Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
ShaMahavir Jain AradhanaKendra
Acharya Seni Kasagarmur Syarmandir
00000000000000000000
॥ श्रीकुंथुनाथचरित्रं ॥
॥श्रीजिनाय नमः ॥
SERIEND
( कर्ता-श्रीशुभवर्धनगणि)
Goooooo
छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा)
श्रीजैनभास्करोदय पिन्टिंग स-जामनगर.
किंमत ०-४-.
संवत् १९८६
O@20022032e300000020
For Private And Personal use only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Sun Mahavir Jain AradhanaKendra
www.kobatirtm.org
ACRES Kisseur Byendir
कुंथुनाथ
है चरित्रम्
॥श्रीजिनाय नमः ॥
॥ श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः ॥ ॥ अथ श्रीकुंथुनाथचरित्रं प्रारभ्यते ॥
(कर्ता-श्रीशुभवर्धनगणि) छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज-जामनगरवाळा. विजये मंगलावत्या जंबूद्वीपविदेहगः ॥ नगयाँ पुंडरीकिण्यां जित्रशत्रुर्नृपोऽजनि ॥१॥ अर्थः-मंगलावती नगरीनो विजय थतां पुंडरीकिणीनगरीमा जंबूद्वीपमां आवेला विदेह देशमा रहेनार जितशत्रुनामनोराजा थयो. अन्यदा स गुरोः पार्थाद्धर्म श्रुत्वा जिनोदितम् ॥ प्रबुद्धो न्यस्य साम्राज्ये तनयं सनयं महैः ॥२॥ प्रव्रज्यामाददेऽमंदमुदा नृपतिभिः सह ॥ एकादशांगधारी स क्रमाजज्ञे श्रुतांबुधिः ॥ ३॥
For Private And Personal use only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Acharya Sa K
asagaren amander
कुंथुनाथ
चरित्रम् चारत्रम्
॥ २॥
436
अर्थः--कोई वखते ते राजा गुरुनी पासेयो श्रीजिनभगवाने कहेला धर्मने सांभळीने प्रबुद्ध थयो अने तेथी पोताना साम्रा- ज्यउपर पोताना न्यायीपुत्रने महोत्सवपूर्वक स्थापित करीने राजाओनी साथे घणा आनंदथी दीक्षा ग्रहण करी अने क्रमेक्रमे घणांशाखो सांभळवाथी एकादशांगधारी तपस्वी थयो. ॥ २ ॥ ३॥ तपस्तप्त्वा चिरं कालं विंशतिस्थानकैस्तथा ॥ बद्धाहन्नामकर्मा स सर्वार्थत्रिदशोऽजनि ॥४॥ अर्थः-बीशस्थानकवडे लायो बखत तप करी अर्हत् ए नामने तथा तेना जेवांज कर्मने प्राप्त थइ ते सर्वार्थ सिद्ध देव थयो. ततो भुक्त्वा त्रयस्त्रिंशत्सागरायुर्महासुखम् ॥ अनुभूयेह भरते श्रीमद्गगजपुरे पुरे ॥५॥ चतुर्दशमहास्वप्नसूचितः सुरभूपतिः ॥ श्रीदेवीक्षिसंभूतः समये स सुतोऽजनि ॥ ६॥ अर्थः-ते पछी तेंत्रीश सागरनुं आयुष्य भोगवी मोहोटा सुखनो अनुभव करी आ भरतखंडमां श्रीहस्तिनापुर नामना नगरमां चौद मोहोटा स्वमोथी देवोना राजारुपे भूचित थयेलो ते श्रीदेवीनी कुंखे उचित समय प्राप्त था जन्म्यो. ॥ ५॥ ६॥ षट्पंचाशत्स्वःकुमार्योऽकुर्वन्नत्युत्सवं विभोः ।। चतुःषष्टिसुरेंद्राश्च शांतिमन्मेरुपर्वते ॥ ७॥ अर्थः-शांतिवाळा मेरुपर्वत उपर (तेवखते) स्वर्गनी छप्पन दिक्कुमारीओ अने चोसठ महान इंद्रोए प्रभुनो महोत्सव कर्यो. ७ अतिपांडुकंबलायां सिंहासनकृतस्थितेः ॥ व्यधुर्जन्मोत्सवं जन्ममंदिरेऽपविमोचनम् ॥ ८॥
॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
ShaMahanirain AradhanaKendra
Acharya Shri Kasagarur
amander
CCCC
अर्थ:-ज्या जन्म थयो ते मंदिरमा अतिवेत कंबलनी उपर सिंहासन मां जेणे स्थिति करी हे एवा प्रभुनो-पापमोचन जन्मो-31
चरित्रम् त्सव (सीए) कर्यो. ॥ ८॥
श्रीदेवीगृहगे कुंथी दृष्टो भूमिप्रतिष्ठितः ॥ रत्नश्चित्रो महानेकः स्तुपः स्वप्ने ततःस्थितः ॥९॥ * अर्थ:-श्रीकुथुस्वामी श्रीदेवीनी कुखे पृथ्वीपर पधार्या त्यारे ते पठी स्वममा रत्नोथी विचित्र एक महान स्तूप उभो थयेलो जोवामां आव्या..
कुंथुरित्यभिधा चक्रे पितृभ्यामहतस्ततः ॥ गुणरंगेन च स्वामी वर्द्धते त्रिदशैर्वृतः ॥१०॥ __ अर्थ:-त्यारवाद मातापिताए ए अर्हत् स्वामीनु कुंथु ए प्रमाणे नाम पाडगु. अने देवोथी बोंटाइने सेवाता ए स्वामी गुणोथी तथा शरीरथी अभिवृद्धि पामवा लाग्या, ॥ १० ॥ यदीयवदनस्पद्धां कुर्वाणः शीतदीधितिः ॥ कलावानपि नैष्कल्यो लज्जते सुतरां जने ॥ ११ ॥ अर्थः-जेमना मुखनी स्पर्द्धा करतो चद्र कळावान होवा छतां पण कळावगरनो बनी लोकोमा अति शरमाय छे. ॥ ११ ॥ सहस्रपत्रपद्मानि जितानि नयनश्रिया ॥ लजया ग्लानिमायांति श्रीकुंथोः प्रत्यहं निशि ॥ १२ ॥ अर्थः-श्रीकुथुस्वामीनी नेत्रलक्ष्मीए जीती लीधेला सहस्रपत्र पद्मो प्रत्येकदिवसे रात्रिमा लज्जाबढे करमाइ जाय छे. ॥१२॥ श्रीवत्सच्छद्मना लक्ष्मीर्यस्य वक्षःस्थलं श्रिता ॥ जाने तस्या वियोगेन पपात जलधो हरिः ॥ १३ ॥
॥३ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Sun Mahavir Jain AradhanaKendra
www.kobatirtm.org
Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir
कुंथुनाथ
॥
४
॥
अर्थः-लक्ष्मीए श्रीवत्सना चिन्हमा मिपथी जेना वक्षःस्थलनो आश्रय करेलो छे अने तेथी जाणे ते लक्ष्मीना वियोगदुःख-14
चरित्रम बडे विष्णु भगवान समुद्रमा पड्या होय ? ॥ १३ ॥ भुजदंडौ विभोर्जाती जान्वधःकृतसंस्थिती ॥ जाने दुर्गतिपूरि कपाटयुगलागलौ ॥ १४ ॥ अर्थः-ए प्रभुना बे भुजदंड गोठणनी नीचे सुधी पहोंचे एवा थवाथी जाणे दुर्गतिनगरना दरवाजानां कमाड बंध राखवाना बे आगळीया होय नहि ! एम लागे छे. । १४ ॥ हस्तांगुल्यो जयंत्यस्याशोकपादपपाडवाः ॥ एवं समयदेहश्रीसंप्रणोऽभूजिनेश्वरः ॥१५॥ अर्थः-एमना हाथनी आंगळीओ अशोकक्षनां पल्लवनीपेठे शोभे छे अने एवा ते श्रीजिनेश्वर समग्रदेहनी शोभावडे संपूर्ण देखाय छे. अर्धाष्टमशतोपेतत्रिविंशतिसहस्रकैः ॥ वत्सराणां कुमारत्वं भुंक्त भूरिसुखं विभुः ॥ १६ ॥ अर्थः-प्रेवीशहजार आठसो अने पचाश वर्षमुधी ते प्रभु घणा मुखवाळी कुमार अवस्था भोगवे छे. ॥ १६ ॥ जातवैराग्यपूरेण श्रीसुरेण महीभुजा ॥ प्रदत्तं प्राज्यसाम्राज्यं महोत्सवपुरःसरम् ॥ १७॥ अर्थः-ते पछी पूर्ण वैराग्य आववाथी श्रीमुरराजाए महोत्सवपूर्वक संपूर्ण साम्राज्य तेमने स्वाधीन कयु.॥ १७ ॥
P ॥४ ॥ पाकशासनवद्राज्यं पाकशासनसंस्तुतः ॥ करोति करुणांभोधिः खामी चामकरद्युतिः ॥१८॥
SCRECCANCat
For Private And Personal use only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कुंथुनाथ
॥५॥
www.kobatirth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थः- इंद्रे पण वखाणेला, करुणाना सागर अने सुवर्णसमानकांतिवाळा स्वामी ए राज्य इंद्रनीपेठे चलाये थे. ॥ १८ ॥ तावन्मानानि वर्षाणि मंडलार्कपदेईताम् ॥ भुंक्ते शस्त्ररहे चक्ररत्नं समुदमेधते ॥ १९ ॥
अर्थः- मतोना मंडलमा सूर्यतुं स्थान भोगवता ते प्रभु, कुमार अवस्था भोगव्याजेटलां वर्षो लगी शस्त्रगृहमां चक्र रत्नने भोगवता आनंदसहित वृद्धि पामवा काग्या ।। १९ ।।
कुंथुस्वामी ततश्चक्ररत्न पूजां महामहेः ॥ कृत्वा शांतिमिवाखंडां भरतेऽसाधयन्मुदा ॥ २० ॥
अर्थ:-श्री स्वामी ते पछी मोहोटा उत्सवोवडे चक्ररत्ननो सरकार करीने भरतखंडमां आनंदपूर्वक जाणे अखंड शांति साधी. प्राप्तो गजपुरे द्वात्रिंशन्नरेंद्र सहस्रकैः ॥ अभिषिक्तो विभुः प्रौढोत्सवैर्द्वादशवत्सरम् ॥ २१ ॥
अर्थः- ते पछी ते हस्तिनापुरमां आव्या अने त्यां ते प्रभुनो मोहोटा उत्सवोवढे बलीशहजार राजाओए वारवर्ष अभिषेक कर्यो. त्रिविंशतिसहस्राणि साईशतानि च । वर्षाणां बादईन्स परिभोगानभुंक्त च ॥ २२ ॥ अर्थः- ते अत् भगवाने वीसहजार सातसो अने पचाशवर्षसुधी चक्रवर्तिना भोगो भोगव्या ॥ २२ ॥ स्वाम्यादर्शगृहे प्राप्तोऽन्यदा स्थैर्यं क्रियाफलम || विमृशंस्त्रिदशैर्लोकांतिकेः पश्चाद्विबोधितः ॥ २३ ॥ अर्थ: :- ए स्वामी कोइ समये आदर्शगृहमां स्थिरताने प्राप्त थइने कर्मफलनो विचार करी रह्या हता त्यां पाळधी लोकांतिक देवोए तेमन चेतवणी आपी. ।। २३ ।।
For Private And Personal Use Only
चरित्रम्
॥ ५ ॥
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Sun Mahavir Jain AradhanaKendra
www.kobatirtm.org
Acharya Sur Kallastegarul Syarmandir
कुथुनाथ
चरित्रम
भगवन् भवतो नूनं विदिते भवमोक्षयोः ॥ गती भव्यविबोधाय कुरु निष्क्रमणं विभो ॥ २४ ॥
अर्थः-हे भगवन, हे प्रभो ! भव अने मोक्ष ए वन्नेनी गति तमारी जाणेली छे, माटे भव्य जीवोने मोक्षज्ञान धवामाटे आप हवे निष्क्रमण करो. अर्थात् आ सपळा भोगोनो त्याग करी अहींथी चाली निकळो. ।। २४ ।। चत्वारि घातिकर्माणि क्षिप्त्वा केवलमर्जय ॥ धर्मदेशनया नाथ भव्यांस्तारय तारय ॥ २५ ॥
अर्थ:-हे नाथ ! चार पकारनां घातिकर्मोने दूर फेंकी दइने केवल मोक्षने मेळबो अने धर्मनी देशनाचटे भव्यजीवोने तारबानीज प्रवृत्ति करो. ।। २५ ॥ इत्यादि भक्तिमद्वाभिरभिनंद्य जिनेश्वरम् ॥ लोकांतिकसुरा धन्यमन्याः स्वं ते विषंगताः ॥ २६ ॥ अर्थः-इत्यादि भक्तिवाळां वचनोवडे श्रीजिनेश्वरने अभिनंदीने पोताने धन्य मानवावाळा ते लोकांतिक देवो पोताना स्थानप्रति गया. अहसन् भगवान् दानकालमप्यर्हतां स्थितिम् ॥ इत्थं प्रकृत्यादादानं वार्षिकं भुवि वर्द्धयत् ॥ २७॥
अर्थः-अईतोनी स्थितिने तथा दानना समयने जाणी भगवान इस्या अने एवी रीते स्वभावथीज दान दीधा अने पृथ्वीपर वर्षसुधी तेने वधारता गया. ।। २७ ॥ विजयाशिबिका स्वाम्यारुह्य सर्वपुरंदरैः ॥ द्वात्रिंशोक्षगतां कांतासहस्रेश्च समन्वितः ॥ २८ ॥
XXX
For Private And Personal use only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
ShaMahanirain AradhanaKendra
Acharya
S
a gar
Samander
कुंथुनाथ ॥७॥
स्तूयमानो नृपैदेंवैः स्वभक्त्या परयामुनिः ॥ मागधैः सुकुलस्त्रीभिः सुतरां कृतमंगलः ॥ २१॥ सहर्षिजंभकामत्यैर्मुक्तसर्वतपुष्पकः ॥ किन्नरोगीयमानश्च गीतानंदितविष्टपः ॥ ३०॥
चरित्रम् असंगोऽयमहो स्वामी श्रियमेतादृशीयतः ।। जहाति चारणैरेवं स्तूयमानः पुनः पुनः ॥ ३१ ॥ सहस्त्राम्रवने प्राप्तः कुंथुर्नपसहस्रयुक् ॥ कृत्तिकाः सुनमस्कृत्य सिकेभ्यो व्रतमाददे ॥ ३२॥ अर्थ-वत्रीश वळद जोडेली शिविकामा बेसीने सर्व इंद्रो तथा हजारो खीओनी साथे पोतानी भक्तिवडे राजाभो तथा देवोथी 12 स्तुति कराता, मौनव्रतधारी, मागधो अने सारां कुळनी खीओए जेने माटे मंगळाचार करेल छे एवा, ऋषिओ, जंभको तथा मनुष्योए सर्व ऋतुओमा पुष्पोनी वृष्टि करायेला, किनरोथी उंचेस्वरे गवाता अने ए गीतवडे आखा लोकने आनंद आपता तेमज अहो ! स्वामी केवा निःसंगवृत्तिचाळा छे के जे आवी लक्ष्मीनो पण त्याग करे छे एम चारणोथी वारंवार स्तुति कराता ते श्रीकुंथुस्वामी हजारो राजाओनी साथे सहस्राम्रवनमा पहोंच्या अने त्यां पहोंची कृत्तिकाओने तथा सिद्धोने भावपूर्वक नमस्कार करी तेमणे व्रतदीक्षा लीधी. ॥ २८ ॥ २९ ॥ ३० ॥ ३१ ।। ३२ ।। चतुर्जानो तदेवाभूत्ततोऽर्हन् विहरन् भुवि ॥ मासान् सुषोडशच्छद्मस्थितो यो छद्मवर्जितः ॥ ३३॥ अर्थः-ए अर्हत् भगवान कोइ न ओळखे एवीरीते, कोइपण जातना दंभवगरना, पृथ्वीउपर सोळमास सारीरीते विहार करता ते पछी तरतज चाग्मकारना ज्ञानने प्राप्त थथा.॥३३॥
ACCESS
COM
)
For Private And Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra
कुंथुनाथ
॥ ८॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सहस्राम्रवने प्राप्तस्तिलकडुतले स्थितः ॥ आत्मानं भावयन्नाशु वृतः केवलसंपदा ॥ ३४ ॥ अर्थः- सहस्राम्रवनमां प्राप्त थया पछी तिलकट्टतळे बेसी आत्मचिंतन करतां तेओने तरत केवलसंपत्ति वरी चुकी ॥ ३४ ॥ चतुःषष्टिसुराधीशास्तत्र तत्कालमागताः ॥ नत्वा समवसरणश्रियं कुर्वति भक्तितः ॥ ३५ ॥ अर्थः- तत्काल ते स्थळे चोसतमुख्यमुख्य देवो आव्या अने नमन करीने भक्तिथी तेमनुं उपासन आराधन करवा लाग्या. ततोऽमृतfकरा स्वामी गिरा तां धर्मदेशनाम् || ददो मिथ्यात्वगरलं यया विगलितं नृणाम् ॥ ३६ ॥ अर्थः- ते पछी स्वामीए अमृत स्रवती वाणीवडे ते धर्मदेशना करवा मांडी के जे धर्मदेशनावडे मनुष्योनुं मिध्यात्वरुप विष गळी गयुं ।। ३६ ।।
ये मृढा बहुभोगाव्यामृढाः पापमन्वहम् ॥ कुति तेऽवशा मर्त्याः पतंति नरकावटे ॥ ३७ ॥ अर्थः-- जे मूढजनो घणी भोग समृद्धिमां भान भूली हमेश पाप करता रहे है तेओ परवश बनी नरकनी खाडमां पडे छे. ३७ अर्हद्दर्शितमार्गज्ञाः कृतधर्मोद्यताः पुनः ॥ तथाऽत्र ये कृतोत्साहा ये च सश्रद्धमानसाः ॥ ३८ ॥ द्विधा तपःपरा देवगुरुभक्तिरताः सदा ॥ अचिरेणैव कालेन ते स्युर्निर्वाणगामिनः ॥ ३९ ॥ अर्थः- अर्हत् भगवाने देखाडेला मार्गने जाणनारा, तेमां जणावेला धर्ममां उद्यत थयेला, अने जेओ तेमांज उत्साह राखनारा
For Private And Personal Use Only
चरित्रम
॥ ८ ॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
ShaMahavir Jain AradhanaKendra
Acharya Shri
K
agarur yamandir
चरित्रम
3 श्रद्धायुक्त मनवाळा, बन्ने प्रकारनां तपमा परायण अने सदा देव अने गुरुनी भक्तिमा आसक्त रहेनारा होय हे तेओ थोडाज कुंथुनाथ बखतमा निर्वाणगामी थाय हे. ॥ ३८ ॥ ३९ ॥
एवं धर्मेहता प्रोक्त सुसंवेगाऽभवत्सभा ॥ गृहूर्णति केऽपि चारित्रं गृहिधर्म च केचन ॥१०॥
अर्थः-एपी रीते अर्हत भगवाने उपदेश आपता ने श्रवण करनारी सभामां एवी असर थइ के केटलाकोए चारित्र ग्रहण कर्यु | हा अने केटलाकोए गृहस्थधर्म ग्रहण कयों. ॥ ४०॥ 3 तत्र शंबनृपस्त्यक्त्वा राज्य तृणमिवाखिलम् ॥ निष्क्रांतः स्वामिनः पाश्व गणभृत्प्रघनोत्सवः ॥ ४१ ॥
अर्थः-त्यां शंब नामे गना पोताना समग्र राज्यने तृणनीमाफक तजी दइने निकळ्यो अने अति उत्सवसाथे स्वामीना पडखामां तेनो गणभृत् थयो. ॥ ४१ ।।। पष्टिसहस्रप्रमिताः शिष्याः शंवादिकाविभोः ।। साध्याः षष्टिशताः षष्टिसहस्रप्रमितास्तथा ॥ ४२ ॥ लक्षमेकोननवतिसहस्राः श्रावकाः पुनः ॥ एकाशीतिसहस्राढ्यास्त्रिलक्षाः श्राविकास्तथा ॥ ४३ ॥
अर्थः-साठ हजार शंबराजा वगेरे, छासठ हजार साध्य देवो, एक लाखने नवाणु हजार श्रावको तथा त्रण लाख अने एकाशी हजार प्राधिकाभो ए प्रमाणे ते पमुना शिष्य थपा. ॥ ४२ ॥ ४३ ।।
84546464%+:
SEX
For Private And Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Mahavir Jain Anna Kendi
Acharya sun Kalnasagarnuncyanmandir
चरित्रम
कुथुनाथ । त्रिविंशतिसहस्राणि साईसप्तशतानि च ॥ विहृत्य वत्सराणां च श्रीकुंथुर्वसुधातले ॥ १४ ॥ ॥१०॥ समेतशैलशिखरे माप्ति कार्तिकनाम्नि च ॥ शशिकृत्तिकयोर्योगे महोदयमथागमत् ॥ ४५ ॥
एवी रीते श्रीकुथुस्वामी ग्रेवीशहजार, सातसो अने पचाशवर्ष सुधी पृथ्वीपर विहार करी समेतपर्वतना शिखर उपर कार्तिकमासमां चंद्र अने कृत्तिकाना योगमा अर्थात् पूर्णिमाने दिवसे निवार्णने प्राप्त थया. ॥ ४४ ॥ ४५ ॥ निर्वाणमहिमा चक्रे स सर्षमसुरामरैः ॥ बहवः साधवः स्वामिसार्द्ध सिद्धिपुरीं ययुः ॥ ४६ ।।
अर्थः-ऋषिओ, देवो अने असुरोए पण एोश्रीना निर्वाणनो महिमा गायो अने घणा साधुओ ए स्वामीनी साथे सिद्धिपुरीमां गया. ततः कोटिशिलायां च जिन कुंथोरनुक्रमात् ॥ साधुकोटियुता अष्टाविंशतिर्युगपुरुषाः ॥४७॥ अर्थः-ते पटी जिनेश्वर कुथुस्वामीनी पाछळ अट्ठावीश युगपुरुषो करोडो साधुओनी साये कोटिचिलापर गया. ॥ ४७ ।।
॥ इतिश्री ऋषिमंडलवृत्ती प्रथमखंडे श्रोकुंथुनाथचरित्रं समाप्तम् ॥ ॥ आ ग्रंथ श्रोशुभवर्धनगणिजीए रचेली ऋषिमंडलनामनी टीकामांथो ओधरी स्वपरना श्रेयने
माटे पोताना श्रीजेनभास्करोदय प्रेसमा छापी प्रसिद्ध करेल छे ॥ श्रीरस्तु ॥
134584-%
॥१०॥
For Private And Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ Acharya Si K agarur Gyarmandir 00000000000000000000 414514614541414141414141415515151515151515151515151514141414141414545454545454541 deleeleela 414514614714415414674 // इति श्रीकुंथुनाथचरित्रं समाप्तम् // $4155415415454545454141414 15151514141414141414141414141414514444455 2000000000000000000 For Private And Personal Use Only