र तुरंत राजा प्राह्लाद के पास आया। वायुकुमार ! यह क्या ? मेरी| आज्ञा के बिना कूच क्यों किया ? (ठीक है पिता जी आपकी यदि अंजना से विवाह का निर्णय | आज्ञा मान लेता हूँ। किन्तु तुम्हें स्वीकार नहीं, तो भी पिता | अंजना से अपमान का बदला की आज्ञा तो माननी ही होगी। जरूर लूंगा। सेना वापस ले चलो। महाराज ! मुझसे कौनसा अपराध हुआ जो कुमार क्रोध में आ गए हैं? (मुझे स्वयं नही मालूम। आप चिन्ता न करें। मैं कुमार से बात करने जा रहा हूँ। 000००० महाबली हनूमान Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं अंजना से विवाह करने के तुरंत बाद उसे त्याग दूंगा जिससे पूरे जीवन भर वह दुखी रहे। वायुकुमार से अंजना का विवाह हो गया। वायुकुमार अंजना के पास नही। गया। पति द्वारा त्याग दिए जाने के कारण अंजना अत्यंत दुखी रहने लगी। DO हे नाथ ! मैं निरपराध हूँ। मुझे क्षमा करें। मेरा दुख दूर कीजिए। 0000 उधर एक दिन लंकापुरी के राजा रावण ने पुंडरीक नगर के राजा वरूण में शत्रुता चल रही थी। एक दिन वरूण के दरबार में राजा का दूत आया। है दूत ! लंकापति से कहना कि हे विद्याधर ! लंकापति यदि तुझमें बल है तो युद्ध के रावण की आज्ञा है कि लिए तैयार हो जा। आप उसे प्रणाम करें या फिर युद्ध के लिए तैयार हो जाय। इस पर रावण भारी सेना लेकर आया और राजा वरूण के पुंडरीक नगर को घेर लिया। दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध शुरू हो गया। हा.. हा.. रावण के नहीं। अगर इन्होने बहनोई खरदूषण को खरदूषण को मार दिया हमने पकड़ लिया। तो अनर्थ हो जायगा। रावण में साहस हो युद्ध बंद करना ही तो छुड़ा ले। उचित है। 2000 जैन चित्रकथा Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावण अपने मंत्रियों के साथ मंत्रणा कर रहा है। सब देशों के राजाओं के पास दूत भेजकर संदेश पहुंचाओ कि वे अपनी सेना लेकर तुरंत यहां आए । वायुकुमार जैसे ही तैयार होकर युद्ध के लिए चला कि सामने दुखी अंजना खड़ी दिखाई दी। हे पापिनी ! इस शुभ मुहूर्त में अपना चेहरा दिखाकर अशुभ करने आ गयी। हट जा.. मर कहीं.... और अंजना को यहां लाना भी उचित न होगा। अस्तु, गुप्त रीति से वहां चलें और प्रातः होने से पहले लौट आएं। 8 राजा प्राह्लाद के पास भी रावण का दूत संदेश लेकर आया। राजा प्राह्लाद तुरंत सेना लेकर जाने को तैयार हुआ । हां! यही ठीक है। यह क्या पिताजी मेरे होते आप युद्ध करने जाएंगे। मैं क्षत्रिय पुत्र हूँ। अब मैं युद्ध करने जाऊंगा। वायु कुमार ने अपने मित्र प्रहस्त के साथ लंकापुरी के लिए प्रस्थान किया। चलते-चलते मान सरोवर तट पर संध्या हो गयी। दोनो वहीं ठहर गए। वहां वायुकुमार ने चकवा चकवी को वियोग से तड़पते देखा । - मित्र ! जिस तरह चकवी अपने प्रिय के लिए वियोग में जल रही है. मेरी अंजना भी वैसे ही दुखी होगी मैने उसके साथ अन्याय किया है मैं अभी ही उससे मिलने जाऊंगा। हे पुत्र ! तेरी जय हो ! मैं सच कह रहा हूँ, अंजना तुम्हारे दुख के दिन दूर हुए। तुम्हारे प्राणनाथ, तुम्हारे पास स्वंय आए हैं। कुमार! तुम युद्ध के लिए पिता की आज्ञा लेकर निकले हो। अंजना के लिए वापस जाना, बड़ी लज्जा की बात होगी। वे दोनो आकाश मार्ग से चलकर अंजना के महल पर उतर गए। वायुकुमार बाहर खड़ा रहा और प्रहस्त अंजना को वायुकुमार के आने की सूचना देने गया। क्यों सखि वसंतमाला ! तेरे पति की बात का विश्वास कर लूं। महाबली हनुमान Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तभी वहां वायुकुमार आ गए। अंजना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने झुककर पति का चरण स्पर्श किया। चलो प्रिय ! इन्हे अकेला छोड़.. हम अपनी दुनिया में चलें। प्रात:काल होने से पहले वायुकुमार और प्रहस्त चलने को तैयार हुए। मैं छिपकर आया हूँ हे प्रिय ! यदि मुझे गर्भ अंजना ।फिर उन्हें कैसे रह गया तो? लोग तो यही कह सकता हूँ। चिन्ता जानते हैं कि आप मुझसे न करो। मैं शीघ्र नाराज हैं। इसलिए अपने यहां आने की बात माता-पिता से लौटूंगा। फिर भी तुम कहते जाना। | मेरी ये अंगूठी रख लो। और वे दोनो आकाश मार्ग से चले गए। कुछ समय बाद अंजना के गर्भ चिन्ह प्रकट हुए। रानी केतुमती जंगल में बेसहारा भटकती हुई अंजना और वसंतमाला राजा महेन्द्र के ने अंजना पर कुलच्छिनी होने के लांछन लगाए और उसकी || महल में पहुंची। वहां द्वारपाल ने उन्हें रोक दिया और वह स्वयं राजा महेन्द्र एक न सुनी। अंगूठी तक पर विश्वास न किया। उन्हे देश | के पास गया। निकाला दे दिया। निश्चय ही उसके गर्भ महाराज! आपकी पुत्री अंजना) किसी का पाप होगा, तभी आई है। किन्तु वह गर्भवती है और अंजना और वसंतमाला ससुराल से निकाली गयी है। सतायी हुई है। संभवत: ससुराल उसे ले जाकर घनघोर वन दोनो को पकड़कर ले वालों ने उसकी यह दशा की है। में छोड़ आओ। जाओ और महेन्द्रनगर के जंगलों में छोड़ देना। जैन चित्रकथा Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिता द्वारा अपमानित होकर अंजना और सखि वसंतमाला घनघोर जंगल में भूखी प्यासी भटकने लगी। अंजना को मूर्छा आने लगी तभी संयोग से एक गुफा मिली। वे दोनो अंदर गयी तो देखा कि एक शिला पर कोई चारण मुनि विराजमान हैं। हे नाथ! किस कारण पवनकुमार इस अंजना से उदास हुए। फिर क्यों अनुरागी हुए और कौन मंदभागी इसके गर्भ में आया है, जिस कारण इसका जीवन संकट में है ? 10 वे दोनों मुनि के दर्शन कर, सब दुखों को भूल गयी। वे मुनि के पास आई। उनकी तीन प्रदक्षिणा की और मुनि के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी। हे मुनिवर ! हे कल्याणरूप ! आपके शरीर में कुशल तो है ? आपको स्थिर देखकर शंका हो रही है। 444 हे पुत्री। इसके गर्भ में कोई हे पुत्री इसके गर्भ में कोई उत्तम पुरुष आया है और जो यह दुख भोग रही है। वह पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। बैठो और सुनो! हे कल्याण रूपीणियां सब कुशल है। सब जीव अपने-अपने कर्मानुसार फल भोगते हैं। देखो कर्म की विचित्रता। राजा महेन्द्र ने अपनी पुत्री को निकाल दिया। विजियार्धगिरि पर अहनपुर नामक नगरी में राजा सुकंठराज्य करता था उसकी रानी कनकोदरी के गर्भ में देवलोक से एक जीव आया। जब वह जन्मा तो उसका नाम सिंहवाहन रखा। वह एक दिन विमलनाथ स्वामी के समोशरण में गया जहां उसे आत्मज्ञान और वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने राज्य त्यागकर लक्ष्मीतिलक मुनि से दीक्षा ली। फिर तप करके सातवें लांतव स्वर्ग में देव हुआ। पर स्वर्ग के सुख | को छोड़ वह अंजना की कुक्षि में आया है। यह पवित्र आत्मा है। महाबली हनुमान Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिराज अपनी बात कहकर गुफा से चले गए। कुछ ही देर में गुफा के द्वार पर एक भयंकर सिंह आया। अंजना और वसंतमाला सिंह की गर्जना सुन डर गयी। उसी गुफा में मणिचूल देव और उसकी पत्नी रत्नचूड़ा रहते थे। पत्नी के कहने पर उसे देव ने सिंह को भगाकर गुफा की दोनो स्त्रियों की रक्षा की। अब सुनो कि अंजना को क्यों कष्ट हुआ। पूर्व जन्म में इस अंजना ने पटरानी के अभिमान में सौतन पर क्रोध कर देवधिदेव श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा मंदिर से बाहर एक बावड़ी में छिपा दी। यह काम करते देख एक आर्यिका ने समझाया कि तुम यह निन्दनीय कार्य मत करो। तब उसने सम्यक् धारण किया और श्राविका धर्म स्वीकार किया। श्री जिनेन्द्र को बाईस घड़ी पानी में रखा था, इसलिए तुझे बाईस घड़ी वियोग में बिताने पड़े। तेरा पति थोड़े दिनों में आकर मिलेगा। तेरा पुत्र महान कल्याण करने वाला होगा। वसंतमाला ने सारी कहानी सुना दी। कुछ समय बाद अंजना ने पुत्र को जन्म दिया। उसी समय आकाश मार्ग से हनूरुह द्वीप राजा प्रतिसूर्य अपनी पत्नी के साथ आकाश मार्ग से निकला। दो स्त्रियों और बच्चे को अकेला देख, वह विमान वहां ले आया। हे शुभानने ! ये महिला कौन है ? किसकी पुत्री है? वन में क्यों रहती है? मैं राजा प्रतिसूर्य हूँ। अंजना मेरी भानजी है। इसे मैने बहुत समय से देखा नही था। अब हम सब हनूरुह द्वीप को चलें। वहीं बालक का जन्मोत्सव होगा। IDH जैन चित्रकथा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब वे विमान में बैठकर आकाशमार्ग से जा रहे थे कि राजा प्रतिसूर्य ने तुरन्त विमान नीचे उतारा । वह बालक जिस चट्टान पर गिरा अचानक वह बालक उछला और विमान से नीचे गिर|| था,वह चट्टान चूर-चूर हो गई थी और बालक सुरक्षित था। गया। अंजना और सभी लोग चिल्लाने लगे। अंजना ने बालक को गोद में उठा लिया और उसे बार-बार प्यार करने लगी। इसके बाद वे पुन: विमान में बैठकर हनूरुह द्वीप पर आए जहां बालक का जन्मोत्सव धूमधाम से मना। अंजना बेटी ! यह बालक महावज रूप हैजिसने इस भयानक चट्टान को तोड़ दिया है। बाल्यावस्था में जब इसकी शक्ति का यह हाल है तो युवावस्था में तो यह महाबली बनेगा। इस बालक का नाम 'हनूमान' रखा है क्यों कि इसका जन्मोत्सव हमारे हनूरुह द्वीप पर मना है। महाबली हनूमान Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उधर पवनकुमार ने रावण की ओर से राजा वरुण से युद्ध कर विजय प्राप्त की। रावण ने प्रसन्न होकर उसे बहुत-सा धन देकर विदा किया। किन्तु वापस अपने नगर आने पर उसे महल में अंजना न मिली। सारा हाल सुनकर वह दुख के महासागर में डूब गया। हि मित्र प्रहस्त अंजना के बिना मुझे यह संसार असार लगता है। उसके बिना मैं नही जी सकता। शोक न करो मित्र इस पृथ्वी पर जहां भी अंजना होगी, हम उसे ढूंढ निकालेंगे। | पवनकुमार के वन में चले जाने पर राजा प्रहलाद ने विद्याधरों को उसे खोजने भेजा। एक विद्याधर ने जाकर राजा प्रतिसूर्य को भी इसकी सूचना दी। यह सुनकर अंजना विलाप करने लगी। विलाप न कर पुत्री । मैं स्वयं वायुकुमार को खोजने जा रहा हूँ। मेरे साथ तेरे श्वसुर राजा प्राहह्लाद भी आने वाले हैं। जैन चित्रकथा वायुकुमार के कहने पर भी स्वामिभक्त हाथी वहां से नहीं गया। उधर राजा प्रतिसूर्य और राजा प्राहह्लाद विमान पर खोजते खोजते उसी वन में आए और हाथी को पहचान कर नीचे उतरे उन्हें | पवनकुमार मिल गया । राजा प्रतिसूर्य से अंजना और अपने पुत्र का कुशल समाचार सुनकर, अब तुम्हारा दुख दूर हुआ। अब तुम हनूरुह द्वीप को चलो। वायुकुमार अम्बर गोचर हाथी पर बैठकर अंजना को खोजने निकल पड़ा। भूतरवर वन में पहुंचकर उसने हाथी को छोड़ दिया और स्वयं पैदल वन कंदराओं में अंजना को खोजने निकल पड़ा। w2 Ve हे गजराज ! अब तुम मुक्त होकर वन में विचरण करो। еме हनूरुह द्वीप में वे सब सुख से रहने लगे। समय बीतता गया। हनूमान जी युवा हो गए। उन्होने अनेक विद्याएं सीख ली। उधर वरुण ने फिर से रावण पर आक्रमण किया। रावण ने फिर से मदद के लिए वायुकुमार के पास दूत भेजा। वायुकुमार चलने को हुआ तो हनूमान जी ने रोक लिया। पुत्र के होते हुए, पिता युद्ध के लिए जाए, यह कहां का न्याय है। आपको मेरी शक्ति पर भरोसा होना चाहिए। ठीक है बेटा। मेरा आशीर्वाद है। विजयी भव। 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हनूमान जी जब रावण के पास पहुँचे तो उसने उनके गुणों और शक्ति की बहुत प्रशंसा की। इसके बाद वे वरूण की सेना से युद्ध करने गए। उन्होंने वरूण की सेना को ध्वस्त कर वरूण के सौ पुत्रों को बंदी बना लिया। रावण विजयी हुआ। वह रावण और हनूमान जी से विनय करने लगा। हनूमान जी ने वरूण के पुत्रों को क्षमा करके छोड़ दिया। हे कुमार ! आप जैसा वीर हे हनूमान ! तुम्हारे पुरुष नहीं है। यदि आप मेरी सम्मान स्वरूप मैं भी पुत्री सत्यवती से विवाह करना अपनी भानजी स्वीकार करें तो मैं कृतार्थ अनंगसुमा से तुम्हारा हो जाऊंगा। विवाह करना चाहता हूँ। उसे स्वीकारो। हे रावण ! मेरा अपराध क्षमा करो। तुम इस लोक में महाप्रतापी हो। तुम्हे प्रणाम करता हूँ। हे हनूमान जी! मैरे पुत्रों को बंधन मुक्त करें। इस प्रकार विवाह के पश्चात हनूमान जी | | कुण्डलपुर राज्य में सुख से रहने लगे। इसके बाद किहकंधापुरी के राजा सुग्रीव | की पुत्री से भी विवाह किया। खरदूषण का पुत्र और रावण का भानजा उसी समय राम, लक्ष्मण और सीता जी दंडक वन शंबूक सूर्यहास खड्ग साधने के लिए दंडक में पिता की आज्ञानुसार वनवास कर रहे थे। एक वन में बांस के एक बीड़े में, ब्रह्मचर्य व्रत दिन लक्ष्मण उधर आए जहां शंबूक तप कर रहा धारण कर बैठा था। उसकी माता चंद्रनखा| था। उन्होंने खड्ग देखा तो उसे उठा लिया और रोज उसे वहीं भोजन दे आती थी। बारह | परीक्षण करने के लिए उसी बांस पर चलाया जिस वर्ष व्यतीत होने पर खड्ग प्रकट हुआ। पर शंबूक बैठा था । खड्ग के वार से बांस के साथ यदि सात दिनो में इस खड्ग को न शंबूक का सिर भी कट गया। लिया तो यह किसी और का हो जायगा और साधने वाले की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन मेरे पुत्र का व्रत पूरा होने में तीन दिन ही तो शेष हैं ... उसेक बाद खड्ग उसका होजायगा। महाबली हनूमान Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मण को पता भी न चला कि बांस के साथ किसी का सिर कटा है। उधर जब चंद्रनखा भोजन लेकर आई तो बेटे का कटा सिर देखकर विलाप करने लगी। फिर वह गुस्से से भरी हुई सिर काटने वाले शत्रु को ढूंढने निकली। मार्ग में रामचन्द्र जी और लक्ष्मण मिले। मैने खड्ग उठाया है। जिसने भी यह खड्ग उठाया है, | पर मैं तेरे विवाह प्रस्ताव वह महान् वीर है। मैं रूपसुंदरी को ठुकराता हूँ। जा उससे विवाह का प्रस्ताव करती हूँ। यहां से ..... इस प्रकार अपमानित होकर चन्द्रनखा पति के पास आयी उसने पति खरदूषण से पुत्र-वध का समाचार कहा तो खरदूषण सेना लेकर लड़ने के लिए आगया। भैया राम ! आप यहीं रूकें। मैं जाकर निपटता हूँ। यदि कोई संकट हुआ तो सिंहनाद करूंगा। तब आप सहायता के लिए आ जाना .... उधर रावण को भी खरदूषण ने संदेश भेजा था। रावण | | रावण ने छल करने के लिए सिंहनाद किया। जिसे सुन राम सीता को छोड़कर विमान पर बैठकर आया। उसने राम-सीता को देखा। सीता|| लक्ष्मण की सहायता के लिए दौड़े। अवसर पाकर रावण ने सीता को महासती को देखकर मोहित हो गया। उसने अवलोकनी || पकड़कर विमान पर बिठाया और ले चला। उधर लक्ष्मण ने किसी के द्वारा विद्या से जान लिया कि लक्ष्मण क्या कह कर गए हैं। यानि || किया छल बताया और राम को तत्काल सीता की रक्षा के लिए भेजा। राम के जाने के बाद सीता अकेली होगी। जैन चित्रकथा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राम वापस लौटे तो सीता वहां न थी। उधर खरदूषण को | | किहकंधापुर में राजा सुग्रीव की रानी सुतारा पर साहसगति नामक एक मारकर लक्ष्मण लौटे सीता माता को न पाकर वह भी राम के | विद्याधर मोहित हो गया। वह सुग्रीव का कृत्रिम रूप बनाकर राज्य करने साथ शोक में डूब गए। लगा और सत्य सुग्रीव को मार भगाया। कृत्रिम सुग्रीव को सत्य सुग्रीव तो क्या, हनूमान जी भी न मार सके। सीता को खोजते हुए राम लक्ष्मण किहकंधापुर पहुंचे तो सुग्रीव ने सारा कष्ट उनसे कहा। हे सुग्रीव ! चिन्ता न कर। उस) हे प्रभो ! यदि मैं सात दिन में। विद्याधर को मैं मारकर तेरी स्त्री सीता जी की खबर लाकर न और राज्य दिला दूंगा। इसके दूं तो मैं अग्नि के प्रवेश कर बाद तुम सीता की खोज में जाऊंगा। हमारी सहायता करना। राम और लक्ष्मण ने किहंकधापुर जाकर कृत्रिम सुग्रीव को युद्ध के लिए | श्री राम ने कृत्रिम सुग्रीव को फिर युद्ध के लिए बुलवाया। इस बार वह ललकारा । वह गदा लेकर बाहर आया। दोनो सुग्रीवों में युद्ध होने | स्वयं सुग्रीव बन गए और सत्य सुग्रीव को छिपा लिया। कृत्रिम सुग्रीव लगा। कृत्रिम सुग्रीव ने सत्य सुग्रीव के सिर पर ऐसा गदा मारा कि वह || ज्यों ही आया कि श्रीराम को देखकर उसकी वैताली विद्या भाग गयी बेहोश होकर गिर पड़ा। कृत्रिम सुग्रीव चला गया। और वह विद्याधर के रूप में आ गया। श्रीराम ने एक ही बाण से उसे तुम दोनो का एक-सा रूप) मार गिराया। हे रामचन्द्र जी! देखकर पहचानने में भम्र आपने उसे मारा हो गया। चिन्ता न करो। क्यों नहीं? अब वह न बचेगा। UCg L/ 16 महाबली हनुमान Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुग्रीव अपनी पत्नी और राज्य पाकर अपनी प्रतिज्ञा भूल गया। | इससे श्रीराम को दुख हुआ तब लक्ष्मण को क्रोध आगया। वह खड्ग लेकर सुग्रीव के पास पहुंचे। हे देव! मैं अपने पति के प्राणों की भिक्षा मांगती हूँ। इनका अपराध क्षमा करें। सुग्रीव रत्नजटी को लेकर राम-लक्ष्मण के पास आया। उसने उन्हें भी सारी बात बताई । हे रत्नजटी ! रावण की वह लंकापुरी कहां है ? मुझे क्षमा करें प्रभु! मैं अपनी प्रतीज्ञा शीघ्र पूरी करूंगा। जैन चित्रकथा लवण समुद्र में राक्षस द्वीप प्रसिद्ध है। उसमें त्रिकुटाचल पर्वत है। इसके शिखर पर लंकानगरी बसी है। रावण (के दो भाई विभीषण और कुंभकरण हैं। सुग्रीव ने सब सेवकों को बुलाकर सीता की खोज के लिए भेजा। वह स्वयं भी इस कार्य के लिए चला जब वह महेन्द्र पर्वत पर आया। वहां उसे विद्याधर रत्नजटी मिला। वह घायल पड़ा था। हे रत्नजटी! तेरा यह हाल किसने किया ? हे सुग्रीव ! दुष्ट रावण सीता को हर कर ले जा रहा था। सीता का विलाप मुझसे न देखा गया। मैने रावण को रोका उससे युद्ध किया किन्तु रावण की शक्ति के आगे मैं हार गया। उसने मेरी यह दशा कर दी। Every All लक्ष्मण उसी समय जांबूनंद, सुग्रीव, नल, नील आदि के साथ चल पड़े। वे एक शिला के पास पहुंचे। तब जांबूनंद ने कहा। एक बार रावण ने अंनतवीर्य योगीन्द्र से तो लो, इस अपनी मृत्यु का हाल पूछा था। तब उन कोटिशिला को मैने मुनिराज ने कहा था कि जो इस उठा लिया। रावण कोटिशिला को उठा लेगा, वही तेरी की मृत्यु मेरे हाथों मृत्यु का कारण बनेगा । निश्चित है। 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | वे सब वापस किहकंधापुर आए। सब लोग विचार करने लगे कि युद्ध की बजाय यदि शांतिपूर्वक रावण सीता को लौटा दे तो ठीक है। | सबने अपने सुझाव दिए । रावण का भाई विभीषण आवक के व्रतों का धारक है वह यदि समझाएगा तो | रावण सीता को लौटा देगा। हे देव, पवनपुत्र श्री हनुमान कुमार महाबली हैं। वह रावण के मित्र भी हैं। उनकी बात रावण नहीं टालेगा। ठीक हैं । हनूमान को इस कार्य हेतु भेजो। उनसे कहो मुझसे मिले । आकाश मार्ग से हनूमान जी लंका के लिए चले। 18 हनुमान जी श्रीराम से मिलने आए। श्रीराम उन्हें एकान्त में ले गए। हे हनूमान, सीता से कहना कि तुम्हारे वियोग से राम का चित्त एक क्षण भी शांत नहीं है। लो, यह मेरी मुद्रिका उसे देना और उसका चूड़ामणि हमारे लिए ले आना। आप जो आज्ञा देंगे, वही होगा। un महाबली हनुमान Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्ग में राजा महेन्द्र का नगर देखा तो अपनी मां के साथ वहां हुए अपमान का स्मरण हो आया । क्रोध में| आकर उन्होने राजा महेन्द्र को ललकारा और उसे युद्ध में पराजित कर उसे पकड़ लिया। हे पुत्र ! तुम सचमुच महाबली हो। मुझे तुम पर गर्व है। . या ठीक है। जब तक मैं लंकापुरी होकर आता हूं, तुम किहकंधापुर जाकर श्रीराम की सेवा करो। मार्ग में दधिमुख नामक द्वीप आया। हनूमान जी के वहां पहुंचने पर उन्होने दो मुनियों को जलते देखा तो उन पर जल वर्षा कर उनका कष्ट दूर किया । हनूमान जी के वहां आने से तीन कन्याओं की विद्या सिद्ध हो गयी। वे राजा गंधर्व की पुत्रियां थीं। वह हनुमान जी के पास आया और श्रीराम की कथा सुनी। वह तीनो पुत्रियों को लेकर किहकंधापुर चला गया। 300GOdho, जैन चित्रकथा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हनूमान जी त्रिकूटाचल पर पहुंचे। वहां उन्होंने एक दुष्प्रवेश किला देखा । उसमें महाभयानक सों के बीच एक पुतली बैठी थी। विष के धुएं से अंधकार छा रहा था। यदि कोई मनुष्य उनके निकट जाता तो वे सर्प उसे निगल जाते। मैं इस माया यंत्र को तोड़गा। पहले इस मायामयी पुतली के मुख में प्रवेश करता हूँ। OOOCH PATA Thh । -Jamuilund CredieKG और वह मायावी महल नष्ट हो गया । तब वजमुख नामक योद्धा उनसे लड़ने आया। उसे भी उन्होंने मार गिराया। यह देख वजमुख की बेटी लंकासुंदरी हनुमान जी से युद्ध करने आयी। किन्तु वह उनके कामबाण से हार गयी और हनूमान जी से उसने विवाह कर लिया। महाबली हनूमान 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हनूमान जी ने लंका में प्रवेश किया। सबसे पहले वह विभीषण से मिले। ACAME अब मैं प्रथम वन में जाकर पहले सीता जी के दर्शन करूंगा। मैंने भाई रावण को बहुत समझाया, पर वह मानता ही नहीं। आज ग्यारहवां दिन है। सीता ने कुछ नहीं खाया। फिर भी रावण को दया नहीं आती। AP RODOALID आज तो तुम बहुत प्रसन्न हो। अब रावण को भी प्रसन्न कर दो। हनूमान जी ने दूर से ही सीता जी के दर्शन किए। उन्होंने प्रण किया कि इन्हें मैं श्रीराम से मिलाकर ही दम लूंगा, चाहे मेरे प्राण चले जाएं। उन्होंने अपना रूप बदला और सीता जी के पास श्रीराम की मुद्रिका डाल दी। मुद्रिका देख सीता जी प्रसन्न हो गयी। तभी वहां मंदोदरी आ गयी। रे दुष्टा आज मेरे पति का संदेश आया है, इसलिए प्रसन्न हूँ। हे भाई, जो मुद्रिका लाया है, वह प्रकट होकर दर्शन दे। LIKA incerca तब हनुमान जी प्रकट हुए। 105 जैन चित्रकथा 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हनूमान जी ने अपना परिचय देकर सीता जी को श्रीराम का कुशल समाचार सुनाया। मंदोदरी ने हनूमान जी को पहचान लिया। आश्चर्य है कि जो रावण तुम्हें भाइयों से ज्यादा चाहता है, उसके शत्रु के तुम दूत बनकर आए हो। DOCUAG 200IDOS मुझे भी आश्चर्य है मन्दोदरी कि तूं अपने पति के बुरे कार्य का समर्थन कर रही है, उसे रोकती नहीं। या हे माता। आप मेरे कंधे पर बैठ जाइए। मैं इसी क्षण आपको यहां से ले चलता हूँ। फिर हनूमान जी के आग्रह पर सीता माता ने आहार ग्रहण किया। हे भाई, पति की आज्ञा के बिना मेरा गमन करना ठीक नहीं। वह यदि, बोले कि बिना बुलाए क्यों आई) तो मैं क्या उत्तर दूंगी। उन्हें मेरी यह चुडामणी देना। उनसे कहना कि अब आपके यत्न से ही मिलाप होगा। SRIDORE MANTALIANA GGOOOOO महाबली हनूमान Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब हनूमान जी पुष्पक उपवन में आए। यहां उपवन के रखवाले राक्षसों से उन्होंने युद्ध कर उन्हें पराजित किया। IILJIY ANDANAND यह सुन रावण क्रोध से भर उठा। हनूमान का इतना साहस कि मेरा मायावी यंत्रतोड़ कर लंकापुरी में उपद्रव मचा रहा है। मेघनाद और इन्द्रजीत ! तुम दोनों जाओ और हनूमान को पकड़ लाओ। महाराज! जैन चित्रकथा 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह बंधन मैं तोड़ तो सकता हूं पर इससे नागफांस का अपमान हो जाएगा। इसलिए इसे स्वीकार करता हूँ । हनूमान जी को बांधकर इन्द्रजीत उन्हें नगर में घुमाते हुए ले चला। नगर वासियों ने हनूमान जी को देखा तो तरह-तरह की बातें की। 24 AVAYI 21113 24 मेघनाद और इन्द्रजीत बड़ी सेना लेकर हनूमान जी से लड़ने आए। लेकीन वे हनूमान जी को न जीत पाए । अब मैं नागफांस फेंककर ही हनूमान को पकड़ेगा। ये अंजनीपुत्र बालपन में विमान से गिरा तो पहाड़ का चूरा कर दिया। वहीं आज कैसा बंधन में फंसा है। इन्द्रजीत ने इस महाबली से धोखा किया है। महाबली हनूमान Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावण के दरबार में हनुमान जी पहुंचे। हे हनूमान ! तुमने हमारे साथ स्वामीद्रोह का कार्य किया। यह कितनी मूर्खता वाली बात है। का A सायमा हे लंकापति तुमने सोते हुए सिंह श्रीराम को जगाया है। अपना जीवन चाहते हो तो सीता को लौटा दो। RAIमाणपORDL हे रावण ! परस्त्री को रखना महापाप है। तूं सीता को लौटा दे अन्यथा तूं पूरे राक्षसवंश के विनाश का कारण बनेगा। हे हनूमान, राम-लक्ष्मण मेरे सामने क्या हैं? तु ने अभी मेरा पौरूष नहीं देखा। जा, यह सीख किसी और को देना। जैन चित्रकथा Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस दुष्ट वानर को ले जाओ और इसकी दुर्दशा कर नगर में फिराओ। रावण का यह आदेश सुन हनूमान जी बंधन तोड़कर आकाश में उड़कर अंतरध्यान हो गए। चूडामणि सापानकमार ! सीता का हनूमान जी सीधे किहकंधापुर आए और श्रीराम को सीता का |मार्गशीर्ष वदी पंचमी के दिन श्रीराम और लक्ष्मण ने विद्याधरों को साथ लेकर सूर्योदय के समय लंका के लिए प्रस्थान किया। यह हे देव! हाल कहो। वह कैसी है ?) माता सीता ने समाचार सुन विभीषण रावण के पास गया। बहुत कष्ट से प्राण हे भाई! तुम्हारी कीर्ति पूरी पृथ्वी पर बचा रखे हैं। अब फैली हुई है। किन्तु परस्त्री को रखने के आप जो करना है| कारण वह कीर्ति पलभर मे नष्ट होजायगी। शीघ्र करें। सो, हे रावण सीता को तुरंत लौटा दो। अपनी सीख अपने पास रख विभीषण रावण किसी से नहीं डरता। 26 महाबली हनूमान Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उधर श्रीराम की विशाल सेना आ चुकी थी। अस्तु विभीषण श्रीराम जी से जा मिला। रावण भी युद्ध के लिए आगया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध होने लगा। देखो हनूमान ! मेरे आशीबिष नागबाण ने इन्द्रजीत और मेघवाहन को अचेत कर दिया। FCIO CCM हे भाई! तूने मेरे लिए अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया। तुझे माता-पिता ने मुझे सौंपा था, अब मैं क्या जवाब दूंगा। उठ मेरे भाई ! मुझसे बात कर। कुंभकर्ण ने सेना पर आक्रमण किया तो राम ने सूर्यबाण से उसे ध्वस्त कर दिया। तब रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति बाण चलाया जिससे लक्ष्मण अचेत होकर गिर पड़े। श्रीराम लक्ष्मण को अचेत देखकर विलाप करने लगे। हे देव! आप दुख न करें। मैं विद्याधर हूं। लक्ष्मण अभी जी उठेंगे। महाराज भरत से गंधोदक जल लाना होगा। उससे ये जी उठेंगे। जैन चित्रकथा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे हनुमान, भामंडल और अंगद । तुम अभी अयोध्या जाओ और गंधोदक जल लेकर आओ। B 28 राजा द्रोणमेघ की कन्या विशाल्या सर्व विद्याओं में प्रवीण और जिन भक्त है। उसी के स्नान का जल गंधोदक कहलाता है। उस जल के छींटे मारने से लक्ष्मण जी उठेंगे। अब रावण सीता के पास गया। हे देवी! राम-लक्ष्मण को अब मृत ही समझ और मेरे साथ पुष्पक विमान में विहार करने चल । Reco हनूमान जी तत्काल अयोध्या गए। वहां भरत को सब हाल सुनाया। भरत ने विशाल्या को ही भेज दिया। वह ज्यों-ज्यों लक्ष्मण के निकट आती गयी लक्ष्मण की चेतना लौट आई और वह उठ बैठे। श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया। हे रावण ! तूं युद्ध भूमि में श्रीराम से इतना ही कहना कि सीता तुम्हारे वियोग में बहुत दुखी है। Bm रावण के कटु वचन सुन सीता अचेत हो गई। रावण को इससे बहुत दुख हुआ। उसके मन के भाव बदल गए। यदि अब मैं सीता को लौटाता हूं तो लोग मुझे असमर्थ समझेंगे। अस्तु मैं राम को जीवित पकड़कर उसे सीता सौंदूंगा । इससे मेरी कीर्ति होगी और राम से मित्रता हो जाएगी। महाबली हनूमान Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरे दिन दोनो पक्षों में भयानक युद्ध हुआ। रावण ने लक्ष्मण पर कई शस्त्र चलाए । किन्तु लक्ष्मण ने उन्हें रोक लिया। काफी देर के युद्ध के बाद लक्ष्मण ने चक्र चलाया जिससे रावण का वक्षस्थल फट गया और वह भूमि पर गिर पड़ा। हे विद्याधरों ! तुमने देखा कि पंडितों के बैरी का क्या फल होता है। रावण एक पराक्रमी योद्धा था, इसलिए इसका उत्तम संस्कार करो। रावण के मरने पर मन्दोदरी आदि आकर विलाप करने लगी। श्रीराम के आदेश से, बंदी बनाए गए कुंभकरण, इन्द्रजीत, मेघनाद आदि को मुक्त कर दिया गया। किन्तु उन लोगों ने जैनेश्वरी दीक्षा ली और कठिन तप करने वन में चले गए। जैन चित्रकथा 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युद्ध समाप्त हुआ तो श्रीराम और लक्ष्मण सीता सहित विभीषण की आज्ञा ले अयोध्यापुरी को चले। अयोध्यापुरी पहुंचकर राज्याभिषेक की तैयारियां होने लगी। तुम लोग लक्ष्मण का राज्याभिषेक नहीं! इस राज के स्वामी करो। वह पृथ्वी का श्रीराम ही हैं। राज्याभिषेक स्तम्भ भूधर है। उनका ही होगा। राज्याभिषेक के लिए तब दोनो भाई सिंहासन पर बैठे। उनका विधिपूर्वक अभिषेक हुआ। सब ओर विद्याधर, भूमिगोचरी तथा तीन खंड के देव जय-जय कार कर उठे। महाबली हनुमान Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके बाद विभीषण को लंका, विराधित को अलकापुर, भामंडल को हनुमान जी श्रीनगर में राज्य करने लगे। बसंतऋतु आई तो हनूमान रथनूपुर, रत्नजटी को देवोपुनीत नगर और हनूमान जी को श्रीनगर जी जिनेन्द्र भगवान की भक्ति में दत्तचित्त हो सुमेरू पर्वत की और और हनूसह द्वीप दिया। सबने राम-लक्ष्मण के प्रताप से राज्य प्राप्त | |चले। किये। OCOGE चैत्यालय पहुंचकर हनूमान जी ने तीन बार उसकी प्रदक्षिणा की। फिर भगवान की पूजा की। चैत्यालय से लौटकर हनुमान जी रात को दुन्दुभि पर्वत पर ठहरे थे। वहां उन्होंने एक तारा टूटते देखा तो संसार की असारता का विचार जागा। 'इस संसार में जीव ने अनंत दुख ही भोगे। यह देह तो पानी का बुलबुला है। इसलिए इसका मोह त्याग कर वैराग्य का मार्ग ग्रहण करना चाहिए। जैन चित्रकथा Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगले दिन प्रातः हनुमान जी ने अपने मंत्रियों से कहा कि वह वैराग्य ले रहे हैं। यह सुन सभी लोग दुखी हो गए। हनूमान जी ने उन्हें समझाया। फिर हनूमान जी चैत्यवान नामक वन मैं गए। वह उत्तम मुनि योगीश्वर के पास गए। हे भव्य ! तुम्हारा विचार उत्तम है। आत्म कल्याण के लिए तुम अवश्य दीक्षा लो । 32 www. का M हनूमान जी घोर तप के धारक, तेरह प्रकार के चरित्रों को पालते हुए विहार करने लगे। हे नाथ! मैं संसार में भ्रमण करते-करते थक गया हूँ। मुझे मुक्ति के लिए आप दिगम्बरी दीक्षा देने की कृपा करें। 4 LE तब हनुमान जी ने सब परिग्रह त्याग कर अपने हाथों से केशलोंच किए और महाव्रत को अंगीकार कर दीक्षा ली और दिगम्बर हुए। umaay hrr ह तप के प्रभाव से शुक्लध्यान उपजा शुक्लध्यान के बल से मोह का नाशकर, हनूमान जी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और वे 'तुंगीगिरि' से | सिद्ध पद को गये जहां वे अनन्त गुणमयी सदा निवास करेंगे। महाबली हनुमान Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म के प्रसिद्ध महापुरुषों पर आधारित रंगीन सचित्र जैन चित्र कथा जैन धर्म के प्रसिद्ध चार अनुयोगों में से प्रथमानुयोग के अनुसार जैनाचार्यों के द्वारा रचित ग्रन्थ जिनमें तीर्थंकरों, चक्रवर्ति, नारायण, प्रतिनारायण, बलदेव, कामदेव, तीर्थक्षेत्रों, पंचपरमेष्ठी तथा विशिष्ट महापुरुषों के जीवन वृत्त को सरल सुबोध शैली में प्रस्तुत कर जैन संस्कृति, इतिहास तथा आचार-विचार से सीधा सम्पर्क बनाने का एक सरलतम् सहज साधन जैन चित्र कथा जो मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान वर्द्धक संस्कार शोधक, रोचक सचित्र कहानियां आप पढ़ें तथा अपने बच्चों को पढ़ावें आठ वर्ष से अस्सी तक के बालकों के लिये एक आध्यात्मिक टोनिक जैन द्वारा आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला सम्पर्क सूत्र : अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर विलासपुर चौक, - दिल्ली -जयपुर N.H. 8, गुड़गाँव, हरियाणा फोन : 09466776611 09312837240 मानव शान्ति प्रतिष्ठान ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मनि अष्टापद मानव शान्ति प्रतिष्ठान विलासपुर चौक, निकट पुराना टोल, दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 8, गुड़गांव (हरियाणा) फोन नं. : 09466776611, 093128372401