Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਵੋ श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.११) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-I.L.II) हमनमाणा बुदाणानादयशाम बदरिमीणामवमा वादमाशaran नामाणिज मादायकाभित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि लानामा दिए कोब्बा तीर्थ मला For Private and Personal Use Only का यातापारमनाया सिमायादा पनि Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.११) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी आराधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृत तु विद्या प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३८ ० वि.सं. २०६८ ० ई. २०१२ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ११ Acārya Shri Kailāsasāgarasūi Smṛti Granthasūci - Ratna 11 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.११ Kailasa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.11 ● ग्रंथसूची निर्देशन समिति O मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी) श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य) कनुभाई एल. शाह (नियामक ) ● सह संपादक 0 पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा ● संपादक मंडल ● पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ● केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only ● संपादन सहयोग ● परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ११ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - ११ आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section-I: Manuscripts' Catalogue *Class - I: Jain Literature Volume - 11 Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Published by G Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2012 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 11 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.11 Preserved in Dēvarddhigani Ksamāśramana Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Copy rights : Reserved by Publisher OVir Samvat 2538, Vikram Samvat 2068, A.D. 2012 O Edition : First प्रकाशन सौजन्य : श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार, कोलकाता O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Published by: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/ O Printed by: Navprabhat Printing Press, Ahmedabad 0 ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-42-3 (Vol.11) (2 उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में आयोजित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव के पुनीत प्रसंग पर । वि. सं. २०६८, वैशाख कृष्णपक्ष, अमावस्या, शनिवार, दि. २१-४-२०१२ श्रीगोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, १२, पायधुनी, विजयवल्लभ चौक, मुंबई-४००००३ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || अर्हम् नमः ।। * मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार - भाष्यकार - चूर्णिकार- टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है, जिनका आकस्मिक व अतिदुःखद कालधर्म गतवर्ष जेठ वद-२, ता. १७-६-२०११, शुक्रवार को हो गया. उन्होंने अत्यंत समर्पित भाव से यह कार्य किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबको मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन - जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत एकादशम खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार, कोलकाता एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी बोथरा एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है, यह कार्य बहुत ही अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान - शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची के खंड ९ से १२ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. पद्म‌सागर यूटि मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में.... जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. मूक व समर्पित, अतिविरल श्रुतसेवक तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी म. सा. के चरणों में.... जिनके अथक परिश्रम एवं कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप यह ग्रंथसूची साकार हो सकी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतोपासक तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. सा. का परिचय तारक तीर्थकर परमात्मा श्रीमहावीरस्वामी की यशस्वी पाटपरंपरा में सुप्रसिद्ध योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य-परंपरा में श्रुतोद्धारक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर स्व. उपाध्यायजी श्री। धरणेन्द्रसागरजी महाराज के शिष्यरत्न तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी महाराज का चरित्र वर्तमान काल में एक सच्चे निर्विकारी व सन्निष्ठ साधु के रूप में सर्वविदित है. आपश्री का जन्म दिनांक २२/९/१९५२ के दिन गुडा-बालोतान (राजस्थान) में माता स्व. सोनीबाई की कुक्षि से पिताश्री लालचंदजी हीराचंदजी जैन के परिवार में हुआ था. आपका सांसारिक नाम पारसमलजी था. आप बी. एस-सी. तक की लौकिक शिक्षा प्राप्त कर बेल्लारी। (कर्नाटक) में चल रहे पिताश्री के व्यापार में सहयोगी के रूप में प्रवृत हो गये। श्रीसंघ में गुरुमहाराज श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में आयोजित उपधान तप की आराधना में शामिल होकर पूज्य आचार्यश्री के। परिचय में आए इसी अवधि में आपश्री धर्माभिमुख हुए और मानवजीवन की सफलता प्रव्रज्याधर्म में ही जानकर विक्रम संवत २०३७ फाल्गुण शुक्ल सप्तमी के दिन बेल्लारी में पूज्य गुरुदेव की निश्रा में दीक्षित होकर पूज्य उपाध्याय श्रीधरणेन्द्रसागरजी के शिष्य के रूप में मुनिश्री निर्वाणसागरजी जैसे लोकप्रिय नाम से अपना संयम जीवन प्रारम्भ किया. दीक्षा के प्रथम दिन से ही अप्रमत्त भाव से संयमयात्रा शुरु कर अन्तिम दिन तक प्रभु-आज्ञामय संयम जीवन व्यतीत किया. वे नित्य एकासणा अथवा आयंबिल तप किया करते थे. कभी भी खुले मुंह आहार ग्रहण नहीं किया. साथ ही २०-२० घन्टों तक सतत प्रवृत्तिशील रहते थे. बाह्य तप के साथ-साथ स्वाध्याय तथा वैयावच्च उनके जीवन के खास पर्याय बन चुके थे. ३० वर्षों के दीक्षापर्याय में उन्होंने जिस प्रकार श्रुतज्ञान की आराधना की है, वह अद्भुत है. जोधपुर निवासी विरल श्रुतसेवक श्री जौहरीमलजी पारेख को आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में। स्थित विशाल हस्तप्रत संग्रह के सूचीकरण के प्रारम्भिक कार्य में उन्होंने हस्तप्रत के पत्र गिनने व आवरण चढ़ाने रूप सहयोग प्रदान किया। और आगे जाकर श्रुतभक्ति के आदर्श के रूप में उन्होंने ६०,००० से अधिक हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाएँ १,००,००० फॉर्म में भरकर अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. अपने आप में विलक्षण ऐसे प्रत-दशा संकेत, विशेषता संकेत व प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोकों का संकलन आदि सारगर्भित सूचनाएँ उनकी सूक्ष्मदर्शिता का परिचायक है. इतना ही नहीं, बल्कि आज ज्ञानमंदिर की अधिकांश हस्तप्रतों के आवरण पर लिखी गई प्रत-नामादि संक्षिप्त सूचनाएँ उन्हीं की देन है. छोटी से छोटी सामान्यतः व्यर्थ लगनेवाली अनुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोग में लाना उनकी कार्यकुशलता का विशिष्ट परिचायक था. वीरविजयजी उपाश्रय, अहमदाबाद में स्थित ऐतिहासिक ज्ञानभण्डार में संग्रहीत हस्तप्रतों की सूची स्वयं अकेले तैयार कर उन्होंने श्रुतज्ञान के प्रति समर्पण भाव का और एक परिचय दिया.। पूज्यश्री ने वर्तमान समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम रोमन लिपि में डायाक्रेटिक चिह्नों से युक्त दो प्रतिक्रमणसूत्र व पंचप्रतिक्रमणसूत्र हिन्दी शब्दार्थ, गाथार्थ तथा भावार्थ के साथ प्रकाशित कराके लोकोपयोगी बनाया. जिसे विश्वभर के श्रीसंघों द्वारा खूब आदर प्राप्त हुआ. इन दोनों पुस्तकों की प्रथम आवृत्ति हेतु पूज्यश्री ने महीनों तक दिन-रात मेहनत कर प्रत्येक अक्षर पर डायाक्रेटिक मार्क। स्वयं चिपकाए थे. श्रुतभक्ति के जीवंत चमत्कार भी पूज्यश्री के जीवन में देखने को मिलते हैं. पूज्यश्री की सूत्रों की धारणा शक्ति प्रारंभ में कमजोर थी. खुब मेहनत करने पर भी सूत्रों को पुनः पुनः भूल जाते थे. इसी कारण वे संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन भी नहीं कर पाए थे. श्रुतभक्ति का ही प्रभाव था कि बाद में बड़े-बड़े सूत्र भी उनको सरलता से याद रहने लगे थे. हस्तप्रतों में से ग्रंथों की सूचनाएँ निकालने के लिए जहाँ बड़ेबड़े विद्वानों को भी परिश्रम करना पड़ता है, वहीं पूज्यश्री का ध्यान सारे पन्नों में से जो उपयोगी पाठ होता था, उसी जगह सबसे पहले सहज ही चला जाता था, भले वह पाठ संस्कृत या प्राकृत में ही क्यों न हो! उनके साधुजीवन में नम्रता, सरलता, समता, सजगता, तीव्र जिज्ञासा, निःस्पृहता, प्रभुभक्ति, ज्ञानभक्ति, अप्रमत्त स्वाध्याय, गच्छ-मत के भेदभाव से रहित बाल-ग्लान की सेवा-सुश्रूषा, वैयावच्च आदि दुर्लभ गुण अपनी सोलह कलाओं के साथ खिले हुए थे. प्रत्येक व्यक्ति के लिए। सहायक सिद्ध होना, 'वेस्ट से बेस्ट' बनाना, आरम्भ किए गए कार्य को जी-जान लगा कर पूर्ण करके ही दम लेना आदि अनेक गुणों से वे। जीवन के अन्तिम महीनों में उन्होंने २२-२३ घन्टों तक सतत मौन रहकर आराधनाएँ करते हुए शासनदेवता की सहायता प्राप्त की थी. उसकी फलश्रुति के रूप में उन्होंने अत्यन्त चमत्कारी सर्वतीर्थार्हन् सिद्धमहायंत्र का संयोजन किया था.। मोक्षमार्ग के विरल यात्री पूज्य मुनि श्रीनिर्वाणसागरजी महाराज ने अपने संयम जीवन को यशस्वी बनाकर दिनांक १७/६/२०११ को। समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. धन्य है, हे मुनिवर आपको! धन्य है, आपके सफल जीवन को! धन्य हैं, आपकी अपूर्व आराधनाएँ, हे मुनिवृषभ! आपके चरणों में हमारी कोटिशः वन्दना ! वन्दना !! वन्दना !!! श्रद्धावनत - समग्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र परिवार For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के एकादशम खंड को मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्वि-शताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ____ हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता. ___ परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का जो उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है वह अत्यंत अनुमोदनीय है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस एकादशम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार, कोलकाता के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस एकादशम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर iii For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हो रहे मुंबई, श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव के ऐतिहासिक प्रसंग पर एक साथ प्रकाशित हो रहे रत्न चतुष्टय ९ से १२ में से इस एकादशम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. सूचीकरण कार्य के परिणाम स्वरूप इस बार भी प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतों को अल्प-महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षित सा रख दिया जाता है. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में महत्व की अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बड़ा ही कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बहुत संतोष दे रहा है. प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रख कर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु, त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल iv For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कासची खड ९ से १० के विशिष्ट सहयोगी कैलास श्रुतसागर धन्यधरा व पुण्यतमा बंगभूमि के जाह्नवीतट पर अवस्थित सुप्रसिद्ध अजीमगंज-मुर्शिदाबाद के धर्मनिष्ठ, संस्कारसमृद्ध, श्री-संपन्न एवं श्रीसंघ सेवापरायण श्रीबोथरा जैनकुल की उज्ज्वल परंपरा में स्वनामधन्य पितामह श्रीमान् प्रसन्नचन्द्रजी बोथरा, धर्मनिष्ठ पिता श्री गंभीरचंदजी बोथरा, उनके ज्येष्ठ बंधद्वय श्री परिचंदजी एवं श्री श्रीचन्दजी बोथरा जैसे जाज्वल्यमान नक्षत्रसम महानुभावों ने अपना जीवन सफल और यशस्वी बनाया. उसी गौरवमयी परंपरा में देवगुरुश्रुतभक्तिकारक श्री रविचन्द्रजी बोथरा एवं उनकी धर्मपलि सौभाग्यशालिनी श्रीमती कुमुदकुमारी ने भी अपने जीवन में अनेकविध शासन प्रभावना व धर्मप्रभावना के कार्य करके वीतराग परमात्मा के श्रद्धासम्पन्न एवं समर्पित सन्निष्ठ श्रावक-श्राविका के रूप में अपने-अपने नाम को यथार्थ करते हुए स्वजीवन को सही अर्थ में सफल बनाया है. उनके कार्य वास्तव में श्रीसंघ व समाज के लिये कल्याणकारी है. सुकृतसागर की झलक तृतीय तीर्थकर श्री संभवनाथ परमात्मा के गृहजिनालय का निर्माण. पोरुर (चेन्नई) में मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा. विशाखापत्तनम् (आन्ध्रप्रदेश) स्थित श्रीसंघमंदिरजी में कायमी ध्वजारोहण का लाभ एवं अजीमगंज से लायी गयी नयनरम्य व मनोहारी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का भी लाभ प्राप्त किया. वहीं पर दादावाड़ी के प्रांगण में आपने अपनी मातामही-नानीमां परम सुश्राविका श्रीमती ताराबेन कांकरिया के साथ मिलकर समवसरण मंदिर की संरचना का लाभ लिया. कुंडलपुरतीर्थ (बिहार में) श्री अजितनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की. इस्वी सन् १९९३ में पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मधुपुरीतीर्थ (महुड़ी) से तारंगातीर्थ का छरी पालित पदयात्रा संघ का सुंदर आयोजन किया. पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से कोबातीर्थ के मूलनायक चरम तीर्थपति श्री महावीरस्वामी परमात्मा को रत्नजड़ित स्वर्णहार अर्पण का धन्यतम लाभ लिया. कोवा तीर्थ में ही आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तृतीय तल पर स्थित आर्य रक्षितसूरि शोधसागर (कम्प्यूटर कक्ष) का सुंदर एवं अनुमोदनीय लाभ लिया है, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में नूतन श्राविका उपाश्रय का भव्य एवं यशस्वी लाभ लिया है. पूज्य आचार्यश्री की ही पावन निश्रा में उज्जैन से नागेश्वर तीर्थ का ऐतिहासिक छरी पालित संघ का भव्य आयोजन कार्य आपश्री ने पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा पाकर जीवदया, साधर्मिकभक्ति, अनुकंपा, जीर्णचैत्योद्धार, श्रुतसंरक्षण इत्यादि बहुविध सुकृतों की सुवास से अपने जीवन को सार्थक किया. आपश्री ने जीवन का सही मर्म समझकर अंतिम साँस तक धर्म को हृदयस्थ किया. अपने परिवार को सद्धर्म-सद्गुरु व सुसंस्कार की संपत्ति विरासत में देते हुए धर्मवैभव को समृद्ध किया. परिवार को समर्पण-सरलता एवं सदाचार के पथ पर चलने का अनमोल शिक्षापाठ देकर धर्मरसिक बनाया. जिनशासन के प्रति श्रद्धान्वित एवं पूज्य गुरुदेव के प्रति समर्पित आपश्री के जीवन का प्रत्येक कार्य परिवार और श्रीसंघ को सदैव नया संदेश, नई शक्ति व नई प्रेरणा देता है. आज भी आपके द्वारा बतलाए गए इस उज्ज्वल पथ पर चलते हुए आपके दोनों सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा सपरिवार श्री जिनशासन की सेवा और धर्मप्रभावना के अनेक सुकृत करने के लिए अग्रसर और उत्सुक है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना.. समर्पण प्रकाशकीय .............................iii प्राक्क थन .................................................................................... .....................iv .....vi-vii अनुक्रमणिका. ...................V प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य......... ................ viii हस्तप्रत सूची. .........१-४७२ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या........................ ४७३-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १........... ....४७३-५०३ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २.... ५०४-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड ११ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. ० प्रत क्रमांक - ४३४६१ से ४८१३५ ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३५१२ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ४२५७ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ४५३९ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६५३९ बार आई हैं. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत # कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (1) ........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#) प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ..... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)...........आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदि......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्थल उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) .............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........ मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे........ कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को..............कोष्टक (कृति स्वरूप) ग........... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............ गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा. ............गाथा (कृति परिमाण) गु. .............गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृही. .......... गृहात. आदान गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने | वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ........... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) ..जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क........ जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे.............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते...............जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त............. आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि............ ..जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............देवनागरी (प्रत लिपि) पं. ..............पंजाबी (कृति भाषा) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ............. पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग .......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य............पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं.......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि. ....... .. पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) पूर्व........ कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृ. ............. .. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम........ पेटाकृति नाम पे. वि.......... पेटाकृति विशेष पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि. ......... प्रत विशेष. प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो. .... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्रा............. ..प्राकृत (कृति भाषा) प्रे. .............. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ..............बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म...............मराठी (कृति भाषा) महा............महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा.............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु..........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप) मु..............मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) ............जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यं.......... ..यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) .............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल.... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख........... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) वि........... विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र........... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. .......... वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) व्याप. व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्राव......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि........ श्राविका (विद्वान स्वरूप) ... श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र.ले.पु. विद्वान) जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) .............संस्कृत (कृति भाषा) सम............ समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा.......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं.............हिंदी (कृति भाषा) श्वे.............जैन श्वेतांबर Vij For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ० सुकृत के सहभागी o हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी अहमदाबाद २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका अहमदाबाद १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.) मुंबई १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद गोरेगाँव २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट बेंग्लोर २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी | २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल २. श्री अर्बुद गिरीराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया मांडवला ७. श्री रांदर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट १०. प. पू. आ. देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा रोड १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर १३. दक्षिण- पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट viii Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only महेसाणा इन्दौर मुंबई अहमदाबाद चेन्नई सुरत मुंबई मुंबई मुंबई पुना कोलकाता चेन्नई Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तुत खंड सौजन्य श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया श्रीमती वासंति जय कांकरिया कोलकाता For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ॥श्री महावीराय नमः। ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३४६१. (+#) नेमिनाथविवाह गीत व फाग, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७४६१). १. पे. नाम. नेमिनाथ विवाहसमय गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत-विवाह, मा.गु., पद्य, आदि: गेलि गहेली सवि मिल; अंति: वेगि विवाह मनाविउ, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजीमति फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणि बालभ आविउ; अंति: अलीय विधन सवि जाइ, गाथा-२६. ४३४६२. (#) मेघकुमार चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ११४४१). मेघकुमार चौपाई, मु. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखदाईक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-८ गाथा-१ तक है.) ४३४६३. (+#) चोवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. स्थभनपुर, पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ११४३८). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-३०. ४३४६४. (+#) बृहत्शांतिजीन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रापुर, प्रले. मु. नानचंद (गुरु पंन्या. रुपविजय); गुपि. पंन्या. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, १३४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम. ४३४६५. () सोलसती श्लोक व जैन गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १२४३२). १.पे. नाम. सोलसतीनोरा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ४३४६६. (+) बीजतिथि आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १३४३८). १. पे. नाम. बीजनी थोयो, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे अहोनिश; अंति: विघ्न निवारी जी, गाथा-४. २. पे. नाम. त्रिजनी थोओ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांस जिणेसर शिव; अंति: लीला होज्यो अति घणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कनकसमशरीरं प्राप्त; अंति: देहि मे देवी सद्गी, गाथा-४. ४३४६७. (+#) चोदसनी थोइव आत्मोपरे स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १०-१५४३९). For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. चोदसनी थोइ, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. आत्मोपरे स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन कर्मतणी गती; अंति: अखय दोलत अधिकारी, गाथा-११. ४३४६८. (+) महावीरजिन गुहुली व देवेंद्रसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे गुण; अंति: लक्ष्मीसूरी गुण ठाण, गाथा-५. २. पे. नाम. देवेंद्रसूरि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. देवेंद्रसूरि सज्झाय, मु. दलपत, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीइ युगल पय कमल; अंति: कोड कल्याण आनंदकारी, गाथा-९. ४३४६९. (+) एकादशीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ११४३८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२९, ग्रं.८०. ४३४७०. लघुशांति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२७.५४१२.५, १३४३९). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१८. २. पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. ४ शरणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरण होजो; अंति: भवनो हुं पारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ४३४७१. (+#) वीरने पूछा गोतमनी व देवलोकनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में पाठ संशोधन हेतु मूल्य का उल्लेख किया गया है., संशोधित. कुल ग्रं. ४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. वीरने पूछा गोतमनी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: पामे सुख अथागहो, गाथा-१६. २. पे. नाम. देवलोकनी सजझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधरमां देवलोकमा; अंति: यां वरते जय जयकार रे, गाथा-११. ४३४७२. (#) सिद्धचक्र तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. पाना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १३४३०). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. ४३४७३. (#) वीसथानक तवन व अयमत्ता सझाय, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. रंगकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६४५१). १.पे. नाम. वीसथानकनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुदेवी समरी कहुं; अंति: कीजीइ नझ मणु समभाव, गाथा-१४. २.पे. नाम. अयमत्ता सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाय, गाथा-१९. ४३४७४. (+) रुतुवंतीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२,१२४२८). ऋतुवंतीस्त्री सज्झाय, मु. जीत, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वसाधक जिनवरनी वाण; अंति: धर्मकरणी साची भाखी, गाथा-१५. ४३४७५. (+#) मौनएकादसी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. वाडीलाल वर्धमान शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, ११४४१). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे विरने; अंति: सुरूप सझाय भणी, गाथा-१५. ४३४७६. बीजतिथि व अष्टमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १०४४२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने रे; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टमी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम दिने आठ मद तजि; अंति: लब्धिःपुन्यनी रेहरे, गाथा-९. ४३४७७. (+#) पजुसणारो चेत्यवंदन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चंद्रपुरी, प्र.वि. अंत में 'चंद्रपुरी मध्ये ग्रहण हतो' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४३५). १.पे. नाम. पजुसणारो चेत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपरब पजुसणे चेवो; अंति: तणो दिपविजय गुण गाय, गाथा-६, (वि. दो गाथा की एक गाथा गिनने के कारण ६ गाथा अंकित है किन्तु वस्तुतः १२ गाथा है.) २.पे. नाम. पजुसणनी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसण आवियां रे; अंति: मतीहंच कहे करजोडरे, गाथा-११. ४३४७८. (+#) सम्यक्त्व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४६३). सम्यक्त्व कुलक, आ. अमरचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देवो धम्मो मग्गो; अंति: अयाणमाणेवि सम्मत्तं, गाथा-३५. ४३४७९. (+#) साधुनी नीरवाण विधि व छिंक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १५४३९). १.पे. नाम. साधुनी नीरवाण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्योरे काल करे त्यार; अंति: (१)दीवस सुधी घेघाट करे, (२)ओगोजीमणी कोर राखवो. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतिचार कर्या पहिला; अंति: अवधी आस्यातना आलोवि. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४८० (+) पंचमाहाव्रत व रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५ १३४३७-४०). , १. पे. नाम. पंचमाहाव्रत सज्झाय, प्र. १अ २आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्म, आदि सकल मनोरथ पुरवे रे अंतिः सजाय भणे ते सुख लहे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ढाल - ५. २. पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. २आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सकल धरमनुं सार ते, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ४३४८१. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९३३ मध्यम, पृ. १, पड. उमेदमल लूणीया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे (२५x१२, १४X२७-३०). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: रंगीला नेमजी चत्रमास, अंतिः पोहता मुगत मझार, गाथा - १३. ४३४८२. (#) सिद्धसारस्वत स्तव संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५x१२.५, १६x४९) १. पे नाम. अनुभूत सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि : करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ १आ. संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंतिः भवत्युत्तमसंपदः, श्लोक ९. ४३४८३. (+#) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. १ आ पर रहे खाली कोष्टक में पाठ लिखा हुआ है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१३, १३x४२). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरांपती; अंतिः अलगी टाले आपदा, गाथा- १७. ४३४८४. (१) दानसीअलतपनी ढालो, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. गोपाल प्रेमचंद सा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६. ५x१२.५, १३-१६x४४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जनेसर पाए नमी, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ गाथा १ तक है.) ४३४८५. (+) विरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. अहमदनगर, प्रले. श्रावि. खिमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७.५४१३, १५४३४). ५ कारण छ डालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीड़, अंतिः विनय कहे आणंद ए, ढाल ६. १४४३२). १. पे. नाम. इरियावही सझाच, पृ. १ अ. संपूर्ण. ४३४८७, () सरस्वती मंत्र व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१३, १०X३८). १. पे. नाम. सरस्वति मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी अंति: मुखतांबूलरचिताम्, श्लोक - ९. ४३४८८. (+) इरियावी व धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७१२.५, For Private and Personal Use Only इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः नारि रे मे दिठि एक अंतिः करज्यो घणी सेवरे, गाथा-६. २. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख वाणी रे; अंति: गाया हे मनने गहगहि, गाथा-२२. ४३४८९. (+#) गुणठाणानो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १५४३६). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु केरा प्रणमी; अंति: भवसायर सोहिले तरो, गाथा-१९. ४३४९०. खेश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७७१३, ११४३०). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सुणो सखि संखेसर जईए; अंति: प्रभु नामे कमला वरता, गाथा-१४. ४३४९१. सिधचक्र स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१३, १२४३७). १. पे. नाम. सिधचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विर जिणेश्वर अति; अंति: सानिध करज्यो माय जि, गाथा-४. २. पे. नाम. सिधचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: विनय वंदे निशदीश, गाथा-४. ४३४९२. समस्या व सिद्धचक्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. हरीलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १२४३७). १. पे. नाम. समस्या गहुंली, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखीरे में तो कौतक: अंति: उंडा अर्थ ते परखसे ए. गाथा-६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र गुहुली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र गहुली, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित्तहर चरम जिणंद; अंति: मोहनविजय थइ निर्मदा, गाथा-६. ४३४९३. सिद्धचक्र गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ८x२८). सिद्धचक्र गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो सखि संजमीया गावा; अंति: वीर कहे भवजल तरसे, गाथा-१२. ४३४९४. (#) सिद्धदंडिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ३४३१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंके जे उ० ऋषभ; अंति: सुख प्रते आपे. ४३४९६. (#) पांचमआरानि सीझाय, संपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पलिका, प्रले. मु. प्रतापसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४३६-४२). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सुणो; अंति: भाख्या वण रसाल, गाथा-२१, (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं है.) ४३४९७. पार्श्वनाथ व घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १४४५३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा २७, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पासजिणचंद, गाथा-१७, (वि. अंत में आम्नाय दिया गया है.) २.पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४३४९८. (+#) वीर स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३२). १. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा का कुछेक अंश मात्र है.) २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर; अंति: गुण पुरो वांछित आस, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: ज्ञानविमल कहीई, गाथा-९. ४. पे. नाम. गौत्मस्वामिनी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभुति अनोपम गुण; अंति: करो नित मंगलमालिका, गाथा-४. ५. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिंगणभृद; अंति: सूरेर्वरदायकाश्च, श्लोक-४. ६.पे. नाम. गौतम स्तवन्म, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: नय करे परीणाम रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. दीपवलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुखहरणी दीपालिका रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४३४९९. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह टीका व कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १५४५७). १. पे. नाम. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह टीका, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायत उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र गगनादिसंज्ञा; अंति: माद्याः सिद्ध्यंति. २. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: शमयतु समग्रं भवभयं, श्लोक-१०. ४३५००. (+#) उवहाण पइट्टा पंचाशग-२०, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १०-१२४३८). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: महह जइ मुक्खसुहमणहं, प्रतिपूर्ण. ४३५०१. (+) सत्रुजयतिर्थस्तव, संपूर्ण, वि. १९४५, ?, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष अंतर्गत वार के लिए 'वणीकवासरे' इस प्रकार लिखा है., संशोधित., दे., (२७४१३, १४४३५). आदिजिन बृहत्स्तवन-श@जयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: पामीजे भवपार ए, गाथा-२२. ४३५०२. (+) श्रावकना तीन मनोरथ व देसावगासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ७४२१). १.पे. नाम. श्रावकना तीन मनोरथ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंतिः समाधिमरण होज्यो. २. पे नाम, देसावगासिक आलापक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं, अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरह ४३५०३. (+) नवकार रास, संपूर्ण वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. अमदावाद, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २८x१३, १२X४० ). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदिः सरसति सामिने दो अंतिः हुयो जय जयकार तो गाथा २०, ४३५०६. (+) मृगध्वजराजा कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५०-४९ (१ से ४९) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. संशोधित-द्विपाठ., दे., (२७X१३, १०X३५). मृगध्वजराजा कथा, सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. कमलमाला के साथ विवाहादि वर्णन है.) ४३५०७. सीमंधरजीरो स्तवन व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. गोपीनाथ मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६x१३, १५X३८-४३). १. पे नाम, सीमंधरजीरो स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन- वृद्ध, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी विनतडी अवधारो, अंति: अनोप जिनपद वंदन भास, गाथा - २१. २. पे. नाम. एकादशीनी स्तुति, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मौन एकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभानेमिर्बभाषे अंतिः न्यस्तपादांनिकाख्या, श्लोक-४. ४३५०८ (२) ऋषभजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. द्वितीय पत्र का पत्रांक अनुपलब्ध है. मूल पाठ का अंश खंडित है. दे. (२७.५४१२.५ १४४३०). " १. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी, अंति: अविचल सुखवास, गाथा-६. २. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: भक्ति शक्ति मुझ आपजो, गाथा- ७. ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर, अंतिः दवचंद्र पद पाव रे, गाथा - ९. ४. पे नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पूजना तो कीजे रे, अंतिः देवचंद्र पद व्यक्ति, गाथा-७. ४३५०९. (+#) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९९५, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. वडाली, प्रले. मु. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५X१२.५, १७३७). " शारदामाता छंद, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, बि. १६७८, आदिः सकलसिद्धिदातारं अति: होइ सया कोडी कल्याणं, गाथा- ४३. ४३५१०. (+#) अष्टापद स्तवन व पार्श्वजिन दोहरो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१३, १२४३२). " १. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: फले सघलि आस के, गाथा- २३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन दोहरो, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर समरतां; अंति: सबल ऋद्धि संयोग, गाथा - १. ४३५११. (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२.५, १३x४५). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ४३५१२. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १३४३२). १. पे. नाम. पाखिप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोइय; अंति: देवसियं आलोएह. २.पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण... आदिजिन स्तव, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: जय त्रिभुवनाधीश; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. इस प्रति में प्रतिलेखकने गाथा-८ लिखकर कृति की समाप्ति की है.) ४३५१३. (+#) चउसरण पइन्नो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६४३५-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, ___ गाथा-६४. ४३५१४. (#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४४०-४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) ४३५१५. (+#) जीवविच्यार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १५४४१). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: विजय भणे आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८४. ४३५१६. ४२ आहार दोष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. यशोराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, १०४३४). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा प्रथम साधु; अंति: सुध आहार लेता. ४३५१७. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२.५, १२४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मघोष, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः; अंति: त्रिलोकी विभो, श्लोक-१६. ४३५१८. (+#) मंगलाष्टक, औपदेशिक पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १९४४०). १.पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरासुर; अंति: कुर्वंतु मे मंगलं, श्लोक-९. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुंदर, पुहि., पद्य, आदि: धूलि जेसो धन जाके; अंति: ताहि वंदना हमारी है, गाथा-४, (वि. गाथांक अंकित नहीं है.) ३. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३५१९. (#) मृगापुत्र सझ्याय व ऋखबदेवजीनो स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२४). १. पे. नाम. मृगापुत्र सझ्याय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: पूर संग्रीव सुहामणो; अंति: दीन क्रोड कल्याण हौ, गाथा-१२. २. पे. नाम. ऋखबदेवजीनो स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ चरण अरिवृंदो; अंति: सेवै बै करजोडरै, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३५२०. (+#) दसमीकालकनी सध्यावां वसुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १६x४२). १. पे. नाम. दसमीकालकनी सध्यावां, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा; अंति: जयसी जे जे रंग, अध्याय-१०. २. पे. नाम. सुभाषित दोहो, पृ. ४आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,स., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-१. ४३५२१. (+#) बीज आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. बीजनि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पुरि मनोरथ माय, गाथा-४, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम लब्धिविमल लिखा हैं किंतु वह अशुद्ध प्रतीत होता है.) २. पे. नाम. पांचमनि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल करो अवतार तौ, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूअडी; अंति: संघ तणा निसदिस, गाथा-४. ४३५२२. (+#) इरियावही सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. ग. अमरविजय; अन्य. श्राव. शंकर प्रागजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. आदिस्वरजी प्रसादात. पत्राकं १आ पर अलग से सेठश्री संकागजी घोघाबंदरे श्रीश्रावक इस प्रकार लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२.५, २६x२०). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवझाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. ४३५२३. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२-१५४३३-४२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: उदेसूरिजी चीरंजीवी. ४३५२४. (#) चंदनबाला स्वाध्याय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १३४४२). १.पे. नाम. चंदनबाला स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: श्रीस्वरसत्तीनारे; अंति: चतुरसागरअईम वाणी, ढाल-३. २.पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मथुरापुरी रे कुबेर; अंति: नयविमल कवि ओपदिसै, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने अंतिम चार गाथा के गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदस्युं प्रीत; अंति: अविचल सुखवास, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वामाजीरा जाय; अंति: रामविजय भणैरे लौ, गाथा-९. ५.पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, प्रले. पं. रिद्धिसागर. आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम; अंति: अवर न ध्याईये, गाथा-५. ६. पे. नाम. राजमतीसती सीझ्या, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: अविचल पदवि तै लहै, गाथा-१०. ४३५२५. (+#) शानंतकुमारचक्रवर्ति स्वाध्याअ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक १अपर प्रारंभ में उर्दू में कुछ लिखा गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४५). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जीव विमासी जोइंतं: अंति: मनोरथ सविफलइ. गाथा-४५. ४३५२६. (#) खंधकरषीजी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १३४३४). खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखिया किजे रे, ढाल-२, गाथा-२०. ४३५२७. भगवतीसूत्र गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मयाराम अमरदास पंजाबी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १०४३४). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र गुहलि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-गहंली, संबद्ध, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवोने सयणा भगवती; अंति: भाग्यलक्ष्मी प्रसंग, गाथा-९. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-गहुँली, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सखी संयममा रमता; अंति: श्रीगुरुवाग सदा वरसे, गाथा-६. ४३५२८. (+#) वीसथानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमृतसागर; पठ. श्रावि. अमृतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२९). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहू; अंति: खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा-१४. ४३५२९. (+#) मान आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. मोहनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३१). १.पे. नाम. माननिसझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मान म करस्योरे मानव; अंति: बाली किधारे ठार, गाथा-८. २.पे. नाम. दाननि सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी; अंति: परतख पुंन्य परमाण रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. जंबूस्वामिनी सझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जाउं वलिहारि रे जंबु; अंति: नाम जपुंनीसदिस, गाथा-५. ४३५३०. (#) इग्यारगणधर गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १३४३४). ११ गणधर गहली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलो गोयम गणधरु; अंति: ए जिनसासन रित, गाथा-७. ४३५३१. (+#) साधुसाध्वीअतिचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १२४३४). १. पे. नाम. साधुसाध्वी अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. साधारण नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन नमस्कार, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद रुपि पर; अंति: नीत्ये जपो जैनवाणी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: गारेणं वोसिरामि, (प्रतिपूर्ण, वि. चोविहार, तिविहार व दुविहार का पच्चक्खाण है.) ४३५३२. (#) अर्हन्नामसहस्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४५). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, वा. देवविजय, सं., पद्य, वि. १६५८, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक-६ प्रथम श्लोक प्रारंभ पर्यन्त लिखा है.) ४३५३३. (+) साधु निरवाण विधि व छींक विचार, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८१, दे., (२७.५४१३, १४४४५). १.पे. नाम. साधुनी निरवाण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति पत्रांक १अ-२आ व ३अ-३आ इस प्रकार दो भागों में लिखी गई है, जिसमें कालधर्म नक्षत्रविधि व प्रतिलेखनदिशासूचक कोष्ठक पत्रांक ३अ-३आ पर लिखा गया है एवं साथ में श्लोक-२५ इस प्रकार उल्लेख है. साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्यारे काल करे; अंति: २. पे. नाम. पडीकमणामांछींक थाय तेनी विगत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पूर्वकृति के बीच में लिखी गई है. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतिचार कह्या पहिला; अंति: अवधी आस्यातना आलोवि. ४३५३४. शत्रुजय चैत्यवंदन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. शत्रुजय चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल शिखरे चढी; अंति: शासने शिवरमणी संयोग, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: दीठो दीठो रे नाभि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक ही लिखा है.) ४३५३५. (-#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२.५, ११४२५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमल्लल्ल; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने अंतिम पाद नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविजायचक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चत्यवंदण, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: बहु जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-२. ४३५३६. (+) चंचल की बाराखडी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. म्यानचंद (गुरु मु. रघुनाथ); गुपि. मु. मंगलसेन; पठ. सा. पद्मश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९२३) जसी प्रतथी उप्रली, दे., (२८x१३, १३-१५४३४). १. पे. नाम. चंचल की बाराखडी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. बाराक्षरी पद, चंचल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंत बडे बलबीर; अंति: पेस्या करै बजा जेका, गाथा-३२. २.पे. नाम. बाहुबलजी की सीझ्याय, पृ. ४अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया; अंति: समयसुंदर गुण गायो रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सीमंद्रजी का स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंद्रस्वामी सुण; अंति: मोरी अरदास जी, गाथा-७. ४३५३७. (+#) भगवत् जनमनात् जीवणहार, संपूर्ण, वि. १९२५, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मनसा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५,१५४५७). महावीरजिन जन्मोत्सव जिमणवार वर्णन, रा.,सं., प+ग., आदि: मगधदेशमै अतिभलो; अंति: करोति अग्रे कथयंति. ४३५३८. (+#) नेमनाथ आदि सज्झाय संग्रह व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १३४३६). १.पे. नाम. नेमनाथजी की सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख कृष्ण, ३०, सोमवार, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. रुघनाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. गुरां के परसादथी. नेमराजिमती सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी में होली मचाई; अंति: सुणो सब सजन भाई, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: किस बिध ख्याल रच्यौ; अंति: इणविध मुक्ति बताइरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. ___ मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजीरी वाणी धन; अंति: गोतम हुया केवलनाणी, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सिझ्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: तेन क्या करतुत करी; अंति: तां सीर धूल पडी रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक सीझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जीतोरे चेतन मोह; अंति: चरना का सरन लीयोरे, गाथा-८. ६.पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गरुरी क्या करे प्यार; अंति: कहे धनीदास क्र जोडी, गाथा-९. ४३५३९. महाबीर स्तवन, संयमश्रेणि स्वाध्याय व श्रेणि प्ररूपणा आदि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२८x१३.५, १४४३३). १.पे. नाम. माहाबीर स्तवन निगोदबिचारगर्भित, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वलि जाउं श्रीमाहावीर; अंति: धन दिन मुझ आज, ढाल-२, गाथा-४३. २.पे. नाम. संयमश्रेणि स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: ध्यान में ध्यायोरे, ढाल-२, गाथा-२१. ३. पे. नाम. श्रेणि प्ररूपणा आदि विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३५४०. (+#) माया व लोभपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खाचरोद, प्रले. मु. रखबां ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४२९). १. पे. नाम. मायापरीहार सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: लहीये सुख निरवाणी हो, गाथा-७. २.पे. नाम. लोभपरीहार सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पुहचे सयल जगीस, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३५४१. (+#) नवतत्त्व प्रक्रणसुत्र, संपूर्ण, वि. १९५४, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वाशलनगर, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक; पठ. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १४४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तेणेग सिद्धा य, गाथा-५९. ४३५४२. (#) जीवविचार प्रकर्ण, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९२४) मंगलं लेखकानां च, दे., (२७.५४१२.५, १०४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ४३५४३. (+) यतिअतिचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. यतिअतिचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ शुक्ल, ५, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमसी रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: बादर जाणता अजाणता०. २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४. पे. नाम. हानिवृद्धि विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३५४४. वृहस्पसि स्तोत्र, आदिजिन चैतवंदन व गौतमस्वामि छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७४१२, १२४२८). १. पे. नाम. वृहस्पसि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीतिस्तस्य जायते, श्लोक-५. २. पे. नाम. आदिजिन चैतवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्युगादिदेवाय; अंति: प्रभवेस्तु नमोनमः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. गोतमस्वामि छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गौतमस्वामी छंद के बाद में किसी अन्य कृति का प्रांरभिक किंचित् अंश लिखकर छोड़ दिया है. गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गण वीरनो रे; अंति: विर नमे निसहिस, गाथा-८. ४३५४५. रावण ढाल-ढाल ४, ६ व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १६४५१). १.पे. नाम. रावण ढाल-ढाल ४ व६, पृ. १अ, संपूर्ण. रावण ढाल, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: इस मार्गमति जारे; अंति: है बात जितारे, गाथा-११. ४३५४६. (#) बीज सज्झाय व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वडवाल, प्रले. मु. हरखसागर; पठ. सा. चंदनश्री; राज्यकालरा. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ८x२७). १.पे. नाम. बीज सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित बिवध बिनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीयां में आज; अंति: आदिस्वरजी तुठारे, गाथा-७. ४३५४७. (+#) पद्मावती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १०-१२४३५). पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंड; अंति: (अपठनीय), गाथा-१२, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४३५४८. (+#) मृगावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४४३). मृगावतीसती सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साधवीयै ज्ञान लह्यो; अंति: कोडि कल्याण करी हो, गाथा-३९. ४३५४९. (2) संतिकर आदि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१०.५, १०४२९-३५). १. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. सप्तस्विंशतीजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ प्रारंभ तक है.) ४३५५०. (+#) देवद्रव्य चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. समीनगर, अन्य. श्रावि. भारतीदेवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३०). देवद्रव्यपरिहार चौपाई, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निसुणु श्रावक जिणवर; अंति: जिण चउवीसइ नामउंसीस, गाथा-४५. ४३५५१. (#) पार्श्वनाथ व चोबीसतिथंकरा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १७४३५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-१७, (वि. साथ में यंत्र व आम्नाय भी दिया गया है.) २. पे. नाम. चोबीसतिथंकरा को सतोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सुखनिधान० निवासं, श्लोक-९, (वि. साथ में यंत्र भी आलेखित है.) ४३५५२. (+) अथिरभावना तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, वैशाख शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४५६). अस्थिरभावना सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: देखत भूली ख्याल; अंति: छाती नानु की कर धमका, गाथा-५. ४३५५३. यतिधर्मबत्रीशि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. जोगीदास व्यास; अन्य. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, १३४४४). यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाव जती तेहने कहो; अंति: ते पामें शीव सात, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३५५४. (+#) आदेसरजी भगवाननोरास, संपूर्ण, वि. १९६२, आश्विन शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जीवा करमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने कृति की शुरुआत पत्रांक १आ से की है., संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १४४३५). आदिजिन स्तवन, मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: भाई भाइ रे कुभारी; अंति: चीतरो छे भले भावरे, (वि. प्रतिलेखकने १० तक ही गाथांक लिखे हैं.) ४३५५५. (+#) व्याख्यान संग्रह व ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३१). १. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलभडे मत; अंति: मोहन० बलिहारी हो, गाथा-७. ४३५५६. (+) ५ जिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४३७). १.पे. नाम. पार्श्व अस्तुति, प्र. १अ, संपूर्ण. ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेस्वरा परम; अंति: भगवंतनी किरती भणता, गाथा-६. २. पे. नाम. संखेस्वरजिनुप्रभातिउं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मागु., पद्य, आदि: आज संखेस्वरा सरण हुँ; अंति: भगवंतनि कीरति भणता, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: भीरभंजन प्रभु भिरभंज; अंति: नाथजि हाथ साहियो, गाथा-५. ४३५५७. (+#) बुद्धि रास व पंचपरमेष्टि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में अन्य कृति का प्रारंभिक अंश मात्र लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४०-४२). १.पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. अहमदावाद. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: टलइ सवि किलेस, गाथा-६५. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४३५५८. अभव्य कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४३६). अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न; अंति: दुहावि तेसिं न पत्तं, गाथा-९. ४३५५९. (+#) जिनप्रभसूरि प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४५-५२). जिनप्रभसूरि प्रबंध, सं., गद्य, आदि: खरतरपक्षे श्रीजिन; अंति: ढिल्लीति प्रसिद्धिः. ४३५६०. (#) स्त्रीपुरुषसीखामण सज्झाय संग्रह व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण, १२, बुधवार, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. कस्तूरचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, १२४२६). १.पे. नाम. स्त्रिज्ञ पुरुषने सिखामणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणइ कंतारे; अंति: उज्जलोने पामस्ये, गाथा-१०. २. पे. नाम. पुरुषस्त्रियने सिखामण स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सिखामणि; अंति: उदयरत्न इणि परे भणे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, प्र. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सिधारथ सुत वंद; अंति: नित्ये अधिक आनंदरे, गाथा-५. ४३५६१. (#) अंत्रीकपार्श्वनाथजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १३४३७). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्ये सरस्वति; अंति: दरिसण __ हुवंछु मुदा, गाथा-५२. ४३५६२. (+#) वीतरागजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, अन्य. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४३०). १.पे. नाम. मोहपरिवार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यानी जी वाणी ए; अंति: हुई निज आतमरस लीण, गाथा-१४. २.पे. नाम. आत्मविवेक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुध विवेकी महीपति; अंति: धीयो मंगलमाल प्रवाह, गाथा-१६. ३. पे. नाम. वीतरागजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर नीके नयन तुंहा; अंति: द्योंद्रमै अवतारे, गाथा-४. ४३५६३. (#) शांतिजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १३४३७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: रंगस्यूं पंडित रूपनो, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपे सहु; अंति: पल वल्लभ करे प्रणाम, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखकने दो-दो पाद की एक गाथा गिनने के कारण १४ गाथा लिखी है.) ३. पे. नाम. कुंथनाथजीजीन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिनजी मोरारे रात; अंति: पद्मने मंगलमाल, गाथा-७. ४. पे. नाम. शे@जय स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृतवचने रे प्यारी; अंति: थूणीयो गिर सोदेकर, गाथा-२७. ४३५६४. (+#) रोहिणीतपविषये रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अहमदनगर, प्रले.पं. कनकविजय; अन्य. पं. कपूर; पठ. श्रावि. हीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरस्वामी प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १४४३१). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हा रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६. ४३५६५. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि; अन्य. मु. रत्नचंद्र (गुरु मु.सांवलदास, नागोरीगच्छ); गुपि.मु. सांवलदास (गुरु मु. वखता, नागोरीगच्छ); मु. वखता (गुरु मु. हेमराज, नागोरीगच्छ); मु. हेमराज (नागोरीगच्छ); अन्य. मु. उदयसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२८-३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ऋषभं चाजितं वंदे; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-९०. ४३५६६. (+#) लेखकशालानो मोत्सव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२, १२४४२). For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन-पाठशालागमन, मु. कपूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पासजी परम; अंति: वंछित सुख थाय लाल रे, गाथा-३२. ४३५६७. (+#) बूढा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. ४, ले.स्थल. मकसुदावाद, प्रले. मु. साधु ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १६-१७४३३-४०). बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दयाज माता वीनवुगणधर; अंति: सुणो कलजुग नीसुणी, ढाल-२२, (वि. प्रतिलेखकने प्रारंभ में ही ढालांक लिखे हैं.) ४३५६८.(+#) रिषीमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: द्रुतं दोषा भवंति न, श्लोक-९४. ४३५६९. (+#) थूलभद्र नवरस नव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४११,१३४४०). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगि ___फल्यारे, ढाल-९. ४३५७०. (#) चउदथानकनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ११४३०). १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सूणे तस लील विलास, गाथा-१३, ग्रं. १९. ४३५७१. (+#) विचार संग्रह व बारव्रत आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४७). १. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विचार संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. सर्वार्थसिद्ध विमान, दशार्णभद्र राजा ऋद्धि व संख्यात असंख्यात आदि विचार है.) २. पे. नाम. बारव्रत आलापक, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. १२ व्रत उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्व प्रदक्षिणा; अंति: भावउणंजाव गहेणं. ४३५७२. (+#) ऋषिमंडल स्तव, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १५४५०). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-९३. ४३५७३. (#) महावीरसमवसरण स्तवन व शांतिनाथ स्तुती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२, १३४२८). १. पे. नाम. महाविरसमवसरण स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरीशण नयन ठरावजो; अंति: ओछव रंग वधामणा, गाथा-१५. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिसोहकर साहिबा; अंति: शुभवीर ती जाणु, गाथा-४. ४३५७४. (+#) भयहर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अंतिम पत्र खंडित होने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका व पत्रांक अपठनीय है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४११.५, १९४६५). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखकने अंतिम तीन गाथाओं का मात्र प्रतीकपाठ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमिऊण स्तोत्र - अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं अंति मुनीनां प्रभुः, ग्रं. ३००. ४३५७५. पुण्यप्रकास स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. दोलतहंस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र हु होने से प्रतिलेखक नाम के अलावा दूसरी माहिती अपठनीय है. जै. (२८४११.५, १३४४६). "" पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः नामे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यप्रकास ए, ढाल ८. ४३५७६. (+) अष्टमी स्तवन व सुभाषित लोक, संपूर्ण वि. १८७७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. आगलोड, प्रले. मु. खुशाल (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय); गुपि. पंन्या. मुक्तिविजय, पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ११x२७). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि हां रे मारा ठांम धरम, अंतिः कांति सुख पामे घणु, ढाल- २, गाथा २४. २. पे. नाम. सुभाषित लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३५७८. (+०) मुनिमालिका संपूर्ण वि. १८९३, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४४४४). मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पय; अंतिः सदा कल्याण कल्याण, गाथा - ३५. ४३५७९. (+#) नारचंद्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५-१३ (१ से १३) = २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०, १५x५२-५८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रुचिरावासराः संभवति, (पू. वि. प्रतिष्ठा, दीक्षादि के मुहुर्त विषयक कुल ७७ श्लोक हैं.) ४३५८० (4) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १०X३६-४०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सुणि सरसती भगवत, अंतिः पूर्व पून्य पायो रे, गाथा ४०. ४३५८१. अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १२X३४). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः चेत्र बदि आठम दिनें, अंतिः प्रातिहार्य समृत, गाथा- १४. ४३५८२. पंचमी आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४. दे. (२६.५४११.५ १४४४). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसना, अंतिः मुनीवर सुख करो, ढाल ४. २. पे. नाम, सीद्धाचल स्तवन, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीमुख सौधर्म सुरपत; अंतिः होजो कोडी कल्याण रे, गाथा - १४. ३. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिणंदा महिम, अंति: तिमिरभर मेटया जी, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सेवना; अंतिः सेवना अप्रमादे रहीई, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १९ ४३५८३. (+) गतागत्वनां बोल, संपूर्ण, वि. १८९६ कार्तिक कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल बाकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X१०.५, १४४४१). गति आगति द्वार विचार - २४ दंडके, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना अप्रज्या; अंति: गत्य पांचसे त्रेसठनि, ग्रं. १३०. ४३५८४. नेमिजिन फाग, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. वे., (२७.५४११.५, १२४३१)नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: गोपी खेले होरी देवर; अंति: संजम माहारथ धोरी, गाथा-८. ४३५८५. पर्युषण पर्व स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि खिमकुंवरबाई, श्रावि लेरखीबाई, अन्य पन्या. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत 'जात्राना भाव के श्रीसिद्धाचलजीनी' इस प्रकार लिखा है. अंत में किसी कृति के प्रारंभिक शब्द लिखे हैं. वे. (२६.५x११.५, ११४३२). पर्युषण पर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: पुन्यनु पोषण पापन; अंतिः दन दन अधकी वडाई जी, गाथा- ४. ४३५८६. (+) सुखडीनी थुई, संपूर्ण, वि. १९५४, भाद्रपद शु. १२, मध्यम, पू. १, प्र. वि. किसी आधुनिक विज्ञानने पेन्सिल से संशोधन किया है, संशोधित. दे., (२७.५X११.५. ८४३४). . साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाउल जाई, अंतिः जो तु छे देवी अंबाई, गाथा-४, ग्रं. १५. ४३५८७ (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र व आदिजिन अष्टक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५४११.५, ११-१४४३४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तौत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, ले. स्थल. पीथापुर, अन्य. ग. जीतविजय; प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंतिः प्राप्नोति स श्रियं श्लोक-३३. २. पे. नाम. आदिजिन अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. सुवधीनाधाजी प्रसादात् आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीप्रमोदरंगकारणी, अंतिः सिद्धि सदा पाईई, गाथा-८. ४३५८८. (+०) सुभद्राजी का चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९६८ श्रावण कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल दोघट, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X११.५, ११४३८). सुभद्रासती रास- शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः स्वरसत सांमण बीनडं अंतिः फलिय मनोरथ माल, ढाल-४. ४३५८९. (+#) औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२७.५४११.५, १०४३३). "3 १. पे नाम औपदेशिक विनती, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: दगा कोइ किणस नही; अंति: चारो सरना चित धरना, गाथा- ७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु तोड करम जंजीर, अंति: सुरज जिम चंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. ५ इंद्रिय पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पु.ि, पद्य, आदि पांच मृगले तेईस अंतिः मिट जाय संसे सारे, गाथा ४. ४. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: में दरस बिना रह्या, अंति: नयनसुख दास बखानी जी, गाथा- ८. ४३५९० (+) खंधककुमार घोडालीयो, संपूर्ण वि. १८४७ आश्विन, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, अकबराबाद, प्रले. मु. इंद्रभाग पठ. सा. चंदुजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११.५, २५X४३). खंधकमुनि चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासणधणी जी; अंति: करणी कीज्यो सहु कोय, ढाल-४, (वि. इस प्रति में रचनावर्ष व स्थल अनुपलब्ध है.) For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३५९१. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४३५९२. (#) भावीचोवीशजिन स्तवनादि संग्रह सह अवचूरि व यवमध्यनाम गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य प्रति., पंचपाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ५-१०x४४-६२). १.पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन यक्षयक्षिणीनाम गाथा सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जक्खा गोमुहमहजक्ख; अंति: अंब पउमावई सिद्धा, गाथा-४. २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यक्षा भक्तिर्दक्षा; अंति: स्वरूपं निरूपितमिति. २. पे. नाम. भविष्यजिनजीवसंबद्ध चतुर्विंशतिजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरवरस्स भगवओ वोलिअ; अंति: सुहयरा हंतु सयकालं, गाथा-१४. अनागत २४ जिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरवरस्स० अत्र षष्ठी; अंति: न विशेषतो विवृताः. ३. पे. नाम. न्यूनोदरता गाथा सह व्याख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१, (वि. दशवैकालिकसूत्रोक्त.) जैन गाथा की टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. दशवैकालिकसूत्र बृहद्वृत्तौ.) ४. पे. नाम. यवमध्यनाम श्लोक-सिद्धिपंचाशिका अवचूर्णी, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३५९३. (+#) पंच इंद्री चोपड़ व देवकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१०.५, १७४४८). १.पे. नाम. पंचइंद्री कीचोपड़, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय चौपाई, पुहि., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमुं जिनदेव; अंति: सवको मंगल होइ, ढाल-६, गाथा-१५३. २. पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रथनेमी नाम हुवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४३५९४. (+#) एकादशी स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४८). १.पे. नाम. ऐकादशी स्तूती, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अतिरूवडी; अंति: संघतणा फल दिस, गाथा-४. २.पे. नाम. बीज स्तूती, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पूरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तूती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तूती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. वीर स्तूती, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जयकर साहेब; अंति: सेवकनी जय जयकार, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजेन स्तूती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल शुरासर सेवे पाया; अंति: देववाचक हितकारी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ७. पे. नाम. अजीतजेन स्तूती, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तुति, मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजीत जणेसर ध्याइये; अंति: संपदा लेये गुणखाणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. दीपकमाला स्तूती, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शाशननायक श्रीमहावीर; अंति: देजो सरसन वर वाणी, गाथा-४. ९. पे. नाम. चोवीसतीगर स्तूती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माणीउद्रमंडण वंचित; अंति: सूरवीजय गुण गाया जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेखेसर पास जिणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ११. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ४३५९५. (+) पद्मप्रभु स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १०४३२). १.पे. नाम. गंगांणीपद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: भव भव दीजो सेवरे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: अवसर बेर बेर नही आवे; अंति: पथमे समरसम गुन गावे, गाथा-४. ४३५९७. (+#) मार्गणा द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४८ हैं. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ३७७१९). २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३६००. (+#) जिनप्रतिमा वंदनफल आदि स्तवन संग्रह व जीवकाया उपर भावाध्याय, संपूर्ण, वि. १८००-१८०२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४५५). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर जिनप्रतिमा; अंति: रमणि वसि आणो जी, गाथा-१०. २. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८००, फाल्गुन कृष्ण, ४, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. मु. सोभाचंद्र, पे.वि. अंत में "मध्यांन स्मए लिपीकृतं' इस प्रकार लिखा है. चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनेंद्र चंद्रप्रभ; अंति: पासचंदइ शिवसुख कर, गाथा-७. ३. पे. नाम. जीवकाया उपर भावाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रावण कृष्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: नारी विणुं सोभागी रे, गाथा-७. ४३६०१. (+) बीजनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है., संशोधित., ., (२७४१२, ११४२९). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने रे; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. ४३६०२. शांतिनाथ व श्रीमंधरजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवनं, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा - ७. २. पे. नाम. श्रीमंधरजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिमंधर साहिबा, अंति: अधिक अधिक हवे थाय, गाथा- ७. ४३६०३. (+) रोहिणीनी सीज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ११३५). रोहिणीत सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद, अंति: विजयलक्ष्मीसुरी भूप, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. ४३६०४. (+) भारत्याः स्तोत्रं व पंचतीर्थजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७X१२, १३x४१). १. पे. नाम सारस्वतमंत्रगगर्भितं श्रीभारत्याः स्तोत्रं, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंतिः मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक- ९. २. पे नाम. पंचतीर्थजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य अंतिः स्तेषां तु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४३६०५. चेलणारो चोढालो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. रुपुगर, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन स्थल नाम संदेहास्पद है. दे. (२६.५४११, २०x४३). " चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: उसर ते नर अटकलै चेतो; अंति: बचन पवाण, ढाल ४, गाथा- ३७. ४३६०६. गोडीपार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५४, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७X१२, ८X३३). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो, अंति: सेव करतां सुख लहे, गाथा- ३४, पं. ५१. ४३६०७. (+#) सिद्धचक्र नमस्कार व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, १२X३१). १. पे. नाम. सिद्धचक्रस्य स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.मा.गु., पद्य, बि. १८वी, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण, अंतिः सिद्धचकं नमामि गाथा - ६. २. पे. नाम. सिद्धचक्क स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः भत्तिजुत्ताण सत्ताण, अंतिः महंताण कल्लाणयं, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर नर अंति: करतां मंगल मालाजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि सुखदायक श्रीसिद्ध, अंतिः एहनो परम आल्हाद, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा गिनी है. ) ४३६०८ (+) जिनसागरसूरि गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. अंत में नई कृति का प्रारंभिक पाठांश मिलता है., संशोधित., जैदे., (२५. ५X११, १३४३९). १. पे. नाम. गुरुराज गीतं, पृ. १अ संपूर्ण. जिनसागरसूरि गीत ग. हर्षनंदन, मा.गु., पद्य, आदि हरख घरी म्हे आवीया, अंति: चतुर माणस चित चंग रे, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगीतं, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनसागरसूरि गीत, ग. हर्षनंदन, मा.गु., पद्य, आदि : आठ वरस बालक वयई रे; अंति: हरखनंदन अभिरामो रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ - की स्याही फैल गयी है, वे (२८४१२, १०x२८) " www.kobatirth.org ३. पे नाम, गुरुगीतं, पृ. १अ १आ, संपूर्ण जिनसागरसूरि गीत ग. हर्षनंदन, रा., पद्य, आदि: पूजजी थे चावा बोहरा अति हरखनंदन सुविसेष हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनसागरसूरि गीत ग. हर्षनंदन, मा.गु., पद्य, आदिः सखी मोरी करी सिणगार, अंति: सूरी प्रतापड घणुं हे, गाथा-४, (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं मिलता है.) ४३६०९, (+) परिग्रहत्याग आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है. संशोधित. दे. (२५.५४११, २३x६२). " " " १. पे. नाम. परिग्रहत्याग सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय परिग्रहत्याग, मु. कुशल, मा.गु, पद्य, आदिः (-); अंतिः केवल कुसल कदात, (पू.वि. अगली की अंतिम गाथा अपूर्ण से अंतिम ढाल है.) २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धुवक कही पांचसई; अंति: कह मुझ तारिज्यउ, गाथा - २८. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, वि. १६२५, आदि किस विधि जीवडे अंतिः आवागमण निवारो जी, गाथा- १०. ४. पे. नाम. औपदेशिकबत्तीसी, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाधा-३२, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा- २७ अपूर्ण से लिखा है., वि. भाषा पंजाबी प्रतीत होती है.) ४३६१०. (१) पार्श्वजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों १. पे. नाम बाहुबल सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभिओ; अति समयसुंदर पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. रिछेलनगर. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगियागिरि सिखर, अंति: सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा - ८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन / गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि : आवो सहिअर सहु मिलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक लिखा है.) ४३६११. (७) स्तवनचोवीसी व २४ जिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२८४१२.५, २९x१८) " १. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, २४ जिन स्तवन रा., पद्य, आदि: पहिला श्रीआदनाथ वंदु, अंति में मागं धारी सेव, गाथा- ७. २. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन मुजने पार अंतिः मेरा करो नीसतारो, गाथा ६. ४३६१२. (+) सणकरो चोदाल, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. बलीवचंद (गुरु मु. चतुरभुज); गुपि मु. चतुरभुज, अन्य. मु. जोधरायजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दलीदचंदजीने जोदरायजी को प्रत लिख के दी है., संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे (२६४१०.५, ११-१३४३२-३६). सम्यक्त्व चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकीत माहे दीढ रह्या, अंति: पनवंत केइ नरनार हो, ढाल ४. २३ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३६१३. (#) परमानंदपचवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२८x१२, ४४३२). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रहतां आत्माने पर, (वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४३६१४. (+#) चतुर्विंशतिजिन आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६-२७.०४११.५, १३४४१). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: तास शिस पभणे आणंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. गोडीजिन एकसोआठ नाम स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सरसती देवी नमी करी; अंति: गाईउ गोडी धणी, गाथा-२५. ३. पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहे उठि प्रणमइ; अंति: शिष्य गुण गाया, गाथा-११. ४. पे. नाम. शंखेश्वर स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वर मन; अंति: शंखेस्वरो आज तुठा, गाथा-७. ५.पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भीडभंजण भवभयभितहरं; अंति: मोहमहारिपुमर्दनं, गाथा-११. ६. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सूधी आसता; अंति: मणि माहरी चिंता चूर, गाथा-८. ४३६१५. (+#) विष्णुकुमारमुनि कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १३४४२). विष्णुकुमारमुनि कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भारती साधु; अंति: सन्मोक्षसौख्यश्रिये, श्लोक-९१. ४३६१६. (+#) ओलीकीसीझाय, संपूर्ण, वि. १९५२, आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. डुंगर छबाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x११.५, ११४३८). श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करो; अंति: सती नामे आणंदो रे, गाथा-१२. ४३६१७. (+) निलोतरीना उपवाश, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४११.५, १२४४३). श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, आदि: पंचद्री उपद्रव उ१०; अंति:१ हजर करवी. ४३६१८. (+#) ढुंढ रासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १३४४९-५७). ढूंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: रच्यो रास उल्हास ए, (वि. ढाल-५ है.) ४३६१९. (#) दीवानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४४२). दीवा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दश द्वारे दिवो कहो; अंति: निश्चे मोक्षे जाय, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४३६२०. दीक्षा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. काहानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. जैवे. (२७४११.५, ११४३७). दीक्षा प्रकरण, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनेंद्र, अंतिः जीवो देवे, श्लोक-२२. ४३६२१. (+) छकाय आयु सझाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७.५x१२.५, १५X३३). १. पे. नाम. छ काय आयु सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ कायआयुष्य सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अमृत वरसति जी, अंतिः विजय शिव संत रे, . गाथा-७. २. पे. नाम. चोविसतिर्थंकर चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पदारथ मेलवि; अंति: भीम भणे निसदीस, गाथा- ४. ३. पे नाम. संखेश्वरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. नरोत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजि श्रुतदेवि समरु, अंति: सीवसुख राज हो, गाथा - ११. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र सेवो भव, अंति: सुखदाई उतम सिस सवाइ, गाथा ४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र सिझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अंतिः पद महिमा जाणज्यो जी, गाथा-५. ४३६२२. (#) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. उपा. रामरत्न, मु. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से आ प्रत वा रामरत्ने सा. खेमचंदने आपि छे' इस प्रकार लिखा है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे. (२६.५x११.५. १२-१५x२७-३२). चैत्यवंदन चौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्म, आदि आदिदेव अरिहंत धनुष, अंतिः बहु जन पाम्या पार, चैत्यवंदन- २४. (४३६२३. (४) दिवानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, राधनपुर, प्रले श्राव, उत्तमचंद रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२६.५४११.५, ९४३१). दीवा सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दस धारो दिवो बले ए; अंतिः प्रगटे घटमां सदाय, ढाल -२, जैन प्रश्नोत्तर संग्रह प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २५ गाथा - १५. ४३६२४. (+४) प्रश्नउतार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२, १४४४०). ४३६२५. (+४) क्षमाछत्रीसी व कर्मछत्रीसी, संपूर्ण वि. १६९५ माघ, २. शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. इवलपुर, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि); गुपि. मु. सिद्धराजजी ऋषि (गुरु मु. हाथीजी); मु. हाथीजी (गुरु मु. मांडण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखनस्थल विषयक 'खानदेशे व्रहाणपुरवर इदलपुर' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १३x४५). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : आदिरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. २. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदिः करमधी को छूटई नहि, अंतिः धर्म्म तणइ परमाणि जी, गाथा - ३६. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३६२६. (#) मनुष्यजन्म फल श्लोक व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७८, श्रावण कृष्ण, ६ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. अमथालाल मानचंद भोजक; पठ.सा. चंपाश्री शिष्यापरिवार (गुरु सा. चंपाश्री); गुपि.सा. चपाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १०४३८). १. पे. नाम. बेरिंद्रीनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बेइंद्रियजीव सज्झाय, मु. रत्नविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेइंदि बोले रे मुखथी; अंति: करो भवि प्राणी रे, गाथा-११. २. पे. नाम. नागदतसेठनि सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. नागदत्तशेठ सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी उजयणी रे; अंति: धर्मे जय जयकारो जि, गाथा-४७. ३. पे. नाम. मनुष्यजन्म फल श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३६२७. (१) सोल सुपन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १६४३०). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुने चरणे नमी; अंति: वांदो त्रिण कालो रे. ढाल-२.गाथा-२१. ४३६२८. (#) महावीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२, ११४३२). महावीरजिन गहुंली, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीर जिणंद; अंति: विलसी लहे सीवगेहरे, गाथा-८. ४३६२९. गुरुगुण गहुली व वयरस्वामि फूलडा, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली जंगम तीरथ; अंति: शुभवीर वचन हइडे भावे, गाथा-७. २. पे. नाम. वयरस्वामी फूलडां, पृ. १आ, संपूर्ण. __ वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखि रे में कौतक दिठु; अंति: शुभवीरने वालडारे, गाथा-८. ४३६३०. (#) वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १०४२८). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहुं; अंति: खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा-१४. ४३६३१. (+#) शंखेश्वरपार्श्वनाथाष्टक आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १५४३६). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथाष्टकं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुरासुरवंद्यं; अंति: संसेवि हंसरत्नाय, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यन्नामस्मृतिमात्रतो; अंति: श्रीशारदा देवतां, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ४. पे. नाम. १२ राशि कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. बार राशिविषयक कोष्टक आलेखित है.) For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २७ ४३६३२. (d) महावीरजिन स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत में गौतम कुलक का किंचित्प्रारंभिक पाठ मिलता है. टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२७४१२, ७५६). महावीरजिन स्तव - बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: भणइ अभयदेवसूरिणं, गाथा- २३. महावीरजिन स्तवन- बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० महावीरदेवना० ज०; अंतिः प० भगइ अभयदेवसुरी. ४३६३३. (+) औपदेशिकवत्रीसी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ७. प्र. वि. संशोधित, जैवे.. (२६.५X११.५, २०x६१). १. पे. नाम औपदेशिक बावीसी, पृ. १अ संपूर्ण औपदेशिकवावीसी, मु. भालण, मा.गु., पद्य, आदि: भगति करो भूधरनी, अंति: भालण जन जिवुं गाए, गाथा-२२. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १९अ १आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: म करे रे जिवडा, अंतिः एसीखमई रहिणा, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्म, आदि आज का लाहा लिजिए अंतिः पूजे देवे साइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. राम पद, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, प्रले. अंबाईदास, प्र.ले.पु. सामान्य. रामभक्ति पद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: भुले भुले वइदा, अंति: हु तो दास तुम्हारा, गाथा-३. ५. पे. नाम. हरिनाम पद, प्र. १आ, संपूर्ण कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: साइ मेरी साबुरी काया; अंति: मि वैकुठ जाउं, गाथा-४. ६. पे. नाम औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दिन दोले रे गोविंद, अंतिः कीजे जनम मानुषो पाय, गाथा ४. , ७. पे. नाम, सीमंधरजिन स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुंदर मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमंदर सामीया एक; अंति: पभणे सूंदर मूनी सीस, गाथा - १५. 1 ४३६३४. () गौतमस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १ ले स्थल. हलवद, प्रले. मु. हाथी ऋषि (गुरु मु. मांडण ऋषि); गुपि. मु. मांडण ऋषि (गुरु मु. कान्हाजी); पठ. मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४०). गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि स्वर्णाष्टाग्रसहस्र अंति: गुरुपादुकाभ्योः, श्लोक-१३ (वि. कृति के अंत में कर्ता के विषय में 'स्वधर्मास्वामिकृत' इस प्रकार लिखा है.) ४३६३५. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); गुपि. सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२७.५५११.५, ११-१४X३९). महावीर जिन हमचडी ५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदन कुं तिसला, अंति: चरम जिनेसर वीरो रे, गाथा- ६८. ४३६३६, (+०) पखीपडिकमणा विधि, संपूर्ण वि. १८८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, वाल्ही, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, १४४४६). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु, पद्य, आदिः (-); अंति: (-). "" ४३६३७. (#) ऋषभजी गीत व शांतिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५X१२, ७x४९). १. पे. नाम ऋषभजी गीत, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन पद, ग. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जगमुगटमणि नाभनृप, अंति: राज के काटि दुखफंदा, गाथा - ३. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आंगण कलप फल्योरी; अंति: हु रहिस्युं सोहिलौरी, गाथा-३. ४३६३८. (+#) दानशीलतपभावना भास व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलप्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, २१४७२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना भास, पृ. १अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवु; अंति: मोक्षसुख हेलां वरो, ढाल-४, गाथा-२५. २. पे. नाम. नववाडि सझा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सीयलवंतनइ जाउं भामणइ, गाथा-२१. ३. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयरी सोहामणो; अंति: तुज तोलि अवर कोइ, गाथा-२०. ४. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणवर करूं; अंति: ए गुण समरु नीसदीस, गाथा-५. ४३६३९. (+) आदिजिन आदि स्तवन संग्रह व करणीविषयक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है व अंत में १ से १० तक अंक लिखे हैं., संशोधित., दे., (२७.५४११, १५४४४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: एक बात सुणी मई होक; अंति: होक सवे विध जाणियो, गाथा-१८. २. पे. नाम. करणीविषयक गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर बंदिय; अंति: ध्यान धरै समझाय हो, गाथा-१५. ४३६४०. (#) जयाविजया आदि मंत्र व गुर्वावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ९४३४). १. पे. नाम. जयाविजया आदि देवी मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. गुर्वावली, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ तक है., वि. पत्र खंडित होने से आगे पाठ जारी है या संपूर्ण यह पता नहीं चल रहा है.) ४३६४१. भगवंत उपमा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १६x४०). महावीरजिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सुर्य अंधकारनो; अंति: भगवंत परिसा सह्या. ४३६४२. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १६४१६). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजी गोतम ५०; अंति: सूरिजी चीरं जीयासुः.. ४३६४३. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व चिंतामणि मंत्र, संपूर्ण, वि. १७७२, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १५४४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिनसत्काष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. २. पे. नाम. चिंतामणि मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३६४४. (+#) वीसविहरमान गीत, संपूर्ण, वि. १७९३, वैशाख कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. अमरचंद सुमतिदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४४६). स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सामि सीमंधर विनती; अंति: ए श्रीजिनसागरसूरि, स्तवन-२०. ४३६४५. आत्मसीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. गोविंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भविक जन भज ले रे भज; अंति: ज्यु पामो भव पार, गाथा-२६. ४३६४६. (#) दंडक प्रकरण का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. ब्यावर, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; अन्य. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनराजदेवजी साय छै., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १४४४८). दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ कहतां नमस्कार; अंति: नती आत्माने हितकारी. ४३६४७. (#) सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है. मरम्मत करने योग्य. प्रदर्शनीय प्रति., मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४५३). सीमंधरजिन स्तवन-खंभनगरमंडन, अप., पद्य, आदि: खंभनयर मुखमंडणुए; अंति: सुहसायर ते अणुहवइ ए, गाथा-२१. ४३६४८. (#) यशोभद्रसूरि प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २२४६२). प्रबंध कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: संडेरगच्छे पंचशतीयती; अंति: प्रतिज्ञा निव्यूढः. ४३६४९. (+#) हितशिक्षा आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५०). १.पे. नाम. हितशिक्षा सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण सपूरण एक अरिहंत; अंति: सहेजसुंदर चारे बोल, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारमु; अंति: सहेजसुंदर उपदेश रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. जूवटा गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सगुण सनेही हो सांभलि; अंति: नंद कहि करजोडिरे, गाथा-११. ४. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिशिथी च्यारे; अंति: गाया हे पाटण परसिद्ध, गाथा-६. ४३६५०. १३ स्थानके उपयोग आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४६१). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उपयोग से दस प्राण विचार तक है., वि. १३ स्थानके योग, उपयोग, लेश्यादि विचार है.) ४३६५१. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ११४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . धर्मसिंह (गुरु ४३६५२. (+#) बंधसामित्तं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); गुपि मु. नानजी ऋषि (गुरुमु जसराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरुमु. धर्मसिंह, लुकागच्छ); मु. मु. सिद्धराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९२८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६.५X१२, ९३१). " स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्तं, अंतिः नेवं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४३६५३. (४) काकसु आदि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे.. (२६.५४११.५ ११५२५). १. पे. नाम. काकसु गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-काकसु. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: पाणी बहिरी पाधरा, अंति: केडि पोसालि पासि रे, गाथा- ११. २. पे नाम, सांगी गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण सांगी गीत-समस्यागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: वरषा वरि खेलंतो तरति; अंति: त्याचां मांन बहुतो, गाथा-३. ३. पे नाम, आध्यात्मिक गीत, प्र. १आ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि अब मे देखे गछ चोरासी, अंतिः झीलो जेगम तीरथ कासी, गाथा ५. 2 ४३६५४. (+४) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पू. ३ ले स्थल विक्रमपुर, प्रले. पं. कीर्तिनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी विद्वानने कीर्तिनीधान को मिटाकर कल्याणनिधान नाम लिख दिया है, टिप्पणी बाद में किसी विद्वानने लिखी है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६११, ९४२३३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंतिः श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१३ (वि. कृति समाप्ति प्रतिलेखक मा.गु. भाषा में व्याख्यान प्रारंभ व समाप्ति में पठनीय पाठ लिखा है.) ४३६५५. (+#) वीसस्थानक थोय व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १३४३५). १. पे. नाम. वीसस्थानकनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. विद्याकुशल (गुरु ग. देवकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. २० स्थानकतप स्तुति, ग. विद्याकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: वीसस्थानक सेवो भाव, अंति: विद्याकुशल जयकार, गाथा-४. २. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. मानकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र नित सेवीइ, अंति: सिद्धचक्र सेवीइ, गाथा- ७. ४३६५६. (४) सोलसुपन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); गुपि. सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १८३७). १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पोढुनयर पाडलीपूर चंद, अंति: गिरुआ एह गुणेज्यो, गाथा - २५. ४३६५७. (+#) पार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र खंडति होने से पत्रांक अनुपलब्ध., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X३५). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमीय पास जिणंद, अंतिः वास अनोपम पामीयए, गाथा- ७. २. पे. नाम. महाभारतादि उक्त श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. लोकसंग्रह प्रा.सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-४. ३. पे. नाम. १४ गुणस्थानक नाम गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ४. पे. नाम. १२ मासीय ज्योतिष कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदिः (-); अंति: (-). मा.गु.,सं.,हिं., 1 ४३६५८. (+#) सीमंधरस्वामीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, प्रले. आईदान मंगल पंडा, पठ. श्रावि. हेमकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, ९४३२) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरस्वती, अंति: पुर्व पुने पाया रे, ढाल-७, गाथा ४०. ४३६५९. (+) वीरत्थुती नाम छठ्ठे अज्झयणं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९ फाल्गुन कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. नारनवलनगर, प्रले. मु. लक्षजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, ४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. - सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० नरकविभत्ति सांभल, अंतिः कुशील ते कहि छि. ४३६६०. (+०) सोलसुपन सिझाय, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैसे. (२६.५४११.५, १५३५). , चंद्रगुतराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: सदगुरुने चरणे नमी अंतिः वांदु त्रिण काल रे, ढाल - २, गाथा - २१. ४३६६१. (+) उपदेशरत्न कोश सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ६X३६-३८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उपदेसरूप रत्न तेहनुं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १९ अपूर्ण तक लिखा है.) 5 יי ३१ ४३६६२. सुविहितसाधु मर्यादापट्ट, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५X१२.५, १३X२६-३१). संवेगीसाधु मर्यादापट्टक, आ. विजयसिंहसूरि, मा.गु., गद्य, आदि; भट्टारक श्रीसोमसुंदर, अंतिः संवेगी सदहवा पालवा. ४३६६३. (+०) नवीनप्रसाद प्रतिष्ठापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १६X५०). प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीजीराउलि, अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं जा रहा है.) ४३६६४. (+०) माहावीरसामीने रसोइ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११.५, १५X४४). भोजनछत्रीसी - महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरुदेव दवालसुं अंतिः पूरण कधी भोजनछतीसी, गाथा - ३६. ४३६६५. (१) श्रावक ३ मनरथ व मल्लीनाथजिनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र शुक्ल, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४११.५ १२४३६). For Private and Personal Use Only १. पे नाम श्रावक ३ मनोरथ पू. १ आ-२अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: पहिलें मनोरथे समणो; अंति: एहवो मुझने होज्यो. २. पे नाम. मल्लीनाथजिनु स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चित कुण रमे चित कूण, अंति: हरीहरभ्रमा कूण न्नमे, गाथा-५, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम नयणसागर लिखा है जो अशुद्ध प्रतीत होता है.) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३६६६. (+) थापनानी १३ बोल आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे ५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२७.५४१२, ८-१०२७). , १. पे. नाम. थापनानी १३ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेला बोले १ सुध, अंतिः सुध आचरणा सइत. २. पे. नाम. आठकर्मना नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे नाम, मुफ्ती बोल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, , मुखत्रिकाप्रति लेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: सूत्र अर्ध तत्त्व, अंति: तरसकाय जगा करू, (वि. बोल-४० है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, चोवीस तीरधाकरनां परीवार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण वि. १९वी पौष कृष्ण, १३. २४ जिनपरिवार संख्या विचार, रा., गद्य, आदि: पेले बोले १९००००; अंति: पाच लाख आरत्री हजार. ५. पे. नाम. १८ बोल, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, २, प्रले. मु. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. १८ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले नंदीसर, अंति: बे हज्यार चारसें. ४३६६७. रात्रिभोजन स्वाध्याय, संपूर्ण वि. ११वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२७.५X११.५, ११४२७). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु पद प्रणमी; अंति: सुजस सोभाग लहिजई रे, ढाल-४, ४३६६९ थुलिभद्रजीनी सीयलवेल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२६.५x११.५, १३४३७-४१) गाथा - ३५. ४३६६८. (०) चोविसतिर्थंकरना आंतरानो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखन कीमत विषयक की० चार आना' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२, ११X३७). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदा सुपरे; अंति: वर्यो जय जयकार ए, ढाल - ४, ग्रं. ६५. י स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पाशजी अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ५ गाथा १३ अपूर्ण तक लिखा है.) , ४३६७० (4) चंदगुणावली लेख संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल. विजापूर, प्रले. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२, १४४३६). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीमरुदेवि, अंति: सहु सफलस्ये आस, गाथा ७०. ४३६७१. (+) केशवजीना चउमासा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. नंदु ऋषि, पठ. श्रावि माना बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२७४१२, १२४४९). केशवजी चोमासा ढाल, मु. भैरव ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पास जिनेसरु; अंति: गुण गावतां वंछित फल, ढाल- ४. ४३६७२. (+#) पंचमी तवन, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रावण कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पतन, प्रले. मु. दोलतचंद (गुरु पं. दानचंद गणि); गुपि. पं. दानचंद गणि; पठ. श्रावि. वलमबाई, अन्य. पं. जीवनचंद गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२, १२X३५). For Private and Personal Use Only ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिनेशर, अंति: गुणविजय रंग मुणि, ढाल ६. ४३६७३. (+#) श्रावकव्रतभंग प्रकरण आदि संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५०९, आषाढ़ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. मरम्मत करने योग्य. पत्र १अ पर १३ फुल्लिकाएँ हैं., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पड गये हैं, जैदे., ( २६.५X११.५, ९ - १३x४५). १. पे. नाम. श्रावकव्रतभंग प्रकरण सह विवरण, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ समत्थपरमत्थवत; अंति: वित्थर नाउमुज्जमह, गाथा-४१. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ भावकव्रतभंग प्रकरण-अवधूरि, सं. गद्य, आदि: पणमि० दुविहा० व्रतं अंतिः चारणवा स्वयं ज्ञेया. २. पे. नाम. लघ्वल्पबहुत्व सह अवचूरि, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदि: पपुवउजीवाकमसो जलवणवि, अंति: अहगामा वाहिणे झुसिरं, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: पपुदउकमसो इति पश्चिम, अंतिः बाहुतमो वायुः, ३. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी, आदि जिणदंसणं विणा जं, अंतिः जहा भ्रमह न इह " 7 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिसं, गाथा - ३२. " लोकनालिद्वात्रिंशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः रूपमुपलभ्य ज्ञात्वा (वि. पत्र घिसा हुआ होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है. ) ३३ ४३६७४. (#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. किसनगढ, प्र. सा. फतु आर्या (गुरुसा, अखु) गुपि सा. अखु अन्य मु. जैमल ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में जैमलजी विषयक 'पूजजी शअरीजैमलजी उतम छै गुणवंत छै जसवत छै उद्योतना करणहार छै गुणारा भंडार छै' इस प्रकार लिख है. किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२.५, ८४४९). श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तियुक्ति सेवक अमर अंति: (१) तथा स्त्रीसोभा होइ, (२) संघ समख्येत्र भवतु. ४३६७५. (+#) साधुना अतिचार, संपूर्ण, वि. १९१५, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५४११.५, ११४३३) " २४ दंडक विचार, मा.गु, गद्य, आदि पहिलो दंडक नारकी तणो अंतिः नीसर्यो मोक्षई जाई. २. पे. नाम, संजय दारं, प्र. १आ, संपूर्ण साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४३६७६. द्वारकानगरीनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५X१२, ११३६). द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दोनुं बांधवआ रडे; अंति: विनय० भव पार उतार रे, ढाल - १, गाथा - २२, ग्रं. ३७. ४३६७७. (+#) दंडक बोल आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६२, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालसारी, प्रले. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि, लुकागच्छ); गुपि. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुकागच्छ); मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुकागच्छ): मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. यशोराज (गुरु मु. धर्मसिंह, लुकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, कागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, १९४५५). १. पे. नाम. डंडकस्य सप्तमं बाल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण " For Private and Personal Use Only संजयद्वार १९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संजति ९ संजता संजति, अंति: सत्तावीस बोल जाणवा. ३. पे. नाम. गुणठाणा आदि बोल विचार संग्रह, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३६७८. (+#) अनाथी चउपई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२, १५X४०). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्ध सवेनइ करूं, अंति: ते विचरइ सही, गाथा-६२. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३६७९. (+#) गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १७१८, दिग्गजात्मावारेंदुवर्षे, ?, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जयतपूर, प्रले. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १७४४८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: जे जिनवरनई वसुं, गाथा-११७, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु की परंपरा व रचनावर्ष अनुपलब्ध है.) ४३६८०. जिनरक्षा स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१०.५, ११४५०). १. पे. नाम. जिनरक्षा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१७. २.पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरजिन व वशीकरण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४३६८१. (#) समाधिपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, १६x४४). समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपुरब जीव जीणधरम; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है.) ४३६८२. (#) सुखसागरपास तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, पठ. श्राव.सुलतान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४३४). १.पे. नाम. सुखसागरपास तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुखसागर, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखसागर गुणमणी; अंति: देखी सुधारस नयणे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमसकार, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रे उठीनइ प्रणमीइं; अंति: लक्ष्मी तस बहुमान, गाथा-२. ३. पे. नाम. पास तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वाहाला आवो; अंति: दरिसन होत निहाला, गाथा-५. ४. पे. नाम. शांति नमसकार, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर सोलमा; अंति: लक्ष्मी नमइ निशदीस, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिनाथ नमसकार, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिणेसर नित नमो; अंति: लक्ष्मी करइ नित सेव, गाथा-२. ४३६८३. (+) मेघपंडित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३३). मेघपंडित सज्झाय, मु. साधुरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रवचन जोता; अंति: सुविहित साधुरतन, गाथा-१०. ४३६८४. (#) बारव्रत उपर व हितसिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. बारव्रत उपर सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ___३५ १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि करो; अंति: रमणि जिम लीला वरो, गाथा-११. २.पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: जेणिं दिधुं तेणि, अंति: दीधुं लाभै भाईरे, गाथा-७. ४३६८६. चतुर्विंसतिजिन नस्मस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १५४४५-४७). __ चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: रूप सदा आनंद, चैत्यवंदन-२५, गाथा-७५. ४३६८७. (+#) आनंदलहरीनाम जिनपति स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पत्रांक लिखे हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२, १०४३१). आनंदलहरी स्तोत्र, म. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: चिदानंदं नत्वा विशद; अंति: परमं परमेश्वरस्य, श्लोक-१६. ४३६८८. (#) छ जीवनि पांच ढालु, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जोइता (गुरु मु. अमीचंद); गुपि.मु. अमीचंद (गुरु मु. माणेकचंद); मु. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२७४१२.५, १४४४३). ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदनें; अंति: हंसला जी सुगुण निधान, ढाल-६. ४३६८९. (#) नेमिनाथ धमालि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३६). नेमराजिमती धमाल, मु. गुणविनय, मा.गु., पद्य, आदि: उग्रसेन की कुमरी; अंति: दिनि दिनि संपद लील, गाथा-२१. ४३६९०. (#) नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्रावि. कुंअरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७-४५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमंहवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनरई माहरउ; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइ. ४३६९१. (+#) मौनएकादशीगुणणुंनी बार ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. नवलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १२४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२. ४३६९२. (#) सुधर्मास्वामी आदि गंहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, पठ. श्राव. फते रूपचंद सहा; अन्य. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी घोयली गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान सुर; अंति: घोयली गीत भणे री, गाथा-७. २. पे. नाम. षट्त्रिंशकाचतुष्कगर्भित गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. सोहव, मा.गु., पद्य, आदि: चेलणा ल्यावे घुयली; अंति: श्रीजिनशासन रीति, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचषट्विंशकागर्भित घुयली, पृ. २अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावे जिनशासन धणी जी, गाथा-९. ४. पे. नाम. धुअलीनी भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही रलीयामणी; अंति: वजडावो मंगल तूर, गाथा-५. ५.पे. नाम. घुयली गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करण गुण आकरो रे; अंति: कीजे कोडि यतन्न, गाथा-६. ४३६९३. (+#) नवगृह स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नवगृह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. विजापुर, पे.वि. श्रीचिंतामणी प्रसादात्. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. २.पे. नाम. धडाबंध कवित्त सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: वंसत्रणि वाजिव करि; अंति: इम समुच्चरिं धडा, पद-१. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्म १ खित्रि २; अंति: ए धडाबंध कवित्त. ३. पे. नाम. शनिपीडा निवारण श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३६९४. (+#) अष्टापदतीर्थ भव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६-४०).. अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अम्रत वसति; अंति: तीरथ नमो जिणाण, गाथा-६२. ४३६९५. (+#) सुपन चौद सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १६४३३). १. पे. नाम. सुपन चौद सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव तीर्थंकर केर; अंति: लावण्यसमेय भणे ए, गाथा-२०. २. पे. नाम. सनिसरनि कथा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिण मति दियो; अंति: लीलतसागर इम कहें, गाथा-२९. ३. पे. नाम. आदिजिन प्रभाति, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी प्रतीत होती है. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रलोके हरख हुवो; अंति: मगन भयो मेरो मननन, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन प्रभाति, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम; अंति: सुखसंपत्य पाइई, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४३६९७. (#) नववाडनी चोपड़, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. तेजबाई आर्या (गुरु सा. लीला आर्या); गुपि.सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकन पुष्पिका में 'आर्या रूपाई आर्या लीला आर्या तेजबाईनी प्रति छे' इस प्रकार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसर नमु; अंति: जिनवरजी इम बोलइरे, ढाल-९, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का उल्लेख नहीं है.) ४३६९८. (+#) अंगुल विचारसप्ततिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य., संशोधित-पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४५१). अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभसमगमणमुसभं जिणमणि; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेडं, गाथा-७९. अंगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ऋषभगामिनं अनिमिष; अंति: शक्यते प्ररूपयितुं. ४३६९९. (+#) ब्रह्मचरी व ब्रमृचरण कोल, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्रावि. देउबाई, प्रले. सा. सुखी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२,११४३९). १.पे. नाम. ब्रह्मचरी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में 'पुस्तिका पुण्यरत्नस्यमेव' इस प्रकार लिखा है. ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पय नमी; अंति: पसचंदि नमु सिया, गाथा-४०. २. पे. नाम. ब्रमृचरज कोल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्य सज्झाय, अप., पद्य, आदि: इक कोडि असी नर लाख; अंति: काल अंत तउ संचरइ, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३७००. (+#) बिजैकवरजीनी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११, १३x४६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीबीतराग जिणदेव; अंतिः रामपुरे गुण गाया गाथा- १६. ४३७०१. (+४) शेरावालीआ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२७X१०, १६५४). नंदी सूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: ना परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ४३७०२. (+#) पार्श्वनाथजिनसस्त छंद, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६११.५, १२४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीधलपती थलवेसे वसी अंतिः नमो नमो गोडीधवल, गाथा - ३७. ४३७०३ (०) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८५२ श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, भावनगर, प्रले. पं. विवेकसागर (सागरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, ११४३६). शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराय अलग, अंतिः रंगसुं पिंडत रूपनो, गाथा-७. ४३७०४, (+०) नमस्कार महामंत्र आदि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखकने पत्रांक २ की जगह पत्रांक ३ और पत्रांक ३ की जगह पत्रांक २ लिखा हैं, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, , स्याही फैल गयी है, वे. (२६.५४११.५ १३४४६). " , י २६x८५-८७). १. पे. नाम नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, पृ. १अ २आ, संपूर्ण वि. १८२२ भाद्रपद शुक्ल १२, मंगलवार नमस्कार महामंत्र - कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि एह श्रीनउकार भावसहित अंतिः माणसी दुखना अंत करसी. २. पे नाम. सिद्धसेनसूरि आदि कथा संग्रह, पृ. ३अ संपूर्ण. कथा संग्रह **, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) (वि. सिद्धसेन दिवाकरसूरि, हरिभद्रसूरि व पादलिप्ताचार्य आदि आचार्यों की कथाएँ हैं.) ३. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै बीजो कालिका; अंति: त्रेपन्ने वरसे हुआ. ४३७०५ (१) नेमराजिमती आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की ,, १. पे नाम, नेमराजिमती पदम्, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, रा., पद्य, आदि: नेमजि थे काइ हठ, अंतिः निपटइ लागेगो दोस, गाथा ५. ३७ २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., पद्य, आदि माने रुडो लागे छै; अंतिः जिनपद चाखो लेस, गाथा-४, ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुण नर श्रीजिनगुण, अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ४. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि जिनजी आद पुरष अंति: आपो सुख अविकार हो, गाथा - ११, (वि. प्रतिलेखकने ४ तक ही गाथांक लिखे हैं.) ४३७०६, (+) लघुद्रव्य संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, ४४४१). Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुद्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: छ दव्व पंच अत्थी; अंति: गणिणा सिरिनेमिचंदेण, गाथा-२५. लघुद्रव्य संग्रह-टबार्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा नम्रसुरेंद्र, (२)श्रीजिनेश्वरइंछ; अंति: (१)नामा ग्रंथ कर्यो, (२)सज्जनैः सकृपालुभिः. ४३७०७. (#) गुरु भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४५०). १. पे. नाम. गुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अक्षयचंद्रसूरि भास, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: बे करजोडी हो सरसति; अंति: गच्छपति वांदवा, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अक्षयचंद्रसूरि भास, मु. अमरचारित्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: सह सलुणा हो श्रीगुरु; अंति: चारित्रअमर दै आसीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. पासचंद्रसूरिश्वर भास, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वचंद्रसूरि भास, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छपति वंदो गुणरतना; अंति: गुण नित नित गाय रे, गाथा-७. ४३७०८. (#) चउत्रीस अतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १३४४७). ३४ अतिशय स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउत्रीसई अतिशय; अंति: पासचंदिई संथुण्या, गाथा-५. ४३७०९. (#) पारणो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, १७४४०). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरतजी अतबली; अंति: जगतगरु तीसलानदण बीर, गाथा-२६. ४३७१०. (+#) दानशीलतपभावविषए चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, ले.स्थल. रापुर, पठ. श्रावि. कनकालालाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ११४३२-३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ___गाथा-१०९, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक नहीं है.) ४३७११. होलिका व्याख्यान कथा, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'वृहतखरतरगच्छे' इस प्रकार लिखा है., प्र.ले.श्लो. (९३१) तेलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२६४१०.५, १४४४३). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. ४३७१२. (+#) नेमनाथराजेमती बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. उत्तम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १२४४३). नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनमै उग्रशैन की; अंति: उत्तर लालविनोदीइ गाऐ, गाथा-२६. ४३७१३. (+#) नेमजीरो चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, २१४५१). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेम; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ४३७१४. पोसहनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १०x४५). पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु उपशम रसि आणीइ; अंति: खपइ कर्मनी कोडिरे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३७१५. (#) श्रावक विधि रास व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ९२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४२९-३७). १.पे. नाम. श्रावक विधि रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य. श्रावकविधि रास, मु. पद्मानंदसूरि शिष्य, अप., पद्य, वि. १३७१, आदि: पाय पउम पणमेवि चउवीस; अंति: तिहुयणे __एह जिणसासणं, गाथा-४९. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४३७१६. (+#) औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, २३४६८). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीया; अंति: पुन्य तणे परमाण रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इक घडी मन समरस आणी; अंति: बोलइ साधु मुनिंदरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: कायाने केरे रे कांइ; अंति: सीष कहे मुनि राम, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: ऋद्धि कोटानकोटी, गाथा-३. ५. पे. नाम. सेठवाणोतर सीख, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सेठ वाणोतर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ कहे सांभलि; अंति: जीवतो आस विलुधोरे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, आदि: विकट पंथ हु; अंति: जीवदया मारग होय, गाथा-८. ७. पे. नाम. जुठातपसी भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चारण, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीन; अंति: गोतम गणधर जाण, गाथा-१८. ८.पे. नाम. योग पावडी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गरीबगिरि, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध लोभ दुरि परहर; अंति: सोइ परमपद पावि, गाथा-६९. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मागु., पद्य, आदि: जीव चौद भुवनमाहि; अंति: अमरापूरी पामीए रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारमु; अंति: सहिजसुंदर उपदेस रे, गाथा-८. ११. पे. नाम. वीतराग स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. १२. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. प्रेम मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर वंदीनइं; अंति: गातारे गातां जयकार, गाथा-२१. ४३७१७. (#) पार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प्र. ४, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य., पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,७-१२४३८-४२). पार्श्वजिन स्तोत्र, वा. सकलचंद्र, सं., पद्य, आदि: सिद्ध हृदयनिरुद्ध; अंति: शांतिकरं सर्वदा लोके, श्लोक-३१. पार्श्वजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., पद्य, आदि: वामेयसुरवृक्षं; अंति: क्षेमकरं सर्वदा लोके, श्लोक-३०. ४३७१८. महावीरजिन पूहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, ९४३७). महावीरजिन गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो भोग करम; अंति: पालि कारज सिधोरे, गाथा-७, ग्रं. १५. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३७१९. (#) निरमोहीराजा की ढाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ३६४१९). १.पे. नाम. निर्मोही सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निर्मोहीराजा सज्झाय, खूबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कहुं निरमोही की कथा; अंति: जोड मेर गुरु ग्यानी, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जो सतदेव धर्म नही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा ४३७२०. (+#) प्रश्नोत्तराणि, संपूर्ण, वि. १६७६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. द्वीपबंदर, अन्य. आ. विजयदेवसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में भट्टारक 'श्रीविजदेवसूरीश्वरप्रसादिकृतप्रश्नोत्तराणि' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १७४४५). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३७२१. (+#) लघुशांति व सित्तरसय स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ६४३५). १.पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ १६मां; अंति: ए जिनशासान धर्म. २. पे. नाम. सित्तरसय स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निभतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण जगत्रनी प्रभु; अंति: संदेह रहित जाणिवौ. ४३७२२. (+#) सेव॒जयऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. सौभाग्यविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. हर्षविजय कवि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमी; अंति: सेवंता सुख थाय, गाथा-२५. ४३७२३. (#) पार्श्वनाथजीनो कलश व गायत्री मूलमंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. अमृतविजय (सागरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनो कलश, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ अनाथ; अंति: प्रणमे बेहु करजोड, ढाल-६. २. पे. नाम. गायत्री मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्. ४३७२४. (+#) ऋषभदेव आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १६४५२). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो दरस भलें पायो; अंति: इतन में नवनीध पायो, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-चिंतामणि, मु. भाणचंद, पुहि., पद्य, आदि: चातुरी कहा बोलुं; अंति: शिवसुख की हें निशानी, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, प. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मेरे प्रभुजी की भगत; अंति: शिरो धरो शिरमौर, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ आध्यात्मिक फाग, मु. भाणचंद, पुहि., पद्य, आदि: आपो सुखर जिनभक्ति; अंति: मिले शिवसुंदरी गजगेल, गाथा-५. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ आध्यात्मिक होरी, मु. भाणचंद, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानी जिउ अनुभौ; अंति: पावत शिवकमला गोरी, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन होरी, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: छार डार संसार अनादि; अंति: सहज समाधि थाय, गाथा-४. ४३७२६. (#) सातवारनी भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३०). गुरुगुण भास-७ वारगर्भित, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा गुरुजी रे मोहन; अंति: विजयना वल्लभ मलिआ रे, गाथा-१३. ४३७२७. (+) वैराग्य स्वाध्याय व मोहराजानी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४३८). १.पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने यह कृति क्रमशः पत्र पर न लिखते हुए प्रारंभ की गाथा ७ तक पत्रांक १अपर और शेष गाथा १२ पर्यंत २अपर लिखकर पूर्ण की है. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: तुने संसारसुख किम; अंति: घनघातिया चार निवारजो, गाथा-१२. २.पे. नाम. मोहराजानी सजाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने यह कृति क्रमशः पत्र पर न लिखते हुए प्रारंभ की गाथा १० अपूर्ण तक पत्रांक १आ पर और शेष गाथा २आ पर लिखकर पूर्ण की है. मोहराजा सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अरिहंत राजा मोहराय; अंति: जीन सेवा तडिया बे, गाथा-२२. ४३७२८. (+) उपधाननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९७, माघ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्थंभतीर्थनगर, प्रले. ग. हस्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). उपधान सज्झाय, उपा. जयसौभाग्य गणि, मा.गु., पद्य, आदि: उपधान वहो आदर करी; अंति: नितु गुण गाय किं, गाथा-२१. ४३७२९. (#) असिझाइ व सुतक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. जेशंकर दयाल पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, १०४३४). १.पे. नाम. असिझाइ विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काति मगसिर; अंति: नाम कह्यु इति परे, गाथा-१५. २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. कृतिपूर्णता पश्चात् मारुगुर्जर भाषा में किंचित् सूतक विचार ३अपर लिखा है. सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: क्षीर प्रवर्तकं, श्लोक-९. ४३७३१. (+) ५ तीर्थ नमस्कार व वृद्धगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १४४३५). १.पे. नाम. पंचतीर्थ नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल गिरनारगिरि; अंति: पुण्यमहोदय० कल्याण, गाथा-५. २.पे. नाम. वृद्धगुण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वृद्धगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता प्रणमु; अंति: ते पाम लील, गाथा-१८. ४३७३२. (+#) सहश्रनाम अलखमूर्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २.प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४३७). अर्हत्सहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमो त्रिलोकनाथाय; अंति: उचितो नात्र संशयः, श्लोक-४१. ४३७३३. (#) महावीरजिन गहुली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ९४३०). १.पे. नाम. महावीरजिन गहुली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी चंपानयरी; अंति: संका वारिई रे लोल, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. मणिउद्योत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी गुणसिल वन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ४३७३४. महावीरजिन व पर्युणा गुंहली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, अन्य. श्रावि. बबुबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी विद्वानने पेन्सिल से 'बेन बबु' इस प्रकार लिखा है., दे., (२६४१२, ९४२८-३०). १.पे. नाम. महावीरजिन गुंहलि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पालिने कारज सिधोरे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ प्रारंभिक पाठ तक नहीं है.) २. पे. नाम. पर्युणा गुंहली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माणेकविजय जयकारी रे, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अंतिम सज्झाय है.) ४३७३५. (#) नेमजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३३). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: रांणी राजुल करजोडी; अंति: गुण गाया सरीकार रे, गाथा-१५. ४३७३६. (#) कुंडलिया व कवित बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, २०४५०). १.पे. नाम. कुंडलीया बावन्नी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. ग. खिमाविजय. कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: ॐ नमो कहे आदिथी; अंति: आद दे बावन अख्खर, ___ गाथा-५७. २. पे. नाम. कवित बावनि, पृ. ३आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: ॐ अक्षर सार सयल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम कवित्त अपूर्ण मात्र लिखा है.) । ४३७३७. सीद्धाचलजीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४११, १०४३३). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दइ तस मानने अर्थ समा; अंति: विमल गुण गावेरे, गाथा-८. ४३७३८. (+#) पार्श्वनाथ छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४२). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-जीरावला, मु. सुमतिसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस इसी; अंति: विश्वनाथ रक्षा करइ, गाथा-१५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३७३९. (+#) सर्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२X४३). तीर्थमाला स्तव, सं., पद्य, आदि: पंचानुत्तरशरणाग्रैवे; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२१. ४३७४०. (#) संभवजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). संभवजिन स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: कामं नमोस्तु सततं; अंति: संपादन कामधेनवः, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३ ४३७४१. (+) महावीरजिन आरती स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. गुलाबसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै. (२६.५X११.५, ११४३२). महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीस जिनेसर, अंति: भव जिन घट परवाना, गाथा - ११. ४३७४२. प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२६.५x१२, १०X३१). प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणमुं श्रीगुरूराज, अंतिः प्रभु सेवानी कोडि, गाथा- १४. ४३७४३. (+) देवलोकनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ ११.५, ९X३०). सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः सुधरमां देवलोकमा अंतिः तां वरतो जय जयकार रे, गाथा - ११. ४३७४४. (#) पार्श्वजिन चोढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, १६४३८). पार्श्वजिन चौडालियो, मु. दोलत, पुहिं, पद्य, आदि: पारसनाथ सहाई हमारे अंतिः दास दोलत आपका, ढाल-४, ४३७४५. (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४११.५, १०x३५). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वारे; अंति: मुख बोलो जयकार, गाथा-३. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- वसंत पद, पृ. १अ, संपूर्ण. 1 शत्रुंजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु. पच, आदि: चालो सखी शेत्रुजा, अंतिः मोहन० जनम तारो दास गाथा ५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: नवल वसंत नवल मली, अंति: जन कहे वंदना मोरी, गाथा-५. ४३७४६. (+) आठमदनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से 'खीमकोरसरी' लिखा है., संशोधित., दे., ( २६ ११.५, ११x२७). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारिइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११, ग्रं. १६. ४३७४७. धन्नाकाकंदीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खेमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७४१२, १२४३६). अन्ना अणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर बत्तिसी कामनि रे, अंतिः धन्ना वरते जय जयकार, गाथा - १५, ग्रं. २७. = ४३७४८. (+०) साधु अतीचारा व प्रत्थान स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १७१०, १, श्रावण, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. २, प्र. वि. मध्य में स्वस्ति का चिह्न है एवं पत्र घिसा हुआ होने से प्रतिलेखन पुष्पिका स्पष्ट पढी नहीं जा रही है. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १०X३६). १. पे. नाम. साधुअतीचारा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., ले. स्थल, सोजित्रा, प्रले. मु. संघहर्ष, पठ. मु. रत्नसिंह (गुरु मु. धर्मसिंह, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. साधुपाक्षिक अतिचार थे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: (-) अंतिः विषइड अनेरु जि को ०. २. पे. नाम. प्रत्यान स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी दसविह पचखाण; अंति: पामु निश्चिं निर्वाण, गाथा-८. ४३७४९. महावीरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६x१२, १०x३९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हमणे आवे छे; अंति: सिवसुंदरी वरीए रे, गाथा-९, ग्रं. १०. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं, अंति: जयतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चांपो मोर्यों हे आंगण, अंति: लहिए सुख अपार, गाथा- ६. ४३७५०. (+#) नेम स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १८४५०). १. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि उग्रशेन नृपनी तनवा, अंति: साचा नेह निसांणा रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. काय जकड़ी स्वाध्याय, पृ. १अ. संपूर्ण. औपदेशिक जकडी - जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामनि बेलाल; अंति: अभेदे तुझ मिलुं, गाथा ५. ३. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लक्ष्मीदास, मा.गु., पद्य, आदि: वाह्या रे एणि जोवनीय; अंति: भवसागर पार उतारो, गाथा - ६. ४. पे नाम. चंद्रराजा रास-उल्लास ४ ढाल १३, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. पं. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३७५२. (+) पार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. राजेंद्रविजय (गुरु पं. मोहनविजय गणि): गुपि. पं. मोहनविजय गणि (गुरु पं. जसविजय गणि) पं. जसविजय गणि पठ पं. रत्नविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय गणि); गुपि. पं. माणिक्यविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६x११.५, १२X३६-४४). पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयदेव जयजय करण, गाथा-५१. ४३७५३. नारकीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अकबराबाद, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, वे. (२७४११. १५४३६). नारकी सज्झाय, मु. नंद, मा.गु, पद्य, आदि: मोहमिध्यातनि निंदमा; अंतिः तो पामे भवपार, गाथा- २३. ४३७५४. (१०) ९ वाड सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १७x४१). गाथा - ११. ४. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १. पे. नाम. पार्वजिन स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. प्रेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग, अंति: त्रिभुवन तिलो, गाथा - ५. २. पे. नाम. पोसण छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरी कवि; अंति: ते नवनीध लहे, गाथा - १४. .पे. नाम. संखेश्वरपासंजीनो छांद, पृ. २अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्र उठी पणमें पास, अंतिः सीस गुण गाया, For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुपि. अक्षरा विजयास हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ उपा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा १ अपूर्ण तक लिखा है.) ४३७५५. (+#) सप्तभंगी स्वरूप सह विवरण व लब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७११, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. दानचंद्र गणि (गुरु पं. माणिक्यचंद्र गणि, तपगच्छ); गुपि.पं. माणिक्यचंद्र गणि (गुरु आ. विजयसिंहसूरि *, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २१४६८). १.पे. नाम. सप्तभंगी स्वरूपं, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य. ग. लालकुशल (गुरु आ. विजयसिंहसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखकन पुष्पिका में 'पं दानचंद्र गणिविवृतं व पं. श्रीलालकुशलगणिभिः शोधितमिदं' इस प्रकार लिखा है. सप्तभंगी स्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिया अत्थि १ सिया; अंति: सव्वभावे सुसमया, गाथा-३. सप्तभंगी स्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदि: सकल दार्थ आप आपणइ; अंति: पदार्थनइ विषई संमत. २.पे. नाम. लब्धि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ.पं. हीरचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. २८ लब्धि स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जीवस्स तुह पसाया; अंति: होइ जहा परमपयलद्धी, गाथा-१८. ४३७५६. (#) योगी पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, ?, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, ले.स्थल. गुढा, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ३५४२३). १.पे. नाम. योगी पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जालिम यौगीडासु लागौ; अंति: तन मन करु खुरवाण, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: मनमौहन मुरत पाश की; अंति: संपत दीजौ उलाश की, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दीलदा मेरम ज्यानी; अंति: नाथ नीरंजन न्यारा हो, गाथा-४. ४.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कीस दुतीनै भौलाया रे; अंति: जगत जाल सा देखाया, गाथा-६. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: जीन चरणां अटकै; अंति: रस पीजे गटकै, गाथा-३. ६.पे. नाम. श्रेयांसजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: महेर करो महाराज हम; अंति: लीजै पाश बुलाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: नीरंजन आगल नृत्य करे; अंति: गुण खोलत कइ कइ, गाथा-४. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै सेहर वीश; अंति: मान गुमान हे, गाथा-५. ९.पे. नाम. महालक्ष्मी मंत्र व वीसो जंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत आम्नाय भी दिया गया है.) ४३७५७. (+#) संजती चोढालियो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २५-२९४७०-८७). १.पे. नाम. संजती चोढालीयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संजतीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति सामणी; अंति: स्यामी जणनी सेव, ढाल-४. २. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पाप अठारै जिन कह्या; अंति: विदेह मैं जासी मोखो, ढाल-४. ३. पे. नाम. साधु वंदना, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधुवंदना, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं शिवसुख; अंति: सव कुं सीस निवाय, गाथा-३६. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. समक्तिवर्णन रास. पू. २आ-४अ संपूर्ण वि. १८३६ श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, बुधवार, सम्यक्त्ववर्णन रास, ग. केशव, मा.गु, पद्य वि. १७९३, आदि स्वस्तिश्री सुखकर, अंतिः रास रच्यो सुप्रमाण, ढाल- १४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. धानत, पुहिं, पद्य, आदि: नरिंद्र फणिन्द्र सुरि, अंति: कीजे आप समान, गाथा- १०. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदिः उग्यो पृथवी उपरै; अंति: सुरमण होय सुजाण, गाथा - १७. ७. पे. नाम. सगुणा निगुणा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ आंवो मौरीयो; अंति: मति को करो वैरंग, गाथा - ३०. ८. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि इक दिन ऋति वर्षा, अंति: (अपठनीय), गाथा-१५, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य पढ़ा नहीं जा रहा है.) ४३७५८. (४) महावीरजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. कुल पे ३, ले. स्थल, हरजी, प्रले. मु. तोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११, १०x४२). १. पे. नाम. वीरना पंचकल्याणक वधावा, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण, अंतिः तीरथफल माहाराज वाला, ढाल ५. २. पे. नाम. वासुपूज्य बारमातिर्थकररो स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासपुज जिन बार अंतिः जीत वदे नितमेव रे, गाधा-५. ३. पे नाम, पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. ४आ, संपूर्ण, गयी है, जैसे. (२६१०.५. १५४४०). " १. पे. नाम. शक्रस्तवाम्नाय प्र. १अ १आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वाणारसी राया पास; अंति: दानविजे तुम बंदा है, गाथा - ५. ४३७५९. (+४) शक्रस्तवाम्नाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शक्रस्तव आम्नाय, मा.गु. सं., प+ग. आदिः शक्रस्तव संप्रदाया अंति: बलादि सर्व भवरक्षा. " २. पे. नाम. नमस्कार ५ पदाम्नाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र आम्नाय संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो अरिहंताणं, अति: लक्ष्मीवृद्धिकरणं. ३. पे नाम, मंत्र मातृका, पृ. २अ २आ, संपूर्ण सं. गद्य, आदिः ॐ प्रणवो ध्रुवब्रह्म, अंतिः क्ष्ल्यूँ पिंड, मंत्र- ४३, (वि. अंत में अन्य किंचित् मंत्र बीज दिये गये हैं.) " ४. पे. नाम. आयुनिर्णय श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष मा.गु. सं. हिं. प+ग, आदि: (-) अंति: (-). " ५. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ४३७६० (४) चतुर्दशवीर आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १ कुल पे ३ पठ मु. भुवानीसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित होने से अनुपलब्ध पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु अनुमानित पत्रांक लिखा है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११.५, १८x४३). ', १. पे नाम, चतुर्दशवीर स्तुति, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है, पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू. वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम, पंचमीविषय श्रीनेमिजिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, ३. पे नाम. विमलजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीबिमल जिनेसर, अंति: तुं माता सिरदार, गाथा-४. ४३७६१. (+०) आनंदघन चतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४११. १८४४५-५४). "" " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक-४. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेसर प्रीतम, अंति: (-), (पू.वि. स्तवन- ९ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ४३७६२, (4) नोकार सह अर्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७११.५, २३४५४). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण नमस्कार महामंत्र - अर्थ, मा.गु, गद्य, आदिः नमो क० नमस्कार हो, अंतिः तेहने तिखोतो आ०, संपूर्ण. ४३७६३. (#) पंचपरमेष्टि स्तवन व जैन गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे., (२५X११, १०X३६). १. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा. पद्य, आदि भत्तिभर अमरपणयं अंतिः पुत्वसत्येहिं गाथा-३४. " २. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. जैन गाथा" प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. " ४३७६४. (+#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६x१०.५, १०x३३). ४७ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र वर सेवा; अंतिः निज आतम हित साधे, गाथा १२. ४३७६५. जिनमंदिरदर्शनफल नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. वे. (२७४१२, ११४३१). जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुराज; अंति: प्रभु सेवानो कोड, गाथा - १४. ४३७६६, (+०) रावणनो चोढाल्यो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले स्थल, रूपनगर, प्रले गुला, पठ. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १७X२८-३५). रावण चौडालियो, मा.गु., पद्य, आदि अतवरो छ मानवि क्रोध; अंतिः बोल मदोदरी बोल, ढाल ४. ४३७६७. (+#) पांचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. तलजाराम घेमरचंद बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२६.५४११.५, ११४३१-३४). , ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरु पाय; अंति: ग भाव प्रसंसिओ, ढाल ३. ४३७६८. नेमिनाथ स्तव आदि संग्रह सह अवचूरि व टीका, अपूर्ण, वि. १४८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य., जैदे., ( २६.५X११, २१x६५). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तव, पृ. २७अ, संपूर्ण. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानूनमानेन नोन्न; अंति: परिरंभ योग्याः, श्लोक-९. २. पे. नाम. नेमिजिनअिक्षर स्तुति की अवचूरि. पू. २७अ २७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र - व्याख्या, सं., गद्य, आदिः आनुमः स्तुमः के, अंति: उत्कीर्तनमित्यर्थः. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. २७आ, संपूर्ण लोक-१. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपद्म, अंतिः दाता ददतां शिवं वः, साधारणजिन स्तुति - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थस्य राजा तीर्थ, अंति: दृष्टित्वं सूचितं. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह टीका, पृ. २७आ, संपूर्ण Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: घात्या घेवर लापसी; अंति: श्लोके रसोयि प्रभो, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: अयीति को० हे प्रभो; अंति: जानतीति वृत्तार्थः. ४३७६९. (+#) पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४०). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम राइ पडिकमणु; अंति: पछे प्रतीकृमण करे. ४३७७१. (+#) सिद्धपंचाशिका प्रकर्ण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जाहनाबाद, प्रले. मु. जेठीयो (अज्ञा. मु. भवानीदास); गुपि.मु. भवानीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ५४५२). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सि० प्रसिध सि० सिधार; अंति: देविंद्रसूरी आचार्यइ. ४३७७२. (+) शांतजिन तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ११४३०). शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१०. ४३७७३. (#) श्रावकगुण सझाअव पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७७३, माघ शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. सभाचंद; पठ. श्रावि. वल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४८). १. पे. नाम. श्रावकगुण सझाअ, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कइयई मिलसे रे; अंति: सफल जनम तिण लाधो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अजब बनी रे श्रीपासजी; अंति: इम कहे धरी रे उल्हास, गाथा-५. ४३७७४. (#) चौदपूर्वना दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३३). १४ पूर्व दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: उतपात प्रवाद पूरव; अंति: ते नर पामे सुख, गाथा-१४. ४३७७५. साधु-साध्वी आदि विशेषण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, २१४५७). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. श्रीपूज्य, साधु, साध्वी व जिनचंद्रसूरि के विशेषण दिये गये हैं.) ४३७७६. कमलावतीनु रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, ११४३०-३३). कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणेसर दिणे; अंति: मंदिरि माहि गया, ढाल-४, गाथा-३८. ४३७७७. (+#) लघुआत्मानुशासन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६). १.पे. नाम. लघुआत्मानुशासन, पृ. १अ, संपूर्ण. आत्मानुशासन-लघु, सं., पद्य, आदि: नम्रामराधिपतिमौलि; अंति: येन निर्वृत्तिः, श्लोक-१८. २. पे. नाम. आराधना कुलं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जन्मजरामरणजले नाणावि; अंति: सुक्खंजेण पाविहसि, श्लोक-२२. ३. पे. नाम. सुकृत अनुमोदना गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४३७७८. (#) वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, १६-१८४६२-६५). आत: तेनर पाहा फैल गयी। सपूर्ण, वि. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४९ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम, प्रकाश-२०. ४३७८०. (+) चोवीसजनरा चउवीस सवेइया आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले.ग.खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि.पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १४४४५). १. पे. नाम. चोवीसजीनरा चउवीस सवेइया, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: सेवी माता सरसती वचन; अंति: सुख दीलास पद पाया, गाथा-२५. २.पे. नाम. भक्तामर काव्य, पृ. ३आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गोप्य काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ आदिनाथमरूहंतरिहंत; अंति: सुदयामृतधर्मपालान्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सिद्धभगवान-मूलमंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४३७८१. (#) गौतमस्वामी रास व सिधासल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु.खतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अति: गौतम ऋषि आपो सुखवास, गाथा-६६. २. पे. नाम. सिधासल स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीया; अंति: प्रेम घणो मन आणी रे, गाथा-९. ४३७८२. (+#) करकंडुमुनि आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, पठ. श्राव. भगवानदास रामानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १७४४१). १. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली ; अंति: पातग जाइरे, गाथा-५. २. पे. नाम. नमीराजा सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जि हो मिथुलानगरीणो; अंति: पामीजे भवना पार, गाथा-६. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बुझ रे तु बुझ; अंति: पामीय भवपार रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. साधुस्वरूप सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: मोह महारीप जीपक; अंति: भुदर मांग जी एह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. संतनाथजी के स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंत नाम संत करो; अंति: रिध सीध घर आइ मिले, गाथा-१३. ६. पे. नाम. दशवैकालिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन शुक्ल, ८, बुधवार. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन की सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: धमो मंगल मेहमा; अंति: होवज जयकार, गाथा-६. ७. पे. नाम. स्वरस्वती स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधि बिमल करणी; अंति: नित नमिए जगपति, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३७८५. (#) सिद्धचक्र स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण लगइ प्रभुजी आवी; अंति: सारिक दुख वाम्या रे, गाथा-७. २. पे. नाम. कुंथुनाथजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिनेसर जाणज्यो; अंति: मानविजय उवज्झाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधो साधो; अंति: पद्म वंछित निज आज, गाथा-१. ४३७८६. (+) एकीभाव स्तवन सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४३६). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. एकीभाव स्तोत्र-अवचूरि, सं., पद्य, आदि: एकत्वमापन्न इव सह; अंति: भवतीति तात्पर्यं. ४३७८७. (+#) भरतबाहुबलीराज सज्झाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २२४४४). १. पे. नाम. भरतबाहुबलिराज स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: इम नविकीजै हो; अंति: णमइरे लबधि लिली लली. गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. __काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४३७८८. (#) नेमिजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ६x२६). नेमिजिन गहुँली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी दीपती; अंति: जय करज्यो नरनारी रे, गाथा-६. ४३७८९. (+#) बीज आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). १. पे. नाम. बीजनी स्थुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ईग्यारसनी स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूअडी; अंति: संघ तणा निसदिस, गाथा-४. ४. पे. नाम. चतुर्दसी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. ओली स्तुती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पेले पद जपई अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ६. पे. नाम. सीधाचल स्तुती, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः विमलाचल तीरथनो राया, अंतिः लक्षीवीजय सूख पाया, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेम सतुती, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि श्रावण सुद दीन, अंतिः सफल थया अवतार तो, गाथा-४. . ४३७९०. (+०) सहस्रनाम व पद्मावतीदेवी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ११४३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगन्नाथ जगदीश जगबंधु; अंति: मांहि निज दृष्ट देवी, गाथा-२१. २. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय जिनशासन सामिनी अंति: (-), (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ४३७९१. (+०) पाक्षि नमस्कार व संमूर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५४१२, १०२३). " १. पे. नाम. पाक्षि नमस्कार, पृ. १आ - ३आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः भावतोहं नमामि श्लोक-२९. २. पे नाम. संमूर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, पृ. ३आ, संपूर्ण. संमूर्च्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कहिणं भंते समुच्छिम, अंति: चेव कालं करतित्ति. ४३७९२ (4) बीजनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. सिणगारश्री पठ श्रावि प्रधानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१०.५, ९X२७). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने रे; अंति: नित विवन विनोद रे, गाथा-८. ४३७९३ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( १ ) =२ प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात् संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १४४४५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः दोषात् विमुच्यते श्लोक ७१, संपूर्ण. ४३७९५. (+) पच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है, संशोधित, जैदे., (२६X११, १३X३९). ४३७९६. आखाढभूत सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६X१२, १४X३२). " प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: धुर समरुं सामण सरसती; अंति: सयल संपत्ति करो, गाथा - १७. ५१ יי For Private and Personal Use Only , आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरन, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि श्रीश्रुतदेवी हीयें; अंतिः भावरतन सुजगीसो रे, ढाल-५. ४३७९७ (+) धूलिभाइनी स्वाध्याय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. मु. जगराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १५X३८)१. पे. नाम. थूलिभद्रनी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु, पद्य, आदि भले उग्यो रे माहरे, अति वै महानंदपद तेह पावे, गाथा ९. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टीनी आरती, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण ५ परमेष्ठि आरती, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पैहली रे आरती अरिहंत; अंति: महानंद पद पावै, गाथा-६. ३. पे. नाम. असज्झाईदोषनिवारण सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवि समरी मात; अंति: शिवलच्छी तस वरै, गाथा-१६. ४३७९८. (+#) जीवदया छंद व समस्या दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १२४४४). १.पे. नाम. जीवदया छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सरदारपुर, प्रले. रामचंद्र; पठ. मु. नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाये नमी; अंति: सो वीतराग वाणी लहै, गाथा-११. २.पे. नाम. समस्या दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३७९९. (+#) गौतमाष्टक व अष्टप्रकारीपूजावीधि छंद, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मणसाग, प्रले. मु. भगवानसागर; लिख. मु. गणपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हासिए में पेन्सिल से १ से १० तक क्रमांक लिखे हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ११४३३). १.पे. नाम. गौत्तमा अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर विरनोरे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजावीधि छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रकारीपूजाविधि स्तवन-सुविधिजिन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमल कहे मन उलास, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम गाथा लिखी है.) ४३८००. (#) भगवतीसूत्र लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु अनुमानित पत्रांक दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५८-६०). भगवतीसूत्र-लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३८०१. अष्टमी थोय, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ९४३१). __ अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ४३८०२. (+) प्रश्नोत्तर रत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लिसाड, प्रले. मु. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, ५४२९). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: विमलेन० किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी नमस्कार करीनइ; अंति: शोभा समस्त पमाडइज. ४३८०३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. पं.खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ११४३५). १.पे. नाम. आत्मभाव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खेमाविजय० आगमरीत रे, गाथा-६. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबारे संभव जिनरी; अंति: रिद्धीकीरत० मोहे रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. संखेश्वरपारस स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा श्री शंखेसरपा; अंति: दीपविजय० दरसण दीदार, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जसवंत-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू सुमतीजिनेसर सा; अंति: सीसने अविचल धाम, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमे तो क्या; अंति: उदयरतन कहि एह वडाई, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३८०४. (+#) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अणंतगुण; अंति: तेहनै नमे मुनिमाल, गाथा-३१. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उग्यो हो; अंति: म्हारी आवागमण निवार, गाथा-५. ३.पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: उग्रसैण की लली; अंति: महल मै मिलीया जाय, गाथा-९. ४३८०५. (+#) मिच्छामिदुक्कडं सज्झाय व ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५७, माघ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जालंधरगढ, प्रले. मु. जैतकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. मिच्छामिदुक्कडं सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु.जेता ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छामि दुक्कडं इण; अंति: इम कहै सुखकार जी, गाथा-१३. २.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (१)कुरु कुरु स्वाहा, (२)शांतिविधि श्रुतं, श्लोक-११. ४३८०६. समोसरण विचार भगवतीसूत्रे-शतक ३०, संपूर्ण, वि. १९०२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. हाथरस, प्रले. सा. आरज्या; पठ. श्रावि. जसोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १९४३९). समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवीए लेस पखीए दीठी; अंति: द्वारनी परई जाणवा. ४३८०७. (2) इलाचीपुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.. (२६४१२, १३४३०). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुर जाणीई; अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा-९. ४३८०८. नेमजीरो चोमासौ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, ९४३७). नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडी नेमजी; अंति: इम जपेसीस जिनेंद्र, गाथा-८. ४३८०९. (#) चौवीसजिन सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १०४३२). २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: सेवी माता सरसती वचन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संभवजिन सवैया तक ही लिखा है.) ४३८१२. (#) सूर्यदेवना श्लोको, संपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. पं. कपूरविजय (गुरु ग. अमरविजय); पठ. पं. खुसालविजय (गुरु पं. कपूरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३६). सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंशारदा गुणपती; अंति: ऋषभ० होज्यो दोलतदाया, गाथा-२७. ४३८१३. (+#) वीरजिन गहुली व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३५). १.पे. नाम. वीरजिन गहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपगारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगसुरे, गाथा-८. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत; अंति: कुर्वंतु नो मंगला, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनां; अंति: कुर्वंतु नो मंगलां, श्लोक-१. ४३८१५. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४४२). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: मयतामिह नम्रताम, श्लोक-२९. ४३८१६. (+) षद्रव्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४३०). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मद्रव्य शुद्ध लोक; अंति: उत्पति विनाशरुप छे. ४३८१७. चैत्यवंदन वीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ३४४२४). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनवरा विचरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छठे भगवान प्रियंग प्रभु के चैत्यवंदन तक लिखा है.) ४३८१८. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०, १०-११४३६-४०). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो जी लीजीयइं; अंति: किं रास भणीस नवकारनो, गाथा-२१. ४३८१९. (4) गोडीपार्श्वजिनवृद्ध स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. श्री महावीरजी प्रसादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३३-३६). __ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: जीन नाम अभीराम मतै, ढाल-५, गाथा-५५. ४३८२०. (#) खंडाजोयन दसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २०४४३). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति: द्वीपमाहि ८० दहइ छइ. ४३८२१. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जलगाम, दे., (२६४११, १३४३६-४१). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षाथी पहलइ दिवसई; अंति: प्रथम विहार करावीजै. ४३८२२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२६.५४१०.५, २५४३८). १.पे. नाम. सुगुरुपच्चीसी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगर पीछाणो इण आचारे; अंति: जिनहर्ष० उछरंग जी, गाथा-२५. २. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनी; अंति: रामविजय० अविचल ठामो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शीलनववाड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पंडकतण जी; अंति: रे विजयदेवसूर के, गाथा-१४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: कर अरिहंतानी चाकरी; अंति: जिनवालभ० पाउरे जीव. गाथा-५. ५. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वमहिमा पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इम समक्ति धर घोडिला; अंति: जिनचंद जाण रे, गाथा-६. ६.पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामें एलापुत्र रे; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. ७. पे. नाम. कुव्यसन त्याग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कुव्यसनत्याग सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: छांड रे छाडि कुविष्; अंति: थकी द्वै तुम्हारी, गाथा-८. ८.पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: यतु समझ पीव चपल मति; अंति: सुख राससिंथो वखाणे, गाथा-१२. ४३८२३. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १९४३०). For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मरुदेवीमाता सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: दीखीयारा दिनसु थे; अंति: रायचंदजी० ढाल रसाल, गाथा-१४. ४३८२४. (+) परमानंदपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १२४३४). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजीगणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: परमं पदमात्मनम्, श्लोक-२५. ४३८२५. (4) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. हकम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. सर्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमु; अंति: महोदय पद दातार, गाथा-३. २.पे. नाम. अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. गा.५ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमनाभ पहिला जिणंद; अंति: नय वंदे सुजगीस, गाथा-५. ४३८२७. स्वरमंडल, षट् राग व राग परिचय, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नरसमुद्रपट्टण, प्रले.पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १८४५५). १. पे. नाम. स्वर मंडल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-सप्त स्वर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: षडग १ रिषभ २ गंधार ३; अंति: एक विसमूर्च्छना छे. २. पे. नाम. षट् राग, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. राग परिवार वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीरागो वसंतश्च; अंति: पुत्रौ प्रकीर्तिता. ३. पे. नाम. राग परिचय, पृ. २अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि रास-राग परिचय, संबद्ध, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ कहे षट् रागधर; अंति: भैरव वसीओ चित्त, गाथा-८. ४३८२८. (+) रावण सज्झाय व शील महिमा, संपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३९). १.पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहै भभीछण सुन हो; अंति: डतै सांभलज्यौ नरनारी, गाथा-१७. २. पे. नाम. शील दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. शील महिमा, रा., पद्य, आदि: सील रतन मोटो रतन सव; अंति: हिंसा तणे प्रमाण, गाथा-३. ४३८२९. (#) स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९-१३४२४-३५). १. पे. नाम. ढुढणपंचीसी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, ___ गाथा-२५, (पू.वि. गाथा- १८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते सुखिया रे भाइ ते; अंति: नय० हु तस बंदारे, गाथा-९. ४३८३०. (+) जंबुस्वामी गीताछंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११,१३४४६). जंबूस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेष्टि ऋषभदत्त; अंति: काज सघलां जिम सरइ, गाथा-९०. ४३८३१. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. गुणश्री; पठ. श्रावि. टबकांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२-१४४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन रास, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि प्रणमइ सूरनइंदा; अंति: शुभविजि० श्रीनेमिसरो, गाथा-८१. ४३८३२. (#) नवकार माहात्म्य व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, २२४५४). १.पे. नाम. नवकार महात्म, पृ. १अ, संपूर्ण. नवकार माहात्म्य, मु. भूदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु सिष्या देत; अंति: भूदर० मंत्रराज मनधार, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणी, मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामणि प्रभु; अंति: स्वामीजी आपो सेव, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिनाथ विनती, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन विनती, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज जन्म फल लाध जो; अंति: परि मनवंछित फल पावही, गाथा-२३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप सोहामणो; अंति: प्रेममुनि सुखकार हो, गाथा-७. ४३८३३. (#) अष्टमी व एकम तिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, २१४१३). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण... आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिनवर; अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-४. २. पे. नाम. एकमतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० होइ लीलाजी, गाथा-४. ४३८३४. (#) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ३१४१६). १.पे. नाम. नेमिजिन गीत, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. सहजानंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तु मेरे सब वात; अंति: सहजानंद० जय तूरा, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सहजानंद, पुहि., पद्य, आदि: रीसांणी लेहु मनाईरे; अंति: प्यारे सहजानेंद सरूप, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रभाती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम प्रभु सब जन शब्द; अंति: सेवक जस गुण गावे, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, प्र. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरसण देख तुमारा; अंति: करम अरि कुंटारा, गाथा-३. ४३८३५. (+) शgजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ११४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: प्रणमो प्रेमे पुंडरी; अंति: दान गया दुख लेस, गाथा-७. ४३८३६. (-) समोसरण गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४२८). समवसरण गहुंली, पं. माणिक्यविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांभल शुजनिरे; अंति: माणक० सुख वेगे पावो, गाथा-१०. ४३८३७. जिनबिंब स्थापन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, १०४३२). जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक जिन उद्धार; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३८३८. (+) शेव्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विरमगाम, पठ. श्रावि. मानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात, संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४२८). शत्रुजयतीर्थमहिमा स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमरित वचनें रे; अंति: लब्धे० गिरि सुहंकर, गाथा-२८. ४३८३९. (#) सिद्धांतहुंडी गीता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४९). सिद्धांतहुंडी गीता छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर केवलसिरि; अंति: पालतां सुख सवि मिलइ, गाथा-१५. ४३८४०. (#) पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२, १६x४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ४३८४२. ऋषभजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ६४१२). ___ आदिजिन स्तुति, मु. पुण्यसागर, सं., पद्य, आदि: भज नाभिभवं विबुध; अंति: पुण्यसागर० कल्पनीया, श्लोक-४. ४३८४३. (+#) गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३८). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: कवि कुसललाभगोडी धणी, गाथा-१८. ४३८४५. (+) अवंतीसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. श्राव. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४७). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतीहरख सुख पावे, ढाल-१३, गाथा-१०६. ४३८४६. चोविसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. विमलसी ऋषि (गुरु मु. कीका ऋषि); पठ. श्राव. लाडकीबाई, श्रावि. सहजबाई; अन्य. मु. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कीकाजी प्रसादात्., जैदे., (२६४११, १३४३९). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडी सागरनइ; अंति: स्वामी सर्वगति थया. ४३८४७. (#) संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३१). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शांतिकरं शांतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ४३८४८. (#) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १४४५२). __महावीरजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: चेतः प्रार्थ्य पदार; अंति: शिरः स्फार कोटीरकोटी, गाथा-१७. ४३८४९. (#) असज्झायविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिणेस्वर; अंति: वधू जिम हिलावरु, गाथा-२५. ४३८५०. (#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १७४३१). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आसूपालवना वृक्ष हेठल; अंति: तेडी साधु वीहार करे. ४३८५१. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x६३). For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासण देवि वएसकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. ४३८५५. परमेष्ठि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ७४३३). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४३८५७. (+#) वैरोट्या स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १८४५६). वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: लंघ पारसनाथनी मुद्द, गाथा-३२, संपूर्ण. ४३८५८. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले.पं. सहजधर्म गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समसंस्कृत, प्रा.,सं., पद्य, आदि: माया तुंगी निरासेखर; अंति: हंतु वो वाणिदेवी, श्लोक-४. २. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सावजं जेण रजं; अंति: सुहं बंभसंती सुकंती, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रकराः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पंचतीर्थस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४३८५९. (#) शक्रस्तव सहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २४४६७). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्मने; अंति: लखि संपदा प्रदे. ४३८६०. आदिनाथ वेनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, ११४३८). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पांमी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५६. ४३८६१. चित्रमुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १६९७, आषाढ़ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १३४४२). चित्रमुनि सज्झाय, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव भवि मद जाति; अंति: गावे धन धन ऋषिरायरे, गाथा-३९. ४३८६४. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. गाथा-३५, ढाल-३., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती जीव; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ४३८६५. (#) सिद्ध संथुव, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. मोहनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३३). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. ४३८६६. (#) स्तवन, पद व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, २६४१३). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अजित जिन को ध्यान कर; अंति: हरखचंदनाचत ग्यान कर, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ____ ५९ २. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनयस्वरूप, पुहि., पद्य, आदि: अजब जोत है तेरी आतम; अंति: विनय० होथ जु तेरी हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. समता स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य समता सुची वधु; अंति: सकलचंद्र कृपा करी, गाथा-९. ४३८६७. (#) सामायिक प्रतिक्रमणादि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. सामाइक लेवानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम खमासमण देई; अंति: पछे पचखाण करइं. २.पे. नाम. प्रभाति पडिकमण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावहि; अंति: साधुनें त्रिकालवंदना. ४३८६८. गौतमस्वामीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. संतोषबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १२४३२). गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो गणधर वीरनोरे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. ४३८६९. कल्याणमंदिर व बृहत् शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३१). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ___ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनं, (वि. अंत में सर्वमंगलमांगल्यं० प्रतिकपाठ देकर छोड़ दिया गया है.) ४३८७०. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२, १३४३५). १.पे. नाम. यतिमृत्यु का विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ यतिमृत्यु विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटिकगणवइरी शाखा; अंति: कीजइ नमस्कार चिंतन. २.पे. नाम. षटावस्यकविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. आलोयणविधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ४३८७१. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३४). सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर वीनवुरे; अंति: तम पामे अधिक जगीसोजी, गाथा-२३. ४३८७३. (#) श्रावकनी ११ प्रतिमा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१७४५२). श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली दर्शन प्रतिमा; अंति: अभेदोपचारई जाणवा. ४३८७४. (#) माणिभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, भाद्रपद कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४२९). माणिभद्रवीर छंद, म. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा समरो; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-८. ४३८७५. (#) एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १३४४१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३८७६. (+) अध्यात्म स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ३४३७). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेरे सामायिक; अंति: भावप्रभसूरि० भोगी जी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसारि जीव छइ प्रकार; अंति: स्तुति चोथी पूर्ण थई. ४३८७७. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४३८७९. (#) नमिराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. तेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४३५). नमिराजर्षि चौपाई, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मिथुला नगरी जाणीए; अंति: ए भोग छंडी अलगी थाए, गाथा-६३. ४३८८०. (#) वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४१). वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: सयलसंघनी पूरइ आस, गाथा-९२. ४३८८१. (#) अनाथीमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १५८५, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. रुपाई आर्या, सा. लीला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्धि सवेनई करूं; अंति: विरक्त ते चरवइ मही, गाथा-६४. ४३८८२. (+#) भरह चरित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (९१६) जाद्रिसे पूस्तकं द्रिष्टा, जैदे., (२६.५४११, ११४२५). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहे राया; अंति: सव्वदुक्खप्पहीणे, वक्षस्कार-३, सूत्र-६७७१. ४३८८३. (#) भरह चरित्र-जंबूद्वीपपन्नत्ते, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४३). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तएणं से भरहे राया; अंति: सव्व दुक्खप्पहीणं, __वक्षस्कार-३, सूत्र-६७७१. ४३८८४. (#) विपाकसूत्र व आगमिकपाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. विपाकसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध-२ अध्ययन ३, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. द्वितीयश्रुतस्कंध का प्रथम अध्ययन मात्र.) २. पे. नाम. समत्त पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सम्यक्त आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: जीवेणं भंते किं; अंति: दिठी नोसमिच्छादिट्ठी. ३. पे. नाम. आगमिक पाठ, पृ. ४आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: कम्हाणं भंते सवणसमुद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ "चेवणं एकोदकं करेति" पाठ तक लिखा है.) ४३८८५. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १८४५५). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: सारू करो उपगार, गाथा-९४. ४३८८६. खीमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १०४३०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खेमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ____६१ ४३८८७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. आशाराम उमेदराम; अन्य. मु. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११,११४४१). १.पे. नाम. साधुसंगति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. गोधावी. मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन सिद्धांत; अंति: भावे मुनी धरमदास रे, गाथा-७. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकरायवाडी; अंति: समयसुंदर० कर जोडी, गाथा-९. ४३८८८. अईमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. श्राव. आशाराम उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १४४४३). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर वांदी, अंति: वंदे एवंतो अणगार, गाथा-२२. ४३८८९. पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४९.५, ११४४५). पद्मप्रभ-वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: रंग भेर रमता हो दाता; अंति: रायचंद० णामे जोड, गाथा-१४. ४३८९०. सिद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. श्राव. आशाराम उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ९४४३). सिद्धपद सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव तू सीधने संभारजे; अंति: जेवी वेलूरी भीत, गाथा-८. ४३८९१. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०,११४३३). १. पे. नाम. चौदगुणस्थान विचारगर्भित ऋषभजिनस्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरंत अनंतकंत गुण; अंति: पूरवउ सुखसंपदा, गाथा-२१. २. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति सामी थंभणउ; अंति: पसायइ तत्व परिछीइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचपरमिट्ठ पयकमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ४३८९२. (+#) बुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. जेसल, प्रले. पंडित. सारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ८-१०४३७). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरिभद्रगरु० किलेस तो, गाथा-६६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५२ अपूर्ण से है.) ४३८९३. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७२३, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रलियावता, पठ. सा. प्यारमदे आर्या (गुरु सा. कोडा आर्या); गुपि. सा. कोडा आर्या (गुरु सा. जीवाजी आर्या); सा. जीवाजी आर्या; प्रले. मु. वर्धमान, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-१०. ४३८९४. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४४५). ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४३८९५. (#) गोडीजिन स्तवन व नवग्रह द्वादसरासी फल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, ६-८४३६). १. पे. नाम. गोडिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संवली सूरत ए लगन लगी; अंति: नेमविजै सुख थाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. २. पे नाम, नवग्रह द्वादसरासी फल, पृ. १आ, संपूर्ण ग्रहदृष्टि विचार, सं., पद्य, आदि: रविजन्म शोक सुखदा तु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४३८९७. (+#) बंभणवाडि श्रीवीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. वाल्ही, प्रले. ग. कीर्त्तिकुशल; पठ. मु. वीरकुशल श्रावि लखी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, ११x४०). महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा ए; अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२२. ४३८९९. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ७-३ (१ से ३) २४, प्रले. श्राव. देवा मुंहता, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६X११, २१x४७-६०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-२८, ( पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है . ) नवतत्त्व प्रकरण- विवरण, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः शीघ्रं प्राप्नुविं ४३९००. (+) पौषधादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. विझापुर, प्रले. पं. नंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १०X२७). १. पे. नाम. पोसह विधि, पू. १- ३अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियाव०; अंति: मिच्छामी दुक्कडम्, २. पे. नाम. पडिकमणा संबच्छरी चोमासी पखी, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाका० भगवान देवसी, अंति: काउसग्ग जाणवो. ४३९०१. (#) दानलीला चोपाई व गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १५X४६). १. पे. नाम. दानलीला, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. १८९२ भाद्रपद कृष्ण, ४, प्रले. ग. मानविजय पं., प्र.ले.पु. सामान्य. दानलीला चौपाई, जगन, मा.गु, पद्य, आदि: प्रभु पूर्ण ब्रह्म, अंतिः जगन० विसनुंलोक सदावही चौपाई-८. २. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. गजसुकुमाल सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु, पद्य, आदि: गजसुकुमाल वैरागीयो सः अंतिः जिनहर्ष० नेमीसर वारी, गाथा-८. ४३९०२. (+) परदेसीराजा चउपई, संपूर्ण, वि. १९पू, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १३x४४). प्रदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमउं सिरिजिणपास आस, अंति: हरष धरी पभण पासचंद, गाथा-५२. ४३९०३. (+) स्थिवरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. बाभणवारजी सहाय छे., संशोधित., जैदे., (२६X१२, १४X३४). नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: नास्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. ४३९०५. स्नातस्या स्तुति सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः स श्रीवर्द्धमानो जिन, अंति: मदजलं कथं समंतात्. ४३९०६. (+) रोहिणी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अह्मदनगर, प्रले. मु. दोलत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, १२X३७). For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. ४३९०७. (4) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १०४३८). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारै नेम ऐसी; अंति: तुमारे चरन पैखरी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पार्श्वनाथ; अंति: उदय०सिंघ आवै घसमसीया, गाथा-७. ४३९०८. (#) वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १३४३८). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी श्रीमंध; अंति: लीबो० चल पदवी मांगु, गाथा-११, (वि. २० विहरमान नामयुक्त प्रथम स्तवन में गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ४३९०९. (+#) स्तव व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. समस्तजैन चैत्य स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. अवनितलगत स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सकलार्हत् स्तोत्र-जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अवनितलगतानां कृत्रिम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-१. ४३९११. २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकमलदलवरनयन कुल; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुपार्श्वजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ४३९१२. (#) गोडीपार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४४३). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: प्रीतविमल अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ४३९१३. (#) स्थुलभद्र सज्झाय व मनुष्यस्वरूप दृष्टांत श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. सा. कुस्याला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १०४२८). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीया गुरुआदेस लही; अंति: उदैमुनि०प्रीया पाछली, गाथा-११. २. पे. नाम. मनुष्यस्वरूप दृष्टांत श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: रूपेण मृगाश्चरति, श्लोक-१. ४३९१४. (-2) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४२९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हंसमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: मन शुद्धइ सुणि जीव; अंति: हंस० जिम तरीइ संसार, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजेणंद वाम; अंति: वस्तो० अनोपम पामीयिइ, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३९१५. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १७४३४). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रवदन चंद्रसारिखी; अंति: प्रेम० गंगानीर रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. अरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखाकर गुणरतनागर; अंति: प्रेम सुख मेर समान, गाथा-३. ३. पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. मल्लिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: कामकलस समो गुणधारी; अंति: प्रेम वंदइ करजोडी, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप सोहामणो; अंति: प्रेममुनि सुखकार हो, गाथा-७. ४३९१६. (#) थूलिभद्रएकवीसु, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वर्द्धमानपुर, प्रले. मु. कीर्तिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४७३). स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउ रे जलहर; अंति: लावनिसमि०निर्मल थाईइ, गाथा-४२. ४३९१७. (#) नेमी गीत, संपूर्ण, वि. १७३०, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. नानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९४५४). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडीने विनवू; अंति: लावनसमय० मुगति मझारि, गाथा-२७. ४३९१८. (#) राजिमती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दीव, अन्य. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन सं.१७५८ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६४३६). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी रे वीनवं अंति: लावनसमय० मुगति मझारि, __गाथा-२७. ४३९१९. (#) चतुर्थव्रतउच्चार व बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८४७, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बहनिपूर, प्रले. पं. जिनेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४५२). १. पे. नाम. चतुर्थव्रतउच्चराववानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा पोहचतो जोइ; अंति: शक्ति साहमीवछल करे. २. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहलु मुहुर्त भलु; अंति: नाम १०८ वार स्मरे. ४३९२०. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९उ, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. ४३९२१. पार्श्वनाथजीनो प्रभातियो, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ११४२६). पार्श्वजिन प्रभातियो, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आज शंखेश्वरा सरण; अंति: उदय० वेगला करोशंभाल, गाथा-५. ४३९२२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८उ, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४४). १. पे. नाम. सातव्यसन निवारण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथनृप कुलतिलो; अंति: रत्न० हुई लीलविलास, गाथा-१०. २. पे. नाम. सामायिक बत्रीसदोष सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir c हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि गौतमनुं लीजैं; अंति: मेरुविजय पभणै निसदीस, गाथा-९. ४३९२४. (+) सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. लोयावट, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८४३८). १.पे. नाम. कलंकी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सुणो; अंति: एह सिझाय रसालो रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. चारित्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्या; अंति: चारित्र० पामे भवपार, गाथा-२२. ३. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाला क्रोध न; अंति: प्रीत० कहे नित्ति रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. वीर पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक दिन प्रभु वीर सम; अंति: स्यादवाद अमृत झरिया, गाथा-५. ५. पे. नाम. सीमंदिरस्वामीरो स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदिरस्वामीजी नै; अंति: कीर्ति० जगदाधार रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. जिनभक्तिफल दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., पद्य, आदि: नाम सदा जिनराज रो; अंति: वाधै समकित वित्त, गाथा-१. ४३९२५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, दे., (२६.५४१०, १२४४२). १. पे. नाम. वीशविहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर पेहेला नमुं; अंति: माणिक्यजन गुण गाय रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरसामीजी; अंति: हंस० दरिसण दिजे साथ, गाथा-१६. ३. पे. नाम. श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-८. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंदर विनति; अंति: कहुं कहा बहु तेरा, गाथा-५. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नीत वंदीइ; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरसामी जब जिनराज; अंति: ध्यानथी जिन उपम पावे, गाथा-५. ४३९२६. (+) अष्टापदगिरी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्रावि. वाल्ही, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४४०). ___ अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अमृत वसति मुखि; अंति: थिवर तीरथ नमो जिणाणं, गाथा-४४. ४३९२७. दानशीलतपभाव चौढालीयो वपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १८४४६). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवादरूपचौढालीयौ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. गौडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन गिणसूहं तउ; अंति: जिनहरष० एतलौ सही जी, गाथा-८. ४३९२८. (#) नववाडि विसुद्ध ब्रह्मचर्य स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). नववाड सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सारदमात मया मुझ कीजइ; अंति: मेरु० नवनिधि घरि थाय, ढाल-५, गाथा-३८. ४३९२९. (#) सज्झाय व गुंहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणु; अंति: सहज० तास प्रणाम रे, गाथा-२४. २. पे. नाम. नेमसागर गहुली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. नेमसागर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुजी आव्या रे; अंति: सिववधुना सुख पावोरे, गाथा-९. ४३९३०. (#) सज्झाय, स्तवन व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. आनंदविजय (गुरु ग. उत्तमविजय, तपगच्छ); गुपि.ग. उत्तमविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). १.पे. नाम. सत्तावीससती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २७ सती सज्झाय, मु. पुण्य कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलि सीतल जिनवर; अंति: कवि पुन्य गुणवंती, गाथा-३१. २. पे. नाम. शिवभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ क. वृंद, पुहि., पद्य, आदि: अब ही इहां ही धर; अंति: एते नांही काम के, गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पास वधावौ चालौ सिंघ; अंति: रूपचंद० अरजी जिनराज, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा सवैया पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ४३९३१. (+) गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र गहुँली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितवंततणी ए करणी, अंति: दीपविजय० कोटी वधाई, गाथा-७. २. पे. नाम. वीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चलो सखि वंदनने जईई; अंति: कह्यो दीपकबीराजे, गाथा-७. ४३९३२. स्तवन व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. जीराउला स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलिमंडन श्रीपास; अंति: तूठई नवनिअंगणइं, गाथा-३७. २. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: जम्मतरे न विहडइ; अंति: हायति ता धर्म समायरे, गाथा-३. ३९३३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. २. कलपे. ४. प्रले. म.खीमजी ऋषि (गुरु म. वेलजी ऋषि); गपि.म. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि); मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की लिखावट देखने से संवत २०वी की प्रत लगती है., जैदे., (२६४११.५, १३४३९). For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १.पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: गुणप्रभु० सीस रसाल, गाथा-१४, (वि. गाथा १ को २ गिनी गयी है.) २. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७५९, आषाढ़ शुक्ल, ६. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुँ; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अइमंताकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदिनइ; अंति: लक्ष्मीरत्न० अणगार, गाथा-१८. ४. पे. नाम. शालिभद्रनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडलमां विचरतारे; अंति: लखमी लील विलास, गाथा-११. ४३९३४. (+#) प्रतिक्रमण सूत्र व वैद्यक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले.ऋ. जीवणराम; पठ. ऋ. जयचंद (गुरु ऋ. जीवणराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४५३). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)णमो अरिहंताणं णमो, (२)इच्छाकारेण संदेसह भग; अंति: जाव त्रिकाल वंदणा. २. पे. नाम. वैद्यकश्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ४३९३५. (+#) जीवविचार सूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७उ, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, ७४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जगनाहि दीवारूप महा; अंति: विपुल समूय समुद्रथी. ४३९३६. (+#) नवपद ढाल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,४४३५). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: जसतणी० न अधूरी रे, गाथा-१४. नवपद स्तवन-टबार्थ, मु. कपूरविजय, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवपद आत्मामांहिं; अंति: कारक कपुरविजयगणि. ४३९३७. (2) कवित्त, दोहा व पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९उ, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २२४४८). १.पे. नाम. चवदै स्वप्नरा कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथकुलतिलो; अंति: नंद० ए सुपनांतर गाता, गाथा-१६. २.पे. नाम. सातव्यसन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ व्यसन पद, मा.गु., पद्य, आदि: सात विसनकै सेवणे होत; अंति: सीख भगवंतजी वताई हे, गाथा-२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: तेंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ४३९३८. (+) आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आगरा, प्रले. दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २०४३९). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीनाभिकुलगुर; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. ४३९३९. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३२). रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वारू वसइजी; अंति: सार्यां आतम काज रे, गाथा-२१. ४३९४०. त्रिशलामाता गर्भ भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२७). त्रिशलामाता गर्भ भास, मा.गु., पद्य, आदि: मानसरोवर मे जाया ए; अति: एएतो वरडे नागरवेल, गाथा-१९. ४३९४१. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ७ स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजमेर, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३८). दशवकालिकसूत्र-अध्याय ७ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साचूं वयण जे भाषीये; अंति: वृद्धिविजय जयकार, गाथा-९. ४३९४२. (#) श्रावकना तीन मनोरथ व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४५). १. पे. नाम. श्रावकजीरा तीन मनोरथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, आदि: पहलो मनोर्थ समणोपासक; अंति: ३ श्रावकजीइं चिंतवै. २. पे. नाम. जैनाचार पालन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महाचिता सोगगारब खेद; अंति: (-). ४३९४३. (#) सामायिकपारणसूत्र व नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३१). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधिसंग्रह-खरतरगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भयवं दसण्णभद्दो सुदं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भविक; अंति: पांमीजै भवपारो जी, गाथा-४. ४३९४५. पंचमि नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९उ, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. श्राव. निहालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११४३७). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: केवल लक्ष्मी निधान, गाथा-३, (वि. ३ गाथा को १ गाथा क्रम से गिनी गयी है.) ४३९४६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले.ग. वीरविजय पंडित; पठ.पं. कुंअरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४३२-३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४३९४७. (+#) स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७-१८४३३-४२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वैल्लहागाव नगर. मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव विषय नराचियै; अंति: तस प्रणमुनसदीसोरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४३, आषाढ़ कृष्ण, ११, ले.स्थल. रामगढ, अन्य. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तुम झुठ; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथुला नयरीरो अंतिः जी हो लहीयत भवनो पार, गाथा-८. ४. पे. नाम, तिरथंकर स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण चोवीसजिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै नमुं आदि अरहंत; अंति: लालविनोद० सुख पामियै, गाथा-५. ५. पे. नाम. राजुल की वीनती, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. राजिमतिसती विनती स्तवन, रा., पद्य, आदिः परभु नीकरै भवनसु वाड, अंति: जो नरनारी अमरपद पावै, गाथा- १५. ६. पे. नाम वीर बनती, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, आदि वीर सुगड मोरी वीनती अंतिः समयसुदर०त्रिभुवनतिलो, गाथा- १९. ७. पे. नाम. दो गाय का संवाद, पृ. ४आ, संपूर्ण. दो गाय संवाद, रा. पच, आदि: हरिया जब नित चरती अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है., वि. "एतो दिसटंतै समतं" ऐसा लिखकर छोड़ दिया है.) ४३९४८. अमल सज्झाय व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८७ भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. कडाग्राम, प्र. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२, १५X४०). १. पे. नाम. कुव्यसनपरिहार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कुव्यसन परिहार सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: भवीजन हो के भवीजिन; अंति: विनय० सूख नीतमेव, गाथा - १६. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: भुक्ताभुक्तोपवासीच अंतिः याद्रते वस्य कार्युः, श्लोक-२. ४३९४९, (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११.५, १२x४३). १. पे. नाम. अन्यत्व संबंध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. . ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि केहनां सगपण केहनी, अति तत्व कहे सुखदाई रे, गाधा-८. २. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि चंपानगरी अतिभली हुं, अंतिः समयसुंदर० पाप पलाव रे, गाथा ५. ३. पे. नाम, प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य वि. १८वी, आदिः प्रणमुं तुमारा पाय अंतिः दीठा ए में प्रत्यक्ष गाथा- ६. ४३९५०. आदिजिन नमस्कार व पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. विद्यापुर, प्रले. पं. रूपसोम, पठ. श्रावि. हेमकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, १३३८). ६९ ४३१५१. चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२५.५४११.५ १५X३४). १. पे. नाम. सर्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमुं अंतिः वंदीए महोदय पद दातार, गाथा- ३. २. पे. नाम, अनागतचीवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण १. पे नाम आदिजिन नमस्कार, पृ. १अ संपूर्ण वि. १८७० आश्विन शुक्ल, २ शनिवार आदिजिन चैत्यवंदन चंद्रकेवलिरासत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत, अंति: ज्ञानविमलमुरीस नमो गाथा-८. २. पे नाम, पार्श्वनाथ जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८७० आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रें दें कि धप; अंति: कुसल० तुझ सासनदेवता, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, बि. १८वी, आदि पद्मनाभ पहेला जिणंद, अंतिः नय वंदे सुगीस, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नाण दिवायर वीतराग; अंति: भोगवी वंछित पूरे आस, गाथा-१. ४३९५२. (+#) | पुण्यफल कुलक सह अंकविवरण व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२X४६). १. पे. नाम. पुण्यफल कुलक सह अंकविवरण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी आदिः छत्तीसदिनसहस्सा वाससः अंतिः धम्मम्मि उज्जमह, गाथा - १६. पुण्यफल कुलक- अंकविवरण, मा.गु., गद्य, आदि: शून्य१५ ३६००० च्छेद, अंति: (-), (वि. अंतिमगाथाओं का विवरण नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. सुभाषित लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३९५३. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, ११x४१). १. पे. नाम. पंचमी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पुनवी पांचम एम बदे, अंतिः सुखह अनंतस्युं लब्ध, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आठम कहे आठ मदनो प्रा अंतिः पुण्वनी रेह रे, गाथा- ९. ४३९५४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, श्लोक संग्रह व अतिचार विवरण, संपूर्ण, वि. १८७३ माघ शुक्ल १०, श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. ४, ले.स्थल. पाटडीनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतीनाथ प्रसादात्, जैदे., (२५X११.५, ११x४०). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं. पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४. " २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: संतोषस्त्रिषुकर्त्तव अंतिः यज्ञाः कथिता नृपाणां श्लोक-३. ३. पे. नाम. विद्यामहत्व लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: विद्या नाम नरस्य रूप; अंति: विद्या विहिन पसुः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार- तपागच्छीय- अतिचारसंख्यामिलान, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाचारना८ अतीचार; अंति: १२४ अतीचार. ४३९५५. (+०) कल्याणमंदिर स्तोत्र व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, ११४३६-४०). 1 १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह समास, पृ. १९अ ४अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: कल्याणानां मंदिर; अंति: स्तोककालात् लभंते. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति सह समास, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. , ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: पंचरूपेण इंद्रेण कृत अंतिः बुद्धिमतां सतां . ४३९५६. चार शरणा, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२८x१२, ११४३५). " " For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणां, अंतिः दिन मुझ कहि होस्, अध्याय- ४, गाथा - १२. ४३९५७. (०) परदेशीराजानी कथा व नेमजीरो वारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११.५. १९४४९) " १. पे नाम, परदेशीराजा कथा, प्र. १अ २आ, संपूर्ण. प्रदेशीराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) पुनेहिं चोईया पुरकडे, (२) देसार्द्धने वीषे सेत, अंति: परदेसीराजानी परे. २. पे. नाम. नेमनाथराजमतीरो बारामासा, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि अंतिः मोहि रे साहव सांबरा, गाथा- १२. ४३९५८. (#) पदमावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १२X४६ ) . पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्म, आदि: हाँ ही हैं अंतिः बुद्धीप्रवर्द्धते श्लोक-११. ४३९५९. जिनपालजिनरक्षित सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५.५४११, १८४४७). जनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी आदि हुई; अंतिः माहाविदेह जासी मोक्ष, डाल-४, गाथा - ६८. ४३९६०. भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९उ, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. स्थंभतीर्थ बंदर, जैदे., (२६X१२.५, ९४२८). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आवो आवोरे सवण भगवती, अंतिः हंसे करी सहुं पभणे, गाथा - २४. ४३९६१. (#) अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१०.५, ११४३०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८५९, आदि: चंपानगरीथी चालीया जी; अंतिः रतनचंद ० विकानेर मझार, गाथा - १२. ४३९६२. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४ वे. (२७.५x१२.५, ८x२७) " मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपतिनायक नेमिजिणंद अंति जिनविजय जयसिरी वरी, दाल-४ गाथा ४२. ४३९६३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २६.५X१२.५, ११X३२). ४३९६४. शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६११, १७x४९). १. पे नाम, सांतिनाथजीकी बीनती प्र. ९अ. संपूर्ण, पे.वि. गा. १३ 3 सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि; जी हो प्रणमुं दिन अंतिः कहे मानविजय उवज्झाय, डाल-४, गाथा - २५. ७१ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिणेसर शांत अंतिः सिद्ध श्रीसंघ धेरै गाथा-१३. २. पे. नाम. सांतनाथजीका स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारदमात नमौ सिरनामी, अंतिः मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसल पुहिं., पद्य, आदि मति तोडइ काची कलीयां अंतिः सफल मन कामनीया, गाथा-३, " ४३९६५. पंचमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८७३ कार्तिक कृष्ण, २. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल अम्हदपुर, जैवे. (२७.५४१२, ११X३४). ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो अंतिः केवल लक्ष्मी नीधांन, गाथा - ३. ४३९६६. कार्तिकशुक्लपंचमि थोय, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद शुक्ल, ४, मंगलवार श्रेष्ठ, पृ. १ वे. (२६४११, १०x३२). For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कार्तिक शुदि पाचमि; अंति: अधिक अधिक तस निवाजे, गाथा-४. ४३९६७. नेमजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३२). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल कर जोडी; अंति: गुण गाया सरीकार रे, गाथा-१५. ४३९६९. (#) मेघकुमार गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, फाल्गुन शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. नयनसुंदर (गुरु आ. कक्कसूरि); गुपि. आ. कक्कसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, ११४२२-२८). मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा-४८. ४३९७०. क्रियाकर्मकर्तृतिप्रभृति विषम काव्य व पंचक्रियागुप्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १२४३६). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित सह टीका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: अंति: यदमीहसंतिनरपशवाः, श्लोक-४५, (संपूर्ण, वि. सात विभक्तियुक्त __ श्लोक.) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: अमोलक्ष्मीरहितोलक्ष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २७ तक टीका लिखी है.) २. पे. नाम. पंचक्रिया गुप्तक, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः इस कृति का पत्रांक १आ है. साधारणजिन स्तुतिगर्भित-पंचक्रियागुप्त, सं., पद्य, आदि: श्रीप्रतिष्टान्वयोक्; अंति: सनिर्वृत्तिम्, श्लोक-४. ४३९७१. वीस स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, ११४३६). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: पद-२०. ४३९७२. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१०.५, २५४६१). १. पे. नाम. द्वाषष्टि मार्गणा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं अरिहंताई बोले; अंति: केवलदर्शन१० लेश्या६. २. पे. नाम. पनरैजोग नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: एवं पनरै जोग जाणिवा. ३.पे. नाम. चउदगुणठाणा नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ सास्वादन२; अंति: सयोगी १३ अयोगी १४. ४. पे. नाम. बार उपयोग नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान१ सुतज्ञान; अंति: १२ केवलदर्शन. ५.पे. नाम. गुणस्थानकेषु बंधाधिकार, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्वगु० आहारक; अंति: सहित जाणवी. ६.पे. नाम. सात समुद्धात विचार सह बालावबोध, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ७ समुद्धात, प्रा., पद्य, आदि: वेयण कसाय मरणे; अंति: सत्त समुग्घाया, गाथा-१. ७ समुद्धात-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वेदनासमुद्धात; अंति: समय अणाहारी समुद्धात. ४३९७३. समकितना ६७ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १७४४४). ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: समगतन सरदहण धनवंत; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४३९७४. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, ११४३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी; अंति: हंस० मानीए महाराज, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ७३ ४३९७५. संलेखना पाठ व तेवीस पदवी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. हीरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X११, २०X३७). १. पे. नाम. संलेखना पाठ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि अहं भंते अपछिम मारणं, अंतिः परूपणा करेता वारसठा. २. पे नाम, प्रेवीस पदवी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - २३ पदवी विचार पत्रवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: चउदे रतनरी पदवी, अंतिः आठ पदवी पामे, ४३९७६. (4) भगवतीसूत्रोपरि सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१२, १५X३०). १. पे. नाम. भगवतीसूत्रोपरि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम, अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., सं., पद्य, आदि: अर्द्धचरात्रो सुरभि, अंति: मुनियो वदंति, श्लोक-१. ४३९७७. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. वे.. (२६४१२, १०४३२). 1 संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु पच आदि साहिब सांभलो रे संभव अंतिः सुणज्यो देवाधिदेवा, गाथा- १०. ४३९७८. (+) मदआठनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ श्रावि. पार्वती, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६X११.५, १०X३८). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारीइं अंतिः अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा - ११. ४३९८०. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२६.५x११.५, ११४३०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: पंडित रुपनो लाल, गाथा- ७. ४३९८१. पडिलेहण गाथा संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२६११, १०४०). 1 "" प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदिः आसाढे मासे दुपया पोस; अंतिः आसाढे निडिया सव्वे, गाथा-६, (वि. यंत्र व पाठांतर भी साथ में दिया गया है.) ४३९८२. संसारतारक तप गरणु व तेरकाठीया गरणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५x१२, १०X२४). १. पे. नाम संसारतारक तपनो गरणो, पृ. १अ, संपूर्ण संसारतारण तप आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीकेसि गणधराय नमः; अंतिः श्रीसरवानभूताय नमः. २. पे. नाम. तेरकाठीयानु तप, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १३ काठिया तपविधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: आलस काठियो निवारणाय; अंति: काठीयो नीवारवाय नमः ४३९८३ (०) होलीकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, प्र. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५. १२X४०). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे अंति व्याख्यानमाख्यानभृत्. ४३९८४. अष्टक, छंद व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल. खजवांणा, प्रले. कचरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२४१०.५, ११-१४४२६-३०). , १. पे. नाम. भवानी अष्टक, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. भवानीदेवी घघर निसाणी, भवानी, मा.गु., पद्य, आदि: खेजडले थान भवानी; अंति: भवानी भाषंदा है, गाथा - १३. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, प्र. ३-४अ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: जै जै देवी सरस्वती, गाथा-५. ३. पे. नाम. अंबामाताजीरी स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहै, गाथा-५. ४. पे. नाम. माताज्यांनमार, पृ. ४आ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तोत्र, मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ जय जय अंबिक माय; अंति: पुण्य० नमो आणंद, गाथा-११. ४३९८५. (-) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४११.५, २१४५६). पट्टावली-नागोरीलंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: समण भगवंत महावीरनै; अंति: वच सत्य करी मानइ. ४३९८६. चतुःशरण पयन्ना, संपूर्ण, वि. १६०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, १२४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ४३९८७. (#) गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११, १५४४८). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: कुंभरिष पभणे निसदीस, गाथा-२८. ४३९८८. रहनेमी सज्झाय व श्रावकदिनकृत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ११-१२४३२). १.पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. २. पे. नाम. श्रावकदिनकृत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ४३९८९. (#) सप्तस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, ५४३०-३५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बृहद अजितशांति स्तव गाथा ३७ अपूर्ण से नमिऊण स्तव गाथा २ अपूर्ण तक है.) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३९९१. तिजयपहुत्त टीका, संपूर्ण, वि. १८२०, वैशाख शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४४०). तिजयपहत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: कृत्वा चतुर्णां; अंति: हर्षकी० वृत्तिमातनुत. ४३९९२. प्रमाण स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रंगसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १८४५९). प्रमाण स्वरूप विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वपर व्यवसायात्मकं; अंति: प्रमाण पांच, थy. ४३९९३. जोबनबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८७६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कसनगढ, प्रले. सा. रतुजी (गुरु सा. वदुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३७). जोबनबतीसी, मा.गु., पद्य, आदि: पुन जोग नर भव पायो; अंति: गरयोवन पाछो नही आव, गाथा-३०. ४३९९४. (-2) कलीकाल गुण दोष संबंधी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १६४४३). ___ कलिकाल गुणदोष कथा-महावीरजिन गर्भगत, मा.गु., गद्य, आदि: एहवे समे श्रीमहावीर; अंति: बेजण परे आव्या. ४३९९५. (+) मर्मछत्तीसी व नारी परिहार गाथा, संपूर्ण, वि. १८२४, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. उढाइ, पठ. पं. प्रसिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३७). १.पे. नाम. मर्मछत्रीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. गा.३६ मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: नारी साथे नेह न कीजि; अंति: मूलजी० नगर मझारजी, गाथा-३६. २. पे. नाम. नारी परिहार गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४३९९६. ठाणांगसूत्र-समोसरण आलावो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७४११.५, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ स्थानांगसूत्रहिस्सा समोसरण आलापक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: ततेणं समणे भगवं; अंति: तामे च दिसंपडि गया. ४३९९७. (#) दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १२४२९). दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दृष्टि रागें नवि; अंति: जस० हित सीखमन धरज्यो, गाथा-११. ४३९९८. (#) गोडीपार्श्वजिन स्तवन संग्रह व औषध नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १६४३९). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नाथनगीनो माहरो केशर; अंति: सुंदर० सुखकार को, गाथा-७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पारकरमा प्रभुजी, अंति: पाय पद्मसुखदाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. देशी औषध नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३९९९. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले.मु. अमरश्रुत (गुरु आ. सुमतिसाधुसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. सुमतिसाधुसूरि (गुरु उपा. लक्ष्मीसागरसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४८-५६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: कही प्रकासी छइ. ४४०००. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. महाताब; पठ. सा. ग्यानोजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १६x४७). आदिजिन स्तवन, मु. कीरतमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगतस; अंति: किरत० किसी न भणी, गाथा-१८. ४४००१. (+) सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३१). सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझिई इरा; अंति: रहे सोना केरे ठामि, गाथा-२१. ४४००२. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १६४५३). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारदमाइ नमुंसिरनामि; अंति: मनवांछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. ४४००३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०, १५४४९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजिनवर नमित; अंति: आपु कहि सौभाग्यसोम, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांति; अंति: सौभाग्यसोम०जयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसि ईशान; अंति: सौभागयसोम० देविजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. गौतमगणधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसंपद करण गणधर वीर; अंति: तुम्ह चलणे वासर, गाथा-४. ४४००४. समकीतबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, गाथांक २१ दो बार लिखा है, दे., (२३.५४१२, २१४३७). सम्यक्त्वबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: जेहथी शिवसुख चाह, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४००५. विवाहपडल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. सम्बन्धित कोष्ठक सहित., जैदे., (२४४११, १२४४२-४५). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: कला धीर सुख पामै सदा, गाथा-५५. ४४००६. नंदीसूत्र की स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम में आवश्यकसूत्र लिखा है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३८-४२). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. ४४००७. सीमंधरजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ९४३९). सीमंधरजिन छंद, मु. कनकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: ए पय नमूं अरिहंत के; अंति: खिसु सफल सोई धन दिणा, गाथा-४. ४४००८. (+) लघुशांति स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १९४३९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: सर्वेसर्व सिद्ध्यर्थ; अंति: यायात् प्राप्नुयात्. ४४००९. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य, अंति: लहि मंगल अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. ४४०१०. पद व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, ११४३५). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-काया, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुण बहिनी पीवडो; अंति: नारि विण सोभागी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस; अंति: संघ नित तेह मंगल करउ, गाथा-४. ३. पे. नाम. भवितव्यता कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: कहा गुणावंताजीइ गुणा; अंति: उठति सभागि सभागि, गाथा-३. ४४०११. समता गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. हीरा (गुरु मु. वदुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३८). समता गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जे हुवा उत्तम प्राणी; अंति: समतासु सोपुरला जो रे, गाथा-५४. ४४०१२. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५४११.५, २०४४६). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-उपदेशगर्भित, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मत कर ममता परभवनो; अंति: विनयचंद० रसीना करे, गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ क. दयाल, पुहि., पद्य, आदि: गरब में हजार बेर देइ; अंति: चरणां में चीत भयो, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: दस वरस लडका संग खोया; अंति: रामोइ राम रयो रे, दोहा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: काया तु अब चल संग; अंति: केत कबीर० वर हितकारी, दोहा-५. ४४०१३. चौवीसजिन विविध विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६४१२). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: चवणविमान नयरि जिण; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४०१४. गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १७९६, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. भारमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३४३४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वडजु सखा विस्तरे हे, गाथा-४७. ४४०१५. ज्योतिष विचार व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. जिनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११-१६५३४). १.पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: संवत १७थीसे एकवीस; अंति: मानवी तेहनी पोहचइ आस. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: समरीए साद दीयरे देवा; अंति: लब्ध० पुरुरे जगनी आश, गाथा-१४. ४४०१६. सोलसता सोलसती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४३४). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ४४०१७. सुकनविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४५२). १.पे. नाम. श्वानशुकन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. स्वानसुकन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्वानज्ञा मातरि जाता; अंति: नहराला जाता जाणिवा. २.पे. नाम. कागस्वरसुकन विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रामांतरि चालना; अंति: बोलइ तु मित्रागम कहइ. ४४०१८. जिनबिंबप्रतिष्ठादि विधि व हरियाली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से ११)=३, कुल पे. २, प्रले. पं. कीर्तिसागर गणि (अज्ञा. उपा. लब्धिसागर); गुपि. उपा. लब्धिसागर; उपा. धर्मसागरगणि (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. बिंबस्थापना विधि, पृ. १२अ-१४अ, संपूर्ण. जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्वं भव्यं मुहूर्त; अंति: मंडनानंतरंगण्यते. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १४आ, संपूर्ण. पंडित. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: बापड़ जाया बेटडा तस; अंति: धनहर्ष गर्व नव हीए, गाथा-६. ४४०१९. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भकोडाग्राम, पठ. ग. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४५४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरसामीजी जीव; अंति: करी दरीसण दीजे नाथ, गाथा-१६. ४४०२०. जीभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. साणंद, प्रले.ग. लाभविजय गणि; पठ. श्रावि. अवल्ल; राज्ये गच्छाधिपति महेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडली सुणि बापडली; अंति: अमरविजय० सोई रे, गाथा-१९. ४४०२१. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १०४३६). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति सामीने वीनवू; अंति: नामे होय जे जेयकार, गाथा-१४. ४४०२२. शीतलजिन स्तवन, सूर्य छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ९-११४२५-३४). १.पे. नाम. सूर्यदेव रो छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सूर्य छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति गणपति समरता; अंति: उदो दरसण सूरज देवको, गाथा-९. २.पे. नाम. उदयपुरमंडन शीतलनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीतलजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. सिद्धकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सेज सुरंगा; अंति: सिधकुसल गुण गाया रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: भोजनं गुप्तं कुर्यात; अंति: यथा राजा कुकरदम, श्लोक-५. ४४०२३. विजयसेठविजयावली वचनगर्भीत श्रीमहावीरस्वामीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२). महावीरजिन स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवीये; अंति: जीत नीसान बजावीये, गाथा-११. ४४०२४. सरस्वतीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११४३९). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल सिधदातार; अंति: होइ शियासंघ कल्याण, गाथा-४४. ४४०२५. क्षुल्लकभव प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८२, पौष कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ९-१४४३९). क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीरं; अंति: सहेअव्वं सुअहरेहिं, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवरं; अंति: संशोध्य श्रुतधरैरिति. ४४०२६. गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). क्षमाविजय गुरुगुण सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: समरुं भगवती भारती; अंति: आणि भगति अपार, ढाल-२. ४४०२७. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. गच्छोत्पत्ति वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दसकुंमतना नाम लख्या; अंति: पासचंद मत प्रगट कीधओ. २. पे. नाम. जैन ऐतिहासिक वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरात् ४५६; अंति: आव्यु सं १४६४. ३. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी मांहे वलोदखे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक अंश दिया गया है.) ४४०२८. (+) अक्षरबावनी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. रूघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २३४४८). १. पे. नाम. केशवबावनी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत है; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दूर सेबो साख देख कहत; अंति: दुर्लभ संत समागम भाई, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४४०३०. (+) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १७२०, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. मानविजय गणि; पठ. मु. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३८-४४). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: केवलनाणंच पंचमयं, गाथा-५१. ४४०३१. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १४-१५४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ४४०३२. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: थुई थुई मंगलं भणेमी. ४४०३४. धुलेवामंडन आदिजिन छंद व पारद संस्कार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. अमृतसोम (तपालोहडीपोसाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १६४३३). १. पे. नाम. धुलेवामंडन आदिजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: रीध सीध वधि पाईए. गाथा-८. २. पे. नाम. पारदसंस्कार विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पारद संस्कारविधि, रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: तांबानी वाटकी; अंति: खरूब खपुं थाय छे जी. ४४०३५. गुरूगुण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ९४५४). जैमलऋषि गुणवर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन जोगे ज्ञानी गुरु; अंति: पूज जैमलजीरी ममाजाजी, गाथा-११. ४४०३६. मैतारिजमुनी स्वाध्याय व कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १३४३३). १. पे. नाम. मैतारिजमुनी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शमदमगुणना आगरू जी; अंति: साधुतणी ए सज्झाय, गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-समस्यागर्भित, क. कक्का कवि, मा.गु., पद्य, आदि: रवि चढीयो ससि गयवरा; अंति: सीप समुंदा माह, दोहा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि हेम कहे० पेटनटा, गाथा-२. ४४०३७. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१). सामाइकी अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए; अंति: अरिहे समणे तहा संघे. ४४०३८. सम्यक्त्वपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०, १३४४७). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. ४४०३९. प्रत्याख्यान भाष्य सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १६२८, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. वा. सौभाग्यचंद्र (गुरु वा. लक्ष्मीचंद्र); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); राज्यकाल इकबरअली जलालदीन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, १०४४७). प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: भावि अईयं कोडि अहिय; अंति: सासय सुक्खं अणाबाह, गाथा-६०. प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भावित प्रत्याख्यानं; अंति: तत् भावविसुद्धं. ४४०४०. (#) चौवीसजिनगुण सवैया, संपूर्ण, वि. १८२२, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १२-१४४४६-५०). २४ जिन गुण सवैया, क. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: सरसत कुं पहिली समर; अंति: रिद्धरु वृद्ध सुथानो. ४४०४१. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, २१४६६). १. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सहीते साचा० तनीपइ; अंति: नही जालमिवा का दीह, गाथा-३४. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. भुवन सोम, मा.गु., पद्य, आदि: मनहि मनोरथ उपजेरे; अंति: दर्शन देजो कामणगारो, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४०४२. (+) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७२१, आषाढ़ कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०,१०४३८). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जपे० गोडीचाराय, गाथा-७. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगुर्यउ; अंति: त्रिकरण सुद्ध प्रणाम, गाथा-९. ४४०४३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५९, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४६). १. पे. नाम. प्रमादवर्जन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजरामर जग को नहि; अंति: यथी हुए परम आणंदो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. साधु उपकरण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वात कहूं छु राजि; अंति: ऋषभसागर० अरथ कहेज्यो, गाथा-१२. ४४०४४. (+) देवलोक जघन्योत्कृष्ट विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४३८-४०). देवलोक जघन्योत्कृष्ट विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोकनी; अंति: पुष्पावकी वर्णनथी. ४४०४५. (+) आदिजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १२४३०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ; अंति: जंपइ वेग सिवरमणी वरउ. गाथा-२५. २. पे. नाम. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजय, पृ. २आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ४४०४७. (+) चेलणारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १९४४९). चेलणासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: तापस कहे सुण श्रेणिक; अंति: जे मरे ओषधनो स्यौजोर, ढाल-९. ४४०४८. छ आरा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. रत्नचंद ऋषि (गुरु ऋ. रंगलालजी); गुपि. मु. रेखराजजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १९४५१). ६ आरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलो सुखमांसुखमी; अंति: सुभ रस सुभ फरस वधसी. ४४०४९. कर्म व शील बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९०५, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सांतु, प्रले. पंडित. सोभाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, ११४३१-३४). १. पे. नाम. कर्मबत्तीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कर्मबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति अलख; अंति: राजसमुद्र० अपार जी, गाथा-३२. २. पे. नाम. शीलबत्तीसी, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. शीलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सील रतन यतने करि; अंति: राजसमुद्र० विचार जी, गाथा-३२. ४४०५०. सुमतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४५९). सुमतिजिन स्तवन, मु. कान, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: सुमतिनाथ जिण सुमति; अंति: तव्या सुमति भगवानजी, गाथा-१९. ४४०५१. (#) स्तवन, स्तोत्र व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५५). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org मु. हर्ष, मा.गु., पद्म, आदिः सखी नवी नवेरी भगति अंति: लहे सूख संपतडी, गाथा- १७. २. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: माहानंद कल्याणवल्ली; अंति: प्रभु पंचमगति दायको, गाथा-१३. ३. पे. नाम. आत्मोपदेश पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्मोपदेशिक पद, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि धनि वेला धनि ते घडी, अंतिः जिम पामो भवत पार रे, गाथा- ६. ४४०५२, (+) शांतिजिन रागमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२६११.५, ११X३८). शांतिजिन स्तवन- रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरुं; अंति: मनना मोरथ सविफलइ, गाथा - ३३. ४४०५३. (-#) सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४)=१, कुल पे. २, अन्य. पं. राजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०, ११×३३). १. पे नाम, पडिकमणा सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., पद्य, आदि: पांच प्रमाद तजी; अंति: याखे ते भवसागर तरसो, गाथा-८. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. धर्मषी, मा.गु., पद्य, आदि: कासीदेश वाणारसी गंगा, अंति: धर्मसी० वंछि आसरे, गाथा - ९. ४४०५४. दुमपुष्फियअध्ययन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ऋ. खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६×१०.५, १२३२). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः साहूणो तिबेमि, गाथा ५. २. पे. नाम सीयलसती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सुभद्रासती सज्झाय- सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधइ ईरय्या, अंतिः रहे सोना केरे ठामि, गाथा - २१. ४४०५५. स्तवन, स्तुति व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११.५, १३३५). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. मेघराज, मा.गु., पच, वि. १८२२, आदि: शीतल जिनवर देव सुणो अंतिः मेघराज पुरी मन भावना, गाथा ६. २. पे नाम. सुविधिजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुवीद्धजीणेशर देव, अंतिः प्रकासी तु ए खोट छे, गाथा-२. ३. पे नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण ८१ दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-). ४४०५६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र- द्वितीयश्रुतस्कंध अध्ययन ७ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६११.५, २२४५० ). सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४४०५७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. श्रावि. राजलदे, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५, १३x४७). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम गुरुगुण स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि आणंदं परमाहृतं देवा, अंति: सिंहात्मिजंभाषितं श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४०५८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२५.५४११.५, १३x२८) 3 "" १. पे नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, आदिः वणारसीनयरी वखांणीये; अंति: जगजीवन गुण गाय हों, गाथा - ८. २. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., पद्म, आदिः सुवीधजीणेसर सुंदररे, अंतिः संघ सहुने आणंद रे, गाथा-५, ४४०५९ (+) प्रश्नोत्तरमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. वे., (२२.५x११.५, १५X३६-४०). प्रश्नोत्तरमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: परम जोत परमातमा परमा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभिक गाथाओं का क्रमांकन अव्यवस्थित है.) ४४०६०. ब्रह्मचर्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. गमतादेबाई; प्रले. मु. लालजी ऋषि (गुरु मु. गोपाल ऋषि); गुप. म. गोपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११.५, ११४४२). मु. " ब्रह्मचर्य सज्झाय, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणी पसुय पंडिगतणा; अंति: सणजो रे ब्रह्मचार, गाथा- १४. ४४०६१. (4) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, राज्ये आ. हेमविमलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२६५११. १५४४५). महावीरजिन स्तवन, मु. लखमण, मा.गु., पद्य, वि. १५२१, आदि: पहिलउं धुरि समरउ; अंति: निश्चई अफला फल, गाथा-८८. , ४४०६२, (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४११.५, १९५६१). १. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. , क्रोधपरिहार सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आवि: आगम अरथ विचारों रे, अंति: करुं सफल अवतारो रे, गाथा- १५. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जतिने वाहलो रे संयम, अंति: नारि संदेस्यो सूणयो, गाथा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय जीवदया सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देव गुरू अंतिः कर्महंस मुनिवर कही, गाथा - १४. ४. पे. नाम. थावच्चाकुमार सज्झाच, पू. १ आ. संपूर्ण. धावच्चाकुमार भास, आव, देपाल भोजक, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: नयरी द्वारामती जाणी अंति: देपो० तेह मुगति जाय, गाथा १९. ४४०६३. (+) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल. अमदावाद, पठ सामानबाई आर्या, सा. हरजाई आर्या, सा. राजबाई आर्या, प्रले. मु. विनय (गुरु मु. कोदरजी); गुपि मु. कोदरजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, १६x४०). शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आविः सारवमाय नमुं सिरनामी, अंतिः वंछित फल निवड पाह गाथा - २१. . ४४०६५ (+) स्तुति, सज्झाय व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, दे. (२६.५४११, २७४१७). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १ अ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन, अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्म, आदि; कांटा कीसी के मत लगा; अंतिः इस जींदगी पररवांया, गाथा २. " ३. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः अतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक १. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४. पे. नाम. आधासीसी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आधाशीशी मंत्र, पुहिं., गद्य, आदि: ॐ नमो हनुवंतबीर के; अंति: मंत्र ईश्वरो बाचा, गाथा-१. ४४०६६.(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: दोषा विमुच्यते, श्लोक-७७. ४४०६७. (+) इंद्रमालापरिधापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४४३). इंद्रमाला परीधान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीआदिदेवाय विश्व; अंति: मुकीइं सदा मंगल्यम्. ४४०६८. (+) पार्श्वनाथ व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४९). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा धप; अंति: छंदसौ वर्द्धमानः, श्लोक-४. ४४०६९. (#) संथारा पोरसी, गोचरी आलोयणा विधि वगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. राजसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३९). १. पे. नाम. संस्तारक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. २. पे. नाम. कायोत्सर्गनिश्चित गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: साहुदेहस्स धारणा, गाथा-१. ३. पे. नाम. गोचरी आलोयणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोचरीथी पात्रो सहित; अंति: पारिते प्रगट लोगस्स. ४४०७०. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. मनरुपजी, रा., पद्य, आदि: तेवीस मां हो प्रभु; अंति: कै मनरूपजी पुन पावसी, गाथा-१६. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ऋ. मनरुपजी, रा., पद्य, वि. १८९७, आदि: वीरजिनेश्वर त्रिभुवन; अंति: हीराचंद गुरदास हो, गाथा-१५. ४४०७१. शनीश्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. केसरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४२७-३०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: संपदा अलगी टालै आपदा, गाथा-१२. ४४०७२. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाडलीपुर, जैदे., (२५.५४१०.५, १६-१९४५१). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२१. ४४०७३. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १६३८, फाल्गुन शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले. उपा. जीवा (संडेरक गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०, १२४६१). १.पे. नाम. जैनरक्षा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान्; अंति: प्रबुधस्तौ तथालिखेत्, श्लोक-१७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, म. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: पद्मप्रभदेव मंगलं, श्लोक-९. ४४०७५. (#) पद्मावतीदेवी पूजन व कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४१). For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी पूजन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: तत्रादौ स्नात्वा; अंति: ०देवी पद्मावती. २. पे. नाम. पद्मावती पूजन कल्प, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी पूजन कल्प, सं., गद्य, आदि: चतुषष्टि बीजदले आदिक; अंति: योगिन्यस्नानमाम्यहम्. ४४०७६. अर्हत्सहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३७). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हते परमात्म; अंति: प्रसादात्त्वयिस्थितं. ४४०७७. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १८४३६). १. पे. नाम. बीस विहरमानजिन वर्णन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: पुष्कलावती विजय१; अंति: देह ८४ लाख पूर्व आयु. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व अनादि अनंत; अंति: अई उत्कृष्ट समाना. ३. पे. नाम. सिद्धशिला मान विवरण, पृ. २अ, संपूर्ण. सिद्धशिलामान विगत, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धसला परधि एक कोड; अंति: परथि चोबखेर जाणवी. ४. पे. नाम. नवपदपूजानी विधिनो सामान, पृ. २आ, संपूर्ण. ९ पदपूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीफल नं १० श्रीफल; अंति: गलुंणां ३ गलाल सेर १. ४४०७८. (#) वीस स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उपवास तथा पोसह करी; अंति: कीजें निर्धार पणे. ४४०७९. (+) जीरतापल्लीस्वामि पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१०, २६४१८). पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ४४०८०. जिनगुण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४३७). जिनगुण स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंदरूपं सुरूपं; अंति: वसुननामा, गाथा-३१. ४४०८१. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४३). २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेसर केसर; अंति: इम मंगल करयो माय. ४४०८२. अष्टोत्तरीस्नात्र व १८ अभिषेक औषधादि सामग्री, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३६). १.पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री लिस्ट, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीफल सोपारी मजीठ; अंति: खेरणी करकचि. २.पे. नाम. अढारअभिषेक सामग्री, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १८ अभिषेक औषधादि सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: सुवर्णचूर्ण स्नात्र; अंति: पाणीना कुंभ एकसु आठ. ४४०८३. (#) वनस्पतिसित्तरी सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, १८४५२). वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइए जिणिंदे पत्ते; अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७१. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., पद्य, आदि: वृक्षाश्तादयः; अंति: लोकाकाश प्रमाणाः. ४४०८४. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१०.५, १४४४०). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अट्ठोत्तरी स्नात्र; अंति: मंडलानांतु मा लिखेत्. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४०८५. (+) स्तोत्र, ठाणा व गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ९४३२). १. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटडी. सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. वीस ठाणा, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं१ सिद्ध२ पवयण३; अंति: अस्सतहा१९ तीथस्सयर२०. ३. पे. नाम. परस्त्रीगमन विरमण श्लोक सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. परस्त्रीगमनविरमण श्लोक, सं., पद्य, आदि: परस्त्री संकटं पंथा; अंति: नीजनारी समस्तथा, श्लोक-१. परस्त्रीगमनविरमण श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परस्त्री छे ने संकट; अंति: तेहिज समो मार्ग छे. ४४०८६. (+#) पडिकमणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउं; अंति: वंदामि जेणे चउवीसं. ४४०८७. स्तवन व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, जैदे., (२७४११.५, १२४२७-३१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज उमंग छे रे अधिको; अंति: मोरा अंतरजामी, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर शांतिजिणंदनी; अंति: राम नव निधि पासे छे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन चौमासी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारा सम जाउं मारे; अंति: मलवानु दील छे साचं, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण... महावीरजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो साहेली वीरजीनेस; अंति: शुभविरप्रभुने परभावे, गाथा-६. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: को न गमे चितको न गमे; अंति: पदमां ते रंगे रमे, गाथा-७. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जीनराज जोवानी तक जाय; अंति: बांहे साहे छे रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिणंद अरिहंत अमने; अंति: ने प्रभुशुप्यार, गाथा-७. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: बापडाला रे पातकडा रे; अंति: बाह्य ग्रहीने रे, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, प्रले. गीरधरलाल; अन्य. श्रावि. उजमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादाणी, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुषोत्तम साहेब; अंति: प्रकटे जाकजमाल हो, गाथा-७. १०.पे. नाम. केसरीयाजीनी लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. रुपविजय, पुहि., पद्य, वि. १८५९, आदि: खडाखडा प्रभु अरज; अंति: सुणी साहेब माहरो, गाथा-९. ४४०८८. (+#) यतिप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४३६-३८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४४०८९. (+) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. श्रावी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६ www.kobatirth.org मा.गु., सं., गद्य, आदि: क्षीरोदधि सयंभुश्चसर, अंतिः वादित्राणि वाद्यंते. २. पे. नाम. संखेश्वरमंडन पार्श्वनाथ महामंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं; अंति: लेसा भव समेसनि आहारे, गाथा-५२. २. पे नाम, जीवविचार सूत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. " ४४०९० (+) विधि व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६५११.५, १२४३८). १. पे. नाम. जलयात्राकरण विधि, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाब, अंतिः पूरय मे बंछितं नाथं, श्लोक ५. ३. पे नाम. प्रत्येक मंत्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरुणदेव पूजा - जलानयन विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ वं वं वं नमो वरुणा अंति: सहीत पांणी लेबुं ४४०९१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ४ वे. (२५४१२, १०x२५-२७). १. पे. नाम. नारीगुण सज्झाय, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सर्व सरीखा नर नहीं सर, अंतिः संघ ने तेज सवाया, गाथा- ३१. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजणेसर सायब मोरां; अंति: बाहे ग्रीहाना लाज, गाथा- ११. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ संपूर्ण मा.गु. पच, आदि सेजा भली रे संतीकनी अंतिः धन धन एह माहासतिजी, गाथा- ११. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि मन मान कहू कोइकेनु, अंतिः ए बात कह छु छेली, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ४४०९२. (+) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जै.. (२६.५x११.५ १७६२). नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाये नमी; अंति: धनविजे शिव सुख करो, ढाल -४, गाथा - ५१. ४४०९३. अष्टप्रकारीपूजा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. नागजी सा शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११X३१). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर, अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक ८. ४४०९४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, १५X३८). १. पे. नाम. दशदृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. १० दृष्टांत सज्झाय, मु. जीवनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वांछित भव निज वस्तुन, अंति: जीवन० गुण ससनेह के, हाल- २, गाथा ६१. २. पे. नाम. आत्मोपदेश पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, रणछोड, मा.गु., पद्य, आदि: ओलखीने लेज्ये रे; अंति: (१) कीरतन धरज्यो कान, (२) अपराधी आतमा रे, गाथा-४. ४४०९५. ढंढणमुनि सज्झाय व गाथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२६११.५, १२४४०). १. पे नाम, ढंढणमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ढणऋषि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन साधु शिरोमणी, अंति: मानविजय उवज्झाय, गाथा - २२. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २. पे. नाम. प्रहेलिका गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: दो नारी अति सांमली; अंति: अलजो अतिहिं करत, गाथा-१. ४४०९६. नवतत्वना २७६ भेदनी विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १३४१३). नवतत्त्व-२७६ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १४ जीवनाभेद १४ जाणवा; अंति: तत्वना नवभेद जाणवा. ४४०९७. चेलानि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १०४२५). शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: इम कहे जीनभाण, गाथा-७. ४४०९८. जंबूस्वामि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३५). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने विनवू, अंति: भणे जंबू नामे जयकार, गाथा-१५. ४४०९९. (+) ग्यानबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. साहिजहानावाद, प्रले. मु. उदयप्रमोद (गुरु उपा. प्रमोद गणि); गुपि. उपा. प्रमोद गणि; लिख. श्रावि. मेघबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३६). ककाबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: क का कीजइ काम धरम; अंति: लिख्या अंक जे निरमया, गाथा-३३. ४४१००. विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४४५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन ९की गाथा ७ तक है.) ४४१०१. नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १६४३५). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलीजी लीजे श्रीअरिह; अंति: जाणजो श्रीनवकार के, गाथा-२२. ४४१०२. अजितशांति स्तवन, औपदेशिक पद व उवसग्गहर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२, १५४५०). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: दुरियमखिलंपि थुणतह, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: एक कै पाइ अनेक परै; अंति: धर्मसी० फिरै है, पद-१. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ४४१०४. गौतमाष्टक व तीर्थवंदना चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४२७). १.पे. नाम. गौतमपरमेष्ठी नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: नमते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण ही है.) ४४१०५. २४ जिन पंचकल्याणक व मातापितादि वर्णन, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. चनणा (गुरु सा. वदुजी महासती); गुपि.सा. वदुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १९४३५). २४ जिन पंचकल्याणक मातापितादिनाम वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नाम वण विमान नगरी मा; अंति: २ वरस सासण परवरत्यो. ४४१०६. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०, १३४४२-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४१०७. उपवास निर्णय आगम सम्मत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४४८-५२). उपवास निर्णय-आगम सम्मत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: राया अठमि चउदसीसु; अंति: (-), (पू.वि. अनुयोगद्वार के दृष्टांत तक है.) ४४१०८. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११, ३७४१८). १.पे. नाम. दंभधर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ शुक्ल, १५, प्रले. पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: सुधा संवेगी करीया; अंति: लाजे नही ए टाला, गाथा-२२. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रेजीव जिन धरम कीजीय; अंति: समयसुंदर० ताह रे जाव, गाथा-६. ३. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथलानअरीनो; अंति: जी हो पामीजे भवपार, गाथा-७. ४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावी हो मेघकु; अंति: प्रीतीविजय० मझार, गाथा-५. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन पद, पं. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर विनती; अंति: नीतलाभ पंडीत गावेरे, गाथा-४. ६. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाल धर्म जिनेस; अंति: शुभ० नित में वरे लाल, गाथा-५. ४४११०. आदिजिन स्तवन, पांच वधावा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १८४५०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी जाणे ते दिन; अंति: गुण० तुठा आनंद रली, गाथा-२३. २. पे. नाम. पांच वधावा, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ वधावो, मु. हरबैस पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: पांच वधावो महार इम; अंति: हरिबैस० फल निरमलो जी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. ज्ञानचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरा मेरा क्या करो; अंति: ज्ञानचंद० मोक्ष राणी, गाथा-७. ४४१११. (-) पांच इंद्रिय सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. नेणसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. पांच इंद्रिय सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: कायाने केरे रे काइ; अंति: रामजी० आपो अविचल ठाण, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. मु. माधव, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब मोरा शांतिजी; अंति: माधवमुनि० कल्याण रे, गाथा-७. ४४११२. सीलव्रत ३२ उपमा व लोभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १६x४८). १.पे. नाम. शीलव्रत ३२ उपमा, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले.ऋ. खीमजी (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि.मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि); मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: ग्रह नक्षत्र तारा; अंति: महारथ मोटो तिम, गाथा-३२. २.पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ पापनु मुल छइ ऐह; अंति: सेवक कहे० एह धात, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४११३. (+-) आदिजिन आरती व गुरु शिष्य संवाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, १०४२५). १. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. इंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरसत सावन वीणव गणपत; अंति: इंद्र० अवधार उर, गाथा-१२. २. पे. नाम. गुरु शिष्य संवाद सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, रा., पद्य, आदि: देख्या रे चेला बीन प; अंति: बीन प्यार प्यारा, गाथा-८. ४४११४. भवदेवनागीला सज्झाय व हितशिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १२४४७). १. पे. नाम. भवदेवनागीला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: रतनचंद० निज सीस नमाय, गाथा-११. २. पे. नाम. हितसीखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनदास, मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी भरमत भरमत; अंति: धनदास० नहीं होत सदाई, गाथा-७. ४४११५. चित्तसंभूत संबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १६४३९). चित्तसंभुति चौढालियो, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रणमुं सरसति सामुणी; अंति: राग ढाल निसलए, ढाल-४, गाथा-४८. ४४११६. (#) उपदेशछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४७). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरूप जामै प्रभूत; अंति: जिनहरष० मोकुं दिजीयो, गाथा-३६. ४४११७. दिनकृत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, ८x२३). मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मिळू; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ४४११८. चित्तसंभुति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३५). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण लहेसे हो के, गाथा-१८. ४४११९. (+) औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: थेतो जीवना जत करो; अंति: इम कहे केवलग्यानी रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: साहवीयारे सिरीसिराम; अंति: तुम समरन मनमा धरोजी, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, रा., पद्य, आदि: मुंड मुडावा तिन गुन; अंति: रामरह्या० न्यारां, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गंग, रा., पद्य, आदि: कहा काभर को खेत काहा; अंति: गंग० गैद पाद तुडायै, सवैया-१. ५. पे. नाम. सुभाषित दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह* पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ४४१२०. पकवान वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.पं. राजविजय; पठ. श्रावि. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: आछी फूल खंडके अखंड; अंति: युं देत दिखावत दाते, सवैया-७. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४१२१. (७) सर्वजिन साधारण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११, १२X३७). २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य, अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वरा, श्लोक ८. ४४१२२. (+) शाश्वतजिन भवनसंख्या स्तवन व गौतमस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६.५४११.५, १३४५०). " १. पे. नाम. त्रिभुवन शाश्वतजिन भवन संख्या स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा - २४. २. पे. नाम गौतमस्वामि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जन घन जनित; अंतिः वरेंद्र गौतमकृत संमद, गाथा - ५. ४४१२३. विजयदेवेंद्रसूरि गुणकीर्ति श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. जीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६११.५, १२X४२). 1 विजयदेवेंद्रसूरि गुणकीर्ति प्रगटीकरण श्लोक, मु. कपूरविजय, मा.गु., सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: सरसती माता पा नमी, अंतिः करविजये गाया सूरीस, श्लोक ७५. ४४१२४. वइरुट्टा स्तोत्र प्रभाव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२६४११, १५४३९) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैरोट्यादेवी स्तुति, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पासं; अंति: लंघिस्सइ पारसनाथीय, गाथा-३०. ४४१२५. (+) दीपोत्सव स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२६४११.५, ६४३). " दीपोत्सव स्तुति, सं., पद्य, आदिः यन्मोक्षपर्व प्रभवेन, अंतिः बुधाः संघलोकाय भद्रं श्लोक-४. ४४१२६. वीतराग नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५X११.५, १०X३३). १. पे. नाम. वीतराग नमस्कार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. 1 मा.गु., पद्य, आदि; छंडिअ सवि हविआर सार, अंतिः टलइ देव देखाइड सोइ, गाथा-१६. " २. पे. नाम. वीतराग नमस्कार, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: करि पंचाग पमाणं भत्त; अंतिः श्रीपार्श्वनाथोजिनः, श्लोक-६. ४४१२७. संखेश्वर पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. हरजी ऋषि प्रो. ग. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदिश्वरजी प्रासादत्, जैदे., ( २६१२, १३४३८). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुरासुरवंद्यं, अंति: संसेवि हंसरत्नायतुं, श्लोक - ९. ४४१३१. (०) उत्रीस अतिसय स्तवन, संपूर्ण वि. १७२०, पौष कृष्ण १२, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १३४३२). ३४ अतिशय स्तवन, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिन चउत्रीसई अतिसइ, अंतिः पासचंदसूर संधुण्या, गाथा-५. ४४१३२. वीरजिन स्तवन, कृष्ण बत्तीसी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२६X१२, १८x४२). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन- चौढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: कीयो दीवाली दिन ए, ढाल - ४, गाथा- ६३. २. पे. नाम. कृष्ण बत्तीसी, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु, पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण, अंतिः रीष जैमलजी० मोव ए. गाथा - ३२. ३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुणिवर सोध इरजी जीव अंतिः अमर तणो अवतार, गाथा- २३. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसे; अंति: लगो भूधर मांगै एह, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ५.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोहवती थोडी रे जीवठ; अंति: हिरदे धरो विवेको जी, गाथा-७. ४४१३३. तेवीसपदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, १२४२८-४१). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्री रतन; अंति: पुरुषने केवली वर्जा. ४४१३४. जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ३६४२२). __ जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीपमइ १८४ माडला; अंति: ८ सय भाग करीए तेहवा. ४४१३५. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. विद्यातिलक; पठ. मु. राजसी (गुरु मु. लालचंद्र); गुपि.मु. लालचंद्र; अन्य. श्राव. रायसंधवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४०-४५). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ४४१३६. महावीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३४). महावीरजिन गहली, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो भोग करम; अंति: दया पाली कारज सीधोरे, गाथा-७. ४४१३७. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२५.५४१२, १०४३८). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मागु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजो सिणगार; अंति: आराधीए आगम वाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाण वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे सुत होसे; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहीन सुदर्शना; अंति: सुणजो एकह चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषण- चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नमुं सीस, गाथा-३. ४४१३८. गुरु गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४९.५, ८४३४). गौतमस्वामी गहुंली, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सखी गुहली करो गुरु आ; अंति: सुखसागर० सारन रे, गाथा-५. ४४१३९. (+) अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ९४३०). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैतर वदि आठिमि दिने; अंति: प्रातिहार्य समृद्ध, गाथा-३, (वि. कृति की १४ गाथा को प्रतिलेखक ने विशेष रूप से क्रमांक देकर ३ गाथा में समाविष्ट किया है.) ४४१४०. सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीरमगाम, अन्य. श्रावि. विजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १४४४४). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो सीमंधर; अंति: तमे कयुने मे सदहूं. ४४१४१. गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १३४५१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: कांतिवजे० गोडीधवल, गाथा-३७. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४१४२. साधु हली, संपूर्ण बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रायचंद, पठ. श्रावि. विजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६११.५, " 3 ११×२७). श्रावक औपदेशिक सज्झाय, पं. शुभवीरविजयजी म.सा., मा.गु., पद्य, आदिः आज रहो मन मोहना तुम, अंतिः शुभवीर० नाररे, गाथा - १७. ४४१४३. सांझनु मंगलीक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६११, १३x२९). संध्या मांगलिक गीत, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: प्रणमीय शासनदेवता; अंति: नमुं पद्मविजय क ए, गाथा - १७. ४४१४४. गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. केसरविजय; अन्य. पं. अभयविजय, पठ. श्रावि. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, १२x३५). १. पे. नाम गणधर गुण गुंहली, पृ. १अ संपूर्ण. गणधरगुण गुंहली, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर हे के गणधर चारि; अंतिः ठडो अनुभव रत्न लहंत, गाथा- ९. २. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्राही नवरी मनोहार, अंतिः तिहां बहु छाजे तो, गाथा- ७. ३. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवरमा परधान, अंतिः उत्तमपद बरे जी गाथा १५. ४४१४५. नेमिनाथ स्तुति व धर्मजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. वखतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१२, १२X३४). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर बंदु पाय अंतिः जिनवर गला कर देखिये, गाथा ४. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मन हरणी जाणै, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४४१४६. पंचमी नमस्कार व अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४१०.५, ११४४०). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ९अ संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर, अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा- ९. २. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु, पद्य, आदि: अड्डावअ गिरितुंग, अंतिः रंगविजय जय जयकार गाथा-४. ४४१४७. वीरथुई अध्ययन (६), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. गोधावी, प्रले. श्राव. वनमालीदास उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११, ८X३२). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति आगमेस्संतिई तिबेमो, गाथा - २९. ४४१४८. महावीरजिन स्तवन व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे. (२६.५X११. ११-१३X३२-३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- चौढालीयो, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. " महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३९, आदि: सिधारथ कुले उपनो, अंतिः कीयो दीवाली दिन ए, ढाल - ४, गाथा- ६३. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. " गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु पद्य वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष: अंतिः मन वंछित फल दातार, गाथा- ९. ४४१४९. (+) वीसस्थानक तपविधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६११, १२४३४). २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं वे अंति: लो ५१० काउसण. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४१५०. षडशीति नव्य कर्मग्रंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १५४४९). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७७ अपूर्ण तक है.) ४४१५१. स्तोत्र व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्रले. ग. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. सरस्वति अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, प्रले. ग. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विविध; अंति: दयासूरि० सरस्वती, गाथा-९. २. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १८१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. सरस्वति अष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि जगज्ज; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९. ४. पे. नाम. अंबा माता छंद, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ सदापूर्ण ब्रह्मां; अंति: भवानी सदा मन आंणी, गाथा-२१. ५. पे. नाम. अंबा मातजीरो छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अंबिकादेवी छंद, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुख वदती ॐकारधुनि, अंति: सुख देज्यो परमेश्वरी, गाथा-२१. ४४१५२. प्रश्नतिलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, २५४६४-७०). प्रश्नतिलक, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती देवीं; अंति: विं. च. व. ए. ष. अ. ४४१५३. मातृका केवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. वि.११७०, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष १४ में युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि के शिष्य पं. गुणरत्नगणि के द्वारा साध्वी रूपाजी के पठनार्थ लिखी गई प्रत की नकल प्रतीत होती है. कोष्ठक सहित., जैदे., (२५.५-२६.०x११, १५४४०). मातृका केवली, सं., पद्य, आदि: ॐ चिलि चिलि मिलि; अंति: कार्यमादिशेत, गाथा-२५. ४४१५५. वीसविहरमान जिननाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११-११.५, ८४३०). २० विहरमानजिन स्तवन, आ. वृद्धिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्री सरसति; अंति: वृद्धिसागर० जय करु, गाथा-९. ४४१५६. जिन गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३४-३८). १. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समीहित पूरण; अंति: सेवइ कामधेनुं सोदोहइ, गाथा-५. २.पे. नाम. शांतिनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन गीत, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: शांति प्रभु सोहइ; अंति: तो पामे लच्छि विशाला, गाथा-५. ३. पे. नाम. मल्लिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिनेसर; अंति: करयो शिव सुख अधिकारी, गाथा-५. ४४१५७. महासत माहासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५-१२.०, ११४२८). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसरबाहुबली अभय; अंति: जसपडहोती हुयणे सयले, गाथा-१३. ४४१६०. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०, १२४४२). १.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि परणेवा चालिया; अंति: समयसुंदर० नारि हे, गाथा-८. २. पे. नाम. मंगल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, रा., पद्य, आदि: अम्हां अम्हां इसे आज; अंति: समयसुंदर० चतुर सुजाण, गाथा-५. ३. पे. नाम. धन्ना शालिभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन्नौ सालिभद्र बेउ; अंति: समय० हंसदाजी हो, गाथा-८. ४. पे. नाम. कर्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. कर्म गीत, ग. समयसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: राग द्वेष तु करमथी; अंति: समयसुंदर० ज्ञात कहीं, गाथा-३. ४४१६१. जीरावलिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४६१). १.पे. नाम. जीरावलिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलि, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याण कल्पद्रुम; अंति: पार्श्वदेवः शिवसंपदः, गाथा-३३. २.पे. नाम. जीराउलिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वामि समूह सेव्यं स; अंति: शिवसंपदः सतां, श्लोक-३३. ४४१६२. चौवीशी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में चदिशी नमस्कार लिखा है., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. ४४१६३. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. उत्तमसागर; पठ. श्रावि. सोहागदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४३४). शांतिजिन स्तवन, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण सुरतरू; अंति: सहविमल सुख सो अनुभवइ, गाथा-३१. ४४१६४. (+) बहुवत्तवयपद-पण्णवणाभगवई सूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५-२६.०४११, ९४३२-३६). प्रज्ञापनासूत्र-बहुवक्तव्यता पद, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: अहभंते सव्व जीवप्प; अंति: बहुवत्तव्वय० समत्तं, गाथा-९८. ४४१६५. (#) जिन नमस्कार व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१३४४५). १. पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मूर्तिस्ते जगता; अंति: करण कौशलमाबिभर्ति, श्लोक-१५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पेखत प्रथमनाविमुख; अंति: दस्तरि लिपी खुटी, गाथा-८. ४४१६६.(+) असज्झाय की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३५-३८). असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिनेसर राय; अंति: रमणी जिस लीला वलं, गाथा-२४. ४४१६८.(#) जिनपालजिनरक्षित चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, २५४६७-७२). जिनपालजिनरक्षित चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १८७ अपूर्ण से १९६ अपूर्ण तक व ४०७ अपूर्ण से ५१४ अपूर्ण तक है.) ४४१६९. पार्श्वनाथ बृहत्कल्प स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. सूरती बंदर, प्रले. उपा. मुक्तिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १६x४६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ बृहत्कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बृहत्कल्पस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: भुजगेंद्रनिर्मितमहं; अंति: पद्मावती संज्ञा, श्लोक-२६. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्र; अंति: ऐ ऐं ह्रीं भुजंगमः. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मंत्रगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: नंदोग्रबिंदुमल चंद्र; अंति: पदायिणो भवंति, श्लोक-६. ४. पे. नाम. मंत्राधिराज बीजनिष्पत्यतिशयवाच्य स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अथ मंत्राधिराजस्य; अंति: मित्थयोगि विचिंतयेत्, श्लोक-३०. ५. पे. नाम. मंत्राधिराजाक्षर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजाक्षरवर्ण, अंति: श्रीपति धौतकीर्तिः, श्लोक-७. ४४१७१. (+) पाक्षिकखामणांव श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २. पे. नाम. दिवसिक रात्रिक अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमुनि वंदन अइया; अंति: वंदण बहुवेलपडिलेहा. ३. पे. नाम. षडावश्यकवृत्तौ, पृ. १आ, संपूर्ण. चातुर्मास कर्त्तव्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चरणे दसण नाणा उझोय; अंति: सुरी एतहुस्सग्गो, गाथा-३. ४. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ सं., गद्य, वि. १९वी, आदि: अस्ति शब्देन प्रदेशा; अंति: तत्थविनउ उद्गाणंपि. ४४१७२. (+) पार्श्वजिन स्तवन व ग्रह स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नवग्रहस्वरूपगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पास; अंति: जिनवर पुरतोवतिष्ठंतु, गाथा-१२. २. पे. नाम. शनैश्वर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र-कुंदपुराणे, पृ. १आ, संपूर्ण. वृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वृहस्पतिर्देवगुरुं; अंति: सर्व पाप प्रमोक्षणं, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शैवनवग्रह स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं काश्य; अंति: ब्रूते न संशयः, श्लोक-१२. ५.पे. नाम. शनि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: सुव्रतजिनेंद्रस्य; अंति: तस्य सौरिः सुखप्रदः, श्लोक-२. ४४१७४. (+) जीवप्रतिबोध हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४६१). आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: सुणो भवक सहु संत, गाथा-१०. आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषनो आउख हिवडा नइ; अंति: तो सुणवा योग्य सुणउ. ४४१७५. (+) महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ८४६०). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जय जय समणो भयवं; अंति: कयं अभयदेवसूरिहिं, गाथा-२३, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जं० जयवंता साधु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २२ तक टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४१७६. (4) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४९.५, ३९४१४). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्यो, अंति: उदय० जगि भाग रे, गाथा-८. ४४१७७. (+) उपधानविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४३, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. मार्तंड बंदर, प्रले. मु. वखतचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ जैदे. (२५.५x११, १२३४). " " उपधानविधि सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि सारद मात लही सुपसावा, अंतिः वाचक भोज गुण गाया रे, 1 www.kobatirth.org गाथा - १८. " ४४१७८. ज्ञानपच्चीसी दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु, मोहविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १५४४४). ज्ञानपच्चीसी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरि जग जोनिमह अंति: उदय करण को हेतु, गाथा - २५. ४४१७९. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२६११.५, १०X३०). , "" सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि उपन्नसन्नाण महोमयाणं; अंतिः सिद्धचकं नमामि गाथा - ६. ४४१८०. वैराग्यनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल, राजनगर, दे. (२५.५x१०.५, ९३३). पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु, पद्य, आदि; सुरतरुनी परइ दोहिलो अंतिः श्रीविजयदेवसूर कई गाथा- ११. ४४१८१. पर्युषण पर्व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि राजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२५.५४११.५, १२X४०). पर्युषण पर्व गीत, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्म, आदि: हिव परव पजुसण आए अंतिः कहइ विमलकीरति सुजगीस, " . गाथा - २१. ४४१८२. सीमंधरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२५.५x११.५, १२४३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर परमातमा शिव; अंतिः वंछित शुभ फल लीधा, गाथा- ९. ४४१८३. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, ११x४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १, संपूर्ण, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. गुणरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सौभाग्य भाग्यातिशय; अंति: परंदेव सदास्वसेवा, श्लोक-१३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्म, आदि; कांता चंद्रमुखी, अंतिः हीनमोकर संयुक्तं, श्लोक-२. ४४१८४. सहस्रचोवीसजिनवृत स्तवन व महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे., (२५.५४११.५, १५X३५). १. पे नाम, सहस्रकूट १०२४ जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: सहसकूट जिन प्रतिमा, अंतिः देवचंद्रनी हो प्रीत, गाथा - १४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंतिः भावेश्युं भेटीउ, गाथा-५. ४४१८५. शुभवर्द्धन निर्वाण गीत, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५४११. १९४४५). " 3 शुभवर्द्धन निर्वाण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि पाय; अंति: शासन कउ सिणगार, गाथा - १५. ४४९८६ (१) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६४११, " १२X४०-४३). श्रवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ, अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., 'परमेश्वर तनइ शासन विपरीत' पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४१८७. (#) सुभद्राजीरो चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खडित है, दे., (२६४९.५, १३४३०-३४). १. पे. नाम. सुभद्राजी सती चौढालिया, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामणं वीनवू; अंति: धन सीयल सदा भलोरे, ढाल-४. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: सुंदर गुण गाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: भो वृक्षा पर्बताग्रे; अंति: श्रीरामनाम स्मरति, श्लोक-१. ४४१८८. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बीनातट, प्रले. श्राव. देवीचंद; अन्य. कुशलसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३२-३६). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर पहिलो अरिहंत; अंति: सफल भव आपणो गिणी, ढाल-४, गाथा-५२. ४४१८९. (+) नवकारवाली स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४५४). नवकारवाली सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध सकल नइ करूं; अंति: मुनि मेरइ कहियो, गाथा-२०. ४४१९०. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०x२४). ___ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: ऋद्धिवृद्धि वैदोषं, श्लोक-४. ४४१९१. (+) महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६६३, फाल्गुन शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुरनगर, पठ.पं. जसविजय (गुरु ग. पद्मविजय); प्रले. पं. पद्मविजय गणि (गुरु आ. राजविजयसूरि); गुपि. आ. राजविजयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १८४४१). महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कंसारिक्रमनिर्यदापगा; अंति: भावता भावितानाम्, श्लोक-२५. ४४१९२. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, १२४३८). महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जइज्झा समणे भयवं महा; अंति: सतुमित्ते सुवावि, गाथा-२१. ४४१९३. पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४४१९४. साधुपाक्षिकअतिचार व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४३४). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ४४१९५. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १४४२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. नीबा, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसतिरे एक; अंति: भव भव दिहाडो तुम भणी, गाथा-६. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-, रा., पद्य, आदि: दैव गहेन अटेरडी जे; अंति: तो केईना मस्तक तोडे. ४४१९७. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १२४३८-४५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: प्रसीद परमेश्वरि, श्लोक-३१. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४१९८. (+) पुद्गलसंख्या स्तवन व ऋषभादिजिनभव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. पुद्गलसंख्या स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. २.पे. नाम. ऋषभादि जिनभवसंख्यादि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिनादिभवसंख्यादि स्तवन, सं., पद्य, आदि: आदौ सार्धपतिर्धाना; अंति: (अपठनीय), गाथा-८, (पू.वि. अंतिम ___ वाक्य खंडित है.) ४४१९९. वीतराग स्तोत्र व रूपावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. ललित मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ११४३२). १.पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वीतराग स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: मम केवला स्यात, श्लोक-९. २. पे. नाम. रूपावली, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याकरण", सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४४२००. महावीरजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १, संपूर्ण. __ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणधामकरणं घनकेवल; अंति: ते श्रीमानतुंगप्रभो, श्लोक-१९. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: नीला पट्टे जलंतक्रेत; अंति: एतत् चांडाल लक्षणं, श्लोक-६. ४४२०१. (+) पार्श्वनाथ दश भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १८१२, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धीरा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७X४४). पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विप्रप्राग्मरुभूति०; अंति: कमठो नाम तापसो जातः. ४४२०२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). १.पे. नाम. मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: एक मुज विनती सुणो; अंति: तो आनंदघन मत लहिइ, गाथा-१०. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालो रेबीजा; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनपति ललीत; अंति: आनंदघन पद लेती रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. श्रेयांसनाथस्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिन; अंति: आनंदघन मतिवासी, गाथा-६. ४४२०३. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १७४५६-६४). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वसुधाभरणा पुरुषाः; अंति: (-), (पू.वि. 'अभयदाने अभयकुमार विचार' अपूर्ण तक है.) ४४२०४. आदीसर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६०). आदिजिन स्तवन, ग. मेघविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी समरथ सेवीइ; अंति: मेघविजय० ग्यान गीता, गाथा-३५. ४४२०५. महादेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १८४४२). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमः तस्मै, श्लोक-४४, (वि. श्लोक ३६ से ३९ व ४४ का हिंदी भाषार्थ भी दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४२०६. पार्श्वनाथ अष्टशतनाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४५०-६५). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. ४४२०७. गुणठाणा द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, २०४२०-२३). १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: बहुत्व द्वार को. ४४२०८. (+#) सुमतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११.५, १५४४४). सुमतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: संस्मरामि सुमति; अंति: विमलालंकार सिद्धासन, श्लोक-१३. ४४२०९. स्तवन व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४९.५,१३४३९). १.पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ११ से १८ तक है.) २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि साहिब विनती; अंति: आगले सदानंद कहे एम, श्लोक-७. ३.पे. नाम. धार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: श्रुत्वा खर प्राह, श्लोक-४. ४४२१०. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ८,१०)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०, ११४४०-४८). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तवन अपूर्ण से लघुशांति स्तवन तक है.) ४४२११. गौतमस्वामी छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गौतम तूठे संपत कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मन शुद्धि आसता; अंति: रोग सोग दुख जावै दूर, गाथा-७. ३. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला वंदो श्रीआदि; अंति: ते लहै सिवसुख थान, गाथा-७. ४४२१२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. त्रिकम (गुरु शिवजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, २१४६२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ४४२१३. जयतिहअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४५५-५८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ४४२१४. अनाथीमुनि सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: सुण्यो वचन अनाथी, गाथा-२९. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: चंपा तोमे तीन गुण, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा ५ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२१५. (+) आदितवार कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, ११x२८). " आदितवार वेल, मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेश्वर मनधरी, अंति: नमी कष्ट संघ वखाण, गाथा-२१. ४४२१६. जिनचरित्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११, १०x४१). १. पे. नाम. आदिनाथचरित्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिव जिणमुसभमुभयं अति: देहि मयं नेहि परमपयं, गाथा - २५. २. पे नाम. शांतिनाथ चरित्र, पृ. ९आ-३अ, संपूर्ण, शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. पच आदिः अप्पडिहवधम्मचक्केण अंति: गय जिणवल्लहपयंदे, गाथा- ३३. ३. पे. नाम. नेमिनाथ चरित्र, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः मयनाहसरिस विलसिर, अंतिः सुह पत्तह कुणसु सिवं, गाथा- १५. ४४२१७. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५.५४११.५, १४४३६) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सीद्धीदायक सदा, अंति: विनयविजय प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा - १०२. ४४२१८. तीर्थोद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. नरेंद्रविजय, पठ. मु. हुकमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५x११.५, १२४३४). तीर्थोद्धार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाता गुरु शारदा, अंति: याहाज जय जय ऋषभजिणंद, ढाल -५. ४४२१९. (+) उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. आणंदविजय (गुरु आ. विजयमानसूरि, विजयआणंदसूरिगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११, १३४३२). "" उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: पामइ रमइ सएच्छाए, गाथा - २५. उपदेशरत्नमाला - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंति: पामइ सुखीउ थाइ. ४४२२०. (+) सरस्वतीस्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, ११३६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद. पू. १अ-२अ संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल अंतिः सोई पूज्यै सरस्वति गाथा- १४. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धरा उद्धरणं; अंति: विजे हेम इम विनति, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी, अंति: ब्रह्मरूपा सरस्वती, श्लोक - ९. ४. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं. पद्म, आदि सरस्वती नमस्यामि; अंतिः करिष्यामि न संशयः, श्लोक ७. ४४२२१. (+) जबूद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, अन्य. ग. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ४४४४). १. पे नाम. जंबुद्वीप संग्रहणी सह टवार्थ, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करी, अंतिः रची हरिभद्रसूरि २. पे. नाम. कर्णिका काढवाना श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: विषमात् पदतस्त्यक्ता; अंति: द्विगुणीकृतं न लयेत्, श्लोक-३. ४४२२२. संथारापोरसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५X११.५, ४x२९). For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्म, आदि निसिही निसिही निसीहि अंतिः एसमत्तंमे गहीई, गाथा १४. संधारापोरसीसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: नमस्कार विना बिजो अंतिः में ग्रहिओ लाघओ. יי ४४२२३. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. चाणसमा, प्रले. पं. ललितविजय; पठ. श्राव. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. भटेवाजी प्रासादात्, जैदे., (२५.५X१२, १५X३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य, अंति: घणो पा मंगल घणो, ढाल -३, गाथा २५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२२४. (*) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. आगरा, प्रले. मु. शिवजी ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६५११. १५४४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीबा पुण्णं पावा, अंतिः वेवपरणाम दसमेव गाथा ६०. ४४२२५. आराधना प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जै.., (२६.५X११.५, २०X५२). आराधना प्रकरण, ग. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीजिनवर रे शांतिकर, अंति: गणि केशव उल्हासइ, गाथा - ६१. १०१ ४४२२६. अंतिम आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६X११, १८x४८). अंतिम आराधना विधि, मा.गु., प+ग, आदि: नाणम्मि दंसणमि चरणम; अंति: अपसखीयं वोसिरइ. ४४२२७. (4) पंचनिर्ग्रथसंग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १५०६, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल. पत्तन, प्रले. ग. उदयदर्शन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. वि. १५०६ की प्रत पर से लिखी हुई प्रतीत होती है. वस्तुतः लेखन संवत् १७वीं होनी चाहिए, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११.५, १६X५७). ', , भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १९२८ आदि पन्नवण वेय रागे कप्प, अंति: रहया भावत्थसरणत्वं, गाथा- १०६. ४४२२८. (+) उपदेशरत्नमाला सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ६४३४). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः वच्छयलि रमइ सच्छाए, "" गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरुप रत्न तेहनउ; अंति: स्थलि स्वेच्छा म ४४२२९. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत. जैवे. (२६४११, ५x२६) १. पे. नाम. प्रश्नोत्तर रत्नमाला सह टबार्थ, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: कंठगता कं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी नमस्कार करीन, अंतिः एभली विभूषिड़ ज. २. पे नाम श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, पृ. ४आ, संपूर्ण प्रा.सं., पद्य, आदि: मृतानामिह जंतूनां अंतिः संवर्द्धयेच्छिखां श्लोक-१. 1 ४४२३०. उपदेशमाला सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. तत्वामृत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १२x२६). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा- ३३. ४४२३१. (+) दंडकादि विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ७ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२५.५X११.५, १९X५३). १. पे. नाम. दंडक के सात बोल. पू. १अ १आ. संपूर्ण. २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो दंडक नारकीतणा, अंतिः निसर्यो मोक्षई जाई. २. पे. नाम. संजय द्वार के १९ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. संजयद्वार १९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संजति ९ संजता संजति; अंति: सत्तावीस बोल जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व‍ सास्वादन२; अंतिः अगुणठाणी बोल. ४. पे. नाम. योगद्वार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मनना ४ वचनना ४; अंति: काया ३ सिद्धायोग्य. ५. पे. नाम. उपयोग द्वार, प्र. २अ, संपूर्ण. उपयोग अधिकार, गु., गद्य, आदिः उपयोग १२ दारं, अंति: ज्ञान केवल दर्शन. ६. पे. नाम. ज्ञानसम्मत आगमिक विचारसंग्रह. पू. २आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. गद्य, आदि ज्ञानधनो धणीठ संसार, अंतिः मायाउ इच्छिउ उच्चा " ७. पे. नाम. इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: अट्ठादंडे १; अंति: इरियावहिए दंडे १३. ४४२३२. भक्तामर स्तोत्र भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वाजोली, प्रले. मु. वृद्धिचंदजी (गुरु मु. बुद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, ११x४१). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि : आदि पुरूष आदिस जिन, अंति: भावसु ते पामै सिवखेत, गाथा- ४८. ४४२३३. श्रावक अतिचार व सामायिकपारणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. चंडावल, जैदे., (२५.५X१०, ११X३१). १. पे. नाम. श्रावक लघुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. श्रवकपाक्षिक अतिचार- लघु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीज्ञानन विषेड़, अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. सामायिकपारणसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: सामाइअवयजुत्तो जाव, अंतिः अविध असातना कीधी हुई, गाथा २. ४४२३४. साधारणजिन स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४१२, १२४३२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: इष्टानिष्ट वियोग, अंतिः देवाधिदेवो जिनः, गाथा-६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: मत्तैरनालोकिताः, श्लोक-५. ४४२३५. वीरथुई अध्ययन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव कानजी, पठ. श्रावि हेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( २६११, ९४२८). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिस्सणं समणा; अंति: शिवइ आगमिति तिबेमि, गाथा २९. ४४२३६. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १६X५१). शांतिजिन स्तवन, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्म, आदि दद्याच्छ्रीशांतिदेवो अंतिः कुर्वति संपत्तयः, गाथा-१९. ४४२३८. (१) वणझारा सज्झाव व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१०.५, १२४२४). १. पे. नाम. वणझारा सज्झाय, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. वणजारा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः वणजारा रे ऊभउ रही; अंतिः संग्रहे वणजारा रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि आंबिल पचखामि अन्नथणा अंति: बत्तियागारेणं वोसिरड For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४२३९. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. वीरचंद्र (गुरु पंन्या. दानचंद्र ); पठ. श्राव. मावजी शाह ( श्राव. देवजी शाह); श्राव. हेमा शाह (पिता श्राव. हीरजी शाह): श्राव. माणिक्य शाह (प्राग्वाट ज्ञातीय) (पिता श्राव. कल्याणजी शाह), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २४४१०.५, १३x४४). नेमिजिन स्तवन - समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायवकुल सिणगार सिरि, अंतिः सोमसुंदरसू० ते लहब ए. कडी- ३६. ४४२४०. स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, दे., (२५.५X१२, १४X३२). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: नेमिस्वर जिनवर गासु, अंति: जगजीवन उल्लास रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते माहरु मोकलु; अंति: वीनती वसता दूरवि चाल, गाथा-८. ३. पे. नाम. मेघमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि आवो आवो रे मेघ तुमें अंतिः कान्हजी० गुण घणा रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मानपरिहार सज्झाय, ग. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: म्हेलो म्हेलो निमा; अंति: लब्धिवचन उर धारज्यौ, गाथा - ५. ५. पे. नाम. पति आगमन पृच्छा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांच सोपारी लेई; अंति: मारु इ सुख भोगवे जी. ६. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोख में सखीओ संघात; अंति: स्वाम घर भणी जी, गाथा-५. ४४२४२. महासत्ता ५४ महासती ५४ स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र शुरू, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. भक्तिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४१२, ५४२५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभइ, अंति: जसपडहोती हुयणे सयले, गाथा- १३. भरसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवपुत्र भरत अंति: माही व्यापी रहो छइ. ४४२४३. विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे. (२६४११, २७४३८). " १. पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव चेतन १ अजीव; अंति: रीतो सोही मोख्य. २. पे. नाम, सम्यक्त्व नामविचार सह विवरण, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण, सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित भाव; अंति: समकित दीपक समकित . सम्यक्त्व के ९ नाम विचार- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यसमकित कहता; अंति: शक्ति आराधवो तेउ पाय. ३. पे. नाम. पुगल भेद-विचार, पृ. ३अ संपूर्ण, पुद्गल भेद विचार - भगवतीशतक ८ उद्देशा१, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पउगसा ते जीव; अंति: असातनामि १५. ४. पे. नाम, गुणठाण विचार, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. १०३ - १४ गुणस्थानक २९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिध्यादिष्टि अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १४ द्वार तक लिखा है.) ४४२४४. (+) अनुभवसिद्धमंत्रद्वात्रिंशिका अधिकार- ५ व अकडमचक्र, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. ऋ. हरखचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X१२, २२X४७). १. पे नाम. अनुभवसिद्ध मंत्रद्वात्रिंशिका अधिकार ५. पू. १अ संपूर्ण. अनुभवसिद्ध मंत्रद्वात्रिंशिका, आ. भद्रगुप्तसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अति नित्यं विभावयेत्, प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अकडमचक्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: द्वादशरेखाचक्रं च; अंति: एवं चक्र बलाबलम्, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. मंत्रसाधन मास वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण.. __मंत्रारंभ मास वर्णन, सं., पद्य, आदि: मंत्रारंभस्य; अंति: जप होमो निरंतरम्, श्लोक-५. ४४२४५. (+) २५ बोल, संपूर्ण, वि. १९२९, भाद्रपद शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. घोघदा, प्रले. मु. भारमल्ल (गुरु आ. जयाचार्य), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १२४३८). २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: जत्थाख्यात् चारित्र. ४४२४६. कालिकाचार्य कथानक, संपूर्ण, वि. १९५५, भाद्रपद कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. जीवणसीग आणंदराम पुरबीआ; लिख. मु. वृद्धिविजय (गुरु मु. विनयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२, ११४३७). कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरवाक्यानुमतं; अंति: यच्छंतु संघे अनघे, श्लोक-६५. ४४२४७. चार शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, १२४४७). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: भगवानजी सरणे कही छइ. ४४२४८. संथारो करवा कराववानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). संथारा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम खमासमण देवरावी; अंति: तिविहेण वोसरीयं. ४४२४९. (+) तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तत्पट्टे; अंति: पूज्य श्रीजयरत्नसूरि. ४४२५०. (4) पंचप्रतिक्रमणविधिगर्भित सुमतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन-प्रतिक्रमणविधिगर्भित, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९०, आदि: सुमति कर सुमति जिन; अंति: कीधु हरख भर सुजगीस ए, ढाल-६, गाथा-२०. २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: प्रभुसु मलि माचोरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विषयने विसारी विजयान; अंति: परमानंद वदी तोरे, गाथा-३. ४. पे. नाम. संभवजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.. संभवजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: दीन दयाकर देव संभवना; अंति: आज दूधे मेह तूठोरे, गाथा-३. ५. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सधीरथनी शुतउ; अंति: उदयरत्न० करी गुजोरे, गाथा-३. ४४२५१. (+) सज्झाय व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०३, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. पचीयाख, प्रले. मु. नारायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६-२१४४५). १. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आतमा राखेरेशील; अंति: बोलइ श्रीउपदेशमाल, गाथा-८. २. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण संपूर्ण एक अरिह; अंति: सहजसुंदर चा बोला, गाथा-३. ३. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु गुण रतन समुद्र; अंति: करु सफल पयाण रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्म, आदि जलचर जलमाहि फरुं ज, अंतिः सहजसुंदर० विमासी, गाथा-४, ५. पे. नाम. धन्ना शालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक वछ ताहरइ घरि; अंति: कर्मचंद० जइ जिनराय, गाथा - ९. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - काया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पाखण परभवी पांच इंद्; अंति: कवि कहइ घणे रामा रइ, गाथा- ९. ४४२५२. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रूपारूचि (गुरुग लब्धिरूचि पंडित); गुपि. ग. लब्धिरूचि पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, ९x४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाओ सुयसमुदाओ, गाथा ५०. ४४२५३. आदिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६x११, १०X३४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनककुशल, पु,ि पद्य, आदि आइयौ आइयौ नाटिक नाचे, अंतिः येहि न वरस लागे लो, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनवशीकरण सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदिः उदर भरन रै कारण गउव, अंति: ल्यो भगवंत नाम " रे, गाथा-४. गाथा - १५. ४४२५७. स्तोत्र व पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X१२.५, १३X२८). १. पे. नाम संतिकरं स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. * ४४२५५ (+) पाटणतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पंन्या. खिमाविजय (गुरु मु. कपूरविजय, तपागच्छ); गुपि.मु. कपूरविजय (गुरु पंडित. देवविजय कवि, तपगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैवे., (२३४१०, १०-१३४३२- ४० ). " पाणतीर्थमाला स्तवन, मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: कपूरविजय० वृद्धि करो, गाथा- ६१. ४४२५६. जीवकाया स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७६१, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मंगलसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १०X३७). जीवकाया सज्झाय, मु. वर्धमानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामणि वीनवै रे; अंतिः वर्धमान० दोलति थाय, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, प्रा. पद्य, आदिः नमिऊण पणयसुरगण, अंतिः नासह तस्स दूरेण, गाथा-२४. " ३. पे नाम. ८ प्रकारी पूजा दुहा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्नात्र करता जगत; अंति: धावता फल समापति संगै, गाथा- ९. ४४२५८. शत्रुंजय गजल व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३ माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र 2 प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५५११, १४४३१). " १. पे. नाम. सिद्धाचलगिरि गजल, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. १०५ गाथा - ६९. २. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण सुभाषित लोक संग्रह में पु,ि प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-२. 3 शत्रुंजयतीर्थ गजल, मु. कल्याण, मा.गु. पद्य वि. १८६४, आदि: चरण नमु चक्केसरी, अंतिः कवि यु कहत हे कल्याण, 1 For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४२५९. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३७). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तीर्थ प्रणमुं; अंति: लावण्य० कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ४४२६०. रात्रीभोजन सज्झाय व एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४५१). १. पे. नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी आण; अंति: सुजस सोभाग लहीजे रे, ढाल-४, गाथा-३५. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ४४२६१. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ., (२५४१०.५, १६४५८). १.पे. नाम. आतम पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हो आतम अजब जोति है; अंति: मुगति हुई युं तेरी, गाथा-५. २. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अब क्युं न होत उदासी; अंति: सेवो शिवपुरावासी, गाथा-५. ३. पे. नाम. अध्यात्म गीत, प्र. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: थिर नांहिरे थिर; अंति: छोडणहारावे सांइ, गाथा-५. ४. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मन न काहू के बस मन; अंति: विनय साई सेती रसहीं, गाथा-५. ४४२६२. जिनस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. सरदापुर, पठ. श्रावि. पान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार; अंति: संघने सुख देवई, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी; अंति: देवा नेमिसेवै सुहेवा, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नाग; अंति: जाणइ अमित वंदो, गाथा-४. ४.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: कठन करम मेली काठीआ; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ४४२६४. (+) पद्मावती आराधना, जीवाखामणा सज्झाय व चउसरण गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, १२४३३). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. २.पे. नाम. जीव खामणा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: लाख चौरासी जीव खामीय; अंति: समयसुंदर० प्रभावोजी, गाथा-३. ३.पे. नाम. चउसरणा गीत-प्रथम शरण, पृ. २आ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुमनइ च्यार सरणा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४२६५. माणिभद्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३४). माणिभद्रवीर स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रेयः सारसदागार; अंति: देवस्त्रिलोकीगुरो, श्लोक-२१. ४४२६७. स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. आ. हंसरत्नसूरि (गुरु पंन्या. ज्ञानरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४४७). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: देवी सारदा वरदायिनी, श्लोक-६. २. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन मंत्रगर्भित स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जंपइ पूरो संघ जगीस ए, गाथा-३. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-९. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: समरीह टलि सघला कलेस, गाथा-६. ४४२६८. सुसढकथा - महानिशीथसूत्रे द्वितीयचूलीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १९४५०). महानिशीथसूत्र-सुसढ कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहाह्यई कह्यु; अंति: जयणा जाणशइ त तरशइ. ४४२६९. क्रोध लोभ मान माया छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. सरदार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नेमनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, १२४३२). क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पहेलो सरसति लीजे नाम; अंति: कांति० हर्षे गुण गाय, गाथा-३०. ४४२७०. सिद्धगिरिराज गरबी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १५४४२). शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: दीप० सुख साजने रे लो, गाथा-१५. ४४२७१. गोडीपार्श्वनाथ उत्पत्ति छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. ग. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५,११४२४). पार्श्वजिन छंद-गौडी-उत्पत्ति, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: साचा स्वामि सुह विधि; अंति: महीअलि महिमा महि महइ, गाथा-२८. ४४२७३. आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १३४४४). आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञान आशातनायां उप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'पंचेंद्रीप्रमादे विणासे' पाठ तक है.) ४४२७४. आलोयणा, निगोद विचार व असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १५४१३). १. पे. नाम. आलोयणा विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमढ; अंति: पचक्खाणभंगे उपवास १. २. पे. नाम. नीगोदी जीव विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नीगोदीया जीव मरि नव; अंति: (१)तस्स होइ निरथय, (२)हुती आव्यो जीव होई. ३. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धुंअर पडे तो सीम असझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'बुदबुदा रहित निरंतर वरसे तो ५ दिवस' पाठ पर्यंत तक लिखा है.) ४४२७५. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ६, दे., (२४.५४१०.५, १७४५४). For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहं काल; अंति: जीउ होइ सहज सुरझेला, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक अष्टपदी, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: अलख अखय निधि लूटै, गाथा-८. ३. पे. नाम. कुमतिकुदेववर्णन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा जिनसारखी; अंति: तजै समकती सेव, गाथा-२. ४. पे. नाम. जिनप्रतिमावर्णन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा एकादशी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इह विध देव अदेव की; अंति: असुरनी निरदेह संसारी, गाथा-८. ५. पे. नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईय; अंति: विना तू समुझत नाहीं, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: कबीर कबीर क्या करो; अंति: करै सोई दास कबीर, दोहा-१. ४४२७६. सामायिक १२ भेद गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १८:५५). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: उरग१ गिरीर जलण३ ___सागर; अंति: पवण१२ समायतोसमेणो, गाथा-१. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा कीटीका, सं., गद्य, आदि: अत्राणुयोगद्वारि साम; अंति: लिंगभारवाहश्चेति. ४४२७७. ऋषि बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४.५४११, १७४५३). अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिनहर्ष० नमुकरजोडी, गाथा-३२, संपूर्ण. ४४२७८. पदमावती जीव रासी खामणां, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १०४३३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर० तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ४४२७९. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४२८). असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काति मगसर मास; अंति: कवि नाम कहिउ इण परि, गाथा-१५. ४४२८०. वैराग्यरंग सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२४.५४१०.५, १३४३८). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल चरण नमीजे चरण; अंति: विजैभद्र० नवि अवतरै, गाथा-२५, संपूर्ण. ४४२८१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १२४४०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीमहावीरस्वा; अंति: श्रीनगराजजी सूखानं, (वि. यह पट्टावली तपागच्छीय है किन्तु पट्ट संख्या ५६ से दूसरे गच्छ के आचार्यों का नाम जोड़ दिया गया है.) ४४२८२. मेघकुमार कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, ११४२६). मेघकुमार कवित, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रलोक सूरसभा इंद; अंति: पुष्पवृष्ट देवै करी, गाथा-५. ४४२८३. लीलाधर लीलावती बारमासो व पद्मिणी बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. नरसींघदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम. लीलाधर लीलावती बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. लीलाधर लीलावती बारमासा, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कामणि जपै कहत; अंति: विद्यारुचि० हो लाल, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम. पद्मिणी बारमासो, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. पद्मिणी बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: तात चरण प्रणमी करी, अंति वालंभ मन मे धारज्यो, डाल- १२, गाथा-२५. ४४२८४. नरकावास स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५x११, १२X३१). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि : वर्द्धमानजिन विनवु; अंतिः यामणे परम कृपाल उदार, ढाल -६, गाथा-३५. ४४२८५ शांतिजिन चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य मु, गुणविजय, मु. माणेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१०.५, ८x२९). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अनंत अंतिः मंगलीकमाला संपजे, ४४२८७ (+) सरस्वती स्तोत्र, क्षेत्रपाल पूजा व घंटाकर्ण मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५४१२, १२४३०). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमते देवता अंतिः मेधामावहति सततमिह, श्लोक ९. २. पे. नाम. भैरव गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं, पद्य, आदि जैन को उद्योत भैरु, अंति: गावे गीत भेरुलाल को, गाथा- १३. ३. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. יי घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४४२८८. चांदलीयो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२४.५४११.५ १२४३५ ). सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेशो अंति: जिनहरख सुजाण रे, गाथा- १५. ४४२८९. पूर्व देश नगर नागर संख्या मान व जादव वंसावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२४.५X११, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२X३८). १. पे. नाम. पूरव देस नगरी संख्या, पृ. १अ २अ, संपूर्ण पूर्व देश नगर नागर संख्यामान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अणहलवाडी पाटणथी ८००; अंति: पंथ ९ हजार वनसपति. २. पे. नाम. जादव वंशावली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ राजामुनिसुव्रत, अंति: लव कुसुम कुमार जाणवा. ४४२९० सेश्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५x११.५, १७५१). १०९ शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर प्रमंडन, अंतिः देही दंसण जयकरो, ढाल - १२, गाथा - १२३. " ४४२९१. स्तंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९०७ चैत्र कृष्ण, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३. दे. (२३४११.५, १४X३२-३५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुवणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभव० , " विन्नवइ अणिदिय, गाथा- ३०. ४४२९७. सीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५x१०.५, ९४२८). , " ४४२९५. इलाकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२२x११, १२-१४X३५-३७). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा, अंति: (-), (पू. वि. ढाल १० अपूर्ण तक है.) ४४२९६. (*) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, ११x२९). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: डीघी तो गोरी बेढी; अंति: राय किसान दु रंग मे, गाथा-१०, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो समजो सकल नरनारी; अंति: कवीयण० सीखो जरुर सी, गाथा-१६. ४४२९८.(-) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १३४३३). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सकलामल मंगल कमलाकेलि; अंति: वचन विजय विलास, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनवृषभ संघपूज्य; अंति: देवसूरे० सपदे भूया, गाथा-२. ४. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमती जिनेसर सेवीइं; अंति: उत्तम पद पद्म० उदार, गाथा-५. ५.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४४२९९. (+) हितोपदेश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४४०). हितोपदेश सज्झाय, मु. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन जिनवर वंदवा; अंति: उदय० जग जिनराय रे, गाथा-२२. ४४३००. (+) गुरु भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, ९४२५). गुरु भास, मु. खांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदन जइई जइई गुरु; अंति: खाति० सुख पावेरे, गाथा-६. ४४३०१. पंचमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ९४२८). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिद्धने करी; अंति: ऋद्धिकीर्ति० थाओ धणी, गाथा-११. ४४३०२. अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, ३०x१५). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ४४३०३. नवतत्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ११४३१). आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यने पाव; अंति: मानवि० चित धरज्यो जी, गाथा-४. ४४३०४. स्तुति व थोइ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३८). १.पे. नाम. सुधर्मदेवलोक थोइ, पृ. १अ, संपूर्ण. सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: श्रीसंघने सुख थाया, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवी मन रंग; अंति: कवि मान कहे करजोडि, गाथा-१२. ४४३०५. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नवानगर, जैदे., (२५४११, १६x४६). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२२. ४४३०६. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४८.५, ११४३५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४. ४४३०७. गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. ऋ. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, ९४२९). गुरुगुण गहुली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे देशना दो; अंति: अमीय० भणे जी रेजी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४३०८. बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६१, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. नागरदास जीवराज शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ८४३०). बाहुबली सज्झाय, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बहेनी बोले हो बाहुबल; अंति: दिन दिन चढ़तो छ वान, गाथा-५. ४४३०९. जोबन अस्थिर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, ८४३१). औपदेशिक पद-योवन, मु. उदयरत्न*, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनियानी मोंजा फोजा; अंति: उदयरत्न वातो केती रे, गाथा-५. ४४३१०. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १६८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्रावि. गांगबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४४६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४४३११. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आ. गुणरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सौभाग्य भाग्यातिशय; अंति: गुणरत्नसिंधो० सेवा, श्लोक-१६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ४४३१२. धर्मचंद्रगुरु भास व अजाउरपार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४४२). १.पे. नाम. धर्मचंद्रगुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रवि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि मनि धरी; अंति: मेरो मन मोहिओरे लाल, गाथा-१३. २. पे. नाम. अजाउरपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-अजाउरमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: अजाउरमंडन जिन पास; अंति: धरम धरओ ते पदमावती, गाथा-४. ४४३१४. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने समयसुंदर द्वारा रचित क्षमाछत्रीशी की अंतिम दो गाथाएँ लिख दी है., जैदे., (२५.५४९, १३४५२). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्याजी; अंति: यहु संसार असार समाई, गाथा-२२, संपूर्ण. ४४३१५. पार्श्वजिन स्तोत्र व पंचकल्याण स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व परमात्म; अंति: विदधुः स्तवम्, श्लोक-८. २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनपंचकल्याणक स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निलिंपलोकायित भूतलं; अंति: जिन प्रभवंति तस्मिन, श्लोक-८. ४४३१६. (+) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३२). १. पे. नाम. सुपार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन वरदाई समरु; अंति: सीस गजकुशल जयकार हो, गाथा-७. २. पे. नाम. शीतलनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनवर वीनती जी; अंति: गजकुशल०लहइ लील विलास, गाथा-७. ४४३१८. होलीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सणवानगर, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ६x४२). होलिकापर्व कथा, आ. जिनसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: वित्तांनावचनोचितः, श्लोक-५१. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११२ www.kobatirth.org होलिकापर्व कथा-टबार्थ, ग. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानंजिनं; अंति: योग्य समूहें करीनें, प्र.ले.पु. सामान्य. ४४३१९. द्वारामती सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १६x४६). १. पे. नाम. द्वारामती सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि द्वारामतीनो देखिउ, अंतिः पुन्य वडो संसार हो, गाथा- ६०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ४४३२०. कुत्ते समान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६X११.५, १३X५१). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सवे दुख टलयगे महावीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) , औपदेशिक सज्झाय- कुत्तादृष्टांत, पुहिं., पद्य, आदि: एक जो कुत्ता कु ते; अंति: दुर्गत में फिरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३२१. गुर्वावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२३४११, १५४३८). "" गुर्वावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अंतिः श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१७. ४४३२२. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४X११, १६X५७). धर्मजिन स्तवन- आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतनुं अंतिः (-) (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अंतिम गाथा १३८ का पाद ३ तक लिखा है.) ४४३२३. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १, जैये. (२४४१०.५, १२४३९). सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित अंतिः मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक- ९. ४४३२४. उपदेश सज्झाव व गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे., (२५x१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. उपदेशक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः सुणजो लोको रे मोहनी अंतिः लि जे बहुली ऋद्धिरे, गाथा- ७. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि जिन नेम आगम सुणी, अंतिः सेवक कहे गणी काहन रे, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ४४३२५. अष्टमी स्तुति व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११, १२x२९). १. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंतिः तपथी कोडी कल्याण जी, गाथा-४. २. पे नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अहनिसी वंदन साचवी, अंति: दुख सी कल तोडी हे, गाथा-८. ४४३२६. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२४४१०.५, ८४२६). ו सुमतिजिन समवसरण गीत ग. जीतविजय, मा.गु., पद्म, आदिः आज गई थी हुं समवसरण अंतिः जीतना डंका वाजे रे, गाथा- ७. "" ४४३२९. पर्वतिथि निर्णय- विविध शास्त्र सम्मत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५.५x१०, १६x४६-५०). पाक्षिकचतुर्दशी तिथिनिर्णय- विविध शाखोद्धृत, मु. चारित्रसिंह, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: ( अपठनीय), (वि. आदिवाक्य का अंश मूषक भक्षित है एवं अन्तिम वाक्य अस्पष्ट है।) ४४३३०. चोवीसदंडक पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५X११, १०X२७). For Private and Personal Use Only आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि रिषभ जिनेसर त्रिभुवन अंतिः हुं चरणे शिरनामी रे, गाथा- ११. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४३३१. सिद्धचक्र स्तवन सह टबार्थ व पार्श्वपद्मावती स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदविजय, पठ मु. दोलतविजय (गुरु पं. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५५११, ५४४१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र यंत्र स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण, अंतिः सिद्धचक नमामि गाथा - ६. सिद्धचक्र चैत्यवंदन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः उपन्न कहतां उपनु जे; अंति: नमामि कहतां नमू छु. २. पे. नाम. पार्श्वपद्मावती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनपद्मावतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं की अंतिः पानसुपानापुन्यवति श्लोक-४. ४४३३३. पार्श्वजिन स्तुति व पार्श्वजिन मंत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जै., (२५.५४९, ७४३५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण ४४३३२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०, १४X३५). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि नम एव पणय सही माया अंतिः भरनिव्भरेण हिअएण गाथा-४ (वि. गाथा ४ है परन्तु ९मी गाथा का संकेत है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ईयं संधुमहायस भति, अंतिः गणी समस्त संकट उपशमि. ४४३३४. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे.. - (२५X१०.५, ६x४० ). पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि जसु सासणिदेव अंतिः ते स्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव - स्तंभनक मंत्रगर्भित - स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: सत्यं ज्ञेयं. 3 " ४४३३५. चैत्यवंदन, सज्झाय संग्रह व मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, जैदे., (२५x११.५, ११४३८). १. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आवि: सिद्धाचल गिरनारगिरि, अंतिः पुण्यमहोदय० कल्याण, गाथा-५. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: सारदा माता प्रणमुं; अंतिः पुण्यवंत ते पामे लील, गाथा - १८. ३. पे. नाम. अष्टोत्तरस्नात्र मंत्र, पृ. २अ संपूर्ण. ११३ है, जैदे. (२४.५x११. ९४३० ). . , १. पे. नाम. संसारदावानल सह टीका, पृ. १अ संपूर्ण सं., पद्य, आदिः ॐ नमो अर्हत् परमेच अंतिः कुरुकुरु स्वाहा, श्लोक-३. ४. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओ सखि ओ वली पहोंवा; अंति: मुनिवर मुला गोहगं, गाथा-४. ४४३३७. (+#) संसारदावानल स्तुति गमनागमन पृच्छा व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, " ले. स्थल. बीजापुर प्र. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी संसारदावानल स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदि: वीरं नमामि स्तौमीतीक अंतिः त्यादि प्रागैवोक्तम् २. पे. नाम. गमनागमनपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण ग्रामागमन पृच्छा, सं., पद्य, आदि: बुधे चंद्रे भवेत्, अंतिः सेर्व संहारो, लोक-३. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: संसारदावानलवाहनीर, अंति: हत्यादि प्रागेवोक्तं, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग्रामागमन पृच्छा-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: बुधे चंदे क० बुधवार; अंति: (-). ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: बालि सखि तमकारिण; अंति: भणिमंक न जायोछपि, श्लोक-२. ४४३३८. पडिलेहण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३). मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. भानुमेरुगणि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय पणमेवि; अंति: भानुमेरु० देयो जगदीस, गाथा-२१. ४४३३९. श्लोक संग्रह, योगीनाथ गीत व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १६४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: पीत्वा गर्जति तें; अंति: नेयत्प्रमेहीनभुक्ते, श्लोक-२. २. पे. नाम. योगीनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: योगीनि योषि मनही; अंति: यती सती तु नाथ रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करीइ पर ऊपगार मुंकी; अंति: सुधारस दीवडो रे, गाथा-७. ४४३४०. नेमीनाथ रास व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३२). १.पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय पाय परणमी; अंति: प्रणमइ नेम जिणंद कि, गाथा-६५. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छप्पन कोडि जादव मिल; अंति: तिहां किसन मुरार हं, गाथा-४. ४४३४१. पद्मावती सज्झाय व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५०-१७५२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्रले. मु. ठाकुरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, १३४४४). १. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एगिदियाणंज कहवी; अंति: मझिम आलोयणा उपवास. २. पे. नाम. अंतकाल आराधना विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अंतिम आराधना विधि, प्रा., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि पडकमा; अंति: तं तिवहेण वोसिरामि. ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्य विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १७५०, चैत्र कृष्ण, १३, मंगलवार, प्रले. मु. वर्द्धमान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अहं भंते तुम्हाणं; अंति: नमोथुणं कहीयई. ४. पे. नाम. पद्मावती सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७५२, वैशाख शुक्ल, ७, बुधवार, ले.स्थल. गुढा, प्रले. मु. ठाकुरसी, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवराणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ५. पे. नाम. दीक्षा उच्चार विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम नवकार भणी पछै; अंति: गुणेसु वदसु मुंडावणा. ४४३४२. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ४४३४३. चतुर्दशी स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. नवानगर, प्रले. ग. मानविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय); गुपि. उपा. लावण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, ३४२७). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे भगवंत केहवा छे; अंति: रूपी क० इच्छाचारी छइ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४३४४. बार भावना व दोष ज्ञान, संपूर्ण, वि. १८वी, फाल्गुन शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. दयामूर्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०,१५४४४). १.पे. नाम. १२ भावना संधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७५०, फाल्गुन शुक्ल, ९, रविवार, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. पं. दयामूर्त, प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: भणतां सवि सुख थाअइ, ढाल-१२, गाथा-७२. २.पे. नाम. दोष ज्ञान, पृ. ३आ, संपूर्ण. लग्नानुसार क्षेत्रपालादि दोषज्ञान, सं., पद्य, आदि: लग्नेष्टमे व्यये; अंति: मित्रे स्वजन संभव, श्लोक-१३. ४४३४५. चकेसरी गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०४३३). चक्रेश्वरीदेवी छंद-शत्रुजयतीर्थअधिष्ठात्री, मा.गु., पद्य, आदि: मा चकेश्वरी सिद्धाचल; अंति: सेवा करी ते फल लेजो, गाथा-८. ४४३४६. (+) संथारापोरसी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पद्मरूचि; पठ. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, ११४४०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मएगहीएं, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा ११ को भी गाथांक १० ही दिया है.) ४४३४८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मंगलाचरण में पू. लक्ष्मीसागरसूरि की संक्षिप्त पट्टावली दी गई है।, जैदे., (२५४१०.५, १५४४२). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सीसो, गाथा-१४. ४. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भयं तस नासेई दूरेण, गाथा-२४. ४४३४९. ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. घोघा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३९). आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ४४३५०. तीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. चिरंजीव, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०, १३४३२). साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख सवि; अंति: ऋषभ कहिइ ते धन, गाथा-७. ४४३५२. (-) पार्श्वजिन स्तवन, धन्नाशालीभद्रादि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२,१३४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. २. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, रा., पद्य, आदि: धना चौकी पर थयो जी; अंति: केवली बचन परमाण हो, गाथा-१९. ३. पे. नाम. उपदेशक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. चंदन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: वाहा का जविया कछहु न, अंति: चंदनरिष० अवचल ठाम, गाथा- ११. ४. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. 1 क्र. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ जै नंदन धारणी; अंति: पाम्या अविचल ठामसुं, गाथा-७. ४४३५३ (०) जिनप्रतिमाहुंडि रास, संपूर्ण, वि. १८३३, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, गौल, प्रले. मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम); गुपि. मु. कनकसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X३४). जिनप्रतिमाहुंडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि सौदेवी हीयडे घरी सदग, अंतिः जिनहर्ष कहत के, गाथा-६७. ४४३५४. (+) पच्चक्खाण संग्रह सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८२९, चैत्र कृष्ण, ५, शनिवार, जीर्ण, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १९४४७-५६). 3 प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार; अंतिः गारेणं बोसिरामि पच्चक्खाणसूत्र संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पछइ यथासक्ति गुरुमुख; अंति: हवइ अत लइ पच्चक्खाण. ४४३५५ पद्मावती स्तोत्र व पद्मावतीदेवी महायंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२५४१०.५, १२४४२)१. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण पद्मावतीदेवी स्तवन- नरोडापुरमंडन, मु. खेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीपासजिणंद, अंतिः नमो नमो श्रीपद्मावती गाथा ३६. २. पे. नाम पद्मावती महायंत्र, प्र. २आ. संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , י पद्मावतीदेवी महायंत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४३५७. स्तवन व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) १, कुल पे ४ वे. (२४.५x११, १४४२८). १. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: प्रीतिविजय० रे लाल, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, कुंथुजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीकुंथुनाथ जिन बंद, अंतिः प्रीति० नित पाया जी, गाथा ५. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपासजी साहिब मुजरो; अंतिः नय कहे० कोडि कल्याण, गाथा-६. ४. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., पद्य, आदि: चंदा तूहि ज साखीओ, अंति: तिणने देजो गालि, गाथा- १. ४४३५८. तेलीपुत्र चोडालियो, संपूर्ण वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले, स्थल, सोजत, प्रले. सा. झमकु (गुरु सा. लाडीजी); गुपि. सा. लाडीजी (गुरु सा. जेठाजी सती); सा. जेठाजी सती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, १९x४६). तेतलीपुत्र चौडालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि अरिहंत सिधने आयरिया, अति अनुसारे भासो रे, ढाल ४. ४४३५९ (१) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१८ आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल नागोर, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५x१२, १३X३३). For Private and Personal Use Only भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४४३६०. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय व रावण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९०८ आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे, २, ले. स्थल. खांचरोध, प्रले. श्रावि. छोटी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२, १७३८). १. पे नाम, च्यार प्रत्येकबुद्धिना पांच ढाल, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, आदि चंपानगरी अति भली हुं, अंति: गुणगाया हे पाटण मझार, ढाल ५. २. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मु. जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कह भबिषण सुण हौ रावण; अंति: सांभलज्यौ थे नरनारी, गाथा-१७. ४४३६१. द्रौपदीसती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, १३४४२). द्रौपदीसती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सिल बडो संसार मै मंत; अंति: माने एहीज कामत यार, ढाल-४. ४४३६३. (+) षडावश्यक स्तवन व ज्ञानपंचमीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३६). १.पे. नाम. षडावश्यक स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन वीनती; अंति: तेह शिवसंपद लहै, ढाल-६, गाथा-४३. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिद्धने करी; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ४४३६४. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, १३-१६४३५-३८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी; अंति: समयसुंदर प्रसाद रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ४४३६५. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र गीत सह पद्यानुवाद व अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: आनंद वदत कृपाकर हु; अंति: आनंद मुगति के सुखकार, गाथा-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद का अर्थ, मु. आनंद, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४३६६. सिद्धचक्र स्तवन व शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, पठ. श्रावि. अमृतकुवर बाई (गुरु सा. लाडीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ८x२९). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: सुविधिविजय सुविलास, गाथा-१३. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जो सिद्ध; अंति: दुख जायै सब दूर, गाथा-४. ४४३६८. पदमावती जीवराशीखामणां, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. खचरोद, दे., (२५.५४११.५, १६४३७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: सुटे ततकाल ते मुजमी, ढाल-३, गाथा-५२. ४४३६९. वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८११, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. गुप्तिधर्म (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१-४२). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ४४३७०. (+-#) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: विलसै खेमकल्याणो, गाथा-५. २. पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मंगलिक पहिलो कहुं एह; अंति: सुख लहे अनंत, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: गुणप्रभु० सीस रसाल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४३७१. बृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. रविचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ४४३७२. (+) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४६.. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ४४३७३. (+) नवतत्त्व प्रकरण, जीवविचार प्रकरण व योगभेदादि विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १५४४४-४६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धिबोहिकणिकाय, गाथा-६७. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३. पे. नाम. योग भेदादि विविध विचार संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४३७४. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११-१४४३९). १.पे. नाम. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: थे वो पार ज थावै, ढाल-४, गाथा-६८. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: मानविजै० देव अंवाइजी, गाथा-४. ४४३७५.(-) पद्मावती आराधना व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०.५, १६-२३४३३-३६). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवराणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. कायाअनित्यता सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो प; अंति: नारी वि[सोभागी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजइ चरण ज; अंति: विजयभद्र० नवि अवतरे, गाथा-२६. ४. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजग जोनमइ; अंति: उदय करन के हेत, गाथा-२५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तुं तु धरम म मुकिसि; अंति: सो चिरकाले नंदोरे, गाथा-८. ६. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु गजसुकमाल महामुन; अंति: जेठमल० फल पामै जेह, गाथा-१७. ४४३७६. नेमराजुल द्वादशमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उपलेटानगर, प्रले. मु. सुंदरकुशल; पठ. मु. त्रिकमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १५४४५). नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मासई मोहिउं; अंति: विनय० गाया उल्हास, गाथा-२७. ४४३७७. उपदेश सज्झाय व प्राण भेद विचार, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. लूणकरण; मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. अखेमल, पुहि., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा-९. २. पे. नाम. प्राण भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: छ पीरजा दस प्राण हार; अंति: प्रजा दस सात प्राण. ४४३७८. (+#) पारसनाथ निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १४४४२). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिणहरष कहंदा है, गाथा-२७, (वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ४४३७९. दिन प्रमाण व ज्योतिष यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०.५, ४६४१९). १. पे. नाम. दिनप्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण. सूर्यगति सज्झाय, मु. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामणी समरी; अंति: सोमविमल तस्यु सास, गाथा-१९. २. पे. नाम. ज्योतिष यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिषयंत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४३८०. महावीरजिन नीसाणी, संपूर्ण, वि. १९०२, ससीनंदखगनेत्र, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, १३४३५). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग; अंति: हुइ हेममाणिक्य मुनि, गाथा-३७. ४४३८१. (+) महावीर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धन्न ऋषि; अन्य. मु. सुखदेव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४४३३, जैदे., (२४.५४१०.५, २१४५०). महावीरजिन स्तोत्र, मु. वर्द्धमान-शिष्य, सं., पद्य, आदि: वंदे श्रीजिनवर्द्ध; अंति: तस्य शिष्येण शुद्धा, श्लोक-६. महावीरजिन स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हुं वांदुछु; अंति: शुद्ध छै खोटे नथी. ४४३८२. (#) भक्तामर स्तोत्र मंत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१५४४५-५०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्तामर० ॐ नमो वृषभ; अंति: अष्टाविंशति कथा संति, मंत्र-४४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र मंत्र साधना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र साधना विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीभक्तामरस्तोत्र; अंति: शेषं गुरुगम्यम्. ४४३८३. (#) जिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, पठ. मु. राजमेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित व पत्र अपूर्ण होने से पत्र २ दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देव०जीर्णपल्ली परीशः, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गिरनार नेमि विनती, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भावना भेटिवा नेमि; अंति: सिद्धिइ जगनाथ पूजइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दयातणउसायर मुगति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४४३८४. अष्टमीतिथि सज्झाय व एकादशीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वती चरणे नमी; अंति: विजेरत्न० देव सुसीस, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा-७. ४४३८५. चौदस्थानक सज्झाय व भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२,१३४३४). १. पे. नाम. १४ चौद समुर्छिमपंचिंद्रियउत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सुणे तसलील विलास, गाथा-१३. २. पे. नाम. भगवतीसूत्रोपरि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदी प्रणमी प्रेम सू; अंति: रे विनयविजय रे, गाथा-२१. ४४३८७. (+) ऋषभचरित्र अंतर्गत चक्री अर्धचक्री चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १८४४८). त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-हिस्सा प्रथमपर्व, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. षष्ठ सर्ग के श्लोक ३२६ से ३६९ तक अर्धचक्री चरित्र वर्णन है. प्रत में कुल श्लोक ५० है.) ४४३८८. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १०४३०). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ४४३८९. गृह जिनबिंब प्रवेश विधि सह वर्जनीय पंच कार्य विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३९). १.पे. नाम. गृह जिनबिंब प्रवेश विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं भव्यमुहूर्त; अंति: श्रेयः कल्याण नीपजइ. २.पे. नाम. वर्जनीय पंच कार्य, पृ. २आ, संपूर्ण. __ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४४३९०. (#) चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तोत्र व रत्नाकर पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ४४३९१. जिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, दे., (२५.५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मुंने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १२१ शांतिजिन स्तवन-मुंबईबंदर, ग. मुक्तिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: शांति जिणेसर विनती; अंति: वाचक मुगतिसोभाग्य रे, गाथा-८. ३.पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ कुंथुजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: माहरे तुमस्युं अपूरव; अंति: तूं तो प्रीतिमान, गाथा-६. ४. पे. नाम. बीजाव्रतनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रंगसौभाग्य; पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुख नवि; अंति: कांतिविजय० सुध आचार, गाथा-५. ५.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-१ से ४ अध्ययन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय १ से ४ अध्ययन, संबद्ध, मु. कृपासौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: आणंदकारी इह परलोके; अंति: करो ज्ञाननो पोस, अध्ययन-४. ६. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: देईने देईने देईने रे; अंति: न्यायसागर० देईने रे, गाथा-६. ४४३९२. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही नयरी उदा; अंति: न्यायसागर गुण गाया, ढाल-२, गाथा-१०. ४४३९३. सद्गुरु गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३९). सद्गुरु गहुली, ग. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सफल दिवस सखी आजनो; अंति: अमृतविजय० होवई आनंद, गाथा-१५. ४४३९४. (+) औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन कल्याणक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १४४५२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रेजीव कोई केहनो; अंति: रुलइ ते पामइ भव पारि, गाथा-१५. २.पे. नाम. महावीरजिन निर्वाणकल्याणक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तीरथनायक वंदिये; अंति: हरख धरी श्रीपासचंद, गाथा-२२. ४४३९५. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४४३९६. प्रार्थना सूत्र व स्थापना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गौतमहस, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ११४२७). १.पे. नाम. प्रणिधानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जय वीयराय जगगुरु होउ; अंति: जैनं जयति शासनम्, गाथा-५. २. पे. नाम. थापनाचारयरा तेरे बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुद्ध स्वरुपना; अंति: गुप्ति१२ कायगुप्ति१३, अंक-१३. ४४३९७. सिद्धाचलगिरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: रैपद्मविजय परिणाम, गाथा-७. ४४३९८. (#) मुहपत्ति बोल व शीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,१३४३३). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. मुहपत्ति बोल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर करि जुहार; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-११. २.पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ते तरीया भाई ते; अंति: जे धर्मइ दृढ रहवइ रे, गाथा-५. ४४३९९. २७ गुण सज्झाय व चोवीसतीर्थंकर स्तवन, अपूर्ण, वि. १७५२, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. २, प्रले.ऋ. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४१). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २८अ, संपूर्ण. मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: मोक्षसुख निश्चल करी, गाथा-१५. २. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. धनराज शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीश्वरदेव चोसठि; अंति: वंछित सुखसंपत्ति वरै, गाथा-१३. ४४४००. चोसठइंद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १४४३८). ६४ इंद्र सज्झाय, मु. इंद्र शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिननई प्रणमी; अंति: सिउ शिवपद भणी सज्झाय, गाथा-३०. ४४४०१. (+) षट्भाषा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, १२४२६). षट्भाषा स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो महसेन नरेंद्र; अंति: सुखानि विभो वितर, श्लोक-१३. ४४४०२. मोहनी कर्मबंध तीस भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१२.५, ९४३२). मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पाणीमांहि बोली जीवनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कर्मबंध २१ अपूर्ण तक है.) ४४४०३. २१ कुमती बोल प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८३७, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १०४३६). प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समकित तो सरदहण रूप; अंति: लेज्यो उपासग दसांगै. ४४४०४. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ९४३६). धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गाउं रंगस्; अंति: सांभलो एसेवक अरदास, गाथा-८. ४४४०५. पार्श्वनाथशताष्टनाम छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. रत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५,११४३२). पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पासजिनराज सुणि आज; अंति: संपदा सुख वरियौ, गाथा-२१. ४४४०६. गुणस्थानक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, ११४३७). गुणस्थानक सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: भीम कहि सुणयो निशदिश, गाथा-१७. ४४४०७. माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. विजयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११,१७X४५). माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मागु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती, अंति: लालकुशल लिखमी लही, गाथा-२१. ४४४०८. (+) वीर थूई वस्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३५). १.पे. नाम. वीरथूई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समण; अंति: आगमीस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. भगवंतरी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पांचम्महव्वयसव्वय; अंति: दुक्करंजे करती ते, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १२३ ४४४०९. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९२६, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, १०४३१). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गउ गोतम तणा लबद; अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा-१३. ४४४११. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४३८). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: जय० चिंतामणीभगवान्, श्लोक-३३. ४४४१२. (-) सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बुझिरे तु बुझि; अंति: इम पामइ भव पार रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: असो रे अपुरव कोइ मलो; अंति: ते नरसु नित वास जी, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो सामसलुणो नेमजी; अंति: आसाफली सब मोरी रे, गाथा-५. ४४४१३. (+) सीलविषय-विजयविजया संबध, संपूर्ण, वि. १७१५, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, पठ. वा. नान्हा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५७). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरथखेत्रइंरे समुद्र; अंति: कुशल निति धरि अवतरई, ढाल-३, गाथा-२८. ४४४१४. भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १५४३५). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आवो आवो रे सयण भगवती; ___ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ तक लिखा है.) ४४४१५. (#) स्तुति व संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रारंभ में प्रतिलेखक ने श्रीनंदिविजयगणि शिष्य श्रीधनविजयगणि को नमस्कार किया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमल्लल्ल; अंति: पासु पयच्छउदंछिउ, गाथा-२. २. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिरं, गाथा-१४. ४४४१६. (+) पार्श्व लघुस्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४९.५, १६४६१). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: पार्श्वनाथं जिन; अंति: सुगमम्, (वि. श्लोक-७ की टीका का अंतिमवाक्य सुगमम् मिलता है.) ४४४१७. (+) उपदेशरत्न कोस सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७६२, माघ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. खीलचीपुर, प्रले. मु. खेमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि); पठ. मु. माणकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३५). १.पे. नाम. रत्नकोष, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ओवएसरयणकोसं नासिय; अंति: वछयले रमइ सच्छा, गाथा-३६, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रतन तेहनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक बार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह *, पृ. ४आ, संपूर्ण. "" जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: समत्तं सकुले जन्मः; अंति: सकारा पंच दुर्लभा, श्लोक - १. ४४४१८, (+) मेघकुमार चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२५.५x११.५, २०४४९). मेघकुमार चौढालियो, ऋ. लालचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदिः श्रीवीरजिणंद समोसर्य; अंति: मुकतना सुख पावसी, ढाल ४. ४४४२०, नेमीजिन चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जै, (२५.५४१०.५, १४४५०). יי नेमगोपी संवाद - चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समय देवी सारदा; अंति: अमृत गुण गाया, चोक-२४. ४४४२१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, १० जै. (२५.५X१०.५, १३५३३). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो भवियां जिनवर, अंति: विनय नमे करजोडि रे, गाथा-८. २. पे नाम, सर्वज्ञ स्तवन, पृ. ९आ-२अ, संपूर्ण सर्वज्ञजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजि सू लागे; अंति: नित नांमे सीस के, गाथा- ७. ३. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालिने पीलि वादली, अंतिः कंति नमे वारंवार, गाथा - ७. ४. पे. नाम. विमलाचल स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सफल थयो माहरा मननो, अंति: उदय० आदिशर तुठारे, गाथा- ७. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज हूं गइथी रे समवसर; अंति: जीतना डंका वागे रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रभुजी त्रिसलासुत, अंतिः सातिम सुख पावे रे लो, गाथा-७, ७. पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: नारी विणुं सोभागी रे, गाथा- ७. ८. पे नाम सेजा स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हजीलू मन माहरो रे; अंति: न्यानसमुद्र सिरताररे, गाथा-५. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मुरत पास की; अंति: संपद देओ उल्लास की, गाथा-३. १०. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ४अ संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादशी नणदल मौन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) , י ४४४२२. स्यादिशब्द समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५.५४११, १०x३४). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि, अंतिः स्यादि शब्दानाम्, उल्लास-४. ४४४२४. भरतबाहुबल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ जैये. (२४.५४११.५, १०x४०)भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्त श्रीवरवा भणी: अंति: रामवीजय जय श्रीवरे, ढाल - २, गाथा - ५२. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४४२५. (+) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२२(३ से २२,२४ से २५)=४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३२-४२). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणि नत क्रम; अंति: (-). ४४४२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आहोर, प्रले. शिवचंद; पठ. श्राव. फता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहि क्कणिक्काय, गाथा-४९. ४४४२७. (+) दशवकालीकसूत्र ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १९४४१). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धम्मोमंगल महिमा नीलो: अंति: मणिकगुत्त पुत्त, अध्याय-१०, गाथा-८२. ४४४३०. (+) नेमराजुल बारमासी व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ११४३१). १. पे. नाम. नेमजीराजलमति बारमासीयां, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा., पद्य, आदि: सावणमासै सुहामणो जी; अंति: जिण छोडिया जी, गाथा-१४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: त्रीनोहारी पयोदत्री; अंति: च गवाश्च पणगयेथा, श्लोक-१. ४४४३१. (+) चोवीसतीर्थंकर गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विद्यासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४३). २४ तीर्थंकर गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: रिषभदेव मेरी हो रिषभ; अंति: समयसुंदर आणंद करू रे, स्तवन-२४. ४४४३२.(+) सम्यक्त्व स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६१४, आषाढ़ कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, पठ.सा. विजयलक्ष्मी (गुरु ग. दयामंजरी साध्वी); गुपि.ग. दयामंजरी साध्वी; प्रले.पं. जयविजय गणि (गुरु वा. गुणशेखर, खरतरगच्छ); गुपि. वा. गुणशेखर (खरतरगच्छ); राज्यकाल आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४१६). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनउ; अंति: प्राप्ति हुउ. ४४४३३. (+#) नेमीजिन फाग, होरी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४.५४११.५, १२४२५). १.पे. नाम. नेमीजिन फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम जिनेस्वर होर; अंति: प्राणी जेनधर्म ततसार, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुनी सुनी सहेलडी हे; अंति: हरिकुल चंद्रमा हे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नेमजिन होली, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन होली, पुहिं., पद्य, आदि: देखो सूंनयां होरी; अंति: सीध चरण चीतली पारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमनाथजी फाग, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, मु. बालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभूपाय चढे गिरनार; अंति: प्रभू आवागमण निवार, गाथा-७. ४४४३४. प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं विभूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी नमस्कार करीनइ; अंति: रहि अपितो विभूष्यइ. ४४४३५. (+) दीक्षादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४३७). १.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. २. पे. नाम. ललितसूरि प्रशस्ति श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तत्पट्टदयभूधरोष्ण, अंतिः श्रीसूरयो भूतले श्लोक-१. ३. पे. नाम. आचार्यउपाध्याय वांदणा विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वांदणा विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: (-). ४४४३६. (+) महावीर सप्तविंशति भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । .जी., (२५४११ १५४५०). महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशर खिदशोर अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, २६वें भववर्णन लिखा है.) ४४४३७. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५x१०.५, ११x२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवण पइवं वीरं नमिउण अंतिः रुद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१. ४४४३९. (+) प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०बी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे ६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., ., (२४.५X११, १३३५). १. पे नाम, पोसह विधि, पृ. १अ, संपूर्ण पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पहिला इरिवावही पडीकम, अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम, राईपडिकमणा विधि, पृ. १अ २अ संपूर्ण. राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथ इरियावहि पडिकमी, अंति: मंगल्यता ई कहीयो. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २अ संपूर्ण. प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: प्रथम झीयावहि अंतिः पछ ज विराय कहिये, ४. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहली इरीयावहि पछै ४; अंतिः सझाय कहि काजो काढिये. ५. पे. नाम. पाखीपडिकमण विधि, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियाइ पडिक्कम; अंति: पछे बडी संत कहिये. ६. पे. नाम. पोसहपारवा विधि, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पौषध पारने की विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: (-). ४४४४०. अट्ठोत्तरी स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६X११, ११x४२). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अट्ठोत्तरी स्नात्र, अंति: मंडलानांतु मा लिखेत्. ४४४४२ (४) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. वे., (२५.५x११.५. १४४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणतमौलि अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४४४४३. (+) पडिकमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. वे., ( २५४११, ११४३१)दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-५०, ४४४४४. (+) छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४ ११, १५X४३). १. पे. नाम. देशांतर छंद, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप, अंति: आस्या सहुको आईया, For Private and Personal Use Only गाथा - २५. २. पे. नाम. पद्मावती छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्री कलीकुंडदंड; अंति: पूजो सुखकारणी, गाथा- ११. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४४४५. श्रावक बारव्रत, संपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला थूल प्रणात्; अंति: हुवै बारमा वितनै. ४४४४६. (+) वंदित्तु सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे धम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ४४४४७. (-#) चौदनियम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले.पं. रूद्धहंस (गुरु ग. उदयजीगणि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.ग. उदयजीगणि (गुरु उपा. जयशौभाग्यगणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. जयशौभाग्यगणि (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकालगच्छाधिपति जिनहर्षसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३६). श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्व२ विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रावके जीवजी पांच; अंति: (१)करै एचवदमा नियम, (२)मुगतिना फल संभवै. ४४४४८. (+-) माणीभद्री छंद, स्तुति व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १०४२९). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९२०, आषाढ़ कृष्ण, ४, प्रले. हीरालाल. मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरस्वती; अंति: लाख लाख लीला लहे, गाथा-२६. २.पे. नाम. मणिभद्रवीर स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. य. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सेवों मानभद्र समकती; अंति: सेवो मानभद्र समकतीक, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. हीरसागर, पुहिं., पद्य, आदि: मोकु नेम वतादे सखीया; अंति: हीरसागर० कुमारोहौ, गाथा-८. ४४४४९. (+) नेमीराजऋषि चौपड़, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. घोघा, अन्य. श्रावि. बाई वीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४३०). नमिजिन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: मथुरा नगरी जाणीइ तिह; अंति: ग छांडी निश्चल गाथाय. ४४४५०. (+) पुज्यद्वादश मास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. जीवाबाई; प्रले. पं. रामा ऋषि; अन्य.सा. रूपाईजी आर्या; सा. लीला आर्या; सा. तेजबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४२८). वरसिंघऋषि बारहमासा, मा.गु., पद्य, वि. १६१२, आदि: सरसतीय भगवती गुणहती; अंति: हो वरसंघजी वंदीइं, दोहा-१२. ४४४५१. (+) श्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. केकींद, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११४३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० इच्छामि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४४४५२. नवकार पांचपद अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४५). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं माहरउ; अंति: वंदणा सदा सर्वदा हुं. ४४४५३. स्नात्रपूजा विधि व जिनपूजाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. __ स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पवित्र उदक लेइ अंग; अंति: गयाहिण दिक्षु. २. पे. नाम. जिनपूजा अष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: दीजे अरथ अभंग, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४४५४. पाक्षिक अतिचार व तप आलापक, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. लखमा; प्रले. मु. भावसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). १.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. तप चिंतवन विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवं कारि साधूतणो; अंति: पुहचाडयो पयद्धी. ४४४५५. सज्झाय संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, २०४३८). १. पे. नाम. अमरकुमारनी सिझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: पाप तणां फल खोटा रे, गाथा-४८. २. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ऋ. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: छठो व्रत रेणीतणोरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __ द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. निह्नवछत्रीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: इण आरे निन्हव उगडीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने २३ गाथा लिखकर ही सम्पूर्ण लिख दिया है.) ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जीव बचाया में पाप; अंति: काजक देन सयौं है, गाथा-१. ४४४५६. चतुर्विंशति जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४११.५, १३४२८-३८). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिनवर पाय; अंति: भणइ सफल करुं संसार, गाथा-२५. ४४४५७. द्वात्रिंशत्तम असज्झाइ विचार व राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १६४२७-४१). १.पे. नाम. ३२ असज्झाय विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., पद्य, आदि: ●हरि पडे तासीम; अंति: वार प्रहर असज्झाई. २. पे. नाम. राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: मेष वृष मिथुन कर्क; अंति: ३७४ ८ ११. ४४४५८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १६-१७४५३-५६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-दसमताधिकार स्वरूप, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण, वि. १७६७, आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार, ले.स्थल. कोरटा, प्रले. ग. नायककुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदायक जिनराज ए; अंति: पूरो वंछित काज ए, ढाल-९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लेज्यो रे लाहो; अंति: नयनविमल०ध्याने रहियो, गाथा-७. ३. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. अरदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर निजर; अंति: सुखसेवक रे अरदास हे, गाथा-७. ४४४५९. (#) सज्झाय व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, ११४४६). १.पे. नाम. अशुचि भावना, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अशुचि नामि छट्ठी; अंति: धर्म की जई० सार, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १२९ २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. कथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिष्ठानपुरै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा का मात्र प्रारम्भिक अंश तक लिखा है.) ४४४६०. (+) श्यामसुंदर गीत व राजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भीखूऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १७४४८). १. पे. नाम. श्यामसुंदर गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्यामसुंदरगीत, मु. मल्लजी महाराज, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सुंदर मेरे; अंति: माल कहे० माहि दोइजी, गाथा-१६. २. पे. नाम. राजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: संयम नवरंग कंचूउ; अंति: गति तणां सुख होइ हो, गाथा-१६. ४४४६१. (+#) अंतरीक्ष छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १५४३५-३६). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीमात मयाकरी आपो; अंति: भावविजय० जय जय करण. ४४४६२. (+) मोतीकपासीयो संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. उदेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१०.५, १४४४४-४७). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुर नरांचमत्कार, ढाल-५, गाथा-१०३. ४४४६३. गीत संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५४११.५, ३०४२१). १. पे. नाम. नेमजिन द्वादशमास, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन द्वादशमास, मा.गु., पद्य, आदि: सरस श्रावण केरो सखडा; अंति: गाय मन उच्छरंग, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नित्यविजय, पुहिं., पद्य, आदि: चाहं रे हुं तो पास; अंति: निज निज कीमे पाउरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: परम धरम तेरा नाम; अंति: मोहे सांत गुसाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो साहिबा मन की; अंति: प्रणमत सवि भूपतिया, गाथा-६. ५. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: यत्र राहू तत्र सिझा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ४४४६४. गुणसागर गुंहली व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ९x४०). १. पे. नाम. गुणसागरगुरु गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुणसागरसूरि गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीओरे मुनिराय; अंति: सुणी पामइं शिवराज, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदि: एकादशीयः किलमार्ग; अंति: तु यशोभिवृद्धिं, गाथा-४. ४४४६५. कर्मभाव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १३४४१). For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: करज्यो सहु सुखदाई रे, गाथा - १८. ४४४६६. (#) शत्रुंजय उद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २४.५X११.५, २०x४२). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल, अंतिः देह संसण जय करो, ढाल - १२, गाथा- १२०, ग्रं. १७०. ४४४६७. क्षेत्रपाल घघर नीसाणी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४.५X११, १७x४३). क्षेत्रपाल घग्घर नीसाणी छंद, जै. क. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: ऋद्धि राजे रंगे सिद, अंति: वर्द्धमान कहंदा है. ४४४६८. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १०, दे., ( २४.५X११.५, १६X३४). १. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय स्वामी युगादि, अंति: करो वेगे सुधारो काज, गाथा-२. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय हे देवाधिदेव, अंति: भव लीला दुख जाय, गाथा- ३. ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. , मा.गु., पद्म, आदि: हे स्वामी मुज तार २ अंतिः भय भजन भगवंत, गाथा- ३. ४. पे. नाम. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि; पद्मप्रभने वासपूज्य अंतिः ज्ञानविमल कहि शिष्य, गाथा - ३. ५. पे. नाम. जिनदेहमानगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन- देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुमान जाण; अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-३. ६. पे. नाम. जिनदीक्षातप चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ एकासणुं करी, अंतिः पारणुं अवर जिनेस, गाथा- ३. ७. पे नाम, चोविसजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार हससुं ऋषभदेव, अंति: हे होज्यो जिन सुपसाय, गाथा-३. ८. पे नाम, चोवीशजिनना समकेत भवगणतीनुं चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण २४ जिन समकित भवगणना चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद तणा भला, अंति: नो नय प्रणमे धरी नेह, गाथा- ३. ९. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र देवा, अंति: सफल पावे दरसण ग्यान, गाथा-३. १०. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत पद उज्जल नमः अंतिः पदा पामे सुगण सुधान, गाथा- ३. (४४४६९. (+) सारदाजी छंद, संपूर्ण, वि. १९८१४, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. आगरानगर, प्रले. पं. राघवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, १२X४५). सरस्वतीदेवी छंद. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससिकर निकर समुज्वल अंतिः सहेदसुंदर० सरस्वती, ढाल ३, गाथा - १४. ४४४७०. ८४गच्छ नाम, श्लोक संग्रह व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २४.५X११, १३X३६). १. पे. नाम. ८४ गच्छनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ बेवंदनीक २ धर्मघोष, अंति: नाबलीया ८३ साचोरा ८४. २. पे नाम, श्लोक संग्रह, प्र. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ प्रा.,सं., पद्य, आदि: अश्वपृष्टं गजस्कंध; अंति: दोषा स्वभावजा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४४७१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ९४२५). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेसह भग; अंति: पढम हवई मंगलं. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हंसा रचंतिसरे भमरा; अंति: सरीसासरीसेह रच्चंति, श्लोक-१. ४४४७२. गौतमस्वामी रास व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १७-१९४४५-५०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: उदयवंतमुनि इम भणे ए, गाथा-६३. २.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन-प्रतिक्रमणविधिगर्भित, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९०, आदि: सुमति कर सुमति जिन; अंति: कीधु हरख भर सुजगीस ए, ढाल-६, गाथा-२०. ४४४७३. - सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१०.५, १६४३८). १.पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: बीराजी जाय मुक्तमै, गाथा-३७. २. पे. नाम. नेमराजुलनी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: सुरसत प्रणमुहोक, अंति: छंदे प्रभाते वारु, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: मन मोहे सुर और माणसा; अंति: काइ आणी अधिक आणंद, गाथा-१३. ४४४७४. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११, ९४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४४४७५. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४४१). सिद्धाचल स्तवन, उपा. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरे रुडा पंखीडा; अंति: लाल पद्मविजय उवज्झाय, गाथा-१०. ४४४७६. स्तोत्र संग्रह, स्तोत्र विधान व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, १५४५२). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंदो, गाथा-१७. २. पे. नाम. उवसग्गहर साधनाविधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. उवसग्गहरस्तोत्र-साधनाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: १०८ नवकारवाली गुणीजे; अंति: काली वस्तु न खाजे. ३. पे. नाम. चउवीसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेम जिणो नमी; अंति: लक्ष्मी निवासनम, श्लोक-९. ४४४७७. (#) वीसविहरमान नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४३३). विहरमान २० जिन नमस्कार, पंन्या. रविविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो भावि भविअलोक; अंति: रविविजय कहे रंगि, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४४७८. (#) पंचमिथ्यात्व परिहारोपदेश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४३६). मिथ्यात्वपरिहार सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु पद पंकज नमी; अंति: नित नित लहस्यइ तेह, गाथा-११. ४४४७९. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गजसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, ३५४२३). १.पे. नाम. सौदागरनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सोदागर सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: एह सउदागर मनि चिंतवइ; अंति: राजरतन उवज्झाय रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. सौदागरनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सोदागर सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलउ सौदागर माहरी; अंति: कहइ राजरतन उवझाय, गाथा-१५. ४४४८०. (#) चुवीसतीर्थंकर गणधरसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जयसागर ऋषि (गुरु पं. विनयचंद्र गणि); गुपि.पं. विनयचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५). २४ जिन स्तवन-गणधरसंख्या गर्भित, मु. सामत ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन वंदु ऋषभदे; अंति: चउदह सइ बावन, गाथा-८. ४४४८२. (#) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १२४३८). मृगापुत्र सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर वर वनवाड; अंति: जइ सीस उदयविजय जयकार, गाथा-८. ४४४८४. विशालसोमसूरि भास व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). १. पे. नाम. विशालसोमसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छनायक गुण नधि; अंति: वाचकराजरतन गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. विशालसोमसूरि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मानइ महाछत्र पति; अंति: राजरत्न कहि आनंद भरे, गाथा-२. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्यइ; अंति: सीइ गुण गायो जी, गाथा-४. ४४४८५. (+) प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५६). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: देश कलिंगइ नगरि चंपा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल ३ तक है.) ४४४८६. पोसह भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, ११४३९). पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं असमरस आणीइ; अंति: खपई करमनी कोडिरे, गाथा-१४. ४४४८७. (+) सबीजः पार्श्वनाथ स्तुतिः, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३२). पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: कविकुलप्रभुतया घटति, श्लोक-११. ४४४८८. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०, ७४२६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ हे, गाथा-१३. ४४४८९. (+) चउवीस दंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्रावि. कानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ. गाथा-४५. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४४९०. (+) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. लाडोलनयर, प्रले. मु. गलाबचंद (गुरु ग. विवेकविजय): गुपि. ग. विवेकविजय (गुरुग, शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै, (२५.५x१२, १५X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणी, डाल-६, गाथा ४९. ४४४९१. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. अमुलख छोटा, पठ. श्राव. छोटालाल डोसाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २५X११, १४X३८-५३). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य वि. १७५५, आदि; जंबूस्वामी जोबन, अंति: लेसु तुंमारि साथ के, ढाल ७. २. पे. नाम. चोवीसजिन छंद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. २४ जिन छंद, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीनेमेसर संभवस्वाम, अंतिः जिनवर मुज करो कल्याण, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथनुं स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदसु प्रीतडी, अंति: नामथी लहीये रंग रसाल, ४४४९३. शत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५x११.५, १२X४६). गाथा - १०. ४४४९२. (#) चोवीसतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. चुरा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x१०, १४४४२-४४). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सबल जिणेसर प्रणमुं, अंतिः तासुसी भ आणंद, गाथा-२९. शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहे जिनेसर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ के दोहा ४ तक लिखा है.) ४४४९४. पद्मावती आराधना, वीस जिननाम व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. मेडता, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, ११-१२४३२-३५). १३३ १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती अंतिः पापथी छुटे तत्काल, दाल-३, गाथा - ४१. २. पे. नाम. वीस विहरमान जिननाम, पृ. २आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु, गद्य, आदि: सीमंधरर युगमंधरर अंतिः श्रीअजितवीर्य २०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवाश्री ऋषभाजित, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-३. २. पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चोकसाय पडमल्लय लूरण; अंति: पास पयछय वच्छयो, गाथा-२. "" " ४४४९५ (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४१२, १५४४३)१. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात शब्द में, अंति: देवलोक त्रीजा पाया, गाथा - १६. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमजु जीवसी सीखामण, अंतिः लीया जाय० नासी रे, गाथा १२. ४४४९६. (+) मंगलश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १२X४५). १. पे. नाम मांगलिक लोक, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कालिदास, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पंकजं हरिहरो; अंति: निर्मल जलं कुर्वं, श्लोक-१४. ४४४९७. (#) सचित अचित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बुहनिपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३८). सचित अचित सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगोतम; अंति: विरविमल करजोडी कहइ, गाथा-१८. ४४४९८. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२४). अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ४४५००. (#) चोराशी गच्छनाम बारह मतनाम व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १५४३८). १. पे. नाम. चौरासीगच्छ नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बृहत्खरतरगच्छ १; अंति: तपागच्छ ८४. २.पे. नाम. बारह मत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आंचलीयामत १ पायचंदमत; अंति: भ्रमामतीमत १२. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा वावा; अंति: प्रेमसदा जिनचंद, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिनाथजिनेंद्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हुतो गईती; अंति: अनुपम सुख हु करेलो, गाथा-५. ५.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: प्रगट थया हो भल; अंति: जातरा दरसण उत्तम चीज, गाथा-७. ४४५०१. रोहिणीतप स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१५, चंद्रग्रहपूर्णहुति, पौष, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. पं. सरीचंद (गुरु मु. देवीचंदजी); प्रले. मु. देवीचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १५४३९-४१). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: सकल मनोरथ आसा फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: दानं क्षातकरं सदा; अंति: दानं प्रदीपं बुद्धि, श्लोक-१. ४४५०२. (+) स्वरुपचिंतन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १४-१६४३८). १.पे. नाम. स्वरूपचिंतन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: गुणपर्याय युक्तानि; अंति: चिद्रपेसलयं व्रजेत्, श्लोक-१८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नगजय, सं., पद्य, आदि: नमः सिद्धक्षेत्राय; अंति: नगजय०भविनांच भूयात्, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नगजय, सं., पद्य, आदि: श्रेयंसपुत्रं कृतभू; अंति: नगजयेन० सदा सलीला, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पूर्वधर ४ पद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वधर विने च्यार; अंति: क्षमाश्रमण३ दिवाकर४. ४४५०३. इक्षुकार चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १३४३७). इक्षुकारराजा चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पणमवि वद्धमाण जिण; अंति: ते उत्तम कल लहइ ए, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ 1 " ४४५०४. यशोविजयजी काशीस्थित विद्याध्ययन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२५x११.५, १२४२३). यशोविजयजी काशीस्थित विद्याध्ययन कथा, हिं. गद्य, आदि: मुनिराज श्रीयशोविजय, अंतिः वाक्य नहीं बोले. ४४५०५. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३ ) -२, कुल पे. ८. प्र. वि. पत्रांक१०० १०१ दिया हुआ है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२५x११. १८४५२). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति सुगुरांसीखामण बीधी, गाथा १५, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः प्रात उठ श्रीसंतिजिण, अंति: पापी लायक खाय टरी, गाथा ५. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल रा., पद्य, आदि: सोलमा जीनजी शांतिनाथ, अंतिः दीजो मुगतनों वासोरा, गाथा- २३. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-चरखा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गढ सुरतसुं कबाडी आयौ, अंतिः सारी न्यात जीमाइ, गाथा- ९. ५. पे. नाम. तीर्थंकर परिवार स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: राजाराणीरो कटुंबो, अंति: एता धा बेटा छोड, गाथा - १५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि जगत मे खबर नहि पल, अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा - ९. ७. पे. नाम. मन भमरा सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांइ, अंतिः लेखो साहिब हाथ, गाथा- ११. ८. पे. नाम. दीवाली रास, पृ. ५आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो गुण; अंति: वीरजी आवागमण नीवार, गाथा - २१. ४४५०६. गौतम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६ ११, ११४३०). गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभते सुतरां क्रमेण, श्लोक - ९. ४४५०८. गौतमस्वामी रास व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १७७१, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, " ले. स्थल, वुचकला, प्रले. ग. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२५x१० १२X४०-४२). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास. पू. १अ ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल, अंति: खेलाखेला रंग भरे, गाथा-४६. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बलीयौखलीयौ गलीयौटलीय; अंति: भागीभगी चंदागवास, गाथा-२. ४४५१० (+४) चतु: शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, १८४६८). १३५ चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुह सुहाणं, 1 गाथा ६३. " ४४५११. क्षमाछत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, पेथापुर, प्रले. गलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १०x२६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदर जीव क्षमागुण, अंतिः चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४५१२. (+) द्रोपदी संहरणसंबंध - ज्ञाताधर्मकथा सूत्रोपरी, संपूर्ण, वि. १७३३, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. मारुकरहेडानगर, प्रले. पं. महिमारूचि गणि (गुरु पं. तेजरुचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४.५X११, १९५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- द्रोपदीसंहरणसंबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: एकदा श्रीहस्तिनापुरे, अंतिः गणिसमयसुंदरः, ४४५१३. बारदेवलोक नाम व बिंबसंख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैबे, (२५.५४११.५, ११४३६)शाश्वत जनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलुइ सौधर्म देवलोक, अंति: विमान बिंसइ बिंब, (वि. बारदेवलोक व पांच अनुत्तर स्थित जिनबिंब प्रासाद संख्या.) ४४५१४. दसपच्चक्खाण स्तवन व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४१०.५, ९४३३). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल -३, गाथा-३३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आस पुरे प्रभु पासजी, अंति: गया नमतां सुख निरधार, गाथा-३. ४४५१५. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, भाद्रपद कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, ले. स्थल. पालणपुर, पठ. श्राव. मेघाजी हीराजी; प्रले. मु. माणिकचंद ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, १५X४३). १. पे. नाम. वीजतिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माव, गाथा-४. २. पे. नाम नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, मिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ३. पे. नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि एकादशी अति रुअडी, अंतिः संघ तणां निशदिश, गाथा-४. ४. पे. नाम ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव, अंतिः ऋषभदा गुण गाय, गाथा-४. ४४५१६. (+) चौरासी आशातनासूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५x१०.५, १६x४१). " जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: वेजे जिणिदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्लेश्मानुं नाखवं१: अंति: परमेश्वरन भवनि ४४५१०. सिलोको व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे ३ दे. (२४.५x१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. सारदामाता सिलोको, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीमाता श्लोक, मु. ज्ञानउदय, रा., पद्य, आदि: सरसत माता तुझगुण गाउ; अंति: ज्ञान० अति गहगहियो, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमनाथजीरो सिलोको, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारदर्ने गणपति, अंति: फागुण सुद तीज हरखे, गाथा - २१. ३. पे. नाम. प्रमादोत्तारण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, औपदेशिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नींदडली ववरण हुई रही, अंति: हो मुनि कनकनिधान, गाथा- ८. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४५१८. (+) अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद व परनारीत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १४४४४). १. पे. नाम. अंतरिक्ष पार्श्वजिन छंद. प्र. १अ ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-५९. २. पे. नाम. परनारीत्याग सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. " मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चतुर सुजाण परना; अंतिः समजी जाओ नेमजी लाला, गाथा-५. (४४५१९. (+) मनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. सा. राजबाई आर्या (गुरु सा हीराईजी आर्या); गुपि. सा. हीराईजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., ( २४.५X११.५, ११×३१). चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सहि गुरुपाय प्रणमूं अति: पास० सिवसुखदायक होइ, गाथा ४१ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) जैदे., ४४५२०. मोहराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. सवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, (२४.५X११.५, १०x२८). औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटी में विलुधो जुवो; अंतिः बोले नमो तीर्थराजा, गाथा- ११. ४४५२१. मंगल स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२५४११.५, ११४२५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंभस्थापना स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि धरम उत्सव समे जैनपद अंतिः देवचंद्र पद अनुसरे, गाथा-४. ४४५२२. (+) तप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रामजी (गुरु मु. नेणऋषि); गुपि. मु. नेणऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५४११.५, २०x३९). तपसज्झाय, मु. धनदास, मा.गु, पद्य वि. १९१२, आदि: करो तपस्या चित चाव; अंतिः भव जिव सांभली चितलाई, मु. २. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः यामेन तथैकदिवसेन तु श्लोक-१४६. गाथा २०. ४४५२३. पासा केवली व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे. (२५x११.५, १३-१४४४३-४५). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. १३७ औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्म, आदिः यथा तरोर्मुल निक्षेच, अंतिः तथैव सर्वाणमुच्यते च श्लोक-१. ४४५२४. चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२४.५४११.५. १४४३५). " चैत्यवंदन चौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि अंतिः रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन- २५, गाथा - २४. ४४५२५ (+) लघुशांति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४११.५, १०३२). " " लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक - १९. ४४५२६. शीलपालवाना बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X११.५, १६x४४). स्त्री ब्रह्मचर्य बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पिता बांधव प्रमुख; अंतिः शील पालवाना बोल, ग्रं. १००. ४४५२८. बुद्धिवहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५x१०.५, १३४३३-३६). For Private and Personal Use Only बुद्धिबहोत्तरी, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: भरतक्षेत्र मांहे; अंति: कुशल० नित नित प्रत्त, गाथा-७३. ४४५२९. सीमंधरजिन चंद्राउलो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे., (२५.५४११.५, ३२x१९). " . सीमंधरजिन चंद्राउलो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिणवरू, अंतिः चलपदवी थिर करी थापो, गाथा- ११. ४४५३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०, १२X३३). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: पोस दशमि दिन पासजी; अंति: खदाय रे हुंवारी लाल, गाथा-८. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नितु नितु गुण गाय कि, गाथा-५. ४४५३२. (+) प्रत्येक जिननमस्कार व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). १.पे. नाम. प्रत्येक जिननमस्कार स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. समरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विमलभूधर मंडनमुजूल; अंति: विधुश्च नमस्कृति, श्लोक-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: वेश्या तेह जू आरधण; अंति: जात न लग्गि वार, गाथा-१. ४४५३३. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४२८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयतु शासनम्. ४४५३४. पुण्यफल कुलक व युगप्रधान आयुमान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४५). १.पे. नाम. पुण्यफल कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: जिणकत्तीइमी० उजमह, गाथा-१६. २.पे. नाम. युगप्रधान आयुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., यं., आदि: प्रथमोद सुधर्मा जंबू; अंति: १०५१००८८७५ ६७. ४४५३५. सिद्धचक्र स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा वखानीइं, गाथा-५. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यो; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ४४५३६. दान विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्गह दाणं दिज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ४४५३७. चतुर्विंशतिजिन स्तवादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७७-१७७८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. बैणप नगर, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ शुक्ल, ५. २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनहर्षप्रणित भव्य; अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ४. पे. नाम. प्रार्थना स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पौष कृष्ण, ८. परमात्म स्तुति, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: जिनं देवदेवाधिदेवः, श्लोक-६. ४४५३८. (+#) संसारदावापादपूर्ति: जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. हेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३२). साधारणजिन स्तुति-संसारदावापादपूर्तिरूप, सं., पद्य, आदि: प्रीणाति विश्राणनतोर; अंति: पुण्यावतार सारं वीरा, श्लोक-१२. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४५३९. जैन धर्म प्राचीनता विषयक साक्षी पाठ, संपूर्ण, वि. १९८१, पौष शुक्ल, १५ अधिकतिथि, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल नागोर, प्रले. नथमल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४११.५, २२x६०). जैनधर्म प्राचीनता विषयक साक्षी पाठ, मा.गु., सं., प+ग, आदि: बोपदेव नामनो, अंति: अरिष्टनेमि स्वाहा. ४४५४०. (०) चतुर्विंशतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X४५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. वरसिंघ शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभ जिणेसर; अंतिः सेवक जिन आणंदिया, गाथा - १०. २. पे. नाम. जीवकाया उपर सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भल मन भमरा रे कांइ, अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा- १०. ३. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन महिमा निलउ, अंति: रे आनंद अंग न माइ रे, गाथा - १०. ४४५४१. स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, ९x४४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्रं नरिद्रं फणिंद, अंति: बात सुन लीजो भगवान, गाथा- १०. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुर्हि, पद्य, आदि सीमंधर साहिब है साचो अंतिः तूग मिटै मोह भमो जो गाथा-४. ४४५४२. मुहपत्तिबोल, पौषध सामयिक विधि व उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, वे., (२५.५x११.५, १२४३६). १. पे नाम. मुखवत्रिकाप्रतिलेखन के ५० वोल, पृ. १अ, संपूर्ण संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली दृष्टि पडिलेहण, अंति: काय एछकायनी जेणा कसइ. २. पे नाम. पौषध व सामयिक विधि, पृ. १अ संपूर्ण पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि पोसहसामाइअ संठियस्स अंतिः दुक्कडं तस्स तस्स. , १३९ ३. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - ९. ४४५४३. हैमव्याकरणस्थ न्यायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५.५४११.५, १३४४३). न्यायसंग्रह, संबद्ध, ग. हेमहंस, सं., गद्य, आदि रूपाय नमः श्रीमद्, अंतिः यानुरोधाद्वा सिद्धिः, सूत्र- १४५ नं. ६८. ४४५४४. प्रथमजिन सुखडी संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. वे. (२५४१२, १४४३९). 1 आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता देवी चरण, अंतिः जीवो तमे आदिनाथ धणि, गाथा-५३. ४४५४५. (+) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, माघ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. भरोल, पठ. मु. प्रेमचंद, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, १६×३५). १. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र लिखा है.) ४४५४६. क्रोध, मान, माया, लोभ सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. श्राव. इच्छाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, १४४०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, पृ. १अ संपूर्ण Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लक्षण जो जो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदारे, गाथा-७. ४४५४७. पूजा अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२७). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, श्लोक-९. ४४५४८. (#) बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५६). जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्त उत्त; अंति: ३ पान फल प्रशस्त्र. ४४५४९. चतुर्थव्रतउच्चार विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, १५४३५). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: धर्मोपदेश गुरु दई. ४४५५०. (+) पूजा प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १३४३८). पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: स्नानं पूर्वोन्मुखी; अंति: भवति भाववशेन योज्यं, श्लोक-१७. ४४५५१. जीवस्थापना कुलक सह टबार्थ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६०, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३५). १.पे. नाम. जीवस्थापना कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवो अणाइनिहणो; अंति: पुव्वनिबद्धा० विराई, गाथा-२५. जीवस्थापनाविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अनादि अनंत जीव; अंति: मिटइंतिम प्रवर्तवं. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४५५२. अष्टमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीजापुर, जैदे., (२५.५४१२, १२४३८). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अठावअगिरितुंग; अंति: रंगविजय जय जयकार, गाथा-४. ४४५५३. भगवतीसूत्र गहूलि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १२४२९). भगवतीसूत्र-गहुँली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सुणीये रे भगवत; अंति: सुणता मंगल कोड वधाई, गाथा-७. ४४५५४. केसी गौतमगणधर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समीनगर, दे., (२५.५४११.५, १५४४५). केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ४४५५५. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. कृति से संबंधित कोष्ठक दिये गये हैं., दे., (२५४१२, ५४३१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसहकेवलाओ अंत; अंति: दिआदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ४४५५६. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खंभायत, दे., (२५.५४१२, १२४३४). प. ४अ, सपूग ()अंतिः ( जैदे., (२५." For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १४१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन पूर्व नवाणु; अंति: खिमा० मने सिद्ध थाए, गाथा-१८. ४४५५७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १२४३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामिजी; अंति: हवे दरिसण दिजे नाथ, गाथा-१६. ४४५५८. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. गणेशी; अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १४४३६). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी शारदा माय; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. ४४५६०. महाव्रत भांगा व चरणकरण सत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. महाव्रत भांगा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमहाव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमहाव्रतना भांगा; अंति: सर्व भांगा २२५ थाये. २. पे. नाम. चरणसत्तरी करणसत्तरी, पृ. १आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: भिग्गहा ४ चेव करणतु, गाथा-२. ४४५६१. दशवकालीकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बिक्रमपुर, जैदे., (२५४१२, १६४५२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: कलस सदा जयतसी जयरंग, अध्याय-१०. ४४५६२. (+) लोकांतिकदेव स्तवन सह अवचूरी व यंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४४५). १.पे. नाम. लोकांतिक देव स्तवन सह अवचूरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लोकांतिकदेव स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थोसामि जिणे जेहि; अंति: विहं तिविहेण ते नमह, गाथा-१६. लोकांतिकदेव स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यैर्देवैविज्ञप्ता; अंति: रानूदान धर्मबलविरानू. २. पे. नाम. कृष्णराजी स्थापना व तमस्काय स्थापना, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). ४४५६३. पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बिक्रमपुर, प्रले. मंगूमल्ल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, ११४३१). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम देहरे जइ देव; अंति: सामाइय वयजुत्तो जाव. ४४५६४. चतुर्विंशतितीर्थकर स्तवन व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १७४३८). १. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थकर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ प्रभु अंतरजाम; अंति: सुणता सुख मंगलकारी, गाथा-३५. २.पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देवद्रोही गुरुद्रोही, अंति: (-), श्लोक-८. ४४५६६. छ काय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४४१). ६ काय सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर देवै देसणा जी; अंति: कुसल कहे समजाय, गाथा-१२. ४४५६७. कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१०.५, ९४३४). जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइनइ आपणी; अंति: ईम करि विरुपरे, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४५६८. (#) सज्झाय संग्रह व संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२४४११, १३४३७-३९). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि सकल मनोरथ पूरवैरे, अंतिः भर्णे ते सुख लहँ, बाल-५. २. पे. नाम. छठ्ठाव्रतनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सदाल धरमनुसार ते कही अंतिः पाले तस धन अवतारो रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा- १३. ४. पे. नाम संतिकरं स्तोत्र, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्म, वि. १५वी, आदि; सांतिकां सांतिजिणं, अंतिः स लहइ सुह संपयं परमं गाथा १३. ४४५६९. जैन चैत्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. अंबा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १४४३७). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि, अंतिः तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक- ९. ४४५७०. दीवालीका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, माघ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. स्थंभपूर, प्रले. काकेश्वर शीवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, ११४३७). दीपावली पर्व स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुर सुख भोगवि, अंतिः धर्मचंद० नीत वरीइं, गाथा १३. ४४५७१. अठाइ भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१२, १२३१). अठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं मन, अंतिः ज्ञानविमल० हो राज, गाथा- १२. ४४५७२ शीयलनवाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १४४३६). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल - १०, गाथा ४३. ४४५७३. वत्रीस अनंतकाय अभक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७४५, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मनोहर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १२३७-४१). ३२ अनंतकाय अभक्ष सज्झाय, मु. रतनराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं भावइ श्रीअरि; अंति: ए अधिकार क उलवलेस, गाथा-२७. ४४५७४. (#) नवग्रह स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x१२, १२४३०). ९. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य, अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक - १०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सकल सफल चिंता समो; अंतिः स जपे पुरो मन जगीस ए. गाथा - ९. ४४५७५. पट्टावली व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X१२, १५X४३). १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण, पट्टावली*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीर, अंति: सूरतिमध्ये पदवी, पीठ -३९. २. पे. नाम चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य वि. १८वी, आदि: चौद सुपन सुचित हरि अंतिः सकल संघ दुख हरणीजी, गाथा ४. ', ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नगरी द्वारामती कृष्ण, अंतिः जे कवि नय इम पभणीजे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४५७६. पंचपरमेष्टी गुण, मिथ्यात्व भेद व वचन भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता सिद; अंति: मरणं उवसग्ग सहणं च. २. पे. नाम. मिथ्यात्व भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत १ लौकिक; अंति: अमुत्ते मुत्त सत्ता. ३. पे. नाम. वचन भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइन आदरइन पालइ; अंति: ३ सुश्राविका ४. ४४५७७. (-) क्षमाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१०.५, ११४३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४४५७८. (-) नेमराजुल स्तवन व नवपद नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ११४२७). १.पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता सीवादेवी नेमजी; अंति: लबधिविजय गुण गाया हो, गाथा-१९. २.पे. नाम. नवपद नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ४४५७९. पंचजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धपुर, पठ. श्रावि. बटी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४४६). पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: गरीयो गुण श्रेण्यरीण; अंति: दायेक पर पारगबोधिम्, श्लोक-२३. ४४५८०. सीता स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. भावसार झवेर वस्ता; पठ. श्रावि. मानकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२,१२४३५). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: पग भावे करीजी, गाथा-११. ४४५८१. पार्श्वनाथ स्तोत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०, १५४४३-४८). पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सदालसत्सौख्यपरंपर; अंति: मायाः सौख्यमोल लभंते, श्लोक-९. पार्श्वजिन स्तोत्र-विवरण, सं., गद्य, आदि: श्रीमतः पार्श्वनाथस; अंति: यायिमयिका बोध हेतवे. ४४५८२. (#) षट्कारक विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. दयामूर्त मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४९.५, १६x४०-४५). कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., पद्य, आदि: कारकाणि कर्ता कर्म; अंति: प्रोक्तान्यमून्यहो, का.-७६. ४४५८३. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ व तत्त्वज्ञान प्राप्ति के भेद प्रभेद विवरण व २४ मांडलह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. जलालपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,१०x४५). १.पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनुं स्व; अंति: हवउ समकितनी प्राप्ति. २. पे. नाम. तत्त्वज्ञान प्राप्ति के भेद प्रभेद विवरण- तत्त्वार्थसूत्र सम्मत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तत्त्वज्ञान प्राप्ति के भेद प्रभेद-तत्त्वार्थसूत्र सम्मत, सं., गद्य, आदि: निर्देश स्वामित्वं अ; अंति: स्थायित्रं सिद्धत्वं. ३. पे. नाम. पोसह चोवीस मांडला, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आधाडे आसन्ने उच्चार; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ४४५८४. वैराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३७). वैराग्य सज्झाय, मु. शियलविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार असार छे रे; अंति: शिष्य कहे करजोड, गाथा-१०. ४४५८५. (#) बावीस अभक्ष्य बत्तीस अनंतकाय सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १५४३०). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव गुरूनुं लीजे नाम; अंति: सुख लहसइ तेह, गाथा-१६. ४४५८६. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, ११४२७). आदिजिन स्तवन, पं. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केकिंद नयरे ऋषभ विरा; अंति: रूप० मन उल्हासै हो, गाथा-९. ४४५८७. दिनमान घडी फल व जिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५४१०.५, १३४२९). १.पे. नाम. दिनमान घडी फल, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणिं; अंति: अनाउ संरह भगवंतं, गाथा-४. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ४४५८८. नेमजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खजवाणा, पठ. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०.५,१३४३८). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरिपुर सोहामणौ समुद; अंति: मनरूप प्रणमुपाय, गाथा-१५. ४४५८९.) तमाखुसज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालूडा, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १०४३१). औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम खेती विनवू; अंति: होसि कोडि कल्याण, गाथा-१७. ४४५९०. (#) शेव्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, १०४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुज सम बड को नहि; अंति: मानसागर० वादोरे, गाथा-१६. ४४५९१. शांतिनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. ३२, दे., (२६४१२, १३४४०). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुंसिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. ४४५९२. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजुजो सिणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणजो एकह चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषण-चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नमसीस, गाथा-३. ४४५९३. अबोलाजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३१). सकलजिनविनती स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जीवन प्रभु अबोला; अंति: दिपविजय० जग जय नेता, गाथा-१०. ४४५९४. ऋषि बत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१०.५, ८x२९). अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद श्रीआदिज; अंति: जिणहरख नमुंकर जोडि, गाथा-३२. ४४५९५. सिद्धचक्र स्तवन व सिद्धचक्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा-५. ४४५९६. केशीगौतमगणधर सज्झाय व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ११४४२). १.पे. नाम. केशीगौतम गणधर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरोरे; अंति: शिवतरु बीज खरोरे, गाथा-३. ४४५९७. नरक दुःख स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९११, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. खेमचंद (गुरु पं. दीपविजय); गुपि.पं. दीपविजय; पठ. श्रावि. हाली बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १०४२६). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: यामणे परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ४४५९८. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिग्घमवहरउ विग्धं; अंति: नमामि साहम्मिआ तेवि, गाथा-१४, संपूर्ण. ४४५९९. (+) स्थविरावली व आश्यकनियुक्ति पीठिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२४४२-४६). १.पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६० तक लिखा है.) ४४६००. (-) साधुपाक्षिक अतिचार व बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५X११, १४X३२-३७). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिअ दंसणमिअ चरणमि, अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, पृ. ३ अ- ४आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६०१. (+) भाव प्रकर्ण सह टबार्थ व २८ लब्धिनाम यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५.५४११.५, ५४३१). . १. पे. नाम. भाव प्रकर्ण सह टवार्थ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरिय नयणो आणंद, अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा - ३०, संपूर्ण. भाव प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः आणंददं करि हर्षे, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का बर्थ नहीं लिखा है.) २. पे नाम. २८ लब्धि यंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण प्रा. सं., गद्य, आदि आमोसलब्धि‍ विपोस, अंति: लब्धि२७ पुलाकलब्धि२८. ४४६०२. हरीयाली संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ६, जैदे., (२५x१०.५, १६४५३). " १. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मिटि दिठो सुखकरि रे; अंतिः नेमविजय० एह विवेक, गाथा - ५. २. पे नाम. नेमराजुल हरियाली, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विषयमा जे विण, अंति: काज अमारा रे नेमजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नेमिविजय, मा.गु, पद्य, आदि कोहो कोहो योसी जोगी, अंति: नेमिविजइ० ते पाली रे, गाथा ५. ४. पे. नाम औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्म, आदि; पंडितजी सातारी कुण; अंतिः सौभाग० कही षण्मासी, गाथा ६. ५. पे. नाम. नारीप्रहेलिका हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. नारी प्रहेलिका हरियाली, राउल, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी छइ अति भली; अंति: राउल० डरइ हुसी नरपालइ, गाथा - ५. ६. पे. नाम. नारि प्रहेलिका हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि एक नारी आती दीपती रे, अंति: गुणविजय०मति संदेह रे, गाथा - ९. ४४६०३. पांडव सज्झाय व औपदेशिक पद संपूर्ण, वि. १९७१, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, ९x३५). १. पे नाम, पांचपांडव सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि: हस्तीनागपुर अतिभलो अंतिः कवीयण कहे० मन मोहे रे, गाथा - १९. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन वीण मलवो ज्युं; अंतिः भावना ज्युं न हो हे, गाथा- १. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४६०४. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.पं. जिनेंद्रसागर (गुरु उपा. विनीतसागर); गुपि. उपा. विनीतसागर; पठ. श्राव. लाधाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४४६०५. चौवीसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है., दे., (२५४१२, २४४१४). २४ जिन स्तवन, मु. राजराय, पुहिं., पद्य, वि. १८१८, आदि: आदिजिनेश्वर आदि कह्य; अंति: गुण बोलत राजराय मुणी. ४४६०६. शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १२४४६). शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर प्रणमुं; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा-१८. ४४६०७. (+) गुणठाणाद्वार गाथा व चरमपद भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. शोभाराम; अन्य. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूलपाठ अन्तर्गत विशिष्ट शब्दों को क्रम देकर गिना गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ९४३८). १.पे. नाम. गुणठाणा द्वार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुणस्थानकद्वार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नामलक्खणट्टिई किरिया; अंति: भणिया श्रीमहावीरेहिं, गाथा-१०. २. पे. नाम. चरम पद के भांगा २६, पृ. १आ, संपूर्ण. चरम पद के भांगे, पुहि., गद्य, आदि: १परमाणू में भांगा १; अंति: भागा१२०मां वध्या. ४४६११. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, १३४३०-३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रेयो दधानं कमला; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जय जय पद जगदुत्तमदेव, श्लोक-२४, (पू.वि. श्लोक १५ अपूर्ण से ४४६१२. चैत्रीपूनमदेववंदन विधि व जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. चैत्री पूनिम देव वांदवानी विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीहि पढम; अंति: कीजै संघ भक्ति कीजै. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. जैन गाथा* प्रा., पद्य, आदि: उस्सासट्ठारमे भागे; अंति: सयं च बत्तीसमे यक्खे, गाथा-४. ४४६१३. चोवीस तीर्थकरना पुत्रपुत्रीगिणती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४३३). २४ तीर्थंकर पुत्रपुत्रीसंख्या स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: राजाराणीने कुटुंब; अंति: बेटा दीया छोडजी ने, गाथा-१६. ४४६१४. अजारापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गाथांक उल्लेख नहीं है., दे., (२४.५४११, १०४३५). पार्श्वजिन स्तवन-अजारा, मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरस्वती रे एकी; अंति: त्रीभुवनमां सोहामणी. ४४६१५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११,१०४३७). १.पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजी घरबार सारु मिथ्य; अंति: तो चेतावंतने रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. चरखा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: जल जाइ थल उपनी रे; अंति: हे सुण चरखावाली, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ www.kobatirth.org श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२५४११, १८४४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६१६. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी १. पे. नाम. देवता दसद्वार विचार, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. देवता १० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम अरघर आगत: अंति: देवाजी असंख्यातगुणा. २. पे नाम, १२ बोल विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहल बोल समकंतलेर नर, अंति: कपलमुनीसर की पर. ४४६१७. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले. स्थल. सादडी नगर, प्रले. ग. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, २४X६२). १. पे. नाम. पुनिमपाक्षिकनिराकरण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पूनमपाक्षिकनिराकरण सज्झाय, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, आदि: चौदशे दिन जिन भाखी, अंति: कीरति० धर्म न पार रे, गाथा १६. २. पे नाम, निक्षेपचतुष्टयस्थापक स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ४ निक्षेपस्थापक स्तवन, मु. नेमसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पदारथ च्यारी, अंति: नेमसागरसीस०सुणवं जी, गाथा - १३. ३. पे नाम, प्रतिमास्थापन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, जिनप्रतिमास्थापन स्तवन, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, आदि जिनप्रतिमा जिनसारखी, अंति: कीरति० निखेवो दूजो, गाथा - १५. ४. पे. नाम. बारव्रतनाम सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरवाणी जसु अंति: कीरति करवा दिनमान, गाथा-५. ५. पे नाम, वारव्रत अष्टोत्तर बोल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, १२ व्रत अष्टोत्तरबोल गाथा, मु. नेमसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: व्रत बारहनुं जाणो; अंति: नेमसागर० सयल जगीस, गाथा-५. ६. पे. नाम, धरममूलप्रतिपादक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, धर्ममूल प्रतिपादक सज्झाय, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, आदि: धरम धरम मुखि सहू; अंति: कवि कीरति कह आगमसार, गाथा - ५. ४४६१८. (+) संधारा विधि व पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे... (२४.५X१०.५, २०x४४). १. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: संथारा पाट आलोउं; अंति: मा मुज हुज मरणं.. २. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगर चिंतामण देव सदा, अंति: प्रभु पारसनाथ की, गाथा- १५. ४४६१९ (-) वीसविहरमानरो लेखो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, देहगाम, प्रले. श्रावि, वनु. प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक व लेखन स्थल हेतु "लिखतु वनु देहमधे ऐसा लिखा गया है, जो संदिग्ध है, अशुद्ध पाठ, दें. (२५४११.५, २३x४२). , २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदिः श्रीमंदरसांमी पुखलाव; अंति: दस लाख केवली हुआ. ४४६२०. शांतिनाथजी तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्रले. केसर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०.५, १५X४२). १. पे. नाम. शांतिनाथजी तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमु शिरनामी, अंतिः गुणसागर वंछित संपावे, गाथा-२२. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १४९ मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: (-) अंति रामकसन० जीवा समजाणा, गाथा-२४ (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १९ से है.) ४४६२१. () शांतिनाथ स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५X११, १९X३४). शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद मात नमु सिरनामी, अंतिः गुणसागर० सुख नव पावै, गाथा - २२. ४४६२२. औपदेशिक नाणावटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X१२, १०x२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक नाणावटी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो नाणावटी नाणुं नर; अंति: रूप कहे० भावीक प्राणी, गाथा-८. ४४६२४. असज्झाइनी स्वाध्याय व विमलगिरि स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४११.५, १२x४६). १. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. जावाल, प्रले. मु. गौतमविजय, पठ. मु. खूबचंद (गुरु मु. गौतमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्. मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात, अंतिः सिबलच्छी ते बरे, गाथा १६. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सवि मिलि कर आवो; अंति: नयविमल० नित्य भद्दा, गाथा-४. ४४६२५. (+) चौदस्वपन स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७५१, मार्गशीर्ष शुक्ल १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जावाल, गाथा ५. ३. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. प्र. मु. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुमतिजिन प्रशादात् प्रत की लिखावट से प्रत सं. १९वी की प्रतीत होती है. संभव है कि सं. १७५१ वर्षवाली प्रत की प्रतिकृति की गयी हो., संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १३X२८). १. पे. नाम. त्रिसलाराणी चउदसूपन स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि: सरीरे सिधारथ घर पर अंतिः जन जननी सुख भोगवे ए, गाथा- ७. २. पे. नाम. सुभाषित लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. " श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: काव्य करोमि नहि चारु; अंति: गिरो यं पतितं किम, गाथा- ३. ४४६२६. चोत्रीस अतिसय, संपूर्ण वि. १८९७ फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, जै, (२५.५४११, ११-१२x२५). " ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित, अंतिः पद सेव मागुं भवोभवे, गाथा- ११. ४४६२७. (d) चउद सुपन विचार, मंगल दीवो व च्यार मंगल, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल, कालद्री, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. महावीरस्वामी प्रसादात् अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४४४९). १. पे. नाम. चउद स्वप्न विचार, पृ. १अ संपूर्ण, पे.बि. गाथाक्रम नहीं दिया गया है. १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम ऐरावण दीठो मुझ, अंतिः घरणी निज घर जावै, गाथा-७, २. पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. १अ, संपूर्ण मांगलिक दीवो. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि दीवो रे दीवो मंगलिक, अंतिः घरपार० कुमारपाले, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: च्यारे मंगली च्यार; अंति: जिनजीको आनंदघन उपगार, गाथा-५. ४४६२८. सोलसती सज्झाय व नमस्कारपरमेष्ठी मंत्र, संपूर्ण वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, १५, जीर्ण, पृ. १. कुल पे. २, ले.स्थल. जावाल नगर, पठ. मु. खुशाल (गुरु ग. नायकविजय); प्रले. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रसादात्., जैदे., (२४.५X११.५, १७X३४). १. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. नमस्कार परमेष्ठी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४४६२९. (+) स्तोत्र संग्रह व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. जावालनगर, पठ. मु. किसना (गुरु ग. नायकविजय); प्रले. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x२८). १. पे. नाम. नवग्रहपूजाविधि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि स्तुतं, श्लोक-११. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम, श्लोक-८. ३. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पूजो आदिदेव तन; अंति: श्रीधर्मनाथ रे नाम, गाथा-५. ४४६३०. संखेसरपास छंद व गौतम छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जंबूसर, प्रले. मु. मानविजय; पठ. मु. प्रीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). १.पे. नाम. संखेसरपास छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रय उठी प्रणमुंपास; अंति: कुयरविजे यम गुण गाय, गाथा-११. २. पे. नाम. गौतम छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ४४६३१. ऋषभजिन स्तवन व मेवाड वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३५). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ज्याजको लोक तरायो ऋष; अंति: गाथा-४. २.पे. नाम. मेवाड को वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारती; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रचना प्रशस्ति की अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) ४४६३२. (#) अंबिल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी शारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. ४४६३३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १६x६०). १.पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेसूआ, पठ. ग. जालिमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमे पास; अंति: कुअरवि० ताहरी आण धरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: ___ मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनसागर, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनसागर० सुरतरु की, गाथा-५. ४. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १५१ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदिः शेत्रुंजे ऋषभ समोसर, अंतिः समयसुंदर कहे एम, गाथा-१७, (वि. १ गाथा को २ गाथा गिनकर परिमाण दिया गया है.) ४४६३४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, खंडित पत्र को जोड़कर लिखा गया है., जैदे., (२५X११.५, ११x२८). १. पे. नाम. हित सीखामण सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ओ भव रतन चिंतामणी; अंति: सूरा पार उतरसी रे, गाथा- ७. २. पे. नाम बीजरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-७. ४४६३५. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, १५X३८-४२). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पंच, आदि जीवाजीवापुत्रं पावा, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ७५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४४६३६. चिंतामणीपार्श्व स्तोत्र व नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५X११, १०X३४). १. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्व स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. , पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक- ७. २. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अंतिः नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा ५. ४४६३७. (+०) ककाबतीसी प्रभातीओ सीखामण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १७४३८) "" " कात्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध न कीजीइं; अंति: वाधे विनयविलास, गाथा- ३३. ४४६३८. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५.५४११, १५४३४). १. पे नाम, शंखेश्वरपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वरपास मुज, अंति: दिन दिन कोडि कल्याण, गाथा - ११. २. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदिः आदीसर अरिहंतजी नाभि, अंतिः शांतिवि० दुतिया दिने, बाल-३, गाथा-३२. ३. पे नाम, नेमिनाथ स्तवन प्र. २आ-३आ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन- गिरनारतीर्थ, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: नेमिसर अरिहंतना पद, अंतिः विनय जसवंत कहंत रे, बाल- २, गाथा १७. ५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घोघाबिंदर सोहे देख्य; अंति: जसवंत गणि मनधार, गाथा- ६. ६. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ४. पे. नाम. नव्यनगरे पंचजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण पंचजिन स्तवन- नवानगरमंडन, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: नवा रे नगर में दीपै; अंतिः जसवंत आणी इक मने, गाथा १४. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोडीपुरवर सोभतो तिहा अति हो भावना जसवंत कि, गाथा- ७. ४४६३९. (+) पदसंग्रह, संपूर्ण वि. १९०७ कार्तिक शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ४, प्रले. मु. हीरचंद्र पठ. सा. झूमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५x१०.५, १४४३९). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, हिं., पद्य, आदि: मोटो विष हे विषयन; अंति: जिनदासे गुण गायो हे, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल, अंति: उपदेश धरे मत कांणा, गाथा-४. ३. पे. नाम. उपदेश पद, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: मान ले रलीया कोइ दिन; अंतिः इण वीध पार उतारयां, पद-५. ४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि: तन वसत्र कु ते रंग, अंतिः मोटो लगायो दागो रे, गाथा-६. ४४६४० (+) चतुर्मासकपर्व व्याख्यान, संपूर्ण वि. १७८१, चैत्र कृष्ण, १०. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, जेसलमेरदुर्ग, प्रले गच्छाधिपति जिनउदयसूरि राज्यकालरा, अखयसिंघ रावल, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५.५X११, १८५५-५९). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंतिः चतुर्मासिकव्याख्याम् ४४६४१. () पंचमंगल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२५x१०.५, ११४३४-३६). पंचमंगल गीत, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: हरषचंद० तणा बंछित फलै, गाथा-२१ (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) ४४६४२. वडाकल्प व वीरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X११, ९३०). १. पे. नाम. वडा कलप नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कलप पुरब दिने घर, अंतिः सुणे तो पामे पार, गाथा-४. २. पे नाम, वीरजिन नमस्कार, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः नव चोमासी तप कर्या, अंतिः पद्म० नीतु कल्याण, गाथा- ७. ४४६४३. मृगापुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, 1 ११५३०). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रीव नगर सोहामणु: अंतिः होजो तास प्रणामरे, गाथा- २३. ४४६४४. थोई संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. दुढुआ, प्रले. मु. चांपसी (गुरुमु. अमीचंद) गुपि मु. अमीचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२५x१२, १४४३१). "" १. पे. नाम. धर्मनाथजिनजीनी थोई, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन-सत्यपुरमंडन, मु. रंगसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: साचो जिन साचुर सुणी; अंति: रंगसुंदर० संसारोजी, गाथा-४. २. पे नाम, शेडुंजगिरतीर्थमंडन आदीश्वरजिन थोई. पृ. १अ १आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्रव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो तीरथ, अति: पावा ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. ४४६४५ (+) आसीकपच्चीसी व दोहा, संपूर्ण, वि. १८१७ आषाद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे, २. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४४). For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १.पे. नाम. आस्यक्पचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आसिक मोह्यो तुझ रूप; अंति: जिनचंद्र० घणो लहस्यै, गाथा-२५. २.पे. नाम. प्रासंगिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: मन उहां पंजर दहा हम; अंति: भमसी भाडाइ तथ को, दोहा-२. ४४६४६. प्रथवीचंद्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरनेमिजिणेसर नमीय; अंति: गूणसागर रिषराज, गाथा-५३. ४४६४७. स्तवन व गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०, १४४४२). १.पे. नाम. वीसविहरमानजिन गीत, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन-२०, (पू.वि. स्तवन-५ की गाथा ३ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सामलीआ घर आव कि राजु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४४६४८. (+#) सनत्कुमारऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. रविविजय; पठ. श्रावि. सहजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,१३४५२). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन रस; अंति: शांतिकुसल रे संभाली, गाथा-१५. ४४६४९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, ८x२४). १.पे. नाम. अष्टमीमहापर्वणी महात्म्यवर्णन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, लिख. श्रावि. झरमर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल-२, गाथा-२४. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ की गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ४४६५०. शंखेश्वर पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२, ८x२५). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकलभविजन चमत्कारी; अंति: रुप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. ४४६५१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४२, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खेडा, प्रले. कालिदास प्राणनाथ व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ९४२८). औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुध पुत्रने धन जोबन; अंति: विनयविजय० रे आमलो, गाथा-६. ४४६५२. बीजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, ११४३२). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने; अंति: लब्धिविजय ० विनोद रे, गाथा-८. ४४६५३. समकित स्याध्याय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ३४३५). सम्यक्त्वसुखडीसज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चाखो भव्यजीवो समकित; अंति: दर्शननइं बाहली छइ. ४४६५४. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. वा. कीर्तिलक्ष्मी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, -१४-१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ४४६५५. अजितनाथ स्तवन व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिन विनंती दिल; अंति: नित्य दिवाली, गाथा-७. २. पे. नाम. सोलहसती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदनाथ जिनवर वादि सफल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४४६५६. (+) मल्लिनाथनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. जेसिंग साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १२४३१). मल्लिजिन स्तवन, राज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिनराज; अंति: कहे कर्मथी दुर वारो, गाथा-९. ४४६५७. (+) चोवीसजिन विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १६x४२). २४ जिन विवरण-पुराणसम्मत, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन सर्वतूं; अंति: परशासननी शाख लखी छै. ४४६५९. सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०). सुभद्रासती सज्झाय, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर केरु सीस; अंति: सीलपालइ ते शिवपद लहइ, गाथा-२३. ४४६६०. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २०४५१). १.पे. नाम. वर्द्धमानविद्या स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. चक्रेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: विलसंत जोइवीए; अंति: हवंतु सुलहायइ भवंमि, श्लोक-१२. २. पे. नाम. वर्धमानविद्या स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आसि किलठ्ठत्तरसय; अंति: मंगल कल्लाण आवासो, गाथा-१७. ३. पे. नाम. मंत्राधिराज पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: कविकुलप्रभुतया घटति, श्लोक-११. ४४६६१. सज्झाय स्तुति व बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४४१०.५, १०-११४३१-३८). १.पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: हे पाटणपुर सिद्धि, गाथा-५. २. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आसो चैत्र आंबिल ओली; अंति: नितनित जयजयकारीजी, गाथा-४. ३.पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वाम मेल; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. ४४६६२. (+) नेमजीरोबारामासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १२४३७). नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: छोड्यो गरभाजी बासो, गाथा-२६. ४४६६३. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३०, भाद्रपद कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पीचीयाख, प्रले. मु. हर्षचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६४३६). १.पे. नाम. नेमराजिमति श्लोक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु गणपतिनै सारिद; अंति: राजेमतीरो भरतारो, गाथा-२५. २. पे. नाम. रामदेवजीरो सिलोको, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ रामदेव श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमणी तुझ पाव; अंति: कहै ने सोभाग लैस्या, गाथा-१९. ४४६६४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १३४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभले; अंति: नंद कहे करजोड रे, गाथा-११. २.पे. नाम. विषय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति की शेष गाथाएँ पत्रांक १'अ' पर लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: राजद हो राजद मन; अंति: सुणज्यो एह विचार, गाथा-२३. ४४६६५. गौड़ीपार्श्व स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १०४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: माहरी सफल फली आस, गाथा-९. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४६६६. बृहत्शांतिस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११, ६४३३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो भव्य जीवो सांभ; अंति: इति इसी वडीशांति हुउ. ४४६६८. ब्रह्मचर्य विषेनववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९९, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जगतारणी, प्रले. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १७४६५). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल-११, गाथा-९७. ४४६६९. एकादशी स्तवन व केवलज्ञानी- चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १२४२९). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहे करो द्याहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. केवलज्ञानीनु चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. केवलज्ञानी चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चउनाणी थइ शु; अंति: विजयलक्ष्मी गुण उचरे, गाथा-९. ४४६७३. स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. नेमगीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमि जिनराज गढ; अंति: मूलचंद० तरस्ये रे, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिननुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीत प्रते नाम जपत; अंति: ज्ञानमां कांइ बूझे, गाथा-७. ४४६७४. शांतिनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. नगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४३४). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. ४४६७५. तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय गणि (गुरु ग. सुबुद्धिविजय); पठ. श्राव. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५,१६४३२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ४४६७६. (+) स्थूलभद्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. खेतडी, प्रले. मु. नेणसुखदास (गुरु मु. ख्यालीराम); गुपि. मु. ख्यालीराम (गुरु मु. धनराज); मु. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १५४३५). For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: मनना मनोरथ सवि फल्या, ढाल-९. ४४६७७. स्वाध्याय व सुकनावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १२४३३). १.पे. नाम. छ लेश्यास्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ लेश्या सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सहिगुरुपाय; अंति: प्रीतरीत शिरनामि, गाथा-१२. २. पे. नाम. शुकनावली, पृ. १आ, संपूर्ण. शुकनावली*मा.गु., गद्य, आदि: कागना बार शब्द जाणवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ तक लिखा है.) ४४६७८. अध्यात्म स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, आषाढ़ कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नारदपुरी, पठ. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०-१५४३८-४१). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेर सामायक कीधु; अंति: थईई सिद्धपद सौगीजी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां संसारी जीव बे; अंति: सिद्धपभोगी थाइं छइं. ४४६७९. पंचमआरानी सज्झाय व रात्रीभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरति बिंदर, पठ. चिरंजीव भट्टाचार्य, प्रले. मु. तिलकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४३४). १.पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सुणो; अंति: भाख्या वेण रसाल, गाथा-२१. २. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा-१३. ४४६८०. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११, १४४३७). मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद स्वामिनी; अंति: प्रेमे प्रणमुपाय, ढाल-६, गाथा-५२. ४४६८१. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, १३४३७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ४४६८२. (+) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, २१४५४). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपै सारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४६. ४४६८३. भगवंत महावीरनां सत्तावीस पूर्वभव, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. दे., (२५.५४११, १३४३७). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भवनै विषै; अंति: भवै बीर हुवा, गाथा-२७, संपूर्ण. ४४६८४. होरीव सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १२, जैदे., (२५.५४१२, २२४५३). १. पे. नाम. नेमजिन होरीपद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे स्याम सलूणे खेलत; अंति: कीनो निज अधिकार, पद-९. २. पे. नाम. होरी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरीपद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: होरी के खेलइया हां; अंति: अनुपम भव विस्तर रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. समाई सुख, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: सामाई सुखदाईजी; अंति: काई चावास चितलाई. गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १५७ मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: कर गुजरान गरीबीसु; अंति: भेट भया दुख मिटता है, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: पारस जैसी छाया सुरतर, गाथा-६. ६. पे. नाम. पुण्य पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होडि तुंम करे; अंति: द्रव्य कोटानुकोटी, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गहि सुध ग्यानं धरह; अंति: अर्थ उपाधु संसारी, गाथा-५. ८. पे. नाम. पंचमआरा वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमआरा ३० बोल दढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मकथा हिरदे धरो; अंति: विनय नमे नित पाय, ढाल-२, गाथा-३०. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __रा., पद्य, आदि: कुड कपट कर माया मेली; अंति: कुण कुण मनुषा छलीया, गाथा-१०. १०.पे. नाम. मनुष्यगति सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मेतार्यमुनि सज्झाय, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: स्वर्ग थकी आए मानव; अंति: सोभा सदा सवाई रे, ढाल-२, गाथा-२०. ११. पे. नाम. होलिका चौढालियो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति: विनयचंदजी कहे करजोडी, ढाल-४. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माटी की गणगोर बणाई; अंति: पछइ घणो पछतासी, गाथा-७. ४४६८५. बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४११, ११४२८-३०). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: तीया सवि टलइ कलेस, गाथा-५८. ४४६८६. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२-४६). महावीरजिन स्तवन, मु. लखमण, मा.गु., पद्य, वि. १५२१, आदि: पहिलुंधुरि समरूं; अंति: घरि निश्च अफला फलइ, गाथा-९७. ४४६८७. (+) नवअंग पूजा दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २२४११). नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल संपूट भरी पत्रना; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ४४६८८. अंतराय सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १०x२९). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि, गाथा-११. ४४६८९. पार्श्वनाथनो थाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३४). पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे बोलावे; अंति: थाए गावे गुण सदाय, गाथा-११. ४४६९०. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १२४३६). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३. ४४६९१. मृगावतीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२,११४३८). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: हूजो तास प्रणाम रे, गाथा-२४. ४४६९२. भावना, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. सा. ज्ञानसरी साध्वी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४३१). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदना होज्यो. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४६९३. पाक्षिक खामणा व जंत्र विचार, अपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: इच्छामो अणुसट्टि, आलाप-४. २. पे. नाम. जंत्र विचार, पृ. २१आ, संपूर्ण. ___ यंत्र विचार, मा.गु., पद्य, आदि: दाय परहर दोय सतधर; अंति: पहलडो जंत्र एह विचार, गाथा-२. ४४६९४. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, ११४४०). साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनभाषित भारती; अंति: पावै अविचल मोख, गाथा-३२. ४४६९६. (+) चतुर्विंशति दंडकविचारसूचक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जावाल, पठ. मु. चतुराय (गुरु मु. कपुरविजय); प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. ४४६९८. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४४४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४७. ४४६९९. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४५१). १. पे. नाम. कार्तिक कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, आदि: पृथ्वीभूषणपुर नगर; अंति: रतइंद्रनुं नाम दीधुं. २.पे. नाम. चंदनबाला कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंदनबालासती कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इतश्च भगवताद्वादशनचत; अंति: १२ चुमासा चंपाई कीधा. ४४७००. (+) लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४२४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. ४४७०२. सेबूंजामंडण आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १९४४८). शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी नमुजी सुण; अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३२. ४४७०४. गहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२४४१०.५, १२४३२-३९). १. पे. नाम. वीरजिन गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली माहरे राजग्रह; अंति: लक्ष्मी गावीया रे लो, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमगणधर गुंहली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही रलीयामणी; अंति: भावना वजडावो मंगलतूर, गाथा-५. ३. पे. नाम. आचार्यगुण भास, पृ. २अ, संपूर्ण. आचार्यगुण गहुंली, आ. महेंद्रसिंहसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मुनि संयममां; अंति: महेंद्रसूरी सुख पावे, गाथा-७. ४. पे. नाम. वीरजिन गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नव कनक कमल पगला धरता; अंति: जिनराज वधावे गुणखाणी, गाथा-८. ४४७०५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४३४). १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १५९ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी विलोकुं रे, अंति: नितनित कोडि कल्याण, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरूपि होइ के; अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-७. ४४७०६. (+) सीलसिक्षा सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, १३४३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय- परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता रे; अंति: कुमुदचंद कहे समझल्यो, गाथा-१०. ४४७०७, (+४) शारदा स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५X११, १२X४२). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पं. विजयरत्न, सं., पद्य, आदि: श्रीमाता श्रुतदेवता; अंति: सुप्रसन्न सुदृष्टितः, श्लोक-१५. ४४७०८, (+४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६५११, १९४६१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, लोक-४४. ४४७०९. (+) सालिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., ., (२५x११, १३४४२). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणइ भवइ, अंति: सहजसुंदरनी वाणि, a गाथा - १९. ४४७१०. (+) चवदगुण ठांणा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२३.५X१०, १३X३७-४४). सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजीणंद सुमतिदाता अंतिः कहे इम मुनि धरमसी, दाल-६, गाथा- ३४. ४४०१३. (+) स्तवन व लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x१०.५, १२४३६). १. पे नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. ९अ. संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणसर पूजवा; अंति: सहर उछल हरख अपार हो, गाथा - ९. २. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिनवर स्वामिजी अंतिः ज्ञान० सुख भरपूर हो, गाथा ७. ४४०१४. (+) आत्मशिक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११.५, १३४३७). औपदेशिक सज्झाय- आत्मोपदेश, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि मनधरिन, अंतिः धरि परि परमाणंदोरे, गाथा - २२. ४४०१५. (+) आदिस्वर स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १७६३ आश्विन कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. डेह, प्रले. मु. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १५X३३). १. पे. नाम. आदिस्वर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७५७, आदि आज भलै दिन माहरो रे, अंति: जन सेवो रूपभजिणंद, गाथा १८. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: मृगा केसरि दर्सनेन, श्लोक-३. ४४०१६ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५.५४११.५, १४४३५). " " Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस अंतिः बोधिविजं ददातु श्लोक-११. ४४७१७. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है, संशोधित. दे., (२५x१०.५, ३४४१७). 3 पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य वि. १७१३, आदि: सरसति देवीने नमी, अंतिः गायो ते गोडी धणी, गाथा - २४. ४४७१८. गौतमगणधर भास, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पू. १, पट. शाम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५x११.५, १२x२५). गौतम गणधर भास, मु. हेम, मा.गु., पद्म, आदि: जीरे गौतमगणधर समोसर, अंतिः हेम कहे सीवपद पाय रे, गाथा-८. ४४७१९. चैत्यवंदन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५४११.५ १२४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. एकादशी चैतवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि नेमि जिनेसर गुण निलो अंतिः शुभ सुरपति गुणगाय, गाथा- १२. २. पे. नाम. चक्रेश्वरीमाताजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचक्रेश्वरी देवी, अंति: नितुं जय जय कार, गाथा-५. ४४७२०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७ चैत्र कृष्ण, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, पठ. श्रावि. विजलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, १५X४१). १. पे. नाम. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ गुरू चरणें नामी; अंति: सरगे गई सुलसा रेवती, गाथा- ९. २. पे. नाम. समकितनी सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितना पंच भेदए, अंतिः शुभवीर० हंसियार रे, गाथा- ११. ४४७२१. सास्वताप्रासाद सास्वताजिनप्रतिमा विचार, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. फलवर्धि, प्रले. पंडित. छोटुराम देवराम पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२५.५४१२, ११४३१). शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधरमेंदर इंद्र तिहा; अंति: माहरो नमसकार होवो. ४४७२३. चारकषाय सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले. स्थल. धनोप, प्रले. मु. तखतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३३). १. पे. नाम. क्रोध सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीये भोला, अंतिः उपसम आणी पासे रे, गाथा - ९. २. पे नाम, मान सिझाय, पृ. १आ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, पंडित, भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि अभिमान महा दुरवंत, अंति: नगर रह्या चोमास रे, गाथा-८. ३. पे नाम, माया सिझाय, पृ. २अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो, अंतिः सुख निरावांणि हो, १५X४४-५०), गाथा-७. ४. पे. नाम लोभ सिझाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया, अंति: पहोंचीजे सयल गीस, गाथा ८. ४४७२५. दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. काला शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१०, For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १६१ दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो, अंति: सोलहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. ४४७२६. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नामी, प्रले. ग. गजकुशल (गुरु ग. दर्शनकुशल पंडित); गुपि.ग. दर्शनकुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वप्रसादात्., जैदे., (२५.५४११, १५४३७). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरुगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत, श्लोक-३९. ४४७२७. पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १४४३६). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवलि; अंति: नाथ जीरावलो गुण थावो, गाथा-११. ४४७२८. सुधर्मगणधर गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ११४३२). सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. हर्षकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर सोभता सही; अंति: कल्लोल चढतदि वाजा रे, गाथा-७. ४४७२९. प्रस्ताविक काव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. ग. सकल; ग. गजेंद्र; मु. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८-४२). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: कलौकले षद्गणमावहंति, गाथा-३४. ४४७३०. अभव्य कुलक व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४२९). १.पे. नाम. अभव्य कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविअजीवहिन; अंति: हावि तेसिंन संपत्ता, गाथा-९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: न सा जाई न सा जोणी; अंति: वाक्षेप कतुहला रमणा, श्लोक-२. ४४७३१. (-#) आदिनाथ स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ३१४१६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलघडी रे आदिनाथनी जो; अंति: रामविजेय गुण गाय जी, गाथा-५. २.पे. नाम. क्रोध सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-५. ३. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन ज्योरे; अंति: ते शिवपुरमा भलीया, गाथा-१४. ४४७३३. (-#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, २०४१२). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी संभव स्वामी; अंति: सवि आस्या फली रेलो, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज नंदनवन जोगी आयो; अंति: गुण जसराजिद गायौ हे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हारे एतो तोरण आवी; अंति: उदय० जाइ भाम्मणे रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठोने मेरे आतम; अंति: वरतु सदा सहाइरे, गाथा-६. ४४७३४. थुइ व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४८.५, २४४११). १.पे. नाम. अष्टमी थुइ, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाषा-. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जिवत जनम प्रमाण, गाथा-४. २.पे. नाम. नवकार सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४४७३५. (-) पद, स्तुति वदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१०.५, ७४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारकर देस देख; अंति: होस्यु सीवरमण रसीया, गाथा-७. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जीन पुजा रचि; अंति: पुरवे देव सीधाइ जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणेसर पुज; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विसलपुर वांदु आदीजीन; अंति: सींघना विघ्न नीवार, गाथा-४. ५. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४७३६. (+) सोलैसुपन सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: चंदगुपत राजा सुणु, गाथा-३५. ४४७३७. पदमावती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. रतना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावति; अंति: मेलाया मुज दुषण लागी, गाथा-४२. ४४७३८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, २०४५९). १.पे. नाम. चउवीसजिणवर प्रथमगणधर प्रथमसाहूणी परिवार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन प्रथमगणधर प्रथमसाध्वीपरिवार स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रूषभादिक चउबीस; अंति: जाणइ ते सिवसुख लहई, गाथा-२७. २.पे. नाम. सांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछत सिवसुख पावई, गाथा-२२. ४४७३९. (+) पच्चक्खाण सूत्र व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४१). १.पे. नाम. एकासणा आयंबिलादि पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: गठिसहियं मुंठिसहिय; अंति: मह० सव्व० बोसिरामि. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो नवकारन१ सहा२; अंति: पाखिज्ज छप्पाण लेवाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जिणमुणि वंदण अईसा; अंति: बहुवेलपजिलेहत्ति. For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १६३ ४. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणयं; अंति: (-), (अपूर्ण, __ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४४७४१. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १४४४०). आदिजिन स्तवन, ऋ. मूला, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रथम जिणेस्वर स्वाम; अंति: रे ऋष मूला गुणखाण, ढाल-३, गाथा-१७. ४४७४२. पद, सज्झाय, चोमासो व बारमासोसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. रीया, दे., (२५.५४११, १८४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: मुख दीयोजे लाइरे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: थारा फुलसि देहें पलक; अंति: रतन० सुखरी अबलाषा रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजिनराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण बरसवो स्यांमी; अंति: मनवंछत कारज सीधो, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: काती कंत बीन कीम सरस; अंति: भाला दीया चीतराइ, गाथा-१२. ४४७४३. (+) मुनिगुण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रूपराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११.५, १५४४८). मुनिगुण स्तवन, रा., पद्य, आदि: थे वर कस परन सतस्या; अंति: सही सही जाणो नरनार, गाथा-२४. ४४७४५. (+) तीर्थमाला व नक्षत्र यंत्र, संपूर्ण, वि. १८४७-१८४८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालद्री नगर, प्रले. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन कृष्ण, ८. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चितमानंदकारी, श्लोक-१०. २.पे. नाम. संजोग्या नक्षत्र यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, २. नक्षत्र यंत्र, अज्ञा., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४४७४६. (+) ऋषभदेवजीरी ल्यावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पंडित. तिलोकचंदजी; अन्य. कावसर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३-१४४४६). आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करन आदि जगत आदि; अंति: सूरनर सब कीरत करे, गाथा-६३. ४४७४७. देसंतरी छंद, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४३५-३९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: इम तवीयो छंद देशंतरी, गाथा-४७. ४४७४८. पांचपांडव सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, ९४३५). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तीनागपुर अतिभलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ४४७४९. मुरखप्रतिबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०, ८४३२). मूर्खप्रतिबोध सज्झाय, मु. बुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान कदि नवी थाय; अंति: बुद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४७५०. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४१०, ९४३३). १. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसेतुंजो सीणगार, अंतिः आगमवाणी विनित, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीदेवाधी, अंतिः प्रवचन वाणी विनित, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: लहे उपजे विनय विनित, गाथा - ३. ४. पे नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपनविधि कहे सुत होस, अंति: वाणी विनित रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्म, आदि जिननि बहेन सुदर्शना अंतिः धरे सुणजो एक चीत, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ, अंतिः सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवछरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुं शिष, गाथा - ३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडाकल्प पूरव दिने घर, अंति: सुणे तो पामे पार, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चौमासी तप कर्या; अंति: लहियें निनुं कल्याण, गाथा-६. ४४७५१. ओलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x१०. ९४३३). सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि नवपद महिमा सार सांभल, अंतिः पद महिमा जाणज्यो जी, गाथा-५. ४४७५२. सीमंधरस्वामीनी वीनंती, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२४४१०.५, ९३४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु, पद्य वि. १८२१ आदि मारी वीनतडी अवधारो अंति जीन पद वंदन भास, गाथा - २१. ४४७५३. मरुदेवीनी सझाय व अभिषेक स्तवनादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४X१०.५, ९X३७). १. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारूदेवी माता रे इम, अति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम जिनजन्म नवण अभिषेक स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. जिन जन्माभिषेक दोहा, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरुशिखर नवरावे हो; अंति: फरसी जिनउत्तमपद पावे, गाथा ५. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन वीण मलवो ज्युं; अंतिः भावना ज्युं न हो हे, गाथा- १. ४४७५४. (+) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै (२४४११, १०x२५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १६५ ४४७५५. स्तवन, सज्झाय व गीत आदि, संपूर्ण, वि. १८४४, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. भगू, प्रले. मु. गीतरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८८८) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२४४११,१२४३४-४२). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: करै वारोवार रे लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेश्वरो; अंति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वैरागे संयम लीयो हो; अंति: सोभाग पोहती जगीस, गाथा-११. ४. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत,म. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: तरसत अंखियाने हंइ; अंति: सती राजीमतीया, गाथा-७. ५. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४४७५६. देशना गहुंली व चक्केश्वरी स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. ४, दे., (२३.५४१०, १०४३२-३७). १.पे. नाम. जिनपद गहुली, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. सिवचंद पाठक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: करै जिनपदवंदन मुदा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. देशना सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. गौतमगणधर देशना सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: इकदिन गोतमगणधरू रे; अंति: समकित रतन विलासरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. देशना सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन देशना गहुली, उपा. सिवचंद पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरै उद्यान, अंति: ए पद नित पाठकसिवचंद, गाथा-७. ४. पे. नाम. चक्केश्वरी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. चक्केश्वरीदेवी स्तवन, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनसासनसुरी; अंति: करै तेने फल देज्यो, गाथा-७. ४४७५७. सप्रभाव स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. ज्ञाननदि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के दोनों ओर पंचषष्ठी यंत्र अंकित है., जैदे., (२४४१२, १६x४३). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: लक्ष्मी निवासनम, श्लोक-८. ४४७५८. (+) शत्रुजय स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. पं. खुशालविजय (गुरु मु. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११, १६x४८). १. पे. नाम. शत्रुजयमहागिरी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले.पं. खुशालचंद (गुरु मु. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: सेर्जेजशिखर सुहामणो; अंति: खुस्याल० सुख पाया रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. सर्बुजयमहागिरी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: सारदमाता नमि करी; अंति: भवभव देजो प्रभुपाय, गाथा-१७. ४४७६०. शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १२४३६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: गिरिराज तणा गुण गावो; अंति: भवजल पार उतरसे रे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४७६१. () पद्मावती स्तोत्र व नेमराजीमती संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, १६x२७). १. पे नाम, पद्मावतीदेवी छंद, प्र. ९अ संपूर्ण. मु. हर्षसागर, मा.गु. सं., पद्य, आदि: कुसुमंडण डंडं पार्श, अंतिः पुज्या सदा सुखकारणी, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमराजीमती संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक लिखा है.) ४४७६२. चौवीसी, सवैया व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., ( २४.५X११, १६३७). १. पे नाम, २० विहरमानजिन नाम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधर जुगमंदिर बाहु; अंति: अजित होय जात है, गाथा - १, (वि. गाथा क्रमश - १ ) २. पे. नाम. ११ गणधरनाम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि गौतम इंद्रभूति नाम अंतिः मास वंदना हमारी है, गाथा-१, (वि. गाथा क्रमश- २) ३. पे. नाम. कुंढकमतपट्टावली को दुडालीयो, पृ. १- ३अ संपूर्ण ढुंढकमतपट्टावली दुढालीयो, पुहिं., पद्य, आदि: वांदु सिरी चोवीसमा, अंति: दुरगति दुर निवारि, ढाल -२. ४. पे. नाम. उपदेशी सिज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ममता त्याग, मु. विनय, रा., पद्य, आदि: मम्मण माया बोहती, अंतिः वचने समतानों रस पीजे, गाथा - १६. ५. पे नाम. द्विसप्ततिजिनेंद्र स्तोत्र, पृ. ३अ ४अ संपूर्ण ७२ जिन स्तोत्र, मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८६५, आदि: प्रणमि मन वच काय; अंति: विनय० सारे वंछित काम, गाथा- २३. ६. पे नाम, जिनचतुर्विंशति स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, २४ जिन लावणी, मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: समर समर जिनराज समर अंति: (१) विनयचंद वंदे चरणा, (२) दुख दारिद्र हरी जीयै, गाथा- १४. ७. पे नाम. सुकृतकरणी पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: सुकृत करलै रे गैला; अंति: सुणतां चित्त ठरेला, गाथा- ८. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहिं, पद्य, आदि: बंधवीया मुझ बोल, अंतिः वचने जाग दिया हो, गाथा- ६. ४४७६३. (4) सीलनववाड सजझाय व सामाइक३२ दोषस्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०.५, १७X५४). १. पे नाम, शीयलनववाड सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला प्रणमुं गोयम, अति सीलवंतने जाउं भामने, गाथा-२७. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय अंतिः श्रीकमलविजयबुध सीस, गाथा-१३. ४४७६४. कृष्णराजी विमान विचार स्तवन व प्यार कर्मग्रंथ बोल, अपूर्ण, वि. १८५३ ज्येष्ठ शुरू, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-९ (१ से ९)-१, कुल पे २ ले, स्थल, खेटकपुर, प्रले. मु. शिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दोनो साईड में पत्रांक १० लिखा है. श्री भीडभंजन प्रसादात् जैदे. (२५४११.५, ८x२९). " १. पे. नाम. चार कर्मग्रंथ बोल संग्रह, पृ. १०अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मग्रंथ - बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेनो संदेह भागें. २. पे. नाम. कृष्णराजी विमान विचार स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ कृष्णराजीविमानविचार स्तवन, मु. जयशेखर, प्रा., पद्य, आदि: जेहिं जह लोगंतियसुरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४४७६५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२, ९४२७). १.पे. नाम. महाभद्रजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन मगन भयो महाभद्र; अंति: श्रीसंघ पाय नमेरे, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: श्याम बरन सुंदर छवि; अंति: सरण गृही हम तोरा रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. पुरिषादानीपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: जयकारी जिनराज पुरसाद; अंति: जिनचंद० सार्या रे, गाथा-९. ४४७६६. नेमजिनगीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, २०४४८). १.पे. नाम. नेमीनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नयरी सूरीपुर राजीओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३८ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: हो मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१७. ४४७६७. पांच इंद्री चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२१, ज्येष्ठ कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नीवाई, प्रले. मु. महताब ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १९४४७). ५ इंद्रिय चौपाई, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंति: वसै सबकुं मंगल होई, ढाल-६, गाथा-१५४. ४४७६८. पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४४२). पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमीचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती गुणवती, अंति: वंदता शिवसुखपद लीजे, गाथा-१३. ४४७६९. घडपण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १०४३३). घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण तुझ केणे तेडिओ; अंति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-८. ४४७७०. (+) बांभणवाड स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १२४३६). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२२. ४४७७२. (#) कर्म छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साहारणपुर, प्रले. अमरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११.५, १५४५५). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी कोई छूट्यो; अंति: धरमतणै परमाण जी, गाथा-३६. ४४७७३. महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरानुंढाल-१-४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. रचना प्रशस्ति की ढाळ-५वी लिखी नहीं है., जैदे., (२५४१०.५, १२-१४४३०). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणेसर पाय; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल ४ तक लिखा है.) ४४७७४. आंबेलनी होरिनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, १०४३२). नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता मया करो; अंति: विमल० नामे आणंदोरे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४७७५. अंबामातारो छंद व शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४९.५, १०४३१). १. पे. नाम. अंबामाताजी रो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ अंबिकादेवी छंद, मु. गोकल, मा.गु., पद्य, आदि: बालपण की प्रीत तुमार; अंति: साधी संगती जस मेर्यो, गाथा-५. २. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुण्या ब्राह्मण; अंति: खंडु काया राखसुंरे, गाथा-११. ४४७७७. (+) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १८४३१). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हा रेम्हारे धर्म; अंति: कांति सुख पावे घणो, ___ ढाल-२, गाथा-२४. ४४७७८. दीवाली पर्व स्तुति व सूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. जावाल, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. महावीर दीवालीपर्व थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसरनुसरी वरष; अंति: लालविजय० संकट हरे, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रावण शुक्ल, ५, ले.स्थल. जावाल. मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिनेसर अलबेल; अंति: न्यानविजय गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सोमासी तप छठेण बे; अंति: तप करी पोहचाडज्यो. ४. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी कायोत्सर्ग विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सोमाचारी १४सना नोकार; अंति: राइ दीयाणं जंकीसीयं. ५. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी खामणा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जथा सगती तप करी पोहस; अंति: कहो करी पोहसाडज्यौ. ४४७७९. गुणठाणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १८४४१). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: ते पावे भव पार रे, गाथा-१७. ४४७८०. रेवतीसती स्वाध्याय व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, पठ.मु. उत्तम; प्रले. पंन्या. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका बाद में लिखी हुई प्रतीत होती है., दे., (२४.५४११, १३४३०). १. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंहासन रेवति; अंति: दानथी जय जयकार रे, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु.ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिनेसर अलबेल; अंति: न्यानविजय गुण गाय, गाथा-४. ४४७८१. अरणिकमुनि सज्झाय व चोविशजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. खंतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणीक जाण; अंति: शिवनारी सुख ते वरे, गाथा-१८. २.पे. नाम. चोविशजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछनवर्णन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर रे ऋषभ लंछन; अंति: दया० पूर इच्छा माहरी, गाथा-६. ४४७८२. पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, ११४२५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४४७८३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. वाघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, १२X३७). १. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु, पद्य, आदि: अदभूत हो प्रभु अदभूत अंतिः प्रभु नेहथी हो राजि, गाथा ९. २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, मु. सुबुद्धिकुशल पंडित, रा., पद्य, आदिः सुरति बाहरी सुहामणि; अंतिः मनै मोडीने राजि, गाथा - ९. (४४७८४. (+) तपागच्छ पट्टावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१२, ४X३८). ४४७८५. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४१२, १३x२६). पट्टावली तपागच्छीय उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि सिरिमंतो सुहहेड, अंतिः चउसमी पट्टमी, गाथा-२२. तपागच्छ पट्टावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंतमंगलीकभूत; अंति: लक्ष्मीसागरसुरी थया, (वि. ६४ वीं पाट तक है.) १६९ नेमिजिन स्तवन रा., पद्य, आदि: नेमकुमर तोरण चढ्या अंतिः वरपुरे मतेक सहियाए गाथा- १३. ४४७८६. पर्यंताराधना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२३.५X१०.५, ११X३७). पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा. पद्य, आदि नमिउण भणइ एवं भववं अंति: (-). पर्यंताराधना - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: देव नमस्करिज्यो हउ, अंति: (-). ४४७८७. नेमीनाथजी रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. नायकविजय; पठ. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अनियमित, जैवे (२४४११.५, २४४२०). नेमिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो गयण धडुक्यो, अंति: भवसागर पार उतार, गाथा-८. ४४७८८. वणजारा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५x११, १६५३९). " वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: चतु वणजारा हो सारद; अंति: शिवपुर लीला भोगवे, गाथा-२७. ४४०८९. अर्हनामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२३.५५११, १४४४४). . अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी- १३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण, अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रकाश ६ की गाथा १० तक है.) 7 ४४०९१. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५x११, १५x४२). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस पणे आणंद, गाथा - २९. ४४०९३. घग्घरपार्श्वजिन स्तवन व धन्ना सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२३.५X१०.५, For Private and Personal Use Only १७x४५-४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, पठ. मीठाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर, अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा-२७. " २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, ले. स्थल. ब्रह्मसर, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचनै वैरागीयो; अंतिः धन्ना मोह न कीजे बे, गाथा- ११. ४४०९४. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२५x११, १३४३३-३९). "" पार्श्वजिन स्तवन- वटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगगुरु देवाधिदेव, अंति: जिम न पडु संसार, गाथा- १४. ४४७९५. () महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. जावाल, लिख. सानोपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अनियमित, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X१०.५, २७X१५). Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर जिणेसर, अंतिः बाह्य प्रद्यानी लाज, गाथा - ११. ४४७९६. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७६ कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. जयविजय पठ. श्रावि. जीवी, , अन्य. मु. हरखसागर (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११, १२X३१). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअसव्वभयं संत; अंति: अजिय संतिनाहस्स, गाथा ४२. "" ४४७९७. देवानंदानी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अनियमित, जैदे. (२४.५४१० २९x१३). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं, पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन, अंतिः गणधर ए तो मोरी अमां, गाथा - १२. ४४७९८. पद संग्रह व रोटलानुं प्रभातीयुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., ( २४ १२.५, २५x२०). १. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: पूजुं चरणारवृंद नाभि; अंति: कीजौ लावो रे मत वेरा, गाथा- ४. २. पे. नाम. २४ जिन वंदना पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन पद, जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे जिनराज चरणकमल; अंति: पाये चरण न केसे रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ. संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु तेरो रूप बन्यो; अंति: सफल जनम ताहिको, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पु,ि पद्य, आदि: संज समे जिन वंदु भवि अंति पार करत पाप को फंदा, गाथा ५. ५. पे. नाम. रोटलानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रोटला सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सर्व देवदेव में अंतिः मास धीर मुनी गाजे, गाथा- ११. ४४७९९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४x१२.५, १२X३३). १. पे. नाम. धर्मपापकुटुंब सझाय, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. धर्मपाप कुंटुंब सज्झाय, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविश जिन प्रणमी करी, अंति: जीत नमे तेहना पायजी, गाथा - ११. २. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु संघाते प्रीत अंतिः उदवरतन० इम बोले रे, गाथा- ७. ४४८०० शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४.५x१२, १२x२७). शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सेवा शांति जिणंदनी, अंति: थापज्यो संघ मंगलकारी, गाथा - २०. ४४८०१ (+) नंदिषेणराजरिषि सज्झाय व जैनधार्मिक गाथासंग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२४.५४१०, 3 ६-७X२४-२६). १. पे नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदिः साध्वी न जाइये पर अंतिः जिनराज० घर गमण निवार, गाथा- १०. २. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथासंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली: अंति: (-). ४४८०२. पाखीपडिकमणा विधि, संपूर्ण वि. १८९०, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. जवानकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४१२, १४x२९). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: सामायिक लिया पछे अंतिः चटकसाय रो कहवी. ४४८०३. सुमतिजिन स्तवन व उपदेश लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२, १०X३१). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. 7 मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी सुमति जीने; अंति: मणिउदोत० केवरावो रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम उपदेश लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, जैनदास, मा.गु., पद्य, आदिः आयो अब समकित के घरमे, अंति: सरण जैनदास आय धसीया, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८०४ पर्युसणपर्व चैत्यवंदन व सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२५x११.५, १३४३३). १. पे. नाम. पर्युषण पर्व स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपजुसण परव सेवो अंतिः तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा- १२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: पसायथी हंस कहे करजोड, गाथा- १०. ४४८०५ (+) वृहस्पति स्तोत्र व शनीवर स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. मु. महिमामाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५x९.५, १४X३९). १. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रति सुप्रजायते, श्लोक ५. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंतिः एतानि शनि भार्यानि, श्लोक - १०. ३. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति, अति: हेम० का साम थाए सदा, गाथा - १७. ४४८०६. गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पट्टणानगर, पठ. श्राव. हर्षचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५x१०.५, ८x२५). १७१ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४बी, आदिः ॐ नमखिजगान्नेतुर, अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, श्लोक- ९. ४४८०७. सिद्धसज्झाय वीजतिथि चैत्यवंदन व अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२४.५X११, ११x२९). १. पे. नाम सिद्ध सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धपद सझाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आठ कर्म चूरण करी रे, अंतिः विजयसेन० रे लाल, गाथा-६, २. पे. नाम बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध धर्म आराधता; अंति: जिम होइ कोड कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः एके उणा पंच वर्ग जिन, अंति: लहो अड मंगल भरपूर, गाथा- ३. ४४८०८. मातृका सुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. यंत्र दिया गया है., दे., (२५X११.५, १२x४२). मातृका शुकनावली, सं., पद्य, आदि: (१) पंचपरमेष्टिमंत्रसेसी, (२) अकारे विजयश्चैव अज्ज, अंतिः जायते निर्फला सदा, श्लोक- ५०. For Private and Personal Use Only ४४८०९ बुद्धि रास व श्रीपाल स्तुति, अपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, कुल पे. २, ले. स्थल, भाणपुर, पठ. सा. कस्तूरा (गुरु सा. नगीना आर्या); गुपि. सा. नगीना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२, १८३८). १. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. " आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंतिः न वंछित सकल्या फले ए. गाथा ६१ (पू. वि. गाथा ४५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रीपाल विनती स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नम सिधे मनधरि संत अंति: (-), (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ४४८१०. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९२६, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले. हुकमचंद प्र.ले.पु. सामान्य जैवे. (२४.५x११, १०x२५) Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७२ www.kobatirth.org १. पे नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आदनाथ घर जन्मीयाजी, अंतिः काई राख्यो सियल अखंड, गाथा- १३. अभयसूरिहिं, गाथा-२२. ४४८१२. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, दे. (२४४१२, १५४४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ, अंतिः प्रीतविजय० तणा पाप, गाथा-५. ४४८११. महावीर स्तवन, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. १, प्रले. श्रावि. कोडमदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x९.५, १३४४१). महावीरजिन स्तव- बृहत् आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणो भयवं महा अंतिः पढयकयं कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल ६, गाथा-४९, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल ३ की गाथा ३ अपूर्ण से है.) ४४८१३. पार्श्वजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२३.५४११, १४४३३). " १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - शामळा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरू महिधर सुंदर, अंति: मोहनविजय जयकारं, गाथा-४. २. पे नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद, अंति: महिमा० दोलत मुझ माई, गाथा-४. ४४८१४. () वीर स्तुति व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१)=१, कुल पे २, ले. स्थल, जवालनगर, प्रले. सा. विरति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४x१०, १३X२८). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र हिस्सा वीर स्तुति अध्ययन, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा - २९, (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु. सं., पथ, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं अंतिः जुंबु स्वामी जाणिवे, गाथा-८, ४४८१५. (+) साधु प्रतिक्रमण सूत्र व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर दुर्ग, प्रले. मु. न्यालचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४x११.५, १५X४१). १. पे. नाम. साधु प्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४८१६. योगीरास व निर्वाणकांड भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., For Private and Personal Use Only (२४.५X१०.५, १५४४७). १. पे नाम, योगीरास, पृ. १अ २अ, संपूर्ण योगी रास, मा.गु., पद्य, आदि आदि पुरुष जो आदि ज; अंति: सिद्ध है सुमरण कीयो, गाथा- ४२. २. पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. निर्वाणकांड- भाषा, जै. क. भैया, पुर्हि, पद्य वि. १७४१, आदि: वीतराग बंदों सदा भाव, अंतिः निर्वाणकांड गुणमाल, गाथा-२२. ४४८२१. () जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५X११.५, १२X३०). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहं अंतिः मनोवांछितपूरणाय श्लोक २४. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४८२२. (+) वीरजिन पंचकल्याणक वधावा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. पं. दीपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता व प्रतिलेखक का नाम समान है किन्तु रचना स्थल व लेखन स्थल भिन्न होने से दोनों अलग-अलग विद्वान प्रतीत होते हैं., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२३.५४११.५, १३४४२). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण; अंति: तीरथ फल महाराज वाला, ढाल-५. ४४८२३. (-) औपदेशिक पद, गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११.५, १७४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: दो दिन केरे कारणि; अंति: सूक इहा रीसरे मीता, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्राणीया संग कुसंगन; अंति: मारी निढींबर ढोल्यु, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन गौतम वियोग गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: मुगति हुआ सांभलीजी स; अंति: लीजइ लीजइ जेहनु नाम, गाथा-७. ४. पे. नाम. चंदनबाला गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चंदनबालासती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: नयर चंपा जग जाणाइए अ; अंति: गुणो अवर पण छे ए सती, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. चारित्र मनोरथमाला, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरुपाय प्रणमू; अंति: पास सिवसुखदायक होइ, गाथा-४१, ग्रं. ८८. ४४८२४. देवसीकपाक्षिकआदिप्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५४११.५, ११४२८). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: खमासमणदेई इच्छाका; अंति: (-), (पू.वि. प्रायश्चित पाठ तक है.) ४४८२५. (+) दस दृष्टांत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ४४३२). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: चुल्लग पासग धन्ने; अंति: भूयस्नामाप्नोतिनो, ___ श्लोक-११. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य-टबार्थ, मु. समरथ, मा.गु., गद्य, आदि: चुल्लग कहता खीर भोजन; अंति: (१)नो कहता न पामइ तेह, (२)समरथ० रूपधर्म से. ४४८२६. मूर्खशतक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४.५४११.५, १२४३५). मूर्ख के १४८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: बालकसुं प्रीत करे ते; अंति: कर कलपणा करै ते मुरख. ४४८२७. (+) जिन स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२३, आषाढ़ कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १३, ले.स्थल. पंचपहाड ग्राम, प्रले. मु. सुखानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: उजवालडी बीजै चंदा तु; अंति: अहिनिश वीस जिणंद, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी संभव ज्ञान; अंति: उदेसूर अविचलधप्प ए, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: तसु विघ्न दूरे हरै, गाथा-४. ४. पे. नाम. दशमी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन दशपुर मंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशपुरमंडण सोहै नवफण अंतिः तासउदो करी थाया, गाथा-४. ५. पे. नाम. एकादशी थुई, पृ. २अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिन, अंति: नित्य मंगल करो, गाथा-४. ६. पे. नाम. अमावास्या थुई. पू. २अ २आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्य प्रथमस्य मे; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. महावीर थुई, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान जिनवर, अंति: साहिब संघ मंगल कारणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. शत्रुंजयनाथ थुई, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदिः आगल पूरब बार नन्याणु; अंति: कारिज सिध हमारीजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. कल्याण थुई. पू. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवं तं अजिय, अंति: सहिया पंचकल्लाण एसो, गाथा-४. १०. पे. नाम वीर थुई. पू. ३आ-४अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुचंडमाडंवर पंचबाण अंतिः काम्यं कुरु वाण देवा, श्लोक-४. " ११. पे. नाम. तीर्थ थुई, पृ. ४आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तुति, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थेश्वर तीरथ अष्टः अंतिः कहे केशव सुविचार, गाथा-४. १२. पे नाम, औपदेशिक लोक व गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) १३. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीघुलेवै सुखकरूं र अंति: कीरतसूरि० मन संप रै, गाथा- ४. ४४८२८. (+) नवतत्व प्रकरण व विचार संग्रह, संपूर्ण बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ४, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५x११, १२४२८). "" १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: बोहिय इक्कणिकाय, गाथा ४८. २. पे नाम. ८ कर्मस्थिति विचार, पृ. ४अ संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: नाणे दंसणावरणे वेयणि; अंति: तं एअं बंधठिई पमाणं, गाथा- ३. ३. पे. नाम. सिद्धभेद उदाहरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धा अरिहंता, अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा- ४. , ४. पे. नाम. गुणठाण मार्गणा, पृ. ४आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु, गद्य, आदि मिध्यात्व सुधो ठाणा, अंतिः अजोगी गुणठाणुं १४. ४४८२९. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२३.५X१०.५, १२x२९). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: विरजिणेसर चरण कमल, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५७ तक है.) ४४८३१. अतिचार, पोसह सामायिक सूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ८, जै, ( २४४१०.५ " १०X२८). १. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. १अ २आ, संपूर्ण अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: चारित्र पंच महाव्रतन; अंति: खमामिसव्वस्स अहिपि. २. पे. नाम. पोसह पच्चाक्खाण, पृ. ३अ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. समाइयपारण सूत्र, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. सामाइअवयजुत्तोसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: सामाइअबयजुत्तो जाब, अंति: मिच्छा मि दुक्कडम् ४. पे. नाम. पोषह विधि, पू. ३आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सागरचंदो कमोचंद, अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५. पे. नाम. पच्चक्खाण पारना विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा. गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. १४ नियम, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सच्चितर दिव्बर विगइ: अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा- १. ७. पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगे अब्भतठं, अंति: गारेणं वोसिरामि ८. पे. नाम. तपनो काउसरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. " " साधुपाक्षिक अतिचार थे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु. गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः नाववो सो वीरवाइ ४४८३२. शालीभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११, ११X३०). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणें भव; अंति: सहजसुंदर सुख निधान, गाथा - १८. ४४८३३. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३.५४१०.५, ११४३८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १८३, आदि: पहेले पद जपीए अरिहंत अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ४४८३४. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, ५X४१). १. पे नाम वीरजिन स्तवन सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चोसठि इंद्रइ न्हवरा, अंति: सिद्धि प्रति मंगलिक. २. पे नाम, ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ४४८३५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२४४११.५, १०x२३). महावीरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि: शासननायक समरं सदा, अंतिः महानंद पदवी पामे तेह, गाथा १३. ४४८३६. () महावीरस्वामी स्तवन व सिद्धगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., १७५ For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: राय सिद्धारथ कुल, अंति: मुनि वंदो श्रीमहावीर, गाथा-७. २. पे. नाम. सिद्धगुण सज्झाच, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धपद सज्झाय, मु. अभयराज, मा.गु, पद्म, आदि: सकल सिद्धनइ कर अंतिः (-) (पू.वि. गाथा ९ तक है.) ४४८३७. पार्श्वजिन स्तवन व युगादिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१०.५, १०X३२-३६). . १. पे नाम, फलवर्धिका पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धिका, मु. सिद्धांतराज, सं., पद्य, वि. १७३१, आदि: कुशलकमलनिर्म्मल सारं अंति सिद्धांतराजः सदा, श्लोक- ७. २. पे. नाम. युगादि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवन जनं तातं अंतिः सिद्धा तद्यक्षः, श्लोक-४, , ४४८३८. सप्तव्यसन सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४३). Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७ व्यसन सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि मेरे जीयरा सीख; अंति: गुणसागरसूरि इम उचरइ, गाथा-९. ४४८३९. स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रावण शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. १०, ले.स्थल. फेदाणी, प्रले. ग. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १४४४२-४५). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनी मे फलप्रदा, श्लोक-५. २.पे. नाम. चतुषष्टियोगिनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमः दिव्ययोग; अंति: सर्वोपद्रवनाशिनी, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि स्तुतं, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: अजपुरावनि वक्र; अंति: प्रबलं मम मंगलं, श्लोक-५. ५. पे. नाम. नमस्कार रक्षा स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ६.पे. नाम. परमात्म स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: श्रीमानभ्युदच्युत, श्लोक-९. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: द्यो पुरो संघ जगीश, गाथा-९. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आददेव; अंति: तुम तरीया मुज तार, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-कलिकुंड, मु. कल्याण, सं., पद्य, आदि: विबुधाधिराजै तपाद; अंति: विलसत्यवश्यं, श्लोक-९. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ अष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सकल मंगल मंजुल मालिन; अंति: पठतां सुख हेतवे, श्लोक-९. ४४८४१. ज्योतिषि सज्झाय व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. ज्योतिषि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रुप कीधुं ब्राह्मण; अंति: प्रभणइ दासी एम, गाथा-२२. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. जस वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: तुज दरसण दीठों अमृत; अंति: तुझ तोलई कोइरे, गाथा-५. ४४८४२. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, ७X३०). १.पे. नाम. चिंतामणि पार्श्व स्तवन सह अवचूरी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किमिति वितर्के कर्प; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा की अवचूरि नहीं है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: प्रभुपार्श्वजिनस्तवं, श्लोक-७. ४४८४३. जिनकुशलसूरिस्तव, संपूर्ण, वि. १८७२, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि पद्म कल्याण विद्या, अंतिः स्वाद्भोक्ता वक्ता च श्लोक ९. ४४८४४. बीज सज्झाय व अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. वीसनगर, प्रले. श्रावि. मानकर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४४११.५, १३X२७). १. पे नाम, बीजतिथि सज्झाय पु. १. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने, अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा- ८. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुं रे; अंतिः रे आनंदघन मति अंब, गाथा- ६. ४४८४५. (+) युगलादि जीव गति विचार संग्रह शास्त्र सम्मत, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४४११ २४४६७). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. साधर्मिक के प्रति व्यवहार संबंधी विवरण तक है.) ४४८४६. (-) सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २४४१०.५, १६X३५). सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुणिवर सोध इरजी जीव, अंति: पामिया आमतना उतीर, गाथा- २३. ४४८४७. पार्श्वनाथ मंत्र, नवग्रह छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल, राजनगर, जैदे., १. पे. नाम. सज्जनाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अर्क हरे अंधार तास, अंति: हेम० गुण कही न सको, गाथा-८. २. पे. नाम. दुर्जनाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि पर अवगुणसुं प्रीत, अंतिः कवि कहे हेम० कीजीयइ, गाथा-८. ३. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. (२३.५X११, १६x४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., पद्म, आदिः ॐ ह्रीं तं नमह अंतिः ईहनाह समरह भगवंतं श्लोक-४. २. पे. नाम. नवग्रह छंद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. क. शंकर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिससु प्रमाण; अंति: सत्रांनीरदले, ढाल - ९. ३. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, औषधवैद्यक संग्रह", प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४८४८. (4) अष्टक व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५.५x११. १६४५०). सुभाषित लोक संग्रह में पुहिं प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-६. *, ४. पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ महावीरजिन स्तवन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बुध. हे बुधजन हे अंतिः अक्षर व्यंजनं वदति. २. पे. नाम औपदेशिक गाथा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण ४४८४९. महावीरजिन स्तवन सह अवचूरि व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५X१०.५, ४X४६). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन सह अवचूरि पृ. १ अ- १आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, आ. गजसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: बुधजनैक जिनं कुरुनाय, अंतिः चिरविपाठक चन वदावद, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४८५०. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सिरोही, प्रले. मु. नायकविजय, पठ. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०, ११४३८). Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५४. ४४८५२. सज्झायसंग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, २२४४१). १.पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राणी करीये रसोइती; अंति: रख्यो राणी राखी वाजी, गाथा-१६. २. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सुण रा सामीजी सुण रा; अंति: उगाम राणी चेलणारे, गाथा-१२. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: मना तुम माहादेव जाणा; अंति: सामी कुसालचंदजी चरणा, गाथा-१०. ४४८५३. सिद्धचक्र सज्झाय व पार्श्वजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. रविसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१०.५, १०४२७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ईम महिमा सिद्धचक्रनो; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्व समरणा भजन ज; अंति: मन मे धरणा सीखन का, गाथा-७. ४४८५४. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१४११, १२४२६-२८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः. ४४८५५. गुरु स्तुति व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (४६४१०, ४९x१३). १.पे. नाम. विजयरत्नसूरि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नत्वांहिपाथोजयुगं; अंति: शिष्यस्य शिष्ये सदा, श्लोक-१५. २.पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. चोरी गई वस्तु वापस लाने का यंत्र व ३६९ का कोष्ठक दिया गया है.) ४४८५६. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, १४४४४). १.पे. नाम. चोविसजिन स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु आचार स्वाध्याय, मु. आणंदविमलसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसइ करूं; अंति: हो निश्चइ निरवाण, गाथा-१५. २. पे. नाम. इरियावहि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशलदायक अरिहंत; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-१६. ४४८५७. चारमांगलिक सज्झाय व चोविसजिन लंछन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. चारमंगलिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ मांगलिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभाति जागी सुगुर; अंति: कहइ सुप्रभात वखाणु, गाथा-१७. २.पे. नाम. चोविसजिन लंछन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन स्तवन, मु. सेवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर वृषभ लंछण; अंति: मागि सेव जिनवर के, गाथा-८. ४४८५८. (#) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १७९ नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक -९, संपूर्ण. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र - व्याख्या, सं., गद्य, आदिः आनुमः स्तुमः के; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ४४८५९. वर्द्धमान स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५X१०.५, १०X३५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४४८६०. प्रतिक्रमणविधि सूत्र व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, पठ. मु. विद्याकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०, १५X४८). १. पे नाम. प्रतिक्रमणविधि- खरतरगच्छीय, पृ. १अ संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: भयवं दसण्णभद्दो सुदं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा. पद्म, आदि: तिजयपहुतपवासय अठमहा; अंतिः निव्तं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. " ३. पे. नाम. यंत्रसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यंत्र संग्रह, मा.गु., सं., को., आदि: (-); अंति: (-). " ४४८६९ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४१०.५ ११५३३). साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल, अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ४४८६२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, १२X३८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु. पद्म, आदि आदिदेव अरिहंतजीरे, अंतिः देवाधिदेव आदिदेवजी गाथा- १०. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नृपति कुलचंद, अंति: राम० सफला कीजिये, गाथा-७. ४४८६३. नेमिजिन स्तुति व युगमंदिरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक नहीं है, काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., दे., ( २४४१०.५, १०X२९). (२३.५X१०.५, ११x२८). १. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. १अ. संपूर्ण. १. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन अंतिः सफल करो अवतार तो गाथा- ४. २. पे. नाम. युगमंदिरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि दधिसुत बिनतडी, अंति: पंडितजिनविजय गायो, गाथा-८. ४४८६४. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्रले. मु. तेजकखोल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., पंडित. लक्ष्मीकल्लोल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: लख लखती लूंडि णिभ; अंति: भडभडती भूडालणी, गाथा-५. २. पे. नाम. कुघरणी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: दान विना जे मानवी, अंति: लीखतु नामाहि लक्ष, गाथा-४. ४४८६५. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. १२, जैदे., ( २४.५x९.५, १६५७). १. पे. नाम. सर्वसामान्यजिन स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि (-); अंति देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अन्तिम श्लोक अपूर्ण है. ) २. पे नाम, वर्धमानस्तुति, पृ. ९अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ३. पे नाम, वर्धमानवीर स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ४. पे. नाम. अनाध्याय स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: मतुनित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पंचमीस्तुति, प्र. ९अ-९आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ६. पे. नाम. दीपाली स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभु, श्लोक-१. ७. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ८. पे. नाम. विजयदशमी स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं करौ; अंति: न्यैक्षध्वमेनं जिनम्, श्लोक-१. ९. पे. नाम. ज्ञान स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: कल्पः प्रोज्वल; अंति: विद्याअविद्यापहाः, श्लोक-१. १०. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसर कारी देवहरे; अंति: हरंतु दुहंसगुणा, गाथा-२. ११. पे. नाम. नंदीश्वर स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: नंदीश्वरद्वीप महीपर; अंति: प्रसादं निज दर्शनेन, श्लोक-१. १२. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: (-), गाथा-४, (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) ४४८६७. (+) शीलबत्तीसी सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-११(१ से ११)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १३४४४). १.पे. नाम. शीलबत्तीसी सज्झाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. शीलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सील रतन जितने करि; अंति: राजसमुद्र सुविचारजी, गाथा-३२. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शांति करण शांति शांत; अंति: शिष्य कहइ कल्याण, गाथा-११. ४४८६८. कलकीराजा जन्मपत्री, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५४१२, ९४२६). कल्कीराजा जन्मपत्री, रा., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजी का; अंति: राजानी उत्पत कही. ४४८६९. (#) खामणा सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १०४२५). खामणा सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: अप्पाणं बोसिरामि. ४४८७०. वीसस्थानक थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ८x२६). २० स्थानकतप स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: वीसस्थानक तप विश्व; अंति: सौभाग्य सुखकारीजी, गाथा-४. ४४८७१. महावीरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १३४३७). महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: जसविजय सुखकारी, गाथा-४. ४४८७२. समोसरणविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७०, चैत्र कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विराट नगर, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादात् लिखी., जैदे., (२३.५४११.५, १३४४०). समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणा आसण चलइए सुर; अंति: रूपसोभाग्य० मन मोहइ, ढाल-५. ४४८७३. संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२४४९.५, १०४४७). For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १८१ संभवजिन स्तवन, मु. दयानंद, पुहि., पद्य, आदि: सेना का सुत तु; अंति: दाता लीलविलास मिलावै, गाथा-९. ४४८७४. (#) दसवैकालिकसूत्र - अध्याय १ द्रुमपुफियाज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४९.५, ६४३३). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; __ अंति: तेण वुच्चंति साहुणो, गाथा-५. ४४८७५. (+#) सिद्धाचल स्तवन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४१२.५, १२४३१). १. पे. नाम. सिद्धाचलजीनु स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में कृतिनाम वीरजिन स्तुति लिखा है. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिरावल पुजी; अंति: वीर० सासनासूरी दीपती, गाथा-४. ४४८७६. आठम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १०४३६). अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठ मद तजी; अंति: लबधी० पुण्यनी रेह हे, गाथा-९. ४४८७७. वीरथुई अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४३८). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुत्थिस्सुणं समणा; अंति: आगमेसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. ४४८७८. प्रश्नोत्तर रत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १५४४३). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिणवरेंद्र; अंति: कंठगता किं विभूषयति, श्लोक-२९. ४४८७९. (#) पार्श्वनाथ स्तवन व महावीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १०४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आपरूप एकला प्रभु; अंति: तस पदपंकज सेव हो, गाथा-८. २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४४८८०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०९-१९११, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. आगरा, जैदे., (२३.५४११.५, १६४४४). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण, वि. १९०९, आश्विन कृष्ण, ४, शनिवार, ले.स्थल. आगरा. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: संत करता श्रीसंत जिन; अंति: मरण मुझ दुख हरणा, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: पास चिंतामणि जेम; अंति: लहिए सदा पूरो मनरली, गाथा-८. ४४८८१. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०, १५४४७). १. पे. नाम. पाक्षिक खामणा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: इच्छामोणु सिट्टि, आलाप-४. २. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-३. ३. पे. नाम. चौबीसजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे, अंति: हरंतु दुहंसगुणा, गाथा-२. ४. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण " दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभुं श्लोक-१. ५. पे. नाम. मौनएकदशी स्तुति, पृ. १आ. संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्म, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः क्षपति विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. १आ, संपूर्ण. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. मा.गु., पद्य, आदि: बालापण ७. पे नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. डाबड़ पाइ चंप, अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. १आ, संपूर्ण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक है.) ४४८८२. सुभद्रा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५X११.५, १२X३८). सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधइ ईरजा; अंति: दुधडुं रहे सोना ठामि, गाथा-२१. ४४८८३. (+) स्थुलिभद्र बारमासा श्लोक व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२३.५X११.५, १४X३४). १. पे. नाम. नवग्रह श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तरणि तारकराज, अंति: नवमभ्युदयं नवः, श्लोक-१. २. पे नाम, रक्षाकारी वशीकरण यंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. यंत्र संग्रह, मा.गु., सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे नाम, स्थूलभद्र बारमासो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, कोशास्थूलभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सुडा प्रति कोसा भणि अंतिः चतुरविजय० भाख्यो रे, गाथा - १८. ४४८८५. देवपुजाविधि सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे (२२x१०.५, १७४१). יי ४४८८६. उपदेशरत्नमाला सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (३४४१०५, ८४३३). पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदिः स्नानं पूर्वोन्मुखी; अंतिः तदिह भाववशेन योज्यम्, लोक-१८. पूजा प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वइ स्नानं करइ अति: नई अनुसार करे उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसरयणमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरत्नवु भंडार छइ; अंति: लिखिता परोपकराय. ४४८८७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति व महावीर स्तुति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पंडित. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२३X१०, ३X५५). १. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति सह टीका, पृ. ९अ-२आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति - टीका. ग. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि: श्रीनेमिः पंचमीसत्तपः अंति: ययया वाहवाहैर्यतिश्च. २. पे नाम, पाक्षिकस्तुति स्नातस्या सह टीका, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. पाक्षिकस्तुति - टीका, सं., गद्य, आदिः स श्रीवर्द्धमानो; अंति: भितः जगप्तिविशेषं. ४४८८९. पार्श्वनाथने नेमनाथ पंचकल्याक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. प्रतनाम में पार्श्वजिन पंचकल्याणक भी दिया गया है, परन्तु कृति में पार्श्वजिन पंचकल्याणक नहीं है., जैदे., (२२x११.५, ४५X३४). नेमिजिन पंचकल्याक व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, आदि पश्चानुपूर्व्या अंतिः पुस्तकेषु लिखितम् Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४८९१. वीसस्थानक तप विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४९.५, ११x१२). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १. नमो अरिहताणं; अंति: प्रभावना कीजइ. ४४८९२. (+) माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ११४३८). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-९. ४४८९३. (#) भक्तामरस्तोत्र व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १५४३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. लघुशांतिस्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: नमो नमः शांतये तस्मै, श्लोक-१५. ४४८९४. (+) गोचरी दोष, पंचपरमेष्ठि गुण आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. गढवाडा, प्रले. मु. सावलदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८८९) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२२४११, २४३१). १.पे. नाम. ४२ आहारदोष सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २; अंति: रसहेउंदव्व संजोगा, गाथा-५. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोल उद्गम दोष लिखियै; अंति: करणहार साधून. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुण, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गुण अरिहंतना १२; अंति: २७ गुण साधुना छै. ३. पे. नाम. देवता देवी संभोग, पृ. ३आ, संपूर्ण. देव देवी संभोग वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: देवता देवी मैथुन; अंति: उतकष्टाच्यार भव करै. ४. पे. नाम. आठ आतमाना नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. आत्मा भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १ दिव्य आत्मा २ कषाय; अंति: ८ वीर्यात्मा. ४४८९६. (#) नवतत्त्वप्रकरण बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १२४३७). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थित साचुंजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक का बालावबोध है.) ४४८९७. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८०४, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, १०४४७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तिनिवी एए उवादेया, गाथा-५३. ४४८९८. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.७, पठ. पं. कुसलधीर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १७४५१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापा धाधा निधाधा; अंति: पतेरहतः पात्वसौ वः, श्लोक-४. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वासवस्तुतपदोमहामहा; अंति: सुश्रीयं क्रियात्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पणमह मरुदेविजायं; अंति: सुहं दिंतु ते, गाथा-४. ४. पे. नाम. सर्वतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वताऽशाश्वतजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: द्वीपे जंबाह्वये ये; अंति: रामाशु सिद्धायिका सा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. वीरस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. प्रतिक्रमण स्तुति, प्र. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-३. ७. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यः द्रणुर्चिकलोति; अंति: (-), गाथा-३. ४४८९९. चिंतामणिपार्श्वनाथ महामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७५, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरति बिंदर, पठ. श्राव. खुसालचंद शाह; प्रले. ग. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ४४९००. (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा-१२४. ४४९०१. (+) स्तवन, बारमास व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. अंजार, प्रले.ऋ. तेजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १५-१८४३६). १. पे. नाम. शीतलनाथ तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लक्षचोराशी जोंनि फिर; अंति: विरह ने कापोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजूल बारमाश, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: आवीलो ए श्रावण मास; अंति: राम० ते सिवरमणी वरे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शनीशर कथा, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सांमणी दीओ मुझ; अंति: पंडीतललीतशागर इम कहे, गाथा-२७. ४४९०२. (+) रात्रिसंथारकोच्चारण गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०, १३४४५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-२५, (वि. गाथा परिमाण २५ है अधिकतर १४ मिलती हैं.) ४४९०३. (+) स्तोत्र, दोहा व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. ग. विजयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जपे पुरो मनह जगीस ए, गाथा-७. २. पे. नाम. दुहा संग्रह*, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र ही है.) ४४९०४. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३७, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पुंदलुग्राम, पठ. श्रावि. जीवादे बाई; प्रले. मु. स्थविर गेहेना ऋषि (गुरु पं. समरथ ऋषि); गुपि.पं. समरथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ७४४३). For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: पुण अनंतगुणां. ४४९०५. नेमराजिमती शीलचुनरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, ले.स्थल. जीलालबाद, जैदे., (२२.५४११.५, १५४३४). नेमराजिमती शीलचुनरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीणवर पद पकजे; अंति: तो चकोरकुं नम जाइजी, गाथा-७७. ४४९०६. सरस्वती स्तोत्र, मंत्र व जीवभेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. वीरचंद्र; प्रले. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १२४४२). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवतत्व भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अजीवरा १० अरूपी; अंति: ४२ रूपी बंधरा ४ रूपी. ४४९०७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, १२४३४). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फेरी; अंति: पद्म० अविचल प्रेम, गाथा-५. २. पे. नाम. जात्रा नवाणुंतवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श@जयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करिइं; अंति: पद्म कहें भवतरिइं, गाथा-१०. ४४९०८. पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२.५४१२, १८x२७). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: रूचि मुदा पाम्यां, गाथा-३२. ४४९०९. आत्मभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १२४३९). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदणा होज्यौ. ४४९१०. (#) क्षुल्लकभवावलि प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे.. (२५४११, १२४३९). क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीर; अंति: सहेअव्वं सुअहरेहिं, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवरं; अंति: भूतो विपरीतः शोध्य. ४४९११. (+) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४४३). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ४४९१२. पुण्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७९, चैत्र कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. कुवरबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, ५४२७-३२). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपून्न इंदियत्तं; अंति: लहंति ते सासयं सुहं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संपूर्ण इंद्रीयपणु; अंति: सिद्धि सुखने पामे छे. ४४९१३. चतुर्विंशति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०, ७X१९-२६). २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथमजितं प्रभ; अंति: सुमंगलानि, श्लोक-३. ४४९१४. साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मोतीविजय; पठ. मु. पद्मविजय भाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १३४२४-३१). सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो; अंति: शिवं श्रीजीनः, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८६ ४४९१५. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. साधुसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४X१०.५, ११X३५-३८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं करेमि अंतिः वंदामि जिणे चठवीसं ४४९१७. (१) रोहिणी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल सिरोही, प्रले. श्राव देविचंद, पठ. श्राव. उत्तमचंद, 1 प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२३.५x१०.५, १०x२८). , रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्म, आदि जेयकारि जिनवर, अंतिः देवि लबधिरसि सुखकार, गाथा ४. ४४९१८. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्रले. श्राव. बुधर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४४१०. ११४३८-४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुदाओ, गाथा ५१. ४४९१९. (+) नमस्कार, चैत्यवंदन संग्रह व सुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. दे. ( २३X११, १४x२७). १. पे. नाम. अभीनंदन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अभीनंदन जिन अधीक रूप; अंतिः शिष्य नमे प्रभु पाय, गाथा - २. २. पे नाम. शेत्रुंजा चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजो सीध खेत, अंतिः जिनजी करु प्रणाम गाथा - ३. ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन चैत्यवंदन *, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमु; अंति: नमुं साधु सवे नीसदीस, गाथा-२. ४. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा- ३. ५. पे. नाम. सकनावली. पू. १आ. संपूर्ण. יי श्लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदिः ॐ ही श्रीं वार ७ अंतिः पांच नव घर वेगी आवै, ४४९२०. हेतवे सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव देविचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३११, ११x२८). नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलखीत जें पूतलि; अंति: कहे जिनहरष प्रबंध, गाथा- ८. ४४९२२. (i) नेमजी चतुमास संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे (२३४११, १०x२६). नेमिजिनचोमासुं स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा सम म जावो रे; अंति: नेमजी ओरे वाला, गाथा-५. ४४९२३. बडीशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२२.५x१०.५, ११४३४). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., पग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमानो जिनेश्वरः ४४९२६. स्तुति व सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे (२२.५x१०, १०x२८). १. पे नाम, सिखीयायदेवी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. सियादेवी स्तुति - ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं. पद्य वि. १७७२, आदि आज सफल दिन आया गढ " . अंति: तू सैसाचल मात भवानी, गाथा- ७. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडी जी वीनवु अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा ६ तक है.) ४४९२७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २३x११.५, ११४३६). १. पे. नाम. मूढ अष्टपदी, पृ. १अ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईय; अंतिः विना तूं समजत नाही, गाथा-८. २. पे नाम, परमार्थ अष्टपदी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै प्रभु युं पाईयै; अंति: है तब के केहि भेटै, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर सांभलो; अंति: नीज करो जिनवर जयकारी, गाथा-४. ४४९२८. पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३२). पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीअजीतदेवसूर कें, गाथा-१२. ४४९२९. मरूदेवा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, ११४३१). मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजि मारूदेवारे; अंति: निज वाटलडि जोयजो, गाथा-९. ४४९३०. पंचपरमेष्टि महामंत्र नमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, ९४२४). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-७. ४४९३१. (+-) दंडग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०, ११-१३४२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चोउवीसजिणे; अंति: एसी वनति अपहिया, गाथा-४२. ४४९३२. चारमंगल, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रासादात्., जैदे., (२४४१०.५, १३४३८). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहेए; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-२१. ४४९३३. नवनिधि स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, ११४२७). नवनिधि स्वरुप, प्रा., पद्य, आदि: निसप्पेपंडयए पिंगलएस; अंति: सा अकिज्जा अहीवच्चाय, गाथा-१५. ४४९३४. (+) ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरत बंदर, पठ. श्रावि. चांपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १०४२८). आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. ४४९३५. वीर स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४१०.५, ११४३१-३४). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन बंदउ श्रीबीर; अंति: बिनवै पूर इछा मन तणी, गाथा-२८. ४४९३६. (+#) दशार्णभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आछोद, प्र.वि. पत्र नंबर न होने के कारण १ लिया है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, २४४१८). दशार्णभद्र सज्झाय, पं. वीरविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुर ठवसगा झितियाता; अंति: गुथी तास कंठ मे ठवि, गाथा-१५. ४४९३७. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, २४४१८). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रेमन समरण कर भाई; अंति: समरंतां सिवमारग पाई, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: पुदगल मे मानी सुखनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४४९३९. (+-) कल्याणमंदिर व पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०, १२४३०). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम, संखेसर स्तोतर, प्र. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पाच सांखेसरो मन; अंति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं दिया है.) ओलि For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४९४०. (+) ऋषिमंडल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. दयाल ऋषि; पठ. मु. खेमो ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४९.५, ११४२७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: दोषा विमुच्यते, श्लोक-८७. ४४९४१. देवताना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. कानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, ., (२६.५४१२.५, १२४३८). देवता १० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम गुण उवाय ठिवियु; अंति: इति अल्पाधार संपुर्ण. ४४९४२. (#) श्रावक करणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४२९). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ४४९४३. शेत्रुजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. कानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०.५, ८x२८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ४४९४४. स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, ७४२६). १.पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: मोक्षतणो अधिकारी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अति: (-). ४४९४५. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ४४९४६. कर्मप्रमाण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३८). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: पून्य तणे परमाण रे, गाथा-११. ४४९४७. सिद्धाचल चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, ५४४३). शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. ४४९४८. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२४१०.५, ६४५०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५०. ४४९४९. (4) परबपझुसण थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४९, ७४२१). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्य; अंति: शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १८९ ४४९५०. संवेगीहीणा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिरोही नगर, अन्य. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १३४३५). कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध संवेगी कीरिया; अंति: जै लाजे नही वलि टाला, गाथा-२२. ४४९५१. सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४११.५, १२४२८-३३). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ जगतभूषण विगतदूषण; अंति: पूजो देव निरंजन, गाथा-१४. ४४९५२. वीसस्थानक स्तुति व वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१३४११.५, १८x१९). १.पे. नाम. २० स्थानकतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: विसस्थानिक तप विश्व; अति: भाग्यलक्ष्मी दातारजी, गाथा-४. २.पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याईइ; अंति: लक्ष्मी पद पाया रे, गाथा-७. ४४९५३. अर्बुदाचल स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१०.५, २४४१९). १.पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट; अंति: गाया जिनेंद्रसागरे, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सीमंधरस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.)। ४४९५५. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६०, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११,१३४३८-४१). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२१. ४४९५६. बृहद शांति, शांतिजिन आरती व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, ११४२५-२७). १. पे. नाम. वृद्धशांति स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आरती सांत तुम्; अंति: कवियण० अमर पद पावै, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा-३. ४४९५७. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १३४२१). १. पे. नाम. रथनेमिराजीमती स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय सदगुरुपाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. राम-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हो भव्य प्राणि रे; अंति: सीस ओली उजमी जगीश, गाथा-७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सिमंधरस्वामी; अंति: मोरी अवधारज्यौजी रे, गाथा-७. ४४९५८. आदिजिन ढाल व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, ११४२२). १. पे. नाम. आदिजिन ढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभ जिनेस्वर; अंति: जीनहर्ष० सतरमी ढालजी, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजीमंडन, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्ह चालोने तुम्ह, अंति: मतिसागर० भरपूरौ, गाथा-५. ४४९५९. सम्मेतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२३४९.५. १७४१६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनराज, रा. पच, वि. १८८६, आदि समेतशिखर गिरिराजसु अंतिः जिनराज० परम आनंदसु, गाथा- ६. ४४९६०. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६९४, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पट्टणा, प्रले. पं. अमरसुंदर (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १३४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा - ५१. ४४९६१. समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२३.५४११.५. १९४४८). "3. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. चरणकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: समकित सी विधि पामे, अंति: पभणे चरणकुमार रे, गाथा- ३६. ४४९६२. परमात्मस्वरुप स्तवन, चैत्यवंदन व गुरु सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. कर्णविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२३.५x१०.५, १३४३७). १. पे. नाम. परमात्मस्वरूप स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., सं., पद्य, आदि: चिदानंदरूपं सुरूपं, अंति: तच्छिशुर्वाननामा, गाथा-३२. २. पे नाम. धार्मिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण, श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा., सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र सह टवार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहेतां समस्त कुश, अंति: पूरे तिम श्रीशांति. ४. पे. नाम, गुरु सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण ऋद्धिसूरि सज्झाय ग. भाणविजय, मा.गु, पद्य, आदि श्रीसरसती प्रणमी पाय अंतिः भाणविजय गुणगाव हो, गाथा-७. ४४९६३. (+०) नमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, पठ. सा. कुसला, अन्य. श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x१०, १३४४०). , तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक ९. ४४९६५. इरियावही कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग. शंकरसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, १७५५-५७). इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: देवा अडनउ असयं चउदस, अंति: सहस्सव मेगवीसाय, गाथा-८. इरियावहि कुलक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४४९६६. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. देवविजय मु. केसरविजय, गुपि. ग. सौभाग्यविजय, पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३४१०, १६४४३). "" ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी श्रीगुरुपाय, अंतिः भगवंत भाव प्रशंसीउ, ढाल - ३, गाथा-२०. ४४९७०. स्थूलिभद्र सज्झाय व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २४४११.५, १२x२४). १. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पू. १अ २आ, संपूर्ण, स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु, पच, आदि: पुलिभद्र मुनिसर आवो अंतिः सिधविजय० लगे धुतारी, गाथा - १७. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४४९७१. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. दानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३५). श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदर वाचक इम कहइ, गाथा-१४. ४४९७२. गुरु गहुली, वासुपुज्यजिन स्तवन व रोहीणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १२४४४). १.पे. नाम. गुरु गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरु गुण गहुँली, मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल सुसोभता व्रत; अंति: शुभ० तत शीवसाय, गाथा-५. २.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनजी हो गुण बोहला; अंति: भक्ति सुधारस पान, गाथा-५. ३. पे. नाम. रोहीणीतप सज्झाय, पृ. ११-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणंदना ए; अंति: विजय लक्ष्मीसूरी भूप, गाथा-९. ४४९७३. (+) नेमजिनराजीमती सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१०.५, १४४३६). १.पे. नाम. नेमजिनराजीमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: हो राजमती नेम तणी; अंति: कहे जिनहरष प्रकाल हो, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमजिनराजीमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: नगर सुरीपर सोभती समद; अंति: मडेतेनगर मझारीइ हे, गाथा-१३. ४४९७५. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. गुंदवच नगर, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १४४४२). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११९. ४४९७६. (+) गौतमस्वामी रास, जिन स्तवन व युधिष्ठिर १५ तिथि कार्य विवरण, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिणेसर चरण कमला; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-५५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. कुसलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भज श्रीऋषभ जिनंद कुं; अंति: कुसलचंद हीरदैलपटाइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद चिंतामणी, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनपद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सचा साहेब मेरा चिंता; अंति: बनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. युधिष्ठिर १५ तिथि कार्य विवरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: राजा जुगधिष्ठिर मंदि; अंति: आणंद घर वणेही पावे, गाथा-१४. ४४९७७. विक्रमचौबोली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३५-३८). विक्रमचौबोलीरास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १ की गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ४४९७८. नंदिसूत्र रात्रि पडिकमण पछीनी विधि, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रावण कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणजी ऋषि (गुरु मु. अमीचंद ऋषि); गुपि.मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वंदना होजोजी, गाथा-७. ४४९७९. (+) झांझरियामुनि सज्झाय, गोडीपार्श्वजिन स्तवन व नेहनिराकरण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १६९९, मार्गशीर्ष, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. क्षेमधर्म (गुरु पं. नयधर्म गणि); गुपि.पं. नयधर्म गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४१०, १५४४३). १. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सरस सकोमल सारदा वाणी; अंति: सफल सफल दिन आज हो, गाथा-९९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेहनिराकरण स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुणि लाई; अंति: जिम शिवसुख जय होई रे, गाथा-१४. ४४९८०. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२.५४११.५, ११x१९). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमढ; अंति: पचक्खाणभंगे उपवास १,ग्रं. ११७. ४४९८२. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १९४३७). दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-९. ४४९८४. पोसह लेने की विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३४११.५, १०४२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमा० वंदिउं; अंति: सर्वही पडीलेहण. ४४९८५. ग्यानबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १६x४०). ककाबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: क का कीजइ काम धरम; अंति: लिख्या अंक जे निरमया, गाथा-३२. ४४९८६. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२.५४११.५, ४४२७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुधानरा अघपरा हवंति; अंति: सेवितु सुहत्ति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य धन मेलवा; अंति: देवलोक मनुषनो पाम. ४४९८७. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३.५४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुरव भवि आदिनाथ नइ; अंति: जिणेसर इणि परि बोले, गाथा-५. २. पे. नाम. मंगलीक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलिक पहिलंकहं ए; अंति: जिनवर ऊवि जिनवर जोय, गाथा-१०. ३. पे. नाम. सोलसती नाम सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: सुणो समरूं निशिदीस, गाथा-५. ४. पे. नाम. व्रत आदि जैन पारिभाषिक शब्दों का परिमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४४९८८. (2) शनीराज छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, ११४२६). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० का साम थाए सदा, गाथा-१७. ४४९८९. जिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, १२४२९). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, ले.स्थल. बजांणा, प्रले. मु. दौलतविजय (गुरु पंन्या. शुभविजय, तपागच्छ); गुपि.पंन्या. शुभविजय (गुरु पंन्या. कल्याणविजय, तपागच्छ); पंन्या. कल्याणविजय (गुरु पं. जयविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, मु. अरदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर पूजो; अंति: आदिसर पूरवो आसा हो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २.पे. नाम. १४ स्वप्न सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव तीर्थंकर केर; अंति: लावण्यसमय भणे रे, गाथा-२०. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके नैनां जिन चरना; अंति: नवल० रस पीवे घटके, गाथा-३. ४४९९२. जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. दयालभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. जिनराज स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: जिनेंद्र० एकरति, गाथा-१०. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाऊ रे चिंतामणि; अंति: अनुभव शीव पद वास की, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दादाजी मोहे दरिसण; अंति: रंगविजय हो दादाजी, गाथा-५. ४४९९३. पद्मावती चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४४९). पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणसासण अवधार करेवि; अंति: भवण ___ जिणप्पहसूरि, गाथा-३७. ४४९९४. साधु आचार परिहार ४२ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४१२.५, १८४३९). गोचरी के ४२ दोष*, मा.गु., गद्य, आदि: जती थइ नइ आधाकरमादिक; अंति: थकी वेगलो कह्यो. ४४९९५. (+#) जिन स्तवन संग्रह व यंत्र मंत्र खोष्ठक, संपूर्ण, वि. १७५९, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४४३). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-शापुरमंडण, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: लक्ष्मी०सकल मंगल करो, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बहु मुगति कहे सुणो; अंति: भविकनी भगति छइ० राजा, गाथा-७. ३. पे. नाम. यंत्र-मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४४९९६. पार्श्वनाथ स्तवन व समकित नाम आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२३.५४१२.५, २२४२६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरु हर्ष घणि; अंति: देजो भवो भव सरण मुदा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. ५ समकित नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सास्वादन समकित १: अंति: क्षोपम समकित ५. ३. पे. नाम. सिद्धशिलादि क्षेत्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. महावीरजिन २० भेद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९४ www.kobatirth.org मा.गु. गद्य, आदि क्षेत्री कुंड सिधा अंतिः ज्ञान एकला मोक्ष गया. ६. पे. नाम. १२ व्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातव्रत मृषा; अंति: अतिथिसंविभागवत, (वि. व्रतों का अर्थ भी दिया गया है.) ७. पे. नाम. गुप्ति व समिति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३ गुप्ति ५ समिति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मनोगुप्ति वचनगुप्ति, अंति: (अपठनीय) ४४९९९ पार्श्वजिन स्तवन व लक्ष्मीदेवी छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जै. (२३.५x१०, १९५४). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अभयसोम, मा.गु., पद्म, आदिः सरसती माता सेवकां अंतिः अभयसोम० दायक भगवती, गाथा- ११. २. पे. नाम. लक्ष्मीदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: चोसठि छप्पन कोडि, अंति: अभयसोम आस्या फली, गाथा-१५. ४५०००. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. दे. (२३.५X१२, १०x२६). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमां जीवतत्त्वना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बंधतस्व अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५००१. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. उदयचंद पंडित, पठ. मु. मोहन (गुरुग. उदयचंद पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१०, ११x२९). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ४५००२. (#) पार्श्वनाथ देसांतरीछंद व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. जनविजय, पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X११.५, १०X३३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ देसांतरी छंद, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा- ४७. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. पे. ४, जैदे., (२३.५X१०.५, १३३९). १. पे. नाम. क्षेत्रपाल मंत्र साधना विधि, पृ. १अ. संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ४५००३. क्षेत्रपाल मंत्र साधना विधि, ज्योतिष संग्रह व वर्धमानजिन गुंडली, संपूर्ण वि. १८४१ भाद्रपद, १३, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल मंत्र साधाना विधि, मा.गु, गद्य, आदिः ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं अंतिः दीस सीहमो मुंकीइ. २. पे. नाम. करण विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. करणवेष्णवे ज्योतिषसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि (-); अंति: (-). ४. पे नाम, वर्द्धमानजिन गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, मु. गुणचंद, मा.गु. पच, आदि: सखी ब्राह्मणकुंड, अंति: गुणचंद० देशना सार, गाथा ११. ४५००४. कृष्ण बलभद्र सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे (२०x१२, १३x२८) "" बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्म, आदि द्वारामतिथी श्रीकृष: अंतिः मुनि गुण हिअडे घरी, गाथा- १८. ४५००५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९६, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. मु. मतिभद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., For Private and Personal Use Only (२२.५X१०, १२X४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४५००६. दिवालीपर्व व आदिनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२३.५x११.५, ११४२८). १. पे. नाम. दिपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " दीपावली पर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जग; अंति: जंपे एहवी वाणी, गाथा ४. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ४५००७. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४. दे. (२२.५४११.५, ९५३९). २. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदिः श्रीआदिनाथं नतनाकि अंतिः वीरं गिरिसारधीरं, श्लोक-४. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचि सुगंधवर कुसमयुत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छठी पूजा तक है.) ४५००८. सप्ततिशतजिनयंत्र स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३४११.५, १३४३५). तिजयपहुत स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपत्तपयासय अङ्क, अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४५०१०. शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २३१२, १२X३२). शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नानाविचित्रं बहुदुख, अंति: भद्रकायेषु नित्यं, श्लोक - ९. ४५०११. जंबूद्वीप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२३.५x११, ११४३१). ,י , लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नुं अंतिः रया हरीभद्दसूरिहि गाथा - २९. ४५०१२. सीमंधजिन स्तवन व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण वि. १८८२ मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२२.५४१३, ११४२६). (२५४११.५, ११x२९-३२). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ३अ संपूर्ण. १. पे. नाम. सीमंधरजिननुं स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मन अतिनूरो, गाथा- ७. २. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, वा. रामविजय, रा., पद्य, आदि: मोहनगारा हो राज रूडा, अंतिः एहमां नही संदेह के, गाथा- ७. ४५०१३ (+) जीवविचार प्रकरण व पंच परमेष्ठीगुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुदाइ सूअ समुदाउ, गाथा ५१. " २. पे नाम, पंच परमेष्ठीगुण वर्णन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण १२; अंति: साधुना गुण जाणिवा . ४५०१५. वर्द्धमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १६X३९). १९५ ४५०१६. सुलसाश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २३X११.५, १३x४२). महावीरजिन स्तवन- राजनगरमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः वर्धमान जिनराजीआ रे; अंतिः प्रेमे निसदीस रे, गाथा- १४. , י सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु. पद्य, आदि धन धन सुलसा साची, अंतिः विमल गुण गाव रे, गाथा - १०. ४५०१७. (+) ढंढणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X१०.५, १३X३८). ढढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढढणऋषिने वंदणा; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा- ८. ४५०१८. आदिनाथ आरती व अरणिकमुनि सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५x१०.५, For Private and Personal Use Only १३X३४). १. पे नाम, आदिनाथनी आरती, पृ. ९अ. संपूर्ण. आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि जय जय आरती आदिजिणंदा, अंतिः पाया मूलचंद गुण गाया, गाधा-५. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: वरु वंछित फल लीधुजी, गाथा-८. ४५०१९. (+) रामचंदतपसी सज्झाय, संपूर्ण वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२०x११, १९x४२). Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रामचंदतपसी सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: करीज्या कुमी नहि अंतिः देव० गुण ही दरसाइ, गाथा - २०. ४५०२०. जिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२०X११.५, २०X२०). १. पे. नाम. प्रभाती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चहुद के पार, अंति: रूपचंद० फल दासा हे, गाथा-५. २. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मु. ऋषभदास, रा., पद्य, आदिः मरुदेवीना नंद धारा, अंतिः ऋषभदास बलीहारी रे, गाथा ६. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हमणां आवे छे; अंति: सहेजे शिवसुंदरी वरीए, गाथा-६. ४. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्म, आदि; पालि बधी हे सखी चेटी अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ५ तक है.) ४५०२२. औपदेशिक पद व बणजारानी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२३.५४११.५, १४४३१). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ काचो रे काया; अंति: लेखें साहेब हाथ, गाथा- १०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणुं अंतिः पामे अविचल ठाम रे, गाथा-५, ४५०२३. अध्यात्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( १९.५x१२, १२X३५). अध्यात्म सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पोते पुन्य हूवै जेहन अंतिः रायचंद० इण पिर कही, गाथा - २७. ४५०२४. लघु वसुधारा, संपूर्ण, वि. १६९७, जीर्ण, पृ. १, प्रले. पं. चारित्रविजय, पठ. श्राव. चूहडमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.., (२५X१०, १३x४४). वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ; अंतिः आर्या वसुधारा ज्ञेया. ४५०२५. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X१२.५, १९x१७). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि मे तो नजरे रहेंसाजी, अंति नंदन जयजय श्रीमहावीर गाथा-७. ४५०२६. (a) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११. १३X३१). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंति: (१) दसाणकप्पाणुववहारे, (२) श्रीजिणसुखसुरय, श्लोक-१५. ४५०२७. रात्रीभोजन निवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३० फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. मु. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( २३x१२, १x२९). महावीर जिन स्तुति, मु. ऋषभदास, मा.गु, पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी ए; अंतिः रीषभदास गुण गावतो, गाथा-४, ४५०२८. पार्श्वजिन स्तवन व अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ५ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबईबंदर, प्रले. पं. शिवचंद्र गणि (गुरु पं. उत्तमचंद्र गणि); गुपि. पं. उत्तमचंद्र गणि; पठ. श्राव. दीपचंद कल्याणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x११, ११४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: पूजा विधि मांहे भावि, अंति वाचक जश कहे देव, गाथा - १६. २. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १९७ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो रे भविका जिनराज; अंति: ए आराधी शिववासरे, गाथा-१७. ४५०२९. साधु की तीस उपमा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४४१). साधु की ३० उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: पहली उपमा जिम कासीना; अंति: रुष पाप ते डरतो रहै. ४५०३०. (+) दानफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. वनिसुंदर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३३). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआरे; अंति: लावन्य० फल जोय, गाथा-१३. ४५०३१. साधुगुण सज्झाय व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११,१६४२९). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकित धारी शुभ मतीजी; अंति: चंद्रभाण० पावै सिद्ध, गाथा-१६. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-८. ४५०३२. बुढापा चौपाई (बुढला), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४११, १९४४१). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: निरधन के घर बेटी; अंति: धर्म वीना जीवनी कमाई. ४५०३३. सर्वसाधारन जिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, ६-९४२४-२७). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभोयं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-८, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७ तक की अवचूरि है.) ४५०३४. (+) पार्श्वजिन स्तवन व पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. धन्नी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३२-३५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन चिंतामणि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणिं; अंति: अनाउ संरह भगवंतं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४५०३५. साधुप्रतिक्रमण सूत्र व साधु अतिचार गाथा, संपूर्ण, वि. १५८४, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, १९४६५). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २.पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. ४५०३६. ज्ञान पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८०१, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. मु. हेमराज; पठ. तुलसीदास वैद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३८). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५०३७. सीमंधरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४८.५, ९x४३). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: जश० भय भंजन भगवंत, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: रंगविजेय० शीवराज रे, गाथा-७. ४५०३८. अजितजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा-७. ४५०३९. सप्तव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. हायला ग्राम, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगे जेरंगे कहे, गाथा-९. ४५०४०. धन्ना काकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, प्रले. ग.खतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: श्रीदेव० न की जे बे, गाथा-१२. ४५०४१. ३२ असज्झाय यंत्र व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, २३४२५). १.पे. नाम. ३२ असज्झाय यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सनतकुमारादि पार्षद स्थिति वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४५०४२. विचार संग्रह, पार्श्वनाथ स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. मु. त्रैलोक्याब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १६४४९). १. पे. नाम. जिनबिंब वस्त्र परिधान प्रश्नोत्तर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: जिनबिंबानां वस्त्र; अंति: कथंचित्तु घटते अपीति, प्रश्न-७. २. पे. नाम. सप्त नय विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: घणे माने करावसु सत्त; अंति: आत्मानु अलंगाथाइ. ३. पे. नाम. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विधिवाद १जे वितरागइ; अंति: गम्यतइ निश्चयवाद. ४. पे. नाम. जिनशासन के ५ व्यावहार विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनशासन के ५ व्यवहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीठाणांग श्रीभगवती; अंति: सुद्धो सद्दइ ते साधु. ५. पे. नाम. स्थभनपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगात्मनां यं मधुरं; अंति: यद्धानकस्य प्रियं, श्लोक-५. ६. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४५०४३. गौतमस्वामी स्तवन व नेमिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रतापजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४१०, १४४३३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबूदीप दीपो रे बिच; अंति: रायचद० हुलास रे माइ, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमिराजीमती सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजमती इम विनवे हो; अंति: चौथमल० पाचम भौमवार, गाथा-२२. ४५०४४. पार्श्वनाथ दशभव चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (१९४१२, ११४२६). पार्श्वजिन १० भव चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: इहेव जंबुदीवे भारहव; अंति: बुद्धो सत्तो सोजाउ. ४५०४५. (#) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. माकंदजी वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमउं; अंति: आणंद० साची जिण सेव, गाथा-२७. ४५०४६. औषध, ज्योतिष संग्रह व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०, १२४५६). १. पे. नाम. संतानोत्पत्ति औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मागु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जन्मकुंडली विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. व्यंजननाम विचार आरंभसिद्धिगत, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: रूडी रूडी रामतडी; अंति: लबधी० राजेमतीनो नाह, गाथा-६. ४५०५१. केशीगौतम सझाय व प्रभाती संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१२, १७४३९). १. पे. नाम. केशीगौतम स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एदोय गणधर प्रणमिये; अंति: रूपविजय गुण गाय हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माई मेरे पासजी अजब; अंति: हम हुंचरण तुमारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली सवी मली; अंति: सदा प्रभुपास थुणंदा, गाथा-३. ४५०५२. महावीरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१२, १५४३७). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: संथुणे त्रिभवनतिलो, गाथा-१९. ४५०५३. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१२, १४४२०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: इम रामविजय गुणगायजो, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबो रे; अंति: राम अधिक तनु वान, गाथा-६. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुने संभवजिनस्युं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४५०५४. गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३४११, १९४५०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: सोरठ देस द्वारकानगरी; अंति: घोडाजिण सिवलीनी, गाथा-२२. ४५०५५. नागेसर की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. सा. गुमानी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १५४३६). द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणीइजी; अंति: छैइ जय जैकारजी, गाथा-२२. ४५०५६. (+) कथा दृष्टांत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, २१४४८). १. पे. नाम. चित्रसंभुति कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चित्रसंभूति कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चित्र अने संभूत बे; अंति: वीषै उद्यवंत थावं. २. पे. नाम. केशवकुमार दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ अमरपद दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: कुंडलपुर नगरने विषे; अंति: पाले ते प्राणी. ३. पे. नाम. मेघकुमारनो दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरजीनी वाणी; अंति: कीहा घरना सुख कीहै. ४. पे. नाम. धनी निर्धन दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. धनी-निर्धन दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: जे एकने घरे पालखी; अंति: लणे एरीते माताने. ५. पे. नाम. अरणिकमुनि दृष्टांत, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि मनुष्यनो; अंति: मुगते पोहोतो. ४५०५७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२२.५४९.५, २१४१०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी वाणारसी उपनोरे; अंति: सेवी जश कहे भवजल तरा, गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत-काया, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: आतम कहे रे काया; अंति: वसतो० भजलीओ भगवांना, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चेत रे आतम अंधा; अंति: निरंजन आवागमन निवारो, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतनजी तुमे चेते; अंति: कहे रूपचंद इम वाणी, गाथा-३. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: ऐसे फाग रमीजे रे नर; अंति: ध्यान धरीजे रे, गाथा-५. ४५०५८. (+) इर्यापथिकी सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४४). १. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशलदायक अरिहंत; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-१६. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ४५०५९. मृगापुत्र सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, ११४२८). १.पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नगर सोहामणु; अंति: होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंदने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ से ४ तक है., वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक ४ गाथाएँ लिखकर प्रतिलेखन पुष्पिका लिख दी है.) ४५०६०. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३ ले, स्थल, सीद्रोत नगर, प्रले. मु. हेमविजय (गुरु ग. विवेकविजय): गुपि. ग. विवेकविजय (गुरु पं. सुमतिविजय): ग. सुमतिविजय (गुरुग, लक्ष्मीविजय): पठ. मु. ननजी चेला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३x१०, १३x४२). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: मे तो निजरे रहेस्युं; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा - ७. २. पे. नाम. कालोदास सज्झाय - ज्ञानगवेषणा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि ज्ञान गवेषी प्राणीया: अंतिः मान कहे सुविचार, गाथा ७. ३. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि साहिब सांभल वीनती, अति ताणी ए बीनती सुविवेक, गाथा ८. ४५०६१. गोडीपारस स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, जावालग्राम, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११, १०X२५). पड गये हैं, जैदे., ( २४४९.५, १३x४३). १. पे. नाम. पाँच पांडवनी सज्झाय, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणां पास जिनेसर, अंति: दोहग सवि मेट्या रे, गाथा-५. ४५०६२. गौतमस्वामी छंद व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३x१०, १३X२३). १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद. पू. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा - ९. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि; तेली के तेल तंबोली, अंतिः भेट कवित्त के दोहा, गाथा- १. ४५०६३, (+०) सज्झाय दोहा व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७६६, मध्यम, पृ. २१ ( २ ) = १, कुलपे ३, प्र. वि. संशोधित, अक्षर फीके Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ पांच पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा-१९ (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कबीर जकडी, पृ. २अ, संपूर्ण. ४५०६५. सज्झाय संग्रह व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे, ३, दे (१९.५X१०, २७४१८). १. पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. कबीरदास संत, पु,ि पद्य, आदि: क्या जाणुं प्रभु के अंतिः भवसागर पंचमरताहइ, दोहा-८, ३. पे. नाम. देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु, पद्य, आदि: सरसतिदेवी नमि मनरंग, अंतिः कवि मान कहइ करजोडि गाथा-१३. ४५०६४ (१) थूलभद्र लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२३४११, १४४३३). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लालचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदिः श्रीवीतराग चरण नमुं, अंति: में डाल संपूर्ण कही. रतन, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: मत ताको नार वेराणी, अंति: रतन चिंतामणी जाणी, गाथा- ६. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाच, पृ. १ अ १आ. संपूर्ण मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय, अंति: जिणे दीठा एह प्रतिख, गाथा-६. ३. पे नाम, कुसंगति दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सठ सनेह जीर्ण बसण, अति: सीलो पुन कालो की, दोहा-४. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो, अंति: शासने पामो जयजयकार, ४५०६६. पजुसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१४११, १३४३०). "" गाथा - ९. ४५०६७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२३४११, ११४३६). पार्श्वजिन स्तवन, अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: पास चिंतामणि सुण्णज, अंतिः वामानंदन विनये गावो, गाथा-७, ४५०६८. सोलसती लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५X१०.५, १६X३४). १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर तणा तीन काले; अंति: रतनचंदजी० उपजे सुमती, गाथा - ७. ४५०६९. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., , जैबे.. (२३.५X११, १३X३४). १. पे नाम, पंचमी सझाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. पंचमी तिथि सज्झाय, मु. देवकलोल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचउवीसि प्रणमीइ; अंति: पंडित देवकलोल, गाथा-२४. २. पे. नाम. पौषध सज्झाच, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: पहिलउं समरस आणी तजी अंतिः खपई करमनी कोडि रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु, पद्य, आदि: सकल मूरति श्रीपासतणी अंतिः नवनिध सदा आनंद घणइ, गाथा - ११. ४. पे. नाम. बिंब शास्वता, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. विव शास्त्रता स्तवन, आव, देपाल, मा.गु., पद्य, आदि भुवन विसात कोडी लाख अंतिः सही ए नमो अरिहंताणं, गाथा - ११. ४५०७०. पांचस्वभावनो स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. जे. (२४४१०.५, १२४३३). " ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदिः सुत सिद्धारथ वंदीई: अंतिः परि विनय कहै आणंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५८. ४५०७१. जीवरासी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ठाकोर मघा भोजक; पठ. श्राव. जीवजिचंद साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X११.५, १४X३१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटई ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ४५०७२. वर्णमाला व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३१०.५, ८x२८). १. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ; अंति: ल व श ष स ह ळ क्ष २. पे नाम ज्योतिष गाथा, पृ. १आ. संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४५०७३. तेर काठिया सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३४११.५, ११४३१). " , १३ काठिया सझाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुं तारुं संभाल, अंति: भंडार सकल गुणेसहि, गाथा- १२. ४५०७४. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. शांतिसौभाग्य; पठ. श्रावि. हेमकुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, १२x२८). सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवी अंतिः जिनेंद्र वदे ससनेह, गाथा ६. ४५०७५. स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५X११.५, १७X३१). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसा, पृ. २आ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: नमो नमो त्रिभुवन धणी, गाथा-१५, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक २ की दूसरी ओर से गाथा सं. ९ अपूर्ण से ही लिखना प्रारम्भ किया है व दो गाथाओं को एक गाथा बनाई है.) २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचवरण कलसे करी जेइ; अंति: रीसंघ विघन निवारीजी, ___ गाथा-४. ३. पे. नाम. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला जिनवर विहरमान; अंति: (-), गाथा-८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४५०७६. गहुलीसंग्रह, लेख, गरबा व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, ले.स्थल. वाल्ही नगर, जैदे., (२३४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. गणधर स्थापना समयनी गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. गणधर स्थापना गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनिहारे नयरी अपापा; अंति: नित वंदन वार हजार, गाथा-९. २.पे. नाम. चंद्रराजा लेख, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रगुणावलिका पत्र, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंदराजा कुकडा; अंति: आगल वात रसाल, ढाल-२, गाथा-७५. ३. पे. नाम. चक्केसरीजी की गिरबी, पृ. २आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली रे चक्रेश्वरी; अंति: छे बहु सोभा तारी, गाथा-९. ४. पे. नाम. धनाअणगार गहंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार गहुली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गहुली पूरो रे सोहाग; अंति: चाखो सदगुरु गुण मेवा, गाथा-६. ५.पे. नाम. अध्यात्म गहुंली, पृ. ३अ, संपूर्ण. जिनवाणी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत सरखी रे सुणीइं; अंति: प्रभुने प्रभुता दीजे, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहसरत्नायितं, श्लोक-११. ४५०८१. नेम स्तवन, मंत्र व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११,७४५२). १.पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण रेगें आवीउ; अंति: जय कहे० सुप्रसिद्ध, गाथा-७. २.पे. नाम. मंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: (-). ४५०८३. साधु-श्रावक संवाद सज्झाय व प्रहेलिका आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३४१०.५, १२४२६). १.पे. नाम. साधु-श्रावक संवाद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर वाणी वागरी; अंति: तैसी बात सुहाए, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रहेलिका श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०२. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कृष्णमुखी न मार्जारी; अंति: माणस भक्षते तस्या, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कबहुं हीरालाल कबहू; अंति: बाजीगर को सोख्याल है. ४. पे. नाम. चौद राजलोक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चौदराजलोक विचार, मु. कान कवि, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी सात ठिकाणा; अंतिः सारा चौदा हो गया. ४५०८४. सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे (२२.५x१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर रसाल, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगरि बनारस ठामि मात; अंति: सिद्धि मंगल करण, पद- १. ४५०८६. दंडणऋषि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५X१०.५, ११४३०). " ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणारखनै वांदणा हुं; अंति: सुजान रे हुं वारीलाल, गाथा- ९. ४५०८८. नरभव सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२३.५x१०.५, ८-११x२९). " " औपदेशिक सज्झाय मनुष्यभव दुर्लभता, मु. नयविजय, मा.गु., पच, आदिः आ भव रत्नचितामणि अंतिः जिव अनंता तरीयाजी, गाथा- १३. ४५०८९. पंचमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५x११, ८x२५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. पच आदिः श्रीसौभाग्यपंचमी: अंतिः केवल लक्ष्मी , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निधान, गाथा - ९. ४५०९०. तेर काठिया स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३.५X१०.५, १४४३५). "" १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं श्रीगौतम गणधार; अंति: सूरीस्वर सीसे कही, गाथा - १५. ४५०९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२२.५X११.५, ८x१८). १. पे नाम, शांतिनाथजी स्तवन, पृ. १अ-२अ संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब, अंति: मोहन जै जैकारै, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीर जिन पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं, पद्य, आदि आज तो हमारे भाग वीर अंतिः चित आनंद बधाए है, गाथा- ४. ४५०९२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५X१०.५, ८x४२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: माहरी विनतडी अवधारो, अंति: वीसे पोस यदि सुभ मास, गाथा २०. ४५०९३. लावणी संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३x११, १६४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देवचंद, पु,ि पद्म, आदि: चतुर नर मनकुं रे समज, अंतिः देव कहे० होय सावधान, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने अंतिः एक निज दरसण चहिये, गाथा-४. ३. पे. नाम. कालभैरव मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो कालभैरव कबरी; अंति: आम्नाय सिद्धि. ४५०९४. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, खेटकपुर, जैदे. (२३४११.५, १४x२८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो रे सखी मुज नाह; अंति: प्रणमे प्रभुना पाय, गाथा- ९. ४५०९५ (+) सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै. (२३४११, १३X३५). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय गर्भावास, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उत्पति जोज्यो आपणी अंतिः इम कहीये श्रीसार ए. गाथा- ७२. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २०५ २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: इच्छति शतीसहस्र; अंति: न निवर्सते कृष्णा, गाथा-१. ४५०९६. नमिराय चोपी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४१२, १८४३८). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासण नायक समरीये; अंति: मिच्छामि० होयजी, ढाल-७. ४५०९७. वीरनिर्वाण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, ११४३६). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधारज हुं तो रे एक; अंति: वरिया सिवपद सार, गाथा-१५. ४५०९९. शिखामणकका व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १४४४२). १.पे. नाम. शिखामण कका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. मु. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. अक्षरबत्रीशी, मु. महिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कका ते किरिया करो; अंति: महिचंद्र० भवजल पार, गाथा-३४. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में पांचइन्द्रिय संवर वर्णन भी लिखा है.) ४५१००. पजुसण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४०). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुं सरस्वत; अंति: तस जगवल्लभ गुणगाय, गाथा-१६. ४५१०२. तीर्थमाला स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, २५४२४). १.पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६. २.पे. नाम. गुरुवंदन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारि भगवन पसाउ; अंति: अणुग्गहो कायव्वो. ३. पे. नाम. भैरव यंत्र साधन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नमो रगतिया रगतमा; अंति: मंत्र इश्वरो वाचा. ४५१०४. (-#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२.५, १४४२५-३०). १.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला; अंति: उपशम आणो पासे रे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म कीज्यो कोई; अंति: रही चौमासइ रे, गाथा-८. ४५१०५. (4) पार्श्वस्तोत्र संग्रह व प्रत्याख्यान फल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०.५, १९४५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. गुणरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सौभाग्यभाग्या; अंति: परं देवसदा स्वसेवा, श्लोक-१८. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान फल, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: मंसावी मज्झरत्न इकेण; अंति: वयंति एयस्स सवत्त, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरयमे वांछित नाथ, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ ४५१०८. रुकमणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३.५X११.५, १०३२). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि विचरता गामोगाम नेमि, अंति: राजविजय रंगे भने जी, गाथा - १४. ४५१०९. पार्श्वनमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५X११, १०x२५). पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रवृंदा, अंति: मणिः पार्श्वनाथः, श्लोक ७. ४५११०. चक्रेश्वरी स्तोत्र व बीज मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., ( २१x११.५, ११x२२). १. पे नाम, चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: दशमे त्राहिमा, श्लोक - ९. २. पे नाम, चक्रेश्वरी बीज मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण, चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ च हीं श्री हीं अंतिः दर्शनं कारयर स्वाहा:. ४५१११ श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम पू. १, वे. (२२x११, २२-३०x१५) 19 " श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: नमे वीरे पक्षपातो; अंति: खड्गेन निहितं शीरः. ४५११२. (+) तीर्थंकरचक्रवर्ती वृद्धि वर्णन व गाथा सह अनुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५X११.५, १२x२३-२५). १. पे. नाम. तीर्थंकर चक्रवर्ती वर्णन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. तीर्थकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि तित्खवरा गणहारी सुर, अंति: मंगलिक माला संपजे. २. पे. नाम गौतमस्वामी प्रबोध गाथा सह अनुवाद, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतम प्रबोध गाथा, प्रा., पद्म, आदि: कुसगेव सहातुसबि अंतिः समयं गोवममहप्पमाए गाथा- १. गौतम प्रबोध गाथा- अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि इसी तरेसुं उस बिंदु अंति: मंगलीक मालि विस्तरो ४५११३. (+) शेत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५x९, १०X२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरो अंति: बीनती सफल करीज्यो, गाथा - १२. ४५११४. चंद्रप्रभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २३.५X१२, १४X३७). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. डुंगरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि नवरी चंद्रायण अतीभली अंतिः डुंगरविजये उदास रे, गाथा ११. ४५११६. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २३११.५, ११x२८). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु, पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी अंतिः साधुतणी रे सज्झाय, गाथा - १४. ४५११७. दसविध पच्चक्खाण्ण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १४३ हैं. वे., (२४४१२, २२४१५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: आगारेणं वोसिरामि. ४५११९. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५X१२, १४X३८). १. पे नाम, प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंति: इण संसार लाल रे, गाथा - १८. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः नाम इलापुत्र जाणीए अंति: (-). (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४५१२१. सुधर्मस्वामी गहुंली व शीखामण छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२२.५X११.५, १३X३५). १. पे नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि ज्ञान दरसण गुण धरता, अंतिः भावें एहवा उत्तम जीव, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम औपदेशिक छंद त्रोटकनामा, पृ. १आ. संपूर्ण क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायक माय सलाम करी; अंति: त्रोटक नामह छंद खरो, गाथा- ९. ४५१२३. चंद्रगुप्तराजानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले, स्थल, पालीताणा, प्रले श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४१२.५, १२X४०-४५ ). १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन देखी पेलडे भांग, अंति: चंद्रगुप्त राजा सुणो, गाथा - १७. ४५१२४. पुण्यप्रकाश व औपदेशिक कवित्त, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखकक ने पत्रांक ३ लिखा है. जो शंकास्पद है, वे (१९.५x११, १८४३०-३४). १. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. ४५१२७. चारकषाय सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२३४१०, ११४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि: महगिरमेसमेर सखरतणे; अंति: हेणता हे कलंकनेताहरो, गाथा-६. २. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू. वि. ढाल १ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४ कषाय परिहार सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध तजो रे क्रोधी, अंति: तत्ववि० चिरंजीवो रे, ढाल-४. ४५१२८. उपदेश पद, संपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३×११.५, ८X१५). औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: काहारे अज्ञानी जीवकु; अंति: कहे वाको सहज मिटावे, गाथा-३. ४५१२९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, दे. (२३४११.५, ३५X१६). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महीमा अजब बणी; अंति: जो आत्म सुख चहीये रे, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र, अंतिः सदा अनुपम जस लीजे रे, गाथा - १४. २०७ ३. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, आ. देवगुप्तसूरि, पुहिं, पद्य, वि. १९२९, आदि: श्रीचिंतामणी पार्श्व, अंतिः दया बुझ उसे निरंतर, गाथा - ७. ४५१३१. चोत्रीसअतिसय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, पालनपुर, प्र. वि. श्रीपलवियाजी प्रसादात्.. ..... ४५१३३. गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५x११, १०x३४). (२०x१२, १२४३०). ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमुं सुख; अंति: नितलाभ नमे जिन पाय, गाथा - १३. ४५१३२. जीवडा सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३११, १०२९). औपदेशिक सज्झाय- असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., पद्य, आविः आ संसार असार छे रे, अंति: जो तारे तो तार रे, गाथा- ८. गौतमपृच्छा सज्झाव, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि गीतमस्वामी पृच्छा कर, अंतिः गीतम० पृच्छा करे, गाथा-२१. ४५१३४. (०) सज्झाय व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३)=१, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२४४१०.५, १७४३६). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-) अंतिः जंपि खरतपागच्छ नायको, गाथा १८ (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ४५१३५. (+) जिनरक्ष जिनपाल चौढाल व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. जसराम; पठ. मु. कुसालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १७४४७). १. पे. नाम. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: विदेहे जासी मोखै, ढाल-४, गाथा-६८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हीरदो पबित्रं; अंति: एचंडाल लखणं, श्लोक-२. ४५१३६. बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५४११.५, २१४५५). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम समकित देवश्री; अंति: सुचि पण राखवी. ४५१३७. अष्टमी थोय, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सूर्यपुर, पठ. सा. वखतश्रीजी आर्या महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. धर्मनाथ प्रासादत् लिखि., जैदे., (२०x१०.५, ११४२२). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ४५१३८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०, १०४३६). आदिजिन स्तवन, मु. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: पद्मसागर सुखपुर रे, गाथा-७. ४५१३९. (-) धन्ना सज्झाय व सामान्यजैन कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१०.५, १७४४४). १. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु वचन विचार कर; अंति: जोग सोहलारा माय, गाथा-१६. २. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेन्सिल से लिखी गई है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४५१४२. (#) आत्मसत्सरुप शुद्धकथन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे... (२२.५४११.५, १५४४९). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: मति नवी काची रे, गाथा-४१. ४५१४३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०, १२४३५). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर श्रीपति; अंति: कीर्ति आनंद कारीजी, गाथा-४. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपुज्य जिनवर सयल; अंति: गुण सिष्य नवनिधि थाय, गाथा-४. ४५१४४. अमृतवेल सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. डमाणी, प्रले. पं. देवेंद्र; अन्य. मोहनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (२४४९, २१x१४). १. पे. नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. डमाणी. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलीये; अंति: लहि सुजस रंग रेल रे, गाथा-२९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, फा., पद्य, आदि: गोरी पासगँ हस्तसदक; अंति: न जाहर खल्क गाजीलौ, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २०९ ४५१४६. (#) स्तुति, स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९.प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४१०.५, १२४३०). १.पे. नाम. सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी; अंति: प्रणमता पामीजे भवपार, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधर थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधर मेरा; अंति: सजे सोल सणगारोजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ग. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहेबाजी; अंति: देवविजय नमे पाय, गाथा-१३. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालोने राजा; अंति: जिनविजय जगदीस, गाथा-१०. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: घूघट के झरुख में; अंति: घर चोराने लूसा, पद-१. ६. पे. नाम. सीमंदर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोल चडी रे मारा नाथ; अंति: रूप० थइ छे खुसालिरे, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन धमाल, म. समतिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सात पाच सखियन की; अंति: सुमतिसागर वीरचंद, गाथा-६. ८. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन पद, मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर के समोसरण भगत; अंति: भवसमुद्र उताररी, गाथा-४. ९. पे. नाम. पंचेद्री विषय सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुख साखताजी मारा लाल, गाथा-६. ४५१४७. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३.५४१२, ११४२३). गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २७ तक है.) ४५१४८. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९३२, चैत्र शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, ९४२१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कीयो जाणपणानो सार, ढाल-३, गाथा-३४. ४५१४९. अलख पद, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे., (३१४१०, २२४१६). अलख पद, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: अलख लिख्या केम जावे; अंति: खोज्ये केसे पाय हो, गाथा-८. ४५१५१. आधारजती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४१२.५, १३४२७). __ महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधारज हुँ तोरे एक; अंति: वरीया सीवपद सार, गाथा-१५. ४५१५२. पजुसण चैत्यवंदन-नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, दे., (२३४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेचूँजो सिणगार; अंति: आगमवाणी विनित, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरुवर कल्पसूत्र, अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुतः अंतिः ठांणि विनित रसाल, गाथा - ३. ५. पे. नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि जिननि बहेन सुदर्शना अंतिः घरे सुणजो एकह चीत, गाथा - ३. ६. पे. नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारिखी वंदो सदा वनित, गाथा - ३. ७. पे नाम. पर्युषण नमस्कार, पृ. २अ, संपूर्ण, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवछर दिन, अंति: विरने चरणे नामुं सिस, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या, अंति: लहिइ नित कल्याण, गाथा- ६. ४५१५३. संभवनाथस्वामी स्तवन, संपूर्ण वि. १८७८, कार्तिक शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. १, ले. स्थल, भावनगर, प्रले. मु. सिवचंद (गुरु ग. उत्तमचंद्र, तपागच्छ); गुपि. ग. उत्तमचंद्र (गुरुग, उदयचंद्र): ग. उदयचंद्र (गुरुग, भक्तिचंद्र): ग. भक्तिचंद्र (गुरु पंन्या, मवाचंद्र): पठ. श्रावि. हीरूबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २३११.५, ११x२७). संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सुखकारक हो श्रीसंभव, अंति: के साधन भावे संग्रही, गाथा ११. ४५१५४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १७३१). पार्श्वजिन स्तवन- वटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गुरू देवाजी; अंति: जनम न संसार, गाथा -१४ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४५१५५. मुहपत्तिपडिलेहण बोल व रत्न नाम विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०x११, २४x२०). १. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहण बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु, गद्य, आदि: सूत्र अर्थ साचौ सरदह अंतिः अंगनी पडिलेहण जांणवी. २. पे. नाम. रत्न नाम प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. चक्रवर्ती १४ रत्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र छत्र दंड ए तीन; अंति: भोग्य योग्य. ४५१५७, (०) वयरस्वामी रूखमणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १५X३५). वज्रस्वामी- रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमिणी पोईणी पातली; अंति: तेहनी जाउं बलिहारी, गाथा - १९. ४५१५८. आषाढाभूती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २३१०.५, १०X३१). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि श्रीश्रुतदेवी चित्त, अतिः भावरत्न सुजगीसो रे, ढाल - ५, गाथा - ३६. ४५१५९. (+#) अमिझरा पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. भडथ, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १४X३२). पार्श्वजिन छंद - अमीद्वारा, मा.गु, पद्य, आदिः उठ परभात अमीझरो जपो अंतिः निरमल इति पुरो आसए, गाथा- १९. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २११ ४५१६०. माणिभद्रवीरनी आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुवधिनाथ प्रसादात् लिखि., जैदे., (२४x७, ६४३२). __ माणिभद्रवीर स्तुति, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आरती माणिभद्र; अंति: पूरो मगरवाडीया वीर, गाथा-६. ४५१६१. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,ले.स्थल. बोरसिद्ध, प्रले. मु. आणंदसागर पंडित; पठ. श्राव. मोतीचंद रुपचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, १०४२७). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: संखेसरो आज तूठो, गाथा-७. ४५१६२. (4) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १०x२५). पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवा प्रण; अंति: परपूजो श्रीशांति, गाथा-१४. ४५१६३. धन्ना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. खेमजी (अज्ञा. मु. भविदास); गुपि.मु. भविदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४२). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: गुण गावता तन मन उलसे, गाथा-२२. ४५१६४. मिछामिदुक्कड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १०४३१). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ४५१६५. थुलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३४१०.५, १०x२९). स्थूलिभद्र सज्झाय, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वेष स्वामि जोई आपणो; अंति: धन्य छे मुनिवर आपने, गाथा-३४. ४५१६६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १०४२९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धन धन रे दीवाली मारे; अंति: शशी नी चडति दसा जो, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल समता सुरलतानो; अंति: होय सुजस जमावरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेन्सिल से लिखी गई है. ___ सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: भूयाद् भवालंबनम्, श्लोक-१. ४५१६७. (+) स्तुति, दोहा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत., जैदे., (२३४१२, ३६४१६). १. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कटीनगर, प्रले. ग. जयविशाल (गुरु पं. विशालरत्न गणि); गुपि. पं. विशालरत्न गणि; पठ. सवसी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: मयतामिह नम्रताम्, श्लोक-२९. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५१६८. गुरुगुण गहुँली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४१२.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुरुगुण गहुंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंजाब देश मां जन्म; अंति: रीया केम तराये तरीया, गाथा-८. ४५१६९. (+) दश पचखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. खुशालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२.५, १३४३१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उगाए सुरे नमुकारसीही; अंति: आगारेणं वोसरामी. ४५१७०. (+) लघुदंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२, २२४४७). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर १ अवगाहना २; अंति: गति ४ प्राण १० जोग ३. ४५१७१. (+) सुगमाविवाह शोधन क्रिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १०-१२४२६). विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु वाणी समर; अंति: जोतिस तणो मरम्म, गाथा-३७. ४५१७३. (#) व्यसन विचार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, २५४१८). १.पे. नाम. सप्तव्यसन व्याख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जुठ वचन ते करमनि; अंति: कर्म ७ ए सात वसन, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५१७४. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४९.५, ११४३०). __ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसायथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८ तक है.) ४५१७५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. कलापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कल्याण, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्या पास पदकमले मन; अंति: पद्म ठिई सिव मेवा, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीशांतिजिणंद; अंति: कारणे कारयनी वाते रे, गाथा-५. ४५१७६. (+) तमाकु स्वाध्याय गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ३०x१८). औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: तेहने कोडि कल्याण, गाथा-१८. ४५१७७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२.५, १६x४०). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: सुंदर कहे द्यो दाहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. लोभोपरि सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल सरीस, गाथा-८.. ३. पे. नाम. सीतासती सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणुं रे; अंति: नित प्रणमुंपाय रे, गाथा-९. ४५१७८. (+) स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १८४३२). For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २१३ १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. २.पे. नाम. मौनएकादसी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ४५१७९. (#) नोकार छंद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. नरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत की लीखावट से यह जान पडता है कि लेखनमें विविधता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १३४२८). १. पे. नाम. नोकार छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरै विवध पर; अंति: ऋद्धि वंछीत लहै, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: या चंतयामि सततं मयि; अंति: च मदनं च इमंच मंच, श्लोक-१. ४५१८०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मोहीनगर, दे., (२३४११, ११४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: प्रीय तुम्ह पद सेवहो, गाथा-११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदावदनी तुंमृग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४५१८१. तपोविधि, सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११.५, १०४२९). १.पे. नाम. आगमसूत्रयोगोद्वहन आयंबिलतप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ दसमैकालिक सूत्र तप; अंति: करणा साधुजी करणा छै. २. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, ४, प्रले. जीवणराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीवदया पालीयै दया; अंति: सेवता मोख तणा फल पाए, गाथा-८. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मिलषी, प्र.ले.पु. सामान्य. दूहा संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४५१८२. लक्ष्मी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११, ८४३१). पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ४५१८३. (-#) माजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०, १६४२६-३२). माजीरी सज्झाय, मु. विनयचंद्र ऋषि, रा., पद्य, आदि: आतो नाम धरावे माजी; अंति: सेवरमणी बेगी बरसी, गाथा-१९. ४५१८४. चौदबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १८४४४). १४ बोल सज्झाय, ऋ. साधु, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगोती सतक; अंति: अणूसारे कीधी जोडि हो, गाथा-१७. ४५१८५. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३.५४१२, १२४२९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: तस्मै श्रीशांतयेनमः, गाथा-४६. ४५१८६. (#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १२४३०). For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, बि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाओ सुवसमुदाओ, गाथा ५१. ४५१८९. (+) गोडिपार्श्वनाथ छंद व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. शांतलपुर, पठ. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४४१०.५, १६x४२). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. शांतलपुर, पठ. मु. फतेविजय, प्र. ले. पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जस नामें नवनीध रीध; अंति: ऋद्धिहरख कहै कर जोडी, गाधा-१८. ४५१९२. भरतचक्रवर्ती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०X१७, १७३०). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: परख नै पेट परमदा वसी; अंति: हे पंडित करो विचार, गाथा - ५. " , ४५१९०. वासुपूज्य स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, पठ. श्राव. गुलाबश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x१०.५, १०X२७). रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मा.गु., पद्म, आदि: जयानंदन दीपतो एवासु अंतिः पदमसागर गुण गाव तो गाथा ४. ४५१९१. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालीनगर, प्र. वि. संशोधित., दे., (२२x११, १३X२८). पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा- ७. भरतचक्रवर्ती चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: नगर आजु दाने विषे, अंति: कवि नंदलाल गुन गाये, गाथा - १८. ४५१९३. (+) अतिचार, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९-१८८०, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५४१२, १२४३२). "" १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८६९, भाद्रपद शुक्ल, ११, प्रले. मु. मुनिद्रविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय); गुपि. पं. प्रमोदविजय (गुरु पं. गंभीरविजय); पं. गंभीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. वासुपूज्यजीन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे वासुपूज्य; अंति: इम जीत वदे नीतमेव रे, गाथा-५. ३. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. विनीतकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर वीनती रे; अंति: नीसदिन उलट आंण रे, गाथा-५. ४५१९४. (#) भक्तामरस्तोत्र उत्पत्तिकथा- भक्तामरस्तोत्र बालावबोधे, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३५११, १३४३८). " भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तामर स्तोत्र की उत्पत्ति की मूल कथा के संबंध तक है.) ४५१९५, (+) स्तवन चौवीसी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२x११.५, २५X४५). १. पे. नाम. स्तवन चौबीसी, पृ. १अ ४अ संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः ऋषभ जिणंद दिनंद मया अंतिः नमै सिरनामी हो लाल, For Private and Personal Use Only अध्याय- २४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि हठीली आख्यां टेक न, अंतिः दूरे आनंदघन नांहि गाथा ४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: रे परदेसी भमरा रह्यो, अंति: आनंद उर न समाय रे, गाथा- ३. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४. पे. नाम. आनंदघन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी; अंति: जाय करवत ल्यूकासी, गाथा-३. ५. पे. नाम. आनंदघनजी पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसटह देस सोहामणो; अंति: आनंदघन पद भोग हो, गाथा-५. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करे जारे जारे जारे; अंति: आई अमित सुख देजा, गाथा-३. ४५१९६. (+) साधार्णजिन चैत्यवंदन स्तवन सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१३.५, ६x४२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. तीर्थवंदना चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सात्विक भगतिइं देवलो; अंति: विसै आनंदनो करणहार. ४५१९८. राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सिरोहीनगर, प्रले. मु. हेमराज (गुरु मु. जसकरण); गुपि. मु. जसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४२३). राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम ईरीयावही तस; अंति: पारीओ समाइय वइ०. ४५२००. महमाइआ वाक्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वणारस, प्रले. राजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). महामाईआ वाक्य, मा.गु., पद्य, आदि: वरस अतिहि बीहामणां; अंति: ते कहीइ जगि जाण, गाथा-१०९. ४५२०१. चत्तारिअट्ठदसदोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुर, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३२). चतुर्विंशतिजिन स्तव-चत्तारिअट्ठदसदोय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदो वंदि; अंति: देविंद० ___ जगगुरू विंति, गाथा-१५.। ४५२०३. गौतमस्वामीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, १०x२४). गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर विरनो रे; अंति: वीर नमे नीस दिस, गाथा-९. ४५२०४. महावीरजिन स्तवन सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११, १३४४०). महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. महावीरजिन स्तोत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: क १ ख २ ग ३ घ ४ च ५; अंति: सांयोगीया भांगा लेवा. ४५२०५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४२७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहीकरण काय, गाथा-५१. ४५२०६. (+) अष्टमी स्तुति व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३६). १. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. २. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन रे माहरा नाजूक; अंति: दान० करिमानौ राज, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ४५२०७. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४२). रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वारू वसइजी; अंति: सार्या आपणां काजरे, गाथा-१९. ४५२०९. इर्यापथिकीमिथ्यादुष्कृत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १२४५०). इरियावही मिथ्यादुष्कृत विचार, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य प्रतिमाहँत; अंति: याद्यै योदिता जिनैः, श्लोक-१४. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५२१०. शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४५२११. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, ११४३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४५२१२. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्रले. मु. गणपत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०,१६x४०-४१). १. पे. नाम. प्रभाती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभाती सज्झाय, मु. अमृत, अज्ञा., पद्य, आदि: सोयो तु बहुत काल अबध; अंति: अमृत० एह सीव मागरे, गाथा-३. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: रे अग्यानी जीव तुं; अंति: मान० जाके धरम सखाई, गाथा-३. ३. पे. नाम. हितशिक्षा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिनगीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा करे; अंति: नथी बहु शीवसुख पावे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम गरीबन के नीवाज; अंति: रूपचंद० चरण तोरे आणे, गाथा-४. ५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीशांतिनाथ; अंति: नेम० दोन कर जोरी, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जागरे जंजाली जीवडा; अंति: कुटे मा तेरो टाटको, गाथा-४. ७. पे. नाम. ओंमकार महिमा, पृ. १आ, संपूर्ण. ओंकार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाणी हे विलास तेरी; अंति: रूपचंद० समजण पडी, गाथा-४. ४५२१४. चौरासी गच्छ नाम, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, २४४१३). ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बृहत्खरतरगच्छ १; अंति: तपागच्छ ८४. ४५२१६. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२०.५४११.५, ११४२६). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजग जोनमइ; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. ४५२१८. सोल सुहणं सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६१३, फाल्गुन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५,११४३३). १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवु; अंति: गुरु गुण तणा पाय रे, गाथा-१८. ४५२१९. नेमीजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १३४२८). १.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. जयरामजी, मा.गु., पद्य, आदि: हे सलुणी सांवरी; अंति: सुधारो बाह ग्रहि री, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन चोमासुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिनचोमासुंस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा सम मा जावो रे; अंति: मिलवानुं दल सासुं, गाथा-४. ४५२२०. वीरजिन विनति व औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिब की सेवा में; अंति: जै जै श्रीमहावीर, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५२२२. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११) = १, जैदे., (२३x११, ९२६). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि: (-); अंतिः सयल संघ मंगल करई, ढाल -५, गाथा- ५५, (पू. वि. गाथा ४८ अपूर्ण से है.) ४५२२३. स्थुलीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५x११, १०x२६). " स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि थुलभद्र मुनिवर रहण; अंतिः दिन दिन सुख सवाया हो, गाथा - ११. ४५२२५. (4) पंडिकमण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, गेरीतानगर, प्रले. पं. रंगविजय, लिब. श्रावि. मुलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२०.५X११.५, २४४१६). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर, अंतिः भविजन भवजल पार रे, गाथा - १३. , ४५२२६. कुमतीनिकंदक सज्झाय व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, ले. स्थल, छावणी, जैदे., (२२.५X११, १३३१). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापना सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सझाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिम जिनप्रतिमा वंदन अंतिः किजै तास वखाण रे, गाथा - १५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मै मुख देख्यो पारस अंतिः रूपचंद० पार उतार रे, गाथा-४. ४५२२७. (d) औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१२, ११x२०). ४५२२८. चैत्रीपूनम पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, जैवे. (२२x१०.५, १४४३१). " औपदेशिक लावणी, ग. जिनदास महत्तर, मा.गु., पद्म, आदि आप सम जैका घर नही; अंतिः मल मुलक को ठग खातो, गाथा-४. २१७ चैत्रीपूनम पूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ आखा चंदनादिक; अंतिः विधि संय पूजा करवी. ४५२२९. बुढानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. फलोधी, प्रले. मु. लाली (गुरु मु. नाथाजी); गुपि. मु. नाथाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४११, १८४४६) "" वैराग्यपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदि: सासणनायक श्रीवर्धमान, अंति: रायचंद० करो जाप, गाथा - २५. ४५२३०. (#) धन्नाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x१०, ११४३२). धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिनवचने ववरागी हो; अंतिः होवे जै जैकार हो, गाथा- १२. ४५२३१. (+) दीक्षा विधि विधिप्रपानुसार, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. कलकत्ताबंदर, प्रले. रामप्रताप पुरोहित; पठ. श्राव. देवीचंदजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२०.५X११, १०X२७). विधिमार्गप्रपा प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. सं., गद्य, आदिः यस्यपुरषस्य चारित्रम; अंतिः पवाहिण वास उवसग्गो. For Private and Personal Use Only ४५२३२. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७१, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, ले. स्थल. पेंढाबलीग्राम, जैवे. (२०.५x११, ११-२१x१९-४५). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, ले. स्थल. वीद्यापुर. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेधरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि ध्यान धरी प्रभु, अंतिः ऋद्धि सिद्धि भर पावड़, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल, अंति: जुहारतां० सफल फली आस, गाथा- ९. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org ४५२३३. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२०.५X१०.५, ११४२८). " ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रहिनें रहिनें रहिनें; अंति: जिनमूरति लटकाली, गाथा-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: जगत प्रमेसर तमे खर्य; अंति: गुणमाधव० हरख नमा जी, गाथा - १२. ४५२३४. (-) प्रमादी की सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. सरदी प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, .... (२०.५X११.५, १७X२३). वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: ए प्रमादी जीव जग, अंति: करनी वैकुंठ ले जाई, गाथा २४. ४५२३६. . (-) अढारनातरा सज्झाय व अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पाठ., जैदे., (१९.५x११, १९२९). प्र. वि. अशुद्ध १. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पूरो माहरी आसरे, अंतिः तुं जिनहर्ष आधार रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. सातव्यसन कवित्त, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुवेरदत्त इम चिंतवै अंतिः जो जो रे कर्म विटमणा, दाल- ४. २. पे. नाम. अढारपापस्थानक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थान अढारे पुरो, अंति: कोइ न चलेगी तारी, गाथा-७, ४५२३७. सज्झाय, स्तवन व कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ६, जैदे. (२०x११, १८४३९). १. पे. नाम. राजूल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु, पद्य, आदि: नेमजी सांमलिओ सांमलि, अंतिः रुचीविमल० फली रे लोल, गाथा - ६. २. पे. नाम. परनारीपरीहार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः सीख सुणो रे पीया अंतिः जिन० हिवडे आगमवाणी, गाथा - ११. ३. पे. नाम. राजुल विनति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मराजिमती विनति, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल नेमसुं विनवे, अंतिः प्रीतिविमल० रे लो, गाथा - ५. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजिन चाकरी, अंति: माणिक० समीहित काम, गाथा- ९. ५. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ७ व्यसन कवित्त, मु. कल्याण, पुहिं, पद्य, आदिः या हित प्रीति प्रतीत अंतिः (-) (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४५२३८. (+) हेमीनाममाला के प्रथमकांडगत श्लोक २४ से ७३ जिनगुण नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२३४१०.५, १३x४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला - चयन, सं., पद्य, आदि: अर्हन् जिनः पारगतः; अंति: तेषामष्टादशाप्यमी, श्लोक ५०. ४५२४१. (0) आत्मरक्षा जिनपंजर चतुर्विश स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., For Private and Personal Use Only (२२.५X१०.५, ८x२८). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२४. ४५२४२. सज्झाय, चैत्यवंदन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६६ फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४१, कुल पे. ४, प्रले. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३X११, १२X३४). १. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५अ. संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: सिनान करो ऊपसमरसपूर; अंति: निहचै सिवरमणी वरै, गाथा- ४. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २. पे. नाम. च्यार बोलरी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलिक पहिलो कहुं एह; अंति: सुख लहे अनंत, गाथा-४. ३. पे. नाम. चोवीस तीरथंकरनो परीवार, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-५. ४. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ४५२४३. चोविशजिन स्तवन, गच्छनाय सवैया व गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १८५७, माघ शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३७). १.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि नमी अरिहंतनै; अंति: वरदायक वर्धमान हो, गाथा-८. २. पे. नाम. गच्छनायक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मेघ ज्युं गाजत वाचत; अंति: श्रीपूज्य सदा जयकारी, गाथा-१. ३. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १८२५, आदि: सहीयां रे सहीयां रे; अंति: वांछित लीलविलास हे, गाथा-९. ४५२४४. पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, ११४२४). पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा हो जिन; अंति: जिनप्रतिमासु नेह, गाथा-७. ४५२४५. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ७, जैदे., (२०.५४११, १०४२७-३०). १.पे. नाम. बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हंसविजय० सुख श्रीकार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर साहिबो; अंति: मस्यो हंस कहे गुणगेह, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आठम चैत्यवंदन, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासन नायक समरीये; अंति: लहे नित नित जय जयकार, गाथा-८. ४. पे. नाम. ईग्यारस चैत्यवंदन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपद श्रीपासजी; अंति: सेवतां पामे लील अभंग, गाथा-१०. ५. पे. नाम, चउदश चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ६.पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ___आ. राजेंद्रसूरि , पुहि., पद्य, आदि: जयति शांति सदा सुख; अंति: राजेंद० मंदिर मादरं, श्लोक-५. ७. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण प्रेमसुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ पूर्ण तक है.) ४५२४६. (#) जीवउपरैवैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४६.५, ७४२६). औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर इम उपदिसै; अंति: इम भणै रूपचंदरे, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा ६ से १५ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५२४७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०, २४४६५). १.पे. नाम. थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल देमात मल्हार; अंति: लीला लखिमी घणीजी, गाथा-१७. २.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि प्राणी रे; अंति: हामणी आपो हृदय मझार, गाथा-९. ३. पे. नाम. निदषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांचसयां धन परिहरि; अंति: लबधिविजय निसदीसोरे, गाथा-१६. ४. पे. नाम. विजयदेव सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो राय देस रलियाम; अंति: कमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. ४५२४८. (#) सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२२.५४१०.५, २९४२०). १.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: कोइ न तोलें हो, ढाल-३, गाथा-१३. २. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांत कै; अंति: खेमराज० सदा पद्मावति, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलूणो हो मिलीयो; अंति: की पुरो प्रेम विलास, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: तुही जगतपत जीवका; अंति: वीरवंदत नित परमाणंदा, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जादव कुल केरो चंद; अंति: हीरानंद० अवधाररे, गाथा-५. ६. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: छठो वरत रेणी तणो ए; अंति: जेमल० कोइ खोट के, गाथा-१०. ४५२५०. सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३४१०, ९४२८). औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तु सजनी मार; अंति: लक्ष्मीलीला वरस्ये, गाथा-२३. ४५२५१. खंधक कवर सझाय, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. भिणायनगर, प्रले. मु. पुण्यसागर; राज्यकालरा. सूरजभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, १३४२८-३२). खंधकसाधुसज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पाय नमुजी; अंति: करसी थेवो पारो रे, ढाल-३, गाथा-५८. ४५२५३. गर्भवेल उत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२२४११.५, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७१. ४५२५४. (+) पाखीप्रतिक्रमण विधि, स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पारसनाथ संत छ., संशोधित., जैदे., (२१.५४९.५, ११४४१). १. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: देवसियं खाम इच्छं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: शं नो देवीः देयादंबा, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३.पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-)... ४५२५५. सीतलनाथ स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१४११.५, २६४१७). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, प्रले. मु. लालविजय (गुरु पं. हेमविजय); पंन्या. हेमविजय; अन्य. पं. जयविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. शितलनाथ प्रसादे लिखि. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आनंदसुंभावे, गाथा-५. २.पे. नाम. इगारस सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: वाचक० लीला लेहस्य. गाथा-७. ३.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हंस गवनी मृग लोचनी; अंति: (-). ४५२५६. (#) गोडी पार्श्वनाथजी छंद, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. वलमा मुहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, २८x२२). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुसलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीचा जगतगुरु; अंति: कुसलचंद विनती करे, गाथा-११. ४५२५७. (#) देवसीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८५२, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. पं. हरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२२.५४१०, १२४३५). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: रीते सामायिक पारै. ४५२६०. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मेडता, अन्य. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३१). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: मंगलामाला संपजै. ४५२६१. (-) नेमिजिन व सुधर्मास्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गुलाबचंद हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०, ११४३१). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: सेवो श्रीरष्टनेम से; अंति: चौथमल० पुरो नेम दयाल, गाथा-१३. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खूबचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी के वीराजा प्रथ; अंति: गायो त्रेपन के साल, गाथा-१३. ४५२६३. (+) बोल संग्रह व जंबूद्वीप विस्तार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११.५, १५४२६). १.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३१, वैशाख शुक्ल, २, शनिवार, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पं. केसरीसुंदर (कवलागच्छ); पठ. श्राव. हमीरमल, प्र.ले.पु. सामान्य. १२ बोल संयम, मा.गु., गद्य, आदि: १ बोले संजमरो घर; अंति: आदरनी सतगुरुनो मारग. २.पे. नाम. जंबूद्वीप क्षेत्र विस्तार, पृ. २आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लक्ष; अंति: क्षेत्र ५२६ कला ६. ४५२६४. स्तवन संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. विबुध, मा.गु., पद्य, आदि: सकल भुवन सिर सेहरो; अंति: भव भव तूंही जस्वामि, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुमारो हो श्रवण; अंति: सफल फली मुज आस हो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद. पू. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. गुलालविजय शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी स्वामी अंतिः हो सेवग चित्त चाहसु, गाथा- ७. ४५२६५. अस्थिर आयुष्य सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२१.५x११.५, ८४२८). औपदेशिक सज्झाय- अस्थिर आयुष्य, मु. माणक, मा.गु., पद्य, आदिः सुणो मनोहरी नारयण; अंति: बोले मुनि माणक वाणी, गाथा ५. ४५२६७. देवानंदा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२१४११.५. ११४२९). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं, पद्य, आदि जिनवर रूप देखी मन अंतिः पूछे उलट मनमां आणी, " गाथा - १२. ४५२६९. स्तवनचीबीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२०.५४११, १३४२६). " स्तवनचौवीसी, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदीसर अरहंत सुख दात, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पद्मप्रभ स्तवन ६ गाथा ४ तक लिखा है.) ४५२७२. इलाचीपुत्र सज्झाय व ईरियावही भास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, बे., (२२.५x११, १३x२८). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा- १०. २. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. मु. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि नारी रे मी दीठी एक अंतिः एहनी करो घणी सेव रे, गाथा-७, ४५२७३. (#) चैत्रीपूनम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २१.५X११.५, १६x४६). चैत्री पूर्णिमापर्व स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदिः पय प्रणमी रे जिनवरना, अंतिः साधुकीरति इम कहै, गाथा - १३. ४५२७५. आत्मोपदेश पद व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५X११.५, २१x२०). १. पे. नाम. आत्मोपदेश पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पंन्या, ऋषभसागर, मा.गु, पद्य, आदि करो रे कसीदा इण विधि, अंतिः रिषभसागर रस लागि रे, गाथा - १०. २. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै कार भया जिनसास; अंति: हरखचंद० भाव चडाई रे, गाथा-४. ४५२७६. आत्मशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०.५X१९, १९४१७) " आत्मशिक्षा सज्झाच, मु. दिपविजय, मा.गु., पद्य, आदि चित्त समरे वीर, अंतिः दीपविजय० बोधि निपाई, गाथा - १३. ४५२७७. तीर्थंकर चैत्यवंदन व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०x११.५, २३x१९). १. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. १अ संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकर भव, अंतिः नय प्रणमे घरी नेह, गाथा-३, २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुहंकर सिद्धाचल भेरी अंतिः श्रीशुभवीर सदा विकसे, गाथा- ९. ४५२७८, (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९०९ चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२x११.५, १३X३४). पार्श्वजिन स्तवन, पं. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदिः परम ईष्ट प्रभुतामई; अंति: गुलाब० घरे लच्छि भरो, गाथा - १३. . "" ४५२७९. पार्श्वजिन स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३. जैवे. (२१x११.५, १९४१९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ग. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिनेसर वंदु ए; अंतिः सेवक जयविजय गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. आवागमन प्रीछा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. आवागमन पृच्छा, मा.गु., पद्य, आदि: बाया पग त्रिगुणा करो; अंति: एक वीचीत्त विचार, गाथा-२. ३. पे. नाम. पं. मानविजयजीनुं खरच, पृ. १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: त्रीणि स्थानानि अंतिः भावसून्यत्वात् ४५२८०. बावीस अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे., (२१x११.५, १४४३५). १. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे शुद्धि, अंति: लक्ष्मीसागर० सुख लहे, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. 3 पुहिं., पद्य, आदि: तुम जो दयाल मोसे; अंति: सरणे की हवे लाज परि, गाथा-३. ४५२८९. निर्मोही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२०.५X११, १४X३५). निर्मोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु, पद्य, वि. १८७४, आदि निरमोही गुण वरणवं अंतिः पंच ढाल प्रसिद्ध रे, ढाल ५. ४५२८२ (-) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२०.५X१०.५, १४४३३). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: रेवतार मताळवर; अंति: रांणी त्रांणी परकासी, गाथा-२५. ४५२८४. (-) नेमिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सरदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२१.५४११, १३४२५). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु, पद्य, आदिः सुणोजी नेमीनाथ रयरज; अंतिः मुखसे रादे कीसना बोल, गाथा- ९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देस तो बीगाने आपना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४५२८५. (#) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., ( २१.५X११, १६३१). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय राजा मरुदेवा, अंति: सी महुवी मूक्ति मझार, गाथा - २५. ४५२८६. मनभमरानी सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण वि. १८२० मार्गशीर्ष शुक्ल ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले काना पठ. मु. नगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५X११, ९X२४). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: महमूद० अरहंत हाथ, गाथा - ९. २. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. יי अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासन नायक समरीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) २२३ ४५२८७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२०.५४१०.५, १२x२४) ३. पे. नाम. चाणक्य राजनीति, पृ. १आ, संपूर्ण. चाणक्यराजनीति लघु व वृद्ध, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शंकरं देवं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक है.) विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, बि. १८३५, आदि: पूर्व महाविदेह विराज, अंतिः केरो एहकरी अरदासोजी, गाथा - ११. ४५२८८. गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२x१०, ११x२६). गुरुगुण गुंहली, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदमवंत गुरू गणधारि; अंति: खीमावि० वरस्यो रे, गाथा- ९. ४५२८९ १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, सुरत, दे. (२२x११.५, ११४३७). For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आलस पेलो काठियो धर्म, अंतिः भावप्रभ० साधु धन चीत, गाथा- ७. ४५२९०. दयानाम सह टवार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जै. (२२x११, ६x४८). १. पे. नाम. प्रश्नव्याकरण अध्ययन ६ सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र - हिस्सा षष्ठ अध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पा., आदि: जंबू एत्तो संवरदाराइ, अंति: खेम करी एसा भगवती. प्रश्नव्याकरणसूत्र - हिस्सा षष्ठ अध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मस्वामी जंबूत्य; अंति: करणहारी ए दया भगवती. २. पे नाम, सूत्रकृतांग श्रुतस्कंध १ अध्ययनर, पृ. २आ, संपूर्ण आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अति: (-). ४५२९१. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५X१०.५, १०X३०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: असित्थेण वा वोसिरामि, (वि. नवकारसी. पोरसी, सादपोरसी, एकासणा, आयंबील व उपवास के पच्चक्खाण है.) ४५२९३. आचार्य के नाम पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१९.५x१०.५, ३०x२६). 3 आचार्य के नाम पत्र, मा.गु., गद्य वि. १९६०, आदि; स्वस्ति श्रीमद्वामेव अंति: (-) अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा " 3 अपूर्ण. ४५२९४. मूर्खप्रतिबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X१२, ११x२४). पदेशिक सज्झायमूर्खप्रतिबोध, मु, मयाविजय, मा.गु, पद्य, आदि ज्ञान कदि नवि धाय; अंतिः बोधीबीज सुख पाय, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२९५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (१९.५X१०.५, १३X३०). महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंतिः देवीदास० संघमंगल करो, ढाल ५, गाथा - ६४. ४५२९६. वणजारा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२१.५४९, १४४४४). " " वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर वणजारा हो सारद, अंति: सुख लहै मेरे नायक हो, गाथा-२७. ४५२९७. अढीद्वीप वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सिणधरी, प्रले. पं. राजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१.५४९.५, ७X२७). , विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु, पद्य वि. १७२९, आदि: वांदु मन सुद्ध: अंतिः धरमसी०धरी प्रमसी 1 नमे, ढाल - ३, गाथा - २६. ४५२९८. दीवा सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१x११.५, " ११x२६). दीवा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि दस द्वारे दिवो कह्यो; अंतिः निश्चे मोक्षे जाय, ढाल २, गाथा- ९. " ४५२९९. विजयकुंवरनी लावणी, संपूर्ण, वि. १९४८, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५x११.५, १२x२१) विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१ आदिः श्रीवीतरागदेव नमः अंतिः लालचंद विहार करता, गाथा- १७. ४५३००. जिनपंजर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२१x११, १५४३६). १. पे नाम, जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन महिमागर्भित स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण प्रा. पद्य, आदिः ॐ नमो तुह दसणेण सामि, अंतिः पासजिणंदं नम॑सामि गाथा - २. יי For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५३०१. पार्श्वनाथ श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, दे. (२१.५x११.५, १३४३२). www.kobatirth.org ३. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. मंत्र जाप की विधि भी दी गई है। उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडार गाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ णमवठाणे, अंति अत्र गणाधीसरं वदे, गाथा- १. राज से अंतरजामी, गाथा - ५६. ४५३०२. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२.५x११, १०X३६). יי , י पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंतिः चवदे . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक- ९. ४५३०३. (+) सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जावाल, प्रले. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२१४११.५ १३४२५) " सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदिः बुध विमल करणी विविध अंतिः तितिनवैरी जगति, गाथा- ९. ४५३०४. थंभणपुरपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, राधिकानगर, दे. (२२x११.५, १२X४५). पार्श्वजिन छंद - स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूरवर पासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ चोसालो, "" गाथा - १६. ४५३०५. मनभमरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५x१०.५, ११५२६). औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूले मन भमरा तु का; अंति: अहमद० करमा कै हाथ, गाथा- ११. ४५३०६. (#) निर्युक्तिगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५X१०.५, ११४३३). निर्युक्तिगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वाणारसी नयरीए अणगारे, अंति: सिद्धगया एगमयंमि, गाथा-१६. ४५३०७ भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ श्रावि, जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५x१०, ११४३१). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरेसर बहुबलि अभय; अंति: तस्स पठओ तिहुणे सयले, गाथा - १३. ४५३०८. (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २१.५८.५, २०x१२). नवपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा ध्यावो अंतिः कांइ बंदु वे कर जोडि, गाथा-७, ४५३०९. साधारणजिन बीनती संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१४८, ३०x२३). " साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि : आज भलो दिन उगियो; अंति: मुक्त पीहर दातार, गाथा-१४. ४५३१०. तुंबडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. नगोर, प्रले. सा. उतमा महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०.५, १६x४४). तुंबडा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणीये जी; अंति: द्रोपती रूप अपार जी, गाथा- २३. ४५३११. (4) राजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२१.५४१०.५, १९३०). २२५ राजिमतीसती सज्झाय, मु. मल्लजी महाराज, मा.गु., पद्य, आदि: स्यामसुंदर मेरे नेम, अंति: मल्ल कहै० गए दोइजी, गाथा - १४. . ४५३१३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे. (२९.५x१०.५, १३x२०). " १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- चौदस्वप्नगर्भित, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदिः एक मन वंदो श्रीवीर, अंति: द्यो मनवंचत होये, गाथा - २८. २. पे. नाम. पाटण अष्टापदनुं स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पाटण अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: तीरथ अष्टापद नत नमीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५३२०. (#) अष्टप्रकारीपूजा काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११, ९४२६). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, श्लोक-८. ४५३२२. (#) रोहिणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, १७४३४). रोहिणीतप सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवत सामणी ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ४५३२३. (+#) एकादशी सज्झाय व सवईया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, ११४२८). १.पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: अविचल लीला वरसे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सवइयो, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखक का नाम कृति के प्रारम्भ में ही दिया गया है. धनप्रभावदर्शक सवैया, क. केशवदास, पुहिं., पद्य, आदि: चाह करे जिनकी जग में; अंति: वडो जाकी गाठे रूपैया, पद-१. ४५३२४. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे., (२०x१०.५, २८x१८). शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: पंडित रुपनो लाल, गाथा-७. ४५३२५. (#) पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, २४४१७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानावरणी क्षय करीन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा १ __अपूर्ण तक है.) ४५३२६. (#) रात्रीभोजननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२३.५४१०, १२४४३). रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वासो बसै जी; अंति: तार्या आतम काजरे, गाथा-१९. ४५३२९. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१०.५, ९४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: तमे सुणो वो चतुर; अंति: कटजी करमारा जाली, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: कायाजी मोटा कारमी; अंति: अकलो साते पुन ने पाप, गाथा-९. ४५३३०. जिनपद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२२४१२, ९४२१). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. लालभाई, पुहि., पद्य, आदि: सखी में क्या करूं; अंति: कांई आवागमण निवार, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: हुं तो वारी जाऊं, अंति: छाडु थारो पासोजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. आनंदघनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वालहा; अंति: आणंदघन पद थाय, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमजिन पद, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो रही रे मनाय; अंति: कर जोड सेवगरी वीनती, गाथा-३. ४५३३२. अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१२, ६४३७). अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु दरिसण मुझ; अंति: रस मिल्यो एकताने, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५३३३. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२x१२, १२X३३). गाथा - ९. ४५३३४. सुधर्मास्वामीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे. (२१.५x११.५, १०x२९). " उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तव सोहम गणधर कहे सहु अंति: हे जैननी ठकुराइ छाजे, गाथा- १४. ४५३३५. वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०.५, ९X२४). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हांरे मारे प्रणमु अंतिः तवन सोहामणो रे लोल, गाथा-८. ४५३३६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२२x११, १०X२७). , १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति - कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनय जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, , संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमेंद्रमौलिप्रपत्परा, अंति: मालालीढलोलोलिमालाम्, श्लोक-४. ४५३३७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल, पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, ४५३३८. सकलकुशलनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X१०.५, ९४२४). प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २२x११, ९४२४). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति-भक्तामर स्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २२७ ४५३४०. दीवाली श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२२x११.५, १५४३०). शांतिजिन स्तुति सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवली अंतिः वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४५३४५. काल मान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२१४११.५, ७X२०). दीपावलीपर्व स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: ब्रह्माचि बाला वांणी; अंति: दीवाली उगंते सुर, गाथा - २९. יי काल मान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पकवानीर सुखडी च्यार; अंति: आवे पछे अचित थावे. ४५३४६. सिद्धाचल चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X११.५, ११x२६). शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतरणतारण कुगति; अंति: हंस देवे तिण घडी, गाथा-४. ४५३४७. सिद्धाचल स्ववन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५x११, ९३०). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो विमलगिरि, अंति: पामे सुख श्रीकार रे, गाथा- ७. ४५३४८. पार्श्वनाथनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५४११, १०x२५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो पार्श्व प्रभुः अंतिः सौभाग्य सुख कल्प रे, गाथा-७. ४५३५०. शत्रुंजय चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X११.५, ७X२८). शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं. पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५३५२. (+) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११, १३४३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४५३५४. (+) मंत्र, स्तवन व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, ९४३५). १. पे. नाम. नवकार मूल मंत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरौ; अंति: प्रभु सुरवर शीस रसाल, गाथा-७. २. पे. नाम. तिर्थावलि स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेज रिष समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. नाकोडापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बैठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-७. ४. पे. नाम. गुरू गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. जिनभक्तिसूरि गुरूगुण गीत, मु. कीर्तिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वांदो भविन भावै गछपत; अंति: कीरतीचंद० समति, गाथा-३. ४५३५५. राजीमती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१.५४१०, ११४३०). राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक सुमरिय; अंति: चोथमल० पीपाडसहर मझार, गाथा-२०. ४५३५६. कलावतीराणी सझाय, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. नंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १०४३४). कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महलाम बठ्याजी राणी; अंति: मिच्छामि दुकडम् मोय, गाथा-२९. ४५३५७. (८) शांतिजिन स्तवन व देवलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४९.५, १४४३८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: शांति जिणेसर समरिये; अंति: भलो धरम उपगार, गाथा-१०. २. पे. नाम. देवलोकरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुखदेवलोक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, आदि: सुख देवलोकारा साता; अंति: मीच्छाम दोकडो मारोजी, ___ गाथा-१२. ४५३६०. लोटांणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. भाणविजय; पठ. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. हेमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: सिद्धाचल मंडण रिषभ; अंति: कवि हिमत जय जय कार, गाथा-९. ४५३६१. (-) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१०.५, ९४२३). महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरोहमणै आवैसै मारै; अंति: सैजै सिवसुंदरि वरीय, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५३६३. (८) सर्वार्थसिद्धविमान सझाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४११, १४४३१). १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धरोचंद्रुवैमोती २५३ सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इण सवारथ सिधरे चंद्र; अंति: चवने मुगत सीधावैजी, गाथा-२३. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. दूहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४५३६५. (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९१, आषाढ़ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लाखाला, प्रले. मु. मोनीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. देवीचंदजी की प्रत उपर से प्रतिलिपि की गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १५४२३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजीनेसर चरणकमल कमल; अंति: वीनय० प्रभु ___ इम भणे ए, गाथा-६३. ४५३६६. वीजयसेठ विजयावली सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. उमेदकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१२, १०४२७). महावीरजिन स्तवन-विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवीये; अंति: जीत निसांन बजावीइ, गाथा-११. ४५३६७. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, जैदे., (२१.५४११.५, १४४३३). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४५३६८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. एकादसीनी स्तुति, पृ. १अ१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम. रोहणीरी थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४५३६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३७). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६६, भाद्रपद कृष्ण, ११, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. मु. ऋषभप्रभ, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गहो कहो रे मुनीपती; अंति: पदम०मुत्तीयां लहो रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. अनागत २४ नामाभीधान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे भावी जीन वंदिइए; अंति: ए पद्मविजय गुण गायतो, गाथा-५. ४५३७०. पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४११.५, २९४२०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आपण छे रे पुजानो गोठ; अंति: कर्म नीकाचित टालि, गाथा-५. २. पे. नाम. अवंतीपार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: आवंती अब तेरो आधार, गाथा-५. ३. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. राजेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: रमताराम फकीर; अंति: प्रभु गिरधर नागर, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज जोआनी तक जाय; अंति: बांह उसाहे छे रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाडीवनगर. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुण खेले तस होरी रे; अंति: मे खेलुगी तस होरी रे, गाथा-६. ४५३७३. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (२२.५४१२, २५४१६). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीउ लाग रह्यौ परभाव; अंति: श्रीजिनवर के पावमै, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लेउ के दान मे, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: तारीयो वो जिनराज मोह; अंति: रंग सुधारो काज, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: मनाज्यो रे रुठडा नेम; अंति: शिवसुख अमृत बिनसु, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल घेहली करी छै; अंति: दिप०गाइ छै उछाहै रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर मुझ विनति तु; अंति: सीस जीत वंदे इम वाणि, गाथा-७. ७. पे. नाम. ज्ञानगुण वर्णन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज तणी; अंति: तुझ पद पंकज सेवरे, गाथा-९. ४५३७४. तपसंग्रह व पोरसीमान, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, २५४१६). १.पे. नाम. विविधतप विधि संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पोरसीमान, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सासाढे प ६; अंति: ३० मास ३० दिन. ४५३७५. (#) लावणी संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, २७४१६). १.पे. नाम. साधारणजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. जगदीस, पुहि., पद्य, आदि: ओर देव मुज दाय न आवे; अंति: नित समकीत मनमे नी हे, गाथा-४. २.पे. नाम. कुगुरू लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तनुं तनुं में उन; अंति: कुगुरु संग खुवारी हे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कंकरकु संकर कर कर; अंति: मुक्ति की पाता है, गाथा-४. ४. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहि., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस; अंति: तुमे तारण तरण जीहाज, गाथा-५. ४५३७६. सारणीसार जगचंद्रिका व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १८४५९). १. पे. नाम. जगचंद्रिका सारणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सारणीसार जगचंद्रिका, वा. हीरचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल सिद्धिदायक सखर; अंति: जिनवर स्युज सुराग, गाथा-३६. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४५३८०. दीवाली- चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१०.५, ९४२५). For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २३१ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, उपा. मेरुशिखरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेश पावापुरी वीर, अंति: पदा मेरुशिखर उपज्झाय, गाथा - ९. ४५३९२. सिमंधरस्वामी स्तवन व जंबुकुवर लावनी, संपूर्ण, वि. १९६१ श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे. (२२x१०.५, १३X२५-२८). १. पे. नाम. सिमंधरस्वामी स्तवन. पू. १अ १आ. संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमंधरस्वामी हो, अंति: अमी० सफल करो मुझ आस, गाथा- ७. २. पे. नाम. जंबुकुवरजी कि लावनी, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. जंबुकुमार लावनी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सामी सुधर्मा संत, अंति: में चित्त लाग रह्या, अध्याय ५. ४५३९५. सझाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे. (२२.५x११.५, १५X४४). " " १. पे. नाम सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम, अंति: तेहने होज्यो प्रणाम, गाथा- ७. २. पे. नाम. रहनेमीराजुल सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि छेडो नाजी नाजी छेडो, अति: ज्ञानविमल गुण माला, गाथा ५. ३. पे नाम, वनमाली सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कावा रे वाडी कारमी, अंतिः राखजो रखे खोड लगाई, गाथा - १०. ४. पे. नाम छ दर्शनप्रबोध स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि ओरन से रंग न्यारा, अंतिः रूपचंद० सरण तिहारा है, गाथा - ९. ४५३९७. वीरस्वामी पालणो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२२.५४१०.५, १३४३१). " महावीरजिन हालर, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रीसला झूलावे, अंति होजो दीपविजय कविराज, गाथा - १७. ४५३९८. महावीरजिननिसाणी छंद व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे. (२१.५४११.५, १३-१६४३४). १. पे. नाम महावीरजिन नीसाणी पृ. १ अ ४अ संपूर्ण. महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग, अंति: हुई हरख माणिक मुनि गाथा ३७. २. पे. नाम. अर्जुनमाली सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि धर्म करो धीरज घर जिम, अति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १० अपूर्ण तक है.) ४५३९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्र १४२ हैं. जैवे (२२.५x१२, १५x१६)१. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद, अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा- ७. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पु. १ आ. संपूर्ण. , आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिन सहेज विलासी; अंति: एतो सुख संपत निसाणी, गाथा- ९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट, अंतिः अविलख्या तुज पाया रे, गाथा-५. ४. पे नाम दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: सीख्यो पण समज्यो नही, अंति: रह्यो लोहको लोह, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५४०१. कृष्ण बलभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२४११.५, १०४२५). बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामतीथी निकल्या; अंति: नहि कोइ धरमने तोले, गाथा-२५. ४५४०२. भारती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४११.५, १२४४०). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४५४०३. भासनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ११४२८). तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसीहि त्रण; अंति: शासन सुर संभारोजी, गाथा-४. ४५४०५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, १२४२७). औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावळो; अंति: तो तमे पामस्यो मोक्ष, गाथा-१३. ४५४०६. (+) औपदेशिकपद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०, १५४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: पुण्य जोगे मानवभव; अंति: सोली रची सुजाणो, गाथा-१६. २. पे. नाम. मानवभव पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: मानव को भव पायके मत; अंति: आराधो सकल फले मन आसा, गाथा-६. ३. पे. नाम. अजितनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-५. ४५४०७. पर्युषण चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०, २२४१२). १.पे. नाम. पर्युषण, चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण आवीया; अंति: मनी वाणि सुणो उपाति, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कलप पुरब दिने घर; अंति: सुणे तो पामे पार, गाथा-४. ४५४०९. स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. लगोल, प्रले. मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); गुपि. मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम); मु. कनकसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४३०). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: केवलनाणंच पंचमयं, गाथा-५१. ४५४१०. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ११४२८). नेमजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: में आजे दरिसण पाया; अंति: एम वीरविजय गुण गाया, गाथा-७. ४५४१२. (#) उदयसागरसूरीश्वरजी को जीतवर्द्धनजी का पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४९, २९x१७). उदयसागरसूरीश्वरजी को जीतवर्द्धनजी का पत्र, ग. जीतवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीश्रेणि; अंति: ऊपर शीघ्र लखजोजी. ४५४१३. (+) अष्टबीजाक्षर पूजन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १४४४१). अष्टबीजाक्षरपूजन विधि, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम नवकारमंत्र; अंति: माफिक पूजन करणी. ४५४१४. चौबोली कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२०.५४१०.५, १३४२४-२६). चोबोलप्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सभापुरि विक्रमराय; अंति: धूवते उजेणीपुर आवीयो, गाथा-२१. ४५४१५. (+) आत्मशिक्षा व पार्श्वप्रभु गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१०, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १. पे. नाम. आत्मशिक्षा गीत, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा काये; अंति: अहमद० करमा के हाथ, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपासजी के चरण याओ अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा है.) ४५४१०. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२०११, १२४२४-२७). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ४५४१८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे, २, जैदे. (२१.५x११, ११४३१). १. पे नाम, साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत सुधा पालै; अंति: तस पाय वंदन कीजइ, गाथा - ८. २. पे नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारिणी मनावे हो; अंति: छुटी जे गर्भावास, गाथा-५. ४५४२०. श्रावककरणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६६ कार्तिक शुक्ल, ४ शनिवार, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल. जधार, प्र. मु. खीमराज (विजयगच्छ). प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२०x१०.५, ८x२०-२४). "" श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावग तुं उठे, अंतिः जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा - २१. ४५४२२. उत्तराध्ययनसूत्र विनय अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. प्रत की दूसरी ओर पक्ष से सम्बन्धित १ से १५ तक की संख्याएँ लिखी गई है. जैदे. (२२.५४९, १२४३२). " " उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरीजी, अंति: (-), प्रतिपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ४५४२४. द्वादशव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. भाणविजय गणि (गुरु पं. तिलकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x९.५, १४x२९). १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: तिलकविजय जयकार, ढाल - १२. ४५४२५. रास, पद व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, ले. स्थल, साहेपुरी, प्रवे. सा. विना आर्या (गुरु सा. खेमाजी आर्या); गुपि. सा. खेमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५x९.५, १५X३४). १. पे. नाम. शीलको रास. पू. १अ २अ, संपूर्ण. शील रास, रा., पद्य, वि. १८०६, आदि: सारद माता समरुं तोय; अंति: जन्म जनम का पातक हरै, गाथा-३२. २. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मालण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पातै पातमै जीवै; अंति: सरणो तुम चरणा को, गाथा- १०. ४५४२०. नवतत्त्व धोय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२१x११.५ ११५२४). राजिमती पद, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदिः सावलिया घरि आव कै; अंति: एह कै श्रीजिनरंग कहै, गाथा - २८. ३. पे. नाम. मालणनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. २३३ आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि जीवा रे जीवा पुनं रे, अंति: मानवि० चित धरज्यो जी, गाथा- ४. ४५४२८. (4) पाक्षिकसूत्र टिप्पण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे, (२०x१०.५, १९x४०). For Private and Personal Use Only पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (वि. मात्र प्रतीक दिया गया है.) ४५४२९. पंचरंगी ओलीनुं गरणुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अमीरलला व्यासजी अन्य कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x११.५, ११x२५). पंचरंगी ओली विधि, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहैं; अंति: वरणे छे साम वरणे छे. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - २३४ ४५४३०. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२१.५x११.५, ११४२९). " ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंच परमा, अंति: सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. ४५४३१. क्षमासूरिना सलोको, संपूर्ण, वि. १८२७ फाल्गुन कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. श्रीपुरबंदर, प्रले. ग. विनोदरुचि (गुरु ग. वीररुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x१०.५, १४x२६-३२). क्षमासूरि सलोको, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी पाए हु; अंतिः तस घर नीत लील करसे, गाथा- ६४. ४५४३३. बृहत्शांति स्तोत्र व नेमिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. सीपरीछावणी, प्र. ग. भावविजय गणि (गुरु पं. माणक्यविजय) पद श्रावि, पानकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२१x१३, ११x२४). १. पे. नाम. वृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिनाथ बावीसमा सिवा; अंति: नमतां अविचल थान, गाथा-३. ४५४३६. मुद्रा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २२x१०.५, १०x२८). मुद्रा विधि, सं., पद्य, आदि: वाम हस्तोपरि दक्षिण, अंतिः कार्या आसनमुद्रा, श्लोक-१३ ४५४३७. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५X१०.५, ११x२०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रभु पारस प्रेमसु; अंति: ललित०हर्षे राखो हजुर, गाथा-७. ४५४३८. (#) मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नारायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १४४४६). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ अंतिः परमसुख में मांगी, गाथा - १०. ४५४३९. (+) सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५x१०.५, १०x२७). " १६ सती सज्झाव, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि सील सुरंगी सुभात अंतिः प्रसन सदा पदमावती, गाथा - ११. ४५४४०. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २१.५x१०.५, ९२३). ढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदणो, अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा- ९. ४५४४१. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १ जैवे. (२१.५४१०, १३x४२) पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली प्रणमउ सारदमाइ, अंति: सिद्धिवधू निश्चइ वरइ, गाथा- ९. ४५४४२. राममुनि लावणी व आत्मोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २१.५x११.५, १५X३३). १. पे. नाम. राममुनि लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: राममुनि जगमे जवकारी, अंतिः रखो गुरु चरणा लारी, गाथा- ९. २. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४५४४३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१.५४११.५, १४x२७) औपदेशिक सज्झाय, मु. जेठमल, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन रे तूं ध्यान, अंतिः तुरत ही आनंद पावै, गाथा- ६. , विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासय अड अंतिः निव्यंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४५४४४. मौनइग्यारस स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जससागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५X१२, २०x१६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरि समोसर्य; अंति: लह्यो मंगल अति घणो दाल-३, गाथा २५. For Private and Personal Use Only ४५४४५ शांतिनाथ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२१४१२, १२४२९). शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभन्द्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं भवदुःख, अंतिः भद्रकायेषु नित्यं श्लोक ९. ४५४४६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. श्री ऋषभदेव प्रसादात् लिखि. जैदे. (२०.५x१०, ११३२). Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ, अंति: वंदामि जिणे चोवीस, सूत्र - २१. ४५४४८. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२x१०.५, ६X३१). नवपद स्तवन, मु. इंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो सदा, अंति: इंद्रविजय गुण गाय, गाथा-४. ४५४४९. पार्श्वजिनपद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२२.५४११.५. १३४२६). , "" १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण मु. रामचंद वाचक, पुहिं., पद्य, आदि: हो वामा का जाया महिर, अंति: आपो सुख अविकार हो, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: वो दिल भाय मेरे सांइ, अंति: ज्ञानसार गुण गाया, गाथा - ३. ४५४५०. चैत्रीपुनम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५x११.५, १६x४१). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , י चैत्री पूर्णिमापर्व स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदिः पव प्रणमी रे जिनवरना, अंतिः साधुकीरति इम कहै, गाथा - १३. (#) ४५४५२. 'वस्तुपाल तेजपाल धर्मकरणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, दे., (२३x१०, १४४३३). वस्तुपाल तेजपाल धर्मकरणी मा.गु, गद्य, आदि: सवा लाख जिनबिंब नवा अंतिः एवाल पद पर पराई. ४५४५३. (+) समोवसरण स्तव व नवत्त्व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. जैवे. (२१.५४११.५, १७२४३) १. पे नाम, नवतत्व प्रकरण हेयज्ञेय उपादेय, पृ. १अ संपूर्ण, नवतत्त्व प्रकरण - हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: हेया बंधासव पुन्ना, अंति: मिस्सो होय अजीवो, गाथा-२. २. पे. नाम. समोसरण स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंतिः पाठकधर्मवर्धन धार ए, ढाल - २, गाथा-२७. ४५४५५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैवे. (२१x१२, १९३२) १. पे नाम, क्रोधरी सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधना; अंति: निर्मली उपशमरसे नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. २३५ औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए अंतिः मानने वेजो देशवटो रे, गाथा - ५. ३. पे, नाम, मायारी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजोजी, अंतिः ए मारग छे शुद्ध रे, गाधा- ६. ४. पे. नाम. लोभरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु, पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया, अंति: पामे सबल जगीस, गाथा ८. ५. पे. नाम औपदेशिक लावणी. पृ. १ आ. संपूर्ण. मु. अखमल, पुहिं., पद्य, आदि: जब लग वसती तब लग; अंति: उपजे विनती अखमल की, गाथा-८. ४५४५६. स्तवन व मंत्रसाधना, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२४.५४९, ३२४१८-२०) " 1 १. पे नाम, सिद्धपुरमंडण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तुति - सिद्धपुर, मु. रूपविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धपुरमंडण, अंति: रूपविमल हितकारीजी, गाथा-४. २. पे. नाम. चौंसठ योगिनी मंत्र साधनाविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३६ www.kobatirth.org ६४ योगिनी मंत्रसाधना विधि, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति हीं, अंति: (अपठनीय). ४५४५७. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२१.५x१०.५, १३×३५). १. पे. नाम. नेमराजिमती सिज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर सुहामणि कांइ, अंतिः कवियण जंपै भावसुं हो, ४५४६०. नवतत्त्व भेद संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२२.५x१० १६५३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - १०. २. पे. नाम. दानशील तपभावना संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक है.) १८x४२). १. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्वना ५६३ भेद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तिर्वच के भेद अपूर्ण तक है.) ४५४६२. (क) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२१.५४११, पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सहि अंतिः सफल आपणो करे जी लो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) २. पे नाम सेजा स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि अंग उमाहो मुनै अति; अंतिः प्रेम घणे जिणचंदरे, गाथा-७, ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: लाल रंगीले मेरे मोहन, अंतिः श्रीजिनचंद्र० अवधार, गाथा-३. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सदगुरु श्रीजिनकुशलसू, अंति: जिनचंद्रसुं सुरतरू, गाथा- ६. ४५४६३. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. हितविजय (गुरु मु. पूर्णचंद्र); गुपि. मु. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २१.५X११.५, १३X२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल ३, गाथा-३६. ४५४६४. स्तोत्र, बोल व छिंक निवारण गाथा संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, वे. (२१.५४११.५, १२४२६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार, अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथं, श्लोक- ७. २. पे. नाम. थापनाचारयणा बोल १३, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १. शुद्धस्वरूप धरखं अंति: १३. कायगुप्ति. ३. पे. नाम. छिंक निवारण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पखी पडिकमणां मांहि, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः. ४५४६५. सप्तव्यसन सज्झाय, संपूर्ण वि. १९०९ श्रावण शुक्ल ९ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, कांगरी, प्रले. पं. नेणचंद For Private and Personal Use Only पठ. सा. बुधश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १७४१२, १०x२१). ७ व्यसन सज्झाय, वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: छांरु रे छांरु तु; अंति: रीध सीध संपत मिलौ, गाथा - १०. ४५४६६ (१) अल्पबहुत्व २० द्वार व द्रव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (१६४१२.५, १५x१०). Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १. पे. नाम. दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १. दिशाद्वार २ गति अंति: २७. महादंडकद्वार २. पे. नाम. स्पर्श द्रव्य-भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: द्विस्पर्शानि, अंति: स्पर्शाग्राह्या. ४५४६८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८१-७७ (१ से ६४,६६ से ७४, ७६ से ७९)=४, कुल पे ९, जैदे. (२२x११.५, १२x२९-३३). १. पे. नाम. महावीरजिन जन्मोत्सव रास, पृ. ६५अ - ६५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रंगप्रमोद, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारम्भ व अन्त का भाग नहीं है.) २. पे. नाम. मलिजिन स्तवन, पृ. ७५अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो जिन श्रीमल्लि, अंति: गनि श्रीकेशव गुन गाई, गाथा ७. ३. पे, नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७५अ-७५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन प्राणीया; अंति: वात तणो एहीय मर्म, गाथा- ११, (पूर्ण, पू. वि. अन्तिम गाथा के अन्तिम चरण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, नेमिजिनेंद्र रागमाला, पृ. ८०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, प्रले. मु. देवीदास ऋषि पठ. मु. समरसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य. ग. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: करी केशव सुखकार ए, गाथा - ३४, (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण है.) ५. पे. नाम. महावीरप्रभु स्तवन, पृ. ८०अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखाकर वयण, अंतिः सुख संपति शुभवीर गाथा- ७. ६. पे नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ८०आ, संपूर्ण, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि प्यारा वरजी नाजी रे, अंतिः आय मिली मे सेवक लाजी, गाथा-२१. २. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि गिरुआ गाईयइ; अंति: पामही हो सुंदर सुफार, गाथा- ८. ७. पे. नाम. वासूपूज्यजिन स्तवन, पृ. ८१ अ-८१ आ. संपूर्ण वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं जिन पाया अंतिः केशव तुम गुण गावे हो, गाथा- ९. ८. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. ८१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिनचरणानी, अंति: मोहन अनुभव मागि, गाथा - ५. ४५४७१. सज्झाच संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (१६४९, १४४३२) १. पे नाम, निंदकनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण २३७ धर्मजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज नमो जयकारी हो; अंति: जनम जनम बलिहारी, गाथा-४. ९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: चेति चतुरनर चेति, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४५४७०. (+) | सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०, १४४४२). १. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. निंदक सजझाय, मा.गु., पद्य, आदि: धोबी धोवे लुगडा रे, अंति: अधार निंदक नसरुं, गाथा- ९. २. पे नाम श्रेणकनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. " For Private and Personal Use Only श्रेणिक सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि; एक दिवस श्रेणिक अंतिः माया अति समलांणीजी, गाथा- ९. ४५४७२. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ७, प्र. वि. पत्रांक २ अनुमानित लिया गया है., जैदे., (२१.५४१०.५, १८x४२). १. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उलट अति घणे रे लो, गाथा- ७, (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, शांतिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ऋषभचंद, पुहिं, पद्य, आदि दरवाजा तेरा खोल बे; अंतिः ऋषभचंद० रहिये तोल से, पद-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुं ही निरंजन तु ही; अंति: रूपचंद० फेरा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम औपदेशिक पद-काया उपदेश, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: अ०चरखा चलता नांहि चर; अंति: होयगा बुधर समझ सबेरा, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जगराम, पुहिं, पद्म, आदि: तो सुं जोडी प्रीत अंतिः भवबाधा हरो मोरी, पद-२. " ६. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. २आ, संपूर्ण. माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माया कारमी रे माया, अंति: गुण गंधव जस गाय, गाथा-८. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सुमति, पुहिं., पद्य, आदि अब तेरो दाब लाग्यो, अंतिः प्राण जावैगो निदान, पद-२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४०३ (४) स्तवन, स्तुति, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२-१९२९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८. ले. स्थल, निवेहड, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x११.५, २८x१८). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. い मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीक गणधर पाय अंतिः सौभाग्य दे सुखकंदाजी, गाथा-१. २. पे. नाम. एकादशी तिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज एकादशी नणदल मौन, अंतिः अविचल लीला लहस्ये, गाथा-७. ३. पे, नाम, पोसह पारवा पाठ, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९२२. पौषधपारणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि सागरचंदो कामो, अंति: पोसहविह अप्पमत्तोय. ४. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु. पच, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या, अंतिः रतन प्रभु प्यारा रे, " गाथा-५. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. कृति की अवशेष २ गाथाएँ पत्रांक २आ पर लिखकर पूरी की गई हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: पूखलवई विजयें जयो रे, अंतिः यशोविजय० भवभंजन भगवंत गाथा-७ ६. पे नाम, पार्श्वजिन पद गोडी, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १९२९, ले. स्थल, निवेहड पार्श्वजिन पद- गोडीजी, अभयचंद, मा.गु, पद्य, आदि: गोडी गाईए मनरंग एक अंतिः कदै नही हुवै चितभंग, गाथा- ३. ७. पे. नाम. झांझरीचा मुनि कथा शौलोपरी, पृ. २अ, संपूर्ण झांझरियामुनि कथा, मा.गु., गद्य, आदि पठाणपुर नगरे तंत्र, अंतिः क्ली थयो पुन मोक्षं. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा-८. २. पे. नाम. आदिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंतिः ए सफल करे अवतार तो, गाथा- ४. ४५४०४. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१४११.५, १४४३२). " १. पे. नाम. चोवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. २४ जिन बृहत्चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं प्रथम, अंति: पद लहे पामे सुख अनंत, For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २३९ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धुरि समरूं श्रीआदिदे, अंति: (-). ( पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४५४७७. महावीरजिन होरी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५X१०.५, १९x१६). महावीरजिन होरी पद, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज सदा जयकारी, अंति: विनय कहे जिन सुखकारी, गाथा-४. ४५४७९. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x११, ११x२९). " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ४५४८०. पंचजिन आरती व चौबीस तीर्थंकर नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५X१०, १६x२३). १. पे. नाम. पंचजिन आरती, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहली आरती प्रथम, अंतिः सर्वमुख पूनमचंदा, गाथा- ६. २. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: रिषभजी अजितजी संभवजी, अंति: महावीरजी. ४५४८१. सरस्वती स्तोत्र व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५X११, २१४२४). १. पे. नाम. सरस्वतीमाता स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्री आदिनाथ प्रसादात् लिखि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: देवी नित नमेवी जगपती, गाथा- ९. २. पे. नाम. दोहा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साम को नाह नहीं, अंतिः उसकु टलकुं कहा सेवेइ. ४५४८३. जिनक्षमारत्नसूरि को पूनमचंद चुनीलाल का पत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, २४x२०). " जिनक्षमारत्नसूरि को पूनमचंद चुनीलाल का पत्र, आव. पुनमचंद चुनीलाल, रा. गद्य, आदिः स्वस्ति श्री पार्श्व अंति: काज होय सो लिखावजोजी. ४५४८४. हित सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२२.५४११.५, ७४३५). " औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पच, आदिः हूं तो वारुं छु अंतिः मन धरम करौ थिर थावो, गाथा-५. ४५४८५. (+#) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२२x१०, १३x४०). १. पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: विणझारारे सुणि इक मो; अंति: आपण झीवन सुं कही, गाथा- ७. २. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण मु. , जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीवकुं; अंति: कहा काको सहिज मिटावइ, गाथा- ३. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि पुहिं, पद्य, आदि मेरे मन मूढ म कहि अंतिः वाट वीचि कठ मेरठ, गाथा-३. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. राज, पुहिं., पद्य, आदि रे जीउ काहइकुं, अंतिः संपदा राज रहइ समभाव, गाथा ३. ५. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. राज, मा.गु., पद्य, आदि: मनरे छार मायाजाल, अंति: स्वामि नाम संभाल, गाथा- ३. ६. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कइस उसासक उवेसार; अंति: तामई लेहु थिर जसवास, गाथा-३. ४५४८८. आत्म सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४८.५, १०४२०). औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: माया ममता मुकीइंजी; अंति: ते लहे शिवसुख सार रे, गाथा-७. ४५४८९. स्तोत्र संग्रह व श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९३०, चैत्र कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, ले.स्थल. डीसानगर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १४४३६-४०). १.पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धिसाम्राज; अंति: हननं कल्याणलीलालय, श्लोक-२. ३. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः संसूर्ये महातेजो; अंति: सौखार्थे लभते सुखं, श्लोक-७. ४. पे. नाम. सूर्य मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो सूर्यदेवताय; अंति: श्रीसूर्यदेवताय नमः. ५. पे. नाम. मार्तंड नामानि, पृ. १आ, संपूर्ण. आदित्य स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आदित्यः प्रथमं नाम; अंति: सर्वदुःख विनाशनं, श्लोक-४. ६. पे. नाम. गुरूस्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गुरु स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वृहस्पतिमहं नौमि; अंति: तेषां कामफलप्रद, श्लोक-७. ७. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ८. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावकअतिचार संख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणाइ अट्ठठयं सट्ठी; अंति: अर्थे जाणवो, गाथा-१. ४५४९०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२१.५४१२, ४२४३०). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजित जिन; अंति: रस आनंदशुचाखे, गाथा-९. २. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रथ वालो हो राज; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरीसादानी सामल; अंति: प्रतिखिण करुणा करयो, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तरवालीओ नहीं; अंति: निर्वाहूने स्यावास, गाथा-७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जोर छे जी जोरचेंजी; अंति: पहोचे ते भवनो पार, गाथा-५. ४५४९२. (#) सरसती छंद, संपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. हेमा मेठा भोजक; पठ. मु. रूपविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, २३४१३). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: सोई पूजो माता सरसती, ढाल-३, गाथा-१४. ४५४९३. (#) दीसाणभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१०, २४४१३). For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद बुधिदाई सेवक, अंतिः पभणे लालविजय निसदीस, गाथा - १४. ४५४९४. ढंढणऋषि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२२x११.५, ९४२२). "" पामइ. * ; ४५४९९ (4) जनप्रतिमा सज्झाय व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल, पुरविंदर, प्र. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५४१२, २५४१८). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापन सज्झाय, पृ. १अ - १, संपूर्ण. २४१ ढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषीजीने वंदणा, अंति: (-), गाथा-९, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ४ अपूर्ण तक है) ४५४९५. (#) छंद, स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१०.५, २१४१७). १. पे. नाम. भीडभंजन पार्श्वनाथजी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि भीडभंजन भवभयहरं जयो, अंतिः मोह महारिपुमर्दनं, गाथा - ११. २. पे. नाम. पूजाविधिसुवधिनाथ स्तवन, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. ८ प्रकारीपूजाविधि स्तवन- सुविधिजिन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुवधिनाथनी पूजा सार; अंतिः प्रीतविमल मन उल्लास, गाथा- १३. ३. पे. नाम. चवीस तीर्थंकरना परिवार संख्यानी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि; चडवीसे जिनना सुखकार, अंतिः चडविध संघ करो कल्याण, गाथा ५. ४५४९६. सीमंधरस्वामी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. परसोतम मंगल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५.५X१०.५, ११X१५). १. पे. नाम. सिमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: हवे दर्शन देजो नाथ, गाथा १६. २. पे. नाम. सीमंदरसामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि; सीमंधर साहवा हू तो; अंतिः धान हजो नीजचीत हो, गाथा ६. ४५४९७. (+) नव निदान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. उत्तमविमल; पठ. श्रावि. राजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५४९.५, १२X४०). "" ९ नियाणा विचार, मा.गु., पद्य, आदि: (१) निव १ सिद्धि २ इच्छि, (२) हिवइ नवनियाणा करवी, अंति: पणि सर्वविरति जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजिन प्रतिमा वंदन, अंति: जै वखाण रे, गाथा १५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only ४५५००. भेरुजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८६८, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २१.५X१२, १८x४०). चामुंडा छंद, सा. सुखा, मा.गु., पद्य, आदि: सुंडालो नित समरीयै; अंति: कहै मोटा खावंद माहरा, गाथा-१८. ४५५०१. अक्षर बावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. रणछोड, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२x११.५, १०x२३). अक्षरबावनी, मु. जसराजजी, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐ वह अक्षर सार हैं, अंतिः पूरन करी कृता गाढ, गाथा-५३. ४५५०२. ऋषभदेव स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. शंखलपुर, विमलनगर, प्रले. केवल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२१.५x११.५ १७१३). , Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आपो आपो ने राज मुझन; अंति: सेवा कामगीव दोहंती, गाथा-७. २. पे. नाम. औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५५०३. (-) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४११, ११४२१). पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भलि आज भेट्यो प्रभू; अंति: चक्रे समयादिसुंदरः, गाथा-८. ४५५०४. छंद, गरबी व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१.५४११.५, १६४३७). १. पे. नाम. दृढ छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. बेलानगर, प्रले. मु. हेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ढुंढक छंद, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: देसामाहे सीरोमणी मरु; अंति: कहो ढुढ केम ऊधरे, गाथा-११. २. पे. नाम. कृष्णजी गरबी, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रूपसागर गणि; अन्य. दोलतराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य. कृष्णभक्ति पद, मीठादास, मा.गु., पद्य, आदि: व्याकुल थाउ मारे वाल; अंति: अंतरजामी मुझ घरे. ३. पे. नाम. वनरावन, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीठादास, मा.गु., पद्य, आदि: वसरा वननिरे वाटे चा; अंति: तनमन सूप्या अंतरजामी. ४५५०५. (+#) सर्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४८.५, १३४३९). २४ जिन स्तवन, आ. भुवनहितसूरि, सं., पद्य, आदि: युगादौ जगदुद्धर्तुं; अंति: मांगलक्याय संतु, गाथा-२५. ४५५०६. (+) ज्वर छंद व औषध यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४१२.५, १३४३६). १. पे. नाम. तावनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल; अंति: सारमंत्र ग्रहीये सदा, गाथा-१६. २.पे. नाम. औषध यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४५५०७. दस पच्चक्खाण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११, ९४२५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तिहां प्रथम नोकारसी०; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण ८ अपूर्ण तक है.) ४५५०९. अषाढभूति चउढालियो, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. सा. लाछा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १८-२०४३७). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: जगमें जाणु धन्य हो, ढाल-५. ४५५११. नवकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. जीउबाई; गुपि.सा. राज कंवरजी (गुरु सा. महा कंवरीजी); सा. महा कंवरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४९.५, १३४२२). नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: पदमराज० अपार प्राणा, गाथा-९. ४५५१२. (#) स्तवन, मास नाम, औषध, ज्योतिष व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४९.५, ८४३२). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. निविर, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे रुडोरे रंगील; अंति: मुनि भव पार उतार, गाथा-५. २. पे. नाम. मास नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ मास नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आसढ श्रावण भाद्रवो आ; अंति: फागण चेत्र बइसाख जेठ. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २४३ ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र दिया गया है. ज्योतिष मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४५५१३. हितशिक्षा द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. रूपहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१७, १४४१९). हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित; अंति: क्षमादिकल्यान सुबंदन, गाथा-३३. ४५५१४. श्रावक करणी, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७.५४१०, १७४३०). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० दुखहरणी एह, गाथा-२२. ४५५१५. संखेश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, ७४३७). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सागरथि तारो, गाथा-५. ४५५१६. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१२, १०४२६). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडि; अंति: धर्मोपदेश सांभले. ४५५१७. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४१०, १२४१६). औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जिन भजवानो सोगडीयो; अंति: रूपसंद० पाणी रे, गाथा-४. ४५५१८. पद्मावती कवच, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२.५४११.५, ९४३४). पद्मावती कवच, सं., पद्य, आदि: ऐंपद्मविपद्महे; अंति: यः पठेतस्य मंगलं. ४५५१९. (#) बत्तीस असज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १३४३८). ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., पद्य, आदि: ●हरि पडे तासीम; अंति: पहर १२ सदैव असझाई, गाथा-३२. ४५५२०. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, १५४३४). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३२. ४५५२१. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८४९.५, ११४३७). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आधो भोजन रातरो अधर्म; अंति: रतनचंद० आंतरो मे जाय, गाथा-५. ४५५२२. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. हेमचंद हीरजी; पठ. मु. रणछोड (गुरु मु. हेमचंद हीरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १३४२७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पूरण आसा; अंति: प्रभु संघने मंगल करो, गाथा-१४. ४५५२४. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२१.५४११, १३४२४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पुरो आस्या अमनतणि, गाथा-१९. ४५५२५. ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११, १०४२५). आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: करो संघ कल्याण, गाथा-६. ४५५२६. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९४९, १४४३१). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: पोहता मोक्ष दुआर, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५५२८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. घडसीसर, प्रले. य. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १६४३७). १. पे. नाम. अजितनाथजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-४. २. पे. नाम. संभवनाथजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: विणजारा रे नायक संभव; अंति: अरियण मूलन को कलै, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रेवीसम जिन ताहरौजी; अंति: साहिबा एम जपै लाल, गाथा-७. ४५५२९. सज्झाय व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२१.५४१२, १३४२७). १. पे. नाम. दश पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी दसविध पचखाण; अंति: पामै निश्चै निर्वाण, गाथा-७. २.पे. नाम. बिजतीथि चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध धर्म आराधता; अंति: जिम होइ कोड कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. अष्टमी तिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एके उणा पंच वर्ग जिन; अंति: लहो अड मंगल भरपूर, गाथा-३. ४. पे. नाम. इग्यारसी तिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लि जिनवरने नमी कर; अंति: करी पाम्यो भवजल पार, गाथा-३. ४५५३०. संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. विजापुरनगर, प्रले. हरिलाल भ्रमभाट लहिया; लिख. मु. धर्मविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १३४२६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ४५५३२. रहनेमी राजीमती चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२२४११, १४४२७). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धनें आयरी; अंति: रायचंद० ___ मेढ्यो जोड, ढाल-५. ४५५३३. (#) गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२१.५४९.५, १३४२८). १. पे. नाम. साधुगुण गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण गहुंली, मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सागर सम समता मुनीवरा; अंति: परिणामे सुख पावेरे, गाथा-७. २. पे. नाम. गुहली भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर चतुर चकोरडी; अंति: दीजे हो सहि सुख अनंत, गाथा-७. ४५५३४. चौद नियम, पोसह मध्य जलग्रहण आदि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६-१८७८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२४११.५, २६४२१). १.पे. नाम. १४ नियम विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, आदि: सचित खाधा पीधानी सचि; अंति: तथा परघरनु प्रमाण. २. पे. नाम. पोषधमध्य जलग्रहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख कृष्ण, ८. पौषध मध्य जलग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अनथ ४; अंति: गणीने पाणी पीवु. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. देववांदवानी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम झीयावहि अन्नथ, अंति: पर्छ नमोथुणं जयविवराय. ४. पे नाम, नवपद खमासमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ७. म., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण; अंतिः तप खमासण १२ लोगस १२. ४५५३५. १४ पूर्वतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X११.५, १९x१३). १४ पूर्वनाम, मा.गु., गद्य, आदि उत्पादपूर्वाय नमः अंतिः विंदुसार पूर्वाय नमः - ४५५३६. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १५९५, ज्येष्ठ शुक्र ९, श्रेष्ठ, पू. १ ले स्थल. विक्रममहानगर, जैवे. (२२.५x९, ११४४०). महावीर जिन स्तव वृहत् आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्म, आदि जइज्जा समणे भयवं; अंतिः पदह कयं अभयसूरीहिं, 9 गाथा - २२. ४५५३७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, अन्य. ग. हीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२ हैं., दे., (३१४९.५, ४९x१६). १. पे नाम, साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदिः वाचक विदित वखाणी, अंति: गुण माणिक शुचि खाणि गाथा-८. २. पे. नाम. आर्द्रकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: मई तुझ वरीओ रे मननइ अंति: माणिकमुनि जयकार, गाथा ६. ३. पे. नाम. आषाढभूति सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु, पद्य, आदि: चाल्यो नटावा जीपवा, अंतिः माणेक० ए अणगार, गाथा-८. ४. पे. नाम. नमुक्कार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुख धारणं पुण्य; अंति: माणिक्य मुनिसार जाणो, गाथा-५. ५. पे. नाम. निंदानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मु. लावण्यसमय, पुहिं, पद्म, आदि: कवण की काया नई कवण, अंतिः लावण्यसमय० साधो रे, गाथा- ६. ४५५३८. संखेस्वर छंद, संपूर्ण बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१.५४११.५, १२x२४). १०- १६४१६). २. पे नाम, चंदनवालासती सज्झाय, प्र. १अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपास शंखेसरा सार, अंतिः उदयरत्न० तुजने भजूं, गाथा-५. ४५५३९. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (१७४९.५, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदिः आज अम्हारि आंगणाडि, अंति: मुझ तुठा वीरदयाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि (अपठनीय) अंतिः वीरजिन पामो भव पार, गाथा-४. " ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४५ पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, आव, बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि चिंतामणिसामी साचा, अंतिः करे बनारसी बंदा तेरा, " गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे, अंति: बनारसी० छोडावनहार, गाथा-६. ४५५४०. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५x११.५, १०x३१). " For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पल पल गुण गाना गाना, अंति: वल्लभ० जाना पल पल, गाथा-८. ४५५४३. समेतशीखर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १७.५X१०.५, १०x२९). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदिः आदीसर अष्टापद सीधा; अंतिः भावे चैत्यवंद करी, गाथा- ६. ४५५४४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १७१०.५, २८x२६). आदिजिन स्तवन, आ. मुनिराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नवरी विनीता अतिही अंति: मुनिराज० सिर नामइ रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १७. ४५५४५. पांचमरो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सोझत, प्रले. मु. जिनविजय, अन्य. श्रावि. मेकु बाई, श्राव. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२x१०.५, १०x२५), ज्ञानपंचमीपर्व महावीर जिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आविः प्रणमी सद्गुरु पाय अंति: भगती भाव प्रसंसिया, ढाल-३, गाथा - २५, (वि. प्रतिलेखक ने ढाल ३ की गाथा २ के बाद गाथांक नहीं लिखा है . ) ४५५४७. महावीरजिन स्तवन व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. उम (गुरु सा. फुलुजी); गुपि. सा. फुलुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X१०, १४४२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: सिद्धारथ कुल माहे उप; अंति: रायचंद० करी जेठ मास, गाथा- १६. २. पे नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, म., पद्य, आदि: अभिनंदणजीने अब ओलखीय; अंति: कुसालचंद० छे काइ, गाथा-५. ४५५४८. साधुगुण सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. उमा, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२१x१०, 3 ११x२८). साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भजो तो तम अरिहंत देव, अंति: धर्म लेना० थारे टोटो, गाथा - ८. ४५५४९_ (+) सज्झाच, पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ११. प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत- अशुद्ध पाठ, वे (२४४११, १२४४३). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: तारण तिरण ए गुरु भेट; अंति: हिरालाल तिवारो, गाथा- ७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीजिनराज दवाल प्रभ; अंति: हिरालाल जगानी है, गाथा ६. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: अंक संक इंदु थकी जीन अंति: हिरालाल प्रगासा होय, गाथा- ७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी म., पुहिं., पद्य, वि. १९६३, आदि: प्रभुजी की वाणि धननन; अंति: चोथमल० गाये हननननं, गाथा - १०. ५. पे. नाम. हुकममुनि दीक्षा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सेरटोडा सुनी कल संजम, अंति: हिरालाल० राज थापर, गाथा- ११. ६. पे. नाम. हीरालाल दीक्षा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: गामकण जैव सुनी कल, अंति: ढालग गावे हो हिरा, गाथा- ७. ७. पे. नाम. विनीत शिष्य सज्झाय, पू. २अ २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदिः सुण चेलाजी हुकम करो; अंति: हिरालाल सुरे धरे, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: ललचे मती नार कुमतकार अंति: हिरालाल कुमती नारी, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. राजसंकर, पुहि., पद्य, आदि: भजो रे नीत चोवीसि; अंति: राजसंकर० राज भजो रे, गाथा-५. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: माया मत कर तु मेरी; अंति: हिरालाल जो तेरी, गाथा-८. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जाहां देखो जाहां; अंति: रामचंद० मुतलव बीन नइ, गाथा-११. ४५५५१. ऋषभदेव छंद हनुमंत स्तोत्र व सरस्वती मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०, ९४२९). १. पे. नाम. ऋषभदेव छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन छंद, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: विवध भात लछमी वरी, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हनुमंत स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. हनुमत् स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ महावीरं महारुद्र; अंति: पुण्यं भवति पुष्कलं, श्लोक-७. ३. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र साधना विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अंति: यां देहि देहि स्वाहा. ४५५५२. एकादशी थूई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८.५४१७.५, २२४२६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ४५५५३. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७.५४१०.५, १३४२२). वैराग्य सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी खूब बनी छैजी; अंति: में अब तो मार्ग पायो, गाथा-१२. ४५५५४. लावणी व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१८x११.५, २०४३५). १.पे. नाम. गुरु लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. लालजी महाराज लावणी, मु. रूपचंद, रा., पद्य, वि. १९५९, आदि: पूज श्रीलालजी थारी; अंति: रूपचंद० करी प्रमाण, गाथा-१७. २. पे. नाम. गुरु सलोको, पृ. १आ, संपूर्ण. लालजी महाराज स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: सुमत गुपतधार निरदोस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा २ तक है.) ४५५५५. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४९.५, ९४२७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो ने भविक; अंति: रत्न० एमल्हावो लीजे, गाथा-५. ४५५५६. शांतिनाथ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११, ११४३१). शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं भवदुःख; अंति: भद्रकायेषु नित्यं, श्लोक-९. ४५५५७. अठावीस लब्धि दूहा व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१x१२, ११४२८). १. पे. नाम. पृ. १अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., पद्य, आदि: आमोसहि लब्धि मलि; अंति: नमो नमो गौतम स्वामि, गाथा-५. २. पे. नाम. अट्ठावीस लब्धि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठावीस लब्धि सारी; अंति: पणु पामो त्यारे रे, गाथा-६. ४५५५८. अनानुपूर्वी व नवकार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १३४४१). १. पे. नाम. अनानुपूर्वी, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. नवकार मंत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपउ मनरंगर, अंति: महिमा जास अपार रे, गाथा - १०. ४५५५९. बिज सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१X१२.५, ९X३३). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-८. ४५५६०. अठावीस नक्षत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९५२, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१x१२.५, १३x२६). नक्षत्रताराविचार सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वर चरण; अंतिः पठन क्रिया आराधो सही, गाथा- १५. ४५५६१. नेमीजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१x१२.५, १४X१५). दोहा - ५. नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: फूलडे चंगे ल्याव रे; अंति: ग्यानविमल० का पाय, ४५५६३. नेमिनाथ फाग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (१८.५४१२, ११४२४). "" मिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि गढ गिरनारनि तलेटीए अंतिः रिधीहर० सीवादेवी माय गाथा ६. ४५५६४. एकादशीनी सज्झाय व लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १९२७ भाद्रपद कृष्ण, १. गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमंतविजय; पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पं. हरखविजयजी के द्वारा लिखित प्रत के ऊपर से मुनि हेमंतविजयजी ने लिखा हो, ऐसा प्रतीत होता है. जैदे. (२१x११.५ १०x२६). " " १. पे नाम, एकादशीनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण एकादशीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी रे नणदल; अंति: मानविजय ० सायर तरसे, गाथा-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: न निर्मिता केन च, अंतिः तीया कहें संभलाइगीयं, गाथा-२. ४५५६७. माणिभद्रवीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (१९.५५९.५, १०५३१). , माणिभद्रवीर छंद - मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित नित; अंति: राजरतन पाठक ज करण, गाथा - २१. ४५५६८. (-) अनंतजिन स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. प्राणजीवनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (२१४११, ८x२२). 7 १. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतजिनशुं करो; अंतिः प्रसंग रे गुण वेलडीआ, गाथा-५. २. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलियारी जाऊं बारी, अंति: ज्ञानविमल० नीवारी, गाथा- ३. ४५५६९. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. हरकंवर, अन्य. सा. बुदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( १६.५X११, १५x२१). साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा पंचमहाव्रतधारी, अंति: इम कहै ऋषिरायचंदो रे, गाथा - ११. ४५५७०. अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १७.५x९.५, १३X२५). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वेदन सही मानव भव लही, अंतिः मुगतिवधु० लीला बरो, गाथा- १६. ४५५७१. सज्झाय व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. भरथपुर, प्रले. सुखदान; पठ. सा. जानकीजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५X१०.५, १६x४६). १. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाच, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारणें तपसी अंतिः चौथमलजी० का भावरे, गाथा- १४. २. पे. नाम. मेघकुमार स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि: त्यागी वैरागी मेहा, अंति: मुनि गुण इम गावा हो, गाथा १२. - For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: किये आराधना तेरी, अंति: नवल चेरा तुम्हारा है, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजुल लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार, अंति: जिनदास बिनती गाई, गाथा ४. ५. पे. नाम. अष्टापदी लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. अष्टपदी लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: नेम बिन झुरझुर भई, अंति: जिनदास० जूनीजी, गाथा-४. ४५५७२. (+) स्तुति व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१८x११.५, " १३x२२). १. पे नाम. पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदिः समदमुत्तमवस्तु महाफण, अंतिः जयतिशः जिनशासन देवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. जिनराशि चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. तीर्थंकर राशि चैत्यवंदन, पं. शुभवीर, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: शांति नमी मल्ली मेष, अंतिः सुखिया श्रीशुभवीर, गाथा - ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अहिफण कमल चक्र टणकार; अंति: राम करे सीतासुं वात, दोहा - १. ४. पे नाम. कुंडलीयो, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक कुंडलीया. मु. पद्म पुहिं., पद्य, आदिः प्रभुनाम तो सच्च है, अंतिः कहे पद्म० कर हरीजे, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र गाथा २ तक है. वि. समाप्तिसूचक संकेत नहीं है.) ४५५७३. खीमावतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१७४११, १५X३०-३५ ). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर, अंति: चतुर्विध संघ सुजगीस, गाथा - ३६. ४५५७४. समकित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १८x१०.५, १०X३०). १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन बुठडो भवि अंति: तिलकविजयजयकार, ढाल - १२. २४९ ४५५७५. बारकुल की गोचरी व संसारदुःख वर्णन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. मु. मोतीलाल साधु, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२०.५X११, १०x२२). १. पे. नाम. बाराकुल गोचरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा - १३. " ४५५७९. पद्मप्रभ स्तवन व रंभाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२१४११.५ १३४२९)१. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, आदिः उग्र कुलाणी वा कहता; अंति: कूल अन्नयरे सुवा. २. पे. नाम. संसारदुःख वर्णन सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. संसारदुःख वर्णन, प्रा., पद्य, आदि जम्मदुक्खं जरादुक्खं अंतिः संति जंतुणो, गाथा- १. संसारदुःख वर्णन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जम्म कहता ए संसारनै अंतिः जंतुनो कहता जीव. ४५५७६. महावीर वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. कुशालचंद (गुरु आ. रघुनाथजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. रघुनाथजी प्रसावे, वे. (२१४९.५, ११x२४) महावीरजिन विनती, मु. श्रीचंद्र, मा.गु., पद्य वि. १९५९ आदि मत भूलो रे सिद्धार्थ; अंतिः गया सवही के काजे, For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: पूरजो सकल जगीश हो, गाथा-७. २. पे. नाम. रंभाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलदल सुनेत्रे हार; अंति: मारणाय तव योनमंडलं, श्लोक-८. ४५५८०. (-) गरब चिंतामणी, पुण्यपाप परिवार व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०.५४१०.५, ८x२०-२४). १.पे. नाम. गरब चिंतामणि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गर्भचिंतामणि, मु. उदयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अवगत मुग नही छै रे; अंति: उदचंद० अबक पार उतारो, गाथा-१४. २. पे. नाम. पुण्यपाप परिवार दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुण्यपाप परिवार, पुहि., गद्य, आदि: धर्म को पिता वीतराग; अंति: नंद्या बेन मूल क्रोध. ३. पे. नाम. दोहासंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक अंश है.) ४५५८१. सामायिक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१०, १४४३१). सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमुं; अंति: मुगति रमणि न सचवसै, गाथा-१३. ४५५८२. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४९.५, ८x२२). ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड मुनिसर मनधरो; अंति: भाव ते साधसुं नेहरे, गाथा-११. ४५५८३. अध्यातम बतरीसी व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१०.५, २५४१५). १.पे. नाम. अध्यातम बतरीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले.पं. दौलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुध वचन सदगुरु कहें; अंति: कहेत बनारसी० भवपार, गाथा-३२. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विजया रे नंदन जनजी; अंति: गुणचंदना० पदवी थाय, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिनकर परिमाण दिया है.) ४५५८४. कायाजीव स्वाध्याय व वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १५४३०). १. पे. नाम. कायाजीव स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, पुहि., पद्य, आदि: पभणे प्रीतम कुं; अंति: पभणे कुंयर सुखवासो, गाथा-१४. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे वासुपूज्य; अंति: उत्तमविजय० में वारे, गाथा-६. ४५५८५. अरहन्नकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, ३७५२४). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धिन धिन जननी बेलाल; अंति: लबधि० गुणमाला सुणी, गाथा-१८. ४५५८६. स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-घोघामंडन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: चंद्रप्रभु जिनराजनो; अंति: लहे पद्म ते परमाणंद, गाथा-७. २. पे. नाम. वीसस्थानक चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २५१ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९बी, आदि: पहेले पद अरिहंत नमुं अंतिः नमतां होय सुख खाणी, गाथा ५. ३. पे. नाम. वीसस्थानक काउसरण चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसरण चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि चोवीस १ पनर २ अंति: नमी निज कार साधे, गाथा-५. ४५५८७. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रावण शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. दशाडा, प्रले. पं. मणिविज (गुरु पं. मोतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथ प्रसादे, मुलतानी राज्ये, जैदे. (२०.५x११, ११४३३). पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पर्युषण गुणनीलो, अंति: सने पाम्या जय जयकार, , गाथा - ९. ४५५८८. (+) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, दे., ( २४ १३, १२x२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल० रिद्ध वंछित लहै, गाथा - १७. ४५५९२. गीत, स्तुति व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जै.. (१७१०, १५X३३). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, मु. जसकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि जिणजी किरपा कीजिय; अंतिः जसकीरत० जीणेसर सेवीय गाथा - ९. २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि: नार मनावेजी नेमेने; अंतिः नगोजी० नेम तज गयो, गाथा- ९. ३. पे. नाम, जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: च्यार लाख योजनरा, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रारम्भ की गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४५५९४. काया उपर सज्झाय, संपूर्ण वि. १९३६, आषाढ़ कृष्ण, ११, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, नवानगर, प्रले. मु. प्रतापहंस पठ. श्राव. हुल्लासकुंवर बाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्, जैदे., (२०.५X१०.५, ७X३१). मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीज्यो रे मानव, अंति: मुगत सुख लहेस रे, गाथा-२०. ४५५९६. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५X११, १६x३१). नेमिजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: इण सरवरीयरी पाल, अंति: रतनसागर० सागर कह, गाथा-११. ४५५९७. आत्म सुमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०.५x१०.५, ९३३). " आत्म सुमति सज्झाय, मु. उमेदचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः सुण समत सुरतनी नारी अंति: उमेदचंद० आनंदकारी, गाथा-८. ४५६०१. पुनम धोय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५x११.५ ११५२६). "" चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीविमलाचल सुंदर, अंतिः लब्धिविजय० गुणगाय, गाथा-४. ४५६०२. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. दे. (२१.५५११५, ११४३३). " मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु, पद्य, आदिः सुग्रीव नगर सोहामणु अंतिः होजो तास प्रणाम रे, गाथा- २४. ४५६०३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१x१२, १०x२२). १. पे नाम, जिनजन्माभिषेक स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण महावीर जिन स्तवन, पं. वीरविजय, गु., पद्य, आदि माताजी तुमे धन धन रे, अंति: भक्ति वसे भगवान रे, गाथा- ११. २. पे. नाम. समवसरण गीत, पृ. २, संपूर्ण. सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु, पद्य, आदि आज गीयाता अमे समवसरण अंतिः जीतना डंका बागेरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५६०९. हरीयाली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२१x११, ९३०). फूलडा सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि: बाई रे में कोतिग; अंति: पंथ लही भूलो फरेए, गाथा - २०. ४५६१०. मणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वीरपुर, प्र. वि. श्री शांतिनाथप्रसादात् लखितं. वे. (२१x११.५, २८×१५). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति साम्मनी पाव; अंतिः आपो मुज सुख संपदा, गाथा ४०. ४५६१२. आत्मबोध सज्झाय व अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (१८.५x११.५, . १६x२७-३३). १. पे. नाम. आत्मबोध सिज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक बोध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर उपदिसे, अंतिः सुमतीक सुख थाय, गाथा - ११. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी, अंति: हुए मुज मन कप्पो, गाथा- ७. ४५६१३. (4) पजूसण स्तुति, संपूर्ण वि. १८६३, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६.५X१२, १६x२५). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर, अंति: वीर विजय बुधकारीजी, गाथा ४. ४५६१६. पंचमी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२०.५x१२.५, १३X२६). पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरू चरण पसाउले, अंति: कांतिविजय गुण गाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ४५६१७. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५x११.५, ११x२८). सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी, अंति: जाउं तोरी बलीहारी, गाथा-७. ४५६१८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले, स्थल, वाडूणा, प्रले. मु. शुकलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५X११, ११x२८). १. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासन रेवती, अंति: दानथी जय जयकार रे, गाथा- ११. २. पे नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकराय रयवाडी चढ; अंति: वंदु रे बेहु कर जोड, गाथा- ९. ४५६२० () चर्चा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे. (२१४११.५, २१४३८). जीवदया सज्झाय, मु. कनीराम, रा. पद्य वि. १८९४, आदि " आप ही हणावै नहिं अंतिः कनिराम० अविचल रंग, गाथा-६८. ४५६२१. गौतमपृच्छा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे. (२०.५x१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. १अ- ३अ, संपूर्ण. मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदतणा पय वंदि; अंतिः फले इम पभणे नवरंग, गाथा-४५. २. पे. नाम. सच्चा मुसलमान लक्षण, पृ. ३, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि जो नित ऊंजु करै नित, अंति: सो मुसलमान उत्तम वरै, गाथा- १. ३. पे. नाम. १० नरक वेदनाभेद श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: शिशिरघर्म रुचिर्वर, अंति: नरकए दश थावर वेदना, श्लोक - १. ४५६२२. पंचतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. रामकिसन प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १९x११, १५X३० ). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २५३ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आदि ए आदि ए आदिजिने, अंति: लावण्यसमै इम भए, गाथा - ६. ४५६२४. पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( १७.५X११.५, ११x२९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि पूरब पुन्ये पामीयोजी अंतिः पुण्यसागर० अविनेह, गाथा-८. २. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण, क. नाथ, मा.गु., पद्य, आदि: गाय गाय गारडु बुलावै; अंति: नाथ० न टूटत कांनपै, गाथा - १. ३. पे. नाम दोहा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: फले न फूलै वेलः यद्य; अंति: गुरु मिलै विरंचि शता, गाथा- १. ४५६२५. (+#) नेमराजुल सज्झाय, बारमासो व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं. दे. (२१x१०.५, २०-२२४४३ ). " १. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, हिं., पद्य, आदि: फिरी लाउ नेमकुमारकुं; अंति: होय रहै विष फेर न आण, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमराजलबारमासो, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु, पद्म, आदि: सावण आयो देखा बोल बन; अंतिः पढत गुणत रुच उपजे, गाथा- १४. ३. पे. नाम. चारकषाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ कषाय परिहार सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि उपदेश सुहामणो; अंतिः गुणसागरसूरि०सुजाणनें, गाथा-५, ४५६२६. घृत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५X११, १५X३६). औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव घणो धरी, अंति: लालवि० घीनुं गण कहिउ, गाथा - १९. ४५६२७. (+) चारशरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२१x११.५, ९४२७) ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: समयसुदर० हुं पाराजी, अध्याय- ४, गाथा - १२. ४५६२८. वीसविहरमानजिन स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५X११.५, १६x३९). १. पे. नाम विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १. संपूर्ण मु. श्रीपाल, मा.गु, पद्य, वि. १६४४, आदि: सारदा प्रणमी पाय सेव, अंतिः रच्युं तवन रशालए, गाथा-३२. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी है. जैन सामान्यकृति" प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि; जंबुसामि पछी १०व छेद, अंतिः ९ जाण गसरिरि १०. 3 ४५६२९. सारदा छंद व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल. वडुं, प्रले. मु. जयवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५X११.५, १४x२७). १. पे नाम, शारदा छंद. पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि; सरस वचन समता मन आंणी अंतिः शांतिकुशल मांहरी, गाथा - ३३. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. ३. संपूर्ण. क. गिरधर, पु,ि पद्य, आदिः कवा कहै तमरा लखुं अंतिः गिरधर० सजन है कबुवा, दोहा-३. , ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. सैयद हुसैन बिलग्रामी, मा.गु., पद्य, आदि: सीध कसबै कमाल जाता; अंति: मामला कसौटी है, दोहा-२. ४. पे नाम, सवैया संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु, पद्य, आदि पानी पत्ता मै अथाह, अंतिः संगत करी लकी, " गाथा - २. ४५६३०. नागकेतु कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २१X११.५, १५X३३). नागकेतु कथा, मा.गु, गद्य, आदि: चंद्रकांता नाम नगरी; अंतिः करस्यै जीव सुख पामसी, ४५६३२. शीअलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२०.५x११, १२x२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीर, अंतिः शीख सुणउरे प्राणीया, गाथा - १४. ४५६३३. चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २१.५x११, १७X१८). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन- मातापिता नामादिगर्भित, पृ. १अ संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः आनंद० साची जिण सेव, गाधा- २७. २. पे. नाम प्रहेलिका संग्रह, पृ. १. संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सजनीया सुलखणाम, अंतिः वाकील्यौ विचार, गाथा-२. ४५६३४. बज्रधर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पेज नंबर नहीं हैं., दे., (१२x१०.५, १५X१५-१८). वज्रधरजिन स्तुति, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वज्रधरजी बदु भावसुः अंतिः रायचंद भणेजी विचार, गाथा- १०. ४५६३५. साधुवडी वंदना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का वर्णन रेखाचित्र द्वारा किया गया है.. वे. (१७४११, ९४१७) साधुवंदना वडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८०७ आदि नमुं अनंत चोवीसी अंति: (-), गाथा- १३, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १३ तक लिखा है.) " " ४५६३६ (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १० प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२१x१२.५, १३४३३). १. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तुति - गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा, अंति: जसविजय जयकारी, गाथा ४. २. पे. नाम. शत्रुंजयगीरनारतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजय गिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरथ, अंतिः जीव सुख संपत्ति वरो, गाथा ४. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्म, आदि आगे पूरब बार निनांणू अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी, गाथा- ४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो, अति उत्तम सीस सवाई, गाथा- ४. ५. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ-३अ संपूर्ण, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आवि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर, अंतिः बुधविजय हितकारीजी, गाथा-४. ६. पे नाम पर्युषण स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण पर्युषण पर्व स्तुति, मु. वाचंयम, सं., पद्य, आदिः पर्युषणापर्व सर्वभुवः अंतिः मातिंगनामना सदा श्लोक-४, ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्ति जुत्ताण सत्ताण; अंति: चक्क महंताण कल्लाणगं, गाथा-४. ८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोले ग्रंथ, अंतिः संघने विघन निवारी, गाथा-४ ९. पे नाम, शत्रुंजय स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंग गरवर विभूषण; अंति: जसविजय० ते दिस, गाथा-४. १०. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर युगमंधर बाहु; अंति: हेमविजय गुणगाया, गाथा-४. ४५६३७. (+) महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०.५४१२.५,१३४२७). साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ४५६३८. (#) शीलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१६.५४११, १७४२०-२६). शीलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: वगतर वण्यो हो सामीजी; अंति: पूजरो कहवोजी केह मध, गाथा-१७. ४५६३९. (-) धना लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४११.५, २२४३४). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणसासणसामी अंतरजामी; अंति: विनयचंद गुण गाया गाथा-२०. ४५६४०. (-) गौतमस्वामी छंद व शीखामण स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११, १०४२८). १.पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गौतम तुठे वंछित कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. श्रावक कर्त्तव्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सत यल पाले आतमा पायी; अंति: (अपठनीय). ४५६४१. राजुल रहनेमी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२०.५४१०.५, १०x२९). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि: चीत चलीयो रहनेम कोप; अंति: कहो हमारो मान, गाथा-१७. ४५६५०. नागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४११.५, १०x२९). भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घरे आवीआ; अंति: समयसुंदर गुण गाइरे, गाथा-७. ४५६५२. जैनधर्म माहात्म्य दर्शक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११.५, ११४३५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: (-), श्लोक-८. ४५६५३. बाहुबली सज्झाय व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, २८x१७). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: विमलकीरति गुण गाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५६५४. (+#) जैन सामान्य कृति, स्तोत्र व प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १५४३४). १. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. साधारण स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: यानि चैत्यानि वंदे, श्लोक-९. ३. पे. नाम. प्रस्तावीकानि, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पुण्यं पुण्य सरिज्ञल; अंति: (-). भरत For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५६५५. (#) किसनगढमंडण चिंतामण पासशांतिऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२०.५४१०.५, १२४३०). पार्श्वजिन स्तवन-किशनगढमंडन, आ. जिनमुक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: करजोडी नित प्रणमुं; अंति: जिनमुक्ति० गाइया रे, गाथा-६. ४५६५६. (+-) पंचमी थूई व जैन सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१६४११, १२४१७-२४). १. पे. नाम. पंचमी थूई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सावण सुदि दिन जन्म; अंति: रिषभदास गुण गावतो, गाथा-४. २. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५६५७. बतीस असज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४११, १२४२२). ___३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाइ कहता तारो तूट; अंति: उगता दोपहरा आधीराते. ४५६५८. (#) स्तवन, सज्झाय व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८x११.५, २८४३०). १. पे. नाम. गोतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामि पुछा करै; अंति: पामो सुख अथाग हो, गाथा-१६. २.पे. नाम. चार शरण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: पो उठीनें समरीजै हो; अंति: चोथमल० गोपाल हि, गाथा-११. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नानाविचित्रं बहुदुख; अंति: इह जीव बंध ते बंध छे, श्लोक-८. ४५६५९. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. ऋषभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१०.५, १३४२७). १.पे. नाम. फलोदीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलोदीमंडन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदराय पास फलौधी; अंति: जिनलबध० प्रणमु परभात, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५६६१. शंखेश्वरपार्श्वजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६४११.५, १८x२२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन साहिबारे; अंति: ___ कल्याणसीस० तूहि आधार, गाथा-९. ४५६६४. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२१४९.५, १७X४३). १. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामि लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: भविक चित्त चकोर निशा; अंति: (अपठनीय), श्लोक-४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: ऋषभजिनमजितनाथ; अंति: शिवपदमचिरादि सो लभते, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचष्टियंत्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. मंत्रगर्भित चंद्रप्रभ स्तोत्र, प्र. १अ - १आ. संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ चंद्रप्रभः अंतिः दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक ५. ५. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र-मंत्र गर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर, अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५६. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः विपदः पंचकमदः, श्लोक-१. ४५६६६. पर्व तिथि निर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१९.५x११.५, ८x२१). पर्वतिथि निर्णय, सं., गद्य, आदि: तिथि निर्णय यदा पंचम, अंति: एवं तिथोगालि पयन्ने. ४५६६७. (-) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., । (२१x१२, १९४४४). १. पे. नाम. नेमिराजुल स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी जाओ तो तुमने, अंति: सेवक रुपविजय जयकारजो, गाथा - १३. २. पे. नाम. नेमराजुल स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. खांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि गोरी गोरीनी बाहूरी; अंतिः पूरण मननी खांति रे, गाथा - ११. ३. पे. नाम. मन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मनोनुशासन सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलुं आणा न, अंतिः प्रीत्यविमल० खाणे रे, गाथा ६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी पृ. १ आ. २अ संपूर्ण 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन पावन देहडीजी; अंति: मोहन० जीवन हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक, अंति: इम बोले मुनि राम के, गाथा- ३०. ६. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सझाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: हरष० नित घरि अवतरइ, ढाल -३, गाथा-२४. ७. पे. नाम बाहुबली सज्झाय, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. बाहुबली स्वाध्याय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल शुक्ल ध्याने; अंति: मोहन० समकित सिंधु रा, गाथा - ११. १०. पे. नाम, टाकरीया पच्चीसी, पृ. ४आ, संपूर्ण, गाथा - १२. ८. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहिं., पद्म, आदि: सजेलार जलधार सुखकार, अंतिः मोहन० को उल्लासे, गाथा-७. ९. पे. नाम. आत्मसीख स्वाध्याय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि जोय जतन करी जीवडा, अति: प्रेमे० केवलनाणी रे, टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: लांजा जुहार करे, अंतिः बेसी फूले बेठा, गाथा - २५. ४५६६८. वीरस्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०.५४९.५, ८x२८). २५७ महावीरजिन स्तुति - कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद, अंतिः नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५६६९. (-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१४४११.५, २०४२२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: महाविदेह मे विराजे; अंति: कुसालचंद० माय जी, गाथा-९. ४५६७१. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x११, १५४३०). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयउ; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा-१२. ४५६७२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४११.५, २०४१७). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरी प्रभु; अंति: नितयविजय० पायो, गाथा-८. ४५६७३. नेमिजिनराजुल भासव आदिजिन भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११.५, २१४२१). १.पे. नाम. नेमराजुल भास, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती भास, मु. विद्यासागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती कहे सुडला; अंति: विद्या० सुभ जात रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विद्यासागर, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरंदनी सेवा; अंति: विद्यासागर० वाणी रे, गाथा-६. ४५६७४. बत्तीस असज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१३४११, १२४२२). ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाइ कहता तारो तूट; अंति: उगता दोपहरा आधीराते. ४५६७५. गंभिरा पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x१२, १२४२५). पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आव्यो सरणे तुमारे जी; अंति: धर्मविजय गुण गाया जी, गाथा-७. ४५६७६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४१०.५, १७४१९). पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसव, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यानी जीवडा पर; अंति: केसव० तूम सरणोलीध, ढाल-२. ४५६७७. (-) नेमराजुल नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४१२, १८x२५). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलचंदलो; अंति: (-), ढाल-२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारम्भ के मात्र २ ढाल हैं.) ४५६७८. आयु विचार व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले.सा. नाज आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १५४३४). १.पे. नाम. आयु विगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमा आरारा मनुष्यन; अंति: भमरानो आउषो ६ मासना. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४५६७९. शांतिजिन स्तवन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. विनीतविजय; पठ. श्राव. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४११.५, १५४२२-२८). १.पे. नाम. वृहसंतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुंसिरनाम; अंति: गुणसागर० सुख पावै, गाथा-२१. २. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ४५६८०. छंद व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (१६४११.५, १४४२४). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २५९ , पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं. पद्य वि. १७९२, आदि जय जय जगनायक, अंतिः लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा - ३२. २. पे. नाम. नोकरनो छंद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभि, अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ आज रिषभ घर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४५६८१. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१५.५X११.५, २३X२७-२९). १. पे. नाम. धर्मरूचीरूषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मरुचि अणगार सज्झाय क्र. रतनचंद, रा. पद्य वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपम सुंदर, अंति: कर दीयो खेबो पारो, गाथा- १३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्जाब, मा.गु, पद्य, आदि: तो तो पंजरे मे सोतो, अंतिः तो भोजल पार तीरंदा, गाथा- १३. ३. पे. नाम. निद्रा परिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मंगनीराम, मा.गु., पद्य, आदि नीवडीयो चरण होय, अंतिः मगनीराम होय रे, आलाप १०. ४५६८४. साधारणजिन वीनती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १७.५X११.५, ११X३४). साधारणजिन पूजास्तवन, मु. लालचंद, मा.गु, पद्य, आदि: (१) जिन चरण मेरो चित लाग, (२) मेष प्रभुजीने पेमस्य अंति: लालचंद प्रभु निवार, गावा- १२. ४५६८५ (+) तीर्थंकरनामकर्मबंध बोल व सिद्धगति बोल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल, वालेसर, प्रले. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१X१०.५, १३X३२). १. पे. नाम. तीर्थंकरनामकर्म बांधने के २० बोल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. तीर्थकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजी महाराजरी, अंतिः तो तीथंकर गोत बंधे. २. पे. नाम. मुक्तिना बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. 3 सिद्धगति प्राप्ति के बोल विचार, रा., गद्य, आदिः आकरी आकरी तप सा करे; अंति: मरो वेगो मुगत जावे. ४५६८६. नेमिजिन वारमासी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (३२x११.५, ३२x२० ). नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: राजुल उभी विनवे रे अंतिः रूपचंद० धरमना काम, गाथा २२. ४५६९०. सझाय संग्रह व जैन सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X१२, १७३२). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: इम भणइ विजयदेवसूरोजी, गाथा- १३. २. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि पाय अंतिः प्रीतिविमल० सवायो छे, गाथा- १२. ३. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५६९१. जिनवाणी गहुली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२०x१०.५, १३x२५). " जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हे आवी हुं अंतिः कुअर वाछे घणू हो लाल, गाथा-१४. ४५६९२. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२०.५x११.५, १७४२०). शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा शांति जिनेश्वर; अंति: पद्मविजय० नंदरे, गाथा - ७. For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६० ४५६९३. (#) घासीराम संलेखना स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., १३X२७). घासीराम संलेखना सज्झाय, मु. कनीराम, मल., पद्य, वि. १९१२, आदि: पूज घासीरामजी भारी, अंति: कनीराम० नगर धर प्यार, गाथा-८. ४५६९४. नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य श्रावि नाथीबेन प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१९४१२, १३४१८). नेमराजिमती पद, मु. हरिबल, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत सहि, अंति: हरिबल० खाना छोडी, गाथा- ९. ४५६९५. () वीस विहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सोजत, प्रले. सा. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (१७.५x१२.५, २१x२४). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (१६X११.५, २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पेला बांदु श्रीमींदर; अंति: कोड साध दस लाख केवली, गाथा-२०. ४५६९७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ (२) -२, कुल पे. ३, जैवे. (१९.५४१२.५, २१४३८). " १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभ कुलगुरु कुलनाभ; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल - २, गाथा-२६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमसकार कर पाय पडणं, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) ४५६९८. नेमजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५X११.५, ११X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कीरतमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगतस, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. १३X२८). १. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मुझ अरज, अति चातुरकुशल० फरणे कि, गाथा - ११. ४५६९९. शत्रुंजय स्तवन व महावीरजिन आहार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जै, (२०.५४११.५, तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि शत्रुंजय ऋषभ समोसर्य अंतिः समयसुंदर ते नमुए, O गाथा - १९. २. पे. नाम महावीरजिन आहार सज्झाय, पृ. १आ. संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: वडा घेवर जेमृत मान अंतिः ए दीइ बुजी सासन सुरा, गाथा ४. ४५७००. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१X११, १७३४). १. पे. नाम. शत्रुंजयमहातीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, ग. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्यारी ते प्रीउन अंतिः उदय० साहामु देखि, गाथा - ११. २. पे. नाम, मदनरेखासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु, पद्य, आदि: लघु बंधव जुगवाहूनो अंतिः राजसमुद्र० त्रिणकाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुज आपो पई वीर गुसा, अंतिः सकलचंद० वीर की तीरा, गाथा- ६. ४५००९ पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, दे. (१६४१२, १८४१२ ). " १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: रूप वण्यो अति नीको; अंति: समयसुंदर० जनम ताहिको, गाथा- ४. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: संज समे जिन वंदु भवि, अंति: जिनदास० पाप को फंदो, गाथा-५. ३. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घरे आवोरे पूर्छ एक; अंति: रूपचद कहै० भातडीलि, गाथा-३. ४५७०२. (#) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १४४२४). नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए तु राजुल कहे सुणो; अंति: रामविजय० कोड कल्याण, गाथा-७. ४५७०३. दादासाहब स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१२.५४१२,१३४२५). १. पे. नाम. दादासाहेबरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. आनंदसागर, रा., पद्य, वी. २४३८, आदि: सुनो सुनो कुशल गुरु; अंति: आनंद० संपत सबही पाया, गाथा-६. २. पे. नाम. दादासाहब का स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, श्राव. हरीश महोकर, पुहिं., पद्य, वि. १९६९, आदि: कुशलगुरु हो तो ऐसे; अंति: हरीश महोकर० ऐसे हो, गाथा-७. ४५७०४. (+#) आदिजिन स्तवन व स्थुलभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१६४१०.५, ११४२४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आदिदेव जिणदेव; अंति: सदा तोनै नमै करजोड, गाथा-९. २. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: थुलभद्र मयाकर आवो; अंति: (-), गाथा-१०, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४५७०५. (+) नेमनाथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हंसहेम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४११, १३४२५). नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: देस विदेह सोहामणु; अंति: सहजसुंदर० सोहामणी, गाथा-१५. ४५७०६. दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६.५४१०.५, १२४२५-३०). दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: घरटी जीउखलराति; अंति: जगमां है जिणधरम सोभे, गाथा-१२. ४५७०८. गुरु विनती सज्झाय व गँहुली, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१४११, १४४३६). १.पे. नाम. मुनि विनंती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गुरु आगमन गहुंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, वि. १९१४, आदि: सरसति करी सुपसाय; अंति: मणिउद्योतः सिववास, गाथा-२७. २. पे. नाम. गुरु विहार विनंती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये; अंति: (१)जिम करो आज विहार, (२)ए विनति चितमा धार, गाथा-१९. ४५७०९. आगम स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपचंद; अन्य. सा. केसरिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शातिनाथ प्रसादात्, जैदे., (२१४११, १३४२६). ___ आगम स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकेली निकेतनं; अंति: लहिई मंगलमाल रसाल, गाथा-११. ४५७१०. महावीरजिन गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रूपचंद; अन्य. सा. केसरिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संतिनाथ पसायथी., दे., (२१४११.५, ११४२९). महावीरजिन गहुली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन; अंति: अमृत शिव निसान रे, गाथा-१०. ४५७११. सज्झाय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२३४११, २०४५०). १. पे. नाम. जघन्य गति उत्कृष्ट गति, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ जीव गति बोल, मागु., गद्य, आदि: असंजमी मिथ्यात्वी; अंति: भुवनपति जीव ग्रैवेयक. २.पे. नाम. चउद बोल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गुणभंडार बेकर; अंति: चउद बोल मनोहर कहै, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. छकाय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंदि बंधि संपी सुमती, अंतिः पंचेंद्री ज्ञान उपजे. ४. पे. नाम. जीव भेद कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदिः सत्व अनंत विणा संभूत, अंतिः भेद कहत पंडत विलख, गाथा- १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. सुभाषित दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: डर पारस डर परम गुरु; अंति: न्याय पुरष भुलत निरख, गाथा - ३. ४५७१२. (#) साधारणजिन होरी व गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे., (१५.५४१२, १९४२२-२५). १. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १अ संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फाग रमे रस रंग प्रभू, अंति: इणी परि खेले होरी, गाथा - १२, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) २. पे. नाम गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. सकलचंद, मा.गु, पद्य, आदि: मुने आपोने वीर, अंतिः सकलचंद० के तीरा छै, गाथा-६, ४५७१३. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रत में ऋषभदेवजी स्तुति लिखा है, वे., (२०.५X११, १०X२१). पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा, अंतिः मानविजय सिद्धाईजी, गाथा ४. ४५७१४. (+) पजूसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (१९x१०.५, ८x२४). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा - ९. ४५७१५. चोवीस सती सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. सा. फुलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (१७४११.५ १५x२३). २४ सती सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसरसति हो भगवति; अंति: हरषकुशल० मोटी सतीजी, ४५७१८. संखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१९४१२, १२४२४). गाथा- ६. ४५७१७. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल समीनगर, प्रले. मु. फतेविजय, अन्य ग. उत्तमविजय, मु. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. फतेविजय पं. उत्तमविजयजी के भ्राता हैं., जैदे., (१९x१२, १५X३०). महावीर जिन स्तवन, मु. जीवनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनगमता महावीरनी वाणी अंतिः कहेत जीवन जाची, ढाल -३, गाथा - ६८. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह ऊठी प्रणमें पास अंतिः शिष्य गुण गाया, गाथा - ११. ४५७१९. (+) सिद्धचक्र स्तवन व सप्तव्यसन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतरुची, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (१८.५४११.५, ११४२८-३२). " "" १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धचक्र वर सेवा, अंति: निज आतम हित साधे, गाथा- १३. २. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगारी साध सुगुरु, अंति: जयरंग रंगे रंगजय करे, गाथा- ९. ४५७२०. सत्तावीस सतीयारी सिझाय व नवकाररी सिझाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से ३) = २, कुल पे. २, जैदे., For Private and Personal Use Only (१७१०.५, ९X२२-२४). १. पे. नाम. सतावीस सतीयारी सझाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: मिले सहु सुख मिले, गाथा - २९, (पू. वि. मात्र अन्तिम गाथा अपूर्ण है.) Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम. नवकाररी सिझाय, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण, नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुणता जाये भवना पाप, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन पुष्पिका के बाद अन्तिम गाथा लिखी है.) ४५७२१. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे, २, दे. (२०.५X११, १५२७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्म, आदि: (-) अंति माळली राजा युत पडीयो गाथा-२८. " २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमहंस कुं चेतनाजी, अंति: ऐसा जनम पाओगे, गाथा - ११. ४५७२२. गुरुगुण गहुँली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२०.५x११, ९४२०). "" गुरुगुण गहुँली, मु. नथमल रा., पद्य, आदि: पूजजी पधारे माने अंतिः नथमल० स्नेह बंधाणो, गाथा- ११. ४५७२३. पासथा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१९x११.५, १०X२४). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी अंति: तेजपाल पभणे सुखदाय, गाथा २५. ४५७२४. कार्तिक श्रेष्ठि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक के द्वारा प्रतनाम "सीकंदर माहाराज स्तवन" दिया गया है., ., (२०.५४१०.५, ११४३१). कार्तिकसेठ सज्झाय, हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: तीण कालेने तीण समे; अंतिः हीरालाल० आयने रे लाल, गाथा - १५. " ४५७२६. जिनभक्तिसूरि भास व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२०x११, २१x२२)१. पे. नाम जिनभक्तिसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि हुतो आवे रे बधाओ अंतिः ज्युं चढते दावो हे, गाथा- ११. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. २६३ कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५७२८. पार्श्वनाथ छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे ३, प्रले. कुंअरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( १९.५X१२.५, १६x२०). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गिरुउ गाजतो धवल, अंति: भणे भाण० अम तुं धणी, गाथा - २४. २. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेधरतीर्थं, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह उठी प्रणमे पास, अंतिः कुंअरविजे० सुख बरे, 1 गाथा - ११. ३. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण लोक संग्रह", प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: कांतंवक्ति कपोती, अंतिः शशांकेन निपातिता. ४५७२९. आदिजिन विनती व पंचतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१८x११.५, १३X३६). १. पे. नाम ऋषभदेव विनती, पृ. १अ २आ, संपूर्ण आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामी सगुरु पसाय, अंतिः विनय करीने विनवे ए. गाथा - २७. २. पे नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदि ए आदिजिने, अंति: (-), (पू.बि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४५७३०. अभीनंदनजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. राधनपुरनगर, प्रले. मु. खुसाल, पठ. सा. विजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५.५X११.५, १४x२१). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. पच, वि. १८वी आदि दीठी हो प्रभु दीठी अंतिः सुख दरिसण तणो जी, गाथा-६. (४५७३१. (+) रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. देवविजय गणि, अन्य. मु. दीप (गुरु मु. श्रीपतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १६x१०.५, १५x२०). रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जीनेसर, अंतिः धीरने सोख्य संजोग, गाथा-४. ४५७३२. विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१४.५X११.५, ६०X३४-४१). विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु, गद्य वि. १८०९, आदि: श्रीहितविजयगणी अंतिः वादामांहि प्रवर्त ४५७३३. (४) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १८७८ माघ शुक्ल ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. दलपतकुशल पठ माणिक कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१X१२, ३९२१). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति नित सेवीत; अंतिः माणिभद्र जय जय करण, गाथा - १४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७३४. शेत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (१८४१२.५, ११४२५) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि जी रे मारे श्रीसिद्ध अंतिः सुख लक्ष्मी पामीये, गाथा- ९. ४५७३५. सोगठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४९, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १२x१२, १३X२३). יי औपदेशिक सज्झाय- सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदिः सुगुण सनेही रे सांभल, अंति आणंद कहे करजोड, गाथा - ११. ४५७३६. (+) द्वीपसमुद्र प्रमाण, संपूर्ण, बि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. रूडमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२०.५x१०, " ९x१५). द्वीपसमुद्र प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप १०००००; अंति: ८५८९९३४५९२०००००. ४५७३७. (+४) लघुपट्टावली व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, दे., (२०.५X११.५, ७२९). १. पे. नाम. लघुपट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हेमचंद्र, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: (-), श्लोक-४, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ३ तक है.) २. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. यंत्र संग्रह, मा.गु. सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ४५७३९. चोवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, लिख. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पैंसठिया यंत्र सहित, जैदे., (१७X१२, १८x१७). २४ जिन छंद, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमेसर संभवस्वाम; अंति: जिनवर मुज करो कल्याण, गाथा-७. ४५७४३. पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १७११.५, १८x२१). पार्श्वजिन स्तवन- मुंबई मंडण चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: मंमाई मिंदरमै सोहै; अंतिः श्रीपासजिणंदा रे, गाथा- ७. ४५७४५. वीतरागस्तव - सप्तम प्रकाश सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, दे., (२०x१०, १२X३८). वीतराग स्तोत्र - सप्तम प्रकाश, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: धर्माधर्मौ विना, अंति: येषां नाथ प्रसीदसि, श्लोक ८. वीतराग स्तोत्र - सप्तम प्रकाश- अवचूरि, सं., गद्य, आदि धर्माधर्मौ विना अंतिः सीदसि प्रसादं करोषि ४५७४६. पद संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३X१२.५, १३X३३). १. पे. नाम. सामान्यजिन पद सह बालावबोध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ साधारणजिन पद, मु. सेवक, बं., पद्य, आदि: तोमी देखो जिनराज; अंतिः सेवक दर्शन पाईलो, पद-७. सामान्यजिन पद - बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: तुम देखो जिनराजकुं, अंतिः तो सेवक दर्शन पावै. २. पे. नाम. औपदेशिक पद सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org औपदेशिक पद, मु. सेवक, बं., पद्य, आदि: ओहे श्रीगुरुदेवजी; अंति: खूंटा सेवक बोले एई, पद-५. औपदेशिक पद - बालावबोध, पुहिं, गद्य, आदि: अजी श्रीगुरुदेवजी अंतिः सेवक एही कहता है. " ४५७४८. (f) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-३५ (१ से ३५) -१, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, ४५७४९. तावनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( १७.५X१०.५, ८x१६). दे., (१८x११, १५x२९). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पू. ३६अ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंतिः पामुं पंचमो भेद रे, गाथा ५. २. पे नाम, नंदीसर द्वीप स्तवन, पृ. ३६२-३६आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि; त्रण चोमासीने संवत्स अंतिः संघसाजी वांदे कल्याण, गाथा- ९. ३. पे. नाम. शत्रुंजातीर्थनी रायण महिमा स्तवन, पृ. ३६ आ. संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ रावणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: नीलडी रायणतरु तले; अंति: माहात्म्यमांहि रे, गाथा-६. ४५७५०. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदिः ॐ नमो आनंदपुर नगर, अंतिः सार मंत्र गुणिये सदा, गाथा १६. मरालवाहमा स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( १८x११, ९४२५). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ अर्हन्मुखांभोज, अंतिः प्रसीद परमेश्वरि, श्लोक-१२. ४५७५२. स्तुति, दूहा व बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १८७८ आषाढ़ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. ले. स्थल, भालक, पठ. श्रावि. नवलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १७.५X१२, १५X३३). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. २६५ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु. पच, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा ४. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. 23 औपदेशिक दूहा संग्रह, पुठि, प्रा. मा.गु, पद्य, आदि: अरिहंत अरिहंत समस्तां अंतिः पामस्ये देवतणा विमान, गाथा- १. ३. पे, नाम, स्थापनना १३ बोल, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु. गद्य, आदि: सुद्ध तत्व सहित गुरु, अंतिः काया गुप्ति सहित. ४५७५३. (क) वीसस्थानक तप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१x११.५, १४X३३). १७४१८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं बेहजार, अंति: ५ अथवा १० नो काउसग पद - २०. ४५७५५ (१) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११.५, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि प्रभूजी ओलंभडे मतः अंतिः वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा- ७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ग. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: वीर जीणेसर साहिब, अंति: वनीत नवनीधी पाया रे, गाथा- ७. ४५७५७. (-) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (१७४१२.५, १४४१८). शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभात उठ श्रीसंत; अंति: रतनचंद० कषाय टरी, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५७५८. ऋषभजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कोष्टक अंतर्गत १९ व २० के पहाडे लिखे हैं., जैदे., (१६४११, १७४२५). आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सरसती माता सुमत की; अंति: तीण सुमरो नही सारा, गाथा-१३. ४५७६०. नवरत्न कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जरो., (२१x१०.५, ८x२७). ९ रत्न कवित, पुहिं., पद्य, आदि: धन्नंतरि छपनक अमर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ तक है.) ४५७६५. चंदनबाला सज्झाय व नरकगामी जीव, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. रिया, प्रले. सा. विना (गुरु सा. मिरणाजी); गुपि. सा. मिरणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०, १६४३२). १. पे. नाम. चंदनबाळानी सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबी नगरी पधारीया; अंति: (१)सील सुचंग हो प्राणी, (२)भावड भाई हो सदगुरां, गाथा-६१. २. पे. नाम. नरकगामी जीवसंख्या, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५७६६. मांगलिक श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. श्राव. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्, जैदे., (१६.५४११.५, १०४२३). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कुसल तथा मंगलिक; अंति: करी स्तवना करी छइ. ४५७६७. माणीभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२०.५४९.५, १०४३३). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित तसु; अंति: माणिभद्र जय जय करण, गाथा-१४. ४५७६९. (+#) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२६). पार्श्वजिन स्तवन-मुंबईमंडण चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: मंबई बिंदर मै सोहै; अंति: श्रीपासजिणंद रे, गाथा-७. ४५७७१. गणधरगुण गूंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४१०.५, ११४२७). गणधरगुण गहुंली, मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती वरसती वाणी रे; अंति: सुख प्रगटे अंगे के, गाथा-१५. ४५७७३. अर्बुदाचल स्तवन व उलूक-काग विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१४११, १४४३३). १. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: आबु शिखर सोहामणो जिह; अंति: भावसु पामे परमानंद, गाथा-३४. २.पे. नाम. वायसभाषा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. सामुद्रिक, शकुन, निमित्तादि संग्रह*, सं.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. उल्ल, काग आदि पक्षियों की ___ बोली के अनुसार लाभालाभ-शकुन आदि.) ४५७७४. मंत्र, दुहा संग्रह व शियल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१६, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४४ हैं., जैदे., (१६४१२, १४४२६-२९). १.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. दहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सरन जिरण का सुनत है; अंति: जे कोइ कदरदार होय. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३. पे. नाम. सिल उपर सिखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे सिख; अंति: कुमुदचंद्र समुजल, गाथा-११. ४५७७५. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५-१५.५४१२.५, १२४१८). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमः देवनागेंद्र मंदा; अंति: जयति चिंतामणिपार्श्व, श्लोक-७. ४५७७७. () स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४१०.५, १६x२१). १. पे. नाम. पंचमि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसियो, ढाल-३. २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. ___ मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे माता; अंति: परम सुख में मागीये, गाथा-१०. ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) ४५७८०. विजयशेठविजया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२०.५४११.५, १६४३१). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे समुद्; अंति: कुसल नित घरे आंगणइ, ढाल-३, गाथा-३२. ४५७८१. (#) शांतिनाथ स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,५०-६४४१६-४५). १.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: मनरंग सुपंडित रूपनो, गाथा-७. ३. पे. नाम. विष्णुपद गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. विष्णु पद, अखो, मा.गु., पद्य, आदि: रामजी जेहवो रंग पतंग; अंति: भणि मेला उपरि मेलो, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक भजन, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनेतर सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ५.पे. नाम. स्तवनवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीवणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर स्वामिजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १०वें विहरमानजिन सुरप्रभ तक है.) ४५७८७. (-) चिंतामणिपार्श्वनाथ अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१५.५४११.५, ६४१४-१९). पार्श्वजिन अष्टप्रकारीपूजा-चिंतामणी, सं., प+ग., आदि: ह्रींकारं पार्श्वयुक; अंति: वर्णभाजिनप्रपूरितैः, श्लोक-९. ४५७८८. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५.५४११.५, ६४११-१७). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमः देवनागेंद्र मंदा; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. ४५७९० (-) श्रीमति चरित्र, पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४११.५, १६४३०). For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६८ www.kobatirth.org १. पे नाम. श्रीमती रास, पृ. १अ ३अ संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद शुक्ल, १४, मंगलवार, ले. स्थल, जहेनगर, प्र. सा. डाहीजी-शिष्या (गुरु सा. डाहीजी). प्र.ले.पु. सामान्य. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: सील धरमनी वारता जस, अंति: सील समध सव ज सुखदाइ, ढाल-६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. कुसाल, पुहिं, पद्म, आदि: वंचा नीचा मेल चणायाः अंतिः कुसाल० खतरा दुर करणा, गाथा- ६. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. जेपुर, प्रले. सा. रूपा (गुरु सा. डाहीजी), प्र.ले.पु. सामान्य. रा., पद्य, आदिः आदीनगर आवेसर जलम्बा, अंतिः तोये जुगम तंत सारोरी, गाथा- ६. ४५७९९, (४) स्तवन, स्तोत्र व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, ६, ले, स्थल, गोत्रकानगर, प्रले. हरचंद; पठ. मु. अमृतविजय (गुरु ग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११, १७४२४) १. पे नाम, सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं; अंति: भक्तिलाभ० आया मनतणी, गाथा १८. २. पे नाम, चोत्रीस अतिशय स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति, अंतिः पद सेव मागुं भवोभवे, गाथा- ११. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी छंद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरो, अंति: आनंदवर्धन विनवे, गाथा - ९. ४. पे. नाम. चिंतामणपार्श्वनाथजी स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि आणी मनसुद्धे आसता; अंतिः कहे सुख भरपुर, गाथा-७. ५. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तोत्र. पू. ३-४अ संपूर्ण पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, आदि धवल धिंग गोडी धणी अंतिः दुखनी जाल जोडी, गाथा-८. ६. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदिः सुरराजसमाजनतांहि अंतिः भवभविनां भवभीतहरम्, श्लोक ९. 3 ४५७९२. माया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, पादलिप्नपुरनगर, प्रले, आव, हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१×११.५, ११x२८). माया सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया, अंतिः विनय० के हाथा बेकानी, गाथा- १३. ४५७९४. माणिभद्रजी रो छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x४ हैं. जै. (१५x११.५ २०x२२). 3. , माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती, अंति: लाख लक्ष रीजा लहे, गाथा २६. ४५७९७ (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२०.५४१०.५, १४४३१). " " शांतिजिन स्तवन, मु. खेम मागु पद्य वि. १७४२, आदि: श्रीसंतिजिणेसर संति; अंतिः ध्यान श्रीसाथ लह, गाथा- १३. ४५८०८. नवकारपद लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११.५, १३X३६). नवकारपद लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम जपो मंत्र नवकार; अंति: अचलपद भक्ति से पावे, गाथा - ९. ४५८०९. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अंत में पेन्सील से कुछ लिखा है. दे. (१७.५x१२, १२x२३). 1 " मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः उठि उलट एमस्युं; अंतिः तो सिखडि धरे विरति, गाथा - ९. ४५८१० (४) चतुर्विंशति स्वयंभू, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१६४९.५, १३x२२). लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः येन स्वयं बोधमयेन; अंति: स्वर्गापवर्गस्थितिं, श्लोक-२५. ४५८११. नवपदमहिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (३१.५४१७, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २६९ नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मया करी; अंतिः विमल० नामे आणंदो रे, गाथा - ११. ४५८१२. माणिभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १८x१२, ११x१९). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा समरो, अंति: मुनि इम सुजस कहै, गाथा-९. ४५८१३. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१२.५x११, ९x१३). " सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तीर्थंक मोक्ष कामे, गाथा ५. ४५८१४. शांतिनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१७.५४१०.५, ७५२४). " शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं भवदुःख, अंति: गुणभद्रं० नित्यम्, श्लोक ९. ४५८१५. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१९x१२.५, १२x१७). पार्श्वजिन स्तवन- मंत्राम्नायगभिंत, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु. सं., पद्म, आदिः ॐ नमः पार्श्वप्रभु अंतिः जयसौभाग्य सुखकल्प रे, गाथा- ७. " ४५८१६. दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २०x१२, १२X३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर जिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंतिः देवचंद्र पद लीधरे, गाथा - ९. ४५८१७. आउखु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१९x११.५, ११x२२). औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, रा., पद्य, आदि आउखो टुटोनें सांधो अंतिः होजो मुज निस्तार रे, गाथा-८. ४५८१८. सनत्कुमार चक्रवर्ति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५X१०.५, १५X३७). सनत्कुमार सज्झाय, मु. सिवकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सार वचन हु माग, अंति: सहु परीवार रंगीला, गाथा - १५. ४५८१९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रधानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( १७.५X१२, १४x२३). १. पे. नाम. वरकाणा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-वरकाणा, रत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदिः श्रीवरकाणा पासजिणेसर, अंति: दोहग सवि मिट्या रे, गाथा - ५. २. पे. नाम. शेत्रुंजय पद, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सोरठदेसनो साहिबोजी, अंति: उदयरतन उवझाय, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा तीन तक ही क्रमांक दिया है.) ४५८२० () औपदेशिक पद व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., 3. (१८.५X११.५, १८x१५). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी समझ के सीरधुल, अंति: भुधर० नेफा रहत न मुल, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. जिन लाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि बलि हु ध्यावुं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४५८२१. अभिनंदनजिन अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१५. ५X१२, ११x१८). ४५८२५. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१९.५x११. १९४१८). अभिनंदनजिन अष्टप्रकारी पूजा, ग. देवेंद्रकीर्ति, प्रा. सं., पद्य, आदि: विमलतीर्थ भवोदकधारया; अंति: (१) समितिह सदहि परिपरीउ, (२)देवेंद्रकीर्ति० सारं, श्लोक-१२. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथाय धरण, अंति: शुभगतीमपि वांछितानी, श्लोक ८. For Private and Personal Use Only ! Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५८२६. जिनकुशलसूरि गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (१६X१०.५, १४x२२). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसहै जिणेसर सो जयो, अंतिः (-), ( पू. वि. गाथा १५ तक है.) ४५८२८. सज्झाय संग्रह व प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. पं. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४४१०, ७४१४). १. पे. नाम. एलयाज्झयण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययन सूत्र - विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर वर वनवाड, अंति: जइ सीस उदयविजय जयकार, गाथा-८. ३. पे. नाम प्रहेलिका संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ४५८३० स्थुलीभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दे., (१६.५x११.५, ८x१३). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदिः मुनिवर रहण चौमासे आय, अंति दिन दिन सुख सवाया, गाथा-११, (संपूर्ण, वि. मुख्य कृति के बाद १ दूहा लिखा है.) ४५८३१. गोडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१३.५४८.५, ८४१७). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं, पच, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल अंतिः सफल फली 3 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहु आस, गाथा - ९. ४५८३३. अध्यात्म स्तति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९३०, पौष कृष्ण १२, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल. नागपूर, प्रले. पं. केसरसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (८२८) जलात रक्षै तैलात् रक्ष (८९२) लेखणी पुस्तिका रामा, जैदे. (१९.५x११.५, ३४१९). 1 औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि उठी सवेर सामायक कीधु, अंतिः सिद्धपद भोगी जी, गाथा ४. औपदेशिक स्तुति - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एक भव बाल्यक बीजो; अंति: सिद्ध पद भोगी था... ४५८४१. दशमीनी स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (१९४१२, ११४२४). "3 पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु., पद्म, आदि; पोस दसम दिन पार्श्व अंतिः राजविजय सेवा मागेजी, गाथा ४. ४५८४४. नेमजिन चोक-१, संपूर्ण, वि. १९५४, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वीशलनगर, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४.५x९.५, ११x२६). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक मा.गु, पद्य, आदि: श्रीनेमनिरंजन बालपणे अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि, गाथा ३ तक 1. है., वि. प्रतिलेखक ने तीसरी गाथा को क्रमांक ४ देकर कृति को पूर्ण कर दिया है.) ४५८४६. नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५x११, १५x२५). , नेमराजिमती गीत, रा. पद्य, आदिः किण दीठो रे किण दीठो, अंतिः रुडो पाल्यो नेहरो, गाथा- ९. " ४५८५१. (+०) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५X११.५, १३x३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुनं पावा, अंतिः बुद्धलोहेक्कणिक्काय, गाथा-५०. ४५८५३ (१) चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१०.५, १४x२७) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हारे प्रभु तार, अंति: रत्न० दीजो सव राज रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २७१ ४५८५५. लोढणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९०, ?, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संवत १७९ लिखा है., जैदे., (१९x९.५, १०X२६). पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी; अंतिः शुभ नमें करजोडि, गाथा-५. ४५८५७. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २, कुल पे. ३, दे., (१५X११.५, १२x२१). ९. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ १आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: (-) (पू.वि. सुभद्रासती के नाम तक है. ) २. पे. नाम. महावीरस्वामी पारणुं, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन पारणुं, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: दुर्गादास० काई ल्योजी, (पू. वि. मात्र अंतिम २ गाथाएँ हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. आदिजन स्तवन, पृ. ३४-३आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आदजणंद आज आणंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ४५८५८. जोवणपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( १७१०, २०X३८). जोबनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पुन जोगे नरभव लीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा २३ अपूर्ण तक है.) (२१X११.५, १२x२७). १. पे. नाम संज्ञा पक्रिया, पृ. १अ २आ, संपूर्ण ४५८५९. संज्ञा प्रकिया व वीजनी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २ प्रले. अंबाईदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., 1 सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र संज्ञा प्रक्रिया तक है.) २. पे. नाम बीजनी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोरथ बीज अंतिः लब्धविजय० मनोरथ माय, , गाथा-४. "" ४५८६१. जन्म संस्कार विधि- आचार दिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१५.५४११.५, १८४१८). आचारदिनकर संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ॐ अहं कुलं वो; अंतिः एतद्वस्तुविचक्षणे. ४५८६४. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नारायणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५X१२, ११X१५). अष्टमीतिथि स्तुति, पंन्या. मुक्तिविमल, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनेश्वरेण अंति: मुक्तिविमल० सिद्धये, श्लोक-४. ४५८६५. द्रौपदी सझाय, संपूर्ण वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१६४१०, ११x२० ). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीने तुंबडु, अंति: जस० मुगति मोझार रे, गाथा - १०. " ४५८६६. रेलगाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. १५, दे. (१६.५x१२, १०x२२ ). संसाररुपी रेलगाडी सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: संसार रुपी सडक बनावी; अंतिः आनंदघन० गाडी रे, गाथा- ९. ४५८६७. (4) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१६४११.५, ११X१९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. यशकीर्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुज मन, अंति: बूध जगिसके जई केज्यो, गाथा-६. ४५८६९. (#) चरखा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५X११, ११x२०). चरखा सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चरखा वालि चरखो, अंतिः कातो उतारे भवपार रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५८७२. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-वसंत पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३४११, ९४११). शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी विमलाचल जइय; अंति: मोहन० जनम तारो दास, गाथा-५. ४५८७४. (#) इंद्रियवाद स्थल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११, १३४३९-४४). इंद्रियवाद स्थल, सं., गद्य, आदि: इंद्रियत्वं जातिर्वा; अंति: कार्याकार्यसंयोगः. ४५८८२. सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१५.५४११.५, ९४२५). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं शारदादेवी समस्त; अंति: विद्याविलास० निवासम्, श्लोक-९. ४५८८३. नेमीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६४११.५, २६४११). नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मगसिर मासि मोहिउ मोह; अंति: विनय० हर्ष उल्लास, गाथा-२७. ४५८९१. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४११, २०४१६). नेमिजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिणी वीनवं; अंति: बुध० वली कीधलु साथ, गाथा-८. ४५८९४. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७.५४११, ११४२३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचि, मा.गु., पद्य, आदि: तिर्थंकर त्रेविसमो; अंति: रुचि० सफल करो संसार, गाथा-७. ४५८९५. (#) अक्षर बावनी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र १४४ हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५४११.५, १६४१७). अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ तक ४५८९६. मुखवस्त्रिका पडिलेहण विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०,५४२९). प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक का टबार्थ है.) ४५८९८. नेमराजुलपनरतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अतः काल्पनिक पत्रांक ३ लिया गया है., जैदे., (१८.५४११.५, ११४१९). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगविजय वधते रंगे, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है.) ४५८९९. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x१२.५, १३४१९). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, मु. खांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीयाजी तुमे जपजोरे; अंति: खंति० करमनो वाद, गाथा-८. ४५९०१. हितशिक्षा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१२, १२४२३). औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजी घरबार सारु मिथ्य; अंति: रत्नविजय०पामर प्राणी, गाथा-१२. ४५९०२. (+) आदिजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. खूबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६.५४१०.५, ४४२२). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदनं; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहं आदिजिनस्तीर्थंकर; अंति: एहवा लोकनइ विस्तरो. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५९०६. क्रोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३.५४१२.५, १५४२२). औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. ४५९०८. (#) आदिजिन श्लोक, दोहे मंत्र व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४११, २७X२२). १.पे. नाम. ऋषभ श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं दिया है. आदिजिन श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता तुह्म; अंति: कहेतां मुहडू भराj. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. शुकन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीपार्श्वनाथजी सत्य छै. मा.गु., पद्य, आदि: फागुणमासे पक्ष अंधार; अंति: एत्रणे मान सुकन्न, गाथा-२. ४. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: धतुरा धुतारा धरति; अंति: २१ वार भणीइ आराम थाइ. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. वंद सखी, पुहि., पद्य, आदि: काहु सै गुमान न करणा; अंति: वंद० चरणे धरणा बे, गाथा-४. ४५९१०. सेजामंडण आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०४, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. वखतावरमल पंचोली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४८.५, ९४२७). शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडी वीनमुजी; अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३२. ४५९११. सीमंधर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१८.५४८.५, ९४२७). सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जंबुद्वीप विदेहमा; अंति: पद्म० शिवसुख थाय जी, गाथा-४. ४५९२०. (#) ज्ञानपच्चीसी व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्र १४४ हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१२, १७X२३). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख कृष्ण, ५, शनिवार, प्रले. भागचंद; अन्य. श्राव. जीतमल भंडारी, प्र.ले.पु. सामान्य. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: वनारसी० करन के हेत, गाथा-२५. २.पे. नाम. श्रावक आचार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुचरण नामी; अंति: धन श्रावक तेह सुजाण. ३. पे. नाम. एक पूर्वमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. पूर्व१ संख्यामान गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: सीतरलाख करोड वरस छपन; अंति: इक पूरव संख्या जोड, गाथा-१. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवेन्यासीनी सेझडीया; अंति: रूप० प्रीत बंधाणी जी, गाथा-६. ५. पे. नाम. धर्मनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे म्हारे धर्म; अंति: उलट अति घणी रे लो, गाथा-६. ६. पे. नाम. ऋषभ तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो मरुदे; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. पांचमा आरानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सुणो; अंति: भाष्या वयण रसाल, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. ९२ तीर्थंकरनो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ९२ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवीना चरण; अंति: सिद्ध लेवै सुखकरु, गाथा- १८. ४५९२५. विजयलब्धिगुरु स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५२, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पाली, पठ. सा. गुलाबी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१८.५४१०.५, १०४२६). विजयलब्धिवाचकगुरु स्तुति, मु. विजयलब्धिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सकलवाचकचक्रचूडामणी अंतिः सेवग वंछित पूरितं श्लोक-४. ४५९२८. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१७४११, १४४१८). १. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनो मूल एह जाण; अंति: उदयरतन० छे सुधरे, गाथा- ६. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा- ७. मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मली आवो; अंति: विनितसागर मुदा जी, ४५९३१. वीर स्तुति, संपूर्ण वि. १९९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, धार, जैदे. (१६४१०, १४४३२). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी, आदिः सकलात्प्रतिष्ठान, अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३०. ४५९३२. () स्थुलीभद्रमुनि सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (१८.५X११, २७X२३). १. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि बोल गयो मुख बोल, अंतिः पभणे शांति मया थकी, गाथा- १३. २. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. , ४५९३३. चंद्रायण संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जै.. (१६४११, १४४१९). चंद्रायण, मान, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीहित; अंति: प्रणपत मानज्यो कोड, गाथा-२१. ४५९३५. (+) मांगलिक आराधना पद व लावणी, संपूर्ण वि. १९३३ भाद्रपद शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, संशोधित, जैदे., ( १६.५X१०.५, ९x१८). ले. स्थल. भाणायनगर, प्रले. केसरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. १. पे. नाम. मांगलिक आराधना पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनदास, हिं., पद्य, आदि: घन कीया गणधर सीर परे, अंतिः जिनवास० परमगती से पाव, पद- १. " २. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि सजन समजावो अपने मन, अंतिः जिनदास० कुठ दरसणकुं, गाथा ४. ४५९३६. (a) शीतलजिन स्तवन व श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५X११, १२x१८-२२). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- उदयपुरमंडन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीतल जिनराया हो; अंतिः ऋषभविजय० अविचल लही, गाथा - ११. २. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'छकाय समारंभे' पाठ तक है.) ४५९३८. (+) सेत्रुंजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, दे., ( १७.५X१०, ९x१९). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवसे, अंति: उदयरतन० नीरमल करसुं गाधा-७ For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५९४०. सरस्वती छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२०x११, १४४२९). " सरस्वतीदेवी छंद - अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सारद मन आणी अंतिः शांतिकुश० फलसे ताहरी, गाथा - ३३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९४९. सीमंधरवीनती तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१८.५४११, १२४२५). " सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि; सारकर सारकर सामी, अंति: माहरी सकल सिद्धी, गाथा- ७. ४५९४२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (१६.५X११.५, १६x२२). " १. पे. नाम. पारसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: समय० प्रतिमाजीसुं नेह गाथा-७. 1 २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिमंधरजीने वंदना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा५ तक है.) ४५९४३. नेमी पंचमी स्तुति व अष्टप्रकारी पूजारो दुहो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (१६.५x११. १९९८). १. पे. नाम. नेमी पंचमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरबंदिय पावपंकज, अंतिः करतु अंबिक देवीया, गाथा-४. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजारो दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण. २७५ अष्टप्रकारी पूजाप्रकार दोहा, मा.गु, पद्य, आदि जल चंदन कुसुमनी, अंति: फल पूजा अष्ट प्रकार, दोहा- १. ४५९४५. (-) उपदेसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., [., (२०x१०, १२३०). औपदेशिक सज्झाय, मु. हिम्मतराम, मा.गु, पद्य, वि. १९१५, आदि: अजी मन साद मीलावो जी अंतिः हिमतराम० काल समपुर, गाथा - ११. व्याकरणपत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४५९४६. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. वे. (१६४१०.५, ९४२० ). " आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रवो अंतिः सेवे ते वे करजोडी रे, गाथा-५. ४५९४७. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६X१०, १४४१५). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः हूं आवि तुने तेडवा, अंतिः लीला पावे कल्याणरूप, गाथा ७. ४५९४८. (+#) व्याकरण व आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४१०, १३४१९-२८). १. पे. नाम. व्याकरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि आरती, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठी आरती जै. क. धानतरायजी पुहिं, पद्य वि. १८वी, आदिः इहविधि मंगल आरती अंतिः दानति० परम सुखाणी, गाथा- ९. ४५९४९. स्तवन संग्रह व दुहा संपूर्ण, वि. १८८९-१९३६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (१८x११, २१x२२). १. पे नाम, माणिभद्रजी वीर स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण वि. १८८९ वैशाख कृष्ण १४, ले. स्थल, वांकूली, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: सात फणा रे मोरा अंतिः चंद कहै सीरनामी रे, गाथा - ५. ३. पे नाम, प्रास्ताविक दोहा संग्रह, प्र. ९आ, संपूर्ण. गाथा - ९. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकिरत० इम सुजस कहै, २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४५९५०. (-) भैरुगीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७.५४१०.५, २३४१५). १.पे. नाम. भेरूजीको गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन को उद्योत भैरु; अंति: गावे गीत भेरुलाल को, गाथा-१३. २.पे. नाम. भेरूलाल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहि., पद्य, आदि: जैन को उद्योत भैरु; अंति: सोभाचंगीत भेरुलालनै, गाथा-११. ३. पे. नाम. भरव छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. भैरवदेव छंद, रा., पद्य, आदि: नमो आद भैरु भूजा तेज; अंति: माठा हम प्रण थारे. ४५९५१. रोहणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७.५४११, ९४२५). रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४५९५३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४११, ११४३१). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४५९५६. रहनेम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. शुभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४१०.५, १२x२०). रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेगलोरे वरणागीया; अंति: प्रताप० साधीइ जोवे, गाथा-११. ४५९५८. स्तुति संग्रह, वीसस्थानक नाम व ग्रहणविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (१६.५४११.५, २०४२०). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. वीरप्रभु स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु विरजिनेसरनु तरी; अंति: लालविजय० संकट हरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीस स्थानक गरj, पृ. १आ, संपूर्ण.. २० स्थानकतपगाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं१ सिद्ध२ पवयण३; अंति: अस्सतहा१९ तीथस्सयर२०, गाथा-३. ४. पे. नाम. ग्रहण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४५९६३. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. शकंदरपुरी, पठ. सा. साजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४९, ३४४१७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: पास जिनंदने पाए लागु; अंति: रतनमुनि० कोइ तोलइ रे, गाथा-११. ४५९६५. (+#) पत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. द्रांगद्रा, प्रले. मु. सुमतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०.५, २४४१७). १.पे. नाम. दानरत्नसूरिजी के नाम सुमतिरत्न का पत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार. मु. सुमतिरत्न, मा.गु., गद्य, वि. १८१०, आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिन; अंति: घडी घडीना खबर छे. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ सरीखा मेवासीने; अंति: उदयरतन० पाए लागुं, गाथा-८. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन सांही प्याराबे; अंति: राम लहे जयकाराबे, गाथा-७. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्व गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मस्तके प्रभुजीने; अंति: मेघविजय० बलिहारी रे, गाथा-५. ४५९६६. वर्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. गौतमविजय गणि; पठ. मु. रूपचंद (गुरु पं. गौतमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४४ है., जैदे., (२२४८, २४४२३). महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जिनवर चोवीसमा; अंति: कहे जिनहर्ष० परमानंद, गाथा-१९. ४५९६७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५३, फाल्गुन कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कन्योढ, प्रले. सा. सजनाश्रीजी; पठ. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११, १७४२६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव भरत्या तु फिर; अंति: निरमल भज भगवंतारे, गाथा-१८. ४५९६८. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x१०, १७४९). सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनौ ध्यान धरीजै; अंति: चक्रनै कोइ न तोलै हो, गाथा-१५. ४५९७०. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (१८.५४१०.५, २५४१९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: आदिसर दियालरे, गाथा-६. २. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा रे; अंति: दास नीरंजन केरारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणी चिंता सब; अंति: ज्ञानमहोदय० दासारे, गाथा-४. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सौ जिनभक्ति; अंति: रूपचंद० हमारी हे, गाथा-३. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: समयसुंदर० दातार रे, गाथा-६. ४५९७१. औपदेशिक पद संग्रह व आत्मषट्क, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१९.५४१०.५, २३४२१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व सभा श्रृंगार; अंति: कल्याण सह राजत हे, गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक आण राण की पंचास; अंति: लाव चकलो० आण बेर की, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मीन मरे जल के पर से; अंति: शत्रु दल हेरा जनता, गाथा-२. ४. पे. नाम. आत्मषट्क, पृ. १आ, संपूर्ण. निर्वाणषट्क, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: मनोबुद्धयहड्कारचित्त; अंति: सदा नैवमुक्तिर्नबंध, श्लोक-६. ४५९७२. उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १०४३२). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: इह नाहं सरह भगवंतं, गाथा-१३. ४५९७४. तेरकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रावण शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. वा. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४९, १४४४०). १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: हेमविमलसूरी सीसइ कही, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५९७८. पाक्षिक स्तुति व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. देवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६x८.५, १३X३०). १. पे नाम, पाक्षिक स्तुति स्नातस्या, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि; श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४ ४५९८९. शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (१८४१२, १२x२३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ठंडो रे डुंगर, अंति: उदयरतन० कोडि कल्याण, गाथा-८. ४५९८२. आदिजिनस्तुति व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१३x१२, ९x१९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन स्तुति - संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि, अंति: वीरं गिरिसारधीरं, श्लोक-४. २. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः भावनयाणेग नरिंदचिदं; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, श्लोक-४. 3 ४५९८३. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१४४१२, ५X१८). " पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदिः नमो देवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणं पार्थः श्लोक ७. ४५९८७. नारी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१९.५x१२.५ १२४२५). नारी सज्झाय, मु. नीतिविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जुवो जुवो चरितर नारी; अंति: बोले नीतिनो बाल रे, गाथा - १०. ४५९८८. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०, १६x४०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, आ. कल्याणरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवी देवी रे सरस्वती, अंति: कल्याणरतन० ते लहे, गाथा-७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९८९. पार्श्वचंद्रसूरि पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४८, ९४२९). पार्धचंद्रसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: विदित शकल खानू, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लब्धिचंद्रसूरि तक की नामावली है.) ४५९९३. समवसरण १२ पर्षदा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४२ है. समवसरण रचना का क्षेत्रमान भी चित्र में दिया गया है. जैदे., (१९.५४१०, ८x१९) समवसरण १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व दिसिने बारणे, अंति: गढ़मांहि वाहनादि करते. ४५९९६. नेमिजिनराजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१२.५४१२.५, १२x१६). राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जी छान छान कुड कमायो; अंतिः सेव्या सदा सुख पाया, गाथा- ९. ४५९९७. संयम के सतरभेद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१५४८, ९४२९). संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पृथिवीकाय संजमे १; अंति: (१) संजमे १६ कायसंजमे १७, (२) सतर भेद संयम जाणवा. ४५९९९. आर्द्रकुमार सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्र १x२ हैं, जैदे., (२६.५X११, २९x१७). १. पे. नाम. आईकुमार स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. देवेंद्रकुशल, प्र. ले. पु. सामान्य. आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रीउडा प्रीतडली इम, अंतिः लब्धि कहे कर जोडी रे, गाथा - १५. For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मेरो निरंजन यार केसे; अंति: आनंदघन० फैरो टले, गाथा-३. ४६०००. चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०x१०.५, १०x१९). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ४६००१. वीरगणधर प्रभातियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१७.५४१२, १२४२१). ११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते उठीने भविका; अंति: नमता लहिइ सिव मेवा, गाथा-९. ४६००२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१७४१२, १२४१७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वप्रभु; अंति: सौभाग्य सुख कल्प रे, गाथा-७. ४६००३. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (१४४१०.५, ७X१४). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ४६००४. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१८.५४१२, १५४२५). शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सिद्धाचल सिद्ध सुहाव; अंति: शुभवीर वचनरस गावेरे, गाथा-११. ४६००५. उवसग्गहर स्तोत्र व २४ तीर्थंकर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४११.५, ११४२१). १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. २६अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २.पे. नाम. २४ तिर्थंकर स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर पहेला; अंति: धन महत जेथी ए जती, गाथा-७. ४६००६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१७४१२.५, १८x२०). १. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पीया मोसे एक बात कही; अंति: दीपवि० सीवनार वरीरी, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जवा नहिं देउरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ तक लिखा है.) ४६००७. (#) नेमराजीमती विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४८, २२४११). नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मा चित्तमे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा १८ तक है.) ४६००९. पद्मप्रभ गीत, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दीपविजय; पठ. श्रावि. रायकुमारीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२.५४१०,१०x१६). पद्मप्रभजिन स्तवन, पं. विवेकविजय, मागु., पद्य, आदि: पद्मप्रभ जिनराज जीहो; अंति: प्रभु जाण्याजी, गाथा-७. ४६०१०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक १४-१५ लिखा है., जैदे., (१४४१०, १०x१८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भगत पास जीनेसर गाईये; अंति: सोम पसाय करीन बीनयौ, गाथा-१३. ४६०१३. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. फागा, प्रले. मु. नाथु (गुरु मु. श्रीमनजी); गुपि. मु. श्रीमनजी; अन्य. श्राव. लक्ष्मीचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४९.५, १३४१६). मेतारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: जिनहर्ष त्रिकालजी, गाथा-९. ४६०१४. (+) शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१५४१०.५, १०४२१). For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ४६०१६. त्रिशला सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दोनो पत्रों पर पत्रांक १ लिखा हुआ हैं. दे. (१४४१२.५, १२४१६-१८) १. पे. नाम, त्रिशला सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पर्युषण पर्व सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि सिख सुणो सखा माहरि, अंतिः त्रिसला गरभ ने साचवो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्व वीरजिन स्तवन- भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वच्छ श्रीकच्छमा; अंति: ज्यारे पेलि पारो, गाथा-५. ४६०१७. शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (११४८, ७x९). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः शेत्रुंजानो वासी, अंति: बोले आ भव पार उतार, गाथा-६. ४६०१९, (+) स्थानकसाधु आचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( १६.५X११, १६x२७). स्थानकसाधु आचार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जतना सुंतो जीतनो कोइ, अंति: मे पीण मन धारी रे, गाथा-१५. ४६०२०. गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, पालणपुर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (१८४८, ८x२२). गुरुगुण गहुली, श्राव. नथुचंद सा, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सदगुरु मे रमता; अंति: नथुचंद सुगुण कहीये, गाथा-७. ४६०२१. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१३४११.५, ११४१७). " शांतिजिन स्तवन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति आपो रे शांतिना; अंति: जासे पाप अपारजी, गाथा-५. ४६०२२. कका बत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१७४१२, १२x२२). ककावत्रीसी, मा.गु., पद्म, आदि: कका क्रोध नीवारीये अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ९ तक लिखा है.) ४६०२३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२०x१०, ८x२२ ). "" "" सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट महासिद्धि संपजे; अंति: उतम मुनि गुण गाय, गाथा ६. ४६०२४. (#) पर्युषण भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५X१०.५, १९x१८). पर्युषण पर्व भास, मु. अमीयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखी पर्व पयुसण आवीया, अंतिः कल्याणने पामे रे, गाधा ८. ४६०२५ शांतिनाथ चउदसुपन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले श्राव. मगन अमुलख भोजक, पठ श्राव नगीनदास 2 लक्षीचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५x१२.५, ११x२९). शांतिजिन १४ स्वप्न स्तवन- द्रव्यभावगर्भित, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिकरणजिन संति; अंतिः ताजी सुरतरु अवतार, गाथा - ३६. ४६०२६. () मानव भव दुर्लभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (१३४१३, १९४१३ ) " For Private and Personal Use Only " मानव भव दुर्लभ सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: मनुषा जेवरू मला अंतिः मनुषा जनम हीरा जो गाथा-६, ४६०२७. (+) सुधर्मास्वामी आदि गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. सीपोर, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर लिखित प्रत., जैदे., (१९.५X७, १८x१५). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदिः सहगुरु भावे भविजन; अंतिः भावि रंग कहे ससनेहे, गाथा ६. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २८१ पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही विचरंता आव्य; अंति: रूप० ताली अधिक जगावी, गाथा-११. ३. पे. नाम. महावीरजिन गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन; अंति: अमृत शीव नीसांन रे, गाथा-१०. ४६०३०. पार्श्वजिन छंद व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४२८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: उदयरत्न० आप तुट्ठा, गाथा-७. २.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, प्र. १आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे मारे धरमजिणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४६०३१. पार्श्वजिन थाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६.५४११, १६४२५). पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता भोमादे बुलावे; अंति: कमलजी गायो थाल रसाल, गाथा-९. ४६०३२. छट्ठा आरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४११.५, ११४१५). ६ठा आरा सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छठो आरोएवो आवसे; अंति: रायनो मेघ भणे सुखमाल, गाथा-७. ४६०३३. रोहिणी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४१२,११४१८). रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४६०३६. माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८x११.५, ८-११४२१). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस गाव, गाथा-९. ४६०३७. दानशीलतपभाव सज्झाय व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१०.५, १९४४०). १.पे. नाम. दानशीलतपभाव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धन धन समुद्र वीजै; अंति: पाली मोक्ष गया ततकाल, गाथा-१७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बैठा लील करो; अंति: कहे इम गुण जोडो, गाथा-८. ४६०३८. ऋद्धिसूरिगुरु भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१०.५, २१४१७). ऋद्धिसूरिगुरु भास, पं. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिनी पाय; अंति: रे आणंदे गायो सूरिंद, गाथा-९. ४६०३९. (#) निद्रादि सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१२, १४४१८). १.पे. नाम. निद्रा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. निद्रात्याग सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटी रे मोह नरिंदनी; अंति: निंद्रावस्य थाय छै, गाथा-५. २. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नही एसो जनम वारोवार; अंति: चेतन ज्यु पावे भवपार, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंदनी; अंति: थापज्यो संघ मंगलकारी, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६०४०. (-#) कठीआरादृष्टांत सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१२.५, १३४२५). १. पे. नाम. कठीआरादृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, आदि: वीरजिनवर रे गौतमगणधर; अंति: गुणविजय० पदवी पामीइं, गाथा-७. २. पे. नाम. थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चंदवदनी कहे पीउ पाए; अंति: रे जाउ वाल्हैसर, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विनतडी अवधारोजी पाउध; अंति: करतांतुझगुणग्राम, गाथा-५. ४. पे. नाम. जीवोपरि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया दुजी कामनी; अंति: राजसमुद्र० परदेशी रे, गाथा-५. ४६०४१. दोहा व आचार्य अतिशय वर्णन, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. फतेराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र संख्या का उल्लेख नहीं किया गया है., जैदे., (१४४१२, ६-८x२५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मदनलाल; अन्य. मु. सुमतिसागर; मु. मणिसागरजी म., प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: काल कर तो आज कर आज; अंति: भीत जात फर करगा कब, गाथा-१. २. पे. नाम. आचार्य अतिशय वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पूर्वांगैश्चतुर्भि; अंति: भार्या अनंत्यं तंवशय. ४६०५०. ऋषभ व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (१९x१०.५,७४१७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडण, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९७१, आदि: हां रे लाला ऋषभजिनेस; अंति: मानविजय० जाय रे लाला, गाथा-१०. २. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारे तो जिनेंद्र; अंति: मानविजय० पाप मेल धोई, गाथा-५. ४६०५१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४.५४१२.५, ११४१६). औपदेशिक पद, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: गेंला काय गुमान करे; अंति: परभवसु रति डरे रे, गाथा-४. ४६०५२. शांतिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५४११.५, १६४२४). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-आंतरीमंडन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुं अरदास जिनजी जो; अंति: में कीर्तिसूरि जिनती, गाथा-१३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति का नाम 'सज्झाय' दिया है. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु प्रणमी हो; अंति: समज्या होय वखाणारे, गाथा-७. ४६०५३. बलभद्र सज्झाय व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४९.५, १३४३६). १. पे. नाम. बलदेव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: संवेगी बलदेव साधु; अंति: राजरत्न उवज्झाय, गाथा-७. २. पे. नाम. मंत्र-तंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४६०५४. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ३., (१४४१०, ७४१३). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गावुरंग; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम २ पंक्तियाँ नहीं हैं.) ४६०५६. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. १४२ पेज., दे., (१६४११.५, १३४१४). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणु; अंति: हो मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. ४६०५८. पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. १४४ पेज., दे., (१६४१२,५७४१४). पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालो रे, गाथा-२१. ४६०५९. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४१०.५, ५४१३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण है.) ४६०६०. सीतलनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३४(१ से ३४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (१२.५४९.५, ९x१३). शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: समयसुंदर० ___ जनमन मोहए, गाथा-१५, संपूर्ण. ४६०६३. ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०, ९४२७). आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. ४६०६४. शत्रुजय रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१५४१०.५, ११४१७). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ तक है.) ४६०६५. साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४९.५, ९x१६). सकलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत देवा चरणोनी; अंति: ज्ञान० तुम पाय सेवा, गाथा-५. ४६०६६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१७४११, २९४२४). १.पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन प्रभाति, पुहिं., पद्य, आदि: दरिसण वीरजीणंद को; अंति: प्रभूसीव पटराणी, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीनवैरायूलबाला विनत; अंति: मुगति मोहल पावडीइ हो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीअनेम पधारो हो कै; अंति: गजानंद० पावो सुखघणा, गाथा-११. ४६०६८. वीरथुई अध्ययन - सूयगडांगसूत्र - अ.६, संपूर्ण, वि. १८८२, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. भाणाइ, प्रले. सा. रतुजी (गुरु सा. वदुजी); गुपि.सा. वदुजी (गुरु सा. अजवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, १५४२५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (१)आगमिस्संति त्तिबेमि, (२)आगमेसति त्तिबेमि, गाथा-३२. ४६०६९. दानसीलतपभावना चौपाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (१७४१२, २१४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ४६०७०. दीवाली स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४१०.५, ११४२१). दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए दिवाली पर्व पनौतु; अंति: सकल संघ आणंदा जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६०७१. भरहेसर सज्झाय व पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१६४८, ९४२६). १. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पारीठावणीयागारेणं; अंति: असिथेणवा वोसरेह. ४६०७३. श्रावकमनोरथ विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१३.५४१२, २४४३६). श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंति: (-), (पू.वि. मनोरथ २ अपूर्ण तक है.) ४६०७४. दशपच्चखाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१४, १८x१७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ४६०७५. सालभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१३.५४१०.५, ११४१६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ की गाथा ४ तक है.) ४६०७६. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तोत्र व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११.५, १२४२५). १.पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीवृषभोजितस्वामी; अंति: धर्मचंद्रेण०सोचिरात्, श्लोक-८. २.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६०७७. जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६४१०.५, ११४२१). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जीवन प्रभु मारा; अंति: दिपविजय० जग जय नेता, गाथा-१०. ४६०७८. लावणी व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x१२, १३४२३). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: सब देव नमे ऐसो नही; अंति: रखले साइ तेरे सरनमि, गाथा-५. २.पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पंन्या. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सारकर सारकर स्वामी; अंति: नेक नियणे नीहालो, गाथा-७. ४६०८०. नेमजिन कागल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१२४९, १०x१८). नेमिजिन कागल, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी कागल मोकले; अंति: मानकवि० पुरज्यो कोड, गाथा-५. ४६०८१. गुरु गुंहली व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४९.५, १९४१६). १.पे. नाम. विजयरत्नसूरि गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कर्पुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुआ रेवधामणा आज; अंति: कर्पुर० जयकार हो लाल, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कपुर, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो मारो मानज्यो; अंति: रागथी कपुर लील विलाश, गाथा-७. ४६०८२. वीर परमात्मानु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x११.५, १०४२१). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदो वीर जिनेसर राया; अंति: समकित गुण दायाजी, गाथा-७. ४६०८३. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x११.५, १०४२०). महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो वीर जिनेश्वर; अंति: सेवक जिन गुणगाया रे, गाथा-७. ४६०८४. अरिहंत सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९x१०.५, १०x२४). For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २८५ अरिहंत सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अहंतजी रे हुं समरु; अंति: आवागमण नीवार रे, गाथा-५. ४६०८५. शितलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६.५४८.५, ६४१६). शीतलजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी दशमा शितलनाथ; अंति: अरीयण जीपतुंरे लोल, गाथा-३. ४६०८६. ऋषभदेव बारमासो, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. इंद्रप्रस्थ, प्रले. श्राव. बाबु महेता जैनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. इन्द्रप्रस्थ में गिरधारीलाल द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि., दे., (१७.५४८.५, ८x२८). आदिजिन बारमासो, मु. ऋद्धसार, पुहिं., पद्य, आदि: हेजी मरुदेवाजी सोच; अंति: जिणचरण मे मेरा, गाथा-१२. ४६०८७. वर्द्धमान सप्तविंशतिभव व संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११, २७४२७). १. पे. नाम. वर्धमान सप्तविंशति भव, पृ. १अ, संपूर्ण. __ महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशस्त्रिदृशो; अंति: ततोत्रभरते वीर २७. २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-७. ४६०८८. पार्श्वजिन स्तोत्र व गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x१०.५, ९x१७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंति: शेखर कहे सूवीलासे, गाथा-१३. ४६०८९. नेमराजिमती बारमासो व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४१२, २५४२४). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वर हुं; अंति: नामे संपति पाया रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. ज्तोतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४६०९०. धन्ना सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१०, १०४२८). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिने विनवु; अंति: कांतिविजय गुणगाय रे, गाथा-८. ४६०९१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक नहीं है, अनुमानित पेज नंबर लिखा है., दे., (१८x११.५, १७४१५). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. अष्टमि थुइ, पृ. २अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सुह संति कल्याणदाता, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीर थुइ, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदो ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ३-४ अ, संपूर्ण क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरी, अंतिः सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा ४. ७. पे. नाम. पजुसण थुइ, पृ. ४आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा, अंति: पूरे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ४६०९२. औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( १६x१२.५, ९x१६). 1 औपदेशिक सवैया, क. मान, पुहिं., पद्य, आदि: तुम ख्याल खुसाल मे अंति: मान० उड्या जात है बाण, गाथा- ६. ४६०९३. नेमनाथ स्तवन व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९८ कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. ग. खंतिविजय (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१९४११.५ २१x१५). www.kobatirth.org १. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्वाध्याय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अजब जरोखे, अंतिः सेवक देवविजय जयकारी, गाथा-८. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल की अवतार तो, गाथा-४. ४६०९४. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने "सज्झाय" लिखा है., जैवे. (१२x१०. १५X१६). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि लगी लगी अंखीयासु, अंतिः उदहेरतन० तो लगन लगी, गाथा- ८. ४६०९५. निश्चयव्यवहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४३, वे. (१५४१०.५, १३x२२)निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देखना; अंतिः वीतराग इणी परे कहे, गाथा-८, (वि. ८ पदों को एक गाथा गिनकर प्रतिलेखक ने कुल परिणाम गाथा ८ लिखा है.) ४६०९६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१७.५x१२.५, १३४१७) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८२५, आदि: पुरच माहविदेहमै पूखल; अंति: म्हानै सिवपूर ठाम, " गाथा-७. ४६०९८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम पू. १, वे. (१९.५x१०.५, २१४१३). "" महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सीधारथ नंदणने नमः अंतिः प्रभु तवन कहो हेतकार, गाथा - १२. ४६०९९. अष्टापदतीर्थ स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( १७.५X११.५, २०x२१). १. पे नाम. अष्टापदजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण २. पे, नाम, दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पच, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा, अंतिः सुरनाएक गुण गावे. गाथा-८. दूहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. गाथा - १५. २. पे. नाम. वीसस्थान इ. पू. १आ. संपूर्ण ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जादुराय, पुहिं, पद्य, आदिः खलक एक रेन का सुपना अंतिः जादुराय मोह प्यारा, गाथा- ३. ४६१००. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (१६.५X११.५, २१x१६). १. पे. नाम. छित्रुजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ, जिनचंद्रसूरि, मा.गु, पथ, वि. १७४३, आदि: वरतमांन चौवीसी बंदु अंतिः साचे करी सदह्या, For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २० स्थानकतप स्तुति, मु. देवचंद्र, मा.गु., पच, आदि: अरिहंत सिद्धि पवयण अंतिः सानिध करी तसु संग गाथा-४. ३. पे. नाम. गीरनार थुड़, पृ. १आ, संपूर्ण, नेमिजिन स्तुति - गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः यादवकुलमंडण नेमिनाथ, अंति: अ सा अंबाई देवी, गाथा-४. ४. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा, अंति: पुरवे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ५. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसमा श्रीवीरजिणंद, अंति: जसविजय सुखकारी, गाथा-४. ४६१०१. निश्चयव्यवहार व रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (१६.५X१२, २०x२१). १. पे. नाम, निचयव्यवहार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे बेसना, अंतिः वितराग इण पर कहे, गाथा १६. २. पे. नाम रहनेमि सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि, अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. ४६१०२. कर्महिंडोल सज्झाय व सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२ हैं., जैदे., प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४६१०३. स्तवन व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (१५.५X११, १८x२०). १. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. (१८.५X११.५, २४X१५). १. पे. नाम. कर्महिंडोल सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, ले. स्थल. धोलका, प्र. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म हींडोल नामाई, अंति: भविजन मनह पूरवो आस, गाथा-९. २. पे नाम वीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: त्रेविसमा पास जिणंदा, अंति: रूप लगी तुज माया रे, गाथा- ६. २. पे. नाम, ज्योतिष संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण, ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं. प+ग, आदि सेंह संक्रांति थकी, अति: सही सत्य छेई जी. ३. पे. नाम. जीवोत्पत्ति गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: एक घडो पाणीइं भर्यो, अंति: सेर थाई सही सत्य छे, गाथा - १. ४. पे. नाम. औषध संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. " २८७ औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " ४६१०४. पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (१६.५x११.५, २०१६). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि पंच परम गुरु अंति: (-), (पू.वि. डाल २ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४६१०५ (+) कुतरी छंद, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (१७.५x१०.५, ११x२२). " कुतरी छंद, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूई गाम सोहामणो एक; अंति: आणंद अति उछरंग, गाथा- ७. ४६१०६. . (#) नेमिजिन बारमासो व सवैया, संपूर्ण, वि. १९९५, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जावाल, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (१६.५४११.५, २१४१५). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्म, आदि: गडडाट गाजे मास आसाढो अंतिः वारु म्हारा वाल्हाजी, गाथा- १३. . २. पे. नाम. १८ वर्ण सवैया, प्र. १आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि: ब्राह्मण खत्रीय, अंति: समजो वरण अहार सही कही-३. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६१०७. (+-#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १३, ले.स्थल. जावाल, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१२, १७४१८). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबारे संभव जिनरी; अंति: रिद्धीकीरत० मोहे रे, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छा. जिनचंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: आखीया मेरे प्रभुजीसु; अंति: हे जिनचंद ऐसे० एकघडी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: अटके नयनां जिन चरणां; अंति: ज्ञानउद्योत० चरणां, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: शिखर गिर मुज न जाना; अंति: वधु चित ल्याना हो, गाथा-३. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे चालोने प्रीतम; अंति: सेवा ए संबल लीजे, गाथा-५. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मिल जाज्यो रे साहिब; अंति: ध्याने० सूख चिनमे, गाथा-६. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: मे मतवाला ग्यान का; अंति: दिल भीतर पेठारे, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मेरो निरंजन यार कैसे; अंति: आनंदघन ही टलैगो, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जुगमें जीवन थोरो रे; अंति: कहे जिणचंद० हे उधार, गाथा-५. १०.पे. नाम. मंगल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मांगलिक पद, पा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: बीजो मंगल मन ध्याइजे; अंति: रत्ननिधान० वरीजे जी, गाथा-५. ११.पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दोय घडीया बेवारी; अंति: ज्ञानविमल० रह जा, गाथा-७. १२. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसा सुख आपेगा महावीर; अंति: ज्ञानविमल० भवतीर, गाथा-४. १३. पे. नाम. नेमजीरी लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तज्या कर राजुल; अंति: जिनदास० गइ गिरवर रे, गाथा-४. ४६१०९. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (१६.५४१०,१०४२७). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरापति; अंति: (-), गाथा-१७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ४६११०. धर्मजिन स्तवन वदोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (१९.५४११, १८x१५). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणंद तुम्हे लायक; अंति: वाचकविमल तणो कहे राम, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयराज, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार पाण जस बसनही; अंति: उदयराज धुडबराबर होय, गाथा-१. ३. पे. नाम. मत्स्यगंधा सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण, लिख. पंन्या. नेमविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: एक समे ऋषकु विषकाम; अंति: कंत अरपिता को पिता, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गिरधर, पुहि., पद्य, आदि: आयो चात्रक भूलके घटा; अंति: गिरधर० नयन में आयो, दोहा-२. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: सांई कस्तूरी रची ठोर; अंति: गिरधर० सतो सांई, दोहा - २. ६. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर्महीन कुं नहीं; अंति: आवसी उगते भांण, दोहा-६. ४६१११. बारव्रत सज्झायादि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (१८x१२.५, १७X२५). १. पे. नाम. औपदेशिक झूलणा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सांई की बेटी महा एक अंतिः कागद मस का मोल, दोहा ५. २. पे. नाम बत्रीस राजकुल स्थापना, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ राजकुल स्थापना, मा.गु., गद्य, आदि धारनगरे परमार १ कनवज, अंति: करणेचा गढे बुर १७, (वि. मात्र १७ राजकुलों का ही वर्णन है.) ३. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय प्रणमी; अंति: कीर्तिसागर० गुण गाया, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १४. ४६११२. पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (१८.५x१२, १६४३७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ४६११४. पार्श्वजिन पद व जिनगुण गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५X११.५, १७X१५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो भवियण जिन; अंति: राम लहे वर सिध, गाथा-६. २. पे नाम. जिनगुण गरबो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे हुं पूजीसु रे, अंति: रामविजय० पोहती जगीस, गाथा-५. ४६११५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे, ३, दे. (१६.५x१०.५, १०x२१). וי , १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे, अंति: मणपत जे जे सुखकंद जू, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, ७, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरिय में वंछितं नाथ, श्लोक ५. ३. पे. नाम, नारचंद सिखणारी, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९३० फाल्गुन शुक्ल, १४. २८९ नरचंद्र जैन ज्योतिष- दसासाधन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लबद अंक दुणाकरी; अंति: वयोवर्षे कीम कीजीये. ४६११६. (+०) प्रत्याख्यानक, संपूर्ण वि. १७१६, आषाढ़ शुक्ल ११ रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सिंहसौभाग्य, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ज्येष्ठा नक्षत्रे लिखितं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १७.५X१०, ११x२५). " प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त, अंति: समाहिवत्ति वोसिरामि ४६११७. (d) सास बहु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (१५४९.५, १७३०). सास बहु सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि एक बेटो हुवै नहीं तो अंतिः नरभव लाहो लीजे रे, गाथा- १७. ४६११९. गहुंली स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, अन्य. पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१२, १७१६). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. वीरजिन गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीर जिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु म्हारो देइ छे अंतिः न्यानसागर० जय जयकार, गाथा- ६. २. पे. नाम वीरजिन भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन भास, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करी; अंति: रूपने कोड कल्याण, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला श्रीआदिनाथ; अंति: कहे कवियण कर जोड़ हो, गाथा-१२. ४६१२०. (+) धर्मजिन स्तवनादि व मंत्र-यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७.५४१२, २५४१८). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउं रंग; अंति: सांभलो एसेवक अरदास, गाथा-८. २. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: आज गोडीसो राजिंद; अंति: अमीचंद जै जै कार, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: सात फणारे मोरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४. पे. नाम. मंत्र-यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४६१२१. आदिनेमिपार्श्वजिन गीत व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. शीवपुरनगर, जैदे., (१४.५४९.५, ९४२३). १. पे. नाम. आदिनेमिपार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोती आव्या ते लुंबक; अंति: मठ ताप समद गाल्यो रे, गाथा-६. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ 'आ' से कृति लिखना प्रारम्भ किया है तथा १ 'अ पर समाप्त किया है. पुहिं., पद्य, आदि: विद्या तो वापरती भली; अंति: नही मुरख मुछम ताण, दोहा-५. ४६१२२. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७४१०.५, १४४१६). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर सीस रसाल, गाथा-७. ४६१२३. सुरप्रभजिन गीत व सुमतिनाथ पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ३., (१६४१०.५, १३४२८). १. पे. नाम. सूरप्रभजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुरप्रभजिन गीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सूर जगदीशनी तीक्ष्ण; अंति: देवचंद० आनंद पावे, गाथा-८. २.पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख वदन सुख पायो मै; अंति: हरषचंद० नही भायौ, गाथा-४. ४६१२४. वीसस्थानक ओलीनो गुणणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४१२.५, १३४१८). २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहताणं; अंति: गुणणो २००० लोगस्स २०. ४६१२७. गाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६४१०, ११४१९). मूरख सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: संसाररूपी सडक बनावी; अंति: पसाए मोहन गाडी गाई, गाथा-९. ४६१२८. दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४११, ११४१९). For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २९१ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देसक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीध रे, गाथा - ९. ४६१२९. थूलिभद्र बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. ग. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x११, १५x२३). स्थूलभद्र बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा रे मारा आसाढो; अंति: करस्यां तुम्ह वीसवास, गाथा - १३. ४६१३० (+) दानशील तप भावना चोढालियो, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., १३४१४-२१). ४६१३३. मरूदेवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (१६४१२.५, १२x२०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा ५ तक लिखा है.) ४६१३१. माणिभद्राष्टक, संपूर्ण, वि. १८८२, ?, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. विजापुर, अन्य. श्राव. भागचंद देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जे., (१८.५४११, १५x२३). कालभैरवाष्टक - काशीखंडे, सं., पद्य, आदिः यं यं यं यक्षराजं; अंतिः तस्य सर्व सुखावहा, श्लोक-११, (वि. वैदिक भैरवाष्टक में ही फलश्रुति वाले अंतिम पाठों को मिलाकर प्रत में माणिभद्रवीर अष्टक' नाम का उल्लेख किया है.) ४६१३२. पार्श्वजिन पंचकल्याणकपूजा ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जे. (१९.५x१०.५, १०x२२) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमति गमति हमुने सहेल; अंति: श्रीशुभवीर वचन रसालि, गाथा - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आइ, अंतिः प्रगटी अनुभव सारी रे, गाथा - ९. ४६१३४. गौतमस्वामी छंद, औषध व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१८.५x९, १३४३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरोसीस अंतिः तूठां संपति कोडि, गाधा. ९. २. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ... (१६.५४११. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: कागद कहो तो पाठवु; अंति: सुंदर० तु करत है, दोहा-३. २. पे. नाम. दानादि फल माहात्म्य वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि बडे भया तो काहा भया, अंतिः फल लागा दूर जी, दोहा - १. "" ४६१३५. () स्तवन चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे, ५. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२०x११, २२x४१). १. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. दानादिफल माहात्म्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३५ से ३८ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर पुजीनीक; अंति: हर्ष० लहे अविचल रीध, गाथा - १. ४. पे. नाम. वीसस्थानक चैत्यवंदन, पृ. ९अ- १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. हर्षविजय, मा.गु, पद्य, आदि अरीतसीथी पववणासुरीथी अंतिः हर्षने० कोड कल्याण, गाथा- १. ५. पे. नाम. सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु, पद्य, आदि आजनो दिन लेखे थयो; अंतिः हर्ष० नमवा नेत्र, गाथा-७. ४६१३६. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२x१५.५, २९x२५). १. पे. नाम. नेमिजिन मुजरो, पृ. १अ संपूर्ण Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: करहा चालो उतावला; अंति: करइ छै जुहारजी, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजीमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती स्तवन, मु. रघुपति, मा.गु., पद्य, आदि: रथ फेरो महारायजी जार; अंति: प्रणमै रुघपति पाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. मदनपच्चीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. कालिदास, सं., पद्य, आदि: कमलदल सुनेत्रे हारवि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १४ अपूर्ण तक है.) ४६१३७. नेमीजिन सातवार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x११, १७४१८). नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमिये नमिये ते नेम; अंति: मूलचंद० तरस्ये रे, गाथा-९. ४६१३८. (#) नेमिनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४११.५, १५४२३). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: मुजे देके दगा गिरनार; अंति: न्यामत० भरतार गये री, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, न्यामत, पुहि., पद्य, आदि: संजम तो मेरे मने; अंति: न्यामत० का सुविचार, गाथा-९. ४६१३९. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८x१२, १८x२२). औपदेशिक पद, मु. लाभचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे जूठे होर कू वड; अंति: लाभचंद० कोइ तार नही, गाथा-१०. ४६१४१. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४१२, २५४१७). शांतिजिन स्तवन-नांदियानगर मंडन, म. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: शांति जिणेसर साहिबा; अंति: हीमत० कोड कल्याण, गाथा-९. ४६१४२. (#) कल्पसूत्र व्याख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११.५४११, १२४१५-२०). १.पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं सूय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक दो गाथाएँ हैं.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजा वनि गुरु वेश्या; अंति: जावत चंद्र दिवाकरौ, श्लोक-२. ४६१४३. सज्झाय स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१९४११.५, २२४१६). १.पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमें मूझने मिल्यो; अंति: लो तो हु तरु तत काल, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष शुक्ल, १, प्रले. श्राव. खसालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रयो; अंति: सेवे ते बेकरजोडीरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मत जाओरे पीया तुम; अंति: रूपचंद० संजम भार मे, गाथा-५. ४. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कागा किसका धन हरे; अंति: तुस विनायक हस्तिमुख, दोहा-२. ४६१४४. शिवपूरी जिनतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१३४११.५, १३४१५). शिवपुरी जिनतीर्थमाला स्तवन, मु. विनोदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुरी नयरी सोहामणी; अंति: तीर्थ करे परणाम, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ " ४६१४६. ज्ञानपच्चीसी व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. ४, जैदे. (१६४१२, १४X३१). १. पे नाम, ज्ञानपच्चीसी, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: वनारसी० करन के हेत, गाथा - २५, (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, विधातानी चरचा, पृ. २अ २आ, संपूर्ण विधाता अष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: महामूरख नै मीदरै; अंति: भली हे विधाता, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नानकदास, पु,ि पद्य, आदि केहां गयो रे पंछी, अंतिः नानगदास० किवाडी खोलतो, दोहा-२. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हीरे के फूटे तै; अंति: कोहो कुनको भलो भयो, दोहा-१. ४६१४७. (+) जिनदरसणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. पं. कपूरविजय गणि (तपागच्छ); अन्य. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१६.५x९.५, ११x१९). जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सरसती देवी धरी मनरंग, अंतिः कवी मान कहे करजोडि गाथा ११. ४६१४८. (+) कको, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायक; पठ. देवीभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (१७४११.५ १३४१९). " औपदेशिक कका पद, रा., पद्य, आदि: कका रे भाई काम करता, अंतिः कीणही वाते हठ न कीजे, पद- १. ४६१४९. (+) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन व कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (१८x१०, १७X१७). १. पे. नाम, शंखेश्वरमंडण पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रहैनी रहैनी अलगी, अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा- ६. २. पे नाम, कलियुगनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमणि पाय अंति रथ सुकृत एक सवायो छे, ४६१५२. महावीरजिन देशना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १६. ५X११, १८x१४). गाथा - १२. ४६१५० (+) शीलमती छ ढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १९x११.५, १३x२३). शीलमती छ ढालिया, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: शील धरमरी वारता जस; अंति: रतनचंद० उत्तम प्राणी, ढाल ६. १२x१४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण २९३ महावीरजिन देशना मा.गु., गद्य, आदि: जे जे वीरप्रभु जगत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जंबूस्वामी द्वारा प्रभु महावीर से किया गया निवेदन मात्र ही लिखा गया है.) ४६१५३. स्तवन, सवैया, कवित्त व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२० श्रावण कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे. (१५.५४११.५, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि ऋषभ जिणेसर प्रीतम अंतिः आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चदली लाट विराजरी अंतिः (अपठनीय), सवैया-२. , ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: कीमत करन बाचजो सब, अंति: लहे आयो सावण मास. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. गूढार्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: छोटो सो सब कम न भायो; अंति: (-), गाथा-२. ४६१५४. विविध नामावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ११, जैदे., (१४४१०, १८४२७). १.पे. नाम. बहत्तर कला नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ७२ कला नाम, मा.गु., गद्य, आदि: लिखित १ गणित २ गीत ३; अंति: पुरुसनी बहोत्तर कला. २.पे. नाम. १८ प्रकार के लिपि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ प्रकार की लिपि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: हंसलिपि १ भूयलिपि २; अंति: (१)ब्राह्मीने सीखव्यु, (२)कर्म भरतने सीखव्यु. ३. पे. नाम. स्त्री के ६४ कला नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. स्त्री ६४ कला नाम, मा.गु., गद्य, आदि: नृत्य १ उचित्य; अंति: प्रश्नप्रहेलिका ६४. ४. पे. नाम. ऋषभदेव के पुत्रों के नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पुत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरत बाहुबलि संख; अंति: सुरवर दृढरथ प्रभंजन. ५. पे. नाम. आदिजन कालीन देश नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन कालीन आर्य देश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अंग बंग कलिंग गौड; अंति: पुत्रोना बीहची दीधा. ६.पे. नाम. भस्म ग्रह नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अंगारक १ वीकाल २; अंति: ८६पुष्प ८७भाव ८८केतु. ७. पे. नाम. चौरासी जाति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाल१ ओसवाल२; अंति: कोरुडा ८३ भिलडीया ८४. ८. पे. नाम. ३६ राजकुल नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यवंश १ सोमवंश २; अंति: ३५ खंदकवंस ३६. ९.पे. नाम. बारह मास नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ मास नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अभिनंदन १ सुप्रतिष्ट; अंति: विदाघ ११ वनवीराधी १२. १०. पे. नाम. पंद्रह दिवस नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १५ दिवस नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पुर्वागसिद्ध १ मनोरम; अंति: १४ अग्नीवेस्य १५. ११. पे. नाम. पंद्रह राशि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १५ तिथियों की रात्रि का नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तमा १ सुरक्षत्रा; अंति: तितेजा १४ देवनंदा १५. ४६१५६. नेमराजुल सझाय, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पृथ्वीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४११, २१x१५). नेमराजिमती गीत, मु. सुंदरजी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: जादूबसी नेमजिणेसर; अंति: सुंदर० चरणांदा हो, गाथा-१६. ४६१५७. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२०x१०.५, १६४३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: श्रीऋषभजिणंद आणंदसु; अंति: सौभाग्यसागर० जिनराय, गाथा-९. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: हेरी चले जिणजी रो; अंति: जगतराम० बेगसुंघरा, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे तो एही चाव है; अंति: आणंद० अवर न ध्यावं, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखं; अंति: टोडर लागो जिनचंदा, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २९५ मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहां रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ४६१५८. चोपडि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. देवग्राम, प्रले. पं. शिवदत्तसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४९, १०४३०). औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल; अंति: आणंद ऋषि कहै कर जोडि, गाथा-११. ४६१५९. लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. खूबचंद; लिख. श्राव. भूतचंद शाह; अन्य. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४.५४९.५,१३४१४). १.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह* पहि..मा.ग.. पद्य, आदि: (-): अंति: (-) ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वडे सजन बहिमान दगा; अंति: सबा पर बीतेगी ऐसी, गाथा-४. ४. पे. नाम. चार अकल लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, पुहि., पद्य, आदि: कलबल अकल करम सातु रा; अंति: गइ टोपी जब उडा भरम, गाथा-४. ४६१६५. दिगंबरचर्चा बोल, संपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. न्याय ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x१०.५, १९४४४). दिगंबरचर्चा बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विग्गह गतिमावन्ना; अंति: तं सव्वं फासूय भणियं. ४६१६८. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४)=४, कुल पे. ३, जैदे., (१४४९.५, ९x१३-१६). १.पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जिनचंद० फली सहु आस, गाथा-९. ३.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ८आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४६१७०. (+) नवतत्व प्रकरण सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है. अतः अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१५.५४१०.५, ४४२२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा ५ से ३६ तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: या एकसिद्ध अनेकसिद्ध, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा ५ से ३६ तक का टबार्थ नहीं है.) ४६१७४. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (११४१०,१६x२५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६१८१. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१३.५४१०.५, १४४२५). औपदेशिक सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: लख चौरासी योनि मइ; अंति: सेवक० ए जगमै ततसार, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६१८२. गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (१३.५४७.५, ८x१७). पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१३. ४६१८४. नेमराजुल सज्झाय व रथनेमिराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१४४११.५, १२x२०). १. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अचल महिलनै अजब झरोखै; अंति: पंकज लालविजय सुखकारी, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. प्रमाणसाकर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत धरी; अंति: प्रमाणसागर० बंधन छोड, गाथा-१०. ४६१८५. चौद सुपन सज्झाय, आदिजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. रविंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो, जैदे., (१६.५४१०.५, २०४२५). १.पे. नाम. चौद सुपन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सुविसालमाला प्रोढ; अंति: विधविध रंग रसालाजी, गाथा-१५. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहि., पद्य, आदि: देखोरे आदीसर बाबा; अंति: चंदखुसाल गुण गाया हे, गाथा-८. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४६१८६. संस्तारक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पंन्या. भीमविजय गणि (अज्ञा. पंन्या. रत्नविजय गणि); गुपि.पंन्या. रत्नविजय गणि; पठ. श्रावि. आणंदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४९.५, ३०४२१). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: गाथा-१६. ४६१८७. हितसिखाम सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लब्धिविजय (गुरु पंन्या. अमरविजय); गुपि. पंन्या. अमरविजय; पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखीत होने की संभावना है., जैदे., (१७.५४१०.५, १३४२४). १.पे. नाम. हित शिखामणनीसझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोय यतन करी जीवड; अंति: लबधी० केवल नाणी रे, गाथा-११. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उदयति जदी भानू; अंति: (-), श्लोक-१. ४६१८८.(-) मान सज्झाय व मृत्यु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९.५४११.५, २८x१८). १.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनावणे रे चिहि; अंति: कर्यु तिहां राखरे, गाथा-११. २. पे. नाम. मृत्यु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नंदनकुं त्रिसला हुलर; अंति: ते नर माटी थाविरे, गाथा-६. ४६१८९. सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. लब्धिविजय (गुरु पंन्या. अमरविजय); गुपि. पंन्या. अमरविजय; पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१०.५, १५४२८). १.पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरि आवीआ; अंति: वंदे तेहना पायरे, गाथा-८. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर साहीब; अंति: कांतिविजय० गायारे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: कामनि कंघ चल्यो परवे, अंतिः ग्यान० कोडिन पावे, गाथा १. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ( १७X१०, १४X३१). १. पे. नाम. महावीरजिनद्वात्रिंशिका, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: स्तोष्ये जिनं, अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२. २. पे नाम, वर्धमानविद्या, प्र. १अ संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पुरोरे पांचमा आस; अंति: ग्यानसागर० सद्दही रे, गाथा - ५. ४६९९९ नेमिजिन चीमासी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२०x११, १३५१६). " " नेमिजिन चौमासी, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: मारा सम जावो रे वाला; अंतिः रूपचंद० मलवानु उलासो, गाथा ५. ४६१९२. वर्धमानदेव स्तोत्र, वर्धमानविद्या व प्रीति स्थिरिकरण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ नमो अरिहंता, अंतिः ठः ठः ठः स्वाहा. ३. पे. नाम. प्रीत स्थिरिकरण विधि, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ., पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). 1 , ४६१९४. १८ पापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (१९.५×९.५, १५X४५). १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि सुंदर रूप विचार चतुर, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, क्रोध परिहार सज्झाय तक है.) ४६१९५. हितशिक्षा सज्झाय व श्रावक के ३५ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१४X११, ४२x२९). १. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: एक मारुं माहं रे, अंतिः रुपचंद० पाप जाय नासी, गाथा- ९. २. पे. नाम. श्रावक के पात्रीस बोल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्रावक के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले तपस्या करी, अंति: दसा कालीयादीक जाणवो. ४६२०२. दसमी सझाव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१९४११.५, १५४१७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२०१. (#) मल्लिजिन स्तवन व सगपण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (१९.५x११, २७४२१). १. पे. नाम महिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तारु कुं प्रभु तुम; अंतिः प्रभु मोहे करत निहाल, गाथा ५. २. पे. नाम. अन्यत्व संबंधनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अन्यत्व संबंध सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि केहनां सगपण केहनी, अंतिः तत्व कहे सुखदाई रे, गाथा - ११. २९७ दशमीतिथि सज्झाय क. कमलविजय, मा.गु, पद्य, आदि: दसम भले भले आइ हो; अंतिः कमल० संघ सुखधाई हो, ( १४.५X११, ११X१५). १. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. गाथा - ५. ४६२०३. सेतुंजय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८४ वैशाख कृष्ण, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सांगर्याग्राम, जैये. (१८.५४११.५, १०x२२). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदिः यात्रा नवाणु करीए अंतिः पद्म कहे भव तरी, गाथा- १०. ४६२०६. (+) संवर सज्झाय व युगमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३- १(१ ) -२ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. वे., मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर गोइमने; अंति: आदरो मुगत जासी पधारो, गाथा-६. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९८ www.kobatirth.org पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कुडी, अंति: जिनविजये गाया रे, गाथा-७. ४६२०७. एकादशी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१४४१०.५, १०x१६). गाथा-७. ४६२०८. भारती नाममाला, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. १ जैदे. (१८x११, ७२६). . " एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज महारे एकादसी रे; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, ४६२१०. शांतिनाथ आरती, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१९.५X११.५, ८x२१). "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदन चंद्रमा, अंति: मलयकीर्ति० फलमश्रुते, श्लोक- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति, अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, गाथा- ६. ४६२१२. ४ प्रत्येक बुद्ध सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. खीमारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१७४११.५, 3 १७X१५). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: समयसुंदर कहे ० परसिद्ध, गाथा-५. ४६२१३. (*) सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल, राजनगर, प्र. वि. श्री वीरस्वामि प्रसादात् अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १७१०.५, १५X१८). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि के भाई रुडु ते स्युं, अंति: जीम पामो शीवसर्म, गाथा - १०. ४६२१५. मंत्र संग्रह व शक्रस्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१३x११, २०x१८). १. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताणं; अंति: संपत्ताणं नमो जिणाणं, गाथा- १०. ४६२१७. (#) निंदारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९२९, चैत्र कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१५१२, १७३२). " निंदा परिहार रास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर सदा नमु; अंतिः सेवक० ज्यो संग के, गाथा-६२. ४६२१८. शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (१५.५x१०.५, ११४२२). 3 शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु, पद्य, आदिः सीतलजिन सहेज सुरंगा अंतिः सुद्ध० गुण गाया रे, गाथा- ६. ४६२१९. (+) चौदराजलोक चैत्यालय मान विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( १ ) = २, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (१४.५X१०.५, १०-१२x२७). " १४ राजलोक चैत्यालय मान विवरण, मु. लालचंद, पुहिं. गद्य, आदि (-); अंति: लालचंद वंदित चरन, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., चंद्र-सूर्य लोक वर्णन से है.) ४६२२१. (*) चार कषाय परिहार सज्झाब, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (१४४१०, १२x२१). ४ कषाय परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध करइ गुण हानि, अंतिः लबधि० च प्रचुर, चौपाई-४. ४६२२४. (+) पार्श्वजिन स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (१८x१०, २०x२०) १. पे. नाम. पंचाक्षरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परमातम परमेश्वरु; अंति: पद्मविजय० अक्षय राज, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण मु. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण माहाप्रभुजी को; अंति: हीमत रे सुरुतरु आनंद, गाथा-६. ४६२२६. कल्पसिद्धांत व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१८४११, ८x२१) " For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ कल्पसूत्र-व्याख्यान, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्हत भगवंत उत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक सूचनाएँ लिखी हुई हैं.) ४६२२७. शीतलनाथ स्तुति व अनंतनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१६४११.५, ९x१५). १.पे. नाम. शीतलनाथजी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: जयति शीतलतीर्थकृतः; अंति: गुरुतराविह तामरसंगता, गाथा-४. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: सकलधौतसहासन मेरवस्तव; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक २ श्लोक हैं.) ४६२२९. (+) औपदेशिक सज्झाय व नेमराजीमती लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१६४१०.५, १२-१४४२७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋ. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ए जुग जाल सुपने की; अंति: रतनचंद० मिटाणारे, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अर्ज; अंति: फेरा नहि फिरणे कि, गाथा-९. ४६२३१. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०,१७४२०). पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ४६२३४. पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६.५४१०.५, ११४२३). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ४६२४४. नमस्कार स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बगेरा, प्रले. सा. चनणी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४१०.५, १९४२४). १.पे. नाम. नोकार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: पहल पद श्रीअरिहंतदेव; अंति: रायचंद जतन करो, गाथा-१३. २.पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: महाविदेह मे परत्तुरो; अंति: रायचंद० अलग कीजे, गाथा-९. ४६२४५. (+) गौतमस्वामी गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१९.५४१२, ११४२५). गौतमस्वामी गहंली, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चालो रे बाई चाले; अंति: दीपचंद० पद पावैरे, गाथा-९. ४६२४६. नवकार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१७.५४१०.५, २०४१६). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर सीस रसाल, गाथा-७. ४६२४७. (#) चेलणासती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गोपाल गीर; अन्य. श्राव. श्रीपाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (१४.५४११.५, १४४२३). चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. ४६२४८. पर्युषणपर्व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (१६.५४१२, ३८x२०). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुण्यनुं पोषण पापर्नु; अंति: जिन अधिकी वडाईजी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर, अंतिः भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४. ४६२५१. (#) तेत्रीशआशातना गुरुसंबंधी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कीसनगढ, प्रले. सा. साराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (१९११, १५२४). ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: पहलो बोल गुरु आगल; अंति: सिषने आसातना लागे. ४६२५३. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, जैदे., (१७X११, १६x२७). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण श्रावककरणी सज्झाव, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अंति: करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चोसालो, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद- स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: बंभणपूर श्रीपासजिणंद, अंतिः पार्श्वनाथ चोसीलो, गाथा-८. ३. पे. नाम महावीरवृद्धि स्तवन, पृ. ३-४अ संपूर्ण महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती, अंति समय० त्रिभुवन तिलओ, गाथा- १९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं, पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल, अंति: जिनचंद ० फल सहु आस, गाथा- ९. ५. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सालिभद्र आज आज तुम्ह, अंति: वीरचरणे जाई लागो रे, गाथा-५. ४६२५४. सज्झाय व कथा, संपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, १५X३१). १. पे. नाम कुसाधु सज्झाय, पू. १अ २अ संपूर्ण. श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, आदि: भेखधारी संसार मे; अंति: लीजो चात्रग वीचारवो, गाथा- १९. २. पे. नाम. कपटविशे वाघ वांदरानी कथा, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपटविशे वाघ- वांदरा कथा, रा., पद्य, आदि: एकदने वनमा वाघन लागी, अंति: भखणगयो कहकबी सोये, गाथा - १८. , ४६२५६. (-) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४२ हैं., अशुद्ध पाठ. वे. (३५.५४११.५, २६X१३). सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: कागदीयो लिख भेजूं हो; अंतिः ऊभा बीहुं बेकर जोड, गाथा- ९. ४६२५७. पार्श्वचंद्रसूरि पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १६ ११, ७X३४). पार्श्व चंद्रसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: विदित शकल स्त्रानू; अंतिः श्रीहर्षचंद्रसूरि. ४६२५९. दिनकृत्य स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, लिख मु. रविचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (१८११.५, ९४२० ). महजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अंति: निच्त्वं सुगुरूवएसेणं, For Private and Personal Use Only गाथा-५. ४६२६०. आदिजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. गेरीतानगर, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु पं. रंगविजयजी गणि); गुपि. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. नेमिजिन प्रसादात्.. जैवे... ( १२X७.५, ४x२० ). Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिजिनं बंदे गुणसदनं, अंतिः वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक - ६. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहं आदिजिनं वंदे हुं अंतिः सुखना आपनार थाओ. ४६२६८. (+) स्तुति व जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२०x११.५, १०X३५). १. पे. नाम. वीशविहरमानजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि द्वीपेत्र सीमंधर, अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मात्र प्रारंभिक २ श्लोक हैं.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १- ४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा ५१. 3 जीवविचार प्रकरण टवार्थ * मा.गु, गद्य, आदि: भुवण क० तिन भुवन, अंतिः विचारशास्त्र गाथार्थ ४६२०३. पार्श्वजिन आरती, संपूर्ण वि. १७८१, सहज रूष सिध तन, मध्यम, पू. १, प्रले. रतनचंद्र, पठ. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१९४११, १४४१७). पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः आरति करु श्रीपास, अंति: विस्तार प्रभुजी का, गाथा- ७. ४६२७४ (-) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जे. (१९x१०, १०x२९)गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीजिन आया हो सोरठ, अंतिः करजोडि रतन भणे ए. 3 ', गाथा - १३. ४६२७५. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र उवसग्गहर स्तोत्र व अग्यारअंगआदि नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, वे. (१९.५x११.५, ११४२९). १. पे नाम, घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १अ संपूर्ण घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे नाम, पारसनाथ स्तोत्र, पृ. १अ संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसमाहरं पासं पासं अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे नाम. १९ अंग १२ उपांग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण ११ अंग १२ उपांग नाम, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः आचारांग१ सूकडाअंग२; अंति: चूलीया बन्हीदसाण १२. ४. पे. नाम. स्वरव्यंजन वर्ग, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). " ५. पे. नाम. कलीचूनो, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औषध संग्रह . सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). **, ४६२७६. (+) बोल संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै.. , (११.५X१०.५, ४१४). १. पे. नाम. श्रावकना षटकर्म सह टवार्थ, पृ. १अ संपूर्ण. आवक षटकर्म श्लोक सं., पद्य, आदि: देवपूजा गुरुपास्ति, अंतिः षट्कर्माणि दिनेदिने, श्लोक-१. श्रावक षटकर्म श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे श्रावकना षट्; अंतिः श्रावकने करवो जो .. २. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ३०१ आवक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: लज्जावंत दयावंत अंतिः इकवीस गुणधारी है. ३. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा सह टवार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०२ www.kobatirth.org श्रावक १४ नियम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त भेदानि प्रोक्; अंति: तत् समकित लब्ध. ४६२७७. (-) स्तवन व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २ प्र. वि. पत्र १x२ हैं., अशुद्ध पाठ.. ... , (१५.५५११, १८४१५). १. पे. नाम ऋषभ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. फतेकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेसर भेटवा, अतिः सेवक फतेकुसल गाय रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६२८०. जीरापल्ली पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८७६, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, बोरी, पठ भोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५X१८.५, १५X३१). पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्ली, सं., पद्य, आदि: मंगल कमलाकंदस्स, अंति: श्रीजीराउलि पासजिणा, श्लोक-६. ४६२८५. लवणसमुद्र वर्णन गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१३११, ५X१६). लवणसमुद्र वर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दोन्निसया असीया पणनउ, अंति: वढइजलनिहीखुत्तिओ, गाथा-६. लवणसमुद्र वर्णन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दोइसय असी पंचाणुहजार, अंतिः क्षोभाणो वेल वधइ. ४६२८७. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (१५X१०.५, ११४१८). 1 " साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य अंति: हन्यते जिन वंदनात्, गाथा- १२. ४६२८८ (०) प्रतिलेखना स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५x११, ३४X७-२४). - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थापनाप्रतिलेखना स्वाध्याय, मु. सुखचंद्र शीष्य, मा.गु., पद्य, आदि समरी शांतिजिनेसरु रे, अंतिः सीस सुखकार रे, गाथा- ६. औषध संग्रह सं. गद्य, आदि (-); अंति: (-). " ४६२९० (७) काव्य, पद, औषध व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल २, मध्यम, पृ. २१(१) १, कुल पे. ५. ले. स्थल. फलोदी, प्र. वि. पत्रांक नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५X११.५, १६x२६). ४. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, अं., अ.भा., उ. गु., सं., हिं. प+ग, आदि (-); अति: (-). " "" १. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. मात्र अंतिम भाग है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है) २. पे. नाम. जीव काया सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं, पद्य, आदि: इक काया अरु कामिनी अंतिः स्वारथ को संसार, गाथा-५, ३. पे. नाम औषध संग्रह, पू. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ५. पे नाम, शांतिनाथ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चीत चाहे सेवा चरण की अंतिः हर्ष० मीटावो मरण की, गाथा-४. ४६२९१. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x१०, १५X३७). १. पे नाम. सीमंधरस्वामिवृद्धि स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबुदीवर जाणीचे अंतिः णेज्यो नित्य सेवरे, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने सीमंधरस्वामि स्तवन लिखा है, परंतु वास्तव में युगबाहुजिन स्तवन है.) २. पे. नाम, परित्याग गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३०३ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंद्या म करिज्यो; अति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४६२९४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४८.५, ७४२४). पार्श्वजिन पद, मु. सुबुधिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जेजे जे जे जि जिणंद; अंति: लय लाग धरत तुम ध्यान, गाथा-३. ४६२९५. (#) गोडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३.५४११.५, १७४१७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानी आंगी हे सुंदर; अंति: रामविजय शुभ सीसने जी, गाथा-७. ४६२९६. शंखेश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समी, अन्य. पं. ज्ञानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४११, १४४२२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणो अलवेशर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. ४६२९७. (#) संतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (१८.५४१०.५, १३४३०). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ४६३००. (#) जयतिहुयण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वरोरा, प्रले. उपा. कल्याणनिधान; पठ. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४६ हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९,११४२१). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. ४६३०१. स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१७.५४११.५, १६४३३). १.पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. अनुपकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सिवादेवी जाया मुज; अंति: अनोपकुसल गुण गायाजी, गाथा-१०. २. पे. नाम. राण्णपुर आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: श्रीराणापुरो मन; अंति: लाल सिवसुंदर सुख थाय, गाथा-१४. ३. पे. नाम. धर्मास्वामी गोहली, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी उद्यान; अंति: साद गुयली गीत भणेरी, गाथा-७. ४६३०२.(-) स्तवन, गीत व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१३.५४१०.५, १७४१९). १.पे. नाम. शत्रुजय गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. दलिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो सिद्धाचल; अंति: दलिचंद० तिहारिया रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. कीर्तिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सहेस फणा मोरा साहेबा; अंति: कीरतसागर० पावुरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नवानगर, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नवानगरमे भेटीए जिनवर; अंति: देवचंद्र हित धरि, गाथा-२०. ४. पे. नाम. नेमिराजुल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल उभी मालीए जंपे; अंति: रामविजय० हुंदास, गाथा-९. ५. पे. नाम. श्यामसुंदर होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०४ www.kobatirth.org बाल, मा.गु., पद्य, आदि: रासे फागुन मस्त महिन; अंति: बाल कहे कर जोडि, गाथा-५. ६. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आविः सोरठ देस मे निके हो; अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. ७. पे नाम, साधारणजिन होरी, प्र. १ आ. संपूर्ण. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फाग रमे रस रंग प्रभू, अंति: इणी परि खेले होरी, गाथा - १२. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण. २४x२०). १. पे. नाम. नमस्कार विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउदय, मा.गु., पद्य, आदि प्यारा ते रूडी रुडा अंतिः ज्ञानउद्यो० कृपाल, गाथा-२. ९. पे. नाम औपदेशिक होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: फाग रमे रस रंग होरी, अंति: सुमति० वीहड रंग अभंग, गाथा-४. १०. पे नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, नेमराजिमती सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथ कु लाज नहीं, अंतिः सुजस थयो घर घर मे, गाधा- ३. ४६३०४. नमस्कार विधि, बारह जाति नाम व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (१९x१०.५, सं., पद्य, आदि: एकवार कुदेवानां; अंति: धर्मो यांचयागत गौरव, श्लोक-३. २. पे. नाम. बारै जाति नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ जाति व नगर नाम, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीमाले उबएस नाम, अंतिः जायला खंडेलवाल. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १ अ - १ आ, संपूर्ण. लोक संग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1 ४६३०७. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (१९.५X१०.५, १३×३६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि तें सब जग ठग खायारी अंतिः भूधर० सिर नावा री, गाथा-४. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: वे कोई काल न जीत्या; अंति: नवल प्रेम रस पीता, गाथा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं, पच, आदि: श्रीगुरु सीख सयानी अंतिः भूधर० मति करो कहानी, गाथा-३. , ४. पे. नाम. पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि आज वधाइया जैरी माइ, अंतिः अब कीजे प्रतिपाल, गाथा-४. " ५. पे नाम, चोवीसजिन वंदना, पु. १ आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३०८. कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८.५X१०.५, ११४३४). २४ जिन पद, जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु जिनदेव सदा चरन, अंति: जादुराय० चरन के चेरे, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तजि के अजोध्या को तज, अंतिः मोख को सिधार्थी है, गाथा-४. For Private and Personal Use Only कुगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि देव धर्म गुरु औलखो; अंतिः चेत चेत रे चेतजी, गाथा- १६. ४६३१०. महावीर स्तुति व सर्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५x९, १०x१५-२०). १. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्या प्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धम् श्लोक-४. २. पे नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: भावदाता दधतं सीवं वा, श्लोक-१. ४६३१२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१९.५४१०.५, ९४२६). औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: सित चरचा वाचा अचल; अंति: परे ताको असुख न कोउ, गाथा-११. ४६३१४. (+) बत्तीस लक्षण, चौदपूर्व नाम व पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (१७४१०.५, १३४२४). १.पे. नाम. बत्तीस लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. ___३२ लक्षण गाथा, सं., पद्य, आदि: प्रमाणं१ सुकृतं२ सील; अंति: पुरुषानेति लक्षणं, गाथा-४. २. पे. नाम. चौदपूर्व नामानि, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ पूर्वनाम, प्रा., गद्य, आदि: उपायंच मगोणिय; अंति: ते बिंदुसारं च१४. ३. पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक है.) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ भगवान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक का बालावबोध है.) ४६३१५. (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १५३२, मध्यम, पृ. ४, प्रले.ग. अनंतकीर्तिगणि (गुरु ग. जिनमाणिक्यगणि); गुपि.ग. जिनमाणिक्यगणि; पठ. मु. चंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४१०, ११४२८). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: यक्ष सहस सदा पंचवीसइ; अंति: सधर पूरव केवल भाखिउं, गाथा-४०. ४६३१७. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१९४११.५, २०४३५). ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ढाल, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मदत्त चक्रवर्तन; अंति: जीणंद रो साचो छै. ढाल-३. गाथा-५०. ४६३१८. शांतिकर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रतनचंद; पठ. श्रावि. जवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अपना नाम अंक में लिखकर अंक के ऊपर सूक्ष्माक्षर में अपना नाम स्पष्ट लिखा है., जैदे., (१५४११.५, १३४२३). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ४६३२०. रहनेमी सझाय, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६४८.५, ८x२४). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. ४६३२१. अझाहर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x११, १४४२६). पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. हितकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवनमां जयकार; अंति: के हितकुशल इम कहे, गाथा-८. ४६३२२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२०.५४९.५, १९४११). १. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ महिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी अयोध्या संचर्या; अंति: सिद्धा सगलां काज, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ महिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांभल जिनवर मुखति; अंति: जाणि लाभ अनंतोरे, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधइ ईरज्या; अंति: कविअण० केरइं ठाम, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६३२३. कुगुरु लावणी व सुगुरु लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मालवा, जैदे., (१६४१०, १७X१४). १. पे. नाम. कुगुरु लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ८, ले.स्थल. सारंगपुर,पडणा, प्रले. मु. सोभागविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तर्जुतM में उन; अंति: जिनदास खुवारी हे, गाथा-५. २. पे. नाम. सुगुरुनी लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. सुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमुनमुं में; अंति: जिनदास० बलिहारी हे, गाथा-४. ४६३२४. पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१४.५४८.५, ९x१९). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति पद्मराग सोहाम; अंति: दीप करे गुणग्राम हो, गाथा-५. ४६३२६. नमस्कारमंत्र व आदित्य स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४११, ७X१९). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरुहताणं नमो; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २.पे. नाम. आदित्य स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजिनाधीशं; अंति: पंचमश्रुतकेवली, श्लोक-८. ४६३२९. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (१६.५४११, १५४२५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९३, ग्रं. १५०. ४६३३०. जैनरक्षा स्तोत्र व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४४९.५, ८x१५). १.पे. नाम. जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: मान् संपदश्च पदेपदे, श्लोक-१८. २. पे. नाम. चतुर्विशतिजिन स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रस्तितसोख्यदः, श्लोक-४. ४६३३१. गर्भविचार द्वासप्तति स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९x१०.५, ३२४१९). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहीये श्रीसार ए, गाथा-७२. ४६३३२. सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१९.५४११, २१४४३). अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर को ध्याइके, अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय प्रकरण अपूर्ण तक है.) ४६३३३. तमाकु परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ३., (१६४१०, २२४१७-२०). औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: कवियण कोडि कल्याण, गाथा-१७. ४६३३४. धम्मोमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४४११.५, १३४१८-२२). धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल महिमा; अंति: धर्म नामे जय जयकार, गाथा-७. ४६३३६. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (१५.५४१०, ११४२२-२४). १.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: ॐ जगद्गुरुं नमस्कृत्; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्महस्तुत्यसत, अंतिः स्तोत्रं जगन्मंगलम् श्लोक- ९. ३. पे. नाम. सीमंधरादि विंशतिजिन विहरमान स्तव, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर, अंतिः सीमंधरोजिनपतिर्जयति, श्लोक ५. ४. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, प्र. ३अ ४अ, संपूर्ण सं., पद्म, आदिः ॐ परमेष्ठि अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. ५. पे. नाम. आदीश्वर स्तुति, पृ. ४, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ४६३३७. तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जै, (१५.५९, १४२७-३०), पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर पट्टे, अंति: विजयदेवसूरि ६२. ४६३३८. शांतिजिन स्तवन व आदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "उस समय जो संघ निकाला गया था उसकी सूचना प्रतिलेखक द्वारा दी हुई है., जैदे., ( २१x११, १५X३६). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, लिख श्रावि. खुसालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नारी ते नर ने वीनवे; अंतिः पद्म० मलपतो धेरै आवे, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. विमलसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिराज दीठो वीठो रे, अंति: जिराज उदयविमलसोमसूरि गाथा - ५. ४६३३९. नवग्रह पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( १७१०.५, १०X२८). आदिजिनबिंब स्थापना - नवग्रहमंत्र गर्भित, सं., गद्य, आदिः ॐ आदित्य पद्मप्रभ; अंति: सवाहनाय सायुधाय. ४६३४०. पद्मावती पूजा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. लक्ष्मण ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (१६.५x७, ६१९-२४). 7 " पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिननाय, अंतिः पूजयामीष्टसिद्ध्यै, श्लोक-११. ४६३४१. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६०, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (११.५X६.५, १०X२७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, सं., पद्य, आविः सुखमामंडित दुःखगण, अंति: चात्र ददातु नित्यं श्लोक- ९. ४६३४२. स्थुलिभद्र सज्झाय, दोहा संग्रह व मंत्रयंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, वे., (१९.५x१०.५, जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे नाम, स्वर्णसिद्धि व पति वशीकरण विधि तथा यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). " ४६३४३. जिनपद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२४९.५, ७X२७). १. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८x१८). १. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी प्रीतडी, अंतिः समयसुंदर इम रीत, गाथा-७. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि रूप भली जिनजी की अंतिः जिनवर जगजीवन सबही को, गाथा-२. २. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ३०७ मु. जिनचंद, पुर्हि, पद्य, आदि क्या तक सीर विचारी अंतिः जीनचंद अवर नीहारि, पद- ३. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्म, आदि (-); अंति: (-). *, ४६३४६. नेमनाथराजीमती बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१५.५X११.५, १०x१८). For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: गोखे बहठी राजुलगोरी; अंति: पोहती हो लाल प्रीतम, गाथा-१४. ४६३४७. हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४११.५, १४४४५). हंसराजवत्सराज चौपाई *मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक है.) ४६३४८. धर्मनाथ स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १३४२७). १.पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४६ कृष्ण, १३, शुक्रवार, ले.स्थल. पल्हादपुर, प्रले.ऋ. लखमीचंद्र (वृद्धपक्ष); पठ. पं. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेसर गाउं रंगसु; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. ४६३४९. ज्वालामालिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४१२, १७४१४). ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. ४६३५३. (+) सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १०४२६). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर जिनकर समुज्व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ४६३५४. (#) स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०.५, ३०४२४). १. पे. नाम. कठीआरानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कठियारादृष्टांत सज्झाय, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनवर रे गोयम गण; अंति: बोले परम पदवी पामीइ. गाथा-१४. २. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज अरज सुणोने रूडा; अंति: कल्याणसागर० दीन दयाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसे जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक है.) । ४. पे. नाम. पार्श्वजिन गोडीजी हमची, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन हमची-गोडीजी, मु. लब्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पाटणथी पाराकर आव्या; अंति: हमचडीरे गावो सामिजी, गाथा-१५. ५. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अलग-अलग प्रतिलेखकों द्वारा प्रत में दो बार लिखी गई है. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न निर्मिता केन च; अंति: काले विपरीत बुद्धि, श्लोक-५. ४६३५६. (#) जीव भेद प्रभेद बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. मनोहरलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३४११.५, १८x१३-२०). जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहिं., गद्य, आदि: दोय कोड चोराणवे लाख; अंति: तीन कोड पैतीस लाख. ४६३५७. (+) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीज बोधिबीज ददातु, श्लोक-११, (वि. अन्त में पार्श्वनाथ मंत्र भी दिया गया है.) २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३०९ पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय जय; अंति: बोधा बोधिलाभाय संतु, श्लोक-२६. ३. पे. नाम. चतुरक्षरायां प्रतिष्टायां जातौ कन्यानामच्छंदो वृहत्स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. चतुरक्षरायां पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्याः; अंति: धर्मात्सिह संस्तौतीह, श्लोक-१४. ४६३५८. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. फलोघी, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (१८x११, १०x१५-२२). महावीरजिन स्तवन, मु. चंद्रमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: जीया सुणले सुजाण; अंति: चंद्रमुनि चितलाय रे, गाथा-६. ४६३६०. (+#) शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४४५). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-रत्नपुरी मंडन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: रत्नपुरी सिणगार सोलम; अंति: श्रीपासचंद आणंद करो, गाथा-१३. २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ति संपदा वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: भरतजी न देश साजता; अंति: पीठका १४५२२८११. ४६३६१. (+-) प्रतिक्रमण सज्झाय व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२१४१०, १७४३७). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करि पडिकमणोजी भाव; अंति: लवध्यविजै० पंथ साधि, गाथा-७. २. पे. नाम. अईमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वांदीने; अंति: रतनविजय० अणगारे, गाथा-१९. ४६३६४. (#) शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. एक ही कृति दो बार लिखी गई है. दूसरी संपूर्ण व शुद्ध तथा पहली अपूर्ण व अशुद्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४२०, २२४२७). तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१९. ४६३६५. पार्श्वजिन स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१०.५४१०, १०४२४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय दुष्ट कष्ट हरणैक; अंति: विनयभक्तिना० बीजदं, श्लोक-५. २. पे. नाम. प्रासंगिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कूपोदकं वटच्छाया; अंति: उष्णकाले चशीतलं, श्लोक-१... ४६३६६. नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अनुजुठा, जैदे., (१४४११.५, १८x२८). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: सेवादे नंदण नेमकवरजी; अंति: सोजत कीयो चोमासो, गाथा-१५. ४६३६८. (4) पाखीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जिनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७७१२, ११४२९). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्हतनो चैत्यवंदन; अंति: संसारदावा शांतिमोटि. ४६३७०. (+) स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१.५४९, ३४४१८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: वीर जिणेसर सेवीये; अंति: जिनवि० आसीसरे विरजी, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. ऋषभदेवनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-शत्रुजय मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्तुंज मंडण; अंति: कहइ पूरइ आस, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-वेडमंडण, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: वेडमंडण विराजतो रे; अंति: जिनविजय० करे आसीस के, ढाल-२. ४६३७२. (#) रामसीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. वीदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९.५, २४४२९). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीऊजी छोडी; अंति: जिनरंग० हीयइ धरीजी, गाथा-११. ४६३७३. (#) नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५४७.५, १०४२८). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पैहैलीजी ल्यो अरहंत; अंति: रास भणुं नवकार को, गाथा-१७. ४६३७४. (#) समोवसरण गरjगाथा संग्रह व रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११.५, ८-१२४१०-३५). १.पे. नाम. समोसरणनुंगरणु, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण गणj, मा.गु., गद्य, आदि: भावजिनजी नाथाय लोगस; अंति: प्रमाणे फल मुकवा. २. पे. नाम. प्रासंगिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: कुण सरोवर पाल विणा; अंति: गुणसठ जीव कहा महाधीर, गाथा-२. ३. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४६३७९. प्रश्नराजऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. ईडर, प्रले. मु.रंगसोम (लघुपोसालगच्छ); पठ. श्रावि. गुमानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०, १२४२३). प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमा मुनिवर मल्यो; अंति: समयसुंदर मनवाल, गाथा-५. ४६३८०. लघुशांति स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१९.५४१२, २३४१७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, (पू.वि. अन्तिम श्लोक का अन्तिम चरण नहीं है.) ४६३८२. (+) श्लोक संग्रह व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (१६.५४११, २२४२०). १.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. अमृत, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: हितं न वाच्यं ह्यहित; अंति: उचितां प्रविष्टः, श्लोक-१. २.पे. नाम. तारणगिरिमंडन अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. अजितजिन स्तवन-तारणगिरिमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: तारनगिरि सिरताज है; अंति: धर्मराग गुन आठ, गाथा-५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर साहिबो; अंति: गुण अजिततणा जे गाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: पात्र कुपात्रकुं; अंति: करे आपे सरजे भूत, गाथा-३. ४६३८३. (+) शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन व नेमजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०,१०-१२४२९-३७). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७६७, माघ कृष्ण, ३, ले.स्थल. थराद, प्रले. मु. गोविंदविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); गुपि. पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३११ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. २.पे. नाम. नेमजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीनवेंराजुलबाल; अंति: जिनहरख० पावडीए हो, गाथा-७. ४६३८४. नवकार महिमा, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बिदासर, प्रले. य.शंभु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४१०, १८४४०). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: बंछितपूरण बिबधपर; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ४६३८५. साधारणजिन पदव औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखु); गुपि.सा. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, २१४४०). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंछित फल पावोरे जीव, गाथा-१, (वि. देखने से कृति अपूर्ण प्रतीत होती है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: पुन्य जोगे नरभव; अंति: रिखरायचंदजी० पास हो, गाथा-२०. ४६३८८. (+) शील चुंदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४९.५, ११४३२). शील चुंदरी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: प्रीत न कीजे हो नारी; अंति: सुगणारी आरीत, गाथा-८. ४६३८९. पार्श्वनाथस्तोत्र व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. दर्शन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५.५४१०.५, १७४१७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र गर्भित स्तोत्र, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: सुभगतामतिवांछितानि, श्लोक-९. २. पे. नाम. यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४६३९३. (-) धर्मरुचिमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१४.५४११, १६४२२). धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगरी निरुपम; अंति: रतनचंद० नीसतार हो, गाथा-१४. ४६३९६. तेवीस पदवी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३४११, २१४२३). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पदवी तेवीस चउदे रतन; अंति: पदवी ८ आठ पदवी पामै. ४६३९७. (#) सज्झाय संग्रह व पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ३४४२२). १. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जाउं बलिहारी जंबू; अंति: चरण नमु निसदीस रे, गाथा-४. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधो जी, गाथा-१०, (वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) ३. पे. नाम. दसपच्चक्खान सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गे सूरे नोकारसीअं; अंति: वत्तिआगारेणं वोसिरइ. ४६४०४. करहेटकपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७४१२.५, १३४२१). For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-करहेटक, आ. कीर्तिरत्वसूरि, सं., पद्य, आदिः आनंदमंदकुमुदाकट, अंतिः मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक- ५. ४६४०९. अष्टप्रकारीपूजा, नंदीश्वरस्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., ( २४.५x१२.५, १२X३३). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वर्वासिवासे सुतरां अंतिः मोक्षं विरहाद्भवस्य श्लोक ९. २. पे. नाम. नंदीश्वर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नंदीश्वरतीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सुमेरुशृंगे कृत अंतिः कल्याणभुजो भवंति, गाथा- ९. ३. . पे. नाम. भोजराज प्रति धनपाल वाक्य, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्थितंक पंथेसर्व अंतिः पूजांतरं निर्गतोहम्, श्लोक-२. ४६४११. शील गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१२.५x१०.५, १४x२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीयलव्रत सज्झाय, मु. गुणविनय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सीलइ सवि सुख पामीयइ, अंति: जिम हुवइ सुभ सोभाग, गाथा- १२. ४६४१२. (*) २० वोल विचार, संपूर्ण वि. १८९९ मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. साहपुरा, प्रले. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२१.५X१०, ११x२५). २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहल बोले एक बार भाषा; अंति: आठ समा बरत जीम पावे. ४६४१३. उपवास फल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५X११, १२x२०). उपवास फल, मा.गु., गद्य, आदिः १ एक उपवास करे तो एक अंतिः तेनो फल कयुं छे. ४६४१८. शांतिजिन थुई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२०.५४९.५, ९४२२ ). शांतिजिन स्तुति- जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर, अंतिः ज्ये पुण्य प्रभाविका, गाथा ४. ४६४२०. (#) साढा पच्चीस देश नाम, संपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१X१०, १३X२५-२६). साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस राजग्रहीनगर, अंति: ए साढा २५ देस जाणिवा. ४६४२१, (+०) शील सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२x९, १३X३० ). शीयलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सील रतन मोटो रतन रे; अंति: तज दो थे नारी को संग, गाथा - १४. ४६४२३. मुद्रा मंत्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (२) = ३, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१४X७.५, ७X१८). मुद्रा मंत्र विधि, सं., पद्य, आदिः एकवारं अतः परं सर्वमप, अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पाठ नहीं है.) ४६४२४. बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. खेरालु, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है., दे., (१५.५x११, ९४२०). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती, अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल - ३, गाथा- १६. ४६४२५. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१.५४१०.५, ८४३५). 3 " साधारणजिन स्तवन- जयपुरमंडन, मु. शांतिरत्न, पुहिं. पद्य वि. १९२०, आदि शहर सवाई जयपुरमाद, अंति शांतिरतन मन की शंका, गाथा ५. ४६४२६. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१X१०, ११x२५). संभवजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि; चेतना आतमने कहे रे, अंतिः दीपे आतम गुण ज्योतजी, गाथा ६. ४६४२७. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१४१०.५, १३x२२). वैराग्य सज्झाय, महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: गाफल बंदा नीदडली; अंतिः मांमद० प्रभुजी रे हाथ गाथा-७, For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६४२८. (#) स्तुति व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १९x१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. निरंजन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवै उठ जाग तु; अंति: निरंजन देव गायो रे, गाथा - ३. २. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी, अंति: नयविमल० भय भावठि भागी, गाथा-४. ३. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लागी अनुभव प्रीत; अंति: अकथ कथनी सोय, गाथा-४. ४. पे नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ - १९आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्म, वि. १८वी आदि अवधू नाम हमारा राखे; अंतिः सेवकजन बलि जाहीं, " गाथा-४. ५. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदसखी, पुहिं., पद्य, आदि: जगमई जीवन थोडी कुण; अंति: चंद० हरिचरण चित लाय, गाथा - ६. ६. पे. नाम. तंत्र मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. " मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं. पण, आदि: भूतेलीयो गगन चढे, अंतिः कह्यो लोपे नही. ४६४३०. (+) स्तवन, ढाल व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत.. दे.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५x९, १२x२६). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. (२१X१०, १४X३५). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. बुधमल (गुरु मु. चोथमल ऋषि, जयमल्लगच्छ); पठ. सा. उमाजी आर्या शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य. जिन स्तवन, मु. बुधमल, मा.गु., पद्य, आदि सोरीपुर रलीयामणो रे, अंतिः बुधमल० वारंवार रे, गाथा १२. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि अलग अजित जिणंदनी, अंतिः मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा ५. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन जैसा कीजिये जैसा; अंति: ठरै सुख उपजे संताब, दोहा - १. ४६४३१. वैरागू सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४८.५, ३०X१८). जीवहित सज्झाय गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासे इम चिंतवे ए अंतिः खीमा० रे मूरख जीवडा, गाथा १०. ४६४३४. लावणी, पद संग्रह व निसाणी, संपूर्ण, वि. १९०४, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले. स्थल. सवाई जैपुर, दे., मु. अखमल, पु,ि पद्म, आदिः यब तन दोस्ती है इह अंतिः जन कुं बीनती अखमल की गाथा ८. . २. पे. नाम. धर्मोपदेश लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ३१३ औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं, पद्य, आदि: हांरे चतुरनर मनकुं; अंतिः चालो सोई सावधानां, गाथा-६. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी- धर्म, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: किसी की खोटी नां, अंति: इक जिन दरसण चहीये, गाथा ४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन की घग्घर नीसाणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-५४, (वि. गाथा १ को २ के गिनतीक्रम से पुरी गाथा गिनी गयी है.) ५.पे. नाम. औपदेशिक रेखता, प्र. १आ, संपूर्ण. जादुराय, पुहि., पद्य, आदि: खलक इक रेणका सुपना; अंति: जादुराय मोहि तारा, गाथा-५. ४६४३५. (#) औपदेशिक सज्झाय व जैन सामान्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४८.५, ११४२३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: काया नगरनो चेत राजा; अंति: कुसालचंद०गुण नीपनोचे, गाथा-७. २. पे. नाम. जैन सामान्य विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वाट वहता मे सम१ वाट; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४६४३७. (+) शांतिजिन स्तवन, पद व गणधर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९९९, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पिपाड, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१६४९, १३४२३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९९९, आदि: अरे मन लेता क्यो; अंति: हीरालाल० पद निर्वाण, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९९९, आदि: प्रभु शांतिनाथ को; अंति: लाल० आनंदरंग बरसाता, गाथा-७. ३. पे. नाम. गणधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: ईद्रभूति शीवगामी; अंति: हीरालाल० सुख भारी है, गाथा-१. ४६४४८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४९.५, १०x१६). औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: केसि विधे समजावू; अंति: स्युं ज्योति मिलावं, श्लोक-५. ४६४४९. अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४९.५, १४४३५-४८). अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: ॐ अक्षर सार सयल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १३ तक लिखा है.) ४६४५१. (-) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४८.५, १०-१२४३५). समवसरण स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: समोसण में सायब बेठ; अंति: भगवान० नगीनै चोमासै, गाथा-१६. ४६४५२. सिद्धाचल स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३५). १.पे. नाम. सेनुंजाजी की स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तुति, उपा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सेज सिवानो लायो; अंति: उदयरतन० सुर गुण गाय, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: श्रीसिद्धाचल गायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुण सुण रे सेज; अंति: श्रीजिनभक्तिमुनिंदा, गाथा-११. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीरा वेगा बोलो जी; अंति: घणी छै जिनचंदरे, गाथा-८. ५. पे. नाम. गिरनार पद, पृ. २आ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदि: शिखर गिरनार जाना हो; अंति: पल छिन न रहाना हो, गाथा-२. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्म, आदि सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: (-), , (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४६४५३. महावीरजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पाडीव, प्रले. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१९.५x११, १०x३०). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः धरैत्रीरंभोरु त्रिदस; अंति: रामवाच्यं शृणोति, श्लोक-३. २. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण १४४२९). १. पे. नाम. चौदह स्वप्न स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपसिंघ, मा.गु, पद्य, आदि प्रथम दीपे दीपता रे, अंतिः मोटा श्रीमाहावीर के, गाथा- ७. ४६४५४. अहिमत्ताऋषि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १ जैदे. (१९४९.५, १३४३०). "" अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः वीरजिणंद वांदीने, अंति: लखमीरतन० मुनिवर पाया, गाथा - १८. ४६४५५, (४) चउद स्वप्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (१४४१०.५, १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्म, आदि: प्रथम अरावण दीठो मुज, अंतिः मान० घणीने घर जावे, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं दिया है.) ३१५ २. पे. नाम. चौदह कुवचन स्वप्न, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न पद- कुवचनगर्भित, मु. मान पाठक, मा.गु, पद्य, आदि: पेहले रासभ दीठो नयणे, अंतिः मान० घरणी नै पर आवै, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं दिया है.) ४६४५६. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १२.५X१०.५, ८x१९). पार्श्वजिन पद, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे इतनो चाईये नित अंतिः भारी रतन नीहारे रे, गाथा-३. ४६४५७, (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२१.५x१०.५, १५X३१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अणजुग में केइ नरनारी, अंति: आसकर्णजी दाखी वाणी, गाथा - १४. २. पे. नाम. चार शरण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८५२, आदिः पो उठे सदा सैमरीये; अंतिः चोथ० सुनजो बाल गोपाल, गाथा - ११. ४६४५८. (#) शत्रुंजयतीर्थ व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६X११.५, १०x१६). १. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ २अ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि आगे पूर्व वार नीवाणु, अंतिः सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८३, आदि: पहिले पद जपीड़ अरिहंत अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ४६४५९. कुंथुनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५X११, १५X२०-२३). कुंबुजिन स्तवन क्र. रायचंद, मा.गु, पद्य, वि. १८५६, आदि: भगवंत आगल विनवुं अंतिः रायचंद० तिथि नाम रे, गाथा - १५. ४६४६०. आरती संग्रह व रुखमणी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., ( २१.५x१२, ११x२०). १. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आदेसरजीरी आरती, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु. पच वि. १९वी आदि अपछा करती जिन आगे; अंतिः करजो जाणी पोतानो बाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. रुखमणी सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु, पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि: अंतिः जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा - १४. ४६४६१. कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (१५x१०, १४४१९-२२). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास पुडिं, पद्य, वि. १७वी आदिः परम ज्योति परमातमा; अंतिः " वणारसी० समंकित सुद्धि, गाथा- ४४. ४६४६३. (+) पंचतीर्थं स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. रुणीजानगर, प्रले. श्रीचंद्र प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२३.५४९.५, ७२९). . १. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदि ए आदिजिने, अंति: लावण्यसमय० आवे साशता, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गिनकर परिमाण लिखा है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक मा.गु. सं., पद्य, आदि: श्वसुरगृहनिवासो स्वर, अंतिः मानभंगं नराणां श्लोक-१. ४६४६४. छ काय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. हिम्मत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक अपना नाम मुनि हीम्मत् बाधर ऐसा लिखा है. इसमें बाधर से कुछ स्पष्ट नहीं होता है., दे., (२६X१०.५, १३X३६). ६ काय सज्झाच, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, आदि हुआ हुवे के आद है जी, अंतिः भव पार भोला प्राणी, गाधा- २१. ४६४६५. गंभीरा पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१७.५५११, ११x२२). " पार्श्वजिन स्तवन- गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगंभिरापार्श्वजी; अंति: धर्मविजय गुण गाया जी, गाथा-७. ४६४६६. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१७५४११.५, १०x२३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. वल्लभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थ सीरी सिद्धाचल; अंति: वल्लभ० तीरथ सिरताजे, गाथा-८. ४६४६७. (+) सोल सत्यारो तान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, वे. (१७११.५, १६x२५). १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदिः श्रीरीषभतणी दोया, अंतिः पुगी मननी कोड, गाथा- १५. ४६४६८. मोक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पाटडी, प्रले. हरजीवन प्रेमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६.५x१०.५, १२x२३) मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारुं सासर अंतिः छे मोक्षनो वास रे, गाथा ५. ४६४६९. शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५X१२, १६x२०). शांतिजिन स्तोत्र, मु. उत्तमरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्मर सांतिजिन जिन, अंति: उत्तमरत्न० बहु भजना, गाथा-१५. ४६४७०. पर्युषण चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, विजापुर, प्रले नारायणजी नथुभाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२१X१०.५, १०X२७). पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पनुषण गुणनीलो, अंतिः शासने पामे जय जयकार, गाथा - ९. ४६४७१. (+) गीत व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., वे. (१३.५x१०.५, १४x२७). १. पे नाम औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. इस कृति की अंतिम गाथा पत्रांक १'आ' पर है. मा.गु., पद्य, आदि चिठ गतमाहि चाक जीम, अंतिः अत ही चतुष्ट धाय री गाधा ८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ३१७ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु श्रीगोडीपुर, अंतिः कल्याण सुपसाय हो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ४६४७२. छठा आरानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९x९, ७X२३). ६ठा आरा सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छठो आरो एवो आवसे; अंति: रायनो मेघ भणे सुखमाल, गाथा- ७. ४६४७३. जिनकुशलसूरि स्तवन व भवानी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२१x१०, १०x२२). १. पे नाम, जिनकुशल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादौ परतिष देवता; अंति: सारेज्यो सगला काज, गाथा-५. २. पे. नाम भवानी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कपाली कालीके करवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४ अपूर्ण तक लिखा है.) "" ४६४७४, (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (१८.५x१०, १६x२५-३५). १. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, रा. पद्य, आदिः लख चोरा जोन में लाल, अंति की मानज्यो रे लाल, गाथा- ११. , (२४X११, १०-१२X३४-४०). १. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण २. पे नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तेजसी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समत जणेसर समता जी आप; अंति: तेजसी० सीखामाही सगाज, गाथा-१३. ४६४७६. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२१x१०, १३५३१). " पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीराय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर पूरण आसा अंतिः श्रीसंघ में मंगलकरो, गाथा-१३. ४६४७७. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पं. ऋद्धिविमल, पं. हेतुसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलंभडे मत, अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा- ७. २. पे नाम वीर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण महावीरजिन गीत, मु. जीवनविजय, रा., पद्य, आदि प्रभु धारी खूबीनो, अंतिः जीवण बहु सुख पायो, गाथा-५. ४६४७८. चोवीसजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०.५X१०, ९-११x२६-३५). २४ जिन स्तवन- गुरुपरंपरानामगर्भित, ग. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सरसति सामिणी प्रणमी, अंतिः अमृतवि० लही शुभ ठाम, गाथा-२५. ४६४८०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नानचंद, पठ. श्राव. सुखराज, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७४११, २०१९). औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा, अंतिः रूपचंद० से हाथ रे, गाथा - ९. ४६४८१. वंभणवाडि जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४, प्रले. सा. अजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१७.५x११, ९x२१). महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः समरवि समरथ सारदा ए अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ४६४८२, (७) पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८. प्र. वि. पत्रांक २ से ४ मात्र आ तरफ ही लिखा गया है. हांसिये के दोनो ओर पिले रंग से रंगे गये हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५x७.५, ९X३१). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१८ www.kobatirth.org मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधुं क्या सोवै तन, अंति: मूरत नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमराजुल होलीपद, पू. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होलीपद, मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: हो होरी खेले दो भइया, अंति: रतन० पंचम गत पायो, पद-३. ३. पे. नाम. रावण पद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ऋ. जवाहर, पुहिं., पद्य, आदि: रावण कु समझावत नीका, अंति: होणहार कदे राम ठानी, गाथा ५. ४. पे. नाम. आदिजिन जन्मवधाई पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पु.ि, पद्य, आदि: नगर वनीता हे री सखी अति लेत ज्यान तन तन री, गाधा-२ ५. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तरसुं तरसुं दिन रैन, अंति: दरस किया में परसु, गाथा - ३. ६. पे नाम. आदिजिन पारणा पद, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पु,ि पद्म, आदि: ऋषभ जीणेसर कीयो पारण अंतिः श्रीऋषभदेव महाराज, गाथा ४. ७. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. " नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., पद्म, आदि: जादव मन मेरो हर लीवो अंतिः चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारण जिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सरण ग्रही प्रभु तोरी, अंति: रूपचं० चरणकमल बलीहारी, गाथा- ३. ४६४८३ औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१६.५४११.५, १०x२१). औपदेशिक पद - जिनभक्तिगर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: राजा रंक सबप एक; अंति: थे तो जाउगा निधान, गाथा- ६. ४६४८४, (४) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१.५८.५, १०X२५). १. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर, अंतिः वस्यो रतन कहे करजोड, गाथा - १६. २. पे. नाम. कृष्ण बलभद्र सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. " नेमराजमति सज्झाय, पुहिं, पद्य, आदि कीसन बलभद्र ली आय अंतिः जिन का लिया सरणा के, गाथा-५. ४६४८५ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैदे (२२.५x१०, १२४३७). २४ जिन स्तुति सवैयाबंध, मु. सुमतिकल्लोल, पुहिं, पद्य, आदि सब जग आदि कर प्रथम, अंतिः सुमतिकल्लोल० परम आणंद गाथा २५. ४६४८७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( १६ ११, १०x१५). ४६४८८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे., (१५.५x१०.५, १२४२५). महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: वाचक जस० आधारो रे, गाथा-५. गाथा - ३१. २. पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः आउखा तुटो नै सांधो, अंति: चोथमल० जालोर मझार रे, गाथा-८. ४६४९० छ द्रव्यगुण पर्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२१४९, १२x४०). " ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायरा गुण ४ अंति: करी वर्त्तइ छै. ४६४९३. महावीरजिन पारणुं व विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., ( २१.५X१०.५, ९४२७). १. पे. नाम. महावीरजी पारणौ, पृ. १अ- ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरीहंत अनंतगुण; अंति: तेहनै नमे मुनिमाल, For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३१९ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगत गुरुराय सुणि; अंति: हे प्रभु ढील न कीजै, गाथा-१२. ४६४९४. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १७४९, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लाडणु, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका बाद में लिखी गयी है. प्रतिलेखक नाम अस्पष्ट है., जैदे., (१२.५४९.५, १५४२०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: मनमोहन पास विराजे हो; अंति: सुबुध० कुं निवाजइ हो, गाथा-६. २. पे. नाम. श्यामसुंदर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सुरदासजी, पुहि., पद्य, आदि: सांवला कुंअरराजे आली; अंति: तथ कितवे मचि आन, गाथा-६. ४६४९५. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रत्नविजय; पठ. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४४११, १०x१४). मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ साथे नहीं बोलु; अंति: ऋषभने मन आणंदो जी, गाथा-५. ४६४९६. जैन संध्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१४.५४११.५, १०x१७). जैन संध्या, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ भूस्वाहा ॐ भूवस्वा; अंति: गं क्षं क्षं स्वाहा. ४६४९७. दशवैकालिकसूत्र- खुड्डियायारकहा अध्ययन ३, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१३.५४११.५, १८x२०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४६४९८. रथनेमिराजीमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८x११, १७४३३). ___ रथनेमिराजिमति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इसी क्या दीजै मै दरस; अंति: नीत कर कर लुलुताइ, गाथा-१५. ४६४९९. (+) दशवैकालिकसूत्र-छजीवनिकाय अध्ययन ४, अपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १३४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं है.) ४६५०५. (#) बृहछांति, संपूर्ण, वि. १७८४, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ९४२३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४६५०७. दशदृष्टांत सझाय, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मालुंगा, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x११.५, १४४२३). मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी परमेसर वीर; अंति: गुण विजयसिंह गणधार, गाथा-१२. ४६५१०. (#) स्तुति संग्रह व बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: रिखभदासनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ऋषभनाथ बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमु; अंति: दीजो देव तणा देवारे, गाथा-१३. ४६५१२. सिद्धाचल स्तवन वदूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५४१०.५, ८४२८). For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२० २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण www.kobatirth.org १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनकरतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीद्धाचल गायवा अतिः कनकरतन० विमलाचल गाबु, गाथा-५. दूहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. ४६५१४. (*) जुआरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७.५X११.५, १६४२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय- सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभल, अंति आणंद कह कर जोड रे, गाथा- ११. " ४६५१५. आवक करणी व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे. (१४४१०.५, ९x१३). १. पे. नाम. श्रावक करणी, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तुं उठे परभात अंतिः जिनहर्ष० हरणी छे एह, ४६५१९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (१५.५४११, १४४१४-१९)१. पे. नाम. आदिसर गीत. पृ. ९अ १आ, संपूर्ण गाथा- २३. २. पे. नाम. चोवीसमहाराजरो स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः भविजन वंदो रे चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ४६५१७ (१) महावीर द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७८२ आषाद अधिकमास शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २. ,ले. स्थल, कैरापुर, प्रले. पं. देवचंद मुनि (अज्ञा. ग. श्रीचंद); गुपि. ग. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६x१०, १८४२४). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्; अंतिः तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. आदिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरवदिसि जिन तणी, अंति: नंदसूरि० हरख वधामणा, गाथा-८. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्म, आदि अनुभव दीजई अनुभव अंति: (-) (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४६५२०. (#) मंगलसेन मुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१९.५X१०.५, १२×३९). मंगलसेन मुनि सज्झाय, मु. रामसीह, मा.गु., पच, आदिः श्रीमंगलसैनमुनी दीपत: अंतिः ख्याल रे हुवारी लाल, गाथा - १०. १६x४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ४६५२१. कपूर मंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६ (१ से ५, ७) = २, जैदे., (१८.५X११, १८X३२). कर्पूरमंजरी चौपाई, पं. मतिसार कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: मति० तुम्ह रक्षा करु, गाथा - २०५, (पू.वि. गाथा ९ से १३७ व १६४ से १९० तक नहीं है.) ४६५२४. पारसनाथजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४.५X११, १८x२४). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणेसर पुरण, अंति: माहासुत नवनिध पाव, गाथा- १२. ४६५२५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. प्रेम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५X१०, मु. डुंगरदास, रा. प. वि. १८४०, आदि: कासी तो देस वाणारसी अंतिः डुंगरदास० मननी आस, गाथा- १३. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. डुंगरदास, रा. प. वि. १८४०, आदि थे तो दसमा स्वरगथी; अंतिः डुंगरदास० हर्ष हुलासी, गाथा १३. ३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३२१ आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोहि रह्यो; अंति: (१)सेवइ बेकर जोडरे, (२)सेवैबे करजोडिरे, गाथा-५. ४६५२७. (-) सीता सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१५४११, १०x१६). १.पे. नाम. सीता सती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८८३, ले.स्थल. मलारगढ, प्रले. तिलोकहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मलती घणीरे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुख दायक तु साहबोरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक है.) ४६५२८. दशार्णभद्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x११, २३४४२). दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण गाईया, ढाल-४. ४६५३०. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२०.५४११.५, २७४२५). १.पे. नाम. प्रभाती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभाति स्तवन, मु. जीन, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिश जिन तणी रे; अंति: जिन० घरि हरख वधामणा, गाथा-५. २. पे. नाम. सूजातनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुजातजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगति तुंमति तुं; अंति: तोहिज रेहेसे लागोजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीयो किरतार सणीसी; अंति: इणि घरि छई आरीति, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चतुरनर निज मन; अंति: जिम आवागमन न होइ रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: रिद्ध कोटानकोटी, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वांदीई; अंति: कान्हजी०जिनवर जयकारी, गाथा-५. ४६५३३. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. धुराभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४११.५, १२४२२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. नृपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधरस्वामी म्हार; अंति: श्रीमंधरदेव सलूनादेव, गाथा-६. ४६५३४. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, १५४३८). १.पे. नाम. कर्मोपरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ कृष्ण, ७, ले.स्थल. सांतुनगर, प्रले. मु. महेसदास चेला; पठ. मु. भागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म राजारे, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, म. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: म भणीस ओछारे बोल, गाथा-६. ४६५३५. (#) सुलसामहासती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, ११४२३). For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुलसाश्राविका सज्झाव, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदिः धन धन साची सुलसा, अंतिः कल्याणविमल गुणगाव रे, गाथा- १०. ४६५३७. () सज्झाय संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०, २१X३१). १. पे. नाम. पांच इंद्रनी लावणी, पृ. १अ संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: प्राणि पांच इंदर्या, अंतिः निज आतमकु उजवाले, गाथा- ९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि जवान सिरिसी मीठी जगत अंतिः मुरख से लाचारी क्या, गाथा ८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि: वे दीन भुल्यो राज, अंति: गमायो जनम अमोलो, गाथा-४. ४६५३८. () शिवलव्रत कथा, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे., (१९.५X११.५, १९X३५). शीव्रत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: गोतमसामी समरुं तोय; अंतिः कारणै कांयस है जम मार.. ४६५४०. कलीजुग स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६ श्रावण शुक्ल १५, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (९४७.५, ८x१२). ४६५४६. कलयुग पद, रंगलाल, पु.ि, पद्म, आदि: हाकांधिका कुलजग आयो अंति: दोलत ज्यांहि टोटा, गाथा- ९. ४६५४४. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५x११, १५X३५). १. पे. नाम. सुपास गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंति: हर्षने आपो अविचल वास, गाथा-७. २. पे. नाम. शत्रुंजय गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सहीयां मोरी चालो अंतिः अरिहंत श्री आदिनाथ हे गाथा-१३. । स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१६X१०, १३x२३). (-) १. पे नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८५४, आदि: चंद्रप्रभु चितमोह, अंति: लालचंद० दास चरणारो, गाथा १२. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चोथमल रा. पद्य, आदि: संतनाथ प्रभु सोलमाजी, अंतिः अचलादेवेजी से नंद, गाथा- ९. " ३. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. चंदनवालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य वि. १८४२ आदि चित चोखी चंदनबाला अंतिः साधवी हूइ सारा पहली, गाथा - १२. ४. पे. नाम. चोवीसी, पृ. ३आ, संपूर्ण. , २४ जिन मांगलिक स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: मंगल कर जिणराज नमो अंतिः ते मन वंछत सुख पावै, गाथा ५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रम हंसकुं चेतना रे, अंति: कुसल० जनम न पाउगे, गाथा- १०. ४६५४८. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ३, जैदे (१६४१०, ११x२२). יי १. पे. नाम. थूलीभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. कोशास्थूलभद्र सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलीया तुं वेहलो; अंतिः बाट जोज्यौ चौमासे रे, For Private and Personal Use Only गाथा - ६. २. पे. नाम. साधारनजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: अटके नयनां जिन चरणां; अंति: ज्ञानउद्योत० चरणां, गाथा-३. ३. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्र लोक हरख भयो घं; अंति: रूपचंद०मन मेरो सनननन, गाथा-४. ४६५५०. वीर सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४१२,१३४१८). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखि अति; अंति: पूछे उलट मनमा आणी, गाथा-१२. ४६५५१. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१८x१२, ९x१८). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३८ अपूर्ण तक है.) ४६५५३. शनीश्चरनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१४.५४११.५, १२-१५४२४). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामणी मती दीओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३१. ४६५५४. सवैया व नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१६.५४१०.५, १७X४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माणस को मोल सोतो; अंति: मन ग्यान एतो मान, गाथा-१. २.पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वडगच्छ १ तपाबिरुद; अंति: नाडोला गच्छ ८४. ३. पे. नाम. १२ मती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आंचलीया मती १; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र ११ मत _हैं.) ४.पे. नाम. औषधि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६५५५. त्रिकगाथा सहटबार्थ व पनोतीमान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४११.५, ४४३२). १.पे. नाम. बड़ी पनोती, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. त्रिक गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जीवो संवर निझर; अंति: भागो असिद्धि गओ, गाथा-३. नवतत्त्व प्रकरण-जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवतत्त्वमाहि; अंति: रहे छे एहवा सिद्धि. ४६५५६. बाहुजिन फाग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४४१०.५, १०x१९). बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणे रे बहु रंग भरी; अंति: न्याय जिन आणिखरी रे, गाथा-९. ४६५६०. चक्रेश्वरी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७.५४८.५, ९४२४). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: (-), श्लोक-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) ४६५६१.(+) विवेकमंजरी, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१७४९, ८x२३-२७). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३९ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक है.) ४६५६२. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१७.५४९.५, १३४२५-२७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: (-), (पू.वि. 'जावंति चेईयाई' के प्रारंभिक पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनै माहरो; अंति: (-), (पू.वि. 'जावंति चेइयाई ' के प्रारंभिक पाठ का बालावबोध तक है.) ४६५६३. मचणरेहा सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (११.५४११.५, १४४२१)१. पे. नाम. मयणरेहा सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लघु बंधव जुगबाहूनो, अंति: हुं बंदु त्रण काल, गाथा ८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: हयं च सिष्यं सुत; अंति: तो या हितें लपटाय, श्लोक-२. ४६५६५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (१५.५X१०.५, २८४२५). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: द्रढ समक्त नर थोडला, अंति: अकल ही यारी जोइ हो, गाथा - २१. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः आगम सुणी सखी बांदवा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं दी है.) ४६५६६. धर्मजिन स्तवन- कलकत्तामंडण, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१६.५x१०.५, ९x१५). 3 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मजिन स्तवन- कलकत्तामंडण, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: शासन रसिया सेवो रे, अंतिः मुनिचंद्र० भव तार, गाथा - ६. ४६५६७. पंचकल्याण स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. २, दे., (१६X१०, ११x२०). १. पे. नाम, पंचकल्याणक स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अष्टवरस नग मास हीना, अंति: जगजीव मिलोगा तेहमे, गाथा - ५. २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: च्यवित्वा यो मातुः; अंति: पारंगतः सिद्धः, गाथा-६. ४६५६८. (+) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-७३ (१ से ७३) = १, जैदे., (१७X८, १६X३२). नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बत्तीसं सोलसय वंदे, गाथा - २५, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है.) ४६५६९. (-) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (१७४९, ११x२२). १. पे. नाम, पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. २३अ-२४अ संपूर्ण आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुरतरनी पर दोहली रे; अंतिः श्रीविजयदेवसूर, गाथा- १६. २. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्म, वि. १८वी, आदि मेरे इतनो चाहिये अंतिः पासजी मै अवर न धनुं, गाथा-३. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तु भरम भूलना रे; अंति: कर जोड़ वेरानी, गाथा - ३. ४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीव रे चला जात जहान; अंति: तेरा समज दे लरी जान, गाथा-३. ४६५७१. पदमावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सादडी, प्रले. ऋ. किशोरचंद (स्थानकवासी); अन्य श्राव. ताराचंद माणेकचंद रवाणी, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे, (२०१२, ११x२३). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंति मुज मिच्छामिदुक्कडं, ढाल -३, गाथा-३७. ४६५७४. स्तवन सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, २, जैदे. (१५.५x११, ११५१७). १. पे. नाम. वीसस्थानक स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ४६५७७. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, वे. (१८.५४११.५, ११x१८-१९). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुअदेवी समरी करूं, अतः जिनपद सुजस जमाव, गाथा - १४. २. पे. नाम. तेर काठियानी सज्झाय, पृ. २आ- ४अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१६. ४६५७५. (#) संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक के रूप में जैन शाला का उल्लेख है. अक्षरों स्याही फैल गयी है, दे., (१८x८, १३X१४). " संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर बीनती अंति: वाचक जस० साचुरे, गाथा-५. " ४६५७८. भंडारगाथादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैवे. (१८.५४९.५, ९४२३). १. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र भंडारी गाथा विधिसहित पू. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मोरा आतमा हो राम किण, अंति: (-), गाथा-७, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र- शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपुरिदिग्वि, अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. जयतिहुअणस्तोत्र भंडारी गाथा विधिसहित, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र - भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः परमेसर सिरिपासनाह; अंतिः सिद्धमहवंछिय पूरय, गाथा-२. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र - भंडारी गाथा विधिसहित, पृ. २अ, संपूर्ण. उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा * संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः ॐ तुह दंसणेण सामिय अंति: अट्टगणाधारे वंदे, गाथा - २. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. लोकसंग्रह प्रा.सं., पद्य, आदि: चक्री त्रसुलं न हरी, अंतिः परमाणो मुनयो वदंति श्लोक-२. ४६५८१. माणीभद्रजीनी आरती व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. दे. (१४१०, १६४१७). आस्या, गाथा- ७. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्म, आदि: चलती सो ना चलती, अंतिः ना चढ़ती सो चढती, दोहा-१. , ३२५ १. पे. नाम. माणीभद्रजीनी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर आरती, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि जय जय जग निधी जय अंतिः दीपविजय० सहु ४६५८२. पाप परिवार व गाथा संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे, २, दे., (१४४१०.५, ८४१४). १. पे. नाम. पाप परिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा. गु, गद्य, आदि: पापनो बाप ते लोभ, अंतिः पाप कुटुंबने छांडवो २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह में, प्रा., पद्य, आदि दुइहो माणस्सो अंतिः सामगा पुण दलहा, गाथा- १. ४६५८३. (+) महावीरजिन स्तवन निसालगरणुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१६४१०, १५x२३). , महावीरजिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिन आणंदना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १८ तक है.) ४६५८५. (+) वारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित दे. (१५X११.५ ११५२०). "" For Private and Personal Use Only १२ व्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: गउतम गणधर पाय नमिजे; अंति: साधु श्रावकने तोलेए, गाथा- १६. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६५८६. (#) मेणरह्या चोपाइ, अपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, अन्य. गजराज भंडारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १४४ है. प्रथम पत्र नहीं हैं. पत्रांक अनुमानित दिया गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (१६.५x११.५, २३४१८). . मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परनारी त्यागी ज्यौ, गाथा- ५६, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ४ से है.) "" ४६५८८. स्तवन संग्रह, सझाय व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ४, जैदे. (१३.५४१२, १३x२२). १. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडा तुं माहरा सुण, अंति: लबधीवीजे० भगवंत रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ५. २. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागे प्यारो, अंतिः माहानंद० माने सेवमां, गाथा- ७. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः घरे आवोने नेम, अंतिः रूपचंद० सवी फल्या रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. सरस्वती चूरण, पृ. ७आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६५८९. थुई संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. २, वे. (१९४१०.५, ९४२७). १. पे. नाम. महावीरस्वामी थुई, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति - २७ भव, मु. जसविजय, मा.गु, पद्य, आदि गंधारे श्रीवीरजिणंदा, अंतिः जयविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. शंखेश्वरपासजीन थुई, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - शंखेश्वर - पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: रंग अधिक बाजी गाथा ४. ४६५९० (+) भक्तामर स्तोत्र सह टिप्पण व मांगलिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१५x१०, १५X३३). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टिप्पण, पृ. ११अ १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. "" भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४८ (पू. वि. श्लोक १८ अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पुष्पाणि यस्याः सा, (पू. वि. श्लोक १८ अपूर्ण से टिप्पण है.) २. पे. नाम. मांगलिक लोक, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐकारबिंदु संयुक्तं अंति: जैनं जयतु शासनं, श्लोक-३. ४६५९१. सिद्धचक्रनवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. मु. लखमीविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे., (१६X१०.५, १३X२४). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पच, आदिः सिद्धचक्र आराहता सुख, अंतिः साधुविजयतणो० करजोड, गाथा ५. ४६५९२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैवे. (१६.५x११, १०x२४-२७). "" १. पे. नाम, दंदणऋषि सज्झाय, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि ढंडणारखनै बादणा हुं, अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि मानवनो भव पामीयो; अंतिः कहे सुख लहै निरवाण, ढाल २, गाथा - ११. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३२७ ३. पे. नाम. मोक्ष सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारो सासरो; अंति: मुगति निदान रे लाल, गाथा-५. ४६५९३. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४९, १९x१५). शांतिजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारदमात नमुं सिरनामी; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावै, गाथा-२१. ४६५९४. जिनकुशलसूरिजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, अन्य. आ. जिनमहेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१०.५, १३४२८). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती, अंति: अभयसोम० लीला वरी, गाथा-३१. ४६५९५. (#) पंद्रह कर्मभूमि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४१०.५, ३३४३४). १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १५ कर्मभूमि ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हिमपर्वत वर्णन अपूर्ण तक है.) ४६५९७. (+#) रत्नाकरपच्चीशी व गुरुगुण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४१०.५, १२४२३-२५). १. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीशी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. २.पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गुरुजी मोरा सोन; अंति: ती चतुपद की बोर, दोहा-३. ४६५९८. पच्चक्खाण संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१८.५४८.५, १०४३६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: गंठसिय मुट्ठिसय पच्च; अंति: गारेणं वोसिरामि, संपूर्ण. ४६५९९. गुरूशीख पूछा व समकित बोल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१५.५४९, १५४३२). १. पे. नाम. गुरूशीख पूछा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा २६ बोल, रा., गद्य, आदि: पहेले बोले कहो पूज; अंति: होय जिण पाप कै उदै. २. पे. नाम. समकित बोल विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वबोल विचार, रा., गद्य, आदि: समकित को भाजन जीव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ 'आठमा देवलोकने नवन' पाठ तक है.) ४६६००.(-) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७४९.५, १०४२१). महावीरजिन स्तवन, मु. चौथमल, रा., पद्य, आदि: मे तोसु जी औग नगरो; अंति: चौथमल० ही सहारो, गाथा-४, संपूर्ण. ४६६०१. एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६४१०.५, ८x१९). एकादशी स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: क्षपतु विपद पंचकमद, श्लोक-४. ४६६०२. श्लोक संग्रह, दोहा व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. कच्छ, प्रले. पं. माणिक्यविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४१०.५, १४४२०). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: करोयती नीतगमनं मित्र; अंति: पूर्णश्चंद्रो निषेध, श्लोक-२. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-१. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२८ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. काया आत्मा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव, मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदिः यामें वासा मा वे अंतिः मुगतपुरी मे खेलो, गाथा- ७. ४६६०३. जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, दे. (१६.५x१०.५, १८x१३). १. पे नाम, पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. १अ संपूर्ण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदयरत्न०माहाराज भीजो, गाथा-५. २. पे. नाम जिनपंचक प्रभाती स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतना स्तवन भणतां, गाथा-७. ४६६०४. आदिनाथ गीत व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४ वे. (१९४१६, २०२३). 1 "1 १. पे नाम, आदिनाथ गीत, पृ. ९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यउ, अंतिः सेवै बे करजोडि रे, गाथा - ५. २. पे. नाम. वरकांणा स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणापुर राजीया; अंतिः जिनभक्ति० मनोरथ माल, गाथा- ७. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पु,ि पद्य, आदि: दादो दोलत दाता सुख, अंतिः कनककीरत० गुण दाता, गाथा-२. " ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लग्या जिन, अंति: खुश्याल० भगा मेरा, गाथा - २. ४६६०५. १०८ गुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६X११, ६x२७). पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा. सं., पद्य, आदि निमल केवलनाणं दंसूण, अति: मंजण वेयणमरणसह रसधमं, गाथा- ६. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल केवलज्ञान, अंति: मरणांतक रोग सहै. ४६६०६. (+) उभवनयगर्भित वीरजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९१९ आषाढ शुक्ल ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. बालचंद्र ऋषि, पठ. श्राव. धनपतिसिंह प्रतापसिंह साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंभवनाथजी प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दे., (१९.५x१२, १७३६). महावीर जिन स्तवन- पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य वि. १९९९, आदि: श्रीवीरचरणकज भेट्या अंति ज्ञान० मंगलवारा रे, गाथा-८. ४६६०८. पजूसण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( १८x१०, ९x१७). ४६६०७ (+) गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित. दे. (१९.५x११.५, २०X२०). १. पे. नाम. महावीरजिन गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रविविजय, मा.गु., पद्य, बि. १९३७, आदि: शासननाअक दीपता सुख, अंतिः रवि लहे सुखनिधान, गाथा १४. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. राजेंद्रसूरिगुरु गहुँली, मु. रविविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: (१) रूडीने रडीयाली रे, (२) सइयर सुणी रे उत्तर; अंति: रवी लहे सुख विलास, गाथा ५. साधारणजिन गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे ललित वचननी; अंति: जी रे करशो एक अवतार, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only ४६६०९. आत्मबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. दे. (१३.५४८.५, ९x१८). , पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो अंतिः श्रीविजयदेवसूरि कि गाथा- १५. ४६६१०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१८.५x९.५, १३×३०). १. पे. नाम. दस बोल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० बोल सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७२, आदि: ए दस बोल देखे छद्मस्; अंति: नागोर स चोमास जी, गाथा - ६. Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीचरे; अंति: चंदजी गुणग्राम कीया, गाथा-९. ४६६११. (-) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१८.५४१०.५, १६x२५). गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबूदीप माहि नानो; अंति: रायचंद० चोमासे रे, गाथा-१२. ४६६१२.(-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१५.५४१०, १७४२३). औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव भम्यो रे भोला; अंति: जैमलरे गाफील मते रह, गाथा-१४. ४६६१३. अढार नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. वलभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३४११.५, १४४१६). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलाने समरु रे पास; अंति: ऋद्धिविजय गुण गाय रे, ढाल-३, गाथा-३२. ४६६१४. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१९४९.५, १२४४२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उ.,मा.गु., पद्य, आदि: गोरीपास गरीबनिवाज; अंति: अर्जे याहीवे याहीवे, गाथा-५. ४६६१५. पर्युषण व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (१९४९.५, ७४१८-२१). १.पे. नाम. पजूसण चैत्यवंदन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामे जय जयकार, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८. ४६६१६. जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. शीवपुर, प्रले. फूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५४१०, ८x१७). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहै ___एम, गाथा-१८, (वि. गाथा १ को २ की गिनतीक्रम से गिनी गयी है.) ४६६१७. अष्टप्रकारी पूजा व मिथ्यात्व के ५भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१६.५४११.५, १९४१७). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. २. पे. नाम. मिथ्यात्व के पाँच भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. मिथ्यात्व के५ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १ अभीग्रहीक मीथ्या; अंति: धर्म अधर्मनुं स्वरूप. ४६६१८. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४१०.५, २३४१४). सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-७. ४६६१९. (#) नवकार ध्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०, ११४२५). नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: पहल पद श्रीअरहंतदेवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११ तक है.) ४६६२०. गौतमस्वामि गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x१०, १०४२१). __गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावन्यसमइ०संपति कोडि, गाथा-९. ४६६२१. (+) चौवीस तीर्थंकर लंछन काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (१७४१०.५, ९४२१). For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: ऋषभ लंछन वृषभ अजित; अंतिः तणो लखमिरतन कहंत, गाथा - ९ (वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है. सभी तीर्थकरों के नाम के क्रमांक उल्लिखित है.) ४६६२२. (+) स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे ६ प्र. वि. संशोधित. जैवे. (१४.५४९.५, २२x१६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. गजसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: बुधजनेकजनं कुरुनापर, अंति: गजसागर० चिह्नविवाविद, श्रोक-६. २. पे. नाम. गूढार्थ श्लोक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह - गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: बाढं जसो वितानाथ छमक; अंति: हठाधोझकिदीश्वरः, श्लोक-१, (वि. श्लोकार्थ हेतु अंकों के द्वारा संकेत किया गया है.) ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - श्लोक १, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ४. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: मूल्येन किंचित् कलया; अंति: चोरा वणिजो भवंति, श्लोक-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदिः सखी हो विसर मित्त, अंतिः घासवे वली चढावे पाड, दोहा-१. ६. पे. नाम. जल गुणदोषविचार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः आदौ मंदाग्निजननं, अंति: वारि क्वापि निवारितं, श्लोक-३. ४६६२३. पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, दे., (१६X११, १३×१९-२२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अखीयोने रही; अंतिः तन कहे रे पुगी रे आस, गाथा-८. २. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सुणि जीवडा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. गोडी पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भवि वंदो रे गोडी पास, अंति: गाइ पद्म कहे लहे पार, गाथा - ९. ४. पे नाम. शेडुंजा स्तवन, पृ. ३.अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चलो तो शत्रुंजय, अंति: ज्ञान० वीतरागसु धाइये, गाथा - ६. ५. पे नाम. शेडुंजा स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वनीता ते प्रीउने वीन; अंति: उदयरतन० पामे परम आणंद, गाथा-५. ६. पे. नाम. सेत्रुंजारो तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सीद्धाचल; अंति: सीष कनक गुण गाय जी, गाथा-१३. ४६६२४. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, ले. स्थल, पालीताणानगर, प्रले. हर्षचंद हीराचंद गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. आदेशरजी पसाये. दे. (१८x११.५ १२x२१). " १. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: शैवेयः शंखकेतुः कलित, अंति: कजकराभार कदंबाभिधाना, श्लोक-४. २. पे नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३३१ महावीरजिन स्तुति-स्नातस्यास्तुति पादपूर्तिगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्फूर्जद्भक्तिनतेंद; अंति: बालचंद्राभदंष्ट्रम, श्लोक-४. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमौलिप्रपतत; अंति: मालां विशाला अमूला, श्लोक-४. ४. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ४६६२५. (-) पार्श्वजिनाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१८x११, १४४१६). पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४ तक लिखा है.) ४६६२६. (+) ३२ असज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पत्र के दूसरे भाग पर यही कृति असज्झाय १२ तक लिखकर छोड़ दी गयी है., संशोधित., दे., (१३४११, १२४२२). ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाइ कहता तारो तूट; अंति: उगता दोपहरा आधीराते. ४६६२७. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सवाइ जयपुर, प्रले.सा. लीछा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१८.५४१०.५, १६४३५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: काशी देशमाहि नगरी; अंति: रायचंद० फलै सह आस, गाथा-२१. ४६६२८. नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८.५४९.५, ९४२६). नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: काई हठ मांड्यो छै; अंति: हरखचंद० मुगत रे वास, गाथा-७. ४६६२९. जीरावला पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७७१२.५, १२४२६). पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ४६६३१. दोहा संग्रह व अनागतचोविसजिन जीवनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८x१०.५, १५४४५). १.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दामनी की छवि जैसी, अंति: पैगोरी लागै ग्यान की, गाथा-५. २. पे. नाम. अनागत चौवीस जिननाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीपद्मनाभ श्रेणि; अंति: भद्रकृत स्वातिनो जीव. ४६६३२. जीवना आयखानी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१०, १८४३५). पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनो १२० वरसनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चीता के आयुमान तक लिखा है.) ४६६३३. सीमंधर स्तवन, औपदेशिक पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (१८.५४११, १६x४२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधर सामी मह; अंति: हीरालाल लावणी गाइ हो, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९३२, आदि: थे सुणजो भाया बाया; अंति: हीरालाल ढाल वणाइ हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: चेत चेत रे सुण हंस; अंति: जावे अमरापद मेरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि अंत गणेरो लोभ न कीजे, अंति: हीरा०धन महादुखदाई रे, गाथा- ६. ५. पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: बालपणें बलभ गणो मात; अंति: हीरा० देवगुर पर धान, गाथा ६. ४६६३४. (+) संघपती हीरानंद खेतसी गीत, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (१७.५x१०.५, २२x१०). हीरानंद खेतशी संघपति गीत, मा.गु., पद्य, आदि: संघपती हीरानंद घरणी; अंति: गुणियण चिरंजीवोजी, गाथा-९. ४६६३६. (-) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे., (१८.५४११, १५४३३). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पधार्या, अति: चवन जासी मोख हो, गाथा- १५. ४६६३७. महावीर स्तवन, भास व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, जैदे. (१९x१०.५, १३४२६-२९). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: कुन करे वारी कुरे, अंति: आगम अविचल सुख वरे, गाथा- ६. २. पे. नाम. विजयधर्मसूरि भास, पृ. १अ संपूर्ण. मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो दीए छे; अंति: होजो मंगलमाल, गाथा-५. ३. पे नाम, जीभ सझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडलि सुण बापडलरि, अंति: प्रेम० परतक्ष देवा रे, गाथा - २०. ४६६३८. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य आ जिनभक्तिसूरि (खरतरगच्छ), जै.. (१८.५x१०, १३x२२). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सेतुंजेसिखर समोसर, अंतिः समयसुंदर कहे एम, गाथा - १६. ४६६४० स्तुति संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (१६.५x१२, १६४३२). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. एकादशी स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण एकादशी तिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज एकादशी नणदल मौन, अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति अडी, अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ४६६४९. सिद्धाचल स्तुति व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अंत में ग्रंथसूची दी गई है।, दे.. (१८.५४१०, २१४१४). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण अंतिः सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४, २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: जयकारी जिनराज पुरसाद अंतिः जिनचंद ० सार्या रे, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only ४६६४२. पार्श्वजिन स्तवन, पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (१८४१०.५, ११४२८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकसोम, सं., पद्य, आदि: जय जिन सुरनतपदकमल, अंति: कनकसोम० खिलभू० कमलः, गाथा- ७. Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २.पे. नाम. नेमिराजीमति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, मु. कनकसोम, पुहिं., पद्य, आदि: जिन विणु क्यु रहीयइ; अंति: कनकसोम० कही सहीयइ, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चंदनं शीतलं लोके; अंति: शीतलं साधुसंगम, श्लोक-१. ४६६४३. दानमहिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९x१०.५, १३४३३). दानमहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दानसु दलदर हरे दानसु; अंति: संसार करे ने उधरी जी, गाथा-१३. ४६६४४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८.५४१०.५, ११४२६). पार्श्वजिन पद, मु. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण माहाप्रभुजी को; अंति: हीमत रे सुरुतरु आनंद, गाथा-११, (वि. १ गाथा को २ गाथा की गिनतीक्रम से गाथा गिनी गयी है.) ४६६४५. नेमिनाथ जान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९४१०, १८४४१). नेमिजिन जान वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: द्वारामतीनगरी; अंति: घोडे बइठाया देवकुमार. ४६६४६. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८.५४१०.५, १२४२६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी अतिभली; अंति: भावसागर०वंदै वारोवार, गाथा-१३. ४६६४७. संखेश्वर गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४११.५, १९४२०). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत बनी तो नीभाय; अंति: माणिक० सेवा फल पईयां, गाथा-७. ४६६४८. दसार्णभद्र सामैयु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१२.५४१०.५, १४४१६). दशार्णभद्र सामैयु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति प्रणमी करी; अंति: जाणिइं पातसा रे लोल, गाथा-१८. ४६६४९. पोसह विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६.५४१०, १०४२१). पौषध विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य थकी पोसो कराव; अंति: अस्त्रीकथा भूगत कथा. ४६६५१. (4) पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११.५, १९४२२). पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. कल्याणसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रभु ज्योति दीपे; अंति: सततं कल्याण माल परं, गाथा-९. ४६६५२. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x११, ९४२०-२१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सदनमुनि, रा., पद्य, आदि: प्राण पीयाराजीउ पास; अंति: वसीया सुख वासोजिने, गाथा-५. ४६६५३. थंभणपुर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (१४.५४९.५, १९४१८). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूरवर पासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ चोसीलो, गाथा-४. ४६६५५. आरती, सवैया व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (१३४१०.५, १५४१८). १.पे. नाम. आदीनाथ आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटडी. आदिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: आरती आदनाथ तेरी मन; अंति: तमसे बनी लीलाधारी, गाथा-५. २.पे. नाम. मुरखनो सवैओ, पृ. १आ, संपूर्ण. मूर्ख ८गुण सवैया, मु. केसव, पुहि., पद्य, आदि: मुरख के आठ गुण साव; अंति: केसव० मुरख को गात है, पद-१. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैतवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४६६५६. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४११, १३४२०-२१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-पुरीसादाणी, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२८, आदि: वामानंदन साहिबोजी; अंति: प्रेमविजय० सुरंगी छो, गाथा-१०. २. पे. नाम. ८४ गच्छ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विजय विमलरूच सार; अंति: गच्छ कहीये तपा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४६६५७. (#) बोल, चैत्यवंदन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र १४५ हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (४६.५४१५.५, ५७४३१). १. पे. नाम. आठ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. पुण्यपाप परिवार गाथा-ठाणांगसूत्रे, रा., पद्य, आदि: पापनो बाप ते लोभ पाप; अंति: साच धर्म मुल ते खिमा, गाथा-२. २. पे. नाम. सिद्धाचलगिरिराज स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमंडलमणिमय; अंति: तत्तीर्थयात्राफलम, श्लोक-२४. ३. पे. नाम. श्रावक करणी, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं ऊठी परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी: अंति: लावण्य०दीधाना फल जोय, गाथा-१२. ४६६६०.(#) नमिउण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१२, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. हंसराज; पठ. तेजपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१२, १२४१८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ४६६६१. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४४११, ११४१६). पार्श्वजिन स्तवन-जामनगरमंडनचिंतामणि, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी पार्श्व; अंति: वंदे देव वारमवारजी, गाथा-६. ४६६६२. रीषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (११४६, ९x१८-२२). आदिजिन स्तवन, ग. जसवंत, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुरराय रिषभ; अंति: सुखदायक तु सिरधणि, गाथा-५. ४६६६३. (#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१३.५४११.५, १८४३५). १. पे. नाम. गयसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर आवता मे सुणा; अंति: स्वामी आवागमण नीवार, गाथा-५. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम सूरति मोहन; अंति: नवनिध लछी पाया रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हूं तो पूजिस; अति: रामविजय० पोहती जगीस, गाथा-५. ४. पे. नाम. क्रोध स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. ४६६६४. नेमजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६.५४११.५, ९४२४). नेमराजिमती वीनती, पुहि., पद्य, आदि: नाथ मारी वीनतडी सुण; अंति: फीर गीरवर जायजोनाथ, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३३५ ४६६६५. (-) पद, सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७.५४१०.५, १६४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: वामानंदन पासजिणंदजी; अंति: अठारे वरस चहोतरे हेय, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मेडता, प्रले. सा. मनुजी, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: फुलसी देह पलकमै पलटे; अंति: क्या मगरुरी राखरे, गाथा-५. ३.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राभ उठ श्रीसंत; अंति: रतनचंद पलाय पपाय टरी, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४६६६६. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४९, ३४४१८). पार्श्वजिन स्तुति, मु. नैणसी, मा.गु., पद्य, आदि: परमेसर श्रीपासजिणेसर; अंति: यशसील० नैणसी हो लाल, गाथा-७. ४६६६७. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१०, ११४२८). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: दील रंजन जीनराजजी; अंति: हवे ग्रही हाथरे, गाथा-७. ४६६६८. सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (१६.५४१०.५, ९x१९). सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंदर मुजमन वाल; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ४६६७०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. मु. वनिमल्ल ऋषि (गुरु मु. कस्तुरचंद); गुपि. मु. कस्तुरचंद (गुरु मु. वीरचंद); मु. वीरचंद; पठ. सा. मृगाजी (गुरु सा. अमृताजी); गुपि.सा. अमृताजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (१७४१०.५, १४४३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: सतगुर सिख सुणो भव; अंति: वीरचंद०भजन सजन कर रे, गाथा-२०. ४६६७१. (#) निंदानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१३४१०.५, ११x१९). औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो __कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४६६७३. (+#) अष्टमी व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, ११४२८). १. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ४६६७५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३६-४४). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांति सूरेंद्र हो, गाथा-१८, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)नाह भलो पिण नाहलो, (२)सासणनायक समरीयै; अंति: कांतिसूरि आणंदरे लाल, गाथा-११. ३. पे. नाम. दसपच्चक्खाण स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० पच्चक्खाण स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: प्रणमुं सिद्धारथ नंद; अंति: कांति० संघ पूरो आसए, गाथा-१९. ४. पे. नाम. सोधर्मेंद्राणीसंख्या सिज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. सौधर्मेंद्र इंद्राणीसंख्या सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरने लागु पाय; अंति: तिलकसूरिजी कीयो वखाण, गाथा-६. ४६६७६. (+) बाहुबली सझाय, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. श्राव. पनालाल; पठ. पंडित. प्रतापचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१८.५४११, ११४२५). बाहुबली सज्झाय, मु. सिवचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सारद माय नमी करी; अंति: रेहजो अवचलराज रे, गाथा-१५. ४६६७७. जुआव्यसन निवारण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९४९, १०४२८). ७ व्यसन सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ विसने वाहीऊ नल; अंति: पामो अविचल धाम रे, गाथा-८. ४६६७८. पार्श्वनाथ वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४१०, १३४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३. ४६६७९. सामलापार्श्व स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. वसंतराम माणकचंद भोजक; लिख. श्राव. मोतीलाल जेठालाल मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र २४२ हैं., जैदे., (२१.५४१७, ७-१०४२६). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि मांहि भाविइ; अंति: वाचक जस कहे देव, गाथा-१७. पार्श्वजिन स्तवन-शामला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंतनी पुजा करत; अंति: हे देव इम जस कहे. ४६६८०. (-) धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम स्पष्ट नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (१३४१०, १३४१८). धर्मजिन स्तवन, मु. कुशालचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: रत्नपुरी मै परभु जलम; अंति: कुषालचंद० इधक हुलास, गाथा-१०. ४६६८१. (#) विधि, मंत्र व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११.५४९.५, २०४१५-१८). १.पे. नाम. पारामारण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. मंत्र तंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३.पे. नाम. नेमराजिमती कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदि: गडडड गाजइ मेह वीजली; अंति: आन अखंड सवे संघ मानइ, गाथा-४. ४६६८२. (-#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. कुल पे. २,प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष मात्र "संवत १९" लिखा है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, ८x१८). १.पे. नाम. पांचमरो स्तवन, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वीरजीणवर इम कहे, गाथा-२७, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. बीजरो स्तवन, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय, गाथा-१९. ४६६८३. (#) सीमंधर स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०, १०४३१). f For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा, भक्तिलाभ, मा.गु., पद्म, आदि सफल संसार अवतार हुं, अंतिः पुरि आस्या मन तणी, गाथा - १८. २. पे. नाम मंत्र तंत्र संग्रह, पू. ३.अ. संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", उ. पु. प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). ४६६८४. संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, प्र. १, जैवे. (२१.५x१०, १०x३०). काज, गाथा - १०. ४६६८६. पर्यूषण स्तूति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. प्रहलादनपुर, जैदे., (२०.५X११, १२X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभवजिन स्तवन, वा. जयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: तीजो संभवसामजी वांदो, अंति: जयविमल० अवहड ठाम रे, गाथा - ११. ४६६८५. (+) शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२१.५x१०.५, ११४२५)शत्रुंजयतीर्थ भरतनृपयात्रावर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि नयरी अजोध्याथी संचर अंतिः पाखतीए सीधा सघला पर्युषण पर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पर्व पयुषण पुन्ये, अंतिः सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ४६६८७. रहनेमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X१०, १०X२८). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: देवरीया मुनीवर छेडो; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-६. ३३७ ४६६८९. मौन इग्यारस स्तवन व राजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५x९.५, १२X३५). १. पे. नाम. मौन इग्यारस स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ले. स्थल. द्विपबंदर. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कही ग्राहडी, गाधा १३. २. पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण नेमराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पच, आदि: अवलमोल अमूल झरूखे, अंतिः सेवक देवविजय जयकारि, (२१X११, १७x४४). १. पे. नाम सीतानी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा-७. ४६६९०. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (१५.५४९.५, १२-१४४२२) " गुरुगुणसज्झाय, मु. भानीराम, रा., पद्म, आदि; ज्याने सेवौ भवीमन, अंतिः भानीराम० हूवे मन आस, गाथा १३. ४६६९१. (#) नेम स्तवन व आत्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२ हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है. दे. (४०.५x१०.५, ३६१७). १. पे. नाम, नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दरशन दीठे दिलडा, अंति: गावे उलसीत भावे रे, गाथा ९ (वि. आदिवाक्य का अंश खंडित है.) २. पे. नाम. आत्म सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी ते पीऊने एम, अंति: मुगते जाशे ते जीव रे, गाथा- ११. ४६६९२. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. रत्नपूरी, जैदे., (१३.५x९, १२x२३). 1 धर्मजिन स्तवन, मु. शांतिरतन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वरना गुण अंतिः शांतिरतन मन राजी रे, गाथा ५. ४६६९३. सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि जनकसुता हुं नाम, अंतिः नित्य होजो प्रणाम, गाधा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनचरणां चित्त ल्याउ; अंति: आनंदघन पद ठायरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब ज्योति हेरे जिन; अंति: ज्योति हेरे जिनकी, गाथा-३. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिन; अंति: इम जीत वदे नितमेवरे, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वामादेवीनो जाय; अंति: राम भणे रे लो, गाथा-१०. ६.पे. नाम. चार पांच हबस, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. ४६६९४. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४११.५, २५४२४). २४ जिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरिरिसहेसर अजियजिण; अंति: भवियण पामु सुह० वेवि, गाथा-१३, (वि. अंतिम वाक्य वाला भाग खंडित होने से किंचित् अंश अपठनीय है.) ४६६९५. आत्मगुणविषे रेटियानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१२.५४८, ८x११). रेंटीया सज्झाय-आत्मगुणविषे, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: तन रेहेटुडा सदगुरु; अंति: लबध० गुण चित्त वस्या, ___ गाथा-५. ४६६९६. (-) औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भीलडा, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१५.५४८, १२४२८). औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: चीता नरद मेरा कह्या; अंति: तान कीयो उदपुरर, गाथा-६. ४६६९७. स्तुति, स्तवन, आरती व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अनुमानित क्रमांक दिया गया है., जैदे., (१२.५४८.५, ११x१९). १. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रम्यारम्यसहरम्यम्, श्लोक-४, (पू.वि. स्तुति ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरप्रभुजी की आरती, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. __ महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीश जिनेसर; अंति: भाबै जिन घट परवाना, गाथा-१०. ४. पे. नाम. कुमतिने औपदेशिकनी सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: रहेनै रहेनै रहनै अलग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४६६९८. (-) स्तवन, गीत व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१२.५४८.५, १४४२२). १.पे. नाम. अभिनंदन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहीबा अभीनंदन जिन; अंति: राम इसु भणैरे लो, गाथा-५. २.पे. नाम. दादाजीगीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिगीत, मा.गु., पद्य, आदि: गछपति खरतरता सुरता; अंति: वंछित फलसी मुझ तणी, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीनवर चरणां अटकै; अंति: प्रभु रस पीवै गटकै, गाथा-३. ४६६९९. महावीर गहुँली व समकित स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१२४८.५, १३४२९). १.पे. नाम. महावीर गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सजनि विचरंता वसुधा; अंति: रंगे सुणीये रसाल हे, गाथा-७. २. पे. नाम. समकीत स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ३३९ आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंतिः खीमावि० आग रीत रे, गाथा ६. ४६७०० युगप्रधान जिनचंद्रसूरि गीत संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ श्रावि. सोभागदे, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे, (१५४९.५, १२x२३). जिनचंद्रसूरि गीत, मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा संदेशउ कहड़, अंतिः दिन जुगह प्रधान रे, गाथा-८. ४६७०१. सज्झाय व वर्णमाला, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, अन्य मणसुखः नैनसुख कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१४.५४१०, १५२५). १. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खवर्ग अपूर्ण तक है.) ४६७०२. (१) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (१२.५४८.५, १७४२५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि मारो साहीब झील रह्यो; अंतिः कहे जीनहर्ष सुजाण, गाथा- १३. २. पे. नाम. चार मंगल पद, प्र. १आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः आज मारे प्यार मंगल, अंतिः आनंदघन उपकार, गाथा-६, ४६७०३, (+०) सज्झाय संग्रह व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे ३, प्र. वि. पत्र संख्यावाला भाग कटा है.. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०, १३X३८). १. पे. नाम. विजयदेवसूरि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदि बहि करजोड, गाथा - ९, (पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण विजयदेवसूरि सज्झाय, उपा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल साधुना जे राया, अंतिः भावविजे उवझाया हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुण० संघ तणा निसदी, गाथा-४. ४६७०५. (+) वासुपूज्य स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१८×१०.५, ९-१२×१७). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा नगरी वसुपुज्य; अंति: भाण ने तुं सुखदाई, गाथा-४. ४६७०८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (१८x९, ९५२६). 5 . , १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतलडी बंधाणी रे; अंतिः मोहन कहे मनरंग जो गाथा ५. . २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा, अंति: मोहन जय जयकार, गाथा- ७. ४६७०९. आगम बोल व साधुना चवदै उपकरण नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०x१०, १२X३४). १. पे. नाम. आगमबोल सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु, पथ, आदि वीर कहै गौतम सुणो; अंतिः जिनहंस सिझाय रसोल रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. साधुना १४ उपगरण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. साधु के १४ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रो१ झोली २ तलै; अंति: उपगरण साधना जाणवा.. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६७१०. (+) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी, संशोधित. वे. (१७.५४९.५, " १३X२८-३१). मेघकुमार सज्झाय, मु. भीवराज ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: भरतखैतर अत सोभतो सोभ, अंति: भीवराज मह जोडी रे, गाथा- १३. ४६७११. पार्श्वजिन स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २१४९.५, २६१५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामासुत लागै प्यारौ, अंति: चंद सेवक प्रभु थारौ, गाथा- ९. २. पे नाम, पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत- फलवर्द्धिपुरमंडन, मु. पुण्यविलास, मा.गु., पद्य, आदि: मेरै मन मान्यौ प्रभु; अंति: पंडित पुण्यवि री, गाथा ५. ४६७१३. नेमिनाथराजीमती भास व चौद स्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (१८.५४९.५, ११X३७). १. पे. नाम. नेमनाथराजीमती भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजमति भास, मा.गु., पद्य, आदि सामलवन्त्र सोहामणउ सखि, अंति: सिवपुरे जाई रमइए. गाथा- १९. २. पे. नाम. चौद स्वप्न स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन पेखाइ देवी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४६७१४. (+) पार्श्वजिन स्तवन अंकपलीमय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. भाषा अंकमय है. इस प्रत में एकाधिक कृतियां हो सकती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X१०, १५X४३). पार्श्वजिन स्तवन- अंकपल्लिमब, मा.गु., पद्य, आदि: ६४२७४१८४७ अंति: ३३१११६१८/३३४. 3 . ४६७१५. (१) पद व आरती संपूर्ण वि. १८६०, ज्येष्ठ शुक्ल, २. श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, पठ. सा. चतुरा (गुरु सा धनाजी); गुपि. सा. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १७४८.५, ९४२५). १. पे. नाम. आदिजिन पद, पू. १अ, संपूर्ण. मु. चानत, पुहिं., पद्य, आदि आद जीणेसर बोल तुती; अंतिः चानत० खोल तुती मेरी, पद-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीकी आरती, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः आरती करुं श्री, अंति: हर्ष० करै प्रभू का, गाथा- ७. ४६७१६. पद व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४० - ३८ (१ से ३८ ) = २, कुल पे. २, दे., (२२x१०.५, १२x२१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३९अ ४०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्धिपुरमंडन, वा. महिमसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८७३ आदि भमर जीवाणीयौ चौमासी अंतिः महिमसुजात चढी परमाण, गाथा १३. २. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ४०-४०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मी एकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६८९, आदिः समवसरण बेठा भगवंत अंति: (-), (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ४६७१८. () पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५X११, १४x२७). १. पे. नाम. धर्मप्रभाव पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुष्टि, पद्य, आदि; सत धर्म विना कोइ ताद, अंतिः इस वेले तु पछतावेगा (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं, पद्य, आदि; तज दे मोह मठ ममता भव, अंतिः (-) (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ४६७१९. (#) सचितअचितविधि सझाय व पोसह विध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५X१०, ११x२८). १. पे. नाम. सचितअचित विधि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३४१ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१८. २. पे. नाम. पोषह विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिया० ४ नवका०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछ पाठ तक है.) ४६७२०. स्तवन व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२४१०, ११४३३). १.पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजत श्रीसंभव; अंति: मुगततणा दातारो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. सामाई पारवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवमी सामाइ वैरमानवर; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. पांच पद खमावणनी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ पद खमासमणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पेलै पद अरिहंतजीने; अंति: पुजवा स्वामि खमाउ. ४६७२१. स्वर वर्ण व साढापचीस आर्यदेश नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१४.५४७.५, ११४१८). १.पे. नाम. स्वर वर्ण, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. साढा पच्चीस आर्यदेश नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला आरज मगददेश राज; अंति: पचीसमी सीतमकानगरी. ४६७२२. श्रावक इकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५४८, १३४३५). श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक नाम धरायनें; अंति: कहे सुणो नरनारो, गाथा-२१. ४६७२७. समकित देवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१७४९.५, १९४३७). सम्यक्त्व देने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आज पछि तुम्हारइ खोटा; अंति: ए ३ तत्त्व राखवा. ४६७२८. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४१२, २९४२१). १. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. द्राफाग्राम, प्रले. मु. भूधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी पर दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर के, गाथा-१६. २.पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालूं रे बीज; अंति: आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ४६७२९. शेजेजेयमंडण ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४९, १०x१८). आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल गिरवर; अंति: शुभजय० अविचल पूरि आस, गाथा-४. ४६७३०. नारकस्थित पूर्वजीव भव वर्णन व अनागत चौवीसी के पूर्वभव नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., अ., (२०४१६, २२४१६-१९). १.पे. नाम. अनागत चौवीसी नाम विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: नरक पहली १ पद्मनाभ २; अंति: बुद्धनो जीव पार्श्व. २.पे. नाम. महावीरजिन आदि काल में उपार्जित तीर्थंकर गोत्र संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरने वारै नव जन; अंति: गोत्र उपायु. ३. पे. नाम. अनागत चौवीसी के पूर्वभव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. अनागतचौवीसी के पूर्वभव नाम, पुहि., गद्य, आदि: १ श्रेणिक २ सुपार्श; अंति: मृत २४ स्वातिबुद्ध. ४६७३१. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८x११.५, ७४१७). For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तवन- जयपुरमंडन, मु. शांतिरत्न, पुहिं., पद्य, वि. १९२०, आदि: शहर सवाई जयपुरमाइ, अंतिः शांतिरतन मन की शंका, गाथा ५. ४६७३४. () औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. काफी अशुद्ध लिखे जाने से प अनुसंधान सही ढंग से नहीं बैठता है. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे. (१६.५X११.५, १४x२६). १. पे. नाम. कुसंगत परिहार पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नरवाव पाहारी तो खोही; अंति: लालचंद० सेत खोनाजीगो, गाथा ४. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि धान ही के आज काल भार, अंति: लालचंद० दामीया धाकां. ३. पे. नाम. नारी परिहार पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं, पद्य, आदि नार भूरी गारकी पारकी, अंतिः रीष लाल० मुड मजुती. , ४. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि चोविसमा महावीर शुरवी अंतिः चंद्र० उपजे आनंद हे, गाथा-१. ५. पे. नाम. परनारी प्रीति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजा सेती फूसणो वीसर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के पाठ नहीं है.) ४६७३५. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. पुण्यसागर, पठ. श्राव. दालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( १९.५X१६.५, १६x२२). उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उबस्सग्गहरं पास पास अंतिः भवे पास जिणचंद, श्लोक- ९. ४६७३८. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ३, जै, (१८.५५११, १५X३३). १. पे. नाम. सांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन- दियोदरपुरमंडन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति केरा हो चरणकमल, अंति जिनविजय जयजय करो, गाथा- ११. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि; शीतल जिनवर साहिब, अंतिः करे तुम अरदासो जी, गाथा ७. ३. पे. नाम महावीरजिन गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण २. पे. नाम. शुद्धाशुद्ध समय विचार, पृ. २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता हो सुभमति; अंति: उखाणो हो जग कहिवाइ, गाथा- ८. ४६७३९. स्तोत्र, ज्योतिष विचार व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) = १, कुल पे ३, प्र. वि. अपूर्ण तथा पत्रांक का " उल्लेख न होने से काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., जैदे., ( १६.५X१०.५, ११x२०). १. पे. नाम. सिद्धसारस्वति मंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रंजयति स्फुटं, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक १२ से ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. आबुतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अर्बुदगिरितीर्थं स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि आबु गिरंद सुहामणी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५ तक है.) ४६७४१. जैन गायत्री जाप विधान व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (२)=२, कुल पे. २, दे. (१६.५४१०.५, ९४९७). १. पे. नाम. जैन गायत्री जाप विधान, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: अथ चतुर्विंशति अर्ह; अंति: महामंगलदायकं. २. पे नाम, भैरव स्तोत्र, पृ. ३अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (पू. वि. श्लोक ५ से ८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org יי हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६७४२. जिननमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. १७७४, आश्विन शुक्ल, १० अधिकतिथि, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२ हैं. जैदे. (३८x११, ५४x२०). -3 ४६७४६. शुद्ध आहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१९.५४११.५, ११५२४). जिननमस्कार स्तुति, ग. मोहनविमल, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजयमंगल; अंतिः श्रीवर्द्धमानश्रिये, श्लोक-२२. ४६७४४. साधारणजिन स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (२) =२, जै. (१७.५४९.५, ७४१९-२२). साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंतिः रागो हृदये ममास्तां श्लोक-१९ (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक ८ से है.) ४६७४७. संजतिराजा सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे (१७४८.५, १२४२३-२५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दवैकालिकसूत्र - अध्ययन ५ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुझता आहारनो खप करो; अंतिः वृधवीजय पामवो सार, गाथा- १३. संजतिराजा सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बाणी सतगुर की सुणसणि, अंति: रतनचंद० मे दीप कमाल, गाथा - १२. ४६७४८. चैत्यवंदन व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (१४.५४९, १४१८). १. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नयरी वणारसीइ थया; अंति: वीर अखय सुख भोग, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि पासजिणंदा वामानंदा, अंतिः गाती वीर घरे आवती, गाथा-४. ४६७४९. पार्श्वजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१४.५x१०, १९४१७) . पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी माहरा रे अरज, अंतिः नित प्रणमे लब्धिचंद, गाथा- ९. ४६७५०. आत्महितोपदेश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१४४१०.५, १७४१९). औपदेशिक सज्झाय, मु. देवेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेत तु एहवं; अंति: देवेंद्र कहत वधाई, गाथा- ६. ४६७५१. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल, सिहपुर, प्रले. पं. गुलालविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (१४४११.५, २०x२२). ३४३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: हंस० दरीसण दीजे नाथ, गाथा-१६. ४६७५२. श्रीजा महाव्रत उपरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे. (१३१०, ७१४). " अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाव, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: त्रीनुं महाव्रत, अंति: तेहना पाय नमे करजोडि गाथा-५. ४६७५३. भला गीत व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५X१०.५, ११x२४). १. पे. नाम भला गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अमल खारा भाला खडग; अंति: ज्ञान प्रकासता भला, गाथा - १४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: माहि वामारा इणि अंति: गमारि दूणो रस आयसी, गाथा १३. ४६७५४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१७.५X१२, १०X१७). " ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४६७५५. अइमत्तामुनि सझाव, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पू. १, जैवे. (१७.५X१०.५, २५४२१). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: वंदीने मुनिवरना पाया, For Private and Personal Use Only गाथा - १८. ४६७५६. मंत्राधिराज स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १अ से २अ तक ही लिखा है. आगे के पत्र खाली हैं., दे., ( १६.५X११.५, ८x१४). Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: (-), श्लोक-२४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक है.) ४६७५८. (-) गहुली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. सुधर्मास्वामीगुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, रा., पद्य, आदि: कठडा आया गुरुजी; अंति: जिनसासन बहुमान, गाथा-७. २. पे. नाम. साधुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर विचरीता जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४६७६०. आचार्य सदारंग गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५.५४९.५,१५४२९). सदारंग आचार्य गीत, मु. सिव, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: गोतम गणहर पाय नमी; अंति: सिवो कहै हेत जाण, गाथा-९. ४६७६१. (+) स्नातस्या स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७४१०, ४४१३-२१). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान कर्यु छइ जेणइ; अंति: विषई सिद्धि प्रतिं. ४६७६४. दसबोल अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४८, ८x२०). दशविध श्रमणधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: क्षति कहता १ मुति २; अंति: नवबाडि सहित सील पालै. ४६७६६. तप सज्झाय व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१२४९, १६x२३). १.पे. नाम. तप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋ. आसकर्ण, रा., पद्य, आदि: तप वडो संसार मे जीव; अंति: आसकरण सहर चोमासो रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सावरो नेम प्यारो री; अंति: सांम हमारो रे माई, गाथा-४. ४६७६७. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मोकलसर, प्रले. ज्ञानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८x१०, १४४३३). पार्श्वजिन छंद, मुहम्मद काजी, मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत्य चिंतामण; अंति: प्रभू मुझ आपोजी शेव, गाथा-७. ४६७७४. वृहत् शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (१६४९, ९४२५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतुशासनम्. ४६७७७. नाकोडापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (१४.५४९.५, ९x१९-२४). पार्श्वजिन स्तवन-नाकोडा मंडण, मु. मतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पुजिस्या; अंति: मतसोम० नाकोडाराय, गाथा-९. ४६७७८. (#) जिनवाणी भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१०.५४९, १३४१८). जिनवाणी गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत सरखी रे सुणीई; अंति: प्रभुने प्रभुता दीजे, गाथा-७. ४६७७९. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रत छोटे-बडे हैं., जैदे., (१८x१२.५, ११४२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), गाथा-५१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ४६७८०. मेघमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७०, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८९५) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (१६४१०, १०x१९). मेघमुनि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: कांतीविजय० ना पास, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३४५ ४६७८१. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८३८, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५६-५२(१ से ५२)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ले.स्थल. हुरडानगर, प्रले. मयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री चिंताणणिप्रभु प्रशादात् लिखि., जैदे., (१२.५४१०.५, १०x१२). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: पूज्यो० सुख भंडार, गाथा-२१, संपूर्ण ४६७८४. सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१७.५४११.५, ९४२३). १.पे. नाम. दिनकृत स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: मे सुगुरू वएसेणं, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, लिख. रवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४६७८५. थूलीभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. धुराभाइ खोडाभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२४११.५, १२४१८-२०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चांपो मोर्यो हे आंगण; अंति: सीलथी लहीइं सुख अपार, गाथा-६. ४६७८६. (#) संभवजिन गीत व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५४१०, १४४२३). १.पे. नाम. संभवजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब संभवराया में; अंति: चतुर साहिब निवाजे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर सुण; अंति: निस दिन प्रणमे राम, गाथा-५. ४६७८८. (-) सुकनकवरजी महाराजरा गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१४४८, ११४२५). सुकनकंवरजी गुण स्तवन, सा. केसरबाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीधनसतिया सुजाण; अंति: दरसणनी लगरइ चाया, गाथा-६. ४६७८९. (#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (१३.५४१०, १३४२५). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: तत थेई तत थेई तत थेई; अंति: कांति० नीत तस नौबत, गाथा-९. ४६७९०. (+) महावीरजिन गहली व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१९.५४११.५, १७७३५). १.पे. नाम. महावीरजिन गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. भृगुकच्छपुर, प्रले. ग. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. __ पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि चालो श्रीमहाविर; अंति: दीपविजय० निज आवासे, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. गुलाबविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. पं. गुलाबविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास झीणंद कृपा; अंति: गुलाब० वलीनो कंदजो, गाथा-९. ४६७९३. ऋषभनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१०४७.५, ११४१७-२०). आदिजिन स्तुति, ऋषभ, सं., पद्य, आदि: नमत भव्य जिनाजिन; अंति: ऋषभ० विघ्न विमोचना, श्लोक-४. ४६७९४. औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१२.५४९.५, ८x१६). औपदेशिक कवित्त, श्राव. खेतसी, पुहिं., पद्य, आदि: उपजा था जल मैं सो तो; अंति: तो मानस विधाता था, पद-१. ४६७९५. नवकारमंत्र प्रभाव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४९.५, ७X१७). नवकार प्रभावदर्शक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि: पढ़ो मंत्र नवकार; अंति: अवर मंत्र काई पढे, दोहा-१. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६७९६. (#) गौतम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११.५, १४४२१). गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रमीज; अंति: प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ४६७९९. घृतरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६.५४११, २५४२३). औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: लालवि० घीनो गुण कहिउ, गाथा-१९. ४६८००. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (३१४११, २८x१६). १. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसा म भमो माथा; अंति: हणिआ भर कर्मरिपूना, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इउं कहि शिष्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ तक है.) ४६८०१. (#) रोटलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १०४२१). तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व देवदेव में; अंति: मास पास धिरमुनि राजे, गाथा-९. ४६८०२. सज्झाय संग्रह व यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, पठ. लाला रामनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६.५४१०, १८x२६). १.पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: (-); अंति: समत अठारासै चौवीसो, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतिक; अंति: प्रसिध नमु पदमावती, गाथा-१४. ३.पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (वि. एक ही यंत्र दो बार दिया गया है.) ४६८०४. सुकाल दुष्काल शुकुन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६४११, २०४२०). सुकाल दुष्काल शुकुन विचार, रा., गद्य, आदि: कारण पाखै देहरौ पडै; अंति: पक्षमाथी आकरुं थाई. ४६८०८. स्तोत्र व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, पठ. मु. नेतसी ऋषि; प्रले. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४९.५, १३४२४). १.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९ ग्रह स्तोत्र, क्र. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं काश्य; अंति: ब्रूयान्न संशय, श्लोक-१२. २. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यस्या सूर्य माहातेजो; अंति: क्लेशहानि न कदाचन, श्लोक-७. ३. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐसूर्यस्थापीतंदेवं; अंति: स्वस्तिकामसदासवे, श्लोक-१२. ४. पे. नाम. शनीश्चर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-८. ५.पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ६. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ७. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४६८१३. सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रत के दो टुकडे हो गये हैं., दे., (१५X१०.५, २४x१३). १. पे. नाम. कर्मविपाक गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: नमो नमो कर्म राजा रे, गाथा - १८. २. पे नाम ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, रा., पद्य, आदि ऋषभ जिनेसर कियो पारण, अंतिः ऋषभदेव महाराज रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करो अंबिका देवीये, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम और अंतिगाथा लिखी हुई हैं.) ४६८२०. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१५.५x१०.५, १३१३). " ३४७ ४६८१४. असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१३४११, १२x२३). "" ३२ असझाय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उकाबाई कहता तारो तूट अंतिः उगता दोपहरा आधीराते. ४६८१९. () स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (१६४१०, १३x२१) 1 १. पे नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने पार्श्वनाथ स्तवन ऐसा लिखा है. आ. रायचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवकनै दे परमाणंद दस, अंति: रायचंद० भणै निसदीस, (वि. गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे नाम, सीमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हीयडो हेजालउ, अंति: जिनराज०मत मुको विसार, गाथा-७. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हरख, रा., पद्य, आदि आठे ते रमणी अती भली, अंतिः हरख० सदा जंबूसामसु गाथा- ९. ४६८२२. नलदमयंती रास व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५X१०.५, १६×३२). १. पे. नाम दवदंती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पा, वि. १६७३ आदि (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र प्रथम खंड की ५ वीं ढाल लिखा है.) २. पे नाम, दूहा, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि जीन का चीत है समदसा, अंतिः सजन मीलो कबीर, दोहा-१. ४६८२५. बत्तीस असज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३ ११, १२x२४). ३२ असझाय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उकाबाई कहता तारो तूट अंतिः उगता दोपहरा आधीराते. ४६८२६. स्तोत्र, स्तुति व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, जैवे. (१८.५४१४.५, २५४३६). १. पे. नाम. महादेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति के अंत में "धनपालकृता स्तोत्र मूर्तिमालिका " ऐसा पाठ मिलता है. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ४४ वें श्लोक का मात्र अंतिम भाग नहीं है.) २. पे. नाम. जिनशतक चयनित गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: निर्विघ्नान्विघ्न; अंति: सोघसंघातमर्हन्, श्लोक-२. For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: दोषाकरोपिकुटिलोपि, अंति: तव विभ्रम भाषितानि, गाथा-२. ४६८२७. पार्श्वनाथ स्तवन व अष्टगंध नाम, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (१५.५४११, १०×१८-२१). Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि; जय बोलो पास जिनेसर, अंति जेसी छाया शिवपूर की गाथा-७, २. पे. नाम. अष्टगंध नाम, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: केसर१ कस्तुरी२ कपुर३; अंतिः हीगलु६ गउलोचन७ कंकु. ४६८२९. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१८४१०, ११४२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तङ्कं अंतिः असित्वेण वा बोसिरामि, (वि. तिविहार, चडविहार व पुरिमढ़ के पच्चक्खाण हैं.) ४६८३१. चतुर्विंशतिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. खुस्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१८.५x१०, १२x२८). चैत्यवंदन चौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्म, आदि आदिदेव अरिहंत धनुष, अंतिः बहु जन पाम्या पार, चैत्यवंदन- २४. ४६८३२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९x११.५, १६×३१). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. लालाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तौ महाविदेहना वास; अंति: कान० गांउं नित ताहरा, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पु. १ आ. संपूर्ण. मु. विशाल, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगोतम हो पाय प्रण, अंतिः विसाल सुखीया करौ, गाथा- १२. ४६८३४. सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (११X१०, १६x१९). १. पे. नाम. परनारी सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मा.गु., पद्य, आदिः सुण चतुर सुजाण परनार, अंतिः प्रीत कचु नही कीजीये, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पु,ि पद्य, आदि सब जादव मील ब्याहे अंतिः सारीर मामे चुक बतावो गाथा-४. ४६८३८. गीत व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( १६.५X११.५, ११x२३). १. पे. नाम. विजयधरणेंद्रसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १अ संपूर्ण. मु. हरीसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीवीजयधरणेंद्र, अंति: गाया गछपती रायाजी, गाथा-५, २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). **, ४६८४६. आरती व पंचलोक स्थापन, संपूर्ण वि. १८०२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, कडुंजानगर, जै.. (१५.५४९.५, १२x२२). १. पे, नाम, पंचलोक स्थापन, पृ. १अ संपूर्ण वि. १८०२ ज्येष्ठ शुक्ल १०, सोमवार. रुद्राष्टाध्यायी, सं., आदि (-); अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र सातवाँ अध्याय ही लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली आरती आससेण, अंति: प्रभुजी की आरती गाई, गाथा- १०. ४६८५०. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३.५X१०.५, २१x२५-२७). 7 जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६८५२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२४. दे. (१७.५x१२, ४१x१२). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाती - शंखेश्वर, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदिः आज संखेसरा सरण हु; अंति: उदयरत्न० करो संभाली, गाथा - ५. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपास शंखेसरा सार, अंति: उदयरत्न०माहाराज भीजी, गाथा-५. ४६८५३ () स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९७२, मार्गशीर्ष कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९x१२, १३x२९). १. पे. नाम. चैत्रीपूनम स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण ३४९ चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, अनुपमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाहावीर जिणेसर, अंति: अनोपमचंद वखां जी, गाथा- ४. २. पे. नाम. विजयसेठ विजया सेठानी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमावीर जणंसर सांम, अंतिः रूपचंद० विजया नारी, गाथा- ८. (#) 3 ४६८५४. स्तवन, औषध संग्रह व पद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १. कुल पे ३, प्र. वि. पत्र १४२ हैं. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (१३.५४९.५, १५x२७). " १. पे. नाम. श्रीमंदीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांसनंदन स्वाम स; अंतिः पूरयो उलट अतिघणो, गाथा - ९. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). , ३. पे. नाम. सामान्य जैनेत्तर कृति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. बि. अंतिम पत्र नहीं है. जैनेतर सामान्य कृति" प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. मात्र प्रारंभिक अंश है. वि. प्रतिलेखक ने " " गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४६८५५. प्रश्नज्ञान निर्णय व नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. २, प्रले. खिमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१९.५४१०, ११३५). १. पे नाम, प्रश्नज्ञान निर्णय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण - मा.गु., गद्य, आदि: कोई पूछै फलांणी; अंति: होवै तो महाभय उपजै . २. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण लुंबी आवीयो; अंति: पाम्यो अविचल राज, गाथा-१५. ४६८५६ (१) स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र १४२ हैं. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, मु. देवीदास पु,ि पद्य, आदिः करणि फकिरी तारे क्या अंतिः देविदास पार उतरणा, गाथा-४, " जैदे., (४२x११, ५८x२२). १. पे. नाम. रिषभदेवजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: म्हानो धारा दरसणी, अंतिः जिणउवैसुर० सुभ मने, गाथा- १०. २. पे, नाम, दूहा संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. मु. लक्ष्मीविजय लिय. सामजी, प्र. ले. पु. सामान्य. दूहा संग्रह, पुहि, मा.गु. पद्य, आदिः भवेशी भंग डली री, अंतिः सणो कोई भंजा में भूप. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ४६८५७. स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५x९, १६×३२). १. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण २४ जिन स्तवन, पं. हुकमचंद मा.गु. पच. वि. १८९१, आदि जिनजी रिषभ अजत संभव, अंतिः अरज हमारी सुण लीजो, गाथा- १०. २. पे. नाम. ग्यारह गणधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तवन, मु. टोडरमल, मा.गु., पद्य, आदि चोवीसमा श्रीवीर, अंति: गुण धरजो प्रपगारी, गाथा १०. ४६८५८. पार्श्वनाथ स्तोत्र व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (१७.५X११.५, १४४१८). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ सरीखा मेवासीने; अंति: प्रभु पाउले लागु, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नाथ, पुहि., पद्य, आदि: कुल कलंक गही जग जगही; अंति: मुनिनाथ०अवगुण हु कही, गाथा-१. ४६८६०. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१०, १०-११४२४). सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति; अंति: नयविजय० करज्यो माय, गाथा-४. ४६८६४. (-) पार्श्वनाथ छंद व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०.५, ११x१९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा जिन; अंति: पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक-७. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आददेव अरिहंत धनुष; अंति: कवि रीषभ० महिमा घणो, गाथा-३. ४६८६५. (-) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१३.५४१०, १५४१८-१९). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: पास चिंतामणि जेम; अंति: सदा पूरो मनरली, गाथा-८. ४६८६६. माणिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४१०, ११४२५-३२). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित शुभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११ अपूर्णतक लिखा है.) ४६८६७. मोक्षनगर सज्झाय व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९४१०, १५४३४). १.पे. नाम. मोक्षनगर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, ७, ले.स्थल. बिदासर, प्रले. य. संभु यति, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम साम पुछा कर; अंति: पामो सुख अथाग हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रूपविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अब तेरो दाव लग्यो है; अंति: रूपविमल० श्री भगवान्, गाथा-४. ४६८६८. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९x१०.५, १०४२१). सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति; अंति: सानिध करजो माय जी, गाथा-४. ४६८६९. (-) स्तुति, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९४९.५, १०x२३). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा जिणंद गुण गाय; अंति: आनंद वंछित पायरे, गाथा-३. २. पे. नाम. चंद्रप्रभुपद, पृ. १अ, संपूर्ण.. चंद्रप्रभजिन पद, मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: छबि चंदाप्रभु की को; अंति: रतनचंद० समरण को वरणे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नवपद के गुण गायरे; अंति: अजर अमर पद पायरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवपद पद, पुहिं., पद्य, आदि: जिन नित नमु नित नमु; अंति: ओर धार मत मन भमो भमो, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रीखभ जिणेसर बंदो रे; अंति: लालचंद० दुर हरईया, पद-४. ६.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: पारब्रम परमानंद; अंति: लाल कहत० गहत हम नही, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. हठ्ठ, पुहिं., पद्य, आदि: में तो गिरनार गढ; अंति: चित लाउंगीरी, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३५१ ८.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: समज समज जीया ग्यान; अंति: निरंजन आप भए सिरदार, गाथा-२. ९.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: नाभजू के नंदाजी से; अंति: ग्यानसार० नही गेहरा, गाथा-५. १०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहि., पद्य, आदि: सखी स्याम वरण बतलाय; अंति: चैनविजै०चित लायजारे, गाथा-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हजूरीयावाडी नेम तेरे; अंति: भरम मेरा काटो, गाथा-२. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: मनरेतू छोड माया; अंति: स्वाम नाम संभाल, गाथा-३. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: आद जिनंद मया करो; अंति: आनंदवर्द्धन आसा रे, गाथा-३. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जब लग तेल दीया मे; अंति: हीराको गंदो सोजी, गाथा-२. ४६८७०. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. लाधाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४९.५, १४-२५४१५-२०). महावीरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: जय जय प्रभुवीरजिणंद; अंति: मयाचंद० आनंद घरे, गाथा-२२. ४६८७१. परनारी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (१९x१०, ९४२१). औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण कंतारे सीख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ४६८७२. जिनकुशलसूरि व जिनदत्तसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०४९.५, ९४३२). १. पे. नाम. दादा जिनकुशलसूरिजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिगीत, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दिनकर जिम दीपै सदा; अंति: लालचंदजी० धर ध्यान, गाथा-९. २. पे. नाम. दादा जिनदत्तसूरिजी गीत, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गीत, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सद्गुरुजी थे सांभलो; अंति: लाभोदय सुख सिध हो, गाथा-११. ४६८७३. (+#) रात्रीभोजन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रतलामनगर, प्रले. पं.रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितजिन प्रासादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०, ९४२५). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: रात्रिभोजन वारो रे; अंति: वसतानी० अधिकारी रे, गाथा-१३. ४६८७४. महावीरजिन स्तवन व आम्नाय ज्ञान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१६४११.५, ७X१९). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. गजसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: बुधजनैक जिनं कुरुनाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ६ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. आम्नाय ज्ञान, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बाढं जसोविता नाथ; अंति: हठाधोझत्तदीश्वर, गाथा-१. ४६८७६. वीरत्थुइनाम अज्झयणं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०x१०.५, १५४३९). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमस्संति त्तिबेम्मि, गाथा-२९. ४६८७८. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८.५४१०.५, ९४२४). For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि क्रेंद्रे कि धपमप, अंतिः विशतु शासनदेवता, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८८०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१३.५X१२, १०१६). औपदेशिक सज्झाय, मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: केसि विधे समजावुं हो; अंति: रूपचंद कहे ० हो मना, गाथा - ५. ४६८८२. विंशोत्तरीदशा, सज्झाव संग्रह व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. पत्र १x४ हैं. जैवे., . (१३.५५११.५, १३x२२). १. पे नाम, विंशोत्तरी दशा यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. विंशोत्तरी दशा, मा.गु., सं., प+ग, आदि: दिनकर नख २० संख्या, अंतिः शुक्र प्रकीर्त्तिता. २. पे. नाम. नवकार प्रभावदर्शक दोहे, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: भणीये मंत्र नवकार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. नवकारमंत्र ध्यान स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. काकडोलीनगर. सीस नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः सुखकारण भवियण समरुं, अंति: गुणप्रभु०: रसाल, गाथा- ७. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु, पद्य, आदि सिज्या भली रे संतोष अंतिः फेर नावै गरभावासो जी, गाथा ५. ५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदिः ये प्रीतम मेरा जीव; अंति: कुसलै जोडि मिले एमनी, गाथा- ९. ६. पे. नाम, दहा संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-), गाथा-२. ४६८८३. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१९४४१०.५, ९x११). गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभाते गोतम समरीजे; अंति: उदय प्रगट्यो कुलभाण, गाथा-८. ४६८८४. देशना भास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ हैं. वे (१५X१०.५, १४४२०). जिनवाणी सज्झाय, मु. कंत, मा.गु., पद्य, आदि: जिनंदा तोरी वाणी एम, अंति: गावे इम करी कंत रे, गाथा - ५. ४६८८६. पद्मावतीराणी आलोयणा सज्झाच, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२०४९.५, १३४३६). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंतिः समयसुंदर ० तत्काल, ढाल -३, गाथा-३४. ४६८८८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२ हैं., जैदे., (१५.५X११.५, १५X२०). 3 १. पे नाम, दादाजी स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवक, अंति: मनवंछित फलज्यौ, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, रा., पद्य, आदि: आवो म्हारे रसीया दिल, अंति: फल पासा म्हारा राज, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४६८८९. तपगणाधीश स्तवना, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १ ले स्थल. पालीताणानगर, अन्य. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १४३ प्रत की दूसरी ओर दुबारा इसी कृति की ४ गाथाएँ लिखकर अधूरा छोड़ दिया गया है., जैवे. (१४४११, १०X२६). जैनेंद्रसूरिगुण स्तवन, मु. जीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सूरिंद गुणवृंद, अंतिः दीपसागर शिशु जीत आषे, गाथा - ११. ४६८९२. (#) संतिकरं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४६, ८x२८). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शांतिकरं शांतिजिणं, अंति: लहइ सुयं संपयं परमं, गाथा - १३. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३५३ ४६८९४. श्रावक १२ व्रत विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४८.५,१३४३८). श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदिः पिहिलू थूल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., १२वें व्रत का विचार अपूर्ण तक है.) ४६८९५. स्तवन व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१४.५४९,१८x१३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सोभागी साहब; अंति: जैतसी० जरे देव, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. द्रव्यप्रभाव सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, पुहि., पद्य, आदि: ईहत है जिनकु सबही; अंति: ध्रमसी० गाठि रुपैया, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: पुरष एक पांगलौ जिह; अंति: नर जीह पखै जस बोलनो, गाथा-१. ४६८९६. (-) प्रसन्नचंद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१६४७.५, १६४८). प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छोडी रलीयामणोरे; अंति: रिदयहर०वंदणा वारंवार, गाथा-६. ४६८९७. आरती, चैत्यवंदन, स्तवन व ज्ञानभेद नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (१६.५४१०.५, २४४१८). १.पे. नाम. दीपमालिका आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीश जिनेसर; अंति: भाबै जिन घट परवाना, गाथा-११. २. पे. नाम. दीपमालिका चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीजिनवर्धमान; अंति: पदे करो संघ कल्याण, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-दीपावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मागु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीनो रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. ज्ञान प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मति श्रुति अवधि; अंति: विपुलमति केवल. ४६८९९. शिवजी रामजी पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४११, १३४१८). शिवजी रामजी पत्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पत्र का अंतिम भाग नहीं है.) ४६९०२. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५.५४१०.५, २१४१४). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय हे गोडीजी महा; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, ___ श्लोक-९. ४६९०८. औपदेशिक सज्झाय व गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१०, १७४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय नवघाटी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख कृष्ण, १३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मानी, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटी उलंघन हो पायो; अंति: सारे कहै भाई हीरो जी, गाथा-९. २. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मारो मनडो वसजी गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६९०९. (-#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९४१२.५, २२४३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: कुसलपुरी परभु जलमीया, अंति: जसरूप ० कातम दसमिर मास, गाथा - ११. २. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाच, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्यो, अंतिः मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रुगपत ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: साहसणनाइक वीर जणंद, अंतिः रुगपत० धरमसु राखो० गाथा-१२, (वि. पत्र का किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य आंशिक रूप से नष्ट है. ) ४६९१२. चरखा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १३११.५, ११X१३). चरखा सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदिः सुण सरखावाली चरखो चल; अंति: तो जेम उतरो भवपार रे, गाथा ५. ४६९१३. मुरख सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१६X११, १२x२०). पदेशिक सज्झायमूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु, पद्य, आदि ज्ञान कदि नवि धाय, अंतिः मया० बोधविज 1 सुख थाय, गाथा- ८. 1 ४६९१४. (-) रात्रिभोजन निवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (१७४१०.५, १२x२५). रात्रिभोजनत्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी ए; अंति: जीव कहे तस शिष्य तो, गाथा-४. ४६९१६. केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई - ढाल ३१ वी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( १६.५X११.५, १९×३१). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि (-) अंति: (-), प्रतिपूर्ण ४६९१८. साधुगुण पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १२.५८, १३x२३). " साधुगुण पद, हिं., पद्य, आदि: गय सुध ग्यान धरीय, अंतिः धन धन साधुगुणधारी जी, गाथा - ५. ४६९१९. स्वाध्याय व छंद, संपूर्ण, वि. १८९६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२x९, १३x४०). १. पे. नाम. खामणा स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क्षमापना सज्झाय, मु. कल्याणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत पद पहिलुं नमः अंति: कल्याणहरष जयकार, गाथा - १६. २. पे. नाम. ऋषभदेव छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: धुनी ग्रहकती ग्रहकती, अंतिः कांति० होय अजरं ४६९२२. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १२x९.५, १२x१६). जरं, गाथा - ५. ४६९२०. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रावण शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. डुंगरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३X१०, ११X३० ). नेमिजिन स्तवन, मु. रूपसागर, मा.गु., पद्य, आदिः हे नणदल नेमजी मई, अंतिः रूपसागर० करई कलोल, गाथा- ७. ४६९२१. गुरुगीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०X९, २४X१८). भावप्रमोदगुरुगीत, मु. भावप्रमोदशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि आवउनइ सोहागणि देवा, अंतिः भावप्रमोद० परिआसीस रे, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- लघु, मु. रघुपति, पुहिं, पद्य, आदि: पारसनाथ पीवारे प्रभु, अंतिः रुघपति० मिलि गुण गावी, गाथा ५. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६९२३. भास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१४१०, २५४१६). १.पे. नाम. सिंघराजगच्छराज भास, पृ. १अ, संपूर्ण. सिंघराज गच्छपति भास, मु. ईसरहरष, पुहिं., पद्य, वि. १७३५, आदि: सरसति सामणि द्यो; अंति: मुनि ईसरहरष अपार, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋ. शिवजी, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदाइरि सेवीइ; अंति: पुछे प्रियमन प्रीत, गाथा-४. ३. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भुप कहे भामन भणी रे; अंति: सरग भवन अनुसार, गाथा-५. ४६९२६. स्तवन, श्लोक संग्रह व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (१४.५४१२, १७५२४). १.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, गुरुवार, ले.स्थल. जावदनगर. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे म्हारे ठाम; अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२, गाथा-२१. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३. पे. नाम. जैनधार्मिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८१३, भाद्रपद शुक्ल, ५, सोमवार. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., पद्य, आदि: संपत सु वीपत भली; अंति: श्रावक म्हारो नाम, गाथा-४. ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४६९३३. स्तुति व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१७.५४११.५, १२४२५). १.पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभे, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सोभन पावै लोभथी सह; अंति: लक्ष्मीकी०जन मीतारे, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्व थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. लक्ष्मीकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: कोपैसो कोप्यो रोप्य; अंति: लक्ष्मीकी० इम अणभंगै, गाथा-४. ४६९३६. रूपतत्त्वानुबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूलपाठ लिखने के बाद वचनिका लिखने का शीर्षक दिया है परन्तु वचनिका नहीं लिखी गयी है., दे., (१२४९.५, १९४२६-२९). तत्त्वानुबोध, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति श्रीवीरजिन; अंति: होय नयात्म ज्ञान, गाथा-१६. ४६९३८. धोबीडा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४१०.५, १२४१७). औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तुं धोइजे मन; अंति: समयसु०सिखडली मोहनवेल, गाथा-६. ४६९३९. पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि.सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८x१०,१४४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: वामाराणीयें एक जायो; अंति: राय० जेमलजीरो उपगारो, गाथा-१५. ४६९४५. पूजा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (१९४११, १८४३४). १.पे. नाम. सत्तरभेद जिनपूजा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १, ले.स्थल. नवानगर, प्रले.ऋ. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुख सुज वासणि; अंति: सकल० सफल चिणीयोरे, ढाल-१७, गाथा-१०८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणवी करी; अंति: खोटा दूरथी जेए टली, गाथा-११. ४६९५०. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बुरहानपुर, प्रले.ग.रंजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन स्थल का नाम स्पष्ट नहीं लिखा है., दे., (१३४११, १६x२१). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमे तो क्या; अंति: कहे एह वडाई प्यारा, गाथा-१२. ४६९५१. (+) ज्वालामालिनी स्तोत्र व महालक्ष्मी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४११, ११४२१). १.पे. नाम. ज्वालामालीनी स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: मालिनी जापयते स्वाहा. २. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीचंद्र; अंति: रसीद वरदे वरसारपद्मा, श्लोक-६. ४६९५३. लावणी व विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रावण शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. आगर, प्रले. श्राव. भैरूराम भगवानजी ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., (१६.५४१०, १३४२४-४०). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत की बात तेरे; अंति: जिनदास० तेरा नही रे, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमराजलजीकी लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम तजी एक राजुल नार; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजलजीको विवाहलो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: समदवीजे सुत नेम; अंति: नेम चढ्या गिरनारे रे, गाथा-८. ४६९५४. विमलजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (१८.५४१०.५, ९४२०). विमलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमल जिणेसर वालहा घर; अंति: पद्मने० प्रेमस्युं, गाथा-५, संपूर्ण. ४६९५५. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. माहरोठ, प्रले. सीता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७.५४१०, १३४२५). १.पे. नाम. भीलभीलडी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पूर्व ९ भववर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पहल भो भीलाजी अतीधरम; अंति: सेवादेवी कुखे उपनाजी, गाथा-८. २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगर बनीता सुभ ठामो; अंति: चोथमल० मंडत आण दो, गाथा-१२. ४६९५६. (#) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९३९, फाल्गुन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (१९.५४१०, २३४१९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-१९. ४६९५७. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०, १४४४२). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहेता समक्ष कुसल; अंति: एह लोकने विषे सुखी. २. पे. नाम. धर्मप्रभावक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मप्रभावक श्लोक, सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: धर्म एव विधीयताम्, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ धर्मप्रभावक श्लोक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म तेज सकल कहेती; अंति: वासुदेवनी पदवी पामे. ३. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तु मेरे हो रे नागर; अंति: विजेलक्ष्मी० चढीया, गाथा - १०. ४६९५८. पर्युषण पर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२०x१०, ७२०). साढापचीस देशनाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला आरज देस; अंतिः पचीसमी सीतमका नगरी. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलि बलि हुं ध्यावु, अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४६९५९. साढापचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१३४८, १३x२२). ४६९६०. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. दे., (१९x११, १४X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तारक देव त्रेवीसमो; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ तक है.) ४६९६१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९२-९१ (१ से ९१) = १, कुल पे. २, जैदे., (१९x१०.५, १२x२६). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९२अ - ९२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः तिलक नमै निसदिसोजी, (पू. वि. गाधा ८ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजीमंडन, पृ. ९२ आ. संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवु, अंति: लाल पूरह वछित आस, गाथा - ६. ४६९६२ तारातंबोलकी वार्ता, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (१५.५४९, ८४११). " ', है दे. (२३x१०, १३x२९). १. पे. नाम, नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. ३५७ तारातंबोलनगरी वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पातस्याहजी साहजान अंतिः जिसकी बात कई छै ४६९६५ () नेमिजिन होरी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि गड गिरनार मची रंग हो, अंति: अनुपम रतनचंदजी मनभाई, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामनी; अंति: स्वारथ को संसार, गाथा-५. ४६९६६. आचारांग विषयदर्शन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पत्र असमान आकार के हैं., दे., (१७X१०, १५x२५). आचारांग - विषयदर्शन, मा.गु., गद्य, आदि : आचाररूप दया पालवी, अंति: छमासी तपनो अधिकार. ४६९६८. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले. मु. मोहन ऋषि (पासचंदसूरिगच्छे); पठ. मु. विनयचंद ऋषि (गुरुमु, मोहन ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. सुखसागरजी पार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे. (१९४९.५, ११x२१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव क्षमागुण, अंतिः संघ जगीश जी, गाथा - ३६. ४६९६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (१५.५x१०.५, १७२६). १. पे. नाम. सोलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३६, आदि: रीखभ अजत संभव सामी, अंति: रायचंद० दुख दूर For Private and Personal Use Only करना, गाथा - ११. २. पे. नाम. आठ जिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ८ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: प उठी बंदु परबाते, अंतिः रावचंद० लाइन कोड रे, गाथा- ९. ४६९७०. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, अजमेर, प्रले सा. तुजी (गुरु सा वदुजी); गुपि. सा. वदुजी (गुरु सा अजवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१७.५x१०.५, १२x२४). " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: केवकीननण सीरोमण, अंति: उत्तम कारज कीधो, गाथा- ९. ४६९७१. तावनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३. दे. (१२४९.५ ९४१६). Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल, अंति: कहे कांती ० जा जा जा, गाथा- १९, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा सं. १६ को १८ दिया है और गाथा सं. १९ अतिरिक्त लिखा है . ) ४६९७२. मुनि करणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४.५x९.५, १७२३). मुनि करणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनी करणी करीने; अंति: मिट जावे दुख जंजाल, गाथा- १२. ४६९७३. (4) कलियुगनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१४० (१ से ४०) १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे., ( १६.५x७, ९X२८). कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं., पद्य, आदिः यारो कूडो कलियुग आयो; अंतिः सुकृत एक न पायो रे, गाथा - ११. संपूर्ण ४६९७५. स्तवन व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जावरा, प्रले. पं. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १x२ हैं., जैदे., ( १७.५X१०.५, ३९x१७). १. पे. नाम. सुविधिनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सुवधी जीणेसर, अंति: दरसण दीजीये रे लो, गाथा - ५. २. पे. नाम. चेलणाराणीनी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंतिः समय सुंदर भवतो पार, गाथा ७. ४६९७६. छ संवर सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x११.५, १६x२३). १. पे. नाम. छ संवर सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, ६ संवर सज्झाय, रा., पद्य, आदि: पहेलो संवर जिनवर कहै, अंतिः मुकत लीला बेगा बरो, गाथा-६. " २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि जैसे कोऊ स्वान पड्यौ, अंति: गत मांहि फिर्यो है, गाथा- १. ४६९७७. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सुरतबंदिर, नवापुरा, प्रले. मु. रंगसोम (लघुपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४९.५, ११x२५). सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवरा; अंति: नामथी प्रगटे परमानंद, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गिना है.) ४६९७८. सप्तविपरित्याग सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (१९४९.५, १३४३८). १. पे. नाम. सप्तविज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगुरशिष्या सांभलो; अंति: तिणकी कोन कहांणी रे, गाथा - ९. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: भागहीन कुं ना मीलइ, अंति: जिद बर्षा की आस, गाथा-२. ४६९७९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, कुल पे. ३, जैदे., (२२x१०.५, १०X३२). १. पे. नाम. मीमचमंडण शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. " शांतिजिन स्तवन-मीमचमंडण, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु. पच, वि. १८५३, आदि (-); अंतिः कांतिसागरसूरि० कारणो, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मीमचमंडण पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मीमचमंडण, आ. महेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारदमात मयाकरणी कवि अंतिः तासु चरण सुपसा लह्यो, गाथा १२. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्म, आदि सारद तोरा प्रणमुं अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० तक ही है.) ४६९८४. वैराग्य गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (१९.५४१०.५, १६४१४). יי For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ३५९ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ४६९८७. तत्त्वानुबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१२x१०, १९२७). तत्त्वानुबोध, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति श्रीवीरजिन, अंति: होय नयात्म ज्ञान, गाथा १६. ४६९८८. तत्त्वानुबोध, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१२x१०, १९२७). तत्वानुबोध, मा.गु, पद्य, आदि: शासनपति श्रीवीरजिन, अंति: होय नवात्म ज्ञान, गाथा- १६. ४६९८९ तत्त्वानुबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९ वे. (१२x९.५, १८x२५) " तत्वानुबोध, मा.गु, पद्य, आदि शासनपति श्रीवीरजिन, अंति होय नवात्म ज्ञान गाथा- १६. ४६९९०. तत्त्वानुबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१२x१०, १९२८). तत्त्वानुबोध, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति श्रीवीरजिन, अंति: होय नवात्म ज्ञान, गाथा- १६. ४६९९१. (#) चोपड स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१८.५X११, १२x२८). औपदेशिक सज्झाय - चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रे मारा प्राणीया; अंति: रतनसागर कहै सूर रे, गाथा-८. ४६९९३. श्रावकरी करणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (१६४१२, ११x१९). " " श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अंति: करणी से दुखहरणी एह, गाथा- २३. ४६९९५. पद व फाग संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (१७X११, १३X२६). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरजी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयौ आज सीखरगीर, अंति: रसमे पायौ मुगत पद कौ, गाथा-४. २. पे नाम, धर्मजिन होरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवनमे धीम मचीय, अंतिः सुधक्षमा कहे करजोरी, पद-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पू. १आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुडिं, पद्य, आदि रंग मच्यो जिनद्वार, अंतिः मुख बोले जय जयकार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. नेमराजीमति फाग, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण नेमराजिमती फाग पुहिं, पद्म, आदि; टुक सुण ले हो नाथ; अंतिः पोहता शिवपुर कि सेरी, गाथा ५. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादवपति मेरो मन हर अंति: चंद० मन हर लीयो रे, गाथा- ३. ४६९९८. स्तुति, पद व वारमासो, संपूर्ण वि. १८७२ आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (१७४११, १३x२४). " १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. , मु. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अइयो अईयो नाटक नाचै, अंति: सेवा इही मेवा मागे, गाथा - ७. २. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि : आज ऋषभ घर आवे देखो; अंति: धातु कीरति गुण गावै, गाथा- ३. ३. पे. नाम. नेमराजीमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा. पद्म, आदि: श्रावण मास सुहामणो अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४६९९९. (#) वीरजिन स्तवन, नेमिजिन होरी व औषधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( ३ ) = ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१६.५४७.५, ११-१४x२४-३२). "" १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमी स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः उत्तम प्रणेमु; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीयो, गाथा-२०. २. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २आ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मैडी उपरि मेहड रोखे, अंतिः ऋद्धिहरष० जी हो लाल, गाथा २०, ( पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम, औषधि संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण औषधवैद्यक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: मृगछाला पानी मै; अंति: लगावै तो अदृष होय. ४७००० मेघकुमार पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ वे. (१६.५४११.५, ५x२२). "" (१६.५x७.५, ११x२८). १. पे. नाम. नेमजी की ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित्र लइ चित्त, अंतिः मुनिश्रीसारद० सिरनाम, गाथा- १४. ४७००४. गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१५.५४१२, ११४२३). गुरुगुण गहुंली, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करणशुं शोभतां; अंतिः शुभ० मिले शिव साथ रे, गाथा - ५. ४७००५ (१) स्तवन व वारमासो, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., मिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणसु रथ फेर चल्या; अंतिः पुरी के मनरी हुसडली, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजीमति चोमासो, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सावण बरस हो सामी मेल; अंति: मनवंछत कारज सीधो, गाथा ५. ४७००६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( १६.५X११, ११x१९). औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, आदि: सूत्र गिनाता मै कयो; अंति: कुसाल० गुर परसाद कै, गाथा- ३४. ४७००७. आदिजिन वीनती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५X११.५, १३x२२). " आदिजिन विनती, मु. ब्रह्मजिनदास, रा., पद्य, आदि: सांमी श्रीआदिजिणंद, अंति: मुगतिवर गणैति वरइए. गाथा- ९. ४७००८. स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५X१०.५, २०X१७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-): अंति: (-). ४७००९. (#) नेमराजीमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५X११.५, २१४२५). नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी पिउजी नाम जपुं; अंति: पाय भेटे आस्या फली, गाथा-७. ४७०१०. एकादशी व देवलोकनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. जेसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५x१२.५, १४x२३). १. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदिः आज एकादशी रे नणदल अंतिः मानविजय सावर तरसे, गाथा-८, (वि. कर्ता का नाम मिटाया हुआ है.) २. पे. नाम. देवलोकनी सज्झाव, पृ. १आ-२अ संपूर्ण देवलोक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सहुधर्मालोक देवलोक, अंति: वरत्यो जय जयक रे, गाथा - ११. ४७०१३. कवित, दूहा संग्रह व वखदान प्रसंग, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (१४४१०.५, २४x२३)१. पे नाम. २४ जिन कवित्त, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आद रिषभ अरिहंत अजित अंतिः वीर त्रिभुवन तीलो. (वि. प्रतिलेखक ने गाधा संख्या नहीं लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. भगवानमहावीर द्वारा ब्राह्मण को वस्त्रदान दृष्टांत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन द्वारा ब्राह्मण को वस्त्रदान दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत साधु थइ विहार; अंति: ब्राह्मण लोभ घणोकीधो ४७०१४. स्तुति व भास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२, जैदे., (१५. ५X११.५, १८x२१). १. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जनलाभसूरि, मा.गु., पद्म, आदि वली वली हुं ध्यावु अंतिः कठै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. २. पे. नाम. जिनचंदसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि भास- गच्छनायक, मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वांकानेर समोसर्या रे; अंति: जयकीरत० दीन चढ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वान, गाथा-८. ४७०१५. (#) महावीरजिन स्तवन- २७ भव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११.५, १८४३२). महावीरजिन स्तवन- २७ भव, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंतिः विजय शिष्य जयकरो, ढाल - ६, गाथा-८०. ४७०१६. धुलेवा ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. ग. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (१९x१०, 7 १३X३६). ३६१ आदिजिन लावणी-धुलेवा, मु. कर्मचंद, रा. पद्म, आदिः सुनीयो बातां सदा अंतिः कर्म० चडजाना धुलेवा, गाथा- ७. ४७०१७. कलियुगसाधु पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१९४१०५, १०X२५) कलियुग सज्झाय, मु. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवरहोईमजूर वदै ऊष; अंति: कूकरज्युं ल्हल्ह करै, गाथा-४. ४७०१८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (११.५४९, १६x२०). " औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई; अंति: रतन० कीजो धर्म रसालो, गाथा - १३. ४७०१९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४९.५, १४x२७). १. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोसल ऋषि, रा. पद्य, आदि हांजी प्रभु चोबिसमा अंतिः चोसल० मान लेजो अरदास, गाया- १०. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण " १६५३६). १. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - काया, मा.गु., पद्य, आदिः उडी जाय रे कागजकी सी; अंति: कोइ संग न साथी, गाथा-१०. ४७०२०. सीमंधरजिन वीनती संपूर्ण वि. १९०७ मध्यम, पृ. २, प्रले जेसिंघ, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (१८४१२, १३४२४). 3 सीमंधर जिन स्तवन- वृद्ध, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि मारी विनतडी अवधारो, अंति: अगरचंद ० तार गरिबनवाज, गाथा-२१. ४७०२२. (#) सामायिक ३२ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१०.५, १४x२४). ३२ दोष निवारण सामायिक सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीसरसतिना, अति: सुमति० पामे सुगीस, गाथा-१५. ४७०२३. (-) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्र १x२, अशुद्ध पाठ., दे., (१६X१२.५, For Private and Personal Use Only औपदेशिक कवित, विहारीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: दीजी है कमंडलकै राज, अंति: जो इतनो नही जानही, गाथा - ५. २. पे. नाम. वसंतऋतु वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: फुली वन वेली फुल; अंति: वसंतरीतु आइ है, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आत्मा शरीर लक्षन; अंति: अडादही को चक्र है, गाथा-७. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर स्वामि; अंति: महानंद युगते गाया रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मन भमरा रे पदमप्रभू; अंति: महानंद० आतम उजल थाय, गाथा-६. ४७०२४. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१६४१०.५, ३२४१८). औपदेशिक सज्झाय, मु. हेमचंद्र, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लागो नरनारी हेमचंद्र, गाथा-५, (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) ४७०२५. (+) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.मु. हरिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (१७.५४११.५, १९४१९). १.पे. नाम. भीनासर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनासर, मु. हरिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९७१, आदि: भीनासर स्वामी त्रिभु; अंति: हर्ष हुवा ____ हरिसार, गाथा-६. २. पे. नाम. लोद्रवपुर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. हरिसागर, हिं., पद्य, वि. १९७०, आदि: पार्श्वजिनेंद्र तेरे; अंति: वास शिवपुर माहि खास, गाथा-७. ४७०२६. (#) जैनधर्म प्रभाव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१०, २६४१४). हरिभद्रसूरि जैनधर्म प्रभाव, मा.गु., गद्य, आदि: अह्रीं श्रीभट्टारक; अंति: (अपठनीय), (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ४७०२७. (-) गडपण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वडवाणनगर, प्रले. पं. कस्तुरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१६४१२, १८x२४). घडपण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वडपण तुंकां आवियो; अंति: जाणजे तास विचार रे, गाथा-८. ४७०२८. (-) स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र २४२, अशुद्ध पाठ., दे., (१६.५४१२, २४४१६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सुजस, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रगट चढे मुरधर; अंति: चंद सुजस कहीयो, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, १४, प्रले. रीषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दधिसुत विनतडी सुणजो; अंति: जिनविजय गुण गावा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. कंदोईरो सिलोको, पृ. २अ, संपूर्ण. सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४७०२९. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४१२.५, १६४१६). पार्श्वजिन स्तवन, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सामनि पय नमी; अंति: राजर० वंदइ वारोवारि, गाथा-११. ४७०३०. (-) चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कोटा, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९४९, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत साधु आचार; अंतिः लाल० नीत लीजे सरणा, गाथा-७. ४७०३१. (-) नवकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१२.५८.५, १४४१८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्म, आदिः सुखकारण भवियण समरो अंति: गुणप्रभु० रसाल (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) सीस ४७०३२. दादाजी स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. आ . जिनचंद्रसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (१७×११.५, २४×१५). जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः आयो सहूं श्रीसंघ आस, अंति: आस्यां सफल फली, गाथा-७. ४७०३३. सीमंधरस्वामिनी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (१७.५X१२, १३x२१). " सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझने, अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ४७०३४. (*) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१ (१) = १, कुल पे ७, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण काल्पनिक पत्रांक २ लिया गया है, अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२१.५X१०.५, २०x४१). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः जीव लहसी भवनो पार, गाथा-१९ (पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमआरे नरकगामी जीवसंख्या, पृ. २अ, संपूर्ण. नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पांचमे आरानै विषे, अंतिः कोडिलाखहजारसत. ३. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीयल रतन किम हारीए; अंति: तुं समझ दिवानइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साध पावें धिपदवी चउद, अंति: ग्यानचंद० जिनवर नाम, गाथा-५. ६. पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. २आ. संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामशे भवतणो पार, ३६३ गाथा - ६. ७. पे. नाम औपदेशिक दूहा, पृ. २आ, संपूर्ण औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७०३५ शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, वीक्रमपुर प्र. वि. श्री शीरो उपासरे, जैदे. (१२.५४१०.५, " १७२१). शांतिजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि; सरसती माति पसाउले, अंतिः शांति जिणेसर सांभलो गाथा- १०. ४७०३६. (-#) पार्श्वप्रभु आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७११.५, १३१७). पार्श्वजिन आरती. मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि आरती कर श्रीपार्थ, अंति: विस्तार कर प्रभू का गाथा-७, ४७०३७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१७.५४११. १९२६). " औपदेशिक सज्झाच. मु. शिवकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदिः दुखहर सुखकर दाखीयो, अंतिः शिवः सुजाण रे सुगना, गाथा - ९. ४७०३९. महावीरजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१५.५४११.५, १०४२९). "" For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तोत्र - प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या ३ के बाद संख्या नहीं लिखी है.) Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७०४०. (+#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (२ से ३ ) = २, प्र. वि. पत्र १x२, अशुद्ध पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१५.५१०.५ १२५१५-२४). "" जिनपदचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: ऋषभ जिणंदा आणंदकंद, अंति: (१)ग्यानसार०देखै न समान, (२) चौवीसुं स्तुति कीधी, पद- २४, (पू.वि. स्तवन ७ से १७ तक नहीं है., वि. पार्श्वजिन स्तवन अंत में लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७०४२. सिद्धचक्र स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x९.५, २२x१८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः भविजन भावधरी आराधो अंतिः कांति कहे उल्लासीजी, गाथा ४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधो; अंति: कांति कहे धरी नेह, गाथा - ९. ४००४३ () अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (१४.५x१२.५, १५X१८). अजितजिन स्तवन, मु. जीवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा जिनवर अजित; अंति: गुण गाअ प्रभू वंदीई, गाथा-५. ४००४५. महावीरजिन होरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (११.५४९.५, १३४२९). "" महावीरजिन होरी, मु. विबुधविमल, पुहिं., पद्य, आदि: सुद्ध रूची के साथ, अंति: करते गुणण अभ्यास, गाथा-६. ४००४६. आबुतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. पत्र १४३, वे (१५.५x१०.५, १२x२२). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि जात्रीडा भाई आबूजीनी अंतिः आवै रूपचंद बोले रे, गाथा - २१. ४७०४८. (+) इरीयावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कुशलचंद (गुरु पं. कांतिविजय गणि); गुप. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१२.५४८, १०x१६-२० ). इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि नारी मे दीठी इक आवती; अंतिः करज्यो घणी सेवरे, गाथा ६. ४००४९. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अंत में औषध के नाम लिखे है. दे. (१६.५४११.५, २०x२१). गौतमस्वामी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम आव्या वाद करेवा; अंति: गणे तिहां अविहड रंग, गाथा-७. ४००५०. सझाय व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्र १४२, जैवे. (१५४१०, १४४१८). " १. पे नाम, खंदकमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. खंधकसाधु सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पाय नमुजी अंतिः जिम भव पामो पार, गाथा २५. , २. पे. नाम, नवकारनो रास, पृ. १आ, संपूर्ण, नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० रसाल, गाथा - १४. ४७०५१, () षट्संस्थान अधिकार व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१X११.५, १४४४६). १. पे. नाम षट् संस्थान अधिकार, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण, पे. वि. यंत्र दिए गए हैं. मा.गु. सं., गद्य, आदि परिमंडल १ वृत्त, अंतिः त्रीस प्रदेश को होय. २. पे नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण " "" सुभाषित श्लोक संग्रह " पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदिः सहसा विदधीतन क्रिया, अंतिः स्वयंमेव संपदः, श्लोक-१. ४७०५२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (१४११, १४४१५). १. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. जिणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिणेसर सुखे करु; अंति: ए जीणंदजी अवधारो, गाथा- १०. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३६५ २.पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल भेटीये हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) ४७०५३. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, वृहस्पति स्तोत्र व अविन्यासी लावणी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ११४३२). १.पे. नाम. भीनमाला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, ३. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण विनमुं; अंति: आवागमण निवार के, गाथा-१८. २. पे. नाम. गुरु स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीतिस्तस्य जायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. अवीन्यासी लावणी पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अविन्यासी लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहि., पद्य, आदि: चमक चमक चम विजुरी; अंति: सब डर की फांसी तोडी, गाथा-४. ४७०५४. सम्मेतशिखर तीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४९.५, १०x२४). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: बीस कोससुं गिरवर दीष; अंति: गली पायीस्योपुर को, गाथा-६. ४७०५५. (#) पार्श्वनाथ स्तवन- गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (१८.५४९, १२४२९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस अम्हारे हो; अंति: जगरूप० सफल मोरी आस, गाथा-७. ४७०५६. पंचेंद्रिय विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४x७.५, ६४१७). ५ इंद्रिय विवरण, पुहि., गद्य, आदि: पांच ईद्रिय का सवाद; अंति: नानो प्रकार की बोल. ४७०५७. परमारथ अष्टपदी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१४.५४१०.५, १४४१८). १.पे. नाम. परमारथ अष्टपदी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे प्रभु पाइई सुनो; अंति: एकहि तबको कहि भेटै, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु आतम गुण जानरे; अंति: ओर न तोही छोडावणहार, गाथा-७. ४७०५८. पंचइंद्रि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोहनसागर; पठ. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५४१०.५, १८x२६). ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुजने शिष्य चतुर; अंति: लहो सुख शाश्वता, गाथा-७. ४७०६०. (#) नेमनाथ जान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१२४११.५, १६४२३). नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. ४७०६१. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४९, १०४३०). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूरि आस्या मनतणी, ___ गाथा-१८. ४७०६२. परनारी सज्झाय, पार्श्वनाथ स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१२.५४९, २१४२०). १.पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारुं छु माहारा; अंति: शांतिवि० गमन निवारि, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वालाजी पांच मंगलवार; अंति: उदयरतन एम कहे रेलोल, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: अन्न बिना जश प्राण; अंति: काया अगन मडारी. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: वल्यो जात होक लाल; अंति: लाल० लाय जात० ठान. ४७०६३. (#) औपदेशिक सज्झाय, श्लोक व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (१७.५४१०.५, २२४१८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. थराद, प्रले. मु. गोविंदविजय (तपागच्छ); लिख. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: पहिली प्रीत करतडा; अंति: गुण अछै० सोसुक लीणां, गाथा-१३. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: यस्य पुत्रो न; अंति: नास्ति कुतो सुखा. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: निरखि वयण नवि हसें; अंति: हेम० निंद्रो कुण करे, गाथा-१. ४७०६४. साधारण जिनभक्ति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१२.५४८, ७X१२). साधारणजिन भक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: अब केसे कर छुटेरे; अंति: सीवपुर को रस लूटे रे, गाथा-३. ४७०६५. महाविदेहजिननाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१७४१३, १७४३२). अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ खंड के मात्र ३१ जिनों के नाम हैं.) ४७०६६. कुलकोटि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४९, ८x२०). कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनी २५ लाख कुलको; अंति: मनुष्यनी १२ लाख कही, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के पाठ नहीं हैं.) ४७०६७. (#) आयु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११.५, १२४१७). आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी आउखो तटेने; अंति: जिनराज तणो उछाहरे, गाथा-१२. ४७०६८. (#) चार मंगल सरण व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१९४९.५, १०-१२४३३). १.पे. नाम. चार शरणा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्ता नाम में मात्र 'ऋषजी' ऐसा उल्लेख किया गया है। ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रभात उठ समरीय हो; अंति: चौथमल० वाल गोपाल, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: किणरा छोरू वाछरू रे; अंति: तु राय लेखो आण रे, गाथा-५.. ४७०६९. (#) गौतम कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४९, ५४२५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: लुब्धा लोभिष्ठा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ तक का टबार्थ है.) For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७०७०. सीअल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१४४९.५, १५५१३). י ४७०७१. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १६.५X११, १०X३४). शीयलव्रत सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जोनि मानव भव लाध, अंति: लवधि विजय गुण गाय, गाथा - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा ६. ४७०७२ शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१६.५X१२, १९४१४). शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः सीतलजिन सहेज सुरंगा, अंति: सुबुद्धिकुसल० गाया हो, ३६७ गाथा - ९. ४७०७३ () अठावीसलब्धि आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (१६४११.५, १६x२३). आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्म, वि. १७२६, आदि: प्रणमं प्रथम जिनेसर, अंतिः धर्मवर्धन० प्रकासए, ढाल - ३, गाथा - २५. ४७०७४. इलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (११.५x१०.५, ११५१६). " इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि नाम एलापुत्र जाणिये अंतिः करइ लवधिविजै गुण गाय, गाथा - ९. ४७०७५ पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१६४१०.५, ९x१५). ,, पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारो लाल हीयडे अंतिः जिनहर्ष० वंदा लाल, गाथा- ७. ४७०७६. मेघकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रावण कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. हरकिसन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१५४९, १२४२७). " मेघकुमार चौडालिया, क. कनक, मा.गु, पद्य, आदि देस मगधमाहे जाणीय अंतिः इम कनक भणे निसदीस, ढाल-४, गाथा- ४८. ४७०७७. (-) कायापर व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., ( १७.५४८.५, ७X२९). १. पे. नाम. कायाउपर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद्य वि. १८वी आदि माडी मोने निरपख किणह, अंतिः आनंदघन० सघलुं पाले, गाथा-८. २. पे. नाम. आध्यत्मिक स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आजहु आतम अनुभो बिना, अंतिः ज्ञानविमल हित कीना, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only ४७०७८. अष्टापद व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१३.५७.५, १६x२६). १. पे. नाम. अष्टापदजी स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि मनडो अष्टापद मोह्यो, अंतिः ग्रह उगम सूरि जी गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी जिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८३४, आदि जयकारी जिनराज पुरसाद, अंतिः जिनचंद० सार्या रे, गाथा - ९. " ४७०७९ (४) जिनदत्तसूरिजी सिंघचल्लो छंद, संपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल, ४ अधिकतिथि, मध्यम पृ. १ ले. स्थल. जावद, प्रले. पं. सोमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१७.५४१२, २७२७). जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा., मा.गु., पद्य, आदि: केही गल्लांक पीयां; अंति: रूपचंद ० जिणंद साइयां, गाथा -१४. ४७०८०. रुक्मिणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१४४११, १०×१५). Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगै भणै, गाथा-१५. ४७०८१. (-#) राजुल रहनेमी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४९.५, ९x१८-२०). राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसुरे; अंति: समयसुंदर० अवीचल लाल, गाथा-५. ४७०८२. (-) चंद्रप्रभ स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, ले.स्थल. लखनउ, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१३४१०.५, १६४१५). १.पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयपद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोण विध नाथ निकट; अंति: पद्मजय० फल पाउ, गाथा-३. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सिवाय जिनपद के जग; अंति: गुरुधरम का मरम बतावे, गाथा-४. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: कौन गती होगी आतमाराम; अंति: सुधरे सबही काम, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: में तो किये पाप; अंति: निश्चे तारोगे जिनराज, गाथा-६. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तेरी मूरत; अंति: त्रिभुवन मुगट मणी, गाथा-४. ६.पे. नाम. विमलजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नेक वातां के ताई; अंति: रस वरषाना चाहीये, गाथा-५. ७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सखी चंद्रप्रभु मेरे; अंति: लाजत लंछन के मिसीया, गाथा-८. ८.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित संग्रह , पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९.पे. नाम. स्वार्थ परिहार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: सजन ऐसा कीजीये जेसा; अंति: धारो पूरण पालो प्रीत, गाथा-५. ४७०८३. (#) तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४११.५, १७४२१). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान तीर्थं; अंति: श्रीविजेयउदेयसुरी. ४७०८४. दानशीलतपभावना चोपई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. जैदे., (१८x१०.५, १४४३९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: सुंदर सुप्रसादा रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. ढाल ३ गाथा १८ अपूर्ण से है.) ४७०८५. नारी कुलक्षण पद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१४.५४१०, १७४१७). १.पे. नाम. नारी कुलक्षण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत पीतमसुंतोडे; अंति: रायहर एती नार कुलखनी, गाथा-१. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देव अरिहंत गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १६ अपूर्ण तक है., वि. गाथा संख्या १ अन्य कृति की प्रतीत होती है.) ४७०८६. अणगार गुण वंदन व परनारी परिहार पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १०, जैदे., (२३४१२, २२४१४-२०). १.पे. नाम. अणगार गुण वंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ " अणगारगुण वंदन, क. सुंदर, पुहिं. पद्म, आदि: पापपंथ परहर धर्मपंथ, अंतिः सुंदर० वंदना हमारी है, गाथा-२. २. पे. नाम औपदेशिक सवैचा धर्मोपदेश, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मार्कंड, पुहिं., पद्य, आदि: श्रेणिकराय करी वीर, अंति: मरजाद नहीं गुरु कि, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामल भट्ट, मा.गु., पद्य, आदि एक बायो लसणनो छोड, अंतिः बुध ही नीते कीमछीये, गाथा-४. ४. पे. नाम. नारी चरित परिहार, पृ. २आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय- नारी परिहार, सामल भट्ट, मा.गु., पद्य, आदि: भुंडी नार सुनेह अजीत; अंति: सामल० या के वकंडा, गाथा-२. ५. पे. नाम. स्त्री चरित्र, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, क. गद्द, पुहिं, पद्य, आदि: अस्त्रीचरित्र नव, अंति: तब एक कोड नारी लहे, गाथा- १. ६. पे. नाम. कर्म प्रभाव सवैया, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कर्म परापत तुरी; अंति: चेतो मूरख प्राणी, गाथा - ८. ७. पे. नाम. नारी चरित परिहार, पृ. ४अ, संपूर्ण. परनारी परिहार पद, सामल भट्ट, पुहिं, पद्य, आदि: बालदेवा नु दुख बाल; अंतिः सामल० अरज करत, गाथा- १. ८. पे. नाम. कुनारी परिहार पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. सुंदर, पुहि, पद्य, आदि: कामनी को देहमाने, अंति: सुंदर० खाउंर० रत है, गाथा- १. " ९. पे. नाम परखी परिहार पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: कपट निपट बोले हया; अंति: गंग० सोही सुख लेत हो, गाथा-२. १०. पे नाम, औपदेशिक पद, प्र. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं मा.गु., पद्य, आदि; सजन ऐसा कीजिये जैसा अंतिः करे ए दुर्जन की रीत. ४७०८७. सिद्धाचल स्तवन व नेमिनाथ पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, जैदे. (१७११, ५८x२३). १. पे नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी हुं विमलाचल, अंति: शिवचंद० एहे जिनवर की, गाथा - ७. २. पे. नाम. नेमिनाथ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिणंद जयकारी रे; अंति: शिवचंद० हारी रे लाला, गाथा - ५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३६९ मु. शिवचंद, पुहिं, पद्य, आदि: अब हम है श्याम सरण, अंतिः शिवचंद अरज मेरी, गाथा-५, " ४. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं, पद्म, आदि: अवै साम सलूने खेलत अंतिः क्षमाक० निम अधिकार, गाथा-५. ५. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सेवो प्रभु शिव सुखका अंति: जिनलाभ महा सुखकार, गाथा- ७. ६. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि आज आपे चालो सहीयां, अंतिः जिनचद० मन आणी रे, गाधा- ९. ७. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडुं हेजालवु; अंति: जिनराज०मत मुको विसार, गाथा - ७, (वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) ८. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची युगमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सइ मुख हुं न सकुं; अंति: जिनराज० नए वडजाणरे, गाथा-५. ९. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: बाहु समापउ बाहुजी; अंति: जीवीजई जिनराज रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. सूरप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुरप्रभजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कीजे छै जेहना तहजी; अंति: जिनराज पर वोलै जेह. गाथा-५. ४७०८८. अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१७४१०.५, १०x२८). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नितनमी; अंति: जिणेंद्रसाग० पाया रे, गाथा-८. ४७०८९. (#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१०.५, ९४२०). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: सिद्धिवि० पाया रे, गाथा-१४. ४७०९०. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, दे., (१३.५४१०.५, ७४१०). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सियो पास संखेसरे मन; अंति: संखेसरो आप तुठा, गाथा-७. ४७०९१. औपदेशिक पद व वस्तुपाल तेजपाल चरित्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(४ से ८)=४, कुल पे. ५, दे., (१६.५४१०.५, १८-२०x१३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: साचो बंधव माहरो; अंति: कुल उजवालीयो, गाथा-१. २. पे. नाम. श्री राणकपुर, पृ. १अ, संपूर्ण. राणकपुर मंदिर प्रतिष्ठा विवरण, पुहि., गद्य, आदि: राणकपुरे सेठ धरणा; अंति: पत्र ८१ देखो. ३. पे. नाम. वस्तुपाल तेजपाल संबंध, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वस्तुपालतेजपाल चरित्र, पुहि., गद्य, आदि: गुजरात देश धोळका; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठ नहीं हैं.) ४. पे. नाम. पट्टावली, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पट्ठावली पत्र ६८, (पू.वि. मात्र किंचित अंतिम अंश है.) ५.पे. नाम. सिहोरी नगरे चौमुखप्रासाद संबंध, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिरोहीनगरे चौमुख प्रसाद प्रतिष्ठा वृत्तांत, पुहिं., गद्य, आदि: विक्रम सं. १६४१ वर्ष, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठ नहीं हैं.) ४७०९३. पिस्तालीस आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गूंजागाम, लिख. दलछाराम हाथी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, २०४१६). ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे ए आ; अंति: शिवलक्ष्मी घेर आणो, गाथा-१३. ४७०९४. (+) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१३४७.५, ९x१४-२१). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर चिंता चूर, गाथा-७. ४७०९६. (#) राजुल रेहेनमी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, ९x१६). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: सुखलेहेस्यै रे, गाथा-१२. ४७०९७. (-) ग्रहशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १३४१७). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगतगुरु नमस्कृत्वा; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३७१ ४७१००. अष्टमी तिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. लक्ष्मीनारायण; पठ. मु. हुलासराय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, ९४२०). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तीर्थ प्रणमुं; अंति: लावण्य० सुख संपूर्ण, ढाल-४, गाथा-२४. ४७१०२. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०, १०४३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: क्रुध्यंति बांधवाः, श्लोक-१२, (वि. श्लोक संख्या अव्यवस्थित है.) ४७१०८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१९.५४१०, १५४३५). १.पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी नमा नमो नमा; अंति: रूपनो० उलगूरे, गाथा-७. २.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. कृपाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: जेहना सद्गुण गाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-सुरतमंडन पुरुषादाणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सेवु सेवु हो राज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४७१०९. (+) भरहेसर बाहुबली स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४११.५, १०४२७). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहा तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ४७११०. साधारणजिन होरी व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रत की दूसरी ओर नीचे से भी उल्टा लिखा गया है., जैदे., (२०.५४१०, १०४३०). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: इम रामविजय गुणगाय जो, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: धूम मचावो प्रभु के; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक २ गाथाएँ हैं.) ३. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे पामी अति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक २ गाथाएँ हैं.) ४७१११. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रत १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, ९x१३). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल ग्यान लह्या पछी; अंति: उदयबीज० भव्यजन पाए, गाथा-१३. ४७११२. सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. सिवचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १०x१९). १. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. २.पे. नाम. धन्ना स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो ऋषि वंदीयै; अंति: नाम थकी निस्तार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. चोथा अध्ययन सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. चतुर्थाध्ययन सज्झाय, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर भाख्यो एम; अंति: पुण्यकलश सिष्य जेतसी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोकसंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जा जा वच्चइ रयणी; अंति: थया दया तणे प्रमाण, गाथा-३. ४७११३. तेरह काठिया सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४१२, ११४३८). १३ काठिया सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल प्राणी सुगुण; अंति: जिनहर्ष करै सहु कर्म, गाथा-१५. ४७११४. उपदेश लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१०.५, १२४२३). औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: जिनदास० नरक उठ जाना, गाथा-४. ४७११६. (-) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (११.५४९.५, १४४२०-२२). नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: बाल बीरमचारी वो जीण; अंति: हीरानंद० अवधार वो, गाथा-५. ४७११७. पार्श्वनाथ छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२२, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता सेवतां; अंति: अभेसोम० दायक भगति, गाथा-९. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धनुराका बिजट १ लुगट; अंति: हर रस जाये सहीसभ छै. ४७११८. (+) स्तुति, स्तोत्र संग्रह व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२०.५४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. श्लोक के ऊपर यंत्रों के संख्यात्मक संकेत दिए गए हैं. म. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिणं सदा; अंति: संग्रंथितः सौख्यदः, श्लोक-४. २. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णमहावीर; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐकारबिंदु संयुक्तं; अंति: तस्मै श्रीगुरवे नमः, श्लोक-२. ४. पे. नाम. विघ्नहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: च सदा आनंद दायने, श्लोक-४. ५. पे. नाम. आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४७११९. (+) कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. रंगलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१९.५४१०.५, १५४३०). कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: ईक दिनैं इंद्र; अंति: कुसालचंद प्रकास सत्व, गाथा-१६. ४७१२०.(-) वैराग्य पदव औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२८(१ से २८)=३, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक ३० अखाली है., अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४१०, ९४३४). १. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतमसामी पूछा; अंति: पामो परमानंद हो गौतम, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: यो भव रतन चिंतामणि; अंति: भव जीव तिरिया रे, गाथा-१३. ४७१२१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (१९.५४९.५, १५४३२). १.पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगगुरु जगमंदिर; अंति: प्रीत कीदी भेली मे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३७३ २.पे. नाम. चौद बोल सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगोती सतक पहल; अंति: ऋषि रायचंदजी० जोड हो, गाथा-११. ३. पे. नाम. नमस्कार छंद, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुणता जायै भवनो पार, गाथा-१४. ४७१२२. (#) ज्ञान कसीदा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १४४२९). १.पे. नाम. ज्ञान कसीदा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: चित आणो अती चुप रे; अंति: वाणी सुणी तुं जागरे, गाथा-७. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुणायंते दोषा स्वजन; अंति: कल्पवृक्षो नराणा, श्लोक-२. ४७१२३. मेघकुमार चउढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. जयवंतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०, १५४४०). मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनेलो; अंति: जादव कइ० सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३. ४७१२५. (#) स्तोत्र, स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १३४३२). १.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: भावतोहं नमामि, (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंति: तु देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु मोह्युरे; अंति: तत्त्वविजय० खेमकरा, गाथा-९. ४७१२६. दानशीलतपभावना चतुष्पदीन औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. १३५, जैदे., (२१.५४१०, १५४४८). १.पे. नाम. दानशीलतपभाव चौपाई, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयवाचक० सुखकारोरे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. ढाल ४ की गाथा १ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, ऋ. आसकरण, पुहिं., पद्य, आदि: पंख नमै राजहंस वडो; अंति: आसकरण सुख संपत मील. ४७१२७. पंचमी स्वाध्याय व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११.५, १४४२४). १.पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ____पंचमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुणगाय, गाथा-७. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी पणमेव समरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४७१२९. इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१६.५४१०.५, १०x१६-१८). For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलाची जाणीए; अंति: लबधीवीजय गुण गाय, गाथा-१५. ४७१३१. सोल सती प्रभाती सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४१०.५, १७४३४). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ४७१३२. ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. केसरडाग्राम, दे., (२०.५४१०, २७४१८). आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. जीव, पुहिं., पद्य, वि. १८५९, आदि: खडाखडा में अरज करत; अंति: जीवोजी० अरज मोरी, गाथा-१०. ४७१३३. शंखेसर पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. वस्तुतः एक ही पत्र है, परन्तु पत्र का फटा आधा भाग नहीं है., प्र.वि. पत्र १४२., जैदे., (२०.५४९.५, ३१४१८). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता सरसति; अंति: सेवक नित्यविजय जयकार, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक नहीं है.) ४७१३४. महावीरजिन पद व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१६४९, ८x२१). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिनचरणै चित लावा, गाथा-५. २. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७१३५. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १७३७, पौष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. प्रेम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, २०४५४-५७). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा-१७. ४७१३६. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२७, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२२४१०.५, १८४३२). १. पे. नाम. आत्मवैराग्य सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८२७, पौष शुक्ल, १०, गुरुवार, प्रले. पं. रत्नधीर, प्र.ले.पु. सामान्य. मनुष्यजन्म सज्झाय, मु. विजयदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीविजैदेवसूरि कि, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा ९ से २. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सीधोजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वनमाली घणुं खयभरे; अंति: भणइ० जिम खोडी न लागइ, गाथा-११. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण हुं थने; अंति: अमर जीव जमारे साथ, गाथा-९. ४७१३७. रहनेमि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४८.५, ८४३८). रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी नीजगुरुपाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११. ४७१३८. स्तोत्र गीत व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. पं. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४८.५, १४४२९). १. पे. नाम. शिव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org सं., पद्य, आदि: विहंनी लोचेन नंदी, अंति: प्रेतमभूधर भासितं श्लोक-१. २. पे. नाम. गणेश गीत. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कला उजला विमला; अंति: पद्मविजे० सनरा गणेस, कडी - ८. ३. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष लोक संग्रह, सं., पद्म, आदि तिथि प्रहर संजुक्त; अंतिः व्याधीस्तथा मृत्तू, श्लोक-३. " ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्म, आदि: द्वारिकानगरी अति भली; अंतिः भावसागर बंदै वारोवार, गाथा- ११. "" ४७९४०. सीता सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०x११, २५x१९). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु, पद्य, आदि छोडी हो प्रीया छोडी, अंतिः जिनरंग० हीयइ धरीजी, गाथा ११. ४७१४२. ढुंढीआ बीसी, संपूर्ण, वि. १८३४, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सादडी, प्रले. पं. वनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०४७.५, ३१४१५). "" इंडियाबत्तीसी, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि; आदर जीव क्षमा गुण अंतिः कवियण० काटसी घास, गाथा-३२. ४७१४३. आदिनाथ स्तवन व दोहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२०.५४१२, १४४२७). १. पे. नाम. आदीनाथ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. नरक चौडालिया, मु. गोविंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिणंद जुहारीये; अंतिः ऋषि गोयंद० सरण पावीए ढाल-४, गाथा - ३१. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि; मांस की गरंथि कुचक, अंतिः हमे सारदा को वरु है, गाथा १. ४७१४५. गमन पृच्छा, श्लोक, शांतिजिन स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैवे. (२०.५x१०.५, २५X१७). १. पे. नाम गमन पृच्छा, पृ. १अ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: कोई पूछवा आवे जे; अंति: परगाम आववानी पृच्छा . २. पे. नाम. लोक संग्रह. पू. १अ. संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साचो; अंति: देव सकल मे हो जीनजी, गाथा - ५. ४. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. , मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: भूरे भेस के भेसाशुरे, अंतिः तीसरी घडी हुं जादी. ४७९४६. रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१.५x१०, ११४३४). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धनें आयरी; अंति: रायचंदजी कीनी जोड हो, ढाल - ५. ३७५ ४७१४७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२०.५X११, २५x२३). १. पे. नाम. अनंतजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनंत जिनशुं करो; अंति: वाचक जस० प्रेम महंत, गाथा-५. २. पे. नाम. धर्मजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि धास्युं प्रेम बन्यौ, अंति: जस कहे० है मेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. י शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि धन दिन वेळा धन घडी, अंति: ते वाचक जस करे जी, गाथा-५, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २ अपूर्ण से ३ तक नहीं है.) ४. पे नाम. अरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो, अंतिः ए प्रभुना गुण गाउं, गाथा-५. ५. पे. नाम. मल्लिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुज मुज रीझनी रिझ; अंति: एह जस चित्त धारेरी, गाथा ५. ६. पे नाम. मुनिसुव्रतजिन गीत, पृ. १अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजिन वांदता, अंति: (-), (पू. वि. गावा १ अपूर्ण मात्र है.) ४७१५०. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२०.५४११.५ १२४२७). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पद्म, आदि: एक दिन मरुदेवी आइ अंतिः परगटी अनुभव सारि रे, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १८. ४७१५१. () पार्श्वनाथ छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे. (१९.५x१०, ८x२६). पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पद्म, वि. १७१२, आदि जय जगनायक पार्श्वजिन, अंति: (-). ( पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ४७१५३. (-) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. खोहरी, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९.५x१०, २३X२०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: जिणो वइठं धम्मोयता, गाथा - २०. ४७१५४. सज्झाय, स्तवन, मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. पत्र १x२. घोड़े का सामान्य चित्रित है. जैवे. (२१x१२, ३३४३१). , १. पे. नाम. रेवती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन संघासन रेवति, अंति: कवीअण० जय जयकारो, गाथा - १०. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधो जी, गाथा- १०. ३. पे. नाम नमिराजानी सज्झाच, पृ. १अ संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पच, आदि जी हो मीथुलानयरीनो अंतिः जी हो पामीजे भवपार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन पावन देहडीजी अंतिः मोहन० जिनजी दास हो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गिना है.) ५. पे. नाम. मुंठ मारवानो मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ, पुहिं प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि जोग राखे जोजरा वीर, अंतिः मेरी भगत फुरो मंत्र, (वि. रंगतीया ५२ वीर मंत्रसाधन की सामग्री दी गयी है.) ६. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७१५५. नवकारमंत्र छंद व तीर्थावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (१९x८, ९४२५). १. पे. नाम. नवकार महामंत्र छंद. पू. १ आ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्म, आदिः सुखकारण भविवण समरो अंतिः जिनगुण सुंदरसीस रसाल, गाथा- १४. २. पे. नाम. तीर्थावली पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. 2 For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ३७७ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शेर्जेजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ४७१५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२०x१०.५, २५४१७). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउंरंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. २. पे. नाम. पद्मप्रभस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभ प्रभु तुझ; अंति: आनंदघन रस पूर, गाथा-६. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुख चंद्र; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरवारनी सोहली: अंति: नियत आनंदघन राजपावे. गाथा-७. ५. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनपति ललीत; अंति: आनंदघन पद लेती रे, गाथा-६. ४७१५८. आध्यात्मिक होली पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१५.५४९.५, ११x१७). आध्यात्मिक होली पद, मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चातुरी कहा बोलु समझ; अंति: भाणचंद० की है निसानी, गाथा-८. ४७१५९. बलभद्रसाधु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०, १३४१९). ___ बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मान्यो तंगियापुर; अंति: पालन जासी मोखरे, गाथा-२५. ४७१६१.(-) सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०.५, १७४३०). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण; अंति: वंदन आदनाथ निनिरगनं, गाथा-१४. ४७१६२. सोला सुपना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४९.५, २५४१४). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नफलगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: बली बली प्रणमो हो; अंति: जो पढम उगै जी सुर, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४७१६३. (+) शारदा स्तोत्र व बीज मंत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नाडूल, प्रले. पंडित. नवलरत्न; पठ. कृष्णा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१०, ८x२७). १.पे. नाम. महामंत्रबद्ध शारदा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वती बीज मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ऍक्लीं ह्रौं वद वद; अंति: भवतु निश्चयेन. ४७१६४. (+) जिनकुशलसूरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४११.५, १२४२३). जिनकुशलसूरिस्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीशमुख; अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२. ४७१६६. पंचमंगल भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. रंगविजय; लिख. श्राव. भाईचंद दीपचंद; पठ. श्राव. वल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२., दे., (३२४१०.५, ४३४२०). ५ मंगल भास, मु. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुंए मंगल मन; अंति: खेमा०शुभगुण ते भरे ए, गाथा-८. ४७१६७.(+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. पं. जीतसागर; पठ.सा. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, ७४१६). १. पे. नाम. प्रथमजिन स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: सद्बुद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. ४७१६८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२१x१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. गौतम स्तोत्र गुप्तमूलमंत्राक्षरं सप्रभावं, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, __श्लोक-९. २.पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनी मे फलप्रदा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. कलिकुंडमंडन पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कलिकुंडमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुं; अंति: वार्थानां प्रसिद्धये, श्लोक-४. ४. पे. नाम. परमेष्टि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४७१६९. (+) पांचसो चोर सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x१०.५, ९४३३). ५०० चोर सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल नांणगुण पूरीयो; अंति: उदयविजय सुखकंदरे, गाथा-७. ४७१७०. (#) सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४७.५, ८x२१). नवपद स्तुति, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदि: जिनशासन वंछित पूरण; अंति: राम कहै नितमेव, गाथा-४. ४७१७१. स्तवन, दोहा व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४२४). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोपटरा संदेसो केहज्य; अंति: मानवि० जाउंबलीहारी, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन तुम पे मिलन की; अंति: घर सो मिलण देत नाहि, दोहा-१, (वि. पहेली का अर्थ दाना-पानी के रूप में किया गया है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण मोकलो; अंति: सहिजसुंदर० वेश रे, गाथा-६. ४७१७२. पद वहोरी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१९.५४९.५, २४४१५). १.पे. नाम. नेमिराजीमति होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमति होरी, म. पद्मविजय, पुहि., पद्य, आदि: अहो मेरी सजनी नेम मन; अंति: पद पद्म लहे जिनधर्मे, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमिराजीमति होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमति होरी, पुहिं., पद्य, आदि: साम पे कही बिनति मोर; अंति: पद मुक्तिसजा सांइ, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. शांतिदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ खेलत; अंति: गावत सांतिदास, गाथा-४. ४७१७३. (-) मान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१८.५४१०.५, १८-२१४१६). मान परिहार सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मान न करसोरेमानवी; अंति: सांभलजो सहु लोकरे, गाथा-१५. ४७१७४. तीर्थ वंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२०x१०.५, ९४२५). सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरुं, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७१७५. तपोच्चरण व वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (११४१०, २१४२५). १. पे. नाम. तपोच्चरण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तपउच्चारण विधि-संक्षिप्त, सं.,प्रा., गद्य, आदि: श्रीगुरु नंदिस्थाने; अंति: ख्यानं कारयेदुपवासम. २. पे. नाम. बीसस्थानक तप विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १ नमो अरिहताणं २ नम; अंति: ओली एवंकार ४०० उपवास. ४७१७७. मोतीरी सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४१२, २८x२६). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फलै आसोरे, गाथा-१७. ४७१७८. नेमनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, २६४२१). नेमराजिमति बारहमासा, इंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भारती पाए नमी; अंति: तास प्रणमे रे इंद, गाथा-१७. ४७१७९. (#) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, लिख. पंन्या. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, १७४१३). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र शुक्ल, ८, ले.स्थल. उंझा, प्रले. मु. खेमरत्न (गुरु पं. माणक्यरत्न, बिवंदणीकगच्छ); गुपि.पं. माणक्यरत्न (बिवंदणीकगच्छ); पठ. हरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. कुंथुनाथजी प्रसादात्. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. माणिक्यरत्नशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीत्रेवीसमा पास; अंति: सीस दलमा ठारो रे, गाथा-७. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवनासीनी सेजडीयें; अंति: प्रीत बंधाणीजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. संजम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले.पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमति गीत, मु. मोतीलाल साधु, पुहिं., पद्य, आदि: संजम ल्युंगी मेरा; अंति: मोती रेलालजन्म सधार, गाथा-४. ४७१८१. पार्श्वजिन स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११.५, १०४२२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मेवांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: खैर वौषट् स्वाहा. ४७१८२. द्वादशभवन विचार, मंत्र मातृका व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४१०.५, १५४३७). १. पे. नाम. द्वादशभाव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ भाव विचार, सं., पद्य, आदि: रूपलक्षवर्णानां; अंति: व्ययं व्ययात्, श्लोक-१२. २. पे. नाम. मंत्र मातृका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ प्रणवो ध्रुवब्रह्म; अंति: ४८ ज्वीभोगबीजं, अंक-४९. ३. पे. नाम. कालभैरव मंत्रजप विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कालभैरव कपली जटा; अंति: उडद मंत्री चबा चणा. ४७१८३. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०, १२४३०). धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना; अंति: मेरु नमे वारोवार रे, गाथा-११. ४७१८४. (+) ग्रहशांति, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रावण शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१२, ८x१८). __ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: श्रीजगद्गुरुं नमस्कृ; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-११. ४७१८५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. हुबली, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में लि० हुबलि प्रतिलेखक नाम की जगह प्रतिलेखन स्थल उपयुक्त प्रतीत होता है, संशोधित., दे., (२१४११.५, १५४३२). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८० www.kobatirth.org गाथा- ६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: हांरे मारे ठाम धर्म; अंतिः कांति सुख पामे घणु, ढाल २, गाथा - २४. २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. एकादशी तिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज मारे एकादशी रे अंति: उदयरत्तन० लाहो लहस्यै, मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा, अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. मु. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- ममोइमंडन, मु. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर राया हो मन; अंति: आगे कहि नायक कर जोड, गाथा - १०. ५. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: पारस जैसी छाया सुरतर, गाथा- ७. ४७१८६ आनंदघननो टपो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१४८, ६१७). आध्यात्मिक हरीयाली, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि नानी बहुने पर घेर, अंतिः आनंदघन झचुके झाल, गाथा-३. ४७९८७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२०.५x११.५, १x२९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर प्रणमिह अंतिः पद्मवि० थाउ अखय अभंग, गाथा- ७. ४७९८८. वासुपूज्यजिन व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्रले. पं. मानविजय, पठ श्रावि भाणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५ १२४२७). १. पे. नाम. वासूपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ, अंति: जस कहे हेजई हलस्यं, गाथा ५. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनती, अंति: जस० ए मन साचुं रे, गाथा-५. ४७१८९. (4) आदिजिन चैत्यवंदन व धोय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०x१०.५, ९x१९). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. पंन्या पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि आदिदेव अलवेसर, अंतिः थकी लहिदं अविचल ठाण, गाथा-३, . २. पे. नाम. आदिजिन धोप, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिंता, गाथा-४. ४७१९०. (-) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२०X१०.५, १५X३२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दृष्ट वीरामाण परदीस, अंति: गुदरलीया गालाण रो (वि. प्रतिलेखक ने गाया संख्या नहीं लिखी है.) , २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: किनकी विगरी उनकी; अंति: दिन कहै उनकी सुधरी, गाथा-५. ४७१९३. ग्रहशांति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पु. १. प्र. वि. पत्र २४३, दे. (२०.५X१२, ९-१४४३८). नवग्रहशांति विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: रक्तस्तुल्यस्वरादि, अंति: च सर्वग्रहशांतिदं. ४७९९४. सज्झाय व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२०.५X११, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सेहेजानंदिरे आतिमा; अंति: भवजलतरीया अनेक रे, गाथा-११. २.पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: स्क प्सष्ट स्त्र. ४७१९५. सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४१०.५, २४४१७). १. पे. नाम. आत्मप्रबोध स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन प्राणीया; अंति: केशव० वाततणो एह मरम, गाथा-११. २. पे. नाम. जिनवाणी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गई थी हुं समोवसरण; अंति: जीतना डंका वाजे रे, ___ गाथा-६. ४७१९६. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, आषाढ़ कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११.५, ३४२२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: भोरे प्राणय श्रुति; अंति: मोक्षं फलं तत्त्वयं, श्लोक-१. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानी पुरुष हवारे; अंति: पर भव सर्वसंपदा पामे. ४७१९७. (+) उग्रसेनसाधु सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. प्रह्लाद ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x१०, १३४३०). उग्रसेनसाधु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिणमारग छै मोटको इण; अंति: यान म घणा प्रवीणे रे, गाथा-११, संपूर्ण. ४७१९९. शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४११,११४२५). शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सेहेजानंदी; अंति: जिनविजयानंद सोहावै, गाथा-५. ४७२००. घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४११, ९x१८). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ४७२०३. सुक्तमाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२१.५४११, ९४३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, श्लोक-१७६, (पू.वि. मात्र रचनाप्रशस्ति के अंतिम ६ श्लोक हैं.) ४७२०६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, लिख. श्रावि. हरकोर शेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१x११, ७४२०). १.पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन गीत, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विमल ताहरु मुख जोता; अंति: हुं तो ताहरो रागीरे, गाथा-३. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत ताहरा मुखडा; अंति: ऊदय०तो छेडो साहुरे, गाथा-३. ४७२०७. अमरिका स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१२, २३४१९). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौक्षमतधनागम; अंति: दिनं हृदये कमलापति, श्लोक-१५. ४७२०८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ., (२०.५४११.५, ७४१९). १.पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन गीत, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विमल ताहरु मुख जोता; अंति: हुं तो ताहरोरागीरे. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत ताहरा मुखडा; अंति: ऊदय०तो छेडो साहरे, गाथा-३. ४७२०९. आत्म स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४९, ९४३४). कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागीरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org י' ३८२ ४७२१०. रहींटीया मिष्ट वेराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु पं. जीतविजय); गुपि. पं. जीतविजय (गुरु पं. सत्यविजय गणि) पठ. पं. जिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२०.५x९, १०x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय- रहेंटीया, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु मरूदेवी, अंति: लालविजय० दुख म आणयी गाथा १३. ४७२१३. चोतरी अतीसे स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. गोधावी, प्रले. उमेद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X१०.५, ११३४). ३४ अतिशय स्तवन, मु. हरजी, रा., पद्य, आदि: श्रीजिनवर परणमी करी, अंतिः हरजी जंपे० अतीसेच्योस, गाथा-२८, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम दो गाथाओं को क्रमांक नहीं दिया है.) ४७२१६. (+) सझाय व सरस्वती मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२०.५x१०.५, १x२३). १. पे. नाम मन्हजिणाणं सज्झाच, पृ. १अ. संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाणमाणं मिच; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा ५. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ. संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., पद्य, आदि: हीं वद, अंतिः सरस्वती तुभ्यं नमः श्लोक-१. ४७२२९. बीजनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०.५x१०.५, १९२४). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने अंतिः नित्य विविध विनोद रे, ४७२३३. पाखी खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५X११, १३३४). गाथा ८. " ४७२२४. मेघकुमार चौडालीयो, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३. ले. स्थल, पेमानुवा सहर, दे. (२०.५x११, १५X३३). मेघकुमार चौडालिया, रा., पद्य, आदि: गुणगान गरवातणा धन धन, अति: जीणंद बुल्यावीया हो, बाल-४. ४७२२५. नेमजी बारमासो, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२X१०, ७-११X३०). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वाम मेल; अंति: नवे निधि पामी रे, गाथा - १३. ४७२३०. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, जैवे. (२१४१२, १३४३०) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४, (वि. साथ में यंत्र भी दिया गया है.) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४७२३७. (+) पिंडविशुद्धि व पंचतीर्थी स्तुति, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२१.५x९.५, १६५०). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदबिंदवेदिय पवार, अति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा- १०३. २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: पढमो नरेसराणं पढमो; अंति: भगवओ संघस्स खेमंकरा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने कुछ चुनी हुई गाथाओं का संकलन करके उन्हें क्रमशः १ से ७ तक की संख्या दी है.) ४७२३८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५x११.५, ७४११) १. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वारी वारी रे वाहला, अंति: उदय० तारता छै वडाईरे, गाथा-४. २. पे नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः पोसामा पारेवडो राख, अंति: उदयर० बांधि अछेही रे, गाथा ३. ४७२४०. वंदितु सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२४४१०.५, ९४२५). Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org गाथा-४. २. पे नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इण सांवरीयाने कुण, अंति: प्रभू मोने उतारो पार, गाथा - ५. दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ४७२४३. (१) स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११, प्र. वि. पत्र १x४, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२२x९.५, १५X४०). १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मे मुख देख्यो पारस, अंति: रूपचंद० तरण जिहाज, ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि: निरमोहिडा तोसुं कबु अंतिः स्थित रूपसे वरीया, गाथा-७. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिहाजी हो तुने वरजु; अंति: रूपचंद ० उतारो दुख पार, गाथा - ६. ५. पे. नाम. औपदेशिक हरीयाल, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि रंग्या कपडा रे जोगी, अंतिः कबीर० तेरा मिटे जगरा, गाथा-५. ६. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: राजूलराय प्यारे ठुक, अंतिः उत्तम पुरो आस्था रे, गाथा ५. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुमान, पुहिं., पद्य, आदि: फरसे जिनराज आज राजऋद, अंति: गावत हे हरदे ले लाहि, गाथा - ३. ८. पे. नाम. केसरियाजी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद- केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि; मारा केसरीया माहाराज, अंतिः पुरण आस गुण गाउंरे, गाथा - ३. ९. पे नाम, नेम पद, पृ. १अ संपूर्ण मराजिमती रेकता. मु. चंदविजय, पुहिं, पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंतिः तुमारे चरण पे खरी, गाथा ५. १०. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. " प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x१०.५, १२४३९). " ११. पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांवरो अजून्ही आयो; अंति: कहो कुन वेश वतायो, गाथा-५. ४०२४४. ज्योतिष संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ३, ले. स्थल, चलोडाग्राम, लिब. मु. कुसलविजय, १. पे. नाम. पनरतीथि शुक्र उग्यानो विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ तिथि शुक्र उदय विचार, मा.गु, पद्म, आदि: पडवे छठ इग्वारसे असर अंति: गोकल मे गोवंद, गाथा-५. २. पे. नाम. मूलनक्षत्रना पाया, पृ. १अ, संपूर्ण. मूल नक्षत्र पाया, मा.गु., पद्य, आदि जेठे फागुण मृगसीरे अंतिः ते चतुर्थे सुभावहे, गाथा- ६. ३. पे नाम, प्रेवीस पदवी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण ३८३ २३ पदवी सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भुवनपती वितरने जोति; अंति: जिम पामो भव पार रे, गाथा- ९. ४७२४५. श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२२४१२, १०x२३). श्रेयांसजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः चिरपरिचिता गाढव्याप अंतिः सेनः प्रबोधसमृद्धये, श्लोक-३. For Private and Personal Use Only ४७२४६. नंदीसूत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २२x१०.५, १३X३३). नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जयई जगजीवजोणीविआणओ अंतिः जए भदं दमसंघसूरस्स, गाथा- १०. ४७२४८. बाहुबली सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५x९.५, ९३३). Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मानो वीनती, अंति: ज्ञानसागर० होजो खास, गाथा- ९. ४७२४९. (०) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२१.५x११.५, १६५३३). १. पे नाम प्रमादनिद्रनी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव- निद्रापरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: निंदरडी वयरणि हो रही अंति हो कविजण सुभ वाणि, गाथा-७. २. पे. नाम. नोकारवालीनी सज्झाच, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नोकारवाली बंदीइ चिर, अंतिः लब्धि० भविक नवकारतो, गाथा - ९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापलडी रे जीभलडी तुं; अंति: प्राणी रे, गाथा-५. ४०२५०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (१९.५x१०.५, १०x३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंति: यशोविजय० भयभंजन भगवंत, गाथा ७. ४७२५१. अष्टप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१x११.५, १४४४५). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य वि. १७२४, आदि: विमल केवल दरशन संयुतः अंतिः मोक्ष सोख्य प्रयंति, श्लोक- ८. " ४०२५२. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे (२१४९.५, १६४३८). १. पे. नाम. २० बोल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुं वाद विवाद न; अंति: वली मेडतेनगर मोझारजी, गाथा-१६. २. पे. नाम. विजयकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य वि. १८८०, आदि: विजयकुमर व्रतधारी अंतिः नमीय सांझ सवारी रे, गाथा- ९. ४७२५३. प्रथमव्रत भावना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१X१०, १०X३०). पंचमहाव्रत सज्झाय, पंन्या, जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि वासववंदित वीरजी, अंतिः (-) (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखक मात्र प्रथम महाव्रत की ढाल लिखी है.) ४७२५४. संथारा विधि सह टबार्थ व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २१.५X१०.५, ५x२३). १. पे नाम, संधाराविधि सह टवार्थ, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, प्र. ले, लो, (१२) मंगलं लेखकानां च. संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीही निसीही निसीही अंतिः इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-७. संथारापोरसीसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निसीही तीनवार कहीजें, अंतिः समकित में प्रो. २. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिनवर परमानं; अंति: नयविमल कहै सीस गाथा-४. ४०२५५. आवक इकवीस गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०.५, १०x२४). श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: लज्यावंत होइए दयावंत अंतिः श्रावक के गुन हे. गुरू सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x९.५, १०X३६). विजयसेनसूरि सज्झाय, आव, जीवराज शिवराज, म., पद्म, आदि आधड़ आधइ आठ घिन माझे अंति: सिवराज ४७२५६. (+) गाइ आणंदा, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ (+) www.kobatirth.org ४७२६६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९४४ श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, राजकोट, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री, अन्य मु. सुरजमल स्वामी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२२x१०, १२४३८). १. पे. नाम. उपदेशवीसे सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. पदेशिक सज्झाय, मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदिः आयु अंजलीना जल जेम; अंतिः दयाल ख्याल गावे गावे, गाथा ६. २. पे. नाम परदारावीसे सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदारा त्याग, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: जारी वात विचारी, अंति: सौ को सील धरो रे, गाथा- ७. ४०२६८. पार्श्वनाथ गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२२.५४९.५, ८४२८). " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: कासमीर मुख राणी अंति: लखमी० जिनवर गुण गावु गाथा-७. ४०२६९. गोडी पार्श्वनाथ छंद व ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे. (२०.५x१०, ११४२१). १. पे नाम, गोडीपार्श्वनाथ छंद, प्र. १अ २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. हीरविजयसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मात मया कर स्वामनी अंतिः श्रीपारस असरन सरन, गाथा - ११. २. पे. नाम. गयानपंचमीवृधि स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंतिः भक्तिभाव प्रसंसउ, गाथा-२९. ४७२७९. सुमतिनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., 1 ३८५ ( २२x१२, ११X३०). १. पे नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गावै हो, गाथा ११. सुमतिजिन स्तवन, उपा. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिनेस्वर सुख, अंति: करमचंद गुण गावै हो, २. पे नाम, सुमतिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, सुमतिजिन स्तवन, उपा. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिणेसरदेव जईये, अंति: करमचंद० एहवी वीनतीजी, गाथा-५. "" ४७२७२. सुमतनाथ गीत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सुखा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे (२२.५x११.५, ९३२). सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कर तासुं तो प्रीत; अंति: बिरूद साचो वहे रे, गाथा-४. ४७२७४. सत्तरभेदी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२२१०.५, १८४७). 3 १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती, अंति: किरती० सबि सुख सीजइ, ढाल - १७. ४७२७८. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. जसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२२.५x११, १२x२८). २. पे. नाम. ज्योतिष दूहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि: मीन सनीसर करक गुरु, अंतिः मत जाजो मिवाड, ग्रं. ३. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः (१)श्रीवीरभद्रं दीस, (२)जिनसाक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक ५०, (वि. अन्य विद्वान कृत मांगलिक श्लोक भी दिए गए हैं.) ४०२७९ धुलिभद्ररूषि स्वाध्याय व ज्योतिष दूहा, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे. (२३.५५९.५, १३४४७). १. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. , स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल - ९, गाथा- ७०. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७२८०. (#) नवकार सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३१०.५-११.०, १३x२८). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपउ मनरंगइ; अंति: जास अपाररी पीराणी, गाथा - ९. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरुं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४७२८२. स्तवन, सझाय व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २२x१०.५, १४X३५). १. पे. नाम. जिनपूजा फल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण समरी माय, अंतिः ऋषभदास० तेह नर तरे, गाथा - १२. २. पे. नाम. अभव्य उपदेश सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदिः उपदेश न लागे अभव्यने, अंति: उतमसंग निदान रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२८४. गुरु गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२x११.५, ११४३४). . सुधर्मास्वामिगहुली, मु. धीरज, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु सूत्रसिद्धांतनो; अंति: धीरजथी होइ जगीस, गाथा-७ ४७२८५. तिर्थकल्प संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्र १४४. गु. (२१.५४११.५, १२४२३). (-) १. पे. नाम. सम्मेतशिखर कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण, सम्मेतशिखरतीर्थ कल्प, सं., पद्य, आदिः यद्धत्तविनी वनिता, अंति: तापदमच्युतपदमसी लभते श्लोक १६. २. पे. नाम. गिरनार कल्प, पू. १अ १आ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थ कल्प, सं., पद्य, आदि; वरधर्मकीर्तिविधानं अंतिः गिरनार गिरीश्वरो जयति श्लोक-३२. ४७२८६. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७७, माघ कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. विरधाजी ऋषि (गुरु मु. खेतसी ऋषि) पठ श्रावि. सुखीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०.५x१२, ३५x२२). नव प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. ४७२८७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २१४९.५, १२४३६). १. पे नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष शुक्ल ५, शनिवार, प्रले सा. चनणा (गुरुसा. रीतन); गुपि. सा. रीतन, प्र.ले.पु. सामान्य. 1 २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य कृति " प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), ग्रं. १. " मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: दरसण आव हो देवानंदा, अंति: संजम ले जासीजी मोख, गाथा- ७. २. पे, नाम, ढाल उरजनभावधी पू. १आ, संपूर्ण आनंदधावक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हाथ जोडी आनंद कहे; अंतिः चवन जासी मोख हो सामी, गाथा ८. ४७२९२. (#) हितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल अंश खंडित है, जैदे., ( २३X१०.५, ८x२५). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयप्रभ, मा.गु., पद्य, आदिः अनेक जीवायोनि हु; अंतिः विजय० मंगल थायोजी, गाथा- ६. ४७२९३. स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे. (२१.५X११.५, १४x२८). १. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि आद्यः प्रणवस्तत्र, अंति: सौभाग्यधनमिच्छता, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. जैन रक्षा स्तोत्र, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंतिः मान् संपदश्च पदेपदे, श्लोक-१८. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र- पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: बंदे धर्मजिनं सदा, अंति संग्रस्तितसोख्यदः, श्लोक-४. ४७२९५. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र - यमकबंध सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२१X११.५, १४x२८). पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि; वरसं वरसं वरसं वरसं; अंतिः शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक- ७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य, अति: संबोधनं शेषं सुगमं. ४७२९९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. वालजी (गुरु पंन्या. नेमविजयगणि): गुपि पंन्या, नेमविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०, १३३५). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. पार्श्वदेवजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरिय मे वंछितं नाथ, श्लोक ५. ४७३००. थंभण पार्श्वनाथ चोसालो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४२, दे. (२१.५४११ २४x२० ). पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं, अंतिः पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने ४ पदों को १ गाथा गिनकर कुल गाथा संख्या ४ लिखा है.) गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा ४. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ४७३०१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. ज्ञानविजय, दत्त. खूबलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२., जैदे., ( २१.५X११.५, २७X२०). १. पे. नाम. महावीरजिन थूई, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारें श्रीवीरजिणंद, अंति: जशविजय जयकारी, ३८७ मु. गजकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलपुर मंडण सोह, अंतिः गजकुसल० सुखशाता जी, गाथा ४. ४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणि, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कीरत कमल केल करत, अंति: सौभाग्य० पैदम सोरे, गाथा-४. ४७३०२. अध्यात्म सवझ्या संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, भिणाय, प्रले. मु. हुकमचंद प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५X११.५, १०X३२). अध्यात्म सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: अजर अमर परमेसरकुं; अंति: संतोष कर सिवपुर जाईए, गाथा - २२. ४७३०३. (-) पारसनाथ सीलोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२०.५x११, ११४२८). 1 पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा. पा. वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंतिः चवदे राज से अंतरजामी, गाथा - ५७. ४७३०४. (+) धूलिभद्र स्वाध्याय व गुरुगुण गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, जैवे. (२१४१०.५, ३२४१७) For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. स्थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. स्थूलभद्र सज्झाव, ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि हो पिउ पातलिया कहै, अंति: उत्तम० धापिवी रे लो, गाथा - १०. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मुनिगुण गहुली, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर समता रस संगी, अंति: विधिए रूपविजय वरणी, गाथा- ९. ४७३०६. नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामविजय (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२१४९.५, ११x२८-३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदिषेणमुनि सज्झाच, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी, अंतिः मेरुविजय० निशदीश हो, गाथा - ११. ४७३०८. सझाय, गहुँली व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. रत्नजी प्रले. आ. सोमसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५X१०.५, ३४x२२). १. पे. नाम. परदेशीराजा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ शुक्ल, ३, ले. स्थल. खंभातविंदर, पठ. मु. रत्नजी, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि सूरिवर श्वेतांची, अंतिः उत्तम नित्य जयकार हो, गाथा - १८. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहली. पू. १ आ. संपूर्ण. मु. . उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोहम स्वामि समोसर्या अंतिः उत्तम रंग रसाल रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. नारी पद सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, पुहिं., पद्य, आदि: केसव पे कहत प्यारी, अंति: उत्तम० हसिके बोलाइ, गाथा- १. ४७३१३. (+) दंडक प्रकरण सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २२x११, ७२१-२४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा ४५. दंडक प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्वा चतुर्विंशति; अंति: निवृत्तानां सुलभ. ४७३१५. जिनपूजा शास्त्रोक्त विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. झवेरसागर (गुरु मु. गीतमसागर, तपागच्छ-सागरशाख), प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२x११.५, ५x२७). जिनपूजा शास्त्रोक्त विचार, सं., गद्य, आदि: जिनपूजावसरे श्रूयते; अंतिः इत्यादि ज्ञेयम्. ४७३१६. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे. (२१.५४१०.५, १४४४४). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि ज्ञानं सारं सर्व, अंतिः प्रपाल्य मुक्तिं गतः. २. पे. नाम मौनैकादशी कथा, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण मी एकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " "यस्मिन्दिने कृतं पुन्यं वहुफलं भवति" पाठ तक ही है.) ४७३२२. सालीभद्र वीनती संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. पत्र १४२. दे. (२०.५४८.५, ५X१९). शालिभद्रमुनि विनती, मा.गु., पद्म, आदि राजग्रहीनो नगरीजी, अंतिः सुख भोगवैक जी, गाथा- ३९. ४७३२३. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५४११, १०२२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आदि जिनदेव आज अंतिः समयसुंद० आनंद भयो, गाथा- ६. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन शांति सिव, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra יי www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७३२४. बारमास गीत, संपूर्ण, वि. १८७४, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोतीचंद, ग. वल्लभविजय; लिख. पं. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२०x९.५, २३४१५-१७). विजयलक्ष्मीसूरि बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: हु तो सरसतिने पाये, अंतिः तपगछमा थयु अयुआलु रे, गाथा-१६. ४७३२५. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१x१०, २६x१८). शांतिजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर साहिबा, अति भालप्रभसूरि०सुख सदाय, गाथा ६. ४०३२७. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२x१०.५, ९३२). "" वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि, अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक ८. अंबिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूरण ब्रह्मांड, अंति: अंबिका छंद भाखे, गाथा- १९. ४०३२९. माणिभद्र स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२२x११, ९४३४). १. पे. नाम. माणिभद्र स्तोत्र, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. ४७३२८. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. खराल, जैदे., (२२.५X११, ११x२८). १. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण धन्नाशालिभद्र सज्झाव, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन धन्ना सालिभद्र, अंतिः लब्धि लहे ० रीणीदाह रे, गाथा - १३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके पूत, अंतिः विनय० सुख भरपूर, गाथा - ७. ३. पे. नाम. अंबाजी माता छंद, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. धरणीधर कवि, सं., पद्य, आदि: गाढं दोर्भिश्चतुर्भि; अंति: भारति वक्तिसत्यम्, श्लोक- ९. २. पे. नाम मंत्र संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, जैन मंत्र संग्रह - सामान्य", प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७३३२. गौतम महावीर संवाद व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२x१२, ११४३०). १. पे. नाम, गौतम महावीर संवाद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि इक दिन पूछे गोयम, अंति: होसे धर्म मंडाणी रे, गाथा- १३. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, प्र. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्म, आदि: वीरा वाता विरह की अंतिः वीर जमारा वही गयो, गाथा-२. ४७३३३. सोलै सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५X१०.५, ११x२६). " १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं, पद्य, आदि: सील सुरंगी भातिसुं अंतिः प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-७, ४०३३४. (+) पंचपरमेष्ठी गुण वर्णन व अंग उपांग नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ... जैवे. (२२.५x११, १३x२९). प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः आचारांग १ सूगडांग २: अंति: ११ निरयावली १२. ४७३३८. () सीमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., ., १७X३२). १. पे. नाम. श्रीमंदरजी तवन, पृ. १अ संपूर्ण, १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी गुण वर्णन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा.सं., प+ग, आदि बारस गुण अरिहंता; अंति: (१) मरणांतोपसर्ग सहइ, (२) सिद्ध चेइत्यादि. २. पे. नाम. ११ अंग १२ उपांग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३८९ For Private and Personal Use Only .वे. (२२.५४११.५. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: जुगघरुने जुगमिंदर, अंति: रायचंद० कीहिओ भेली, गाथा - १०. २. पे. नाम. श्रीमंदरजीरो तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. हिम्मतराम, रा., पद्य, आदि: सरीमदरजीनी साधना तुम; अंति: हिमतरामजी० सायब मोरा, गाथा-१३. ४७३४०. सुगुरु पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४९, १३४४२). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा-२५. ४७३४१. जशराज बावनी व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. हरजीग्राम, जैदे., (२२.५४९.५, १३४४९). १.पे. नाम. जशराज बावनी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐकार अपार जगत आधार; अंति: जसराज० आणी मन उल्लास, गाथा-५३. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल करम खल दलन कमठ; अंति: दहन जयजय परम अभय करन, गाथा-१. ४७३४२. थूलभद्र वधावो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४१०.५, २१४१०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सरोवर साधजी; अंति: हरखकुसल कर जोडी रे, गाथा-११. ४७३४४. अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१२, १८x१४). अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडि चढ्यो; अंति: समयसुंदर कर जोडि, गाथा-९. ४७३४५. शनीसर छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. लूणपुरग्राम, प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १४४२७). १.पे. नाम. शनीसर छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति स्वामिनि मति; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३१. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कडुईनु छडीपत्र लोई; अंति: दीजे माथे आवता टले. ४७३४७. (+) श्रावक आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१०, १३-१४४३३-३५). श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, आदि: देवतो अरिहंत गुरु; अंति: ऐरावतो थको विचैहं. ४७३४९. तीर्थंकरबल छंद सह टबार्थ व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११, ५४२८). १.पे. नाम. तीर्थंकर बल छंद सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो; अंति: अग्रबल वीर ते तु, गाथा-१. जिनबल विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार नरे मिली एक; अंति: अग्रे हुवे सत्य सही. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७३५२. सज्झाय व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित है., जैदे., (२१.५४११.५, १५४२७). १.पे. नाम. सालीभद्रधनानी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहिजसुंदरनी वाणि, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा ८ से है.) २. पे. नाम. गर्भित स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९१ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसनेहा सूं नेहलो; अंति: जग जस माम हे मित्त, गाथा- ७. ४७३५४. (#) राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८२१, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३X११, १४४४३). प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. गद्य, आदि प्रथम इरियावही पडिकम, अंति: कम्मभूमिर कुलक कही. ४०३५५. गोडीपार्श्वनाथ उत्पत्ति छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. कपूरचंद ऋषि (गुरुमु, चिमनराम ऋषि); गुपि. मु. चिमनराम ऋषि (गुरु मु. ईसरदास ऋषि); पठ. मु. गुणचंद, मु. धनराज (गुरु मु. कपूरचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५X१०, १२x२९). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि वाणी ब्रह्मावादनी अंति: प्रीतविमल० अभिराममंतै, दाल-५, गाथा ५५. ४०३५६. (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९७ पौष शुक्ल २, मध्यम, पृ. २. ले. स्थल. जामखेड, प्रले. बदरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक व प्रतिलेखन स्थल अवाच्य होने से संदिग्ध है, संशोधित. जैवे. (२१.५x१२, ११४२४). भाणविजय, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे जाण; अंतिः हो फले सथली "" आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, मु. आश के, गाथा- २३. ४०३५८. () सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०८ वैशाख शुक्ल, ८. गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल मेडता, प्रले. सा. अणंदाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२१.५४९.५, १६५४५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदिः श्रीमंदिरस्वामी अरज, अंति: प्रसादी जगी ह लाल, गाथा २६. ४०३६० (०) माणिभद्र छंद व पार्श्वजिन सवैया, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५x१०, १०x३२). १. पे. नाम. माणभद्रजीको छंद, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद - मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नति सेवित सुभ; अंति: राजरत्न ० जयजयकरण, गाथा - २१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- वरकाणा, मा.गु., पद्य, आदि: दादो दातार वडो दुनिय; अंति: पास सोभा वरकाणे, पद-१. ४७३६१. (#) अतिचार, सवैया व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१२, १६x२९). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: अनेरा जे का अतिचार.. २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: गोरो मुख गोरो गात; अंति: गाल काट काट खाइये, सवैया- १. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पू. ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: लावां तितर लार; अंति: कोइक थोभै किसनीया, गाथा-४. ४७३६२. (+) फाग व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १७, प्र. वि. प्रत में लिखी गयी कृतियों के क्रम का भी उल्लेख है., संशोधित, जैवे. (२२x११, १०x३१). १. पे. नाम. नेमराजूल फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, पुहिं., पद्य, आदि: एक सुणले नाथ अरज, अंतिः पोहता शिवपुर कि सेरी, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेम फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादवपत मेरो मन हर, अंति: चंद० मन हर लीयो रे, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ३. पे. नाम, पार्श्व फाग, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर, अंति: छाया सुरतरु की, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कुं ज्ञान दीयो; अंति: उदयसागर० दीयो मुज कु, पद-७. ५. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो रे रिषभ; अंति: गुण गावो नित जिनवरको, गाथा-५. ६. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयौ आज सीखरगीर, अंति: रसतो पायो मुगत पद कौ, गाथा-४. ७. पे. नाम, धर्मजिन पद, प्र. २आ, संपूर्ण धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची, अंति: सूधक्षमा कहे करजोरी, पद-८. ८. पे. नाम औपदेशिक फाग, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: ऊतरे पाप सकल गिर को गाथा-४. ९. पे. नाम. सम्मेतशिखर फाग, पृ. ३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ फाग, पुहिं., पद्य, आदि: चालो जइए समीतशिखरगिर, अंति: पद तुमे अनुभव कू, गाथा-४. १०. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि सिद्धगिरिजी को दरशन, अंतिः रूपचंद० जल पार उत्तर ले, गाधा ४. ११. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: बावो ऋषिभ बेठी अलबेल; अंति: आनदघन० अपनो करके, गाथा-४. १२. पे. नाम. राजीमति फाग, पृ. ३आ, संपूर्ण. राजिमतीसती फाग, मु. रत्नसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: वादन रंग मसि हे जा; अंति: रतनसु० महाव्रत पइयु, पद-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ३आ. संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: धाम मची जिन द्वार, अंति: बनारसी ० पुरी को साथ, गाथा - ७. १४. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: अभीनंदन जिनराय चलो अंतिः नित प्रत शीस नमाय, गाथा-५. १५. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर, अंति: जय बोलो परमेश्वर की, पद-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ४-४आ, संपूर्ण मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार, अंति: मुख बोलै जय जयकार, गाथा-७. १७. पे. नाम. शेजागीरी फाग, पृ. ४आ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सारो सोरठ देश देखाओ, अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only ४७३६३. . (#) बारमासो संग्रह व गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२x११.५, १०-१२x२७-३०). १. पे. नाम. नेमजीरो बारमासो, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. राजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीने सरणे नमी, अंति: रूपचंद ० विसल सुखविलास, गाथा-३४. Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २.पे. नाम. नेमजी को बारमासो, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. नेमराजिमती बारमासो, म. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: काति कंत विना किम; अंति: करजोडी कहे कवि कान, गाथा-१५. ३. पे. नाम. समवसरण गुवली, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. समवसरण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: बहिनी देव वाजित्र; अंति: सहु जय जय भणे रे लोल, गाथा-५. ४७३६४. पार्श्वजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४९.५, १६४३३). पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पावस उलह्यो; अंति: जिणहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३. ४७३६६. (+) इलाचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १९४४५). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ की गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४७३६७. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५-२२.०x१०.५, १४४३१). आदिजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अजर अरूपी; अंति: सेवक राज० ऊतारो राज, गाथा-२३. ४७३६९. ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ४४, जैदे., (२३४११-११.५, १२४३६). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम १४ भेद नारकीरा; अंति: मिल्या ५६० भेद हुआ. ४७३७०. मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जेशींघ साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, १२४३१). साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कदी ए मीलसे मुनिवर; अंति: भणे विजयदेवसूरो जी, गाथा-१३. ४७३७१. रात्रीभोजन सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जेशींघ साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, १३४३०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यसंजोगे नरभव लाध; अंति: मुनिवस्ता०अधिकारी रे, गाथा-१३. ४७३७२. नोकारवालीसज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जेसींघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, ११४२६). नवकार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए नवकार तणुफल; अति: ज्ञान० गुण धरीये हो, गाथा-१४. ४७३७३. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२२४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. नींदावारकनी सजाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजे कोउनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. २. पे. नाम. माननी सजाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानत्याग, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे कोई मानवी; अंति: तत्वविजय कहे सीस रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पंचमा आरा सर्व जीवना आउखानीसज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल प्रणम; अंति: भावसागर० एम भाखी जी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. पांचमनी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे ज्ञानी; अंति: पुत्री तणारे लोल, गाथा-३. ४७३७४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, ११४३४). For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पांचमनी सजाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हुं प्रणमी; अंति: वाचक देवनी पुरोजगीस, गाथा-५. २. पे. नाम. आठमनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४७३७५. गिरनारिमंडन नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. लाला (गुरु सा. वाल्हा); गुपि. सा. वाल्हा; पठ. श्रावि. माणिक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १३४४१). नेमिजिन स्तवन-गिरनारतीर्थमंडन, मु. भावशेखर पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ सोरठ देश अति; अंति: भावशेखर० लाभ अछेह, गाथा-११.. ४७३७६. दादाजी स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४९.५, १०४२८). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन; अंति: जिनचंद० मनवंछित फलजो, गाथा-१०. २.पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनकुशलसूरिदादा गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आयो सहु श्रीसंघ आस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ४७३७७. दीपमालिका देववंदन विधि व गौतम स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. पं. खुश्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १२४३९). १.पे. नाम. दीपमालिका देववंदन विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीवीरजिनवर चरम; अंति: प्रगटे सकल गुण खाण. २.पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणभूद; अंति: ज्ञानसूरिवरदाकश्च, श्लोक-४. ४७३७८. गुर्वावली, गुरु स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०x१०.५,११४४४). १. पे. नाम. गुर्वावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: कल्पसिद्धांत वंचायइ, श्लोक-१७. २. पे. नाम. विमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरु स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्संघसमुद्र; अंति: स्वेते गणे सांप्रतं, श्लोक-२. ४७३७९. (#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०.५, १७X४३). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसै अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ४७३८०. (+) निश्चयव्यवहार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नारदपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०, १५४४९). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंससूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देशना; अंति: हंससूरि० इणि परि कहे, गाथा-८. ४७३८१. सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया. प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४९.५, ९४३१). १.पे. नाम. स्याद्वादमत जिनवाणी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमत श्रीजिन; अंति: सिद्धांत रतन बहुमोल, गाथा-२१. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आहारनिद्राभयमैथुनानि; अंति: पशुभिः नरः स्यात्, श्लोक-१. ४७३८२. (#) स्तवन व पडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, ९४३४). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. २. पे. नाम. पाखि पडिकमण विधि सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपती वंदणेणं समुद्; अंति: पक्खियं पडीकमणं, गाथा-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मुंहपत्ति क० मुहपत्त; अंति: पडिकमणारी विधि जाणवी. ४७३८६. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, १४४४२). आदिजिन स्तवन-इंद्रपुरमंडन, मु. आनंदविजयशिष्य, पुहि., पद्य, वि. १९१५, आदि: तिनासें कउन वडा पापी; अंति: स्तवन कीयो भरधान, गाथा-८. ४७३९०. तिथि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२४९.५, ९४२७). १. पे. नाम. महावीरदेव स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. चंद्रोदयबीजदिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुण० संघ तणा निसदीस, गाथा-४. ४७३९२. जिनबिंबप्रवेश विधि, पूजनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२०.५४१०.५, १५४२९). १.पे. नाम. जिनबिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भला मुहूर्त जोईई; अंति: विस्तर स्नात्र करकरण. २. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेश पूजनादि सामग्रीसूचि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नंदीवृक्ष१ सहदेवी२; अंति: एवं चामूलिकाशनात्र. ४७३९५. (#) चयनित गाथा व प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, २५४३६). १.पे. नाम. चयनित गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पुढवी आउ वणस्सइ बारस; अंति: सिद्धि सुहं न पावंति, गाथा-२२. २. पे. नाम. विविध प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार माहै पहिला पद; अंति: सूत्रमाहै कह्यु छ, प्रश्न-५६. ४७३९६. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-४(१,४,६ से ७)=४, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध व अपूर्ण होने से कृति पूर्णता के अनुसार काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ९x१८-२०). १. पे. नाम. विजयशेठ विजयाशेठाणी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरीज जपे तास पसाय, ढाल-३, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव विषय न राचीइं; अंति: सिद्धिवि० नीसदीसोरे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गुरुमहिमा सज्झाय, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरु० कवि कल्याण रे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संतिकर संतिजिण जावर; अंति: ज्ये पुण्य प्रभाविका, गाथा-४. ६. पे. नाम. मन मांकड सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकलो आण न मान; अंति: मुगत तणो फल लीजे रे. गाथा-६. ७. पे. नाम. गवसुकमालमहामुनि स्वाध्याय, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सिंघसोभाग राजीयो जी, गाथा-३६, ___ (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण से है.) ८.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४७३९७. सीतासज्झाय, राजा आयुमान व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२, ४३४२२). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: सीलवंत तणो हुंदास, गाथा-२१. २. पे. नाम. हेमंतादि राजाओं के आयुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. हेमंतादिराजा आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि: हेमंतराजा धरणराजा; अंति: सोल लाख आंबिल कर्या. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७३९८. आषाढभूति चौढालियो व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष हेतु मात्र 'समत पीचतरो' का उल्लेख है, प्रत की लिखावट २०वी की होने से सं.१९७५ माना गया है., जैदे., (२१.५४१०, १४४२०-३६). १. पे. नाम. अषाडभूतरो चोढालीयो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. कुसालाजी); गुपि.सा. कुसालाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: रायचंद० दुखणं मोया, ढाल-५. २. पे. नाम. पासजी को तान, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: आज सखी मे मुरत देखी; अंति: तमसुं मोय मोखफल देजो, गाथा-५. ४७३९९. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. शांतनाथजीको स्तवन, पृ. ५०अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिनेसुर; अंति: ध्यान श्रीसाधलह, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ५० आ. संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपकचंद, अंति: रायचंद० प्रभुजी पीर, गाथा - ११. ४७४००. (#) पंचतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५X११.५, ११×३५). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि : आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: मुनि लावण्यसमय भ ए. गाथा - ११. ४७४०२. ८४ आसातना स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२x११, २२x१९). ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि जय जय जिनपास जगत्र, अंतिः बंदे जैन शासन ते बली, ३९७ गाथा - १८. ४०४०४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२१.५४१०.५, २०x१८). . पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसना पसायधीरे अंतिः विणयर लील विलास रे, गाथा- ७. ४७४०५. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X१०.५, ४८x२५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिहां नम; अंति: ते समरुं निसदीस, गाथा- ३. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः समकित विन जीव संसार, अंतिः पुरिमाहे नही अटक्यौ, गाथा - ७. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण विण जीव संसार, अंति: भगवंत तेरो पापशम्यो, गाथा ६. ४७४०७. संघसरूव कुलंसमाप्रतं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५X११, ११४३८). ', संघस्वरूप कुलक, आ. पूर्वाचार्य, प्रा., पद्म, आदि: केई उम्मम्गठिअं अंतिः दुसमकालेवि सो संघो, गाथा-२१. ४७४०८. अरणीकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X१२, ११३०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि अरणिक चाल्या; अंति: लब्धि० मुनिवर वैरागी, गाथा - १४. ४७४०९. (+) नमी प्रव्रज्या अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२१X११, १४X४०). उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदिः चणं देवलोगाओ उबवन; अंति: नमीरायरिसि ति बेमि, गाथा- ६२. ४०४१०. पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२१x१०, १४४३६). पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः सुरतरुनी परि दोहिलो अंतिः श्रीविजयदेवसूर के गाथा- १६. ४०४११. दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२१.५४११.५ १२४२५). " प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि: प्रथम सुभ दिवसे सुभ अंतिः प्रथम गोचरी कराईजे. १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: सिरिसुखदेव पसाई करो, अंति: करो पुण्य आणंद, गाथा- ९. २. पे नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. ४७४१३. नेमि गुहली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५X११, १०X३०). नेमिजिन गहुली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिजिणंद समोसर, अंतिः अमृतपानमा जी रे, गाथा- ६. ४७४१६. सनतकुमार चौढालीयौ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५x१२, १९x४०). सनत्कुमारचक्रवर्ति चौडालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्म, वि. १७८९, आदि: सुखदायक सासणधणी, अंतिः चरण नमुं सुखकंद ए, ढाल-४. ४७४१८. गीत व सझाय, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. केसरीचंद हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५X१०.५, १३X३६). For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ४७४१९. धनाऋष सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अकबराबाद, जैदे., (२१.५४११, १३४३०). धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: अकबरावादे मोरि अमां, गाथा-२१. ४७४२०. बलदेव ऋषि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४९.५, १२४३४). ___ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेव वनमाहि तप तपइ; अंति: बूझवइ पसु वृंद रे, गाथा-९. ४७४२१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. अमृतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३५). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा नवाणु करीए; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बीकानेरमंडन, मु. महिमासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: वीरजिणेसर वंदीयै बीक; अंति: ___महिमा० सुख थाय रे, गाथा-७. ४७४२४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. पून्यकीर्ति, पठ. श्राव. पानाचंद क्रमचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३१). १.पे. नाम. नेमराजीमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. श्रीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो तुमे जावो शीवपूरे; अंति: भणे आवागमन नीवार हो, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. ४७४२५. नवपद गोहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०,११४२६). नवपद गहुंली, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतमरामी मुनिराजीया; अंति: संपदा शुभविजय सुखकार, गाथा-१०. ४७४२७. आत्म प्राप्ति गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विजापूर, प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२,१३४३९). आत्मप्राप्ति गुण, मा.गु., गद्य, आदि: जे कारण आतम स्वरूप; अंति: जाणै सौ सुद्ध जाणवो. ४७४२८. (+) चौवीस दंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१३(१ से १३)+१(१६)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, १८४४५-४७). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गतागति द्वार अपूर्ण से देव द्वार तक है.) ४७४२९. स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३४११, १७४३९). १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: देवी नित नमेवी जगपती, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडलमुकुटं; अंति: रम्यारम्यं सह रम्यं, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. युक्तिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: नमीय जीणेसरदेव संघ; अंति: जुगत० गावे मंगलग्यान, गाथा-६. ४. पे. नाम. अग्नी स्तंभन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७४३१. शेत्रुंजा प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मोतिचंद, अन्य सा. चंद्रश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x१२.५, ३-३२X३२). शत्रुंजयतीर्थं लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तवकेवलिणा कहिअ अंति: लहइ सेतुंजजनफलं गाधा- २५. शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अतिमुक्तक केवली; अंतिः जात्रा कर्यानु फल.. ४७४३२. जिनालय प्रतिष्ठाविधि, जिनबिंब प्रवेशन विधि व दीक्षाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३X१०.५, १७x४३). १. पे नाम, लघुदेवालय प्रतिष्ठाविवस्थापन विधि, पृ. १अ २अ संपूर्ण जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पहिलु मुहूर्त्त भलुं; अंति: बनाम १०८ वार स्मरे. २. पे नाम, नवीनदेवगृहे जिनबिंब स्थापनविधि, पृ. २अ संपूर्ण . जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: अथ प्रतिष्ठित नवीनबि; अंति: जिनभवन पूजनाविधीयते. ३. पे. नाम. दीक्षा विधि, पू. २आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम शिष्यने हाथे; अंतिः पच्चक्खाण करे करावे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४३३. सीमंधरजिन स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५x१०.५, ११४३१). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर, अंति: देवचंद्र पद पावे रे, गाथा - ९. २. पे. नाम. पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जीवाजी थाने वरजु छु; अंति: रूप० भवोदधि उतरै पार, गाथा-३. ४७४३५. भक्तामर काव्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., ( २३४८, ९X३३). १. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा. गु. सं., पच, आदिः केवलालोक भासते, अंतिः बुधैः नमस्कृतम्, गाथा- ३. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १ अ. संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. भक्तामर भंडारित काव्यगाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र - शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपुरिदिग्वि, अंतिः परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. ४७४३६. जिनवर अंग पूजा दोहरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जेसींग साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २२x१०, ११X३३). नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ४७४३७. ढुंढक रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x११, ११४४५). कुंडक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ की गाथा १७ तक है.) ४७४३९. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, दे. (२१.५x१०.५, ११४३९). " १. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. ३९९ मु. जीवण, पुहिं., पद्य, आदि: नाव विन नांही निसतार; अंति: जीवण० सबकौ अधिकारा, गाथा-८. २. पे. नाम. राम लावणी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: चौरासीमै अतिही दुख, अंति: सुणज्यौ सब कोई, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., पद्य, आदि नेमजी की जान बनी अंतिः मौख का हूबाज अधिकारी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. कृष्णकालिनाग लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गंगाधर, पुहिं., पद्य, आदि: बसत इक जमुना मै काली; अंति: गऐ जब कर जमुना खाली, गाथा-८. ४७४४१. अठावीश लबधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६४, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सिवगंज, प्रले. सा. उमंगश्रीजी; पठ. सा. जयश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, ९४२२). आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. ४७४४२. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०, २०४१६). संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुने संभवजिनस्यु; अंति: सुमतिसीस० धारो रे, गाथा-७. ४७४४३. संसारसमुद्र, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. धनबाई (गुरु सा. वीरबाई); गुपि.सा. वीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४१०, १५४२६). संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: जेम समुद्रने बाहेरली; अंति: भये करी गुजी रयो छे. ४७४४४. शारदा छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३४१०, १२४३१-३३). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: आस फलस्ये ताहरी, गाथा-३४. ४७४४५. चैत्यवंदन, सकलकुसलवल्ली व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११, १३४२८). १.पे. नाम. सकलार्हत चैत्यवंदन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. वीरविजय (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-३५. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्ली, पृ. २आ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, श्लोक-१. ४७४४६. शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. जीवणदास ऋषि); गुपि. मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. जसराजजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११४२४). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कर्मरालि विहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, ___ श्लोक-१३. ४७४४७. जीवविचार व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२०x१०.५, १६x४२). १.पे. नाम. जीवविचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भूवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. २. पे. नाम. सारणे स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सारणैश्चर स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नगार्धाशगोकर्ण मूले; अंति: संसुवेशंकरं सारणेशम, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक ४७४४९. थुलभद्र सज्झाय व नेमिनाथ गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२२४११, ११४३३-३५). १.पे. नाम. थुलभद्र सझाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिधविजय० लगै धुतारी, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org २. पे. नाम. नेमिनाथजीरी चीठी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. राजिमती द्वारा नेमिजिन को पत्र, मु. जिनविजय, रा., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीयदुपय नमः अंतिः जिनविजय कहे करजोडी, गाथा-१३. ४७४५०. (+) पौषध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x११.५, ८-१०x२०-२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ४७४५१. (#) सज्झाय, स्तुति, गीत, स्तवन, आरती व थुई, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष शुक्ल ७ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १६, ले. स्थल. जैसलमेर, प्रले. पं. जैतसी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. वि. १७५३ में लिखी गई प्रत से उतारा किया गया प्रतीत होता है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १५X६१). " १. पे. नाम. द्वादशांगीनी सज्झाय, प्र. १अ संपूर्ण. द्वादशांगी सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर जग उपगारी, अंति: लही शुद्ध प्रबोध रे, गाथा - १४. २. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धि पवयण; अंति: सानिध करी तसु संग, गाथा-४. ३. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर, अंति: देवचंद्र० सिरदार, गाथा-४. ४. पे. नाम. गिरनारस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मिजिन स्तुति - गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः यादवकुलमंडण नेमिनाथ; अंति: अ सा अंबाई देवी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जन मोहन; अंति: भीमराज० निरमल न्यान, गाथा- ४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: पंचअनंत प्रपंच रहित; अंति: भीमराज० सानिधकारी जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसुरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं अंतिः इम जिवत जनम प्रमांण, गाथा-४. ८. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिजिणेसर अंतिः पामै सिद्ध सरूप, गाथा- ४. ९. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ४०१ महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब दिसि पावापुरी, अंति: भीमराज० नित दीवाली, गाथा-४. १०. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भविक; अंति: दीपे पामीजे भववारोजी, गाथा-४. ११. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. रंगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदिः सखि राजगृही उद्यान; अंति: सखी रंगवल्लभ जयकार, गाथा- ९. १२. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : आज गइती हुं समवसरणमा; अंति: मिलवो ते सुख साचोरे, गाथा ५. १३. पे नाम, भावी तीर्थंकर पद्मनाभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मनाभजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वाटडी वीलोकुरे भावी; अंति: सेवनारे करता परमानंद, गाथा-७. १४. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतरायजी, पुहि., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज; अंति: नित सेवक कुसुख दीजे, गाथा-८. १५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठी आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: दानत. मुगति सुखदाणी, गाथा-८. १६. पे. नाम. पजूसण थुई, पृ. ३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसुरींद, गाथा-४. ४७४५२. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १८४५२). १.पे. नाम. नेमिराजीमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: लूअरनी जाति नेमवदणरा; अंति: उत्तम मति आणी लो, गाथा-१८. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: देरावर में दीपतौ; अंति: अभयकुशल० सेवेलो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीतलनाथ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: समयसुंदर० जनमन मोहए, गाथा-१५. ४७४५४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. हंसकीर्तिगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि जिणेसर दिनकर; अंति: साधुकीरति० पय नमइ रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पुंडरीक स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमी रे जिणवरना; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ, गाथा-१३. ४७४५५. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १३४३७). शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंदनी; अंति: थायजो संघ मंगलकारी, गाथा-१५. ४७४५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १७४४४). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा साहिब गोडी पास; अंति: दीझइ देव दया करी रे, गाथा-८. २. पे. नाम. शेव्रुजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडारे सौरठ देश; अंति: जंपइ इणपरि जयतसी, गाथा-११. ३. पे. नाम. मगसीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मगसीमंडण, मु. धनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंद मेरे मन; अंति: धनचंद० काजरेलाल, गाथा-१३. ४७४५८.(#) शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति व भक्तामर मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १६x४३). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४०३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र-मंत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्तामर यः संस्तुतः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ का मंत्र अपूर्ण तक है.) ४७४५९. (+) सामाइयग्यहणपारण विही, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२१.५४१०, १३४३४). सामायिक ग्रहण पारण विधि, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पजितन्न देसविरइस्स; अंति: निहित्त सिरो भणइ. ४७४६०. शोभन स्तुति, सझाय व दिनदशामान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१२.५, २१४३५). १.पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९२८, पौष शुक्ल, २, शुक्रवार, ले.स्थल. राजपूरनगर, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); गुपि. मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. अभिनंदनजी प्रसादे सउमासो लिखि. म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४. २.पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठ मदनो प्रा; अंति: पुण्यनी रेहरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. दिनदशा सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १९२८, पौष शुक्ल, ११, ले.स्थल. राजपुर. दिनदशामान, सं., पद्य, आदि: प्रथमे विंशति भवेत; अंति: उक्ते दशायाः फलं, श्लोक-४. दिनदशामान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुसनारनी नामराशथी; अंति: दशानो फल कह्यो छे. ४७४६२. (+) स्तवन वदोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक १३ और ४ लिखा है., संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १२४२९). १. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित्य; अंति: जिनवर वधते नेहोजी, गाथा-८. २. पे. नाम. चोवीसजिन परिवार स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-५. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कपटी मीत न कीजिए पेट; अंति: जातकु हम से दगा कीया, दोहा-४. ४७४६५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११, ८४२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल मुरति अलवेसरू; अंति: श्रीविजे सुख रसाल है, गाथा-७. ४७४६६. फूलमाला सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आगलोड, जैदे., (२१.५४१०.५, ८४३०). फूलमाला सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो पंडित ते कुण; अंति: रूप कहे बुधसारी रे, गाथा-५. ४७४६७. श्रावक दीनक्रत सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१०, ९४२८). मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ४७४६८. जिनचंद्रसूरीणांनिर्वाणानंतरं उमाहागीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. पाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३५). जिनचंद्रसूरि आलजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आसू मास वलि आवीयउ; अंति: संघने समयसुंदर आणंद, गाथा-११. ४७४७०. (+) कालग्रहण विधि व उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३६). १.पे. नाम. कालग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही प्रतिक्रम्य; अंति: चिंत नवकार कहै पाडी. २.पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति १'अ' से प्रारम्भ होकर १'आ' पर समाप्त हुई है. उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४७४७२. (#) ऋषभजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १२४२८). आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोज विबोध; अंति: तत्रांज कांतिक्रमो, श्लोक-४. ४७४७३. फाग संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२२४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. नेमजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन फाग, मागु., पद्य, आदि: नेम जिणंदसुंताली; अंति: माहानंद ठाय सहेरी, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमजिन फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलावत कानइआ; अंति: रूप कहे मे लेत बलइया, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. माणक, पुहि., पद्य, आदि: फागण की रीत आई मेरे; अंति: माणक कहे० अपने करके, गाथा-९. ४७४७४. चौवीसतीर्थंकर जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. चमना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२, १२४३३). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९. ४७४७५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२.५४११, १५४२६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४७४७६. जैनवाणि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. राजप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, ११४४१). औपदेशिक सज्झाय, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कायानगरी कोट सबल; अंति: जिनचंद्रसूरि० वखाणी, गाथा-११. ४७४७७. समवसरण स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. दे., (२२४११, ९४२५-२६). पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरोजग; अंति: पाठकधर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२७, संपूर्ण. ४७४७८. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १०४३०). व्याख्यान संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कल्याण मंगलीक संपजै. ४७४८१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, ३४२४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ थविर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनमां कहिउं; अंति: मान कहै धरी प्रेम रे, गाथा-९. २.पे. नाम. गांगेय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गांगेय सज्झाय- भगवतीसूत्र-शतक ९, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूधुसमकित धरीइ धीर; अंति: मानविजय० नामे सीस, गाथा-५. ४७४८२. भरह चरित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. भेसाणी, प्रले. मु. वीरपाल ऋषि; पठ. पंडित. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१०.५, ५४३५). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तयणं सि भरहे राया; अंति: सव्व दुखप्पहीणं, वक्षस्कार-३, सूत्र-६७७१. ४७४८३. अविरल स्तुति व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०-१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. अविरल स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ४०५ साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण तक है.) २. पे नाम. लोक संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. 3 श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रत्युपकार कातरधिया, अंति: (-), (पू. वि. अन्त के श्लोक नहीं हैं.) ४०४८६. चतुर्विंशति जिन नमस्कार, स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १८७३ माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने वर्ष संवत ७३ लिखा है, अतः प्रतिलेखन वर्ष वि. १८७३ लिया गया है., जैदे., (२३.५X११, १२X३७). १. पे. नाम चतुर्विंशति जिन नमस्कार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सकलाई स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलात्प्रतिष्ठान; अंतिः भावतोहं नमामि श्लोक-४२. 3 २. पे. नाम. जिनदर्शन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि अद्याभवत सफलता नयन, अंतिः जिनेंद्र तव दर्शनात् श्लोक-३. " ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - अष्टविभक्तियुक्त, सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु अंतिः प्रवच्छ प्रभो, श्लोक-१ ४. पे. नाम. जिनदर्शन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन पद, प्रा.सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्लीपुष्करा, अंति: जिनसाक्षात् सुरद्रुम, गाथा-८. ४०४८८. आवक प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १७८२ श्रावण शुक्ल, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, पंचासरनगर, पठ. मु. किसनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन स्थल अस्पष्ट है, जै. (२३१०, १५X३५). "" वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४७४८९. (+) सरस्वती छंद व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३११. १४४३८). "" १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पच, आदि: सरस वचन समता मन आणि अंतिः शांतिकुशल० ताहिरी, गाथा - ३६. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. हरराम, पुहिं, पद्य, आदि: जीण सरवर कठपाल पाल, अंति: जोग सिंगारक वीररस, दोहा-७. ४७४९२. वीसस्थानक चैत्यवंदन व वीसस्थानक काउसग्ग चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, दे., (२२.५X११.५, १०X३० ). १. पे. नाम. वीसस्थानक चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९वी आदि पहिले पद अरिहंत नमु; अंतिः जिनउत्तम गुण खाणो, गाथा-५. २. पे. नाम. वीस स्थानकपद गणणारूप चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसमा चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९वी आदि चोवीस पन्नर, अंति: नमी निज कार साधे, गाथा-५. ४७४९३. आदिजिन निर्वाण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X१०.५, ११४३७). आदिजिन निर्वाण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि; नमो सिद्धाद्री पर्वत अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. समवसरण की रचना के वर्णन तक है.) ४७४९५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४८.५, १०x४७). १. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि साचो साहिब सेवी रे, अंतिः बंछित चढ्या प्रमाण, गाथा - ९. २. पे. नाम, गौतम गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम, अंतिः समवसुंदर० परधान, गाथा-८. ४७४९६. (+) शेत्रुंजय स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे., (२३ १०, १३X३६). १. पे नाम से जयगिरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सारो सोरठदेश दिखाउने, अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. २. पे नाम से जय स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शेडुंजगिरिनी तलहटी अंतिः ज्ञानविमल होई नूररे, गाथा- ७. ४७४९७. तपसी पचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२३.५४१०.५, १९४४२). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपसीपच्चीसी, मु. धनसीराम, रा. पद्य वि. १८९९, आदि धन धन धन श्रीसेवगराम, अंतिः मोटे नही जावे का, गाथा - २७. ४७४९८. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२२४९.५, ११४३४). " सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धरानुचरणं वेद, अंति: वंदै हेम इम वीनती, गाथा- १६. ४७४९९. सात व्यसन सज्झाय व दोहा, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. मु. किशोरचंद्र ऋषिः पड मु. धनरूप ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १३४३९). १. पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगै जयरंग कहै, गाथा-९. २. पे नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि हितहूं की कहीये नहीं, अंतिः होत दिखाया क्रोध, गाथा - १. ४७५०० (4) सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३११, १३x२५). " १. पे. नाम. चार मंगलीक पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा - २१, (पू. वि. गाथा १२ से है.) २. पे. नाम. अष्टमीनी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल, बशुग्राम. अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसती चरणे नमु; अंतिः वाचक देव कहे सुजगीस, गाथा- ७. ३. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४७५०१ (+) संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जेवे. (२३४१२.५, १२x२३). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: लहइ सुयं संपयं परमं, गाथा - १३. ४७५०२. (#) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X११.५, १२x२७). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १९ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४०७ ४७५०३. अध्यात्म गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. अध्यात्मरसगर्भिता गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक रस गर्भित गहुंली, मु. विमलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसूत्र सिद्धांतनी; अंति: विमलसागर कहे वाणीजी, गाथा-५. २. पे. नाम. अध्यात्म गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गहंली, मु. विमलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोहासणि सविमिली टोली; अंति: विमलसागर वदे वाणिरी, गाथा-७. ४७५०४. (#) नेमि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सुजाणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४२). नेमिजिन स्तवन, मु. अजितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु हो प्रीउ; अंति: अजितप्रभु इम वीनवइजी, गाथा-१३. ४७५०५. चौद गुणस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४१२, दे., (२२.५४८.५, १५४६६). १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४७५०६. भविस सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११, १०४२८). औपदेशिक सज्झाय-भविष्य विशे, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविष्यमें लख्यु होय; अंति: तमे सांभली लेजो सार, गाथा-९. ४७५०७. चतुर्विंशति जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३४१२, ८४३१). २४ जिन स्तुति, मु. मेघमुनिजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुख करण स्वामी जगत; अंति: पूजा जपोनीत परमेश्वर, गाथा-२५. ४७५०८. थूलभद्र मुनि गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४२९). स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. विबुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे माहरे थूलिभद्र; अंति: अविभ्रांतसु जीरेजी, गाथा-९. ४७५०९. शेजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२.५४११.५, -१४-१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कडुओ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण वीनवं; अंति: भेट्या श्रीआदीनाथ रे, गाथा-१५. ४७५१०. उपसगहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधीकापुर, प्रले. पं. विद्याविजय गणि; पठ. श्रावि. पान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथजी प्रसादात् श्री चीतामणी प्रासादात, जैदे., (२३.५४११.५, १२४२३). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ४७५११. (+) सामायिक बत्तीस दोस सझाय, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गोडल, पठ. मु. धर्मचंद (गुरु मु. हीराचंद ऋषि); गुपि. मु. हीराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४११.५, १२४३८). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण; अंति: कहि सिधांतनी सखि, गाथा-१७. ४७५१२. नेमि राजीमती गीत व पार्श्वनाथ फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, १४४४५). १.पे. नाम. नेमि राजीमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, वा. विनयमेरु, मा.गु., पद्य, आदि: सोल सिंगार सजी करी; अंति: कहै मन मइ धरि आणंद, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन फाग-पुरिसादाणी, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आउ रंगीले पास परमनिध; अंति: विनयचंद्र कर जोडि, गाथा-१३. ४७५१३. पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४११.५, ११४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम हि; अंति: दासकुं दीजे परमानंद, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम गौतमस्वामी छंद. पू. १अ २अ संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात: अंतिः जस सौभाग्य दोलत सवाई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. ३. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. २अ संपूर्ण प्रले. ग. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: कामीत दाता जगविख्यात अंति: लक्ष्मी पाठरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मो मंगलमुक्किडं, अंतिः साहुणो तिमि, गाथा-५. ५. पे. नाम. आगमिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि कहनुं कुजा सामनं, अंति: (-), ग्रं. १. ४७५१४. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२२.५४११.५, १०X२८). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम, अंति: तस न्यायमुनि जय थाया, ढाल -२, गाथा - १३. ४७५१५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११.५, १०x२५). १. पे. नाम. अष्टमीना स्तवन, पृ. १आ - ३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा, अंति: लावण्य कल्याण रे, ढाल - ४, गाथा - २४. २. पे. नाम. रोहीणी स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य, अति: अनुभव सुख धाय, गाधा-६. ४७५१७. मेतार्य मुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X११, १०x२६). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संयम गुण्णना आगरूंजी, अंति: साधुतणी रे साझाय, गाथा - १४. ४७५१८. पार्श्वनाथ अष्टक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे (२३४१०.५, १५x२७). "" पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देविंद्रवृंदा, अंतिः तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक ८. ४७५१९. (#) नेम राजुल बारमासो, गीत व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X११, १५X३७). १. पे. नाम. बारह मासो, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल इणपरि वीनव; अंति: पालै अविहड प्रीत रे, गाथा - १३. २. पे. नाम. नेमिराजीमती गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनवेली प्रेम गहेली; अंति: लिखमीवल्लभ०रंगे गाया, गाथा - १०. ३. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: तरसत अंखियाने हुइ, अंति: राची साची राजीमतीयां, गाथा-८. ४. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना, अंति: गाया हो मन में गहगही, गाथा - २२. ५. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद- काया, मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रीउडी, अंतिः जिनराज० विण सोभागी रे, गाथा-७. ४७५२१. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, वे. (२२.५x११, ११x२७) For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १. पे. नाम. पार्श्वस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रवि कोटि प्रकाश नील; अंति: दूरि भजत सुत सारणी, गाथा-४. २. पे. नाम. श्रीमंधरथुई, पृ. १आ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: तार मुझ अवागण निवारि, गाथा-१. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), गाथा-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ अपूर्ण तक है.) ४७५२२. चोवीस तीर्थंकर लंछन देहमान माता पिता स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१२, १८४३८). २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, उपा. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १४९३, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: पभणे जयसागर उवझाय, गाथा-२८. ४७५२५. (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, माघ शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्रले. गुसाई; पठ. मुसद्दामि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४१२, १७४३४). १. पे. नाम. समकितके सत्राठ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग दस; अंति: विसुद्धं च समत्तं, गाथा-२. २. पे. नाम. सम्यक्त्व के सड़सठ बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले श्रावक; अंति: मोक्ष का उपाय हइ. ३. पे. नाम. यारा उत्तम बोल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ११ उत्तम बोल, पुहि., पद्य, आदि: धर्म जाणपणा होइ तो; अंति: करै तो मोक्ष पामै, गाथा-११. ४. पे. नाम. कल्याणकारी बारह बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: समकित निर्मली पालै; अंति: कंपिलमुनिसरनी परइ. ५. पे. नाम. वृद्ध श्रावक के बारह बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. वृद्ध श्रावक के १२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक नवतत्त छकाय; अंति: प्राक्रम गोपवे नहीं. ६. पे. नाम. चौदह नियम, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्व२ विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१. ७. पे. नाम. आठ अनंता, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अभव्य अनंता१ समकित; अंति: की पर्याय अनंती. ४७५२६. साधारणजिन पद व गुरुगुण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४११, १०४२६). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सेवक, बं., पद्य, आदि: तोमी देखो जिनराज; अंति: सेवक दर्शन पाईलो, पद-७. २. पे. नाम. गुरु गुण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण स्तुति, बं., पद्य, आदि: अहो श्रीगुरुदेवजी ए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४७५२९. आबू स्तवन, नेमिजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४११.५, २२४१६). १.पे. नाम. आबू स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट; अंति: गाया जैनेंद्रसागरें, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: एरी कोउ नेम मनाय; अंति: चितधारै चारित्र्य, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिराजुल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी मा जगसुख मो नही; अंति: विन को भविपार उतारे, गाथा-४. ४. पे. नाम. शनैश्वर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक ४७५३०. पडिक्कमण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, १२x२९). नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावथी जी; अंति: रूपवि० नरसुर सिवसद्म, गाथा-९. ४७५३१. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०,११४४०). १.पे. नाम. सीधचक्रस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. सा. सोभाग्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सारद माय; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. २. पे. नाम. निद्याचावत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: चावत म करो परतणी; अंति: गाथा-५. ४७५३२. जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२, दे., (२३४१०, २४४१३). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, रतन, मा.गु., पद्य, आदि: विचरे पूर्व विदेहमा; अंति: मानजो विश्व आधार, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुने सेवा वामानंद की; अंति: रत्नविजय० नमे छे, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनेभव संचित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... साधारणजिन पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिणे भव संचित पाप; अंति: उलसे रत्न वदे जयकारी, गाथा-१०. ४७५३४. जीराउला पार्श्व गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, १२४४४). पार्श्वजिन गीत- जीरावला, श्राव. पेथो श्रीमाल, मा.गु., पद्य, आदि: इसिइ रे दूसमकालि; अंति: पेथ मागइ मुगतिवर, गाथा-७. ४७५३५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १२, ले.स्थल. झंठा, प्रले.मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१२.५४८.५, ४४४१९). १. पे. नाम. सिद्धादि के ९ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: सिद्ध एक वार; अंति: वासुदेव ३ वार. २. पे. नाम. गणधर माता पितादि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को., आदि: १ इंद्रभूति २ अग्नि; अंति: (-). ३. पे. नाम. सोलह सती नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी १ चंदनबाला; अंति: पद्मावती सुंदरी. ४. पे. नाम. ८ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. पुण्यपाप परिवार गाथा-ठाणांगसूत्रे, रा., पद्य, आदि: पापनो बाप तो लोभ; अंति: मूल तो क्षमा, गाथा-२. ५. पे. नाम. वैराग्य बोल, पृ. १आ, संपूर्ण.. वैराग्य के १० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ देख्या वैराग्य उपज; अंति: विलाप करता है. ६.पे. नाम. कर्मबंध बोल, पृ. १आ, संपूर्ण.. १४ शाता वेदनी कर्मबांध, मा.गु., गद्य, आदि: दयावंत होय दानवंत; अंति: शाता वेदनी सुख भोगवै. ७. पे. नाम. नौ मानवता के बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ९मानवता के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु की सेवा करे; अंति: परजीवने उपगार करे. ८. पे. नाम. मनुष्य तिर्यंच आयुष्य बोल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यरो आयु वर्ष; अंति: चमचेउनो ५० तीतरनो ५०. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ९.पे. नाम. जीव भेद विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बे इंद्री जातिमांहि; अंति: लाभै विसे साहिया. १०.पे. नाम. भूमि का अचित्त अचित्तनो विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. अचित्तभूमि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: राजमार्ग भूमका अंगुल; अंति: भूम का आंगुल २१ है. ११. पे. नाम. आत्मा के ८ नाम- भगवतीसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. आत्मा के ८ नाम-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यात्मा १ कषाय; अंति: लपायो होतरै अनुसारै. १२. पे. नाम. पुद्गलपरावर्तन, पृ. २आ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्तन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एक कोड शडशठ लाख; अंति: पुद्गल परावर्त थाय. ४७५३६. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तुति व नवत्त्व नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद्र सदाइरै, गाथा-११. २. पे. नाम. नवतत्त्वाना नाम स्वरूप, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १.जीव तत्वप्राण; अंति: जे ते मोक्षतत्त्व. ४७५३७. मंत्र संग्रह व समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. खरतरगछ समाचारी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. शुद्ध समाचारी खरतरगच्छ, प्रा.,हिं., गद्य, आदि: आषाढ दोय होय तो; अंति: पछै और चीज वहरावै. ४७५३८. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२२.५४९.५, १२४४०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, सूत्र-५०. ४७५३९. कर्म सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२२.५४११.५, १४४३३). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवादिक व तिर्थंकर; अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा-१८. ४७५४१. (#) नवरतन,पन्नर तिथि व बोल संग्रहादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, २६x४०). १. पे. नाम. नवरतन कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९रत्न कवित, पुहि., पद्य, आदि: धन्वंतरि छिपनक अमर; अंति: ए जगडे मूरख वदित्, गाथा-११. २.पे. नाम. पनर तिथि, पृ. १आ, संपूर्ण.. १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मा.गु., पद्य, आदि: परिवा प्रथम कला घटि; अंति: जती तुलसी वनवासी, गाथा-१६. ३. पे. नाम. एक घर प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. गृह प्रमाणादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक घर प्रमाण के हो; अंति: ५६ कुल कोड जाणवा. ४. पे. नाम. निगोदनो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सूक्ष्मबादर निगोदविचार संग्रह-आगमसूत्रगत, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गोलाय असंखिजा; अंति: एवं ___ आत्मागुलजाणवौ. ४७५४२. (+-) सुभाषित एवं औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११, १५४४१). १. पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समकीत दृष्टी जीवडा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., अंत के पाठ नहीं हैं.) ४७५४३. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३४११.५, ११४२६). १. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: जिवन प्राण आधारोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनपद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: छोरानै क्युं मारै; अंति: मारो जनम जनम के सेण, गाथा-३. ३. पे. नाम. जिनपद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन के पाए लाग; अंति: आनंदघन पाय लागरे, गाथा-३. ४. पे. नाम. महामंगल, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अटठ सोहइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ४७५४४. जिनकुशलसूरिगीत व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४११, ११४३८). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो तो दरसण दाखइ; अंति: समयसुंदर गुण गावइ हो, गाथा-८. २. पे. नाम. कुशलसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल करो जिन कुशल; अंति: ते तूठे अविचल सोभाग, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: देरावर दादो दीपतो रे; अंति: सिर नामी रे जात्रीडा, गाथा-४. ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७५४५. भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बेलानगर, पठ. मु. धनजी (गुरु ग. मानविजय); प्रले. ग. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पद्मप्रभु प्रसादेयं, जैदे., (२२.५४११.५, १०४३२). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ४७५४६. साधारणजिन व विष्णु पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, २२४१९). १. पे. नाम. होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, मु. शिवसागर, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज की भक्ति करो; अंति: भवीतुम मानज्यो मोरी, गाथा-५. २. पे. नाम. विष्णु पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: सामरे ने कहीयो मोरी; अंति: प्रीत हरदोना मोरी, गाथा-५. ४७५४८. सीमंधर जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५, १२४४१). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीसीमधर साहिब हो; अंति: हो वद मिगसर मास, गाथा-१०. ४७५४९. दोष शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. हैदराबाद, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १६x४०). पाशाकेवली-भाषा*संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: मानता करनी जाते देनी. ४७५५०. औपदेशिक पद व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३४१०, ३३४१९). १.पे. नाम. मद्यपान विपाक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. प्रेमचंद; लिख.मु. मोहनवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. मास, गावा For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मा.गु., पद्य, आदि: परुणलीरो उदया परमारी; अंति: केसदारू पीता ने रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: खरे से दयोरे कामिनी; अंति: (-), गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रत्नपुर जाणइं; अंति: सोमविमलसूरि इम भणे ए, गाथा-८. ४. पे. नाम. नारी सौंदर्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नारीसौंदर्य पद, सुखानंद, मा.गु., पद्य, आदि: झूलणा नारी आँख कमलना; अंति: एक भम्मरना लटू कामां, गाथा-२. ४७५५१. होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, दे., (२२.५४१२, ३५४१६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. विमलाचलतीर्थ होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी शेजा; अंति: मोहन० जनम तारो दास, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान रंग खेलिइ होरी; अंति: मोह की होरी जराई, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलावे कानईया; अंति: रूप०कहे मेलेत वलईया. गाथा-८. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भजनराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: उठो सरधागोरी चेतनसूं; अंति: भजनराज० अमर पद थाय, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमर, पुहि., पद्य, आदि: अरे हो श्रीचिंतामण; अंति: अमर० राचो अवीहड रंग, गाथा-३. ७. पे. नाम. अज्ञात होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-स्तवन, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: कोप्यो हि कमठ कपट भय; अंति: पाए कांति नीत चरण, गाथा-१०. ९. पे. नाम. वसंतराग पार्श्व पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाय, गाथा-५. ४७५५२. पिस्तालीस आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, १३४२८). ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदोरे ए आ; अंति: सिवलक्ष्मी घरि आणो, गाथा-१३. ४७५५३. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १६x४३). १.पे. नाम. नंदीषेण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धणि परिहरी; अंति: लबधिविजय निसदीसोरे, गाथा-१६. २. पे. नाम. श्रीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामिजी; अंति: हवे दरिसण दिजे नाथ, गाथा-१६. ४७५५४. (-) काव्य, स्तोत्र व देशनाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, ३३४१४). १. पे. नाम. काव्य संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ www.kobatirth.org ४०५५६. दूहा व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, जै, (२३x६, ७x४२). १. पे. नाम. चारनिक्षेपा विचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. 1 काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-१. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरु नमस्कृत्य, अंति: ग्रहशांतिविधिशुभं श्लोक-११. ३. पे. नाम, आर्यदेश नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन कालीन आर्य देश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अंग बंग कलिंग गौड, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, 'दसांणदेश' तक है) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: नामजिणाजिणनामा ठवणाज; अंति: (-), ग्रं. १. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दूहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: गाईवस्तु सोचै नही आगम, अंतिः करी तोई राम न जाण्वी ग्रं. ५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछित नाथ, श्लोक ५. ४०५५८. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. कलकता, प्रले. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २२x११.५, ९X२७). २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभदेवमहं जिननायकं, अंतिः त्वदपरोवदकोममवल्लभः, श्लोक-२४. ४७५५९. (+) ऋषभदेव वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०.५, १४X४६). आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. राजसमुद्र, मा.गु. पच, आदि करजोडी इम वीनवं अंतिः कहीय मगसिर सुभ दीनइ, " गाथा - २७. ४०५६०. मेतारज मुनिवर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मनोहर, पठ पं. धर्म्मदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२३.५X११, ११X३६). तारजमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच आदिः नगरराजग्रह आवियउजी, अंतिः त्रिकरण सुद्ध प्रणाम, गाथा-७. ४७५६१. अष्टक व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, १३x२९-३१). १. पे. नाम गौतमस्वामि अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ले, स्थल, सिधपुर, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुठै संपति कोड, गाथा- ९. २. पे. नाम दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण दूहा संग्रह, पुहिं. मा.गु., पद्य, आदिः नृप मार चली अपने पीउ, अंतिः छाछ को सोच कहा कर है. ग्रं. १. ४७५६२. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११, १२x२९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १७६५, आदि अधिक आनंदे हो वंद्यो; अंतिः सफल जात्रा जगीसए, गाथा- ११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदिः सुगुण सहेजा सांभलो अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४७५६३. (०) सीखामणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२३४१०.५, १३४३३). For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सीख सुणोने प्रभु माह, अंतिः जिन० हईडे ते आगमवाण, गाथा - ११. Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७५६४ (१) जिनसुखसूरि जीवन झरमर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X११, १९५९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनसुखसूरि जीवन झरमर, मु. रूपचंद्र, पुहिं. गद्य, आदि (१) अथ मजलसग अहो आवी, (२) अहो आवीवेयार बैठी अंतिः धागी रचेद धावत कहणा. ४७५६५. आदीश्वर महाराज वीनती, संपूर्ण, वि. २०बी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२३४११.५, १०x२७). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेडुंजा, अंतिः जिन० देजो परमानंद, गाथा २०. ४७५६७, पद व सवैया संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे. (२२.५४११.५. १९१६). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. सुखविजय गुरुगुण पद, मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम चरने हुं आयो गुर; अंति: लाल० पदवी पायो रे, गाथा- ४. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं, मा.गु, पद्य, आदि कहा कहु करतारकु मीले, अंति: वेर नारी पनोती, ग्रं. १. ३. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: कुन पकरैगो बाहि गूरू, अंति: लाल० चरणुं माहिरे, गाथा- ४. ४. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ज्यो मन नारीको ओर, अंति: होत हे भ्रम स्वरूपा, पद- १. ४७५६८. लुणउतारण आरती व मंगलदीवो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५x१०, १०X३०). १. पे. नाम. लुण उतारण, पृ. १अ, संपूर्ण, प्र.ले.पु. विस्तृत . लूण उतारण, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: लुण उतारो जिनवर अंगे; अंति: हवन करो मीठानी जात, गाथा - ३. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं, पद्य, आदि जय जय आरती शांति अंतिः नरनारी अमर पद पावे, गाथा- ६. " ४१५ ३. पे. नाम. मंगलदिवो, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद. मु. सकलचंद, मा.गु, पद्य, आदि: च्यारो मंगल च्यार, अंतिः सकलचंद० आनंदघन उपकार, गाथा ७. ४७५६९. शांतिनाथ स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२३X१०.५, ५X३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथत शांति, अंतिः शांति पद प्रतै पा ४७५७०. (#) वरकाण्णा पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०, १३४४५). पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणा प्रभु सांभलउ, अंति: जिन० पूरवौ मुझ मनरली, गाथा - १८. ४७५७१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०, १०-१५X१८-३६). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी पाछा फरी रे; अंतिः मोहन वंदि त्रिकाल रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी प्र. १ आ. संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-९ तक है.) ४७५७३. शनिसर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, जरो., (२२.५X१०.५, ८x२५). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति, अंति: जपतां अलगी टाले आपदा, गाथा-१७. ४७५७४. मुहपति बोल, चार सरणां व आलोयनासूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ५, दे., (२२.५४११.५, " For Private and Personal Use Only १२x२८-३८). १. पे. नाम. मुहपत्ती बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवखिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थ दृष्टि पशु, अंतिः त्रसकायनी रक्षा करें, Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. मंगल पाठ, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: धम्म सरणं पवजामि, गाथा-३. ३. पे. नाम. गमणागमण सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ४. पे. नाम. अढारापापस्थानक, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: जाण्या होय ते सवि०. ५. पे. नाम. प्रायश्चित सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पायश्चित सूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: पांच मिथ्यात्व बारा; अंति: ते सविहु मनवनच०. ४७५७५. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२२.५४११,१३४२३). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ४७५७६. औषध, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३४९, ४१४१९). १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजलै प्रभु; अंति: क्षमाकल्याण अपारा, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नीपट ही कठन कठोररी; अंति: रयण वीती भयो भोर री, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. राजसिंघ, पुहि., पद्य, आदि: माधुरी अरजन वाण गरी; अंति: राज. मेरे जीवन प्रान, गाथा-५. ४७५७७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२, २७४२३). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: दरसन प्राण जीवन मोहि; अंति: कोडि जतन जो कीजे, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसाणी कहा बतावुरे; अंति: प्यारे आनंदघन महाराज, गाथा-५. ३. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: विचारी कहा विचारे; अंति: खेल अनादि अनंत, गाथा-५. ४७५७८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १४४३१). १. पे. नाम. शांतिनाथ थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांती सूहकर साहिबो; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमनाथनी थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुरित भय निवारं मोह; अंति: भराणी वीरविजये वखाणी, गाथा-४. ४७५७९. गुरुगुणगुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, २०४१६). गुरुगुण गहुंली, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: आवो जईइ गुरू वांदवा; अंति: दोलत० धार हो लाल, गाथा-९. ४७५८०. ढंढणऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ९४२८). ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने करुं वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ४७५८२. स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४९, १०४३८). For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ " पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. ४०५८३ (१) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४९.५, १६x४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ४०५८४. स्तवन व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२३.५x१२, १०x२७). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो रे, गाथा-५. २. पे. नाम औपदेशिक दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सासोसास प्रभु नाम लै; अंति: एही सास नही होय, गाथा-१. ४०५८५. जिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३.५X१२, १७४१९). " पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: जिनप्रतिमासुं नेह गाथा-७. ४१७ ४७५८७ (१) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ कृष्ण, १४ शनिवार, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) = १, कुलपे, २, प्रले. मु. न्यानकुशल, पठ. श्रावि. कस्तुराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३X११, १२x२८). १. पे. नाम शाश्वतचैत्यबिंबनिर्णय स्वरूप सूचक स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पात्र नहीं हैं. शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जंपइ सार ए अधिकार ए. गाथा- ६३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बैठी उंची गोखड, अंति: मतिहंस कहै धन तेह, गाथा-७, (वि. अंतिमवाक्य वाला पाठ खंडित है.) ४७५८९. (१) उत्तराध्ययन सज्झाय व प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५X१०.५, ९४२८). १. पे. नाम. उतराध्ययन सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. सोममूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद नमेवि, अंति: सोममूर्ति० सुख पामसि, गाथा - १९. २. पे नाम. आली, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रहेलिका संग्रह, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः यौ यौ सामली तर बहू, अंति: देव० आवती टालइ पंडित, गाथा- ३. ४०५९१. (a) विजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ९५३७). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासव अड अंतिः निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४७५९३. (-) चोवीसी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, विक्रमपुर प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५X११.५, १९x१६). चौवीसजिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथ अजत संभव; अंति: हेत० अटल सुख की खाने, गाथा-७. ४०५९४ (+) शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२३.५X१०, ८x२२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४७५९६. (०) सर्वसाधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७११ मध्यम पू. १, प्र. मु. विजयसमुद्र (गुरु मु. विजयभद्र); 1 יי For Private and Personal Use Only गुपि. मु. विजयभद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष संबंधि "संवत ११ तरावर्षे" पाठ मिलता है, जो अनुमानित १७११ होना चाहिए., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १०X३८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि, अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक - ९. Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७५९७. स्तवन, भाष व दश श्रावक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५४११.५, १३४२९). १.पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: झमकारो रे मादल वाजै; अंति: विस्तरे परिमल साथि. गाथा-३. २. पे. नाम. नंदि प्रदक्षिणा भास, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदी भास, मागु., पद्य, आदि: वैशाख सुदि एकादशी, अंति: सहु संघने अधिक उछाह, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धगिरि ध्यायो; अंति: ज्ञानविमल गुण गावे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४. पे. नाम. दश श्रावक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आणंदश्रावक१ कामदेव; अंति: १० चोहलणीपियाश्रावक. ४७५९८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जरो., (२३.५४१०.५, १४४४७). १.पे. नाम. गौतमस्वामि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ आपो पे विर; अंति: गये वीर के तीराबें, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: या दुनिया फुनां फुर; अंति: अमकुं फुना तुमारे, गाथा-७. ३. पे. नाम. संयम सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: संजम सीलरा शकट जोत्र; अंति: वीनती ए अवधारयोरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. ४७६००. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. मोहनलाल डामरसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, ११४२९). १.पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभू तुम सेवना; अंति: मोहन० साचो नेह हो, गाथा-५. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिननी सेवना; अंति: जिनजी जीवन प्राण हो, गाथा-७. ४७६०१. अबिका कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४११, ९४२३). अंबिकादेवी कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग समरणैकतान; अंति: जिनध्यानपरा भवंतु, श्लोक-२९. ४७६०२.(-) पंचपरमेष्ठि फल स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४१२, १३४३२). पंचपरमेष्ठिफल स्तवन, आ. वल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कयकलप नररेहीयांण; अंति: वलभ० सेवा काजइ नितु, गाथा-१३. ४७६०४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११.५, १८४४८). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्थानक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्विपे महाविदेह; अंति: मेरुथी चिहुं दिश छै. २.पे. नाम. २१ प्रकार पानी, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ प्रकारे प्रासुक पाणी, मा.गु., गद्य, आदि: उसामण१ आटारो धोवण२; अंति: वार लैणो अन्य नास्ती. ३. पे. नाम. वर्णादिभांगा विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७६०५. सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बडु, प्रले. मु. रघुराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३X६.५, ६X३६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु, पद्य, आदि: धनधन क्षेत्रविदेह अंतिः कृपा नित आपरी रे लाल, गाथा-७, ४७६०६. दसार्णभद्र सझाब, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२३x६.५, ७४४३). दशार्णभद्र सझाय, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि सारद बुद्धिदायक सेवक अंतिः लाल भणे निसदिस, गाथा - १८. ४७६०८. एकादश गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दिसउंधी ऋषि, पठ. सा. वेगी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३१०, १२X४४). ११ गणधर स्तवन, मु. भोज ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: पिता सिधारथ तिसलामाय अंतिः सुपसाव शिवसुख लहइ, ४१९ गाथा - ११. ४७६०९. शांतिस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x९.५, १३×३९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंतिः जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४७६१५. सरस्वती अष्टक व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३१०, ११४३७). " १. पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि जगज्ज, अंतिः वश्य मे सरस्वती, श्लोक ९. २. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७६१६. (+) छंद व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैवे. (२३४१०, १४४४४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद. ग. गुलाबविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८८१, आदि: श्री श्रीपारस्वनाथजी, अंति: गुलाब० सवि दुरे नाखे, गाथा - १३. २. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदर वाचक इम कहइ, गाथा - १४. ४७६१७. दीक्ष्या कल्पक विधि, संपूर्ण, वि. १९२१, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पोसालीया, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); गुपि. मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३×११.५, १२X३०). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: अनेक उछवे वड अथ आसुः अंतिः बहु परीवारे चेला लेख. ४७६१९. देवलोक विवरण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. १४२, जै. (२२.५x१०, ४१४२५). " देवलोक वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: एक सागरना भाग१३ कीजइ, अंतिः सर्वार्थसिद्ध६१. ४७६२१. सोला सुपन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, आषाढ़ शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हर्षचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१०.५, ९४२५). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामा नगर, अंति: रिष मुनीवरनी जोडो रे, गाथा - ३६. ४७६२३. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वणारस, प्रले. धिरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. चित्रावल गच्छ जैदे. (२२.५४१०.५, १२३०). " "" कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, बि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. 3 ४७६२६. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२२.५X१०.५, १०x३१). For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सीद्ध स्वरूपी सज्झाच, पृ. १अ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. मोतिचंद, मा.गु, पद्य, आदिः सीद्धस्वरूपी आतमा अंतिः मोतिचंद नीरधारी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिनेसर विनती, अंति: वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. ४७६२७. (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैदे., 2 (२२.५x९.५, ८X२७). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधि ददातु श्लोक-११, (वि. अंत में मंत्र दिया गया है.) ४७६२८. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २३११, ११x२३). पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वपातुवो, अंति: शिवश्री सौख्यदायकः, श्लोक-१४. ४७६२९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३X११, १३X३४). १. पे. नाम. सिद्धांतनाम संख्यागर्भित वीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- ४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: देवताना पिण जे देव, अंतिः धरमसी० पुस्तक देख ए. दाल-३, गाथा-२८. २. पे. नाम. दादाजीगीत स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु श्रीजिनकुशलस, अंतिः श्रीजिनचंद्र सुरतरु, गाथा-६. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., पद्य, आदि: धरम माहारथसारं सरस; अंति: जय० नंदतु जूयमखंडम्, श्लोक-५. ४७६३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७-२४ (१ से २४)-३, कुल पे. ९, जे. (२२x१०.५, १३४३६). " ', १. पे. नाम लोद्रपुर पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: (-); अंति: समयसुंदर कहइ ए अरदास गाथा-९, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम, शंखेश्वर पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: परता पूरे पृथ्वीतणा, अंति: समयसुंदरनी जैती करी, गाथा-५. ३. पे. नाम. राणपुरा गीत, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद जुहारीये, अंति: करजोडी पर अरविंदो रे, गाथा- ९. ५. पे नाम, जीरापल्ली पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला, मा.गु., पद्म, आदि: जीरावलादेव करु जुहार, अंति: करी सेवक मुझ थापड, गाथा १०. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २६आ- २७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः जिनप्रतिमासुं नेह गाथा - १०. ७. पे. नाम. सोवनगिरि पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २७अ संपूर्ण पार्श्वजिन लघुस्तवन- सोवनगिरि, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सोवनगिरवर मंडणो रे; अंति: माहरी तुम्हनै लाज, गाथा- ७. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४२१ ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.) ४७६३५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४१०.५, १०४२५). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसांतिअसिव; अंति: जनना मन मोहे प्रभुजी, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा है.) ४७६३७. (+) तपस्वनी छव्वीसी व नेमजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११, १४४२९). १.पे. नाम. तपस्वनी छब्बीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. तपस्वीछवीसी, रा., पद्य, वि. १९५२, आदि: धन धन श्रीतपस्नजी चढ; अंति: मौ पैनही जाय कह्या, गाथा-२८. २. पे. नाम. नेमनाथ बारमासो, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवे उग्रसेन की; अंति: लालवीनुद अक्षर सुणाए, गाथा-२६. ४७६३८. राजेमती गीरबी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खंभातबंदर, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३५). नेमराजिमती गरबो, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: चंदा संदेसो केहेज्यो; अंति: दीप० जाओ बलीहारी रे, गाथा-११. ४७६३९. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उगमते ऋषभ जिणंद; अंति: सुखकार रामविजय जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदाहियदिप्पमा; अंति: सुहोसआम्मसयापसत्था, श्लोक-४. ४७६४१. कर्म सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, २२४३८). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव गणधर तिर्थं; अंति: नमो नमो कर्म राजारे, गाथा-२५. ४७६४२. स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. श्रावि. अमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, १०४३२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्ली, सं., पद्य, आदि: जीरापल्ली प्रभु; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐगरुडोवनितापुत्रो; अंति: रक्खइ पार्श्वनाथ, श्लोक-२. ४. पे. नाम. पंचषष्टिक यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४७६४४. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, ११४२८). धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेशर गाऊ रंगसु; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२२ ४७६४५. योगविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. *पंक्ति - अक्षर अनियमित है., दे., (२३X६). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं. को, आदि (-); अंति: (-). ४७६४७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २३१०.५, ३१X१७). १. पे. नाम सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. पच, वि. १८७३, आदि: सिद्धाचल सिद्ध सुहाव अंतिः शुभविर वचनरस गावे रे, गाथा - ११. २. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर ऋषभ अंति होजो तुम पाय सेवा, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित समरू साहब सयणां; अंतिः शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा- १३. ४७६४८. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. नारलाई, प्रले. मु. वर्धमान, मु.शिवविजय पठ. मु. सहजरुच, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१२, १५४३२). शांतिजिन स्तवन - सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामि; अंति: गुणसूरि०सिव सु पावै, गाथा-२२. ४७६५१. पाला विचार संख्याताअसंख्याताअनंता वीवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२३x१२, २२x४२). संख्याता असंख्याता अनंता मान विचार, मा.गु. सं., गद्य, आदि: संख्यातो एक प्रकारनो; अंति: अनंतक अनंतो नास्ति, ४७६५७. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५X११.५, १२X३१). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय, अंतिः बंधव बोल मानोजी, गाधा-१८. ४०६५९. भरतबाहुबली संवाद, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२३.५x९.५, १३४४८). " भारतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष धरा जुगल, अंति: (-), (पू.वि. सवेवा ९ तक है.) ४७६६२. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २३४९.५, १२x२८). शनिश्चर छंद. क. हेम, मा.गु, पद्य, आदि अहिनर असुर सुरांपति अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ४०६६३. माणिभद्र अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, ले. स्थल. वेगांम, प्रले. पं. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२२.५X११.५, १३X२८). कालभैरवाष्टक - काशीखंडे, सं., पद्य, आदिः यं यं यं यक्षराजं; अंतिः तस्य सर्व सुखास्पदं, श्लोक-११. ४०६६५. यंत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३४१०.५, १२४३१) , यंत्रफल चौपाई, पंडित, अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि जिन चौवीसे पय प्रणे, अंतिः परमार्थ सवि लहै, गाथा- १६. ४७६६७. () कुंडरीक पुंडरीक चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५X१०, ११x२७). पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: कुंडरीक रीड तज, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. ढाल -२ की गाथा - १३ अपूर्ण तक लिखा है.) "" ४०६६८. देववांदण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२०.५x११. १५४३३). देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: कहै जयवीराताई कहै. ४७६६९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. न्यान, पठ. मु. भूला (गुरु पं. तिलकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३X११, १६x४२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं. पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. " २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७६७०. ईर्यावहिय हरियाली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X११.५, ११X३०). इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः नारि में दीठी एक अंतिः एहनी करो घणी सेव रे, गाथा-७. ४७६७१. बृहत् शांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२२.५x११.५, ७४२१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४७६७२, पद व बारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे (२३४१२, १७३०-३२). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु, पद्य, आदि न करीई जी नेडो न, अंतिः सुखरंगे बरी जी, पद- १. " २. पे. नाम. १२ मास, पू. १अ १आ, संपूर्ण. सुरज, मा.गु., पद्य, आदि: मधुकर माधवने केजो, अंतिः कह्यं सुरजे रे, गाथा- १३. गाथा-४. ४. पे. नाम. महेंद्रसूरि सवैयो, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६७३. आरती संग्रह, स्तुति व सवैया, संपूर्ण, वि. १९५४ - १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५X१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. माणिभद्र आरती, पृ. १अ. संपूर्ण वि. १९५४ फाल्गुन शुक्ल. १२. माणिभद्रवीर आरती, मा.गु, पद्य, आदि जय जय निधी जय माणिक, अंतिः जय जय मतवाला, गाथा-५, २. पे. नाम. माणिभद्र आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर आरती, मा.गु., पद्य, आदिः आगलोडनगरमां वास कीयो; अंति: सरणांनी सेवा कीधी, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक शुक्ल, १४, ले. स्थल. नाणानगर. रात्रिभोजन त्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीरजी ए; अंति: जीव कहे तस शिष्य तो, महेंद्रसूरि सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: गुणगंभीर अनोपम राजत; अंति: धर्म स्नेहथी देखीयो, गाथा-२. ४७६७४. सर्वज्ञ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैये. (२२.५४१०.५, ९४२६). , " रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्म, वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. ४७६७५. विजय यंत्रलिखन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१०, १०X३८). विजययंत्र कल्प लेखनविधि, सं., प+ग, आदि: चत्वारि अक्षराणि बीज, अंतिः लक्ष्मीप्रचुरंस्यात्. ४७६७८. सोला सुपना सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X११, १४X३१). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदिः उजीणीनगरी कै वागमैं, अंति: जैमल कीनी छे जोडोजी, गाथा १९. ४७६८०. स्तुति काव्य व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे.. (२०.५x१०५, १०x३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२. पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदिः यस्य ज्ञानदयासिंधो अंतिः शंखेश्वरः प्रभुः श्लोक ५. २. पे. नाम. हितोपदेश काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र, अतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१. ३. पे. नाम. शंखेश्वर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ४७६८१. सझाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४३०). " १. पे. नाम. नेमि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेगलो रे वरणागीया, अंति: प्रताप० कमलाइ वाधीइजो, ४२३ गाथा - ११. २. पे नाम, प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशु, अंति: मुक्ति तणो ए निधान, गाथा - ५. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७६८२. साधु पाक्षिक अतीचार, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. हिरविजय, पठ. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, ११X३०). www.kobatirth.org 3 साधुपाक्षिक अतिचार .मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय, अंतिः मिच्छामि दुकडं. ४७६८३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२२.५x१०, १५X३३). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., पद्य वि. १७७१, आदिः श्रीमंधिरसांमी सुणो अंतिः कहे करी प्रणाम, गाथा- १३. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद, अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-९. ४०६८४ (-) वीर स्तुति अध्ययन सह टवार्थ- सूयगडांग सूत्र प्रथम स्कंधे, संपूर्ण, वि. १७६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. भेंसाण, प्रले. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि, लुकागच्छ); गुपि. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुंकागच्छ); मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. नान ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२२.५x१०.५, ६४३३). " सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति तिबेमि, गाथा - २९, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पू० नकेविभतीसांभ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २ तक टवार्थ लिखा है.) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६८५. स्तवन व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५x११.५, २०x१६). १. पे नाम, विमलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल गुण मन; अंति: कीरत व्यापै रे लोल, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: नवगुण लकडीयां भार वह, अंति: अरथ कोइ वीरलो लहै, गाथा-४. ४७६८७. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैवे. (२२.५४१०.५, ३६४१८) , ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. १. पे. नाम. कायाकुटुंब सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु, पद्य, आदि नाहलो न मांने रे, अंतिः जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: काया स्त्री मन० तेह, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. कायाकुटुंब सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - कायाकुटुंब, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः संभलि चतुर सुजाण, अंति: गुरु मन रंगि मनिधरी, गाथा - १६. हा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवओ महमहावीर, अंति: जिए अणिहए हाँ ठः ठः ५. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषश्लोक संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि: मेष धनुः सिंहस्थे; अंतिः प्रकीर्त्तितम्, श्लोक-६. ४७६८८. सहस्रनाम, नवदुर्गा व प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, वे. (२३४१२, २६x४५)१. पे नाम, भाषासहश्रीनाम, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९०, आदि: परम देव परनाम करि; अंतिः प्रगट्यो नाम कवित्त, शतक - १०, गाथा - १०१. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २. पे. नाम. नवदुर्गा विधान, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम हि समकितवंत; अंति: सुमति अनेकभांति वरनी, गाथा-९. ३. पे. नाम. सुमतिदेवी शतक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: नमो सिद्धसाधक पुरुष; अंति: यह सुबुद्धिदेवी वरनी, गाथा-६. ४. पे. नाम. पंचपद विधान, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो ध्यान धर पंचपद; अंति: पद उलटि सदा शिव होइ, गाथा-१२. ५. पे. नाम. ग्यान हिंडोला, पृ. ४अ, संपूर्ण. ज्ञान हिंडोला, मु. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: झूलत चेतनराव जहां; अंति: विधि सौ नमत केसौदास, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ६. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमत शीस गोविंदसों; अंति: भानुसुगुरुपरसाद, गाथा-२१. ७. पे. नाम. गोरखनाथ वचनिका, पृ. ४आ, संपूर्ण. गोरखनाथ, पुहि., पद्य, आदि: जो भग देखि भामिनी; अंति: वादविवाद करे सो अंधा, गाथा-७. ८.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्वानि ९ व्रत ५/१२; अंति: ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. ४७६८९. (+) ज्ञानप्रमोद द्वारा जिनहर्षसूरि को पत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. ज्ञानप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१९.५४१०.५, १९४२०-२२). जिनहर्षसूरिजी को पत्र, मु. ज्ञानप्रमोद, रा.,सं., गद्य, वि. १८८७, आदि: स्वस्ति श्रीवामानंदन; अंति: वलता पत्र दिरावसी. ४७६९०. ८४ गच्छस्थापना विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४११.५, १०४३१). ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् ९९४ चोरासीगछ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'सं.१५४० कडूयामती' तक का पाठ लिखा है.) ४७६९१. वीर थुई अज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२१.५४११, ११४२८). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ४७६९२. (+) नवकार कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, १६x४९). नमस्कार महामंत्र कल्प, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो अरिहंताणं ॐनमो; अंति: ठःठः वार २१ स्मर्यते. ४७६९४. श्रीमंदरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०, ११४३४). सीमंधरजिन स्तुति, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधरदेव सुहंकर; अंति: सकलमां सिद्धि जी, गाथा-४. ४७६९५. शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. १, दे., (२२.५४१०, ७४२७). शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर समरीइ; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ४७६९६. रीखवदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४९.५, ७४२४). आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ४७६९८. (-) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है., अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५४११, ९४२१). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दयाधरसु राखो प्यारो, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक नहीं है.) भार For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७७००. जिनदत्तसूरि अष्टक व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२६, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. प्रीतिअमृत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, ९-१२४२४-३०). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: नमाम्यहं श्रीजिनदत्त; अंति: सर्वाणि समीहितानि, श्लोक-८. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ४७७०५. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १२, जैदे., (२२.५४१०.५, १६४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अंति: सेवक हरष गुण गावै, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: बेर बेर नहीं आवे; अंति: आनंदघन० गुण गावे लो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जोगीयाकुं ढूंढत जुग; अंति: दिल धोया सो पावै, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: चादर है झीणी कहे; अंति: कबीर० अंतर खाता कीनी, पद-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुने म्हारै कब मिलसी; अंति: आनंदघन विलगोगेलू, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: मुखडा क्या जोवै; अंति: रूपचंद कहै दिल में, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमीश्वरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उग्रसेनकी लली नेमजी; अंति: रूपचंद० मुझ बंधण छोड, गाथा-६. ८. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी गाईयै मनरंग; अंति: कदे न हुवै चितभंग, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देखीय मुरत पारस की; अंति: देवचंद० हरख गुण गाय, पद-४. १०. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. कल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: लग्यौ मेरो नेहरो; अंति: कल्याण० वनडा, गाथा-३. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आए हम दरसण दरवाजै; अंति: मोहन० लागो चित चोल, गाथा-३. १२. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रादिक सेवित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ४७७०६. औपदेशिक दोहा व सेत्तूंजे स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, २०४११). १. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: मन वाडी तन केवरो; अंति: तन मन एक जरंग, गाथा-२. २. पे. नाम. सेत्तूंजेजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीयां मै आज; अंति: उदय० आदिसर तठारे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४२७ ४७७०८. (+) बावीस परीसह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १८४४५). २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: खुहा कहता क्षुधा; अंति: परीसह कहियइ. ४७७०९. छंद संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १२४२७). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिवो पास संखेस्वरो; अंति: उदय० आप तुठो, गाथा-७. २. पे. नाम. मातारो कलश, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आस फलस्ये ताहरी, गाथा-३५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र कलश लिखा है.) ३.पे. नाम. दिनमान फल, पृ. १आ, संपूर्ण. दिनमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: बेदाश्चिरूपा स्वनि; अंति: कथितो मुनिंद्र, श्लोक-२. ४७७१०. सेत्तूंजा स्तवन, औषध, मंत्र यंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. एक ही पत्र को चार भागों में मोड़ा गया है., जैदे., (२३४११, १०४३५). १. पे. नाम. सेबूंजा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डुगरीये मन मोही; अंति: सिद्धिविजय० तास हो, गाथा-१३. २. पे. नाम. हरिताल विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. हरताल विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: काली काली महाकाली; अंति: ठः ठः ठः स्वाहा. ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. __औषधवैद्यक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि सामग्री, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री-सूची, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ४७७११. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामीजीरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम सीमंधरस्वामी स्तुति दिया है, परन्तु वस्तुतः यह शत्रुजयतीर्थ स्तुति है. शत्रुजयतीर्थस्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमधरने पुछे इंदा; अंति: कवडजक्ष सुणो वाणीजी, गाथा-४. २.पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम; अंति: अंब सया पसत्था, गाथा-४. ४७७१२. प्रभाते सिखामण सझाय, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सीघ्रोत, प्रले. मु. नायकविजय (गुरु मु. केशरविजय); पठ. मु. देविचंद (गुरु मु. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १२४३४). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: विजयभद्र० नही अवतरे, ___ गाथा-२५. ४७७१३. (+) स्तंभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. वेणीदास (गुरु मु. कनकरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०, १०४२६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७७१४. पाक्षिक पडिकमण विधि व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५४९.५, ९४३०). १.पे. नाम. पाक्षिक पडिकमण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वंदेतु कया पछे; अंति: समतं देवसी भणेयः. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: वाचक जस० आधारो रे, गाथा-५. ४७७१५. सुविधिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १०x२५-३०). सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सुविधि; अंति: आनंद० दीजिये रे लो, गाथा-५. ४७७१८. (+) पार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. प्रतापसी; पठ. मु. रूपचंद (गुरु पं. प्रतापसी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १३४३९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: इम तवीयौ छंद देसंतरी, गाथा-४८. ४७७१९. स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७३, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजगढ, प्रले. श्राव. सोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११, २४४१४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, म. खुशालचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अंति: वक हरख हरख गुण गावै, गाथा-५. २.पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तुति-कलकत्तामंडण, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: आज नगर में हरख बधाई; अंति: मोहन० गुण गावत है, गाथा-११. ४७७२०. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४४). १.पे. नाम. अट्ठावीस लब्धि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु संजोगथी मे; अंति: रुपचंद विनति करी, गाथा-२२. ४७७२२. (+) स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १३४३०-३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. सिद्धचक्र यंत्र युक्त. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धिचक्कं नमामि, गाथा-६. २. पे. नाम. नमस्कार स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंगल श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षर; अंति: सर्वतः प्रणिदध्महे, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहा सिद्धायरिया; अंति: थुणंताण कल्लाणगं, गाथा-४. ४. पे. नाम. नवपद ओली विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४७७२३. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२४१०.५, ९-१०४२५-३१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४७ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ महावीर कनै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४८ तक का बालावबोध है.) For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७७२४. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५X१०, ३१X१७). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर समुज्वल मराल, अंतिः सहेदसुंदर० सरस्वती, डाल- ३, गाथा - १४. ४७७२५. प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २३x१२, १०X२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं अंति: (-), (पू. वि. 'लोगस्स सूत्र' अपूर्ण तक है.) मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः प्रीऊडा जिनचरणांनी अंतिः मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ४७७२६. स्तवन, सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., ( २२x११, १५X४२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. सं., पद्य, आदि: काया हंस विना नदी, अंतिः भाव्यं तद्भविष्यति, श्लोक ७. "" " ३. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४७७२७. चोवीसजिन गणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २२x१०.५, ११३५). ४२९ २४ जिन स्तवन- गणधरसंख्यागर्भित, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति आपो सरस वचन, अंतिः वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा- ९. ४७७२८. (-) श्रावक अतिचार व प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५x१०.५, १३x२३). १. पे. नाम. श्रावक पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ २आ, संपूर्ण पद्य, आवकपाक्षिक अतिचार- लघु, मा.गु. पच, आदि: श्रीगन्यांनइ बीषड़ जे; अंतिः तश मिछामी दूकडं. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पंच प्रमाद तजी पडिकम; अंतिः तेजसिंह० भवसावर तरशे, गाथा-८. ४७७२९. सारदा स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. खीमसरनगर, जैये. (२२.५४१०.५, १३x४२). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे अंतिः दुरितां भुवि भारती, श्लोक-१३. ४७७३९. पच्चक्खाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२२.५४११.५, १६३०). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगए सूरे नमुक्कार: अंतिः तस्स मिळामि दुक्कडं. ४७७३०. तिन मनोरथ श्रावकना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२२.५४११.५, १७४३४). आवकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ समणावासिक, अंतिः मुझने होज्यो. ४७७३३. (+१) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४९, १३४३७). त्रिविध आगम आलापक, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि आगमे तिविहे पण्णते; अंतिः मिच्छामि दुकडं, ४७७३६. हितोपदेस सत्तरी, संपूर्ण वि. १८४९ चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल भिलेंडा, प्रले. पं. मानरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( २२x१०, १२X३४). औपदेशिक सज्झाय गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपति जोज्यो आपणी अंतिः इम कहिये श्रीसार ए गाथा - ६९. יי For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७७४०. सीहाचल्लौ छंद, संपूर्ण, वि. १८२२, करनेत्रचंद्रेभ, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०, १७४४८). जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा.,मा.गु., पद्य, आदि: केही गल्लां कथीयां; अंति: रूपचंद० जिन साईया, गाथा-१३. ४७७४३. स्तवन, गीत व फाग आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२२४१०.५, १०-१६४३२-५०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. केसर, पुहि., पद्य, आदि: जय बोलो त्रिशलानंदन; अंति: कीजै हरख वढावन की, गाथा-९. २. पे. नाम. ज्ञानवसंत वर्णन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: पूरब पुण्य उदय करि; अंति: केसर० वेठे है परधान, गाथा-११. ३. पे. नाम. गुणगर्भित परमार्थ होलिका, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन होरी, पुहि., पद्य, आदि: नमो आदि अरिहंत को हो; अंति: मेरो फगुआ देहु मगाय, गाथा-१४. ४. पे. नाम. राजिमती फाग, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुन सनेही साहिबा; अंति: केसर० मुगति मे जाय, गाथा-९. ५. पे. नाम. राजीमति गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, पुहिं., पद्य, आदि: उग्रसेन की लाडली हो; अंति: खेलें मुगतिरैवास, गाथा-१२. ४७७४५. (+) शत्रुजय चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., ., (२०x१०, ९४२३). श@जयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: तत्परपदमविजयसुहितकर, श्लोक-७. ४७७४७. (+#) साधारणजिन चैत्यवंदन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.ग. जीवरुचि (गुरु मु. पुण्यरुचि, तपागच्छ); पठ. मु. कल्याणरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, ४४३४). साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि; अंति: श्रेयः सुखास्पदम्, श्लोक-७. साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनेत्यादिनि; अंति: पुरुषाद्यवचनं हीति. ४७७५०. गुरुणांगीतं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४९.५, २३४१६). जिनसिंहसूरि गीत, मु. नयणसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: गजगति हे सखि गजगति; अंति: पभणइ इम मुनि नयणसी, गाथा-५. ४७७५२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १५४४८). १.पे. नाम. विमलाचलमंडण आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडण, पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचलशिखर; अंति: जिनहरष० अविचल शिवगेह, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हियडइ; अंति: जीणहरषै० बंदा लाल, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभजिन भावइ भेटीयइ; अंति: जिनहर्ष संपति सीर, गाथा-७. ४७७५३. चंद्रदूत लघुमहाकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. विनयप्रभु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ८४४२). चंद्रदूत काव्य, क. जंबू, सं., पद्य, आदि: यदतिसितशराग्रग्रस्त; अंति: ध्वन्य वध्वा, श्लोक-२३. ४७७५४. (+) चरमंत अचरमंत प्रदेशादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. यंत्र-कोष्ठक सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, २५४५४). For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि समुद्रभूपालकुलप्रदीप, अति: तु देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ४७७५७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पाठ नहीं है.) ४७७५६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. मु. अनोपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५x१०.५, १४X३५). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंतिः लब्धि० पूरि मनोरथ माई, गाथा-४. २. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि; ते तरीवा भाई ते अंतिः जे धर्मे दृढ रहवे रे, गाथा-५, ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४५८). १. पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. १-४अ, संपूर्ण, वि. १७८४, आषाढ़ शुक्ल, १४, बुधवार, पे.वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथजी. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्म, आदि; भव्यांभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. ४७७६०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे. (२२.५४११, २८४१८). " ४३१ (२३×१०.५, २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पू. ४-४आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह सं., पद्म, आदि: भ्रांत्वादेशमनेकदुरज, अंति: (-) (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम श्लोक ५ का मात्र प्रथम पाद लिखकर प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक लिख दिया है.) ४७७५९ स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४ वे. (२२.५४११.५, २५X१७). , " १. पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आनंदमय निरूपम चोवीशम, अंतिः वर्धमान सुख साधे रे, गाथा ५. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देजे मंगल च्यार आज; अंति: चरण कमल जाउं वार, पद-५. ३. पे. नाम, नेम स्तवन, पू. १आ. संपूर्ण. नेमिजिन पद, लीव, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगरनारे त्रण कल्व, अंतिः लीबो० नाथ सुखखाणो रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. सर्वजिनबिंब वंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि: सत्ताणु बहससा लखा, अंतिः ताइं सवाई बंदामी. १. पे. नाम. मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघकु, अंतिः प्रीतवि० स्वर्ग आवास, . For Private and Personal Use Only गाथा - ६. २. पे. नाम. पंचेंद्रिदमन सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले. मु. शिवरत्न प्र.ले.पु. सामान्य. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध, अंति: प्रबंध लहो सुख सासता, गाथा- ६. ३. पे नाम, कुर्मकाध्ययन सज्झाय, पृ. १ आ. संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का हिस्सा चतुर्थ कुर्म अध्ययन सज्झाब, संबद्ध, पा. राजरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: अरथवी आगमजन कहि अंतिः राजरत्न० शिवसुख सार, गाथा- १०. ४. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा- ८. ४७७६१. देवाप्रभो स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२.५५११.५, ११४३९). " Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं विधिना; अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक- ९. ४७७६२. (+) नेमिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. माणिकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, जैदे., ( २१.५X१०.५, १०X३५). " नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंतिः वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक- ९. ४७७६३. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., ( २३X११, १६x५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४७७६४. (+) सरवारथसिद्धिविमान स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. श्रीगुरुप्रसादात्., संशोधित, जैवे., (२१.५X११.५, १७४४१). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे, अंति: गुणविजे० फले आसोरे, गाथा- १६. ४७७६५. स्तवन व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, १२x२७). १. पे. नाम. त्रिसलाराणी चउदसुपन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४४, ले. स्थल. डोडुआग्राम, प्रले. मु. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरीरे सिधारथ घर पट; अंति: जन जननी सुख भोगवे ए, गाथा- ७. २. पे नाम. सुभाषित लोकादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७७६६. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५X११.५, १०X२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गे सूरे नोकारसीअं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'चडविहंपि आहारं असणं पाणं आदि अपूर्ण पाठ तक है.) ४७७६७. गुरुगुण गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२३४११.५, ८४२७). , " गुरुगुण गहुंली, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे ने अनुरंगी अंतिः चंद्र अमृतविलासी, गाथा ८. ४७७७१. धन्नाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१x१०.५, १३४३९). धन्ना अणगार सज्झाय, आ. जयवलभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि दोय कर जोडीय नित नमः अंतिः वंदो जयवलभ वाणारस रे, गाथा - २१. "" ४७७७२. स्तुति व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५x११.५, १६४५२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः श्लोक-२६. २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पसु पंडकतणी रे; अंति: श्रीअजितदेवसूरि०, गाथा- १४. ४७७७३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१X१०, १५X३८). . १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कालप्रभाव, मु. सिंहसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं सरसति देवदयाला अंतिः सीहसागर० ए पावडिआला, गाथा - १४. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: तो सुख जो आवै संतोष, अंतिः लावण्यसमय० जग विस्तरइ, गाथा - ७. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७७७५. पांचपांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १४४३८). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसतीनागपुर भलो जिहां; अंति: आवागमण निवार रे, गाथा-२०. ४७७७६. थुलिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८३०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पलांसुआनगर, प्रले. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १२४२८). स्थूलिभद्र सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: योग ध्यानमें जोडी; अंति: गाथा-१४. ४७७७७. समोसरण विचार व सातवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १५४३७). १.पे. नाम. समोसरण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरणविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एणि अवसरि तिहां आवीय; अंति: करति कोकिल हे जग, गाथा-१२. २.पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)आदित जोएनि जीवडा जगि, (२)सीखामण सद्गुरु तणी; अंति: भणे वंदो श्रीमहावीर, गाथा-७. ४७७७८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, २७४२०). १.पे. नाम. गौतम सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमा आणी, गाथा-११. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये पाम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४७७७९. छींकदोष परिहार विधि वसतीसझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, १०-११४१६-२१). १. पे. नाम. छींकदोष परिहार विधि, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९१९, चैत्र शुक्ल, ७. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शांति स्तोत्र पढीजै. २.पे. नाम. सोल सती सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीऋषभदेवतणी तिहां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दवदंती प्रसंग तक लिखा है.) ४७७८०. (+) भावारिवारणस्तवावचूरिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४९.५, १६४५८). महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरं नुवामि स्तौमी; अंति: नाम सूचितमिति दिक्. ४७७८२. (#) पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१३(१ से १३)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ९४२६-३२). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रम्हावादनी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४१ अपूर्ण तक है.) ४७७८३. सीमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२.५४१०.५, २६x२०). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधिकापुर. सीमंधरजिन स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते मारुं मोकलू; अंति: उदय० वसता दुरे विसार, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वंदना अवध; अंति: आपज्यो समकितगुण ठाणु, गाथा-५. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०७८४. सझाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र का आधा भाग नहीं है, जैदे. (२२.५x११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६x२८). १. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्र का आधा भाग नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचरणकमल नमी सरसती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. सुभद्रानी चौपाई. पू. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८६७ फाल्गुन कृष्ण, ८, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. वस्तुतः लिखावट २०वी की है. संवत १८६७ की किसी प्रति पर से लिखी जाने की संभावना है. सं.१८६७ को सुधारकर १७६७ किया गया है सुभद्रासती चौपाई, ग. कांतिविजय, मा.गु, पद्म, आदि (-); अंतिः कांतिविजय० गुण गाय, गाथा- ३८ (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्म, आदि सरस्वती स्वामीनी चित, अंतिः रंगे पास गुण गाया रे, गाथा- ९. ४७७८५. वीरजी कही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. जिणसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, १२X३८). - पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि: वीर कहे गौतम सुणो अंतिः भाख्यां वयण रसाल, गाथा २४, (वि. गाथा संख्या २४ की जगह ३४ लिखा है.) ४७७८६. स्वस्ती मंगलिक गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२३.५४११.५, १३x२९) गुरुगुण गहुली, मु. नेमसागर, मा.गु, पद्म, आदि जीरे मारे गुरु गिरु; अंति: नेमसा०दृष्टि जे आदरे, गाथा- ११. ४७७८७. () स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५X१२, ११X३५). १. पे. नाम. तिरपद स्तुति, प्र. १अ संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्म, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म, अंतिः ददतां शिवं वः, श्लोक-१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंतिः शं नो देवी : देयादंबा, श्लोक - १. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी धर्म जिनेसर, अंति: किंनर कंनर पायरि जिय, गाथा - १. ४. पे. नाम. पारसनाथ स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: करकंडा पासजी मुगताफल, अंतिः नायक पुरवो सबल जगीस, गाथा- ४. ४७७८८. बाहुजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१X२१, ८x२५). , ९. पे. नाम बाहुजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, मु. वीछविजय, मा.गु., पद्य, आदि हो साहिब बाहुजिणेसर, अंति: राव सुग्रीव मलार हो, गाथा ५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर जिनवरू; अंति: सुबुधि० समतोले रे, गाथा - ९. ४७७९०. भाई पद्मसेन का रत्नसेन के नाम पत्र, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पूर्वलिखित पत्र से लिखा गया है., जैदे., ( २१.५X११.५, ३०X१९-२०). पाणी पंथ पत्र, मु. पद्मसेन, पुहिं., गद्य, वि. १८२५, आदि: पाणी पंथ थकी भाई पदम; अंति: गोपानै जनाय नम कही. ४७७९१. (+) देवमनुष्यादि उदयस्वामी भांगा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है.. संशोधित, जैदे. (२०x११). देवमनुष्यादि उदयस्वामी भांगा संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: २१ना उदयना स्वामी, अंति: तिवारे ३१ हुवे. ४७७९४. पद्मावती सझाय, संपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. य. रामचंद्र जति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५X११, ९४२२-२४). For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३५ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छूट ततकालै, ढाल-३, गाथा-३२. ४७७९६. (-) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १६४३३). महावीरजिन स्तवन, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक कित वांदु श्रीवीर; अंति: जेत. आसा पुरो हम तणी, गाथा-२८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४७७९७. (+) २४ जिन कल्याणकादि तप संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित., दे., (२०.५४११). १. पे. नाम. २४ जिन कल्याणक विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, आदि: काती वदि ५ नाणं संभव; अंति: १५ चवणं नेमिनाहस्स. २. पे. नाम. जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चवण जम्मण२ चउथ सवि; अंति: २२२ तिथि निनाणु जाणु. ३. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं देवपूज; अंति: ४ निव्वाण५ झाइव्वा. ४. पे. नाम. १२० कल्याणक, पृ. २आ, संपूर्ण. १२० कल्याणक विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एगो वासो१ दु आंविलाइ; अंति: प्रते कल्याणक संख्या. ४७७९९. शालिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४९.५, ९४२६). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: भव भव तुम वो दास, गाथा-२२. ४७८०४. पंचपरमेष्ठी बीजयंत्र साधना विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४९-१०.०, १६४५८). पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., आदि: श्रीवामेयं जिनं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., 'साधनविधि' अपूर्ण तक है.) ४७८०५. गच्छनायक स्तुति-अंचलगच्छ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४९.५, ९४३०). गच्छनायक स्तुति-अंचलगच्छ, प्रा., प+ग., आदि: अढाई जेसु दीवसमद्देस; अंति: अंचल गणनायक वंदे, गाथा-४. ४७८१०. (+) साधु कालधर्म विधि व स्थापना विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११.५, १०४३७). १. पे. नाम. साधुनी कालधर्म विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्यारे काल करै त्यार; अंति: उल्लसित भावे करे. २.पे. नाम. स्थापनाविधि, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधि; अंति: (-), (पू.वि. "शूलनाशो भवति" पाठ तक है.) ४७८१२. छंद संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १३४३९). १.पे. नाम. सिद्धाचल छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-शत्रुजयतीर्थ मंडण, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलगुरु; अंति: कविराज लच्छि वरि, गाथा-१८. २. पे. नाम. दादाजीरो छंद, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: कविराज० हो खरतरधणी. गाथा-५०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भलु आज भेट्या प्रभु; अंति: चक्रे समयादिसुंदरं, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७८१४. आदित्यवार व्रत कथा, संपूर्ण, वि. १९१७ ज्येष्ठ शुक्ल, १४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. आगरालोहमंडी, प्रलेय. जोतिरूप ऋषि, पठ श्रावि झुनिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२१x१०, ९४२९). आदित्यवार व्रत कथा, मु. ब्रह्मज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसागर सुरगुरु; अंति: ज्ञान सागर इम कहै, गाथा - ३७. ४७८१५. औपदेशिक सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०x११, १३X२२). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि एक घरि घोडा हाथी आरे, अंतिः जोड दीधाना परमाण रे, गाथा- १४. ४७८१९. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२३X१०, ८x२९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ४७८२० (+) रात्रि संधारा पोरसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२२.५x१०.५ १२४३१). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंतिः जीवे ए गाथा २ कहीजै, गाथा- १३. ४७८२१. जीवादिभेद विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५X१०, १३X३९). जीवादिभेद विवरण, प्रा. सं., गद्य, आदि दीव्यतीति देवाः अंतिः न तीरए बेवड नाणी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ४७८२३. (+) आरती संग्रह, क्षमा पद व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल, सोजत, प्रले. पं. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२१x१०, १०-१३४३९). "" १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी आरती पू. १अ. संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पेहली आरती अरिहंत, अंति: मिटे दुख तेरा, गाथा- १२. २. पे. नाम. छकाय जीव नाम, पृ. १अ संपूर्ण. ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पृथविकाय १ अपकाय २ अंतिः त्रसकाय ६. ३. पे. नाम. क्षमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. मा. गु., पद्य, आदि आरीव उवझाय सीसह अंतिः खमेमी सवं सुअवपी, गाथा २. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा व चौपाई, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १. ४७८२५ (+) न्यायवृत्ति, संपूर्ण वि. १५वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पत्र नंबर ११३ ११५ हैं. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२३.५x९, "" १८४५४-६४). न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्या; अंति: शास्त्रप्रवृत्तिः, सूत्र-५५. न्यायसंग्रह - टीका, सं. गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्य अंतिः विशेषणानुपादानमेव. " ४७८२६. नववाड सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२१X१७, ११x२२-२६). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७६३, आदि: सहगुरुने चरणे नमी, अंति: उदयरत्न० जाउ भांमणे, ढाल - १०, गाथा ४३. ४७८२७ घोयली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५X११.५, १३X३२). १. पे. नाम. घोयली गीत, पृ. १अ संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु, पद्य, आदि: चंपानगरी उद्यान; अंतिः घोयली गीत भणेरी, गाथा- ७. २. पे. नाम. षट्त्रिंशका चतुष्क गर्भित गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु, पद्य, आदि: चेलणा ल्यावें घूंबली, अंतिः श्रीजिनशासन रीति, गाथा- ७. .पे. नाम. पंचषट्त्रिंशका गर्भित सुधर्मस्वामी गृहली भास, पृ. १आ-२अ संपूर्ण सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि ज्ञानादिक गुणखाण, अंति: गावे जिनशासन धणी जी, गाथा-८. ४. पे नाम, भास घूंअलीनी, पृ. २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही रलीयामणी, अंति: वजडावो मंगल तूर, गाथा-५. ५. पे. नाम घोयली गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी भाष, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः चरण करण गुण आकोरे, अंति: कोडि यतन्न सुहावो, गाथा- ६. ४७८२८. प्रत्याख्यान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. झवरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४४१०.५, ९X३४). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि सुरे उगे अभ्यतठं अंतिः समाहिबत्ति वोसिरामि ४७८३० (+) लघु गौतम रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जै, ( २४४१२, ९४३५). 7 गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय; अंतिः होज्यो वंदना वारंवार, गाथा - ५. ४७८३१. (+) पांच समवाय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. संशोधित. वे. (२१४११, १०X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ समवाय विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: कालो १ सहाव २ नीयई ३; अंति: ( - ), ( पू. वि. "प्रथम ही जन्म किम न हुवै " पाठ तक है.) ४७८३३. महावीर वेली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. गुणश्री; पठ. श्रावि. भाणबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, १३X३९). महावीर जिन हमचडी ५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि नंदनकुं तिसला हुलाबि, अंतिः चरमजिणेसर वीरो रे, बाल- ३, गाथा ६६. १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उगे अभ्यतढं अंतिः असित्वेण वा वोसिरामि, ४७८३४. प्रत्याख्यानसूत्र, प्रत्याख्यान गाथा, चौद नियम, मनुष्यभव दुर्लभता के दस दृष्टांत व आवक के १२ व्रत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२२x१०.५, १३३८). २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि फासिअर पालियर सोहिय अंतिः तस्समिच्छामी दुकडं, गाथा-३. ३. पे. नाम. चौद नेम, पृ. १आ, संपूर्ण. आवक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सच्चित्त दव्व विगई, अंतिः न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा- १. ४३७ (२४४१०.५, ८x२४). १. पे. नाम, सतीवारी सज्झाय, पृ. ९अ-४अ, संपूर्ण. ४. पे. नाम. मनुष्यजन्म दस दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासग२ धन्ने३; अंतिः हट्टंता मणुयजम्मे, गाथा-१. ५. पे. नाम. श्रावक व्रत नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आवक १२ व्रत नाम, मा.गु. सं., प+ग, आदि: अहिंसासु १ मृषावादो अंतिः १२ व्रत श्रावकना थया. ४७८३५. सतीयारी सज्झाय, औपदेशिक दोहा व सूर्यरश्मि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रसमे उठी मनने भाव; अंति: सजन मिले लहे बहु सुख, गाथा - २९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि; सजन समै परखीये अपणे अंतिः वैर व्याह अरु प्रीत, गाथा- १. ३. पे. नाम बारेमहीनोरी सूर्यरस्मीन् विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. वार्षिक सूर्यरश्मि विचार, रा., गद्य, आदिः चेत्र महीने १२०० सो; अंतिः मासे १०५० सो किरण. For Private and Personal Use Only ४७८३९. विभक्ति प्रत्यय उदाहरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १७०८, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बर्हाणपुर, प्रले. ग. भोजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५, ९४२५). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसुरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो यं अंतिः भावं जयानंदमवप्रदेवा, श्लोक ९. ४७८४०. संखेश्वर पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जै. (२४४१२.५, १३३०). " Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय नायक; अंति: लब्धिरुचि० प्रणम्य, गाथा-३३. ४७८४१. भवदेवनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, ९४३५). भवदेवभावदेव स्वाध्याय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नारी रे निरुपम नागील; अंति: लबधि० जेहनि नाम रे, गाथा-११. ४७८४२. उवसग्गहर स्तोत्र व जीवराशि क्षमापणा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४९.५, १२४४३). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास: अंति: भवे भवे पास जिणचंद. गाथा-५. २. पे. नाम. जीवराशी खमावइ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६. ४७८४४. (+) ढुंढण पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२२). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुतदेवी प्रणमी; अंति: जिनेंद्र० अधिकार, गाथा-२४. ४७८४५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४९.५, ११४३०). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभव जिनराया हुं; अंति: जिनेंद्रसागर गाया हो, गाथा-७. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: उत्तम एहवी प्राणी रे, गाथा-८. ४७८४६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११, १५४५१). १.पे. नाम. महावीर वृहत् स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संथुणिउ त्रिभुवनतिलउ, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. ३. पे. नाम. वीसविहरमान जिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान तीथंकर वीस; अंति: हरख भावइ करूं प्रणाम, गाथा-१६. ४. पे. नाम. तीर्थावली गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्रुजय रुषभ समोसर; अंति: समय० तिरथ ते नमुरे, गाथा-८. ४७८४७. साधु अतिचार, पाक्षिक खामणा व पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२४४१०.५,११४३०). १.पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, १०, मंगलवार, ले.स्थल. पालणपुर. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मांहि जिको अतिचार. २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: होह इति गुरुवचनं, आलाप-४. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४३९ ३. पे. नाम. पाक्षिक प्रतिक्रमण करवानी विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणीय; अंति: पक्खी खामणा भणीजै, गाथा-३. ४७८४९. (+) वंदेतु सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामी जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४७८५०. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४९.५, १३४२८-५०). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन सह टिप्पण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: अजियसंतिनाहस्स, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: जितमभिभूतं सर्व्वमिह; अंति: पूर्णचंद्र समवदनस्य. २. पे. नाम. अजितशांतिस्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण.. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयार सोहम्मसुर; अंति: भविअ० सयलसुह संपजए, गाथा-८. ४७८५१. अतिचार आलोयना, साधु अतिचार चितवन गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२४४८, १४४५०-५७). १.पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. १अ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: चार मिच्छामि दुक्कड, (वि. विधिसहित.) २.पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासन्नपाणे चेइअसिज; अंति: वितहा करणे अईयारा, गाथा-१, (वि. विधिसहित.) ३. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. समणोवासग पडिक्कमण सुत्त याने वंदित्तुसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तीन नवकार तीन करेमि; अंति: पाछ पछै सर्व कहीजै. ४. पे. नाम. गण विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., को., आदि: मगण यगण रगण सगण तगण; अंति: देवता व्योमदेवता. ५. पे. नाम. बावन अक्षर उत्पत्ति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ५२ अक्षर उत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ क ख ग घ जह हसहित; अंति: आ पंडित जगमाहि. ४७८५२. वीरद्वात्रिंशका, अपूर्ण, वि. १८३७, वैशाख शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. जगरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १६४३८). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: चक्रि शक्रश्चियः, श्लोक-३३, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., श्लोक २२ से है.) ४७८५३. (-) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व शिव स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४x७.५, ११४३४). १.पे. नाम. गौडिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: गुडीअपुर प्रभुपार्श; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. शिव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रांबासुत असवार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७८५४. धर्म आराधना सज्झाय, काया जीव सज्झाय व सत्संगति पद, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. जावद, प्रले. मु. माणकचंद (गुरु पं. फतैचंद्र गणि); गुपि.पं. फतैचंद्र गणि (गुरु पं. खिमाचंद्र गणि); अन्य. पंडित. कालूराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५,१४४४३). १.पे. नाम. धर्म आराधना सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धर्म धर्म बहुला कहे; अंति: भणेए आवागमण नीवार कै, गाथा-३६. २. पे. नाम. कायाजीव सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-कायाउपदेश, म. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: काया रे कहेती मन; अंति: साध नौकार भज लेना, गाथा-७. ३. पे. नाम. सत्संगति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: संगत से सुधरे नर; अंति: बात ठठाउ कहेगा, गाथा-२. ४७८५५. माणीभद्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४१०, १२४३६-४१). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित; अंति: राजरत्न० जयजयकरण, गाथा-२१. ४७८५६. ज्ञानपंचमी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८५१, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. कुयरसागर (गुरु पं. गयंदसागर); गुपि.पं. गयंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडीजी प्रसादात, जैदे., (२२४१२,५४५३). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ सकल सुखदायरे, ढाल-५, गाथा-१६, (पू.वि. तीसरी ढाल की अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) ४७८५७. (#) प्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ९४३४). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. "परीआवीया कीलमीया" पाठ तक है) ४७८५८. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, २१४६२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ४७८६०. बंभणवाडि जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समर वीर सारदाय वरदाय; अंति: कमलकलशसूरीश्वर सीस, गाथा-२१. ४७८६१. (#) प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९३२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालंद्री नगर, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, १०४२९). १.पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है. ___ दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोमंगल मुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. २.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७८६३. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ९४२९-३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४७८६६. भगवती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. अजेदुर्ग, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, ८४३०). पा-११. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४१ भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: रे विनयविजय रे, गाथा-२१, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा १८ अपूर्ण से है.) ४७८६७. (#) निश्चय व्यवहार नयगर्भित सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पादरानगर, प्रले. पंन्या. चंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५,१३४४८). सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिब आगे; अंति: वाचक जसविजय जयकरो, ढाल-४, गाथा-४१. ४७८६९. बुध रास व नेम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १२४३९). १. पे. नाम. बुध रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई; अंति: सवीटले कलेशतो, गाथा-६६. २.पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. राजिमतीसती लैहयों, रा., पद्य, आदि: लहों तो भींजे रंग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक १० के बाद गाथाक्रम नहीं दिखा है.) ४७८७०. सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, २३४१८). १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी सुभातक; अंति: प्रसाद सदा पदमावती, गाथा-७. ४७८७२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३.५४१०.५-१०.६, ३०x१५-१८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयक्षमासूरि, (वि. ६५वें पाट तक दिया गया ४७८७३. (#) चतुर्विंशति जिन नमस्कार व जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३४). सकलात् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वीसं परिनिव्वुए वंदे, श्लोक-३०. ४७८७४. (#) नेमनाथ नवरसो, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले.पं. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२७-३०). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. ४७८७६. चतुर्विंशतिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १७७९, भाद्रपद शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. नवहर, प्रले. पं. सुखरत्न मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १३४३७). २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ध्यान नितु ध्यावइ, गीत-२४, (पू.वि. १९ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ गीत अपूर्ण से है) ४७८७७. इलाचीकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १३४४२-४६). इलाचीकुमार रास, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६९ अपूर्ण से १४९ अपूर्ण तक है.) ४७८७८. (#) चित्रसेन पद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १५४३६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ४७८७९. महावीर स्तवन, भयहर स्तोत्र व नमिऊण स्तोत्रादि, अपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, कुल पे. ५, ले.स्थल. गुढला, प्रले.पं. पुन्यरत्न (अचलगच्छ); पठ. मु. वर्धमान (गुरु मु. लालरत्नजीत, अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १५४३१). For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४२ www.kobatirth.org ४७८८०. आदीसरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४१२, ९४३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जये नवनलणि कुवलई, अंतिः दोसठ खय सव्वदुरियाणं, गाथा- ६. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण, अंतिः मानतुंगसूरि० भत्तीए, गाथा-२५. ३. पे. नाम. जीरापल्लि लघु स्तोत्र, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य, अंति लभेत् ध्रुवम् लोक १४. ४. पे. नाम. गभवाह रस स्तोत्र, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण, अजितशांति स्तवलघु- अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि गब्भवे आववार सोहम्मस, अंतिः भविअ० सबलसुह संपजए, गाथा-८. ५. पे. नाम वृद्धि शांति स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवबृहत् अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुर अंति जयशेखरसूरि० मुदम् श्लोक-१७. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि सहु नरनारी मली आवो अंतिः पावै विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ४७८८१. (+०) दंडकमय वीरस्तुति व सर्वतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, ११४३०-४५). "" १. पे. नाम. दंडकवीर स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., पद्म, आदि जयति जय विभूषितो अंतिः ती देवता सेवतामहंत श्लोक-४, २. पे. नाम. सर्वतीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततां सौख्यमानंदकारि, श्लोक १०. ४७८८२. (+) साधु प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२४.५x११, ८x२५-२८). ', 1 "" साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं नमो अंतिः खमामि सवस्स अहंपि ४७८८४. शनीचर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३.५४९.५ १२४३६-४०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति, अंतिः हेम० अलगी टालि आपदा, गाथा १५. ४७८८६ आदिजिन सलोको व सप्त व्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, मझेरा, जैदे., For Private and Personal Use Only (२३.५x११.५, १५X३०). १. पे. नाम. ऋषभजिन श्लोक, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १८०९, पौष कृष्ण, ११, ले. स्थल. मझेरानगर. आदिजिन सलोको, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: सरसती समरूं तुझ पाये; अंति: हंसविजय संप कोड, गाथा-२१. २. पे. नाम. सप्त व्यसण सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. पुण्यकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पाये नमु; अंतिः पुण्यकुशल वीसन नीवार, गाथा - १०. ४७८८७. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८७३ माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल हिमापुर, जैवे. (२४४११, १५x४६-५१). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने, अंतिः श्रीरपुर संश्रितैः, श्लोक-११८. Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४३ ४७८८९. (#) ज्ञानपंचमी स्तवन, पार्श्वजिन स्तोत्र व शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. साली पठ. श्राव. फतेचंद झवेरभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र. ले. नो. (८९७) जब लग मेरु अडग है, दे. (२४४११, १२४३४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन कृष्ण, १, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: ग भाव पशंसियो, डाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जपे पुरो मनह जगीस ए, गाथा- ७. ३. पे नाम, शांतिजिन स्तवन- जालोर मंडण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जालोर मंडण सांति, अंतिः लक्ष्मीसूरि० सुखकी गाथा- १४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंजा मंडनश्री, अंति: कहे संघनी पूरी आस, गाथा - १६. ५. पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारदा स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ सदा सर्वदा सारदा; अंति: नमः श्री अंबिकाए नमः, गाथा-६. ६. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. ३ आ-४अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी वेल, अंतिः तारो त्रिजगमोहे, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास, अंतिः नवनिध सदा आणंद घण, गाथा - ११. ४७८९०. (#) छंद, बत्तीसी व कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, २१४६३-६६). १. पे. नाम. महामाया छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. उ., पद्य, आदि: मिहिर मोंज वरक तवखत; अंति: होहे जीन जन् सनमुखी, गाथा- ११. २. पे. नाम. संदेसबीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संदेशबत्रीशी, मा.गु., पद्य, आदि: वीरमल ए वीर पाए जाए; अंति: सीस राजतणी नगराजीयऊ, गाथा - ३३. ३. पे नाम भवानी कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. भवानीदेवी कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: मदमाती मालती० हाट; अंति: त्रिकाल संध्यावती, गाथा - ३. ४७८९२. शारदा स्तोत्र, आयविल पच्चक्खाण व विच्छु इंश निवारण यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५X११, १०X२४). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. वप्पभट्टसूरि, सं. पद्य वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना, अंति रंजयति स्फुटम् श्लोक-१३. " , २. पे. नाम. सरस्वती देवी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-). ३. पे. नाम. आयंबिल पच्चक्खाण, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गएसूरे नवकारसहियं; अंति: वत्तिआगारेण वोसिरइ. ४. पे नाम. विच्छु डंश निवारण मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह में, उ. पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदिः ॐ नमो आदेश गुरु, अंति: मोरह कार्य आठेगामा. ४७८९४. नवकार मंत्र प्रभाव कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५४११, ११४३४). , For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवकार मंत्र प्रभाव कथा, रा., गद्य, आदि: वसंतपुर नामा नगर; अंति: डोहलो पूरण हुंओ. ४७८९५.) इच्छामि ठामि सूत्र व कंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०.५, १०x२३). १. पे. नाम. इच्छामि ठामि सुत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. इच्छामिठामि सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ईच्छामि ठामि काउस्सग; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. कंथुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर जाणज्यो; अंति: लाल मानविजय उवझाय रे. गाथा-५. ४७८९६. सिद्धचक्र स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटोधि, क्रीत. पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ११-१४४२७). १.पे. नाम. सिद्धिचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमहाणं; अंति: सिद्धिचक्कं नमामि, गाथा-६, (वि. पार्श्व भाग में सिद्धचक्र यंत्र व मयणाश्रीपालराजा का चित्र है.) २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताणसत्ताणमण; अंति: तहाताण कल्लाणगं, गाथा-४, (वि. पार्श्व भाग में समवसरण चित्र है.) ४७८९७. (#) भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १०४३३). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबलि अभय; अंति: जस पढमो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ४७८९८. मौन एकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४३३-४२). मौनएकादशी गणj, सं., गद्य, आदि: जंबुद्दीपे भरत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ४७९००. (+) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, २२४५३-७३). पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: पोसहविहि अप्पमत्तोअ. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करेमि कहतां करुं छु; अंति: करी नइ वोसराउ छु. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहिला पोषध; अंति: भंते आमंत्रण कीधऊ. ४७९०१. (+) वडी शांति स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १०४३०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम गाथा का किंचित् अंश नहीं है.) ४७९०२. (+) द्वात्रिंशिका स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सुमतिराज; पठ. मु. सुगालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४११, १६x४१). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. ४७९०४. रथनेमि सज्झाय व अमृतध्वनि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, १२४२८). १.पे. नाम. रथनेमि सज्झाय. प. ३अ-३आ. संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो यादवकुलनो रे; अंति: चित्तमां रे आण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. अमृतध्वनि स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: दागडगदि वधै दोलति; अंति: दमणि फणिंद दधिकरि, गाथा-१. ४७९०५. (+#) नवकार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०, ११४२६). For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४४५ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे, अंतिः महिमा जास अपार रे, गाथा- ९. ४०९०६. (+) लघुप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिष्ठा संबंधी सामग्रियों की संक्षिप्त सूचि संलग्न है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X११, १४X३५). गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः अथ शुभ दिने शुभ, अंति: वासक्षेप चढावणो. www.kobatirth.org ४७९०७. (+) प्रतिक्रमण, राम लक्षमण आयुमान व नगर स्थापना वर्ष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५x९, ११३९-४१). १. पे. नाम व्यंतर पटहादि, ७ अभव्य व ६ आवश्यक विचार, पृ. १अ संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: सुणऊण संखसब्दं मिलति, अंतिः अवश्य करवु ते आवश्यक. २. पे. नाम. राम लक्ष्मण आयुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. रामलक्ष्मण आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि: रामचंद्रजीनो आयु; अंति: मणनो आयु १२००० वरसनो. ३. पे. नाम. नगर स्थापना वर्ष, पृ. १आ, संपूर्ण. (२४X११, १३X३३). १. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सं. १४९४ राणपुर, अंति: १९२५ कनकावती पुर वसी. ४०९१०. (+) दीक्षाग्रहण विधि व लघुवर्धमान विद्या जाप, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे., जैदे. (२३१०.५, १५X४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי 1 प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम सुभ दिवसै सुभ; अंति: प्रथम गोचरी कराईजै. २. पे नाम. लघुवर्द्धमान विद्या, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवओ अरहओ; अंतिः ॐ ह्रीँ स्वाहा. ४०९१२. (+) भुवनक्षेत्रदेवता स्तुति व नेमिनाथ गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., १. पे. नाम. सारस्वत व्याकरण- मंगलाचरण, पृ. १अ, संपूर्ण. सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र किंचित् प्रारंभिक अंश लिखा है.) , २. पे. नाम. श्रुतभुवनक्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदिः याकुमन्नयसोमचारुचरणा, अंतिः संघेसु मणेरए गाथा- ३. ३. पे. नाम हिंडोला नेमिनाथ गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजमति गीत, मा.गु., पद्य, आदि: नमइ सावन सरस सुहावा, अंतिः प्राण अव कासिक कहऊं, गाथा- ४. ४. पे. नाम. प्रासंगिक लोक संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७९१७. (+) पच्चखाणविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैवे. (२३.५x१०, १६४४४). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु, पद्य वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं अंतिः रामचंद तपविधि भणै, ढाल -३, गाथा-३३. ४०९१८. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२३.५४१२, २५४१८) , साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि; चंपक केतकी पाडल जाई, अंतिः जो तुसे देवी अंचाई, गाथा ४. ४७९१९. नवपद विधि, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. नवपद यंत्र सहित., जैदे., ( २४.५X१०.५, ९x४८). नवपद तपविधि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंत अंतिः दोयवार दरसण करणो. ४७९२०. औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४x११, १६३५). १. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तौ प्रणमुं सदगुर; अंति: आणंदघन सुख थाये जी, गाथा- ११. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दुरमतडी वेरण थई लीधो; अंति: घन आनंद तेहीज वरस्यै, ढाल-२, गाथा-१४. ३. पे. नाम. मानव भव दुर्लभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवीचंद, पुहि., पद्य, आदि: संसार माहे आय के मनख; अंति: यु ही क्युं गमाय रे, गाथा-१. ४७९२१. पांच पांडव व पार्श्वनाथ स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १३४४५). १.पे. नाम. पांच पांडव स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलुं; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. शिरोरेखारहित यह कृति बाद में लिखी गयी है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रहेनी रहेनी अलगी; अंति: मोहन० अति लटकाली, गाथा-६. ४७९२२. वयरस्वामी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १७४३९). वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमिणी पोईणी पातली; अंति: लब्धिवि० रंगीली नारि, गाथा-२०. ४७९२३. राजीमती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, १०४२४). राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छालि रंगसुरे; अंति: समयसुंदर० अविचल लाल, गाथा-५. ४७९२४. (+#) आगम स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १२४२८). आगम स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकेली निकेतनं; अंति: लहिई मंगलमाल रसाल, गाथा-११. ४७९२५. (+#) उपदेशरत्न कोश, संपूर्ण, वि. १७५७, चैत्र कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु.खेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३१). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छायले रमइ सच्छाए, गाथा-२५. ४७९२६. (+) स्तुति व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले.पं. चारित्रसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणि; अंति: इयनाउंसरह भगवंत, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणसु पहु पास, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन ३, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ॐ मम हरओ जरं मम; अंति: जिनदत्तससूरि०पासजिणो, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गाहाजुयलेण जिणं मयमो; अंति: दिसउ खयं सयल दुरिआणं, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ४७९२७. स्तुति, स्तोत्र व बीज मंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्रगर्भ स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: सवर्णपार्श्व लयमध्य; अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१६. २. पे. नाम. शारदा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमती भारती; अंति: बुद्धि विभवेन, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सरस्वती बीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: वर्द्धिनि हीं नमः. ४. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, अपर्ण, प.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ११ तक है.) ४७९२८. (#) सज्झाय, स्तवन व नक्षत्र चक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९.५, २६४१७). १. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुँ; अंति: प्रणम्या पातक जाय, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजुगमंधर भेटवारे; अंति: जिनसागर० अविचल राज, गाथा-५, (वि. अतिमवाक्य का पाठ खडित है) ३. पे. नाम. नक्षत्रानुसार स्वास्थ्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह*, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). ४७९३२. सज्झाय व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १३४३३). १.पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधजी न जाइये परघर; अंति: जिनराज० घर गमण निवार, गाथा-१०. २. पे. नाम. तिविहार चौविहार पच्चक्खाण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: गारेणं वोसिरामि. ४७९३४. (+) वीतराग स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पंडित. अमरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४९.५, १५४४६). साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋभुस्तुभ्यपादं न; अंति: विमुक्त्यां लभते, श्लोक-१४. ४७९३५. (+) आतमशिक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. राजा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४३७). औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला; अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा-११. ४७९३६. (#) प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २४x७२). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: ए४ आहारनो पच्चक्खाण. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह का बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध* मा.गु., गद्य, आदि: असन क० शालि गोधूम; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४७९३७. गुंहली संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सोझत, प्रले. पं. मानविजय; पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनेंद्रसूरि गहुली, मु. चंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: गामनगर पुर विचरता; अंति: कहे चंद० गुरुगुणखाण, गाथा-५. २. पे. नाम. सुधर्मस्वामी गहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुली, मु. हर्षकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर सोभता सही; अंति: कल्लोल चढतदि वाजा रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- ७. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणो भावसुं; अंतिः धर्मसिंह० लाल रे, गाथा-६. ४०९३८. चतुर्दशी पाक्षि छमछरी चोमासी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३.५x११.५, ११४२६). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्या प्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४७९४०. औपदेशिक सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५X१०.५, १६x४३). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पू. १अ संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा. सं., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथादपरो न; अंति: (-). २. पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र दशमाअध्ययन सज्झाच, संबद्ध, वा. करण, मा.गु, पद्य, आदिः समवसरण सिंहासने जी, अंतिः बे करजोड संयम मे, गाथा- ८. ३. पे. नाम. स्वाध्याय सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलिखित जे पूतली, अंतिः कहे जिनहरष प्रबंध, गाथा-८, (वि. गाथा संख्या अव्यवस्थित है.) ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: सूर्यासुभिन्नंधार, अंति: (-) (वि. यह कृति बीच में लिखी गई है.) ४७९४२. वर्द्धमान व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१०.५, १६x४५). १. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पं. दीपसौभाग्य गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररूप अनूप एहि अंति: उठी विनवे हो लाल, गाथा - ९. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन- सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., पद्य, आदि सारद मात नमु सिरनामि, अंति: गुणसूरि० सिव सुख पावै, गाथा-२२. ४०९४३. जिनपंजर संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५४११.५, ११४२८). " जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः मनोवांछितपूरणाय श्लोक-२४४७९४४. षोडस सत्यवादी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, १५X४५). १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचारी चूडामणी; अंति: खेम सदा सुखकार हो, गाथा - १९. ४७९४५. ७ समुद्धात लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष सांकेतिक भाषा में पद्यात्मक दिया गया है., जैदे., ( २४४११, १२४३३). ७ समुद्धात विचार - भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेलि वेदना संमतघात; अंतिः समुद्धातनु लक्षण. ४०९४६. बींद बींदणी सलोक, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x११.५, १३X३२). जैवे.... पार्श्वजन सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमण तुझ पाय; अंति: गुण्ये सोभाग लेसी... ४०९४७ (-) औपदेशिक सज्झाय व सीमंधर स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., (२४.५X१०.५, १४X३९). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १. पे नाम. आत्मशिष्या सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रले, मु. कर्मचंद (गुरु मु. ठाकुर ऋषि); गुपि मु. ठाकुर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआ रे, अंतिः लावण्य० दीधाना फल जोय, गाथा - १५. २. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, शीलव्रत सज्झाय, मु.शियलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव विषय निवारीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ३. पे. नाम. सीमंधर स्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडुं हेजालवु; अंति: कहे मत मूको विसार, गाथा - ७. ४७९४८. (+) अंतरिक्ष पार्श्वनाथ, नेमराजुल स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २२x११, ११४३८). १. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पंडित, खीमाविजय, पुहिं, पद्य, आदि इक सुनियो नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. २. पे. नाम. अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण प्रले. सवाईराम, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- अंतरिक्ष, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरीक पासजी महिर, अंति: दुख दर्द हो जिणंद, गाथा - १३. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: खेलत नेमकुमार ऐसे; अंतिः पद कीनो निज अधिकार, गाथा - ५. ४. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: हो तुम्ह चरणे पे खरी, गाथा-३. ४०९४९, (०) कानजी कठियारो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २१x४४). ४७९५० नमिपवज्जानवमं असज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१.५X११, ११x२९). ४४९ कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: दिन दिन अधि आणंद, ढाल - ९. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न, अंतिः नमीराए रिसी तिबेमि, गाथा - ६२. सं., पद्य, आदिः श्रीवीतरागसर्वज्ञ, अंतिः मम केवला स्यात्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम वीशविहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण ४०९५३, (+०) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०, १३X५०). १. पे. नाम. धनपाल पंचाशिका - गाथा ३ पर्यंत, पृ. १अ संपूर्ण. " ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि जयजंतुकप्पपायव चंदाय, अंति: (-), प्रतिपूर्ण, २. पे. नाम. वीतराग स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only " २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगगुरु; अंति: वंदना नमो जिणाणं, गाथा- १. ४०९५४. सम्यग् शास्त्रविचारसार पत्र व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ९, जैदे. (२३४१०.५, ३४४५० ). १. पे. नाम. सम्यग् शास्त्रविचार सार, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, ४, ले. स्थल. योधपुर, प्रले. पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य. Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्त्रीमुक्ति सम्मत शास्त्रपाठ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., गद्य, आदि: स्वस्तिश्री स्तंभनक; अंति: यात्रा करज्यो जी. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: अरे मन मत विसरे; अंति: भूधर० कूपन काज सरे, गाथा-२. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: अरी सेवादेवीको नंदन; अंति: हरखचंद० भयो भोर री, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: परस वोई कर रे मनुवा; अंति: युं भवसागर तिर रे, गाथा-२. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मु. दोलतराम, पुहिं., पद्य, आदि: घडी घडी पल पल छिन; अंति: दौलतराम० तिरलैरे, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मनमांजासो ईम जोति; अंति: गुरु कहत इम मान भला, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मनडे भादीया तूं जिन; अंति: बिन कोई न पार करे, गाथा-२. ८. पे. नाम. कमठ तापस पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम ही जायकै अश्व; अंति: पूजे ते विधि होत सका, गाथा-२. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.. ___ पुहिं., पद्य, आदि: अविनाशी के गुण गावता; अंति: परम अंसकुंरीझावनां, गाथा-४. ४७९५६. त्रीस चउवीसीना तीर्थंकर नाम, संपूर्ण, वि. १७९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. धनोधबंदर, प्रले. ग. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नवखंडपार्श्व प्रसादात्., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३७). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ४७९५७. सूत्रकृतांग अध्ययन ११ मोख मारग, संपूर्ण, वि. १९७७, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२४४१२, २०४४०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४७९५८. वीसस्थानकतप गाथा सह टबार्थ व दृष्टांत सूची, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४११, ५४३०). १. पे. नाम. वीसस्थानकतप गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. २० स्थानकतपगाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति सिद्ध; अंति: कर्म उपार्जइ. २. पे. नाम. चंद्र चकोरादि दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४७९५९. (+) से@जय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४४१). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो पणमीय देवि; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-३५. ४७९६०. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, ११-१३४३०). १.पे. नाम. पार्श्वस्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. २. पे. नाम. लक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु लिक्ष्मी; अंति: पठते नराणां त्वंदे, श्लोक-८. ४७९६१. (+) जिनचंद्रसूरिजी को पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, ४२४२७). जिनचंद्रसूरिजी को पत्र, मा.गु., गद्य, आदि: एकविध जिन आज्ञा; अंति: गुण लख्या न जाइ. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४७९६३. (-) स्तुति व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. १०, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२, २५४४६). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुचंडिमाडंबर पंच; अंति: निकाम कुरू बाण देवि, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. राजहंस, सं., पद्य, आदि: यस्यांसयोः कनकपंकज; अंति: सा श्रुतदेवता वः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनो जयति यस्यांही; अंति: क्लेशनाशाय संततः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंति: श्रुतं तं श्रुतांगी, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नंदीश्वरादीषु सास्वत जिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: सुप्पसन्ना हरंतु, गाथा-४. ६. पे. नाम. जिनवचन महिमा पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनवचन अनुपम सब जग; अंति: रथ जगमध उतरे पार, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: धन धन आजरी घरी भूल; अंति: सिवसुख काज सरी, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि जान परी; अंति: द्यानतमुरदै संग जरी, गाथा-३. ९. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. __ मु. किसना, पुहि., पद्य, आदि: निज घर आवोनी सुमतीजी, अंति: उरसुं प्रीत लगाय, गाथा-३. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: ठगनी कमति लगी हमारे; अंति: नित० जिसकुं आन लगी, गाथा-३. ४७९६४. (+) विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, १४४५०). १.पे. नाम. इरियावही कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चोइंद्री पर्याप्ता; अंति: जीव ताहरो उद्धार थाव. २. पे. नाम. पौषध कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिवस सहस्सा; अंति: धम्ममि उज्जमहो, गाथा-१६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे सो वरसना दिन; अंति: धर्मनो उद्यम करो. ३. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी १ अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालखी न बैसे अथिर; अंति: सुख लक्ष्मी होवें. ४. पे. नाम. सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., पद्य, आदि: वासासु सगदिणो उवरिं; अंति: कालपमाणं तु फासुजलं, गाथा-५. सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वरसा काले दिन सात; अंति: पाणीनो काल जाणवो. ५. पे. नाम. आणंद कामदेव दृष्टांत सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. आनंद कामदेव दृष्टांत-जलग्रहण विषये, प्रा., पद्य, आदि: आणंद कामदेवा पमुहा; अंति: उन्नंतह धोअणं नीरं, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आनंद कामदेव दृष्टांत-जलग्रहण विषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक आणंद कामदेव; अंति: धोवण जल श्रावक पीवै. ६.पे. नाम. सीमंधरस्वामी मुखप्रमाण सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन मुखप्रमाण, प्रा., गद्य, आदि: रयणीए पन्नासं विदेह; अंति: सीमंधरसामि पसाओ. सीमंधरजिन मुखप्रमाण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रयणीक हाथ ५० हाथ; अंति: लांबु ने पोहलुंकहिओ. ७. पे. नाम. चतुर्दश उपगरण सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: जिणकप्पिआयसाहु; अंति: खलु चउदसमो चोलपट्टो, गाथा-७. साधुसाध्वी उपकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनकल्पिक साधु; अंति: उपगरण ते चोलपट्टो एक. ८. पे. नाम. प्रातः प्रतिलेखन विधि सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण.. प्रातः प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: मुहिगुछु१ तेण दोरो२; अंति: पेलो पेहंति पहरंमि. प्रात: प्रतिलेखन विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मुहपत्ति गुच्छो१; अंति: पडिलेहणा १० थाइ. ९. पे. नाम. संध्या प्रतिलेखन विधि सह टबार्थ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. संध्या प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: तिन्निविहत्थी; अंति: मुहप्पत्तीए रिसीहवई, गाथा-१०. संध्या प्रतिलेखन विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीनवै हथनै च्यार; अंति: रीतए विबुधै. १०. पे. नाम. ५६३ जीवभेद सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण.. ५६३ जीवभेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: प्रोक्ता नारकिका; अंति: ५६३ क्रमात्, श्लोक-१. ५६३ जीवभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कह्या नारकीना १४ भेद; अंति: जीवांना भेद जाणवा. ११. पे. नाम. सात मांडला गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. ७ मांडला गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुत्ते१ अत्थे२ भोयण३; अंति: वियतहा ७ सत्तईया, गाथा-१. १२.पे. नाम. पात्रविचार गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. पात्र विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तुंविय१ दासयर महीय३; अंति: जइण भणिया जिणवरे, गाथा-१, प्र.ले.प. सामान्य. १३. पे. नाम. पंचेंद्रिय गति सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंचेंद्रिय गति, प्रा., पद्य, आदि: देवाउअंनिबंधेइ सरागत; अंति: पंचेंदिया चउसु, गाथा-६. पंचेंद्रिय गति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवतानो आउषो वांधै; अंति: च्यार गतें जाये. १४. पे. नाम. जीवोत्पत्ति विचार सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्ति विचार, सं., पद्य, आदि: अंडजाः पक्षिसाद्य; अंति: तु ते चतुरिंद्रियाः, श्लोक-१०. जीवोत्पत्ति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंखीने सर्पादि इंडा; अंति: थे शिंगडाना आकार हुइ. १५. पे. नाम. दानाधिकार सह टबार्थ, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. दानाधिकार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अभयं? सुपत्तदानं२; अंति: दंसणसहिअंचउत्थं च, श्लोक-८. दानाधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अभयदान१ सुपात्रदान२; अंति: ते चोथु पात्र कहीए. १६. पे. नाम. अढार पापस्थानक गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणीयवायमलिअं; अंति: समित्थत्त सल्लंच, गाथा-२. १८ पापस्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ वलीजूठ२; अंति: सल्य ते पाप१८. १७. पे. नाम. दस क्षेत्रगाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. १० क्षेत्र गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणभुवणबिंब पुत्थय; अंति: पोसहगाहणंच दस, गाथा-१. १० क्षेत्रगाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनभुवन जिननो बिंबर; अंति: क्षेत्र उत्तम जाणवा. १८. पे. नाम. तपनिप्फल गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. तप निष्फलकारण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फुरुस वयणेन दिन तवं; अंति: हणइहणतो असामन्नं, गाथा-१. तप निष्फलकारण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्कश वचन बोलता दिवस; अंति: करणी निप्फल थाइ. १९. पे. नाम. उत्सूत्रभाषी गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ उत्सूत्रभाषी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंतासिद्धायरिया; अंति: भावणं कुणई, गाथा-१. उत्सूत्रभाषी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतदेवना१; अंति: बोले तो० देवता थाय. २०. पे. नाम. सत्यभाषा विचार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जणवय१ सम्मयंर वचणं३; अंति: उपमा सत्यवचन जाणवो. २१. पे. नाम. असत्यभाषा विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कोहेत्यादि क्रोधे; अंति: असत्य भाषा कहीइं. ४७९६५. (+) स्तवन वीसी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, ३३४५१). १.पे. नाम. वीस विहरमान स्तुति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले.पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य. विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: महोदय वृंदोरे जिनवर, स्तवन-२०.। २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: मेरो कह्यो तू मान ले; अंति: मन वचन तन कर दान दे, गाथा-२. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: निरखत नैना नाही अघाय; अंति: ओसर दुर्लभ मे पायो, गाथा-२. ४७९६६. एमंतामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२०, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. उदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १२४३६). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: वंदे ए मुनीवरना पाया, गाथा-१८. ४७९६७. शारदा स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १०x२९). १.पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंति: दिशतु मे विद्या, श्लोक-११. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: पृथुकार्तस्वर; अंति: कामस्य चंपायनं, श्लोक-२. ४७९६८. नेमनाथ गीत व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२३४१०.५, २८x१५). १. पे. नाम. नेमिनाथ भमर गीत, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल, अंति: प्रभु थुण्या सानुकूल, गाथा-२७. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुंदर, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-३. ४७९७०. पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरि; अंति: धणी सेवकने सानिध करौ, गाथा-२१. ४७९७४.(-) वीस वैरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १२४३०). २०विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजंबूद्वीपे वदेय; अंति: विस वेरमन से सहि, गाथा-९. ४७९७५. (#) सती कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०,१३४३५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ४७९७६. चौवीसजिन स्तुति, प्रभातियु, श्लोक व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३४११, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, चौबीसे जिनवर स्तवन, पृ. ९अ-२अ संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सबल जिणेसर प्रणमुं, अंतिः आनंद० साची जिन सेव, गाथा-२७. २. पे. नाम. चौबीस जिन प्रभातियुं, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन प्रभातिषु, मा.गु., पद्य, आदिः प्रय उठीने पूजीये, अंति नहीं जावै नरक मझार, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदिः परम ग्यान ध्यानीराट्; अंतिः वंद कहे देवीचंद, गाथा - १. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: दध्यमाना सुतीव्रेण; अंति: देवो न भूतो न वसही, श्लोक-३. ५. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये रे बातां सदा, अंतिः देख तमासा फजुरो मे, गाथा ४. ४७९७७ (१) चतुशरण पयन्न, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५४१०.५, ११४३९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, बि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुई सुहाणं, " गाथा-६३. ४७९७८. जीभडली सज्झाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, २९x१८). १. पे. नाम जीभडलि सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु, पद्य, आदि: जीभडलि सुण बापडलरि अंतिः प्रेम० परतक्ष देवा रे, गाथा - २०. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि कनेयरनी जड टां १ अंति: अंजन कीजे अलोप धाय. ४७९७९. (+) ८४ लाख जीवयोनि व आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, ११X३५). १. पे. नाम. ८४ लक्ष जीवयोनि, पृ. १अ संपूर्ण ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुढवाइ सुपत्तेयं अंतिः लक्ष ४ जीवस्य योनि २. पे. नाम. जीव आयुप्रमाण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जीव आयुष्यमान विचार, प्रा. सं., प+ग, आदि: १ पृथ्वीकाय जघन्य अंति: उक्कोस सरीरमाणेणं. ४७९८०. महासतांसती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५४११, १३x४९). भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुयणेसयले, गाधा १३. ४७९८२. पच्चक्खानसूत्र सह टबार्थ व कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, ६x४५). १. पे नाम, पच्चक्खाणसूत्र सह टवार्थ, पृ. ९अ- २आ, संपूर्ण प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुकार, अंति: गारेणं वोसिरामि प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूरिजना उदय हूंती, अंति: अनेरइ थानकि वोसिर. २. पे. नाम. पच्चक्खाण कालमान कोष्ठक, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक १ 'अ' पर प्रहरमान, पुरिमडमान व पडिह कोष्ठक तथा पत्रांक २ 'ब' पर आगार कोष्ठक दिया गया है. यंत्र संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: आसाढे मासे दुप्पया, अंतिः सव्वसमाहि वत्थिआए. ४७९८३. धन्ना पच्चीसी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८८५ आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (२३.५४१०.५, १३x४०). १. पे नाम, धना पचीसी, पृ. १अ २अ संपूर्ण, वि. १८८५ आश्विन शुक्ल, १. धन्नापच्चीसी, मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत समरीये मन; अंति: रूपरखी० मुगत पधारे, गाथा - २१. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि पंथीडा रे पंथ चलेगा, अंति: निरंजन आवागमन निवार, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४५५ ४७९८४. नेमराजुल लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मणिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १०४२४). नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मोरी अरज सुणि; अंति: चतुरकुसल० फिरणै की, गाथा-१०. ४७९८६. (#) चौढालियो व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. दसारणभद्रजीरो चोढालीयो, पृ. १अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८२९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०. दशार्णभद्र चौढालिया, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: वंदिय वीर जिणेस जगीस; अंति: महिमासागर सेवीय, (पू.वि. ढाल ३ गाथा ७ से ढाल ४ आंशिक अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. ऋषभजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: सुविधविजै० की बगसीस, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजुल राग, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समुद्रविजै कैलाडलो; अंति: हरखचंद्र० वैकुंठ वास, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथजीस्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहि., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद; अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-३. ४७९८७. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. वृद्ध शांति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्रले. मु. माधवजी ऋषि (गुरु ऋ. बाधाजी), प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. लक्ष्मी माता स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. लक्ष्मीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: या श्री पद्मवने कदंब; अंति: कोपि चोपद्रव्यालोके, श्लोक-३. ३. पे. नाम. सारदा स्तोत्र सप्रभाव, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: वागवादिनी नमस्तुभ्यं; अंति: निर्मल बुद्धिमंदरं, गाथा-७. ४. पे. नाम. सरस्वती माता स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्रह्माणी कमलेंदु; अंति: रक्षतु मां मातर, श्लोक-१. ५.पे. नाम. शीलना भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री वेद ४; अंति: १८००० सहस्र भेद थाई. ४७९८८. कलावती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, ९४३२). कलावती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कौशांबीनो राजा; अंति: बोले आवागमन निवार रे, गाथा-१३. ४७९८९. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, ९४२७). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमामि भारति देवी; अंति: लभते स्त्रियम्, श्लोक-९. ४७९९०. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, ८४३१). महावीरजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा संदेशो कहेजो; अंति: कहे जिनदास०कहेवाय जो, गाथा-५. ४७९९१. बार देवलोकना प्रासाद जिनबिंब संख्या विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १२४३२). देवलोकस्थ प्रासाद व जिनबिंब संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: जावंति चेइआई उढे; अंति: सास्वता जिनबिंब थाय. ४७९९२. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. प्रेमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १०४२८). For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-५. ४७९९३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. समकीत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वारं गभारे; अंति: खीमाविजय० आगम रीत रे, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: माता मारुदेवीना नंद; अंति: ताहरी टालो भवभय फंद, गाथा-६. ४७९९४. पनर तिथि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४३०). १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पडवे प्रणमु पाय पास; अंति: मेल किधो जइने रे, गाथा-१६. ४७९९५. ८४ गच्छ विवरण, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ३०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३८). ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमहावीर मुगत गया, (२)जेसलमेररा भंडारमाहि; अंति: आचार्य उजेणी मधे. ४७९९७. पद्मावती स्तोत्र व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. प्रत नंबर नही हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४९). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ कृष्ण, १२, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व प्रतिमा; अंति: हर्षविजय० सुखकारणी, गाथा-११. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीकानेर. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतने समरी करी; अंति: सुविधविजय० लीधोरे, गाथा-११. ४७९९८. श्रावक करणी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११,१५४४१). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तु उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, ___ गाथा-२०. ४७९९९. मनकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४४०). मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुने; अंति: पामो सद्गति सारो रे, गाथा-१०. ४८०००. अंगफुरकण विचार व नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम. अंगफुरकण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अंगफुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: श्रीहरषप्रभु गुरूपय; अंति: वांणि जिसी गुरू भणी, गाथा-२२. २. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण मूंध सहेलडी; अंति: प्रणमै श्रीरुधपाय, गाथा-७. ४८००१. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १२४३०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ त्रिभंगी छंदबंध स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडल मुकुटं; अंति: सहरम्यं श्रीपार्श्व, श्लोक-४. २.पे. नाम. गणपति स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य , मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८००२. स्तुति संग्रह वगुरुसुखशातासूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११.५, १२४४०). १.पे. नाम. मौनेकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि दीक्षा श्रीअरनाथकस्य अंतिः ज्ञानस्य लाभं सदा, श्लोक-४. २. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद, अंति: सर्व विघ्न दूरे हरई, गाथा- ४. ३. पे. नाम. गुरुसुखशाता पृच्छासूत्र की अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुसुखशाता पृच्छा-अवचूरि. सं., गद्य, आदि: इच्छामि वांछामि, अंति: मस्तकेन बंदामि ४८००३. स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५x९.५, ३२x१९). १. पे. नाम. जिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास चिंतामणि, अंति: हर्षविजय दिन वणीउ रे, गाथा ५. २. पे. नाम. सोमविजय उपाध्याय गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदउ सोमविजय उवज्झाय, अंति: हर्षविजय गुण गाय, गाथा-६. ३. पे नाम, गुरुगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी ऋधि भोगवी, अंति: विजयसिंहगुरू वचन रे, गाथा - ९. २. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण विजयतिलकसूरि गुरुगीत, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल श्रीसंघन, अंति: हर्ष ० कीर्त्ति तोरी, गाथा-५. ४८००४. सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ६ प्र. वि. पेज-१४२, जैवे (२५.५X१०.५, ३७X१९). " १. पे नाम, नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने नेमि सज्झाय नाम लिखा है. १८ नातरा सज्झाय, पंन्या. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: विरजिणेसर प्रणमुपाय, अंति: देव० धरी अि हे आणंद, ढाल - ३, गाथा - २२. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- मोह पराजय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि जालमगढमां जोध मच्यो; अंतिः सुरवधू गावे ग्यान, गाथा - ११. ४. पे. नाम, जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण वज्रधरजिन स्तवन, मु. जीवण, मा.गु, पद्य, आदि; वालेसर वज्रधर सेवा, अंतिः जिनगुण थूणज्यो रे, गाथा ५. ५. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके; अंतिः विराजे सुख भरपूर, गाथा- ७. . पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पीयारि ते पीउने इम, अंति: मुगते जाशे ते जीव रे, गाथा - १०. ४८००५. स्वाध्याय संग्रह व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा है, कृति अपूर्ण होने के कारण काल्पनिक पत्रांक २ लिया गया है, जै. (२४४११.५, १५४४४). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेद जिनपूजा, अंति पूरे देवी सिद्धाइजी, गाथा ४. २. पे नाम, धूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण, ले. स्थल, सोवनगिरि, प्रले. पं. हस्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही रे, अंति: तेजहर्षने तुं तार रे, गाथा - ७. ३. पे नाम, मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. ४५७ पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक हैं.) ४८००६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५X१०.५, १७x४२). For Private and Personal Use Only १. पे नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: सामी तुमे कांइ कांमण, अंति: जस कहे हेजे हलशुं गाधा- ६. २. पे नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलियो अंतिः पूरो प्रेम विलास, गाथा-७, Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. श्रेयांस गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रेयांसजिन सुणो अंतिः मोहन वचन प्रमाण, गाथा ८. ४. पे. नाम. नेमीजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिवादेवी सुत सुखदाया; अंति: रूचिरविमल जयकारा रे, गाथा-५. ४८००७. फुलडा हालडां सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२३.५x९.५, ३४३४). स्वामी गली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखी रे में कौतक दीदु, अति शुभवीरने वाल्हडा रे, गाथा-८. वज्रस्वामी गहुली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वयरस्वामी ६ मासने अंतिः ए अर्थे वलभ वचन छे. ४८००८. चैत्यवंदन, हरीआली व १२ चक्री नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४४१०.५, ८X२७). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. " २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आव. देपाल भोजक, मा.गु. पच, वि. १६वी, आदि (१)सुडा डालि पीपल वासइ, (२) वरसई कांबली भींजई, अंति मुखि कही देपाल बखाणे, गाथा ५. ३. पे. नाम. चक्रवर्ती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरहो? सगर२ मघव३ सनत्, अंतिः ब्रह्मदत्तचक्री१२. ४८००९. वीरजिन २७ भव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २४४११.५, ११३१). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू अंतिः सेवक वीरविजय जयकरो, ढाल-५, गाथा-५२. ४८०१०. खामणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, साणंद, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२५X१२.५, १२X३२). खामणा कुलक, मु. अमीकुंअर, मा.गु, पद्य, आदि अरिहंतजीने खामणां, अंतिः अमियकुंमर मंगलमाल, गाथा-२८. ४८०११. द्वारका नगरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ३७, दे., ( २४.५X१२, १०x३२). द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दोनु बंधवआरडे दुःख, अंतिः विनय० भव पार उतार रे, ढाल - १, गाथा - २४. ४८०१२ सुपन विचार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५x१२, १२४३१). " १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन देखी पेहलडे, अंतिः सांभलो राय सुधीरो रे, गाधा- १७. ४८०१३. (+) करम हीडोलना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४x१०.५, ९X२९). कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदि: करम हीडोलना हो झुलत अंति: हरखकहत० मनही पुरो आस, गाथा - ९. ४८०१४. मिच्छामि दुक्कडं सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५४१२, ११४३३). 1 इरियावही सज्झाय संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि गुरु सन्मुख रही विनय, अंतिः शुभविर० अनुसरिई जी, गाथा-१४. ४८०१५ ईसर संख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x१०.५, १५X४२-४८). " सुभाषित लोक संग्रह # पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: पूछइ न जाणइसु पुण्य, अंतिः सो ईह प्रमाण कीजइ, 1 गाथा - २९. ४८०१६. बाहुबलि सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५४११.५, ८४३७). " बाहुबली सज्झाय, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बहिनड बोलइ बाहुबलि, अंति: दिन दिन चढ़तो छे वान, गाथा-५. ४८०१७. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५X११.५, १०X३१). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १. पे. नाम, वज्रपंजर कवच, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कारं अंति: राधिश्चापि शरीरजा, लोक ८. , २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो माहाविर अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४८०१८. सासरउ सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११, ११x२२). आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे इम जइ जइ रे; अंति: सीवपुर लहीये रे बाई, गाथा - ९. ४८०२०. जखडबंदरस्थित जिनमंदिर अंजनशलाका वर्णन स्तवन, संपूर्ण वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, बे., (२३.५x१२.५, १०X३१-३३). ४८०२१. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १०, जैदे., ( २४४१२, १३-१५X३५-३८). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. " जखडबंदरस्थित जिनमंदिर अंजनशलाका वर्णन स्तवन, आव, वीरचंद अंवाराम, मा.गु. पच. वि. १९२७, आदि: जखडबंदर जुहारी हो; अंति: गुण गाए वीरचंद दाशसु, गाथा- १२. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि नीसदिन जोड थांरी वाट अति आवसे सेजडि रंग रोला, गाथा-५. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण मु. जगराम, पु,ि पद्म, आदिः खलक इक रेण का सुपना अंतिः कहै जगराम वटैरी, गाथा-५, ३. पे. नाम. आदिजिन रेखता, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मुझे है चाव दरसन का अंति: कुमत के० क्या होयगा, गाथा-४. " ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिन नाम कुं समरलैरे, अंतिः झुठा है सब जतन, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पोकारे नेम, अंति: चैनवि० मुक्तिकुं वरी, गाथा- ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम मराजिमती पद, पृ. २अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब माइरी गीरनार जान, अंति: कहता सदा सुख धाम है, गाथा-७. ७. पे. नाम. मुक्तिरमणी पद, पृ. २अ संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं, पद्य, आदि जिहां अनंत सिध सदाई, अंतिः रमण चित धारो जी, गाथा- ३. " ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ४५९ मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: एही सुभाव पड्या येसै; अंति: पातक सकल झडाक झड्या, गाथा-२. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन पद- केसरीया, श्राव. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: केसरीया सै लागो मारो; अंतिः ऋषभ० सेवक अपन जाण, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहडा तु अंतिः वंदन बामाजु के लाल, गाथा-४. ४८०२२. (*) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे... For Private and Personal Use Only (२३.५X१०.५, १६X३२-३६). १. पे. नाम. सातव्यसननिवारण सज्झाय ५. १ अ. संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आवि: मनुष जमारो पायक करणी, अंति: (-), गाथा-१६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रथम दाल की गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण हिं., पद्य, आदि: मैण माणेक मोती घणा, अंति: हम यह वीचारी, गाथा-१८. Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६० ४८०२३. पार्श्वनाथ वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २. लिख कृष्णबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१०.५. १२X३४). पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंदघन परम निरंजन, अंति: जसक भवजल तारो, गाथा - २५. ४८०२४. महावीर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४४१०.५, ११x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी बुध द्यो; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा- ११. ४८०२५ अष्टमी स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. विजापुर, प्रले. नारायण नघुभाई ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., 1 (२४.५x१२, ११४३३). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ४८०२६. ऋषभाष्टक छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५४११.५, ११४३६). 3 आदिजिन छंद - धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी; अंति: ऋद्धिसिद्धि पाईए, गाथा-८. ४८०२७. अध्यात्मगर्भित हरीयाली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१२.५, १२३०). चूनडी गहुली, मु. माणेकमुनि, मा.गु, पद्य, आदिः आशी सुरंगी चुनडी रे; अंतिः माणीक्वे० मनरंग रे, गाथा- ९. ४८०२८. स्तोत्र व अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, पठ. श्राव. अमरसी कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५X११.५, १४X३६). १. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि; जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंति: (१) ग्रहशांतिविधिशुभं, (२) नवग्रह पीडा न करें, श्लोक-१२, (वि. मंत्रजाप विधि भी है . ) २. पे. नाम. गोडीजी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी मा.गु. सं., पद्य, आदि: सकल भविकचेतः कल्पना; अंतिः भवद्यार्णवः संस्तुत, गाथा- ९. ४८०२९. (#) स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५X१०.५, १५४४२). १. पे. नाम. सिद्ध सारस्वत स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. ग. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: यच्छत्यनंतं सताम्, लोक-१४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. ४८०३०. जंबुद्वीप संघयणी व हरिभद्रसूरि परिचय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४x११.५, १०x२६). १. पे नाम, जंबुद्वीप संघयणी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. (२४x११, १७X२६). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. २. पे. नाम. हरिभद्रसूरि परिचय, पृ. ३आ, संपूर्ण. हरिभद्रसूरीश्वरजी सामान्य जीवन परिचय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीर थकी एकहजार अंतिः मुक्या तिहां रहे है. ४८०३१. (+) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. ,जैदे., मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगर चिंतामणदेव, अंति: कीरत० पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. २. पे, नाम बाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया, अंतिः समयसु० बांदी पायो रे, गाधा-७. ४८०३२. नक्षत्र सझाय, यंत्र ल श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x११.५, १७२७). For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. २८ नक्षत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नक्षत्रताराविचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण नमेवि; अंति: पठन क्रिया आराधो सही, गाथा-१५, (वि. २८ नक्षत्र का कोष्ठक भी है.) ४८०३३. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३३, चैत्र शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जगतारण, प्रले. मु. कनकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १३४४२-४५). वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पाहुणडारे जीवडा जोइ; अंति: परमद किरिया अवगणी रे, गाथा-१२. ४८०३४. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, ३१४५०). १.पे. नाम. कृष्णसुकलपक्ष सीलपालने विजयसेठ चौढालीयो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसल नित घर अवतरे, ___ ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. दसारणभद्र राजरिषि चतुष्पदी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सोजतनगर, पे.वि. वीरजिन प्रसादात्. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीर जिणेसर वंदिने; अंति: नै द्यो सुख दोलत दीह, ढाल-६. ३. पे. नाम. अवंतीसुकुमाल चौपई, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: आदिदेव आदै नमी मुनि; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३. ४८०३५. (+) सप्तभंगी पंचविंशतिका सह अर्थव प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, ३४४४९). १. पे. नाम. सप्तभंजिका स्वरूप कथन पंचविंशतिका सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. सप्तभंगी पंचविंशतिका, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: श्रीजिनआगम प्रणमि; अंति: भीमराज० जीव हितकाज, गाथा-२६. सप्तभंगी पंचविंशतिका-अर्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्यातअस्ति१ इकु भेद; अंति: (-), (वि. अंतिम गाथा का अर्थ नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. नवकार फल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवकार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: घणघायकम्ममुक्का; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, गाथा-२५. ३. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकविधि, जै.क. धनपाल, प्रा., पद्य, आदि: जत्थ पुरे जिणभवणं; अंति: पमाओ होइ कायव्वो, गाथा-२२. ४८०३६. सील सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, ११४३०). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढउ तुहणे सयले, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४८०३७. साधुगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११,१२४३८). साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवि करूं; अंति: अविचल पदवी तेह, गाथा-१६. ४८०३९. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४४७). १.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: गुण कीरत बहु पावै, गाथा-१०. २. पे. नाम. नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६२ www.kobatirth.org उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया, अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुंआरी अंति: मनोरथ फलीया, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि : उग्रसेनराय मंडप वनाय, अंति: ऋषि जयसंघ कहीयां, गाथा - १५. ५. पे नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सखी संदेसो श्रीनेमजी, अंति: जयसिंघ प्रभुसे पेख, गाथा - ५, (वि. कर्त्ता नाम वाला पाठ खंडित है.) ४८०४० (+) इग्यारस सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१, दे. (२४.५x२२.५, ११X३२). ४८०४१. स्त्री विषे सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४ ११, १०x३१). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पूछे वीरने सुणो, अंतिः सुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा - १५. कर्पूर चक्र, प्रा., पद्य, आदिः पणमिव पयारवंदे तिलुक, अंतिः महम्धं महग्घ परं, गाथा- ३०. कर्पूर चक्र - यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). नारी सज्झाय, मु. नीतिविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जुओ जुओ चरित्र नारी; अंति: भाखे नीतीनो बाल रे, गाथा - १०. ४८०४२. कर्पूर चक्र सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. राजविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. जैवे. (२३.५x१०.५). ४८०४३. श्रावकनी करणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२x११.५, १०X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावककरणी सझाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अंतिः जिनहर्ष० हरणी छे एह, जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिणेसर; अंति: नीलवरण विख्यात रे, गाथा- ९. गाथा - २२. ४८०४५. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., ( २४१२, १३x४१-४३). १. पे. नाम महिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, अपूर्ण. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. יי मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि सुणि जिनवर चोवीसमा अंति: (-) (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ४८०४६. श्रावक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४१२, १३X३०). वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा- ५०. ४८०४७. मोहनीय कर्मबंध स्थान व हली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२४.५x११, १९३७). " १. पे. नाम. मोहनीय स्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण. ३० बोल- महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस प्राणिने पाणी; अंति: ते माहामोहकर्म बांधे. २. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मु. न्यायउदय, मा.गु., पद्य, आदि नवरी राजग्राही दीपती, अंतिः न्यायउदय सुखकार रे, गाथा-८. ४८०४८. ज्ञानपंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४४१०, ११x४२). ज्ञानपंचमी पर्व स्तवन, मु. राजरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: सारदमाता चरण नमीनई; अंति: राजरत्न० संघ शिवंकरो, गाथा- १४. For Private and Personal Use Only ४८०४९. (+) तीर्थ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४x११.५, ११४३५). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः णमतां चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ! Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६३ ४८०५०. (+) जीव विचार, संपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मुढलाग्राम, प्रले. मु. लिखमीचंद; पठ. मु. चतुरभुज (गुरु मु. लिखमीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४९.५, १०४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ४८०५१. (१) भरहेसर सझाय, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. ज्ञानरत्न; पठ. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२७). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ४८०५२. (#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. कुलपे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १३४२५). १. पे. नाम. पंचमा आरानी तथा छठ्ठा आरानी सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सुणो; अंति: करी भाष्यो वयण रसाल, गाथा-२१. २.पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेश न लागे अभव्यने; अंति: उतमसंग निदान रे, गाथा-७. ४८०५३. (-) नेमिनाथ महिना द्वादश, संपूर्ण, वि. १७३२, फाल्गुन शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लिखावट से प्रत वस्तुतः १९वी की लगती है. प्रत सं.१७३२ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ११४३३). नेमराजिमति बारहमासा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नेम नमी कर; अंति: अबोला नेमजी जनमन, गाथा-१५. ४८०५४. सझाय, स्तुति व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४४३). १.पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा-१६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १अपर श्लोक २ किञ्चित् अपूर्ण तक है, पत्र १आ पर वर्णमाला है पुनः १अका अवशेष पाठ श्लोक २ से अंत तक लिखकर पूरा किया गया है. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: ल व श ष स ह ळ क्ष. ४८०५५. सिखामण सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. परनारीत्याग सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छु मोरा; अंति: अलगा रहेजो आपो रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. सीखामण स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. मनोनुशासन सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मन वांकडलु आण न माने; अंति: प्रीतवि०जगत वखाणे रे. गाथा-६. ४८०५६. सनत्कुमार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२८). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाए लागु; अंति: देवलोके संभाली, गाथा-१६. ४८०५७. (+) शारदा छंद, संपूर्ण, वि. १७८१, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वलादरग्राम, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३६). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होउसया संघकल्लाणम्, गाथा-४४. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८०५८.(+) पचखाणविध व रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. तिलकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १३४२६). १.पे. नाम. पचखाणविध स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २. पे. नाम. रोहीणीतपस्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: हिव सकल मन आसा फली, ढाल-४, गाथा-२६. ४८०५९. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १६४४१). १. पे. नाम. विणजारा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. वणजारा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारारे भाई देखी; अंति: समयसंदर० विणजारा रे, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिना है.) २.पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिजीने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. नमीराज सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथलानयरीनो धण; अंति: जी हो पामीजे भवपार, गाथा-७. ४८०६०. चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५२, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. साकर जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४३४). चंद्रप्रभजिन स्तवन-रूपातीतगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुंही साहिबारे मन; अंति: मानविजय० सरिखाई थाय, गाथा-९. ४८०६२. (+) आदीश्वर स्तवन चतुर्विंशतिदंडक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४४). आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय; अंति: धर्मसुं० सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६.. ४८०६४. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४१०.५, १०x२८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ तक लिखा है.) ४८०६५. (+) कपासीया मोतीरास, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. निधानविजय गणि; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). ___ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: सीस वहो नित आण, ढाल-६, गाथा-९५. ४८०६६. शनि कथा व नववाड सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, ९४२७). १.पे. नाम. शनि कथा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा ४० से है.) २. पे. नाम. नव वाड सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८०६७. चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४१२, १७४३५). For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org गाथा - १०. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लील वसत पाटवी राजे अंतिः भवसागर दीजो त्यारी, गाथा- ७. " ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आदनाथ; अंति: रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन- २५, गाथा - २४. ४८०६८ ) परमेष्टी वज्रपंजर कवच, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२३.५४१०.५, १०x३३). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक- ८. ४८०६९. (-) । सझाय, स्तवन व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२४.५४११.५, १४x२९). १. पे. नाम. मूरख जीव सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय मूर्खप्रबोधगर्भित, रा., पद्य, आदि: सरसती सावणी हु विनवु, अंतिः प्रभव अव जाल रे, ४८०७०. बोल संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., ( २४.५X११.५, १६X३५). १. पे नाम, नवे सिखावण बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण ९० धर्मोपदेश बोल, मा.गु., गद्य, आदि पहली सिवण जीवदया मैं अंतिः का सुख अधिका जाणइ. २. पे. नाम. अठारह सिखावण बोल, पृ. २अ २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ धर्मोपदेश बोल, मा.गु., गद्य, आदि आउसग करता पचखाण ऊपर, अंतिः गिलानी की बीयाबच करई. ३. पे. नाम. परनारीसंग परिहार पद, प्र. २आ, संपूर्ण. परनारीसंग परिणाम पद, पुहिं., पद्य, आदिः परनारी संग जाय संक, अंतिः विषय दूर छंड रे, पद- १. ४८०७१. स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, जै, (२३.५x११, १४४४९). १. पे. नाम. सीतामोचनविषये रावण प्रति मंदोदरी हितवाक्य स्वाध्याय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीता आणी रावणि वात; अंति: धनहर्ष० आसीस ते मुझ, ४६५ गाथा - २१. २. पे. नाम. आदिनाथजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु, पद्य, आदि जिन जीम जाणे रे ते अंतिः गुणसा० दीठे आणंद रली, , गाथा - १६. ४८०७२. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१ श्रावण कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. कूपिकाग्राम, प्रले. मु. वेणीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११, ११४४२). "" १. पे नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुमारी; अंति: मनोरथ फलीया, For Private and Personal Use Only गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजल गीत, पृ. ९अ. संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: जिनहर्ष पयंपे हो, गाथा-८. ३. पे. नाम, नेमिनाथ गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण नेमराजमति बारहमासा, मु. दानविनय, मा.गु., पद्य, आदि आसाढ़े पन उड्यो निसि अंतिः दानविनय० जगीस ला हो, गाथा- १५. ४८०७३. (+) तेत्रीस आशातना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १६X३४). गुरुआशातना परिहार स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि गोयम गणहर गुण भंडार, अंतिः खामु प्रणमी गुरु पाय, गाथा-२१. Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८०७४. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४९.५, १०x४१). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१. २. पे. नाम. २४जिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारअ देवहरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: वरकेवलदसणनाणधरा; अंति: विगणंतु अणंतदहसगुणा, गाथा-१. ४. पे. नाम. चंद्राप्रभुजी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: इम सासन सुरि सुह झाण, गाथा-४. ५. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. ४८०७५. (+) मुनिमालिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १२४४३). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: फलै सदा सदा कल्याण, गाथा-३६. ४८०७७. (+) स्तोत्र संग्रह, सवैयो वषट्लेश्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, पठ. श्राव. बालचंद भावचारित्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम. प्रात मंगलीक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, गाथा-९. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: (१)वृद्धि जयं कुरु, (२)सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी सवैयो, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो; अंति: खेम घमंड फते री, गाथा-१. ४. पे. नाम. षट् लेश्या लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आर्त्तरौद्र सदाक्रोध; अंति: भणीयं अथं जिणं देहि, गाथा-८. ५. पे. नाम. शंखेश्वर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. ४८०७९. (+) जिनकुशलसूरी मंत्र व अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. __ सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पद्म कल्याण विद्या; अंति: स्याद्भोक्ता वक्ता च, श्लोक-९. ४८०८१. (#) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १५४३८). १. पे. नाम. मूरख गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रबोधगर्भित, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: चबकी कोथली नरग की; अंति: लावण्य० नर होइ चिराई, गाथा-१३. २. पे. नाम. दीवालीपर्व गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६७ दीपावलीपर्वगीत, मु. हंससुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सकलतीरथ मांहि जिम वड; अंति: इम कहइ सुंदरहंसं, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सुखडी, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: करंड भर्या छइ कोघला; अंति: काढउ श्राविका सुखडी, गाथा-५. ४८०८२. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३४४१०.५, १७X४३). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाई; अंति: समेसुंदनित जैजै करो, ढाल-३, गाथा-२०. ४८०८३. (+#) पद्मावती स्तोत्र व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१३४३५-३७). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२९, (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. अंबामाता स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: आनंदानंदनीरूपे सदा; अंति: संपदः स्यु निरापदः, श्लोक-४. ४८०८४. (+#) विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४११.५, ११४२६). बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामत रमवा में गई थी; अंति: जिनहर्ष० कीयो अवतार, गाथा-८. ४८०८५. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, पौषध सूत्र व छम्मासी तप चिंतण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. हंसा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४५५). १. पे. नाम. प्रत्याखानानि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वोसिरामि३ देशाव०. २. पे. नाम. पोसह पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. छम्मासी तपचिंतण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव कौशांबीनगरीइ; अंति: माहि धरी काउसग पारीइ. ४८०८९. (4) कर्मनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ११४२७). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१७. ४८०९०. मातृकापाठ शुकनावली व यंत्रमहिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १६४३९). १. पे. नाम. मातृका पाठ शुकनावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मातृकापाठ शुकनावली ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ चिलि चिलि मिल मिल; अंति: घरने विषे मंगलीक थाए, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. महाप्रभाव मंत्रकल्प, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. घंटाकर्णयंत्र महिमा, मा.गु., गद्य, आदि: दिन प्रत्ये वार ३ तथ; अंति: दोष शाकिन्यादि टलइ. ४८०९१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं शोभागारं; अंति: तारा भूत्यै स्तात्, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: ऋद्धिवृद्धि वैदोष, श्लोक-४. ४८०९२.(+) शीयल नववाड सझाय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसर नमु; अंति: धर्महस० मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५९. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८०९३. वृद्धि रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२४४१०, १७४४७). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाइ पंच; अंति: सालिभद्र०टलय कलेस तो, गाथा-६३. ४८०९४. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १५४२९). १. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४, (वि. विधि सहित.) २. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण पून्ये पाम; अंति: संतोषी गुण गाय जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पर्युषण पुण्ये; अंति: शुभविजयशिष्य०वधाइ जी, गाथा-४. ४८०९५. २४ जिन कल्याणक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३). २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५; अंति: गणणू सहस्र बिबि गणीइ. ४८०९६. आठम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०, दे., (२४.५४११, १०४३४). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा; अंति: नय० आनंद अति घणो, ढाल-२, गाथा-२०. ४८०९७. सुगुरुपचवीसी, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१२.५, १३४३१). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा-२५. ४८०९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १०४३७). १. पे. नाम. शंखेसरा पार्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी प्रणमु तोरारे; अंति: साहिबा पूरा छे आस, गाथा-८. २. पे. नाम. सेजाजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो बोले पंथीडा; अंति: जिनचंद०मुगतनो राज रे, गाथा-११. ४८१०१. (+) वंदितु सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४२५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सवसिद्धे; अंति: वंदामि जिण चउवीसं, गाथा-५०. ४८१०२. (+) २४ दंडक छद, ३४ अतिशय नाम व ३५ वाणीगुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. दंडक छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: भारती भारती, श्लोक-४. २. पे. नाम. तीर्थंकर अतिशय नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय नाम, सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं चतुरः; अंति: चतुस्त्रिंशच्चमीलिता. ३. पे. नाम. अभिधानचिंतामणौ पंचत्रिशत् वाग्गुणाः, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्व१मौदात्य२; अंति: त्रिंशच्चवाग्गुणाः. ४८१०३. ओलीनो स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वलाद, प्रले. मु. खुशालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ प्रसादात्, जैदे., (२४४११.५, ३४३३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धिचक्कं नमामि. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ ४६९ नवपद पूजा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे ओलीनो उजमणि करे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण का टबार्थ लिखा है.) ४८१०४. गोडी पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १५४४४). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणि ब्रह्मावादिनी; अंति: तस घर मंगल जय करो, ढाल-५, गाथा-५५, (वि. कलश बाद में लिखा गया है.) ४८१०५. देवसिय आलोचणा, मार्ग आगमणं व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १४४३६). १. पे. नाम. देवसिय आलोयणा, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. मार्ग आगमणा, पृ. १आ, संपूर्ण.. मारग आगमणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मारग जाता आवता; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: चचचल चमल चपल अति; अंति: कर अयं करइयुं करते, श्लोक-१. ४८१०६. सेंतालीस दोष गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, ३४३०). आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: यतिने काजे रांधीने; अंति: ते संजना कह्या छे. ४८१०७. भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रामपूरा, प्रले. मु. जीवा ऋषि; पठ. सा. लिखमी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३५). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनई नमतां; अंति: तेहथी वेगली जाय. ४८१०८. उपदेस कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, ६x४१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोभिया मनुष्य अर्थनइ; अंति: भव्या सुखं लभते. ४८११०. (#) स्तवन संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, २३-३४४१८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मन में वशी रह्यो; अंति: कांतिविमल गुण गाय, गाथा-८. २. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे अहनीशि; अंति: संघ विघन निवारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम संभालो हो निज; अंति: रंग गाया म्हारा लाल, गाथा-७. ४८१११. (#) मंत्र स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, ३०x१८). १.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो सरस्वत्या; अंति: गुणयै बुद्धि वधै सही. २. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: डीजी समयसुंदर कहे एम, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालिने पीलि वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. ४. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ता जोगी चित ल्याउं; अंति: काल न आवुरे, गाथा-५. ४८११२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३४). १.पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पंच आंगुलि वेढ बनाया; अंति: सफल फले फल मोटि, गाथा-७. २.पे. नाम. चतु प्रत्येकबुद्ध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहु दिसथी च्यारे; अंति: समयसुंदर कहे०परसिद्ध, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: माहरो बालूडो सन्यासी; अंति: सीझे काज समासी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोने माहरो कब मलसे; अंति: आनंदघन नविय लगे चेलू, गाथा-२. ४८११३. पद व थुई संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११, ११४३२). १.पे. नाम. गोडीजी पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगट थया भल पासजी; अंति: हरिदास०अवचल राखो नाम, गाथा-६. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, आदि: अरज सुणेज्यौ अरज; अंति: श्रीजिनचंद० तारोराज, गाथा-५. ३. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पं. अजबसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: अजबसुंदर० आनंदरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमिजिन थुई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीयै, गाथा-४. ५. पे. नाम. समवसरण थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: लीला पामे जेत सुनाणी, गाथा-४. ४८११४. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, १७४३०). पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: सारद प्रणमी पाये सकल; अंति: ब्रधमान० संपदा करी, गाथा-४३. ४८११५. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १२४३०). १. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरिहंत छो; अति: कहइ परमानंद०एहेवारे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. हर्षसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आठ भव केरो नाहलोरे; अंति: हर्षसागर० प्रभावरे, गाथा-५. ४८११६. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १८४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहली वादु धुर अरहत; अंति: ते जीव लहसी भवनो पार, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मुगतपुरी सुख पावा हो; अंति: जिनसमुद्र० हा तो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरइ एतौ चाहियै नित; अंति: आनंदघन० न ध्यावं, गाथा-३. ४८११७. सज्झाय व स्तुति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १६४३६). For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण, वि. १९०६, ज्येष्ठ कृष्णा, ९, ले. स्थल. सोजत, प्रले. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. पुण्यविजय, मा.गु, पद्य, आदिः काची रे काया माया अंतिः पद्मविजय० निज देह रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक स्तुति सह बालावबोध, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले. स्थल. बिनातटनगर, प्रले. पं. प्रतापविजय, पठ. मु. रूपचंद्र (गुरु पं. प्रतापविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति भावप्रभसूरि० भोगीजी (पू. वि. मात्र चौथा पद है.) औपदेशिक स्तुति- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धपद भोगी थाई छै, (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से ४ तक का बालावबोध है.) ४८११९. (#) कायानी सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, ७x४०) ४८९२१. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, वे. (२३.५x१०.५, १५-१६४३२)१. पे. नाम. श्रावक २१ गुण स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदिः नालियो न माने रे कोई, अंतिः पंडित अर्थ विचार, गाथा- ११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि अनंती, अंति: होय ते विचारी जोजो.. ४८१२०. नवकार छंद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, वे. (२४.५४१०.५, १७४६४). " नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१३, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा ५ तक नहीं है.) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कईयै मिलसै रे श्रावक, अंति: सफल जनम तिण लीधो जी. गाथा २१. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाण स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविधि प्रह उठी, अंति: आगम अरथ प्रमाण, गाथा - ८. ४७१ ३. पे. नाम. दान स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि दान इक मन देह जीवडे, अंतिः कहे जयंतीदास रे, गाथा - १२. ४८१२३. (+) गति आगति द्वार व कागद प्रसस्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५x११.५, १६x४७). १. पे. नाम. चतुर्विंशति गति अगति द्वार विचार, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. गति आगति द्वार विचार - २४ दंडके, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीदंड २ गति; अंति: १ जोइसिय १ वैमाण १. २. पे. नाम. कागद प्रशस्ति, पृ. २आ, संपूर्ण. पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: कररी पिण मालम करसी. ४८१२४. अठावीस लबधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२४४१०.५, १८४४४). "" आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर, अंतिः धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल -३, गाथा - २५. ४८१२५. राजविजयसूरि गुण गहुँली, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२४४११.५, १०x२५). राजविजयसूरि गुण गेहुली. मु. हर्षचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९१० आदिः सरसतीने चरणे लागू; अंति: हरख धरी० राजविजय, ढाल - २, गाथा - २१. " ४८१२६. वचराग बावनी व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०.५, २६४४५)१. पे. नाम. वयराग बावनी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समझि समझिरे भोला, अंति: परभव सुख अपार जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५३. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, अन्य. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक दोहा, आ. कृष्णसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हेमरकी तो हुं सजाण; अंतिः विण बूडो सब जाणवो, दोहा-२. ४८१२७. (+) धनराज गुरुगुण रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३५-४०). धनराजगुरु गुण रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी, अंति: संघ सहुनै जय जयकार, गाथा-४६. ४८१२८. बाद व छप्पय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५x१०.५, १२४५१). १. पे. नाम, कलकाटक, प्र. ९अ-१ आ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं अंतिः पादेन विस्फालितः, श्लोक १३. २. पे. नाम. महावीरजिन छप्पय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नाथ, पुहिं., पद्य, आदि: हेलि दुठ सुदरसण हेलि; अंति: नाथ कहै दुहजल तरण, पद- १. ४८१२९. श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१x११.५, ११x२१). श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः (-), " (पू.वि. 'ज्ञानाचार' अपूर्ण तक है.) ४८१३१. दस दृष्टांत, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४ वे. (२३.५x१०.५, १२x४२). " मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रथम चूलक भोजन खीर, (२) प्रथम मनुष्यपणुं जे; अंतिः सुकृतीभूयस्तमाप्नोति. ४८१३२. दंडकविचार षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८८५, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल. वणारस, प्रले. मु. कुसलसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५X११, १०X३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा ४०. ४८१३३. स्तंभनक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. दो-दो गाथाओं को एक गाथा बनाकर गाथा सं. लिखी गई है., जैदे., ( २४.५x९.५, १२X३९). पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथह चउसालो, गाथा- ८. ४८१३४. श्रावक अतीचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२३.५x१०.५, ११४३६). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: जो कोवि हु पाणगणो; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ४८१३५. (#) जीवविचारसूत्र प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. साडैरानगर, प्र. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५, १२X३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवण पश्वं वीरं नमिउण अंतिः रुदाओ " " सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ । ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (नाम निक्षेप स्थापना), ४७५५६-१ ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ४३६०४-२(+), ४३८५८-३(+#) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ४७४४५-३ ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), ४३७६३-१(#) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ४७८३१(+$) ७ मांडला गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (सुत्ते१ अत्थे२ भोयण३), ४७९६४-११(+) ७ समुद्घात, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (वेयण कसाय मरणे), ४३९७२-६ (२)७ समुद्धात-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वेदनासमुद्धात), ४३९७२-६ ८ कर्मस्थिति विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दंसणावरणे वेयणि), ४४८२८-२(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ४४०९३, ४४५४७, ४७२५१, ४५३२०(#), ४५००७(5) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ४६६१७-१ ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं काश्य), ४४१७२-४(+), ४६८०८-१ १० क्षेत्र गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (जिणभुवणबिंब पुत्थय), ४७९६४-१७(+) (२) १० क्षेत्र गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जिनभुवन१ जिननो बिंब२), ४७९६४-१७(+) ११ अंग १२ उपांग नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ११ अंगनामानी १आचार), ४७३३४-२(+), ४६२७५-३ १२ भाव विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (तनुपतिस्तनुगोमदनानुग), ४७१८२-१ १२ व्रत उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बारव्रतना पोसह वहि), ४३५७१-२(+#) १३ काठिया तपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (आलस काठियो निवारणाय), ४३९८२-२ १४ पूर्वनाम, प्रा., गद्य, मूपू., (उपायं च मगोणिय), ४६३१४-२(+) । १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ४३४६५-१(#) १८ पापस्थानक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (पाणीयवायमलि), ४७९६४-१६(+) (२) १८ पापस्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्राणातिपात१ वलीजूठ२), ४७९६४-१६(+) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ४३९७१, ४५७५३(#) २० स्थानकतपगाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ४४०८५-२(+), ४५९५८-३, ४७९५८-१ (२) २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), ४७९५८-१ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ४४१४९(+), ४७७९७-३(+), ४४८९१, ४७१७५-२, ४४०७८(#) २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ४४१२१ (१) २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, मूपू., (कारतीक वदि ५ श्रीसंभ), ४७७९७-१(+) २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जक्खा गोमुहमहजक्ख), ४३५९२-१(2) (२) २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यक्षा भक्तिर्दक्षा), ४३५९२-१(#) २४ जिन विवरण-पुराणसम्मत, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीजिनशासन सर्वां), ४४६५७(+) २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनहर्षप्रणित भव्य), ४४५३७-१ २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ४४६३३-२, ४७६४२-१ २४ जिन स्तवन, आ. भुवनहितसूरि, सं., गा. २५, पद्य, मूपू., (युगादौ जगदुद्धर्तु, ४५५०५(+#) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ २४ जिन स्तवन, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (पढमो नरेसराणं पढमो), ४७२३७-२(+) २४ जिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहेसर अजियजिण), ४६६९४ २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर), ४३८१५(+#), ४५१६७-१(+) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेवमहं जिननायक), ४७५५८ २४ जिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पणमह मरुदेविजाय), ४४८९८-३(+) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ४४८८१-३(+#), ४८०७४-२(+), ४४८६५-१० २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ४४९०३-३(+$) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ४७४७४ २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ४४९१३ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ४४६२९-२(+), ४४४७६-३, ४४७५७, ४५३०२, ४५६६४-३, ४३५५१-२(#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (रुचितरुचिमहामणि), ४८१०२-१(+) २४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ४४५८३-३(+) २८ लब्धि यंत्र, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (आमोसही लब्धि ते हाथ), ४४६०१-२(+) २८ लब्धि स्तवन, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जा जस्स तुह पसाया), ४३७५५-२(+#) ३२ लक्षण गाथा, सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रमाणं१ सुकृतं२ सील), ४६३१४-१(+) ३४ अतिशय नाम, सं., गद्य, श्वे., (तत्र प्रथमं चतुरः), ४८१०२-२(+) ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, मूपू., (संस्कारवत्वश्मौदात्य२), ४८१०२-३(4) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ४४८३९-२ १२० कल्याणक विचार, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (एगो वासो१ दु आंविलाइ), ४७७९७-४(+) ५६३ जीवभेद श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (प्रोक्ता नैरयिका), ४७९६४-१०(+) (२) ५६३ जीवभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (कह्या नारकीना १४ भेद), ४७९६४-१०(+) अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ४३६९८(+#) (२) अंगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभगामिनं अनिमिष), ४३६९८(+#) अंतिम आराधना विधि, प्रा., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावहि पडकमा), ४४३४१-२ अंबामाता स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानंदनीरूपे सदा), ४८०८३-२(+#) अंबिकादेवी कथा, सं., श्लो. २९, पद्य, श्वे., (श्रीवीतराग समरणैकतान), ४७६०१ अकडमचक्र, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (द्वादशरेखाचक्रं च), ४४२४४-२(+) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), ४३५११(+#) अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ४७८५०-१(+), ४४७९६, ४५१८५, ४८०६४(६) (२) अजितशांति स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, मप., (जितमभिभूतं सर्वमिह), ४७८५०-१(+) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ४७८७९-५ अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ४७८५०-२(+), ४७८७९-४ अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ४४१०२-१ अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ४७०६५(६) अनंतजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलधौतसहासन मेरवस्तव), ४६२२७-२(5) अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, म्पू., (वीरवरस्स भगवउ वोलिय), ४३५९२-२(#) (२) अनागत २४ जिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरवरस्स० अत्र षष्ठी), ४३५९२-२(#) For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७५ अनुभवसिद्ध मंत्रद्वात्रिंशिका, आ. भद्रगुप्तसूरि, सं., अधि. ५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ४४२४४-१(+) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन.. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गा. १, प+ग., मूपू., (उरग१ गिरीर जलण३ सागर), ४४२७६ (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा कीटीका, सं., गद्य, मूपू., (अत्राणुयोगद्वारि साम), ४४२७६ (२) त्रिविध आगम आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आगमे तिविहे पण्णते), ४७७३३(+#) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (अनंतविज्ञानमतीत), ४७९०२(+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), प्रतहीन. (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-चयन, सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (अर्हन् जिनः पारगतः), ४५२३८(+) अभिनंदनजिन अष्टप्रकारी पूजा, ग. देवेंद्रकीर्ति, प्रा.,सं., श्लो. १२, पद्य, दि., (विमलतीर्थ भवोदकधारया), ४५८२१ अर्हत्सहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नमो त्रिलोकनाथाय), ४३७३२(+#) अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, वा. देवविजय, सं., शत. १०, वि. १६५८, पद्य, मूपू., (प्रणम्य मगसीपार्श्व), ४३५३२(#$) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण), ४४७८९(६) अष्टप्रकारी पूजा, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (स्वर्वासिवासे सुतरां), ४६४०९-१ अष्टमीतिथि स्तुति, पंन्या. मुक्तिविमल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनेश्वरेण), ४५८६४ अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वासवस्तुतपदोमहामहा), ४४८९८-२(+) अष्टोत्तरस्नात्र मंत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो अर्हत् परमेश्व), ४४३३५-३ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ते माहिली शांतिकविध), ४४०८४, ४४४४० असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडति), ४४२७४-३() आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ४५२९०-२ आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ४७५१३-५, ४३८८४-३(#$) आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), प्रतहीन. (२) आचारदिनकर-संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ अहँ कुलं वो), ४५८६१ आचार्य अतिशय वर्णन, सं., गद्य, मूपू., (पूर्वांगैश्चतुर्भि), ४६०४१-२ आत्मानुशासन-लघु, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (नम्रामराधिपतिमौलि), ४३७७७-१(+#) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्युगादिदेवाय), ४३५४४-२ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (वंदे देवाधिदेवं तं), ४६३३६-५ आदिजिनबिंब स्थापना भवग्रहमंत्र गर्भित, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आदित्य पद्मप्रभ), ४६३३९ आदिजिन स्तव, आ. भावदेवसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (जय त्रिभुवनाधीश), ४३५१२-२ आदिजिन स्तवन, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन जनं तात), ४४८३७-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ४५९०२(+), ४६२६० (२) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं आदिजिनं वंदे हु), ४५९०२(+), ४६२६० आदिजिन स्तुति, ऋषभ, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमत भव्य जिनाजिन), ४६७९३ आदिजिन स्तुति, मु. पुण्यसागर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भज नाभिभवं विबुध), ४३८४२ आदिजिन स्तुति, मु. राजहंस, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (यस्यांसयोः कनकपंकज), ४७९६३-२(-) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ आदिजिन स्तुति, आ. विजयदेवसूरि, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (जिनवृषभ संघपूज्य), ४४२९८-३(-) आदिजिन स्तुति, मु.शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ४४९३४(+), ४७१६७-१(+), ४७४७२(#) आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेगनरिंदविंद), ४५९८२-२, ४६६२४-४ आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (उद्यत्सारं शोभागार), ४८०९१-१ आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ४५३३७-२, ४६०६३, ४४९४५-१(4) आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथं नतनाकि), ४५००६-२, ४५९८२-१ आदिजिनादिभवसंख्यादि स्तवन, सं., गा.८, पद्य, मूपू., (आदौ सार्धपतिर्धाना), ४४१९८-२(+) आदित्य स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो.८, पद्य, श्वे., (पद्मप्रभुजिनाधीश), ४६३२६-२ आदित्य स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (आदित्यः प्रथमं नाम), ४५४८९-५ आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्मु १ देसिय २), ४८१०६ (२) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (यतिने काजे रांधीने), ४८१०६ आनंद कामदेव दृष्टांत-जलग्रहण विषये, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (आणंद कामदेवा पमुहा), ४७९६४-५(+) (२) आनंद कामदेव दृष्टांत-जलग्रहण विषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रावक आणंद कामदेव), ४७९६४-५(+) आनंदलहरी स्तोत्र, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (चिदानंदं नत्वा विशद), ४३६८७(+#) आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानाचार पोथी पाटी), ४४२७३(६) आलोचना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (एगिंदियाणंज कहवी), ४४३४१-१ आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ४८१०५-१ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ८१, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ४४५९९-२(+S) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), प्रतहीन. (३) वांदणा विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ४४४३५-३(+) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताण), ४६२१५-२ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ४३९०९-२(+#), ४४२८५, ४४५३७-२, ४४९६२-३, ४५२४५-५, ४५७६६, ४६९५७-१, ४७४४५-२ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत अनंत), ४४२८५ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहेता समक्ष कुसल), ४६९५७-१ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहीइ समत्तं न), ४४९६२-३ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कुसल तथा मंगलिक), ४५७६६ (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ४४१७१-२(+), ४४७३९-३(+), ४४८३१-१, ४७८५१-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल कुशलदायक अरिहंत), ४५०५८-१(+), ४४८५६-२ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ४३५२२(+#) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (गुरु सन्मुख रही विनय), ४५१६४, ४८०१४ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ४३८५८-६(+#), ४६६४०-१, ४६७८४-२, ४७७११-२ (२) गुरुसुखशाता पृच्छा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७७ (३) गुरुसुखशाता पृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इच्छामि वांछामि), ४८००२-३ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ४५२५७(#) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाण), ४३५०२-२(+) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ४७८५७(#$) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ४५४७३-३(#) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ४७९००(+), ४४८३१-२, ४८०८५-२ (४) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पहिला पोषध), ४७९००(+) (४) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करुं छु हे भगवान), ४७९००(+) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ४७२१६-१(+), ४३९८८-२, ४४११७, ४६२५९, ४६७८४-१,४७४६७ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ४४४५४-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (मुहपत्तिवंदणय), ४३६३६(+#), ४४७३९-४(+$), ४७८४७-३, ४७३८२-२(#), ४४८२४(5) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ४७३८२-२(#) (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ४३५४३-२(+), ४४१९४-२ (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ४३४७९-२(+#), ४३५३३-२(+), ४५४६४-३, ४७७७९-१(६) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ४५२५४-१(+), ४४८०२ (२) पौषध विधि* संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिई), ४३९००-१(+), ४६६४९ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ४४४३९-१(+), ४६७१९-२(#$) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ४३७६९(+#), ४४८३१-४ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ४४५४२-२, ४४५६३ (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ४३८६७-२(#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ४४८६०-१, ४३९४३-१(#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), ४३५१२-१, ४३८६७-१(#), ४७३५४(२) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पांच प्रमाद त्यजी), ४४०५३-१(-2) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), ४७६८१-२, ४७९३७-३ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), ४५११९-१ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ४४६९०, ४५२२५(#) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करि पडिकमणोजी भाव), ४६३६१-१(+-) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४३९३४-१(+#), ४४४७१-१, ४४९८४ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं करेमि), ४६५६२($) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनै माहरो), ४६५६२() (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ४५८९६ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानु), ४५८९६(१) (२) प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ४४४३९-४(+) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org י ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, भूपू. (उगए सूरे नमुक्कार), ४३५३१-३(००), ४४३५४(१), ४४७३९-१(+), ४५१६९(+), ४६११६ (+), ४४७८२, ४४८३१-७, ४५११७, ४५२९१, ४६०७१-२, ४६५९८ ४६८२९, ४७७३९, ४७८२८, ४७८३४-१, ४७८९२-३, ४७९३२-२, ४७९८२-१, ४८०८५-१, ४४२३८-२ (# ), ४६३९७-३(#), ४७९३६-१(#), ४५५०७ ($), ४७७६६ ($) (३) प्रत्याख्यानसूत्र -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ४४३५४(+), ४७९३६-२(#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यना उदय हूंती), ४७९८२-१ (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ४४७३९-२ (+), ४७८३४-२ (३) यंत्र संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ४७९८२-२ (२) प्रातः प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., गद्य, श्वे., (मुहिगुछू१ तेण दोरो२), ४७९६४-८(+) (३) प्रातः प्रतिलेखन विधि -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (मुहपत्ति गुच्छो१), ४७९६४-८(+) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (विशाललोचनदल), ४७४३५-२ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ४३६६६-३ (+#), ४४५४२-१, ४७५७४-१ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. भानुमेरुगणि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय पणमेव), ४४३३८ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. "" " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) भरहेसर सज्झाच, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ४७१०९(०) ४४०१६, ४४१५७, ४४२४२, ! ४५३०७, ४६०७१-१, ४७९८०, ४८०३६, ४४५६८-३ (#), ४७८९७(#), ४७९७५(#), ४८०५१ (#) (४) भरहेसर सज्झाय -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवपुत्र भरत), ४४२४२ (२) वंदित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., वंदितु सव्वसिद्धे), ४४४४३ (+), ४४४४६ (०६), ४७८४९(+), ४८१०१(+), ४४३३२, ४७४८८, ४७५३८, ४८०४६, ४५९३६-२(१३), ४७२४०(३) (३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअवयजुत्तो जाव), ४४२३३-२, ४४८३१-३ (२) आवक प्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू, णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. , (३) पौषध सज्झाय - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ४७४५० (+), ४४२३० (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं), ४४०३२ (+), ४७७२५ ($) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (वे. मू. पू.), संबद्ध, प्रा., मा.गु. पा., म्पू, नमो अरिहं० सव्वसाहूण), प्रतहीन. (३) आवक देवसिक आलोयणासूत्र सपागच्छीय संबद्ध, गु., पद्य, म्पू, (सातलाख पृथ्वीकाय), ४७५७४-३ (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य म्पू, (नाणंमि दंसणंमि०), ४७८४७-१, ४४१९८६ (१६), ४७३६१-१(१) ४८१२९(३) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग, मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ४८१३४ (२) संध्या प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (तिन्निविहत्थी), ४७९६४-९(+) (३) संध्या प्रतिलेखन विधि-वार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (तीनवै हथनै च्यार), ४७९६४-९(+) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ४४३३७-१(+#), ४६५१०-२ (#) (३) संसारदावानल स्तुति - टीका, सं., गद्य, मूपू., (वीरं वर्द्धमानस्वामि), ४४३३७-१(+#) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., पग, मूपु. ( नमो अरिहंताणं नमो), ४४८१५-१(+), ४७८८२(१), ४५०३५-१ (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ४४१७१-१ (+), ४४८८१-१(+#), ४४१९३, ४४६९३-१, ४७२३३, ४७८४७-२ 1 (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. सू. २१, गद्य, भूपू (करेमि भंते ० चत्तारि०), ४४०८६ (००) ४४०८८(१), ४४४५११०), ४४९१५+१, ४३८७७, ४५४४६ For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, मृपू., (तित्थंकरे व तित्थे), ४५४२८(१) " (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ४५०३५-२, ४७८५१-२, ४४०६९-२(#) (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू.. (नाणम्मि दंसणम्मि० ), ४३५३१-१(+), ४३५४३-१(०), ४३६७५ (+४), ४३७४८-१००६), ४४६०४०), ४५१९३-१(०), ४५२११(*), ४४९९४-१, ४४४५४-१, ४४८३१८, ४७६८२. ४४६००-१(-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू. (नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपु (चउकसावपडिमलुरण), ४४४९४-३, ४४४१५-१०), ४३५३५-११-०१ ', (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (पालद्धी अधिरासण विसि), ४७९६४-३(+) (३) सामायिक ३२ दोष गाथा-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू ( पालखीइं न बेसीइं), ४७९६४-३(*) " ४७९ (२) सामायिक ग्रहण पारण विधि, संबद्ध, प्रा., गद्य, श्वे., (पजितन्न देसविरइस्स), ४७४५९ (+) (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम खमासमण देई), ४६७२०-२ + (२) सुमतिजिन स्तवन -प्रतिक्रमणविधिगभिंत, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., डा. ६, गा. २० वि. १६९०, पद्य, म्पू, (सुमति कर सुमति जिन), ४४२५० ११०), ४४४७२-२ इंद्रमाला परीधान विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू., (श्रीआदिदेवाय विश्व), ४४०६७(+) इंद्रियवाद स्थल, सं., गद्य, मूपू., (इंद्रियत्वं जातिर्वा), ४५८७४(१) इच्छामिठामि सूत्र, प्रा., गद्य, भूपू (ईच्छामि ठामि काउस्सग), ४७८९५-१(-) इरियावहि कुलक, प्रा. गा. ११, पद्य, मूपू., (दवा अडनउय सयं १९८ चउ), ४४९६५ (२) इरियावहि कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४४९६५ इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ४७९६४-१ (+) (२) इरियावही कुलक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (चौदह नारकी ४८ तीर्थच), ४७९६४-१ (+) इरियावही मिथ्यादुष्कृत विचार, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे. (प्रणम्य प्रतिमात), ४५२०९ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २००० प+ग, भूपू (संजोगाविष्यमुक्तस्स), प्रतहीन, " " (२) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. गा. ६२, पद्य, भूपू (चहऊण देवलोगाओ उवयन्न), ४७४०९(+), ४७९५० (२) उत्तराध्ययनसूत्र दशमाअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. करण, मा.गु., गा. ८. पद्य, म्पू. (समवसरण सिंहासने जी), ४७९४०-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र - विनवादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरीजी), ४५४२२, ४५८२८-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा. गु, गा. २८, पद्य, म्पू, (धुवक कही पांचसई), ४३६०९-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र -सज्झाय, संबद्ध, मु. सोममूर्ति, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद नमेवि), ४७५८९-११ (२) उत्तराध्ययनसूत्र -सज्झाय १ से ४ अध्ययन, संबद्ध, मु. कृपासौभाग्य, मा.गु., अध्य. ४, पद्य, मूपू., ( आणंदकारी इह परलोके), ४४३९१-५ For Private and Personal Use Only उत्सूत्रभाषी गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (अरिहंतासिद्धायरिया), ४७९६४-१९(+) (२) उत्सूत्रभाषी गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., ( अरिहंतदेवना१), ४७९६४-१९(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, भूपू (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ४४१०६ (६) + उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., ( उवएसरयणकोसं नासिअ ), ४३६६१ (+#), ४४२१९(+), ४४२२८(+), ४४४१७-१(+), ४७९२५ (+#), ४४८८६ (२) उपदेशरत्नमाला खालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू. श्रीमहावीर चडवीसमुं), ४४२१९ (+) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ४३६६१ (+#S), ४४२२८ (+), ४४४१७-१ (+$), ४४८८६ उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (प्रथम शुभदिवसे पोषध), ४७४७०-२(+) Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ उपवास निर्णय - आगम सम्मत, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (राया अठमि चउदसीस), ४४१०७(5) उसहर स्तोत्र गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू, ( उवस्सार पास पास ), ४६७३५ उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा १३ आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, भूपू (उवसग्गहरं पासं० ३) ४५९७२, ४३५५१-१(१) उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा २७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २७, पद्य, म्पू, ( उवसग्गहरं पासं००), ४३४९७-१ उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू (उवसमाहरं पासं पासं), ४४१०२-२, ४४३४८-२, " ४५२४२-४, ४६००५-१ ४६२७५-२, ४६८०८-६, ४७५१०, ४७८४२-१ (२) उवसग्गहर स्तोत्र -गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय), ४५३००-३, ४६५७८-३ उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मृपू (उवसग्गहरं पासं पासं०), ४३६८०-२, ४४५४२-३, ४५३३३ ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा. गा. ५०. वि. ११वी, पद्य, म्पू, (जवजंतुकम्पपायव चंदाय), ४७९५३- pa0) " ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, भूपू (आचंताक्षरसंलक्ष्य), ४३५६५ (+०), ४३५६८(+१), " ४३५७२(+#), ४३७९३ (+#), ४४०६६ (+), ४४९४० (+), ४६३२९ एकादशीयः किलमार्ग), ४४४६४-२ एकादशी तिथि स्तुति, सं. गा. ४, पद्य, मूपु. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं. लो. , "" २६ ई. ११वी, पद्य, दि. (एकीभावं गत इव मया), ४३७८६ (+) (२) एकीभाव स्तोत्र - अवचूरि. सं., पद्य, दि. (एकत्वमापन्न इव सह), ४३७८६ (+) " औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं. प्रा., मा.गु. गा. ९, पद्य, वे. ( काम वली सवही पुरहे), ४५७५२-२, ४७०१३-२, ४७५८४-२, " ४५७८१-१(#), ४७०३४-७(#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), ४५१६७-४ (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं. लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मी गजवाज), ४५०९९-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ६१, पद्य, वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ४३६३१-३ (+#), ४३९५४-२ (+), ४६६२२-४(+), ४५६५३-२, ४६६४२-३ ४५१७३-२५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा. सं. श्री. २६९, पद्य, जै. वै. महतामपि दानानां काले), ४४०२२-२, ४४५०१-२, ४४५२३-२, " "" " म्पू, (-), ४८०४२ " ४७७२६-२ औषधवैद्यक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, (अनार दाणा ट. ८०), ४४८४७-३, ४५५०२-२, ४६१७४-२, ४६५८८-४, ४७११७-२, ४७९५४-६, ४७३४५-२, ४७३९७-३, ४७७१०-४ ४७९७८-२, ४३९९८-३(४), ४५५१२-३(१), ४६६८९-९१०१, ४६९९९-३(०) औषध संग्रह * सं. गद्य, (--), ४६१३४-२, ४६२७५-५, ४६५५४-४, ४६८३८-२, ४७६१५-२, ४६२९०-३(०) ४६८५४-२(१) कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, भूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ४३७०४-२(+०) करणवेष्णवे ज्योतिषसंग्रह, सं., पद्य, (--). ४५००३-२ कर्पूर चक्र, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (पणमिय पयारवंदे तिलुक), ४८०४२ (२) कर्पूर चक्र-यंत्र, मा.गु., को. कर्मग्रंथ (१ से ४), आ. देवेंद्रसूरि प्रा. अ. ६, गा. ३९७, पद्य, मृपू. (सिरिवीरजिणं बंदिअ), प्रतहीन. " " (२) कर्मग्रंथ (१ से ४) - (मा.) बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४४७६४-१ ($) कलंकाष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्यं सकल), ४८१२८-१ , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), प्रतहीन. (२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा " मा.गु. गद्य, भूपू ( नमः श्रीवर्द्धमानाव), ४६१४२-१(१६) For Private and Personal Use Only (२) कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., ( पर्व पजुसण आवीया), ४३७३४-२ (२) कल्पसूत्र व्याख्यान, संबद्ध, सं., गद्य, म्पू, (श्रीअर्हत भगवंत उत), ४६२२६ (६) Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८१ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपु.. (कल्याणमंदिरमुदार), ४३६५१(+), ४३९४६), ४३९५४-१(+), ४३९५५-१(१०), ४४०५७-१(१), ४४२१२(+), ४४७०८(+), ४४९३९-१(+), ४७२९९-१(+), ४३८६९-१. ४७४७५, ४७६२३, ४७६६९-१, ४४३९५(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ४६४६१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र -पद्यानुवाद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ४४, पद्य, भूपू (आनंद वदत कृपाकर हु), ४४३६५(१) , (३) कल्याणमंदिर स्तोत्र -पद्यानुवाद का अर्थ, मु. आनंद, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), ४४३६५ (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र -समास, संबद्ध सं., गद्य, भूपू (कल्याणानां मंदिर), ४३९५५-१(+) कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., का. ७२, पद्य, मूपू., (कारकाणि कर्ता कर्म), ४४५८२ (#) कालग्रहण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (योगकालिक अने उत्कालि), ४७४७०-१(०) "" कालभैरवाष्टक - काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ४६१३१, ४७६६३ कालिकाचार्य कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (श्रीवीरवाक्यानुमतं), ४४२४६ कृष्णराजीविमानविचार स्तवन, मु. जयशेखर, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू (जेहिं जह लोगंतियसुरे), ४४७६४-२(७) क्षमा पद, प्रा., मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (माहरा प्राणी पापीया), ४७८२३-३ (+) क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा. गा. २५, पद्य, भूपू (वंदित्ता सिरिवीरं), ४४०२५, ४४९१००) " (२) क्षुल्लकभव प्रकरण स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, मूपू., ( वंदित्ता० सुगमा नवरं), ४४०२५, ४४९१० (क) खामणा सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो), ४४८६९ (#) गच्छनायक स्तुति - अंचलगच्छ, प्रा. प+ग, मूपू., (अढाई जेसु दीवसमदेस), ४७८०५ गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, वै., (कज्जल विज्जल गुंद), ४६१०३-३ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ४३९९५-२(+), ४५०५८-२ (+), ४३९३२-२, ४६५८२-२ गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत), ४३७२३-२(#) गिरनारतीर्थ कल्प, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (वरधर्मकीर्तिविद्यानं), ४७२८५-२ गुणस्थानकद्वार गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नामलक्खणट्टिई किरिया), ४४६०७-१ (+) गुरुगुण स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, भूपू. (आनंद परमाहतं देवा), ४४०५७-२(ख) गुरुप्रतिमा स्तुप प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., ( शुभ नक्षत्रेषु शुभवे), ४७९०६ (+) गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, मृपू, (इच्छकारि भगवन पसाउ), ४५१०२-२ गुरु स्तुति - खरतरगच्छीय, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू (श्रीमत्संघसमुद्र), ४७३७८-३ गुरु स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वृहस्पतिमहं नौमि ), ४५४८९-६ गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (पूर्व भव्यमुहूर्त), ४४३८९-१ " गोचरी आलोयण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (गोचरीधी आवीने पात्रा), ४४०६९-३ (०) गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मृपू. (अहाकम्मु १देसिअ २), ४४८९४-१(+) (२) गोचरी दोष टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( सोल उद्गम दोष लिखिये), ४४८९४- १(+) " गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ४४७५४ (+), ४४९८६, ४८१०८, ४६९५६ (#), ४७०६९(#$), ४७१५३(-) (२) गौतम कुलक-वार्थ, सं., गद्य, मूपु (लुब्धा लोभिष्ठा), ४७०६९ (७) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (लुभिया मनुष्य अर्थ), ४८१०८ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ४४९८६ गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाहं), ४३९९९, ४७७२३($) (२) गौतमपृच्छा वालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु. गद्य, मूपू (महावीरजी गोतमपृच्छा), ४७७२३(5) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ४३९९९ गौतम प्रबोधगाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कुसग्गेव सहातुसबि), ४५११२-२(+) (२) गौतम प्रबोध गाथा-(मा.)अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (इसी तरेसुं उस बिंदु), ४५११२-२(+) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र), ४३६३४(#) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति), ४३४९८-५(+#), ४७३७७-२ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर), ४४८०६, ४७१६८-१ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ४४१०४-१, ४४२६७-३, ४४५०६ ग्रहदृष्टि विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, श्वे., (रविजन्म शोक सुखदा तु), ४३८९५-२(#$) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ४३६९३-१(+#), ४३८०५-२(+#), ४४६२९-१(+), ४७१८४(+), ४४८३९-३, ४६३३६-१, ४८०२८-१, ४४५७४-१(#), ४७०९७८), ४७५५४-२(-) ग्रामागमन पृच्छा, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (बुधे चंद्रे भवेत्), ४४३३७-२(+#) (२) ग्रामागमन पृच्छा-टबार्थ, सं., गद्य, श्वे., (बुधे चंदे क० बुधवार), ४४३३७-२(+#) घंटाकर्ण मंत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णमहावीर), ४७११८-२(+) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ४४०६५-३(+), ४४२८७-३(+), ४३४९७-२, ४६२७५-१, ४६८०८-५, ४७२००, ४८०१७-२, ४८०९४-१ चंदनबालासती कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इतश्च भगवताद्वादशनचत), ४४६९९-२ चंद्रदूत काव्य, क. जंबू, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (यदतिसितशराग्रग्रस्त), ४७७५३ चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (भविक चित्त चकोर निशा), ४५६६४-१ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभः), ४४५८७-५, ४४८३९-१, ४५६६४-४, ४७१६८-२ चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ च ह्रीं श्री ह्रीं), ४५११०-२ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ४५११०-१, ४६५६०(5) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ४३५१३(+#), ४४५१०(+#), ४४६५४(+), ४३९८६, ४७९७७(#) चतुरक्षरायां पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., (भो भो भव्याः ), ४६३५७-३(+) चतुर्विंशतिजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनमजितनाथ), ४५६६४-२ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (--), ४४६११-२(+$) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ४७११८-१(+), ४६३३०-२, ४७२९३-४ चयनित गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (पुढवी आउ वणस्सइ बारस), ४७३९५-१(#) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय समणधम्म १० संजम), ४४५६०-२ चाणक्यराजनीति लघु व वृद्ध, सं., अ. १६, पद्य, वै., (प्रणम्य शंकरं देवं), ४५२८६-३($) चातुर्मास कर्त्तव्य गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चरणे दंसण नाणा उझोय), ४४१७१-३(+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ४४६४०(+) चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ४७५७४-२ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्य), ४७८७८(#S) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीहि पढम), ४४६१२-१ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष.७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेण), प्रतहीन. (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं से भरहे राया), ४३८८२(+#), ४७४८२, ४३८८३(#) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू (जय तिहुवणवरकप्परुक्ख), ४४८८१-७(+AS), ४७७१३ (+), ४४२९१, ४६३०० (# ), ४४२१३ ($) " ७ (२) जयतिहुअण स्तोत्र -भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू (परमेसर सिरिपासनाह), ४६५७८-२ जल गुणदोषविचार श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (आदौ मंदाग्निजननं), ४६६२२-६(+) जलयात्रा विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ४४०९०-१(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू, (पद्म कल्याण विद्या), ४८०७९-२(+), ४४८४३ जिनकुशलसूरि मंत्र, सं., गद्य, भूपू (35 ह्रीं श्रीं क्री), ४८०७९-१(०) ', जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनाधीशमुख), ४७१६४ (+) जिनगुण स्तोत्र, मा.गु., सं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), ४४०८० जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमाम्यहं श्रीजिनदत्त), ४७७००-१ जिनदर्शन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, वे (अद्याभवत सफलता नयन), ४७४८६-२ " जिननमस्कार स्तुति, ग. मोहनविमल, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजयमंगल), ४६७४२ जिनपंचकल्याणक स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (निलिंपलोकायित भूतलं), ४४३१५-२ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ४५३००-१, ४७९४३, ४५२४१(०), ४४८२१८) जिनपालजिनरक्षित चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (--), ४४१६८ (#$) जिनपूजा शास्त्रोक्त विचार, सं., गद्य, श्वे. (जिनपूजावसरे श्रूयते), ४७३१५ जिनप्रभसूरि प्रबंध, सं. गद्य, भूपू (खरतरपक्षे श्रीजिन), ४३५५९(४) , + जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ४४०१८-१, ४७४३२-२ जिनविवप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (पहिलु मुहूर्त भलुं), ४७४३२-१ जिनबिंध वस्त्र परिधान प्रश्नोत्तर. सं., प्रश्न. ७, गद्य, म्पू, (जिनबिंबानां वस्त्र), ४५०४२-१ ४४९६०, ४७४४७-१, ४३५४२ (# ), ४५१८६ (# ), ४८१३५ (#), ४६७७९ ($) (२) जीवविचार प्रकरण -टवार्थ *, मा.गु., गद्य, मृपू., (तीन भुवन रे विषे), ४३९३५(+), ४६२६८-२(१) जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (सुहुमो य होइ कालो), ४६८५० जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा. गा. २५, पद्य, म्पू, (जीवो अणाइनिहणो), ४४५५१-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाधा, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू. (खेलं १ केलि २ कलि ३), ४४५१६ (+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां १ क्रीडां), ४४५१६ (+) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पथ, भूपू (श्रीजिनं भक्तितो), ४३६८०-१, ४६३३०-१, ४७२९३-३ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), ४४०७३-१ जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), ४७६८०-२ जिनहर्षसूरिजी को पत्र, मु. ज्ञानप्रमोद, रा. सं., वि. १८८७, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवामानंदन), ४७६८९ (+) जीव आयुष्यमान विचार, प्रा., सं., प+ग, श्वे. (१ पृथ्वीकाय जघन्य), ४७९७९-२(+) "" जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ४३९३५ (१), ४४०८९-२(+), ४४३७२-३(+), ४४३७३-३+१, ४४४३७), ४५०१३-१ (०), ४६२६८-२(+), ४८०५०(+), ४४२५२, ४४९९८, ४४९४८, (२) जीवस्थापनाविचार प्रकरण न्टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव अनादि अनंत जीव), ४४५५१-१ जीवादिभेद विवरण, प्रा. सं., गद्य थे. दीव्यतीति देवाः), ४७८२९ . जीवोत्पत्ति विचार, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंडजाः पक्षिसर्पाद्य), ४७९६४-१४(+) (२) जीवोत्पत्ति विचार-टवार्थ, मा.गु, गद्य, मृपू, (पंखीने सर्पादि इंडा), ४७९६४-१४(१) जैन गाथा, प्रा., पद्य, वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ४३५४३-३(+), ४३६५७-३ (+#), ४३७७७-३(+#), ४४६१२-२, ४७३७८-२, ४३५९२-३१) ४५९३२.२(१ For Private and Personal Use Only ४८३ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (२) जैन गाथा की टीका, सं., गद्य, श्वे., (--), ४३५९२-३(#) जैन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), ४३७६३-२(#) जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ४३६३९-२(+), ४४८१५-२(+), ४५२५४-३(+), ४४५५१-२, ४४८४९-२, ४४९९६-४, ४६३४२-२, ४६८७४-२, ४३४६५-२(#), ४४८४८-४(#), ४५००२-२(#) जैन गायत्री जाप विधान, सं., प+ग., मूपू., (अथ चतुर्विंशति अर्ह), ४६७४१-१ जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ४३५९४-११(+#), ४७०३४-४(-#) जैनधर्म प्राचीनता विषयक साक्षी पाठ, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (बोपदेव नामनो), ४४५३९ जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या , मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तत्वानि ९ व्रत ५/१२), ४७६८८-८ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ४३६२४(+#), ४३७२०(+#) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताण), ४७३२९-२ जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (बाह्यः परिग्रहविधि), ४४४१७-२(+), ४३५९२-४(#), ४५१७९-२(#) जैन संध्या, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ भूस्वाहा ॐ भूवस्वा), ४६४९६ । जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ४३६६६-२(+#), ४३९५२-२(+#), ४५६५४-१(+#), ४५६५६-२(+-), ४७९०७-१(+), ४३५३९-३, ४४९९६-३, ४५२७९-३, ४५६२८-२, ४५६९०-३, ४५७६५-२, ४६२७५-४, ४७५४४-४, ४३९४२-२(१), ४६४३५-२(#$), ४७६३५-२(६), ४५१३९-२(-), ४५६४०-३(-), ४६२७७-२(-) जैनेतर सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), ४५७८१-४(#), ४६८५४-३(#s) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), प्रतहीन. (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-द्रोपदीसंहरणसंबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (एकदा श्रीहस्तिनापुरे), ४४५१२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (जइ णं भते समणेणं भग), प्रतहीन. (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन-सज्झाय, संबद्ध, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरथथी आगमजन कहि), ४७७६०-३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ४४८६५-५, ४५४३० ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शैवेयः शंखकेतुः कलित), ४६६२४-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ४३५९४-३(+#), ४३७८९-२(+#), ४३८५८-५(+#), ४३९५५-२(+#), ४५१६७-२(+), ४४८८७-१,४५९७८-२,४६७५४, ४७००८-१,४८०५४-२,४३७६०-२(#) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचमीसत्तप), ४४८८७-१ (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-समास, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (पंचरूपेण इंद्रेण कृत), ४३९५५-२(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), ४७७५६-३, ४७१२५-२(2) ज्ञान प्रकार, सं., गद्य, श्वे., (मति श्रुति अवधि), ४६८९७-४ ज्ञानसम्मत आगमिक विचारसंग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (ज्ञानधनो धणीउ संसार), ४४२३१-६(+) ज्ञान स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्पः प्रोज्ज्वल), ४४८६५-९ ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., (--), ४३६३१-४(+#), ४३६५७-४(+#), ४३७५९-४(+#), ४४०१५-१, ४४३८९-२, ४४५८७-१, ४४८३४-२, ४५००३-३, ४५०४६-३, ४५३७६-२,४५६७८-२,४५९५८-४, ४६०८९-२,४६१०३-२, ४६७३९-२, ४६८०८-७, ४७२७९-२, ४५५१२-४(#), ४४४६३-५(5) ज्योतिषयंत्र, सं., पद्य, (--), ४४३७९-२ ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ४५०४६-२ ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ४५०७२-२ ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, वै., (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ४७१४५-२ ज्योतिषश्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, (मेष वृष मिथुन करके), ४७६८७-५ For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ४३५७९ (+३) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ४६९५१ - १(+), ४६३४९ तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, अं., अ.भा., उ., गु. सं. हिं.. पण.. (--), ४६२९०-४० " "" तत्वज्ञान प्राप्ति के भेद प्रभेद सत्त्वार्थ सूत्र सम्मत, सं., गद्य, मूपु., (निर्देश स्वामित्वं अ), ४४५८३-२(+) तपउच्चारण विधि -संक्षिप्त, सं., प्रा., गद्य, मूपू., (सविस्तारेतुनंदौबिंबस), ४७१७५-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तप निष्फलकारण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (फुरुस वयणेन दिन तव), ४७९६४-१८(+) (२) तप निष्फलकारण गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (कर्कश वचन बोलता दिवस), ४७९६४-१८ (+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा. गा. १४, पद्य, मूपू. (तिजयपहुत्तपयासव अड), ४३७२१-२ (+), ४४८६०-२, ४५००८, ४५४४३, ४५९५३, " ४७२३०, ४३५४९-२००१ ४७५९११०१ (२) दंडक प्रकरण - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चतुर्विंशति), ४७३१३(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ४३६४६ (#) ४८५ (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, भूपू (कृत्वा चतुर्णा), ४३९९१ , "" (२) तिजयपहुत स्तोत्र -टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ४३७२१-२ (०० तीर्थमाला स्तव, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (पंचानुत्तरशरणावे), ४३७३९(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ४३९०९-१(+#), ४४७४५-१ (+), ४४९६३ (+#), ४५१९६ (+), ४५६५४-२(१०), ४७८८१-२(१०), ४८०४९(१), ४४५६९, ४४६७५, ४७५९६(१), ४४१०४-२(६) (२) तीर्थवंदना चैत्यवंदन टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू (सात्विक भगति देवलो), ४५९९६ (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १० + परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. " (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र - हिस्सा प्रथमपर्व, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य, जे. (--), ४४३८७) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ४३७९१-१(+४), ४७२७८(+), ४४१६२, ४४४१९, ४५९३१, ४०४४५-१, ४७४८६-१, ४७७७२-१, ४७१२५-१ (AS), ४७८७३ (#) (३) सकलार्हत् स्तोत्र -जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अवनितलगतानां कृत्रिम), ४३९०९-३ (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तोत्र, मु. धर्मचंद्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वे (श्रीवृषभोजितस्वामी), ४६०७६-१ त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनः), ४३८१३-३(+#) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. गा. ४५. वि. १५७९, पद्य, भूपू (नमिठं चडवीसजिणे तस्स), ४४४८९ (+), ४४६९६ (०), ४४९३१(+), ४७३१३(०) ४८१३२ " दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. अध्य. १० चूलिका २, बी. रवी, पद्य, मूपू. (धम्मो मंगलमुकिड), ४६४९९ (+३), ४६४९७ " (२) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ४४०५४-१, ४७५१३-४, ४४८७४१०१, ४७८६१-१४) (३) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन की सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धमो मंगल मेहमा), ४३७८२-६(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन ५ सज्झाच, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू. ( सुझता आहारनो खप करो). For Private and Personal Use Only ४६७४६ (२) दशवैकालिकसूत्र - अध्याय ७ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू (साचं वयण जे भाषीये), ४३९४१ (२) दशवेकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु. अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मृपू. (धर्ममंगल महिमा निलो), ४३५२०-१(+४), ४४४२७(१), ४४५६१ (२) धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल महिमा), ४६३३४ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८६ www.kobatirth.org दशार्णभद्र सज्झाय, पं. वीरविजय, प्रा., मा.गु., गा. १५, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सुर ठवसगा झितियाता), ४४९३६(+#) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), ४४७२५ दानाधिकार गाथा, प्रा., श्लो. ८, पद्य, ., (अभयं‍ सुपत्तवानं२) ४७९६४-१५(१) (२) दानाधिकार -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अभयदान १ सुपात्रदान २), ४७९६४-१५ (+) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा. गा. २, पद्य, मूपू (पपुवउ कमसो जीवा जल), ४३६७३-२(+४) . " (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व- अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (पपुदठकमसो इति पश्चिम), ४३६७३-२ (+) " दिगंबरचर्चा बोल, प्रा., मा.गु., गद्य, दि., (विग्गह गतिमावन्ना), ४६१६५ दिनदशामान, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (प्रथमे विंशति भवेत् ४७४६०-३ , (२) दिनदशामान बार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (पुसनारनी नामराशधी), ४७४६०-३ दिनमान श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, श्वे. (अयनादिक वास २ राम), ४७७०९-३ दीक्षा उच्चार विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, म्पू, (प्रथम नवकार भणी पर्छ), ४४३४१५ दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ४४४३५-१(+) दीक्षा प्रकरण, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे. (प्रणिपत्य जिनेंद्र), ४३६२० " दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ४७४३२-३, ४७६१७, ४३८५०(#) दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ४४८८१-४ (+#), ४४८६५-६ दीपोत्सव स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यन्मोक्षपर्व प्रभवेन), ४४१२५ (+) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. गा. ४४, पद्य, मूपू (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ४४१३५ י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, ?, (--), ४३५२०-२ (+#), ४४९०३-२(+), ४४०५५-३, ४४७५५-५, ४६८८२-६, ४७१३४-२ देववंदन विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, मूपू, नमोत्थुणं कठीने भगवन), ४४४३९-३ (+), ४५५३४-३, ४७६६८ धर्मप्रभावक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ४६९५७-२ (२) धर्मप्रभावक श्लोक -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म तेज सकल कहेती), ४६९५७-२ नंदीश्वरतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (सुमेरुं कृत), ४६४०९-२ :! नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नंदीश्वरद्वीप महीपर), ४४८६५-११ नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदिय नंदियलोअं), ४६५६८(+$) For Private and Personal Use Only नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सूत्र. ५७ गा. ७००, प+ग, मूपू., (जवइ जगजीवजोणीवियाणओ), प्रतहीन. (२) नंदीसूत्र -मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ४४९७८, ४७२४६ (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, म्पू, (जयह जगजीवजोणीवियाणओ), ४३७०१(०४), ४३९०३(+), ४४०३०, ४४५९९-११, ४४००६, ४५४०९ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ४४३४८-१, ४६३२६-१, ४३६९० (# ), ४३७६२(#) (२) नमस्कार महामंत्र -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं माहरउ), ४४४५२ (२) नमस्कार महामंत्र -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ४३६९० (#) (२) नमस्कार महामंत्र - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., ( नमो क० नमस्कार हो), ४३७६२(#) (२) नमस्कार महामंत्र - कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू (एह श्रीनउकार भावसहित), ४३७०४-१ (+०) (२) नमस्कार महामंत्र आम्नाय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), ४३७५९-२(+#) (२) नमस्कार महामंत्र कल्प, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (अथ कतिपय पंचपरमेष्ठि), ४७६९२(+) नमस्कार विधि, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (एकवार कुदेवानां), ४६३०४-१ १ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, मृपू. (नमिऊण पणयसुरगण), ४३५७४ (०) ४४२५७-२, ४४३४८-४, ४७५४५, ४७८७९-२, ४८१०७, ४३५४९-३(१३) ४६६६०(४) Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८७ (२) नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ३००, वि. १३६५, गद्य, म्पू., (श्रीपार्श्वस्वामिन), ४३५७४(+#) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करीनइं नमतां), ४८१०७ नरचंद्र जैन ज्योतिष, उपा. नरचंद्र, सं., जै., (--), प्रतहीन. (२) नरचंद्र जैन ज्योतिष-दसासाधन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लबद अंक दुणाकरी), ४६११५-३ नवकार कुलक, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (घणघायकम्ममुक्का), ४८०३५-२(+) नवग्रहशांति विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसूर्यस्य पद्म), ४७१९३ नवग्रह श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (तरणि तारकराज), ४४८८३-१(+) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ४३८९९() (२) नवतत्त्व प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीरः), ४३८९९(६) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, पू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ४३५४१(+#), ४४०८९-१(+), ४४२२४(+), ४४३७२-१(+), ४४३७३-१(+), ४४४२६(+), ४४८२८-१(+),४४८९७(+), ४४९०४(+), ४५२०५(+#), ४५८५१(+#), ४६१७०(+$), ४४८५०, ४७२८६ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ४४८९६(#S) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ४६१७०(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जीवतत्व १ अजीवतत्व २), ४४९०४(+) (२) नवतत्त्व-२७६ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ४४०९६ (२) नवतत्त्व प्रकरण-जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीवो संवर निझर), ४६५५५-२ (३) नवतत्त्व प्रकरण-जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त्वमाहि), ४६५५५-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (हेया बंधासव पुन्ना), ४५४५३-१(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ४४६३५(+$) नवनिधि स्वरुप, प्रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (निसप्पेपंडयए पिंगलएस), ४४९३३ नवपद ओली विधि, प्रा.,सं.,हिं., प+ग., मूपू., (--), ४७७२२-४(+) नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंत), ४७९१९ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ४७७२२-१(+), ४८१०३ (२) नवपद पूजा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे ओलीनो उजमणि करे), ४८१०३($) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ४३९३६(+#) (२) नवपद स्तवन-टबार्थ, मु. कपूरविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवपद आत्मामांहिं), ४३९३६(+#) नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ४४२१०(5) नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमिय जिणमुसभमुभय), ४४२१६-१ नियुक्तिगाथा संग्रह, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (वाणारसी नयरीए अणगारे), ४५३०६(#) निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्वावय मिउसहो चंपार), प्रतहीन. (२) निर्वाणकांड- भाषा, जै.क. भैया, पुहिं., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग वंदों सदा भाव), ४४८१६-२ निर्वाणषट्क, शंकराचार्य, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (मनोबुद्धयहड्कारचित्त), ४५९७१-४ । नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मयनाहसरिस विलसिर), ४४२१६-३ नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन्), ४७७६२(+), ४३७६८-१, ४४८५८(#) (२) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), ४३७६८-२, ४४८५८(#$) नेमिजिन पंचकल्याक व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पश्चानुपूर्व्या), ४४८८९ नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दुरितभयनिवारं मोह), ४७५७८-२ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८८ www.kobatirth.org पंचकल्याणक स्तुति, सं., गा. ६, पद्य, भूपू (च्यवित्वा वो मातुः), ४६५६७-२ पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू, (नाभेयं संभवं तं अजिय), ४४८२७-९(+) पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर सं., श्लो. २६, पद्य, भूपू (जय जय जगदानंदन जय), ४६३५७-२(+) पंचजिन स्तवन- हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., ( गरीयो गुण श्रेण्यरीण), ४४५७९ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा. सं. गा. १, पद्य, मूपू. (बारसगुण अरिहंता), ४६६०५ " " (२) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन (मा.) टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निर्मल केवलज्ञान), ४६६०५ पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा. सं., प+ग, मूपू (बारस गुण अरिहंता), ४७३३४-१(+), ४४५७६-१ पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग, थे. (श्रीवामेवं जिनं), ४७८०४) पंचेंद्रिय गति, प्रा., गा. ६, पद्य, श्वे. (देवाडअंनिबंधे सरागत), ४७९६४-१३(०) . पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ४३८१३-२ (+#) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पंचा. १९ गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, भूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), ४३५००+) 3 (२) पंचेंद्रिय गति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (देवतानो आउषो वांधे), ४७९६४ १३(+) पक्खि चमासी संवत्सरी पडिक्रमण विधि, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपू. (मूहपत्ति बंदिण), ४३९००-२(+) पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा. मा.गु., गद्य, भूपू (चउत्थेणं एक उपवास), ४४७७८-३ पच्चक्खाण कल्पमान -पोरसी, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (सावण वद पडवाक दिन), ४५३७४-२ पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा.गु. गद्य, म्पू, (खमा० इरिया० पडिकमी), ४४८३१-५ , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, म्पू. ( श्रीमहावीर), ४४५७५-१, ४७०९१-४(३) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (गुब्बरग्रामवासी वसु), ४३६४२(*) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू.. ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ४३६५४ (+), ४४३२१, ४७३७८-१, ४३६४०-२(४७), पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (हाँ ह्रीँ हैं), ४३९५८(#) परमात्म स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, भूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ४४५३७-४ ४५०२६(१) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), ४४७८४(+) (२) तपागच्छ पट्टावली -टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमंतमंगलीकभूत), ४४७८४(०) पद्मावती कवच, सं., पद्य, श्वे. वै., (ऐं पद्मविपद्महे), ४५५१८ पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ४३८९३, ४६००३(S) पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणसासण अवधाक करेवि), ४४९९३ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु., सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ कलिकुंडदंड), ४३५४७ (+#), ४४४४४-२(+), ४४७६१-१(-) पद्मावतीदेवी पूजन, सं., गद्य, मूपू, (तत्रादी स्नात्वा), ४४०७५-१(१) पद्मावतीदेवी पूजन कल्प, सं., गद्य, मूपू., (चतुषष्टि बीजदले आदिक), ४४०७५-२(#) पद्मावतीदेवी महायंत्र, सं., गद्य, मूपू., (--), ४४३५५-२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, भूपू (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ४४१९७(+), ४८०८३-१(+), ४४०७२, ४४९५५ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (धरणयक्षवलक्षविषाह्य), ४६३४० For Private and Personal Use Only परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु. सं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), ४४९६२-१ परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्न), ४३८२४ (+), ४३६१३(#) (२) परमानंद स्तोत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्माने नमस्कार), ४३६१३(#) परस्त्रीगमनविरमण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे. (परस्त्री संकटं पंथा), ४४०८५-३(+) (२) परस्त्रीगमनविरमण श्लोक -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (परस्त्री छें ने संकट), ४४०८५-३(+) पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ४४७८६ ($) Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८९ (२) पर्यंताराधना-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), ४४७८६(६) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. वाचंयम, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पर्युषणापर्व सर्वभुव), ४५६३६-६(-) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ४६३१४-३(+$) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ भगवंत), ४६३१४-३(+$) पर्वतिथि निर्णय, सं., गद्य, म्पू., (तिथि निर्णय यदा पंचम), ४५६६६ पाक्षिकचतुर्दशी तिथिनिर्णय-विविध शास्त्रोद्धृत, मु. चारित्रसिंह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (--), ४४३२९ पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तुं कहीने), ४७७१४-१ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ४३४६७-१(+#), ४३७८९-४(+#), ४३८५८-४(+#), ४४८२७-६(+), ४४८९८-५(+), ४६७६१(+), ४३९०५, ४४३०६, ४४३४३, ४४३७४-२, ४४८३४-१, ४४८५९, ४४८८७-२, ४५९७८-१,४६०००, ४६३१०-१, ४७३९०-१, ४७५८२, ४७९३८, ४३७६०-१(#$), ४४८७९-२(#) (२) पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, म्पू., (स श्रीवर्द्धमानो), ४४८८७-२ (२) पाक्षिक स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (स श्रीवर्द्धमानो जिन), ४३९०५ (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे भगवंत केहवा छे), ४४३४३ (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्युछे), ४४८३४-१ (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कर्यु छइ जेणइ), ४६७६१(+) पात्र विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (तुंविय१ दासयर महीय३), ४७९६४-१२(+) पार्श्वजिन १० भव चरित्र, प्रा., गद्य, श्वे., (इहेव जंबुदीवे भारहेव), ४५०४४ पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (विप्रप्राग्मरुभूति०), ४४२०१(+) पार्श्वजिन अष्टक-कलिकुंड, मु. कल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विबुधादिराजै तपाद), ४४८३९-९ पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ४७५१८ पार्श्वजिन अष्टप्रकारीपूजा-चिंतामणी, सं., श्लो. ९, प+ग., मूपू., (ह्रींकारं पार्श्वयुक), ४५७८७(-) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ४४०९०-२(+), ४५१०५-३(+), ४७२९९-२(+), ४४५८७-२, ४६०८८-१, ४६११५-२, ४६१७४-१, ४७१८१-१, ४७५५६-३, ४७६६९-२, ४७६८०-३, ४८००८-१, ४७४५८-१(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरस), ४४४१६(+), ४७२९५(+) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ४७२९५(+) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरा प्रधाना संवरस्य), ४४४१६(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकलसुरासुरवंद्य), ४३६३१-१(+#), ४४१२७ पार्श्वजिनपद्मावतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), ४४३३१-२ पार्श्वजिन बृहत्कल्पस्तोत्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (भुजगेंद्रनिर्मितमह), ४४१६९-१ पार्श्वजिन मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐ ॐ ह्रीं ह्रीं हू), ४४१६९-२ पार्श्वजिन मंत्र, प्रा., गद्य, म्पू., (ईयं संथुमहायस भत्ति), ४४३३३-२ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (अथ मंत्राधिराजस्य), ४४१६९-४ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, भूपू., (श्री पार्श्वः पातु), ४३५८७-१(+#), ४५५२०(+), ४४२०६, ४७६२८, ४३६४३-१(#) पार्श्वजिन महिमागर्भित स्तोत्र, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमो तुह दसणेण सामि), ४५३००-२ पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), ४७६४२-३ पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (नमामि श्रीपार्श्व), ४३४९९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुखमामंडित दुःखगण), ४६३४१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकसोम, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जय जिन सुरनतपदकमल), ४६६४२-१ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अजपुरावनि वक्र), ४४८३९-४ पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तं नमह पासनाहं धरणिं), ४५०३४-२(+), ४७९२६-१(+), ४४५८७-४ पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथाय धरण), ४५८२५ पार्श्वजिन स्तवन-कलिकुंडमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुं), ४७१६८-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (रागेणगीयते गौडिपुरप), ४७८५३-१(-१) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ४६९०२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (स्वामि समूह सेव्यं स), ४४१६१-२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलि, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कल्याण कल्पद्रुम), ४४१६१-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिका, मु. सिद्धांतराज, सं., श्लो. ७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (कुशलकमलनिर्मल सारंग), ४४८३७-१ पार्श्वजिन स्तवन-मंत्रगर्भित, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नंदोग्रबिंदुमल चंद्र), ४४१६९-३ पार्श्वजिन स्तवन-मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु.,सं., गा.७, पद्य, मूपू., (ॐनमः पार्श्वप्रभु), ४५८१५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. गुणरत्नसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सौभाग्यभाग्या), ४५१०५-१(+), ४४१८३-१, ४४३११-१ पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो हरउ जरं मम हरो), ४७९२६-३(+) पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (नत्वोपासित चरणं कमठे), ४४४८७(+), ४४६६०-३(+) पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानदयासिंधो), ४७६८०-१ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, म्पू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ४३५३५-३-#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), ४५०४२-५ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ४४३३४(+), ४३८५१(#) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ४४३३४(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सिद्धिसाम्राज), ४५४८९-२ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिरस्थस्फार), ४७९६३-४(-) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (क्षितिमंडल मुकुट), ४८००१-१ पार्श्वजिन स्तुति, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (नम एव पणय सही माया), ४४३३३-१ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (या या धाधानिधा), ४४८९८-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (--), ४६६९७-१(६) पार्श्वजिन स्तुति-अष्टविभक्तियुक्त, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पार्श्वः पातु नतांग), ४७४८६-३ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ४३९५०-२, ४४३८८, ४६२३४, ४६८७८, ४३९३७-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ४७१६७-२(+), ४४१९०, ४८०९१-२ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ४५५७२-१(+), ४३७४९-२ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ४५३३७-१,४४९४५-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ४४०६८-१(+) पार्श्वजिन स्तुति-समसंस्कृत, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मायातुंगीनिरासे), ४३८५८-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसार), ४७६२९-३, ४७६३०-९($) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ४७९२६-५(+), ४५६६४-५ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिग्घमवहरउ विग्घ), ४४५९८ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्वं परमात्म), ४४३१५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (श्रेयो दधानं कमला), ४४६११-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra , י संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मघोष, सं., श्लो. १६, पद्य, भूपू (कस्तूरीतिलकं भुवः), ४३५१७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. विनयभक्ति, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (जय दुष्ट कष्ट हरणेक), ४६३६५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, भूपू (धरणोरगेंद्रसुरपति), ४४७२६ पार्श्वजिन स्तोत्र, वा. सकलचंद्र, सं. श्री. ३१, पद्य, भूपू (सिद्धं ह्रदयनिरुद्धं), ४३७१७(१) , " (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - अवचूरि, सं. लो. ३०, पद्य, भूपू (वामेयसुरवृक्षं), ४३७१७(#) www.kobatirth.org יי , पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेट्यो प्रभु, ४७८१२-३, ४५५०३% पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ४७९२६-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा. सं., गा. १७, पद्य, भूपू (उवसग्गहरं पासं पासं), ४४४७६-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., वो ४, पद्य, भूपू (क्षितिमंडलमुकुट), ४७४२९-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू (प्रणमामि सदा प्रभु, ४४८४२ २ ४६८६४-१() पार्श्वजिन स्तोत्र, सं. लो. ९, पद्य, भूपू (लक्ष्मीर्महस्तुत्यसत), ४६३३६-२ " 3 पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (सवालसत्सौख्यपरंपर), ४४५८१ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - विवरण, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीमतः पार्श्वनाथस), ४४५८१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., लो. १३, पद्य, भूपू (-), ४४३८३-१(१६) " पार्श्वजिन स्तोत्र-करहेक, आ. कीर्तिरत्नसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (आनंदमंदकुमुदाकट), ४६४०४ पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं तं नमह), ४४८४७? , पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, मु. कल्याणसागर, मा.गु., सं., गा. ८, पद्य, मूपू (प्रभु ज्योति दीपे), ४६६५१(०) पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकल मंगल मंजुल मालिन), ४४८३९-१० ४५७७५, ४५७८८, ४५९८३ पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्ली, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्ली, सं. वो ६, पद्य, मूपू " पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., सं., गा. १४, पद्य, मूपू., ( नमु सारदा सार), ४६१८२ पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, मा.गु. सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल भविकचेतः कल्पना ), ४८०२८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं. लो. ११, पद्य, म्पू, (किं कर्पूरमयं सुधारस), ४४७१६(+), ४५०३४-११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३५७-१(+), ४७६२७/*), ४४३११-२, ४४८४२-१, ४४८९९, ४४३९०-१(१) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि- अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (किमिति वितर्के कर्पू), ४४८४२-१ पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., ( नमो देवनागेंद्रमंदार), ४४६३६१ ४५१०९, ४५४६४-१, (जीरापल्ली प्रभु, ४७६४२-२ (मंगल कमलाकंदस्स), ४६२८० पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), ४४०७९(+), ४६२३१, ४६६२९, ४७८७९-३, ४७९६०-१ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित प्रा. गा. १२. पच, भूपू (अरिहं धुणामि पास), ४४१७२.१(+) " (महादेवं नमस्कृत्य), ४६५५१ (०३), ४४५२३-१ ४९९ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ४४०७३-२, ४५१८२, ४५४८९-१, ४६६२५ (-$) पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ४४९०८, ४५६८०-१, ४७८४०, ४७१५१(-$) पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघना), ४५०७६-६ पार्श्वजिन स्तोत्र - समंत्र, सं. लो. ९, पद्य, भूपू (ॐ नमो भगवते), ४६३८९-१ पार्श्वजिन स्तोत्र - समस्याबंध, सं., लो. १३, पद्य, मूपू. (श्रीपार्श्वनाथं तमहं), ४६६७८ , पार्श्वधरणेंद्र पद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., ( नमो भगवते श्रीपार्श), ४७१८१-२ पाशाकेवली. म. गर्ग ऋषि सं. श्री. १९६, पद्य थे. मु. " (२) पाशाकेवली - भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे. (१११ उत्तम थानक लाभ), ४७५४९ " For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९२ www.kobatirth.org पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. १०३ पद्य म्पू, देविंदविंदबंदिय पयार), ४७२३७-१(+) 5 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, भूपू (सपुन्न इंदिअत माणु), ४४९१२ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संपूर्ण इंद्रीयपणु), ४४९१२ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ४३९५२ -१(+#), ४७९६४-२(+), ४४५३४-१ (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ४७९६४-२ (+) (२) पुण्यफल कुलक-अंकविवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (शून्य १५ ३६००० च्छेद), ४३९५२-१(+#) पुद्गलपरावर्तन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (एगा कोडि सत्त सट्ठि), प्रतहीन. " (२) पुलपरावर्तन गाथा - चालावबोध, मा.गु., गद्य, वे. (एक कोड शडशठ लाख), ४७५३५-१२ पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवंस्तव), ४४१९८-१(+) पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखी), ४४५५० (+), ४४८८५ (२) पूजा प्रकरण -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वइ स्नानं करइ), ४४८८५ पौषध पारने की विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ४४४३९-६(+$) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं० ववगय), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र - बहुवक्तव्यता पद, हिस्सा, प्रा., गा. ९८, गद्य, भूपू (अहभंते सव्य जीव), ४४९६४) (२) संमूर्च्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, भूपू (कहिणं भंते समुच्छिम), ४३७९१-२ (+०) प्रणिधानसूत्र, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय वीयराय जगगुरु होउ), ४४३९६-१ + . 13 प्रतिक्रमण स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (कमलदल विपुल नवना), ४४८८१-२ (०१), ४४८९८-६(+) प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू (आसाडे मासे दुपया पोस), ४३९८१ प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ४३६६३ (+#) प्रत्याख्यान फल, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंसावी मज्झरत्न इकेण), ४५१०५-२(+) प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (भावि अईयं कोडि अहियं), ४४०३९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भावित प्रत्याख्यानं), ४४०३९ प्रत्येक जिननमस्कार स्तोत्र, आ. समरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, भूपू (विमलभूधर मंडनमुजूल), ४४५३२-१(०) " प्रबंध कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (संडेरगच्छे पंचशतीयती), ४३६४८(#) प्रमाण स्वरूप विचार, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (स्वपर व्यवसायात्मकं), ४३९९२ " प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु प+ग, भूपू (दीक्षा लेतां एतला), ४७९१०-१(+), ४३८२९, ४५५१६, ४७४११ प्रश्नतिलक, सं., गद्य, श्वे. (प्रणम्य भारती देवीं), ४४१५२ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग, मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), प्रतहीन. (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - हिस्सा षष्ठ अध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, भूपू (निव्वाणं निव्वुई२), ४५२९०-१ (३) प्रश्नव्याकरणसूत्र - हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम - (मा.) टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुधर्मस्वामी जंबूत्य), ४५२९०-१ प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ४३८०२ (+#), ४४२२९-१(+), ४४४३४, ४४८७८ (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला बार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमी करी श्रीमहावीर), ४३८०२ (-१), ४४२२९-१(+), ४४४३४ प्रस्ताविक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे. ? (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ४७३८१-२ प्रासंगिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (कूपोदकं वटच्छाया), ४६३६५-२ . प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. २८, पद्य, मूपू. (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ४७५५६-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, वे., (श्रिष्टेसंग: श्रुतेर), ४३९४८ - २ For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्क), ४३६५२(+#) बाराक्षरी, सं., गद्य, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), ४७१९४-२ ।। बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलुं मूहर्त), ४३९१९-२(#) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ४६१०२-२ बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ४७९८७-१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ४३४६४(+#), ४४५३३(+), ४७९०१(+), ४३८६९-२, ४४३४२, ४४३७१, ४४६६६, ४४८५४, ४४९२३, ४४९५६-१, ४५४३३-१, ४६७७४, ४७६७१, ४६५०५(#), ४४६००-२) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य जीवो सांभ), ४४६६६ बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ४४८०५-१(+), ४८०७७-२(+), ४३५४४-१, ४७०५३-२(#) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ४५०४१-२ बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछे), ४७७५४(+$) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ४४५४९, ४३९१९-१(#) ब्रह्मचर्य सज्झाय, अप., गा. ११, पद्य, मूपू., (इक कोडि असी नर लाख), ४३६९९-२(+#) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ४३५९१(+#), ४३८९४(+#), ४५४७९(+#), ४६५९०-१(+#s), ४७७६३(+#), ४४४७४, ४५००५, ४३६७४(#), ४४३५९(#), ४४४४२(#), ४४८९३-१(#), ४७५८३(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४६५९०-१(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मागु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ४५१९४(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ४३६७४(2) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), ४४२३२ (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररवपुरिदिग्वि), ४६५७८-१, ४७४३५-३ (२) भक्तामर स्तोत्र-गोप्य काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ आदिनाथामर सेवित), ४३७८०-२(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहणमो), ४४३८२-१(#), ४७४५८-२(#$) (३) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र साधना विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीभक्तामरस्तोत्र), ४४३८२-२(2) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, मूपू., (पन्नवण वेय रागे कप्प), ४४२२७(#) (२) भगवतीसूत्र-लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं., ग्रं. १२०००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नमंसित्वा०), ४३८००(#$) (२) १४ बोल सज्झाय, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सूत्र भगोती सतक पहल), ४७१२१-२ (२) भगवतीसूत्र-गहुँली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ४३९३१-१(+), ४४५५३ (२) भगवतीसूत्र-गहुली, संबद्ध, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आवो आवोने सयणा भगवती), ४३५२७-१ (२) भगवतीसूत्र-गहुँली, संबद्ध, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अहो सखी संयममा रमता), ४३५२७-२ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आवो आवोरे सयण भगवती), ४३९६०, ४४४१४(६) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेमस्य), ४४३८५-२, ४३९७६-१(#), ४७८६६($) (२) भगवतीसूत्र-सम्यक्त आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (जीवेणं भंते किं), ४३८८४-२(#) (२) समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ४३८०६ For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ४४६०१-१(+) (२) भाव प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, मूपू., (आनंदइ करि भरिय कहता), ४४६०१-१(+) भैरव स्तोत्र, सं., पद्य, वै., (--), ४६७४१-२($) भोजराज प्रति धनपाल वाक्य, सं., श्लो. २, पद्य, म्पू., वै., (स्थितंद्दक पंथेसर्व), ४६४०९-३ मंगल श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं), ४७७२२-२(+) मंगलाष्टक, कालिदास, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (श्रीमत्पंकज विष्टरो), ४४४९६-२(+) मंगलाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नम्रसुरासुर), ४३५१८-१(+#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ४३७८०-३(+), ४६१२०-४(+), ४४९०६-२, ४५०८१-२, ४५७७४-१, ४६०५३-२, ४६१९२-३, ४६३४२-३, ४७१४५-४, ४७१५४-५, ४७४२९-४, ४७५३७-१, ४७७१०-३, ४७८९२-४, ४३४८७-१(#), ४६४२८-६(१), ४६६८१-२(#), ४६६८३-२(#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ४३७५९-५ (+#), ४३६८०-३, ४७६४२-४, ४३६४०-१(#), ४३६४३-२(#), ४३७५६-९(#) मंत्रमातृका, सं., अंक. ४३, गद्य, मूपू., (ॐ प्रणवो ध्रुवब्रह्म), ४३७५९-३(+#), ४७१८२-२ मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., (--), ४६२१५-१, ४७३४९-२ मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (मंत्राधिराजाक्षरवर्ण), ४४१६९-५ मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान), ४६७५६(s) मंत्रारंभ मास वर्णन, सं., श्लो. ५, पद्य, जै., (मंत्रारंभस्य), ४४२४४-३(+) मदनपच्चीसी, कालिदास, सं., पद्य, वै., (कमलदल सुनेत्रे हारवि), ४६१३६-३($) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ४४८२५(+) (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य-टबार्थ, मु. समरथ, मा.गु., गद्य, श्वे., (चुल्लग कहता खीर भोजन), ४४८२५(+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), ४७८३४-४ (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), ४८१३१ महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ४४२०५, ४६८२६-१ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य.६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), प्रतहीन. (२) महानिशीथसूत्र-सुसढ कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहाह्यइंकयु), ४४२६८ महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ४७२९३-१ महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीचंद्र), ४६९५१-२(+) महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (नमोस्तु लक्ष्मी: मम), ४७९६०-२ महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीपापरविदेहे), ४६०८७-१ महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., ग्रं.१००, गद्य, मपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), ४४४३६(+S) महावीरजिन जन्मोत्सव जिमणवार वर्णन, रा.,सं., प+ग., मूपू., (मगधदेशमै अतिभलो), ४३५३७(+#) महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (स्तोष्ये जिन), ४६१९२-१ महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ४६५१७(#), ४७८५२(६) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (कंसारिक्रमनिर्यदापगा), ४४१९१(+) महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (गाहाजुयलेण जिणं मय), ४७९२६-४(+) महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (जइज्झा समणे भयवं महा), ४४१९२ महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिन कुवलय), ४७८७९-१ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ महावीरजिन स्तवन, आ. गजसागरसूरि सं. वो ६, पद्य, मृपू., (बुधजनैक जिनं कुरुनाव), ४६६२२-१(०), ४४८४९-१, ४६८७४-१ (७) (२) महावीरजिन स्तवन -अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (बुध. हे बुधजन हे), ४४८४९-१ महावीरजिन स्तवन, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (कल्याणधामकरणं घनकेवल), ४४२००-१ महावीरजिन स्तवन, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (चेतः प्रार्थ्यं पदार), ४३८४८) " महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभवदेवसूरि प्रा. गा. २२, पद्य, मूपू (जइज्जा समणे भगवं), ४४१७५ (+), ४५५३६(+), ४४८११. ४३६३२(४) " (२) महावीरजिन स्तवन - बृहत् -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ४३६३२ (#) (२) महावीरजिन स्तव - बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (जं० जयवंता साधु), ४४१७५ (०३) महावीरजिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), प्रतहीन. (२) महावीरजिन स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं वीरं नुवामि णूत), ४७७८०+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (कनकसमशरीरं प्राप्त), ४३४६६-३ (+) महावीरजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदाहि अंदिप्य), ४७६३९-२ महावीरजिन स्तुति, सं. लो. ४, पद्य, म्पू, नमोस्तु वर्द्धमानाय). ४४८६५-२ " महावीरजिन स्तुति, सं., लो. ४, पद्य, भूपू (नवेंद्रमौलिप्रपतत), ४६६२४-३ महावीर जिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मूपू (पंचमहव्ववसुव्वयमूल), ४४४०८-२(०), ४४८१४-२) महावीरजिन स्तुति, प्रा. सं., गा. ४, पद्य, भूपू (परसमयतिमिरतरणिं भव), ४४८६५-३ " महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापा धाधानि धाधा), ४४०६८-२(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंहिनमनादेव देहिन), ४४८६५-४ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (बीरं देवं नित्य), ४५२५४-२(+), ४६६७३-२(+०), ४८०७४-११+), ४७७८७-२८-१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुचंडमाडंवर पंचबाण), ४४८२७-१०(+), ४७९६३-१(-) महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ४५३३६-१, ४५६६८ महावीरजिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (जयति जय विभूषितो), ४७८८१-१ (+#) महावीरजिन स्तुति-स्नातस्यास्तुति पादपूर्तिगर्भित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्फूर्जद्भक्तिनतेंद), ४६६२४-२ महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ४५२०४ (२) महावीरजिन स्तोत्र - टिप्पण, मा.गु., गद्य, स्था., (क १ ख २ ग ३ घ ४ च ५), ४५२०४ महावीरजिन स्तोत्र, मु. वर्द्धमान-शिष्य, सं., श्लो. ६, पद्य, वे., (वंदे श्रीजिनवर्द्ध), ४४३८१ (+) (२) महावीरजिन स्तोत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, वे. (हुं बांबु हुँ), ४४३८१(०) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं ), ४६५९०-२ (+#), ४७११८-३(+) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अर्हतो मंगलं संतु), ४४४९६ - १ (+) माणिभद्रवीर स्तुति, सं., श्लो. २१, पद्य, भूपू (श्रेयः सारसदागार), ४४२६५ , माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. धरणीधर कवि सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (गाढं दोर्भिश्चतुर्भि), ४७३२९-१ मातृका केवली, सं., गा. २५, पद्य, थे. (ॐ चिलि चिलि मिलि), ४४१५३ " " " मातृका शुकनावली, सं. श्री. ५०, पद्य, धे. (पंचपरमेष्टिमंत्रसेसी), ४४८०८ मायाबीज स्तुति, सं. लो. १६, पद्य, भूपू (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ४७९२७-१ मारग आगमणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (मारग जाता आवता), ४८१०५-२ मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ४४५७६-२ मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (न गुले मणिए गुलिय), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only ४९५ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org י' ४९६ (२) मिथ्यात्वमथन प्रकरण - दानविधि, संबद्ध, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (धम्मोवग्गह दाणं दिज), ४४५३६($) मुद्रा मंत्र विधि, सं., पद्य, भूपू (एकवारं अतः परंसर्वमप), ४६४२३(३) " मुद्रा विधि, सं., श्लो १३, पद्य, मूपू मृगध्वजराजा कथा, सं. गद्य, मूप. मी एकादशी गण, सं. गद्य, मूपू (जंबूद्वीपे भरतक्षेत), ४७८९८ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंविसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ४४९७५, ४७८८७ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ४७३१६-२(+$) मौनएकादशीपर्व गण, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ४७९५६ (वाम हस्तोपरि दक्षिण), ४५४३६ (--), ४३५०६ (+5) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ४४८८१-५ (+#), ४४८६५-७, ४५६६४-६, ४६६०१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दीक्षा श्रीअरनाथकस्य), ४८००२-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीभाग्नेमिर्बभाषे ), ४३५०७-२ राग परिवार वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, जै., (श्रीरागो वसंतश्च), ४३८२७-२ रुद्राष्टाध्यायी, सं., अ. १०. वै. ॐ गणानात्वागणपति) ४६८४६-१ " यंत्र संग्रह *, मा.गु., सं., को., जै., वै., (--), ४४८८३-२ (+), ४५७३७-२ (+#), ४४८५५-२, ४४८६०-३, ४७७१०-६ युगप्रधान आयुमान, सं. पं. भूपू (प्रथमोद सुधर्मा जंबू), ४४५३४-२ 1 योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., को., मूपू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ४७६४५ योगविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ४५१८१-१ रंभाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, (कमलदल सुनेत्रे हार), ४५५७९-२ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., ( श्रेयः श्रियां मंगल), ४३७१६-११ (+#), ४४९११(+), ४६५९७-१(+), ४५००१, ४७६७४, ४४३९०.२(१ राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., पग, मृपू (प्रथम इरियावही पडिक), ४४४३९-२(+), ४५१९८ लक्ष्मीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, जै. ?, (या श्री पद्मवने कदंब ), ४७९८७-२ लग्नानुसार क्षेत्रपालादि दोषज्ञान, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (लग्भेष्टमे व्यये), ४४३४४-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ י' " " लघुद्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. गा. २५, पद्य, वि. (छदव्य पंच अत्थी), ४३७०६ (+) (२) लघुद्रव्य संग्रह -टबार्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (अरिहंत देवई षट्द्रव), ४३७०६ (+#) लघुपट्टावली, मु. हेमचंद्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (विदित सकलशास्त्रान् ). ४५७३७-१(+४६) लघुशांति आ मानदेवसूरि, सं., श्लो १७+२, पद्य, मूपू (शांति शांतिनिशांत), ४३७२१-१(+४), ४४००८ (+), ४४५२५(१), " ४४७००(१), ४५३५३१), ४७५९४(१), ४७८१९(+), ४३४७०-१, ४५२१०, ४६३८०, ४७५६९, ४७६०९, ४४८९३-२(१), ४७८६३(#) (२) लघुशांति स्तव टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६४४, गद्य, भूपू (सर्वसर्व सिद्ध्यर्थ), ४४००८ (+) ,, (२) लघुशांति-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू. (श्रीशांतिनाथ शांति), ४३७२१-१ (+), ४७५६९ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू (नमिय जिणं सव्वन्नं), ४४२२१-१०) ४५०११, ४८०३०-१ (२) लघु संग्रहणी -वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमिय क० नमस्कार करी), ४४२२१-१(+) (२) लघु संग्रहणी -९० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, मृपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ४३८२० (७) लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (येन स्वयं बोधमयेन), ४५८१० (#) ललितसूरि प्रशस्ति श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (तत्पट्टोदयभूधरोष्ण), ४४४३५-२(०) लवणसमुद्र वर्णन गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मृपू, ( दोन्निसया असीया पणनउ), ४६२८५ (२) लवणसमुद्र वर्णन गाधा टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (दोइसय असी पंचाणुहजार), ४६२८५ लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा. सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (मूलं साहपसाहा गुच्छ), + ४८०७७-४(+) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मपू., (जिणदसणं विणा जं), ४३६७३-३(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणहस वइसाह प्रसारि), ४३६७३-३(+#) लोकांतिकदेव स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (थोसामि जिणे जेहि), ४४५६२-१(+) (२) लोकांतिकदेव स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यैर्देवैविज्ञप्ता), ४४५६२-१(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ४३५५७-२(+#), ४४०८५-१(+), ४५०३४-३(+), ४७११८-५(+), ४३८५५, ४४५८७-३, ४४६२८-२, ४४८३९-५, ४४९३०, ४६३३६-४, ४७१६८-४, ४७३२७, ४८०१७-१, ४८०६८(८) वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७१, पद्य, मूपू., (उसभाइ जिणिंदे पत्तेय), ४४०८३(2) (२) वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., पद्य, मूपू., (वृक्षाचूतादयः), ४४०८३(#) वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ४७३१६-१(+), ४४३६९ वरुणदेव पूजा-जलानयन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ वं वं नमो वरुणा), ४४०९०-३(+) वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवओ अरहओ), ४७९१०-२(+), ४७६८७-४ वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंता), ४६१९२-२ वर्द्धमानविद्या स्तव, आ. चक्रेश्वरसूरि, प्रा., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (विलसंत जोइवीए), ४४६६०-१(+) वर्धमानविद्या स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (आसि किलझुत्तरसय), ४४६६०-२(+) वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ४५०२४ विंशोत्तरी दशा, मा.गु.,सं., प+ग., वै., (दिनकर नख २० संख्या), ४६८८२-१ विघ्नहर स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे., (सर्वारिष्टप्रणाशाय), ४७११८-४(+) विचार संग्रह, सं., वि. १९वी, गद्य, श्वे., (अस्ति शब्देन प्रदेशा), ४४१७१-४(+) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ४३५४३-४(+), ४३५७१-१(+#), ४३६७७-३(+#), ४४३७३-३(+), ४४८४५(+$), ४३७७५, ४३६५०(६), ४४२०३(5) विजयदेवेंद्रसूरि गुणकीर्ति प्रगटीकरण श्लोक, मु. कपूरविजय, मा.गु.,सं., श्लो. ७५, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सरसती माता पाय नमी), ४४१२३ विजययंत्र कल्प लेखनविधि, सं., प+ग., श्वे., (चत्वारि अक्षराणि बीज), ४७६७५ विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नत्वांहिपाथोजयुग), ४४८५५-१ विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., वै., (विद्या नाम नरस्य रूप), ४३९५४-३(+) विधिप्रपा, प्रा., पद्य, जै., (संपयंपुण सम्मत्तारो), प्रतहीन. (२) विधिमार्गप्रपा-प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रोप), ४५२३१(+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ४३८८४-१(#) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जभाराति पुरोहिते), प्रतहीन.. (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ४४००५ विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), ४५३७४-१ विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), ४६५६१(+$) विष्णुकुमारमुनि कथा, सं., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भारतींसाधु), ४३६१५(+#) विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ४६२६८-१(+%), ४६३३६-३ वीतराग नमस्कार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (करि पंचाग पमाणं भत्त), ४४१२६-२ वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ४७९५३-२(+#), ४४१९९-१ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ४३७७८(#) (२) वीतराग स्तोत्र-सप्तम प्रकाश, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (धर्माधर्मी विना), ४५७४५ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (३) वीतराग स्तोत्र-सप्तम प्रकाश-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धर्माधर्मों विना), ४५७४५ वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ४४८३९-६ वृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (वृहस्पतिर्देवगुरु), ४४१७२-३(+) वैद्यकश्लोक संग्रह, सं., श्लो. ५, पद्य, (प्रसंगाद् गात्र), ४३९३४-२(+#) वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जम्मजरामरणजले नाणावि), ४३७७७-२(+#) वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाहं असुरिं), ४३८५७(+#), ४४१२४ व्याकरण, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., वै., (रंते भव: दंत्य: देत), ४४१९९-२ व्याकरणपत्र, सं., गद्य, (--), ४५९४८-१(+#) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ४४७२९ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दान), ४३५५५-१(+#$), ४७९४०-१ व्याख्यान संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सज्ञानलोचनविलोकितसर), ४७४७८ शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ४४०७६, ४३८५९(#) शक्रस्तव आम्नाय, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (शक्रस्तव संप्रदाया), ४३७५९-१(+#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमंडलमणिमय), ४६६५७-२(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमः सिद्धक्षेत्राय), ४४५०२-२(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ४७७४५(+), ४५३५०(5) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो.५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ४४५३७-३ शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ४७४३१ (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), ४७४३१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धोविज्जायचक्की), ४३५३५-२(-2) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (य: पुरा राज्यभ्रष्टा), ४४१७२-२(+), ४४८०५-२(+), ४६८०८-४, ४७५२९-४(5) शनि स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (सुव्रतजिनेंद्रस्य), ४४१७२-५(+) शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुरराजसमाजनताहि),४५७९१-६(2) शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (अप्पडिहयधम्मचक्केण), ४४२१६-२ शांतिजिन स्तवन, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (दद्याच्छ्रीशांतिदेवो), ४४२३६ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अंही कूर्मयुगं करौ), ४४८६५-८ शांतिजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (सावज जेण रज), ४३८५८-२(+#) शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ४५३३८, ४४९४५-२(#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नानाविचित्रं बहुदुख), ४५०१०, ४५४४५, ४५५५६, ४५८१४, ४५६५८-३(#) शांतिनाथ चरित्र*.सं., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) दानादिफल माहात्म्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४६१३५-२(-$) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), ४४१२२-१(+) शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवे नंदीसरम्मि), ४४८६५-१२(६), ४७९६३-५(-) शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), ४५२०१ शाश्वताऽशाश्वतजिन स्तुति, सं., गा. ४, पद्य, स्पू., (द्वीपे जंबाह्वये ये), ४४८९८-४(+) शिव स्तोत्र, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (विहनी लोचेन नंदी), ४७१३८-१ शीतलजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयति शीतलतीर्थकृतः), ४६२२७-१ शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अहं भंते तुम्हाण), ४४३४१-३ शुद्ध समाचारी खरतरगच्छ, प्रा.,हिं., गद्य, मूपू., (जो प्रतिपदा १ तिथि), ४७५३७-२ For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९९ श्रावक १२ व्रत नाम, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (अहिंसासु १ मृषावादो), ४७८३४-५ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई),४६२७६-३(+), ४४८३१-६, ४७८३४-३, ४४४४७(-१), ४७५२५-६(-) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-(पु.हि.)बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (श्रावके जीवजी पांच), ४४४४७(-2) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ४६२७६-३(+) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, मूपू., (किनहीक श्रावक पांच), ४५५३४-१ श्रावकअतिचार संख्या गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणाई अट्ठवय सट्ठी), ४५४८९-८ श्रावकविधि, जै.क. धनपाल, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जत्थ पुरे जिणभवण), ४८०३५-३(+) श्रावकविधि रास, मु. पद्मानंदसूरि शिष्य, अप., गा. ४९, वि. १३७१, पद्य, मूपू., (पाय पउम पणमेवि चउवीस), ४३७१५-१(#) श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (पणमिअसमत्थपरमत्थवत), ४३६७३-१(+#) (२) श्रावकव्रतभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्रतं नियमविशेषः), ४३६७३-१(+#) श्रावक षटकर्म श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (देवपूजा गुरुपास्ति), ४६२७६-१(+) (२) श्रावक षटकर्म श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे श्रावकना षट्), ४६२७६-१(+) श्रुतभुवनक्षेत्रदेवता स्तुति, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (याकुमन्नयसोमचारुचरणा), ४७९१२-२(+) श्रेयांसजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (चिरपरिचिता गाढव्याप), ४७२४५ श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ४५१३५-२(+), ४७९१२-४(+), ४४१८३-२, ४४२००-२, ४५६२१-३, ४६४५३-१, ४६६०२-१, ४६१४२-२(#) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ४४६२५-२(+), ४४८२७-१२(+), ४४९१९-५(+), ४५०९५-२(+), ४४४७१-२, ४५०८३-२, ४५५६४-२, ४५७२८-३, ४६१५९-१, ४६१८५-३, ४६१८७-२, ४६३०४-३, ४६३४३-३, ४६५६३-२, ४७७००-२, ४६३५४-५(#), ४७१२२-२(#), ४८०२९-२(#), ४७४८३-२($) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ४४३३७-३(+#), ४४४७०-२, ४७९४०-४ श्लोक संग्रह, सं., पद्य, जै.?, (--), ४५४९९-२(#) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ४३६५७-२(+#), ४३७३८-२(+#), ४६५७८-४, ४३९७६-२(#), ४४१८७-३(#) श्लोक संग्रह गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्राव: किमयंग), ४६६२२-२(+), ४३९७०-१ (२) श्लोक संग्रह गूढार्थगर्भित-टीका, सं., गद्य, मूपू., वै., (अमोलक्ष्मीरहितोलक्ष्), ४३९७०-१(5) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ४३५१८-३(+#), ४३५७६-२(+), ४४२२१-२(+), ४४२२९-२(+), ४४४३०-२(+), ४४७१५-२(+), ४४८०१-२(+), ४४९८७-४(+), ४४२०९-३, ४४२३४-२, ४४३३९-१, ४४७३०-२, ४४९६२-२, ४५१११, ४५६५२, ४६८२६-२, ४७१०२, ४७१९६, ४७९६७-२, ४७९७६-४, ४८०३२-१, ४८१०५-३, ४३६२६-३(#), ४३७१५-२(#), ४३९१३-२(#) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ४७१९६ षटभाषा स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नमो महसेन नरेंद्र), ४४४०१(+) षट् संस्थान अधिकार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (परिमंडल १ वृत्त), ४७०५१-१(१) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, म्पू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ४४१५०(5) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाला च्यार ते मधे), ४७६५१ संघस्वरूप कुलक, आ. पूर्वाचार्य, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (केई उम्मग्गठिआं), ४७४०७ संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ४७५०१(+), ४३४७०-२, ४४२५७-१, ४४३४८-३, ४६३१८, ४३५४९-१(#), ४३८४७(#), ४४५६८-४(#), ४६२९७(#), ४६८९२(#) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ४४३४६(+), ४४९०२(+), ४७८२०(+), ४४२२२, ४५५३०, ४६०८७-२, ४६१८६, ४७२५४-१, ४४०६९-१(#), ४४४१५-२(#) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०० (२) संथारापोरसीसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बिजो), ४४२२२ 2 (२) संथारापोरसीसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमस्कार विना बीजो), ४७२५४-१ संथारा विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (संथारा पाट आलोउं), ४४६१८-१(+) संबोधप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभवियजीवेहिं न), ४३५५८, ४४७३०-१ संभवजिन स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं. लो. ११, पद्य, भूपू (कामं नमोस्तु सततं), ४३७४०(०) संलेखना पाठ, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ४३९७५-१ 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ संसारतारण तप आराधना विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीकेसि गणधराय नमः), ४३९८२-१ संसारदुःख वर्णन, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., ( जम्मदुक्खं जरादुक्ख ), ४५५७५-२ (२) संसारदुःख वर्णन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (जम्म कहता ए संसारनै), ४५५७५-२ सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (वासासु सगदिणो उवरिं), ४७९६४-४(+) (२) सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (वरसा काले दिन सात), ४७९६४-४(+) सत्यभाषा विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (जणवय१ सम्मयं२ वचणं३), ४७९६४-२० (+) सप्तभंगी स्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिया अत्थि १ सिया), ४३७५५-१(+#) , (२) सप्तभंगी स्वरूप गाथा -विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल पदार्थ आप आपणे), ४३७५५-१(+#) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू णमो अरिहंताणं० हवइ), ४३९८९ (०३) + (२) सप्तस्मरण -खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ४३९८९(#$) सम्मेतशिखरतीर्थ कल्प, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (यद्भरतावनिवनिताविशाल), ४७२८५-१ सम्यक्त्व कुलक, आ. अमरचंद्रसूरि, प्रा. गा. ३५, पद्य, भूपू (देवो धम्मो मगो), ४३४७८ (+) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा., मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग दस), ४७५२५-१ ( ) (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलै बोले नवतत्त्वसु), ४७५२५-२ (-) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), ४४४३२(+), ४४५८३-१(०), ४४०३८, ४७५७१-२(७) (२) सम्यक्वपच्चीसी चालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (यथा जिम समकित्वनुं), ४४४३२ (+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), ४४५८३-१(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्राग्वाग्देवि जगज्ज), ४४१५१-३, ४७६१५-१ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा., मा.गु., सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातार), ४३५०९ (+#), ४८०५७ (+), ४४०२४ सरस्वतीदेवी वीजमंत्र, सं., गद्य, भूपू (ऐं की हौं वद वद), ४७१६३-२(+), ४७९२७-३ For Private and Personal Use Only सरस्वतीदेवी मंत्र, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो सरस्वत्या), ४८१११-१(#) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं वद), ४७२१६-२ (+) सरस्वतीदेवी मंत्र साधना विधि, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं), ४५५५१-३ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (ब्रह्माणी कमलेंदु), ४७९८७-४ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ४७८९२-२ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यन्नामस्मृतिमात्रतो), ४३६३१-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., गा. ७, पद्य, वै., (वागवादिनी नमस्तुभ्यं), ४७९८७-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., ( हॉलब्लु), ४६७३९-१(३) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदन चंद्रमा), ४६२०८ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पं. विजयरत्न, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमाता श्रुतदेवता), ४४७०७(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (त्वं शारदादेवी समस्त), ४५८८२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू. (कमलभूतनया मुखपंकजे), ४६६२२-३), ४७७२९ " Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मपू., (ॐ श्रीअर्हन्मुखांभो), ४५७५०(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., वै., (नमामि भारति देवी), ४७९८९ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ४४२८७-१(+), ४७९२७-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (विपुलसौक्षमतधनागम), ४७२०७ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ४७१६३-१(+), ४३४८२-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती नमस्यामि), ४४२२०-४(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ४३६०४-१(+), ४४३२३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ४४२२०-३(+), ४४२६७-१, ४७९६७-१, ४३४८७-२(#) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), ४७९१२-१(+$), ४५८५९-१ सर्वजिनबिंब वंदनसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्ताणु वइससा लखा), ४७७५९-४ सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो), ४४९१४ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ४७७४७(+#) (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेत्यादिनि), ४७७४७(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन*,मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ४४९१९-३(+) साधारणजिन नमस्कार, सं., श्लो. १५, पद्य, पू., (मूर्तिस्ते जगता), ४४१६५-१(१) साधारणजिन पद, प्रा.,सं., गा. ११, पद्य, श्वे., (जयजय जिणिंद तियसिदवि), ४७४८६-४ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ४५०३३, ४७७६१, ४७८३९ (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), ४५०३३(६) साधारणजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (वरकेवलदसणनाणधरा), ४८०७४-३(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ४३७६८-३, ४६३१०-२, ४७७८७-१(-) (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाधिपतिवा), ४३७६८-३ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ४५६३७(+), ४४८६१, ४४८६५-१(६), ४७४८३-१(६) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (ऋभुस्तुभ्यपादं न), ४७९३४(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ४५१६६-३ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनो जयति यस्याही), ४७९६३-३(-) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमौलिप्रपत्परा), ४५३३६-२ साधारणजिन स्तुति, सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (यः द्रणुर्चिकलोति), ४४८९८-७(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलामल मंगल कमलाकेलि), ४४२९८-२(-) साधारणजिन स्तुतिगर्भित-पंचक्रियागुप्त, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू., (श्रीप्रतिष्टान्वयोक्), ४३९७०-२ साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (घात्या घेवर लापसी), ४३७६८-४ (२) साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित टीका, सं., गद्य, मूपू., (अयीति को० हे प्रभो), ४३७६८-४ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ४८०७७-१(+), ४६२८७, ४७४३५-१, ४६७४४($) साधारणजिन स्तुति-संसारदावापादपूर्तिरूप, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (प्रीणाति विश्राणनतोर), ४४५३८(+#) साधारणजिन स्तोत्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (इष्टानिष्टवियोगहरिणी), ४४२३४-१ साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधु काल करे), ४३४७९-१(+#), ४३५३३-१(+), ४७८१०-१(+) साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (समाचारी १० प्रकारनी), ४४७७८-४ For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०२ www.kobatirth.org " साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा. गा. ७, पद्य, मूपू (पत्तं पत्ताबंधी पायठ), ४७९६४-७(+) (२) साधुसाध्वी उपकरण -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रानी मर्यादा), ४७९६४-७(+) सामाइकी अतिचार, प्रा., गद्य, भूपू (नमो चवीसाए), ४४०३७ सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, ? (--), ४७२९३-२, ४७९५८-२, ४७०२८-३) सामान्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ४३६९३-३(+#) " " सामुद्रिक, शकुन, निमित्तादि संग्रह, सं. मा.गु. प+ग. (--), ४५७७३-२ सारणैश्चर स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (नगार्धांशगोकर्ण मूले), ४७४४७-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ४३६०७-१(+#), ४४१७९, ४४३३१-१. ४५८१३ ४७८९६-१ (२) सिद्धचक्र चैत्यवंदन-चालावबोध, मा.गु, गद्य, भूपू (उपन्न कहतां उपनु जे), ४४३३१-१ ७ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहा सिद्धायरिया), ४७७२२-३ (+) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ४३६०७-२१+०१, ४७८९६-२, ४५६३६-७(-) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, भूपू (जं उसहकेवलाओ अंत), ४४५५५, ४३४९४क , , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (२) सिद्धदंडिका स्तव -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जं क० जे उसभ क० ऋषभ), ४३४९४(#) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ५०, पद्य, भूपू (सिद्धं सिद्धत्थसुअं), ४३७७१ (+) , (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण -टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (सिद्ध क० मोक्ष पुहतो), ४३७७१(+) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ४४१५१-२, ४४९०६-१, ४५३६७, ४५४०२, ४७४४६, ४७८९२-१, ४३४८२-१ (४), ४८०२९-१००), ४७९२७-४(४) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्हं सिद्धिः स्वाद), प्रतहीन, (२) सिद्धमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, भूपू.. (प्रणम्य परमात्मानं), प्रतहीन, (३) न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. सू. ५७, गद्य, मूपू ( स्वं रूपं शब्दस्या), ४७८२५) ,, (४) न्यायसंग्रह टीका, सं., गद्य, भूपू. (एवं रूपं शब्दस्य), ४७८२५ (०) (२) न्यायसंग्रह, संबद्ध, ग. हेमहंस, सं., सू. ८४, ग्रं. ६८, गद्य, मूपू., (प्रकृतिग्रहणे स्वार), ४४५४३ सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणसिद्धा अरिहंता), ४४८२८-३(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १३४१ ग्रं. १६७५. वि. १४२८, पद्य, भूपू (अरिहाइ नवपयाई झायित), प्रतहीन. , " सीमंधरजिन मुखप्रमाण, प्रा. गद्य, थे. (रवणीए पन्नासं विदेह), ४७९६४-६ (+) "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י י (२) सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गयणमकलियायंतं उद्दाह), ४३४९९-१(+) (३) सिरिसिरिवाल कहा सिद्धचक्रपंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, म्पू, (अथ गगनादिसंज्ञा). ४३४९९-१(+) (२) सीमंधरजिन मुखप्रमाण -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (रयणीक हाथ ५० हाथ), ४७९६४-६(+) " सीमंधरजिन स्तवन, मु. नगजय, सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू. ( श्रेयंसपुत्रं कृतभू), ४४५०२-३०) " सीमंधरजिन स्तवन खंभनगरमंडन, अप., गा. २१, पद्य, मूपू. (खंभनवर मुखमंडणुए), ४३६४७(१) सुभाषित श्लोक, मा.गु., सं., श्लो. २, पद्य, श्वे. (अपुत्रस्य गृहं सुनं), ४६४६३ -२ (+) सुभाषित श्लोक सं., श्लो. २, पद्य, वे (दुरितवनघनालीशोककासार), ४६३८२-१(+) " 1 For Private and Personal Use Only . Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०३ सुभाषित श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ४४११९-५(+), ४५६५४-३(+#), ४४२५८-२, ४४५६४-२, ४४९७०-२, ४५०४२-६, ४५७११-५, ४६३४८-२,४६८२६-३, ४६९२६-२,४७११२-४, ४८०१५, ४४८४८-३(#), ४७०५१-२(#) सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ४७७५७-२, ४७०६३-२(#) सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (अन्ना सत्थे पेमं पाव), ४७५४२-१(+-), ४७७६५-२ सुमतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (संस्मरामि सुमति), ४४२०८(+#) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग.४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ४७२०३($) सूक्ष्मबादर निगोदविचार संग्रह-आगमसूत्रगत, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (एणि करीनई बादरनिगोद), ४७५४१-४(#) सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ४३७२९-२(#) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ४७९५७ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज कहता जाणइ), ४४०५६(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ४३६५९(+), ४४४०८-१(+), ४४१४७, ४४२३५, ४४८७७, ४६०६८, ४६८७६, ४७६९१, ४४८१४-१(-६), ४७६८४(-) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ४३६५९(+), ४७६८४(-$) (२) इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा, संबद्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (अट्ठादंडे १), ४४२३१-७(+) सूर्य मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ नमो सूर्यदेवताय), ४५४८९-४ सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (ॐसूर्यस्थापीतंदेव), ४६८०८-३ सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (यः संसूर्ये महातेजो), ४५४८९-३ सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (यस्या सूर्य माहातेजो), ४६८०८-२ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, भूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ४७४६०-१, ४७७५७-१ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेण), प्रतहीन. (२) स्थानांगसूत्रहिस्सा समोसरण आलापक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (ततेणं समणे भगवं), ४३९९६ (२) स्थानांगसूत्र-सप्त स्वर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (षडग १ रिषभ २ गंधार ३), ४३८२७-१ स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्थापनाविधि), ४७८१०-२(+$) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ४४४५३-१ स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., उल्ला. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशारदां हृदि), ४४४२२ स्वरूपचिंतन स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, श्वे., (गुणपर्याय युक्तानि), ४४५०२-१(+) हनुमत् स्तोत्र, सं., श्लो.७, पद्य, वै., (ॐ महावीरं महारुद्र), ४५५५१-२ होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ४४३१८ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, ग. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानंजिन), ४४३१८ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ४३७११ होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ४३९८३(+#) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ गुप्ति ५ समिति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति वचनगुप्ति), ४४९९६-७ ४ कषाय परिहार सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणि उपदेश सुहामणो), ४५६२५-३(+#) ४ कषाय परिहार सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (क्रोध तजोरे क्रोधी), ४५१२७ ४ कषाय परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., चौपा. ४, पद्य, मूपू., (क्रोध करइ गुण हानि), ४६२२१(#) ४ निक्षेपस्थापक स्तवन, मु. नेमसागरशिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ च्यारी), ४४६१७-२(+#) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ४३६४९-४(+#), ४४६६१-१, ४६२१२, ४८११२-२ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ४४४८५(+), ४४३६०-१ ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चारो मंगल चार आज), ४४६२७-३(#), ४६७०२-२(#) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ४४९३२, ४७५००-१(#$) ४ मंगल पद, मु.रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ४७७५९-२ ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), ४७५६८-३ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीनें समरीजै हौ), ४५६५८-२(#), ४७०६८-१(#), ४६४५७-२(-) ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मंगलिक पहिलुंकडं ए), ४४९८७-२(+) ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंगलिक पहिलो कहुं एह), ४४३७०-२(+-#), ४५२४२-२ ४ मांगलिक सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुप्रभाति जागी सुगुर), ४४८५७-१ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ४४२६४-३(+), ४५६२७(+), ४३४७०-३, ४३९५६ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ४४२४७ ५ इंद्रिय चौपाई, पुहि., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ४३५९३-१(+#), ४४७६७ ५ इंद्रिय पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पांच मृगले तेईस), ४३५८९-३(+#) ५ इंद्रिय विवरण, पुहि., गद्य, मूपू., (स्पर्शनेंद्रिय १), ४७०५६ ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (काम अंध गजराज अगाज), ४७०५८, ४७७६०-२, ४५१४६-९(#) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (कायाने केरे रे काइ), ४३७१६-३(+#), ४४१११-१(-) ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., गा. ९, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (प्राणि पांचु इंदा), ४६५३७-१८) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, पू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ४३४८५(+), ४५०७० ५जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पंच परमेसरा परम), ४३५५६-१(+), ४६६०३-२ ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरनारगिरि), ४३७३१-१(२), ४४३३५-१ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ४६४६३-१(+), ४५६२२, ४७४००(#), ४५७२९-२($) ५ पद खमासमणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेलै पद अरिहंतजीने), ४६७२०-३ ५ परमेष्ठि आरती, मु. महानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (पैहली रे आरती अरिहंत), ४३७९७-२(+#) ५ परमेष्ठी आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहि., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ४५९४८-२(+#), ४७४५१-१५(#) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ४४६०३-१, ४७७७५, ४७९२१-१ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (हस्तीनागपुर अतिभलो), ४४७४८ ५ मंगल भास, मु. खीमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहेलु ए मंगल मन), ४७१६६ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ४३४८०-१(+#), ४४५६८-१(2) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ४४१८०, ४४९२८, ४६६०९, ४६७२८-१, ४७४१०, ४६५६९-१(-) ५ वधावो, मु. हरबैस पंडित, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (पांच वधावो महार इम), ४४११०-२ ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (औपशम समकित १), ४४९९६-२ ६ आरा विचार, मा.गु., गद्य, स्था., (पहलो सुखमांसुखमी), ४४०४८ ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसइं जिन चीतवीं), ४४३६३-१(+) ६ कायआयुष्य सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति अमृत वरसति जी), ४३६२१-१(+) ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ४७८२३-२(+) ६ काय सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मुनिवर देवै देसणा जी), ४४५६६ ६ काय सज्झाय, मु. दयारत्न, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (या हुसि आज छे जी), ४६४६४ ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ४३६८८(#) ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकायरा गुण ४), ४६४९० ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ४३८१६(+) ६ लेश्या सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी सहिगुरुपाय), ४४६७७-१ ६ संवर सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (पहिलो संवर जिनवर इम), ४६९७६-१ ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (घणे माने करावसु सत्त), ४५०४२-२ ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीखामण सद्गुरु तणी), ४७७७७-२ ७ व्यसन कवित्त, मु. कल्याण, पुहिं., पद्य, मूपू., (या हित प्रीति प्रतीत), ४५२३७-६(5) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (मनुष जमारोपायक करणी), ४८०२२-१(-#$) ७ व्यसन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (सात विसनकै सेवणे होत), ४३९३७-२(१) ७ व्यसन सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जूआ विसने वाहीऊ नल), ४६६७७ ७ व्यसन सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि मेरे जीयरा सीख), ४४८३८ ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ४५७१९-२(+), ४५०३९, ४७४९९-१ ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो साभले), ४३६४९-३(+#), ४४६६४-१ ७ व्यसन सज्झाय, मु. पुण्यकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर पाये नमु), ४७८८६-२ ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनृप कुलतिलो), ४३९२२-१ ७ व्यसन सज्झाय, वर्धमान, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (छारु रे छोरु तु), ४५४६५ ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जुठ वचन ते करमनि), ४५१७३-१(#) ७ व्यसन सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीगुरशिष्या सांभलो), ४६९७८-१ ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदनी १ कसाय २ मरणां), ४७९४५ ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधना जीव अनंता १), ४७५२५-७(-) ८ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प उठी बंदु परबाते), ४६९६९-२ ८ प्रकारी पूजा दुहा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्नात्र करता जगत), ४४२५७-३ ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीई), ४३७४६(+), ४३९७८(+) ९नियाणा विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिलो राजनियाणो तप), ४५४९७(+) ९ पदपूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीफल नं १० श्रीफल), ४४०७७-४ ९ मानवता के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरु की सेवा करे), ४७५३५-७ ९ रत्न कवित, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (धन्नतरि छपनक अमर), ४७५४१-१(१), ४५७६०(६) ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ४३७५४-४(+#$), ४४५७२, ४७८२६, ४८०६६-२() For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे), ४३८२२-३, ४७७७२-२ ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमु), ४८०९२(+), ४३६९७(#) ९वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नववाडि मुनिसर मनधरो), ४५५८२ ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पहेला प्रणमुंगोयम), ४३६३८-२(+#), ४४७६३-१(#) १० दृष्टांत सज्झाय, मु. जीवनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ६१, पद्य, मूपू., (वांछित भव निज वस्तुन), ४४०९४-१ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ४३७४८-२(+#), ४५५२९-१, ४८१२१-२ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ४७९१७(+), ४८०५८-१(+), ४४५१४-१, ४६०७४ १० पच्चक्खाण स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. १९, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सिद्धारथ नंद), ४६६७५-३ १० बोल सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ६, वि. १९७२, पद्य, श्वे., (ए दस बोल देखे छद्मस), ४६६१०-१ १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ४७३८१-१ ११ उत्तम बोल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (धर्म जाणपणा होइ तो), ४७५२५-३(-) ११ गणधर गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहेलो गोयम गणधर), ४३५३०(#) ११ गणधरनाम स्तुति, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (गौतम इंद्रभूति नाम), ४४७६२-२ ११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभाते उठीने भविका), ४६००१ ११ गणधर स्तवन, मु. टोडरमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चोवीसमा श्रीवीर), ४६८५७-२ ११ गणधर स्तवन, मु. भोज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (पिता सिधारथ तिसलामाय), ४७६०८ ११ गणधर स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. १, पद्य, स्था., (इंद्रभूति शीवगामी), ४६४३७-३(+) १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान१ सुतज्ञान), ४३९७२-४ १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, श्वे., (उग्र कुलाणी वा कहता), ४५५७५-१ १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ४८००८-३ १२ जाति व नगर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमाले उवएस नाम), ४६३०४-२ १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहल बोल समकंतले२ नर), ४४६१६-२, ४७५२५-४(-) १२ बोल संयम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ बोलें संजमनो घर), ४५२६३-१(+) १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ४४३४४-१ १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आमलीमत १ पासचमती २), ४४५००-२(१), ४६५५४-३($) १२ मास, सुरज, मा.गु., गा. १३, पद्य, (मधुकर माधवने केजो), ४७६७२-२ १२ मास नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभिनंदन १ सुप्रतिष्ट), ४६१५४-९ १२ मास नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसढ श्रावण भाद्रवो आ), ४५५१२-२(१) १२ व्रत अष्टोत्तरबोल गाथा, मु. नेमसागरशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (व्रत बारहनुं जाणो), ४४६१७-५(+#) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ४५१३६ १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), ४४९९६-६ १२ व्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गउतम गणधर पाय नमिजे), ४६५८५(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरवाणी जसु), ४४६१७-४(+#) १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर पाय प्रणमी), ४६१११-३ १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ४५४२४, ४५५७४ १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि करो), ४३६८४-१(#) १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंगौतम), ४५०९०,४५९७४ १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ४६५७४-२ १३ काठिया सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सांभल प्राणी सुगुण), ४७११३ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५०७ १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ४५२८९ १३ काठिया सझाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (चेतन तुंतारूं संभाल), ४५०७३ १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्वगु० आहारक), ४३९७२-५ १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणस्थानक १४ तेहनां), ४४२४३-४($) १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ४४२०७ १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ४४२३१-३(+), ४४८२८-४(+), ४३९७२-३, ४४०७७-२ १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ४७५०५ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर पय नमी रे), ४४७७९ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (निजगुरु केरा प्रणमी), ४३४८९(+#) १४ जीव गति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंजमी मिथ्यात्वी), ४५७११-१ १४ पूर्व दूहा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (उतपात प्रवाद पूरव), ४३७७४(#) १४ बोल सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (गोयम गुणभंडार बेकर), ४५७११-२ १४ बोल सज्झाय, ऋ. साधु, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सूत्र भगोती सतक), ४५१८४ १४ राजलोक चैत्यालय मान विवरण, मु. लालचंद, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), ४६२१९(+$) १४ शाता वेदनी कर्मबांध, मा.गु., गद्य, भूपू., (दयावंत होय दानवंत), ४७५३५-६ १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), ४४३८५-१,४३५७०(#) १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सूढ सरल दीपत्त दंतु), ४३९३७-१(#) १४ स्वप्न पद-कुवचनगर्भित, मु. मान पाठक, मा.गु., पद्य, म्पू., (पेहले रासभ दीठो नयणे), ४६४५५-२(#) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुविसालमाला प्रोढ), ४६१८५-१ ।। १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ४३६९५-१(+#), ४४९८९-२ १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम ऐरावण दिठो), ४४६२७-१(#), ४६४५५-१(#) १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पनर कर्मभूमि कहीइ), ४६५९५(#$) १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, जै.?, (परिवा प्रथम कला घटि), ४७५४१-२(#) १५ तिथियों की रात्रि का नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तमा १ सुरक्षत्रा), ४६१५४-११ १५ तिथि शुक्र उदय विचार, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पडवे छठ इग्यारसे असर), ४७२४४-१ १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पडवे प्रणमु पाय पास), ४७९९४ १५ दिवस नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुर्वागसिद्ध १ मनोरम), ४६१५४-१० १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ४३९७२-२ १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ४६९६९-१ १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी १ चंदनबाला), ४७५३५-३ १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ४५०६८ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ४४५४५-१(+), ४४६२८-१, ४७१३१, ४४६५५-२(s), ४५८५७-१($) १६ सती सज्झाय, मु. खेमराज, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सील सुरंगी भांत कै), ४५२४८-२(#) १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ तणी धुया), ४६४६७(+), ४७७७९-२(5) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भालि ओढी), ४५४३९(+), ४६८०२-२, ४७३३३, ४७८७० १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), ४४९८७-३(+) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल जिणवर करुं), ४३६३८-४(+#) १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचारी चूडामणी), ४७९४४ For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीन), ४५२१८ १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (पोढुनयर पाडलीपूर चंद), ४३६५६(१) । १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी पेहलडे), ४५१२३, ४८०१२ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ४६९४५-१ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ४७२७४ १८ अभिषेक औषधादि सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुवर्णचूर्ण स्नात्र), ४४०८२-२ १८ धर्मोपदेश बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (आउसग करता पचखाण ऊपर), ४८०७०-२ १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुंपास), ४६६१३ १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मथुरापुरी रे कुबेर), ४३५२४-२(#) १८ नातरा सज्झाय, पंन्या. देवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २२, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर पाय पण), ४८००४-२ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (कुवेरदत्त इम चिंतवै), ४५२३६-१०) १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वेदन सही मानव भव लही), ४५५७० १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो प्राणातिपात), ४७५७४-४ १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), ४६१९४ १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पापस्थान अढारे पुरो), ४५२३६-२(-) १८ प्रकार की लिपि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हंसलिपि १ भूयलिपि २), ४६१५४-२ १८ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेले बोले नंदीसर), ४३६६६-५(+#) १८ वर्ण सवैया, मा.गु., कडी. ३, पद्य, श्वे., (ब्राह्मण खत्रीय), ४६१०६-२(2) १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त्री भेद ४), ४७९८७-५ २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले श्रीअरिह), ४६४१२(-2) २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुंवाद विवाद न), ४७२५२-१(+) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवरा विचरे), ४३८१७) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जय जय जगगुरु), ४७९५३-३(+#) २० विहरमानजिन नाम पद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधर जुगमंदिर बाहु), ४४७६२-१ २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि), ४४०७७-१, ४४६१९(-) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधर साहिब हो), ४७५४८ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर पेहेला नमुं), ४३९२५-१ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (पहिला स्वामी सीमंधर), ४३९०८(#) २० विहरमानजिन स्तवन, आ. वृद्धिसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्री सरसति), ४४१५५ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (विहरमान तीथंकरवीस), ४७८४६-३ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. २०, पद्य, म्पू., (पेला बांदु श्रीमींदर), ४५६९५(-) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्री जंबुदीप विदेह), ४७९७४(-) २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), ४५५८६-३, ४७४९२-२ २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ४६१२४ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमु), ४५५८६-२, ४७४९२-१ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसत हा रे मारे), ४५३३५ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुअदेवी समरी कहु), ४३५२८(+#), ४६५७४-१, ४३४७३-१(#), ४३६३०(#) २० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत पद ध्याइय), ४४९५२-२ For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५०९ २० स्थानकतप स्तुति, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहं सिद्ध पवयण), ४६१००-२, ४७४५१-२(#) २० स्थानकतप स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (विसस्थानिक तप विश्व), ४४८७०, ४४९५२-१ २० स्थानकतप स्तुति, ग. विद्याकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीसस्थानक सेवो भाव), ४३६५५-१(+#) २१ प्रकारे प्रासुक पाणी, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाघरानूं धोयण १ पीठा), ४७६०४-२ । २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (देव गुरु केरुं लीजि), ४४५८५(#) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ४५२८०-१ २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीयइ हस्तमित), ४७७०८(+) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ४४१३३, ४६३९६ २३ पदवी विचार - पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ४३९७५-२ २३ पदवी सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (भुवनपती वितरने जोति), ४७२४४-३ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ४३८४६ २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ४३६६८(+#) २४ जिन कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आद रिषभ अरिहंत अजित), ४७०१३-१ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), ४३९८७(#) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), ४७७२७ २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (समरि समरि मन प्रथम), ४७८७६(5) २४ जिन गुण सवैया, क. लाल, पुहि., पद्य, श्वे., (सरसत कुं पहिली समर), ४४०४०(2) २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (च्यार हससुंऋषभदेव), ४४४६८-७ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ मेलवे आदी), ४३६२१-२(+) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.१५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ४३९५१-२, ४३८२५-२(#) २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासगुंकरी), ४४४६८-६ २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), ४४४६८-५ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ४५२७७-१ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभने वासपूज्य), ४४४६८-४ २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ४४०१३ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ४५३५४-२(+), ४४६३३-४, ४५१०२-१, ४५६९९-१, ४६६१६, ४६६३८, ४७१५५-२, ४७८४६-४, ४६३६४(#) २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ४५४८०-२ २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ४६६३१-२, ४६७३०-१ २४ जिन पंचकल्याणक मातापितादिनाम वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम वण विमान नगरी मा), ४४१०५ २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि ५), ४८०९५ २४ जिन पद, जादुराय, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (वंदु जिनदेव सदा चरन), ४४७९८-२, ४६३०७-५ २४ जिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिन मुजने पार), ४३६११-२(#) २४ जिनपरिवार संख्या विचार, रा., गद्य, स्पू., (पहिले बोले साधुजी), ४३६६६-४(+#) २४ जिनपरिवार सज्झाय, मु.ज्ञानविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनना सुखकार), ४५४९५-३(#) २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), ४७४६२-२(+), ४५२४२-३ २४ जिन प्रथमगणधर प्रथमसाहुणीपरिवार स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चउवीस जिणंद), ४४७३८-१ २४ जिन प्रभातियुं, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रय उठीने पूजीये), ४७९७६-२ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ २४ जिन मांगलिक स्तुति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मंगल कर जिणराज नमो), ४६५४६-४(२) २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ऋषभ लंछन वृषभ अजित), ४६६२१(+) २४ जिन लंछनवर्णन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (आदेसर रे ऋषभ लंछन), ४४७८१-२ २४ जिन लंछन स्तवन, मु. सेवचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर वृषभ लंछण), ४४८५७-२ २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, उपा. जयसागर, मा.गु., गा. २८, वि. १४९३, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ४७५२२ २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकमलदलवरनयन कुल), ४३९११(६) २४ जिन लावणी, मु. विनयचंद, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (समर समर जिनराज समर), ४४७६२-६ २४ जिन समकित भवगणना चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणंद तणा भला), ४४४६८-८ २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., गा. २५, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (सेवी माता सरसती वचन), ४३७८०-१(+), ४३८०९(#$) २४ जिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पहेला श्रीआदिनाथ), ४६११९-४ २४ जिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रभु अंतरजाम), ४४५६४-१ २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव), ४४३७०-१(+-#) २४ जिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंप्रथम), ४५४७४-१ २४ जिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद दिणंद मया), ४५१९५-१(+) २४ जिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारे तो जिनेंद्र), ४६०५०-२ २४ जिन स्तवन, मु. राजराय, पुहिं., वि. १८१८, पद्य, श्वे., (आदिजिनेश्वर आदि कह्य), ४४६०५ २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिह), ४३९४७-४(+#) २४ जिन स्तवन, मु. वरसिंघ शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जय जय ऋषभ जिणेसर), ४४५४०-१(#) २४ जिन स्तवन, पं. हुकमचंद, मा.गु., गा. १०, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (जिनजी रिषभ अजत संभव), ४६८५७-१ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (आदि जिणेसर पहेला), ४६००५-२ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आदि नमी अरिहंतनै), ४५२४३-१ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नाभिराय राजा मरुदेवा), ४५२८५(१) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पहिला वंदो श्रीआदि), ४४२११-३ २४ जिन स्तवन, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (पहिला श्रीआदनाथ वंदु), ४३६११-१(2) २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (भविजन वंदो रे चोवीसे), ४६५१५-२() २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), ४६७२०-१ २४ जिन स्तवन-गणधरसंख्या गर्भित, मु. सामत ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन वंदु ऋषभदे), ४४४८०(#) २४ जिन स्तवन-गुरुपरंपरानामगर्भित, ग. अमृतविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी प्रणमी), ४६४७८ २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर संभव), ४४४९१-२, ४५७३९ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ४३६१४-१(+#$), ४४७९१(+#), ४५६३३-१,४७९७६-१, ४४४९२(#), ४५०४५(#) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ४३४६३(+#) २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर केसर चरचि), ४४०८१(+) २४ जिन स्तुति, मु. मेघमुनिजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुख करण स्वामी जगत), ४७५०७ २४ जिन स्तुति, मु. सूरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (माणीउद्रमंडण वंचित), ४३५९४-९(+#) २४ जिन स्तुति-सवैयाबंध, मु. सुमतिकल्लोल, पुहि., गा. २५, पद्य, मूपू., (सब जग आदि कर प्रथम), ४६४८५ २४ तीर्थंकर गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., स्त. २४, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव मेरा हो ऋषभदे), ४४४३१(+) २४ तीर्थंकर पुत्रपुत्रीसंख्या स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (राजाराणीने कुटुंब), ४४६१३ २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. धनराज शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीआदीश्वरदेव चोसठि), ४४३९९-२ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ४५१७०(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ४७४२८(+$) २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो दंडक नारकीतणा), ४३६७७-१(+#), ४४२३१-१(+) २४ सती सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति हो भगवति), ४५७१५ २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., मपू., (गइंदिय काए जोए वेए), ४३५९७(+#) २५ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति), ४४२४५(+) । २७ सती सज्झाय, मु. पुण्य कवि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, श्वे., (पहिलि सीतल जिनवर), ४३९३०-१(#) २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (प्रह समै उठी मननै), ४७८३५-१,४५७२०-१(६) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आमोसहि लब्धि मलि), ४५५५७-१ २८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अट्ठावीस लब्धि सारी), ४५५५७-२ ३० बोल-महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रस जीवने पाणीमाहि), ४८०४७-१ ३२ अनंतकाय अभक्ष सज्झाय, मु. रतनराज, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमुंभावइ श्रीअरि), ४४५७३ ३२ असज्झाय यंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ४५०४१-१। ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाइ कहता तारो तूट), ४६६२६(+), ४५६५७, ४५६७४, ४६८१४, ४६८२५ ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धूहरि पडे तासीम), ४४४५७-१, ४५५१९(१) ३२ दोष निवारण सामायिक सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीसरसतिना), ४७०२२(#) ३२ राजकुल स्थापना, मा.गु., गद्य, (धारनगरे परमार १ कनवज), ४६१११-२ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शुभ गुरू चरणे नामी), ४४७२०-१ ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, भूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ४६२५१(#) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ४४६२६, ४५७९१-२(#) ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रणमु सुख), ४५१३१ ३४ अतिशय स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन चउवीसे अतिशय), ४३७०८(#), ४४१३१(2) ३४ अतिशय स्तवन, मु. हरजी, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर परणमी करी), ४७२१३ ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ४६१५४-८ ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदोरे ए आ), ४७०९३, ४७५५२ ५२ अक्षर उत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, (अ आ क ख ग घजह हसहित), ४७८५१-५ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ४३९७२-१ ६४ इंद्र सज्झाय, मु. इंद्र शिष्य, मा.गु., गा. ३०, पद्य, श्वे., (श्रीजिननई प्रणमी), ४४४०० ६४ योगिनी मंत्रसाधना विधि, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो भगवति ही), ४५४५६-२ ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सद्दहणा ४ लिंग ३ एवं), ४३९७३($) ७२ कला नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ४६१५४-१ ७२ जिन स्तोत्र, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. २४, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (प्रणमि मन वच काय), ४४७६२-५ ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जय जय जिण पास जग), ४७४०२ ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बेवंदनीक २ धर्मघोष), ४४४७०-१, ४६५५४-२ ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ४५२१४, ४४५००-१(#) ८४ गच्छ पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (विजय विमलरूच सार), ४६६५६-२ ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (गच्छपरंपरा श्रीमहावी), ४७९९५ ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. ९६४ चौरासी गच्छ), ४७६९०(६) ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), ४७९७९-१(+) ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमाल१ ओसवाल२), ४६१५४-७ ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारक वीकालक लोहिता), ४६१५४-६ For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१२ ९० धर्मोपदेश बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहली सिवण जीवदया मै), ४८०७०-१ . ९२ जिन स्तवन मा.गु. गा. १८, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवीना चरण), ४५९२०-८(०) 1 ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू (वरतमान चोवीस बंदु), ४६१००-१ ५०० चोर सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु गा. ७, पद्य, मृपू., (केवल नांणगुण पूरीयो), ४७१६९ (+) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (उंचा लोक में ५६३), ४७३६९ ५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मिच्छामि दुकडं इन पर), ४३८०५-१(+#) अंगपुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., गा. २३. वि. १६३९, पद्य, भूपू (श्रीहर्ष प्रभु गुरू), ४८०००-१ अंतिम आराधना विधि, मा.गु., प+ग, श्वे. (नाणम्मि दंसणमि चरणम), ४४२२६ "" अंबिकादेवी छंद, मु. गोकल, मा.गु, गा. ५, अंबिकादेवी छंद, मु. जीतचंद, मा.गु, गा. अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, वै. अंबिकादेवी स्तोत्र, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, थे. (जय जय अंबिक माय प्रह), ४३९८४-४ अमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कान्ह, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (एक दिन रति वरसातनी), ४३७५७-८(+#) पद्य, वे (बालपण की प्रीत तुमार), ४४७७५-१ २१, पद्य, भूपू (मुख वदंती ॐकारधुनि), ४४१५१-५ (सदा पूरण ब्रह्मांड), ४४१५१-४, ४७३२८-३ " अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू., (वीरजिणंद वांदीने), ४३८८८, ४३९३३-३, ४६४५४, अक्षरबत्रीशी, मु. महिचंद्र, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे. (कका ते किरिया करो), ४५०९९-१ . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ ४६७५५, ४७९६६, ४३४७३-२(#) अईमुत्तामुनि सज्झाय, मु, रतनविजय, मा.गु. गा. १९, पद्य, म्पू., (वीर जिणंद वांदीने), ४६३६१-२(+) अक्षयचंद्रसूरि भास, मु. अमरचारित्र, मा.गु., गा. ७ वि. १७५०, पद्य, मूपू., (सह सलुणा हो श्रीगुरु), ४३७०७-२(A) अक्षयचंद्रसूरि भास, मा.गु., गा. ७, वि. १७६१, पद्य, मूपू.. (वे करजोडी हो सरसति), ४३७०७-१(४) , י अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., ( ॐकार सदा सुख देत), ४४०२८-१(+), ४५८९५ (#$) अक्षरवावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुर्हि गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, भूपू (ॐकार अपार जगत आधार), ४५५०१, " ४७३४१-१ अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (ॐ अक्षर सार सयल), ४३७३६-२ (#$), ४६४४९($) अचित्तभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (राजमार्ग भूमका अंगुल), ४७५३५-१० अजितजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (अजित जिणेसर साहिबो), ४६३८२-३ (+) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू., (पंधडो निहालुं रे), ४४२०२-२, ४४८४४-२, ४६७२८-२ अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विषयने विसारी विजयान), ४४२५०-३ (+) अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ४५४०६-३ (+), ४५५२८-१ अजितजिन स्तवन, मु. जीवरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (बीजा जिनवर अजित), ४७०४३ (०) अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (अजित जिणेसर चरणनी), ४५६१२-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतलडी बंधाणी रे), ४६७०८-१ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अजित अजित जिन), ४५४९०-१ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ४६४३०-२(+) अजितजिन स्तवन, उपा. शोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ४४५३०-२, ४५०३८-९, ४५६७९-२, ४७३८२-१(#) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ४५०५३-२(+) अजितजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिन को ध्यान कर), ४३८६६-१(#) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजितजिन विनंती दिल), ४४६५५-१ अजितजिन स्तवन, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (विजयनंदन जिनजी मुझ), ४५५८३-२ अजितजिन स्तवन सारणगिरिमंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (तारनगिरि सिरताज है), ४६३८२-२ ( , For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ अजितजिन स्तुति, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर सेबीये), ४३५९४-७(+) अठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं मन ), ४४५७१ अणगारगुण वंदन, क. सुंदर, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे. (पापपंथ परहर धर्मपंथ), ४७०८६-१ अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (त्रीजुं महाव्रत ), ४६७५२ अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मायडी मुने निरपख), ४७०७७-१(-) अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ४५५८३-१ अध्यात्म सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपू., (प्यारा वरजी नाजी रे), ४५४७०-१(१) अध्यात्म सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २७ वि. १८३५, पद्य, स्था. पोते पुन्य हूवे जेहन), ४५०२३ अध्यात्म सवैया, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (अजर अमर परमेसरकुं), ४७३०२ " अनंतजिन स्तवन, मु, आनंदघन, मा.गु. गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपु (धार तलवारनी सोहली), ४७१५६-४ अनंतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनंत ताहरा मुखडा), ४७२०६-२, ४७२०८-२ अनंतजिन स्तवन, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (अनंतजिनशुं करो), ४७१४७-९, ४५५६८-१९ अनंतजिन स्तवन, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनंत जिन सहेज विलासी), ४५३९९-२ अनंतजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वलियारी जाऊं वारी), ४५५६८-२ ( ) अनागत २४ नामाभीधान स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू, (हवे भावी जीन बंदिइए), ४५३६९-२ अनागतचौवीसी के पूर्वभव नाम, पुहिं., गद्य, वे (१ श्रेणिक २ सुपार्श), ४६७३०-३ " अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सवेनइ करुं), ४३६७८(+#), ४३८८१(#) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, भूपू (मगधाधिप श्रेणिक), ४४२१४-९, ४५६६७-६८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., वि. १७९४, गद्य, श्वे. (महावीर कौ ध्याइके), ४६३३२ ($) " अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू. ( उपदेश न लागे अभव्यने), ४७२८२-२, ४८०५२-२० अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो ), ४३८८७ -२, ४५६१८-२, ४७३४४ अनानुपूर्वी, मा.गु., को., मूपू., (--), ४५५५८-१ अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू. (अभिनंदन जिन अधीक रूप), ४४९१९-१(+) अभिनंदनजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (सधीरधनी शुतउ), ४४२५०-५ () अभिनंदनजिन पद पु,ि गा. ५, पद्य, मूपू (अभीनंदन जिनराय चलो), ४७३६२-१४(*) " "" अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, म., गा. ५, पद्य, श्वे., (अभिनंदणजीने अब ओलखीय), ४५५४७-२ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गुणनिधि गिरुआ गाईयइ), ४५४६८-६ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (प्रभु तुम दर्सण मलिय), ४५३३२ अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( दीठी हो प्रभु दीठी), ४५७३० अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा अभिनंदन जिन), ४६६९८- १() अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी भली), ४४४५५-१ अमरपद दृष्टांत, मा.गु. गद्य, भूपू (कुंडलपुर नगरने विषे), ४५०५६-२ (०) " अमृतध्वनि स्तुति, मा.गु. गा. १, पद्य, वे (दागडगदि वधै दोलति), ४७९०४-२ अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. २९, वि. १८वी, पद्य, भूपू. (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ४५१४४-१ अरजिन स्तवन, मु, प्रेम, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपु (सकल सुखाकर गुणरतनागर), ४३९१५-२(१) अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ४७१४७-४ अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), ४४०४२-२ (+) अरणिकमुनि दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मृपू., (संसारमांहि मनुष्यनो), ४५०५६-५ (०) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५. वि. १८५९, पद्य, वे.. (चंपानगरथी चालिवा), ४३९६१(७) For Private and Personal Use Only ५१३ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ४५०३१-२, ४६७०१-१, ४७१५४-२, ४७७६०-४, ४६३९७-२(#), ४६९०९-२(-2) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (धन धन जननी रे लाल), ४५५८५ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुनि अरणिक चाल्या), ४७४०८ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ४५०१८-२, ४७१३६-२ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (एक दिन अरणीक जाण), ४४७८१-१ अरिहंत सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरीहंतजी रे हुं समरु), ४६०८४ अर्जुनमाली सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (धर्म करो धीरज धर जिम), ४५३९८-२($) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट), ४४९५३-१, ४७५२९-१ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (आबु शिखर सोहामणो जिह), ४५७७३-१ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ४७०४६ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आबु गिरंद सुहामणौ), ४६७३९-३($) अलख पद, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अलख लिख्या केम जावे), ४५१४९ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, भूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ४३८४५(+#), ४८०३४-३ अविन्यासी लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहि., गा. ४, पद्य, जै.?, (चमक चमक चम विजुरी), ४७०५३-३(#) अशुचि भावना, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (अशुचि नामि छट्ठी), ४४४५९-१(#) अष्टगंध नाम, मा.गु., गद्य, (रतांजणी, सुकडवीली,), ४६८२७-२ अष्टपदी लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम बिन झुर-झुर भई), ४५५७१-५ अष्टप्रकारी पूजाप्रकार दोहा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (जल चंदन कुसुमनी), ४५९४३-२ अष्टबीजाक्षरपूजन विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम नवकारमंत्र), ४५४१३(+) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ४४१३९(+), ४३५८१, ४४३०२ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (एके उणा पंच वर्ग जिन), ४४८०७-३, ४५५२९-३ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अठावअगिरितुंग), ४४१४६-२,४४५५२ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (शासन नायक समरीये), ४५२४५-३, ४५२८६-२(६) अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ४४३८४-१, ४७५००-२(१), ४७३७४-२(5) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ४३४७६-२, ४३९५३-२, ४४८७६, ४७४६०-२ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ४३५७६-१(+), ४४७७७(+), ४७१८५-१(+), ४४६४९-१, ४६९२६-१ अष्टमीतिथि स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाह भलो पिण नाहलो), ४६६७५-२ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वंदो रे भविका जिनराज), ४५०२८-२ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (जय हसासणी शारदा), ४८०९६ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), ४४३९२, ४७५१४ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमुं सदा), ४४२५९, ४७१००, ४७५१५-१ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ४६६७३-१(+#), ४८०७४-४(+), ४४७३४-१, ४६०९१-४, ४७४५१-७(#) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनवर परमान), ४७२५४-२, ४३८३३-१(#) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रतपेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ४३५९४-४(+#), ४४३२५-१ , अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ४३८०१ ४५१३७, ४५४१७, ४८०२५ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ४४८२७-३(+), ४४४९८, ४८००२-२ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ४५२०६ -१ (+), ४६०९१-२, ४७५४३-४($) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु.. गा. ३२, पद्य, मूपु. ( अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ४४२७७, ४४५९४ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ४७४६२ - १(+), ४७०८८ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ४६०९९-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ४७०७८-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (यक्ष सहस सदा पंचवीसह), ४६३१५(१) अष्टापदतीर्थ स्तुति, मु. केशव, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तीर्थेश्वर तीरथ अष्ट), ४४८२७-११(+) अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (सरसति अम्रत वसति), ४३६९४(+#), ४३९२६(+) अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीफल सोपारी मजीठ), ४४०८२-१, ४७७१०-५ असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, भूपू (वंदिइ वीर जिणेसर राय), ४४९६६ (५), ४३८४९० असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीई), ४४६८८ असज्झाच सज्झाच, मु. हीर, पुहिं. गा. १५, पद्य, मृपू., (श्रावण काती मिगसिर), ४४२७९, ४३७२९-१(०) असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ४३७९७-३ (+#), ४४६२४-१ , असत्यभाषा विचार, मा.गु., गद्य, वे., (कोहेत्यादि क्रोधे), ४७९६४-२१ (+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ४४४९७ (#), ४६७१९-१(४) अस्थिरभावना सझाय, पुहिं. गा. ५, पद्य, चे., (देखत भूली ख्याल), ४३५५२(का " , आगम स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मंगलकेली निकेतनं), ४७९२४(+#), ४५७०९ आचारांग - विषयदर्शन, मा.गु., गद्य, वे., (आचाररूप दया पालवी), ४६९६६ आचार्य के नाम पत्र, मा.गु. वि. १९६०, गद्य, मृपू., (स्वस्ति श्रीमद्वामेय), ४५२९३ (5) आचार्यगुण गहुली, आ. महेंद्रसिंहसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अहो मुनि संयममां), ४४७०४-३ आत्मप्राप्ति गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे कारण आतम स्वरूप), ४७४२७ आत्मविवेक सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (शुद्ध विवेकी महीपति), ४३५६२-२(+#) आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. दिपविजय, मा.गु. गा. १३, पद्य, भूपू., (चित्त समरुं रे वीर), ४५२७६ आत्म सुमति सज्झाय, मु. उमेदचंद ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सुण समत सुरतनी नारी), ४५५९७ आत्महितशिक्षा सज्झाय, उपा, उदयरल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रभु संघाते प्रीत), ४४७९९-२ आत्मा के ८ नाम - भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यात्मा १ कषाय), ४७५३५-११ आत्मा भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ दिव्य आत्मा २ कषाय), ४४८९४-४(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मोपदेश सज्झाय, क. वीरविमल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (चेतन चेतन ज्योरे), ४४७३१-३(-#) आत्मोपदेशिक पद, श्राव. संघो, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (धनि वेला धनि ते घडी), ४४०५१-३ (#) आदिजिन आरती, मु. इंद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू., (सुरसत सावन वीणव गणपत), ४४११३-१(+) आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), ४६४६०-२ आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (जय जय आरती आदिजिणंदा), ४५०१८-१ आदिजिन आरती, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., ( आरती आदनाथ तेरी मन), ४६६५५-१ आदिजिन कालीन आर्य देश नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (अंग बंग कलिंग गौड़), ४६१५४-५, ४७५५४-३-४) आदिजिन गीत, मु. परमानंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे. (आदीसर अरिहंत छो), ४८११५-१ " For Private and Personal Use Only ५१५ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ आदिजिन गीत, मु. भाव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण), ४४१५६-१ आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ४४९१९-४(+), ४४९५६-३, ४६८६४-२(-) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम पुजो आदिदेव), ४४६२९-३(+) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ४५५२५ आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु), ४७१८९-१(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जय जय स्वामी युगादि), ४४४६८-१ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), ४३९५०-१, ४६६१५-२ आदिजिन छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. १५, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (--), ४५५५१-१(६) आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (आदि करण आदि जग आदि), ४४७४६(+) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ४३५८७-२(+#), ४४०३४-१, ४८०२६ आदिजिन छंद-शत्रुजयतीर्थ मंडण, मु. कविराज, मा.गु., गा. १८, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीगणधर जिनकुशलगुरु), ४७८१२-१ आदिजिन जन्मवधाई पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (नगर वनीता हेरी सखी), ४६४८२-४(2) आदिजिन ढाल, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जय जय ऋषभ जिणेसर), ४४९५८-१ आदिजिन निर्वाण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमो सिद्धाद्री पर्वत), ४७४९३($) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (बावो ऋषिभ बेठी अलबेल), ४७३६२-११(+) आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ४६८६९-१३(-) आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद मांहरो), ४४२५०-२(+) आदिजिन पद, मु. जगतराम, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (हेरी चले जिणजी रो), ४६१५७-२ आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (नित ध्यावो रे रिषभ), ४७३६२-५(+) आदिजिन पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांझसमें जिन वंदु), ४४७९८-४, ४५७०१-२ आदिजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (आद जीणेसर बोल तुती), ४६७१५-१(#) आदिजिन पद, ग. महिमराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जाग जगमुगटमणि नाभि), ४३६३७-१(#) आदिजिन पद, मु.रूपचंद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (हुं तो वारी जाऊं), ४५३३०-२ आदिजिन पद, पं. लाभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आदि जिणेसर विनती), ४४१०८-५ आदिजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (रीखभ जिणेसर बंदो रे), ४६८६९-५(-) आदिजिन पद, मु.साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ४६९९८-२, ४५६८०-३($) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ४३६९५-४(+#), ४३५२४-५(#) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पूजु चरणारबंद नाभि), ४४७९८-१ आदिजिन पद-केसरीया, श्राव. ऋषभदास , पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (केसरीया से लागो), ४८०२१-९ आदिजिन पद-केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मारा केसरीया माहाराज), ४७२४३-८(2) आदिजिन पारणा पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऋषभ जीणेसर कीयो पारण), ४६४८२-६(#) आदिजिन पुत्र नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत बाहुबलि संख), ४६१५४-४ आदिजिन प्रभाति, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (इंद्रलोके हरख हुवो), ४३६९५-३(+#) आदिजिन बारमासो, मु. ऋद्धसार, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (हेजी मरुदेवाजी सोच), ४६०८६ आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंद प्रणमु), ४६५१०-३(#) आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ४३५०१(+), ४४०४५-२(+$) आदिजिन भास, मु. विद्यासागर, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (नाभि नरंदनी सेवा), ४५६७३-२ आदिजिन रेखता, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझे है चाव दरसन का), ४८०२१-३ आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुणीये रे वातां सदा), ४७९७६-५ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. १३, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (सरसति माता सुमति), ४५७५८ आदिजिन लावणी-धुलेवा, मु. कर्मचंद, रा. गा. ७, पद्य, मूपू.. (सुनीयो बातां सदा), ४७०१६ आदिजिन विनती, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू. (आज जन्म फल लाघ जो), ४३८३२-३(१) आदिजिन विनती, मु. ब्रह्मजिनदास, रा., गा. ९, पद्य, दि. ?, (सांमी श्रीआदिजिणंद), ४७००७ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु गा. १९, पद्य, मृपू. (सुण जिनवर शेत्रुंजा), ४७५६५ ་, आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३, पद्य, मूपू (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ४३८६०, ४५७२९-१ आदिजिन श्लोक, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति माता तुह्म), ४५९०८-१(#) आदिजिन सलोको, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (सरसती समरूं तुझ पाये), ४७८८६-१ आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सरसति माता देवी चरण), ४४५४४ आदिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (तेरो दरसन भलें पायो), ४३७२४-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. अरदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (प्रथम जिनेसर पूजा), ४४९८९-१ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ४६१५३-१, ४७०७१ आदिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मोरा आदिजिन देव दीठे), ४५७०४-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु गा. ९, पद्य, मृपू. (अदभूत हो प्रभु अदभूत), ४४७८३-१ " आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं. गा. ६, पद्य, म्पू., (अईयो अइयो नाटक नाचें), ४४२५३-१, ४६९९८-१ आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ४७६४७-२ " आदिजिन स्तवन, मु. कीरतमुनि, मा.गु., गा. १८, पद्य, वे (श्रीरिषभ जिणेसर जगतस), ४४०००, ४५६९७-२(5) आदिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीधुलेवै सुखकरुं र), ४४८२७-१३(५) आदिजिन स्तवन, मु. कुशलचंद, मा.गु., वि. १९६०, पद्य, मूपू., (भाई भाई रे कुभारी), ४३५५४(+#) आदिजिन स्तवन, मु, कुसलचंद, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू (भज श्रीऋषभ जिनंद कुं), ४४९७६-२ (+) आदिजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर पूजवा), ४४७१३-१(+) आदिजिन स्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीआदि जिणंदा महिम), ४३५८२-३ आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), ४६१८५-२ "" आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज आनंदगन जोगसर आयो), ४४७३३-२(#) आदिजिन स्तवन, ग. जसवंत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुरराय रिषभ), ४६६६२ आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सुगुण सहेजा सांभलो), ४७५६२-२ ($) आदिजिन स्तवन आ जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (मन मधुकर मोही राउ), ४५९४६, ४६१४३-२, ४६५२५-३, ४६६०४-१ आदिजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रिषभजिन भावइ भेटीयइ), ४७७५२-३ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), ४६६९७-२ आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंतजी रे ), ४४८६२-१ आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिसर मुझ विनति तु), ४५३७३-६ " आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, श्वे. ( श्रीनाभिकुलगुर), ४३९३८ (+), ४५६९७-१ आदिजिन स्तवन, पंडित टोडरमल पुहिं. गा. ६, पद्य, दि., (उठ तेरो मुख देखु), ४६१५७-४ י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( जय जय आदि जिनंद आज), ४५८५७-३($) आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी), ४३५०८-१(#), ४३५२४-३(#) आदिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (पुरवदिसि जिन तणी) ४६५१९-१ " आदिजिन स्तवन, मु, पद्म, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (आदिजिणंद अरिहंतजी प्), ४४०८७-७ आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (गहो कहो रे मुनीपती), ४५३६९-१ For Private and Personal Use Only ५१७ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१८ www.kobatirth.org आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर), ४७१८७ आदिजिन स्तवन, मु. पद्मसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (प्रथम जिणेसर पाय), ४५१३८ आदिजिन स्तवन, मु. फतेकुसल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीऋषभ जिनेसर भेटवा), ४६२७७-१(-) आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा. गा. ७, पद्य, मूपू. (प्यारो लागे प्यारो), ४६५८८-२ " " " आदिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (माता मारुदेवीना नंद), ४७९९३-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु. गा. १२, वि. १८८५, पद्य, श्वे. (जगत परमेश्वर तुहि), ४५२३३ आदिजिन स्तवन, आ. मुनिराजसूरि, मा.गु गा. १७, पद्य, वे (नयरी विनीता अतिही), ४५५४४ आदिजिन स्तवन, ऋ. मूला, मा.गु., डा. ३, गा. १७ वि. १७५९, पद्य, ओ., (प्रथम जिणेसर स्वाम), ४४७४१ (०) आदिजिन स्तवन, ग. मेघविजय वाचक, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (स्वामी समरथ सेवीइ), ४४२०४ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ४३५५५-२ (+#), ४६४७७-१, ४५७५५-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपु. ( रिषभ जिनेसर त्रिभुवन), ४४३३० . आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो मरुदे), ४५९२०-६ (#) आदिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (दादाजी मोहे दरिसण), ४४९९२-३ आदिजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर अजर अरूपी), ४७३६७ आदिजिन स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मनमोहन महिमा निलउ), ४४५४०-३(४) आदिजिन स्तवन, मु. राजसिंघ, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू., (माधुरी अरजन वांण गरी), ४७५७६-४ आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्याजको लोक तरायो ऋष), ४४६३१-१ आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभि नृपति कुलचंद), ४४८६२-२ आदिजिन स्तवन, मु. राम पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू (प्रभु तुझ मुरति), ४६६६३-२ (५) " , י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ४५४७०-२(+), ४७७२६-१ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मृपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ४५०५३-१(+), ४७११०-१, ४४७३१-१(०) आदिजिन स्तवन, पं. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (केकिंद नयरे ऋषभ विरा), ४४५८६ आदिजिन स्तवन, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. १८, पद्य, मूपू., (एक बात सुणी मई होक), ४३६३९-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. विनीतकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (ऋषभ जिणेसर वीनतीरे), ४५१९३-३(+) आदिजिन स्तवन, मु. विबुध, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सकल भुवन सिर सेहरो), ४५२६४-१ आदिजिन स्तवन, आ. विमलसोमसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिराज दीठो दीठो रे), ४६३३८-२ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ४७६२६-२(+) आदिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू (मोरा आदि जिनदेव आज), ४७३२३-१(१) . आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु गा. १८. वि. १७५७, पद्य, मृपू. (आज भलै दिन माहरो रे), ४४७१५-१(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर जिनवरू), ४७७८८-२ आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू., ( नाभिनंदन जगवंदन देवा), ४७९८६-२(५) आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसतने समरी करी), ४७९९७-२ आदिजिन स्तवन, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., गा. ९, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभजिणंद आणंदसु), ४६१५७-१ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज उमंग छे रे अधिको), ४४०८७-१ आदिजिन स्तवन रा. गा. ६, पद्य, भूपू (आदीनगर आदेसर जलम्या), ४५७९०-३) # " आदिजिन स्तवन, पुहिं. गा. ४, पद्य, चें, तजि के अजोध्या को तज), ४६३०७-६ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., ( दीठो दीठो रे नाभि), ४३५३४-२ ($) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( रिषभ चरण अरिवृंदो), ४३५१९-२(१) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, वे (रेवतार मताळवर), ४५२८२(१) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुख दायक तु साहबो रे), ४६५२७-२ (-$) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), ४३८९१-१(+) आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय), ४८०६२(+) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ४७७२०-१(+), ४७४४१, ४८१२४, ४७०७३(-) । आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ४३५१०-१(+#), ४७३५६(+) आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिन जीम जाणे होते), ४४११०-१, ४८०७१-२ आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), ४४१८८ आदिजिन स्तवन-इंद्रपुरमंडन, मु. आनंदविजयशिष्य, पुहिं., गा.८, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (तिनासें कउन वडा पापी), ४७३८६ आदिजिन स्तवन केसरियाजी, मु. जीव, पुहिं., गा. १०, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (खडाखडा में अरज करत), ४७१३२ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ४५६८०-२, ४५९७०-१ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), ४७९५९(+) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडण, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १९७१, पद्य, मूपू., (हां रे लाला ऋषभजिनेस), ४६०५०-१ आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. ऋषभदास, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (मरुदेवीना नंद थारा), ४५०२०-२ आदिजिन स्तवन-नवानगर, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नवानगरमे भेटीए जिनवर), ४६३०२-३(-) आदिजिन स्तवन-भारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा.७, वि. १८४०, पद्य, म्पू., (चालो सहेली आपण सहु), ४३५६३-२(#) आदिजिन स्तवन-ममोइमंडन, मु. नायकविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर राया हो मन), ४७१८५-४(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ४६३०१-२ आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ४७६३०-३ आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (करजोडी इम वीन), ४७५५९(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. अरदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर निजर), ४४४५८-३ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, ग. उदयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्यारी ते प्रीउनइ), ४५७००-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (जिनजी आदिपुरुष), ४३७०५-४(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दइ तस मानने अर्थ समा), ४३७३७ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लाहओ लेयो रे लाहो), ४४४५८-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडण, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचलशिखर), ४७७५२-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धुनी ध्रहकती ध्रहकती), ४६९१९-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ४४०४५-१(+) आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ४७९९३-१(+), ४६६९९-२, ४३८०३-१(#) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ४४५१५-४, ४६०९१-५, ४७६९६ आदिजिन स्तुति, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (म्हानो थारा दरसणी), ४६८५६-१(#) आदिजिन स्तुति, मु.ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभजू के नंदाजी से), ४६८६९-९(-) आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचलमंडण जिनवर), ४७४५१-३(#) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर राया जास), ४७१८९-२(#) आदिजिन स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रहि ऊगमतई ऋषभजिणंद), ४७६३९-१ आदिजिन स्तुति, मु. लाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पारब्रम परमानंद), ४६८६९-६(-) आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिजिनवर नमित), ४४००३-१ आदिजिन स्तुति, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर कियो पारण), ४६८१३-२ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ४४३०३, ४५४२७ आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), ४४७३५-४(८) आदिजिन स्तुति-शत्रुजय मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेत्तुंज मंडण), ४६३७०-२(+), ४७८८९-४(#) आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, ग.शुभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल गिरवर), ४६७२९ । आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ४४३४९ आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहोजी), ४४१७४(+) (२) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष कउ आउखुहवडा), ४४१७४(+) आदितवार वेल, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सकल जिनेश्वर मनधरी), ४४२१५(+) आदित्यवार व्रत कथा, मु. ब्रह्मज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनसागर सुरगुरु), ४७८१४ आदिनेमिपार्श्वजिन गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोती आव्या ते लुंबक), ४६१२१-१ आधाशीशी मंत्र, पुहि., गद्य, वै., (ॐ नमो हनुवंतबीर के), ४४०६५-४(+) आध्यात्मिक गहुंली, मु. विमलसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोहासणि सविमिली टोली), ४७५०३-२ आध्यात्मिक गीत, मु.रंग, पुहि., गा. ५, पद्य, भूपू., (अब मे देखे गछ चोरासी), ४३६५३-३(#) आध्यात्मिक गीत, उपा. विनयविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन न काहू के बस मन), ४४२६१-४ आध्यात्मिक गीत-काया, मु. वसतो, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आतम कहे रे काया), ४५०५७-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधूनाम हमारा राखे), ४६४२८-४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (औधूं क्या सोचे तन), ४६४८२-१(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ४५१९५-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कैरे ज्यारे ज्यारे), ४५१९५-६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलस्ये), ४७७०५-५, ४८११२-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्या सोवै उठि जाग), ४६४२८-१(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (छोरानै क्युं मारे), ४७५४३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दरसन प्राण जीवन मोहि), ४७५७७-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थारी), ४८०२१-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निसाणी कहा बतावुरे), ४७५७७-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नीस दिस सोहामणो निर), ४५१९५-५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बेर बेर नहीं आवे), ४७७०५-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माहरओ बालूडो सन्यासी), ४८११२-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे परदेसी भमरा यौ), ४५१९५-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विचार कहा विचारे रे), ४७५७७-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुहागणि जागी अनुभव), ४६४२८-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हठीली आख्यां टेक न), ४५१९५-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. केसर, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (पूरब पुण्य उदय करि), ४७७४३-२ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तन वस्त्र कुंरंग), ४४६३९-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोटो विष हे विषयन), ४४६३९-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. देवीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (करणि फकिरी तारे क्या), ४६८५६-३(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ४४२७५-१ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ४५५३९-४(+) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२१ आध्यात्मिक पद, मु. रंग, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ठगनी कमति लगी हमारे), ४७९६३-१०(-) आध्यात्मिक पद, रणछोड, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (ओलखीने लेज्ये रे), ४४०९४-२ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेत चेत रे आतम अंधा), ४५०५७-३ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (है इस सहिर विचको), ४३७५६-८(#) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीये), ४५९२०-४(#), ४७१७९-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब तेरो दाव लग्यो है), ४६८६७-२ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बेचेले किसके), ४७३२८-२, ४८००४-५ आध्यात्मिक पद, उपा. विनयविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अब क्युं न होत उदासी), ४४२६१-२ आध्यात्मिक पद, मु. विनयस्वरूप, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजब जोत है तेरी आतम), ४३८६६-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. सहजानंद, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (रीसाणी लेहु मनाईरे), ४३८३४-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. सुमति, पुहि., पद. २, पद्य, मूपू., (अब तेरो दाव लाग्यो), ४५४७२-७ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अविनाशी के गुण गावता), ४७९५४-९ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ४३७५६-१(१) आध्यात्मिक पद-काया, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणि बहिनी पीउडो), ४४०१०-१, ४७५१९-५(#) आध्यात्मिक फाग, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आपो सुखर जिनभक्ति), ४३७२४-४(+#) आध्यात्मिक रस गर्भित गहुंली, मु. विमलसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसूत्र सिद्धांतनी), ४७५०३-१ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजुही आतम अनुभव नायो), ४७०७७-२(-) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दोलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चेतन कर्मतणी गति), ४३४६७-२(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिज्या भली रे संतोष), ४६८८२-४ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मपू., (अरिहंत राजा मोहराय), ४३७२७-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ जइरे), ४८०१८ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतनजी तुमे चेते), ४५०५७-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लक्ष्मीदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (वाह्या रे एणि जोवनीय), ४३७५०-३(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ता जोगी चित ल्याउं), ४८१११-४(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (सहीते साचा० तनीपइ), ४४०४१-१ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ४८००८-२ आध्यात्मिक हरीयाली, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नानी वहुने पर घेर), ४७१८६ आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञान रंग खेलिइ होरी), ४७५५१-३ । आध्यात्मिक होरी, क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (धाम मची जिन द्वार), ४७३६२-१३(+) आध्यात्मिक होरी, मु. भजनराज ऋषि, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे.?, (उठो सरधागोरी चेतनसू), ४७५५१-५ आध्यात्मिक होरी, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यानी जिउ अनुभौ),४३७२४-५(+#) आध्यात्मिक होरीपद, आ. जिनलाभसूरि, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (होरी के खिलइया प्रभु), ४४६८४-२ आध्यात्मिक होली पद, मु. भाणचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (चातुरी कहा बोलु समझ), ४७१५८ आनंदश्रावक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हाथ जोडी आणंद कहे), ४७२८७-२(-) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ४४६३२(#) आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ४५६७८-१, ४७५३५-८ आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्राणी आउखो तूटेने), ४७०६७(#) आराधना प्रकरण, ग. केशव, मा.गु., गा. ६१, वि. १७१२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर रे शांतिकर), ४४२२५ आर्द्रकुमार सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मई तुझ वरीओरेमननइ), ४५५३७-२ आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रीउडा प्रीतडली इम), ४५९९९-१ For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ४६७२१-२ आलोयणा विधि, मा.गु., ग्रं. ११७, गद्य, मूपू., (देववंदन अकरणे पुरिमढ), ४४२७४-१, ४४९८० आवागमन पृच्छा, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (बाया पग त्रिगुणा करो), ४५२७९-२ आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ४५५०९, ४७३९८-१ आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ४३७९६, ४५१५८ आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चाल्यो नटावा जीपवा), ४५५३७-३ आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आसिक मोह्यो तुझ रूप), ४४६४५-१(+) इक्षुकारराजा चौपाई, ग.खेमराज, मा.गु., गा. ५१, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पणमवि वद्धमाण जिण), ४४५०३ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नारी रे मी दीठी एक), ४५२७२-२ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा.६, पद्य, म्पू., (नारी मे दीठी इक आवती), ४३४८८-१(+), ४७०४८(+), ४७६७० इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ४७३६६(+%), ४४२९५(s) इलाचीकुमार रास, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४७८७७($) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ४३८२२-६, ४५२७२-१, ४७०७४, ४७१२९, ४३८०७(#), ४५११९-२($) उग्रसेनसाधुसज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (जिणमारग छै मोटको इण), ४७१९७(+) उदयसागरसूरीश्वरजी को जीतवर्द्धनजी का पत्र, ग. जीतवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीश्रेणि), ४५४१२(2) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूपयामें), ४४११६(#) उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने ते),४३९४७-२(+#) उपधानविधि सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सारद मात लही सुपसाया), ४४१७७(+) उपधान सज्झाय, उपा. जयसौभाग्य गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उपधान वहो आदर करी), ४३७२८(+) उपयोग अधिकार, गु., गद्य, मूपू., (उपयोग १२ छे ५ ज्ञान), ४४२३१-५(+) उपवास फल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक उपवासे १ उपवास), ४६४१३ उवसग्गहरस्तोत्र-साधनाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (१०८ नवकारवाली गुणीजे), ४४४७६-२ ऋतुवंतीस्त्री सज्झाय, मु. जीत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सर्वसाधक जिनवरनी वाण), ४३४७४(+) ऋद्धिसूरिगुरु भास, पं. आणंदविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती सामिनी पाय), ४६०३८ ऋद्धिसूरिसज्झाय, ग. भाणविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती प्रणमी पाय), ४४९६२-४ एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम), ४३८३३-२(#) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मल्लि जिनवरने नमी कर), ४५५२९-४ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग.शुभविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर गुणनीलो), ४४७१९-१ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रणमुपद श्रीपासजी), ४५२४५-४ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ४५३२३-१(+#), ४७१८५-२(+), ४४३८४-२, ४५२५५-२,४६२०७, ४६६४०-२, ४५४७३-२(#), ४४४२१-१०(5) एकादशीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आज एकादशी रे नणदल), ४५५६४-१, ४७०१०-१ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिजिणेसर), ४७४५१-८(#) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन), ४४८२७-५(+), ४४०१०-२ एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ४३४७५ (+#), ४८०४०(+) ओंकार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वाणी हे विलास तेरी), ४५२१२-७ ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ४३९८४-३ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक का पद, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (कका रे भाई काम करता), ४६१४८(+) औपदेशिक कवित, विहारीलाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, जै.?, (दीजी है कमंडलकै राज), ४७०२३-१(-) औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु. का. १, पद्य, वै., (वंशत्रिण वाजित्र), ४३६९३-२(+) (२) औपदेशिक कवित धडाबद्ध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै. (वंशत्रिण क० ब्रह्मा), ४३६९३-२(+) औपदेशिक कवित्त, श्राव. खेतसी, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (उपजा था जल मैं सो तो), ४६७९४ औपदेशिक कवित्त, क. नाथ, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (गाय गाय गारडु बुलावै), ४५६२४-२ औपदेशिक कवित्त, हरराम, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, (जीण सरवर कठपाल पाल), ४७४८९-२ (+#) औपदेशिक कवित्त, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (धरणी चलेंगे चलेंगे), ४५१२४-१ औपदेशिक कवित्त संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ४७५४२-२(+), ४६१५३-३, ४६१५९-२, . ४७०६२-४, ४७०८६-१०, ४७५६७-२, ४६१६८-३६) औपदेशिक कवित्त - समस्यागर्भित, क. कक्का कवि, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, वै., ( रवि चढीयो ससि गयवरा), ४४०३६-२ औपदेशिक कुंडलिया, क. गिरधर, पुहिं., दोहा २, पद्य, वै., ( आयो चात्रक भूलके घटा), ४६११०-४ औपदेशिक कुंडलिया, क. गिरधर, पुहिं. दोहा २, पद्य, वै. (सांई कस्तूरी रची ढोर), ४६११०-५ , , औपदेशिक कुंडलीया, मु. पद्म पुडिं, पद्य, मूपू (प्रभुनाम तो सच्च है), ४५५७२-४) औपदेशिक गीत, मु. विनय, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (धिर नाहि रे थिर) ४४२६१-३ " " औपदेशिक गीत, उपा. विनयविजय, पुहिं, गा. ५, पद्य, मृपू. हो आतम अजब जोति है), ४४२६१-१ औपदेशिक गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (चिहुं गतिमांहि चाक), ४६४७१-१(+ औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (दिन दोले रे गोविंद), ४३६३३-६ (+) " औपदेशिक गीत - काकसु, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२, वि. १५५०, पद्य, मूपू., (पाणी विहरी पाधरा जात), ४३६५३-१(#) औपदेशिक छंद, पंडित, लक्ष्मीकोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू (भगवति भारति चरण), ४८०५४-१ " औपदेशिक छंद त्रोटकनामा, क. दीपविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू (वरदायक माय सलाम करी), ४५१२१-२ औपदेशिक जकड़ी - जीवकाया, मु. विनय, पुहिं, गा. ५, पद्य, मृपू. (काया कामनी वेलाल), ४३७५०-२ (+४ " औपदेशिक झूलणा, पुहिं. दोहा ५, पद्य, (सांई की बेटी महा एक), ४६१११-१ " औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं. गा. १३, पद्य, ? (एक समे जब सींह कूं), ४६३८२-४(+) औपदेशिक दोहा, मु. उदवराज, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (च्यार पांण जस बसनही), ४६११०-२ " औपदेशिक दोहा, कबीरदास संत, पुहिं. दोहा १, पद्य, वै., (कबीर कबीर क्या करो), ४४२७५-६ ४६८२२-२ औपदेशिक दोहा, आ. कृष्णसूरि, मा.गु., दोहा २, पद्य, भूपू. (हेमरकी तो हुं सजाण), ४८१२६-२ औपदेशिक दोहा, क. गिरधर, पुहिं, दोहा ३, पद्य, वै.. (कवा कहै तमरा लखुं). ४५६२९-२ " , औपदेशिक दोहा, मु. सुरचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे. (पेखत प्रथमनाविमुख), ४४९६५- २(क) औपदेशिक दोहा, सैयद हुसैन बिलग्रामी, मा.गु., दोहा. २, पद्य, (सीध कसबै कमाल जाता), ४५६२९-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अवसर बेर बेर नहीं), ४३५९५-२(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनचरणे चित त्याव मन), ४६६९३-२ औपदेशिक दोहा, मा.गु., दोहा. १५, पद्य, म्पू, (अरट आधा लीलाट धन), ४६०४१-१ " औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, ओ., (बलीबोखलीयी गलीयीटलीय), ४४५०८-२ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ४६४३०-३ (+), ४६६२२-५ (+), ४६६०२-२, ४६९७८-२, ४७१४३-२, ४७४९९-२, ४७७०६-१, ४७८३५-२, ४५९०८-२०१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनवा जिणंद गुण गाय), ४६८६९ - १ ( ) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं गा ३, पद्य, मूपू. (हे जिन के पाय लाग रे), ४७५४३-३ "" " औपदेशिक पद, ऋ. आसकरण, पुहिं., पद्य, वे. (पंख नम राजहंस बडो), ४७१२६-२ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, वै., (काया तु अब चल संग), ४४०१२-४ For Private and Personal Use Only ५२३ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., पद. ४, पद्य, (चादर है झीणी कहे), ४७७०५-४ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, वै., (दस वरस लडका संग खोया), ४४०१२-३ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (रंग्या कपडा रेजोगी), ४७२४३-५(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (मना तुं एसो नीच संघा), ४४७४२-१ औपदेशिक पद, मु. कल्याण, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सर्व सभा श्रृंगार), ४५९७१-१ औपदेशिक पद, मु. कुसल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मति तोडै काची कलीया), ४३९६४-३ औपदेशिक पद, मु. कुसाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (वंचा नीचा मेल चणाया), ४५७९०-२(-) औपदेशिक पद, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (पुण्य जोगे मानवभव), ४५४०६-१(+) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी म., पुहिं., गा. १०, वि. १९६३, पद्य, स्था., (प्रभुजी की वाणि धननन), ४५५४९-४(+-) औपदेशिक पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे.?, (खलक इक रेण का सुपना), ४८०२१-२ औपदेशिक पद, जादुराय, पुहि., गा. ३, पद्य, जै., वै.?, (खलक एक रेन का सुपना), ४६०९९-३ औपदेशिक पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (जुगमें जीवन थोरो रे), ४६१०७-९(+-#) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गेंला काय गुमान करे), ४६०५१ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ४४६३९-२(+), ४७११४ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ४५४८५-२(+#), ४६१५७-५ औपदेशिक पद, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कइस उसासक उवेसार), ४५४८५-६(+#) औपदेशिक पद, आ. जिनराजसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे मन मूढ म कहि), ४५४८५-३(+#) औपदेशिक पद, मु. जिनसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुगतपुरी सुख पावा हो), ४८११६-२ औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (काहारे अज्ञानी जीववु), ४५१२८ औपदेशिक पद, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कामनि कंथ चल्यो परदे), ४६१८९-३ औपदेशिक पद, क. दयाल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गरब में हजार बेर देइ), ४४०१२-२ औपदेशिक पद, क. दिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे.?, (किनकी विगरी उनकी), ४७१९०-२(-) औपदेशिक पद, मु.द्यानत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब मोहि जान परी), ४७९६३-८९८) औपदेशिक पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (ऐक अनेक कपायपड), ४४१०२-२ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वे कोई काल न जीत्या), ४६३०७-२ औपदेशिक पद, मु. नाथ, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (कुल कलंक गही जग जगही), ४६८५८-२ औपदेशिक पद, नानकदास, पुहिं., दोहा. २, पद्य, (केहां गयो रे पंछी), ४६१४६-३ औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडारे), ४६६२३-२($) औपदेशिक पद, बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (तु आतम गुण जान रे), ४७०५७-२ औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, दि., (तू भ्रम भूलना रे), ४६५६९-३(-) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), ४४२७५-२ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा.४, पद्य, श्वे., (ऐसी समझ कै सीरधुल), ४५८२०-१(-) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ४५४७२-४ औपदेशिक पद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (तें सब जग ठग खायारी), ४६३०७-१ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु सीख सयानी), ४६३०७-३ औपदेशिक पद, महमद, मा.गु., गा. १०, पद्य, जै., (कुंभ काचो रे काया), ४५०२२-१ औपदेशिक पद, मु. मान, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे अग्यानी जीव तुं), ४४५३२-२(+), ४५२१२-२ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (मानव को भव पायके मत), ४५४०६-२(+) औपदेशिक पद, राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनरेछार मायाजाल), ४५४८५-५(+#) औपदेशिक पद, राज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीउ काहे• पछि), ४५४८५-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२५ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. रामचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, स्था., (जाहां देखो जाहां), ४५५४९-११(+-) औपदेशिक पद, मु. राम, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (मुंड मुडावा तिन गुन), ४४११९-३(+) औपदेशिक पद, पं. रुपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीयाजी हौ तुने वरजू), ४७२४३-४(#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन भजवानो सोगडीयो), ४५५१७ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीवाजी थाने वरजु छु), ४७४३३-२ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम गरीबन के नीवाज), ४५२१२-४ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पंथीडारे पंथ चलेगा), ४७९८३-२ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकित विन जीव संसार), ४७४०५-२ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समझ समझ जिया ग्यान), ४६८६९-८८) औपदेशिक पद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लख लखती गुंडि णिभ), ४४८६४-१ औपदेशिक पद, मु. लाभचंद्र, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (तेरे जूठे होर कू वड), ४६१३९ औपदेशिक पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (धान ही के आज काल भार), ४६७३४-२(-) औपदेशिक पद, मु. लाल, मा.गु., पद्य, मूपू., (वल्यो जात होक लाल), ४७०६२-५ औपदेशिक पद, वंद सखी, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (काहुसै गुमान न करणा), ४५९०८-५(#) औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (बंधवीया मुझ बोल), ४४७६२-८ औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (म करे रे जिवडा), ४३६३३-२(+) औपदेशिक पद, सामल भट्ट, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (एक वाव्यो लसणनो छोड), ४७०८६-३ औपदेशिक पद, मु. सुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कहां श्रवण जल भरे), ४४०१०-३ औपदेशिक पद, मु. सुंदर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (धूलि जेसो धन जाके), ४३५१८-२(+#) औपदेशिक पद, मु. सेवक, बं., पद. ५, पद्य, मूपू., (ओहे श्रीगुरुदेवजी), ४५७४६-२ (२) औपदेशिक पद-(पु.हि.)बालावबोध, पुहि., गद्य, मूपू., (अजी श्रीगुरुदेवजी), ४५७४६-२ औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ४, वि. १९९९, पद्य, स्था., (अरे मन लेता क्यो), ४६४३७-१(+) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेत चेत रे सुण हंस), ४६६३३-३ औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.८, पद्य, स्था., (माया मत कर तु मेरी), ४५५४९-१०(+-) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (श्रीजिनराज दयाल प्रभ), ४५५४९-२(+-) औपदेशिक पद, क. हेम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (निरखि वयण नवि हसें), ४७०६३-३(#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, (आज का लाहा लिजिए), ४३६३३-३(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (एक आण राण की पंचास), ४५९७१-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (किणरा छोरू वाछरू रे), ४७०६८-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (किस दूतीनै भोलायां), ४३७५६-४(#) औपदेशिक पद, रा., गा.१०, पद्य, मूपू., (कुड कपट कर माया मेली), ४४६८४-९ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कौन गती होगी आतमाराम), ४७०८२-३(-) औपदेशिक पद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (चीता नरद मेरा कह्या), ४६६९६(-) औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (चेति चतुरनर चेति), ४५४६८-९(5) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जब लग तेल दीया मे), ४६८६९-१४(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाग रे जंजाली जीवडा), ४५२१२-६ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जिन नाम कुं समरलै रे), ४८०२१-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीवरेचला जात जहान), ४६५६९-४(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (जोगीयाकुं ढूंढत जुग), ४७७०५-३ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दान विना जे मानवी), ४४८६४-२ For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (दृष्ट वीरामाण परदीस), ४७१९०-१(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (दो दिन केरे कारणि), ४४८२३-१(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (प्रमहंस कुंचेतनाजी), ४५७२१-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मनडे भांदीया तूं जिन), ४७९५४-७ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मनमांजासो ईम जोति), ४७९५४-६ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मन वीण मलवो ज्यु), ४४६०३-२, ४४७५३-३ औपदेशिक पद, पुहि., पद. ५, पद्य, श्वे., (मान ले रलीया कोइ दिन), ४४६३९-३(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा.२, पद्य, श्वे., (मीन मरे जल के पर से), ४५९७१-३ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मेरो कह्यो तू मान ले), ४७९६५-२(+) औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (रहेनै रहेनै रहनै अलग), ४६६९७-४($) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (वे दिन तुं भुलो राज), ४६५३७-३(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सजन ऐसा कीजीये जेसा), ४७०८२-९(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (सिवाय जिनपद के जग), ४७०८२-२(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ४५२४२-१ औपदेशिक पद, पुहिं., दोहा. १, पद्य, (हीरे के फूटे तै), ४६१४६-४ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (होरी खेलो रे भविक), ४७३६२-८(+) औपदेशिक पद-जिनभक्तिगर्भित, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (राजा रंक सबप एक), ४६४८३ औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ४४५१७-३ औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मसी, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आछी फूल खंडके अखंड), ४४१२० औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ४३७१६-४(+#), ४४६८४-६, ४६५३०-५(#) औपदेशिक पद-योवन, मु. उदयरत्न*, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (योवनीयानी फोजां मोज), ४४३०९ औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (सतगुर तुम तो भूल गया), ४४०२८-२(+) औपदेशिकबावीसी, मु. भालण, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे.?, (भगति करो भूधरनी), ४३६३३-१(+) औपदेशिक बोध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर उपदिसे), ४५६१२-१ औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (खलक इक रेणका सुपना), ४६४३४-५ औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (अब तन दोस्ती है इह), ४५४५५-५, ४६४३४-१ औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ४४५०५-६(+), ४४३७७-१, ४५२२०-२($) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (चल चेतन अब उठकर अपने), ४५०९३-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पुद्गल में मान्यो), ४४९३७-२(5) । औपदेशिक लावणी, ग. जिनदास महत्तर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आप सम जैका घर नही), ४५२२७(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकृत की बात तेरे), ४६९५३-१ औपदेशिक लावणी, मु. जीवण, पुहिं., गा.८, पद्य, जै., वै.?, (नाव विन नाही निसतार), ४७४३९-१ औपदेशिक लावणी, जैनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आयो अब समकित के घरमे), ४४८०३-२ औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुंरे समज), ४५०९३-१, ४६४३४-२ औपदेशिक लावणी, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (कलबल अकल करम सातु रा), ४६१५९-४ औपदेशिक लावणी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (रे मन समरण कर भाई), ४४९३७-१ औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वडे सजन बहिमान दगा), ४६१५९-३ औपदेशिक लावणी कायाउपदेश, मु. देवचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (काया रे कहेती मन), ४७८५४-२ औपदेशिक लावणी-धर्म, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कीसी की भुंडी नही कह), ४६४३४-३ For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्जाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तो तो पंजरे मे सोतो), ४५६८१-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हु तो प्रणमु सदगुर), ४७९२०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (अणजुग में केइ नरनारी), ४६४५७-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (प्यारी ते पीउने इम), ४८००४-६, ४६६९१-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (यामें वास में बें), ४६६०२-३ औपदेशिक सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (करो रे कसीदा इण विधि), ४५२७५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (पभणे प्रीतम कुं), ४५५८४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (परमहंस कुंचेतना रे), ४६५४६-५(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ये प्रीतम मेरा जीव), ४६८८२-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (काया नगरनो चेत राजा), ४६४३५-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद, रा., गा. ३४, पद्य, श्वे., (सूत्र गिनाता मै कयो), ४७००६ औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ४५४६८-३, ४७१९५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. चंदन ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९२२, पद्य, श्वे., (वाहा का जविया कछहु न), ४४३५२-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ४६४८८ औपदेशिक सज्झाय, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (कायानगरी कोट सबल), ४७४७६ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर अरिहंतनी चाकरी), ४३८२२-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. जेठमल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतनरेतूं ध्यान), ४५४४२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जीव भम्यो रे भोला), ४६६१२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (मेरा मेरा क्या करो), ४४११०-३ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तव सोहम गणधर कहे सहु), ४५३३४ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ते सुखिया भाई ते), ४३८२९-२(#) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), ४५०२२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (साध पावें धिपदवी चउद), ४७०३४-५(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आयु अंजलीना जल जेम), ४७२६६-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाहलो न माने रे), ४७६८७-१, ४८११९(#) (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावनामांहि), ४८११९(१), ४७६८७-१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. देवेंद्रविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतन चेत तु एहवू), ४६७५० औपदेशिक सज्झाय, मु. धनदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (लख चोरासी भरमत भरमत), ४४११४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (किस बिध ख्याल रच्यौ), ४३५३८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (गरुरा क्या केरा), ४३५३८-६(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (जीतोरे चेतन मोह), ४३५३८-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (तु तोड करम जंजीर), ४३५८९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (तेन क्या करतुत करी), ४३५३८-४(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (दगा कोइ कीन से नहीं), ४३५८९-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काची रे काया माया), ४८११७-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचे अंगुल वेढ बनाया), ४८११२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जीभडलि सुण बापडलरि), ४६६३७-३, ४७९७८-१ औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जोय जतन करी जीवडा,), ४५६६७-९(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मारग वहे रे उतावळो), ४५४०५ औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (इस मार्ग मति जा रे), ४३५४५-२ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ४६४९३-२ औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ४४५०५-७(+), ४५४१५-१(+), ४५२८६-१, ४५३०५, ४४५४०-२(#) औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (मानव भव पामीयो पाम्य), ४६५९२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. मोतिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीद्धस्वरूपी आतमा), ४७६२६-१(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ४५१४२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), ४७०१८ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), ४४७४२-२,४६६६५-२(-) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचंद, पुहि., गा.८, पद्य, स्था., (हारे ए जग जाल सुपन), ४६२२९-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (विणजारा रे वालंभ सुण), ४५४८५-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (--), ४४६२०-२(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २०, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (पुन्य जोगे नरभव), ४६३८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रुपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कैसे विध समजावू हो), ४६८८० औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहिं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (केसि विधे समजावू), ४६४४८ औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आगै), ४५२४६(#$) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अणसमजु जीवसी सीखामण), ४४४९५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सांभल रे तु सजनी मार), ४५२५० औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (जोय यतन करी जीवड), ४६१८७-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (अरिहंत साधु आचार), ४७०३०.) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (भजि भजि भगवंत भविक), ४३६४५ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ४४३७५-५(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयप्रभ, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनेक जीवायोनि हु), ४७२९२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ४४२८०, ४७७१२,४४३७५-३(-), ४५६४०-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दुध पुत्रने धन जोबन), ४४६५१ औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. २०, वि. १९०५, पद्य, श्वे., (सतगुर सिख सुणो भव), ४६६७० औपदेशिक सज्झाय, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दुखहर सुखकर दाखीयो), ४७०३७ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करीइ पर ऊपगार मुंकी), ४४३३९-३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पुरिसा मत मो माथा), ४६८००-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ४६९३८ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलचरुं जलमाहि फरुंज), ४४२५१-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखो टुटाने साधो), ४५८१७ औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हुंसीडा भाई प्राणीडा), ४३६८४-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), ४७९३५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया ममता मुकीइंजी), ४५४८८ औपदेशिक सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लख चौरासी योनि मइ), ४६१८१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंडितजी सातारी कुण), ४४६०२-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. हंसमुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन शुद्धइ सुणि जीव), ४३९१४-१(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. हिम्मतराम, मा.गु., गा. ११, वि. १९१५, पद्य, श्वे., (अजी मन साद मीलावो जी), ४५९४५(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अंत गणेरो लोभ न कीजे), ४६६३३-४ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " पदेशिक सज्झाय, मु, हीरालाल, रा. गा. ८. वि. १९३२, पद्य, मृपू., ( थे सुणजो भाया बाया), ४६६३३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (बालपणें बलभ गणो मात), ४६६३३-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (ललचे मती नार कुमतकार), ४५५४९-८ (+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हेमचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ४७०२४ (# ) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (असो रे अपूरव मले), ४४४१२-२(आत्मा शरीर लक्षन), ४७०२३-३(-) "" अपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. ७, पद्य, श्वे. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. १३, पद्य, वे (एभव रतन चिंतामणी), ४७१२०-२) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (ओ भव रतन चिंतामणी), ४४६३४-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (कांटा कीसी के मत लगा), ४४०६५-२ (+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कायाजी मोटा कारमी), ४५३२९-२(-) औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. १०, वि. १६२५, पद्य, मूपू (किस विधि जीवडे), ४३६०९-३ (+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (के भाई रुडु ते स्युं), ४६२१३ (#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोनमे रे), ४६४७४-१(-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (जबान सिरिसी मीठी जगत), ४६५३७-२ (-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( जीव चौद भुवनमांहि), ४३७१६-९ (+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (जो सतदेव धर्म नही), ४३७१९-२ (#S) , औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, वि. १८९९, पद्य, श्वे., (तमे सुणो वो चतुर), ४५३२९-१(-) औपदेशिक सज्झाय, रा. गा. १०, पद्य, मूप (थेतो जीवना जत करो), ४४११९-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (देव अरिहंत गुरु), ४७०८५-२ ($) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (देसतो विराना अपनां), ४५२८४-२ (-$) औपदेशिक सज्झाव, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू. (पहिला धुरि सम), ४८११६-१, ४७०३४-१(४७) " י औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पहिली प्रीत करतडां), ४७०६३-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (प्राणीया संग कुसंग न), ४४८२३-२) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मान कहू कोइकेनु), ४४०९१-४ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., रा. गा. ३, पद्य, ओ., (मन रे तु छाडि माया), ४६८६९-१२-१ औपदेशिक सज्झाब, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (माटी की गणगोर बणाई), ४४६८४-१२ " औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, श्वे., ( रे जीव को कहना नही), ४४३९४-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू., (रे जीव भ्रमवश तु), ४५९६७ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू (सारदा माता प्रणमुं), ४४३३५-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (सित चरचा वाचा अचल), ४६३१२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुणजो लोको रे मोहनी), ४४३२४-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (सेजा भली रे संतीकनी), ४४०९१-३ (सोहवती थोडी रे जीवठ), ४४१३२-५ (हूं आवि तुने तेडवा), ४५९४७(#) " औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., औपदेशिक सज्झाव, मा.गु., गा. १५, पद्य, वे. (-), ४४५०५-१(०६) औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (--), ४५५३९-२(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (--), ४७६९८(-$) " औपदेशिक सझाय, मा.गु, गा. २८, पद्य, वे (-). ४५७२९-१ औपदेशिक सज्झाय असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, म्पू, (आ संसार असार छेरे), ४५१३२ " पदेशिक सज्झाय-अस्थिर आयुष्य, मु. माणक, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सुणो मनोहरी नारयण), ४५२६५ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२९ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (नमो अनेकांतवादाय), ४४७१४(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, पू., (नही एसो जनम वारोवार), ४६०३९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. नारायण, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेत चतुरनर निज मन), ४६५३०-४(#) औपदेशिक सज्झाय-कपटविशे वाघ-चांदरा कथा, रा., गा. १८, पद्य, जै.?, (एकदने वनमा वाघन लागी), ४६२५४-२ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वनमाली धणी इम कहे), ४७१३६-३ औपदेशिक सज्झाय-काया, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (उडी जाय रे कागजकी सी), ४७०१९-२ औपदेशिक सज्झाय-काया, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पाखण परभवी पांच इंद), ४४२५१-६(+) औपदेशिक सज्झाय-कायाकुटुंब, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संभलि चतुर सुजाण), ४७६८७-२ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तो सुख जो आवै संतोष), ४७७७३-२ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ४३६४९-२(+#), ४३७१६-१०(+#), ४७१७१-३ औपदेशिक सज्झाय-कालप्रभाव, मु. सिंहसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समरु सरसति देवदयाला), ४७७७३-१ औपदेशिक सज्झाय-कुत्तादृष्टांत, पुहिं., दोहा. ३१, पद्य, श्वे., (एक जो कुत्ता कु ते), ४४३२० औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधना), ४४५४६-१, ४५४५५-१, ४५९०६, ४६११९-३, ४६६६३-४(#), ४४७३१-२(-2) औपदेशिक सज्झाय क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे लाला क्रोध न), ४३९२४-३(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ४४७२३-१, ४५१०४-१(-2) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ४५०९५-१(+), ४५२५३, ४६३३१, ४७७३६ औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव घणो धरी), ४५६२६, ४६७९९ औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुंकबाडी आयौ), ४४५०५-४(+) औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरे माहरा प्राणीया), ४६९९१(#) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जीभडली सुणि बापडली), ४४०२० औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सजी घरबार सारु मिथ्य), ४४६१५-१, ४५९०१ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (अरिहंत देव गुरू), ४४०६२-३(+) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ४४५८९-) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ४५१७६(+), ४६३३३ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ४३५२९-२(+#), ४३७१६-१(+#), ४५०३०(+), ४४९४६, ४७८१५, ४६६५७-४(#), ४७९४७-१(-) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ४७९२०-२ औपदेशिक सज्झाय-मवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (नवघाटी उलंघन हो पायो), ४६९०८-१ औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेटी सें विलुधो जुवो), ४४५२० औपदेशिक सज्झाय-मारी परिहार, सामल भट्ट, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (भुंडी नार सुनेह अजीत), ४७०८६-४ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. लावण्यसमय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (कवण की काया नइ कवण), ४५५३७-५ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ४६२९१-२, ४७३७३-१, ४६६७१(#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ४६५३४-२ औपदेशिक सज्झाय-निद्रापरिहार, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (निंदरडी वयरणि हो रही), ४७२४९-१(#) औपदेशिक सज्झाय-परदारा त्याग, रा., गा. ७, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (जारी वात विचारी), ४७२६६-२(+) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ४६२९०-२(#), ४६९६५-२(#), ४६०४०-४(-2) For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख), ४४७०६(4), ४५७७४-३, ४३५६०-१(#), ४६८७१(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ४५२३७-२, ४७५६३(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (जीव वारु छु मोरा), ४५४८४, ४७०६२-१ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (इउं कहि शिष्या), ४६८००-२(5) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण चतुर सुजाण परनार), ४६८३४-१ औपदेशिक सज्झाय-परिग्रहत्याग, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४३६०९-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (या दुनिया फना फरमाए), ४७५९८-२ औपदेशिक सज्झाय-भविष्य विशे, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भविष्यमें लख्यु होय), ४७५०६ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचितामणि), ४५०८८ औपदेशिक सज्झाय-ममता त्याग, मु. विनय, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (मम्मण माया बोहती), ४४७६२-४ औपदेशिक सज्झाय-मानत्याग, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मान न कीजे कोई मानवी), ४७३७३-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीवमान न कीजीए), ४४५४६-२, ४५४५५-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मान म करस्यो रे मानव), ४३५२९-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ४४७२३-२, ४५१०४-२(-2) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ४४५४६-३, ४५४५५-३, ४५९२८-१ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ४३५४०-१(+#), ४४७२३-३ औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञान कदि नवि थाय), ४५२९४, ४६९१३ औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रबोधगर्भित, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चबकी कोथली नरग की), ४८०८१-१(#) औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रबोधगर्भित, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (सरसती सावणी हु विनवु), ४८०६९-१(-) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ४७२४९-३(#) औपदेशिक सज्झाय-रहेंटीया, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु मरूदेवी), ४७२१० औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ४४५४६-४ औपदेशिक सज्झाय-लोभे, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोभ न पावै लोभथी सहु), ४६९३३-१ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ४३५४०-२(+#), ४४७२३-४, ४५१७७-२, ४५४५५-४ औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय नराचीई), ४३९४७-१(+#), ४७३९६-२(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., गा. १२, वि. १९३०, पद्य, मूपू., (तुने संसारसुख केम), ४३७२७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (विकट पंथ हु), ४३७१६-६(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसीरे), ४३६००-३(+#), ४४४२१-७, ४६९८४, ४७२०९, ४४३७५-२(-) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (बुझ रे तुं बुझ प्राण), ४३७८२-३(+#), ४४४१२-१(-) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ४३५६०-२(#) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंग न्यारा), ४५३९५-४, ४६४८० औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही हो सांभल), ४५७३५, ४६१५८, ४६५१४(-#) औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण संपूर्ण एक अरिह), ४३६४९-१(+#), ४४२५१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, (कबहूं हीरालाल कबहूं), ४५०८३-३ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (घूघट के झरुख में), ४५१४६-५(#) औपदेशिक सवैया, पुहिं. सवे. २, पद्य, ओ., (चवली लाट विराजरी), ४६१५३-२ , औपदेशिक सवैया, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (जैसे कोऊ स्वान पडवी), ४६९७६-२ " (ज्यो मन नारीको ओर), ४७५६७-४ " औपदेशिक सज्झाय - हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नगर रतनपुर जाणीइं), ४७५५०-३ औपदेशिक सवैया, मु. गंग, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (कहा काभर को खेत काहा), ४४११९-४(+) औपदेशिक सवैया, क. गद्द, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (अस्त्रीचरित्र नव), ४७०८६-५ औपदेशिक सवैया, क. मान, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे. (तुम ख्याल खुसाल मे), ४६०९२ औपदेशिक सवैया, पुहिं. पद १, पद्य, वे " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य, (पुरष एक पांगली जिह) ४६८९५-४ औपदेशिक सवैया, पुहिं. गा. १, औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, थे. (माणस को मोल सो तो), ४६५५४-१ " औपदेशिक सवैया धर्मोपदेश, मार्कड, पुहिं. गा. ७, पद्य, श्वे. (श्रेणिकराय करी वीर), ४७०८६-२ " औपदेशिक सवैया संग्रह *, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै. वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ४५६२९-४, ४५६५९-२ औपदेशिक सुखडी, मु. लावण्यसमय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (करंड भर्या छड़ कोघला), ४८०८१-३(०) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उठी सवेरे सामायिक), ४३८७६ (+), ४४६७८, ४५८३३, ४८११७-२ ($) (२) औपदेशिक स्तुति - चालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (महिमाप्रभसूरीस गुरु), ४८११७-२ (४) "" (२) औपदेशिक स्तुति - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारि जीव छइ प्रकार), ४३८७६ (+), ४४६७८ (२) औपदेशिक स्तुति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक भव बाल्यक बीजो), ४५८३३ औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), ४७७२८-२(-) औपदेशिक हरियाली, पंडित. धनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (बापइ जाया बेटडा तस), ४४०१८-२ औपदेशिक हरियाली, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कोहो कोहो योसी जोगी), ४४६०२-३ औपदेशिक हरियाली, मु. नेमिविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू. (मिटि विठो सुखकर रे), ४४६०२-१ औपदेशिक होरी, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. ८, पद्य, म्पू.. (कर गुजरान गरीबी) ४४६८४-४ औपदेशिक होली पद, मु. सुमतिसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (फाग रमे रस रंग होरी), ४६३०२-९) औषध यंत्र संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ४५५०६-२(+) औषध संग्रह, मा.गु, गद्य, वै.. (--), ४४४७०-३, ४४६६५-२, ४५०४६-१, ४६१०३-४, ४६९२६-४, ४७५७६-१, ४७७८३-३ ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ४४०९९ (+), ४४९८५ ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, वे., (कका क्रोध निवारी), ४४६३७ (+#), ४६०२२($) कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर रे गोयम गण), ४६३५४-१(#), ४६०४०-१(#) कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (एकदा समयनिं विषई), ४४४५९-३६) कबीर जकडी, कबीरदास संत, पुहिं. दोहा ८, पद्य, वै., (क्या जाणुं प्रभु के), ४५०६३-२(००) " कमठ तापस पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे. (तुम ही जायकै अश्व), ४७९५४-८ " कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., ढा. ४, गा. ४४, पद्य, मूपू., (नमिय वीरि जिणेसर), ४३७७६ कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं. गा. २९, पद्य, श्वे. (महिला में बेठी राणी), ४५३५६ " " करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (चंपानगरी अतिभली हुँ), ४३७८२-१(+४), ४३९४९-२(+), ४३९३३-२, ४७९२८-१(#) For Private and Personal Use Only कर्पूरमंजरी चौपाई, पं. मतिसार कवि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६७५, पद्य, म्पू, (-), ४६५२१(३) कर्म गीत, ग. समयसुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (राग द्वेष तु करमथी), ४४१६०-४ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ४३६२५-२(+#), ४४७७२(#) Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कर्म प्रभाव सवैया, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (कर्म परापत तुरी), ४७०८६-६ कर्मवत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू (करम तणी गति अलख), ४४०४९-१ "" कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (देव दाणव तीर्थंकर), ४४४६५, ४६५३४-१ ४६८१३-१, ४७५३९, ४७६४१, ४८०८९ (#) कर्महडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कर्म हींडोल नामाई), ४८०१३(+), ४६१०२-१ कलयुग पद, रंगलाल, पुहिं. गा. ९, पद्य, वे. १, (हाकांधिका कुलजग आयो), ४६५४० कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (नयरी कोसंबीनो राजा), ४७९८८ कलिकाल गुणदोष कथा - महावीरजिन गर्भगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवे समे श्रीमहावीर), ४३९९४(#) कलियुग सज्झाय, मु. कुशलधीर, मा.गु गा. ४, पद्य, म्पू, (मुनिवरहोईमजूर व ऊष), ४७०१७ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं. गा. १२, पद्य, भूपू (यारो कूडो कलियुग), ४६९७३(१) , कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सांमणि पाय), ४६१४९ - २ (+), ४५६९०-२ कल्कीराजा जन्मपत्री, रा., गद्य, मूपू., ( श्रीमहावीरजी का), ४४८६८ कवित संग्रह, पुहि., मा.गु. रा., पद्य, वे., ( आसराज पोरवार ती कर). ४७०८२-८ " कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, जे. (--), ४५७२६-२ , कागस्वरसकुन विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (ग्रामांतरि चालना), ४४०१७-२ "" कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु. डा. ९. वि. १७४६, पद्य, भूपू (पारसनाथ प्रणमं सदा), ४७९४९(१) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६. वि. १८८६, पद्य, चे. (एक दिन इंद्रे), ४७११९(+) कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, श्वे. (प्रथवी भुषण नगर तिहा), ४४६९९-१ " יי कार्तिकसेठ सज्झाय, हीरालाल, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (तीण कालेने तीण समे), ४५७२४ कालभैरव मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (35 नमो कालभैरव कबरी), ४५०९३-३ " काल मान विचार, मा.गु., गद्य, वे., ( पकवानीर सुखडी च्यार), ४५३४५ कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां पूर्वइ स्थविरा), ४३७०४-३ (+#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालोदास सज्झाय-ज्ञानगवेषणा, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ज्ञान गवेषी प्राणीया), ४५०६०-२ काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य ? (--), ४३७८७-२(१), ४३७९८-२(+०), ४७५५१-७, ४८००१-२, ४३९३०-४(०), ४७५५४-१(-) कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३४, पद्य, मूपू., ( ॐनमो कहि आदिथी अक्षर), ४३७३६-१(#) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., ( रात दिवस नित सांभरो), ४३५६३ - ३(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीकुंथुनाथ जिन बंद), ४४३५७-२ कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ४३७८५-२(#), ४७८९५-२(-) कुंथुजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (भगवंत आगल विनवुं), ४६४५९ कुंथुजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (माहरे तुमस्युं अपूरव), ४४३९१-३ कुंभस्थापना स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( धरम उत्सव समै जैनपद), ४४५२१ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ४५७२३ कुगुरु लावणी, मु. जिनवास पुहिं. गा. ५. वि. १७वी, पद्य, मृपू, (तनुं तनुं में उन), ४६३२३-९, ४५३७५-२शन " कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ४४९५० कुगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (देव धर्म गुरु औलखो), ४६३०८ कुतरी छंद, मु. आणंद, मा.गु., गा. ७. पद्य थे. (सूई गाम सोहामणो एक), ४६१०५) कुनारी परिहार पद, क. सुंदर, पुहिं. गा. १, पद्य, वै., (कामनी को देहमाने), ४७०८६-८ कुमतिकुदेववर्णन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (जिनप्रतिमा जिनसारखी), ४४२७५-३ कुलकोटि विचार, मा.गु, गद्य, म्पू, (नारकीनी २५ लाख कुलको), ४७०६६ (३) For Private and Personal Use Only ५३३ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ कुव्यसनत्याग सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (छांड रे छाड कुबिषण), ४३८२२-७ कुव्यसन परिहार सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवीजन हो के भवीजिन), ४३९४८-१ कुशलसूरि गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कुशल करो जिन कुशल), ४७५४४-२ कुसंगत परिहार पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नरवाव पाहारी तो खोही), ४६७३४-१-) कुसंगति दोहा, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वै., (सठ सनेह जीर्ण बसण), ४५०६५-३ कुसाधुसज्झाय, श्राव. मोतीचंद, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (भेखधारी संसार मे), ४६२५४-१ कृष्णकालिनाग लावणी, गंगाधर, पुहि., गा.८, पद्य, वै., (बसत इक जमुना मै काली), ४७४३९-४ कृष्ण पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (रमतां राम फकीर), ४५३७०-३ कृष्णभक्ति पद, मीठादास, मा.गु., पद्य, वै., (वसरा वननिरे वाटे चा), ४५५०४-३ कृष्णभक्ति पद, मीठादास, मा.गु., पद्य, वै., (व्याकुल थाउ मारे वाल), ४५५०४-२ केवलज्ञानी चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चउनाणी थइ शु), ४४६६९-२ केशरीयाजी लावनी, मु. रुपविजय, पुहि., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (खडा खडा प्रभु अरज), ४४०८७-१० केशवजी चोमासा ढाल, मु. भैरव ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (श्रीजिन पास जिनेससँ), ४३६७१(+#) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ४६९१६ केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ४४५५४, ४४५९६-१, ४५०५१-१ कोशास्थूलिभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुडा प्रति कोसा भणि), ४४८८३-३(+) क्रोध परिहार सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (आगम अरथ विचारोरे), ४४०६२-१(+) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, वि. १८३५, पद्य, मूपू., (पेलुं सरस्वतीनु), ४४२६९ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ४३६२५-१(+#), ४३८८६, ४४३१०, ४४५११, ४५५७३, ४६९६८, ४४५७७(-) क्षमापना सज्झाय, मु. कल्याणहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद पहिलुं नमु), ४६९१९-१ क्षमाविजय गुरुगुण सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. २, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (समरूं भगवती भारती), ४४०२६ क्षमासूरि सलोको, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सरसति सामणी पाए हुं), ४५४३१ क्षेत्रपाल घग्घर नीसाणी छंद, जै.क. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋद्धि राजे रंगे सिद), ४४४६७ क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (जैन को उद्योत भैरु), ४४२८७-२(+), ४५९५०-१(-), ४५९५०-२(-) क्षेत्रपाल मंत्र साधाना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं), ४५००३-१ खंधकमुनि चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, श्वे., (नमूं वीर शासनधणी जी), ४३५९०(+) खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), ४३५२६ (#) खंधकसाधुसज्झाय, रा., ढा. ३, गा. ५७, पद्य, श्वे., (श्रीसीमधर पाय नमुजी), ४५२५१, ४७०५०-१ खामणा कुलक, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (अरिहंतजीने खामणां), ४८०१० गच्छनायक सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (मेघ ज्यु गाजत वाचत), ४५२४३-२ गच्छोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (दसकुंमतना नाम लख्या), ४४०२७-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (जिनवर आवता मे सुणा),४६६६३-१(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., गा. ९, वि. १७५३, पद्य, श्वे., (श्रीजिननेम आगमसुणि), ४४३२४-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वंदु गजसुकमाल महामुन), ४४३७५-६(-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी अति भली), ४६६४६, ४७१३८-३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ४६२७४(-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (देवकीनंद शिरोमणि), ४६९७० गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सोरठ देस द्वारकानगरी), ४५०५४ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ४७३९६-७(#$) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे. (आगम सुणी सखी बांदवा), ४६५६५-२($) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ४४४७३-१(-) गजसुकुमाल सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (गजसुकुमाल वैरागीवो स), ४३९०१-२०१ गणधरगुण हुंली, मु. गुलाब, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसती वरसती वाणी रे), ४५७७१ गणधरगुण गुहली, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू., (गणधर हे के गणधर चारि), ४४९४४-१ गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को. मूपू (इंद्रभूति मगधदेशे), ४७५३५-२ " गणधर स्थापना गहुली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनिहारे नयरी अपापा), ४५०७६-१ गण विवरण, मा.गु., को., (मगण यगण रगण सगण तगण), ४७८५१-४ गणेश गीत, मु. पद्मविजय, पुहिं. कडी. ८, पद्य, भूपू. वै., (कला उजला विमला), ४७१३८-२ गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, मा.गु., गद्य थे. (नारकीदंड २ गति), ४३५८३ (+), ४८१२३-१०) गमन पृच्छा, मा.गु., गद्य, वे., (कोई पूछवा आवे जे), ४७१४५-१ गर्भचिंतामणि, मु. उदयचंद, पुहिं. गा. १४, पद्य, मूपू., (अवगत मुग नाही रे, ४५५८०-११ गांगेय सज्झाय - भगवतीसूत्र - शतक ९, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सूधु समकित धरीइ धीर), ४७४८१-२ गिरनारतीर्थ पद, पुहिं. गा. २, पथ, भूपू (शिखर गिरनार जाना हो), ४६४५२०५ " गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ४७३६२-१७(+), ४७४९६-१(+), ४६४५२-६(s), ४६३०२-६ (-) गुणस्थानक सज्झाय, मु. भीम, मा.गु. गा. १७, पद्य, भूपू (प्रणमी पास जिणेसर), ४४४०६ " . गुरु आगमन गहुली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. २७, वि. १९१४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पाये नमी), ४५७०८-१ गुरुआशातनापरिहार स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (गोयम गणहर गुण भंडार), ४८०७३(+) गुरुगुण गहुँली, मु. नथमल रा. गा. ११, पद्य, वे (पूजजी पधारे माने), ४५७२२ गुरुगुण गहुली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे मारे देशना दो), ४४३०७ गुरुगुण गहुली, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनवयणे ने अनुरंगी), ४७७६७ गुरुगुण गहुली, मु. दोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आवो जईइ गुरू वांदवा), ४७५७९ गुरुगुण गली, श्राव. नथुचंद सा, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सरसति सदगुरु मे रमता), ४६०२० गुरुगुण हुंली, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जी रे मारे गुरू गिरु), ४७७८६ गुरुगुण गहुली, मु. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे. (ते गुरु मेरे उर वसे), ४४१३२-४ गुरुगुण गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (सुण साहेली जंगम तीरथ), ४३६२९-१ गुरुगुण गहुली, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवि तुमें सुणजो रे,), ४५१६८ गुरु गुण गहुली, मु. शुभवीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( चरण कमल सुसोभता व्रत), ४४९७२-१ गुरुगुण गहुली, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण करणशुं शोभतां), ४७००४ गुरुगुण गहुली, मु. सहजसुंदर, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (गुरु गुण रतन समुद्र), ४४२५१-३(५) गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, श्वे. (मारो मनडो वसजी गुरु), ४६९०८-२ ($) " गुरुगुण गुहली, मु. क्षमाविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (समदमवंत गुरू गणधारि), ४५२८८ गुरुगुण गुहली, मा.गु, गा. १५, पद्य, भूपू (मुनीवरमां परधान), ४४९४४-३ गुरुगुण पद, मु. लाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुन पकरैगो बाहि गूरू), ४७५६७-३ "3 गुरुगुण भास, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ९, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (सहीयां रे सहीयां रे), ४५२४३-३ गुरुगुण भास -७ वारगर्भित, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (माहरा गुरुजी रे मोहन), ४३७२६ (#) गुरुगुण सज्झाय, मु. नयनसुख, पुहिं, गा. ८, पद्य, थे. (में दरस बिना रह्या), ४३५८९-४(+०) " गुरुगुण सज्झाय, मु. भानीराम, रा., गा. १३, पद्य, वे., (ज्यांने सेवौ भवीमन), ४६६९० गुरुगुण स्तुति, बं., पद्य, श्वे. (अहो श्रीगुरुदेवजी ए), ४७५२६-२४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५३५ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३६ गुरुगुण स्तुति, पुहिं, दोहा. ३, पद्य, ओ., (गुरुजी मोरा सोन), ४६५९७-२+०) गुरु भास, मु. खातिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वंदन जइई जइहं गुरु), ४४३००) गुरुमहिमा सज्झाय, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरु आराधो गुरु), ४७३९६-४ (०३) गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू (श्रीशंखेश्वर पाये), ४५७०८-२ गृह प्रमाणादि विचार, मा.गु., गद्य, थे. (एक घर प्रमाण के हो), ४७५४१-३०) "" गोरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उद्गम दोष श्रावकथी), ४३५१६, ४४९९४ गोरखनाथ वचनिका, गोरखनाथ, पुहिं. गा. ७, पद्य, वै. (जो भग देखि भामिनी), ४७६८८-७ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ गौतमस्वामि स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (त्रिभुवन जन घन जनित), ४४१२२-२(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम गणधर देशना सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इकदिन गोतमगणधरू रे), ४४७५६-२ गौतम गणधर भास, मु. हेम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे गौतमगणधर समोसर), ४४७१८ गौतम गणधर स्तुति, मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू.. (सकलसंपद करण गणधर वीर), ४४००३-४ गौतमपृच्छा २६ बोल, रा., गद्य, मूपू., (कोहो पुजजी कोहो साम), ४६५९९-१ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नवरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू (वीरजिणंदतणा पय बंदि), ४५६२१-१ , गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ४३६७९(+#), ४४९००(+), ४३८८५ गौतमपृच्छा सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ४५१३३ गौतम महावीर संवाद, मा.गु., गा. १३, पद्य, थे. ( इक दिन पूछे गोयम), ४७३३२-१ " गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ४७४९५-२ गौतमस्वामी गली, मु. दीपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चालो रे बाई चाले), ४६२४५ (+) गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू., (चरण करण गुण आगरो रे), ४७८२७-५, ४३६९२-५ ( का गौतमस्वामी गहुंली, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी गूंहली करो गुरु), ४४१३८ गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नित प्रणमीय), ४७८३० (+) गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. ९. वि. १८वी, पद्य, भूपू. (मात पृथ्वी सुत प्रात), ४४६३०-२, ४५०६२-१, ४५४८९-७, ४७५१३-२ For Private and Personal Use Only गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ४४१४८-२, ४४२११-१, ४६१३४-१, ४६६२०, ४७५६१-९, ४५६४०-१(-) गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (कामीत दाता जगविख्यात ), ४७५१३-३ गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (गौतम आव्या वाद करेवा), ४७०४९ गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), ४४४७२-१, ४५२१४७१४) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४. वि. १८३४, पद्य, स्था. (गुण गाउ गीतम तणा), ४४४०९१०) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु. दा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ४४९७६-१(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ४४६९८ (+), ४४०१४, " ४५३६५(#), ४४८२९ ($) गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, म्पू, (सरस वचन दायक सरसती), ४३७८१-१(७) गौतमस्वामी रास, मा.गु, गा. ४६, पद्य, भूपू (वीर जिनेसर चरण कमल), ४४५०८-१, ४४०३१(३) "3 गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सकलचंद, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू (मुज आपो विर गुरु), ४५७००-३, ४७५९८-९, ४५७१२-२०१ गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ४३४९८-६(+#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ४६८८३, ४६७९६(#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८२७, पद्य, स्था., (जंजूदिप दिपा रे बिचम) ४५०४३-१, ४६६११) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ४३७९९-१(+#), ४३५४४-३, ४३८६८, ४५२०३ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ४४२६७-४ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (राजग्रही रलीयामणी), ४४७०४-२, ४७८२७-४, ४३६९२-४(४) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (इंद्रभूति अनुपम गुण), ४३४९८-४०० गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, ओ., (गौतम नाम प्रभात जपो), ४८०७७-३(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ४६०८८-२ घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू (धतुरा धुतारा धरति) ४५९०८-४११ घंटाकर्णयंत्र महिमा, मा.गु, गद्य, भूपू (दिन प्रत्ये वार ३ तथ), ४८०९०-२ " घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), ४४७६९ घडपण सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (वडपण तु का आवियो), ४७०२७/-) घासीराम संलेखना सज्झाय, मु. कनीराम, मल., गा. ८, वि. १९१२, पद्य, स्था., (पूज घासीरामजी भारी), ४५६९३ (#) चंदनबालासती गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (नयर चंपा जग जाणाइए अ), ४४८२३-४९१ चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ४८, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे पय), ४३५२४-१(#) चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज अमारे आंगनडे सुकृ), ४५५३९-१(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४२, पद्य, वे., ( चित चोखी चंदणबाला), ४६५४६-३ (-) चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (कोसंबी नगरी पधारीया), ४५७६५-१ चंद्रगुणावलिका पत्र, आ. दीपविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ती श्रीमरुदेवीन), ४५०७६-२ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा. गा. १९, पद्य, ओ., (उजीणीनगरी के बागमें), ४७६७८ , 2 " चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ४७१५६-३ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. डुंगरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (नयरी चंद्रायण अतीभली), ४५११४ " चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू, (जिनेंद्र चंद्रप्रभ), ४३६००-२(+०) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, चे., (चंद्रवदन चंद्रसारिखी) ४३९१५-१(०) श्वे., चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (चंद्रप्रभुजिन चाकरी), ४५२३७-४ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ४४७३६ (+), ४७६२१ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, श्वे., (सद्गुरुने चरणे नमी), ४३६६० (+#), ४३६२७(#) चंद्रप्रभजिन पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, वे., (छबि चंदाप्रभु की को), ४६८६९-२(-) , चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), ४६५४६ - १ (-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी चंद्रप्रभु मेरे), ४७०८२-७ (-) चंद्रप्रभजिन स्तवन घोघामंडन, क. पद्मविजय, मा.गु. गा. ७. वि. १८१७, पद्य, मूपू (चंद्रप्रभु जिनराजनो), ४५५८६-१ " चंद्रप्रभजिन स्तवन- रूपातीतगर्भित, मु, मानविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (तुंही साहिबा रे मन), ४८०६० चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७०, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीमरुदेवि), ४३६७० (०) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ४३७५० (+#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रायण मान, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे. ?, (स्वस्ति श्रीहित), ४५९३३ चक्केश्वरीदेवी स्तवन, शंकर, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जय जय जिनसासनसुरी), ४४७५६-४ चक्रवर्ती १४ रन विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (चक्र छत्र दंड ए तीन). ४५१५५-१ चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (अलबेली रे चक्केसरी), ४५०७६-३ चक्रेश्वरीदेवी छंद - शत्रुंजयतीर्थअधिष्ठात्री, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मा चकेश्वरी सिद्धाचल), ४४३४५ चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, थे. (श्रीचक्रेश्वरी देवी), ४४७१९-२ चतुर्थाध्ययन सज्झाय, मु. जैतसी, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू (महावीर भाख्यो एम), ४७११२-३ चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चौद सुपन सुचित हरि), ४४५७५-२ चरखा सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (सुण चरखा वालि चरखो), ४४६१५-२, ४६९१२, ४५८६९ (४) For Private and Personal Use Only ५३७ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ चरम पद के भांगे, पुहि., गद्य, श्वे., (१परमाणू में भांगा १), ४४६०७-२(+) चामुंडा छंद, सा. सुखा, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुंडालो नित समरीय), ४५५०० चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४१, ग्रं. ८८, पद्य, मूपू., (सुह गुरुपय प्रणमउं), ४४५१९(+), ४४८२३-५८) चित्तसंभुति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ४८, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रणमु सरसति सामुणी), ४४११५ चित्रमुनि सज्झाय, मु. नयसुंदर, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (पूरव भवि मद जाति), ४३८६१ चित्रसंभूति कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चित्र अने संभूत बे), ४५०५६-१(+) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ४४११८, ४७६५७ चूनडी गहुंली, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आछी सुरंगी चुनडी), ४८०२७ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ४३६०५ चेलणासती रास, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (तापस कहे सुण श्रेणिक), ४४०४७(+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ४६९७५-२, ४६२४७(#), ४७०३४-६(-2) चेलणासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (राणी करीये रसोइती), ४४८५२-१ चेलणासती सज्झाय, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुण रा सामीजी सुण रा), ४४८५२-२ चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ४६८३१, ४३६२२(#) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ४३६८६, ४४५२४, ४८०६७ चैत्रीपूनम पूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ आखा चंदनादिक), ४५२२८ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, अनुपमचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिणेसर), ४६८५३-१(-) चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल सुंदर), ४५६०१ चोबोलप्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सभापुरि विक्रमराय), ४५४१४ चौदपूर्वनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), ४५५३५ चौदराजलोक विचार, मु. कान कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात राजलोकनै सात), ४५०८३-४ चौवीसजिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीआदनाथ अजत संभव), ४७५९३(-#) छकाय नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (इंदि बंबि संपी सुमती), ४५७११-३ छट्ठा आरानी सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (छठो आरो एवो आवसे), ४६०३२, ४६४७२ छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (रे जीव महावीर भगवंत), ४८०८५-३ जंबुकुमार लावनी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., अ.५, पद्य, श्वे., (सामी सुधर्मा संत), ४५३९२-२ जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), ४४१३४,४५५९२-३(६) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), ४५२६३-२(+) जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ४४४६४-१ जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (जाउं बलिहारी जंबू), ४३५२९-३(+#), ४६३९७-१(#) जंबूस्वामी रास, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (शेठ रीखवदत्त राजगृह), ४३८३०(+) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवू), ४४०२१, ४४०९८ जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रिषभ जैनंदन धारणी), ४४३५२-४(-) जंबूस्वामी सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (जंबुस्वामि जोवन घर), ४४४९१-१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ४७०८९(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हरख, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (आठे ते रमणी अती भली), ४६८२० जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ४५५२६ जखउबंदरस्थित जिनमंदिर अंजनशलाका वर्णन स्तवन, श्राव. वीरचंद अंबाराम, मा.गु., गा. १२, वि. १९२७, पद्य, मूपू., (जखउ बंदर जुहारीइ हो), ४८०२० जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, मा.गु., गद्य, श्वे., (चवण जम्मण२ चउथ सवि), ४७७९७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जादव वंशावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ राजामुनिसुव्रत), ४४२८९-२ जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिणचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आयो सहूं श्रीसंघ आस), ४७०३२ जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीजिनकुशलसू), ४७६२९-२, ४५४६२-४(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. लालचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (दिनकर जिम दीपै सदा), ४६८७२-१ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दादो तो दरसण दाखइ), ४७५४४-१ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देरावर दादो दीपतोरे), ४७५४४-३ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गछपति खरतरता सुरता), ४६६९८-२(-) जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा.५०, पद्य, मूपू., (वदनकमल वाणी विमल), ४७८१२-२ जिनकुशलसूरिदादा गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (आयो सहु श्रीसंघ आस), ४७३७६-२(5) जिनकुशलसूरि पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (दादो दोलत दाता सुख), ४६६०४-३ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अभयकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देरावर में दीपतौ), ४७४५२-२ जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादौ परतिष देवता), ४६४७३-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ४४७५५-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ४६५९४ जिनकुशलसूरि स्तवन, श्राव. हरीश महोकर, पुहिं., गा. ७, वि. १९६९, पद्य, मूपू., (कुशलगुरु हो तो ऐसे), ४५७०३-२ जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. आनंदसागर, रा., गा. ६, वी. २४३८, पद्य, मूपू., (सुनो सुनो कुशल गुरु), ४५७०३-१ जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मूपू., (रिसहजिणेसर सो जयो), ४५८२६($) जिनक्षमारत्नसूरि को पूनमचंद चुनीलाल का पत्र, श्राव. पुनमचंद चुनीलाल, रा., गद्य, मपू., (स्वस्ति श्री पार्श्व), ४५४८३ जिनगुण गरबो, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूतपू., (हारे हुं पूजीसुरे), ४६११४-२, ४६६६३-३(#) जिनचंद्रसूरि आलजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आसू मास वलि आवीयउ), ४७४६८ जिनचंद्रसूरि गीत, मु. सुमतिहस, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेशउ कहइ), ४६७०० जिनचंद्रसूरिजी को पत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीजीनो कागल लखवानी), ४७९६१(+) जिनचंद्रसूरि भास-गच्छनायक, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वांकानेर समोसर्या रे), ४७०१४-२ जिनचंद्रसूरि स्तुति, मु. देवीचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (परम ग्यान ध्यानीराट्), ४७९७६-३ जिन जन्माभिषेक दोहा, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरुशिखर नवरावे हो), ४४७५३-२ जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिरिसुयदेव पसाइ करो), ४७४१८-१ जिनदत्तसूरि गीत, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सद्गुरुजी थे सांभलो), ४६८७२-२ जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (केही गल्लांक पीयां), ४७७४०, ४७०७९(-2) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा चिरंजीवो सेवक), ४६८८८-१, ४७३७६-१ जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती देवी धरी मनरंग), ४६१४७(+) जिनपद गहुंली, उपा. सिवचंद पाठक, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ४४७५६-१($) जिनपदचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद. २४, गा.७६, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा आणंदकंद), ४७०४०(+-#$) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ४५१३५-१(+), ४३९५९, ४४३७४-१ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (पाप अठारै जिन कह्या),४३७५७-२(+#) जिनपूजा अष्टक, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (जलधारा चंदन पुहप), ४४४५३-२ जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामण समरी माय), ४७२८२-१ जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथनी पूजा), ४३७९९-३(+#), ४५४९५-२(#) जिनप्रतिमा एकादशी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (इहविधि देव अदेव की), ४४२७५-४ जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनवर जिनप्रतिमा), ४३६००-१(+#) जिनप्रतिमा स्तवन, मु. आगम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कुन करे वारी कुरे), ४६६३७-१ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ जिनप्रतिमास्थापन स्तवन, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा जिनसारखी), ४४६१७-३(+#) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ४५२२६-१, ४५४९९-१(#) जिनप्रतिमाहंडिरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुयदेवी हीयडै धरी), ४४३५३(+) जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), ४७३४९-१ (२) जिनबल विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (बार नरे मिली एक), ४७३४९-१ जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ४७५३६-१ जिनबिंबप्रवेश पूजनादि सामग्रीसूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदीवृक्ष१ सहदेवी२), ४७३९२-२ जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (भला मुहूर्त जोई), ४४५४८(#) जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पूर्वोक्त शुभ), ४७३९२-१ जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ४३८३७ जिनभक्तिसूरि गुरूगुण गीत, मु. कीर्तिचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वांदो भविन भावै गछपत), ४५३५४-४(+) जिनभक्तिसूरि भास, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (हु तो आवेरे वधाओ), ४५७२६-१ जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुराज), ४३७६५ जिनवचन महिमा पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनवचन अनुपम सब जग), ४७९६३-६(-) जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हु), ४५६९१ जिनवाणी गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अमृत सरखी रे सुणीई), ४५०७६-५, ४६७७८(#) जिनवाणी सज्झाय, मु. कंत, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनंदा तोरी वाणी एम), ४६८८४ जिनशासन के ५ व्यवहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीठाणांग श्रीभगवती), ४५०४२-४ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहि., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, दि., (परम देव परनाम करि), ४७६८८-१ जिनसागरसूरि गीत, ग. हर्षनंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आठ वरस बालक वई रे), ४३६०८-२(+) जिनसागरसूरि गीत, ग. हर्षनंदन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजजी थे चावा बोहथरा), ४३६०८-३(+) जिनसागरसूरि गीत, ग. हर्षनंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सखी मोरी करी सिणगार), ४३६०८-४(+) जिनसागरसूरि गीत, ग. हर्षनंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हरख धरी म्हे आवीया), ४३६०८-१(+) जिनसिंहसूरि गीत, मु. नयणसिंह, मा.गु., गा.५, पद्य, स्पू., (गजगति हे सखि गजगति), ४७७५० जिनसुखसूरि जीवन झरमर, मु. रूपचंद्र, पुहिं., गद्य, मूपू., (अथ मजलसग अहो आवौ), ४७५६४(#) जिनेंद्रसूरि गहुंली, मु. चंद, मा.गु., गा. ५, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (गामनगर पुर विचरता), ४७९३७-१ जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरु चरण कमल प्रणमीन), ४७३७३-३ जीवकाया सज्झाय, मु. वर्धमानसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (काया कामणि वीनवैरे), ४४२५६ जीव खामणा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाख चौरासी जीव खामीय), ४४२६४-२(+) जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ४३७९८-१(+#) जीवदया सज्झाय, मु. कनीराम, रा., गा. ७०, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (आप हणे हणावे नही पर), ४५६२०(२) जीवदया सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रे जीवदया पालीयै दया), ४५१८१-२ जीव भेद कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सत्व अनंत विणा संभूत), ४५७११-४ जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहिं., गद्य, मूपू., (दोय कोड चोराणवे लाख), ४६३५६(१) जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय लक्ष अप्का), ४७५३५-९ जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), ४३५१५(+#) जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ४६४३१ जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ४४५६७ जुठातपसी भास, मु. चारण, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे.?, (सरसति सामन वीनवु), ४३७१६-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जैन ऐतिहासिक वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् ४५६), ४४०२७-२ जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ४७००८-२, ४६२९०-१(#$) जैन गाथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४३६०९-४(+$) जैनयंत्र संग्रह(कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ४४५६२-२(+), ४४९९५-३(+#), ४६३८९-२, ४६५५५-१, ४६८०२-३ जैनेंद्रसूरिगुण स्तवन, मु. जीतसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल सूरिंद गुणवृंद), ४६८८९ जैमलऋषि गुणवर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (पुन जोगे ज्ञानी गुरु), ४४०३५ जोबनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (पुन जोग नर भव लहो), ४५८५८(5) जोबनबतीसी, मा.गु., गा. ३०, पद्य, श्वे., (पुन जोग नर भव पायो), ४३९९३ ज्ञान कसीदा, मु. ऋद्धिसागर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित आणो अती चुंपरे), ४७१२२-१(#) ज्ञानगुण वर्णन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनराज तणी), ४५३७३-७ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ४४१४६-१ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ४३९४५, ४३९६५, ४५०८९ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगुरु पाय), ४३७६७(+#), ४४९६६, ४५५४५, ४७२६९-२, ४८०८२, ४५७७७-१(#), ४६९९९-१(१), ४७८८९-१(2) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतसिद्धने करु), ४४३६३-२(+), ४४३०१ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमुं), ४७३७४-१ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, पू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ४७८५६(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (--), ४६६७५-१(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु.खुस्याल, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिनेसना), ४३५८२-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ४३६७२(+#), ४४४९०(+), ४७८५८, ४४८१२(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मपू., (ज्ञानावरणी क्षय करीन), ४५३२५(#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. राजरत्न, मा.गु., गा.१४, वि. १६८५, पद्य, मूपू., (सारदमाता चरण नमीनई), ४८०४८ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरण नमी करी), ४४६४९-२($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (--), ४६६८२-१(-#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ४६०५९, ४७५८४-१, ४५७४८-१(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कार्तिक शुदि पाचमि), ४३९६६ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ४४१७८, ४५०३६, ४५२१६, ४५९२०-१(#), ४६१४६-१(६), ४४३७५-४(२) ज्ञानमहिमा दुहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (ज्ञान समो कोइ धन), ४५३९९-४ ज्ञान हिंडोला, मु. केसवदास, पुहिं., पद्य, जै.?, (झूलत चेतनराव जहां), ४७६८८-५ ज्योतिषसारणी संग्रह, अज्ञा., को., ?, (--), ४७९२८-३(#) ज्योतिषि सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, वै., (रुप कीधुं ब्राह्मण), ४४८४१-१ ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ४५५०६-१(+), ४६९७१ ज्वर छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर नगर), ४५७४९ झाझरियामुनि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पइठाणपुर नगरे तत्र), ४५४७३-७(#) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ७८, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सरस सकोमल सारदा वाणी), ४४९७९-१(+) टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (लांबा जुहार करे), ४५६६७-१०-) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ४५०१७(+), ४५०८६, ४५४४०, ४६५९२-१, ४७५८०,४८०५९-२,४५४९४(६) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर वंदीनई), ४३७१६-१२(+#) ढंढणऋषि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (धन धन साधु शिरोमणी), ४४०९५-१ ढुंढक छंद, मु. प्रेम, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (देसामाहे सीरोमणी मरु), ४५५०४-१ ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ४७८४४(+), ४३८२९-१(#$) ढुंढकमतपट्टावली दढालीयो, पुहि., ढा. २, पद्य, श्वे., (वांदु सिरी चोवीसमा),४४७६२-३ ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे., (सरसति मात मया करी आप), ४३६१८(+#) ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), ४७४३७(5) ढुंढियाबत्तीसी, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमा गुण), ४७१४२ तत्त्वानुबोध, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (शासनपति श्रीवीरजिन), ४६९३६, ४६९८७, ४६९८८, ४६९८९, ४६९९० तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सर्व देवदेव में), ४४७९८-५, ४६८०१(#) तप सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), ४६७६६-१ तप सज्झाय, मु. धनदास, मा.गु., गा. २०, वि. १९१२, पद्य, श्वे., (करो तपस्या चित चाव), ४४५२२(+) तपसीपच्चीसी, मु. धनसीराम, रा., गा. २७, वि. १८९९, पद्य, श्वे., (धन धन धन श्रीसेवगराम), ४७४९७ तपस्वीछवीसी, रा., गा. २८, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (धन धन श्रीतपस्नजी चढ), ४७६३७-१(+) तारातंबोलनगरी वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाहोरथी गाऊ १५० मुलत), ४६९६२ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ४५११२-१(+), ४५२६० तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतजी गुणगीराम), ४५६८५-१(+-) तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (राजाराणीरो कटुंबो), ४४५०५-५(+) तीर्थंकर राशि चैत्यवंदन, पं.शुभवीर, मा.गु., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (शांति नमी मल्ली मेष), ४५५७२-२(+) तीर्थावली स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (इंद्रादिक सेवित), ४७७०५-१२($) तीर्थोद्धार स्तवन, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमाता गुरु शारदा), ४४२१८ तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण), ४५४०३ तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयांस जिणेसर शिव), ४३४६६-२(+) तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा.४, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिधनै आयरिया), ४४३५८ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ४४६२५-१(+), ४७७६५-१ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुपन पेखइ देवी), ४६७१३-२($) त्रिशलामाता गर्भ भास, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (मानसरोवर मे जाया ए), ४३९४० थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९, वि.१६वी, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणीइ), ४४०६२-४(+) दंभधर्म सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (सुधा संवेगी करीया), ४४१०८-१ दशमीतिथि सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दसम भले भले आइहो), ४६२०२ दशविध श्रमणधर्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (क्षति कहता १ मुति २), ४६७६४ दशार्णभद्र चौढालिया, मु. महिमासागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८२, पद्य, म्पू., (वंदिय वीर जिणेस जगीस), ४७९८६-१(#$) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ४६५२८ दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदिने), ४८०३४-२ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ४४९८२, ४७६०६, ४५४९३(#) दशार्णभद्र सामैयु, मा.गु., ढा. २, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति प्रणमी करी), ४६६४८ दानमहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (दानसु दलदर हरे दानसु), ४६६४३ दानरत्नसूरिजी के नाम सुमतिरत्न का पत्र, मु. सुमतिरत्न, मा.गु., वि. १८१०, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ४५९६५-१(+#) दानलीला चौपाई, जगन, मा.गु., चौपा. ८, पद्य, वै., (प्रभु पुरण ब्रम अखंड), ४३९०१-१(#) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ " , दानशीलतपभावना चौडालियो, मा.गु. दा. ४, गा. २५, पद्य, मृपू (सरसति सामिनि वीनवु), ४३६३८-१ (+) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६. वि. १७वी, पद्य, मृपू. (रे जीव जिन धरम कीजीय), ४४१०८-२, दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (दान एक मन देह जीवडे), ४८१२१-३ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (घरटी जीउ खल राति), ४५७०६ दानशीलतपभाव सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( धन धन समुद्र वीजै), ४६०३७-१ दान सज्झाब, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (पुरव भवि आदिनाथ नह), ४४९८७-११०) दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (दिसि गति इंदिय काए), ४५४६६-१ (४) ४५९७०-५ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ४३७१० (+४६), ४५४५७-२(+३), ४६१३० (+४), ४३९२७-१, ४४३६४, ४६०६९, ४३४८४(१६), ४३५१४(१६), ४७०८४(३) ४७१२६-१ (६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपावली पर्व गीत, मु. हंससुंदर, मा.गु.. गा. ७, पद्य, म्पू, (सकलतीरथ मांहि जिम वड), ४८०८१-२(०) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ४३४९८-७(+#$) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, उपा. मेरुशिखरविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (मगधदेश पावापुरी वीर), ४५३८० दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू. (जय जय श्रीजिनवर्धमान), ४६८९७-२ + दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ४७३७७-१ दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), ४४५०५-८(+) יי "" वे. (सुर सुख भोगवि), ४४५७० , दीपावली पर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (तीरथनायक वंदिये), ४४३९४-२(+) दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. ९ वि. १८वी, पद्य, भूपू (श्रीमहावीर मनोहरु), ४३४९८-३(४०) दीपावली पर्व स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु गा. १३, पद्य, दीपावली पर्व स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ब्रह्माचि बाला वांणी), ४५३४० दीपावली पर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मृपू, (सिद्धारथ ताता जग), ४८०७४-५ (+), ४५००६-१ दीपावली पर्व स्तुति, पंडित देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (दीवाली दिन पर्व), ४६०७० दीपावली पर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ४३५९४-८(+#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बंदु वीर जिणंदनुचरी) ४४७७८-९, ४५९५८-२ दीवा सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु. डा. २ गा. १५, पद्य, मूपू (दस धारो दिवो बले ए), ४३६२३(७) " दीवा सज्झाय, मा.गु, ढा. २ गा. ९, पथ, भूपू (दस द्वारे दिवो कह्यो), ४५२९८, ४३६१९(१) , " दुर्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( पर अवगुणसुं प्रीत), ४४८४८-२(#) दूहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै.?, (गांमंतरुं घर गोरडी), ४५१८१-३, ४५७७४-२, ४६०७६-२, ४६०९९-२, ४६५१२-२, ४६६९३-६, ४७२८२-३, ४७५६१-२, ४७६८७-३, ४६८५६-२(#) , י दूहा संग्रह, मा.गु, गा. १, पद्य, वे.? (सुख उपने दुख गल गए ), ४५३६३-२(-) दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दृष्टि राग विरागीइ), ४३९९७(#) देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (रथनेमि नामे हूवा), ४३५९३-२(+#$) देवता १० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, थे., (नाम अरघर आगत३), ४४६१६-१, ४४९४१ देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सति देव नमुं मनरंग), ४५०६३ - ३ ( +#) देव देवी संभोग वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू (देवता देवी मैथुन), ४४८९४-३(+) देवद्रव्यपरिहार चौपाई, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू (निसुणउ श्रावक जिणवर), ४३५५० (+४) देवमनुष्यादि उदयस्वामी भांगा संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (२९ना उदयना स्वामी), ४७७९१(+) देवलोक जघन्योत्कृष्ट विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतर प्रतर प्रति), ४४०४४ (+) देवलोक वर्णन, मा.गु., गद्य, भूपू., (पूर्वली परि कोट १), ४७६१९ देवलोक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू.. (सहुधर्मालोक देवलोक, ४७०१०-२ ५४३ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ देवलोकस्थ प्रासाद व जिनबिंब संख्या, मा.गु., गद्य, श्वे., (जावंति चेइआई उढे), ४७९९१ देवानंदा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसण आव हो देवानंदा), ४७२८७-१(-) देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ४४७९७, ४५२६७, ४६५५०, ४७७७८-१ देवेंद्रसूरि सज्झाय, मु. दलपत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमीइ युगल पय कमल), ४३४६८-२(+) दोगाय संवाद, रा., पद्य, वै., (हरिया जव नित चरती), ४३९४७-७(+#$) दोहा संग्रह, सुंदर, पुहि., दोहा. ३, पद्य, जै.?, (कागद कहो तो पाठवू), ४७९६८-२,४६१३५-१(-) दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ४४६४५-२(+), ४७४६२-३(+), ४५४८१-२, ४६११०-६, ४६१२१-२, ४६१३४-३, ४६१४३-४, ४६५८१-२, ४४२१४-२($) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ४५१६७-३(+), ४४७३५-५(-), ४८०६९-३(-) दोहा संग्रह- रा., पद्य, श्वे., (दैव गहे न अटेरडी जे), ४४१९५-२ दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण धणा), ४४९४४-२, ४५०६२-२, ४५२५५-३, ४५६२४-३, ४६६३१-१, ४७०६२-३, ४७०९१-१, ४७३३२-२, ४६३७४-२(#), ४७८६१-२(#), ४५५८०-३(-$) दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ४३९२४-६(+), ४४३५७-४, ४६९२६-३ द्रव्यप्रभाव सवैया, मु. धर्मसीह, पुहि., गा. १, पद्य, जै., (ईहत है जिनकु सबही), ४६८९५-३ द्रौपदीसती गीत, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सिल बडो संसार मै मंत), ४४३६१ द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबडु), ४५८६५ द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (चंपानगरी वखाणीइजी), ४५०५५, ४५३१० द्वादशांगी सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीर जिनेश्वर जग उपका), ४७४५१-१(#) द्वारामती सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (द्वारामतीनो देखिउ), ४४३१९-१ द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ४४१३२-२ द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. १, गा. २४, पद्य, मूपू., (दोनुं बंधवा रडे दुःख), ४३६७६, ४८०११ द्वीपसमुद्र प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबुद्वीप १०००००), ४५७३६(+) । धनप्रभावदर्शक सवैया, क. केशवदास, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (चाह करे जिनकी जग में), ४५३२३-२(+#) धनराजगुरु गुणरास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणेसर पाय नमी), ४८१२७(+) धनी-निर्धन दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे एकने घरे पालखी), ४५०५६-४(+) धन्नाअणगार गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गहुंली पूरो रे सोहाग), ४५०७६-४ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसति स्वामिने विनवु), ४६०९० धन्नाअणगार सज्झाय, आ. जयवल्लभसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (दोइ करजोडी नइ नित नम), ४७७७१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ४५१६३, ४७५१९-४(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (अमीय समाणी मोरानंदन), ४३४८८-२(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीर बत्तिसी कामनि रे), ४३७४७ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चरणकमल नमी वीरना), ४७१८३ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), ४६४८४-१(-2) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ४५६३९(-) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ४४७९३-२, ४५०४०, ४५२३०(#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ४७४१९ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ४७११२-२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सतगुरु वचन विचार कर), ४५१३९-१(-) धन्नापच्चीसी, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत समरीये मन), ४७९८३-१ For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (धन्नी सालिभद्र बेड), ४४१६०-३ धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४ डाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५०० वि. १७९९, पद्य, मूपू. (ऐंद्रश्रेणि नत क्रम), ४४४२५ (०६) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रेणिक वछ ताहरइ घरि), ४४२५१-५ (+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, गा. १३, पद्य, भूपू (धन धन धन्ना सालिभद्र), ४७३२८-१ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( दीधो मुनीवर दान नयरी), ४७३५२-१($) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, रा. गा. १९, पद्य, श्वे. (धना चौकी पर थयो जी), ४४३५२-२०१ , "" धर्मजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वारू रे वाहला वारू), ४७२३८-१ धर्मजिन स्तवन, मु. कुशालचंद, रा. गा. १०. वि. १८७८, पद्य, वे (रत्नपुरी मै परभु जलम), ४६६८०) धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (धर्म धर्म बहुला कहे), ४७८५४-१ धर्मकुटुंब व पापकुटुंब सज्झाय, मु. जितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चोवीश जिन प्रणमी), ४४७९९-१ धर्मचंद्रगुरु भास, मु. रवि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि मनि धरी), ४४३१२-१ धर्मजिन पद, मु. जयपद्मविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कोण विध नाथ निकट), ४७०८२-१ (-) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ४६१२०-१ (+), ४४४०४, ४६०५४, ४६३४८-१, ४७१५६-१, ४७६४४ धर्मजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनराज नमो जयकारी हो), ४५४६८-८ धर्मजिन स्तवन, पंडित, खीमाविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू., ( इक सुणली नाथ अरज), ४७९४८-१(०) " धर्मजिन स्तवन, मु. जिणचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू, (धर्म जिणेसर सुखे करु), ४७०५२-१ धर्मजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (--), ४४३५७-१(३) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ४४५४५-२ (+), ४४३९१-१, ४५३९९-१, ४५९२०-५०), ४५४७२-१(४), ४६०३०-३ (६) धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (थास्युं प्रेम बन्यी), ४७१४७-२ धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्मजिणंद तुमे लायक), ४६११०-१ धर्मजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु गा. १, पद्य, मूपू " (सखी धर्म जिनेसर), ४७७८७-३ () धर्मजिन स्तवन, मु. शांतिरतन, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपु. ( धरमजिनेश्चरना गुण), ४६६९२ . धर्मजिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे लाल धर्म जिनेस), ४४१०८-६ י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मजिन स्तवन - सत्यपुरमंडन, मु. रंगसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साचो जिन साचुर सुणी), ४४६४४-१ धर्मजिन स्तुति, आ. निलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मन हरणी जाणे), ४४१४५-२ धर्मजिन स्तुति कलकत्तामंडण, मु, मोहन, पुहिं. गा. ११, पद्य, मूपू (आज नगर में हरख बधाई), ४७७१९-२ धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ४७३६२-७ (+), ४६९९५-२ धर्मप्रभाव पद, पुहिं., पद्य, वै., (सत धर्म विना कोइ ताद), ४६७१८-१ (२) + धर्म भावना, मा.गु, गद्य थे. (धन्य हो प्रभु संसार), ४४६९२, ४४९०९ ५४५ धर्मजिन स्तवन- आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवुं), ४४३२२ धर्मजिन स्तवन - कलकत्तामंडण, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १९३९, पद्य, मूपु. ( शासन रसिवा सेवो रे), ४६५६६ For Private and Personal Use Only धर्ममूल प्रतिपादक सज्झाव, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( धरम धरम मुखि सहू), ४४६१७-६ (+) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ४५६८१-१), ४६३९३ () नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू. (साधुजी न जाए रे परघर), ४४८०१-१(+), ४७९३२-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., डा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू.. (राजगृही नवरीनो वासी), ४७३०६, ४५२४८-१) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पंचसयां धणि परिहरी), ४५२४७-३, ४७५५३-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वैरागे संयम लीयो हो), ४४७५५-३ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ नंदी भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वेशाख सुदि एकादसी), ४७५९७-२ नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रण चोमासीने संवत्स), ४५७४८-२(#) नक्षत्रताराविचार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर चरण), ४५५६०, ४८०३२-२ नक्षत्र यंत्र, अज्ञा., यं., (--), ४४७४५-२(+) नगर स्थापना वर्ष, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. १४९४ राणपुररो), ४७९०७-३(+) नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ४४४५६ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ४५५८८(+),४६३८४, ४५१७९-१(२), ४८१२०(5) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ४५०८४-१, ४६२४६, ४७०५०-२, ४७१२१-३, ४७१५५-१ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ४३८१८, ४४१०१, ४६३७३(#) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ४३५०३(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ४४३७०-३(+-#), ४५३५४-१(+), ४३९३३-१, ४५७२०-२, ४६१२२, ४६८८२-३, ४७२८०-२(#$), ४४७३४-२(s), ४७०३१(-) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ४६२४४-१, ४६६१९(#S) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ४७९०५(+#), ४५५११, ४५५५८-२, ४७४१८-२, ४७२८०-१(#) नमिजिन चौपाई, मा.गु., गा. ६३, पद्य, म्पू., (मथुरा नगरी जाणीइ), ४४४४९(+) नमिजिन स्तवन, मु. युक्तिहंस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नमीय जीणेसरदेव संघ), ४७४२९-३ नमिराजर्षि चौपाई, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (मिथुला नगरी जाणीए), ४३८७९(#) नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासण नायक समरीये), ४५०९६ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), ४८००४-१ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ४३७८२-२(+#), ४३९४७-३(+#), ४४१०८-३, ४७१५४-३, ४८०५९-३ नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर साधु सूर पणौ), ४७०३४-२(-#) नरक चौढालिया, मु. गोविंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, श्वे., (आदि जिणंद जुहारीये), ४७१४३-१ नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ४४२८४, ४४५९७ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ४६८२२-१ नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ४४६८७(+), ४७४३६ नवकारपद लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुम जपो मंत्र नवकार), ४५८०८। नवकार प्रभावदर्शक दोहे, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पढ़ो मंत्र नवकार), ४६७९५, ४६८८२-२($) नवकार मंत्र प्रभाव कथा, रा., गद्य, मूपू., (वसंतपुर नामा नगर), ४७८९४ नवकार माहात्म्य, मु. भूदर, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु सिष्या देत), ४३८३२-१(#) नवकारवाली सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल सुख धारणं पुण्य), ४५५३७-४ नवकारवाली सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिद्ध सकल नइ करुं), ४४१८९(+) नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (करी पडीकमणो प्रेमथी), ४७५३० नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नोकारवाली वंदीइ चिर), ४७२४९-२(#) नवकार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए नवकार तणुंफल), ४७३७२ नवग्रह छंद, क. शंकर कवि, मा.गु., ढा. ९, पद्य, वै., (पूर्व दिससु प्रमाण), ४४८४७-२ नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव), ४४२४३-१ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ४४९०६-३, ४५०००(६) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. जीव तत्वप्राण), ४७५३६-२ नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवतत्त्वना ५६३ भेद), ४५४६०(5) नवदुर्गा विधान, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (प्रथम हि समकितवंत), ४७६८८-२ नवपद खमासमण विधि, म., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण), ४५५३४-४ नवपद गहुँली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सहियर चतुर चकोरडी), ४५५३३-२(#) नवपद गहुंली, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आतमरामी मुनिराजीया), ४७४२५ नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद उजल नमु), ४४४६८-१० नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र देवा), ४४४६८-९ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ४४३०५, ४४५७८-२(-) नवपद पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन नित नमु नित नमु), ४६८६९-४(-) नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता मया करो), ४४७७४, ४५८११ नवपद स्तवन, मु. इंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान धरो सदा), ४५४४८ नवपद स्तवन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महीमा अजब बणी), ४५१२९-१ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ४५९२८-२, ४७८८० नवपद स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (नवपद के गुण गाय रे), ४६८६९-३(-) नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा ध्यावो), ४५३०८(+) नवपद स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन भविक), ४३९४३-२(१), ४७४५१-१०(#) नवपद स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनशासन वंछित पूरण), ४७१७०(#) नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ४४६६८ नववाड सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सारदमात मया मुझ कीजइ), ४३९२८(#) नागकेतु कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंद्रकांता नाम नगरी), ४५६३० । नागदत्तशेठ सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (नगरी उज्जयनी रे नागद), ४३६२६-२(#) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ४८०३९-२(#) नाणावटी सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हो नाणावटी नाणु निर), ४४६२२ नारकी सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (मोहमिथ्यातनि निंदमा), ४३७५३ नारी कुलक्षण पद, क. गद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रीत पीतमसुंतोडे), ४७०८५-१ नारीगुण सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सर्व सरीखा नर नही सर), ४४०९१-१ नारी पद सवैया, मु. उत्तमविजय, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (केसव पेकहत प्यारी), ४७३०८-३ नारी परिहार पद, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, श्वे., (नार भूरी गारकी पारकी), ४६७३४-३(-) नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक नारी आती दीपती रे), ४४६०२-६ नारी प्रहेलिका हरियाली, राउल, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (एक नारी छइ अति भली), ४४६०२-५ नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ४४९२०, ४७९४०-३ नारी सज्झाय, मु. नीतिविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जुओ जुओ चरित्र नारी), ४५९८७, ४८०४१ नारीसौंदर्य पद, सुखानंद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., (झूलणा नारी आँख कमलना), ४७५५०-४ निंदक सजझाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धोबी धोवे लुगडारे), ४५४७१-१ निंदा परिहार रास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ६२, पद्य, ते., (श्रीमहावीर सदा नमु), ४६२१७(#) निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), ४७५३१-२ निद्रात्याग सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बेटी मोहनरिंदकी निंद), ४६०३९-१(#) निद्रा परिहार सज्झाय, मु. मंगनीराम, मा.गु., आला. १०, पद्य, मूपू., (नीदडीयो बरण होय), ४५६८१-३(-) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ निर्मोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरणवुं), ४५२८१ निर्मोहीराजा सज्झाय, खूबचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू (बंदु नाभिराय के नंदन), ४३७१९-१(७) " निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु. गा. १६, पद्य, मूपू (श्रीय जिनवर रे देशना), ४६०९५, ४६१०१-१ " निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंससूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर रे देशना), ४७३८० (+) निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८३३, पद्य, श्वे. (इण आरे निन्हव उगडीया), ४४४५५-३($) "" नेमगोपी संवाद - चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ४३७१३(+#), ४४४२० नेमजिन पद, मु. सेवक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हुं तो रही रे मनाय), ४५३३०-४ नेमजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ७, वि. १९वी पद्य, मूपू. में आजे दरिसण पाया), ४५४१० www.kobatirth.org " राजमति गीत, मु. मोतीलाल साधु, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (संजम ल्युंगी मेरा), ४७१७९-३ (#) राजमति गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( नमइ सावन सरस सुहाया), ४७९१२-३(+) नेमराजमति पद, मु. कनकसोम, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जिन विणु क्युं रहीयइ), ४६६४२-२ नेमराजमति बारहमासा, इंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसती भारती पाए नमी), ४७१७८ नेमराजमति बारहमासा, मु. दानविनय, मा.गु, गा. १५, पद्य, म्पू, (आसाढ़े पन उड्यो निसि), ४८०७२-३ नेमराजिमति बारहमासा, मा.गु, गा. १५, पद्य, ओ., (श्रीजिनवर नेम नमी कर), ४८०५३/-) नेमराजमति भास, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू. (सामलवन्न सोहामणउ सखि), ४६७१३-१ नेमराजमति सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, वे., (कीसन बलभद्र ली आय), ४६४८४-२(१) नेमराजमति होरी, मु. पद्मविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू.. (अहो मेरी सजनी नेम मन), ४७१७२-१ नेमराजिमति होरी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (साम पे कही बिनति मोर), ४७१७२-२ " मराजिमती कवित, मु. दयाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (गडडड गाजर मेह बीजली), ४६६८१-३(४) नेमराजिमती गरबो, मु. दीप, मा.गु., गा. ११, पच, भूपू (चंदा संदेसो केहेज्यो), ४७६३८ " नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुन सांई प्याराबे), ४५९६५-३(+#) राजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तरसत अंखियाने हुइ), ४४७५५-४, ४७५१९-३(#) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मोहनवेली प्रेम गहेली), ४७५१९-२ (#) नेमराजिमती गीत, वा विनयमेरु, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (सोल सिंगार सजी करी), ४७५१२-१ नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामलीआ घर आव कि राजु), ४४६४७-२ ($) नेमराजिमती गीत, मु. सुंदरजी ऋषि, पुहिं., गा. १६, पद्य, श्वे., (जादूबंसी नेमजिणेसर), ४६१५६ नेमराजिमती गीत, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, म्पू, (समुद्रविजे के लाडलो), ४७९८६-३(०) " मराजिमती गीत, रा. गा. ९, पद्य, मूपू., (किण दीठो रे किण दीठो), ४५८४६ 1 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ चे., , י राजिमती गीत, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम नवरंग कंचूउ), ४४४६०-२(+) नेमराजिमती धमाल, मु. गुणविनय, मा.गु. गा. २१, पद्य, मृपू. (उग्रसेन की कुमरी), ४३६८९(४) " मराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., डा. ९, गा. ४०, पद्य, भूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ४७८७४ (०१ ४५६७७ (४) (न करीई जी नेडो न), ४७६७२-१ मराजिमती पद, मु. अमृत, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे. नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (मनाज्यो रे स्टडा नेम), ४५३७३-४ 3 (राजूलराय प्यारे ढुक), ४७२४३-६ (०) (यादव मन मेरो हर लीयो), ४७३६२-२(+), ४६९९५-५, ४६४८२-७(१) नेमराजिमती पद, मु, उत्तम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. " राजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेरे दरस को चाव लग्य), ४६८६९-१० (-) राजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल पोकारे नेम), ४८०२१-५ י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי नेमराजिमती पद, मु. जयरामजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (हे सलुणी सांवरी), ४५२१९-१ नेमराजिमती पद, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. २८, पद्य, भूपू., (सावलिया घरि आव के), ४५४२५-२ " For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती पद, मु. दीपविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (जवा नहि देउं रे जदु), ४६००६-२(5) नेमराजिमती पद, मु. दीपविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीआ मोसे एक वात कहि), ४६००६-१ नेमराजिमती पद, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल घेहेली किधि छै), ४५३७३-५ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत जाओ रे पीया तुम), ४६१४३-३ नेमराजिमती पद, मु. हरिबल, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नवभव केरी प्रीत सहि), ४५६९४ नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नीपट ही कठन कठोर री), ४७५७६-३ नेमराजिमती पद, मु. हीरसागर, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (मोकु नेम वतादे सखीया), ४४४४८-३(+-) नेमराजिमती पद, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (अब माइरी गीरनार जान), ४८०२१-६ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इण सांवरीयाने कुण), ४७२४३-२(#) नेमराजिमती पद, पुहि., गा.७, पद्य, म्पू., (निरमोहिडा तोसुकबु), ४७२४३-३(#) नेमराजिमती पद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (नेमजिथे काइ हठ), ४३७०५-१(#) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरी मा जगसुख मो नही), ४७५२९-३ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सब जादव मील ब्याहे), ४६८३४-२ नेमराजिमती फाग, मु. केसर, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुगुन सनेही साहिबा), ४७७४३-४ नेमराजिमती फाग, मु. बालसागर, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभू पाय चढे गिरनार), ४४४३३-४(+#) नेमराजिमती फाग, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (उग्रसेन की लाडली हो), ४७७४३-५ नेमराजिमती फाग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक सुणले नाथ अरज), ४७३६२-१(+), ४६९९५-४ नेमराजिमती फाग, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (तोरणि बालभ आविउ), ४३४६१-२(+#) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गोखे बहठी राजुलगोरी), ४६३४६ नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू, (सांवण मासे स्वाम), ४४६६१-३, ४७२२५ नेमराजिमती बारमासो, मु. कान कवि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुलनो भरतार), ४७३६३-२(#) नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावण मास सुहामणाजी), ४४४३०-१(+), ४६९९८-३($) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ४३९५७-२(#), ४७५१९-१(2) नेमराजिमती बारमासो, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू, (ब्रह्माणी वर हु), ४६०८९-१ नेमराजिमती बारमासो, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८००, पद्य, मूपू., (आवीलो ए श्रावण मास), ४४९०१-२(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १९११, पद्य, श्वे., (राजुल उभी विनवेरे), ४५६८६ नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (सरसतीने सरणे नमी), ४७३६३-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सावण बर हो सामी मेल), ४४७४२-३, ४७००५-२(2) नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहि., गा. २६, पद्य, श्वे., (विनवे उग्रसेन की), ४३७१२(+#), ४७६३७-२(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ४४३७६, ४५८८३ नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., गा. २६, पद्य, मूपू., (हो सामी क्युं आये), ४४६६२(+) नेमराजिमती बारमासो, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (काती कंत बीन कीम सरस), ४४७४२-४ नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रावण लुंबी आवीयो), ४६८५५-२ नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सावण आयो देखा बोल बन), ४५६२५-२(+#) नेमराजिमती भास, मु. विद्यासागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (राजीमती कहे सुडला), ४५६७३-१ नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ४४३४०-१ नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल पुकारे नेम), ४७९४८-४(+), ४३९०७-१(२), ४७२४३-९(2) नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अज), ४६२२९-२(+), ४५६९८, ४७९८४ नेमराजिमती विनति, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल नेमसुं विनवे), ४५२३७-३ नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति मा चित्तमे), ४६००७(#$) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ नेमराजिमती वीनती, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाथ मेरी वीनतडी सुण), ४६६६४ नेमराजिमती शीलचुनरी रास, मा.गु., गा.७७, पद्य, श्वे., (श्रीजीणवर पद पकजे), ४४९०५ नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (समरु गणपतिनै सारिद), ४४५१७-२, ४४६६३-१ नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (हठ करी हरीय मनावीये), ४४७६१-२(-5) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोरीपुर सुहामणि कांइ), ४५४५७-१(+) । नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजील करजोडी), ४३९६७, ४३७३५(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (सेवादे नंदण नेमकवरजी), ४६३६६ नेमराजिमती सज्झाय, मु.खांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गोरी गोरीनी बाहरी), ४५६६७-२(-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (राजुल इण परि वीनवै), ४५०४३-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (उग्रसेनराय मंडप वनाय), ४८०३९-४(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी संदेसो श्रीनेमजी), ४८०३९-५(2) नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर सारी बालकुंआरी), ४८०७२-१, ४८०३९-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ४८०७२-२ नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीनवैराजुलबाला वीनत), ४६३८३-२(+), ४६०६६-२ नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हो राजमती नेम तणी), ४४९७३-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अवलमोल अमूल झरूखे), ४६६८९-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (नेमजी से होली मचाई), ४३५३८-१(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), ४७४३९-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (नगर सोरीपुर शोभता), ४४९७३-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नेमजी जाओ तो तुमने), ४५६६७-१(-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ४७००९(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अचल महिलनै अजब झरोखै), ४६१८४-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीनj), ४३९१७(#), ४३९१८(#), ४४९२६-२($) नेमराजिमती सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमनाथ कुलाज नहीं), ४६३०२-१०(-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुरसत प्रणमु होक), ४४४७३-२(-) नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (उग्रसेन की लली), ४३८०४-३(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (गोख में सखीओ संघात), ४४२४०-६ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जतिने वाहलो रे संयम), ४४०६२-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जी छान छान कुड कमायो), ४५९९६ नेमराजिमती सज्झाय, हिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (फिरी लाउ नेमकुमारकुं), ४५६२५-१(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुनि सुनि सहेलडी हे), ४४४३३-२(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. अनुपकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिवादेवी जाया मुज), ४६३०१-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हां रे एतो तोरण आवी), ४४७३३-३-#) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ४६०९३-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नार मनावो है नेमने), ४५५९२-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल बेठी उंची गोखड), ४७५८७-२(#) नेमराजिमती स्तवन, पंडित. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पोपटडा संदेसो कहेजे), ४७१७१-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तोरणथी पाछा फरी रे), ४७५७१-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कां रथ वाळो हो राज), ४५४९०-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. रघुपति, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे.?, (रथ फेरो महारायजी लार), ४६१३६-२ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल उभी मालीए जपे), ४६३०२-४(-) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ४७०६०(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (माता सीवादेवी नेमजी), ४४५७८-१(-) नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुणि २ मूंद सहेलडी), ४८०००-२ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग.रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ४५८९८($) नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काइ हठ मांड्यो छे), ४६६२८ नेमराजिमती हरियाली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल विषयमांजे विण), ४४६०२-२ नेमराजिमती होरी, मु. जिन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवल वसंत नवल मली), ४३७४५-३(+) नेमराजिमती होरी, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (होरी खेलावत कानइआ), ४७४७३-२, ४७५५१-४ नेमराजिमती होलीपद, मु. रतन, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (हो होरी खेले दो भइया), ४६४८२-२(2) नेमसागर गहुंली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरुजी आव्या रे), ४३९२९-२(#) नेमिजिन कागल, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमजी कागल मोकले), ४६०८० नेमिजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिजिणंद समोसर), ४७४१३ नेमिजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी दीपती), ४३७८८(2) नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, पू., (फूलडे चंगेल्यावरे), ४५५६१ नेमिजिन गीत, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नेमि परणेवा चालिया), ४४१६०-१ नेमिजिन गीत, मु. सहजानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु मेरे तुं सब), ४३८३४-१(#) नेमिजिन गीत, आ. हर्षसागरसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आठ भव केरोनाहलोरे), ४८११५-२ नेमिजिन गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो सामसलुणो नेमजी), ४४४१२-३(-) नेमिजिन गीत-विवाह, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गेलि गहेली सवि मिल), ४३४६१-१(+#) नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजायो), ४४७६६-१(६) नेमिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमिनाथ बावीसमा सिवा), ४५४३३-२ नेमिजिनचोमासुंस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोरा सम मा जावो रे), ४४०८७-३, ४५२१९-२, ४६१९१, ४४९२२(#) नेमिजिन जान वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्वारामतीनगरी), ४६६४५ नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, म्पू., (सात पाच सखियन की), ४५१४६-७(#) नेमिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर नित नमो), ४३६८२-५(#) नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ४५५६३ नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ९, पद्य, मूपू., (खेलत नैम कुमार ऐसे), ४४६८४-१ नेमिजिन पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (एरी कोउ नेम मनाय), ४७५२९-२ नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (घरे आवो रे पूर्वी एक), ४५७०१-३ नेमिजिन पद, मु. रूपचंद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुखडा क्या जोवै), ४७७०५-६ नेमिजिन पद, श्राव. लालभाई, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी में क्या करूं), ४५३३०-१ नेमिजिन पद, लीब, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (श्रीगरनारे त्रण कल्य), ४७७५९-३ नेमिजिन पद, हठु, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (में तो गिरनार गढ), ४६८६९-७(-) नेमिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरी सेवादेवीको नंदन), ४७९५४-३ नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (छप्पन कोडि जादव मिल), ४४३४०-२ नेमिजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तरसुंतरसुं दिन रैन), ४६४८२-५(#) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिखर गिर मुज न जाना), ४६१०७-४(+-#) नेमिजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (सावरो नेम प्यारो री), ४६७६६-२ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ नेमिजिन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (हजूरीयावाडी नेम तेरे), ४६८६९-११(-) नेमिजिन पूर्व ९ भववर्णन सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पहल भो भीलाजी अतीधरम), ४६९५५-१(-) नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीनेम जिनेश्वर), ४४४३३-१(+#) नेमिजिन फाग, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम जिणंदसुंताली), ४७४७३-१ नेमिजिन बारमासो, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गडडाट गाजे मास आसाढो), ४६१०६-१(#) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रंगीला नेमजी चैत्र), ४३४८१ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस श्रावण केरो सखडा), ४४४६३-१ नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ४७९६८-१ नेमिजिन रास, ग.शुभविजय, मा.गु., गा. ८१, पद्य, मूपू., (नेमि प्रणमइ सूरनइंदा), ४३८३१ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ४६१०७-१३(+-#), ४६९५३-२ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सजन समजावो अपने मन), ४५९३५-२(+) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ४५८४४ नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (समदवीजे सुत नेम), ४६९५३-३ नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (देस विदेह सोहामणु), ४५७०५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. अजितसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमु हो प्रीउ), ४७५०४(१) नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ४४४२१-३, ४८१११-३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (अवै साम सलूने खेलत), ४७९४८-३(+), ४७०८७-४ नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (गोपी खेले होरी देवर), ४३५८४ नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पीया नेम पधारो हो), ४६०६६-३ नेमिजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ९, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (नेमिस्वर जिनवर गासु), ४४२४०-१ नेमिजिन स्तवन, मु. जय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तोरण रेगें आवीउ), ४५०८१-१ नेमिजिन स्तवन, उपा. जस वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुज दरसण दीठों अमृत), ४४८४१-२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), ४३८०८ नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.७, पद्य, म्पू., (दोय घडीया बेवारी), ४६१०७-११(+-#) नेमिजिन स्तवन, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ४६९६१-१($) नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाये नमी), ४४०९२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. निविर, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (हां रे रुडोरे रंगील), ४५५१२-१(१) नेमिजिन स्तवन, न्यामत, पुहि., गा.११, पद्य, जै., (तोरण पे नेमि चढ आया), ४६१३८-१(#) नेमिजिन स्तवन, न्यामत, पुहिं., गा. ९, पद्य, जै., (संजम तो मेरे मने), ४६१३८-२(2) नेमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (देईने देईने देईने रे), ४४३९१-६ नेमिजिन स्तवन, मु. पद्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तोरण लगइ प्रभुजी आवी), ४३७८५-१(#) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरी), ४४९०७-१ नेमिजिन स्तवन, मु. बुधमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (सोरीपुर रलीयामणो रे), ४६४३०-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी वीन), ४५८९१ नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ४४५८८, ४४७६६-२, ४६०५६ नेमिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो गयण धडुक्यो), ४४७८७ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मने रुडो लागे छै जी), ४३७०५-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उग्रसेन नृपपति तनया), ४३७५०-१(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ओत्तरवालीओ नहि धनमाल), ४५४९०-४ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (सजेलार जलधार सुखकार), ४५६६७-८(-) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra "" " " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू (प्रीतम संभालो हो निज), ४८११०-३(७) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु. गा. ११, पद्य, वे (इण सरवरीयरी पाल), ४५५९६ नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ए तु राजुल कहे सुणो), ४५७०२ (#) नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (मारा नेम पीवारा), ४५२३७-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सिवादेवी सुत सुखदाया), ४८००६-४ मिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( उग्रसेनकी लली नेमजी), ४७७०५-७ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (कुण खेले तस होरी रे ), ४५३७०-५ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू, (घेर आवोने नेम वरणागी), ४६५८८-३ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (तोरणथी रथ फेर चल्यो), ४७००५-११७) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हे नणदल नेमजी मई), ४६९२० नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (रूडी रूडी रामतडी), ४५०४६-४ नेमिजिन स्तवन, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., नेमजिणंद जवकारी रे), ४७०८७-२ " नेमिजिन स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( दरशन दीठे दिलडा), ४६६९१-१ (#) नेमिजिन स्तवन, मु. श्रीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जो तम चालो सीवपुरी), ४७४२४-१ नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, चे., नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु. गा. ५, पद्य, वे (बाल ब्रह्मचारी हो), ४७११६ (-) (जादव कुल केरो चंद), ४५२४८-५क " , www.kobatirth.org יי नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १९५८, पद्य, स्था., (सेवो श्रीरष्टनेम से), ४५२६१-१ (-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु. गा. ९, पद्य, थे. (करहा चालो उतावला), ४६१३६-१ नेमिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, श्वे. (तज दे मोह मठ ममता भव), ४६७१८-२ (-$) नेमिजिन स्तवन रा. गा. १३, पद्य, म्पू, (नेमकुमर तोरण चढ्या), ४४७८५ " , नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भावना भेटिवा नेमि), ४४३८३-२(#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, ओ., (सुणोजी नेमीनाथ रयरज), ४५२८४-१( " नेमिजिन स्तवन -गिरनारतीर्थ, ग. जसवंतविजय, मा.गु, डा. २ गा. १७. वि. १७९७, पद्य, मूपू (नेमिसर अरिहंतना पद), ४४६३८-३(+#) नेमिजिन स्तवन -गिरनारतीर्थमंडन, मु. भावशेखर पंडित, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सोरठ सोरठ देश अति), ४७३७५ नेमिजिन स्तवन - समवसरणविचारगर्भित, मु, सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, भूपू (जायवकुल सिणगार सिरि), ४४२३९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन -सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( नमीए नेमजीणंद गढ), ४४६७३-१, ४६१३७ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, भूपू (श्रावण सुदि दिन), ४३५२१-२(+०), ४३७८९-७(+), ४४०६५-१(+), ४५६५६-१(+), ४४५१५-२, ४४८६३-१, ४६०९३.२, ४५४७३-८(१ जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), ४४२६२-२ जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ४४१४५-१, ४५९४३-१, ४८११३-४, ४६८१३-३ नेमिजिन स्तुति - गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (यादवकुलमंडण नेमिनाथ), ४६१००-३, ४७४५१-४११ नेमिजिन होरी, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (मैडी उपरि मैहड रोखै), ४६९९९-२(#$) ५, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार मची रंग हो), ४६९६५-१(#) नमो आदि अरिहंत को हो), ४७७४३-३ (देखो सूनयां होरी), ४४४३३-३(+४) नेमिजिन होरी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. नेमिजिन होरी, पुडिं, गा. १४, पद्य, वे नेमिजिन होली पुडिं, गा. ६, पद्य, भूपू ,, मिजिनेंद्र रागमाला, ग. केशव, मा.गु., गा. ३४, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (--), ४५४६८-४($) नेहनिराकरण स्वाध्याय, मा.गु., गा. १४, पद्य, जै., (सरस वचन सुणि लाई ), ४४९७९-३ (+) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., डा. ५, गा. २५, पद्य, वे. (पणमवि पंच परम गुरु), ४६१०४(३) ५५३ For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पंचजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहली आरती प्रथम), ४५४८०-१ पंचजिन स्तवन-भवानगरमंडन, ग. जसवंतविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (नवारे नगर में दीपै), ४४६३८-४(+#) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवा प्रण), ४५१६२(#) पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १२, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो ध्यान धर पंचपद), ४७६८८-४ पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), ४५०१३-२(+) पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती अरिहंत), ४७८२३-१(+) पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारगुण अरिहंता सिद्ध), ४४८९४-२(+) पंचपरमेष्ठिफल स्तवन, आ. वल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कयकलप नररेहीयांण), ४७६०२(-) पंचमंगल गीत, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (--), ४४६४१(#$) पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, पद्य, मूपू., (धर्मकथा हिरदे धरो), ४४६८४-८ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहस, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गौतम सुणो), ४६७०९-१ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ४३९२४-१(+), ४४६७९-१, ४७७८५, ४३४९६(#), ४५९२०-७(#), ४८०५२-१(#) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ४६०५८ पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यनो १२० वरसनो), ४६६३२(5) पंचमहाव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांचमहाव्रतना भांगा), ४४५६०-१ पंचमहाव्रत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ६३, पद्य, मूपू., (वासववंदित वीरजी), ४७२५३ पंचमीतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर साहिबो), ४५२४५-२ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमीचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती मनवसी), ४४७६८ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ४५६१६, ४७१२७-१ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. देवकलोल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (जिनचउवीसि प्रणमीइ), ४५०६९-१(+) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पुनयी पांचम एम वदे), ४३९५३-१ पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमी पाये सकल), ४८११४ पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (हारे मारे ज्ञानी), ४७३७३-४ पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचवरण कलसे करी जेइ), ४५०७५-२ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (पंचमी संभव ज्ञान), ४४८२७-२(+) पंचरंगी ओली विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ४५४२९ पक्खीचौमासीसंवच्छरी खामणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जथा सगती तप करी पोहस), ४४७७८-५ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ४४२४९(+), ४४२८१, ४६३३७, ४७८७२, ४३५२३(#), ४७०८३(#) पट्टावली-भागोरीलंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रमण भगवंत श्रीमहाव), ४३९८५(-) पति आगमन पृच्छा विचार, मा.गु., गद्य, वै., (पांच सोपारी लेई), ४४२४०-५ पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ४८१२३-२(+) पद्मनाभजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वाटडी वीलोकुरे भावी), ४७४५१-१३(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभजिन तुझ मुझ), ४७१५६-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागलीयु करतार भणी), ४६५३०-३(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनपति पद्मराग सोहाम), ४६३२४ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन भमरा रे पदमप्रभू), ४७०२३-५(-) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तुम सेवना), ४७६००-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), ४५५७९-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, पं. विवेकविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभ जिनराज जीहो), ४६००९ For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org זי भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., ( धन धन संप्रति साचो), ४३५९५-१ (+) पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. १४. वि. १८४१, पद्य, खे, (रंगभर राता ही दाता), ४३८८९ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ४४२६४-१(+), ४५४६३(०), ४३८६४, ४४२७८, ४४३४१-४, ४४३६८, ४४४९४-१, ४४६८१, ४४७३७, ४५०७९, ४५१४८, ४६५७१. ४६८८६, ४७७९४, ४७८४२-२, ४३८४०१०१, ४४३७५-१९ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षविजय, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू. (श्रीपार्श्व प्रतिमा), ४७९९७-१ पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कविवण, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू (जयजय जिनशासन सामिनी), ४३७९० २ ( +०$) पद्मावतीदेवी स्तवन नरोडापुरमंडन, मु. खेमकुशल, मा.गु. गा. ३४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीपासजिणंद), ४४३५५-१ पद्मणी बारमासा, मा.गु., ढा. १२, गा. २५, पद्य, मूपू., ( तात चरण प्रणमी करी), ४४२८३-२ परदेशीराजा सज्झाय, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सूरिवर श्वेतांबी), ४७३०८-१ परनारीत्याग सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. १३, पद्य, म्पू., (जीव वारु छु मोरा), ४८०५५-१ परनारीत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणो चतुर सुजाण परना), ४४५१८-३शका परनारी परिहार पद, सामल भट्ट, पुहिं. गा. ३, पद्य, वै., (बालदेवा नु दुख बाल), ४७०८६-७ परनारी प्रीति पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (राजा सेती फूसणो वीसर), ४६७३४-५(-$) परनारीसंग परिणाम पद, पुर्हि, पद. १, पद्य, थे. (परनारी संग जाय संक), ४८०७०-३ परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे ज्यौं प्रभु पाईइ), ४४९२७-२, ४७०५७-१ परस्त्री परिहार पद, क. गंग, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (कपट निपट बोले हया), ४७०८६-९ पर्युषणपर्व गीत, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (हिव परव पजुसण आए), ४४१८१ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( नव चोमासी तप कर्जा), ४४६४२-२, ४४७५०-९, ४५१५२-८ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पर्व पजुसण आवीया), ४५४०७-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडाकल्प पूर्व दिने), ४४६४२-१, ४४७५०-८, ४५४०७-२ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु, गा. ३, पद्म, मूपू (परवराज संवत्सरी दिन), ४४१३७७, ४४५९२-७, ४४७५०-७, ४५१५२-७ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ४४१३७-३, ४४५९२-३, ४४७५०-३, ४५१५२-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू (जिननी बहिन सुदर्शना), ४४१३७-५, ४४५९२५, ४४७५००%, "" ४५१५२-५ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर नेमनाथ), ४४१३७-६, ४४५९२-६, ४४७५०-६, ४५१५२-६ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ४४७५०-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ४४१३७-२, ४४५९२-२, ४५१५२-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपु. ( श्रीशत्रुंजय शृंगार), ४४१३७-१, ४४५९२-१, ४४७५०-१, (सखी पर्व पयुसण आवीया), ४६०२४(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५१५२-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू.. (सुपन विधि कहे सुत), ४४१३७-४, ४४५९२-४, ४४७५०-४, ४५१५२-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पर्व पर्युषण गुणनीलो), ४५७१४ (+), ४५०६६, ४५५८७, ४६४७०, ४६६१५-१ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, मूपू. ( पर्व पजुसण प्रेमसु), ४५२४५-७(5) पर्युषणपर्व भास, मु. अमीयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., पर्युषण पर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू पर्युषण पर्व सज्झाय, मु.] मतिहंस, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू "" "" (प्रथम प्रणमुं सरस्वत), ४५१०० (पर्व पजुषण आवीयारे), ४३४७७-२ (०५) For Private and Personal Use Only ५५५ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५६ www.kobatirth.org पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( शीख सुणो सखी माहरी), ४६०१६-१ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपजुसण परव सेवो), ४३४७७-१(+#), ४४८०४ - १ पर्युषण पर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू (परव पजुसण पुण्ये पाम), ४७७७८-२(5) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ४८०९४-३ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्यावुं), ४६९५८, ४७०१४-१, ४७४५१-१६(#), ४५८२०-२(क) पर्युषण पर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू (पुण्यनुं पोषण पापनुं), ४३५८५, ४६२४८-२ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ४६२४८-१, ४६६८६ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ४६२४८-३, ४५६१३ (# ), ४५६३६-५ () पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेवे जिन पूजा), ४४३७४-३, ४५७१३, ४६०९१-७, ४६१००-४, ४८००५-१ ४४७३५-२(१) पर्युषण पर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( पर्व पजुसण पुण्य), ४४४८४-३, ४८०९४-२ पर्युषण पर्व स्तुति, मु, शांतिकुशल, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (परव पजुसण पुन्य), ४४९४९(A) पांच पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु.. गा. १९, पद्य, म्पू, (हस्तिनापुर क्लभलुं जी), ४५०६३-१ (००३) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ४४४३९-५ (+), ४६३६८ (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाटण अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (तीरथ अष्टापद नमो), ४५३१३-२ ($) पाटणतीर्थमाला स्तवन, मु. कपूरविजय, मा.गु., गा. ६१, वि. १७७८, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ४४२५५ (+) "1 पाणी पंथ पत्र, मु. पद्यसेन, पुहिं. वि. १८२५ गद्य, भूपू., (पाणी पंथ थकी भाई पदम), ४७७९० पाप परिवार, मा.गु., गद्य, वे., (पापनो बाप ते लोभ), ४६५८२-१ पायश्चित सूत्र, मा.गु., गद्य, भूपू (पांच मिध्यात्व बारा), ४७५७४-५ पारद संस्कारविधि, रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, (तांबानी वाटकी), ४४०३४-२ पार्श्व चंद्रसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (विदित शकल स्त्रानू), ४६२५७, ४५९८९ ($) पाचंद्रसूरि भास, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (गच्छपति वंदो गुणरतना), ४३७०७-३(१) " पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८८१, पद्य, भूपू (पास जिनराज सुणी आज), ४४४०५ पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आरती करूं श्रीपार्श), ४६२७३, ४६७१५-२(४), ४७०३६(१) पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपू. (पहिली आरती आससेण), ४६८४६-२ पार्श्वजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ अनाथ), ४३७२३-१(#) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुडिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू (मेरे एही ज चाही), ४६१५७-३, ४८११६-३, ४६५६९-२) " पार्श्वजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुणो साहिबा मन की), ४४४६३-४ पार्श्वजिन गीत, मु. नित्यविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चाहुं रे हुं तो पास), ४४४६३-२ " पार्श्वजिन गीत- जीरावला, श्राव, पेथो श्रीमाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (इसिहरे दूसमकालि), ४७५३४ पार्श्वजिन गीत - फलवर्द्धिपुरमंडन, मु. पुण्यविलास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (मेरे मन मान्यौ प्रभु), ४६७११-२ पार्श्वजिन गीत-काणा, रत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणा पासजिणेसर), ४५८१९-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आशा पूरे प्रभु पासजी), ४४५१४-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३. वि. १९वी पद्य, भूपू (नवरी वाणारसीरहे थया), ४६७४८-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन - शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या रूपविजय, मा.गु. गा. ९. वि. १९वी पद्य, मूपू (सकल भविजन चमत्कारी ), ४४६५० "" , पार्श्वजिन चौढालियो, मु. दोलत, पुहिं., ढा. ४, पद्य, श्वे. (पारसनाथ सहाई हमारे), ४३७४४(#) " पार्श्वजिन छंद, ग. गुलाबविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीपारस्वनाथजी), ४७६१६-१(+) पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ४३७५७-५ (+#) पार्श्वजिन छंद, मुहम्मद काजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अचिंत चिता चिंतामणि), ४६७६७ , For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५७ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ४३७५२(+#), ४४४६१(+#), ४४५१८-१(+) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ४३५६१(#), ४५१३४-२(#s) पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ४५१५९(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ४५७९१-५(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (सरसति सुमति आप), ४३८४३(+#), ४४४४४-१(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुसलचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगोडीचा जगतगुरु), ४५२५६(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (वाणारसी राया पास), ४३७५८-३(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. हीरविजयसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मात मया कर स्वामनी), ४७२६९-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपोशारदा मया), ४४६८२(+), ४७७१८(+), ४४७४७, ४५००२-१(#) पार्श्वजिन छंद-गौडी-उत्पत्ति, मु. कल्याण, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (साचा स्वाम सोहइ मति), ४४२७१ पार्श्वजिन छंद-जीरावला, मु. सुमतिसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस इसी), ४३७३८-१(+#) पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ४५३५४-३(+), ४६०३७-२ पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भीडभंजन भवभयभीतिहरं), ४३६१४-५(+#), ४५४९५-१(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास शंखेश्वरा सार), ४५५३८, ४६६०३-१, ४६८५२-२ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सारदा माता सरस्वति,), ४७१३३($) । पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ४३६१४-४(+#), ४४९३९-२(+-), ४८०७७-५(+), ४४७५५-२, ४५१६१, ४६०३०-१, ४७०९०, ४७७०९-१ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ४५३०४, ४६२५३-२, ४६६५३ पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज वधाइया जैरी माइ), ४६३०७-४ पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माता वामादे बोलावे), ४४६८९, ४६०३१ पार्श्वजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (प्रे उठीनइ प्रणमीई), ४३६८२-२(#) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ४४३७८(+#), ४४७९३-१, ४६४३४-४, ४६११२(६) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रमति गमती हसुनें), ४६१३२ पार्श्वजिन पद, आ. आनंदघनसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामानंदन वालहा), ४५३३०-३ पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ४७३६२-४(+) पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (रूप भलौ जिनजी कौ), ४६३४३-१ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (माई रंगभर खेलेगे), ४७५५१-९ पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (वो दिल भाय मेरे साइ), ४५४४९-२ पार्श्वजिन पद, मु. देवीचंद, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (देखीय मुरत पारस की), ४७७०५-९ पार्श्वजिन पद, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (वामानंदन पासजिणंदजी), ४६६६५-१(-) पार्श्वजिन पद, मु. रतन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मरे इतनो चाईये नित), ४६४५६ पार्श्वजिन पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुने सेवा वामानंद की), ४७५३२-२ पार्श्वजिन पद, मु. रामचंद वाचक, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (हो वामा का जाया महिर), ४५४४९-१ पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मै मुख देख्यो पारस), ४५२२६-२ पार्श्वजिन पद, ऋ. शिवजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सिवसुखदाइरि सेवीइ), ४६९२३-२ पार्श्वजिन पद, मु. सुबुधिविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जे जे जे जे जि जिणंद), ४६२९४ For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पार्श्वजिन पद, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (आवौ म्हारा रसीया), ४६८८८-२ पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जन्म बनारस ठाम मात), ४५०८४-२ पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा नेहडा तु), ४८०२१-१० पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), ४५३७०-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गोडी गाइएं मन रंग), ४७७०५-८,४५४७३-६(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. कल्याण, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा तेहरा), ४७७०५-१० पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केसर, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (मनमोहन मूरत पास की), ४४४२१-९, ४३७५६-२(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ४४९७६-३(+), ४५५३९-३(+) पार्श्वजिन पद-वरकाणा, मा.गु., पद. १, पद्य, म्पू., (दादो दातार वडो दुनिय), ४७३६०-२(#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पं. अजबसुंदर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पार्श्व), ४८११३-३ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ४६६९३-३ पार्श्वजिन प्रभाति-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेस्वरा सरण हु), ४३५५६-२(+), ४३९२१ पार्श्वजिन प्रभाती, अमृत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो सहेली सवी मली), ४५०५१-३ पार्श्वजिन प्रभाती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (माई मेरे पासजी अजब), ४५०५१-२ पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वर, वा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेश्वर सरण हुँ), ४६८५२-१ पार्श्वजिन फाग, मु. माणक, पुहिं., गा. ९, पद्य, म्पू., (फागण की रीत आई मेरे), ४७४७३-३ पार्श्वजिन फाग-पुरिसादाणी, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आउ रंगीले पास परमनिध), ४७५१२-२ पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ४७३६४ पार्श्वजिन लघुस्तवन-सोवनगिरि, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोवनगिरवर मंडणोरे), ४७६३०-७ पार्श्वजिन लावणी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पार्श्व समरणा भजन ज), ४४८५३-२ पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (प्रणमुं परमातम अविचल), ४५३०१, ४७३०३(-) पार्श्वजिन सलोको, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसती सामण तुझ पाय), ४७९४६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (को न गमे चितको न गमे), ४४०८७-५ पार्श्वजिन स्तवन, अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पास चिंतामणि सुण्णज), ४५०६७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मुझ सरीखा मेवासीने), ४५९६५-२(+#), ४६८५८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण सखि रे मुझ वाल), ४५०९४ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीलडी बुटीनो जामो), ४५४९०-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), ४४१७६(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (तारक देव त्रेवीसमो), ४६९६०($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सहज सलूणो हो मिलीयो), ४५२४८-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मन में वशी रह्यो), ४८११०-१(२) पार्श्वजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामानंदन वांदीई), ४६५३०-६(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ४४६१८-२(+), ४८०३१-१(+-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पोस दशमि दिन पासजी), ४४५३०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसव, मा.गु., ढा. २, पद्य, श्वे., (सुग्यानी जीवडा पर), ४५६७६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भजले प्रभु), ४७५७६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण नर श्रीजिनगुण), ४३७०५-३(45) पार्श्वजिन स्तवन, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (पास जिणंदसु प्रीतडी), ४४४९१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), ४५५२२ पार्श्वजिन स्तवन, पं. गुलाबविजय गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु पास झीणंद कृपा), ४६७९०-२(+) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, पं. गुलाबविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १९०९, पद्य, मूपू., (परम ईष्ट प्रभुतामई), ४५२७८(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर सांभलो), ४४९२७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वामासुत लागै प्यारौ), ४६७११-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सात फणा रे मोरा ), ४६१२०-३(+$), ४५९४९-२ पार्श्वजिन स्तवन, ग. जसवंतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (घोघाबिंदर सोहे देख्य), ४४६३८-५ (+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु, गा. १०, पद्य, भूपू.. (मन मोहनगारो साम सहि), ४५४६२-१ (०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु गा. ६, पद्य, मृपू. (अश्वसेनजीरा वावा), ४४५००- ३(७) , , पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात उठोने मेरे आतम), ४४७३३-४(-#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ४७१८५-५ (+), ४७३६२-३(+), ४४६८४-५, יי ४६८२७-१ (लाल रंगीले मेरे मोहन), ४५४६२-३(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., मुख देख्यो पारस), ४५३७५-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनसागर, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (जय बोलो पास जिनेसर), ४४६३३-३ (मे " " पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( पासजिणेसर वाल्हा अरज), ४७०७५, ४७७५२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगण सोभागी साहब), ४६८९५-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं गा ४, पद्य, मूपू (अंखीयां हरखण लागी), ४६४२८-२(१) " पार्श्वजिन स्तवन, मु. डुंगरदास, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (कासी तो देस वाणारसी), ४६५२५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहिली प्रणमउ सारदमाइ), ४५४४१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मषी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काशी देश वाणारसी), ४४०५३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (पूरज पुन्ये पामीयोजी), ४५६२४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), ४७४०४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुंदर रूप सोहामणो), ४३८३२-४(#), ४३९१५-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. मनरूपजी, रा. गा. १६, पद्य, स्था. (तेवीस मां हो प्रभु, ४४०७०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीपासजी प्रगट), ४५३९९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सारद पाय प्रणवी करी), ४६९४५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आए हम दरसण दरवाजै), ४७७०५-११ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (नवरी वाणारसी अवतर्यो), ४५०५७-१ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ४७५१३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तारीइं हो जिनराज), ४५३७३-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीनी चित), ४७७८४-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु गा. ९, पद्य, मूपु. ( पासजिणंद जुहारी), ४७६३०-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ११, वि. २०वी, पद्य, मूपू., ( पास जिनंदने पाए लागु), ४५९६३ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (सारद सामनि पय नमी), ४७०२९ पार्श्वजिन स्तवन, ग. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( पास जिनेसर सुण), ४६७८६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (पासजी वामाजीना जाया), ४६६९३-५, ४३५२४-४११ (वारी जाऊ रे चिंतामणि), ४४९९२-२ " (सेवो भवियण जिन), ४६११४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. २१, वि. १८५५, पद्य, स्था. (काशी देशमाहि नगरी), ४६६२७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु गा. १४. वि. १८४१, पद्य, चे. (वामाराणीयें एक जायो), ४६९३९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचि, मा.गु., गा. , " " " ७, पद्य, मूपू., (तिर्थंकर त्रेविसमो), ४५८९४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י: For Private and Personal Use Only ५५९ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पास वधावौ चालौ सिंघ), ४३९३०-३(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (त्रेविसमा पास जिणंदा), ४६१०३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कासमीर मुख राणी), ४७२६८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासजी वाहाला आवो), ४३६८२-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभुजी माहरा रे अरज), ४६७४९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समरीए साद दीयरे देवा), ४४०१५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (प्रभु पारस प्रेमसु), ४५४३७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमीय पासजेणंद वाम), ४३६५७-१(+#), ४३९१४-२(-#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विशाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीगोतम हो पाय प्रण), ४६८३२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अब हम है श्याम सरण), ४७०८७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भगति पास जिणेसर गाईय), ४६०१० पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू, (नीकी मूरति पास जिणंद), ४७९८६-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीराय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पासजिनेसर पूरण आसा),४६४७६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सदनमुनि, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्राण पीयारा जी हो),४६६५२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजब बनी रे श्रीपासजी), ४३७७३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (डीघी तो गोरी बेढी), ४४२९६(-2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति समरु हर्ष घणि), ४४९९६-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी वेल), ४७८८९-६(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ॐ नमो पार्श्व प्रभु), ४५३४८, ४६००२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास चिंतामणि), ४८००३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दरसण मांहरा जिनजी को), ४६२२४-२(+), ४६६४४ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज सखी मे मुरत देखी), ४७३९८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (करकंडा पासजी मुगताफल), ४७७८७-४(-) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (त्रेवीसम जिन ताहरौजी), ४५५२८-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बहुमुगति कहे सुणो), ४४९९५-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (भुप कहे भामन भणी रे), ४६९२३-३ पार्श्वजिन स्तवन, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (माहि वामारा इणि), ४६७५३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपासजिणेसर पुरण), ४६५२४ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., पद्य, मूपू., (श्रीपासजी के चरण याओ), ४५४१५-२(+$) पार्श्वजिन स्तवन-अंकपल्लिमय, मा.गु., पद्य, मूपू., (६४२१७४।८४७), ४६७१४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, मु.खातिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जीयाजी तुमे जपजो रे), ४५८९९ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंतरीक पासजी महिर), ४७९४८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ४५७९१-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-अजारा, मु. नेम, मा.गु., पद्य, मूपू., (देवी सरस्वती रे एकी), ४४६१४ ।। पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. नीबा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (देवी सरसतिरे एक), ४४१९५-१ पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. हितकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (त्रिभोवनमां जयकार), ४६३२१ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, पू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ४७३५५, ४८१०४, ४३८१९(#), ४३९१२(#), ४७७८२(#$), ४५२२२($) पार्श्वजिन स्तवन कल्याण, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कल्याण पास पद कमले), ४५१७५-१ पार्श्वजिन स्तवन-किशनगढमंडन, आ. जिनमुक्तिसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १९२२, पद्य, मूपू., (करजोडी नित प्रणमु), ४५६५५(#) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आव्यो सरणे तुमारे जी), ४५६७५, ४६४६५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ४३९०७-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जस नामे नवनिध ऋद्धि), ४५१८९-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ४३७०२(+#), ४४१४१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवो सहिअर सहु मिलि), ४३६१०-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (साहिब गोडी पास रे मन), ४७४५६-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ४६४७१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ४५२६४-२, ४७०५५(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गोडीपुरवर सोभतो तिहा), ४४६३८-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ४४०४२-१(+), ४४९७९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन गिणसूं हुं तउ), ४३९२७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दान, मा.गु., पद्य, मूपू., (धन धन रे म्हारा), ४५२०६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (संवली सूरत एलगन लगी), ४३८९५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारकरमा प्रभुजी), ४३९९८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५२, पद्य, म्पू., (भावे वंदो रे श्रीगोड), ४६६२३-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. भाण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (गोडी गिरुउ गाजतो धवल), ४५७२८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघकीर्ति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज गोडीसो राजिंद), ४६१२०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., गा.८, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (प्रगट थया भले पासजी), ४४५००-५(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मस्तके प्रभुजीने), ४५९६५-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वरकाणां पास जिनेसर), ४५०६१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारकर देस), ४४७३५-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोनानी आंगी हे सुंदर), ४६२९५(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (में मुख देख्यो गोडी), ४७२४३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, भूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ४३६०६ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ४४६६५-१, ४५२३२-२, ४५८३१, ४६१६८-२, ४६२५३-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अकल मुरति अलवेसरू), ४७४६५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, सदानंद, मा.गु., श्लो. ७, पद्य, श्वे., (सांभलि साहिब विनती), ४४२०९-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाथनगीनो माहरो केशर), ४३९९८-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सूरविजय, मा.गु., गा. २६, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सरसति देवीने नमी), ४३६१४-२(+#), ४४७१७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रगटथा भला पासजी), ४८११३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उ.,मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (गोरीपास गरीबनिवाज), ४६६१४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, फा., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोरी पासजुहस्तसदक), ४५१४४-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी नमा नमो नमा), ४७१०८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडन, मु. मतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम्ह चालोने तुम्ह), ४४९५८-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीन), ४६९६१-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. गुलालविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणी स्वामी), ४५२६४-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ४३६१४-६(+#), ४७०९४(+), ४५७९१-४(#), ४४३५२-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), ४४८८०-२, ४६८६५(-) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साचो साहिब सेवयइ रे), ४७४९५-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चिंतामणी चिंता सब), ४५९७०-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, आ. देवगुप्तसूरि, पुहि., वि. १९२९, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणी पार्श्व), ४५१२९-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. रत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे प्रभु तार), ४५८५३(2) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आणी मन शुद्धि आसता), ४४२११-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु.सुबुद्धिकुशल पंडित, रा.,गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरति थाहरी सुहामणि), ४४७८३-२ पार्श्वजिन स्तवन-जामनगरमंडनचिंतामणि, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (श्रीचिंतामणी पाच), ४६६६१ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ४५२४४, ४५९४२-१, ४७५८५, ४७६३०-६ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ४३९३२-१ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंद कल्याणवल्ली), ४४७२७, ४४०५१-२(2) पार्श्वजिन स्तवन दशपुर मंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दशपुरमंडण सोहै नवफण), ४४८२७-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-माकोडा मंडण, मु. मतिसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पुजिस्या), ४६७७७ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वरु), ४६२२४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ४५१९१(+) पार्श्वजिन स्तवन-पाठशालागमन, मु. कपूरसागर, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजी परम), ४३५६६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरीसादाणी, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा.१०, वि. १८२८, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबोजी), ४६६५६-१ पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनराज पुरसाद), ४४७६५-३, ४६६४१-२, ४७०७८-२ पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी सांवल वरणो), ४५४९०-३ पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादाणी, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमातमा), ४४०८७-९ पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति समरी कविजन), ४३७५४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवकां), ४४९९९-१, ४७११७-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ४७९७० पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्धिपुरमंडन, वा. महिमसुंदर, मा.गु., गा. १३, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (भमर जीवाणीयौ चौमासौ), ४६७१६-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलोदीमंडन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणंदराय पास फलौधी), ४५६५९-१ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालाजी पांच मंगलवार), ४७०६२-२ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जाय छे जाय छे जाय छे), ४५३७०-४ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (श्रीभीडभंजन प्रभु), ४३५५६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण विनमुं), ४७०५३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-भीनासर, मु. हरिसागर, मा.गु., गा. ६, वि. १९७१, पद्य, मूपू., (भीनासर स्वामी त्रिभु), ४७०२५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसीमंडण, मु. धनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पास जिणंद मेरे मन), ४७४५६-३ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन पावन देहडीजी), ४७१५४-४, ४५६६७-४(-) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (चिदानंदघन परमनिरंजन), ४८०२३ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (मनमोहन पास विराजे हो), ४६४९४-१ पार्श्वजिन स्तवन-मीमचमंडण, आ. महेंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सारदमात मयाकरणी कवि), ४६९७९-२ पार्श्वजिन स्तवन-मुंबईमंडण चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (मंबई बिंदर मै सोहै), ४५७६९(+#), ४५७४३ पार्श्वजिन स्तवन-मोह पराजय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जालमगढमां जोध मच्यो), ४८००४-३ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. रघुपति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पारसनाथ पीयारे प्रभु), ४६९२२ For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६३ पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीलोढण प्रभु पासजी), ४५८५५ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (लोईयपुरइ आज महिमा घण), ४७६३०-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. हरिसागर, हिं., गा.७, वि. १९७०, पद्य, मूपू., (पार्श्वजिनेंद्र तेरे), ४७०२५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जय जय गुरु देवाधिदेव), ४४७९४, ४५१५४ पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), ४६६०४-२ पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वरकाणा प्रभु सांभलउ), ४७५७०(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ४४७०५-२, ४४८७९-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ४८०९९-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ४६३८३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, जै., (सेवो प्रभु शिव सुखका), ४७०८७-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहेबा श्रीसंकेशर), ४३८०३-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीत बनी तो नीभाय), ४६६४७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्यरत्नशिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीत्रेवीसमा पास), ४७१७९-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु.रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिलरंजन जिनराजजी), ४६६६७(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेसर पासजी), ४५१८०-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), ४५०६९-३(+), ४७८८९-७(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वरपास मुज), ४४६३८-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परता पूरे पृथ्वीतणा), ४७६३०-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ४६०९४, ४६६२३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमे), ४३६१४-३(+#), ४३७५४-३(+#), ४४६३०-१, ४४६३३-१, ४५७१८, ४५७२८-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ४५५१५, ४६२९६ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नरोत्तम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनजि श्रुतदेवि समरु), ४३६२१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ध्यान धरी प्रभु), ४५२३२-१, ४५६७२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), ४६१४९-१(+), ४५२३२-३,४७९२१-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी प्रभु पासजी पासजी), ४५०३७-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (नित्य समरूं साहेब), ४७६४७-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सुणो सखि संखेश्वर जइ), ४३४९० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तत थेई तत थेई राज), ४६७८९(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबारे), ४५६६१ पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूजाविधि मांहे भावीय), ४५०२८-१, ४६६७९ (२) पार्श्वजिन स्तवन-शामलान्टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवंतनी पुजा करत), ४६६७९ पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुहकर श्रीसे), ४५०७५-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ४५४५३-२(+), ४७४७७ पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु.खुशालचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम तो भले विराजो जी), ४७७०५-१, ४७७१९-१ पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. कीर्तिसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहेस फणा मोरा साहेबा), ४६३०२-२(-) पार्श्वजिन स्तवन-सुखसागर, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसुखसागर गुणमणी), ४३६८२-१(#) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिण), ४७३००, ४७६३०-८, ४८१३३ पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सकल मूरति सामी थंभणो), ४३८९१-२(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रवि कोटि प्रकाश नील), ४७५२१-१ पार्श्वजिन स्तुति, ग. जयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपासजिनेसर वंदुए), ४५२७९-१ पार्श्वजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), ४३५९४-६(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. नैणसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमेसर श्रीपासजिणेसर), ४६६६६ पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ४४७३५-३(-) पार्श्वजिन स्तुति, मु. लक्ष्मीकीर्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोपैसो कोप्यो रोप्य), ४६९३३-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा वामानंदा), ४६७४८-२ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), ४४२६२-३ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर समरता), ४३५१०-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सकल करम खल दलन कमठ), ४७३४१-२ पार्श्वजिन स्तुति-अजाउरमंडन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजाउरमंडन जिन पास), ४४३१२-२ पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणि, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कीरत कमल केल करंत), ४७३०१-४ पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (अचिंत चिंतामनि पारस), ४३८३२-२(2) पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास जीरावलो पुजी), ४४८७५-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ४४८१३-२ पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर-पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पार्श्व), ४६५८९-२ पार्श्वजिन स्तुति-शामळा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरु महीधर सुंदर), ४४८१३-१ पार्श्वजिन स्तुति-सिद्धपुर, मु. रूपविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धपुरमंडण), ४५४५६-१ पार्श्वजिन स्तुति-सुरतमंडन पुरुषादाणी, मा.गु., पद्य, श्वे., (सेवु सेवु हो राज), ४७१०८-३($) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ४४९०३-१(+), ४४२६७-२, ४४५७४-२(#), ४७८८९-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (इंद्र नरिद्रं फणिंद), ४४५४१-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीरावला देवजी करौ), ४७६३०-५ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पंन्या. शुभवीरविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर स्वामी), ४६०७८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ४३७५४-१(+#) पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनमा कहिउ), ४७४८१-१ पार्श्वजिन हमची-गोडीजी, मु. लब्धिसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पाटणथी पाराकर आव्या), ४६३५४-४(#) पार्श्वजिन होरी, मु. अमर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (अरे हो श्रीचिंतामण), ४७५५१-६ पार्श्वजिन होरी, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे फाग रमीजे रे नर), ४५०५७-५ पार्श्वजिन होरी, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वारे), ४३७४५-१(+) पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहि., गा.७, पद्य, मपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ४७३६२-१६(+), ४६९९५-३, ४७५५१-१ पार्श्वजिन होरी, श्राव. शांतिदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ खेलत), ४७१७२-३ पार्श्वजिन होरी-चिंतामणि, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (चातुरी कहा बोलु), ४३७२४-२(+#) पार्श्वजिन होरी-स्तवन, मु. कांति, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (कोप्यो हि कमठ कपट भय), ४७५५१-८ पार्श्व वीरजिन स्तवन-भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वच्छ श्रीकच्छमा), ४६०१६-२ पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, श्वे., (कुंडरीकरीद्ध तज), ४७६६७(-5) पुण्यपाप परिवार, पुहिं., गद्य, श्वे., (धर्म को पिता वीतराग), ४५५८०-२(-) पुण्यपाप परिवार गाथा-ठाणांगसूत्रे, रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पापरो बापलोभ पापरीमा), ४७५३५-४, ४६६५७-१(#) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८ गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू (सकल सिद्धिदायक सदा), ४३५७५, ४४२१७, ४५१२४-२ (६) पुल भेद विचार - भगवतीशतक ८ उद्देशार, मा.गु., गद्य, मूपु (प्रथम पउणसा ते जीव), ४४२४३-३ पूनमपाक्षिकनिराकरण सज्झाय, मु. कीर्ति कवि, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू., (चौदशे दिन जिन भाखी), ४४६१७-१(०४) पूर्व १ संख्यामान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सीतरलाख करोड वरस छपन), ४५९२०-३(#) पूर्व देश नगर नागर संख्यामान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणहलवाडी पाटणथी ८००), ४४२८९-१ पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सिरिनेमि जिणेसर नमिय), ४४६४६ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (श्रीसंखेश्वर पास), ४३५९४-१० (+45) " (पोस दसम दिन पार्थ), ४५८४९ पौषध मध्य जलग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरियावही अनथ ४), ४५५३४-२ पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीयइ), ४५०६९-२ (+), ४३७१४, ४४४८६ प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., ( इक घडी मन समरस आणी), ४३७१६-२(+०) प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर मा.गु., गद्य, मूपू. ( समकित तो सरवहण रूप), ४४४०३ प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., डा. २ गा. १७. वि. १७३, पद्य, म्पू, (धुरि समरु सामिणी), ४३७९५ (का प्रदेशीराजा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुनेहिं चोईया पुरकडे), ४३९५७-१(#) प्रदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीजिणपास), ४३९०२(+) प्रभाति स्तवन, मु. जीन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (पूरव दिश जिन तणी रे), ४६५३०-१(क) " प्रभाती सज्झाय, मु. अमृत, अज्ञा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोयो तूं बहोत काल), ४५२१२-१ प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरूराज), ४३७४२ प्रमादवर्जन सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( अजरामर जग को नहि), ४४०४३-१ प्रश्नज्ञान निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोई पूछै फलांणी), ४६८५५-१ प्रश्नोत्तरमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, मूपू., (परम ज्योति परमात्मा), ४४०५९ (+$) प्रश्नोत्तरमाला, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमित सीस गोविंदसौ), ४७६८८-६ प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु, प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू (नवकार मांहि पहिला पद), ४७३९५-२ ', प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ४५०६५-२, ४६८९६ (-) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ४३९४९-३(+) प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू.. (मारगमां मुनिवर मल्यो), ४६१४३-१, ४६३७९ प्रहेलिका पुहिं., दोहा १, पद्य, वै., (अहिफण कमल चक्र टणकार), ४५५७२-३(*) प्रहेलिका संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, (नवगुण लकडीयां भार वह), ४७६८५-२ प्रहेलिका संग्रह, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (यौ यौ सामली तउ बहू), ४७५८९-२ (#) प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्म, (खाट खटक नॅलोनां कडा), ४५६३३-२ प्रहेलिका संग्रह. रा. गा. ८, पद्य, श्वे. (देख्यां रे बेला बीन), ४४११३-२(+) " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ४५१८९-२ (+), ४६१५३-४, ४७१७१-२ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, जे. ? (सरोवर पाव पखारति), ४४०९५-२, ४५८२८-३ प्राण भेद विचार, मा.गु., गद्य, वे., (छ पीरजा दस प्राण हार), ४४३७७-२ प्रास्ताविक दोहा व चौपाई, पुहिं. गा. ३८, पद्य, भूपू (सुख उपन्यो दुख मिट), ४७८२३-४१०) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (एक गोरी दुजी सांमलि), ४५९४९-३, ४७३६१-३ (#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु., रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रती भमर की), ४४४५५-४ 1 प्रास्ताविक सवैया, मा.गु, गा. ३, पद्य, जै.? (एक ही मातपिता तसु), ४७५५०-२ फूलडा सज्झाय, पुहिं.रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ४५६०९ י For Private and Personal Use Only ५६५ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ फूलमाला सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहेयो पंडित ते कुण), ४७४६६ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ४३६१०-२(#) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बलदेव महामुनि तप तपइ), ४७४२० बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुंती निकल), ४५४०१ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु.,गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ४५५७१-१ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (द्वारामतिथी श्रीकृष), ४५००४ बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संवेगी बलदेव साधु), ४६०५३-१ बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मन मान्यो तंगियापुर), ४७१५९ बाराक्षरी पद, चंचल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे.?, (नमो अरिहंत बडे बलबीर), ४३५३६-१(+) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ४६५५६ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ४६३५४-२(#) बाहुजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बाहू समापउ बाहुजी), ४७०८७-९ बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), ४८०८४(+#) बाहुजिन स्तवन, मु. वीछविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (हो साहिब बाहुजिणेसर), ४७७८८-१ बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ४७२४८ बाहुबली सज्झाय, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहेनी बोले हो बाहुबल), ४४३०८, ४८०१६ बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ४५६६७-७(-) बाहुबली सज्झाय, मु. सिवचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १९३३, पद्य, मूपू., (सारद माय नमी करी), ४६६७६(+) बिंब शास्वता स्तवन, श्राव. देपाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भुवन विसात कोडी लाख), ४५०६९-४(+) बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुविधबंधनने टाळीए), ४४८०७-२, ४५५२९-२ बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. हसविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिन पद पंकज नमी), ४५२४५-१(६) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ४३६०१(+), ४३४७६-१, ४४६३४-२, ४४६५२, ४४८४४-१, ४५५५९, ४७२२१, ४३५४६-१(#), ४३७९२(#), ४७५००-३(#$) बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ४६६८२-२(-#) बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), ४६४२४ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे अहनीस), ४३४६६-१(+), ४८११०-२(#) बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (अजवाली बीजे चंदा), ४४८२७-१(+) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ४३५२१-१(+#), ४३५९४-२(+#), ४३७८९-१(+#), ४४५१५-१, ४५८५९-२, ४६०९१-१, ४७३९०-२, ४७७५६-१, ४४२९८-१(-) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ४५०३२ बुढापा रास, मु. चंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दयाज माता वीनवु गणधर), ४३५६७+#) बुद्धिबहोत्तरी, मु. कुशल, मा.गु., गा. ७३, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र माहे), ४४५२८ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ४३५५७-१(+#), ४३८९२(+#$), ४४६८५, ४७८६९-१,४८०९३, ४४८०९-१(६) । बेइंद्रियजीव सज्झाय, मु. रत्नविजय शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेइंद्रिय बोले रे), ४३६२६-१(#) ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर पाय), ४३६९९-१(+#) ब्रह्मचर्य सज्झाय, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुणी पसुय पंडिगतणा), ४४०६० ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ढाल, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ३, गा. ५०, पद्य, मूपू., (ब्रह्मदत्त चक्रवर्तन), ४६३१७ ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (आदनाथ गर जनमीया ज्या), ४४८१०-१ भरतचक्रवर्ति संपदा वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोरासि लाख हाथि), ४६३६०-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६७ भरतचक्रवर्ति सज्झाय, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (मैण माणेक मोती घणा), ४८०२२-२(-2) भरतचक्रवर्ती चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (नगर आजु दाने विषे), ४५१९२ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नगर बनीता सुभ ठामो), ४६९५५-२(-) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ४४४२४ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (इम नवि कीजि हो सगुण), ४३७८७-१(+#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ४५६५३-१, ४५६७१ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ४३५३६-२(+), ४८०३१-२(+-), ४३६१०-१(#), ४४१८७-२(#) भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (परम पुरुष धरा जुगल), ४७६५९(5) भला गीत, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (अमल खारा भाला खडग), ४६७५३-१ भवदेवनागिला सज्झाय, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), ४४११४-१ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ४५६५०, ४६१८९-१ भवदेवभावदेव स्वाध्याय, मु. लब्धि, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (नारी रे निरुपम नागील), ४७८४१ भवानीदेवी कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (मदमाती मालती० हाट), ४७८९०-३(#) भवानीदेवी घघर निसाणी, भवानी, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (खेजडले थान भवानी), ४३९८४-१ भवानी स्तोत्र, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (कपाली कालीक कहबर), ४६४७३-२($) भावप्रमोदगुरु गीत, मु. भावप्रमोदशिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आवउनइ सोहागणि देवा), ४६९२१ भैरवदेव छंद, रा., पद्य, मूपू., वै., (नमो आद भैरु भूजा तेज), ४५९५०-३(-) भैरव यंत्र साधन, मा.गु., गद्य, (नमो रगतिया रगतमा), ४५१०२-३ भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), ४३६६४(+#) मंगल गीत, ग. समयसुंदर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अम्हां अम्हां इसे आज), ४४१६०-२ मंगलसेन मुनि सज्झाय, मु. रामसीह, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (श्रीमंगलसैनमुनी दीपत), ४६५२०(#) मंत्र संग्रह , मा.गु., गद्य, वै., (लीली बलकी तुंबडी), ४७१८२-३ मणिभद्रवीर स्तुति, य. गोपालसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सेवों मानभद्र समकती), ४४४४८-२(+-) मत्स्यगंधा सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (एक समे ऋषकु विषकाम), ४६११०-३ मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा.५६, पद्य, श्वे., (--), ४६५८६(#$) मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लघु बंधव जुगबाहूनो), ४५७००-२, ४६५६३-१ मद्यपान विपाक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (परुणलीरो उदया परमारी), ४७५५०-१ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., ढा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ४५४३८(२), ४५७७७-२(2) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो रे नमो मनक), ४७९९९ मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ४७३९६-६(#) मनवशीकरण सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ४४२५३-२ मनुष्यजन्म सज्झाय, मु. विजयदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सुरतरूनी परो दोहिलोज), ४७१३६-१(६) मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी परमेसर वीर), ४६५०७ मनोनुशासन सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकलडं आणा न), ४८०५५-२, ४५६६७-३(-) मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुझ साथे नहीं बोलु), ४६४९५ मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक दिन मरुदेवी आइ), ४६१३३, ४७१५० मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (दीख्यारा दिनथी न), ४३८२३ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माताजी इम), ४४७५३-१ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (माताजि मारूदेवा रे), ४४९२९ ao For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६८ www.kobatirth.org मर्मछत्रीसी, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा. ३६, वि. १८२४, पद्य, मूपू., (नारी साथे नेह न कीजि), ४३९९५-१(+) मल्लिजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंदो जिन श्रीमल्लि), ४५४६८-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमल्लि जिणेसर), ४८०४५-१(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू. (चीत कुंण रमे चित कुण), ४३६६५-२ (१) मल्लिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कामकलस समो गुणधारी), ४३९१५-३(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमल्लि जिनेसर), ४४१५६-३ मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू. (तुज भुज रीझनी रिझ), ४७९४७-५ मल्लिजिन स्तवन, राज, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू. (श्रीमलि जिनराज), ४४६५६(१) मल्लिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तारु कुं प्रभु तुम), ४६२०१-१(#) महाभजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (मन मगन भयो महाभद्र), ४४७६५-१ महामाईआ वाक्य, मा.गु., गा. १०९, पद्य, जै. ?, (वरस अतिहि बीहामणां), ४५२०० महामाया छंद, उ., गा. ११, पद्य, श्वे. (मिहिर मोंज वरक तवखत), ४७८९०-१(#) ', . महावीर जिन १० आवक नाम, मा.गु, गद्य, म्पू, (आणंद कामदेव सुरादेव), ४७५९७४ महावीरजिन २० भेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षेत्री कुंड सिधा), ४४९९६-५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गा. २७, गद्य, मूपु. ( अथ हिवइ श्रीमहावीरस), ४४६८३ . महावीर जिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य थे. (सूर्यानी उपमा १ अश), ४३६४१ महावीरजिन आदि काल में उपार्जित तीर्थंकर गोत्र संख्या, मा.गु., गद्य, श्वे. (श्रीवीरने वारै नव जन), ४६७३०-२ महावीरजिन आहार सज्झाय, रा. गा. ४, पद्य, मूप.. (वडा घेवर जेमृत मान), ४५६९९-२ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन गहुँली, मु. रविविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (शासननाअक दीपता सुख), ४६६०७-१ (+) महावीरजिन गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (जग उपकारी रे वीर), ४३८१३-१(+४) महावीरजिन गहुली, मु. अमृतसागर, मा.गु गा. १०, पद्य, भूपू (जी रे जिनवर वचन), ४६०२७-३(+), ४५७१० , " महावीरजिन गहुंली, मु. गुणचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सखी ब्राह्मणकुंड), ४५००३-४ महावीर जिन गहुली, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नव कनक कमल पगला धरता), ४४७०४-४ महावीरजिन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो सखि वंदनने जइये), ४३९३१-२(+) महावीरजिन गहुली, पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( सहि चालो श्रीमहाविर ), ४६७९०-१(+) महावीर जिन गहुली, मु. न्यायउदव, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (नयरी राजग्रही दीपती), ४८०४७-२ महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो दीइ छें), ४६११९-१ महावीरजिन गहुली, मु. मणिउद्योत, मा.गु गा. ५, पद्य, म्पू., ( बेहनी चंपानवरी), ४३७३३-१(१) "" " महावीर जिन गहुली, मु. मणिउद्योत शिष्य, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (सजनि मेरी गुणसिल वन), ४३७३३-२ (४३) महावीरजिन गहुली, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजगृही विचरता आव्य), ४६०२७-२ (+) महावीरजिन गहुली, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सजनि विचरता वसुधा), ४६६९९-१ महावीरजिन गहुली, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (सासन नायक वीर जिणंद), ४३६२८(०) महावीरजिन गहुंली, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहेली मांहरे राजग्रह), ४४७०४-१ महावीरजिन गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो भोग करम), ४३७१८, ४४१३६, ४३७३४-१($) महावीर जिन गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (राजग्रही नवरी मनोहार), ४४१४४-२ महावीरजिन गीत, मु. जीवनविजय, रा. गा. ५, पद्य, भूपू (प्रभु धारी खूबीनो), ४६४७७-२ " ', महावीरजिन गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसति माता हो सुभमति), ४६७३८-३ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ४४१३२-१, " ४४९४८-१ महावीरजिन छंद, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (चोविसमा महावीर शुरवी), ४६७३४-४ (-) "1 For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन छप्पय, मु. नाथ, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (हेलि दुठ सुदरसण हेलि), ४८१२८-२ महावीरजिन जन्मोत्सव रास, मु.रंगप्रमोद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४५४६८-१(६) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि),४८०२४ महावीरजिन देशना, मा.गु., गद्य, श्वे., (जे जे वीरप्रभु जगत), ४६१५२(६) महावीरजिन देशना गहुंली, उपा. सिवचंद पाठक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरै उद्यान), ४४७५६-३ महावीरजिन द्वारा ब्राह्मण को वस्त्रदान दृष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवंत साधु थइ विहार), ४७०१३-३ महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (जय जय जगदीश जिनेसर), ४३७४१(+), ४६६९७-३, ४६८९७-१ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ४४३८०, ४५३९८-१ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), ४५०९१-२ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (क्या तक सीसर विचारा), ४६३४३-२ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ४७१३४-१ महावीरजिन पद, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आखीया मेरे प्रभुजीसु), ४६१०७-२(1-2) महावीरजिन पद, मु. ज्ञानविमल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (भला सुख आपेगा ओ), ४६१०७-१२(+-#) महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (इक दिन प्रभुवीर सम), ४३९२४-४(+) महावीरजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जै जै कार भया जिनसास), ४५२७५-२ महावीरजिन पद-उपदेशगर्भित, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मत कर ममता परभवनो), ४४०१२-१ महावीरजिन पारj, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ४५८५७-२($) महावीरजिन प्रभाति, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (दरिसण वीरजीणंद को), ४६०६६-१ महावीरजिन भास, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसती मात मया करी), ४६११९-२ महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), ४३४६८-१(+) महावीरजिन विनती, मु. श्रीचंद्र, मा.गु., गा. १३, वि. १९५९, पद्य, पू., (मत भूलो रे सिद्धार्थ), ४५५७६ महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ४३९४७-६(+#), ४५०५२, ४६२५३-३, ४७८४६-१(६) महावीरजिन सज्झाय, मु. चोसल ऋषि, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (हांजी प्रभु चोबिसमा), ४७०१९-१ महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधारज हुं तो रे एक), ४५०९७, ४५१५१ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ४४१८४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ४५०२५, ४५०६०-१, ४५२२०-१ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीप्रभुजी तुमे तो), ४६९५०, ४३८०३-५(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (केवल ग्यान लह्या पछी), ४७१११(#) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (उग्यो पृथवी उपरै), ४३७५७-६(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर साहिब मेरा), ४४०९१-२, ४४७९५(-) महावीरजिन स्तवन, मु. कपुर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुजरो मारो मानज्यो), ४६०८१-२ महावीरजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी त्रिसलासुत), ४४४२१-६ महावीरजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सुखाकर वयण), ४५४६८-५ महावीरजिन स्तवन, मु. केसर, पुहि., गा. ९, पद्य, म्पू., (जय बोलो त्रिशलानंदन), ४७७४३-१ महावीरजिन स्तवन, मु. चंद्रमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९३६, पद्य, मूपू., (जीया सुणले सुजाण), ४६३५८(+) महावीरजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंद्रवदनी मृगलोयणी), ४५१८०-२(5) महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ नंदनने नमु), ४६०९८ For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ महावीरजिन स्तवन, मु. चौथमल, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (मे तोसु जी औग नगरो), ४६६००) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु सिद्धारथ सुत), ४३५६०-३(#) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संदेसो देजो रे कहेजो), ४७९९०(#) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वंदो वीर जिनेश्वर), ४६०८३ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर सेवीये), ४६३७०-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुणि जिनवर चोवीसमा), ४८०४५-२(+$), ४५९६६ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदीये), ४७८४५-२ महावीरजिन स्तवन, मु. जीवनविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (मनगमता महावीरनी वाणी), ४५७१७ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाटडी विलोकुं रे), ४४७०५-१ महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वंदो वीर जिनेसर राया), ४६०८२ महावीरजिन स्तवन, मु. डुंगरदास, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (थे तो दसमा स्वरगथी), ४६५२५-२ महावीरजिन स्तवन, पं. दीपसौभाग्य गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुंदररूप अनूप एहि), ४७९४२-१ महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राय सिद्धारथ कुल), ४४८३६-१(-) महावीरजिन स्तवन, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (प्रभुजीरी वाणी धन), ४३५३८-३(+#) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर हमणां आवे छे), ४३७४९-१, ४५०२०-३, ४५३६१(-) महावीरजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आणंदमय निरूपम चोवीशम), ४७७५९-१ महावीरजिन स्तवन, ऋ. मनरुपजी, रा., गा. १५, वि. १८९७, पद्य, स्था., (वीरजिनेश्वर त्रिभुवन), ४४०७०-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (जय जय प्रभु वीरजिणंद), ४६८७० महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ४६४८७(+), ४७५४३-१, ४७७१४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (सवि दुख टालेगे महावी), ४४३१९-२($) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), ४७३९९-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल माहे उप), ४५५४७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. रुगपत ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३६, पद्य, स्था., (साहसणनाइक वीर जणंद), ४६९०९-३(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (घंट बाजे धनननननन.), ४६५४८-३ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सुगुरु संजोगथी मे), ४७७२०-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु.रूपसिंघ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे), ४६४५३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. लखमण, मा.गु., गा. ९७, वि. १५२१, पद्य, श्वे., (पहिलो धुरि समरु), ४४६८६(+), ४४०६१(#) महावीरजिन स्तवन, ग. विनीतविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (वीर जीणेसर साहिब), ४५७५५-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (आज मारे आनंद थयो प्र), ४४०८७-४ महावीर जिन स्तवन, पं. वीरविजय, गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माताजी तुमे धन धन रे), ४५६०३-१ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शासननायक समरं सदा), ४४८३५ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पधार्या), ४६६३६(-) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (सारद तोरा प्रणमु), ४६९७९-३($) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ४४९३५, ४५३१३-१, ४७७९६(-) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नफलगर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (बली बली प्रणमो हो), ४७१६२ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ४७०१५(#) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा.५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू), ४८००९ For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ५७१ महावीरजिन स्तवन- ४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ३, गा. २८, वि. १७७३, पद्य, मूपू. (देवांना पिण जेह छै), ४७६२९-१ महावीरजिन स्तवन -५ कल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), ४४८२२ (+), ४३७५८-१०) महावीर जिन स्तवन गौतम वियोग गर्भित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (मुगति हुआ सांभलीजी स), ४४८२३-३(-) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ४५२९५, ४४७७३ " महावीरजिन स्तवन -दसमताधिकार स्वरूप, वा. मेघविजय, मा.गु. बा. ९, पद्य, मूपू (जयदायक जिनराज ए), ४४४५८-१ महावीरजिन स्तवन -दीपावलीपर्व, मु, देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (मारग देशक मोक्षनो रे), ४५८१६, ४६१२८ ४६८९७ - ३ महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ४३५३९-१९ महावीरजिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ४६५८३ (+$) . महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मृपू. (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ४३८०४-१(+), ४६४९३-१ महावीरजिन स्तवन धारणागति, मा.गु. गा. २६, पद्य, भूपू (श्रीअरतजी अतबली), ४३७०९(४) महावीरजिन स्तवन -पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., गा. ८, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (श्रीवीरचरणकज भेट्या), ४६६०६(+) महावीरजिन स्तवन -बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ४३८९७(+#), " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७७० (+), ४६४८१, ४७८६० महावीरजिन स्तवन बीकानेरमंडन, मु. महिमासुंदर, मा.गु., गा. ७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदीयै बीक), ४७४२१-२ महावीरजिन स्तवन- राजनगरमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनराजीआरे), ४५०१५ महावीरजिन स्तवन - विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगभिंत, मु, दीपविजय कवि, मा.गु. गा. ११. वि. १८८८, पद्य, म्पू. (एकवार कछ देस आवीये), ४४०२३, ४५३६६ " महावीरजिन स्तवन - वेडमंडण, मु. जिनविजय, मा.गु., ढा. २, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (वेडमंडण विराजतो रे), ४६३७०-३(+) महावीरजिन स्तुति, मु. ऋषभदास, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (सासन नायक वीरजी ), ४५०२७ महावीरजिन स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू (चोविसमा श्रीवीरजिणंद), ४६१००-५ महावीर जिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ४६०९१-३ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ४३४९८-२(+#) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपु (मनोहर मुरति महावीर), ४३४९८-१ (+०६) महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जय जयकार साहिब शासन), ४३५९४-५ (+#) (पंचअनंत प्रपंच रहित), ४७४५१-६ (#) (पूरब दिसि पावापुरी), ४७४५१-९(१) (सखि राजगृही उद्यान), ४७४५१-११(१) महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू महावीर जिन स्तुति, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ४४२६२-४ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया तणो सायर मुक्ति), ४४३८३-३(#$) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डालो पाव चांप), ४४८८१-६(+) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनवर ), ४४८२७-७(+) महावीरजिन स्तुति - गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ४४८७१, ४६५८९-१, ४७३०१-१, ४५६३६-१(-) महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमां), ४७०३९($) महावीरजिन हमचडी 4 कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. डा. ३, गा. ६८, पद्य, भूपू (नंदनकुं त्रिशला), " ४३६३५(+#), ४७८३३ महावीरजिन हालरडुं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ४५३९७ महावीरजिन होरी, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू. (छार डार संसार अनादि), ४३७२४-६ (+) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ महावीरजिन होरी, मु. विबुधविमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुद्ध रूची के साथ), ४७०४५ महावीरजिन होरी पद, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनराज सदा जयकारी), ४५४७७ महेंद्रसूरि सवैया, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (गुणगंभीर अनोपम राजत), ४७६७३-४ मांगलिक आराधना पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (घन कीया गणधर सीर परे), ४५९३५-१(+) मांगलिक दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ४४६२७-२(#) मांगलिक पद, पा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बीजो मंगल मन ध्याइजे), ४६१०७-१०(+-#) माजीरी सज्झाय, मु. विनयचंद्र ऋषि, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (आतो नाम धरावे माजी), ४५१८३(-2) माणिभद्रवीर आरती, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (जय जय जय जय जगनिधि), ४६५८१-१ माणिभद्रवीर आरती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगलोडनगरमांवास कीयो), ४७६७३-२ माणिभद्रवीर आरती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय निधी जय माणिक), ४७६७३-१ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ४४४४८-१(+-), ४५७९४ माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ४४४०७ माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ४५६१० माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ४४८९२(+), ४५८१२, ४५९४९-१, ४६०३६, ४३८७४(#) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ४५५६७, ४५७६७, ४७८५५, ४५७३३(#), ४७३६०-१(#), ४६८६६(६) माणिभद्रवीर स्तुति, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जे जे आरती माणिभद्र),४५१६० मातृकापाठ शुकनावली ५० बोल, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ चिलि चिलि मिल मिल), ४८०९०-१ माननी सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मान न करशो रे मानवी), ४७१७३(-) मानपरिहार सज्झाय, ग. लब्धिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (म्हेलो म्हेलो निमा), ४४२४०-४ मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ४५५९४ मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सोनावणेरे चिहि), ४६१८८-१(-) मानव भव दुर्लभ सज्झाय, मु. देवीचंद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (संसार माहे आय के मनख), ४७९२०-३ मानव भव दुर्लभ सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मनुषा जेवरू मला), ४६०२६(-) माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ४५४७२-६ माया सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (माया कारमी रे माया), ४५७९२ माया सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ४७१०८-२ माया सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ४८०३९-१(#) मालण सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पातै पातमै जीवै), ४५४२५-३ मिथ्यात्व के ५ भेद, मा.गु., गद्य, जै., (अभिग्रहिक १ अनभिगहिक), ४६६१७-२ मिथ्यात्वपरिहार सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरु पद पंकज नमी), ४४४७८(#) मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कंकर कुं शंकर करी), ४५३७५-३(#) मुक्तिरमणी पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जिहां अनंत सिध सदाई), ४८०२१-७ मुनि करणी सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (मुनी करणी करीने), ४६९७२ मुनिगुण गहुँली, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुनिसर समतारस संगी), ४७३०४-२(+) मुनिगुण स्तवन, रा., गा. २४, पद्य, श्वे., (थे वर कस परन सतस्या), ४४७४३(+) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ४३५७८(+#), ४८०७५(+), ४७८४६-२ मुनिसुव्रतजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर), ४७३६२-१५(+) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७३ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत जिनराय), ४४२०२-१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतजिन वांदता), ४७१४७-६($) मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ साचो सद्द), ४५१५५-१ मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (श्रीसीमंधर करि जुहार), ४४३९८-१(#) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ४४२७५-५, ४४९२७-१ मूरख सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (मुरखो गाडी देखी मलका), ४६१२७ मूर्ख ८गुण सवैया, मु. केसव, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (मुरख के आठ गुण साव), ४६६५५-२ मूर्ख के १४८ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (बालकसुं प्रीत करे ते), ४४८२६ मूर्खप्रतिबोध सज्झाय, मु. बुद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञान कदि नवी थाय), ४४७४९ मूल नक्षत्र पाया, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जेठे फागुण मृगसीरे), ४७२४४-२ मृगापुत्र सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुग्रीव नयर वर वनवाड), ४५८२८-२, ४४४८२(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पूर संग्रीव सुहामणो), ४३५१९-१(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ४४६४३, ४४६९१, ४५०५९-१, ४५६०२, ४३९२९-१(#) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ४+३४, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंदने), ४५०५९-२(5) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु), ४३६३८-३(+#) मृगावतीसती सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (साधवीयै ज्ञान लह्यो), ४३५४८(+#) मृत्यु सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नंदनकुं त्रिसला हुलर), ४६१८८-२(-) मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), ४४३९१-४ मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजीनी वाणी), ४५०५६-३(+) मेघकुमार कवित, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इंद्रलोक सूरसभा इंद), ४४२८२ मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ४७०७६, ४३९६९(#) मेघकुमार चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (गुणगान गरवातणा धन धन), ४७२२४ मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ४७१२३ मेघकुमार चौढालियो, ऋ. लालचंदजी, मा.गु., ढा. ४, वि. १८७१, पद्य, स्था., (श्रीवीरजिणंद समोसय), ४४४१८(+) मेघकुमार चौपाई, मु. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल सुखदाईक सदा), ४३४६२(#S) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावेरे मेघ), ४५४१८-२ मेघकुमार सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ७, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (आवो आवो रे मेघ तुमें), ४४२४०-३ मेघकुमार सज्झाय, मु. चारित्र, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद समोसर्या), ४३९२४-२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., ढा. ६, गा.५२, पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), ४४६८० मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ४४३१४, ४६७८१ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघकु), ४७७६०-१ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ४४१०८-४, ४४८१०-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. भीवराज ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (भरतखैतर अत सोभतो सोभ), ४६७१०(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चारित्र लइ चित्त), ४७००० मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उठि उलट एमस्यु), ४५८०९।। मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (त्यागि वैरागि मेहा), ४५५७१-२ मेघपंडित सज्झाय, मु. साधुरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रवचन जोता), ४३६८३(+) मेघमुनि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ४६७८० मेतारजमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर राजगृह आवीयोजी), ४७५६० For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ मेतारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. (श्रेणिक राजा तणी रे), ४६०१३ तारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ४४०३६-१, ४५११६, ४७५१७ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., ( धन धन मेतारज मुनि), ४३८२२-२, ४८००५- ३($) तार्यमुनि सज्झाय, ग. खिमाविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (स्वर्ग थकी आए मानव), ४४६८४-१० मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे. ?, (मन धरी माता भारती), ४४६३१-२ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (मोक्षनगर माहरु सासरु), ४६४६८, ४६५९२-३ , मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ४४४६२ (+), ४८०६५ (+) मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (ए जे त्रस पाणी जीवनइ), ४४४०२ ($) मोहपरिवार सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वाणी ए जिनवर तणी साच), ४३५६२-१ (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ४३४६९(+), ४४००९, ४४२२३, ४४२६०-२, ४५४४४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू (जगपति नायक नेमिजिणंद), ४३९६२, " ४३८७५(क) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ४४६६९-१, ४५१७७-१, ४६६८९-९, ४५७७७-३ (#$), ४६७१६- २ ($) मी एकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक उपा. यशोविजय, मा.गु., डा. १२ गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, भूपू (धुरि प्रणमुं जिन), ४३६९१००) , मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमीसर सुरपति आगळ), ४५१४३-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ४३५२१- ३(+#), ४३५९४-१(+#), ४३७८९-३(+४), ४६७०३-३(००), ४४५१५-३, ४६६४०-३, ४७३९०-३, ४७५२१-३(४) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती कृष्ण), ४४५७५-३ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ४५१७८-२(+), ४५३६८-१, ४५५५२, ४५६३६-८ यंत्रफल चौपाई, पंडित अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (जिन चउविसह पाय प्रणम), ४७६६५ यंत्र विचार, मा.गु., गा. २, पद्य, (दाय परहर दोय सतधर), ४४६९३-२ यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भाव यति तेने कहो), ४३५५३ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दधिसुत विनतडी), ४४८६३-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुंगमिंधर भेटवार), ४७९२८-२(#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १०. वि. १८४४, पद्य, वे (जगत गुरु जुगमंदर), ४७१२१-१ '. " " " युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. ९. वि. १८३६, पद्य, वे (महाविदेह मे प्रभु रो), ४६२४४-२ युधिष्ठिर १५ तिथि कार्य विवरण, पुहिं., गा. १४, पद्य, वै., (राजा जुगधिष्ठिर मंदि), ४४९७६-४(+) योगद्वार, मा.गु., गद्य, भूपू (मनना ४ वचनना ४) ४४२३१-४(+) योग पावडी, गरीबगिरि, मा.गु., गा. ६८, पद्य, वै., (क्रोध लोभ दूरई परिहर), ४३७१६-८(+१) यतिमृत्यु विधि, मा.गु, गद्य, वे. (कोटिकगणवइरी शाखा), ४३८७०-१ , यशोविजयजी काशीस्थित विद्याध्ययन कथा, हिं., गद्य, भूपू (मुनिराज श्रीयशोविजय), ४४५०४ , युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( इण जंबुदीवर जाणी), ४६२९१-१ युगमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सह मुख हुन सकुं), ४७०८७-८ ! युगमंधर जिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू. (काया रे पामी अति), ४६२०६-२(+), ४७११०-३(४), ४७०२८-३(-) योगीनाथ गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (योगीनि योषि मनही), ४४३३९-२ योगी रास, मा.गु., गा. ४२, पद्य, दि., (आदि पुरुष जो आदि ज), ४४८१६-१ रथनेमिराजिमति सज्झाय, मा.गु., मा. १५, पद्य, मूपू., (इसी क्या बीजे मे वरस), ४६४९८ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ४५५३२, ४७१४६ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८०९, पद्य, श्वे., (चीत चलीयो रहनेम कोप), ४५६४१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (देवरीया मुनीवर छेडो), ४६६८७ रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छेडोनाजी नाजी छेडो), ४५३९५-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (यादव कुलना रे तुझने), ४७९०४-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ४७०९६(2) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. प्रमाणसाकर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत धरी), ४६१८४-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ४३९८८-१, ४६१०१-२, ४६३२०, ४७५९८-४ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरुना प्रणमु), ४७४५२-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ४४९५७-१, ४७१३७, ४३५२४-६(#) रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वेगलो रे वरणागीया), ४५९५६, ४७६८१-१ राजविजयसूरि गुण गँहुली, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. २१, वि. १९१०, पद्य, मूपू., (सरसतीने चरणे लागु), ४८१२५ राजिमतिसती विनती स्तवन, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (परभु नीकरै भवनसु वाड), ४३९४७-५(+#) राजिमती द्वारा नेमिजिन को पत्र, मु. जिनविजय, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीयदुपय नम), ४७४४९-२ राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसुरे), ४७९२३, ४७०८१(-2) राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ४५३५५ राजिमतीसती फाग, मु. रत्नसुंदर, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (वादन रंग मसि हे जा), ४७३६२-१२(+) राजिमतीसती लैहयों, रा., गा. ३७, पद्य, श्वे., (कांइ भीजै कांइ भीजै), ४७८६९-२($) राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (दे गया दगा दिलदार), ४५५७१-४ राजिमतीसती सज्झाय, मु. मल्लजी महाराज, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (स्वामि सुंदर मेरे), ४४४६०-१(+), ४५३११(#) राजेंद्रसूरिगुरु गहुँली, मु. रविविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९३८, पद्य, मूपू., (रूडीने रडीयाली रे), ४६६०७-२(+) राणकपुर मंदिर प्रतिष्ठा विवरण, पुहिं., गद्य, मूपू., (राणकपुरे सेठ धरणा), ४७०९१-२ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममांसारज कहिइ), ४३४८०-२(+#), ४४५६८-२(#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ४६८७३(+#), ४४६७९-२, ४४९४४-१ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु.सुजस, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद प्रणमी), ४३६६७ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ४६३५४-३(#$) रात्रिभोजनत्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी ए), ४७६७३-३, ४६९१४(८) रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ४५२०७, ४३९३९(#), ४५३२६ (2) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, आ. कल्याणरत्नसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवी देवी रे सरस्वती), ४५९८८(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (छठो वरत रेणी तणो ए), ४५२४८-६(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (गुरुपद प्रणमी आणी), ४४२६०-१ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आधो भोजन रातरो अधर्म), ४५५२१ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ऋ. रतन, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (छट्ठो वरत रात्री), ४४४५५-२($) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पुण्यसंजोगे नरभव लाध), ४७३७१ राधाकृष्ण पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (सांवरो अजून्ही आयो), ४७२४३-११(#) राधाकृष्ण होरी, पुहि., गा. २, पद्य, वै.?, (--), ४७२४३-१०() रामचंदतपसी सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. २०, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (करीज्या कुमी नहि), ४५०१९(+) रामदेव श्लोक, मा.गु., गा. १९, पद्य, वै., (सरसती सांमणी तुझ पाव), ४४६६३-२ For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७६ www.kobatirth.org " रामभक्ति पद, कबीर, पुहिं., गा. ३, पद्य, वे., (भुले भुले वइदा), ४३६३३-४(+) राममुनि लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राममुनि जगमे जयकारी), ४५४४२-१ रामलक्ष्मण आयुमान, मा.गु., गद्य, वे (रामचंद्रजीनो आयु), ४७९०७-२) राम लावणी, ब्रह्म, पु,ि गा. १०, पद्य, वै.? (चौरासीमै अतिही दुख) ४७४३९-२ रावण चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (अतवरो छ मानवि क्रोध), ४३७६६(+#) रावण ढाल, रा., पद्य, श्वे. ?, (--), ४३५४५-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रावण पद, ऋ. जवाहर, पुहि., गा. ५, पद्य, थे., (रावण कुं समझावे रानी), ४६४८२-३(१) रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै भमीछण सुन हो), ४३८२८-१(+), ४४३६०-२ राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, मा.गु., को., जै., (मेष वृष मिथुन कर्क), ४४४५७-२ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (विचरता गामोगाम नेमि), ४५१०८, ४६४६०-२, ४७०८० टीया सज्झाय आत्मगुणविषे, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (तने रेंटीओ सद्गुरु), ४६६९५ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन संघासन रेवति), ४७१५४-१ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ४४७८०-१, ४५६१८-१ रोहिणीत सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (वासुपूज्य जिणंदना ए), ४४९७२-३ रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू. ( श्रीवासुपूज्य जिणंद), ४३६०३ (+), ४३९०६ (+) रोहिणीत सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू. (सरसति देवत सामणी ए), ४५३२२ (४७) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ४३५६४(+#) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ४३९२० (+), ४८०५८-२०१, ४४५०१-१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ४५७३१(+#) रोहिणीतप स्तुति, मु, पद्मसागर, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (जयानंदन दीपतो ए वासु), ४५१९० , रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ४५३६८-२, ४५९५१, ४६०३३, י ४४९१७(#), ४६३७४-३(#) लक्ष्मीदेवी छंद, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चोसठि छप्पन कोडि), ४४९९९-२ लालजी महाराज लावणी, मु. रूपचंद, रा. गा. १७, वि. १९५९, पद्य, वे (पूज श्रीलालजी धारी), ४५५५४-१ लालजी महाराज स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १७. वि. १९५९, पद्य, श्वे. (सुमत गुपतधार निरदोस), ४५५५४-२(३) , लीलाधर लीलावती बारमासा, मु. विद्यारुचि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (करजोडी कामणि जपै कहत), ४४२८३-१ लूण उतारण, मा.गु., गा. ३, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (लुण उतारो जीनवर अंगे), ४७५६८-१ लोभ सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु. गा. २०, पद्य, मृपू., (लोभ पापनु मुल छइ ऐह), ४४११२-२ आदि जिनवर ), ४३८८० (#) (बाल्हेसर बज्रधर देवा), ४८००४-४ वकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर वज्रधरजिन स्तवन, मु. जीवण, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. वज्रधरजिन स्तुति, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे., वज्रस्वामी गहुली, पं. बीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुक), ४३६२९-२, ४८००७ (विहरमान भगवान सुणो), ४३५०८-२(१) (वज्रधरजी बदु भावसु), ४५६३४ (२) वज्रस्वामी गहुली -वार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (क्यारस्वामी ६ मासन), ४८००७ वज्रस्वामी रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू (पदमिणी पोईणी पातली), ४७९२२, ४५१५७(१) वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (चतुर वणजारा हो सारद), ४४७८८, ४५२९६ वणजारा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू (विणजारा रे भाई देखी), ४८०५९-१ वणजारा सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( वणजारा रे ऊभउ रही), ४४२३८-१(# ) "3 वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू.. (काया रे वाडी कारमी), ४५३९५-३ For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७७ वरसिंघऋषि बारहमासा, मा.गु., गा. ५०, वि. १६१२, पद्य, श्वे., (सरसतीय भगवती गुणहती), ४४४५०(+) वर्णमाला*, मा.गु., गद्य, (ॐ नमः सिद्धं अ आ ई), ४६७०१-२(5) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋतृ), ४५०७२-१, ४८०५४-३, ४६७२१-१ वसंतऋतु वर्णन, पुहिं., गा. २, पद्य, (फुली वन वेली फुल), ४७०२३-२(-) । वस्तुपालतेजपाल चरित्र, पुहिं., गद्य, मूपू., (गुजरात देश धोळका), ४७०९१-३($) वस्तुपालतेजपाल धर्मकरणी, मा.गु., गद्य, मूपू., (सवा लाख जिनबिंब नवा), ४५४५२(#) वार्षिक सूर्यरश्मि विचार, रा., गद्य, (चेत्र महीने १२०० सो), ४७८३५-३ वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (झमकारो रे मादल वाजै), ४७५९७-१ वासुपूज्यजिन लावणी, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सब देव नमे ऐसो नही), ४६०७८-१ वासुपूज्यजिन स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हां रे वासुपूज्य), ४५५८४-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनजी हो गुण बोहला), ४४९७२-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (प्रथम नमुं जिन पाया), ४५४६८-७ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ४५१९३-२(+), ४६६९३-४, ४३७५८-२(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूजना तो कीजे रे), ४३५०८-४(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (वासव पूजित वासुपूज्य), ४७५१५-२,४४२९८-५ (-$) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपा नगरी वसुपुज्य), ४६७०५(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे कांइ), ४७१८८-१, ४८००६-१ वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीवासुपूज्य जिन), ४६८९५-२($) वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. गुणविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपुज्य जिनवर सयल), ४५१४३-२ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ४४९७७(६) विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ४७६०४-३, ४४०२७-३($) विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), ४४५०२-४(+) विजयतिलकसूरि गुरु गीत, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल श्रीसंघनइ), ४८००३-३ विजयदेव सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जी हो राय देस रलियाम), ४५२४७-४ विजयदेवसूरि सज्झाय, उपा. भावविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सकल साधुना जे राया), ४६७०३-२(+#) विजयदेवसूरि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ४६७०३-१(+#$) विजयधरणेंद्रसूरि गुरुगुण गीत, मु. हरीसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीवीजयधरणेंद्र), ४६८३८-१ विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., वि. १८०९, गद्य, मूपू., (श्रीहितविजयगणी), ४५७३२ विजयधर्मसूरि भास, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालो माहरो दीपै छे), ४६६३७-२ विजयरत्नसूरि गहुँली, मु. कर्परविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज हुआ रेवधामणा आज), ४६०८१-१ विजयलक्ष्मीसूरि बारमासो, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (हु तो सरसतिने पाये), ४७३२४ विजयलब्धिवाचकगुरु स्तुति, मु. विजयलब्धिशिष्य, मा.गु., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलवाचकचक्रचूडामणी), ४५९२५ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (विजयकुमर व्रतधारी), ४७२५२-२(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ४४४१३(+), ४५७८० विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहंत), ४३७००(+#), ४५२९९ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ४७३९६-१(#$), ४८०३४-१(s), ४५६६७-६(-) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीमावीर जणंसर सांम), ४६८५३-२(-) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ विजयसेनसूरिसज्झाय, श्राव. जीवराज शिवराज, म., गा. ५, पद्य, मूपू., (आधइ आधइ आठ धिन माझे), ४७२५६(+) विधाता अष्टक, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (महामूरख नै मीदरै), ४६१४६-२ विनीत शिष्य सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, स्था., (सुण चेलाजी हुकम करो), ४५५४९-७(+-) विमलजिन गीत, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमल ताहरु मुख जोता), ४७२०६-१, ४७२०८-१ विमलजिन पद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (नेक वातां के ताई), ४७०८२-६(-) । विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमल विमल गुण मन), ४७६८५-१ विमलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विमल जिणेसर वालहा घर), ४६९५४ विमलजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीबिमल जिनेसर), ४३७६०-३(#) विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (श्रीसद्गुरु वाणी), ४५१७१(+) विशालसोमसूरि भास, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गच्छनायक गुण नधि), ४४४८४-१ विशालसोमसूरिस्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (मानइ महाछत्र पति), ४४४८४-२ विषय सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (राजद हो राजद मन), ४४६६४-२ विष्णु पद, अखो, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै., वै.?, (रामजी जेहवो रंग पतंग), ४५७८१-३(#) विष्णु पद, सूरदास, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (सामरे ने कहीयो मोरी), ४७५४६-२ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेला जिनवर विहरमान), ४५०७५-३() विहरमान २० जिन नमस्कार, पंन्या. रविविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमो भावि भविअलोक), ४४४७७(#) विहरमान २० जिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्विपे महाविदेह), ४७६०४-१ विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ४४४९४-२ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२४, पद्य, स्था., (सीमंधर युगमधरस्वामी), ४६८०२-१(६) विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरणमाण), ४५२९७ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (सारदा प्रणमी पाय सेव), ४५६२८-१ विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), ४५२८७ विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुजहीयडौ हेजालूवौ), ४४६४७-१(६) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर जिनवर), ४७९६५-१(+), ४४१००($) वीतराग नमस्कार, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (छंडिअसवि हथिआर सार), ४४१२६-१ वीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अहनिसी वंदन साचवी), ४४३२५-२ वीसस्थानक चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अरीतसीथी पवयणासुरीथी), ४६१३५-४(८) वृद्धगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सारद माता प्रणमु), ४३७३१-२(+) वृद्ध श्रावक के १२ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रावक नवतत्त छकाय), ४७५२५-५(-) वैराग्य के १० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ देख्या वैराग्य उपज), ४७५३५-५ वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहि., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ४५२३४(२) वैराग्यपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २६, वि. १८२१, पद्य, स्था., (सासणनायक श्रीवर्धमान), ४५२२९ वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (समज समजरे भोला प्रा), ४८१२६-१ वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसत सामण हुं थने), ४७१३६-४ वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि प्राणी रे), ४५२४७-२ वैराग्य सज्झाय, महम्मद, मा.गु., गा.७, पद्य, जै.?, (गाफल बंदा नीदडली),४६४२७ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरी खूब बनी छैजी), ४५५५३ वैराग्य सज्झाय, मु. शियलविजय शिष्य, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छे रे), ४४५८४ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पाहुणडारे जीवडा जोइ), ४८०३३ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), ४५६३६-२(-) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ४४२९०, ४४४६६(#) शत्रुजयतीर्थ गजल, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ७३, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (चरण नमु चक्केसरी), ४४२५८-१ शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. दलिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चालो सिद्धाचल), ४६३०२-१(-) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध), ४४९४७ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल शिखरे चढी), ४३५३४-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ४४८३९-८, ४५४७४-२(5) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आजनो दिन लेखे थयो), ४६१३५-५(-) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ४४९१९-२(+), ४४३६६-२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीतरणतारण कुगति), ४५३४६ शत्रुजयतीर्थ पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंथीरा वेगा बोलो जी), ४६४५२-४ शत्रुजयतीर्थ पद, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरिजी को दरिशन), ४७३६२-१०(+) शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ४४७०२, ४५९१० शत्रुजयतीर्थ भरतनृपयात्रावर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नयरी अजोध्याथी संचर), ४६६८५(+), ४६३२२-१ शत्रुजयतीर्थ महिमा स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सांभळी जिनवर मुखथी), ४६३२२-२ शत्रुजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नीलुडी रायणतरु तले), ४५७४८-३(#) शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ४४४९३($), ४६०६४(६) शत्रुजयतीर्थस्तवन, उपा. उदयरतन, मा.गु., गा. ५, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सेज सिवानो लायो), ४५८१९-२, ४६४५२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीये रे में आज), ४४४२१-४, ४७७०६-२, ४३५४६-२(#) श@जयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (डुंगर ठंडोरे डुंगर), ४५९८१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ४५९३८(+) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वनीता ते प्रीउने वीन), ४६६२३-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ४६५४४-२, ४४४८८(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कडुओ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसती सामण वीन), ४७५०९ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ४६६२३-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनकरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीद्धाचल गायवा), ४६५१२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ४६४५२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा.५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ४५४७३-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.१८, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन पूर्व नवाणु), ४४५५६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं.खुशालविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (सारदमाता नमि करी),४४७५८-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. खुशालविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (सेजशिखर सुहामणो), ४४७५८-१(+) शत्रुजयतीर्थस्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीमुख सौधर्म सुरपत), ४३५८२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ४५४६२-२(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आज आपे चालो सहीया), ४७०८७-६, ४३७८१-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), ४६४५२-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ४४८७५-१(+#), ४५१७८-१(+), ४४९४३ शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो चालोने राजा), ४५१४६-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनसुखसूरि, मागु., गा. ११, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (अधिक आणंदै हो वंद्यो), ४७५६२-१ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंथीडारे सौरठ देश), ४७४५६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपोआपो ने लाल मोंघा), ४५५०२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चलो तो शत्रुजय), ४६६२३-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बापडला रे पातिकडा), ४४०८७-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ४६५७७(5) शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शेजगिरिनी तलहट), ४७४९६-२(+) शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेर्बुजानो वासी), ४६०१७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ४७५९७-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हजीलू मन माहरो रे), ४४४२१-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ४६१०७-५(+-#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (प्रणमो प्रेमे पुंडरी), ४३८३५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ४४२७० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ४४९०७-२, ४६२०३, ४७४२१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ४४३९७ शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार माह), ४५११३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सेत्रुज सम बड को नहि), ४४५९०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (विमलाचल नित वंदीये), ४३९२५-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चालो ने भविक), ४५५५५ शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. रामविजय, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (मोहनगारा राखु रूडा), ४५०१२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो चालो विमलगिरि), ४५३४७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जी रे मारे श्रीसिद्ध), ४५७३४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २५, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणंद प्रणमी), ४३७२२(+#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमृत वचने रे प्यारी), ४३८३८(+), ४३५६३-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. वल्लभसूरि, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (तीर्थ श्री सिद्धांचल), ४६४६६ शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध सुहाव), ४६००४, ४७६४७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. शांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (आदीसर अरिहंतजी नाभि), ४४६३८-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. शिवचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (बलिहारी हुं विमलाचल), ४७०८७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ४५४५०, ४५२७३(#), ४७४५४-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारं डुंगरिये मन), ४७७१०-१ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. सुजस, मा.गु., गा. ८, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (प्रगट चढे मुंरधर), ४७०२८-१(-) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. हेमतविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल मंडण रिषभ), ४५३६० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (गिरिराज तणा गुण गावो), ४४७६० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलाचल भेटीये हो), ४७०५२-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ४४६४४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पहिलो बोले पंथीडा), ४८०९९-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सवि मली करी आवो), ४४६२४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ४६६४१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (सेतुंग गरवर विभूषण), ४५६३६-९(-) शत्रुजयतीर्थस्तुति, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (विमलाचल तीरथनो राया), ४३७८९-६(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमधरने पुछे इंदा), ४७७११-१ For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ " "" शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु. गा. १, पद्य, मृपू (पुंडरिकमंडण पाय), ४५४७३-१ (क) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुडिंगा. ४, पद्य, मूपू (आगे पूरव वार नीवाणु), ४४८२७-८(+), ४६४५८-१(१), ४५६३६-३(-) शत्रुंजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखी विमलाचल जइय), ४३७४५-२(+), ४५८७२, ४७५५१-२ शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ४३६९५-२(+#), ४४९०१-३(१), ४६५५३ ४७३४५-१, ४८०६६-१(६) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ४३४८३ (+#), ४४८०५-३ (+), ४४०७१, ४७१३५, ४७५७३, ४७८८४, ४४९८८(#), ४६१०९ (६), ४७६६२ (६) 3 www.kobatirth.org शांतिजिन १४ स्वप्न स्तवन -द्रव्यभावगर्भित, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिकरणजिन संति), ४६०२५ शांतिजिन आरती, मु. कविवण, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जे आरती सांत तुम्). ४४९५६-२ शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ४७५६८-२ शांतिजिन आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा ), ४६२१०, ४६४६०-१ शांतिजिन गीत, मु. भाव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति प्रभु सोहइ), ४४१५६-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू. (जयति शांति सदा सुख), ४५२४५-६ " शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू (सारद मात्र नमुं सिरनाम), ४४०६३ (०), ४६०१४(+३), ४३९६४-२, ४४००२, ४४५९१, ४४६२०-१, ४४६७४, ४४७३८-२, ४५६७९-१, ४४६२१) शांतिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (शांति जिणेसर सोलमा), ४३६८२-४(१) शांतिजिन पद, मु. ऋषभचंद, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (दरवाजा तेरा खोल बे), ४५४७२-२ शांतजिन पद, मु. नेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सोलमां श्रीशांतिनाथ), ४५२१२-५ शांतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (चीत चाहे सेवा चरण की), ४६२९०-५(१) " (पोसहमा पारेवडो राख), ४७२३८-२ शांतिजिन स्तवन, मु, उदयरत्न, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (सुणो शांतिजिणंद), ४३७७२(+), ४७६८३-२ शांतिजिन स्तवन, गं. कल्याणसागर मा.गु.. गा. ११, पद्य, म्पू, (शांति करण शांति शांत), ४४८६७-२ (+) , י' शांतिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु प्रणमी हो), ४६०५२-२ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ४३७८२-५ (+#), ४५७९७(+), ४३९६४-१, ४७३९९-१(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारदमात नमुं सिरनामी), ४६५९३ (#) शांतिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १३. वि. १८५१, पद्य, भूपू., (मन मोहे सुर और माणसा), ४४४७३-३) शांतिजिन स्तवन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति आपो रे शांति), ४६०२१ शांतिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (सांतिनाथ प्रभु सोलमा), ४६५४६-२(-) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ४७१४५-३ शांतिजिन स्तवन, आ.जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हा रे हुतो गईती), ४४५००-४(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पूरो माहरी आस रे), ४५२३७-५ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मारो साहीब झील रह्यो), ४६७०२-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मनडुं मोरे), ४७१२५-३ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर प्रणमुं), ४४६०६ शांतिजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (सरसती माति पसाउले), ४७०३५ " יי शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (नारी ते नर ने वीनवे), ४६३३८-१ " शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू (सोलमा शांति जिनेश्वर), ४५६९२ शांतिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मृपू, (सोलमा श्रीशांतिजिणंद), ४५१७५-२ शांतिजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर साहिबा), ४७३२५ शांतिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु. गा. ७, पद्य, क्षे., (साहिब मोरा शांतिजी), ४४१११-२ י' For Private and Personal Use Only ५८१ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांतिजिन एक मुज विनत), ४३६०२-१, ४५०३८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ४७१८५-३(+), ४५०९१-१, ४६७०८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज), ४३९८०, ४५३२४, ४७४२४-२, ४३५६३-१(#), ४३७०३(१), ४५७८१-२(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन दिन वेला धन घडी), ४७१४७-३(६) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ४५३७३-२ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ४४५०५-२(+), ४५७५७(-), ४६६६५-३(-) शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर शांतिजिणंदनी), ४४०८७-२ शांतिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (संत करता श्रीसंत जिन), ४४८८०-१ शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (पल पल गुण गाना गाना), ४५५४० शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सेवा शांति जिणंदनी), ४४८००, ४६०३९-३(#), ४७४५५(#) शांतिजिन स्तवन, मु. सबलदास, मा.गु., गा.१०, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (शांति जिणेसर समरिये), ४५३५७-१(-) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो ), ४३६३७-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण सुरतरू), ४४१६३ शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (सोलमा जीनजी शांतिनाथ), ४४५०५-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, वि. १९९९, पद्य, स्था., (प्रभु शांतिनाथ को), ४६४३७-२(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन धन रे दीवाली मारे), ४५१६६-१ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सोलमइ), ४४४५९-२(#$) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन शांति सिव), ४७६३५-१, ४७३२३-२(#$) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४५६९७-३($) शांतिजिन स्तवन-आंतरीमंडन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुं अरदास जिनजी जो), ४६०५२-१ शांतिजिन स्तवन-जालोर मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जालोर मंडण सांति), ४७८८९-३(#) शांतिजिन स्तवन-दियोदरपुरमंडन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति केरा हो चरणकमल), ४६७३८-१ शांतिजिन स्तवन-मांदियानगर मंडन, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर साहिबा), ४६१४१ शांतिजिन स्तवन-मीमचमंडण, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (--), ४६९७९-१(s) शांतिजिन स्तवन-मुंबईबंदर, ग. मुक्तिसौभाग्य, मा.गु., गा. ८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर विनती), ४४३९१-२ शांतिजिन स्तवन-रत्नपुरी मंडन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रत्नपुरी सिणगार सोलम), ४६३६०-१(+#) शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण मनोहरु), ४४०५२(+) शांतिजिन स्तवन-शापुरमंडण, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुपाय), ४४९९५-१(+#) शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ४७६४८, ४७९४२-२ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइ), ४५९५८-१, ४६०९१-६, ४७६९५, ४६५१०-१(#) शांतिजिन स्तुति, मु. जसकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिणजी किरपा कीजिय), ४५५९२-१ शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), ४४२६२-१ शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), ४७५७८-१, ४३५७३-२(#) शांतिजिन स्तुति, मु.सौभाग्यसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांति), ४४००३-२ शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), ४६४१८, ४७३९६-५(#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. उत्तमरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (स्मर शांतिजिन जिन), ४६४६९ शारदा स्तुति, मा.गु., गा. ६, पद्य, जै., वै., (ॐ सदा सर्वदा सारदा), ४७८८९-५(#) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरिय), ४६०७५ ($) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शालिभद्रमुनि विनती, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (राजग्रहीनो नगरीजी), ४७३२२ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू, (महिमंडलमा विचरतारे), ४३९३३-४ शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शालिभद्र आज तमने), ४६२५३-५ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ४४७०९(+), ४४८३२, ४७७९९, ४७३९६-३(#$) शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ४४५१३, ४४७२१ शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ६०, पद्य, मूपू., (सरसति माता मन धरि), ४७५८७-१(#$) शिवजी रामजी पत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ४६८९९(६) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ४५६५८-१(#) शिवपुरी जिनतीर्थमाला स्तवन, मु. विनोदविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शिवपुरी नयरी सोहामणी), ४६१४४ शिवभक्ति पद, क. वृंद, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (अब ही इहां ही धर), ४३९३०-२(#) शिव स्तुति, मा.गु., पद्य, वै., (त्रांबासुत असवार), ४७८५३-२(-$) शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेला रहे गुरुने पास), ४४०९७ शीतलजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनजी दशमा शितलनाथ), ४६०८५ शीतलजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शीतल जिनपति ललीत), ४४२०२-३, ४७१५६-५ शीतलजिन स्तवन, ग. गजकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीतल जिनवर वीनती जी), ४४३१६-२(+) शीतलजिन स्तवन, मु. गजकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलपुर मंडण सोह), ४७३०१-३ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शीतल जिनवर साहिब), ४६७३८-२ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ४५२५५-१, ४७१९९ शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा.६, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (शीतल जिनवर देव सुणो), ४४०५५-१ शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), ४७६००-२ शीतलजिन स्तवन, आ. रायचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवकने द्यै परमाणंद), ४६८१९-१(-) शीतलजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लक्षचोराशी जोंनि फिर), ४४९०१-१(+) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ४६२१८, ४७०७२ शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखी नवी नवेरी भगति), ४४०५१-१(#) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारोजी पाउध), ४६०४०-३(-2) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा.१५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ४६०६०,४७४५२-३ शीतलजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसीतल जिनराया हो), ४५९३६-१(#) शीतलजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. सिद्धकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सेज सुरंगा), ४४०२२-२ शीयलव्रत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (गोतमसामी समरूं तोय), ४६५३८(-) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (सुणो समजो सकल नरनारी), ४४२९७ शीयलव्रत सज्झाय, मु. गुणविनय वाचक, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सीलइ सवि सुख पामीयइ), ४६४११ शीयलव्रत सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीव जोनि मानव भव लाध), ४७०७० शीयलव्रत सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वचन सुण्या ब्राह्मण), ४४७७५-२ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदीइ), ४५६३२ ।। शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सीयल रतन किम हारीए), ४७०३४-३(-2) शीयलव्रत सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (सील रतन मोटो रतन रे), ४६४२१(+#) शील चुंदरी सज्झाय, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (प्रीत न कीजे हो नारी), ४६३८८(+) शीलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सील रतन यतने करि), ४४८६७-१(+), ४४०४९-२ शीलमती छ ढालिया, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (शील धरमरी वारता जस), ४६१५०(+#) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ शील महिमा, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सील रतन मोटो रतन सव), ४३८२८-२(+) शील रास, रा., गा. ३२, वि. १८०६, पद्य, श्वे., (सारद माता समरूं तोय),४५४२५-१ शीलव्रत ३२ उपमा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रह नक्षत्र तारा), ४४११२-१ शीलव्रत सज्झाय, मु. शियलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय निवारीये), ४७९४७-२(-१) शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ४७७५६-२, ४४३९८-२(#) शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आतमा राखेरे शील), ४४२५१-१(+) शीलव्रत सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (वगतर वण्यो हो सामीजी), ४५६३८(#) शीलव्रत सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (समज पीउ चपल मति रमे), ४३८२२-८ शीलोपदेश सज्झाय, रतन, मा.गु., गा. ६, वि. १९६६, पद्य, श्वे., (मत ताको नार वेराणी), ४५०६५-१ शुकन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (फागुणमासे पक्ष अंधार), ४५९०८-३(#) शुकनावली*, मा.गु., गद्य, श्वे., (कागना बार शब्द जाणवा), ४४६७७-२($) शुभवर्द्धन निर्वाण गीत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिणि पाय), ४४१८५ श्यामसुंदर स्तुति, सुरदासजी, पुहि., गा. ६, पद्य, वै., (सांवला कुंअरराजे आली), ४६४९४-२ श्यामसुंदर होली पद, बाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (रासे फागुन मस्त महिन), ४६३०२-५(-) श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १), ४३८७३(१) श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ४४४४५, ४६८९४(5) श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे), ४६२७६-२(+) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ४७२५५ श्रावक २१ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरुचरण नामी), ४५९२०-२(#) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहलो मनोर्थ समणोपासक), ४३९४२-१(#) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ४३५०२-१(+), ४७७३०, ४३६६५-१(१), ४६०७३($) श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, मूपू., (अणगल जल वावर्यै लाख), ४३६१७(+), ४७३४७(+) श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रावक नाम धरायनें), ४६७२२ श्रावक औपदेशिक सज्झाय, पं. शुभवीरविजयजी म.सा., मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (आज रहो मन मोहना तुम), ४४१४२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ४५४२०, ४५५१४, ४६२५३-१, ४६५१५-१, ४६९९३, ४७९९८, ४८०४३, ४४९४२(#), ४६६५७-३(#), ४६१६८-१(६), ४७७२६-३($) श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावकनी करणी सांभलो), ४७६१६-२(+), ४४९७१ श्रावक के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहले बोले तपस्या करी), ४६१९५-२ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ४८१२१-१, ४३७७३-१(#) श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीज्ञाननइ विषैइ), ४४२३३-१, ४७७२८-१) श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ४३९५४-४(+) श्रीकृष्णभक्ति पद, चंदसखी, पुहि., गा. ६, पद्य, वै., (जगमई जीवन थोडौ कुण), ४६४२८-५(#) श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति माता मया करो), ४३६१६(+#) श्रीपाल विनती स्तुति, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (ॐ नम सिधे मनधरि संत), ४४८०९-२($) श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (सील धर्म सुख संपजै), ४५७९०-१(-) श्रेणिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक दिवस श्रेणिक), ४५४७१-२ श्रेयांसजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (महेर करो महाराज हम प), ४३७५६-६(#) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिन), ४४२०२-४ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रेयांसजिन सुणो), ४८००६-३ संजतिराजा सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (बाणी सतगुर की सुणसणि), ४६७४७ For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८५ संजतीराजा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रणमुंसरसति सामणी), ४३७५७-१(+#) संजयद्वार १९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (संजति ९ संजता संजति), ४३६७७-२(+#), ४४२३१-२(+) संथारा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम खमासमण देवरावी), ४४२४८ संदेशबत्रीशी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (वीरमल एवीर पाए जाए), ४७८९०-२(2) संध्या मांगलिक गीत, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (प्रणमीय शासनदेवता), ४४१४३ संभवजिन गीत, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब संभवराया में), ४६७८६-१(#) संभवजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (दीन दयाकर देव संभवना), ४४२५०-४(+) संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिबा रे संभव जिनरी), ४६१०७-१(-2), ४३८०३-२(#) संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर साहीब), ४६१८९-२ संभवजिन स्तवन, वा. जयविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तीजो संभवसामजी वांदो), ४६६८४ संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (विणजारा रे नायक संभव), ४५५२८-२ संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सुखकार हो), ४५१५३ संभवजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसंभव जिनराया हुं), ४७८४५-१ संभवजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर स्वामि), ४४७१३-२(+) संभवजिन स्तवन, मु. दयानंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेना का सुत तुं), ४४८७३ संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (साहिब सांभलो रे संभव), ४३९७७ संभवजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (संभव जिनवर स्वामि), ४७०२३-४(-) संभवजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी संभव स्वामी), ४४७३३-१(-#) संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (साहिब सांभलो विनति), ४५०६०-३ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ४७१८८-२,४६५७५(#) संभवजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रणमो भवियां जिनवर), ४४४२१-१ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा.७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ४५०५३-३(+$), ४७४४२ संभवजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (चेतना आतमने कहे रे), ४६४२६ संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय संजमे १), ४५९९७ संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, भूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना), ४३५३९-२ संयम सज्झाय, उपा. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संजम सीलरा शकट जोत्र), ४७५९८-३ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ४६२०६-१(+) संवेगीसाधु मर्यादापट्टक, आ. विजयसिंहसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (भट्टारक श्रीजगचंद्र), ४३६६२ संसाररुपी रेलगाडी सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (संसार रुपी सडक बनावी), ४५८६६ संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जेम समूद्रनी बाहेरन), ४७४४३ सकलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवा चरणोनी), ४६०६५ सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थ वंदु कर), ४७१७४ सगपण सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (केहनां सगपण केहनी), ४३९४९-१(+), ४६२०१-२(#) सगुणा निगुणा सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (सोरठ आंबो मोरीयो सुड), ४३७५७-७(+#) सच्चा मुसलमान लक्षण, मा.गु., गा. १, पद्य, (जो नित ऊंजु करै नित), ४५६२१-२ सज्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (एक हरे अंधार तास), ४४८४८-१() सत्संगति पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (संगत से सुधरे नर), ४७८५४-३ सदारंग आचार्य गीत, मु. सिव, मा.गु., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (गोतम गणहर पाय नमी), ४६७६० सद्गुरु गहुली, ग. अमृतविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सफल दिवस सखी आजनो), ४४३९३ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु), ४७४१६ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ४७११२-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूपू., (जोए विमासी जीव तुं), ४३५२५(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), ४४४९५-१(+), ४४६४८(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाए लागु), ४८०५६ सनत्कुमार सज्झाय, मु. सिवकुसल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सरस्वती चरणे वचन हुँ), ४५८१८ सप्तभंगी पंचविंशतिका, मु. भीमराज, मा.गु., गा. २६, वि. १८२९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनआगम प्रणमि), ४८०३५-१(+) (२) सप्तभंगी पंचविंशतिका-अर्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्यातअस्ति? इकु भेद), ४८०३५-१(+) समणोवासग पडिककमण सुत्त याने वंदित्तुसूत्र, श्राव. हीरालाल रसिकदास कापडिया, गु., वि. २०वी, गद्य, मूपू., (प्रतिक्रमण सूत्रोना), प्रतहीन. (२) समणोवासग पडिक्कमण सुत्त याने वंदित्तुसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (तीन नवकार तीन करेमि), ४७८५१-३ समता गीत, मा.गु., गा. ५४, पद्य, श्वे., (जे हुवा उत्तम प्राणी), ४४०११ समता स्वाध्याय, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धन्य समता सुची वधु), ४३८६६-३(#) समवसरण १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ४५९९३ समवसरण गणj,मा.गु., गद्य, श्वे., (भावजिनजी नाथाय लोगस), ४६३७४-१(#) समवसरण गहुली, पं. माणिक्यविमल गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सांभल सजनिरे माहरी), ४३८३६(-) समवसरण गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहिनी देव वाजित्र), ४७३६३-३(१) समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (देवतणा आसण चलइए सुर), ४४८७२ समवसरणविचार स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (एणि अवसरि तिहां आवीय), ४७७७७-१ समवसरण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज गइती हुं समवसरणमा), ४७४५१-१२(#) समवसरण स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८८९, पद्य, श्वे., (समोसर्ण में सायब बेठ), ४६४५१(-) समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज गईती हुं समवसरणमा), ४७१९५-२ समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), ४३५७३-१(#) समवसरण स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरसति मात पसायथी), ४५१७४($) समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), ४८११३-५ समस्या गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सखी रे में तो कौतक), ४३४९२-१ समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), ४३६८१(#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ४७३६२-६(+), ४६९९५-१ सम्मेतशिखरतीर्थ फाग, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो जइए समीतशिखरगिर), ४७३६२-९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनराज, रा., गा. ६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (समेतशिखर गिरिराजसु), ४४९५९ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ४५५४३ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (बीस कोससुं गिरवर दीष), ४७०५४ सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइ न आदरइन पालइ), ४४५७६-३ सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (द्रव्य समकित भाव), ४४२४३-२ (२) सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यसमकित कहता), ४४२४३-२ सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या), ४३६१२(+#) सम्यक्त्व देने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आज पछि तुम्हारइ खोटा), ४६७२७ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ४५९७०-४ सम्यक्त्व बत्तीसी, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), ४४००४ सम्यक्त्वबोल विचार, रा., गद्य, श्वे., (समकित को भाजन जीव), ४६५९९-२($) सम्यक्त्व महिमा पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सर सर कमल न उपजै), ४३८२२-५ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सम्यक्त्व वर्णन रास, ग. केशव, मा.गु., ढा. १४, वि. १७१३, पद्य, श्वे., (स्वस्तिश्री सुखकर), ४३७५७-४(+#) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. चरणकुमार, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (समकित सी विधि पामे), ४४९६१ सम्यक्त्व सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (समकितना पांच भेद ए), ४४७२०-२ सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (द्रढ समक्त नर थोडला), ४६५६५-१ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ४४६५३ (२) सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चाखो भव्यजीवो समकित), ४४६५३ सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (विधिवाद १ जे वितरागइ), ४५०४२-३ सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ४५६१७ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ४३७८२-७(+#), ४५३०३(+), ४४१५१-१, ४५४८१-१, ४७४२९-१, ४७४४७-३($) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ४७४८९-१(+#), ४५६२९-१, ४७४४४, ४७५०२(#S), ४७७०९-२(8) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ४४२२०-१(+), ४४४६९(+), ४६३५३(+$), ४७७२४, ४५४९२(2) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरण), ४४२२०-२(+), ४७४९८ सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा.५, पद्य, वै., (वीणापुस्तकधारणी), ४३९८४-२। सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), ४५९४० सरस्वतीदेवी स्तुति, मु. हीरालाल, पुहि., गा.७, पद्य, स्था., (अंक संक इंदु थकी जीन), ४५५४९-३(+-) सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ४६११५-१ सरस्वतीमाता श्लोक, मु. ज्ञानउदय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसत माता तुझगुण गाउ), ४४५१७-१ सर्वजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमुं), ४३९५१-१, ४३८२५-१(#) सर्वज्ञजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजि सू लागे), ४४४२१-२ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ४७७६४(+), ४७१७७ सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (इण सवारथ सिधरे चंद्र), ४५३६३-१) सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ४७३६१-२(#) सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहजानंदी रे आतीमा), ४७१९४-१ सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सहसकूट जिन प्रतिमा), ४४१८४-१ सांगी गीत-समस्यागर्भित, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (वरषा वरि खेलंतो तरति), ४३६५३-२(#) साढापचीस देशनाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहेला आरज देस), ४६९५९ साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ४६४२०(#) साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (आरती श्रीजिनराज), ४७४५१-१४(#) साधारणजिन गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जी रे ललित वचननी), ४६६०८ साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति देवी मन रंग), ४४३०४-२ साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा),४५४७२-३ साधारणजिन गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम धरम तेरा नाम), ४४४६३-३ साधारणजिन गीत, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधु सुपात्र बडे), ४५२८०-२ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय हे देवाधिदेव), ४४४६८-२ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हे स्वामी मुज तार २), ४४४६८-३ साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सीमधर प्रमुख सवि), ४४३५० साधारणजिन नमस्कार, मु. राम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चिदानंद रुपि पर), ४३५३१-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो निरंजन यार हो), ४६१०७-८(+-#), ४५९९९-२ साधारणजिन पद, मु.खुशालराय, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरा जीवडा लग्या), ४६६०४-४ साधारणजिन पद, मु. गुमान, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (फरसे जिनराज आज राजऋद), ४७२४३-७(#) साधारणजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (तो सुंजोडी प्रीत), ४५४७२-५ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्यारा ते रूडी रुडा), ४६३०२-८(-) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नयनं जिन चरणां), ४६१०७-३(+-), ४६५४८-२ साधारणजिन पद, मु. देवचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनवर नीके नयन तुहा), ४३५६२-३(+#) साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (घडी घडी पल पल छिन), ४७९५४-५ साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एही सभाव पड्या हो), ४८०२१-८ साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (अरे मन मत विसरे), ४७९५४-२ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीउ लागी रह्यो पर), ४५३७३-१ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम प्रभु सब जन शब्द), ४३८३४-३(#) साधारणजिन पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिणे भव संचित पाप), ४७५३२-३ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ४५०२०-१ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सरण ग्रही प्रभु तोरी), ४६४८२-८(2) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (रूप वण्यो अति नीको), ४४७९८-३, ४५७०१-१ साधारणजिन पद, मु. सेवक, बं., पद.७, पद्य, मूपू., (तोमी देखो जिनराज), ४५७४६-१, ४७५२६-१ (२) सामान्यजिन पद-(पु.हि.)बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (तुम देखो जिनराजकु), ४५७४६-१ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगियो), ४५३०९ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीनवर चरणां अटकै), ४३७५६-५(#), ४६६९८-३(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसण देख तुमारा), ४३८३४-४(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (दिल दाम हरम जानी दोस), ४३७५६-३(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (निरखत नैना नाही अघाय), ४७९६५-३(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (परस वोई कर रे मनुवा), ४७९५४-४ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरी मूरत), ४७०८२-५(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (में तो किये पाप), ४७०८२-४(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरे प्रभुजी की भगत), ४३७२४-३(+#) साधारणजिन पद, रा., गा. १, पद्य, श्वे., (--), ४६३८५-१ साधारणजिन पूजास्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मेष प्रभुजीनै पेमस्य), ४५६८४ साधारणजिन भक्ति पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब केसे कर छुटेरे), ४७०६४ साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (करु आराधना तेरी हिये), ४५५७१-३ साधारणजिन लावणी, जगदीस, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ओर देव मुजदाय न आवे), ४५३७५-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आपण छे रे पुजानो गोठ), ४५३७०-१ साधारणजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीनराज जोवानी तक जाय), ४४०८७-६ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेहियो प्रभुज), ४८११३-२ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो रे साहिब), ४६१०७-६(+-#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ४५२१२-३ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निस्नेही शुनेहलो), ४७३५२-२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, पू., (सकल समता सुरलतानो), ४५१६६-२ साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आबोलो स्याना ल्यो छो), ४४५९३, ४६०७७ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org "1 देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नेणुदीजे जिन), ४४९८९-३ साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू में मतवाला जिनका), ४६१०७-२७/+ साधारण जिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नित्य प्रत्यें नाम), ४४६७३-२ साधारणजिन स्तवन, सेवक, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( श्याम बरन सुंदर छवि), ४४७६५-२ साधारण जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (अनुभव दीजई अनुभव), ४६५१९-२ ($) साधारणजिन स्तवन, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे (धन धन आजरी घरी भूल), ४७९६३-७४) साधारण जिन स्तवन -जयपुरमंडन, मु. शांतिरत्न, पुहिं. गा. ५. वि. १९२०, पद्य, मूपू.. (शहर सवाई जयपुरमाई), ४६४२५, ४६७३१ साधारणजिन स्तवन - देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू (प्रभु आगल नाचे सुरपत). ४४९९२-१ साधारण स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ४३५८६ (+), ४७९१८, ४७३९६-८(#$) साधारण जिन स्तुति, मु. राजसंकर, पुहिं, गा. ५, पद्य, स्था., (भजो रे नीत चोवीसि), ४५५४९-९(९) साधारणजिन होरी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दर्शन बिन जीव संसार), ४७४०५-३ साधारणजिन होरी, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (फाग रमे रस रंग प्रभू), ४५७१२-१ (#), ४६३०२-७(-) साधारणजिन होरी, मु. शिवसागर, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (जिनराज की भक्ति करो), ४७५४६-१ " , " "" साधारणजिन होरी, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (धूम मचावो प्रभु के), ४७११०-२ ($) साधु आचार स्वाध्याय, मु. आणंदविमलसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( जिन चोवीसइ करुं), ४४८५६-१ साधु उपकरण सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वात कहूं छु राजि), ४४०४३-२ साधु की ३० उपमा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली उपमा जिम कासीना), ४५०२९ साधु के १४ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रो झोलीर तले ४६७०९-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ', , साधुगुण गहुली, मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सागर सम समता मुनीवरा), ४५५३३-१(०) साधुगुण गहुली, मा.गु., गा. ८, पद्म, भूपू (वीर पटोघर विचरता जी) ४६७५८-२साधुगुण पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, थे. (गहि सुधग्वान धरे है), ४४६८४-७, ४६९९८ साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (श्रीजिनवरने करें), ४८०३७ साधुगुण सज्झाय, मु, माणिक, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू (वाचक विदित वखानी), ४५५३७-१ साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे (मोटा पंचमहाव्रतधारी), ४५५६९ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ४४३९९-१ साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कदी ए मीलसे मुनिवर), ४७३७० साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु गा. ९, पद्य, भूपू. (पांचे इंद्री रे), ४५६९०-१ साधुगुण सज्झाय, ग. विजयविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत सुधां), ४५४१८-१ साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ७. वि. १९६२, पद्य, स्था. (तारण तिरण ए गुरु भेट), ४५५४९-१०) ', साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (भजो तो तम अरिहंत देव), ४५५४८ साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमती जी), ४५०३१-१ साधुवंदना, मु. कुशल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, भूपू (प्रथम नमुं शिवसुख), ४३७५७-३००) साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८८, पद्य, म्पू, (पंच परमेठि पयकमल), ४३८९१-३(+३) , ! ७ साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ४४६९४ साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., ( नमुं अनंत चोवीसी), ४५६३५(३) साधु-श्रावक संवाद सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( मुनिवर वाणी वागरी), ४५०८३-१ साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (प्रवचन वचन सोहामणां), ४३८८७-१ साधुस्वरूप सज्झाय, जे.क. भूधरदास, पुहिं. गा. १४, पद्य, दि., (मोह महारीय जीपक), ४३७८२.४(+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८. वि. १७५८, पद्य, चे. (श्रावक व्रतधारी गुण), ४७५११(०) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू, (धुरि गीतमनुं लीजें), ४३९२२-२ " יי For Private and Personal Use Only ५८९ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जिनवरना प्रणमुंपाय),४५५८१ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ४४७६३-२(#) सामायिक सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १०, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (सामायिक सुखदाइजी चित), ४४६८४-३ सारणीसार जगचंद्रिका, वा. हीरचंद्र, मा.गु., गा. ३८, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि दायक सरवर), ४५३७६-१ सास वह सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (एक बेटो हुवै नहीं तो), ४६११७(#) सिंघराज गच्छपति भास, मु. ईसरहरष, पुहि., गा. १४, वि. १७३५, पद्य, स्था., (सरसति सामणि द्यो), ४६९२३-१ सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहि., गा.७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन आया गढ), ४४९२६-१ सिद्धगति प्राप्ति के बोल विचार, रा., गद्य, मूपू., (आकरी आकरी तपसा करे), ४५६८५-२(+-) सिद्धचक्र गहली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (चित्तहर चरम जिणंद), ४३४९२-२ सिद्धचक्र गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आवो सखि संजमीया गावा), ४३४९३ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), ४३६०७-४(+#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ४६५९१, ४७९९२ सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान धरोरे), ४४५९६-२ सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ४५९६८ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ४३६२१-५(+), ४४५३५-१, ४४५९५-२, ४४६३६-२, ४४७५१ सिद्धचक्र सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ईम महिमा सिद्धचक्रनो), ४४८५३-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ४४५५८, ४४५९५-१, ४७५३१-१, ४३४७२(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अष्ट महासिद्धि संपजे),४६०२३ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधो), ४७०४२-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ४४५३५-२ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (जिनवाणी पणमेव समरी), ४७१२७-२(६) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), ४५१२९-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवीये), ४५०७४ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ४३७६४(+#), ४५७१९-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. मानकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र नित सेवीइ), ४३६५५-२(+#) सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमु दिन), ४३९६३, ४७५७५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. राम-शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ओ भविरे प्राणी रे), ४४९५७-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ४४३६६-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ४४८०४-२ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ४३६२१-४(+), ४५६३६-४(-) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ४३७८९-५(+#), ४४८३३, ४६४५८-२(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भविजन भावधरी आराधो), ४७०४२-१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनेसर अलबेल), ४४७७८-२, ४४७८०-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर नर), ४३६०७-३(+#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ४३४९१-१, ४६८६०, ४६८६८ सिद्धचक्र स्तुति, मु. पद्म, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधो साधो), ४३७८५-३(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), ४४६६१-२ For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवो), ४३४९१-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, म्पू, (सकल सुरासुर पुजीनीक), ४६१३५-३(-) सिद्धपद सझाय, मु, अभवराज, मा.गु. गा. १७, पद्य, भूपू (सकल सिद्धन करें), ४४८३६-३(७) सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आठ कर्म चूरण करी रे), ४४८०७-१ सिद्धपद सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (जीव तुं सिद्धने संभा), ४३८९० , " सिद्धपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू (अष्टवरस नग मास हीना), ४६५६७-१ . सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु गा. १६, पद्य, मूपू (श्रीगौतम पृच्छा करे), ४३४७१-१(+४) ४६८६७-१, ४७१२०-१) " सिद्धपद स्तवन मा.गु. गा. १३, पद्य, मृपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ४४९५१, ४३८६५ (०), ४७१६१ ( ) सिद्धशिलामान विगत, मा.गु.. गद्य, मूषू.. (सिद्धसला परधि एक कोड), ४४०७७-३ सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगन्नाथ जगदीश जगबंधु), ४३७९०-१(+#) सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदबर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (श्रीजगनाथि समुखि), ४५१३४-१ (४४) सिद्धांतहुंडी गीता छंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, ओ., (वीरजिणेसर केवलसिरि), ४३८३९ (०) सिद्धाचल स्तवन, उपा. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरे रुडा पंखीडा), ४४४७५ सिद्धाचल स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुहंकर सिद्धाचल भेरी), ४५२७७-२ सिद्धादि के ९ बोल, मा.गु, को. भूपू (सिद्ध एक वार), ४७५३५-१ सिरोही नगरे चौमुख प्रसाद प्रतिष्ठा वृत्तांत, पुर्हि, गद्य, मूपू (विक्रम सं. १६४१ वर्ष), ४७०९१-५ (S) " सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु. ( छोडी हो पिउ छोडि), ४४५८०, ४७१४०, ४६३७२ (०) י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीतासती सज्झाच, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू, (जनकसुता हुं नाम), ४५३९५-१, ४६६९३-१ सीतासती सज्झाव, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सीता आणी रावणिं वात). ४८०७१-१ सीतासती सज्झाव, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (दशरथ नरवर राजीयो), ४७३९७-१ सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (पालि बधी हे सखी चेटी), ४५०२०-४($) सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ४५१७७-३, ४६५२७१/७ सीमंधरजिन चंद्राउलो, मु. हर्ष, मा.गु गा. ११, पद्य, मृपू. (श्रीसीमंधर जिणवरू), ४४५२९ " सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सीमंधर परमातमा शिव), ४४१८२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीसीमंधर जिनवरा), ४६९७७ 3 सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु. गा. ३ वि. १७३, पद्य, मृपू (श्रीसीमंधर वीतराग), ४६६५५-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू.. (पूर्व दिशि इशान कुण), ४४८३९-७ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (बंहु जिणवर विहरमाण), ४३५३५-४(#) सीमंधरजिन छंद, मु. कनकसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (ए पय नमूं अरिहंत के), ४४००७ सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (अनंत चोवीशी जिन नमुं), ४७४०५-१ सीमंधरजिन पद, मालदेव, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू (सीमंधर के समोसरण भगत), ४५१४६-८(१) सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (मनडुं ते माहरु मोकलु). ४४२४०-२, ४७७८३-१ "" सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधर विनती सुणि), ४३९२५-४ सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, म्पू. (श्रीसीमंधर जिनवर), ४७४३३-१, ४३५०८-३(०) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू., (सफल संसार अवतार हुं), ४७०६१(०), ४५५२४. For Private and Personal Use Only ५९१ ४५७९१-११०१, ४६६८३-१(४), ४४२०९-१(३) सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर सामी), ४५९४१ सीमंधरजिन विनती स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब आगे), ४७८६७(#) Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ४३५०७-१, ४४७५२, ४५०९२, ४७०२० सीमंधरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीसिमंधरस्वामी हो), ४५३९२-१ सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीनवुरे), ४३८७१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सीमंधरस्वामी), ४४९५७-३, ४४९५३-२(5) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ४६८३२-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमंदिरस्वामीजी नै), ४३९२४-५(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसल, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (साहवीया रे सिरीसिराम), ४४११९-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८९३, पद्य, श्वे., (मना तुम माहादेव जाणा), ४४८५२-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधर वीचरे), ४६६१०-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद शिष्य, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे विराजे), ४५६६९(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणो), ४७६८३-१ सीमंधरजिन स्तवन, ग. गुणचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर सेवना), ४३५८२-४ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुं हेजालवू), ४७०८७-७, ४६८१९-२(-), ४७९४७-३(-) सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चांदलिया संदेशो), ४४२८८ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सिमंधरजीने वंदणा), ४५९४२-२(5) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जीनराज कृपा होवे), ४३९२५-६ सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा), ४३६०२-२ सीमंधरजिन स्तवन, ग. देवविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहेबाजी), ४५१४६-३(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. नृपसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामी म्हार), ४६५३३ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ४५०१२-१, ४६६१८ सीमंधरजिन स्तवन, भुवन सोम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मनहि मनोरथ उपजे रे), ४४०४१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. यशकीर्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुज मन), ४५८६७(#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ४३९२५-३, ४५०३७-१, ४७२५०, ४५४७३-५(2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धनधन क्षेत्रविदेह), ४७६०५ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (लील वसत पाटवी राजै), ४८०६९-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विचरे पूर्व विदेहमा), ४७५३२-१ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ४५४९६-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जुगघरुने जुगमिंदर), ४७३३८-१(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (पुरव माहाविदेह भलो), ४६०९६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २७, वि. १८८६, पद्य, स्था., (श्रीसीमंदरसामीमारी), ४७३५८(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोल चडी रे मारा नाथ), ४५१४६-६(2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (श्रेयांसनंदन स्वाम स), ४६८५४-१(१) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ४३५३६-३(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ४३६५८(+#), ४३५८०(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, भूपू., (सीमंधर साहिब है साचो), ४४५४१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुंदर मुनि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिमंदर सामीया एक), ४३६३३-७(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ४६७५१(+), ४३९२५-२, ४४०१९, ४४५५७, ४५४९६-१, ४७५५३-२, ४३९७४(#) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हिम्मतराम, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (सरीमदरजीनी साधना तुम), ४७३३८-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधर सामी मह), ४६६३३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो जी), ४३८०४-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (कागदीयो लिख भेजें हो), ४६२५६(-) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वालो मारो सीमंधर), ४४१४० सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वंदना अवध), ४७७८३-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सीमंधर नित वंदीय), ४३६३९-३(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ४५१४६-१(#) सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप विदेहमा), ४५९११ सीमंधरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जन मोहन), ४७४५१-५(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर मुझनै), ४५७५२-१,४६६६८, ४७०३३, ४७३०१-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरदेव सुहंकर), ४७६९४ सीमंधरजिन स्तुति, मु. सौभाग्यसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पूरव दिसि ईशान), ४४००३-३ सीमंधरजिन स्तुति, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर बाहु), ४५६३६-१०(८) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नाण दिवायर वीतराग), ४३९५१-३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, ते., (श्रीश्रीमंधर मेरा), ४५१४६-२(#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी केवला), ४७५२१-२ सुकनकंवरजी गुण स्तवन, सा. केसरबाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीधनसतिया सुजाण), ४६७८८०) सुकाल दुष्काल शुकुन विचार, रा., गद्य, श्वे., (कारण पाखै देहरौ पडै), ४६८०४ सुकृतकरणी पद, मु. विनयचंद, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (सुकृत करलै रे गैला), ४४७६२-७ सुखदेवलोक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (देवलोकारा साताकारी), ४५३५७-२(-) सुखविजय गुरुगुण पद, मु. लाल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम चरने हु आयो गुर), ४७५६७-१ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ४३८२२-१, ४७३४०, ४८०९७ सुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (नमुनमुंमें गुरू), ४६३२३-२ सुजातजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुंगति तुंमति तुं), ४६५३०-२(2) सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुधरमां देवलोकमा), ४३४७१-२(+#), ४३७४३(+) सुधर्मास्वामि गहुंली, मु. धीरज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु सूत्रसिद्धांतनो), ४७२८४ सुधर्मास्वामी गहुँली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोहम स्वामि समोसा), ४७३०८-२ सुधर्मास्वामी गहुली, मु. रंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सहगुरु भावे भविजन), ४६०२७-१(+) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. सोहव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेलणा लावे गहुली), ४३६९२-२(2) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. हर्षकल्लोल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर सोभता सही), ४४७२८, ४७९३७-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेलणा ल्यावें घोयली), ४७८२७-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ज्ञान दरसण गुण धरता), ४५१२१-१ सुधर्मास्वामी भास, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (कठडा आया गुरुजी), ४६७५८-१(-) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ४६३०१-३, ४७८२७-१, ४३६९२-१(#) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), ४७८२७-३, ४३६९२-३(#) सुधर्मास्वामी स्तवन, मु. खूबचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (वीरजी के वीराजा प्रथ), ४५२६१-२(-) सुपार्श्वजिन गीत, ग. गजकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरस वचन वरदाई समरु), ४४३१६-१(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहज सलुणो हो मिलियो), ४८००६-२ सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वाणारशीनगरी वखाणीये), ४४०५८-१ For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( साहिब हो साहिब मुझ), ४६५४४-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुपासजी साहिब मुजरो), ४४३५७-३ सुभद्रासती चौपाई, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (--), ४७७८४-२ ($) सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवुं), ४३५८८ (+#), ४४१८७-१(#) सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधइ ईरजा), ४४००१ (+), ४४८८२, ४६३२२-३ सुभद्रासती सज्झाय, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेशर केरोसीस), ४४६५९ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधे रे इरजा), ४४१३२-३, ४४८४६ (-) सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे., (श्रीचरणकमल नमी सरसती), ४७७८४-१ (S) सुभद्रासती सज्झाय - सीबल, मु. सिंघो, मा.गु., गा. २१, पद्य, वे. (मुन्नीवर सोधे इरया), ४४०५४-२ सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ४७२७२ सुमतिजिन पद, मु. किसना, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (निज घर आवोनी सुमतीजी), ४७९६३-९(-) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू, (निरख वदन सुख पायो मै), ४६१२३-२ " सुमतिजिन समवसरण गीत ग. जीतविजय, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (आज हुं गइती रे समवसर), ४४३२६, ४४४२१-५, יי कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ יי ४५६०३-२ सुमतिजिन स्तवन, उपा. करमचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सुमति जिणेसरवेव जईये), ४७२७१-२ सुमतिजिन स्तवन, उपा. करमचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. ( सुमति जिनेस्वर सुख), ४७२७१-१ सुमतिजिन स्तवन, मु. कान, मा.गु., गा. १९, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ जिण सुमति), ४४०५० " सुमतिजिन स्तवन, मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, श्वे. (कुसलपुरी परभु जलमीया), ४६९०९-१(#) सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवंत - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमती जिणेसर साहिबा), ४३८०३-४(#) सुमतिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. गा. ५, पद्म, मृपू. (पुरोरे पांचमा आस), ४६१८९-४ " " ! सुमतिजिन स्तवन, मु. तेजसी ऋषि, मा.गु गा. १३, पद्य, थे. सुमतिजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, सुमतिजिन स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ४४७१००) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (समत जणेसर समता जी आप ), ४६४७४-२ (-) (सुमती जिनेसर सेवीइं ), ४४२९८-४८-१ (सजनी मोरी सुमति जीने), ४४८०३-१ सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं. गा. ६, पद्य, दि. ( नमो सिद्धसाधक पुरुष), ४७६८८-३ सुरप्रभजिन गीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सूर जगदीशनी तीक्ष्ण), ४६१२३-१ " सुरप्रभजिन स्तुति, आ, जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (काजइ छइ जेहना सहुजी), ४७०८७-१० " सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ४५०१६, ४६५३५ (#) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुडिं, गा. ३, पद्य, भूपू (मुजरा साहिब मेरा रे), ४५९७०-२ " सुविधिजिन पद, मा.गु, गा. ४, पद्य, वे (नीरंजन आगल नृत्य करे), ४३७५६०७/० सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सुवधी जीणेसर), ४६९७५-१, ४७७१५ सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (सुविधि जिणेसर सुंदरु), ४४०५८-२ सुविधिजिन स्तवन, वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुंही जगतपत जीवका), ४५२४८-४९ सुविधिजिन स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुविधि जिणेसर दिनकर), ४७४५४-१ (#) सुविधिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सुवीद्धजीणेशर देव), ४४०५५-२ सूक्ष्मनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदराजलोकने विष), ४४२७४-२ 3 सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु गा. २८, पद्य, म्पू, वै., (प्रणमुं सारदा गणपतरा), ४३८१२(७) सूर्यगति सज्झाय, मु. सोमविमल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसती सामणी समरी), ४४३७९-१ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सूर्य छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सरसति गणपति समरता), ४४०२२-१ सेठ वाणोतर सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सेठ कहे सांभलि), ४३७१६-५(+#) सोदागर सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (एह सउदागर मनि चिंतवइ), ४४४७९-१(#) सोदागर सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सांभलउ सौदागर माहरी), ४४४७९-२(#) सोमविजय उपाध्याय गीत, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वंदउ सोमविजय उवज्झाय), ४८००३-२ सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सौधर्म देवलोक पहिलो), ४४३०४-१ सौधर्मेंद्र इंद्राणीसंख्या सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसदगुरने लागुपाय), ४६६७५-४ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ४३७६१(+#$) स्तवनचौवीसी, मु. रायचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (आदीसर अरीहंत सुख दात), ४५२६९(5) स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (सामि सीमंधर विनती), ४३६४४(+#) स्तवनवीसी, मु. जीवणविजय, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर स्वामिजी), ४५७८१-५(#$) स्त्री ६४ कला नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (नृत्य १ उचित्य), ४६१५४-३ स्त्री ब्रह्मचर्य बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पिता बांधव प्रमुख), ४४५२६ स्त्रीमुक्ति सम्मत शास्त्रपाठ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री स्तंभनक), ४७९५४-१ स्थानकसाधुआचार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (जतना सुंतो जीतनो कोइ), ४६०१९(+) स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ४३६६६-१(+#), ४५७५२-३ स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सुद्ध स्वरुपना),४४३९६-२, ४५४६४-२ स्थापनाप्रतिलेखना स्वाध्याय, मु. सुखचंद्र - शीष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (समरी शांतिजिनेसरु रे), ४६२८८(#) स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (आव्यो आव्यो रेजलहर), ४३९१६(2) स्थूलिभद्र बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (साहिबारेमारा आसाढो), ४६१२९ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), ४३५६९(+#), ४४६७६(+) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ४७२७९-१ । स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), ४३६६९(5) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही रे), ४८००५-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (भले उग्यो रे माहरे), ४३७९७-१(+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा मोर्यो हे आंगणे), ४३७४९-३, ४६७८५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ४५२४७-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ४५२२३, ४५८३० स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लालचंदजी, मा.गु., वि. १८६४, पद्य, श्वे., (श्रीवीतराग चरण नमु), ४५०६४(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बोली गयो मुख बोल), ४५९३२-१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (थूलभद्र मुनीसर आवो), ४५७०४-२(+#$) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ४६३४२-१, ४८१११-२(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंदलीया तुं वेहलो), ४६५४८-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ४४९७०-१, ४७४४९-१(६) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सरोवर साधजी), ४७३४२ स्थूलिभद्र सज्झाय, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (हो पिउ पातलिया कहै), ४७३०४-१(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रीया गुरुआदेस लही), ४३९१३-१(#) स्थूलिभद्र सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (योग ध्यानमें जोडी), ४७७७६ स्थूलिभद्र सज्झाय, पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तु मेरे हो रे नागर), ४६९५७-३ For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९६ www.kobatirth.org स्थूलभद्र सज्झाय, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ओ सखि ओ वली पहोंवा), ४४३३५-४ स्थूलभद्र सज्झाय, मु. विबुधविजय, मा.गु गा. ९, पद्य, म्पू, (जीरे माहरे थूलिभद्र), ४७५०८ . स्थूलभद्र सज्झाय, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (वेष स्वामि जोई आपणो), ४५१६५ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.११ स्थूलभद्र सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंदवदनी कहे पीउ पाए), ४६०४०-२(#) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ८, गा. ६०, वि. १८बी, पद्य, मूपू (चोतिसे अतिसव जुओ वचन), ४७३७९(१) स्पर्श द्रव्य -भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (द्विस्पर्शानि), ४५४६६-२(१) स्वानसुकन विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (स्वानशा मातरि जाता), ४४०१७-१ " हंसराजवत्सराज चौपाई *, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ४६३४७($) हरताल विधि, मा.गु., गद्य, (--), ४७७१०-२ हरिनाम पद, कबीर, पुहिं, गा. ४, पद्य, वै., (साइ मेरी साबुरी काया), ४३६३३-५ का हरिभद्रसूरि जैनधर्म प्रभाव, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीभट्टारक), ४७०२६(#) हरिभद्रसूरीश्वरजी सामान्य जीवन परिचय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर थकी एकहजार), ४८०३०-२ हितशिक्षायत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, म्पू., (सकल विमल गुन कलित), ४५५१३ हितशिक्षा सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक मारुं मारुं रे), ४६१९५-१ हितोपदेश सज्झाय, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (एक दिन जिनवर वंदना), ४४२९९ (+) हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडा तुं माहरी सुणि), ४६५८८-१ हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, थे. (सवे भृग नयन चलीगु), ४४०३६-३ हीरविजयसूरि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ३११९, वि. १६८५, पद्य, मूपू., (सरसति भाषा भारती), प्रतहीन. (२) हीरविजयसूरि रास - राग परिचय, संबद्ध, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपु. (ऋषभ कहे षट् रागधर), ४३८२७-३ हीरानंद खेतशी संघपति गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू, (संघपती हीरानंद घरणी), ४६६३४ (+) For Private and Personal Use Only हीरालाल दीक्षा सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, वि. १९६२, पद्य, स्था., ( गामकण जैव सुनी कल), ४५५४९-६(+) हुकममुनि दीक्षा सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ११, पद्य, स्था. (सेरटोडा सुनी कल संजम), ४५५४९-५ (क) " हेमंतादि राजा आयुमान, मा.गु., गद्य, श्वे. (हेमंतराजा धरणराजा), ४७३९७-२ होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु. दा. ४, पद्य, वे. (प्रथम पुरुष राजा), ४४६८४-१९ " Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधना धिना कन्द्र पहावार जैन * काबाट श्री 卐 अमृत वधा Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-42-3 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only