Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्र कथा जो करे सोभरे adkis Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय जैन चित्रकथा आपके बच्चे को जैन संस्कृति से परिचित कराती है। इस पुस्तक की कथा आचार्य सकल कीर्ति जी द्वारा लिरिवत संस्कृतकाव्य धन्यकुमार चरित्र पर आधारित है। नई पीढ़ी को सही समझ और शिक्षा देने के लिए ऐसे विचार उनके समक्ष रखना जरूरी जिससे वे आदशकिी और प्रेरित हो और जीवन का सही रास्ता उन्हें मिल सके ! कहानी को पढ़नेसे ज्ञात होगा कि व्यक्ति लोभ बस या अज्ञानता बस अनर्थ कर जाताहै। बेटा जश मेरे हाथ धुला देना! क्या बात है पिताजी, आपने केवलइस थैली में से पांच रूपये ही तो निकाले हैं फिर हाथक्यों घोते हैं! बेटा येधर्मादा के रूपये हैं। इसका अंश भी यदि घर में रह गया या अपने काम में लेआये तो न जाने क्या का क्या हो जाये। फिर भगवान के समक्ष चढ़ाया हुआ द्रव्य या दान दिया हुआ द्रव्ययदि कोई खाता है, प्रयोगकरता है, उसे कितना पापबंध होता है,क्या-क्याफल भोगना पड़ता है, सर्वज्ञ देव ही जानते हैं या जानते हैं वे लोग जिन्हें भोगनापड़ा है। जो करे सो भर यह कृति आपके हाथ में है आइये देखिये देव दृष्य रवानेका फम धनकुमार के जीवने किस प्रकार भोगा क्या-क्या दुर्गति हुई उसकी, जीवन में पैसे-पैसे कोतरसा कैसी बीती उसकी जिन्दगी, बस वैसी ही जैसी गरीब की बीतती है और जब उसने अपने जीवन को मोड़ दिया,धर्म की ओर लक्ष्य दिया, जीवन ही बदल गया उसका । मिट्टी में भी हाथ डाला तो सोना निकला। यदि इस पुस्तक के पढ़ने से किसी एक को भी निश्चय होगया कि यदि में बुरा करूँगा तो बुरा होगा ओर उसने बुराई से हाथ खींच लियातोमेरा यह प्रयास सफल समदूंगा।। धार्मिक आचरण राष्ट्रीय चरित्र को उन्नति देने वाला है। तथा हमें आचरण उसके अनुरूप बनाना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा। धर्मचन्द शास्त्री (परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्रीधर्म सागर जी संघस्थ) प्रकाशक : आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला,"गोधा सदन"अलसीसरहाऊस, संसारचन्द्र रोड़ जयपुर- 302001 सम्पादकः धर्म चन्द शास्त्री लेखक : डा. मूलचन्द जैन, मुजफ्फर नगर चित्रकार: बनेसिंह, जयपुर प्रकाशन वर्ष: १४६ अंक : ५ मूल्य :/0.00रू. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामवती नगर में भगवान शांतिनाथ के चैत्यालय में श्री दत्त नाम का एक मठपति था, जो इतना लोभी था कि भगवान के समक्ष चढ़ाया हुआ द्रव्य भी वह रखा जाता था। देवद्रव्य को खाने के पाप से अगले भव में, गर्भ में ही था कि पिता सेठ भोगरति की मृत्यु हो गई और माता सेठानी भोगवती... जो करे सो भरे रेखांकन बनेसिंह हाय रे विधाता! मेरे गर्भ में कैसा पापी जीव आया है मेरे पति को रखा गया और सारा धन नष्ट हो गया दरिद्रता ने डेरा जमा लिया। मैं अब क्या करूँ, क्या न करूँ? 00000 LWUJ PHO Ty O.C प्रज Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ दिन पश्चात पुत्रपैदा हुआ। क्याकम कैसे करूँ, इसका | पुत्र बदने लगा जैसे गरीबों के बढते है, नरवाने को उपयुक्त भोजन पेट कैसे भरूँ...दोजून रोटी आदि,न पहनने को कपड़े, नकोई समान साथी, न देखभाल करने भीनहीं है मेरे पास,कहाँसे इसे रिखलाऊँ पिलाऊँ। वाला, बीमारी में दवा दारू भी नहीं। परन्तु कियाक्याजाये। बड़ा भाग्यहीन है यह। पुण्य इसके पास ही नहीं। कर्म से बिना भोगे छुटकारा भी तो नहीं। इसका नाम अकृतपुण्य ही ठीक रहेगा। O००० कहाँजारहे हैं। आप लोग? यहाँ पर एक कृतपुण्य नाम का गृहस्थहै, उसका स्वेत साफ करने के लिये जारहे हैं वहाँ मजदूरी मिलेगी। Mal 2 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और अकृतपुण्य भी उनके साथ चल दिया। दिन भर काम किया। शाम को ... इसकी माँ भोगवती है जो भोगाति की स्त्री है शर्म के मारे इसकी माँ आपके सामने नही आई ریچہ n's साहू जी! आपके सब को तो मजदूरी दे दी लेकिन इस लड़के को नहीं दी इसे भी दे दीजिये ना !, 'कौन है ये लड़का ? किसका है यह बेटा? 'देखो साम्य की विडम्बना यह भोगरत का पुत्र है जिसके यहाँ कभी मैंने नौकरी की, आज उसी का पुत्र मेरे यहाँ नौकरी करने आया है इसकी Cooo अवश्य ही मदद करनी चाहिये। लो बेटा यह मजूरी। सेठ जी। यह आपने मुझे क्या दिया- देखो आग के अँगारे- मेरा तो हाथ ही जल गया। 3 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास्तव में यह लड़का है ही अकृतपुण्य - दिये स्वर्ण आभूषण और बन गये आग के अंगारे। बिना उसके पुण्य के कोई किसी की सहायता भी तो नहीं कर सकता। कहाँ चला गया रे तू मैं तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक गई। और यह । तेरी झोली में क्या है ? 0000 अकृतपुष्य को औरो के मुकाबले तिगुने धने दिये परन्तु जब घर पर पहुँचा... अच्छा बेटे ! यह लो चने । और अपने घर जाओ। माँ मैं एक गृहस्थ के यहाँ खेत साफ करने गया था। उसका नाम था कृतपुण्य! उसने मजूरी में मुझे स्वर्ण आभूषण दिये परन्तु हाथ रखते ही वह अंगारे बन गये। फिल्ट उसने मेरी झोली में औरों के मुकाबले तिगुने चने दिये लेकिन बचे हैं केवल ये ही बहुत थोड़े से । ड Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरे बावले। यह तेरी झोली तो फटी है। इसमें चने टिकते कैसे और फिर बिना पुण्य के कुछ मिलता भी तो नहीं है। जोलक्ष्मी को दान देता है उसे ही लक्ष्मी मिलती है और हायपुत्रादेव भाग्य की विडम्बना, जो तुम्हारे पिता के यहाँ नौकर था आज उसी के यहानौकरी तुझे करनी पड़ी। हमे यदि गौरव से जीनाहै तोइस नगर से बाहर चले जाना चाहिये। SUVHANE भोगवती अपने बच्चेअकृतपुण्य | को लिये पहुंच गई शीशबागनाम के गांव में अशोक नामक सदा गृहस्थ के पास भैया। मै दुरिवयाहूँ। रात्रिको पुत्र के साथ यहां विश्राम करने की आज्ञा देदो तो आपका अहसान मानूंगी। बहिन वह अपना ही घर समझो मेरेसात पुत्र जिनकी देस्वभाल करने वाला कोई नहीं है। तुम अपने बच्चे के साथ यहां आराम से रहो और मेरे बच्चों की देख भाल करती रहो। तुम्हेंव तुम्हारे बच्चे को यहां कोई कण्ट नहीं होगा। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकृतपुण्य अपनीमांकसाथ अशोकव उसके सात पुत्रों के साथ रहने लगा। वेसातपुत्र बातबात में उसकी मां को बुरीभली भी कह देतेये। उस समय अकृतपुण्य के भाव होते थे कि येमेटरी, माताकाअपमान करते हैं अतः येमर जायें तोअच्छा इनरखोटे परिणामो से उसनेयापका बोधकिया एक दिन..... | बेटा आजतुमइनबछड़ों को जंगल मे ले जाओ और घास (चरालाओ अच्छा सामाजी अब क्या होगा? बघड़े तो सबभाग गये।मैं घराता हूँ जब बहुत देर तक अकृतपुण्य घर नहीं पहुचातो.... घबराओनहीं बहिन! मैंअभी तोमामा (अशोक)कीमार पड़ेगी मुझे घर नहीं जाना (अया!अभी तक मेरा लड़का नहीं आया।नमालूमक्या)। उसे ढूंदकर लाता हूँ। चाहिये। बात है। '11 . TRODJM Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Buy A 'ठहरो भानजे! लौट आओ। बछड़े घर पहुँच गये हैं। तुम्हारी मां बहुत परेशान है। बाप रे, भागो अकृतपुण्य भागते-भागते जंगल में गुफा के द्वार पर पहुँच गया और सोचने लगा मुझे यहीं बैठ जाना चाहिये। prote 7 अहा अहा हा !!! कितना सुन्दर उपदेश हो रहा है। अब तो मैं धर्म के मार्ग पर लगता हूँ। पाँच पायों का त्याग करता हूँ, दस धर्मो का पालन करूँगा और बारह भावनाओं का चिन्तन करूँगा। अब मुझे कोई भय नहीं। M 105011 गुफा में एक सुनिराज बैठे है। बाहर गुफा का द्वार पत्थरो से ढका है। 14 TON Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभ भावों से मरण करने के कारण अकृतपुण्य मर कर स्वर्ग में देव हुआ ययय TRUES अचानक...... 8 alla मैं कहा हूँ, यह प्रदेश कौनसा है। यह नौकर, चाकर, वैभव क्या है। यह सब मुझे क्यों मिला? अहा! हा! हा! समझा यह सब मुझे मुनिमहाराज के उपदेश के कारण प्राप्त हुआ। महाराज के उपदेश से मेरा विश्वास ठीक बना, सात तत्त्वों का जैसा स्वरूप है वैसा मैंने श्रद्वान किया। अतः सबसे पहले मुझे अपने उन परम उपकारी महाराज के दर्शन करने के लिये आना चाहिये। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उधर. भैया! अब हमें अकृतपुण्य को ढूंढने के लिये चलना चाहिये। O अच्छा बहिन चलो चले । और पहुँच गये जंगल में 6 माँ मृतक के शरीर को छोड़, मुझे अपना पुत्र जान, मुझे प्यार कर।) माँ तू आश्चर्य मतकर। मैं धर्म के प्रभाव से देव हुआ हूँ । धर्म से क्या नही मिलता! तू भी शोक को छोड़, मुनि महाराज, का उपदेश सुन धर्म को धारण कर, तुझे भी सुख मिलेगा। 9 हैं! यह क्या? हाय रे मेरे पुत्र ! तू मुझे अकेला छोड़कर कहां चला गया। मैं बड़ी भाग्य हीन हूँ। आ, तू मेरी गोद में बैठ और एक बार मुझे मां कह कर प्रकार Smyth mant Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुफा के द्वारसे पत्थर हटाते हुए.. हे मुनिराज! मैं आपका दास हूं क्योंकि आपके धर्मोपदेशसे ही मुझे देव पर्याय मिली है अब हमें कल्याण का मार्गबताइये। हेभव्यों। तुम धर्म को धारण करो जीव अजीव आदि सात तत्वों काजैसास्वरूप हैं वैसा श्रद्वान करो, उनका ज्ञान करो,अपने चरित्र का निर्मलबनाओ तुम्हारा कल्याणहोगा महाराज! मुझे कृपया गृहस्थक योग्य व्रत दीजिये ताकि मैं भी धर्ममार्ग पर चलकर अपना कल्याण कर सकू। तुमने भमा विचारा! तुम्हारी होनहार उतम है। तभीतोतुम्हारे ऐसे विचार हुए'तुम विश्वगुणसम्पतिनामका (व्रतगृहणकरो | यहव्रतमबुग्यों के वैभव का मूल कारण है। तथादरिद्रता कामाश करने वाला है। न Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिराजसेव्रत ग्रहण करके भोगवती अपने घर चली गई और विधिपूर्वक व्रत का पालन करने लगी । एक दिन कितनासुरवसे मेरा जीवन व्यतीत हो रहा है। मेरी तोयह इच्छा है कि अगर धर्मका कुछ (फल होता है तो इस व्रत के फलस्वरूपये सभीपुत्र (अशोक के पुत्र) और देव (अक्रत पुण्य काजीव) अगले जन्म में मेरे पुत्र हों। ००० अशोक, उसकेसातों पुत्र व भोगवती सब स्वर्ग मे देव हुर. वहांसे मरकर....... E-CAPPA ताजा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और इसके बाद... उज्जयनीनगरी में सेठ श्रीदत्त और उनकी पत्नी देव श्रीबड़ीधार्मिक प्रवृति वाले व भाग्यशाली थे। सातपुत्रकेजन्म के बाद जब सेठानी के गर्भ में आठवां पुत्र आया तो..... आज में कितनी प्रसन्न हूँ। आज मेरी इच्छा हो रही हैं कि मैं जिनेन्द्रदेव की पूजा करूं दान ,तया बहरेनअन्धेलोमें (पर दया करूँ। COMSEN S OLOIC MA EUTH पंडितजी इसबच्चेकाक्यानामरवाजाय) यजमान जबसे बच्चे ने इस घर में जन्म लिया है तभी से आपके यहां धन की वृद्धि दुईहै। अतःयहधन्य है,भाग्यशाली है। इसका नाम धन कुमार ही उपयुक्त रहेगा। SOTT Nmnnn NATOMINMEHATIMATAT EGGS IONS बच्चेका जन्म हुआ और... 12 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन..... पिताजी। हमारा यह छोटा भाई बिल्कुल निकम्मा होता जा रहा है, कुछ करता धरता नहीं। इधर उधर वैसे ही घूमता रहता है। इससे कुछ काम कराना चाहिये ताकि, यह कुछ कमा सके/ Bioce SPOT अब सातों पुत्र नहीं माने तो मजबूर होकर चलते समय अनेक शुभ शकुन हुए। भैया यह गाड़ी मुझे दे दो और ५०० दीनारें ले लोग Kavy | बच्चों जो तुमने कहा ठीक है । परन्तु अभी यह बहुत छोटा है। अभी इसके खेलने खाने के दिन है। कुछ दिन बाद अब यह जरा बड़ा हो जायेगा इसे व्यापार (के लिये भेज देगा। बेटा धनकुमार लो में 800 दीनार) और यह सेवक और व्यापार करने के लिये चले जाओ। 13 दिल मुझे स्वीकार है 114 (भैय्या इसका ध्यान रखना। यह बहुत छोटा है। और हो। जो बीच यह ले इसे मना न (करना!)) नागप Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगेच्चलकर./भैया यह मेंदा मुझे देदो और बदले मेंयह गाडी तुमलेलो। (हाँहाँ क्यों नहीं? और सौदा तय होगया। इसी प्रकार..... भैया यह मैदा तुमलेलो और पलंग मुझे दे दो भैया जब तुमकहतेहो तो मैंइन्कार कैसे कर सकता मेंदामेरा औरपत्संग तुम्हारा ARC 17 बेटा आजहम धन्य हुए, हमारे भाग्यजगे, तुसकुशल घर आगया तूअमर रहे। सदैव प्रसन्न रहे फले फूले। 900 दीनारमें यह मेला कुर्चलायलंग। व्यापार तोवेटे ने खोटा ही किया,फिर भीठीक है। पलंगा तमैला है लोग क्याकहेंगे चमोइसेधोहीले) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मातायलंगको धौरही है।धोते धोते एक पाये का साल निकल गया और उसमेंसे५रत्न निकल पड़े। इसी प्रकार चारों पायों से रत्न निकल पड़े उन रत्नों को लेकर..... 60ON Goooo D DOO पिताअपने पुत्रों के पास गया और...... देखो बेटों! तुम्हारा छोटा भाई ५०० दीनार के बदले कितने रत्न लाया है। पुण्य के उदय से हानि का व्यापार भी लाभ काव्यापार हो जाता है। पुण्य पाप | सेहीलाभव हानि होते हैं। अतः पुण्योपार्जन में लगाना चाहिये। CHAN bn मुझे ये रत्म अपने पास नहीं रखने राजन ये रत्न एक / सेठजी। तुम्हारा पुत्र बड़ा पुण्यवान चाहियें। चलकर राजा को सौंपदेने । पलंग में से निकले हैहै। पुण्यसे ही उसे यह सम्पदा प्राप्तहुई। चाहियें । क्यों कि यदि राजा को पता चम जो कि मेरा घोटापुत्र हे मैं इस धन को नहीं लूंगा। आजर्स / गया तो रवैर नहीं। लोभ बिल्कुल नहीं बाजार से खरीद कर मैने उसका नाम कृतपुण्यरख दिया। करना चाहिये। लाया। सोयह अपने रत्नऔर साथ में कुछ मेरी और सेभी। इस 12280 000 تحمام Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन...... (पिताजी मेरी इच्छा है कि में यमन्ह (कालगुफा) में प्रवेशकसै कृपया आज्ञा दीजियेना मैं मानता हूँ कि तू पुण्यवान है। तेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता लेकिन लोग तोयही कहेंगे कि लोभी पिता ने धनप्राप्ति के लिये अपने पुत्र को यमगृह में भेज दिया। परन्तु बेटा तेरा आग्रह देखकर मनाभी कैसे करूं। और धनकुमार पहुंच गया CEO यमगृह में आओयहां विराजो। हमयहां बहुत दिनों से यमराजकुबेर की आज्ञासे यहां बैठे हैं और आपके लियेहीकुछ निधियों की रक्षा कर रहे हैं। कृपया ये निधियां अब आप संभालिये ताकि हमें छुट्टी मिले। LILAIHAR धनकुमार चल पड़ा घरकीओर मार्ग में. देरवो कितना पुण्यशाली है वह बालक । संसार में जो सुख मिलता है सब पुण्य का ठाठ है। ममालूम इसने क्या-क्या पुण्य कर्म किये होंगे जो यह यमगृह से सकुशल तो लोटा ही और साथ में अमेक निधियां भी मिली। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सातों भाइयों को धनकुमार का आदर सत्कार यश बिल्कुल न अच्छा अब सब लोग मोता भागा वेि उससे जालने लगे और उसे मारने की योजना बनाने । लगाओ देवें जलके अन्दर लगे और एक दिन..... सबसे अधिक देर कौन (भैया चलो! आजजल ठहरता है। क्रीड़ा को चलें। SWERS ASLIM (हो हाँ क्यों नहीं - योजना के अनुसार सातों भाई तो गोता अबोका है आओइसका ओह! निकलने का रास्ता बन्द.... मेरे भाइयों ने मुझे मारने के लिये ही| लगाते ही फौरन वापिका से बाहर आ काम यही तमाम करदें।इस यह षडयन्त्ररचा है। रवैर कोई उपाय तो निकलने का सोचना ही पड़ेगा गये लेकिन धनकुमार पानी में ही रहा। वापिकाको पत्थर से ढंक दें वापिका में पानी निकलने का द्वार तो अवश्य ही होगा क्योन उसद्वार को फिर..... ताकि यह धनकुमार इससे खोलकर जलके प्रवाह के साथ उससेबाहर निकल जाऊँ, बाहर न निकल सके और इसके अन्दर ही खत्म RAहो जाये। SARAST जनभाई मुझे मारना ही चाहते हैं तो अब मुझे घर में बिल्कुल नहीं रहना चाहिये। मुझे किसी दूसरे देश में चला जाना चाहिये ताकि मेरे भाई मेरे आरव सेदर होने पर सुख से यहां रह सके। 0 Pavasa Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिल्कुल अकेला,भाग्य भरोसे.पास में | मैंने अनेक चीजें देवीपरन्तु यह चीज तो मैंने आज तक कुछमहीं-नधन-न खाने के लिये नाश्ता भी नही देरवी/यह क्या है। चलूंपूइसके मालिक से ही और चल रहा है बेचारा धनकुमार- गहरोमटो ताकि मैडम काला दिखाई दिया हल चलाते हुए एक व्यक्ति..... हाँक्यों नही-अवसभी सारवजाा) लो। आप इसे शौक सेचलाओ) मैंसामने छाया में बैठाहूँ।। हैं यह क्या? यह हल आगे क्यों नहीं चलता। चलो और और लगाकर चलाऊँ बस..... अरे यह क्या? अरे यह तोकोई कला जमीन) में गड़ाहै। देख्क्याहै इसमे?. कलशेको फिर गड़े में गाड़कर मिट्टी डाल दी। यहक्या ? इसमें तो धन भाहै। मैंने अच्छा नहीं किया/खेत के मालिक ने अपना धन इसमें छिपाकर रखा था। लेकिन मैंने उसका भेद रवोल दिया नहीं। नहीं ऐसानहीं करना/00% चाहिये।। 10000 पार JAAN deolointhal आपने हमारा बड़ा उपकार किया जो हम हल चलाने की कला भीसीख गये। अघया अब हमजाते हैं। आज्ञादीजिये ।। १/ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनकुमार के जाने के बाद.... हे भाई ठहरो । जरा मेरी सुनो तो सही १० यह क्या ? हल चलता क्यों नहीं? मिट्टी हटा कर देखूँ तो सही। यह कलश कैसा ? इसमें यह धन कैसा? यह धन मेरा नही हो सकता। पुस्तों से हल चला रहे हैं कभी नहीं निकला धन। यह उसी परदेशी का प्रभाव है। जिससे धरती ने धन उगला है। यह धन उसी परदेशी, Poo का मेरा नही 806 भाई अपना यह धन लेते जाओ। यह तुम्हारे, भाग्य का ही चमत्कार है, अतः तुम्हारा ही है। तुम्हीं इसके हकदार हो, और कोई नहीं। नहीं। यह धन आपके खेत से निकला है, मेरा कैसे हो सकता है? यह आपका ही है, अतः इसे आप ही सम्भालिये। 19 छोटकर NO Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमने तमाम उम्रगरीबी मेंही गरीबीकी मजाक-जात बिताई।कभी इतना घन स्वप/ घनकुमार को चुभी और..... में भी नहीं देखा। हमारा होता तो पहले अच्छा भाई घन मेरा परन्तु में इसे तुमकोदेता। सेक्यों न निकलता क्यों हूँ अतः तुम्हें इसे स्वीकार हमारी गरीबी कर ही लेना चाहिये। कीमजाक यदि तुम्हें मुझसे प्रेम है तो यह भेंट स्वीकार उड़ाते हो? करनी ही होगी घन का कलश लेकर हलवाहक प्रसन्नचित परदेशी के विषय में.. सोचता हुआवापिस लौट गया और धनकुमारआगे बदतागया। चलते-चलते... एकजगह.. (प्रभो।मैं धन्य हुआजो आपके दर्शन हुए कृपया बतलाइये कि में इतना पुण्यशालीक्यों है? बेटा ! तुने पूर्वजन्म में जैन धर्म में श्रद्धानके व्रत ग्रहण किये उसी का यह फलहे। यदि सुखी रहना चाहता तो भविष्य में भी यही मार्गअपमा। मुनिराज की आज्ञा शिरोधार्य करके धनकुमार आगेबद चला और आप कौन है, कहांसे आये है? (भैया। में परदेशीहूँ।थका (हुआ था / नींद आगई। क्षमा करें। RSARY indoor 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्यानपाल धनकुमार को नम्रता से प्रभावित हो कर उसे अपने घर ले गया। बेटी यह हमारा अतिथि है। मेरा भानजा है। बहुत दिन बाद तुझे देखने आया है। इसका खूब आदर सत्कार करना। भैया तुम कौन हो ? आप इतने बड़े आदमी मेरी हंसी क्यों कर रहे हो?) आपने मुझे पहिचाना ( नहीं। मैं आपका सबसे छोटा पुत्र धनकुमार ही तो है। तेरे आने के बाद यक्षों ने हमारा सब धन छीन लिया और हमें कोड़ों से मारा। एक तो तेरे वियोग का दुख और दूसरा सम्पत्ति जाने के दुख से दुखित होकर तुझे दूदने के लिये घर से निकल पड़ा ढूंढते ढूंढते यहां राजगृहों में आ पहुंचा हूँ। यहां पर मेरी बहिन भी रहती है। WE धनकुमार अपने पिताजी को लेकर अपने घर आ गया। 21 अच्छा पिता जी! उद्यानपाल के पास रहते-रहते धनकुमार ने अपनी योग्यता दिखलाकर धनश्री, गुणवती आदि अनेक कन्याओं से विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा।। एक दिन राह में चलते-चलते ...... पिताजी। मुझे अपनी माताजी व भाईयों की बहुत याद आ रही है। आपकी आज्ञा (हो तो उन्हें यहां बुला (जैसी तुम्हारी इच्छा 1 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप लोग अपने हृदय में किसी प्रकार का दुख न माने! आप मेरे पूज्य हैं। आपका किञ्चित भी दोष नहीं है। जब आप अशोक ब्राह्मण के पुत्र थे और मैं अपनी मां भोगवती के साथ आपके यहां रह रहा था तब मैंने आपसे द्वेष करके कर्म बंध किया था। उसी फलस्वरूप मुझे दुख उठाना पड़ा । जब पाप मैंने किया तो दुख कौन भोगता। आप बिल्कुल दुखी मत होइयेगा।, कर्म के उधर बुआ के घर मे....... हैं! यह क्या ? मेरे सिर पर यह सफेद बाल देखो रूप और सौन्दर्य को नष्ट करने वाली वृद्धावस्था आगई । वह सफेद बाल मृत्यु का वारंट ही तो है। बस अब मैं मुनि दीक्षा लेकर अपना कल्याण कर लूँ, इसी में भला है। और हा इस अवसर पर मैं अपने बिजी आदमी को भेजकर अपने महान हितकारी धमकुमार को भी बुला लूँ। वह मेरा, भाई तो है ही, बहनोई भी तो है ।) Stay शालिभद्र को धन्य है जो उसने ऐसा विधारा। मैं भी इन भोगों से ऊब गया हूँ। मुझे भी वैसा ही करना चाहिये। बिना मुनि बने कल्याण नहीं।) हे धनकुमार जी, शालिभद्र जी ने कहा है कि मित्र, मैं मुनि दीक्षा, ले रहा हूँ, अतः आप मुझसे आकर मिललें। (अहा! हा! हा! आप और मुनि बनेंगे। जो अपनो काम स्वयं नहीं कर सकता वह दीक्षा लेगा?) (अचरज है। Ross 22 इस प्रकार सब साथ रह रहे थे। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। छोड़ो मुझे अब मैं निश्चिय ही तुम्हारे बिना स्नान करूँगा। तुमने मुझे ऐसा अच्छा वचन कहा जो मुझ परलोक में भी हितकारी होगा। और मैंने तुमसे अब तक कुछ कहा उसके लिये क्षमा करना। अब मैं जाता हूँ। जंगल में प्रभो! हमें संसार, शरीर, 'भोगों से विरक्ति हुई है। (हमें मुनि दीक्षा प्रदान करने की कृपा कीजियेगा। कुमार शालिभद्र ने महामुनि जीए सेदीक्षा ग्रहण करली. बस समाधिकरण की ओर। धीरे-धीरे आहार का त्याग करने लगे। परिणामों में शुद्धि आगे लगी। जल भी छोड़ दिया। ओर मरकर....... 177 शालिभद्र के पास ..... लो मित्र । मैं आ गया। उठो, चलो, तप करने के लिये बन में चलें। मुनि धनकुमार विहार करते-करते श्रावस्ती नगरी में पंहुंचे वहां पर ..... कुछ दिन पश्चात्... अब मेरी आयु का अंत होने वाला है। अतः अब मुझे अपना आत्महित करना चाहिये, निः शल्य बन जाना चाहिये ।" 23 तेतीस सागर तक सर्वार्थ सिद्धि में रहेंगे, फिर मनुष्य भव धारण करके, मुनि दीक्षा लेंगे और घोर तपश्चरण करके एक दिन मोक्ष प्राप्त करेंगे। और तब होंगे वह सिद्ध भगवान जहाँ पर वह होंगे अनन्त सुखी और वहाँ से वह कभी नही आयेंगे इस संसार में और नही कोई अवतार लेंगे। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्जू और मुकेश बच्चों को क्या पढ़ना चाहिए बेटा । मैं समयसार पढ़ रहा हूँ। तो हमारी समझ में क्या आएगा ? नमस्ते चाचा जी ! देखो यह जैन कॉमिक्स हमारे पापा लाये है । पापा जी । आप क्या पढ़ रहे हैं ? बेटा ! पहले प्रथमानुयोग पढ़ो। ஜு कथा SPUNTIER VES हाँ देखो। कितना सरल उपाय प्रथमानुयोग समझाने का । nik 24 पापा जी । समयसार क्या होता हैं? तब तो पापा जी आप भी इसे मँगवाइये ना बेटा । समयसार द्रव्यानुयोग का ग्रन्थ हैं तुम नहीं समभोगे । पापा जी ! प्रथमानुयोग क्या है ? बेटा ! जिसमें महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन है वही प्रथमानुयोग है। टेल हाँ बेटा ! आज ही मनिझार्डर किये देता Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त . लोकप्रिय प्रकाशन जैन साहित्य प्रकाशन में एक नए युग का प्रारम्भ mmmmmmmmmmmmmmmms आचार्य धर्म भुत ग्रन्थ माला से प्रकाशित आधुनिक साहित्य २. साधना और सिद्धि १००/३. ज्ञान विज्ञान २०/४. मंत्र महाविज्ञान ६०/५. ज्योतिष विज्ञान ६०/६. कर विज्ञान ३०/७. साधु परिचय ५०/८. वरांग चरित्र ५०/६. बोलती माटी २५०/१०. आखन देखी आत्मा ६०/११. जैन रामायण सचित्र २५/१२. भक्तामर सचित्र हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती ५००/१३. जैन चित्र कथाएं प्रति अंक १५/१४.सुनो सुनाएं सत्य कथाएं प्रति अंक २०/१५. आओ बच्चों गाये गीत, सचित्र प्राप्ति स्थान :-जैन मंदिर गुलाब वाटिका लोनी रोड, दिल्ली फोन 05762-66074 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अराधना सौ० प्रेमलता पहाडिया धमपत्नि श्री शिखर चन्द पहाडिया जयहिन्द इस्टेअ नं० २-ए, दूसरी मंजिल, भूलेश्वर, बम्मई - 2 PAHARIA DT PAHARIA SILK MILLS PVT. LTD. SHIKHARCHAND AMITKUMAR PAHARIA INDUSTRIES PAHARIA TEXTILES COROPORATION PARAS SLIK INDUSTRIES SAPNA SILK MILLS SHIKHARCHAND PREMLATA PAHARIA PAHARIA TEXTILES MILS PVT. LTD. PAHARIA TEXTILES INDUSTRIES PAHARIA UDYOG PAHARIA SYNTHETICS VARUN ENTERPRISES ANAND FABRICS PANCHULAL NIRMALDEVI PAHARIA Kaushal Silk Mills Pvt. Ltd. FACTORY: 875, KAROLI ROAD, OP. PAHARIA COMPOUND BHIWANDI, DIST. THANE TEL: 34243, 22819, 22816 FAX : (02522) 31987 REGD, OFF. JAI HIND ESTATE NO. 2-A, 2ND FLOOR, DR. A.M. ROAD, BHULESHWAR, BOMBAY-400 002 TEL : 2089251, 2053085, 2050996 FAX: 2080231 .. Panted at SAINANI OFFS67012283885 . i