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जैनॉलॉजी-परिचय (१)
(Or
संपादन डॉ. नलिनी जोशी
सन्मति-तीर्थ प्रकाशन
पुणे - ४
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जैनॉलॉजी-परिचय (१)
संपादन डॉ. नलिनी जोशी
सन्मति-तीर्थ प्रकाशन
पुणे - ४
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* जैनोलॉजी - परिचय ( १ )
* संपादन
डॉ. नलिनी जोशी
निदेशक, सन्मति - तीर्थ
संपादन सहाय :
डॉ. अनीता बोथरा
डॉ. कौमुदी बलदोटा
* प्रकाशक
सन्मति - तीर्थ
८४४, शिवाजीनगर, बी. एम्. सी. सी. रोड, फिरोदिया होस्टेल,
पुणे ४११००४
फोन : (०२०) २५६७१०८८
* सर्वाधिकार सुरक्षित
* प्रथमावृत्ति : ५०० प्रतियाँ
* मूल्य : २०रु.
* अक्षर संयोजन : श्री अजय जोशी
* मुद्रक : कल्याणी कॉर्पोरेशन,
१४६४, सदाशिव पेठ,
पुणे ४११०३०
फोन : (०२०) २४४७१४०५
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सम्पादकीय
बालकों से जैनॉलॉजी का प्राथमिक अध्ययन कराने हेतु सन्मति-तीर्थ ने जैनॉलॉजी प्रवेश : प्रथमा से पंचमी तक की किताबें तैयार की थी । जून २००९ में सभी केंद्रों में मिलकर लगभग ३०० बच्चों ने पंचमी की परीक्षा अछी
में उत्तीर्ण की । पुणे विद्यापीठ के अंतर्गत जैन अध्यासन द्वारा पुरा 'भक्तामर स्तोत्र' कंठस्थ करने कीप्रतियोगिता भी इन बच्चों के लिए रखी थी । बहुत सारे छात्रों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया । ___बच्चे और उनके पालकों के अनुरोध के अनुसार सन्मति-तीर्थ अगले पाँच साल के जैनविद्याभ्यास की परियोजना बना रही है । अब ये बच्चे कुमारावस्था में पहुँचे हैं । इन्हें अब जैनविद्या का विशेष परिचय करान है । इसी वास्ते परियोजना का नाम - “जैनॉलॉजी परिचय" रखा है । “जैनॉलॉजी परिचय" का प्रथम खंड प्रकाशित करते हुए हमें अत्यधिक खुशी महसूस हो रही है ।
आज से लगभग साठ वर्ष पूर्व उपाध्याय श्री अमरमुनिजी ने जैन-धर्म, दर्शन, संस्कृति, इतिहास और सिद्धान्त का परिचय देनेवाली एक महत्त्वपूर्ण किताब का प्रणयन किया था । 'जैनत्व की झाँकी' एक ऐसा किताबरत्न है जिसमें जैन-धर्म के प्राथमिक परिचय से लेकर मूलभूत सिद्धान्तों का तथा संस्कृति और इतिहास का सारग्राही टस्थ विश्लेषण सुलभ भाषा में प्रस्तुत किया है । इस किताब के कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं । हिन्दी में दस से भी ज्यादा संस्करण भी हो चुके हैं । _ 'जैनॉलॉजी परिचय' के प्रथम खंड में 'जैनत्व की झाँकी' किताब के महत्त्वपूर्ण चौदह पाठ लेकर सन्मति-तीथ ने सविस्तृत प्रश्नसंच तैयार किया है । किताब के आधार से पाठ में अंतर्भूत मुद्दे समझाकर शिक्षक इस प्रश्नसंच के आधार से तैयारी करवाएँ तो विद्यार्थी पाठ्यक्रम में सहजता से प्राविण्य प्राप्त कर सकते हैं । जैनॉलॉजी प्रवेशपंचमी की किताब से रिव्हिजन के लिए दो पाठ अनुवृत्त किये हैं । प्राकृत व्याकरण का प्राथमिक परिचय करानेवाला पाठ भी लिखा है।
इस प्रकल्प के लिए श्रीमान अभयजी फिरोदिया ने जो हार्दिक सहयोग दिया है, उसके लिए हम उनके शतश: आभारी है।
आशा रखते हैं कि यह परियोजना भी अन्य परियोजनाओं की तरह कामयाबी की मंजिल हासिल करें !!!
डॉ. नलिनी जोशी मानद-निदेशक, सन्मति-तीर्थ
जून २००९
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* शिक्षक और विद्यार्थियों के लिए सूचनाएँ *
* 'जैनॉलॉजी परिचय' (१) का पाठ्यक्रम जून २००९ से जारी हो रहा है । * परीक्षा का माध्यम 'हिंदी भाषा' रखा है । * भक्तामर के १ से १० तक के श्लोक प्रार्थना के तौरपर शिक्षक हर क्लास में याद करवाएँ । * व्याकरणपाठ के अंतर्गत दी हुई 'देव' शब्द की विभक्तियाँ और वर्तमानकाल के रूप हर क्लास में विद्यार्थियों से पढवाएँ । * लेखी परीक्षा ४० गुणों की होगी । केवल वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाएँगे । प्रश्नों का स्वरूप निम्न प्रकार काहोगा -
१) पाँच-छह वाक्यों में जवाब लिखिए । (केवल एक) २) एक-दो वाक्यों में जवाब लिखिए । ३) सिर्फ नाम लिखिए । ४) उचित जोड लगाइए । ५) सही या गलत बताइए । ६) उचित पर्याय चुनिए । ७) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
* शिक्षक 'जैनत्व की झाँकी किताब से मौखिक तौरपर पाठ समझाएँ । सुविस्तृत प्रश्नसंच विद्यार्थियों से लिखवएँ
* शिक्षक १५ जून से पाठ्यक्रम का आरंभ करें और फरवरी के अंत तक विद्यार्थियों को पढाएँ । * शिक्षक प्रश्नसंच लिखने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें । खुद लिखकर झेरॉक्स न दें तो अच्छा रहेगा । * शिक्षक और विद्यार्थी दोनों को पाठ्यक्रम के शुभकामनाएँ !!!
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जैनत्व की झाँकी (सुविस्तृत प्रश्नसंच) : प्राकृत व्याकरण ; रिव्हिजन
अनुक्रमणिका
१) प्रार्थना (भक्तामर स्तोत्र - १ से १० श्लोक) २) देव (जैनत्व की झाँकी - पाठ १) ३) गुरु (जैनत्व की झाँकी - पाठ २) ४) धर्म (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३) ५) तीन रत्न (जैनत्व की झाँकी - पाठ ४) ६) जैन तीर्थंकर (जैनत्व की झाँकी - पाठ ९) ७) दान (जैनत्व की झाँकी - पाठ १२) ८) भोजन का विवेक (जैनत्व की झाँकी - पाठ १३) ९) तत्त्व-विवेचन (जैनत्व की झाँकी - पाठ १८) १०) विभिन्न दर्शनों का समन्वय (जैनत्व की झाँकी - पाठ २२) ११) अनेकान्तवाद (जैनत्व की झाँकी - पाठ २३) १२) ईश्वर जगत्कर्ता नहीं (जैनत्व की झाँकी - पाठ २४) १३) आत्मा और उसका स्वरूप (जैनत्व की झाँकी - पाठ २७) १४) वनस्पति में जीव (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३०) । १५) जैन-संस्कृति में सेवाभाव (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३१) १६) प्राकृत भाषा का व्याकरण - प्राथमिक परिचय
(अ) नाम-विभक्ति
(ब) क्रियापद-प्रत्यय १७) सिर्फ नाम बताइए । १८) शब्दसूचि - Word Index
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१. प्रार्थना (भक्तामर स्तोत्र - १ से १० श्लोक )
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२. देव (जैनत्व की झाँकी - पाठ १)
१) 'देव' पाठ के पहले हेमचन्द्राचार्य का जो संस्कृत श्लोक है उसमें जैनधर्म' की व्याख्या किस प्रकार दी है ?(हिन्दी श्लोक) २) जैन दृष्टि से साधना का लक्ष्य क्या है ? (एक वाक्य) ३) दिव्यता प्राप्त करने के लिए किसकी आवश्यकता है ? (एक वाक्य) ४) जैन-धर्म की आधारशिला क्या है ? (एक वाक्य) ५) 'जैन' किसे कहते है ? (पाँच-छह छोटे-छोटे वाक्य) ६) 'जिन' का अर्थ क्या है ? (दो-तीन वाक्य) ७) असली शत्रु कौन है ? (एक वाक्य) ८) 'राग' और 'द्वेष' की संक्षिप्त परिभाषा लिखिए । (दो वाक्य) ९) 'राग' के कारण कौनसे दो कषाय उत्पन्न होते हैं ? (एक वाक्य) १०) 'द्वेष' के कारण कौनसे दो कषाय उत्पन्न होते हैं ? (एक वाक्य) ११) 'जिन' के पाँच विभिन्न नाम बताइए । (एक वाक्य में पाँच नाम) १२) 'जिन' को 'वीतराग' क्यों कहते हैं ? (एक वाक्य) १३) 'जिन' को 'अरिहन्त' क्यों कहते हैं ? (एक वाक्य) १४) 'जिन' को 'अर्हत' क्यों कहते हैं ? (दो-तीन वाक्य) १५) 'जिन भगवान' केवलज्ञान के द्वारा क्या जानते हैं ? (एक-दो वाक्य) १६) आत्मा ‘परमात्मा' कब बनता है ? (दो-तीन वाक्य) १७) जैन-धर्म कौनसी देवताओं को अपना इष्टदेव नहीं मानता ? (एक वाक्य) १८) जैन-धर्म के अनुसार 'सच्चे देव' कौन हैं ? (छोटे-छोटे चार वाक्य) १९) जिन भगवान कितने हैं ? (एक वाक्य) २०) वर्तमान कालचक्र में सबसे पहले 'जिन भगवान' कौन हुए ? (एक वाक्य) २१) जैन-धर्म व्यक्ति-पूजक धर्म नहीं है, गुण-पूजक धर्म है' - इस वाक्य के समर्थन में चार-पाँच वाक्य लिखिए
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३. गुरु (जैनत्व की झाँकी - पाठ २)
१) संसार का सबसे सघन अंधकार कहाँ होता है ? (एक वाक्य) २) गुरु कौनसा कार्य करता है ? (तीन-चार छोटे-छोटे वाक्य) ३) त्यागी गुरु के लक्षण कौन-कौनसे हैं ? (चार-पाँच वाक्य) ४) जैन-धर्म के सच्चे साधु कौन-कौनसी चीजें नहीं करते ? (पाँच-छह वाक्य) ५) पाँच महाव्रतों के सिर्फ नाम बताइए । (एक वाक्य) ६) पाँच महाव्रतों का एक-एक वाक्य में स्पष्टीकरण कीजिए । (पाँच-छह वाक्य) ७) गुरु के बारे में कौनसी कहावत प्रचलित है ? (एक वाक्य) ८) जैन-धर्म का गुरु कौन बन सकता है ? (दो-तीन वाक्य) ९) क्या साध्वी भी गुरु बन सकती है ? (एक-दो वाक्य)
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४. धर्म (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३)
१) धर्म का क्या अर्थ है ? (एक-दो वाक्य) २) जैन-धर्म का क्या अर्थ है ? (एक वाक्य) ३) जिन भगवान् कौन है ? (एक वाक्य) ४) जैन-धर्म के चार पर्यायवाची नाम कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ५) जैन-धर्म ‘अहिंसा-धर्म' क्यों है ? (एक वाक्य) ६) जैन-धर्म ‘स्याद्वाद-धर्म' क्यों है ? (एक वाक्य) ७) जैन-धर्म ‘आर्हत-धर्म' क्यों है ? (एक वाक्य) ८) जैन-धर्म ‘निर्ग्रन्थ-धर्म' क्यों है ? (एक-दो वाक्य) ९) जैन-धर्म अनादि धर्म क्यों है ? (शिक्षक चार-पाँच वाक्य में उत्तर लिखकर दे ।) १०) सच्चा जैन कौन है ? (तीन-चार छोटे-छोटे वाक्य) ११) जैन-धर्म का पालन कौन कर सकता है ? (तीन-चार वाक्य) १२) जैन-धर्म के तेरह सिद्धान्त इस पाठ के अंत में दिये हैं । शिक्षक वे सिद्धान्त समझाए । उसपर आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जायेंगे । इन सिद्धान्तों का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों से अपेक्षित नहीं है । पूरे तेरह सिद्धान्त क्रम से याद रखना भी अपेक्षित नहीं है । स्थूलरूप से सिद्धान्त समझाइए ।
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५. तीन रत्न (जैनत्व की झाँकी - पाठ ४)
१) तैरने के साधन को क्या कहते हैं ? २) संसार-सागर से तैरने के तीन साधन कौनसे है ? (एक वाक्य) ३) सम्यक्-दर्शन का दूसरा नाम क्या है ? (एक वाक्य) ४) 'सम्यक्त्व' का अर्थ संक्षेप में लिखिए । (एक-दो वाक्य) ५) 'सम्यक्-ज्ञान' किसे कहते हैं ? (एक वाक्य) ६) कौनसे नौ तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान 'सम्यक् ज्ञान' है ? (एक वाक्य) ७) 'सम्यक्-चारित्र' किसे कहते हैं ? (एक वाक्य) ८) सम्यक्-दर्शन-ज्ञान-चारित्र का क्रम किस प्रकार का होता है ? (एक-दो वाक्य) ९) 'त्रिरत्न' अथवा 'रत्नत्रय' के तीन रत्न कौनसे हैं ? (एक वाक्य) १०) सम्यक्-दर्शन-ज्ञान-चारित्र को 'रत्न' क्यों कहा है ? (दो-तीन वाक्य)
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६. जैन तीर्थंकर (जैनत्व की झाँकी - पाठ ९)
१) तीर्थंकर' किन्हें कहते हैं ? (शिक्षक तीन-चार वाक्य लिखकर दें ।) २) तीर्थ' शब्द का जैन परिभाषा के अनुसार मुख्य अर्थ कौनसा है ? (एक वाक्य) ३) चतुर्विध धर्मसंघ में किनका समावेश किया जाता है ? (एक वाक्य) ४) तीर्थंकरों के समवसरण में कौनसा आश्चर्य दिखायी देता है ? (एक वाक्य) ५) सामान्य मानव में कौनसे अठारह दोष होते हैं ? प्रत्येक दोष का नाम तथा उसका अर्थ लिखिए । ६) तीर्थंकर कौन-कौनसे दोषों से रहित होते हैं ? (अठारह दोषों के नाम) ७) तीर्थंकर क्या मनुष्य हैं या ईश्वर के अवतार हैं ? (एक वाक्य) ८) तीर्थंकर बार बार जन्म क्यों नहीं लेते ? (तीन-चार वाक्य शिक्षक लिखकर दें ।) ९) तीर्थंकर और अन्य मुक्त जीवों में कौनसा भेद है ? (चार-पाँच वाक्यों में शिक्षक लिखकर दे ।) १०) तीर्थंकरों में कौनसी यौगिक शक्तियाँ एवं सिद्धियाँ होती हैं ? (शिक्षक वर्णन करें । लेखी परीक्षा में नहीं पूछा जाएगा ।)
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७. दान (जैनत्व की झाँकी - पाठ १२)
१) दान का महिमा किस प्रकार बताया गया है ? (शिक्षक समझाए । प्रश्न नहीं पूछा जाएगा ।) २) भ. महावीर ने मुनिजीवन के स्वीकार के पहले कितने कालतक, कितना दान किया ? (एक वाक्य) ३) जैन-धर्म में दान के चार प्रकार कौनसे बताएँ हैं ? (एक वाक्य) ४) सच्चे साधुओं को आहारदान देने से कौनसा फल मिलता है ? (एक वाक्य) ५) एक हिंदी कहावत के अनुसार ‘पहला सुख' कौनसा है ? ६)'ज्ञानदान' की तुलना किससे की गयी है ? (एक वाक्य) ७) ज्ञान और दया के बारे में भ. महावीर ने क्या कहा है ? (प्राकृत वाक्य दीजिए ।) ८) अभयदान' का अर्थ लिखिए । (एक वाक्य) ९) दानशूरता के तौर पर जैन कथासाहित्य में कौनसे तीन व्यक्ति प्रसिद्ध हैं ? १०) भ. महावीर के अनुसार दुःखी को देखकर क्या करना चाहिए ? (एक वाक्य) ११) जैन-धर्म के अनुसार क्या गरीबी ईश्वरीय दंड है ? (शिक्षक सात-आठ वाक्यों में समझाए । प्रश्न नहीं पूछा जाएगा ।)
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८. भोजन का विवेक (जैनत्व की झाँकी - पाठ १३)
१) भारत के प्राचीन शास्त्रकारों ने भोजन के संबंध में कौन-कौनसे नियमों का विधान किया है ? (सात-आठ छोटे-छोटे वाक्य शिक्षक लिखकर दें ।) २) जैन-धर्म में रात्रिभोजन का निषेध क्यों किया गया है ? (सात-आठ छोटे-छोटे वाक्य शिक्षक लिखकर दें।)
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९. तत्त्व-विवेचन (जैनत्व की झाँकी- पाठ १८)
१) कौनसी वस्तु को तत्त्व कहा जाता है ? (एक वाक्य) । २) पहली शैली के अनुसार दो तत्त्व कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ३) नौ तत्त्वों के नाम लिखिए । (एक वाक्य) ४) सात तत्त्वों में कौनसे दो तत्त्व जोडकर नौ तत्त्व बताए हैं ? (एक वाक्य) ५) जीव का मुख्य लक्षण लिखिए । (एक वाक्य) ६) त्रस और स्थावर जीवों के कुछ उदाहरण लिखिए । (एक वाक्य) ७) षद्रव्यों में से कौन-कौनसे द्रव्य अजीव हैं ? (एक वाक्य) ८) पुण्य और पाप किसे कहते हैं ? (एक वाक्य) ९) पुण्य के कुछ कारण लिखिए । (दो-तीन वाक्य) १०) पाप के कुछ कारण लिखिए । (दो-तीन वाक्य) ११) आस्रव' शब्द की परिभाषा लिखिए । (एक वाक्य) १२) आस्रव' के पाँच भेद लिखिए । (एक वाक्य) १३) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इन शब्दों के संक्षेप में अर्थ लिखिए । (पाँच छोटे-छोटे वाक्य) १४) आत्मा को 'शुभयोग-आस्रव' कब होता है ? (एक वाक्य) १५) आत्मा को 'अशुभयोग आस्रव' कब होता है ? (एक वाक्य) १६) 'कर्मबंध' की परिभाषा दीजिए । (एक वाक्य) १७) कर्मों के स्वरूप, समय, मंद-तीव्रता तथा क्षेत्र के अनुसार चार प्रकार लिखिए । (एक वाक्य) १८) संवर' का अर्थ क्या है ? (एक वाक्य) १९) आस्रव' का विरोधी तत्त्व कौनसा है ? (एक वाक्य)
) आस्रव' और 'संवर' तत्त्व समझाने के लिए कौनसा रूपक दिया जाता है ? (एक वाक्य) २१) 'निर्जरा' तत्त्व का वर्णन बोलचाल की भाषा में कीजिए । (एक-दो वाक्य) २२) विवेकपूर्वक साधना या तप करना कौनसे प्रकार की निर्जरा है ? (एक वाक्य) २३) बिना ज्ञान तथा तप से कौनसे प्रकार की निर्जरा होती रहती है ? (एक वाक्य) २४) 'बाह्यतप' के छह भेद संक्षिप्त अर्थसहित लिखिए । २५) आभ्यंतर तप' के छह भेद संक्षिप्त अर्थसहित लिखिए । २६) 'मोक्ष' का सीधा अर्थ लिखिए । (एक वाक्य) २७) कर्मों से आंशिक मुक्ति और सर्वथा मुक्ति को क्या कहते हैं ? (एक वाक्य) २८) आत्मा के विकास की पूर्ण अवस्था को क्या कहते हैं ? (एक वाक्य)
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१०. विभिन्न दर्शनों का समन्वय (जैनत्व की झाँकी - पाठ २२)
१) तत्त्वज्ञान की स्वयंपूर्ण विचारधारा को क्या कहते हैं ? ('दर्शन' कहते हैं ।) २) प्राचीन काल से भारत में कौनसी पाँच विचारधाराएँ मौजूद थी ? (एक वाक्य)
३) निम्नलिखित वाक्य, प्रमुखता से कौनसे वाद के निदर्शक है, यह लिखिए । अ) जुडवे बच्चों में से एक बुद्धिमान और दूसरा साधारण होता है । ब) दही बिलोने से मक्खन निकलता है, पानी से नहीं । क) कोठे में रखी हुई गुठली में क्या आम का पेड लग जायेगा ? ड) ग्रीष्म काल में ही सूर्य तपता है । इ) आम की गुठली में से ही आम का वृक्ष पैदा होगा । फ) कोई भी आदमी होनी को अनहोनी नहीं कर सकता । ग) राजा भी कभी रंक बनता है और रंक भी कभी राजा । च) प्रकाशकिरण फैलाना सूर्य की खासियत है । छ) तारों का स्वभाव है, रात में चमकना । ज) प्रकृति के अटल नियमों को कोई टाल नहीं सकता ।
४) इन पाँचों वादों का अंतर्भाव भ. महावीर ने कौनसे वाद में किया है ? (एक वाक्य) ५) आम की गुठली के उदाहरण से समन्वयवाद समझाइए । (पाँच-छह वाक्यों में लिखिए)
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११. अनेकान्तवाद (जैनत्व की झाँकी - पाठ २३)
१) 'अनेकान्तवाद' शब्द का सामान्य अर्थ लिखिए । (एक वाक्य) २) 'अनेकान्तवाद' का केवल एक शब्द में अर्थ समझाइए । (एक वाक्य) ३) कौनसे दो सिद्धान्तों को एक सिक्के के दो पहलू माने हैं ? (एक वाक्य) ४) अनेकान्तदृष्टि को भाषा में उतारने को क्या कहते हैं ? (एक वाक्य) ५) वस्तुस्वरूप के चिंतन करने की विशुद्ध और निर्दोष शैली कौनसी है ? (एक वाक्य) ६) 'वस्तु अनंत-धर्मात्मक है', फल के उदाहरण से समझाइए । (पाँच-छह छोटे-छोटे वाक्य) ७) प्रत्येक वस्तु में कौनसे तीन गुण स्वभावत: रहते हैं ? (एक वाक्य) ८) सोने के उदाहरण से त्रिपदी समझाइए । (चार-पाँच वाक्य) ९) कौनसी अपेक्षा से हर एक वस्तु नित्य है और कौनसी अपेक्षा से अनित्य है ? (एक वाक्य)
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१२. ईश्वर जगत्कर्ता नहीं (जैनत्व की झाँकी - पाठ २४)
१) विश्व के कौन-कौनसे धर्म ईश्वर को जगत् का कर्ता-धर्ता मानते हैं ? (एक वाक्य) २) विश्व के बारे में जैन-धर्म की क्या मान्यता है ? (एक वाक्य) ३) ईश्वर का अस्तित्व मानने पर कौनसी कठिनाई उपस्थित होती है ? (दो-तीन वाक्यों में शिक्षक लिखकर दें।) ४) जगत्-कर्ता ईश्वर निराकार मानने से कौनसी समस्या उत्पन्न होती है ? (दो-तीन वाक्य) ५) दुनिया के बारे में मुस्लीम-धर्म में क्या कहावत प्रचलित है ? (एक वाक्य) ६) ईश्वर ने अपनी इच्छा से जगत् बनाया', यह मानने में कौनसी समस्या है ? (एक वाक्य) ७) ईश्वर को दयालु मानने पर कौनसी कठिनाई उत्पन्न होती है ? (एक-दो वाक्य) ८) जैन दर्शन में प्रभु-भक्ति का क्या स्थान है ? (तीन-चार वाक्यों में शिक्षक लिखकर दे ।)
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१३. आत्मा और उसका स्वरूप (जैनत्व की झाँकी - पाठ २७)
१) आत्मा में कौन-कौनसे गुण न होने से उसे 'अमूर्त' कहा है ? (एक वाक्य) २) संसार में आत्मा कितने हैं ? (एक वाक्य) ३) आत्मा के मुख्य दो भेद कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ४) संसारी जीवों के गति की अपेक्षा से भेद कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ५) संसारी जीवों के जाति की अपेक्षा से भेद कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ६) भावों की अपेक्षा से आत्मा के तीन भेद कौनसे हैं ? (एक वाक्य) ७) 'बहिरात्मा' व्यक्तियों का वर्तन किस प्रकार का होता है ? (तीन-चार वाक्य) ८) कौन-कौनसे व्यक्तियों को अंतरात्मा' कहा है ? (एक वाक्य) ९) व्यक्ति ‘परमात्मा' कब बनता है ? (एक वाक्य) १०) परमात्मा' के दो भेद लिखिए । (एक वाक्य) ११) बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा किस-किसका प्रतिनिधि है ? (तीन वाक्य)
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१४. वनस्पति में जीव (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३०)
१) कौनसे आगम ग्रंथ में मानव और वनस्पति की तुलना की है ? (एक वाक्य) २) आचारांग में दी हुई मानव और वनस्पति की तुलना सात-आठ वाक्यों में लिखिए । ३) 'डॉ. जगदीशचंद्र बसु' ने वनस्पति सृष्टि के बारे में कौनसा तथ्य विज्ञानद्वारा सिद्ध किया ? (एक वाक्य) ४) आघात होने पर वृक्ष कौनसी प्रतिक्रिया देता है ? (एक वाक्य) ५) उत्तेजक पदार्थों का कौनसा प्रभाव पौधोंपर दिखायी देता है ? (एक वाक्य) ६) 'टेलीग्राफ प्लेंट' रात में कौनसा वर्तन करता है ? (एक वाक्य) ७) मांसाहारी पौधों की लगभग कितनी जातियाँ पायी जाती हैं ? (एक वाक्य) ८) पौधों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए ? (तीन-चार वाक्य)
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१५. जैन-संस्कृति में सेवा-भाव (जैनत्व की झाँकी - पाठ ३१)
१) परस्परोपग्रहो जीवानाम्', इस सूत्र का अर्थ एक-दो वाक्यों में लिखिए । (प्रत्येक प्राणी एक दूसरे की सेवा करें, सहायता करें और जैसी भी अपनी योग्यता तथा शक्ति हो, उसी के अनुसार दूसरों के काम आएँ ।)
२) जैन गृहस्थ का प्रात:काल में प्रथम संकल्प कौनसा होना चाहिए ? (दो-तीन वाक्य) ३) जैन-धर्म में माने गये मूल आठ कर्मों के नाम लिखिए । ४) 'मोहनीय' कर्म बडा भयंकर क्यों है ? (एक वाक्य) ५) स्थानांगसूत्र' की आठ महाशिक्षाओं में पाँचवी शिक्षा का अर्थ लिखिए । (एक-दो वाक्य) ६) वैयावृत्य' याने 'सेवा' करने से कौनसा उच्च फल प्राप्त होता है ? (एक वाक्य) ७) जैन इतिहास में सेवा के आदर्श स्वरूप दिये हुए पाँच व्यक्तियों के नाम लिखिए ।
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१६. प्राकृत भाषा का व्याकरण
(प्राथमिक परिचय)
'जैनॉलॉजी प्रवेश' पाठ्यक्रम के प्रथमा से पंचमी तक के किताबों में हमने कुछ प्राकृत वाक्य सीखें और उके अर्थ भी ध्यान में रखने का प्रयत्न किया । जैनॉलॉजी परिचय' पाठ्यक्रम में हम प्राकृत के व्याकरणसंबंधी अधिक जानकारी लेंगे ताकि भविष्य में जब कभी आगम ग्रंथ पढने का मौका मिलें तब उनका अर्थ समझने में आसानी होगी
'प्राकृत' शब्द का अर्थ है सहज, स्वाभाविक बोलचाल की भाषा । भ. महावीर ने अपने उपदेश संस्कृत भाषा में नहीं दिये । सब समाज को समझने के लिए उन्होंने बोलीभाषा अपनायी । भ. महावीर के उपदेश ‘अर्धमागधी' नाम की भाषा में थे । वह भाषा समझने में सुलभ थी । उसका व्याकरण भी संस्कृत भाषा जैसा जटिल नहीं था ।जैन आचार्यों ने कई सदीतक प्राकृत भाषा में ग्रंथ लिखे । प्राकृत भाषा एक नहीं थी । प्रदेश के अनुसार वे अनेक थी । आज भी हम हिंदी, मराठी, मारवाडी, गुजराती, राजस्थानी, बांगला आदि भाषाएँ बोलते हैं, वे आधुनिक प्राकृत भाषाएँ ही हैं।
(अ) नाम - विभक्ति (Case-declesion) प्राकृत वाक्यों में मुख्यत: दो घटक होते हैं - नाम (noun) और क्रियापद (धातु)(verb) । नामों का वाक्य में उपयोग करने के लिए उसे कुछ प्रत्यय लगाने पडते हैं । उसे ‘विभक्ति' (Case-declesion) कहते हैं । प्राकृत में सामान्यत: सात विभक्ति हैं - प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, संबोधन । हर एक विभक्ति का अर्थ दूसरी विभक्ति से अलग होता है । इसलिए कि हमारे मन के यथार्थ भाव हम दूसरे व्यक्ति
हर एक नाम के दो वचन होते हैं - एकवचन (singular) और अनेकवचन (बहुवचन) (plural)
प्राकृत भाषा में संस्कृत या मराठी की तरह तीन लिंग (gender) होते हैं - पुंलिंग (masculine), स्त्रीलिंग (feminine), नपुंसकलिंग (neutor) | हिंदी में दो लिंग होते हैं - पुंलिंग और स्त्रीलिंग ।
देव, राम, जिण, धम्म, वाणर, सीह, सूरिय, चंद - ये सब अकारान्त (अंत में 'अ' स्वर आनेवाले) पुंलिंगी नाम हैं । 'देव' शब्द की विभक्तियाँ निम्नलिखित प्रकार से लिखी जाती हैं -
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विभक्ति
प्रथमा (Nominative)
द्वितीया (Accusative)
तृतीया (Instrumental)
पंचमी (Ablative)
षष्ठी (Genitive)
सप्तमी (Locative)
संबोंधन (Vocative)
अकारान्त पुं. 'देव' शब्द
एकवचन
देवो, देवे
(एक देव)
देवं
(देव को)
देवेण, देवेणं
(देव ने)
देवा, देवाओ
(देव से)
देवस्स
(देव का)
देवे, देवंसि, देवम्मि
(देव में, देव पर)
देव
(हे देव !)
अनेकवचन
देवा
(अनेक देव)
देवे, देवा
(देवों को)
देवेहि, देवेहिं
(देवों ने)
देवेहिंतो
(देवों से)
देवाण, देवाणं
(देवों का)
देवेसु, देवे
(देवों में, देवों पर)
देवा
(हे देवों !)
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नाम - विभक्ति (Case declesion)
१) प्रथमा विभक्ति : (Nominative) कर्ताकारक (यहाँ वाक्य का 'कर्ता' प्रथमा विभक्ति में है।) १) अरविंदो गच्छइ ।
- अरविंद जाता है।
२) नेहा भुंजइ ।
- नेहा भोजन करती है ।
३) फलं पडइ ।
- फल पडता है।
२) द्वितीया विभक्ति : (Accusative) कर्मकारक (यहाँ वाक्य का 'कर्म' द्वितीया विभक्ति में है । ) १) अहं पोत्थगं पढामि ।
- मैं किताब पढता हूँ / पढती हूँ।
२) निवो गाम रक्खइ ।
- राजा गाँव की रक्षा करता है ।
३) सिहो तिणं न भक्खइ ।
- सिंह घास नहीं खाता ।
३) तृतीया विभक्ति : (Instrumental) करणकारक (यहाँ क्रिया का 'साधन' तृतीया विभक्ति में है।) १) तुम हत्थेण लिहसि ।
- तुम हाथ से लिखते हो ।
२) अम्हे कण्णेहिं सुणेमो ।
- हम कानों से सुनते हैं।
३) छत्तो विणएण सोहइ । ___ - विद्यार्थी नम्रता से शोभता है ।
४) पंचमी विभक्ति : (Ablative) अपादानकारक (चीज जिस स्थल से दूर जाती है, उस स्थलकी विभक्ति 'पंचमी' है ।) १) हत्थाओ थाली पडिया ।
- हाथ में से थाली गिर पडी ।
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२) कण्हो महुराओ निग्गओ ।
- कृष्ण मथुरा से निकला ।
३) रुक्खेहिंतो फलाइं पडंति ।
- वृक्षों से फल गिरते हैं।
५) षष्ठी विभक्ति : (Genitive) संबंधकारक (दो व्यक्ति या चीजों का 'संबंध' षष्ठी विभक्ति से सूचित होता है
१) रामस्स जणणी कोसल्ला । - राम की माता कौशल्या है ।
२) अज्जुणो दोणस्स सीसो आसी । -- अर्जुन द्रोण का शिष्य था ।
३) तस्स घरे पोत्थगाणं संगहो अत्थि ।
- उसके घर में किताबों का संग्रह है।
६) सप्तमी विभक्ति : (Locative) अधिकरणकारक (जिस क्षेत्र या स्थल में रहना है, उसकी विभक्ति सप्तमी'
१) अम्हे भारहे वसामो ।
- हम भारत में रहते हैं।
२) सुगो पंजरे बद्धो ।
- तोता पिंजडे में बंद है।
३) दाणेसु अभयदाणं सेहूं।
- दानों में अभयदान श्रेष्ठ है ।
७) संबोधन विभक्ति : (Vocative) निमंत्रण, संबोधन (किसी को बुलाने के लिए 'संबोधन' विभक्ति होती है ।) १) अरविंद, तत्थ गच्छ ।
- अरविंद, तू वहाँ जा ।
२) महावीर, मं रक्खसु ।
- हे महावीर, मेरा रक्षण करो ।
३) सामली, माउयं वंदसु ।
- श्यामली, माता को वंदन कर ।
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(ब) क्रियापद के प्रत्यय (Verb - declesion)
भाषा में वाक्य बनने के लिए दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है 'क्रियापद' । १) वाक्य में क्रियापद प्रयुक्त करने के लिए प्रथमतः ‘काल' देखना पडता है । प्राकृत में तीन मुख्य काल हैं - वर्तमानकाल (present tense), भूतकाल (past tense) और भविष्यकाल (future tense) । इसके अतिरिक्त 'आज्ञार्थ और 'विध्यर्थ' भी होते हैं ।
२) क्रिया के रूप प्रयोग करते हुए एकवचन (singular) या अनेकवचन (plural) का उपयोग करना पडता है ।
३) क्रिया के रूप हमेशा प्रथमपुरुष (first Person), द्वितीय पुरुष (second Person), या तृतीय पुरुष (thirdPerson) में प्रयुक्त होते हैं ।
इस पाठ में हम वर्तमानकाल के प्रत्यय, कुछ क्रियापद तथा वर्तमानकाल के वाक्य दे रहे हैं । वाक्य पढते सम्म क्रिया, वचन तथा पुरुष का विशेष ध्यान रखें ।
क्रियापद
वर्तमानकाल के प्रत्यय एकवचन
पुरुष
अनेकवचन
प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष
नि
अंति
वर्तमानकाल
पुरुष
धातु (क्रियापद) : गच्छ (जाना)
एकवचन प्रथम पुरुष
गच्छामि द्वितीय पुरुष
गच्छसि तृतीय पुरुष
गच्छइ
अनेकवचन गच्छामो गच्छह गच्छंति
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क्रियापद : भक्ख (खाना)
पुरुष
प्रथम पुरुष
द्वितीय पुरुष
तृतीय पुरुष
१) वस रहना । अहं गिहे वसामि ।
- मैं घर में रहता हूँ ।
२) उवविस - बैठना ।
अम्हे आसणे उवविसामो ।
- हम आसन पर बैठते हैं ।
३) गुंफ - गूँथना ।
तुमं मालं गुंफसि ।
- तू माला गूँथता है ।
४) जीव - जीना ।
तुम्हे सुहेण जीवह । - तुम सुखपूर्वक जीते हो ।
५) सुव - सोना ।
सो गाढं सुवइ ।
- वह गहरी नींद सोता है ।
६) पढ - पढना ।
ते पोत्थयं पढंति ।
वे किताब पढते हैं ।
सर्वनामसहित वर्तमानकाल के क्रियारूप
एकवचन अहं भक्खामि
(मैं खाता हूँ ।)
तुमं भक्ख
(तू खाता है ।)
सो भक्ख
( वह खाता है ।)
अनेकवचन अम्हे भक्खामो
(हम खाते हैं ।)
तुम्हे भक्
(तुम खाते हो ।)
भक्त
(वे खाते हैं ।)
कुछ प्राकृत क्रियापद (धातु), उनके अर्थ तथा वाक्य
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७) भुंज - खाना ।
अहं भोयणं भुंजामि ।
- मैं खाना खाता हूँ ।
८) रम - रमना ।
अम्हे उज्जाणे रमामो ।
- हम उद्यान में रमते हैं ।
९) खिव - फेंकना । कंदुयं खिसि ।
-
• तू गेंद फेंकता है ।
१०) कील - खेलना, क्रीडा करना ।
तुम्हे संझाए कीलह ।
- तुम संध्यासमय में खेलते हो ।
११) आगच्छ - आना ।
रामो वणाओ आगच्छइ । - राम वन से आता है ।
१२) पुच्छ - पूछना |
छत्ता आयरियं पुच्छंति ।
• विद्यार्थी आचार्य से पूछते हैं ।
-
१३) निव जणा गिहे निवसंति ।
- लोग घर में रहते हैं ।
- निवास करना ।
१४) हो - होना ।
जिणाणं वयणं असच्चं न होइ ।
- जिनदेवों का वचन असत्य नहीं होता ।
१५) नम - नमस्कार करना । अम्हे महावीरं वंदामो ।
- हम महावीर को वंदन करते हैं ।
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________________ व्याकरण पाठ अभ्यास 1) इस पाठ के अंतर्गत आये हुए प्राकृत वाक्य तथा हिंदी अर्थों में से कोई भी वाक्य या अर्थ परीक्षा में पूछा जायेगा 2) पाठ में अंतर्भूत सभी अकारान्त पुल्लिंगी शब्द 'देव' शब्द के अनुसार चलाएँ और याद करें / * परीक्षा में इस प्रकार का प्रश्न पूछा जायेगा / जैसे कि - (अधोरेखित शब्दोंकी विभक्ति लिखिए / ) 1) निवो गामं रक्खइ / 2) रामस्स जणणी कोसल्ला / 3) पाठ में अंतर्भूत सभी क्रियापदों के वर्तमानकाल के रूप ‘गच्छ' क्रियापद के अनुसार चलाएँ / * परीक्षा में इस प्रकार का प्रश्न पूछा जायेगा / जैसे कि- (अधोरेखित क्रियापदों के योग्य क्रियारूप लिखिए / ) 1) सो गाढं (सुव)। 2) तुम्हे सुहेण (जीव) / 3) अहं गिहे (वस)। **********